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सम्पूर्ण चाणक्य नीति
सम्पूर्ण चाणक्य नीति
ा याकार
व म शमा
संपादन—संवधन
काका ह रओ३म्
वेदांताचाय (शां.वे.) एम.ए. (मनो व ान)
मनोज प लकेश स
© सवा धकार काशकाधीन
काशक :
मनोज प लकेश स
761, मेन रोड, बुराड़ी,
द ली-110084
फोन : 27611116, 27611349, फै स : 27611546
मोबाइल : 9868112194
ईमेल : inho@manojpublications.com
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वेबसाइट : www.manojpublications.com
शो म :
मनोज प लकेश स
1583-84, दरीबा कलां, चांदनी चौक, द ली-110006
फोन : 23262174, 23268216, मोबाइल : 9818753569
ISBN : 978-81-310-1774-6
थम सं करण : 2013
संपूण चाण य नी त, चाण य सू और जीवन-गाथा : व म शमा
काशक य
नी त का शा दक अथ है—जो आगे ले जाए। इस कार अपने ल य को ा त
करने के लए जो नयम या स ांत नधा रत कए जाते ह, वह भी नी त श द म समा हत
ह। ‘सु व था’ भी नी त का अथ है। इसके संदभ गत, सामा जक और राजनी तक
अलग-अलग या कुल मलाकर सब एक साथ भी हो सकते ह। इस तरह ‘नी त’ का इ तहास
य द दे ख, तो इसके अ त व को मानव स यता के वकास के साथ ही वीकार करना
पड़ेगा। अपने े , अपनी जा त और अपने अ त व को बनाए रखने और वक सत करने
के प म इसे समूची कृ त और इसके सभी ा णय म भी दे खा जा सकता है।
नी त शा के आचाय क वैसे तो ब त लंबी परंपरा है ले कन शु ाचाय, आचाय
बृह प त, महा मा व र और आचाय चाण य इनम मुख ह। आचाय चाण य ने ोक
और सू दोन प म नी त शा का ा यान कया है। अपने ंथ के ारंभ म ही वे
अपने पूववत आचाय को नमन करते ए प कर दे ते ह क वो कुछ नया नह बता रहे ह,
वे उ ह स ांत का तपादन कर रहे ह, ज ह वरासत म उ ह ने ा त कया है और जो
बदलते प रवेश म भी अ यंत ावहा रक ह। आचाय य क राजनी त और अथशा के
श क ह, इस लए वे जानते ह श ा क वा त वकता को। वो जानते ह क पु तक पर
अनुभव हावी आ करता है, और यह भी क ंथ का नमाण अनुभव का ही संकलन और
सं ह है इस लए इन रचना के त कतापन का अ भमान कैसा!
आचाय चाण य का जीवन पढ़ने से प हो जाता है क स य क समझ रखना ही
पया त नह है, ज री है क अ याय के व संघष भी कया जाए। तट थ रहना साहसी
और परा मी का वभाव नह होता। लोग का मानना है क स जन का
वभाव कु टलता के यो य नह होता। उसके लए तो कु टलता का नाटक कर पाना भी
संभव नह है। ले कन चाण य ने स कर दया क अपने वभाव को बनाए रखते ए
अथात् भीतर से स जन बने रहते ए भी को उ ह क भाषा म जवाब दया जा सकता
है। ीकृ ण और ीराम जैसे महान पु ष इसका उदाहरण ह। हां, इसके लए मन को वशेष
कार से श त करना पड़ता है। ीकृ ण ने धम यु म भी ‘अधम’ का योग कया।
धमराज यु ध र को भी झूठ बोलने के लए बा धत कया। य ? इस लए क ‘शठ से
शठता’ का वहार करना चा हए। ऐसा करते समय वचारणीय यह है क वह वहार या
त या वाथ के लए क जा रही है या क उसम जन हत क भावना समा हत है।
का वनाश होना ही चा हए, भले ही साधन कोई भी हो। अनास भाव से कया गया कम
पाप-पु य क सीमा से परे होता है—ऐसा दाश नक स ांत है। भगवान ीकृ ण ने गीता म
अजुन को यही उपदे श दया है।
उपरो स य को समझने के लए मह ष व ा म के वो नदश अ यंत मह वपूण
ह, जो उ ह ने स ा म म वेश करने से पहले राम को दए थे। उ ह ने कहा था, “राम!
सावधान हो जाओ। अब घोर जंगल ारंभ हो चुका है। यहां सतक रहना इस लए आव यक
है क रा स कसी भी समय छु पकर घात कर सकते ह। और इनक वा मनी ताड़का बना
कसी श के हमारे माग को रोक कर कभी भी खड़ी हो सकती है। तब तुम बे हचक
उसका संहार कर दे ना। अनाय से यु करते समय आय नयम का पालन करना वप म
डाल सकता है। बु मान को चा हए क वप को आने ही न दे ।” व ा म क बात सही
थी। रा स को धनुष-बाणधारी य कुमार के आने का समाचार मला और उ ह ने
अपनी वा मनी के साथ मलकर उन पर आ मण कर दया। ीराम ने मह ष के
नदशानुसार अपना काय कया। उ ह ने ताड़का को दे खते ही, बना यह सोचे क वह ी है
और नह थी है, एक ही बाण से ढे र कर दया।
चाण य का कौ ट य बनना जन हत के लए था। उनका व था अखंड भारत।
इसी के लए उ ह ने श ु को उ ह क चाल से मात द । आचाय ारा चलाया गया
अ भयान ‘आ मर ा’ का एक अं तम यास था। इससे चूकने का अथ था भारत के
अ त व को समा त कर दे ना। जरा सोचकर दे खो, य द आचाय ने त कालीन प र थ तय
का वरोध न कया होता, वक प के प म चं गु त को था पत न कया होता, तो आज के
भारत का व प कैसा होता। नंद के धान अमा य को चं गु त के साथ जोड़ना और उसे
ग रमामं डत करते ए धान अमा य के पद पर त त करना आचाय क अ तम सूझ-
बूझ और दय क वशालता का ही तो उदाहरण है। गुणी को गुण का स मान करना
चा हए। उसके लए गत मतभेद मायने नह रखते, मह वपूण होता है जन हत।
आचाय ारा ल खत नी तशा के ंथ को पढ़कर लगता है क वे ब आयामी
व के प धर थे। इसी लए उ ह ने वणा म के कत क चचा भी थान- थान पर
क है। ‘नी त’ म धम और अ या म को आचाय ने पूरा थान दया है। उनक म
राजनी त य द धम से र चली जाए, तो उसके भटक जाने क संभावना सौ तशत हो
जाती है। धमनी त को सोच क ापकता दान करती है।
यहां एक बात प प से हम समझ लेनी चा हए क आचाय के समय क
मा यताएं और सामा जक व था आज से कई मायने म बलकुल भ है। जा त-वण
व था अब ब त कमजोर हो चुक है। ंथ म लखे गए कुछ श द और मा यता को
लेकर व थ त या करना अ छ बात है, ले कन उस संदभ म मूल ंथ म घटाने-बढ़ाने
का रा ह करना हमारी नासमझी को ही द शत करता है। इ तहास के कड़वे-मीठे त य
को उधेड़ कर फका नह जा सकता। बदलाव के लए समझ और धैय क आव यकता है।
इसी लए आज के समय म आप जनक कहे जाने वाले अंश को बना छे ड़े उस पर अलग
से ट पणी दे द गई है। उन पर आप बु पाठक के सुझाव का हा दक वागत है।
ोक को याद रखना क ठन काय है ले कन ‘सू ’ इस मायने म मह वपूण ह। 585
सू को कंठा करने के लए य द रोज एक घंटे का समय दया जाए, तो दो-चार महीने म
उ ह आसानी से आ मसात् कया जा सकता है। आ म चतन के समय ये सुगमता से
मृ तपटल पर आ जाते ह। इसी बात को यान म रखते ए अलग से ‘सू ’ को दया गया
है। इनका योग पर पर बातचीत या क भाषण आ द म करके आप अपने वक
ग रमा को भी लोग के बीच था पत कर सकते ह। हम व ास है क यह ंथ आपके
व को सुसंग ठत करने तथा नखारने म मह वपूण भू मका नभाएगा।
चाण य नी त
अथ थमोऽ यायः
अथ तीयोऽ यायः
अथ तृतीयोऽ यायः
अथ चतुथ ऽ यायः
अथ पंचमोऽ यायः
अथ ष ोऽ यायः
अथ स तमोऽ यायः
अथ अ मोऽ यायः
अथ नवमोऽ यायः
अथ दशमोऽ यायः
अथ एकादशोऽ यायः
अथ ादशोऽ यायः
अथ योदशोऽ यायः
अथ चतुदशोऽ यायः
अथ पंचदशोऽ यायः
अथ षोडशोऽ यायः
अथ स तदशोऽ यायः
चाण य सू
चाण य जीवन गाथा
● व ाथ चाण य ● व ेषक चाण य ● ा यापक चाण य ● आं भक क कथा ● पु
(पोरस) के साथ यु ● अपमा नत चाण य ● तशोधक चाण य ● नंद क कहानी ●
योजनाकार चाण य ● कूटनी त चाण य ● धनानंद का अंत ● मगध का यु ● नी त
चाण य ● संकट त चाण य
चाण य के शा
● अथशा ● चाण य नी त ● पंचतं कथाएं
चाण य नी त
जस कार व ान म सु न त स ांत क खोज क जाती है और उनक पु
बार-बार कए गए योग से एकसमान ा त न कष से होती है, उसी कार नी तशा क
भी एक सु न त परंपरा है। इसके न कष भी येक थ त-प र थ त म एकसमान ह।
इसी लए आचाय चाण य ने नी तशा को व ान कहा है। वे इस ान के ारा ‘सव ’ होने
क बात भी कहते ह। यहां सव होने का अथ है अतीत, वतमान और भ व य का व ेषण
करने क मता ा त कर लेना।
मनसा च ततं काय वाचा नैव काशयेत्।
म ेण र येद ् गूढं काय चाऽ प नयोजयेत्।।
मन से सोचे ए काय को वाणी ारा कट नह करना चा हए, परंतु
मननपूवक भली कार सोचते ए उसक र ा करनी चा हए और चुप रहते
ए उस सोची ई बात को काय प म बदलना चा हए।
इ या ण च संय य बकवत् प डतो नरः।
दे शकालबलं ा वा सवकाया ण साधयेत।् ।
बु मान को अपनी इ य को वश म करके समय के अनु प
अपनी मता को तौलकर बगुले के समान अपने काय को स करना
चा हए
पर पर य ममा ण ये भाष ते नराधमाः।
त एवं वलयं या त व मीकोदरसपवत्।।
जो लोग एक- सरे के भेद को कट करते ह, वे उसी कार न हो
जाते ह जैसे बांबी म फंसकर सांप न हो जाता है।
तावना
“ या कर रहे हो?”
“कुश तो प व ह, इन पर ोध करना अ छा नह ।”
“जो क प ंचाए, उसे जीने का हक नह । उसे न करना ही पु य है।”*
“ले कन कुश तो न नह होते, अवसर पाकर फर फैल जाते ह।”
“नह ! म ऐसा नह होने ं गा। इसक दोबारा होने क सभी संभावना को
जलाकर राख कर ं गा। श ु को नमूल करने पर व ास करता ं म।”
बालक के पैर म कुश नामक घास चुभी थी। अतः उसने कुश को ही नमूल
कर दया। खोद-खोदकर उसक जड़ म मठा डालकर बची-खुची छोट -छोट जड़
को भी जला दया था उसने।
यो य आचाय ने बालक म छपी संभावना को पहचान लया था। ऐसा
आ म व ास और बल इ छाश ही व को ऊंचाइय पर प ंचाती है। ऐसे म
य द जनसंवेदना का पुट मल जाए, तो इ तहास पु ष ही बनता है और ऐसा ही
आ भी। लगभग दो हजार वष पूव भारत के इ तहास को जस बालक ने एक व णम
मोड़ दया, वही बालक बड़ा होकर चाण य बना। उसका असली नाम था—
व णुगु त। उसक कूटनी तक वल णता क वजह से लोग उसे कौ ट य भी कहते
थे।
यह घटना तब क है, जब व के मान च पर कुछ दे श का कह कोई अता-
पता नह था, ले कन भारत क स यता और सं कृ त अपने पूण यौवन पर थी। धम,
दशन और अ या म क ही नह , राजनी त तथा अथशा जैसे वषय क श ा लेने
के लए भी वदे श से व ाथ भारत भू म पर आया करते थे। यहां त शला और
नालंदा जैसे व व ालय थे। आचाय चाण य त शला म राजनी त तथा अथशा
के आचाय थे।
भारत क सीमाएं उस समय अफगा न तान से लेकर बमा ( यांमार) तक तथा
क मीर से लेकर क याकुमारी तक फैली ई थ । उस समय भारत सोने क च ड़या
था। वदे शी आ ांता को भारत क समृ खटक रही थी ले कन उनम ह मत नह
थी क वे ह तान के रणबाकुंर का सामना कर सक। अंततः उ ह ने दान और भेद
क नी त का सहारा लेकर मगध के शासक धमनंद क क मय को पहचान लया और
उसे अपने पाश म भी कस लया था। वतमान के पटना तथा त कालीन पाट लपु के
आसपास फैला पूव-उ र क सीमा को छू ता आ एक वशाल और श शाली
वैभव संप रा य था—मगध। मगध के सहासन पर आसीन धमनंद सुरा-सुंदरी म
इतना डू ब चुका था क उसे राजकाय को दे खने क फुरसत ही नह थी। वह अपनी
मौजम ती के लए जा पर अ याचार करता। जो भी आवाज उठाता, उसे कुचल दया
जाता। चणक को भी जन हत के लए उठाई गई आवाज क सजा मली थी। उस
महान आचाय को मौत के घाट उतार दया गया था।
एक-एक करके ई दय वदारक घटनाएं चणक पु चाण य के दय म
फांस क तरह धंसी ई थ । एक दन जब राजसभा म समूचे आयावत क थ त का
ववेचन करते ए चाण य ने मगधराज धमनंद को उनका कत याद दलाया तो वह
झुंझला उठा। उसने चाण य को दरबार से ध के मारकर नकाल फकने का आदे श
दया। सै नक के चाण य को ध के मारकर दरबार से नकालने क को शश के बीच
चाण य क शखा खुल गई। यह चाण य का ही नह , दे श क उस आवाज का भी
अपमान था, जो अपने राजा के सामने अंधकार म वलीन होते अपने भ व य को
बचाने क गुहार कर रही थी। उसी समय चाण य ने त ा कर ली—‘अब यह शखा
तभी बंधेगी, जब नंदवंश का समूल नाश हो जाएगा।’
चाण य ने अपने ल य को पूरा करने के लए चं गु त को चुना। चं गु त म
छपी संभावना को चाण य ने एक-एक करके तराशा। सोचे ए काय को मू प
दे ना चाण य के लए आसान नह था। मक नयां के छोटे से दे श से ‘ सकंदर’
नामक आंधी क गद भारत क सीमा पर छाने लगी थी। कंधार के राजकुमार
आ भी ने सकंदर से गु त सं ध कर ली थी। पवते र (पोरस) ने सकंदर क सेना
का डटकर सामना कया, ले कन सकंदर क रणनी त ने पांसा पलट दया। सकंदर
क ओर से ई बाणवषा से घबराई पोरस क जुझा गजसेना ने अपनी ही सेना को
र दना शु कर दया। पोरस क हार ई और उसे बंद बना लया गया। सकंदर ारा
यह पूछने पर क उसके साथ कैसा वहार कया जाए, पोरस ने नभ क होकर कहा
क जैसा एक राजा सरे राजा के साथ करता है। सकंदर ने पोरस को उसक वीरता
से स होकर छोड़ भी दया।* इस पराजय के बाद आचाय चाण य क दे खरेख म
चं गु त अपनी सेना को संग ठत करने, उसे तैयार करने और यु क रणनी त बनाने
म पूरी तरह से लग गया। भारी-भरकम श , शर ाण और कवच आ द क जगह
ह के, परंतु मजबूत ह थयार ने ली। शारी रक श के साथ ही बु -चातुय का भी
योग कया गया। चाण य क कूटनी त ने इस थ त म अमोघ ा का काम
कया। कौ ट य ने साम, दान, दं ड एवं भेद—चार नी तय का योग कया और अपने
ल य को ा त कया। नंदवंश का नाश आ। चं गु त ने मगध क बागडोर संभाली।
सकंदर के सेनाप त से यूकस क बेट हेलन का चं गु त के साथ ववाह आ। धमनंद
का धान अमा य ‘रा स’ चं गु त का महाअमा य बना। एक बार फर से भारत
बखरते- बखरते बच गया। सकंदर नाम क आंधी शांत होकर वापस अपने दे श चली
गई। भारत क ग रमा व के सामने फर से नखरकर सामने आई।
और चाण य? उसने नजन एकांत म राजनी त के पूव ंथ का अवगाहन कर
उसम अपने गत अनुभव का पुट दया और अथशा पर एक मह वपूण ंथ
लखा। ‘कौ ट य अथशा ’ नामक यह ंथ राजा, राजक मय तथा जा के संबंध
और रा य- व था के संदभ म अनुकरणीय व था दे ता है। कुछ व ान ने चाण य
क तुलना मै कया वली से क है ले कन भारत के थम धानमं ी पं. जवाहरलाल
नेह इस बात से सहमत नह थे। उनक म चाण य क महानता के मै कया वली
सामने काफ अदने ह। चाण य एक महान अथशा ी, राजनी त के वे ा तथा
कूटनी त होते ए भी महा मा थे। वे सभी कार क भौ तक उपा धय से परे थे।
इसी कारण ‘कामंदक य नी तसार’ म व णुगु त के लए ये पं यां लखी ग —
नी तशा ामृतं धीमानथशा महोदधेः
समुदद् े नम त मै व णुगु ताय वेधसे।।
‘ जसने अथशा पी महासमु से नी तशा पी अमृत का दोहन कया,
उस महा बु मान आचाय व णुगु त को मेरा नमन है।’
जनक याण के लए जो भी जहां से मला, उसे चाण य ने लया और उसके
त कृत ता कट क । वे अपने ंथ का शुभारंभ करते ए शु ाचाय और बृह प त
दोन को नमन करते ह। दोन गु ह। दोन क अपनी-अपनी व श धाराएं ह। अपने
त ा वा य म वे कहते ह—
पृ थ ा लाभे पालने च याव ताथ शा ा ण पूवाचायः था पता न
सं यैक मदमथशा ं कृतम्।
पृ वी क ा त और उसक र ा के लए पुरातन आचाय ने जन
अथशा वषयक ंथ का नमाण कया, उन सभी का सार-संकलन कर इस
अथशा क रचना क गई है।
‘चाण य नी त’ म नी तसार का नचोड़ है। इसका संकेत आचाय ने ारं भक
ोक म ही कर दया है।
ऐसा नह है क चाण य नी त पर इससे पहले काम न आ हो। इसके अनेक
अनुवाद का शत हो चुके ह। यह पु तक उनसे अलग इस मायने म है क इसम मूल
ोक के अथ को समझाते ए उसम छपे रह य क ओर भी संकेत करने का यास
कया गया है। ऐसा करने के पीछे उद्दे य है क पाठक उन न द सू को पकड़कर
क य क गु थयां अपने ढं ग से खोल। इसम इस बात का वशेष यान रखा गया है क
भाषा-शैली ऐसी हो, ता क साधारण भी इस ंथ का लाभ उठा सक। पु तक के
अंत म द गई फल ु त संकेत करती है क ववेकवान् इस ंथ को अव य पढ़े , यथा—
अधी येदं यथाशा ं नरो जाना त स मः।
धम पदे श व यातं कायाकाय शुभाशुभम्।।
इस शा को व धपूवक* अ ययन करने के बाद भलीभां त जान लेता
है क शा म कसे करने यो य कहा जाता है और कसका नषेध है, या शुभ है
और या अशुभ?
यहां पाठक को एक बात वशेष प से समझ लेनी चा हए क इस ंथ म
कुछ ऐसी मा यता का भी ज कया गया है, जो बदलते प रवेश के साथ या तो
बदल रही ह या फर उ ह ने अपना अ त व खो दया है। ंथ क ामा णकता को
बनाए रखने के लए उसके मूल प म कसी भी तरह क छे ड़खानी करना नै तक
से ठ क नह है। मूल को यथा प दे ने का अथ यह कतई नह है क लेखक या
काशक इन वचार या मा यता से सहम त रखते ह। इस लए पाठक को सही
संदभ म ही इस ंथ के क य को समझने क को शश करनी चा हए।
यह भारतीय परंपरा रही है क कसी भी शुभ काय को ारंभ करने से पहले दे वी-
दे वता अथवा भु का मरण कया जाए ता क वह काय बना कसी वधान के
सरलतापूवक स प हो। ‘चाण य नी त’ का मुख उद्दे य यह जानना है क कौन-सा
काम उ चत है और कौन-सा अनु चत। आचाय चाण य ने ाचीन भारतीय नी तशा म
बताए गए नयम के अनुसार ही इसे लखा है। यह पूव अनुभव का सार है। उनका कहना है
क लोग इसे पढ़कर अपने कत और अकत का भली कार ान ा त कर सकगे।
सम-साम यक राजनी त के ान म मनु य अपनी बु का पुट दे कर समय के अनुसार
अ छाई और बुराई म भेद कर सकता है।
सबसे पहले आचाय चाण य ने संग के मह व पर काश डालते ए यह बताया है
क लोग के संसग से बु मान मनु य को ख उठाना पड़ता है। चाण य ने मनु य के
जीवन म धन के मह व को बताया है। उनका कहना है क को संकट के समय के लए
धन का संचय करना चा हए। उस धन से अपने बाल-ब च तथा य क र ा भी करनी
चा हए। इसके साथ उनका यह भी कहना है क को अपनी र ा सव प र करनी
चा हए। जन लोग के पास धन है, वे कसी भी आप का सामना धन के ारा कर सकते
ह, परंतु उ ह यह बात भी भली कार समझ लेनी चा हए क ल मी चंचल है। वह तभी तक
टक कर रहती है, जब तक उसका स पयोग कया जाता है। पयोग आरंभ करते ही
ल मी चलती बनती है।
चाण य कहते ह क को उसी थान पर रहना चा हए जहां उसका स मान हो,
जहां पर उसके भाई-बंधु ह , आजी वका के साधन ह । इसी संबंध म वह आगे कहते ह क
जहां धनवान, वेद-शा को जानने वाले व ान ा ण, राजा अथवा शासन- व था, नद
और वै आ द न ह , वहां भी नह रहना चा हए। नौकर क कायकुशलता का पता तभी
चलता है, जब उ ह कोई काय करने के लए दया जाता है। अपने संबं धय और म क
परी ा उस समय होती है, जब वयं पर कोई आप आती है। गृह थ का सबसे बड़ा सहारा
उसक ी होती है, परंतु ी क वा त वकता भी उसी समय समझ म आती है, जब
पूरी तरह धनहीन हो जाता है।
मनु य को चा हए क वह अ धक लालच म न पड़े। उसे वही काय करना चा हए
जसके संबंध म उसे पूरा ान हो। जस काय के संबंध म उसे ान न हो, उसे करने से हा न
हो सकती है। जस काय का अनुभव न हो, उससे संबं धत नणय लेना क ठन होता है।
नणय य द ले लया जाए, तो संशय क थ त मन को डगमगाती रहती है। ऐसा नणय
कभी भी सही नह होता—‘संशया मा वन य त।’ मन य द संशय म हो तो वह रा ते से
भटकाता ही नह , गहरे और अंधेरे गड् ढे म फकता है। य द आप ऐसे वसा यय का जीवन
दे ख, ज ह ने अपने े म ऊंचाइय को छू आ है, तो आप पाएंगे क उ ह ने अपने काम को
समझने के लए कसी सरे अनुभवी के नीचे काम कया है। कताबी और
ावहा रक जानकारी म जमीन-आसमान का अंतर होता है।
ववाह के संदभ म, चाण य ने कुल के भेदभाव क बात नह मानी है। उनका कहना
है क नीच कुल म उ प क या भी य द अ छे गुण से यु है तो उससे ववाह करने म कोई
हा न नह । जन पर व ास नह करना चा हए उनके बारे म आचाय का कथन है क सह
और बाघ आ द तेज पंज वाले जानवर से र रहना चा हए, ऐसी न दय के आसपास भी
नह रहना चा हए, जनके कनारे क चे ह और जो बरसात आ द के दन म लंबे-चौड़े
मैदान म फैल जाती ह । इसी कार लंबे सीग वाले सांड़ आ द पशु से अपना बचाव
रखना चा हए। जसके पास कोई ह थयार है, उसका भी कभी व ास नह करना चा हए।
।। अथ तीयोऽ यायः ।।
सरा अ याय
‘मनसा च ततं काय’ अथात मन से सोचे ए काय को वाणी
ारा कट नह करना चा हए, परंतु मननपूवक भली कार
सोचते ए उसक र ा करनी चा हए और वयं चुप रहते ए
उस सोची ई बात को काय प म बदलना चा हए।
अनृतं साहसं माया मूख वम तलु धता।
अशौच वं नदय वं ीणां दोषाः वभावजाः।।
झूठ बोलना, बना सोचे-समझे कसी काय को ारंभ कर दे ना, साहस करना,
छलकपट करना, मूखतापूण काय करना, लोभ करना, अप व रहना और नदयता—ये
य के वाभा वक दोष ह। ।।1।।
य म ायः ये दोष पाए जाते ह—वे सामा य बात पर भी झूठ बोल सकती ह,
अपनी श का वचार न करके अ धक साहस दखाती ह, छल-कपट पूण काय करती ह,
मूखता, अ धक लोभ, अप व ता तथा नदयी होना, ये ऐसी बात ह जो ायः य के
वभाव म होती ह। ये य के वाभा वक दोष ह अथात अ धकांश य म ये होते ह।
अब तो यां श त होती जा रही ह। समय बदल रहा है। ले कन आज भी अ धकांश
अ श त यां इन दोष से यु हो सकती ह। इन दोष को ी क समाज म थ त और
उसके प रणाम व प बने उनके मनो व ान के संदभ म दे खना चा हए।
भो यं भोजनश र तश वरांगना।
वभवो दानश नाऽ प य तपसः फलम्।।
भोजन के लए अ छे पदाथ का ा त होना, उ ह खाकर पचाने क श होना,
सुंदर ी का मलना, उसके उपभोग के लए कामश होना, धन के साथ-साथ दान दे ने
क इ छा होना—ये बात मनु य को कसी महान तप के कारण ा त होती ह। ।।2।।
भोजन म अ छ व तु क कामना सभी करते ह, परंतु उनका ा त होना और
उ ह पचाने क श होना भी आव यक है। येक चाहता है क उसक प नी सुंदर
हो, परंतु उसके उपभोग के लए म कामश भी होनी चा हए। येक चाहता
है क उसके पास धन हो, परंतु धन ा त के बाद कतने ऐसे लोग ह, जो उसका स पयोग
कर पाते ह। धन का स पयोग दान म ही है। अ छ जीवन सं गनी, शारी रक श , पौ ष
एवं नरोगता, धन तथा व — ज रत पर कसी के काम आने क वृ आ द पूवज म म
क ही शुभ कम ारा ही ा त होते ह। ‘तपसः फलम्’ का अथ है कठोर म और
आ मसंयम।
य य पु ो वशीभूतो भाया छ दाऽनुगा मनी।
वभवे य स तु त य वग इहैव ह।।
जसका बेटा वश म रहता है, प नी प त क इ छा के अनु प काय करती है और
जो धन के कारण पूरी तरह संतु है, उसके लए पृ वी ही वग के समान है। ।।3।।
येक संसार म सुखी रहना चाहता है, यही तो वग है। वग म भी सभी
कार के सुख को उपभोग करने क क पना क गई है। इस बारे म चाण य कहते ह क
जसका पु वश म है, ी जसक इ छा के अनुसार काय करती है, जो अपने कमाए धन
से संतु है, जसे लोभ-लालच और अ धक कमाने क चाह नह है, ऐसे मनु य के लए
कसी अ य कार के वग क क पना करना थ है। वग तो वह जाना चाहेगा, जो यहां
खी हो।
ते पु ा ये पतुभ ाः स पता य तु पोषकः।
त म ं य य व ासः सा भाया य नवृ तः।।
पु उ ह ही कहा जा सकता है जो पता के भ होते ह, पता भी वही है जो पु
का पालन-पोषण करता है, इसी कार म भी वही है जस पर व ास कया जा सकता है
और भाया अथात प नी भी वही है जससे सुख क ा त होती है। ।।4।।
चाण य का मानना है क वही गृह थ सुखी है, जसक संतान उसके वश म है और
उसक आ ा का पालन करती है। य द संतान पता क आ ा का पालन नह करती तो घर
म लेश और ख पैदा होता है। चाण य के अनुसार पता का भी कत है क वह अपनी
संतान का पालन-पोषण भली कार से करे। जसने अपने कत से मुंह मोड़ लया हो,
उसे पु से भी भ क आशा नह करनी चा हए। इसी कार म के वषय म चाण य का
मत है क ऐसे को म कैसे कहा जा सकता है, जस पर व ास नह कया जा
सकता और ऐसी प नी कस काम क , जससे कसी कार का सुख ा त न हो तथा जो
सदै व ही लेश करके घर म अशा त फैलाती हो।
परो े कायह तारं य े यवा दनम्।
वजये ा शं म ं वषकु भं पयोमुखम्।।
जो पीठ पीछे काय को बगाड़े और सामने होने पर मीठ -मीठ बात बनाए, ऐसे म
को उस घड़े के समान याग दे ना चा हए जसके मुंह पर तो ध भरा आ है परंतु अंदर वष
हो। ।।5।।
जो म सामने चकनी-चुपड़ी बात बनाता हो और पीठ पीछे उसक बुराई करके
काय को बगाड़ दे ता हो, ऐसे म को याग दे ने म ही भलाई है। चाण य कहते ह क वह
उस बतन के समान है, जसके ऊपर के ह से म ध भरा है परंतु अंदर वष भरा आ हो।
ऊपर से मीठे और अंदर से को म नह कहा जा सकता। यहां एक बात वशेष
प से यान दे ने क है क ऐसा म आपके गत और सामा जक वातावरण को भी
आपके तकूल बना दे ता है।
न व सेत् कु म े च म े चाऽ प न व सेत।्
कदा चत् कु पतं म ं सव गु ं काशयेत।् ।
जो म खोटा है, उस पर व ास नह करना चा हए और जो म है, उस पर भी
अ त व ास नह करना चा हए य क ऐसा हो सकता है क वह म कभी नाराज होकर
सारी गु त बात कट कर दे । ।।6।।
चाण य मानते ह क जो अ छा म नह है उस पर तो व ास करने का
ही नह उठता, परंतु उनका यह भी कहना उ चत है क अ छे म के संबंध म भी पूरी तरह
व ास नह करना चा हए, य क कसी कारणवश य द वह नाराज हो गया तो सारे भेद
खोल दे गा।
आज बड़े-बड़े नगर म जो अपराध बढ़ रहे ह, जो कुकम हो रहे ह, उनके पीछे
प र चत ही अ धक पाए जाते ह। ‘घर का भेद लंका ढाए’—यह कहावत गलत नह
है। जो ब त अ छा म बन जाता है, वह घर के सद य जैसा हो जाता है। भावुक
होकर उसे अपने सारे भेद बता दे ता है, फर जब कभी मन-मुटाव उ प होते ह तो वह
क थत म ही सबसे यादा नुकसान दे ने वाला स होता है। ऐसा म जानता है आपके
मम थल कौन से ह। घर म काम करने वाले कमचारी के बारे म भी इस कार क सावधानी
रखना आव यक है।
मनसा च ततं काय वाचा नैव काशयेत्।
म ेण र येद ् गूढं काय चाऽ प नयोजयेत्।।
मन से सोचे ए काय को वाणी ारा कट नह करना चा हए, परंतु मननपूवक
भली कार सोचते ए उसक र ा करनी चा हए और चुप रहते ए उस सोची ई बात को
काय प म बदलना चा हए। ।।7।।
आचाय का कहना है क को कभी कसी को अपने मन का भेद नह दे ना
चा हए। जो भी काय करना है, उसे अपने मन म रख और समय आने पर पूरा कर। कुछ
लोग कए जाने वाले काय के बारे म गाते रहते ह। इस कार उनक बात का मह व कम हो
जाता है और य द कसी कारणवश वह उ काय को पूरा न कर सके तो उसक हंसी
होती है। इससे का व ास भी कम होता है। फर कुछ समय बाद ऐसा होता है क
लोग उसक बात पर यान नह दे त।े उसे बे- सर-पैर क हांकने वाला समझ लया जाता है।
अतः बु मान को कहने से अ धक करने के त य नशील होना चा हए।
क ं च खलु मूख वं क ं च खलु यौवनम्।
क ं तु क तरं चैव परगेह नवासनम्।।
मूखता और जवानी न त प से खदायक होती है। सरे के घर म नवास करना
अथात कसी पर आ त होना तो अ य त क दायक होता है। ।।8।।
मूख होना क दायक है, य क वह वयं को, अपन को और सर को एक समान
हा न प ंचाता है। मूखता के समान यौवन भी खदायी इस लए माना गया है य क उसम
काम, ोध आ द वकार के आवेग म उ े जत होकर कोई भी मूखतापूण काय कर
सकता है, जसके कारण उसे उसके अपन और सरे लोग को अनेक क उठाने पड़
सकते ह। चाण य कहते ह क ये बात तो क दायक ह ही परंतु इनसे भी अ धक क दायक
है सरे के घर म रहना, य क सरे के घर म रहने से क वतं ता समा त हो जाती
है, जससे व का पूण प से वकास नह हो पाता
शैले शैले न मा ण यं मौ कं न गजे गजे।
साधवो न ह सव च दनं न वने वने।।
सभी पहाड़ पर र न और म णयां नह मलत । न ही येक हाथी के म तक म
गजमु ा नामक म ण होती है। येक वन म चंदन भी उ प नह होता। इसी कार स जन
पु ष सब थान पर नह मलते। ।।9।।
आचाय चाण य के अनुसार येक थान पर सब कुछ उपल ध नह होता। व श
व तुएं वशेष थान पर ही होती ह। उ ह वह ढूं ढ़ना चा हए और उसी के अनुसार उनका
मू यांकन भी करना चा हए।
मा ण य एक लाल रंग का ब मू य र न होता है जो सभी पवत पर अथवा खान म
ा त नह हो सकता। ऐसी मा यता है क व श हा थय के माथे म एक ब मू य मोती
होता है। सब जंगल और वन म चंदन के वृ जस कार नह मलते, उसी कार स जन
भी सभी थान पर दखाई नह दे ते अथात े व तुएं मलनी लभ होती ह।
पु ा व वधैः शीलै नयो याः सततं बुधैः।
नी त ाः शीलस प ा भव त कुलपू जताः।।
बु मान लोग को चा हए क वह अपने पु और पु य को अनेक कार के अ छे
गुण से यु कर। उ ह अ छे काय म लगाएं, य क नी त जानने वाले और अ छे गुण से
यु स जन वभाव वाले ही कुल म पूजनीय होते ह। ।।10।।
चाण य कहते ह क बचपन म ब च को जैसी श ा द जाएगी, उनके जीवन का
वकास उसी कार का होगा, इस लए माता- पता का कत है क वे उ ह ऐसे माग पर
चलाएं, जससे उनम चातुय के साथ-साथ शील वभाव का भी वकास हो। गुणी य से
ही कुल क शोभा होती है।
माता श ु पता वैरी येन बालो न पा ठतः।
न शोभते सभाम ये हंसम ये बको यथा।।
वे माता- पता ब च के श ु ह, ज ह ने ब च को पढ़ाया- लखाया नह , य क
अनपढ़ बालक व ान के समूह म शोभा नह पाता, उसका सदै व तर कार होता है।
व ान के समूह म उसका अपमान उसी कार होता है जैसे हंस के झुंड म बगुले क
थ त होती है। ।।11।।
केवल मनु य ज म लेने से ही कोई बु मान नह हो जाता। उसके लए श त
होना अ य त आव यक है। श ल-सूरत, आकार- कार तो सभी मनु य का एक जैसा होता
है, अंतर केवल उनक व ा से ही कट होता है। जस कार सफेद बगुला सफेद हंस म
बैठकर हंस नह बन सकता, उसी कार अ श त श त य के बीच म
बैठकर शोभा नह पा सकता। इस लए माता- पता का कत है क वे ब च को ऐसी श ा
द, जससे वे समाज क शोभा बन सक।
लालनाद् बहवो दोषा ताडनाद् बहवो गुणाः।
त मा पु ं च श यं च ताडये तु लालयेत।् ।
लाड़- लार से पु म ब त से दोष उ प हो जाते ह। उनक ताड़ना करने से अथात
दं ड दे ने से उनम गुण का वकास होता है, इस लए पु और श य को अ धक लाड़- लार
नह करना चा हए, उनक ताड़ना करते रहनी चा हए। ।।12।।
यह ठ क है क ब च को लाड़- यार करना चा हए, कतु अ धक लाड़- यार करने से
ब च म अनेक दोष भी उ प हो सकते ह। माता- पता का यान ेमवश उन दोष क ओर
नह जाता। इस लए ब चे य द कोई गलत काम करते ह तो उ ह पहले ही समझा-बुझाकर
उस गलत काम से र रखने का य न करना चा हए। ब चे के ारा गलत काम करने पर,
उसे नजरअंदाज करके लाड़- यार करना उ चत नह । ब चे को डांटना भी चा हए। कए गए
अपराध के लए दं डत भी करना चा हए ता क उसे सही-गलत क समझ आए।
ोकेन वा तदधन पादे नैका रेण वा।
अब यं दवसं कुयाद् दाना ययन कम भः।।
को एक वेदमं का अ ययन, चतन अथवा मनन करना चा हए। य द वह पूरे
मं का चतन-मनन नह कर सकता तो उसके आधे अथवा उसके एक भाग का और य द
एक भाग का भी नह तो एक अ र का ही त दन अ ययन करे, ऐसा नी तशा का
आदे श है। अपने दन को थ न जाने द। अ ययन आ द अ छे काय को करते ए अपने
दन को साथक बनाने का य न कर। ।।13।।
चाण य कहते ह क मनु य ज म बड़े भा य से मलता है, इस लए उसे थ नह
जाने दे ना चा हए— को चा हए क वह अपना समय, अपना दन वेदा द शा के
अ ययन म ही बताए तथा उसके साथ-साथ दान आ द अ छे काय भी करे। महान पु ष
क वशेषता का वणन करते ए कहा गया है—‘ सनं ुतौ’ अथात् े ंथ का
अ ययन करना उनका सन होता है।
का ता वयोगः वजनापमानः ऋण य शेषः
कुनृप य सेवा।
द र भावो वषमा सभा च वना ननैते दह त
कायम्।।
प नी का बछु ड़ना, अपने बंध-ु बांधव से अपमा नत होना, कज चढ़े रहना,
अथवा बुरे मा लक क सेवा म रहना, नधन बने रहना, लोग और वा थय क सभा
अथवा समाज म रहना, ये सब ऐसी बात ह, जो बना अ न के शरीर को हर समय जलाती
रहती ह। ।।14।।
स जन लोग अपनी प नी के वयोग को सहन नह कर सकते। य द उनके अपने
भाई-ब धु उनका अपमान अथवा नरादर करते ह तो वह उसे भी नह भुला सकते। जो
कज से दबा है, उसे हर समय कज न उतार पाने का ख रहता है। राजा अथवा
मा लक क सेवा म रहने वाला नौकर भी हर समय खी रहता है। नधनता तो ऐसा
अ भशाप है, जसे मनु य सोते और उठते-बैठते कभी नह भुला पाता। उसे अपने वजन
और समाज म बार-बार अपमा नत होना पड़ता है।
अपमान का क मृ यु के समान है। ये सब बात ऐसी ह, जनसे बना आग के ही
अंदर-ही-अंदर जलता रहता है। जीते-जी चता का अनुभव करने क थ त है यह।
नद तीरे च ये वृ ाः परगेहेषु का मनी।
म हीना राजानः शी ं न य यसंशयम्।।
जो वृ बलकुल नद के कनारे पैदा होते ह, जो ी सर के घर म रहती है और
जस राजा के मं ी अ छे नह होते वे ज द ही न हो जाते ह, इसम कोई संशय नह है। ।।
15।।
नद के कनारे के वृ का जीवन कतने दन का हो सकता है, यह कोई नह कह
सकता, य क बाढ़ तथा तूफान के समय न दयां अपने कनारे के पेड़ को ही या, अपने
आसपास क फसल और ब तय को भी उजाड़ दे ती ह। इसी कार सरे घर म रहने
वाली ी कब तक अपने आपको बचा सकती है? जस राजा के पास अ छ सलाह दे ने
वाले मं ी नह होते, वह कब तक अपने रा य क र ा कर सकता है? अथात ये सब
न यपूवक ज द ही न हो जाते ह।
बलं व ा च व ाणां रा ां सै यं बलं तथा।
बलं व ं च वै यानां शू ाणां प रचयकम्।।
ा ण का बल व ा है, राजा का बल उनक सेना, ापा रय का बल उनका
धन है और शू का बल सर क सेवा करना है। ।।16।।
ा ण का कत है क व ा हण कर। राजा का कत यह है क सै नक
ारा वे अपने बल को बढ़ाते रह। वै य को चा हए क वे पशु-पालन और ापार ारा धन
बढ़ाएं, शू का बल सेवा है।
चाण य ने इस ोक म चार वण के कत क ओर संकेत कया है। उनके
अनुसार—चार वण को अपने-अपने काय म नपुण होना चा हए। समाज म कसी क
थ त कम नह है। समय के अनुसार प र थ तयां बदलती ह, संभवतः कसी समय ज म
के अनुसार चार वण माने जाते रहे ह , परंतु त य यह है क वण क मा यता काय पर
नभर करती है।
इस लए कसी भी कुल म ज म लेने वाला श ा के े म है, तो उसे ा ण
ही माना जाएगा। जो ापार करता है, कृ ष काय म लगा है, पशु-पालन करता है,
उसे वै य माना जाएगा। जो सेना म भत ह अथवा सेना से संबं धत काय कर रहा है, उसे
य कहा जाएगा। शेष शू क ेणी म आते ह। शू भी श त हो सकता है।
परंतु कसी भी वण म पैदा आ , जो लोग क सेवा के काय म लगा है, उसे शू माना
जाएगा—शू का अथ नीच नह है। आ ापालन क भावना शू का वशेष गुण है। ायः
इस ेणी के लोग मान सक प से संतु होते ह।
नधनं पु षं वे या जा भ नं नृपं यजेत्।
खगा वीतफलं वृ ं भु वा चाऽ यागता गृहम्।।
वे या नधन पु ष को, जा परा जत राजा को, प ी फलहीन वृ को और
अचानक आया आ अ त थ भोजन करने के बाद घर को यागकर चले जाते ह। ।।17।।
आचाय ने यहां संबंध क साथकता क ओर संकेत कया है। कोई तभी तक संबंध
रखता है, जब तक उसके वाथ क पू त होती है।
वे या का धंधा परपु ष से धन लूटना होता है। धन के समा त होने पर वह मुंह मोड़
लेती है। जा तापी राजा को ही स मान दे ती है। जब वह श हीन हो जाता है तो जा
राजा का साथ छोड़ दे ती है। इसी कार कृ त के सामा य नयम के अनुसार—वृ पर
रहने वाले प ी तभी तक कसी वृ पर बसेरा रखते ह, जब तक वहां से उ ह छाया और
फल ा त होते रहते ह। घर म अचानक आने वाले अ त थ का जब भोजन-पान आ द से
वागत-स कार कर दया जाता है तो वह भी सामा जक नयम के अनुसार वदा लेकर अपने
ल य क ओर चल पड़ता है। भाव यह है क को अपने स मान क र ा का वयं
यान रखना चा हए। उसे अपे ा करते समय संबंध के व प को सही कार से समझना
चा हए। कसी थान, या व तु से आव यकता से अ धक लगाव नह रखना चा हए।
गृही वा द णां व ा यज त यजमानकम्।
ा त व ा गु ं श या द धाऽर यं मृगा तथा।।
ा ण द णा ा त करने के बाद यजमान का घर छोड़ दे ते ह, व ा ा त करने के
बाद श य गु के आ म से वदा ले लेता है, वन म आग लग जाने पर वहां रहने वाले हरण
आ द पशु उस जंगल को छोड़कर कसी सरे जंगल क ओर चल दे ते ह। ।।18।।
यह ोक भी उसी बात क पु करता है, जसे पहले कहा गया है। य द कोई
कसी वशेष काय के कारण कसी के पास जाता है, तो अपना काय स हो जाने
पर उसे वह थान छोड़ दे ना चा हए, जस कार ा ण लोग यजमान के कसी काय क
पू त के बाद द णा ा त हो जाने पर आशीवाद दे कर वहां से चले जाते ह। श य भी व ा
क ा त के बाद गु कुल छोड़कर अपने-अपने घर चले जाते ह। जब कसी जंगल म आग
लग जाती है तो वहां रहने वाले पशु भी उस जंगल को छोड़कर कसी सरे जंगल क खोज
म चल पड़ते ह अथात को अपना काय समा त हो जाने पर कसी के यहां डेरा डालने
क मंशा नह करनी चा हए।
राचारी र राऽऽवासी च जनः।
य मै ी यते पु भनरः शी ं वन य त।।
बुरे च र वाले, अकारण सरे को हा न प ंचाने वाले तथा गंदे थान पर रहने वाले
के साथ जो पु ष म ता करता है, वह ज द ही न हो जाता है। ।।19।।
सभी साधु-संत , ऋ ष-मु नय का कहना है क जन का संग नरक म वास करने के
समान होता है, इस लए मनु य क भलाई इसी म है क वह जतनी ज द हो सके,
का साथ छोड़ दे ।
आचाय ने यहां यह भी संकेत कया है क म ता करते समय यह भली कार से
जांच-परख लेना चा हए क जससे म ता क जा रही है, उसम ये दोष तो नह ह। य द ऐसा
है, तो उससे होने वाली हा न से बच पाना संभव नह । इस लए यादा अ छा है क उससे र
ही रहा जाए।
समाने शोभते ी तः रा सेवा च शोभते।
वा ण यं वहारेषु द ा ी शोभते गृहे।।
े म वहार बराबरी वाले य म ही ठ क रहता है। य द नौकरी करनी ही हो तो
राजा क नौकरी करनी चा हए। काय अथवा वसाय म सबसे अ छा काम ापार करना
है। इसी कार उ म गुण वाली ी क शोभा घर म ही है। ।।20।।
अपनी बराबरी वाले से ेम-संबंध शोभा दे ता है। असमानता सामने आए
बना नह रहती, तब ेम श ुता म बदल जाता है। इस लए य न पहले ही यान रखा जाए।
इसी कार य द को नौकरी तथा कसी सेवा काय म जाना है तो उसे य न करना
चा हए क सरकारी सेवा ा त हो, य क उसम एक बार वेश करने पर अवकाश ा त
होने तक कसी वशेष कार का झंझट नह रहता।
फर वह न द नयम से संचा लत होता है, न क कसी वशेष के आदे श
