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भोजराज विरचितं

दाटिदोत्रम्‌।
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॥ आओगणेशाय नमः ॥
॥ अथ रालिहोत्रं छिख्यते ॥
न मोक

[अथ वर्णः ] |
सितो रक्तस्तथा पीतः सारङ्गः पिङ्ग एव च ।
नीः कृष्णोऽथ सर्वषां तः श्रेष्ठतमः स्मृतः ॥ १॥
शवेतः कपिरुकाकारो नीरो दुवोमरसंनिभः ।
छृष्णो जम्बुफलाकारः शाखज्ञैः समुदाहृतः । २॥
श्वेताभः श्वेतपादश्च तथा स्याच्छ्रवेतरोचनः । 5
चक्रवाकः स विज्ञेयो राजार्हो वाजिसत्तमः ॥ ३॥
सर्वश्वेतो . हयो यस्तु भवेच्छरयामैकव(क)णेकः ।
स वाजी रजयोग्यः स्यच्छथामब(क)णेः प्रकीर्तितः ॥ ४ ॥
चत्वारोऽप्यसिताः पादाः स्वैवणैस्य वाजिनः ।
अयोम्यो भूपतेर्नित्यं यमरूपः प्रकीर्तितः ॥ ५ ॥ 10
यस्य पादाः सिताः सव पुच्छं वं्षस्तथेव च ।
मूधौ भारं सितं यस्य त॑ विदयावृष्टमङ्गरम्‌ । ६ ॥
यस्य पादाः सिताः सर्व तथा वक्त्रे च मध्यमः ।
कृत्याणपद्नकः प्रोक्तः सवेकस्याणकारकः ॥ ७ |
[ इति वर्णः ]॥
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02,./0 द्यामवर्णः {०४ ईयामकणेः, {० धर्वकस्याणकारकः
२ रारिहोत्रम्‌
अथावर्तलक्चणम्‌ |
15 नासिकाग्रे रटरटानरे श्ये कण्ठे च मस्तके ।
आवां यस्य जायन्ते धन्यः ख तुरगोत्तमः ।॥ ८ ॥
हृदि स्कन्धे गङे चैव कटिदेरो तथेव च|
नाभो इक्षौ च पान्त मध्यमास्ते प्रकीर्तिताः ।। ९ ॥
रुराटेऽश्वस्य चावर्तो यस्यैकः संप्रजायते ।
20 स करोयश्रसंघातान्स्वामिनः सूयेसंक्िकः । १० ॥
त्रयो यस्य छरारस्था आवतो अधरोत्तराः ।
त्रिकूटः स च विज्ञेयो वाजिच्रद्धिकरः परः ।॥ ११ ॥
यस्य रुरटे अधरर्ध्वस्थाछ्रय आवती भवन्ति स त्रिकूट इति कथ्यते ।
परः श्रेष्ठो वाजिनां वृद्धिं करोति ॥ ११॥
25 अनेनैव प्रकारेण त्रयो प्रीवासमाभ्िताः 1
जयावतोस्तु विज्ञेया वाजीरोऽयं चृपोचितः ।! १२॥
यस्य म्रीवायां त्रय आवर्ताः सन्ति स वाजीराः वाजिराजा (जः) राजयोग्यः || १२ ।।
एको वापि कपोरुस्थो यस्यावतेः प्रयते ।
रथी(थि)नां च तुरङ्गाणां स इच्छेस्स्वामिनारनम्‌ | ९३ ॥
30 यस्य कपोटे भ्रमरो भवति स वाजी स्वामिनारानं वाञ्छति |! १३ ॥।
गह्ावर्तो भवेद्यस्य वाजिनो दक्षिणाश्रयः ।
स करोति महासोख्यं स्वामिनः दिवसंन्निकः ।। १४ ॥।
यस्य दक्षिणगङ्छाध्रित आवतः स्यात्स रिवसंक्गिकः । स्वामिनो महासौख्यं करोति ॥ १४॥
तद्भदामाश्चयः क्रूरः प्रकरोति धन्यम्‌ ।। १५ ॥
35 यस्य वामगद्ध ्रमरः स क्रूरो मवति } स्वामिगृहे धनक्षयं करोति ॥ १५९॥
8 = ^ 5८० 4.4. 82 तुरन्नात्तसः ६०४ तुरगोत्तमः. | 12 = ^ 5८ 4.10. 81 07018 06 ‰108€
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अथावतैरश्चणम्‌ 1
कणेमूरे यदावर्त; स्कन्धमूरे तथापरः ।
विजयास्यावुभौ तौ तु युद्धकारे जयप्रद्रौ ।। १६ ॥
यस्य कर्णपूरे आवर्तः स्कन्धमूठे च तौ विजयावर्तौ संग्रामे विजयकारिणौ मवतः ॥ १६॥
स्कन्धपार््ै यदावते एको वा यदि वा त्रयः |
चक्रवर्ती स विज्ञेयो वाजी भूपारमन्द्रि । १७ ॥ 40
यस्य स्कन्धपाश्व एक आवर्तः अथ वां जयः स वाजी चक्रवर्तीं कथ्यते।
भूपमन्दिरे ्राह्य उत्तमः ॥ १७॥
कण्ठे यस्य महावर्तो यस्यश्चस्य प्रजायते |
चिन्तामणिः स विज्ञेयश्चिन्तिताथविवरद्धिदः ।॥ १८ ॥
यस्यावर्तो भवेदयुक्तः कश्चान्ते वाजिनोऽद्चुभः । ` 45
स नूनं मृत्युमाप्नोति द्रौ वा स्वस्वामिनारनौ ।॥ १९॥
यस्य कक्षान्ते बाहुमूले एक आवर्तैः स वाजी म्रियते चिरं न जीवति । यदि
ढौ भ्रमरौ वामदक्षिणङुक्षागतौ भवतः तौ महारिषटौ स्वामिनो मृत्यु कुरुतः ॥ १९ ॥
जानुदेदये यदावर्तो वाजिनः संप्रजायते ।
प्रवासतमरणं ब्रूते स भवः छेराकारकः ॥ २० ॥ 50
यस्य जानुप्रदेरे आवतः स वाहः स्वामिनः संम्रामादौ मरणं कारयति ॥ २०॥

अधरोर्ध्वं यदा वाजिसंपुटं न र्प्ररोदयदि ।


यमदूतः स विज्ञेयो बजंनीयः प्रयत्नतः ॥ २१ ॥
यस्यौष्ठसंपुटं न स्प्रुराति न मिति स यमदूतः प्रयत्नेन वर्जनीयः क्षणमपि
गृहे न धार्यः ॥ २१॥ 55

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विजयाख्यावुमो. 21 001४8 06 ?८०5€ | 20 = & 5४५८ 4.23. ए1 ०71४8 ६०८ 7086
7282286. & विजयाठत्तो {० विजयावतौ. 2285286.
17 = 45९८ 4.18. 81 071४5 ४06 1086 |2 = 66५८ 4.28. ^) अधोऽदूव नच, 2, अधोध्व
7258286. 82 आह्यसुत्तमः ( ण 70085 ) | च {07 अघरोवं. एः वाजी {०८ वाजि.
{०४ भ्राह्य उत्तमः. 87 वलेनीयः {०> वर्जनीयः. 81 070४8
18 = 46५८ 4.19. ४0€ 7०86 98588४6. 489) व जेनीयः
19 = 48९८ 4.22. ए1 ® ४६ ४1€ 2686 {०1 बजनीयः, & भदे ६०? गे,
¢ शारिषोत्रम्‌
हीनदन्ता(न्तो)ऽधिकच्यैव करारी कृष्णताटुकः ।
सुश्री च तथा शङ्खी षडेते स्वामिघातकाः ।॥ २२ ॥
यो हीनदन्तः, अधिकदन्तः, करारी, इष्णताटुकः, मुशकी, श्यङ्जी, एते
षटूपरकाराश्वाः स्वामिघातका भवन्ति | हीनदन्तीऽधिकदन्तोऽश्वः स्वामिहन्ता ।
60 यस्याधरोष्ठादृध्वौटो ठम्बों भवति स करारी संहारकारी । वा, ऊरध्वदन्तपङ्क्ति
मध्येऽधोदन्तपङक्तर्विदाति स करारी दुष्टः । संहारकारी कष्णतादः प्रसिद्धः
स स्वामिभार्थीहन्ता । यस्य पादा एकवणीः दारीरमन्यवर्ण स मुरार मतुः
क्ेराकरः । शङ्गा तु श्ङ्वान्‌ भवति } सं स्वामिनं मारयति ॥ २२॥
एकाण्डोऽप्यथ वा च्यण्डो दीनाण्डोऽशधोऽधिकाण्डकः ।
05 परिसयाज्यः स वाञ्छद्भिः पार्थिवैः परमं यशः ।। २३ ॥
एकाण्डो वाजी स्वामिनं स्वामिमायी मारयति । स्पष्टार्थः ॥ २२३ ॥
षट्पदाभो भवेद्यस्तु छृष्णताद्धने दुष्यति ।। २४ ॥
यो वाजी भ्रमरसददावर्णः स कृष्णता दोषावहः ॥ २४ ॥
चन्द्रादियो करटी नृपाणां जयवधेनौ । २५ ॥।
70 यस्य रुखाटे श्नमरदर्यं तौ चन्द्रादित्यौ जयकारिणौ ॥ २५ ॥
मुखं प्रसार्योध ऊर्ध्व करोति स कामहानि करोति । हृदये यस्य॒ मयोः प्रनायन्ते
स संग्राममध्ये मारयति | श्श्नमरे मित्रवियोगः । वानराक्षो बिडाखाक्षस्तो
स्वामिष्ठेदाकारिणौ । पृष्टे भ्रमरः स संप्रामे स्वामिहन्तां । कटयां श्मरद्रयं स
स्वामिभ्रातव्धं करोति । यस्य मुखे भ्रमरो मवति स स्वामिनं मारयति । यस्य
75 नासिकायां रमसे मवति स विद्युत्पातं करोति } यस्य छुखटे त्रयाणां अमराणां
म्रेणिः स श्रेणिको नाम जयकारी ! यस्य रुरटे ्नमरचतुष्टयं स चतुरङ्किको
नाम । सोऽपि जयकारी । छर्ं ददाति । जयं करौति } मिष्टानमोजनं ददाति ।
यस्यैौषटप्रान्ते आवतः स पुलपौत्रदृद्धिप्रदः । चिबुके यस्यावर्तैः संग्रामे विजयं
छष्ष्मीमावहति । उससे श्रमरदयं स्वामिगृहे छरध्मरविधते ।

22 = ^ &०० 4.29. 4847 दीनदन्ताधिकश्चैव, 8 ०720;४७ स स्वामिनं मारयति । यस्य


ए, इीनदन्तादिकन्चैव {0" हीनदन्तोऽधिक- नासिकायां अमरो भवत्ति। 21 नामा {0:
सैव, 8 षडेते {0४ षडेते. 21 ०7;४७४16 माम (जयकारी ). 3 चतुरद्रीको {०४ चतु-
056 988 8९९€. & शक्घवान्‌ {0४ दङ्गवास्‌,
23 = ^ &०८ 4.30. 81 0०११8 ४06 7217086.
रङ्को. 2, यस्यो {० यस्यौष्ठ. 1
24 = ^६९० 4338४. 81 0५८६ {€ "086. श्वृष्िप्रदः, 82 दृर्धिप्रदः 02 श्वृद्धिप्रदः.
283 ०00४8 € 82४४८ 24 »६४ ६४6 41 चीञ्ुके, 89 चुष्ुके {0४ चियुके, ^©,
7086 ‰ ४88१६४६. बह्नौ ( 9&{0८6 ८५८८९०६० ) ए भ्रमरदये
25 = 68९० 4.11. 2817 श्वद्धनौ, 2५ ववत्धनौ 10? भ्रमरद्यं (0४ ५१५८ 8६८६6109 ).
` {०7 ग्व्षरौ. 8१ 0५1६8 {16 ०8९. 0 48170 वदधते {०८ वधते, ए ००४8 ६१€
०००३४७४ ४1€ 8४८ 25. 32 णण ४8 सः. 9६८ 25 8{४€४ {16 086 2982826,
अथौश्वप्रभणभ्‌ ५,
स्थातां स्तनौ यस्थ तु कोददेशे 80
स राञ्यभङ्गाय मवेरस्तनी तु ।
तथाजिनरवैन( नेनैन १ ) समानवर्णो
बाहखिकर्णी द्िखुरी न रास्तः ।। २६ ॥
प्रासाद्ध्वजतोरणाकृतिधुर्निस्तरं(खि)ददाङ्खोपमा
वेदीस्वस्तिकमस्स्यपूणेकरदाश्रीवत्सदक्संनिभाः । 85
आवत यदि तोरणादिद्युभदैः संपूजिता बाजिन-
स्ते सर्वेऽपि महीपतेः प्रतिदिनं सौख्याथकीरिप्रदाः ॥ २७ ।।
ये भ्रमराः प्रासादध्वनतोरणधनुःशद्खवेदीस्वस्तिकप्रणैकुम्भश्रीवत्ससद्दाकारा
भवन्ति, ते निजस्थानगता अपि सवैऽपि रोमनाः, सत्कीतिपुत्राथसोल्य-
कारिणः ॥ [ २७ ]॥ 90
| इति भ्रमरछरक्षणम्‌ ॥

॥ अथश्वप्रमाणम्‌ |

सप्रविराप्रमाणेन सुखमश्चस्य शस्यते ।


कर्णो षडङ्गुरौ भोक्त ताखकं चतुर्गुरम्‌ ।॥ २८ ॥
सप्तविंरातिसप्राढथः स्कन्धश्च परिकीर्तितः ।
प्रवरे चतुविरात्सप्रविंशत्तथा कटी ॥ २९ ॥।
अतिसूक्ष्म तथा निग्न पुच्छं हस्तद्वयोन्मितम्‌ । 95
चिङ्खं हस्तप्रमाणं तु तथाण्डौ चतुरङ्गुल ।। ३० ॥
स्कन्धस्यानं चतु्वंशद्धदयं षोडशोन्मितम्‌ ।
कटिकक्ान्तर प्रोक्तं चत्वारिरदासमाणतः । ३१ ॥

26. 22 स्तनि {0 स्तनी. ३, समानवणौ {०२ {०7 स्तु रण°, 22 °वेदि० ०: ग्वेदीर.
समानव्ो. 82 "करणि दिखुरि 20 °कर्णी |28 = 46४५ 6.7. 282 ०11४5 अथ. 2.47 सक्ता
दिरी. {01 सप्त 2840 ग्रोतौ ०" मक्त.
27. ए, निस्तं श {०८ निचि. ^ प्रसाद्‌० ६07 |29 = ^€ 6.8. 1 प्र्टवंदो ६0? पृष्ठवंशे. 22
प्रासाद०. 21.27 वेदि 0" वेदी°. 22 °विंशस्तथा {07 विरत्तथा.
24485 ते सर्वेऽपि महीयते प्रतिदिनं सौख्या- |30 = ^&०८ 6.9. ^> चतुरङ्गुला, 82 चतुर-
थेकीतिप्रदः। 116 9८८९ 27 15 ००१४६९॥्‌ गरलः {07 चतुरह्गुखा,.
१० 211 1458. 81 ०००४७ 6 7056५ 31 = 2६१८ 6.10. ‰ षोडषो°{01 षोडशो०. ^
8 शारिहोन्रम्‌
मणिबन्धं चैव खुसश्च चतुरद्गुखः
100 अरीत्यङ्गुरु उत्सेधो दर्ये च द्विरातद्यम्‌ ।। ३२ ॥
एतत्क्रमेण गात्रस्य प्रमाणं वाजिनाभिति ॥
आस्य अजो केराकरकाटिकाश्च
दीर्ध चतुष्कं तुरगस्य शस्तम्‌ ।
तथोन्नते घ्राणपुटं रुखाटं
105 दाफाश्च तज्ज्ञाश्चरणा वदन्ति । ३३ ॥
मुखं मुजो केदाः कटी दीघौः शोभनाः । नासिका ख्लाटं खुरः पादां
उनताः श्रेष्ठाः ॥ ३२३ ॥
ओष्ठौ च जिह्वा स्वथ तालुकं च
मेद च रक्तं भद हयस्य ।
110 रुघूनि बन्धश्च मणेस्तु कोष्ठ
श्रोत्राणि सवांणि तथैव पुच्छम्‌ 1! ३४ ॥
[ इति अश्वप्रमाणम्‌ | ॥

[ अथ वेगः 1 ॥
गुणानामिह सर्वेषां गुणो वेगो मयोदितः ।
तस्मात्सवैप्रयत्नेन वेगो वै वायुरुक्षणम्‌ !। ३५ ॥
अवाहिता विनदन्ति विनदयन्त्यतिवाहिताः ।
115 अश्वानां वाहनं पथ्यं सादरा च मोरा(क्ष)णम्‌ | ३६ ॥
अधमा मध्यमास्ते तु मध्यमाश्च तथोत्तमाः ।
उत्तमाग्योत्तमा भूयो वाह्यमानास्तुरङ्गमाः । ३७ ॥
आरोहणं हये शरेष्ठं तर्मिञ्श्ेष्ठं प्रतिष्ठितम्‌ ।
आरोदणविहीनस्य र्ण चप्यरुक्षणम्‌ ॥ ३८ ॥
32 = ^ €%८ 6.11. ^ खुराशचतुरङ्गलाः {01 |34 = 25५८ 6.15. 6 अष्टौ {0 ओष्टो. + लधु
खुराख चतुरङ्गलाः. 21उदछेधों {०८ उत्सेधो 07 रुध. ^ 81.57 को ० कोष्ठं 2 2,.7)
81.21 -८०त इदमङ्गप्रमाणमिति € पुछं {०८ पुच्छं
32 3580 == 6.5८ 7.1.
33 = & 6१८ 6.14. ए, तथोन्नता {० तथोन्नते, |36 = ^ ८ 7.3.
4 7 तदूज्ञाः, 22 तच््ाः {०८ तज्ज्ञाः, ए81 | 37 = ^.5४८ 7.4.
०1४8 ८०८ 7०७८. ^ केशः {07 केशाः. । 38 = & 5९८ 7.5.
अथोरीहणम्‌ >७
गन्धो बणे: स्वरः सत्वं छायावर्तो गतिस्तथा | 120
स्थानकं चैवमत्राहुहेयरुश्चणमष्टधा । ३९ ॥
रूपावता गतिदखछाया सत्तं बणैः स्वरो बलम्‌ ।
जवहीनस्य वाहस्य सवेमेतच्निरथेकम्‌ ॥ ४० ॥
अष्टाभिगुणे्युक्तोऽपि वाजी, एवेन वेगयुणेन रहितो न किचित्‌ । तस्माद्वेग
एव प्रधानः || ४० ॥ 125
गतेधेन्यतसे वर्णो बणीद्धन्यतरः स्वरः ।
स्वराद्न्यतरं सत्वं सर्वं सचे प्रतिष्ठितम्‌ ।॥ ४१॥
छघुर्वं माव्दोषेण पिव्रदोषेण जायते ( जाडथयता ) ।
दौबेस्यं स्वामिदोषेण स्वदोषो नास्ति वाजिनः ॥ ४२॥
जवो हि सपः प्रथम विभूषणं 130
त्रपाञ्गनायाः छराता तपस्विनाम्‌ ।
श्रुतं द्विजानां धनिनामगवेता
पराक्रमः शाख्जबरोपजीविनाम्‌ ।। ४३ ॥
वक्षोजैदैरिणाधिपपरतिनिभैव्यघ्रोपमेबाहुभि-
ररवर्तेश्च शुभैः प्रधानङ्करुजाः सुम्रगब(सस्तिग्ध)वणैप्रभाः । 145
उष्टाक्षाः भ्रियद्दौनाश्च सुभगाः ासैः सुगन्येश्च ये
धन्यास्ते जयराज्यवित्तसुखदाः संनाहिका भूपतेः ।॥ ४४ ॥
एवमुक्तरक्षणा राजवाहनयोग्या नान्ये ।। ४४ ॥
[ इति वेगः ] ॥

[ अथारोहणम्‌ ] ॥
` ऊरू सिरौ यस्य चरो च पादौ
तरिकोन्नतः सिंहसमानचित्तः | 140
स वाजिवाहः कथितः प्रिथिव्यां
दोषा नरा भारवहा हि याने । ४५ ॥
कुपिते पुच्छसंस्थाने भ्रान्ते जायुद्रये तथा ।
सवेथा प्राप्दण्डस्य दण्डमेवं निपातयेत्‌ ॥ ४६ ॥
पिमो

40 = ^ €१५८ 4.6. 42821) गतिः छाया {07 गति- |44 = ^ ६४८ 7.13.
छाया. 21 0०1४७ ध1€ 71086. 82 "वित. {07 भवितत. 41) संज्ञादिका {07
41 = 2.56 7.7. ^ 87; सव॑सत्तवे 07 सवै सत्त्वे. संनाहिका.
42 = ^ 6८ 7.8. 45 = 8.4. 22 उरू {०४ ऊरू. ^ नारा {० नरा.
43 = & 57५ 7.9. 4 बिभूषणं 07 विभूषणं ,8: |46 = ^६९८ 8.11. 481.27) पु {07 पुच्छ.
श्रता {01 श्चुत. 22 पमराप्तदण्डाश्च {0 प्राप्तदण्डस्य.
८ शारिषदोत्रध्‌
145 अश्थाने ताडितो वाजी बहुन्दोषान्प्रकाशचयेत्‌ ।
तावद्भवन्ति ते दोषा यावज्जीवत्यसौ हयः ।॥ ४७ ॥
अद्ण्डो न गुणान्छयात्तस्मादण्डं प्रधारयेत्‌ ।
वाद्यो बुद्धस्तथा रोगी दत्तखेहो महाबरः ।। ४८ ॥
सवोतिरिक्तकोषश्च गर्विणी न च वादयेत्‌ ।
150 अतिश्रान्तोऽतिचरद्धश्च निःस्नेदोऽतिकिरोरकः 11 ४९ ॥
रिरामोक्षे कृते तेषां प्राणदयनिमेवेदू
धुवम्‌ ।
धनुर्यादश्च प्रोक्तं वाजिनां मण्डर कऋमत्‌ । ५० ॥।
सर्म च विपुर चैव किंचित्पांशुसमन्वितम्‌ ।
एकान्ते वाजिने(विजने)चैव रङ्गभूमिं हर्य नयेत्‌ ।॥ ५१ ॥
155 सार्द्रं च कठिनां चैव पाषाणोदकगतेकाम्‌ ।
तृणकाष्ठसमायुष्तां रङ्गभूमिं विवजेयेत्‌ ।॥ ५२ ॥
विण्मूत्रं कारयेद्‌शं कोडाकोाद्रयान्तरे ।
उदकं पाययेत्कामाद्‌ धासपु( मु )@ च जीयेते ॥ ५३ ॥।
रक्तपित्तविकारे च दातव्यं शकंरोदकम्‌ ।
160 जीवनं वातपित्तन्नं वृष्यं बरुमरं ततः ॥ ५४ ॥
क्षीरं चृतसमायुक्तं वारे क्षीतं तुरंगमः ।
पीत्वा परियजदोषान्भरमभाराध्वसभवान्‌ ।! ५५५ ||
सायं कर्यै परथिवी निहन्ति
हेषन्ति ये स्वामिगुख निरीक्ष्य ।
165 प्रदक्षिणावतेविकीणेपुच्छा
जयाव्हास्ते समर चपाणाम्‌।। ५६ ॥
[ इत्यारोहणम्‌ | ॥
4 = ^ 5४५ 8.13. & अस्थान्ये {० अस्थाने. |51 = 5४८ 9.236५ ४०५ 2420. 422 वाजिनं
48८५ = & ऽ९८ 8.22. &87 बाल्ये {07 {० विजने
बास्यो 52 = &5?८ 2400 804 2529. ^ विवजेयेत्‌
4929 = 8.2329. ^ सवातिरिक्तकाष्ट्व, ए; {0 भिवजंयेत्‌,
कोषटश्च {०9 सवांतिरिक्तकोटश्च. 81 गुर्विणी |53 = ^+§प५ 2500 9०4 2629. ए: विण्सुचरं
{0 गुर्विणीं, 6. "धश्च {गः श्वृद्धश्च, ^+2॥ 107 विण्मूर्रं
निस्नेदो {० निःस्नेहो 54 = &§$० 9.34 ५५ ४०५ 35४9.
50०५५ = 45०८ 9.1५. &7> मवेश्वव, 81. भवेत्‌ |55 = ^5५ 9.36
भ्रुवं {०८ भवेदुन्ुवं 56 = & 5४५ 9.39. 41.37 पुखा {91 पुच्छा,
अथं केष्मर्करु्चणम्‌ ९,
[ अथ छेष्मरक्तखक्षणम्‌ ` ॥
भाषाटस्मये प्राप्रे ैरमोक्ष( क्षे)ण करस्नशः ।
तस्मारसंरोधयेद्रक्तं वाजिनो दोषसंभवम्‌ ।। ५७ ॥
यदि रक्ताधिको वाजी शष्पमश्ाति कााचेत्‌ |
रक्तारसंजायते पित्तं पित्तान्नारमवाप्ठुयात्‌ ।! ५८ ॥ 170
रक्तदीनो यदा शष्पं रक्छोऽन्नाति तुररगमः ।
तदा वार्यं परं प्राप्य सद्यो नाशमवाप्लंयात्‌ ।। ५९ ॥
रक्तपिन्तप्रकोपेन यदा संपीडयते हयः ।
तदा कण्डूः समासाद्य घषेयेदसततं वपुः | &० ॥
छायां वाञ्छति यत्नेन विदेषेण जलखश्रयम्‌ । 175
मुहबोज्छति पानीयं रक्तपित्तातुरो हयः ।। & ९ ॥
शिरामोक्षं विधायास्य दद्यारकटुकं गुडम्‌ ।
ततः शुद्धिमवाप्याथ नीरोगः संभ्रजायते ।। ६२ ॥)
श्ेष्मरक्तमकोपेन यदा संपीडथते हयः
अधोवक्त्री भवेन्नित्यं कासते"च युद्धसोहुः ।॥ ६३॥ 180
आहारं न च गृह्णाति नोत्साहं रुते यदा ।
नासाम्रेण क्िपेत्तोयं वदह्धिमातपमिच्छति । ६४ ॥
क्िसमोश्चं विधायास्य ददयाच्छ्ण्छ्या समन्वितम्‌ ।
धृतं शुडसमायुक्तं येनारोग्यं प्रपद्यते । ६५ ॥।
द्रेमता ।
नेत्रप्रान्तेऽश्चुपातेन कण्डूस्तस्यो 185
स हि मृ्युमवाप्रोति षण्मासाभ्यन्तरे हयः ।। ६& ॥
यस्य नेत्रान्तेऽश्रनिन्दुधारापर्वी निपतति तस्योदरमध्ये कण्ड्स्त्पनेति ज्ञेयम्‌ |
तस्य चिकित्सा नास्ति । स षण्मासमध्ये निपतेत्‌ | ६६ ॥
57 = ^ 5५ 10.3५0 ४०५ 427. ^ए2> शरा- च्यते {0८ संपाच्यते. 22 अधोवगत्रो {०
मोस्लण ६०४ शिरामोक्षेण. अघोवक्त्रौ. 28}. ०५५ इद्‌ चेष्मरन्त-
58 = & 5४५ 10.566 29१ 68४7. नो खक्षण 2६८४ 63.
59 = 5४० 10.700 ०५ 880. ¢ 82 रकन |64 = ^&०५ 10.150 9०१ 16०4. 8.7 क्षिप-
{0४ रक्तदीनो, तोयं {०४ क्षिपेत्तोयं. 21 इति, 82 इस्छति
60 = 4.8८ 10.964 276५ 10290. 413 कण्डू , {97 इच्छति,
22 कण्डं {01 कण्ड्‌.
61 = ^ 6५८ 10.106 274 1129. 65 = 457० 10.17
62 = 65९० 10.12. 82 लिरोमोक्षं {0 रिरा- |66 = 45४८ 10.18. 41) कण्डुः 0४ कण्डुः, ए4
मोक्षं. 8» निरोगः {० नीरोगः. 07015 ४106 7086. 488> निपतयेत्‌
63 = ^ §१५ 10.147 ३०१ 1527. &.ए2 सेपि- {07 निपतेत्‌
१० शाकिहोत्म्‌
शरण्या युतं गोक्षुरकं धृतं च
190 दयामावचादिष्गुयुता च यष्टिः |
कफप्रणाश्चाय विनिर्भितोऽ्यं
पिण्डः प्रसिद्धश्य कषोदयेञ ।॥ &७ ॥
कुश्षिद्रये श्रतं तीन्रं यहुः श्वासं च मुक्ति ।
नैकत्र रमते स्थातु हेषते च निरगैटम्‌ ।॥ ६८ ॥
195 वातरक्तार्दिते तस्मिञ्दिरामोक्चं विधाय च।
घृतयुक्तं रोहःचृर्णं दद्यादश्चिकित्सकः ।। ६९ ॥
संनिपातोत्थरक्तेन यदा संपीडयते हयः |
तदा वेपथुमाप्रोति कासते च निरगेखम्‌ । ७० ॥
निद्रारुस्याम्निमान्द्यानि पुरीषं च मुहुः स्रजत्‌।
200 कणेयोः पतने चेव वक्त्रे खरखविमोश्चणम्‌ । ७१ ॥
तदा संरोधयेद्रक्तं तता रुङ्घनमहति ।
यावहोषस्य निनोदाः स्तोकोदकल्रतादानः ॥ ७२ ॥

