You are on page 1of 15

Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.

in ®

QUICK REVISION NOTES

मातभ
ृ ूमम कविता मैथिलीशरण गुप्त
श्री मैथिलीशरण गुप्त ह द
िं ी के प्रततभाशाली लेखक िे। आपका जन्म 1885 को उत्तर प्रदे श के थिरगााँव में ु आ िा।
साकेत, यशोधरा आहद आपकी प्रमुख रिनाएाँ ै। 1954 के पद्मभूषण से पुरस्कृत ै। 1965 को आपकी मत्ृ यु ु ई िी।
मातभ
ृ ूमम के........
✓ पररधान (वस्र) → नीले रिं ग का आकाश आभूषण (मिंडन) → फूल और तारे
✓ मुकुट → सूयय और ििंद्र बिंदीजन → पक्षी गण
✓ मेखला (करधनी) → रत्नाकर (समुद्र) ससिं ासन → शेष फन
✓ प्रेम प्रवा → नहदयााँ
मातभ
ृ मू म का िणणन।
मातभ
ृ ूसम का वणयन करते ु ए कवव क ते ैं कक उसकी ररयाली में नीलाकाश वस्र की तर शोसभत ै। सूयय-ििंद्र मुकुट
की तर हदन-रात शोभा बढाती ै। सागर करधनी ै। नहदयााँ प्रेम का प्रवा ै, फूल-तारे आभष
ू ण ै। पक्षक्षयााँ स्तुतत गीत
गाते ैं, शेषफन ससिं ासन ै। बादलों पानी बरसाकर असभषेक करते ैं। मातभ
ृ सू म ईश्वर की सगण
ु साकार मतू तय ै।
मातभ
ृ ूमम और कवि का बचपन।
मातभ
ृ ूसम की धूसल में लोट-लोट कर वे बडे ु ए ।ैं घुटनों के बल पर य ााँ सरक-सरक कर पैरों पर खडा र ना सीखा।
बिपन में ी उसने श्री रामकृष्ण परम िंस जैसे सब सख ु पाए। इसके कारण ी उसे धूल भरे ीरे क लाए। मातभ ृ ूसम की गोदी
में खेल-कूद करके षय का अनुभव ककए।
‘तेरा प्रत्यप
ु कार कभी क्या हमसे होगा’ – कवि इस प्रकार क्यों सोचता है ?
माता-बच्िे, दोनों का ररश्ता पववर ै। अपने बच्िों केसलए की गई भलाई या उपकारों केसलए बदला दे ना मुश्श्कल ै।
उसी तर मने अपनी मातभ
ृ ूसम में र कर जो सुख-सुववधाओिं को भोगा, उसकेसलए प्रत्युपकार करना आसान न ीिं ै। इस
पववर समट्टी में जन्म लेकर, य ााँ के अन्न और जल से बनी ु ई मारे शरीर भी मातभ ृ ूसम की ी ै। मााँ और मातभृ ूसम
अपने बच्िों से कुछ न ीिं िा ते, अतः उन दोनों के द्वारा की गई उपकारों का मूल्य अपनी जान दे कर भी न ीिं िुकाया
जाता।
आस्िादन टिप्पणी:
द्वववेदी युग के प्रततभाशाली कवव ै श्री मैथिलीशरण गप्ु त जी। ‘मातभ
ृ ूसम’ गुप्त जी की प्रससद्ध कववता ै, श्जसमें
उन् ोंने मातभ
ृ सू म का गण
ु गान करके उसके सलए अपने जान भी अवपयत करने का आह्वान करते ै।
मातभृ ूसम का वणयन करते ु ए कवव क ते ैं कक उसकी ररयाली में नीलाकाश सुिंदर वस्र की तर शोसभत ै। सूयय
और ििंद्र मुकुट की तर हदन-रात उसकी शोभा बढाती ै। सागर करधनी ै। य ााँ ब नेवाली नहदयााँ प्रेम का प्रवा ै , फूल-
तारे आभूषण ै। पक्षक्षयााँ स्तुततगीत गाते ैं, शेषफन रूपी ससिं ासन पर तू ववराश्जत ै। बादलें पानी बरसाकर इसका असभषेक
करते ै। वास्तव में तू ईश्वर की सगुण साकार मूततय ै। कवव अपनी जन्मभूसम के इस सुिंदर रूप पर आत्मसमपयण करते ैं।
जन्मभूसम से कवव के बिपन का सिंबिंध व्यक्त करते ु ए कवव क ते ैं कक इसकी धूसल में लोट-लोट कर वे बडे ु ए
।ैं घुटनों के बल पर सरक-सरक कर पैरों पर खडा र ना सीखा। य ााँ र कर बिपन में ी उसने श्री रामकृष्ण परम िंस की
तर सभी सुख पाए। इसके कारण ी वे धूल भरे ीरे क लाए। इस जन्मभूसम की प्यारी गोदी में खेल-कूद करके षय का
अनभ
ु व ककए। ऐसे मातभ
ृ सू म को दे खकर म आनिंद से मग्न ो जाती ै।
आगे कवव क ते ैं जो सुख शािंतत मने भोगा ै, वे सब मातभ
ृ ूसम की दे न ै। तुमसे ककए गए उपकारों का बदला
दे ना मुश्श्कल ै। य दे तेरा ै, तुझसे
ी बनी ु ई ै, तेरे जीव-जल से सनी ु ई ै। मत्ृ यु ोने पर इस तनजीव शरीर तू ी
अपनाएगा। े मातभ
ृ ूसम! तुझमें जन्म लेकर तुझमें पलकर, अिंत में म सब तेरी ी समट्टी में ववलीन ो जाते ैं।
सरल शब्दों में कवव मातभ
ृ ूसम की खूबबयों की ओर आकृष्ट करके उसकेसलए जान अवपयत करने की प्रेरणा देती ै।
1
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

बेिी के नाम..... जिाबी पत्र बहादरू शाह ज़फर


സാരാാംശാം:
1857 ലെ ഒന്നാം സ്വനതന്ത്ര സ്മരലെ പരനജയലെടുെി ന്ത്രിട്ടീഷ് സ്ർക്കനർ ദിെലി യിലെ അവസ്നന മുഗൾ
ചന്ത്രവർെിയനയ രഹനദൂർ ഷന സ്ഫറിലന തടവിെനക്കി റങ്കൂണിലെക്ക് നനടുരടെി. അലേഹെിന്ലറ മരൾ ദിെലിയിൽ
ന്ത്രിട്ടീഷുരനരുലട തടങ്കെിെനയിരുന്ു. രടുെ തടങ്കെിനിടയിെുാം ഇവർക്കിടയിൽ രെിടപനടുരളുണ്ടനയിരുന്ു. റങ്കൂണിലെ
തടവിെിരുന്് ചന്ത്രവർെി മരൾക്കയച്ച മറുപടി രെനണ് ഈ പനഠെിൽ ഉൾലക്കനള്ളിച്ചിരിക്കുന്ത്.

बादशाह का चररत्र पर टिप्पणी।


प्रजा टहतैषी शासक
ब ादरू शा ज़फर हदल्ली के अिंततम मुगल शासक िे। 1857 की स्वतिंरता की प ली लडाई को परास्त करके बिटीश
सरकार ने उन् ें कैदी करके रिं गन
ू भेजा हदया। उनकी बडी बेटी हदल्ली में अिंग्रेज़ों की कैद में िी। ‘बेटी के नाम....’ कैदी में
र कर अपनी बेटी को सलखी गई जवाबी पर ै।
✓ पररिार और प्रजा के प्रतत गहरा प्यार। साथियों पर भरोसा रखनेिाला।
✓ शाांततवप्रय साहसी।
✓ ईश्िर एिां धमण में दृढ़ आस्िा रखनेिाला आदशण वप्रय।
✓ दे शवाससयों के प्रतत प्रेम और सहानभ
ु तू त रखनेवाले। दे श केमलए समवपणत राजा।
✓ प्रजा टहतैषी शासक िे। दे शप्रेमी
✓ अपने दे श के प्रतत आकुल। आदशण सम्राि।
बादशाह के बेिा।
ब ादरू शा ज़फर हदल्ली के अिंततम मुगल शासक िे। 1857 की स्वतिंरता की प ली लडाई को परास्त करके बिटीश
सरकार ने उन् ें कैदी करके रिं गून भेजा हदया। साि उनके बेटा भी िा। उनकी बडी बेटी हदल्ली में अिंग्रज़
े ों की कैद में िी।
‘बेटी के नाम....’ कैदी में र कर अपनी बेटी को सलखी गई जवाबी पर ै।
✓ पररवारवालों के प्रतत स्ने एविं आस्िा। ब न के प्रतत स्ने औप स ानभ
ु ूतत।
✓ आज्ञाकारी बेटा। स्ने सिंपन्न बेटा एविं भाई।
बादशा की डायरी
17.11.1959 मिंगलवार
आज खत समला, खत न ीिं, मेरी प्यारी की आाँसू भरी वाणी! बेटे ने पढकर सन
ु ाया। एक बार न ीिं, दो बार
न ीिं, तीन बार! सािंत्वना न ीिं समला। आाँसूओिं से भीगी आाँखें, कुछ दे र आगे के कुछ न ीिं दे ख सका। कफर बेटे को
भी रोते दे खा।
बेटी की अवस्िा अब कैसे ोगी? एक बार दे खने की इच्छा िी। कफर कैसे? अपने या घरवालों के बारे में
कुछ न ीिं सलखा िा, कफर भी व पिंश्क्तयााँ.....
हदल्लीवाससयों की ालत! मेरे दे श ी पररवार िा। वे लोग मेरेसलए रोती ोगी। य ााँ, अवस्िा भी सभन्न न ीिं
ै। एक बार कफर अपने दे श और दे शवाससयों को दे खने की इच्छा ै।
मैं, य ााँ कैदी में अभी भी श्ज़िंदा र ता ु ाँ। लेककन मेरे सलए.... अपने दे श केसलए....ककतने लोग श ीद ो
गए। दे शवाससयों को अिंग्रेज़ों से कैसे बिाऊाँ? स्वराज्य सरू ज का उदय कब ोगा....। खद ु ा, तब तक मझु े श्ज़िंदा र ने
की शश्क्त दें ।
बेटी की ददयभरी वाणी मैंने बार-बार सुना। जवाब भी सलखा। लेककन कैसे य बेटी तक प ु ाँिाएगा? कफ़न
जैसे इस मकान में र कर शायद य मेरा अिंततम शब्द ोगा। ककसी तरफ़ बेटी तक य प ु ाँिाना ै। ईश्वर ी
रक्षा।

