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Anandamath (Hindi) - Bankim Chandra Chatterji
Anandamath (Hindi) - Bankim Chandra Chatterji
भूिमका
आन दमठ भाग-1
आन दमठ भाग-2
आन दमठ भाग-3
आन दमठ भाग-4
आन दमठ भाग-5
आन दमठ भाग-6
आन दमठ भाग-7
आन दमठ भाग-8
आन दमठ भाग-9
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भूिमका
बंिकमच च ोपा याय (१८३८ - १८९४) बंगला के यात उप यासकार, किव,
ग कार और प कार थे। भारत के रा ीय गीत 'व दे मातर उनकी ही रचना है जो
भारतीय वतं ता सं ाम के काल म ा तकािरय का ेरणा ोत बन गया था।
रवी नाथ ठाकुर के पूववत बां ा सािह यकार म उनका अ यतम थान है ।
ै
बहु त बड़ी आ ािलका है , उसकी ऊंची चहारदीवारी और गगन-चुब
ं ी गुब
ं द दूर से िदखाई
पड़ते ह। वह अ ािलका उस गृह-जंगल म शैल-िशखर-सी िदखाई पड़ती है । उसकी
शोभा का या कहना है - लेिकन उसके दरवाजे बंद है , गृह मनु य-समागम से शू य है ,
वायु- वेश म भी असुिवधा है । उस घर के अंदर िदन-दोपहर के समय अंधेरा है ;
अंधकार म रात के समय एक कमरे म, फू ले हु ए दो पु प की तरह एक दं पित बैठे हु ए
चतामग ह। उनके सामने अकाल का भीषण प है । 1174 म फसल अ छी नह हु ई,
अत: यारह सौ पचह र म अकाल आ पड़ा- भारतवािसय पर संकट आया। लेिकन
इस पर भी शासक ने पैसा-पैसा, कौड़ी-कौड़ी वसूल कर ली। दिर जनता ने कौड़ी-
कौड़ी करके मालगुजारी अदा कर िदन म एक ही बार भोजन िकया। यारह सौ पचह र
बंगा द की बरसात म अ छी वष हु ई। लोग ने समझा िक शायद दे वता स हु ए।
आनंद म िफर मठ-मंिदर म गाना-बजाना शु हु आ, िकसान की ी ने अपने पित से
चांदी के पाजेब के िलए िफर तकाजा शु िकया। लेिकन अक मात आि न मास म
िफर दे वता िवमुख हो गए। ार-का तक म एक बूंद भी बरसात न हु ई। खेत म धान के
पौधे सूखकर खंखड़ हो गए। िजसके दो-एक बीघे म धान हु आ भी तो राजा ने अपनी
सेना के िलए उसे खरीद िलया, जनता भोजन पा न सकी। पहले एक सं या को उपवास
हु आ, िफर एक समय भी आधा पेट भोजन उन िमलने लगा, इसका बाद दो-दो सं या
उपवास होने लगा। चैत म जो कुछ फसल हु ई वह िकसी के एक ास भर को भी न हु ई।
लेिकन मालगुजारी के अफसर मुह मद रजा खां ने मन म सोचा िक यही समय है , मेरे
तपने का। एकदम उसने दश ितशत मालगुजारी बढ़ा दी। बंगाल म घर-घर कोहराम
मच गया। पहले लोग ने भीख मांगना शु िकया, इसके बाद कौन िभ ा दे ता है ?
उपवास शु हो गया। िफर जनता रोगा ांत होने लगी। गो, बैल, हल बेचे गए, बीज के
िलए संिचत अ खा गए, घर-बार बेचा, खेती-बारी बेची। इसके बाद लोग ने लड़िकयां
बेचना शु िकया, िफर लड़के बेचे जाने लगे, इसको बाद गृहलि ्मय का िव य ारं भ
हु आ। लेिकन इसके बाद, लड़की, लड़के औरत कौन खरीदता? बेचना सब चाहते थे
लेिकन खरीददार कोई नह । खा के अभाव म लोग पेड़ के प े खाने लगे, घास खाना
शु िकया, नरम टहिनयां खाने लगे। छोटी जाित की जनता और जंगली लोग कु े,
िब ी, चूहे खाने लगे। बहु तेरे लोग भागे, वे लोग िवदे श म जाकर अनाहार से मरे । जो
नही भागे, वे अखा खाकर, उपवास और रोग से जजर हो मरने लगे। मह चले गए।
क याणी अकेली बािलका को िलए हु ए ाय: जनशू य थान म, घर के अंदर अंधकार
म पड़ी चार तरफ दे खती रही। उसके मन म भय का संचार हो रहा था। कह कोई नह ,
मनु य मा का कोई श द सुनाई नह पड़ता है केवल कु और यार की आवाज
सुनाई पड़ जाती है । सोचने लगी- य उ ह जाने िदया? न होता, थोड़ी और भूख- यास
बद त करती। िफर सोचा--चार तरफ के दरवाजे बंद कर दूं। लेिकन एक भी दरवाजे
म िकवाड़ िदखाई न िदया। इस तरह चार तरफ दे खते-दे खते सहसा उसे सामने के
दरवाजे पर एक छाया िदखाई दी-- मनु याकृित जैसा, कंकाल मा और कोयले की तरह
काला, नग , िवकटाकार मनु य जैसा कोई आकार दरवाजे पर खड़ा था। कुछ दे र बाद
छाया ने मानो अपना एक हाथ उठाया और हाथ की लंबी सूखी उंगिलय से संकेत कर
िकसी को अपने पास बुलाया। क याणी का ाण सूख गया। इसके बाद वैसी ही एक
छाया और- सूखी-काली, दीघ कार, नग - पहली छाया के पास आकर खड़ी हो गई।
इसके बाद ही एक और एक और... इस तरह िकतने ही िपशाच आकर घर के अंदर
वेश करने लगे। वहां का एकांत मशान की तरह भयंकर िदखाई दे ने लगा। वह सब
ेत जैसी मू तयां क याणी और उसकी क या को घेरकर खड़ी हो गई- दे खकर क याणी
भय से मू छत हो गई। काले नरकंकाल जैसे पु ष क याणी और उसकी क या को
उठाकर बाहर िनकले और ब ती पार कर एक जंगल म घुस गए। कुछ दे र बाद मह
उस हं ि़डया म दूध िलए हु ए वहां आए। उ ह ने दे खा िक वहां कोई नह है । इधर-उधर
खोजा; पहले क या का नाम और िफर ी का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारने लगे।
लेिकन न तो कोई उ र िमला और न कुछ पता ही लगा। िजस वन म डाकू क याणी
को लेकर घुसे, वह वन बड़ा ही मनोहर था। यहां रोशनी नह िक शोभा िदखाई दे , ऐसी
आंख भी नह िक दिर के दय के स दय की तरह उस वन का स दय भी दे ख सक।
दे श म आहार य रहे या न रहे - वन म फूल है ; फूल की सुगध
ं से मानो उस अंधकार
म काश हो रहा है । बीच की साफ-सुकोमल और पु पावृत जमीन पर डाकुओं ने
क याणी और उसकी क या को उतारा और सब उ ह घेरकर बैठ गए। इसके बाद उन
सब म यह बहस चली िक इन लोग का या िकया जाए? क याणी को जो कुछ गहने
थे, उ ह डाकुओं ने पहले ही ह तगत कर िलया। एक दल उसके िह से-बखरे म य त
हो गया। गहन के बंट जाने पर एक डाकू ने कहा-हम लोग सोना-चांदी लेकर या
करगे? एक गहना लेकर कोई मुझे भोजन दे , भूख से ाण जाते ह-आज सबेरे केवल
प े खाए ह। एक के यह करने पर सभी इसी तरह ह ा मचाने लगे- भारत दो, हम भूख
से मर रहे ह, सोना-चांदी नह चाहते।.. दलपित उ ह शांत करने लगा, लेिकन कौन
सुनता है ; मश: ऊंचे वर म बात शु हु ई, िफर गाली-गलौच शु हु ई, मार-पीट की
भी तैयारी होने लगी। िजसे-िजसे िह से म गहने िमले थे, वे लोग अपने-अपने िह से के
गहने ख च-खीचकर दलपित के शरीर पर मारने लगे। दलपित ने भी दो-एक को मारा।
इस पर सब िमलकर आ मण कर दलपित पर आघात करने लगे। दलपित अनाहार से
कमजोर और अधमरा तो आप ही था, दो-चार आघार म ही िगरकर मर गया। उन भूख,े
पीि़डत, उ ेिजत और दयाशू य डाकुओं म से एक ने कहा-- यार का मांस खा चुके ह,
भूख से ाण जा रहा है , आओ भाई आज इसी साले को खा ल। इस पर सबने िमलकर
जयकाली कहकर जयघोष िकया--जय काली! आज नर-मांस खाएंग।े यह कहकर वह
सब नरकंकाल पधारी िखलिखलाकर हं स पड़े और तािलयां बजाते हु ए नाचने लगे।
एक दलपित के शरीर को भूनने के िलए आग जलाने का इंतजाम करने लगा। लता-
डािलयां और प े सं ह कर, उसने चकमक प थर ारा आग पैदा कर उसे धधकाया;
धधक कर आग जल उठी। आग की लपट के पास के आम, खजूर, पनस, न बू आिद
के वृ के कोमल हरे प े चमकने लगे। कह प े जलने लगे, कह घास पर रोशनी से
हिरयाली हु ई तो कह अंधेरा और गाढ़ा हो गया। आग जल जाने पर कुछ लोग दलपित
के कंकाल को आग म फकने के िलए घसीटकर लाने लगे। इसी समय एक बोल उठा-
ठहरो, ठहरो! अगर यह मांस ही खाकर आज भूख िमटानी है , तो इस सूखे नरकंकाल
को न भूनकर, आओ इस कोमल लड़की को ही भूनकर खाया जाए एक बोला-जो हो,
भैया ! एक को भूनो ! हम तो भूख से मर रहे ह। इस पर सबने लोलुप दृि से उधर दे खा,
िजधर अपनी क या को िलए हु ए क याणी पड़ी थी। उस सबने दे खा िक वह थान सूना
था, न क या थी और न माता ही। डाकुओं के आपसी िववाद और मारपीट के समय
सुयोग पाकर क याणी गोद म ब ी को िचपकाए वन के भीतर भाग गई। िशकार को
भागा दे खकर वह ेत-दल मार-मार करता हु आ चार तरफ उ ह पकड़ने के िलए दौड़
पड़ा। अव था िवशेष म मनु य पशुमा रह जाता है । रोग को भी अवसर िमला- वर,
है जा, य, चेचकफैल पड़ा। िवशेषत: चेचक का बड़ा सार हु आ। घर-घर लोग
महामारी से मरने लगे। कौन िकसे जल दे ता है - कौन िकसे छूता? कोई िकसी की
िचिक सा नह करता, कोई िकसी को नह दे खता था। मर जाने पर शव कोई उठाकर
फकता नह था। अित रमणीय गृह- थान आप ही सड़कर बदबू करने लगे। िजस घर म
एक बार चेचक हु आ, रोगी को छोड़कर घरवाले भाग गए। मह सह पदिच ह के बड़े
धनी यि ह-- लेिकन आज धनी-गरीब सब बराबर ह। इस दु:खपूण अकाल के समय
रोगी होकर उसके आ मीय- वजन, दासी-दास सभी चले गए ह। कोई मर गया, कोई
भाग गया। उस वृहत पिरवार म उनकी ी, वे और गोद म एक िशशु-क या मा रह
गई है । इ ह लोग की बात कह रहा हू ं । उनकी भाय क याणी ने चता छोड़कर
गोशाला म जाकर गाय दुही। इसके बाद दूध गम कर क या को िपलाया और गऊ को
घास खाने के िलए डाल िदया। वह लौटकर जब काई तो मह ने कहा-इस तरह िकतने
िदन चलेगा? क याणी बोली-- यादा िदन नह ! िजतने िदन चले, िजतने िदन म चला
पाती हू ं , चला रही हू ं । इसके बाद तुम लड़की को लेकर शहर चले जाना। मह - अगर
शहर ही चलना है तो तु ह ही इतनी तकलीफ य दी जाय? चलो न, अभी चल! इसके
बाद दोन अनेक तक-िवतक हु ए। क याणी- शहर म जाने से या िवशेष उपकार होगा?
मह - वह थान भी शायद ऐसे ही जन शू य, ाणर ा के उपाय से रिहत है क याणी-
मु शदाबाद, कािसम बाजार या कलक ा जाने से ाणर ा हो सकेगी। इस थान से तो
याग दे ना हर तरह से उिचत है ? मह ने कहा-यह घर बहु त िदन से वंशानु म से
संिचत धन से पिरपूण है , इ ह तो चोर लूट ले जाएंग।े क याणी-यिद वह लोग लूटने के
िलए आएं तो या हम दो जन र ा कर सकते है ? ाण ही न रहा तो धन कौन भोगेगा?
