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प्रथम अध्याय
प्रथम अध्याय
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प्रथम अध्याय
प्रस्तावना परिचय- पृथ्वी पर व्याप्त पर्यावरण प्रकृ ति का सर्वोत्तम वरदान है। पर्यावरण वह
पक्ष हो जिसने पृथ्वी को जीवित जगत का गौरव प्रदान किया है। मानव जीवन प्रकृ ति पर
आश्रित हैं। जीव जन्तु, वृक्ष, वनस्पति, नदी, पहाड़ आदि उसके अंग-प्रत्यंग है। इनके परस्पर
सहयोग से यह वृद्ध शरीर स्वरूप व सन्तुलित है। पर्यावरण विधि वह विधि है जो पर्यावरण की
चनौतियों से सम्बन्धित है यह पर्यावरण के संरक्षण से सरोकार रखती हैं और पर्यावरण के
प्रदूषण का नियत्रण और निवारण करती हैं. पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृ ति में सदैव
प्रकृ ति से की गई हैं
अतः प्रकृ ति के साथ दुश्मन की तरह न हीं वरन् दोस्त की तरह काम करना चाहिए।
हम दिनों दिन पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। जिसके परिणाम भविष्य
में घातक हो सकते है। अतः पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावशाली कानूनों व नियमों का होना
आवश्यक है। जीवन के अधिकार और पर्यावरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है। जीने के बेहतर मानक
और प्रदूषण रहित वातावरण संविधान में अन्तर्निहित है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के
अनुसार पर्यावरण में जल, वायु और पृथ्वी और अन्तर सम्बन्ध जिसमे हवा समाहित हो, जल
पृथ्वी और मानव अन्य जीवित चीजें पेड़-पौधों जीव-जन्तु और सम्पत्ति आदि समाहित है।
पर्यावरण-पर्यावरण प्रकृ ति की वह संरचना है। जो हमारे चारों तरफ से विद्यमान है। वर्तमान
समय में भारत में आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। जो
मानवीय सुख-समृद्धि के लिए खतरा बन गई है। पर्यावरणीय समस्याओं का एक जरुरी पहलू
यह भी है। जिसके कारण लोगों का जीवन जीना दुर्लभ हो गया है। वह प्रदूषण के कारण ही
है। श्रवण शक्ति का कम होना, विकलांगता, कैं सर, दृष्टि हीनता, अस्थमा, चर्म रोग आदि।
पर्यावरण प्रदूषण का एक उदाहरण है।
जीब सहित सभी प्रकार की प्रकृ ति पर्यावरण में सम्बन्धित चीजों की रक्षा एवं संवर्धन करना व
उनको बढ़ावा देना हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होता है।1
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अगर हम भारत में कल्याणकारी और लोकहितकारी समाज की बात करे तो संविधान
के अन्तर्गत मूल सिद्धान्त एक कल्याणकारी राज्य निर्माण के लिए कार्य करते है। और स्वच्छ
पर्यावरण एक कल्याणकारी राज्य का ही तत्व है। जो अनुच्छे द 47 में लोगों के जीवन को
सुधारना भरपूर पोषण प्रदान करना और सार्वजनिक स्वस्थ्य की वृद्धि के लिए काम करना,
सार्वजनिक स्वस्थ में सुधार के तहत पर्यावरण संरक्षण और सुधार जीवन के अधिकार में
शामिल है। और इसके बगैर सार्वजनिक स्वस्थ्य सम्भव नहीं है। अनुच्छे द 48(ए) के द्वारा भी
राज्य देश भर में पर्यावरण बढ़वा देने के लिए जंगलों व वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कार्य
करेगा। संविधान के इन्ही प्रावधानों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986,
जलप्रदूषण अधिनियम 1995, ध्वनि प्रदूषण अधिनियम 2000, रसायन योजना तैयारी और
अनुक्रियानियम 1996 जैसे ही अधिनियमों की रचना महसूस की गई है।2
जीवन जीने के अधिकार में मानव स्वस्थ्य के लिए प्रदूषित पर्यावरण को जिम्मेदार
माना गया है। पर्यावरण संरक्षण द्वारा प्रदूषण फै लाने पर भुगतान का अधिकार के अनुसार
सरकार एवं न्यायालय के दायित्व द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से पीड़ित एवं प्रभावित व्यक्तियों
प्रतिकर पाने का हकदार है। इसी को ध्यान में रखते हुए 19 नवम्बर 1986 को पर्यावरण
संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-3 के द्वारा के न्द्र सरकार को शक्ति प्रदान की गई कि वह
पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार, प्रदूषण का निवारण, नियन्त्रण, उपसमन एवं पर्यावरण के
मानक निर्धारित करे और इस सम्बन्ध में न्यायालय नोटिस जारी करें , जिसके उल्लंघन पर
धारा-15 व 16 में दण्ड का प्रावधान करें। न्यायालय द्वारा पर्यावरण प्रदूषण में हुई दुर्घटना से
क्षतिपूर्ति के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण
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जीवन के अधिकार के रुप में अनुच्छे द 21,14 व 19 प्रदान करता है। अनुच्छे द-21 के अनुसार
कानून द्वारा बाध्यताओं को छोड़कर किसी व्यक्ति को जीवन जीने की एवं निजता की आजादी
से वंचित नहीं किया जायेगा।
दुनिया के प्रदूषित शहरों की सूची में गुरुग्राम और गाजियाबाद सबसे आगे है। हाल ही
में एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में दुनिया के 20 सबसे अधिक प्रदूषित
शहरों में भारत के कु ल 15 शहरों शामिल है। टॉप 6 में गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा
और भिवाड़ी को रखा गया है। रिपोर्ट में राजधानी दिल्ली को 11 वें स्थान पर रखते हुए इस
बात का दावा किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पिछले साल की तुलना में सर्वाधिक
प्रदूषित क्षेत्र के रूप में उभरा है। नवीनतम डेटा 2018 वर्ल्ड एयर क्वालिटी की रिपोर्ट में 20
शहरों में से 15 भारत के जबकि अन्य 3 पाकिस्तान और बांग्ला देश के है।3.
