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िवषय सूची

भूिमका
आन दमठ भाग-1
आन दमठ भाग-2
आन दमठ भाग-3
आन दमठ भाग-4
आन दमठ भाग-5
आन दमठ भाग-6
आन दमठ भाग-7
आन दमठ भाग-8
आन दमठ भाग-9

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भूिमका
बंिकमच च ोपा याय (१८३८ - १८९४) बंगला के यात उप यासकार, किव,
ग कार और प कार थे। भारत के रा ीय गीत 'व दे मातर उनकी ही रचना है जो
भारतीय वतं ता सं ाम के काल म ा तकािरय का ेरणा ोत बन गया था।
रवी नाथ ठाकुर के पूववत बां ा सािह यकार म उनका अ यतम थान है ।

सं यासी आंदोलन और बंगाल अकाल की पृ भूिम पर िलखी गई बंिकम चं


च ोपा याय की कालजयी कृित आन दमठ सन 1882 ई. म छप कर आई। इस
उप यास की ांितकारी िवचारधारा ने सामािजक व राजनीितक चेतना को जागृत करने
का काम िकया। इसी उप यास के एक गीत वंदेमातरम को बाद म रा गीत का दज
ा हु आ।आन दमठ म िजस काल खंड का वणन िकया गया है वह ह टर की
ऐितहािसक कृित ए ल ऑफ रल बंगाल, ग े की मे वाइर ऑफ द लाइफ ऑफ
वारे न हे ट स और उस समय के ऐितहािसक द तावेज म शािमल त य म काफी
समानता है ।
आन दमठ भाग-1
बहु त िव तृत जंगल है । इस जंगल म अिधकांश वृ शाल के ह, इसके अितिर और
भी अनेक कार के ह। फुनगी-फुनगी, प ी-प ी से िमले हु ए वृ की अनंत ेणी दूर
तक चली गई है । घने झुरमुट के कारण आलोक वेश का हरे क रा ता बंद है । इस तरह
प व का आनंद समु कोस-दर-कोस-- सैकड़ -हजार कोस म फैला हु आ है , वायु की
झकझोर झ के से बह रही ह। नीचे घना अंधेरा, मा या के समय भी काश नह आता-
- भयानक दृ य! उ सव जंगल के भीतर मनु य वेश तक नह कर सकते, केवल प े
की ममर विन और पशु-पि य की आवाज के अितिर वहां और कुछ भी नह सुनाई
पड़ता। एक तो यह अित िव तृत, अग य, अंधकारमय जंगल, उस पर राि का समय!
पतंग उस जंगल म रहते ह लेिकन कोई चूं तक नह बोलता है । श दमयी पृ वी की
िन त धता का अनुमान िकया नह जा सकता है ; लेिकन उस अनंत शू य जंगल के
सूची-भे अंधकार का अनुभव िकया जा सकता है । सहसा इस रात के समय की
भयानक िन त धता को भेदकर विन आई-- मेरा मनोरथ या िस न होगा ।...... इस
तरह तीन बार वह िन त ध-अंधकार अलोि़डत हु आ- तु हारा या ण है ? उ र िमला-
मेरा ण ही जीवन-सव व है ? ित श द हु आ- जीवन तो तु छ है , सब इसका याग कर
सकते ह! तब और या है ..और या होना चािहए? उ र िमला- भि ! बंगा द स
1176 के गरमी के महीने म एक िदन, पदिच ह नामक एक गांव म बड़ी भयानक गरमी
थी। गांव घर से भरा हु आ था, लेिकन मनु य िदखाई नह दे ते थे। बाजार म कतार-पर-
कतार दुकान िव तृत बाजार म लंबी-चौड़ी सड़क, गिलय म सैकड़ िम ी के पिव गृह,
बीच-बीच म ऊंची-नीची अ ािलकाएं थ । आज सब नीरव ह; दुकानदार कहां भागे हु ए
ह, कोई पता नह । बाजार का िदन है , लेिकन बाजार लगा नह है , शू य है । िभ ा का
िदन है , लेिकन िभ ु क बाहर िदखाई नह पड़ते। जुलाहे अपने करघे बंद कर घर म पड़े
रो रहे ह। यवसायी अपना रोजगार भूलकर ब को गोद म लेकर िव ल ह। दाताओं
ने दान बंद कर िदया है , अ यापक ने पाठशाला बंद कर दी है , शायद ब े भी
साहसपूवक रोते नह है । राजपथ पर भीड़ नह िदखाई दे ती, सरोवर पर ाना थय की
भीड़ नह है , गृह- ार पर मनु य िदखाई नह पड़ते ह, वृ पर प ी िदखाई नह पड़ते,
चरनेवाली गौओं के दशन िमलते नह ह, केवल मशान म यार और कु े ह, एक


बहु त बड़ी आ ािलका है , उसकी ऊंची चहारदीवारी और गगन-चुब
ं ी गुब
ं द दूर से िदखाई
पड़ते ह। वह अ ािलका उस गृह-जंगल म शैल-िशखर-सी िदखाई पड़ती है । उसकी
शोभा का या कहना है - लेिकन उसके दरवाजे बंद है , गृह मनु य-समागम से शू य है ,
वायु- वेश म भी असुिवधा है । उस घर के अंदर िदन-दोपहर के समय अंधेरा है ;
अंधकार म रात के समय एक कमरे म, फू ले हु ए दो पु प की तरह एक दं पित बैठे हु ए
चतामग ह। उनके सामने अकाल का भीषण प है । 1174 म फसल अ छी नह हु ई,
अत: यारह सौ पचह र म अकाल आ पड़ा- भारतवािसय पर संकट आया। लेिकन
इस पर भी शासक ने पैसा-पैसा, कौड़ी-कौड़ी वसूल कर ली। दिर जनता ने कौड़ी-
कौड़ी करके मालगुजारी अदा कर िदन म एक ही बार भोजन िकया। यारह सौ पचह र
बंगा द की बरसात म अ छी वष हु ई। लोग ने समझा िक शायद दे वता स हु ए।
आनंद म िफर मठ-मंिदर म गाना-बजाना शु हु आ, िकसान की ी ने अपने पित से
चांदी के पाजेब के िलए िफर तकाजा शु िकया। लेिकन अक मात आि न मास म
िफर दे वता िवमुख हो गए। ार-का तक म एक बूंद भी बरसात न हु ई। खेत म धान के
पौधे सूखकर खंखड़ हो गए। िजसके दो-एक बीघे म धान हु आ भी तो राजा ने अपनी
सेना के िलए उसे खरीद िलया, जनता भोजन पा न सकी। पहले एक सं या को उपवास
हु आ, िफर एक समय भी आधा पेट भोजन उन िमलने लगा, इसका बाद दो-दो सं या
उपवास होने लगा। चैत म जो कुछ फसल हु ई वह िकसी के एक ास भर को भी न हु ई।
लेिकन मालगुजारी के अफसर मुह मद रजा खां ने मन म सोचा िक यही समय है , मेरे
तपने का। एकदम उसने दश ितशत मालगुजारी बढ़ा दी। बंगाल म घर-घर कोहराम
मच गया। पहले लोग ने भीख मांगना शु िकया, इसके बाद कौन िभ ा दे ता है ?
उपवास शु हो गया। िफर जनता रोगा ांत होने लगी। गो, बैल, हल बेचे गए, बीज के
िलए संिचत अ खा गए, घर-बार बेचा, खेती-बारी बेची। इसके बाद लोग ने लड़िकयां
बेचना शु िकया, िफर लड़के बेचे जाने लगे, इसको बाद गृहलि ्मय का िव य ारं भ
हु आ। लेिकन इसके बाद, लड़की, लड़के औरत कौन खरीदता? बेचना सब चाहते थे
लेिकन खरीददार कोई नह । खा के अभाव म लोग पेड़ के प े खाने लगे, घास खाना
शु िकया, नरम टहिनयां खाने लगे। छोटी जाित की जनता और जंगली लोग कु े,
िब ी, चूहे खाने लगे। बहु तेरे लोग भागे, वे लोग िवदे श म जाकर अनाहार से मरे । जो
नही भागे, वे अखा खाकर, उपवास और रोग से जजर हो मरने लगे। मह चले गए।
क याणी अकेली बािलका को िलए हु ए ाय: जनशू य थान म, घर के अंदर अंधकार
म पड़ी चार तरफ दे खती रही। उसके मन म भय का संचार हो रहा था। कह कोई नह ,
मनु य मा का कोई श द सुनाई नह पड़ता है केवल कु और यार की आवाज
सुनाई पड़ जाती है । सोचने लगी- य उ ह जाने िदया? न होता, थोड़ी और भूख- यास
बद त करती। िफर सोचा--चार तरफ के दरवाजे बंद कर दूं। लेिकन एक भी दरवाजे
म िकवाड़ िदखाई न िदया। इस तरह चार तरफ दे खते-दे खते सहसा उसे सामने के
दरवाजे पर एक छाया िदखाई दी-- मनु याकृित जैसा, कंकाल मा और कोयले की तरह
काला, नग , िवकटाकार मनु य जैसा कोई आकार दरवाजे पर खड़ा था। कुछ दे र बाद
छाया ने मानो अपना एक हाथ उठाया और हाथ की लंबी सूखी उंगिलय से संकेत कर
िकसी को अपने पास बुलाया। क याणी का ाण सूख गया। इसके बाद वैसी ही एक
छाया और- सूखी-काली, दीघ कार, नग - पहली छाया के पास आकर खड़ी हो गई।
इसके बाद ही एक और एक और... इस तरह िकतने ही िपशाच आकर घर के अंदर
वेश करने लगे। वहां का एकांत मशान की तरह भयंकर िदखाई दे ने लगा। वह सब
ेत जैसी मू तयां क याणी और उसकी क या को घेरकर खड़ी हो गई- दे खकर क याणी
भय से मू छत हो गई। काले नरकंकाल जैसे पु ष क याणी और उसकी क या को
उठाकर बाहर िनकले और ब ती पार कर एक जंगल म घुस गए। कुछ दे र बाद मह
उस हं ि़डया म दूध िलए हु ए वहां आए। उ ह ने दे खा िक वहां कोई नह है । इधर-उधर
खोजा; पहले क या का नाम और िफर ी का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारने लगे।
लेिकन न तो कोई उ र िमला और न कुछ पता ही लगा। िजस वन म डाकू क याणी
को लेकर घुसे, वह वन बड़ा ही मनोहर था। यहां रोशनी नह िक शोभा िदखाई दे , ऐसी
आंख भी नह िक दिर के दय के स दय की तरह उस वन का स दय भी दे ख सक।
दे श म आहार य रहे या न रहे - वन म फूल है ; फूल की सुगध
ं से मानो उस अंधकार
म काश हो रहा है । बीच की साफ-सुकोमल और पु पावृत जमीन पर डाकुओं ने
क याणी और उसकी क या को उतारा और सब उ ह घेरकर बैठ गए। इसके बाद उन
सब म यह बहस चली िक इन लोग का या िकया जाए? क याणी को जो कुछ गहने
थे, उ ह डाकुओं ने पहले ही ह तगत कर िलया। एक दल उसके िह से-बखरे म य त
हो गया। गहन के बंट जाने पर एक डाकू ने कहा-हम लोग सोना-चांदी लेकर या
करगे? एक गहना लेकर कोई मुझे भोजन दे , भूख से ाण जाते ह-आज सबेरे केवल
प े खाए ह। एक के यह करने पर सभी इसी तरह ह ा मचाने लगे- भारत दो, हम भूख
से मर रहे ह, सोना-चांदी नह चाहते।.. दलपित उ ह शांत करने लगा, लेिकन कौन
सुनता है ; मश: ऊंचे वर म बात शु हु ई, िफर गाली-गलौच शु हु ई, मार-पीट की
भी तैयारी होने लगी। िजसे-िजसे िह से म गहने िमले थे, वे लोग अपने-अपने िह से के
गहने ख च-खीचकर दलपित के शरीर पर मारने लगे। दलपित ने भी दो-एक को मारा।
इस पर सब िमलकर आ मण कर दलपित पर आघात करने लगे। दलपित अनाहार से
कमजोर और अधमरा तो आप ही था, दो-चार आघार म ही िगरकर मर गया। उन भूख,े
पीि़डत, उ ेिजत और दयाशू य डाकुओं म से एक ने कहा-- यार का मांस खा चुके ह,
भूख से ाण जा रहा है , आओ भाई आज इसी साले को खा ल। इस पर सबने िमलकर
जयकाली कहकर जयघोष िकया--जय काली! आज नर-मांस खाएंग।े यह कहकर वह
सब नरकंकाल पधारी िखलिखलाकर हं स पड़े और तािलयां बजाते हु ए नाचने लगे।
एक दलपित के शरीर को भूनने के िलए आग जलाने का इंतजाम करने लगा। लता-
डािलयां और प े सं ह कर, उसने चकमक प थर ारा आग पैदा कर उसे धधकाया;
धधक कर आग जल उठी। आग की लपट के पास के आम, खजूर, पनस, न बू आिद
के वृ के कोमल हरे प े चमकने लगे। कह प े जलने लगे, कह घास पर रोशनी से
हिरयाली हु ई तो कह अंधेरा और गाढ़ा हो गया। आग जल जाने पर कुछ लोग दलपित
के कंकाल को आग म फकने के िलए घसीटकर लाने लगे। इसी समय एक बोल उठा-
ठहरो, ठहरो! अगर यह मांस ही खाकर आज भूख िमटानी है , तो इस सूखे नरकंकाल
को न भूनकर, आओ इस कोमल लड़की को ही भूनकर खाया जाए एक बोला-जो हो,
भैया ! एक को भूनो ! हम तो भूख से मर रहे ह। इस पर सबने लोलुप दृि से उधर दे खा,
िजधर अपनी क या को िलए हु ए क याणी पड़ी थी। उस सबने दे खा िक वह थान सूना
था, न क या थी और न माता ही। डाकुओं के आपसी िववाद और मारपीट के समय
सुयोग पाकर क याणी गोद म ब ी को िचपकाए वन के भीतर भाग गई। िशकार को
भागा दे खकर वह ेत-दल मार-मार करता हु आ चार तरफ उ ह पकड़ने के िलए दौड़
पड़ा। अव था िवशेष म मनु य पशुमा रह जाता है । रोग को भी अवसर िमला- वर,
है जा, य, चेचकफैल पड़ा। िवशेषत: चेचक का बड़ा सार हु आ। घर-घर लोग
महामारी से मरने लगे। कौन िकसे जल दे ता है - कौन िकसे छूता? कोई िकसी की
िचिक सा नह करता, कोई िकसी को नह दे खता था। मर जाने पर शव कोई उठाकर
फकता नह था। अित रमणीय गृह- थान आप ही सड़कर बदबू करने लगे। िजस घर म
एक बार चेचक हु आ, रोगी को छोड़कर घरवाले भाग गए। मह सह पदिच ह के बड़े
धनी यि ह-- लेिकन आज धनी-गरीब सब बराबर ह। इस दु:खपूण अकाल के समय
रोगी होकर उसके आ मीय- वजन, दासी-दास सभी चले गए ह। कोई मर गया, कोई
भाग गया। उस वृहत पिरवार म उनकी ी, वे और गोद म एक िशशु-क या मा रह
गई है । इ ह लोग की बात कह रहा हू ं । उनकी भाय क याणी ने चता छोड़कर
गोशाला म जाकर गाय दुही। इसके बाद दूध गम कर क या को िपलाया और गऊ को
घास खाने के िलए डाल िदया। वह लौटकर जब काई तो मह ने कहा-इस तरह िकतने
िदन चलेगा? क याणी बोली-- यादा िदन नह ! िजतने िदन चले, िजतने िदन म चला
पाती हू ं , चला रही हू ं । इसके बाद तुम लड़की को लेकर शहर चले जाना। मह - अगर
शहर ही चलना है तो तु ह ही इतनी तकलीफ य दी जाय? चलो न, अभी चल! इसके
बाद दोन अनेक तक-िवतक हु ए। क याणी- शहर म जाने से या िवशेष उपकार होगा?
मह - वह थान भी शायद ऐसे ही जन शू य, ाणर ा के उपाय से रिहत है क याणी-
मु शदाबाद, कािसम बाजार या कलक ा जाने से ाणर ा हो सकेगी। इस थान से तो
याग दे ना हर तरह से उिचत है ? मह ने कहा-यह घर बहु त िदन से वंशानु म से
संिचत धन से पिरपूण है , इ ह तो चोर लूट ले जाएंग।े क याणी-यिद वह लोग लूटने के
िलए आएं तो या हम दो जन र ा कर सकते है ? ाण ही न रहा तो धन कौन भोगेगा?
चलो, अभी से ही सब बंद-संद करके चल चल। अगर जदा रह गए तो िफर आकर
भोग करगे। मह ने पूछा- या तुम राह चल सकोगी? कहार सब मर ही गए ह। बैल ह
तो गाड़ी नह है और गाड़ी है तो बैल नह है । क याणी -तुम चता न करो, म पैदल
चलूंगी। क याणी ने मन-ही-मन िन य िकया- न होगा, राह म मरकर िगर पड़ंग
ू ी; यह
दोन जन तो बचे रहगे। दूसरे िदन सबेरे, साथ म कुछ धन लेकर घर- ार म ताला बंद
कर, गाय को मु कर और क या को गोद म लेकर दोन जन राजधानी के िलए चल
पड़े। या ा के समय मह ने कहा- राह बड़ी भयानक है । कदम-कदम पर डाकू और
लुटेरे िछपे ह; खाली हाथ जाना उिचत नह है । यह कहकर मह ने िफर घर म वापस
जाकर बंदक
ू , गोली बा द साथ म ले ली। यह दे खकर क याणी ने कहा-अगर अ
की बात याद की है तो जरा लड़की को गोद म स हाल लो, म भी हिथयार ले लूं यह
कहकर क याणी ने लड़की मह की गोद म दे कर घर के भीतर वेश िकया। मह ने
पूछा-तुम कौन-सा हिथयार लोगी क याणी ने घर म जाकर िवष की एक िडिबया अपने
कपड़ के अंदर िछपा ली। जेठ का महीना है । भयानक गम से पृ वी अिग मय हो रही
है ; हवा म आग की लपट दौड़ रही है , आकाश गरम तवे की तरह जल रहा है , राह की
धूल आग की िचनगारी बन गई है । क याणी के शरीर से पसीने की धार बहने लगी;
कभी पीपल के नीचे, कभी बड़ के नीचे, कभी खजूर के नीचे छाया दे खकर ितलिमलाती
हु ई बैठ जाती है । सूखे हु ए तालाब का कीचड़ से सना मैला जल पीकर वे लोग राह
चलने लगे। लड़की मह की गोद म है - समय समय पर वे उसे पंखा हांक दे ते ह। कभी
घने हरे प से दाएं, सुगिं धत फूल वाले वृ से िलपटी हु ई लता की छाया म दोन जन
बैठकर िवराम करते ह। मह ने क याणी को इतना सहनशील दे खकर आ य िकया।
पास के ही एक जलाशय से व को जल से तर कर मह ने उससे क या और प नी
का जलता माथा और मुंह धोकर कुछ शांत िकया। इससे क याणी कुछ आ त
अव य हु ई, लेिकन दोन ही भूख से बड़े िव ल हु ए। वे लोग तो उसे भी सहने लगे,
लेिकन बािलका की भूख- यास उनसे बद त न हु ई, अत: वहां अिधक दे र न ठहरकर वे
लोग िफर चल पड़े। उस आग के सागर को पार कर सं या से पहले वे एक ब ती म
पहु ं च।े मह के मन म बड़ी आशा थी िक ब ती म पहु ं चकर वे अपनी प नी और क या
की शीतल जल से तृ कर सकगे और ाणर ा के िनिम अपने मुंह म भी कुछ आहार
डाल सकगे। लेिकन कहां? बसती म तो एक भी मनु य िदखाई नह पड़ता। बड़े-बड़े घर
सूने पड़े हु ए ह, सारे आदमी वहां से भाग गए ह। इधर-उधर दे खकर एक घर के भीतर
मह ने ी-क या को बैठा िदया। बाहर आकर उ ह ने जोर से पुकारना शु िकया,
लेिकन उ ह कोई भी उ र सुनाई न पड़ा। तब मह ने क याणी से कहा-तुम जरा
साहसपूवक अकेली रहो; दे खूं शायद कह कोई गाय िदखाई दे जाए। भगवान ीकृ ण
दया कर द तो दूध ले आएं। यह कहकर मह एक िम ी का बरतन हाथ म लेकर
िनकल पड़े। बहु तेरे बरतन वह पड़े हु ए थे।
आन दमठ भाग-2
जंगल के भीतर घनघोर अंधकार है । क याणी को उधर राह िमलना मु कल हो गया।
वृ -लताओं के झुरमुट के कारण एक तो राह किठन, दूसरे रात का घना अंधेरा। कांट
से वधती हु ई क याणी उन आदमखोर से बचने के िलए भागी जा रही थी। बेचारी
कोमल लड़की को भी कांटे लग रहे थे। अबोध बािलका गोद म चीखकर रोने लगी;
उसका रोना सुनकर द युदल और ची कार करने लगा। िफर भी, क याणी पागल की
तरह जंगल म तीर की तरह घुसती भागी जा रही थी। थोड़ी ही दे र म चं ोदय हु आ। अब
तक क याणी के मन म भरोसा था िक अंधेरे म नर-िपशाच उसे दे ख न सकगे, कुछ दे र
परे शान होकर पीछा छोड़कर लौट जाएंग,े लेिकन अब चांद का काश फैलने से वह
अधीर हो उठी। च मा ने आकाश म ऊंचे उठकर वन पर अपना पहला आवरण पैला
िदया, जंगल का भीतरी िह सा अंधेरे म चांदनी से चमक उठा- अंधकार म भी एक तरह
की उ”वलता फैल गई- चांदनी वन के भीतर िछ से घुसकर आंखिमचौनी करने लगी।
चं मा जैसे-जैसे ऊपर उठने लगा, वैसे-वैसे काश फैलने लगा जंग को अंधकार अपने
म समेटने लगा। क याणी पु ी को गोद म िलए हु ए और गहन वन म जाकर िछपने
लगी। उजाला पाकर द युदल और अिधक शोर मचाते हु ए दौड़-धूप कर खोज करने
लगे। क या भी शोर सुनकर और जोर से िच ाने लगी। अब क याणी भी थककर चूर
हो गई थी; वह भागना छोड़कर वटवृ के नीचे साफ जगह दे खकर कोमल पि य पर
बैठ गई और भगवान को बुलाने लगी-कहां हो तुम? िजनकी म िन य पूजा करती थी,
िन य नम कार करती थी, िजनके एकमा भरोसे पर इस जंगल म घुसने का साहस कर
सकी.... ..कहां हो, हे मधुसूदन! इस समय भय और भि की गाढ़ता से, भूख- यास से
थकावट से क याणी धीरे अचेत होने लगी; लेिकन आंतिरक चैत य से उसने सुना,
अंतिर म वग य गीत हो रहा है -

हरे मुरारे ! मधुकैटभारे ! गोपाल, गो वद मुकुंद यारे ! हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

क याणी बचपन से पुराण का वणन सुनती आती थी िक दे व ष नारद हाथ म वीणा


िलए हु ए आकाश पथ से भुवन- मण िकया करते ह- उसके दय म वही क पना
जागिरत होने लगी। मन-ही-मन वह दे खने लगी- शु शरीर, शु वेश, शु केश,
शु वसन महामित महामुिन वीणा िलए हु ए, चांदनी से चमकते आकाश की राह पर गाते
आ रहे ह।

हरे मुरारे ! मधुकैटभारे !....

मश: गीत िनकट आता हु आ, और भी प सुनाई पड़ने लगा-

हरे मुरारे ! मधुकैटभारे !....

मश: और भी िनकट, और भी प -

हरे मुरारे ! मधुकैटभारे !....

अंत म क याणी के म तक पर, वन थली म ित विनत होता हु आ गीत होने लगा-


हरे मुरारे ! मधुकैटभारे !....

क याणी ने अपनी आंख खोल । धुंधले अंधेरे की चांदी म उसने दे खा- सामने वही शु
शरीर, शु वेश, शु केश, शु वसन ऋिषमू त खड़ी है । िवकृत म त क और अधचेतन
अव था म क याणी ने मन म सोचा-- णाम क ं , लेिकन िसर झुकाने से पहले ही वह
िफर अचेत हो गयी और िगर पड़ी।

रात काफी बीत चुकी है । चं मा माथे के ऊपर है । पूण चं नह है , इसिलए चांदनी भी


चटकीली नह - फीकी है । जंगल के बहु त बड़े िह से पर अंधकार म धुंधली रोशनी पड़
रही है । इस काश म मठ के इस पार से दूसरा िकनारा िदखाई नह पड़ता। मठ मानो
एकदम जनशू य है - दे खने से यही मालूम होता है । इस मठ के समीप से मु शदाबाद और
कलक े को राह जाती है । राह के िकनारे ही एक छोटी पहाड़ी है , िजस पर आम के
अनेक पेड़ है । वृ की चोटी चांदनी से चमकती हु ई कांप रही है , वृ के नीचे प थर
पर पड़नेवाली छाया भी कांप रही है । चारी उसी पहाड़ी के िशखर पर चढ़कर न जाने
या सुनने लगे। नह कहा जा सकता िक वे या सुन रहे थे। इस अनंत जंगल म पूण
शांित थी- कह ऐसे ही प की ममर- विन सुनाई पड़ जाती थी। पहाड़ की तराई म एक
जगह भयानक जंगल है । ऊपर पहाड़ नीचे जंगल बीच म वह राह है । नह कह सकते
िक उधर कैसी आवाज हु ई िजसे सुनकर चारी उसी ओर चल पड़े। उ ह ने भयानक
जंगल म वेश कर दे खा िक वहां एक घने थान म वृ की छाया म बहु तेरे आदमी बैठे
ह। वे सब मनु य लंबे, काले, और सश थे पेड़ की छाया को भेदकर आनेवाली
चांदनी उनके श को चमका रही थी। ऐसे ही दो सौ आदमी बैठे ह और सब शांत,
चुप ह। चारी उनके बीच म जाकर खड़े हो गए और उ ह ने कुछ इशारा कर िदया,
िजससे कोई भी उठकर खड़ा न हु आ। इसके बाद वह तप वी महा मा एक तरफ से
लोग को चेहरा गौर से दे खते हु ए आगे बढ़ने लगे, जैसे िकसी को खोजते ह । खोजते-
खोजते अ त म वह पु ष िमला और चारी के उसका अंग पश कर इशारा करते ही
वह उठ खड़ा हु आ। चारी उसे साथ लेकर दूर आड़ म चले गए। वह पु ष युवक
और बिल था- लंबे घुंघराले बाल कंधे पर लहरा रहे थे। पु ष अतीव सुंदर था। गैिरक
व धारी तथा चंदनच चत अंगवाले चारी ने उस पु ष से कहा- भवानंद! मह सह
की कुछ खबर िमली है ?

इस पर भवानंद ने कहा\ -आज सबेरे मह सह अपनी प नी और क या के साथ गृह


यागकर बाहर िनकल ह-ब ती म.....

इतना सुनते ही चारी ने बात काटकर कहा-ब ती म जो घटना हु ई है , म जानता हू ं ।


िकसने ऐसा िकया?

भवानंद-गांव के ही िकसान लोग थे। इस समय तो गांव के िकसान भी पेट की वाला


से डाकू हो गए ह। आजकल कौन डाकू नह है ? हम लोग ने भी आज लूट की है -
दारोगा साहब के िलए दो मन चावल जा रहा था, छीनकर वै णव को भोग लगा िदया
है ।
चारी ने कहा-चोर के हाथ से तो हमने ी-क या का उ ार कर िलया है । इस समय
उ ह मठ म बैठा आया हू ं । अब यह भार तु हारे ऊपर है िक मह को खोजकर उनकी
ी-क या उनके हवाले कर दो। यहां जीवानंद के रहने से काम हो जाएगा।

भवानंद ने वीकार कर िलया। तब चारी दूसरी जगह चले गए।

इसी वन म एक बहु त िव तृत भूिम पर ठोस प थर से िम मत एक बहु त बड़ा मठ है ।


पुरात ववे ा उसे दे खकर कह सकते ह िक पूवकाल म यह बौ का िवहार था- इसके
बाद हदुओं का मठ हो गया है । दो खंड म अ ािलकाएं बनी है , उसम अनेक दे व-मंिदर
और सामने नाटयमंिदर है । वह समूचा मठ चहारदीवारी से िघरा हु आ है और बाहरी
िह सा ऊंच-े ऊंचे सघन वृ से इस तरह आ छािदत है िक िदन म समीप जाकर भी
कोई यह नह जान सकता िक यहां इतना बड़ा मठ है । य तो ाचीन होने के कारण मठ
की दीवार अनेक थान से टूट-फूट गई ह, लेिकन िदन म दे खने ने से साफ पता लगेगा
िक अभी हाल ही म उसे बनाया गया है । दे खने से तो यही जान पड़ेगा िक इस दुभ वन
के अंदर कोई मनु य रहता न होगा। उस अ ािलका की एक कोठरी म लकड़ी का बहु त
बड़ा कु दा जल रहा था। आंख खुलने पर क याणी ने दे खा िक सामने ही वह ऋिष
महा मा बैठे ह। क याणी बड़े आ य से चार तरफ दे खने लगी। अभी उसकी मृित
पूरी तरह जागी न थी। यह दे खकर महापु ष ने कहा- बेटी! यह दे वताओं का मंिदर है ,
डरना नह । थोड़ा दूध है , उसे िपयो; िफर तुमसे बात ह गी।

पहले तो क याणी कुछ समझ न सकी, लेिकन धीरे -धीरे उसके दय म जब धीरज हु आ
तो उसने उठकर अपने गले म आंचल डालकर, जमीन से म तक लगाकर णाम
िकया। महा माजी ने सुमंगल आशीव द दे कर दूसरे कमरे से एक सुगिं धत िम ी का
बरतन लाकर उसम दूध गरम िकया। दूध के गरम हो जने पर उसे क याणी को दे कर
बोले- बेटी! दूध क या को भी िपलाओ, वयं भी िपयो, उसके बाद बात करना।
क याणी संतु दय से क या को दूध िपलाने लगी। इसके बाद उस महा मा ने कहा- म
जब तक न आऊं, कोई चता न करना। यह कहकर कमरे के बाहर चले गए। कुछ दे र
बाद उ ह ने लौटकर दे खा िक क याणी ने क या को तो दूध िपला िदया है , लेिकन वयं
कुछ नह िपया। जो दूध रखा हु आ था, उसम से बहु त थोड़ा खच हु आ था। इस पर
महा मा ने कहा- बेटी! तुमने दूध नह िपया? म िफर बाहर जाता हू ं ; जब तक तुम दूध न
िपयोगी, म वापस न आऊंगा।

वह ऋिषतु य महा मा यह कहकर बाहर जा रहे थे; इसी समय क याणी िफर णाम कर
हाथ जोड़ खड़ी हो गई।

महा मा ने पूछा- या कहना चाहती हो?

क याणी ने हाथ जोड़े हु ए कहा- मुझे दूध पीने की आ ा न द। उसम एक बाधा है , म पी


न सकूंगी।.......

इस पर महा मा ने दु:खी दय से कहा- या बाधा है ? म चारी हू ं , तुम मेरी क या के


समान हो; ऐसी कौन बात हो सकती है जो मुझसे कह न सको? म जब तु ह वन से
उठाकर यहां ले आया, तो तुम अ यंत भूख यास से अवस थी, तुम यिद दूध न िपयोगी
तो कैसे बचोगी?

इस पर क याणी ने भरी आंख और भरे गले से कहा- आप दे वता है , आपसे अव य


िनवेदन क ं गी - अभी तक मेरे वामी ने कुछ नह खाया है , उनसे मुलाकात हु ए िबना
या संवाद िमले िबना म भोजन न कर सकूंगी। म कैसे खाऊंगी..
चारी ने पूछा- तु हारे पितदे व कहां ह?

क याणी बोली- यह मुझे मालूम नह - दूध की खोज म उनके बाहर िनकलने पर ही डाकू
मुझे उठा ले गए इस पर चारी ने एक-एक बात पूछकर क याणी से उसके पित का
सारा हाल मालूम कर िलया। क याणी ने पित का नाम नह बताया, बता भी नह
सकती थी, कतु अ याय पिरचय से चारी समझ गए। उ ह ने पूछा- तु ह मह की
प नी हो? इसका कोई उ र न दे कर क याणी िसर झुका कर, जलती हु ई आग म
लकड़ी लगाने लगी। चारी ने समझकर कहा- तुम मेरी बात मानो, म तु हारे पित की
खोज करता हू ं । लेिकन जब तक दूध न िपओगी, म न जाऊंगा?

क याणी पूछा- यहां थोड़ा जल िमलेगा?

चारी ने जल का कलश िदखा िदया। क याणी ने अंजिल रोपी, चारी ने जल


डाल िदया। क याणी ने उस जल की अंजिल को महा मा के चरण के पास ले जाकर
कहा- इसम कृपा कर पदरे णु दे द। महा मा के अंगूठे ारा छू दे ने पर क याणी ने उसे
पीकर कहा- मने अमृतपान कर िलया है । अब और कुछ खाने-पीने को न किहए। जब
तक पितदे व का पता न लगेगा म कुछ न खाऊंगी।

इस पर चारी ने संतु होकर कहा- तुम इसी दे व थान म रहो। म तु हारे पित की
खोज म जाता हू ं ।

ब ती म बैठे रहने और सोचते रहने का कोई ितफल न होगा- यह सोचकर मह वहां


से उठे । नगर म जाकर राजपु ष की सहायता से ी-क या का पता लगवाएं- यह
सोचकर मह उसी तरफ चले। कुछ दूर जाकर राह म उ ह ने दे खा िक िकतनी ही
बैलगाि़डय को घेरकर बहु तेरे िसपाही चले आ रहे ह।
बंगला स 1173 म बंगाल दे श अंगरे ज के शासनाधीन नह हु आ था। अंगरे ज उस
समय बंगाल के दीवान ही थे। वे खजाने का पया वसूलते थे, लेिकन तब तक
बंगािलय की र ा का भार उ ह ने अपने ऊपर िलया न था। उस समय लगान की
वसूली का भार अंगरे ज पर था, और कुल स पि की र ा का भार पािप , नराधम,
िव ासघातक, मनु य-कुलकलंक मीरजाफर पर था। मीरजाफर आ मर ा म ही अ म
था, तो बंगाल दे श की र ा कैसे कर सकता था? मीरजाफर िसफ अफीम पीता था
और सोता था, अंगरे ज ही अपने िज मे का सारा काय करते थे। बंगाली रोते थे और
कंगाल हु ए जाते थे।

अत: बंगाल का कर अंगरे ज को ा य था, लेिकन शासन का भार नवाब पर था। जहां-
जहां अंगरे ज अपने ा य कर की वयं अदायगी कराते थे, वहां-वहां उ ह ने अपनी तरफ
से कले टर िनयु कर िदए थे। लेिकन मालगुजारी ा होने पर कलक े जाती थी।
जनता भूख से चाहे मर जाए, लेिकन मालगुजारी दे नी ही पड़ती थी। िफर भी मालगुजारी
पूरी तरह वसूल नह हु ई थी- कारण, माता-वसुमती के िबना धन- सव िकए, जनता
अपने पास के कैसे गढ़कर दे सकती थी? जो हो, जो कुछ ा हु आ था, उसे गाि़डय पर
लादकर िसपािहय के पहरे म कलक े भेजा जा रहा था- धन कंपनी के खजाने म जमा
होता। आजकल डाकुओं का उ पात बहु त बढ़ गया है , इसीिलए पचास सश िसपाही
गाड़ी के आगे-पीछे संगीन खड़ी िकए, कतार म चल रहे थे : उनका अ य एक गोरा
था जो सबसे पीछे घोड़े पर था। गरमी की भयानकता के कारण िसपाही िदन म न
चलकर रात को सफर करते थे। चलते-चलते उन गाि़डय और िसपािहय के कारण
मह की राह क गई। इस तरह राह की होने के कारण थोड़ी दे र के िलए मह सड़क
के िकनारे खड़े हो गए। िफर भी िसपािहय के शरीर से ध ा लग सकता था, और
झगड़ा बचाने के याल से वे कुछ हटकर जंगल के िकनारे खड़े हो गए।

इसी समय एक िसपाही बोला--यह दे खो, एक डाकू भागता है । मह के हाथ म बंदक



दे खकर उसका िव ास दृढ़ हो गया। वह दौड़कर पहु ं चा और एकाएक मह का गला
पकड़कर साले चोर! कहकर उ ह एक घूंसा जमाया और बंदक
ू छीन ली। खाली हाथ
मह ने केवल घूंसे का जवाब घूंसे से िदया। मह को अचानक इस बत व पर ोध आ
गया था, यह कहना ही यथ है ! घूंसा खाकर िसपाही च र खाकर िगर पड़ा और बेहोश
हो गया। इस पर अ य चार िसपािहय ने आकर मह को पकड़ िलया और उ ह उस
गोरे सेनापित के पास ले गए। अिभयोग लगाया िक इसने एक िसपाही का खून िकया है ।
गोरा साहब पाइप से तमाखू पी रहा था, नशे के झ के म बोला--साले को पकड़कर शादी
कर लो। िसपाही ह ा-ब ा हो रहे थे िक बंदक
ू धारी डाकू से िसपाही कैसे शादी कर ल?
लेिकन नशा उतरने पर साहब का मत बदल सकता है िक शादी कैसे होगी- यही िवचार
कर िसपािहय ने एक र सी लेकर मह के हाथ-पैर बांध िदए और गाड़ी पर डाल िदया।
मह ने सोचा िक इतने िसपािहय के रहते जो लगाना यथ है , इसका कोई फल न होगा;
दूसरे ी-क या के गायब होने के कारण मह बहु त दु:खी और िनराश थे; सोचा--
अ छा है , मर जाना ही अ छा है ! िसपािहय ने उ ह गाड़ी के ब े से अ छी तरह बांध
िदया और इसके बाद धीर-गंभीर चाल से वे लोग िफर पहले की तरह चलने लगे।
आन दमठ भाग-3
चारी की आ ा पाकर भवानंद धीरे -धीरे हिरकी न करते हु ए उस ब ती की तरफ
चले, जहां मह का क या-प नी से िवयोग हु आ था। उ ह ने िववेचन िकया िक मह का
पता वह से लगना संभव है ।

उस समय अं ज े की बनवायी हु ई आधुिनक राह न थी। िकसी भी नगर से कलक े


जाने के िलए मुगल-स ाट की बनायी राह से ही जाना पड़ता था। मह भी पदिच से
नगर जाने के िलए दि ण से उ र जा रहे थे। भवानंद ताल-पहाड़ से िजस ब ती की
तरफ आगे बढ़े , वह भी दि ण से उ र पड़ती थी। जाते-जाते उनका भी उन धन-र क
िसपािहय से सा ात हो गया। भवानंद भी िसपािहय की बगल से िनकले। एक तो
िसपािहय का िव ास था िक इस खजाने को लूटने के िलए डाकू अव य कोिशश
करगे, उस पर राह म एक डाकू- मह को िगर तार कर चुके थे, अत: भवानंद को भी
राह म पाकर उनका िव ास हो गया िक यह भी डाकू है । अतएव तुरंत उन सबने
भवानंद को भी पकड़ िलया।

भवननंद ने मु करा कर कहा-ऐसा य भाई?

