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बृह र भारत का िनमाता

चं गु मौय
िदलीप कमार लाल
चं गु मौय
लगभग 2,500 वष पूव भारत छोट-छोट गणरा य और जनपद म बँटा आ था। आंत रक कलह और पर पर
दु मनी क कारण पूरा देश िबखरता जा रहा था। शासक ऐयाशी करने और धन लुटाने म िनम न थे, अपनी सारी
िज मेदा रयाँ भूल चुक थे। कछ मह वाकां ी राजा सीमा-िव तार क अिभयान म इतने जुट थे िक जा म असंतोष
पनप रहा था। नैितकता क नाम पर राजा का अहकार िवकास क सीि़ढय को दीमक क तरह चाट रहा था। देश
का अ त व खतर म था। आिथक, सामािजक, राजनीितक, सां कितक, कला आिद े अ थरता क िशकार थे।
ऐसे म चाण य जैसे महा दाशिनक, िव ा , राजनीित , अथशा ी और रा -िहतैषी क प म महा गु और
चं गु * जैसे महा स ा का उदय आ। उ ह िदन िवदेशी श याँ भारत क ओर लगातार कदम बढ़ा रही थ ।
लेिकन इन िवषम प र थितय म चाण य क दूरदिशता काम आई और चं गु मौय ने संपूण भारत को एकता क
सू म बाँधकर नवीन भारत िक थापना िक चं गु क िपता, वंश, ज म- थान आिद को लेकर इितहासकार और
िव ान म मतभेद ह। िफर भी, माना जाता ह िक चं गु क िपता िप पिलवन गणरा य क मुख थे। वे मो रय
वंश क थे। मो रय वंश से संबंध होने क कारण चं गु क नाम क साथ ‘मौय’ जुड़ा।
जैन ंथ क अनुसार, ‘मो रय’ शा य क एक शाखा थी। जब कौसल क राजकमार िव धक ने शा य पर
आ मण िकया था, मो रय अपना मूल थान छोड़कर िप पिलवन म बस गए थे। िकवदंती ह िक इस थान पर
चुर सं या म मोर (प ी) पाए जाने क कारण उस वंश का नाम ‘मो रय’ पड़ा था। िप पिलवन मगध का सीमावत
गणरा य था। मगध उन िदन सबसे श शाली रा य था। वहाँ नंद वंश क राजा महाप नंद का शासन था।
महाप नंद मह वाकां ी राजा था। वह सीमावत गणरा य को अपने रा य म िमलाकर मगध का िव तार कर रहा
था। उ ह िदन महाप नंद ने िप पिलवन गणरा य क मुख क ह या कर िप पिलवन को अपने रा य (मगध) म
िमला िलया था। जब महाप ने िप पिलवन पर आ मण िकया था, उस समय चं गु अपनी माँ मूरा देवी क गभ
म था। मूरा िकसी तरह वहाँ से जान बचाकर भाग िनकली और अपने िपता क घर पाटिलपु आ गई। मूरा क िपता
मोर-पालक थे। जैन और बौ गं रथ से माण िमलता ह िक पाटिलपु म चं गु का ज म आ था। चं गु
क ज मकाल तक मो रय वंश का अ त व समा हो चुका था, यानी चं गु क िपता मो रय वंश क अंितम
उ रािधकारी थे।
मूरा को बालक चं गु क पालन-पोषण म किठनाइय का सामना करना पड़ा। आिथक थित डाँवाँ डोल होने से
ब े क लालन-पालन म कई तरह क मुसीबत आड़ आई। िफर अपने ब े का मनोबल न िगर, इसक िलए मूरा
उसे साहिसक कहािनयाँ सुनाया करती थी। बात -बात म अहसास कराती थी िक वह कोई साधारण बालक नह ह।
वह राजकमार ह। उसक िपता िप पिलवन क राजा थे। वह ब े म नंद वंश से ितशोध लेने क भावना े रत करती
थी। वह चं गु को अहसास िदलाती थी िक उसक िपता का ह यारा नंद वंश का राजा महाप नंद ह।
चं गु का बचपन
चं गु बचपन से ही प र मी, कशा बु और धैयवान थे। िवरासत क घु ी म माँ ने चं गु को राजकमार
होने का जो अहसास कराया था, वह उसक दय म घर कर चुका था। उधर, माँ अकसर परशान रहती थी िक ब े
का िवकास कसे हो। यथोिचत िश ा-दी ा कसे संभव हो। िकसी क सलाह पर मूरा ने चं गु को एक िशकारी
क सुपुद कर िदया। िशकारी ने चं गु को मवेशी चराने क िज मेदारी स पी।
कछ इितहासकार और िव ान का मत ह िक चं गु का बचपन मगध े म ही बीता। िकवदंती ह िक वह
नंद क दरबार म राज-कमचारी थे। जब उनक साथ वहाँ अभ यवहार आ तब दरबार छोड़कर भाग गए।
हालाँिक वे बचपन से ही ती बु क थे। नंद क दरबार म चं गु क होने क संदभ म इस घटना का उ ेख
िमलता ह—
िसंहल-नरश ने नंद क दरबार म िपंजर म बंद मोम का िसंह भेजा। देखने म वह -ब- जीिवत िसंह लगता था।
साथ म एक संदेश भी था, िजसम कहा गया था िक िपंजर म बंद इस शेर (िसंह) को िपंजरा खोले बगैर जो गायब
कर देगा, वह सबसे यादा बु मान और ती बु का कहलाएगा। नंद क दरबार म त धता छा गई।
चं गु ने इस काम को करने का बीड़ा उठाया। उ ह ने लोह क एक शलाका (छड़) तपाई। जब शलाका तपकर
लाल हो गई, तब उसे मोम क शेर पर रख िदया। थोड़ी ही देर म बंद िपंजर से शेर गायब हो गया।
वैसे नंद क दरबार म चं गु क होने का ठोस माण कह नह िमलता। मा कहािनय म कह -कह इसका
उ ेख ह।
चं गु गाँव क अ य वाल-बाल क साथ मवेशी चराने लगे। वे सब मवेिशय सिहत गाँव क बाहर एक चरागाह
म जाते थे। बालक चं गु अपने सािथय म सबसे होिशयार और ती बु क थे। उनक समझदारी और सभी
क साथ समान यवहार करने क कारण उ ह सभी स मान देते थे। सभी सािथय ने चं गु को अपना मुिखया मान
िलया था। वे उनक आदेश का पालन करते थे।

चाण य से मुलाकात
एक िदन क बात ह। चं गु सािथय क साथ राजा-राजा का खेल खेल रह थे। इसम वे राजा बने थे। जा बने
उनक साथी बार-बार अपनी सम या बताते थे और वे उनका समाधान करते थे। वे जमीन पर नह बैठ थे, ब क
उनक साथी ही िसंहासन बने ए थे। उनक पीठ पर बैठकर वे याय कर रह थे। संयोगवश त िशला िव ापीठ क
आचाय चाण य उधर से गुजर रह थे। ब का खेल देखकर वे क गए। वे चं गु को देखकर भािवत ए।
चं गु को देखकर उ ह लगा िक यह बालक होनहार ह। उ ह िकसी ऐसे पु ष क तलाश थी, जो नंद से बदला
लेने म उनक मदद कर सक। वे चं गु क गुण- वभाव देखकर हरान थे। एक राजा क प म चं गु अपनी
जा को अभय दान दे रह थे।
उ ह ने चं गु क परी ा लेनी चाही। पास आकर उ ह ने कहा, ‘‘ह राजन! मुझे भी कोई उपहार िमलना चािहए।’’
चं गु ने उ र िदया, ‘‘ह ा ण! आप अपनी पसंद से गाँव क कोई भी गाय ले सकते ह। मेरा वचन भंग करने
का साहस िकसी म नह ह।’’
चाण य ने मुसकराकर कहा, ‘‘म इनम से कोई गाय कसे ले सकता । मुझे उसका मािलक बेरहमी से पीट सकता
ह।’’
चं गु ने कहा, ‘‘मत ड रए। ये गाय म आपको भट करता । जो वीर ह वह पूरी दुिनया पर राज कर सकता
ह।’’
चं गु क बात से चाण य हरान थे। उ ह ने साथ म खेल रह ब से उनका प रचय पूछा। उन ब ने कहा िक
जब यह माँ क गभ म था, तभी इसक माँ ने इसे िकसी सं यासी को स प देने का संक प िकया था। चाण य ने भी
गाँव म आने का उ े य बताया। उनक बात से चं गु भी स हो गए। चाण य ने वचन िदया िक वे उसे
सचमुच का राजा बनाएँग।े चं गु उनक साथ जाने क िलए तैयार हो गए और चाण य चं गु को लेकर चल
िदए।
दूसरी तरफ कहा जाता ह िक मगध क राजा महाप नंद ने जब िप पिलवन पर आ मण कर चं गु क िपता क
ह या कर वहाँ अपना क जा जमा िलया था, तभी उनक माँ ने नंद वंश को न करने का संक प िलया था। जब
चं गु का ज म आ तो उ ह लगा था िक उनका संक प पूरा आ। बात -बात म वह चं गु को नंद राजा से
बदला लेने क िलए े रत करती थी। जब भी बालक चं गु अपने िपता का िज करता, वह कहती, ‘‘पु ,
तु हार िपता क ह या मगध क राजा महाप नंद ने कराई ह। तुम इसका बदला ज र लेना।’’ इस तरह चं गु क
मन म भी नंद वंश को पद-दिलत करने का िवचार आता रहता था।

त िशला और चं गु क िश ा-दी ा
आचाय चाण य क सा य म चं गु ने त िशला िव ापीठ म अ ययन आरभ िकया। त िशला पूव गंधार
रा य म थी। गंधार दो े —पूव और प मी म िवभािजत था। त िशला पूव गंधार म थी, िजसका उ रािधकारी
आंिभ था। प मी गंधार क राजधानी पु कलावती थी। वहाँ क राजा ह ती थे। ह ती वीर और वािभमानी राजा थे।
गंधार क सीमावत रा य ककय क राजा पु मह वाकां ी और बहादुर थे। उन िदन वे रा य-िव तार का
अिभयान चला रह थे। ककयराज पु ने पूव गंधार पर आ मण िकया। गंधार-नरश ने पु से संिध कर उनक
अधीनता वीकार कर ली। गंधार-नरश क पु आंिभ को यह पसंद नह था। उसक मन म ककयराज पु से बदला
लेने क भावना पनपने लगी।
उधर, प म क ओर से यवनराज िसकदर िविभ रा य पर अपना आिधप य जमाते ए आगे बढ़ रहा था।
चूँिक आंिभ क मन म ककय-नरश से ितशोध लेने क भावना बल थी, उसने ष यं रचने और िसकदर से संिध
करने का मन बनाया। वह पु को परा त करने क िलए िकसी भी हद तक जाने क ठान चुका था। इसक सूचना
जब गंधार-नरश यानी आंिभ क िपता को िमली तो वे हत भ रह गए। इसी शोक म उनका ाणांत हो गया।
चं गु क िश ा
त िशला िव ापीठ म चं गु को शा क साथ-साथ यु और शासन क िश ा दी गई। वयं चाण य वहाँ
राजनीित क आचाय थे। उनका संर ण पाकर चं गु का पूरा य व बदल गया। वे ितभाशाली और कशा
बु क तो थे ही, अतः चाण य क चहते बन गए। िव ापीठ म इस ितभाशाली िव ाथ क तूती बोलती थी।
कम ही समय म चं गु ने श -संचालन, यूह रचना, राजनीितक, सै य संचालन, राज- यव था आिद म महारत
हािसल कर ली। अपने अ ययन काल म चं गु ने राजनीितक थितय और पूर भारत क प र थितय का गहन
अ ययन िकया। उ ह ने अपने अ ययन म पाया िक भारत छोट-छोट रा य म बँटा आ ह। श शाली राजा अपने
पड़ोसी रा य पर नजर गड़ाए बैठ ह। बड़ राजा पड़ोसी छोट राजा पर हमलावर हो जाते ह। छोटी-बड़ी लड़ाइयाँ
होती रहती ह। इससे भारत क आंत रक श ीण पड़ती जा रही ह। सै य श याँ भी छटती जा रही ह। वैर-भाव
व वैमन यता भारत क जड़ कमजोर कर रह ह। ऐसे म िवदेशी हमलावर रा य-दर-रा य जीतने म सफल हो रह
ह। चं गु को िव ापीठ म भारत क इस व तु थित का गहराई से अ ययन करने का अवसर िमला था। जब
चं गु क िश ा लगभग पूरी होने को आई, उ ह िदन िवदेशी आ ांता ने िफर से भारत पर आ मण शु
कर िदया। मकदूिनया क राजा िफिलप का पु िसकदर लगातार आगे बढ़ रहा था। वह भारत को जीतकर यहाँ से
धन-संपदा लूटकर अपने देश ले जाना चाहता था। िव ापीठ क सभी िव ाथ इससे उ न थे, ऐसे म चं गु
और आचाय चाण य क न द उड़ना वाभािवक ही था।
गंधार म िसकदर का वेश
प म से उठा िसकदर नाम का तूफान िवजय ा करता आ प मी गंधार क राजधानी पु कलावती प च
गया। िसकदर क सेना ने पु कलावती को अपने घेर म ले िलया, लेिकन राजा ह ती ने हार नह मानी। उ ह ने
वीरता क साथ िसकदर का मुकाबला िकया; पर उनक सैिनक यादा देर तक िटक नह सक। अंत म राजा ह ती
भी अद य साहस, शौय और श का प रचय देते ए यु भूिम म ही वीरगित को ा ए।
उधर, पूव गंधार क राजा आंिभ ने िसकदर क सामने पराजय वीकार कर ली। आंिभ ने सुना था िक िसकदर
शरणागत क र ा करता ह। उसने देशिहत को ितलांजिल दे कायरता का प रचय देते ए अधीनता का वरण कर
िलया। इस कार संपूण गंधार िसकदर क मु ी म चला गया। उधर स ालोलुप आंिभ सम त वािहक ांत का
राजा बनने का सपना देख रहा था। उसक नजर ककय पर थी। वह ककयराज पु को झुका देखना चाहता था।
िसकदर ने ई.पू. 326 म िसंधु नदी को पार कर भारत म वेश िकया था। त िशला को भारत का वेश ार माना
जाता था। आंिभ क रा य पर क जा करने क बाद िसकदर ने िसंधु से िवत ता यानी झेलम नदी तक इस रा य क
सीमा को िव तार दे डाला।
पु क हार
झेलम क तटवत देश ककय क राजा पु को िसकदर ने मुलाकात करने क िलए बुलाया। पु िसकदर क चाल
समझ गया। उसने कहा िक वह यु क मैदान म िसकदर से िमलेगा, वह भी सेना क साथ। उसक बाद िसकदर
ककय रा य क तरफ आगे बढ़ा। झेलम नदी क तट पर यु आ। पु और उसक सैिनक ने िसकदर क सेना
क साथ बहादुरी से लड़ाई क । इसम िसकदर क जीत ई।
इस यु म पु क हार क पीछ कई कारण थे। पहला कारण तो यह था िक पु ने िसकदर क आ मण से
पहले सुर ा मक चाल चली। इससे िसकदर को आ मण करने का मौका पहले िमला। दूसरा, मौसम ने साथ नह
िदया। भारी बा रश क वजह से यु का मैदान क चड़ से भर गया। ऐसे म रथ क पिहये जमीन म धँसने लगे।
सैिनक क हाथ से बा रश क वजह से धनुष िफसलने लगे। तीसरा, पु क घुड़सवार सैिनक क मुकाबले िसकदर
क सैिनक यादा उपयोगी सािबत ए। साथ ही िसकदर क सेना म हाथी भी थे। चौथा, पु ने पूरी सेना को मैदान
म उतार िदया। इस मामले म िसकदर क रणनीित यादा कामयाब रही। िसकदर ने अपनी सेना को कई टकि़डय
म बाँटकर झेलम क तट पर फ ला िदया। इससे यु क दौरान सैिनक क श ीण नह ई। सेना क एक
टकड़ी थक जाती थी तो दूसरी टकड़ी उसक थान पर प च जाती थी।
पु क गु चर यह पता नह लगा पाए िक गंधार-नरश आंिभ भी यवनराज िसकदर क मदद कर रहा था।
इसिलए जब पु क वीर सेना िसकदर क अनुभवी सेना को पीछ धकल रही थी, यु िनणायक मोड़ पर प चने
वाला था, तभी गंधार नरश आंिभ क सेना वहाँ प च गई और यवन क तरफ से लड़ाई लड़ने लगी। ककयराज
क सेना पहले ही लड़ते-लड़ते थक चुक थी। आंिभ क सेना तो अभी लड़ने आई ही थी। अचानक ककयराज पु
का हाथी क चड़ म धँस गया। वह मार डाला गया।
पु को बंदी बनाकर िसकदर क सामने पेश िकया गया। ककयराज पु हथकड़ी और बेि़डय म जकड़ ए थे।
गंधार-नरश आंिभ भी वहाँ उप थत था। वह अपने संक प को याद कर मन-ही-मन स हो रहा था। एक साथ
ही भारत क स ा क ग ी पर बैठने का व न देख रहा था। वह मन-ही-मन सोच रहा था, यवनराज िसकदर
भारत पर िवजय ा कर लौट जाएँगे और संपूण भारत पर उसका शासन होगा।
इसी बीच अचानक एक आवाज गूँजी, ‘‘ककयराज पु ! कल तक तुम इसी रा य क वामी थे, मगर आज तु हारी
हालत कछ और ह। आज तुम बंदी क प म खड़ हो।’’
यवनराज िसकदर क बात से पु जरा भी सहमे नह , ब क उ ह ने िनभ क होकर कहा, ‘‘यह तो समय का फर
ह। िसकदर, यु म आप भी परािजत होते तो जो थित मेरी ह, वह आपक होती।’’
यवनराज िसकदर ककयराज पु क बात सुनकर हरान रह गया। उधर, गंधार-नरश आंिभ पु क बात सुनकर
उबल पड़ा। उसने आव देखा न ताव, अपनी तलवार ख च ली। वह पु क ओर अभी बढ़ा ही था िक यवनराज
िसकदर ने उसे रोक िलया। आंिभ ने कहा, ‘‘यवनराज! इसने अपनी बात से आपका अपमान िकया ह। यह कायर
ह और इसे जीने का कोई अिधकार नह ह। इसे मृ युदंड िदया जाना चािहए।’’
इस पर िसकदर ने कहा, ‘‘ककयराज पु कायर नह , वीर ह। यु म हार जाना कायरता नह ह। जो यु म
हारता ह, वह वीर कहलाता ह। कायर तो वह ह जो यु िकए िबना ही पराजय वीकार कर ले।’’
यवनराज क यह बात आंिभ को तीर क तरह लगी। मार शम क वह कछ बोलने लायक नह रह गया था।
दरअसल, जब िसकदर ने गंधार क ओर कच िकया था, आंिभ ने िबना यु िकए अपनी पराजय वीकार कर ली
थी। वह िसकदर क शरण म चला गया था। यही बात आंिभ को सता रही थी।
अब िसकदर ककयराज पु से मुखाितब आ। िसकदर ने पु से पूछा, ‘‘राजन! आपक साथ कसा बरताव िकया
जाना चािहए?’’
इस पर पु ने उ र िदया, ‘‘जैसा एक राजा दूसर राजा क साथ करता ह।’’
पु क बात म अनुनय-िवनय का भाव नह ब क वािभमान झलक रहा था।
िसकदर को पु का उ र ब त अ छा लगा। उ ह ने कहा, ‘‘पु , तुम वीर तो हो ही, धीर व गंभीर भी हो। तु हारी
वीरता से स होकर हम तु ह ककय सिहत आसपास क रा य क शासन यव था का भार स पते ह।’’
इसक साथ ही िचनाव नदी क प मी े क 37 शहर, िजनक आबादी 5,000 से 10,000 थी, पु को स प
िदए गए। िसकदर ने ककयराज पु को इन े को उनक रा य म िमला लेने को कहा।
आचाय चाण य क िचंता
उधर िसकदर क भारत क ओर लगातार बढ़ते कदम से आचाय चाण य िचंितत थे। उनक िचंता इस बात से और
बढ़ रही थी िक कह भारत पर िसकदर अपना एक छ रा य थािपत न कर ले।
आचाय चाण य ने त िशला म अपने ि य िश य चं गु से अपनी िचंता साझा क । आचाय ने चं गु को
समझाया, ‘‘व स, अगर यवनराज िसकदर ने भारत पर क जा कर िलया तो भारत क एकता, अखंडता और
सं कित समा हो जाएँगी। भारत क स यता और सं कित ही यहाँ क पहचान ह। भारत म िवदेशी सं कित कायम
हो जाएगी और हजार वष क तप या से ऋिष-मुिनय ने िजस भारत को सँवारा ह, वह सदा क िलए जड़-मूल से
न हो जाएगा। भारतवष का अ त व धूल म िमल जाएगा।’’
आचाय क बात से चं गु भी िचंितत हो गए। अब वे अ छी तरह समझ चुक थे िक सं कित का अ त व
िकतना मू यवान ह। उ ह लगा िक इसी बहाने आचाय ने रा धम का एक पाठ भी उ ह पढ़ा िदया। हालाँिक
चं गु और िव ापीठ क अ य िश य को यह जानकारी पहले से थी िक यवनराज िसकदर ने भारत पर आ मण
कर िदया ह; लेिकन उ ह य प से िकसी तरह क ित ि गोचर नह हो रही थी। वे समझ रह थे िक यह
भारत क राजा क िलए िचंता का िवषय ह। आचाय क बात से वे अ छी तरह समझ चुक थे िक िसकदर भारत
क िलए िकस कार घातक ह।
आचाय ने चं गु सिहत िव ापीठ क सभी िव ािथय को बताया िक भारत क रा य क श िछ -िभ हो
चुक ह। उ ह एक सू म बाँधकर संगिठत करना होगा। इसक िलए ज री ह िक भारत म एक संघ क थापना
क जाए और यह काम आसान नह ह। छोट-छोट गणरा य को िमलाकर संघ क थापना करना मसा य काय
ह। परािजत रा य या गणरा य बदले क भावना से ओत- ोत हो जाते ह; पराजय का ितकार करने क िलए
िवजेता का िवनाश करने पर उतर आते ह। अगर बेहतर तरीक से इस काय को अंजाम नह िदया गया तो पूर भारत
म गृह-यु िछड़ सकता ह। संघ म कई रा य िमलाए जाएँग।े इसम बड़ रा य को मह व िदया जाएगा। ऐसे म
छोट-छोट रा य संघ को िवखंिडत करने का यास कर सकते ह।
चं गु को िव ापीठ क िज मेदारी स पकर आचाय चाण य भारत क िविभ रा य -गणरा य म जाकर
एक करण का अलख जगाना चाहते थे। उ ह ने कहा िक वे ककय, कढ, ु क, मालव आिद गणरा य से होते
ए मगध क तरफ जाएँगे। उ ह ने िव ापीठ क अ य छा को भी िविभ रा य -गणरा य म जाकर िसकदर से
सचेत रहने का अिभयान चलाने को कहा।
आचाय चाण य का योगदान
भारतीय इितहास म जब भी चं गु क चचा होती ह, आचाय चाण य का नाम वहाँ आना वाभािवक ह। उनक
पहचान भारत क थम अथशा ी क प भी ह। चं गु मौय क शासनकाल म वे धानमं ी और मु य
सलाहकार थे। दूसर श द म कह तो वे चं गु क भिव य-िनमाता थे। वे त िशला िव ापीठ क आचाय थे और
छा िक वािण य, यु -कौशल, ‘अथशा ’ आिद क िश ा देते थे। वे छा को नीितशा भी पढ़ाते थे।
चाण य को कौिट य और िव णुगु क नाम से भी जाना जाता ह। उनक ारा रिचत ‘अथशा ’ म राजकाज
और राजनीित पर िवशेष काश डाला गया ह। यही वजह ह िक आज भी भारत सिहत यूरोपीय देश म चाण य क
‘अथशा ’ का मह व ह और पा य म म उसक झलक िमलती ह। उनक अथशा म राजनीित को इस कार
समझाया गया ह िक िकसी शासक क िलए वह बेहतर पथ- दशक बन सकता ह। यानी रा य को सहज प से
चलाना हो तो िकसी भी राजा/नेता को चाण य क ‘अथशा ’ को पढ़ना चािहए। वे िव ा और महा
कटनीित होने क साथ-साथ महा रा भ भी थे। जब िसकदर ने भारत क दमन क िलए कदम बढ़ाया तो वे
बौखला उठ और उ ह ने हर हाल म भारत क र ा करने क ठानी। भारत क एक करण क राह म उनक पास
चं गु जैसा महा यो ा और सवगुण-संप य व था।
चं गु क उपल धयाँ
चं गु क जीवन क शु आत संघषपूण रह और उ ह िवरासत क घु ी म िव ोह क भावना िपलाई गई।
इसिलए िव ोह क साथ ही उनक भिव य क शु आत ई। वे त कालीन भारत क प र थितय को िव ोह क
मा यम से बदलना चाहते थे। माना जाता ह िक उनक पहली उपल ध शायद ई.पू. 317 म पंजाब से यूनानी
सेना को खदेड़ना था। यहाँ से उनका िवजय अिभयान शु आ और पाँच साल क अंतराल म वे भारत क एक
बड़ िह से क स ा बन गए। उस समय भारत भौगोिलक ि से एक महा ीप था और इतने बड़ भूभाग म
िकसी ने चं गु िजतनी उपल ध हािसल नह क थी। आयन ने उ ेिखत िकया ह िक उस जमाने म जब राजा
को यक न होता था िक उसक श सबसे अिधक ह तो वह वयं को िद वजयी क उपािध देता था। खासकर
िवदेशी राजा ऐसा करते थे। इस आधार पर चं गु एक सफल िद वजयी थे, य िक उ ह ने सबसे श शाली
िवदेशी से यूकस िनकटर (िवजेता) को हराया था। से यूकस ने पूर प मी एिशया पर क जा कर िलया था। इस
आधार पर बेशक कहा जा सकता ह िक चं गु एक महा िवजेता थे। चं गु मौय का नाम इितहास क िगने-चुने
नायक म शािमल होता, िज ह ने अपने दम पर देश क दशा और िदशा म आमूल-चूल प रवतन क साथ उसे
िवकास क पथ पर ला खड़ा िकया था। भारत क कई राजा ने जब िसकदर क उ रािधका रय क सामने हिथयार
डाल िदए थे, ऐसी प र थित म उ ह ने भारत को िवदेशी ताकत क िशकजे से मु कराया था।
चं गु िसफ एक यो ा ही नह ब क अ य मामल म भी महा थे। वे भारत क राजनीित म जो प रवतन
लाए, वह अ थायी नह था। वे एक िवशाल सा ा य क सं थापक और िवजेता थे। अपने सा ा य म उ ह ने जो
सुशासन थािपत िकया, उनक पु और पौ भी उसे अ ु ण बनाए रखने म सफल रह। भारत को समृ शाली
और गौरवपूण बनाने म चं गु मौय क योगदान क शंसा भारत सिहत िवदेशी इितहासकार भी करते ह।
‘मु ारा स’ क रचियता िवशाखद ने चं गु क बार म कहा ह—बबर और र शासक से भारत क जनता को
मु िदलाकर चं गु ने देवतु य स मान पाया था। िवदेशी लेखक म एकमा रोम क इितहासकार ज टन ने
चं गु को अ याचारी बताया ह। यह मेग थनीज क िवचार से मेल नह खाता। मेग थनीज ने कहा ह िक चं गु
मौय भारत क नायक थे। भारतवािसय को उ ह ने समृ िदलाई। यही कारण ह िक चं गु भारत क िनमाता कह
जाते ह।
चं गु ने िविभ ि क ◌ोण से वयं को महा सािबत िकया था। उ ह ने िविभ राजा पर िवजय ा
क थी। उ ह ने अपनी जा को शांितपूण और सुखमय जीवन दान िकया। वे महा सा ा य क महा शासक
बने। भारत क थम स ा बने। वे अपने समय क सव े शासक थे। उनक िकसी से तुलना नह क जा सकती
और यह आसान भी नह ह। िफर भी, एक सामा य य क तौर पर भी तुलना क जाए तो िसकदर, अकबर और
नेपोिलयन बोनापाट क मुकाबले चं गु मौय महा स ा थे।
बेशक िसकदर को महा कहा जाता ह। स ाई भी ह िक वह महा िवजेता था। उसने कई सफलताएँ हािसल क
थ , लेिकन स ाई यह भी ह िक िसकदर ने उन योजना पर काम िकया था, िजनक आधारिशला उसक िपता
िफिलप ने रखी थी। इितहासकार एच.जी. वे स क श द म कह तो, ‘‘इितहास िसकदर को नायक मानता ह,
लेिकन वह अपने िपता िफिलप क समान महा नह था।’’ वह अपनी योजना म कह -न-कह िपछड़ रहा था।
यही वजह ह िक तनाव क चलते कम उ म उसक मौत हो गई। वह िव िवजेता बनना चाहता था।
लेिकन चं गु म अलग बात थी। वे अलग िक म क पु ष थे। वे िसकदर क समान बहादुर और साहसी तो थे
ही, उनम भारत क जा को आजादी िदलाने क ललक थी। हालाँिक वे िकसी राजपु क समान सोने का च मच
मुँह म लेकर पैदा नह ए थे, लेिकन अपने बूते उ ह ने अपने भिव य का िनमाण िकया था। यही वजह ह िक 18
साल क उ से ही सफलताएँ उनक इद-िगद मँडराने लगी थ । हालाँिक उ ह पराजय का भी सामना करना पड़ा
था, लेिकन कोई भी पराजय अिधक समय तक उनका रा ता नह रोक पाती थी। वे न िसफ िवजेता बने ब क एक
सफल राजा क प म उ ह ने अपनी जा को सार सुख-साधन सुलभ करवाए। इस तरह मु कठ से कहा जा
सकता ह िक चं गु मौय िसकदर क तुलना म कह अिधक महा थे।
मुगल बादशाह अकबर कई मामल म चं गु क समान थे। हालाँिक कला व सं कित क ित झान और
स मान क ि से अकबर क तुलना स ा अशोक से क जाती ह। िफर भी अशोक क मुकाबले चं गु से
उनक छिव अिधक मेल खाती ह। चं गु क तरह ही वे यो ा कित क थे। उनक समान ही वे िवजेता और
राजा भी थे। अकबर को िवरासत म सारी सुिवधाएँ और सा ा य िमला था। चं गु ने गरीबी और सम या से
जूझते ए वयं को थािपत िकया था। उ ह िनवािसत जीवन यतीत करना पड़ा था। डॉ. िव सट मथ का कहना
ह िक अकबर से लगभग 1,900 वष पूव चं गु ने बेहतर शासन यव था थािपत क थी।
इितहास म नेपोिलयन क भी महा छिव ह। उनक तुलना चं गु से क जाती ह, य िक उ ह ने िकसी दूसर क
मा यम से नह ब क वयं क उ म से अपनी मंिजल हािसल क थी। इस कार चं गु असामा य ितभा क
धनी थे। किवय और लेखक ने चं गु क िस क बार म काफ कछ िलखा ह। सही मायने म वे युग-पु ष
थे और इितहास म उनका नाम सदा अमर रहगा।
चं गु मौय का वंश
चं गु मौय क वंश क बार म इितहासकार म मतभेद ह। िव ान ने सािह यक एवं पुराता वक सामि य क
आधार पर अपने िवचार कट िकए ह। िविभ ंथ म मौय क उ पि क बार म वणन िमलता ह। कछ िव ान
का मत ह िक मौय ि य थे, जबिक कछ उ ह शू और पारसी मानते ह; लेिकन अिधकतर माण से प होता
ह िक चं गु ि य थे।
बौ सािह य :मौय ि य थे
यादातर इितहासकार मानते ह िक मौय ि य थे। बौ सािह य क िविभ ंथ से इसक पुि होती ह िक मौय
ि य थे। महावंश क अनुसार, चं गु ‘मो रय’ नामक ि य जाित क थे। मो रय शा य क उस उ जाित क
शाखा थी, िजसम महा मा बु का ज म आ था। महावंश क अनुसार, महा मा बु क समय अ याचारी
कोसल-नरश क आ मण क बाद शा य ने वहाँ से िहमालय क एक सुरि त थान पर शरण ली। िकवदंती ह िक
उ ह ने अपने िलए िजन भवन का िनमाण कराया था, उनका आकार मोर क ीवा क समान था। इसिलए उस
नगर का नाम मो रय नगर पड़ा और वहाँ रहनेवाल को मौय कहा गया। ‘महावंश’ म वणन ह िक नंद से नाराज
होकर चाण य ने नौव नंद राजा घननंद का िवनाश कर चं गु , जो यश वी एवं अिभजात मो रय वंश का था, उसे
सम त जंबू ीप का शासक बनाया। ‘िद यावदान’ म भी चं गु क पु तथा मौय शासक िबंदुसार को ि य
कहा गया। इससे मौय का ि य होना मािणत होता ह। ‘महाप रिन वान सु ’ नामक एक अ य बौ ंथ म
मौय क ि य होने क पुि होती ह। ‘महाबोिधवंश’ से भी ात होता ह िक मौय ि य थे।
जैन गं:रथ से पता चलता ह िक मौय ि य थे। हमचंद रिचत ‘प रिश पवण’ क अनुसार, चं गु मयूर
पालक क सरदार क पु ी का पु था। ‘पु या व कथाकोश’ क रचियता रामचं थे। इसम मौय को ि य कहा
गया। संपूण जैन सािह य म कह भी मौय को शू नह कहा गया,जबिक नंद को शू बताया गया।
लूटाक ने िलखा ह िक ऐं ोकोटस (चं गु ) वयं, जो उस समय नवयुवक था, िसकदर से िमला था। पुराता वक
ोत से बौ एवं जैन धम ंथ म विणत कथन क पुि होती ह िक मौय ि य थे। नंदगढ़ म थत अशोक क
तंभ क िनचले भाग म एक मोर का िच अंिकत ह।
मौय शू थे
कछ इितहासकार का मत ह िक मौय शू थे। ा ण सािह य क अनुसार, मौय क िलए ऐसे श द का इ तेमाल
िकया गया, िजससे उसक शू होने का माण िमलता ह। पुराण म बताया गया ह िक िशशुनाग वंश क िवनाश क
प ा उस वंश क अंितम राजा महानंद क शू प नी से उ प महाप नंद परशुराम क समान ि य का नाश
करनेवाला होगा। 18व सदी म र नगभ नामक िव ा ने ‘िव णु पुराण’ क टीका िलखी थी। उसम उ ह ने बताया
िक चं गु का ज म नंद राजा क प नी मूरा से आ था, इसिलए उसे ‘मौय’ कहा गया। इस आधार पर मौय को
शू कहा गया। हालाँिक मौय को शू कहना यु संगत नह ह। पुराण म कह भी चं गु क जाित का उ ेख
नह ह। इसिलए टीकाकार का चं गु को नंदवंशीय बताना असंगत ह। उ ेखनीय ह िक कवल ा ण सािह य
म ही मौय को शू िदखाया गया। इसका कारण यह हो सकता ह िक मौय शासक ा ण धमावलंबी नह थे। इसी
कारण उ ह ‘वृषल’ कहा गया। एक अ य कारण से यूकस क पु ी से चं गु मौय का िववाह करना भी था।
दरअसल ा ण धमानुयाियय ने इस िववाह को पसंद नह िकया था। यिद चं गु शू होते तो चाण य उ ह राजा
नह बनाते। ‘अथशा ’ म एक थान पर चाण य ने िलखा ह िक जनता उ जातीय (अिभजात) दुबल शासक
को भी स मान दे सकती ह, लेिकन नीच कलीन (अनिभजात) श शाली राजा को भी वीकार नह कर सकती।
मौय पारसी थे
पाटिलपु म उ खनन करानेवाले डॉ. डी.बी. पूनर का िवचार ह िक मौय पारसी थे। उ ह ने अपने मत क समथन
म कहा ह िक चं गु मौय क समय म भारत एवं फारस क सामािजक, धािमक और राजनीितक था म
समानता थी। इस आधार पर माना जा सकता ह िक मौय पारसी रह ह गे। हालाँिक अनेक िव ान ने डॉ. पूनर क
िवचार से अपनी असहमित जताई ह। उनका तक ह िक फारस म ऐसी ब त सी थाएँ थ , जो भारत म नह थ ।
साथ ही भारत म काफ ऐसी थाएँ थ , जो फारस म चिलत नह थ । इससे प होता ह िक चं गु मौय
पारसी नह थे।
िन कष
मौय िन संदेह ि य थे। बौ , जैन और िहदू धम ंथ क आधार पर कहा जा सकता ह िक मौय ि य थे, िज ह
राजपूत भी कहा जाता ह। ‘महाप रिन वान सु ’ से माण िमलता ह िक मौय ि य थे और चं गु क िपता
िप पिलवन क शासक थे। एक ाचीन तोप म पािल भाषा म यह उ ेख िकया गया ह िक चं गु क पु िबंदुसार
और उनक पौ अशोक ि य थे। जैन ंथ ‘क पसू ’ म उ ेख िमलता ह िक मौय क यप गो क थे और वे
समाज म उ वग से संबंध रखते थे। यहाँ उ वग और शासक से प होता ह िक वे ि य थे। पुराण क
आधार पर कहा जा सकता ह िक मौय एक नया वंश था, िजसका नंद वंश से कोई संबंध नह था। शू का रा य
नंद से शु आ और चं गु मौय नंद क क र िवरोधी थे। इस आधार पर कहा जा सकता ह िक मौय ि य
थे। दूसरी तरफ, म यकालीन सािह य म उ ेख िमलता ह िक मौय सूय क उपासक थे और ि य सूय क
उपासना करते थे। इस आधार पर कहा जा सकता ह िक मौय ि य थे।
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चं गु का यु अिभयान
चं गु मौय और चाण य का उ े य िकसी तरह नंद वंश का िवनाश करना और एकता क सू म संपूण भारत
को िपरोकर नए भारत का िनमाण करना था। हालाँिक नंद राजा से लोहा लेना उनक िलए आसान काम नह था।
चं गु और चाण य क यु अिभयान को लेकर इितहासकार क मत म िभ ता ह। कछ इितहासकार का मत
ह िक उ ह ने पहले मगध पर, िफर पंजाब पर आ मण िकया था। कछ का मानना ह िक चाण य और चं गु ने
पहले पंजाब पर आ मण िकया था। कछ इितहासकार का कहना ह िक उ ह ने पहले मगध पर आ मण िकया
था, लेिकन जब सफलता नह िमली तो चं गु ने िसकदर से िमलकर उसे नंद राजा क िखलाफ भड़काने क
रणनीित तैयार क । लेिकन चं गु क अहकार भरी बात से िसकदर इतना नाराज हो गया था िक उसने चं गु
क ह या करने क आ ा दे दी। चं गु िकसी तरह से वहाँ से भाग िनकले।
ंथ ‘महावंश’ क अनुसार, चाण य ने एक िवशाल सेना तैयार कर चं गु को िवजय या ा पर िनकल जाने क