चिदुष्णं कचिच्छीतं कचिद्धेषजरसंयुतम्‌ ।
चिकित्सायुत्तितत्त्वज्ञेवीरि वार्य न कर्दिचतु | ५३ ॥
205 शिरीषं श्रीफरं वाम्लबवेतस चैव बद्धिमाक्‌ ।
मन्दाग्नि वायुदोषं च वाजिनां शमयेदूघुवम्‌ ।। ७४ ॥
नीरुपीते च नेत्रान्ते भवेतां वाजिनः कचित्‌ ।
स निवौणमवाप्रोति त्रिभिमासेरसेदायम्‌ ॥ ७५ ॥
67 = ^€ 10.19. , |73 = 5८ 10.2५५ ४०१ 2920. ^ रितं {ण
68 = ^§१८ 10.200 ००१ 219. 47 घतं रीतं. 81 °तद्ध्ञेः {07 तत्वज्ञ
{0८ धरत, 74 = 6.5८ 10.306 १४५ 3128. 42,13
69. ^ °रक्ताद्विते, 8१ °रक्ताददिते ६०" °रक्तार्दिते हिरीष, 2 शिरि(ष) ०" शिरीषं. ^
70 = &§८ 10.256 ४०त 2628. एः) दृद्धमाक्‌, 81 इद्धिमाग, (2) {० बइद्धिमाक.
निरमं {9८ निरगैल. 481 20८2) मन्दाभि ६८ मन्दा्चि. ^
71 = ^€४५ 10.266 2०॥ 2728. 22 वपुष रामयेध्ुवं, 1 दामयेस्रवं 07 शमयेदु ध्रवं
{07 पुरीष. 81 मुहु 101 सुहु. 32 वर्त्रं {07 |75 = &§०८ 10 34८. 22 निरपिते {0८
वक्त्रे. 5827 काटखा० {०7 रालः नीलपीते. ^ आप्रोति, 21 अवाऽप्ोति {0
72 = & 8१८ 10.2700 2४१ 2820. ^ सष्टसि अवाप्रोति. ^.) अस्तंरायः ६०८
{0 अहते. ^ “टक °{० (दक असंशयम्‌.
अथ रक्तमोक्षणम्‌ ११
जिह्वायां जायते निन्दुरकस्माद्यस्य वाजिनः ।
छरष्णस्तु जीवते मासं स वाजी नात्र संदायः ॥ ७६ ॥ 210
यस्य जिह्वायां कष्णविन्दुर्द्यते तस्य मासमात्रेण मृत्युः । ७६ ॥
पद्वभिर्नीरर्वरतैश्च षड्ूमियैजनिभेस्तथा ।
सप्तभिः पाटखकरिमवभिः पीतसंनेमैः । ७७ ॥
जिह्वायां नीखचिन्दुभिः पञ्चमासं जीवितम्‌| वज्व्णैहरकवर्णैः [ षण्मासं |
जीवितम्‌ | पाटख्वर्णैः । श्चतरक्तस्तु पाटः । तदाकारः [ स्तमासम्‌ ] 1! 15
पीते [ वमासं ] जीवितं नाधिकमिति ॥ ७७ ॥
यस्य श्वासो भवेदुष्णः शरीरं पुरुकाङ्कितम्‌ 1
जहा च कटिनाकारा मासषट्कं न जीवति ॥ ७८ ॥
यस्य नेत्रे हारिद्रामे स्यातां बातादिभिस्तथा ।
तस्यायुः सप्रमासाख्यं मुनिभिः परिकीर्तितम्‌ ।। ७९ ॥ 220
यस्यैकं रोचनं नीरं हती रक्तसंनिभम्‌ ।
वातपित्तादितो मासैनेवभिगरेत्युमि( म )च्छति ॥ ८० ॥
[ इति @ष्मरक्तलक्षणम्‌ । ॥

[ अथ रक्तमोक्षणम्‌ | ॥
दिसप्ततिसहस्राणि नाडीनां संभवन्ति च ।
वाजिनामिह सर्वेषां यासु रक्तं व्यवस्थितम्‌ । ८१ ॥
तासां निरमोचनाथोय द्वाराण्यष्टौ वदाम्यहम्‌ । 225
अश्वदारोरे नाडीसंख्या ७२००० | तासु दाराण्यष्टौ । तानि कथ्यन्ते ॥ ८१ |

गणरशश्गोरोे

76 = ^ §४० 10.36. 5, जिवते यासं {०४ जीवते |78 = ^ ० 10.40. 1.2 करटिणाकारा {०
मासं. 81 ०००४७ € "056. 821 दशयते कठिनाकारा. 82 मासष {07 मासषट्कं.
{01 दश्यते. । 79 = ^ 5४८ 10.45. 4 परिकीरत्तीतं, 7 परि-
77 = ^ §९८ 38239270. ‰.821) षड्भी {० कीत्िर्तं, 22 परिकिर्तितं ०" परिकीर्तितं.
षड्गि०. 8» पादला० {०८ पाटला०. पित |80 = ^&०८ 10.47. 4281 -संन्निमं 707 ससंनिर्भ.
{०४८ पातर. 8१ 01018 ८ € 77056. 41) 42, रहितो {० गदितो. ^.) इछति
मास ८५ जीवित. 4851 मसि ^ जीवितं, ( एश्ती ) {०८ ऋ्छति.
मास «७, मास ९. ०" षण्मासं, सप्तमास्षं 294 |81 = ^ €१८ 11.181 0111056 € 1086, & 7
नवमास्ं 76866४१6]. 0703६ संख्या,
१२ शरितम

कक्षे वक्षसि भारे च नासयोस्तु मुखे तथा ।


अण्डयोरथ पादेषु पाश्वयोर्भयोरपि ॥ ८२॥
एषु स्थानेषु गुरूपदेदात्सम्यद्नाडी परीक्ष्य शिरामोचनं कुयीत्‌ ॥ ८२ ॥
230 अन्ये स्रद प्राहुः रिराद्ाराणि वाजनः ।
येषु रक्तं खतं सद्यः करोति परमं सुखम्‌ । ८३ ॥
गुर्फे गरे तथा मेदे कक्षन्ते चैव पत्रक ।
गुदे पुच्छे च बस्तौ च जङ्घयोः सवेसंधिषु ।॥ ८४ ॥
जिह्ययामधेरे चष्टे स्कन्धयोरुभयोरपि ।
235 कणेयोमीणिबन्धे च रुधिरं सावयेदूलुधः ॥ ८५ ॥
अथातः संप्रवक्ष्यामि प्रमाणं रुधिरस्य तु ।
रातं च मुखगदेभ्यः कक्षयोः दातसप्यथ ।] ८& |]
रातस्यार्धं भारुदेदो पुच्छादेवं च मेदूतः |
जङ्वयोरुभयन्मिव सखावयेत्पच्विंशातिः । ८७ ॥
240 द्यदरौव रदे प्राहुरेतस्स्थानेषु बुद्धितः ।
रोगकाख्वयोवस्थायञुसारेण रुधिरं छावयेत्‌ |
यावद्रणविपयासः सावयेत्तावदेव हि । ८८ ॥
यावद्रर्णवेपरीत्यं तावद्रधिरं छाव्यम्‌ | ८८ ॥
रक्ताद्रोगपरीश्चाय पौत्तिकं पीतवणेकम्‌ ।
245 कालिकासंनिभं चेव श्ेष्मरं पाण्डु पिच्छलम्‌ | ८९ ॥
82 = ८५६४८ 11.3. 4 वेशष्यसि 107 वक्षसि. 81 |86. 22 संवक्ष्यामि {०५ संप्रवक्ष्यामि.
००१६७ ६४८ ०8९. ^ एड ०८०३६ |87. 87) अ {गः अर्ध, 6 8,.77 पुछा {07
82प€ 82. पुच्छा९. 81 दूतः {० मेदूतः. 2 यश्च
82. 82 स्थनिषु {०7 स्यनेषु. एध ००१६ टप {0" पञ्च.
82 ४१६६४ € 056 ?2888 ६९. 88. 81 00118 € 7056. ‰&2; रोगकालं
83 = 2८ 11.5. 21 प्राह {67 प्राहुः. 51 तषु {07 रसोगकाक०. ए. सावयेतावदेव {८४
१०६ येषु. 48172 रक्त, 82 रक्तः {07 रक्त सावयेत्तावदेव,. 81 02118 6 1८086.
६4. 81 पुखी, ^8>] पु ०7 पुच्छे. &.8 वैपरित्यं {० वैपरीवयं.
85. & 7) जिह्वायां चाधरे वोषठे 1९7 जिह्वाया- |89. 81 2 °परिक्षा ०" "परीक्षा. 2, पतिक {०
मधर्‌ चैष्टे. 51 चेष्ट व चष्टे 45) पैत्तिकं, 48, सन्निभं {०7 संनिमं. ^8...
कणयोश्च मणिदन्धे {07 कणयोमणिबन्धे च, पिटं {० पिच्छल,
अथं ारत्कारुचिकितसा १३

कफोद्धवं कलुरकं ज्ञेयं पिन्तरिरागतम्‌ ।


सवेव्णं
€ ©
च्छोणितं
विज्ञानीयाच्छेणितं
क क
सांनिपातिकम्‌ ॥ ९० ॥
4 (५. (0

एवं रक्तविशयुद्धं च कृत्वा यत्नेन वाजिनम्‌ ।


दद्याद्रोमूत्रसपकां सतैकां च हरीतकीम्‌ | ९१ ॥
अमुना रक्तं विरोध्य गोमूत्रेण पाचितां हरीतकी तैरेन सह दय्यात्‌ | 250
नित्यं त्रिसप्रकं यावत्परुपच्च प्रमाणतः ।
हरीतकीं कियम्ति दिनानि कियन्मात्रं च दयादिव्याहं नित्यमिति | पञ्चपल्मिता
हरीतकी गोमूत्रविपक्रीस्य देया । यावदिनानां त्रीणि सतकानि, एकविराति-
दिनानीत्यथः | ९१॥
[इति रक्तमोश्चणम्‌ | ॥

| अथ त्हतुचया ॥
तत्र प्रथमे वषोकारुचिकिस्सा ॥ 255
अथातः संप्रवक्ष्यामि ऋतुचयोस्तु वाजिनम्‌ ।
न प्राज्ञो वाहयेदश् प्राबरट्कारे कथचन ।। ९२॥
करूप दकं समानीय पाययेद्गृह एव हि ।
अभ्यङ्गः कटुतेेन निवांतस्थानबन्धनम्‌ ॥
एकाहान्तसिते ददयाहवणं च विचश्चणः ॥। ९३ ॥ 260
|} इति वर्ष्ाकारचिकित्सा |

|| अथ रारत्कार्चिकित्छा ॥
ततः शरदमासाद्य बहुक्षीरसमन्वितम्‌ ।
रास्तं श्वीरोदनं चेव पलाष्टपारसंस्यया ॥ ५४ ॥
घृतं वा यदि वा तैं पानं दव्याष्िचक्षणः ।
बाहयेचच शनैर्निस्ये सवेदोषप्ररान्तये ॥ ९५ ॥
90. 2, पिति° {97 पित्त, 83 सर्ववणी १०२ सर्व- | =अय ऋतुचयौ. ‰8ग> ०४ तन्न. 81 पथम
वर्ण. ^8, 7 श्छोणितं {०7 “च्छोणितं. {० परथमं,
ए. सान्निपातकं {०7 सांनिपातिक, 92 = ^६९८ 11.238,
9{ = &6५० 11.20 20 2188. ^ दद्या {०८ |9३ = 46१८ 11.24 87 2520, 8! ०01४5
दद्यात्‌. 82 गोमुत्र {0 गोमूत्र ४ एकान्ति दद्याष्टवणं च विचक्षणः. 8 ।
हरीतकी 1०४ हरीतकी. 2 ०0)1४ १6 हति वषोकालः {०८ इति वषोकाटचिर्गिःघा,.
7086. 47 तिश्युतोष्य {07 विशोध्य, 22 ।94 ^ &१५ 11.29 421. क्षीरोदनं {01
=
०गुतरेणं {०7 भ्ूत्रेण, 2, आडु() ०1 आहे, क्षीरोकनं .
2, गोमुत्र {० गोमूत्र, 68.70 ०१६।५5. 21 शर्तं ०: वृतं. 428) दातः {07 दिः,
१४ शारिष्टोत्रम्‌
265 अथ वा कथितं दुग्धं पाययेच्च सरा्करम्‌ ।
निरागमे विशेषेण चान्यन्मधुरवस्तु च ।। ९६ ॥।
, उदक च रघु प्रोक्तं यवसक्ु(करतू)श्च दापयेन्‌ ।
म॒क्ष्टः कोमलखास्तच्र वारणीयाः प्रयत्नतः ॥ ९७ ॥
घतं विरोषतो दद्यादश्चानां प्राक्सम्रद्धये ॥
|| इति शरत्कारुचिकित्सा ॥

|| अथ हेमन्तः [ “न्तकार्चिकित्सा | ॥
270 तती हेमन्तमासाद्य निवीते बन्धयेद्धयान्‌।
माषोत्थ यवस ददयास्पानीर्य च यथेच्छया |} ९८ ॥
घतं वा यदि वा तैकं पानं दद्याद्विचक्षणः ।
वाहये दानैर्नित्यं सवदोषप्ररान्तये ॥ ९९ ॥
| इति हेमन्तः [ “न्तकाटचिकिंत्सा | ॥

| अथ रिदिरः [ रकारुचिकित्सा | ॥
ततः शिशिरमासाद्य दान्तेटं च वाजिनाम्‌ ।
275 पराष्टकमप्रमाणेन यावहिनात्रेसप्रकम्‌ ।। १०० ॥
यवोरथं यवसं दव्यादेकविश्चयद्ानि च ।
यवाभावे तु चणकान्दद्यादश्चेषु निकषः ।। १०९ ॥
यवाभावे मसूराश्च शुष्का्रस्तेररसंयुतान्‌ । -
यवसं वा तदुर्थं तैर्नयिगो जायते हयः ॥ १०२॥
280 जौषधानां च सर्वेषां काथानां न॑स्यकमेणाम्‌ ।
तैकानां च घृतानां च यवसं यवसंभवम्‌।। १०३॥
97. 6 8,--7) सुकुष्टा ०" सुङृघ्यः. 8) दद्यात्‌ |100 = 45० 11.9. 8» नतैरं {०४ ण्तेङ,
शवानां ६0" ददयाद्‌-घानां 101 = 46१८ 11.10. 4, -7> यवोत्थ° {0
9६ = ^+6८ 11.7. ए हयात 0" हयान्‌ यवोच्थं
5 81.77 माषोत्थ {07 साषोत्थ ^ 81.20 |102 = 4६१५ 10.11. 58; 21) दुष्काद्रान्‌ तेलक
यथया ६०४ यथेच्छया {0४ खुष्काद्रास्तेख
99 == 6.6८ 11.8 ( 4. 8६21122 95). 42837 | 103 = 46४८ 11.12. 6287) तस्य°{07 नस्यम,
दतै; ६० शनेः, 81 धृतानां ६०८ धृतानां,
अथ शिरिरकारुचिकित्सा १५
पवतानां यथा मेरुरायुधानां च वज्जकम्‌ ।
तथा सर्वोपचयोणां सेः शरेष्ठा यवाः स्मृताः । १०४ ॥
यथोदितो दिनमणिर्निःशेषं तिमिरं हरेत्‌ ।
तथा रारीरजान्दोषान्यवाः सेररन्ति वै । १०५ ॥ 285
यस्य दत्ता यवा भोज्ये हिदिरे समुपस्थिते ।

क्रियापि क्रिया जाता पच्चतुजनिता हये ॥ १०६ ॥
परीक्षाग्नि्यथा हेमः स्नेहस्य च प्रतिक्िया ।
हयस्यापि च तद्र परीक्षा यवभक्षणे ॥ १०७ ॥
अस्पेनापि हि छिद्रेण यथा नरयति नजर । 290
स्वे दोषाः प्रणरयन्ति स्तोकैरपि यवेहेये ।॥ १०८]
इति ज्ञात्वा प्रयत्नेन यवान्दद्यात्त वाजिषु |
प्राणदूस्ते यतो ज्ञेयाः सवैव्याधिविनाशकाः ।। १०९ ॥
अश्योऽभाति यवानाद्रोन्डुष्कान्वा स्वेच्छया सदा ।
न तस्य जायते रोगो यवमक्षुप्रभावतः । ११०॥ 295
न विहुचिर्विद्यूं च न च पीहा न च क्रमिः।
न च रक्तप्रकोप्थ न च वातादिधातवः। १११॥
योऽभाति यवसं यावद्भयः शिशिर आगते ।
मकष्टभोजने वाजी पुष्टं शरदि गच्छति ।। ११२॥
अप्राप्तो तु युङ्ष्टानां मुद्र देया विवेकिना । ११२ ॥ 300
॥ इति शिशिरः [ `रकारुचिकफित्छा ] |
[न हि (५3

104 = ‰&०० 11.13. ‰857 सवैपि चयोर्णा, |109 = ‰5४० 11.359 ४०१ 6०५. 8» दद्यातु
2, स्वषु चर्ये {० सवोपचयाणां. 2; सध्ये {07 दद्यात
० सपे 110 = ^ 6१८ 11.37
105 = ^+ऽ४८ 11.15. । 111 = व 11.48 81 ०115 1115 5{8022
५ ४ शिशिरे 42820 पीहा {07 फहा.
106 = 14. 2. शा शिरे. ए, कमी 01 त्रम
‰&०० 11.17. 82 शरिरे £०7 िदिरे र 2
‰820 वावादि° ० वातादि०. 8, 1८248
107 = & 5४० 11.32. ^ 8 1.2परिक्षा {०प्परीक्षा {€ ऽ€6००५ 1:०€ 28 8251
81 अरः 0८ आत्रः, 42820 यथो 0 यथा. |112 48273 याच {97 यावतत्‌, 421.> गछति
4. परिक्षा 0" परीक्षा {07 गच्छति
108 = ^ &४५ 11.34. र्न्‌ 48१८ 11.4229,
१६ शारिरम्‌
॥ अथ वसन्तः [ ^न्तकारुचिकिंत्सा ] ॥
ऋतौ वसन्ते संप्राप्ते बाहयेत्सततं हयम्‌ ।
सनिम्बरूबणं द्यत्तैरं र्वणमेव च । ११३॥
वसन्तसमये योऽधः स्थने तिष्ठति, बन्धने ।
तस्योत्साहभ्णाराः स्यादारूस्यं जायते तथा ॥ ९११४ ॥
305 तस्मात्सेप्रयत्नेन वसन्ते वाहयेद्धयप्‌ ॥
| इति वसन्तः [ “न्तकालचिकित्सा | ॥

| अथ ग्रीष्मर्व॑ः [ ओरीष्मकारचिकेत्सा | ॥
म्रष्मकारे तु संप्रा पूर्व(दूबी)मोज्यं प्रशस्यते ।
वाजिनामिह ˆसर्वषां घमेतापोपदान्तये ।॥ ११५ ॥
ध्रतपानं विरेषेण सुच्छाया निबन्धनम्‌ ।
रक्तसाव्ध गात्रेषु घासं वा घृतसंयुतम्‌ । ११६ ॥
310 पुनश्च पायेत्तोयानि सीतरानि च वाजिनः ॥ ११७ ॥
[ इतिं ग्रीष्मकार्चिकित्सा | ॥
॥ इति षटू कतवः | [ इति ऋतुचयौ ] |

[ अथ नस्य: ] |]
पिप्पली सैन्धवं चैव नागरं च गुडान्वितम्‌ ।
भ्रातद्तं तुरङ्गाणां नस्यं शछेष्मविनादरनम्‌ ॥ ११८ ॥
पयुषितं
(4
तोयः प्रातर्दत्तं च केवलम्‌ ।
अश्वानां च नराणां च च्चुष्यं बरुबधनम्‌ ।॥ ११९ ॥
113 = ^+९८ 11.50. 22 सभिख ६07 सनिम्ब {०८ घृत. 437) तोयानि पाययेत्‌ {० पाये-
114 = & 5१८ 11.52. & श्त्साहः {01 त्साह तोयानि
द) स्यात्‌ आर्स्यं {० स्यादालरस्यं. |117. 3; षड्तवः {०४ षट तव
{14६ = & ६०५ 11.53५. 8 1. भीष्मकः |118 = ^ ६५८ 12 2. 42, पिप्पलि, 8, पिःपटी
{०४ ग्रीष्म. 0 पिर {० पिप्पली. 28 दत्तं + दत्तं.
115 = 88८ 11.54. 23) घसः 01 चर. {0 दन
116 => 26९५ 11.55. 4.231.27 सुहछायाचु{01 | 119 = ^ ६%८ 12.13, ^ इन्त ६0८ दतं, ^ वल-
च्छाया, 21 %श्रावः {0 लावः. 8, धत" दधन, 81.70 बलवरधन ६0 बलवर्धनं
अथ पिण्डः १७

द्िपव्वाशासमाणेन श्रेष्ठं तन्नस्यमुच्यते । 315


पादोनं मध्यम तत्र षडरविंरायथ वाधमप्र्‌ ।। १२० ॥
मालिक कशकंरामिनश्रं चन्दनं केसराणि च ।
नस्योऽ्यं वारिणा सद्यः पित्तनारकये मतः ॥ १२१ ॥
छयण्ड मुस्ता ग( गु )इची च तगरं सितसषे पाः ।
संनिपाते कफाधिक्ये नस्यं सेः संखग्रदम्‌ ।॥ १२२ ॥ 320
[ इति नस्यः | |)

[ अथ पिण्डः |॥
कङ्कोरं केतकी द्राक्षा शकरा मधुयष्टिका ।
दत्तोऽयं सश्तः पिण्डः पुष्टं नयति वाजिनाम्‌ ।। १२३ ॥
मरस्यमांसेन संयुक्तं माषचूर्ण घृतष्टुतम्‌ ।
बरृहीनस्य वाहस्य पिण्डोऽयं बर्वधेनः । १२४६ ॥
त्रिफला कटुका मुस्ता विडङ्गानि च वचित्रकुप्‌ । 325
सद।रुस्यसमेतानां वाजिनां पिण्ड आर्तितुत्‌ 1 १२५ ॥
सेन्यवं नागरे इयास। ग८ गु )डची चित्रस्ैपाः ।
तथाम्ख्वेतसं सपे: पिण्डोऽयं शट्नाशनः । १२६ ।।
सोकचंरं हरिद्रा च पिप्पली चेन्द्रवारुणिः ।
मूत्रछच््ै प्रशंसन्ति पिण्डोऽयं वाजिनां हितः ।॥ १२५ 330
केसरं पद्मतारं च श्रीपर्णी बदरीफलम्‌ ।
रत्वैकन्न हये दत्तः पिण्डोऽ्यं विषनाङनः । १२८ ॥
[ इति पिण्डः ||

= ^ &८ 12.17. & पादौनं {०7 पादोनं. ¬ |124 = &€४८ 1 3.5. ^ मासेन ६०7 "मांसेन.
अधका ६6८ अथ का. 2.81 2 1) बल्वद्धनः {07 चरूचयेनः $
= ‰ §०८ 12.23. 125 = 45४० 12.9. &. चीच्रकं {० चित्रकं,
483 7 आर्तिनुत््‌ ०" आरतिनुत्‌.
‰&€०९ 12.24. „ „ | 126 = 466 12.11.
|
=. ध प
ह 0८ कषा $ घ्ुखप्रदरः
127 = ^ &४५८ 13.30. 81 (9६६८ ९०८६, )
६ चन्द्र^ व्ये ० २. , छ
०५ सुषडपरदं, 2 चन्द्र {0 त्र." 431 9, षे {०४

= 4५८ 13.4. 128 = ^ 5०८ 16.77.