2
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

मेरे भारतिामसयो........... भाषण जिाहरलाल नेहरू


1947 अगस्त 14 की मध्यराबर में भारतीय स्वतिंरता के बाद भारत के प्रिम प्रधानमिं री पिंडडत जवा रलाल ने रू ने
मारा ततरिं गा फ राते ु ए दे श से जो अपील की िी.........
1947 ആഗസ്റ്റ് 14 അർദ്ധരനന്ത്തി ഭനരതെിന് സ്വനതന്ത്രയാം ആദയലെ ഇരയൻ ന്ത്പധനനമന്ത്രിയനയ പണ്ഡിറ്റ് ജവനഹർെനൽ
ലനഹ്റു രനജയലെ അഭിസ്ാംലരനധന ലചയ്തു നടെിയ ന്ത്പസ്ാംഗാം.

भारतिासी प्रततज्ञा ले रहे हैं....


वषों प ले हदया गया विन तनभाने का समय आ गया ै। आज रात बार बजे भारत स्वतिंरता के नई सुब के साि
उठे गा। शोवषत दे श की आत्मा, अपनी बात क नेवाले इस सिंयोग में म सारी मानवता की सेवा केसलए प्रततज्ञा ले र े ैं।
भविष्य की दृष्ष्ि
इतत ास के आरिंभ से भारत ने अपनी अिंत ीन खोज प्रारिं भ की। अच्छे और बुरे समय में भी इस खोज को न ीिं छोडा
और शश्क्त दे नेवाले आदशों को न ीिं भूला। दभ
ु ायग्य के इस युग का अिंत मारे सलए नए अवसरों के खुलने का कदम ै।
इससे भी बडी उपलश्ब्धयााँ आगे ै और म अवसरों को समझकर भववष्य की िुनौततयों को स्वीकार करें ।
भारत का भविष्य
भववष्य में में अपने विन को दो राकर दे श की सेवा करें । भारत की सेवा का तात्पयय ै, लाखों-करोडों पीडडत लोगों
की सेवा करना। में अपने सपनों को साकार करने का प्रयत्न करें ।
सपने...परू े विश्ि केमलए
आज सभी राष्र एक-दस
ू रे से बडी समीपता से जुडे र ने के कारण मारे सपने परू े ववश्व केसलए भी ै। शािंतत,
स्वतिंरता, समद्
ृ थध और ववनाश अववभाज्य ै। स्वतिंर भारत म ान ै, ज ााँ उसके सारे बच्िे र सकें।

सूरीनाम में पहला टदन सफ़रनामा टहमाांशु जोशी


श्री ह मािंशु जोशी का जन्म 1935 को उत्तराखिंड में ु आ। वे ब ु मुखी प्रततभावान रिनाकार ै। ह द
िं ी के सभी
साह श्त्यक ववधाओिं में उन् ोंने अपनी लेखनी िलाई। याराएाँ, नोवे: सरू ज िमके आधी रात आहद उनके प्रमुख यारा वत्त ृ ािंत ै।
സ്ുരിനനമിലെ ആദയ ദിനാം എന് യനന്ത്തന വിവരണെിെൂലട ഹിമനാംശു ലജനഷി, ഏഴനാം വിശവ ഹിന്ദി സ്ലേളനെിൽ
പലങ്കടുക്കുവനൻ സ്ുരിനനമിൽ ലപനയലെനഴുണ്ടനയ അനുഭവങ്ങൾ വർണ്ണിച്ചിരിക്കുന്ു.

कौतूहल का अहसास
अतीत का पढा ु आ भम
ू ध्यरे खीय प्रदे शों की गरमी, घने वन, ग री ररयाली आहद आज प्रत्यक्ष दे ख र े ै। ववमान
धरती की ओर झुकते समय याबरयों का कौतू ल भी बढता र ा।
टहांदी भाषा: सरू ीनाम में
थगरसमहटया श्रसमक अपने साि ‘ नुमानिालीसा’ तिा ‘रामिररतमानस’ धमयग्रिंिों के रूप में ले गए ह द
िं ी भाषा को तूफान
के बीि दीये की तर जलाया रखा और आज सालों बाद व नए वैश्श्वक रूप में उपश्स्ित ै। अब ह द
िं ी शासकों एविं
राष्राध्यक्षों की भी भाषा बन गई ै। सिंसार के एक सौ बीस देशों में अब ह द
िं ी की उपश्स्ितत ै।
टहांदी महापिण की सातिीां यात्रा
ववश्व ह द
िं ी सम्मेलनों की य सातवीिं यारा ‘ह द
िं ी म ापवय’, एक सौ तीस साल प ले आये प्रिम भारतीय श्रसमक की
स्मतृ त में आयोश्जत ै। ह द
िं ी लेखक, प्रिारक, प्राध्यापक एविं सेवी य ााँ उपश्स्ित ै। सवयर भारतीय- ी-भारतीय दे ख र ने के
कारण य एक भारतीय श र जैसा प्रतीत ोती ै।
सूरीनामी टहांदी
6 जनू को सम्मेलन का शभ ु ारिंभ करते ु ए सरू ीनाम के राष्रपतत ने अपने उद्बोधन में ह द
िं ी भाषा के प्रिार-प्रसार के
बारे में क ा। ह द
िं ी कफल्म, सिंगीत और िलथिर के प्रतत सूरीनामी लोगों का भी ग रा लगाव ै।
भरत-ममलाप
सरू ीनामी भारतविंसशयों का उत्सा दे खकर लेखक को ऐसा लगा कक एक सौ तीस साल से बबछुडे बिंधु आज पन
ु ः समल
गए।

3
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

सूरदास के पद
सगुण भश्क्तधारा के सवयश्रेष्ठ कृष्णभक्त कवव िे सूरदास। उनका जन्म 15 वीिं सदी के अिंततम दशकों में उत्तरप्रदे श
में ु आ। सूरदास का वात्सल्य एविं श्रिंग
ृ ार रस वणयन अद्ववतीय ै। सरू सागर आपकी प्रससद्ध रिना ै।
मेरे लाल: श्रीकृष्ण का बाललीला सिंबिंथधत पद। बालक कृष्ण, यशोदा, निंद में केंहद्रत ै।
✓ वात्सल्य भाव।
✓ पुर के मो क िे रे और दथु धए दााँतों को दे खकर यशोदा अपने आपको भल
ू जाती ै।
✓ अपने पतत निंद को बल
ु ाकर पुर का सुिंदर रूप दे खने तो क ते ैं।
✓ सूरदास क ते ैं कक ककलकारी करनेवाले कृष्ण को दे खकर ऐसा लगता ै, मानो कमल पर बबजली जम गई ो।
भािािण।
सूरदास कृष्ण भश्क्तशाखा के प्रमुख कवव ै। उनकी प्रमुख रिना सरू सागर की बाललीलाएाँ वात्सल्य वणयन का उत्तम
उदा रण ै। प्रस्तुत पद कृष्ण के बाललीला से सिंबिंथधत ै। बालक कृष्ण के दध
ू के दाँ ततयााँ दे खकर माता-वपता अत्यथधक खुश
ु ए।
अपने पुर के मो क िे रा दे खकर यशोदा प्रसन्न ु ई। पुर के दथु धए दााँतों को दे खते ी यशोदा मााँ अपने आप को
भूल जाती ै। अपने पतत निंद को बुलाकर पुर का सुिंदर सुखदाई रूप दे खने को क ते ।ैं वे क ते ैं, पुर के छोटे -छोटे दथु धए
दााँतों को दे खना नयनों केसलए सुखदायक ै। पत्नी की बातें सुनकर निंद प्रसन्नतापव
ू यक अिंदर आए और पुर के दथु धए दााँतों
को दे खकर उनके मुख और थितवन खुशी से भर गए। सूरदास क ते ैं कक ककलकारी करनेवाला कृष्ण को दे खकर ऐसा
लगता ै, मानो कमल पर बबजली जम गई ो।
य पद वात्सल्य रस का उत्तम उदा रण ै। कृष्ण का मुख कमल के समान ै और सफ़ेद दााँत बबजली के समान ै।
बालक कृष्ण का सौंदयय अद्ववतीय ै। उनकी िेष्टाएाँ हृदय ारी तिा अद्ववतीय ै।
हे कान्ह....
✓ प्रेम और श्रिंग
ृ ार रस का पद।
✓ मुरली की आवाज़ में गोवपकाएाँ िककत ोते ।ैं सब कामकाज भल
ू जाते ै।
✓ कुल मयायदा, वेद की आज्ञा सबकुछ न ीिं डरी।
✓ गोवपकाएाँ रूपी नहदयााँ कृष्ण रूपी सागर में जा समतली ै।
✓ सरू दास क ते ैं कक ितरु कृष्ण ने गोवपकाओिं के मन को र सलया।
भािािण।
सूरदास कृष्ण भश्क्तशाखा के प्रमुख कवव ै। उनकी प्रमुख रिना सरू सागर के कृष्ण और गोवपकाओिं के प्रेम का सरस
वणयन अद्ववतीय ै। सरू सागर के रासलीला से सिंबिंथधत पद ै, ‘ े कान् ’।
सूरदास क ते ैं कक जब मरु ली की मीठी आवाज़ सुनाई पडी तब सारी गोवपकाएाँ िककत ो गई और सब कामकाज
भूल गई। कुल की मयायदा, वेदों की आज्ञा आहद सबकुछ से वे बबलकुल न ीिं डरीिं। श्जस प्रकार सागर में नहदयााँ जाकर समलती
ै, उसी प्रकार गोवपकाएाँ रूपी नहदयााँ अपने वप्रयतम कृष्ण रूपी समुद्र से समलने केसलए वन की ओर तनकल पडी। गोवपकाएाँ,
पुर और पतत का प्यार, गुरुजनों का भय, लज्जा आहद ककसी भी बात की परवा न ीिं की। सरू दास क ते ैं कक ितुर एविं
सिंद
ु र श्रीकृष्ण ने गोवपकाओिं के मन को र सलया।
सूरदास इस पद में कृष्ण और गोवपकाओिं के प्रेम का सरस वणयन ककया ै।