आ ा दी। चं गु ने मगध क नगर और ाम को जीतना शु िकया; लेिकन थानीय लोग ने चं गु क सेना
को घेर िलया और उसे तबाह कर डाला। िकसी कार चं गु और चाण य वहाँ से भागने म सफल रह। उसक
बाद वे दोन अपनी पहचान िछपाने क िलए छ वेश म रहने लगे। जब दोन वेश बदलकर घूमते िफर रह थे तो
एक रात वे एक घर म ठहर थे। वहाँ एक मिहला अपने ब को खाना िखला रही थी। एक ब ा रोटी क
बीचवाले िह से को खा रहा था। रोटी गरम थी और इससे ब े का मुँह झुलस गया। यह देख उस मिहला ने ब े
से कहा िक तु हारा भी काम चं गु जैसा ह। ब े क पूछने पर मिहला ने कहा, ‘तुमने गरम रोटी को िकनार से
खाने क बजाय बीच से खाया। इससे तु हारा मुँह झुलस गया। चं गु ने भी सीमांत देश पर िवजय ा करने
क बजाय मगध क म य भाग पर आ मण िकया। इससे जनता भड़क उठी और उसे मुँह क खानी पड़ी।’ कहा
जाता ह िक इस वा ालाप से े रत होकर चं गु ने अपनी योजना म प रवतन कर पंजाब पर आ मण करने क
योजना बनाई।
पंजाब पर आ मण क तैयारी
पंजाब पर अिधकार करने से पहले चं गु और चाण य को धन, सेना, जनमत और अ य रा य से संबंध बनाना
ज री था। उधर, पंजाब पर अिधकार करने क िलए यूनािनय को खदेड़ना ज री था। िसकदर क जीत क वजह
से पंजाब क एक बड़ भूभाग पर यूनािनय का अिधकार हो गया था। इसक िलए चं गु और चाण य को िवशेष
तैयारी करनी थी।
ाचीन ंथ से पता चलता ह िक चाण य ने यु अिभयान को आगे बढ़ाने क िलए िवं याचल क वन म
जाकर धन इक ा िकया। सेना गिठत करने क िलए चाण य और चं गु दोन िनकल पड़। कहा जाता ह िक
चाण य ने थानीय िनवािसय को सेना म शािमल िकया। इितहासकार ज टन क अनुसार, इन थानीय िनवािसय ,
िज ह चं गु ने अपनी सेना म शािमल िकया था, उ ह लुटरा कहा गया। कछ इितहासकार का कहना ह िक वे
थानीय िनवासी पंजाब क उन गणतांि क जाितय म से थे, िज ह आर अथवा ‘अरा क’ कहा जाता था। उन
पर राजा का िनयं ण नह था। उनक पास ब मू य अ -श और यु सामि याँ थ । उनक मता और
यु -कौशल को चाण य व चं गु ने खूब भुनाया। उन थानीय िनवािसय क ितरोध क भावना और सुसंगिठत
श क बदौलत चं गु क िवशाल सेना तैयार हो गई।
चं गु ने थानीय िनवािसय को सेना म भरती करने क साथ पड़ोसी रा य क राजा से मै ी थािपत क ।
इस तरह अपनी श म वृ क । िवशाखद रिचत नाटक ‘मु ारा स’ से पता चलता ह िक चाण य ने
िहमालय े क एक रा य क राजा पवतक से मै ी क थी। इसक अित र िजन रा य को िसकदर ने जीतकर
अपने अधीन िकया था, वहाँ से जनमत-सं ह करना शु िकया। दरअसल वहाँ क राजा और जा िवदेशी अधीनता
मन से वीकार नह कर पा रह थे। चं गु और चाण य ने इसका फायदा उठाया और उ ह यूनािनय क िखलाफ
भड़काना शु िकया। इस तरह पूरी तैयारी करने क बाद चं गु ने यूनािनय पर आ मण िकया। इसक बाद
चं गु ने पंजाब और उ र-प मी सीमांत ांत को यूनािनय से मु कराया था।
मगध पर आ मण
पंजाब पर िवजय ा करने क बाद चं गु और चाण य ने मगध क ओर कच िकया। इितहासकार का कहना
ह िक चं गु और चाण य जहाँ-जहाँ िवजय ा करते जाते थे वहाँ-वहाँ सैिनक क िनयु करते जाते थे। इस
कार रणनीित बनाकर उ ह ने मगध पर आ मण िकया।
इितहासकार रीज डिव स क अनुसार—‘िजस सेना क बल पर चं गु ने घननंद को परा त िकया था, उसका मूल
आधार पंजाब से भरती िकए गए सैिनक पर था।’
चं गु और मगध क राजा घननंद क सेना क बीच भीषण यु आ। घननंद क सेना म दो लाख पदाित,
बीस हजार अ ारोही, दो हजार रथ और तीन हजार हाथी थे। इतनी िवशाल सेना क बीच घमासान यु आ।
‘िमिलंदप ह ’ क अनुसार, इस यु म चं गु और नंद राजा घननंद क हजार हाथी, अ ारोही और लाख
पदाित मार गए थे। हालाँिक इसे अितशयो पूण माना गया, लेिकन िफर भी रण े म भारी तबाही मची थी। इससे
सहज ही पता लगता ह िक घननंद और चं गु क बीच अ यंत भीषण यु आ था। ‘िमिलंदप ह ’ से ही ात
होता ह िक नंद राजा क सेनापित का नाम भ साल था। इस यु म िहमालय े क राजा पवतक ने चं गु का
साथ िदया था। इस यु म चं गु ने घननंद को परा त िकया। चाण य ने नंद वंश का नामोिनशान तक िमटा
िदया। यहाँ तक िक नंदवंश का राजिच भी ख म कर िदया गया। नंदवंश क िवनाश क बाद चं गु का
आिधप य कायम आ। चं गु ने जनिहत म काम करना शु िकया। यवन से भारत को मु िकया और अपने
वंश क अ त व क उपयोिगता िस क ।
सा ा य का िव तार
नंद वंश क उ मूलन और मगध क ग ी पर आसीन होने क बाद चं गु एक िवशाल सा ा य का स ा बन
गया। मगध क अित र उन सभी देश को, िज ह िसकदर ने अपने अधीन िकया था, चाण य क कटनीित से
चं गु ने अपने सा ा य म िमला िलया। चं गु का सा ा य िहमालय से दि णापथ और बंगाल क खाड़ी से
यमुना नदी तक िव तार पा गया।
से यूकस से मुकाबला
चं गु मौय िजस समय अपने सा ा य का िव तार कर रह थे, उसी समय िसकदर का सेनापित से यूकस भी
एिशयाई-यूनानी सा ा य क िव तार म लगा आ था। िसकदर क मृ यु क बाद उसक दो सेनापितय से यूकस
और एंटीगोनस म सा ा य िवभाजन क मामले म संघष आ। ारभ म एंटीगोनस को सफलता िमली; लेिकन
उसक लगभग 12 साल बाद से यूकस ने बेिबलोन क ◌ो जीत िलया। बाद म से यूकस ने एंटीगोनस को भी हरा
िदया और उसे िम म शरण लेने को मजबूर कर िदया। िसकदर क मृ यु क लगभग 17 साल बाद से यूकस ने
अपना रा यािभषेक िकया और ‘िनकटर’ (िवजेता) क उपािध धारण क ।
से यूकस िसकदर क समान ही वीर एवं मह वाकां ी था। उसने िसकदर ारा जीते ए भारत क देश को िफर
से अपने अधीन करने का यास िकया। उ ेखनीय ह िक िसकदर क मृ यु क प ा ये देश वतं हो गए थे।
इसी उ े य से से यूकस ने पहले बै या पर आ मण िक या, िजसम सफलता िमली। इससे ो सािहत होकर
से यूकस ने भारत पर आ मण िकया। इस बीच भारत क थित बदल चुक थी। जब िसकदर ने भारत पर
आ मण िकया था, उस समय भारत छोट-छोट रा य और प म बँटा आ था। लेिकन अब स ा चं गु ने
भारत को एकता क सू म बाँधकर श शाली बना िदया था। से यूकस का मुकाबला सुगिठत भारत से आ।
नतीजतन उसे अपने ही रा य क कई देश चं गु को स पने पड़। से यूकस ने चं गु से संिध कर ली और
भारत िवजय क अपने अिभयान को िवराम देकर वह एंटीगोनस क िव यु म जुट गया।
इितहासकार लूटाक क अनुसार, से यूकस और चं गु क म य ई संिध म िन निलिखत बात शािमल थ —
● से यूकस ने ए रयाना देश का िव तृत भूभाग चं गु को दे िदया। इस कार चं गु को आ रया, परोपिनसदी,
आक िशया, जे ोिसया आिद देश ा ए थे। आ रया आधुिनक हरात, परोपिनसदी अफगािन तान क उस
पवतीय े को कहा जाता था, जो िहदूकश पवतमाला क नजदीक थत ह। आक िशया आधुिनक कधार और
जै ोिनया बलूिच तान देश को कहा जाता था।
● चं गु ने से यूकस को 500 हाथी िदए थे। इस आधार पर कछ इितहासकार का कहना ह िक यह उपहार
देकर चं गु ने से यूकस से मै ी संबंध थािपत िकया था।
से यूकस और चं गु क बीच संबंध
यवन सेनापित से यूकस ने िसंधु तट पर ई लड़ाई क बाद चं गु को ब त से अमू य उपहार िदए, िजसम धन
और अ य साम ी शािमल थी। िविभ िव ान का कहना ह िक से यूकस ने चं गु को जो सबसे बेशक मती
चीज दी थी, वह थी उसक अितसुंदरी पु ी हलेना। मगध क िव प रष म यह िनणय िलया गया िक यिद
से यूकस क पु ी हलेना से चं गु का िववाह हो जाए तो प मी सीमा यवन क आ मण से सुरि त हो
जाएगी। अतः चं गु ने हलेना से िववाह कर िलया। इससे दोन क बीच मै ी संबंध और भी सु ढ़ हो गए। इसक
पुि उस समय क एक घटना से भी होती ह। कहा जाता ह िक से यूकस को चं गु ने कछ भारतीय औषिधयाँ
भी भेजी थ । से यूकस ने मेग थनीज को चं गु क दरबार म भेजा था। इन संबंध क वजह से भारत कछ समय
क िलए यूनािनय क आ मण क भय से मु हो गया था। अपने रा य क उ र-प मी सीमा को सुरि त करने
क बाद चं गु ने प मी और दि णी भारत क ओर यान िदया। हालाँिक से यूकस को हराने क बाद चं गु
ने अपने सा ा य का िव तार ईरान क सीमा तक कर िलया था, य िक काबुल, हरात, कधार, बलूिच तान आिद
रा य से यूकस क अिधकार म थे।
चं गु ने अपने शासन क अंितम िदन म िद वजय का अिभयान शु िकया। दि ण म उसने अपने रा य क
सीमा का िव तार मैसूर क िशकारपुर ता ुका तक िकया था। दि ण भारत म चं गु ने क कण देश क रा ते
वेश िकया था। िपछले दो हजार वष म िजतने िव तृत सा ा य पर रा य करने का सौभा य चं गु को मा 18
साल क उ म िमला, वह सौभा य न तो िकसी मुगल शासक और न ही अं ेज को ा आ था। उनक इस
असाधारण िवजय क कारण ही उ ह भारत ही नह , संसार क तापी राजा म े माना जाता ह।
चं गु ने प मी भारत पर िवजय ा क थी, इसम कोई संशय नह । दमन क िशलालेख से पता चलता
ह िक चं गु ने उजयत पवत क तराई से बहनेवाली सुवणिस ा और पलीिशनी आिद निदय पर बाँध बनाकर
सौरा म िस सुदशन झील का िनमाण कराया था। बुंबई क थाणे िजला क सोपारा नामक थान से ा
अशोक क िशलालेख से ात होता ह िक सोपारा भी चं गु क अधीन रहा था।
चं गु मौय का रा य-िव तार
चं गु मौय का सा ा य-िव तार दूर-दूर तक था। उ र म िहमालय से दि ण म मैसूर तक और प म म िहदूक
श से पूव म बंगाल तक। अफगािन तान और बलूिच तान, संपूण पंजाब, िसंधु देश, क मीर, नेपाल, गंगा-यमुना
का दोआब, मगध, बंगाल, किलंग, सौरा , मालवा आिद चं गु क सा ा य क अंग थे। इस आधार पर कहा जा
सकता ह िक चं गु मौय संपूण भारत का स ा था।
िसकदर क िवदाई पर नंद वंश क िवनाश क गाथा
िसकदर का अिभयान ारभ से ही िनिव न प से आगे नह बढ़ रहा था। हालाँिक कछ इितहासकार अनुमान लगाते
ह िक िसकदर का अिभयान देखने से िनिव न तीत होता था, लेिकन उसक किठनाइयाँ गहराइय म िछपी थ ।
िसकदर क सेना क भारत से िवदा होते ही सीमावत देश म िव ोह क अ न िलत हो उठी। िसकदर ारा
िनयु प और सेनापितय म इतनी मता नह थी िक वे अपने अधीन थ देश को अपने िनयं ण म रख
सक। चं गु और चाण य क िलए वही उपयु समय था, जब नंद वंश क उ मूलन क आकां ा लेकर वे इस
सीमांत देश म आए। इसिलए भी कहा जाता ह िक िसकदर क िवदाई पर नंद वंश क िवनाश क गाथा िलखी
गई।
िसकदर क मृ यु क बाद यूनािनय क थित
िजस समय िसकदर भारत म था, उसी समय अ कायन ने पु कलावती क प िककनोर क ह या कर दी थी।
अ कायन रा य क शासन म िककनोर क सहायता क िलए एक भारतीय भी िनयु िकया गया था। यूनानी
लेखक ने उसे िसिसको स कहा ह। माना जाता ह िक िसिसको स संभवतः शिशगु होगा। अ कायन
शिशगु क भी ह या कर देना चाहते थे। इसक जानकारी िमलने पर िसकदर ने उसक सहायता क िलए सेना
भेजी थी। इससे उसक र ा ई। िककनोर क ह या क बाद िफिलप पु कलावती का प िनयु िकया गया था।
िफिलप भारत म सबसे अनुभवी यूनानी शासक था। िफिलप क ह या क बाद िसकदर बौखला गया। उसने
त काल आदेश िदया िक त िशला का राजा आंिभ िफिलप का थान हण कर और यूनानी िशिवर का सेनापित
यूडमस उसक सहायता कर; िकतु सेना क अभाव म िव ोिहय क िनरतर बढ़ती श क कारण यूडमस इस काय
म सफल नह हो सका।
िसकदर क मृ यु क बाद भारत म यूनािनय क थित और खराब हो गई। िसकदर क कोई संतान नह थी। बल
उ रािधकारी क अभाव म उसका सा ा य िछ -िभ होने लगा। िसकदर क मृ यु क बाद उसक सेनापितय म
संघष होने लगा। इसने चं गु और चाण य को अपने अिभयान को आगे बढ़ाने का अवसर िदया।
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शासिनक यव था
चं गु ने मगध को जीतने क बाद अपने सा ा य का िव तार शु िकया। सबसे पहले उ ह ने भारत क दि णी
रा य को अपने सा ा य म शािमल िकया। माना जाता ह िक चं गु ही पहला राजा था, िजसने उ र और दि ण
भारत क रा य को एकता क सू म बाँधने का यास िकया। इससे न िसफ चं गु क सा ा य का िव तार आ,
ब क उनक श म भी वृ ई। िपछले दो हजार वष म मुगल और अं ेज ने भारत म अपने सा ा य का
िजतना िव तार नह िकया, उससे कह यादा चं गु मौय ने 18 वष क उ म िकया। उनक असाधारण
उपल धय क कारण संसार क िगने-चुने तापी राजा म उनक िगनती होती ह।
इितहासकार और ाचीन लेख से माण िमलता ह िक चं गु मौय ने उ र-प म म पिशया क सीमा तक
अपने सा ा य का िव तार िकया। दूसरी तरफ गंगा क मैदानी भाग तक सा ा य का िव तार िकया, जो संभवतः
क मीर और नेपाल से लगे िहमालय का तराई े था। दमन क लेख से माण िमलता ह िक प म म
कािठयावाड़ और पूव म बंगाल तक चं गु ने अपने सा ा य का िव तार िकया था। मेग थनीज ने उ ेिखत
िकया ह िक चं गु क समय म आं सबसे श शाली और वतं रा य था। चं गु और उनक
उ रािधका रय ने सुदूर दि ण क पां य, कोल और कर (करल) को वतं छोड़ िदया था। इस कार चं गु
मौय का किलंग, आं और तिमल भूिम को छोड़कर संपूण भारतीय उप-महा ीप म शासन था। अफगािन तान
और बलूिच तान भी चं गु क सा ा य का ही िह सा थे। हालाँिक प प से कहा जा सकता ह िक य
प से चं गु इस िवशाल सा ा य क शासक नह थे। कौिट य यानी चाण य ने उ ेख िकया ह िक िवजेता
राजा अपने उ रािधका रय क प म पु , पौ व अ य सगे-संबंिधय को िविजत रा य क िज मेदारी स प देते
थे। आलेख और सािह य से माण िमलता ह िक दो राजकमार को सामंती स पी गई थी। ‘मु ारा स’ से माण
िमलता ह िक पवतक क पु मलयकतु को चं गु क सामंत क प म उनक रा य म शासन करने क िज मेदारी
स पी गई थी। दमन क जूनागढ़ अिभलेख म अशोक क नाम यवन क जम दारी थी।
चाण य ने कछ िन त संघ —िल छिव, व , म , म , ककर, क और पंचाल—का उ ेख िकया था,
िजनक मुख राजा या नरश कहलाते थे। म को छोड़कर सभी संघ नंद राजा क सा ा य म थे और ये
वाय शासी थे। चं गु क समय भी यहाँ पर वाय शासन था। इसक अलावा चाण य क ‘अथशा ’ से
चं गु क शासनकाल म शासिनक यव था क जानकारी िमलती ह।
चं गु क शासिनक काल म राजा ही शासिनक मुिखया होता था। राजा क पास ही सेना, याय, कानूनी और
अिधशासी श होती थी। समय-समय पर इन संगठन को मजबूत बनाने का काम राजा ही करता था। ाचीन
भारत म राजा क श कभी िनयं ण से बाहर नह रही थी। चाण य ने प िकया ह िक ाचीन भारत म वे
अ छ राजा नह समझे जाते थे, जो अपने आपको संतु करते थे यानी अपने चलाए िनयम को मनवाते थे, ब क
जो िनयम का पालन भी करते थे, वे अ छ राजा समझे जाते थे।
चाण य ने अपने ‘अथशा ’ म 18 कार क अमा य अथवा उ पदािधका रय का उ ेख िकया ह। ये
शासन क िविभ शाखा का संचालन करते थे। मौयकाल क शासिनक यव था म ये शािमल थे। माना
जाता ह िक अशोक क शासनकाल म िजन ‘महामंत ’ का उ ेख िमलता ह वे इ ह से संबंिधत थे। इन
अिधका रय का चयन राजा क देखरख म उनक च र और समाज म स मान क आधार पर िकया जाता था।
शासिनक णािलय क आधार पर चं गु ारा उठाए गए कदम क बार म पता चलता ह। वे अपने रा य म
क याण और समृ थािपत करने क िलए त पर रहते थे। वे िवदेशी दासता झेल रह लोग को मु िदलाने म
यासरत रहते थे।
चं गु क शासनकाल म कौिट य ारा विणत 18 अमा य म मंि ण (कलपित), पुरोिहत (पूजा-पाठ
करानेवाले), सेनापित (मु य सेनािधकारी) और युवराज (राजकमार) होते थे। इनम से येक को 48,000 पण
सालाना वेतन िदया जाता था। इनको िमलाकर आंत रक मंि मंडल का िनमाण िकया गया था। चाण य क अनुसार,
राजा क गु सलाहकार क सं या 3 से कम और 4 से अिधक नह होती थी।
उ अिधका रय क तीय ेणी म दौवा रक या राजा क मु य वागत अिधकारी, अंतवमिशक या राजक य
अंतःपुर का मु य भारी, श या मु य सूचना अिधकारी, स ध या शाही गुमा ता (राजमहल का मु य
कमचारी) तथा समाह या कले टर-जनरल होते थे। उ ह सालाना 24,000 पण का वेतन िदया जाता था। दौवा रक
का काम राजा क साथ जा क मुलाकात कराना और उसक समय का िनधारण करना था। अंतवमिशक का काय
राजक य अंतःपुर क सद य क ज रत और सुिवधा क यव था करना था। श राजा क आदेश को
िलखता था और उ ह सावजिनक करता था। स ध राजमहल क कामकाज को देखता था तथा वही खजांची भी
होता था। खजाना और गोदाम भरने क िज मेदारी भी उसक ही होती थी। जहाँ इसक ज रत होती थी, स ध
ही उपल ध कराने का काम करता था। श ागार व याय क िलए कोट बनाने और मंि य तथा सिचव क िलए
कायालय का िनमाण कराना भी उसी क िज मेदारी होती थी। समाह पूर रा य से राज व क वसूली करता था।
उनक सहायता क िलए गोप होते थे, िजन पर पाँच से दस गाँव क िज मेदारी होती थी। थानीक गोप से बड़ा पद
होता था और उसक अधीन एक पूरा िजला आता था।
चं गु मौय क शासनकाल म उनक मंि प रष म उ पदािधका रय क तीसरी ेणी म पौर यावहा रक या
िसटी मैिज ट, रा पाल या रा य क गवनर, अंतपाल या सीमा क भारी, कमाितक या कारखान क भारी
और नायक या पुिलस मुख होते थे। इनका सालाना वेतन 12,000 पण था।
डॉ. बी.आर. भंडारकर क अनुसार, आधुिनक सिचवालय से मौय सा ा य क मंि प रष क तुलना क जा
सकती ह। मंि प रष क मा यम से राजा और उ पदािधका रय का संपक रहता था। इसका काम िक सी भी
योजना पर काम शु कराना, शु काम को समय पर पूरा कराना और जो काम पूरा हो चुका हो, उसे समय पर
िविधव लागू करना और उसक िवकास एवं रख-रखाव का बंध कराना था।
ऐसा माना जाता ह िक अशोक क िशलालेख और मु ालेख म िजस नगर यावहा रक का उ ेख िमलता ह वही
पौर यावहा रक था। नगर याय शासन क उनक िज मेदारी थी। िविभ मंडल क सा ा य को ांत म बाँटा
गया था। उनम से येक ांत क सरकार क मुिखया को रा पाल (गवनर) कहा जाता था। अंतपाल सीमा क
िज मेदारी सँभालनेवाल का मुिखया था। अशोक क िशलालेख क अनुसार, उनक िज मेदा रय म से एक सीमा
े म व य जनजाितय क क याण और िवकास क िज मेदारी स पी जाती थी। उनक िलए व य सीमा े म
घर बनाने क भी यव था करनी होती थी। रा य क तरफ से ह तिश पकार को रोजगार िदया जाता था।
सामा यतया अनुमान लगाया जाता ह कमाितक इनक भारी होते थे। संभवतः ांत क िलए नायक क िनयु क
जाती थी और वह पुिलस बल का मुख होता था।
चौथी ेणी क अिधका रय म देशतर या िजला अिधकारी, ेणी मुिखया या सहकारी यवसाय क मुख और
मुिखया या सेना क चार समूह क मुख होते थे। इनम से सभी को सालाना 8,000 पण वेतन िदया जाता था।
देशतर क िज मेदारी राज व वसूली क िलए समाह और थानीक क बीच संबंध थािपत करना था। इसक
अलावा उसक िज मेदारी आपरािधक याय (कटकशोधन) क तरह होती थी। ेणीमुख संभवतः ह तिश प तथा
यापा रय क सहकारी सिमितय क मुख होते थे। वे संभवतः सेना क िविभ अंग क बटािलयन या रिजमट क
क टन होते थे। इन अिधका रय क अित र वनपाल या वन अिधकारी और अ य या िविभ अिधका रय क
मुख होते थे। इसक अलावा अिधका रय क आचरण और उनक कामकाज को देखने क िलए और उसक जाँच
क िलए गु चर का नेटवक होता था।
चाण य ने तीन कार क दूत का उ ेख िकया ह। इनम से िवदेश म भेजे जानेवाले दूत को िनःस ाथ यानी
एंबेसडर कहा जाता था। राजा क तरफ से उसे पूर अिधकार देकर भेजा जाता था। िजन दूत को सीिमत अिधकार
देकर भेजा जाता था, वे प रिमताथ या यापार मामल क भारी होते थे। तीसर दज क दूत िसफ राजक य प को
ले जाते थे और उ ह ‘शासनाहर’ कहा जाता था।
इससे यह प होता ह िक मौयकाल म अफसरशाही और यव थत शासन यव था का सार आ था। हालाँिक
यह माना जाता ह िक मौय सा ा य क थापना क पहले ही कौिट य ने ‘अथशा ’ क रचना कर ली थी। लेिकन
चं गु क समय म धानमं ी बनने क बाद उ ह ने इस पु तक क िवचार लागू िकए ह गे।
छह मुख शासिनक िवभाग
चं गु क शासनकाल म सा ा य क शासिनक यव था मु यतया छह मुख िवभाग क देखरख म थी—
1.सैिनक शासन
2.नगरपािलका शासन
3. ामीण शासन
4. ांत यव था
5.िव
6.कानून और याय
सैिनक शासन
मौय सा ा य म सैिनक शासन सु यव थत तथा प रपूण था। मौयकाल म िवशाल थायी सेना थी और उसे
यव थत रखने क िलए सैिनक को िनयिमत प से वेतन िदया जाता था। साथ ही राजा क तरफ से उ ह
हिथयार और यु सामि याँ मुहया कराई जाती थ । मेग थनीज क ‘ लनी’ क अनुसार, चं गु क सेना म 6
लाख पैदल सैिनक, 30 हजार घुड़सवार और 9 हजार हाथी शािमल थे। इसक अलावा उनक सेना म 8 हजार रथ
थे। येक महारथी क रथ म दो या चार घोड़ जुते रहते थे और उस पर सारिथ क अित र दो सश सैिनक
चलते थे। हाथी पर महावत क अित र 4 िनशानची रहते थे। इस कार हािथय क साथ लगभग 36,000 और
रथ क साथ लगभग 24,000 सैिनक चलते थे। इस कार चं गु क कल सैिनक क सं या 6,90,000 थी। इस
तरह पूर सा ा य म सैिनक क छावनी होती थी। कहा जाता ह िक इतनी बड़ी सेना मुगल क पास भी नह थी।
सेना क सव पदािधकारी को सेनापित (कमांडर-इन-चीफ) कहा जाता था और वह िकसी भी िव ोह का दमन
करने क िलए सेना का नेतृ व करता था। यु क समय वह राजमहल से बाहर िनकलकर सेना का नेतृ व करता
था। मेग थनीज क अनुसार, सेना क शासन क िलए एक थायी यु -कायालय था। वहाँ 30 सद य का आयोग
था, िजसे 6 बोड म बाँटा गया था और येक बोड म 5 सद य होते थे। चाण य क अथशा क अनुसार, इन
बोड पर सेना क चार िवभाग क ज रत को पूरा करना और उनक देखभाल करने का दािय व था।
पहला बोड नौ-सेना का संचालन करता था। वह नावा य क प म जाना जाता था। उस पदािधकारी का काम
समु ी जहाज से जुड़ी िविभ िज मेदा रय का िनवहण करना होता था, जैसे—याि य क िलए नाव क यव था
करना, यापा रय से चुंगी वसूलना, संिद ध य य को िगर तार करना और िहमि क या समु ी डाक को
ने तनाबूद करना आिद। इन जहाज क देखरख ांत क तरफ से क जाती थी। निदय म नाव को चलाना
ितबंिधत था, लेिकन समु म ही जोिखम उठाना उनका मु य काम था।
दूसरा बोड या उप-िवभाग सेना क िलए यातायात क देखभाल करता था। उसम बैलगाि़डय क भारी क वह
मदद लेता था। उसे गो य कहा जाता था। इन बैलगाि़डय से यु म इ तेमाल होनेवाले हिथयार, िसपािहय
(सैिनक ) क िलए भोजन साम ी, पशु क िलए चारा तथा सैिनक क िलए अ य उपयोगी सामि याँ भेजी जाती
थ।
तीसरा उप-िवभाग पैदल सेना का था। कौिट य क ‘अथशा ’ क अनुसार, संभवतः इसक भारी प या य क
साथ िमलकर काम करते थे। पैदल सैिनक समान आकार क धनुष (कमान) से लैश होते थे। सैिनक कमान को
धरती पर रखकर काफ जोर से तीर चलाते थे। कहा जाता ह िक वे बाएँ पैर से जमीन पर दबाव डालते थे और
काफ पीछ तक तीर को ख चकर चलाते थे। तीर इतनी तेजी से गुजरता था िक उसे रोकना िकसी क वश म नह
होता था। ये तीर ढाल और कवच को बेधते ए शरीर क अंदर वेश कर जाते थे। सैिनक क बाएँ हाथ म बैल क
मोट चमड़ क ढाल होते थे। कछ सैिनक बरिछय से भी लैस होते थे, जबिक उनक पास तीर-कमान होते थे। सभी
सैिनक क पास चौड़ी और धारदार तलवार होती थ । वे लगभग तीन हाथ लंबी होती थ । यु क समय जब
दु मन से करीबी सामना होता था, ऐसी तलवार उपयोग म लाई जाती थ ।
चौथे उप-िवभाग म घुड़सवार सेना थी। इसक मुख को अ ा य कहा जाता था। येक घुड़सवार क पास
दो न तर और छोटी ढाल होती थी। पैदल सैिनक हिथयार अपने साथ लेकर चलते थे। कबोज और िसंधु क घोड़
को बेहतर न ल का माना जाता था।
पाँचवाँ और छठा उप-िवभाग रथ व हािथय का था। उनक भारी को रथा य और ह या य कहा जाता था।
हािथय और घोड़ क िलए राजक य अ तबल होते थे। अ तबल ही राजक य श ागार होता था। यु से लौट
सैिनक यह हिथयार और हाथी-घोड़ जमा कराते थे।
चं गु क शासनकाल म शासिनक यव था सु ढ़ थी। कौिट य क ‘अथशा ’ क अनुसार, नगर क शासन
क िज मेदारी नागरक (नगर पदािधकारी) क पास होती थी और उनक काम म थानीक व गोप सहायता करते थे।
गोप पर एक िन त सं या क प रवार क िज मेदारी थी, जबिक थानीक गोप क काम पर िनगरानी रखते थे।
छोट शहर क शासिनक यव था पर यह णाली लागू थी। मेग थनीज क अनुसार, मगध क राजधानी पाटिलपु
सिहत अ य महानगर , जैसे त िशला और उ ैन, म भी शासिनक यव था लगभग इसी णाली पर आधा रत
थी।
नगरपािलका शासन
चं गु मौय क सा ा य काल म थानीय नगर शासन क कल छह उप-िवभाग थे। येक िवभाग म 5 सद य
होते थे। कौिट य ने अपने ‘अथशा ’ म कछ अ य का उ ेख िकया ह, िजनक िज मेदा रयाँ इन उप-िवभाग
क काय णाली से जुड़ी थ । इसम पौताव य अथवा माप-तौल अिधकारी, प या य अथवा यापार पदािधकारी
तथा शु का य अथवा चुंगी और कर अिधकारी भी थे। इसी कार मेग थनीज ारा अंितम तीन उप-िवभाग का
वणन िकया गया ह। येक उप-िवभाग का संचालन उनक अिधका रय क नेतृ व म होता था।
पहले उप-िवभाग पर उ ोग-कला से जुड़ मामल क देखभाल करने क िज मेदारी थी। इस िवभाग क सद य
कमचा रय (िश पकार ) क मजदूरी तय करते थे और उनक काम का आकलन करते थे। िश पकार सरकारी
कमचारी होते थे और यिद कोई कमचारी आँख या हाथ से लाचार हो जाता था तो उसे आिथक ितपूित भ ा िदया
जाता था।
दूसर उप-िवभाग क िज मेदारी िवदेिशय पर नजर रखना, उनक देखभाल करना और उनक ज रत को पूरा
करना थी। इस िवभाग का काम िवदेशी मेहमान क ठहरने, उनक खाने-पीने, घूमने आिद का बंध करना और
ज रत पड़ने पर उनक िलए िचिक सा सुिवधा उपल ध कराना था। ांत म रहनेवाले िकसी िवदेशी क मौत हो
जाने पर स मानपूवक उसका अंितम सं कार करना और उसक संपि उपयु उ रािधकारी को स पने क
िज मेदारी भी इसी िवभाग क दायर म आती थी। इससे प होता ह िक चं गु क शासनकाल म िवदेश तक
राजनीितक व आिथक संबंध मजबूत और यव थत थे।
तीसरा उप-िवभाग नगरपािलका क समान ांत म ितिदन क ज म और मृ यु का लेखा-जोखा रखता था।
यव थत तरीक से इसे रिज टर म पंजीकत िकया जाता था। ऐसा करने का मकसद इन आँकड़ क सहायता से
कर वसूली को आसान बनाना तो था ही, राजा क पास जनसं या का पूरा योरा भी होता था। इससे यह प होता
ह िक चं गु का रा य- बंधन काफ गितशील और सु यव थत था।
चौथा उप-िवभाग राजधानी म वािण य और यापार पर िनयं ण रखता था। यह िवभाग बाहर से आए ए माल
पर चुंगी वसूल करता था। यह िवभाग यापार करने क लाइसस भी जारी करता था। इसक िलए दोगुना लाइसस
ट स चुकाना पड़ता था। िबना कर चुकाए यापार करनेवाल को दंिडत िकया जाता था।
पाँचव उप-िवभाग क िज मेदारी िनिमत व तु क यापार क देखभाल करना था। नए और पुराने सामान को
अलग-अलग बेचा जाता था। दोन को िमलाकर बेचनेवाल को जुमाना भरना पड़ता था। ‘अथशा ’ म उ ेिखत
ह िक पुराने सामान को बेचने क िलए िवशेष अनुमित लेनी होती थी।
छठा िवभाग िव य कर वसूल करता था। यह कर कल लाभ का दसवाँ भाग होता था। यिद कोई कर क भुगतान
म बेईमानी या धोखाधड़ी करता था तो उसे मृ युदंड तक क सजा दी जाती थी। खासकर ऐसा तब िकया जाता था
जब बड़ी रािश क हरा-फरी क जाती थी। इसक साथ ही कर चोरी क मामले म स त जुरमाना भी लगाया जाता
था। इसक साथ ही नगरपािलका आयोग क सद य क िज मेदारी थी िक वे बाजार , मंिदर , बंदरगाह को और
जन-क याण से जुड़ी अ य सुिवधा को उपल ध कराएँ।
ामीण शासन
मौय सा ा य म ामीण शासन सु ढ़ था। मेग थनीज क श द म कह तो—
‘‘राजधानी क बड़ अिधका रय म से कछ निदय , जमीन क नपाई आिद क काम क िज मेदारी सँभालते थे।
ामीण े म समान प से नहर म पानी स लाई कराना भी इ ह अिधका रय क िज मेदारी होती थी। उ ह ही
िशका रय को पुर कत या दंड देने का अिधकार िदया गया था। वे ही कर वसूलते थे और लकड़ी काटनेवाल ,
बढ़ई, लुहार और अ य पर िनगरानी रखते थे। वे सड़क बनवाने का काम करते थे और सड़क पर दूरी दरशाने क
िलए तंभ लगवाना उ ह क िज मेदारी होती थी।’’
इससे प होता ह िक मौय शासनकाल म िवकास पर ब त जोर िदया जाता था। एक सा ा य से दूसर तक
बेहतर आवागमन क िलए अ छी और यव थत सड़क बनाई जाती थ । जंगल , खदान , किष तथा िसंचाई क
मामले म यव थत िनयम बनाए गए थे। जंगल मनु य क िलए हमेशा सहायक रहा ह। जंगल से न िसफ लकड़ी
िमलती ह ब क इससे पयावरण शु और संतुिलत रहता ह। मौय शासक इसे भलीभाँित समझते थे और जंगल
को मह व देते थे। मेग थनीज क अनुसार, लकड़हार, बढ़ई तथा जंगल और लकड़ी से जुड़ पेशेवाल पर नजर
रखने तथा वन क सुर ा क िलए एक अिधकारी क िनयु क गई थी, िजसे ‘वनपाल’ कहा जाता था। वे
जंगल क भारी होते थे।
सा ा य क िवकास क िलए खनन और खिनज संपदा क िवशेष ज रत थी। मौय शासक इसे भलीभाँित
जानते थे। कौिट य ने ‘अथशा ’ म इसका उ ेख िकया ह। उ ह ने ‘अथशा ’ म उ ेिखत िकया ह िक
खजाने क ोत और खदान क िज मेदारी सँभालने क िलए एक िवशेष अिधकारी होता था। वह अकरा य
कहलाता था।
इसी तरह मौय शासनकाल म किष को मु य उ ोग माना जाता था। मौय शासक किष को बढ़ावा देने पर िवशेष
यान देते थे। इस उ ोग क देखभाल क िलए िजस अिधकारी को िवशेषािधकार िदया जाता था, वह ‘सीता य ’
कहलाता था। िकसान को लाभ प चाने क िलए मौय शासन ने िशका रय को पुर कत करने और सजा देने का
िनयम बनाया था। िकसान जो बीज खेत म डालते थे, प ी उसे चुग लेते थे। मेग थनीज क अनुसार, िशकारी
िकसान को नुकसान प चानेवाले जंगली ािणय का भी िशकार कर डालते थे। इस तरह िशकारी िकसान क
मददगार होते थे। दूसरी तरफ, िकसान क िज मेदारी किष क मा यम से सा ा य को आ मिनभर बनाना थी।
इसक अलावा बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने क िज मेदारी भी उ ह क होती थी। िशकारी िविभ ि कोण से
िकसान क सहायक भी होते थे।
िकसान क अ य सहायक म नहर और नाल क यव था का भी माण िमलता ह। मौय शासनकाल म िसंचाई
यव था बेहतर थी। िशलालेख से भी इसका माण िमलता ह। शक प क जूनागढ़ अिभलेख म 150 ई.पू.
