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आगभ उऩासकदशाॊग सूत्र

तत्वाधान ::: आचायय हीराचन्द्र जी म. सा.

सद्दाऱऩुत्र श्रमणोंऩासक भाग -2

सम्ऩादक :- प्रकाशचॊद जैन

टीम महावीर को जानो ,प्रासुक जऱ प्रेरणा केंर,ब्यावर


सप्तभ अध्ममन
सद्दारऩुत्र- "बदन्त ! भैं उस ऩुरुष को गालरमाॉ
दॉ ग
ू ा, पटकारॉगा, पऩटू ॉ गा, फाॉध दॉ ग
ू ा, ऩैयों तरे कुचर दॉ ग
ू ा, लधक्कारॉगा,
ताड़ना करॉगा, नोंच डारूॉगा, बरा-फुया कहूॉगा, अथवा उसके प्राण रे
रूॉगा।” बगवान ने कहा-“हे सद्दारऩुत्र! तुम्हायी भान्मता के अनुसाय न
तो कोई ऩुरुष फततनों को चुयाता है , औय न अग्ननलभत्रा बामात के साथ
दयु ाचाय कयता है । न ही तुभ उस ऩुरुष को दण्ड दे ते हो मा भायते हो।
क्मोंकक उत्थान मावत ् ऩुरुषकाय तो है ही नहीॊ जो कुछ होता है अऩने
आऩ होता है , इसके पवऩयीत मकद कोई ऩुरुष तुम्हाये फततनों को वास्तव
भें चुयाता है , मा अग्ननलभत्रा बामात के साथ दयु ाचाय सेवन कयता है
औय तुभ उसे गारी-गरौच दे ते हो मावत ् भायते हो तो तुम्हाया मह
कथन लभथ्मा है कक उत्थान मावत ् ऩुरुषाथत कुछ नहीॊ है औय सफ
बाव लनमत हैं । "मह सुनकय आजीपवकोऩासक सद्दारऩुत्र वास्तपवकता
को सभझ गमा। उसे सम्मक् फोध हो गमा।||201||
भावाथय-आजीपवकोऩासक सद्दारऩुत्र ने श्रभण बगवान भहावीय
को वन्दना नभस्काय ककमा औय कहा - "हे बगवन ्! भैं आऩसे धभत
सुनना चाहता हॉू ।||202||
भावाथय-इस ऩय श्रभण बगवान भहावीय ने आजीपवकोऩासक
सद्दारऩुत्र को भहती ऩरयषद् भें धभोऩदे श ककमा।||203||
भावाथय इस ऩय आजीपवकोऩासक सद्दारऩुत्र ने हषत औय सन्तोष
का अनुबव ककमा। उसने बी आनन्द की बाॉलत गृहस्थ धभत स्वीकाय
ककमा। इतना ही अन्तय है कक उसके ऩास एक कयोड़ सुवणत कोष भें
थे, एक कयोड़ व्माऩाय भें औय एक कयोड़ गृह औय उऩकयणों भें रगे
हुए थे। दस हजाय गामों का एक व्रज था। सद्दारऩुत्र ने बगवान
भहावीय को ऩुन् वन्दना नभस्काय ककमा औय ऩोरासऩुय नगय भें से
होता हुआ अऩने घय ऩहॉु चा । वहाॉ जाकय अग्ननलभत्रा बामात से कहा-
हे दे वानुपप्रम ! इस प्रकाय श्रभण बगवान भहावीय ऩधाये हैं । तुभ
जाओ, उन्हें वन्दना नभस्काय मावत ् उनकी ऩमुऩ
त ासना कयो। उनसे
ऩाॉच अणुव्रत तथा सात लशऺाव्रत रऩ फायह प्रकाय का गृहस्थ धभत
स्वीकाय कयो।||204||
भावाथय-अग्ननलभत्रा ने सद्दारऩुत्र के कथन को 'तथेलत' कहकय
पवनमऩूवक
त स्वीकाय ककमा। ||205||
भावाथय-श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ने कौटु ग्म्फक ऩुरुषों को फुराकय
कहा - "हे दे वानुपप्रमों ! शीघ्र ही तेज चरने वारा यथ सजाओ। उसभें
नई उभय के ऐसे उत्तभ फैरों की जोड़ी जोतना, ग्जनके खुय तथा ऩूॉछ
एक ही यॊ ग के हों। सीॊग पवलबन्न यॊ गों से यॊ गे हुए हों। उनके गरे भें
आबूषण ऩहनाना । नाक की ( नकेर) यग्स्समों को बी सुवणत के
धागों से सुशोलबत कयना । भस्तक नीरे कभरों से सजे हों। यथ
नाना प्रकाय की भग्णमों से भग्ण्डत हो । मुग (जुआ) उत्तभ रकड़ी का
फना हुआ हो । फनावट सभीचीन, ऋजु तथा प्रशस्त हो। धभतकिमा के
लरए उऩमुक्त ऐसे उत्तभ यथ को उऩग्स्थत कयो तथा आऻा का ऩारन
कयके भुझे सूचना दो।" ||206||
भावाथय-कौटु ग्म्फक - ऩुरुषों ने आऻा ऩूयी कयके सद्दारऩुत्र को सूचना
दी।||207||

