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मातभ
ृ ूमम कविता मैथिलीशरण गुप्त
श्री मैथिलीशरण गुप्त ह द
िं ी के प्रततभाशाली लेखक िे। आपका जन्म 1885 को उत्तर प्रदे श के थिरगााँव में ु आ िा।
साकेत, यशोधरा आहद आपकी प्रमुख रिनाएाँ ै। 1954 के पद्मभूषण से पुरस्कृत ै। 1965 को आपकी मत्ृ यु ु ई िी।
मातभ
ृ ूमम के........
✓ पररधान (वस्र) → नीले रिं ग का आकाश आभूषण (मिंडन) → फूल और तारे
✓ मुकुट → सूयय और ििंद्र बिंदीजन → पक्षी गण
✓ मेखला (करधनी) → रत्नाकर (समुद्र) ससिं ासन → शेष फन
✓ प्रेम प्रवा → नहदयााँ
मातभ
ृ मू म का िणणन।
मातभ
ृ ूसम का वणयन करते ु ए कवव क ते ैं कक उसकी ररयाली में नीलाकाश वस्र की तर शोसभत ै। सूयय-ििंद्र मुकुट
की तर हदन-रात शोभा बढाती ै। सागर करधनी ै। नहदयााँ प्रेम का प्रवा ै, फूल-तारे आभष
ू ण ै। पक्षक्षयााँ स्तुतत गीत
गाते ैं, शेषफन ससिं ासन ै। बादलों पानी बरसाकर असभषेक करते ैं। मातभ
ृ सू म ईश्वर की सगण
ु साकार मतू तय ै।
मातभ
ृ ूमम और कवि का बचपन।
मातभ
ृ ूसम की धूसल में लोट-लोट कर वे बडे ु ए ।ैं घुटनों के बल पर य ााँ सरक-सरक कर पैरों पर खडा र ना सीखा।
बिपन में ी उसने श्री रामकृष्ण परम िंस जैसे सब सख ु पाए। इसके कारण ी उसे धूल भरे ीरे क लाए। मातभ ृ ूसम की गोदी
में खेल-कूद करके षय का अनुभव ककए।
‘तेरा प्रत्यप
ु कार कभी क्या हमसे होगा’ – कवि इस प्रकार क्यों सोचता है ?
माता-बच्िे, दोनों का ररश्ता पववर ै। अपने बच्िों केसलए की गई भलाई या उपकारों केसलए बदला दे ना मुश्श्कल ै।
उसी तर मने अपनी मातभ
ृ ूसम में र कर जो सुख-सुववधाओिं को भोगा, उसकेसलए प्रत्युपकार करना आसान न ीिं ै। इस
पववर समट्टी में जन्म लेकर, य ााँ के अन्न और जल से बनी ु ई मारे शरीर भी मातभ ृ ूसम की ी ै। मााँ और मातभृ ूसम
अपने बच्िों से कुछ न ीिं िा ते, अतः उन दोनों के द्वारा की गई उपकारों का मूल्य अपनी जान दे कर भी न ीिं िुकाया
जाता।
आस्िादन टिप्पणी:
द्वववेदी युग के प्रततभाशाली कवव ै श्री मैथिलीशरण गप्ु त जी। ‘मातभ
ृ ूसम’ गुप्त जी की प्रससद्ध कववता ै, श्जसमें
उन् ोंने मातभ
ृ सू म का गण
ु गान करके उसके सलए अपने जान भी अवपयत करने का आह्वान करते ै।
मातभृ ूसम का वणयन करते ु ए कवव क ते ैं कक उसकी ररयाली में नीलाकाश सुिंदर वस्र की तर शोसभत ै। सूयय
और ििंद्र मुकुट की तर हदन-रात उसकी शोभा बढाती ै। सागर करधनी ै। य ााँ ब नेवाली नहदयााँ प्रेम का प्रवा ै , फूल-
तारे आभूषण ै। पक्षक्षयााँ स्तुततगीत गाते ैं, शेषफन रूपी ससिं ासन पर तू ववराश्जत ै। बादलें पानी बरसाकर इसका असभषेक
करते ै। वास्तव में तू ईश्वर की सगुण साकार मूततय ै। कवव अपनी जन्मभूसम के इस सुिंदर रूप पर आत्मसमपयण करते ैं।
जन्मभूसम से कवव के बिपन का सिंबिंध व्यक्त करते ु ए कवव क ते ैं कक इसकी धूसल में लोट-लोट कर वे बडे ु ए