कािठयावाड़ म सुंदर झील (सुदशन) का माण िमलता ह। सौरा क रा पाल पु पगु चं गु क शासनकाल म
थे। िसंचाई यव था क िलए उ ह ने थानीय िकसान पर िवशेष यान िदया था। उ ह ने इसक िलए छोट-छोट नाल
का िनमाण कराया और बड़ा तालाब बनवाकर उसम िसंचाई क िलए जल-सं ह क यव था क । चं गु क पौ
अशोक क शासनकाल म नािलय का उ ेख िमलता ह।
ांत यव था
मौयकाल म बेहतर शासिनक यव था क िलए पूर सा ा य को चार े म बाँटा गया था। येक े को
िविभ ांत म बाँटा गया था। इसक अित र पूव भारत क गृह ांत थे। ये ांत शासक क सीधे देखरख म आते
थे। इसक िलए सा ा य म तीन ितिनिध शासक होते थे। उ र-प मी ांत का मु यालय त िशला था। वहाँ से
अफगािन तान, बलूिच तान, पंजाब, क मीर और िसंध पर िनयं ण रखा जाता था। प मी ितिनिध शासक का
मु यालय उ ैन था और उसका िनयं ण मालवा व गुजरात पर था। दि ण भारत क ितिनिध-शासक का
मु यालय सुवणिग र था। यह संभवतः रायचूर िजले म था। यह इन िदन कनाटक रा य म आता ह। इस े क
ितिनिध शासक कमार या आयपु कहलाते थे और वे स ा क राजकमार (भावी स ा ) होते थे। येक े को
खास सं या म रा य म बाँटा गया था। येक रा य क शासिनक धान को रा पाल (गवनर) कहा जाता
था। जूनागढ़ िशलालेख म चं गु मौयकाल क रा पाल का माण िमलता ह। पु पगु का शासन सौरा ांत
म था, इसका माण िमलता ह। मौय सा ा य क सामंती ांत क तरह मुगल बादशाह अकबर ने भी अपनी
शासिनक यव था म इसे लागू िकया था।
िव यव था
सविविदत ह िक राजा क सबसे बड़ी श उसक िव ीय मता और यव था ह। चं गु मौय ने भी अपने
सा ा य क िव ीय यव था को सु ढ़ और सुिनयोिजत बनाया था। िविभ ोत से कर वसूली क िलए समाह
मु य पदािधकारी होता था। उसक िज मेदारी वतमान क कले टर क समान होती थी। मौयकाल म िव यव था
का मु य आधार भू-राज व था। एक थान पर कौिट य ने उ ेिखत िकया ह िक कानून िनमाता को क ल
उ पादन का 1/6 िह सा िदया जाता था। कह -कह यह भी उ ेख िमलता ह िक कल उ पादन का 1/4 िह सा
सरकार का होता था।
यह अनुपात सा ा य क िविभ िह स म िम ी क उवरा मता और िकसान क आिथक थित पर िनभर
करता था।
चाण य ने चं गु क शासनकाल म राज व क िजन ोत का उ ेख िकया ह, उनम िन न मुख ह—
1. अ य कर को पानी और जमीन क साथ जोड़कर िकसान पर इसका भार डाला गया था।
2. शहरी इलाक म गृह कर लगाया गया था।
3.वन और खिनज से भी राज व क ा होती थी।
4.सीमा शु क, चुंगी, सड़क कर आिद भी लगाए जाते थे।
5.िश पकारी, का तकारी, यवसाय आिद से जुड़ लोग को लाइसस लेना पड़ता था। इसक िलए शु क वसूला
जाता था।
6.कानूनी ि या क एवज म कर से ा राज व।
7.िजस संपि का कोई मािलक नह हो उससे ा राज व।
पतंजिल क सािह य से प होता ह िक वण-िनिमत मूितयाँ मौयकाल म ही पूजी जाती थ । इससे अनुमान लगाया
जाता ह िक शायद मौयकाल म राजा मंिदर बनवाते थे और वहाँ दशन या पूजा करनेवाले इन मंिदर म मु ा व
आभूषण अिपत करते थे, जो राजा क खजाने म जमा होता था। इसक अित र आपात थित म सा ा य क
संप लोग अपनी संपि का कछ िह सा ांत क शासक को स प देते थे, तािक उसका उपयोग हो सक।
मौय शासनकाल म िन न मद म मु य प से खच िकया जाता था—
1.राजा, यायालय और राजक य प रवार क सारी यव था पर िकया जानेवाला खच।
2.सभी उ पदािधका रय , अ य पदािधका रय और सरकारी कमचा रय को ितमाह वेतन देने म।
3.सेना क िलए वेतन और उनक हिथयार क यव था करने म।
4.जन-सेवा क िलए भवन-िनमाण, सड़क, िसंचाई, िकल का िनमाण करना, श ागार और आव यक श का
इतजाम करना आिद।
5.सैिनक क प रवार का पालन-पोषण एवं उ ह आव यक साधन मुहया कराने और नाग रक सेवा से जुड़
अिधका रय क मृ यु क बाद उनक आि त क देखभाल करने म खच।
6.अभाव त और बेरोजगार प रवार क देखभाल करने म।
7.चोरी होने पर ितपूित करने म।
8.उ ोग, खिनज और अ य यापार पर होनेवाला खच।
9. ांत क अधीन थ िश पकार को वेतन देने म।
10.िविभ धािमक सं थान को अनुदान देने म।
अिधका रय क सहायता क िलए गु चर होते थे। गु चर णाली से लोग हमेशा नफरत करते रह ह और चं गु
क शासनकाल म भी ऐसी ही बात थी। लेिकन इसम कछ अ छी बात भी थ । भारतीय राजनीित मानते ह िक
िकसी भी राजा को जा क इ छा क िव शासन नह करना चािहए। इसिलए गु चर िसफ अपरािधय का
पता लगाने भर क िलए नह ब क राजा क ित जा का नज रया जानने क िलए भी रखे जाते थे। हालाँिक
गु चर णाली का नुकसान यह भी रहा ह िक राजमहल म रहनेवाले भी उनका इ तेमाल कर लेते थे। गु चर पर
राजा भरोसा करते थे और वे राजा क िव ासपा होते थे।
कानून और याय यव था
हालाँिक मेग थनीज ने िकसी िलिखत कानून यव था पर अपनी सहमित नह जताई ह, परतु स ाई यह थी िक
कानून क चार तंभ म से एक धािमक पु तक थी। चाण य क अनुसार, अ य तीन कानून- तंभ भी थे। समय-
समय पर राजा पेश मामल क आधार पर कानून म फर-बदल करते थे। इन चार तंभ म से जब रवाज और धम
क बीच अथवा समझौता और धम क बीच संघष होता था तो धम का कानून अ य दो को र द डालता था। लेिकन
जब धम और तक म संघष होता था तो तक को ही मह व िदया जाता था। राजा ा जारी करने क प र थित म
रा य क िव ान से परामश िलया जाता था। वे तािकक कानून को आधार मानकर िवचार य करते थे, लेिकन
कानून क चार तंभ म धािमक ंथ, करार, रवाज और राजा ा को शािमल िकया जाता था। चाण य क
‘अथशा ’ क अनुसार, कानून क इन चार तंभ म से अंितम यानी राजा ा सव े माना जाता था।
चं गु मौय क शासनकाल म याियक शासन क दो आधार थे। थम या मामल म ाम पंचायत फसला
करती थी, जबिक दूसर यायालय, राजवंश, सहकारी सं था और नगर िनगम शािमल थे। रा य म यायालय को दो
िवभाग म बाँटा गया था—धम थीय और कटकशोधन, जो मशः वतमान नगरीय यव था और अपराध यायालय
थे। यायालय क मु यालय जनपदसंिध, सं हण, ोणमुख और थानीय थे िजनम मशः 2, 10, 400 और 800
गाँव का याय होता था।
धम थीय यायालय म 3 धम थ ( यायाधीश धािमक मामल क िव ा होते थे) और 3 अमा य होते थे।
नाग रक कानून क अंतगत िन न मु य िवभाग थे—
1.उ रािधकार,
2.िववाह और मिहला क संपि ,
3. िव य, सीमा और घर से जुड़ िववाद,
4. ऋण,
5. जमा,
6. दासता,
7. म और ठका,
8. खरीद-िब ,
9. िहसा,
10. मानहािन,
11. आ मण,
12. जुआ।
चं गु क शासनकाल म धािमक कानून का भी अपना िवशेष मह व था।
कटकशोधन (अपराध से मु िदलाना) यायालय म तीन धम थ और तीन अमा य होते थे। इस यायालय क
िज मेदारी थी िक वह रा य और जनता को असामािजक त व अथवा कटक समान लोग से राहत िदलाए। चोरी,
ह या, लूट, बला कार, डकती, धोखाधड़ी जैसे मामल को राजा तक प चाने म इसी यायालय का योगदान होता
था। इसक अित र इस यायालय का काम िश पकार को सुर ा दान करना और उपभो ा को िश पकार
व यापा रय क ठगी से बचाना होता था। अपराध क जड़ तक जाने म गु चर क मदद ली जाती थी। यायालय
क यव था पीढ़ी क आधार पर थी। यानी, यिद कोई प फसले पर असंतुि य करता था तो िनचली अदालत
क मामले को उ अदालत तक प चाया जाता था। अंितम अिधकारी राजा से जुड़ा होता था। मेग थनीज क
अनुसार, मौयकाल म याय क िलए जनता ारा राजा तक मामले प चाने क कई उदाहरण िमलते ह। यही कहा
जा सकता ह िक याियक फसले से जनता संतु नह होती थी और राजा क पास अपने मामले लेकर प चती थी।
दंड या जुमाना लगाना
दोिषय पर जुमाना लगाया जाता था। दोिषय को उनक मूल और उसक कित क आधार पर तीन तरह से दंिडत
िकया जाता था। पहली ेणी म दोष सािबत होने पर 96 पण, उसक बाद 500 पण और उसक बाद 1,000 पण
जुमाना लगाने का कानून था। अपराध करनेवाल को कड़ी सजा दी जाती थी। इसम िपटाई, िसर क बाल मूँड़ना,
कद, अंग-भंग तथा मृ युदंड तक शािमल था। िहसा और अनैितक कम जैसे ह या, बला कार, चोरी, धोखाधड़ी
और झूठी गवाही देने जैसे मामल म ऐसा दंड िदया जाता था। इनम से कछ अपराध को अलग-अलग ेिणय म
रखकर अपरािधय को दंिडत करने का ावधान था। जैसे 50 पण तक मू य क संपि चुरानेवाले को उ दंड
िदया जाता था, लेिकन इससे अिधक मू य क संपि चोरी करने पर उसे वध या शारी रक दंड िदया जाता था। यह
सजा बढ़ाकर मृ युदंड भी िदया जाता था, यिद िकसी तरह क गंभीर अपराध क पुि होती थी।
झूठ बोलना, धोखा देकर कर नह चुकाना आिद मामल म चोर क समान दंड िदया जाता था। यिद कोई िकसी क
शरीर क िकसी अंग को चोट प चाता था तो उसे अंग-भंग का दंड िदया जाता था। यिद कोई अपराधी िकसी
िश पकार का अंग-भंग करता था तो उसे मृ युदंड िदया जाता था। िफर भी, मौय शासनकाल म दंड का फसला
काफ सावधानी और जाँच-परखकर सुनाया जाता था।
मेग थनीज क अनुसार, चं गु क समय म पाटिलपु क जनसं या लगभग 4 लाख थी। रोजाना क चोरी का
िहसाब-िकताब बैठाया जाए तो वह रािश 200 डर ा1 अथवा 8 प ड टिलग2 से यादा नह होती थी।
चाण य ने ‘धमशा ’ म उ ेिखत िकया ह िक जब िकसी नाग रक क संपि क डकती या चोरी हो जाती थी
तो राजा अपने खजाने से उसक भरपाई नह करते थे। साथ ही, ऐसी यव था थी िक िकसी खास अवसर पर
किदय को मु कर िदया जाता था। वह खास अवसर होता था राजा का ज मिदन या िफर राजा क नई उपल ध
आिद। चाण य ने उ ेिखत िकया ह—जब राजा िकसी नए रा य पर िवजय ा करते थे, जब कोई उ रािधकारी
ग ी पर बैठता था या िफर िकसी राजकमार का ज म होता था तो क िदय को रहा कर िदया जाता था।
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मौयकाल म धािमक, सामािजक और आिथक थित
िविभ थं , िशलालेख तथा अ य सा य से पता चलता ह िक चं गु क शासनकाल म धािमक, सामािजक
और आिथक थित ब त अ छी थी। जा म बेहतर संबंध थे। धािमक अनु ान पर िकसी तरह क पाबंदी नह
थी। आिथक िवषमता क खाई यादा गहरी नह थी। जा सुखी जीवन यतीत करती थी।
धािमक थित
भारत िविभ धम क ज म- थली ह। स ा अशोक क सातव तंभ से मौयकाल क धािमक थित का पता
चलता ह। उस समय धम क चार ेिणयाँ थ —संघ (बौ धािमक थल), ा ण, िन थ और आजीवक। इनम
िन य ही संघ बौ धम से, जबिक ा ण वैिदक धम से संबंिधत थे। िन थ जैन धम से, जबिक आजीवक
क अनुयायी तप वी और संत होते थे। लंबे समय से अब वे िवलु ाय ह।
ा ण (वैिदक धम)
वैिदक धम सबसे ाचीन ह और चं गु मौय क काल म इसका काफ चार- सार था। सिदय बाद वैिदक धम
मुख शाखा म बँट गया था—सं कार क य, त व ान संबंध और आ तक वृि । हालाँिक ये सभी पूण प से
एक-दूसर से अलग नह थे।
सं कार क य
वैिदक धम क तीन मुख शाखा म से सं कार का अपना िवशेष मह व था। इसम कम यानी सं कार पर िवशेष
जोर िदया जाता था। इससे जुड़ लोग इ , व ण, अ न व अ य देवी-देवता को स करने क िलए य करते
थे। ा ण ोतसू , बौ धमस मत और मेग थनीज क उ ेख से य क धािमक मत का माण िमलता ह।
अ मेध और राजसूय य िसफ राजा करते थे। इसक अित र चौदह अ य य िकए जाते थे, जो ‘ ोत य ’
कहलाते थे। इनम से सात हिवय थे, िज ह ‘अ नहो ’ कहा जाता था। अ य सात सोम य कहलाते थे, िज ह
वाजपेय क सं ा दी जाती थी। इनम से कई य ऐसे होते थे, िजनम पशु क बिल दी जाती थी। य करानेवाल
म अिधकांश राजा, स माननीय य , अमीर ा ण, बड़ यापारी होते थे और वे समाज म बेहतर थान पाने क
िलए भी य कराते थे। इन य को संप कराने क िलए चार पुरोिहत क आव यकता होती थी। िक ह -िक ह
य को संप कराने म 16 पुरोिहत क ज रत होती थी। ये पुरोिहत ा ण प रवार क होते थे और सं कार य
कराने क िलए यजमान से दि णा क प म ऊची क मत वसूलते थे।
मेग थनीज क उ ेख से माण िमलता ह िक मौयकाल म वैिदक धम क पालन क िलए समाज क अमीर
लोग य कराते थे। ा ण पुरोिहत िव ा होते थे। आम लोग उनसे य करवाते थे और उसक एवज म उ ह
बेशक मती उपहार, दि णा और िवशेषािधकार दान करते थे। य करानेवाले अपने पुरोिहत क खूब खाितरदारी
और स मान करते थे। मेग थनीज क सािह य से जानकारी िमलती ह िक चं गु मौय भी समय-समय पर िवशेष
प र थितय म य कराते थे। खासकर महल को छोड़कर जब वे कह जाते थे तो य कराते थे।
वैिदक धम क तीसरी शाखा क अनुयाियय क सं या काफ अिधक थी। मौयकाल म इसे आ तक शाखा कहा
जाता था। इस शाखा क अनुयायी ई र क भ म आ था रखते थे। वे इसे ही अपनी मु का आधार भी मानते
थे। सं कत क महा वैयाकरण पािणिन ने अपनी पु तक म ई.पू. पाँचव सदी म वासुदेव और उनक िव ासी िम
अजुन का िज िकया ह। दोन अिभलेख का वणन ईसा पूव घसुंडी और नंदघाट से िमलता ह, िजसम कहा गया
ह िक वासुदेव क भाई संकषण उनक साथ िमलकर पूजा करते थे। छांदो य उपिनष म वासुदेव क ण को देवक
का पु बताया गया ह और वे ऋिष अंिगरस क िश य थे। वे दोन महा यो ा थे और ऐसे संत भी थे, जो
एक रवाद म िव ास रखते थे। इसे थािपत करने क िलए ‘ ीम ागवत’ नामक ंथ क रचना क गई थी।
मौयकाल क थापना क बाद िव णु क अवतार क प म उनका नाम मािणत िकया गया और उनक पहचान
ांड क संर क क प म ई थी।
यूनान क राजदूत ने भारत म अपने देश क नायक क प म हरकिलस क चचा क थी। माना जाता ह िक वह
क ण से जुड़ा आ था। उसने अपने िववरण म िजन बात का उ ेख िकया था, वह क ण क गाथा से िमलती-
जुलती थी। सारी घटनाएँ भारत भूिम से जुड़ी ई थ । यूनानी राजदूत ने वहाँ क नायक हरकिलस क बार म जो कछ
कहा था, वह इस कार ह—‘‘हरकिलस को सूरासेनोई (शूरसेन), भारतीय वैिदक धम क दूसरी शाखा का ान
था। यहाँ ान का ता पय आ या मक ान से ह। यह ान उपिनष पर आधा रत था। उस समय िव समाज
उपिनष क मा यम से ई र क ाथना करता था। इसक िश ा गु कल म दी जाती थी, िजसक िश क और
संचालक ा ण होते थे। वे उपिनष क मा यम से लोग को उपदेश देते थे और ई र को स करने क िलए
ाथना करते थे। सादा जीवन उ िवचार उनक रहन-सहन का तरीका होता था। वे वैिदक य म िवशेष िच नह
लेते थे। यहाँ तक िक चं गु क शासनकाल म चाण य ने भी य अनु ान म कभी िच नह िदखाई थी।
हालाँिक उ ह ने चं गु को अ मेध य कराने क िलए े रत िकया था। िकसी भारतीय राजा ने इस य को नह
कराया था।
मेग थनीज क अनुसार, मौयकाल म दो कार क भारतीय दाशिनक अथवा िव ा होते थे— ा ण और
मण। ा ण पू य होते थे। उ ह देवी-देवता को स करने का िवशेषािधकार ा था। वे लोग को बताते
थे िक देवी-देवता ही दुिनया क िलए िनयम बनाते और उनका पालन कराते ह। दुिनया म पानी का सबसे यादा
मह व बताया गया था और इसे दान करने का ेय देवता को जाता था। इसक साथ चार अ य आव यक त व
थे। पाँचवाँ त व आकाश होता था, जो वग और तार बनाता था। ये ा ण वतं होते थे। उनक िवचार पर कोई
अंकश नह लगाया जा सकता था। यूनानी सािह य क अनुसार, त िशला क सं यासी दंडिमस को इसका सटीक
उदाहरण माना जा सकता ह। िसकदर, जो खुद को िजयस का बेटा समझता था, उसने एक बार दंडिमस को
आमं ण िभजवाया था। उसने साथ म चेतावनी भी दी थी िक यिद दंडिमस उसक बात नह मानेगा तो उसे मृ युदंड
िदया जाएगा। दंडिमस ने दूत ारा कहलवा िदया िक िसकदर अपने आपको िजतना िजयस का बेटा समझता ह
उतना वह भी अपने आपको िजयस का बेटा समझते ह। उसने संदेश िभजवाया िक दबाव डालकर िसकदर नह
बुला सकता। अगर िसकदर को िकसी चीज क ज रत हो तो वह दंडिमस क पास आकर ले जाए। उपिनष म
इस िवचार का कछ इस कार उ ेख िकया गया ह—
‘‘ई र ही सव े राजा ह। वह कभी गलत का िह सेदार नह बनता। वह काश, शांित, जीवन, पानी, मनु य क
शरीर और आ मा का िनमाता ह। जब मृ यु हो जाती ह तो आ मा वतं हो जाता ह। िसकदर स मान का पा हो
सकता ह और वह नर-संहार कर सकता ह या यु को रोक सकता ह।...िसकदर जो चीज मुझे दान करना
चाहता ह, वे मेर िलए िकसी काम क नह ह। लेिकन जो चीज मुझे चािहए और मेर काम क ह वे ह प े, जो मेर
घर म उपल ध ह। ये पेड़ मुझे भोजन दान करते ह। म पानी पीता । इसका भंडार ह। म जंगल पर िनभर । मेर
पास ऐसी कोई व तु नह ह, िजसक िलए हरी क ज रत हो। म आँख बंद करता ह◌ू और सपन क सुनहरी
दुिनया म खो जाता । िसकदर मेर िसर को काट सकता ह, लेिकन मेरी आ मा को कभी न नह कर सकता। मेर
मरने क बाद आ मा परमा मा से िमल जाएगी, िजस तरह कपड़ फट जाते ह और दूसर कपड़ तन को ढक लेते
ह। म िसफ अपने ई र क सम झुकता ।’’
दंडिमस ने इस तरह ा ण होने का बेहतर उदाहरण पेश िकया था। इससे पता चलता ह िक चं गु क
शासनकाल म ा ण क या थित थी और उपिनष का या मह व था। ा ण का स मान न िसफ अपने
देश म ब क िवदेश म भी होता था। तो हम पाते ह िक मेग थनीज ने ा ण क बार म ढर सारी जानका रयाँ दी
ह। उनक श द म कहा जा सकता ह—‘‘ ाचीन काल म यूनान क िव ान ारा जो कछ कित क बार म कहा
गया, भारतीय ा ण ने पहले ही कह िदया था। वही सी रया क य िदय ने भी कहा था।’’
वासुदेव क ण क अनुयायी भागवत कह जाते थे। म य देश क मेसनगर म हलोिडयस क िशलालेख से माण
िमलता ह िक ‘‘जनजाित ने िवशेष स मान िदया था। मेथोरा (मथुरा) और सोबोरा (क णपुरा) दो बड़ शहर
उनक अधीन म थे और उनक रा य से होकर जो नदी गुजरती थी, वह जोबेन (यमुना) थी।’’ इस िस ांत या मत
से यूनानी भी सहमत थे। दूसरी तरफ ई.पू. चौथी सदी म भारत क लोग मूित-पूजा करते थे। इसक िलए वे मूित
बनाते थे। भारतीय वैयाकरण पतंजिल ने प िकया ह िक नंद, मौय और शुंग क शासनकाल म क ण क मूित
क पूजा होती थी। बताया जाता ह िक जब पु क सेना िसकदर पर चढ़ाई करने क िलए आगे बढ़ रही थी तो सेना
आगे-आगे हरकिलस क ितमा लेकर चल रही थी। इसी कार पतंजिल ने कशव यानी क ण का वणन िकया ह।
यह उन मूितय म से थी, िजसक पूजा मंिदर म क जाती थी। बाद म मौयकाल म भी मंिदर म कशव यानी क ण
क ितमा होने का माण िमलता ह।
संघ (बौ धम)
चं गु क शासनकाल म भारत म दूसरा सबसे बड़ा धम था—संघ यानी बौ धम। ई.पू. छठी सदी म बौ धम
का माण िमलता ह। इसका मु य संदेश था—‘‘मनु य अपने भिव य का िनमाता वयं ह।’’ इस धम क मा यम से
लोग को यही िश ा दी जाती थी। उ री भारत क खास े म इस धम क अनुयाियय क सं या अ छी-खासी
थी। अजातश ु क शासनकाल म थम ध म सु और िवनय सु स मेलन ए थे। इसी मौक पर पहली बार बौ
धम क धािमक िस ांत का पाठ िकया गया। दूसरा स मेलन वैशाली म स ा कालासोक क समय आ था। उस
समय ि िपटक को पूरी तरह तुत िकया गया था। इसी मौक पर बौ धम ंथ का संकलन िकया गया था। पािल
भाषा म तीन खंड म ‘ि िपटक’ को िलखा गया था। इन खंड क नाम मशः सु िपटक, िवनयिपटक और
अिभध मिपटक ह। ‘सु िपटक’ को पाँच िनकाय िदघिनकाय, म झमिनकाय, संयु िनकाय, अंगु िनकाय और
खुदकिनकाय म बाँटा गया। अंितम िनकाय यानी खुदक म ध मपद और जातक कथाएँ थ । अ य दो िपटक को भी
अलग-अलग िवभाग म बाँटा गया था। अिभध मिपटक क अंितम खंड को ‘कथाव थु’ क नाम से जाना जाता था।
यह माना जाता ह िक स ा अशोक क शासनकाल म इसक रचना क गई थी। दूसर स मेलन म वैशाली तूप पर
िवचार-िवमश िकया गया था। प रणाम व प बौ मठ क िवभाजन का फसला िकया गया। इन तूप क
समथक को महासंिघका कहा गया और जो इसक िवरोध म थे, उ ह थिवर कहा गया था।
मेग थनीज ने िजन दो कार क भारतीय दाशिनक और महापु ष का वणन िकया ह, उनम ैकमेन को ा ण
और मण को बौ िभ ु या सं यासी समझा जाता था। मण न तो शहर म और न ही घर म रहते थे। वे जंगल
म घूमते रहते थे और जंगली पेड़ क फल खाकर जीिवत रहते थे। मण प व पेड़ क डािलय का व क
तरह इ तेमाल करते थे। वे हथेिलय से पानी पीते थे। वे न तो शादी करते थे और न ही ब े पैदा करते थे। ा ण
िव ा और बौ मण क अित र दो अ य सं यासी या तप वी होते थे, िज ह िन थ और आजीवक कहा
जाता था। िन थ का संबंध जैन धम से होता था और महावीर ने इसक थापना क थी। िन थ का शा दक अथ
बंधन-मु होता ह। िन थ िकसी तरह का व धारण नह करते थे। वे िव ास करते थे िक सभी जीव म आ मा
ह और वे उ ह सताने या दुःख प चाने को पाप समझते थे। वे मानते थे िक पौध म भी ाण ह। बौ ंथ म जैन
क िन थ का वणन तो िमलता ही ह, मेग थनीज क सािह य म भी इसका उ ेख िकया गया ह। हालाँिक
मेग थनीज ने िन थ क बार म िव ान क सभी गुण का उ ेख िकया, लेिकन गलती से उ ह ने इसे ा ण
धमपंथ से जुड़ा आ बता िदया था। इस धमपंथ क बार म मेग थनीज अपने िश य से कहा करते थे—‘भारत म
ैकमेन म से ऐसे धममत क दाशिनक ए, जो वतं जीवन जीते थे। वे आग म पक भोजन को नह खाते थे। वे
फल खाकर जीवन क र ा करते थे। वे पेड़ से फल को नह तोड़ते थे ब क जो फल नीचे िगरते थे, उसी का
भ ण करते थे। वे जीवनपयत व धारण नह करते थे। उनका तक होता था िक ई र ने आ मा क र ा क िलए
शरीर दान िकया ह।’
जैन ंथ म जैन मंिदर का वणन िमलता ह। चं गु मौय क शासनकाल म भ बा जैन मंिदर धान था। कहा
जाता ह िक उ ह ने पूर सा ा य म जैन धम को फलाया था। एक बार मगध म जब अकाल पड़ा था, भ बा को
उनक िश य क साथ कनाटक म वण बेलगोला भेज िदया गया था। उनक अनुप थित म मगध म जैन मंिदर क
धान क प म थूलभ क िनयु कर दी गई थी। थूलभ ने इस बीच पाटिलपु म िन थ संत का धम
स मेलन आयोिजत िकया और वहाँ नए जैन धम िस ांत क घोषणा क गई थी। अकाल ख म हो जाने क बाद
भ बा अपने िश य क साथ मगध लौट आए थे। उ ह ने उन धम िस ांत को बदल डाला, िज ह उनक
अनुप थित म बनावटी ढग से लागू िकया गया था। उनक वण बेलगोला म होने क दौरान कछ जैन संत ने व
धारण करना शु कर िदया था। भ बा ने ऐसा करनेवाल को दंिडत िकया और इस िस ांत को महावीर क
उ े य क ितकल बताया। हालाँिक वण बेलगोला क िशलालेख म भ बा और चं गु का उ ेख िमलता
ह, लेिकन इसका माण दसव शता दी म िमलता ह। इससे माना जाता ह िक यह ामािणक नह ह। हमचं क
अनुसार, भ बा क मृ यु चं गु क सा ा य क 16व वष म ई थी। यह संभव नह ह िक चं गु भ बा क
साथ वण बेलगोला गए ह गे।
आजीवक बौ और जैन संत होते थे और ई.पू. छठी शता दी म उनक होने क जानकारी िमलती ह। इसक
सं थापक म खाली घोषाल थे। म खाली का शा दक अथ सं कत म ‘म क रन’ क समान होता ह। इसका अथ
होता ह वह संत, िजसक हाथ म बाँस क छड़ी हो। आजीवक भा यवादी संत थे। वे न तो इनाम और न ही ितकार
पर यक न करते थे। वे समझते थे िक भा य से ही सबकछ होता ह। मौयकाल म आजीवक को भी मह व िदया
जाता था और वे मौय स ा अशोक तथा उनक पौ क समय म स मािनत थे। मौयकाल क बाद आजीवक का
अ त व िमटने लगा था और धीर-धीर उसका नामोिनशान तक समा हो गया।
सामािजक थित : मौयकाल म वण- यव था
चाण य क अनुसार, मौयकाल म भारतीय समाज चार वग म बँटा आ था, िज ह वण कहा गया। वतमान जाित
यव था क स ाई यह ह िक जो तय ह, उसम कोई भी प रवतन नह कर सकता। यह यव था मौयकाल से ही
तय ह। दूसर मामल म इसम लचीलापन था। मौयकाल म िजन चार वण का उ ेख िकया गया था, वे थे—
ा ण, ि य, वै य और शू । इनम से थम तीन को आय का वंशज माना जाता था, जबिक चौथे वण शू को
संभवतः िविभ कार क जनजाितय का समूह माना जाता था। चाण य क अनुसार, चार वण क िलए
सामािजक आधार पर अलग-अलग िज मेदा रयाँ और उनक िवशेष पेशे तय िकए गए थे। ा ण का काम था—
िव ा अ ययन करना, िश ा देना, य करना, दूसर से य कराना और दान लेना व देना। ि य क िज मेदारी
थी—िव ा अ ययन करना, य करवाना, दान देना, देश क र ा क िलए सेना म शािमल होना आिद। वै य का
काम िव ा अजन करना, य करवाना, दान देना, किष, पशुपालन तथा यापार करना था। शू का काम था अ य
वण क सेवा करना, किष काय, य कराना, पशुपालन और यापार करना। इसक अलावा का तकारी करना और
राजदरबार म राजा क स मान म गायन करना उनका काम था। बौ धम क भाव म आने क बाद शू ने इस
धम को अपनाया और उ ह शू से वै य वण अपनाने का मौका िदया गया।
एक समय ऐसा आया, जब ा ण ने भी सेना म जाना शु कर िदया और किष, पशुपालन एवं यापार करना
शु िकया। ि य ने भी समय क साथ-साथ अपनी वृि य म बदलाव िकए और किष, पशुपालन व यापार से
जुड़ गए। वै य तथा शू को सेना म जाने क अनुमित िमल गई। बाद म अंतरजातीय िववाह भी होने लगे। चाण य
क अनुसार, अंतरजातीय िववाह क बाद जो भी ब े ज म लेते थे, उ ह सामािजक मा यता ा थी। यिद उ वग
का पु ष और ी िन न वग क हो तो ब को िपता क जाित और वण िदया जाता था। धमशा क अनुसार,
उ वग क ी और िन न वग क पु ष क शादी बेहतर नह मानी जाती थी। हालाँिक कौिट य भी इस बात से
सहमत थे। लेिकन वा तव म ऐसी शािदय म भी ज म लेनेवाले ब े को िपता क जाित िमलती थी। तीन उ वग
क पु ष जब शू क ी से शादी करते थे तो उसक संतान को ‘वणसंकर’ कहा जाता था।
मेग थनीज ने शायद िम क तरह भारत क आबादी को सात वग म बाँटने का उ ेख िकया था। मौयकाल म
पेश क आधार पर उनका वग करण िकया गया था। पहला वग दाशिनक था, जो ा ण पुरोिहत और बौ मण
थे। साथ ही अ प सं या म जैन मुिन इसी ेणी म आते थे। उनक च र सामा य तौर पर ा ण पुरोिहत क
समान होते थे। य व धािमक अनु ान क िलए उ ह बुलाया जाता था। राजा नए साल पर ा ण क बड़ी सभा
आमंि त करते थे। ऐसे मौक पर राजमहल क मु य ार पर सभी िव ा ा ण इक ा होते थे। वहाँ वे
िलिखत प म राजा को सलाह देते थे या जन-िहत म किष उपज और पशुधन क वृ क तरीक को बढ़ाने क
सलाह सावजिनक प से देते थे। यिद कोई िव ा तीन बार गलत जानकारी देता था तो जीवन भर क िलए
उसक बोलने पर पाबंदी लगा दी जाती थी और जो सही सलाह देते थे उ ह कर व अ य आिथक योगदान से मु
कर िदया जाता था।
दूसरा वग िकसान या खेितहर का था। इस वग म वै य वण क लोग यादा जुड़ थे, िफर भी शू , ा ण और
ि य जाित क िकसान का भी उ ेख िमलता ह। मेग थनीज क अनुसार, समाज क अ य वग क मुकाबले इस
वग क सं या अिधक थी। िकसान सुशील और न वभाव क होते थे और उ ह फसल क कटाई म िकसी तरह
क सम या नह होती थी। इसक िलए उ ह सेना कर से मु रखा गया था। वे कभी दशन करने या अ य उ े य
से बाजार नह जाते थे। ऐसा वणन िकया गया ह िक िसपाही लड़ाई क समय भी उ ह परशान नह करते थे।
डायोडोरस ने कहा ह िक िकसान को जमीन क एवज म राजा को कर चुकाना पड़ता था, य िक पूर भारत क
जमीन का मािलक राजा होता था। िनजी तौर पर िकसी को जमीन का मािलकाना हक नह था। भूिम क अित र
िकसान को कल उपज का चौथाई िह सा राजा क खजाने म भरना पड़ता था।
तीसरा वग था पशुपालक और िशका रय का। वे व य जनजाित िनषाद थे। िसफ वे ही िशकार और पशुपालन
करते थे। उ ह जानवर को खरीदने-बेचने का अिधकार िदया गया था। जंगली जानवर व पि य से बोई गई जमीन
क र ा करते थे और बदले म राजा क तरफ से उ ह अनाज िदया जाता था। वे घुमंतू जीवन जीते थे और तंबु
म जीवन गुजारते थे।
चौथा वग िश पकार और द तकार का था। इस वग म वै य क सं या अिधक थी। हालाँिक शू िश पकार
क सं या कम नह थी। उनम से यादातर किष म इ तेमाल होनेवाले औजार और अ य उपयोगी सामान
बनानेवाले थे। हिथयार और समु ी जहाज बनानेवाल को राजा ारा भारी मजदूरी दी जाती थी। राजा ारा ही
उनक िलए रसद का इतजाम िकया जाता था। वे थल सेना क िलए हिथयार को ढोनेवाली गाि़डयाँ और नौसेना क
िलए समु ी जहाज बनाते थे। सैिनक और जा क िलए प रवहन का इतजाम करते थे। पाँचवाँ वग लड़ाक का
था—यानी िजस वग क यादातर लोग सैिनक होते थे, उसम यादातर पदािधकारी ि य होते थे। िनचले पद पर
शू और वै य होते थे। हालाँिक शांित क समय वे लोग का मनोरजन करने क िलए करतब िदखाते थे। वे हमेशा
स रहते थे और जैसे ही बुलावा आता था, यु क मैदान म कद पड़ते थे।
छठा वग सव क का होता था। इसम सभी जाित क लोग क िनयु होती थी। राजा क पास िमलने जानेवाल
पर िनगरानी रखना और रपोट तैयार करना उनक िज मेदारी होती थी। इनम से कछ को शहर क िनरी ण क
िज मेदारी दी जाती थी, जबिक कछ को सेना म शािमल कर िलया जाता था। उ ह ज रत पड़ने पर अपने काम म
गिणका (वे या ) क मदद लेने क भी छट थी।
मेग थनीज क अनुसार, सातव वग म सलाहकार और कर सं ाहक आते थे। राजा से उनका सीधा संबंध होता
था। जाित- यव था क म म ये िनचले वग म आते थे, लेिकन उ ह उनक िवशेष आजादी और याय से पहचाना
जाता था। उ ह ांत क रा पाल , उपरा पाल , खजाना अधी क , सेना क जनरल और यायाधीश क चयन का
अिधकार ा था। सेना क जनरल ि य होते थे। कभी-कभी ा ण भी सेना क जनरल यानी सेनापित होते थे।
मौयकाल म मं ी और यायाधीश ायः ा ण होते थे और कई उ पद पर वै य क साथ-साथ ा ण व
ि य भी होते थे। चाण य चं गु क धानमं ी थे और वे ा ण भी थे। उनक समय म सौरा क रा पाल
पु पगु थे, जो वै य थे।
चार आ म
सिदय पहले मौयकाल म आय क िलए चार आ म अथवा तर तय िकए गए थे। पहला आ म था— चय
(िव ाथ ), िजसक अंतगत ब े िव ा गु क पास िव ा ययन क िलए जाते थे और किठन अनुशासन व िनयम
का पालन करते थे। मांसाहार और म पान का पूरी तरह िनषेध था। 25 वष क उ म उनका िववाह िकया जाता
था और वे दूसर दज यानी गृह थ (घर बसाना) आ म म वेश करते थे। जब वे अपने ब क शादी कर लेते थे
और दादा-नाना बन जाते थे तो अपनी प नी क साथ जंगल चले जाते थे। यानी ऐसे पु ष उस अव था म खुद को
सेवािनवृ अथवा घर-प रवार क बोझ से मु मान लेते थे। इस अव था को वान थ (वन-गमन) आ म कहा
जाता था। ा ण उस अव था म गु कल ( कल) खोल लेते थे और ब को पढ़ाते थे। अंितम अव था
सं यासा म म प र ाजक या सं यासी हो जाते थे और दुिनयादारी से मु होकर मण पर िनकल जाते थे। वे घूम-
घूमकर लोग को धािमक उपदेश देते थे। ऐसा िसफ ा ण करते थे।
मेग थनीज ने वणन िकया ह िक मौयकाल म िव ािथय और गाह य जीवन िबतानेवाले ा ण का रहन-
सहन अलग ढग का था। यहाँ तक िक गलती करने पर उ ह कछ नह कहा जाता था। उनक कही बात का कछ
अंश—
अ ययन क इ छा रखनेवाले ा ण को अपने शहर से कछ दूर छोट जंगल म थािपत गु कल म जाना होता
था। उनका रहन-सहन सामा य होता था और वे जूट या गध क चम को िबछावन क प म इ तेमाल करते थे। वे
मांसाहार और यौनाचार से दूर रहते थे। वे अपना समय उपदेश और भाषण सुनने म यतीत करते थे। इस प र थित
म िव ाथ जीवन िबताने क बाद उ ह उनक संपि का आनंद उठाने का अवसर िदया जाता था। वे सुखपूवक बाद
का जीवन यतीत करते थे। वे सुंदर और मलमल क पोशाक धारण करते थे। वे उगली और कान म मशः सोने
क अँगूठी और छ े धारण करते थे। वे मांसाहार का सेवन करते थे, लेिकन पाले ए पशु क मांस का भ ण नह