भावाथय-अग्ननलभत्रा बामात ने स्नान ककमा, शुद्ध तथा सबा भें प्रवेश


कयने मोनम उत्तभ वस्त्र धायण ककए मावत ् अल्ऩ बाय ककन्तु फहुभल्
ू म
आबूषणों से अऩने शयीय को आबूपषत ककमा। दासी सभूह से लघयी हुई
धालभतक यथप्रवय ऩय सवाय हुई तथा ऩोरासऩुय नगय के फीच होती हुई
सहस्राम्रवन उद्यान भें ऩहॉु ची। यथ से उतयकय दासी सभूह से लघयी हुई
बगवान भहावीय के ऩास ऩहुॉची। बगवान को तीन फाय वन्दना
नभस्काय ककमा, न फहुत सभीऩ न अलत दयू खड़ी हुई औय हाथ
जोड़कय उऩासना कयने रगी। ||208||
भावाथय - श्रभण बगवान भहावीय ने अग्ननलभत्रा को उस भहती
ऩरयषद् भें धभोऩदे श ककमा।||209||
भावाथय-श्रभण बगवान भहावीय के धभोऩदे श को सुनकय अग्ननलभत्रा
बामात अत्मन्त प्रसन्न हुई । उसने बगवान भहावीय को वन्दना
नभस्काय ककमा औय कहा- 'हे बगवन ्! भैं लनर्ग्तन्थ प्रवचन ऩय श्रद्धा
यखती हॉू । ग्जस तयह आऩ कहते हैं , वह उसी प्रकाय है । आऩ
दे वानुपप्रम के ऩास ग्जस तयह फहुत से उर्ग्वॊशी मावत ् बोगवॊशी
प्रव्रग्जत-दीग्ऺत हो चुके हैं भैं उस प्रकाय दीग्ऺत होने भें सभथत नहीॊ
हॉू । भैं आऩ से ऩाॉच अणुव्रत तथा सात लशऺाव्रत रऩ फायह प्रकाय के
गृहस्थ धभत को स्वीकाय करॉगी।' बगवान ने कहा- 'जैसे तुम्हें सुख हो
। पवरम्फ भत कयो।'||210||
भावाथय-उस अग्ननलभत्रा बामात ने श्रभण बगवान भहावीय के
ऩास ऩाॉच अणुव्रत औय सात लशऺाव्रत रऩ फायह प्रकाय के गृहस्थ
धभत को अॊगीकाय ककमा । श्रभण बगवान भहावीय को नभस्काय ककमा
औय उसी धालभतक यथ ऩय सवाय होकय ग्जस कदशा से आई थी उसी
कदशा भें चरी गई।||211||
भावाथय-उसके फाद एक कदन श्रभण बगवान भहावीय ऩोरासऩुय
के सहस्राम्रवन उद्यान से पवहाय कय गए औय फाहय के जनऩदों भें
पवचयने रगे।||212||
भावाथय - तदनन्तय श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र जीवाजीव का ऻाता
फनकय जीवन व्मतीत कयने रगा।||213||
भावाथय- कुछ कदन फीतने ऩय भॊखलरऩुत्र गोशारक ने मह
सभाचाय सुना कक सद्दारऩुत्र आजीपवक लसद्धान्त को छोड़कय श्रभण
लनर्ग्तन्थों का अनुमामी फन गमा है । उसने भन ही भन पवचाय ककमा
कक भुझे ऩोरासऩुय जाकय सद्दारऩुत्र को ऩुन् आजीपवक सम्प्रदाम भें
राना चाकहए। मह पवचाय कय आजीपवक सॊघ के साथ वह ऩोरासऩुय
ऩहुॉचा औय आजीपवका सबा भें अऩने बाण्डोऩकयण यखकय कुछ
आजीपवकों के साथ सद्दारऩुत्र के ऩास आमा||214||
भावाथय-श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ने भॊखलरऩुत्र गोशारक को आते हुए
दे खा ककन्तु न तो उसका आदय ककमा औय न ही ऩहचाना।(अऩरयलचत
के सभान उऩेऺा बाव यखा) अपऩतु चुऩचाऩ फैठा यहा ।||215||
भावाथय- भॊखलरऩुत्र गोशारक को सद्दारऩुत्र की ओय से कोई सम्भान
- सत्काय मा ऩरयऻान प्राप्त नहीॊ हुआ। कपय बी उसने ऩीठ, परक
शय्मा तथा सॊस्तायक आकद प्राप्त कयने के लरए ऩूछा - "क्मा महाॉ
भहाभाहन आए थे ? "||216||
भावाथय- श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ने भॊखलरऩुत्र गोशारक से ऩूछा
- "हे दे वानुपप्रम ! भहाभाहन कौन हैं ? अथातत ् आऩका अलबप्राम
ककससे है ?" ||217||

