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।। मगाँ दर्

ु गा दे वी कवच ।।

।। ॐ श्री र्णेशगय नमः ।।

दर्
ु गा कवच ह द
िं ी

दर्
ु गा कवच मगकंडेय परु गण (अठगर प्रमख
ु परु गणों में से एक) से ववशेष
श्लोकों कग एक पववत्र सिंग्र ै और दर्
ु गा सप्तशती कग ह स्सग ै।

ऋवष मगरकिंडे ने पूछग जभी !


दयग करके ब्रह्मगजी बोले तभी !!
कक जो र्प्ु त मिंत्र ै सिंसगर में !
ैं सब शक्ततयगिं क्जसके अधिकगर में !!
र इक कग जो कर सकतग उपकगर ै !
क्जसे जपने से बेडग ी पगर ै !!
पववत्र कवच दर्
ु गा बलशगली कग !
जो र कगम पूरग करे सवगली कग !!
सुनो मगरकिंडे मैं समझगतग ू ाँ !
मैं नवदर्
ु गा के नगम बतलगतग ू ाँ !!
कवच की मैं सुन्दर चौपगई बनग !
जो अत्यिंत ै र्ुप्त दे ऊिं बतग !!
नव दर्
ु गा कग कवच य , पढे जो मन धचत लगये !
उस पे ककसी प्रकगर कग, कभी कष्ट न आये !!

क ो जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!
प ली शैलपुत्री क लगवे ! दस
ू री ब्रह्मचररणी मन भगवे !!
तीसरी चिंद्रघिंटग शभ
ु नगम ! चौथी कुश्मगिंडग सख
ु िगम !!
पगिंचवी दे वी स्किंद मगतग ! छटी कगत्यगयनी ववख्यगतग !!
सगतवी कगलरगत्रत्र म गमगयग ! आठवी म गर्ौरी जर्जगयग !!
नौवी ससवििगत्रत्र जर् जगने ! नव दर्
ु गा के नगम बखगने !!
म गसिंकट में वन में रण में ! रोर् कोई उपजे क्जन तन में !!
म गववपक्त्त में व्यो गर में ! मगन चग े जो रगज दरबगर में !!
शक्तत कवच को सुने सुनगये ! मनोकगमनग ससवि नर पगए !!
चगमिंड
ु ग ै प्रेत पर, वैष्णवी र्रुड सवगर ! बैल चढी म े श्वरी, गथ सलए
धथयगर !!

क ो जय जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!

िं स सवगरी वगरग ी की ! मोर चढी दर्


ु गा कौमगरी !!
लक्ष्मी दे वी कमल आसीनग ! ब्रह्मी िं स चढी ले वीणग !!
ईश्वरी सदग करे बैल सवगरी ! भततन की करती रखवगरी !!
शिंख चक्र शक्तत त्रत्रशुलग ! ल मस
ू ल कर कमल के फूलग !!
दै त्य नगश करने के कगरण ! रुप अनेक कीन ै िगरण !!
बगर बगर चरण सीस नवगऊिं ! जर्दम्बे के र्ुण को र्गऊाँ !!
कष्ट ननवगरण बलशगली मगाँ ! दष्ु ट सिंघगरण म गकगली मगाँ !!
कोहट कोहट मगतग प्रणगम ! पण
ू ा कीजो मेरे कगम !!
दयग करो बलशगसलनी, दगस के कष्ट समटगओ !
मेरी रक्षग को सदग, ससिं चढी मगाँ आओ !!

क ो जय जय जय म गरगनी की !
जय दर्
ु गा अष्ट भवगनी की !!
भैरवी मेरे जीवन सगथी की, रक्षग करो मेश !
मगन रगज दरबगर में दे वें सदग नरे श !!

यगत्रग में दःु ख कोई न, मेरे ससर पर आये !