।ैं घुटनों के बल पर सरक-सरक कर पैरों पर खडा र ना सीखा। य ााँ र कर बिपन में ी उसने श्री रामकृष्ण परम िंस की
तर सभी सुख पाए। इसके कारण ी वे धूल भरे ीरे क लाए। इस जन्मभूसम की प्यारी गोदी में खेल-कूद करके षय का
अनभ
ु व ककए। ऐसे मातभ
ृ सू म को दे खकर म आनिंद से मग्न ो जाती ै।
आगे कवव क ते ैं जो सुख शािंतत मने भोगा ै, वे सब मातभ
ृ ूसम की दे न ै। तुमसे ककए गए उपकारों का बदला
दे ना मुश्श्कल ै। य दे तेरा ै, तुझसे
ी बनी ु ई ै, तेरे जीव-जल से सनी ु ई ै। मत्ृ यु ोने पर इस तनजीव शरीर तू ी
अपनाएगा। े मातभ
ृ ूसम! तुझमें जन्म लेकर तुझमें पलकर, अिंत में म सब तेरी ी समट्टी में ववलीन ो जाते ैं।
सरल शब्दों में कवव मातभ
ृ ूसम की खूबबयों की ओर आकृष्ट करके उसकेसलए जान अवपयत करने की प्रेरणा देती ै।
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कौतूहल का अहसास
अतीत का पढा ु आ भम
ू ध्यरे खीय प्रदे शों की गरमी, घने वन, ग री ररयाली आहद आज प्रत्यक्ष दे ख र े ै। ववमान
धरती की ओर झुकते समय याबरयों का कौतू ल भी बढता र ा।
टहांदी भाषा: सरू ीनाम में
थगरसमहटया श्रसमक अपने साि ‘ नुमानिालीसा’ तिा ‘रामिररतमानस’ धमयग्रिंिों के रूप में ले गए ह द
िं ी भाषा को तूफान
के बीि दीये की तर जलाया रखा और आज सालों बाद व नए वैश्श्वक रूप में उपश्स्ित ै। अब ह द
िं ी शासकों एविं
राष्राध्यक्षों की भी भाषा बन गई ै। सिंसार के एक सौ बीस देशों में अब ह द
िं ी की उपश्स्ितत ै।
टहांदी महापिण की सातिीां यात्रा
ववश्व ह द
िं ी सम्मेलनों की य सातवीिं यारा ‘ह द
िं ी म ापवय’, एक सौ तीस साल प ले आये प्रिम भारतीय श्रसमक की
स्मतृ त में आयोश्जत ै। ह द
िं ी लेखक, प्रिारक, प्राध्यापक एविं सेवी य ााँ उपश्स्ित ै। सवयर भारतीय- ी-भारतीय दे ख र ने के
कारण य एक भारतीय श र जैसा प्रतीत ोती ै।
सूरीनामी टहांदी
6 जनू को सम्मेलन का शभ ु ारिंभ करते ु ए सरू ीनाम के राष्रपतत ने अपने उद्बोधन में ह द
िं ी भाषा के प्रिार-प्रसार के
बारे में क ा। ह द
िं ी कफल्म, सिंगीत और िलथिर के प्रतत सूरीनामी लोगों का भी ग रा लगाव ै।
भरत-ममलाप
सरू ीनामी भारतविंसशयों का उत्सा दे खकर लेखक को ऐसा लगा कक एक सौ तीस साल से बबछुडे बिंधु आज पन
ु ः समल
गए।
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सूरदास के पद
सगुण भश्क्तधारा के सवयश्रेष्ठ कृष्णभक्त कवव िे सूरदास। उनका जन्म 15 वीिं सदी के अिंततम दशकों में उत्तरप्रदे श
में ु आ। सूरदास का वात्सल्य एविं श्रिंग
ृ ार रस वणयन अद्ववतीय ै। सरू सागर आपकी प्रससद्ध रिना ै।
मेरे लाल: श्रीकृष्ण का बाललीला सिंबिंथधत पद। बालक कृष्ण, यशोदा, निंद में केंहद्रत ै।
✓ वात्सल्य भाव।
✓ पुर के मो क िे रे और दथु धए दााँतों को दे खकर यशोदा अपने आपको भल