िसपाही बोला-तुम साले डाकू हो!

भवानंद-दे ख तो रहे तो, गे आ कपड़ा पहने म चारी हू ं .... डाकू या मेरे जैसे होते ह?

िसपाही-बहु तेरे साले चारी-सं यासी डकैत रहते ह।


यह कहते हु ए िसपाही भवानंद के गले पर ध ा दे ख च लाए। अंधकार म भवानंद की
आंख से आग िनकलने लगी, लेिकन उ ह ने और कुछ न कर िवनीत भाव से कहा-
हु जूर! आ ा करो, या करना होगा?

भवानंद की वाणी से संतु होकर िसपाही ने कहा-लो साले! िसर पर यह बोझ लादकर
चलो। यह कहकर िसपाही ने भवानंद के िसर पर एक गठरी लाद दी। यह दे ख एक
दूसरा िसपाही बोला-नह -नह भाग जाएगा। इस साले को भी वहां पहलेवाले की तरह
बांधकर गाड़ी पर बैठा दो। इस पर भवानंद को और उ कंठा हु ई िक पहले िकसे बांधा है ,
दे खना चािहए। यह िवचार कर भवानंद ने गठरी फक दी और पहले िसपाही को एक
थ पड़ जमाया। अत: अब िसपािहय ने उ ह भी बांधकर गाड़ी पर मह की बगल म
डाल िदया। भवानंद पहचान गए िक यही मह सह है ।

िसपाही िफर िन त हो कोलाहल मचाते हु ए आगे बढ़े । गाड़ी का पिहया घड़-घड़ श द


करता हु आ घूमने लगा। भवानंद ने अतीव धीमे वर म, तािक मह ही सुन सक, कहा-
मह सह! म तु ह पहचानता हू ं । तु हारी सहायता करने के िलए ही यहां आया हू ं । म
कौन हू ं यह भी तु ह सुनने की ज रत नह । म जो कहता हू ं , सावधान होकर वही करो!
तुम अपने हाथ के बंधन गाड़ी के पिहये के ऊपर रखो।

मह िव मत हु ए, िफर भी उ ह ने िबना कहे -सुने भवानंद के मतानुसार काय िकया-


अंधकार म गाड़ी के च की तरफ जरा िखसककर उ ह ने अपने हाथ के बंधन को
पिहये के ऊपर लगाया। थोड़ी ही दे र म उनके हाथ के बंधन कटकर खुल गए। इस तरह
बंधन से मु होकर वे चुपचाप गाड़ी पर लेट रहे । भवानंद ने भी उसी तरह अपने को
बंधन से मु िकया। दोन ही चुपचाप लेटे रहे ।

मह ने दे खा द यु गाते-गाते रोने लगा। तब मह ने िव मय से पूछा- तुमलोग कौन हो?


भवानंद ने उ र िदया -हमलोग संतान ह।

मह -संतान या? िकसकी संतान ह?

भवानंद -माता की संतान!

मह -ठीक ! तो या संतान लोग चोरी-डकैती करके मां की पूजा करते ह? यह कैसी


मातृभि ?

भवानंद -हम लोग चोरी-डकैती नह करते....

मह -अभी तो गाड़ी लूटी है ...?

भवानंद -यह या चोरी-डकैती है ! िकसके पये लुटे ह?

मह - य ? राजा के !

भवानंद -राजा के! वह य इन पय को लेगा- इन पय पर उसका या अिधकार है ?

मह -राजा का राज-भाग।
भवानंद-जो राजा रा य बंध न करे , जनता-जनादन की सेवा न करे , वह राजा कैसे
हु आ?

मह -दे खता हू ं , तुम लोग िकसी िदन फौजी की तोप के मुंह पर उड़ जाओगे।

भवानंद -अनेक साले िसपािहय को दे ख चुका हू ं , अभी आज भी तो दे खा है !

मह -अ छी तरह नह दे खा, एक िदन दे खोगे!

भवानंद -सब दे ख चुका हू ं । एक बार से दो बार तो मनु य मर नह सकता।

मह -जान-बूझकर मरने की या ज रत है ?

भवानंद -मह सह! मेरा याल था िक तुम मनु य के समान मनु य होगे। लेिकन दे खा-
जैसे सब है , वैसे तुम भी हो- घी-दूध खाकर भी दम नह । दे खो, सांप िम ी म अपने पेट
को घसीटता हु आ चलता है - उससे बढ़कर तो शायद हीन कोई न होगा; लेिकन उसके
शरीर पर भी पैर रख दे ने पर वह फन काढ़ लेता है । तुम लोग का धैय या िकसी तरह
भी न नह होता? दे खो, िकतने दे शी शहर है - मगध, िमिथला, काशी, कराची, िद ी,
का मीर- उन जगह की ऐसी दुदशा है ? िकस दे श के मनु य भोजन के अभाव म घास
खा रहे ह? िकस दे श की जनता कांट खाती है , लता-प ा खाती है ? िकस दे श के मनु य
यार, कु े और मुद खाते है ? आदमी अपने संदक
ू म धन रखकर भी िनि त नह है -
सहासन पर शािल ाम बैठाकर िनि त नह है - घर म बहू -नौकर-मजदूरनी रखकर
िनि त नह है ! हर दे श का राजा अपनी जा की दशा का, भरण-पोषण का याल
ै ै
रखता है ; हमारे दे श का मुसलमान राजा या हमारी र ा कर रहा है ? धम गया, जाित
गई, मन गया- अब तो ाण पर बाजी आ गई है । इन नशेबाज दाड़ीवाल को िबना
भगाए या हदू हदू रह जाएंग?े

मह - कैसे भगाओगे?

भवानंद -मारकर!

मह -तुम अकेले भगाओगे- एक थ पड़ मारकर या?

भवानंद ने िफर गाया-

स कोिट क ठ कलकल िननादकराले,

ि स कोिटभुजघ
ै ृत खरकरवाले,

अबला केनो मां एतो बले।

िजस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर चारी ने चार ओर दे खा था उसी
राह से इन लोग को गुजरना था। उस पहाड़ी के िनकट पहु ं चने पर िसपािहय ने दे खा िक
एक िशलाखंड पर जंगल के िकनारे एक पु ष खड़ा है । हलकी चांदनी म उस पु ष का
काला शरीर चमकता हु आ दे खकर िसपाही बोला--दे खो एक साला और यहां खड़ा है ।
इस पर उसे पकड़ने के िलए एक आदमी दौड़ा, लेिकन वह आदमी वह खड़ा रहा, भागा
नह - पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह यि कुछ न बोला। हवलदार ने
कहा-इस साले के िसर पर गठरी लादो! िसपािहय के एक भारी गठरी दे ने पर उसने भी
िसर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक
िप तौल चलने की आवाज हु ई- हवलदार माथे म गोली खाकर िगर पड़ा।

इसी साले ने हवलदार को मारा है ! कहकर एक िसपाही ने उस मोिटया का हाथ पकड़


िलया। मोिटये के हाथ म तब तक िप तौल थी। मोिटये ने अपने िसर का बोझ फककर
और तुरंत पलटकर उस िसपाही के माथे पर आघात िकया, िसपाही का माथा फट गया
और जमीन पर िगर पड़ा। इसी समय हिर! हिर! हिर! पुकारता दो सौ यि य ने आकर
िसपािहय को घेर िलया। िसपाही गोरे साहब के आने की ती ा कर रहे थे। साहब भी
डाका पड़ा है - िवचार कर तुरंत गाड़ी के पास पहु ं चा और िसपािहय को चौकोर खड़े होने
की आ ा दी। अं ज े का नशा िवप के समय नह रहता। िसपािहय के उस तरह खड़े
होते ही दूसरी आ ा से उ ह ने अपनी-अपनी बंदक
ू संभाली। इसी समय एकाएक साहब
की कमर की तलवार िकसी ने छीन ली और फौरन उसने एक बार म साहब का िसर
भु े की तरह उड़ा िदया- साहब का धड़ घोड़े से िगरा। फायर करने का हु म वह दे न
सका। तब लोग ने दे खा िक एक यि गाड़ी पर हाथ म नंगी तलवार िलए हु ए
ललकार रहा है -मारो, िसपािहय को मारो.....मारो! साथ ही हिर हिर! का जय नाद भी
करता जाता है । वह यि और कोई नह भवानंद था।

एकाएक अपने साहब को मरा हु आ दे ख और अपनी र ा के िलए िकसी को आ ा दे ते


न दे खकर सरकारी िसपाही डटकर भी िन े हो गए। इस अवसर पर तेज वी डाकुओं
ने अपने िसपािहय को हताहत कर आगे बढ़, गाड़ी पर रखे हु ए खजाने पर अिधकार
जमा िलया। सरकारी फौजी टुकड़ी भयभीत होकर भागी।

अंत म वह यि सामने आया जो दल का नेतृ व करता था और पहाड़ी पर खड़ा था।


उसने आकर भवानंद को गले लगा िलया। भवानंद ने कहा-भाई जीवानंद! तु हारा नाम
साथक हो?
इसके बाद अप त धन को यथा थान भेजने का भार जीवानंद पर रहा। वह अपने
अनुचर के साथ खजाना लेकर शी ही िकसी अ य थान म चले गए। भवानंद अकेले
खड़े रह गए।

बैलगाड़ी पर से कूदकर एक िसपाही की तलवार छीनकर मह सह ने भी चाहा िक यु


म योग द। लेिकन इसी समय उ ह य िदखाई िदया िक यु म लगा हु आ दल और
कुछ नह , डाकुओं का दल है -धन छीनने के िलए इन लोग ने िसपािहय पर आ मण
िकया है । यह िवचार कर मह यु से िवरत हो दूर जा खड़े हु ए। उ ह ने सोचा िक
डाकुओं का साथ दे ने से उ ह भी दुराचार का भागी बनना पड़ेगा। वे तलवार फककर
धीरे -धीरे वह थान यागकर जा रहे थे, इसी समय भवानंद उसके पास आकर खड़े हो
गए। मह ने पूछा-महाशय! आप कौन ह?

भवानंद ने कहा-इससे तु ह या योजन है ?

मह -मेरा कुछ योजन है - आज आपके ारा म िवशेष उपकृत हु आ हू ं ।

भवान द-मुझे ऐसा नह था िक तु ह इतना ान है । हाथ म हिथयार रहते हु ए भी तुम


यु से िवरत रहे ... जम दार के लड़के घी-दूध का ा करना तो जानते है , लेिकन
काम के समय बंदर बन जाते ह!

भवानंद की बात समा होते-न-होते मह घृणा के साथ कहा-यह तो अपराध है , डकैती


है


भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोग के ारा तु हारा कुछ उपकार हु आ था, साथ ही
और भी कुछ उपकार कर दे ने की इ छा है !

मह -तुमने मेरा कुछ उपकार अव य िकया है लेिकन और या उपकार करोगे? िफर


डाकुओं ारा उपकृत होने के बदले अनुपकृत होना ही अ छा है ।

भवानंद-उपकार हण न करो, यह तु हारी इ छा है । यिद इ छा हो तो मेरे साथ आओ,


तु हारी ी-क या से मुलाकात करा दूंगा!

मह पलटकर खड़े हो गए, बोले- या कहा?

भवानंद ने इसका कोई जवाब न दे कर पैर बढ़ाया।

अंत म मह भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे
डाकू ह?....

िजस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर चारी ने चार ओर दे खा था उसी
राह से इन लोग को गुजरना था। उस पहाड़ी के िनकट पहु ं चने पर िसपािहय ने दे खा िक
एक िशलाखंड पर जंगल के िकनारे एक पु ष खड़ा है । हलकी चांदनी म उस पु ष का
काला शरीर चमकता हु आ दे खकर िसपाही बोला--दे खो एक साला और यहां खड़ा है ।
इस पर उसे पकड़ने के िलए एक आदमी दौड़ा, लेिकन वह आदमी वह खड़ा रहा, भागा
नह - पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह यि कुछ न बोला। हवलदार ने
कहा-इस साले के िसर पर गठरी लादो! िसपािहय के एक भारी गठरी दे ने पर उसने भी
िसर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक
िप तौल चलने की आवाज हु ई- हवलदार माथे म गोली खाकर िगर पड़ा।

इसी साले ने हवलदार को मारा है ! कहकर एक िसपाही ने उस मोिटया का हाथ पकड़


िलया। मोिटये के हाथ म तब तक िप तौल थी। मोिटये ने अपने िसर का बोझ फककर
और तुरंत पलटकर उस िसपाही के माथे पर आघात िकया, िसपाही का माथा फट गया
और जमीन पर िगर पड़ा। इसी समय हिर! हिर! हिर! पुकारता दो सौ यि य ने आकर
िसपािहय को घेर िलया। िसपाही गोरे साहब के आने की ती ा कर रहे थे। साहब भी
डाका पड़ा है - िवचार कर तुरंत गाड़ी के पास पहु ं चा और िसपािहय को चौकोर खड़े होने
की आ ा दी। अं ज े का नशा िवप के समय नह रहता। िसपािहय के उस तरह खड़े
होते ही दूसरी आ ा से उ ह ने अपनी-अपनी बंदक
ू संभाली। इसी समय एकाएक साहब
की कमर की तलवार िकसी ने छीन ली और फौरन उसने एक बार म साहब का िसर
भु े की तरह उड़ा िदया- साहब का धड़ घोड़े से िगरा। फायर करने का हु म वह दे न
सका। तब लोग ने दे खा िक एक यि गाड़ी पर हाथ म नंगी तलवार िलए हु ए
ललकार रहा है -मारो, िसपािहय को मारो.....मारो! साथ ही हिर हिर! का जय नाद भी
करता जाता है । वह यि और कोई नह भवानंद था।

एकाएक अपने साहब को मरा हु आ दे ख और अपनी र ा के िलए िकसी को आ ा दे ते


न दे खकर सरकारी िसपाही डटकर भी िन े हो गए। इस अवसर पर तेज वी डाकुओं
ने अपने िसपािहय को हताहत कर आगे बढ़, गाड़ी पर रखे हु ए खजाने पर अिधकार
जमा िलया। सरकारी फौजी टुकड़ी भयभीत होकर भागी।

अंत म वह यि सामने आया जो दल का नेतृ व करता था और पहाड़ी पर खड़ा था।


उसने आकर भवानंद को गले लगा िलया। भवानंद ने कहा-भाई जीवानंद! तु हारा नाम
साथक हो?
इसके बाद अप त धन को यथा थान भेजने का भार जीवानंद पर रहा। वह अपने
अनुचर के साथ खजाना लेकर शी ही िकसी अ य थान म चले गए। भवानंद अकेले
खड़े रह गए।

बैलगाड़ी पर से कूदकर एक िसपाही की तलवार छीनकर मह सह ने भी चाहा िक यु


म योग द। लेिकन इसी समय उ ह य िदखाई िदया िक यु म लगा हु आ दल और
कुछ नह , डाकुओं का दल है -धन छीनने के िलए इन लोग ने िसपािहय पर आ मण
िकया है । यह िवचार कर मह यु से िवरत हो दूर जा खड़े हु ए। उ ह ने सोचा िक
डाकुओं का साथ दे ने से उ ह भी दुराचार का भागी बनना पड़ेगा। वे तलवार फककर
धीरे -धीरे वह थान यागकर जा रहे थे, इसी समय भवानंद उसके पास आकर खड़े हो
गए। मह ने पूछा-महाशय! आप कौन ह?

भवानंद ने कहा-इससे तु ह या योजन है ?

मह -मेरा कुछ योजन है - आज आपके ारा म िवशेष उपकृत हु आ हू ं ।

भवान द-मुझे ऐसा नह था िक तु ह इतना ान है । हाथ म हिथयार रहते हु ए भी तुम


यु से िवरत रहे ... जम दार के लड़के घी-दूध का ा करना तो जानते है , लेिकन
काम के समय बंदर बन जाते ह!

भवानंद की बात समा होते-न-होते मह घृणा के साथ कहा-यह तो अपराध है , डकैती


है


भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोग के ारा तु हारा कुछ उपकार हु आ था, साथ ही
और भी कुछ उपकार कर दे ने की इ छा है !

मह -तुमने मेरा कुछ उपकार अव य िकया है लेिकन और या उपकार करोगे? िफर


डाकुओं ारा उपकृत होने के बदले अनुपकृत होना ही अ छा है ।

भवानंद-उपकार हण न करो, यह तु हारी इ छा है । यिद इ छा हो तो मेरे साथ आओ,


तु हारी ी-क या से मुलाकात करा दूंगा!

मह पलटकर खड़े हो गए, बोले- या कहा?

भवानंद ने इसका कोई जवाब न दे कर पैर बढ़ाया।

अंत म मह भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे
डाकू ह?....

उस चांदनी रात म दोन ही जंगल पार करते हु ए चले जा रहे थे। मह चुप, शांत, ग वत
और कुछ कौतूहल म भी थे।

सहसा भवानंद ने िभ प प धारण कर िलया। वे अब थत-मू त, धीर- वृि


स यासी न रहे - वह रणिनपुण वीरमू त, अं ज
े सेना य का िसर काटने वाला प
अब न रहा। अभी िजस ग वत भाव से वे मह का ितर कार कर रहे थे, अब भवानंद
वह न थे- मानो यो सनामयी, शांितमयी पृिथवी की त -कानन-नद-नदीमय शोभा
िनरखकर उसके िच म िवशेष पिरवतन हो गया हो। च ोदय होने पर समु मान हं स
उठा। भवानंद हं समुख, मुखर, ि यसंभाषी बन गए और बातचीत के िलए बहु त बेचन
ै हो
उठे । भवानंद ने बातचीत करने के अनेक उपाय रचे, लेिकन महे चुप ही रहे । तब
िन पाय होकर भवानंद ने गाना शु िकया-

व दे मातर !

सुजलां सुफलां मलयजशीतला

श य यामलां मातर ......।

मह गाना सुनकर कुछ आ य म आए। वे कुछ समझ न सके- सुजलां, सुफलां,


मलयजशीतलां, श य यामला माता कौन है ? उ ह ने पूछा-यह माता कौन है ?

कोई उ र न दे कर भवानंद गाते रहे -

शु यो सना पुलिकत यािमनी


फु कुसुिमत दमदल शोिभनी

सुहािसन सुमधुरभािषणी

सुखदां वरदां मातर । ...

मह बोले-यह तो दे श है , यह तो मां नह है ।
भवानंद ने कहा -हमलोग दूसरी िकसी मां को नह मानते। जननी ज मभूिम वग दिप
गरीयसी- हमारी माता, ज मभूिम ही हमारी जननी है - हमारे न मां है , न िपता है , न भाई
है - कुछ नह है , ी भी नह , घर भी नह , मकान भी नह , हमारी अगर कोई है तो वही
सुजला, सुफला, मलयजसमीरण-शीतला, श य यामला...

अब मह ने समझकर कहा -तो िफर गाओ!

भवानंद िफर गाने लगे-

व दे मातर !

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम

श य यामलां मातर ......।

शु यो सना-पुलिकत यािमनी

फु कुसुिमत दमदलशोिभनी
सुहािसन सुमधुरभािषणी

सुखदां, वरदां मातर ।।

व दे मातर .....
स कोिटक ठ-कलकल िननादकराले,

ि स कोिट भुजध
ै ◌ृत खरकरवाले,

अबला केनो मां तुिम एतो बले!


बहु बलधािरणी नमािम तािरणी

िरपुदलवािरणी मातर ॥ व दे ....


तुमी िव ा, तुमी धम,

तुमी हिर, तुमी कम,


वं िह ाण : शरीरे ।

बाहु ते तुमी मां शि ,

दये तुमी मां भि ,


तोमारई ितमा गड़ी म दरे -म दरे ।

वं िह दुग दश हरण धािरण ,

कमला कमल-दल-िवहािरण ,
वाणी िव ादाियन नमािम वं

नमािम कमलां, अमलां, अतुलाम,

सुजलां, सुफलां, मातर


व दे मातर ॥

यामलां, सरलां, सु मतां, भूिषता

धरणी, भरणी मातर ॥ व दे मातर ..


आन दमठ भाग-4
सबेरा हो गया है । वह जनहीन कानन अब तक अंधकारमय और श दहीन था। अब
आलोकमय ात: काल म आनंदमय कानन के आनंद-मठ स यानंद वामी मृगचम पर
बैठे हु ए सं या कर रहे है । पास म भी जीवानंद बैठे ह। ऐसे ही समय मह को साथ म
िलए हु ए वामी भवानंद वहां उप थत हु ए। चारी चुपचाप सं या म त ीन रहे , िकसी
को कुछ बोलने का साहस न हु आ। इसके बाद सं या समा हो जाने पर भवानंद और
जीवानंद दोन ने उठकर उनके चरण म णाम िकया, पदधूिल हण करने के बाद दोन
बैठ गए। स यानंद इसी समय भवानंद को इशारे से बाहर बुला ले गए। हम नह जानते
िक उन लोग म या बात हु ई। कुछ दे र बाद उन दोन के मंिदर म लौट आने पर मंद-मंद
मुसकाते हु ए चारी ने मह से कहा-बेटा! म तु हारे दु:ख से बहु त दु:खी हू ं । केवल
उ ह दीनबंधु भु की ही कृपा से कल रात तु हारी ी और क या को िकसी तरह बचा
सका। यह उ ह चारी ने क याणी की र ा का सारा वृ ांत सुना िदया। इसके बाद
उ ह ने कहा-चलो वे लोग जहां ह वह तु ह ले चल!

यह कहकर चारी आगे-आगे और मह पीछे दे वालय के अंदर घुसे। वेश कर


मह ने दे खा- बड़ा ही लंबा चौड़ा और ऊंचा कमरा है । इस अ णोदय काल म जबिक
बाहर का जंगल सूय के काश म हीर के समान चमक रहा है , उस समय भी इस कमरे
म ाय: अंधकार है । घर के अंदर या है - पहले तो मह यह दे ख न सके, कतु कुछ दे र
बाद दे खते-दे खते उ ह िदखाई िदया िक एक िवराट चतुभुज मू त है , शंख-च -गदा-
प धारी, कौ तुभमिण दय पर धारण िकए, सामने घूमता सुदशनच िलए थािपत है ।
मधुकैटभ जैसी दो िवशाल िछ म तक मू तयां खून से लथपथ सी िचि त सामने पड़ी
है । बाएं ल मी आलुलाियत-कुंतला शतदल-मालाम डता, भय त की तरह खड़ी ह।
दािहने सर वती पु तक, वीणा और मू तमयी राग-रािगनी आिद से िघरी हु ई तवन कर
रही है । िव णु की गोद म एक मोिहनी मू त-ल मी और सर वती से अिधक सुंदरी, उनसे
भी अिधक ऐ यमयी- अंिकत है । गंधव, िक र, य , रा सगण उनकी पूजा कर रहे
ह। चारी ने अतीव गंभीर, अतीव मधुर वर म मह से पूछा-सब कुछ दे ख रहे हो?
मह ने उ र िदया-दे ख रहा हू ं

चारी-िव णु की गोद म कौन ह, दे खते हो?

मह -दे खा, कौन ह वह?

चारी -मां!

मह -यह मां कौन है ?

चारी ने उ र िदया -हम िजनकी संतान ह।

मह -कौन है वह?

चारी -समय पर पहचान जाओगे। बोलो, वंदे मातर ! अब चलो, आगे चलो!

चारी अब मह को एक दूसरे कमरे म ले गए। वहां जाकर मह ने दे खा- एक


अ ुत शोभा-संप , सव भरणभूिषत जग ा ी की मू त िवराजमान है । मह ने पूछा-यह
कौन ह?

चारी-मां, जो वहां थी।


मह -यह कौन ह?

चारी -इ ह ने यह हाथी, सह आिद व य पशुओं को पैर से र दकर उनके आवास-


थान पर अपना प ासन थािपत िकया। ये सव लंकार-पिरभूिषता हा यमयी सुंदरी है -
यही बालसूय के व णम आलोक आिद ऐ य की अिध ा ी ह- इ ह णाम करो!

मह ने भि भाव से जग ा ी- िपणी मातृभूिम-भारतमाता को णाम िकया। तब


चारी ने उ ह एक अंधेरी सुरंग िदखाकर कहा-इस राह से आओ! चारी वयं
आगे-आगे चले। मह भयभीत िच से पीछे -पीछे चल रहे थे। भूगभ की अंधेरी कोठरी
म न जाने कहां से हलका उजाला आ रहा था। उस ीण आलोक म उ ह एक काली
मू त िदखाई दी।

चारी ने कहा-दे खो अब मां का कैसा व प है !

मह ने कहा-काली?

चारी-हां मां काली- अंधकार से िघरी हु ई कािलमामयी समय हरनेवाली है इसीिलए


नग ह। आज दे श चार तरफ मशान हो रहा है , इसिलए मां कंकालमािलनी है - अपने
िशव को अपने ही पैर तले र द रही ह। हाय मां! चारी की आंख से आंसू की धारा-
बहने लगी।

आनंद-वन से बाहर िनकल आने पर कुछ दूर तक राह चलने म तो जंगल उनके एक
बाजू रहा। जंगल की बगल से ही शायद वह राह गई है । एक जगह जंगल म से ही एक
ै ै
छोटी नदी कलकल कर बहती है । जल बहु त ही साफ है , लेिकन दे खने पर जंगल की
छाया से जल भी काला िदखाई दे ता है । नदी के दोन बाजू सघन बड़े-बड़े वृ मनोरम
छाया िकए हु ए ह, िविभ प ी उन पेड़ पर बैठे कलरव कर रहे ह। उनका कलरव-
कूजन, नदी की कलकल- विन से िमलकर अपूव शितमधुर जान पड़ता है । वैसे ही वृ
के रं ग से नदी-जल का रं ग भी वैसा ही झलक रहा है । क याणी का मन भी शायद उस
रं ग म िमल गया। क याणी नदी तट के एक वृ से लगकर बैठ गई। उ ह ने अपने पित
को भी बैठने को कहा। क याणी अपने पित के हाथ को अपने हाथ म िलए बैठी रही।
िफर बोली-तु ह आज बहु त उदास दे खती हू ं । िवपद जो आयी थी, उससे तो उ ार िमल
गया है , अब इतना दु:ख य ?

मह ने एक ठं ढी सांस लेकर कहा-म अब अपने आपे म नह हू ं । म या क ं - कुछ


समझ म नह आता।...

क याणी- य ?

मह -तु हारे खो जाने पर मेरा या हाल हु आ, सुनो!...

यह कहकर मह ने अपनी सारी कहानी सिव तार वणन कर दी।

क याणी ने कहा-मुझे भी बड़ी िवपद का सामना करना पड़ा, बहु त तकलीफ उठाई।
तुम उ ह सुनकर या करोगे! इतने दु:ख पर भी मुझे कैसे न द आई थी, कह नह
सकती- कल आिखर रात भी म सोई थी। न द म मने वप दे खा। दे खा- नह कह
सकती, िकस पु यबल से म एक अपूव थान म पहु ं च गई हू ं । वहां िम ी नह है , केवल
काश- अित शीतल- बादल हट जाने पर जैसा काश रहता है , वैसा ही काश! वहां
मनु य नह थे, केवल काशमय मू तयां थी, वहां श द नह होता था, केवल दूर अपूव

संगीत जैसी विन सुनाई पड़ती थी। सदाबहार मि का-मालती-गंधराज की अपूव सुगध

फैली थी। वहां सबसे ऊंचे दशनीय थान पर कोई बैठा था, मानो आग म तपा हु आ
नील-कमल धधकता हु आ बैठा हो। उसके माथे पर सूय के काश जैसा मुकुट था;
उसके चार हाथ थे। उसके दोन बाजू कौन था, म पहचान न सकी, लेिकन कोई ी-
मू त थी। लेिकन उनम इतनी योित, इतना प, इतना सौरभ था िक म उधर दे खते ही
िव ल हो गई- उधर ताक न सकी, दे ख न सकी िक वे कौन है ? उ ह चतुभुज के सामने
एक ी और खड़ी थी- वह भी योितमयी थी, लेिकन चार तरफ मेघ जैसा छाया था,
आभा पूरी तरह िदखाई नह दे ती थी। अ प प म जान पड़ता था िक वह नारीमू त
अित दुबल, ममपीि़डत, अन य-सुंदरी, लेिकन रो रही है । वहां के मंद-सुगध
ं पवन ने
मान मुझे घुमाते-िफराते वहां चतुभुज मू त के सामने ला खड़ा िकया। उस मेधमंिडता
दुबल ी ने मुझे दे खकर कहा- यही है , इसी के कारण मह मेरी गोद म आता नह
है ।....

इसके बाद ही एक अपूव वंशी जैसी मधुर विन सुनाई पड़ी। वह श द उन चतुभुज का
था, उ ह ने मुझे कहा-तुम अपने पित को छोड़कर मेरे पास चली आओ! यह तुम लोग
की मां है मह इसकी सेवा करे गा। तुम यिद पित के पास रहोगी तो वह इनकी सेवा न
कर सकेगा। तुम चली जाओ। मने रोकर कहा-पित को छोड़कर म कैसे चली आऊं?
इसके बाद ही िफर उसी अपूव वर म उ ह ने कहा-म ही वामी, म ही पु , म ही माता,
म ही िपता और म ही क या हू ं , मेरे पास आओ! मने या उ र िदया, मुझे याद नह ,
लेिकन इसके बाद ही न द खुल गई। यह कहकर क याणी चुप हो रही।

चारी -हमलोग संतान ह। अपनी मां के हाथ म अभी केवल अ रख िदए ह।


बोलो- व दे मातर !

व दे मातर - कहकर मह ने मां काली को णाम िकया।


अब चारी ने कहा-इस राह से आओ! यह कहकर वे दूसरी सुरंग म चले। सहसा उन
लोग के सामने ात: सूय की िकरण चमक उठ , चार तरफ मधुर से प ी कूंज उठे ।
सामने दे खा, एक संगममर से िन मत िवशाल मंिदर के बीच सुवण-िन मत दशभुज-
ितमा नव-अ ण की िकरणा से योितमयी होकर हं स रही ह। चारी ने णाम कर
कहा-ये ह मां, जो भिव यत म उनका प होगा। इनके दशभुज दश िदशाओं म सािरत
ह, उनम नाना आयुध प म नाना शि यां शोिभत ह। पैर के नीचे शत दबे हु ए ह, पैर
के िनकट वीर-केशरी भी शत-िनपीड़न से मग है । िद भुजा-कहते-कहते स यानंद
ग हो रोने लगे-िद भुजा- नाना हरणधािरणी, शतिवम दनी, वीरे पृ िवहािरणी,
दािहने ल मी भा य िपणी, बाएं वाणी िव ािव ानदाियनी- साथ म शि के आधार
का तकेय, कायिसि पी गणेश- आओ, हम दोन मां को णाम कर! इस पर दोन ही
हाथ जोड़कर माता का प िनहारते हु ए ाथना करने लगे-

सवमंगलमांग ये िशवे सव थसािधके।

शर ये ˜य बके गौरी नारायिण नमो तुते॥

दोन के भि -भाव से णाम कर चुकने के बाद, भरे हु ए गले से मह ने पूछा- मां की


ऐसी मू त कब दे खने को िमलेगी?

चारी ने कहा -िजस िदन मां की सारी स तान एक साथ मां को बुलाएंगी, उसी िदन
मां स ह गी।

एकाएक मह ने पूछा -मेरी ी-क या कहां ह?

चारी-चलो, दे खोगे? चलो!


मह -उन लोग से भी एक बार म िमलूंगा, इसके बाद उ ह िबदा कर दूंगा।....

चारी- य िबदा करोगे?

मह -म भी यह महामं हण क ं गा!

चारी -उ ह कहां िवदा करोगे?

मह ने िवचारकर कहा-मेरे धर पर कोई नह है , मेरा दूसरा कोई थान भी नह है । इस


महामारी के समय और कहां थान िमलेगा।

चारी-िजस राह से यहां आये हो, उसी राह से मंिदर से बाहर जाओ! मंिदर के दरवाजे
पर तु ह ी-क या िदखाई दगी। क याणी अभी तक िनराहार है । जहां वे दोन बैठी ह
वह भोजन की साम ी पाओगे। उसे भोजन कराके तु हारी जो इ छा हो करना। अब
हम लोग म से िकसी से कुछ दे र मुलाकात न होगी। यिद तु हारा मन इधर होगा तो
समय पर म तुमसे िमलूंगा।

इसके बाद ही िकसी तरह से एकाएक चारी अंत हत हो गए। मह ने पूव-पिरिचत


राह से लौटकर दे खा- नाटय मंिदर म क याणी क या को िलए हु ए बैठी है ।

इधर स यानंद एक दूसरी सुरंग म जाकर एक अकेली भूगभ थत कोठरी म उतर पड़े।
वहां जीवान द और भुवानंद बैठे हु ए पये िगन-िगनकर रख रहे थे। उस कमरे म ढेर
सोना, चांदी, तांबा, हीरे , मोती, मूंगे रखे हु ए थे। गत रात खजाने की लूट का माल ये
लोग िगन-िगनकर रख रहे थे।

स यानंद ने कमरे म वेश कर कहा-जीवानंद! मह हमारे साथ आएगा। उसके आने से


संतान का िवशेष क याण होगा। कारण आने से उसके पूवज का संिचत धन मां की
सेवा म अ पत होगा। लेिकन जब तक वह तन-मन-वचन से मातृभ न हो, तब तक
उसे हण न करना। तुम लोग के हाथ का काम समा होने पर तुम लोग िभ -िभ
समय म उसका अनुसरण करना, उिचत समय पर उसे ीिव णुमंडप म उप थत
करना, और समय हो या कुसमय हो, उन लोग की र ा अव य करना। कारण, जैसे
दु का दमन और दलन संतान का धम है , वैसे ही िश की र ा करना भी संतान का
धम है !

अनेक दु:ख के बाद मह और क याणी म मुलाकात हु ई। क याणी रोकर पछाड़ खा


िगरी। मह और भी रोए। रोने-गाने के बाद आंख के प छने की धूम मच गई। िजतने
बार आंख प छी जाती थी, उतनीही बार आंसू आ जाते थे। आंसू बंद करने के िलए
क याणी ने भोजन की बात उठाई। चारीजी के अनुचर जो खाना रख गए थे,
क याणी ने उसे खाने के िलए मह से कहा। दु भ के िदन म इधर अ भोजन की
कोई संभावना नह थी, िफर भी आसपास जो कुछ है , संतान के िलए वह सुलभ है । वह
जंगल साधारण मनु य के िलए अग य है जहां िजस वृ म जो फल होते ह, उ ह भूखे
लोग तोड़कर खाते ह, कतु इस अग य वन के वृ का फल कोई नह पाता इसिलए
चारी के अनुचर ढेर फल और दूध लाकर रख जाने म समथ हु ए। सं यासीजी की
स पि म अनेक गौएं भी ह। क याणी के अनुरोध पर मह ने पहले कुछ भोजन िकया,
इसके बाद बचा हु आ भोजन अकेले म बैठकर क याणी ने खाया। उन लोग ने थोड़ा
दूध क या को िपलाया, बाकी बचा हु आ रख िलया- िफर िपलाने की आशा ही तो माता-
िपता का संतान के ित धम है । इसके बाद थकावट और भोजन के कारण दोन ने
न ािभभूत होकर आराम िकया।
न द से उठने के बाद दोन िवचार करने लगे-अब कहां चलना चािहए? क याणी ने
कहा-घर पर िवपद की संभावना समझकर हमने गृह याग िकया था, लेिकन अब दे खती
हू ं िक घर से भी अिधक क बाहर है । न हो तो चलो, घर ही लौट चल! मह की भी
यही इ छा थी। मह की इ छा है िक क याणी को घर पर बैठाकर, कोई एक िव ासी
अिभभावक िनयु कर, इस परमरमणीय, अपा थव पिव मातृसेवा- त को हण
करगे। अत: इस बात पर वे सहज ही सहमत हो गए। अब दोनो ही ािणय ने थकावट
दूर होने पर क या को गोद म लेकर िफर पदिच ह की तरफ या ा की।

कतु पदिच ह जाने के िलए िकस राह से जाना होगा- उस दुभ वन म वे कुछ भी समझ
न सके। उ ह ने समझा था िक जंगल पार होते ही हम राह िमल जाएगी और पदिच ह
पहु ं च सकगे। लेिकन वहां तो बन का ही थाह नह लगता है । बहु त दे र तक वे लोग वन
के अंदर इधर-उधर च र लगाते रहे और बार-बार घूम-िफरकर वे लोग मठ म ही पहु ं च
जाते थे। उ ह जंगल से पार होनेवाली राह िमलती ही न थी। यह दे खते हु ए सामने एक
वै णव वेशधारी खड़े हं स रहे थे। यह दे खकर मह ने होकर उनसे कहा-गो वामी!
खड़े-खड़े हं सते य हो?

गो वामी बोले-तुमलोग इस वन म आए कैसे?

मह बोले-जैसे भी हो आ ही गए ह!

गो वामी- वेश कर सके तो बाहर य नह िनकल पाते हो? यह करकर वै णव िफर


हं सने लगे।

मह ने वैसे ही वर म कहा-हं सते तो हो, लेिकन या तुम इसके बाहर िनकल


सकते हो?
वै णव ने कहा-मेरे साथ आओ, म राह बता दे ता हू ं । अव य ही तुम लोग चारीजी के
संग आए ह गे, अ यथा न तो कोई यहां आ सकता है , न िनकल ही सकता है ।
अपिरिचत के िलए यह भूल-भुलैया है ।

यह सुनकर मह ने कहा-आप भी स तान ह?

वै णव ने कहा-हां, म भी स तान हू ं । मेरे साथ आओ। तु ह राह िदखाने के िलए ही म


यहां खड़ा हू ं ।

मह ने पूछा -आपका नाम या है ?