१८ रारिहोत्रम्‌
सृपवेदमान्तपूवेगे शुभदिवसे कास्येद्धयागासम्‌ ।
सदं च सुविस्तीर्णं वास्तुप्रन्थोदितान्मानात्‌ ॥
335 अत ऊर्ध्वं हृत्वाग्नि भ्वेदशायेद्राजिनो यथायोगम्‌ ।
कुरारेस्तरुणेदीक्षिरनुपारेः स्थानपारेच्च ॥
कुतमङ्गलसंस्काय बद्धव्यास्तेऽप्यत्तराभिसुखाः ।। १२९ ॥
वाश्च पादैरभिताडयन्तो युवं प्रवासाय भवन्ति पत्युः ।
सन्ध्यासु दीनं ह्यवलोकयन्तो हेषन्ति ते बम्धुपराभवाय ।। १३० ॥
340 सुसेहमूत्रशकरत्करोति
न ताडथमानोऽप्यनुखेमयायी ।
अका्यभीतोऽश्चुविरोचनश्च
शिवं न भतुस्तुरगोऽभिधत्ते |} १३१ ॥
वषौसु ख्वण देयं निम्बपत्रेण संयुतम्‌ ।
345 निगोण्डया च समायुक्तं हिशिरे ख्वणं हितम्‌ ॥ १३२ ॥
ररदयुष्णे च कारे च स्वत्पं दद्याद्‌घतान्वितम्‌ 1
कटुचूणसमायुक्तं वसन्ते समुदाहृतम्‌ ।। १३३ ॥
राण्ठी छष्णाजीरके दे मेथिका च वचा तथा ।
रातपुष्पाजमोदा च राजिका सषेपास्तथा ।। १३४ ॥
350 कटुकातिविषा निम्बो वत्सकन्ध विडङ्खकम्‌ ।
एतानि समभागानि कृत्वेकत्र प्रयोजयेत्‌ ।। १३५ ॥
छनं दरामागाश्च सौवीरं मथितं धतम्‌ ।
तैरुद्यमजामांसे कृत्वैकत्र प्रयोजयेत्‌ ।! १३६ ॥
{299 = ^ §€०८ 18.199. °प्ययुलोचनश्च {०7 शश्वविलोचनश्च. 1 ज्िवन्न
129८ = & €८ 18.4. ^+282 1 अत्त 0४ अत. 07 शिवं न. ^ मत्तः 10" मतुः. 52 अमि
^ 28..3 उव्वै {०८ ऊर्ध्व. 0 21] 155. {29८ धते {० अभिधत्ते.
5०१8 1४1 प्रवेशयेत्‌ 210 फणा 132. 88 संकतं {०7 संयुतं.
8711४ ण २०४० ४२०४७ ४5 ॥ वाजिनो यथा ॥ ४
योगं 15 ध०]६७ प४0 कुशलैः 17 ६0८ |133. & 8 = 10८ शरघुष्णे, 482 7
€ 110&. 27) बर्ध^ {07 बद्धम. दद्यात्‌ घता 01 दद्यादृष्ता.
131. 82 नाताच्युः {07 न ताञ्च, &3}.2 7 | 134. & सुण्टी, एनः खटी ०7 शुण्डी,
शाष्ष्टित्रम्‌ १९

ससैन्धवम्‌
एषा विजखिका नाम हयानां परमोषधम्‌ ।
कृदाङ्गानां सदा देयं हन्ति कोष्ठगतान्क्रमीन्‌ ।। १३७ ॥\ 353
महाबलो महोत्सादो व्याधिहीनो भवेद्यः ।
बर प्रवधेते तेषां ये च बुद्धाश्च वाजिनः \ १३८ ॥
रुण्ठी, पिपरी, ज्रि, मेथी, वेखण्ड, रौपा, अजमोद, मोहन्या, सषेप,
कदू, अतिविष, छिव, इन्द्रजप, विडद्ग-इमान्यौपधानि समभागानि । खड
नस्य ददा मागाः । कान्िकध्रतकटतैकतिरुसेन्धवयुक्तमजामांसमेकत्र कुहयित्वा 360
सरसभाण्डे निक्षिप्य घान्यभृत्कोष्टिकायां ददा दिनानि स्थापयेत्‌ | पश्चातिष्डा
देयः ! चतुरा र ›सीतिवातानां निनीरौ करोति । पित्तश्प्माधिमान्यादिदोषाना-
दायेत्‌ ब्पुष्टिं च करोति ॥

॥ इति श्रीमोजराजविरचितं शादिहोत्रं समाप्तम्‌ ॥

137. ^+27> कृन्चाद्ननां 1०" कृशाद्गानां. ए1.2 |पदायां अरवासरान्वितायां पुस्तकमिर्द श्ालिदो-
कृमीन्‌ ६०५ कमीन्‌ त्राभिधानं समाप्मिति । श्रीप्रसं( स ) नोऽस्तु ॥
{३8. 82 भवेत्धयः {० मवेद्धयः. ^ 8) प्रचद्धतं | 81 इति श्री मोजराजविरचिते शाटिदोत्राश्च-
0" प्रवधेते 81 ०718 406 2"08€. ¢ | परक्षापुस्तक् समाप्तम्‌ ॥ छ ॥ सवत्‌ १९१३
पीपरि, 82 पप्परी, 7 पिपरि ०7 पिपरी. |फाटयु( स्यु }न शुक्त ७ भौमवारे सुकवीप्युपनास्ना
& वेषण्ड {07 वेखण्ड. 52 अजमोंद्‌ {071 | खक््सणसुते गोपाङे नारदी ॥ रैक १७५७८ } छ |
अजमोदा. 82 कट्‌ {०7 कड. 22 अतविष | 82 इति श्रीमो जराजयिरचिते शाकिद्ोत्र(ञ)
{०४ अतिविष. 8 दशं भागः ६०८ दराभागाः. |अशधर्पार( र ।क्नापुस्तक( कं )समाप्त (पं) ॥ छ ॥
& 07165 °तिल, ^+ °रारिति० {0८ | छ ५ छ॥।
"रारीति०. 22°पुष्ठि ०" °्पुष्टि.& 001४5 च. | 7 इति मोजराजविरणचिते साचिद्टोत्र( त्र ) अ-घ-
^ इति मोजराजविरचित दाखिदहोत्रं समाप्तम्‌ । |परीक्षाचे ( कषायाः ) पुस्तक (कं } समाप्ताः (स्र) ॥
श्ुभभस्तु 1 कल्याणमस्तु । संवत्‌ १८६४ दके १७३ ० दुर्भ भवतु ॥ केस्याणमस्तु \ श्रीरस्तु ॥ भन्थ
म्रवत्ते( ते }मान्ये (ने) आषाढमाभं कृष्णपक्षे मत्ति- |(न्थः) समाप्तोऽयम्‌ । ठ ॥ श्री ।।
२० शाकिहोत्रम्‌

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सालिदोत्र अश्वचिफिरिसित

सितो रक्तस्तथा पीतः सितो रक्तस्तथा पीतः


सारङ्गः पिङ्ग एव च ।, सारङ्गः पिङ्ग एव च।
नीक कष्णोऽथ सर्वेषां नीरः कष्णोऽथ सर्वेषां
श्वेतः श्रेष्ठतमः स्रतः' ॥ 1 श्वेतः श्रेष्ठतमः स्मरतः | 3.2
श्वेतः कपिल्काकारोः पिङ्गः कपिर्काकारो
नीलो दुर्वाग्रसेनिमःः | नो दर्वा्रसंनिमः।
कृष्णो जम्बुफलछाकारः कृष्णो जम्बूरुराकारः
राख्जञैः समुदाह्धतःः॥। 2 राखजैः समुदाद्तः ॥ 3.5
श्वेतामः: शेतपादश्व पीतामः श्वेतपादो य-
तथा स्याच्छ्वेतरोचनः* । स्तथा स्याश्ितखोचनः ।
चक्रवाकः सं विक्चेयो चक्रवाकः स विज्ञेयो
राजार्हो वाजिसत्तमःˆ || 3 राजार्हो वाजिघत्तमः || 3.6
सर्वश्वेतो हयो यस्तु सर्वश्चतो हयो यस्तु
मवेच्छयामैककण
कः° । मवेन्मेचकवणैकः' |
ख वाजी राजयोग्यः स्या | स वाजी वाजिमेधा्धः
च्छयामक्णैः प्रकीर्तितः" ॥ 4 स्मामकणैः प्रकीर्तितः | 3.7
1. एताष्न्त ए ८६, 16978 ००२ | 3. यु.
यु. क क.-दूवादलप्रभः।
8 वऽध्ण. 1917. यु. क क.-पौताङ्गः श्वत गदो यो यश्च स्यात्सित-
4- यु.
2, 4८ 8 एए6्णतांड ८० ^ ६१४.-५८०1१९४१४ लोचनः)
९०४९१ 8 0०६६४ ८०0४६ उ४४४ | 5. यु. क.-प्रियसक्तम्‌ः ।
४११०४६०2, 2191०९४ ८५४ 1090108 | 6. दयामैकन्रवणो मवेत्‌ ।
92168, 1887. 9. , श्व, ख-श्यातककणकः।
1. चु. क.-मतः। 8." युयु. क.-वाजिमेधाहः 1
2. यु. क.-पिङश( षृ ज्जः कषिकाकारो. 9. यु. क.-सुदुलमः।
&एषीरा$ 1 २१
चस्वारोऽप्यतिताः पादाः | नचत्वारोऽध्यसिताः परः
सर्ववर्णस्य वाजिनः । कर्वैश्वेतस्य वाजिनः |
अयोग्यो मूपतर्नित्यं मवन्ति यस्य ख त्याञ्यो
यमरूपः प्रकीर्तितः" ॥ 5 यमदूतः अदूरतः ॥ 3.9

यस्य पादाः सिताः सवे यस्य पादाः सिताः स्वे


पुच्छं वक्षस्तथेव च": । पुच्छं वक्षो मुखं तथा ।
~------------~----~
~~‡~-~
~~~"

मूधा भार चित यस्य मूर्धजाश्च सिता यस्य


तं विद्यादष्टमङ्कल्म्‌ | 6 तं विद्यादष्टसमङ्खलम्‌ || 3.10
य॒स्य पादाः सिताः सर्वे यस्य पादाः सिताः सर्वे
तथा वक्त्रे च मध्यमः '“ | तथा वक्नं च मध्यतः |
कस्याणपञ्चकः प्रोक्त; कल्याणपञ्चकः प्रोक्तः
सर्वकव्याणकारकः'* ।} ~ सर्व॑कस्याणङक्च्च सः |} 3.13
नासिकोम्रे लाटा नासिकाग्रे कलार
शद्खे कण्ठे च मस्तक । द्धे कण्ठे न्व मस्तके ।
आवत यस्य जायन्ते आवर्त जायते येषां
धन्यः स॒ तुरगोत्तमः"* || ते धन्यास्वुरगीत्तमाः ॥ 4.4
हृदि" स्कन्धे गले चेव हदि स्कन्धे गले चैव
~
~--------------


कक
~
4
ता
जि
~~
=त
ति
जा
मम

कषिदिरे तथैव च | | कटिदेदो तथेव च ।


नाभौ कुक्षौ च पाश्॑न्ते" । नामौ डुक्षौ च पाश्वज्
मध्यमास्ते प्रकीर्तिताः" || 9 मध्यमास्ते प्रकीर्तिताः ॥ 4.5
रराटेऽश्वस्य चावर्तो पृष्टवेशो तथावर्तो
यस्येकः सेप्रजायते । यस्येकः संप्रजायते ।
स करोत्यश्वसंघातान्‌ का
1१
1
1
`

2)
सख करोत्यश्वसंघातान्‌
स्वामिनः सूर्य॑सेसिकः । 10 स्वामिनः सू्यसशकः | 4.7
ज्रयो यस्य ठलारस्था चयो यस्य रुलारस्था
आवता अधरोत्तराः | ~~~
आवता अधरोत्तराः 1
[नि पिक

10. यु. क.-सव्ेतस्य । 15. यु. क.-मठुः कस्याणकारकः


11. यु. क.-भवन्ति यस्य स त्याज्यो यमदूतः |16. यु. क.-आावर्त जायते येषां ते धन्यास्तु
सुदूरतः तुर्ममाः।
12. यु. क.-पुच्छो युष्को सुखं तथा । 1. यु. क.-इति।
13. यु. क.-मूधजास्तु सिता यस्य । 18. यु. क.-पा्चशे (चे)
14. यु. क.-चन्द्रकं च कलारके । 19. यु. क.-मध्यमः स प्रकीर्तितः)
४ शालिदोजष्‌
धट्पदामो^ भवेद्यस्तु | श्ट्षदाभो भवेद्यश्च
कृष्णतालननं दुष्यति । 24 । कृष्णतां दुष्यति । 4.33 ०४
नन्द्रादित्यो ख्खाटस्थौ खले युगङावर्तौँ
चरपाणां जयवधनो | 25 नवन्द्रार्कोँ सप्रकीर्तितौ |
वाजिनो यदि तौ स्यातां
राष्रवुदधिकरो परो ॥ 4 11
सस्विंरप्रमाणेन सप्तर्विंरप्रमाणेन
मुख मश्वस्य शस्यते“ | सुखमश्वस्य शस्यते |
कणौ षडज्गुखो मरोक्ते कर्णो पडङ्रुखो प्रोक्तौ
ताक चतुरङ्गुलम्‌ । 28 ताक चदरङ्गुलम्‌ ॥ 6.7
सप्रविशतिसताल्यः चव्वारिदाच्च सत्ताब्याः
स्कन्धश्च परिकीर्तितः । । स्कन्धाः सम्यक्प्रकीर्तिताः“ |
परष्ठवंदो चठर्विरात्‌ पुष्टवंराश्वतुर्विरा
ससर्विंरात्तथा करी” | 29 | स्सर्विंा तथा कटी ॥ 6.8
अतिसूर्म तथा निम्न अतिसुक्ष्मं तथा निम्नं
पुच्छं हस्तद्रयोन्मितम्‌“ । पुच्छं इस्तद्रयायतम्‌ ।
किङ्ग हस्तप्रमाणं तु किङ्ग हस्तम्रमाणं च
तथाण्डो चतुरङ्गुलौ । 30 तथाण्डौ चदुरस्गुरौ | 6.9
स्कन्धस्थानं चवर्विश- मार्मः'स्थानं चतुर्विं
इदयं षोडशोन्मितम्‌ । ह्दयं षोडराङ्गुख्म्‌ ।
करिकश्चान्तरं मोक्ते कटिकश्चान्तरं चोक्तं
न्वत्वारिशत्प्रमाणत्तः ॥ 31 न्वत्वारिद्च- पप्रमाणतः ॥ 6.10
मणिबन्धद्भयं चेव मणिबन्धद्रयं चेवं
खुरा चतुरद्गुराः। खुराश्च चतुरक्गुलाः 1
अरीत्यङ्गुक उत्सेधो अरीत्यङ्
गुर उत्सेधो
दैर्ष्ये च दिशतद्वयम्‌ः | 32 दैर्ध्यं च द्यधिकं रातम्‌ |
[9
1
स1

43. यु. क.-विषद्न्तो. 49. यु, क.-प्रतिपुच्छं दयाधिकम्‌।


44. यु. क.-सप्तर्विशव्यङ्गुत्मीभिमुखमानं विधी- |50. अश्व. ख-पुच्छं हस्ताश्मायतं।
यते । 51. अघ. क-साङ्ख ।
45. यु. क.-भालकं । 52. यु. क-(मध्य क-माकु )स्थानं चठुर्विदं हृदयं
46. अश्च. ख-सपरिकीर्तिताः । षोडशात्मकं ।
47. यु. क. चत्वारिंशच्च सप्ताद्यः (ग-सप्ताव्या )
स्कन्धः संपरिकीर्तितः ।पृषटवष्वतुरविंशः सप्त- |53. जश्च. ख-चतुविरात्‌ ।
विशा तथा करटी ॥ 54. यु. क.-अशीत्यष्गुलिकाः पादा दीर्घा विंशा-
48. यु. क.-इति सृङ्मं । धिका मताः ।
^+] 7 २५

एतःक्रमेण गात्रस्य एवं क्रमेण ग्रस्य


प्रमाणं वाजिनामिति ।। 7..101 पणि

प्रमाणं वाजिनां मतम्‌ | 6.11


आस्यं युजो केरङ्कायिकाश्च आस्यं भुजो केशङ्कायिकोश्च
दीर्घं चतुष्कं तुरगस्य स्तम्‌ । दीष चुष्कं तुरगस्य शस्तम्‌ |
तथोन्नते घ्राणयुटं कलां तथोन्नते छाणपुरे कुखटे
खफाश्च तञ्ज्ञश्वरणा वदन्तिः || 33 राफाश्च तञ्त्ञश्चरणो वदन्ति | 6.14
ओष्ठौ च जिका त्वथ ताद्कं च ओष्ठौ च जिह्वाप्यथ ताटकं च
मेदू च रक्तं छदं हयस्य । मेद सुरक्तं भरद हयस्य |
रृघूनि बन्धाश्च मणेस्तु कोष्ठं छघूनिवन्धाश्वरणेषु कोष्ठं
ध्रो्राणि सर्वाणि तथेव पुच्छम्‌ | 34 श्रोचाणि सवाौणिं तथेव पुच्छम्‌ | 6.15
गुणनामिह सर्वेषां गुणानामिह सर्वेषां
गुणो वेगो मयोदितः गुणो बेगमयोऽधिकः ॥ 7. 1298
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन तस्मात््वैप्रयत्नेन
वेगो वै वायुरक्षणम्‌ ॥ 35 वेगो ज्ञेयश्च वाजिनाम्‌ ॥ 7,2०4
अवाहिता विनश्यन्ति अवाहिता विनश्यन्ति
विनश्यन्त्यतिवाहिताः । विनस्यन्स्यतिवाष्िताः
अश्वानां वाहनं परभ्यं अश्वानां बाहन्‌ परभ्यं
सानुरागं च मोक्षणम्‌ | 36 सानुरागं च मोक्षणम्‌ | 7.3
अघमा सध्यमास्ते वु अधमा मध्यमास्ते स्यु-
मध्यमाश्च तथोत्तमाः । मध्यमाश्च तथोत्तमाः |
उत्तमाग्योत्तमा भूयो उत्तमाशोत्तमा भूयो
वाह्यमानास्तुर्गमाः ॥ 34 वाह्यमानास्तुरगमाः ॥ 7.4
आरोहणे हये श्रे रूटमश्चविदां शरेष्ठ
तस्मिञ्शरष्ठं प्रतिष्ठितम्‌ । रूढे स्वं प्रतिष्ठितम्‌ ।
आरोदहणविदीनस्य रूढेन ठ विहीनस्य
लश्चणे चाप्यलश्चणम्‌ |} 38 लक्षण नचाप्यलक्षणम्‌ ॥ 7.5
रूपावर्ता गतिच्छाया रूपावर्तगतिच्छाया-
स्वं वर्णः स्वरो बखम्‌ | सस्ववर्णबयोबलम्‌ ।
55. यु. क.-आस्यं भुजो चापि कृकारिका च! |57. यु. क.-शफथ्च( क-कफच्च )वाजिप्रकरस्य
56, यु. क.-तथोशनेते प्राणपुरे लके । बोध्यः]
२६ शारिदोत्रम्‌
जवहीनस्य बार्हस्य जवहीनस्य वाहस्य
सव॑मेतान्नेर्थकम्‌ | 40 सर्वमेव निरर्थकम्‌ ॥ 6.6
रते्धैन्यतरो वर्णो गतेर्धन्यतरो वर्णो
वर्णाद्धन्यतरः स्वरः । वणाँद्धन्यतरः स्वरः।
स्वराद्धन्यतरं सत्त्व स्वराद्धन्यतरं खर्वं
सर्वै स्वे प्रतिष्ठितम्‌ ॥ 41 सर्व सस्वे प्रतिष्टितम्‌ | 7.7
लश्रुत्वं मात्रदोव्ेण रुघुत्वं मातृदोषेण
पित्रुदोष्रेण जाञ्यता | पित्रदोष्रेण जाङ्यता ।
दौर्बद्यं स्वासिदोषेण दौर्बल्यं स्वामिदोषरेण
स्वदोषो नास्ति वाजिनः ॥ 42 स्वदोषो नास्ति वाजिनाम्‌ | 7.8
जवो हिं ससे: प्रथमं विभूषणं जवो हि समैः प्रथमं विभूषणं
त्रपाङ्गनायाः करता तपस्विनाम्‌ । चपाङ्कनायाः करदता तपस्विनः ।
श्रतं द्विजानां धनिनामगर्वता दिजस्य वेदोऽथ मुनेरपि क्षमा
पराक्रमः शस्रवरोपजी विनम्‌ })} 43 पराक्रमः राख्रबलोपजीविनः | 4.9
वक्चौजे्दरिणाधिपप्रतिनिभै- वके यो हरिणाधिपप्रतिनिमो
क (न =

व्यानोपमेर्बाहुमि- द्याघ्रोपमो बाह्ुभि-


रावत मेः प्रधानकुख्जाः रावर्तैऽश्वद्यभेः प्रघानकुख्जाः
सुखिग्धवणेप्रमाः | सुचिग्धवणप्रमाः |
उष्ट्राक्षाः प्रियदद्येनाश्च सुभगाः उष्ट्‌ाक्षाः प्रियदरनाश्च सुभगाः
श्वासैः सुगन्धेश्च ये श्वासः सुगन्धश्च ये
धन्यास्ते जयराज्यवित्तसुखदाः धन्यास्ते जयराज्यावित्तसुखदाः
संनादिका भूपतेः ॥ 44

पा
न,
न>
न~

संवाहका मृपतेः ॥ 7.13


ऊरू सिथर यस्य चो च पादौ ऊरू स्थिरो यस्य चरौ च पादौ
निकोनतः सिंहसमानचित्तः* | चरिकोन्नतं संहतमाखनं च" |
ख वाजिवाहः कथितः पृथिव्यां ख चाजिवाहः कथितः प्रथिव्यां
देषा नरा मारवहा हि याने ॥ 45 दोष! नरा भारबहा हयानाम्‌ ॥ 8.4

58. यु. क.-मेखः स्थिरो यद्य । 62. यु. क.-परथितः।


६9. अध. क~-उरः स्थिरं ।
63. यु. क.-भारकरा इयाना ।
60. यु. क.-त्रिकोन्नतं संहतमासनं च ।
61. अच, क-सदहतमानभ्रं च । 64. अध, क-भारकराः।
^+ 1 ९७
ऊुपिते पुच्छरसस्थाने कुपिते पुच्छसंस्थाने
भ्रान्ते जानुद्रयेः तथा । | भ्रान्ते जानुद्वये तथा |
सर्वथा प्रास्दण्डस्य । सर्वथा प्रा्दण्डस्य
दण्डमेव निपातयेत्‌ | 46 दण्डमेकं निपातयेत्‌ ॥ 8.11
~~~

अस्थाने ताडितो वाजी अस्थाने ताडितो वाजी


वून्दोषान्प्रकादायेत्‌” ब्रहन्दोषान्प्रददीयेत्‌"' |
तावद्धवन्तिते दोषा तावद्भवन्ति ते दोषा
यावज्जीवत्यसौ हयः || 47 यावज्जीवत्यसौ हयः । 8.13
वाल्यो बद्धस्तथा रोगी बालो वृद्धः कृशो रोगी
दत्तस्नेहो महावलः | 48०१ दत्तस्नेहो महाबरी | 9.22 ८4
सवांतिरिक्तकोष्टश्व पू्णातिरिक्तकोष्टं च
१तिरि
[५

गर्विणी न च वाहयेत्‌- ॥ 498? | रुर्चिणी न च वाहयेत्‌ ॥ 9.23 9?


घनुरष्टाददं पोक्त धनुरष्टादरो योज्यं
वाजिनां मण्डलं क्रमात्‌ | 50०0 वाजिनां मण्डं क्रमात्‌“ || 9.1 ©
समं च विपुर चैव समां च बिपुखां चेव
किंचित्पांञ्चसमन्वितम्‌ । किचित्पांद्चसखमन्विताम्‌ ॥ 9.23 ०
एकान्ते विजने चैव एकान्ते विजने चैष
रङ्गभूमिं हयं नयेत्‌ ॥ 51 रङ्गभूमिं हयं नयेत्‌ ।
साद्रौ च कठिनां चैव सान्द्रां चैव सुकडठिनां
पाषाणोदकगतकोम्‌ । पाप्राणोदकगर्तिकाम्‌ ।। 9.24
तृणकोष्टसमायुक्तां तृणकाष्टखमायुक्तां
रङ्गमूमिं विवजंयेत्‌ ॥ 52 रङ्गभूमिं विवजयेत्‌ ।
विण्मूत्रं कारयेदश्च विण्मू्चं कारयेदश्व
क्रोराक्रोशद्धयान्तरे | क्रोराकरोखद्वयान्तरे ॥ 9.25
उदकं पाययेत्कामाद्‌ वारि दद्या्यथाकोमं
घासमुष्टिं च जीय॑ते || 53 घासं मुष्टिं च चारयेत्‌ । 9.26 ०4

65. यु. क.-पुच्छसंस्थानं । 72. अश्व. क-एते मवनिति 1


66. अछ. क~हेषते स्कछन्धसं स्थानं । 73 -बारं द्धं कशं सप्र दत्तस्नेहं बृहद्रलिम्‌
67. यु. क.-जानुद्धयं ।
(ख-बालखो ब्दः शो रोगी दण्डस्नेहो
68. अश्च. ( ) सवस्य ।
69. य. क.-दण्डमेकं । बृहद्वलिः )। पणोतिरिक्तकोष्ठे च गुर्विणीं च
70. यु. क.-अस्थानदण्डपाताच्र बहुदोषः प्रजायते) न वादयेत्‌ ॥
71. अश्च. क-बहुदोषः प्रजायते । 74. अश. ख~वाजिनां मण्डलेन तु ।
२८

रक्तपित्तविकारे च रक्तपित्तखमीरोत्थ
दातव्यं शरक॑रोदकम्‌ । दातव्यं शरकरोदकम्‌ | 9.34 ५4
जीवनं वातपित्तघ्न जीवनं वातपित्त
वृष्यं बलमर ततः || 54 वृष्यं बलस्यतमं ततः } 9.35 ०१
क्षीरं शूतसमायुक्तं स्वच्छाक्तं च धतं श्चीरं
वारि रीतं तुरगमः। वाशयुक्तं तुरंगमः)
पित्वा परिव्यजदोषन्‌ पीत्वा हिं नि्हरेदोषान्‌
श्रममाराध्वसेमवान्‌ | 55 श्रममाराध्वसश्रवान्‌ | 9.36
सायं करेय परथिवी निहन्ति संध्याद्घ्रघातेन मरही निहन्ति
हेषन्ति ये स्वामिगयुखं निरीक्ष्य । षन्ति ये स्वामिमुखं निरीक्ष्य |
प्रदक्षिणावतंविकी्णपुच्छ पदशक्िणावतविकीर्णपुच्छा
जयावहास्ते समरे इपाणाम्‌ | 56 जयावदहास्ते मरे खपणाम्‌ ॥ 9.39
आषाटखम्ये प्रासे आघाटसमये प्राप्ते
शिरामोक्चेण करस्नद्यः | दिरामोक्षेण कर्स्न | 10.3 ५५
तस्मात्सरोधयेद्रक्त तेन संशोध्यते रक्तं
वाजिनो दोषसेभवम्‌ | 57 वाजिनां दोषसंमवम्‌ ]} 10.4 ०0
यदि रक्ताधिको वाजी यदि रक्ताधिको वाजी
दाष्पमश्ाति कर्दिचित्‌ । खस्यमश्नातिः कर्हिचित्‌ 1 10.5 ०
र्ात्सयजायते पित्त रक्तात्संजायते पित्त
पित्तान्नाशमवाप्तुयात्‌ || 58 ततो” नाशमवाप्नुयात्‌ ॥ 10.6 ०१
रक्तपित्तप्रकोपेन पित्तरक्तप्रकोपेण
यदा संपीञ्यते इयः यदा संपीञ्यते हयः । 109 ०0
तदा कण्डूः समासाद्य तदा कण्डूतिमासाद्य
घर्षयेत्सततं कपु; } 60 कृषते सततं बपुः ।
छायां वाञ्छति यत्नेन छायां वाञ्छति यत्नेन
करोषेण जलाश्रयम्‌ | विशेषेण जलाश्रयम्‌ | 10.10
मुहबौज्छति पानीयं मुहुबौञ्छति पानीय-
रक्तपित्ताठुरो हयः ॥ 61 माह्ार च विदेषतः | 10.11 ००
75. अध, क-शिरामोक्षं च कारयेत्‌+ 78. अध. कदस्य नान्नादव ।
76. अश्व. ख-तस्म (्संशो घयेदरक्त ।
7. अध. क~ततो । 29. अश्व. ख~पित्तात्‌ ।
^+ 1 २९