से। य द अ य काय करना पड़े तो अपना ही कोई च का ापार करे। गुणयु ी
से घर क शोभा है और घर म अपनी मयादा और कत का पालन करते ए ी भी
अपने सद्गुण क र ा कर सकती है।
चाण य का कहना है क जीव जब गभ म होता है, तभी उसक आयु, कम, धन,
व ा और मृ यु आ द बात न त हो जाती ह अथात मनु य ज म के साथ ही न त कम
के ब धन म बंध जाता है। इस संसार म आने के बाद स जन के संसग के फल व प
सांसा रक बंधन से मु होता है। अ छे लोग का साथ हर तरह से मनु य क र ा के
लए ही होता है।
आचाय के अनुसार, मनु य जब तक जी वत है, तब तक उसे पु य काय करने
चा हए, य क इसी से उसका क याण होता है और जब मनु य दे ह याग दे ता है तो वह
कुछ भी नह कर सकता।
व ा को चाण य ने कामधेनु के समान बताया है। जस तरह कामधेनु से सभी
इ छाएं पूरी हो जाती ह, उसी कार व ा से मनु य अपनी सभी मनोकामना को पूण कर
सकता है। व ा को बु मान ने गु त धन भी कहा है।
चाण य कहते ह क अनेक मूख पु क अपे ा एक गुणी पु अ धक हतकर
होता है। उनका कहना है क मूख पु य द द घ आयु वाला होता है तो वह आयुभर क दे ता
रहता है, इससे तो अ छा है क वह ज म के समय ही मर जाए, य क ऐसे पु क मृ यु से
ख थोड़ी दे र के लए होगा।
उनका कहना है क इस संसार म खी लोग को अ छे पु , प त ता ी और
स जन से ही शां त ा त होती है। सांसा रक नयम के अनुसार चाण य बताते ह क राजा
एक ही बात को बार-बार नह कहते, प डत लोग भी (मं को) बात बार-बार नह दोहराते
और क या का भी एक ही बार दान कया जाता है। इस लए इन कम को करते ए
सावधानी बरतनी चा हए।
को तप या अकेले करनी चा हए। व ाथ मलकर पढ़ तो उ ह लाभ होता
है। इसी कार संगीत, खेती आ द म भी सहायक क आव यकता होती है। यु के लए तो
जतने अ धक सहायक ह उतने ही अ छे रहते ह।
चाण य कहते ह क उसी प नी का भरण-पोषण करना चा हए जो प तपरायणा हो।
जस मनु य के घर म कोई संतान नह , वह घर सूना होता है। जसके कोई र तेदार और
ब धु-बा धव नह , उसके लए यह संसार ही सूना है। द र अथवा नधन के लए तो सब
कुछ सूना है। व ा क ा त के लए अ यास करना पड़ता है, बना अ यास के व ा वष
के समान होती है। जस कार अपच के समय हण कया आ भोजन वषतु य होता है
और नधन के लए स जन क सभा म बैठना मु कल होता है, उसी कार बूढ़े
के लए ी संसग वष के समान होता है।
धम उसे कहते ह, जसम दया आ द गुण ह । गु उसे कहते ह जो व ान हो। प नी
वह होती है, जो मधुरभा षणी हो, ब धु-बा धव वह होते ह, जो ेम कर, परंतु य द इनम यह
बात न ह अथात धम दया से हीन हो, गु मूख हो, प नी ोधी वभाव क हो और र तेदार
बंध-ु बांधव ेमर हत ह , तो उ ह याग दे ना चा हए। अ धक या ाएं करने से मनु य ज द
बूढ़ा होता है। य क कामतु न हो तो वे ज द बूढ़ हो जाती ह और कपड़े य द अ धक
दे र तक धूप म पड़े रह तो ज द फट जाते ह।
चाण य बताते ह क मनु य को अपनी उ त के लए चतन करते रहना चा हए क
समय कस कार का चल रहा है? म कौन ह और कतने ह? कतनी श है? बारबार
कया गया ऐसा चतन मनु य को उ त के माग पर ले जाता है। इस अ याय के अंत म
आचाय चाण य कहते ह क ा ण, य, वै य आ द का दे वता अ न अथात अ नहो
है। ऋ ष-मु नय का दे वता उनके दय म रहता है, अ पबु लोग मू त को अपना दे वता
मानते ह और जो सारे संसार के ा णय को एक जैसा मानते ह उनका दे वता सव ापक
और सव प ई र है।
।। अथ पंचमोऽ यायः ।।
पांचवां अ याय
धन से धम क , योग से व ा क , मधुरता से राजा क और
अछ य से घर क र ा होती है।
गु र न जातीनां वणानां ा णो गु ः।
प तरेव गु ः ीणां सव वाऽ यागतो गु ः।।
ा ण, य और वै य आ द ज के लए अ नहो गु के समान आदरणीय
है, चार वण म ा ण सबसे अ धक े और आदरणीय है। य के लए प त ही गु है
और घर म आया आ अ त थ सभी के आदर-स कार के यो य माना गया है। ।।1।।
ज का कत है क वे अ नहो आ द कम आदरपूवक न य करते रह।
अ नहो से वायुमंडल शु होता है। मनु य के वा य और पयावरण के सुधार के लए
हवन, य आ द करना आव यक माना गया है। ा ण को पूजनीय इस लए माना गया है
य क वे सभी वण को व ा दे ते ह। य के लए प त ही उसका आदरणीय गु होता है,
य क वही उसका भरण-पोषण करता है और उसे स माग पर ले जाने म सहायता करता
है। घर म आए ए अ त थ का आदर-स कार सभी लोग को करना चा हए य क वह ब त
थोड़ी दे र के लए कसी के घर आता है। ‘अ त थ दे वो भव’, ऐसा शा वचन भी है।
यथा चतु भः कनकं परी यते
नघषण छे दनतापताडनैः।
तथा चतु भः पु षः परी यते यागेन शीलेन गुणेन
कमणा।।
जस कार सोने क परी ा चार कार से क जाती है—उसे कसौट पर घसा
जाता है, काटकर दे खा जाता है, तपाया जाता है और कूटकर उसक जांच क जाती है, उसी
कार मनु य कतना े है इसक पहचान भी इन चार बात से होती है।
चाण य के अनुसार, इन चार कार से क गई परी ा म वयं को सही स करने
वाला ही ‘खरा’ है। उसक स जनता, उसका च र , उसके गुण और उसका आचार-
वहार उसके खरेपन क पु करते ह। ।।2।।
तावद् भयेषु भेत ं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं ् वा हत मशंकया।।
संकट येक मनु य पर आते ह, परंतु बु मान य को संकट और आप य
से तभी तक डरना चा हए जब तक वे सर पर न आ जाएं। संकट और ख आने पर तो
को अपनी पूरी श से उ ह र करने का य न करना चा हए। ।।3।।
एकोदरसमुदभू
् ता एक न जातकाः।
न भव त समाः शीले यथा बद रक टकाः।।
एक ही माता के पेट और एक ही न म उ प ए बालक गुण, कम और वभाव
म एक समान नह होते, जैसे बेर—वृ के सभी फल और उनके कांटे एक जैसे नह होते,
उनम अंतर होता है। ।।4।।
चाण य ने बेर और कांट क उपमा एक वशेष वचार से द है। एक ही बेर के वृ
पर लगे ए सभी फल मीठे नह होते। बेर वृ पर कांटे भी होते ह, परंतु वह कांटे भी एक
जैसे कठोर नह होते।
इसी कार यह आव यक नह क एक ही माता- पता के और एक ही न म पैदा
होने वाले ब च के गुण, कम और वभाव एक जैसे ह । उनका भा य तथा उनक चयां
एक जैसी नह होत । माता- पता के एक होने पर भी ार ध और प र थ तय का अंतर तो
होता ही है।
नः पृहो नाऽ धकारी या ाकामी म डन यः।
नाऽ वद धः यं ूयात् फुटव ा न व चकः।।
कोई भी अ धकारी लोभर हत नह होता, शृंगार ेमी म कामवासना क अ धकता
होती ही है। जो चतुर नह है, वह मधुरभाषी भी नह हो सकता तथा साफ बात कहने
वाला कभी भी धोखेबाज नह होता। ।।5।।
ायः दे खा जाता है क जस म बड़ा बनने क लालसा होती है, वही अ धकार
ा त करना चाहता है। जो अपने शरीर को अ छे व और खुशबू आ द से सजाता है,
उसम कामवासना क अ धकता होती है। मूख और फूहड़ मधुरभाषी नह होता। जो
साफ बात कहता है अथात प व ा होता है, वह कसी को धोखा नह दे ता। नद ष
ही सच बोल सकता है।
मूखाणां प डता े या अधनानां महाधनाः।
वारांगनाः कुल ीणां सुभगानां च भगाः।।
मूख व ान से वैर भाव रखते ह। द र और नधन धनवान को अपना श ु समझते
ह। वे याएं कुलीन य से े षभाव रखती ह और वधवा यां सुहा गन को अपना श ु
मानती ह। ।।6।।
यह संसार का नयम है क वपरीत थ त वाले लोग एक- सरे को अपना श ु
समझते ह। चा हए तो यह क मूख प डत का आदर कर, जससे उ ह भी कुछ लाभ हो,
परंतु वह उनका स मान करने के बजाय उनसे मनी रखते ह। नधन और आलसी लोग
मानते ह क धनी सर को लूट-खसोटकर धनवान होता है, परंतु उ ह यह ान नह
होता क उन य ने धन एक त करने म कतना प र म कया है। इतना ही नह , उसे
संभालकर रखने के लए भी एक वशेष कार के धैय क आव यकता होती है। वे याएं भी
कुलीन य से े ष करती ह और वधवा यां सुहा गन को भावना क से दे खती
ह।
संकेत है क अयो य और अभाव त ही े ष करते ह।
आल योपहता व ा परह तगताः यः।
अ पबीजं हतं े ं हतं सै यमनायकम्।।
आल य के कारण व ा न हो जाती है, सरे के हाथ म गई ई यां न हो
जाती ह, कम बीज डालने से खेत बेकार हो जाता है और सेनाप त के मारे जाने पर सेना न
हो जाती है। ।।7।।
इसका भाव यह है क व ा क ा त और उसक वृ के लए को आल य
का याग कर दे ना चा हए। आलसी कसी गुण को ा त नह कर सकता। सरे के पास जाने
वाली ी का धम न हो जाता है अथात कसी सरे के अ धकार म जाने पर ी का
सती व कायम नह रह पाता। य द खेत म बीज बोते समय कंजूसी क जाएगी और बीज
कम डाला जाएगा तो अ छ फसल नह हो सकेगी। सेना का बल सेनाप त से ही थर रहता
है। जब सेनाप त मारा जाता है तो सेना का हार जाना वाभा वक ही है।
अ यासा ायते व ा कुलं शीलेन धायते।
गुणेन ायते वायः कोपो ने ेण ग यते।।
व ा क ा त नरंतर अ यास से होती है। अ यास से ही व ा फलवती होती है।
उ म गुण और वभाव से ही कुल का गौरव और यश थर रहता है। े पु ष क पहचान
सद्गुण से होती है। मनु य क आंख दे खकर ोध का ान हो जाता है। ।।8।।
जन य को उ म व ा ा त करनी है, वे नरंतर य न करते ह। वे य द बार-
बार अ यास न कर तो व ा क ा त असंभव होती है। कसी कुल का थर होना, उसका
यश फैलना, उसका स होना, गौरव क से दे खा जाना आ द उसके उ म गुण, कम
और वभाव के कारण ही होता है। य द गुण, कम और वभाव े नह ह गे तो कुल का
गौरव नह बढ़ सकता। इसी कार े क पहचान उसके अ छे गुण के कारण होती
है। कसी के ो धत होने का ान उसक आंख दे खकर हो जाता है, य क ोध के
कारण क आंख लाल हो जाती ह।
व न े र यते धम व ा योगेन र यते।
मृ ना र यते भूपः स या र यते गृहम्।।
धन से धम क र ा क जाती है। व ा को योग के ारा बचाया जा सकता है।
मधुरता के कारण राजा को बचाया जा सकता है और अ छ यां घर क र क होती ह।
।।9।।
धम क र ा के लए भी धन क आव यकता होती है। धम, कम भी धन के ारा ही
संप हो सकता है। सर का उपकार करना, दान दे ना, मं दर आ द का नमाण आ द काय
धम माने जाते ह। व ा को थर रखने के लए चतुरतापूवक उसका अ यास करने क
आव यकता होती है, इस लए कहा गया है क ‘ व ा योगेन र यते।’
राजा क र ा उसके मधुर वहार के कारण ही होती है। य द शासक ू र हो जाए
तो जा व ोह कर सकती है, इस लए राजा का कत है क वह मधुर और उदार- वहार
से अपना रा य न होने से बचाता रहे। राजा को अपनी जा के त वहार दयालुतापूण
होना ही चा हए। जब तक य को अपने सती व का यान रहता है, उनके मन म अपने
प रवार क त ा सव प र रहती है, तब तक घर बचा रहता है अथात प रवार न नह
होता, परंतु जब वे अपने शील और सती व का प र याग कर दे ती ह तो वह घर न होता है।
अ यथा वेदपा ड यं शा माचारम यथा।
अ यथा कुवचः शा तं लोकाः ल य त चा यथा।।
व ान के पां ड य क नदा करने वाले, शा ारा कहे गए े आचरण
को थ बताने वाले, धीर, गंभीर और शांत रहने वाले को ढ गी और पाखंडी बताने
वाले लोग हमेशा ख उठाते ह। इस पर नदा प काय से कोई लाभ नह होता है। ।।10।।
ब त से लोग अपने वभाव के कारण व ान पं डत क व ा को थ बताते ह,
उनक नदा करते ह। शा म बताए गए नयम के अनुसार आचरण करने वाले को
भी वे थ का आचरण करने वाला बताते ह। व ान को ढ गी और शा को क पत
बताते ह। ऐसा करते ए वे व ान या शा क साथकता को तो नकार नह पाते, अ पतु
लाभ से वं चत हो जाते ह, जो उ ह मल सकता था।
शांत और चुपचाप रहने वाले क चु पी को मूख क भाषा म कमजोरी ही माना
जाता है। व ान, े आचरण करने वाले, धीर, गंभीर और शु का नदा से कुछ भी
नह बगड़ता, हां, नदक सदै व खी रहते ह। य द कोई नद का जल नह पीता, तो उससे
नद का या घटता है?
दा र य
् नाशनं दानं शीलं ग तनाशनम्।
अ ानना शनी ा भावना भयना शनी।।
दान दे ने से द र ता न होती है, अ छे आचरण से क र होते ह, मनु य क ग त
समा त होती है, बु से अ ान न होता है अथात मूखता न होती है और ई र क भ
से भय र होता है। ।।11।।
आचाय चाण य कहते ह क दान दे ने से द र ता न होती है। अनेक शा और
संत ने भी कहा है क ‘दान दए धन ना घटे ’। य द मन के साथ इसे जोड़ा जाए, तो यह
कथन और भी प हो जाता है, य क धनी भी मन से द र हो सकता है और नधन भी
ीमान्।
अ छे गुण , न वहार और सुशीलता के कारण अपने क र करता है,
य क सभी सद्गुणी और सुशील को आगे बढ़ाने क इ छा रखते ह।
भु सबक सहायता करने वाला है। जो न य नयम से ई र क ाथना
करते ह, वे सदै व गुण से बचे रहते ह। उ ह न तो कसी से डरने क आव यकता
होती है और न ही वे संकट के आने पर भयभीत होते ह।
नाऽ त कामसमो ा धनाऽ त मोहसमो रपुः।
नाऽ त कोपसमो वह् ननाऽ त ानात् परं
सुखम्।।
कामवासना के समान कोई रोग नह । मोह से बड़ा कोई श ु नह । ोध जैसी कोई
आग नह और ान से बढ़कर इस संसार म सुख दे ने वाली कोई व तु नह । ।।12।।
अ धक कामवासना म ल त रहने वाला श हीन होकर अनेक रोग का
शकार हो जाता है। वह कामवासना क पू त के लए रोगी से संबंध बनाकर कसी रोग क
गर त म भी आ सकता है।
का ोध उसके लए आग का काम करता है। उसका अपना ोध उसे जला
डालता है। ान से बढ़कर संसार म सुख दे ने वाली कोई भी व तु नह है, जो बु
और ववेक से काय करता है, वह सदा सुखी रहता है। मोह को सबसे बड़ा श ु बताया गया
है। मोह का अथ है मू छा अथात् अ ववेक। यह बु को न कर दे ता है।
ज ममृ यु ह या येको भुन येकः शुभाऽशुभम्।
नरकेषु पत येक एको या त परां ग तम्।।
जस कार मनु य अकेला ही ज म लेता है, उसी कार अकेले ही उसे पाप और
पु य का फल भी भोगना पड़ता है। अकेले ही अनेक कार के क भोगने पड़ते ह अथात
अकेले ही उसे नरक का ख उठाना पड़ता है और अकेला ही वह मो को ा त होता है। ।।
13।।
मनु य के ज म और मृ यु के च म उसका कोई साथ नह दे ता। वह जब ज म लेता
है तब भी अकेला होता है। जब उसक मृ यु होती है तब भी वह अकेला होता है। अतः बार-
बार ज म लेने और मरने के च म मनु य को अकेले ही भागीदारी करनी होती है।
चाण य ने मनु य के अकेले ही नरक म जाने क बात कही है। नरक और कुछ नह
है, मनु य ारा भोगे जाने वाले क का ही नाम है। अकेला ही इस क को भोगने के
लए मजबूर होता है। उसके क म सहानुभू त तो जताई जा सकती है, परंतु उसका क
बांटा नह जा सकता। य द वह अ छे काय करता है तो इसी ज म म जीव मु क थ त
को ा त कर लेता है।
आचाय चाण य ने यहां संकेत दया है क सब अकेले ही करना है, इस लए
उ रदा य व को नभाने के लए हमेशा तैयार रहना चा हए। सर क ओर य दे खना?
सर का सहारा लेने क आदत से मु ह , यही ेय कर है।
तृणं वदः वग तृणं शूर य जी वतम्।
जताऽश य तृणं नारी नः पृह य तृणं जगत्।।
जसे ान है, उसके लए वग तनके के समान अथात तु छ है। शूरवीर के लए
जीवन तनके के समान होता है। जते य अथात संयमी के लए ी (भोग पदाथ)
तनके के समान होती है और इ छार हत मनु य के लए सारा संसार ही तनके के समान
है। ।।14।।
जसे ान है, उसके लए वग का कोई मह व नह , य क वह जानता है क
वग के सुख भी णक ह। शूरवीर जीवन क ब ल दे ने से नह डरता, उसके लए
अपना जीवन एक तनके के समान है, उसे अपने जीवन म कसी से भय नह होता। जस
ने इ य को अपने वश म कया है, उसे नारी अपने वश म नह कर सकती। यहां
नारी श द का अथ है सभी भोग पदाथ, नारी तो उसका तीक मा है। इसी कार
इ छार हत के लए सारा संसार तनके के समान होता है य क उसक कसी व तु
म आस नह होती। आस ही या व तु को मू य दान करती है।
व ा म ं वासेषु भाया म ं गृहेषु च।
ा धत यौषधं म ं धम म ं मृत य च।।
वदे श म व ा ही मनु य क स ची म होती है, घर म अ छे वभाव वाली और
गुणवती प नी ही मनु य क सबसे अ छ म होती है। रोगी क म दवाई है और
जो मनु य मर चुका है उसका धम-कम ही उसका म होता है। ।।15।।
म क प रभाषा करते ए कहा गया है—जो सदै व अपने म का हत चतन करे
तथा वप म साथ न छोड़े, वही स चा म होता है। इस संदभ म व ा, गुणी प नी,
औष ध और धम को दे खने क आव यकता है। ये चार म क तरह हत करते ह। धम क
े ता क ओर भी आचाय ने संकेत कया है य क जब सब साथ छोड़ जाते ह, उस समय
धम ही मृता मा को सद्ग त दे ता है, उसके मो का कारण बनता है।
वृथा वृ ः समु े षु वृथा तृ तेषु भोजनम्।
वृथा दानं धनाढ् येषु वृथा द पो दवाऽ प च।।
समु म बा रश होना, भोजन से तृ त ए मनु य को फर से भोजन कराना, धनी
लोग को दान दे ना और दन म द पक जलाना आ द बात थ और नरथक होती ह। ।।
16।।
नाऽ त मेघसमं तोयं नाऽ त चा मसमं बलम्।
नाऽ त च ुःसमं तेजो नाऽ त धा यसमं यम्।।
बादल के जल जैसा सरा कोई जल शु नह , आ मबल के समान सरा कोई बल
नह , ने यो त के समान सरी कोई यो त नह और अ के समान सरा कोई य पदाथ
नह होता। ।।17।।
मेघ के जल को सबसे अ धक प व इस लए माना जाता है क वह वा यवधक
होता है। जस म आ मा का बल है अथात जो वयं पर व ास करता है, उसम सभी
कार के बल का सहज प म समावेश हो जाता है। आ मबल या शरीर और इ य के
बल से बढ़कर नह है? चाण य ने ने क यो त को सबसे अ धक उपयोगी माना है य क
ने क यो त के बना मनु य के लए सारा संसार अंधकारमय होता है। अ को मनु य के
लए सबसे अ धक य पदाथ कहा गया है य क जब तक अ नह मलता तब तक शरीर
मन आ द अपना-अपना काय नह कर सकते। ा णय के अ मय कोष अथात् शरीर क
पु तो अ से ही होती है।
अधना धन म छ त वाचं चैव चतु पदाः।
मानवाः वग म छ त मो म छ त दे वताः।।
धनहीन और अ धक धन पाना चाहता है, चौपाये अथात चार पैर वाले पशु
चाहते ह क वे बोल सक, मनु य वग चाहता है और दे वता मो क कामना करते ह। ।।
18।।
हर समय चाहता है क उसे धन क ा त हो परंतु उसे यह पता ही नह होता
क उसके लए लगातार म करना पड़ता है। पशु वाणी चाहते ह ता क वे अपने मन क
बात कसी सरे से कर सक। मनु य यह भी चाहता है क उसे वग मले, दे वता और व ान
इस जीवन से मु होने क कामना करते, इस लए वह जीवन म ऐसे काय करते ह
जनसे जीवन-मरण के बंधन से मु होकर मो क ा त होती है। ाणीमा का यह
वभाव है क जसके पास जो नह है, वह उसक कामना करता है।
स येन धायते पृ थवी स येन तपते र वः।
स येन वा त वायु सव स ये त तम्।।
स य के कारण पृ वी थर है, सूय भी स य के बल से काश दे ता है, स य से ही
वायु बहती है, सब स य म ही थर है। ।।19।।
स य का आधार है। पृ वी अथवा यह संसार स य के कारण ही टका आ है।
इसी स य और से सूय का काश सारे संसार म फैलता है। स य अथवा भु क श
से ही इस संसार म वायु का संचार होता है। इस कार सभी कुछ स य अथवा म थत
है।
चला ल मी लाः ाणा लं जी वत-यौवनम्।
चलाचले च संसारे धम एको ह न लः।।
इस चराचर जगत् म ल मी (धन) चलायमान है अथात ल मी थर नह रहती, न
हो जाती है, ाण भी नाशवान ह, जीवन और यौवन भी न होने वाले ह, इस चराचर संसार
म एकमा धम ही थर है। ।।20।।
धन-स प मनु य के पास सदा नह रहती, उसके कम के अनुसार आती-जाती है।
जस मनु य ने जीवन धारण कया है, उसका मरना भी आव यक है, इसी लए ाण को
थर नह कहा जा सकता। मनु य का यौवन सदा थर रहने वाली व तु नह , बुढ़ापा यौवन
का य है, परंतु धम ऐसा त व है जसका नाश नह होता। मनु य क मृ यु के बाद भी धम
ही उसका साथ दे ता है। शा क भी मा यता है क आते भी हम अकेले ह और जाते भी
अकेले ही ह, ले कन धम हमेशा साथ रहता है। आचाय के अनुसार जो हमेशा साथ रहने
वाला है उसक ओर मनु य को यान दे ना चा हए।
नराणां ना पतो धूतः प णां चैव वायसः।
चतु पदां शृगाल तु ीणां धूता च मा लनी।।
मनु य म नाई सबसे अ धक चालाक और हो शयार होता है। प य म कौआ, चार
पैर वाले जानवर म गीदड़ और य म मा लन अ य धक चतुर होती है। ।।21।।
यहां जन जा तय क बात आचाय चाण य ने क है, उसे आप जनक मानना
आचाय के कथन को सही संदभ म न समझने क भूल करना है। जो जा त जतनी अ धक
सामा जक होती है, उसे इस बात का ावहा रक अनुभव होता है क कस से कस
कार काय करवाना है।
कुछ बराद रय म जो पुरानी परंपरा का नवाह कर रही ह, आज भी ‘ना पत’ क
मह वपूण भू मका होती है। पहले शाद - ववाह आ द म मह वपूण नणय भी इनके ारा
लए जाते थे। ये मी डएटर का काम करते थे और अपने यजमान के त वफादार होते थे।
इनके सामने लोग अपने मन क बात खोलकर भी रख दे ते ह। यही थ त फूल का ापार
करने वाली जा त क य क भी है। उनका मेल हर तरह के लोग के साथ होता था।
अपनी बात रखने के बारे म तथा कसी के सवाल का त काल जवाब दे ने म आज भी उनक
कोई बराबरी नह है।
यहां एक बात वशेष प से समझने क है क इस नया म कुछ भी नकारा मक
नह है। बु मान येक व तु का, येक थ त-प र थ त का और येक संवेग
का सही योग और उपयोग करना जानता है। यही उसक सफलता का मूलमं है। इसी लए
वह ‘ वशेष’ कहलाता है। और यह भी क श द का अथ ढ़ क जगह य द यौ गक प म
कया जाए, तो सवसाधारण उसे ख चकर उसी ओर ले जाता, जो जनसामा य म च लत
है। इस बारे म तो सभी एकमत से सहमत ह क कुछ श द का एक अथ नह होता। उसके
सही अथ को संदभ के अनुसार लगाना पड़ता है। जब श द का अथ भाव के वपरीत हो, तो
ल याथ को समझने का यास करना चा हए।
।। धम य मूलमथः ।।
धम का मूल है अथ। धम अथात् नी तपूवक मानवो चत काय को करते रहने से ही
अथ क ा त होती है। अथ को सुर त रखने के लए रा य- व था का मह वपूण
सहयोग होता है।
आचाय चाण य ने अनेक थान पर अथ क मह ा को प कया है। उनका
कहना है क धन के बना धम का पालन भी असंभव होता है। अथात् धन के बना न तो
मनु य कसी कार क उ त कर सकता है और न कसी कार के क याणकारी काय।
उ ह ने नधन को संसार म सबसे नरीह बताया है। नधन को कसी कार का
भी सुख ा त नह होता और न ही वह अपने क का पालन कर पाता है। इस लए
मनु य को चा हए क धम काय के लए धन का सं ह कर।
धन तो पापी के पास भी हो सकता है परंतु उसके पास धन होने से न तो उसे
कोई लाभ हो सकता है और न ही संसार का कसी कार का क याण। जस धन का योग
धम क र ा और मानव-क याण के लए होता है, वा तव म वही धन है, बाक मट् ट है। ।
4।
।। अथ य मूलं रा यम् ।।
अथ का मूल है रा य। अथात् रा य क सहायता अथवा व था के बना धन सं ह
करना क ठन है। धन सं ह के लए रा य म थरता और शां त था पत होना अ यंत
आव यक होता है। जब तक रा य म अशा त रहती है तब तक रा य संप नह हो सकता।
जन दे श अथवा रा य ने अपने य न ारा दे श को वक सत और स प बनाया
है, उसम वहां क सरकार क मुख भू मका रही है। इसके अ त र येक रा य अथवा
सरकार ापा रय को अनेक कार क सु वधाएं दान करती है, जससे रा य संप होता
है। आज के वक सत रा इस बात का माण ह क उ ह ने अपने ापा रय अथवा
उ ोगप तय को कस कार ो साहन दया अथात् यह बात प है क कसी दे श के लोग
का संप होना उस दे श क शासन- व था पर नभर होता है। । 5 ।
।। रा यमूल म यजयः ।।
रा य का मूल इं य को अपने वश म रखना है।
येक रा जो उ त करता है, वहां के सव च पदा धका रय का क है क वे
अपनी इं य को वश म रख। उनके संयम के कारण ही रा य क समृ थर रह सकती
है। य द वहां के अ धकारी अथवा सव च नेता कसी कार का संयम नह रख सकगे तो
जनता भी उनका अनुसरण करती ई वैसा ही आचरण करेगी।
इं य पर संयम रखने का अथ काफ ापक है। अ धकारी स ा के नशे म नरंकुश
होकर काय करने लगगे तो रा य म व ोह पैदा हो जाएगा, इससे रा य क हा न होगी।
आज भी हमारे सामने अनेक दे श के उदाहरण ह, जहां के शासक ने अपनी
नरंकुशता के कारण रा को हा न प ंचायी है। अनेक दे श म वहां के सव च स ा पु ष ने
जनता पर इतने अ याचार कए और वयं तथा अपने सगे-संबं धय को रा य म मनमाना
काय करने क आजाद द , जससे रा को त उठानी पड़ी। ब त से राजनेता भोग-
वलास के कारण जना ोश का नशाना बने। ब त से ाचार व वाथपरता के कारण
अपमा नत ए।
इं य पर वजय का अथ यही है क अपनी इ छा को सी मत रखे। इसे
आ म नयं ण भी कह सकते ह। ‘यथा राजा तथा जा’ वाली बात है। राजपु ष असंयमी,
ाचारी व अकम य ह गे तो भला जा इन राचरण से अछू ती कहां रह सकती है। । 6 ।
।। वृ सेवया व ानम् ।।
मनु य वृ क सेवा से ही वहारकुशल होता है और उसे अपने क क
पहचान होती है।
वृ क सेवा से को इस बात का पता चलता है क कौन-सा काय करने
यो य है और कौन-सा न करने के यो य। इसका भाव यह है क वृ ने अपने
जीवनकाल म ब त कुछ सीखा है, उसने ब त मामल म अनुभव ा त कया होता है। य द
कोई सांसा रक काय- वहार म कुशलता ा त करना चाहता है तो उसे बूढ़े य
क सेवा करनी चा हए। उनके अनुभव से लाभ उठाना चा हए। जो मनु य ान-वृ लोग
के पास नरंतर उठता-बैठता है और उनम ा रखता है, वह ऐसे गुण सीख लेता है क उसे
समाज म अपने आचार- वहार से स मान ा त होता है। वह धोखेबाज और पाखंडी लोग
के च ूह म नह फंसता।
इस सू म जो ‘ व ानम्’ श द आया है उसका अथ केवल वहारकुशल होना ही
नह वरन् संसार क अनेक ऐसी बात ह जनका ान वृ लोग के पास आने-जाने, उनके
उपदे श और उनक संग त करने से ा त होता है। वे अपने अनुभव से उनका जीवन सरल
बनाने म सहायक होते ह। इस कार व ान का अथ एक ापक जानकारी से है। जसक
ा त केवल पु तक से ही संभव नह । य क उ ह पढ़ने, समझने और ान ा त करने म
काफ समय लगता है। वृ पु ष के पास जीवन का नचोड़ होता है, इस लए वृ क
सेवा ा और भ पूवक करने से मनु य संसार के अनेक मह वपूण ान सरलतापूवक
हण कर सकता है। । 9 ।
।। स पा दता मा जता मा भव त ।।
जो पु ष ान- व ान से संप होता है, वह वयं को भी जीत सकता है, अथात् वही
संसार म सफल होता है।
इस सू के भी आधु नक संदभ म दो अथ होते ह—अथात् जो शासक स य के
अनुसार आचरण करना सीख लेता है, वह अपनी इं य को जीत सकता है।
सरा अथ यह है क जो सामा यजन स य वहार से प र चत हो जाता है, जसे
स य और अस य का ान हो जाता है, वह अपनी इं य को जीत सकता है और
आ म वजयी हो सकता है। अ ानी मनु य अपने आप पर वजयी नह हो सकते, य क
उसको स य और अस य का ान नह होता, इस लए मनु य का क यह है क अपने
आप पर वजयी होने का य न करे। अपने आप पर वही नयं ण रख सकता है
जसे सांसा रक वा त वकता का ान हो। जो वयं को जीत लेता है, वह संसार को जीत
सकता है। स भवतः चाण य के कहने का यही ता पय है। । 11 ।
।। स पा ा मानम व छे त् सहायवान् ।।
राजा को रा यो चत गुण से संप होना चा हए तथा अपने जैसे ही गुणी सहायक
रखकर रा य का कायभार संभालना चा हए।
राजा का क है क वयं अपने आप को यो य बनाने के बाद अपने वचार से
मेल खाने वाले गुणवान य को ही अपना सहायक बनाए। तभी वह भली कार
रा यभार को संभालने म समथ हो सकता है। उसे अपनी श य व क का पूण ान
होना चा हए। उसक इं यां वश म होनी चा हए। उसके वचार नी तपूण, स य से यु होने
आव यक ह। शासक का क यह है क वह शासको चत गुण से संप हो, उसम
गंभीरता होना आव यक है, तभी वह अपने सहायक से उ चत काय लेने म समथ हो सकता
है। जब राजा को वयं ही राज से संबं धत नी तय और काय का ान नह होगा तो उसके
सहयोगी उसको स माग से वमुख कर सकते ह। । 17 ।
।। नासहाय य म न यः ।।
गुणी सहायक से हीन राजा के वचार अ न त होते ह। मं प रषद् क बौ क
सहायता से हीन अकेला राजा अपने सी मत अनुभव के बल से राज जैसे ज टल क के
वषय म उ चत नणय नह कर सकता।
मं प रषद् क उ चत सलाह के बना अकेला राजा राजकाय को ठ क से नह नभा
सकता य क अ धकांश य का अनुभव और उनक श यां सी मत होती ह, जब क
रा य से संबं धत वचार और नणय का रगामी प रणाम होता है। इस लए राजा का
क है क जब भी कोई न य करे अथवा कसी नी त का नधारण करे, उसे अपने
बु मान सहायक से परामश अव य करना चा हए।
इस कार यह कट है क रा य-शासन चलाने के लए बु मान मं य क
आव यकता रहती है। । 18 ।
।। नैकं च ं प र मय त ।।
जैसे रथ को एक अकेला प हया नह चला सकता उसी कार रा य को एक
चलाने म असमथ होता है। राजा के अ त र मं प रषद् रथ के सरे प हये के समान काम
करती है।
य द अकेला राजा बु मान मं य क सहायता के बना काय करता है, तो वह
एकतं और तानाशाह रा य कहलाता है। इससे रा य क हा न होती है। इ तहास ऐसे
उदाहरण से भरा पड़ा है जहां एक तानाशाह ने जो भी काय कए अ ततः उनका प रणाम
रा के लए हा नकारक आ। जस कार एक अकेले च से गाड़ी नह चल सकती, उसी
कार कोई राजा भी सहयोगी मं प रषद् के बना भली- कार काय-भार नह चला सकता।
। 19 ।
।। सहायः सम ःखसुखः ।।
सुख- ःख आ द दोन थ तय म जो मं ी राजा से पूण मेल रखकर उसक
सहायता करता है, उसे ही वा त वक सहायक कहते ह।
सुख और ःख जीवन क दो प र थ तयां ह। दोन थ तय म जो एक-सा वचार
रखता आ सहायता करता है, उस को ही वा त वक सहायक माना जाता है। सामा य
प से ायः दे खने म यह आता है क सुख म तो ब त से साथी हो जाते ह परंतु ःख म
साथ दे ने वाले ब त कम होते ह। तब उसके सगे-संबंधी और यहां तक क प नी भी
उसका साथ छोड़ दे ती है। कतु जो सुख- ःख म समान भाव रखते ह, को उ ह ही
अपना स चा सहायक और हतैषी मानना चा हए। । 20 ।
।। म र णे काय स भव त ।।
भ व य के संबंध म बनाई गई काय-योजना को गु त रखने से ही काय स हो पाता
है।
भ व य क कसी भी योजना को गु त रखना चा हए। इसका यह लाभ होता है क
उस योजना से संबं धत श ु उस काय म बाधा उ प नह कर पाते। अचानक अपना
काय संप कर लेता है और श ु मुंह ताकते रह जाते ह। । 25 ।
।। काया ध य द पो म ः ।।
मं अंधकार म माग दखाने वाले द पक के समान है। यह अपने काय के संबंध म
अ न त नी त वाले को उसका क -माग दखाने म सहायक होता है।
जैसे घर का मा लक काश के बना अपने ही घर म अंधे के समान वहार
करता है, उसी कार मनु य सु वचा रत मं के बना अपना क -पालन करने म अंधा
बना रहता है। । 31 ।
।। म च ुषा पर छ ा यवलोकय त ।।
जन राजा को अपनी वजय क आशा रहती है, वे अपने परामशदाता मं य क
आंख से अथवा उनक से अपने वरो धय क कमजो रय को जान लेते ह।
जो राजा सदै व सतक रहता है वही जीत क आशा कर सकता है। वह अपने मं य
अथवा अ य परामशदाता क सहायता से अपने वरोधी रा क कमजो रय का पता
लगा लेता है। सरे रा क कमजो रय अथवा बलता का ान होने पर राजा लाभ उठा
सकता है और अपने रा य को सु ढ़ बना सकता है। । 32 ।
।। मं काले न म सरः कत ः ।।
मं हण करते समय मं दाता के छोटे अथवा बड़ेपन पर यान न दे कर उसके
अ ां पन पर ई या न करके ा के साथ म हण करना चा हए।
इसका भाव यह है क जस समय कसी योजना के संबंध म वचार कया जा रहा
हो, उस समय कसी को छोटा अथवा नबल समझकर उसक बात को मह वहीन नह
समझना चा हए। मं णा म भाग लेने वाले सभी सद य का क है क वे न प भाव से
सबके वचार सुन। । 33 ।
।। याणामेकवा ये स ययः ।।
कसी वचारणीय क के वषय म जब कोई वचार कया जा रहा हो तो उसम
भाग लेने वाले व भ कार के य का एकमत होना े माना जाता है। एकमत होने
के कारण काय स सु न त हो जाती है। । 34 ।
।। षट् कणाद् भ ते म ः ।।
चाण य ने इस सू म भी अपने रह य को गु त रखने क बात कही है। उनका
कहना है क कोई वचा रत बात छह कान म प ंचने से रह य नह रह पाती।
मं राजा तथा मु यमं ी के अ त र कसी भी तीसरे के कान तक प ंचने
से ही असार हो जाता है। यही इस सू का भाव है। इसके अनुसार जब मं णा को अं तम
प दे ना हो तो उस समय केवल दो उ रदायी मनु य ही उसे न त अं तम प द। । 36 ।
।। आप सु नेहसंयु ं म म् ।।
वप के दन म जब सारा संसार वप म फंसे ए को अकेला छोड़ दे ता
है तो उस समय सहानुभू त रखनेवाला ही म कहलाता है। । 37 ।
।। म सं हणे बलं स प ते ।।
स चा म मल जाने अथवा उनका सं ह करने से मनु य को बल ा त होता है
अथात् मनु य स चे म के कारण अपने को बलवान अनुभव करता है।
मनु य को स चा म मलने से जो बल ा त होता है, उसे सात व भ प म
दे खा जाता है। यह बल उसे अपने वामी, मं ी, दे श, ग, खजाना, सेना और म आ द के
प म ा त होता है अथात् इनम से कोई भी एक या एक से अ धक ोत उसके प म होते
ह तो अपने आप को श -संप मान सकता है।
इससे पहले सू म भी यही बताया गया है क आप म जो नेह रखता है,
उसे भी म कहा जा सकता है और इस सू का प अथ यह है क मनु य के स चे म
ही उसका वा त वक बल होते ह। । 38 ।
।। अल धलाभो नालस य ।।
आलसी अ ा त रा यै य ा त नह कर सकता अथात् आलसी
अथवा आलसी राजा न तो अपने रा य क सीमा को वक सत कर सकता है और न अपने
रा य को समृ शाली बना सकता है।
व तुतः स य म न ा न होना ही आल य है। जो स यहीन है वह सदै व ऐसे
काय करता है, जो करने के लायक नह होते ह और उपयु काय को करने म आल य
दखाता है। आल य उसे भी कह सकते ह जससे कसी कार का लाभ नह होता।
आल य मनु य का सबसे बड़ा श ु है। ‘आल यं ह मनु याणां शरीर थो
महान् रपुः’, अथात् आल य ही मनु य के शरीर म रहनेवाला उसका सबसे बड़ा श ु है। ।
40 ।
।। अलस य ल धम प र तुं न श यते ।।
स यहीन आलसी , जो कुछ ा त है उसक र ा करने म भी असमथ होता है
अथात् आलसी राजा अपने क से वमुख होने के कारण ा त रा यै य को भी सुर त
रखने म समथ नह होता।
सामा य संसार म भी यह दे खने म आता है क आलसी अपने धन-ऐ य,
संप अथवा सुख का व तार नह कर सकता। इसके वपरीत उसे इस संसार म जो कुछ
ा त है, आल य के कारण वह उससे भी हाथ धो बैठता है। । 41 ।
।। न चालस य र तं ववधते ।।
आलसी, स यहीन, य नहीन का दै ववश सं चत रा यै य कुछ काल तक
सुर त दखने पर भी वृ को ा त नह होता।
राजा के ऐ य म वृ न होना, वा तव म उसका वनाश है। जैसा क पहले बताया
जा चुका है क मनु य के शरीर म रहनेवाला आल य ही उसका सबसे बड़ा श ु होता है।
इस लए मनु य का क है क वह आल य पी दोष को सदै व र करने का य न करे।
। 42 ।
।। न भृ यान् ेषय त ।।
आलसी, स यहीन, अकम य, भोग वलास म फंसा आ राजा अथवा रा य
अ धकारी, रा य के कमचा रय को उनके उ चत काम पर लगाने अथवा उनसे अ धक काम
करवाने म आल य से काम लेता है।
जो लोग आलसी ह, वे अपने अधीन रहने वाले यो य कमचा रय से भी सही कार
से काम लेने म असमथ रहते ह। आलस को न यागना, नौकर-चाकर तथा अ य
अ धका रय से उनक यो यता के अनुसार काय न लेना राजा का एक कार से अपराध है।
इससे रा य- व था म गड़बड़ पड़ जाती है। । 43 ।
।। अल धलाभा द चतु यं रा यत म् ।।
अल ध का लाभ, ल ध क र ा, र त का वधन तथा राजकमचा रय क उ चत
नयु ारा काय म व नयोग या य ये रा य- व था के चार आधार ह। ये चार बात
मलकर राजतं कहलाती ह।
अथात् रा य-तं के लए यह आव यक है क रा को जो कुछ ा त नह है, उसे
उपल ध करवाने का य न कया जाये, उसे जो कुछ ा त है उसक र ा क जाए और
उसक वृ क जाए, यह राजतं के मुख काय ह। । 44 ।
।। रा यत ाय ं नी तशा म् ।।
समाज म च लत वहार म आने वाली बात को ही नी तशा कहते ह। रा य-
व था नी तशा के अनुसार ही होती है।
य द रा य- व था एक व श नी त से संप हो तो समाज म एक वशेष कार
क नी त ज म लेती है और इसी कार के समाज म उसे फलने-फूलने का अवसर मलता
है। । 45 ।
।। रा यत े वाय ौ त ावापौ ।।
अपने रा से संबं धत तथा सरे रा से संबंध रखने वाले क अपनी रा -
व था के आव यक अंग होते ह।
येक रा क अ य रा के संबंध म एक वशेष नी त होती है। येक सरकार म
एक वदे श मं ालय भी होता है, जसका काम अपने पड़ोसी रा य अथवा सु र रा य के
त नी त- नधारण करना होता है। इस नी त का वशेष लाभ यह होता है क इससे रा
सु ढ़ होता है। वदे श नी त इस कार क होनी चा हए, जससे रा का अ हत न हो। उसक
सुर ा म कसी कार क बाधा न पड़े। यह वभाग कसी भी दे श के क याण के लए
अ य त आव यक होता है। । 46 ।
।। त ं व वषयकृ ये वाय म् ।।
वरा - व था तं कहलाती है और वह केवल वरा संबंधी क से संब
रहती है।
अपने रा के संबंध म अपने क पूरे करने से ही रा य म व था कायम रहती
है। रा य म अ व था होने का कारण यही है क रा य के अ धकारी अपने दे श से संबं धत
क क उपे ा करते ह। वे अपने क का पालन नह करते। इससे रा य म
अ व था फैलती है और रा य को हा न प ंचती है। । 47 ।
।। आवापो म डल न व ः ।।
आवाप अथात् सरे रा से संबं धत क म डल अथात् पड़ोसी रा से संबंध
रखता है।
जो रा सरे रा पर वशेष नजर रखता है, उनक ग त व धय क जानकारी ा त
करता है, वही सफलतापूवक अपने रा य को थर रख सकता है। जो पड़ोसी रा य क
ग त व धय पर नह रखता उसे हा न उठानी पड़ती है। । 48 ।
।। स ध व हयो नम डतः ।।
पड़ोसी रा य से अनेक कार क सं धयां तथा उसके व काय- व था रा
नी त का मह वपूण अंग है।
सं ध का अथ है कसी पड़ोसी दे श से ऐसे समझौते करना, जो दे श के हत म हो।
व ह का अथ है, पड़ोसी रा य के संबंध म वरोधी कारण को अपनाना। जहां सं धय ारा
दोन दे श को लाभ होता है, वहां कुछ काय ऐसे भी होते ह जनका संबंध आपसी वरोध से
भी होता है। अथात् येक रा को पड़ोसी दे श के वहार के अनु प सं ध और व ह
करते रहना चा हए। इससे दे श म रा य- व था थर रहती है। । 49 ।
।। नी तशा ानुगो राजा ।।
राजा को नी तशा के अनुसार चलना चा हए।