चलो, अभी से ही सब बंद-संद करके चल चल। अगर जदा रह गए तो िफर आकर
भोग करगे। मह ने पूछा- या तुम राह चल सकोगी? कहार सब मर ही गए ह। बैल ह
तो गाड़ी नह है और गाड़ी है तो बैल नह है । क याणी -तुम चता न करो, म पैदल
चलूंगी। क याणी ने मन-ही-मन िन य िकया- न होगा, राह म मरकर िगर पड़ंग
ू ी; यह
दोन जन तो बचे रहगे। दूसरे िदन सबेरे, साथ म कुछ धन लेकर घर- ार म ताला बंद
कर, गाय को मु कर और क या को गोद म लेकर दोन जन राजधानी के िलए चल
पड़े। या ा के समय मह ने कहा- राह बड़ी भयानक है । कदम-कदम पर डाकू और
लुटेरे िछपे ह; खाली हाथ जाना उिचत नह है । यह कहकर मह ने िफर घर म वापस
जाकर बंदक
ू , गोली बा द साथ म ले ली। यह दे खकर क याणी ने कहा-अगर अ
की बात याद की है तो जरा लड़की को गोद म स हाल लो, म भी हिथयार ले लूं यह
कहकर क याणी ने लड़की मह की गोद म दे कर घर के भीतर वेश िकया। मह ने
पूछा-तुम कौन-सा हिथयार लोगी क याणी ने घर म जाकर िवष की एक िडिबया अपने
कपड़ के अंदर िछपा ली। जेठ का महीना है । भयानक गम से पृ वी अिग मय हो रही
है ; हवा म आग की लपट दौड़ रही है , आकाश गरम तवे की तरह जल रहा है , राह की
धूल आग की िचनगारी बन गई है । क याणी के शरीर से पसीने की धार बहने लगी;
कभी पीपल के नीचे, कभी बड़ के नीचे, कभी खजूर के नीचे छाया दे खकर ितलिमलाती
हु ई बैठ जाती है । सूखे हु ए तालाब का कीचड़ से सना मैला जल पीकर वे लोग राह
चलने लगे। लड़की मह की गोद म है - समय समय पर वे उसे पंखा हांक दे ते ह। कभी
घने हरे प से दाएं, सुगिं धत फूल वाले वृ से िलपटी हु ई लता की छाया म दोन जन
बैठकर िवराम करते ह। मह ने क याणी को इतना सहनशील दे खकर आ य िकया।
पास के ही एक जलाशय से व को जल से तर कर मह ने उससे क या और प नी
का जलता माथा और मुंह धोकर कुछ शांत िकया। इससे क याणी कुछ आ त
अव य हु ई, लेिकन दोन ही भूख से बड़े िव ल हु ए। वे लोग तो उसे भी सहने लगे,
लेिकन बािलका की भूख- यास उनसे बद त न हु ई, अत: वहां अिधक दे र न ठहरकर वे
लोग िफर चल पड़े। उस आग के सागर को पार कर सं या से पहले वे एक ब ती म
पहु ं च।े मह के मन म बड़ी आशा थी िक ब ती म पहु ं चकर वे अपनी प नी और क या
की शीतल जल से तृ कर सकगे और ाणर ा के िनिम अपने मुंह म भी कुछ आहार
डाल सकगे। लेिकन कहां? बसती म तो एक भी मनु य िदखाई नह पड़ता। बड़े-बड़े घर
सूने पड़े हु ए ह, सारे आदमी वहां से भाग गए ह। इधर-उधर दे खकर एक घर के भीतर
मह ने ी-क या को बैठा िदया। बाहर आकर उ ह ने जोर से पुकारना शु िकया,
लेिकन उ ह कोई भी उ र सुनाई न पड़ा। तब मह ने क याणी से कहा-तुम जरा
साहसपूवक अकेली रहो; दे खूं शायद कह कोई गाय िदखाई दे जाए। भगवान ीकृ ण
दया कर द तो दूध ले आएं। यह कहकर मह एक िम ी का बरतन हाथ म लेकर
िनकल पड़े। बहु तेरे बरतन वह पड़े हु ए थे।
आन दमठ भाग-2
जंगल के भीतर घनघोर अंधकार है । क याणी को उधर राह िमलना मु कल हो गया।
वृ -लताओं के झुरमुट के कारण एक तो राह किठन, दूसरे रात का घना अंधेरा। कांट
से वधती हु ई क याणी उन आदमखोर से बचने के िलए भागी जा रही थी। बेचारी
कोमल लड़की को भी कांटे लग रहे थे। अबोध बािलका गोद म चीखकर रोने लगी;
उसका रोना सुनकर द युदल और ची कार करने लगा। िफर भी, क याणी पागल की
तरह जंगल म तीर की तरह घुसती भागी जा रही थी। थोड़ी ही दे र म चं ोदय हु आ। अब
तक क याणी के मन म भरोसा था िक अंधेरे म नर-िपशाच उसे दे ख न सकगे, कुछ दे र
परे शान होकर पीछा छोड़कर लौट जाएंग,े लेिकन अब चांद का काश फैलने से वह
अधीर हो उठी। च मा ने आकाश म ऊंचे उठकर वन पर अपना पहला आवरण पैला
िदया, जंगल का भीतरी िह सा अंधेरे म चांदनी से चमक उठा- अंधकार म भी एक तरह
की उ”वलता फैल गई- चांदनी वन के भीतर िछ से घुसकर आंखिमचौनी करने लगी।
चं मा जैसे-जैसे ऊपर उठने लगा, वैसे-वैसे काश फैलने लगा जंग को अंधकार अपने
म समेटने लगा। क याणी पु ी को गोद म िलए हु ए और गहन वन म जाकर िछपने
लगी। उजाला पाकर द युदल और अिधक शोर मचाते हु ए दौड़-धूप कर खोज करने
लगे। क या भी शोर सुनकर और जोर से िच ाने लगी। अब क याणी भी थककर चूर
हो गई थी; वह भागना छोड़कर वटवृ के नीचे साफ जगह दे खकर कोमल पि य पर
बैठ गई और भगवान को बुलाने लगी-कहां हो तुम? िजनकी म िन य पूजा करती थी,
िन य नम कार करती थी, िजनके एकमा भरोसे पर इस जंगल म घुसने का साहस कर
सकी.... ..कहां हो, हे मधुसूदन! इस समय भय और भि की गाढ़ता से, भूख- यास से
थकावट से क याणी धीरे अचेत होने लगी; लेिकन आंतिरक चैत य से उसने सुना,
अंतिर म वग य गीत हो रहा है -
हरे मुरारे ! मधुकैटभारे ! गोपाल, गो वद मुकुंद यारे ! हरे मुरारे मधुकैटभारे !....
मश: और भी िनकट, और भी प -
क याणी ने अपनी आंख खोल । धुंधले अंधेरे की चांदी म उसने दे खा- सामने वही शु
शरीर, शु वेश, शु केश, शु वसन ऋिषमू त खड़ी है । िवकृत म त क और अधचेतन
अव था म क याणी ने मन म सोचा-- णाम क ं , लेिकन िसर झुकाने से पहले ही वह
िफर अचेत हो गयी और िगर पड़ी।
पहले तो क याणी कुछ समझ न सकी, लेिकन धीरे -धीरे उसके दय म जब धीरज हु आ
तो उसने उठकर अपने गले म आंचल डालकर, जमीन से म तक लगाकर णाम
िकया। महा माजी ने सुमंगल आशीव द दे कर दूसरे कमरे से एक सुगिं धत िम ी का
बरतन लाकर उसम दूध गरम िकया। दूध के गरम हो जने पर उसे क याणी को दे कर
बोले- बेटी! दूध क या को भी िपलाओ, वयं भी िपयो, उसके बाद बात करना।
क याणी संतु दय से क या को दूध िपलाने लगी। इसके बाद उस महा मा ने कहा- म
जब तक न आऊं, कोई चता न करना। यह कहकर कमरे के बाहर चले गए। कुछ दे र
बाद उ ह ने लौटकर दे खा िक क याणी ने क या को तो दूध िपला िदया है , लेिकन वयं
कुछ नह िपया। जो दूध रखा हु आ था, उसम से बहु त थोड़ा खच हु आ था। इस पर
महा मा ने कहा- बेटी! तुमने दूध नह िपया? म िफर बाहर जाता हू ं ; जब तक तुम दूध न
िपयोगी, म वापस न आऊंगा।
वह ऋिषतु य महा मा यह कहकर बाहर जा रहे थे; इसी समय क याणी िफर णाम कर
हाथ जोड़ खड़ी हो गई।
क याणी बोली- यह मुझे मालूम नह - दूध की खोज म उनके बाहर िनकलने पर ही डाकू
मुझे उठा ले गए इस पर चारी ने एक-एक बात पूछकर क याणी से उसके पित का
सारा हाल मालूम कर िलया। क याणी ने पित का नाम नह बताया, बता भी नह
सकती थी, कतु अ याय पिरचय से चारी समझ गए। उ ह ने पूछा- तु ह मह की
प नी हो? इसका कोई उ र न दे कर क याणी िसर झुका कर, जलती हु ई आग म
लकड़ी लगाने लगी। चारी ने समझकर कहा- तुम मेरी बात मानो, म तु हारे पित की
खोज करता हू ं । लेिकन जब तक दूध न िपओगी, म न जाऊंगा?
इस पर चारी ने संतु होकर कहा- तुम इसी दे व थान म रहो। म तु हारे पित की
खोज म जाता हू ं ।
अत: बंगाल का कर अंगरे ज को ा य था, लेिकन शासन का भार नवाब पर था। जहां-
जहां अंगरे ज अपने ा य कर की वयं अदायगी कराते थे, वहां-वहां उ ह ने अपनी तरफ
से कले टर िनयु कर िदए थे। लेिकन मालगुजारी ा होने पर कलक े जाती थी।
जनता भूख से चाहे मर जाए, लेिकन मालगुजारी दे नी ही पड़ती थी। िफर भी मालगुजारी
पूरी तरह वसूल नह हु ई थी- कारण, माता-वसुमती के िबना धन- सव िकए, जनता
अपने पास के कैसे गढ़कर दे सकती थी? जो हो, जो कुछ ा हु आ था, उसे गाि़डय पर
लादकर िसपािहय के पहरे म कलक े भेजा जा रहा था- धन कंपनी के खजाने म जमा
होता। आजकल डाकुओं का उ पात बहु त बढ़ गया है , इसीिलए पचास सश िसपाही
गाड़ी के आगे-पीछे संगीन खड़ी िकए, कतार म चल रहे थे : उनका अ य एक गोरा
था जो सबसे पीछे घोड़े पर था। गरमी की भयानकता के कारण िसपाही िदन म न
चलकर रात को सफर करते थे। चलते-चलते उन गाि़डय और िसपािहय के कारण
मह की राह क गई। इस तरह राह की होने के कारण थोड़ी दे र के िलए मह सड़क
के िकनारे खड़े हो गए। िफर भी िसपािहय के शरीर से ध ा लग सकता था, और
झगड़ा बचाने के याल से वे कुछ हटकर जंगल के िकनारे खड़े हो गए।
भवानंद-दे ख तो रहे तो, गे आ कपड़ा पहने म चारी हू ं .... डाकू या मेरे जैसे होते ह?
भवानंद की वाणी से संतु होकर िसपाही ने कहा-लो साले! िसर पर यह बोझ लादकर
चलो। यह कहकर िसपाही ने भवानंद के िसर पर एक गठरी लाद दी। यह दे ख एक
दूसरा िसपाही बोला-नह -नह भाग जाएगा। इस साले को भी वहां पहलेवाले की तरह
बांधकर गाड़ी पर बैठा दो। इस पर भवानंद को और उ कंठा हु ई िक पहले िकसे बांधा है ,
दे खना चािहए। यह िवचार कर भवानंद ने गठरी फक दी और पहले िसपाही को एक
थ पड़ जमाया। अत: अब िसपािहय ने उ ह भी बांधकर गाड़ी पर मह की बगल म
डाल िदया। भवानंद पहचान गए िक यही मह सह है ।
मह - य ? राजा के !
मह -राजा का राज-भाग।
भवानंद-जो राजा रा य बंध न करे , जनता-जनादन की सेवा न करे , वह राजा कैसे
हु आ?
मह -दे खता हू ं , तुम लोग िकसी िदन फौजी की तोप के मुंह पर उड़ जाओगे।
मह -जान-बूझकर मरने की या ज रत है ?
भवानंद -मह सह! मेरा याल था िक तुम मनु य के समान मनु य होगे। लेिकन दे खा-
जैसे सब है , वैसे तुम भी हो- घी-दूध खाकर भी दम नह । दे खो, सांप िम ी म अपने पेट
को घसीटता हु आ चलता है - उससे बढ़कर तो शायद हीन कोई न होगा; लेिकन उसके
शरीर पर भी पैर रख दे ने पर वह फन काढ़ लेता है । तुम लोग का धैय या िकसी तरह
भी न नह होता? दे खो, िकतने दे शी शहर है - मगध, िमिथला, काशी, कराची, िद ी,
का मीर- उन जगह की ऐसी दुदशा है ? िकस दे श के मनु य भोजन के अभाव म घास
खा रहे ह? िकस दे श की जनता कांट खाती है , लता-प ा खाती है ? िकस दे श के मनु य
यार, कु े और मुद खाते है ? आदमी अपने संदक
ू म धन रखकर भी िनि त नह है -
सहासन पर शािल ाम बैठाकर िनि त नह है - घर म बहू -नौकर-मजदूरनी रखकर
िनि त नह है ! हर दे श का राजा अपनी जा की दशा का, भरण-पोषण का याल
ै ै
रखता है ; हमारे दे श का मुसलमान राजा या हमारी र ा कर रहा है ? धम गया, जाित
गई, मन गया- अब तो ाण पर बाजी आ गई है । इन नशेबाज दाड़ीवाल को िबना
भगाए या हदू हदू रह जाएंग?े
मह - कैसे भगाओगे?
भवानंद -मारकर!
ि स कोिटभुजघ
ै ृत खरकरवाले,
िजस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर चारी ने चार ओर दे खा था उसी
राह से इन लोग को गुजरना था। उस पहाड़ी के िनकट पहु ं चने पर िसपािहय ने दे खा िक
एक िशलाखंड पर जंगल के िकनारे एक पु ष खड़ा है । हलकी चांदनी म उस पु ष का
काला शरीर चमकता हु आ दे खकर िसपाही बोला--दे खो एक साला और यहां खड़ा है ।
इस पर उसे पकड़ने के िलए एक आदमी दौड़ा, लेिकन वह आदमी वह खड़ा रहा, भागा
नह - पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह यि कुछ न बोला। हवलदार ने
कहा-इस साले के िसर पर गठरी लादो! िसपािहय के एक भारी गठरी दे ने पर उसने भी
िसर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक
िप तौल चलने की आवाज हु ई- हवलदार माथे म गोली खाकर िगर पड़ा।
ै
भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोग के ारा तु हारा कुछ उपकार हु आ था, साथ ही
और भी कुछ उपकार कर दे ने की इ छा है !
अंत म मह भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे
डाकू ह?....
िजस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर चारी ने चार ओर दे खा था उसी
राह से इन लोग को गुजरना था। उस पहाड़ी के िनकट पहु ं चने पर िसपािहय ने दे खा िक
एक िशलाखंड पर जंगल के िकनारे एक पु ष खड़ा है । हलकी चांदनी म उस पु ष का
काला शरीर चमकता हु आ दे खकर िसपाही बोला--दे खो एक साला और यहां खड़ा है ।
इस पर उसे पकड़ने के िलए एक आदमी दौड़ा, लेिकन वह आदमी वह खड़ा रहा, भागा
नह - पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह यि कुछ न बोला। हवलदार ने
कहा-इस साले के िसर पर गठरी लादो! िसपािहय के एक भारी गठरी दे ने पर उसने भी
िसर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक
िप तौल चलने की आवाज हु ई- हवलदार माथे म गोली खाकर िगर पड़ा।
ै
भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोग के ारा तु हारा कुछ उपकार हु आ था, साथ ही
और भी कुछ उपकार कर दे ने की इ छा है !
अंत म मह भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे
डाकू ह?....
उस चांदनी रात म दोन ही जंगल पार करते हु ए चले जा रहे थे। मह चुप, शांत, ग वत
और कुछ कौतूहल म भी थे।
व दे मातर !
सुहािसन सुमधुरभािषणी
मह बोले-यह तो दे श है , यह तो मां नह है ।
भवानंद ने कहा -हमलोग दूसरी िकसी मां को नह मानते। जननी ज मभूिम वग दिप
गरीयसी- हमारी माता, ज मभूिम ही हमारी जननी है - हमारे न मां है , न िपता है , न भाई
है - कुछ नह है , ी भी नह , घर भी नह , मकान भी नह , हमारी अगर कोई है तो वही
सुजला, सुफला, मलयजसमीरण-शीतला, श य यामला...
व दे मातर !
शु यो सना-पुलिकत यािमनी
फु कुसुिमत दमदलशोिभनी
सुहािसन सुमधुरभािषणी
व दे मातर .....
स कोिटक ठ-कलकल िननादकराले,
ि स कोिट भुजध
ै ◌ृत खरकरवाले,
कमला कमल-दल-िवहािरण ,
वाणी िव ादाियन नमािम वं
चारी -मां!
मह -कौन है वह?
चारी -समय पर पहचान जाओगे। बोलो, वंदे मातर ! अब चलो, आगे चलो!
मह ने कहा-काली?
आनंद-वन से बाहर िनकल आने पर कुछ दूर तक राह चलने म तो जंगल उनके एक
बाजू रहा। जंगल की बगल से ही शायद वह राह गई है । एक जगह जंगल म से ही एक
ै ै
छोटी नदी कलकल कर बहती है । जल बहु त ही साफ है , लेिकन दे खने पर जंगल की
छाया से जल भी काला िदखाई दे ता है । नदी के दोन बाजू सघन बड़े-बड़े वृ मनोरम
छाया िकए हु ए ह, िविभ प ी उन पेड़ पर बैठे कलरव कर रहे ह। उनका कलरव-
कूजन, नदी की कलकल- विन से िमलकर अपूव शितमधुर जान पड़ता है । वैसे ही वृ
के रं ग से नदी-जल का रं ग भी वैसा ही झलक रहा है । क याणी का मन भी शायद उस
रं ग म िमल गया। क याणी नदी तट के एक वृ से लगकर बैठ गई। उ ह ने अपने पित
को भी बैठने को कहा। क याणी अपने पित के हाथ को अपने हाथ म िलए बैठी रही।
िफर बोली-तु ह आज बहु त उदास दे खती हू ं । िवपद जो आयी थी, उससे तो उ ार िमल
गया है , अब इतना दु:ख य ?