शिरामोक्षं विधायास्य रिरामोक्षं विधायैव


दद्यात्िकडुकं गुडम्‌ । दयात्छकटुकं गुडम्‌ ।
ततः शछडधिसवाप्याथ ततः श्ुद्धिमवामोतिं
नीरोगः सेप्रजायते ॥ 62 नीरोगः संप्रपद्यते | 10. 12
श्छेष्मरक्त प्रकोपेन शेप्परक्तप्रकेपिण
यदा संषीड्यते हयः । यद्या संपीञ्यते हयः | 10 14 ८
अघोवक्नो भवेन्नित्यं अधोवक्नो भवेन्नित्यं
कासते च युहूर्महुः ॥ 63 कारते च सुहूर्युहुः ।
आहारं न च गृहणाति आहार न च हाति
नोत्याहं कुरुते यदा ] नोत्वाहं कुर्ते कचित्‌” ॥ 10. 15
नासाग्रेण शिपेत्तोय नासाभ्रेण श्िपेत्तोयं
वहिमातपमिच्छति ॥ 64 वे ब )हिषैर्मः" च वाञ्छति || 10.16
दिरामोक्चे विधायास्य तस्यापि रोधयित्वाद्‌
दद्याच्छुण्टया समन्वितम्‌ । दद्याच्छुण्टया युतं गुडम्‌“ ।
घतं गुडसमायुक्त खव रक्तं ततः श्वा
येनारोग्यं प्रपद्यते | 65 निःशेष समबाम्र(प्ठुेयात्‌~ ॥ 10.17
ने्प्रान्तेऽश्रपावेन नेनान्ते बिन्दुकाकार-
कण्डस्तस्योदरे मता | कण्डस्तस्य तथोदरे |
स हि स्रृत्युमवामोति तदा मृत्युमवामोति
षण्मासाभ्यन्तरे इयः ॥ €6 पण्मासाभ्यन्तरे ध्रवम्‌ ॥ 10.18
शयण्या युतं गोष्चुरकं घतं च दण्ठ्याग्बरता गोक्षुरकं घनं च
इ्यामावचाहिङ्गुयुता च यष्टिः | दयामावचाहिद्शुयुता च यष्टिः ¦
कफम्रणादाय विनिितोऽयं कफप्रणादश्ाय विनिर्मितोऽयं
पिण्डः प्रसिद्धश्च कफोदयेऽश्च | 6 पिण्डः प्रसिद्धश्च कफापदश्च ॥ 10.19
कुश्षिद्रये धृतं तीत्र कुश्चिद्ये हय-स्तीत्र
मुहुः शासं चं मुञखति | मुहुः श्वासं प्रमुञ्चति । 10.20 ०५
नैकर रमते स्थावुं नैकज मन्यते स्थातु
हेषते म्ब निर्मलम्‌ ॥ 68 हषवे च निरगैखम्‌ । 10.21 ५५
80. अश्व, ख~पथि ॥ 83. अश्व, ख~ निःरेषाक्चमवाध्युयात्‌ ।
81. अन्ध. ख-वाङ्छते वरहिमतर्षं । 84. अश्व. ख-कुश्षिद्रयप्रहः।
82. अश्र. कर-समनिवितं। 85. अश्च. ख~रमते।
शारिित्रम्‌
संनिपातोत्थरक्तेन संनिपातेऽथ रक्तन
यदा संपीड्यते हयः । यदा संपीड्यते हयः | 10.25 ८१
तदा वेपथुमाम्ोति यदा वेपश्ुमामोति
कासते च निरगखम्‌ | 70 काद्रते च निरर्गलम्‌ ।
निद्राकस्याग्निमान्त्रानि निद्रारस्याग्निमन्दत्वं
पुरीषं च सुहु: सृजेत्‌ । ब्रस्तौ मरूनिवन्धनम्‌> | 10.26
कम्रीयोः पतनं चैव कर्णयोः पातनं चैव
बुक्ने खालाविसोश्रणम्‌ ॥ 71 वक्न्ाछाकाविसोक्षणम्‌ ।
तद्य संरोधयेद्रक्त तज्नापि शोधघयेद्रक्तं
ततो कट्घनमहंति । ततो खड्खनमदति ॥ 10.27
यावदोषस्य निर्नाशः यावदोघस्य भिणगैदां
स्तोकोदकङ्तारनः ॥ 72 स्तोकोदककृतारनः |
कऋचिदुष्ण कचिच्छीत छचिदुष्णं कचिच्छीतं
कचिद्धेषजसंयुतम्‌ ! कचिद्धेषरजसंयुतम्‌ || 10.28
चिकित्सायुक्तितच्वज्ञे- प्रदेयं युक्तितच्वज्ञे-
वीरे वार्यं न कर्हिचित्‌ ॥ 73 वारि वार्यं न कुचरचित्‌ | 10.29 8%
जिर श्रीपफरं वाम्छ- रिरीषं श्रीफरं चेव
वेतसं चेव वुद्धेभाक्‌ । वेतसं चेव वुद्धिभार्‌ ॥ 10.30 ०५
मन्दाग्नि वायुदोषं च मन्दाग्नित्वं खदोघाणां
वाजिनां शमयेदूध्रुवम्‌ ॥ 74 कुरुते भस्मसाद्‌
तम्‌.। 10.31 9
नीटपीते च नेचान्ते नीरे पीतेऽथ नेजान्ते
भवेत्तां वाजिनः कचित्‌ । ~~~
~~~
~~
~~~
~~
--
~~~

स्यातां चेद्भाजिनः कचित्‌ ।
स निर्बाणमवामोति ख निर्बाणसमवाप्मोति
चिििमौसिरसंशायम्‌”' | 75 भि्मीसेरसंशयम्‌ ॥ 10.34
जिह्वायां जायते बिन्दु- जिह्वायां जायते बिन्दु
रकस्माद्यस्य वाजिनः } रकस्माद्यस्य वाजिनः |

86. मनश. ख-संनिपतेन रकेन । 90. अश्च. क-नीरुपीतेऽथ नेन्नाणां स्यातां चेद्ा-
87. अश्च. ख-तदा । ध
जिनः क्रचिन्‌ ।
विक्लोधनं । 91. य॒. क.-नीरुपीते च नेत्रान्ते त्रिभिमोसेचेपुः>-
88. अश्व. क~ततो मख्वि त
89. अश्व. क-चकतरे । 92. यु. क.-यदि।. ।
^+ धरा 1 ३१

ङृष्णस्तु जीवते मासं कृच्द च जीवते मासं


सख वाजी नान सशयः | 76 सख वाजी नातं संदायः | 10.36

पञ्चभिर्नीखवर्णै
श्च पचमिर्नीलवर्णश्च
प्डूमिर्व्रनिमैस्तथा । पड्भिर्व्रसमाक्ृतिः |
सखसमिः पाटलाकरि-> सपभिः पारखाकारो ! 10.38 2००
नवभिः पीतसंनिभेः || 77 नवभिश्च इरिद्राभो । 10.39 2
यस्य श्वासो म्बेदुष्णः यस्य श्वासो भवेदुष्णः
दारीरं पुखकाङ्कितम्‌ । शारीरं पुलकाङ्कितम्‌" ।
जिका च कठिनाकारा' जिका हिमकराकारा
मासघट्‌कं न जीवति% | 78 मासषटूकं ख जीवति ॥ 10.40
यस्य नेन हरिद्रामे यस्य नेत्रे हरिद्राभे
स्यातां वातादिमिस्तथा 103 ॥ स्यातां पित्तार्दितेस्य च ।
तस्यायुः सप्तमासाख्यं तस्यायुः सस्षमासाख्यं
मुनिभिः परिकीर्तितम्‌“ | ‰9 मुनिभिः परिकीर्तितम्‌ ॥ 10.45
यस्यैकं छोचनं नी" यस्यैकं छोचनं नीरं
दितीय रक्तसनिमम्‌ । द्वितीयं रक्तसंनिमम्‌ |
वातपित्तार्दितो म्ते- द्यते स च बिक्ञेयः
नैवभिमरत्युम च्छति ॥ 80 पित्ताटयो मासखजीवकः ॥ 10.47
दि“श्वसतिसहख्ाणि द्ाससतिसहखाणि
107 नाडीनां हि भवन्तिच।
नाडीनां समवन्ति च ।
बाजिनामिह स्वेषां वाजिनामिह सर्वेषां
यासु'°र
क्तंव्यवस्थितम्‌ |} 81 वायुरक्तं व्यवस्थितम्‌ || 11.1
१०9
ताखां निर्मोगचिना्थाय ताखां निर्मोचनार्थाय
द्वाराण्यष्टौ वदाम्यहम्‌ । 81 < द्वाराण्यष्टौ वदाम्यहम्‌ } 11.2
9३. यु. क.-मासेकं वितं
जी तच्र ! 102. यु. क.-मासषटूकं स जीवति ।
94. यु. क.-नीलवर्भे च । ॥ 103. यु. कयस्य वातार्दितस्य च।
95. यु. क -बश्च( क-वक्र }समाकृत्‌ । 104. यु. क.-तस्यायुः सप्मासीयं बहुवर्णे तथा
96. अश्व. क-वज्रसमप्रमः। दिनैः।

97. यु. क.-पाटराकारे । 105. य. क.-हौीनं।
५8. यु. क.-नवमिश्च हरिद्रामे ।

106. यु. क.-द्वासप्तति° ।


99. यु. क.-पुखकान्वितं( ख-पुरुकाद्धितं ) । 107. यु. क.-हि।
100. अश्व. क-विपुलारिवतं । 108. यु. क.-आद्यु।
101. यु. क.-जिह्ा हि मकिनाश्टारा । ~
~

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109. य. क.-निमोक्षणाथीय ।
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ग~
~
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३२ शाषिष्िश्रम्‌
क्षे बेश्चासिं मारे च कष्ठे वक्षसि तालौ च
नासयोस्तु मुखे तथा'*० | नासयोश्च सुखे तथा ।
अण्डयोरथ पादेषु अण्डयोरथ पादेषु
पाश्चयोकभयोरपि ॥ 82 पादयोरुभयोरपि ॥ 113
अन्ये सप्तदश प्राहुः" अन्ये ससद प्राहुः
रिराद्रवाराणि वाजिनः | रिराद्वाराणि वाजिनः।
येधु रक्तं खुत'“ सद्यः विकारथुक्तं यद्रक्त
113
करोति परमं सुखम्‌" ~ || 83 सुस्वस्पमपि बजेयेत्‌ ॥ 11.5
एवं रक्तविंञ्युद्ध च एवं रक्तविद्युद्धानां
कृतवा यत्नेन वाजिनम्‌ । कृत्वा यत्नेन वाजिनाम्‌ ।
दद्मादोमू्संपक्ां दद्याद्रोमूत्संयुक्तां
सतैखां च हरीतकीम्‌ ॥ 91 सतैटां च हरीतकीम्‌ ॥ 11.20
नित्यं चिसक्तकं याबत्‌ दिनि जिसषकं याबत्‌
पटपञ्चप्रमाणतः 1 91 € पठ्पच्चप्रमाणतः । 11.21 8

न प्राज्ञो वाहयेदश्व'« न प्रायो वाषयेदश्व


परातटूकाठे कर्थचन । 92 ५4 प्रवद्‌ काठे कर्थचन । 11.23 ५
कूपोदकं समानीय कूपोदकं खदा खस्तं
पाययेद्‌ख्ह एव हिं | पानाय. जकदागमे ।
अभ्यङ्गः कटतैरेन अभ्यङ्धः कटुतेठेन
निर्बातस्थानबन्धनम्‌ } 93 ००0 नि्वातस्यानबन्धनम्‌ ।। 11.24
एकाहान्तरिते दद्या- एकोहान्तरित दशया-
वर्ण च विन्वक्षणः''° | 93 ^ छवण च विचक्षणः } 11.25 ०

ततः दसरदमासाद्य ततः शरदमासाद्य


बहुक्षीरसमन्नितम्‌ | बहुखण्डसमन्वितम्‌ ।
110. यु. क.-कण्ठे कक्षे लोचनयोरंसयोश्च सुखे |114. यु क.-अन्वान्‌।
तथः ।
115. यु, क.- शपो कटुकतेलनिवात (ह ) गेषं
111. यु. क.-न्ये सप्तदशान्याहुः। शस्त पलाधलवर्णं दिवसान्तरेण। तत्रान्यथा
112. यु. क.-हृत। सति सुखामयवीर्यदानिर्मुस्यैवंकैर्विरदितस्वु
113. यु. क.-प्रकरोति ततः सुखं । वयो( ख-रगो )विनरयेत्‌ ।
^ एभि) ¶ &।

स क्षीरौदनं चैव शस्तं श्वारोदनं सत


पराष्परिसंख्यया ˆ ॥ 94 परष्टपरिसिख्यया || 11.29

ततो हेमन्तमासाच् ततो हेमन्तमासाद्य


निर्वाति बन्धयेद्धयान्‌ । निवाते निबघेद्धयम्‌' ।
माघोर्थं यवसं दव्यात्‌ मासोत्थं यवसं दव्यात्‌
पानीयं च यथेच्छया |} 98 पानीयं च यथेच्छया ॥ 11.7

घतं वा यदिवा तैकं


धृतं वा यदिवा वैरं
पानं दद्याद्िचक्षणः)
पाने द्याद्दिचश्चणः ।

वाहयेच्च रानैर्नि्यं वाहयेच्च'"° द्रानैर्मिरत्य


सर्वदोधप्रशान्तये'* ॥ 99 सर्वदोषप्रदान्तये ॥ 11.8

ततः रिरिरमासाद्य ततः रिरिरमासाद्य


दद्यात्तैकं च वाजिनाम्‌ । द्ाचतैकं हि वाजिनाम्‌ ।
पराष्टकप्रमाणेन
पलाष्टकप्रमणणिन १21
120 यावदिनन्निखत्तकम्‌ 11.9
यावदिनचनिसपकम्‌ ` ॥ 100

यवोस्थ यवसं ददया- यवोर्थं यवसं दद्या


देकविंरव्यदह्ानि च । देकर्विरास्यहानि च |
यवाभवेऽथ चणकान्‌
यवामावे ठ चणकान्‌.
द्यादशेषु नित्यशः ॥ 101 दग्यादा्रतरान्‌~ खदा ॥ 11.10

यवाभावे मसूराश्च तदभावे मसूराश्च


ष्का
द्रौस्तैकसंयुतान्‌ । ययुष्कार्द्रीस्तैरखयुतान्‌ ।
यवसं वा तदुत्थं वै- यवस चापि तद्धेयं~
नीरिगो जायते हयः ॥ 102 नीरोगो जायते हयः ॥ 11.11

कीदनकम कुर्याद्‌ यवांश्चपक्त्वा( च-सुक्ता )


116. यु. क.-शरदि गुडदतं( ग-युत )यः प्रशस्तं चितरेद्‌ विधिज्ञः ।
शरदि सिताष्पटप्रमाणमच्छम्‌ । मधुरमय
यु. क.-रिषिरे तैलपलाटकं करिस्थं दिन-
जड सरोवरोरथं चरतयुतनीलयुकुष्टकाख( घ- |120. सप्ताव
ाश्च )मोञ्याः ।
धि पाययेत्‌ वुरज्गान्‌। तदनु प्रातमोज-
सुङकन्दक येद्‌ यवाख य॒वयवसाशच तथा खतस्वरूपाच्‌ ।
117. अश्व. क-अश्वं निबन्धयेत्‌ । 121. अश्व. १
118. अश्व. क~वाहर्न च॑ । 122. अख. क~प हानि च।
119. यु. `क.-हेमन्तकाके शृततेलमाषा( षाः), |123. अश्व. क-आद्रौन्वरान्‌ ।
निर्वातदस्था च पयो यथेच्छम्‌ । रने; सने- |124. अश्व. क-यस्म न्तं
ब्रविष्ये तदद्‌ यदा ।
किनि

8.3
दढ शारिषदोत्रम्‌
[

ओधषधानां च सर्वेषां ओषधानां च सर्वेषां


क्राथानां नस्यकर्मणाम्‌ | क्राथानां= नस्यकर्मणाम्‌ |
तेकानां च धतानां च तैखानां च धृतानां च
यवसं यवसंमवम्‌ | 103 यवस्य यवसं परम्‌ }} 11.12
पर्वतानां यथा मेद- पव(्व)तानां यथा मेख-
रायुधानां च वच्नकम्‌ ) रायुधानां च वञ्जकम्‌ |
तथा सर्वोपचयौणां तथा सर्वोपवाराणां
सपतेः शरेष्ठा यवाः स्पृताः ॥ 104 ससेः श्रेष्ठतमा यवाः ॥ 11.13
यथोदितो दिनमणि- यथोदितः खहखांञ्-
निदोषं तिमिरं हरेत्‌ । निःशेषं तिमिरं जयेत्‌ ।
तथा शरीरजान्दोषान्‌ तथा दारीरजान्दोषान्‌'“
ग्रवाः सेदहैरन्ति वै ॥ 105 यवाः ससेदैरन्ति च ॥ 11.15
यस्य दत्ता यवा भोग्ये यस्य दत्ता यवा भोञ्ये
रिरिरे समुपरिथते । रिरिरे समुपस्थिते |
अक्रियापि क्रिया जाता अङृतापि कता सवौ"
पञ्चर्तुजनिता हये" ॥ 106 पञ्चतुंजनिता टये ॥ 11.17
परीक्षाभिर्यथा हेम्नः परीश्चाग्नौ यथा हेम्नः `
सखेहस्य च प्रतिक्रिया | सहस्य च प्रतिक्रिया |
हयस्यापि च तद्यच्च हयजीवस्य तद्रच्न्व
परीक्षा यवमक्षणे || 107 परीक्षा यवभद्चणे | 11.32
अस्पेनापि हि चदरिण जअस्पेनापि हि चिद्रेण
यथा नदयति नौर्ज॑रे | यथा नश्यति नौज॑ठे ।
सर्वे दोषाः प्रणश्यन्ति स्वस्पेनापि हि दोषेण
स्त्रोकैरपि यवेहैये ॥ 108 यवद्योषां स्तथैव च ।॥ 11.34
इति ज्ञात्वा प्रयन्नेन एवं ज्ञात्वा विदग्धेन
थवान्दव्यात्त॒ वाजिषु | यवा देयाः प्रयत्नतः । 11.35 ०4
ष्राणदास्ते यतो ज्ञेयाः प्राणदास्ते ततो'* ज्ञेयाः
` सर्वेन्याधिविना्चकाः ॥ 109 | सनैन्याधिविनादनाः | 11.36 प
125. अश्व. कन्क्षाश्यर्ता । 129. थ. क.~यष्य दला यवा भोज्ये शिरि
126. भश्च, ख-तेष्रोत्तमाः। समुपस्थिते । भषप्वापि क्रियाः सर्षी; स
127. अश्व, #-सवन्‌ । ईय! इखद्ष्छति |
128. अश्व, क-किया भपि छत; सर्षा; | {30. अश्व. कयैः ।
4 एणम्‌ ए ३५
अश्वोऽश्नाति यवानाद्रान्‌ यश्चाश्नातिं यबान्च
शुष्कान्वा स्वेच्छया खदा । छ्यष्कांशच स्वेच्छया सदा |
न तस्य जायते रोगो न तस्य जायते रोगः"
य वभक्षप्रभावतः ॥ 110 कृदाचिन्व यवान्नमाक्‌ | 11.37
न विद्धाचिर्विद्युलं च नच शूलेन च श्वासो
न च ष्डीहान च क्रमिः। न च ष्डीदहान च क्म |
न च रक्तपकोपश्च न च रक्तप्रकोपश्च
न च बातादिधातवः ॥ 111 का

[क

जोन
~
न च बातादिधातवः'~ || 11.38
-----~----न
~=

=
~~

मुकुष्टमोजने बाजी मुकुभोजनाद्राजी


पुष्टिं शरदि गच्छति ।॥ 112 ५५ पुष्टिं गच्छत्यलौकिकीम्‌. | 11.41 ०५१
प्राप्तौ ठ मुकुटानां सप्राषौ ष मुङष्टानां
मुद्रा देया विवेकिना ॥ 112 < 'क
,1
एश

किष)
मुद्रा देया मनीषिभिः" । 11.42 ४
वतौ वसन्ते संप्रासे वसन्तसमये प्रापे
वाहयेत्सततं हयम्‌ । वाहयेत्यततं हयम्‌ ।
सनिम्बख्वणं दद्या- सर्निम्बे ठवणं दद्या-
तेर रखवणमेव च | 113 ताभ्यां तें" बिरषरतः ॥ 11.50.-

वसन्तसमये- योऽश्वः बसन्तसमये योऽश्वः `


स्थाने तिं्ठति बन्धने । स्थाने तिष्ठति बन्धने ।
तस्योत्साहप्रणाशः स्या- तस्योत्साहः प्रणश्येतˆ
दाक्स्यं जायते तथा | 114 ०९० सारस्य जायते वपु; । 11.52
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन तस्मात्सर्व॑प्रयत्मेन
वसन्ते वाहयेदधयम्‌ | 114 < वसन्ते वाहयेद्धयम्‌ ॥ 11.53 ५५
ग्रीष्मकाठे तु संप्रासे ओष्मकाठे च संप्रासे
दूबाभोज्यं प्रशस्यते । दूबौभोज्यं प्र्स्यते ।
वाजिनामिह सर्वेषां बाजिनामिह सर्देषां
घमतापोपद्ान्तये ॥ 115 धर्मतापोपदान्तृये ॥ 11.54
131. अश्व, ख-ततश्वं जायतते रागः। 135. अश्व, क~सतैरं च।
132. भश्व, क-दीहं म च तथोदरे । 136. भु, क-~तस्योप््ाहः मणध्वेत ।
133, भश्च, क-ाताहि भ्याथिभ।। 137. भश, क-दस्यौष्वोहप्रणाशाव ।
134, अध, क~-निवेकेमिः। 138. यु. क~तारस्यं जयते वपुः ।
- शारिरम्‌
धुतपानं चिरेषेण धृतपानं विरेषेण
सुच्छायासु निबन्धनम्‌ | ` सुच्छायासु निबन्धनम्‌ |
रक्तखावश्च गजेषु रक्तखावे च गात्रेषु
घासं बा चतसेयुतम्‌'> | 116 आसं वा घृतसंयुतम्‌ | 11.55

पिप्पली सेन्धवं चैव पिप्पली सेन्धवे सारं


नागरं च गुडान्वितम्‌ । नागरं च गुडास्वितम्‌"“ ।
प्रातरद॑त्त. ठरंगाणां 141
कृत्तिकासारमध्याग्रं ` ।
नस्यं शेष्मविनारनम्‌ ॥ 118 वाजिनां छ@ेष्मनारनम्‌“ ॥ 12.2

नस्यं पर्युषितं तोयः नस्यं पर्युषिते “स्तेयः


प्रातर्दत्तं च केवलम्‌ । प्रातर्दत्तं तु केवङैः"% |
अश्वानां च नराणां च अश्वानां च नराणां च
चाषयुष्यं बर्वर्धनम्‌ ॥ 119 नाक्षुष्यं बखवर्धनम्‌ ॥ 12.13

द्विपञ्चारशस्प्रमाणेन द्विपञ्चारादमाण वा
श्रेष्ठं तन्नस्यमुच्यते । भ्रष्ट तन्नस्यसुच्यते ।
पादोनं मध्यमं तत्र पादोन मध्यमं तज
षडूर्विंरात्यथ वाधमम्‌ ||. 120 षड््विंशत्यां ^ तथाधमम्‌ ॥ 12.17

माक्षिकं रा्करामिश्रं माक्षिकं खकरायुक्त


चन्दनं केसराणि च | चन्दने केराराणि च 1
नस्योऽयं वारिणा सद्यः नस्योऽयं वारिणा चद्यः
पित्तनारकरो मतः} 121 पित्तनाद्करः परः“ | 12.23

द्यण्टी मुस्ता रुद्भची च गुद्धची छण्ठी मुस्ता च


तगरं सितसर्षपाः | तगरे सितसर्षपाः ।

139. यु. क-्रष्मे धृतं कतजमेोक्षणघर्मशान्ति |142. अश्व. (१) सवेदोषप्रशान्तये ।


खच्छायबन्धनविंमर्दनरीततोयम्‌ । दृवा तृण |143. अश्च. क-नस्थे पयुषितं ।
धनविमर्दन ¶ततों
= ॥च | १

रघु च कोमरमन्यदेव, . यक्किञ्िदेवसुप- 144. अश्व. क~-केवलं ।


युक्तमिदं बद्न्ति । 145. अश्व. क-अष्टोत्तरं मव्यमं परोक्तं षड्‌
विंशत्या ।
140. अश्व, क~ निवार गङ्डान्वितं । 146. अश्च, क~-मिश्रं।
141. अछ, ख-इतिकासषस्य । 147, अश्व. क-सद्‌ा ।
6एएलापा1‡ 1 ३७

संनिपाते कफाधिक्ये संनिपाते सपित्तेऽयं


नस्यं सते: सुखप्रदम्‌ ॥ 122 नस्यः स्याज्जीवरक्षकः"“ || 12.24
कङ्कोलं केतकी द्राक्षां कड्कोठं“ केतकी द्राक्ला
दार्करा मधघुयषिका | दर्करा मध्ुयिका |
दत्तोऽयं सघृतः पिण्डः दत्तो धृतयुतः पिण्डः -
पुष्टं नयति वाजिनाम्‌ । 123 पुष्टिं नयति वाजिनः ॥ 13.4
मत्स्यमांसेन संयुक्ते मरस्यमांसेन्‌ संयु `

माषचू्णं घतप्टतम्‌ । आवचूर्ण'*' घुतप्ठतम्‌ ।


बख्हीनस्य वाहस्य बखह्ीनस्य वाहस्य
पिण्डोऽयं बलवर्धनः ॥ 124 पिण्डोऽयं बरख्व्धनः | 13.5

चिफला कटुका मुस्ता चिफला कटका मुस्ता


विडङ्खानि च चिक्‌ । विडङ्गानि च चिच्रकम्‌ |
सदारुस्यखमेतानां सदारस्यसमेतानां
वाजिनां पिण्ड आर्तितत्‌ ॥ 125 वाजिनां पिण्ड आर्हत ॥ 13.9

सैन्धवं नागरं इयामा सैन्धवं नागर श्यामा


गुद्भवी चित्रसर्षपाः | गुद्धची सित्तसर्षपाः ।
तथाम्ल्वेतसे समैः अम्ल्वेतसमश्वानां~
पिण्डोऽयं श्चूल्नारनः ॥ 126 पिण्डोऽये दूनादानः ॥ 13.11
सोवर््वंङं हरिद्रा च सोवचलं हरिद्रा च
पिप्पखी चेन्द्रवारुणिः | पिप्पटी चेन्द्रवाख्णी ।
मू्क्च्छे प्रदोसन्ति मूचकृच्छे परीप्सन्ति "~
पिण्डोऽयं वाजिनां हितः ॥ 127 पिण्डोऽयं तुरगस्य दहि ॥ 13.30
केसरे पद्मतारे च केदार पद्मनारे व
श्रीपर्णी बदरीफर्म्‌ ¦ सौपर्ण बदरीफलम्‌ ।
कत्वेकन ये दत्तः तक्रमिश्र ये दत्त
पिण्डोऽयं चिषनारनः | 128 सर्वथा विषनाशनम्‌'> । 16 7

148. अश्च. क-तु नस्योऽये वारिणा क्रमकारकः} |152. अश्च. क-सयुक्ताः।


149. अश्च. क~-कङ्कोखी । 153. अश्व क-प्रक्ञंसन्ति।
150. अश्व. ख-वाजिना। 154. अश्च, क-सोवर्णी ।
151. अश्व. क-माषचूर्णं। 155. अश्व.क-क्रममिश्नं हये दत्तं विषनाकरं परम्‌ ।
३८ शारिषदोत्रय्‌
चपवेश्मान्तपूर्वगे छम- खपवेश्मवामभागे शभ-~
दिवसे कारयेदधयागारम्‌. | 129 ॥ दिनि ठु कारयेद्धयागारम्‌ । 18.1 81
अत ऊध्वं हूत्वाग्नि प्रवे- अत ऊर्ध्वं तु हुताग्निः प्रवे-