राजा को द डनी त, तकशा तथा अथशा आ द क बात का पूण ान होना
चा हए। इन बात का शासन- व था से संबंध है, इस लए राजा अथवा रा य के
अ धका रय को इन शा का सू म ान ा त करना चा हए। य द राजा अथवा रा य के
अ धकारी, इन बात से अप र चत ह तो उन पर कसी कार का सामा जक नयं ण नह रह
पाएगा। इस कार वे वे छाचार से पूण काय करने लगगे। इससे रा क भारी हा न होने क
संभावना रहती है और रा य म व ोह उठ खड़े होते ह। इस लए राजा का क है क वह
नी तशा के नयम के अनुसार ही जा का पालन करे। । 50 ।
।। अन तर कृ तः श ुः ।।
इस सू का भावाथ यह है क कसी रा के नकटवत रा य अथवा वहां के लोग
भी श ु बन जाते ह।
ायः यह दे खा जाता है क जहां सीमा पर संघष अथवा लड़ाई-झगड़े होने क
संभावना बनी रहती है, वे दे श आपस म श ु बन जाते ह। ऐसा ाचीनकाल से रा य के
इ तहास पर डालने से भी पता चलता है। आज के वातावरण म भी अनेक दे श म
सीमा को लेकर झगड़े होते रहते ह। इस लए राजा, रा य-अ धकारी और सीमा क
सुर ा करनेवाली सेना का क है क वे अपने पड़ोसी रा य से सतक रह, पड़ोसी
रा य क ग त व धय को दे खते रह। । 51 ।
।। हेतुतः श ु म े भ व यतः ।।
श ु और म बना कारण के नह होते। श ुता और म ता कसी कारणवश आ
करती है।
य द इस नी त सू को आधु नक संदभ म दे खा जाए तो यह बात ब त ज द प
हो जाती है। जब अमरीका और स म शीत यु चल रहा था तो अमरीका भारत का
वरोधी था। उस समय स ने भारत क ओर म ता का हाथ बढ़ाया। यह एक सामा य-सा
नयम है क कोई भी रा अपने प को बल करने के लए अ य रा का सहयोग मांगता
है। । 53 ।
।। हीयमानः स धं कुव त ।।
नबल राजा को अपने से श शाली रा य से सं ध कर लेनी चा हए।
नी त जाननेवाला नबल राजा अपने पड़ोसी सश और अ यायी राजा के साथ
सं ध करने से ही अपने रा य क र ा कर सकता है। उसे नी तपूवक सं ध करके अपने दे श
पर आए संकट अथवा यु क थ त को टाल दे ना चा हए। जो राजा ऐसा नह करता, उसे
भयंकर हा न उठानी पड़ती है। सं ध करने के प ात् परो प से कमजोर राजा को अपनी
थ त को ढ़ बनाने का य न करना चा हए। । 54 ।
।। गजपाद व ह मव बलव हः ।।
अपने से बलवान् राजा से यु करना बलकुल वैसा ही है जैसे हा थय के झुंड ारा
पैदल सेना को कुचलवा दे ना।
इसका भाव यह है क जो राजा जानबूझकर अथवा अ ानवश कसी बलवान् राजा
पर आ मण करता है तो उससे आ मण करनेवाले राजा का ही वनाश होता है। यह
बलकुल इसी कार का काय है जैसे वशाल प थर क शला से अपना माथा टकराना। ।
59 ।
।। आमपा मामेन सह वन य त ।।
जस कार दो क चे पा य द आपस म टकराते ह तो दोन ही टू ट जाते ह, इसी
कार समान श वाले राजा म यु दोन के वनाश का कारण होता है। । 60 ।
।। अ र य नम भसमी ेत् ।।
राजा को चा हए क वह अपने श ु के य न अथवा उनके ारा कए जाने वाले
काय पर सावधानीपूवक नजर रखे।
येक रा का क है क वह अपने श ु रा पर हर समय सतकतापूवक नजर
रखे। उसे इस बात का ान भी होना चा हए क श ु रा कस बात का य न कर रहा है।
सरे रा से सं धय ारा उसे कस कार का लाभ होने क संभावना है। राजा को चा हए
क वह यह सब बात अपने गु तचर ारा जाने और अपनी तथा अपने रा य क र ा क
पूरी सावधानी बरते। । 61 ।
।। स धायैकतो वा ।।
अपनी वजय चाहनेवाले राजा को चा हए क वह अपने पड़ोसी रा य से सं ध
अथवा यु आ द येक अव था म श ु के य न पर पूरी तरह रखे। । 62 ।
।। अ र वरोधादा मर ामावसेत् ।।
राजा का क है क वह अपने रा को बाहर और भीतर के वरोध से बचाता
रहे।
श ु रा पड़ोसी रा को कमजोर करने के लए अनेक उपाय अपनाते ह। वे
आतंकवा दय ारा रा म भय फैलाने का य न करते ह। अनेक बार वे सां दा यक दं गे
करवाने का य न करते ह, अनेक थान पर बम- व फोट तथा लूटमार करके भी रा को
अ थर करने का य न करते ह। उस रा म कुछ ऐसे वरोधी त व पैदा हो जाते ह जो
वाथवश रा को उ त के माग पर ले जाने के य न का वरोध करते ह। इसी लए रा के
शासक का क है क वे बाहरी और आ यांत रक खतर से रा क र ा करने का
य न करे। । 63 ।
।। बला यो ःखमावह त ।।
बल का आ य लेने से ःख उठाना पड़ता है।
य द कसी रा को अपनी श पर व ास न हो तो उसे अपनी वतं ता क र ा
के लए कसी श शाली रा का ही आ य लेना चा हए। नबल और कमजोर रा का
आ य लेने से लाभ नह होगा। य क बल रा से समय आने पर कसी कार के
क याण क आशा नह क जा सकती। इस कार यह प है क बल रा का सहारा लेने
से आ य लेने वाले रा को ःख उठाने पड़ते ह। । 65 ।
।। अ नव ाजानमा येत् ।।
कसी राजा से संबंध तोड़ लेने के बाद उससे उसी कार सावधान रहना चा हए जैसे
अ न से सावधान रहता है। । 66 ।
।। रा ः तकूलं नाचरेत् ।।
राजा के तकूल आचरण नह करना चा हए। राजा से ोह का अथ है रा का
ोह।
रा से ोह करना, एक भयंकर पाप माना जाता है। उसक सजा मृ युद ड है।
इस लए रा अथवा जनता ारा चुने गए त न ध अथवा रा य- व था से व ोह करना
रा - ोह क ेणी म आता है। । 67 ।
।। उ तवेषधरो न भवेत् ।।
मनु य को ऐसा वेष धारण नह करना चा हए जससे वेषधारण करनेवाले क
उद्दं डता कट हो।
मनु य जस समाज म रहता है उसे चा हए क वहां के सामा जक नयम के अनु प
ही व धारण करे। उसे ऐसे व धारण नह करने चा हए, जसे दे खकर मन म तर कार
अथवा घृणा क भावना पैदा हो। का वेष, समाज क च के अनु प होना चा हए। ।
68 ।
।। न दे वच रतं चरेत् ।।
मनु य का क है क वह उस कार के काम न करे जो राजा के यो य होते ह।
अथात् मनु य को राजा के च र का अनुकरण नह करना चा हए।
इसका भावाथ यह है क मनु य को धन के अ भमान म आकर राजा के समान
मुकुट और छ आ द धारण नह करने चा हए और उसे उन च का योग भी नह करना
चा हए जनका योग केवल राजा के लए ही न त होता है। सामा य मनु य को ऐसा
करना उ चत नह । भाव यह है क जन-सामा य को ऐसा कोई काय नह करना चा हए
जससे उसे राजा का त ं माना जाए। । 69 ।
।। न सनपर य कायावा तः ।।
जो सन अथवा कसी कार क बुरी लत म फंसा आ है वह कसी भी
काय म सफल नह हो सकता अथात् उसका कोई भी काय सफल होना क ठन है।
जो कसी कार के सन आ द म फंसा आ है उसका काय उसके लए
कभी भी फलदायक स नह होता। कारण यह है क उसके काय म न तो कोई उ साह
होता है न ढ़ता। कसी कार के भी सन म फंसा आ आ म- व ास से र हत
होता है। आ म व ास से हीन के काय म कसी कार क तेज वता नह होती।
उसका मन हर समय वषय भोग म फंसे रहने के कारण क क ओर े रत ही नह
होता। । 71 ।
।। इ यवशवत चतुरंगवान प वन य त ।।
चतुरं गणी सेना से यु होने पर भी य द राजा अपनी इं य को वश म नह रख
सकता तो वह न हो जाता है।
इस सू का भाव यह है क मनु य को अपनी इं यां अपने वश म रखनी चा हए।
जस मनु य क इं यां अपने वश म नह होत , वह अपनी इ छा को पूण करने के लए
ऐसे काम करता है जो उसके वनाश का कारण होते ह। राजा के लए यह और भी
आव यक है य क उनके पास असी मत श यां होती ह। आचाय चाण य का कहना है
क य द राजा के पास असी मत श यां ह, उसके पास सभी कार क सेनाएं ह, सभी
कार के अ -श ह तो भी उसे चा हए क वह अपनी इं य को वश म रखे। इं य को
वश म न रखने से उसका समृ रा य भी न हो सकता है। । 72 ।
।। ना त काय ूत वृ य ।।
जन लोग को जुआ खेलने क आदत होती है, वे अपने क के त उदासीन
होते ह, अथात् उ ह अपने क का ान नह होता।
राजा क जुए के त अ य त आस रा के लए घातक स हो सकती है।
जुआ एक ऐसा सन है जसम परा जत होता आ भी अंत तक जीत क कामना
करता रहता है। परंतु उसे वा त वकता का तभी ान होता है जब वह सब कुछ खो बैठता
है। इ तहास इसका उदाहरण है। यु ध र ने जुआ खेलने के लए य धन के नमं ण को यह
कहकर वीकार कर लया क इस कार के नमं ण को अ वीकार करना राजा के लए
अ छा नह । परंतु सभी जानते ह क उस नमं ण को वीकार करने का फल या आ। ।
73 ।
मृगयापर य धमाथ वन यतः
शकार खेलना राजा का मनोरंजन हो सकता है परंतु जो उसके त अ यंत आस
हो, आव यकता से अ धक इस काम म च लेता हो, चाण य के अनुसार वह अपने धम
और अथ दोन ही न कर लेता है। । 74 ।
।। अ न दाहाद प व श ं वा पा यम् ।।
कठोर वाणी आग से जलने से भी अ धक ःखदायी होती है।
कहा जाता है क तलवार का घाव भर जाता है परंतु कठोर वाणी का घाव दल पर
सदा के लए अं कत रहता है। कठोर बात बोलना एक कार का सन है। अ ववेक मनु य
ो धत होता है तो उसक वाणी भी कठोर हो जाती है। तब वह बना सोचे-समझे ऐसी बात
कहने लगता है जो सर के दय म सदा के लए चुभती रहती ह। इसका अथ यह है क
कठोर वाणी भ व य म होने वाले ववाद का बीज है। इस लए संत-महा मा ने कहा है क
मनु य को कटु वाणी से बचना चा हए। मधुर वाणी से अपने श ु को भी म बना
सकता है। । 77 ।
।। अथतो षणं ीः प र यज त ।।
जो राजा थोड़े-से धन से संतु हो जाता है, रा य ल मी उसे याग दे ती है।
राजा को अपने राजकोष से कभी भी संतु नह होना चा हए। य द वह अपने
अपया त साधन से संतु होकर बैठ जाएगा तो रा य नधन और ीहीन होकर न हो
जाएगा। । 79 ।
।। अ म ो द डनी यामाय ः ।।
तु हारा श ु तु ह कतनी हा न प ंचा सकता है, इसका भाव तु हारी दं डनी त पर
आधा रत है।
य द श ु के त तु हारी दं डनी त नबल होगी और तु हारी तरफ से कसी कार क
सतकता नह बरती जाएगी तो श ु का दमन करना तु हारे लए क ठन हो जाएगा। इस लए
येक राजा का क है क वह ऐसी दं डनी त अपनाए जससे उसके श ु रा य के व
कसी कार का अपराध करने से घबराते रह। । 80 ।
।। दं डः स पदां योजय त ।।
दं ड ारा ही राजा या रा य को सम त संप यां ा त होती ह अथात् वह सम त
संप य से संप बनता है।
दं ड याय का पयायवाची है। दं ड ही याय है। जा दं ड से ही वश म रहती है। रा य
म दं ड- व था न रहने से य- व य, खान, आयकर, तटकर, ऋणदान, याय-अ याय,
हाट- व था आ द से आय के सम त ोत भा वत होते ह। बड़े लोग छोट को लूटकर
खाने लगते ह। तब दे श म उप व खड़े हो जाते ह। इससे रा यनाश या संप नाश क थ त
बन जाती है। अतः दं ड-संबंधी राजा के नयम इस कार के होने चा हए जससे कसी भी
को उनके व जाने का साहस न हो। । 82 ।
।। द डाभावे म वगाभावः ।।
रा य म दं डनी त से उपे त होने पर राजा यो य मं य को छोड़कर अयो य मं य
के वश म हो जाता है।
जब रा य म दं डनी त क उपे ा होने लगती है तो राजा को उ चत परामश दे ने वाले
मं य का अभाव बन जाता है। दे श अथवा पड़ोसी श ु रा के संबंध म दं डनी त का सही
उपयोग करने के लए चतुर परामशदाता मं य क आव यकता होती है। जो राजा इस बात
से इनकार करता है अथवा इस बात क उपे ा करता है, उसे चापलूस अ धकारी घेर लेते ह।
ऐसी थ त म राजा मनमाने काय करने लगता है। इससे रा क हा न होती है। । 83 ।
।। न द डादकाया ण कुव त ।।
अपराधी वृ के लोग दं ड अथवा जुमाने आ द के भय से रा के वधान- वरोधी
काय से र रहते ह।
जस रा य म दं ड के भय से अपराध नह करते, उसे ही धम का शासन
कहा जाता है। उसी रा य म धम और अथ क र ा होती है।
धम और अथ क र ा का भाव यह है क अपराधी वृ के लोग यह जानते ह क
रा - वरोधी काय करने से उ ह कठोर दं ड दया जाएगा। इस लए वह रा य- वरोधी पाप-
कम करने से अलग रहते ह। ऐसे ही रा य को धमयु रा य कहा जाता है। । 84 ।
।। द डनी यामायतमा मर णम् ।।
दं ड संबंधी नी तय को ठ क रखने से आ मर ा हो सकती है।
प दं डनी त के ारा ही रा सुर त रह सकता है। रा य का क याण इसी बात
पर नभर करता है क दं डनी त संबंधी नयम या ह और उनका या भाव होता है। उसक
दं डनी तयां जा का क याण करने वाली ह , जा का क याण ही उसका अपना क याण
होता है और जा क र ा ही रा क र ा कहलाती है अथात् जा के अ त व से अ धक
राजा का अ त व नह होता। जा क सुर ा के बना राजा क सुर ा कैसे हो सकती है?।
85 ।
।। आ म न र ते सव र तं भव त ।।
राजा के सुर त रहने से ही पूरे रा को सुर त कया जा सकता है।
चाण य के सू को जन-सामा य और राजा संबंधी दोन कोण से दे खा जा
सकता है। चाण य ने अ य थान पर भी कहा है क मनु य को अपनी र ा के लए
सबकुछ ब लदान करने के लए नह हचकना चा हए। य द वह इस कार अपनी र ा कर
लेता है तो न ई धन-संप को फर से ा त करने का य न कर सकता है। इसी कार
य द राजा अपनी आ मर ा करने म समथ है तो इसे पूरे रा को सुर त समझा जा सकता
है। । 86 ।
।। आ माय ौ वृ वनाशौ ।।
मनु य क वृ और वनाश उसके अपने हाथ म होते ह।
भगवान् ीकृ ण ने गीता म लखा है क मनु य अपना ही सबसे बड़ा म और
अपना ही सबसे बड़ा श ु होता है। वह अपने ही काय से सबकुछ बनाता है और बगाड़ता
भी है। इसी कार रा क वृ और उसका पतन राजा के हाथ म है। राजा क यो यता और
अयो यता भी कसी रा य क वृ और वनाश का कारण होती है। राजा य द यो य होगा
तो रा य का व तार होने के साथ धन-धा य से समृ भी होगा। य द वह नी तहीन, शराबी,
भचारी और सन म फंसा आ है तो रा का वनाश हो जाएगा। अथात् मनु य क
वृ और वनाश उसके अपने वहार पर नभर करता है। । 87 ।
।। द डो ह व ाने णीयते ।।
दं डनी त का योग सावधानीपूवक, सोच-समझकर कया जाना चा हए।
दं डनी त के संबंध म य द सही ढं ग से उस पर वचार कया जाए तो उसक
अ नवायता और वा त वकता कट होती है। इसी कार दं ड का योग करते समय भली
कार से वचार करना चा हए।
इस सू से ऐसा ात होता है क उस काल म दं ड- वधान तो था परंतु उसका व प
पूणतः प नह था। इस लए येक थ त म दं ड-संबंधी नणय पर वशेष प से वचार
करना आव यक है। इस लए चाण य ने दं ड के संबंध म यह कहा है क इसका योग ब त
सोच-समझकर करना चा हए य क दं ड के योग, प रणाम, रगामी होते ह। उसका भाव
ब त ापक होता है। इस लए दं ड दे ते समय भली कार वचार कया जाना चा हए। । 88
।
।। बलोऽ प राजा नावम त ः ।।
राजा को नबल और एक साधारण आदमी समझकर उसक आ ा क अवहेलना
नह करनी चा हए।
जो लोग राजा अथवा रा य- शासन को कमजोर और साधारण मानते ह और
उसक आ ा अथवा वधान का उ लंघन करते ह, वे रा ीय अपराध करते ह। रा य क
उपे ा अथवा अपमान करने से सभी क हा न होती है। उससे रा का ापक अ हत होता
है। इस लए जो लोग राजा अथवा शासन- व था को कमजोर मानते ह, वे अंधकार म रहते
ह। राजा अथवा शासन का यह क है क वह अपने आपको श शाली बनाए और
नयम का कठोरता से पालन करे। । 89 ।
।। ना य नेद ब यम् ।।
अ न को कभी बल नह समझना चा हए।
एक छोट -सी चगारी भारी अ न-का ड का प धारण कर सकती है और भयंकर
वनाश हो सकता है। उससे वशाल जंगल भ म हो जाते ह। इसी कार जन लोग म
रा य ी कट होती है उनक श ीण दखाई दे ने पर भी जनता को संग ठत करने क
श के कारण बल प धारण कर लेती है। इस लए उसक अवमानना नह करनी
चा हए। । 90 ।
।। द डे तीयते वृ ः ।।
राजा क संपूण शासक य यो यता उसक दं डनी त से कट होती है। । 91 ।
।। वृ मूलमथलाभः ।।
धन-धा य क ा त अथवा रा य का समृ होना राजा के च र पर नभर करता
है।
रा य का समृ होना राजा के च र पर नभर करता है। रा य ी उसी राजा को
ा त होती है जो अपनी इं य को संयम म रखता आ जा के क याण के लए नरंतर
काय करता है। अतः राजा को च र वान् होना चा हए। । 92 ।
।। अथमूलौ धमकामौ ।।
धम का अनु ान तथा रा क कामना क पू त रा यै य क थरता पर ही
नभर रहा करता है।
सांसा रक क का पालन करते ए मान सक उ कष, धम का अनु ान और
रा ीय कामना क पू त तभी हो सकती है जब रा यै य थर रहता है अथात् धम क
र ा करते ए धन-सं ह अथवा रा य ी क वृ करनी चा हए। रा यै य क वृ तभी
होती है जब राजा और जा के काय धम पर आधा रत ह । अथात् धम का पालन धन के
बना नह हो सकता तथा धन से ही क याण भी कया जा सकता है। । 93 ।
।। अथमूलं कायम् ।।
अथ अथवा धन काय का मूल होता है।
कठोर कम से ही रा य ी क वृ होती है। धनाजन करने के लए को काय
करना पड़ता है। धन से ही सारे काय संप होते ह। धन के बना जस कार मनु य नज व
होता है, उसी कार धनहीन रा अथवा राजा भी जनता के हत का कोई काय नह कर
सकता। जैसे पवत से नकलकर बहती ई नद लोग को जीवन दान करती है, उसी कार
धन के वाह से सम त काय संप होते ह। । 94 ।
।। यद प य नात् काय स भव त ।।
रा य ी ा त होने पर कोई भी काय थोड़ा-सा य न करने पर ही स हो जाता
है।
कसी रा के काय क स उसके समृ होने पर ही नभर करती है। य द रा म
श है और उसके राजकोष म धन क कमी नह है तो ऐसे रा के लए कोई भी काय
करना क ठन नह होता। । 95 ।
।। काय पु षकारेण ल यं स प ते ।।
काय अपना व प नधा रत करने के बाद ल य बन जाता है।
जब तक मनु य अपने काय को क मानकर उसे ल य के प म वीकार नह
कर लेता, तब तक उनका स होना क ठन होता है। मनु य के लए उसके जीवन का ल य
अपने क का पालन करना होता है। जो मनु य ज म पाकर अपने क को पूरा
नह करता, वह अपने जीवन के ल य को भी ा त नह कर सकता। । 99 ।
।। पु षकारमनुवतते दै वम् ।।
भा य पु षाथ के पीछे चलता है।
‘उ ो गनं पु ष सहमुपै त ल मी, दै वेनदे य म त कापु षा वद त’ अथात् जो
पु षाथ करता है, उसे ही ल मी ा त होती है अथात् उसके काय स होते ह, भा य का
सहारा तो कमजोर और कायर लेते ह। यहां भा य के रह य को भी समझना
आव यक है। भा य के मूल म भी पु षाथ ही तो होता है। भा य को ार ध भी कहते ह।
अतीत का पु षाथ ही वतमान म ‘भा य’ बन जाता है। । 100 ।
।। असमा हत य वृ न व ते ।।
अ व थत च वाले के पास सद् वहारपूण सद्भावना नह रहती।
जस का च अथवा बु थर नह रहती, उसक हा न होती है। जस
का मन थर नह होता उससे सद् वहार क आशा करना थ है। उसक
सद्भावना समा त हो जाती है। उसक च वृ यां ण- ण म बदलती रहने के कारण
व ास के यो य नह रहत , इससे न तो उसका कोई काय संप होता है और न कोई लाभ
होता है। । 102 ।
।। न चल च य कायावा तः ।।
काय करते समय जनका च चंचल रहता है, उनके काय कभी समा त नह होते।
अ थर च और थोड़ी-थोड़ी दे र म जस के वचार बदलते ह , उसका कोई
भी काय पूरा होने म संदेह रहता है। चंचल च वाला येक बात म संदेह करता
रहता है। संदेह करने वाले के काम तो कभी पूरे नह होते पर तु वह वयं पूरा (समा त) हो
जाता है। । 105 ।
।। ह तगतावमाननात् काय त मो भव त ।।
काय को स करने के लए मनु य के हाथ म जो साधन ह , उनका स पयोग
करना चा हए। जो साधन का स पयोग नह कर सकता उसका काय न हो जाता है।
काय स के लए मूख लोग ऐसे साधन के पीछे भटकते ह जो उ ह ा त नह
होते। वा तव म उ ह काय को स करने के साधन का मू यांकन करना नह आता।
साधन के संबंध म य द मनु य के वचार थर नह ह तो उसे काय स करने म सफलता
ा त नह होती। । 106 ।
।। अ ा नना कृतम प न ब म त म् ।।
चाण य कहते ह क य द कोई अ ानी कसी काय को सफल बना लेता है तो
उसक सफलता को आक मक घटना मानकर उसे मह व नह दे ना चा हए।
व तुतः इसका भाव यह है क य द कोई अनाड़ी कसी काय को स कर
लेता है तो उसे एक आक मक घटना मान लया जाता है और उसे उस काय को कर लेने
का मह व नह मलता, य क आक मक प से कया आ वह काम उसके ान के
कारण नह कया होता। । 121 ।
।। दै वं शा तकमणा तषे म् ।।
दै वी वप य के संबंध म को अपनी बु थर रखनी चा हए और शांत
रहते ए दै वी वप य से छु टकारे का य न करना चा हए।
दै वी वप यां अनेक कार क होती ह। भूकंप, बाढ़, तूफान, रा म व ोह अथवा
आतंकवा दय के आ मण आ द को इस ेणी म रखा जाता है। उस समय रोकर
अथवा च लाकर तथा कसी सरे के सर पर दोष मढ़कर वप य से छु टकारा नह पा
सकता। इस कार क वप य के समय को अपनी बु थर रखनी चा हए और
शांत रहकर वप य से छु टकारा पाने का य न करना चा हए। । 125 ।
।। काया थना दा यं न क म् ।।
रा य के जो अ धकारी काय को स करना चाहते ह उ ह श ु के त
भावुकता, उदारता, सरलता और भोलेपन म बहकर म या सहानुभू त नह बरतनी चा हए।
रा य के अ धका रय का क है क वे श ु को सदै व शंका क से दे ख।
उनके त उ ह कसी कार क उदारता आ द का वहार नह करना चा हए। भावुकता म
बहकर उनके त ऐसा वहार नह करना चा हए, जससे रा क हा न हो। श ु के त
रा य के अ धका रय को सदै व संदेहशील रहकर काय करना चा हए। । 128 ।
।। ीराथ व सो मातु धः तह त ।।
बछड़ा ध पीने क इ छा से अपनी मां के तन पर अपने सर से चोट करता है।
भाव यह है क मनु य को कसी भी चीज क ा त के लए वयं य न करना
पड़ता है। गाय भी अपने बछड़े को तब तक ध नह पलाती जब तक वह अपने माथे से
उसके थन पर चोट नह करता। इसी कार ब चे क माता भी ब चे के रोने पर ही उसे ध
पलाती है अथात् अपने य न से ही इस संसार म कुछ ा त कर सकता है। कोई
उसे कुछ दे ने नह आता। । 129 ।
।। अ य नात् काय वप भव त ।।
काय क स के लए जतने य न क आव यकता होती है उतना य न न
करने से काय न हो जाता है।
अनेक बार काय के पूण न होने का कारण यह होता है क उसे पूण करने के लए
जतने य न क आव यकता होती है, वे सब नह कये जाते। कोई काय करते समय
समझता है क उसने ब त य न कए ह परंतु फर भी काय स नह होता। इसका
कारण यही है क ने उतना य न नह कया जतना उस काय को स करने के
लए आव यक था। । 130 ।
।। न दै व माणानां काय स ः ।।
ज ह काय आरंभ करने से पहले ही काय म असफल रहने का न य होता है, उनके
काय कभी पूण नह होते। जो यह समझते ह क उनका काय सफल नह होगा, वे कोई काय
ारंभ ही नह करते।
तीन कार के होते ह—पहले कार के य को अधम ेणी म रखा गया
है। वे असफलता और क ठनाइय के भय से काय ारंभ ही नह करते। म यम ेणी के लोग
जोश म आकर काय तो ारंभ कर दे ते ह परंतु क ठनाइयां आने पर काय को बीच म ही छोड़
दे ते ह। तीसरे कार के वे होते ह जो काय को एक बार आरंभ करने पर अनेक कार
के संकट आने पर उसे पूरा कए बना नह छोड़ते। उ ह उ म ेणी का माना जाता
है। । 131 ।
।। यः काय न प य त सोऽ धः ।।
जो अपने क को नह पहचानता वह आंख के रहते ए भी अंधा है।
जो ववेक से काम न लेकर अपने ल य के त सचेत नह रहता उसे वा तव
म अंधा कहा जाना चा हए अथात् वह ऐसा अंधा है जो माग को दे खते ए भी माग से
भटक जाता है। इस लए को चा हए क वह अपने क को पहचानकर उसे पूरा
करने का य न करे। जो अपने क के त सजग नह रहता वह न तो इस संसार
म स मान का पा होता है और न ही सफल मानव। । 133 ।
।। परी य ताया वप ः ।।
कसी काय क सफलता के माग म आने वाली क ठनाइय को वचारपूवक र करने
का य न करना चा हए।
जब कोई काय ारंभ करता है तो उसके माग म क ठनाइय का आना
वाभा वक है। य द क ठनाइय से घबराकर काय को छोड़ बैठता है तो वह कसी भी
काय को पूरा करने म सदै व वयं को असमथ पाता है।
े पु ष वही होते ह जो वप य से घबराते नह और उ ह र करने का य न
करते ह। जब क नज कृ त के लोग वप य के भय से काय को शु ही नह करते ह। ।
136 ।
।। वश ा वा कायमारभेत् ।।
अपनी श को जांच-परखकर मनु य को अपना काय करना चा हए।
ब त से मनु य इस संसार म ऐसे ह ज ह मानव ज म तो ा त आ है परंतु उ ह
अपने मन और शरीर म सोई ई श य का ान नह । इस लए सबसे पहले मनु य का
क यह है क वह कोई भी काय ारंभ करने से पूव काय से संबं धत अपने ान और
श य का अनुमान लगाये। मनु य को कोई ऐसा काय अपने हाथ म नह लेना चा हए जो
वह करने म असमथ हो। । 137 ।
।। सवानु ानदायमुखा न वध ते ।।
जस रा म भू म, धन- ापार, उ ोग-धंधे आ द रा हत के काय होते रहते ह, उस
रा क आय के साधन भी बढ़ते ह।
जस दे श म कोई भी काय ारंभ करते समय रा के हत को सव प र रखा जाता है,
उस रा क आय के साधन म भी वृ होती है। उसके लए आय के अनेक ार खुल जाते
ह अथात् जो रा भू म, धन, ापार और श प आ द से संबं धत काय को रा हत से
जोड़ता है। वह रा धन-धा य से पूण होने लगता है। वहां क जा खुशहाल होती है। ।
139 ।
।। ना त भीरोः काय च ता ।।
कायर पु ष को अपना क पूरा करने क चता नह होती।
व तुतः अपना क पूरा करने के लए मनु य म वीरो चत भावनाएं होनी चा हए।
य द वह छोट -छोट बात से डरता रहेगा तो अपने क को पूरा नह कर सकेगा। जस
के मन म भय बैठा रहता है उसके लए कसी भी काय को पूरा करना क ठन होता है।
काय को पूरा करने के लए म उ साह के साथ संघष करने क भावना भी होनी
चा हए। मनु य के मन म बैठा आ डर ही उसे क हीन बना दे ता है। । 140 ।
।। ती णद डः सव े जनीयो भव त ।।
छोटे से अपराध पर अ यंत कड़ा दं ड दे ने वाला शासक सबक घृणा का पा बन
जाता है। उसके इस काय से उसके शासन म वरोध उ प होने का भय भी रहता है।
छोटे से अपराध पर अ यंत कठोर दं ड दे नेवाले शासक के त लोग घृणा क नी त
अपना लेते ह। सभी उसको बुरा समझने लगते ह। उसक कठोर दं ड नी त के कारण उसके
े म व ोह होने क संभावना बढ़ जाती है। अतः दं ड दे ने से पहले अपराधी क वृ
और उसके अपराध क थ त के संबंध म वचार करना अ यंत आव यक है। । 145 ।
।। अ तभारः पु षमवसादय त ।।
श से अ धक कायभार उठाने वाला उ साहहीन होकर ज द थक जाता
है।
मनु य जो भी काय करे वह उसक श के अनु प होना चा हए। य द वह अपनी
श से अ धक काय-भार संभाल लेगा तो उससे वह ज द ही थकावट अनुभव करने
लगेगा। अ धक थकावट से मनु य के शरीर म तनाव पैदा होता है। तनाव वयं म एक रोग है,
इसी लए मनु य को चा हए क वह उतना ही काय करने का दा य व ले, जतना वह
सरलतापूवक नभा सके। इससे काय भी ठ क होगा और काम करनेवाले के मन म उ साह
क भावना भी बनी रहेगी। । 148 ।
।। ना य ा यं स यवताम् ।।
जन य के पास स य पी धन है उनके लए कोई भी व तु अ ा त नह रह
जाती।
जन लोग के पास स य का बल है उ ह कसी अ य व तु को ा त करने क इ छा
नह रहती अथात् स य ही उनके लए सव े संप होती है। स य क ा त के बाद संतोष
क भावना का वकास होता है। उस समय नाशवान पदाथ क ओर से उसका मन हट जाता
है अथात् जन लोग ने स य को ा त कर लया, उ ह अ य कसी व तु क इ छा नह
रहती। । 151 ।
।। साहसेन न काय स भव त ।।
केवल भौ तक श पर नभर रहने से काय स नह होता।
साहस एक भौ तक श है। केवल भौ तक श पर आ त रहने मा से काय
स नह होता। उसके लए अ य बात क भी आव यकता है। जनम स य, सूझबूझ और
भु पर व ास आ द अ य त आव यक होती ह। इन सब बात से मनु य म जो साहस पैदा
होता है उसी से काय स होते ह, मा भौ तक श के प म केवल वही काय स हो
सकते ह जनका शारी रक श से संबंध हो। । 152 ।
।। सनात व मर य वेशेन ।।
सन म फंसा आ कसी एक बात पर यान न टका पाने के कारण
क वमुख हो जाता है।
सन अथात् बुरी लत म पड़ा आ अपने क को भूल जाता है। उसे इस
बात का यान नह रहता है क उसे या करना है। वह और सब बात भूलकर अपने गलत
काम म ही अपना समय बता दे ता है। उसम इतनी श नह होती क वह अपने क क
ओर यान दे अथवा उसे पूण करने का य न करे। सन म फंसे ए य को इस बात
का अहसास भी नह रहता क उ ह कस कार का वहार करना चा हए। सन मनु य
का सबसे बड़ा श ु है। एक बार य द कसी सन के चंगुल म फंस जाता है तो उसके
च कर से नकलना उसके लए अ य त क ठन हो जाता है। । 153 ।
।। दानं धमः ।।
दान अथात् यो य पा क सहायता करना मनु य का व हतकारी क है।
अनेक धम अथवा सं दाय म यह नयम है क क जतनी आय हो उसका
कुछ अंश उसे दान म अव य दे ना चा हए। यही धम है। । 157 ।
।। नायागतोऽथव परीतोऽनथभावः ।।
अनाय अथात् अ ानी लोग ारा समाज म थ क बात पर आचरण करने से
मनु य का जीवन न हो जाता है अथात् अ ानी लोग ारा च लत क गई परंपरा पर
आचरण करने से मानव जीवन का अनथ होता है।
संसार म ब त से ऐसे आचरण च लत हो जाते ह जनसे मानव समाज क कोई
भलाई नह होती, वरन् हा न होती है। समय न होने के अ त र इस कार के आचरण से
समाज म अनेक ऐसी बात फैलती ह ज ह कसी भी कारण से समाज के लए हतकारी
नह कहा जा सकता। । 158 ।
।। कदा चद प च र ं न लंघयेत् ।।
क ठन-से-क ठन प र थ तयां होने पर भी मनु य को अपने वभाव का प र याग
नह करना चा हए। इसके वपरीत जो कोई भी ऐसा करता है, उसके दय म कांटे के समान
यह बात चुभती रहती है।
मनु य को काम, ोध आ द के वश म होकर अपने मानवीय च र क अवहेलना
नह करनी चा हए। वषम प र थ तय म भी अपने च र अथात् मानवीय क का याग
नह करना चा हए।
चाण य ने इस सू म कहा है क को अपने च र का उ लंघन नह करना
चा हए। च र के संबंध म यहां प कर दे ना आव यक है क मनु य का वा त वक च र
लोभ, लालच आ द से र रहना है। मनु य का च र अथात् वभाव यह है क वह कोई ऐसा
काय न करे जससे सर को हा न प ंचती हो। य द वह ऐसा काय करता है तो यह बात
जीवन भर उसके दय म कांटे क तरह चुभती रहेगी। । 165 ।
।। ाणाद प ययो र त ः ।।
यय का अथ है व ास अथात् मनु य को चा हए क वह अपने ाण को संकट म
डालकर भी स जन य के साथ स जनता पी अपनी व ासपा ता क र ा करे।
चाण य कहते ह क भयंकर संकट पड़ने पर भी मनु य को अपने मू य का
प र याग नह करना चा हए। सं ेप म मनु य को स जन के साथ स जनता का वहार
करना चा हए। स जन के त यह उसके व ास क बात है। । 167 ।
।। स यम य े यं न वदे त् ।।
जस क सयम ा न हो, उस को स य के संबंध म कुछ कहना
थ है। चाण य कहते ह क जसे स य अ य लगता हो, उससे स य कहकर स य का
अपमान मत करवाओ।
स य बात सुनना काफ क ठन होता है। य द स य कठोर हो तो उसे सुनना और
सहन करना उससे भी क ठन काय है। परंतु इसके साथ ही स ची बात कहनेवाले भी
लभ होते ह य क येक अपने वाथ से े रत होकर कोई काय करता या बात
कहता है।? । 170 ।
।। ना पदोषाद् ब गुणा य य ते ।।
कसी के साधारण दोष दे खकर उसके मह वपूण गुण को अ वीकार नह करना
चा हए।
य द स चे गुणी मनु य का कोई वहार षत लगता हो या न हो, तो यह न त है
क यह गुण के च र को न समझने का दोष है, जब उस पर शांत काल म नरपे प से
वचार होगा, तो प प से समझ म आ जाएगा क वा तव म उसका दोष नह है।
सं ेप म इस सू का अथ यह है क कसी के मू य का आकलन उसके
संपूण आचरण को दे खकर ही करना चा हए। । 171 ।
।। वप व प सुलभा दोषाः ।।
सामा य प से ानी य के वहार म भी दोष नकाले जा सकते ह अथात्
य द दोष नकालने क से उनके वहार को दे खा जाए तो दोष नकालना क ठन काम
नह ।
अनेक थान पर चाण य ने यह बताया है क येक और येक कुल म
कह -न-कह दोष ज र होता है। परंतु स जन , व ान और ानी य के वहार म
इस तरह के दोष को मह व नह दे ना चा हए। उसक ओर यान दे ने से य को भले
ही स ता हो सकती है पर तु स जन को इससे कोई हा न नह होती। इसी लए नदा करने
वाले व ान् लोग म भी दोष ढूं ढ़ते रहते ह। । 172 ।
।। ना त र नमख डतम् ।।
जस कार येक र न म कसी-न- कसी कार क ु ट नकाली जा सकती है,
जैसे े म ण भी सवदा नद ष नह होती, इसी कार व ान म भी इं य से संबं धत भूल
अथवा दोष पकड़े जा सकते ह।
इसका भावाथ यह है क व ान् क नदा करना नदक का एक कार से
अपराध होता है। जस कार कसी भी र न म पहले दोष नकालने के बाद उसको
दोषर हत और वा त वक स कया जाता है, उसी कार व ान पर भी कसी-न- कसी
कार के दोष मढ़े जा सकते ह।
परंतु अंत म वही दोष उ ह नद ष स करनेवाले बन जाते ह अथात् व ान क
नदा करना अपने अ ान का प रचय दे ना है, जस कार पहले कसी र न को कृ म
बताया जाए और बाद म उसे असली करार दया जाए। । 173 ।
।। अ ये कृतं यम प े यं भव त ।।
श ु ारा ऐसा वहार जो दे खने म हतकारी तीत हो, उसे ध से भरे बतन के
मुख पर लगे वष के समान ही मानना चा हए।
श ु कई बार वरोधी रा को बहकावे म डालने के लए इस कार का वहार
करने लगता है जो दे खने म ब त अ छा लगता है। परंतु इस वहार पर व ास नह करना
चा हए।
भारतीय ने इस कार के वहार का फल चखा है। चाऊ एन लाई के समय भारत
म भाई-भाई का नारा लगाया गया था। भारतीय अ धका रय ने उस नारे म छपी ई
भावना को नह समझा। वह भावना तभी प ई जब चीन ने भारत पर आ मण कया।
इसी लए चाण य कहते ह क ऐसे क बात पर व ास नह करना चा हए जो व ास
करने यो य न हो। । 175 ।
।। उपकतयपकतु म छ यबधुः ।।
बु हीन ू र ववेकहीनता के कारण अपना हत करनेवाले को भी हा न
प ंचाकर अपनी वाथ स करने से पीछे नह हटता।
अपने नीच वभाव को नह छोड़ सकता। वह अपना उपकार करनेवाले
को भी हा न प ंचाने से भय नह खाता। जस कार जल का वभाव नीचे को गरना
है, उसी कार भी अपना वभाव नह छोड़ता। उसका वभाव स जन का
अ हत करना होता है। वह उनसे लाभ उठाने के बावजूद उनका अ हत करने म हच कचाहट
अनुभव नह करता। । 182 ।
।। न पापकमणामा ोशभयम् ।।
, पापी य को अपने नकृ कम के कारण नदा से भी भय तीत नह
होता। पाप करने वाला ल जार हत हो जाता है। उसे इस बात का भय नह रहता क
उसके
पाप कम के कारण समाज म उसक नदा होगी। नदा से भय अनुभव न करने के
कारण वह पाप कम से छु टकारा नह पा सकता और अपना सारा जीवन एक नल ज
के समान अपमान सहते ए बता दे ता है। । 183 ।
।। व मधना राजानः ।।
राजा का सबसे बड़ा धन व म ही होता है। जो राजा व मी अथात् वीर नह ,
उसके लए संसार म यश ा त करना क ठन है।
राजधम चलाने के लए राजा के लए आव यक है क वह व म और शूर-वीर हो।
शूरवीरता उसका वशेष गुण माना जाता है। जो राजा आलसी और डरपोक होते ह, वे न
हो जाते ह। उनके लए अपने रा य क र ा करना भी क ठन होता है। धन-धा य और
समृ के साथ-साथ राजा का शूरवीर, बलवान् और व मी होना आव यक है। उसे इस
बात का ान होना चा हए क डरपोक आदमी अपने जीवन म अनेक बार मरता है परंतु
शूरवीर जीवन म अपने यश के बाद केवल एक बार ही मृ यु को ा त होता है। ।
185 ।
।। ना यलस यै हकामु मकम् ।।
आल य के कारण का वनाश हो जाता है।
जस को अपने काय म कसी कार का उ साह नह होता, वह मूख तो होता
ही है परंतु उसे अपने आल य के कारण वतमान और भ व य से संबं धत कसी काय म
सफलता भी नह ा त होती। सफलता का अथ यह है क जो वतमान म सफल है
वह अपने उ साह के कारण भ व य म भी सफल होने क आशा कर सकता है अथात् जस
ने अपने उ साह के कारण वतमान को सुर त बना लया है उसके भावी काय भी
अव य सफल होने क संभावना से पूण होते ह। आलसी जीवन म पराजय का ही
मुख दे खता है। । 186 ।
।। न साहाद्दै वं पत त ।।
जन काय म न त प से सफल हो सकता है य द वह उनम भी उ साह से
काम नह लेगा तो उसे सफलता ा त नह होगी।
भा य का सहारा तो कायर पु ष लेते ह। उ साही अपने उ साह से उन काय को भी
स कर लेते ह जनक सफलता म उ ह संदेह होता है, परंतु आलसी उस काय म
असफल रह जाते ह जनम भा य के कारण सफलता ा त होने क संभावना हो सकती थी।
। 187 ।
।। मा याथ व म या थवज्) जलमुपयु याथ गृ यात् ।।
पु षाथ को संकट से लड़ना होता है। जस कार मछली को पकड़ने क
इ छा रखनेवाले मछे रे को जल म घुसने का संकट मोल लेना ही पड़ता है।
जस कार मछे रा जल म वेश के संकट का सामना कर मछली पकड़ता है, उसी
कार पु षाथ मनु य भी संकट म कूदकर सफलता पी अपने दै व को व न से बचाकर
सुर त रखता है, अपना काम बनाता है। । 188 ।
।। अ व तेषु व ासो न क ः ।।
जन लोग के संबंध म कसी कार का परी ण न कया गया हो, उन लोग पर
व ास करना मूखता है अथात् अपा य पर कभी भी व ास नह करना चा हए।
राजा के अ त र सामा य य को भी अपने जीवन म ब त सोच-समझकर
व ासपा य को चुनना चा हए। जो व ास के यो य न हो उ ह कभी भी
अपना साथी नह बनाना चा हए। अपा पर व ास करने से को हा न होती
है। । 189 ।
।। अथ स ौ वै रणं न व सेत् ।।
अपने उद्दे य क पू त के संबंध म श ु पर कसी कार का व ास नह करना
चा हए।
जब मनु य अपने कसी काय को स करने म लगा रहता है तो अनेक उसम
क ठनाइयां उ प करने का य न करते ह। उनका उद्दे य को अपना काय स
करने से अलग करना होता है। वा तव म कुछ लोग का वभाव होता है क जब वे कसी
को अपने ल य तक प ंचते दे खते ह तो उसे अपने माग से वच लत करने का य न
करते ह। यह काय श ु का होता है, म का नह । म तो उद्दे य क पू त म सहायक
ही होते ह। । 192 ।
।। अथाधीन एव नयतस ब धः ।।
लोग के संबंध का आधार अपने उद्दे य क पू त के आधार पर होता है।
दे खने म आता है क मनु य अपने उ े य क पू त के लए ही कसी सरे से
संबंध था पत करता है अथात् संबंध का आधार का अपने उददे य क पू त होता है।
सामा य प से यह कहा जा सकता है क संबंध वाथ पर आधा रत होते ह। नः वाथ संबंध
रखनेवाले ब त कम होते ह। अपने उद्दे य के त वाथपूण कोण होना एक
सांसा रक वहार है परंतु अपने उद्दे य क पू त के लए कसी सरे को हा न प ंचाना
अ य त नदनीय काय है। इस सू का सरा अथ सामा य प से यह भी हो सकता है क
धन को ही म रखकर अपने संबंध था पत करता है। दे खने म आता है क जब
तक मनु य के पास धन रहता है तो वह सगे-संबं धय और म से घरा रहता है परंतु जब
उसका धन न हो जाता है तो म तो या उसके पु और उसक ी भी उसका साथ छोड़