क याणी- य ?
क याणी ने कहा-मुझे भी बड़ी िवपद का सामना करना पड़ा, बहु त तकलीफ उठाई।
तुम उ ह सुनकर या करोगे! इतने दु:ख पर भी मुझे कैसे न द आई थी, कह नह
सकती- कल आिखर रात भी म सोई थी। न द म मने वप दे खा। दे खा- नह कह
सकती, िकस पु यबल से म एक अपूव थान म पहु ं च गई हू ं । वहां िम ी नह है , केवल
काश- अित शीतल- बादल हट जाने पर जैसा काश रहता है , वैसा ही काश! वहां
मनु य नह थे, केवल काशमय मू तयां थी, वहां श द नह होता था, केवल दूर अपूव
ै
संगीत जैसी विन सुनाई पड़ती थी। सदाबहार मि का-मालती-गंधराज की अपूव सुगध
ं
फैली थी। वहां सबसे ऊंचे दशनीय थान पर कोई बैठा था, मानो आग म तपा हु आ
नील-कमल धधकता हु आ बैठा हो। उसके माथे पर सूय के काश जैसा मुकुट था;
उसके चार हाथ थे। उसके दोन बाजू कौन था, म पहचान न सकी, लेिकन कोई ी-
मू त थी। लेिकन उनम इतनी योित, इतना प, इतना सौरभ था िक म उधर दे खते ही
िव ल हो गई- उधर ताक न सकी, दे ख न सकी िक वे कौन है ? उ ह चतुभुज के सामने
एक ी और खड़ी थी- वह भी योितमयी थी, लेिकन चार तरफ मेघ जैसा छाया था,
आभा पूरी तरह िदखाई नह दे ती थी। अ प प म जान पड़ता था िक वह नारीमू त
अित दुबल, ममपीि़डत, अन य-सुंदरी, लेिकन रो रही है । वहां के मंद-सुगध
ं पवन ने
मान मुझे घुमाते-िफराते वहां चतुभुज मू त के सामने ला खड़ा िकया। उस मेधमंिडता
दुबल ी ने मुझे दे खकर कहा- यही है , इसी के कारण मह मेरी गोद म आता नह
है ।....
इसके बाद ही एक अपूव वंशी जैसी मधुर विन सुनाई पड़ी। वह श द उन चतुभुज का
था, उ ह ने मुझे कहा-तुम अपने पित को छोड़कर मेरे पास चली आओ! यह तुम लोग
की मां है मह इसकी सेवा करे गा। तुम यिद पित के पास रहोगी तो वह इनकी सेवा न
कर सकेगा। तुम चली जाओ। मने रोकर कहा-पित को छोड़कर म कैसे चली आऊं?
इसके बाद ही िफर उसी अपूव वर म उ ह ने कहा-म ही वामी, म ही पु , म ही माता,
म ही िपता और म ही क या हू ं , मेरे पास आओ! मने या उ र िदया, मुझे याद नह ,
लेिकन इसके बाद ही न द खुल गई। यह कहकर क याणी चुप हो रही।
चारी ने कहा -िजस िदन मां की सारी स तान एक साथ मां को बुलाएंगी, उसी िदन
मां स ह गी।
मह -म भी यह महामं हण क ं गा!
चारी-िजस राह से यहां आये हो, उसी राह से मंिदर से बाहर जाओ! मंिदर के दरवाजे
पर तु ह ी-क या िदखाई दगी। क याणी अभी तक िनराहार है । जहां वे दोन बैठी ह
वह भोजन की साम ी पाओगे। उसे भोजन कराके तु हारी जो इ छा हो करना। अब
हम लोग म से िकसी से कुछ दे र मुलाकात न होगी। यिद तु हारा मन इधर होगा तो
समय पर म तुमसे िमलूंगा।
इधर स यानंद एक दूसरी सुरंग म जाकर एक अकेली भूगभ थत कोठरी म उतर पड़े।
वहां जीवान द और भुवानंद बैठे हु ए पये िगन-िगनकर रख रहे थे। उस कमरे म ढेर
सोना, चांदी, तांबा, हीरे , मोती, मूंगे रखे हु ए थे। गत रात खजाने की लूट का माल ये
लोग िगन-िगनकर रख रहे थे।
कतु पदिच ह जाने के िलए िकस राह से जाना होगा- उस दुभ वन म वे कुछ भी समझ
न सके। उ ह ने समझा था िक जंगल पार होते ही हम राह िमल जाएगी और पदिच ह
पहु ं च सकगे। लेिकन वहां तो बन का ही थाह नह लगता है । बहु त दे र तक वे लोग वन
के अंदर इधर-उधर च र लगाते रहे और बार-बार घूम-िफरकर वे लोग मठ म ही पहु ं च
जाते थे। उ ह जंगल से पार होनेवाली राह िमलती ही न थी। यह दे खते हु ए सामने एक
वै णव वेशधारी खड़े हं स रहे थे। यह दे खकर मह ने होकर उनसे कहा-गो वामी!
खड़े-खड़े हं सते य हो?
मह बोले-जैसे भी हो आ ही गए ह!
बुरी बात ही मां-बाप के मुंह से पहले िनकलती है - जहां अिधक ेम होता है , वहां भय भी
बहु त अिधक होता है । मह ने यह कभी दे खा न था िक िटिकया पहले िकतनी बड़ी थी।
अब उ ह ने िटिकया अपने हाथ म उठाकर मजे म उसे दे खकर कहा-मालूम तो होता है
िक कुछ खा गई है ।
क याणी को कुछ ऐसा ही िव ास हु आ। िटिकया हाथ म लेकर बहु त दे र तक वह भी
उसकी जांच करती रही। इधर क या ने दो-एक घूंट रस जो चूस िलया था, उससे उसकी
दशा िबगड़ने लगी- वह छटपटाने लगी, रोने लगी, अंत म कुछ बेहोश सी हो पड़ी। तब
क याणी ने पित से कहा-अब या दे खते हो? िजस राह पर भगवान ने बुलाया है , उसी
राह पर सुकुमारी चली, मुझे भी वही राह लेनी पड़ेगी।
क याणी ने कोई उ र न दे कर पित के पैर की धूिल माथे लगाई, िफर बोली- भु! बात
बढ़ाने से बात बढ़े गी...म चली।
इधर बािलका एक बार दूध की उ टी कर स भलने लगी। उसके पेट म िजस पिरमाण म
िवष गया था, वह घातक नह था। लेिकन मह का यान उस समय उधर न था। उ ह ने
क या को क याणी की गोद म दे दोन का गाढ़ अ लगन कर फूट-फूटकर रोना शु
िकया। उसी समय वन म से मधुर कतु मेघ-गंभीर श द सुनाई पड़ने लगा-
उस समय क याणी पर िवष का भाव हो रहा था, चेतना कुछ लु हो चली थी। उ ह ने
अवचेतन मन से सुरा, मानो वैकु ठ से यह अपूव विन उभरकर गूज
ं रही है -
हरे मुरारे मधुकैटभारे !
गोपाल गो वद मुकुंद शौरे !
वन म गूज
ं ने वाले मधुर वर और क याणी के मधुर वर पर िवमु ध होकर कातर दय
से एक मा ई र को ही सहाय समझाकर मह ने भी पुकारा-
ै
हरे मुरारे मधुकैटभारे !....
ै
मुरारे कहते हु ए बैकुंठ याण िकया। इसके बाद ही पागल की तरह उ वर से वन को
क पत करते हु ए पशु-पि य को च काते हु ए मह पुकारने लगे-
मह िव मत, त भत होकर चुप हो रहे । ऊपर पेड़ पर कोई प ी बोल उठा, पपीहा
अपनी बोली से आकाश गुज
ं ाने लगा, कोिकल स - वर म गाने लगी, भृंगराज की
झनकार से जंगल गूज
ं उठा। पैर के नीचे तिरणी मृदु क ोल कर रही थी। बहु तेरे व य
पु प के सौरभ से मन हरा हो रहा था। कह -कह नदी-जल को सूय-र म चमका रही
थी। कह ताड़ के प े हवा के झ के से मरमरा रहे थे। दूर नीली पवत- ेणी िदखाई पड़
रही थी। दोन ही जन मु ध-नीरव हो यह सब दे खते रहे । बहु त दे र बाद क याणी ने िफर
पूछा- या सोच रहे हो?
ै
मह -यही सोचता हू ं िक या करना चािहए? यह वप केवल िवभीिषका मा है , अपने
ही दय म पैदा होकर अपने ही म लीन हो जाता है । चलो, घर चल!
क याणी चुप होकर िवचार म पड़ गई, मह उसका मुंह ताकते रहे - ित िनमेश वष-सा
तीत होने लगा। उ ह ने दे खा िक क याणी ने बात पूरी न कही, अत: बोले-लेिकन के
बाद आगे या कह रही थ ?
क याणी-मन म था िक खाऊंगी, लेिकन तु ह छोड़कर, सुकुमारी क या को छोड़कर
बैकुंठ जाने की भी मेरी इ छा नह होती। म न म ं गी!
यह कहकर क याणी ने िवष की िडिबया जमीन पर रख दी। इसके बाद दोन ही प नी-
पु ष भूत-भिव य की अनेक बात करने लगे। बात करते हु ए दोन ही अ यमन क हो
उठे । इसी समय खेलते-खेलते सुकुमारी क या ने िवष की िडिबया उठा ली। उसे िकसी
ने न दे खा।
िटिकया उसी तरह पड़ी रही। क याणी तुरंत नदी-तट पर जाकर अपना आंचल िभगो
लाई और लड़की के मुंह म जल दे कर उसने धुलवा िदया। बड़ी ही कातर वाणी से
क याणी ने मह से पूछा- या कुछ पेट म गया होगा?
आन दमठ भाग-5
इधर राजधानी की शाही राह पर बड़ी हलचल उप थत हो गई। शोर मचने लगा िक
नवाब के यहां से जो खजाना कलक े आ रहा था, सं यािसय ने मानकर सब छीन
िलया। राजा ा से िसपाही और ब मटे र सं यािसय को पकड़ने के िलए छूटे । उस
समय दु भ -पीि़डत दे श म वा तिवक सं यासी रह ही न गए थे। कारण, वे लोग
िभ ाजीवी ठहरे , जनता वयं खाने को नह पाती तो उ ह वह कैसे दे सकती है ? अतएव
जो असली सं यासी िभ ु क थे, वे लोग पेट की वाला से याकुल होकर काशी- याग
चले गए थे। आज ये हलचल दे खकर िकतन ने ही अपना सं यासी वेष याग िदया।
रा य के भूखे सैिनक, सं यािसय को न पाकर घर-घरम तलाशी लेकर खाने और पेट
भरने लगे। केवल स यान द ने िकसी तरह भी अपने गैिरक व का पिर याग न
िकया।
उसी क ोलवािहनी नदी-तट पर, शाही राह के बगल म पही पेड़ के नीचे क याणी पड़ी
हु ई है । मह और स यानंद पर पर अ लगनब होकर आंसू बहाते हु ए भगव ाम-
उ ारण म लगे हु ए ह। उसी समय एक जमादार िसपािहय का दल िलए हु ए वहां पहु ं च
गया। सं यासी के गले पर एक बारगी हाथ ले जाकर जमादार बोला-यह साला सं यासी
है !
ै
अ सर होते ही वे समझ गए िक ये सब मुझे बांध िलए जा रहे है - क याणी का शरीर
पड़ा हु आ है , उसका अंितम सं कार नह हु आ- क या भी पड़ी हु ई है । इस अव था म
उ ह ह पशु खा जा सकते ह। मन म यह भाव आते ही मह के शरीर म बल आ गया
और उ ह ने कलाइय को मरोड़कर बंधन को तोड़ डाला। िफर पास म चलते जमादार
को इस जोर की लात लगायी िक वह लुड़कता हु आ दस हाथ दूर चला गया। तब उ ह ने
पास के एक िसपाही को उठाकर फका। लेिकन इसी समय पीछे के तीन िसपािहय ने
उ ह पकड़कर िफर िववश कर िदया। इस पर दु:ख से कातर होकर मह ने सं यासी से
कहा-आप जरा भी मेरी सहायता करते, तो म इन पांच दु को यम ार भेज दे ता।
इसके बाद इन लोग ने मुि की िफर कोई चे ा न की, चुपचाप िसपािहय के पीछे -पीछे
चलने लगे। कुछ दूर जाने पर स यानंद ने िसपािहय से पूछा-बाबा! म तो हिरनाम कह
रहा था, या भगवान का नाम लेने म भी कोई बाधा है ? जमादार समझ गया िक
स यानंद भले आदमी ह। उसने कहा-तुम भगवान का नाम लो, तु ह रोकूंगा नह । तुम
वृ चारी हो, शायद तु हारे छुटकारे का हु म हो जाएगा। मगर यह बदमाश फांसी
पर चढ़े गा!
नगर म पहु ं चने पर वे लोग कोतवाल के समीप उप थत िकए गए। कोतवाल ने नवाब
के पास इि ला भेजकर सं ित उ ह फाटक के पास की हवालात म रखा। वह कारागार
अित भयानक था, जो उसम जाता था, ाय: बाहर नह िनकलता था, य िक कोई
िवचार करने वाला ही न था। वह अं ज
े के जेलखाना नह था और न उस समय अं ज े
के हाथ म याय था। आज कानून का युग है - उस समय अिनयम के िदन थे। कानून के
युग से जरा तुलना तो करो!
मह ने उ र िदया-मेरा नाम है ।
धीरानंद-लेिकन...ऐसा य ?
ै
स यानंद-आज स तान की परी ा है ।
जीवानंद हं सकर बोले-अ छा बुला ला- िकस पािपनी को बुलाएगी-जा बुला! लेिकन
दे ख आज के बाद कहे गी तो उस साले के भाई व साले को िसर मुंड़ाकर गदहे पर
चढ़ाकर गांव के बाहर िनकलवा दूंगा।
िनमी ने मन ही मन सोचा-हु ई न मेरी जीत यह सोचती हु ई वह घर के बाहर िनकल गई।
इसके बाद पास ही एक झ पड़ म वह जा घुसी। कुटी म सैकड़ पैब द लगे हु ए कपड़े
पहने, -केशी एक युवती बैठी चरखा कात रही थी। िनमाई ने जाकर कहा-भाभी!
ज दी करो। भाभी ने कहा-ज दी या? न दोई ने तुझे मारा है , तो उनके सर म तेल
मलना है या?
