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चन्द्रदे व से भेयी फातें –फॊग भहहरा (याजेन्द्र फारा घोष)

बगवान चन्द्रदे व ! आऩके कभरवत ् कोभर चयणों भें इस


दासी का अनेक फाय प्रणाभ | आज भैं आऩसे दो चाय फातें
कयने की इच्छा यखती हॉ | दे खो , सन
ु ी अनसन
ु ी सी भत
कय जाना | अऩने फड़प्ऩन की ओय ध्मान दे ना | अच्छा
,कहती हॉ,सन
ु ों |
भैं सुनती हॉ ,आऩ इस आकाश भॊडर भें चचयकार से
वास कयते हैं | क्मा मह फात सत्म हैं ? महद सत्म है ,तो भैं
अनभ
ु ान कयती हॉ कक इस सष्ृ टि के साथ ही साथ अवश्म
आऩकी बी सष्ृ टि हुई होगी | तफ तो आऩ ढे य हदन के
ऩयु ाने ,फढ़े कहे जा सकते हैं | मह क्मों ?क्मा आऩका
डडऩािट भेण्ि (भहकभे) भें ट्ाॊसफ़य (फदरी)होने का ननमभ
नहीॊ हैं ? क्मा आऩकी ' गवयभेण्ि ' ऩेंशन बी नहीॊ दे ती
? फड़े खेद की फात हैं ? महद आऩ हभायी न्द्मामशीरता
'गवनटभेण्ि'के ककसी ववबाग भें सववटस (नौकयी) कयते होते
तो अफ तक आऩकी फहुत कुछ ऩदोन्द्ननत हो गई होती |
औय ऐसी 'ऩोस्ि'ऩय यहकय बायत के ककतने ही सयु म्म
नगय,ऩवटत जॊगर औय झाडड़मों भें भ्रभण कयते | अॊत भें
इस वद्ध
ृ अवस्था भें ऩेंशन प्राप्त क्र काशी ऐसे ऩन
ु ीत औय
शाष्न्द्त-धाभ भें फैठकय हयी नाभ स्भयण कयके अऩना
ऩयरोक फनाते | मह हभायी फड़ी बायी बर हुई | बगवान
चॊरदे व ! ऺभा कीष्जए ,आऩ तो अभय है ;आऩको भत्ृ मु
कहाॉ ?तफ ऩयरोक फनाना कैसा ?ओ हो !दे वता बी अऩनी
जानत के कैसे ऩऺऩाती होते हैं | दे खो न 'चॊरदे व 'को अभत

दे कय उन्द्होंने अभय कय हदमा - तफ महद भनुटम होकय
हभाये अॊग्रेज अऩने जानतवारों का ऩऺऩात कयें तो आश्चमट
ही क्मा है ? अच्छा, महद आऩको अॊग्रेज जानत की सेवा
कयना स्वीकाय हो तो , एक 'एष्प्रकेशन '(ननवेदन ऩत्र
)हभाये आधुननक बायत प्रबु राडट कजटन के ऩास बेज दे वें
।आशा है कक आऩको आदय ऩवटक अवश्म आह्वान कयें गे
।क्मोंकक आऩ अधभ बायतवाससमों के बाॊनत कृटणाॊग तो हैं
ही नहीॊ , जो आऩको अच्छी नौकयी दे ने भें उनकी गौयाॊग
जानत कुवऩत हो उठे गी ।औय कपय , आऩ तो एक सुमोग्म ,
कामटदऺ, ऩरयश्रभी, फहुदशी, कामटकुशर औय सयर स्वबाव
भहात्भा हैं।भैं ववश्वास कयती हॉ , कक जफ राडट कर्जटन हभाये
बायत के स्थामी बाग्म ववधाता फनकय आवेंगे ,तफ आऩको
ककसी कभीशन का भेम्फय नहीॊ तो ककसी सभशन भें बयती
कयके वे अवश्म ही बेज दे वेंगे।क्मोंकक उनको कसभशन
औय सभशन, दोनों ही,अत्मॊत वप्रम हैं।