ू जाती ै।
✓ अपने पतत निंद को बल
ु ाकर पुर का सुिंदर रूप दे खने तो क ते ैं।
✓ सूरदास क ते ैं कक ककलकारी करनेवाले कृष्ण को दे खकर ऐसा लगता ै, मानो कमल पर बबजली जम गई ो।
भािािण।
सूरदास कृष्ण भश्क्तशाखा के प्रमुख कवव ै। उनकी प्रमुख रिना सरू सागर की बाललीलाएाँ वात्सल्य वणयन का उत्तम
उदा रण ै। प्रस्तुत पद कृष्ण के बाललीला से सिंबिंथधत ै। बालक कृष्ण के दध
ू के दाँ ततयााँ दे खकर माता-वपता अत्यथधक खुश
ु ए।
अपने पुर के मो क िे रा दे खकर यशोदा प्रसन्न ु ई। पुर के दथु धए दााँतों को दे खते ी यशोदा मााँ अपने आप को
भूल जाती ै। अपने पतत निंद को बुलाकर पुर का सुिंदर सुखदाई रूप दे खने को क ते ।ैं वे क ते ैं, पुर के छोटे -छोटे दथु धए
दााँतों को दे खना नयनों केसलए सुखदायक ै। पत्नी की बातें सुनकर निंद प्रसन्नतापव
ू यक अिंदर आए और पुर के दथु धए दााँतों
को दे खकर उनके मुख और थितवन खुशी से भर गए। सूरदास क ते ैं कक ककलकारी करनेवाला कृष्ण को दे खकर ऐसा
लगता ै, मानो कमल पर बबजली जम गई ो।
य पद वात्सल्य रस का उत्तम उदा रण ै। कृष्ण का मुख कमल के समान ै और सफ़ेद दााँत बबजली के समान ै।
बालक कृष्ण का सौंदयय अद्ववतीय ै। उनकी िेष्टाएाँ हृदय ारी तिा अद्ववतीय ै।
हे कान्ह....
✓ प्रेम और श्रिंग
ृ ार रस का पद।
✓ मुरली की आवाज़ में गोवपकाएाँ िककत ोते ।ैं सब कामकाज भल
ू जाते ै।
✓ कुल मयायदा, वेद की आज्ञा सबकुछ न ीिं डरी।
✓ गोवपकाएाँ रूपी नहदयााँ कृष्ण रूपी सागर में जा समतली ै।
✓ सरू दास क ते ैं कक ितरु कृष्ण ने गोवपकाओिं के मन को र सलया।
भािािण।
सूरदास कृष्ण भश्क्तशाखा के प्रमुख कवव ै। उनकी प्रमुख रिना सरू सागर के कृष्ण और गोवपकाओिं के प्रेम का सरस
वणयन अद्ववतीय ै। सरू सागर के रासलीला से सिंबिंथधत पद ै, ‘ े कान् ’।
सूरदास क ते ैं कक जब मरु ली की मीठी आवाज़ सुनाई पडी तब सारी गोवपकाएाँ िककत ो गई और सब कामकाज
भूल गई। कुल की मयायदा, वेदों की आज्ञा आहद सबकुछ से वे बबलकुल न ीिं डरीिं। श्जस प्रकार सागर में नहदयााँ जाकर समलती
ै, उसी प्रकार गोवपकाएाँ रूपी नहदयााँ अपने वप्रयतम कृष्ण रूपी समुद्र से समलने केसलए वन की ओर तनकल पडी। गोवपकाएाँ,
पुर और पतत का प्यार, गुरुजनों का भय, लज्जा आहद ककसी भी बात की परवा न ीिं की। सरू दास क ते ैं कक ितुर एविं
सिंद
ु र श्रीकृष्ण ने गोवपकाओिं के मन को र सलया।
सूरदास इस पद में कृष्ण और गोवपकाओिं के प्रेम का सरस वणयन ककया ै।
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2. लेखक:
‘ज़मीन एक स्लेट का अिंश ै’ एकािंत श्रीवास्तव का आत्मकिािंश ैं, श्जसमें अपनी ब न की शादी और उससे
सिंबिंथधत कुछ अववस्मरणीय घटना का वणयन ु आ ै।
✓ समझदार बेटा → वपताजी की इच्छा समझकर व उसके साि खेत िलते ैं।