4
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

दोस्ती फफल्मी गीत शोले:


1975 में तनसमयत ‘शोले’ ह द
िं ी के ब ु िथियत कफल्मों में एक ै। मब
ुिं ई के समनवाय ससनेमा घर में लगातार पााँि साल
प्रदसशयत इस कफल्म के सुिंदर गीत ‘ये दोस्ती’ अच्छे दोस्त और दोस्ती के बारे में बताते ै।
आस्िादन टिप्पणी।
श्री रमेश ससप्पी के तनदे शन में बनी ‘शोले’ ह द
िं ी की सवयकालीन बे तरीन कफल्मों में एक ै। इस कफल्म का लोकवप्रय
गीत ै ‘ये दोस्ती’। आनिंद बख्शी द्वारा रथित इस गीत के सिंगीतकार आर.डी.बमयन ै। कफल्म के दो मुख्य पार वीरू-जय
केसलए ककशोरकुमार एविं मन्नाडे ने आवाज़ दी ै। वीरू और जय एक बैक में सफ़र करते ु ए य गीत गाते ै।
‘ये दोस्ती’ गीत में सच्िी दोस्ती के म त्व का वणयन ककया ै। गीत में क ा ैं, मत्ृ यु के सामने भी दोस्ती का ववजय
ोती ै। दोस्तों का दख
ु , जय-पराजय सब एक ी ै। दोस्ती को बनाए रखने केसलए जान पर खेलने केसलए भी तैयार ो
जाते ै। दोस्ती में एक दस
ू रे केसलए मर जाने या दश्ु मनी मोल लेने को भी तैयार ो जाती ै। लोगों की नज़र में समर दो ै,
लेककन वे मन से एक ी ै।
गीत के र एक पिंश्क्तयााँ साियक ै। सच्िी दोस्ती कैसी ोनी िाह ए, य गीत दशायते ै। एक कफल्मी गीत में जो खबू बयााँ
ोनी िाह ए, वे सब इस गीत में म ज़रूर दे ख सकते ैं। गीत के माधुयय के कारण ह द
िं ी कफल्मी जगत में य एक लोकवप्रय
गीत बन गया ै।
ज़मीन एक स्लेि का नाम है आत्मकिाांश एकाांत श्रीिास्ति
श्री एकािंत श्रीवास्तव का जन्म 1964 को छत्तीसगढ के छूटा गााँव में ु आ। वे ह द
िं ी के जाने-माने लेखक ैं। मेरे हदन
मेरे वषय उनकी आत्मरिना ै। वे केदार सम्मान से पुरस्कृत ै।
➢ ‘ज़मीन एक स्लेट का नाम ै‘ श्रीवास्तव जी की आत्मकिा का अिंश ै, श्जसमें अपने जीवन की एक अववस्मरणीय
घटना मारे सामने सच्िाई से आाँकन करने का सफल प्रयास ककया ै।
➢ ഏരനര് ന്ത്ശീവനസ്തവിന്ലറ ആത്മരഥയുലട ഒരു ഭനഗമനയ ‘ഭൂമി ഒരു ലേറ്റിന്ലറ ലപരനണ്’, മരളുലട
വിവനഹെിനു ലവണ്ടി ഭൂമി വിൽെന നടെുന് ഒരു പിതനവിന്ലറ വിവശത വർണ്ണിക്കുന്ു. ഹൃദയാം
പറിലച്ചടുെു രളയുന്തു ലപനലെയനണ് അലേഹെിന് ഭൂമിയുലട ലവർപനടിൽ ലതനന്ുന്ത്.
രഥയിൽ രണ്ട് ലവർപനടുരൾ - മരളുലടയുാം ഭൂമിയുലടയുാം, വിവരിക്കുന്ു.

दो विदाइयााँ: बेिी की और ज़मीन की,


प्रमख
ु पात्र: लेखक (मैं), वपताजी, दीदी
✓ लेखक की ब न की शादी केसलए ज़मीन बेिने में वववश वपता की पीडा का वणयन ुआ ै।
✓ वपता के सलए व ज़मीन अपने हृदय का टुक़डा िा।
✓ रश्जस्री के पव
ू य वपता को अपनी ज़मीन दे खने की इच्छा ोती ै।
✓ रश्जस्री के बाद उसको समट्टी की गीली सुगिंध याद आती ै।
✓ उसे लगता ै कक इस व्यापारी जगत में व काटकर थगरे ु ए पेड की तर मूल्य ीन ो गया ै।
✓ ज़मीन के नाम पर व अपने सपनों से भी दो आाँखें बेि र े ैं।
िररर थिरण:
1. दीदी:
एकािंत श्रीवास्तव का आत्मकिािंश ‘ज़मीन एक स्लेट का नाम ै’ के प्रमुख पार ै ‘दीदी’। व लेखक के
ब न ै। य आत्मकिािंश दीदी की शादी केसलए और उसके सलए ज़मीन बेिने में वववश वपताजी के दःु ख की क ानी
बताते ै।
✓ समझदार बेटी → व अपने वपताजी और भाई का दःु ख समझती ै।
✓ पररवारवालों से प्यार रखनेवाले
✓ आत्मकिािंश में एक प्यारी बेटी और ब न का पररिय कराती ै, जो अपने वपताजी और भाई के दःु ख में
रोती ै।

5
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

2. लेखक:
‘ज़मीन एक स्लेट का अिंश ै’ एकािंत श्रीवास्तव का आत्मकिािंश ैं, श्जसमें अपनी ब न की शादी और उससे
सिंबिंथधत कुछ अववस्मरणीय घटना का वणयन ु आ ै।
✓ समझदार बेटा → वपताजी की इच्छा समझकर व उसके साि खेत िलते ैं।
✓ आज्ञाकारी बेटा → जीवन की ववषमता में व अपने वपताजी के ाि पकडते ै।
✓ प्यारी भाई
✓ कभी भी व अपने वपताजी को अकेले न ीिं छोडते ै। साि ी अपनी ब न केसलए व प्यारी भाई भी ै।
3. वपताजी:
‘ज़मीन एक स्लेट का अिंश ै’ एकािंत श्रीवास्तव का आत्मकिािंश ैं, श्जसमें अपनी ब न की शादी और उससे
सिंबिंथधत कुछ अववस्मरणीय घटना का वणयन ु आ ै। लेखक की ब न की शादी ोनेवाली ै। खिय केसलए वपताजी
कुछ ज़ार रुपए भववष्य तनथध से लाए िे, कफर भी खिय ज़्यादा अथधक िा। लेखक के वपताजी अपने ज़मीन बेिते
ै।
✓ ज़मीन से वपताजी का ग रा लगाव।
✓ अपनी बेटी और पररवारवालों के प्रतत प्यार और ममता रखनेवाला।
✓ धैययशाली → व अपना दःु ख खुद स ते ै।
✓ आत्मकिािंश में एक प्यारी वपताजी का पररिय कराते ै, श्जसको अपने पररिारिालों से गहरा प्रेम और
ममता ै, साि ी अपनी ज़मीन के प्रतत ग रा जुडाव भी ै।
➢ बेटी की डायरी।
1.10. 2021 सोमवार
शादी के हदन आगे ै। केवल दो-िार हदन। अब मन सिंघषय से भरा िा। वववा मिंडप, तनमिंरण आहद
प्रारिं सभक तैयाररयााँ ो िुकी िी। मे मानों से भरा घर।
ववदाई की वेला में मेरे भाई और माता-वपता के ग रे प्यार का अनभ
ु व करती ै। ााँ, मैं इस घर की प्यारी
बबहटया िा। अब बबछुडन का समय आ गई ै। आज सबेरे ज़मीन की रश्जस्री केसलए वपताजी और भाई गए।
वपछले कुछ हदनों से वपताजी दःु खी िा। वववा के खिय केसलए ज़मीन बेिने में वववश ो गया ै। क्या आज
की ज़माने में लडककयों अपने घर केसलए बोझ ै? ााँ, न ीिं तो वपताजी का ज़मीन! वास्तव में लडकी अपने
पररवार केसलए बोझ ी ै। इस अवस्िा से मुश्क्त कैसे पा सकें?
दो-िार हदनों के बाद मेरी शादी। एक नए घर में......। व ााँ पतत के माता-वपता और ब न ै। व ााँ के
जीवन कैसे ोगी? मालूम न ीिं। ईश्वर ी रक्षा।