जाते ह। । 193 ।
।। श ोर पसुत सखा र त ः ।।
श ु का पु भी य द म हो तो उसक र ा करना का क होता है।
बु मान राजा का क है क य द श ु का पु म बन जाए तो उसक र ा का
हर समय यास करना चा हए।
इस संसार म मनु य के स ब ध अथवा म ता उद्दे य क एकता के कारण होती
है। जनके ल य एक जैसे होते ह, वे आपस म एक- सरे के म बन जाते ह। वा त वक
श ु वही होता है जो वभाव का होता है और स य से े ष करने वाला होता है। स य के
आधार पर वजय ा त करना ही व ान् य का येय होता है। जो स य का
वरोध करते ह वे अस य के दास होते ह। उद्दे य म वरोध के कारण ही लोग म श ुता पैदा
होती है। ऐसे म पु अपने पता जैसा स य का श ु न होकर अस य का श ु भी हो सकता
है। । 194 ।
।। श ु छ े प रहरेत् ।।
श ु क बलता दे खकर उसे अपनी सहायता से वं चत कर दो। अथात् श ु क
कमजोरी दे खकर ही उस पर हार करना चा हए।
अपने श ु पर वजय चाहनेवाले राजा का क है क वह अपने श ु क बलता
का पता चलने पर, उसक बलता से ही उसे समा त करने का य न करे अथात् य द कोई
राजा सनी हो, जुए अथवा म और वषयभोग म ल त होनेवाला हो तो उसे सन म
फंसाकर ही उसे न कर दे ना चा हए। । 196 ।
।। आ म छ ं न काशयेत् ।।
श ु को अपनी बलता का प रचय नह दे ना चा हए अथात् ऐसा य न करना
चा हए क अपनी बलताएं श ु पर कट न ह ।
इस सू का अथ यह है क चतुर राजा अपने श ु के सामने सदै व अपने आपको
बलवान् द शत करता रहे, अपनी बलता का पता न लगने दे । । 197 ।
।। छ हा रण श वः ।।
श ु के वभाव को पहचानकर उसक नबलता पर ही आ मण करना चा हए।
राजा अपने श ु क नबलता को पहचानकर ही उस पर आ मण करते ह। वे सदै व
अपने आपको श ु क म बलवान् स करते रहते ह। य द श ु को अपने वरोधी क
नबलता का पता चल जाता है तो वह आ मण करता है। इस कार हार करनेवाला राजा
श ु को न कर दे ता है। बु मान राजा को चा हए क वह अपने वरोधी क बलता को
जानने का य न करे। । 198 ।
।। ह तगतम प श ुं न व सेत् ।।
वजय चाहनेवाले राजा का क है क अपने वश म आए ए श ु पर कभी
व ास न करे।
हो सकता है क अ धकार म आने पर श ु म ता का दशन करे, परंतु राजा का
क है क सदै व सतक रहे और श ु पर कभी व ास न करे। य द श ु को कसी कारण
से मा भी कर दया जाए तो भी कभी उसे अपनाने का य न नह करना चा हए। जो राजा
ऐसा करते ह उ ह धोखा होता है। श ु उन पर आ मण कर दे ता है और वे वनाश से बच
नह पाते। । 199 ।
।। वजन य वृ ं नवारयेत् ।।
सदै व वजय चाहनेवाले राजा का क है क वह अपने प के लोग के पापाचार
पूण आचरण को उपाय ारा र करने का य न करे।
बु मान राजा का क है क वह अपने प के अ धका रय तथा संब
य म कसी कार के पापाचारपूण काय को दे खे तो उसे समा त करने का य न
करे। यह इस लए आव यक है क श ु राजा इस कार के लोग को अपने प म फांसकर
वाथ स कर सकते ह। इसी लए वजय चाहनेवाले राजा का क है क वह अपने प
क स य- न ा को थर रखने के लए अपने लोग क बलता को र करने का य न
करे। । 200 ।
।। एकांगदोषः पु षमवसादय त ।।
जैसे मनु य के शरीर के कसी अंग म कोई क हो तो पूरे शरीर को उसक पीड़ा
अनुभव होती है। एक षत अंग के कारण सारा शरीर रोगी दखाई दे ता है। इसी कार
कसी रा य-सं था या कसी दल के एक म य द राचार पी क दखाई दे ता है तो
इससे सारे दल अथवा शासन- व था को हा न प ंचती है। । 202 ।
।। श ुं जय त सुवृ ता ।।
सदाचार ारा ही श ु पर वजय ा त क जा सकती है।
अ छे आचरण (सदाचार) से श ु पर वजयी होना सरल हो जाता है। यहां सदाचार
का अथ यह है क अपना स मान थर रखते ए सरे के स मान को थर रखे।
रा य से संबं धत येक वभाग क आचार सं हता होती है। उसका पालन करना भी
आव यक होता है।
इससे वदे श का मान-स मान और वा भमान थर रहता है। इसके वपरीत आचार
सं हता के उ लंघन से अपनी हा न होती है, श ु क नह । इस लए आचार सं हता का पालन
करना श ु पर वजय ा त करने का सबसे बड़ा साधन है। । 203 ।
।। नकृ त या नीचाः ।।
नीच कृ त के लोग स जन के साथ कपटपूण वहार करते ह।
नीच का यह वभाव होता है क वह सभी थान पर अपनी नीचता का
दशन करता है। उससे यह आशा नह क जा सकती क वह स जन य के साथ
स जनतापूण वहार करेगा। के लए सभी एक समान होते ह। वे स जन
और जन म भेद नह कर पाते।
अपने वभाव के अनुकूल वह स जन य से भी धोखे से भरा वहार करता
है। उसका वहार सदै व कपटपूण होता है। । 204 ।
।। नीच य म तन दात ा ।।
नीच के वभाव के संबंध म चाण य कहते ह क उसे स म त दान करना
उ चत नह , य क उसके लए अपना वभाव छोड़ना क ठन होता है।
को समझाना अथवा उसे उपदे श दे कर धम के माग म लाना थ होता
है। जस कार पानी का वभाव नीचे क ओर बहना है, उसी तरह नीच भी अपना
वभाव नह छोड़ सकता। अथवा नीच मनु य को इस बात का ान नह होता क कस
काय से का मान सक वकास होता है। जब वह इस मूल बात को ही नह समझता तो
उसे समझाने क बात करना ही थ है। । 205 ।
।। तेषु व ासो न क ः ।।
का व ास भी नह करना चा हए।
जो ू र, ठग और नीच है उसका व ास करने से हा न के अ त र और कुछ
नह होता। नीच लोग का क ही लोग को ठगना और उ ह स माग से वच लत करना
होता है। इसी लए उनसे सदै व री बनाए रखना चा हए। । 206 ।
।। भ ा धकं रह यु ं व ु म छ यबु यः ।।
राजा ारा एकांत म राजक य रह य पर कये गये वचार को बु हीन मनु य कट
कर दे ना चाहते ह।
इसका भाव यह है क मूख मनु य को ऐसी सभा म नह बुलाना चा हए जसम
राजक य काय से मह वपूण मामल पर वचार कया जाता हो। । 211 ।
।। न जनैः सह संसगः क ः ।।
बु मान य को लोग से र रहना चा हए। लोग के संसग से बचने से
ही बु मान लोग को लाभ होता है।
मनु य जस कार के समाज म रहता है उसका भाव उसके जीवन पर अव य
पड़ता है। इसी लए को चा हए क वह अपने आपको के संसग से बचाता
रहे। य के संसग से मनु य म अनेक दोष उ प हो जाते ह। । 217 ।
।। मतभोजनं वा यम् ।।
जो भूख से कम भोजन करते ह, वे व थ रहते ह।
अथात् मनु य को जतनी भूख हो, उससे थोड़ा कम खाना चा हए। इससे मनु य का
वा य ठ क रहता है। उसे कसी कार के रोग नह घेरते। आव यकता से अ धक भोजन
करने वाला सदै व रोगी रहता है। । 220 ।
।। प यम यप याजीण ना ीयात् ।।
अप य के कारण य द अजीण हो गया हो तो प य भोजन को भी याग दे ना चा हए।
जब मनु य ऐसा भोजन करता है जसे पचाने म क ठनाई आती है तो उसका शरीर
अपच रोग का शकार हो जाता है। ऐसी थ त म भोजन याग दे ना अ धक अ छा है। कहा
गया है क ‘अजीण भोजनम वषम्’ अथात् अजीण होने पर भोजन करना वष के समान
होता है। इसी लए भोजन तभी करना चा हए जब पहले कया आ भोजन पच गया हो और
शरीर व थ अनुभव कर रहा हो। अजीण म भोजन करने से मनु य जानबूझकर अपने शरीर
म अनेक रोग को आमं त करता है। । 221 ।
।। श ोर प व श यते ा धः ।।
शरीर के रोग श ु से भी अ धक हा नकारक होते ह।
रोग के कारण मनु य के शरीर पर आठ हर आ मण क -सी थ त बनी रहती है।
मनु य श ु के आ मण से भयभीत रहता ह परंतु ा ध तो शरीर के अंदर रहनेवाला श ु है।
जो जीवन पर हर समय आ मण करता रहता है। रोग के कारण मनु य के ाण, धन और
उसके शरीर का वनाश होता है। उसका शरीर कमजोर हो जाता है। दवाइय पर धन न
होता है, इस लए रोग श ु क अपे ा अ धक हा नकारक होता है। । 225 ।
।। दानं नधानमनुगा म ।।
मनु य को दान उतना ही करना चा हए, जतनी उसम श हो अथात् धन क श
को दे खकर ही मनु य को दान करना चा हए। जो अपनी श से अ धक दान करते ह, उ ह
हा न होती है।
इ तहास म ऐसे अनेक उदाहरण ह ज ह ने दान करने के वभाव के कारण
भखा रय का-सा जीवन बताया। राजा ब ल अपनी साम य को दे खे बना दान करने के
लए स ह। परंतु जब व णु ने वामन का अवतार धारण करके उससे केवल तीन पग
भू म मांगी तो वह इस बात को नह समझ सका और अपने वा भमान के कारण उसने तीन
पग भू म दे ने का वचन दे दया। वामन ने तीन पग म तीन लोक को नाप लया, इस लए
को चा हए क दान तो अव य करे परंतु उसे अपने धन क श का पूरा ान होना
चा हए। । 226 ।
।। मूखषु ववादो न क ः ।।
मूख य से कसी कार का वाद- ववाद नह करना चा हए।
जन य को उ चत और अनु चत काय के संबंध म कसी कार का ान नह ,
उनसे काम के संबंध म वाद- ववाद करना थ होता है। । 232 ।
।। आयसैरायसं छे म् ।।
लोहे से लोहे को काटा जाता है।
और प तत को अ छा उपदे श दे कर उसके हठ ले वभाव को प रव तत
नह कया जा सकता। इस कार उसे अपने वचार के अनुकूल बनाने क ां त से अलग
रहना चा हए। । 234 ।
।। ना यध मतः सखा ।।
मूख के स चे म नह होते।
यह कहावत स है क एक जैसे वचार और वभाव वाले एक- सरे के
साथ रहते ह। इससे भी स है क मूख के म भी मूख हो सकते ह। । 235 ।
।। धमण धायते लोकः ।।
इस संसार को धम के ारा ही धारण कया जा सकता है अथात् इस संसार म
स य पी मानव ही धम का संर क है।
े कम करना तथा अ े से बचना ये दो धम के बड़े भेद ह। धा मक मनु य को
क पूरे करने पड़ते ह, अक यागना उसका वभाव हो जाता है। मानव समाज का
संर क स य पी मानव धम ही है। । 236 ।
।। दया धम य ज मभू मः ।।
दया ही धम क माता कही जा सकती है अथात् दया से ही धम न ा पैदा होती है।
दया ही ऐ हक अ युदय और मानस उ कष पैदा करनेवाले धम क ज मभू म है।
मै ी, क णा, स ता, उपे ा, पु या मा से मै ी, ः खय पर क णा, खु शय को
दे खकर हष व पा पय के त घृणा से च नमल होता है। नमल च म ही दया उ प
होती है। । 238 ।
।। धममूले स यदाने ।।
धम ही स य तथा दान दोन का मूल कारण है। । 239 ।
।। धमण जय त लोकान् ।।
धम क र ा मानव को व वजेता बना दे ती है।
समाज म मनु यता के संर क धा मक क जो न ा और क त है, वही तो उन
लोग क व वजय है। अस य का दमन या अस य का सर अवनत करने क साम य ही
उनक वजय है।
धम से मनु य क उ त और अधम से पतन होता है। । 240 ।
।। मृ युर प ध म ं र त ।।
मृ यु भी धा मक मनु य को इस संसार से पूरी तरह मटा नह पाती।
मृ यु के बाद भी मनु य धम से यु अपने काय के कारण जी वत रहता है। उसका
नाम अमर होता है य क धम को जीवन-मरण के च से भी न नह कया जा सकता। ।
241 ।
।। धमा परीतं पापं य स यते त धमावम तमहती
स येत ।।
धम का वरोधी पाप जब अ धक बल हो जाता है तो धम का अपमान होने लगता
है।
भाव यह है क जब संसार म पापपूण काय क बलता होती है तो धम से े ष
करनेवाले असुर लोग धम का अपमान करते ह अथात् धमपरायण क उठाते ह।
जब भी संसार के इ तहास म इस तरह क घटनाएं ारंभ ई ह और जब उसके
काय क अ त हो जाती है तो संसार म कोई ऐसा युगपु ष पैदा होता है जो धम क थापना
करता है—
“यदा यदा ह धम य ला नभव त भारत, अ यु थानमधम य तदा मानं
सृजा यहम्।”
ीकृ ण के ये श द इसी बात क पु करते ह। । 242 ।
।। पररह यं नैव ोत म् ।।
सर क गु त बात सुनने क इ छा मन म पैदा नह होनी चा हए। अ य लोग क
गु त बात सुनने का आ ह भी नह करना चा हए।
जस कार पराये धन को ा त करने का लोभ चोरी अथवा अपहरण वृ का
ोतक है, उसी कार सर क गु त बात सुनने व जानने क इ छा होना भी एक दोष है।
सामा जक से भी यह बात अ छ नह मानी जाती। । 246 ।
।। व लभ य कारक वमधमयु म् ।।
वामी का कठोर होना अधम माना जाता है।
राजा का क है क वह अपने सेवक का हर कार से यान रखे। हर समय
उनसे कठोर वहार करना उ चत नह । जो वामी सदै व अपने नौकर -चाकर से कठोरता
बरतता है, समय आने पर उसके सेवक वरोधी बन जाते ह। अनेक बार इ ह य से
उसके जीवन के लए संकट उप थत हो जाते ह। इस लए येक अथवा राजा का
क है क वह अपने आ त के त यान दे और उनके त उदारता का बताव करे। ।
247 ।
।। वजने व त मो न क ः ।।
अपने हतै षय क कभी उपे ा नह करनी चा हए अथात् स जन और अपना हत
चाहनेवाले य का सदै व स मान करना चा हए।
मनु य एक सामा जक ाणी है। सर क सहायता के बना उसका जीवन- नवाह
क ठन हो जाता है। इस लए उसे चा हए क वह अपना हत चाहनेवाले य क कभी
उपे ा अथवा अनादर न करे, उनके साथ सदै व उनक थ त के अनुसार अ छा वहार
करे। इस बात का य न करना चा हए क उनके मन म आप के त अनादर क भावना
पैदा न हो। । 248 ।
।। माता प ा या या ।।
होने पर माता का याग भी कर दे ना चा हए। जो माता अपनी संतान से श ुता
करती है, उससे र रहना चा हए।
इस सू का मूल भाव यह है क य से सदै व र रहना चा हए। माता का
उदाहरण दे कर कहा गया है क य द ज म दे ने वाली माता भी वभाव क हो तो उसे भी
याग दे ना चा हए। । 249 ।
।। वह तोऽ प वष द ध छे ः ।।
य द अपने हाथ म भी वष फैल जाए तो आ मर ा हेतु उसे भी काट दे ना चा हए।
इसी कार य द कोई अ य त य संबंधी अ न करने पर उतर आए तो उसका याग करके
अपनी र ा करनी चा हए।
मनु य के शरीर के कसी अंग म जब वष फैल जाता है तो जीवन-र ा का उपाय
यही है क उस अंग को शरीर से अलग कर दे । य द ऐसा नह कया जाएगा तो उस अंग का
वष सारे शरीर म फैल जाएगा और मनु य का जीवन समा त हो जाएगा। जब, वष के
कारण मनु य अपने शरीर के अंग को कटवाने के लए तैयार हो जाता है तो य द कोई य
भी वनाश करने क तैयारी करता है तो उसको भी याग दे ने म ही भलाई होती है। ।
250 ।
।। परोऽ प च हतो ब धुः ।।
कसी कार का सांसा रक संबंध न होने पर भी य द कोई आपके हत के
अनुकूल वहार करता है तो उसे अपना बंधु समझकर अपना लेना चा हए।
यह आव यक नह क अपने सभी बंध-ु बांधव हत चाहने वाले ह , उनम ब त से
संबंधी उदासीन होते ह, इस लए य द कोई बाहर का आपके हत क र ा के लए
आगे आता है तो उसे अपना म मानने म या हा न है? । 251 ।
।। क ाद यौषधं गृ ते ।।
सूखे वन से भी औष धयां ा त क जा सकती ह।
जस कार सूखे वन से भी औष धयां ा त करने के लए उ सुक रहता है,
उसी कार य द कोई सांसा रक से हीन होकर भी आपका हत चाहने वाला है,
तो उसे वीकार करना चा हए। उसक अवहेलना नह करनी चा हए। । 252 ।
।। ना त चौरेषु व ासः ।।
चोर का कभी भी व ास नह करना चा हए।
चोर उसे कहते ह जो कसी क इ छा के व कसी व तु का अपहरण
करे। सर क व तु पर अपना अ धकार जमाने क इ छा रखनेवाले संसार के
सभी वग म मलते ह। अपने सगे-संबं धय म भी इस कार के हो सकते ह। इस लए
आव यक है क चोर कोई भी हो, उसका व ास नह करना चा हए। । 253 ।
।। अ तीकारे वनादरो न क ः ।।
बाधार हत काय के संबंध म कभी उपे ावृ नह अपनानी चा हए।
इसका भाव यह है क य द राजा यह समझे क इसका श ु अपने बचाव का उपाय
नह कर रहा तो भी उसक ओर से सदै व सतक रहना चा हए। उसक उपे ा करना वयं को
हा न प ंचाना है य क राजनी त का यह परम मं है क राजा को कभी अपना भेद कसी
पर कट नह करना चा हए। । 254 ।
।। अमरवदथजातमजयेत् ।।
मनु य का क है क वह अपने आपको अमर मानता आ आयु भर ऐसी
साम य का सं ह करता रहे जो जीवन के लए उपयोगी होती ह।
मनु य को चा हए क वह जीवनपयत धम और स याचरण पर आ त रहता आ
जीवन के लए उपयोगी व तु और धन का सं ह करता रहे। धन ऐसी व तु है जसके
बना धम के काय करना भी असंभव होता है। जस के पास धन नह होता वह अपने
सगे-संबं धय म भी स मान का जीवन नह बता सकता। इस लए आव यक है क
जीवन भर स याचरण ारा धन का सं ह करता रहे। । 256 ।
।। अथवान् सवलोक य ब मतः ।।
धनवान् हर जगह स मा नत होता है।
आज क थ त को दे खते ए चाण य क यह बात अ रशः स य है। । 257 ।
।। दा र य
् ं खलु पु ष य जी वतं मरणम् ।।
दर जी वत होते ए भी मृत के समान समझा जाता है।
संसार म द र ता एक ऐसा कलंक है जसके कारण जी वत को भी मरे ए के
समान मान लया जाता है, य क उसम कसी भी काय को संप करने क श नह
होती। इसी लए चाण य कहते ह क धनहीन मरे ए के समान है। । 259 ।
।। व पोऽथवान् सु पः ।।
कु प भी य द धनवान् है, तो उसे भी सु दर मान लया जाता है।
भारत म ऐसी कहावत स है क धनी प रवार के पागल को भी बु मान मान
लया जाता है। इससे स है क धन का मनु य के जीवन म ब त अ धक मह व है।
इस लए मनु य का क है क वह जीवन भर धन-सं ह के लए य नशील रहे। । 260
।
।। अदातारम यथव तम थनो न यज त ।।
धन-सं ह करने के इ छु क लोग कंजूस धनवान से भी धन ा त क इ छा रखते ह।
जो लोग अपने जीवन म धन-सं ह को अपना ल य बना लेते ह, वे ऐसे लोग से भी
धन ा त क इ छा रखते ह जो अ य त कंजूस होते ह। कंजूस कसी को धन या
दे गा, वह तो अपने पर धन खच करने म भी आना-कानी करता रहता है। परंतु कुछ लोग ऐसे
लोग से भी धन लाभ ा त कर लेते ह। । 261 ।
।। अकुलीनोऽ प कुलीना श ः ।।
अ छे कुल म न उ प होनेवाला धनवान् अपने धन का उपयोग य द समाज
सेवा के लए करता है तो समाज सेवा से वमुख रहनेवाले कुलीन से भी वह े है।
यह बात आव यक नह क अ छे कुल म उ प होनेवाला ही समाज म
स मान ा त करता है। समाज म स मान उस का भी होता है जो अ छे कुल म न
उ प होने पर भी अपना धन समाज सेवा से जुड़े काय म लगाता है। उसे कुलीन से
भी े माना जाता है। । 262 ।
।। ना यमानभयमनाय य ।।
नीच को समाज म अपमा नत अथवा तर कृत होने का कोई डर नह रहता।
नीच पर अपमान व तर कार का कोई भाव नह पड़ता। ऐसे क
आ मा का पूरी तरह से पतन हो चुका होता है। ऐसे के लए मान-अपमान का कोई
वशेष मह व नह रहता। । 263 ।
।। न चेतनवतां वृ भयम् ।।
चतुर को जीवन म आजी वका चलाने का कोई भय नह होता।
संसार के सुख म के पास एक अ छ आजी वका का होना भी अ छा माना
गया है। वहार-कुशल अथवा चतुर अपनी आजी वका चलाने के लए कसी के
मोहताज नह होते। न कसी क गलत बात बरदा त करते ह और न उ ह गुलामी वीकार है।
। 264 ।
।। न जते याणां वषयभयम् ।।
जत य को वषय का भय नह होता।
जस ने अपनी इं य को वश म कया आ है, य द वह वषयभोग के
नकट भी रहता है तो भी उसके च र के प तत होने क संभावना नह रहती। इस लए
जसने अपनी इं य को वश म कया आ है, वह कसी भी थान पर रह सकता है अथवा
कह भी जा सकता है। कसी भी कार से उसके पाप काय म ल त होने क संभावना नह
रहती। । 265 ।
।। न कृताथानां मरणभयम् ।।
संसार के रह य को समझकर जो अपने क -पालन ारा जीवन को
साथक बनाने का य न करता है उसे मृ यु का भी भय नह होता।
जो संसार म अपने जीवन क साथकता को समझकर अपने क का
पालन करते ह, उ ह मृ यु से कसी कार का भय नह होता। संसार का नयम है क जसने
ज म लया है, उसक मृ यु अव य होगी, परंतु जन य ने अपने जीवन के येय को
समझकर अपने क पूरे कर लए, उ ह संसार म मृ यु भयभीत नह कर सकती। । 266
।
।। क य चदथ व मव म यते साधुः ।।
स चे वभाववाले पु ष पराये धन को अपने पास रखी ई अपने धन के समान स य
क धरोहर मानते ह।
इसका भाव यह है क स जन जस कार अपने धन का सत् काय म योग करते
ह उसी कार वह चाहते ह क अ य लोग का धन भी समाज के क याणकारी काय म लगे।
जब क मूढ़म त और लोग चाहते ह क अपना धन तो बचा रहे और सरे का धन,
बीमारी, मुकदमे और सरे सन म न हो जाए। । 267 ।
।। पर वभवे वादरो न क ः ।।
सरे के धन के त लालच क भावना नह रखनी चा हए। को चा हए क
सरे के वैभव क ल सा न करे।
मनु य को कभी भी सर के धन के त लोभ क भावना नह रखनी चा हए। ऐसा
करना वयं के लए घातक है। अपने पु षाथ से जो संप अ जत करता है,
उसी पर संतोष करना चा हए। । 268 ।
।। पलालम प पर ं न हत म् ।।
सरे के धन का तनके जतना अंश भी अपहरण नह करना चा हए।
तनके के समान अ य त अ प मा ा म भी कसी सरे के धन को चुराने क
इ छा नह रखनी चा हए। अन धकारपूवक कसी क छोट -से-छोट व तु, जसका मह व
तनके के समान हो, लेने का य न करना भी चोरी है। चोरी के अपराध म चुराई गई व तु के
कम अथवा अ धक होने का मह व नह । चुराई गई व तु छोट हो अथवा बड़ी, वे चोरी क
ेणी म ही आती ह। व तुतः मन म चोरी क भावना होना ही अपराध है। इससे चोरी करने
वाले क मनोवृ का प रचय मलता है। इस लए को अपने मन से चोरी क भावना
को समा त कर दे ना चा हए। । 270 ।
।। पर ापहरणमा म नाशहेतुः ।।
सर के धन का अपहरण करना अपने धन के वनाश का कारण बन जाता है। ।
271।
।। न ह धा यसमो थः ।।
संसार म अ के समान सरा कोई जीवनोपयोगी पदाथ नह । । 278 ।
।। न ुधासमः श ुः ।।
भूख से बढ़कर मनु य का सरा कोई श ु नह । । 279 ।
।। इ या ण जरावशं कुव त ।।
इं य के मयादाहीन उपयोग से ही समय से पूव मनु य को बुढ़ापा घेर लेता है।
जो इं य को वश म न रखकर उनका पयोग करता है, उसको इसका
प रणाम भुगतना पड़ता है। वह समय से पूव ही बुढ़ापे का शकार हो जाता है। । 282 ।
।। अग यागमनादायुयशः पु या न ीय ते ।।
वे या आ द य के साथ सहवास करने से आयु, यश और पु य न हो जाते ह। ।
289 ।
।। ना यहंकारसमः श ुः ।।
अहंकार अथात् म या भमान से बड़ा मनु य का कोई श ु नह है।
वा भमान और अहंकार म भारी अंतर है। मनु य म वा भमान तब आता है जब
उसम यो यता होती है और अहंकार अयो य य म होता है। वा भमान जहां को
अपने आ मगौरव को ठे स नह प ंचने दे ता वहां अहंकार के कारण को भारी हा न
उठानी पड़ती है। इसी लए अहंकार मनु य का सबसे बड़ा श ु बताया गया है। । 290 ।
।। संस द श ुं न प र ोशेत् ।।
सभा म श ु क नदा नह करनी चा हए। उसे कसी कार के कटु वचन कहकर
सभा को लड़ाई-झगड़े का क नह बनने दे ना चा हए।
बु मान का क है क सभा म कोई ऐसी कटु वाणी अपने वरो धय के
लए योग न करे जससे उनका ोध भड़के। चतुर सभा म अपनी बात इस तरह
कहता है क जससे उसके वचार भी प कट हो जाय और वरो धय को भी ोध न
आये। । 291 ।
।। श ु सनं वणसुखम् ।।
श ु क वप अथवा उसके ःख क बात सुनकर कान को आनंद अनुभव होता
है।
श ु पर वप आने क बात सुनकर ायः सभी य को स ता होती है। ।
292 ।
।। अधन य बु न व ते ।।
धनहीन क बु न हो जाती है।
संसार म नधनता से बढ़कर कोई अ भशाप नह । नधन का अपने ब धु-
बा धव , प रवारवाल और म म भी अपमान होता है। इस कार अपमान से घबराकर
वह ऐसे अनथ काय कर बैठता है जसक मनु य से आशा नह क जा सकती। । 293 ।
।। व ा चौरैर प न ा ा ।।
व ा मनु य का एक ऐसा गु त धन है जसे चोर भी नह चुरा सकते। इसी लए व ा
पी धन को सभी धन म े माना गया है। । 298 ।
।। व या या पता या तः ।।
व ा से मनु य के यश का व तार होता है।
व ान् जहां भी जाता है उसका स मान कया जाता है। जस कार द पक
का काश छपा नह रह सकता, उसी कार व ान् क यो यता भी अपने आप
कट हो जाती है। जस कार ानी मनु य सुपा को दान करने से पु य और यश
का भागी होता है, उसी कार व ान् भी व ा का दान दे कर नरंतर अपने यश म
वृ करता है। । 299 ।
।। यशः शरीरं न वन य त ।।
मनु य क भौ तक दे ह तो मृ यु को ा त होती है परंतु उसका यश पी शरीर सदै व
अमर रहता है।
जस ने इस संसार म ज म लया है उसक मृ यु भी न त है। परंतु जो
अपने काय से, अपने सद्गुण से, इस संसार म यश ा त करते ह वे सदै व अमर बने
रहते ह। उनक मृ यु के बरस बाद भी लोग उनका नाम बड़ी ा और भ से लेते ह। ।
300 ।
।। यः पराथमुपसप त स स यु षः ।।
जो मनु य सर के परोपकार के लए आगे बढ़ता है वही स जन पु ष माना जाता
है।
वाथ तो इस संसार म सभी पूरा करते ह, परंतु स जन पु ष वही कहलाता है जो
सर के क को अपना समझकर उनका क याण करने के लए आगे आता है अथात् जो
सबके क याण म अपना क याण समझता है, वही स पु ष कहलाता है। । 301 ।
।। इ याणां शमं शा म् ।।
शा के ान से ही इं य को शांत अथवा उ ह अपने वश म रखा जा सकता है। ।
302 ।
।। अशा कायवृ ौ शा ांकुशं नवारय त ।।
अवैध काय के लए उ त को शा का अंकुश ही संयम म रखता है।
जब मनु य के मन म समाज के व कोई काय करने क भावना पैदा होती है तो
शा का अंकुश ही उसे रोकने म समथ होता है अथात् जो जत य होते ह, ज ह ने
अपनी इं य को वश म कया आ है, वे ही उस अवैध काय से बच सकते ह। शा म
इं य न ह क बात कही गई है, ज ह शा का ान है वे पापाचरण से बच जाते ह। ।
303 ।
।। नीच य व ा नोपेत ा ।।
नीच पु ष क व ा क अवहेलना करनी चा हए। । 304 ।
।। ले छभाषणं न श ेत् ।।
ले छ क भाषा का योग नह करना चा हए।
ले छ भाषा से चाण य का भाव अ ील अथवा अ श भाषा से है अथात् मनु य
को अपनी बातचीत अथवा अपने भाषण म अ श भाषा का योग नह करना चा हए।
अ श भाषा का योग करने वाले का समाज म अपमान ही होता है। । 305 ।
।। ले छानाम प सुवृ ं ा म् ।।
ले छ क अ छ बात को अपना लेना चा हए।
यद और अभ कोई अ छ बात कहता है तो उससे लाभ उठाने क
वृ होनी चा हए। य द ले छ लोग कसी कारण वश संग ठत होते ह तो उससे सीख लेने
म कोई हा न नह । । 306 ।
।। गुणे न म सरः क ः ।।
सरे के अ छे गुण से ई या नह करनी चा हए।
ायः यह मनु य का वभाव होता है क वह अ य य के उ कष को दे खकर
उनसे ई या करने लगता है। परंतु ई या करने से कोई लाभ नह होता। इससे केवल
क अस ह णु वृ का ही बोध होता है। । 307 ।
।। श ोर प सुगुणो ा ः ।।
श ु म य द अ छे गुण दखाई द तो उ ह हण कर लेना चा हए।
इस सू से चाण य का भाव श ु के रण-कौशल से है। रण-कौशल के संबंध म य द
श ु म कोई वशेष बात दखाई दे तो हण कर लेनी चा हए। । 308 ।
।। वषाद यमृतं ा म् ।।
वष म भी य द अमृत हो तो उसे हण कर लेना चा हए।
जस समय वष अमृत का काम करने लगे तो उसे वष न समझकर अमृत के प म
वीकार कर लेना चा हए। वष वा तव म योग करने वाले के चातुय से अमृत बन जाता है।
। 309 ।
।। अव थया पु षः स मा यते ।।
प र थ तयां पैदा करने से ही स मान का अ धकारी बनता है।
राजा के स मान पाने क एक अव था है। राजा अपनी शासन- व था म जा से
स मा नत होने यो य प र थ त पैदा करके ही जा से राजभ या स मान पाने क आशा
कर सकता है। जब तक रा यसं था अपने को जा हत के अनुकूल नह बना लेती, तब तक
उसे स मान ा त नह होता। । 310 ।
।। थान एव नराः पू य ते ।।
अपने थान पर बने रहने से ही को स मान मलता है।
क अपने भाव े म ही पूजा होती है। भाव यह है क जस े म
काम करता है, उस े के लोग उसक यो यता से प र चत होते ह। वे उसके गुण और
उसके वभाव से भी भली कार प र चत होने के कारण ही उसका स मान करते ह। ।
311 ।
।। ना यघः पु षर न य ।।
व ान् और गुणी कसी भी रा और समाज के लए अमू य र न होते ह।
कसी भी े म क गई उनक सेवा और काय का रा के लए ब त मह व
होता है। इस कार के पु ष-र न समाज म ब त कम होते ह परंतु ऐसे य क न तो
कसी चीज से उपमा द जा सकती है और न उनका मू य ही आंका जा सकता है। । 314
।
।। न ीर नसमं र नम् ।।
ी-र न से बढ़कर कोई सरा अमू य र न नह है।
स च र प त ता ी कसी प रवार के लए स मान का कारण होती है। य का
स मान रा का स मान माना जाता है। ी को ल मी के प म ाचीन थ म सुचा रत
कया गया है। प रवार के अ त र दे श के नमाण म भी य का ब त बड़ा हाथ होता है।
अपने उ रदा य व को नभाने वाली ी क उपमा र न से द गई है। । 315 ।
।। सु लभं र नम् ।।
संसार म र न क ा त ब त क ठन है।
संदभ के अनुसार गुणवान म हला और पु ष का जस समाज म अभाव होता है,
उसे भा य समझना चा हए। र न उसे कहा जाता है जसम स दय हो, तेज हो, च ाकषण
हो। इसी कार समाज को अलंकृत करनेवाले अथवा समाज क शोभा बढ़ाने वाले ी और
पु ष को र न कहा जाता है। इसी कार के र न से समाज क शोभा बढ़ती है। । 316 ।
।। ना यलस य शा ा धगमः ।।
आलसी पु ष को कभी भी शा का यथाथ ान नह हो सकता।
आलसी व ा ा त नह कर सकता। भारतीय शा म अनेक थान पर
कहा गया है क शा का ान ा त करने वाले को सुखभोग क इ छा याग दे नी चा हए
और उसे आल य से र रहना चा हए। आलसी अपने प रवार के लए भी ःख दे ने वाला
स होता है। । 318 ।
।। न ैण य वगा तधमकृ यं च ।।
ी म आस पु ष को न तो वग मलता है और न उसके ारा कोई धम काय हो
पाता है।
जो इं य को वश म नह रख सकता, वह सदै व ःखी रहता है। उसके लए
मानवो चत क पालन करना भी क ठन होता है। उसे शारी रक, मान सक तथा
सामा जक कसी भी कार का सुख ा त नह हो सकता और वह समय से पूव ही बूढ़ा हो
जाता है। । 319 ।
।। योऽ प ैणमवम य ते ।।
यां भी ैण पु ष का अपमान कर दे ती ह।
मनु य क अपनी प नी भी उसके इस वभाव के कारण उसे उपे ा क से
दे खती है। । 320 ।
।। न पु पाथ सच त शु कत म् ।।
फूल का इ छु क कभी सूखे पेड़ को नह स चता।
मनु य को अपने येय के अनुसार ही काय करना चा हए। जो अपने येय से
वच लत हो जाता है, वह कह का नह रहता। न उसका जीवन सफल होता है और न
उसको समाज म स मान मलता है।
जस कार फूल क ा त के इ छु क सूखे पौध को नह स चते उसी कार
येक को अपने येय के अनुसार काय करना चा हए। । 321 ।
।। अ य नो बालुका वाथनादन यः ।।
बना कसी कारण से थ प र म करना और धन ा त क इ छा रखना बलकुल
ऐसी ही बात है जैसे बालू से तेल नकालने का य न करना।
धन क ा त के लए मनु य को ा त धारणा म पड़कर ऐसे उपाय नह करने
चा हए जनसे धन क ा त न हो। धन क ा त एक न त येय को सामने रखकर
न ापूवक काय करने से होती है। आल य म पड़े रहकर शेख- च लय क तरह ांत
धारणा से धन क ा त नह हो सकती। । 322 ।
।। न महाजनहासः क ः ।।
महान् पु ष का उपहास नह करना चा हए।
सीधे-सादे स य न य का मजाक उड़ाने से उनक कोई हा न नह होती
ब क का अपना ही छोटापन जा हर होता है। उनका उपहास करना बलकुल वैसा ही
है जैसे चांद पर थूकने का य न करना। । 323 ।
।। न ाद प न म ा न वशेषय त ।।
इसी कार न से भी कसी काय के स होने क सूचना मल जाती है।
ायः कोई काय ारंभ करते समय न क ग त व धय के आधार पर शुभ मु
नकाला जाता है। अ छा समय दे खकर काय ार भ करना बु म ा क बात हो सकती है।
परंतु उस काय क सफलता तभी न त होती है जब मनु य के मन म इस काय क स
के त कोई संदेह न हो।
इस लए को कत -पालन म वलंब नह करना चा हए, य क इससे शुभ
मु के न होने क संभावना रहती है। । 325 ।
।। न व रत य न परी ा ।।
अपने काय क स चाहनेवाला न क गणना पर अपने भा य क
परी ा नह करता।
जो अपने काय को शी ही सफल होता दे खना चाहता है, वह न के
च कर म नह पड़ता। वह अपने आ म- व ास और काय स के लए कए जाने वाले
उपाय पर रखता है। । 326 ।
।। प रचये दोषा न छा ते ।।
कसी से प रचय हो जाने के बाद उसके दोष छपे नह रहते।
मनु य जससे पूणतया प र चत हो जाता है उसके सभी गुण और दोष पर
कट हो जाते ह। कसी के दोष का ान मनु य को तभी होता है जब वह उसके
अ य त नकट आता है। । 327 ।
।। वयमशु ः परानाशंकते ।।
बुरे वचार वाला सर पर भी बुरा होने का संदेह करता है।
जो अपने आचरण से ह, वे संसार म कसी भी को शु आचरण
वाला नह मानते। वे येक को संदेह क से दे खते ह। । 328 ।
।। वभावो र त मः ।।
वभाव को बदलना ब त क ठन काय होता है।
मनु य का मन ान अथवा अ ान दोन म से कसी एक थ त को अपना लेता है।
इस कार वह उसका वभाव बन जाता है। वभाव के अनुसार वह आचरण करता है। जस
क वृ शुभ कम म है, उसे एकदम बदलना क ठन होता है। परंतु अ धकांश
मनु य अपने अ ान के कारण नकृ काय क ओर ज द वृ हो जाते ह। परंतु जब वे
एक ही कार के काय को बार-बार करते ह तो उनके वभाव को बदलना क ठन हो जाता
है। एक सामा य कहावत है क चोर य द चोरी छोड़ भी दे ता है तो हेरा-फेरी छोड़ना उसके
लए क ठन होता है। । 329 ।
।। अपराधानु पो द डः ।।
अपराध के अनु प ही दं ड दे ना चा हए।
अपरा धय को उनके अपराध के अनुसार ही दं ड दे ना शासन का क होता है।
इससे जनता म सुर ा क भावना बढ़ती है। दं ड के भय के कारण ही कहा गया है क वह
सोते ए भी जागता है अथात् द ड अपने थान पर सदै व थर रहता है। इसी से जा म
शासन- व था थर रहती है। कहा भी है—द डः शा त जाः सवाः द ड एवा भर त।
द डः सु तेषु जाग त द डं धम व बुधाः।। अथात् दं ड राजधम का आव यक अंग है। ।
330 ।
।। कथानु पं तवचनम् ।।
के अनु प ही उ र दे ना चा हए।
जन लोग पर व ास न हो, उनके का उ र दे ते समय इस बात को यान म
रखना चा हए क जो कुछ म पूछा गया है उसका उ र सी मत होना चा हए। पूछा कुछ
जाए और इधर-उधर क हांकने लगे, ऐसे लोग मूख कहलाते ह। । 331 ।
।। वभवानु पमाभरणम् ।।
अपनी धन-संप के अनु प ही को आभूषण धारण करने चा हए।
मनु य को अपने शरीर क सजावट अथवा वेषभूषा अपनी आ थक थ त के
अनु प सी मत रखनी चा हए। अपनी थ त से बाहर जाकर शरीर को सजाने से मनु य के
स मान म वृ नह होती।
मनु य को अपनी वेशभूषा दे शकाल के अनुसार रखनी चा हए। कहा भी गया है क
—‘ताते पैर पसा रए जाती ल बी सौर।’ । 332 ।
।। कुलानु पं वृ म् ।।
अपने कुल क मयादा के अनुसार ही को काय करना चा हए।
का आचरण इस कार का होना चा हए जससे कुल क मयादा को ठे स न
प ंचे। कुल क मयादा म के आचरण के साथ-साथ उसका वसाय भी आता है।
इस लए का क यह है क वह कोई ऐसा वसाय न अपनाये अथवा कोई ऐसा
आचरण न करे जससे उसके कुल क मयादा को हा न प ंचती हो। । 333 ।
।। कायानु पः य नः ।।
जैसा काय हो, य न भी उसी के अनुसार करना चा हए।
काय ारंभ करने से पूव उ चत समय, सहायक, अनुकूल प र थ तयां, धन आ द
साधन और अपने उ साह के संबंध म को प र चत होना चा हए। । 334 ।
।। पा ानु पं दानम् ।।
पा के अनुसार ही दान दे ना चा हए।
दान दे ने से पहले इस बात पर वचार करना आव यक है क जसे दान दया जा रहा
है, वह उसके यो य भी है अथवा नह । उसक यो यता के अनुसार ही दान क मा ा नधा रत
करनी चा हए। । 335 ।
।। वयोऽनु पो वेशः ।।
को अपनी आयु के अनुसार ही वेश धारण करना चा हए। । 336 ।
।। वा यनुकूलो भू यः ।।
वामी के अनुसार ही सेवक को काय करना चा हए।
सेवक का क है क वह वामी क इ छा के अनुकूल आचरण करनेवाला हो।
सेवक को अपने वामी के वचार , समाज म उसक थ त आ द को समझकर उसके
अनुसार ही आचरण करना चा हए। उसे कोई ऐसा काय नह करना चा हए जससे वामी
का अनादर हो। । 337 ।
।। गु वशानुवत श यः ।।
श य को सदा गु क इ छा के अधीन रहकर काय करना चा हए।
जब गु श य को श त करने के लए अपने अधीन लेता है तो इसे श य का
सरा ज म माना जाता है। य क गु ही श य को सब कार क व ा का ान दे ता है
जससे श य के ान-च ु खुलते ह और एक सामा जक परंपरा बनी रहती है। गु के बना
का क याण नह हो सकता। जीवन म अपने क को सही ढं ग से पूरा करने के
लए गु से ही ान ा त होता है। इस लए श य का क है क वह गु क इ छा के
अनुसार ही काय करे। । 339 ।
।। पतृवशानुवत पु ः ।।
पु को पता क इ छा के अनुसार चलनेवाला होना चा हए।
पु का क है क पता के अनुभव से लाभ उठाए। पता क आ ा के अनुसार
काय करने से ही वह पता क संप का अ धकारी हो जाता है। प रवार म सुख और शां त
बनाए रखने के लए भी आव यक है क पु पता क आ ा के अनु प ही काय करे। ।
340 ।
।। अ युपचारः शं कत ः ।।
अ य धक आदर से शंका उ प होती है।
य द कोई आगंतुक क थ त से अ धक आदर स मान करता है तो इससे
के मन म संदेह उ प हो सकता है।
इसका कारण यह हो सकता है क वागत-स कार करनेवाला उस पर कसी
अनु चत काय का दबाव डालना चाहता हो। । 341 ।
।। वा म न कु पते वा मनमेवानुवतत ।।
वामी के ु होने पर सेवक को वामी क आ ा के अनुसार ही काय करना
चा हए।
य द वामी कसी कारण वश सेवक से ु है तो सेवक को चा हए क वह अपने
वामी के त ोध न कट करके अपनी भूल को सुधारने का य न करे। सेवक का वामी
के त ोध करना अनु चत और हा न द होता है। । 342 ।
।। नेहवतः व पो ह रोषः ।।
नेह करने वाले य का ोध णक और अ न र हत होता है।
भला चाहने वाले कसी कारण से य द ु होते ह तो उसके पीछे अ न
करने क भावना नह होती। माता- पता, गु , संबंधी आ द लोग का ोध थोड़ी दे र के लए
होता है। वे थोड़ी-सी दे र म स हो जाते ह। । 344 ।
।। आ म छ ं न प य त पर छ मेव प य त बा लशः ।।
मूख अपने दोष को न दे खकर सर के दोष को दे खता है।
मूख मनु य का यह वभाव होता है क वह अपने अवगुण को न दे खकर सरे
य म दोष ढूं ढ़ने का य न करता है। वह अपने को अपराधी न मानकर सरे के
अपराध और उनके दोष को ही खोजता रहता है। मूख का यह वभाव होता है। उसे
अपनी आंख का शहतीर दखाई नह दे ता जब क सर क आंख का तनका वह बड़ी
सरलता से दे ख लेता है।। 345 ।
।। सोपचारः कैतवः ।।
धूत लोग सर के पर बल बना करते ह अथात् आ म- दशन करते ह।
धूत लोग सर क कपट सेवा से कोई भेद जानना चाहते ह। धूत लोग जनका भेद
जानना चाहते ह उ ह अपनी सेवा ारा अपने वश म करने का य न करते ह। । 346 ।
।। का यै वशेषै पचरणमुपचारः ।।
कसी वशेष इ छा क पू त के लए जो सेवा क जाती है उसे उपचार कहते ह।
उपचार का अथ दवा-दा अथवा सेवा करना भी होता है। इस संदभ म यहां अपनी
कसी वशेष इ छा के कारण कसी सरे क जो सेवा क जाती है, उसको भी
उपचार कहते ह। ब त से लोग कसी का भेद जानने के लए गु तचर के प म काय करते
