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श्री गायत्री चालीसा (हिन्दी)

!! ह्रीं श्रीं क्रीं मेधा प्रभा जरवन ज्योति प्रचण्ड,


शान्ति कान्ति जागृि प्रगति रचना शक्ति अखण्ड,
जगि जननर मङ्ग् करतन गायत्रर सुखधाम,
प्रणवों साक्तवत्रर स्वधा स्वाहा पूरन काम !!

!! भूभव
ु ः स्वः ॐ युि जननर,
गायत्रर तनि कत्म् दहनर,
अक्षर चौक्तवस परम पुनरिा,
इनमें बसें शास्त्र श्ुति गरिा !!

!! शाश्वि सिोगुणर सि रूपा,


सत्य सनािन सुधा अनूपा,
हीं सारूढ तसिींबर धारर,
स्वणु कान्ति शुतच गगन!! क्तबहारर -

!! पुस्िक पुष्प कमण्ड्ु मा्ा,


शुभ्र वणु िनु नयन क्तवशा्ा,
ध्यान धरि पु्ककि कहि होई,
सुख उपजि दःु ख दम
ु तु ि खोई !!

!! कामधेनु िुम सुर िरु छाया,


तनराकार की अद्भि
ु माया,
िुम्हरर शरण गहै जो कोई,
िरै सक् सींकट सों सोई !!

!! सरस्विर ्क्ष्मर िुम का्र,


कदपै िुम्हारर ज्योति तनरा्र,
िुम्हरर मकहमा पार न पावैं,
जो शारद शि मुख गुन गावैं !!

!! चार वेद की माि पुनरिा,


िुम ब्रह्माणर गौरर सरिा,
महामतत्र न्जिने जग माहरीं,
कोउ गायत्रर सम नाहरीं !!

!! सुतमरि कहय में ज्ञान प्रकासै,


आ्स पाप अक्तवद्या नासै,

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सृक्ति बरज जग जनतन भवानर,
का्राक्तत्र वरदा कल्याणर !!

!! ब्रह्मा क्तवष्णु रुद्र सुर जेि,े


िुम सों पावें सुरिा िेि,े
िुम भिन की भि िुम्हारे ,
जनतनकहीं पुत्र प्राण िे प्यारे !!

!! मकहमा अपरम्पार िुम्हारर,


जय जय जय क्तत्रपदा भयहारर,
पूररि सक् ज्ञान क्तवज्ञाना,
िुम सम अतधक न जगमे आना !!

!! िुमकहीं जातन कछु रहै न शेषा,


िुमकहीं पाय कछु रहै न क्ेसा,
जानि िुमकहीं िुमकहीं व्है जाई,
पारस परतस कुधािु सुहाई !!

!! िुम्हरर शक्ति कदपै सब ठाई,


मािा िुम सब ठौर समाई,
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे,
सब गतिवान िुम्हारे प्रेरे !!

!! सक् सृक्ति की प्राण क्तवधािा,


पा्क पोषक नाशक त्रािा,
मािेश्वरर दया व्रि धारर,
िुम सन िरे पािकी भारर !!

!! जापर कृ पा िुम्हारर होई,


िापर कृ पा करें सब कोई,
मींद बुक्ति िे बुतध ब् पावें,
रोगर रोग रकहि हो जावें !!

!! दररद्र तमटै कटै सब पररा,


नाशै दःु ख हरै भव भररा,
गृह क्ेश तचि तचतिा भारर,
नासै गायत्रर भय हारर !!

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!! सतिति हरन सुसतिति पावें,
सुख सींपति युि मोद मनावें,
भूि क्तपशाच सबै भय खावें,
यम के दि
ू तनकट नकहीं आवें !!

!! जो सधवा सुतमरें तचि ्ाई,


अछि सुहाग सदा सुखदाई,
घर वर सुख प्रद ्हैं कुमारर,
क्तवधवा रहें सत्य व्रि धारर !!

!! जयति जयति जगदीं ब भवानर,


िुम सम ओर दया्ु न दानर,
जो सिगुरु सो दरक्षा पावे,
सो साधन को सफ् बनावे !!

!! सुतमरन करे सुरूतच बडभागर,


्है मनोरथ गृहर क्तवरागर,
अि तसक्ति नवतनतध की दािा,
सब समथु गायत्रर मािा !!

!! ऋक्तष मुतन यिर िपस्वर योगर,


सो सो मन वाींतछि फ् पावें,
ब् बुतध क्तवद्या शर् स्वभाउ,
धन वैभव यश िेज उछाउ !!

!! सक् बढें उपजें सुख नाना


जे यह पाठ करै धरर ध्याना !!
दोहा
यह चा्रसा भक्ति युि पाठ करे जो कोई
िापार कृ पा प्रसींिा गायत्रर की होय

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