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कल्पस्थान

अध्याय -1- मदनकल्पम्

वमन-ववरे चन द्रव्यों के गुण -5 - उष्ण-तीक्ष्ण-सूक्ष्म-व्यवामि-मवकाशी

वमन-ववरे चन ययगयों की सों ख्या –

 मदनफल -133  श्यामा-विवृत् -110


 जीमूतक-39  चतुरङ् गुल - 12
 इक्ष्वाकु - 45  वतल्वक - 16
 धामागगव -60  महावृक्ष - 20
 कुटज- 18  सप्तला-शवजनी - 39
 कृतवेधन - 60  दन्ती-द्रवन्ती - 48

कुल ययग - 355 कुल ययग - 245

दे श - मिमवध - जाङ्गल, आनूप, साधारण (सन्दर्भ - च. मव. 3, च.क. 1)

जाङ्गल अश्वत्थ-वटािलकी, िृगतृष्णष्णको, लायमतमिरर, वातमपिबहुलः, ष्णथिरकमिनिनुष्यप्रायो।

आनूपः हं स-चक्रवाक, सुकुिारपु रुषः, पवनकफप्रायो

साधारणः ष्णथिरसुकुिारबलवणभ

चरकानुसार

 वर्ाग, वसन्त - शाखा व पलाशि् (पि)


 ग्रीष्म, वशवशर - िूल (शीणभप्ररूद्धपणभ होने पर)
 शरद् - त्वक् कन्द क्षीर
 हेमन्त- सार
 यथा ऋतु - पु ष्प व फल

आचायग शाङ्गगधर

 वमन ववरे चन द्रव् - बसन्तान्त आिलकी,


 अन्य सभी कायों हेतु - शरद् ऋतु

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भे र्जागार - प्रागुदद्वारे षु, मनवातप्रवातैकदे शेषु

दयर्ानुसार अनुपान -

 वात - अम्लरस वाले द्रव्य


 वपत्त - िधु-परूषक
 कफ- िधु-िूि-कषाय

मदनफल सों ग्रहण-प्रययग वववध-

 विनद्रव्याणां िदनफलामन श्रेष्ठतिान्याचक्षते, अनपामयत्वात्।


 सों ग्रहण-वसन्तग्रीष्मयोरन्तरे - पुष्याश्वयुग्भ्ां िृगमशरसा वा गृहीयान्मने िुहूते (DSRRAU 2013)
 पाण्डु वणभ फल
 कुशपु टे बद् वा - अष्टरािम् - फलमपप्पली (िदनफल बीज) - घृ तदमधिधुपलल

वमन कमग वववध-

 व्यहं त्र्यहं (2-3 मदन) स्नेहन-स्वेदन करवाकर


 ग्राम्यानूपौदकिां सरस-क्षीर-दमध सिुत्क्लेमशत श्लेष्माणि्
 जीणाभ हार की ष्णथिमत िें पू वाभ ह्न िें
 फलमपप्पलीनािन्त खिुमटं + विनोपग िहाकषाय द्रव्य कषाय
 मन्त्रयच्चारण - "ॐ ब्रह्मदक्षामवरुद्रे न्द्रर्ूचन्द्राकाभ मनलानलाः।"
 पु नरामपिागिनात् -
 हीनवेग की स्स्थवत में -- मपप्पल्यािलक-सषभप-वचा कल्कलवणोष्णोदक पुनः-पु नः प्रयोग।

मधु-सैन्धव का प्रययग -

 सवेषु तु िधुसैन्धवं- कफमवलयनच्छे दािं विनेषु मवदध्यात् ।


 न चोष्णमवरोधो िधुनश्छदभ नयोगयु क्तस्य,
 अमवपक्चप्रत्यागिनात् दोषमनहभ रणाच्च

मदनफल के पयागय - Randia spinosa (Rubiaceae)

िदनः, करहाट, रािः, मपण्डीतकः, फलि्, श्वसन आमद।

 नस्य योग-1
 वमतभमक्रया योग-6
 अवलेह योग - 20
 िोदक योग -20
 उत्काररका योग- 20
 कुल योग - 133

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अध्याय - 2 -जीमूतककल्पम्

जीमूतक प्रययज्ाोंग - फल, पुष्प

पयागय - गरागरी, वेणी, दे वताडक (दे वदाली-उर्यतोर्ागहर-शाङ्गंधर)

जीमूतक के पााँच ययग -

→ पयः पुष्पेऽस्य (जीिूतक पु ष्प मसद्ध क्षीर)

→ मनवृभिे फले पे या पयस्कृता (फल कल्क मसद्ध पेया)

→ लोिशे क्षीरसन्तानं, (लोियु क्त फल से मसद्ध क्षीर की िलाई)