भावाथय- भॊखलरऩुत्र गोशारक ने श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र से कहा कक


श्रभण बगवान भहावीय भहाभाहन हैं ।
सद्दारऩुत्र- "हे दे वानुपप्रम ! ककस अलबप्राम से श्रभण बगवान भहावीय
भहाभाहन हैं ? "
गोशारक - "क्मोंकक बगवान भहावीय अप्रलतहत ऻान दशतन के धायक
हैं । भकहत, ऩूग्जत मावत ् तथ्म अथातत ् सपर कभतसम्ऩदा के स्वाभी हैं ।
इसीलरए भैं कहता हूॉ कक श्रभण बगवान भहावीय भहाभाहन हैं ।
"गोशारक - "क्मा महाॉ भहागोऩ आए थे? "
सद्दारऩुत्र- "हे दे वानुपप्रम ! भहागोऩ कौन हैं ?"
गोशारक - " श्रभण बगवान भहावीय भहागोऩ हैं ।
"सद्दारऩुत्र- "आऩ मह ककस अलबप्राम से कहते हैं कक श्रभण बगवान
भहावीय भहागोऩ हैं ?"
गोशारक - “ श्रभण बगवान भहावीय सॊसाय अटवी भें नष्ट होते हुए
बटकते हुए, पवपवध कष्टों से ऩीकड़त होते हुए, पवनष्ट होते हुए, लछन्न-
लबन्न, ऺत एवॊ पवऺत ककए जाते हुए, प्राग्णमों को धभतरऩी दण्ड रेकय
यऺा कयते हैं , फचाते हैं औय अऩने हाथ से लनवातणरऩी पवशार फाड़े भें
ऩहुॉचाते हैं । इसीलरए भैं कहता हूॉ कक श्रभण बगवान भहावीय भहागोऩ
हैं ।"
गोशारक- “सद्दारऩुत्र ! क्मा महाॉ भहासाथतवाह आए थे ? "
सद्दारऩुत्र- "हे दे वानुपप्रम! भहासाथतवाह कौन हैं ?"
गोशाराक- “ श्रभण बगवान भहावीय भहासाथतवाह हैं । "
सद्दारऩुत्र- "मह ककस अलबप्राम से कहते हैं कक श्रभण बगवान
भहावीय भहासाथतवाह हैं ?"
गोशारक - “ श्रभण बगवान भहावीय सॊसाय अटवी भें बटकते हुए
पवपवध प्रकाय के कष्टों से ऩीकड़त ऺत-पवऺत, लछन्न-लबन्न प्राग्णमों को
धभतरऩी भागत ऩय ऩहुॉचाते हैं औय लनवातणरऩी नगय की ओय रे जाते
हैं । इसी अलबप्राम से भैं कहता हूॉ कक श्रभण बगवान भहावीय
भहासाथतवाह हैं । "
गोशारक - "क्मा महाॉ भहाधभतकथी आए थे ? "
सद्दारऩुत्र- "हे दे वानुपप्रम! भहाधभतकथी कौन हैं ?"
गोशारक - " श्रभण बगवान भहावीय भहाधभतकथी हैं ।"
सद्दारऩुत्र- "आऩ मह ककस अलबप्राम से कहते हैं कक श्रभण बगवान
भहावीय भहाधभतकथी हैं ?"
गोशारक - "हे दे वानुपप्रम! श्रभण बगवान भहावीय इस पवशार सॊसाय
भें बटकते हुए, ऩथभ्रष्ट, कुभागतगाभी, सन्भागत से भ्रष्ट, लभथ्मात्व भें पॉसे
हुए तथा आठ प्रकाय के कभतरऩी अन्धकाय से लघये हुए प्राग्णमों को
अनेक प्रकाय की मुपक्तमों, उऩदे शों मावत ् व्माख्माओॊ द्वाया बमॊकय
अटवी के ऩाय ऩहुॉचाते हैं । इसी अलबप्राम से श्रभण बगवान भहावीय
भहाधभतकथी कहे जाते हैं ।"
सद्दारऩुत्र- "हे दे वानुपप्रम ! भहालनमातभक कौन हैं ?"
गोशारक - " श्रभण बगवान भहावीय भहालनमातभक हैं ।"
गोशारक - "क्मा महाॉ भहालनमातभक आए थे ? "
सद्दारऩुत्र- "आऩ मह ककस अलबप्राम से कहते हैं कक श्रभण बगवान
भहावीय भहालनमातभक हैं ?"
गोशारक - "हे दे वानुपप्रम! श्रभण बगवान भहावीय सॊसायरऩी
भहासभुद्र भें नष्ट होते हुए, पवनष्ट होते हुए, डू फते हुए, गोते खाते हुए
औय फहते हुए फहुत से जीवों को धभत रऩी नौका द्वाया लनवातण रऩी