सपने का भी हक नहीां कविता डॉ जे बाबू


डॉ जे बाबू का जन्म 1952 को केरल के ततरुवनिंतपरु म में ु आ। वे ह द
िं ीतर प्रदे शों के ह द
िं ी साह त्यकारों में प्रमुख ै।
मक्
ु तधारा, उलझन आहद उनकी कववता सिंकलन ै। ह द िं ीतर भाषी लेखक परु स्कार से वे सम्मातनत िे।
➢ डॉ जे बाबू ‘सपने का भी क न ीिं’ आपकी प्रससद्ध कववता ै, श्जसमें एक गरीब मज़दरू रन का थिर खीिंिा ै, जो
अपने एक कमरे वाले झोंपडी में र कर म ल का सपना दे खती ै। कवव य ााँ एक कठोर सामाश्जक यिािय का थिर
खीिंिने का प्रयास की गई
ै कक गरीबों को सपने दे खने का भी अथधकार न ीिं ै।
➢ ല ന. ലജ രനരു എഴുതിയ ‘സ്വപ്നെിനു ലപനെുാം അധിരനരമിെല’ എന് രവിത ദരിന്ത്ദയനയ
ലതനഴിെനളി സ്ന്ത്തീയുലട ചിന്ത്താം വരച്ചു രനട്ടുന്ു. അവർ ഒറ്റമുറി രുടിെിൽ രുട്ടിരൾ ഉറങ്ങിക്കഴിഞ്ഞ്
ലരനട്ടനരാം സ്വപ്നാം രനണുന്ു. സ്വപ്നെിലനനടുവിൽ രനങ്കിലെ ലനനട്ടിസ് ഒരു ഭീക്ഷണിലയലന്നണാം
സ്വപ്നെിലെലക്കെുന്ു. ദരിന്ത്ദർക്ക് സ്വപ്നാം രനണനൻ ലപനെുാം അധിരനരമിെല എന് സ്നമൂഹിര
യനഥനർത്ഥ്യാം ഈ രവിതയിെൂലട രവി വരച്ചു രനട്ടുന്ു.
✓ गरीब मज़दरू रन → एक कमरेवाली झोंपडी में र कर ववस्तत
ृ म ल का सपना दे खता ै।

6
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

✓ म ल में खाने-पीने-सोने के अलग-अलग कमरे ैं, बैठक, पूजा का कमरा, रसोई आहद ै।
✓ नीिंद में बैंक की नोटीस आकर धमकती ै।
✓ आगे सपना दे खना भी उसके सलए डरावनी बनती ै।
आस्वादन हटप्पणी।
ह द
िं ीतर प्रदे शों की ह द
िं ी साह त्यकारों में प्रमुख ै डॉ जे बाबू। ‘सपने का भी क न ीिं’ आपकी प्रससद्ध कववता ै,
श्जसमें एक गरीब मज़दरू रन का थिर खीिंिने का प्रयास की गई ै।
गरीब मज़दरू रन अपने बच्िों के साि एक कमरेवाली झोंपडी में र ते ै। रात में बच्िों के सो जाने पर व अपने मन
रूपी दीवार पर एक ववशाल घर का थिर खीिंिती ै, जो उसका स्वप्न भवन िा।
घर में भोजन खाने केसलए और सोने केसलए अलग-अलग कमरे ै। रसोई बैठक के तनकट ै। पूजा का कमरा ऊपरी
मिंश्ज़ल में रख हदए।
कााँक्रीट की छत के नीिे पीले रिं ग के दीवारों के मध्य में खखडकी-दरवाज़े रख हदए। सिंगमरमर िमकनेवाली ज़मीन पर
मेज़-कुरससयााँ रख हदए। टी.वी, ोम थियेटर आहद बैठक की शोभा बढाते ै। ग्रानाइट िमकनेवाली रसोई में किड़्ज, माइक्रोवेव
आहद रखने पर शोभा और बढते ै।
मस री की सरु क्षा में सरू ज की धप
ू फैलने तक व सो पडी। जाग उठने के पव
ू य ी उसने बैंक का नोटीस दे खा, जो
एक धमकी ै। इससलए सपना दे खना भी उसके सलए डरावना बन जाता ै।
‘सपने का भी क न ीिं’ एक कठोर सत्य का पदायफाश करता ै कक उस मज़दरू रन जैसे गरीब लोगों को सपने दे खने
का भी अथधकार न ीिं ै।

मुरकी उफण बुलाकी कहानी अमत


ृ ा प्रीतम
श्रीमती अमत
ृ ा प्रीतम का जन्म 1919 को पिंजाब के गज ु रािंवाला में ु आ। वे पिंजाबी और ह द
िं ी के ववख्यात लेखखका
ै। ‘क ातनयों के आाँगन में’ उनकी प्रससद्ध क ानी सिंग्र ै। 1982 के ज्ञानपीठ से वे सम्मातनत ु ए। 2005 को उनकी मत्ृ यु
ु ई।
➢ ‘मरु की उफय बल
ु ाकी’ एक तनरालिंब स्री की क ानी ै। बिपन में ी उसकी माताजी की मत्ृ यु ु ई ै। कफर िािा के
य ााँ जीवन बबताया। बार वषय की उम्र में वे राजविंती के घर प ु ाँिी। वववा के छ म ीने बाद पतत द्वारा उपेक्षक्षत
मुरकी कफर राजविंती के घर प ु ाँिता ै। स्रीत्व की रक्षा केसलए श्ज़िंदगी भर तडपती र नेवाली ग्रामीण नारी की
सिंघषयभरी क ानी य ााँ खीिंिा ै।
➢ ‘മുർക്കി അലെലങ്കിൽ രുെനരി’ ഒരു നിരനൊംരയനയ സ്ന്ത്തീയുലട രഥ പറയുന്ു. രുട്ടിക്കനെെു തലന് അവരുലട
അേ മരിച്ചു ലപനയിരുന്ു. പിന്ീട് അേനവന്ലറ വീട്ടിെനയിരുന്ു തനമസ്ിച്ചിരുന്ത്. പന്ത്രണ്ട് വയസ്സുള്ളലെനൾ
രനജവരിയുലട വീട്ടിലെെുന്ു. വിവനഹ ലശഷാം ആറു മനസ്െിനുള്ളിൽ ഭർെനവിനനൽ ഉലപക്ഷിക്കലെട്ട മുർക്കി
വീണ്ടുാം രനജവരിയുലട വീട്ടിലെെുന്ു. സ്ന്ത്തീതവാം രക്ഷിക്കുവനൻ ജീവിതാം മുഴുവനുാം അെഞ്ഞുതിരിയുന് ഒരു
ന്ത്ഗനമീണയുവതിയുലട സ്ാംഘർഷാം നിറഞ്ഞ രഥയനണിത്.

प्रमुख पात्र: मरु की (बुलाकी), कुमार, कुमार की मााँ (राजविंती मााँ)


अन्य पात्र: मुरकी के वपता, मुरकी के पतत, दयालु व्यश्क्त आहद
✓ राजविंती के घर के परु ानी नौकर की बेटी।
✓ मरु की और बल
ु ाकी नाम राजविंती मााँ ने रखा।
✓ जब वपताजी शादी पक्की, तो मरु की एक श री लडके के साि भाग गई।
✓ कुछ म ीने ककसी श र में र ी।
✓ कफर पतत ने उसके आाँिल से घर की िाबी खोलकर उसे सराय में छोड हदया।
✓ ककसी दयालु व्यश्क्त से रा का भाडा लेकर व राजविंती के य ााँ प ु ाँिा।
✓ राजविंती उसे कोठरी की िाबी हदया।
✓ बाद में मरु की की मरी को न लाले वक्त राजविंती को उस कोठरी की िाबी समला।