करते थे। वे गरम भोजन से परहज करते थे। यादा-से- यादा ब े पैदा करने क िलए वे कई शािदयाँ करते थे। वे
प नय को अपने मनोरजन का साधन मानते थे। उ ह अपनी सेवा कराने क िलए यादा ब क ज रत भी होती
थी।
हालाँिक अ य इितहासकार और िव ान ने मौयकाल म ा ण क एक से अिधक प नी होने और यादा-से-
यादा ब े पैदा करने क बार म कोई िज नह िकया ह, इससे मेग थनीज ारा उ ेिखत उपयु बात ुिटपूण
हो सकती ह।
चाण य ारा रिचत ‘ ाचीन धमशा ’ म आठ तरह क िववाह का उ ेख िमलता ह, लेिकन वा तिवक तौर पर
छह कार क िववाह होते थे—
● ा िववाह : िहदू समाज म ा िववाह का चलन था। इसम सुयो य वर क साथ क या का िववाह िकया जाता
था। िववाह क समय क या को िविभ आभूषण से सजाया जाता था।
● दैव िववाह : इसम क या क माता-िपता अपनी पु ी का िववाह िकसी ऐसे पा से कराते थे, जो य आिद
अनु ान म कोई खास िज मेदारी िनभाता था।
● आष िववाह : यह िववाह मौयकाल म चिलत था। मेग थनीज ने उ ेख िकया ह िक पु ष एक जोड़ा बैल देकर
क या से िववाह करता था।
● गांधव िववाह : गांधव िववाह ि य करते थे। प म म आजकल इस तरह का िववाह चलन म ह। इसम िबना
माता-िपता क परामश से युवक-युवती अपनी इ छा से िववाह कर लेते थे।
● रा स और आसुर िववाह : इन िववाह को उ म नह माना जाता था। रा स िववाह म युवक जबरन क या से शादी
कर लेता था; जबिक आसुर िववाह म क या को खरीदकर लड़का शादी करता था। हालाँिक ि य म रा स
िववाह का चलन था। वे ऐसा तब करते थे जब िकसी कवारी लड़क को पकड़ लाते थे या उसे मनाकर भगा
लाते थे। यानी माता-िपता या र तेदार क मरजी क िखलाफ िववाह िकया जाता था। इसक अलावा िवधवा िववाह
को भी मा यता थी। चाण य क अनुसार, वैिदक काल म भी इस िववाह को मा यता थी। ऐसे िववाह क िलए शत
होती थी िक िवधवा को अपने ससुर और पित (मृत) ारा दी गई चीज छोड़नी पड़ती थ । यिद िवधवा को पु पैदा
ए ह तो उसक पु ारा दी गई संपि ( ीधन) को लौटाना पड़ता था।
चाण य ने ‘अथशा ’ म एक थान पर िववाह-िव छद का िज िकया ह। उ ह ने प िकया ह—यिद कोई
मिहला अपने पित से नफरत करती थी तो वह अपनी इ छा से तलाक नह ले सकती थी और न पित ही अपनी
मरजी से तलाक ले सकता था। परतु दोन क समझौते से िववाह-िव छद संभव था। मौयकाल म िववाह-िव छद क
मामले िवरल ही देखने को िमलते थे। इस तरह प प से कहा जा सकता ह िक मौयकाल म मिहला क
थित बेहतर थी और समाज म उनका स मान था। हालाँिक पित क मृ यु क बाद संपि का बँटवारा संतान म
कर िदया जाता था और माता का भरण-पोषण करने क िज मेदारी नह होती थी, लेिकन मिहला क अपनी संपि
होती थी, िजसे ीधन कहा जाता था। चाण य क अनुसार, मिहला क पास जो आभूषण होते थे वे उनक िनजी
संपि कहलाते थे। उनका मू य 2,000 पण से कम नह होता था। हालाँिक मिहला क पास आभूषण रखने क
कोई सीमा नह थी। पित क मृ यु क बाद िवधवा को धािमक जीवन अपनाना होता था। जमा िनिध और आभूषण
पर तो िवधवा का अिधकार था, परतु उसक एवज म कर चुकाने क िज मेदारी भी उसी क होती थी।
मेग थनीज क अनुसार, मौयकाल म जा वतं जीवन यतीत करती थी। कोई िकसी का दास नह था।
चाण य क अनुसार, अपनी ज रत को पूरा करने क िलए लोग खुद को बंधक रख देते थे। इसे दास बनाना भी
नह कहा जा सकता था। बात को आगे बढ़ाते ए वे कहते ह—यिद िक ह आव यक कारण से िकसी को दास
बनाना भी पड़ता था तो धन देकर ज द ही मु कर देना पड़ता था। िकसी पा रवा रक सम या, जुरमाना या
अदालत क फसले पर ज त घरलू सामान को छड़ाने क िलए पैसे क ज रत होती थी तो ऐसी प र थितय म
आय खुद को बंधक रखते थे। हालाँिक उसका युवा और काम करने म स म होना ज री था। प मी देश म
दास का य गत अिधकार नह था, लेिकन भारत म किथत दास क नौकर से थोड़ी बुरी थित होती थी। समय
पूरा होने पर उ ह मु कर िदया जाता था। यिद कोई अपने मािलक क काम से फरसत पाकर कह और काम
करता और इस तरह इतना पैसा जमा कर लेता िजतने पर उसे खरीदा गया था तो वह मु हो सकता था। इतना ही
नह , यिद कोई अपने दास से गाली-गलौज करता या िफर नीचा काम करने का दबाव बनाया जाता था तो वह
खुद-ब-खुद वतं हो जाता था। इससे प होता ह िक भारत म प मी देश क तरह दास- था नह थी।
व -प रधान
मौयकाल म भारत क जा सूती व पहनती थी। ये व यूनािनय को काफ आकिषत करते थे; चूँिक उनक
िलए ये नए थे। इसिलए वे कहा करते थे, भारतीय ऐसे ऊनी कपड़ पहनते थे, िज ह पेड़ से ा िकया जाता था।
िनयाकस ने उ ेिखत िकया ह िक भारतीय कमर से नीचे एड़ी तक सूती व पहनते थे। शरीर क ऊपरी िह से म
कधे तक व होता था। कधे को आंिशक प से ढका जाता था, िजसे चादर क तरह लपेटकर ओढ़ा जाता था।
कपड़ को ऐंठकर उसे िसर क चार तरफ बाँधा जाता था। कछ भारतीय कान म कडल पहनते थे। ऐसा वही करते
थे, जो अमीर होते थे। िनयाकस का कहना था िक वे बड़ी दाि़ढयाँ रखते थे और पसंद क अनुसार िविभ रग से
उ ह रगते थे। वे सफद चमड़ से िनिमत जूते पहनते थे। जूते पहनकर लंबे िदख, इसक िलए उसक तलवे पर चमड़ा
जोड़कर मोटा बना लेते थे। कह -कह उ ेख िमलता ह िक मौयकाल म भारतीय िदखावटी वेशभूषा धारण करते
थे और आभूषण पहनते थे। उनक लबादे वणजि़डत होते थे। उनक आभूषण म क मती प थर जड़ होते थे। उनक
व मखमल क कपड़ क बने होते थे। उनक सहयोगी छतरी लेकर उनक पीछ-पीछ चलते थे, िजससे उनक
स मान म चार चाँद लग जाते थे। इससे वे देखने म आकषक भी लगते थे। वे िफजूल खच नह होते थे और
समाज म उनका अ छा आचरण रहता था। वे अनुशासनहीनता को बरदा त नह करते थे। उनक पहचान नैितकता,
स ाई और ईमानदारी से होती थी। उ ह कभी-कभार ही कानून क शरण म जाना होता था। वे िबना िकसी आशंका
क अपने घर को छोड़कर कह भी चले जाते थे। प रजन क मौत हो जाने पर उनक याद म मारक खड़ा नह
करते थे; लेिकन उनक ारा जीवनपयत िकए गए नैितक पर चचा करते थे। उनक मृित म मृ यु क बाद
यशगान करते थे और उनक मृितय को सुरि त रखते थे।
हालाँिक उनक खान-पान क अंदाज क बार म िवशेष माण नह िमलता ह लेिकन माना जाता ह िक वे बड़ आदश
अंदाज म भोजन करते थे। वे ायः अकले ही भोजन करते थे और भोजन करने का कोई िनधा रत समय नह होता
था। स िलयत क िहसाब से वे भोजन करते थे। उनका सामािजक जीवन उ तरीय था। अशोक क िशलालेख
और चाण य क ‘अथशा ’ से पता चलता ह िक भारतीय क कछ कमजो रयाँ भी थ । स ा अशोक क नौव
तंभ क इबारत क अनुसार, लोग िविभ मंगल सं कार का आयोजन करते थे। खासकर जब मिहलाएँ बीमार
होती थ , शादी, ब क ज म पर और या ा पर िनकलने क दौरान शुभ सं कार िकए जाते थे। समाज म उ वग
क लोग जुआ खेलते थे। इस वग क लोग म पान भी करते थे। मेग थनीज क अनुसार, मौयकाल म लोग य क
समय को छोड़कर मिदरा (सोमरस) का पान नह करते थे। शायद यह ा ण क िलए कहा गया हो।
आिथक थित
मौयकाल म आिथक संप ता थी, लेिकन समु और निदय क िकनार घर बनाकर रहनेवाल को हर साल परशानी
झेलनी पड़ती थी। लकड़ी क उपल धता होने क वजह से वे लकड़ी और ईट से घर बनाते थे। बाढ़ क हालत म
उनक घर न हो जाते थे। हालाँिक इस ि कोण से शहर म रहनेवाल का जीवन सहज था।
चाण य ने भारत क आिथक थित क रोचक जानका रयाँ सहजकर रखी थ । सामान क बदले सामान देने क
जगह िस का चलन शु हो गया था। मौयकाल से पहले आम लोग क िलए िच त िस का चलन था।
चाण य ने वणन िकया ह िक चं गु मौय िनयिमत िस ा चलन म लाए। मानक िस ा चाँदी का पण लगभग
146 ेन का होता था। इसक अित र पण क आधे, चौथाई और आठव िह से क भी िस होते थे। ताँबे क
िस को मारक कहा जाता था और सोने क िस को सुवण कहा जाता था। लेिकन सुवण का चलन काफ
कम था।
ाचीन काल से ही भारत म किष उ ोग का िवशेष मह व रहा ह। मौयकाल म भी किष को िवशेष मह व िदया
जाता था। चाण य ने मौयकाल म धान, जौ, गे , तीसी, सरस , दलहन, ग ा, कपास आिद क खेती होने का
िज िकया ह। मेग थनीज ने भी पुि क ह िक मौयकाल म इन अनाज क अित र पूर भारत म बाजर क
पया मा ा म खेती क जाती थी। उसक िसंचाई निदय से क जाती थी। िविभ जाित क दलहन और धान
उगाए जाते थे, िजसे ‘बॉ पोरम’ कहा जाता था। िम ी क गुणव ा अ छी न होने क बावजूद उ म िक म क
अनाज पैदा होते थे। हालाँिक भारत म अकाल कभी नह पड़ा था, इस वजह से अनाज म पौि कता क कभीकमी
नह पाई गई। उन िदन भारत म वष म दो बार बा रश का मौसम आता था। एक वषा क िदन म और दूसरी बार
गरमी क सं मण काल म। इस मौसम को धान क बुआई क िलए बेहतर माना जाता था। इसक साथ ही उस
मौसम म बाजर क भी खेती होती थी। मैदानी भूभाग होने क वजह से िम ी म नमी बनी रहती थी।
दूसरी तरफ निदयाँ तथा बरसाती पानी िसंचाई का साधन था। इस तरह से किष उ पादन चुर मा ा म होता था।
इससे प होता ह िक भारत म अनाज क कमी नह थी। अकाल होने पर भी उन िदन अनाज क पूित हो जाती
थी। हालाँिक उसक बावजूद कभी-कभी अकाल क नौबत आ ही जाती थी। जैन माण क अनुसार, चं गु मौय
क शासनकाल म भारत म एक बार भीषण अकाल पड़ा था। उन िदन दूसर देश से मदद लेनी पड़ी थी। उनम से
कछ क बार म चाण य ने भी वणन िकया था। ऐसे समय म रोजगार देने क प म पुराने महल क मर मत कराई
जाती थी। िम रा य को मदद क िलए कहा जाता था। देश क संप लोग से हाथ बँटाने क अपील क जाती
थी। िजस े म अकाल होता था, वहाँ क लोग को अ य भेज िदया जाता था।
कपड़ा उ ोग
किष क बाद कपड़ा उ ोग मह वपूण संसाधन था। मेग थनीज ने इस बात क पुि क ह िक भारतीय का लबादा
यानी शरीर क ऊपरी िह स म पहना जानेवाला व उ गुणव ा का होता था। चाण य ने भी कपड़ा बुनाई क
उ ोग का िज िकया ह। यह गृह उ ोग से जुड़ा था और मिहलाएँ भी सूत कातती थ । चाण य क ‘अथशा ’ क
अनुसार, बनारस, बंगाल, किलंग और मदुरई का सूती व सव म माना जाता था। इसी कार रशम, पटआ और
ऊनी सामान बनाए जाते थे। उन िदन भी नेपाल का कबल िस था।
खनन उ ोग
खनन उ ोग भी उन िदन गित पर था। ब मू य प थर और धातुएँ खदान से िनकाले जाते थे। धातु म
मु यतया सोना (सुवण), चाँदी ( पा), लोहा (कालायस), ताँबा (ता ), काँसा (कां य), राँगा (शीशा), िटन ( पु)
और पीतल (आकट) ा होते थे।
मेग थनीज ने यहाँ क जमीन क िवशेषताएँ बताते ए कहा ह—‘‘िजस िम ी म सभी तरह क फल अ छी
पैदावार देते थे यानी उवर होते थे, वह खिनज संपदा क ि कोण से बेहतर मानी जाती थी। ऐसी िम ी म सोना,
चाँदी, ताँबा, लोहा जैसी धातुएँ पया मा ा म पाई जाती थ । साथ ही भारत सोने क मामले म सबसे धनी था।
भारत म ब मू य प थर और र न क भी कमी नह थी। चाण य ने िविभ रग और कार क हीर का उ ेख
िकया ह। उनम हीरा (वाजरा), मािण य (प राग), िफरोजा (वैदूय), नीलम (इ नील) और फिटक शािमल ह।’’
मौयकाल म धातु को गलाने का काम अ छी तरह चलन म था। उन िदन लोहार और इस तरह क धातु का
काम करनेवाले सैिनक क िलए हिथयार और किष उपयोग व घरलू उपयोग म आनेवाली िविभ कार क
सामि याँ बनाते थे। सोनार चाँदी और सोने को गलाकर तरह-तरह क आभूषण बनाते थे। बढ़ई घरलू उपयोग और
सजावट का सामान बनाते थे। बढ़ई ही नाव, बैलगाड़ी, रथ व लकड़ी का अ य सामान भी बनाते थे। िबहार म
पटना क समीप मौयकाल म बने लकड़ी क लेटफॉ स पाए गए ह।
मौयकाल क िश पकार भारत क ाचीन कला म िनपुण थे। जातक कथा म हाथी क दाँत क कला क बार
म जानका रयाँ िमलती ह। मौयकाल म अमीर लोग हाथी क दाँत से बने आभूषण धारण करते थे। खासकर वे हाथी
क दाँत से िनिमत कडल पहनते थे।
चमड़ा उ ोग
मौयकाल म चमड़ा उ ोग भी काफ मह वपूण था। देश क िविभ भाग म इसका काम होता था और लोग चमड़
से बना सामान पसंद भी करते थे। चाण य ने अपने ‘अथशा ’ म चमड़ और इसक रग क िलए कछ खास थान
का उ ेख िकया ह। उन िदन द कलाकार क हाथ क बने चमड़ क जूते अमीर क शान म चार चाँद लगा
देते थे।
शंख से बनी व तुएँ
दि ण भारत म शंख, हीरा, मोती और वण क सामान चिलत थे। यह यापार िसफ देश भर म ही चिलत नह
था ब क बाहर भी उन चीज क जबरद त माँग थी। दूसर देश से यापा रक गितिविधयाँ जारी थ । यहाँ तक िक
मौयकाल से पहले भी बेिबलोन और अ य देश से यापा रक संबंध थे। मौयकाल म उन संबंध म यादा तेजी आई
थी। िवदेिशय क साथ यापार क िलए िवशेष प रष का गठन िकया गया था। यापार िव तार क चं गु क
नीित काफ सफल रही और उसक साथ ही प म एिशया एवं िम आिद देश म यापार का िव तार आ। भारत
से मोर, हाथी क दाँत से बनी व तु , मोती, रजक, रग और िविभ उपयोगी व तु का िनयात होता था। चीन
से चीनी रशम आयात िकया जाता था। यह यापार सड़क और जलमाग से िकया जाता था। बौ सं मरण म
‘बावे जातक’ से जानकारी िमलती ह िक समु ी माग से बेिबलोन से यापार होता था। चाण य ने िविभ समु ी
या ा का उ ेख िकया ह। ‘अथशा ’ म उ ेिखत ह िक समु पार से लेकर पास क बंदरगाह क मा यम से
यापार होता था।
मौयकाल म आिथक जीवन म सहकारी ि याकलाप का योगदान था। समान जाित व ेणी क न होने क बावजूद
वे समान यवसाय से जुड़ जाते थे। यूरोपीय देश क सहकारी सिमितय क तरह यहाँ भी यव थाएँ चलन म थ ।
ेणी क पहचान सरकार ारा क जाती थी और उ ह कई अिधकार िदए जाते थे। ेणी क धान को ‘ ेि न’
कहा जाता था। सहकारी सिम क दूसर संगठन को ‘ वयंभू समु थान’ कहा जाता था। यह यव था वतमान
संयु कपनी क समान थी। इस कार क यावसाियक संगठन म कई सद य जुड़ होते थे। पूँजी म उनका समान
िह सा होता था और लाभ का बँटवारा भी उसी औसत म िकया जाता था।
सड़क का मह व
यापार क समृ उस समय क सड़क पर िनभर थी। मौय सा ा य म शासक भवन िनमाण और सड़क क
रख-रखाव को िवशेष मह व देते थे। दूसर ांत क शासक भी एक-दूसर ांत को जोड़ने क िलए सड़क का जाल
फलाए रखते थे। राजक य पथ उ र-प म म पु कलावती से वाया त िशला, पाटिलपु तक जाता था। आगे गंगा
क मुहाने से आधुिनक ांड क रोड से जुड़ी थी। हाथी, घोड़, गधे और ऊट आवागमन क बेहतर साधन थे। हाथी
क सवारी िसफ राजप रवार से जुड़ लोग करते थे। इसक बाद रथ से सवारी क जाती थी और ऊट क सवारी क
िगनती भी बेहतर साधन म होती थी।
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मौयकाल म सािह य और कला
मौयकाल क ारभ म संपूण उ री भारत म आयन भाषा बोली जाती थी। शायद यही वजह ह िक भारत का नाम
‘आयावत’ पड़ा। यह सामा य बोलचाल क भाषा थी। जानकार का अनुमान ह िक आयन बोली ही समय क साथ
मशः सं कत और ाकत म पांत रत हो गई थी। सं कत म भी ब त बदलाव आ। पहले क सं कत ऋ वेद
म पाई जाती ह। यह िलिखत प क भाषा थी, जबिक बोली जानेवाली सं कत का व प पािणिन ारा रिचत
था। अशोक क िशलालेख से माण िमलता ह िक मौयकाल म जन-सामा य म बोली जानेवाली भाषा ाकत थी।
इसे तीन व प म बाँटा गया था। उसम पहले कार क भाषा ा य अथवा पूव ाकत थी। यह भाषा पूव उ र
देश तथा िबहार जैसे कोसल, काशी, िवदेह, अंग, मगध आिद म चिलत थी। दूसर कार क ाकत भाषा म य
देश म यानी ह रयाणा, िद ी, प मी उ र देश, पूव राज थान जो पहले क , पंचाल, शूरसेन और म य म
बोली जाती थी। तीसर कार क ाकत भाषा उ र-प मी रा य म और पाँच निदय क भूिम गंधार, ककय और
म म बोली जाती थी। वह भी म य देश क ाकत भाषा से आती थी और उसे पािल कहा जाता था। यह भाषा
बौ उ य को बोलने म इ तेमाल क जाने लगी और िलिखत व प म उस भाषा का नाम ‘ ा ी’ पड़ गया।
मौयकाल म जो कछ िलखा गया उसक िलए सं कत या पूव ाकत या पािल तीन भाषा का इ तेमाल िकया
गया। ाचीन भारत क इितहास म जो सबसे बड़ी कमी ह वह ह ितिथय क ामािणकता क । उन िदन क िलिखत
िववरण का यादा माण नह िमलता ह। उस काल क सबसे मह वपूण और िव सनीय लेखक िव णुगु यानी
चाण य थे। उ ह कौिट य क नाम से भी जाना जाता ह। कौिट य उनका गो और वंश का नाम ह। उस जमाने म
कौिट य से भृगु वंश क ा ण से संबंिधत व स या वा यायन कल का बोध होता था।
चाण य का ज म एक गरीब ा ण प रवार म आ था। उ ह ने त िशला िव िव ालय से पारप रक िश ा
हण क थी। वहाँ से िश ा ा करने क बाद वे वह क अ यापक हो गए थे। कालांतर म अपनी कटनीित और
मता तथा गुण क वजह से चं गु क पथ- दशक बन गए। वे िव ा होने क साथ-साथ महा लेखक भी
थे। इस कार कहा जा सकता ह िक िन संदेह वे अपने समय क महा : य व थे।
चाण य ारा रिचत सबसे यात गं:रथ ‘अथशा ’ था। इस पु तक म उ ह ने आिथक, राजनीितक और शासन
क कला का िव तृत िच ण िकया ह। यह ंथ का य प म ह और इसे 15 अिधकरण यानी खंड म बाँटा गया
ह। येक खंड म कई अ याय ह। इसम राजा क कत य, नाग रक शासन, कानून एवं याय, िवदेशी संबंध,
यु कौशल और श ु से लोहा लेने क गु िविधयाँ आिद उ ेिखत ह। इसक साथ ‘अथशा ’ म याय क
अ छ-बुर दोन प का िज ह। मौय सा ा य क उ व क समय भारत अ यव थत था और हर तरफ अशांित
थी। जा शांत व यव थत जीवन जीने को आतुर थी। जा स मानपूवक जीवन जीना चाहती थी। कछ यात
िव ान ने दासता और शू क थित क बार म चाण य क सोच का िज िकया ह। इसम कहा गया ह िक
इनक ित चाण य का नज रया स मानजनक और सहज था। इसक िवपरीत अर तू ने समाज म उनक थित को
स मानजनक नह बताया था। उ ह ने आय को कछ इस कार प रभािषत िकया था—शू आय क समक ीय थे
और उनक िगनती उ जाितय म होती थी। उनक अनुसार, चाण य भी आय थे और उनका उ े य आयावत को
श -संप बनाना था। उनक ि म वे सामािजक प से उदार और शंसनीय थे। िकवदंती ह िक चाण य हर
े म गहरी जानकारी रखते थे। उ ह ने नीित पर आधा रत त य का िव तार से वणन िकया ह। उ ह ने औषिधय
और िचिक सा-शा क बार म भी िलखा ह।
मौयकाल म सं कत म यापक काम ए। हालाँिक समय क बार म िलिखत माण नह िमलता ह। िफर भी, दो
मुख ंथ क बार म माण िमलता ह, िजनक रचना मौयकाल म ई थी। उनम से एक वा यायन रिचत
‘कामसू ’ ह और दूसरी रचना भरत रिचत ‘ना यशा ’ ह। दोन ही ंथ मौयकाल म िलखे गए थे। उस काल म
जैन मुिन भ बा ाकत क महा : लेखक ए। भ बा ने थिवरावली म महावीर क बाद छठ थिवर का िज
िकया ह। वे यशोभ क िश य थे। उ ह ने चं गु क समय म अपनी रचना क थी। हालाँिक हमचं का मानना था
िक चं गु क शासनकाल क सोलहव वष म भ बा क मृ यु ई थी। भ बा जैन ाकत सािह य क जाने-माने
लेखक थे। उनक ंथ म ‘क पसू ’ मुख ह। पु तक तीन िह स म ह—िजन का र (िजन क िजंदगी),
थिवरावली ( थिवर क सूची) और सभाकारी (यितय क िनयम)। हालाँिक इसम संदेह ह िक सभी खंड को
भ बा ने िलखा था।
मौयकाल म सबसे मह वपूण काम जो पािल भाषा म आ, वह बौ ‘कथाव थु’ था, िजसक बार म मु िल-पु
ित य ने वणन िकया था।

िव ा अ ययन क
मौय और पूव-मौयकाल म िव ा अ ययन क कई क थे। उनम से त िशला सबसे यात िव ा अ ययन क
था। िवदेश से और भारत क राजपु सिहत दूर-दराज से सामा य और ा ण िव ाथ यहाँ िव ाजन क िलए
आते थे। िव ा अ ययन क अ य क म वाराणसी अथवा बनारस था। ाचीन काल से लेकर आज तक यहाँ
िवशेष गुणव ा क साथ पठन-पाठन का काय होता ह। िव ा अ ययन का तीसरा मह वपूण क उ ैन था। उ ैन
प मी भारत म था। मौय सा ा य क राजधानी पाटिलपु राजनीितक और यावसाियक ि कोण से संप होने
क साथ िव ा अ ययन का बड़ा क भी थी।
िश ा क क अलावा कला और अ य े म िवशेष पहचान थी। मेग थनीज ने प प से कहा ह
—‘‘मौयकाल म भारतीय कला क े म द थे और वे कित क सा य म रहना पसंद करते थे। उ ह साँस
लेने क िलए शु हवा और पीने क िलए व छ पानी चािहए था।’’ इसक अलावा वे कला क पुजारी थे। कला
क साथ-साथ संगीत, नृ य, नाटक सिहत अ य िवधा म वे िनपुण थे। संगीत भारत म ाचीन काल से चला आ
रहा ह। वैिदक काल से ही संगीत का चलन था और चार वेद म से सामवेद म िविभ ाथना का सं ह ह,
िज ह गाया जाता था। मौयकाल म उ तरीय कला िवकिसत थी। चाण य ने उ ेिखत िकया ह िक राजमहल म
कभी गायक और वादक का काय म राजा क सम रखा जाता था। इसम वा यं वडाका का इ तेमाल िकया
जाता था। खासकर राजा क सम िजस वा यं को बजाया जाता था, उसका नाम अटो था। जब राजा राजमहल
म होते थे तब संगीतकार उनका मनोरजन करते थे। उस समय क पारप रक वा यं म वीणा, वेनु (बाँसुरी) और
मृदंग थे।
चाण य ने नतक का िज िकया ह, जो नृ य करते थे। उन िदन ऐितहािसक कला का भी बोलबाला था।
पािणिन ने िशलालीन और कषव क ना यसू का िज िकया ह। चाण य और पतंजिल ने मौयकाल म कला क
िवकास का पया िज िकया ह। चाण य ने न िसफ नट (अिभनेता ) अिपतु े ा का भी उ ेख िकया ह।
पतंजिल, जो मौयकाल क अंितम दौर म आए, उ ह ने अपने नाटक म कस-वध और बािल-वध का िज िकया ह।
इसक अलावा रास का भी उ ेख ह। इस कार चाण य और पतंजिल क सािह य से प होता ह िक चं गु
मौय क शासनकाल म ऐितहािसक कला का िवकास आ था।
मौयकाल म िच कारी पर भी िवशेष मह व िदया जाता था। जब उस जमाने क कला क बात चलती ह तो
िच कारी क िवशेष चचा होती ह। बौ सािह य से हम पता चलता ह िक उस जमाने क िभि कला यात थी।
इितहासकार रायस डिवड ने बौ िच कारी क संदभ म कहा ह—‘‘वे घर पर िच कारी करनेवाले थे। घर म
इ तेमाल क जानेवाली लकड़ी पर चूना आिद क परत चढ़ाकर उस पर िच कारी क जाती थी। वे िभि िच कारी
भी करते थे।’’ इससे प होता ह िक मगध तथा कोसल राज क समय म िभि िच का चलन था। सातव तथा
आठव शता दी म अजंता क गुफा म क गई िच कारी िभि िच का ही व प ह। माना जाता ह िक ीलंका
क पाँचव सदी क िसग रया रॉक इसी से िमलती-जुलती ह।
मौयकाल म मूितकला चरम पर थी, खासकर स ा अशोक क शासनकाल म इस पर काफ काम आ।
चं गु मौय क शासनकाल म प थर क कटाई और िघसाई का काम काफ बारीक से होता था। राजमहल क
तंभ पर सोने क लताएँ, चाँदी क प ी और र नजि़डत िसंहासन व करिसयाँ बनाई जाती थ । हालाँिक वतमान
समय म ाचीन काल क जो मूित िश प िमल रह ह, उ ह िन संदेह प से चं गु क समय का नह कहा जा
सकता। पटना क िनकट य क दो मूितयाँ िमली ह, जो िफलहाल कोलकाता क यूिजयम म ह। य क एक
मूित परखम से िमली थी, जो इन िदन मथुरा यूिजयम म ह। यि णी क एक मूित दीदारगंज और िवशालकाय य
क मूित िबसनगर से िमली थी। इसे मौयकाल से पहले का माना जाता ह, य िक इसक िघसाई से मौयकाल क
िश पकारी क तीित होती ह। बासरबिखरा का तंभ कलाकित क ि कोण से अशोक क तंभ से मेल खाता ह,
लेिकन इसे चं गु क शासनकाल म िनिमत िकया गया था।
मौयकाल म वा तुकला कला क कािमनी कही जाती थी। सव ण म यह बात सामने आई िक मौयकाल म
इस कला का काफ िव तार आ। मौयकाल से पूव ही इस कला का िवकास आ था और जातक कथा म एक
अमीर आदमी क सात मंिजला इमारत (स भूमाका ासाद) म इसका उ ेख ह। मौयकाल म इस कला को और
भी गुणव ा क साथ िवकिसत िकया गया था। मेग थनीज क पाटिलपु क बार म िववरण से इसका माण िमलता
ह। 570 िकलो और 64 दरवाज वाले एक बड़ शहर का िज ह, िजसक सुंदर उ ान म रग-िबरगे फल लगे ह।
इसे फल क नगरी कसुमपुरा क नाम से जाना गया। यह राजमहल चं गु मौय का था।
प थर क िपलर काफ मजबूती से लगाए जाते थे। गु काल म िपलर क लगभग 9 फ ट िह से को जमीन म गाड़ा
जाता था, तािक मजबूती बनी रह। कमर आिद क िनमाण म लकि़डय का इ तेमाल िकया गया था। उसम धातु क
नट-बो ट का इ तेमाल िकया गया था।

पिशया, यूनान और भारत म संबंध


ईसा पूव छठी और चौथी शता दी क बीच पिशया, यूनान और भारत म आय क तीन बड़ी शाखा क सा ा य
थे। इनम से थम पिशयाई शासक दा रयस थम आ। दूसरा यूनान का शासक िसकदर और तीसरा भारत का
शासक आ चं गु मौय। तीन देश क िवकास म एक-दूसर क ित गहर संबंध और बेहतर योगदान का मह व
रहा था। इन सा ा य क बीच बेहतर संबंध का दौर वष चलता रहा। तीन शासक म से एिकमेिडया क शासक
दा रयस सबसे पहले अ त व म आए। इसक बाद यूनान और भारत क शासक अ त व म आए। ये दोन पिशया
क राजनीितक भाव से भािवत थे। यूनान और भारत म अधीन थ शासक क जो यव था लाई गई वह पिशया
क ही देन थी। यूनान म शासक क िलए स प और सं कत म ‘ प’ श द का इ तेमाल िकया गया, वह पिशयाई
मूल श द ‘ -पावा’ से आया ह। हालाँिक समय क साथ-साथ पिशया म भी भारत क कछ चीज को अपनाया
गया, जो उ ह अ छा लगा। उदाहरण क िलए, एक कार क खेल क िलए भारत म सं कत म इ तेमाल होनेवाला
श द ‘चतुरग’ पिशया म ‘शतरज’ क नाम से िव यात आ।
भारत और यूनान क बीच छठी शता दी क शु आत म संबंध थािपत ए। त िशला िव िव ालय िव ा अजन
का एक बड़ा क था, जहाँ िवदेशी छा भी अ ययन करते थे। इस दौरान िवदेशी और भारतीय िव ािथय को
एक-दूसर क संसग म आने का अवसर िमलता था। त िशला िव िव ालय म पिशयाई और यूनानी भाषाएँ
वैक पक िवषय क प म पढ़ाई जाती थ । सं कत क महा : वैयाकरण पािणिन यूनानी सािह य क संपक म आए
थे और उ ह ने यवनािन (यवन क बार म) पर रचना क थी। भारतीय दशन और गिणत प मी देश म प च गया
और यूनानी िव ान ने इसे वीकार कर िलया था। यूनानी दाशिनक पाइथागोरस ने भारतीय दशन और िव ान पर
अपनी िश ा का गहरा असर छोड़ा था। ई.पू. छठी शता दी म भारत म धािमक, दाशिनक, गिणतीय व अ य िश ा
पर जोर िदया जाता था। उ ह िदन संचयी बल क िस ांत को वीकार िकया गया था।
दूसरी तरफ भारत क कछ धािमक िस ांत ने यूनािनय को आकिषत िकया। वैिदक धम भागवत क सहजता और
आदश ने यूनािनय को आकिषत िकया। यही वजह ह िक हिलओडोरस क िशलालेख म भागवत क अंश को देखा
जा सकता ह। उसक बाद भारत का जो महा : धम था, िजसे काफ सं या म िवदेिशय ने अपनाया, वह था बौ
धम। बड़ी सं या म यूनानी धम-प रवतन कर बौ धम क अनुयायी बन गए।
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चं गु मौय क रा य-नीित
ाचीन ऐितहािसक धरोहर को समेट पूव चंपारण म कई थल मौजूद ह, िजनक चचा वेद से लेकर पुराण म
िमलती ह। इसी कड़ी म शािमल ह चिकया खंड का िपपरा, जो मौयकाल क पूव ‘िपप ी कानन’ क प म
जाना जाता ह। पीपल क वन क कारण इसका नाम िपप ी कानन पड़ा था। इसी जगह पर भगवा ीराम क
काल क वेदी थी, िजसक चलते इसे वेदीवन-मधुबन कहा गया। इसी िपप ीकानन थत वेदीवन म मौय वंश क
महा स ा चं गु मौय का ज म आ था और उनक माँ मूरा इसी जगह क थ । महापंिडत चाण य ने इसी
थल पर चं गु को खेलते पाया था और उसम राजसी गुण देख उसे मगध का स ा बनाया था। बाद म
पाटिलपु म इसक राजधानी बनाई गई। इसक चचा कई ऐितहािसक पु तक म िमलती ह।
इस थल क बार म इितहास व थानीय ामािणकता क जाँच क बाद पाया गया िक यही चं गु क
ज म थली थी। इितहास क ा यापक िच लेखा ीवा तव कहती ह िक चं गु मौय का ज म िपप ी कानन म
उ िखत ह और वह जगह आज का िपपरा ही ह। वेदीवन क पास एक ाचीन िकले क वंसावशेष भी िमलते ह।
वह 4 िकलोमीटर क प रिध म चार िसंह ार क अवशेष होने क पुि हो चुक ह। बताया जाता ह िक बौ
धम क चार- सार क दौरान यहाँ िसंह ार बनाया गया होगा। थानीय नाग रक एवं इितहास क िश क
ल मणदेव िसंह कहते ह िक िजले क ाचीन थल म वेदीवन क मह ा इसिलए यादा ह िक यह चं गु मौय
क ज म थली ह।
चं गु मौय का शासन- बंध बड़ा यव थत था। इसका प रचय यूनानी राजदूत मेग थनीज क िववरण और
कौिट य क ‘अथशा ’ से िमलता ह। लगभग 300 ईसा पूव म चं गु ने अपने पु िबंदुसार को ग ी स प दी।
मौय स ा चं गु को नंद वंश क उ मूलन तथा पंजाब-िसंध म िवदेशी शासन का अंत करने का ही ेय नह ह
वर उसने भारत क अिधकांश भाग पर अपना आिधप य थािपत िकया। लूटाक ने िलखा ह िक चं गु ने 6
लाख सेना लेकर समूचे भारत पर अपना आिधप य थािपत िकया। ज टन क अनुसार, सारा भारत उसक
अिधकार- े म था। ‘महावंश’ म कहा गया ह िक कौिट य ने चं गु को जंबू ीप का स ा बनाया। लनी ने,
िजसका वृ ांत मेग थनीज क ‘इिडका’ पर आधा रत ह, िलखा ह िक मगध क सीमा िसंधु नदी ह। प म म
सौरा चं गु क अिधकार म था। इसक पुि शक महा प दमन क जूनागढ़ अिभलेख से होती ह। मैसूर से
ा कछ िशलालेख क अनुसार, उ री मैसूर म चं गु का शासन था। एक अिभलेख िमला ह िजसक अनुसार
िशकापुर ता ुक क नागरखंड क र ा मौय क िज मेदारी थी। यह उ ेख 14व शता दी का ह।
अशोक क िशलालेख से भी प ह िक मैसूर मौय सा ा य का मह वपूण अंग था। लूटाक, ज टन, तिमल ंथ
तथा मैसूर क अिभलेख क स मिलत माण से प ह िक थम मौय स ा ने िवं य पार क काफ भारतीय
िह स को अपने सा ा य म िमला िलया था।
से यूकस का भाव
िजस समय चं गु मौय सा ा य क िनमाण म त पर था, िसकदर का सेनापित से यूकस अपनी महानता क न व
डाल रहा था। िसकदर क मृ यु क बाद उसक सेनािनय म यूनानी सा ा य क स ा क िलए संघष आ, िजसक
प रणाम व प से यूकस, प म एिशया म भु व क मामले म, एंटीगोनस का ित ं ी बना। अपने पूव
अिभयान क दौरान वह भारत क ओर बढ़ा। ईसा पूव 305-4 म काबुल क माग से होते ए वह िसंधु नदी क ओर
बढ़ा। उसने िसंधु नदी पार क और चं गु क सेना से उसका सामना आ। से यूकस पंजाब और िसंधु पर अपना
भु व पुनः थािपत करने क उ े य से आया था। िकतु इस समय क राजनीितक थित िसकदर क आ मण क
समय से काफ िभ थी। यूनानी लेखक ावो क अनुसार, चं गु मौय क समय म अ ोनोमोई नामक अिधकारी
निदय क देखभाल, भूिम क नाप-जोख, जलाशय का िनरी ण और नहर क देखभाल करते थे, तािक सभी
लोग को पानी ठीक से िमल सक।
पंजाब और िसंधु अब पर पर यु करनेवाले छोट-छोट रा य म िवभ नह थे, ब क एक सा ा य क अंग
थे। आ य क बात ह िक यूनानी तथा रोमी लेखक से यूकस और चं गु क बीच ए यु का कोई िव तृत
यौरा नह देते। कवल ए पयानस ने िलखा ह िक से यूकस ने िसंधु नदी पार क और भारत क स ा चं गु से
यु छड़ा। अंत म उनम संिध हो गई और वैवािहक संबंध थािपत हो गया।
ज टन क अनुसार, चं गु से संिध करक और अपने पूव रा य को शांत करक से यूकस एंटीगोनस से यु
करने चला गया। ए पयानस क कथन से प ह िक से यूकस चं गु क िव सफलता ा नह कर सका।
अपने पूव रा य क सुर ा क िलए से यूकस ने चं गु से संिध करना ही उिचत समझा और उस संिध को उसने
वैवािहक संबंध से और अिधक पु कर िलया।
बो का कथन ह िक से यूकस ने ऐ रयाना क देश चं गु को िववाह-संबंध क फल व प िदए। इससे यह
िन कष िनकलता ह िक यूनानी राजकमारी मौय स ा को याही गई और ये देश दहज क प म िदए गए।
इितहासकार का आमतौर पर यह मत ह िक से यूकस ने चं गु को चार ांत—1. ए रया अथा काबुल, 2.