Case- कोवर जी भरुचा V/s आबकारी आयुक्त अजमेर में स्पष्ट करते हुए निर्णय दिया गया
कि स्वच्छ पर्यावरण प्रकृ ति का में स्पष्ट करते हुए निर्णय दिया गया कि स्वच्छ पर्यावरण
प्रकृ ति का सर्वोत्तम वरदान है। यह मानव जाति के विकास संरक्षण एवं संवर्धन के लिए
आवश्यक है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक
एवं सामाजिक रुप से कमजोर है उनके जीवन के अधिकार में स्वस्थ पर्यावरण शामिल होता है
और उनके चारों ओर होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित मामलों के लिए एक संविधान
के अनुच्छे द 32 व 226 के तहत न्यायालय में जनहित याचिका दायर करके अपने जीवन के
अधिकार को सुरक्षित रख सकते है और सर्वोच्च न्यायालय ने कु छ मामलों में जनहित याचिका
द्वारा जीवन के अधिकार को ध्यान में रखकर स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करने का प्रयास किया
है।
प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है कि सुखमय जीवन व्यतीत करे और संकटो से दूर
रहे। और उसके जीवन के अधिकारों की हानि प्राकृ तिक आपदा के बिना न हो सके । मानवीय
सर्वोच्च न्यायालयल ने इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए 2 जून 2010 को राष्ट्रीय
न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 की स्थापना की गई। इसका मूल्य उद्देश्य संविधान के
अनुच्छे द- =21 के अन्तर्गत स्वस्थ्य पर्यावरण जो नागरिकों का मूल अधिकार है मूल सम्पत्ति
के नुकसान के लिए मुआवजा देने सम्बन्धी मामलों को शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से निपटने के
लिए ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण-2010 की स्थापना की गयी।
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Case- मेनका गाँधी V/s भारत संघ' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छे द-21
जीवन के अधिकार में स्वच्छ पर्यावरण, बीमारियों व संक्रमण के खतरे से मुक्ति जीवन का
अधिकार शामिल है और जीवन के अधिकार में गरिमामय जीवन का अधिकार शामिल है और
अनुच्छे द 21 के तहत स्वस्थ्य वातावरण में जीने का अधिकार की बात सर्वप्रथम मान्यता
(रुरललिटिगेसन एण्ड इंटाइटमेंट के न्द्र V/s राज्य' (देहरादून खदान के स) में दी गई है। जिसमें
प्रथम बार सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व
पर्यावरण सन्तुलन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अवैध खनन को रोकने के निर्देश दिये थे। और
एम.सी. मेहता V/s भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण रहित पर्यावरण में
जीवन के अधिकार को अनुच्छे द-21 के तहत जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार के अंग
के रुप में माना था। मानव जीवन का आकर्षण सुख पूर्ण जीवन जीना है जिसमें ध्वनि मुक्ति
पर्यावरण का अधिकार शामिल है। अनुच्छे द-21 स्वच्छ पर्यावरण एवं शान्तिपूर्ण जीवन का
अधिकार प्रदान करता है।
पी.ए.जैकब V/s कोट्टमय पुलिस' के मामले में के रल उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि
अनुच्छे द 19(1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता किसी नागरिक को तेज ध्वनि से
लाउड स्पीकर व शोर-शराबें के उपकरण बजाने की इजाजत नहीं देती है और संविधान के
अनुच्छे द-19 (1) (जी) में व्यवसाय करने में जीवन का अधिकार शामिल है। अर्थात् कोई व्यक्ति
ऐसा व्यवसाय नहीं करेगा जिससे समाज व लोगों के स्वस्थ्य पर प्रतिकू ल प्रभाव पड़े।
स्वच्छ पर्यावरण जीवन का अधिकार है और जीवन के अधिकार में स्वच्छ पर्यावरण शामिल है
और अगर कोई पर्यावरण को प्रदूषित करता है तो उसे “प्रदूषण फै लाने पर भुगतान का
सिद्धान्त (Polluter Pays Principal) के आधार पर प्रदूषक क्षतिकारित पीड़ित व्यक्तियों को
प्रतिकर देने का प्रावधान करता है। जो औद्योगिक इकाईयाँ लापरवाही के द्वारा पर्यावरण को
बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचा रही है। इसी को ध्यान में रख कर पर्यावरण विधि संशोधन