7
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

चररत्र थचत्रण:
1. मुरकी:
अमत
ृ ा प्रीतम की क ानी ‘मुरकी उफय बुलाकी’ के प्रमुख पार ै ‘मुरकी’। एक मात ृ ीन लडकी। अपनी
बेटी की सरु क्षा केसलए उसके वपताजी ने उसे राजविंती मााँ के य ााँ ले आया। उसका असली नाम ककसी को न जानते
िे, मुरकी और बल
ु ाकी नाम राजविंती मााँ ने रखे िे।
✓ सा सी और धैययशाली → दज
ू े के साि बात पक्की तो व रात ी रात प्रेमी से भाग जाते ैं।
✓ ईमानदारी
✓ समझदारी → घर बनाने केसलए, अपने ािों में जो कुछ िा, उसे दे ते िे।
✓ आत्मासभमानी → उपेक्षक्षता ोकर, पतत को ढाँू ढने केसलए तैयार न ीिं ोते ै।
✓ क ानी में एक मात ृ ीन लडकी को दशायते ै जो एक घर में बच्िे के दे खभाल करते ै। उस घर में सबके
वप्रय िा व मात ृ ीन लडकी। राजविंती मााँ उसके सलए मााँ जैसी िी।
2. राजिांती मााँ:
अमत
ृ ा प्रीतम की प्रससद्ध क ानी ‘मुरकी उफय बल
ु ाकी’ का प्रमुख पार ै ‘राजविंती’।
✓ स्ने मयी मााँ।
✓ दया, ममता आहद मात-ृ स ज गुणों की मूततय।
✓ परोपकारी → अपने परु ाना नौकर की मात ृ ीन बेटी को आश्रय एविं मााँ का प्यार हदए।
✓ आश्रयदाता → उपेक्षक्षत ोकर लौटते तो मरु की को आश्रय दे ते ।ैं
✓ प्यार, ममता, करुणा और सहानुभूतत भरे एक मााँ को म य ााँ दे ख सकते ैं। लडककयों को असभशाप मानने
वाले समाज में घर के परु ाना नौकर की मात ृ ीन बेटी को आश्रय एविं मााँ का प्यार हदए।
3. कुमार:
अमत
ृ ा प्रीतम की प्रससद्ध क ानी ‘मुरकी उफय बल
ु ाकी’ का प्रमुख पार ै ‘कुमार’।
✓ आज्ञाकारी बेटा, दयाल,ु एविं प्यारी।
✓ राजविंती का बेटा कुमार समझदार ै, प्यारे ै, आज्ञाकारी ै, साि ी सहजीवियों के प्रतत सहानभ
ु ूतत
रखनेिाले भी िे।
बुलाकी का आत्मकिाांश।
दस
ू रा जन्म
माताजी की मत्ृ यु के बाद कुछ हदन िािा के घर में र ा। बार वषय की आयु में मझ
ु े य ााँ आश्रय समला, साि ी
एक मााँ को भी समला। खाने केसलए भोजन और सोने केसलए एक कमरे समला। छोटे कुमार को खखलाकर िार-पााँि वषय र ा।
मेरे जीवन के खुशी भरे हदन। य ााँ के मााँ ने मुझे एक बेटी जैसे प्यार हदया।
युवती ोने पर वपताजी ने शादी की तैयाररयााँ शुरु की। गााँव के एक आदमी के साि, उसका दस
ू रा वववा िा। प ली
पत्नी मर िुकी िी। उसी रात मैंने एक श री लडके के साि भाग गया।
कुछ म ीने खश
ु ी से र ा। घर बनाया। मेरे सारे सिंपवत्त, जो राजविंती मााँ ने हदया िा, लेकर नए घर केसलए वस्तए
ु ाँ
खरीदी। इतने में कई लोगों ने मुझसे क ा कक ककसी दस
ू री स्री के साि मेरे पतत को कई बार दे खा। लेककन मुझे ववश्वास
न ीिं आया। दश रा के अवसर िा, एक हदन मेला दे खने केसलए गया। श र में घूमते र ा, सडक का खाना खब
ू खाया, कई
िीज़ें खरीदी। इतने में रात ो गया। गााँव जाने केसलए गाडी न ीिं िा। इससलए व ााँ एक सराय में ठ रा।
सबेरे उठकर मैं िककत ु ई, अकेली िी। पतत ने मुझे व ााँ छोडकर क ीिं गया। व मेरे पल्ले से घर का िाबी भी ले
सलया। मैं अकेली, उसी सराय में। कफर एक दयालु व्यश्क्त की मदद से य ााँ आ प ु ाँिा। य ााँ राजविंती मााँ ने मुझे आश्रय हदए,
मेरे पुराने कमरे की िाबी भी हदए। उसने वायदा ककया कक कोई भी मुझसे िाबी न ीिं छीनेगा। य ााँ आश्रय न ीिं समला तो
क्या ोगी मेरी श्स्ितत? सोिने की शश्क्त भी न ीिं ै।

8
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

हाइकू कविता डॉ भगितशरण अग्रिाल


डॉ भगवतशरण अग्रवाल का जन्म 1930 को उत्तरप्रदे श के बरे ली में ु आ। उन् ोंने ह द
िं ी काव्य जगत ् में ाइकू को
एक अलग प िान हदया। ‘इिंद्रधनुष’ उनका प्रमुख ाइकू सिंग्र ै।
हाइकू 1: हाइकू का मूलभाि: मााँ की ममता अतल
ु नीय ै।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में मााँ के प्यार के बारे में क ा गया ै।
आकाश को गुाँजाती ु ई भीषण आाँधी आई। प्रकृतत के इस प्रकोप में बडे-बडे पेड नीिे थगर पडे। उसके साि वक्ष ृ ों के
ट तनयों से पक्षक्षयों का नीड भी नीिे थगर पडा। नीडों से थगरे छोटी-छोटी पक्षक्षयों को छोडकर उनके मााँ भाग न ीिं जाती। व
उनके पास माँडराती र ती ै।
मााँ का प्यार अतुल्य ै। ककसी ववपवत्त में भी व अपने बच्िों को न ीिं छोडता ै।
हाइकू 2: हाइकू का मूलभाि: ववर की अस नीय ै।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में ववर की पीडा के बारे में क ा गया ै।
भाद्रपद के म ीने में सारे प्रकृतत शोसभत र ते ै। सब क ीिं आनिंद और खश
ु ी फैलती ै। लेककन ववरह णी के जीवन
सूखा आाँगन जैसा ै अिायत पतत ववर में उनका जीवन आ ों और पीडाओिं से भरा र ता ै। पतत ववर में सख
ु भरे मौसम
में भी उनके मन सूखा-रूखा र ता ै। अतः ववर की पीडा ददयनाक ै।
हाइकू 3: हाइकू का मल
ू भाि: पररवतयन प्रकृतत तनयम ै, सबको उसे स्वीकारना पडेगा।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में पररवतयन के बारे में क ा गया ै।
र व्यश्क्त बुढापा की अवस्िा को अपना दश्ु मन मानते ैं। लेककन म माने या न माने बुढापा बबना बुलाए मे मान
की तर मारे जीवन में आते ै। पररवतयन प्रकृतत तनयम ै। रे क को उसे स्वीकारना पडेगा।
हाइकू 4: हाइकू का मल
ू भाि: वषाय अिायत बाररश का म त्व।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में वषाय के म त्व के बारे में क ा गया ै।
वषाय जीवनदाता ै। कहठन प्रयत्न करके खेतों में नए जीवन की कववताएाँ रिनेवाला या बोनेवाला ककसान के कारण
वषाय धन्य ो जाती ै। प्रेमी-प्रेसमका के मन में यादें मेशा रा र ता ै।
हाइकू 5: हाइकू का मूलभाि: प्रेम कभी न ीिं मरु झाता ै।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में प्रेम के बारे में क ा गया ै।
प्रेम कभी न ीिं मरु झाता ै। सिंयोग के क्षण में जो वस्तए
ु ाँ प्रेमी-प्रेसमका को सख
ु एविं खश
ु ी प्रदान करती ै, वे ववर के
अवसर में अपने सुखद क्षण की मधुर यादें हदलाती ै।
हाइकू 6: हाइकू का मूलभाि: वेदना मन को पववर बनाती ै। दस
ू रों की वेदना का प िान मानवता ै।
भािािण:
डॉ भगवतशरण अग्रवाल की इस ाइकू में मावता के प िान बारे में क ा गया ै।
वेदना मन को पववर बनाती ै। श्जसने अपने जीवन में ददय का अनभ
ु व न ीिं ककया ै उसे आाँसू का मल्
ू य न ीिं
जानता। वेदना के कारण खश
ु ी और प्यार का म त्व बढता ै। जो इसे प िानते न ीिं, उसके सामने आाँसू भी ओस के समान
ै अिायत आाँसू का मूल्य न ीिं ै।

9
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

कुमुद फूल बेचनेिाली लड़की कविता प्रो. ओ एन िी कुरुप


अनुिादक: ड़ॉ तांकमणण अम्मा
मलयालम के लोकवप्रय कवव श्री ओ एन वी कुरुप का जन्म 1931 को केरल के कोल्लम में ु आ िा।
दाह क्कुन्न पानपारिं, भूसमक्कु ओरु िरमगीतिं आहद उनके प्रससद्ध कववता सिंग्र ै। उनको 2007 के ज्ञानपीठ
परु स्कार समला ै।
ड़ॉ तांकमणण अम्मा:
डॉ तिंकमखण अम्मा का जन्म 1950 को ततरुवनिंतपरु म में ु आ िा। गोरयान, स्वयिंवर, लीला आहद उनकी
अनहू दत काव्य रिनाएाँ ै। वे रा ु ल सािंकृत्यायन परु स्कार से सम्मातनत ै।
कविता के बारे में:
✓ परु ाना दे वालय के पास के कुमद
ु सरोवर।
✓ पूजाद्रव्य बेिनेवाले दल।
✓ इष्टदे व का इष्ट नैवेद्य़ श्वेत कुमुज फूल।
✓ कुमुद फूल की तुलना मत
ृ जल सााँप से।
✓ फूल बेिनेवाली छोटी लडकी।
✓ दो सुरम्य कोमल रूप → फूल और लडकी का मुखडा।
✓ फूल का दाम लडकी के ािों में रखकर कवव आगे बढता ै।