तमाशा दे खने के िलए युवती ने भी साड़ी बाहर िनकाल दी। तमाशा दे खने के िलए
य िक इतनी तकलीफ पड़ने के बाद भी उसका सदा फु रहनेवाला दय अभी भी
वैसा ही था। नवयोवन-फूले कमल-जैसा उसकी नई उ का यौवन-तेल नह , सजावट
नह , आहार नह , िफर भी उसी मैली पैब दवाली धोती के अंदर से भी वह दी ,
अनुपमेय सौ दय फूट पड़ता था। वण म छायालोक की चंचलता, नयन म कटा ,
अधर पर हं सी, दय म धैय- मेघ म जैसे िबजली, जैसे दय म ितमा, जैसे जगत के
श द म संगीत और भ के मन म आनंद होता है , वैसे ही उस प म भी कुछ
अिनवचनीय गौरव भाग, अिनवचनीय ेम, अिनवचनीय भि । उसने हं सते-हं सते
(लेिकन उस हं सी को िकसी ने दे खा नह ) साड़ी िनकाल दी। बोली-िनमी! भला बात तो,
या होगी।
िनमी बोली-दादा आये ह। तुझे बुलाया है ।
उसने कहा-अगर मुझे बुलाया है तो साड़ी या होगी? चल इसी तरह चलूंगी। युवती
कहती जाती थी-कभी कपड़े न बदलूंगी। चल, इसी तरह िमलना होगा। आिखर िकसी
तरह भी उसने कपड़े बदले नह । अंत म दोन कुटी के बाहर आई। िनमाई को भी राजी
होना पड़ा। िनमाई भाभी को लेकर अपने घर के दरवाजे तक आ गई। इसके बाद भाभी
को अंदर का उसने दरवाजा बंद कर िलया और वयं बाहर खड़ी रही।
ै ै
से भी बढ़कर है , उनकी आ ा का पालन- यही उनकी पहली िश ा है । अत: उनकी
आ ा ही पालन क ं गा।
नदी के िकनारे िकनारे जीवननंद चले। जाते-जाते उसी पेड़ के नीचे नदी-तट पर दे खा
िक एक ी की मृतदे ह पड़ी हु ई है और एक जीिवत क या उसके पास है । पाठक को
मरण होगा िक मह की ी-क या को जीवानंद ने एक बार भी नह दे खा था। उ ह ने
मन म सोचा- हो सकता है , यही मह की ी-क या हो! य िक भु के साथ ही उ ह ने
मह को दे खा था। जो हो, माता मृत और क या जीिवत है । पहले इनकी र ा का यास
ही करना चािहए- अ यथा बाघ-भालू खा जाएंग।े भवानंद वामी भी कह पास ही ह गे,
वह ी का अंितम सं कार करगे- यह सोचकर जीवानंद क या को गोद म लेकर चल
िदए।
लड़की को गोद म लेकर जीवानंद गो वामी उसी जंगल म घुसे। जंगल पार कर वे एक
छोटे गांव भैरवीपुर म पहु ं च।े अब लोग उसे भ ईपुर कहते ह। भ ईपुर म थोड़े-से
सामा य लोग की बसती है । पास म और कोई बड़ा गांव भी नह है । गांव पार करते ही
िफर जंगल िमलता है । चार तरफ जंगल और बीच म वह छोटा गांव है । लेिकन गांव
है । बड़ा सुंदर। कोमल तृण से भरी हु ई गोचर भूिम है , कोमल यामल प वयु आम,
कटहल, जामुन, ताड़ आिद के बगीचे ह। बीच म नील- व छ जल से पिरपूण तालाब
है । जल म बक, हं स, डाहु क आिद प ी, तट पर पपीहा, कोयल, च वाक है , कुछ दूर
पर मोर पंख फैलाकर नाच रहे ह। घर-घर के आंगन म गाय, बछड़े, बैल ह। लेिकन
आजकल गांव म धान नह है । िकसी के दरवाजे पर पजड़े म तोता है , तो िकसी के यहां
मैना। भूिम िलपी-पोती व छ है । मनु य ाय: सभी दु भ के कारण दुबल, कलांत
और मलीन िदखाई दे ते ह, िफर भी ामवािसय म ी है । जंगल म अनेक तरह के
जंगली खा पैदा होते ह। अत: गांव के लोग वहां से फल-फूल लाते ह और वही खाकर
इस दु भ म भी अपने ाण बचाए हु ए ह।
ै
एक बड़े आम के बगीचे के बीच एक छोटा-सा घर है । चार तरफ िम ी की चहारदीवारी
है और चार कोन पर एक-एक कमरा है । गृह थ के पास गौ-बकरी है , एक मोर है , एक
मैना है , एक तोता है । एक बंदर भी था, लेिकन उसे खाना न िमलने के कारण छोड़ िदया
गया है । धान कू टने की एक ढकी है । बाहर बैल बंधे ह, बगल म न बू का पेड़ है ।
मालती जूही की लताएं ह- अथ गृह थ सु िच-स प है । लेिकन घर म ाणी अिधक
नह है । जीवानंद क या को िलए हु ए घर म चले गए।
िनमी क या को गोद म िलए हु ए खाना परोसने म य त हो गई। पहले उसने जगह पानी
से धो-प छ दी इसके बाद पीढ़ा-पानी रखकर एक थाली म भात, अरहर की दाल, परवल
की तरकारी, रोहू मछली का रसा और दूध लाकर रख िदया। खाने के िलए बैठकर
जीवानंद ने कहा-िनमाई बहन! कौन कहता है िक दे श म अकाल है ? तेरे गांव म शायद
अकाल घुसा ही नह !
अंत म िनमाई ने दादा को हाथ-मुंह धोने को पानी िदया। जल ढालते हु ए िनमाई ने पूछा-
दादा! मेरी एक बात रख लोगे?
जीवानंद- या?
िनमाई-बात र खोगे?
जीवानंद ने हाथ धुलाने वाले लोटे को िनमी पर मारने के िलए उठाया, िफर बोले-लौटा
दे , मेरी लड़की! तेरा अन भी िकसी िदन वापस कर जाऊंगा। तू बंदरी है , कलमुंही है ।
तुझे जो बात न कहनी चािहए, वही बात मेरे सामने कहती है ।
िनमी बोली-अ छा म ऐसी ही सही पर भैया! एक बार कह दो, म भाभी को बुला लाऊं।
जीवानंद-तो लो म जाता हू ं ।
यह कहकर जीवानंद उठकर ार की तरफ बढ़े । कतु शी ता-पूवक िनमाई ने दौड़कर
िकवाड़ बंद कर िदए और वयं िकवाड़ से लगकर खड़ी हो गई। बोली-मुझे मारकर ही
बाहर जा सकते हो, भैया! आज भाभी से िबना मुलाकात िकए जाने न पाओगे।
शांित कुछ दे र तक बोल न सकी। इसके बाद बोली-छी:! तुम वीर हो-मुझे इस पृ वी पर
सबसे बड़ा सुख यही है िक म वीर-प नी हू ं ! तुम अधम ी के िलए वीर-धम का
पिर याग करोगे? तुम अपने वीर-धम का कभी पिर याग न करना! दे खो मुझे एक बात
बताते जाओ, इस त के भंग का ायि त या है ?
जीवानंद हं सकर कहा-इस बारे म िनि त रहो- िबना तु ह दे ख,े म न म ं गा। मरने की
ऐसी कोई ज दी भी नह है । अब म अिधक यहां न ठह ं गा, लेिकन आंख भरकर तु ह
दे ख न सका। िफर भी एक िदन अव य दे खूग
ं ा। एक िदन हम लोग के मन की कामना
ज र पूरी होगी! म अब चला तुम मेरे एक अनुरोध की र ा करना- इस वेश-भूषा का
याग कर दो। मेरे पैतृक मकान म जाकर रहो।
ै
यह सुनकर िनमी पलथी मारकर क या को गोद म लेकर च मच से दूध िपलाने बैठी।
एकाएक उसकी आंख से कई बूंद आंसू लुढ़क पड़े। बात यह थी िक उसे पहले एक
बालक हु आ था, जो मर गया था। उसे इस तरह दूध िपलाने म अपने ब े की याद आ
गई।
िनमी ने तुरंत अपने आंसू प छकर हं सते-हं सते जीवानंद से पूछा-ह दादा! बताओ, यह
िकसकी लड़की है ?
कहते-कहते िनमी की आंख से आंसू ढुलक पड़े। आंसू प छकर वह िफर दांत
िनकालकर हं सने लगी। जीवानंद ने कहा-तू लेकर या करोगी? तुझे आप ही िकतने
बाल-ब े ह गे।
िनमी-जब ह गे तब ह गे। अभी इस लड़की को मुझे दे दो! न हो, बाद म िफर ले जाना।
जीवानंद-तो ले ले, लेकर मर! म बीच-बीच म आकर दे ख जाया क ं गा। यह काय थ
की लड़की है । म अब चला..।
िनमी-वाह दादा! भला खाओगे नह ? समय हो गया, तु ह मेरी कसम, खाकर तब जाना।
जीवानंद-तेरी कसम टालकर तुझे खाऊं, या भात खाऊं! िफर बोले-रहने दे , तुझे न
खाऊंगा, भात ही खाऊंगा, ला भात!
ै
पगड़ी और पैर म नागौरी जूता था। अब उनके ललाट पर का चंदन-ि पु ड साफ हो
गया था, उनका चेहरा अपूव शोभा पा रहा था। उ ह दे खने से िकसी पठान जातीय
मुसलमान का ही भान होता था। इस तरह से सश होकर भवानंद मठ के बाहर हु ए।
मठ के कोई एक कोस उ र दो छोटी पहाि़डयां बगल-बगल म थ । पहाड़ी जंगल से भरी
हु ई थी। वह एक िनजन थान म सं थान की अ शाला थी। भवानंद ने वहां से एक
घोड़ा िनकाला और जीन आिद कसवाकर उस पर सवार हो, सीधे राजधानी की तरफ
चल पड़े।
जाते-जाते एकाएक उनकी गित म बधा पड़ी। उसी राह की बगल म नदी के िकनारे वृ
के नीचे उ ह ने आकाश से िगरी िबजली की तरह दीि मान एक ी को पड़ी हु ई दे खा।
उ ह ने दे खा, उसम जीवन के कोई ल ण िदखाई नह पड़ते- िवष की खाली िडिबया
पास म पड़ी हु ई है । भवानंद िव मत, ु ध और भीत हु ए। जीवानंद की तरह भवानंद ने
भी मह की ी-क या हो सकती है , भवानंद के सामने संदेह के िलए वे कारण भी न
थे- उ ह ने चारी और मह को बंदी प म ले जाते भी दे खा न था। क या भी वहां न
थी। केवल िडिबया दे खकर उ ह ने समझा िक इस ी ने िवष खाकर आ म-ह या की
है । भवानंद उस शव के पास बैठ गए, बैठकर उसके माथे पर हाथ रखकर बहु त दे र तक
परी ा करते रहे । नाड़ी-परी ा, दय-परी ा आिद अनेक कार से और दूसरे
अपिर ात तरीक से परी ा कर मन-ही-मन कहा-अभी मरी नह है -अभी भी समय है -
बचाई जा सकती है । लेिकन बचाकर करना भी या है ? इस तरह कुछ ण तक िवचार
करते रहे और इसके बाद वे उठकर एकाएक वन के अंदर चले गए। वहां से वे एक
लता की थोड़ी प ी तोड़ लाए। उसी प ी को हथेली पर मसलकर उ ह ने रस िनकाला
और अंगुिलय से दांत खोल रस को मुंह म टपकाया कान म डाला और थोड़ा म तक
पर मल िदया। इसके बाद थोड़ा रस उ ह ने नाक म भी डाल िदया। इसी तरह उ ह ने
बार-बार िकया और बीच-बीच म नाक के पास हाथ ले जाकर दे खते जाते थे िक कुछ
ास चली या नह । पहले- पहल तो भवानंद को िनराशा होने लगी, लेिकन इसके बाद
उनका मुंह स ता से िखल उठा- अंगुली म िन ास की हलकी अनुभूित हु ई। उ सािहत
हो उ ह ने बार बार वही ि या की, अब ास मजे म आने-जाने लगी। नाड़ी दे खी चल
रही थी। इसके बाद ही मश: भात-कालीन अ णोदय की तरह, भात के समय
कमल िखलने की तरह, थम ेमानुभव की तरह क याणी अपनी आंख खोलने लगी।
यह दे खकर भवानंद ने क याणी के अधजीिवत शरीर को घोड़े पर रखा और वयं पैदल
ही नगर की तरफ िनकल गए।
आन दमठ भाग-6
सं या होने के पहले ही स तान स दाय के सभी लोग ने यह जान िलया िक महे के
साथ स यान द वामी िगर तार होकर नगर की जेल म ब द है । इसके बाद ही एक एक
दो-दो दस-दस सौ-सौ हजार-हजार की सं या म आकर संतानगण उसी मठ की
चहारदीवारी से संल वन म एकि त होने लगे। सभी सश थे। सबकी आंख से ोध
की अि िनकल रही थी, चेहरे पर दृढ़ता और होठ पर ित ा थी। उन लोग के काफी
सं या म जुट जाने पर मठ के फाटक पर हाथ म नंगी तलवार िलए हु ए वामी ानान द
ने गगन भेदी वर म कहा- अनेक िदन से हम लोग िवचार करते आते है िक इस नवाब
का महल तोड़कर यवनपुरी का नाश कर नदी के जल म डुबा दगे- इन सूअर के दांत
तोड़कर इ ह आग म जलाकर माता वसुमती का उ ार करगे। भाइय ! आज वही िदन
आ गया है । हम लोग के गु के भी गु परमगु जो अन त ानमय सदा शु ाचारी,
लोकिहतैषी और दे श िहतैषी ह- िज ह ने सनातन धम की पुन: ित ा के िलए
आमरण त िलया है , ित ा की है - िज ह हम िव णु के अवतार के प म मानते ह, जो
हमारी मुि के आधार ह- वही आज े छ मुसलमान के कारागार म ब दी है । या हम
लोग की तलवार पर धार नह है ?
ै
इसके साथ ही उस कानन म भीषण, आकाश कंपानेवाले व िनघ ष जैसी आवाज गूज
ं
उठी- हरे मुरारे मधुकैटभारे !
इसके साथ ही उस कानन म भीषण आकाश कंपानेवाले व िनघ ष जैसी आवाज गूज
ं
उठी- हरे मुरारे मधुकैटभारे !
इधर स तान ने पहु ं चते ही पहले राजकारागार म पहु ं चकर उसे तोड़ डाला, र क को
चटनी बना िदया और स यान द तथा महे को मु कर क ध पर चढ़ाकर संतानगण
आनंद से नृ य करने लगे। हिरकीतन का अ ुत दृ य उप थत हो गया। महे और
स यानंद करे मु कर संतान ने जहां-जहां मुसलमान का घर पाया, आग लगा दी। यह
दे खकर स यानंद ने कहा-अनथक अिन की आव यकता नह । चलो, लौट चलो।
नगर के अिधकािरय ने संतान का यह उप व सुनकर िसपािहय का एक दल उनके
दमन के िलए भेज िदया। उनके पास केवल बंदक
ू ही नह थी। एक तोप भी साथ म थी।
यह खबर पाते ही स तानगण आन द कानन से पलट पड़े, लेिकन लाठी,तलवार और
छुर से या हो सकता है ? तोप के सामने ये लोग परािजत होकर भाग गये।
उस समय के स यासी आजकल जैसे न होते थे- सुिशि त बिल यु िवशारद एवं
अ या य गुण से गुणवान होते थे। वे लोग व तुत: एक तरह के राजिव ोही होते थे-
राजाओं का राज व लूटकर खाते थे। बिल बालक पाते ही उनका अपहरण करते थे,
उ ह िशि त कर अपने स दाय म िमला िलया करते थे। इसिलए लोग उ ह लकड़-
पकड़वा या लकड़ सुँघवा भी कहते थे।
शांित बालक सं यासी के प म उनम िमली थी। सं यासी लोग पहले कोमल दे ह
दे खकर उसे दल म िमलाते न थे; लेिकन शांित की बुि - खरता,चतुरता और
कायद ता दे खकर आदरपूवक उ ह ने उसे अपने दल म िमला िलया। शांित उनके दल
म िमलकर यायाम करती थी, अ चलाना सीखती थी, अत: पिर म-सिह णु हो उठी।
उनके साथ उसने दे श- िवदे श का मण िकया, अनेक लड़ाइयां दे खी और अ -िव ा
म िनपुण हो गयी।
स यान द ने कहा-तुम दोन से यिद कोई अपराध हु आ हो, या आगे करो, तो मेरे वापस
आ जाने के पहले ायि त न करना। मेरे आ जाने पर अव य ही ायि त करना होगा।
(4)
सायंकृ य समा करने के उपरा त स यान द वामी ने महे को बुलाकर कहा-तु हारी
क या जीिवत है ।
शांित- म सधवा हू ं ।
स यान द- तो या तु हारे वामी का पता नह है - िन िद है ?