विधेयक में भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यदि इकाईयाँ प्रदूषण रोकने में विफल रही
तो प्रतिदिन 50 लाख से 1 करोड़ का जुर्माना देना होगा। अभी प्रदूषण मानकों के उल्लंघन पर
अधिकतम जुर्माना 1 लाख रुपये और अधिकतम दण्ड 5 साल की सजा।
यदि स्वच्छ पर्यावरण न होता तो सृष्टि का निर्माण न होता। संयुक्त राष्ट्र संघ की
एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व का ध्यान पर्यावरण प्रदूषण की ओर खींचते हुए यह चेतावनी दी
कि भविष्य में पर्यावरण प्रदूषण के आयाम बहुत ही घातक होगें। जैसे-जैसे मानव सभ्य होता
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गया उसका विकास होने लगा और विकास उद्योगों के मापदण्ड पर रखा गया। जिसके कारण
पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ा क्योंकि हवा, पानी एवं भूमि जिन पर हमारा जीवन निर्भर है
दूषित हो गये है और हमें पर्यावरण के रुप में बड़ी महंगी कीमत चुकानी पड़ी है जो मनुष्य को
आर्थिक विकास के लिए देनी पड़ी। जहाँ पर्यावरण प्रदूषण की
समस्या जिन विकसित देशों में तकनीकी विकास एवं औद्योगिकरण के कारण उत्पन्न हुयी है
तो दूसरी तरफ जहाँ गरीब देशों में अल्पविकास के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या है। पूर्व
प्रधान मंत्री इन्दिरा गाँधी ने पर्यावरण के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कहा था कि “समृद्धशाली
देश चाहे विकास को पर्यावरण सुधार के विनाश का कारण समझें, हमारे लिए यह रहन-सहन
के पर्यावरण सुधार करने, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने, पानी स्वच्छता, आश्रय का प्रबन्ध
करने, रेगिस्तान को हरा-भरा करने एवं पहाड़ों पर रहने योग्य बनाने का प्राथमिक साधन है।
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दिल्ली एन.सी.आर. मे बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण
मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने सख्ती से कहा कि क्या सरकारें इस तरह प्रदूषण
से लोगों को मरने के लिए छोड़ सकती है? क्या आप देश को 100 साल पीछे जाने देना चाहते
है? सुनवाई के दौरान कोर्ट में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के मुख्य सचिव मौजूद थे। जस्टिस
अरुण मिश्रा ने दिल्ली के मुख्य सचिव से सवाल किया आप धूल, कचरे और निर्माण कार्यों की
ही नहीं सुलझा पा रहें, आप इस पद पर क्यों बने हुए है? जस्टिस अरुण मिश्रा ने पंजाब,
हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को आदेश दिया की वे किसानों को पराली जलाने से
रोकने और उन्हें 100 रुपये प्रति क्विंटल की प्रोत्साहन राशि प्रदान करें। समस्या जस्टिस मिश्रा
ने कहा "सब जानते है कि हर साल पराली जलाई जाएगी सरकारें इसके लिए पहले से तैयारी
क्यों नहीं रखती है? हुए शीर्ष लोगों को मशीनें मुहैया क्यों नहीं कराई जाती है? इससे पता
चलता है कि पूरे साल प्रदूषण रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।" पंजाब सरकार को
फटकार लगाते कोर्ट ने कहा कि आप अपने कर्तव्यों के निर्वहन में बुरी तरह नाकाम रहें।
पिछले काफी समय से गुणवत्ता लगातार गम्भीर और बेहद खराब स्तर पर बनी हुई
उपरोक्त वर्ण से स्पष्ट है कि हमारी न्यायपालिका भी पर्यावरण प्रदूषण के प्रति कितनी सक्रिय
भूमिका निभा रही है। आज प्रत्येक राज्य वैश्विक परिधि में आगे निकलने के चक्कर में ऊर्जा
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उपभोग इस कदर कर रहा है कि वह भूल गया है कि आगामी पीड़ितों को भयाभय उत्सर्जित
गैसों के कारण स्वच्छ पर्यावरण के लिए तिल-तिल तरसना पड़ेगा। और ओजोन परत दूषित
होने के कारण जो पराबैंगनी किरणें जो पहले हमें छू भी न पाती थी। आज वह अपना असर
दिखाने लगी है। जिसके कारण गम्भीर बीमारियाँ अपना शिकार बनाने लगेंगी हर राज्य दुनिया