तट ऩय रे जाते हैं । इसलरए श्रभण बगवान भहावीय भहालनमातभक
अथवा भहाकणतधाय कहे जाते हैं । " ||218||
टीका - इस सूत्र भें बगवान भहावीय की अनेक पवशेषताओॊ को
सूलचत कयने वारे कई पवशेषण प्रमुक्त हुए हैं , उनभें 'भहागोऩ' तथा
'भहासाथतवाह' बी हैं । मे दोनों फड़े भहत्त्वऩूणत हैं ।
बगवान भहावीय का सभम एक ऐसा मुग था, ग्जसभें गोऩारन
का दे श भें फहुत प्रचाय था। उस सभम के फड़े गृहस्थ हजायों की
सॊख्मा भें गामें यखते थे। जैसा ऩहरे वग्णतत हुआ है , गोधन जहाॉ
सभृपद्ध का द्योतक था, उऩमोलगता औय अलधक से अलधक रोगों को
काभ दे ने की दृपष्ट से बी उसका भहत्त्व था। ऐसे गो-प्रधान मुग भें
गामों की दे खबार कयने वारे का - गोऩ का बी कभ भहत्त्व नहीॊ था।
बगवान 'भहागोऩ' के रऩ द्वाया महाॉ जो वग्णतत हुए हैं , उसके ऩीछे
सभाज की गोऩारनप्रधान वृपत्त का सॊकेत है । गामों को लनमग्न्त्रत
कयने वारा गोऩ उन्हें उत्तभ घास आकद चयने के रोब भें बटकने नहीॊ
दे ता, खोने नहीॊ दे ता, चयाकय उन्हें सामॊकार उनके फाड़े भें ऩहॉु चा दे ता
है , उसी प्रकाय बगवान के बी ऐसे रोक-सॊयऺक एवॊ कल्माणकायी रऩ
की ऩरयकल्ऩना इसभें है , जो प्राग्णमों को सॊसाय भें बटकने से फचाकय
भोऺ रऩ फाड़े भें लनपवतघ्न ऩहुॉचा दे ते हैं ।
'भहासाथतवाह' शब्द अऩने आऩ भें फड़ा भहत्त्वऩूणत हैं । साथतवाह
उन कदनों उन व्माऩारयमों को कहा जाता था जो दयू -दयू बू-भागत से मा
जर भागत से रम्फी मात्राएॉ कयते हुए व्माऩाय कयते थे । वे मकद
बूभागत से वैसी मात्राओॊ ऩय जाते तो अनेक गाड़े गाकड़माॉ भार से बय
कय रे जाते, जहाॉ राब लभरता फेच दे ते, वहाॉ दस
ू या सस्ता भार बय
रेते। मकद मे मात्राएॉ सभुद्री भागत से होती तो जहाज रे जाते। मात्राएॉ
कापी रम्फे सभम की होती थीॊ, जहाज भें फेचने के लरए भार के
साथ-साथ उऩमोग की सायी चीजें बी यखी जातीॊ, जैसे ऩीने का ऩानी,
खाने की चीजें, औषलधमाॉ आकद। इन मात्राओॊ का सॊचारक साथतवाह
कहा जाता था।
ऐसे साथतवाह की खास पवशेषता मह होती, जफ वह ऐसी
व्माऩारयक मात्रा कयना चाहता, साये नगय भें खुरे रऩ से घोपषत
कयवाता, जो बी व्माऩाय हे तु इस मात्रा भें चरना चाहे , अऩने साभान
के साथ गाड़े गाकड़मों मा जहाज भें आ जाम, उसकी सफ व्मवस्थाएॉ
साथतवाह की ओय से होंगी। आगे ऩैसे की कभी ऩड़ जाम तो साथतवाह
उसे ऩूयी कये गा। इससे थोड़े भार वारे छोटे व्माऩारयमों को फड़ी
सुपवधा होती, क्मोंकक अकेरे मात्रा कयने के साधन उनके ऩास होते
नहीॊ थे। रम्फी मात्राओॊ भें रूट-खसोट का बी बम था, जो साथत भें
नहीॊ होता, क्मोंकक साथतवाह आयऺकों का एक शस्त्र-सग्जजत दर बी
अऩने साथ लरए यहता था। मों छोटे व्माऩायी अऩने अल्ऩतभ साधनों
से बी दयू -दयू व्माऩाय कय ऩाने भें सहाया ऩा रेते। साभाग्जकता की
दृपष्ट से वास्तव भें मह ऩयम्ऩया फड़ी उऩमोगी औय भहत्त्वऩूणत थी।
इसलरए उन कदनों साथतवाह की फड़ी साभाग्जक प्रलतष्ठा औय सम्भान
था।