ह। । 347 ।
।। सव जय य ोधः ।।
ोधहीन सबको अपना बना लेता है, अथात् वह अपने वभाव के कारण
व वजयी बन जाता है। । 352 ।
।। ना य पशाचमै यम् ।।
ऐ य पैशा चकता से र हत नह होता।
जन लोग के पास ऐ य के साधन होते ह, वे बड़ी सरलता से पैशा चकता क ओर
आकृ हो जाते ह। जन ऐ यशाली य म धम-कम का अभाव होता है, उनम बुरी
वृ यां सरलतापूवक घर कर जाती ह। इस लए मनु य का य न होना चा हए क वह
रा सी वृ य से बचता रहे तथा धन-संप और ऐ य आ द को समाज के काय के लए
योग म लाए। । 355 ।
।। ना त धनवतां सुकमसु मः ।।
धनवान् य को शुभ काय को करने म वशेष म नह करना पड़ता।
चाण य ने अनेक सू म धम-कम के लए धन क आव यकता पर बल दया है।
इस लए धनी के लए कोई भी काय करना क ठन नह होता। परंतु जो केवल धन क
ही उपासना करते ह अथात् हर समय और अ धक धन जोड़ने क इ छा रखते ह उनक
वृ अ छे काय को करने क ओर नह जाती। । 356 ।
।। ना त ग त मो यानवताम् ।।
वाहन पर या ा करने वाले को थकावट अनुभव नह होती।
जो यान अथवा कसी वाहन पर या ा करते ह, उन पर या ा के म का
भाव नह पड़ता। उ ह अ धक थकावट नह होती।
चाण य ने एक पूव सू म कहा क जो अ धक पैदल या ा करते ह, वे ज द
बूढ़े हो जाते ह। अ धक या ा वाहन ारा ही करनी चा हए। । 357 ।
।। अलोहमयं नगडं कल म् ।।
ी बना लोहे क बेड़ी है।
प नी प त के लए बना लोहे क ऐसी बेड़ी है जसे वह सहम त से वीकार करता
है। इसका अथ यह है क ववाह था वे छा से अपने पर लागू कया गया ऐसा धम-बंधन है
जससे वतः ही अनु चत काय पर रोक लगती है। । 358 ।
।। कल ं मन वनां शरीरकशनम् ।।
ी अथवा प नी मन वी के शरीर को बल बना दे ती है।
अथात् य द प नी अ छे वचार क न हो तो मन वी लोग ऐसी य को ःख का
कारण मानते ह। । 360 ।
।। ीषु क चद प न व सेत् ।।
य पर क चत् मा भी व ास नह करना चा हए।
ऐसा तीत होता है क यह सू ी मा के लए नह कहा गया। ब क चाण य का
भाव यह है क ी जा त को श त करना आव यक है। इतने पर भी भूल तो सभी
शरीरधा रय से होती है। परंतु यां कुछ बात बना सोचे- वचारे कर बैठती ह। इ तहास म
ऐसे अनेक उदाहरण ह जहां सीता जैसी म हला ने ल मण रेखा जैसी मयादा का उ लंघन
करके अनेक कार के क उठाए। परंतु गृह थ धम आपसी व ास के बना नह चल
सकता। इस लए को चा हए क वह बड़ी सूझबूझ के साथ य के साथ वहार
करे। । 362 ।
।। ीणां भूषणं ल जा ।।
ल जा ही य का भूषण (गहना) है। । 367 ।
।। अनुप वं दे शमावसेत् ।।
जस दे श म उप व होते रहते ह वहां रहना उ चत नह । । 371 ।
।। साधुजनब लो दे शः ।।
जस दे श म स जन पु ष का नवास हो वह बसना चा हए।
व तुतः वही रा रहने के यो य होता है जहां अ धकांश लोग का स य, कानून और
लोक-मयादा म व ास हो अथात् उसी दे श म रहना चा हए जहां कानून और व था का
पालन करनेवाले लोग रहते ह । । 372 ।
।। रा ो भेत ं सावकालम् ।।
राजा अथवा शासन से सदै व डरकर रहना चा हए।
मनु य को ऐसा य न करना चा हए क वह राजा अथवा शासन के ोध का पा
न बने। ऐसा तभी हो सकता है जब रा य के नयम का न ापूवक पालन कया जाए। ।
373 ।
।। न रा ः परं दै वतम् ।।
राजा से बड़ा कोई दे वता नह ।
दे वता उसे कहा जाता है जो धम का पालन करता और करवाता है। दे श भर म धम
का पालन रा य के नयम के भय के कारण ही होता है। इस लए राजा को रा का दे वता
कहा जाता है। उसके पास श और अ धकार होने से उसके मह व म और भी वृ होती
है। । 374 ।
।। सु रम प दह त राजव ह्नः ।।
राजा क ोधा न रा य के सु र कोने म प ंचकर भी दे श ोही को द ध (भ म)
करने म समथ होती है।
राजा अथवा शासन क श अपने दे श म ापक होती है। इस लए सदै व रा य
के नयम का पालन करना चा हए अ यथा राजा अथवा रा य के नयम के अनुसार
राज ो हय का सफाया कर दया जाता है। । 375 ।
।। र ह तो न राजानम भग छे त् ।।
राजा, दे वता अथवा गु के पास खाली हाथ नह जाना चा हए।
राजा, दे व अथवा गु के पास जाते समय को खाली हाथ नह जाना चा हए।
समाज क ऐसी मयादा है क जब कोई कसी महान् पु ष के पास जाता है तो कुछ-
न-कुछ भट करने के लए अव य अपने साथ ले जाता है। वतमान समाज क परंपरा है क
दे श के कसी बड़े नेता अथवा स जन पु ष के स मान के लए उसके पास प ंचकर पु प
भट कए जाते ह। । 376 ।
।। गु ं च दै वं च ।।
गु और दे वता के पास भी खाली हाथ नह जाना चा हए।
गु मनु य को व ा दान दे ता है और दे वता के कारण धम म आ था पैदा होती
है। इस लए इनके पास जाते समय भी ा और भ सूचक उपहार लेकर ही जाना
चा हए। । 377 ।
।। ग त ं च सदा राजकुलम् ।।
राजदरबार म सदै व जाते रहना चा हए।
राजप रवार अथवा रा य दरबार म जाते रहने अथवा रा यकुल के य से
मलते रहने से जा के हत के लए कए जानेवाले काय से प र चत रहता है। इसी
कार वह उनसे लाभ भी उठा सकता है। । 379 ।
।। पु ा व ानां पारं गम यत ाः ।।
पु को सब व ा म पारंगत बनाना चा हए।
पता का क है क वह संतान को व ान् और गुणवान् बनाये। कहा गया है क
जो पता अपनी संतान को श त नह बनाता, वह संतान का श ु होता है। व तुतः वह
संतान का ही नह अपना भी श ु होता है। इसी लए पता का क है क वह अपने पु
को व ा म पारंगत बनाये। । 384 ।
।। अ तलाभः पु लाभः ।।
पु क ा त सव े लाभ है।
परंतु वही पु पता और प रवार के लए लाभ और शंसा का कारण होता है जो
गुणवान् होता है। इसी लए गुणवान् पु को ही पता के लए सव े लाभ माना गया है। ।
387 ।
।। ायेण ह पु ाः पतरमनुवत ते ।।
ायः पु पता के जीवन के अनु प बन जाते ह।
पु पता के आचरण से ही ब त कुछ सीखता है। इस लए पता का क है क
वह पु के सामने आदश उप थत करे। । 388 ।
।। नाऽनप य य वगः ।।
सुपु के बना वग क ा त नह होती।
जस प रवार म गुणवान् और बु मान पु नह होता, वह प रवार सदै व खी रहता
है। प रवार का सुख सुपु होने से ही बढ़ता है। । 392 ।
।। सतीथाऽ भगमनाद् चय न य त ।।
एक ही गु कुल म पढ़नेवाले छा -छा ा का नकट संपक चय का वनाशक
है। । 394 ।
।। पु ाथा ह यः ।।
पु ा त के लए ही य का वरण कया जाता है।
प नी का स पयोग पु ा त के लए कया जाना चा हए, वषयभोग क तृ त के
लए नह । परंतु जो लोग य को वषयभोग का साधन मान लेते ह उनसे अ छ संतान
उ प होने क आशा नह क जा सकती। । 395 ।
।। वदासीप र हो ह वदासभावः ।।
अपनी दासी के साथ प र ह करना अपने को दास बना लेना है।
जो अपनी ही नौकरा नय को वषयभोग का साधन बना लेता है वह प तत
होने के साथ-साथ वयं उनका दास बन जाता है। । 396 ।
।। उपकारोऽनाय वक ः ।।
पु ष पर उपकार नह करना चा हए।
पु ष अपनी ता नह छोड़ता और वह उपकार करनेवाले के त कृत ता भी
कट नह करता। भाव यह है क पा दे खकर ही कसी पर उपकार करना चा हए। अपा
के त उपकार करने से कोई लाभ नह होता। । 401।
।। युपकारभयादनायः श ुभव त ।।
उपकार का बदला चुकाने के भय से पु ष श ु बन जाता है।
अपने त कये गए उपकार का बदला नह चुकाना चाहता। उसम ऐसी
भावना नह होती इस लए वह उपकार करनेवाले के त उपे ा और े ष क भावना
रखने लगता है। । 402 ।
।। न च ुषः समं यो तर त ।।
आंख के समान सरी कोई यो त नह है।
मनु य के शरीर म ने ही ऐसा अंग है जसके बना मनु य-जीवन नरथक होता है।
कसी व तु को य दे खने का जो मह व है उसे कसी अ य कार से पूरा नह कया जा
सकता। । 405 ।
।। ना सु मू ं कुयात् ।।
जल म मू याग नह करना चा हए।
जल म मू याग से वह उपयोग म लाने के यो य नह रहता। उसे पीने, नान करने
अथवा अ य कसी भी उपयोग म लाने से भयंकर प रणाम हो सकते ह। । 408 ।
।। न न नो जलं वशेत् ।।
पूरी तरह से न न होकर जल म नह उतरना चा हए।
जल म कुछ जीव इस कार के होते ह जो शरीर से चपककर र चूस लेते ह।
इसी लए जलाशय , न दय आ द म भी पूरी तरह न न होकर नह घुसना चा हए। । 409 ।
।। अ नाव नं न न पेत् ।।
आग म आग नह डालनी चा हए। ोध के बदले ोध नह करना चा हए।
इसका भावाथ यह है क ोध का उ र ोध से नह दया जा सकता। ोध के
उ र म ोध करने से अशां त पैदा होती है और दोन प क हा न भी हो सकती है। ।
412 ।
।। तप वनः पूजनीयाः ।।
तप वय क सदा पूजा करनी चा हए।
तप वी वे लोग होते ह जो इं य को वश म रखने का य न करते ह। ऐसे
समाज के लए मागदशक का काम करते ह। वे समाज के मू यवान धन होते ह। समाज को
चा हए क वह उनका आदर-स कार करे, उनका अपमान न करे। । 413 ।
।। परदारान् न ग छे त् ।।
पराई ी के साथ समागम नह करना चा हए।
परप नय से संपक था पत करने क बात भी मन म नह सोचनी चा हए।
वृ य पर कठोर संयम रखने से ही मानव तथा सामा जक जीवन क शां त संभव है। जो
मनु य सर क ी से संभोग करते ह वे समाज म ल जत होते ह। । 414 ।
।। न वेदबा ो धमः ।।
वेद- वीकृत धम ही वा त वक धम है।
धम वेद से बाहर नह । धम के ा याकार ने इस संबंध म जो कुछ भी बताया है
वह वेद के अनु प है। वेद ान का भंडार है। वेद के व चलने से धम का पालन नह हो
सकता। वेद के अनु प आचरण करना ही मनु य का धम है। । 416 ।
।। न कदा चद प धम नषेधयेत् ।।
धम का वरोध कभी नह करना चा हए और न ऐसे धम के वरो धय क संगत कर।
मनु य को धमानु ान करना चा हए। धम का पालन करना ही मनु य जीवन का
सबसे बड़ा क होता है। ण भर के लए भी धम से वच लत नह होना चा हए। धम का
पालन न करने वाले समाज म अशां त पैदा करते ह। को सदै व धम का
आचरण करना चा हए। । 417 ।
।। वग नय त सूनृतम् ।।
मीठ और स ची वाणी मनु य को वग ले जाती है।
जो मधुर वाणी बोलते ह वे सबको अपना म बना लेते ह। उनका कोई श ु
नह होता। वे संसार म नभय होकर वग का सुख भोगते ह। मनु य ेमपूण मधुरवाणी से
श ु को भी अपना म बना लेता है। । 418 ।
।। ना त स या परं तपः ।।
स य से बढ़कर कोई तप नह है।
स य का अवलंबन ही इस संसार म सबसे अ छ तप या है। स य का आचरण करने
से मनु य पर अनेक संकट भी आ सकते ह। परंतु स याचरण से ही उनसे वच लत
नह हो सकता। वह अनेक क उठाकर भी स य का प र याग नह करता। । 419 ।
।। स यं वग य साधनम् ।।
स य के ारा ही मनु य वग को ा त होता है।
मनु य के दय म रहनेवाले स य का येय यह होता है क मनु य क वाथ यु
वृ य पर अंकुश लगाये। इस कार मनु य कम म वृ नह होता। मनु य अपनी
भोली वृ य का माजन स य के बल पर ही करता है और उसक पूजा वग के दे वता के
समान होने लगती है। मनु य को यान दे ना चा हए क वयं स य ही साधन भी है और सा य
भी। इसी लए मनु य को स य का साथ नह छोड़ना चा हए। । 420 ।
।। न मीमां या गुरवः।।
गु जन क आलोचना नह करनी चा हए।
मनु य को चा हए क अपने गु क कभी आलोचना न करे। गु श य का सदै व
हत चाहते ह। वे कभी उसका अ हत नह करते।
इसी लए य द उनके दय क भावना को न समझ सके तो भी उनक
आलोचना नह करनी चा हए। आलोचना का अथ के दोष को ढूं ढ़ना है। अतः अपने
गु जन म दोष ढूं ढ़ना मनु य क मूखता है। । 424 ।
।। खल वं नोपेयात् ।।
मनु य को चा हए क वह ता को वीकार न करे।
मनु य को नीचता का कभी आ य नह लेना चा हए। उसका क है क वह
सदै व नीच से र रहे। सर क नदा करना, लड़ाई-झगड़ा करना, अस याचरण
करना आ द नीच काय मानव को उसके उ च आदश से गराते ह। इसी लए उसे चा हए क
वह इस कार के पाप काय से पृथक् रहे। । 425 ।
।। ना त खल य म म् ।।
धूत मनु य का कोई म नह होता।
जो स जन लोग से वहार करता है वह धीरे-धीरे वयं अपने म म
कमी करता है। समय पाकर उसके ब धु-बा धव भी उसे छोड़ जाते ह। स जन ही
कसी को परखने के बाद म ता का हाथ बढ़ाते ह। धूत वभाव से ही स जन लोग
का श ु होता है। इसी लए समझदार को चा हए क , नीच और धूत य से
कभी स पक था पत न करे। । 426 ।
।। लोकया ा द र ं बाधते ।।
द र मनु य का जीवन- नवाह क ठन होता है।
द र ता जीवन का अ भशाप है। द र और नधन य को अपने प रवार के
आ त के अ त र वयं अपने जीवन को चलाना क ठन होता है। नधनता के कारण
उसके सगे-संबंधी भी उसे छोड़ दे ते ह। इसी लए को चा हए क वह धैयपूवक य न
करता आ नधनता को समा त करने का य न करे। । 427 ।
।। अ तशूरो दानशूरः ।।
दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है। । 428 ।
।। गु दे व ा णेषु भ भूषणम् ।।
गु , दे वता और ा ण म भ रखना मानवता का आभूषण है।
जो गु , ा ण और स जन य आ द के संबंध म समान भाव
रखता है, उनक भ करता है, वा तव म वह इस कार अपने जीवन क शोभा बढ़ाता है।
ये काय उसके लए एक आभूषण के समान होते ह। उसक सव पूजा होती है। । 429 ।
।। सव य भूषणं वनयः ।।
वनय सबका आभूषण है।
वनय का अथ है न वभाव। परंतु न वभाव का वही हो सकता है
जसक स य म न ा होती है। स य आचरण करने वाला अपने न वभाव का कभी
याग नह कर सकता। मनु य का न वभाव उसे सबका य बना दे ता है। जस कार
आभूषण सबको अ छे लगते ह, उसी कार ाणी का आभूषण वनयशीलता सबको अ छा
लगता है। । 430 ।
।। यम य हतं न व म् ।।
मधुर और य होने पर भी अ हतकर वाणी नह बोलनी चा हए।
ऐसी मीठ बात करने का भी कोई योजन नह होता, जनसे सर को ठे स प ंचे।
। 433 ।
।। ब जन व मेकं नानुवतत् ।।
अनेक लोग के वरोधी एक का अनुगमन नह करना चा हए।
जस एक का ब त से वरोध करते ह , उसका अनुकरण करने से
मनु य क हा न होती है अथात् इसका भाव यह है क कसी व का अनुसरण न करके
स य का अनुसरण करना चा हए। । 434 ।
।। न जनेषु भागधेयः क ः ।।
जन य के साथ कभी भी अपना भा य नह जोड़ना चा हए।
जन य क नीयत साफ नह है और जो वभाव से ह, उनके साथ
मलकर कोई काय नह करना चा हए। उनसे मलकर काय करने से मनु य को हा न उठानी
पड़ती है। । 435 ।
।। न कृताथषु नीचेषु स ब धः ।।
कृताथ अथात् अपने वसाय म सफल नीच से भी संबंध था पत नह
करना चा हए।
जो अपने वसाय म कसी कार सफलता ा त कर भा यशाली बन जाए,
और वभाव म नीचता रहे ऐसे भा यशाली नीच य से भी कभी संबंध था पत नह
करना चा हए। । 436 ।
।। ऋणश ु ा ध वशेषः क ः ।।
ऋण अथात् कज, श ु और रोग को सवथा समा त कर दे ना चा हए। । 437 ।
।। भू यनुवतनं पु ष य रसायनम् ।।
क याण-माग पर चलना ही मनु य के लए उ म साधन है। । 438 ।
।। ना थ वव ा काया ।।
याचक का अपमान नह करना चा हए।
याचक का कोई मान-अपमान नह होता। वह कन कारण से े रत होकर भीख
मांगने पर उता होता है, यह उसक ववशता समझते ए उसका अपमान करने से कोई
लाभ नह । । 439 ।
।। ज ाय ौ वृ वनाशौ ।।
मनु य क उ त और अवन त उसक अपनी वाणी के अधीन है।
जस कार क बात करता है अथवा जस कार के वचन बोलता है, उ ह
के आधार पर संसार म उसक वृ और अवन त होती है। मधुर, उपयोगी और समय के
अनुकूल बात करनेवाले ब त कम होते ह। जो वाणी का सही उपयोग जानते ह, वे
इस संसार म उ त करते ह और सुखी भी रहते ह। । 442 ।
।। वषामृतयोराकरो ज ा ।।
मनु य क वाणी ही वष तथा अमृत क खान है। । 443 ।
।। यवा दनो न श ुः ।।
जो य वचन बोलता है उसका कोई श ु नह होता। । 444 ।
।। तुता अ प दे वता तु य त ।।
तु त करने से दे वता भी स हो जाते ह।
तु त ारा दे वता को भी अपना बना लेना अपने आप म एक लोको है। मं दर
म रखी ई मू त, दे वता अ य होता है परंतु भ मन से उसक तु त करता है, उसक
ाथना करता है, उससे उसक मनोकामनाएं पूरी हो जाती ह। जब अ य दे वता मधुर वचन
से स होते ह तो त दन संपक म आने वाले हत करनेवाली और मधुरवाणी से
य न स ह गे? । 445 ।
।। राज ंनचव म् ।।
राजा से े ष उ प करने वाली बात कभी नह बोलनी चा हए।
ऐसी बात अथवा भाषण कभी नह करना चा हए जससे राज ोह कट होता हो।
राज ोह अपराध है। । 447 ।
।। ु तसुखा को कलालापा ु य त ।।
काली कोयल क कूक सबको अ छ लगती है।
कु प होने पर भी कोयल क वाणी मधुर होती है, इसी लए वह सबको अ छ
लगती है। काला तो कौआ भी होता है, परंतु उसक वाणी कठोर होती है, इसी लए उसे कोई
पसंद नह करता। इस लए मनु य का क है क वह रा य के अ धका रय से ऐसी कठोर
बात न कहे जससे हा न प ंचती हो। । 448 ।
।। वधमहेतुः स पु षः ।।
अपने धम म थत होने के कारण ही पु ष स पु ष कहलाता है।
अपने धम का पालन करने से ही स पु ष कहलाता है। ीकृ ण ने गीता म
कहा क—‘ वधम नधनं ेयः परधम भयावहः।’ । 449 ।
।। ना य थनो गौरवम् ।।
याचक का समाज म कोई गौरव नह होता।
याचना करनेवाले और कंजूस धनी को संसार म स मान ा त नह होता।
मांगनेवाला सर क म हीन माना जाता है और कंजूस धनी दान न दे ने के
कारण स मानहीन बन जाता है। । 450 ।
।। श ोर प न पतनीया वृ ः ।।
श ु क भी आजी वका न नह करनी चा हए।
आजी वका एक ऐसा उपाय है जससे अपना और अपने प रवार का भरण-
पोषण करता है। कसी को जी वका उपल ध कराना ब त ही मह व और पु य का काय
समझा जाता है। चाण य कहते ह क श ु क जी वका को भी हा न नह प ंचानी चा हए। ।
452 ।
।। अ य नादे कं े म् ।।
जहां बना य न कये जल उपल ध हो वही कृ ष यो य भू म होती है। । 453 ।
।। अ त वृ ा शा मली वारण त भो न भव त ।।
ब त पुराना होने पर भी सेमल के वृ से हाथी को नह बांधा जा सकता।
जैसे पुराना वशाल शा मली असार होने से हाथी बांधने के यो य नह माना जाता,
उसी कार नबल मन वाले लोग पया त समृ और -पु हो जाने पर भी बलवान् से
ट कर लेने यो य नह हो सकते। मनु य म बल, बु के लए अ तःसार होना चा हए।
हा दक बल ही सं ाम क वशेष यो यता है, भुजबल नह । दे ह क वशालता वजय का
साधन नह हो सकती। । 455 ।
।। अ तद घऽ प क णकारो न मुसली ।।
ब त बड़ा कनेर का वृ भी मूसल बनाने के काम नह आता।
कनेर का वृ अंदर से खोखला होता है। इसी लए उसक लकड़ी से मूसली बनाने
का काम नह लया जा सकता। इसी कार कमजोर, बल, मनवाले के पास जतने
भी भौ तक साधन ह , उनसे कोई भी मह वपूण काय नह कया जा सकता। । 456 ।
।। न वृ वं गुणहेतुः ।।
समृ शाली हो जाने पर भी कोई आव यक प से गुणवान नह हो पाता।
यह आव यक नह क को कसी एक बात म वृ ा त हो जाए और वह
गुणी भी हो। इसी कार यह भी आव यक नह क समृ शाली लोग म गुण का नवास
आव यक प से ही होता है। । 458 ।
।। यथाकुलं तथाऽऽचारः ।।
जैसा कुल होता है वैसा ही आचरण होता है।
ायः दे खा गया है क कुल क परंपरा के अनुसार ही लोग का आचार- वहार
होता है। जस वंश के धमपरायण और गुणी होते ह उस कुल का लौ कक वहार भी
उदारता से यु होता है। ऐसे कुल म ज मे और पालन-पोषण ा त बालक उदार ह गे। ।
462 ।
।। सं कृतः पचुम दो न सहकारो भव त ।।
नीम को कतना भी शु य न कया जाए वह आम नह बन सकता।
नीम के वृ को ध और गुड़ आ द से कतना भी अ धक स चा जाए, कतु उसक
वाभा वकता समा त नह हो सकती और उसे आम के फल जैसा मधुर नह बनाया जा
सकता। इस कार नीच मनु य को भी कतने ही उपदे श दए जाय, उसके लए नीचता का
याग करना अ य त क ठन होता है। । 463 ।
।। न चागतं सुखं प र यजेत् ।।
ा त होने वाले सुख को नह छोड़ना चा हए।
न त और अनुकूल वतमान को यागकर अ न त भ व य क आशा म पड़े रहना
उ चत नह । जो अवसर ा त हो उसे खोना नह चा हए। कसी बड़े सुअवसर क आशा म
हाथ म आए छोटे अनुकूल काय को छोड़ नह दे ना चा हए। कहा भी गया है ‘यो ुवा ण
प र य य अ ुवा ण नशेवते। ुवा ण त य न य त अ ुवं न मेव तत्।।’
अथात् जो हाथ म है उसका लाभ उठाना ही बु मानी है। । 464 ।
।। वयमेव ःखम धग छ त ।।
अपने कम के अनुसार ही मनु य को ःख मलता है।
मनु य जैसे काय करता है उसी के अनुसार उसे सुख और ख क ा त होती है।
वा तव म ःख मनु य ारा वे छा से वीकृत कया आ रोग है। उसे समझना चा हए क
यह उसके काय का ही फल है। । 465 ।
।। न रा चारणं कुयात् ।।
रात के समय थ नह घूमना चा हए।
य को तो इसके त अ य धक सावधान रहना चा हए। । 466 ।
।। न चाधरा ं वपेयात् ।।
आधी रात तक जागते नह रहना चा हए।
रा व ाम करने के लए बनाई गई है। च क सा- व ान के अनुसार इस समय
शरीर म ऐसी रासाय नक या होती है जो शरीर के व थ रहने के लए उपयोगी है।
इसी लए रात म समय पर सो जाना शारी रक और मान सक वा य क से लाभदायक
है। रा को केवल योगी जागते ह, जो भु क ाथना म लीन रहते ह।
सामा य जन को समय के अनुसार वहार करना चा हए और ब त रात बताकर
नह सोना चा हए। । 467 ।
।। त द्भः परी ेत ।।
मनु य को कस समय या काय करना चा हए, यह व ान् और अनुभवी कुल के
वृ पु ष से सीखना चा हए।
प रवार के वृ पु ष को अपने अनुभव ारा ब त-सी बात ात होती ह। इसी लए
प रवार के लोग को जीवन म आचरण के लए उनसे ब त कुछ सीखना चा हए। । 468 ।
।। परगृहमकारणतो न वशेत् ।।
बना कसी कारण कसी सरे के घर म नह जाना चा हए।
बना कारण कसी सरे के घर जाने से का अपमान होता है। इसका एक
अथ यह भी हो सकता है क कानूनी अ धकार ा त होने पर ही कसी सरे के घर म वेश
कया जा सकता है, वैसे नह । । 469 ।
।। शा धाना लोकवृ ः ।।
लोक वहार शा के अनुकूल होना चा हए।
मनु य के वहार के संबंध म ायः सभी शा म बताया गया है, इसी लए मनु य
को अपने काय- ापार म अ य लोग क अपे ा वहार आ द क ेरणा शा से ही लेनी
चा हए। । 471 ।
।। शा ाभावे श ाचारमनुग छे त् ।।
य द मनु य को शा का ान न हो तो मनु य को अपना आचरण े पु ष के
अनुसार करना चा हए।
य द कसी को शा का ान नह , तो उसे जीवन म ब त-सी बात के लए
क ठनाई हो सकती है। इस क ठनाई को र करने का एक सरल उपाय यह है क उसे अपना
आचरण े पु ष के समान करना चा हए अथात् जैसा वे करते ह, उनका अनुगमन करना
चा हए। । 472 ।
।। र थम प चारच ुः प य त राजा ।।
राजा गु तचर ारा र क व तु को भी दे ख लेता है।
गु तचर राजा क आंख होते ह। वह दे श तथा वदे श म अपने रा य से संबं धत
अनेक बात को गु तचर ारा जान लेता है। । 474 ।
।। तपःसार इ य न हः ।।
इं य को वश म रखना ही तप का सार है।
वषयभोग से संबंध रखने वाले एकांत वन म भी अपनी इं य को वश म
नह रख सकते। जो अपने घर म रहता आ भी इं य को वश म रखता आ अपना
काय करता है, वह तप पूण जीवन ही बता रहा होता है। । 477 ।
।। लभः ीब धना मो ः ।।
ी के बंधन से छू टना बड़ा क ठन काय है।
ी से भोग वलास संबंधी वचार आने पर मनु य असाधारण मनोबल से ही बच
सकता है। परंतु य द ी चाहे तो उसके तप को भंग भी कर सकती है। य द कोई तप वी भी
इं य पर वजय ा त नह कर सकता तो उसक तप या थ होती है। को य
के मोह म नह पड़ना चा हए। । 478 ।
।। ीणां सवाशुभानां े म् ।।
ी सभी संकट को ज म दे ने वाली होती है।
इ तहास म ऐसी अनेक घटनाएं इस बात का माण ह क य के कारण मनु य
समाज को भारी हा न उठानी पड़ी। रामायण, महाभारत, पृ वीराज और संयो गता क
कहा नयां इस बात का माण ह।
इसी लए रा को चा हए क ी जा त के संबंध म अपने कत के त पूण सचेत
रहे। ी को केवल भोग वलास का साधन मानने से भी अनेक हा नकारक प रणाम भुगतने
पड़ते ह। । 479 ।
।। य फल ा वेद वदः ।।
ऋक्, यजु, साम आ द तीन वेद को जानने वाला ही य के फल को जानता है।
य फल से मनु य भु के संबंध म ान ा त करता है अथवा उसे अपने संबंध म
पूण ान क ा त होती है। अथात् वह अपने वा त वक व प को य के कारण समझ
पाता है। । 481 ।
।। दे ही दे हं य वा ऐ पदं न वांछ त ।।
ाणी को दे ह से इतना लगाव होता है क वह दे ह छोड़कर इं का पद भी नह
भोगना चाहता।
भावाथ यह है क मनु य अपने जीवन के वतमान काल म ही सुख क इ छा करता
है य क उसक आस अपनी दे ह म होती है। वह अपनी दे ह को छोड़कर इं -आसन
ा त करने क इ छा नह रखता। मरने के बाद सुख क इ छा का प नक होती है। । 485
।
।। ःखानामौषधं नवाणम् ।।
सम त ख क औष ध मो है।
मनु य जब तक मन क इ छा के बंधन म पड़ा रहता है तब तक ःख का
अनुभव होता है। मन के बंधन से पूणतः मु होना ही ःख से छु टकारा पाना है। अथात्
मनु य जब मो ा त कर लेता है, तब उसके ख वयं समा त हो जाते ह। । 486 ।
।। ीरा थनः क क र या ।।
ध क इ छा रखने वाले को ह थनी पालने क आव यकता नह होती।
ध ा त करने के लए कोई ह थनी को नह पालता अथात् थ के कम याग
करने के यो य होते ह। मनु य को जस व तु क आव यकता हो, उसी के अनु प काय
करना चा हए। इसका अथ यह भी है क मनु य को केवल उपयोगी का ही संचय करना
चा हए। थ क चीज बटोरने म अपनी श न नह करनी चा हए। । 493 ।
।। न दानसमं व यम् ।।
दान जैसा कोई वशीकरण मं नह ।
सदाचारी धनी लोग अपने धन का स पयोग समाज के क याण के लए करते ह।
समाज के क याण के साथ-साथ उनके यश म भी वृ होती है। जन लोग को उनके दान
से लाभ होता है, वे सदै व ही उनके नाम से भा वत रहते ह। उनका दान वशीकरण मं के
समान स होता है। । 494 ।
।। ना भो ध तृ णामपोह त ।।
समु के खारे पानी से यास नह बुझती।
पाप क कमाई से कमाया आ धन कसी को संतु नह कर सकता। उसका अ छे
काम म उपयोग भी असंभव ही होता है। नकृ उपाय से सं ह कया आ धन अंत म
मनु य के अपने वनाश का कारण बनता है। । 498 ।
।। बालुका अ प वगुणमा य ते ।।
जस कार बालू या रेत अपने खे और कठोर वभाव को नह छोड़ पाता, इसी
कार मनु य भी अपना वभाव नह छोड़ते।
नीच अपने वभाव के कारण नीच उपाय से ही धन का सं ह करता है और उसका
उपयोग उसके अपने वभाव के कारण ही समाज-क याण के काय म नह होता। उसका
उपयोग बुरे काय के लए ही होता है। । 499 ।
।। स तोऽस सु न रम ते ।।
स जन लोग जन म रहकर आनंद (चैन) अनुभव नह करते।
मनु य समाज म रहने वाला ाणी है, परंतु वह अपने जैसे वचार वाले लोग म ही
रहता है। अं ेजी क एक कहावत है क एक जैसे प ी ही इकट् ठे उड़ते ह, इसी कार भ
मनु य भी भ लोग के साथ रहना चाहते ह।
इसका कारण यह भी है क मनु य जैसे लोग म रहता है, उसका वभाव भी वैसा
बन जाता है। वपरीत वभाव के लोग आपस म ेम से मलकर न कोई समाज-क याण का
काय कर सकते ह और न उ त कर सकते ह। । 500 ।
।। न हंसाः ेतवने रम ते ।।
हंस नामक प ी मशान म रहना पसंद नह करते।
जस कार हंस मशान म नह रहते, उसी कार यो य अयो य के
पास बैठना पसंद नह करते। गुणी एका त म अ ात जीवन बता दे ना तो वीकार कर
लेते ह, परंतु बुरी संग त म रहना कभी वीकार नह करते। । 501 ।
।। न चाशापरैः ीः सह त त ।।
केवल आशा म लगे पु ष को ल मी नह मलती।
केवल आशा के उतार-चढ़ाव म रहने वाला ीहीन रहता है। जो क क
उपे ा करके केवल आशा के बंधन म बंधे रहते ह उ ह नराशा के अ त र कुछ ा त नह
होता। मनु य को चा हए क वह सदै व उ साह से स रहता आ क का पालन करे।
इसी से धन क ा त होती है। । 504 ।
।। आशापरे न धैयम् ।।
आशावान् मनु य धैयशाली नह होता।
केवल आशा का दास बना मनु य अपना धैय खो बैठता है। उसम थर बु नह
रहती। । 505 ।
।। दै या मरणमु मम् ।।
द र होकर जी वत रहने क अपे ा मर जाना अ छा है।
जो मनु य अपने को द नहीन, नक मा और असहाय समझ लेता है, वह जीते ए
भी मरे के समान है। द नता र हत जीवन बताना मनु य क साथकता है। अपने आपको
द नहीन समझकर उ साहहीन होना मृ यु के समान है। । 506 ।
।। आशा ल जां पोह त ।।
आशा के दास नल ज होते ह।
आशा अथात् वषय-लोलुपता के कारण मनु य क ल जा न हो जाती है। इसके
कारण वह अनु चत काय करने लगता है और श ाचार को छोड़ दे ता है अथात् आशा मनु य
को नल ज बना दे ती है। । 507 ।
।। आ मा न तोत ः ।।
अपने मुख से अपनी शंसा नह करनी चा हए।
अपनी शंसा के थान पर ऐसे आचरण क आव यकता है जससे क वयं
शंसा हो। जो ोता के सामने अपनी शंसा करता है, लोग उसे सुनकर ं य से
मु कराते ह। स जन आ म शंसा से र रहते ह। । 508 ।
।। न दवा व ं कुयात् ।।
दन म सोना नह चा हए।
दन म सोने से काय क हा न होती है और शरीर म अपच, वायु- वकार आ द दोष
उ प हो जाते ह। दन म केवल अ व य अथवा बालक को सोना चा हए। । 509
।
।। आयुः यी दवा न ा ।।
दन म सोने से आयु कम होती है।
इसका कारण यह है क जब मनु य सोता है तो उसक सांस तेजी से चलने लगती है
अथात् जागते समय वह जतनी भी सांस लेता है, सोते समय उनक सं या म वृ हो जाती
है। येक मनु य क सांस न त ह। इसी लए दन म सोना आयु-नाशक होता है। । 510
।
।। न चास म प प य यै या धः न शृणोती म् ।।
अपने धन के नशे म अंधा न तो अपने पास कसी व तु को दे खता है और न
ही हतकारी बात सुनता है।
मनु य के पास धन होना और धन के कारण अ भमान होना दोन बात म अंतर है।
जस को अपने धन का अ भमान है उसे अपने हत-अ हत का कोई यान नह रहता।
वह अपने लए उ चत बात क भी उपे ा करता है। बहारी ने कहा है क सोने का नशा
धतूरे के नशे से भी अ धक मनु य का मान सक संतुलन बगाड़ने वाला है। । 511 ।
।। अ त थम यागतं पूजये था व धः ।।
अपने घर म आए अ त थ का व धपूवक वागत करना चा हए।
गृह थ का क है क अक मात् आने वाले अ त थ और समय न त करके
आने वाले अ यागत दोन का यथो चत वागत-स कार करना चा हए। । 514 ।
।। न यं सं वभागी यात् ।।
अपने उपा जत धन म से दान को भी दै नक क मानना चा हए।
दान क म हमा का अनेक थान पर वणन कया गया है। दान दे ने से धन नह
घटता। इसी लए येक का क है क वह जो कुछ उपा जत करता है, उसम से
कुछ-न-कुछ ऐसे लोग को दे ना चा हए ज ह उसक आव यकता होती है। । 515 ।
।। ना त ह य ाघातः ।।
दे वता को नय मत दया गया कभी भी न नह होता। अथात् यो य पा को
दया गया दान कभी भी थ नह जाता।
समाज के यो य य क सहायता करना भी समाज क सेवा है। जो
समाज-क याण म अपना मन लगाते ह, वे अ य प से अपना ही क याण करते ह। ।
516 ।
।। श ुर प माद लोभात् ।।
लोभ दे कर श ु को भी उसके ल य (श ुता) से कया जा सकता है।
श ु को हराने का लोभ भी एक उपाय है। श ु को कसी भी कार के लोभ म
डालकर उसे अपने ल य म कया जा सकता है, य क लोभ मनु य को नबल बना
दे ता है। । 517 ।
।। श ु म वत् तभा त ।।
बु ंश श ु भी कभी-कभी म के समान दखाई दे ता है।
श ु म के समान तभी दखाई दे ता है जब लोभ के कारण उसक बु हो
जाती है। लोभ म पड़ने पर वह अपने श ु को भी अपना हत करने वाला म तीत होने
लगता है। । 518 ।
।। मृगतृ णा जलवद् भा त ।।
तृ णा के कारण मृग चमकती ई बालू को जल समझ बैठता है।
जसने अपनी इ य को वश म नह कया, वही ठगा जाता है। मृगतृ णा उसे कहते
ह जसम चमकती ई रेत भी जल के समान दखाई दे ती है और हरण उधर भागता है परंतु
उसे जल नह मलता।
इसी कार धूत लोग चकनी-चुपड़ी बात बनाकर लोग को अपने लालच म फंसा
लेते ह। बु म ा इसी म है क मनु य धूत लोग के बहकावे म न आए। । 519 ।
।। उपाल भो ना य णयेषु ।।
वनयर हत को उलाहना दे ने से कोई लाभ नह होता।
अथात् उद्दं ड मनु य को कठोर दं ड ारा ही सही माग पर लाया जा सकता है। ।
520।
।। मध सामस छा ं मोहय त ।।
बु हीन मनु य को नकृ सा ह य बना दे ता है अथात् सा ह य उनके मन
को मोह लेता है और वे माग पर चलना ारंभ कर दे ते ह। । 521 ।
।। स संगः वगवासः ।।
स संग ही वग म रहने के समान है।
क से भरे इस संसार म संत का समागम एक शीतल झरने के पास बैठने के
समान है। स संग से मनु य को शा त ा त होती है और वह धीरे-धीरे बुराई का माग
छोड़कर भलाई क ओर चलता है। । 522 ।
।। पानुवत गुणः ।।
प के अनुसार ही मनु य म गुण होते ह।
गुण का मनु य के दय से संबंध होता है। उसके मन म जैसे वचार होते ह, वे
उसके मुख पर प झलकते रहते ह। इसी लए कहा गया है क मनु य का जैसा प होता है
वैसा ही गुण होता है।
ायः मनु य के प से ही उसके भीतर के शौय, धैय, शां त, संयम आ द गुण
हो जाते ह। पु ष को भांपने म पारंगत लोग मनु य को दे खते ही उसके गुण को भांप लेते
ह। । 524 ।
।। व ासघा तनो न न कृ तः ।।
व ासघाती मनु य का उ ार करने के लए कोई ाय त नह ।
इस संसार म मनु य एक- सरे के व ास पर जीता है। जहां व ास समा त हो
जाता है वहां जीवन भर हो जाता है। म ता का संबंध भी व ास पर आधा रत है। जो
मनु य व ासघात करता है, उसको इस पाप से कसी ाय त ारा न नह कया जा
सकता। । 526 ।
।। दै वाय ं न शोचेत् ।।
जो बात दे व के अधीन है, उसके संबंध म चता अथवा सोच- वचार नह करना
चा हए।
मनु य के साथ त दन ऐसी घटनाएं होती ह जन पर उसका कोई वश नह होता।
परंतु वह यह जानते ए भी उनके संबंध म चता करता रहता है। अनेक बार मनु य कसी
काय को करने के लए स चे मन से य न करता है परंतु उसम सफलता ा त नह होती।
ऐसी थ त म मनु य को दै व के अधीन समझकर चता नह करनी चा हए। । 527 ।
।। द्गतमा छा ा य द यनायः ।।
मन क वा त वक बात को छपाकर बनावट बात करने वाला अनाय अथात्
होता है।
धोखा दे ने वाले लोग मन क ता को छपाए रखते है और केवल वाणी से
मीठ -मीठ बात करते रहते ह। कई बार उनक मीठ बात से स जन पु ष धोखे म पड़
जाते ह। लोग क इस कार क वाणी पर व ास नह करना चा हए। जो व ास
करता है वह हा न उठाता है। । 529 ।
।। बु हीनः पशाचादन यः ।।
बु हीन अथात् मूख मनु य पशाच के समान होता है।
बु हीन घृणा का पा होता है। उसी बु हीन आचरण के कारण उसक
नीचता का दशन होता रहता है। बु मान मनु य अपने हत को यान म रखकर नीच
य को याग दे ता है परंतु बु हीन से यह सब कुछ संभव नह । इसी लए
बु हीन का समाज म कोई स मान नह होता। । 530 ।
।। असहायः प थ न ग छे त् ।।
सारथी के बना या ा नह करनी चा हए।
मनु य को कसी या ा म जाते समय आ मर ा के साधन साथ म लेकर चलना
चा हए। उसे अपनी सहायता के लए या तो अपने पास वैध श रखने चा हए अथवा अपने
सहायक के साथ या ा करनी चा हए। । 531 ।
।। पु ो न तोत ः ।।
अपने पु क शंसा नह करनी चा हए।
जस कार अपनी शंसा करना उ चत नह , उसी कार गुणी पु क शंसा करना
भी पता के लए उ चत नह । पता का कत है क अपने पु को उ सा हत करे परंतु पु
के गुण का उ लेख समाज म नह करना चा हए। यह काय भी आ म- शंसा जैसा ही है जो
उपहास का पा बना दे ता है। । 532 ।
।। धमकृ ये व प वा मन एव घोषयेत् ।।
रा य के अ धका रय का क है क राजा क आ ा से लोग के हत के लए
कए गए काय को अपना न बताकर अपने वामी अथवा रा य-सं था ारा कया गया
बताय। उनका कत है क रा य म कए गये अ छे काय के लए अपने आप को
अ धकारी न मान। । 534 ।
।। राजा ां ना तलंघयेत् ।।
राजा क आ ा का कभी उ लंघन नह करना चा हए। । 535 ।
।। ना यनाय य कृपा ।।
से कसी कार क भलाई क आशा नह रखनी चा हए। । 540 ।
।। ना त बु मतां श ुः ।।
बु मान लोग के श ु नह होते।
बु मान लोग यह बात समझते ह क मनु य अपना ही सबसे बड़ा श ु और अपना
ही सबसे बड़ा म होता है। ऐसा उनके वचार के कारण ही माना जाता है। । 541 ।
।। श ुं न न दे त् सभायाम् ।।
सभा अथवा समाज म श ु क नदा नह करनी चा हए।
बु मान लोग सभा, गो ी आ द म श ु क नदा नह करते। वे गत प से
उनको अपमा नत होने पर ववश करते ह। इस कार अपमा नत होने पर वह श ुता रखने
का वचार छोड़ दे ता है।
परंतु समाज म न दत होने पर वह उसका तकार करने के लए पहले से अ धक
श ुता रखने लगता है। । 542 ।
।। आ म छ ं न काशयेत् ।।
अपनी कसी कमजोरी को उजागर न होने द।
ायः सभी जानते ह क येक मनु य म कमजो रयां होती ह परंतु उन कमजो रय
को श ु पर कट नह होने दे ना चा हए, उ ह र रखने का यास करना चा हए। । 543 ।
।। श ौ मा ाघनीया ।।
अपनी श का दशन करने के थान पर मा का दशन करना शंसनीय काय
है।
मा करना श वान् को ही शोभा दे ता है, नबल को नह । साम य होने पर भी जो
कसी पर दया दखाता है उसक ही शंसा होती है। । 544 ।
।। मावानेव सव साधय त ।।
माशील मनु य अपने सब काय स कर लेता है।
माशील मनु य म इतनी श होती है क वह अपमान करने वाले क अवहेलना
कर सकता है। धन-जन क हा न करने वाले को भी सहन कर सकता है। इस कार वह
अपने माग म आने वाली क ठनाइय क ओर यान न दे कर अपने काय म लगा रहता है।
वह न त प से अपने सब काय पूण कर लेता है। । 545 ।
।। साहसवतां यं कत म् ।।
साहसी पु ष को अपना क य होता है।
साहसी पु ष केवल अपने क क ओर यान दे ते ह। वे अस य का सदै व वरोध
करते ह। अस य का सहारा लेने वाला कभी व सनीय नह हो सकता। अस य को
स य से ही परा त कया जा सकता है। । 547 ।
।। ः कायम कुव त ।।
जो काय कल करना है, उसे आज ही कर लेना चा हए।
‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब’, वाली बात से सभी प र चत ह।
इसी लए जो आव यक कत है उनके त टालमटोल नह करनी चा हए। । 548 ।
।। सव ता लोक ता ।।
अपनी बु से लोक च र को समझना सव ता कहलाती है।
लोग के वभाव को समझ लेना ही सव ता है। बु मान लोग अपने बु बल से
घर बैठे ही संसार क सम या को समझ लेते ह। अपनी बु से स य और अस य म भेद
करते ए अपना काम भली कार स कर लेते ह। । 557 ।
।। शा ोऽ यलोक ो मूखतु यः ।।
शा को जानने वाला होने पर भी जो मनु य लोक- वहार को नह पहचान
सकता, वह पढ़ा- लखा होने पर भी मूख के समान है।