✓ आज्ञाकारी बेटा → जीवन की ववषमता में व अपने वपताजी के ाि पकडते ै।
✓ प्यारी भाई
✓ कभी भी व अपने वपताजी को अकेले न ीिं छोडते ै। साि ी अपनी ब न केसलए व प्यारी भाई भी ै।
3. वपताजी:
‘ज़मीन एक स्लेट का अिंश ै’ एकािंत श्रीवास्तव का आत्मकिािंश ैं, श्जसमें अपनी ब न की शादी और उससे
सिंबिंथधत कुछ अववस्मरणीय घटना का वणयन ु आ ै। लेखक की ब न की शादी ोनेवाली ै। खिय केसलए वपताजी
कुछ ज़ार रुपए भववष्य तनथध से लाए िे, कफर भी खिय ज़्यादा अथधक िा। लेखक के वपताजी अपने ज़मीन बेिते
ै।
✓ ज़मीन से वपताजी का ग रा लगाव।
✓ अपनी बेटी और पररवारवालों के प्रतत प्यार और ममता रखनेवाला।
✓ धैययशाली → व अपना दःु ख खुद स ते ै।
✓ आत्मकिािंश में एक प्यारी वपताजी का पररिय कराते ै, श्जसको अपने पररिारिालों से गहरा प्रेम और
ममता ै, साि ी अपनी ज़मीन के प्रतत ग रा जुडाव भी ै।
➢ बेटी की डायरी।
1.10. 2021 सोमवार
शादी के हदन आगे ै। केवल दो-िार हदन। अब मन सिंघषय से भरा िा। वववा मिंडप, तनमिंरण आहद
प्रारिं सभक तैयाररयााँ ो िुकी िी। मे मानों से भरा घर।
ववदाई की वेला में मेरे भाई और माता-वपता के ग रे प्यार का अनभ
ु व करती ै। ााँ, मैं इस घर की प्यारी
बबहटया िा। अब बबछुडन का समय आ गई ै। आज सबेरे ज़मीन की रश्जस्री केसलए वपताजी और भाई गए।
वपछले कुछ हदनों से वपताजी दःु खी िा। वववा के खिय केसलए ज़मीन बेिने में वववश ो गया ै। क्या आज
की ज़माने में लडककयों अपने घर केसलए बोझ ै? ााँ, न ीिं तो वपताजी का ज़मीन! वास्तव में लडकी अपने
पररवार केसलए बोझ ी ै। इस अवस्िा से मुश्क्त कैसे पा सकें?
दो-िार हदनों के बाद मेरी शादी। एक नए घर में......। व ााँ पतत के माता-वपता और ब न ै। व ााँ के
जीवन कैसे ोगी? मालूम न ीिं। ईश्वर ी रक्षा।
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✓ म ल में खाने-पीने-सोने के अलग-अलग कमरे ैं, बैठक, पूजा का कमरा, रसोई आहद ै।
✓ नीिंद में बैंक की नोटीस आकर धमकती ै।
✓ आगे सपना दे खना भी उसके सलए डरावनी बनती ै।
आस्वादन हटप्पणी।
ह द
िं ीतर प्रदे शों की ह द
िं ी साह त्यकारों में प्रमुख ै डॉ जे बाबू। ‘सपने का भी क न ीिं’ आपकी प्रससद्ध कववता ै,
श्जसमें एक गरीब मज़दरू रन का थिर खीिंिने का प्रयास की गई ै।
गरीब मज़दरू रन अपने बच्िों के साि एक कमरेवाली झोंपडी में र ते ै। रात में बच्िों के सो जाने पर व अपने मन
रूपी दीवार पर एक ववशाल घर का थिर खीिंिती ै, जो उसका स्वप्न भवन िा।
घर में भोजन खाने केसलए और सोने केसलए अलग-अलग कमरे ै। रसोई बैठक के तनकट ै। पूजा का कमरा ऊपरी
मिंश्ज़ल में रख हदए।
कााँक्रीट की छत के नीिे पीले रिं ग के दीवारों के मध्य में खखडकी-दरवाज़े रख हदए। सिंगमरमर िमकनेवाली ज़मीन पर
मेज़-कुरससयााँ रख हदए। टी.वी, ोम थियेटर आहद बैठक की शोभा बढाते ै। ग्रानाइट िमकनेवाली रसोई में किड़्ज, माइक्रोवेव