कवच तुम् गरग र जर् , मेरी करे स गये !!
ऐ जर् जननी कर दयग, इतनग दो वरदगन !
सलखग तम्
ु गरग कवच य , पढे जो ननश्चय मगन !!
मनवगिंनछत फल पगए वो, मिंर्ल मोद बसगए !
कवच तुम् गरग पढ़ते ी, नवननधि घर आये !!
ब्रह्मगजी बोले सन
ु ो मगरकिंडे!
य दर्
ु गा कवच मैंने तम
ु को सन
ु गयग !!
र ग आज तक थग र्ुप्त भेद सगरग !
जर्त की भलगई को मैंने बतगयग !!
सभी शक्ततयगिं जर् की करके एकत्रत्रत !
ै समट्टी की दे को इसे जो प नगयग !!
मैं क्जसने श्रिग से इसको पढ़ग जो !
सन
ु ग तो भी मु मगाँर्ग वरदगन पगयग !!
जो सिंसगर में अपने मिंर्ल को चग े !
तो रदम य ी कवच र्गतग चलग जग !!
त्रबयगवगन जिंर्ल हदशगओिं दशों में !
तू शक्तत की जय जय मनगतग चलग जग !!
तू जल में, तू थल में, तू अक्नन पवन में !
कवच प न कर मुस्कुरगतग चलग जग !!
ननडर ो ववचर मन ज गाँ तेरग चग े !
अपने कदम आर्े बढ़तग चलग जग !!
तेरग मगन िन िगम इससे बढे र्ग !
तू श्रिग से दर्
ु गा कवच को जो र्गए !!
अक्नन से अक्नन दे वतग ! पूवा हदशग में ऐन्द्री !!
दक्षक्षण में वगरग ी मेरी ! नैऋत्य में खडर् िगररणी !!
वगयु से मगाँ मर्
ृ वगह नी ! पक्श्चम में दे वी वगरुणी !!
उत्तर में मगाँ कौमगरी जी ! ईशगन में शूल िगरी जी !!
ब्रह्मगणी मगतग अशा पर ! मगाँ वैष्णवी इस फशा पर !!
चगमिंड
ु ग दस हदशगओिं में, र कष्ट तम
ु मेरग रो !
सिंसगर में मगतग मेरी, रक्षग करो रक्षग करो !!

सन्मुख मेरे दे वी जयग ! पगछे ो मगतग ववजयग !!


अक्जतग खडी बगएिं मेरे ! अपरगक्जतग दगयें मेरे !!
उद्योनतनी मगाँ सशखग की ! मगाँ उमग दे वी ससर की ी !!
मगलग िगरी ललगट की, और भक
ृ ु हट की मगाँ यशस्वनी !
भक
ृ ु हट के मध्य त्रयनेत्रग, यम घिंटग दोनो नगससकग !!
कगली कपोलों की कणा, मल
ू ों की मगतग शिंकरी !
नगससकग में अिंश अपनग, मगाँ सुर्िंिग तुम िरो !!
सिंसगर में मगतग मेरी, रक्षग करो रक्षग करो !!

ऊपर व नीचे ोठों की ! मगाँ चचाकग अमत


ृ कली !!
जीभग की मगतग सरस्वती ! दगिंतों की कौमगरी सती !!
इस किंठ की मगाँ चक्डडकग ! और धचत्रघिंटग घिंटी की !!
कगमगक्षी मगाँ ठोडी की ! मगाँ मिंर्लग इस वगणी की !!
ग्रीवग की भद्रकगली मगाँ ! रक्षग करे बलशगली मगाँ !!
दोनो भुजगओिं की मेरे, रक्षग करे िनु िगरणी !
दो गथों के सब अिंर्ों की, रक्षग करे जर्तगरणी !!
शूलेश्वरी, कूलेश्वरी, म गदे वी शोक ववनगशगनी !
छगती स्तनों और कन्िों की, रक्षग करे जर्वगससनी !!
हृदय उदर और नगसभ के, कहट भगर् के सब अिंर्ों की !
र्ुह्येश्वरी मगाँ पूतनग, जर् जननी श्यगमग रिं र् की !!
घुटनों जन्घगओिं की करे रक्षग वो वविंध्यवगससनी !
टखनों व पगाँव की करे रक्षग वो सशव की दगसनी !!
रतत मगिंस और ड्डडयों से जो बनग शरीर !
आतों और वपत वगत में, भरग अनन और नीर !!
बल बवु ि अिं कगर और, प्रगण अपगन समगन !
सत, रज, तम के र्ण
ु ों में फाँसी ै य जगन !!
िगर अनेकों रुप ी रक्षग कररयो आन !
तेरी कृपग से ी मगाँ सब कग ै कल्यगण !!
आयु यश और कीनता िन सम्पनत पररवगर !
ब्रह्मगणी और लक्ष्मी, पगवाती जर्तगर !!
ववद्यग दे मगाँ सरस्वती सब सख
ु ों की मल
ू !
दष्ु टों से रक्षग करो गथ सलए त्रत्रशल
ू !!