जो मनु य लोक-च र को नह समझ सकता, उसके संबंध म यही कहा जा सकता
है क वह शा को पूण प से न जानने के कारण मूख के समान है। शा - ान से मनु य
म चातुय आता है और वह मनु य को समझने म सफल भी होता है। । 552 ।
।। शा योजनं त वदशनम् ।।
यथाथ ान क ा त ही शा - ान का योजन है।
त वदशन अथात् लौ कक-अलौ कक पदाथ के यथाथ या रह य का पूण प रचय
ा त हो जाना या करा दे ना ही शा क उपयो गता है। शा से मनु य अ छे -बुरे का ान
ा त कर अपने जीवन म आने वाली क ठनाइय को सु वधापूवक हटा सकता है। । 553 ।
।। आ मा ह वहार य सा ी ।।
आ मा ही वहार क सा ी है।
य द मनु य के मन म कोई पाप नह है तो वह वहार-कुशल माना जाता है। य द
मनु य के मन म पाप है तो वह वहार-कुशल नह हो सकता। समाज म उससे घृणा क
जाती है। प है क आ मा ही वहार का सा ी होता है। इसी लए आ मा का व छ होना
अ त-आव यक है। । 557 ।
।। सवसा ी ा मा ।।
सम त ा णय म आ मा सा ी प म व मान रहती है।
स य व प आ मा इस सकल जगत् के या इस मानव के जीवन ापी सम त च र
को या तो स य होने का माणप दे कर साधुवाद दे ने या अस य मा णत करके ध कारने
के लए मानव- दय म सा ी अथात् तट थ ा बनकर बैठा है। । 558 ।
।। न यात् कूटसा ी ।।
मनु य को कपट का समथक सा ी नह होना चा हए।
मनु य को अपने जीवन का एक स ांत यह बनाना चा हए क वह झूठ का कभी
समथन नह करेगा। मनु य को सदै व स य पर ढ़ रहकर स य का ही समथन करना चा हए।
। 559 ।
।। कूटसा णो नरके पत त ।।
झूठ का समथन करने वाले लोग सा ी नरक म जाते ह।
अ ानी लोग ही झूठ बात को सच बनाने के लए गवाही दे ने का काम करते ह। इस
कार झूठ को सच बनाने वाले लोग जो लाभ उठाते ह वह उनके लए कलंक के समान
होता है और वे सदै व ख पी नरक म पड़े रहते ह। । 560 ।
।। न ाशय त समु र त वा ।।
कसी के व या उसके प म सा ी दे ने वाला कसी अ य का न तो
उ ार करता है और न नाश करता है।
कसी के प म अथवा उसके व गवाही दे ने वाला कसी भी कार से दोन
प के लए लाभदायक या हा न द नह होता। यह भु क कृपा पर नभर रहता है क
कसका क याण होगा अथवा कसका वनाश। । 561 ।
।। छ पापानां सा णो महाभूता न ।।
छपकर कये गये पाप के सा ी पंचमहाभूत पृ वी, जल, तेज, वायु और आकाश
होते ह।
छपकर कया गया पाप भी छपा नह रहता। पाप के कट होने का कारण पापी
क आ मा होती है, जसके कारण उसका पाप उसके मुख अथवा काय से कट हो जाता
है। अतः मनु य को पापी क बजाय पाप से डरना चा हए। । 562 ।
।। चोरराजपु षे यो व ं र ेत् ।।
राजा को चोर और रा य कमचा रय से रा के धन क र ा करनी चा हए।
राजा का क है क वह ऐसे नयम बनाये क जससे चोर और रा य के
अ धकारी जनता के धन का हरण न कर सक। जा राजा पर व ास करती है और उसे
अपना वामी समझती है। य द वह जा क संप क र ा नह कर सकता तो वह राजा
को भी मान लेती है। । 566 ।
।। अ हसाल णो धमः ।।
अ हसा ही धम का ल ण है।
धम का चार अ हसा से ही होता है। हसा से उसके माग म कावट पैदा होती ह।
अ हसा ेम का तीक है अथात् अ हसा को धम का तीक मानना चा हए। । 572 ।
।। सव मा यं ंशय त बा लशः ।।
मूख और नीच कसी सरे को मह व दया जाना पसंद नह करते। । 575।
।। न संसारभयं ानवताम् ।।
ानी पु ष को संसार म कसी कार का भय नह होता। । 577 ।
।। व ानद पेन संसारभयं नवतते ।।
ान पी व ान के द पक से संसार के भय भाग जाते ह।
ान पी द पक के काश के कारण ानी मनु य पाप पी अ ान म नह फंसते।
ान के काश से ानी भयमु रहते ह। । 578 ।
।। सवम न यं भव त ।।
इस संसार के स पूण भौ तक सुख और उन सुख को ा त करने के साधन सभी
अ न य ह। वे समय आने पर न हो जाते ह केवल मनु य क आ मा ही अमर रहती है। ।
579 ।
।। वदे हे दे हनां म तमहती ।।
दे हधा रय ारा अपने शरीर के त अ य धक आस होती है।
दे ह म आस मनु य का अ ान है य क दे ह न होनेवाली व तु है, अजर और
अमर तो आ मा है। इस लए पंचभूत से बने इस शरीर म असीम अ ान है। । 580 ।
।। तपसा वगमा ो त ।।
तप से ही वग क ा त होती है।
जो मनु य अपनी इं य को वश म करके अपने क पूरे करता है, उसे इस लोक
और परलोक म सुख ा त होता है। । 583 ।
व ाथ चाण य
परंतु यह सवस मत है क चाण य क आरं भक श ा गु चणक ारा ही द गई।
सं कृत ान तथा वेद-पुराण आ द धा मक ंथ का अ ययन चाण य ने उ ह के नदशन म
कया। चाण य मेधावी छा थे। गु उनक श ा हण करने क ती मता से अ यंत
स थे।
तब सभी सूचनाएं व वधाएं धम ंथ के मा यम से ही ा त होती थ । अतः धा मक
पु तक का अ ययन श ा ा त का एकमा साधन था। चाण य ने कशोराव था म ही
उन ंथ का सारा ान हण कर लया था। अब बारी उ च श ा क थी, जो उनम मंथन व
शोध क यो यता पैदा करे जससे वे अब तक ा त ान को रचना मक प दे सक व
उसका व तार कर सक।
उस काल म त शला एक व यात व - व ालय था, जो सधु नद के कनारे बसे
नगर के प म था। व व ालय म यात व ान तथा वशेष ोफेसर के प म छा
को श ा दे ते थे। त शला म श ा हण करने के लए र- र से राजकुमार, शाही
प रवार के पु , ा ण , व ान , धनी लोग तथा उ च कुल के बेटे आते थे।
त शला अब पा क तान म है। पुरात व खुदाई म यू नव सट का पूरा च उभरकर
सामने आया है। त शला म दस हजार छा के आवास व पढ़ाई क सु वधाएं थ ।
अ यापक क सं या का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। व व ालय म आवास
क , पढ़ाई के लए लास म, हॉल और पु तकालय थे। त शला के अवशेष को दे खने
के लए आज तवष हजार टू र ट, इ तहासकार तथा पुरात ववे ा आते ह।
व व ालय कई वषय के पाठ् य म उपल ध करता था जैसे भाषाएं, ाकरण,
दशनशा , च क सा, श य च क सा, कृ ष, भू व ान, यो तष, खगोल शा , ान-
व ान, समाज शा , धम, तं शा , मनो व ान तथा योग व ा आ द। व भ वषय पर
शोध का भी ावधान था।
कोस 8 वष तक क अव ध के होते थे। वशेष अ ययन के अ त र वेद, तीरंदाजी,
घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दजन से अ धक कला क श ा द जाती थी।
त शला के नातक का हर थान पर बड़ा आदर होता था।
यहां छा 15-16 वष क अव था म ारं भक श ा हण करने आते थे।
वाभा वक प से चाण य को उ च श ा क चाह त शला ले आई। यहां भी चाण य ने
पढ़ाई म वशेष यो यता ा त क । यह बात यान रखने यो य है क चाण य कु प थे व
उनका रंग भी काला था। इस लए उ ह ने अपना सारा यान पढ़ाई म क त कया। उ ह प
क कमी व ान बन कर पूरी करने क धुन सवार थी। फर एकाक छा और करता भी
या? एक काले, पहीन व नधन व ाथ को म बनाने म कसी सरे छा को च भी
नह थी।
पर सरे छा को चाण य के व ा के माण तो मलते ही रहते थे। यह बात
और थी क वह राजा-महाराजा का काल था। सर वती पु के गुण को आदर दे ने क
उदारता राजपु म नह थी।
एकाक होकर एका ता से चाण य ने अपने वषय क खूब पढ़ाई क । धा मक
ंथ का फर से मंथन करने क से अ ययन कया। उ ह ने राजनी त, अथशा , रा य
तथा सामा जक वषय पर उपल ध ंथ वा याय के लए पढ़े ।
यह प हो गया था क चाण य एक व ान बनने क राह पर थे, जो त शला
व व ालय ारा पैदा कया एक र न सा बत होने वाला था।
व ेषक चाण य
वह युग राजनी तक उथल-पुथल का था। चार ओर अराजकता फैली थी। लोग का
जीवन असुर त था। उन पर शोषण क मार पड़ती ही रहती थी।
शासक राजा नरंकुश थे, जो धनी वग व जम दार के साथ मलकर जनता पर
अ याचार करते व उनका खून चूसते थे। अ धकतर राजा के रा य म न कोई व ध-
वधान था न शास नक व था। अ धका रय व उनके का रद क मनमानी ही कानून था।
गरीब लोग त थे। चाण य वयं उसी नधन-असहाय वग से थे। अतः राजनी तक व
सामा जक दशा का व ेषण करना उनका वभाव हो गया। चार ओर घटती घटना से
भी वह श ा हण कर रहे थे।
यही काल था जब सोचते-सोचते उनके मन म एक आदश रा य, सुग ठत व था,
नाग रक सं हता तथा अथतं क प रक पनाएं ज म लेने लगी थ । उनके म त क म लंबे
समय तक वह प रक पनाएं पकती रह व प र कृत होती रह ज ह बाद म उ ह ने ंथ के
प म लखा व अमर हो गए।
इ तहास करवट ले रहा था। यूनान से एक यो ा व वजय का सपना लेकर एक
वशाल सेना के साथ पूव क ओर कूच कर चुका था। ए शया महा प के म य-पूव दे श
उसके आ मण क चपेट म आ गए थे। यु क गरम हवाएं भारत क ओर प म से आ
रही थ । कई रा य उजड़ रहे थे।
यूनान का वह दात यो ा था सकंदर जो महान कहलाया। उसक सेना वशाल थी
और उस सेना क यु प त नवीन थी जो ढ़वाद भारतीय शासक क समझ से परे थी।
यूनानी सेना एक यो म तक आकार म आगे बढ़ती थी। उनके सै नक चमचमाते कवच से
सुर त घोड़ पर बैठे आ मण करते थे। पैदल सेना लंबे भाल से र से ही श ु को ब ध
कर गरा दे ती थी। जसका भारतीय व सरे दे श क सेना के पास कोई उ र न था।
उजड़े लोग शरणाथ बनकर पूव क ओर आ रहे थे। त शला म भी शरणा थय क
भीड़ आ घुसी। व व ालय प रसर भी शरणा थय से भर गया। जस नगर म केवल
श ाथ आते थे अब वहां रोट -पानी व आ य मांगने वाले आ रहे थे।
सम या से नपटने के लए राजा ने अपने व श य क सभा बुलाई व
सम या का समाधान ढूं ढ़ा। पड़ोसी राजा भी वचार- वमश करने आए। अंत म नणय यह
लया गया क शरणा थय को नगर के बाहर एक भू म म आ य दया जाए। वे नगर म
केवल प रचय प दखाकर ही आ सकते थे, परंतु व व ालय प रसर म उनका वेश
व जत था।
इस कार चाण य ने वयं दे खा क इस कार क आपात थ त उ प होने पर
कौन से कदम उठाए जाने चा हए।
नातक बनने तक चाण य ने व ालय क श ा के साथ-साथ वयं भी व ेषक
के प म ब त कुछ सीखा।
ा यापक चाण य
नातक बनने के बाद चाण य त शला व व ालय म ही ा यापक बन गए।
एक ा यापक के प म वीकार कए जाने म कोई अड़चन नह आई।
नातक बनने के अं तम वष आने तक चाण य क व ा सब पर जा हर हो गई
थी। सभी अ यापक तथा छा उनका लोहा मानने लग गए थे। अ यापक तो उ ह समक
ही मानने लगे तथा छा अ ययन या शोध म न संकोच चाण य क सहायता लेते थे।
ा यापक के प म चाण य ने शी ही अपनी जगह बना ली तथा सरे ा यापक
को अपना शंसक बना लया। व व ालय म पढ़ाए जाने वाले वषय पर तो उनका
अ धकार था ही, वह वे अ य सामा जक, धा मक व राजनी तक वषय के भी अपनी
वल ण तभा के बल पर अ छे खासे वशेष बन गए।
छा तो उनक व ा पर मु ध थे ही। वे उनके ऐसे अनुयायी बन गए क बाद म
जब चाण य पूव क ओर थान कर गए तो कई छा उनक अ य ता म काम करने वहां
प ंच गए तथा चाण य के अ भयान म मह वपूण रोल अदा कया। भ भट् ट व पु षद
उनम मुख ह।
त शला अब तेजी से गरम हो रहा था। प म क ओर से यु क झुलसाने वाली
गरम हवाएं तूफानी अंदाज म आ रही थ । यूनानी यो ा सकंदर के घोड़ क टाप सुनाई दे ने
लगी थ । चाण य ने त शला छोड़ पूव क ओर कूच करने का मन बना लया था। उनके
दमाग म बड़ी-बड़ी योजनाएं थ एक आदश रा य था पत करने क । उन योजना को
फलीभूत होने के लए समय क दरकार थी पर त शला का तो अपना अं तम समय आ
गया था। यम ार पर द तक दे रहा था। वहां से खसकने म ही भलाई थी।
चाण य ने सु र पूव क ओर का ख कया। यहां मगध सा ा य था जसक
राजधानी पाट लपु (आज का पटना) थी। वहां का मोह चाण य के लए इस लए था, क
पाट लपु के नकट ही उस समय का महान व व ालय नालंदा था, जो त शला से
कसी सूरत कम नह था। 399 वष ईसा पूव एक चीनी घुमंतू इ तहासकार फाहयान ने वहां
क या ा क थी व पाट लपु के गुण गाए थे।
पाट लपु गंगा के कनारे बसा था। इ तहास के दौर म उसके कई नाम रहे,
पु पापुर, पु पनगर, पाट लपु और अब पटना है।
वह चाण य ने धरती के तर से काय करते-करते ऊपर उठने का मन बना लया
ता क वह धरती से जुड़ी स चाइय से भी गत प से प र चत हो जाएं। अपनी
त शला क नातकता व ा यापकता का हवाला दे ने के बजाय एक श क क साधारण
नौकरी वीकार कर ली।
मगध म धनानंद का रा य था। राजा केवल कर लगाकर धन उगाना व अपना
खजाना भरना जानता था। जनता खी थी। पर उसका मं ी समझदार था। मं ी अमा य
शकटार ने राजा को समझाया क केवल लूट-खसोट से काम नह चलेगा। उ ह कुछ धन
लोक क याण तथा पुर कार प म बांटकर जनता का आ ोश कम करना होगा। बात राजा
क समझ म आ गई। उसने कलाकार , व ान तथा लोक क याण काय के लए अनुदान
दे ने आरंभ कए। इस बीच चाण य अपनी यो यता से थानीय लोग के दल म घर कर चुके
थे। सामा जक काय म भी उनक च थी। वे सामा जक व शास नक व था सुधारना
चाहते थे। उ ह ने मुख लोग को सुझाया क राजा ारा दए अनुदान का पयोग हो रहा
है य क उपयु व था नह है। इसके स पयोग के लए व ान व मुख य क
एक स म त होनी चा हए।
बात सबको जंच गई। व ान ने मलकर एक संघ बनाया। चाण य को अ य
बनाने म कसी को भी आप नह ई। कुछ अ धका रय ने अनुदान क रा शयां संघ को
द । चाण य के नदशन म उनका अ यंत रचना मक उपयोग आ, जसक सबने शंसा
क।
संघ के कुछ सद य ने सुझाव दया क चाण य को वयं राजा धनानंद से मलना
चा हए ता क अ धक अनुदान क व था हो सके। उ ह यह भी आशा थी क राजा
चाण य क यो यता को दे खते ए उ ह उ चत दा य व सौपगे। चाण य तैयार हो गए।
ऐसे समय म चाण य को आचाय शकटार से मलने का वचार आया। वे चाण य के
सहपाठ व म रह चुके थे। दोन त शला म श ा हण कर चुके थे। श ा पूण करने के
प ात आचाय शकटार पहले नंद सा ा य म मं ी बने फर महामं ी। इसी लए तो चाण य
ने पहले नचले तर से काय शु कर अपनी यो यता स करने क को शश क थी। वे
ब त वा भमानी थे। वे पहले ही शकटार से मलते तो सभी को यह लगता क चाण य
अपने म को सीढ़ बनाकर ऊपर चढ़ गए और शायद उनक यो यता का सही मू यांकन न
होता। परंतु अब मलना आव यक था य क वे वदे शी आ मणकारी सकंदर क चाल व
खतर से मगध स ाट को सावधान करना चाहते थे।
एक संदेशवाहक के साथ चाण य ने प भेजकर आचाय शकटार से नजी प से
मलने क इ छा जताई। शकटार को अपने पुराने सहपाठ क पाट लपु म उप थ त से
स ता ई। वैसे संघ के काय का योरा पाकर उ ह कुछ-कुछ अनुमान तो पहले ही हो गया
था क शायद उसका संचालन-अ य चाण य उनका त शला श ा ा त के दन का
म ही हो सकता है। वह यह भी जानते थे क वा भमानवश वह म उनसे सहायता नह
लेना चाहेगा। शकटार ने सहष चाण य को अपने घर आने का नमं ण दे दया।
चाण य आए तो शकटार उनसे पुरानी आ मीयता से मले और भीतर ले जाकर
आदरपूवक बठाया। कुशल ेम के प ात चाण य ने भारत के प मी भाग के रा य क
दशा का वणन कया क कन प र थ तय म उ ह त शला छोड़कर पूव क ओर आना
पड़ा। उ ह ने यूनानी आ मणकारी सकंदर के अ भयान के खतर क चचा भी क ।
शकटार ने पूछा, “जरा व तार से बताइए क प मी भाग म या आ? और यह
सकंदर या मुसीबत है?”
चाण य ने लंबी सांस लेकर उ र दया, “अमा य! वही पुरानी कहानी बार-बार
दोहराई जा रही है। हमारे शासक आपस के छोटे -छोटे कलह म उलझे रहते ह और वदे शी
आ मणका रय के लए अपने ार खोल दे ते ह। इस बार यह वदे शी आ मणकारी कोई
साधारण नह है। वह यूनान दे श का महायो ा स ाट है। जसने व वजय क ठान
ली है और एक अ त वशाल सेना लेकर उसी अ भयान पर पूव क ओर कूच कर चुका है।
उसके सै नक नए कार के कवच व आयुध से स जत ह। उसक सेना या म तक
संरचनाब होकर वार करती है और यु क ऐसी प तय का योग करती है जनका
हमारी सेना को ान ही नह है। वह अपने सामने आने वाली सारी सेना व रा य को
र दता आ हमारी सीमा तक आ प ंचा है। उसक श के सामने पारस के महान सा ा य
भी टक नह पाए। म का पतन हो चुका। शक तान, कंधार और बख या ढह गए।
ह कुश पवत पार कर उसने हमारी भू म पर अपना पैर रखा।”
“तो या सकंदर ने त शला पर वजय ा त कर ली?” शकटार ने व मत और
च तत वर म पूछा।
“आचाय! आपको उस व ाथ क याद है जसका नाम आं भक था, जब हम
त शला म व ा हण कर रहे थे?”
“मुझे कुछ मरण नह है।” शकटार ने याद करने का य न करते ए कहा।
“उसक कहानी का सकंदर के संदभ म ब त मह व है।” ऐसा कहकर चाण य ने
शकटार को आं भक क कहानी सुनाई।
आं भक क कथा
“त शला गांधार रा य क राजधानी था। गांधार रा य सधु व झेलम न दय के
बीच का दे श था। सधु नद के प म क ओर का े प मी गांधार कहलाता था, जो
पृथक वतं रा य था। गांधार एक सुखी रा य था और त शला व व ालय उसका
गौरव था। इसी कारण सरे रा य म उसका नाम स मान से लया जाता था।
झेलम के पूव क ओर पु का केकय रा य था। त शला के यश व स के
कारण वह गांधार रा य से जलता था। पु एक मह वाकां ी राजा था। उसने अपने आस-
पास के कई छोटे रा य को साम-दाम व दं ड क नी त अथवा यु म परा त कर केकय म
जोड़ अपना व तार करने का अ भयान चला रखा था। ल य केकय को सा ा य बनाकर
राजा से स ाट बनना था। पु के पास चतुर व धूत मं य का दल व यो य सेनाप त था जो
पु के व तारवाद को साकार प दे रहे थे। इस दल ने यो य गु तचर का एक अ त
भावशाली तं बना रखा था, जो श ु दे श म कह भी घुसपैठ करने म स म था। मं ी दल
के मुख योजनाकार मु यमं ी इं द थे।
सभी जानते थे क राजा पु क गांधार रा य पर है। परंतु गांधार छोटा-मोटा
अश रा य नह था। उसे ह थयाने के लए द घकालीन योजना चा हए थी। इं द के
गु तचर ने सूचना द क गांधार के सेनाप त सहनाद नीरस एकाक जीवन तीत कर रहे
ह। कुछ वष पूव उनक ेयसी-प नी का दे हांत हो चुका था। अब उनका वधुर जीवन सूना
था। चतुर इं द को यहां अपना पच लगाने का अवसर नजर आया।
उनके गु तचर दल म एक अ त सुंदर युवती थी जो पहले भी कई षड् यं म
सफलतापूवक भाग ले चुक थी। इं द ने उसी युवती को वधुर सहनाद के जीवन म
घुसपैठ करने का भार स पा।
उस गु तचर यौवना को अपने काय म कोई क ठनाई पेश नह आई। कुछ ही समय
म सहनाद उसके ेम जाल म बुरी तरह फंस गए। वह उस यौवना के इशारे पर कुछ भी
करने को तैयार थे और अपने कत को भुलाकर उसी के ेमरस म डू बे रहने लगे। आ खर
वष बाद उनके जीवन म बहार जो आई थी। वह यौवना धीरे-धीरे और गु तचर को ले आई
व सरे अ धका रय और मं य को भी उ ह ने फांस लया।
गांधार का अ धकतर उ च शासन तं केकय के गु तच रय के साथ भोग वलास म
डू ब गया। गु तचर ने पूरे शासन को अपंग बना दया।
केकय के महामं ी इं द को यह समय आ मण के लए उपयु लगा। उ ह ने
सेनाप त को कायवाही करने का संकेत दे दया। केकय क सेना ने गांधार पर धावा बोला।
गांधार ारा तरोध का ही नह था य क वहां का सारा तं केकय के गु तचर के
जाल म पहले ही फंस कर न य हो चुका था। केकय सेना ने आसानी से गांधार पर क जा
जमा लया। गांधार नरेश बंद बना लए गए।
केकय नरेश पु ने राजनी तक रद शता का प रचय दे ते ए गांधार नरेश को केवल
केकय सा ा य का आ धप य वीकार करने व केकय के त न ध के प म शासक बने
रहने का ताव दया। गांधार नरेश ने तुरंत ताव वीकार ही नह कया अ पतु राजा पु
क उदारता से गद्गद हो गए व उनके कायल बन गए। यह एक म ता सं ध थी जो वजेता
ारा व जत से क थी। जब पु वयं त शला पधारे तो गांधार नरेश ने उनका भ
वागत कया। पु के मं य का वामी क भां त आदर-स कार कया गया।
परंतु गांधार के युवराज आं भक को यह सब अ छा नह लगा। उसे अपने पता का
श ु के सामने गड़ गड़ाना ब त खला। उसे ोध भी आया क एक धोखेबाज श ु को इस
कार स मान क से कैसे दे खा जा रहा था! उसे तो पु एक सांप क तरह नजर आ
रहा था जसने गांधार को डस लया था। आं भक का आ ोश इतना ती था क उसने मन
ही मन पु से बदला लेने का मन बना लया। अपने पता को पु का शंसक बना दे ख
उसका मन ोभ से भर गया था।
गांधार के शासन तं को कर उसे र दने वाले का त शला म जय-जयकार
हो रहा था। आं भक का तन-मन तो पु को दे खते ही जलने लगता था।
समय अपनी ग त से बढ़ता रहा।
गांधार क पराजय व उसका पड़ोसी रा य पर आ त होना त शला व व ालय
पर कोई कु भाव न डाल पाया। व व ालय म पढ़ाई पूववत चलती रही। बाहरी प रवतन
व हलचल से व ालय को जैसे कोई लेना-दे ना न हो। श क श ा दान करते रहे व छा
अपना-अपना पाठ् य म पढ़ते रहे ता क नयत समय पर वे नातक बन सक।
सच तो यह था क त शला क जनता क जीवनचया म भी कोई अंतर नह आया।
शासन भी लगभग पहले जैसा ही था। कोई अंतर था तो केवल यह क गांधार नरेश अब
कसी सरे के त न ध थे, वयंभू शासक नह । और यह त य एक अह य व तु थी—
शासक के बीच का मनोवै ा नक समीकरण—जो आम आदमी के जीवन को नह छू ता था।
परंतु राजकुमार आं भक तो आदमी नह था। वह उस मनोवै ा नक समीकरण का
एक भाग था। पराजय क याद भर से उसे आ म ला न होने लगती थी। राजकुमार उस समय
त शला व व ालय म श ा हण कर रहा था। उसके म त क पटल से राजा पु का
अहंकार से भरा चेहरा मटाए न मटता था जो शायद तशोध पूरा होने पर ही मटे गा।
राजकुमार आं भक का मन अब पढ़ाई म नह लगता था।
बस अपने क म बैठा वह कुढ़ता रहता। पु से बदला लेने क नई-नई योजनाएं
बनाता और उसके सपने उन योजना को वकृत प म साकार करते। उसक हर सांस म
तशोध क फुफकार थी। उसके लए श दकोष के सारे प े कोरे हो चुके थे, केवल दो ही
श द उसम बचे रह गए थे—भयानक तशोध। कभी-कभी लगता क वह सचमुच व त
हो गया है।
यही वह काल था जब त शला म चाण य व शकटार अपने अ ययन के अं तम
वष म थे। शकटार ने आं भक क ओर यान नह दया परंतु चाण य ने गौर से आं भक क
मान सक दशा का अ ययन कया, य क वह राजनी तक तथा सामा जक थ तय का
व ेषण कर रहा था और आं भक राजनी तक प र थ तय का एक उदाहरण था।
आं भक कभी-कभी भगवान से बदला लेने का अवसर दान करने क ाथना
करता य क वही अब उसक तशोध योजना का सहारा था। उसके पता गांधार नरेश व
उनके मं ी तो राजा पु के भ बन गए थे। उनसे आं भक को कोई आशा नह थी। शायद
भगवान ने आं भक क ाथना सुनने का नणय कर लया था, तभी तो आं भक क इ छा
पूरी करने सकंदर यूनान से सेना लेकर चल पड़ा था।
राजकुमार आं भक ने भी सुना क यूनान का महायो ा सकंदर व वजय
अ भयान पर एक वशाल अपराजय सेना लेकर भारत दे श क सीमा के नकट आ प ंचा
है। कोई सकदर का तशोध नह कर पाया था। सकंदर नामक तूफान के आगे बड़े-बड़े
सा ा य खोखले पेड़ क तरह उखड़-उखड़ कर गर रहे थे। उसे रोक पाना कसी के
साम य क बात नह थी।
उसने यह भी सुना क जो राजा वयं पराजय वीकार कर सकंदर क शरण म
जाता था, उससे वह म वत वहार करता था व आदरपूवक य दान करता था। जो
उसके सामने नह झुका वह समूल न कर दया जाता था। सकंदर क ोधा न म उस
अ भमानी को भ म होना पड़ता था। केवल शासक ही नह उसक जा को भी फल
भुगतना पड़ता था जसे यूनानी सै नक गाजर-मूली क तरह काट दे ते थे। वे यूनानी सै नक,
जो सदा चमचमाते जरा ब तर म सुस जत हो दमकते घोड़ पर सवार रहते।
ऐसे दे श क अभागी जनता भयभीत होकर सरे दे श म आ य लेने भाग जाती
थी। सकंदरी सेना के आगमन क अफवाह भर से क बे खाली हो जाते थे। ऐसे ही शरणाथ
एक बड़ी सं या म त शला म भी आ घुसे थे। तब चाण य ने वयं दे खा था क त शला
शासक ने कस कार उनके रहने व भोजन क व था क थी। शरणाथ सम या भारतीय
रा य के लए एक नए कार क चुनौती थी। तब चाण य अं तम नातक वष म थे।
जब भारतीय शासन व था के संचालक शरणाथ सम या का हल खोजने के लए
वचार- वमश कर रहे थे उसी समय सकंदर क सेना ने ह कुश पवत पार करके भारत क
भू म पर अपना पैर रख दया था। अब उसके सामने भारतीय रा य क शृंखला थी, जसे
उसे तोड़ना था। यह एक वडंबना ही थी क गांधार नरेश व उनके मं ी जब सकंदर के
आगमन को अ भशाप मानकर वचार- वमश कर रहे थे तब उनका ही राजकुमार आं भक
सकंदर को वरदान मानकर उसम अपनी सम या का समाधान खोज रहा था।
एक- सरे तर पर भी प र थ त बदल रही थी। रा य के शासक पर राजकुमार
आं भक का भाव बढ़ता जा रहा था। मं ीगण तथा अ धकारी अब राजकुमार का आदर
करने लगे थे। कारण प था। राजा ब त बूढ़े हो चले थे और ल ण साफ नजर आ रहे थे
क वे अ धक दन जीने वाले नह । आं भक का सहासन पर बैठना अ धक र क बात नह
रह गई थी। सभी को यह महसूस हो गया था क राजकुमार आं भक का व ास जीतने म ही
उनका भ व य सुर त है। राजकुमार आं भक से कोई भी संबंध नह बगाड़ना चाहता था।
कई अ धकारी तो सीधे राजकुमार से आदे श लेने लगे थे और उसका पालन भी करते य द
वह वतमान व था के ब त तकूल न हो तो।
समय को भांप कर कई युवा राजकुमार क चापलूस मंडली बना चुके थे व नरंतर
यास करते थे क वे आं भक को घेरे रख। वे राजकुमार म शंसा यो य नई-नई खू बयां
ढूं ढते रहते और गुणगान करते। चढ़ते सूय को सभी णाम करते ह। आं भक अब पहले
जैसा असहाय नह महसूस कर रहा था। उसम नया आ म व ास भरता जा रहा था और उसे
अपनी योजना अब यादा साथक नजर आने लगी थी।
चापलूस बड़े कांइयां होते ह। वे अपने वामी के मन क बात र से ही सूंघ लेते ह।
वे जान गए थे क उनके राजकुमार सकंदर के आ मण को सकारा मक से दे खते ह
और राजा पु से बदला लेना उनका सव च ल य है। अतः वे सकंदर महान के गुण गाने
लगे। सकंदर को एक अपूण यो ा सा बत करने लए र- र से कौ ड़यां ढूं ढ कर लाते और
उससे मै ी करने के लाभ पर हर कार क दलील दे त।े
एक कहता, “राजकुमार! हमने अपनी त शला म आए शरणा थय को दे खकर
जान लया क सकंदर से ट कर लेने वाल का या प रणाम होता है। उससे उलझने वाले
कतने मूख थे! अपनी जा को बरबाद कर दया। हम सकंदर से मै ी कर ल तो कम से
कम हमारी जा को ऐसे दन नह दे खने पड़गे। यह तो आपक रद शता है क आपने
पहले ही उ चत माग चुन लया। अब हमारे गांधार रा य के उ ार होने म मुझे जरा भी संशय
नह है। ध य हो राजकुमार!”
सरा लाल लोहे पर चोट करता, “एक बार हमारी सकंदर से मै ी हो जाए तो हम
अ त बलशाली हो जाएंग।े जन राजा ने हमारा अतीत म अपमान कया है, हम उनसे
तशोध ले सकगे और हम तशोध लए बना नह रहगे।”
आं भक सर हलाकर सहम त कट करता और कहता, “वह तो ठ क है, हम
जानते ह। पर हम करना या है और कैसे? यह तो कोई अनुभवी मं ी ही बता सकता है।
यह मै ी का वषय व ध- वधान से ही तो संभव होगा।”
“उसका बंध तो कया जा सकता है। कोई भी मं ी हमारा मागदशन करेगा।
आपक सेवा कौन नह करना चाहेगा?” चापलूस ने आं भक को आ त कया और जोड़ा,
“पु ने जो आपका अपमान कया है, उसका बदला तो लेना ही होगा।”
“ले कन या मेरे लए सकंदर केकय पर आ मण करेगा?” आं भक ने संदेह
कया।
“वह तो अपने वाथ के लए केकय पर आ मण करेगा। हमारी सेना तो यूना नय
क सहायता करेगी। सेना समय पर पु पर घातक वार करेगी। वामी, यह तो हम जानते ही
ह क सकंदर व वजय अ भयान पर नकला है। वह ह कुश पवत पार कर हमारे दे श
तक आ प ंचा है और पूव क ओर जाने के लए उसे केकय, काठगण, शु म, मालवा होते
ए हमारे रा य से गुजरना होगा। इस कार केकय पर तो उसे आ मण करना ही होगा।
म दे श होने के कारण केकय पर आ मण म हम उसक सहायता करगे। हमारी सहायता
वह स ता से वीकार करेगा य क उससे उसके सै नक क त कम होगी। उसे आगे के
यु के लए अपनी सेना बचाए रखनी है। इसम उसका अपना ही लाभ है। लगे हाथ हमारा
काम हो जाएगा। यूनानी सेना क सहायता से हम यु म पु को सहज ही परा त कर दगे।
ऐसा मेरा पूण व ास है।”
यह सुनकर आं भक स आ। उसने सर ऊपर-नीचे छपकली क तरह हलाकर
चापलूस क कथनी क सराहना क । न संदेह वह चापलूस कुछ-कुछ बु तो रखता ही
था। बात सच भी नकली। एक मं ी ने राजन यक परंपरा का वणन कया। उसी अनुसार
आं भक ने अपना त सकंदर क ओर पठाया, जो उस समय प मी गांधार क सीमा पर
पड़ाव डाले था। प मी गांधार क राजधानी पु करावली था सधु नद के उस पार। उस दे श
पर राजा ह ती का रा य था।
आं भक का त सकुशल सकंदर क छावनी म प ंच गया और उसने अपना
प रचय दे कर सै नक को अपने आने का उद्दे य बताया। सै नक के नायक ने उसे स ाट
सकंदर के खेमे म प चा दया। सकंदर आं भक का संदेश पाकर स आ। एक और
रा य बना यु लड़े उसक झोली म आ गरा था।
उसने तुरंत अपने दो राजनी तक त आं भक के त के साथ त शला भेजे ता क
सं ध क ल खत परेखा तैयार क जा सके। आं भक के त ने राजकुमार का प रचय
यूनानी राजन यक से कराया। आं भक ने उसका उ साह के साथ वागत कया तथा
अ त थगृह म उनको आदरपूवक ठहराया।
रात को यूनानी राज त तथा आं भक व उनके सलाहकार के साथ मं णा क म
सं धवाता आरंभ ई। अब तक अ धकतर मं ी राजकुमार के खेमे म शा मल हो गए थे, वे
भी वाता म स म लत ए। कुछ सेनानायक भी उप थत थे। सं ध क परेखा औपचा रक
प से तय होने लगी।
इस बीच कसी व त सै नक ने गांधार नरेश को महल प रसर म यूनानी सै नक
क उप थ त क सूचना द । श ु सै नक के महल म होने क बात से नरेश च के। काफ
समय वह महल व दरबार म सं द ध सी लगती ग त व धयां दे ख रहे थे जनसे षड् यं क
शंका होने लगी थी। सूचना के अनुसार यवन सै नक राजकुमार क ओर के भाग क ओर
जाते दे खे गए थे। नरेश का माथा ठनका।
वयं जांच करने के उद्दे य से वे महल के उसी भाग क ओर गए जधर राजकुमार
आं भक के क थे। नरेश तो यवन के व पु सेना के साथ मलकर ूह रचना क बात
सोच रहे थे और इधर कोई यवन से सांठ-गांठ कर रहा था। कौन? उ ह समझ नह आ रहा
था। यह सब या हो रहा था? उनका पु आं भक उनसे र- र रहता था। मं ीगण पहले क
भां त उ सा हत नह थे। नरेश को ऐसा लगने लगा था क वे अपनी बात खुलकर कहने से
हचकने लगे थे या कुछ ऐसा आभास मलता था जो वह कहते थे वह उनके मन क बात
नह होती थी।
राजकुमार अपने शयनक म नह थे और क भी खाली थे। हां, मं णा क म
कुछ संवाद हो रहा था। नरेश ने मं णा क का ार खोला तो भौच का रह गए। भीतर
राजकुमार, कुछ सेनानायक व उनके अ धकतर मं ी बैठे यवन त से मं णा कर रहे थे।
प था क कोई षड् यं रचा जा रहा था।
नरेश ने अपनी बूढ़ थरथराती आवाज म कहा, “यहां या हो रहा है? यवन के साथ
यह कैसी मं णा चल रही है? मुझे इसके बारे म य नह बताया गया?”
नरेश के अचानक आ धमकने से मं ीगण व सेनानायक सकते म आ गए थे। उ ह
सांप सूंघ गया था। कोई कुछ नह बोला। राजकुमार आं भक ने थ त को संभाला। वह
खड़ा आ व अपने पता के पास जाकर बोला, “ पताजी। यह कोई अनु चत काय नह हो
रहा है। आप चता न कर। हम महान यूनानी स ाट सकंदर के साथ मै ी सं ध क प रेखा
तैयार कर रहे ह ता क यु क वभी षका क गाज हमारे रा य पर न पड़े। मने आपको
इसके बारे म सू चत इस लए नह कया य क आपका वा य ठ क नह है और संभवतः
नए युवा क नई प र थतय का ठ क से आकलन करने के लए युवा कोण क
आव यकता है।”
गांधार नरेश का शरीर आवेश म कांप उठा, “म अभी इतना वृ नह आ ं। सारे
षड् यं समझ सकता ं। हम यवन से कोई सं ध नह चा हए। इनको यहां से नकाल
दो। कह दो क हमारे रा य म सेना लेकर आए तथा हम तलवार के साथ वागत करने का
अवसर द।”
यवन राज त भौच क रह गए और अपमा नत भी अनुभव कर रहे थे। उ ह समझा-
बुझा कर मायाचना ारा शांत कया गया। उ ह महल से नकाला नह गया अ पतु
अ त थक म ही रखा गया। बाद म राजकुमार ने अपने समथक के साथ गु त मं णा क ।
इसके बाद कोई ठ क-ठ क नह जानता या आ। सुबह गांधार नरेश अपने
शयनक म मृत पाए गए। उनके शरीर पर कुछ घाव थे। कसी म घाव के कारण के बारे म
पूछने का साहस नह था। नरेश को मृत घो षत कर उनका व धपूवक दाह सं कार कर
दया गया।
आं भक राजगद्द पर बैठे। यूनानी राजन यक ने स ाट सकंदर क ओर से
आं भक को पूव गांधार के महाराजा के प म तुरंत मा यता दे द । आनन-फानन म मै ी
सं ध को अं तम प दे दया गया तथा सकंदर क वीकृ त के लए भेज दया गया।
राजन यक म से एक सकंदर के राज त क है सयत से त शला म ही जमा रहा।
जब यह सब घटना म चल रहा था तो चाण य त शला व व ालय म नातक
बनने के बाद अ यापन काय कर रहे थे। राजनी तक घटना म पर उनक नजर रहती थी।
वशेषकर सकंदर के आने के बाद अ धक भा वत तथा चता त हो गए थे। जो कुछ चार
ओर घट रहा था उनके लए ख था। थ त असहनीय हो गई थी व उ ह ने त शला से पूव
क ओर थान करने का मन बना लया था। आं भक व सकंदर के बीच ई मै ी सं ध से
उ ह ती आघात लगा था।
जाने से पहले उ ह ने अपने म व व त छा से कहा, “ सकंदर एक यवन
आ ांता है। वह वदे शी जीवन, धम व सं कृ त का चारक है। वह अ त श शाली, ू र
शासक व ब त चतुर है। भारत दे श के नरेश व शासक को म बनाकर बना यु लड़े
वजय ा त करता जा रहा है। हमारे नरेश इतने वाथ , कूपमंडूक, ई यालु तथा झगड़ालू ह
क एकजुट होकर वदे शी आ मणकारी का सामना करने के बजाय वे या तो उसके चरण
म सा ांग बछ रहे ह अथवा अकेले सामना कर धूल चाट रहे ह। कह कोई आशा क करण
नह है।
मेरे लए अपने वै दक मू य का वनाश कया जाना दे खना सहनीय नह होगा। मने
त शला म आए शरणा थय से वाता क है। उ ह ने मुझे बताया क सकंदर व जत दे श
म कस तरह अपने सै नक से सबकुछ न करवा दे ता है। मेरे पास इतना समय यहां नह है
क नरेश को अपनी बात समझा सकूं क सकंदर से नपटने का एक ही माग है, वह है
भारतीय नरेश का एक होकर आ ांता को मुंहतोड़ जवाब दे ना। उनम इतनी बु नह है
क वे ठ क से समझ सक क सकंदर हमारे लए कतना भयंकार अ भशाप है। उनम से
आं भक जैसे कई ह, जो उस म अपना हत खोज रहे ह ता क आपसी तशोध पूरा कर
सक व एक- सरे को नीचा दखा सक। इन सबसे मुझे घोर मान सक लेश होता है। म इस
आशाहीन अंधकार से नकलना चाहता ं। मुझे यहां से थान करना ही होगा।”
“परंतु आचाय, आप जाएंगे कस दशा म?” एक म ने पूछा।
चाण य ने उ र दया, “मने मगध क राजधानी पाट लपु जाने का न य कया है
तथा प वहां का नरेश धनानंद , लोभी और कामुक बताया जाता है। म य न
क ं गा क पूव भारत के रा य अपनी श यां मगध सा ा य क वशाल सेना म मलाकर
एक संग ठत श बन व सकदर का वनाश कर। वहां तक प ंचने म सकंदर को समय
लगेगा। उसी अंतराल का म उपयोग करना चाहता ं। अगर परमे र क दया रही तो म
सफल हो जाऊंगा और वदे शी भाव न हो जाएगा।”
इस कार, सकंदर के त शला प ंचने से पहले ही चाण य वहां से रवाना हो गए।
त शला से चाण य केकय दे श गए जहां आचाय इं द ने उनका वागत कया। इं द
भी त शला व व ालय म ही नातक थे। चाण य ने इं द को सूचना द , क कैसे
गांधार अब उनके भाव े म नह है। वह का नरेश आं भक सकंदर से जा मला है।
उ ह ने केकय रा य पर सकंदर के आ मण के बारे म चेताया। उ ह ने यह भी सुझाव दया
क केकय को आस-पास के रा य के साथ मल कर संयु सेना ग ठत करनी चा हए ता क
वे यूनानी सेना का भावशाली तरोध कर सक व सकंदर को पाठ सखाएं।
आचाय इं द ने चाण य को आ ासन दया क वह उनके मू यवान सुझाव को
महाराज पु तक प ंचा दगे व वयं भी उसी मत का समथन करगे। हालां क इं द ने कहा
क समय ब त कम रह गया है। राजा को एक मंच पर लाने व आपसी मन-मुटाव भुलाने
पर राजी करने म वष का समय चा हए और स य यह भी था क दो दे सी वरोधी राजा
का मेल कराने के थान पर एक कु े और ब ली को म बनाना अ धक सरल था।
चाण य पूव क ओर व भ शासक को सकंदर के आ मण के व चेतावनी
दे ते ए चलते गए।
इस बीच राजा आं भक से सं ध होने के बाद सकदर पूव क ओर कूच करने पर
उतावला हो गया। उसने प मी गांधार के राजा ह ती को यूनानी सा ा य का भाग बनने का
नमं ण दया। ऐसा न करने पर यूनानी सेना का वार झेलने के लए तैयार हो जाने क
चेतावनी भी द ।
प मी गांधार का राजा ह ती एक वा भमानी शासक था। उसने झुकने से इनकार
कर दया और सकंदर को यु का योता दे दया। सकंदर क सेना क एक टु कड़ी ने
पु पावली पर आ मण कर दया। यूनानी वजय लगभग तय थी। राजा ह ती क छोट -सी
सेना यूनानी सेना के सामने या टकती? भारतीय सै नक ने पहली बार वदे शी सेना को
नए आयुध के साथ या म तक ूह रचना म आ मण करते दे खा। ह ती के सै नक
वीरतापूवक लड़े परंतु शी ही यूनानी उन पर भारी पड़ने लगे।
यूना नय ने राजा ह ती को बंद बनाना चाहा परंतु ह ती ने लड़ते-लड़ते ाण दे ना
अ धक ेय कर समझा। पु पावली पर वजय का सकंदर ने शानदार उ सव मनाया। उ सव
म राजा आं भक को मु य अ त थ बनाया गया। यूनानी सेना ने आं भक को पं ब होकर
सलामी थी। सकंदर ने उसे बराबर के राजा का थान दया व उसके साथ म वत वहार
कया। इस आदर-स कार से आं भक गद्गद हो गया। उसे सपने म भी आशा नह थी क
यूनानी स ाट उसे इतना स मान दे गा। वह सकंदर का दय से कृत हो गया। यह सकंदर
क एक राजनी तक चाल थी। वह सरे राजा व नरेश को संदेश दे रहा था क सकदर के
सामने नतम तक होने म कतना बड़ा स मान है। जो उसके पास आएगा वह म ता पाएगा
और यु के थान पर आदर का लाभ पाएगा।
सकंदर ने आं भक के चाचा को प मी गांधार का ‘सटराप’ (गवनर) नयु कया
और आं भक को एक और कृपा से ध य कर दया। सकंदर के कृपापा बनने के महान
लाभ का एक और उदाहरण लोग ने दे खा, इसका सरे राजा पर अनुकूल भाव पड़ा।
यह भी यूनानी यो ा क तु प चाल थी। सकंदर कूटनी त का भी मंजा आ खलाड़ी था।
आं भक को तो यह भी आशा होने लगी क सकंदर भारत से लौटते समय सारे व जत े
का शायद उसे स ाट ही घो षत कर दे !
