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बजरं ग बाण

दोहा

निश्चय प्रेम प्रतीनत ते, वििय करें सिमाि |

तेहह के कारज सकल शभ


ु , ससद्ध करें हिुमाि ||

चौपाई

जय हिुमंत संत हहतकारी, सुि लीजै प्रभु अरज हमारी |

जि के काज विलम्ब ि कीजे, आतुर दौरर महासुख दीजै |

जैसे कूहद ससंधु बही पारा, सुरसा बदि पैहि बबस्तारा |

आगे जाइ लंककिी रोका, मारे हु लात गई सरु लोका |

जाये विभीषण को सुख दीन्हा, सीता निरखख परम पद लीन्हा |

बाग़ उजारर ससंधु मह बोरा, अनत आतुर यम कातर तोरा |

अक्षय कुमार को मारर संहारा, लम


ू लपेहि लंक को जारा |

लाह समाि लंक जरर गई, जय जय धुनि सुर पुर मह भई |

अब बबलम्ब केहह कारण स्िामी, कृपा करहु उर अंतयाामी |

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता, आतरु होइ द:ु ख करहुुँ निपाता |

जय गगररधर जय जय सुख सागर, सुरसमूह समरथ भििागर |

ॐ हिु हिु हिु हिुमंत हिीले, बैरहह मारु बज्र की कीले |

गदा बज्र लै बैरहह मारो, महाराज प्रभु दास उबारो |

ॐ कार हुंकार महािीर धािो, बज्र गदा हाउ विलम्ब ि लािो |


ॐ ह्ीं ह्ीं हिुमंत कपीसा, ॐ हूं हूं हूं हिु अररउर शीशा |

सत्य होउ हरर सपथ पायके, रामदत


ू धरु मारु धाय के |

जय जय जय हिुमंत अगाधा, दुःु ख पाित जि केहह अपराधा |

पूजा जप तप िेम अचारा, िहह जाित कछु दास तुम्हारा |

बि उपिि मग गगरर गह
ृ माही, तम
ु रे बल हम डरपत िाही |

पाय परों कर जोरर माििो, यह अिसर अब केहह गेहरािो |

जय अंजनि कुमार बलिंता, शंकर सुिि धीर हिुमंता |

बदि कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रनत पालक |

भूत प्रेत वपसाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर |

इन्हे मारुं तोहह सपथ राम की, राख िाथ मयाादा िाम की |

जिक सत
ु ा हरर दास कहािो, ताकक शपथ बबलम्ब ि लािो |

जय जय जय धुनि होत अकाशा, सुसमरत होत द:ु सह दुःु ख िाशा |

चरण शरण करर जोरर माििो, यही अिसर अब केहह गोहरािौं |

उिु उिु चलु तोहह राम दोहाई, पाुँय परों कर जोरर मिाई |

ॐ चं चं चं चंपल चलन्ता, ॐ हिु हिु हिु हिु हिुमंता |

ॐ हं हं हाुँक दे त कवप चंचल। ॐ सं सं सहम परािे खल दल |

अपिे जि को तरु त उबारो, ससु मरत होय आिंद हमारो |

यहह बजरं ग बाण जेहह मारे , ताहह कहो किरी कौि उबारो |

पाि करें बजरं ग बाण की, हिुमत रक्षा करें प्राण की |


यह बजरं ग बाण जो जापै, तेहहते भूत प्रेत सब कापें |

धुप दे य अरु जपे हमेशा, ताके ति िहह रहें कलेशा |

दोहा

प्रेम प्रतीनतहह कवप भजे, सदा धरें उर धयाि |

तेहह के कारज सकल शभ


ु , ससद्गध करें हिम
ु ाि |

|| इनत श्री बजरं ग बाण समाप्त ||

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