मे तेज रफ्तार से आगे निकलने के लिए नये-नये संसाधनों एवं तकनीकी का प्रयोग कर रहा है
जिससे पर्यावरण प्रदूषण की गति तेज हो गयी। और उसका प्रभाव सीधे जीवन पर पड़ता है।
कम समय में दूरी तय करना, लम्बे रास्ते बनाना, पहाड़ों को तोड़कर सुरंग बनाना, नदी-झीलों
के बीच से रास्ते बनाना आदि जो सीधा प्रकृ ति के विपरीत है जिससे पर्यावरण के प्रदूषण की
गति और तेज होने लगी है। जिससे वैश्विक स्तर पर संकट गहरा सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति को धरती माता के गर्भ से ही सांस लेने के लिए शुद्ध वायु, शुद्ध जल, खाने के
लिए पौष्टिक आहार और रहने के लिए स्वस्थ्य पर्यावरण की आवश्यकता होती है। यह सभी
तत्व मानव जीवन के लिए आवश्यक है लेकिन व्यापक रुप में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक
विकास होने के कारण वायु मण्डल में उन तत्वों की स्थिति प्रभावित हो गई है। जो मानव
कल्याण के लिए आवश्यक है। व्यक्ति ने अपने आर्थिक हितों के लिए प्रकृ ति की गति को
परिवर्तित कर दिया। है। और मानव जाति की क्षमता ने व्यापक रूप से पर्यावरण को प्रभावित
किया है। इसी कारण आगामी भविष्य में प्रकृ ति पर प्रभाव पड़ने की सम्भावनायें व्यक्त की जा
रही है। 12 पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका ने भी एक सक्रिय भूमिका का निर्वाहन किया है।
दिल्ली में प्रदूषित इकाइयों की बंदी तथा स्थानातरण सी.एन.जी. का प्रयोग ताजमहल को
प्रदूषण से बचाना, पर्यावरण को शैक्षणिक पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाना तथा संचार
माध्यमों के द्वारा पर्यावरण के महत्व का प्रचार-प्रसार आदि न्यायपालिका के सराहनीय प्रयासों
की एक झलक है। जनहित याचिकाओं ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गैर-सरकारी संगठनों,
नागरिक समाज तथा आम आदमी की भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। यह न्यायपालिका के
प्रयासों का ही फल है। कि आज सरकार तथा नीति निर्माताओं की सूची में पर्यावरण प्रथम
मुद्दा है तथा वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति गम्भीर हो गये है।
हमारे सांस्कृ तिक मूल्यों एवं परम्पराओं में ही पर्यावरण की रक्षा करने को हमारे जीवन का एक
महत्वपूर्ण अंग माना गया है। कु छ ग्रन्थों में तो पृथ्वी को स्वर्ग कहकर सम्बोधित किया गया
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है। यह प्राण युक्त संसार ही सभी प्राणी मात्र का प्यारा स्थान है। यह हमारे प्रकृ ति पर्यावरण
की उदारता की ही देन है। कि हम पृथ्वी पर एक स्वस्थ्य तथा सुरक्षित जीवन यापन कर रहे
है। अतः धरती पर प्रकृ ति पर्यावरण ही हमारा स्वर्ग है, और इसको सुरक्षित रखना हमारा परम्
कर्तव्य है। भारतीय संविधान में भी प्रकृ ति के संरक्षण और संरचना को समाहित किया गया है।
जिसकी अनुपस्थिति में जीवन का अधिकार अधूरा होगा।
पर्यावरण से सम्बन्धित लोगों में जागरुकता, सहभागिता, पर्यावरण शिक्षा के विकास करने और
लोगों का पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने तथा संवैधानिक प्रावधानों के प्रति लोगों की रुचि
बढ़ाने तथा उनके ज्ञान का संवर्धन करने का प्रयास किया गया है। शोध समस्या- लघु शोध
समस्या का चुनाव करने से पहले हमको उस समस्या के विषय में लघु उस विषय के ज्ञाताओं
से विचार विमर्श कर लेना चाहिए और यह निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए कि उस समस्या पर
शोध कार्य करना कितना उचि वर्तमान समय में पर्यावरण प्रदूषण एक गम्भीर समस्या के रुप
में हमारे वातावरण में व्याप्त है।
जिसका हमारे समाज के लोक जीवन को दुभर बना दिया है। हमारे समाज के जनसाधारण के
स्वस्थ्य पर प्रतिकू ल प्रभाव डाला है। जिससे मुक्ति प्राप्त करने के लिए जनसाधारण को उपाय
करना चाहिए। उसका अध्ययन करने के लिए हमने अपने लघु शोध की समस्या के लिए यह
शीर्षक चुना है। " पर्यावरण संरक्षण में पर्यावरणीय संविधिक विधियों की भूमिका: एक
