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पंचोपचार विधि
विशिष्ट साधनाओं की श्रेणी में आप सबने अब तक तीन महत्वपूर्ण साधनायें संपन्न की हैं –
1. विजय सिद्धि माला का निर्माण – इस माला से किसी भी प्रकार की साधना को संपन्न किया जा सकता है
।
2. आसन सिद्धि – इस आसन पर बैठकर साधना करने पर सफलता निश्चय ही कदम चूमती है ।
3. प्राण प्रतिष्ठा करना – बिना प्राण प्रतिष्ठा की हुयी तस्वीर या मूर्ति के समक्ष साधना करने से सफलता
नहीं मिलती ।
मेरे विचार से, जो लोग आध्यात्मिक जगत का अनुभव और उसमें सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, उनके
लिए ये तीन साधनायें तो बहुत ही आवश्यक हैं । आप सभी लोग निश्चय ही साधुवाद के पात्र हैं ।
जो लोग इन साधनाओं को अभी तक किसी कारणवश नहीं कर पाये हैं, उनको भी हमारी तरफ से
शुभकामनायें ताकि आने वाले समय में वो इस कार्य को संपन्न कर सकें । यहां ध्यान देने वाला तथ्य ये हैं
कि ये साधनायें आपके जीवन भर काम आती हैं । एक बार करने के पश्चात इन क्रियाओं को बार – बार
नहीं करना पड़ता है । साथ ही, इस विजय माला और आसन की शक्ति हर साधना के बाद स्वयं ही बढ़ती
रहती है ।
इसका जवाब ये है कि हमें अपने गुरु से आज्ञा लेकर ही साधना जगत में उतरना चाहिए और, उनकी
बतायी हुयी साधना को ही अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए ।
पर उनका क्या जिनके जीवन में अभी तक गुरु आये ही नहीं? या, गुरु तो हैं पर जीवन में सफलता नहीं
मिल रही । या जो अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरु की प्राप्ति करना चाहते हैं ।
उन सभी के लिए, जो जीवन में सबसे प्रथम और आवश्यक सूत्र है वह है, गुरु पूजन ।
गुरु पूजन अर्थात एक ऐसी साधना जिसमें सभी साधनाओं का समावेश होता है । जिस साधना के माध्यम
से जीवन में सब कु छ प्राप्त हो सकता है, उसी का नाम गुरु पूजन है । कहा भी गया है –
।। गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।
अर्थात, ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये सब गुरु के ही रुप हैं । गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, ऐसे श्री गुरुदेव को मैं
प्रणाम करता हूं ।
लेकिन मात्र शब्दों से ही इन अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता, तो शायद लोग हजारों साल से इस
लाइन को हर पूजन में रटते आ रहे हैं पर, इसका अनुभव कोई – कोई ही कर पाता है ।
पर सच ये भी है कि अनुभूति हर व्यक्ति जो साधना क्षेत्र में प्रयासरत है, करना ही चाहता है । पर कभी –
कभी प्रारब्धवश, कभी – कभी उचित मार्गदर्शन न मिलने की वजह से अनुभव प्राप्ति में देर हो जाती है ।
पर आप विश्वास करें, यह कार्य उतना भी कठिन नहीं है, जितना समझा जाता है ।
सदगुरुदेव इस बात को बहुत ही रोचक उदाहरण से समझाते थे । मान लीजिए कि आप जीवन में
अरबपति बनना चाहते हैं तो कै से बनेंगे । मेहनत करने से बन पाते तो एक मजदूर से ज्यादा मेहनत तो
आप कर नहीं सकते । जो मेहनत आपने अब तक की है, उससे तो बनने से रहे । और, आपको अंदाजा भी
हो गया होगा कि आगे बन सकते हैं कि नहीं ।
पर अगर कोई अरबपति व्यक्ति आपको गोद ले ले, तो आप एक क्षण में ही अरबपति बन सकते हैं । पर
उसके लिए अरबपति व्यक्ति आपको गोद ले, ये शर्त तो रहेगी ही ।
अब आध्यात्मिक क्षेत्र की बात करें तो उसके अधिष्ठाता गुरु होते हैं । कहा भी गया है कि –
संसार की समस्त सिद्धियां गुरु के हस्तगत होती हैं और गुरु कृ पा के बिना जीवन में कोई भी सिद्धि प्राप्त
नहीं हो सकती । तो अगर आपको संसार की समस्त सिद्धियां चाहिए तो आपको बस इतना करना है कि
आप गुरु के हो जाइये, अपने आपको गुरु के चरणों में समर्पित कर दीजिए, गुरु तो आपके स्वयं ही हो