वै णव ने उ र िदया-मेरा नाम धीरानंद वामी है ।

यह कहकर धीरानंद आगे-आगे चले और क याणी के साथ मह पीछे -पीछे । धीरानंद


ने एक बड़ी सी दुगम राह से उ ह जंगल के बाहर कर िदया और आगे की राह बता दी।
इसके बाद वे िफर जंगल म पलटकर गायब हो गए।

बुरी बात ही मां-बाप के मुंह से पहले िनकलती है - जहां अिधक ेम होता है , वहां भय भी
बहु त अिधक होता है । मह ने यह कभी दे खा न था िक िटिकया पहले िकतनी बड़ी थी।
अब उ ह ने िटिकया अपने हाथ म उठाकर मजे म उसे दे खकर कहा-मालूम तो होता है
िक कुछ खा गई है ।
क याणी को कुछ ऐसा ही िव ास हु आ। िटिकया हाथ म लेकर बहु त दे र तक वह भी
उसकी जांच करती रही। इधर क या ने दो-एक घूंट रस जो चूस िलया था, उससे उसकी
दशा िबगड़ने लगी- वह छटपटाने लगी, रोने लगी, अंत म कुछ बेहोश सी हो पड़ी। तब
क याणी ने पित से कहा-अब या दे खते हो? िजस राह पर भगवान ने बुलाया है , उसी
राह पर सुकुमारी चली, मुझे भी वही राह लेनी पड़ेगी।

यह कहकर क याणी ने उस िटिकया को उठाकर मुंह म डाल िलया और एक ण म


िनगल गई।

मह रोने लगे- या िकया, क याणी! अरे तुमने यह या िकया है ?....

क याणी ने कोई उ र न दे कर पित के पैर की धूिल माथे लगाई, िफर बोली- भु! बात
बढ़ाने से बात बढ़े गी...म चली।

क याणी! यह या िकया?- कहकर मह िच ाकर रोने लगे।

बड़े ही धीमे वर म क याणी बोली-मने अ छा ही िकया है , इस नाचीज औरत के पीछे


तुम अपनी मातृभूिम की सेवा से वंिचत रहते। दे खो म दे ववा य का उ ंघन कर रही थी,
इसिलए मेरी क या गई। थोड़ी और अवहे लना करने से तुम पर िवपि आती।

मह ने रोते हु ए कहा-अरे , तु ह कह बैठाकर म चला जाता, क याणी!- काय िस हो


जाने पर िफर हम लोग िमलकर सुखी होते। क याणी! मेरी सव व! तुमने यह या!!
िजस भुजा के बल पर म तलवार पकड़ता, हाय! तुमने वही भुजा काट दी। तु ह खोकर
म या रह पाऊंगा।....
क याणी-कहां मुझे ले जाते?- कहां थान है ? मां-बाप, सगे-संबंधी सब इस दु दन म
चले गए ह। िकसके घर म जगह है , कहां जाने का िवचार है ? कहां ले जाओगे? म
काल ह हू ं - मने मरकर अ छा ही िकया है ! मुझे आशीव द दो, म उस आलोकमय लोक
म जाकर तु हारी ती ा म रहू ं और िफर तु ह पाउं।

यह कहकर क याणी ने िफर वामी का पदरे णु हण िकया। मह कोई उ र न दे कर


रोते ही रहे । क याणी िफर अित मृद,ु अित मधुर, अतीव ह
े मय कंठ से बोली-दे खो,
दे वताओं की इ छा, िकसकी मजाल है िक उसका उ ंघन कर सके! मुझे जाने की
आ ा उ ह ने दी है , तो या म िकसी तरह भी क सकती हू ं ? म वयं न मरती तो कोई
मार डालता! मने आ मह या कर अ छा ही िकया है । तुमने दे शो ार का जो त िलया
है , उसे तन-मन-धन से पूरा करो- इसी म तु ह पु य होगा- इसी पु य से मुझे भी
वगलाभ होगा। हम दोन ही साथ-साथ अ य वगमुख का उपभोग करगे।

इधर बािलका एक बार दूध की उ टी कर स भलने लगी। उसके पेट म िजस पिरमाण म
िवष गया था, वह घातक नह था। लेिकन मह का यान उस समय उधर न था। उ ह ने
क या को क याणी की गोद म दे दोन का गाढ़ अ लगन कर फूट-फूटकर रोना शु
िकया। उसी समय वन म से मधुर कतु मेघ-गंभीर श द सुनाई पड़ने लगा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !

गोपाल गो वद मुकुंद शौरे !

उस समय क याणी पर िवष का भाव हो रहा था, चेतना कुछ लु हो चली थी। उ ह ने
अवचेतन मन से सुरा, मानो वैकु ठ से यह अपूव विन उभरकर गूज
ं रही है -
हरे मुरारे मधुकैटभारे !
गोपाल गो वद मुकुंद शौरे !

तब क याणी ने अ सरा निदत कंठ से बड़े ही मोहक वर म गाया-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !

वह मह से बोली- कहो हरे मुरारे मधुकैटभारे !

वन म गूज
ं ने वाले मधुर वर और क याणी के मधुर वर पर िवमु ध होकर कातर दय
से एक मा ई र को ही सहाय समझाकर मह ने भी पुकारा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !.....

तब मानो चार तरफ से विन होने लगी--

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

और मानो वृ के प से भी आवाज िनकलने लगी-


हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

नदी के कलकल विन म भी वही श द हु आ-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

अब मह अपना शोक संताप भूल गए, उ म होकर वे क याणी के साथ एक वर से


गाने लगे-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

जंगल म से भी उसके वर से िमली हु ई वाणी िनकली-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

क याणी का कंठ मश: ीण होने लगा, िफर भी वह पुकार रही थी-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

इसके बाद ही उसका कंठ मश: िन त ध होने लगा, क याणी के मुंह से अब श द नह


िनकलता- आंख ढंक गई, अंग शीतल हो गए। मह समझ गए िक क याणी ने हरे


मुरारे कहते हु ए बैकुंठ याण िकया। इसके बाद ही पागल की तरह उ वर से वन को
क पत करते हु ए पशु-पि य को च काते हु ए मह पुकारने लगे-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

इसी समय िकसी ने आकर उनका अ लगन िकया और उसी वर म वह भी कहने


लगा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे !....

तब उस अनंत ई र की मिहमा से, उस अनंत वन म अनंत पथगामी शरीर के सामने


दोन जन अनंत नाम- मरण करने लगे। पशु-प ाी नीरव थे, पृ वी अपूव शोभामयी थी-
इस परम पावन गीत के उपयु मंिदर था वह। स यानंद मह को बांह म संभाल कर
बैठ गए।

मह िव मत, त भत होकर चुप हो रहे । ऊपर पेड़ पर कोई प ी बोल उठा, पपीहा
अपनी बोली से आकाश गुज
ं ाने लगा, कोिकल स - वर म गाने लगी, भृंगराज की
झनकार से जंगल गूज
ं उठा। पैर के नीचे तिरणी मृदु क ोल कर रही थी। बहु तेरे व य
पु प के सौरभ से मन हरा हो रहा था। कह -कह नदी-जल को सूय-र म चमका रही
थी। कह ताड़ के प े हवा के झ के से मरमरा रहे थे। दूर नीली पवत- ेणी िदखाई पड़
रही थी। दोन ही जन मु ध-नीरव हो यह सब दे खते रहे । बहु त दे र बाद क याणी ने िफर
पूछा- या सोच रहे हो?


मह -यही सोचता हू ं िक या करना चािहए? यह वप केवल िवभीिषका मा है , अपने
ही दय म पैदा होकर अपने ही म लीन हो जाता है । चलो, घर चल!

क याणी-जहां ई र तु ह जाने को कहते ह, तुम वह जाओ!

यह कहकर क याणी ने क या अपने पित की गोद म दे दी। मह ने उसे अपने गोद म


लेकर पूछा-और तुम...तुम कहां जाओगी?

क याणी अपने दोन हाथ से दोन आंख को ढंके हु ए, साथ ही म तक पकडे़ हु ए


बोली-मुझे भी भगवान ने जहां जाने को कहा है वह जाऊंगी।

मह च क उठे । बोले-वहां कहां? कैसे जाओगी?

क याणी ने अपने पास की वही जहर की िडिबया िदखाई।

मह ने डरते हु ए भ च ा होकर कहा-यह या? जहर खाओगी?

क याणी-मन म तो सोचा था, खाऊंगी, लेिकन...

क याणी चुप होकर िवचार म पड़ गई, मह उसका मुंह ताकते रहे - ित िनमेश वष-सा
तीत होने लगा। उ ह ने दे खा िक क याणी ने बात पूरी न कही, अत: बोले-लेिकन के
बाद आगे या कह रही थ ?
क याणी-मन म था िक खाऊंगी, लेिकन तु ह छोड़कर, सुकुमारी क या को छोड़कर
बैकुंठ जाने की भी मेरी इ छा नह होती। म न म ं गी!

यह कहकर क याणी ने िवष की िडिबया जमीन पर रख दी। इसके बाद दोन ही प नी-
पु ष भूत-भिव य की अनेक बात करने लगे। बात करते हु ए दोन ही अ यमन क हो
उठे । इसी समय खेलते-खेलते सुकुमारी क या ने िवष की िडिबया उठा ली। उसे िकसी
ने न दे खा।

सुकुमारी ने मन म सोचा िक बि़ढया खेलने की चीज है । उसने इस िडिबया को एक बार


बाएं हाथ म लेकर दािहने हाथ से ख चा। इसके बाद दािहने हाथ से पकड़कर बाएं हाथ
से ख चा। इसके बाद दोन हाथ से उसे ख चना शु िकया। फल यह हु आ िक िडिबया
खुल गई, उसम से जहर की िटिकया बाहर िगर पड़ी।

बाप के कपड़े के ऊपर वह िटिकया िगरी- सुकुमारी ने उसे दे खा, मन म सोचा, िक यह


एक दूसरी खेलने की चीज है िडिबया के दोन ढ न उसने छोड़ िदए और उस िटिकया
को उठा िलया।

िडिबया को सुकुमारी ने मुंह म य नह डाला, नह कहा जा सकता। लेिकन िटिकया म


उसने जरा भी िवल ब न िकया? ि मा ेण भो य-- सुकुमारी ने उस जहर की िटिकया
को मुंह म डाल िलया।

या खाया? अरे या खाया? गजब हो गया!...


यह कहती हु ई क याणी ने क या के मुंह म उंगली डाल दी। उसी समय दोन ने दे खा िक
िवष की िडिबया खाली पड़ी हु ई है । सुकुमारी ने सोचा िक यह भी खेल की चीज है , अत:
उसने उसे दांत से दबा िलया और माता का मुंह दे खकर मु कराने लगी। लेिकन जान
पड़ता है , इसी समय जहर का कड़वा वाद उसे मालूम पड़ा और उसने मुंह िबगाड़कर
खोल िदया- वह िटिकया दांत म िचपकी हु ई थी। माता ने तुरंत िनकाल कर उसे जमीन
पर फक िदया। लड़की रोने लगी।

िटिकया उसी तरह पड़ी रही। क याणी तुरंत नदी-तट पर जाकर अपना आंचल िभगो
लाई और लड़की के मुंह म जल दे कर उसने धुलवा िदया। बड़ी ही कातर वाणी से
क याणी ने मह से पूछा- या कुछ पेट म गया होगा?
आन दमठ भाग-5
इधर राजधानी की शाही राह पर बड़ी हलचल उप थत हो गई। शोर मचने लगा िक
नवाब के यहां से जो खजाना कलक े आ रहा था, सं यािसय ने मानकर सब छीन
िलया। राजा ा से िसपाही और ब मटे र सं यािसय को पकड़ने के िलए छूटे । उस
समय दु भ -पीि़डत दे श म वा तिवक सं यासी रह ही न गए थे। कारण, वे लोग
िभ ाजीवी ठहरे , जनता वयं खाने को नह पाती तो उ ह वह कैसे दे सकती है ? अतएव
जो असली सं यासी िभ ु क थे, वे लोग पेट की वाला से याकुल होकर काशी- याग
चले गए थे। आज ये हलचल दे खकर िकतन ने ही अपना सं यासी वेष याग िदया।
रा य के भूखे सैिनक, सं यािसय को न पाकर घर-घरम तलाशी लेकर खाने और पेट
भरने लगे। केवल स यान द ने िकसी तरह भी अपने गैिरक व का पिर याग न
िकया।

उसी क ोलवािहनी नदी-तट पर, शाही राह के बगल म पही पेड़ के नीचे क याणी पड़ी
हु ई है । मह और स यानंद पर पर अ लगनब होकर आंसू बहाते हु ए भगव ाम-
उ ारण म लगे हु ए ह। उसी समय एक जमादार िसपािहय का दल िलए हु ए वहां पहु ं च
गया। सं यासी के गले पर एक बारगी हाथ ले जाकर जमादार बोला-यह साला सं यासी
है !

इसी तरह एक दूसरे ने मह को पकड़ा। कारण, जो सं यासी का साथी है वह अव य


सं यासी होगा। तीसरा एक सैिनक घास पर पड़े हु ए क याणी के शरीर की तरफ
लपका- उसने दे खा की औरत मरी हु ई है , सं यासी न होने पर भी हो सकती है । उसने
उसे छोड़ िदया। बािलका को भी यही सोच कर उसने छोड़ िदया। इसके बाद उन सबने
और कुछ न कहा, तुरंत बांध िलया और ले चले दोन जन को। क याणी की मृत दे ह
और क या िबना र क के पेड़ के नीचे पड़ी रही। पहले तो शोक से अिभभूत और ई र
के ेम म उ म हु ए मह ाय: िवचेतन अव था म थे- या हो रहा था, या हु आ- इसे
वह कुछ समझ न सके। बंधन म भी उ ह ने कोई आपि न की। लेिकन दो-चार कदम


अ सर होते ही वे समझ गए िक ये सब मुझे बांध िलए जा रहे है - क याणी का शरीर
पड़ा हु आ है , उसका अंितम सं कार नह हु आ- क या भी पड़ी हु ई है । इस अव था म
उ ह ह पशु खा जा सकते ह। मन म यह भाव आते ही मह के शरीर म बल आ गया
और उ ह ने कलाइय को मरोड़कर बंधन को तोड़ डाला। िफर पास म चलते जमादार
को इस जोर की लात लगायी िक वह लुड़कता हु आ दस हाथ दूर चला गया। तब उ ह ने
पास के एक िसपाही को उठाकर फका। लेिकन इसी समय पीछे के तीन िसपािहय ने
उ ह पकड़कर िफर िववश कर िदया। इस पर दु:ख से कातर होकर मह ने सं यासी से
कहा-आप जरा भी मेरी सहायता करते, तो म इन पांच दु को यम ार भेज दे ता।

स यानंद ने कहा-मेरे इस बूढ़े शरीर म बल ही कहां है ? म तो िज ह बुला रहा हू ं , उनके


िसवा मेरा कोई सहारा नह है । जो होना है - वह होकर रहे गा, तुम िवरोध न करो। हम इन
पांच को परािजत कर न सकगे। दे ख, ये हम कहां ले जाते ह..... भगवा हर जगह र ा
करगे!

इसके बाद इन लोग ने मुि की िफर कोई चे ा न की, चुपचाप िसपािहय के पीछे -पीछे
चलने लगे। कुछ दूर जाने पर स यानंद ने िसपािहय से पूछा-बाबा! म तो हिरनाम कह
रहा था, या भगवान का नाम लेने म भी कोई बाधा है ? जमादार समझ गया िक
स यानंद भले आदमी ह। उसने कहा-तुम भगवान का नाम लो, तु ह रोकूंगा नह । तुम
वृ चारी हो, शायद तु हारे छुटकारे का हु म हो जाएगा। मगर यह बदमाश फांसी
पर चढ़े गा!

इसके बाद चारी मृदु वर से गाने लगे-

धीर समीरे तिटनी तीरे बसित बने बनबारी।

मा कु धनुधर गमन िवल बनमितिवधुरा सुकुमारी॥.....


इ यािद।

नगर म पहु ं चने पर वे लोग कोतवाल के समीप उप थत िकए गए। कोतवाल ने नवाब
के पास इि ला भेजकर सं ित उ ह फाटक के पास की हवालात म रखा। वह कारागार
अित भयानक था, जो उसम जाता था, ाय: बाहर नह िनकलता था, य िक कोई
िवचार करने वाला ही न था। वह अं ज
े के जेलखाना नह था और न उस समय अं ज े
के हाथ म याय था। आज कानून का युग है - उस समय अिनयम के िदन थे। कानून के
युग से जरा तुलना तो करो!

रात हो गई। कारागार म कैद स यानंद ने मह से कहा-आज बड़े आनंद का िदन है ।


कारण, हम लोग कारागार म कैद है । कहो-हरे मुरारे !

मह ने बड़े कातर वर म कहा-हरे मुरारे !

स यानंद-कातर य होते हो, बेटे! तु हारे इस महा त को हण करने पर तु ह ी-


क या का याग तो करना ही पड़ता, िफर तो कोई संबंध रह न जाता।.....

मह - याग एक बात है , यमद ड दूसरी बात! िजस शि के सहारे म यह त हण


करता, वह शि मेरी ी-क या के साथ ही चली गई।

स यानंद-शि आएगी- म शि हू ं ! महामं से दीि त होओ, महा त हण करो। मह


ने िवर होकर कहा-मेरी ी और क या को यार और कु े खाते ह गे- मुझसे िकसी
त की बात न किहए!
स यानंद-इस बारे म चता मत करो! संतान ने तु हारी ी की अ येि ि या करके
तु हारी लड़की को उपयु थल म रख छोड़ा है ।

मह िव मत हु ए, उ ह इस बात पर जरा भी िव ास न हु आ। उ ह ने पूछा-आपने कैसे


जाना? आप तो बराबर मेरे साथ ह।

स यानंद-हम महामं से दीि त ह- दे वता हमारे ित दया करते ह। आज रात को तुम


यह संवाद सुनोगे और आज ही तुम कैदखाने से छूट भी जाओगे।

मह कुछ न बोला। स यानंद ने समझ िलया िक मह को मेरी बात का िव ास नह


होता। तब स यानंद बोले-तु ह िव ास नह होता? परी ा करके दे खो! यह कहकर
स यानंद कारागार के ार तक आए। या िकया, यह मह को कुछ मालूम न हु आ, पर
यह जान गए िक उ ह ने िकसी से बातचीत की है । उनके लौट आने पर मह ने पूछा-
या परी ा क ं ?

स यानंद-तुम अभी कारागार से मुि -लाभ करोगे?

उसके यह बात कहते-कहते कारागार का दरवाजा खुल गया। एक यि ने घर के


भीतर आकर कहा-मह िकसका नाम है ?

मह ने उ र िदया-मेरा नाम है ।

आगंतुक ने कहा-तु हारी िरहाई का हु म हु आ है , तुम जा सकते हो।


मह पहले तो आ य म आए। िफर सोचा, झूठी बात है । अत: परी ाथ वे बाहर आए।
िकसी ने उनकी राह न रोकी। मह शाही सड़क तक चले गए।

इस अवसर पर आग तुक ने स यानंद से कहा-महाराज! आप य नह जाते? म आपके


िलए ही आया हू ं ।

स यानंद-तुम कौन हो? गो वामी धीरानंद?

धीरानंद -जी हां!

स यानंद- हरी कैसे बने?

धीरानंद-भवान द ने मुझे भेजा है । म नगर म आने के बाद और यह सुनकर िक आप


इस कारागार म ह, अपने साथ धतूरा िमली थोड़ी िवजया ले आया था। यहां पहरे पर जो
खां साहब थे, वह उसके नशे म जमीन पर पड़े सो रहे ह। यह जमा-जोड़ा, पकड़ी, भाला
जो कुछ मने पाया है , यह सब उ ह का है ।

स यानंद-तुम यह सब पहले हु ए नगर के बार चले आओ। म इस तरह न आऊंगा।

धीरानंद-लेिकन...ऐसा य ?


स यानंद-आज स तान की परी ा है ।

मह वापस आ गए। स यानंद ने पूछा-वापस य आ गए?

मह -आप िन य ही िस पु ष ह। लेिकन म आपका साथ छोड़कर न आऊंगा।

स यानंद-ठीक है ! हम दोन ही आज रात दूसरी तरह से बाहर ह गे।

धीरानंद बाहर चले गए। स यानंद और मह कारागार म ही रहे ।

जीवानंद बोले-जानती है , आदिमय का िशकार करना ही मेरा काम है । मने अनेक


आदिमय का िशकार िकया है ।

अब िनमी भी ोध म आई। बोली-खूब िकया! अपनी प नी का याग कर िदया और


आदिमय की जान ली। या समझते हो, इससे म मान जाऊंगी? बहु त करोगे मारोगे,
लेिकन म डरनेवाली नह हू ं ! तुम िजस बाप के लड़के हो, म भी उसी बाप की लड़की हू ं ।
आदिमय का खून करने म यिद बड़ाई की बात हो, तो मुझे भी मारकर बड़ाई ा करो।

जीवानंद हं सकर बोले-अ छा बुला ला- िकस पािपनी को बुलाएगी-जा बुला! लेिकन
दे ख आज के बाद कहे गी तो उस साले के भाई व साले को िसर मुंड़ाकर गदहे पर
चढ़ाकर गांव के बाहर िनकलवा दूंगा।
िनमी ने मन ही मन सोचा-हु ई न मेरी जीत यह सोचती हु ई वह घर के बाहर िनकल गई।
इसके बाद पास ही एक झ पड़ म वह जा घुसी। कुटी म सैकड़ पैब द लगे हु ए कपड़े
पहने, -केशी एक युवती बैठी चरखा कात रही थी। िनमाई ने जाकर कहा-भाभी!
ज दी करो। भाभी ने कहा-ज दी या? न दोई ने तुझे मारा है , तो उनके सर म तेल
मलना है या?

िनमी-बात ठीक है । घर म तेल है ?

उस युवती ने तेल की शीशी सामने िखसका दी। िनमाई ने झट अंजली म ऊंड़ेलकर उस


युवती के खे बाल म लग िदया। इसके बाद झट जूड़ा बांध िदया। िफर चपत जमाकर
बोली-तेरी ढाके-वाली साड़ी कहां रखी है , बोल? उस ी ने कुछ आ य से कहा- य
जी! कुछ पागल हो गई हो या?

िनमाई ने एक मीठा घूंसा जमाकर कहा-िनकाल साड़ी ज दी!

तमाशा दे खने के िलए युवती ने भी साड़ी बाहर िनकाल दी। तमाशा दे खने के िलए
य िक इतनी तकलीफ पड़ने के बाद भी उसका सदा फु रहनेवाला दय अभी भी
वैसा ही था। नवयोवन-फूले कमल-जैसा उसकी नई उ का यौवन-तेल नह , सजावट
नह , आहार नह , िफर भी उसी मैली पैब दवाली धोती के अंदर से भी वह दी ,
अनुपमेय सौ दय फूट पड़ता था। वण म छायालोक की चंचलता, नयन म कटा ,
अधर पर हं सी, दय म धैय- मेघ म जैसे िबजली, जैसे दय म ितमा, जैसे जगत के
श द म संगीत और भ के मन म आनंद होता है , वैसे ही उस प म भी कुछ
अिनवचनीय गौरव भाग, अिनवचनीय ेम, अिनवचनीय भि । उसने हं सते-हं सते
(लेिकन उस हं सी को िकसी ने दे खा नह ) साड़ी िनकाल दी। बोली-िनमी! भला बात तो,
या होगी।
िनमी बोली-दादा आये ह। तुझे बुलाया है ।

उसने कहा-अगर मुझे बुलाया है तो साड़ी या होगी? चल इसी तरह चलूंगी। युवती
कहती जाती थी-कभी कपड़े न बदलूंगी। चल, इसी तरह िमलना होगा। आिखर िकसी
तरह भी उसने कपड़े बदले नह । अंत म दोन कुटी के बाहर आई। िनमाई को भी राजी
होना पड़ा। िनमाई भाभी को लेकर अपने घर के दरवाजे तक आ गई। इसके बाद भाभी
को अंदर का उसने दरवाजा बंद कर िलया और वयं बाहर खड़ी रही।

चारी का गाना बहु त ने सुना। और लोग के साथ जीवानंद के कान म भी वह गाना


पहु ं चा।

मह की र ा म रहने का उ ह आदे श िमला था- यह पाठक को शायद याद होगा। राह


म एक ी से मुलाकात हो गई। सात िदन से उसने खाया न था, राह-िकनारे पड़ी थी।
उसे जीवन-दान दे ने म जीवानंद को एक घंटे की दे र लग गई। ी को बचाकर, िवल ब
होने के कारण उसे गािलयां दे ते हु ए जीवानंद आ रहे थे। दे खा, भु को मुसलमान पकड़े
िलए जाते ह- वामीजी गाना गाते हु ए चले आ रहे ह।

\ धीर समीरे तिटनी तीरे बसित बने बनबारी।.....

जीवानंद महा भु वामी के सारे संकेत को समझते थे।

नदी के िकनारे कोई दूसरी ी िबना खाए-पीए तो नह पड़ी हु ई है ? सोच-िवचार


जीवानंद नदी के िकनारे चले। जीवानंद ने दे खा था िक चारी मुसलमान ारा वयं
िगर तार होकर चले जा रहे ह। अत: चारी का उ ार करना ही जीवानंद का पहला
क य था, लेिकन जीवानंद ने सोचा-इस संकेत का तो अथ नह है । उनकी जीवनर ा

ै ै
से भी बढ़कर है , उनकी आ ा का पालन- यही उनकी पहली िश ा है । अत: उनकी
आ ा ही पालन क ं गा।

नदी के िकनारे िकनारे जीवननंद चले। जाते-जाते उसी पेड़ के नीचे नदी-तट पर दे खा
िक एक ी की मृतदे ह पड़ी हु ई है और एक जीिवत क या उसके पास है । पाठक को
मरण होगा िक मह की ी-क या को जीवानंद ने एक बार भी नह दे खा था। उ ह ने
मन म सोचा- हो सकता है , यही मह की ी-क या हो! य िक भु के साथ ही उ ह ने
मह को दे खा था। जो हो, माता मृत और क या जीिवत है । पहले इनकी र ा का यास
ही करना चािहए- अ यथा बाघ-भालू खा जाएंग।े भवानंद वामी भी कह पास ही ह गे,
वह ी का अंितम सं कार करगे- यह सोचकर जीवानंद क या को गोद म लेकर चल
िदए।

लड़की को गोद म लेकर जीवानंद गो वामी उसी जंगल म घुसे। जंगल पार कर वे एक
छोटे गांव भैरवीपुर म पहु ं च।े अब लोग उसे भ ईपुर कहते ह। भ ईपुर म थोड़े-से
सामा य लोग की बसती है । पास म और कोई बड़ा गांव भी नह है । गांव पार करते ही
िफर जंगल िमलता है । चार तरफ जंगल और बीच म वह छोटा गांव है । लेिकन गांव
है । बड़ा सुंदर। कोमल तृण से भरी हु ई गोचर भूिम है , कोमल यामल प वयु आम,
कटहल, जामुन, ताड़ आिद के बगीचे ह। बीच म नील- व छ जल से पिरपूण तालाब
है । जल म बक, हं स, डाहु क आिद प ी, तट पर पपीहा, कोयल, च वाक है , कुछ दूर
पर मोर पंख फैलाकर नाच रहे ह। घर-घर के आंगन म गाय, बछड़े, बैल ह। लेिकन
आजकल गांव म धान नह है । िकसी के दरवाजे पर पजड़े म तोता है , तो िकसी के यहां
मैना। भूिम िलपी-पोती व छ है । मनु य ाय: सभी दु भ के कारण दुबल, कलांत
और मलीन िदखाई दे ते ह, िफर भी ामवािसय म ी है । जंगल म अनेक तरह के
जंगली खा पैदा होते ह। अत: गांव के लोग वहां से फल-फूल लाते ह और वही खाकर
इस दु भ म भी अपने ाण बचाए हु ए ह।


एक बड़े आम के बगीचे के बीच एक छोटा-सा घर है । चार तरफ िम ी की चहारदीवारी
है और चार कोन पर एक-एक कमरा है । गृह थ के पास गौ-बकरी है , एक मोर है , एक
मैना है , एक तोता है । एक बंदर भी था, लेिकन उसे खाना न िमलने के कारण छोड़ िदया
गया है । धान कू टने की एक ढकी है । बाहर बैल बंधे ह, बगल म न बू का पेड़ है ।
मालती जूही की लताएं ह- अथ गृह थ सु िच-स प है । लेिकन घर म ाणी अिधक
नह है । जीवानंद क या को िलए हु ए घर म चले गए।

िनमी क या को गोद म िलए हु ए खाना परोसने म य त हो गई। पहले उसने जगह पानी
से धो-प छ दी इसके बाद पीढ़ा-पानी रखकर एक थाली म भात, अरहर की दाल, परवल
की तरकारी, रोहू मछली का रसा और दूध लाकर रख िदया। खाने के िलए बैठकर
जीवानंद ने कहा-िनमाई बहन! कौन कहता है िक दे श म अकाल है ? तेरे गांव म शायद
अकाल घुसा ही नह !

िनमी बोली-भला अकाल य न होगा- भयंकर अकाल है ! हमलोग दो ही ाणी तो ह,


बहु त कुछ है , दे -िदलाकर भी भगवान एक मु ी चना ही दे ते ह। हमलोग के गांव म पानी
बरसा था- याद नह है - तु ह तो कह गए थे िक वन म पानी बरस रहा है , यहां भी
बरसेगा! इसिलए हमारे गांव म धान हो गया। गांववाले और लोग तो शहर म चावल
बेच आए, हमलोग ने नह बेचा।

जीवानंद ने पूछा-जीजाजी कहां ह?

िनमी ने गदन टे ढ़ी कर कहा-दो-तीन सेर चावल बांधकर या जाने िकसको दे ने गए ह।


िकसी ने चावल मांगा था।
इधर जीवानंद के भा य म ऐसा भोजन कभी िमला न था। यथ बातचीत म समय न
गंवाकर जीवानंद दनादन गपागप-सपासप आवाज करते हु ए ण भर म सारा भोजन
उदर थ कर गए। ीमती िनमाई मिण ने केवल अपने और पित के िलए पकाया था,
अपना िह सा उसने भाई को िखला िदया था, थाली सूनी दे खकर शम से अपने पित का
िह सा लाकर थाली म डाल िदया। जीवानंद ने सब याल छोड़कर उस वािद भोजन
को भी उदर नामक महागत म भर िलया। अब िनमाई ने पूछा-दादा! और कुछ खाओगे?

जीवानंद ने डकार लेते हु ए कहा-और या है ?

िनमाई बोली-एक प ा कटहल है ।

िनमाई ने कटहल भी ला रखा। िवशेष कोई आपि न कर जीवानंद गो वामी ने उसे भी


वंसपुर भेज िदया। अब हं सकर िनमाई ने पूछा-दादा! और कुछ नह ?

दादा ने कहा-अब रहने दे िफर िकसी िदन आकर खाऊंगा।

अंत म िनमाई ने दादा को हाथ-मुंह धोने को पानी िदया। जल ढालते हु ए िनमाई ने पूछा-
दादा! मेरी एक बात रख लोगे?

जीवानंद- या?

िनमाई-तु ह मेरी कसम!


जीवानंद-अरे बोल न कलमुंही

िनमाई-बात र खोगे?

जीवानंद-अरे पहले बता भी तो सही।

िनमाई-तु ह मेरी कसम, हाथ जोड़ती हू ं ।

जीवानंद-अरे बाबा मंजूर है ! बता तो सही, या कहती है ?

अब िनमाई गदन टे ढ़ी कर एक हाथ से दूसरे हाथ की ऊंगली तोड़ती हु ई, शम ती हु ई,


कभी नीचे जमीन दे खती हु ई बोली- एक बार भाभी को बुला दूं, मुलाकात कर लो।

जीवानंद ने हाथ धुलाने वाले लोटे को िनमी पर मारने के िलए उठाया, िफर बोले-लौटा
दे , मेरी लड़की! तेरा अन भी िकसी िदन वापस कर जाऊंगा। तू बंदरी है , कलमुंही है ।
तुझे जो बात न कहनी चािहए, वही बात मेरे सामने कहती है ।

िनमी बोली-अ छा म ऐसी ही सही पर भैया! एक बार कह दो, म भाभी को बुला लाऊं।

जीवानंद-तो लो म जाता हू ं ।
यह कहकर जीवानंद उठकर ार की तरफ बढ़े । कतु शी ता-पूवक िनमाई ने दौड़कर
िकवाड़ बंद कर िदए और वयं िकवाड़ से लगकर खड़ी हो गई। बोली-मुझे मारकर ही
बाहर जा सकते हो, भैया! आज भाभी से िबना मुलाकात िकए जाने न पाओगे।

उस ी की उ यही कोई प ीस वष के लगभग है , लेिकन दे खने म िनमाई से अिधक


उ की नह जान पड़ती। मैले पैबंद की धोती पहनकर भी, जब वह घर म घुसी तो जान
पड़ा िक जैसे घर म उजाला हो गया। जान पड़ा, जैसे बहु तेरी किलय का गु छा प से
ढंका रहने पर भी, प े हटते ही िखल उठा हो मानो गुलाब-जल की शीशी एकाएक मुंह
खुल जाने से महक गयी हो-सुलगतीे हु ई आग म जैसे िकसी ने धूप-धूना छोड़ िदया हो
और कमरे का वातावरण ही बदल जाए। पहले तो घर म घुसकर ी ने पित को दे खा
नह , िफर एकाएक िनगाह पड़ी िक आंगन म लगे छोटे आम के नीचे खड़े होकर
जीवानंद रो रहे ह। सुंदरी ने धीर-धीरे उनके पास पहु ं चकर उनका हाथ पकड़ िलया। यह
कहना भूल गया िक उनकी आंख म जल नह आया। भगवान ही जानते ह िक उसकी
आंख से आंसू की वह धारा िनकलती िक शायद जीवानंद उसम डूब जाते। लेिकन
युवती ने अपनी आंख म आंसू नह आने िदए। जीवानंद का हाथ पकड़कर उसने कहा-
िछ:! िछ:! रोते य हो? म समझी िक तुम मेरे िलए रोते हो। मेरे िलए न रोना! तुमने मुझे
िजस तरह रखा है , म उसी म सुखी हू ं ।

जीवानंद ने माथ उठाकर आंसू प छते हु ए ी से पूछा-शंित! तु हारे शरीर पर यह सैकड़


पैब द की धोती य है ? तु ह तो खाने-पहनने की कोई तकलीफ नह है ! शांित ने कहा-
तु हारा धन तु हारे ही िलए है ? पये लेकर या करना चािहए, म नह जानती। जब तुम
आओगे- जब तुम मुझे हण करोगे... जीवानंद- हण क ं गा-शांित! मने या तु ह
याग िदया है ? शांित- याग नह , जब तु हारा त पूरा होगा, जब तुम िफर मुझे यार
करोगे.... बात समा होने के पहले ही जीवानंद ने शांित के छाती से लगा िलया और
उसके कंध पर माथा रख बहु त दे र तक चुप रहे । इसके बाद एक ठं डी सांस लेकर बोले-
य मुलाकात की?
शांित - या तु हारा त भंग हो गया?

जीवानंद-हो त भंग, उसका ायि त भी है । उसके िलए शोक नह है । लेिकन तु ह


दे खकर तो िफर लौटते नह बन पड़ता। धम, अथ, काम, मो और सारा संसार, त-
होम, योग-य यह सब एक तरफ है और दूसरी तरफ तुम हो। म िकसी तरह भी समझ
नह पाता हू ं िक कौन-सा पलड़ा भारी है ? दे श तो अशांत है , म दे श लेकर या क ं गा।
तु हारे साथ एक बीघा भूिम लेकर भी बड़े आनंद से मेरा जीवन बीत सकता है । तु ह
लेकर म वग गढ़ सकता हू ं । या करना है मुझे दे श लेकर? दे श की उस संतान का
अभा य है जो तु हारी जैसी गृहल मी ा कर भी सुखी हो न सके। मुझसे बढ़कर दे श
म कौन दु:खी होगा? तु हारे शरीर पर ऐसा कपड़ा दे खकर मुझे लोग दे श म सबसे दिर
ही समझगे। मेरे सारे धम की सहायता तो तुम हो उसके सामने िफर सनातन-धम या
है ? म िकस धम के िलए दे श-दे श, वन-वन बंदक
ू कंधे पर लेकर ाणी-ह या कर इस
पाप का भार सं ह क ं ? पृ वी संतान की होगी या नह , कौन जानता है ? लेिकन तुम
मेरी हो- तुम पृ वी से भी बड़ी हो- तु ह मेरा वग हो। चलो घर चल, अब वापस न
जाऊंगा!

शांित कुछ दे र तक बोल न सकी। इसके बाद बोली-छी:! तुम वीर हो-मुझे इस पृ वी पर
सबसे बड़ा सुख यही है िक म वीर-प नी हू ं ! तुम अधम ी के िलए वीर-धम का
पिर याग करोगे? तुम अपने वीर-धम का कभी पिर याग न करना! दे खो मुझे एक बात
बताते जाओ, इस त के भंग का ायि त या है ?

जीवानंद ने कहा- ायि त है -दान, उपवास-12 कानी कौि़डयां।


शांित मु कराई और बोली-जो ायि त ह म जानती हू ं । लेिकन एक अपराध पर जो
ायि त है - वही या शत अपराध पर भी है ?

जीवानंद ने िव मत और िववश होकर कहा-लेिकन यह सब य पूछती हो?

शांित-एक िभ ा है । कहो- मेरे साथ िबना मुलाकात िकए ायि त न करोगे!

जीवानंद हं सकर कहा-इस बारे म िनि त रहो- िबना तु ह दे ख,े म न म ं गा। मरने की
ऐसी कोई ज दी भी नह है । अब म अिधक यहां न ठह ं गा, लेिकन आंख भरकर तु ह
दे ख न सका। िफर भी एक िदन अव य दे खूग
ं ा। एक िदन हम लोग के मन की कामना
ज र पूरी होगी! म अब चला तुम मेरे एक अनुरोध की र ा करना- इस वेश-भूषा का
याग कर दो। मेरे पैतृक मकान म जाकर रहो।

शांित ने पूछा-इस समय कहां जाओगे?