विश्लेषणात्मक अध्ययन " "पर्यावरण प्रदूषण और संवैधानिक विधिः एक न्यायिक समीक्षा" लघु
शोध का उद्देश्य :- हम जिस समाज में जीवन यापन करते है। उस समाज में यदि हमको कोई
ऐसी समस्या का अभास होता है। जिससे सम्पूर्ण समाज के लोग प्रभावित होते है। या जिससे
उस समाज के व्यक्तियों पर प्रतिकू ल या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तो हमारे मन में उस
समस्या के समाधान करने की जो जिज्ञासा होती है। और तो हमारे मन में उस समस्या के
समाधान करने की जो जिज्ञासा होती है। और हम उस समस्या के विषय में चिन्तन मनन
करते है। और उस चिन्तन की प्रक्रिया के समय हमारे मन में जो विचार उत्पन्न होते है।
उनको निष्कर्ष तक पहुँचाने के लिए हम सामाजिक परिवेश में उन प्रश्नों का अध्ययन करते है।
तथा देखते है, कि हमारे विचार किस स्थिति तक उचित है। सामाजिक परिवेश के समान
अवलोकन से यदि हमको हमारे प्रश्नों का उत्तर प्राप्त नहीं होता है। तो हम अपनी समस्या का
वैज्ञानिक रुप से अध्ययन करते है। तथा समस्या का समाधान की खोज करते है। हमारी शोध
समस्या का उद्देश्य सामाजिक परिवेश में व्याप्त पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के कारणों की
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खोज करना तथा उसके कारणों को जनसाधारण तक पहुँचाना है। हमारे संविधान में पर्यावरण
प्रदूषण से मुक्त जीवन यापन करने के अधिकार को कहाँ तक सम्मिलित किया गया है।
उसका अध्ययन करके उन उपायों की जान
• राज्य के पर्यावरण प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए किया कर्तव्य निर्धारित किये
गये है। उसका अध्ययन करना तथा राज्य अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कहाँ तक रहा उसकी
जानकारी प्राप्त करके उससे जनता को अवगत करना है। पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जा रहे प्रावधानों का अध्ययन करना तथा यह प्रावधान किस सीमा
तक सफल रहे है उसका अध्ययन करना है। 'पर्यावरण संरक्षण में पर्यावरणीय संविधिक
विधियों की • परिकल्पना- हमारे लघुशोध कार्य के विषय “पर्यावरण प्रदूषण और संवैधानिक
विधि एक भूमिका: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन व्यायिक" को दृष्टिगत रखते हुये। हम अपने
लघुशोध कार्य से सम्बन्धित इन परिकल्पनाओं का परीक्षण सत्यता के आधार पर करेगें। जो
इस प्रकार है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए 19 नवम्बर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा (3) के
द्वारा के न्द्र सरकार को शक्ति प्रदान की गई कि वह पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार, प्रदूषण
का निवारण, नियन्त्रण, उपशमन एवं पर्यावरण के निर्धारित मानकों का परीक्षण किया जायेगा।
• भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों के तहत हर नागरिक से अपेक्षा की जाती है, कि वह
पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान दें। इस सम्बन्ध में भारतीय संविधान के अनुच्छे द 51
(A) (G) में प्रावधान किया गया है। यह कहाँ तक सार्थक रहा।
राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गये प्रावधानों, औद्योगिक प्रदूषण तथा पेड़ों की कटाई
के कारण पर्यावरण में आये असन्तुलन तथा इनसे निपटने के लिए किये गये प्रावधानों की
सत्यता की कसौटी पर परखा जायेगा। इन सभी परिकल्पनाओं का अध्ययन लघु शोध
सैद्धान्तिक पद्धति का प्रयोग करते हुये करेगा। पर्यावरण संरक्षण में पर्यावरणीय संविधिक
विधिजे की
• लघु शोध पद्धति- हमारा लघुशोध शीर्षक "पर्यावरण प्रदूषण और संवैधानिक विधि: अनुसार
हमने अपने लघु शोध कार्य में उच्च कोटि करे परिणाम देने के लिए “सैद्धान्तिक तथा
अनुभवजन्य पद्धति” का प्रयोग किया है। जिससे उच्च कोटि के परिणाम प्राप्त हो सकें ।
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अपने लघु शोध कार्य को शोधकर्ता ने अपनी सुविधा तथा अपने ज्ञान के आधार पर पाँच