आस्िादन टिप्पणी:
प्रो ओ एन वी कुरुप मलयालम के लोकवप्रय कवव ै। उनकी मलयालम कववता का अनुवाद ह द
िं ी के प्रससद्ध
अनुवादक श्रीमती एस तिंकमणी अम्मा ने ‘कुमुद फूल बेिनेवाली लडकी’ नाम से इसका ह द
िं ी में ककया।
एक परु ाना दे वालय के पास एक कुमद
ु सरोवर ै। व ााँ के श्वेत रिं ग का कुमद
ु फूल, दे व का इष्ट नैवेद्य ै। मिंहदर के
पास फूल बेिनेवाले अनेक लोग ै। सबके ािों में कुमद
ु का फूल ै, जो मत
ृ जल-सााँप की तर हदखाई पडते ै। व ााँ
आनेवाले भक्तों से फूल बेिनेवाले लोग अपने ाि से फूल खरीदने की प्राियना करते ै।
एक छोटी लडकी कवव के पास आकर फूल बढाते ै। उसकी मरु झाया ु आ नन् ी मुख दे खकर कवव का मन द्रववत
ोता ै। उसने एक छोटा ससक्का, फूल के दाम के रूप में हदया। व फूल औऱ लडकी का मुखडा, दोनों उसे सिंदु र लगता ै ।
कवव फूल न ीिं स्वीकारते ै, क ते ै - ‘ े फूल, तू इस छोटी ब न केसलए अन्न ै, इससे बढकर कोई भलाई न ीिं ै। नैवेद्य
के रूप में तुझे दे ने से मुझे क्या समलेगा?’
खाली ाि से कवव आगे िलते ै। ‘मेरे ाि से.......’ दीन स्वर कवव के पीछे धीमी ो जाती ै।
कवव ने य ााँ फूल बेिनेवाली गरीब लडकी की बेबसी का थिरण ककया ै। लडकी की ालत उसे दब
ु ारा सोिने में
वववश करता ै। फूल का पैसा दे कर आगे बढानेवाला कवव सोिते ैं कक उस भूखी एविं गरीब लडकी की भूख समटाने से
बढकर अन्य पुण्य काम न ीिं ै। फूल का पैसा दे कर आगे बढानेवाला कवव मानवता का प्रततरूप ै।
പഴലയനരു ലദവനെയെിനരിരിലെനരു ആമ്പൽക്കുളമുണ്ട്. അവിലടയുള്ള ലവളുെ ആമ്പൽപൂക്കളനണ് ലദവനുള്ള
ഇഷ്ടനനലവദയാം. ലദവനെയെിനരിരിൽ പൂജനന്ത്ദവയങ്ങൾ വിൽക്കുന് നിരവധി ആളുരളുമുണ്ട്. അവരുലട നരരളിൽ ചെ
ജെസ്ർൊം ലപനലെ നീണ്ട തണ്ടിനരിരിൽ തൂങ്ങിക്കിടക്കുന് ലവളുെ ആമ്പൽപൂക്കളുമുണ്ട്. അവർ ഭക്തലരനട് തങ്ങളുലട
നരയ്യിൽ നിന്ുാം പൂക്കൾ വനങ്ങുവനൻ യനചിക്കുന്ു.
രവിയുലട അരിരിലെക്ക് ഒരു ലചറിയ രുട്ടി വന്് പൂക്കൾ നീട്ടി. അവളുലട വനടിയ മുഖാം രണ്ട് രവിയുലട മനസ്സ്
ലവദനിച്ചു. അലേഹാം അവൾക്ക് പൂവിനുള്ള വിെയനയി ഒരു നനണയാം ലരനടുെു. പൂവുാം, ആ ലപൺക്കുട്ടിയുലട മുഖവുാം
അലേഹെിന് സ്ുന്ദരമനയി ലതനന്ി. രവി പറയുന്ു – ‘പുഷ്പലമ. നീ ഈ ലരനച്ചു സ്ലഹനദരിയ്ക്കുള്ള അന്മനണ്, ഇതിെുാം
വെിയ പുണയമിെല. നനലവദയമനയി നിലന് ലരനടുെനൽ എനിക്ക് എരനണ് െഭിക്കുന്ത്?’
ശൂനയമനയ നരരളുമനയി രവി മുലന്നട്ടു ലപനരുന്ു. പുറരിെനയി ‘എൻലറ നരയ്യിൽ നിന്്....’ എന് ശബ്ദാം
ലനർെ് ലനർെ് ലരൾക്കുന്ുണ്ടനയിരുന്ു.

10
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

िह भिका हुआ पीर सांस्मरण डॉ राज बुद्थधराजा


डॉ राज बुद्थधराजा का जन्म 1937 को ला ौर में ुआ िा। सफर की यादें , ासशए पर हदल्ली आहद आपके सिंस्मरणों की सिंग्र
ै। जापान के सवोच्ि नागररक सम्मान से वे सम्मातनत ै।
प्रमुख पात्र: लेखखका और मश्कवाला स्कूटर (पीर)
साराांश:
भटका ु आ पीर’ एक सिंस्मरण ै, श्जसमें एक दयालु यव
‘व ु क का थिरण ु आ ै। व यव ु क हदल्ली में अपना
स्कूटर िलाकर आजीववका कमाता िा। वपता बिपन में ी मर िुके िे। घर में मााँ िे। मााँ के क ने पर व रा गीरों को
पानी वपलाना शुरु ककया। कभी-कभी व अपनी कमाई से पैसा लेकर मशक में पानी भरता िा और प्यासों को मुफ़्त दे ता ै।
लेखखका को उसे दे खकर गल
ु मो र का पेड की याद इससलए आती ै कक गुलमो र अपनी शीतल छाया दस
ू रों को दे ता ै। इसी
तर व ‘मशकवाला स्कूटर’ भी दस
ू रों की स ायता करते ै। स्वाियता भरी इस दतु नया में व यव
ु क तनस्सिंदे एक पीर जैसा
ै।
ല ന. രനജ് രുദ്ധിരനജയുലട ഓർേക്കുറിെ്. രഠിനമനയ ചൂടിെുാം ൽഹിയിലെ വഴിലയനരങ്ങളിൽ യനന്ത്തക്കനരുലട
ദനഹമരറ്റി നടക്കുന് ഒരു പലരനപരനരീയനയ ഒരു യുവനവിൻലറ രഥ പറയുന്ു. വിലശഷലെട്ട രനരയലമലരന്നൽ അയനൾ
സ്വരാം നപസ് ലരനടുെ് ലവള്ളാം വനങ്ങി യനന്ത്തക്കനരുലട ദനഹമരറ്റുന്ു.
അച്ഛൻ ലചറുെെിലെ മരണലെട്ട യുവനവ് ലതരുവ് വിളക്കിനു രീഴിെിരുന്നണ് പഠിച്ചിരുന്ത്. സ്രൂട്ടലറനടിച്ച്
അേയ്ക്കുാം തനിയ്ക്കുമുള്ള ഭക്ഷണാം രലണ്ടെുന്ു. അേ പറഞ്ഞതനുസ്രിച്ച് അയനൾ വഴിയനന്ത്തക്കനരുലട ദനഹമരറ്റനൻ
തുടങ്ങി. സ്വനർത്ഥ്ത നിറഞ്ഞ ഈ ലെനരെ് സ്ലരനഷാം വിതറുന് ആ യുവനവ് ഒരു സ്നയനസ്ി തലന്യനണ്.

स्कूटरवाले का िररर:
डॉ राजा बुद्थधराजा के सिंस्मरण ‘व
भटका ु आ पीर’ के प्रमुख पार ै स्कूटरवाला युवक। व एक वपतवृ व ीन लडका
ै जो अपनी मााँ की के क ने पर रा गीरों को पानी वपलाना शरु
ु ककया।
✓ आज्ञाकारी बेटा
✓ तनस्वािय सेवी → अपनी कमाई से पानी खरीदकर रा गीरों को वपलाता ै।
✓ नाम ‘मश्कवाला स्कूटर’ पड गया।
✓ पीर जैसा व्यश्क्त
“मश्कवाला स्कूटर” के बारे में समािार।
मश्किाला स्कूिर
हदल्ली: आजकल के स्वाियता भरी दतु नया में हदल्ली का य स्कूटरवाला जैसा युवक अन्यर दल
ु यभ ै। वपताजी की
मत्ृ यु के बाद व स्कूटर िलाकर आजीववका कमाता िा। घर में मााँ ैं। बिपन में उनके मााँ ने उपदे श हदया – “तू
पानी वपलाया कर, पुण्य समलता ै।“ तभी व रा गीरों को पानी वपलाना शुरु ककया। खास बात य ै कक दस
ू रों के
प्यास बुझाने केसलए अपनी कमाई से पैसे दे कर पानी खरीदकर मश्क भरवाता ै और प्यासों को पानी मुफ्त दे ता
ै।
स्वाियता भरी दतु नया में य यव
ु ा लोगों के प्यास बुझाकर ररश्ता जुडाते ै। बुढापे में बुजुगय लोग, िा े व
जन्मानेवाला मााँ-बाप ो, बोझ समझकर वद्
ृ ध सदनों में छोडनेवाले इस पीहढ में यब युवक सिमुि अलग
व्यश्क्तत्व ै, जो अपनी मााँ के उपदे श सुनकर लोगों के हदल में जग बनाकर पीर ी ै।