य ी मिंत्र, यन्त्र य ी तिंत्र तेरग !


य ी तेरे ससर से ै सिंकट टगयें !!
य ी भूत और प्रेत के भय कग नगशक !
य ी कवच श्रिग व भक्तत बढ़गये !!
इसे ननसहदन श्रिग से पढ़ कर !
जो चग े तो मु मगाँर्ग वरदगन पगए !!
इस कवच को प्रेम से जो पढे !
कृपग से आहद भवगनी की, बल और बवु ि बढे !!
श्रिग से जपतग र े , जर्दम्बे कग नगम !
सुख भोर्े सिंसगर में, अिंत मुक्तत सुखिगम !!
कृपग करो मगतेश्वरी, बगलक मैं नगदगन !
तेरे दर पर आ धर्रग, करो मैय्यग कल्यगण !!
!! जय मगतग दी !!
दर्
ु गा कवच सिंस्कृत में

॥मगकाडडेय उवगच॥

ॐ यद्र्ह्
ु यिं परमिं लोके सवारक्षगकरिं नण
ृ गम ्।

यन्न कस्य धचदगख्यगतिं तन्मे ब्रहू वपतगम ॥1॥

॥ब्रह्मोवगच॥

अक्स्त र्ुह्यतमिं ववप्र सवाभूतोपकगरकम।्

दे व्यगस्तु कवचिं पुडयिं तच्छृणुष्व म गमुने॥2॥

प्रथमिं शैलपत्र
ु ी च द्ववतीयिं ब्रह्मचगररणी।

तत
ृ ीयिं चन्द्रघडटे नत कूष्मगडडेनत चतथ
ु क
ा म॥3॥

पिंचमिं स्कन्दमगतेनत षष्ठिं कगत्यगयनीनत च।

सप्तमिं कगलरगत्रीनत म गर्ौरीनत चगष्टमम॥4॥


नवमिं ससविदगत्री च नवदर्


ु गाः प्रकीनतातगः।

उततगन्येतगनन नगमगनन ब्रह्मणैव म गत्मनग॥5॥

अक्नननग दह्यमगनस्तु शत्रम


ु ध्ये र्तो रणे।

ववषमे दर्
ु मा े चैव भयगतगाः शरणिं र्तगः॥6॥
न तेषगिं जगयते ककक्चचदशुभिं रणसङ्कटे ।