रखयेद्वाजिनो यथायोगम्‌ । रायेद्राजिनो यथायोग्यम्‌ ।
कुशङेस्तसणेदक्षि- कुश छेस्तरुणैर्दश्षे-
रनुपाकैः स्थानपारेश ॥ रनुकूरेः स्थानपाटेश्च ॥ 18.4
कृतमङङ्गटखसस्कारा बद्धग्या- कृतमङ्गरूसंस्कारा बद्धन्या-
स्तेऽप्युत्तराभिम॒खाः 1 {29 ९५१८ 0ध
~----
~
"+
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स्तेऽ्र चोत्तराभिमुखाः । 18.5 2%
नाया्‌
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{0णणत्‌ 7 ^ 5९२1ा1४81६2 ° पिभ्ण12. ( 5101. 1०1८. 86168 ). 116 1011०108
276 06 74558265 1961 2६ {76 06177170 ° धः€ (८

सपक्षा राजिनः' पूर्वं संजाता व्योमचारिणः |


गन्धर्वेभ्यो यथाकासं गच्छन्ति च समन्विताः | २३ ॥
इन्द्रदेशच्छाङिहोवस्तेषां पश्चमथाच्छिनत्‌* |
ततः प्रमृति निषप्पक्चास्व॒रंगा धरणीं गताः ॥ २४ ॥
5 उत्तमा मध्यमा नीचाः करणी( नी फयांसस्तथा परे ¦
चतुर्धा वाजिनो मूमो जायन्ते देशसंश्रयात्‌ ॥ २५ ॥
ताजिताःः खुरशालाश्च तुषाराश्चोत्तमा हयाः |
गोजिकाणाश्च केकाणाः प्रोढाहारश्वे मव्यमाः |} २६॥
ताडजा उत्तमाशाश्च" राजद्यूाश्च मध्यमाः |
10 गत्वराः साध्यवासाश्च” सिन्धुदाराः" कणी( नी `यखः | २७ ॥
अन्यदेशोद्मवाये चते वे नीचाः प्रकीर्तिताः|
वाजिनो जलजाः केचिद्रहिजातासतथापरे | २८ ॥
समीरप्रमवाश्चान्ये तुरगा भ्रगजाः परेः |
जलोद्भवा द्विजा ज्ञेयाः"“ क्षत्रिया वदहिसेमवाः ॥ २९ ॥

1. अश्व.-वाजिनः। 8. अश्.-भाण्डजाश्वोत्तमांसाश्च।
2. अध -समन्ततः। 9. अश्चव.-गोहराः।
3. अश -इन्द्रादेश्षार्कृतं सवै भवतां पक्षपातनं |10. यु. क.-{ क )साष्ववासाश्च, अश्व.-शाषराश्वैव
( ख-मया वत्साः कृतं वः पक्षभेदनं ) | (क-सबरांसाश्च )।
4. अश्च.-कनीयांसः । 11. अश्च.-सिन्धुपाराः।
5, अध.- ताजिकाः । 12. अश्व.-नीचनीचाश्च ते स्मृताः|
6. अ-घ.-खुरशाणाशच ! 13. अध.-उद्कमगजास्तथा ।
व. अश्च.-उक्तराः (ख-तुषाराः) । 14. अशध.-द्विजातीयाः ( ख-द्विजा ज्ञेयाः )।
2९
४५ शारिष्ीत्रप्‌
15 प्रमज्ञनभवा"” वैद्या सगजा श्ुद्रजतियः"
पुष्पगन्धि्मवेद्धिमः"" क्षत्नियोऽगुर्गन्धिकः"° || ३५ ||
घतगन्धो भवेद्रेष्यो* मीनामोदी च द्युद्रकः |
विवेकी सघृणो विप्रस्तेजस्वी क्षत्रियो व(ब )ली | ३१॥
कोष्णभावोः भवेद्वैद्यः" यद्रो निःखच्वको भवेत्‌
20 विप्राद्या वाहनाः सर्वे चयो भूमिपतेः सदाः ।
ग्रुद्रजातिं वुरंगं ठ न स्प्ररान्ति नरेश्वराः | ३२॥
210 £< 7४§६ 1116 178€1४5-
यदाह्‌ नकुखः-
सप्तवर्ण भवन्तीह“ सर्वेषां वाजिनां श्रवम्‌ |
तानह कीर्तयिष्यामि मेदेजाताननेकधा | ३८ ॥
{€ 1106 2 17867६४5
25 श्वेतः कुन्देन्दुसंकारो रक्तः कोयुम्भसंनिमः
हरिद्राखटशः पीतः सारङ्गः कदरः स्तः ॥ ४० ॥
2 {€ 1106 41086€८8-
दन्तेषु व्यञ्जनं यद्व(य)त्‌ तेन जेयो वयःक्रमः ॥ ४२ ॥
तद्यथा--
कालिका हरिणी शङ्का काचा मक्षिकया सह ।
30 राद्धो मूषल्के चैव दन्तानां चर्तां( वा ,) तथा ।
इत्यष्टौ ग्यज्ञनान्याहूुरथेषां कक्षणं श्णु ॥ ४३ ॥
न्च॒तुसिर्वत्सरेदन्ताश्चत्वारः परिकीर्विताः
पश्चाधिश्च षडिव्येवं जायन्ते त्वथ कालिकाः | ४८४ ॥

15. अश्.-समीरप्रमवाः (ख-प्रभज्नोद्धवाः ) 1 ! 22. अशधछ.-निःसततवकातरः ( क- कारकः)
16. अश्व.-एणोद्धकाश्च सद्रजाः । 23. अध.-विपराहां वाजिनः सर्वे क्षत्रियो भूपतेः
17. अश्व.-पुष्पगन्धः सदा विप्रः (ख-पुष्पगन्ध- ( ख-तजयो भूमपतेः ) खदा ।
समः) । 24. अ्च.-वर्णाः सप्त भवन्तीह (क- वणी मवन्ति
18. अ-ध.-अगु रगन्धकः । येऽपीह्‌ )।
19. अन्व.- सद्‌ा वैश्यो । 25. अध.-शेतः प्रालेयक्षंकाशो रकः कुक्कुम-
20. य. क. ( ख }-केोष्णभावे । संनिभः। यु. क. (ख ) कुन्देन्दु्निभः
21. अ्च-दुष्टमावस्तथा वेइयः। 26. अश्व.-कालिकान्ये भवन्ति च।
^
एटिभपा
गर ॥ ४१

धटे सवर्सरे प्रासे काछिकान्या भवेत्त हि ।


35 तथान्या सप्तमे वर्षे चतुर्थी कालिका भवेत्‌ः° ॥ ४५ |
अष्टये वत्सरे प्रापे जायन्ते स्वैकालिकाः
नवमे त्वथ ताः खर्वा अआपीताः संभवन्ति च | ४६ ॥

केचिदेकाददो' वरै तावत्पीतस्वमागताः।


ततः श्वेताः प्रजायन्ते चतुर्दंशसमावधि ॥ ४७ ॥
40 ततः काचप्रमाः सम्यम्यावेत्‌ सवत्छरास्नयः )
ततः ससदशादुर्ध्वं यावद्वर्षाणि विरतिः ॥ ४८ ॥
मक्षिकाभां बदन्त्येषां याबद्रर्ष्यं पुनः|
राङ्षाभासाः सर्व॑दन्ता भवन्ति वाजिनां ततः॥ ४९॥

त्रयोविशात्परे बधं ददामा मूषला मताः |


435 षडूविंात्परतो दन्ताः स्थानाच्चल्नमा्नुयुः ॥ ५० ॥
यावद्रर्ष्॑यं पश्चा्निपतन्ति समात्रये ( १)।
दरािंशद्वत्खरे वाजी नूनं निर्बाणमाप्ुयात्‌- ॥ ५१ ॥
दीर्घाः छष्का विसाखास्या ये भवन्ति वरंगमाः।
ते रास्ताः पार्थिषेन्दरस्म यानवाहनकमौणि ॥ ५२॥
.2.7€1 110€ 14 113€1४5-

50) विमिश्रवर्णकाः सर्वे प्रशस्ता वाजिनो मताः| ५९॥


यस्योरङृष्टतरा वणा बृद्धि यान्ति शनैः दनैः |
नाशयन्ति तथा नीचान्करोति ख बद्रन्हयान्‌ | ६० ॥

27. यु. क, {क ) चतुर्थं ! मक्षिभा(का)मा वदन्ते(न्त्ये)षां ।


28. अश्व.-तधान्यः सत्तम बर चतुथे कालिको | 35. अश्व.-प्रकम्प च समागम्य पश्चात्‌ पाततः समा
भ्वेत्‌ । त्रयम्‌ । द्रान्निशद्रत्सरैरेव बाजी निबाणमाप्नु-
29. अश्च.-प्रापताः स्युः सावेकालिकाः यात्‌ ।
30. अश्व.-नवमे स्वथ चा रेखा पीतत्वं शसयन्त |36. अश्व.-दीधसङ्षमविमांसास्याः ।
च । - अश्व. ; ।
31. अ-धघ.-तथाप्येकादशे । ० हि ।
32. अच .-पददयन्ते । 38. अश्च~यस्योक्कृष्टतरो वर्णो द्धि याति शनैः
33, अश्च.-यावद्रषच्रय पुनः। रनः।
34. अश्व.-मक्षिकाभा रदास्तेषां । यु. क. (ख) |39. अश्वस करोति।
४२ शारिषीत्रम्‌
रोम्रां“ भरमिवदादृत्तिरावर्तं इति गदते |
षड्विधो दक्षिणो वामो दक्षिणस्तु मावः ॥ ६१ |
^ {६६7 1116 44 175€75-
55 रोजनां वुचिकवत्स्थानं छक्तिरित्यभिधीयते ।
यच्रावतंः श्भस्तत्र इक्तिस्तच छमाबहा"' | ६८ ॥
^ {६९€7 177€ 62 1086€८ऽ-
दुरुभ्मवाजिने जद्या्दीच्छेत्‌ राश्वती धियम्‌ |
यस्तु ( स्य ) वर्णविभेदेन ज्ञायते रोमसंभवात्‌ | ७१ ॥
पुष्पाख्यः स परितव्याञउ्यः सर्वंवाजिमयाबहः ।
60 य॒स्यावदोषवर्णेन ऊदयते च प्रधानतः“ || ७२॥
विबुद्ध गच्छतः सोऽश्वः“ कुरुते“ हयसंश्षयम्‌ | ७३ ॥
&.{1€7 1106 51 105€7६6--
वाजी मेदृगतावर्तो वजंनीयो महीयुजा^ ।। ७७ ॥
त्रिवद्िप्रभवावत॑लिवर्गस्य प्रणादकः |
पृष्ठवेदो- यदावतं एकः रंपरिखक्षयते" |
65 धूमकेतुरिति ख्यातः ख त्याज्यो दूरतो पैः ॥ ७८ ॥
गुह्ये मुच्छे वरौ यस्य॒ भवन्त्यावर्तकाख्रयः ।
स कृतान्तस्ड रूपेण वर्जनीय स्तुरंगमः | ७९ ॥
0210176 1171८ 207 105€75-
-सुस्थस्यापि च नेन्रान्ते स्यातां नीरे च वाजिनः ।
तथेव तस्य जानीयादूमवेन्मृर्युदिवार्षिकी ॥८८ ॥
40. यु. क (क )-व्यो्नां | 47.-अश्व.-मेद्तलावरतो ।
41. यु. क. (ग }-शुभा मृत्‌ । 48. अश्च.-महीभुजां ।
42. अश्व.-यदि वाञ्छति कल्याणं वाञ्छेव |49. ज्.-न्रिवलिस्थो यदावतैज्िवर्गस्य प्रणा-
श्रीससुद्धवम्‌ (ख-कमेणि वाञ्छां च करोति | शकः ( ख-प्रसाधकः )
श्रींससुद्धवां)¦ धि
43. अश्व.-यस्य रोमविभेदेन (ख .-हयस् य वणे. 50.
| अश्व. पुच्छरथ ( ख ष्टे ) ।
मेदेन ) जायन्ते रोमबिन्दवः। 51. जश्च.-समदश्यते। _
ण ।
44. अश्च.-यस्याधमेन वर्णेन छाद्यते च प्रघानजः |52. जश्व.-ङतान्तस्वरूप
(ख-सीदयन्ते च प्रघानजाः) । 53. अश्च.-स्वस्थस्यापि दि ।
45. अनध.-गच्छता ( ख-गच्छते ) सोऽथ । 54. अनश्व.-गन्धश्च सदशः क्षोण्या तदा सव्युर्दि-
46. अध.-करोति। मासिकः।
4+एप 1 ४३

&{‰€7 1106 20६ 1


20 यस्य नेत्रान्ते रेखा बहुवर्णं प्रजायते ॥ ८९ ॥
विरेषाद्वाजिनो ज्ञेयं तस्यायुः पञ्छमासिकम्‌ | ९० ॥
4{£€7 1106 210 1867{5-
पीते सासद्रयं तथा |
रक्ते मृव्युलिभिर्मासिशदर्िश्च विचिन्के ॥ ९१॥
{67 {16 512 105€765-
चणकामे तथाष्टभिः | ९२ ॥
75 दशभि्जठुकोपमे ।
एकादशे सुवर्णामि वत्सरेण दहिमद्युतौ ॥ ९३ ॥
2 {{€7 11706 218 1056€715--
जिह्वाग्रे पिडका यस्य पादान्ते च तथोदरे |
मून करोति रक्तं वाः मासषट्कं स जीवति ॥ ९५ |
कर्णयोः क्षतज यस्य मेजाभ्यां बा प्रवर्तते |
80 बाजिनः पित्तमस्तस्य दद माखान्ख जीवति" | ९६ ॥
2{£€17 110€ 222 708€1{8-
स्फुलिङ्गा यस्य दर्यन्ते युच्छतोऽश्वस्य वहिजाः |
निर्ग॑च्छन्तः प्रमोर्मादे ते वदन्ति निशागमे | ९९ ॥
अश्वशालां समासाद्य यदा च सधुमक्षिकाः |
मधुजा प्रव ब )ध्नन्ति तदाश्वान्‌ श्रन्ति कृत्स्नः | ९०० ॥
85 खवरणगुस्पाश्वौस्येधु भोमार्कैवारे
स्वतिथिकरणतारान्न्द्रयोगोदयेषु |
छभमिहं हयकाष्ठं कार्य॑मार्येण बुदूध्वा
न शानिरविकुजानां बासरे नोतारे॥ १०१॥
55. अश्व.-विदोषात्स्वरमेदः स्यात्तस्यायुः पाञ्च-| स जीवति )।
मासिकं । _ _ |59 अश्व^-स्फ (स्फु)खिङ्गा यस्य द्यन्ते पुच्छ
56. अश्च^ग्रीवाभ्रे पिण्डिका यस्य जायते च| देशे च वह्िजाः। परचक्रागमांसी वि्ञेयो
तथाघरे। हयपण्डितेः।
57. अघ. -रक्तावक्य। 60. अश्व, यदान्तर्‌ (क-यदा च })।
58. वणैः शवेतो यदा यस्य नेत्रा{ चर )योश्च मरजा- भि
यते ] दशमासान्समाघाद्य पित्तातों न स | 61. अश्च~मङुबन्ति ( ख-प्रवष्नन्ति ) ।
जीवंति (क-वाजिनः पित्ततप्तस्य दशमासं ।62. थु. क ( च }-तद-धान्‌ ।
५। शाकिनम्‌
86016 1196 139 17861{5-
चरुकिश८ स )ल्यपादः कर्णमध्येकहष्टि-
90 न चरति कणिदेशः स्वाखने संस्थितो य्‌: |
हयद्दयगतिज्ञः स्थानदण्डावतापः
ख खलं ठुरगयाता पूज्यते पार्थिवेन्द्रैः ॥१०२॥
ए€0€ {10€ {43 15€८६6-
रक्तकोष्टे” मुखे चोष्ठे गरे पुच्छे च ताडयेत्‌ ।
मीते वक्षःस्थलं हन्याद्रक्तं नचौन्मार्गगामिनः० ॥ १०४ |]
ए€{0०7€ 117€ {40 10 8€75-
95 हस्तैश्वतुर्विरातिभिधैनुर्दण्ड उदाहतः
अश्णोनैमषणान्यष्टौ मात्रा प्रोक्ता विच च क्षणे: ॥ १०७ ॥
माचापोडराकेनाश्वो यो धावति धनुःरातम्‌ |
तम॒त्तमोत्तम"' विद्याद्वायुवेगं महाजवम्‌" ॥ १०८ ॥
विंत्या मध्यमो जेयो ह्यतोऽन्ये चाधमा मताः |
100 नमस्याश्वयुजे मासि नैवाश्वान्वाहयेकपः*]| १०९ ॥
वञ्जाग्निसदरौ पित्ते श्रमारकुप्यति वाजिनाम्‌ |
कार्येण महता वापि योज्यो मासि ठ कार्तिके. || ११०॥
हेमन्ते दिरिरे योगो वसन्ते च यदच्छया || १११॥
1/715८611876005 ४ €78€8 {0076 81 {76 €7त 2 € { € :-
भोजन तु दयरुक्षणमन्यथोक्तम्‌ } तव्यथा-
105 ज्लिग्धाङ्गो ल्ुतरलोमकस्तु पुच्छी
दीर्घासयास्थिनयनकेराप्रष्ठवदाः“ ।


63. अश्व.-करिदेश े आसने संस्थि तश्च ( क-व्यापि- : काष्टा अष्टखष्वक्षरं तथा।
तोऽपि स्थितो यः), 71. अध. तमश्सुत्तर्मं ।
64. अश्व-यु. क. ( ख }-स्थानदण्डाचपाती । 72. यु. क. (क ) महाजरर ।
65. अघ.-° योक्ता. 73. अश्च.--भाराध्वानं जवं व्यजेत्‌।
66. अश्च.-मान्यते (क-पूज्यते )।
67. यु.य,. (क )-रक्तकण्टे । 24, अश्वु--कार्येणेव महान्‌ किंचिद्‌ य॒ज्यो नभसि
68. अ-ध.-ववत्रे स्कन्धे सुखे कष्ठे गात्रे सक्थौ च कात्तिक । |
ताडयेत्‌ । 75. अश्च.- योगे।
69. अनश्व.-चोन्मागेगामिनं । 76. यु. क. (क)-ज्िग्धा ..... कणेपुच्छो दीघौस्य
70. अशध.-हस्तश्च तैच्चतुिशैः कायक तैश्वतु्युणेः। त्रिनयनकेराप्रष्ठवशाः।
4 एप 1 ५८५

रक्तोष्ठः प्रथुखनितम्बभारर८ व श्चा


राजार्हो भवति वुरंगमः प्रदरास्यः ।॥ १३१९॥
नामि (मेरा ) मारभ्य देहस्तु द्विषा पूर्वापरक्रमात्‌ ।
110 पूर्वकायस्थिता रक्ताः माय हयसंस्थिताः ॥ १३२ ॥
अधः काये स्थिता रक्ताः ८ क्ता ) अधमस्वप्रकाराकाः।
शक्तीनां वैपरीत्येन प्रशस्तफर्मादिशेत्‌ ।॥ १३३ ॥
वात्स्यस्व॒-
ब्रह्यादिजातिभेदेन हयजातिश्वतुर्विंधा ॥ १३४ ॥

115 तद्यथा--
ये श॒क्काः सुविमरूपुष्पगन्धका वा
छद्धाङ्गाः सखधणसदुष्णमोजिनो वा ।
अकरदाः समरगता भुर च पुष्टा-
स्ते विप्राः क्षितिपतिवाहनेऽतियोम्याः | १३५ ॥
120 ये रक्ताः सदृगुरुगन्धयोऽदहता वा
सरुषा बहुतरमोजिनो बलाल्याः ।
अश्रान्ताः सकख्युणम्रहाः प्रवीणा (णा)
चिन्चेया विधिकरजातजातयस्ते | १३६ ॥
ये पीताः खड घुतगन्धयोऽपिं ये बा
125 येऽक्रद्ः कथमपि गन्धरोषशाछ्िनो ये । १३७ ॥
वद्धा वा बरहुतरनादघोघणा वा
विज्ेया पवर वैश्यजातयस्ते ]
ये कृष्णाः सरुषासगन्धयोऽपि ये
वान्यथा बहरुतरताडनैरपीमे ॥ १३८ ॥
130 क्षीणाङ्गा ठश्ुतनयोऽपि वेरादीना-
स्ते्यद्राः क्षितिपतिना भरद्यं विहेयाः ।
एतन्न एकैकमेव रक्षणं न सासुदायिकम्‌ | १३९ ॥
लक्चषणद्वयसम्बन्धादद्धिजातिः स्याचुरंगमः ।
चठुरुश्चणयुक्तस्व दूरे त्याज्यो हयाधमः | १४० ॥
४६ शाशिषहित्रम्‌
135 अन्य्र तु|
साच्विका सजसाश्वेति ताप्साश्वेति ते हयाः || १४१ ॥
ये द्वण भदावेगयुक्ता अश्रान्तिभाजो बहुभोगिनश्च ]
अक्रोधरीलाः समरेऽतिरष्टास्ते साच्विका मूप ठरंगमाः स्युः ॥ १४२॥
ये रक्तवर्णा गुरवेगरोषाः कषातिघातं7 न हि ये सहन्ते ।
140 येऽमी बराल्याः खलं दीषदेहास्ते राजखा भूप ठरंगमाः स्युः ॥ १४३ ॥
ये कृष्ण ब्णीस्तनुरोषवेगा अस्पारिनो ठक्षणर्क्षिताश ।
ये दर्वाः सर्वगुणेबिहीनास्ते तामखा मूष ठरंगमाधमाः | १४४ ॥
दरयोर्कक्षणसम्बन्ाद्‌द्वियुणो वाजेमध्यमः ।
त्रयाणां गुणसम्बन्धालतियुणो वाजिर्निन्दितः ॥ १४५ ॥
145 परादारसंहितायां वु-
पुथिवि ८ बी ) वायुतेजःखैः पञ्चभिस्वुरगाध्ितैः ।
उल्बणे: पञ्चधा मेदाः परारारमता यथा | १४६ ॥
ये स्थूलाः श्रमसहदेहरूपमाज-
श्वाङ्कान्ता बहुतर भोजनाश्च दीर्घाः ।
150 अकरद्धाः समरगतास्तु रोषभाजो
भोमास्ते धनगुरुष्धैरस्वरास्ठ ॥ १४७ ॥
ये ®@थाङ्गास्तनुबखाः श्रमखहकठेवराः ।
अक्रोधवेगाः स स्वभा (ङ्गा) आप्यास्ते तुरगाधमाः ॥ १४८ ॥
ये बातवेगप्रतिमोग्रवेगाः छष्का मृडं दीधैकरेवराश्च ।
155 अश्रान्तिमाजो बहुदूरगाश्च ते वायवा वाजिवराः प्रदिष्टाः ॥ १४९ ॥
ये क्रोधी भ्रशवेगयुक्ता मुक्ता दिनात्करोशगतं जजन्ति ।
ते तैजसाः पुण्यवतां प्रदेशे भवन्ति पुण्यैरपि वते मिरखुन्ति ॥ १५० ॥
एको यदा तैनससंक्षकोऽश्वः किं कार्यमन्यतुरगस्तुरगाघमेस्वु ।
छद यदा हीरकखण्डमेकं किं कार्वमन्धैर्मणििर्विचिन्ैः ॥ १५१ ॥
160 उरष्डुस्य ये बाजिवरा ब्रजन्ति कृद भशं ेगखमन्विताश्च ।
ये एङ्षयन्तः परिखा्भपारां ते गागनाः पुण्यतमाः प्रदिशाः ॥ १५२ ॥
27. यु. #, (क)-कलामिधातम्‌ ।
^ ८८6 ग ७

द्रयोर्कक्षणसम्बन्धात्तरगः स्यादद्धिमोतिकः ।
स्वजातिगुणमतानां हयानां वाहनं छमम्‌ ॥ १५३ ॥
असञ्जातिगुणादीनां बाहनं इ्ेदकारिणम्‌ ।
165 एषां चिकित्खा न प्रोक्ता प्रन्थविस्तारखंमवात्‌ | १५४ ॥
राखिदोच्ादिविक्ञानात्तादिजञेयं यथोत्तरम्‌ ।
असंमवेग्धहि दष्टाश्च बाहयेदिति चेत्तदा ॥ १५५ ॥
तिर खकाञ्चनं द्द्याछछवणे वा गुडान्वितम्‌ ।
रेवन्तं” पूजयेद्धापि निज निैन्थयेत्तदा ।
170 दद्यात्ताम्रपलं वापि, अमावे सव॑क्सणः १५६ ॥
एवमन्यज्ापि ।
काञ्चने रजतं ताम्रं कोहमेतव्यथाक्रमम्‌ |
बह्मादिजातिदोषाणां देयमेतस्प्र्ान्तये ॥ १५७ ||
अभावेऽपि च सर्वेषां ताप्रेण स्यासप्रतिक्रिया | १५८ ॥

28. यु. कं. (क)-असम्भवेति । 79, यु. क~ (ख) -वैमन्धम्‌।


१ 2,10१.1
(11८21 9068

1406 7, भवेच्छयामैककर्णकः । 411 1188. 762 इयामैक वर्णकः (8 38 8{8-


1670118 107. {106 १6861एप्०प 9 9 111८6 10786 15 2 019६ एातलय
09810 € ०, 27 80 1६ (क्ा10६ 86 €008ध्रप६तव 71700611 10 16 25526,
अश्व. 26205 रयासैककणेकः; यु. क. 29५ श्ाङ्गघर 1624 स्यामेकश्च वणः
8. ^ &217081\ #1€ €९११९०८€ ०{ 1053. € 3९© र्लिः7लत इ्यामकणंः 10
उयामवर्णंः 771 ४१८ 2 इयामैककणक † १16 11०6 7. 1४ 15 07709096 0 जश्च,
27 यु. क. शुक्र. 76405 इयामकणेः <, 1/8. 5.104.26. (८. ए4:.)
एकतःरयामकर्णांनां शतान्यष्टौ ददस्व मे ।
हयानां चन्द्रह्युभ्राणां गच्छ गाङख्व सारम्‌ ॥
9. सर्व॑वणेस्य वालिनः । सर्ववर्णं 06803 ( {4010 00]$ =०7€ (णृण्णः 9
06 900 }.
13. तथा वक्त्रे च मध्यमः। 411 158. 762 मध्यम, अश्व. श्ाङ्घर 76४4
मध्यतः, यु. क. 6205 चन्द्रक च कलारके. 7070 (113 २६ 35 वाला १2 प1€ 10८86
13४19 811 118 {९८९६ 71४6 2० 8 1116 8१0०६ ८८867000110 "€ 7060 ‡ €
66076 07 € {0460684 185 ©21६्व कद्याणपञ्चक. &€० मध्यमः 500५1५4 6 ८६४५ 28
मध्यतः 28 19 अश्व, दुक. 294 सनस. ५4० ००६ €[€ {0 18 01६६ 8००६ ६ 211.
इक. 16208-- सुखे पत्सु सितः पञ्चकट्यागोऽश्ः सदा मतः 187.109. मानस. .५०३९८६68
कस्याएणपञ्चक्‌ 95 {0110 78- येन केनापि वणेन सुखे पुच्छे च ( पादेषु ) पाण्डुरः । पञ्चकट्याण-
नामायं भाषितः सोमभू सुजा ॥ 2. 213. 95.
--कष्याणपञ्चकः रोक्तः। शुक्र. 210 मानस. ८62 पञ्चकख्याण,
-- सर्वकल्याणकारकः । ए: 16248 सर्वेकथ्याणकारकाः, 160 18 1८0116८६. (€
7612196 ए7000णण. यस्य 1४ 176 १९786 € पृ्7€5 € ०५ ¡९८1४९ स्वंकच्याणकारक
४० ए6€ 77 शणद्टणंभ. & 7 768 सरवे कल्याणकारकाः, 2 7८20102 17160 18 110४
770ए€पृ॒ 6008०], स्वे (00०६ दरहा ४० ब्‌] चल 045 9 0८568
06801860 1" ६06 ८८१10०७ १८5६8, 08€८व0§6€ € १८४६९ 507 ५८561068 यमस्य
प्त ० ०786 पत 15 0६ ०६ 911 उण्डालठ्णऽ, 00 06 (्०णधः¶ ६06 ४८86
46811068 २६ 28 अयोर्यो भूपतेनित्यम्‌ । "76 10186 कल्याणपञ्चक 21016 75 सर्वंकल्याण-
कारक 204 0६ 00678. [0लातल्वाक्गि 1६ 15 जणा) 00 ण पाम 9119911 28
3810 £0 7106 ०] 3 कल्याणपञ्चक {१४१ ० 0786. यु. क. ४९०२५१8 †#15 ताक्षितणाप्त
एप 62108 भर्तः कल्याणकारकः. ।