जायेंगे । वो तो पहले से ही बाहें फै लाये आपका इंतजार कर रहे हैं कि कब मेरा शिष्य मेरी पुकार सुनेगा
और कब वो उसका हाथ थामकर इस भंवर रुपी संसार से बाहर निकालें । और, जब गुरु आपके हो गये तो
जो गुरु का है, वो भी आपका ही होगा न । एक शिष्य भी पुत्र के समान ही होता है और, गुरु अपने पुत्र को
देने में कभी संकोच नहीं करते ।
जितना आसान ये सुनने में है, उससे भी आसान ये करने में है । पर जन्म-जन्मांतरों से हमारी कर्मों की
धूल हमारी आत्मा पर पड़ी रहती है। जिस कारण से हम गुरु को पहचानने में भूल कर बैठते हैं और गुरु को
एक सामान्य सा शरीर समझ बैठते हैं । और जब तक समझ आती है, तब तक बहुत देर हो जाती है । ये
हो सकता है कि पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरुप व्यक्ति इस जीवन में बिना गुरु के भी साधनात्मक
सफलता प्राप्त कर ले । लेकिन एक जगह पर आकर आगे बढ़ पाना संभव नहीं हो पाता । वहां से आगे गुरु
स्वयं हाथ पकड़कर ही ले जा सकते हैं । बिना गुरु के आगे जा पाना संभव ही नहीं होता ।
खैर, ये सब बहुत आगे की बातें हैं । वहां तक पहुंचकर इतनी समझ तो आ ही जाती है कि अब तो गुरुजी
के पैरों को पकड़े रखना है । आध्यात्मिक शक्तियां तो दोधारी तलवार की तरह होती हैं । अगर गुरु हाथ न
पकड़े रहें तो शक्ति का मद (अहंकार) साधक को अंधा कर सकता है । इसलिए भी जीवन में गुरु का होना
अति आवश्यक है क्योंकि गुरु ही ये सिखाते हैं कि शक्ति के साथ कै से सहज रहा जा सकता है ।
और, इस सबकी शुरुआत होती है, गुरु पूजन से । बिना गुरु पूजन किये, बिना गुरु आराधना किये, बिना
गुरु को प्रसन्न किये आप साधना में सफलता की बात तो भूल ही जाइये ।
गुरु पूजन कई प्रकार से किया जा सकता है । शास्त्रोक्त विधियां हैं, तांत्रिक विधियां है, वैदिक तरीके हैं,
साबर गुरु पूजन भी है और मानसिक गुरु पूजन भी होता है । तरीका कोई भी हो, प्रभाव सबका एक समान
ही होता है । ये तो बस मन का भाव है कि हम इस तरीके से करना चाहते हैं या दूसरे तरीके से । यहां पर
आज हम सबसे सरल विधि, पंचोपचार विधि से गुरु पूजन करना सीखेंगे । इसी पंचोपचार गुरु पूजन को
आप मानसिक तरीके से भी कर सकते हैं । मानसिक अर्थात एक आसन पर बैठकर शांत मुद्रा में बैठकर,
मन ही मन गुरु पूजन करना ।
गुरु पूजन
किसी भी साधना में बैठने से पूर्व गुरु पूजन और गणेश जी के पूजन की संक्षिप्त विधि –
पवित्रीकरणः अपने उलटे हाथ की हथेली में थोड़ा सा जल लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए जल अपने चारों
ओर छिड़कें –
आचमनः आंतरिक तत्वों की शुद्धि के लिए यह प्रक्रिया अत्यंत ही आवश्यक है । सीधे हाथ में जल लेकर
चार बार यह मंत्र पढ़ें और उस अभिमंत्रित जल को स्वयं पी लें ।
ॐ आत्मतत्वं शोधयामि नमः
इसके बाद दिग्बंधन का स्थान आता है । दसों दिशाओं में से विघ्न आपकी साधना में बाधा न ड़ालें, इसके
लिए अपने हाथ में जल या अक्षत लेकर निम्न मंत्र पढ़ते हुये दसों दिशाओं में बिखेर दें –
संकल्पः हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि हे गुरुदेव महाराज, मैं … (अमुक नाम) मेरे पिता/पति का
नाम …(अमुक) है और…. अमुक स्थान का निवासी …. अमुक गोत्र उत्पन्न आपकी शरणागति में हूं । मैं
… अमुक साधना… अमुक कार्य के लिए …. 21 दिन की साधना का संकल्प लेता हूं । आप मुझे इस
साधना को करने की आज्ञा प्रदान करें और मुझे वह साहस और शक्ति प्रदान करें जिससे मैं इस साधना
को संपन्न कर सकूं । आप मुझे अपनी कृ पा दृष्टि प्रदान करें जिससे मैं अपने अभीष्ट मनोरथ में पूर्ण
सफलता प्राप्त कर सकूं ।
।। श्रीमन् महागणाधिपतये नमः लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः उमा महेश्वराभ्यां नमः शची पुरंदराभ्यां नमः