आहद रखने पर शोभा और बढते ै।
मस री की सरु क्षा में सरू ज की धप
ू फैलने तक व सो पडी। जाग उठने के पव
ू य ी उसने बैंक का नोटीस दे खा, जो
एक धमकी ै। इससलए सपना दे खना भी उसके सलए डरावना बन जाता ै।
‘सपने का भी क न ीिं’ एक कठोर सत्य का पदायफाश करता ै कक उस मज़दरू रन जैसे गरीब लोगों को सपने दे खने
का भी अथधकार न ीिं ै।
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चररत्र थचत्रण:
1. मुरकी:
अमत
ृ ा प्रीतम की क ानी ‘मुरकी उफय बुलाकी’ के प्रमुख पार ै ‘मुरकी’। एक मात ृ ीन लडकी। अपनी
बेटी की सरु क्षा केसलए उसके वपताजी ने उसे राजविंती मााँ के य ााँ ले आया। उसका असली नाम ककसी को न जानते
िे, मुरकी और बल
ु ाकी नाम राजविंती मााँ ने रखे िे।
✓ सा सी और धैययशाली → दज
ू े के साि बात पक्की तो व रात ी रात प्रेमी से भाग जाते ैं।
✓ ईमानदारी
✓ समझदारी → घर बनाने केसलए, अपने ािों में जो कुछ िा, उसे दे ते िे।
✓ आत्मासभमानी → उपेक्षक्षता ोकर, पतत को ढाँू ढने केसलए तैयार न ीिं ोते ै।
✓ क ानी में एक मात ृ ीन लडकी को दशायते ै जो एक घर में बच्िे के दे खभाल करते ै। उस घर में सबके
वप्रय िा व मात ृ ीन लडकी। राजविंती मााँ उसके सलए मााँ जैसी िी।
2. राजिांती मााँ:
अमत
ृ ा प्रीतम की प्रससद्ध क ानी ‘मुरकी उफय बल
ु ाकी’ का प्रमुख पार ै ‘राजविंती’।
✓ स्ने मयी मााँ।
✓ दया, ममता आहद मात-ृ स ज गुणों की मूततय।
✓ परोपकारी → अपने परु ाना नौकर की मात ृ ीन बेटी को आश्रय एविं मााँ का प्यार हदए।
✓ आश्रयदाता → उपेक्षक्षत ोकर लौटते तो मरु की को आश्रय दे ते ।ैं
✓ प्यार, ममता, करुणा और सहानुभूतत भरे एक मााँ को म य ााँ दे ख सकते ैं। लडककयों को असभशाप मानने
वाले समाज में घर के परु ाना नौकर की मात ृ ीन बेटी को आश्रय एविं मााँ का प्यार हदए।
3. कुमार:
अमत
ृ ा प्रीतम की प्रससद्ध क ानी ‘मुरकी उफय बल
ु ाकी’ का प्रमुख पार ै ‘कुमार’।
✓ आज्ञाकारी बेटा, दयाल,ु एविं प्यारी।
✓ राजविंती का बेटा कुमार समझदार ै, प्यारे ै, आज्ञाकारी ै, साि ी सहजीवियों के प्रतत सहानभ
ु ूतत
रखनेिाले भी िे।
बुलाकी का आत्मकिाांश।
दस
ू रा जन्म
माताजी की मत्ृ यु के बाद कुछ हदन िािा के घर में र ा। बार वषय की आयु में मझ
ु े य ााँ आश्रय समला, साि ी
एक मााँ को भी समला। खाने केसलए भोजन और सोने केसलए एक कमरे समला। छोटे कुमार को खखलाकर िार-पााँि वषय र ा।
मेरे जीवन के खुशी भरे हदन। य ााँ के मााँ ने मुझे एक बेटी जैसे प्यार हदया।
युवती ोने पर वपताजी ने शादी की तैयाररयााँ शुरु की। गााँव के एक आदमी के साि, उसका दस
ू रा वववा िा। प ली
पत्नी मर िुकी िी। उसी रात मैंने एक श री लडके के साि भाग गया।
कुछ म ीने खश
ु ी से र ा। घर बनाया। मेरे सारे सिंपवत्त, जो राजविंती मााँ ने हदया िा, लेकर नए घर केसलए वस्तए