आऩके चॊररोक भें जो यीनत औय नीनत सष्ृ टि के
आहद कार भें प्रचसरत थे वे ही सफ अफ बी हैं ।ऩय महाॉ
तो इतना ऩरयवतटन हो गमा है कक बत औय वतटभान भें
आकाश ऩातार का सा अॊतय हो गमा है ।
भैं अनुभान कयती हॉ कक आऩके नेत्रों की
ज्मोनत बी कुछ अवश्म ही भॊद ऩड़ गई होगी ।क्मोंकक
आधुननक बायत सॊतान रड़कऩन से ही चश्भा धायण कयने
रगी है ; इस कायण आऩ हभाये दीन , हीन, ऺीणप्रब बायत
को उतनी दय से बरीबाॉनत न दे ख सकते होंगे ।अतएव
आऩसे सादय कहती हॉ कक एक फाय कृऩाकय बायत को
दे ख तो जाइए मद्मवऩ इस फात को जानती हॉ कक आऩको
इतना अवकाश कहाॅॎ , -ऩय आठवें हदन नहीॊ , तो भहीने भें
एक हदन, अथाटत ् अभावस्मा को, तो आऩको 'हॉसरडे ' (छुट्टी
)अवश्म ही यहती है ।महद आऩ उस हदन चाहें तो बायत
भ्रभण कय जा सकते हैं ।
इस भ्रभण भें आऩको ककतने ही नतन दृश्म
दे खने को सभरेंगे ।ष्जसे सहसा दे ख कय आऩकी फुवद्ध
जरूय चकया जामेगी ।महद आऩसे साये हहन्द्दोस्तान का
भ्रभण शीघ्रता के कायण न हो सके तो केवर याजधानी
करकत्ता को दे ख रेना तो अवश्म ही उचचत है ।वहाॉ के
कर कायखानों को दे खकय आऩको मह अवश्म ही कहना
े़
ऩडेगा कक महाॉ के कायीगय तो ववश्वकभाट के बी रड़कदादा
ननकरे।मही क्मों , आऩकी वप्रम सहमोचगनी दासभनों , जो
भेघों ऩय आयोहण कयके आनॊद से अठखेसरमाॊ ककमा कयती
हैं वह फेचायी बी महाॉ भनटु म के हाथों का खखरौना हो यही
है ।बगवान ननशानाथ !ष्जस सभम आऩ अऩनी ननभटर
चष्न्द्रका को फिोय भेघभारा अथवा ऩवटतों की ओि से
ससन्द्धु के गोद भें जा सकते हैं , उस सभम मही नीयद -
वासनी, ववश्वभोहहनी, सौदासभनी, अऩनी उज्ज्वर भनतट से
आरोक प्रदान कय , यात को हदन फना दे ती है ।आऩके
दे वरोक भें ष्जतने दे वता हैं उनके वाहन बी उतने हैं , -
ककसी का गज , ककसी का हॊ स , ककसी का फैर ककसी का
चहा इत्माहद ।ऩय महाॉ तो साया फोझ आऩकी चऩरा औय
अष्ग्नदे व के भाथे भढ़ा गमा है ।क्मा ब्राह्भण, क्मा ऺत्रत्रम,
क्मा वैश्म, क्मा शर, क्मा चाण्डार , सबी के यथों का वाहन
वही हो यही है ।हभाये श्वेताॊग भहाप्रबु गण को , जहाॉ ऩय
कुछ कहठनाई का साभना आ ऩड़ा , झि उन्द्होंने '
इरेष्क्ट्ससिी (त्रफजरी )को रा ऩिका ।फस कहठन से
कहठन कामट सहज भें सम्ऩादन कय रेते हैं ।औय हभाये
महाॉ के उच्च सशऺा प्राप्त मुवक काठ के ऩुतरों की बाॉनत
भुॉह ताकते यह जाते हैं । ष्जस व्मोभवाससनी ववद्मुत दे वी
को स्ऩशट तक कयने का ककसी व्मष्क्त का साहस नहीॊ हो