अध्यायों में विभाजित किया है। लघु शोध के प्रथम अध्याय में प्रस्तावना है जिसके अन्तर्गत
पर्यावरण प्रदूषण मुक्त वातावरण पाने का प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। कि विधि शास्त्रीय
संकल्पना का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
द्वितीय अध्याय में पर्यावरण संरक्षण, एवं भारतीय संविधान में दिये गये दायित्व के संवैधानिक
दायित्व के बारे में संक्षिप्त विवरण है।
तृतीय अध्याय में राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोणों का व्याख्यान किया गया है। जिसमें
पर्यावरण प्रदूषण एवं जीवन के अधिकार से सम्बन्धित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय विधियों
तथा कार्यक्रमों व विभिन्न योजनाओं को स्थान प्रदान किया गया है। साथ ही साथ अनेक पत्र-
पत्रिकाओं, रिपोर्टों से प्राप्त आकड़ों का विश्लेषण किया गया है। चतुर्थ अध्याय में न्यायपालिका
के द्वारा समय-समय पर दिये गए निर्णयों को सम्मिलित किया गया है। पंचम अध्याय
निष्कर्ष एवं सुझाव से सम्बन्धित है। जिसमें अनुभवाश्रित विधि से प्राप्त आंकड़ों तथा विभिन्न
रिपोर्टों व समचार पत्र-पत्रिकाओं से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण को आधार पर निष्कर्ष निकाले
गये है और सुझाव दिये गये है। अंत में सन्दर्भ सूची व परिशिष्ट संलग्न है।
अनेकों जटिल नियम प्रस्तुत किए है। अधुनातन परिभाषा के अनुसार चाणक्य भारत के प्रथम
वन एवं वन्य जीव संरक्षक थे। 2
इससे पूर्व पर्यावरण संरक्षण के लिये वैदिक युग में नदियों के देवत्व वाला स्वरुप उभर कर
हमारे समक्ष उपस्थित हुआ था। नदी सूक्त में कहा गया है
हे गंगा, हे यमुना, आदि नदियों तुम मेरे स्त्रोत सुनो। गंगा के प्रति विशेष आदर अवश्य रहा,
किन्तु एक समय था, जब स्वयं गंगा नदी शब्द नदी मात्र का द्योतक था-सभी नदियाँ गंगा
थी। नदी मात्र के प्रति जो आत्मीयता थी वह आज भी सुरक्षित है। यही कारण है कि आज
वर्तमान सरकार ने गंगा नदी को माँ माना है। और उसे प्रदूषण से रहित करने के लिए पूरे देश
में राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चला रही है। अतः यही कहा जा सकता है कि पर्यावरण के संरक्षण
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के लिये न के वल वर्तमान में बल्कि प्राचीन समय में जागरुकता विद्यमान थी। इस परिपेक्ष्य
में हमें पर्यावरण के अर्थ को जानना होगा।
पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकताः- वर्तमान समय में मनुष्य प्रगति की ओर उन्मुख है। वह
प्रतिदिन वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक क्षेत्र में उन्नति कर विकास की ओर बढ़ता जा रहा है। वही
दूसरी ओर विकास की गति हमारे लिए कष्ठकारी सिद्ध होती जा रही है और इसी विकास के
कारण हमारा पर्यावरण प्रभावित होकर प्रदूषित होता जा रहा है।
वनों की कटाई, वनस्पतियों और जीवों के सम्बन्धों में कमी, औद्योगिकरण एवं शहरीकरण में
वृद्धि, विज्ञापन तथा तकनीकी का अप्रत्याशित प्रसार और जनसंख्या विस्फोट तथा परमाणु
भट्टियों में पैदा होने वाली रेडियोधर्मी ईंधन की राख, रासायनिक प्रदूषक और
2 डॉ. भार्गव रणजीत, 'भारतीय पर्यावरण इतिहास' के झरोखे से पृष्ठ संख्या (8) ऋग्वेद के नदी
सूक्त व्यावहारिक रूप देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जहाँ एक और पर्यावरण
संरक्षण को ● प्राथमिकता देने बेहिचक स्वीकार किया, वही उन्होंने इस बात को जोरदार ढंग से
सामने रखा कि इस मुद्दे का समाधान विकास की समस्या के साथ जोड़कर ढूँढा जाना चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने रेखांकित किया कि पर्यावरण का संकट वर्तमान में उत्पन्न हुआ है उसके
लिए शुद्ध ● औपनिवेशिक शक्तियाँ कम जिम्मेदार नहीं है। तेल हो या खनिज अपनी जरुरत
के लिये इन संसाधनों का दोहन करते वक्त प्रकृ ति के स्वास्थ्य की कोई चिंता संपन्न पश्चिमी
देशों के कभी नहीं की थी। 5.