जीवानंद-इस समय मठ म चारीजी की खोज म जाऊंगा। वे िजस भाव से नगर गए


ह, उससे कुछ चता होती है । मठ म मुलाकात न हु ई तो नगर जाऊंगा।

घर म पहु ं चते ही जीवानंद ने आंगन के ओसरे म रखे को उठा िलया और भन -भन


उसे चलाने लगे। छोटी लड़की ने चरखे की आवाज कभी सुनी न थी। िवशेषत: माता
के छूटने के बाद से वह रो रही थी। चरखे की आवाज सुनकर वह भयभीत हो और
स म वर म गला ऊंचा कर रोने लगी। रोने की आवाज सुनकर एक कमरे से स ह-
अठारह वष की युवती बाहर आई। युवती बाएं बाएं हाथ पर बायां गाल रखे, गदन
झुकाए ही खड़ी होकर दे खने लगी। बोली-यह या दादा! चरखा य कात रहे हो? यह
लड़की कहां से पायी दादा? तु ह लड़की हु ई है या? दूसरी शादी की है या?

जीवानंद उठे और लड़की को उसकी गोद म दे कर चपत मारते चले। बोले-बंदरी कह


की! मुझे रं डुआ-भंडुआ समझ िलया है या? घर म दुध है ?

इस पर युवती ने कहा-भला दूध य न होगा? आऊं िपयोगे

जीवानंद ने कहा-हां िपऊंगा!

यव त होकर युवती घर म दूध गरम करने लगी। तब तक जीवानंद बैठकर चरखा


कातने लगे। लड़की ने युवती की गोद म जाकर रोना बंद कर िदया था। उसने या
समझा, नह कहा जा सकता। शायद इस युवती को िखले पु प दे खकर सोचा हे , िक यही
मेरी मां है । वह केवल एक बार रोई, वह भी शायद आग की आंच खाकर। लड़की का
रोना सुनकर जीवानंद ने आवाज लगाई-अरे िनमी! अरी कलमुह बंदरी! तेरा दूध गरम
नह हु आ या? उसने भी कहा-हो गया। यह कहकर वह एक पथरी म दूध ढालकर
जीवानंद के पास लाकर रख बैठ गई। जीवानंद ने बनावटी ोध िदखाकर कहा-मन
करता है , यही गरम दूध की पथरी तेरे ऊपर उंडेल दूं। तूने या समझा िक म िपयूंगा?

िनमी ने पूछा-तब कौन िपएगा?

जीवानंद-यह लड़की िपएगी। दे खती नह , अभी दूध पीनेवाली िनरी ब ी है !


यह सुनकर िनमी पलथी मारकर क या को गोद म लेकर च मच से दूध िपलाने बैठी।
एकाएक उसकी आंख से कई बूंद आंसू लुढ़क पड़े। बात यह थी िक उसे पहले एक
बालक हु आ था, जो मर गया था। उसे इस तरह दूध िपलाने म अपने ब े की याद आ
गई।

िनमी ने तुरंत अपने आंसू प छकर हं सते-हं सते जीवानंद से पूछा-ह दादा! बताओ, यह
िकसकी लड़की है ?

जीवानंद ने कहा-अरी बंदरी! तुझे या पड़ी है ?

िनमी ने कहा-लड़की मुझे दोगे?

जीवानंद-तू लेकर या करे गी?

िनमी-म लड़की को दूध िपलाऊंगी, गोद म लेकर िखलाऊंगी, बड़ी क ं गी।

कहते-कहते िनमी की आंख से आंसू ढुलक पड़े। आंसू प छकर वह िफर दांत
िनकालकर हं सने लगी। जीवानंद ने कहा-तू लेकर या करोगी? तुझे आप ही िकतने
बाल-ब े ह गे।

िनमी-जब ह गे तब ह गे। अभी इस लड़की को मुझे दे दो! न हो, बाद म िफर ले जाना।
जीवानंद-तो ले ले, लेकर मर! म बीच-बीच म आकर दे ख जाया क ं गा। यह काय थ
की लड़की है । म अब चला..।

िनमी-वाह दादा! भला खाओगे नह ? समय हो गया, तु ह मेरी कसम, खाकर तब जाना।

जीवानंद-तेरी कसम टालकर तुझे खाऊं, या भात खाऊं! िफर बोले-रहने दे , तुझे न
खाऊंगा, भात ही खाऊंगा, ला भात!

भवानंद मठ म बैठे हु ए हिरगान म त ीन थे, ऐसे ही समय दु:खी चेहरे से ानान द


नामक एक तेज वी संतान उनके पास आ पहु ं च।े भवानंद ने कहा-गो वामी! चेहरा
इतना उतरा हु आ य है ?

ानानंद ने कहा-कुछ गड़बड़ी जान पड़ती है । कल के कांड से सरकारी आदमी िजसे


ह दी-गे आ व धारी दे खते ह, उसे िगर तार कर लेते ह। करीब-करीब सभी संतान
ने आज अपना गैिरक व उतार िदया है । केवल स यानंद भु गे वा पहने हु ए ही शहर
की तरफ गए ह। कौन जाने कह मुसलमान के हथ पड़ जाए! भवानंद बोले-उ ह बंदी
कर रखे, बंगाल म अभी ऐसा कोई मुसलमान नह है । म जानता हू ं , धीरानंद उसके
पीछे -पीछे गए ह। िफर भी म एक बार नगर घूमने जाता हू ं , मठ की र ा तु ह स प जाता
हू ं ।

यह कहकर भवानंद वामी ने एक अलग कोठरी म जाकर िकतने ही तरह के कपड़े


िनकाले। भवानंद जब उस कोठरी से िनकले तो उ ह पहचानना किठन था। गे आ
व के बदले इनके पैर म चूड़ीदार पायजामा, शरीर पर अचकन, माथे पर कंगूरेदार


पगड़ी और पैर म नागौरी जूता था। अब उनके ललाट पर का चंदन-ि पु ड साफ हो
गया था, उनका चेहरा अपूव शोभा पा रहा था। उ ह दे खने से िकसी पठान जातीय
मुसलमान का ही भान होता था। इस तरह से सश होकर भवानंद मठ के बाहर हु ए।
मठ के कोई एक कोस उ र दो छोटी पहाि़डयां बगल-बगल म थ । पहाड़ी जंगल से भरी
हु ई थी। वह एक िनजन थान म सं थान की अ शाला थी। भवानंद ने वहां से एक
घोड़ा िनकाला और जीन आिद कसवाकर उस पर सवार हो, सीधे राजधानी की तरफ
चल पड़े।

जाते-जाते एकाएक उनकी गित म बधा पड़ी। उसी राह की बगल म नदी के िकनारे वृ
के नीचे उ ह ने आकाश से िगरी िबजली की तरह दीि मान एक ी को पड़ी हु ई दे खा।
उ ह ने दे खा, उसम जीवन के कोई ल ण िदखाई नह पड़ते- िवष की खाली िडिबया
पास म पड़ी हु ई है । भवानंद िव मत, ु ध और भीत हु ए। जीवानंद की तरह भवानंद ने
भी मह की ी-क या हो सकती है , भवानंद के सामने संदेह के िलए वे कारण भी न
थे- उ ह ने चारी और मह को बंदी प म ले जाते भी दे खा न था। क या भी वहां न
थी। केवल िडिबया दे खकर उ ह ने समझा िक इस ी ने िवष खाकर आ म-ह या की
है । भवानंद उस शव के पास बैठ गए, बैठकर उसके माथे पर हाथ रखकर बहु त दे र तक
परी ा करते रहे । नाड़ी-परी ा, दय-परी ा आिद अनेक कार से और दूसरे
अपिर ात तरीक से परी ा कर मन-ही-मन कहा-अभी मरी नह है -अभी भी समय है -
बचाई जा सकती है । लेिकन बचाकर करना भी या है ? इस तरह कुछ ण तक िवचार
करते रहे और इसके बाद वे उठकर एकाएक वन के अंदर चले गए। वहां से वे एक
लता की थोड़ी प ी तोड़ लाए। उसी प ी को हथेली पर मसलकर उ ह ने रस िनकाला
और अंगुिलय से दांत खोल रस को मुंह म टपकाया कान म डाला और थोड़ा म तक
पर मल िदया। इसके बाद थोड़ा रस उ ह ने नाक म भी डाल िदया। इसी तरह उ ह ने
बार-बार िकया और बीच-बीच म नाक के पास हाथ ले जाकर दे खते जाते थे िक कुछ
ास चली या नह । पहले- पहल तो भवानंद को िनराशा होने लगी, लेिकन इसके बाद
उनका मुंह स ता से िखल उठा- अंगुली म िन ास की हलकी अनुभूित हु ई। उ सािहत
हो उ ह ने बार बार वही ि या की, अब ास मजे म आने-जाने लगी। नाड़ी दे खी चल
रही थी। इसके बाद ही मश: भात-कालीन अ णोदय की तरह, भात के समय
कमल िखलने की तरह, थम ेमानुभव की तरह क याणी अपनी आंख खोलने लगी।
यह दे खकर भवानंद ने क याणी के अधजीिवत शरीर को घोड़े पर रखा और वयं पैदल
ही नगर की तरफ िनकल गए।
आन दमठ भाग-6
सं या होने के पहले ही स तान स दाय के सभी लोग ने यह जान िलया िक महे के
साथ स यान द वामी िगर तार होकर नगर की जेल म ब द है । इसके बाद ही एक एक
दो-दो दस-दस सौ-सौ हजार-हजार की सं या म आकर संतानगण उसी मठ की
चहारदीवारी से संल वन म एकि त होने लगे। सभी सश थे। सबकी आंख से ोध
की अि िनकल रही थी, चेहरे पर दृढ़ता और होठ पर ित ा थी। उन लोग के काफी
सं या म जुट जाने पर मठ के फाटक पर हाथ म नंगी तलवार िलए हु ए वामी ानान द
ने गगन भेदी वर म कहा- अनेक िदन से हम लोग िवचार करते आते है िक इस नवाब
का महल तोड़कर यवनपुरी का नाश कर नदी के जल म डुबा दगे- इन सूअर के दांत
तोड़कर इ ह आग म जलाकर माता वसुमती का उ ार करगे। भाइय ! आज वही िदन
आ गया है । हम लोग के गु के भी गु परमगु जो अन त ानमय सदा शु ाचारी,
लोकिहतैषी और दे श िहतैषी ह- िज ह ने सनातन धम की पुन: ित ा के िलए
आमरण त िलया है , ित ा की है - िज ह हम िव णु के अवतार के प म मानते ह, जो
हमारी मुि के आधार ह- वही आज े छ मुसलमान के कारागार म ब दी है । या हम
लोग की तलवार पर धार नह है ?

बांह फैलाकर ाना द ने कहा-इन बाहु ओं म या बल नही है ? छाती ठोकर बोले- या


इस दय म साहस नह ? भाइय ! बोलो-हरे मुरारे मधुकैटभारे ! िज ह ने मधुकैटभ का
िवनाश िकया है िज होनंने िहर यकिशपु, कंस,द तव ,िशशुपाल आिद दुजय असुर का
िनधन-साधन िकया है , िजनके च के च ड िनघ ष से मृ युंजय शंकर भी भयभीत हु ए
थे जो अजेय है रण म िवजयदाता ह हम उ ह के उपासक है , उनके ही बल से हमारी
भुजाओं म अन त बल है - वह इ छामय है उनके इ छा करते ही हम रण- िवजयी ह गे।
चलो, हम लोग उस यवनपुरी का िनदलन कर उसे धूिल म िमला दे । उरा शूकर िनवास
को अि से शु कर नदी-जल म धो दे , उसका जर जर उड़ा द। बोलो- हरे मुरारे
मधुकैटभारे !


इसके साथ ही उस कानन म भीषण, आकाश कंपानेवाले व िनघ ष जैसी आवाज गूज

उठी- हरे मुरारे मधुकैटभारे !

इसके साथ ही उस कानन म भीषण आकाश कंपानेवाले व िनघ ष जैसी आवाज गूज

उठी- हरे मुरारे मधुकैटभारे !

सह कंठ के िनघ ष से आकाश कांपा, वसु धरा डगमगायी। सह बाहु ओं के


घषण से असीम िननाद हु आ- हजार ढाल की आवाज से कान के पद फटने लगे।
कोलाहल करते हु ए पशु प ी जंगल से िनकलकर भागे। इस तरह जंगल से ेणीब
िशि त सेना की तरह स तानगण िनकल पड़े। वह लोग मुंह से हिरनाम कहते हु ए,
िमिलत पद- िव ेप से नगर की तरफ चले। उस अंधेरी रात म पत का ममर श द,
अ की झनकार, क ठ का अ फुट वर, बीच बीच म तुमुल वर म हिरनाम का
जयघोष! धीरे -धीरे , तेज वतापूवक सरोष स तान-वािहनी ने नगर म आकर नगर को
त कर िदया। इस अक मात जाघात से नागिरक कहां िकधर भागे, पता न लगा।
नगर- र क हतबुि हो िन े हो गये।

इधर स तान ने पहु ं चते ही पहले राजकारागार म पहु ं चकर उसे तोड़ डाला, र क को
चटनी बना िदया और स यान द तथा महे को मु कर क ध पर चढ़ाकर संतानगण
आनंद से नृ य करने लगे। हिरकीतन का अ ुत दृ य उप थत हो गया। महे और
स यानंद करे मु कर संतान ने जहां-जहां मुसलमान का घर पाया, आग लगा दी। यह
दे खकर स यानंद ने कहा-अनथक अिन की आव यकता नह । चलो, लौट चलो।
नगर के अिधकािरय ने संतान का यह उप व सुनकर िसपािहय का एक दल उनके
दमन के िलए भेज िदया। उनके पास केवल बंदक
ू ही नह थी। एक तोप भी साथ म थी।
यह खबर पाते ही स तानगण आन द कानन से पलट पड़े, लेिकन लाठी,तलवार और
छुर से या हो सकता है ? तोप के सामने ये लोग परािजत होकर भाग गये।

शा त को बहु त थोड़ी ही उ म,बचपन म ही मातृिवयोग हो गया था। िजन उपादान से


शा त का चिर -गठन हु आ है , उनम एक यह धान है । उसके िपता एक ा ण
अ यापक थे। उनके घर म और कोई ी न थी।
शा त के िपता जब पाठशाला म बालक को पढ़ाते थे, तो वभावत: उनकी बगल म
शांित भी आकर बैठती थी। िकतने ही छा तो पाठशाला म ही रहते थे; अ य समय म
शांित भी उ ह म िमलकर खेला करती थी। कभी उनकी पीठ पर चढ़ती थी, कभी गोद
म बैठ खेला करती थी। वे लोग भी शा त का आदर करते थे।

इस तरह बचपन से ही पु ष-साहचय का थम ितफल तो यह हु आ िक शा त ने


लड़िकय की तरह कपड़े पहनना सीखा, या सीखा भी तो वह ढंग पिर याग कर िदया-
लड़क की तरह कछाड़ा मारकर धोती पहनने लगी। अगर कोई उसे लड़िकय की तरह
कपड़े पहना दे ता था, तो वह तुरंत उसे खोल दे ती थी और िफर कछाड़ा मारकर पहन
लेती थी। पाठशाला के बालक कभी जूड़ा बांधते न थे, अत: वह न तो चोटी करती थी
और न जूड़ा ही। िफर उसे जूड़ा बांध ही कौन दे ता? घर म कोई औरत तो थी नह ।
पाठशाला के छा बांस की फर टी म उसके बाल फंसा दे ते थे और उसके घुंघराले बाल
वैसे ही पीठ पर लहराया करते थे। िव ाथ ललाट पर च दन और भ म लगाते थे; अत:
शा त भी च दन-भ म लगाया करती थी। गले म य ोपवीत पहनने के िलए भी शांित
बहु त रोया करती थी। िफर भी, सं यािद नैिमि क िनयम के समय वह अव य उनके
पास बैठकर उनका अनुकरण िकया करती थी। अ यापक की अनुप थित के समय
लड़क ने उसे अ ील दो-एक संकेत िसखा िदये थे और वे आपस म जो कहािनयां
कहा करते थे, तोते की तरह शा त ने भी उ ह रट डाला था- भले ही उसका कोई अथ न
जानती हो।

दूसरा फल यह हु आ िक बड़ी पर शा त, लड़के जो पु तक पढ़ा करते थे- उ ह अनायास


ही पड़ने लगी। वह याकरण का एक अ र भी जानती न थी, लेिकन भि का य,
रघुवंश, कुमारसंभव, नैषधािद के ोक या या के साथ उसने रट डाले थे। यह
दे खकर शा त के िपता ने उसे थोड़ा ाथिमक याकरण भी पढ़ाना शु िकया। शा त
भी शी से शी सीखने लगी। अ यापक भी बड़े िव मत हु ए। याकरण के साथ
उ ह ने कुछ सािह य भी उसे पढ़ाया। इसके बाद ही सब गोलमाल हो गया, शा त के
िपता का वगवास हो गया।
अब शा त िनरा य हो गयी। पाठशाला भी उठ गयी, छा चले गये। लेिकन वे सब
शा त को यार करते थे, अत: उनम से एक शा त को अपने घर ले गया। इसी छा ने
बाद म स तान-स दाय म नाम िलखाकर अपना नाम जीवान द रखा। हम उ ह
जीवान द ही कहगे।

उस समय जीवान द के माता-िपता जीिवत थे। उनको जीवान द ने क या का िवशेष


पिरचय िदया। िपता-माता ने पूछा- लेिकन अब परायी लड़की का भार अपने ऊपर लेगा
कौन? जीवान द ने कहा- मै ले आया हू ं , इसका भार मै ही लूंगा! माता-िपता ने भी कहा
- ठीक है । जीवान द कुंवारे थे, उ ह ने शा त के साथ शादी कर ली। िववाह के उपरा त
सभी लोग इस स ब ध पर पछताने लगे। सब लोग समझे- तो ठीक नह हु आ। शांित ने
िकसी तरह भी लड़िकय के समान धोती न पहनी, िकसी तरह भी वह चोटी बांधने को
तैयार न हु ई। वह घर म भी अिधक रहती न थी, पड़ोस के लड़क के साथ बाहर खेला
करती थी। जीवान द के घर के पास ही जंगल है । शांित उस जंगल म अकेली घुसकर
कह मोर , कह हिरण और कह सुंदर फूल की खोज म घूमा करती थी। सास- ससुर
ने पहले तो मना िकया, िफर डांट-फटकार की, इसके बाद मारा- पीटा और अ त म
कोठरी म ब द कर िदया। इस डॉट- डपट से शांित बड़ी क हु ई। एक िदन दरवाजा
खुला दे खकर वह बाहर िनकली और िबना िकसी से कहे -सुने कह चली गयी।

जंगल के अ दर टे सू के फूल को लेकर उनसे शांित ने अपने कपड़े रं ग डाले और खासी


साधुनी बन गयी। उस समय बंगाल म दल के दल सं यासी घूमा करते थे। शांित भी
िभ ा मांगती-खाती जग ाथ े की राह म िनकल गयी। थोड़े ही िदन बाद उसे
सं यािसय का दल िमल गया; वह भी उ ह म िमल गयी।

उस समय के स यासी आजकल जैसे न होते थे- सुिशि त बिल यु िवशारद एवं
अ या य गुण से गुणवान होते थे। वे लोग व तुत: एक तरह के राजिव ोही होते थे-
राजाओं का राज व लूटकर खाते थे। बिल बालक पाते ही उनका अपहरण करते थे,
उ ह िशि त कर अपने स दाय म िमला िलया करते थे। इसिलए लोग उ ह लकड़-
पकड़वा या लकड़ सुँघवा भी कहते थे।

शांित बालक सं यासी के प म उनम िमली थी। सं यासी लोग पहले कोमल दे ह
दे खकर उसे दल म िमलाते न थे; लेिकन शांित की बुि - खरता,चतुरता और
कायद ता दे खकर आदरपूवक उ ह ने उसे अपने दल म िमला िलया। शांित उनके दल
म िमलकर यायाम करती थी, अ चलाना सीखती थी, अत: पिर म-सिह णु हो उठी।
उनके साथ उसने दे श- िवदे श का मण िकया, अनेक लड़ाइयां दे खी और अ -िव ा
म िनपुण हो गयी।

मश: उसके यौवन के ल ण कट होने लगे। अनेक सं यािसय ने जान िलया िक यह


छ वेश म ी है । लेिकन अिधकतर सं यासी उस समय िजते य होते थे, इसिलये
िकसी ने यान न िदया।

सं यािसय म अनेक िव ान भी थे। शांित को सं कृत म कुछ ान है , यह दे खकर एक


सं यासी उसे पढ़ाने लगा-लेिकन या काबुल म गधे नह होते? िजते य सं यािसय म
वह सं यासी कुछ दूसरे ढंग का था। या हो सकता है िक शांित का अिभनव यौवन-
स दभ दे खकर वह सं यासी अपनी इ य ारा पिरपीि़डत होकर अपने को वश म न
रख सका हो। अत: वह अपनी िश या को ृंगार रस के का य पढ़ाने लगा और उनकी
या या खोलकर अ ा य प म सुनाने लगा। उससे शा त का अपकार न होकर कुछ
उपकार ही हु आ। ल ा िकसे कहते ह, शा त ने यह सीखा ही न था; अब या या
सुनकर ी- वभाववश वत: उसम ल ा का उदय हु आ। पु षचिरत के ऊपर िनमल
ी-चिर की अपूव भा उस पर छा गयी-उसने शा त के गुण को समािधक बढ़ा ही
िदया। शा त ने पढ़ना छोड़ िदया।

स यानंद-महे से मने ऐसा ही सुना है । अब सं या समय उप थत है , म सं यािद कृ य


के िलए जाता हू ं । इसके बाद नये स तान की दी ा की यव था क ं गा।

भवानंद-स तान की? या महे के अितिर और भी कोई स तान-स दाय म


स मिलत हु आ चाहता है ?

स यानंद-हां, एक और नय आदमी है । अब से पहले मैने उसे कह दे खा नह था। आज


ही मेरे पास आया है । वह बहु त कोमल युवा पु ष है । उसकी भाव-भंगी और बात से म
बहु त स हू ं - खरा सोना जान पड़ता है वह! उसके संतान- काय की िश ा का भार
ै ै ै
जीवानंद पर है । जीवान द लोग को िच -आकषण कर लेने म बहु त पटु है ।.. अब मै
जाऊंगा। तुम लोग के ित मेरा एक उपदे श बाकी है । बहु त मन लगाकर उसे सुनो!

दोन ही िश य ने करब हो िनवेदन िकया-आ ा दीिजये।

स यान द ने कहा-तुम दोन से यिद कोई अपराध हु आ हो, या आगे करो, तो मेरे वापस
आ जाने के पहले ायि त न करना। मेरे आ जाने पर अव य ही ायि त करना होगा।

यह कहकर स यान द वामी अपने थान पर चले गये। भवान द और जीवान द ने


एक-दूसरे का मुंह ताका।

भवान द ने पूछा-तु हारे ऊपर इशारा है या?

जीवान द-जान तो पड़ता है ! बहन के घर म क या को पहु ं चाने गया था।

भवान द-इसम या दोष है ? यह तो िनिषि नह है ! ा णी के साथ मुलाकात तो नह


की है ?

जीवान द-जान पड़ता है , गु दे व ऐसा ही समझते ह?

(4)

सायंकृ य समा करने के उपरा त स यान द वामी ने महे को बुलाकर कहा-तु हारी
क या जीिवत है ।

महे -कहां है महाराज?

स यान द-तु मुझे महाराज य कहते हो?

महे -सब यह कहते ह, इसिलए। मठ के अिधकािरय को भी राजा श द से स बोिधत


िकया जाता है । मेरी क या कहां है , महाराज?

स यान द-इसे सुनने के पहले एक बात का ठीक उ र दो- तुम स तान-धम हण


करोगे?

महे -इसे मने मन-ही-मन िनि त कर िलया है ।

स यान द-तब क या कहां है , सुनने की इ छा न करो!


महे - य महाराज?

स यान द-जो यह त हण करता है , उसे अपनी प नी, पु , क या, वजन से िकसी से


भी स ब ध नह रखना पड़ता- ी, पु , क या का मुंह दे खने से भी ायि त करना होता
है । जब तक सं तान की मनोकामना िस न हो, तब तक तुम क या का मुंह दे ख न
सकोगे। अतएव यिद स तान-धम हण करना िनि त हो, तो क या का पता पूछकर
या करोगे? दे ख तो पाओगे नह ।..

महे -यह किठन िनयम य , भु?

स यान द-सं तान का काम बहु त ही किठन है । जो सव यागी है , उसके अितिर यह


काम और िकसी के िलए उपयु नह है । मायार ु से िजस का िचत बंधा रहता है , खूट
ं े
म बंधी घोड़ी की तरह वह कभी वग म पहु ं च नह सकता।

महे -महाराज! बात मने ठीक-ठीक समझी नह । जो ी-पु का मुंह दे खता है , वह


या िकसी गु तर काय का अिधकारी नह हो सकता?
स यान द-पु -कल का मुंह दे खने से हम दे व काय भूल जाते ह। स तान-धम का
िनयम काम और िकसी के िलए उपयु नह है ।

महे -तो या न दे खने से ही क या को भूल जाऊंगा?

स यान द-यिद न भूल सको तो यह त हण न करो!

स यानंद- जीवान द, भवानंद और ानान द। शांित ने धनुष और तार िलया; एक झटके


म उस पर यंचा चढ़ाकर उसने धनुष स यानंद के पैर पर फक िदया।

स यानंद िव मत और तंिभत हु ए खड़े रह गये। कुछ दे र बाद बोले- यह या! तुम दे वी


हो या दानवी।

शांित ने हाथ जोड़कर कहा- म सामा य मानवी हू ं , लेिकन चािरणी हू ं ।


स यानंद- इससे या हु आ! तुम या बाल िवधवा हो? नह , लेिकन बाल- िवधवा म भी
इतना बल नह होता, वह तो एकाहारी होती ह।

शांित- म सधवा हू ं ।
स यान द- तो या तु हारे वामी का पता नह है - िन िद है ?

शांित- नही, उनका पता है ; उ ह के उ े य से मै यहां आयी हू ं ।

मेघ हटकर सहसा िनकल आनेवाली धूप की तरह स यानंद की मृित जाग पड़ी है ।
उ ह ने कहा- याद आ गया। जीवानंद की प ी का नाम शांित है । तुम या जीवान द की
ा णी हो? अब शांित शरमा गयी। उसने अपनी जटा से मुंह ढांक िलया मानो िकतने
ही हािथय के झु ड प पर िघर गये ह । स यान द ने पूछा - य तुम यह पापाचार करने
आयी?

सहसा शा त ने चेहरे पर से जटाएं हटाते हु ए कहा- इसम पापाचरण या है , भु? प ी


यिद पित का अनुसरण करे , तो यह पापाचरण कैसे है । संतान धमशा म यिद इसे
पापाचार कहते है तो स तान धम अधम है । म उनकी सहध मणी हू ं । वे धम चरण म
वृ है , म भी उनके साथ धम चरण म सहयोग दे ने के िलए ही आयी हू ं ।

शा त की तेज वनी वाणी सुनकर,उ त ीव फीतव , क पत अधर तथा उ”वल


िफर भी आंसू भरी आंख दे खकर स यान द बहु त स हु ए; बोले-तुम सा वी हो;
लेिकन दे खो बेटी- प ी केवल गृहधम म ही सहध मणी होती है - वीर-धम म रमणी या
सहयोग करे गी?

शा त- कौन अप ीक होकर आज तक महावीर हो सका है ? सीता के न रहते या


रामवीर हो सकते? अजुन के िकतने िववाह हु ए थे, जरा िगिनये तो? भीम को िजतना
बल था, उतनी ही या उनकी पि यां नह थी? िकतना िगनाऊँ? िफर या आपको
बताने की ज रत है ?
स यान द-बात ठीक है , लेिकन रण े म कौन वीर अपनी प ी को संग लेते है ?

शा त- अजुन ने जब दानवी सेना के साथ अ तिर म यु िकया था, तो उनके रथ को


कौन चला रहा था? ौपदी के संग न रहते या पा डव कभी कु े म जूझ सकते थे?


स यान द-वह हो सकता हे , लेिकन सामा य मनु य का दय य म आस रहता है
और वही उ ह काय से िवरत करता है । इसीिलए स तान का यह त है िक वे कभी ी
के साथ एकासन पर न बैठगे। जीवान द मेरा दािहना हाथ है । या तुम मेरा दािहना हाथ
काट दे ने के िलए आयी हो?

शा त- म आपके हाथ म बल बढ़ाने के िलए आयी हू ं । म चािरणी हू ं , और भु के


समीप चािरणी ही रहू ं गी। म केवल धम चरण के िलए आयी हू ं , वामी-दशन के
िलए नह - िवरह यं णा से म कातर नह हू ं । पितदे व ने जो धम हण िकया है , म उसकी
भािगनी य न बनूं? इसीिलये आयी हू ं ।

स यान द- अ छा तो कुछ िदन तु हारी परी ा करके दे खूग


ं ा।

शा त बोली- या म आन द मठ म रह सकूंगी?

स यान द-आज और कहां जाओगी?

शा त- इसके बाद?

स यान द- मां भवानी की तरह तु हारे ललाट पर अि तेज है , स तान स दाय को य


भ म करोगी?

इसके बाद आशीव द दे कर स यान द ने शांित को िवदा िकया।


शांित मन ही मन बोली-रहो बूढ़े भगवान! मेरे कपाल म आग है ? म मुंहजली हू ं िक तेरी
दादी मुंहजली है ?

व तुत: स यान द का वह अिभ ाय नही था- आंख के िव त


ु काश से ही उनका
मतलब था लेिकन यह बात या बु को युवितय से कहनी चािहये?

उस रात शांित को मठ म रहने की अनुमित िमली थी, इसीिलए वह कमरा खोजने लगी।
अनेक कमरे खाली पड़े हु ए थे। गोव न नाम का एक पिरचारक था- वह भी छोटी पदवी
का स तान था- वह हाथ म दीप िलये हु ए शांित को कमरे िदखाने लगा। कोई कमरा
शांित को पस द न आया। हताश होकर गोव न शांित को स यान द के पास वापस ले


जाने लगा। शांित बोली- भाई स तान! इधर की तरफ जो कई कमरे है , उ ह तो नह दे खा
गया!

गोव न बोला- वह सब कमरे है तो अव य बहु त सु दर िक तु उनम स तान लोग है ।

शांित- उसम कौन कौन है ?

गोव न- बड़े बड़े सेनापित है ।

शांित- बड़े बड़े सेनापित वे सेनापित कौन है ?

गोव न- भवान द, जीवान द, धीरान द, ानान द- आन द मठ आन दमय है !

शांित- चलो न, जरा वे कमरे दे ख आएं।

गोव न पहले शांित को धीरान द के कमरे म ले गया। धीरान द महाभारत का ोणपव


पढ़ रहे थे- अिभम यु ने िकस तरह स महारिथय के साथ यु िकया था, इसी म उनका
िच िनिव था। वे कुछ न बोले। शांित िबना कुछ बोले-चाले आगे बढ़ गयी।
इसके बाद शांित ने भवान द के कमरे म वेश िकया। उस समय भवान द उ वदृि
िकये िकसी के चेहरे की याद म त ीन थे। िकसका चेहरा, यह नह जानते, लेिकन
चेहरा बड़ा सु दर है - कृ ण-कुंिचत सुग धत अलकरािश आकण सारी भयुग के ऊपर
पड़ी हु ई है , म य म अन ि कोण ललाट दे श है , उस पर मृ यु की कराल कालछाया
हण की तरह जान पड़ती है - मानो वहां मृ यु और मृ युंजय म हो रहा हो! नयन मूंदे
हु ए, भ हे थर, ओंठ नीले, गाल पीले, नाक शीतल, व उ त, वायु कपड़े को िहला
रही है । इसके बाद ही जैसे शरतमेघ म िवलु च मा मश: मेघदल को अित म कर
अपना स दय िवकिसत करता है ; जैसे भात का सूय तरं गाकृित मेघमाला को मश:
सुवणरं ग से रं िजत कर वयं दी होता है , िद म डल को आलोिकत करता है , थल,
जल, कीट-पतंग सबको फु करता है - वैसे ही उस शांत दे ह म आनंदमयी शोभा का
संचार हो रहा था। आह! कैसी अनुपम शोभा थी! भवान द यही यान कर रहे थे, अत:
उ ह ने भी कोई बात न कही। क याणी के प से उनका दय कातर हो गया था, शांित
के प की तरफ उ ह ने यान ही न िदया।

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याधा जैसे हिरण के पीछे दौड़ता है , वैसे ही वह सं यासी शा त को दे खकर उसके पीछे
दौड़ता था। िक तु शा त ने यायाम आिद के कारण पु ष-दुलभ बल-संचय िकया था।
अ यापक के समीप आते ही वह उ ह जोर के घूंसे और लात जमाती थी, जो साधारण न
होते थे। एक िदन एका त होकर सं यासी ने बड़ा जोर लगातार शा त का हाथ पकड़
िलया। शा त हाथ छुड़ा न सकी। लेिकन सं यासी ने दुभ यवश शा त का बायां हाथ
पकड़ा था, अत: दािहने हाथ से शा त ने सं यासी के िसर म इस जोर का घूंसा जमाया
िक सं यासी कटे पेड़ की तरह धड़ाम से चकराकर िगर पड़े। शा त ने सं यासी स दाय
का याग कर पलायन िकया।

शा त िनभय थी, अकेली अपने गांव की तरफ चल पड़ी। साहस और बाहु बल से वह


िन व या ा करती रही। िभ ा मांगकर और जंगली क द-मूल आिद फल से अपनी
ु धा िमटाती वह अनेक आपदाओं म िवजय-लाभ करती अपने ससुराल आ पहु ं ची।
उसने दे खा, सुर का वगवास हो गया है ; लेिकन सास ने उसे घर म थान न िदया-
जाित जाने का डर था। शा त तुर त बाहर िनकल गयी।

जीवान द घर म ही थे। उ ह ने शा त का पीछा और उसे राह म पकड़कर पूछा-तुम मेरा


घर छोड़कर कहां चली गयी थ ? इतने िदन तक कहां रह ? शा त ने सारी स ी बात
कह द । जीवान द को सच-झूठ की परख थी। उसने शा त की बात का िव ास िकया।

अ सराओं के भिवलास से यु कटा - योित ारा िन मत जो काम-शेर है , उसका


अप यय-पु प घ वा मदनदे व िववािहत द पितय के ित नह िकया करते। अंगरे ज
पू णमा की रात को भी शाही राह पर गैस या िबजली जताते ह, बंगाली दे ह म लगाने
वाले तेल का ढाल दे ते ह; मनु य की बात तो दूर ह, सूय दे व के उदय के बाद भी कभी-
कभी च दे व आवास म उिदत रहते ह, इ सागर पर भी वृि करता है ; िजस स दूक म
िछपाकर धनरािश रखी रहती है , कुबेर उसी स दूक से धन ले जाते ह; यमराज िजसके
घर से सबको ले गये रहते है , ाय: उसी घर के बचे हु ए लोग से दृि डालते है , केवल
रित ित ऐसी िनबुि ता नह करते-जहां वैवािहक गांठ बंध जाती है , वहां िफर वे पिर म
नह करते- जापित को सारा भार दे कर, जहां िकसी के दय के र को उ ेिजत कर
सक, मदनदे व वह जाते ह। लेिकन आज तो जान पड़ता है पु पध वाको और कोई काम
था-एकाएक उ ह ने दो पु पवाण का अप यय िकया-एक ने आकर जीवान द के दय
को वेध िदया-दूसरे ने शा त के दय म वेश कर उसे बता िदया यह य का कोमल
दय है । नवमेघ से छलके थम जलकण से भ गी पु पकिलका की तरह शा त सहसा
िखलकर जीवान द के मुंह के तरफ िनहारती रही।

जीवान द ने कहा- म तु ह पिर याग न क ं गा। म जब तक लौटकर न आऊं, तुम यह


खड़ी रहना।

शांित ने पूछा-तुम लौटकर आओगे न?

जीवान द और कोई उ र न दे कर, और िकसी की परवाह न कर, राह की बगल म


नािरयल वृ की छाया म शांित के अधर पर अधर रख, सुधपान कर चले गये।

माता को समझा-बुझाकर और िवदा लेकर जीवान द तुरंत लौट आये। हाल म ही


जीवान द की बहन िनमाई की शादी भैरवीपुर म हु ई थी। बहनोई के साथ जीवानंद का
ेम था। जीवानंद शांित को लेकर वही गये। बहनोई ने उ ह थोड़ी जमीन दी; जीवान द
ने उस पर एक कुटी का िनम ण िकया और वह शांित के साथ सुखपूवक रहने लगे।
वामी के सहवास म शांित का पु ष भाव धीरे -धीरे गायब होने लगा। सुख व की
तरह उनका जीवन बीतने लगा। लेिकन सहसा वह सुख व भंग हो गया- स यान द
के हाथ म पड़कर जीवान द स तान धम हण कर शा त का पिर याग कर चले गये।
पित याग के बाद यह थम िमलन िनमाई के य से हु आ, िजसका वणन पूव पिर छे द
म हो चुका है ।

जीवान द के चले जाने पर शा त िनमाई के दरवाजे पर जा बैठी। िनमाई गोद म लड़की


को लेकर उसके पास आ बैठी। शांित की आंख म नह है , उसने उ ह प छ डाला है ,
ब क चेहरे पर मधुर मु कराहट है । िफर भी वह कुछ तो ग भीर िच तायु अनमनी सी
िदखाई पड़ती ही है , उसे दे खकर िनमाई बोली- मुलाकात तो हो गयी न? शा त ने कोई
उ र नह िदया, वह चुप रही। िनमाई ने दे खा िक शा त िकसी तरह मन का भाप न
बताएगी। शा त मन की बताना पस द भी नह करती, यह जानती हु ई भी िनमाई ने बात
का ढर उठाया, बोली-बता दो भाभी! यह क या कैसी है ?

दूसरे िदन आनंदमठ के अ दर एक कमरे म बैठे, िन साह तीन संताननायक आपस म


बात कर रहे थे। जीवान द से स यान द से पूछा- महाराज! ई र हम लोग पर इतने
अ स य ह? िकस दोष से हम लोग मुसलमान से पराभूत हु ए?

स यानंद ने कहा- भगवान अ स नह ह। यु म जय-पराजय दोन होती है । उस िदन


हम लोग की िवजय हु ई थी, आज पराजय हु ई है , अ त म िफर जय है । हम िनि त
भरोसा है िक िज ह ने इतने िदन तक हमारी र ा की है , वे शंक -व -गदाधारी वनमाली
िफर हमारी र ा करगे। उनके पद पश कर हम लोग िजस महा त से ती हु ए ह,अव य
ही उस त की हम लोग को साधना करनी होगी- िवमुख होने पर हम अन त नरक का
भोग करना पडे़गा। हम अपने भावी मंगल के बारे म िन:संदेह है । लेिकन जैसे दे व-
अनु ह के िबना कोई काम िस हो नह सकता, वैसे ही पु षाथ की भी आव यकता
होती है । हम लोग जो परािजत हु ए उसका कारण था िक हम िन:श थे- गोली-ब दूक
के सामने लाठी, तलवार,भाला या कर सकता है ! अत: हम लोग अपने पु षाथ के न
होने से हारे ह। अब हमारा यही कत य है िक हम भी अ की कमी न हो।

जीवान द- यह तो बहु त ही किठन बात है ।

स यान द-किठन बात है , जीवान द? स तान होकर तुम मुंह से ऐसी बात िनकालते हो?
स तान के िलए किठन है या?
जीवान द-आ ा दीिजये, इनका सं ह िकस कार होगा?