सकता ।वही आज ऩयामे घय भें आचश्रता नारयमों की बाॉनत
ऐसे दफाव भें ऩड़ी है , कक वह चॊ तक नहीॊ कय सकती क्मा
कयें ? फेचायी के बाग्म भें ववधाता ने दासी -वष्ृ त्त ही
सरखा था ।

हरयऩदोद्भवा त्रैरोक्मऩावनी सयु सयी के बी खोिे हदन


आमे हैं, वह बी अफ स्थान - स्थान भें फन्द्धनग्रस्त हो यही
है ।उसके वऺस्थर ऩय जहाॉ तहाॉ भोिे वह
ृ दाकाय खम्ब
गाड़ हदए गए हैं ।
करकत्ता आहद को दे खकय आऩके दे वयाज सुयेन्द्र
बी कहें गे कक हभायी अभयावती तो इसके आगे ननयी पीकी
सी जान ऩड़ती है । वहाॉ ईडन गाडटन तो ऩारयजात
ऩरयशोसबत नन्द्दन कानन को बी भात दे यहा है ।वहाॉ के
ववश्वववद्मारम के ववश्वश्रेटठ ऩॊडडतों की ववश्वव्मावऩनी
ववद्मा को दे खकय वीणाऩाखण सयस्वती दे वी बी कहने रग
जाएगी, कक नन्सॊदेह इन ववद्मा हदग्गजों की ववद्मा
चभत्कारयणी हैं।वहीॊ के पोिट ववसरमभ के पौजी साभान
को दे खकय , आऩके दे व सेनाऩनत कानतटकेम फाफ के बी
छक्के छि जामेंगे क्मोंकक दे व सेनाऩनत भहाशम दे खने भें
खास फॊगारी फाफ से जॉचते हैं ।औय उनका वाहन बी
एक सन्द्
ु दय भमय है ।फस इससे , उनके वीयत्व का बी
ऩरयचम खफ सभरता है । वहाॉ के सभॊि (िकसार) को
दे खकय ससॊधुतनमा आऩकी वप्रम सहोदया कभरा दे वी तथा
कुफेय बी अकचका जामेंगे | बगवान चॊर दे व !इन्द्हीॊ सफ
ववश्वम्मोत्ऩादक अऩवट दृश्मों का अवरोकन कयने के हे तु
आऩको सादय ननभॊत्रत्रत तथा सववनम आहत ,कयती हॉ
|सम्बव है कक महाॉ आने से आऩको अनेक राब बी हो
आऩ जो अनादी कार से ननज उज्जवर वऩु भें करॊक की
कासरभा रेऩन कयके करॊकी शशाॊक ,शशधय,शाशाराॊछन
आहद उऩाचध –भाराओॊ से बवषत हो यहे हैं |ससन्द्धु तनम
होने ऩय बी ष्जस कासरभा को आऩ आज तक नहीॊ धो
सके हैं ,वहीॊ आजन्द्भ-करॊक शामद महाॉ के ववऻानववद
ऩष्ण्डतों की चेटिा से छि जाम | जफ फम्फई भें स्वगीम
भहायानी ववक्िोरयमा दे वी की प्रनतभनतट से कारा दाग
छुड़ाने भें प्रोपेसय गज्जय भहाशम परीबत हुए हैं ,तफ
क्मा आऩके भुख की कासरभा छुड़ाने भें वे परीबत न
होंगे |
शामद आऩ ऩय मह फात बी अबी तक ववहदत
नहीॊ हुई कक आऩ ,औय आऩके स्वाभी समट बगवान ऩय
जफ हभाये बभण्डर की छामा ऩड़ती हैं,तबी आऩ रोगों ऩय
ग्रहण रगता है |ऩय आऩ का तो अफ तक ,वही ऩुयाना
ववश्वास फना हुआ है कक जफ कुहिर ग्रह याहु आऩको
ननकर जाता है तबी ग्रहण होता है | ऩय ऐसा थोथा
ववश्वास कयना आऩ रोगों की बायी बर है |अत: हे दे व!