इस सम्मेलन में विकसित देशों के सामने यह विकल्प रखा गया कि पर्यावरण संरक्षण के लिये
दोहन का त्याग करना चाहिए तथा न्यायोचित मुआवजा देने के लिये उन्हें व्यवस्था करनी
चाहिए। इस सम्मेलन में जीवन को बचाने के लिए प्रगति की परिभाषा के पुर्नविलोकन तथा
जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम ा रित किया गया तथा राज्यों द्वारा भी पर्यावरण विभाग
स्थापित किये गए। वास्तव में यह सम्मेलन मानवता की स्पष्ट घोषणा थी कि पर्यावरण
विनाश अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। अतः पर्यावरण को बचाने की सम्पूर्ण मानवता की नैतिक
जिम्मेदारी बनती है । इस सम्मेलन में इस गंतव्य को स्वीकार किया गया कि मानवीय
पर्यावरण का संरक्षण और सुधार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिससे लोगों की खुशहाली और पूरे
विश्व का आर्थिक विकास जुड़ा है। सभी सरकारों और सम्पूर्ण मानव जाति का यह दायित्व है
कि वह मानवीय पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए मिल-जुल कर काम करें, ताकि
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सम्पूर्ण मानव जाति और उसकी भावी पीढ़ियों का हित हो सकें यह घोषणा कारगार साबित हुई
और इसको ध्यान में रखकर अनेकों देशों न पर्यावरण संरक्षण हेतु नियम-कायदों व कानूनों का
निर्धारण किया और इन कानूनों के उल्लंधन की स्थिति में दंड की व्यवस्था की।
पुष्पेश पंत "21 वी शताब्दी में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध" मैकग्रा हिल एजुके शन, नई दिल्ली, 2014, पृ.
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वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण:- भारत में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा
रही है प्राकृ तिक या मानवीय कारणों से जब पर्यावरण के किसी घटक को क्षति सन्तुलन के
कायम रखने का प्रयास किया जाता है। परन्तु वह सहन सीमा से अधिक बढ़ जाता है तो
सन्तुलन बिगड़ने लगदा है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण प्रारम्भ हो जाता है जिससे जीवन की
गुणवत्ता नष्ट होने लगती है जीवन-चक्र बदलने लगता है। विकास की प्रक्रिया उल्टी दिशा में
मुड़कर प्रदूषण का मार्ग प्राप्त कर लेता है तब जीवधारियों का जीवन संकट में पड़ने लगता
है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत धारा-2 (ए) में पर्यावरण को परिभाषित
किया गया है। “जिसमें एक तरफ पानी, वायु तथा भूमि और उनके बीच जो अन्त विद्यमान
है। दूसरी तरफ मानवीय प्राणी, अन्य जीवित प्राणी, पौधे, सूक्ष्म जीवाणु एवं सम्पत्ति
सम्मिलित
इसी भाव में रोजर्स के अनुसार "पर्यावरण विधि इसे ग्रह और इसकी जनता को कार्यकलाप से
जो पृथ्वी और उसके जीवन को बनाये रखने की क्षमता को उलट देता है। जिसे संरक्षण करने
वाली ग्रहीय घरदारी विधि है।”
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जल प्रदूषण, इन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव
न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है।
प्रमुख दायित्वं एवं कर्तव्य राज्य में नदियों और कु ओं के जल की गुणवत्ता बनाये रखना तथा
नियंत्रित क्षेत्रों में वायु प्रदूषण रोकने, नियंत्रित करने, उसे कम करने के लिए व्यापक कार्यक्रम
की योजना बनाना तथा उसका निष्पादन सुनिश्चित करना है।
2. प्रदूषण निवारण, नियंत्रण या कम करने से सम्बद्ध विषयों पर जानकारी एकत्र करना, प्रसार
करना, राज्य सरकार को सलाह देना, उससे सम्बन्धित अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देना,
संचालन करना, उसमें भाग लेना ।
3. के न्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण सम्बन्धी कार्य
में लगें व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ सार्वजनिक शिक्षा के कार्यक्रम बनाना।
5. बहिस्त्राव व उत्सर्जन के मानक अधिकथित करना और राज्य में जल एवं वायु प्रदूषण का
अनुश्रवण करना।
7. उद्योगों तथा स्थानीय निकायों से जल उपकरण एकत्र करना तथा उसे के न्द्रीय सरकार को
भेजना।
8. ऐसे अन्य कृ त्यों का पालन करना जो के न्द्रीय बोर्ड या राज्य सरकार द्वारा विहिप किये
जाये या उसे समय-समय पर सौपें जाये ।
13 | P a g e
9. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986 के अन्तर्गत समय-समय पर जारी नियमों के अन्तर्गत