अराकोिसया अथा कधार, 3. जे ोिसया अथा मकरान और 4. परीपेिमसदाई अथा हरात देश दहज म िदए।
अशोक क िशलालेख से िस होता ह िक काबुल क घाटी मौय सा ा य क अंतगत थी।
शासन- यव था
से यूकस ने अपने राजदूत मेग थनीज को चं गु क दरबार म भेजा। ये मै ी संबंध दोन क उ रािधका रय क
बीच भी बने रह। यो य शासक चं गु एक कशल यो ा, सेनानायक तथा महा िवजेता ही नह था, वर एक
यो य शासक भी था। इतने बड़ सा ा य क शासन- यव था कोई सरल काय नह था। अतः अपने धानमं ी
कौिट य क सहायता से उसने एक ऐसी शासन- यव था का िनमाण िकया, जो उस समय क अनुकल थी। यह
शासन यव था एक हद तक मगध क पूवगामी शासक ारा िवकिसत शासन-तं पर आधा रत थी; िकतु इसका
अिधक ेय चं गु और कौिट य क सृजना मक मता को ही िदया जाना चािहए।
कौिट य ने िलखा ह िक उस समय शासन-तं पर जो भी ंथ उपल ध थे और िभ -िभ रा य म शासन-
णािलयाँ चिलत थ , उन सबका भलीभाँित अ ययन करने क बाद उ ह ने अपना िस ंथ ‘अथशा ’ िलखा।
िव ान का िवचार ह िक मौय शासन यव था पर त कालीन यूनानी तथा आखमीनी शासन णाली का भी कछ
भाव पड़ा। चं गु ने ऐसी शासन यव था थािपत क , िजसे परवत भारतीय शासक ने भी अपनाया। इस
शासन क मु य िवशेषताएँ थ —1. स ा का अ यिधक क ीकरण, 2. िवकिसत आिधका रक तं , 3. उिचत याय
यव था, 4. नगर-शासन, किष, िश प उ ोग, संचार, वािण य एवं यापार क वृ क िलए रा य क ारा
अनेक कारगर उपाय।
चं गु क शासन बंध का उ े य लोक-िहत था। जहाँ एक ओर आिथक िवकास एवं रा य क समृ क
अनेक ठोस कदम उठाए गए और िश पय एवं यापा रय क जान-माल क सुर ा क गई, वह दूसरी ओर जनता
को उनक अनुिचत तथा शोषणा मक काय-िविधय से बचाने क िलए कठोर िनयम भी बनाए गए। दास और
कमकार को मािलक क अ याचार से बचाने क िलए िव तृत िनयम थे। अनाथ, द र , मृत सैिनक तथा
राजकमचा रय क प रवार क भरण-पोषण का भार रा य क ऊपर था। त कालीन मापदंड क अनुसार, चं गु का
शासन- बंध एक क याणकारी रा य क धारणा को च रताथ करता ह। यह शासन िनरकश था, दंड यव था
कठोर थी और य क वतं ता का सवथा अभाव था; िकतु यह सब नवजात सा ा य क सुर ा तथा जा क
िहत को यान म रखकर िकया गया था।
चं गु क शासन यव था का चरम ल य ‘अथशा ’ क िन न उ रण से य होता ह—‘‘ जा क सुख म ही
राजा का सुख ह और जा क भलाई म उसक भलाई। राजा को जो अ छा लगे वह िहतकर नह ह, वर िहतकर
वह ह जो जा को अ छा लगे।’’
उपयु उ रण से प ह िक कौिट य ने राजा क सम जा-िहतैषी राजा का आदश रखा।
धािमक िच
चं गु धम म भी िच रखता था। यूनानी लेखक क अनुसार, िजन चार अवसर पर राजा महल से बाहर जाता
था, उनम एक था य करना। कौिट य उसका पुरोिहत तथा धानमं ी था। हमचं ने भी िलखा ह िक वह ा ण
का आदर करता ह। मेग थनीज ने िलखा ह िक चं गु वन म रहनेवाले तप वय से परामश करता था और उ ह
देवता क पूजा क िलए िनयु करता था। वष म एक बार िव ान क सभा बुलाई जाती थी, तािक वे जनिहत
क िलए उिचत परामश दे सक। दाशिनक से संपक रखना चं गु क िज ासु वृि का सूचक ह। जैन
अनुयाियय क अनुसार, जीवन क अंितम चरण म चं गु ने जैन धम वीकार कर िलया। कहा जाता ह िक जब
मगध म 12 वष का अकाल पड़ा तो चं गु रा य यागकर जैन आचाय भ बा क साथ वण बेलगोला (मैसूर
क िनकट) चला गया और एक स े जैन िभ ु क भाँित उसने िनराहार समािध थ होकर ाण- याग िकया (अथा
कव य ा िकया)।
900 ईसवी क बाद क अनेक अिभलेख भ बा और चं गु का एक साथ उ ेख करते ह।
मूल पु ष
पुराण म मौय वंश का मूल पु ष चं गु माना गया ह। पुराण क अनुसार, चं गु का ज म मुरा नामक शू ा से
आ था और वह चाण य क सहायता से नंद का नाश कर पाटिलपु का स ा आ था। पर बौ ंथ म
चं गु को मो रय वंश का िलखा ह और उसे शु ि य माना ह। मौय वंश क शु ि य होने क पुि
‘िद यावदान’ म अशोक क मुँह से कहलाए ए ोक—अह ि यः कथं पलांड प रभ यािम, से भी होती ह,
िजसम अशोक कहता ह—म ि य । म याज कसे खाऊ।
िप पली कानन क मो रया राजा का भी उ ेख ‘महाप रिनवाण सू ’ म ह। इससे िविदत होता ह िक महा मा
बु देव क प रिनवाण काल म िप पली कानन म मो रय ि य का िनवास था। इससे मो रय राजवंश क स ा का
पता चं गु से ब त पहले तक चलता ह। ये मो रय लोग शा य, िल छिव, म आिद वंश क ि य क संबंधी
थे। जान पड़ता ह, ये लोग काबुल क देश क रहनेवाले ि य थे और जब पारसी आय ने भारतीय आय पर
आ मण करना ारभ िकया, तब ये लोग भागकर नेपाल क तराई म चले आए और वहाँ क लोग को अपने
अिधकार म करक उ ह ने छोट-छोट अनेक रा य थािपत िकए। उनक आचार आिद पर पारसी आय और म य
एिशया क अ य जाितय का भाव पड़ा था, इसिलए मनुजी ने उ ह ा यज ि य िलखा ह। संभव ह, बौ हो
जाने क कारण ही सं कार युत होने पर इन जाितय को ा यज िलखा गया हो और इसिलए पुराण म चं गु मौय
क वंश क िलए भी वृषल या वणसंकर िलखा गया हो।
‘महावंश’ क टीकाकर और ‘िद यावदान’ क टीकाकार का कथन ह िक चं गु मो रय नगर क राजा का पु था।
जब मो रय क राजा का वंस आ तब उसक गभवती रानी अपने भाई क साथ बड़ी किठनता से भागकर पु पपुर
चली आई और वह चं गु का ज म आ। यह चं गु गौएँ चराया करता था। इसे होनहार देख चाण य अपने
आ म पर लाए और उपनयन कर अपने साथ त िशला ले गए।
इितहासकार का कथन ह िक मो रय नगर उ ानक देश म था, जो िहदुकश और िच ाल क म य म था। इन
सब बात को देखते ए जान पड़ता ह िक िजस कार िन वश से िल छिव, शक से शा य आिद राजवंश क नाम
पड़, उसी कार मो रय नगर क थम अिधवासी होने क कारण मौय राजवंश क भी नाम रखा गया और आचार-
यवहार क िविभ ता से पुराण म उसे ‘वृषल’ आिद िलखा गया। पारस क सीमा पर रहने क कारण उनक
आचार- यवहार और रहन-सहन पर पारिसय का भाव पड़ा था और चं गु तथा अशोक क समय क गृह एवं
राज साद का भी िनमाण पारस क भवन क ढग पर ही िकया गया था।
चं गु क बाद अशोक मौय वंश का सबसे िस स ा आ। मौय सा ा य का वंस शुंग ने िकया। पर
िव म क आठव शता दी तक इधर-उधर मौय क छोट-छोट रा य का पता लगता ह। ऐसा िस ह और जैन
ंथ म भी िलखा ह िक िच ौड़ का गढ़ मौय या मोरी राजा िच ांग ने बनवाया था।
सबसे बड़ा सबक
चं गु मौय क शासनकाल म चीन से एक दूत आया। वह चाण य क साथ राजनीित क दशन पर िवचार-िवमश
करना चाहता था। चीनी राजदूत राजशाही ठाट-बाटवाला अ खड़ िक म का था। उसने चाण य से बातचीत क
िलए समय माँगा। चाण य ने उसे अपने घर रात को आने का िनमं ण िदया।
उिचत समय पर चीनी राजदूत चाण य क घर प चा। उसने देखा िक चाण य एक छोट से दीपक क सामने बैठकर
कछ िलख रह ह। उसे आ य आ िक चं गु मौय क दरबार का बड़ा ओहदेदार मं ी इतने छोट से दीये का
योग कर रहा ह।
चीनी राजदूत को आया देख चाण य खड़ ए और आदर-स कार क साथ उसका वागत िकया। इससे पहले
िक बातचीत ारभ हो, चाण य ने वह छोटा सा दीपक बुझा िदया और एक बड़ा दीपक जलाया। बातचीत समा
होने क बाद चाण य ने बड़ दीपक को बुझाया और िफर से छोट दीपक को जला िलया।
चीनी राजदूत को चाण य का यह काय िबलकल ही समझ म नह आया। चलते-चलते उसने पूछ ही िलया िक
आिखर उ ह ने ऐसा य िकया?
चाण य ने कहा, ‘‘जब आप मेर घर पर आए तो उस व म अपना वयं का िनजी काय कर रहा था, अतः उस
व म अपना वयं का दीपक योग म ले रहा था। जब हमने राजकाज क बात ारभ क तब म राजक य काय
कर रहा था अतः मने रा य का दीपक जलाया। जैसे ही हमारी राजक य बातचीत समा ई, मने िफर से अपना
िनजी दीपक जला िलया।’’
चाण य ने आगे कहा, ‘‘म कभी ‘रा य का मं ी’ होता तो कभी रा य का ‘आम आदमी’। मुझे दोन क बीच
अंतर मालूम ह।’’
चाण य क सादगी
चं गु मौय क शासन म एक चीनी या ी पाटिलपु प चा तो उसक इ छा चं गु क महामं ी चाण य से
िमलने क ई। उनसे िमले िबना उसे अपनी भारत या ा अधूरी महसूस हो रही थी। लेिकन चाण य कहाँ रहते ह,
इसका पता चीनी या ी को नह था। वह सुबह-सुबह घूमता आ गंगा िकनार प चा। वहाँ उसने एक वृ को
देखा, जो ान करक अपनी धोती धो रह थे। वृ ने धोती धोकर अपने घड़ म पानी भरा और वहाँ से चल पड़।
या ी ने उनसे कहा, ‘महाशय, म चीन का िनवासी । भारत म काफ घूमा । मौय शासन क महामं ी आचाय
चाण य क दशन करना चाहता । या आप मुझे उनका पता बता पाएँगे?’
वृ ने कहा, ‘अितिथ क सहायता करक मुझे स ता होगी। आप कपया मेर साथ चल।’ िफर आगे-आगे वृ
चले और पीछ-पीछ वह या ी।
रा ता नगर क ओर न जाकर जंगल क ओर जा रहा था। या ी सोच रहा था िक चाण य क िनवास- थान तक
प चने का ज र यह छोटा माग होगा। थोड़ी देर बाद वृ एक आ म क िनकट प चे, जहाँ चार ओर शांित थी।
फल-पि य से आ म िघरा आ था। ार पर प चकर वृ ने कहा, ‘महामं ी चाण य अपने अितिथ का
वागत करता ह। पधा रए महाशय।’
या ी भ चक था। आिखर इतने बड़ सा ा य क महामं ी का जीवन इतना सादगीपूण हो सकता ह, उसने सोचा तक
न था। चाण य ने उसे भारतीय जीवन-प ित म सरलता क मह व क बार म समझाया। वह चीनी या ी चाण य
क ित ा से भर उठा।
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घनानंद या इ द
भारत क इितहास म यह चिलत ह िक चं गु मौय ने घनानंद को परािजत कर नंद वंश का नाश िकया था।
िकतु यह सच नह ह।
पाटिलपु यानी आज क पटना म आज से कोई लगभग 2,342 वष पहले महाप नंद या किहए घनानंद नाम का
स ा राज करता था। उसी क समय म यूनानी आ मणकारी िसकदर ने भारत पर आ मण िकया था। िसकदर
वयं को िव -िवजयी मानता था, पर मगध सा ा य क सीमा तक प चते-प चते उसका यह घमंड चकनाचूर हो
गया था। जब उसक सैिनक ने सुना िक यास नदी से आगे बढ़ने पर उ ह स ा महाप नंद क ब त बड़ी
श से टकराना होगा तो उ ह ने आगे बढ़ने से इनकार कर िदया और िसकदर वह से वापस लौट गया।
उस समय पाटिलपु म दो महािव ा आचाय रहते थे। उनक नाम थे वष एवं उपवष। उनक आ म म
िव ा ययन हतु दूर-दूर से छा आया करते थे। उस समय िव ािथय क एक ितकड़ी बड़ी िस थी। उनम से
पहला का यायन, दूसरा याड़ी और तीसरा इ द था। अ ययन क समा पर उ ह ने गु को कछ गु दि णा
देनी चाही। उपवष ने ब त समझाया िक तुम गरीब ा ण हो, तुम लोग हमारी दी ई िव ा का खूब चार करो,
इसी से तु हारी दि णा क भरपाई हो जाएगी; पर वे नह माने। इस पर गु ने कहा, नह मानते तो लाओ एक लाख
वण मु ाएँ।
बेचार गरीब ा ण इतनी वण मु ाएँ कहाँ से जुटा पाते। इधर दैव योग से उसी िदन महाराज नंद क मृ यु हो गई।
महाराज नंद क मृ यु का समाचार सुनते ही इ द ने अपने दोन सािथय से कहा, ‘‘बस, अब बात बन गई। म
ऐसी योग िव ा जानता , िजसक ारा दूसर क शरीर म वेश कर सकता । म अपने शरीर को यह छोड़कर
नंद क शरीर म िव हो जाता । मरकर िफर जीिवत हो जाने क खुशी म म सार रा य म उ सव मनाने और दान
देने क घोषणा कर दूँगा। यहाँ किटया म याड़ी मेर शरीर क देखभाल करता रह और का यायन ातःकाल मेर
(महाराज नंद क) पास आ जाए। म उसे ढर वण-मु ाएँ दान म िदलवा दूँगा और िफर अपने इसी शरीर म आ
जाऊगा।’’
तदनुसार महाराज महाप नंद क पुनः जीिवत हो उठने पर सब लोग चिकत रह गए। उधर उसने ातःकाल ही
का यायन को अपार धनरािश दान म देने क आ ा दी तो उसक चतुर मं ी शकटार को यह समझने म देर न लगी
िक महाराज महाप नंद क शरीर म िकसी योगी क आ मा आ गई ह, जो इस गरीब ा ण को दान िदलाते ही
वापस अपने शरीर म चली जाएगी। शकटार एक बड़ा ही वामीभ मं ी था। वह नह चाहता था िक महाराज क
िफर से मृ यु हो जाए, इसिलए उसने आ ा दे दी िक देश म कह भी कोई भी मृत शरीर पड़ा हो, उसे त काल जला
िदया जाए।
बेचार इ द और याड़ी क किटया म तो दरवाजे भी नह थे। राजकमचारी वहाँ भी प च गए और उ ह ने इ द
क शरीर को उठाकर अ न क भट कर िदया। महाराज महाप नंद क शरीर म िव इ द को जब यह पता
चला तो वह ब त छटपटाया, लेिकन अब या हो सकता था। िववश होकर उसे नंद क शरीर म ही रहना पड़ गया।
पर उसने अब शकटार से इस कक य का बदला लेने क ठान ली।
कछ ही िदन बाद महाप नंद ने उसी शकटार को, िजसे वह अब तक ाण से भी यादा यार करता था,
अचानक जेल म डाल िदया और उसक थान पर का यायन को अपना अमा य यानी धानमं ी बना िलया।
शकटार कई वष तक जेल म पड़ा सड़ता रहा। अंत म जब उसे बंदीगृह से मु िकया गया तो वह इतना अश
हो चुका था िक राजा नंद से िकसी कार का कोई बदला नह ले सकता था।
दैवयोग से उसे उसी समय नगर क बाहर एक ऐसा ा ण िदखाई दे गया, जो कशा क जड़ म म ा डाल रहा
था। शकटार क पूछने पर उसने बताया िक ‘इन दु कशा ने मेर पैर म चुभकर मुझे क प चाया ह, म से
इनका समूल नाश हो जाएगा।’
यह सुनकर शकटार को लगा िक यिद यह ा ण िकसी कार से भी महाराजा नंद से हो जाए तो उसका
सवनाश कर डालेगा। यही सोचकर उसने उसे राजा क यहाँ ा भोजन म प चा िदया। महाराज नंद को यह
जानकारी न थी िक यह दुबला-पतला, साँवला सा ा ण कोई साधारण य नह , त िशला से संपूण िव ा
पढ़कर लौटा महामित िव णुगु चाण य ह। स ा नंद ने भरी सभा म उनका अपमान कर िदया।
बस, िफर या था, चाण य ने उसी समय अपनी िशखा खोलकर नंद वंश का नाश करने क ित ा कर ली और
कछ ही िदन म नंद वंश का नाश कर उसक थान पर चं गु मौय को स ा बना िदया। इधर नंद क मरते ही
का यायन पाटिलपु से भाग िनकला। िकतु गुण ाही आचाय चाण य ने उसे िफर पाटिलपु बुलाया और चं गु
का अमा य बना िदया। वह जानता था िक का यायन जैसा वामीभ और िव ा दूसरा महामं ी िमलना किठन
ह। का यायन ही रा स नाम से जाना जाता ह।
सुलह का माग
चं गु मौय नंद वंश क अंितम स ा को परािजत कर मगध क स ा : बन गए। यु म नंद रा य क मं ी और
सेनापित या तो मार गए या बंदी बना िलये गए; परतु धान अमा य रा स हाथ नह आया। रा स यो य शासक
था। उसी क बल पर मगध एक श शाली रा य बन चुका था। चाण य जब अपनी कटनीित और सैिनक बल से
रा स को पकड़ने म असफल हो गए तो उ ह ने रा स क परम िम सेठ चंदनदास को मृ युदंड देने क घोषणा
कर दी। इस घोषणा को सुनकर रा स से रहा नह गया और वह उसक ाण बचाने क िलए वध- थल पर जा
प चा और आ मसमपण करक अपने िम चंदनदास को मु करने क याचना क । रा स क आने का समाचार
सुनकर चं गु और चाण य वहाँ प च गए। रा स ने उनक सामने भी अपना अनुरोध दोहराया।
रा स क बु -कौशल और कटनीितक चातुय का चाण य भी लोहा मानते थे। उ ह ने रा स से िवन तापूवक
कहा, ‘‘अमा य, हमारी ि म आपने मगध रा य क िव ष यं िकए ह, पर हम आप जैसे यो य मं ी को
खोना नह चाहते। यिद आप चं गु क िलए धान अमा य का पद वीकार कर ल तो आपक िम क ाण बच
सकते ह।’’ अपने िम क ाण क र ा क िलए रा स क स मुख और कोई उपाय नह था। मगध क िहत म उसे
चाण य का अनुरोध वीकार करना पड़ा। रा स ारा पद सँभालने क बाद चं गु मौय को अपने िवरा
सा ा य म कशल शासन क थापना म कोई किठनाई नह आई।
सीख
चं गु मौय दोपहर म वेश बदलकर नगर का िनरी ण करने क िलए िनकले। धूप व गरमी से वे बेहाल थे। एक
जगह घना वृ देखकर वे उसक नीचे बैठ गए। उ ह क ठीक सामने पेड़ क नीचे एक िभखारी फटहाल, चीथड़
म बैठा स कछ गुनगुना रहा था। तभी वहाँ एक और िभखारी आया और चं गु से बोला, ‘‘भगवा क नाम
पर कछ दे दो। म दो िदन से भूखा ।’’
चं गु बोले, ‘‘भाग यहाँ से, ह ा-क ा होने पर भी हाथ फलाता ह।’’
िभखारी डाँट खाकर सामने बैठ िभखारी क पास गया और उसक सामने िगड़िगड़ाने लगा।
उस िभखारी ने अपनी पोटली खोली और उसम से एक िस ा िनकालते ए बोला, ‘‘जा, इस समय मेर पास यही
ह। इसी से खरीदकर कछ खा ले।’’
दूसरा िभखारी पहले िभखारी को आशीष देता आ चला गया और पहला िभखारी िफर उसी तरह गुनगुनाने लगा।
चं गु यह देखकर दंग रह गए िक उनक रा य म िभखारी भी दाता ह। िफर उ ह संदेह आ िक कह यह कोई
िवदेशी गु चर न हो। वह उसक पास जा प चे और उसक बार म पूछने लगे।
िभखारी बोला, ‘‘म िभखारी और मेरा नाम कालीचरण ह।’’
चं गु बोले, ‘‘पर तु हार चेहर पर िभखा रय जैसी दीनता नह ब क राजा जैसी चमक ह।’’
इस पर िभखारी मुसकराते ए बोला, ‘‘असल म म अपने िलए कभी कछ नह चाहता, सदा दूसर क िलए कछ
करता रहता । इससे मुझे सुख िमलता ह और शायद यही मेर चेहर पर चमक का राज ह।’’
चं गु इस सीख को अपने जीवन म उतारने का संक प िलये चल पड़।
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राजनीितक एकता का सू पात
यूनानी लेखक ने चं गु को स ोकोटस व ऐं ोकोटस कहा ह। चं गु ारा मौय वंशीय शासन क थापना
क साथ ही भारत म एक श शाली क क थापना ई तथा राजनीितक एकता का सू पात आ।
एक अ य चिलत कथा क अनुसार, भगवा बु क समय कोसल-नरश िव भ क आ मण से त होकर
कश शा य िहमालय म एक सुरि त थान पर बस गए थे। उस थान पर उ ह ने मो रय नगर क थापना क तथा
वहाँ रहनेवाले मौय कहलाए। चं गु मो रय नगर क राजा क पु थे। चं गु िजस समय अपनी माता क गभ म
थे, तब मो रय नगर पर एक श शाली राजा ने आ मण कर मो रया राजा को मार डाला।
मो रय रानी िकसी कार भागकर अपने भाइय क पास पु पपुर (पाटिलपु ) प ची। पु पपुर म ही उसने एक
ब े को ज म िदया तथा उसे एक मवेशीशाला क िनकट फक िदया। वहाँ पर चं नामक एक वृषभ ने उनक र ा
क , िजससे उस ब े का नाम चं गु (चं ारा रि त) पड़ा।
कछ समय प ा चं गु से भािवत होकर एक िशकारी उसे अपने साथ ले गया। चं गु उसी िशकारी क गाँव
म रहते थे। एक िदन वे अ य बालक क साथ राज ड़ा कर रह थे। वे वयं राजा बने ए थे और अ य बालक
को िविभ अिधकारी िनयु कर वे वा तिवक राजा क समान याय कर रह थे। उसी समय वहाँ से आचाय
चाण य िनकले और उ ह ने चं गु का वह खेल देखा, िजससे वह अ यिधक भािवत ए। चाण य उस समय
नंद राजा से अपने अपमान का ितशोध लेने का अवसर ढढ़ रह थे।
उ ह ने चं गु को िशकारी से खरीद िलया और िफर चं गु को त िशला म सम त कार क िश ा िदलवाई।
कालांतर म चं गु और चाण य क स मिलत यास से नंद वंश का उ मूलन आ और मौय वंश तथा सा ा य
क थापना कर चं गु मगध क शासक बने।
मौय सा ा य का आिधप य उ र म िहमालय से दि ण म मैसूर तक और प म म िहदुकश पवत से पूण बंगाल
तक था।
चं गु क अंितम िदन
पाटिलपु म भयंकर अकाल पड़ा था। ऐसे समय म जैन मुिन भ बा ने अपने साधक क साथ दि ण क ओर
थान िकया। चं गु भी भ बा क साथ वण बेलगोला चले गए तथा अपने अंितम िदन उ ह ने वह साधना म
िबताए। लगभग 398 ईसा पूव चं गु ने अपनी देह याग दी। उनक 24 वष क शासन का एक नया ारभ आ।
इसक बाद चं गु क पु िबंदुसार ने स ा सँभाल ली।
िवदेशी ब
चाण य भारतीय राजनीित और ‘अथशा ’ क पहले िवचारक माने जाते ह। पाटिलपु क श शाली नंद वंश को
उखाड़ फकने और अपने िश य चं गु मौय को बतौर राजा थािपत करने म चाण य का अहम योगदान रहा।
ान क क त िशला िव िव ालय म आचाय रह चाण य राजनीित क चतुर िखलाड़ी थे और इसी कारण उनक
नीित कोर आदशवाद पर नह , ब क यावहा रक ान पर िटक ह। इसे इस संग से समझ—
स ा : चं गु अपने मंि य क साथ एक िवशेष मं णा म य त थे िक हरी ने सूिचत िकया िक आचाय चाण य
राजभवन म पधार रह ह। स ा : चिकत रह गए। इस असमय म गु का आगमन! वे घबरा भी गए। अभी वे कछ
सोचते ही िक लंबे-लंबे डग भरते चाण य ने सभा म वेश िकया।
स ा : चं गु सिहत सभी सभासद स मान म उठ खड़ ए। स ा : ने गु देव को िसंहासन पर आसीन होने को
कहा। आचाय चाण य बोले, ‘‘भावुक न बनो स ा :, अभी तु हार सम तु हारा गु नह , तु हार रा य का एक
याचक खड़ा ह। मुझे कछ याचना करनी ह।’’
चं गु क आँख डबडबा आई। बोले, ‘‘आप आ ा द, सम त राजपाट आपक चरण म डाल दूँ।’’
चाण य ने कहा, ‘‘मने आपसे कहा, भावना म न बह, मेरी याचना सुन।’’
गु देव क मुखमु ा देख स ा : चं गु गंभीर हो गए। बोले, ‘‘आ ा द।’’
चाण य ने कहा, ‘‘आ ा नह , याचना ह िक म िकसी िनकट थ सघन वन म साधना करना चाहता । दो माह क
िलए राजकाय से मु कर द और यह मरण रह, वन म अनाव यक मुझसे कोई िमलने न आए। आप भी नह ।
मेरा उिचत बंध करा द।’’
चं गु ने कहा, ‘‘सबकछ वीकार ह।’’
दूसर िदन बंध कर िदया गया। चाण य वन चले गए।
अभी उ ह वन गए एक स ाह भी न बीता था िक यूनान से से यूकस अपने जामाता चं गु से िमलने भारत पधार।
उनक पु ी हलेना का िववाह चं गु से आ था। दो-चार िदन क बाद उ ह ने चाण य से िमलने क इ छा कट
कर दी। से यूकस ने कहा, ‘‘स ा :, आप वन म अपने गु चर भेज द। उ ह मेर बार म कह। वे मेरा बड़ा आदर
करते ह। वे कभी इनकार नह करगे।’’
अपने सुर क बात मानकर चं गु ने ऐसा ही िकया। गु चर भेज िदए गए। चाण य ने उ र िदया, ‘‘सस मान
से यूकस वन लाए जाएँ। मुझे उनसे िमलकर स ता होगी।’’
सेना क संर ण म से यूकस वन प चे। औपचा रक अिभवादन क बाद चाण य ने पूछा, ‘‘माग म कोई क तो
नह आ?’’
इस पर से यूकस ने कहा, ‘‘भला आपक रहते मुझे क होगा! आपने मेरा ब त खयाल रखा।’’
न जाने इस उ र का चाण य पर या भाव पड़ा िक वे बोल उठ, ‘‘हाँ, सचमुच आपका मने ब त खयाल
रखा।’’
इतना कहने क बाद चाण य ने से यूकस क भारत क भूिम पर कदम रखने क बाद से वन आने तक क सारी
घटनाएँ सुना द । उसे इतना तक बताया िक से यूकस ने स ा : से या बात क । एकांत म अपनी पु ी से या बात
ई। माग म िकस सैिनक से या पूछा।
से यूकस यिथत हो गए। बोले, ‘‘इतना अिव ास! मेरी गु चरी क गई। मेरा इतना अपमान!’’