स यान द-सं ह के िलए आज रात म या ा क ं गा। जब तक म लौटकर न आऊं, तब


तक तुम लोग िकसी भारी काम म हाथ न डालना। लेिकन स तान का आपस की
एकता की र ा करना, उनके भोजन-व की यव था करना- इसका भार तुम दोन पर
ही है ।

भवानंद ने पूछा-तीथया ा कर इन चीज का सं ह आप कैसे करगे? गोला-गोली,


ब दूक, तोप खरीदकर भेजवाने म बड़ा गोलमाल होगा; िफर आप इतना पाएंगे कहां,
बेचग
े ा ही कौन, ले ही कौन आएगा?

स यान द -यह सब चीज खरीदकर लाई जा नह सकती। म कारीगर भेजूग


ं ा, यही तैयार
करनी ह गी।

जीवान द- या यह , इसी आन दमठ म?

स यान द-यह कैसे हो सकता है -इसके उपाय की चता म बहु त िदन से कर रहा हू ं ।
भगवान ने अब उसका सुयोग उप थत कर िदया है । तुम लोग कहते थे-भगवान
ितकूल ह, लेिकन म दे खता हू ं िक भगवान अनुकूल ह।
भवानंद-कहां कारखाना खोलगे?

स यानंद-पदिच ह म।

जीवानंद-यह कैसे? वहां कैसे होगा?


स यानंद-नह तो महे सह को मने िकसिलए त हण करने को इतना तैयार िकया
है ?

भवानंद-महे ने या त हण कर िलया है ?

स यानंद- त हण नह िकया है , लेिकन आज ही रात म उसे दीि त क ं गा।


जीवानंद-कैसे? महे को त हण करने के िलए या उपाय हु आ है -हम लोग नह
जानते। उसकी ी-क या का या हु आ? उ ह कहां रखा गया? आज नदी िकनारे मैने
एक क या पायी थी; उसे मैने अपनी बहन के पास पहु ं चा िदया है । उस क या के पास
एक सु दर ी मरी पड़ी हु ई थी। वही तो महे की ी-क या नह थी? मुझे ऐसा ही
म हु आ था।

स यानंद-वही महे की ी-क या थी।


भवानंद चमक उठे अब वह समझ गये िक िजस ी को उ ह ने पुनज िवत िकया है ,
वही महे की प नी क याणी है । लेिकन उसकी कोई बात इस समय उठाना उ ह ने
उिचत न समझा।

जीवानंद ने पूछा-महे की ी मरी कैसे?


स यानंद-जहर खाकर।

जीवानंद-जहर य खाया?

स यानंद-भगवान ने व म उसे ाण- याग करने का आदे श िकया था।


भवानंद-वह व ादे श या स तान के काया के िलए ही हु आ था?

स यान द- स तान दो तरह के ह-दीि त और अदीि त। जो अदीि त ह, वे या तो


संसारी ह अथवा िभखारी। वे लोग केवल यु के समय आकर उप थत हो जाते ह;
लूट का िह सा या पुर कार पाकर िफर चले जाते ह। जो दीि त होते ह, वे सव व यागी
ह। यही लोग स दाय के क ता ह। तु ह म अदीि त स तान होने का अनुरोध न
क ं गा। यु के समय लाठी-लकड़ीवाले अनेक लोग ह। िबना दीि त हु ए स दाय के
िकसी गु तर काय के अिधकारी तुम हो नह सकते।

महे - दी ा या है ? दीि त य होना होगा? म तो अब से पहले ही म हण कर


चुका हू ं ।

स यानंद- उस मं का याग करना होगा।

महे - म का याग क ं गा कैसे?


स यान द- मै वह प ित बता दे ता हू ं ।

महे - नया म य लेना होगा?

स यान द- स तागण वै णव ह।

ै ै ै ै
महे - यह मै समझ नह पाता हू ं िक स तान वै णव कैसे ह। वै णव का तो अ हसा ही
परमधम होता है ।

स यान द- वह चैत य दे व का वै णव-धम है । ना तक बौ धम के अनुकरण से जो


वै णवता उ प हु ई थी, उसी का ल ण है । कृत वै णव-धम का ल ण दु का दमन
और धिर ी का उ ार है । कारण, भगवान िव णु ही संसार के पालक ह। उ ह ने दस
बार शरीर धारणकर पृ वी का उ ार िकया था। केशी, िहर यकिशपु, मधु-कैटभ, पुर,
नरक आिद दै य का, रावणािद रा स का तथा िशशुपाल आिद का संहार उ ह ने िकया
है । वह जेता, जयदाता, पृ वी के उ ारकत और स तान के इ दे वता ह। चैत यदे व
का वै णव धम वा तिवक वै णव-धम नह है -वह धम अधूरा है । चैत यदे व के िव णु
केवल ेममय ह- लेिकन भगवान केवल पे्रममय ही नह ह, वे अनंत शि मय भी ह।
चैत यदे व के िव णु केवल ेममय ही नह ह,वे अनंत शि मय भी ह। चैत यदे व के
िव णु केवल ेममय है , स तान के िव णु केवल शि मय ह। हम दोनो ही वै णव ह-
लेिकन दोन ही अधूरे ह। बात समझ गये?
महे - नह ! यह तो कैसी नयी-नयी-सी बात ह। कािसमबाजार म एक पादरी के साथ
मेरी मुलाकात हु ई थी। उसने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी। अथ त ई र ेममय है -तुम
लोग यीशु से ेम करो-यह भी ऐसी ही बात ह!

स यान द- िजस तरह की बात से हमारे चौदह पुरखे समझते आते ह-उसी तरह की
बात से हम तु ह समझा रहे ह। ई र ि गुणा मक है - यह सुना है ?

महे - हां, स व, रजस, तमस-यही तीन गुण ह।


स यानंद- ठीक । इन तीन गुण की पृथक-पृथक उपासना होती है । उनके स व से दया-
दि णा आिद की उ पि होती है । वे अपनी उपासना भि ारा करते ह- चैत य
स दाय यही करता है । रजोगुण से उनकी शि की उ पि होती है ; इसकी उपासना
यु ारा, दे व े षीगण के िनधन ारा होती है -वह हम करते ह। और तमोगुण से ही
भगवान भगवान अपनी साकार चतुभुज आिद िविवध मू त धारण करते ह। केसर-
च दनािद उपहार ारा उस गुण की पूजा होती है -सव साधारण वही करते ह. अब समझे?

महे - समझ गया-संतानगण उपासक स दाय मा है ।


स यानंद- ठीक है ! हम लोग रा य नह चाहते-केवल मुसलमान भगवान के िव े षी ह-
इसिलए समूल िवनाश करना चाहते ह।

स यान द बातचीत समा कर महे के साथ उठकर उस मठ थत दे वालय म जहां


िवराट आकार की भगवान िव णु की मू त िवरािजत थी, वह पहु ं च।े उस समय वहां
अपूव शोभा थी- रजत, वण और र रं िजत दीप से मंिदर आलोिकत हो रहा था; रािश-
रािश पु प की शोभा से मंिदर और दे व मू त शोिभत थी; सुग धत मधुर धूमरािश से
क व तुत: दे वसाि य का माण उप थत कर रहा था। मंिदर म एक और पु ष बैठा
हु आ- हरे मुरारे तो का पाठ कर रहा था। स यानंद के वहां पहु ं चते ही उसने उठकर
उ ह णाम िकया। चारी ने पूछा- तुम दीि त होगे?

उसने कहा- मुझ पर कृपा कीिजये!

पैर छूकर महे के िवदा होने पर, उनके संग उसी िदन जो दूसरा िश य दीि त हु आ था,
उसने आकर स यान द को णाम िकया। स यान द ने उसे आशीव द दे कर बैठाया।
इधर-उधर की मीठी बात होने के बाद वामीजी ने कहा- य जी, भगवान कृ ण म
तु हारी गाढ़ भि है या नह !

िश य ने कहा- कैसे बताऊं? म िजसे भि समझता हू ं , शायद वह भंडैती या


आ म तारणा हो!

स यान द ने स तु होकर कहा- ठीक है , िजससे िदन- ितिदन भि का िवकास हो,


ऐसी ही कोिशश करना। म आशीव द दे ता हू ं , तु हारी साधना सफल हो! कारण तुम
अभी उ म बहु त युवा हो। व स! या कहकर बुलाऊं- अब तक मने पूछा नह ।

नवस तान ने कहा- आपकी जो अिभ िच हो! मै तो वै णव का दासानुदास हू ं ।


स यान द- तु हारी नई उ दे खकर तु ह नवीनान द बुलाने की इ छा होती है , अत: तुम
अपना यही नाम रखो! लेिकन एक बात पूछता हू ं , तु हारा पहले या नाम था? यिद
बताने म कोई बाधा हो, तब भी बता दे ना। मुझसे कहने पर बात दूसरे कान म न
पहु ं चग
े ी। स तानधम का मम यही है िक जो अवा य भी हो, उसे भी गु से कह दे ना
चािहए। कहने म कोई हािन न होगी।

िश य- मेरा नाम शा त दे व शम है ।
स यान द- तु हारा नाम शा तमिण पािप ा है ।

यह कहकर स यान द ने िश य की डेढ़ हाथ ल बी काली-काली दाढ़ी को बांए हाथ से


पकड़कर ख च िलया, नकली दाढ़ी अलग हो गयी। स यान द ने कहा- िछ: बेटी! मेरी
साथ ठगी? - और मुझे ही ठगना था तो इस उ म डेढ़ हाथ की दाढ़ी य ? और दाढ़ी तो
दाढ़ी, यह क ठ का वर- यह आंखा की कोमल दृि िछपा सकती हो? मै यिद ऐसा ही
िनब ध होता तो या इतने बड़े काम म कभी हाथ डालता?

बेशम शा त कुछ दे र तक अपनी आंख को हाथ से ढांके बैठी रही। इसके बाद ही उसने
हाथ हटाकर वृ पर मोहक ितरछी िचतवन डालकर कहा- भु! तो इसम दोष ही या
है ? ी के बाहु ओं म या बल नह रहता?

स यान द- गो पद म िजतना जल होता है !

शा त- सब स तान के बाहु बल की परी ा कभी आपने की है ?

स यान द- की है ।

यह कहकर स यान द एक इ पात का धनुष और लोहे का थोड़ा तार ले आये। उसे


शांित को दे ते हु ए उ ह ने कहा- इसी इ पात के धनुष पर लोहे के तार की डोरी चढ़ानी
होगी। यंचा का पिरणाम दो हाथ है । डोरी चढ़ाते-चढ़ाते धनुष सीधा हो जाता है और
चढ़ानेवाले को दूर फक दे ता है । जो इसे चढ़ा सकता है , वही वा तव म बलवान है ।

शांित ने धनुष और तार को अ छी तरह दे खकर पूछा- सभी संतान या इस परी ा म


उ ीण हु ए ह!

स यान द- नह , इसके ारा केवल उन लोग के बल की थाह ले ली है ।


शांित- या कोई भी इस परी ा म उ ीण हो नह सका?

स यानंद- केवल चार यि ।


शा त- या म पूछ सकती हू ं िक वे कौन-कौन ह?

स यानंद- हां, कोई िनषेध नह है - एक तो म वयं हू ं ।

शांित- और?

शा त ने कहा- यह लड़की कहां से पायी -तेरे लड़की कब हु ई रे ।

मेरी नह , दादा की है !

िनमाई ने शा त को जलाने के िलए यह बात कही थी, दादा की लड़की माने यह िक


उसने भाई से यह लड़की पायी है । लेिकन शा त ने यह न समझा िक िनमाई उसे िचढ़ाने
के िलए कह रही है । अतएव शा त ने उ र िदया -म लड़की के बाप की बात नह पूछती
हू ं , म यह पूछती हू ं िक इस लड़की की मां कौन है ?
िनमाई उिचत द ड पाकर अ ितभ होकर बोली-कौन जाने िकसकी लड़की है , दादा या
जाने कहां से पकड़कर उठा लाये ह - पूछने का भी अवसर न िमला। आजकल अकाल
के िदन म िकतने लोग लड़के-ब े फक जाते ह। मेरे ही पास िकतने लोग अपनी
स तान बेचने के िलए आये थे। लेिकन दूसर के बाल-ब को ले कौन? (िफर उन
आंख म सहसा जल भर आया और िनमाई ने उसे प छ डाला) लड़की है बड़ी सु दर!
भोली-भाली, गोरी-िच ी दे खकर दादा से मने मांग ली है ।

इसके बाद शा त की िनमाई के साथ अनेक तरह की बात होने लग । िफर िनमाई के
पित को घर लौट आते दे ख शा त उठकर कुटी म चली गयी।

कुटी म पहु ं चकर उसने अपना दरवाजा ब द कर िलया। इसके बाद चू हे की िजतनी
राख वह बटोर सकी, बटोर ली। बची हु ई राख के ऊपर जो अपने खाने के िलए उसने
चावल पका रखे थे, उ ह भी वहां से हटा िदया। इसके उपरा त बहु त दे र तक सोच म
पड़ी रही और िफर आप-ही-आप बोली- इतने िदन से जो सोच रखा था, आज वह
क ं गी। िजस आशा से इतने िदन तक नह िकया, आज सफल हु ई-सफल य ,
िन फल-िन फल! यह जीवन ही िन फल है । जो िकया है वही क ं गी एक बार म जो
ायि त है , वही सौ बार म भी है ।

यह सोचती हु ई शा त ने भात चू हे म फक िदया। जंगल म से क द-मूल-फल ले आई


और अ के बदले उ ह को खाकर उसने अपना पेट भर िलया। इसके बाद उसने वही
ढाका वाली साड़ी िनकाली िजस पर िनमाई का इतना आ ह था। उसका िकनारा उसने
फाड़ डाला और शेष कपड़े को गे के रं ग म रं ग िदया। व को रं गत और सुखाते
शाम हो गई। शाम हो जाने पर दरवाजा ब द कर शा त बड़े तमाशे म लग गयी। माथे
के आजानुल बत केश का कुछ का कुछ अंश उसने कची से काट डाला और अलग
रख िदया। बाकी बचे हु ए उस कपड़े को उसने दो भाग म िवभ कर िदया- एक तो
उसने पहन िलया और दूसरे से अपने ऊपरी अंग को ढंक िलया। इसके बाद उसने
बहु त िदन से काम म न लाया गया शीशा िनकाला और उसम अपना प दे खते हु ए
सोचा-हाय! म या करने जा रही हू ं ? इसके बाद ही दु:खी दय से वह अपने उन काटे
हु ए बाल को लेकर मूंछ और दाढ़ी बनाने लगी। लेिकन उ ह वह पहन न सकी। उसने
सोचा- िछ:! यह या? अभी या इसकी उ है । िफर भी बु े को चरका दे ने के िलए इ ह
रख लेना अ छा है ? यह सोचकर उसने िछपाकर उ ह अपने पास रख िलया। इसके बाद
घर म से एक बड़ा हिरणचम िनकालकर उसने गले के पास उसे पहनकर गांठ दी और
घुमाकर शरीर आवृत कर जंघ तक लटका िलया। इस तरह सि त होने के बाद इस
नये सं यासी ने घर म एक बार चार तरफ दे खा। आधी रात हो जाने पर, शा त ने इस
कार सं यासी वेश म दरवाजा खोलकर अ धकारपूण ग भीर वन म वेश िकया।
वनदे िवय ने उस एका त रात म अपूव गायन सुना-
(बंगला यथावत)

(1)

दूरे उि़ड घोड़ा चि़ढ कोथा तुमी जाओ रे ,


समरे चिल तू आिम हाम ना िफराओ रे
हिर-हिर हिर-हिर बोलो रणरं गे

झांप िदबो ाण आिज समर-तरं ग,

तुिम कार िक तोमार केलो एसो संग,े

रमण ते ना ह साध, रणजय गाओ रे !

(2)

पाये धरी ाणनाथ आमा छे ड़े जेओ ना,

एई सुनो, बाजे घन रणजय बाजना।

नािपछे तुरंग मोर रण करे कामना,

उि़डुलो आमार मन घरे आर रबो ना।

रमधी ते ना ह साथ, रणजय गाओर।

स यान द- तुम लोग इन भगवान के सामने ित ा करो िक संतान-धम के सारे िनयम


का पालन करोगे!

दोन - क ं गा।

स यान द- िजतने िदन तक माता का उ ार न हो, उतने िदन तक गृहधम का पिर याग
िकये रहोगे?
दोन - क ं गा।

स यान द- माता-िपता का याग करोगे?


दोन - क ं गा।
स यान द- ाता-भिगनी?

दोन - याग क ं गा।


स यानंद- दारा-सुत?

दोन - याग क ं गा।

स यानंद- आ मीय- वजन? दास-दासी?


दोन - इन सबका याग िकया।

स यानंद- धन-स पदा-भोग?

दोन - सबका पिर याग।

स यान द- इ यजयी होगे? नािरय के साथ कभी एक आसन पर न बैठोगे?

दोन - न बैठगे; इ यां वश म रखगे।

स यान द- भगवान के सामने ित ा करो-अपने िलए या अपने वजन के िलए


अथ पाजन नह करोगे! जो कुछ उपाजन करोगे, उसे वै णव धनागार को अ पत कर
दोगे!

दोन - दग।

स यान द- सनातन-धम के िलए वयं अ पकड़कर यु करोगे?

दोन - करगे।

स यान द- रण म कभी पीठ न िदखओग?◌े

दोन - नह ।

स यान द- यह ित ा भंग हो तो?


दोन - जलती िचता म वेश कर अथवा िवषपान कर ाण याग दगे।

स यान द- और एक बात है , और वह है जाित। तुम िकस जाित के हो? महे तो


काय थ है । तु हारी जाित?


दूसरे यि ने कहा- मै ा ण-कुमार हू ं ।

स यान द- ठीक। तुम लोग अपनी जाित का याग कर सकोगे? सम त स तान एक


जाित म ह। इस महा त म ा ण-शू का िवचार नह है । तुम लोग का या मत है ?
दोन - हम लोग भी जाित का याल न करगे। हम सब माता की स तान एक जाित के
ह।

स यान द- अब म तुम लोग को दीि त क ं गा। तुम लोग ने जो ित ा की है , उसे


भंग न करना। भगवान मुरािर वयं इसके सा ी ह। जो रावण, कंस, िहर यकिशपु,
जरास ध, िशशुपाल आिद के िवनाश-हे तु ह, जो सव तय मी ह, सवजयी है , सव
शि मान ह और सविनय ता ह, जो इ के व को भी िब ी के नाखून के समान
समझते ह, वह ित ा-भंगकारी को िवन कर अन त नरकवास दगे।

दोन - तथा तु!


स यान द- अब तुम लोग गाओ- व दे मातरम-

दोन ने िमलकर एक एकांत म दर म भि -भावपूवक मातृगीत का गान िकया। इसके


बाद चारी ने उ ह यथािविध दीि त िकया।

दी ा समा होने के बाद स यान दजी महे को एक बहु त ही एकांत थान म ले गये।
दोन के वहां बैठने के बाद स यान द ने कहना आर भ िकया-व स! तुमने तो यह
महा त हण िकया है , उससे मुझे जान पड़ता है िक भगवान स तान पर सदय ह।
तु हारे ारा माता का महत काय िस होगा। तुम यानपूवक मेरी बात सुनो! तु ह
जीवान द, भगवान के साथ वन-वन घूमकर यु करना नह पड़ेगा। तुम पदिच ह म
वापस लौट जाओ। अपने घर म रहकर ही तु ह स तान-धम का पालन करना होगा।
यह सुनकर महे िव मत और उदास हु ए, लेिकन कुछ बोले नह । चारी कहने
लगे- इस समय हम लोग के पास आ य नह है ,ऐसा थान नह है िक यिद बल सेना
आकर घेरकर आ मण करे तो हम लोग खा ािद के साथ फाटक ब द कर कुछ िदन
तक यु कर सक। हम लोग के पास गढ़ नही है । वहां अ ािलका भी तु हारी है , गांव
भी तु हारे अिधकार म ह-मेरी इ छा है िक अब वहां एक गढ़ तैयार हो। पिरखा ाचीर
ारा पदिच ह को घेर दे ने से-उसम खाई, ख दक आिद यु ोपयोगी िकले-ब दी कर दे ने
से और जगह-जगह तोप लगा दे ने से बहु त ही उ म गढ़ तैयार हो सकता है । तुम घर
जाकर रहो, मश: दो हजार संतान वहां जाकर उप थित ह गे। उन लोग के ारा खाई-
ख दक ाचीर आिद तैयार कराते रहो। वहां तु ह एक लौह-क बनवाना होगा; वही
संतान का अथ-भ डार होगा। म एक-एक कर सोने से भरे हु ए संदक
ू तु हारे पास
भेजवाऊंगा। तुम उसी धनरािश से यह सब तैयार कराओ। म परदे श जाता हू ं । वहां से
उ म कारीगर भेजूग
ं ा। उनके आ जाने पर तुम पदिच ह म कारखाना थािपत करो। वहां
तोप, गोले, बा द, ब दूक आिद िनम ण कराओ। इसीिलए मै तु ह घर जाने को कहता
हू ं ।..

महे ने वीकार कर िलया।


आन दमठ भाग-7
इसके उपरांत शांित तीसरे कमरे म गई। उसने पूछा-यह िकसका कमरा है ?

गोव न बोला-जीवानंद वामी का।

शांित-यहां कौन है ? कहां, इस कमरे म तो कोई नह है ।

गोव न-कह गए ह गे, अभी आ जाएंग।े

शांित-यह कमरा सब कमर से उ म है ।

गोव न-भला यह कमरा ऐसा न होगा!

शांित- य ?

गोव न- जीवानंद वामी इसम रहते ह न!

शांित-म इसी म रह जाती हू ं , वह कोई दूसरा कमरा खोज लगे।

गोव न-भला ऐसा भी हो सकता है ? जो इस कमरे म रहते ह, उ ह चाहे मािलक


समिझये, या जो चाहे समिझए- जो कहते ह, वह होता है ।

शांित-अ छा तुम जाओ, मुझे यिद जगह न िमलेगी तो पेड़ के नीचे पड़ी रहू ं गी!

यह कहकर गोव न को िबदा कर शांित उसी कमरे म घुसी! कमरे म घुसकर शांित
जीवानंद का कृ णािजन िबछाकर और दीपक तेज कर उनकी रखी एक िकताब पढ़ने
लगा।

कुछ दे र बाद जीवानंद उप थत हु ए! शांित का य िप पु ष वेश था, िफर भी उ ह ने


आते ही पहचान िलया, बोले-यह या? शांित?

शांित न धीरे -धीरे पु तक रखकर जीवानंद के चेहरे की तरफ दे खकर कहा-महाशय!


शांित कौन है ?

जीवानंद भैच े से रह गए, अंत म बोले-शांित कौन है ? य , या तुम शांित नह हो?


शांित उपे ा के साथ बोली-शांित कौन है ? य , या तुम शांित नह हो?

शांित उपे ा के साथ बोली- म नवीनानंद वामी हू ं ।

यह कहकर वह िफर पु तक पढ़ने लगी।

जीवानंद खखाकर हं स पड़े, बोले-यह नया तमाशा बि़ढया है ! अ छा ी ी नवीनानंद


जी! या सोचकर यहां पहु ं च गए?

शांित बोली-यह नया तमाशा बि़ढया है ! अ छा भले आदिमय म िरवाज है िक पहली


मुलाकात म आप- ीमान-महाशय आिद श द से संबोधन करना चािहए। म भी आपसे
अस मान-जनक प म बात नह करता हु ं । तब आप मुझे तुम-तुम य कहते ह?

जो आ ा-कहकर गले म कपड़ा डालकर हाथ जोड़कर जीवानंद ने कहा- अब िवनीत


भाव से भृ व का िनवेदन है , िक िकस कारण भैरवीपुर से इस दीन-भवन म महाशय का
शुभागमन हु आ है ? आ ा िकिजए!

शांित ने अित गंभीर भाव से कहा- यं य की कोई आव यकता नह है । म भैरवीपुर को


पहचानता ही नह । म संतानधम हण करने के िलए आज आकर दीि त हु आ हू ं ।

जीवानंद-अरे सवनाश! या सचमुच?

शांित-सवनाश य ? आप भी तो दीि त है !

जीवानंद-तुम तो ी हो!

शांित-यह कैसे? ऐसी बात आपने कैसे सुनी?

जीवानंद-मेरा िव ास था िक मेरी ा णी? ी है ।?

शांित- णी? है या नह ?

जीवानंद-थी तो ज र!

शांित-आपको िव ास है िक म आपकी ा णी हू ं ?

जीवानंद ने िफर गले म कपड़ा डालकर बड़े ही िवनीत भाव से कहा-अव य महाशयजी!

शांित-यिद ऐसी मजाक की बात आपके मन म है , तो सही, आपका कत य या है ?


जीवानंद-आपके शरीर के कपड़ को बलपूवक हटा दे ने के बाद अधर-सुधापान!

शांित-यह आपकी दृ -बुि है , या मेरे ित असाधारण भि का पिरचय मा है ! आपने


दी ा के अवसर पर शपथ ली है िक ी के साथ एकासन पर कभी न बैठं गू ा। यिद
आपका यह िव ास हो िक म ी हू ं -ऐसा सप-र ु म अनेक को होता है - तो आपके
िलए उिचत यही है िक अलग आसन पर बैठ। मुझसे तो आपको बात भी नह करनी
चािहए!

यह कहकर शांित ने िफर पु तक पाठ म मन लगाया। अंत म परा त होकर जीवानंद


पृथक श या-रचना कर लेट गए।

भगवान की अनुकंपा से 76 व बंगा द का अकाल समा हो गया। बंगाल दे श के छ:


आना मनु य को-नह कह सकते, िकतने कोिट-यमपुरी को भेजकर वह दुव सर वयं
काल के गाल म समा गया। 77व वष म ई र स हु ए। सुवृि हु ई, पृ वी
श य यामला हु ई; जो लोग बचे थे, उ ह ने पेट भरकर भोजन िकया। अनेक अनाहार या
अ पाहार से बीमार पड़ गए थे, पूरा आहार सह नह सके। बहु तेरे इसी म मरे । पृ वी तो
श य यामिलिन हु ई, लेिकन जनशू या हो गयी। बंगाल दे श जंगल से भर गया। जहां
हं सती हु ई हिरयाली भूिम थी, जहां असं या गो-मिहष की चरने की भूिम थी, जो गांव
की भूिम युवक-युवितय की मोद-भूिम थी-वह सब महार य म पिरणत होने लगी।
इसी तरह एक वष गया, दो वष गए, तीन वष गए। जंगल बढ़ते ही जाते थे। जो मनु य
के सुख के थान थे, वहां हसक शेर आिद पशु आकर हिरण पर धावा बोलने लगे।
दल बांधकर जहां सुंदिरयां आलता-रं िजत चरण से पायजेब आिद पशु आकर हिरण
पर धावा बोलने लगे। दल बांधकर जहां सुंदिरयां आलता-रं िजत चरण से पायजेब
आिद की झनकार करती हु ई, वृ ाओं के साथ यंग करती हु ई, हं सती हु ई गुजरा करती
थी, वह अब भालुओं ने अपने ब को लालन-पालन शु िकया है । जहां छोटी उ के
बालक सांयकाल के समय जुटकर, फूले हु ए पु प जैसा दय लेकर मनमोहक हं सी से
थान गुज
ं या करते थे, अब वहां ृंगाल के िववर ह। ना मंिदर म िदन के समय
सपराज की भयंकर फुफकार सुनाई पड़ती है । अब बंगाल म अ होता है ; लेिकन कोई
खाने वाला नह है । िब ी के िलए पैदा करते है , लेिकन कोई खरीददार नह है । कृषक

ै ै ै
अनाज पैदा करते है , पर पैसे नह िमलते। जम दार को वे लगान दे नह सकते। राजा के
जम दारी छीन लेने पर जम दार सव त होकर दिर हो गए। वसुमती के बहु - सिवनी
होने पर भी जनता कंगाल हो गयी। चोर-डाकुओं ने माथा उठाया और साधु पु ष ने घर
म मुंह िछपाया।

इधर संतान-सं दाय िन य चंदन-तुलसी से िव णु-पादप की पूजा करने लगा। िजनके


घर म िप तौल-बंदकू थी, संतानगण उससे वह छीन लाए। भवानंद ने सहयो य से कह
िदया था-भाई! यिद िकसी घर म मिण-मािण य गंजा हो और एक टूटी हु ई बंदक
ू भी हो,
तो बंदक
ू ले आना, धन-र न छोड़ दे ना।

इसके बाद ये लोग गांव-गांव म अपने गु चर भेजने लगे। पर लोग जहां हदू होते थे,
कहते थे भाई! िव णु-पुजा करोगे! इसी तरह बीस-पचीस संतान िकसी मुसलमान बसती
म पहु ं च जाते और उनके घर म आग लगा दे ते थे; उनका सव व लूटकर हदू िव णु-
पुजक म उसे िवतिरत कर दे ते थे। लूट का भाग पाने पर लोग के स होने पर उ ह
संतानगण मंिदर म लाकर िव णुचरण पर शपथ िखलाकर संतान बना लेते थे। लोग ने
दे खा िक संतान होने म बड़ा लाभ है । िवशेषत: मुसलमान राज वकाल म उनकी
अराजकता और कुशासन से लोग ऊब उठे थे। हदू धम की िवलोपाव था के समय
अनेक हदू अपने दे श म हदु व- थापन के िलए य हो रहे थे। अत: िदन- ितिदन
संतान की सं या बढ़ने लगी। ितिदन सौ-सौ, मास म हजार-हजार की सं या म
ामीण लोग संतान बनाकर उनकी सं या वृि कर मुसलमान को शासन से िवरत
करने लगे। जीवानंद और भवानंद के पदप म णाम कर संतान की सं या अनंत
होने लगी। जहां वे लोग राजपु ष को पाते थे, अ छी तरह मर मत करते थे, मुसलमान
के गांव भ म कर राख बनाए जाने लगे। थानीय मुसलमान नवाब यह सुनकर दल-के-
दल सैिनक को इनके दमन के िलए भेजते थे; लेिकन उस समय तक संतान गण
दलब , श यु और महादं भशाली हो गए थे। उनके तेज के आगे मुसिलम फौज
अ सर हो न पाती थी; यिद आगे बढ़ती थी तो अिमत सं या म संतान-सै य उस पर
आ मण कर उनको धुनकी हु ई ई की तरह उड़ा दे ती थी। कभी कोई दल यिद परा त
होता या, तो तुरंत दूसरा बड़ा दल आकर उस मु लम फौज का सर उड़ा दे ता था और
मत होकर हिरनाम का जयघोष करता, नाचता गायब हो जाता था। उस समय
ल ध ित अंगरे ज कुल के ात: सूय वारे न हे ट स भारतवष के गवनर-जनरल थे।
कलक े म बैठे हु ए वे राजनीितक ृंखला की कि़डयां िगन रहे थे िक इसी से वे समूचे
भारत को बांध लगे। एक िदन भगवान ने भी सहासन पर बैठकर िन:संदेह कहा था-
तथा तु! लेिकन वह िदन अभी दूर था। आजकल तो संतान की िदगंत- यािपनी
हिर विन से वारे न हे ट स भी कांप उठे थे।

हे ट स साहब ने पहले तो दे शी फौज से िव ोह दबाने की चे ा की थी। लेिकन उन दे शी


िसपािहय की यह दशा हु ई िक वे लोग एक बु ी औरत के मुंह से भी यिद हिरनाम सुन
पाते थे, तो भागते थे, अंत म िन पाया होकर वारे न हे ट स ने क ान टॉमस नामक
एक सुद सेनापित के अिधनायक व म थोड़ी गोरी फौज भेजकर िव ोह-दमन का य न
िकया।

क ान टॉमस िव ोह- िनवारण के िलए बहु त ही उ म उपाय करने लगे। उ ह ने अपनी


गोरी प टन के साथ नवाब की सेना और जम दार के आदमी िमलाकर एक अ यंत
बिल सेना तैयार कर ली। इसके बाद उस स मिलत सै य के टुकड़े-टुकड़े कर उपयु
नायक के हाथ म उ ह ने स प िदया। साथ ही उन लोग को छोटे -छोटे िनि त अंचल म
िवभ कर िदया; कह िदया िक जहां संतान को पाओ, पशु की तरह मारो और
हं काओ। गोरी सै य द भ की बोतल छान संगीन चढ़ाकर हु ई। लेिकन टॉमस की सेना,
जैसे खेती काटी जाती है , वैसे ही काटी जाने लगी। हिर विन से टॉमस के कान बहरे हो
गए; य िक उस समय संतान असं य थे और दे श भर म फैले हु ए थे।

क ान जरा मन म आगा-पीछा कर रहे थे िक गोली मार या न मार; इसी समय िव त



वेग से सं यासी ने आ मण कर उनकी ब दूक छीन ली। सं यासी ने अपना व ावरण
चम खोलकर फक िदया। एक झटके म जटा अलग हो गयी। क ान टॉमस ने दे खा िक
उसके सामने अपूव ी-मू त है । सु दरी ने हं सते-हं सते कहा- साहब! हम लोग नारी है ,
िकसी को चोट नह पहु ं चाती। म तुमसे एक बात पूछना चाहती हू ं िक जब िह दू-
मुसलमान म लड़ाई हो रही है , तो इस बीच म तुम लोग य बोलते हो? अपने घर लौट
जाओ!
साहब- कौन हो तुम?

शा त-दे खते तो हो, सं यािसनी हू ं -िजन लोग से लड़ने आये हो, म उ ह म से एक ी


हू ं ।

साहब- टुम हमाड़ा घड़ म रहे गा?

शा त- या तु हारी उपप ी बनकर?

साहब-इसी माफक रहने सकता; शादी नह करे गा।

शा त- मुझे भी एक बात पूछनी है , हमारे घर म एक सु दर ब दर था,वह हाल म ही मर


गया है - उसकी जगह खाली पड़ी है । कमरे म िसकड़ी डाल दूंगी। तुम उस दरबे म
रहोगे? हमारे बगीचे म खूब केला होता है ।

साहब- तुम बड़ी ीटे ड वूमेन है । टुमारी करे ज पर हाम खुशी है । टुम हमाड़ा घड़ म
चलो। टुमाड़ा आदमी लड़ाई म मड़ेगा,टब टुम या कड़ेगा?

शा त- तब हमारी एक शत हो जाए। यु तो दो-चार िदन म होगा ही। अगर तुम


जीतोगे, तो मै तु हारी उपप ी होकर रहू ं गी। अगर हम लोग जीतगे, तो तुम हमारे घर म
उसी दरबे म ब दर बनकर रहना और केला खाना।

साहब-केला बहु त अ छा चीज । अभी तु हारे पास है ?

शा त- ले अपनी ब दूक ले! ऐसे बेवकूफ के साथ कौन बात करे !

यह कहकर शा त ब दूक फककर हं सती हु ई भाग गयी।

साहब के पास से भागकर शा त जंगल म गायब हो गयी। थोड़ी ही दे र बाद साहब ने


मधुर ी-क ठ से गाना सुना-

ए यौवन-जल तरं ग रोिघबे के

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

इसके साथ ही सारं गी पर वही मधुर झनकार उठी- ए यौवन-जल तरं ग रोिघबे के?
हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

इसके साथ ही पु ष क ठ के साथ िफर गाना हु आ-ए यौवन-जल तरं ग रोिघबे को?

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

तीन वर की िमिलत झनकार ने जंगल की समूची लताओं को कंपा िदया। शा त गाती


हु ई गीत के पूरे चरण गाने लगी-

ए यौवन जल- तरं ग रोिघबे के?

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

ए यौवन जल- तरं ग रोिघबे के?

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

जलते तूफान होये छे

आमार नूतन तरी मिसलो सुख,े

माझीते हाल धरे छे ,

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

मगे बािलरे बांध, पुराई मनेर साध,

जोरदार गांगे जल छूटे छे , रािखबे के?

हरे मुरारे ! हरे मुरारे !

सारं गी भी बज रही थी-

जोरदार गांगज
े ल छूटे छे , रािखबे के ?

हरे मुरारे ! हरे मुरारे ।

जहां बहु त ही घना जंगल है - भीतर या है , बाहर से यह िदखाई नह दे ता, शांित उसी के
अंदर वेश कर गयी थी। वह उ ह शाखा- प व म िछपी हु ई एक छोटी कुटी है ।
डािलय के ही ब धन और प का छाजन है । काठ की जमीन, उस पर िम ी पटी हु ई

ै ै
है । लता ार खोलकर उसी के अंदर शांित वेश कर गयी। वहां जीवानंद बैठे सारं गी
बजा रहे थे।

जीवानंद ने शांित को दे खकर पूछा- इतने िदन के बाद गंगा म वार का जल बढ़ा है
या?
शांित ने हं सते हु ए उ र िदया- वार का बढ़ा हु आ गंगा जल ही या ताल को डुबाता
है ?

जीवानंद ने दु:खी होकर कहा- दे खो, शांित! एक िदन तो त भंग होने के कारण ाण
उ सग क ं गा ही; जो पाप हु आ है , उसका ायि त करना ही पड़ेगा। अब तक ायि त
कर चुका होता, िक तु केवल तु हारे अनुरोध के कारण कर न सका। लेिकन अब
िकसी िदन यह भी स भव हो जाएगा, िवल ब नह है । उसी यु म मुझे ायि त करना
पड़ेगा। इस ाण का पिर याग करना ही होगा। मेरे मरने के िदन.....