आं भक सकंदर और उसक सेना को एक जुलूस बनाकर उ सव मनाता आ
त शला ले आया। दरबार म सकंदर का शाही वागत कया गया तथा उसक वीरता व
उदारता क गुणगाथा गाई गई। त शला क मधुशालाएं तथा मनोरंजन गृह यूनानी सै नक
के लए खोल दए गए। वे यौन ड़ा शाला म जी भर कर मौज-म ती मना सकते थे।
त शला यवन सै नक का ड़ांगन बन गया।
सै नक तो आमोद- मोद म त हो गए। सकंदर के साथ आय सा ह य, कला
तथा सं कृ त के वशेष व ान भी आए थे। सकंदर ने उनसे भारतीय स यता को यूनानी
स यता के भाव म लाने के उपाय को सुझाने का आदे श दया।
सकंदर व उसके व ान ने त शला व व ालय क श ा प त तथा पाठ् य
पु तक का भी अ ययन कया। उ ह ने त शला के आचाय चाण य से मलने क इ छा भी
कट क । वे चाण य के बारे म ब त कुछ सुन चुके थे। उ ह यह जानकर काफ नराशा ई
क आचाय चाण य त शला से थान कर चुके ह। वा तव म चाण य के थान करने
का कारण ही सकंदर का आगमन था। यह बात यवन नह जानते थे। आचाय चाण य से
बाद म भ प र थ तय म उनका सामना तो होना ही था।
पु (पोरस) के साथ यु
ी म ऋतु का अंत हो चुका था। आकाश म बादल क टु क ड़यां वषा ऋतु का
संदेश लेकर आ रही थ । केकय रा य पर यवन के आ मण का खतरा मंडरा रहा था।
एक शाम यवन सेनानायक ने यवन सै नक को बताया क उ ह रात को झेलम नद
पार करनी है। स ाट सकंदर ने केकय पर आ मण करने का आदे श दे दया था। केकय के
राजा पु ने सकंदर का आ धप य वीकार करने से इनकार कर दया था। रात को हजार
यवन ने घोड़ पर सवार होकर नद पार क और केकय दे श म घुस गए।
पु क सेना कसी और ही थान पर यवन के नद पार करने क ती ा कर रही
थी। वह यवन क छल नी त से अन भ थी। यवन ने ठ क उनके सामने सरे तट पर ब त
सी नाव एक कर रखी थ , यह आभास दे ने के लए क सकंदर क सेना वह से नद पार
करेगी। परंतु यवन ने उस थान से काफ र एक थल को नद पार करने के लए पहले ही
चुन रखा था। वहां नद का पाट ब त चौड़ा था व पानी क गहराई कम। रात के अंधेरे म भी
अ ारोही सरलता से नद पार कर सकते थे और यही आ भी।
केकय सेना को छले जाने का पता भोर म ही लग गया था, जब उस थान से र
नद के घाट पर यवन सै नक क पं ब टु क ड़य का भारी जमावड़ा उ ह नजर आया।
पर अब या हो सकता था। बना यु कए हार मानने का ही नह था। केकय सै नक
मरने-मारने क ठान चुके थे। दोन सेनाएं एक सरे पर टू ट पड़ । पु एक हाथी पर सवार
होकर अपनी सेना का संचालन कर रहे थे। यवन अ ारोही सै नक के पास लंबे बछ तथा
जंजीर से लटकते कांटेदार धातु के गोले थे। बछ और गोल क मार से पु क सेना पर
भारी मार पड़ने लगी। केकय सै नक श ु के नकट भी नह प ंच पा रहे थे। र से ही बछ
उ ह ब ध डालते अथवा गोले कपाल या कर दे त।े यवन इस तरह पं ब थे जैसे अभे
मानव द वार खड़ी हो गई हो। उनके शरीर कवच के पीछे सुर त थे।
केकय सेनाप त ने अपने सै नक क दशा दे खकर हा थय को लाने का आदे श
दया। इस बीच आं भक क सेना ने भी एक ओर से मोचा संभाल लया तथा केकय सेना पर
वार करने लगी। केकय सै नक एक हजार हाथी ले आए और उ ह अपने सामने खड़ा कर
दया। अब वे हा थय क बगल व उनक टांग के पीछे से यवन तथा आं भक क सेना पर
तीर वषा करने लगे। इससे यवन च तत हो गए। यवन सेना नायक ने मं णा क व नई यु
नी त को अपनाया गया। आं भक क सेना को र से हा थय पर बाण छोड़ने के लए कहा
गया। वयं यवन ने अपने बछ हा थय पर फके। तीर व बछ क मार से आहत हाथी
चघाड़कर पीछे मुड़े व केकय सै नक को कुचलते ए पलायन कर गए।
केकय सेनाप त ह भ रह गया। उसे समझ ही नह आ रहा था क बचे खुचे
सै नक का वह कैसे मनोबल बढ़ाए। वे प त हो चुके थे। यवन व आं भक के सै नक ने उ ह
आगे आकर मारना-काटना आरंभ कर दया।
इस बीच पु यवन-आं भक सै नक से घर चुके थे। उनका हाथी मार गराया गया।
यवन सै नक ने उ ह बंद बना लया। बे ड़य म जकड़े पु को दे खकर आं भक के कलेजे म
ठं डक प ंची। उसके होठ पर एक कु टल मु कुराहट खेल रही थी। यह ण आं भक के
जीवन के सवा धक संतु करने वाले ण थे। ऐसे ण जनम जीवन क साध पूरी होने क
स ता लबालब भरी होती है। आं भक को आशा थी क सकंदर पु को मौत के घाट
उतार दे गा।
नयत समय पर बे ड़य म जकड़े पु को सकंदर के स मुख लाया गया। सकंदर के
मुख पर घृणा के भाव नह थे। वा तव म जस वीरता से पु व उसक सेना यु साज-
स जा व कला म े यवन सेना से लड़े थे, उससे सकंदर ब त भा वत था। सकंदर
आ खर एक यो ा था तथा वीर श ु का आदर करना उसका वभाव था। यु ने उसे इतना
समदश तो बना ही दया था।
सकंदर बोला, “तुम इस दे श के राजा थे, ले कन अब बे ड़य म जकड़े खड़े हो।”
पु ने कहा, “य द म यु जीत गया होता तो तुम मेरी जगह बे ड़य म जकड़े खड़े
होते।”
सकंदर ने पु को घूरकर दे खा।
फर उसने पूछा, “बोलो तु हारे साथ या वहार कया जाए?”
पु ने नभ क वर म उ र दया, “जैसा एक स ाट सरे स ाट के साथ करता
है।” इस नभ क तथा बेलाग उ र से सकंदर स हो गया। उसने सर ऊपर-नीचे हलाकर
कहा, “ब त अ छे । तु हारे उ र से म स आ। म तु ह अपनी ओर से केकय, उरसा तथा
अ भसार का शासक नयु करता ।ं अब से तुम हमारे म ए।”
पु ने सर झुका कर कहा, “म आपक उदारता तथा स ची यो ा वृ का
अ भवादन करता ।ं आपके साथ सदा सहयोग करना मेरे जीवन का सौभा य होगा।”
यह नया अ या शत मोड़ आं भक को जरा भी उ चत नह लगा। वह तो पु के वध
कए जाने क ती ा कर रहा था। उसे सकंदर एक सनक लगा। परंतु सकंदर के नणय
पर उंगली उठाने का तो आं भक म साहस न था और न ही कोई अ धकार।”
आं भक क कथा सुनाने के बाद चाण य ने शकटार को समझाने का य न कया
क उसका स ाट धनानंद से मलना कतना आव यक था। वे उ ह सकंदर क सारी चाल
के बारे म बताना चाहते थे क कस कार वह हमारे धम व सं कृ त के लए अ न कारी
था। पूव प मी रा य के पतन के नचले न कष को चाण य व तार से धनानंद को
समझाना चाहते थे। आचाय शकटार भी चाण य से पूणतया सहमत थे। उ ह भी सकंदर के
अ भशाप का आभास हो गया था। आचाय शकटार बोले, “ म वर! अब म जान गया ं क
आपका स ाट को व तु थ त के बारे म सूचना दे ना कतना आव यक है। स ाट धनानंद
जी से भट करवाने म कोई अड़चन नह है। म तो ं ही। आप कल दरबार म आ सकते ह। म
आपका प रचय स ाट से करवा ं गा। फर आप न संकोच अपनी बात उनसे कह सकते ह।
म अपनी ओर से आपके कथन क पु करता र ंगा।”
अपमा नत चाण य
सरे दन स ाट धनानंद का दरबार सजा था। स ाट वयं अपने र नज ड़त
सहासन पर वराजमान थे। दरबार म राजसी शान क बहार थी। चार ओर आंख चुं धयाने
वाली सजावट थी। स ाट के सर पर हीरे-जवाहरात से मं डत मुकुट था। गले म ब मू य
हार तथा सरे आभूषण थे। तन पर मू यवान झल मलाते व थे, ज ह बनवाना केवल
राजा के बस क ही बात थी।
मं ीगण, अ धकारी, सेनानायक, भू मप त, सेठ व दरबारी अपने े व तथा
आभूषण से स जत अपने-अपने आसन पर बैठे थे। थान- थान पर वशेष प रधान पहने
संतरी पहरा दे रहे थे। सरे दरबारी कमचारी अपनी-अपनी जगह अपना कत नभा रहे
थे।
अमा य शकटार स ाट के सहासन क बगल म अपने आसन पर बैठे थे।
स ाट धनानंद य प बूढ़े थे परंतु उनका व भ था। अपनी युवाव था म वह
एक बांके सजीले नवयुवक थे। उनके 40 वष य पु म आज वही बांकापन था। धनानंद के
ातागण भी अ त आकषक व के वामी थे।
नयत समय पर चाण य ने दरबार म पदापण कया। शकटार ने दरबान को पहले ही
चाण य के बारे म बता दया था। चाण य का आ टपकना कुछ ऐसा ही था जैसे हीरे-
मो तय के ढे र म कोयले का टु कड़ा आ गरा हो। शारी रक प से वह ठगने, काले व कु प
थे। कुछ लोग का कथन है क उनके मुख पर चेचक के दाग भी थे। वेषभूषा भी उनक
साधारण य क थी।
दरबार म उप थत लोग ने चाण य को उपे ा से घूरा। कुछ दरबारी उपहास क
से भी दे ख रहे थे। ऐसे य क भी कमी नह थी जो दबे वर म चाण य को
दे खकर हंस रहे थे। स ाट धनानंद को उनका आना अना धकार चे ा लगा। उसके मुख
मंडल पर ोध के भाव उभरे, भृकु टयां तन ग ।
उस भद्दे का आगमन उसे दरबार क शान म बट् टा लगने जैसा लगा। फर
चाण य क कु पता को दे ख वह हंसे बना न रह सका। वह अपनी वीभ स हंसी ारा
चाण य को दरबार म आने क भूल करने का कठोर दं ड दे रहा था।
स ाट को हंसता दे ख दरबारी भी खुलकर हंसने लगे। मगध दरबार एक अ ील
अट् टहास से गूंज रहा था।
घोर अपमा नत चाण य जड़ होकर रह गए थे।
अमा य शकटार को यह दे ख बड़ी ल जा आई। उ ह ने अपने म को बचाने के
य न म खड़े होकर सबको शांत होने का संकेत कर कहा, “आदरणीय सभासदो। म
आपका प रचय त शला व व ालय के महान आचाय व ान चाण य से कराना चाहता
ं जो अभी हमारे दरबार म पधारे ह। ये हम एक ब त मह वपूण मं णा दे ना चाहते ह जो
हमारे रा य के लए लाभदायक स होगी।”
धनानंद ने टे ढ़ से आचाय शकटार को दे खा और ट पणी क , “यह कु प
ा ण हम या मं णा दे गा? मेरे इस सुंदर दरबार म इस भ े का काम नह है। हम
तो इसक यहां उप थ त पर ही आप है।”
दरबा रय ने स ाट क बात के समथन म अपने सर हलाए। उधर ोध के अ तरेक
म आचाय चाण य का सारा शरीर कांप रहा था। ऐसे तर कार तथा अपमान क उ ह ने
सपने म भी क पना नह क थी।
मगध सा ा य के दरबार के फूहड़पन से आचाय शकटार भी आहत थे। उ ह यह तो
पता था क धनानंद वलासी ह, लोभी तथा अहंकारी ह परंतु आज उ ह पता लगा क स ाट
म श ाचार क भी इतनी कमी है। उ ह समझ नह आ रहा था क या कर। बात इतनी
बगड़ चुक थी क उसे बनाने का कोई उपाय नह सूझ रहा था।
फर भी उ ह ने एक टू टा फूटा यास कया, “हे स ाट े ! इस दरबार म...”
उनका वा य पूरा न हो पाया। दरबा रय क ख लय क गूंज म उनका यास
छटपटा कर डू ब गया।
चाण य भी अब चुप नह रहने वाले थे। उनका ोध श द म ढलकर उनक ज ा
से लुढ़क कर बाहर आने के लए जोर मार रहा था। उ ह ने चीख कर कहा, “म इस दरबार म
यह सोचकर आया था क कदा चत इस थान पर एक का मू यांकन उसक यो यता
अथवा व ा पर कया जाता होगा। पर यहां तो सब कुछ वपरीत है। यहां इतना
छछलापन है क एक मनु य को उसके शारी रक रंग- प से तौला जाता है। एक क
बु व श ा का यहां कोई मोल नह है। मूख क सभा है यह दरबार।”
अब तक हंसते दरबारी मौन हो गए थे। सबक नगाह स ाट धनानंद क ओर उठ
ई थ य क उ ह व ास था क वे ऐसी धृ ता कभी सहन नह करगे।
धनानंद ने ोध से चाण य को दे खा और फुफकारते ए बोले, “तु छ ा ण! मेरे
दरबार को कु प व ा क कोई आव यकता नह है। मगध स ाट से श ता से वाता करो
अ यथा तु ह कठोर दं ड दया जाएगा। तुम हो या? वयं को या समझ रहे हो?”
चाण य ने घोषणा क , “म वयं को या समझता ं यही उसका मह व नह है।
परंतु सभी यह सुन लो क म इसी दरबार म ण करता ं क अहंकारी नंद वंश को ही समूल
न करके दखा ं गा। एक ऐसा अहंकारी शासक जसम व ान का आदर करने क भी
समझ नह है, वह सहासन पर बैठने का अ धकारी नही है। ऐसे शासक का अंत होना ही
सबके लए ेय कर होगा। जब तक मेरा ण पूरा नह होता म अपनी वेणी नह बांधूंगा।”
ऐसा कहकर सबके सामने चाण य ने अपनी वेणी खोल द । सारा दरबार ह भ
होकर दे खता रहा। स ाट ोध क मू त बने अपने सहासन पर बैठे रहे।
आचाय शकटार पर तो कुठाराघात ही हो गया था।
अपना ण सुनाकर आचाय चाण य वहां से पैर पटकते ए चले गए।
घटना ने इतनी गंभीरता का प ले लया था क सब जड़ हो गए थे। न तो चाण य
को तुरंत दं ड दया गया। ना ही कसी ने उ ह रोकने का यास कया। दं ड तो दया जाना था
पर कुछ समय बाद, जब सबक सामा य बु लौटती व चाण य के ण क द डनीयता
समझने क यो यता आती।
तशोधक चाण य
पांसा फका जा चुका था।
अब चाण य के लए पाट लपु म रहना खतरे से खाली नह था। उ ह धर दबोचने
और द ड दे ने के लए स ाट के सै नक कसी भी समय आ धमक सकते थे। अतः चाण य
ने साधू का वेष धरा और बना समय खोए नगर छोड़ दया। सौभा यवश नगर के ारपाल
उ ह नह पहचान पाए, वह बच नकलने म सफल हो गए। चाण य नगर से र प ंच एक
वीराने म चले जा रहे थे। उ ह अपने ल य का पता नह था। उनके म त क म तो तशोध
क आग धधक रही थी उस पर कई योजनाएं पक रही थ । कुछ और सोचने क फुरसत
कहां थी? बस, पैर बढ़े जा रहे थे दशा व ल यहीन होकर।
अचानक उनका एक पैर कंट ली झाड़ी म फंस गया। कांट ने पैर को छे द दया। खून
क धाराएं बह नकल । उस जहरीले पौधे क प य ने पैर म जलन पैदा कर द । चाण य
ने ो धत उस झाड़ी पर डाली, उ ह उस झाड़ी म राजा महानंद जैसी ही ता नजर
आई। जैसे उस राजा के श द ने उनका दय ब धा था व तन-मन म अपमान क
तल मलाहट व जलन पैदा क थी। उस कंट ली जहर बुझी झाड़ी ने वही हाल उनके पैर का
कर दया था।
अचानक चाण य उस पौधे पर टू ट पड़े। अपने डंडे से पीट-पीट कर उस पौधे को
उ ह ने तार-तार कर दया। उन पर उस झाड़ी को न करने का उ माद-सा सवार हो गया
था। तार-तार करने भर से चाण य को संतोष नह आ। उ ह ने झाड़ी के थान को खोदना
शु कया, तब तक दम नह लया जब तक उस झाड़ी क जड़ तक उ ह ने न उखाड़
फक । श ु को पूरी तरह न करने के बाद उ ह ने झाड़ी के अवशेष पर नगाह डाली व
संतोष भरी सांस ली। ह ठ पर ह क मु कराहट बखर गई।
तभी उ ह कसी और क वहां उप थ त का आभास आ। उ ह ने पाया क एक
युवक ब त कौतूहल से उनके काय-कलाप को दे ख रहा है। उसक आंख म कई च
थे।
चाण य ने अपने ल लुहान पैर क ओर इशारा कर प ीकरण दया, “वह पौधा
जहरीला व कंट ला था। उसे जड़ से न करना ज री था ता क वह कसी और को हा न न
प ंचा सके। इसी म बु म ा है।”
ु टहीन सं कृत म कहे गए श द ने युवक को बता दया क काले रंग का बावला
सा दखता एक उ च को ट का व ान है। उसने पूछा, “महोदय! आप कौन ह और
य इस वीराने म ठोकर खाते फर रहे ह? यह तो प है क आप व ान ह।”
चाण य ने लंबी सांस भर कर कहा, “युवक! म त शला का ा यापक यहां नए
अवसर क खोज म आया था। मां सर वती के पुजा रय क नय त ही ठोकर खाना और
नधनता से जूझना है। परंतु तुम कौन हो जो युवाव था म वीराने क खाक छान रहे हो?
लगता है, सं ात कुल के हो।”
युवक ने वीकार कया, “हे व ान! म एक क ठन दौर से गुजर रहा ं। पर म
अपनी भा यपूण कहानी का भार आप पर नह डालूंगा।”
चाण य ने आ ह कया, “ म ! म तु हारी था सुनना चाहता ।ं हो सकता है म
तु हारी सम या का कोई हल सुझा सकूं। फर समझदारी इसी म है क अपने ख म
व त म को भागीदार बनने का अवसर दे , भार ह का करे। व ास करो क म कोई
गु तचर नह ं।”
युवक आ त आ। उसने बताया, “मेरा नाम चं गु त है। म इसी दे श के भूतपूव
राजा सरवथ स का पौ ।ं उनके दो रा नयां थ —सुनंदा और मौरा। सुनंदा ने नौ पु
को ज म दया जो ‘नवनंद’ कहलाए। मौरा के केवल एक पु आ, वही मेरे पता थे।
कालांतर म नवनंद व मेरे पता म उ रा धकार को लेकर श ुता ठन गई। राजगद्द पर
नवनंद का अ धकार हो गया। मेरे पता क मृ यु के बाद नंद ने मेरे ाता को मार डाला।
म कसी कार बच गया। अब म अपनी माता के साथ एक ाम म गु त प से रहता ं। मेरे
जीवन का उद्दे य नंद से तशोध लेना है। पर कैसे, यह समझ नह आता। यही मेरी
कहानी है और यही ख मेरे जीवन को स रहा है।”
चाण य मु कराए। उ ह ने चं गु त को स ाट धनानंद ारा कए अपने अपमान क
कहानी सुनाई। उ ह ने चं गु त को उनके साथ मलने का सुझाव दया य क दोन का
उद्दे य एक ही था—धनानंद का वनाश करना। चाण य ने व ास दलाया क वह चं गु त
को मगध रा य क गद्द पर बठाने का चम कार कर सकते ह य द चं गु त पूरी तरह
उनका साथ दे ।
दोन चं गु त क मां के पास गए। चाण य उनसे चं गु त को अपना अनुयायी
बनाकर ले जाने क आ ा मांगना चाहते थे। मां ने सहष अपनी वीकृ त दे द । वह वयं
महानंद से बदला लेना चाहती थी, य क उसी ने चं गु त के नाना अथात उनके पता क
ह या भी करवाई थी।
चाण य को यह जानकर स ता ई क बचपन म खेल म साथी बालक चं गु त
को राजा या सेनाप त का रोल दे ते थे। इससे यह मा णत होता था क चं गु त म नेतृ व का
ज मजात गुण था। जस को चाण य स ाट बना दे खना चाहते थे उसम यह गुण
होना आव यक था। चं गु त क माता ने चाण य को नंद क पूरी कहानी सुनाई जैसी उसे
बताई गई थी।
नंद क कहानी
शशुगु त वंश म मगध पर शासन करने वाले नंदवधन अं तम शासक ए। उ ह ने
वला सतापूण व नरंकुश शासन चलाया। नंदवधन ने अपने नकट के छोटे -छोटे रा य तथा
जम दा रय पर केवल इस लए चढ़ाई क ता क वे उनक सुंदर म हलाएं छ न सक व अपने
जीवन को और रंगीन बना सक। ऐसे शासक थे नंदवधन।
एक बार वे अपने रा य का दौरा कर रहे थे। आ धका रक प से उनक या ा जा
के ख-सुख क खबर लेना था पर असली उद्दे य उनका रा य क सुंद रय पर अपनी
कु डालना था। एक ामीण े म उ ह एक अ न सुंदरी नजर आई। ऐसी यौवना
उ ह ने अपने जीवन म पहले कभी नह दे खी थी। उनका कामुक मन उस पर मु ध हो गया।
उनके इशारे पर यौवना के प त को सै नक ने कसी बहाने मार डाला और उस यौवना का
अपहरण कर लया।
वह यौवना कोई उ च कुल क म हला नह थी। वह तो एक चांडाल क प नी थी।
उसका नाम महामाया था। महामाया को महल म लाया गया और वह नंदवधन क
अंकशा यनी बन गई।
महामाया अपने मृत प त से ब त ेम करती थी। उसक मृ यु को वह कभी भुला न
पाई। उसके मन म बदले क आग सदा सुलगती रहती थी। नंदवधन क अंकशा यनी बनने
के बावजूद वह उसक मन ही मन श ु बनी रही। महामाया साधारण ी नह थी। सर को
अपने वश म करने क उसम ज मजात कला थी। वह वाकपटु भी थी। उसके महल म आने
के बाद सब उसके मायावी भाव के अधीन हो गए। महल के सारे कमचारी उसके इशारे पर
नाचने लगे। नंदवधन क सरी रा नयां उसके आगे बेबस थ । और स ाट नंदवधन तो उसके
हाथ क कठपुतली बन गए थे।
महामाया नंदवधन से इतना गु त े ष रखती थी क उसने कई बार उसक ह या
करवाने के य न कए परंतु वह षड् यं वफल रहे।
इसी बीच महामाया गभवती हो गई तथा उसने एक पु को ज म दया। अब उसका
सारा यान अपने पु के लालन-पालन पर क त हो गया। उसे अपना बेटा नंदवधन के
तशोध लेने का सव म साधन लगने लगा। अतः कसी दाई या आया क छाया उसने
अपने पु पर नह पड़ने द । उसक दे ख-रेख का सारा दा य व राजम हला होने के बावजूद
उसने वयं संभाला। बचपन से ही बेटे म उसने नंदवधन के व वष भरना आरंभ कया।
उसके म त क म यह बात बैठा द गई क नंदवधन वह पशु है जसे जीने का कोई अ धकार
नह है।
बेटा नंदवधन से घृणा करता बढ़ता रहा। उसने ण कर लया क जैसे ही उसे
अवसर मलेगा वह नंदवधन नामक अ भशाप को धरती पर से मटा डालेगा। वह अपनी
माता महामाया को स दे खने के लए कुछ भी कर सकता था। य द नंदवधन क मृ यु
महामाया क स ता का कारण बन सकता था तो ऐसा ही सही। वह उसके जीवन का
पहला उ े य बन गया।
जब वह युवाव था को ा त आ तो एक दन स ाट नंदवधन को अपने क म
उसने रात को अकेला पाया। वह ऐसा अवसर कैसे खोता? तलवार के एक वार से उसने
नंदवधन का सर धड़ से अलग कर दया।
अब चतुर महामाया ने अपना जाल फैलाया। अफवाह फैला द गई क स ाट का
व ो हय ने वध कर दया है। फर उसने अपने पु को सहासन का उ रा धकारी घो षत
करवा दया। उसका बेटा ‘महाप नंद’ क शासक य उपा ध के नाम से मगध का स ाट
बना।
महाप नंद ने अपनी माता के परामश पर नंदवधन के वफादार तथा सभी व त
मं य , सेनानायक तथा मु य अ धका रय को स ाट के व व ोह के अपराध म
कारागार म डलवा दया। बाद म उ ह मृ युदंड दे दया गया।
इस कार नंद वंश का आरंभ आ। महाप आरंभ से अ छा शासक व यो ा
मा णत आ। उसने अपनी कुशलता तथा वजय से मगध को एक श शाली सा ा य
बना दया। आरं भक सफलता के बाद उसक ना ड़य म बहता एक का खून रंग
लाने लगा। वह धीरे-धीरे पथ हो गया। वह वयं रंगर लय म डू बा रहने लगा। उसके मं ी
व अ धकारी छू ट पाकर रा य म लूटपाट मचाने लगे। जा त हो गई। पर जा क कोई
सुनने वाला नह था। शोषण तथा ाचार का सारे मगध म नंगा नाच होने लगा। महाप
अपने पता क भां त जा क सुध छोड़कर अपनी कामवासना संतु करने म लगा रहता।
मगध सा ा य म ही प प लवन नामक एक छोटा-सा रा य था। सवथा स
सूयवन उस रा य का शासक था। उसक रानी मौरा एक अ त सुंदर ी थी। उसक सुंदरता
के चच र- र तक फैले थे। महाप ने भी उसके बारे म सुना और उसे पाने के लए उसका
मन मचल उठा।
महाप अपने पता के पद च पर चल रहा था, जैसे अपने पता का इ तहास
दोहराना उसका ल य बन गया हो। वह भी अपने रा य क सुंदर युव तय को अपने सै नक
भेजकर बलपूवक उठवाता तथा अपने महल क शोभा बनाता। उसका अंतःपुर सुंद रय से
भरा पड़ा था परंतु उसक कामवासना थी क संतु होने का नाम नह लेती थी। अब उस पर
मौरा को अपनी अंकशा यनी बनाने क धुन सवार हो गई थी।
एक दन उसने अपने एक व त सेनानायक को प प लवन पर चढ़ाई कर मौरा
को लाने का आदे श दया। सेनानायक सेना क एक टु कड़ी लेकर प प लवन क ओर स ाट
के आदे श का पालन करने चल पड़ा। उस समय सूयवन कुछ सै नक के साथ आखेट पर
गया आ था। मगध सै नक ने प प लवन के राजमहल के चार ओर घेरा डाल दया।
सेनानायक ने महल के र क को अपने आने का उद्दे य बताया तथा रानी मौरा को उ ह
स पने के लए कहा। ऐसा न करने पर रानी को बलपूवक ले जाने क धमक द ।
र क ने इसक सूचना भीतर जाकर प प लवन के सेनानायक को द । सेनानायक
ने रानी को स पने से साफ इनकार कर दया तथा यु क चुनौती द य प प प लवन क
सेना ब त छोट थी। छोट -सी े ीय सेना भला मगध सा ा य क सेना क टु कड़ी का कब
तक सामना करती?
जब राजा सूयवन आखेट से लौट रहे थे। तो उ ह र से एक सै नक घोड़े पर उनक
ओर आता द खा। नकट आने पर उ ह ने पाया क सै नक घायल था। सूयवन का माथा
ठनका।
सै नक ने प प लवन राजमहल पर मगध सै नक ारा ए आ मण के बारे बताया
तथा उनका उद्दे य भी नह छपाया। सूयवन को अ यंत ोध आया। उसने अपने घोड़े को
ऐड़ लगाकर महल क ओर दौड़ाया। उसके साथ के सै नक ने भी उनका अनुसरण कया।
घोड़े सरपट दौड़े व शी ही आखेट दल महल के मु य ार पर प ंचा। चार ओर
प प लवन के सै नक मरे अथवा ज मी ए गरे पड़े थे। उनम कुछ मगध के सै नक भी थे।
तभी उ ह ने मगध सेनानायक को सै नक के साथ रानी मौरा को महल से बाहर
लेकर आते दे खा। सूयवन ने उनको ललकारा। दोन दल म एक सं त यु आ। सूयवन
के साथ केवल आठ-दस अंगर क थे। वे कब तक टकते? सूयवन को बंद बना लया गया।
महाप नंद ने सूयवन को एक अंधकूप म डलवा दया।
राजा सूयवन तथा रानी मौरा का एक रह य था जो कसी और के ान म नह था।
मौरा गभवती थी। य प गभ के ल ण अभी कट नह ए थे परंतु सूयवन और मौरा को
गभ के बारे म संदेह नह था। कभी-कभी यह आभास प त-प नी को र त या के बाद हो
जाता है। सूयवन ने कुएं म डाले जाने से पहले एक गु त संदेश मौरा के पास भजवा दया
था क रानी को अपने गभ म पल रही उनक संतान क र ा करनी है और उसके हत के
लए कोई भी समझौता करना पड़े, वह करे।
मौरा को अपने गभवती होने पर पूरा व ास था। जब महाप ने उसे अंतःपुर क
सद य बनने का नमं ण दया तो वह बना कसी तरोध के मान गई।
नयत समय पर मौरा ने एक पु को ज म दया। मौरा ने यही बताया क उसका पु
महाराज महाप का ही पु है। अतः उसके बेटे का लालन पालन एक राजकुमार क भां त
ही आ। वयं मौरा को अंतःपुर म रानी का दरजा कभी नह मला। उसे एक दासी ही
समझा गया। मौरा को इससे कोई ख नह था। उसका सारा ल य केवल अपने बेटे को
राजकुमार सा जीवन दान करना था ता क वह श त हो सके व संभव हो तो अपने
वा त वक पता क दशा का तशोध ले सके।
जब राजकुमार बड़े हो गए तो उनम वरासत के लए झगड़े होने लगे। महाप के
सरे बेटे मौरा के बेटे को राजकुमार मानने को कतई तैयार नह थे। वे उसे दासी का बेटा ही
मानते थे। नंद राजकुमार ने मौरा तथा उसके बेटे पर अ याचार करने आरंभ कर दए।
उनके अ याचार से बचने के लए मौरा ने बेटे समेत राजमहल छोड़ दया। तब उसने
अपने बेटे को स चाई बता द क उसका वा त वक पता राजा सूयवन था जो मगध के
अंधकूप म कारावास भुगत रहा था।
दोन मां बेटे प प लवन चले गए। परंतु अब प प लवन सूयवन के सरे बेट के
अ धकार म था। यह सूयवन क सरी रानी ( ये ) से उ प थे। उ ह ने मौरा के बेटे को
सूयवन क संतान मानने से इनकार कर दया। उनका यही कहना था क मौरा का कथन झूठ
है। उसका बेटा महाप नंद क ही संतान है। मां बेटे को फर पाट लपु लौटना पड़ा। परंतु वे
राजमहल नह गए। बाहर रह कर ही गुजारा करते रहे। मौरा ने बेटे का ववाह मुरा जा त के
एक सरदार क बेट से कर दया।
उनके कई बेटे पैदा ए। इस बीच नंद राजकुमार को मौरा के बेटे का पता लगा।
वे फर उ ह न करने क योजना बनाने लगे। नंद मौरा के कई पोत क ह या करने
म सफल हो गए। केवल एक बेटा बचा जो बाद म चं गु त नाम से चाण य को मला। नंद
से अपनी जान बचाने के लए चं गु त और उसक मां एक गांव म गु त वेश से साधारण
कामगार के वेश म रहने लगे।
मौरा का नधन हो गया था। चं गु त क माता मुरा दे वी के पता क भी नंद ने ह या
करवा द थी, इसी लए वे गु तवास ारा जी वत बचे रहने म सफल हो गए थे। इन
प र थ तय म चं गु त क सामा य श ा नह हो पाई थी। चं गु त ने अपने नाम के साथ
मौय जोड़ना आरंभ कर दया था जसका कारण शायद उसक दाद मौरा थी या माता
मुरादे वी।
चं गु त क चाण य से मुलाकात तब ई थी जब चाण य स ाट धनानंद के दरबार
म अपमा नत होने के प ात तशोध क भावना म जलते ए नजन वन म भटकते ए
एक कंट ली झाड़ी म अपना पैर ज मी कर बैठे थे। धनानंद गद्द का उ रा धकारी कैसे
बना यह भी एक रोचक कहानी है। कहते ह क महाप के नौ बेटे ए। धनानंद उनम सबसे
ये था और अमू यानंद उससे छोटा। जैस-े जैसे महाप बूढ़े होते गए उनक कामुकता
बढ़ती गई। वला सता के अ त र उ ह कुछ और सूझता नह था। उनके महामं ी को भी
समझ नह आ रहा था क या उपाय कया जाए। शासन व था न हो रही थी। जनता
पर अ याचार बढ़ते जा रहे थे। स ाट केवल चापलूस तथा दलाल क ही बात सुनते थे।
अब स ाट के पास केवल दलाल तथा दास ापा रय क ही पूछ होती थी। दलाल
ापारी सु र दे श से ब ढ़या म दरा तथा दा सयां लेकर आते थे। र दे श से खरीद कर लाई
बाला का महाप को च का लग गया था। ापा रय को स ाट मुंहमांगे दाम और ढे र
सारे पुर कार दे ते थे। महल म वह ापारी दलाल बेखटके आया जाया करते थे।
एक ऐसा ही दास ापारी स ाट का खास चहेता बन गया था। वह पहले भी कई
बार म दरा व बालाएं ला चुका था। स ाट उससे अ त स थे। ापारी को स ाट क पसंद
नापसंद का अ छा ान हो गया था। अतः वह उसी को यान म रखकर माल लाता था।
इस बार भी वह वदे श या ा से आया था और सीधे स ाट से मलने चला आया था।
महल के संतरी उसे जानने लगे थे। वह उ ह भी उस ारा उपहार व इनाम दया करता था।
अतः जब भी वह आता सीधे स ाट के पास प ंचा दया जाता। स ाट उससे अपने नजी
क म अकेले म ही मलते थे।
वह ब त उ सा हत लग रहा था। स ाट को णाम करने के बाद वह बोला,
“महास ाट, इस बार म आपक सेवा म वशेष उपहार लाया ।ं सु र पूव म गया था। वहां
क सबसे ब ढ़या म दरा खोज लाया ।ं मु ा ब त लगी परंतु स ाट के लए तो मु ाएं
कौ ड़य के समान ह।”
“और या लाए हो?” स ाट ने अधीरता से पूछा।
“और भी ब त कुछ लाया ं, स ाट! एक ऐसा जोड़ा जैसा पहले यहां कभी नह
आया। बालाएं या ह क उनके सामने अ सराएं भी फ क पड़ जाएं। जब म आपक सेवा
म उ ह तुत क ं गा तो न त ही आप स हो जाएंगे।”
“उ म! तुम भी हा न म नह रहोगे े ी। तु ह उ चत पुर कार मलेगा सदा क
भां त। तो कब ला रहे हो?” कामुक स ाट क सांस फूल रही थ व लार टपक रही थी।
“स ाट, आप रंगशाला म अकेले र हए। म अधरा को आपक सेवा म सब तुत
क ं गा,” ापारी धीमे वर म षड् यं कारी क भां त बोला।
स ाट ने सहम त म सर हलाया। ापारी अ भवादन करके स मु ा म चला
गया।
रात को नयत समय पर स ाट अकेले थे। उनका ापारी दलाल अपने वादे के
अनुसार तुत आ। उसके साथ एक सेवक था जो थाली म कुछ उठाए था जस पर रेशमी
कपड़ा पड़ा था। दो आकृ तयां भी थ जो सर से पैर तक रेशमी आवरण म ढं क थ । स ाट
ने यान से उन आकृ तय को दे ख अनुमान लगाया।
दलाल ापारी ने अपने सेवक को संकेत दया और सेवक ने थाल पर से कपड़ा
गरा दया। थाल म तीन अ त आकषक सुरा हयां रखी थ और था एक चांद का
न काशीदार गलास।
ापारी बोला, “स ाट, यह म दरा उस दे श का उपहार है जहां हंस याम होते ह
और काग ेत। यह व म सव े मानी जाती है। र ाभ आकाश का सा रंग है इसका।”
स ाट क तो रेशमी आवरण म ढं क उन आकृ तय पर जमी थी। बेताबी से
बोला, “उस आवरण के पीछे या है?” ापारी ने ताली बजाई। आकृ तय ने नाटक य ढं ग
से अपने आवरण उतार फके।
स ाट के स मुख आभूषण से सज दो कशोरवय क सांचे म ढली सी अ त मोहक
बालाएं थ । उ ह ने चु त पारदश कपड़े पहन रखे थे।
उ ह दे ख स ाट का दय उछलने लगा, वह पलक झपकना भी भूल गया। ापारी
क आंख चमक रही थ ।
एक बाला ने अपनी लंबी सुडौल उंग लय से गलास उठाया और सरी ने एक
सुराही उठाकर बड़ी नजाकत से म दरा क पतली गुलाबी रंग क धार गलास म उड़ेली।
पहली बाला नपे-तुले कदम से चलकर स ाट के पास आई और गलास उनके ह ठ से लगा
दया।
स ाट ने आंख आनंदम न हो बंद कर ल । म दरा सचमुच उ कृ थी। सरी बाला
सुराही लेकर पास ही खड़ी थी। स ाट क भूखी नगाह गलास वाली बाला के शरीर को घूर
रही थ ।
उसके ह ठ गुलाब क भोर के ओस म भीगी पंखु ड़य क तरह दहक रहे थे।
स ाट से रहा न गया। उ ह ने उसे पास ख चा और अपने बूढ़े ह ठ उन युवा ह ठ पर
रख दए। समय जैसे ठहर गया।
एकाएक स ाट को खांसी आई। उनका शरीर कांपने लगा। ने र ाभ हो गए।
चमड़ी का रंग नीला पड़ने लगा। दे खते ही दे खते वे आसन पर लुढ़क गए। एक वीभ स
हचक लेकर उनका शरीर न पंद हो गया।
वहां उप थत बाक चार स ाट का अंत शांत भाव से दे ख रहे थे। उनके
चेहर पर संतोष के भाव थे। दलाल ापारी ने बाला से कहा, “काय संप हो गया। इस
को जी वत रहने का कोई अ धकार नह था। अब हम यहां से चलना चा हए।”
बाला ने फर अपने आवरण ओढ़ लए व चार क से बाहर नकल गए। बाहर
मु य ार पर ापारी ने ारपाल से कहा, “स ाट व ाम कर रहे ह। वे कंबोज दे श क
म दरा पीकर न ाम न होना चाहते ह। उ ह कोई बाधा न प ंचाए। उ ह ने आदे श दया है क
कल ातः सूय दय के समय उ ह जगाया जाए।”
फर चार अंधकार म वलीन हो गए।
वे चार वा तव म एक पड़ोसी रा य के गु तचर थे। वह रा य जसे एक यु म वष
पहले महाप ने न कर दया था। जन चार ने स ाट क ह या म भाग लया था उ ह ने
उस यु म अपने नकट संबंधी खो दए थे। यह उनका तशोध था।
सुबह महामं ी को कसी आव यक काय से स ाट के पास जाना पड़ा। उ ह एक
आपात नदश लेना था।
स ाट के क का य दे ख वे सकते म आ गए। उनक अनुभवी आंख ने क का
नरी ण कया व यान से स ाट को दे खा। वचा का नीला पड़ा रंग दे खते ही वे समझ गए
क कसी वष क या ने स ाट क ह या कर द है।
वे कुछ दे र खड़े सोचते रहे।
फर कसी नणय पर प ंचकर वे क से बाहर नकले। महामं ी ने क का ार
बंद कर दया। उ ह ने सै नक को नदश दया क स ाट के क म कोई न जाए। महामं ी
सीधे सबसे ये राजकुमार धनानंद के महल म गए।
महामं ी को अनायास आते दे ख वह च का। उसके मुंह से नकला, “महामं ी
जी...?”
“हां। आपात थ त म महामं ी को स ाट के पास मं णा करने आना पड़ता है।”
धनानंद कुछ समझा नह , वह बोला, “स ाट? पर म तो...”
“अब आपक बारी स ाट बनने क आ गई है। स ाट महाप नंद का नधन हो
गया है।” महामं ी ने सूचना द ।
“क...कैसे?”
महामं ी ने समझाया, “स ाट! यह य और कैसे पर वचार करने का समय नह
है। व ोह न हो और अराजकता न फैले इस लए हम तुरंत स ाट क ाकृ तक कारण से
मृ यु क घोषणा करनी है। साथ ही आपके रा या भषेक क भी। इसी म हम सबका भला
है।”
महामं ी ने कुछ दे र तक फुसफुसाकर धनानंद को समय क गंभीरता तथा राजनी त
क आव यकता के बारे म समझाया।
धनानंद ने यान से उनक बात सुन ।
फर दोन उठ खड़े ए और उस क क ओर चल पड़े जहां महाप नंद का मृत
शरीर पड़ा था। रा ते म भी महामं ी ने ब त सी ऊंच-नीच व राजनी तक आव यकता क
बात बता ।
इस कार धनानंद मगध का स ाट बन गया था। आरंभ म तो वह भी अ छे शासक
का सा वहार करता रहा परंतु शी ही अपने पता क राह पर चल पड़ा। बूढ़ महामाया
को यह सब दे खकर ब त ख होता था।
वह सोचती यह कसके खून का भाव था?