→ दध्यु िरिलोिशे। (अलोिश फल मसद्ध दू ध के दही की िलाई)

→ शृते पयमस दध्यम्लं जातं हररतपाण्डु के। (हररतपाण्डु वणभ फल के कल्क से मसद्ध दू ध का अम्ल दमध)

जीमूतक चू णग मािा - शुष्णक्त (2 तोला)

जीमूतकसु रामण्ड - कासे पाण्डु रोगे सयक्ष्ममण।

जीमूतक के 8 मािा ययग - कोलिािास्तु

कुल ययग - 39 (JAM 2011)

Luffa echinata

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अध्याय 3 - इक्ष्वाकुकल्पम्

पयागय- लम्बा, कटु कालाबु , तुम्बी, मपण्डफला, इक्ष्वाकु, फमलनी।

कटु कालाबु - रसक शयधन - र.र.स. (BHU 2013)

वधगमान ययग-50 से 100 तक

चक्रपावण अनुसार-

→ 50 बीज िदनफल क्वाि से

→ 60 बीज जीिूतक काि से

→ 70 बीज इक्ष्वाकु काि से

→ 80 बीज धािागभ व काश्च से

→ 90 बीज कुटज काय से

→ 100 बीज कृतवेधन क्वाि से

अवलेह परीक्षा - च.क. 3/18

 यावत् स्यात् तन्तुित् (तन्तु बनने लग जाये )


 तोये पमततं तु न शीयभ ते (पानी िें डालने पर फैले नहीं)

कुल ययग -45

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अध्याय 4- धामागगवकल्पम्

Luffa cylindrica

पयागय - ककोटकी, कोिफाला, िहाबामलमन, राजकोशातकी

प्रययज्ाङ्ग- फल, पु ष्म, प्रवाल (सुकोबल पि)

ववर्नाशक धामागगव ययग - धान्यतुम्बुरुयू षण कल्कः समवसापाः।

कुलययग - 60

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अध्याय- 5 - वत्सककल्पम्
कुटज)

Holarrhena antidysenterica (Apocynaceae)

पयागय - वत्सक, कुटज, शक्र, वृक्षक, मगररिष्णिका,

कुटज बीजे - इन्द्रयव, कमलङ्गक

इन्द्रयव - अमतसार - 1 पल िािा

मािा - अन्तनभख िुमट, पामणतलं मपबे त् ।

कुलयोग - 18

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अध्याय 6- कृतवेधनकल्पम्

Luffa acutangula (Leguminoceae)

पयागय - श्वेड, कोशातकी, िृदङ्गफल

कृतवेधन वपच्छा ययग - 10

→ शाल्मलीिूलचूणाभ नां मपच्छामर्दभ शमर्स्तिा।

कास रयग में - श्वेडं कासी मपबे त् मसद्धं मिश्रमिक्षुरसेन च ।

शाल्मली आमद मपच्छा योग - 10

कुलययग - 60

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अध्याय 7- श्यामाविवृत्कल्पम्
कुटज)

ववरे चने - मिवृन्मूलं श्रेष्ठिाहुिभनीमषणः।

पयागय - मिर्ण्डी, मिवृता, श्यािा, कूटरणा, सवाभ नुर्ूमतः, सुवहा

मूलों तु विववधों - श्यािं अरुणि्

श्रेष्ठ (मुख्यतरों ) - िूलं यदरुणप्रर्ि् (अरुण िूल वाली)

विवृत् - सुकुिारे मशशौ वृद्धे िृदुकोष्ठे च तच्छु र्ि्।

श्यामा (काली वनशयथ) - िोहयेदाशुकाररत्वाच्छ्यािा मक्षण्वीत िूच्छभये त्।

क्रूरकोष्ठ व बहुदोष िें प्रयु क्त

प्रययज्ाोंग - िूल

मािा-अक्षिाि

सै न्धवावद ययग (12 लवण ययग)- 12

विवृत् लेह / मयदक -

 सेवन काल िें कोई पररहार नहीं (र्क्षये मिष्परीहारिेतच्छोधनिुििि् )

कल्याणक गुड -
कल्याणक गुड़-
 बदर उदु म्बर प्रिाण वटी
 चक्रदि, र्ै.र. - ग्रहणी
 पुं सवनाच,
 सुश्रुत -कास
 सवेषु ऋतुपु यौमगकाः।
कल्याण घृत –
व्यर्ावद गुवटका - (व्योषामद वटी - श्वास कास पीनस)
 चरक- उन्माद
 योगः सवभमवषाणां च ितः श्रेष्ठो मवरे चने
 सुश्रुत - ज्वर
 िूिजानां च रोगाणां (िूिारोगामधकार)
कल्याणकावलेह – काश्यप - गमर्भणी
ऋत्वनुसार ववरे चन ययग - विवृत्
अमतसार
 वर्ागकावलक - िधु के साि
कल्याणक क्षार - वाग्भट - अशभ
 शरद् कावलक - द्राक्षा के साि
 हेमन्ते - उष्णाम्बु के साि महाकल्याणक घृत –
 ग्रीष्मकाले - शकभरा के साि
 चरक - उन्माद,
 Operculina terpethum
 सुश्रुत - ज्वर, उन्माद
कुल ययग - 110
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अध्याय 8 -चतुरङ् गुलकल्पम्