\ शांित ने बात काट कर कहा- म तु हारी धमप नी हू ं , सध मणी हू ं -धम म सहायक हू ं ।


तुमने अितशय गु धम हण िकया है , उसी धम की सहायता के िलए म आई हू ं । हम
दोन ही एक साथ रहकर उस धम म सहायक ह गे, इसिलए घर याग कर आयी हू ं । म
तु हारे घर म वृि ही क ं गी। िववाह इहकाल के िलए भी होता है और परकाल के
िलए भी होता है । इहकाल के िलए जो िववाह होता है , मन म समझ लो िक हमने वह
िकया ही नह । हमलोग का िववाह केवल परकाल के िलए हु आ है । परकाल म इसका
दूसरा फल होगा, लेिकन ायि त की बात य ? तुमने कौन सा पाप िकया है ? तु हारी
ित ा है िक ी के साथ एकासन पर न बैठगे? कौन कहता है तुम िकसी िदन भी
एकासन पर बैठे हो? िफर ायि त य ? हाय भु तुम मेरे गु हो, या म तु ह धम
िसखाऊं? तुम वीर हो, लेिकन या म तु ह वीर-धम िसखाऊं?

जीवानंद ने आ ाद से गदगद होकर कहा-ि ये! िसखाओ तो सही!

शांित स िचत से कहने लगी-और भी दे खो गो वामी जी! इहकाल म ही या हमारा


िववाह िन फल है ? तुम मुझसे ेम करते हो, म तुमसे ेम करती हू ं - इससे बढ़कर
इहकाल म और कौन-सा फल हो सकता है ? बोलो-व दे मातर !

इसके बाद ही दोन ने एक वर से व दे मातर गीत गाया।


क याणी ने थर भाव से उ र िदया-मेरे जीवन को िकसी ने िवषमय नह बनाया :
जीवन वयं िवषमय है -मेरा जीवन िवषमय है ; आपका जीवन िवषमय है : सभी का
जीवन िवषमय है ।

भवान द-सच है , क याणी! मेरा जीवन तो अव य िवषमय है ।...उसी िदन से तु हारा


याकरण समा हो गया है ?

क याणी-नह ?
भवान द-िफर या बात है ?

क याणी-अ छा नह मालूम होता।

भवान द-िव ा-अजन म तु हारी कुछ वृि दे खी थी। अब ऐसी अ ा य?


क याणी-आप जैसे प डत जब महापािप ह, तो न पढ़ना-िलखना ही अ छा है । मेरे
पितदे व की या खबर है , भु?

भवान द-बारं बार यह संवाद य पूछती हो? वो तो तु हारे िलए मृत समान है ।

क याणी-म उनके िलए मृत हू ं ; वे मेरे िलए नह ।

भवान द-वह तु हारे िलये मृतव ह गे, यही समझकर तो तुमने िवष खाया था? बार-बार
यह बात य क याणी?

क याणी-मर जाने से या संबंध िमट जाता है ! वह कैसे है ?

भवान द-अ छे है ।

क याणी-कहां है ? पदिच ह म?

भवान द-हां, वह ह!

क याणी- या कर रहे ह?
भवान द-जो कर रहे थे-दुग-िनम ण, अ -िनम ण; उ ह के ारा िन मत अ -श से
सह स तान सि त हो रहे ह। उ ह की कृपा से अब हम लोग को तोप, ब दूक,
गोला-गोली, बा द आिद की कमी नह है । स तान गण म वही े ह। वे हम लोग को
मह उपकार कर रहे है ; वे हम लोग के दािहने हाथ ह।

क याणी-म ाण- याग न करती, तो इतना होता! िजसकी छाती पर छे दही कलसी बंधी
हो, वह या कभी भवसागर पार कर सकता है ! िजसके पैर म लौह सीकड़ पड़े ह , वह
या कभी दौड़ सकता है ! य सं यासी! तुमने अपना ार जीवन य बचा रखा था?
भवान द- ी सहध मणी होती है , धम म सहायक होती है ।

क याणी-छोटे -छोटे धम म। बड़े धम के अनुसरण म क टक! मने िवष-कटक ारा


उनके अधम या क का उ ार िकया था। िछ:, दुराचारी पामर चारी! तुमने मेरे ाण
य लौटाये?

भवान द-अ छा, न तो मने जो िकया है , उसे मुझे वापस कर दो। मने जो ाण-दान
िकया है , या तुम उसे वापस कर सकती हो।

क याणी- या आपको पता है , मेरी सुकुमारी कैसी है ?

भवान द-बहु त िदन से उसकी खबर नह लगी। जीवान द बहु त िदन से उधर गये ही
नह ।

क याणी-उसकी खबर या मुझे ला नह दे सकते? वामी मेरे िलए या य है ; लेिकन


जब िज दा रह गई हू ं तो क या को य याग दूं! अब तो सुकुमारी के पास जाने से ही
जीवन म कुछ सुख िमल सकता है । लेिकन मेरे िलए इतना आप य करगे।
भवान द-क ं गा क याणी! तु हारे िलए क या ला दूंगा; लेिकन इसके बाद?

क याणी-इसके बाद या गो वामी?

भवान द- वामी
क याणी-उ ह तो इ छापूवक यागा है ।

भवान द-यिद उनका त पूण हो जाए तो?


क याणी-तो म उनकी हू ं गी। म जो बच गई हू ं , या वे यह जानते ह?

भवान द-नह ।
क याणी-आपसे या उनकी मुलाकात नह होती?

भवान द-होती है ।

क याणी-मेरी बात कभी नह करते?

भवान द-नह ! जो ी मर गयी, उससे िफर पित का या स ब ध!

क याणी- या कहा?

भवान द-तुम िफर िववाह कर सकती हो, तु हारे पुनज म हु आ है ।

क याणी-मेरी क या ला दो!

भवान द-ला दूंगा! तुम िफर िववाह कर सकती हो?

क याणी-तु हारे साथ न?

भवान द-िववाह करोगी?

क याणी-तु हारे साथ

भवान द-यही मान लो।

क याणी-स तान धम कहां रहे गा?

भवान द-अतल जल म।

क याणी-यह तु हारा महा त है ?

भवान द-अतल जल म गया?

क याणी-िकसिलए सब अतल जल म डुबाते हो?

भवान द-तु हारे िलए! दे खो, मनु य हो, ऋिष हो, िस हो, दे वता हो, सबका िच
अव य होता है । स तान-धम मेरा ाण है , लेिकन आज पहले-पहल करता हू ं , तुम ाण
से भी बढ़कर ाण हो। िजस िदन तु ह ाण-दान िकया, उसी िदन से म तु हारे पैर पर

िगर गया। म नह जानता था िक संसार म ऐसा प भी है । ऐसी परािश जीवन म कभी
दे खूग
ं ा, यिद यह जानता तो कभी स तान-धम हण न करता। यह धम इस अि म
जलकर ार हो जाता है । धम जल गया है - ाण है । आज चार वष से ाण भी जल रहा
है , बचना नह चाहता। दाह! क याणी! दाह! वाला! लेिकन जलने वाला, ईधन अब
बच नह गया है । ाण जा रहा है । चार बरस से सह रहा हू ं ; अब सहा नह जाता। या
तुम मेरी होगी?

क याणी-तु हारे ही मुंह से सुना है िक स तान-धम का एक यह भी िनयम है िक िजसकी


इ य परवश हो जाए, उसका ायि त मृ यु है । या यह सच है ?
भवान द-यह सच है ।

क याणी-तो तु हारे िलए भी वही ायि त मृ यु है ?

भवान द-मेरे िलए एकमा ायि त मृ यु है ।


क याणी-तु हारी मनोकामना पूरी होने पर मरोगे?

भवान द-िन य म ं गा!

क याणी-और यिद म मनोकामना पूरी न क ं ?


भवान द-तब भी मृ यु िन य है । कारण, मेरी इ यां परवश हो चुकी ह। आगामी यु
म...

क याणी-तुम अब िवदा हो! मेरी क या िभजवा दोगे?

भवान द ने आंसू भरी आंख से कहा-िभजवा दूंगा। या मेरे जाने पर भी मुझे दय म


याद रखोगी?

क याणी-याद रखूग
ं ी- म युत िवधम के प म याद रखूग
ं ी।

भवान द िवदा हु ए। क याणी पु तक पढ़ने लगी।


भवानंद वामी एक िदन नगर म जा पहु ं च।े उ ह ने श थ राजपथ यागकर एक गली म
वेश िकया। गली के दोन बाजू ऊंची अ ािलकाएं ह, केवल दोपहर के समय एक बार
वहां भगवान सूय झांक लेते ह, इसके बाद अंधकार ही अंधकार। गली म घुसकर पास
के ही एक दो-मंिजले मकान म भवानंद ने वेश िकया। नीचे की मंिजल म जहां एक
अधवय का ी रसोई बना रही थी, वह जाकर भवानंद वामी ने दशन िदया। वह ी
अधवय क, मोटी-झोटी, काली-कलूटी, मैली धोती पहने माथे के बाल ठीक खोपड़ी पर
बांधे हु ए, दाल की बटलोही म कलछी डालकर ठन-ठन बजाती हु ई बाएं हाथ से मुंह पर
लटकानेवाले बाल को हटाली, कुछ मुंह से बड़बड़ाती, रसोई करती हु ई सुशोिभत हो
रही थी। ऐसे ही समय भवानंद महा भु ने घर म वेश कर कहा-भाभी! राम-राम!

भाभी भवानंद को दे खकर अवाक होकर अपने हटे हु ए कपड़े ठीक करने लगी। इ छा
हु ई िक िसर का मोहन जूड़ा खोल डाले, लेिकन खोल न सकी- हाथ म कलछी थी। हाय
हाय! उस जूड़े के जंजाल म उसने एक बकुल पु प ख स रखा था। व ांचल से उसे
ढंकने की कोिशश की, लेिकन यह या? आज तो एक पांच हाथ का टुकड़ा मा पहन
रखा था। अत: अंग ढंक न सकी। वह पांच हाथ का कपड़ा ऊपर उठाती थी तो छाती
खुलती थी, छाती ढांकती थे तो पीठ खुलती थी, लाचार बेचारी परे शान हो गई। िकसी
तरह उसने एक कोना ख चकर कान के पास तक लाकर आधा चेहरा ढांकने का भाव
कर ित ा की िक दूसरी एक धोती खरीदूंगी और तब इसे कभी न पहनूंगी। इस तरह
य त होने के बाद बोली-कौन, गोसाई ठाकुर! आओ-आओ! लेिकन भाई! यह हम
राम-राम के साथ णाम य ?

भवानंद-तुम मेरी भाभी जो हो!

गौरी-अ छा, आदर से कहते हो तो कह लो। णाम िकया ही है , तो खुश रहो! िफर तु ह
णाम करना ही चािहए, म उ म बड़ी जो हू ं । लेिकन आिखर हो तो गोसाई ठाकुर दे वता
ही!
भवानंद वामी से गौरी की उ काफी बड़ी-करीब पचीस वष बड़ी है । लेिकन चतुर
भवानंद ने उ र िदया-भाभी! अरे तु ह रसीली दे खकर भाभी कहता हू ं । नह तो िहसाब
जब िकया गया था, तो तुम मुझसे छ: वष छोटी िनकली थ । या याद नह है ? हम लोग
ै ै
म सब तरह के वै णव ह न। इ छा है िक एक मठधारी चारी के साथ तु हारी सगाई
करा दूं, यही कहने आया हू ं ।?

गौरी-यह कैसी बात? अरे राम-राम! ऐसी बात भला कही जाती? म ठहरी िवधवा औरत!
भवानंद-तो सगाई न होगी?

गौरी-तो भाई! जैसा समझो वैसा करो। तुम लोग पंिडत आदमी ठहरे । हम लोग तो और
ह, या समझ? तो कब होगी सगाई?

भवानंद ने बड़ी मु कल से हं सी रोककर कहा-बास एक बार उस चारी से मुलाकात


होते ही प ी हो जाएगी सगाई?

गौरी जल गई। मन म संदेह हु आ िक शायद सगाई की बात मजाक है । बोली-है , जैसी, है


वैसी है !

भवानंद-तुम जरा जाकर एक बार दे ख आओ। कह दे ना िक म आया हू - एक बार


िमलना चाहता हू ं ।

इस पर गौरी भात-दाल छोड़कर हाथ धोकर छमछम करती हु ई सीि़ढयां तोड़ती ऊपर
चढ़ने लगी। एक कमरे म जमीन पर चटाई िबछाकर एक अपूव सु दरी बैठी हु ई हँ ◌ै।
लेिकन स दय पर एक घोर छाया है । म या ह के समय कलकलवािहनी स सिलला,
िवपुल-जल- ोतवती नदी के ऊपर मेघ आने जैसी यह कैसी छाया है !
नदी- दय पर तरं गे उछल रही ह, तटवत कुसुमवृ वायु के झ के म म त झूम रहे ह,
पु प-भार से दबे जा रहे ह, उनसे अ ािलका- ेणी सुशोिभत है । तरणी- ेणी के ताड़न से
जल आंदोिलत हो रहा है । यह भी वैसे ही पहले की तरह चा , िचकने, चंचल, गुथ
ं े
केश, पहले का वैसा ही तेजपुज
ं ललाट और उस पर पतली तूिलका से खची हु ई भ ह,
वही पहले जैसे चंचल मृग-नयन- लेिकन वैसे कटा मय नह , वैसी लोलता नह , कुछ
न ! अधर पर वही दाि़डम लािलमा, वैसे ही सुधारसपूण, वैसे ही वनलता-दु ा य
कोमलतायु बाहु । लेिकन आज वह दीि नह , वह उ”वलता नह , वह खरता नह ,
वह चंचलता नह , वह रस नह है -शायद वह यौवन भी नह है । केवल सौ दय और
माधुयमा , नयी बात आ गयी है -गा भीय। इसे पहले दे खने से जान पड़ता था िक

ै ै
मनु य-लोक की अतुलनीय सु दरी है अब दे खने से जान पड़ता है िक कोई वग की
शाप त दे वी है । उसके चार तरफ दो-चार पु तक पड़ी हु ई ह। दीवार पर खूट
ं ी के
सहारे तुलसी की माला लटक रही है । दीवार पर जग ाथ, बलराम, सुभ ा,
कालीयदमन, गोवधन-धारण आिद के िच टं गे हु ए ह। वे िच उसके वयं बनाये हु ए
ह, उनके नीचे िलखा हु आ है -िच या िविच ! ऐसे ही कमरे म भवान द ने वेश िकया।

भवान द ने पूछा- य क याणी! शारीिरक कुशल तो है ?

क याणी-यह करना आप न छोड़गे? मेरे शारीिरक कुशल से आपका या


मतलब?

भवान द-जो वृ लगाता है , उसम िन य जल दे ता है -वृ के बढ़ते से ही उसे सुख होता


है । तु हारे मृत शरीर म मने नवजीवन िदया है । वह बढ़ रहा है या नह , म य न पूछूंगा?

क याणी-िव -वृ का या कभी कोई दाम होता है ?

भवान द-जीवन या िवष है ?

क याणी-न होता तो अमृत ढालकर म उसे वंस करने को य तैयार होती?

भवान द-बहु त िदन से सोच रहा था-पूछूंगा, लेिकन पूछ नह सका। िकसने तु हारे
जीवन को िवषमय बना िदया था?

भवान द िवचार-सागर म गोते लगाते हु ए मठ की तरफ चले। वे राह म अकेले चले आ


रहे थे। वन म भी अकेले ही उ ह ने वेश िकया। अब उ ह ने दे खा िक वन म उनके
आगे-आगे एक आदमी चला जा रहा है । भवान द ने पूछा-कौन हो भाई?

अ गामी यि ने कहा-जानना चाहते हो? उ र दे ता हू ं -एक पिथक

भावान द-व दे -
वह आदमी बोला-मातर ।

भवान द-म भवान द वामी हू ं ।


अग ामी-म धीरानंद।

भवान द-धीरानंद! कहां गये थे?

धीरानंद-आपकी ही खोज म।
भवान द- य ?

धीरानंद-एक बात कहने।

भवान द-कौन-सी बात?


धीरानंद-अकेले म कहने की है ।

भवान द-यह बताओ न, यह तो िनजन थान है ।

धीरानंद- आप नगर म गए थे
भवानंद- हाँ।

धीरानंद- गौरी के घर?

भवानंद- तुम भी नगर म गए थे या?


धीरानंद- वहां एक परम सुंदरी रहती है ?

भवानंद- कुछ िव मत भी हु ए डरे भी। बोले- यह सब कैसी बात ह?

धीरानंद- आप उसके साथ मुलाकात की थी?


भवानंद- हसके बाद?

धीरानंद- आप उस कािमनी के ित अित अनुर ह?

भवानंद- (कुछ िवचारकर) धीरानंद! तुमने य इतनी खोज-बीन की। दे खो धीरानंद!


तुम जो कुछ कह रहे हो, सब सच है । लेिकन तु हारे अितिर िकतने लोग यह बात
जानते है ?
धीरानंद- और कोई नह ।

भवानंद- तब तु हारा बध करने से ही म मु हो सकता हू ँ ।


धीरानंद- कर सकते हो?

भवनांद- तब आओ, इस िनजन थान म ही यु करे । हो सकता तो म तु हारा बध कर


कलंक से बचूं या तुम मेरा बध कर दो, तािक सारी वालाओं म मेरी मुि हो जाए।
बोलो, पास म अ है ?

धीरानंद- है ! खाली हाथ िकसकी मजाल है िक तु हारे सामने यह बात करे । यिद यु की
ही तु हारी इ छा है तो वही सही, पर संतान-संतान म िवरोध िनिष है िक तु आ मह या
के िलए िकसी के साथ भी यु करने म हज नह । जो बात कहने के िलए म तु ह खोज
रहा था, या वह सब सुन लेने पर यु करना अ छा न होगा?
भवानंद- हज य है कहो!

भवानंद ने तलवार िनकाल कर धीरानंद के कंधे पर रख दी। धीरानंद भागे नह ।

धीरानंद- म यह कह रहा था िक तुम क याणी से िववाह कर लो।


भवानंद- क याणी यह! भी जानते हो?

धीरानंद- िववाह य नह कर लेते?

भवानंद- उसके तो पित जीिवत ह


धीरानंद- वै ण का ऐसा िववाह होता है ।

भवानंद- यह नीच वैरािगय की बात है -संतान म नह । संतान की शादी नह होती।

धीरानंद- संतान-धम या अपिरहाय है ? तु हारे तो ाण जा रहे ह। िछ:! िछ:! मेरा कंधा


न कट गया। (व तुत: धीरानंद के कंधे से र िनकल रहा था।)

भवानंद- तुम िकसिलए मुझे यह अधम-मित दे ने आए हो? अव य ही तु हारा कोई


वाथ है !


धीरानंद- वह भी कहने की इ छा है । तलवार न धंसना, बताता हू ं । इस संतान-धम ने
मेरी हि य को जजर कर िदया है । म इसका पिर याग कर ी-पु का मुंह दे खकर िदन
िबताने के िलए उतावला हो रहा हू ं । म इस संतान-धम का पिर याग क ं गा। लेिकन
या मेरे िलए घर जाकर बैठने का अवसर है । िव ोही के प म अनेक लोग मुझे
पहचानते ह। घर जाकर बैठते ही शायद राजपु ष सर उतार ले जाएंग।े अथवा स तान
लोग ही िव ासघात समझकर मार डालगे। इसीिलए तु ह भी अपना साथी बना लेना
चाहता है । भवान द- य , मुझे य ?

धीरान द- यही असली बात है । स तान गण तु हारे अधीन ह। स यान द अभी यहां ह
नह ; इनके नायक हो तुम। इस सेना को लेकर यु करो, तु हारी िवजय होगी, इसका
मुझे िव ास है । यु म िवजय ा कर य नह तुम अपने नाम से एक रा य थािपत
करते? सेना तो तु हारी आ ाकािरणी है । तुम राजा हो, क याणी तु हारी म दोदरी हो, म
भी तु हारा अनुचर बनकर ी-पु का मुंह दे खकर िदन िबताऊं और आशीव द क ं ।
स तान-धम को अलग जल म डुबो दो!

भवान द ने धीरान द के कंधे पर से तलवार हटा ली; बोले-धीरान द! यु करो! म


तु हारा वध क ं गा। म इ य-परवश हो सकता है , लेिकन िव ासघातक नह । तुमने
मुझे िव ासघाती होने का परामश िदया है - वयं भी िव ासघातक हो। तु ह सामने
मारने से ह या भी न होगी। म तु हारा वध क ं गा!

बात समा होते-न-होते धीरान द दम भरकर भागे। भगवान ने पीछा न िकया। भगवान
कुछ अनमने से थे; उ ह ने अब दे खा, धीरान द का कह पता न था।

क पनी की उस समय अनेक कोिठयां थी। ऐसी ही एक कोठी िशव ाम म थी। डांनीवथ
साहब इस कोठी के अ य थे। उस समय रे शम-कोठी की र ा का बहु त ही अ छा
ब ध हु आ करता था।
डॉनीवथ ने इसी वजह से िकसी तरह अपनी ाणर ा की। लेिकन अपनी ी-क या को
कलक ा भेज दे ने के िलए उ ह बा य होना पड़ा था; कारण-डॉनीवथ स तान ारा बहु त
ही पीि़डत हु ए थे। उसी समय टॅ ामस साहब थोड़ी फौज लेकर उस अंचल म पहु ं च गये।
उस समय िकतने ही डोम,चमार,लंगड़े-लूले भी पराया धन लूटने के िलए उ सािहत हो
गये थे। उन सब ने जाकर क ान टॉमस की रसद पर आ मण िकया। क ान साहब
बहु त अिधक मा ा म खा -साम ी- घी, मैदा, सूजी, चावल गाि़डय पर लदवाकर ले
आ रहे थे। इसे दे खकर डोम-चमार का दल अपना लोभ संवरण कर न सका- उन
सबने जाकर गाड़ी पर आ मण िकया; लेिकन िसपािहय की दो-चार संगीन खाकर सब
भागे।

क ान टॉमस ने उसी समय कलक े िरपोट भेजी िक आज कुल 157 (एक सौ संतावन
)िसपािहय को लेकर मने 14730 िव ोिहय को परा त िकया है । िव ोिहय के 2153
(इ ीस सौ ितरे पन) यि मरे , 1223 घायल हु ए और 7 यि ब दी हु ए। केवल
अ तम सं या स य थी। क ान टॉमस ने ि तीय ेनहम या रसवाक का यु जीता- यह
सोचते हु ए वे अपनी मूछ पर ताव दे ते हु ए इधर-उधर ठाट से घूमने लगे। उ ह ने
डॉनीवथ से कहा- अब या डरते हो? बस, िव ोिहय का दमन हो गया! अब अपनी
ी-क या का कलक े से बुला लो।
इस पर डॉनीवथ ने उ र िदया- ऐसा ही होगा! आप दस िदन यहां ठहिरये, दे श को जरा
और शांत होने दीिजये, िफर बुला लगे।

डॉनीवथ के पास प टन की मु गयॉं पली हु ई थी और उनके यहां का पानी भी बहु त


अ छा था। िविभ व यप ी उनके टे बुल की शोभा बढ़ाते थे। दाढ़ीवाला बावच मानो
ि तीय ौपदी था। अत: िबना कुछ बोले-चाले क ान टॉमस वह डटे रहने लगे।

इधर भवानंद मन ही मन य त है िक कब इस क ान का सर काटकर ि तीय श बरािर


की उपािध धारण क ं । अं ज
े इस समय भारतो ार के िलए(?) आये ह, ये संतानगण
तब तक समझ न सके थे। कैसे समझते? क ान टॉमस के सम-सामियक भी उस समय
यह न समझ सके थे िक भारतवष पर हमारा रा य थािपत हो सकेगा। उस समय
भिव य तो िवधाता ही जानते थे! भवानंद मन म सोचते थे िक इस असुर- वंश का एक
िदन म िनपात क ं गा; सब एकिचत हो जाएं और जरा असतक स तान लोग अलग
रहे । यही िवचारक सब अलग रहे । उधर क ान टॉमस ौपदी गुण- हण म संल थे।

साहब बहादुर िशकार के बड़े शौकीन थे। वे कभी-कभी िशव ाम के िनकट के जंगल म
िशकार खेलने िनकल जाते थे। एक िदन डॉनीवथ के साथ अनेक िशकािरय को लेकर
टॉमस िशकार के िलए िनकल पड़े। कहना ही या है ! टॉमस बड़े ही साहसी यि ह,
बल-वीय म अंगरे ज म अतुलनीय है । इस जंगल म शेर, भालू आिद हसक ज तुओं
का बाहु य है । बहु त दूर िनकल जानेपर साथ के िशकािरय ने आगे बढ़ने से इनकार
कर िदया िक िनिवड़ जंगल म हम न घुसगे; वे बोले- अब भीतर राह नह है , आगे जा न
सकगे। डानीवथ भी ऐसे भयानक शेर के सामने पड़ चुके थे िक वे भी घुसने से मुकर
गये। सब लोग लौटना चाहते थे। क ान टॉमस ने कहा- तुम लोग लौट जाओ, म न
लौटूंगा। यह कहकर क ान साहब ने भयानक जंगल म वेश िकया। व तुत: उस
जंगल म राह न थी। घोड़ा आगे बढ़ न सकता था: लेिकन साहब ने अपना घोड़ा भी छोड़
िदया और क धे पर ब दूक रखकर पांव पैदल आगे बढ़े । घने जंगल म वेश कर इधर
उधर शेर की खोज करने लगे; पर शेर कह न था। िफर दे खा या- एक बड़े पेड़ के
नीचे, िखले पु प की लता अपने शरीर से लपेटे हु ए कौन बैठा हु आ था? एक नवीन
सं यासी बैठा अपने प से जंगल म उजाला िकये हु ए है । फुिटत पु प मान उस शरीर
का सािन य पाकर कुछ अिधक सुग धत हो गये है । क ान टॉमस को पहले तो िव मय
हु आ, िफर ोध आया। क ान साहब थोड़ी बहु त िह दी बोल लेते थे,बोले-टुम कौन?
सं यासी ने कहा- म सं यासी हू ं ।

क ान ने कहा - टुम िरबेल है ?

सं यासी- वह या?
क ान-हम टुमको गुली करके माड़ेगा।

स यासी-मारो।
आन दमठ भाग-8
मठ म जाकर और िफर भवान द जंगल म घुस गए। उस जंगल म एक जगह ाचीन
अ ािलका का भ ावशेष है । उस ढूहे पर घास-पात आिद जम आई है । वहां असं य
सप का वास है । ढूहे की जमीन अपे ाकृत साफ और ऊंची थी। भवान द उसी पर
जाकर बैठे और चता म म हो गए।

भयानक अंधेरी रात थी। उस पर वह जंगल अित िव तृत, एकदम सूना जंगल वृ -
लताओं से घना और दुभ , गमनागमन म दु कर है । आवाज आती भी है तो भूखे शेर
की हु ं कार, अ या य पशुओं के भागने या बोलने का श द, कभी पि य के पर
फटफटाने की आवाज, तो कभी भागते हु ए पशुओं के पैर की खरखराहट। ऐसे िनजन
थान म उस ढूहे पर अकेले भगवान बैठे हु ए ह। उनके िलए इस समय पृ वी है ही नह ,
या केवल उपादान मा है । भवान द िन ल थे, ास- ास अित सू म, अपने म ही
िवलीन, माथे पर हाथ रखे बैठे थे। मन म सोचते थे-जोहोना होना है , अव य होगा।
भागीरथी की जल-तरं ग के बीच ु हाथी की तरह इंि य- ोत म डूब गया, यही दु:ख
है । एक ण म इंि य का वंस हो सकता है , शरीर-िनपात कर दे ने से। म इसी इंि य के
वश म हो गया? मेरा मरना ही अ छा है । धम यागी! िछ :! िछ :! म अव य म ं गा। इसी
समय माथे पर पेचक ने भयानक श द िकया। भवान द अब खुलकर बड़बड़ाने लगे-
यह कैसा श द? कान म ऐसा सुनाई पड़ा, मानो भय का आ ान हो। म नह जानता, मुझे
कौन बुलाता-यह िकसका श द है ? िकसने राह बतायी, िकसने मरने के िलए कहा?
पु यमय अन त! तुम श द-श दमय हो; लेिकन तु हारे श द का अथ तो म समझ नह
पाता हू ं ।

इसी समय भीषण जंगल म से मधुर साथ ही गंभीर, ेम भरा मनु य-क सुनाई िदया-
आशीव द दे ता हू ं , धम म तु हारी मित अव य होगी!

भवान द के शरीर के र गटे खड़े हो गये-यह या? यह तो गु दे व की आवाज है -

महाराज! आप कहां है ? इस समय सेवक को दशन दीिजये।


लेिकन िकसी ने भी दशन न िदया, िकसी ने भी उ र न िदया। भवान द ने बार-बार
बुलाया, लेिकन कोई उतर न िमला। इधर-उधर खोजा, कह कोई न था।

रात बीतने पर जब जंगल म भात का सूय उदय हु आ-जंगल म भात का सूय उदय
हु आ-जंगल म प की हिरयाली जब चमक उठी, तब भवान द मठ म वापस आ गए।
उनके कान म आवाज पहु ं ची- हरे मुरारे ! हरे मुरारे ! पहचान गए िक यह स यान द की
आवाज है । समझ गए िक भु वापस आ गए!

जीवान द के कुटी से बाहर चले जाने पर शा त दे वी िफर सारं गी लेकर मृदु वर म गाने
लगी- लयपयोिधजले धृतवानिस वेदं

िविहत विह चिर मखेदं,

केशवधूत मीन शरीर,

जय जगदीश हरे !

गो वामी िवरिचत तो को िजस समय सारं गी की मधुर विन पर कोमल वर से शांित


गाने लगी, उस समय वह वर-लहरी वायुम डल पर इस तरह तंरिगत हो उठी, िजस
तरह जल म अवगाहन करने पर ोत वािहनी नदी म धार कु डलाकार होकर लहराने
लगती है । शांित गाने लगी!

िन दिस य िवधेरह: ृितजात

सद य दय द शत पशुघातम,

केशव धुत बु शरीर


जय जगदीश हरे !

इसी समय िकसी ने बाहर से गंभीर वर म-मेघगजन के समान गंभीर वर म गाया!

े छ िनवहिनधने कलपयिस करवाल


धूमकेतुिमित िकमिप कराल

केशवधृत क क शरीर

जय जगदीश हरे ।

शांित ने भि -भाव से णत होकर स यान द के पैर की धूिल हण की और बोली-

भो! मेरा ऐसा कौन-सा भा य है िक ी पादप का यहां दशन िमला। आ ा दीिजये,


मुझे या करना होगा? यह कहकर शांित ने िफर वर-लहरी छे ड़ी!

भवचरण णता वयिमित भावय

कु कुशल णतेषु।

स यान द ने कहा- तु ह म पहचानता न था, बेटी! र सी की मजबूती न जानकर मने उसे


ख चा था। तुम मेरी अपे ा ानी हो। इसका उपाय तु ही कहो। जीवान द से न कहना
िक म सब कुछ जानता हू ं । तु हारे लोभन से वे अपनी जीवन-र ा कर सकगे-इतने
िदन से कर ही रहे ह ऐसा होने से मेरा काय ार हो जाएगा।

शांित के उन िवशाल लोल कटा म िनदाघ-काद बनी म िवरािजत िबजली के सामान


घोर रोष कट हु आ। उसने कहा-

यह या कहते ह महाराज! म और मेरे पित एक आ मा ह। मरना होगा तो वे मरगे ही,


इसम मेरा नुकसान ही या है । म भी तो साथ म ं गी! उ ह वग िमलेगा तो या मुझे
वग न िमलेगा?

चारी ने कहा-दे वी! म कभी हारा न था, आज तुमसे तक म हार मानता है । मां ! म
तु हारा पु ह-संतान पर ह े रखो। जीवान द के ाण की र ा करो। इसी से मेरा
काय ार होगा।

िबजली हं सी। शांित ने कहा-मेरे वामी धम मेरे वामी के ही हाथ है । म उ ह धम से


िवरत करनेवाली कौन हू ं ? इहलोक म ी का दे वता पित है : कतु परकाल म सबका
िपता धम होता है । मेरे समीप मेरे पित बड़े ह उनकी अपे ा मेरा धम बड़ा है -उससे भी


बढ़कर मेरे िलए पित का धम है । म अपने धम को िजस िदन चाहू ं जलांजिल दे सकती
हू ं , लेिकन या वामी के धम को जलांजिल दे सकती हू ं ? महाराज! तु हारी आ ा पर
मरना होगा तो मेरे वामी मरगे, म मना नह कर सकती।

इस पर चारी ने ठं डी सांस भरकर कहा-मां! इस घोर त म बिलदान ही है । हम


सबको बिलदान चढ़ाना पड़ेगा। म म ं गा जीवान द, भवान द-सभी मरगे, शायद तुम
भी मरोगी। िक तु दे खो, काय पूरा करके ही मरना होगा, िबना काय के मरना िकस काम
का? मने केवल ज मभूिम को ही मां माना था और िकसी को भी मां नह कहा, य िक
सुजला-सुफला माता के अितिर मेरी और कोई माता नह । अब तु ह भी मां कहकर
पुकारा है । तुम माता होकर हम संतान का काय िस करो। िजससे हमारा काय ार हो
वह करो-जीवान द की ाण-र ा करना, अपनी र ा करना!
यही कहकर स यान द-हरे मुरारे , मधुकैटभारे ? गाते हु ए चले गये।

इसके बाद तो दस हजार स तान सै य व दे मातर गाती हु ई, अपने भाले आगे कर तीर
की तरह तापा पर जा पड़ी। य िप वे लोग गोले और गोिलय की बौछार से त-िव त
हो चुके थे, लेिकन पलटे नह , भागे नह घनघोर यु शु हो गया। लेिकन इसी समय
रण-कुशल टॉमस की आ ा से एक सेना ब दूक पर संगीन चढ़ाकर पीछे से िनकलकर
संतान के दािहने बाजू पर िगरी। अब जीवान द ने कहा-भवान द! तु हारी ही बात ठीक
थी। अब स तान-सै य को नाश करने की ज रत नह लौटाओ इ ह।

भवान द -अब कैसे लौट सकते है ? अब तो जो पीछे पलटे गा, वही मारा जाएगा।

जीवान द - सामने और दािहने से आ मण हो रहा है । आओ, धीरे -धीरे बाएं होकर


िनकल चल।

भवान द -बाएं घूमकर कहां जाओगे? बाएं नदी है - वष से भरी हु ई नदी। इधर गोले से
बचोगे, तो नदी म डूबकर मरोगे।

ै ै
जीवान द -मुझे याद है , नदी पर एक पुल है ।

भवान द - लेिकन इतनी सं या म स तान जब पुल पर एक हो जाएंग,े तो एक ही तोप


उनका समूल नाश कर दे गी।

जीवान द - तब एक काम करो। आज तुमने जो शौय िदखाया है , उससे तुम सब कुछ


कर सकते हो। थोड़ी सेना के साथ तुम सामना करो। म अविश सेना को बाएं घुमाकर
िनकाल ले जाता हू ं । तु हारे साथ की सेना तो अव य ही िवन होगी, लेिकन अविश
स तान सेना न होने से बच जाएगी।

भवान द -अ छा, म ऐसा ही क ं गा।

इस तरह दो हजार सैिनक के साथ भवान द के सामने से िफर गोल दाज पर आ मण


िकया।

उनम अपूव उ साह था। घोरतर यु होने लगा। गोल दाज सेना उनके िवनाश म और
तोप-र ा म संल हु ई। सैकड़ स तान कट-कटकर िगरने लगे। लेिकन येक स तान
अपना बदला लेकर मरता था।

इधर अवसर पाकर जीवान द अविश सेना के साथ बाएं मुड़कर जंगल के िकनारे से
आगे बढ़े । क ान टॉमस के सहकारी ले टनट वाटसन ने दे खा िक स तान का बहु त
बड़ा दल भागने की चे ा म बाएं घूमकर जाना चाहता है । इस पर उ ह ने दे शी िसपािहय
की सेना लेकर उनका पीछा िकया।

क ान टॉमस ने भी यह दे खा। स तान-सेना का धान भाग इस तरह गित बदल रहा है -


यह दे खकर उ ह ने सहकारी से कहा - मै दो-चार सौ िसपािहय के साथ सामने की सेना
को मारता हू ं , तुम शेष सेना के साथ उन पर धावा करो। बाएं से वाटॅ सन जाते ह, दािहने
से तुम जाओ। और दे खो, आगे जाकर पुल का मुंह ब द कर दे ना। इस तरह वे सब तरह
से िघर जाएंग।े तब उ ह फंसी िचि़डया की तरह मार िगराओ। दे खना, दे शी फौज भागने
म बड़ी तेज होती है , अत: सहज ही उ ह फंसा न पाओगे। अ ारोही सेना को व न सके
अ दर से िछपकर पहले पुल के मुंह पर पहु ं च जाने को कहो, तब वे फंस सकगे।?
क ान टॉमस ने, जो कुशल सेनापित था, अपने अहं कार के वश होकर यह भूल की।
उसने सामने की सेना को तृणवत समझ िलया था। उसने केवल दो सौ पदितक सैिनक
को अपने पास रहने िदया और शेष सबको भेज िदया। चतुर भवान द ने जब दे खा िक
तोप के साथ समूची सेना उधर चली गयी और सामने की छोटी सेना सहज ही व य है ,
तो उ ह ने अपनी सेना को जोश िदलाया - या दे खते हो, सामने मु ी भर अंगरे ज ह,
मारो! इस पर वह संतान सेना टॉमस की सेना पर टूट पड़ी। उस आ मण को थोड़े-से
अंगरे ज सह न सक; मूली की तरह वे कटने लगे। भवान द ने वयं जाकर क ान टॉमस
को पकड़ िलया। क ान अंत तक यु करता रहा। भवान द ने कहा - क ान साहे ब! म
तु ह मा ं गा नह , अंगरे ज हमारे शत नह है । य तुम मुसलमान की सहायता करने
आये? तु ह ाणदान तो दे ता हू ं , लेिकन अभी तुम ब दी अव य रहोगे। अंगरे ज की जय
हो, तुम हमारे िम हो।

क ान ने भवान द को मारने के िलए संगीन उठायी, लेिकन भवान द से शेर की तरह


जकड़े हु ए थे, वह िहल न सका। तब भवान द रासने अपने सैिनक से कहा -बांधो इ ह।
दो-तीन स तान ने टॉमस को बांध िलया। भवान द ने कहा - इ ह घोड़े पर बैठाकर ले
चलो। हम लोग जीवान द की सहायता को जाते ह।

इसी तरह वह अ पसं यक स तान-सेना क ान टॉमस को कैदी बनाकर घोड़े पर चढ़


भवान द के साथ जीवान द की सहायता के िलए आगे बढ़ी।

जीवान द की सेना का उ साह टूट चुका था, वह भागने को तैयार थी। लेिकन जीवान द
और धीरानंद ने उ ह समझाकर िकसी तरह ठहराया। पर तु सब सेना को जीवान द और
धीरानंद पुल की तरफ ले गये। वहां पहु ं चते ही एक तरफ से हे नरी ने और दूसरी तरफ से
वाटसन ने उ ह घेर िलया। अब िसवा यु के पिर ाण न था। इधर सेना भ ो साह थी।

रण-िवजय के उपरा त नदी तट पर स यानंद को घेरकर िवजयी सेना िविभ उ सव म


म हो गयी। केवल स यान द दु:खी थे, भवान द के िलए।
अब तक संतान के पास कोई रण-वा नह था। अब न मालूम कहां से हजार नगाड़े,
ढोल, भेरी, शहनाई, तुरी, राम सघा, दमामा आ गये। तुमुल विन से नदी, तटभूिम और
जंगल कांप उठा। इस कार संतान ने बहु त दे र तक िवजय का उ सव मनाया। उ सव
के उपरांत स यान द वामी ने कहा-आज भगवान सदय हु ए ह; संतान की िवजय हु ई
है ; धम की जय हु ई है । लेिकन अभी एक बात बाकी है । जो हमलोग के साथ इस उ सव
म शरीक न हो सके, िज ह ने हमारे उ सव के िलए ाण उ सग िकए िकए ह, उ ह हम
लोग को भूलना न चािहए-िवशेषत: उस वीरा ग य भवान द को, िजसके अद य रण-
कौशल से आज हमारी िवजय हु ई है । चलो, उसके ित हमलोग अपना अ तम क य
कर आएं।

यह सुनते ही संतानगण बड़े समारोह से व दे मातरम आिद जय- विन करते हु ए रण े


म पहु ं च।े वहां उन लोग ने चंदन-िचता सजा कर आदरपूवक भवान द की लाश सुलाई
और आग लगा दी। इसके बाद वे लोग उस वीर की दि णा करते हु ए व दे मातर का
गीत गाते रहे । संतान-स दाय िव णुभ ह, वै णव स दाय नह । अत: इनके शव
जलाए ही जाते थे।
इसके उपरांत उस कानन म केवल स यान द, जीवान द, मह , नवीनान द और
धीरान द रह गए। यह पांच जन परामश के िलए बैठ गए। स यान द ने कहा-इतने िदन
से हम लोग ने अपने सवकम, सवसुख याग रखे थे, आज यह त सफल हु आ है ।
अब इस दे श म यवन सेना नह रह गयी है । जो थोड़ी-बहु त बच गयी है , वह एक ण
भी हमारे सामने िटक नह सकती। अब तुम लोग या परामश दे ते हो?