11
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

आदमी का चेहरा कविता कांु िर नारायण


श्री कुाँवर नारायण का जन्म उत्तरप्रदे श के फौज़ाबाद में 1927 को ु आ। वे ‘तीसरा सप्तक’ के प्रमख
ु कवव ै। िक्रव्यू , अपने
सामने आहद प्रमख
ु काव्य सिंग्र ै। 2005 के ज्ञानपीठ परु स्कार से वे सम्मातनत ु ए।
प्रमुख पात्र: मैं (कवव) और आदमी (कुली)
आस्िादन टिप्पणी:
श्री कुिंवर नारायण नई कववता के सशक्त स्ताक्षर ै। कववता के अलावा क ानी, समीक्षा और ससनेमा मे भी
उन् ोंने लेखनी िलाई। ‘आदमी का िे रा’ एक छोटी कववता ै, जो एक कठोर यिािय की ओर इशारा करता ै कक काम का
म त्व केवल काम पर ी तनभयर न ीिं र ता बश्ल्क काम करनेवालों की ईमानदारी पर भी तनभयर र ता ै। र काम का अपना-
अपना म त्व ै।
अपनी याराओिं में कवव अपने सामान उठाने केसलए ‘कुली’ को पक
ु ारते ।ैं कुली समान उठाकर िलते समय कवव
अपने को श्रेष्ठ और कुली को अपने से तुच्छ समझकर उससे दस कदम पीछे िला। अपनी याराओिं में व कभी भी कुली की
तरफ न ीिं दे खा। उसके िे रे का प िान न ीिं ककया। उसके लाल कमीज़ पर टिं के निंबर से ी व उसे प िानते िे। लेककन
जब जीवन में प ली बार अपना सामान उठाने का अवसर समला तो कवव को माल ढोने में जो ददय और कष्टता ै, उसे
प िान सलया। तभी व कुली का िे रा प िान सलया। पररश्रम का म त्व प िान सलया।
आज के भाग-दौड में आदमी, अपने स जीववयों को प िानने में असमिय र ता ै। य ााँ कवव स्वयिं अपने को श्रेष्ठ
माना। लेककन नौकर ो या मासलक, दोनों मनुष्य ी ै। कवव एक सत्य की ओर इशारा करता ै कक मनुष्य को उसी रूप में
प िानना ै।
യനന്ത്തരളിൽ സ്നധങ്ങലളടുക്കനൻ രവി രൂെിലയ വിളിക്കുന്ു. രൂെി സ്നധനങ്ങളുമനയി നടക്കുലമ്പനൾ രവി സ്വയാം
രൂെിലയ തലന്ക്കനളുാം ലചറിയവനനയി രരുതി പെ് ചുവട് പുറരിൽ നടക്കുന്ു. യനന്ത്തരളിൽ അലേഹാം രൂെിലയ
ലനനക്കിയിരുന്ിെല. അയനളുലട മുഖാം തിരിച്ചറിഞ്ഞിെല. അയനളുലട ചുവന് രുെനയെിലെ നമ്പറിൽ നിന്നണ്
തിരിച്ചറിഞ്ഞിരുന്ത്. എന്നൽ ഒരിക്കൽ സ്വരാം സ്നധനങ്ങലളടുക്കുവനൻ അവസ്രാം െഭിച്ചലെനൾ രവി സ്നധനങ്ങൾ
ചുമക്കുന്തിെുള്ള വിഷമവുാം രഷ്ടെനടുാം തിരിച്ചറിയുന്ു. അലെനൾ അലേഹാം രൂെിയുലട മുഖാം തിരിച്ചറിയുന്ു,
പരിന്ത്ശമെിൻലറ മഹതവാം തിരിച്ചറിയുന്ു.

दिा व्यांग्य हररशांकर परसाई


श्री ररशिंकर परसाई का जन्म 1924 को मध्यप्रदे श में ु आ िा। उन् ोंने व्यिंग्य को प ली बार ववधा का दजाय
हदलाया। ाँसते ैं रोते ैं, जैसे उनके हदन कफरे आहद उनके श्रेष्ठ क ानी सिंग्र ै। उनकी मत्ृ यु 1995 में ु ई।
प्रमख
ु पात्र: कवव अनिंग जी, पत्नी, बेटा, कवव का समर और एक डॉक्टर
झूठी प्रशिंसा पसिंद करनेवाले लोगों पर िंसी-मज़ाक उठाके ररशिंकर परसाई की छोटी-सी व्यिंग्य ै ‘दवा’। कवव
अनिंगजी का अिंततम समय आ प ु ाँिा िा। डॉक्टर ने क ा कक व घिंटे भर जीववत र ेगा। पत्नी डॉक्टर से प्राियना करती ै कक
शाम की गाडी से आनेवाले बेटे से समलने केसलए 5-6 घिंटों तक उसे जीववत र सकें। पर डॉक्टरें क ते ैं कक व घिंटे भर भी
जीववत न ीिं र ेगा।
इतने में अनिंग जी का दोस्त आकर क ते ै कक व उसे कई घिंटे जीववत रख सकेगा। डॉक्टर ने ाँसी उठाया। दोस्त
सब लोगों को बा र जाने को क ते ै। अनिंग जी के पास बैठकर दोस्त ने क ा कक जाने के प ले उसकी मीठे स्वर सुनना
ै। व अनिंग जी को पुस्तक की कॉपी देते ैं, अनिंग जी कववता-पाठ करने लगा। शाम को बेटा आकर कमरे में घुसते ी
दे खा वपताजी कववता पढ र े ैं और दोस्त व ााँ मरे पडे ैं।
ന്ത്പശാംസ് ഇഷ്ടലെടുന് ആളുരലള രളിയനക്കി ഹരിശങ്കർ പർസ്നയി എഴുതിയ ഹനസ്യ രചനയനണ് ‘മരുന്്’. രവി
അനാംഗ്ജിയുലട അരിമ സ്മയമടുെു. ല നക്ടർ പറഞ്ഞത് അലേഹാം മണിക്കൂറുരൾ മനന്ത്ത ലമ ജീവിച്ചിരിക്കുരയുള്ളു
എന്നണ്. ഭനരയ ല നക്ടലറനട് നവരുലന്രലെ വണ്ടിയിലെെുന് മരൻ വരുന്തു വലര ജീവൻ നിെനിർെനൻ
ആവശയലെടുന്ു. എന്നൽ അലേഹാം മണിക്കൂർ തിരച്ചുാം ജീവലനനടിരിക്കുരയിെല എന്നണ് ല നക്ടർമനർ പറഞ്ഞത്.
അലെനലഴക്കുാം രവിയുലട സ്ുഹൃെ് വന്് അലേഹാം മണിക്കൂറുരലളനളാം ജീവലനനടിരിക്കുാം എന്് പറയുന്ു.
ല നക്ടർമനർ ചിരിക്കുന്ു. എെലനവലരനടുാം പുറലെക്കിറങ്ങി നിൽക്കനൻ പറയുന് സ്ുഹൃെ് രവിലയനട് അലേഹെിൻലറ
മധുര സ്വരലമനന്് ലരൾക്കണലമന്് ആവശയലെടുന്ു. രവിയ്ക്ക് പുസ്തരാം ലരനടുക്കുന്ു, രവി രവിത ലചനെലനൻ തുടങ്ങി.
നവരുലന്രാം മരൻ മുറിയ്ക്കുള്ളിൽ ന്ത്പലവശിക്കുലമ്പനൾ രവിത വനയിച്ചു ലരനണ്ടിരിക്കുന് അച്ഛലനയുാം അരിരിൽ മരിച്ചു
രിടക്കുന് സ്ുഹൃെിലനയുമനണ് രനണുന്ത്.

12
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

പനഠഭനഗങ്ങളിലെ ലചനദയങ്ങൾ രൂടനലത, സ്ലരനർ വർദ്ധിെിക്കുവനൻ സ്ഹനയിക്കുന് ചിെ


വിഭനഗങ്ങളിൽ നിന്ുള്ള ഉദനഹരണങ്ങൾ രൂടി പരിചയലെടനാം. ഓലരന വിഭനഗെിൽ നിന്ുാം ഓലരന
ലചനദയങ്ങൾ മനന്ത്തമനണ് ഉൾലെടുെിയിരിക്കുന്ത്.

विज्ञापन (Advertisement)
मान लें, प्लाश्स्टक के उपयोग के ववरुद्ध आपके स्कूल के छारों ने कपडे और जूट के रिं ग-बबरिं गे िैसलयों का तनमायण ककए, जो
पयायवरण के अनक
ु ू ल (Eco-friendly) ै। उसकी बबक्री और इस्तेमाल बढाने केसलए एक आकषयक ववज्ञापन तैयार करें ।
(प्रदष
ू ण से मुश्क्त, पयायवरण की सुरक्षा, ववसभन्न आकार-प्रकार, हॉमिं डेसलवरी)
प्लाश्स्टक छोडो....... कागज़ िैसलयों का इस्तेमाल करें

प्लाष्स्िक हिाओ........पयाणिरण बचाओ............... धरती बचाओ


पयायवरण सरु क्षा
ववसभन्न आकार-प्रकार के रिंग बबरिं गे िैसलयााँ
ऑडर केसलए वाट्सआप करें : *******238
घऱ बैठे कपडे-जूट के िैसलयााँ पाइए।
पयायवरण के अनुकूल
पन
ु ः उपयोग करें ........
अथधक सामान लाने में सक्षम
आपके घर में जो पुराने अनप
ु योगी कपडे जो ै, य ााँ लाइए.... म आपके सलए नए-नए
िैली दे गा...........
र रवववार 1 बजे से 2 बजे तक आइए.........