पयागय - आरग्वध, राजवृक्ष, शम्पाक, चतुरङ् गुल, प्रग्रह, कृतिाल, कमणभकार, अवघातक ।

Cassia fistula

गुण - िृदु, िधुर, शीतलः

अनपाय (उपद्रव नही ों करने से ) हयने से -

 बाल, वृद्ध, क्षतक्षीणे, सुकुिार िानवों िें मकया जाता है । अनपामयत्वाद् ।

अमलतास का बालकयों में प्रययग -

 द्राक्षारसयु तं
 चतुवभषभिुखे-द्वादशवामषभके (4 से 12 वषभ के बालक िें)

कुल ययग - 12

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अध्याय 9- वतल्वककल्पम्

Symplocos racemosa

पयागय - लोध्र, बृहत्पि, मतरीटक

लयध्र -दो र्ेद

 शावर - मवरे चक
 पठानी-संग्राही (आिभव संग्राहक)

प्रययज्ाोंग - िूलत्वक

वतल्वक (लयध) शयधन / भावना - दशिूल काि से

लयध्रचू णग मािा - पामणतल (1 तोला)

कुल ययग - 16

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अध्याय 10- सु धाकल्पम्

Euphorbia nerifolia

 मवरे चनानां सवेषां सुधा तीक्ष्णतिा िता।


 कटमवभ्रिा (अत्यन्त कटदायक)

बहुदयर्, क्रूरकयष्ठ - मवरे चन हे तु प्रयु क्त - स्नु ही(सुधा) क्षीर

स्नु ही क्षीर सों ग्रहण - मशमशरान्ते

त्वक्-कन्द-क्षीर संग्रहण (सािान्यत:)- शरद् ऋतु

सों ग्रहण-काल-

मदनफल- वसन्तग्रीष्म िध्य


भल्लातक- ग्रीष्म
आमलकी, नागबला - िाघ फाल्गुन
वमन द्रव् - वसन्तान्ते (शाङ्गभधर)

पयागय - सुक्, गुडा, नन्दा, सुधा, मनष्णस्वंशपिक, िहावृक्ष

गोंधमाल्यों आघ्राय - िृदुकोष्ठी िें रे चन (राजा हे तु)

कुल ययग - 20 (िहावृक्ष के मवरे चन योग -20) (BHU 2013)

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अध्याय 11-सप्तलाशङ् स्िनीकल्पम्

सप्तला पयागय - चिभसाहा, बहुफेनरसा

शवङनी पयागय - मतक्तला, यवमतक्ता, अमक्षपीडक

प्रययज्ाोंग –

शङ् स्िनी - फल
सप्तला - िूल

स्नु हीक्षीर शयधन - अम्लद्रव्यों से (मचंचामद से)

रक्तवचिक शयधन - चूणोदक से

कुल ययग – 39

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अध्याय 12- दन्तीद्रवन्तीकल्पम्

Baliospermum momentum (दन्ती)


,Croton tiglium (द्रवन्ती)

दन्ती पयागय - उदु म्बरपणी, मनकुम्भ, िुकूलक

द्रवन्ती पयागय - मचिा, न्यग्रोधी, िूमषकाया (िूमषकपणी, उपमचिा, शम्बरी, प्रत्यक्श्श्रेणी, सुतश्रेणी, दन्ती,

र(च)ण्डा।

उत्तम दन्ती-द्रवन्ती - हष्णस्तदन्तप्रकारामण

सों ग्रहवववध - मपप्पलीिधुमलप्तामन

सवग ऋतु प्रयु क्त ययग -

 घटक - दन्ती, द्रवन्ती, िररच, यवानी, उपकुमिका, शुण्ठी, हेिदु ग्धा, मचिक
 भावना - गोिूि से सप्ताह तक
 मािा - पामणतल
 अनुपान - घृ त
 फलश्रुवत - सवभरोगहरं िुख्यं, सवेष्वृतुषु यौमगकि्। चूणं तद् अनपामयत्वाद् बालवृद्धेषु पू मजति् ॥

कुल ययग - 48

 वमन ययग - मिशतं पिपिाशद्योगानां (355)


 ववरे चन ययग - द्वे शते नवकाः पि योगानां (245)