जीवान द ने कहा-चिलये, इसी समय चलकर राजधानी पर अिधकार कर।

स यान द-मेरा भी ऐसा मत है ।

धीरान द-सेना कहां है ?

जीवान द- य , यही सेना!

धीरान द-यही सेना है कहां? िकसी को दे ख रहे ह?


जीवान द- थान- थान पर ये लोग िव ाम कर रह ह गे; डंके पर चोट पड़ते ही इक े हो
जाएंग।े

धीरान द-एक आदमी भी न पा सकगे।


स यान द- य ?

धीरान द-सब इस समय लूट-पाट म य त ह। इस समय सारे गांव आरि त है ।


मुसलमान के गांव और रे शम की कोठी लुटने के बाद ही वे लोग घर लौटगे। अभी
िकसी को न पाएंग,े म दे ख आया हू ं ।

स यान द दुखी हु ए बोले-जो भी हो, इस समय यह समूचा दे श हमारे अिधकार म आ


गया है । अब यहां कोई हमारा ित ी नह है । अतएव इस वीरे भूिम म तुम लोग
अपना स तान-रा य िति त करो। जा से कर वसूल करो और सै य-सं ह करो।
िह दुओं का रा य हो गया है , यह सुनकर बहु तेरी संतान-सै य तु हारे झ डे के नीचे आ
जाएगी।
इस पर जीवान द आिद ने स यान द को णाम िकया और कहा-यिद आ ा हो
महाराजािधराज! तो हम लोग इसी जंगल म आपका सहासन थािपत कर सकते ह।

स यान द ने अपने जीवन म यह थम बार ोध कट िकया बोले- या कहा? या मुझे


केवल क ा घड़ा ही समझ िलया है ? हमलोग कोई राजा नह है , हम केवल सं यासी ह।
इस दे श के राजा वयं बैकु ठनाथ है , जहां जात -रा य थािपत होगा। नगर
अिधकारी के बाद तु ही लोग कायकत होगे। म तो चय-शि के अितिर और
कुछ भी वीकार न क ं गा। अब तुम लोग अपने-अपने काम म लगो।

इसी समय टॉमस की तोप पास आ पहु ं ची। अब स तान का दल िछ -िभ होने लगा।
उ ह ाण-र ा की कोई आशा न रही। िजसे िजधर राह िमली, भागने लगा। जीवान द
और धीरान द ने उ ह बहु त संयत करने की चे ा की, लेिकन कोई फल न हु आ, संतान
का दल िततर-िबतर होने लगा। इसी समय ऊंची आवाज म सुनाई िदया - पुल पर
जाओ, पुल पर जाओ! उस पार चले जाओ, अ यथा नदी म डूब मरोगे। अंगरे ज की
सेना की तरफ मुंह िकये हु ए पुल पर चले जाओ!

जीवान द ने दे खा िक कहनेवाले भवानंद सामने ह। भवान द ने कहा,-जीवान द, तुम


सेना को पुल पर ले जाओ। दूसरे कार से र ा नह है । यह सुनते ही संतान-सेना
मश: पुल पर पहु ं चने लगी। थोड़ी ही दे र म समूची संतान-सेना पुल पर जा पहु ं ची।
भवान द, जीवान द धीरान द सब एक थे। भवान द ने जो कुछ कहा था, वही हु आ।
अंगरे ज की तोप पुल के मुंह पर लगी थी और वे गोले उगलने लग । भयानक संतान-
य होने लगा। यह दे खकर भवान द ने कहा - जीवान द! यह एक तोप हमारा नाश कर
डालेगी! या दे खते हो, जाओ हम तीन उस पर टूटकर अिधकार ल।

भवानंद के यह कहते ही जय नाद उठा -व दे मातरम! और उसी समय तीन तलवार पुन:
िसर पर घूम उठ । तोपची तमाशा ही दे खते रह गये। हे नरे और वासटन दूर खड़े
अहं कार और स ता म इसे िखलवाड़ और मूखता समझते रहे । िक तु इसी समय रण
का पास पलट गया। पलक मारते ही तीन स तान-नायक तोपिचय पर जा पड़े।
तोपिचय के िसर धड़ से कब जुदा हु ए कुछ पता नह । उनकी मोह-िन टूटी तब, जब
िबजली की तरह तलवार चमकाते हु ए भवान द वयं तोप पर खड़े हो गये और बोल
-व दे मातर ! सह कंठ से िनकला -व दे मातर ! उसी समय जीवान द ने तोप का
मुंह अंगरे जी सेना की तरफ कर िदया और तोप ित- ण आग उगलने लगी। अब
भवानंद ने कहा - जीवानंद भाई! यह िणक जीत है , अब तुम संतान को लेकर
सकुशल पार चले जाओ। केवल बीस तोप भरनेवाले और मृ यु का वरण करनेवाले
संतान को तोप की र ा के िलए छोड़ दो।

ऐसा ही हु आ। बीस संतान तोप के इद-िगद आ डटे । शेष समूची सेना जीवान द और
धीरान द के साथ पार पहु ं चने लगी। उस समय भवानंद क गजराज हो रहे थे। पुल की
संकरी जगह पर तोप लगाकर वे लगे गोरी वािहनी का नाश करने। दल-के-दल तोप
छीनने के िलए आगे बढ़ते थे और मरकर ढेर बन जाते थे। उस समय वे बीस युवक
अजेय थे। ये लोग शी ता इसिलए कर रहे थे िक अंगरे ज की शेष तोप पहु ं चने के पहले
तक ही यह सारी अजेय लीला है । लेिकन भगवान को तो कुछ और ही करना था।
एकाएक जंगल के अ दर से बहु त-सी तोप का गजन सुनाई पड़ने लगा। दोन ही दल
अवाक-िर प द होकर दे खने लगे िक ये िकसकी तोप ह?

थोड़ी ही दे र म लोग ने दे खा िक जंगल के अ दर से महे की स ह तोप, तीन तरफ से


घेरा, बांधे हु ए आग उगलती चली आ रही ह। अंगरे ज की उस दे शी फौज म महामारी
आ गयी- दल-के-दल साफ होने लगे। यह दे ख शेष यवन-िसपाही भागने लगे। उधर
जीवानंद और धीरान द ने भी जैसे ही वातावरण समझा, तैसे ही उनका सारा ोध पलट
पड़ा और पलट पड़ी स तान-सेना। वे भागती हु ई यवन-सेना को घेरने और मारने लगे।
अविश रह गये यही कोई तीस-चालीस गोरे । वह वीर जाित वैसे ही डटी रही। अब
भवान द ने उन पर धावा बोलने के िलए हाथ उठाया ही था िक जीवान द ने कहा -
भवान द! महे की कृपा से पूण रण-िवजय हु ई है ; अब यथ इ ह मारने से या
फायदा? चलो लौट चल।
भवान द ने कहा - कभी नह ,जीवानंद! तुम खड़े होकर तमाशा दे खो। एक के भी जदा
रहते भवान द वापस नह हो सकता। जीवान द! तु ह कसम है , खड़े होकर चुपचाप
दे खो। म अकेले इन सबको मा ं गा।

अभी तक क ान टॉमस घोड़े पर बंधे हु ए थे। भवान द ने आ मण के समय कहा - उस


अंगरे ज को मेरे सामने रखो; पहले यह मरे गा, िफर मै म ं गा।

टॉमस िह दी समझता था। उसने अपने िसपािहय को आ ा दी- वीर ! मै तो मरे के


समान हू ं । इंगलै ड की मान-र ा करना, तु ह मातृभूिम की कसम है ! पहले मुझे मारो,
इसके बाद येक अंगरे ज मारकर अपनी जगह मरे ।

धांय एक श द हु आ और तुर त क ान टॉमस म तक म गोली लगने से मरकर िगर


पड़ा। यह गोली उसी के एक िसपाही ारा चलायी गयी थी। इसके बाद उन सबने
आ मण िकया। अब भवान द ने कहा -आओ भाई! अब कौन ऐसा है जो भीम,
नकुल, सहदे व बनकर मेरे साथ मरने को तैयार है ?

इतना कहते ही जीवानंद, धीरानंद और लगभग पचीस जवान आ पहु ं च।े घोर यु हो
रहा था। तलवार रही थ । धीरानंद, भवानंद के पास थे। धीरानंद ने कहा-भवानंद! य ?


या मरने का िकसी का ठे का है या? यह कहते हु ए धीरानंद ने एक गोरे को आहत
िकया।

भवानंद-यह बात नह ? लेिकन मरने पर तो तुम ी-पु का मुंह दे खकर िदन िबता न
पाओगे!

धीरानंद-िदल की बात कहते हो? अभी भी नह समझे? (धीरानंद ने आहत गोरे का वध


िकया)।

भवानंद-नह (इसी समय एक गोरे के आघात से भवानंद का बायां हाथ कट गया।)

धीरानंद-मेरी या मजाल थी िक तुम जैसे पिव ा मा से यह बात म कहता? म स यानंद


का गु चर हो कर तु हारे पास गया था?
भवानंद उस समय केवल एक हाथ से यु कर रहे थे। बोले-यह या? महाराज का मेरे
ित अिव ास?

धीरानंद ने उनकी र ा करते हु ए कहा-क याणी के साथ तु हारी िजतनी बात हु ई थी,सब
उ ह ने वयं अपने कान से सुनी।

भवानंद-यह कैसे?
धीरानंद-वे वयं वहां उप थत थे। सावधान बचो!(भवानंद ने एक गोरे ारा आहत
होकर उसे आहत िकया) वे क याणी को गीता पढ़ा रहे थे, उसी समय तुम आ गए।
सावधान!(लेिकन इसी समय भवानंद का दािहना हाथ भी कट गया।)

भवानंद-मेरी मृ यु का समाचार उ ह दे ना। कहना- म अिव ासी नह हू ं ।

धीरानंद आंख से आंसू भरे हु ए यु कर रहे थे। बोले-यह वे जानते ह। उ ह ने मुझसे


कह िदया है िक भवानंद के पास रहना, आज वह मरे गा। मृ यु के समय उससे कहना
िक म आशीव द दे ता हू ं , परलोक म तु ह बैकु ठ ा होगा।
भवानंद ने कहा-संतान की जय हो! मुझे एक बार मरते समय व दे मातर गीत तो
सुनाओ।
इस पर धीरानंद की आ ा पाकर सम त उ म संतान ने एक साथ व दे मातर गीत
गाया। इससे उनकी भुजाओं म दूना बल आ गया। इतनी दे र म अविश गोर का वध
हो चुका था। रण े म एक भी शत न रह गया।

हा! रमणी के प-लाव य! ..इस संसार म तुझे ही िध ार है !

मश: स तान सम दाय म समाचार चािरत हु आ िक स यान द आ गये ह और


स तान से कुछ कहना चाहते ह। अत: उ ह ने सबको बुलवाया है । यह सुनकर दल-के-
दल स तान लोग आकर उप थत होने लगे। चांदनी रात म नदी-तट पर दे वदा के
वृह जंगल म आम, पनस, ताड़, वट, पीपल, बेल, शा मली आिद पेड़ के नीचे करीब
दस सह स तान आ उप थत हु ए। सब आपस म स यान द के लौट आने का
समाचार सुनकर महाकोलाहल करने लगे। स यान द िकसिलए वहां गये थे- यह
साधारण लोग जानते न थे। अफवाह थी िक वे स तान की मंगलकामना से ेिरत होकर
िहमालय पवत पर तप या करने ◌ासगये थे। सब आपस म कानाफूसी करने लगे-

महाराज की तप या िस हो गयी है - अब हम लोग का रा य होगा। इस पर बड़ा


कोलाहल होने लगा। कोई ची कार करने लगा-मारो-मारो, पािपय को मारो। कोई
कहता-जय-जय! महाराज की जय! कोई गाने लगा- हरे मुरारे मधुकैटभारे ! िकसी ने
वंदेमारम गाना गाया। कोई कहता-भाई! ऐसा कौन िदन होगा िक तु छ बंगाली होकर भी
म रण े म शरीर उ सग क ं गा। कोई कहता-- भाई ! ऐसा कौन िदन होगा िक अपना
ही धम हम वयं भोग करगे। इस तरह दस सह मनु य के क ठ- वर से िनकली
गगनभेदी विन जंगल, ा त, नदी, वृ , पहाड़ सब कांप उठे ।

एकाएक श द हु आ- व दे मातरम और लोग ने दे खा िक चारी स यान द स तान के


म य आकर खड़े हो गये। इस समय दस सह -म तक उसी चांदनी म वनभूिम पर
णत हो गये। बहु त ही ऊंचे वर म, जलद गंभीर श द म स यान द ने दोन हाथ
उठाकर कहा- शंख-च -गदा-प धारी, वनमाली बैकु ठनाथ जो केिशमथन मधु-मुर-

नरकमदन, लोक-पालक है वे तुम लोग के बाहु ओं म बल दान कर, मन म भि द,
धम म शि द! तुम सब लोग िमलकर एक बार उनका गुणगान करो।

इस पर दस सह क ठ से एक साथ गान होने लगा।


जय जगदीश हरे ।

लयपयोिध जले धृतवानिस वेदं

िविदत िविहवमखेदम
जय जगदीश हरे ।

इसके उपरा त स यान द महाराज उन लोग को पुन: आशीव द दान कर बोले-

संतान ! तुम लोग से आज मुझे कुछ िवशेष बात कहनी है । टॉमस नाम के एक िवधम
दुराचारी ने अनेक संतान का नाश िकया है । आज रात हम लोग उसका ससै य वध
करगे! जगदी र की ऐसी ही आ ा है । तुम लोग या चाहते हो?

भयानक हष विन से जंगल िवदीण उठा- अभी मारगे! बताओ, चलो, उन सबको िदखा
दो। मारो! मारो! शतओं का नाश करो? इसी तरह के श द दूर के पहाड़ से टकराकर
ित विनत होने लगे। इस पर स यान द िफर कहने लगे- उसके िलए हम हम लोग को
जरा धैय धारण करना पड़ेगा। शतओं के पास तोप है ; िबना तोप के उनके साथ यु हो
नह सकता। िवशेषत: वे सब वीर-जाित के ह। हमारे पदिच ह दुग से 17 तोप आ रही
ह। तोप के पहु ं चते ही हम लोग यु आरं भ करगे। यह दे खो, भात हु आ चाहता है ।
मुहूत के 4 बजते ही..लेिकन यह या--

गु म-गु म-गुम! अक मा चार तरफ िवशाल जंगल म तोप की आवाज होने लगी।
यह तोप अंगरे ज की थी। जाल म पड़ी हु ई मछली की तरह क ान टॉमस ने स तान को
इस जंगल म घेरकर वध करने का उ ोग िकया था।

गु म गु म गुम! -- अंगरे ज की तोप गजन करने लग । वह श द समूचे जंगल म


ित विनत होकर सुनाई पड़ने लगा। वह विन नदी के बांध से टकराकर सुनाई पड़ी।
स यान द ने तुरंत आवाज दी- दे खो, िकसकी तोप ह? कई स तान तुरंत घोड़े पर चढ़कर
दे खने के िलए चल पड़े। लेिकन उन लोग के जंगल से िनकलते ही उन पर सावन की
बरसात के समान गोले आकर पड़े। अ सिहत उन सबने वह अपना ाण याग
िकया। दूर से स यान द ने दे खा, बोल - पेड़ पर चढ़कर दे खो! उनके कहने के साथ
जीवान द ने एक पेड़ पर ऊंचे चढ़कर बताया-अंगरे ज की तोप! स यान द ने पूछा
-अ ारोही सै य ह या पदाितक?

जीवान द -दोन ह?

स यान द - िकतने ह?

जीवान द -अ दाज नह लग सकता। वे सब जंगल की आड़ से बाहर आ रहे ह?

स यान द -गोरे ह या केवल दे शी फौज?

जीवान द - गोरे ह।

अब स यान द ने कहा - तुम पेड़ से उतर आओ। जीवान द पेड़ से उतर आये।

स यान द ने कहा - तुम दस हजार स तान यहां उप थत हो। दे खना है , या कर सकते


हो! जीवान द ! आज के सेनापित तुम हो।

जीवान द हष फु होकर एक छलांग म घोड़े पर सवार हो गये। उ ह ने एक बार


नवीनान द की तरफ ताककर इशारे म ही कुछ कहा-कोई उसे समझ न सका।
नवीनान द ने भी इशारे म ही उ र िदया। केवल वे दोन ही आपस म समझ गये िक
शायद इस जीवन म यह आिखरी मुलाकात है ; पर नवीनान द ने दािहनी भुजा उठाकर
लोग से कहा-भाइय ! समय है , गाओ -- जय जगदीश हरे ! दस सह स तान के
िमिलत क ठ ने आकाश, भूिम, वन- ांत को कंपा िदया। तोप का श द उस भीषण
हु ं कार म डूब गया। दस सह स तान ने भुजा उठाकर गाया--

जय जगदीश हरे !

ेछ िनवहिनधने कलयिस करवाल


इसी समय अंगरे ज की गोली-दृि जंगल का भेदन करती हु ई स ताना पर आकर पड़ने
लगी। कोई गाता-गाता िछ म तक िछ -बाहु िछ - तिप ड होकर जमीन पर िगरने
लगा। लेिकन गाना ब द न हु आ, वे सब गाते ही रहे - जय जगदीश हरे !

गाना समा होते ही सब िन त ध हो गये। वह सारा वातावरण - नदी, जंगल, पहाड़ -


एकदम िन त ध हो गया। केवल तोप का गजन गोर के अ की झंकार और पद-
विन दूर से सुनाई पड़ने लगी।

उस िन त धता को भंग करते हु ए स यान द ने कहा - भगवान तु हारी र ा करगे। तोप


िकतनी दूरी पर है ?

ऊपर से आवाज दी इसी जंगल के समीप एक छोटा मठ है , उसी के पास।

स यान द -तुम कौन हो?

ऊपर से आवाज आयी -म नवीनान द।

अब स यान द ने कहा - तुम लोग दस हजार हो , तु हारी िवजय होगी! या दे खते हो


छीन लो तोप!
यह सुनते ही अ ारोही जीवान द ने आवाज दी - आओ भाइय ,मारो।

इस पर दस सह स तान सेना, अ ारोही और पदितक, तीर की तरह धावा बोलती


आगे बढ़ी। पदाितक के क धे पर ब दूक, कमर म तलवार और हाथ म भाले थे। बहु त-
से स तान ने िबना यु िकये ही िगरकर ाण- याग िकया। एक ने जीवान द से कहा -
जीवान द! अनथक ािण-ह या से या फायदा है ?

जीवान द ने मुड़कर दे खा, कहने वाले भवान द थे। जीवान द ने पूछा - तब या करने
को कहते हो?
भवान द -वन के अ दर रहकर वृ का आ य लेकर अपनी ाण-र ा कर। तोप के
सामने खुले मैदान म िबना तोप की स तानसेना एक ण भी िटक न सकेगी। लेिकन
जंगल म पेड़ की आड़ लेकर हम लोग बहु त दे र तक यु कर सकते ह।


जीवान द -तुम ठीक कहते हो! लेिकन भु की आ ा है िक तोप छीन जाए। अत: हम
लोग तोप छीनके ही जाएंग।े

भवान द - िकसकी िह मत है िक तोप छीन सके। लेिकन यिद जाना ही है , तो तुम ठहरो,
मै जाता हू ं ।
जीवान द - यह न होगा, भवान द! आज मेरे मरने का िदन है ।

भवान द -आज मेरे मरने का िदन है ।

जीवान द - मुझे ायि त करना होगा।


भवान द -तुम िन पाप हो, तु ह ायि त की ज रत नह । मेरा चिर कलुिषत है ; मुझे
ही मरना होगा। तुम ठहरो, म जाता हू ं ।

जीवान द --भवान द, तुमसे या पाप हु आ है , मै नह जानता; लेिकन तु हारे रहने से


स तान का उ ार होगा। म जाता हू ं ।

भवान द ने चुप होकर िफर कहा --मरना होगा तो आज ही मरगे, िजस िदन ज रत
होगी,उसी िदन मरगे। मृ यु के िलए मुझे समय-काल की ज रत नह ।

जीवान द - तब आओ!

इस बात पर भवान द सबके आगे हु ए। दल-के-दल, एक-एक-कर स तान गोले खाकर


मरकर िगरने लगे। स तान-सै य िबखरने लगी। तीर की तरह आगे बढ़ते हु ए स तान
गोला खाकर कटे वृ की तरह नीचे िगरते थे। सैकड़ लाश पट गय । इसी समय
भवान द ने िच ाकर कहा -आज इस तरं ग म संतान को कूदना है कौन आता है भाई?

इस पर सह -सह क ठ से आवाज आयी-व दे मातर ! दनादन गोले आ रहे थे।


तीर िगर रहे थे, लेिकन संतान सै य तीर की तरह आगे बढ़ती ही जाती थी। सबका ल य
तोप छीनना था।
आन दमठ भाग-9
इस पर चार यि णाम करने के बाद उठ गए। स यानंद ने इशारे से महे को बैठे
रहने के िलए कहा, अत: वे तीन चले गए। अब स यानंद ने महे से कहा- तुम लोग
ने िव णुम डप म शपथ हण का सनातन धम वीकार िकया था। भवान द और
जीवानंद दोन ने ही ित ा भंग की है । भवान द ने वीकृत ायि त कर िलया। हम
इस बात का भय है िक कह जीवान द भी िकसी िदन ायि त न कर बैठे। लेिकन मेरा
िकसी िनगूढ़ कारणवश िव ास है िक वह अभी ऐसा न करे गा। अकेले तु ही ने अपनी
ित ा पूरी की है । अब संतान का काय ार हो गया है । तु हारी ित ा थी िक जब
तक संतान का काय ार न होगा, ी-क या का मुंह न दे खोगे। अब काय ार हो
चुका है , अत: तुम िफर संसारी हो सकते हो।

महे की आंख से आंसू की धारा बह िनकली। बड़े क से महे ने कहा- महाराज!


िकसे लेकर संसारी बनूं? ी ने आ म ह या कर ली, क या कहां है - पता नह ! कहां-
कहां खोजता िफ ं गा? कुछ भी तो नह जानता।

इस पर स यानंद ने नवीनानंद को बुलाकर कहा- मह , ये नवीनानंद गो वामी ह- बहु त


ही पिव चेता और मेरे परम ि य िश य है । तु हारी क या की खोज कर दगे। कहकर
स यानंद ने शांित से कुछ इशारे से कहा। शांित समझकर णाम कर िवदा होना चाहती
थी, इसी समय मह ने कहा-तु हारे साथ कहां मुलाकात होगी?

शांित ने कहा- मेरे आ म म आइये। यह कहकर शांित आगे-आगे चली।

मह भी स यानंद की पदवंदना कर िवदा हु ए, िफर शांित के साथ-साथ उसके आ म म


उप थत हु ए? उस समय काफी रात बीत चुकी थी। िफर भी िव ाम न कर शांित ने नगर
की तरफ या ा की।

सबके चले जाने पर स यानंदन भूिम पर णत होकर भगवान की वंदना और याद करने
लगे। पौ फट रही थी। इसी समय िकसी ने आकर उनके म तक का पश कर कहा- म
आ गया हू ं ।
चारी ने उठकर और चिकत य भाव से कहा- आप आ गए या!

जो आए थे उ ह ने कहा- िदन पूरे हो गए।

चारी ने कहा- हे भु! आज मा कीिजए। आगामी माघी पू णका को म आपकी


आ ा का पालन क ं गा।

उस रात को हिर विन के तुमुल नाद से दे श भूिम पिरपूण हो गई। संतान के दल-के-
दल उस रात य -त वंदेमातरम और जय जगदीश हरे के गीत गाते हु ए घूमते रहे । कोई
शत-सेना का श तो कोई व लूटने लगा। कोई मृत दे ह के मुंह पर पदाघात करने
लगा, तो कोई दूसरी तरह का उप व करने लगा, कोई गांव की तरफ तो कोई नगर की
तरफ पहु ं चकर राहगीर और गृह थ को पकड़कर कहने लगा- वंदेमातरम कहो, नह
तो मार डालूंगा। कोई मैदा-चीनी की दुकान लूट रहा था, तो कोई वाल के घर पहु ं चकर
हांडी भर दूध ही छीनकर पीता था। कोई कहता- हम लोग ज के गोप आ पहु ं च,े
गोिपयां कहां ह? उस रात म गांव-गांव म, नगर-नगर म महाकोलाहल मच गया। सभी
िच ा रहे थे- मुसलमान हार गये; दे श हम लोग का हो गया। भाइय ! हिर-हिर कहो!-
गांव म मुसलमान िदखाई पड़ते ही लोग खदे ड़कर मारते थे। बहु तेरे लोग दलब होकर
मुसलमान की ब ती म पहु ं चकर घर म आग लगाने और माल लूटने लगे। अनेक
मुसलमान ढाढ़ी मुंढ़वाकर दे ह म भ मी रमाकर राम-राम जपने लगे। पूछने पर कहते-

हम हदू ह।

त मुसलमान के दल-के-दल नगर की तरफ भागे। राज-कमचारी य त हो गए।


अविश िसपािहय को सुसि त कर नगर र ा के िलए थान- थान पर िनयु िकया
जाने लगा। नगर के िकले म थान- थान पर, पिरखाओं पर और फाटक पर िसपाही
र ा के िलए एकि त हो गए। नगर के सारे लोग सारी रात जागकर या होगा.. या
होगा? करते रात िबताने लगे। हदू कहने लगे- आने दो, सं यािसय को आने दो-
हदुओं का रा य- भगवान कर- िति त हो। मुसलमान कहे लगे-इतने रोज के बाद
या सचमुच कुरानशरीफ झूठा हो गया? हम लोग ने पांच व नवाज पढ़कर या


िकया, जब हदुओं की फतह हु ई। सब झूठ है ! इस तरह कोई रोता हु आ, तो कोई हं सता
हु आ बड़ी उ कंठा से रात िबताने लगा।

यह खबर क याणी के कान म भी पहु ं ची आबाल-वृ -विनता िकसी से भी बात िछपी


न रही। क याणी ने मन-ही-मन कहा- जय जगदीश हरे ! आज तु हारा काय िस हु आ।
आज म वामी-दशन के िलए या ा क ं गी। हे भु! आज मेरी सहायता करो।

गहरी रात को क याणी श या से उठी और उसने पहले िखड़की खोलकर राह दे खी। राह
सूनी पड़ी हु ई थी-कोई राह म न था। तब उसने धीरे से दरवाजा खोलकर गौरी दे वी का
घर यागा। शाही राह पर आकर उसने मन-ही-मन भगवान को मरण कर कहा- दे व!
आज पदिच ह का दशन करा दो।

क याणी नगर के िकनारे पहु ं ची। पहरे वाला ने आवाज दी- कौन जाता है ? क याणी ने
डरकर उ र िदया- म औरत हू ं ! पहरे दार ने कहा- जाने का हु म नह है । वह आवाज
जमादार के कान म पहु ं ची। उसने कहा- जाने की मनाही नह है ; जाने की मनाही नह है ।
यह सुनकर पहरे वाले ने कहा- जाने की मनाही नह है , माई! जाओ, लेिकन आज रात
को बड़ी आफत है । कौन जाने माई! िकसी आफत म पड़ जाओ- डाकुओं के हाथ म
पड़ जाओ, म नह जानता? आज तो न जाना ही अ छा है ।

क याणी ने कहा- बाबा! म िभखािरन हू ं । मेरे पास एक कौड़ी भी नह है । डाकू मुझे


पकड़ कर या करगे?

पहरे वाले ने कहा- उ तो है , माई जी! उ तो है न! दुिनया म वही तो जवाहरात है ।


ब क हमी डाकू हो सकते है ! क याणी ने दे खा, बड़ी िवपद है ; वह धीरे से सरक गयी
और िफर तेजी से आगे बढ़ी! पहरे दार ने दे खा िक औरत रिसक िमजाज नह थी, लाचार
होकर पहरे पर बैठा गांजे का दम लगाकर ही संतु हो गया।

एडवड भी प ा अंगरे ज जेनरल था। छोटी घाटी म उसके आदमी थे-शी ही उ ह खबर
िमली िक उस वै णवी ने लडले को घोड़े से िगराकर वयं रा ता िलया। सुनते ही


एडवड ने हु म िदया-टट उखाड़ो-उस शैतान का पीछा करो!

खटाखट त बुओं के खूटं पर हथौड़े पड़ने लगे। मेघरिचत अमरावती की तरह सवार
घोड़ पर और पदाितक पैदल चलने को तैयार हो गए। हदू, मुसलमान, म ासी, गोरे ,
बंदक
ू कंधे पर िलए मच-मच चल पड़े। ताप ख र ारा ख ची जाकर घरर-घरर करती
चल पड़ ।

इधर मह संतान-सेना के साथ मेले की तरफ अ सर हु ए। उसी िदन शाम को मह ने


सोचा अंधेरा हो चला, अब िशिवर डलवा दे ना चािहए।

उसी समय पड़ाव डाल दे ना ही उिचत जान पड़ा। संतान का िशिवर कैसा? पेड़ के तन
से लगकर छाया म सब िचत-पट सो रहे । हिरचरणामृत पान कर डकार ली उ ह ने। जो
कुछ भूख बाकी थी, व म वै णवी के अधर-रस का पान कर उसे पूरा करने लगे।
जहां पड़ाव पड़ा था, वहां बहु त सुंदर आम-कानन के पास ही एक बड़ा टीला था। मह
ने सोचा िक इसी टीले पर यिद पड़ाव पड़े तो िकतना सुखद हो! मन म हु आ िक टीले को
दे ख लेना चािहए।

यह सोचकर मह घोड़े पर चढ़कर धीरे -धीरे टीले पर चड़ने लगे। अभी तक टीले पर
आधा ही चढ़े थे, िक उनकी संतान-सेना म एक युवक वै णव आ पहु ं चा। उसने संतान
से कहा-चलो, टीले पर चढ़ चल। उसके समीप जो सैिनक खड़े थे, उ ह ने पूछा- य ?

यह सुनकर वह यो ा एक छोटी च ान पर खड़ा हो गया, उसने ललकारकर कहा-


आओ, वीर ! आज इसी टीले पर चढ़कर चांदनी का आनंद और मधुर व य पु प का
सौरभ-पान करते हु ए शतओं से बदला ल..यु कर। संतान ने दे खा िक यह यो ा और
कोई नह , हमारे सेनापित जीवानंद है । इस पर सारी सेना-हरे मुरारे ! कहती हु ई गगनभेदी
जयो ास से हु ं कार करती हु ई, भाल पर बोझा दे उठ खड़ी हु ई और जीवानंद के पीछे -
पीछे टीले पर चढ़ने लगी। एक ने सजा हु आ घोड़ा जीवानंद को लाकर िदया। दूर से
मह ने जो यह दे खा, तो िव मत हु ए। सोचने लगे- यह या? िबना कहे ये सब य चले
आ रहे ह।
यह सोचकर मह ने तुरंत घोड़े का मुंह िफराया और एंड़ लगाते ही धूल बादल उड़ाते
हु ए नीचे आए। संतान-वािहनी के अ वत जीवानंद को दे खकर उ ह ने पूछा-यह या
आनंद?

जीवानंद ने हं सकर उ र िदया-आज बड़ा आनंद है । टीले के उस पार एडवड पहु ं च गए


है । टीले पर जो पहले पहु ं चग
े ा, उसी की जीत होगी

इसके बाद जीवानंद ने संतान सेना से कहा-पहचानते हो? म जीवानंद हू ं । मने सह -


सह शतओं का वध िकया है ।

तुमुल िननाद से िदग त कांप उठा। सैिनक ने एक वर से कहा-पहचानते ह, हम अपने


सेनापित को पहचानते ह।

जीवानंद-बोलो, हरे मुरारे !

जंगल का कोना-कोना कांप उठा, ित विनत हु आ-हरे मुरारे

जीवानंद-वीर ! टीले के उस पार शत है । आज ही इस तूप के ऊपर, िवमल चांदनी म


संतान का महारण होगा। ज दी चढ़ो- जो पहले चढ़े गा, उसी की जीत होगी। बोलो-
ब दे मातर

िफर ित विन हु ई-व दे मातर - धीरे -धीरे संतान-सेना पवत िशखर पर चढ़ने लगी। कतु
उन लोग ने सहसा दे खा िक मह बड़ी ही तेजी से उतरे चले आ रहे ह। उतरते हु ए मह
ने महािनदान िकया। दे खते-दे खते पवत-िशखर पर नीलाकाश म अंगरे ज की तोप आ
लग । उ वर म वै णवी सेना ने गाया-

तुमी िव ा तुमी भि ,

तभी मां बाहु ते शि ,

वं िह ाण: शरीरे !..

लेिकन इसी समय अंगरे ज की तोप गजन कर उठ - आग उगलने लगी, उस महािननाद


म गीत की आवाज गायब हो गई। बार-बार गु म-गु म करती हु ई अं ज
े की तोप गजन
पर संतान-सेना का नाश करने लग । खेत म जैसे फसल काटी जाती है , उसी तरह
संतान-सेना कटने लगी। यह ऊपर की भयानक मार संतान-सेना न सह सकी, तुरंत
भाग खड़ी हु ई- िजसे िजधर राह िमली, वह उधर ही भागा। इस पर हु र, हु र करती हु ई
ि िटश वािहनी संतान का समूल नाश करने के िलए उतरने लगी। संगीने चढ़कर, पवत
से िगरनेवाली भयंकर िशला की तरह, िशि त गोरी फौज संतान को खदे ड़ती हु ई ती
वेग से उतरने लगी। जीवानंद ने मह को सामने दे खकर कहा-बस आज अंितम िदन
है । आओ यह मर।

पदिच ह के नये दुग म आज बड़े सुख से महे , क याणी, जीवानंद, शांित िनमाई के
पित और सुकुमारी - सब एक ह। सब आज सुख म िवभोर ह-आनंदम ह। शांित
िजस रात क याणी को ले आयी, उसी रात उसने कह िदया था िक वह अपने पित महे
से यह न कहे , िक नीवनानंद जीवानंद की प नी है । एक िदन क याणी ने उसे अंत:पुर म
बुला भेजा! नवीनानंद अत:पुर म घुस गया। उसने हिरय की एक न सुनी।

शांित ने क याणी के पास आकर पूछा- य बुलाया है ?

क याणी -पु ष-वेश म िकतने िदन तक रहे गी? न मुलाकात हो पाती है , न बात होती
ह। मेरे पित के सामने तु ह कट होना पड़ेगा।

नवीनानंद बड़ी िच ता म डूब गये- कुछ दे र तक बोले ही नह । अ त म बोले-इनम


अनेक िव ह, क याणी!

दोन म इसी तरह बात होने लग । इधर जो हरी नवीनानंद को जोर दे कर अ त:पुर म
जाने से मना कर रहे थे, उ ह ने महे से जाकर कहा िक नवीनानंद जबरद ती, मना
करने पर भी अ दर चले गये ह। कौतूहलवश महे भी अ त:पुर म गये। महे ने सीधे
क याणी के कमरे म जाकर दे खा िक नवीनानंद कमरे म खड़े ह और क याणी उनके
शरीर के बाघ बर की गांठ खोल रही है । महे बड़े अच भे म आए- बहु त ही नाराज
हु ए।
नवीनानंद ने उ ह दे ख हं सकर कहा- य , गो वामी जी! स तान पर अिव ास?

महे ने पूछा- या भवानंद िव ासी थे?

नवीनानंद ने आंखे िदखाकर कहा-क याणी या भवानंद के शरीर पर हाथ रखकर बाघ
की खाल खोलती थी? यह कहते हु ए शांित ने क याणी का हाथ दबाकर पकड़ िलया
बाघ बर खोलने न िदया।

महे -तो इससे या हु आ?

नवीनानंद-मुझ पर अिव ास कर सकते ह लेिकन क याणी पर कैसे अिव ास कर


सकते ह?

अब महे अ ितभ हु ए बोले- कहां, म अिव ास कब करता हू ं ?

नवीनानंद -नह तो मेरे पीछे अंत:पुर म य आ उप थत हु ए?