मेघ हटकर सहसा िनकल आनेवाली धूप की तरह स यानंद की मृित जाग पड़ी है ।
उ ह ने कहा- याद आ गया। जीवानंद की प ी का नाम शांित है । तुम या जीवान द की
ा णी हो? अब शांित शरमा गयी। उसने अपनी जटा से मुंह ढांक िलया मानो िकतने
ही हािथय के झु ड प पर िघर गये ह । स यान द ने पूछा - य तुम यह पापाचार करने
आयी?
ै
स यान द-वह हो सकता हे , लेिकन सामा य मनु य का दय य म आस रहता है
और वही उ ह काय से िवरत करता है । इसीिलए स तान का यह त है िक वे कभी ी
के साथ एकासन पर न बैठगे। जीवान द मेरा दािहना हाथ है । या तुम मेरा दािहना हाथ
काट दे ने के िलए आयी हो?
शा त बोली- या म आन द मठ म रह सकूंगी?
शा त- इसके बाद?
उस रात शांित को मठ म रहने की अनुमित िमली थी, इसीिलए वह कमरा खोजने लगी।
अनेक कमरे खाली पड़े हु ए थे। गोव न नाम का एक पिरचारक था- वह भी छोटी पदवी
का स तान था- वह हाथ म दीप िलये हु ए शांित को कमरे िदखाने लगा। कोई कमरा
शांित को पस द न आया। हताश होकर गोव न शांित को स यान द के पास वापस ले
ै
जाने लगा। शांित बोली- भाई स तान! इधर की तरफ जो कई कमरे है , उ ह तो नह दे खा
गया!
ै ै ै
याधा जैसे हिरण के पीछे दौड़ता है , वैसे ही वह सं यासी शा त को दे खकर उसके पीछे
दौड़ता था। िक तु शा त ने यायाम आिद के कारण पु ष-दुलभ बल-संचय िकया था।
अ यापक के समीप आते ही वह उ ह जोर के घूंसे और लात जमाती थी, जो साधारण न
होते थे। एक िदन एका त होकर सं यासी ने बड़ा जोर लगातार शा त का हाथ पकड़
िलया। शा त हाथ छुड़ा न सकी। लेिकन सं यासी ने दुभ यवश शा त का बायां हाथ
पकड़ा था, अत: दािहने हाथ से शा त ने सं यासी के िसर म इस जोर का घूंसा जमाया
िक सं यासी कटे पेड़ की तरह धड़ाम से चकराकर िगर पड़े। शा त ने सं यासी स दाय
का याग कर पलायन िकया।
स यान द-किठन बात है , जीवान द? स तान होकर तुम मुंह से ऐसी बात िनकालते हो?
स तान के िलए किठन है या?
जीवान द-आ ा दीिजये, इनका सं ह िकस कार होगा?
स यान द-यह कैसे हो सकता है -इसके उपाय की चता म बहु त िदन से कर रहा हू ं ।
भगवान ने अब उसका सुयोग उप थत कर िदया है । तुम लोग कहते थे-भगवान
ितकूल ह, लेिकन म दे खता हू ं िक भगवान अनुकूल ह।
भवानंद-कहां कारखाना खोलगे?
स यानंद-पदिच ह म।
भवानंद-महे ने या त हण कर िलया है ?
ै
भवानंद चमक उठे अब वह समझ गये िक िजस ी को उ ह ने पुनज िवत िकया है ,
वही महे की प नी क याणी है । लेिकन उसकी कोई बात इस समय उठाना उ ह ने
उिचत न समझा।
जीवानंद-जहर य खाया?
स यान द- स तागण वै णव ह।
ै ै ै ै
महे - यह मै समझ नह पाता हू ं िक स तान वै णव कैसे ह। वै णव का तो अ हसा ही
परमधम होता है ।
स यान द- िजस तरह की बात से हमारे चौदह पुरखे समझते आते ह-उसी तरह की
बात से हम तु ह समझा रहे ह। ई र ि गुणा मक है - यह सुना है ?
ै
स यानंद- ठीक है ! हम लोग रा य नह चाहते-केवल मुसलमान भगवान के िव े षी ह-
इसिलए समूल िवनाश करना चाहते ह।
पैर छूकर महे के िवदा होने पर, उनके संग उसी िदन जो दूसरा िश य दीि त हु आ था,
उसने आकर स यान द को णाम िकया। स यान द ने उसे आशीव द दे कर बैठाया।
इधर-उधर की मीठी बात होने के बाद वामीजी ने कहा- य जी, भगवान कृ ण म
तु हारी गाढ़ भि है या नह !
ै
स यान द- तु हारी नई उ दे खकर तु ह नवीनान द बुलाने की इ छा होती है , अत: तुम
अपना यही नाम रखो! लेिकन एक बात पूछता हू ं , तु हारा पहले या नाम था? यिद
बताने म कोई बाधा हो, तब भी बता दे ना। मुझसे कहने पर बात दूसरे कान म न
पहु ं चग
े ी। स तानधम का मम यही है िक जो अवा य भी हो, उसे भी गु से कह दे ना
चािहए। कहने म कोई हािन न होगी।
िश य- मेरा नाम शा त दे व शम है ।
स यान द- तु हारा नाम शा तमिण पािप ा है ।
बेशम शा त कुछ दे र तक अपनी आंख को हाथ से ढांके बैठी रही। इसके बाद ही उसने
हाथ हटाकर वृ पर मोहक ितरछी िचतवन डालकर कहा- भु! तो इसम दोष ही या
है ? ी के बाहु ओं म या बल नह रहता?
स यान द- की है ।
शांित- और?
मेरी नह , दादा की है !
इसके बाद शा त की िनमाई के साथ अनेक तरह की बात होने लग । िफर िनमाई के
पित को घर लौट आते दे ख शा त उठकर कुटी म चली गयी।
कुटी म पहु ं चकर उसने अपना दरवाजा ब द कर िलया। इसके बाद चू हे की िजतनी
राख वह बटोर सकी, बटोर ली। बची हु ई राख के ऊपर जो अपने खाने के िलए उसने
चावल पका रखे थे, उ ह भी वहां से हटा िदया। इसके उपरा त बहु त दे र तक सोच म
पड़ी रही और िफर आप-ही-आप बोली- इतने िदन से जो सोच रखा था, आज वह
क ं गी। िजस आशा से इतने िदन तक नह िकया, आज सफल हु ई-सफल य ,
िन फल-िन फल! यह जीवन ही िन फल है । जो िकया है वही क ं गी एक बार म जो
ायि त है , वही सौ बार म भी है ।
(1)
(2)
दोन - क ं गा।
स यान द- िजतने िदन तक माता का उ ार न हो, उतने िदन तक गृहधम का पिर याग
िकये रहोगे?
दोन - क ं गा।
दोन - दग।
दोन - करगे।
दोन - नह ।
ै
दूसरे यि ने कहा- मै ा ण-कुमार हू ं ।
दी ा समा होने के बाद स यान दजी महे को एक बहु त ही एकांत थान म ले गये।
दोन के वहां बैठने के बाद स यान द ने कहना आर भ िकया-व स! तुमने तो यह
महा त हण िकया है , उससे मुझे जान पड़ता है िक भगवान स तान पर सदय ह।
तु हारे ारा माता का महत काय िस होगा। तुम यानपूवक मेरी बात सुनो! तु ह
जीवान द, भगवान के साथ वन-वन घूमकर यु करना नह पड़ेगा। तुम पदिच ह म
वापस लौट जाओ। अपने घर म रहकर ही तु ह स तान-धम का पालन करना होगा।
यह सुनकर महे िव मत और उदास हु ए, लेिकन कुछ बोले नह । चारी कहने
लगे- इस समय हम लोग के पास आ य नह है ,ऐसा थान नह है िक यिद बल सेना
आकर घेरकर आ मण करे तो हम लोग खा ािद के साथ फाटक ब द कर कुछ िदन
तक यु कर सक। हम लोग के पास गढ़ नही है । वहां अ ािलका भी तु हारी है , गांव
भी तु हारे अिधकार म ह-मेरी इ छा है िक अब वहां एक गढ़ तैयार हो। पिरखा ाचीर
ारा पदिच ह को घेर दे ने से-उसम खाई, ख दक आिद यु ोपयोगी िकले-ब दी कर दे ने
से और जगह-जगह तोप लगा दे ने से बहु त ही उ म गढ़ तैयार हो सकता है । तुम घर
जाकर रहो, मश: दो हजार संतान वहां जाकर उप थित ह गे। उन लोग के ारा खाई-
ख दक ाचीर आिद तैयार कराते रहो। वहां तु ह एक लौह-क बनवाना होगा; वही
संतान का अथ-भ डार होगा। म एक-एक कर सोने से भरे हु ए संदक
ू तु हारे पास
भेजवाऊंगा। तुम उसी धनरािश से यह सब तैयार कराओ। म परदे श जाता हू ं । वहां से
उ म कारीगर भेजूग
ं ा। उनके आ जाने पर तुम पदिच ह म कारखाना थािपत करो। वहां
तोप, गोले, बा द, ब दूक आिद िनम ण कराओ। इसीिलए मै तु ह घर जाने को कहता
हू ं ।..
शांित- य ?
शांित-अ छा तुम जाओ, मुझे यिद जगह न िमलेगी तो पेड़ के नीचे पड़ी रहू ं गी!
यह कहकर गोव न को िबदा कर शांित उसी कमरे म घुसी! कमरे म घुसकर शांित
जीवानंद का कृ णािजन िबछाकर और दीपक तेज कर उनकी रखी एक िकताब पढ़ने
लगा।
ै
शांित उपे ा के साथ बोली-शांित कौन है ? य , या तुम शांित नह हो?
शांित-सवनाश य ? आप भी तो दीि त है !
जीवानंद-तुम तो ी हो!
शांित- णी? है या नह ?
जीवानंद-थी तो ज र!
शांित-आपको िव ास है िक म आपकी ा णी हू ं ?
जीवानंद ने िफर गले म कपड़ा डालकर बड़े ही िवनीत भाव से कहा-अव य महाशयजी!
ै ै ै
अनाज पैदा करते है , पर पैसे नह िमलते। जम दार को वे लगान दे नह सकते। राजा के
जम दारी छीन लेने पर जम दार सव त होकर दिर हो गए। वसुमती के बहु - सिवनी
होने पर भी जनता कंगाल हो गयी। चोर-डाकुओं ने माथा उठाया और साधु पु ष ने घर
म मुंह िछपाया।
इसके बाद ये लोग गांव-गांव म अपने गु चर भेजने लगे। पर लोग जहां हदू होते थे,
कहते थे भाई! िव णु-पुजा करोगे! इसी तरह बीस-पचीस संतान िकसी मुसलमान बसती
म पहु ं च जाते और उनके घर म आग लगा दे ते थे; उनका सव व लूटकर हदू िव णु-
पुजक म उसे िवतिरत कर दे ते थे। लूट का भाग पाने पर लोग के स होने पर उ ह
संतानगण मंिदर म लाकर िव णुचरण पर शपथ िखलाकर संतान बना लेते थे। लोग ने
दे खा िक संतान होने म बड़ा लाभ है । िवशेषत: मुसलमान राज वकाल म उनकी
अराजकता और कुशासन से लोग ऊब उठे थे। हदू धम की िवलोपाव था के समय
अनेक हदू अपने दे श म हदु व- थापन के िलए य हो रहे थे। अत: िदन- ितिदन
संतान की सं या बढ़ने लगी। ितिदन सौ-सौ, मास म हजार-हजार की सं या म
ामीण लोग संतान बनाकर उनकी सं या वृि कर मुसलमान को शासन से िवरत
करने लगे। जीवानंद और भवानंद के पदप म णाम कर संतान की सं या अनंत
होने लगी। जहां वे लोग राजपु ष को पाते थे, अ छी तरह मर मत करते थे, मुसलमान
के गांव भ म कर राख बनाए जाने लगे। थानीय मुसलमान नवाब यह सुनकर दल-के-
दल सैिनक को इनके दमन के िलए भेजते थे; लेिकन उस समय तक संतान गण
दलब , श यु और महादं भशाली हो गए थे। उनके तेज के आगे मुसिलम फौज
अ सर हो न पाती थी; यिद आगे बढ़ती थी तो अिमत सं या म संतान-सै य उस पर
आ मण कर उनको धुनकी हु ई ई की तरह उड़ा दे ती थी। कभी कोई दल यिद परा त
होता या, तो तुरंत दूसरा बड़ा दल आकर उस मु लम फौज का सर उड़ा दे ता था और
मत होकर हिरनाम का जयघोष करता, नाचता गायब हो जाता था। उस समय
ल ध ित अंगरे ज कुल के ात: सूय वारे न हे ट स भारतवष के गवनर-जनरल थे।
कलक े म बैठे हु ए वे राजनीितक ृंखला की कि़डयां िगन रहे थे िक इसी से वे समूचे
भारत को बांध लगे। एक िदन भगवान ने भी सहासन पर बैठकर िन:संदेह कहा था-
तथा तु! लेिकन वह िदन अभी दूर था। आजकल तो संतान की िदगंत- यािपनी
हिर विन से वारे न हे ट स भी कांप उठे थे।
साहब- तुम बड़ी ीटे ड वूमेन है । टुमारी करे ज पर हाम खुशी है । टुम हमाड़ा घड़ म
चलो। टुमाड़ा आदमी लड़ाई म मड़ेगा,टब टुम या कड़ेगा?
इसके साथ ही सारं गी पर वही मधुर झनकार उठी- ए यौवन-जल तरं ग रोिघबे के?
हरे मुरारे ! हरे मुरारे !
इसके साथ ही पु ष क ठ के साथ िफर गाना हु आ-ए यौवन-जल तरं ग रोिघबे को?
जोरदार गांगज
े ल छूटे छे , रािखबे के ?
जहां बहु त ही घना जंगल है - भीतर या है , बाहर से यह िदखाई नह दे ता, शांित उसी के
अंदर वेश कर गयी थी। वह उ ह शाखा- प व म िछपी हु ई एक छोटी कुटी है ।
डािलय के ही ब धन और प का छाजन है । काठ की जमीन, उस पर िम ी पटी हु ई
ै ै
है । लता ार खोलकर उसी के अंदर शांित वेश कर गयी। वहां जीवानंद बैठे सारं गी
बजा रहे थे।
जीवानंद ने शांित को दे खकर पूछा- इतने िदन के बाद गंगा म वार का जल बढ़ा है
या?
शांित ने हं सते हु ए उ र िदया- वार का बढ़ा हु आ गंगा जल ही या ताल को डुबाता
है ?
जीवानंद ने दु:खी होकर कहा- दे खो, शांित! एक िदन तो त भंग होने के कारण ाण
उ सग क ं गा ही; जो पाप हु आ है , उसका ायि त करना ही पड़ेगा। अब तक ायि त
कर चुका होता, िक तु केवल तु हारे अनुरोध के कारण कर न सका। लेिकन अब
िकसी िदन यह भी स भव हो जाएगा, िवल ब नह है । उसी यु म मुझे ायि त करना
पड़ेगा। इस ाण का पिर याग करना ही होगा। मेरे मरने के िदन.....
क याणी-नह ?
भवान द-िफर या बात है ?
भवान द-बारं बार यह संवाद य पूछती हो? वो तो तु हारे िलए मृत समान है ।
भवान द-वह तु हारे िलये मृतव ह गे, यही समझकर तो तुमने िवष खाया था? बार-बार
यह बात य क याणी?
भवान द-अ छे है ।
क याणी-कहां है ? पदिच ह म?
भवान द-हां, वह ह!
क याणी- या कर रहे ह?