चाण य ने कहा, ‘‘न तो अपमान, न अिव ास और न ही गु चरी। अपमान क तो बात म सोच भी नह सकता।
स ा : भी इन दो महीन म शायद न िमल पाते। आप हमार अितिथ ह। रही बात सूचना क तो वह मेरा रा धम
ह। आप कछ भी ह , पर िवदेशी ह। अपनी मातृभूिम से आपक िजतनी ितब ता ह, वह इस रा से नह हो
सकती। यह वाभािवक भी ह। म तो स ा ी क भी येक गितिविध पर ि रखता । मेर इस धम को अ यथा न
ल। मेरी भावना समझ।’’
से यूकस हरान हो गया। वह चाण य क पैर म िगर पड़ा। उसने कहा, ‘‘िजस रा म आप जैसे रा भ ह , उस
देश क ओर कोई आँख उठाकर भी नह देख सकता।’’
वीर बालक
यूनान क सेनापित-स ा : िसकदर क मन म एक िदन यह इ छा जागी िक वह सार संसार पर राज कर और पूर
िव का स ा : कहलाए। उसने यु क तैयारी जोर-शोर से शु कर दी। िफर वह और उसक सेना आँधी-
तूफान क तरह सबको अपनी लपेट म लेती ई आगे बढ़ने लगी।
एक बार िसकदर क सेना ने िसंधु नदी क तट पर पड़ाव डाल रखा था। चार ओर िशिवर-ही-िशिवर िदखाई देते
थे। यूनानी सैिनक ितिदन अ -श चलाकर अ यास िकया करते। िसकदर ने अपनी सेना क यव था वयं
अपने हाथ म ले रखी थी। उसक सेना बड़ी प र मी, शूरवीर और फत ली थी। िसकदर अपनी सेना क येक
सैिनक क दुःख-सुख का बराबर यान रखता था। इसी कारण िसकदर से सभी सैिनक स थे। उसक िकसी
सैिनक को िसकदर से िकसी कार क कोई िशकायत न थी।
एक िदन जब यूनानी सैिनक बाण चलाने का अ यास कर रह थे तो एक लड़का कधे पर धनुष-बाण और पीठ
पर तरकश कसे एक वृ क आड़ म िछपा आ यह सब तमाशा देख रहा था। अक मा एक सैिनक ने उसी वृ
क तने पर बाण का िनशाना लगाया और जब वह बाण िनकालने क िलए वृ क पास आया तो उसने लड़क को
देख िलया। सैिनक ने आगे बढ़कर उस लड़क को पकड़ िलया। उसने देखा, हो न हो, यह अव य श ु का भेजा
आ गु चर ह।
वह लड़का सैिनक से तिनक भी भयभीत नह आ और मौनपूवक सैिनक क साथ चलता रहा। सैिनक लड़क को
अपने सािथय क पास ले आया और उसे अपने द ते क अफसर को सुपुद करक सारी घटना कह सुनाई और
बताया िक शायद यह श ु का भेजा आ गु चर ह। अफसर उस लड़क को तुरत स ा : िसकदर क सेवा म ले
गया।
स ा : िसकदर ने लड़क को िसर से पाँव तक देखा और गरजकर पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’
लड़क ने उ र िदया, ‘‘म एक भारतीय ।’’
िसकदर ती ण ि से लड़क क ओर देखते ए गरजा, ‘‘ या तुम हम धोखा देने आए थे?’’
‘‘नह , हम भारतीय िकसी को धोखा देना महापाप समझते ह।’’ लड़क ने बड़ी िवन ता से कहा।
िसकदर ने िफर ती ण ि का हार उस पर िकया और पूछा, ‘‘िफर तु हार यहाँ आने का उ े य?’’
लड़क ने कहा, ‘‘ह वीर स ा :! मुझे बाण चलाने का बड़ा शौक ह। मने अपने पूवज से सुन रखा था िक यूनानी
सैिनक बाण चलाना अ छी तरह जानते ह। इसिलए इसी िवचार से आपक सेना क पास आया था, तािक बाण
चलाना सीख सक*।’’
स ा : िसकदर ने ोध से लड़क क ओर देखा। लड़क क चेहर पर भय और आशंका क छाया तक न थी।
िसकदर ने उ न होकर कहा, ‘‘ऐ अबोध लड़क! या तुझे इस बात का पता नह ह िक तू श ु क ओर आ गया
ह। या तू नह जानता िक म तेर देश का श ु ? यिद म तुझे बंदी बना लूँ या मार डालूँ तो?’’
लड़क ने त काल कहा, ‘‘यह म अ छी तरह जानता िक स ा : िसकदर शूरवीर स ा : ह। हमार देश म एक
शूरवीर दूसर शूरवीर का कभी अपमान नह करता। यही सब सोचकर यहाँ चला आया था। अब आप जो चाह कर,
आपक इ छा ह। म जानता िक िसकदर स ा : जो कह देते ह वह कर गुजरते ह। संसार क कोई श स ा :
िसकदर को रोक नह सकती।’’
स ा : िसकदर उस वीर बालक क वीरता व साहस पर मं मु ध रह गया और भाव-िवभोर हो उठा। उसने स
होकर उसे मु कर िदया। बालक क पीठ थपथपाते ए कहा, ‘‘जाओ, वीर बालक! तुम वतं ता क साथ
यूनानी सैिनक क बीच घूम सकते हो और उनसे बाण चलाना सीख सकते हो। मेरी ओर से अनुमित ह।’’
वही वीर बालक बाद म चं गु मौय क नाम से िस आ।
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मौय सा ा य का इितहास
चं गु मौय ने मौय सा ा य क थापना क । यह सा ा य गणतं यव था पर राजतं यव था क जीत थी।
इस काय म ‘अथशा ’ नामक पु तक ारा चाण य ने सहयोग िकया। आय क आगमन क बाद यह थम
थािपत सा ा य था।
मौय सा ा य का शासन प मो र म अफगािन तान और बलूिच तान तक फला था। उनक पौ अशोक ने,
िज ह आरिभक भारत का सव िस शासक माना जा सकता ह, किलंग आधुिनक उड़ीसा पर िवजय ा क ।
मौय सा ा य क इितहास क रचना क िलए इितहासकार ने िविभ कार क ोत का उपयोग िकया ह। इनम
पुराता वक माण भी शािमल ह, िवशेषतया मूितकला। मौयकालीन इितहास क पुनिनमाण हतु समकालीन रचनाएँ
भी मू यवा िस ई ह, जैसे चं गु मौय क दरबार म आए यूनानी राजदूत मेग थनीज ारा िलखा गया
िववरण। आज इसक कछ अंश ही उपल ध ह। एक और ोत, िजसका उपयोग ायः िकया जाता ह, वह ह
‘अथशा ’। संभवतः इसक कछ भाग क रचना कौिट य या चाण य ने क थी, जो चं गु क मं ी थे। साथ ही
मौय शासक का उ ेख परवत जैन, बौ और पौरािणक ंथ तथा सं कत वाङ मय म भी िमलता ह। य िप
उ सा य बड़ उपयोगी ह, लेिकन प थर और तंभ पर िमले अशोक क अिभलेख ायः सबसे मू यवान ोत
माने जाते ह। अशोक वह पहला स ा : था िजसने अपने अिधका रय और जा क िलए संदेश ाकितक प थर
और पॉिलश िकए ए तंभ पर िलखवाए थे।
अशोक ने अपने अिभलेख क मा यम से ध म का चार िकया। इनम बड़ क ित आदर, सं यािसय और
ा ण क ित उदारता, सेवक और दास क साथ उदार यवहार तथा दूसर क धम और परपरा का आदर
शािमल ह।
िजस समय चं गु राजा बना था, भारत क राजनीितक थित ब त खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना
तैयार क और िसकदर क िव यु ारभ िकया। 317 ईसा पूव तक उसने संपूण िसंध और पंजाब देश पर
अिधकार कर िलया। अब चं गु मौय िसंध व पंजाब का एक छ शासक हो गया। पंजाब और िसंध िवजय क
बाद चं गु तथा चाण य ने घनानंद का नाश करने हतु मगध पर आ मण कर िदया। यु म घनानंद मारा गया।
अब चं गु भारत क एक िवशाल सा ा य मगध का शासक बन गया।
से यूकस ने अपनी पु ी हलेना का िववाह चं गु से कर िदया। उसने मेग थनीज को राजदूत क प म चं गु
मौय क दरबार म िनयु िकया।
िबंदुसार
िबंदुसार चं गु मौय का पु व उ रािधकारी था, िजसे वायुपुराण म म सार और जैन सािह य म िसंहसेन कहा
गया ह। यूनानी लेखक ने इ ह अिभलोचेटसन कहा ह। यह 298 ईसा पूव मगध सा ा य क िसंहासन पर बैठा। जैन
ंथ क अनुसार िबंदुसार क माता दुधरा थी। थेरवाद परपरा क अनुसार, वह ा ण धम का अनुयायी था।
िबंदुसार क समय म भारत का प म एिशया से यापा रक संबंध अ छा था। िबंदुसार क दरबार म सी रया क
राजा एंितयोकस ने डायमाइकस नामक राजदूत भेजा था। िम क राजा टॉलेमी क काल म डाइनोिसयस नामक
राजदूत मौय दरबार म िबंदुसार क रा यसभा म आया था।
‘िद यावदान’ क अनुसार, िबंदुसार क शासनकाल म त िशला म दो िव ोह ए थे, िजनका दमन करने क िलए
पहली बार अशोक को तथा दूसरी बार सुसीम को भेजा गया।
शासन क े म िबंदुसार ने अपने िपता का ही अनुसरण िकया। उसने भी उपराजा क प म कमार िनयु
िकए। ‘िद यावदान’ क अनुसार अशोक अवंित का उपराजा था। िबंदुसार क सभा म 500 सद य वाली मंि प रष
थी, िजसका धान ख ाटक था। िबंदुसार ने 25 वष तक रा य िकया। 273 ईसा पूव उसक मृ यु हो गई।
अशोक
राजग ी ा होने क बाद अशोक को अपनी आंत रक थित सु ढ़ करने म चार वष लगे। इस कारण
रा यारोहण चार साल बाद 269 ईसा पूव म आ था।
वह 273 ईसा पूव म िसंहासन पर बैठा। अिभलेख म उसे कई उपािधय से संबोिधत िकया गया ह। मा क तथा
गजरा क लेख म उसका नाम अशोक तथा पुराण म उसे अशोकवधन कहा गया ह। िसंहली अनु ुितय क
अनुसार, अशोक ने 99 भाइय क ह या करक राजिसंहासन ा िकया था; लेिकन इस उ रािधकार क िलए कोई
वतं माण ा नह आ ह।
‘िद यावदान’ म अशोक क माता का नाम सुभ ांगी ह, जो चंपा क एक ा ण क पु ी थी। िसंहली अनु ुितय
क अनुसार, उ ियनी जाते समय अशोक िविदशा म का, जहाँ उसने े ी क पु ी देवी से िववाह िकया, िजससे
मह और संघिम ा का ज म आ।
‘िद यावदान’ म उसक एक प नी का नाम ित यरि ता िमलता ह। एक लेख म उसक प नी का नाम क णाविक
ह, जो तीवर क माता थी। बौ परपरा एवं कथा क अनुसार, िबंदुसार अशोक को राजा नह बनाकर सुसीम
को िसंहासन पर बैठाना चाहता था; लेिकन अशोक एवं बड़ भाई सुसीम क बीच यु क चचा ह।
किलंग यु
अशोक ने अपने रा यािभषेक क आठव वष 261 ईसा पूव म किलंग पर आ मण िकया था। आंत रक अशांित से
िनपटने क बाद 269 ईसा पूव म उसका िविधव अिभषेक आ। तेरहव िशलालेख क अनुसार किलंग यु म 1
लाख 50 हजार य बंदी बनाकर िनवािसत कर िदए गए। 1 लाख लोग क ह या कर दी गई। स ा : अशोक ने
भारी नर-संहार को अपनी आँख से देखा। इससे िवत होकर उसने शांित, सामािजक गित तथा धािमक चार
िकया।
किलंग यु ने अशोक क दय म महा प रवतन कर िदया। उसका दय मानवता क ित दया और क णा से
उ ेिलत हो गया। उसने यु ि या को सदा क िलए बंद कर देने क ित ा क । यहाँ से आ या मक और
ध म िवजय का युग शु आ। उसने बौ धम को अपना धम वीकार िकया।
िसंहली अनु ुितय दीपवंश एवं महावंश क अनुसार, अशोक को अपने शासन क चौदहव वष म िनगोथ नामक
िभ ु ारा बौ धम क दी ा दी गई थी। त प ा मोगाली पु ित य क भाव से वह पूणतः बौ हो गया
था। ‘िद यावदान’ क अनुसार अशोक को बौ धम म दीि त करने का ेय उपगु नामक बौ िभ ुक को
जाता ह। अपने शासनकाल क दसव वष म अशोक ने सव थम बोधगया क या ा क थी। तदुपरांत अपने
रा यािभषेक क बीसव वष म लुंिबनी क या ा क थी और लुंिबनी ाम को कर-मु घोिषत कर िदया था।
अशोक एवं बौ धम
किलंग यु क बाद अशोक ने य गत प से बौ धम अपना िलया। अशोक क शासनकाल म ही पाटिलपु
म तृतीय बौ संगीित का आयोजन िकया गया, िजसक अ य ता मोगाली पु ित य ने क । इसी म
‘अिभध मिपटक’ क रचना ई और बौ िभ ु िविभ देश म भेजे गए, िजनम अशोक क पु मह एवं पु ी
संघिम ा को ीलंका भेजा गया।
िव ान ने अशोक क तुलना िव इितहास क महा : िवभूितय कॉ टटाइन, एंटोिनयस, अकबर, सटपॉल,
नेपोिलयन, सीजर आिद क साथ क ह।
अशोक अिहसा, शांित तथा लोक-क याणकारी नीितय क िव िव यात तथा अतुलनीय स ा : ह। एच.जी. वे स
क अनुसार, ‘अशोक का च र इितहास क तंभ को भरनेवाले राजा , स ाट , धमािधका रय , संत-महा मा
आिद क बीच काशमान ह और आकाश म ायः एकाक तार क तरह चमकता ह।’
अशोक ने बौ धम को अपना िलया और सा ा य क सभी साधन को जनता क क याण हतु लगा िदया। उसने
बौ धम क चार क िलए िन निलिखत साधन अपनाए—
(1) धमया ा का ारभ, (2) राजक य पदािधका रय क िनयु , (3) धम महापा क िनयु , (4) िद य
प का दशन, (5) धम वण एवं धम पदेश क यव था, (6) लोकाचा रता क काय, (7) धमिलिपय को
खुदवाना, (8) िवदेश म धम- चार व चारक भेजना आिद।
अशोक ने बौ धम का चार धमया ा से िकया। किलंग यु क बाद आमोद- मोद क या ा पर पाबंदी
लगा दी। अपने अिभषेक क बीसव वष म लुंिबनी ाम क या ा क । नेपाल तराई म थत िनगलीवा म उसने
कनक मुिन क तूप क मर मत करवाई। बौ धम क चार क िलए अपने सा ा य क उ पदािधका रय को
िनयु िकया। तंभ लेख तीन और सात क अनुसार उसने यु , र ुक, ादेिशक तथा यु नामक पदािधका रय
को जनता क बीच जाकर धम- चार करने और उपदेश देने का आदेश िदया।
ध म को लोकि य बनाने क िलए अशोक ने मानव व पशु जाित क क याण हतु पशु-पि य क ह या पर ितबंध
लगा िदया था। रा य तथा िवदेशी रा य म भी मानव तथा पशु क िलए अलग िचिक सा क यव था क । अशोक
क महा पु य का काय एवं वग- ा का उपदेश बौ ंथ ‘संयु िनकाय’ म िदया गया ह।
अशोक ने दूर-दूर तक बौ धम क चार हतु दूत व चारक को िवदेश म भेजा। अपने दूसर तथा तेरहव
िशलालेख म उसने उन देश का नाम िलखवाया, जहाँ दूत भेजे गए थे।
अशोक क उ रािधकारी
मगध सा ा य क महा : मौय स ा : अशोक क मृ यु 237-236 ईसा पूव म (लगभग) ई थी। अशोक क
उपरांत अगले पाँच दशक तक उनक िनबल उ रािधकारी शासन संचािलत करते रह।
जैन, बौ तथा ा ण ंथ म अशोक क उ रािधका रय क शासन क बार म पर पर िवरोधी िवचार पाए जाते
ह। पुराण म अशोक क बाद 9 या 10 शासक क चचा ह, जबिक ‘िद यावदान’ क अनुसार 6 शासक ने अशोक
क बाद शासन िकया।
अशोक क मृ यु क बाद मौय सा ा य प मी और पूव भाग म बँट गया। प मी भाग पर कणाल शासन करता
था, जबिक पूव भाग पर सं ित का शासन था; लेिकन 180 ईसा पूव तक प मी भाग पर बै या यूनानी का पूण
अिधकार हो गया था। पूव भाग पर दशरथ का रा य था। अंितम मौय स ा : वृह थ क ह या उसक सेनापित
पु यिम ने कर दी। वह मौय वंश का अंितम शासक ह।
‘िद यावदान’ क अनुसार अशोक क 6 उ रािधकारी ये थे—
1.दशरथ,2.सं ित,3.शािलशूक,4.देववमन,5.शतधनुष और 6. वृह थ।
ांतीय शासन
चं गु मौय ने शासन-संचालन को सुचा प से चलाने क िलए चार ांत म िवभािजत कर िदया था, िज ह
‘च ’ कहा जाता था। इन ांत का शासन स ा : क ितिनिध ारा संचािलत होता था। स ा : अशोक क काल
म ांत क सं या पाँच हो गई थी। ये ांत थे—

ांत (च ) का शासन राजवंशीय कमार (आयपु ) नामक पदािधका रय ारा होता था। कमार क सहायता क
िलए येक ांत म महापा नामक अिधकारी होते थे। शीष पर सा ा य का क ीय भाग त प ा ांत आहार
(िवषय) म िवभ था। ाम शासन क िन न इकाई था। 100 ाम क समूह को सं हण कहा जाता था। आहार
िवषयपित क अधीन होता था। िजले का शासिनक अिधकारी थािनक था। गोप दस गाँव क यव था करता था।
नगर शासन
मेग थनीज क अनुसार, मौय शासन का नगरीय शासन छह समितय म िवभ था।
थम सिमित—उ ोग िश प का िनरी ण करती थी।
तीय सिमित—िवदेिशय क देखरख करती थी।
तृतीय सिमित—जनगणना काय।
चतुथ सिमित— यापार वािण य क यव था।
पंचम सिमित—िव य क यव था, िनरी ण।
ष सिमित—िब कर क यव था।
नगर म अनुशासन बनाए रखने क िलए तथा अपराध पर िनयं ण रखने हतु पुिलस यव था थी, िजसे ‘रि त’ कहा
जाता था।
यूनानी ोत से ात होता ह िक नगर शासन म तीन कार क अिधकारी होते थे—ए ोनोयोई (िजलािधकारी),
एंटीनोयोई (नगर आयु ), सै य अिधकारी।
मौय सा ा य का पतन
मौय स ा : क मृ यु (237-236 ईसा पूव) क उपरांत करीब दो सिदय (322-184 ईसा पूव) से चले आ रह
श शाली मौय सा ा य का िवघटन होने लगा।
अंितम मौय स ा : वृह थ क ह या उसक सेनापित पु यिम ने कर दी। इससे मौय सा ा य समा हो गया।
इसक पतन क कारण िन निलिखत ह—
1. अयो य एवं िनबल उ रािधकारी, 2. शासन का अ यिधक क ीयकरण, 3. रा ीय चेतना का अभाव, 4.
आिथक एवं सां कितक असमानताएँ, 5. ांतीय शासक क अ याचार, 6. कर क अिधकता। िविभ
इितहासकार ने मौय वंश क पतन क िलए िभ -िभ कारण का उ ेख िकया ह—
डी.डी. कौशांबी—आिथक संकट त यव था का होना। डी.एन. झा—िनबल उ रािधकारी। रोिमला थापर—
क ीय शासन क अिधकारी तं का अ यव थत एवं अ िशि त होना। हर साद शा ी—धािमक नीित ( ा ण-
िवरोधी नीित क कारण)। हमचं रायचौधरी—स ा : अशोक क अिहसक एवं शांिति य नीित।
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मौय सा ा य : सार सं ेप
मौय राजवंश (322-185 ईसा पूव) ाचीन भारत का एक सु थािपत राजवंश था। इसने 137 वष भारत म रा य
िकया। इसक थापना का ेय चं गु मौय और उनक मं ी कौिट य को िदया जाता ह, िज ह ने नंद वंश क
स ा : घनानंद को परािजत िकया।
यह सा ा य पूव म मगध रा य म गंगा नदी क मैदान (आज का िबहार एवं बंगाल) से शु आ। इसक राजधानी
पाटिलपु (आज क पटना शहर क पास) थी। चं गु मौय ने 322 ईसा पूव म इस सा ा य क थापना क और
तेजी से प म क तरफ अपने सा ा य का िवकास िकया। उसने कई छोट-छोट े ीय रा य क आपसी मतभेद
का फायदा उठाया, जो िसकदर क आ मण क बाद पैदा हो गए थे। 316 ईसा पूव तक मौय वंश ने पूर उ र-
प मी भारत पर अिधकार कर िलया था। अशोक क रा य म मौय वंश का बेहद िव तार आ।
मौयवंशी शासक क सूची
चं गु मौय—322 ईसा पूव-298 ईसा पूव
िबंदुसार—297 ईसा पूव-272 ईसा पूव
अशोक—273 ईसा पूव-232 ईसा पूव
दशरथ—मौय 232 ईसा पूव-224 ईसा पूव
सं ित—224 ईसा पूव-215 ईसा पूव
शािलसुक—215 ईसा पूव-202 ईसा पूव
देववम —202 ईसा पूव-195 ईसा पूव
शतध व मौय—195 ईसा पूव 187 ईसा पूव
बृह थ मौय—187 ईसा पूव-185 ईसा पूव
325 ईसा पूव म उ र-प मी भारत (आज क पािक तान का लगभग संपूण े ) िसकदर क प का शासन
था। ाचीन भारत छोट-छोट गण म िवभ था। उस व कछ ही मुख शासक जाितयाँ थ , िजसम शा य व
मौय का भाव यादा था। चं गु उसी गण मुख क पु थे, जो िक चं गु क बा याव था म ही यो ा क
प म मार गए। चं गु म राजा बनने क वाभािवक गुण थे। इसी यो यता को देखते ए चाण य ने उ ह अपना
िश य बना िलया एवं एक सबल रा क न व डाली जो िक आज तक एक आदश रा य ह।
उस समय मगध भारत का सबसे श शाली रा य था। मगध पर क जा होने क बाद चं गु स ा क क पर
कािबज हो चुका था। चं गु ने प मी तथा दि णी भारत पर िवजय अिभयान आरभ िकया। इसक जानकारी
अ य सा य से िमलती ह।
गु चर का जाल
मौय सा ा य क समय एक और बात, जो भारत म अभूतपूव थी, वो थी मौय का गु चर जाल। उस समय पूर
रा य म गु चर का जाल िबछा िदया गया था, जो रा य पर िकसी बाहरी आ मण या आंत रक िव ोह क खबर
शासन तथा सेना तक प चाते थे।
भारत म सव थम मौय वंश क शासनकाल म ही रा ीय राजनीितक एकता थािपत ई थी। मौय शासन म स ा
का सु ढ़ क ीयकरण था, परतु राजा िनरकश नह होता था। मौय काल म गणतं का स आ और राजतं ा मक
यव था सु ढ़ ई। कौिट य ने रा य स ांक िस ांत िनिद िकया था, िजनक आधार पर मौय शासन और
उसक गृह व िवदेश नीित संचािलत होती थी—राजा, अमा य, जनपद, दुग, कोष, सेना और िम ।
आिथक एक करण
इतने बड़ सा ा य क थापना का एक प रणाम यह आ िक पूर सा ा य म आिथक एक करण आ। िकसान
को थानीय प से कोई कर नह देना पड़ता था, हालाँिक इसक बदले उ ह कड़ाई से पर उिचत मा ा म कर
क ीय अिधका रय को देना पड़ता था।
उस समय क मु ा पण थी। ‘अथशा ’ म इन पण क वेतनमान का भी उ ेख िमलता ह। यूनतम वेतन 60 पण
होता था, जबिक अिधकतम वेतन 48,000 पण था।
धािमक थित
छठी सदी ईसा पूव (मौय क उदय क लगभग 200 वष पूव) तक भारत म धािमक सं दाय का चलन था। ये
सभी धम िकसी-न-िकसी प से वैिदक था से जुड़ थे। छठी सदी ईसा पूव म लगभग 62 सं दाय क अ त व
का पता चला ह, िजसम बौ व जैन सं दाय का उदय कालांतर म अ य क अपे ा अिधक आ। मौय क
आते-आते बौ व जैन सं दाय का िवकास हो चुका था। उधर, दि ण म शैव एवं वै णव सं दाय भी िवकिसत
हो रह थे।
चं गु मौय ने जैन धम अपना िलया था। ऐसा कहा जाता ह िक चं गु अपना राजिसंहासन यागकर अपने गु
जैन मुिन भ बा क साथ कनाटक क वणबेलगोला म सं यासी क प म रहने लगा था। इसक बाद क
िशलालेख म भी ऐसा पाया जाता ह िक चं गु ने उसी थान पर एक स े िन ावान जैन क तरह आमरण
उपवास करक दम तोड़ा था। वहाँ पास म ही चं िग र नाम क पहाड़ी ह, िजसका नामकरण शायद चं गु क नाम
पर ही िकया गया था।
अशोक ने किलंग यु क बाद बौ धम को अपना िलया था। इसक बाद उसने ध म क चार म अपना यान
लगाया। यहाँ ध म का मतलब कोई धम या मजहब या रलीजन न होकर नैितक िस ांत था। उस समय न तो
इसलाम का ज म आ था और न ही ईसाइयत का। अतः उन नैितक िस ांत का जोर उस समय बाहर क िकसी
धम का िवरोध करना नह होकर मनु य को एक नैितक िनयम दान करना था। अपने दूसर िशलालेख म उसने
िलखा ह—‘‘ध म या ह? अ प दु कम तथा अिधक स कम। रोष, िनदयता, ोध, घमंड व ई या जैसी बुराइय से
बचना तथा दया, उदारता, स ाई, संयम, सरलता, दय क पिव ता नैितकता म आस एवं आंत रक व बा
पिव ता आिद सदाचार का पालन।’’
बौ धम को अपनाने क बाद उसने इसे जीवन म उतारने क भी कोिशश क । उसने िशकार करना और पशु
क ह या करना छोड़ िदया तथा मनु य तथा जानवर क िलए िचिक सालय क थापना कराई। उसने ा ण
तथा िविभ धािमक पंथ क सं यािसय को उदारतापूवक दान िदया। इसक अलावा उसने िव ामगृह, धमशाला,
कएँ तथा बावि़डय का भी िनमाण कराया।
मगध का इितहास
मगध का सव थम उ ेख ‘अथववेद’ म िमलता ह। ‘अिभयान िचंतामिण’ क अनुसार, मगध को क कट कहा
गया ह। मगध बु कालीन समय म एक श शाली राजतं म एक था। यह दि णी िबहार म थत था, जो
कालांतर म उ र भारत का सवािधक श शाली महाजनपद बन गया। यह गौरवमयी इितहास और राजनीितक एवं
धािमकता का िव क बन गया।
मगध महाजनपद क सीमा उ र म गंगा से दि ण म िवं य पवत तक, पूव म चंपा से प म म सोन नदी तक
िव तृत थी। मगध क ाचीन राजधानी राजगृह थी। यह पाँच पहाि़डय से िघरा नगर था। कालांतर म मगध क
राजधानी पाटिलपु म थािपत ई। मगध रा य म त कालीन श शाली रा य कोसल, व स व अवंित को अपने
जनपद म िमला िलया। इस कार मगध का िव तार अखंड भारत क प म हो गया और ाचीन मगध का इितहास
ही भारत का इितहास बना।
मगध ाचीनकाल से ही राजनीितक उ थान, पतन एवं सामािजक-धािमक जागृित का क िबंदु रहा ह। मगध क
उ कष म िन न वंश का मह वपूण थान रहा ह—
बृह थ वंश
यह सबसे ाचीनतम राजवंश था। महाभारत तथा पुराण क अनुसार, जरासंध क िपता तथा चेिदराज वसु क पु
बृह थ ने बृह थ वंश क थापना क । इस वंश म दस राजा ए, िजसम बृह थ का पु जरासंध एक तापी
स ा : था।
जरासंध ने काशी, कोसल, चेिद, मालवा, िवदेह, अंग, किलंग, क मीर और गंधार आिद रा य को परािजत िकया।
भगवा : ीक ण क सहायता से पांड-पु भीम ने जरासंध का ं यु म वध कर िदया।
वैशाली
बु काल म सबसे यह एक बड़ा तथा श शाली रा य था। इस गणरा य क थापना सूयवंशीय राजा इ वाक क
पु िवशाल ने क थी, जो कालांतर म ‘वैशाली’ क नाम से िव यात आ। ईसा पूव सातव सदी म वैशाली राजतं
से गणतं म प रवितत हो गया।
हयक वंश
इस वंश क थापना िबंिबसार ने 544 ईसा पूव म क । इसक साथ ही राजनीितक श क प म िबहार का
सव थम उदय आ। िबंिबसार को मगध सा ा य का वा तिवक सं थापक माना जाता ह। िबंिबसार ने िग र ज
(राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। वह एक कटनीित और दूरदश शासक था। उसने वैवािहक संबंध
(कोसल, वैशाली एवं पंजाब) क नीित अपनाकर अपने सा ा य का िव तार िकया।
महाव ग क अनुसार, िबंिबसार क 500 रािनयाँ थ । उसने अवंित क श शाली राजा चं ोत क साथ मै ी
संबंध बनाए। िसंध क शासक ायन तथा गंधार क मु रगित से भी उसक मै ी संबंध थे। उसने अंग रा य को
जीतकर अपने सा ा य म िमला िलया तथा वहाँ अपने पु अजातश ु को उपराजा िनयु िकया था।
िबंिबसार महा मा बु का िम और संर क था। ‘िवनयिपटक’ क अनुसार, बु से िमलने क बाद उसने बौ
धम को हण िकया, लेिकन जैन और ा ण धम क ित उसक सिह णुता थी। िबंिबसार ने करीब 52 वष तक
शासन िकया। बौ और जैन ंथानुसार, उसक पु अजातश ु ने उसे बंदी बनाकर कारागार म डाल िदया था,
जहाँ उसका 492 ईसा पूव म िनधन हो गया।
भारतीय इितहास म िबंिबसार थम शासक था, िजसने थायी सेना रखी। उसक ह या महा मा बु क िवरोधी
देव त क उकसाने पर अजातश ु ने क थी।
अजातश ु
िबंिबसार क बाद अजातश ु मगध क िसंहासन पर बैठा। उसक बचपन का नाम किणक था। अजातश ु ने अपने
िपता क सा ा य-िव तार क नीित को चरमो कष तक प चाया। िसंहली अनु ुितय क अनुसार, उसने लगभग 32
वष तक शासन िकया और 460 ईसा पूव म अपने पु उदयन ारा मारा गया।
अजातश ु क शासनकाल म ही महा मा बु (487 ईसा पूव) तथा महावीर (468 ईसा पूव) का महाप रिनवाण
आ था।
उदयन
अजातश ु क बाद 460 ईसा पूव म उदयन मगध का राजा बना। बौ ंथानुसार इसे िपतृहता, लेिकन जैन
ंथानुसार िपतृभ कहा गया ह। उदयन िपता क तरह ही वीर और िव तारवादी नीित का पालक था।
इसने पाटिलपु नगर बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटिलपु थािपत क । मगध क ित ं ी रा य
अवंित क गु चर ारा उदयन क ह या कर दी गई।
इसक बाद उदयन क तीन पु अिन , मंडक और नागदासक ने रा य िकया। राजा नागदासक अ यंत िवलासी
और िनबल था। रा य िव ोह कर उसका सेनापित िशशुनाग राजा बन गया। इस कार हयक वंश का अंत हो गया
और िशशुनाग वंश क थापना 412 ईसा पूव म ई।
िशशुनाग वंश
िशशुनाग 412 ईसा पूव ग ी पर बैठा। पुराण क अनुसार वह ि य था। उसने मगध रा य का बंगाल क सीमा से
मालवा तक िव तार कर िलया। िशशुनाग एक श शाली शासक था, िजसने िग र ज क अलावा वैशाली नगर को
भी अपनी राजधानी बनाया। 394 ईसा पूव म इसक मृ यु हो गई।
कालाशोक
िशशुनाग क मृ यु क बाद उसका पु कालाशोक मगध का शासक बना। ‘महावंश’ म इसे कालाशोक तथा पुराण
म ‘काकवण’ कहा गया ह। कालाशोक ने अपनी राजधानी को पाटिलपु थानांत रत कर िलया। इसने 28 वष
शासन िकया। कालाशोक क शासनकाल म ही बौ धम क तीय संगीित का आयोजन आ।
बाणभ क ंथ ‘हषच रत’ क अनुसार, राजधानी पाटिलपु म एक सावजिनक शोभाया ा क दौरान महाप नंद
नामक य ने चाक मारकर 366 ईसा पूव म कालाशोक क ह या कर दी थी। इसी महाप नंद नामक य ने
आगे चलकर नंद वंश क थापना क थी।
महाबोिध वंश क अनुसार, कालाशोक क दस पु थे, िज ह ने मगध पर 22 वष तक शासन िकया। 344 ईसा पूव
म िशशुनाग वंश का अंत हो गया और नंद वंश का उदय आ।
नंद वंश
344 ईसा पूव म महाप नंद ने नंद वंश क थापना क । पुराण म इसे महाप तथा ‘महाबोिध वंश’ म उ सेन
कहा गया ह। महाप नंद पहला शासक था िजसने गंगा घाटी क सीमा का अित मण कर िवं य पवत क
दि ण तक िवजय पताका फहराई। नंद वंश क समय मगध राजनीितक ि से अ यंत समृ शाली सा ा य बन
गया।
याकरण क आचाय पािणिन महाप नंद क िम थे। वष, उपवष, वर िच, का यायन जैसे िव ा नंद शासन म
ए।
शकटार तथा थूलभ महाप नंद उफ घनानंद क जैन मतावलंबी अमा य थे।
चं गु मौय ने अपने गु चाण य क सहायता से घनानंद क ह या कर मौय वंश क न व डाली।
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मौय सा ा य क परवत राजवंश
मौय सा ा य क अंितम शासक बृह थ क ह या करक 184 ईसा पूव म पु यिम ने मौय सा ा य क रा य पर
अिधकार कर िलया। उसने िजस नए राजवंश क थापना क , उसे पूर देश म शुंग राजवंश क नाम से जाना गया।
शुंग राजवंश
शुंग ा ण थे। पु यिम ने ‘सेनानी’ क उपािध धारण क थी। दीघकाल तक मौय क सेना का सेनापित होने क
कारण वह इसी प म िव यात था और राजा बन जाने क बाद भी उसने अपनी यह उपािध बनाए रखी। शुंग काल
म सं कत भाषा का पुन थान आ। ‘मनु मृित’ क वतमान व प क रचना इसी युग म ई।
परवत मौय क िनबल शासन म मगध का शासन-तं िशिथल पड़ गया था और देश को आंत रक एवं बा
संकट का खतरा था। ऐसी िवकट थित म पु यिम शुंग ने यवन क आ मण से देश क र ा क और देश म
शांित- यव था थािपत क ।
शुंग राजा का काल वैिदक अथवा ा ण धम का पुनजागरण काल माना जाता ह। पु यिम शुंग ने ा ण धम
का पुन थान िकया।
माना जाता ह िक पु यिम ने बौ धमावलंिबय पर ब त अ याचार िकया, लेिकन संभवतः इसका कारण बौ
ारा िवदेशी आ मण अथा यवन क मदद करना था। पु यिम ने अशोक ारा िनिमत 84 हजार तूप को
न करवा िदया। बौ ंथ ‘िद यावदान’ क अनुसार, यह भी सच ह िक उसने कछ बौ को अपना मं ी
िनयु कर रखा था। पुराण क अनुसार, पु यिम ने 36 वष तक शासन िकया।
पु यिम का शासन- बंध
शुंग सा ा य क राजधानी पाटिलपु थी। पु यिम ाचीन मौय सा ा य क म यवत भाग को सुरि त रख सकने
म सफल रहा। पु यिम का सा ा य उ र म िहमालय से लेकर दि ण म बरार तक तथा प म म पंजाब से
लेकर पूव म मगध तक िव तीण था। ‘िद यावदान’ और ‘तारानाथ’ क अनुसार, जालंधर और यालकोट पर भी
उसका अिधकार था।
सा ा य क िविभ भाग म राजकमार या राजकल क लोग को रा यपाल िनयु करने क परपरा चलती रही।