जैन आगभों भें ऐसे अनेक साथतवाहों का वणतन है । उदाहयणाथत,


ऋषबदे व बगवान के जीव ने धन्ना साथतवाह के बव भें साथत के साथ
ऩधाये आचामत धभतघोष आकद भुलनमों को घृतदान से सम्मक्त्व प्राप्त
ककमा था। नामाधम्भकहाओ के 15वें अध्ममन भें बी धन्ना साथतवाह
का वणतन है । जफ वह चम्ऩा से अकहच्छत्रा की व्माऩारयक मात्रा कयना
चाहता है तो वह नगय भें सावतजलनक रऩ भें इसी प्रकाय घोषणा
कयता है कक उसके साथत भें जो बी चरना चाहे , सहषत चरे।
आचामत हरयबद्र ने सभयाकदत्मकथा के चौथे बव भें धन नाभक
साथतवाहऩुत्र की ऐसी ही मात्रा की चचात की है , जफ वह अऩने लनवास
स्थान सुशभतनगय से ताम्रलरलप्त जा यहा था। उसने बी इसी प्रकाय से
अऩनी मात्रा की घोषणा कयवाई।
बगवान भहावीय को 'भहासाथतवाह' के रऩ भें वग्णतत कयने के
ऩीछे भहासाथतवाह शब्द के साथ यहे साभाग्जक सम्भान का सूचन है ।
जैसे भहासाथतवाह साभान्म जनों को अऩने साथ लरए चरता है , फहुत
फड़ी व्माऩारयक भॊडी ऩय ऩहॉु चा दे ता है , वैसे ही बगवान भहावीय सॊसाय
भें बटकते प्राग्णमों को भोऺ - जो जीवन-व्माऩाय का अग्न्तभ रक्ष्म
है , तक ऩहुॉचने भें सहाया दे ते हैं ।

भावाथय-श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ने भॊखलरऩुत्र गोशारक से कहा- “हे