योजनाकार चाण य
चाण य चं गु त को श चालन तथा यु कला म पारंगत करने के लए े नग दे ना
चाहते थे। परंतु सबसे आव यक चं गु त को व ालय क सामा य श ा दे ना था जससे
वह बु मान तथा कुशल शासक बन सके।
इसके लए वे चं गु त को त शला ले गए व वहां व व ालय म वेश दला
दया। कुछ इ तहासकार का मत भ है। वे मानते ह क त शला को तब तक वदे शी
आ मणका रय ने तहस-नहस कर दया था। वहां के ा यापक बेकार होकर व भ रा य
म लावा रस क तरह भटक रहे थे। चाण य उनम से कुछ को खोज नकालने म सफल हो
गए व उ ह चं गु त क श ा का भार स प दया गया। पर इसम कोई शक नह क चं गु त
ने लगभग सात वष उ च श ा हण करने म लगा दए। उसके साथ-साथ यो ा बनने क
उनक े नग भी चलती रही। चं गु त म यु कौशल क वाभा वक तभा थी अतः नपुण
यो ा बनने म कोई सम या सामने नह आई।
इस बीच यूनान क सेनाएं भारत के रा य को र दती ई पूव क ओर बढ़ रही थ ।
चं गु त और चाण य ने उनक रणनी तय का गहरा अ ययन कया। साथ ही यह भी दे खते
रहे क व जत रा य म यूनानी कस कार अपना शासन तं था पत करते ह। यह सब
नकट से दे खने व जानने के लए चाण य ने चं गु त व उनके कुछ सा थय को यूनानी सेना
क टु कड़ी म सै नक के प म भरती भी करवाया। वहां उ ह ने गु तचरी के रह य को भी
सीखा।
यूनानी व जत े म शासन खड़ा करते थे व शासन चलाने के लए एक
कमांडर नयु करते थे ज ह वे ‘ ॉप’ कहते थे। यह ॉप यूनानी सेना म भरती भारतीय
भी हो सकते थे।
वष अपनी धरती से र रह कर वदे श म लड़ते-लड़ते यूनानी सै नक थक चुके थे।
वे घर लौटना चाहते थे। इसी चाह म अ धकतर बीमार रहते थे। भारत म एक राजा को हराने
पर आगे सरा श शाली राजा उनके माग म आ जाता था। इसका कोई अंत ही नह आ
रहा था। मगध सा ा य तक प ंचते-प ंचते वे बेदम हो चुके थे। मगध क वशाल सेना से
भी उ ह नपटना बाक था।
सकंदर वयं बीमार हो चला था। उसने अपने दे श लौटने का फैसला कर लया।
उसके लौट जाते ही कई मुख यूनानी ॉप व ोह म मारे गए। कई भारतीय ॉप ने वयं
को वतं घो षत कर दया। कई आपस म ही लड़ने लगे। फर समाचार आया क बेबीलोन
म बीमार पड़ जाने से सकंदर क मृ यु हो चुक है। इसके साथ ही ॉप शासन का अंत हो
गया।
ॉप क इन लड़ाइय म चं गु त व उनके सा थय ने खूब मारकाट मचाई। इसी
घटना म म उ ह ने अपनी सेना भी खड़ी कर ली। चं गु त ने अपनी जोड़-तोड़ क
राजनी त का भी इन यु म भरपूर उपयोग कया।
कूटनी त चाण य
अब समय आ गया था जब चं गु त व चाण य को अपना असली यु मगध
सा ा य पर अ धकार करने व महानंद को न करने के लए लड़ना था। चं गु त ने मगध के
युवा तथा असंतु त व को अपनी ओर मला लया था। यु म टू ट कर ब त से सै नक,
जो लावा रस होकर घूम रहे थे, वे भी चं गु त क सेना म आ मले थे।
चं गु त क सेना ने मगध के म य भाग से अपना यु आरंभ कया। परंतु उ ह बार-
बार हार का मुंह दे खना पड़ा। मगध क सेना वशाल थी, सुग ठत थी तथा उ ह अमा य जैसे
यो य मं ी का नेतृ व ा त था। ॉप यु म अ जत अनुभव व कौशल यहां मगध क सेना
के व कुछ काम नह आ रहा था। चाण य तथा चं गु त को फर से अपनी यु नी त
पर वचार करना पड़ा।
न कष यह नकला क रा य के म य से यु लड़ना उनक भारी भूल थी। वह शेर
को उसक मांद म जाकर ललकारने जैसी मूखता थी। पाट लपु क सुर ा ब त मजबूत
थी। नगर ग के भीतर बसा था। ग म वेश के लए लगभग 64 ार थे। ग क सबसे
बड़ी सुर ा व था ग के चार ओर खुद खाई थी जसम पानी भरा रहता था। ऐसा
बताया जाता है क खाई लगभग 300 हाथ चौड़ी और चालीस हाथ गहरी थी। ग तक
प ंचने के लए अनेक पुल थे। इन पुल को चाहने पर ऊपर उठाकर हटाया जा सकता था।
जैसे ही चं गु त क सेना ने ग तक प ंचने का य न कया, पुल उठा लए गए थे। उसक
सेना के पास खाई पार करने का कोई और साधन नह था। और े से मगध क सेना क
टु क ड़य ने आकर उन पर पीछे से आ मण कया था। ब त क ठनाई से चं गु त तथा
चाण य जान बचाकर भागे थे।
अब उ ह यह समझ आ गई थी क उ ह आ मण सीमा से आरंभ कर राजधानी
क ओर बढ़ना चा हए था। दोन ने जान बचाने व फर से संग ठत होने के लए व याचल
पवत के साथ-साथ कूच कया था। वे कौशांबी होते ए मायापुरी प ंचे। फर वहां से
शवा लक पवतमाला के साथ-साथ चलते ए ूहण रा य म आ नकले। ूहण रा य मगध
सा ा य क सीमा के साथ लगा दे श था। अब वे मगध सेना क पकड़ से बाहर आ गए
थे।
ूहण म बड़ी सं या म व भ रा य के वे सै नक जाकर रह रहे थे जो सकंदर के
आ मण म मार खा चुके थे। उनके मन म सकंदर से बदला लेने क ब त ती भावना
थी। यूनानी सै नक के नाम से ही वे भड़क उठते थे।
यह चाण य व चं गु त के लए वरदान सा बत ए। उ ह ने उन सै नक को एक
कर संग ठत कया तथा अपनी नई सेना खड़ी कर द । सारे सै नक श त तो थे ही।
केवल उनके लए आयुध जुटाने पड़े तथा उ ह मान सक प से एक नई सेना म ढालना पड़ा
ता क वे चं गु त के ल य म ही अपनी उद्दे य स दे ख व उसके त तब हो जाएं।
चाण य व चं गु त ने अनुभव कया क मगध क वशाल सेना से लड़ने के लए
उ ह अभी और अनुभव ा त करना होगा, सम यु नी त तैयार करनी होगी। नई सेना
व नरेश को म बनाकर उनका पूण सहयोग ा त करना होगा। इसके लए उ ह कई यु
लड़ने ह गे व शासक को अपना आभारी बनाना होगा। यह सारे उ े य उ ह यूनानी ॉप के
व यु छे ड़कर ही ा त हो सकते थे, इससे वे और का व ास भी जीत सकते थे।
भारत छोड़ने से पहले सकंदर एक और चाल चल गया था। पाटन थ उस रा य
क राजधानी था जहां सकंदर ने भारत म अपना अं तम यु लड़ा था। वजय समारोह म
सकंदर ने अपने सारे ॉप तथा आ त भारतीय नरेश का स मेलन भी बुलाया था।
समारोह तथा स मेलन का सबसे बड़ा उद्दे य यूना नय के भारत अ भयान म ा त वजय
को थायी बनाना था। इसके लए सकंदर ने एक धूत योजना बनाई थी। स मेलन म आने
वाले भारतीय नरेश से उसने अपने-अपने े से अ धक से अ धक ववाह यो य युव तयां
लाने का आदे श दया था। इस कार समारोह म लगभग 700-800 युव तयां लाई ग और
उनका ववाह उन यूनानी सै नक से कर दया गया ज ह ॉप रा य क सुर ा के लए
भारत म ही रहना था।
इस कार यूनानी खून का भारतीय खून से मलन हो जाता और एक ऐसी पीढ़ पैदा
होती जसम भारत-यूनानी सं कृ त का संगम होता। इसी कार पी ढ़यां समय के साथ-साथ
आगे बढ़ती जात और यूनानी भाव का भारत म व तार होता जाता।
सकंदर ने अपने सबसे यो य सेनानी फ लप को वाहीर े का ॉप नयु कया।
उसे एक वशाल यूनानी सेना के साथ भारत म ही रहना था। उसक अपनी राजधानी थत
सै नक छावनी म पचास हजार सै नक थे। सकंदर ने गु त प से फ लप को यह भी संकेत
दया था क उससे जतने अ धक हो सके उसको अ धक यूनानी सै नक का ववाह भारतीय
युव तय से करवाना है।
फ लप एक वीर यो ा था।
परंतु वष के नरंतर यु से वह ऊब चुका था और मन थक गया था। सकंदर के
थान करते ही वह सुख ढूं ढ़ने लग गया। थानीय राजा तो व वलासी थे ही। उ ह ने
फ लप के मुंह को भी वलासी जीवन का खून चखा दया। अब फ लप सै नक कम और
भोगी अ धक बन गया। उसके सेनानायक ने भी उसी का अनुसरण कर लया। खाना, पीना
व भोग वलास उनक दनचया बन गया।
केकय दे श क राजधानी को ही फ लप ने अपना क बना रखा था। राजा पु का
राजमहल उसके लए खाली कर दया गया था। उसी म फ लप का डेरा था। राजा पु को
यह बात ब त चुभती थी। आरंभ म सकंदर ने उसे जो मान दया था वह धीरे-धीरे कम होता
गया व सकंदर के सेनानायक व अ धकारी वा मय का सा वहार करने लगे थे। राजा पु
भी यूना नय से अब चढ़ने लगा था। वह यूना नय को अपने रा य से भगाने का अवसर
तलाश करने लगा था।
महल के साथ ही एक हाट लगता था जहां थानीय लोग तथा ापारी वह सारा
सामान लाते थे ज ह यूनानी खरीदते थे। हाट म कभी-कभी बकने के लए दास-दा सयां भी
आती थ । एक दन एक दास-दा सय का ापारी आया। वह हाट म ब त ही सुंदर दा सय
और -पु दास का समूह लेकर आया था।
एक यूनानी सै नक ने बूढ़े ापारी का माल दे खा। उसे ब त आ य आ! उसने
बकने के लए आई इतनी सुंदर युव तयां तथा इतने व थ दास पहले कभी नह दे खे थे।
उसका मन दा सय के प म बेचने के लए आई युव तय पर आ गया।
उसने बूढ़े ापारी से उनके गुण व मू य पूछे। उसने एक दासी क ओर संकेत कया
और बोला क उसे वह ठ क दाम पर मल जाए तो ब त दास-दा सय को वह महल म
बकवा सकता है, य क महल को कमचा रय क आव यकता है।
बूढ़े ापारी ने सर हलाकर कहा क पहले वह कुछ दा सयां महल म बकवा दे तो
फर उसे उसक मनपसंद क चीज उपहार म कम दाम पर मलेगी।
सै नक ापारी को लेकर महल के अ धका रय को दखाने ले चला। दा सय का
झुंड व पांच-छह दास भी साथ गए। यूनानी अ धकारी व सेनानायक ॉप फ लप के साथ
बैठे कुछ मं णा कर रहे थे।
सै नक ने जाकर उनसे दा सय के बारे म बताया। सबक नगाह दा सय के झुंड पर
पड़ । उनक सुंदरता दे ख वे मु ध हो गए।
यूनानी भाषा म कई अथ ट प णयां क ग ।
बूढ़े ापारी ने वनती क , “यूनानी स ाटगण! ये साधारण बालाएं नह ह। इ ह
गायन, नृ य तथा राजसी पु ष का मनोरंजन करने क श ा द गई है। य द आ ा हो तो
एक नृ य तुत कर इसका माण दगी। तब आप वयं उसक उपयो गता समझगे तथा
मू यांकन करगे।”
यूना नय ने एक- सरे क ओर दे खा। फ लप ने सर हलाकर अपनी सहम त द ।
दा सय ने एक सामू हक नृ य तुत कया। नृ य एक वीर रस के गीत पर आधा रत
था। दासी बालाएं कटार और तलवार लेकर नृ य कर रही थ । यूनानी मं मु ध होकर नाच
दे ख रहे थे। नृ य के एक वशेष ब पर आते ही अक मात कसी ने कुछ गु त संकेत दया।
उसके साथ ही नृ य करती बालाएं यूना नय पर कटार व तलवार लेकर टू ट पड़ ।
नृ यांगना क ना यका कर भका ने पलक झपकते फ लप के सीने म कटार भ ककर
उसका काम तमाम कर दया। सरे अ धकारी भी मार डाले गए। दल के साथ भीतर आए
दास ने महल के भीतर थत अंगर क को मार डाला।
जो दास बाहर हाट म रह गए थे उ ह ने अपने गु त आयुध नकाल कर महल के
बाहर तैनात यूनानी सै नक को मार डाला अथवा बंद बना लया। बाद म र योद्घाटन
आ। दा सयां वा तव म श त सै नक थ । बकने वाले आए दास भी छ वेशी सै नक
थे। वे सब चुने ए लड़ाकू थे। बूढ़ा ापारी और कोई नह छ वेश म वयं चं गु त थे।
पु के सै नक भी इस अ भयान म स म लत थे।
यूनानी सेना क छावनी म अब तक जो कुछ महल म घटा उसका समाचार नह
प ंचा था। सै नक घटना म से बेखबर आराम कर रहे थे अथवा ड़ा आ द काय कलाप
म त थे। अक मात छावनी पर चं गु त तथा पु क सेना ने दो ओर से आ मण कर
दया। यूनानी बेखबर पकड़े गए। उ ह ठ क से संभलने का अवसर नह मला। पचास हजार
सै नक म से हजार गाजर-मूली क तरह काट डाले गए। हजार ने आ मसमपण कर दया
या बंद बना लए गए। अनेक सेना कमांडर चं गु त या पु क सेना म सेवा करने के लए
तैयार हो गए।
केकय एक बार फर वतं होकर पु का दे श बन गया। राजा पु क सहम त से
चं गु त तथा चाण य ने उनके 40 वष य पु पवतक को स ाट घो षत कर दया तथा
व धवत सहासन पर बठाया। इस उपकार के बदले पवतक ने सदा चं गु त का साथ
नभाने का वचन दया। ॉप फ लप क ह या करने वाली बाला कर भका कठ रा य क
राजकुमारी थी। फ लप ने एक यु म उसके पता और भाई को मार डाला था। उसी का
वह तशोध ले रही थी।
इस घटना के प ात चं गु त तथा कर भका काफ नकट आ गए थे। उनके म य
ेम का अंकुर फूटने लगा था।
चाण य क नगाह से उनका ेम छपा न रहा। परंतु उ ह इसम कोई आप नह
थी।
कर भका का सारा प रवार यु क भट चढ़ चुका था। चाण य ने उसे अपनी पु ी
घो षत कर उसे मान सक संबल दान कया था।
ॉप फ लप से नपटने के बाद चाण य व चं गु त ने सरे यूनानी कमांडर
यु दथमस को चुनौती दे ने का मन बनाया। यु दथमस सधु नद के पार एक बड़ी सेना लेकर
डेरा डाले बैठा था। वह एक कुशल यो ा था। यह संभावना थी क फ लप क मृ यु का
समाचार पाकर वह फर केकय पर अ धकार करने व यूनानी वच व को था पत करने
आएगा! चाण य ने परामश दया क उसे सधु तट पर ही रोकना होगा। वह इस पार आ
गया तो यूनानी समथक फर से संग ठत हो सकते थे और सम याएं खड़ी कर सकते थे।
कर भका ने भी यु दथमस के व यु भू म म जाने का मन बना लया। वह
चं गु त के साथ ही बनी रहना चाहती थी। चं गु त ूहण, व तक, केकय, कलूट व क मीर
क सेना का एक वशाल संयु दल लेकर सधु नद के तट पर प ंचा। तट के सरी ओर
यु दथमस यूनानी सेना के साथ मोचा संभाले था। यूना नय के अधीन क प मी गांधार,
बख या और ह ली रा य क सेनाएं भी उसके साथ थ ।
इ तहास म यह प उ लेख नह मलता क कस दल ने सधु नद पार कर सरे
दल पर आ मण कया। आ मण आ और यु भी। तकसंगत मत यही है क यूनानी सेना
ने नद पार क होगी य क उनके पास न दयां पार करने क मता थी, साधन थे व चुर
अनुभव था। यूना नय को उनके व वजय अ भयान के कारण यह सब लाभ ा त ए थे।
यु म चं गु त क सेना ने यूनानी सेनानायक को मार गराने म सफलता ा त
क । यह काय संभवतः पूरी यूनानी सेना के इस पार आ पाने से पहले कया गया होगा।
यु दथमस क मृ यु से यूनानी सेना का मनोबल चूर-चूर हो गया। वे प मी तट क ओर पीछे
हट गए। उनक भारत मूल क सेना ने चं गु त के सामने आ मसमपण कर दया।
फलहाल अब यूनानी हमले का खतरा टल गया था य क समाचार आया क यूनानी
सै नक अपने दे श जाने के लए लौट रहे थे। वे अथहीन यु म और जान नह गंवाना चाहते
थे।
सकंदर क पहले ही मृ यु हो चुक थी।
यूना नय से नपटने के बाद अब चं गु त व चाण य को अपना मूल उद्दे य ा त
करना था और वह मूल उद्दे य था मगध क राजधानी पाट लपु पर अ धकार करके नए
सा ा य क रचना करना।
धनानंद का अंत
इस बीच पाट लपु म भी काफ कुछ घट चुका था। पुराने स ाट का अंत हो गया
था व अब वहां नया शासक था।
जैसे क पहले वणन कया जा चुका है क महाप के नौ बेटे थे। धनानंद उन सबम
ये था। महाप क जब एक वषक या ने षड् यं रचकर ह या कर द थी तब महामं ी
क सहायता से धनानंद मगध क ग पर बैठा था।
आचाय शकटार महाप के मं मंडल म मं ी थे। ब त से इ तहासकार उ ह ही
महाप का महामं ी मानते ह। कुछ इ तहासकार मानते ह क वे केवल एक मं ी थे और
महामं ी धनानंद के शासन काल म ही बने। पर एक बात सवस मत है क शकटार एक ब त
मह वपूण मं ी थे जनका स ाट पर अ य धक भाव रहता था। मगध सा ा य के कई मं ी
व दरबारी शकटार के भाव से स नह थे। उ ह लोग म से एक थे आचाय व सार, जो
धनानंद के क न ाता समू यानंद के गु थे। समू यानंद को भी धनानंद तथा आचाय
शकटार क जोड़ी पर आप थी। वह समझता था क शकटार के कारण ही रा य क
व था खराब हो रही है।
व सार के पु रा स समू यानंद के सहपाठ व अंतरंग म थे। व सार को
राजनी त का मंजा आ खलाड़ी माना जाता था। उनके दांव-पच के कई शंसक थे।
उनका पु रा स उनसे भी बढ़कर धूत व यो य था। कुछ लोग तो यही मानते थे क
व सार क सारी नी तयां वा तव म रा स के म त क क ही उपज थ ।
पता-पु चाहते थे क समू यानंद स ाट बने ता क मगध म उ ह क तूती बजे। पर
सम या थी क धनानंद व शकटार का या कया जाए। उ ह वैसे हटाना संभव नह था। कुछ
टे ढ़ चाल चलना आव यक था।
र स ने अपना दमाग लड़ाना शु कया। धनानंद क कमजोरी उसक कामुकता
थी तथा उसी का उपयोग कया जा सकता था।
महाप भी तो इसी कमजोरी का शकार बना था।
वसंतो सव के अवसर पर राजमहल म वशेष समारोह हो रहे थे जसम एक अ त
सुंदर चंचल यौवना इधर-उधर इठलाती फर रही थी। धनानंद क उस पर वाभा वक ही
नगाह पड़ गई तथा उसक लार टपकने लगी। उस नवयौवना का नाम सुभा षणी था और
वह रा स ारा वहां इसी योजन से नयु क गई थी क कामुक स ाट को ललचाए।
योजना सफल हो गई थी।
स ाट धनानंद ने ऐसे ही काय के लए रखे एक व त सेवक से कहा क वह उस
नवयौवना से मेल कराने क जुगत भड़ाए। इस काय म कोई अड़चन नह थी। रा स तो
चाहता ही यही था।
सुभा षणी से मेल कराने का बंध एक वशेष क म कया गया। उस क का
अ छ तरह नरी ण कया गया ता क कोई षड् यं न रचा जा सके। स ाट महाप क
ह या के बाद महामं ी क आ ा पर ब त सावधानी बरती जाने लगी थी। सुभा षणी को उस
क म भेजे जाने से पूव उसके ह ठ क जांच क गई। वष के कोई ल ण नह मले।
वह क म व ई। स ाट पहले ही वहां आसन पर वराजमान थे। यौवना बाल
ठ क करने क मोहक मु ाएं बनाती ई स ाट तक प ंची। उन मु ा के दौरान उसने अपने
बाल म छपा कर रखी वष बुझी सलाइयां नकाल ली थ । उसने बजली क तेजी से
सलाइय से स ाट का शरीर कई थान से ब ध डाला।
एक चीख के साथ स ाट धनानंद ढे र हो गए। वष अ त घातक था। उनक चीख
सुनते ही र क पहरेदार भीतर दौड़े और सुभा षणी को उ ह ने खून सनी सलाइय के साथ
आ ामक मु ा म मृत स ाट के पास खड़े पाया।
रा स उस पर टू ट पड़े और तलवार से उसके टु कड़े कर दए गए।
रा स क योजना सफल हो गई थी। उस धूत ने ऐसा कोई सू नह छोड़ा था, जो
उसका संबंध ह या रनी सुभा षणी से जोड़ सके। उसका चयन ही इस कारण आ था।
सुभा षणी का प रवार धनानंद के अ याचार का शकार होकर न हो चुका था।
सुभा षणी के जीवन का येय अब केवल धनानंद से तशोध लेना रह गया था और वह
तशोध रा स क सहायता से पूरा आ। पर उसे कभी यह ात नह आ क रा स उसे
अपनी कठपुतली बनाकर अपना हत साध रहा था। इसी का नाम तो कूटनी त है।
धनानंद क मृ यु के प ात वाभा वक प से समू यानंद स ाट क गद्द पर बैठे।
उनके गु व सार को तो महामं ी बनना ही था। आचाय शकटार को स ाट क सुर ा म
असफल रहने के अपराध म कारागार म डाल दया गया।
अब मगध म आचाय व सार क तूती बोलने लगी। पर परदे के पीछे वा त वक
शासक रा स ही था। गु वही कुछ करते जो उनका बेटा रा स उ ह करने के लए कहता।
रा स मूलतः यो य, बु मान व द योजनाकार था। इस लए समू यानंद के
आरं भक शासन काल म कई अ छे काय भी ए। मगध क आ थक थ त सुधरी। जा भी
सुखी ई। पर फर वलासी खून रंग लाया सब बंटाधार हो गया।
समू यानंद भी अपने भाई और पता के समान ही नकला। कुछ समय सीधी
चाल चलने के बाद वह भी टे ड़ी चाल चलने लगा। जीवन तथा वला सता म वह पूरी
तरह डू ब गया। शासन का एक बड़ा भाग उसक वला सत क मांग पूरी करने म लग गया।
शासन फर भावहीन हो गया। अ याचार बढ़ने लगे।
आचाय व सार भी वलासी समू यानंद क हठ बु के आगे लाचार हो गए।
रा स ने हताशा म अपना माथा पीट लया।
मगध का यु
इस बार चाण य तथा चं गु त ने अपनी यु नी त बदल द थी। उ ह ने सीमा पर
आ मण कया तथा सीमावत े को वतं कया। इसी तरह पूरे े पर वजय ा त
करते ए वे राजधानी तक प ंचना चाहते थे। चं गु त ने यु क कमान संभाली तो चाण य
ने कूटनी तक दा य व संभाला। चाण य ने अपने त ारा जनता म वलासी व नंद
स ाट के व चार कराया तथा लोग क सहानुभू त जीतने का य न कया। इसका
सकारा मक भाव भी पड़ा तथा युवावग का एक बड़ा भाग चं गु त का समथक हो गया व
उसक सेना म स म लत भी हो गए। कई सीमावत जले सरलता से जीत लए गए और
चं गु त क सेना आगे कूच कर गई।
इस बार चं गु त क सेना वशाल थी। प मी अ भयान म बने म व सहयोगी
सेना समेत उनके साथ थे।
उनम मु य पु के बेटे पवतक भी थे।
रा स ने चं गु त ारा कए आ मण के बारे म सुना तो तुरंत तकार करने क
योजना म जुट गया। उसक बु ती थी व उसके पास आ ाकारी तथा व सनीय
अनुया यय का श शाली दल था। उसने मगध सा ा य म यो य गु तचर का जाल भी
बछा रखा था। शी ही उसने चं गु त क श , सै य रचना तथा संगठन का आकलन
गु तचर ारा द सूचना के आधार पर कर लया।
रा स ने अपने वशेष गु तचर द ते को पवतक के सै नक श वर म घुसपैठ कराया।
गु तचर म कांटे साफ करने वाले भी थे। वे पवतक क ह या करने म सफल हो गए। बाक
चारक गु तचर ने केकय सै नक श वर म यह अफवाह फैला द क चं गु त के मागदशक
चाण य ने ही पवतक क ह या करवाई है य क वह अपने श य चं गु त को मगध
सा ा य अथात भारत का स ाट हर मू य पर बनाना चाहते थे। पवतक को हटाना उ ह
इस लए आव यक लगा य क वह स ाट पद का चं गु त से अ धक वैध दावेदार था। वह
स ाट पु अथवा पोरस का बेटा था।
दलील ब त श शाली थी। उसे आसानी से काटना संभव नह था। चाण य को भी
मानना पड़ा क उनका पाला एक चतुर म त क से पड़ा है।
केकय सै नक खेमे म रोष छा गया। चं गु त के व व ोह क बात होने लग ।
चाण य ने सै नक को समझाने व ठं डा करने का हर संभव य न कया।
पवतक के बेटे मलयकेतु को केकय का नया स ाट घो षत कर दया गया। केकय
सै नक के सामने ही उसका राज तलक कया गया। सै नक का रोष कुछ ठं डा पड़ा।
मलयकेतु श ु क चाल समझ चुका था।
उसने अपने सै नक को श ु क चाल का खुलासा कर व ोह समा त कर दया।
इस बार चं गु त एक और भूल कर गया था। वे व उनक सेनाएं दे श मु करा कर
आगे बढ़ते जा रहे थे और व जत दे श खाली छोड़ते जा रहे थे। उनके जाने के बाद मगध
सा ा य के वफादार त व फर संग ठत हो जाते और चं गु त क आगे बढ़ती सेना पर पीछे
से घातक हमला करते। चाण य को पता लगा क नंद सा ा य के त लोग का मोह अभी
पूरी तरह भंग नह आ था। रा स ने शासन म भावी सुधार कए थे तथा आ थक
नी तयां अपनाई थ जनसे जा को काफ राहत मली थी। जनता रा स के भावहीन हो
जाने के बावजूद उसका अब तक स मान करती थी।
चाण य को यह जानकर स ता ही ई क मगध म कोई तो है जो जा क
सोचता है और कुछ करने का य न करता है।
चाण य ने चं गु त से वजय अ भयान का पुन नयोजन करवाया। अब वे व जत
दे श को खाली नह छोड़ते थे। वे अपनी सै नक टु क ड़यां एक यो य सेनानायक के अधीन
छोड़ जाते थे। सेनानायक नाग रक शासन का जानकार भी होता था। उसका दा य व
शासन को अपने भाव म लाकर चं गु त का वच व था पत करना होता था। साथ ही
उसे यह दे खना था क मगध के नंद सा ा य के हतैषी त व संग ठत न होने पाएं और मगध
के टू टे सै नक को अपनी सेना म थान दे उ ह लावा रस न छोड़े।
यह नई नी त ब त सफल रही। व जत े म चं गु त का शासन जड़ जमाने म
सफल हो गया तथा पीछे से आ मण क कोई संभावना शेष नह रही।
अब चं गु त क सेना न त होकर पाट लपु क ओर अ भयान जारी रख सक
और वहां प ंचने म सफल हो गई। इस अ भयान म थान- थान पर मगध सेना को पराजय
का सामना करना पड़ा। वह त- व त होती जा रही थी। इस बीच चाण य का नंद शासन
के व चार अ भयान भी जारी रहा। इससे आम जनता क सहानुभू त भी चं गु त के
प म होती जा रही थी।
पाट लपु के ग के चार ओर क सुर ा खाई म पानी शोण नद से जाता था।
चाण य के परामश व सरे सै य वशेष के मतानुसार चं गु त ने शोण नद पर प थर व
मट् ट से बांध बनवाकर नद के पानी का बहाव कवा दया व पानी सरी दशा म बहने
लगा।
खाई म पानी का तर घटता गया। फर इतना कम हो गया क ग के ार के सामने
क खाई को मट् ट ारा पाटकर आने-जाने के लए पट् टय का नमाण संभव हो पाया।
पट् टयां इतनी ठोस थ क उन पर से हाथी भी कले तक जा सकते थे। खाई पार कर
चं गु त क सेना ने ग के ार को तोड़ डाला व भीतर व हो गई।
मगध के नंद क बची-खुची सेना ग के भीतर अं तम र ा पं के प म तैनात
थी। पर वह चं गु त क वजयी सेना के वाह के सामने कतनी दे र टकती?
ग पर शी ही चं गु त क पताका फहराई गई।
स ाट समू यांनद को बंद बना लया गया। आचाय शकटार को कारागार से मु
मली। उ ह ने आचाय चं गु त का आभार कट कया।
चं गु त उस अंधकूप म गए जहां उनके पतामह सूयवन के बंद होने क बात वष
से कही जाती रही थी। वहां उ ह केवल एक नरकंकाल मला। चं गु त ने उस नरकंकाल के
चरण भावनावश छु ए और उसके व धवत दाह-सं कार क या पूण करवाई।
उधर चाण य ने समू यानंद तथा उसके बाक जी वत ाता को मृ युदंड क
घोषणा करवाई। वे श ु का समूल नाश करवाने म व ास रखते थे। सांप को अधमरा
छोड़ना कोई बु मानी का ल ण नह है। आचाय व सार तथा उनका पु रा स हाथ नह
आए।
चं गु त क सेना के पाट लपु प ंचने से पहले ही दोन पलायन कर भू मगत हो गए
थे। इससे चाण य कुछ नराश ए।
वे एक बार रा स से भट करना चाहते थे।
सारे काय संप होने के प ात चं गु त मौय के मगध सा ा य के स ाट के प म
राज तलक क तैया रयां आरंभ । राजकुमारी कर भका मगध स ाट क महारानी बनने
के सपने दे खने लगी।
इससे पहले चं गु त मौय का राज तलक हो पाता एक गंभीर समाचार पाट लपु
वा सय को मला। इससे चं गु त व चाण य च तत हो उठे ।
राज तलक समारोह थ गत करना पड़ा।
समाचार यह था क यूनान से एक और स ाट, जो सकंदर क भां त ही शूरवीर था,
एक वशाल सेना लेकर पुनः भारत वजय के अ भयान पर नकल पड़ा था और वह सारे
सा ा य पर वजय ा त करता आ ह कुश पवत पार कर रहा था।
चं गु त के लए स ाट क ग पर बैठने से पहले इस नई सम या का समाधान
करना आव यक था।
सकंदर क मृ यु के बाद यूनान म उसके उ रा धका रय म कलह फूट गई थी।
सकंदर के सा ा य के पांच टु कड़े हो गए थे। परंतु उन पांच टु कड़ म एक ब त श शाली
था। वा तव म वही सकंदर क महानता व परंपरा का वा रस था। वहां के स ाट का नाम था
से यूकस, जो सकंदर क भां त शूरवीर और बलशाली था। वह भी व वजय अ भयान पर
नकल पड़ा। वह भारत भू म को अपने पूवज सकंदर क वरासत मानकर दोबारा उस पर
यूनानी झंडा फहराना चाहता था।
चं गु त तथा चाण य के लए चता का वषय यह था क वदे शी आ ांता हर बार
नए यु आयुध तथा नई यु प तय लेकर आते थे, जसका भारतीय शासक के पास
कोई उ र नह होता था।
चाण य ने कहा क उ ह हर अव था म पहले से यूकस से नपटना होगा वरना
उनक अब तक क सफलताएं अथहीन हो जाएंगी।
चं गु त फर अपनी सारी सेना लेकर से यूकस का सामना करने चल पड़ा। यूनानी
आ ांता को भारत भू म म पैठ बनाने दे ना खतरे से खाली नह था। योजना उसे सीमा पर ही
ट कर दे ने क थी। कई स ताह क या ा के बाद चं गु त क सेना सधु तट के नकट
प ंची।
से यूकस सधु नद के पूव तट तक प ंच गया था। उसके साथ एक वशाल सेना
थी। दोन सेना म यु छड़ गया। यु कई दन चला। पलड़ा बार-बार बदलता रहा। अंत
म चं गु त क सेना यूनानी सेना पर भारी पड़ने लगी। य प यूनानी सेना अ धक आधु नक
ह थयार से लैस थी। उसके उ र म चं गु त के पास सेना क सं या अ धक थी।
अंत म से यूकस को बंद बना लया गया।
अब यह था क आगे या कया जाए, य क इस यु के कई पहलू थे।
से यूकस को परा जत करना सम या का अं तम हल नह था। भारतीय नरेश तथा व ान
क एक सभा बुलाई गई जसम चाण य ने अपने वचार रखे। उनका कहना था—
‘यूनान व भारत क सम या ब त उलझ गई है। सकंदर के आ मण, यवन के वष
भारत म रहने तथा दोन भूभाग क सं कृ तय के मलाप से नई थ त उ प हो गई है।
यूनानी भावना मक प से भारत से जुड़ गए ह और हमारे भू-भाग को अपना अंग समझने
लगे ह। यह बात नी तगत प से कतनी भी अनु चत व असंगत हो, पर एक ठोस त य बन
गया है। सकंदर के ॉप को हमने समा त कर दया तो अब से यूकस आया है।
य द हम से यूकस को बंद बनाकर रखते ह अथवा मृ युदंड दे ते ह तो से यूकस का
उ रा धकारी तशोध लेने या भारत भू म को फर व जत करने के लए आएगा। इसका
कोई अंत नह होगा। हमारे दे श के नरेश के सर पर यवन आ मण का खतरा सदा तलवार
क भां त लटकता रहेगा।
हमारे दे श म कोई सा ा य थर नह हो पाएगा। उसका सारा अ त व यवन खतर
से नपटने म ही चुक जाएगा। कैसे हम सुचा शासन व था था पत कर पाएंगे व आ थक
उ त कर पाएंगे य द हमारी सारी श यवन आ मण के तरोध म लगी रहेगी?
हम इस सम या का कोई थायी हल खोजना पड़ेगा ता क हम आ मण के भय से
मु हो जाएं।’
चाण य का कथन सही था। सभी नरेश तथा राजनी तक व ान पूणतः सहमत थे।
पर वह थायी हल या हो सकता था?
ब त वचार मंथन के प ात न कष यह नकाला गया क मै ी संबंध था पत कए
जाएं। मै ी संबंध कसी ऐसे ठोस आधार पर ह जससे यु क संभावना ही समा त हो
जाए।
इसका पाठ यूना नय से ही लया गया।
कसी ने सुझाया क ववाह संबंध मै ी का सबसे ठोस आधार होता है। से यूकस
क बेट हेलेना अपने पता के साथ अ भयान म आई थी। वह युवा थी और सुंदर भी। य द
उसका ववाह चं गु त मौय से हो जाए तो भारत व यूनान एक प व संबंध म बंध जाएंगे,
फर श ुता का ही नह उठे गा।
चाण य को यह सुझाव ब त उ चत व बु म ापूण लगा। चाण य ने सुझाव
चं गु त मौय के सामने रखा परंतु वह उलझन म पड़ गया।
वह कर भका को या उ र दे गा?
चाण य ने कहा क दे श हत गत वाथ से ऊपर होना चा हए। भावी स ाट
को इतना ब लदान दे ने म संकोच नह करना चा हए।
ववाह का ताव से यूकस के सामने रखा गया। उसने यह संबंध सहष वीकार
कर लया।
चाण य ने सारी प र थ त कर भका के सामने रखी। कर भका वदे श हत के लए
अपने ेम का ब लदान दे ने के लए तैयार हो गई।
अब सारी बाधाएं र हो गई थ ।
चं गु त मौय तथा हेलेना का ववाह धूमधाम से संप हो गया। ववाह के बाद
चं गु त मौय का रा या भषेक आ। रा या भषेक समारोह तक से यूकस भारत म ही रहे।
उनक पु ी भारत के सवा धक वशाल सा ा य मगध क महारानी बन गई।
दोन प के म य दशक से चला आ रहा संघष तथा टकराव का इ तहास समा त
हो गया। नरम मधुर संबंध का एक नया अ याय आरंभ हो गया था। दोन जा तय के लए
यह एक सुखद अनुभव था।
स ाट चं गु त मौय ने वाभा वक प से अपने गु चाण य को धानमं ी का पद
संभालने का अनु ह कया। उ ह अपने गु से अ धक व त व कुशल राजनी तक और
कहां मलता।
चाण य ने धानमं ी बनना वीकार कया। अब वे अपनी सारी सं वधान संचा लत
राजशाही तथा अथतं व नाग रक नयमावली क प रक पनाएं ावहा रक प म लागू
कर सकते थे।
अपने सवागीण सं वधान को लागू करने के अलावा चाण य ने मगध सा ा य के
व तार के लए अपनी कूटनी त का खुला योग कया। पड़ोसी रा य को मगध क
अधीनता वीकार करने के लए उ ह बा धत कया गया। जो नह झुके उ ह या तो सै नक
अ भयान म न कया गया या व ोह करवाकर हरा दया गया। सभी रा य को मगध
सा ा य का अंग बनाया गया और एक वशाल सावभौम सा ा य उभरकर सामने आ गया,
जसका व तार ईरान, क याकुमारी, म य ए शया, त बत व पूव म आज के वयतनाम-
थाईलड तक था और उसके एकछ स ाट थे चं गु त मौय, चाण य के श य।
अब चाण य अपने सं वधान व अथतं को ल खत प म एक शा के प म
ढालना चाहते थे। अब तक वे प रक पना प म अ ल खत था। शासन के समयकाल म जो
अनुभव ए तथा प रक पना म अ ावहा रक संदभ को संशो धत करना भी आव यक
था। वे सवागीण अथशा लखना चाहते थे जो और के लए एक नी त ंथ बने। उसके
लए समय चा हए था। स ाट चं गु त उ ह समय नह दे सकते थे, य क धानमं ी के
प म उनका पूणका लक शासक बने रहना सा ा य के लए आव यक था।
तो इसका हल या था?
नी त चाण य
चाण य भी जानते थे क स ाट चं गु त क सुर ा के लए भी उनका धानमं ी
पद पर बने रहना आव यक था। चं गु त क जान लेने के कई यास कए गए थे। परंतु
चाण य क कड़ी सुर ा व था के कारण वह यास वफल रहे।
ह या के यास अ धकतर रा स ारा कए गए थे। वह कह गु त थान पर जाकर
था पत हो गया था तथा कुछ अपने पुराने सै नक को संग ठत करने म सफल हो गया था।
कह से वह आ मघाती द ते भेज कर चाण य के लए सम याएं पैदा कर रहा था। वह यो य
था, अ छा योजनाकार था तथा अपने भूतपूव वामी समू यानंद का अब भी वफादार था
तथा अपना कत नभा रहा था।
एक दन गु तचर ने चाण य को बताया क रा स अपनी प नी तथा ब च को
साथ नह ले जा पाया था। उसक प नी व ब चे उसके एक व त साथी चंदनदास के
संर ण म छोड़ दए गए थे।
वे अब भी उसी म के पास थे।
अब चाण य के हाथ म तु प का प ा आ गया था। उ ह ने चंदनदास को बंद बना
लया तथा रा स के बीवी-ब च को अपने क जे म कर लया।
चंदनदास को मृ युदंड क घोषणा क गई। उस पर स ाट के व श ु के साथ-
साथ दे श ोह करने का अ भयोग लगाया गया था। मृ युदंड क घोषणा का रा य भर म खूब
चार कया गया।
रा स अपने स ांत का ब त प का था। उसे यह कैसे गवारा होता क उसके
कारण उसके घ न म क जान जाए? उसे बचाने के लए वह कुछ भी कर सकता था।
इस त य को चाण य जानते थे।
मृ युदंड दए जाने के दन से काफ पहले ही रा स ने आ मसमपण कर दया और
वनती क क उसके म चंदनदास को छोड़ दया जाए, य क वह नद ष था। रा स ने
सारे इ जाम अपने सर पर ले लए।
रा स को चाण य के सामने लाया गया।
चाण य ने पूछा, “ या तुम सचमुच अपने म क जान बचाना चाहते हो?”
रा स ने उ र दया, “हां, उसके लए म कुछ भी कर सकता ं। उसे दया गया मृ यु
दं ड म भुगतने के लए तैयार ।ं वा तव म ही मेरे त म ता नभाने के अ त र चंदनदास
ने कोई अपराध नह कया है।”
चाण य मु कुराए, “रा स! हम तु हारे म को तथा तु हारे प रवार को मादान दे
सकते ह य द तुम मेरी शत मान लो।”
“शत? म तो मृ युदंड के लए भी तैयार ।ं ”
“म तु हारे ाण नह मांग रहा ं।” चाण य बोले।
रा स ने च ककर चाण य क ओर दे खा। या चाण य ने मृ युदंड से भी कठोर दं ड
सोच रखा था उसके लए? यातनाएं?? “ फर?” रा स ने कया।
“म तो चाहता ं क तुम मगध सा ा य के धानमं ी पद का काय-भार संभालो।
हम तु हारी यो यता तथा न ा क आव यकता है। जो वफादारी तुमने राजा समू यानंद के
त दखाई, अब वही तु ह स ाट चं गु त मौय के त दखानी होगी।” चाण य ने अपना
ताव रखा।
चाण य क बात पर र स अवाक रह गया। भला उसे यह उ रदा य व वीकार
करने म या आप हो सकती थी?
इसके प ात रा स ने मगध सा ा य के धानमं ी का कायभार संभाला। चाण य
वयं एक मं ी बन गए।
वा तव म चाण य रा स क यो यता का ब त आदर करते थे और उसक न ा के
त आ त थे क उ रदा य व संभालने के बाद वह चं गु त मौय का स चा हतैषी बन
जाएगा।
अब चाण य के पास अपने सारे शा लखने का समय मल गया और इसी काल
म उ ह ने अपने च चत ंथ लख डाले।
संकट त चाण य
उस काल म जहर दे कर मारना ह या का सबसे अ धक च लत साधन था। राज
प रवार म एक- सरे का प ा साफ करने के लए वष का ही योग कया जाता था।
शासक को सबसे अ धक खतरा वष दए जाने का ही होता था, य क राजा अथवा स ाट
ारा खाए जाने वाले हर भोजन क जांच लगभग असंभव होती थी। चाण य को भी यही
डर लगा रहता था क कोई चं गु त को वष न दे दे ।
उ ह ने इसका एक उपाय सोच लया और शाही भोजनालय के मु य बावच को
व ास म लेकर स ाट को उ ह बताए बना त दन खाने म वष क अ प मा ा दे ने का
बंध कर दया।
तब यह व ास कया जाता था क रोज कसी को थोड़ा-थोड़ा वष दया
जाए तो उसके शरीर म वष नरोधक श पैदा हो जाती है और फर चाण य वयं भी
कुछ जड़ी-बूट व दवा क च क सा का ान रखते थे।
इसी बीच एक बार स ाट चं गु त क महारानी ने स ाट क थाली म से कुछ खाना
लेकर खाया। उन पर वष का भाव आ और वह मर गई। उस समय वह गभवती थी और
सू तकाल के काफ नकट थी।
इस घटना से चाण य ह भ रह गए।
उ ह ने मृत महारानी का पेट चीर कर उनके गभाशय से ब चा नकालने का राजवै
को आदे श दया। य द संभव आ तो वह ब चे को बचाना चाहते थे। पेट व गभाशय चीर कर
ब चा नकाला गया। चम कार यह आ क ब चा जी वत नकला। चीर-फाड़ के दौरान
ब चे के शरीर पर ब के आकार का एक गड् ढा पड़ गया।
उसे दे ख चाण य ने उसका नाम ही ‘ ब सार’ रख दया।
ब सार जब युवाव था म प ंचे तो स ाट चं गु त ने वान थ आ म म जाने का
मन बना लया। रा स क मृ यु हो चुक थी। चं गु त ने राजपाट अपने बेटे ब सार को स प
दया व वयं एक जैन संत के साथ कनाटक म ावण बेलागोला नामक थान पर रहने के
लए चले गए। कुछ समय के बाद चं गु त ने जैन परंपरा का पालन करते ए भोजन पानी
याग दया व नवाण को ा त ए।
इधर ब सार ने शासन भार संभाला तथा कुछ नए मं ी नयु कए। चाण य एक
मं ी के पद पर बने रहे।
नए मं ी चाण य से जलते थे। उनका खयाल था क चाण य मगध सा ा य का
वयं को नमाता समझकर बड़े पतामह क तरह वहार करते ह तथा नए मं य क
यो यता को सदा कम करके आंकते ह।
सुबंधु नामक एक मं ी तो चाण य से ब त चढ़ते थे। स ाट ब सार तो चाण य
का वाभा वक आदर करते ही थे, य क वे ही उनके पता के मागदशक रहे थे।
एक दन सुबंधु ने स ाट के कान म जहर घोल दया क चाण य ने ही उनक माता
को वष दे कर मारा था। ब सार ने अपनी माता क पुरानी प रचा रका को बुलवाया और
पूछताछ क । उ ह सुबंधु पहले ही खरीद चुका था।
प रचा रका ने सुबंधु के दावे का समथन कया। इससे स ाट ब त ो धत ए।
स ाट के ो धत होने का समाचार सुनकर चाण य को अ यंत ोभ आ। मगध
सा ा य के नमाता को अपने जीवन के अं तम पड़ाव पर एक खूनी होने का लांछन घोर
अपमान लगा।
उ ह सारे संसार से वर होने लग गई। चाण य ने खी होकर अपनी सारी संप
गरीब म बांट द या अनाथालय तथा धा मक सं थान को दान कर द ।
इसके प ात उ ह ने उपले और लक ड़यां मंगवाकर चता बनवाई और उस पर
आमरण अनशन पर बैठ गए।
इधर महल के एक पुराने सेवक ने स ाट ब सार को उनक माता क मृ यु का
स चा हाल सुनाया और यह भी राज खोला क कैसे चाण य के आदे श पर मृत महारानी का
पेट चीर कर ब सार को बचाया था। स चाई जानकर स ाट सकते म आ गए।
उ ह सुबंधु क ता पर ब त ोध आया।
सुबंधु को बुलाकर खूब फटकारा गया और आदे श दया गया क वह जाकर चाण य
से मा याचना करे व उनका अनशन तुड़वाए वरना उसे मृ युदंड दया जाएगा।
सुबंधु दौड़ा-दौड़ा चाण य के पास प ंचा, जो चता पर बैठे थे। उसने चाण य से
गड़ गड़ाकर मादान मांगा ले कन चाण य नह पसीजे। उ ह ने मं ी को वहां से चले
जाने के लए कहा।
मं ी सुबंधु लौटकर स ाट के पास गया और चाण य के हठ क बात सुनाई। स ाट
ने एक बार फर मं ी को लताड़ा और कसी भी तरह चाण य को मनाने का आदे श दया।
इस बार मं ी ने रो-रो कर मा मांगी। उसक दशा दे खकर चाण य को दया आ गई
और उ ह ने मा दान दे कर बात समा त क । इस पर सुबंधु ने घोषणा क क चाण य को
समारोहपूवक चता पर से उतारा जाएगा।
यह सब उसक चाल थी। वा तव म उसका दल साफ नह था। उसे चाण य के
कारण नीचा दे खना पड़ा, गड़ गड़ाना पड़ा।
इस कारण वह चाण य से पहले से भी अ धक घृणा करने लगा था।
समारोह क या म उसने कुछ ऐसा बंध कया क चता म रखे उपले सुलग
गए। लोग व चाण य यही समझते रहे क धुआं धूप-अगरब ी का है। तभी हवा चली और
सारी चता एकदम भभक उठ । चाण य लपट म घर गए और दे खते ही दे खते उनक
काया राख क ढे री म बदल गई।
इस कार भारतीय इ तहास का महान कूटनी त तथा सं वधान व अथशा ी घृणा
व ई या क आग क आ त बन गया।
आदमी क ह या क जा सकती है परंतु वचार क नह । वचारधारा अमर है।
चाण य अपनी नी तय और शा ारा सदा भारतीय का मागदशन करते रहगे।
चाण य नी त क बढ़ती लोक यता इसका जीता-जागता माण है।
चाण य के शा
चं गु त को स ाट के प म था पत करने के बाद चाण य अपने राजनी त एवं
अथ व था संबंधी वचार को ंथ प म ढालना (रचना) चाहते थे, जससे आने वाली
पीढ़ लाभा वत हो सके। ले कन धानमं ी पद एवं चं गु त क सुर ा का उ रदा य व
उनके आड़े आ रहा था। अनायास ही जब रा स ारा धानमं ी पद का दा य व हण कर
लया गया तो वे इस ओर से न त हो गए। अब उनके पास पया त समय था, और उ ह ने
अपनी वष क मह वाकां ा को पु तक ( ंथ) प म ढालना शु कर दया।
अथशा
चाण य का अथशा 15 खंड म लखा एक वृहद ंथ है जसम 180 अ याय
तथा 150 भाग ह। इस अथशा म एक राजशाही का पूरा सं वधान है, जसम राजा के
कत , मं मंडल, शासन व था का पूरा च ण है। आ थक व था क पूरी परेखा है।
अथ तं के अ धका रय व कर वसूली क वशद ा या है। इस भाग म खनन, धातु ,
र न , उपर न , ख नज संपदा, खनन व था तथा धातु के उ ोग का भी वणन है। दे खा
जाए तो यह शायद व का थम राजनी तक सं वधान तथा अथ व था का व ध- वधान
है।
चाण य नी त
चाण य नी त उनके ारा लखी सवा धक लोक य व पढ़ जाने वाली रचना है।
इसम उ ह ने सभी शा का सार, जीवन के मू य सू के प म सं कृत दोह व चौपाइय
क शैली म तुत कए ह। इसे पढ़कर एक आम आदमी जीवन म सफलता, उ चत व
अनु चत, नै तक या अनै तक, धम या अधम, बु मानी या मूखता, लाभदायक या
हा नकारक, अ छा या बुरा, उपयोगी या अनुपयोगी क पहचान कर सकता है। इन सू म
चाण य ने श ा पर ब त जोर दया है। वे कहते ह क श ा म ही का असली उ ार
है। पु तक म कुछ पूवा ह यु बात भी ह जो शायद आधु नक जगत क कसौट पर खरी न
उतर। पर आम तौर पर सू ब त तकसंगत ह।
पंचतं कथाएं
ब त से इ तहासकार का मत है क व स पंचतं क कथाएं आचाय
चाण य ने ही व णुगु त नाम से लखी थ । दं त कथा है क एक राजा के चार बेटे थे, बड़े
शरारती व नक मे। श ा ा त करने म उ ह कोई च नह थी। कई अ यापक ने उ ह
पढ़ाना चाहा, पर वे वयं राजकुमार के कारनाम से आतं कत होकर सर पर पैर रख भाग
नकले।
राजा ने पुर कार क घोषणा क क जो व ान उनके चार चकने घड़ पर अ ल
का पानी चढ़ा दे गा उसे वे बड़ा पुर कार दगे।
चुनौती वीकार कर व णुगु त सामने आए। पर उ ह ने पहले ही साफ बता दया क
वह धन के लोभी नह ह। वे यह काय केवल इस लए कर रहे ह ता क राजकुमार के कपाल
के अंदर पड़े प थर से जनता ल लुहान न हो जाए।
उ ह ने श ा का एक नया ही उपाय आजमाया। राजकुमार को वे कहा नयां सुनाते
जनके पा पशु-प ी, पेड़-पौधे व क ट-पतंग होते। कहा नय म चतुराई, सूझबूझ, नी त
तथा नै तक मू य से भरे संदेश होते।
उ ह कहा नय को सुन-सुन कर राजकुमार ानवान व नी तवान बन गए।
इ ह चम कारी कहा नय को पंचतं शीषक से जाना जाता है। यह कहा नयां
सबको इतनी भाय क व क सारी भाषा म इनका अनुवाद हो गया और यह व बाल
सा ह य खजाने के अनमोल मोती बन गए।
य द सचमुच व णुगु त चाण य ही थे तो मानना होगा क चाण य के प म भारत
म एक ऐसे ब आयामी पैदा ए जनका हर आयाम अद्भुत था व उनक रचनाश
अ तीय थी।