भैं ववनम कयती हॉ कक आऩ अऩने हृदम से इस भ्रभ को
जड़ से उखाड़ कय पेंक दें |
अफ बायत भें न तो आऩके ,औय न आऩके स्वाभी
बव
ु नबास्कय समट भहाशम के ही वॊशधयों का साम्राज्म है
औय न अफ बायत की वह शस्मश्माभरा स्वणट प्रसताभनतट
ही है | अफ तो आऩ रोगों के अऻात ,एक अन्द्म द्वीऩ –
वासी ऩयभ शष्क्तभान गौयाॊग भहाप्रबु इस सुववशार
बायत-वषट का याज्म वैबव बोग यहे हैं | अफ तक भैंने ष्जन
फातों का वणटन आऩसे स्थर रूऩ भें ककमा वह सफ इन्द्हीॊ
ववद्मा ववशायद गौयाॊग प्रबओ
ु ॊ के कृऩा किाऺ का ऩरयणाभ
है | मों तो महाॉ प्रनत वषट ऩदवी दान के सभम ककतने ही
याज्म ववहीन याजाओॊ की सष्ृ टि हुआ कयती है ,ऩय आऩके
वॊश धायों भें जो दो चाय याजा भहायाजा नाभ-भात्र के हैं
बी ,वे काठ के ऩुतरों की बाॉती हैं |जैसे उन्द्हें उनके यऺक
नचाते हैं ,वैसे ही वे नाचते हैं |वे इतनी बी जानकायी नहीॊ
यखते कक उनके याज्म भें क्मा हो यहा है -उनकी प्रजा दख
ु ी
है ,मा सुखी ?
महद आऩ कबी बायत –भ्रभण कयने को आमें तो
अऩने ' पैसभरीडॉक्िय धन्द्वन्द्तरय भहाशम को औय दे वताओॊ
के 'चीप जष्स्िस 'चचत्रगप्ु तजी को साथ अवश्म रेते आएॊ
।आशा है कक धन्द्वन्द्तरय भहाशम महाॉ के डाक्ियों के
सष्न्द्नकि चचककत्सा सम्फन्द्धी फहुत कुछ सशऺा का राब
कय सकेंगे ।महद प्रेग -भहायाज (इश्वय न कये )आऩके
चन्द्ररोक मा दे वरोक भें घुस ऩड़े तो , वहाॉ से उनको
ननकारना कुछ सहज फात न होगी ।महीॊ जफ चचककत्सा
शास्त्र के फड़े-फड़े ऩायदशी उन ऩय ववजम नहीॊ ऩा सकते ,
तफ वहाॉ आऩके 'दे वरोक 'भें जड़ी- फहिमों के प्रमोग से
क्मा होगा? महाॉ के 'इष्ण्डमन ऩीनर कोड ' की धायाओॊ को
दे खकय चचत्रगप्ु तजी भहायाज अऩने महाॉ की दण्डववचध
(कानन )को फहुत कुछ सुधाय सकते है ।औय महद फोझ न
हो तो महाॉ से वे दो चाय 'िाइऩ याइिय 'बी खयीद रे जाम
।जफ प्रेग भहायाज के अऩाय अनग्र
ु ह से उनके ऑकपस भें
कामट की अचधकता होवे , तफ उससे उनकी 'याइिसट त्रफष््डॊग
'के याईिसट के काभ भें फहुत ही सवु वधा औय सहामता
ऩहुॉचेगी ।वे रोग दो हदन का काभ दो घण्िे भें कय डारेंगे

अच्छा, अफ भैं आऩसे ववदा होती हॉ ।भैंने तो आऩसे
इतनी फातें कही , ऩय खेद है , आऩने उनके अनुकर मा
प्रनतकर एक फात का बी उत्तय न हदमा ।ऩयन्द्तु आऩके
इस भौनावरम्फन को भैं स्वीकाय का सचक सभझती हॉ
।अच्छा, तो भेयी प्राथटना को कफर कयके एक दपा महाॊ
आइएगा जरूय ।
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