20. सुयैसं्िकः। अश्व. 76408 सूर्येसंकः.
32. शिवसंक्ञिकः। अश्व. 76205 हिवसंक्ञकः. \€ 19९6 1619706त दिवसंन्िकः
1167 18 0पणत्‌ 7 21 188. 22 2150 17 ४06 0८086 2885286 {0110 कण
118 ४१686.
50. मवासमरणं धरते । प्रवास्नमरण 16428 06८80 7 174९९18, "06 ०८
भवास 18 1०६€7ए761€ब्‌ 1 € 71086 7838286 98 संम्रामादहौ. अश्च, 6443 ध€ 106
9७ * प्रवासं सत्तं दते स्वमत; देश संयुतस्‌। (ए अश्व, १०58 20६ 76८ ६० मरण 8६
211. शुक्र, ८५048-जाजुखंस्था यद्वत; प्रवासङ्धेशकारकाः। 186-97.
८८
+ड प ४५
--56. हनिदन्तो ऽधिकश्रैव । अधिक 5 ९5018776 ए ६४८ 7086 2588द्€ 28
अधिकदन्त. ^ 827) 5९ हीनदन्ताधिक्थचैव, 12101 15 9८०6६. 2, ५+€5 ६७
00८160६ (१8 टय 76858109 प 2610 हीनदन्तादिकिश्वैव 107 इीनदन्ताधिकश्चैव, अश्व.
76208 हीनदन्तोऽधिदन्तश्च । शाङ्खघर ८6845 षहीनदन्तेधिकशचैव, 1८1 58 ४८८८६६५
0 प७.. € 6718105 1116 ९7०७ हनद्न्त 220 अधिकदृन्त 28 पञ्चभिः स्तभिदैन्तेवाहं
हीनाधिकौ स्तौ 1658 ।
„ , --करारीं कृष्णताङकः । श्ाङ्गैधर 66865 कराली 2०१ कृष्णतालुकः 25 कराखी चाध -
रंदन्तंभ्छा्यन्ते यस्य चोत्तराः 1658 । 9०१ छष्णं ताड मवे्यस्य स मवेरङ्ष्णताल्ुकः 16591
--57. श्राङ्खघर &{९€8 £1€ ५68८1६०7 ० सुक्ञरी ३० श्चनी 88 {०110 ऽ-सितैक-
चरणः पुप्पक्षैनस्तु सु्डी स्ष्टतः 1660 ! 276 काराभाक्तंकः कर्णदेदे यस्य सं श्रङ्किकः 16601
--72. जअुश्रमरे मित्रविश्रोगः। 195 {25586 1166048 96 ©2ए87460 8०76 पौप77
11€ यस्य श्ुवोः ्रमराः अ्रजायन्ते स मित्रवियोगं करोति।
--73. पृष्ठे अमरः स संभामे खामिहन्ता। कव्या मरय स स्वामिभ्ातृवधं करोति।
32701 यस्य ए€{0"6 पृष्टे 409 कस्या.
_ -79. उरसि भ्रमर्ढयं स्वामिगहि रुक्ष्मोवैधंते। € 1496 ६० 1624 {118 28 यस्य
उरसि अमरद्र्यं वतैते 07 प्रजायते तस्य स्वामिगृ रुक्मी वैधेते ।
--82, तथाजिनेनैव समानवणैः । 411 € 7188. 162 तथाजिनस्वेन; ०८४ ६ 38
००६ ५४६ 10611111. € 71647108 ° धा5 7888286 3086275 ६० 26; ^ 2
00786. 14510 धल 6010ण (९८ऽलण्ाण् पाल वल्लक 6९, 890 € ८6
तथाजिनेनेव समानवर्णः ।
--84. °निखिदान्ञङ्घोपमः । ^ 817) 762 निस्तृरा श70119 07 निशित {16
06818, 2 80०५. शुक्छ. 16808 सड 18480.
--85. वेदी स्वस्िकछ०! 411 {116 758. 2640 चेदि. 14. "र, ८6037८5 ६2६ ४16
0४१ वेदी 15 ४७९ 12६67, 20 {४ एल ० ५6 क०त्‌ चेदी ए७८तवं 7 ६0€ 7056
729828€, ११८ 9९८ ९1676 वेदी.
01 सक्षधिश्यप्रम्णेन । सक्चविश्च 38 &791000 2६162115 २८०४८६८८. ६ 3106
86 सक्षविशति. (0707276 खक्तचिश्च तिः ०३९५ 1 116 93.
--94. 37091191 € 19९ 10 1620 चतुविंदाति 200 सक्षविक्ति {07 चतुर्विदात्‌
80 सप्तविशत्‌ 768 6८४१८1४.
--90. ६००५ चत्तविश्रति {० चतुर्वि्त्‌ , 7४ 18 ४० 96 ००६6 €< {02६ क्र)
सक्र्दिद्ति 2०१ चतुर्विशति, € 1196 0८८००65 ८९८९६ € 6 ल्श,
--104. तथोश्नते ्राणपुटं ककारं काश्च तञ्ज्ाश्चरणा वदुन्ति। उश्नते 06 वणथ {गत
{3 ८३६५ {0८ व्राणपुटं 20५ ङकारं पय€ (0०६606८, 01129 € 0६४6 ६0
8४715 उन्नताः 10 ४0€ 128६ 503. -
--110. रष्चनि बन्धाच्च मणेष्तु कोष्ठम्‌ । ¶ € णत छच्ु 18 10 € (०्डप्पप्रलत्‌
1४1 211 ६2€ 11728 06010€त 17 2€ %€786€.
--115. सानुरागं च मोक्षणम्‌ । 61} {€ (58. -€8प मोश्णं. 01 € 72४6
2५८6०४९ सोश्च्ण 0४ € 5६608 ० ६06 ८68410६ {0 प्प्‌ 17 अश्च,
84
५० --- शरिोत्रम्‌-
- 128, पितृदोषेण जाख्यता। 411 ६16 +188. 168 जायते. _ ए०ण {६५5 ०
दोष" 8 276 €एघा€१०१६५्‌ 39 € १८75८ 2. मातृदौोष, पिदृदोप, स्वामद्ष 20
स्वदाष 376 2660701081 81] 116 {0 दौषञ 1664 06 ८५९६००९५. {{ ट 7€2त
जायते, ४6 81217166 10 ६6 ल00§धपल०् त ४४€ 3585826 35 9०७१ ६6८४८760.
(16 76401 जाज्यक्ता {ऽ 00100026 9 अश्व. 0.5 276 ए € 0 ४६६6 छश्चुष्व 88
सातृदोष 98 %€11} 25 पित्दोषः
--135. सुलखिग्धवणैग्रभाः। 411 ४16 +{98 €8त्‌ सुग्दवमेप्रमाः. 80४ ६ ५०८७
7०६ ए{ल[त अङ 56756. 1४ 63090; ८5 सुष्टडवणमभाः {0८ 26280705 07 6६४९,
ए € 02४6, € ०८९, १८८९१६६८ (€ ६6५1८ सुप्खग्धव्मग्रमाः ८५६६ 77 अश्च.
--148. बाल्यो ब्रद्धस्नथा रोगी । ^, 7६2५ बास्ये, ए1 16845 बाख्यो. अश्व.
०३ बाख बद्धः कृशो रीगी । यु. क. ०25 बच्छ सद्धं कक्तं र्ध । 2०4 यु. क. ख 76248
वारो बद्धः कशो रोगी 25 77 अश्च. 80 बाध्यो 18 {० 06 ६३९० 10 (€ _56756.०
बाद्यविक्षिष्ठ. {€ 0745 बाख्य, वृद्ध, रोगिन्‌, दत्तसेष्ट, सहावर, सर्वातिरिक्तकोष्ट,
अतिश्रान्त, अतिन, निःस्नेह 3114 अतिकिरी(रक 1४ 149 2१ 150, € ६० € 60०51७५
28 016८४६७ ० वाहयेत्‌ . 80 € 16324 पता चु. क. ख.
--153. समं च विषुरं चेव छिचित्पसुरमन्वितम्‌। 2 1] ध€8€ =€ ४८ १००1 -
112 0705 11277 7€{<7€006 10 रंङ्भूसि. 80 € 4४6 £0 ॥680 16 1{८६€ 25
खमा च विपुखं चव किचिस्पांह्युसमान्वताम्‌ । 1101 15 € डर 0 पत्‌ [प ज्व,
--154. एकान्ते विजने चेव रद्गभूमि हय नयेत्‌! ^ ए» ६० वाजिने, 73 २६9५
वाजिने ण फः] ल0€ वाजिनं ०7 काजिने € (21010 ८078६६४९ € 11४6
27006८1 017 £0 {76 ९८86०८८ ° ६€ त्त्‌ हयं 77 {€ 02585326. {६ 18
7008६ ०८००१छ ग ३ 70१8876 0{ {€ 86८1086 {07 विजने. (11716 [तपल 1€2त10 15
8890४६८५ $ अश्व,
--158. घास सुटि च जयते । ^ 11 117€ ५55. € घासपुष्टि. जश्च. 7€205 घासं
सुषि च ( णत 8६10 15 ए700401द 2 795६ गृर€ {01 घासमुष्टिं च ) चारयेत्‌. 30० €
768 घासप्रुष्ट. प 18 वा] 600{08८त्‌ पध) च.
--167. आषाढडमसमये प्र्षे शिरामोक्षेण कत्खश्चः) 4882) २68 श( शि )रामोक्षण
स्स्तदाः । 416 € ६० 7€2 लिरमोश्षणं 974 501 ४116 ८79 कारयेत्‌ 74 €]
पए710 0706 01 ध€ 189. पध1;८६त {0८ धट 1८४६८ ० अश्व. ? अश्व. क 12685 शिरसश्च
च कारयेत्‌ . 135 ८07४6] 9 517071196प्रधं० न ४16 दप ८00811८०) ग
लश्च, 1€८>६. अश्च. ८८2१5 जाषाठटसमये म्पि हिरामाक्षेण कच्खदाः। तेन संक्षोध्यते रक्तं €{८.,
(0८ ०881816 च्०8 पलाना, 210९275 0 € जाषाठसमये म्रक्चे सति वाजिने दोष-
संभवं रक्त विक्गोधयेत्‌। 30 € ४९२८ दिरोमोक्चेग घा) अश्व.
- 188. स षण्मासमध्ये निपतेत्‌ । 488) (€2त निपतयेत्‌ . "16 709६ नि + «^ पत्‌
18 ४७६ 1676 70 {€ 8656 9 ५1९.
--201. तत्तो रुङ्घनमहंति । रङ्घन्‌ 70688 2086766 ० {००५.
--208. स निवीणमास्नोत्ति । (7#€ ०1 निर्वाण 18 ४३6 ‡ एषप्रत्‌त 0157 200
1417137 17 8 {26601147 86086 1111 8 ‰1111650{011८81 तप€ 200फ 1. एण
{06 28826 ८०५९१ ५1568510 ६ 8170015 16308 ५९2४ 1
1.8:17.191>शि२॥। ५१

-210. कष्णस्तु जीवसे मासं । अश्व. 1€205 कच्छ च जीवत मास. {11€ ०८५
कषण 18 97 2१८८६१५८ वप्या किण चिन्द्ु 17 11५€ 209. {106 086 8858
{011०1०8 ६0२5 ९८756 7031६ €5 ६116 3462 ©1687. 1६ €45 यस्य॒ जिद्धायां कष्ण-
जिन्दुर्स्यते तस्य माससाप्रेण दस्युः । 50 € 18९€ +€ {6८६८१ ध€ 7162670 9 अश्व.
जीवते 15 ०५९०५ {०7 जीवति {07 {€ 59 € ०६ € १४९.
--277. दयाद्श्वेषु चिद्यच्चः। 1,0८2६1
४८ 15 ए5€व {7 € 5€०8€ ई ५०६४१४९.
--279. यवसं वा तदुत्थं तैर्नोसेगो जायते इयः। ऽप दयात्‌ 19 ^< ०8६
€18४86.
--281. वेना च चूतानां च यवसं यवरससभम्व ।. (116 2790० ४८8166 ० यव {07
†0& ० € 210071510005627 21 ०६868 15 468८7106 17 ४6 4582826. ऽपर
अं ६० 719 ४ € 70€81110ष्टु ० € 25825 व ८१४८ लुल्ध्यः.
-289. परीक्षा यचमश्षणे । {06 ६० 8101185 ०86 1 चाल १€756€ -ल्वृण+6
यचभश्चम 0 € 0 पवधरड ९886 €077€580प्रप एद ८० अनि 284 व्रत्या.
--291, सखै दोषाः मणदयन्ति स्तेकेरपि यदैैये 1. {11€ ©०गप 0927180 प 04 > ०२६
1६ 41864568 18 710४ 2 820. ००६. 1060 ४९, 006 € €८६५ ६०८ फ ०त यव
१ 1705 ०६या 9 प्ष्टणद् 6071689० 19 ० निद्रेण वप्त धा फण्प्त्‌ दाष उप
101012६1४& 8178 प्र{7 60716 ए800त10ह ६० नोः.
--292. य वान्दद्यात्तु काजिषु । [.0८2६१९€ 18 ४७५८ {07 ५०६१९.
--306. दूर्वाभोञ्यं मश्चस्यते। ^ 11 ६४€ 1५158. ८6२ पत्र भोज्य, एप 1६ १०६७ ००६
79216 97 86056. (€ १८2१३४६ दूक मोञ्यं 13 8८९ ए8०८४९त एष अश्व.
--310. पुनश्च पायेत्तोयानि । २९२५ पाययेत्तोथानि. (€ 1058 0 0506 य प
पाययेत्‌ ;5 €8€८४९॥्‌ ००2 1$ {० ध116 521६€ ° 79€४८6.
--312. मतदंच दुरगाणं । @€71६४४८ 15 ८5६ {07 ५211९&.
--332. र्यैक्छन्र हये दत्तः । [,0०८०६९€ 15 ८86५ {67 १०६१५४७.
--333-337. (111८ १€४8€ {88 ६९7 2५85. {८ 18 ए058101€ ६० € ॐत ४0€
8६ ६० 11068 35 {0770198 ०9€ $€४56 ०० {€ 16022191 ४75€€ 11768 28
210६0€7 € ४8९. {€ 0285886 त€8८८10६8 अन्वशाधि.
8 डु [1 अ वि

--338-343. {1168€ ६० ४€15€8 ५€8210€ ६16 एव105 १८६{४1168 0{ €


00786, {0१<€६€1119& & ०० 8 ८2५ {0‰ ६6 ० 6४. {68 ६० © 2584€§ ©द द
०४९९०२८६ 27 9४६० € 501ध्८त्‌ ०ण्टय ८०३९८ ध-6 8€८६०ण अएरोहमण >
{19८6 3६९7 {€ 1426 1665 स {द ५68८1०65 धल =एव6प5 261रए1॥158 ० ६१€
10186 {0०८6६९1४ > 1139 1006 ०६ 8 5प्८८6७5पि] ३८८०५118 06०६ ०
27 ए0त€1प9द्वप्ठ 0 1४5 02846.
7 1९
1088
०1 1700114४ 80 १८60०1८० 0705 17 ध16€ ८२४.
सख्या 1 136, 28. |एकवण 20. (7086 ) 9 076 ©010प्9
अदुण्ड 2. 0011-0 ्01817्160, 144. 00€-८01{076€6, 62.
१ ४. 8 {10 ग 86, 58. एकाण्ड 1. [14178 001 006 1681616; 2
आधघकाण्डक 1४. 2 {170 21 {656, 64. {16 0{ 10156, 64.
अनुपा #. 2 {6९67 336. प्कान्ते 24. 17 9 1076] 07 ग€प्र7€त °य
अनुरामयायिन्‌ 1. £&०1208£ 10 1€हएण9ा 8€८76६ {12665 154.
००९४, 341.
एकाहान्तरिते 2774. 01 21६61086 ५28;
जभ्यङ्ख 2. 7प8010 शध) पफलप्ठप$ 260.
801888९6, 259.
अरुक्चण 2. 8 10281610प§ 8720, 119. कण्ड्‌ {. 1४८1108; 174.
1 १०६ ८६०३९६५ १० ७८ 1१५67; कपिरूकाकार शरध, 12९17 {6001811 {0112;
14.
3.
अश्वचिरिरलक ॐ. 9 {116 ६६6०५०६ कफम्रणाक्ञ 2४, 76700९2] 07 01679 07
0007568, 196.
©010 , 101.
अश्वसंघात 7. 2 2 1६) 1007568, 20.
अष्टमङ्गल 22. 2 10756 १1६1 2 1६6 {2८6,
कफाधिक्य 2, 87 €2८688 0 {116 01
{€€४, ४९11, ०6४8६ 296 1021706, 12. 6०19, 320.
अस्थाने व. 70 ज्7008 71266, ०7 19 कफाद्य #. 871 2]{6878066 ०४ ५८१९1०?-
17078 ४716, 78685078} , 145. 7067६ ० 116 पा, 192.
कफोद्धन 2. ऽ86€ कफोद्य 246.
*करालिनू2 #४. 2 {1५ ° 10186, 56.
आरोग्य 2. {१८९८५०70 ° ५156956, 184.
*जरोहण। 2. 10410, 118. कञ्ुरक 211. ८2716 ९2१९५, 246.
जारोषहणविहीन 1४. ५०९९०१५ 9 1019६; कश्याणपञ्चकञ 1. 2 10756 {४ 111६९
ˆ 119, {८८४ 276 0116 7108, 2 1०4 ग
शार्तिनुत्‌. ०/४. ५९65६70
प70 04 6100४708 10786, 14.
210, 326. काकिकासंनिम क. 20 एलव0, 01879
शावतं 2. २ 10नुर 9 08 णं लण्‌ 243.
एष्ठ्र208 (€्श्व्लभाङ्‌ ०0 2 कुटयिष्वा €, 2९108 £ 17020 07 00000
0086 6095106764 [पदक ), 16. €0, 360.
कष्णताल्धु #. 2 {176 21 70186, 12910
डत्ताहभ्रणाश %, 1088 ०7 603 ३04. 0186 912६6, 67.
खष्तेध 2. 1611६, 100. कृष्णतालुक 2, 8 {०५ ० 10186; 45108
उन्वुर 2. 0९118, 80102610, ००618, 185. 9812६ 21216, 56.
उष्टाक्ष 7. 0९47061-6
९५ (00756), 136. कृष्णविन्दु ४. 2 018८1 80४, 211.
कोश #. १८३११८1८ ० 86ा0ए9, 80.
भज्ररतुष्वय ¢, 36280721 770८८८01, 256. क्सि“ #. 8 0770, 296.
1. "€ ९०८६11०8 ॥ष्रण्‌र लति जा 29६67८9० 9८6 ०३९त्‌ 1४ ४५6 =59पञप 0811810 016-
४१००४ 0 17००१८८ 2114805, 70 8 प06प€ण 56786. 2. & {६०१ ग ६0८56 8४१०४ 8 & 8049
प्यठपत 2४ ए7०ललण्ड {९न्त ( ष, भृ, ). 3. पञ्चकल्याणं ( 24. प्प. ) 4. प्प0णहट ग ० {0
कृमि {५. फ. )
९4
[१२.9१ ५६
करूर 7. 2 (त ० 00786, 34. द्विशुरिन्‌ #, 2 {104 ० 656, 04९10
क्राथ ४. 8 016 9 € 702६6712181 ८०0 0018, 83.
& {07 ५९८०८४16, 280.
क्षीरोदन , 106 9०116 घ ०11१, 262. [नस्य 4 ४ अला फवणङ + € 0706, 312.
नस्यकमन्‌ 2. 6 20701162४107 ग 2
गति#^.86९५, 126. 8१९८प४०६०्‌, 280.
ग्धावतं #. 27 2०८01 © {06 7€८ाए ©1 |नाडी 1. 2 {20187 0787 (28 2 १670 ०
©€€{:8, 31. 8१९६१ ० € 8०५ ), 223.
गुरूपदेश्च #. 0781४2४0 ० ध€ €| नासा {~ ४ ००5१], 227.
67४8, 229. *\/ निपत्‌-1० ५16, 188.
निवांणञ #. १८४६१, 208.
*घास 2, {0०0य, 1०७४१०07 99ण6 |निःस्नेह शर. ००६ पणट्०ण5 ०7 १३8-
2८288, 309. 22668016, 150.
निशिक्षा 2. 2 5070, 84.
चक्रवतिन्‌ 7. 2 ० 9 10756 45108 |नीरोग 79. 1८6 {0 8167688, €०्‌-
076€ 0४ 0166 (प्ः{§ ०0 76 प्र, 1478.
8700107, 40, नीरूपीत 20४. 0ब-&766€7, 01९९८11९,
चक्रवाक # 8 (६1तु 9 10८86, 14४18 207.
11४6 {66४ 20 1४6 €%68, 6. = चृपोचित+ 4. 9६ {01 ८९ 308, 26,
चतुरङ्किक #‰. 8 {६176 ° 60756, 18510
{० 6पा18 ०0 ६06 {01664 , 76. पर्युषित 2. (17 (0०0 ०पथ्रत्‌ ) ५९198
चन्द्रादिस्यौ ‰४. प. ग (ण.13 09 € 1०16. 81००५ {07 2 {६{7€ © 10 8070€
1 313
680 ०7 ५९ ४0186, 69. पिण्ड ह ह पण्णातः8 प्छ, ०86)
चिन्तामणि %. 2 {1० ग 1078९, 14978 1५2. ^ ॥
३ 01 एष] ० 6 ०6०, 44. पित्त #. 0116, 21105 प0तणठ, 170.
पित्तनाश्चकर ४. 0116-0465710102 318.
भ्जयचधंन 20. 220४7 ए८६०7४, 69.
जयावते #४, 2 0ण] ७०१०६ ०7 ००६०६ |बाल्यञ #, 1701 {"11-&70्४ 0८ ५६९४८1०.
४16०, 26. €, 148.
जव #. 8660 07 ऽ 76883 130. बिडालश्च 0. ००४६-6
८५ (४०९५6), 72.
जवह्ीन 2४. 1810 70 8{९त्त्‌ ०7
8 1106853, 123. श्रमर 2४. 2 €] ० 2877, 390.
जाञङ्यताः 7. 10261४11, त प110685 128. |अरमरचतुष्टय 2. 2 6011६070 ०2 एणा
जी वन 7. 1910६ 1116 07 €, 160. 60718, 76.
त्रिकणिन्‌ %. & ‰17त्‌ ० 10756, (वंह |जमरदय 7. 8 ९०11660४ ० ६० ला 183
1116€€ €8178, 83. 70.
तरिद्ुट ४. 2 {7 ° ४०८86, 22. ्रमरसदश्षवणं श. 4४०8६ 9 (८०1०
भ्यण्ड 2. 3 {100 01 00786, 02९10 1€6 76867011 ४१8४ ० २ 66, 68.
68६16168, 64. अश्मर #. ३2 दण] ० कषा 0प् €$€
देष्यं ४. 1608४, 10180658, 100. 07०8, 72.
1. @नल्न्णमड पर प88८पाठ प क, प, 2, (06 ईणप्णमपठ० ग धल ५०५६०1९ ३3 उणल^ञ््ण्ट.
3» ए 8 ४३९ ठता 70 ०८10८ 36786 ० पल, 4, 000ण§ णपिर 39 028860०८ 39 7, पप,
5,» {1860 3 ध\€ ४6०85 ग बाह,
५४ कशारिषदोत्रम्‌
मन्देति 1. 81011686 01 41६68109, 206. |रषु #, 17६ आ ४6 81000260, ९३8
महारिष्ट 1. 11801 ०१8०8६70 ४३, 48. | 01268160, (वट {ल[1्, 269.
महावतं 1. 8 018 एणा], 43. |खुषुर्व %, १४८६०८88, 128.
सहासं (ख्य ' 7. (116 10८8 20919688, |*सह्खन #, 2€&16€८६ 2 {००५, 201,
33. रम्ब 10. 1008, 12786, 1408108 ०7,
^मातृद्‌ब 2. ५€तलिलालत्छु 19 फजल, 62781152, 60.
128. कारूचिमोक्षण 2. 2 76 ० 58112, 200.
मात्रा {~ 2 ए९व5प€, वपतन, 252.
सुशचिन्‌ 2. 2 {१४१ 9 00756, 1040108 |वन्नक 2. 2 ४ पात८०४, 282,
१15 {66६ ग ००९२ 6०10 3० € |*वन्ननिभ 2४. 2 एवा 1116 2 16८,
768 0 ०० ० ध7हिलाला६ लगण्पा+ | 212
5; वणोवेपयांस ४. ३ 61826 ९ 6010४, 242.
मूत्रकृच्छ्र 2. 7. 8 7081070] ०1800 व्€ ° |कणदपरीत्य 2. 566 वणेविपयौस 243.
01706, 330. "वाजराज 2. धल 8६5६ 000 €
0017568, 27.
यमदूत #. 2 {106 9 ४५8€ 2०410 |काष्जवाह #. 8 80186, 141.
१681, 9५ 026 1086 1178 १० |कातपित्तन्च श. १६७६८०४५११६ € पपारधऽप
0६ 70)€€1, 53. 29५ 116, 160.
यमरूपं 2. ३ ६१०५ ग #05€ ७०47० |बात पित्तार्दित 7. 2. 2११८६९५ #़ पलप
५९३ 26 0€ 10 15 211-6010 प€6 180 204 8118, 222.
37 {28 21] 115 {<€६ एक्टर, 10. |वातरक्तार्दित . 2. अपि ९६6व एष गए<णणद-
{1570 804 100, 195.
रक्तपित्तभ्रकोप #. 90 €311619067६ 07 728- |वातादिधातु ४. 8 00054फ्ण६ नल ४ल०॥
1118 9 0716 19 € ०16०५, 123. 0 €88€0४121 10६€61€८४ 9 ५1€
रक्तपित्तविक्ार 2. 2 56256 ¢† 91004 ९०0 1001पत10 र170 2900 0४678;
40 116, 159. 204.
रक्तपित्तातुर ४. 21664 $ ०1००१ 290 वानराश्च ४. ८07४6 -65 ९त्‌(०786),
0116, 176. १2;
४ -_ _|वायुं ‰. ८26 106 0षपपणठणयः फा अस
रक्तप्रकोप #. 27 €261६€7069६ 07 ६2812 कणत सदन्त ०२६ 172.
07 01009, 297. विकी्णषुच्छ
रक्तविद्यद्ध 1. 60107166 एए {< ०० ग व 0४70६ 2 ५1506९९1160
४1००, 248. विजयाख्य 79. (३ ८ण्मा) एर्‌ 026
रक्तसाव %. 2 70 ० 1०66, #€0007- 112४2, 37.
126, 309. विजयावतं #. 8 (प्] एङ्‌ ०06 $ श्क,
रक्ताधिक %. 20 €ॐ6688 ° १1००५, 169 38.
रथिन्‌ 2. 2 00786 व6८ए§६०19€त ४० |चिजटिका †. > {० ०६ २०८१३८० {०
८02६10६8, 29. 00868, 354.
राजयोग्य 2/४. 0€धधंणह 2 (102, 8. चृष्य 299. 3६00 ४12४1४९, 160.
राजाहं श. 0६.०१ धट प्ण, 6.
राञ्यभङ्ख 7. 500हद8107 ० ऽ०0१्लालहण$, |क्ालिहोत्रः # 2 कण्दर 00 रलाल्पथर
81. 8616066»
1» 06न्पष् ० 88 29 9१6न४४6 30 4, च+ 2, 108 जण्ण 33 ्पफणा8त ४० धट ण्ट
इद्ाप्ण७ ००,
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शेतरक्तं 2९४, 021€-760, 215.
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शिरासोक्ष +. %€{7-1005108, 10०५. संनिपात 2. 8 ©0011८8६6५ ५९६१५९६६.
16४1702, ‰69686८६10०, 151. 11६7६ 01 € ॥146€ प00ण8 ०