पु यिम ने अपने पु को सा ा य क िविभ े म सह-शासक िनयु कर रखा था और उसका पु अ निम
िविदशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का रा यपाल था।
इस समय भी ाम शासन क सबसे छोटी इकाई होती थी। इस काल तक आते-आते मौयकालीन क ीय िनयं ण म
िशिथलता आ गई थी तथा सामंतीकरण क वृि सि य होने लगी थी।
क व राजवंश
वसुदेव पाटिलपु क क व वंश का वतक था। शुंग वंश क अंितम शासक देवभूित क ह या कर उसने स ा ा
करक क व वंश क थापना क ।
वैिदक धम एवं सं कित संर ण क जो परपरा शुंग ने ारभ क थी, उसे क व वंश ने जारी रखा। इस वंश का
अंितम स ा : सुशमी क व अ यंत अयो य और दुबल था। उसक शासनकाल म मगध े संकिचत होने लगा।
क व वंश का सा ा य िबहार, पूव उ र देश तक सीिमत हो गया और अनेक ांत ने वयं को वतं घोिषत
कर िदया तथा क व वंश का पतन होता चला गया। इस वंश क चार राजा ने 75 ईसा पूव से 30 ईसा पूव तक
शासन िकया।
कषाण वंश
इसक बाद मगध पर कषाण वंश का शासन रहा। कषाण शासक किन क ारा पाटिलपु पर आ मण िकए जाने
और वहाँ क िस बौ िव ा अ घोष को अपने दरबार म य देने क चचा िमलती ह।
कषाण सा ा य क पतन क बाद मगध पर सातवाहन राजा का शासन रहा।
मौय वंश क पतन क बाद दीघकाल तक भारत म राजनीितक एकता थािपत नह रही। इसक प ा न ई
राजनीितक एकता को पुनः थािपत करने का ेय गु वंश को ह।
गु राजवंश
गु सा ा य क न व तीसरी सदी क चौथे दशक म पड़ी तथा उ थान चौथी सदी क शु आत म आ। गु वंश
का ारिभक रा य आधुिनक उ र देश और िबहार म था। इस वंश क थापना ीगु ने लगभग 275 ईसवी स
म क थी।
गु वंशावली म चं गु थम क शासनकाल को भारतीय इितहास का वणयुग कहा जाता ह। चं गु थम ने
‘महाराजािधराज’ क उपािध धारण क थी। इसका शासनकाल 320 ईसवी से 350 ईसवी तक था।
चं गु थम एक दूरदश स ा : था। उसने िल छिवय से सहयोग और समथन पाने क िलए उनक राजकमारी
कमारदेवी क साथ िववाह िकया। मथ क अनुसार, इस वैवािहक संबंध क प रणाम व प चं गु ने िल छिवय
का रा य तथा वैशाली रा य ा िकया। िल छिवय क दूसर रा य नेपाल क रा य को उसक पु समु गु ने
िमलाया।
हमचं रायचौधरी क अनुसार, चं गु थम ने िल छिव राजकमारी कमारदेवी क साथ िववाह कर तीय मगध
सा ा य क थापना क । उसने कौशांबी तथा कोसल को जीतकर अपने रा य म िमलाया तथा सा ा य क
राजधानी पाटिलपु म थािपत क ।
समु गु
चं गु थम क बाद 350 ईसवी म उसका पु समु गु राजिसंहासन पर बैठा। समु गु ने एक िवशाल
सा ा य क थापना क , जो उ र म िहमालय से लेकर दि ण म िवं य पवत तक तथा पूव म बंगाल क खाड़ी से
प म म पूव मालवा तक िव तृत था। क मीर, प मी पंजाब, प मी राजपूताना, िसंध तथा गुजरात को
छोड़कर सम त उ र भारत इसम स मिलत थे।
चं गु तीय
समु गु का पु चं गु तीय 375 ईसवी म िसंहासन पर आसीन आ। वह िव मािद य क नाम से इितहास
म िस आ। उसने 375 से 415 ईसवी तक 40 वष शासन िकया। चं गु तीय क शासनकाल को भारत
का वणयुग भी कहा गया ह। इसी क शासनकाल म फा ान नामक चीनी या ी (399 ईसवी) भारत आया था।
चं गु िव मािद य ने एक िवशाल सा ा य क थापना क । उसका सा ा य प म म गुजरात से लेकर पूव म
बंगाल तक तथा उ र म िहमालय क तलहटी से दि ण म नमदा नदी तक िव तृत था। चं गु तीय क शासन
काल म उसक थम राजधानी पाटिलपु और तीय राजधानी उ ियनी थी।
चं गु तीय का काल कला व सािह य का वण युग कहा जाता ह। उसक दरबार म िव ान एवं कलाकार
को आ य ा था। उसक दरबार म नौ र न—कािलदास, ध वंत र, पणक, अमरिसंह, शंक, बेताल भट,
घटकपर, वराहिमिहर एवं वर िच उ ेखनीय थे।
कमारगु थम
चं गु तीय क प ा 415 ईसवी म उसका पु कमारगु थम िसंहासन पर बैठा। कमारगु थम का
शासन शांित और सु यव था का काल था। सा ा य क उ ित पराका ा पर थी। इसने अपने सा ा य को
सुसंगिठत और सुशोिभत बनाए रखा।
कमारगु का सा ा य उ र म िहमालय से लेकर दि ण म नमदा तक तथा पूव म बंगाल क खाड़ी से लेकर
प म म अरब सागर तक िव तृत था। अिभलेख से ात होता ह िक कमारगु क सा ा य म चतुिदक सुख एवं
शांित का वातावरण िव मान था। वह वयं वै णव धमानुयायी था, िकतु उसने धम सिह णुता क नीित का पालन
िकया। उसी क शासनकाल म नालंदा िव िव ालय क थापना ई।
कदगु
455 ईसव म कमारगु थम क मृ यु क बाद उसका पु कदगु िसंहासन पर बैठा। उसने 12 वष तक शासन
िकया। उसने िव मािद य, मािद य आिद उपािधयाँ धारण क । कदगु एक अ यंत लोकोपकारी शासक था,
िजसे अपनी जा क सुख-दुःख क िनरतर िचंता बनी रहती थी। उसक शासनकाल म जा पूरी तरह सुखी व
समृ थी।
जूनागढ़ अिभलेख से पता चलता ह िक कदगु क शासनकाल म भारी वषा क कारण सुदशन झील का तटबंध
टट गया था। िकतु उसने बड़ी मा ा म धन खच करक दो महीने क भीतर उस बाँध का पुनिनमाण करवा िदया था।
कदगु क काल म ही ण का थम आ मण आ था। ण म य एिशया क एक बबर जाित थी। अपनी
जनसं या और सार क िलए वे लोग दो शाखा म िवभािजत होकर िव क िविभ े म फल गए। पूव
शाखा क ण ने भारत पर अनेक आ मण िकए। कदगु ने ण क आ मण से र ा कर अपनी सं कित को
न होने से बचाया।
कदगु क बाद पु गु , कमारगु तीय, बुधगु , नरिसंहगु बालािद य, कमारगु , तृतीय पु गु ,
दामोदरगु , महासेनगु , देवगु , हषवधनगु इ यािद राजा ने शासन िकया। हष क मृ यु क उपरांत उ र
भारत म अराजकता फल गई और 550 ईसवी म गु सा ा य का पतन हो गया।
गु वंश क पतन क बाद भारतीय राजनीित म िवक ीयकरण एवं अिन तता का माहौल उ प हो गया। अनेक
थानीय सामंत एवं शासक ने सा ा य क िव तृत े म अलग-अलग छोट-छोट राजवंश क थापना कर ली।
पाल वंश
इसी दौर म आठव सदी क म य म पूव भारत म पाल वंश का उदय आ। राजा गोपाल को पाल वंश का
सं थापक माना जाता ह। उसने वतं रा य का गठन िकया और 750 ईसवी से 770 ईसवी तक शासन िकया।
गोपाल क बाद उसका पु धमपाल 770 ईसवी म िसंहासन पर बैठा। धमपाल ने 40 वष तक शासन िकया।
धमपाल बौ धमावलंबी था। उसने काफ मठ व बौ िवहार बनवाए। उसने भागलपुर िजले म थत
िव मिशला िव िव ालय का िनमाण करवाया।
धमपाल क बाद उसका पु देवपाल ग ी पर बैठा। उसने अपने िपता क िव तारवादी नीित का अनुसरण िकया।
उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया। उसने 850 ईसवी तक शासन िकया था। उसक बाद पाल वंश क अवनित
ारभ हो गई और अराजकता फल गई। इस अराजकता क माहौल म तुक का आ मण ारभ हो गया।
सोलह महाजनपद
आरिभक भारतीय इितहास म छठी सदी ईसा पूव को एक मह वपूण प रवतनकारी काल माना जाता ह। इस काल
को ायः आरिभक रा य , नगर , लोह क बढ़ते योग और िस क िवकास क साथ जोड़ा जाता ह। इसी काल
म बौ तथा जैन सिहत िविभ दाशिनक िवचारधारा का िवकास आ। बौ और जैन धम क आरिभक ंथ
म ‘महाजनपद’ नाम से सोलह रा य का उ ेख िमलता ह। य िप महाजनपद क नाम क सूची इन ंथ म एक
समान नह ह, लेिकन व , मगध, कोसल, क , पंचाल, गंधार और अवंित जैसे नाम ायः िमलते ह। इससे यह
प ह िक उ महाजनपद सबसे मह वपूण महाजनपद म िगने जाते ह गे। अिधकांश महाजनपद पर राजा का
शासन होता था; लेिकन गण और संघ क नाम से िस रा य म कई लोग का समूह शासन करता था। इस
समूह का येक य ‘राजा’ कहलाता था।
भगवा महावीर और भगवा बु इ ह गण से संब थे। व संघ क ही भाँित कछ रा य म भूिम सिहत
अनेक आिथक ोत पर राजा गण सामूिहक िनयं ण रखते थे। य िप ोत क अभाव म इन रा य क इितहास
पूरी तरह िलखे नह जा सकते, लेिकन ऐसे कई रा य लगभग एक हजार साल तक बने रह।
येक महाजनपद क एक राजधानी होती थी, िजसे ायः िकले से घेरा जाता था। िकलेबंद राजधािनय क रख-
रखाव और ारिभक सेना व नौकरशाही क िलए भारी आिथक ोत क आव यकता होती थी। लगभग छठी सदी
ईसा पूव से सं कत म ा ण ने ‘धमशा ’ नामक ंथ क रचना शु क । इनम शासक सिहत अ य क िलए
िनयम का िनधारण िकया गया और यह अपे ा क जाती थी िक शासक ि य वण से ही ह गे। शासक का काम
िकसान , यापा रय और िश पकार से कर तथा भट वसूलना माना जाता था। या वनवािसय और चरवाह से भी
कर प म कछ िलया जाता था? हम इतना तो ात ह िक संपि जुटाने का एक वैध उपाय पड़ोसी रा य पर
आ मण करक धन इक ा करना भी माना जाता था। धीर-धीर कछ रा य ने अपनी थायी सेनाएँ और नौकरशाही
तं तैयार कर िलये। बाक रा य अब भी सहायक-सेना पर िनभर थे, िज ह ायः कषक वग से िनयु िकया जाता
था।
ईसा पूव छठी सदी से भी पहले भारत क सोलह महाजनपद उ ेखनीय रह ह। ये महाजनपद थे—
1. अवंित : मालवा, राजधानी उ ियनी।
2. गंधार : पािक तान थत प मो र े , राजधानी त िशला।
3. कबोज : आधुिनक अफगािन तान, राजधानी राजापुर।
4. पंचाल : बरली, बदायूँ और फ खाबाद, राजधानी अिह छ तथा कांिप य।
5. शूरसेन : मथुरा क आस-पास का े , राजधानी मथुरा।
6. व स : इलाहाबाद और उसक आस-पास का े , राजधानी कौशांबी।
7. कौशल : अवध, राजधानी साकत और ाव ती।
8. म : िजला देव रया, राजधानी कशीनगर और पावा; आधुिनक पडरौना।
9. क : मेरठ और थाने र, राजधानी इ थ।
10. म य : जयपुर, राजधानी िवराट नगर।
11. अ मक : गोदावरी घाटी, राजधानी पां य।
12. काशी : वाराणसी, राजधानी वाराणसी।
13. अंग : भागलपुर, राजधानी चंपा।
14. व : िजला दरभंगा और मुज फरपुर, राजधानी िमिथला, जनकपुरी और वैशाली।
15. चेिद : बुंदेलखंड, राजधानी शु मती; वतमान बाँदा।
16.मगध : दि ण िबहार, राजधानी िग र ज, आधुिनक राजगृह।
सोलह महाजनपद म थम मगध
छठी से चौथी सदी ईसा पूव म मगध आधुिनक िबहार का सबसे श शाली महाजनपद बन गया। आधुिनक
इितहासकार इसक कई कारण बताते ह। एक यह िक मगध े म खेती क उपज खास तौर पर अ छी होती थी।
दूसर यह िक लोह क खदान आधुिनक झारखंड म भी आसानी से उपल ध थ , िजससे उपकरण और हिथयार
बनाना सरल होता था। जंगली े म हाथी उपल ध थे, जो सेना क एक मह वपूण अंग थे। साथ ही गंगा और
इसक उपनिदय से आवागमन स ता व सुलभ होता था।
लेिकन आरिभक जैन व बौ लेखक ने मगध क मह ा का कारण िविभ शासक क नीितय को बताया ह।
इन लेखक क अनुसार िबंिबसार, अजातश ु और महाप नंद जैसे िस राजा अ यंत मह वाकां ी शासक थे
और उनक मं ी उनक नीितयाँ लागू करते थे। ारभ म राजगृह आधुिनक िबहार क राजगीर का ाकत नाम मगध
क राजधानी थी। यह रोचक बात ह िक इस श द का अथ ह ‘राजा का घर’। पहाि़डय क बीच बसा राजगृह
एक िकलेबंद शहर था। बाद म चौथी सदी ईसा पूव म पाटिलपु को राजधानी बनाया गया, िजसे अब पटना कहा
जाता ह, िजसक गंगा क रा ते आवागमन क माग पर मह वपूण अव थित थी।
मगध क िवकास क साथ-साथ मौय सा ा य का उदय आ। मौय सा ा य क सं थापक चं गु मौय का
शासन प मो र म अफगािन तान और बलूिच तान तक फला था। उनक पौ अशोक को भारत का सव िस
शासक माना जा सकता ह।
अशोक वह पहला स ा था, िजसने अपने अिधका रय और जा क िलए संदेश ाकितक प थर और पॉिलश
िकए ए तंभ पर िलखवाए। अशोक ने अपने अिभलेख क मा यम से ध म का चार िकया। इनम बड़ क ित
आदर, सं यािसय और ा ण क ित उदारता, सेवक और दास क साथ उदार यवहार तथा दूसर क धम व
परपरा का आदर शािमल ह।
सा ा य का शासन
मौय सा ा य क पाँच मुख राजनीितक क थे—राजधानी पाटिलपु और चार ांतीय क त िशला, उ ियनी,
तोसली और सुवणिग र। इन सबका उ ेख अशोक क अिभलेख म िकया गया ह। यिद हम इन अिभलेख का
परी ण कर तो पता चलता ह िक आधुिनक पािक तान क प मो र सीमांत ांत से लेकर आं देश, उड़ीसा
और उ राखंड तक हर थान पर एक जैसे संदेश उ क ण िकए गए थे।
या इतने िवशाल सा ा य क शासिनक यव था समान रही होगी? इितहासकार अब इस िन कष पर प चे ह
िक ऐसा संभव नह था। सा ा य म शािमल े बड़ िविवध और िभ -िभ कार क थे। कहाँ अफगािन तान क
पहाड़ी े और कहाँ उड़ीसा क तटवत े । यह संभव ह िक सबसे बल शासिनक िनयं ण सा ा य क
राजधानी तथा उसक आस-पास क ांतीय क पर रहा हो। इन क का चयन बड़ यान से िकया गया। त िशला
और उ ियनी दोन लंबी दूरीवाले मह वपूण यापार माग पर थत थे, जबिक सुवणिग र कनाटक म।
सा ा य क संचालन क िलए भूिम और निदय दोन माग से आवागमन बना रहना अ यंत आव यक था।
राजधानी से ांत तक जाने म कई स ाह या महीन का समय लगता होगा। इसका अथ यह ह िक याि य क िलए
खान-पान क यव था और उनक सुर ा भी करनी पड़ती होगी। यह प तीत होता ह िक सेना सुर ा का एक
मुख मा यम रही होगी।
मेग थनीज ने सैिनक गितिविधय क संचालन क िलए एक सिमित और छह उपसिमितय का उ ेख िकया ह।
इनम से एक का काम नौसेना का संचालन करना था तो दूसरी यातायात और खान-पान का संचालन करती थी,
तीसरी का काम पैदल सैिनक का संचालन, चौथी का अ ारोिहय , पाँचव का रथारोिहय तथा छठी का काम
हािथय का संचालन करना था। दूसरी उपसिमित का दािय व िविभ कार का था—उपकरण क ढोने क िलए
बैलगाि़डय क यव था, सैिनक क िलए भोजन और जानवर क िलए चार क यव था करना तथा सैिनक क
देखभाल क िलए सेवक व िश पकार क िनयु करना।
अशोक ने अपने सा ा य को अखंड बनाए रखने का यास िकया। ऐसा उ ह ने ध म क चार ारा भी िकया।
अशोक क अनुसार, ध म क मा यम से लोग का जीवन इस संसार म और इसक बाद क संसार म अ छा रहगा।
ध म क चार क िलए ‘ध म महामा ’ नाम से िवशेष अिधका रय क िनयु क गई।
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चं गु का मू यांकन
चं गु एक कशल यो ा, सेनानायक तथा महा : िवजेता ही नह था, वर एक यो य शासक भी था। इतने बड़
सा ा य क शासन- यव था कोई सरल काय नह था। अतः अपने महामा य ( धानमं ी) कौिट य क सहायता से
उसने एक ऐसी शासन- यव था का िनमाण िकया, जो उस समय क अनुकल थी। यह शासन यव था एक हद
तक मगध क पूवगामी शासक ारा िवकिसत शासन-तं पर आधा रत थी, िकतु इसका अिधक ेय चं गु और
कौिट य क सृजना मक मता को ही िदया जाना चािहए। कौिट य ने िलखा ह िक उस समय शासन-तं पर जो
भी ंथ उपल ध थे और िभ -िभ रा य म शासन- णािलयाँ चिलत थ , उन सबका भलीभाँित अ ययन करने
क बाद उ ह ने अपना िस ंथ ‘अथशा ’ िलखा।
िव ान का िवचार ह िक मौय शासन- यव था पर त कालीन यूनानी तथा आखमीनी शासन- णाली का भी कछ
भाव पड़ा। चं गु ने ऐसी शासन यव था थािपत क , िजसे परवत भारतीय शासक ने भी अपनाया।
चं गु क शासन बंध का उ े य लोकिहत था। जहाँ एक ओर आिथक िवकास एवं रा य क समृ क
अनेक ठोस कदम उठाए गए और िश पय एवं यापा रय क जान-माल क सुर ा क गई, वह दूसरी ओर जनता
को उनक अनुिचत तथा शोषणा मक काय-िविधय से बचाने क िलए कठोर िनयम भी बनाए गए। दास और
कमकार को मािलक क अ याचार से बचाने क िलए िव तृत िनयम थे। अनाथ, द र , मृत सैिनक तथा
राजकमचा रय क प रवार क भरण-पोषण का भार रा य क ऊपर था।
त कालीन मापदंड क अनुसार, चं गु का शासन- बंध एक क याणकारी रा य क धारणा को च रताथ करता
ह। यह शासन िनरकश था, दंड यव था कठोर थी और य क वतं ता का सवथा अभाव था; िकतु यह सब
नवजात सा ा य क सुर ा तथा जा क िहत को यान म रखकर िकया गया था। चं गु क शासन- यव था
का चरम ल य ‘अथशा ’ क िन न उ रण से य होता ह—
‘‘ जा क सुख म ही राजा का सुख ह और जा क भलाई म उसक भलाई। राजा को जो अ छा लगे वह िहतकर
नह ह, वर िहतकर वह ह जो जा को अ छा लगे।’’
उपयु उ रण से प ह िक कौिट य ने राजा क सम जा-िहतैषी राजा का आदश रखा। मेग थनीज ने
िलखा ह िक चं गु वन म रहनेवाले तप वय से परामश करता था और उ ह देवता क पूजा क िलए िनयु
करता था। वष म एक बार िव ान क सभा बुलाई जाती थी, तािक वे जनिहत क िलए उिचत परामश दे सक।
िसकदर क मृ यु क बाद उसका सेनापित से यूकस यूनानी सा ा य का शासक बना और उसने चं गु मौय
पर आ मण कर िदया; पर उसे मुँह क खानी पड़ी। काबुल, हरात, कधार और बलूिच तान क देश देने क साथ-
साथ वह अपनी पु ी हलेना का िववाह चं गु से करने क िलए बा य आ। इस पराजय क बाद अगले सौ वष
तक यूनािनय को भारत क ओर मुँह करने का साहस नह आ।
जैिनय का दावा ह िक चं गु ने अपने जीवन क अंितम समय म जैन धम वीकार कर िलया। लगभग 300 ईसा
पूव म चं गु ने अपने पु िबंदुसार को ग ी स प दी। कहा जाता ह िक जब मगध म 12 वष का दुिभ पड़ा तो
चं गु रा य यागकर जैन आचाय भ बा क साथ वणबेलगोला (कनाटक) चला गया और एक स े जैन
िभ ु क भाँित उसने िनराहार समािध थ होकर ाण- याग िकया (अथा कव य ा िकया)। 900 ईसवी क बाद
क अनेक अिभलेख भ बा और चं गु का एक साथ उ ेख करते ह।
मौय सा ा य का मह व
उ ीसव सदी म जब इितहासकार ने भारत क आरिभक इितहास क रचना करनी शु क तो मौय सा ा य को
इितहास का एक मुख काल माना गया। इस समय भारत ि िटश सा ा य क अधीन एक औपिनवेिशक देश था।
उ ीसव और आरिभक बीसव सदी क भारतीय इितहासकार को ाचीन भारत म एक ऐसे सा ा य क संभावना
ब त चुनौतीपूण तथा उ साहवधक लगी। साथ ही तर मूितय सिहत मौयकालीन सभी पुरात व एक अ ुत कला
क माण थे, जो सा ा य क पहचान माने जाते ह।
इितहासकार को लगा िक अिभलेख पर िलखे संदेश अ य शासक क अिभलेख से िभ ह। इसम उ ह यह लगा
िक अ य राजा क अपे ा अशोक एक ब त श शाली और प र मी शासक थे। साथ ही वे बाद क उन
राजा क अपे ा िवनीत भी थे, जो अपने नाम क साथ बड़ी-बड़ी उपािधयाँ जोड़ते थे। इसिलए इसम कोई
आ यजनक बात नह थी िक बीसव सदी क रा वादी नेता ने भी अशोक को ेरणा का ोत माना।
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मौयकालीन इितहास जानने क ोत
मौयकालीन इितहास को जानने क दो मु य ोत हो सकते ह—
1.पुराता वक
2.सािह यक।
पुराता वक ोत
िकसी भी काल क इितहास को जानने क संदभ पुराता वक सा य िवशेष मह व रखते ह। मौयकालीन इितहास क
बार म जानने क िलए पुराता वक सामि य को िन न भाग म बाँटा जा सकता ह—
1. मारक : मारक से राजनीितक थित का पता नह चलता ह, लेिकन सां कितक व सामािजक थितय का
पता चलता ह। ाचीन भवन व भ नावशेष का इितहास म िवशेष मह व होता ह। तूप आिद मारक से त कालीन
धािमक थितय का ान होता ह। पाटिलपु म ए उ खनन से मौयकाल क अनेक भ नावशेष ा ए, िजनसे
मौयकाल म वा तु एवं थाप य कला म का क योग का माण िमलता ह। अशोक ारा िनिमत तंभ, तूप,
िवहार, चै य व संघाराम क अवशेष िविभ थान से ा ए ह। मौय शासक दशरथ ारा बनवाई गई कछ
गुहाएँ िव मान ह। इन मारक से मौयकालीन इितहास क बार म जानकारी ा होती ह।
2.अिभलेख : िकसी भी समय क इितहास को जानने म अिभलेख ामािणक साम ी क भूिमका का िनवाह करते
ह। मौयकालीन इितहास क राजनीितक एवं धािमक थित क बार म अिभलेख से ठोस माण िमलते ह। अिभलेख
रा य क सीमा क िनधारण, राजा क च र एवं य व क िवषय म भी जानकारी उपल ध कराते ह।
अिभलेख त कालीन कला को भी दिशत करते ह। अशोक क िशला एवं तंभ लेख बड़ी सं या म उपल ध ह,
िजनसे मौयकालीन िविभ िवषय पर काश पड़ता ह। मौय शासक क अिभलेख क अित र अ य राजा क
अिभलेख से भी मौयकाल क इितहास क बार म जानकारी िमलती ह। किलंग क राजा खारवेल का हाथीगुंफा
लेख, दमन का िगरनार िशलालेख व मैसूर म चं िग र पवत क अनेक लेख से मौयकालीन मह वपूण त य
काश म आते ह।
3.कलाकितयाँ व िम ी क बरतन : िविभ थान पर िकए गए उ खनन से िम ी क बनी ई अनेक मूितयाँ
व बरतन ा ए ह। इनका भी ऐितहािसक मह व ह। इससे त कालीन कला, धम एवं सामािजक व आिथक
थित क बार म पता चलता ह। इससे त कालीन लिलत कला क बार म भी पता चलता ह। उ खनन से
कलाकितयाँ और िम ी क बरतन ा ए ह, िजनसे मौयकालीन इितहास क बार म पता चलता ह।
सािह यक ोत
मौयकालीन इितहास पर काश डालनेवाली सामि य म सािह य ोत का मह वपूण थान ह।
सं कत सािह य
सं कत क िविभ ंथ मौयकाल संबंधी सूचना दान करते ह—
● अथशा : मौयकाल क इितहास क संदभ म कौिट य का ‘अथशा ’ सवािधक मह वपूण एवं ामािणक ंथ
ह। यह ंथ चं गु मौय क महामा य ( धानमं ी) चाण य क कित ह। आरभ म ‘अथशा ’ क ितिथ क िवषय
म िव ान म मतभेद था, िकतु अब अिधकांश िव ा इसे मौयकाल क ही कित मानते ह। चाण य क
‘अथशा ’ म चं गु क शासनकाल क राजनीितक, आिथक और सामािजक थित क बार म जानकारी िमलती
ह। चाण य चं गु मौय क मा मं ी ही नह थे, वर मौय सा ा य क िनमाता भी थे। इसिलए चाण य ने अपने
‘अथशा ’ म राजा क कत य , उसक वैदेिशक नीित, भूिम- यव था, िव ीय यव था, कानून यव था, गु चर
संगठन, शासिनक यव था आिद का भी वणन िकया ह।
● पुराण : मौयकाल क इितहास पर काश डालनेवाले सं कत ंथ म पुराण भी मह वपूण ह। पुराण क सं या
18 ह। इनम ाचीन राजवंश एवं शासक क च र तथा आ यान संगृहीत ह। हालाँिक पुराण क वणन पर अिधक
िव ास नह िकया जा सकता, िफर भी मौय वंश का इितहास जानने क मामले पुराण का काफ मह व ह। पुराण
म न कवल मौय वंशीय राजा का उ ेख िमलता ह ब क उनसे संबंिधत िविभ घटना का भी वणन िमलता
ह।
● अ य ंथ : ‘अथशा ’ व पुराण क अित र सं कत म रिचत अ य अनेक ंथ म मौयकाल संबंधी सूचनाएँ
िमलती ह। इस संदभ म िवशाखद रिचत ‘मु ारा स’ नाटक उ ेखनीय ह। इसम चाण य व चं गु ारा नंद
वंश का िवनाश कर मौयवंशीय सा ा य क थापना तथा चं गु क िविभ सफलता का वणन ह। ेम कत
‘बृह कथा मंजरी’ तथा सोमदेव िवरिचत ‘कथास र सागर’ भी मौय इितहास क ि से मह वपूण ह। मौय
सा ा य क थापना क कथा का वणन मु ारा स क टीकाकार ढिढराज क ‘उपो घात’ म िमलता ह। महाकिव
कािलदास क नाटक ‘मालिवका निम ’ से भी मौय क िवषय म मह वपूण साम ी ा होती ह। इस नाटक का
मौयकाल से सीधा संबंध नह ह, य िक यह पु यिम क पु अ निम से संबंिधत ह। इसम मौय वंश क पतन से
संबंिधत मह वपूण साम ी उपल ध होती ह। क हण क ‘राजतरिगणी’ क मीर क इितहास से संबंिधत ह, लेिकन
इसम स ा अशोक और उसक उ रािधका रय का वणन िमलता ह। पतंजिल क ‘महाभा य’ से मौय सा ा य क
पतन पर काश पड़ता ह। बाणभ रिचत ‘हषरिचत’ से मौय वंश क अवनित काल संबंधी साम ी ा होती ह।
भास ारा रिचत नाटक मौयकाल पर आधा रत ह। भास क नाटक म ‘ व नवासवद ा’ व ‘ ित ायौगंधरायण’
उ ेखनीय ह।
बौ सािह य
हालाँिक बौ धम ई.पू. छठी सदी म अ त व म आया था। मौय स ा अशोक क शासनकाल म बौ धम का
िव तार आ था। अशोक क य न से बौ धम िव यापी आ और इसका असीिमत िव तार आ। इसी वजह
से उसे बौ लेखक ने अपनी रचना म मुख थान दान िकया—
● दीपवंश एवं महावंश : बौ धम क चार क िलए अशोक ने अपने पु मह तथा पु ी संघिम ा को लंका
भेजा था। लंका म ‘अ कथा महावंश’ नामक एक िवशाल ंथ िलखा गया। दुभा यवश यह ंथ उपल ध नह ह,
िकतु इस पर आधा रत दो ंथ ‘दीपवंश’ व ‘महावंश’ उपल ध ह। मौय वंश क इितहास क संदभ म इन ंथ का
अ यिधक मह व ह। इन ंथ म अशोक एवं उसक पूवज क संबंध म िव तृत िववरण िमलता ह। इसक अलावा
स ा अशोक क ितिथ क िनधारण म भी ‘महावंश’ का िवशेष योगदान रहा ह। ‘महावंश’ क टीका ‘वसंत
दीपनी’ म चं गु क िवषय म मह वपूण जानकारी िमलती ह। इसक रचना 12व सदी म ई थी।
● िमिलंदप हो : िमिलंदप हो धािमक सािह य ह और इसक रचना पािल भाषा म ई ह। इस बौ ंथ म मौय
वंश क संबंध म काफ साम ी िमलती ह। इस ंथ म िमनडर ारा उसक गु नागसेन से पूछ गए न तथा
नागसेन क उ र िलिपब ह।
● अ कथा : ि िपटक क ंथ पर िलखे गए भा य को अ कथा कहते ह। इसे पािल म िलखा गया ह और
इसम मूल ंथ क समय क ऐितहािसक थितय का वणन िमलता ह। अशोक क बौ धमावलंबी होने क कारण
इसम ऐसी काफ साम ी ह, िजसम मौय क बार म जानकारी िमलती ह। अ कथा क लेखक म बु घोष का
नाम मुख ह। बु घोष रिचत ‘समंतपासािदका’ मौय इितहास को जानने क िलए काफ उपयोगी ह। ित य ारा
रिचत ‘कथाव थु’ से मौयकालीन धािमक थित क बार म जानकारी िमलती ह। अ कथाएँ मौय इितहास से सीधे
संबंध नह रखत , लेिकन मौयकालीन राजनीितक, भौगोिलक, सामािजक व आिथक थित को जानने हतु इसम
काफ साम ी ह।
● अ य ंथ : बौ सािह य क अंतगत पािल भाषा म रिचत िविभ ंथ से भी मौय क बार म जानकारी िमलती
ह। वािच सक का ‘थूपवंश’, उपित स कत ‘महाबोिधवंश’ व ध मिकि महासामी ारा रिचत ‘स मसं ह’
उ ेखनीय ह। हालाँिक बौ सािह य क अंतगत अिधकांश ंथ क रचना पािल भाषा म क गई थी, लेिकन कछ
ंथ सं कत म ह, िजनम मौय क बार म जानकारी िमलती ह। नेपाल से ा ‘िद यावदान’ क रचना ई.पू. तीसरी
सदी म ई थी। ‘िद यावदान’ क अंतगत ‘कणालावदान’ व ‘अशोकावदान’ म मौययुगीन साम ी का उ ेख ह।
इसक अलावा ‘मंजू ीमूलक प’ सं कत व ित बती भाषा म उपल ध ह। इस ंथ म मौयकालीन इितहास से जुड़ी
चुर साम ी उपल ध ह।
जैन सािह य
जैन सािह य म पौरािणक अथवा बौ सािह य क अपे ा मौय सा ा य क अिधक जानका रयाँ िमलती ह। बौ
सािह य म मूलतः अशोक का िववरण िदया गया ह, जबिक पौरािणक सािह य म मौय को वृषल कहा गया, िजस
वजह से इसे िवशेष मह व नह िदया गया। जैन सािह य म मौय राजा का पया वणन िमलता ह। जैन अनु ुित
क अनुसार, चं गु मौय जैन धम क अनुयायी थे। जैन धम क मुख सं दाय — ेतांबर और िदगंबर क सािह य
से भी मौयकालीन इितहास क बार म जानकारी िमलती ह—
● ेतांबर सािह य : ेतांबर सं दाय क अंतगत िलखे गए अनेक ंथ म मौयकालीन इितहास को उजागर
करनेवाली उपयोगी साम ी ह। ेतांबर सािह य क िस टीकाकार ह रभ ने ‘आव यक सू वृि ’ नामक ंथ
क रचना क । इसम मौय वंश क सं थापक चं गु और चाण य क बार म िव तृत जानकारी िमलती ह। मौय क
ितिथ म क ि से प ाविलय का िवशेष मह व ह। प रिश पव म मौय वंश से संबंिधत साम ी उपल ध ह।
‘िवचार ेणी’ नामक ंथ मौयकालीन इितहास क ोत क ि कोण से मह वपूण ह। ‘िविवध तीथक प’ म
चाण य ारा नंद वंश का िवनाश, चं गु को शासक बनाना तथा िबंदुसार, अशोक, कणाल आिद क बार म
जानकारी िमलती ह। मे तुंग क ‘िवचार ेणी’ से मौय क ितिथ म क िनधारण म मदद िमलती ह।
● िदगंबर सािह य : ीचंद ारा रिचत ‘कथाकोष’, भाचं का ‘आराधना स कथा बंध’, ह रषेण का
‘बृह कथाकोष’ तथा नेिमद रिचत ‘आराधनाकथाकोष’ म चं गु तथा चाण य क बार म पया िववरण िमलता
ह। इनक अित र ‘पु या वकथाकोष’ भी मौय इितहास क िलए अ यंत उपयोगी ह।
यूनानी व लैिटन िववरण
यूनानी सािह य म उ ेिखत स ोकोटस व ऐं ोकोटस चं गु मौय का ही यूनानी नाम ह। यूनानी सािह य भी मौय
इितहास जानने का एक मुख ोत ह। िसकदर क आ मण क समय कई यूनानी िव ा उसक साथ आए थे।
इन िव ान ने भारत क संबंध म सं मरण व वृ ांत िलखे, जो अब उपल ध नह ह, लेिकन बाद क यूनानी
लेखक ने अपनी रचना म इन बात पर काश डाला। िसकदर क साथ आए िव ान म तीन ने अपनी रचना
म भारत से संबंिधत िज िकया ह—
1. िनआकस, यह िसकदर का सहपाठी था और नौसेना का धान सेनापित था।
2. ओनेिसि टस, यह िसकदर क नौसेना का सेनापित था।
3. अ र टोबुलस, इसने िसकदर क िवजय का वणन िलखा था।
हालाँिक इन िव ान ारा िलखे ए ंथ उपल ध नह ह, लेिकन बाद क यूनानी लेखक ने मौय इितहास संबंधी
उपयोगी साम ी िलखी ह। बाद क िजन लेखक ने ाचीन यूनानी लेखक क कितय को इितहास क साथ जोड़ा,
उनम िन न मुख ह—
● बो : बो ने भूगोल क अ यंत उपयोगी पु तक क रचना क , िजसक 15व खंड म भारत का वणन िकया गया
ह। मेग थनीज क ‘इिडका’ क आधार पर भारत क भूगोल, वहाँ क िनवािसय और रीित- रवाज का वणन िमलता
ह।
● लनी : यह एक रोमन िव ा था। लनी ने ‘नेचुरल िह ी’ नामक ंथ क रचना थी, जो 75 ई. म कािशत
आ था। इस ंथ म भारत क भूगोल तथा यहाँ क िनवािसय का वणन िकया गया ह।
● िडयोडोरस : िडयोडोरस का ज म िससली क अगी रयस म आ था। िडयोडोरस ने ‘िब लओिथका िह टो रका’
नामक ंथ क रचना क । इसम मेग थनीज क वणन क आधार पर भारत का वणन िकया गया ह।
● लूटाक : लूटाक यूनान क करोिनया नगर का िनवासी था। उसका काल 125 ई.पू. क लगभग था। लूटाक ने