भवान द-जो कर रहे थे-दुग-िनम ण, अ -िनम ण; उ ह के ारा िन मत अ -श से
सह स तान सि त हो रहे ह। उ ह की कृपा से अब हम लोग को तोप, ब दूक,
गोला-गोली, बा द आिद की कमी नह है । स तान गण म वही े ह। वे हम लोग को
मह उपकार कर रहे है ; वे हम लोग के दािहने हाथ ह।
क याणी-म ाण- याग न करती, तो इतना होता! िजसकी छाती पर छे दही कलसी बंधी
हो, वह या कभी भवसागर पार कर सकता है ! िजसके पैर म लौह सीकड़ पड़े ह , वह
या कभी दौड़ सकता है ! य सं यासी! तुमने अपना ार जीवन य बचा रखा था?
भवान द- ी सहध मणी होती है , धम म सहायक होती है ।
भवान द-अ छा, न तो मने जो िकया है , उसे मुझे वापस कर दो। मने जो ाण-दान
िकया है , या तुम उसे वापस कर सकती हो।
भवान द-बहु त िदन से उसकी खबर नह लगी। जीवान द बहु त िदन से उधर गये ही
नह ।
भवान द- वामी
क याणी-उ ह तो इ छापूवक यागा है ।
भवान द-नह ।
क याणी-आपसे या उनकी मुलाकात नह होती?
भवान द-होती है ।
क याणी- या कहा?
क याणी-मेरी क या ला दो!
भवान द-अतल जल म।
भवान द-तु हारे िलए! दे खो, मनु य हो, ऋिष हो, िस हो, दे वता हो, सबका िच
अव य होता है । स तान-धम मेरा ाण है , लेिकन आज पहले-पहल करता हू ं , तुम ाण
से भी बढ़कर ाण हो। िजस िदन तु ह ाण-दान िकया, उसी िदन से म तु हारे पैर पर
ै
िगर गया। म नह जानता था िक संसार म ऐसा प भी है । ऐसी परािश जीवन म कभी
दे खूग
ं ा, यिद यह जानता तो कभी स तान-धम हण न करता। यह धम इस अि म
जलकर ार हो जाता है । धम जल गया है - ाण है । आज चार वष से ाण भी जल रहा
है , बचना नह चाहता। दाह! क याणी! दाह! वाला! लेिकन जलने वाला, ईधन अब
बच नह गया है । ाण जा रहा है । चार बरस से सह रहा हू ं ; अब सहा नह जाता। या
तुम मेरी होगी?
क याणी-याद रखूग
ं ी- म युत िवधम के प म याद रखूग
ं ी।
भाभी भवानंद को दे खकर अवाक होकर अपने हटे हु ए कपड़े ठीक करने लगी। इ छा
हु ई िक िसर का मोहन जूड़ा खोल डाले, लेिकन खोल न सकी- हाथ म कलछी थी। हाय
हाय! उस जूड़े के जंजाल म उसने एक बकुल पु प ख स रखा था। व ांचल से उसे
ढंकने की कोिशश की, लेिकन यह या? आज तो एक पांच हाथ का टुकड़ा मा पहन
रखा था। अत: अंग ढंक न सकी। वह पांच हाथ का कपड़ा ऊपर उठाती थी तो छाती
खुलती थी, छाती ढांकती थे तो पीठ खुलती थी, लाचार बेचारी परे शान हो गई। िकसी
तरह उसने एक कोना ख चकर कान के पास तक लाकर आधा चेहरा ढांकने का भाव
कर ित ा की िक दूसरी एक धोती खरीदूंगी और तब इसे कभी न पहनूंगी। इस तरह
य त होने के बाद बोली-कौन, गोसाई ठाकुर! आओ-आओ! लेिकन भाई! यह हम
राम-राम के साथ णाम य ?
गौरी-अ छा, आदर से कहते हो तो कह लो। णाम िकया ही है , तो खुश रहो! िफर तु ह
णाम करना ही चािहए, म उ म बड़ी जो हू ं । लेिकन आिखर हो तो गोसाई ठाकुर दे वता
ही!
भवानंद वामी से गौरी की उ काफी बड़ी-करीब पचीस वष बड़ी है । लेिकन चतुर
भवानंद ने उ र िदया-भाभी! अरे तु ह रसीली दे खकर भाभी कहता हू ं । नह तो िहसाब
जब िकया गया था, तो तुम मुझसे छ: वष छोटी िनकली थ । या याद नह है ? हम लोग
ै ै
म सब तरह के वै णव ह न। इ छा है िक एक मठधारी चारी के साथ तु हारी सगाई
करा दूं, यही कहने आया हू ं ।?
गौरी-यह कैसी बात? अरे राम-राम! ऐसी बात भला कही जाती? म ठहरी िवधवा औरत!
भवानंद-तो सगाई न होगी?
गौरी-तो भाई! जैसा समझो वैसा करो। तुम लोग पंिडत आदमी ठहरे । हम लोग तो और
ह, या समझ? तो कब होगी सगाई?
इस पर गौरी भात-दाल छोड़कर हाथ धोकर छमछम करती हु ई सीि़ढयां तोड़ती ऊपर
चढ़ने लगी। एक कमरे म जमीन पर चटाई िबछाकर एक अपूव सु दरी बैठी हु ई हँ ◌ै।
लेिकन स दय पर एक घोर छाया है । म या ह के समय कलकलवािहनी स सिलला,
िवपुल-जल- ोतवती नदी के ऊपर मेघ आने जैसी यह कैसी छाया है !
नदी- दय पर तरं गे उछल रही ह, तटवत कुसुमवृ वायु के झ के म म त झूम रहे ह,
पु प-भार से दबे जा रहे ह, उनसे अ ािलका- ेणी सुशोिभत है । तरणी- ेणी के ताड़न से
जल आंदोिलत हो रहा है । यह भी वैसे ही पहले की तरह चा , िचकने, चंचल, गुथ
ं े
केश, पहले का वैसा ही तेजपुज
ं ललाट और उस पर पतली तूिलका से खची हु ई भ ह,
वही पहले जैसे चंचल मृग-नयन- लेिकन वैसे कटा मय नह , वैसी लोलता नह , कुछ
न ! अधर पर वही दाि़डम लािलमा, वैसे ही सुधारसपूण, वैसे ही वनलता-दु ा य
कोमलतायु बाहु । लेिकन आज वह दीि नह , वह उ”वलता नह , वह खरता नह ,
वह चंचलता नह , वह रस नह है -शायद वह यौवन भी नह है । केवल सौ दय और
माधुयमा , नयी बात आ गयी है -गा भीय। इसे पहले दे खने से जान पड़ता था िक
ै ै
मनु य-लोक की अतुलनीय सु दरी है अब दे खने से जान पड़ता है िक कोई वग की
शाप त दे वी है । उसके चार तरफ दो-चार पु तक पड़ी हु ई ह। दीवार पर खूट
ं ी के
सहारे तुलसी की माला लटक रही है । दीवार पर जग ाथ, बलराम, सुभ ा,
कालीयदमन, गोवधन-धारण आिद के िच टं गे हु ए ह। वे िच उसके वयं बनाये हु ए
ह, उनके नीचे िलखा हु आ है -िच या िविच ! ऐसे ही कमरे म भवान द ने वेश िकया।
भवान द-बहु त िदन से सोच रहा था-पूछूंगा, लेिकन पूछ नह सका। िकसने तु हारे
जीवन को िवषमय बना िदया था?
भावान द-व दे -
वह आदमी बोला-मातर ।
धीरानंद-आपकी ही खोज म।
भवान द- य ?
धीरानंद- आप नगर म गए थे
भवानंद- हाँ।
धीरानंद- है ! खाली हाथ िकसकी मजाल है िक तु हारे सामने यह बात करे । यिद यु की
ही तु हारी इ छा है तो वही सही, पर संतान-संतान म िवरोध िनिष है िक तु आ मह या
के िलए िकसी के साथ भी यु करने म हज नह । जो बात कहने के िलए म तु ह खोज
रहा था, या वह सब सुन लेने पर यु करना अ छा न होगा?
भवानंद- हज य है कहो!
ै
धीरानंद- वह भी कहने की इ छा है । तलवार न धंसना, बताता हू ं । इस संतान-धम ने
मेरी हि य को जजर कर िदया है । म इसका पिर याग कर ी-पु का मुंह दे खकर िदन
िबताने के िलए उतावला हो रहा हू ं । म इस संतान-धम का पिर याग क ं गा। लेिकन
या मेरे िलए घर जाकर बैठने का अवसर है । िव ोही के प म अनेक लोग मुझे
पहचानते ह। घर जाकर बैठते ही शायद राजपु ष सर उतार ले जाएंग।े अथवा स तान
लोग ही िव ासघात समझकर मार डालगे। इसीिलए तु ह भी अपना साथी बना लेना
चाहता है । भवान द- य , मुझे य ?
धीरान द- यही असली बात है । स तान गण तु हारे अधीन ह। स यान द अभी यहां ह
नह ; इनके नायक हो तुम। इस सेना को लेकर यु करो, तु हारी िवजय होगी, इसका
मुझे िव ास है । यु म िवजय ा कर य नह तुम अपने नाम से एक रा य थािपत
करते? सेना तो तु हारी आ ाकािरणी है । तुम राजा हो, क याणी तु हारी म दोदरी हो, म
भी तु हारा अनुचर बनकर ी-पु का मुंह दे खकर िदन िबताऊं और आशीव द क ं ।
स तान-धम को अलग जल म डुबो दो!
बात समा होते-न-होते धीरान द दम भरकर भागे। भगवान ने पीछा न िकया। भगवान
कुछ अनमने से थे; उ ह ने अब दे खा, धीरान द का कह पता न था।
क पनी की उस समय अनेक कोिठयां थी। ऐसी ही एक कोठी िशव ाम म थी। डांनीवथ
साहब इस कोठी के अ य थे। उस समय रे शम-कोठी की र ा का बहु त ही अ छा
ब ध हु आ करता था।
डॉनीवथ ने इसी वजह से िकसी तरह अपनी ाणर ा की। लेिकन अपनी ी-क या को
कलक ा भेज दे ने के िलए उ ह बा य होना पड़ा था; कारण-डॉनीवथ स तान ारा बहु त
ही पीि़डत हु ए थे। उसी समय टॅ ामस साहब थोड़ी फौज लेकर उस अंचल म पहु ं च गये।
उस समय िकतने ही डोम,चमार,लंगड़े-लूले भी पराया धन लूटने के िलए उ सािहत हो
गये थे। उन सब ने जाकर क ान टॉमस की रसद पर आ मण िकया। क ान साहब
बहु त अिधक मा ा म खा -साम ी- घी, मैदा, सूजी, चावल गाि़डय पर लदवाकर ले
आ रहे थे। इसे दे खकर डोम-चमार का दल अपना लोभ संवरण कर न सका- उन
सबने जाकर गाड़ी पर आ मण िकया; लेिकन िसपािहय की दो-चार संगीन खाकर सब
भागे।
क ान टॉमस ने उसी समय कलक े िरपोट भेजी िक आज कुल 157 (एक सौ संतावन
)िसपािहय को लेकर मने 14730 िव ोिहय को परा त िकया है । िव ोिहय के 2153
(इ ीस सौ ितरे पन) यि मरे , 1223 घायल हु ए और 7 यि ब दी हु ए। केवल
अ तम सं या स य थी। क ान टॉमस ने ि तीय ेनहम या रसवाक का यु जीता- यह
सोचते हु ए वे अपनी मूछ पर ताव दे ते हु ए इधर-उधर ठाट से घूमने लगे। उ ह ने
डॉनीवथ से कहा- अब या डरते हो? बस, िव ोिहय का दमन हो गया! अब अपनी
ी-क या का कलक े से बुला लो।
इस पर डॉनीवथ ने उ र िदया- ऐसा ही होगा! आप दस िदन यहां ठहिरये, दे श को जरा
और शांत होने दीिजये, िफर बुला लगे।
साहब बहादुर िशकार के बड़े शौकीन थे। वे कभी-कभी िशव ाम के िनकट के जंगल म
िशकार खेलने िनकल जाते थे। एक िदन डॉनीवथ के साथ अनेक िशकािरय को लेकर
टॉमस िशकार के िलए िनकल पड़े। कहना ही या है ! टॉमस बड़े ही साहसी यि ह,
बल-वीय म अंगरे ज म अतुलनीय है । इस जंगल म शेर, भालू आिद हसक ज तुओं
का बाहु य है । बहु त दूर िनकल जानेपर साथ के िशकािरय ने आगे बढ़ने से इनकार
कर िदया िक िनिवड़ जंगल म हम न घुसगे; वे बोले- अब भीतर राह नह है , आगे जा न
सकगे। डानीवथ भी ऐसे भयानक शेर के सामने पड़ चुके थे िक वे भी घुसने से मुकर
गये। सब लोग लौटना चाहते थे। क ान टॉमस ने कहा- तुम लोग लौट जाओ, म न
लौटूंगा। यह कहकर क ान साहब ने भयानक जंगल म वेश िकया। व तुत: उस
जंगल म राह न थी। घोड़ा आगे बढ़ न सकता था: लेिकन साहब ने अपना घोड़ा भी छोड़
िदया और क धे पर ब दूक रखकर पांव पैदल आगे बढ़े । घने जंगल म वेश कर इधर
उधर शेर की खोज करने लगे; पर शेर कह न था। िफर दे खा या- एक बड़े पेड़ के
नीचे, िखले पु प की लता अपने शरीर से लपेटे हु ए कौन बैठा हु आ था? एक नवीन
सं यासी बैठा अपने प से जंगल म उजाला िकये हु ए है । फुिटत पु प मान उस शरीर
का सािन य पाकर कुछ अिधक सुग धत हो गये है । क ान टॉमस को पहले तो िव मय
हु आ, िफर ोध आया। क ान साहब थोड़ी बहु त िह दी बोल लेते थे,बोले-टुम कौन?
सं यासी ने कहा- म सं यासी हू ं ।
सं यासी- वह या?
क ान-हम टुमको गुली करके माड़ेगा।
स यासी-मारो।
आन दमठ भाग-8
मठ म जाकर और िफर भवान द जंगल म घुस गए। उस जंगल म एक जगह ाचीन
अ ािलका का भ ावशेष है । उस ढूहे पर घास-पात आिद जम आई है । वहां असं य
सप का वास है । ढूहे की जमीन अपे ाकृत साफ और ऊंची थी। भवान द उसी पर
जाकर बैठे और चता म म हो गए।
भयानक अंधेरी रात थी। उस पर वह जंगल अित िव तृत, एकदम सूना जंगल वृ -
लताओं से घना और दुभ , गमनागमन म दु कर है । आवाज आती भी है तो भूखे शेर
की हु ं कार, अ या य पशुओं के भागने या बोलने का श द, कभी पि य के पर
फटफटाने की आवाज, तो कभी भागते हु ए पशुओं के पैर की खरखराहट। ऐसे िनजन
थान म उस ढूहे पर अकेले भगवान बैठे हु ए ह। उनके िलए इस समय पृ वी है ही नह ,
या केवल उपादान मा है । भवान द िन ल थे, ास- ास अित सू म, अपने म ही
िवलीन, माथे पर हाथ रखे बैठे थे। मन म सोचते थे-जोहोना होना है , अव य होगा।
भागीरथी की जल-तरं ग के बीच ु हाथी की तरह इंि य- ोत म डूब गया, यही दु:ख
है । एक ण म इंि य का वंस हो सकता है , शरीर-िनपात कर दे ने से। म इसी इंि य के
वश म हो गया? मेरा मरना ही अ छा है । धम यागी! िछ :! िछ :! म अव य म ं गा। इसी
समय माथे पर पेचक ने भयानक श द िकया। भवान द अब खुलकर बड़बड़ाने लगे-
यह कैसा श द? कान म ऐसा सुनाई पड़ा, मानो भय का आ ान हो। म नह जानता, मुझे
कौन बुलाता-यह िकसका श द है ? िकसने राह बतायी, िकसने मरने के िलए कहा?