हिरामोचचन्‌ 2. 866 रिरामोश्च, 229. 271 1110688 704५९ $ ५४, 3260.
शिव 1. 2 {व्‌ ०{ ०८७८, 2९12. 2 संपुट 1. ८4911$, 52.
€071 011 116 7120६ ९0६6४,
सर्ववं 111. 211-601०४€५, 9.
शिवसंज्ञिक 1. 2 10756 1227064 612,
08772 ४ पा] 00 {76 71६0६ वट्ल,
स्वश्वेत 2. € 00116, 7.
स्वंसन्धि 1. 81] 1017018, 233.
श्रना रन 217. 26710 918 7210 111 ५18 संर्वोपयां^.211 {६2243 2 ॥16872 ©ा६, 283
8071260, 328. सदाकरः 117. 71364 प) पष्ट, 265.
गूङ्गवत्‌ 27. 70586886 ० 10708; सांनिपातिक ए. ९070 11८2 ६८व €8‰€-
07760, 63. ८1811$ 8{0011€ ४० 8 02116608
दर्चित्‌ 2. ४ ८ ० 1086, 8९108
1117688 ० ध16€ 2166 ए00 पऽ)
10715, 59.
24.
इयामक्णं 22. 8 {त © 0786, लौ 15
211 016 82704 [०९1४ 0016 8126 *सुच्छाया 1 8 &००५ 37206, 8 {116}
€2॥, 8.
81246, 308.
इयामेककर्णक 2४. 2 056, 12918 006 सूयसंल्िक ४. 8 {६10 ०{ 0786, 780९0
186 €27, ^. ऽप$2;, 20.
श्रीवत्स 2. 2 एपत्पादढा फण 0 त्प स्तनिनू 2. 2 {1704 ° 70786, 19%10६ 2
0१ 1811 01 {0€ 07628६8 ॐ 15101 7628६ 0†7 ६५१६ ( ऽ216 07 8 6786
01 {६ ‰ऽ०2 27\त 01 ०६07८ तध14170€ 02९10 015 08111८ण8ः ०८९८
0€1728, 5810 0 9€ १11€ 27 111), 81.
76{01666प६्वं॑ 78 एव््ए८5 एष 8 स्थानक 2. 011, ग्व; 121.
5१70001 1८86110 89 (पला स्थानपार 2 2 {<€ व६८ा्80;
{0172 20६7, 83. 8 €71०६८१८०४६, 356.
श्रेणिक 1. 2 1६10 ° 10756, 74४1708 2 स्थर 70. §६८002, 9770, 139.
116 2 ४166 €पा18 01 {06 {01€- खान्य 0८, #. ६५ € €8प§€व ६० प6 क;
1€६५, 46. 243.
छष्मरन्तमरकोप ‰#. 27 €दटालिपल7६ ग स्वस्तिक 2. 2 {६10 ० 70ऽ६€व] फडः
१९०8 2 01670 270 106, 85.
ष्ेष्मर 2111. 1162712 ६{८, 200०0108 हयागार्‌ 2. {0156-8{201€, 333.
10 {716 , 245.
हानदन्त 2. 8 10 01 11086, 110 18
1 ग. ५65४017 711८&ण; ०६८१०19 01 ६८८४४, 56.
2.
श्वेतपाद्‌ 201. (10786 ) 19070 016 हनाण्ड 2, 2 {170 01 0056, 04९17 70
{€€४, 5 16811616, 64.

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1038897

01 {707 0714०६ ज्र0708 {7070 20611079] 08588068.


अगुरुगन्धिक 1111. 112४108 1#€ {4878 |ग्वर्‌ #, 8 70756 06108108 0 2
7८८ 9 &10€ ००५, 16. 020८ 10८2111, 10.
अश्चर्युज 1, {€ 100 6 5179, 100. ब्‌ 2, 2 {116 2 00786, 161.

अश्वशाला ^. 8 8{201€ {07 07865, 83. गेजिकाण (५ 10786 61072178 ६0 8


आप्य ४. २ {7त्‌ ज 0156, 007 10 एश प्लाव्य 10८्यक, 8.
फ 2/6, 153. घूतगन्ध 2. 2 10786 89४10 ॥1€ 57611
01 8 2766, 17
इन्द्रादेश ४. वि. 9 9 6000्$, 3. घृतगन्धि ‰. 566 घरतगन्ध. 124

उल्बण 2. ४0€ 70670796 € €10108 चरूकिसरुयपाद्‌ 7. 2 10786 14108 118


६0€ €प97१०, 147. _ {66६ [€ णाकणणषट 9००४८8२ 89.
चिकित्सा ॥. 71601८21 2४६६००06, 7€01-
कषातिघात ४. 2 5€ष्€ा€ (ए ०7 8६०6 021 € 38710210, 165.
111 83 र, 139.
काचा #^. ४ ८0001०0 ° 04108 8 $8४- |जरज 2. 2 {170 ०८ 70756 (ए0 ॐ
2111096 6010९, 2५. 2167); 12
काञ्चन ‰. 2०1, 172. जलोद्धव ४. 866 जलज, 14.
कालिका ‡. 12611698; 29.
तुबर 211४, ० 87811 57670, 152,
कुज #, पपि, ° "16 71216 1975, 88 ताजित (क ? ) 2४. 2 10796 लान ६०
कुन्देन्दु
ख ।क 1/7. 7<86701108 116 फ 11६६ 2 एक पतणायय 10त्गा क्क, 7.
195१106 2० 6 ०07, 25 ताडज #. 2 {त ° 0786 ({एन प
क्रतास्त 2. (०५ ० १९६ 64 {00 ध्7{2171 ), 9.

केकाण 2. 2 00186 06100810 ८० €{202 |*तामस ॐ. २ 1100 9 00786 08568819


1०८भा धप, 8. 06 ¶००11४१़ 1 ८4145, 136.
कोष्णमाव 2१४. 2088€8817 प्7019, | ताज्र ४, 006, 172.
19 ताच्नरफक 1४. 41871 06220€६शप्0,
कोसुम्भसंनिभ ८. 20067108 1116 कवात
तिर #. 8682070 1061607, 168.
82.07, 25
तुरगयावृ 100. 3 1086-071967, 92.
क्षतज 2. 81009, 79. तुषारं 2. 2 104 0 10786, †.
अक्षित्रिय" #. 2 {74 01 10856, 14. *तैजस #. 3 {19 °† 70186, 157,
1
क्षीणाङ्ग शध. 09 र1णष्ध ९०02९186 11008. तैजससंज्ञक 1. 8 10786 0 02706 वरद,
130. 158.
त्रिगुण ४. (४ 10786 ) 09868818 "€
खुरा ‰, 1 10786 61072108 ४० पणय ६1166 १००४५९8 144.
2६219 10611, 7. चिवि /^. ४166 {0०148, 63.
1, (06 ००६०1९8 फडतश्त्‌ क 93६60 अह्ण 376 ००४ 10ण्ठत 19 कषर प, 7१ दिऽ ७69९,
भद
1342). 116. ०५७

दीर्षकरेवर 2. (8 10786 ) 2519 1078 |यज्ाभिसदक्च 70. 76800198 ४४८ पोण-


0४ {811 ०0५, 154. ५६००1६८ 2714 "€ 9176, {0}.
दीर्धदेष 2. 56८ दीर्ध॑करेवर, 140. वाह्िजातत #, 8 £: ° 078€ (४०८2 ग
दिशुण ४. (9 1105856 ) 08868808 0 € ), 12.
०४९11६168, 143. वद्धिखंभव 1. 566 वह्धिजात, 14.
+
द्विजं #. 8 {६17व्‌ ग 0756, 14. वाजिनेन्दित ‰. ए. 86109द्०9£& ६० ५१€
द्विजाति #. 8६९ द्विज, 133. 10९8६ ©1868 01 7017868, 144.
दिमौतिक 1. (9 {0186 ) 088658108 ४० वाजिमध्यमं ४. 8€100810& ६० ४१7€ 7५416
€16€0€7४§ 0{ € 9%€, 162. 61888 01 1078568, 143.
#^धूमकेतुं #. 2 {६10त्‌ ० ०786, 65. वायव ‰#, 2 {16 ° 10756 155.
भविभ्र #, 2 {17 ° 10786, 16.
नभस्‌ 11, {€ 7210 5628501, 109. विसिश्रवणंक ग. ० 79126 ८०10४78, 50,
पराद्रमत 7. {€ 0011101 2 ६0८ 3226 विवेकिन्‌ 2४. 1८१८० ण5, 18.
22728872, 147 वेदय #. 8 {६17 9 10756, 15.
पराशरसहिता 1. प. ०3 ०7, 145. वेर्यजाति #. (8 {10756 ) 06100810 ६0
पिडका †. 9 57021] 08011, 72. ५ 21592 ©1888, 127.
पित्त्रस्त 2211. 28८८५४6 र 8:16, 80. व्यञ्जन 2. 8 7121168६ ६109, 14164६00;
युष्पगन्धि 2. 2 {६11 ० 00786, {०88€-
(1 116 {12787166 0 8 ०७ ९€7, भ्टराङ्क 2. 2 60001107 ०1 291 2 6010

पुष्पार्य ४. 8 {1094 9 00186 ०8706 116 ४१६६ ० 2 €0061-810€11, 30,


९८572, 59. कानि #, {€ ‰1276६ 83४79; 88.
प्रतिक्रिया ^ 2 76106$+ 174. शाङिद्ोत्र 2. च . 9 8 52€ 204 2 ६६
प्रमञज्जनमव 2. 2 {170 ° 10018€ ( 1०- 07 ‰%€{6171087¶ 8616166, 3.
00८9 ), 15 शाङ्दोतादिविक्तान 2. ००७16486 ° ९
7 8619८2६100;, १८७६०८६०, 2 0 821100६2 27 ०0068,
60.
उक्ति #. २ (प ०८ द्व्ला गा ‰086*5
भौम ‰. 2 {८1०4 ० }0786 ( ०6100188 ६० 16९६ ०7 076288६, 55
४9€ €27६70 ), 151. भचुद्ा /. फ 1160688, 29.
भ्मश्चिका ^. 012617688 2 (0६09 ०1 श्यदध वणं श्र. 1029178 8 एप्ा€ (नण्णाः०
1291708 2 ©010 प्प 116 ५१४६ ० 2 ©28६८, 2 08610 21 0321 €281{€> 134.
8€6, 29.
मध्ुजार्‌ 2. 3 {1076€9-८0100, 83. छयुष्क 111. €702612॥64., 154,
द्यूदक्छ 22. 2 {104 01..00256; 17.
मधुसक्षिका # 2 110०6
-पिर, 2 06९, 83.
मालत्रा ~ 8 [€्ण््ध ० ८0518110 चूद्रजाति 2. > {19त ० 10186 8€-
01 €1्0६ 0०06०६८8, 96 1002198 ६० 9 5६2 61288, 15.
मूषरुक्‌ 1. 2 72711012 6070109 ग |समीरम्रमव 1४. 866 अमन्जनमव, 13,
0017568 ६6९४), 30, भ्सारिविक 2. 8 {1त ५ 00786, 058€-
ग्गज ४. 8 {176 ०1 00156 ( 0017 01 ५६€४
88708 ४116 प पय] 2 ७ वट्छ, 136.
07 20170218 19 &€0€721 ), 13. साध्यवास 2. 2 #&10 ०7 018€ 06107817
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अतितिवा^.46८07 एप [्लनागृ0र11एण) 317.
350. चित्रक 1. ९179880 264 1201९89, 325.
अम्ख्वेतस ४. ४ {६{०4 ° 5०:१6], 17€ 71201
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इन्द्रवारुणी #. ८०100011, 2 ए11त छाल {7071 1६, 319.
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58701068 12. {]ग्ूः 270 100
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९6001. ८४४८708 ०0लप[75, 321. |त्रिफरा 1 16 =(11८6 [07002198
कटु 2. पि. 97 2 187६. ({7प1{5§ 9 वला7178118 (1€प]2,
कटुका} 21001112 ्प708, 325. ¶. 861111८9 280 ए 112711४5,
कडटुतैर १. छ {16 ०६६०१, 259. 325.
कृष्णाजीरक ४. }416€118 821९8 ( 18417 8 |_ = |
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क्षीर्‌ 2. 116 पफ णा ० 52 17412, 350.
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शरत 2. 2066, 184.
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323. शतदष्प। ^. 476 90१, ०६०८९५६.
माषोत्थं #. 27061 ०३५€ ० 06408 271, प्रा 502. 26८९८ शापा 79१६8
मुङुष्ट 1, 3 8{€6188 0 062, 268. | 1005, 67111 86८५3, 349.
मुद्र ४. 128601४8 1४080 ( 80 ध सकरा {^ "0० 07 ८६616 5णष्टभः,321.
1817६ 47 1४8 6973 ); 300. शिरीष 2. ४€ 30 कला 01 41012212 1609866
मुस्ता 1. 8 877€८168 ° &7288. (प ए6ाए्$ 8. ` 4646148 1610606, = 4श्छाे
5171888; 205 ( |
२०००९ प5, 319.
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मेथिका † (8००6119
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इयमा †. पष. ०1 ‰811005 [1205, 190.
यव 2. 08716, पतता) 062धे8प्रल प्फ, श्रीपणी + (पलाफव ¢प०0ा 62, 331.
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यवसक्तु #. 27167028, 267. 8
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९९27058. 31781015 ]प५९8 ०7 514 |सौवीर #. धा€ हण म प पण€, शणाः
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रोहचूणें ४. 75१ ० 709, 196. हरीतकी /. ४16 १९110 11202122 66,
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विजकिका ‡. 3 1174 ० ९तल१€ शल्ल-| = 88 2061108 (०३९ 88 8 ए0८ता तप
911९ 76801 {07 01868; 354. 07 {07 8€25017£ ), 190,
^+ एमि शा
0त€ॐ 70०८771 ६० € वट

अकस्मात्‌ 124. 209 अन्य 2४. 138 अस्थाने 2/2. 145


*+अक्रायं भीतः 1. 342 अन्यवणै 0. 62 अस्मद्‌ 2१0. 225
अक्रिया 4. 287 अपर ४7. 36 अहन्‌ 7. 26
*"अगर्वता ^. 132 अपि 04८. 9
अचि #. 288 अपूवं 2. 187 आगत 2.0. 298
अश्िमान्य 2. 199 अप्राप्ति ^. 300 आतप #. 182
अङ्गना {^ 131 “ *+अभिताडयत्‌ 77९.. 338 \८^भाप्‌- 46
अजमोदा /. 349 «^अभिधा- 343 आयुध 2. 282
*अजामांस #. 353 अभ्यङ्ख ४. 259 आयुस्‌ #. 220
अलिन 2. 82 अम्ख्वेतस 2. 328 आरोग्य #. 184
अण्ड 2. 960 अयोग्य 277. 10 "आरोहण 2. 118
अतस्‌ 24. 236 अधं 1. 238 *+आरोह्णविष्टीन ४. 119
*+अतिकिङ्ोरक 2. 150 «^ अषह--201 +आर्तिनुद्‌ 211. 326
*+अतिवाहित 21. 114 अरुश्चण #. 119 अग्रं 2. 294
अतिविषा †^. 350 अरस्‌ 24. 160 आरस्य 2. 199
अतिबद्धं 2\/7. 150 अस्प 2/2. 290 आवतं 2. 16
*अतिश्नान्त 0. 150 +अवरोकयत्‌ 7८ ‰. 339 «^ आवहू--79
अतिसूक्ष्म 1. 95 +^ अचाप्‌-170 *आषाठसमय 1. 161
अचर व. 210 अवध्य 6. {78 आसाद्य &. 261
अथ 4.2 "अवात ४. 114 आस्य 2. 102
अथ वा 224. 41 ^^ अश्‌--169 आहार 112. 181
अदुण्ड 1. 147 *अश्चीव्यङ्गुर 121. {00
अधम 1. 116 अङ्यम 7. 45 इति 274. 23
अधर 2, 234 *अश्चुबिन्दुधारा ^. 187 इदम्‌ 20. 25
अधरोत्तर 2110. 21 अश्रुपात . 185 इन्द्रवाङाभे /. 329
अधरोध्वं 1. 52 अश्चुविलाचन 7८. 342 ५“ इ
ष्‌--29
अधरोष्ठ 2. 60 अश्च 2. 19 इष 2८. 112
अधस्‌ 2/4. 71 *+अश्व्चिक्छिस्सक 1, 196
*अधङऊ्ध्वस्थ 2. 23 भन्अश्वद्वारीर 2. 226 उक्तरक्चषण 1. 138
अधिक 2/7. 56 *अश्वस्रघात #. 20 उत्तम 7. 42
*अ धिकद्‌न्त 2. 58 अष्टधा 204. 121 उन्तरामिसयुख 1/0. 337
>*अधिकाण्डक 22, 64 अश्च ग. 124 उत्पन्न 0.2. 187
भजधोद॒न्तपङ्क्ति 2. 61 अषटमङ्गर 2. 12 उप्साह 2. 181
° अधोवक्त्र 1. 180 "अष्टादश 201. 152 भउत्साहृप्रणाश्च #. 304
*अनुपार 2. 336 «^ अस्‌-5 उस्सेध ‰. 100
*अनुरोमयायिच्‌ #/.341 असश्यम्‌ ८. 208 उदक #. 158
अनुसारेण 2४८. 241 अदित ४. 9 उदर्‌ #. 185
1. 0णज् ४०€ 8७६ ०८८6०८6 ग ४४८ ४०५8 016 28 ८८6०८१९५.
2, "6 ०९४०1९७ ०१2४६6त रध 88६6710 81 276 9०४ =१८००१ प९६त 0 ४06 5४०81 सण्ठान
{1०४ 9 90107 भ 11119703.
60
8:89,9¶ | &९

केटुतैर 2. 259 क्ष्ण #10. 2


*उद्‌रमध्ये 4. 187 भकरष्णताद्यु #. 61
उदित 2.7. 112 करिन 21. 155
भकटिनाक्ार 1. 218 *करष्णतालुक 2. 56
उतरत #.8. 101 *करष्णबिन्दु ४, 211
उपमा }/. 84 कण्ठ 2. 15
उम 4. 37 कण्डं {. 124 नकरष्णाजीरक 2. 348
उभय 1. 228 «^कथ्‌-23 केतक्छी ^. 321
उरस्‌ 2. 79 कथचन 224. 25; के ब्रू 21. 313
कथित 2.7. 141 केश ‰. 109
उष्टाश्च 12. 136
*"कपिरुकाकार 111. 3 केशक्ककाटिका ^. 102
ऊष्ण 201. 203 कपोर 2. 30 केषर 2. 317
ॐ ४ 139 *"कपोलस्थ 7. 28 कोमरू #/2. 268
*ऊउर्वंदन्तपङ्क्तिमध्ये (1 *कफम्मणाङ्च ४. 191 भ्कोशदेश 2. 80
6 *कषफाधिक्य #, 320 कोष्ट ४. 110
ऊध्वम्‌ 214. 71 भकोष्टणत 120. 355
> कृफोद्य #४. 192
*उर््वोष् 1. 60 कम 1. 152
भकफोद्धव 1४. 246
कमात्‌ 2८2. 152
५८चरच्छ-222 कर #. 163
भ्कृरार्िनच्‌ #४. 56 कऋमि 2. 296
ऋतु 2. 301
कर्णं #. 92 क्रिया #. 287
*त्रतुचयां 1. 256 *
क्रूर 2. 34
कर्णमूर 1. 30
एक 2210. 19 कवरक 1210४. 246 *क्रोशक्रोद्यद्वयान्तर . 157
एक्छनत्र 2/2. 194 क्िंप्चित्‌ 24. 169 भ्केश्ाकर 11८. 63
पकतणे 2४17 62 #*कल्याणपञ्छक 1. 14
भक्ाकारक 29. 50
एकर्चिदाति 1. 276 काञ्जिक 7. 360 , कचित्‌ 212. 203
पएकाचैशतिष्िन 2. 253 कामात्‌ 214. 158 कथित 7.0. 265
एकाण्ड 22. 64 काठ 2. 346 क्राथ 2. 280
एकान्ते 22. 154 *कछाल्िकासनिम 111. 245 क्षणम्‌ 22. 54
एकाषान्तरिते 204. 260 «^कास-180 «^ क्िप्‌-182
एतत्‌ 270. 57 किञ्चित्‌ 21:04. 124 श्चीर 1. 161
एव 2110. 11 कियत्‌ 0. 252 क्षीसैदन ४. 262
एवम्‌ 274. 144 %"क्ियन्मान्र 7. 232
कुशि #. 18 श्वर 4. 99
भोष्ठ 2. 108 भकुश्चिद्रय ‰. 193
*+उोष्ठभ्रान्त #. 78
कुट्टयित्वा &. 360 गति }/, 120
*आओष्टसं पुर 2. 54 कुपित 2.8. 143 गन्व 2. 120
भोषश्न 2, 280 दाष 11. 336 ५८ गम्‌--299
दुपादक 2. 258 गड 1, 17
कक्ष 227 +^ क--20 गद्छावतं 1. 231
भ*कष्चान्त #. 45 गान्न ४. 101
कद्र 2. 321 क्रतमङ्गरसस्कार 14. गुड 1, 1
334
कटिकश्चान्तर 2. 98 भगुडसमायुक्त 0. 184
कटिदेश #. 17 कटवा €. 248
श्गुडान्वित 11४. 311
करी †. 73 करस्नद्ः 2714. 167
करदाता }. 131 गुड्ची †. 319
कटुका /. 325
न्कटुचूर्णसमायुक्तनर् .347 कदा 2५". 359 गुम 7. 112
६९. कशादिष्टोत्रम्‌
गुदं 2. 233 ¶न्ीकत्सा /. 188 ततस्‌ 2४42. 160
*गुरूपदेश्च #, 229 *विकिस्छा्ुक्तितस्वन्त ८. तथा व. 1
गुविणी ^. 149 204 तद्‌ /70. 6
गुख्फ ४. 232 चिचक 2. 325 तदा शद. 14
गष 2. 258 *चिन्रउषैप 2. 327 तुत्थ 27. 249
गो्चुरक 2. 189 भ्चिन्तामणि #. 44 तद्त्‌ 224. 34
गोमू 2. 250 *विन्तिताथंविचृद्धिद्‌ श्र. तपरस््विन्‌ 2. {31
*गोसु त्रविपक 2. 253 44 तरुण 171. 336
न्गोमूत्रसपक्छ 1110, 249 यि्लुक 2. 78 तस्मात्‌ 24. 113
«^ अहु --181 चिरम्‌ 2114. 47 ताडित 2.6. 145
ग्राद्य 80८.. 42 *ताङ्धमान 27८.0455.6
मात्म 7. 27 छत्र 7. 77 34
भ्री वासमाश्चित 1. 25 चाथा /. {20 तादधकं 2. 92
ग्रीष्मकालः 2. 306 चित्र . 290 ताव्त्‌ 24. 146
तिमिर #. 284
जदा ^. 233 तिल 1. 360
*घमैतापोपद्ास्ति ^. 307
«^ जन्‌ --16 तीतर 2. 193
«“घष्‌--174 +जम्बुफखाकार 1110. 4
घास 2. 309 तु 22. 7
जय 1. 74 तुरग 22. 103
*धघाससु्टि #४. 158
जयकाररिच्‌ ४/४. 70 *तुरगोत्तम 2, 16
धतं 2. 184
*जयश्रद्‌ 211. 37 तुर ४. 29
*"'धतपान 2. 308
ग नंयराञ्य 1. 137 तुरङ्म 2. 117
ध्ुतष्टुत 11. 323
*+जयच्रेन्‌ 11. 69 भ्तृणकाष्टससायुक्त 211.
*धुतयुक्त 120. 196
*जयाचतं #. 26 156
*घतसंयुत #7. 309
जया वई 2/1. {68 तैर %. 250
*धघ॒तस्रमायुक्त 2/४. 161
ऊद . 290 *तेरुहय 1. 353
#दतान्वित 2/2. 346
जखाश्रय #. 175 *तैरुसंयत 2117. 278
भत्राणपुर 1. 104
जव 2. 130 ताय #. 182
च 2/८. 11
भ"जवहौन्‌ 127. 123 *तोरणाङरतिधनुस्‌ 7. 84
"चक्रव तिन्‌ #. 40 भ्जाङ्यता }. 128 *तोरणादिड्भद्‌ 121. 86
नचक्छवाक्‌ 1. 6
जात ¢ ?. 284 त्रपा . 131
वणक 2. 247 भजाचुदेश 2. 49 त्रि 7. 21
तुर्‌ 21. 9 *जानुद्य 2. 143 त्रिकटुकं . 177
भचतुरङ्गगिक 2४. 76 *अआनुमदेश 2. 51 भत्रिकर्णिनच्‌ ४. 83
चतुरङ्गं 21. 92 जिद्का /^. 108 *त्रिक्ट ‰#. 22
+चतुरादीतिवाते #. 382 «^ जीव--47 भत्रिकोन्नत 2/7. 140
चतुधिश्त्‌ 10८. 94 जीतन ४. 160 जि #^. 325
चतुष्क ‡. 103 जीवित 2. 214 भत्रिसप्तकछ 2. 251
चदवाररिंशत्‌ ४. 98 ५^ज -- 158 *%§्यण्ड 12, 64
चर्त 2. 317 कावा €. 292
भ्चन्द्रादिद्य #. (८#,) 69 ज्ञेय 00. ¢. 187 भ्दुक्षिणगङ्धाश्नितं 117. 33
चरण 2. 105 #$द्क्लिणाश्रय 119. 31
चर #‰. 139 तगर 2, 319 दण्ड 2, 144
चाद्वुष्य ध. 314 तजञ्क 2. 105 भदत्त 8.2. 312
>
एर धा ६द
*द्तसनष्ट 1212. 148 न 1:८4. 4 नीट 21४. 2
दशन्‌ 1/2. 360 नर 1. 142 नीरूपात 11011. 207
^^ द{-- 7; नवन्‌ 2/४. 213 नीख्व्णं शर 212
दातव्य 02. . 159 भ्नदठवरसासस्‌ 224. 216 नृम्‌ 24. 46
दिन 2. 252 \^ नश््‌ू--290 नप 12. 69
दिनेनिसक्षक 2, 275 *नस्य #.2. 312 *तुपवेदनान्तद््वंग 11.
दिनमणि 2. 284 *यस्यकर्द्‌ . 280 333
*न्टक्ष 2. 335 नागर 7. 311 + रोचिन 2४. 26
दीनम्‌ 2:14. 339 नाडी ^. 223 नेत्र . 29