ु ाँ
खरीदी। इतने में कई लोगों ने मुझसे क ा कक ककसी दस
ू री स्री के साि मेरे पतत को कई बार दे खा। लेककन मुझे ववश्वास
न ीिं आया। दश रा के अवसर िा, एक हदन मेला दे खने केसलए गया। श र में घूमते र ा, सडक का खाना खब
ू खाया, कई
िीज़ें खरीदी। इतने में रात ो गया। गााँव जाने केसलए गाडी न ीिं िा। इससलए व ााँ एक सराय में ठ रा।
सबेरे उठकर मैं िककत ु ई, अकेली िी। पतत ने मुझे व ााँ छोडकर क ीिं गया। व मेरे पल्ले से घर का िाबी भी ले
सलया। मैं अकेली, उसी सराय में। कफर एक दयालु व्यश्क्त की मदद से य ााँ आ प ु ाँिा। य ााँ राजविंती मााँ ने मुझे आश्रय हदए,
मेरे पुराने कमरे की िाबी भी हदए। उसने वायदा ककया कक कोई भी मुझसे िाबी न ीिं छीनेगा। य ााँ आश्रय न ीिं समला तो
क्या ोगी मेरी श्स्ितत? सोिने की शश्क्त भी न ीिं ै।
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आस्िादन टिप्पणी:
प्रो ओ एन वी कुरुप मलयालम के लोकवप्रय कवव ै। उनकी मलयालम कववता का अनुवाद ह द
िं ी के प्रससद्ध
अनुवादक श्रीमती एस तिंकमणी अम्मा ने ‘कुमुद फूल बेिनेवाली लडकी’ नाम से इसका ह द
िं ी में ककया।
एक परु ाना दे वालय के पास एक कुमद
ु सरोवर ै। व ााँ के श्वेत रिं ग का कुमद
ु फूल, दे व का इष्ट नैवेद्य ै। मिंहदर के
पास फूल बेिनेवाले अनेक लोग ै। सबके ािों में कुमद
ु का फूल ै, जो मत
ृ जल-सााँप की तर हदखाई पडते ै। व ााँ
आनेवाले भक्तों से फूल बेिनेवाले लोग अपने ाि से फूल खरीदने की प्राियना करते ै।
एक छोटी लडकी कवव के पास आकर फूल बढाते ै। उसकी मरु झाया ु आ नन् ी मुख दे खकर कवव का मन द्रववत
ोता ै। उसने एक छोटा ससक्का, फूल के दाम के रूप में हदया। व फूल औऱ लडकी का मुखडा, दोनों उसे सिंदु र लगता ै ।
कवव फूल न ीिं स्वीकारते ै, क ते ै - ‘ े फूल, तू इस छोटी ब न केसलए अन्न ै, इससे बढकर कोई भलाई न ीिं ै। नैवेद्य
के रूप में तुझे दे ने से मुझे क्या समलेगा?’
खाली ाि से कवव आगे िलते ै। ‘मेरे ाि से.......’ दीन स्वर कवव के पीछे धीमी ो जाती ै।
कवव ने य ााँ फूल बेिनेवाली गरीब लडकी की बेबसी का थिरण ककया ै। लडकी की ालत उसे दब
ु ारा सोिने में
वववश करता ै। फूल का पैसा दे कर आगे बढानेवाला कवव सोिते ैं कक उस भूखी एविं गरीब लडकी की भूख समटाने से
बढकर अन्य पुण्य काम न ीिं ै। फूल का पैसा दे कर आगे बढानेवाला कवव मानवता का प्रततरूप ै।
പഴലയനരു ലദവനെയെിനരിരിലെനരു ആമ്പൽക്കുളമുണ്ട്. അവിലടയുള്ള ലവളുെ ആമ്പൽപൂക്കളനണ് ലദവനുള്ള
ഇഷ്ടനനലവദയാം. ലദവനെയെിനരിരിൽ പൂജനന്ത്ദവയങ്ങൾ വിൽക്കുന് നിരവധി ആളുരളുമുണ്ട്. അവരുലട നരരളിൽ ചെ
ജെസ്ർൊം ലപനലെ നീണ്ട തണ്ടിനരിരിൽ തൂങ്ങിക്കിടക്കുന് ലവളുെ ആമ്പൽപൂക്കളുമുണ്ട്. അവർ ഭക്തലരനട് തങ്ങളുലട
നരയ്യിൽ നിന്ുാം പൂക്കൾ വനങ്ങുവനൻ യനചിക്കുന്ു.