पु यमय अन त! तुम श द-श दमय हो; लेिकन तु हारे श द का अथ तो म समझ नह
पाता हू ं ।
इसी समय भीषण जंगल म से मधुर साथ ही गंभीर, ेम भरा मनु य-क सुनाई िदया-
आशीव द दे ता हू ं , धम म तु हारी मित अव य होगी!
रात बीतने पर जब जंगल म भात का सूय उदय हु आ-जंगल म भात का सूय उदय
हु आ-जंगल म प की हिरयाली जब चमक उठी, तब भवान द मठ म वापस आ गए।
उनके कान म आवाज पहु ं ची- हरे मुरारे ! हरे मुरारे ! पहचान गए िक यह स यान द की
आवाज है । समझ गए िक भु वापस आ गए!
जीवान द के कुटी से बाहर चले जाने पर शा त दे वी िफर सारं गी लेकर मृदु वर म गाने
लगी- लयपयोिधजले धृतवानिस वेदं
जय जगदीश हरे !
सद य दय द शत पशुघातम,
केशवधृत क क शरीर
जय जगदीश हरे ।
कु कुशल णतेषु।
चारी ने कहा-दे वी! म कभी हारा न था, आज तुमसे तक म हार मानता है । मां ! म
तु हारा पु ह-संतान पर ह े रखो। जीवान द के ाण की र ा करो। इसी से मेरा
काय ार होगा।
ै
बढ़कर मेरे िलए पित का धम है । म अपने धम को िजस िदन चाहू ं जलांजिल दे सकती
हू ं , लेिकन या वामी के धम को जलांजिल दे सकती हू ं ? महाराज! तु हारी आ ा पर
मरना होगा तो मेरे वामी मरगे, म मना नह कर सकती।
इसके बाद तो दस हजार स तान सै य व दे मातर गाती हु ई, अपने भाले आगे कर तीर
की तरह तापा पर जा पड़ी। य िप वे लोग गोले और गोिलय की बौछार से त-िव त
हो चुके थे, लेिकन पलटे नह , भागे नह घनघोर यु शु हो गया। लेिकन इसी समय
रण-कुशल टॉमस की आ ा से एक सेना ब दूक पर संगीन चढ़ाकर पीछे से िनकलकर
संतान के दािहने बाजू पर िगरी। अब जीवान द ने कहा-भवान द! तु हारी ही बात ठीक
थी। अब स तान-सै य को नाश करने की ज रत नह लौटाओ इ ह।
भवान द -अब कैसे लौट सकते है ? अब तो जो पीछे पलटे गा, वही मारा जाएगा।
भवान द -बाएं घूमकर कहां जाओगे? बाएं नदी है - वष से भरी हु ई नदी। इधर गोले से
बचोगे, तो नदी म डूबकर मरोगे।
ै ै
जीवान द -मुझे याद है , नदी पर एक पुल है ।
उनम अपूव उ साह था। घोरतर यु होने लगा। गोल दाज सेना उनके िवनाश म और
तोप-र ा म संल हु ई। सैकड़ स तान कट-कटकर िगरने लगे। लेिकन येक स तान
अपना बदला लेकर मरता था।
इधर अवसर पाकर जीवान द अविश सेना के साथ बाएं मुड़कर जंगल के िकनारे से
आगे बढ़े । क ान टॉमस के सहकारी ले टनट वाटसन ने दे खा िक स तान का बहु त
बड़ा दल भागने की चे ा म बाएं घूमकर जाना चाहता है । इस पर उ ह ने दे शी िसपािहय
की सेना लेकर उनका पीछा िकया।
जीवान द की सेना का उ साह टूट चुका था, वह भागने को तैयार थी। लेिकन जीवान द
और धीरानंद ने उ ह समझाकर िकसी तरह ठहराया। पर तु सब सेना को जीवान द और
धीरानंद पुल की तरफ ले गये। वहां पहु ं चते ही एक तरफ से हे नरी ने और दूसरी तरफ से
वाटसन ने उ ह घेर िलया। अब िसवा यु के पिर ाण न था। इधर सेना भ ो साह थी।
इसी समय टॉमस की तोप पास आ पहु ं ची। अब स तान का दल िछ -िभ होने लगा।
उ ह ाण-र ा की कोई आशा न रही। िजसे िजधर राह िमली, भागने लगा। जीवान द
और धीरान द ने उ ह बहु त संयत करने की चे ा की, लेिकन कोई फल न हु आ, संतान
का दल िततर-िबतर होने लगा। इसी समय ऊंची आवाज म सुनाई िदया - पुल पर
जाओ, पुल पर जाओ! उस पार चले जाओ, अ यथा नदी म डूब मरोगे। अंगरे ज की
सेना की तरफ मुंह िकये हु ए पुल पर चले जाओ!
भवानंद के यह कहते ही जय नाद उठा -व दे मातरम! और उसी समय तीन तलवार पुन:
िसर पर घूम उठ । तोपची तमाशा ही दे खते रह गये। हे नरे और वासटन दूर खड़े
अहं कार और स ता म इसे िखलवाड़ और मूखता समझते रहे । िक तु इसी समय रण
का पास पलट गया। पलक मारते ही तीन स तान-नायक तोपिचय पर जा पड़े।
तोपिचय के िसर धड़ से कब जुदा हु ए कुछ पता नह । उनकी मोह-िन टूटी तब, जब
िबजली की तरह तलवार चमकाते हु ए भवान द वयं तोप पर खड़े हो गये और बोल
-व दे मातर ! सह कंठ से िनकला -व दे मातर ! उसी समय जीवान द ने तोप का
मुंह अंगरे जी सेना की तरफ कर िदया और तोप ित- ण आग उगलने लगी। अब
भवानंद ने कहा - जीवानंद भाई! यह िणक जीत है , अब तुम संतान को लेकर
सकुशल पार चले जाओ। केवल बीस तोप भरनेवाले और मृ यु का वरण करनेवाले
संतान को तोप की र ा के िलए छोड़ दो।
ऐसा ही हु आ। बीस संतान तोप के इद-िगद आ डटे । शेष समूची सेना जीवान द और
धीरान द के साथ पार पहु ं चने लगी। उस समय भवानंद क गजराज हो रहे थे। पुल की
संकरी जगह पर तोप लगाकर वे लगे गोरी वािहनी का नाश करने। दल-के-दल तोप
छीनने के िलए आगे बढ़ते थे और मरकर ढेर बन जाते थे। उस समय वे बीस युवक
अजेय थे। ये लोग शी ता इसिलए कर रहे थे िक अंगरे ज की शेष तोप पहु ं चने के पहले
तक ही यह सारी अजेय लीला है । लेिकन भगवान को तो कुछ और ही करना था।
एकाएक जंगल के अ दर से बहु त-सी तोप का गजन सुनाई पड़ने लगा। दोन ही दल
अवाक-िर प द होकर दे खने लगे िक ये िकसकी तोप ह?
इतना कहते ही जीवानंद, धीरानंद और लगभग पचीस जवान आ पहु ं च।े घोर यु हो
रहा था। तलवार रही थ । धीरानंद, भवानंद के पास थे। धीरानंद ने कहा-भवानंद! य ?
ै
या मरने का िकसी का ठे का है या? यह कहते हु ए धीरानंद ने एक गोरे को आहत
िकया।
भवानंद-यह बात नह ? लेिकन मरने पर तो तुम ी-पु का मुंह दे खकर िदन िबता न
पाओगे!
धीरानंद ने उनकी र ा करते हु ए कहा-क याणी के साथ तु हारी िजतनी बात हु ई थी,सब
उ ह ने वयं अपने कान से सुनी।
भवानंद-यह कैसे?
धीरानंद-वे वयं वहां उप थत थे। सावधान बचो!(भवानंद ने एक गोरे ारा आहत
होकर उसे आहत िकया) वे क याणी को गीता पढ़ा रहे थे, उसी समय तुम आ गए।
सावधान!(लेिकन इसी समय भवानंद का दािहना हाथ भी कट गया।)
िविदत िविहवमखेदम
जय जगदीश हरे ।
संतान ! तुम लोग से आज मुझे कुछ िवशेष बात कहनी है । टॉमस नाम के एक िवधम
दुराचारी ने अनेक संतान का नाश िकया है । आज रात हम लोग उसका ससै य वध
करगे! जगदी र की ऐसी ही आ ा है । तुम लोग या चाहते हो?
भयानक हष विन से जंगल िवदीण उठा- अभी मारगे! बताओ, चलो, उन सबको िदखा
दो। मारो! मारो! शतओं का नाश करो? इसी तरह के श द दूर के पहाड़ से टकराकर
ित विनत होने लगे। इस पर स यान द िफर कहने लगे- उसके िलए हम हम लोग को
जरा धैय धारण करना पड़ेगा। शतओं के पास तोप है ; िबना तोप के उनके साथ यु हो
नह सकता। िवशेषत: वे सब वीर-जाित के ह। हमारे पदिच ह दुग से 17 तोप आ रही
ह। तोप के पहु ं चते ही हम लोग यु आरं भ करगे। यह दे खो, भात हु आ चाहता है ।
मुहूत के 4 बजते ही..लेिकन यह या--
गु म-गु म-गुम! अक मा चार तरफ िवशाल जंगल म तोप की आवाज होने लगी।
यह तोप अंगरे ज की थी। जाल म पड़ी हु ई मछली की तरह क ान टॉमस ने स तान को
इस जंगल म घेरकर वध करने का उ ोग िकया था।
जीवान द -दोन ह?
स यान द - िकतने ह?
जीवान द - गोरे ह।
अब स यान द ने कहा - तुम पेड़ से उतर आओ। जीवान द पेड़ से उतर आये।
जय जगदीश हरे !
जीवान द ने मुड़कर दे खा, कहने वाले भवान द थे। जीवान द ने पूछा - तब या करने
को कहते हो?
भवान द -वन के अ दर रहकर वृ का आ य लेकर अपनी ाण-र ा कर। तोप के
सामने खुले मैदान म िबना तोप की स तानसेना एक ण भी िटक न सकेगी। लेिकन
जंगल म पेड़ की आड़ लेकर हम लोग बहु त दे र तक यु कर सकते ह।
ै
जीवान द -तुम ठीक कहते हो! लेिकन भु की आ ा है िक तोप छीन जाए। अत: हम
लोग तोप छीनके ही जाएंग।े
भवान द - िकसकी िह मत है िक तोप छीन सके। लेिकन यिद जाना ही है , तो तुम ठहरो,
मै जाता हू ं ।
जीवान द - यह न होगा, भवान द! आज मेरे मरने का िदन है ।
भवान द ने चुप होकर िफर कहा --मरना होगा तो आज ही मरगे, िजस िदन ज रत
होगी,उसी िदन मरगे। मृ यु के िलए मुझे समय-काल की ज रत नह ।
जीवान द - तब आओ!
सबके चले जाने पर स यानंदन भूिम पर णत होकर भगवान की वंदना और याद करने
लगे। पौ फट रही थी। इसी समय िकसी ने आकर उनके म तक का पश कर कहा- म
आ गया हू ं ।
चारी ने उठकर और चिकत य भाव से कहा- आप आ गए या!
उस रात को हिर विन के तुमुल नाद से दे श भूिम पिरपूण हो गई। संतान के दल-के-
दल उस रात य -त वंदेमातरम और जय जगदीश हरे के गीत गाते हु ए घूमते रहे । कोई
शत-सेना का श तो कोई व लूटने लगा। कोई मृत दे ह के मुंह पर पदाघात करने
लगा, तो कोई दूसरी तरह का उप व करने लगा, कोई गांव की तरफ तो कोई नगर की
तरफ पहु ं चकर राहगीर और गृह थ को पकड़कर कहने लगा- वंदेमातरम कहो, नह
तो मार डालूंगा। कोई मैदा-चीनी की दुकान लूट रहा था, तो कोई वाल के घर पहु ं चकर
हांडी भर दूध ही छीनकर पीता था। कोई कहता- हम लोग ज के गोप आ पहु ं च,े
गोिपयां कहां ह? उस रात म गांव-गांव म, नगर-नगर म महाकोलाहल मच गया। सभी
िच ा रहे थे- मुसलमान हार गये; दे श हम लोग का हो गया। भाइय ! हिर-हिर कहो!-
गांव म मुसलमान िदखाई पड़ते ही लोग खदे ड़कर मारते थे। बहु तेरे लोग दलब होकर
मुसलमान की ब ती म पहु ं चकर घर म आग लगाने और माल लूटने लगे। अनेक
मुसलमान ढाढ़ी मुंढ़वाकर दे ह म भ मी रमाकर राम-राम जपने लगे। पूछने पर कहते-
हम हदू ह।
ै
िकया, जब हदुओं की फतह हु ई। सब झूठ है ! इस तरह कोई रोता हु आ, तो कोई हं सता
हु आ बड़ी उ कंठा से रात िबताने लगा।
गहरी रात को क याणी श या से उठी और उसने पहले िखड़की खोलकर राह दे खी। राह
सूनी पड़ी हु ई थी-कोई राह म न था। तब उसने धीरे से दरवाजा खोलकर गौरी दे वी का
घर यागा। शाही राह पर आकर उसने मन-ही-मन भगवान को मरण कर कहा- दे व!
आज पदिच ह का दशन करा दो।
क याणी नगर के िकनारे पहु ं ची। पहरे वाला ने आवाज दी- कौन जाता है ? क याणी ने
डरकर उ र िदया- म औरत हू ं ! पहरे दार ने कहा- जाने का हु म नह है । वह आवाज
जमादार के कान म पहु ं ची। उसने कहा- जाने की मनाही नह है ; जाने की मनाही नह है ।
यह सुनकर पहरे वाले ने कहा- जाने की मनाही नह है , माई! जाओ, लेिकन आज रात
को बड़ी आफत है । कौन जाने माई! िकसी आफत म पड़ जाओ- डाकुओं के हाथ म
पड़ जाओ, म नह जानता? आज तो न जाना ही अ छा है ।
एडवड भी प ा अंगरे ज जेनरल था। छोटी घाटी म उसके आदमी थे-शी ही उ ह खबर
िमली िक उस वै णवी ने लडले को घोड़े से िगराकर वयं रा ता िलया। सुनते ही
ै
एडवड ने हु म िदया-टट उखाड़ो-उस शैतान का पीछा करो!
खटाखट त बुओं के खूटं पर हथौड़े पड़ने लगे। मेघरिचत अमरावती की तरह सवार
घोड़ पर और पदाितक पैदल चलने को तैयार हो गए। हदू, मुसलमान, म ासी, गोरे ,
बंदक
ू कंधे पर िलए मच-मच चल पड़े। ताप ख र ारा ख ची जाकर घरर-घरर करती
चल पड़ ।
उसी समय पड़ाव डाल दे ना ही उिचत जान पड़ा। संतान का िशिवर कैसा? पेड़ के तन
से लगकर छाया म सब िचत-पट सो रहे । हिरचरणामृत पान कर डकार ली उ ह ने। जो
कुछ भूख बाकी थी, व म वै णवी के अधर-रस का पान कर उसे पूरा करने लगे।
जहां पड़ाव पड़ा था, वहां बहु त सुंदर आम-कानन के पास ही एक बड़ा टीला था। मह
ने सोचा िक इसी टीले पर यिद पड़ाव पड़े तो िकतना सुखद हो! मन म हु आ िक टीले को
दे ख लेना चािहए।
यह सोचकर मह घोड़े पर चढ़कर धीरे -धीरे टीले पर चड़ने लगे। अभी तक टीले पर
आधा ही चढ़े थे, िक उनकी संतान-सेना म एक युवक वै णव आ पहु ं चा। उसने संतान
से कहा-चलो, टीले पर चढ़ चल। उसके समीप जो सैिनक खड़े थे, उ ह ने पूछा- य ?