वीयग ववरुद्ध द्रव्यों का प्रययग -

ववरुद्धवीयग मप्ये र्ाों प्रधानानामबाधकम्। अवधकों तुल्यवीये वह वक्रयासामर्थ्गवमष्यते॥

सन्दभग -च. क. 12

अल्पस्यावप महाथग त्वों प्रभूतस्याल्पकमगताम्॥

कुयागत् सों ययगववश्ले र्सों स्काकालरयु स्क्तवभ॥9॥

 संयोग, मवश्लेष, काल, संस्कार और यु ष्णक्त के कारण ही पयाभप्त िािा िें ष्णथित द्रव्य िोडा सा (अल्प किभ)
कायभ करने वाला होता है तिा अल्पिािा िें ष्णथित द्रव्य र्ी बहुत अमधक कायभ करने वाला होता है ।

सन्दभग - स्वबुद्ध्यैवं सहस्रामण कोटीवाभ ऽमप प्रकल्पये त् ।

 मर्षक् अपनी बु ष्णद्ध से हजारों तिा करोडो योगों की कल्पना कर सकता है ।

तीक्ष्ण ववरे चक द्रव्-


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सुखं मक्षप्रं िहावेगिसक्तं यत् प्रवतभते॥


नामतग्लामनकरं पायौ हृदये न च रुक्करि्। अन्तराशयिमक्षण्वन् कृत्स्नं दोषं मनरस्यमत॥

अपकग वमनों दयर्ों पच्यमानों ववरे चनम्। .

 विन िें दोष अपक्व तिा मवरे चन िें पच्यिान दोषों का मनहभ रण होता है ।

स्वेदन प्रययग -(Clockwise स्वेदन)

भे र्जों दयर्रुद्धों चे न्नयज़ नाधः प्रवतगते। सयद्गारों साङ्गशूलों च स्वेदों तिावचारये त्।।

 विन/मवरे चन हे तु प्रयु क्त औषध द्वारा िागभ का अवरोध होने पर उनकी ऊवभ/अधः प्रवृमि नहीं होने कीष्णथिमत
िें, बार-बार उद्गार व अङ्गों िें शूल की ष्णथिमत िें स्वे दन का प्रयोग करना चामहए।

बस्ि के बाद ववरे चन-प्रययग-

 रूक्ष-बह्ववनल-क्रूरकयष्ठ-व्यायािशामलनां दीप्ताग्नीनाि् - बष्णस्त (अनुवासन) दे कर - मवरे चन प्रयोग


 स्ने हन ययग्य - रूक्षाशनाः किभमनत्या दीप्तपाबकाः।
 अवतवस्नग्ध - रूक्ष द्रव्यों से मवरे चन
 सों शयधन का ववभ्रोंश - मवष के सिान व सम्यक् योग - अिृत तुल्य होता है।
 For शयधन - मवभ्रंशो मवषवद्यस्य सम्यग्योगो यिाऽिृति्। (वाग्भट, काश्यप - बष्णस्त - अिृतकारी)
 कल्पस्थानयक्त द्रव्यों के मान - िध्य कोष्ठवयोबल वालों के मलये है ।
 चक्रपावण - दृढबलिानं िागधं, सुश्रुतिानं कामलङ्गमिमत ब्रुवते ।

जतूकणे तु षड् गुञ्जको िाषक उक्तः।

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द्रव द्रव् व तत्काल सों ग्रवहत और्वधयाों - मद्वगु ण िािा िें

अनुक्त पररमाणे - सि िािा िें

अनुक्त द्रव हयने पर - जल का ग्रहण

पाद = चतुिभ र्ाग

स्ने हपाक-

और्धकल्क से - चतुगुभण स्ने ह, स्नेह से--- २ चतुगुभण जल (कल्क : स्ने ह : जल = 1:4:16)

स्ने हपाक -3 प्रकार - िृदु, िध्यः, खर।

 तुल्ये कल्केन मनयाभ से र्ेषजानां िृदुः स्मृ तः॥


 संयाव इव मनयाभ से िध्यो दवीं मविुिमत ।
 शीयभ िाणे तु मनयाभ से वतभिाने खरस्तिा ।
 खरोऽभ्यङ्गे स्मृ तः पाको,
 िृदुनभस्तःमक्रयासु च।
 िध्यपाकं तु पानािे बस्तौ (JAM 2013)

स्ने हपाक - तावलका-

मृदु मध्य िर

चरक नस्य पान बष्णस्त अभ्यङ्ग

शाङ्गगधर नस्य सवभकिभसु अभ्यङ्ग

सु श्रुत पानाभ्यवहार नस्य अभ्यङ्ग बष्णस्तकणभपूरण

मानों च विववधों - कामलङ्ग िागधं तिा। कामलङ्गान् िागधं श्रेष्ठिेवं ।

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