अनेक ंथ क रचना क । उनम से एक ंथ िसकदर क जीवनी था। उसम िसकदर क िवजय एवं भारत संबंधी
मह वपूण साम ी का संकलन ह।
● ए रयन : ए रयन का काल लगभग 130 ई. से 172 ई. तक था। ए रयन ने िसकदर क अिभयान , िनआकस व
मेग थनीज क रचना क आधार पर भारत, इसक भूगोल, यहाँ क रहन-सहन तथा रीित- रवाज क बार म ंथ
क रचना क ।
● ज टन : ज टन एक रोमन लेखक था। वह दूसरी सदी म आ था। ज टन ने एक एिपटोम अथा ‘सार-
सं ह’ क रचना क थी। इसक 12व खंड म िसकदर क िवजय अिभयान का वणन ह। उपयु ंथ का मौय
इितहास क साथ सीधा संबंध नह ह, िकतु ये मौय युगीन भारत क संबंध म मह वपूण साम ी उपल ध कराते ह।
चीनी व ित बती सा य
भारत का ित बत व चीन से गहरा और ाचीन काल से संबंध रहा ह। अशोक क बौ धमानुयायी होने क कारण
ित बती ंथ म उससे संबंिधत िववरण से मौय क िवषय म ानवधक सूचनाएँ िमलती ह। मौयकाल म अनेक
मारक का भी िनमाण आ था। उनका अ त व अब शेष नह ह। चीनी याि य म मुख फा ान, सुंगयुन व
ेनसांग थे। फा ान गु काल म भारत आया था और 14 वष तक भारत म रहकर उसने िव तृत जानकारी
एकि त क थी। फा ान ने अपने वृ ांत म मौयवंशीय राजा का भी उ ेख िकया ह। सुंगयुन 518 ई. म भारत
आया था। उसने मौयकालीन इितहास क बार म मह वपूण जानका रयाँ दी ह। मौय शासक अशोक ने ब त से
तूप आिद का िनमाण कराया था। ेनसांग क या ा-वृ ांत म इस बार म िव तृत जानकारी िमलती ह।
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कछ मह वपूण त य
● सर िविलयम जो स ने सव थम यह मािणत िकया था िक चं गु मौयही यूनानी सािह य म विणत स ोकोटस
अथवा एं ोकोटस ह।
—एिशयािटक सचैज, 4, पृ. 11
● भारत क राजनीितक योम पर चं गु मौय क प म एक उदीयमान काशपूण न का उदय आ, िजसने
भारतीय का नेता व राजा बनकर उ र-प मी भारत क िसकदर क यूनानी सैिनक गढ़ और यवन प को
न - िकया। उसने भारत क उस भूभाग को िवदेशी परतं ता क बेि़डय से मु िकया तथा ‘अधािमक’ नंद
वंश क शू राजा को उ मूिलत कर मगध म अपने नए राजवंश क थापना क , जो भारतीय इितहास म मौय वंश
क नाम से सुिव यात ह।
● मौय का आगमन इितहासकार क िलए अंधकार से काश क ओर का माग श त करता ह। काल म भी
सहसा िन त एवं प होने लगता ह तथा भारत क छोट-छोट टकड़ को िमलाकर एक िवशाल सा ा य का
उदय होता ह। —वी.ए. मथ
● ‘मु ारा स’ म नंद राजा को उ कलीय ि य माना ह, जबिक यह सविविदत ह िक नंद िन न वग से संबंध
रखते थे। यूनानी लेखक ने नंद को शू बताया ह। किटयस ने िलखा ह—नंद राजा नीच कल का था, य िक
उसका िपता एक नाई था।
● डॉ. राधाकमुद मुखज ने िलखा ह—‘मु ारा स’ नाटक क प पात अथवा पूव ह को इितहास नह माना जा
सकता और न ही एक ऐसे नाटक को, जो चं गु क समय क लगभग 800 वष बाद िलखा गया हो, इितहास क
ोत क प म पुराण से अिधक ामािणक माना जा सकता ह।
● टीकाकार का यह िवचार िक ‘मूरा’ श द से ‘मौय’ श द क उ पि ई, यह उिचत नह ह। पािणिन क
याकरण क अनुसार, ‘मूरा’ श द से ‘मौय’ श द क उ पि नह हो सकती। मूरा से जो िवशेषण बनेगा, वह
‘मौरय’ होगा, मौय नह ।
● मौय को शू माननेवाल क िव सबसे बल एवं ामािणक ोत चाण य रिचत ‘अथशा ’ ह। ‘अथशा ’
क अंत म कहा गया ह—अथशा का संकलन एक ऐसे य ने िकया, िजसने मातृभूिम को, उसक सं कित
और उसक ान को, उसक सैिनक श को नंद वंशीय राजा क चंगुल से बलपूवक तथा शी मु कराया।
● ‘महाबोिधवंश’ से भी मौय का ि य होना ात होता ह। इस ंथ क अनुसार, कमार चं गु , िजसका ज म
राजा क कल म आ था, चाण य नामक ा ण क सहायता से पाटिलपु का राजा बना।
● कहा जाता ह िक जब िसकदर ने किपत होकर चं गु को मृ युदंड देने का आदेश िदया था, चं गु िकसी
कार वहाँ से जान बचाकर भाग गया। जब वह थककर एक थान पर िन ाम न था, तभी एक िवशालकाय िसंह ने
आकर उसक शरीर से बहते ए पसीने को अपनी जीभ से प छा था। जब चं गु क न द टटी तो िसंह चुपचाप
वहाँ से चला गया। चं गु ने इस घटना को शुभ संकत माना तथा इसक बाद रा य ा करने क उसक इ छा
ती हो गई।
● िजस सेना क बल पर चं गु ने घननंद को परा त िकया था, उसका मूल आधार पंजाब से भरती िकए गए
सैिनक पर था। —रीज डिव स
● लूटाक क अनुसार—कछ ही समय प ा से यूकस को स ोकोटस (चं गु ) ने 500 हाथी भट िकए और 6
लाख सैिनक लेकर उसने भारत िवजय ारभ क ।
● 2000 वष से भी पूव भारत क थम स ा ने उस ाकितक सीमा को ा कर िलया था, िजसक िलए उसक
ि िटश उ रािधकारी यथ ही आह भरते रह और िजसे सोलहव व स हव शता दय क मुगल स ा भी कभी
पूण प से ा नह कर सक। —वी.ए. मथ
● इितहासकार तारानाथ क अनुसार—चाण य चं गु क मृ यु क प ा भी जीिवत रहा तथा वह िबंदुसार का भी
मं ी था। चाण य ने सोलह नगर क सामंत तथा राजा को परा त िकया तथा िबंदुसार को पूव व प मी समु
क बीच क सम त देश का वामी बना िदया।
● डॉ. वी.ए. मथ और डॉ. आयंगर क अनुसार—दि ण भारत पर चं गु ने िवजय ा क थी, िबंदुसार ने
नह । दि ण भारत पर चं गु का आिधप य होने क अनेक माण िमलते ह—
1. लूटाक ने िलखा ह—चं गु 6 लाख सैिनक क सेना क साथ िद वजय क िलए िनकल पड़ा और उसने
संपूण देश पर िवजय ा क ।
2. बौ सािह य से पुि होती ह िक दि णी भारत पर चं गु ने ही िवजय ा क थी। बौ ंथ ‘महावंश’ म
चं गु को संपूण जंबू ीप का एक छ स ा कहा गया।
3. ‘मु ारा स’ म चं गु को िहमालय से दि णी समु तट तक सभी राजा का आ यदाता कहा गया।
4. अिभलेख से भी चं गु क दि ण िवजय क पुि होती ह। अशोक क अिभलेख से भी यही िन कष
िनकलता ह। से रगाप म व वणबेलगोला क अिभलेख भी चं गु क दि ण िवजय को मािणत करते ह।
5. अिभलेख क अित र मारक से भी मह वपूण जानकारी िमलती ह। वणबेलगोला म एक छोटी सी पहाड़ी
का नाम चं िग र ह, य िक चं गु ने वहाँ तप या क थी। उसी पवत पर एक ाचीन मंिदर ह, िजसका नाम
चं गु वसिद ह। कहा जाता ह िक चं गु ने उसका िनमाण करवाया था।
6. तिमल रचना से भी चं गु क दि ण िवजय क िवषय म जानकारी िमलती ह। तिमल किवय मामूलनार,
क त आि रयनार व परगोनार क रचना म वणन ह िक चं गु ने थानीय िम , कोशर तथा ब वदुकर
क सहायता से दि ण भारत पर िवजय ा क थी। चं गु ने इस अिभयान म संभवतः मैसूर तक क देश को
अपने आिधप य म कर िलया था।
7. जैन ंथ ‘बृह कथाकोष’ (ह रषेण कत), ‘भ बा च रत’ (र ननंिद कत) व ‘राजवलीकथे’ नामक क ड़ ंथ
से ात होता ह िक पाटिलपु म दुिभ पड़ने पर जैन मुिन भ बा ने जैन मतानुयाियय क साथ दि ण क ओर
थान िकया था। पाटिलपु का राजा चं गु भी शासन का भार अपने पु को स पकर भ बा का िश य बनकर
उनक साथ वणबेलगोला चला गया था। वह तप या करते ए चं गु ने अपने ाण- याग िदए।
● यवनराज क प िफिलप क मृ यु—आचाय चाण य ने िफिलप को फसाने क अनोखी चाल चली।
चं गु का वेश बदलकर उसक नेतृ व म सुंदर वीरांगना को प िफिलप क महल म भेजा गया। हालाँिक वे
वीरांगनाएँ सुंदर होने क साथ यु -कौशल म भी िनपुण थ । चं गु ने महल क ार पर जाकर खुद को सुंद रय
का सौदागर बताया। सुंद रय क बात सुनकर प िफिलप वयं ार तक चला आया। उसने चं गु से उनक
खूिबय क बार म पूछा तो चं गु ने जवाब िदया िक सुंदर होने क साथ-साथ ये पाक कला, तलवारबाजी आिद म
िनपुण ह ही, अ छी नृ यांगना भी ह। िफिलप घूरते-घूरते एक नृ यांगना क पास आया और नृ य करने क िलए
कहा। उसका नृ य देखकर िफिलप सिहत सभी दरबारी और मं ीगण हरान थे। लग रहा था मानो उस नृ यांगना क
रग-रग म िबजली दौड़ रही हो। चं गु ने िफिलप से कहा िक यह नृ यांगना तलवार नृ य म भी िनपुण ह। इस पर
िफिलप ने नृ यांगना क हाथ म अपनी तलवार थमा दी। वह नृ यांगना नृ य करते-करते िफिलप क सामने से गुजरी
और िबजली क झटक क तरह उसक िसर को धड़ से अलग कर िदया। िफिलप का िसर-धड़ जमीन पर लोटने
लगा। िफिलप क सैिनक को वश म कर िलया गया। पूर राजमहल पर चं गु ने अपना अिधकार जमा िलया। इस
तरह चाण य का ष यं भी सफल रहा।
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1. चं गु मौय ई.पू. 317 से 293 24 वष
2. िबंदुसार ई.पू. 293 से 268 25 वष
3. अशोक ई.पू. 268 से 232 36 वष
4. दशरथ ई.पू. 234 से 224 10 वष
5. सं ित ई.पू. 224 से 215 09 वष
6. शािलशुक ई.पू. 215 से 202 13 वष
7. देववमन ई.पू. 202 से 195 07 वष
8. सातवाहन ई.पू. 195 से 187 08 वष
9. बृह थ ई.पू. 187 से 180 07 वष
कल ई.पू. 317 से 180 139 वष
दशरथ और सं ित का उ ेख म यपुराण और वायुपुराण म ह। वायुपुराण क अनुसार, सं ित का उ रािधकारी
शािलशुक था। वायुपुराण म ही विणत ह िक शािलशुक का पु देववमन था और देववमन का पु सातवाहन था।
सभी पुराण से प होता ह िक मौय वंश का अंितम शासक बृह थ था।
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मौयकालीन श दावली/पद
शु का य : िविभ कार क यवसाय एवं यापार से संबंध रखनेवाले। इसका मु य काम शु क एकि त करना
था।
समहता : राजक य कर एकि त करना मु य काम था। उसक अधीन अनेक अ य होते थे, जो अपने-अपने
िवभाग का राजक य कर एकि त करते थे। इनक अंतगत सभी अ य आते थे।
पौतवा य : इसका काम तौल-माप क प रमाण पर िनयं ण रखना था।
माना य : देश और काल को मापने क साधन का िनयं ण इसक हाथ म था।
सू ा य : कताई-बुनाई आिद यवसाय का िनयं ण इसक अंतगत था।
सीता य : ये रा य क किष िवभाग क अ य होते थे।
सुरा य : शराब क उ पादन, िवतरण और योग पर िनयं ण रखना इनका मु य काय था।
सूना य : बूचड़खाने का िनयं ण इनक अधीन था।
गिणका य : वे या का िनयं ण इस िवभाग क अंतगत था।
मु ा य : देश से बाहर जाने क िलए राजक य मु ा (मुहर) ा करना आव यक था। यह काय इ ह क अधीन
था।
िववीता य : चरागाह का िनयं ण इ ह क अधीन था।
नौ-अ य : जल माग का बंध करना इनका काम था।
गो-अ य : राजक य मवेिशय का बंध एवं िनयं ण इ ह अिधका रय क अंतगत था।
अ ा य : घोड़ से संब सभी काय इ ह अिधका रय क अधीन थे।
ह या य : हािथय से जुड़ी सभी यव था इनक अधीन थी।
क या य : इनका काय था जंगल म उ प होनेवाले सभी पदाथ को एकि त कराकर उ ह कारखान म
िभजवाना।
प या य : ये यापार पर िनयं ण रखते थे।
ल णा य : संपूण मु ा णाली इनक अधीन थी।
अकरा य : खान का िनयं ण इनक अधीन था।
देवता य : पूजा-पाठ कराना और मंिदर का बंधन इनक अधीन था।
सौविणक : टकसाल क अ य को सौविणक कहा जाता था।
स धाता : राजक य आय- यय का िहसाब रखता था। राजकोष िवभाग स धाता क अधीन होता था।
नायक : सेना का मु य संचालक नायक कहलाता था।
शा ता : राजशासन अथवा राजा ाएँ िलिपब करनेवाला अिधकारी शा ता कहलाता था।
अ पटल : शा ता क कायालय को ‘अ पटल’ कहा जाता था।
दौवा रक : राज ासाद का धान अिधकारी ‘दौवा रक’ कहलाता था।
आंतविशक : राजा क िनजी अंगर क सेना क अ य को आंतविशक कहा जाता था।
अमा य : मंि प रष क सद य अमा य कहलाते थे।
दुग : नगर से होनेवाली िविभ कार क आय को दुग कहा जाता था।
रा : देहात या जनपद से ा आमदनी को रा कहते थे।
खिन : खिनज पदाथ से ा आय। सेतु पु प , फल क उ ान और स जी क खेत से ा आय।
वन : जंगल से ा आय।
ज : मवेिशय से ा आय।
विणक पथ : जल माग और थल माग से ा आय।
मौय सा ा य क पाँच च
1. उ रापथ : इसम कबोज, गंधार, क मीर, अफगािन तान, पंजाब आिद देश थे। इसक राजधानी त िशला थी।
2. प मी च : इसम कािठयावाड़-गुजरात से लेकर राजपूताना-मालवा आिद क देश शािमल थे। इसक
राजधानी उ ियनी थी।
3. दि णापथ : िवं याचल का सारा देश इस च म था। इसक राजधानी सुवणिग र थी।
4. किलंग : इसक राजधानी तोसाली थी।
5. म य देश : इसम वतमान िबहार, उ र देश और बंगाल स मिलत थे। इसक राजधानी पाटिलपु थी।
कमार : इन पाँच च का शासन करने क िलए राजकल क य य को िनयु िकया जाता था, िज ह कमार
कहते थे।
महामा य : पाँच च क अधीन छोट शासन या मंडल होते थे, िजनम कमार क अधीन महामा य होते थे।
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चं गु का राज ासाद
मेग थनीज क अनुसार, पाटिलपु म चं गु मौय का राज ासाद था। उ ह ने िलखा ह—यह संसार क राजक य
भवन म सबसे सुंदर ह। इस ासाद क तंभ पर विणम अंगूरी लताएँ ह, िजन पर चाँदी क िचि़डय को क ोल
करते दरशाया गया ह। ासाद क पास मछिलय क िलए सरोवर बने ह, िजनक शोभा को बढ़ाने क िलए कई
सजावटी वृ , कज तथा झाि़डयाँ लगा दी गई ह।
मेग थनीज ने िलखा ह—गंगा तथा सोन नदी क संगम पर पाटिलपु नगर बसा ह। इस नगर क लंबाई 80
टिडया (8 मील) और चौड़ाई 15 टिडया (1.5 मील) ह। इसका आकार समानांतर चतुभुज क समान ह। यह
नगर चार ओर से काठ क दीवार से िघरा ह। इन दीवार पर तीर चलाने क िलए छद बने ह। यह नगर चार ओर
से 600 फ ट चौड़ी व 60 फ ट गहरी खाई से िघरा ह। इस पर 570 बुज और 64 दरवाजे ह।
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भारतीय इितहास : मह वपूण ितिथयाँ
ईसा पूव
3000-1500 िसंधु घाटी स यता
576 गौतम बु का ज म
527 महावीर का ज म
327-326 भारत पर िसकदर का हमला। उसने भारत और यूरोप क बीच एक भू-माग खोल िदया।
313 जैन परपरा क अनुसार चं गु का रा यािभषेक
305 चं गु मौय क हाथ से यूकस क पराजय
273-232 अशोक का शासन
261 किलंग क िवजय
230-199 सातवाहन सा ा य*
240-60 कषाण सा ा य*
58 िव म संव का आरभ।
ईसवी सन
78 : शक संव का आरभ।
120 : किन क का रा यािभषेक।
320 : गु युग का आरभ, िहदू भारत का विणम काल।
380 : िव मािद य का रा यािभषेक।
405-411 : चीनी या ी फा ान क भारत या ा।
415 : कमार गु -1 का रा यािभषेक।
455 : कदगु का रा यािभषेक।
606-647 : हषवधन का शासन।
712 : िसंध पर पहला अरब आ मण।
836 : क ौज क भोज राजा का रा यािभषेक।
985 : चोल शासक राजराजा का रा यािभषेक।
998 : सु तान महमूद का रा यािभषेक।
1001 : महमूद गजनवी ारा भारत पर पहला आ मण, िजसने पंजाब क शासक जयपाल को हराया था।
1025 : महमूद गजनवी ारा सोमनाथ मंिदर का िव वंस।
1191 : तराइन का पहला यु ।
1192 : तराइन का दूसरा यु ।
1206 : िद ी क ग ी पर कतुबु ीन ऐबक का रा यािभषेक।
1210 : कतुबु ीन ऐबक क मृ यु।
1221 : भारत पर चंगेज खान का हमला (मंगोल आ मण)।
1236 : िद ी क ग ी पर रिजया सु तान का रा यािभषेक।
1240 : रिजया सु तान क मृ यु।
1296 : अलाउ ीन िखलजी का हमला।
1316 : अलाउ ीन िखलजी क मृ यु।
1325 : मुह मद तुगलक का रा यािभषेक।
1327 : तुगलक ारा िद ी से दौलताबाद और िफर द न को राजधानी बनाया जाना।
1336 : दि ण म िवजयनगर सा ा य क थापना।
1351 : िफरोजशाह का रा यािभषेक।
1398 : तैमूर लंग ारा भारत पर हमला।
1469 : गु नानक का ज म।
1494 : फरगना म बाबर का रा यािभषेक।
1497-98 : वा को-िड-गामा क भारत क पहली या ा। कप ऑफ गुड होप क ज रए भारत तक समु ी रा ते क
खोज।
1526 : पानीपत क पहली लड़ाई। बाबर ने इ ाहीम लोदी को हराया। बाबर ारा मुगल शासन क थापना।
1527 : खानवा क लड़ाई, बाबर ने राणा साँगा को हराया।
1530 : बाबर क मृ यु और मायूँ का रा यािभषेक।
1539 : शेरशाह सूरी ने मायूँ को हराया और भारत का स ा बन गया।
1540 : क ौज क लड़ाई।
1555 : मायूँ ने िद ी क ग ी को िफर से हिथया िलया।
1556 : पानीपत क दूसरी लड़ाई।
1565 : तालीकोट क लड़ाई।
1576 : ह दीघाटी क लड़ाई—राणा ताप ने अकबर को हराया।
1582 : अकबर ारा दीन-ए-इलाही पंथ क थापना।
1597 : राणा ताप क मृ यु।
1600 : ई ट इिडया कपनी क थापना।
1605 : अकबर क मृ यु और जहाँगीर का रा यािभषेक।
1606 : गु अजुनदेव का वध।
1611 : नूरजहाँ से जहाँगीर का िववाह।
1616 : सर थॉमस रो ने जहाँगीर से मुलाकात क ।
1627 : िशवाजी का ज म और जहाँगीर क मृ यु।
1628 : शाहजहाँ भारत का स ा बना।
1631 : मुमताज महल क मृ यु।
1634 : भारत क बंगाल म अं ेज को यापार करने क अनुमित दे दी गई।
1659 : औरगजेब का रा यािभषेक, शाहजहाँ को कद।
1665 : औरगजेब ारा िशवाजी को कद।
1666 : िशवाजी क मृ यु।
1707 : औरगजेब क मृ यु।
1708 : गु गोिवंद िसंह क मृ यु।
1739 : नािदरशाह का भारत पर हमला।
1757 : लासी क लड़ाई। लॉड ाइव क हाथ भारत म अं ेज क राजनीितक शासन क थापना।
1761 : पानीपत क तीसरी लड़ाई, शाह आलम तीय भारत का स ा बना।
1764 : ब सर क लड़ाई।
1765 : ाइव को भारत म कपनी का गवनर िनयु िकया गया।
1767-69 : पहला मैसूर यु ।
1770 : बंगाल का महा अकाल।
1780 : महाराजा रणजीत िसंह का ज म।
1780-84 : दूसरा मैसूर यु ।
1784 : िप स अिधिनयम।
1793 : बंगाल म थायी बंदोब त।
1799 : चौथा मैसूर यु , टीपू सु तान क मृ यु।
1802 : बेसेन क संिध।
1809 : अमृतसर क संिध।
1829 : सती था को ितबंिधत िकया गया।
1830 : ा समाज क सं थापक राजा राम मोहन राय क इ लड या ा।
1833 : राजा राम मोहन राय क मृ यु।
1839 : महाराजा रणजीत िसंह क मृ यु।
1839-42 : पहला अफगान यु ।
1845-46 : पहला अं ेज-िस ख यु ।
1852 : दूसरा अं ेज-बमा यु ।
1853 : बांबे से ठाणे क बीच पहली रल चली और कलक ा म टली ाफ लाइन खोली गई।
1857 : िसपाही िव ोह या वतं ता का पहला सं ाम।
1861 : रव नाथ टगोर का ज म।
1869 : महा मा गांधी का ज म।
1885 : भारतीय रा ीय कां ेस क थापना।
1889 : जवाहरलाल नेह का ज म।
1897 : सुभाषचं बोस का ज म।
1905 : लॉड कजन ारा बंगाल का पहला बँटवारा।
1906 : मुसिलम लीग क थापना।
1911 : िद ी दरबार—ि िटश राजा और रानी क भारत या ा। िद ी भारत क राजधानी बनी।
1916 : पहले िव यु क शु आत।
1916 : मुसिलम लीग और कां ेस ारा लखनऊ समझौते पर ह ता र।
1918 : पहले िव यु क समा ।
1919 : मांट यू-चे सफोड सुधार। अमृतसर म जिलयाँवाला बाग ह याकांड।
1920 : िखलाफत आंदोलन क शु आत।
1927 : साइमन कमीशन का बिह कार, भारत म रिडयो सारण क शु आत।
1928 : पंजाब कसरी लाला लाजपतराय क मृ यु ।
1929 : लॉड ऑवम समझौता। लाहौर कां ेस म पूण वतं ता का ताव पास।
1930 : सिवनय अव ा आंदोलन क शु आत। महा मा गांधी ारा दांडी माच (6 अ ैल, 1930)।
1931 : गांधी-इिवन समझौता।
1935 : भारत सरकार अिधिनयम पा रत।
1937 : ांतीय वाय ता, कां ेसी मंि य का पद हण।
1941 : रव नाथ टगोर क मृ यु, भारत से सुभाषचं बोस का पलायन।
1942 : ि स िमशन क भारत आगमन पर भारत छोड़ो आंदोलन क शु आत।
1943-44 : नेताजी सुभाषचं बोस ने आजाद िहद फौज क थापना क और बंगाल म अकाल।
1945 : लाल िकले म आई.एन.ए. का ायल, िशमला समझौता और तीय िव यु क समा ।
1946 : ि िटश किबनेट िमशन क भारत या ा। क म अंत रम सरकार का गठन।
1947 : भारत का िवभाजन।
1948 : महा मा गांधी पर हमला (30 जनवरी)। देशी रयासत का भारतीय गणरा य म िवलय।
1949 : क मीर पर यु -िवराम, भारतीय संिवधान पर ह ता र और उसे अपनाया गया।
1950 : भारत एक सं भु लोकतांि क गणरा य बना (26 जनवरी) और भारतीय संिवधान लागू आ।
1951 : पहली पंचवष य योजना। पहले एिशयाई खेल िद ी म ए।
1952 : लोकसभा का पहला आम चुनाव।
1953 : तेनिजंग नॉग और सर एडमंड िहलेरी क एवर ट पर फतह।
1956 : दूसरी पंचवष य योजना क शु आत।
1957 : दूसर आम चुनाव। गोवा क आजादी।
1962 : तीसर आम चुनाव। भारत पर चीन का आ मण।
1963 : नगालड 16वाँ भारतीय रा य बना।
1964 : पं. जवाहरलाल नेह का िनधन।
1965 : पािक तान का भारत पर हमला।
1966 : ताशकद समझौता। लाल बहादुर शा ी क मृ यु। इिदरा गांधी भारत क धानमं ी चुनी गई।
1967 : चौथा आम चुनाव—डॉ. जािकर सैन भारत क तीसर रा पित चुने गए।
1969 : वी.वी. िग र को भारत का रा पित चुना गया। अ यादेश ारा बड़ बक का रा ीयकरण।
1970 : मेघालय को एक अलग रा य का दजा।
1971 : िहमाचल देश रा य बना। भारत-पािक तान यु । बँगलादेश का अ त व म आना।
1972 : िशमला समझौता, सी. राजगोपालाचारी क मृ यु।
1973 : मैसूर रयासत का नाम कनाटक रखा गया।
1974 : भारत ने परमाणु परी ण िकया। फख ीन अली अहमद पाँचव रा पित चुने गए, िस म का भारत म
िवलय।
1975 : भारत ने ‘आयभट’ का ेपण िकया। िस म भारतीय गणरा य का 22वाँ रा य बना। आपातकाल क
घोषणा।
1976 : भारत और चीन ने कटनीितक संबंध थािपत िकए।
1977 : छठ आम चुनाव। जनता पाट को लोकसभा म ब मत िमला। नीलम संजीव र ी भारत क छठ रा पित
चुने गए।
1979 : मोरारजी देसाई ने धानमं ी पद से इ तीफा िदया। चौधरी चरण िसंह धानमं ी बने। 20 अग त को चौ.
चरण िसंह ने इ तीफा िदया। छठी लोकसभा भंग।
1980 : सातव आम चुनाव। कां ेस स ा म आई। इिदरा गांधी ने धानमं ी पद क शपथ ली। संजय गांधी क
हवाई दुघटना म मृ यु। भारत ने ‘रोिहणी’ उप ह को ले जानेवाले एस.एल.वी.-3 का ेपण िकया।
1982 : एिशया का सबसे लंबा पुल खुला (2 माच)। आचाय जे.बी. कपलानी क मृ यु (19 माच)। इनसेट 1ए
का ेपण। ानी जैल िसंह भारत क रा पित चुने गए (15 जुलाई)। गुजरात म आए च वात म 500 से अिधक
लोग मार गए (नवंबर 5)। आचाय िवनोबा भावे क मृ यु (15 नवंबर)। नौव एिशयाई खेल का उ ाटन (10
नवंबर)।
1983 : नई िद ी म चोगम स मेलन।
1984 : पंजाब म ऑपरशन लू टार। राकश शमा अंत र म गए। इिदरा गांधी क ह या। राजीव गांधी धानमं ी
बने।
1985 : राजीव-ल गोवाल संिध पर ह ता र। संत एच.एस. ल गोवाल क पंजाब क चुनाव क दौरान ह या। असम
संिध। सातव पंचवष य योजना शु ।
1986 : िमजोरम संिध।
1987 : आर. वकटरमन रा पित चुने गए। डॉ. शंकर दयाल शमा उपरा पित चुने गए। बोफोस और फयरफ स
कांड।
1989 : अयो या म ीराम िशला यास पूजा, भारत क पहली िमसाइल ‘अ न’ का उड़ीसा से 22 मई को ेपण।
5 जून को ‘ि शूल’ िमसाइल परी ण। 27 िसतंबर को ‘पृ वी’ का दूसरा सफलतापूवक ेपण। राजीव सरकार
को चुनाव म िशक त। उ ह ने 29 नवंबर को इ तीफा िदया। 29 नवंबर से जवाहर रोजगार योजना क शु आत। 2
िदसंबर को रा ीय मोचा क नेता वी.पी. िसंह ने सातव धानमं ी क तौर पर शपथ ली और नौव लोकसभा क
िलए नई किबनेट का गठन।
1990 : 25 माच को आई.पी.क.एफ. क शेष सैिनक क वापसी। 14 फरवरी को इिडयन एयरलाइस ए-320
दुघटना त। जनता दल िवभािजत, भाजपा ने सरकार से अपना समथन वापस िलया। भाजपा नेता ी लालक ण
आडवाणी ने रथया ा िनकाली और िगर तार ए। मंडल आयोग क िसफा रश को वी.पी. िसंह ारा लागू िकए
जाने क घोषणा। अयो या म रामज म भूिम-बाबरी मसिजद िववाद क चलते िहसा।
1991 : 17 जनवरी को खाड़ी यु क शु आत। 21 मई को राजीव गांधी क ह या। 20 जून को 10व लोकसभा
का गठन। पी.वी. नरिस हा राव धानमं ी बने।
1992 : भारत ने 29 जनवरी को इजराइल क साथ कटनीितक संबंध थािपत िकए। 23 अ ैल को भारत र न और
ऑ कर िवजेता स यजीत र क मृ यु। 25 जुलाई को डॉ. शंकर दयाल शमा रा पित चुने गए। पहली वदेश िनिमत
पनड बी ‘आई.एन.एस. श ’ का 7 फरवरी को लोकापण।
1993 : 7 जनवरी को अयो या म 67.33 एकड़ जमीन को अिध हण करने का अ यादेश। भाजपा क रली म
भारी सुर ा। बंबई म बम धमाक म 300 लोग क मौत। इनसेट-2बी पूरी तरह काम करने को तैयार। महारा म
भूकप।
1994 : नाग रक िवमानन पर सरकार का एकािधकार ख म। गैट समझौते पर िववाद। लेग महामारी। सु मता सेन
िमस यूिनवस, ऐ या राय िमस व ड बन ।
1995 : मायावती उ र देश क पहली दिलत मु यमं ी बन । महारा व गुजरात म भाजपा, कनाटक म जनता
दल और उड़ीसा म कां ेस स ा म आई। भारतीय रा ीय कां ेस (आई) का गठन। मायावती सरकार क िगरने क
बाद उ र देश म रा पित शासन लागू। इनसेट 2सी और आई.आर.एस.आई.-सी का ेपण।
1996 : कई क ीय मं ी और िवप क नेता हवाला कांड म फसे। 21 माच को पी.एस.एल.वी. डी3 क साथ
आई.आर.एस.पी.-3 क ेपण से भारतीय अंत र काय म क नए युग क शु आत। यारहव लोकसभा क िलए
अ ैल म चुनाव। 127 सीट क साथ भाजपा इकलौती बड़ी पाट क प म सामने उभरी।
1997 : 15 अग त को भारत ने अपनी आजादी क 50व वषगाँठ मनाई।
1998 : मदर टरसा क मृ यु। अटल िबहारी वाजपेयी भारत क धानमं ी बने। भारत ने अपना दूसरा परमाणु
परी ण िकया।
1999 : जून म लाइट ले टनट क. निचकता पािक तान ारा आठ िदन क कद क बाद रहा। ज मू व क मीर
क करिगल े म एल.ओ.सी. क भीतर पािक तानी सेना को हटाने क िलए भारतीय सेना ने ‘ऑपरशन िवजय’
चलाया। भारत लड़ाई म िवजयी आ। 24 िदसंबर 1999 को इिडयन एयरलाइस क हवाई जहाज आई.सी.-814
का आतंकवािदय ारा अपहरण कर अफगािन तान : कधार ले जाना। याि य को बंधक बना िलये जाने क बाद
उनक रहाई क िलए भारत सरकार ारा तीन आतंकवािदय को छोड़ा गया।
2000 : अमे रका क रा पित िबल ंटन माच म भारत क या ा पर आए। तीन नए रा य छ ीसगढ़, उ रांचल,
झारखंड अ त व म आए। भारत क जनसं या 1 अरब का आँकड़ा पार कर गई।
2001 : माच म भारत क छठी जनगणना। अ ैल म जी.एस.एल.वी. का सफल ेपण। जुलाई म भारत और
पािक तान क बीच ‘आगरा स मेलन’। गुजरात का भूकप भारत क सबसे बड़ी ाकितक आपदा। तहलका.कॉम ने
वीिडयो टप जारी िकया, िजसम हिथयार क खरीद-फरो त म भारतीय सै य अिधका रय , मंि य और नेता क
पोल खोली गई। अग त 2001 म एनरॉन का भारत से जाना। पी.एस.एल.वी.-सी 3 का अ ूबर म ेपण।
2002 : 71 वष य िमसाइल वै ािनक डॉ. ए.पी.जे. अबुल कलाम भारत क रा पित बने। गुजरात म 27 फरवरी
को ए गोधरा कांड क बाद सबसे भयंकर सां दाियक दंगे। रा ीय जल नीित क घोषणा, िजसका उ े य सभी
जल संसाधन का एक करण और बंधन ह, तािक उनक मता का अिधकतम सतत उपभोग िकया जा सक।
2003 : भारत ारा यू यर कमांड अथॉ रटी (एन.सी.ए.) और टिजक फोसज कमांड (एस.एफ.ओ.) का
गठन। एयर माशल तेज मोहन अ थाना एस.एफ.सी. क पहले मु य कमांडर बने। अ याधुिनक ब ेशीय
इनसेट-3ए का च गुयाना क को से अंत र म सफल ेपण। सफदपोश क अपराध से िनपटने क िलए
सी.बी.आई. ने जून म इकोनॉिमक इटलीजस शाखा बनाई। िदसंबर म च गुयाना क को क पेसपोट से भारत
का अ याधुिनक संचार सेटलाइट इनसेट-3ई यूरोिपयन रॉकट से ेिपत िकया गया।
2004 : सुनामी क कहर से दि ण भारत क रा य म भीषण तबाही। 35 हजार लोग क मौत। रा यवधन िसंह
राठौर ने एथस ओलंिपक क िनशानेबाजी पधा म भारत क िलए पहला य गत रजत जीता।
2005 : ज मू व क मीर म लंयकारी भूकप म हजार लोग क मौत। लाख बेघर।
2006 : मुंबई म ंखलाब बम धमाक। सैकड़ क मौत।
2007 : ितभा देवी िसंह पािटल देश क पहली मिहला रा पित बन । अमे रका क साथ मह वपूण परमाणु करार।
देश ने पूर िकए आजादी क 60 साल।
2008 : जुलाई म अहमदाबाद म ंखलाब बम धमाक म 49 लोग क मौत।
2009 : िद ी उ यायालय ने समलिगकता को कानूनी मा यता दान क ।
2010 : फरवरी म जमन बेकरी, पुणे म बम िव फोट म 16 लोग मार गए। िसतंबर म इलाहाबाद उ यायालय ने
अयो या िववािदत राम ज मभूिम का संबंिधत प म िवतरण का िनणय सुनाया।
2011 : अग त म समाज-सेवी अ ा हजार ने लोकपाल कानून क समथन म िद ी म 12 िदन क भूख हड़ताल
क।
2012 : जनवरी—सलमान दी क जयपुर या ा कछ संगठन क िवरोध क चलते टली।
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संदभ ंथ
1. चं गु मौय—पी.एल. भागव।
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4. http://abtaknyay.com/dharm_news.php?id=36
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14. http://vimitihas.wordpress.com/2009/02/14/pracinbharatkijhalak/
15. http://www.indg.in/primary-education/j
16. http://www.wikipedia.org/
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Notes
[←1]
डर ा—यूनान क मु ा इकाई।
[←2]
टिलग—ि टन क मु ा (मैक ि डले क ‘एंिसएंट इिडया मेग थनीज एंड आयन’ पु तक से)।

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