िफर ित विन हु ई-व दे मातर - धीरे -धीरे संतान-सेना पवत िशखर पर चढ़ने लगी। कतु
उन लोग ने सहसा दे खा िक मह बड़ी ही तेजी से उतरे चले आ रहे ह। उतरते हु ए मह
ने महािनदान िकया। दे खते-दे खते पवत-िशखर पर नीलाकाश म अंगरे ज की तोप आ
लग । उ वर म वै णवी सेना ने गाया-
तुमी िव ा तुमी भि ,
पदिच ह के नये दुग म आज बड़े सुख से महे , क याणी, जीवानंद, शांित िनमाई के
पित और सुकुमारी - सब एक ह। सब आज सुख म िवभोर ह-आनंदम ह। शांित
िजस रात क याणी को ले आयी, उसी रात उसने कह िदया था िक वह अपने पित महे
से यह न कहे , िक नीवनानंद जीवानंद की प नी है । एक िदन क याणी ने उसे अंत:पुर म
बुला भेजा! नवीनानंद अत:पुर म घुस गया। उसने हिरय की एक न सुनी।
क याणी -पु ष-वेश म िकतने िदन तक रहे गी? न मुलाकात हो पाती है , न बात होती
ह। मेरे पित के सामने तु ह कट होना पड़ेगा।
दोन म इसी तरह बात होने लग । इधर जो हरी नवीनानंद को जोर दे कर अ त:पुर म
जाने से मना कर रहे थे, उ ह ने महे से जाकर कहा िक नवीनानंद जबरद ती, मना
करने पर भी अ दर चले गये ह। कौतूहलवश महे भी अ त:पुर म गये। महे ने सीधे
क याणी के कमरे म जाकर दे खा िक नवीनानंद कमरे म खड़े ह और क याणी उनके
शरीर के बाघ बर की गांठ खोल रही है । महे बड़े अच भे म आए- बहु त ही नाराज
हु ए।
नवीनानंद ने उ ह दे ख हं सकर कहा- य , गो वामी जी! स तान पर अिव ास?
नवीनानंद ने आंखे िदखाकर कहा-क याणी या भवानंद के शरीर पर हाथ रखकर बाघ
की खाल खोलती थी? यह कहते हु ए शांित ने क याणी का हाथ दबाकर पकड़ िलया
बाघ बर खोलने न िदया।
नवीनानंद -तो इस समय जाइए! क याणी के साथ मुझे भी कुछ बात करनी ह। आप
चले जाइए, म पहले बात क ं गा। आपका तो घर है , आप जब चाह आकर बात कर
सकते ह। म तो बड़े क से आ पाया हू ं ।
महे बेवकूफ बन गये। वे कुछ भी समझा न पाते थे- यह सब बात तो अपरािधय जैसी
नह है । क याणी का भाव भी िविच है । वह भी तो अिव ािसनी की तरह भागी नह ,
न डरी, न लि त ही हु ई, वर मृदु भाव से मु करा रही है । वही क याणी, िजसने पेड़ के
नीचे सहज ही िवष खा िलया- वह या अपरािधनी हो सकती है ?.. मह के मन म यही
तक-िवतक हो रहा था। इसी समय शांित ने मह की यह दुरव था दे ख, कुछ मु कराकर
क याणी की तरफ एक िवलोल कटा पात िकया। सहसा अंधकार िमट गया- भला
ऐसा कटा पात भी कभी पु ष कर सकते है । समझ गए िक नवीनानंद कोई ी है ।
िफर भी शक था। उ ह ने साहस बटोरा और आगे बढ़कर एक झटके म नवीनानंद की
ढाढ़ी ख च ली- ढाढ़ी-मूंछ हाथ म आ गई। इसी समय अवसर पाकर क याणी ने
बाघ बर की गांठ खोल दी पकड़ी जाकर शांित शरमा कर िसर नीचा कर खड़ी रह गई।
शांित- जानते ह।
मह खड़े यह दे ख रहे थे। सहसा पवत-िशखर पर संतान की पताका उड़ती िदखाई दी।
वहां स यानंद महा भु, वयं च पािण िव णु की तरह बाएं हाथ म वजा िलए हु ए और
दािहने म र से लाल तलवार िलए खड़े थे। वह दे खते ही संतान म अपूव बल आ
गया-हरे मुरारे ! का गगन म वह जयनाद हु आ िक व तुत: वसुंधरा कांपती हु ई नजर
आई।
इस समय अं ज
े ी सेना दोन दल के बीच म थी- ऊपर भु स यानंद ने तोप पर
अिधकार कर िलया था, नीचे से संतान-सेना पलटकर चढ़ती हु ई मार रही थी।
शांित िजस समय जमीन पर िगरकर रो रही थी, उसी समय उसे एक मधुर क ण श द
सुनाई पड़ा-उठो, बेटी!, रोओ नह । शांित ने दे खा, चांदनी रात म सामने एक
जटाजूटधारी िवराट महापु ष खड़े ह।
उस रात राह म दल-के-दल घूम रहे थे। कोई मार-मार कहता है , तो कोई भागो-भागो
िच ाता है । कोई हं सता है , कोई रोता है , कोई राह म िकसी को दे खकर पकड़ लेता है ।
क याणी बड़ी िवपदा म पड़ी। राह मालूम नह , और िफर िकसी से पूछ भी नह सकती,
केवल िछपती हु ई राह चलने लगी। िछपते-िछपते एक िव ोही दल के हाथ म पड़ गई। वे
लोग िच ाकर पकड़ने दौड़े। कलुयाणी ाण लेकर जंगल के अंदर घुसकर भागी। वे
सब शोर मचाते हु ए पकड़ने के िलए पीछे दौड़े। आिखर एक ने आंचल पकड़ िलया,
बोला- वाह री, चं मुखी! इसी समय एक और आदमी अक मात पहु ं च गया और
अ याचारी को उसने एक लाठी जमायी; वह आहत होकर भागा। पिर ाणकत का वेश
सं यािसय का था और उसकी छाती ढंकी हु ई थी! उसने क याणी से कहा- तुम भय न
करो। मेरे साथ आओ- कहां जाओगी?
क याणी-पदिच ।
ै
शा त बोली-म चारी हू ं , स तान -सेना का अिधनायक -घोरतर वीर पु ष! मै सब
जानता हू ं आज राह म िसपािहय का बहु त हु ड़दं ग ऊधम है , अत: आज तुम पदिच ह जा
न सकोगी!
क याणी ने ऐसी बुि मती ी की सहायता पाकर मानो हाथ बढ़ाकर वग पा िलया ।
बोली- तुम जहां कहोगी, वह चलूंगी।
मश: एक पहर िदन चढ़ा। वहां शांित और जीवानंद आये। क याणी ने शांित से कहा-
मै आप लोग के हाथ िबना मू य के िबक चुकी हू ं । मेरी क या का पता लगाकर मेरे उस
उपकार को पूण कीिजए।
ै
शांित ने जीवानंद के चेहरे की तरफ दे खकर कहा- मै अब सोऊं गा। आठ पहर बीते, म
बैठा तक नह । आिखर म भी पु ष हू ं !
क याणी जरा मु कुरा दी। जीवानंद ने महे की तरफ दे खकर कहा- यह भार मेरे ऊपर
रहा। आप लोग पदिच ह की या ा कीिजए- वह आपकी क या पहु ं चा दूंगा!
जीवानंद भैरवीपुर-िनवासी बिहन के पास से लड़की लाने चले। पर काय सरल न था!
पहले तो िनमाई बात ही खा गई। इधर-उधर ताका, िफर एक-बारगी उसका मुंह फूलकर
कु पा हो गया! इसके बाद वह रो पड़ी, बोली-लड़की न दूंगी।
िनमाई अपनी उ टी हथेिलय से आंसू पोछने लगी। जीवानंद ने कहा- अरे बहन! तू रोती
य ? ऐसा दूर भी तो नह है - न हो, बीच-बीच म उन लोग के घर जाकर लड़की को
दे ख आया करना।
माघी पू णमा सामने उप थत थी। उनके िशिवर के िनकट ही नदी तट पर बहु त बड़ा
मेला लगेगा। इस बार मेले की बड़ी तैयारी है । मेले म सहज ही कोई एक लाख आदमी
एक होते ह। इस बार वै णव राजा हु ए है - शासक हु ए ह, अत: वै णव ने इस बार मेले
म आने का संक प कर िलया है । पदिच ह के र क भी अव य ही मेले म पहु ं चगे,
इसकी क पना मेजर ने कर ली। उ ह ने िन य िकया िक पदिच ह पर उसी समय
आ मण कर अिधकार करना चािहए।
यह सोचकर मेजर सने अफवाह उड़ा दी िक वे मेले पर आ मण करगे, उसी िदन वहां
तमाम वै णव स तान इक े रहगे, अत: एक बार म ही उनका समूल िव वंस होगा- वे
वै णव का मेला होने न दगे।
वे लोग ज दी-ज दी चले। एक जगह रा ता टीले के ऊपर से गया था। टीले पर चढ़कर
वीर-द पित ने दे खा िक नीचे थोड़ी दूर पर अंगरे ज का िशिवर पड़ा हु आ है । शांित ने
कहा- मरने की बात इस समय ताक पर रखो, बोली - व दे मातरम!
शांित मरने जा रही थी, लेिकन उसने मृ यु के समय ी-वेश धारण करने का िन य
िकया था। मह ने कहा था िक उसका पु ष वेश ठगैती है , ठगी करते हु ए मरना उिचत
नह । अत: वह साथ म अपना िपटारा लाई थी। उसम उसकी पोशाक रहती थी। इस
समय नवीनानंद िपटारा खोलकर अपना वेश पिरवतन करने बैठे।
िचकने बाल को पीठ पर फहराए हु ए, उस पर खैर का टीका-फटीका लगाकर नवीन
लता-पु प से सर ढंककर शांित खासी-वै णवी बन गई। सारं गी उसने हाथ म ले ली।
इस तरह का वह अंगरे ज-िशिवर पहु ं च गई। काली मूंछ वाले िसपाही उसे दे खकर पागल
हो उठे । चार तरफ से लोग ने उसे घेरकर गवाना शु िकया। कोई याल गवाता, तो
कोई ट पा, कोई गजल। िकसी ने दाल िदया, िकसी ने चावल, तो िकसी ने िमठाई।
िकसी ने पैसे िदए, तो िकसी ने चव ी ही दे दी। इसी तरह वै णवी अपनी आंख से
िशिवर का हाल-चाल दे खती घूमने लगी।
शांित ने शव की नाड़ी दे खी, नाड़ी का पता न था। वे बोले-छाती पर हाथ रखकर दे खो।
महापु ष ने िफर कहा-मुंह म उंगली डालकर दे खो, कुछ गरमी मालूम पड़ती है ?
ै
िव मत होकर पूछा- या ाण था? या िफर से आ गया है ?
जीवानंद-इसके बाद?
साहब - य
े र इज दै ट एडिसन पेडिसन? होआं ऐ ठो घर हाय?
बै णवी बोली-घर? है ।
साहब-घर नई-गर-गर-नई-गड़-
साहब-केहा आडमी?
शांित-गढ़ म िकतने लोग रहते ह? करीब बीस-पचीस हजार।
शांित-कल आए ह साहब!
शांित-बंदक
ू माथे के पास रखकर नाक म कड़वा तेल छुड़वाकर सोओ। आज ही म दस
कोस रहा तय कर जाऊं और आज ही िफर लौट आऊं- और तु ह खबर दूं? घासलेटी
कह के!
साहब- ट
े जेनरल हाम होने सकता। हाम- ाइव का मािफक। लेिकन आज ही हमको
खबर मेलना चाही। सौ पी ब शीश दे गा।
शांित-सौ दो, हजार दो, बीस हजार दो-पर आज रात भर म म इतना नह चल सकत ।
साहब-घोड़े पर?
इसके बाद बड़ा जानदार अरबी घोड़ा सजकर आ गया, लडले भी तैयार हो गया। शांित
को पकड़कर वह घोड़े पर बैठने चला। शांित ने कहा-िछ:, इतने आदिमय के सामने?
या मुझे ल ा नह है ? आगे चलो, बाहर चलकर घोड़े पर चढ़गे।
लडले घोड़े पर चढ़ गया। घोड़ा धीरे -धीरे चला, शांित पीछे -पीछे पैदल चली। इस तरह
वे लोग छावनी के बाहर आए।
िशिवर के बाहर एकांत आने पर शांित लडले के पैर पर पांव रखकर एक छलांग म पीठ
पर पहु ं च गई। लडले ने हं सकर कहा-तुम तो प ा घुड़सवार है !
ै
मारे शान के लडले ने रकाब से पैर िनकाल िलया। इसी समय शांित ने पीछे से लडले
को गला पकड़ कर छ ा िदया। वह तड़ाक से घोड़े पर से िगरा। घोड़ा भी भड़क उठा।
िफर या था! शांित ने एक एंड़ लगाई और घोड़ा हवा से बात करने लगा। शांित चार
वष तक स तान के साथ रहकर प ी घुड़सवार हो गई थी। िबना सीखे या जीवानंद
का साथ दे सकती थी? लडले का पैर टूट गया और वह कराहने लगा। शांित हवा म
उड़ती जाती थी।
िजस वन म जीवानंद िछपे हु ए थे, वहां पहु ं चकर शांित ने जीवानंद को सारा समाचार
सुनाया। जीवानंद ने कहा-तो म शी जाकर मह को सतक क ं । तुम मेले म जाकर
स यानंद को खबर दो। तुम घोड़े पर जाओ, तािक भु शी समाचार पा सक।
इस तरह दोन आदमी दो तरफ रवाना हु ए। यह कहना यथ है िक शांित िफर नवीनानंद
के प म हो गई।
महा मा ने कहा-स यानंद कातर न हो। तुमने बुि िव म से द युवृि ारा धन संचय
कर रण म िवजय ली है । पाप का कभी पिव फल नह होता। अतएव तुम लोग दे श-
उ ार नह कर सकोगे। और अब जो कुछ होगा, अ छा होगा। अंगरे ज के िबना राजा
हु ए सनातन धम का उ ार नह हो सकेगा। महापु ष ने िजस कार समझाया है , म
उसी कार समझाता हू ं - यान दे कर सुनो! तितस कोिट दे वताओं का पूजन सनातन-धम
नह है । वह एक तरह का लौिकक िनकृ -धम, े छ िजसे हदू-धम कहते ह- लु हो
गया। कृित हदू-धम ाना मक- काय मक नह । जो अ त वषक ान है - वही
सनातन-धम का धान अंग है । लेिकन िबना पहले बिह वषयक ान हु ए, अ त वषयक
ान असंभव है । थूल दे खे िबना सू म की पहचान ही नह हो सकती। बहु त िदन से
इस दे श म बिह वषयक ान लु हो चुका है - इसीिलए वा तिवक सनातन-धम का भी
लोप हो गया है । सनातन-धम के उ ार के िलए पहले बिह वषयक ान- चार की
आव यकता है । इस दे श म इस समय वह बिह वषयक ान नह है - िसखानेवाला भी
कोई नह , अतएव बाहरी दे श से बिह वषयक ान भारत म िफर लाना पड़ेगा। अंगरे ज
उस ान के का ड पंिडत है - लोक-िश ा म बड़े पटु है । अत: अंगरे ज के ही राजा होने
से, अंगरे जी की िश ा से वत: वह ान उ प होगा! जब तक उस ान से हदु
ानवान, गुणवान और बलवान न ह गे, अंगरे ज रा य रहे गा। उस रा य म जा सुखी
होगी, िन कंटक धम चरण ह गे। अंगरे ज से िबना यु िकए ही, िनर होकर मेरे साथ
चलो!
स यानंद ने कहा-महा म ! यिद ऐसा ही था- अंगरे ज को ही राजा बनाना था, तो हम
लोग को इस काय म वृ करने की या आव यकता थी?