दीघं 12. 103 *नाडीसंख्या ^. 226 >नेतन्रप्रान्त 2. 1६5
दुर्ध 2. 265 नाभि 18 नत्रान्त 2. 187
५८ दुष्‌-67 नाम 774. 76 न्‌}. 290
दुष्ट 1/7. 61 नादा #. 10
भ्टूवौचक्तिम 21. 3 *नासा /^ 22 पञ्चन्‌ 10. 212
*दू्वा मोञय 2. 306 नासाय 2. {82 पञ्चेर 1, 251
५८ दशू-85 नाक्िका }/. 75 न्पच्छपरूभित 21. 252
देय 0... 3441 नाप्सिक्ाथ 2. 15 न्पड्ठमासम्‌ 24. 214
देन्य 2. 100 ; निष्िष्य €. 361 *पद्धतु जनित 21४. 28
दोषं 2. 145 *निजर्थारमत #17. 59 पञ्चचित 1. 239
*दे.षसम्भवं 1117. 168 नित्यम्‌ 4. 10 पत्तन 2. 2009
नित्यशः 214. 277 पसि ‰. 338
+*दोषाएवह 11. 68 *पन्र$--232
दौ,वंद्य 2. 129 निद्र स्यान्चिमान्य #. 199
* \^निषत्‌- 144 पथ्य 7. 115
द्रक्तां ^. 321
निबन्धन %, 308 *पद्यनालू 21. 331
द्रादश्लन्‌ 22. 240
निन्न ४ए. 95 पर 2217. 22
दार 2. 226
निब #. 350 परम्‌ 1. 65
दि 10. 46 श्परमोपध 2. 354
हिज #. 132 ननिवपन्न ४. 344
पराक्स 2४. 133
भ दिुरिम्‌ 11. 83 निरगंलम्‌ 24. 194
निरर्थक 21. 123
परिकीपित 8.7. 93
द्वितीय 1/2. 221
निरीक्ष्य &. 164 «८परिव्यज्‌- 162
#द्विपञ्ारलप्रमण %. 315 परित्याज्य ४.6. 65
*द्विरतद्रय 2. 100 निगण्डा }/, 345 परीक्षा ^. 289
#द्विसष्ततिसहख #. 223 *निनांश ४. 202
परीक्ष्य &. 2.29
*निर्मोष्दना्थीय 24. 225 पयुंषित #11४. 313
चधनश्चय 2४. 34 भ्निवांण 2. 208 पवत्त 2. 282
धनिन्‌ 24. 132 निर्वात 1. 270 भपरादकप्रमाण 2. 275
धयुत्‌ 2. 152 भनिकौतस्थानबन्धन #॥. 259 +^पराणएपरिसंख्या 7. 262
धन्य 1. 18 ° निःसेषस्‌ 242. 284 पश्चाद्‌ 2. 391
*धन्यत्तर 2८. {26 निःखेह 21. 150 «^ पा- 158
*धान्यश्वुत्कोश्िका †. 361 निक्ागस 1. 266 *"पहुसमन्वित 40. 153
भ्ाये /०2.7. 55 निल्लश्च ४. ६4 भ्पा्चितं 21. 250
त 2.0. 193 «^ निष्टच- 163 पाटे . 215
ध्वरम्‌ 24 151 ^^ नी-- 154 न्पाररुवणं 21. 215
ध्वज 22. 84 नीरोग 1. {78 भ्पारलटाकार 10. 213
९४ 2,
पाण्डुं 11. 245 भरधसस्‌ 24. 255 बरुषीन 12.
पाद्‌ 2. 9 भ्रदक्िणाचर्तं 2. 165 बस्ति 1]. 233
पादन 2. 316 «^ मदशदा-28 बहु 21. 145
पान 2, 272 प्रधान 1. 125 +*"बहुश्चीरसमन्वित 71.261
पानीय 2. 176 शम्रघधानकुरूज 222. 135 नाद्य 2. 148
पाथिव 1. 65 ५८ मरध्ठ-- 14 बाहु 1. 134
पाश्च ४. 228 ५८ प्रन श्‌--291 बाह्म 2. 47
*पाश्रैन्त 1. 18 ५^ग्रपद--184 बिडाटाश्च 1. 72
भ्पाषाणोदकगतंक1111.155 भमाण #, 101 बिन्दु 2. 209
पिङ्च 2. 1 मरमाणतः 24. 98 बुद्धितः 214. 210
पिच्छ 2. 245 ग्रयत्न 1. 54 बुध ‰. 235
पिण्ड 211. 192 भ्रयत्नतः 2/4. 53 ५८न्र॒ू-30)
भपिवृदोष ४. 128 प्रयत्नेन 24. 54
पित्त 2. 170 «“भयुज्‌--351 भत 2. 50
*पित्तनाद्कर 2/४. 318 प्रवास #. 338 भाग 2. 380
भपित्तद्निरागत 1011. 246 *प्रवासखमरण 2. 50 भारवह 10४. 142
पिप्पली #, 329 «^ म्रचिश्चू--335 भार % 12
पीतं 21. 1 ५८ प्रन्रध--357 #मासखदेश् 2. 238
«^ प्रशंस्‌-306 मुज 1. 102
पीतवणेक 77. 244
भ्पीतसंनिभ 1. 213 मरसायं ८८४५८. €. 71 भू. 338
*पौीत्वा &. 162 भरखिद्ध ४. 61 ५८भ्ू--7
पुर्छ 2. 11 प्राद्र 274. 269 भूपति 22. 10
#%पुछसं स्थान 2. 143 प्राक्त 22. 257 भूपमन्दिर 2. 40
प्राणद 2. 293 भभूपारूमन्दिर #. 40
पुन्रपौत्रश्र्धिभद 1४. 78 भूयस्‌ 244 117
ष्पुन्नार्थं 4. 89 प्राणानि ^. 151
पुनः 2/4. 310 भ्राततर्‌ 2५4. 312 *सेषजसंयुत 2. 203
मप 7.0. 167 भोञ्य 2. 286
पुरीष 2. 199
अअसर 112. 30
पुलकाद्धित 21. 217 %प्राप्तदण्ड 21४. 144
पुष्टि ^. 299 भम्राच्य &. 172 कश्रमर्चतुष्टय 1. 76
#पुणकल्टश्ा ४. 85 प्रावदट्कारु 2. 257 *+अअरमरद्य 2. 70
भ्रासाद ४. 84 ञ्जमरसद्शवण 0. 6
पूर्णकुम्भ 1, 88
आन्त {.7. 142
परथिवी †. 141 त्रियदशन्‌ 2. 136
*भ्नूजसर 12. (0
पुष ४. 73 ओक्त 6.7. 14
पृष्ठर्वश्चा 11. 94 पीहा 1. 296
विच्तिक 219. 244 मणि 2. 110
प्रकार 0. 25 भवदुरीफड 1. 331 मणिबन्धं 2. 235
५८ भरकाश्‌--145 यद्धन्य 02. 2. 337 *मणिबन्धद्रय 2. 99
मण्डर 2. 152
भरकीप्तितं 2.2. 8 «^ बन्घ्‌--270
बन्ध 2. 10 मतं {.. 185
५^ प्रजन्‌--43 बन्धन 21. 303 मत्स्य 2. 85
म्रतिक्किया ^. 288 वन्धु परामव 1. 339 सस्स्यर्मासं 1. 323
प्रतिदिनम्‌ 24. 87 बेर 22. 122 मधित 2. 352
प्रतिण्ित #.. 118 न्बरुपुष्टि 1. 363 मधघुयाशका ^. 32
अथम्‌ श्छ. 130 रुव घंन 17. 314 कमथुरवस्तु #. 266
१ एणा पा &५

पथ्यम 21. 13 अत्‌ 270. 224 रहैत 21. 124


निन्दा 22. 206 यतः 2114. 293 राजयोग्य 4. 8
वरण 2. 51 यत्नेन 24. 175 राजवाष्नयोग्य 2. 138
सूर ४. 248 यथा 24. 282 राजाहं 7. 6
मस्तक 2.1. 15 यथायोगम्‌ 24. 335 राजिका #. 349
पहानरू 2112. 148 यथेच्छया 2/4. 271 राञ्यमङ् 12. 81
"महारिषट 221. 48 यद्‌ 70. † रुक्ष 221. 171
महा वतं 2. 43 यदा उव. 36 रुधिर 2. 235
स्प 72. 12:
*महासोख्य 7. 33 यद्दि 24. 39
राग 2 295
महीपति 2. 87 भ्यमदूत ४. 53
*महो स्साह 2४21. 356 ग्यमरूप 2. 10 श्रोगकालर 22. 241
यव 2. 283 गरोगपरीक्षा ^. 244
माक्चिक 2. 317
*+मातृदोष 2. 128 "+य वभक्चषण 22. 289 रोगिन्‌ #27. 148
मान 2. 334 *"यवे भक्चणभ्रभाकवतः 2114.
कमाषचूणें 2. 323 295 लक्षण ४. 119
*माषोत्थ 2. 271 यवस 2.2. 29 रक्ष्मी ~ 79
साख 22. 208 यचंसक्त 2. 267 लघु 2. 110
^मासमान्न 1. 211 खघुस्व #. 128
भ"ययवसम्मव 227. 281
भ्रद्युन 22. 201
*समासबटूक 2, 217 भ्यवामाव ‰. 277
भमिच्रयियोग 2. 72 लम्ब 24. 60
यवोस्थ 2. 276
लार . 19
«^भिख--54 यशस्‌ 2. 65
ग्कलारस्य 217. 21
न्मिष्टान्नभोजन 2. 77 यष्टि #.#/. 190 रूखाटामर #. 15
सुङ्ष्ट ४. 268 यन 2. 142
रवण 2. 260
*सुकुष्टमोजन 22. 299 यावत्‌ द. 146
चद्युन 2. 352
सुख 2. 71 यक्त 2.0. 45 र्खाभहानि }/. 71
#सूखगह्छं 1४. 2.37 खत 2.7. 189
र्का खाचिमोश्चण ? 200
५८सुच्‌--193 युद्ध कात्ट 2. 37
िङ्गः ‰. 96
स॒द्ध 2, 300 रोचन 2. 221
सुनि #. 220 रन 117. 1 रणो चूण . 196
भमृशश्षलिन्‌ 1४. 57 र्त 22. {168
सुस्ता /. 319 *रक्त पिन्तप्रक्छोप #. 173
स॒
इः 274. 176 वे्क॑त्र 2. 13
*रक्तपित्तविक्छार १. 159
"मुहुमुहुः 2१८. 180 ग रक्तपित्तातुर 21. 176
वश्चस्‌ 22. 11
वश्चोज ‰%. 134
मुत्रद्च्छं ४.2. 330 करक्म्रकोप 1. 297 +^ वच्‌--315
स॒न्रदाङत्‌ . 340
सधंन्‌ 2. 12 "र्विः 2. 248 वचा †. 190
>
भरक्तसं निम 7. 221 * वृद्चक 2. 282
+^ ख--4।
रक्तखाव 2. 309 भ्कवद्निम 7. 212
रक्तहीन 2/7. 171 *+वञ्चवणं 10. 214
रक्छाधिक 2072. 169 वध्खक #. 350
रङ्गभूमि /. 154 «^ वद्‌--105
मेधथिक्छा
}/^. 348
रथिच्‌ %. 29 चपुस्‌ 7. 14
मेर 2. 282
^ रम्‌--194 "वयो वस्थादि 2४. 211
योश्चण 2. 115
8.9
६8 शार्ोत्रम्‌
वजनीय 0.0. 53 वजन 2. 154 द्रतपुष्पा #^. 349
वण 2. 120 "वजय 2. 78 दानः 2114. 264
भ्वणेविपयौस् ४. 242 *विजयकारिन्‌ 1. 38 दाप 22. 105
+वणेवेपरीध्य #. 243 भविंजयाख्य 241. 37 +^ शम्‌--206
वषा /^. 344 चिजयावतं 2. 38 श्रद्‌ #. 261
वषोकारचिकित्सा †. 255 *"विजखिका #^. 354 ध्रारीर 2. 217
वसन्त 1. 305 ^“ विन्ञा--247 क्ारीरज 1. 285
वसन्तसमय 2. 303 विज्ञेय /0. 7. 6 केरा ^. 321
+^“ वहू-- 149 किंडङ् 22. 325 #*/दाकेरामिश्र 11४. 317
वद्धि ४. 182 +विंडङ्कक 1. 350 दाकैरो दक 2. 159
वा 2114. 28 विण्मन्रे शधि. 157 द्रान्प 2, 169
वाजिन्‌ 2. 8 नित्तसुखदं 2, 137 शस्त ., 83
> वाजराज ॥. 27 ५^विद्‌- 12 "\द्खनबरोपजीषिन्‌ £ र
भ*काजिवाह 2. 141 चिश्चखात #. 75
भकाजिदङ्द्धिकर 1. 22 विधाय &. 177 दा क्चस्त 1101. 4
वालजिसंपुट 2, 52 +^ विनङ्-- 114 शश्रिराद्धार 2. 230
*वालजिसत्तम 2. 6 विनिर्मित 1/1, 191 शिरामीश्च 1. 151
भवाजीश्च 2. 26 विपुर 21102. 153 *शिरामोचन 1. 229
«८ वान्छ-30 विभूषण 1. 130 दिरीष 2. 205
वान्छत्‌ 1६. 2. 65 विद्रुज्ञ--156 रिव ॥. 343
भवातपिंत्तघ्च #* 160 विवेकिन्‌ 1. 300 *शिवसंजिक ॥. 32
५८“विश्-61 शिशिर 2.1. 274
गवातपित्तार्दित 7.7. 222 द्रत ॥7. {61
*विद्युचि ?. 296
*वातरक्तादिंत .0. 195 *विश्यूर 1. 296 क्ीतट 1. 310
*+वातादिं 2. 219 विशेषतः 24. 269 दुण्टी ^. 183
*कातादिधातु 1. 297 विक्ेषेण 2114. 175 डि 1. 178
वानराश्च 11/11. 72 *"विद्ोभ्य €. 250 दुभ 2. 135
ग*"वामगङ्ख 2४. 35 विषनाश्नं 2110४. 332 भद्‌ 102. 109
+"वामदक्षिणङुक्चागत 100. वृद्ठ 11, 148 भ*⁄दूयुभदिवस 2. 333
48 बृद्धि {^ 24 इुष्क 2/1. 294
+"वामाश्रय 7. 34 *वुद्धिभाज्ञ्‌ 121. 205 दयष्काद्रं 10/. 278
कायु #. 12 ५^वध-79 सआलनाश्न 1. 328
*वायुदौष ४, 206 वृष्य 24. 160 शुञ्गवत 110४. 63
वायुखक्षण 2. 113 वेग 22. 112 भद्राङ्गच्‌ 12. 57
चारणीय 02, 7. 268 *वेगगुण ४. 124 दोष 102. 142
वार 2. 161 वेदी ^. 85 द्रोणित 7. 24;
कायं 21. 204 वेपु 2. 198 दभन 21४. 89
*चास्तुम्रन्थो
दित 11.334 चै व. 113 भदयामक्छणं %. 8
वाहु 2. 51 व्यवस्थित ‰.7. 224 दयाम 1. 190
वाहन 2, {113 "उयाध्रोपम 11४. 134 म
*+वाद्यमान 27. 55. 2. *+उयाधिष्टीन 210. 356
11 «“दसि--91 भ्ड्यामेककूणंक 1. 1
*विकीर्णपुच्छ 2४, 165 द्ाङ्ख 21.11, 13 श्रभभाराश्चसम्मव 119.
ब्रात 2, 237 162
विष्वक्षण 2. 260
^ एष्या भण &७

श्रीपणीं ¢^ 331 सष्कुप्राम #. 38 सर्ववं 17. 9


श्रीफकू 2. 205 "सङ्प्रा्मध्ये 2112. 72 +सवैव्यधितिनाक्राक 1711.
भ्रीवस्स ४. 85 *सक्म्रासादि ‰ . 51 293
शुत 2. 132 संततर्‌ 24. 174 खव्॑ेत 9, १
भरणि ^ %6 नसतेर 1. 249 +स्च॑सान्धि 1. 233
#श्नणिक ‰. 76 संस्कीर्तिं , 89 +"सं्बातिरिक कोष्ट 11.149
सशव 2, {20 *सं्वोपचयां †, 282
शष्रतसं ४. 2 खषा 204, 355 सर्षप 1. 348
ध्नोन्न 2. 111 *सदाखस्यसमेतं 141४, 326 सश्शकर 111. 265
*+ष्मरक्तमभकोाप #. 179 सद्शाकारं 110४. 88 "ससैन्धवं 2/2. 353
श्ष्मर 27४. 245 खद्या व. 174 खानुराग 2/0. 115
#ेवमाकेनाहानं 011, 312 *र्निस्बलक्ण 74४, 302 सांनिपातिक 111. 247
शाख ‰#. {36 खम्ध्या }/. 339 सायम्‌ 24. 163
शेतं 11. 2 संद्धक 2. 253 सारङ् 147. 1
भेतपाद्‌ 121. 5 खक्दश्चय्‌ 1404. 210 सादं धरधर. 155
तरक 210. 215 सप्तन्‌ ४. 213 *सिंहसमनदित्त 211,140
१ श्वेतष्टोषवन 242. 5 *+सष्तभास 224. 213 सित 111. 1
भवेताम्‌ 210. 5 भसखष्ठमासासख्य 7. 220 सितस्तषेप ४, 319
*षटूपदाम 2104. 67 सप्तविद्ात्‌/ ०4 सुख 2. 231
*षडङ्गुर 14. 92 *+सप्तर्चिक्ममण ४. 91 सुलभ्रद्‌ 117. 320
षड्विक्षति 1, 316 *सप्तर्विश्तिसप्ताद्य व सुगन्ध 7. 136
धण्मासख 2४. 214 भसुच्छाया # 308
*पण्मासमध्ये 214. 188 सप्ति #४. 130 सुद्ठं 1. 334
षघण्मासाम्यम्तरे 270. 186 सम 29102. 153 सुभग 21. 136
घष्‌ 1117. 57 समन्वित 4. 183 सुचिस्तीणं 2. 334
भ*योडशोन्मित 1212. ५7 समभाग 1. 359 सुलिग्धवणे्रम र. 135
संयुत 2. . 344 ससर 2.72. 166 *सूयं संलिक 1. 20
संयुक्त .2. 323 समानवणे 2. 82 २८खल्‌--199
संशय ४. 210 "समानीय €. 258 चेन्धव 2.7. 311
^^ सद्यश्च -168 समायुक्त #47. 345 सेन्धवयुक्त 2/1. 201)
संहारकारिन्‌ 11. 60 समासाद्य &. 174 "सौख्यकारिन्‌ 1/४. 90
५^ संजन्‌ --1770 समुदाहत 2.0. 4 "सोख्यार्थ॑कीपतिग्रद्‌ 11.
भसनाहिक #. 137 सञ्युपस्थित 2.8. 286 &¶
संनिपात 2४. 320 सख्द्धि /. 269 सौ वचच॑रू . 329
भसंनिपातोस्थरक्त ४, 197 सम्यक्‌ 2/2. 229 , सौवीर 2. 352
भ्सरखभाण्ड 2. 361 स्कन्ध #. 17
संनिभ ध. 85
सवे ##०. 2 *स्कन्धपाश्वं 7. 39
«^ संपीड़--172
भ्ृपुरः 2. 52 भ्सवकट्याणकारक 1. भस्कन्धसमूर ॥. 36
संकजत .. 86 14 + स्कन्धस्थान 7. ५
५«^संप्रजन्‌--19 $सवैकल्याणक्रत्‌ (४.१.) स्तन 2.2. 80
«८ संप्रवच-2306 1701. 14 रुतनिनचर्‌ #. 21
संप्राक्ठ ¢.. 301 स्वथ 2/4. 144 स्तोक 1112. 291
«^सलभू-223 + सर्वैदौषम्रशान्ति ^. 264 "*स्तोकोद्कङ्ताक्षन 2/0.
भसत 717. 322 स्वंभयत्नेन 204. 113 202
९८ शारिहोत्रम्‌
«^ स्था-303 #स्वामि गुह 7. 35 ह
रिदाभ 212. 219
स्थातुम्‌ 212}. 194 *स्वामिधातकछ 221. 54 हरीतकी /. 249
स्थान 2. 229 भ्स्वामिदोष ‰#. 129 भह्स्तद्रयोन्मित 21. 95
स्थानक 2. 1:21 स्वामिन्‌ 2. 20 भहुस्तप्रमाण 2. 96
स्थानपार 2. 336 “ स्वाप्मिनाङन 2017. 29
स्थिर 27५. 139 हि 2:42. 142
भस्वासिश्रातृवध #. 74
सवेह 20.12. 288 दिङ्म्गु ४. 190
#स्वासिमाया /^. 66 हितत 22172. 345
^^ रूणशा--52
रुब्टत ¢.#. 2 स्वामि भायाष्ुन्त 21.62
कहन दन्तं ४. 56
साल्य 0४. /. 243 #स्वामेमुखे 2. 164
भ*इगिनाण्ड 22. 64
«^ स॒--235 भस्वेगमिषहन्तु 11. 59
#हुीरकचणं 2. 214
सृतं 8.2. 231 स्वेच्छया 224. 294
ष्वा &. 335
*"स्वदाष 2. 129 +^ न्‌--355

स्वरः ४. 120 ह्य 2.4 ५“ ट--285
स्वप 21८. 346 #%हुयरुद्चण 7. 12 हद्‌ 2, 17
स्वस्तिक 2४. 85 "ह यागार 2. 333 हदय 1.71
न स्वस्वासिनाक्न 210. 46 *हुरिणएधेपषभतिनिभ 217. हेमच ४. 2988
*स्वामिद्धक्ाकारिन्‌ # 134 हेमन्त 2४. 270
हरिद्ा /. 329 ५“ हेष-- 164
^+ #ाा

06 ग प्रजा 0708 18 कताथ 09884868 0 र पद्व ब100धथप

*"अल्द्ध' 2. 118 रस्तुरशार 2. 7 द्विगुण ‰. 154.


+अक्रो धयेग 11/. 153 *गदचर 1. 10 भदिज 2. 14
*अक्रोधश्ीरु 110. 138 *गन्धरोपश्ालिन्‌ 1/1. नद्विजाति 12. 133
*अङ्छान्त 7.7. 149 125 भद्धिभोतिक 22, 162
*+अगुरुगरि दक 21. 16 *गागन 2४. 161 *ध्‌युदृण्ड 1. 95
सम्नतियोग्य #. 119 *गुडान्वित 211. 168 "धूमकेतु #. 65
शतिर 11. 138 भ्ुरशेगरोष 212. 139 नभस्‌ #. 100
र समधमतवन्नकारकं 19. भ्गोजिकाण #. 8 *"निःसस्वक 20. 19
111 भम्रष्यविंरतारसस्भव 2, +*निष्पक्ष 1. 4
"अष्पाशिन्‌ 11, 141 165 "पराहरत 2. 144
+अश्रग्त ॥,2. 122 +धनगुरध्ष॑र
स्वर 101. परार्दिता ^. {45
*अश्राष्तिभान्‌ 2. 13 151 परिखा ^. 161
कश्वयुज 20. 100 भुतगन्ध 1४. 14 पिडका 772
अश्वदा ^. 83 भघुतगग्धि 2, 124 +^पि्तग्रस्त 22. 80
(भ्य #, 153 + किसल्यपाद्‌ 2 99. +“पुण्यतम्‌ 1/7. 161
भावत %. 53 चिष्िस्वा ^, 165 पुण्यवत्‌ 1/1. {57
+इन््रादेदा %, 3 *"जल्देज 1. 12 पुष्ट 0.0. 118
*+उग्मरतार 20. 88 *+"जरोद्धव 2, 14 भु 2. 16
उत्प्लुत्य €. 160 तजुबर 1. 152 *पुष्पास्य #. 59
उत्तमांश #. 9 *तनुरोधचेग 21४. 141 रतिक्रिया ^. 174
उल्बण 11. 147 *ताजित (क ? ) 2६. † भप्रभञ्जनमव #. 15
+*कणेमध्यकडष्टि #10, ६9 *ताडंजं ‰. 9 ्रवीण 4. 122
*+कषातिघात # . 139 *+तामस 112. 136 भ्रशात्ति ^. 173
भकाश्चा ^. 29 ताज 2. 172 भ'प्रौढाहार 11४. 8
काञ्चन 2. 172 ताञ्रफरं ४. 170 बखाड्य 210. 121
*"कालिका ‰ 29 तिर #४, 168 अरिन्‌ #0. 18
कुज 2. 88 भतुरगयात्‌ 41. 92 +बहुतरनादघौषण 20.
+ङुन्देन्दुसङ्काश्च 41४. 25 भ्तुषार 1.7 126
कृतान्त #‰. 67 तेजस्विन्‌ ४. 18 *"बहुतरभोजन ध. 149
कष्णवणे 1. 141 +*तैजस 1. {57 *बहुतर भोजिन्‌ 21. 121
केकाण 1. 8 +तेजखसक्तक 2, 158 *बहुदूरग 11. 155
+कोष्णभाव 20. 19 त्रिगुण #. 144 बहुभोगिन्‌ #9/#. 137
*कोसुम्भसंनिम 21. 25 त्रिवलि †/. 63 *ब्रह्मादिजातिदोष 4
को धीर 0. 156 दीधे 7. 149
क्षतज 2. 19 भदीर्धकरेवर #. 154 भब्ह्यादिजातिसेद #. 125
क्षत्रिय 12. 14 *दीघंदेह 1. 140 +श्शवेगयुक्त 0.0. 137
भक्षितिपति वाहन 2. 119 दुबे 2. 142 भोम 1. 151
क्षीणाङ्ग 1. 130 ¶दे्रासश्रय 2. 6 *"मश्िका ^ 29
1. (< ०५80163 7१८७१ याध 9६८16 8 476 110 ८८८०९५८ 1१ भना" पुव्छाा$न

६२
५9 त शारिहोत्रम्‌
भणि #. 159 "वातकेगश्रत्तिमोथकेय 17/9. "श्रमसहदेरूपमाज्‌ 11/94.
"मधुज्ारः 7. 83 154 148
मधुमक्षिका /. 83 "वायक #. 155 न्कुथाङ् 21112. 152
सात्र /^. 96 *विधिकरजातजाति /^, {23 संरुष्ट #1. 121
नसूषशटक ४४, 30 #*"विभ्रं #. 16 *"सकर्गुणय्मह 1201. 122
श्ुगज्ञ 2. {3 +वित्मिश्च वणकः 110. 50 *"सकाञ्चन 21. 168
एकवण 4/४, 139 विधैकछिन्‌ 1४. 18 सघ॒ण 1. 18
रक्तो 1/7. 118 *'चेशदह(न #४. 130 *"सथुणसदुष्णभोजिन्‌ शरध.
श्जत . 172 #चैरय #. 15 114
रविं #, 88 #्चेरयजाति %, 127 +सदुरुगणश्धि 219, 120
¶राजजदुर 2, 9 इय न्‌ 21. 21 सपक्ष 2. 1
भ्राजसे ४, 136 द्योम चारिन्‌ #, 1 #£ससमीरभथमव 20. 13
शेखरा /. 70 ¶^"दाङ्क 1४. 30 *+सास्विक 1. 136
+शवत्‌ 27९. 7. 169 द्रानि 1. 88 *"साध्यवास 2. 10
भरोधमजु 1/7. 150 दारिहोन्र 2. 3 साञ्ुदाविक 297. 132
^॥छक्षणरश्षित #.#. 141 भ्शाखिष्टोन्रादितिज्ञान #. सिम्धुदार 2. 110
षछघुतलु १. 130 166
+ठलघुतररोमक 11. 116 ह्युप्ति ^. 55
*"लद्धयत्‌ 07८. #. 161 शद्धा /^. 29 स्थुल 9/8. 148
खर्वेण +, 168 भसिग्धाङ्क 00. 105
रह 2. 172 छदडवभं 1. 137
#. 81
*"वञ्चान्निसदश् 2/४. 101 +*इुद्धाङ् 111. 117 स्वस्माङ्ख 177. 153
भ्वाह्नजात 2. 12 इुष्क 12/. 154 "हयदह्दयगीतक्ष "91. 91
वह्किसस्मव 2. 14 ~ शद्रक #. 1 *हयाघधम #%. 134
*वाच्िनीन्दत 0.0. 144 शडादरजाति 2. 15 *हरिणी †. 29
भवा्जिमभ्यस 1. 143 +श्रमसहकरवर 2४४. 152 *हीरकखण्ड 22. 159

(00९. 34

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3 10" जयश्रदरो € जयप्रद
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