पोस्िर (Poster)
कोरोना वायरस का तीसरी ल र काफी खतरनाक ै। इस ववषय में जनता के िेतावनी दे ने योग्य आकषयक पोस्टर तैयार करें ।
(नोवल कोरोना: लक्षण एविं बिाव के उपाय, क्या करें ? क्या न करें ?, व्यश्क्तगत स्वच्छता, मास्क-सैतनटै स-आपसी दरू ी)
नोिल कोरोना िायरस (Covid-19)

लक्षण क्या-क्या ै? बुखार – खााँसी – सााँस लेने में तकलीफ़ ....... ै तो जल्द ी जल्द डॉक्टर से
सिंपकय करें ।
क्या-क्या करें ?
✓ अपने ािों को बार-बार धोएाँ। खुद र े सरु क्षक्षत....

✓ खााँसते/छीकते वक्त ाि/हटश्यु से िकें। दस


ू रों को रखें सरु क्षक्षत.......

✓ भीड से बिे।
✓ एक-दस
ू रे से दरू ी बनाए रखें।
✓ सावयजतनक जग ों में मास्क का इस्तेमाल करें ।
✓ साबुन से ाि धोएाँ..... सैतनटै स करें । क्या-क्या न करें ?
X यहद लक्षण ै तो ककसी से सिंपकय न करें ।
X सावयजतनक स्िानों पर न िूकें।
X आाँख-नाक-मुाँ मत छुए।

13
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

अनुिाद (Translation)
खांड का टहांदी में अनुिाद करें ।
Life style diseases are diseases linked with one’s life style. These are non-communicable diseases. These can be caused by
lack of physical exercise, taking unhealthy food habits, use of narcotics etc. Main life style diseases are diabetes,
hypertension, heart disease, obesity, cancer etc. The best way of prevention is proper and regular physical exercise, which
also includes good food habits. So, we have to change our life style for sound health.
(Life style - जीवन शैली, linked – जुडे ु ए, non-communicable - गैर-सिंिारी , physical - शारीररक , narcotics - नशीले पदािय ,
diabetes - मधुमे , hypertension - उच्ि रक्तिाप, obesity - मोटापा)
उत्तर:
व्यश्क्त के जीवन शैली से जुडे रोगों को जीवन शैली रोग क ते ैं। ये गैर-सिंिारी रोग ैं। शारीररक व्यायाम की कमी,
अस्वास््यकर भोजन की आदतें, नशीले पदािों का उपयोग आहद इनके कारण ो सकते ैं। मुख्य जीवन शैली रोग मधम
ु े ,
उच्ि रक्तिाप, हृदय की बीमारी, मोटापा, कैं सर आहद ै। रोकिाम का सबसे अच्छा तरीका उथित और तनयसमत शारीररक
व्यायाम करना ै, श्जसमें अच्छी खाने की आदतें भी शासमल ै। इससलए अच्छी स्वास््य केसलए में अपनी जीवन शैली को
बदलना ै।

सांक्षेपण (Summerizing)
गद्याांश का सांक्षेपण करें :
भववष्य में में ववश्राम करना या िैन से न ीिं बैठना ै बश्ल्क तनरिं तर प्रयत्न करना ै ताकक में जो विन बार-बार दो राते
र े ैं और श्जसे म आज भी दो राएाँगे, उसे परू ा कर सकें। भारत की सेवा का अिय ै लाखों-करोडों पीडडत लोगों की सेवा
करना। इसका मतलब ै गरीबी और अज्ञानता को समटाना। बीमाररयों और अवसर की असमानता को समटाना। मारी पीहढ
के सबसे म ान व्यश्क्त की य ी म त्वाकािंक्षा र ी ै कक र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
(1) मारी पीहढ के म ान व्यश्क्त की म त्वाकािंक्षा क्या ैं? (2)
(2) गद्यािंश का सिंक्षप
े ण करें । (6)
उत्तर:
(1) मारी पीढी के सबसे म ान व्यश्क्त की म त्वाकााँक्षा य ै कक र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
(2) भारत का भविष्य
भववष्य में में अपने विन को दो राकर दे श की सेवा करें । भारत की सेवा का तात्पयय ै, लाखों-करोडों पीडडत लोगों की
सेवा, गरीबी, अज्ञानता, बीमाररयों और अवसर की असमानता को समटाना। पीहढ के म ान व्यश्क्त की म त्वाकािंक्षा य ै कक
र एक आाँख से आाँसू समट जाएाँ।
पाररभावषक शब्दािली (Technical Terms)
आपके पाठ पस्
ु तक के पन्ने 52 – 53 में हदए अिंग्रेज़ी-ह द
िं ी पाररभावषक शब्दावली ध्यान से पढें । स ी समलन केसलए
प्रश्न अवश्य ोंगे।

14
Join Now: https://join.hsslive.in/group Downloaded from www.Hsslive.in ®

Type of Questions (According to Half Yearly Exam December 2022)

ഏത് പനഠെിൽ നിന്ുാം ന്ത്പതീക്ഷിക്കനാം.


Objective type Score 1
Score 1 सिंक्षेपण का शीषयक, समानािी शब्द, कवव/कववता के नाम,
Very short answer
पाररभावषक शब्दावली (स ी समलान करें ) 8 X 1 mark आहद
(1 - 3 minute/Question)
Score 2 2-3 वाक्यों में उत्तर सलखने का प्रश्न (5 minute/Question)
Score 4 आशय/भावािय/आस्वादन हटप्पणी, सिंक्षप
े ण, अनुवाद,
Short answer
Score 6 अनुच्छे द लेखन (जीवन-वत्त
ृ ),िररर पर हटप्पणी (10 minute/Question)
Long answer Score 8 वातायलाप, डायरी, पर, पोस्टर, ववज्ञापन, आत्मकिािंश, भाषण,
तनबिंध/आलेख/लेख आहद (10 - 15 minute/Question)
പരീക്ഷാ സമയത്ത് ശ്ശദ്ധിക്കേണ്ടത്:
• ഒരു മനർക്കിനുള്ള എെലന ലചനദയങ്ങൾക്കുാം ഉെരലമഴുതുര.
• സ്ലരനറുാം സ്മയവുാം ന്ത്ശദ്ധിക്കുര.
• 80 മനർക്ക്. Cool of time നന്നയി വിനിലയനഗിച്ച് ഓലരന വിഭനഗെിൽ നിന്ുാം ഏലതനലക്ക ലചനദയങ്ങൾക്ക്
രൃതയമനയി ഉെരലമഴുതനൻ രഴിയുലമന്് തീരുമനനിക്കുര. ഓപ്ഷനുരളിൽ നിന്ുാം
തിരലഞ്ഞടുക്കുലമ്പനൾ ववज्ञापन, पोस्टर, पाररभावषक शब्दावली, सिंक्षेपण, अनव
ु ाद, जीवन-वत्त
ृ पर अनच्
ु छे द, िररर
पर हटप्पणी, आस्वादन हटप्पणी എന്ിവയ്ക്ക് മുൻഗണന ലരനടുക്കുവനൻ ന്ത്ശദ്ധിക്കുര. ഇവയ്ക്കു
ലശഷമനരലട്ട പനഠഭനഗങ്ങലള ആസ്പദമനക്കിയുള്ള वातायलाप, पर, आत्मकिािंश, डायरी മുതെനയവ
എഴുതുന്ത്. ആവശയത്തിനുള്ള ഓപ്ഷനുകൾ ലഭ്യമമങ്കിൽ പനഠപുസ്തരെിനു പുറെുള്ള ലചനദയങ്ങളനയ
भाषण, तनबिंध/आलेख/लेख മുതെനയവലയഴുതി വിെലയറിയ സ്മയാം ലചെവഴിക്കരുത്.
• 80 മനർക്കിനുാം എഴുതിയിട്ടുണ്ട് എന്ുറെനക്കുര. (അധിരാം എഴുതിയനൽ രുഴെമിെല, പലക്ഷ രുറഞ്ഞ്
ലപനരരുത്) ഓലരന വിഭനഗെിൽ നിന്ുാം മതിയനയ ലചനദയങ്ങൾ എഴുതിയിട്ടുണ്ട് എന്് ഉറെിക്കുര.
• ലപെർ ലരനടുക്കുന്തിന് മുൻപ് എെലന ലചനദയങ്ങൾക്കുാം ഉെരലമഴുതിയിട്ടുണ്ട് എന്് ഉറെനക്കുര.
• ആത്മവിശവനസ്ലെനലട പരീക്ഷലയ അഭിമുഖീരരിക്കുര.
BEST WISHES Dear Students….
Prepared by:
Malini M S
HSST Hindi,
GHSS Thenkurissi, Palakkad.

15

You might also like