मातृ पितृ चरण कमलेभ्यो नमः इष्ट देवताभ्यो नमः कु ल देवताभ्यो नमः ग्राम देवताभ्यो नमः स्थान
देवताभ्यो नमः वास्तु देवताभ्यो नमः वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः शची पुरंदराभ्यां नमः सर्वेभ्यो देवेभ्यो
नमः सर्वेभ्यो ऋषिभ्यो नमः ।।
गणपति पूजनः
जब भी कोई व्यक्ति किसी संकट में होता है तब उसे संकट नाशन श्री गणेश स्तोत्र का भी पाठ करना
चाहिए –
विद्यार्थी लभते विद्या धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासेः फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखत्वा यः समर्पयेत । तस्य विद्यां भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
आपकी साधना का पूर्ण फल आपको प्राप्त हो और आपकी साधना पूर्ण रूप से कवचित हो, इसके लिए
आप निखिलेश्वरानंद कवच का एक पाठ अवश्य करें । कवच पहले ही ब्लॉग पर पोस्ट किया जा चुका है ।
यहां भी लिंक दे दी गयी है ।
इसके बाद सदगुरुदेव से संबंधित कोई श्लोक या गुरुपूजन से संबंधित किसी भी श्लोक का उच्चारण करें
–
गुरु ध्यानः
।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
ध्यान मूलं गुरुर्मूर्ति पूजा मूलं गुरुः पदम मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुः कृ पा
मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिं यत्कृ पा त्वमं वंदे परमानंद माधवम
इसके बाद पंचोपचार से गुरुपूजन करें । पंचोपचार मतलब गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग पदार्थ
अर्पण) ।
गुरु पूजनः
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः आवाहनं समर्पयामि । (मानसिक रूप से अपने गुरु का आह्वान करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः आसनं समर्पयामि । (आसन के लिए एक फू ल अर्पित करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः पाद्यं समर्पयामि । (श्री चरणों में जल अर्पित करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः अर्घ्यं समर्पयामि । (हाथों में जल अर्पित करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः कुं कु मं तिलकं च समर्पयामि । (तिलक और अक्षत चढ़ायें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः धूपं दीपं च दर्शयामि । (धूप और दीप प्रज्वलित करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः नैवेद्यं निवेदयामि । (नैवेद्य प्रसाद अर्पित करें)
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः नमस्कारं करोमि । (श्री गुरुदेव को पूजन उपरांत प्रणाम करें)
पूजन करने के बाद गुरु मंत्र की कम से कम 4 माला अवश्य जप करनी चाहिए । अगर आपने अभी
तक विजय माला सिद्ध नहीं की है तो आप सामान्य स्फटिक माला या रुद्राक्ष की माला से भी जप कर
सकते हैं । माला की सामान्य प्राण प्रतिष्ठा का विधान अलग से पोस्ट कर दिया जाएगा ।
।। ॐ ह्रीं मम् प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नमः ।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्रा हीनं च यद भवेद तत्सर्वं क्षम्यतां देव क्षमस्व परमेश्वर
बस, यही है गुरु पूजन की दैनिक विधि । संक्षिप्त है और आसानी से समझ में आने वाली है और इसको
करने में अधिक से अधिक आधा घंटा लगता है । और, जो व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में प्रतिदिन गुरु
पूजन करते हैं, उनके जीवन से नकारात्मकता कोसों दूर रहती है । यही लोग समाज को एक दिशा दिखा
पाने में सक्षम हो पाते हैं और जीवन में आगे चलकर गुरु की पूर्ण कृ पा प्राप्त करते हैं ।
गुरु मंत्र का महत्व क्या है और चेतना मंत्र क्यों जप करना चाहिए, इसके ऊपर अगर एक पूरा ग्रंथ भी
लिख दिया जाए तो भी कम है । पर फिर भी संक्षिप्त में, आने वाली पोस्टों में सदगुरुदेव द्वारा वर्णित
तथ्य तो अवश्य ही रखे जायेंगे ।