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माँ दुर्गा देवी कवच
माँ दुर्गा देवी कवच
ु गा दे वी कवच ।।
दर्
ु गा कवच ह द
िं ी
दर्
ु गा कवच मगकंडेय परु गण (अठगर प्रमख
ु परु गणों में से एक) से ववशेष
श्लोकों कग एक पववत्र सिंग्र ै और दर्
ु गा सप्तशती कग ह स्सग ै।
क ो जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!
प ली शैलपुत्री क लगवे ! दस
ू री ब्रह्मचररणी मन भगवे !!
तीसरी चिंद्रघिंटग शभ
ु नगम ! चौथी कुश्मगिंडग सख
ु िगम !!
पगिंचवी दे वी स्किंद मगतग ! छटी कगत्यगयनी ववख्यगतग !!
सगतवी कगलरगत्रत्र म गमगयग ! आठवी म गर्ौरी जर्जगयग !!
नौवी ससवििगत्रत्र जर् जगने ! नव दर्
ु गा के नगम बखगने !!
म गसिंकट में वन में रण में ! रोर् कोई उपजे क्जन तन में !!
म गववपक्त्त में व्यो गर में ! मगन चग े जो रगज दरबगर में !!
शक्तत कवच को सुने सुनगये ! मनोकगमनग ससवि नर पगए !!
चगमिंड
ु ग ै प्रेत पर, वैष्णवी र्रुड सवगर ! बैल चढी म े श्वरी, गथ सलए
धथयगर !!
क ो जय जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!
क ो जय जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!
भैरवी मेरे जीवन सगथी की, रक्षग करो मेश !
मगन रगज दरबगर में दे वें सदग नरे श !!
॥मगकाडडेय उवगच॥
ॐ यद्र्ह्
ु यिं परमिं लोके सवारक्षगकरिं नण
ृ गम ्।
॥ब्रह्मोवगच॥
प्रथमिं शैलपत्र
ु ी च द्ववतीयिं ब्रह्मचगररणी।
तत
ृ ीयिं चन्द्रघडटे नत कूष्मगडडेनत चतथ
ु क
ा म॥3॥
्
ववषमे दर्
ु मा े चैव भयगतगाः शरणिं र्तगः॥6॥
न तेषगिं जगयते ककक्चचदशुभिं रणसङ्कटे ।
मग े श्वरी वष
ृ गरूढग कौमगरी सशखखवग नग।
श्वेतरूपिगरग दे वी ईश्वरी वष
ृ वग नग।
नगनगभरणशोभगढ्यग नगनगरत्नोपशोसभतगः॥12॥
कुन्तगयि
ु िं त्रत्रशल
ू िं च शगङ्ार्मगयि
ु मत्ु तमम ्॥14॥
िगरयन्त्यगयि
ु गनीथिं दे वगनगिं च ह तगय वै॥15॥
सशखगमद्
ु योनतनन रक्षेदम
ु ग मक्ू ध्ना व्यवक्स्थतग॥21॥
नगससकगयगिं सर्
ु न्दग च उत्तरोष्ठे च चधचाकग।
अिरे चगमत
ृ कलग क्जह्वगयगिं च सरस्वती॥24॥
पत
ू नग कगसमकग मेढ्रिं र्द
ु े मह षवगह नी॥30॥
पगदगिंर्ल
ु ीषु श्री रक्षेत्पगदगिस्तलवगससनी॥32॥
रततमज्जगवसगमगिंसगन्यक्स्थमेदगिंसस पगवाती।
ज्वगलगमख
ु ी नखज्वगलगमभेद्यग सवासिंधिषु॥35॥
कवचेनगवत
ृ ो ननत्यिं यत्र यत्रैव र्च्छनत॥43॥
तत्र तत्रगथालगभश्च ववजयः सगवाकगसमकः।
त्रैलोतये तु भवेत्पज्
ू यः कवचेनगवत
ृ ः पम
ु गन॥45॥
्
यगवद्भम
ू डडलिं ित्ते सशैलवनकगननम।्
|| जय मगाँ दर्
ु गा की ||