दे वानुपप्रम ! तुभ इस प्रकाय पवदनध, अवसय ऻाता, लनऩुण, नीलतऻ तथा
सुलशग्ऺत हो। क्मा तुभ भेये धभातचामत धभोऩदे शक श्रभण बगवान
भहावीय के साथ शास्त्राथत कय सकते हो ?" गोशारक ने कहा- "नहीॊ भैं
नहीॊ कय सकता।" सद्दारऩुत्र ने कपय ऩूछा - "हे दे वानुपप्रम ! क्मों ?"“
सद्दारऩुत्र ! जैसे कोई तरुण, फरवान बानमशारी, मुवा, नीयोग तथा दृढ़
कराई, हाथ-ऩैय, ऩसवाड़े , ऩीठ के भध्म बाग, जॊघाओॊ वारा, करा-कौशर
का जानकाय-ऩुरुष ककसी फकये , भेंढ़े, सूअय, कपऩॊजर, काक औय फाज के
हाथ, ऩैय, खुय, ऩूॉछ-ऩॊख, सीॊग, दाॊत, योभाकद जहाॉ-जहाॉ से बी ऩकड़ता है
वहीॊ से लनश्चर औय लन्स्ऩन्द दफा दे ता है औय उसे जया बी कहरने
नहीॊ दे ता। इसी प्रकाय श्रभण बगवान भहावीय अनेक अथों, हे तओ
ु ॊ
मावत ् व्माकयणों एवॊ प्रश्नोत्तयों द्वाया जहाॉ कहीॊ से बी भुझे ऩकड़ते हैं ,
वहीॊ-वहीॊ भुझे लनरुत्तय कय दे ते हैं । हे सद्दारऩुत्र ! इसलरमे भैं कहता हॉू
कक तुम्हाये धभातचामत बगवान भहावीय के साथ भैं शास्त्राथत कयने भें
सभथत नहीॊ हॉू । "||219||
भावाथय- इस ऩय श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ने भॊखलरऩुत्र गोशारक से
कहा- "हे दे वानुपप्रम ! चूॉकक तुभने भेये धभातचामत श्रभण बगवान
भहावीय का सत्म, तथ्म तथा सद्भत
ू गुण कीततन ककमा है इसलरए भैं
तुम्हें प्रालतहारयक ऩीठ, परक, शय्मा औय सॊस्तायक के लरए
उऩलनभन्त्रण कयता हूॉ मद्यपऩ भैं इसभें धभत औय तऩ नहीॊ भानता। तो
आऩ जाएॉ औय भेयी फततनों की दक
ु ानों से ऩीठ, परक, शय्मा सॊस्तायक
आकद र्ग्हण कयके पवचयें ।" ||220||
टीका - ग्जनशासन ककतना भहान ् है । अनुकम्ऩावश दान, प्रालतहारयक
वस्तुओॊ को दे ने का पवधान महाॉ से ध्वलनत हो यहा है । मद्यपऩ इसभें
धभत औय तऩ नहीॊ, तथापऩ ऩुण्म तो होता ही है । बगवती सूत्र शतक 8
उद्दे शक 1 श्रभण-ब्राह्मण को प्रासुक एषणीम दे ने से एकान्त लनजतया
की फात कह यहा शतक 7 उद्दे शक 1 सभालध के साथ गुण श्रेग्ण की
चचात कय यहा है ।सत्काय सम्भान ऩूवक
त नहीॊ दे ते हुए बी उऩलनभग्न्त्रत
ककमा । श्रावक के पववेक सकहत व्मवहाय की सुन्दय झाॉकी इससे
लभरती है
भावाथय- भॊखलरऩुत्र गोशारक ने श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र की इस फात
को स्वीकाय ककमा औय उसकी फततनों की दक
ु ानों से प्रालतहारयक रऩ