രവിയുലട അരിരിലെക്ക് ഒരു ലചറിയ രുട്ടി വന്് പൂക്കൾ നീട്ടി. അവളുലട വനടിയ മുഖാം രണ്ട് രവിയുലട മനസ്സ്
ലവദനിച്ചു. അലേഹാം അവൾക്ക് പൂവിനുള്ള വിെയനയി ഒരു നനണയാം ലരനടുെു. പൂവുാം, ആ ലപൺക്കുട്ടിയുലട മുഖവുാം
അലേഹെിന് സ്ുന്ദരമനയി ലതനന്ി. രവി പറയുന്ു – ‘പുഷ്പലമ. നീ ഈ ലരനച്ചു സ്ലഹനദരിയ്ക്കുള്ള അന്മനണ്, ഇതിെുാം
വെിയ പുണയമിെല. നനലവദയമനയി നിലന് ലരനടുെനൽ എനിക്ക് എരനണ് െഭിക്കുന്ത്?’
ശൂനയമനയ നരരളുമനയി രവി മുലന്നട്ടു ലപനരുന്ു. പുറരിെനയി ‘എൻലറ നരയ്യിൽ നിന്്....’ എന് ശബ്ദാം
ലനർെ് ലനർെ് ലരൾക്കുന്ുണ്ടനയിരുന്ു.
10
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स्कूटरवाले का िररर:
डॉ राजा बुद्थधराजा के सिंस्मरण ‘व
भटका ु आ पीर’ के प्रमुख पार ै स्कूटरवाला युवक। व एक वपतवृ व ीन लडका
ै जो अपनी मााँ की के क ने पर रा गीरों को पानी वपलाना शरु
ु ककया।
✓ आज्ञाकारी बेटा
✓ तनस्वािय सेवी → अपनी कमाई से पानी खरीदकर रा गीरों को वपलाता ै।
✓ नाम ‘मश्कवाला स्कूटर’ पड गया।
✓ पीर जैसा व्यश्क्त
“मश्कवाला स्कूटर” के बारे में समािार।
मश्किाला स्कूिर
हदल्ली: आजकल के स्वाियता भरी दतु नया में हदल्ली का य स्कूटरवाला जैसा युवक अन्यर दल
ु यभ ै। वपताजी की
मत्ृ यु के बाद व स्कूटर िलाकर आजीववका कमाता िा। घर में मााँ ैं। बिपन में उनके मााँ ने उपदे श हदया – “तू
पानी वपलाया कर, पुण्य समलता ै।“ तभी व रा गीरों को पानी वपलाना शुरु ककया। खास बात य ै कक दस
ू रों के
प्यास बुझाने केसलए अपनी कमाई से पैसे दे कर पानी खरीदकर मश्क भरवाता ै और प्यासों को पानी मुफ्त दे ता
ै।
स्वाियता भरी दतु नया में य यव
ु ा लोगों के प्यास बुझाकर ररश्ता जुडाते ै। बुढापे में बुजुगय लोग, िा े व
जन्मानेवाला मााँ-बाप ो, बोझ समझकर वद्
ृ ध सदनों में छोडनेवाले इस पीहढ में यब युवक सिमुि अलग
व्यश्क्तत्व ै, जो अपनी मााँ के उपदे श सुनकर लोगों के हदल में जग बनाकर पीर ी ै।
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विज्ञापन (Advertisement)
मान लें, प्लाश्स्टक के उपयोग के ववरुद्ध आपके स्कूल के छारों ने कपडे और जूट के रिं ग-बबरिं गे िैसलयों का तनमायण ककए, जो
पयायवरण के अनक
ु ू ल (Eco-friendly) ै। उसकी बबक्री और इस्तेमाल बढाने केसलए एक आकषयक ववज्ञापन तैयार करें ।
(प्रदष
ू ण से मुश्क्त, पयायवरण की सुरक्षा, ववसभन्न आकार-प्रकार, हॉमिं डेसलवरी)
प्लाश्स्टक छोडो....... कागज़ िैसलयों का इस्तेमाल करें
पोस्िर (Poster)
कोरोना वायरस का तीसरी ल र काफी खतरनाक ै। इस ववषय में जनता के िेतावनी दे ने योग्य आकषयक पोस्टर तैयार करें ।
(नोवल कोरोना: लक्षण एविं बिाव के उपाय, क्या करें ? क्या न करें ?, व्यश्क्तगत स्वच्छता, मास्क-सैतनटै स-आपसी दरू ी)
नोिल कोरोना िायरस (Covid-19)
लक्षण क्या-क्या ै? बुखार – खााँसी – सााँस लेने में तकलीफ़ ....... ै तो जल्द ी जल्द डॉक्टर से
सिंपकय करें ।
क्या-क्या करें ?