महे - क याणी से कुछ बात करनी थी, इसिलए आया हू ं ।

नवीनानंद -तो इस समय जाइए! क याणी के साथ मुझे भी कुछ बात करनी ह। आप
चले जाइए, म पहले बात क ं गा। आपका तो घर है , आप जब चाह आकर बात कर
सकते ह। म तो बड़े क से आ पाया हू ं ।

महे बेवकूफ बन गये। वे कुछ भी समझा न पाते थे- यह सब बात तो अपरािधय जैसी
नह है । क याणी का भाव भी िविच है । वह भी तो अिव ािसनी की तरह भागी नह ,
न डरी, न लि त ही हु ई, वर मृदु भाव से मु करा रही है । वही क याणी, िजसने पेड़ के
नीचे सहज ही िवष खा िलया- वह या अपरािधनी हो सकती है ?.. मह के मन म यही
तक-िवतक हो रहा था। इसी समय शांित ने मह की यह दुरव था दे ख, कुछ मु कराकर
क याणी की तरफ एक िवलोल कटा पात िकया। सहसा अंधकार िमट गया- भला
ऐसा कटा पात भी कभी पु ष कर सकते है । समझ गए िक नवीनानंद कोई ी है ।
िफर भी शक था। उ ह ने साहस बटोरा और आगे बढ़कर एक झटके म नवीनानंद की
ढाढ़ी ख च ली- ढाढ़ी-मूंछ हाथ म आ गई। इसी समय अवसर पाकर क याणी ने
बाघ बर की गांठ खोल दी पकड़ी जाकर शांित शरमा कर िसर नीचा कर खड़ी रह गई।

अब मह ने शांित से पूछा- तुम कौन हो?


शांित- ीमान नवीनानंद गो वामी?

मह - वह तो ठगी थी, तुम तो ी हो!


शांित- यह तो दे खते ही ह आप!

मह - तब एक बात पूछूं- तुम ी होकर जीवानंद के साथ हर समय य रहती थी?

शांित- यह बात आप को न बताऊंगी।


मह -तुम ी हो, यह जीवानंद वमी जानते ह?

शांित- जानते ह।

यह सुनकर िवशु ा मा मह बहु त दुखी हु ए।


यह दे खकर अब क याणी चुप न रह सकी, बोली- ये जीवानंद वामी की धमप नी
शांित दे वी है ?

एक ण के िलए मह का चेहरा स हो उठा। इसके बाद ही उनका चेहरा िफर गंभीर


हो गया। क याणी समझ गई, ये पूण चािरणी है ।

मह ने कहा-मरने से यिद रण-िवजय हो, तो कोई हज नह , कतु यथ ाण गंवाने से


या मतलब? यथ मृ यु वीर-धम नह है ।

जीवानंद-म यथ ही म ं गा, लेिकन यु करके म ं गा।

कहकर जीवानंद ने पीछे पलटकर कहा-भाईय ! भगवान की शपथ लो िक जीिवत न


लौटगे।

जीवानंद ने घोड़े की पीठ पर से ही, बहु त पीछे खड़े मह से कहा-भाई मह ! नवीनंद से


मुलाकात हो तो कह दे ना िक परलोक म मुलाकात होगी।
यह कहकर वह वीर े बाएं हाथ म बलम आगे िकए हु ए और दािहने हाथ से बंदक

चलाते, मुंह से हरे मुरारे ! हरे मुरारे !! कहते हु ए तीर की तरह उस बरसती हु ई आग को
चीरते हु ए टीले पर बड़े वेग से आगे बढ़ने लगे। इस तरह महा साहस का पिरचय दे ते
हु ए और शत य करते हु ए जीवानंद अकेले अिभम यु की तरह शत- यूह म घुसते चले
जा रहे थे, मानो एक म त हाथी कमल-वन को र दता चला जाता हो।

भागती हु ई संतान-सेना को िदखाकर मह ने कहा-दे खो, कायर ! भागनेवाल - अपने


सेनापित का साहस दे खो! दे खने से जीवानंद मर नह सकते।

संतान ने पलटकर जीवानंद का अ ुत साहस य दे खा। पहले उन सबने दे खा, िफर


बोले- वामी जीवानंद मरना जानते ह, तो या हम नह जानते? चलो जीवानंद के साथ
बैकुंठ चल!

बस, यह से रण ने पलटा खाया। संतान-सेना पलट पड़ी। पीछे भागनेवाल ने दे खा िक


पलट रहे ह, तो उ ह ने समझा िक संतान की िवजय हु ई है । अत: वे भी तुरंत चल पड़े।

मह ने दे खा िक जीवानंद शतओं की सेना म घुस गए ह, अब िदखाई नह पड़ते। उ म


संतान-सेना ने टीले से उतरी हु ई अं ज
े -वािहनी पर चंड आ मण िकया- अंग्रे ज के
पैर उखड़ गए। वे लोग इस आ मण को सह न सके, उनकी संगीने पलटकर भागने की
तरफ िदखाई द । पीछे चढ़ती हु ई संतान-सेना उनका िवनाश करती जा रही थी। भागी
हु ई संतान-सेना अभी तक बराबर पलटती हु ई रण भूिम म चढ़ती जाती थी।

मह खड़े यह दे ख रहे थे। सहसा पवत-िशखर पर संतान की पताका उड़ती िदखाई दी।
वहां स यानंद महा भु, वयं च पािण िव णु की तरह बाएं हाथ म वजा िलए हु ए और
दािहने म र से लाल तलवार िलए खड़े थे। वह दे खते ही संतान म अपूव बल आ
गया-हरे मुरारे ! का गगन म वह जयनाद हु आ िक व तुत: वसुंधरा कांपती हु ई नजर
आई।

इस समय अं ज
े ी सेना दोन दल के बीच म थी- ऊपर भु स यानंद ने तोप पर
अिधकार कर िलया था, नीचे से संतान-सेना पलटकर चढ़ती हु ई मार रही थी।

मह ने दे खा िक ऊपर से व दे मातर का िननाद करते हु ए स यानंद, अविश ि िटश


वािहनी के नाश के िलए उतरे । इधर से बची हु ई सेना लेकर मह ने संतान को साहस
िदलाते हु ए भयंकर आ मण कर िदया। म य टीले पर भयंकर यु हु आ। अं ज े च ी
के दो पाट म फंसे चने की तरह िपसने लगे। थोड़ी ही दे र म एक भी ि िटश सैिनक खड़ा
न िदखाई िदया। धरती लाल हो गई- र की नदी बह गई।

वहां ऐसा भी कोई न बचा, जो वारे न हे ट स के पास खबर ले जाता।


पू णमा की रात है । यह भीषण रण े इस समय थर है । वह घोड़ की टाप की
आवाज, बंदक
ू की गरज और गोल की वष गायब हो गई है । न कोई हु र करता है न
कोई हरे मुरारे । आवाज आती है , तो केवल कु और यार की। रह-रहकर घायल
का ं दन सुनाई पड़ता है । िकसी का पैर कटा है , िकसी का हाथ कटा है , िकसी का पंजर
घायल हु आ है । कोई राम को पुकारता है , कोई गॉड। कोई पानी मांगता है , कोई मृ यु का
आ ान करता है । उस चांदनी रात म याम भूिम लाल वसन पहनकर भयानक हो गई
थी। िकसकी िह मत थी िक वहां जाता?

साहस तो िकसी का नह है लेिकन उस िन त ध भयंकर रात म भी एक रमणी उस


अग य रण े म िवचरण कर रही है । वह एक मशाल िलए रण े म िकसी को खोज
रही है - हरे क शव का मुंह रोशनी म दे खकर दूसरे के पास चली जाती है । कह कोई मृत
दे ह अ के नीचे पड़ी है , तो वह मु कल से मशाल रख, दोन हाथ से अ को
हटाकर शव दे खती और हताश हो आगे बढ़ जाती है । वह िजसे खोज रही थी, उसे न
पाया। अब वह मशाल छोड़, र मय जमीन पर पछाड़ खा िगरकर रोने लगी। पाठक !
यह शांित है वीर जीवानंद के शव को खोज रही है ।

शांित िजस समय जमीन पर िगरकर रो रही थी, उसी समय उसे एक मधुर क ण श द
सुनाई पड़ा-उठो, बेटी!, रोओ नह । शांित ने दे खा, चांदनी रात म सामने एक
जटाजूटधारी िवराट महापु ष खड़े ह।

उस रात राह म दल-के-दल घूम रहे थे। कोई मार-मार कहता है , तो कोई भागो-भागो
िच ाता है । कोई हं सता है , कोई रोता है , कोई राह म िकसी को दे खकर पकड़ लेता है ।
क याणी बड़ी िवपदा म पड़ी। राह मालूम नह , और िफर िकसी से पूछ भी नह सकती,
केवल िछपती हु ई राह चलने लगी। िछपते-िछपते एक िव ोही दल के हाथ म पड़ गई। वे
लोग िच ाकर पकड़ने दौड़े। कलुयाणी ाण लेकर जंगल के अंदर घुसकर भागी। वे
सब शोर मचाते हु ए पकड़ने के िलए पीछे दौड़े। आिखर एक ने आंचल पकड़ िलया,
बोला- वाह री, चं मुखी! इसी समय एक और आदमी अक मात पहु ं च गया और
अ याचारी को उसने एक लाठी जमायी; वह आहत होकर भागा। पिर ाणकत का वेश
सं यािसय का था और उसकी छाती ढंकी हु ई थी! उसने क याणी से कहा- तुम भय न
करो। मेरे साथ आओ- कहां जाओगी?

क याणी-पदिच ।

आगंतुक च क उठा, िव मत हु आ; पूछा- या कहा? पदिच ? यह कहकर क याणी के


दोन क ध पर हाथ रखकर गौर से चेहरा दे खने लगा।

क याणी अक मात पु ष- पश से भयभीत तथा रोमांिचत होकर रोने लगी। इतनी


िह मत नह हु ई िक भाग सके। आग तुक ने भरपूर दे ख लेने के बाद कहा- ओ हो,
पहचान गया! तु ही डायन क याणी हो?

क याणी ने भयिव ल होकर पूछा- आप कौन ह?

आग तुक ने कहा, म तु हारा दासानुदास हू ं । हे सु दरी! मुझ पर स हो।

क याणी बड़ी तेजी से वहां से हटकर गजन कर बोली- या यह अपमान के िलए ही


आपने मेरी र ा की थी? दे खती हू ं , चािरय का या यही धम है ? आज म िन:सहाय
हू ं , नह तो तु हारे चेहरे पर लात लगाती।
चारी ने कहा-अिय मतवदने! म बहु त िदन से तु हारे पु प समान कोमल शरीर के
आ लगन की कामना कर रहा हू ं ? यह कहकर दौड़कर चारी ने क याणी को पकड़
िलया और जबद ती छाती से लगा िलया। अब क याणी िखलिखला कर हं स पड़ी,
बोली यह तु हारा कपाल है । पहले ही कह दे ना था- भाई, मेरी भी यही दशा है । शा त ने
पूछा- य भाई! महे की खोज म चली हो?

क याणी ने कहा-तुम कौन हो? तुम तो सब कुछ जानती हो!


शा त बोली-म चारी हू ं , स तान -सेना का अिधनायक -घोरतर वीर पु ष! मै सब
जानता हू ं आज राह म िसपािहय का बहु त हु ड़दं ग ऊधम है , अत: आज तुम पदिच ह जा
न सकोगी!

क याणी रोने लगी।

शा त ने योरी बदलकर कहा-डरती य हो? हम अपने नयनबाण से हजार का वध


कर सकते ह- चलो, पदिच ह चल।

क याणी ने ऐसी बुि मती ी की सहायता पाकर मानो हाथ बढ़ाकर वग पा िलया ।
बोली- तुम जहां कहोगी, वह चलूंगी।

शा त क याणी को लेकर जंगली राह से चल पड़ी।

जब आधी रात को शा त अपना आ म यागकर नगर की तरफ चली, तो उस समय


जीवानंद वहां उप थत थे। शा त ने जीवानंद से कहा- मै नगर की तरफ जाती हू ं ।
महे की ी को ले आऊंगी। तुम महे से कह रखो िक तु हारी ी जीिवत है ।

जीवानंद ने भवानंद से क याणी के जीवन की सारी बात सुनी थ और उसका वतमान


वास- थान भी सुन चुके थे। मश: ये सारी बात महे को सुनाने लगे।
पहले तो महे को िव ास न हु आ। अ त म अपार आनंद से अिभभूत अवाक हो रहे ।

उस रात के बीतने पर सबेरे, शा त की सहायता से महे के साथ क याणी की


मुलाकात हु ई । िन त ध जंगल के बीच अितघनी शालत ेणी की अंधेरी छाया के
बीच, पशु-पि य की िन ा टूटने के पहले उन लोग का पर पर िमलन हु आ। ान
अर य म फूटनेवाली पहली आभामयी िकरण और न राज ही सा ी थे। दूर िशला-
संघ षणी नदी का कलकल वाह हो रह था तो कह अ णोदय की लािलमा से फु -
दय कोिकल की कुहू विन सुनाई पड़ जाती थी।

मश: एक पहर िदन चढ़ा। वहां शांित और जीवानंद आये। क याणी ने शांित से कहा-
मै आप लोग के हाथ िबना मू य के िबक चुकी हू ं । मेरी क या का पता लगाकर मेरे उस
उपकार को पूण कीिजए।

शांित ने जीवानंद के चेहरे की तरफ दे खकर कहा- मै अब सोऊं गा। आठ पहर बीते, म
बैठा तक नह । आिखर म भी पु ष हू ं !

क याणी जरा मु कुरा दी। जीवानंद ने महे की तरफ दे खकर कहा- यह भार मेरे ऊपर
रहा। आप लोग पदिच ह की या ा कीिजए- वह आपकी क या पहु ं चा दूंगा!
जीवानंद भैरवीपुर-िनवासी बिहन के पास से लड़की लाने चले। पर काय सरल न था!

पहले तो िनमाई बात ही खा गई। इधर-उधर ताका, िफर एक-बारगी उसका मुंह फूलकर
कु पा हो गया! इसके बाद वह रो पड़ी, बोली-लड़की न दूंगी।

िनमाई अपनी उ टी हथेिलय से आंसू पोछने लगी। जीवानंद ने कहा- अरे बहन! तू रोती
य ? ऐसा दूर भी तो नह है - न हो, बीच-बीच म उन लोग के घर जाकर लड़की को
दे ख आया करना।

िनमाई ने ह ठ फुलाकर कहा- तो तुम लोग की लड़की है , ले य नह जाते? मुझसे या


मतलब? यह कहकर िनमाई लड़की को उठा लाई और जीवानंद के पैर के पास
पटककर वह बैठकर रोने लगी। अत: जीवानंद और कोई फुसलाने की राह न दे खकर
इधर-उधर की बात करने लगे। लेिकन िनमाई का ोध न गया। िनमाई उठकर
सुकुमारी के पहनने के कपड़े, उसके खेलने के िखलौने- बोझ के बोझ लाकर जीवानंद
के सामने पटकने लगी। सुकुमारी वयं उन सबको बटोरने लगी। उसने िनमाई से पूछ
ं ा-
य मां ! मै कहां जाऊंगी? अब िनमाई सह न सकी। उसने सुकुमारी को गोद म उठा
िलया ओर चली गयी।

उ र बंगाल मुसलमान के हाथ से िनकल गया- यह बात मुसलमान मानते नह , दलील


पेश करते है िक बहु तेरे डाकुओं का उप व है - शासन तो हमारा ही है । इस तरह िकतने
वष बीत जाते नह कहा जा सकता। लेिकन भगवान की इ छा से वारे न हे ट स इसी
समय कलक े म गवनर- जनरल होकर आए। वारे न हे ट स मन ही मन संतोष करने
वाले आदमी न थे, अ यथा भारत म अं ज
े ी सा ा य थािपत कर न पाते। उ ह ने तुरंत
संतान के दमनाथ मेजर एडवड नाम के एक दूसरे सेनापित को खड़ा कर िदया। मेजर
ताजा गोरी फौज लेकर तैयार हो गए।

एडवड ने दे खा िक यह यूरोपीय यु नह है । शतओं की सेना नह , नगर नह , राजधानी


नह , दुग नह , िफर भी सब उनके अधीन है । िजस िदन जहां ि िटश सेना का पड़ाव
पड़ा, उस रोज वहां ि िटश अिधकार रहा, दूसरे िदन िशिवर टूटते ही िफर व दे मातरम
की विन गूज ं ने लगी। साहब सर पटककर रह गये, पर यह पता न लगा िक एक ण म
कहां से िटि य की तरह िव ोही सेना इक ी हो जाती, ि िटश अिधकृत गांव को फूंक
दे ती है और र क की छोटी टुकि़डय का सफाया करने के बाद िफर गायब हो जाती है ?
बड़ी खोज के बाद उ ह मालूम हु आ िक पदिच ह म स तान ने दुग -िनम ण कर रखा है
उसी दुग पर अिधकार करना युि संगत समझा।

वह खुिफय ारा यह पता लगाने लगा िक पदिच ह म िकतनी स तान-सेना रहती है ।


उसे जो समाचार िमला, उससे उस समय उसने दुग पर आ मण करना उिचत समझा।
मन-ही-मन उसने एक अपूव कौशल की रचना की।

माघी पू णमा सामने उप थत थी। उनके िशिवर के िनकट ही नदी तट पर बहु त बड़ा
मेला लगेगा। इस बार मेले की बड़ी तैयारी है । मेले म सहज ही कोई एक लाख आदमी
एक होते ह। इस बार वै णव राजा हु ए है - शासक हु ए ह, अत: वै णव ने इस बार मेले
म आने का संक प कर िलया है । पदिच ह के र क भी अव य ही मेले म पहु ं चगे,
इसकी क पना मेजर ने कर ली। उ ह ने िन य िकया िक पदिच ह पर उसी समय
आ मण कर अिधकार करना चािहए।
यह सोचकर मेजर सने अफवाह उड़ा दी िक वे मेले पर आ मण करगे, उसी िदन वहां
तमाम वै णव स तान इक े रहगे, अत: एक बार म ही उनका समूल िव वंस होगा- वे
वै णव का मेला होने न दगे।

यह खबर गांव-गांव म चािरत की गयी। अत: वभावत: जो संतान जहां था, वह वह


से अ हण कर मेले की र ा के िलए चल पड़ा। सभी संतान माघी पू णमा के मेले
वाले नदी-तट पर आकर स मिलत होने लगे। मेजर साहब ने जो जाल फका था, वह
सही होने लगा। अंगरे ज के सौभा य से महे ने भी उस जाल म पांव डाल िदया। महे
ने पदिच ह म थोड़ी सी सेना छोड़कर शेष सारी सेना के साथ मेले के िलए याण िकया।

यह सब होने के पहले ही जीवानंद और शांित पदिच ह से बाहर िनकल गये थे। उस


समय तक यु की कोई बात नह थी, अत: यु की तरफ उनका कोई यान भी न था।
माघी पू णमा के िदन पिव जल म ाण-िवसजन कर वे लोग अपना ायि त करगे,
यह पहले से िनि त हो चुका था। राह म जाते-जाते उ ह ने सुना िक मेले म सम त
संतान पर अंगरे ज का आ मण होगा तथा भयानक यु होगा। इस पर जीवानंद ने
कहा-तब चलो, यु म ही ाण-िवसजन करगे।

वे लोग ज दी-ज दी चले। एक जगह रा ता टीले के ऊपर से गया था। टीले पर चढ़कर
वीर-द पित ने दे खा िक नीचे थोड़ी दूर पर अंगरे ज का िशिवर पड़ा हु आ है । शांित ने
कहा- मरने की बात इस समय ताक पर रखो, बोली - व दे मातरम!

इस पर दोन ने ही चुपके-चुपके कुछ सलाह की। िफर जीवानंद पास के एक जंगल म


िछप गए। शांित एक दूसरे म घुसकर अ ुत का ड म वृ हु ई।

शांित मरने जा रही थी, लेिकन उसने मृ यु के समय ी-वेश धारण करने का िन य
िकया था। मह ने कहा था िक उसका पु ष वेश ठगैती है , ठगी करते हु ए मरना उिचत
नह । अत: वह साथ म अपना िपटारा लाई थी। उसम उसकी पोशाक रहती थी। इस
समय नवीनानंद िपटारा खोलकर अपना वेश पिरवतन करने बैठे।
िचकने बाल को पीठ पर फहराए हु ए, उस पर खैर का टीका-फटीका लगाकर नवीन
लता-पु प से सर ढंककर शांित खासी-वै णवी बन गई। सारं गी उसने हाथ म ले ली।
इस तरह का वह अंगरे ज-िशिवर पहु ं च गई। काली मूंछ वाले िसपाही उसे दे खकर पागल
हो उठे । चार तरफ से लोग ने उसे घेरकर गवाना शु िकया। कोई याल गवाता, तो
कोई ट पा, कोई गजल। िकसी ने दाल िदया, िकसी ने चावल, तो िकसी ने िमठाई।
िकसी ने पैसे िदए, तो िकसी ने चव ी ही दे दी। इसी तरह वै णवी अपनी आंख से
िशिवर का हाल-चाल दे खती घूमने लगी।

िसपािहय ने पूछ-अब कब आओगी?

वै णवी ने कहा-कैसे बताऊं, मेरा घर बड़ी दूर है ।


िसपािहय ने पूछा-िकतनी दूर?

वै णवी ने कहा-मेरा घर पदिच ह म है ।

शांित उठकर खड़ी हो गई! जो आए थे, उ ह ने कहा-रोओ नह , बेटी! जीवानंद शांित ने


पहचाना-वह जीवानंद की दे ह थी। सव ग त-िव त, िधर से सने हु ए थे। शांित यह
कहकर वे महापु ष शांित को रण े के म य म ले गए। वह शव का एक तूृप लगा
हु आ था। शांित उसे हटा न सकी थी। उस महापु ष ने वयं शव को हटाकर एक शव
बाहर िनकाला। शांित ने पहचाना- वह जीवानंद की दे ह थी। सव ग त-िव त िधर से
सने हु ए थे। शांित सामा य ी की तरह जोर से रो पड़ी।

महापु ष ने िफर कहा-रोओं नह बेटी! या जीवानंद मर गए ह? शांत होकर उनका


शरीर दे खो, नाड़ी की परी ा करो!

शांित ने शव की नाड़ी दे खी, नाड़ी का पता न था। वे बोले-छाती पर हाथ रखकर दे खो।

शांित ने छाती पर हाथ रखकर दे खा, गितहीन ठं ढा था!

िफर महापु ष ने कहा-नाक पर हाथ रखकर दे खो, कुछ भी ास नह है ?

शांित ने दे खा, कतु हताश हो गई।

महापु ष ने िफर कहा-मुंह म उंगली डालकर दे खो, कुछ गरमी मालूम पड़ती है ?

आशामु धा शांित ने वह भी िकया, बोली-मुझे कुछ पता नह लगता है ।

महापु ष ने बायां हाथ शव पर रखकर कहा-बेटी, तुम घबरा गई हो। दे खो अभी दे ह म


हलकी गरमी है !
अब शांित ने िफर नाड़ी दे खी- दे खा िक म द, अितम द गित है । िव मत होकर उसने
छाती पर हाथ रखा- मृदध
ु ड़कन है । नाक पर हाथ रखकर दे खा- ह की सांस है । शांित ने


िव मत होकर पूछा- या ाण था? या िफर से आ गया है ?

उ ह ने कहा-भला ऐसा कभी हु आ है , बेटी! तुम इ ह उठाकर तालाब के िकनारे तक ले


चल सकोगी? म िचिक सक हू ं , इनकी िचिक सा क ं गा।
शांित जीवानंद को तालाब पर ले जाकर घाव धोने लगी। इसी समय उन महापु ष ने
लता आिद का लेप लाकर घाव पर लगा िदया। इसके बाद वे जीवानंद का शरीर
सहलाने लगे। अब जीवानंद के ास- ास तेज हो गए। कुछ ही ण म उठ बैठे।
शांित के मुंह की तरफ दे खकर उ ह ने पूछा-यु म िकसकी िवजय हु ई?

शांित ने कहा-तु हारी िवजय! इन महा मा को णाम करो?

अब दोन ने दे खा िक वहां कोई नह है , िकसे णाम कर!


समीप ही संतान-सेना का िवजयो ास सुनाई पड़ रहा था। लेिकन शांित या जीवानंद म
से कोई भी न उठा। दोन िवमल यो तना म पु किरणी-तट पर बैठे रहे । जीवानंद का
शरीर अ ुत औषध बल से ज द ही ठीक हो गया। जीवानंद ने कहा-शांित! िचिक सक
की दवा म गुण है । अब मेरे शरीर म जरा भी ािन या क नह है । बोलो, अब कहां चल
संतान सेना का जयो ास सुनाई पड़ रहा है !

शांित बोली-अब वहां नह । माता का काय ार हो गया है । अब यह दे श संतान का है ।


अब वहां या करने चल?

जीवानंद-जो रा य छीना है उसकी बाहु बल से र ा तो करनी होगी।


शांित-र ा के िलए मह है । तुमने ायि त कर संतान-धम के िलए ाण- याग िदया
था। अब पुन: ा इस जीवन पर संतान का अिधकार नह है । हमलोग संतान के िलए
मर चुके ह। अब हम दे खकर संतान लोग कह सकते ह िक ायि त के भय से ये लोग
िछप गए थे, अब िवजय होने पर कट हो गए ह- रा य-भाग लेने आए ह।

जीवानंद-यह या शांित? लोग के अपवाद-भय से अपना क य छोड़ द। मेरा काय


मातृसेवा है । दूसरा चाहे जो कहे , म मातृ-सेवा क ं गा।

शांित-अब तु ह इसका अिधकार नह है , य िक तुमने मातृ-सेवा के िलए अपना जीवन


उ सग कर िदया। अब-यिद सेवा करोगे, तो तुमने उ सग या िकया? मातृ-सेवा से
ै ै
वंिचत होना ही धान ायि त है । अ यथा जीवन याग दे ना या कोई बड़ा काम है ?

जीवानंद-शांित! तुमने ठीक समझा। लेिकन म अपने ायि त को अधूरा न रखूग


ं ा। मेरा
सुख संतान-धम म है , लेिकन कहां जाऊंगा? मातृ-सेवा यागकर घर जाने म या सुख
िमलेगा?
शांित-यह तो म कहती नह हू ं । हम लोग अब गृह थ नह है , हम दोन ही सं यासी रहगे-
िफर चय का पालन करगे। चलो हम लोग दे श-पयटन कर दे व-दशन कर।

जीवानंद-इसके बाद?

शांित-इसके बाद िहमालय पर कुटी का िनम ण कर हम दोन ही दे वाराधना करगे-


िजससे माता का मंगल हो, यही वर मांगगे।
इसके बाद दोन ही उठकर हाथ म हाथ दे , यो सनामयी राि म अ त हत हो गए।

हाय मां! या िफर जीवानंद सदृश पु और शांित जैसी क या तु हारे गभ म आएंग?े

एक िसपाही ने सुना था िक मेजर साहब पदिच ह की खबर िलया करते ह, तुरंत वह


वै णवी को मेजर साहब के िशिवर म ले गया। मेजर साहब को दे खकर वै णवी ने मधुर
कटा का बाण छोड़ा। मेजर साहब का तो सर च र खा गया। वै णवी तुरंत खंजड़ी
बजाकर गाने लगी-

मले छ िनवहिनतमे कलयिस करवाल

साहब ने पूछा-ओ बीबी! टोमारा घड़ कहां?

बीबी बोली-म बीबी नह हू ं , वै णवी हू ं । मेरा घर पदिच ह म है ।

साहब - य
े र इज दै ट एडिसन पेडिसन? होआं ऐ ठो घर हाय?

बै णवी बोली-घर? है ।
साहब-घर नई-गर-गर-नई-गड़-

शांित-साहब! म समझ गई, गढ़ कहते हो?


साहब-येस-येस, गर-गर..हाय?

शांित-गढ़ है -भारी िकला है ।

साहब-केहा आडमी?
शांित-गढ़ म िकतने लोग रहते ह? करीब बीस-पचीस हजार।

साहब-ना सस- एक ठो के ा म दो-चार हजर हने सकटा। अबी हु ई पर हाय िक सब


चला िगया?

शांित-वे सब मेले म चले जाएंग!े


साहब-मेला म टोम कब आया होआं से?

शांित-कल आए ह साहब!

साहब-ओ लोग आज िनकेल िगया होगा?


शांित मन-ही-मन सोच रही थी िक-तु हारे बाप के ा के िलए यिद मने भात न
चढ़ाया, तो मेरी रिसकता यथ है । िकतने यार तेरा मुंड खाएंग,े म दे खूग
ं ी। कट पम
बोली-साहब! ऐसा हो सकता है , ऐसा हो सकता है । आज चला गया हो सकता है ।
इतनी खबर म नह जानती। बै णवी हू ं , मांगकर खाती हू ं -गाना गाती हू ं , तब आधा पेट
भोजन पाती हू ं । इतनी खबर म या जानूं? बकते-बकते गला सूख गया- पैसा दो, म
जाऊं। और अ छी तरह ब शीश दो, तो परस खबर दूं।

साहब ने झन से एक पया फकते हु ए कहा-परस नह , बीबी!

शांित बोली-दुर बेटा, बै णवी कहो, बीबी या?


साहब-परसू नह , आज रात को खबर िमलने चाही।

शांित-बंदक
ू माथे के पास रखकर नाक म कड़वा तेल छुड़वाकर सोओ। आज ही म दस
कोस रहा तय कर जाऊं और आज ही िफर लौट आऊं- और तु ह खबर दूं? घासलेटी
कह के!

साहब-घासलेटी िकसको बोलता?

शांित-जो भारी वीर, जेनरल होता है ।

साहब- ट
े जेनरल हाम होने सकता। हाम- ाइव का मािफक। लेिकन आज ही हमको
खबर मेलना चाही। सौ पी ब शीश दे गा।

शांित-सौ दो, हजार दो, बीस हजार दो-पर आज रात भर म म इतना नह चल सकत ।
साहब-घोड़े पर?

शांित-घोड़ा चढ़ना जानती तो तु हारे तंबू म आकर भीख मांगती?

साहब-एक दूसरा आदमी ले जाएगा।


शांित-गोद म बैठाकर ले जाएगा? मुझे ल ा नह है ?

साहब-केया मु कल! पान सौ पी दे गा।

शांित-कौन जाएगा-तुम खुद जाएगा?


इस पर एडवड ने पास म खड़े एक युवक अं ज
े को िदखाकर कहा- लडले, तुम जाओ!
लडले ने शांित का प-यौवन दे खकर कहा-बड़ी खुशी से!

इसके बाद बड़ा जानदार अरबी घोड़ा सजकर आ गया, लडले भी तैयार हो गया। शांित
को पकड़कर वह घोड़े पर बैठने चला। शांित ने कहा-िछ:, इतने आदिमय के सामने?
या मुझे ल ा नह है ? आगे चलो, बाहर चलकर घोड़े पर चढ़गे।

लडले घोड़े पर चढ़ गया। घोड़ा धीरे -धीरे चला, शांित पीछे -पीछे पैदल चली। इस तरह
वे लोग छावनी के बाहर आए।
िशिवर के बाहर एकांत आने पर शांित लडले के पैर पर पांव रखकर एक छलांग म पीठ
पर पहु ं च गई। लडले ने हं सकर कहा-तुम तो प ा घुड़सवार है !

शांित-हम लोग ऐसे प े घुड़सवार है िक तु हारे साथ चढ़ने म ल ा लगती है । छी:,


रकाव के सहारे तुम लोग चढ़ते हो?


मारे शान के लडले ने रकाब से पैर िनकाल िलया। इसी समय शांित ने पीछे से लडले
को गला पकड़ कर छ ा िदया। वह तड़ाक से घोड़े पर से िगरा। घोड़ा भी भड़क उठा।
िफर या था! शांित ने एक एंड़ लगाई और घोड़ा हवा से बात करने लगा। शांित चार
वष तक स तान के साथ रहकर प ी घुड़सवार हो गई थी। िबना सीखे या जीवानंद
का साथ दे सकती थी? लडले का पैर टूट गया और वह कराहने लगा। शांित हवा म
उड़ती जाती थी।

िजस वन म जीवानंद िछपे हु ए थे, वहां पहु ं चकर शांित ने जीवानंद को सारा समाचार
सुनाया। जीवानंद ने कहा-तो म शी जाकर मह को सतक क ं । तुम मेले म जाकर
स यानंद को खबर दो। तुम घोड़े पर जाओ, तािक भु शी समाचार पा सक।
इस तरह दोन आदमी दो तरफ रवाना हु ए। यह कहना यथ है िक शांित िफर नवीनानंद
के प म हो गई।

वामी स यानंद रण े म िकसी से कुछ न कहकर आनंदमठ म लौट आए। वहां वे


गंभीर राि म िव णु-मंडप म बैठकर यानम हु ए। इसी समय उन िचिक सक ने वहां
आकर दशन िदया। दे खकर स यानंद ने उठकर णाम िकया।

िचिक सक बोले-स यानंद! आज माघी पू णमा है ।


स यादं न-चिलए म तैयार हू ं । कतु महा म ! मेरे एक संदेह को दूर कीिजए। मने या
इसीिलए यु -जय कर संतान-धम की पताका फहरायी थी?

जो आए थे, उ ह ने कहा-तु हारा काय िस हो गया, मुसिलम रा य वंस हो चुका। अब


तु हारी यहां कोई ज रत नह , अनथक ाणह या की आव यकता नह !

स यानंद-मुसिलम रा य वंस अव य हु आ है , कतु अभी हदु रा य थािपत हु आ नह


है । अभी भी कलक े म अंगरे ज बल है ।
वे बोले-अभी हदु-रा य थािपत न होगा। तु हारे रहने से अनथक ाणी-ह या होगी,
अतएव चलो!

यह सुनकर स यानंद ती मम-पीड़ा से कातर हु ए, बोले- भो! यिद हदू-रा य थािपत न


होगा, तो कौन रा य होगा? या िफर मुसिलम-रा य होगा?

उ ह ने कहा-नह , अब अंगरे ज-रा य होगा

स यानंद की दोन आंख से जलधारा बहने लगी। उ ह ने सामने जननी-ज मभूिम की


ितमा की तरफ दे ख हाथ जोड़कर कहा-हाय माता! तु हारा उ ार न कर सका। तू िफर
े छ के हाथ म पड़ेगी। संतान के अपराध को मा कर दो मां! रण े म मेरी मृ यु
य न हो गई?

महा मा ने कहा-स यानंद कातर न हो। तुमने बुि िव म से द युवृि ारा धन संचय
कर रण म िवजय ली है । पाप का कभी पिव फल नह होता। अतएव तुम लोग दे श-
उ ार नह कर सकोगे। और अब जो कुछ होगा, अ छा होगा। अंगरे ज के िबना राजा
हु ए सनातन धम का उ ार नह हो सकेगा। महापु ष ने िजस कार समझाया है , म
उसी कार समझाता हू ं - यान दे कर सुनो! तितस कोिट दे वताओं का पूजन सनातन-धम
नह है । वह एक तरह का लौिकक िनकृ -धम, े छ िजसे हदू-धम कहते ह- लु हो
गया। कृित हदू-धम ाना मक- काय मक नह । जो अ त वषक ान है - वही
सनातन-धम का धान अंग है । लेिकन िबना पहले बिह वषयक ान हु ए, अ त वषयक
ान असंभव है । थूल दे खे िबना सू म की पहचान ही नह हो सकती। बहु त िदन से
इस दे श म बिह वषयक ान लु हो चुका है - इसीिलए वा तिवक सनातन-धम का भी
लोप हो गया है । सनातन-धम के उ ार के िलए पहले बिह वषयक ान- चार की
आव यकता है । इस दे श म इस समय वह बिह वषयक ान नह है - िसखानेवाला भी
कोई नह , अतएव बाहरी दे श से बिह वषयक ान भारत म िफर लाना पड़ेगा। अंगरे ज
उस ान के का ड पंिडत है - लोक-िश ा म बड़े पटु है । अत: अंगरे ज के ही राजा होने
से, अंगरे जी की िश ा से वत: वह ान उ प होगा! जब तक उस ान से हदु
ानवान, गुणवान और बलवान न ह गे, अंगरे ज रा य रहे गा। उस रा य म जा सुखी
होगी, िन कंटक धम चरण ह गे। अंगरे ज से िबना यु िकए ही, िनर होकर मेरे साथ
चलो!
स यानंद ने कहा-महा म ! यिद ऐसा ही था- अंगरे ज को ही राजा बनाना था, तो हम
लोग को इस काय म वृ करने की या आव यकता थी?

महापु ष ने कहा-अंगरे ज उस समय बिनया थे- अथ सं ह म ही उनका यान था। अब


संतान के कारण ही वे रा य-शासन हाथ म लगे, य िक िबना राज व िकए अथ-सं ह
नह हो सकता। अंगरे ज राजद ड ल, इसिलए संतान का िव ोह हु आ है । अब आओ,
वयं ानलाभ कर िद य च ु ओं से सब दे खो, समझो!

स यानंद-हे महा मा! म ान लाभ की आकां ा नह रखता- ान की मुझे आव यकता


नह । मने जो त िलया है , उसी का पालन क ं गा। आशीव द कीिजए िक मेरी
मातृभि अचल हो!

महापु ष- त सफल हो गया- तुमने माता का मंगल-साधन िकया- अंगरे ज रा य तु ह


लोग ारा थािपत समझो! यु -िव ह का याग करो- कृिष म िनयु हो, िजसे पृ वी
यशािलनी हो, लोग की ीवृि हो।

स यानंद की आंख से आंसू िनकलने लगे, बोले-माता को शत-र से श यशािलनी


कं?
महापु ष-शत कौन है ? शत अब कोई नह । अंगरे ज हमारे िम ह। िफर अंगरे ज से यु
कर अंत म िवजयी हो- ऐसी अभी िकसी की शि नह ?

स यानंद-न रहे , यह माता के सामने म अपना बिलदान चढ़ा दूंगा।

महापु ष -अ ानवश! चलो, पहले ान-लाभ करो। िहमालय-िशखर पर मातृ-मंिदर है ,


वह तु ह माता की मू त य होगी।
यह कहकर महापु ष ने स यानंद का हाथ पकड़ िलया। कैसी अपूव शोभा थी! उस
गंभीर िन त ध राि म िवराट चतुभुज िव णु- ितमा के सामने दोन महापु ष हाथ पकड़े
खड़े थे। िकसको िकसने पकड़ा है ? ान ने भि का हाथ पकड़ा है , धम के हाथ म कम
का हाथ है , िवजसन ने ित ा का हाथ पकड़ा है । स यानंद ही शांित है - महापु ष ही
क याण है - स यानंद ित ा है - महापु ष िवसजन है ।

िवसजन ने आकर ित ा को साथ ले िलया।

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