भें ऩीठ आकद र्ग्हण कयके पवचयने रगा। ||221||
भावाथय- जफ भॊखलरऩुत्र गोशारक अनेक प्रकाय की आख्माऩनाओॊ
साभान्म कथनों से प्रऻाऩनाओॊ प्रलतऩादनों, सॊऻाऩनाओॊ प्रलतफोधों तथा
पवऻाऩनाओॊ अनुनम वचनों से श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र को लनर्ग्तन्थ
प्रवचन से पवचलरत, ऺुब्ध औय पवरुद्ध न कय सका तफ श्रान्त, ग्खन्न
औय अत्मन्त द्ु खी होकय ऩोरासऩुय नगय से फाहय चरा गमा औय
फाहय के जनऩदों भें पफहाय कयने रगा। ||222||
बावाथत श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र को फहुत से शीर मावत ् व्रतलनमभ
आकद के द्वाया आत्भा को बापवत कयते हुए चौदह वषत व्मतीत हो
गए। ऩन्द्रहवें वषत भें अद्धत यापत्र के सभम मावत ् ऩौषधशारा भें श्रभण
बगवान भहावीय से प्राप्त की हुई धभतप्रऻलप्त का आयाधन कयते हुए
पवचयने रगा।||223||
भावाथय- इसके फाद अधतयापत्र भें उस सद्दारऩुत्र के ऩास एक दे व प्रकट
हुआ। ||224||
भावाथय उस दे व ने नीर कभर के सभान प्रबा वारी पवशार तरवाय
रेकय, चुरनीपऩता के सभान सभस्त उऩसगत ककमे। केवर इतना
अन्तय है कक प्रत्मेक ऩुत्र के नौ टु कड़े ककमे। मावत ् सफसे छोटे ऩुत्र
को भाय डारा औय सहारऩुत्र के शयीय ऩय भाॉस तथा रुलधय के छोटे
कदमे।||225||
भावाथय- कपय बी श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र लनबतम मावत ् सभालधस्थ
यहा।||226||
भावाथय - दे व ने इस ऩय बी सहारऩुत्र को लनबतम मावत ् सभालधस्थ
दे खा तो चौथी फाय फोरा- अये श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्र ! भृत्मु को
चाहने वारे ! मकद तू शीराकद व्रतों को बॊग नहीॊ कये गा तो तेयी
अग्ननलभत्रा बामात को जो कक धभत भें सहामता दे ने वारी, धभत की वैद्य
अथातत ् धभत को सुयग्ऺत यखने वारी, धभत के अनुयाग भें यॊ गी हुई, तथा
द्ु ख-सुख भें सहामक है , उसे तेये घय से राकय तेये साभने भायकय नौ
टु कड़े करॉगा। उन्हें तेर से बये कड़ाहे भें तरूॊगा। उसके तऩे हुए खून
एवॊ भाॉस से तेये शयीय ऩय छ ॊटे दॉ ग
ू ा, ग्जससे तू लचग्न्तत, द्ु खी तथा
पववश होकय असभम भें ही प्राणों से हाथ धो फैठेगा।।||227||
भावाथय- दे व द्वाया इस प्रकाय कहने ऩय बी सद्दारऩुत्र सभालध भें ग्स्थय
यहा। ||228||
भावाथय- दे व ने सद्दारऩुत्र को दस
ू यी तथा तीसयी फाय बी मही कहा
।||229||
भावाथय- जफ उस अनामत ऩुरुष ने दस