नगपदिं तस्य पश्यगसम शोकदःु खभयिं न ी॥7॥

यैस्तु भतत्यग स्मत


ृ ग नूनिं तेषगिं ववृ िः प्रजगयते।

ये त्वगिं स्मरक्न्त दे वेसश रक्षसे तगन्न सिंशयः॥8॥

मग े श्वरी वष
ृ गरूढग कौमगरी सशखखवग नग।

लक्ष्मी: पद्मगसनग दे वी पद्म स्तग ररवप्रयग॥10॥

श्वेतरूपिगरग दे वी ईश्वरी वष
ृ वग नग।

ब्रगह्मी िं ससमगरूढग सवगाभरणभूवषतग॥11॥

इत्येतग मगतरः सवगाः सवायोर्समक्न्वतगः।

नगनगभरणशोभगढ्यग नगनगरत्नोपशोसभतगः॥12॥

दृश्यन्ते रथमगरूढग दे व्यगः क्रोिसमगकुलग:।

शङ्खिं चक्रिं र्दगिं शक्ततिं लिं च मस


ु लगयुिम ्॥13॥

खेटकिं तोमरिं चैव परशुिं पगशमेव च।

कुन्तगयि
ु िं त्रत्रशल
ू िं च शगङ्ार्मगयि
ु मत्ु तमम ्॥14॥

दै त्यगनगिं दे नगशगय भततगनगमभयगय च।

िगरयन्त्यगयि
ु गनीथिं दे वगनगिं च ह तगय वै॥15॥

नमस्तेऽस्तु म गरौद्रे म गघोरपरगक्रमे।

म गबले म ोत्सग े म गभयववनगसशनन॥16॥


त्रगह मगिं दे वव दष्ु प्रेक्ष्ये शत्रूणगिं भयवधिानन।

प्रगच्यगिं रक्षतु मगमैक्न्द्र आननेय्यगमक्ननदे वतग॥17॥

दक्षक्षणेऽवतु वगरग ी नैऋत्यगिं खङ्र्िगररणी।

प्रतीच्यगिं वगरुणी रक्षेद् वगयव्यगिं मर्


ृ वगह नी॥18॥

उदीच्यगिं पगतु कौमगरी ऐशगन्यगिं शल


ू िगररणी।

ऊध्वं ब्रह्मगणी में रक्षेदिस्तगद् वैष्णवी तथग॥19॥

एविं दश हदशो रक्षेच्चगमुडडग शववग गनग।

जगयग मे चगग्रतः पगतु: ववजयग पगतु पष्ृ ठतः॥20॥

अक्जतग वगमपगश्वे तु दक्षक्षणे चगपरगक्जतग।

सशखगमद्
ु योनतनन रक्षेदम
ु ग मक्ू ध्ना व्यवक्स्थतग॥21॥

मगलगिगरी ललगटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशक्स्वनी।

त्रत्रनेत्रग च भ्रुवोमाध्ये यमघडटग च नगससके॥22॥

शिंखखनी चक्षुषोमाध्ये श्रोत्रयोद्ावगरवगससनी।

कपोलौ कगसलकग रक्षेत्कणामल


ू े च शगिंकरी॥23॥

नगससकगयगिं सर्
ु न्दग च उत्तरोष्ठे च चधचाकग।

अिरे चगमत
ृ कलग क्जह्वगयगिं च सरस्वती॥24॥

दन्तगन ् रक्षतु कौमगरी कडठदे शे तु चक्डडकग।

घक्डटकगिं धचत्रघडटग च म गमगयग च तगलक


ु े ॥25॥
कगमगक्षी धचबुकिं रक्षेद् वगचिं मे सवामिंर्लग।

ग्रीवगयगिं भद्रकगली च पष्ृ ठविंशे िनि


ु रा ी॥26॥

नीलग्रीवग बह ःकडठे नसलकगिं नलकूबरी।

स्कन्ियोः खड्धर्नी रक्षेद् बग ू में व्रजिगररणी॥27॥

स्तयोदा क्डडनी रक्षेदक्म्बकग चगिंर्ल


ु ीषु च।

नखगिंछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥

स्तनौ रक्षेन्म गदे वी मनः शोकववनगसशनी।

हृदये लसलतग दे वी उदरे शूलिगररणी॥29॥

नगभौ च कगसमनी रक्षेद् र्ह्


ु यिं र्ह्
ु येश्वरी तथग।

पत
ू नग कगसमकग मेढ्रिं र्द
ु े मह षवगह नी॥30॥

कटयगिं भर्वती रक्षेज्जगनुनी ववन्ध्यवगससनी।

जिंघे म गबलग रक्षेत्सवाकगमप्रदगनयनी॥31॥

र्ुल्फयोनगारससिं ी च पगदपष्ृ ठे तु तैजसी।

पगदगिंर्ल
ु ीषु श्री रक्षेत्पगदगिस्तलवगससनी॥32॥

नखगन ् दिं ष्रगकरगली च केशगिंश्चैवोध्वाकेसशनी।

