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|| भये प्रकट कृपाला ||

भये प्रकट कृपाला दीन दयाला,

कौशिल्या शितकारी ।

िरशित मितारी, मुशन मन िारी,

अद्भुत रूप शनिारी ॥

लोचन अशभरामा, तनु घनश्यामा,

शनज आयुध भुजचारी ।

भूिण बन माला, नयन शििाला,

िोभा श िंधु खरारी ॥

कि दुइ कर जोरी, स्तुशत तोरी,

केशि शिशध करूिं अनिंता ।

माया गुण ग्यानातीत अमाना,

िेद पुराण भनिंता ॥

करुणा ख
ु ागर, ब गुन आगर,

जेशि गािशििं श्रुशत िंता ।

ो मम शित लागी, जन अनुरागी,

प्रकट भये श्रीकिंता ॥

ब्रह्ािंड शनकाया, शनशमित माया,


रोम रोम प्रशत िेद किे ।

मम उर ो िा ी, यि उपिा ी,


ु त धीर मशत शिर न रिे ॥

उपजा जब ज्ञाना, प्रभु मु क


ु ाना,

चररत बिु त शबशध कीन्ि चिे ।

कशि किा न
ु ाई, मातु बुझाई,

जेशि प्रकार त
ु प्रेम लिे ॥

माता पुशन बोली, ो मशत डोली,

तजिु ुँ तात यि रूपा ।

कीजे शििुलीला, अशत शप्रयिीला,

यि ख
ु परम अनूपा ॥

शु न िचन ज
ु ाना, रोदन ठाना,

िोइ बालक रु भूपा ।

यि चररत जे गािशििं , िररपद पािशििं ,

ते न परशििं भिकूपा ॥

|| दोिा ||

शबप्र धेनु रु िंत शित,

लीन्ि मनुज अितार ।

शनज इच्छा शनशमित तनु,


माया गुन गो पार ॥

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