ू यी औय तीसयी फाय इसी प्रकाय
कहा तो सद्दारऩुत्र के भन भें मह ऩुरुष अनामत है इत्माकद सायी फातें
आईं। उसने सोचा कक इस अनामत ने भेये जमेष्ठ भध्मभ तथा कलनष्ठ
ऩुत्र को भाय डारा है । उनके टु कड़े -टु कड़े ककए औय भेये शयीय को
उनके रुलधय औय भाॉस से छ ॊटे कदए । अफ भेयी ऩत्नी अग्ननलभत्रा को
जो सुख-द्ु ख तथा धभत-कामों भें सहामक है , घय से राकय भेये साभने
भायना चाहता है । इस प्रकाय साया वृत्तान्त चुरनीपऩता के सभान
सभझना चाकहए। केवर इतना पकत है कक कोराहर सुनकय
चुरनीपऩता की भाता आई थी औय महाॉ ऩत्नी अग्ननलभत्रा आई। अन्तय
मह है कक सद्दारऩुत्र भयकय अरुणबूत पवभान भें उत्ऩन्न हुआ। वहाॉ
से लनकरकय वह भहापवदे ह ऺेत्र से लसपद्ध प्राप्त कये गा। ||230||
टीका - श्रभणोऩासक सद्दारऩुत्रजी की जीवनी से पवलशष्ट प्रेयणा-
1. स्वमॊ की भलत से सही भत की सभझ आ जाने ऩय पवऩयीत
भान्मता छोड़ सही भत की आयाधना कयना कहतकायी है ।
2.फाहयी ऩरयचम का व्मवहाय आत्भकहतकायी नहीॊ होने ऩय लनबाना
उलचत नहीॊ । गुरु फुपद्ध से व्मवहाय नहीॊ कयते हुए बी अनुकम्ऩा वश
व्मवहाय लनबा सकते हैं ।
3. सॊत सलतमों को प्रालतहारयक ऩाट-ऩाटरों के लरए लनभग्न्त्रत कयना
कल्ऩनीम है , लबऺा के लनभन्त्रण का लनषेध अन्म वस्तुओॊ ऩय रागू
नहीॊ होता।
4.स्वमॊ के साभथ्मत नहीॊ होने ऩय मतना यखना कहतकायी है -आराऩ,
सॊराऩ नहीॊ कयना । साभथ्मतवान से चचात कयने का सुझाव दे धभत की
प्रबावना की जा सकती है ।
5.प्रत्मेक स्थर ऩय धभत के साथ ऩुण्म की लनमभा नहीॊ है । ककन्हीॊ बी
कायणों से अनुकम्ऩा वश अन्मतीलथतकों को दान दे ने से ऩुण्म तो होता
ही है , स्वबाव रऩी धभत का सहमोगी अॊश होता है , चारयत्र रऩी धभत
औय तऩ नहीॊ होता है ।
6. श्रावकजी की प्रेयणा से श्रापवका फनने ऩय बी अऩने उऩकायी
श्रावकजी को स्खरना के सुधाय की प्रेयणा कहतकायी है ।

7. याग के अनेक लनलभत्त हो सकते हैं । साभालमक औय ऩौषध भें


श्रभणोऩासक को भाता (तीसया अध्माम) शयीय (चौथा अध्माम) धन
सम्ऩदा (ऩाॉचवाॉ अध्माम) के साथ ऩत्नी (सातवाॉ अध्माम) के याग भें
आकय व्रत की भमातदा बॊग नहीॊ कयनी चाकहमे।

सप्तम अध्ययन
उऩासकदशाांग सूत्र

सद्दाऱऩुत्रजी श्रमणोंऩासक भाग 1

टीम महावीर को जानो ,

प्रासुक जऱ प्रेरणा केंर,ब्यावर

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