रोमकूपेषु कौबेरी त्वचिं वगर्ीश्वरी तथग॥33॥

रततमज्जगवसगमगिंसगन्यक्स्थमेदगिंसस पगवाती।

अन्त्रगखण कगलरगत्रत्रश्च वपत्तिं च मक


ु ु टे श्वरी॥34॥
पद्मगवती पद्मकोशे कफे चूडगमखणस्तथग।

ज्वगलगमख
ु ी नखज्वगलगमभेद्यग सवासिंधिषु॥35॥

शुक्रिं ब्रह्मगखण मे रक्षेच्छगयगिं छत्रेश्वरी तथग।

अ िं कगरिं मनो बवु ििं रक्षेन्मे िमािगररणी॥36॥

प्रगणगपगनौ तथग व्यगनमद


ु गनिं च समगनकम।्

वज्र स्तग च मे रक्षेत्प्रगणिं कल्यगणशोभनग॥37॥

रसे रूपे च र्न्िे च शब्दे स्पशे च योधर्नी।

सत्त्विं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नगरगयणी सदग॥38॥

आयू रक्षतु वगरग ी िमं रक्षतु वैष्णवी।

यशः कीनतं च लक्ष्मीिं च िनिं ववद्यगिं च चकक्रणी॥39॥

र्ोत्रसमन्द्रगखण मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चक्डडके।

पुत्रगन ् रक्षेन्म गलक्ष्मीभगायगं रक्षतु भैरवी॥40॥

न्थगनिं सुपथग रक्षेन्मगर्ं क्षेमकरी तथग।

रगजद्वगरे म गलक्ष्मीववाजयग सवातः क्स्थतग॥41॥

रक्षग ीनिं तु यत्स्थगनिं वक्जातिं कवचेन त।ु

तत्सवं रक्ष मे दे वव जयन्ती पगपनगसशनी॥42॥

पदमेकिं न र्च्छे तु यदीच्छे च्छुभमगत्मनः।

कवचेनगवत
ृ ो ननत्यिं यत्र यत्रैव र्च्छनत॥43॥
तत्र तत्रगथालगभश्च ववजयः सगवाकगसमकः।

यिं यिं धचन्तयते कगमिं तिं तिं प्रगप्नोनत ननक्श्चतम।्

परमैश्वयामतुलिं प्रगप्स्यते भूतले पम


ु गन॥44॥

ननभायो जगयते मत्याः सिंग्रगमेष्वपरगक्जतः।

त्रैलोतये तु भवेत्पज्
ू यः कवचेनगवत
ृ ः पम
ु गन॥45॥

इदिं तु दे व्यगः कवचिं दे वगनगमवप दल


ु भ
ा म।्

यः पठे त्प्रयतो ननत्यिं त्रत्रसन्ध्यिं श्रियगक्न्वतः॥46॥

दै वी कलग भवेत्तस्य त्रैलोतयेष्वपरगक्जतः।

जीवेद् वषाशतिं सगग्रमपमत्ृ यवु ववक्जातः॥47॥

नश्यक्न्त व्यगियः सवे लत


ू गववस्फोटकगदयः।

स्थगवरिं जिंर्मिं चैव कृत्रत्रमिं चगवप यद्ववषम॥48॥


असभचगरगखण सवगाखण मन्त्रयन्त्रगखण भूतले।

भूचरगः खेचरगश्चैव जलजगश्चोपदे सशकगः॥49॥

स जग कुलजग मगलग डगककनी शगककनी तथग।

अन्तररक्षचरग घोरग डगककन्यश्च म गबलगः॥50॥

ग्र भूतवपशगचगश्च यक्षर्न्िवारगक्षसगः।

ब्रह्मरगक्षसवेतगलगः कूष्मगडडग भैरवगदयः॥51॥

नश्यक्न्त दशानगत्तस्य कवचे हृहद सिंक्स्थते।


मगनोन्ननतभावेद् रगज्ञस्तेजोववृ िकरिं परम॥52॥

यशसग विाते सोऽवप कीनतामक्डडतभूतले।

जपेत्सप्तशतीिं चडडीिं कृत्वग तु कवचिं पुरग॥53॥

यगवद्भम
ू डडलिं ित्ते सशैलवनकगननम।्

तगवक्त्तष्ठनत मेहदन्यगिं सिंतनतः पत्र


ु पौत्रत्रकी॥54॥

दे गन्ते परमिं स्थगनिं यत्सुरैरवप दल


ु भ
ा म।्

प्रगप्नोनत पुरुषो ननत्यिं म गमगयगप्रसगदतः॥55॥

लभते परमिं रूपिं सशवेन स मोदते॥ॐ॥56॥

॥ इनत दे व्यगः कवचिं सिंपण


ू म
ा ्॥

|| जय मगाँ दर्
ु गा की ||

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