✓ अपने ािों को बार-बार धोएाँ। खुद र े सरु क्षक्षत....
✓ भीड से बिे।
✓ एक-दस
ू रे से दरू ी बनाए रखें।
✓ सावयजतनक जग ों में मास्क का इस्तेमाल करें ।
✓ साबुन से ाि धोएाँ..... सैतनटै स करें । क्या-क्या न करें ?
X यहद लक्षण ै तो ककसी से सिंपकय न करें ।
X सावयजतनक स्िानों पर न िूकें।
X आाँख-नाक-मुाँ मत छुए।
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अनुिाद (Translation)
खांड का टहांदी में अनुिाद करें ।
Life style diseases are diseases linked with one’s life style. These are non-communicable diseases. These can be caused by
lack of physical exercise, taking unhealthy food habits, use of narcotics etc. Main life style diseases are diabetes,
hypertension, heart disease, obesity, cancer etc. The best way of prevention is proper and regular physical exercise, which
also includes good food habits. So, we have to change our life style for sound health.
(Life style - जीवन शैली, linked – जुडे ु ए, non-communicable - गैर-सिंिारी , physical - शारीररक , narcotics - नशीले पदािय ,
diabetes - मधुमे , hypertension - उच्ि रक्तिाप, obesity - मोटापा)
उत्तर:
व्यश्क्त के जीवन शैली से जुडे रोगों को जीवन शैली रोग क ते ैं। ये गैर-सिंिारी रोग ैं। शारीररक व्यायाम की कमी,
अस्वास््यकर भोजन की आदतें, नशीले पदािों का उपयोग आहद इनके कारण ो सकते ैं। मुख्य जीवन शैली रोग मधम
ु े ,
उच्ि रक्तिाप, हृदय की बीमारी, मोटापा, कैं सर आहद ै। रोकिाम का सबसे अच्छा तरीका उथित और तनयसमत शारीररक
व्यायाम करना ै, श्जसमें अच्छी खाने की आदतें भी शासमल ै। इससलए अच्छी स्वास््य केसलए में अपनी जीवन शैली को
बदलना ै।
सांक्षेपण (Summerizing)
गद्याांश का सांक्षेपण करें :
भववष्य में में ववश्राम करना या िैन से न ीिं बैठना ै बश्ल्क तनरिं तर प्रयत्न करना ै ताकक में जो विन बार-बार दो राते
र े ैं और श्जसे म आज भी दो राएाँगे, उसे परू ा कर सकें। भारत की सेवा का अिय ै लाखों-करोडों पीडडत लोगों की सेवा
करना। इसका मतलब ै गरीबी और अज्ञानता को समटाना। बीमाररयों और अवसर की असमानता को समटाना। मारी पीहढ
के सबसे म ान व्यश्क्त की य ी म त्वाकािंक्षा र ी ै कक र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
(1) मारी पीहढ के म ान व्यश्क्त की म त्वाकािंक्षा क्या ैं? (2)
(2) गद्यािंश का सिंक्षप
े ण करें । (6)
उत्तर:
(1) मारी पीढी के सबसे म ान व्यश्क्त की म त्वाकााँक्षा य ै कक र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
(2) भारत का भविष्य
भववष्य में में अपने विन को दो राकर दे श की सेवा करें । भारत की सेवा का तात्पयय ै, लाखों-करोडों पीडडत लोगों की
सेवा, गरीबी, अज्ञानता, बीमाररयों और अवसर की असमानता को समटाना। पीहढ के म ान व्यश्क्त की म त्वाकािंक्षा य ै कक
र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
पाररभावषक शब्दािली (Technical Terms)
आपके पाठ पस्
ु तक के पन्ने 52 – 53 में हदए अिंग्रेज़ी-ह द
िं ी पाररभावषक शब्दावली ध्यान से पढें । स ी समलन केसलए
प्रश्न अवश्य ोंगे।
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