सौपें गये कार्यों का निष्पादन |
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदेश के उद्यमियों एवं जनता को जल, वायु व पर्यावरणीय
अधिनियमों के प्रावधानों की जानकारी देने के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के
हानिकारक प्रभावों के सम्बन्ध में उन्हें जागरुक बनाने के लिए के वल भागीदारी के प्रयास भी
किए जा रहे है। नागरिकों की शिकायतों एवं सुझावों का त्वरित निस्तारण किए जाने हेतु
नागरिक चार्टर बनाया जा रहा है। जिससे बोर्ड के प्रयासों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें
तथा जन जागरुकता प्रयासों में अपनी सहभागिता का भाव जागृत करें। भारत सरकार द्वारा
प्रदूषण की रोकथान हेतु अधिनियम अधिनियमों को प्रभावी बनाये जाने के लिए नागरिकों की
साझेदारी स्वतन्त्र होनी चाहिए। 7
1.वाहित मल- हमारे घरों में बहुत से अपशिष्ट एवं अनुपयोगी पदार्थ होते है, जो जल में छोड़ दे
जाते है, जैसे-मानव मल, कागज, डिटरजेंट्स साबुन, कपड़ा एवं बर्तन धोया हुआ पानी आदि। ये
भूमिगत नालों द्वारा नदियों, झीलों और तालाबों में पहुँच जाते है, जिससे वहां का जल प्रदूषित
हो जाता है, जो अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देते है, जैसे-हैजा, टायफाइड, चर्म रोग आदि।
8
'सिटीजन चार्ट ऑफ यू.पी. पॉल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड 8 पी. एस. नेगी, परिस्थैतिकीय विकास एवं
पर्यावरण भूगोल (1994-95) पृ. 48
थर्मल एवं न्यूक्लियर पॉवर स्टेशनों से छोड़े गए नदी और झीलों में पहुँचकर जलीय जीवों एवं
मनुष्यों को रोगी बनाते है। इसे "तापीय प्रदूषण" कहते है ।
14 | P a g e
वायु प्रदूषण
वायु मण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक निश्चित अनुपात में पाई जाती है। वायुमण्डल में
विभिन्न घटकों में मौलिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन, जो
जैवमंडल को किसी न किसी रूप में दुष्प्रभावित करते है, संयुक्त रुप से वायुमण्डल कहलाते है
तथा वायु के प्रदूषित होने की यह घटना वायु प्रदूषण कहलाती है। 11 वायु प्रदूषण के कारण
एवं स्त्रोत वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण तथा उसके स्त्रोत निम्नानुसार है
1. स्वचालित वाहन एवं मशीने स्वचालित वाहनों जैसे- मोटर, ट्रक, बस, के जलने के कार्बन
डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड नाइट्रोजन, अदग्ध
हाइड्रोकार्बन, सीसा व अन्य विषैली गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती है। विषैले वाहक
निर्वात वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत है। 12
2. औद्योगिक कल-कारखानें- कारखानों की चिमनियों से निकले वाले धुएं से सीसा, परा, जिंक,
कॉपर, कै ल्शियम, आर्सेनिक एवं एस्वेस्टस आदि के सूक्ष्म कण तथा कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन
मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइ आक्साइड हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइडोजन-फ्लोराइड जैसी गैसे होती
है, जो जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है। पैट्रोलियम रिफाइनरी वायु प्रदूषण के
प्रमुख स्रोत है, जिनमें So2 ( सल्फर डाइऑक्साइड) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (No2) प्रमुख है। 13
3. धुआं एवं ग्रिट - ताप बिजलीघरों, कारखानों की चिमनियों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से धुआं
निकलता है । धुएं से कारखानों के सूक्ष्मकण, विषैली गैसे, जैसे- हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाई
ऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड होते है, जो कई प्रकार के रोग
उत्पन्न करते है। 14
4. धूल- औद्योगिक इकाइयों से संबंधित खदानों जैसे- लौह अयस्क तथा कोयले की खदानों की
धूल से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा रोग उत्पन्न होते है। वायुमण्डल में उत्सर्जित विभिन्न
प्रकार के प्रदूषक विभिन्न प्रकार के प्रमुख प्रदूषक जो अनेक क्षेत्रों में वायुमण्डल में उत्सर्जित
किए जाते है । 15
15 | P a g e
12 पी. एस. नेगी, परिस्थितिकीय विकास एवं पर्यावरण भूगोल (1994-95) पृ. 51. 13 डॉ. वी. के .
श्रीवास्तव एवं डॉ. वी. पी. राव, पर्यावरण एवं परिस्थैतिकी (1998) पृ. 266. 14 हैल्सबरी स लॉज
ऑफ इंग्लैण्ड, तृतीय संस्करण, खण्ड 33 पृ. 61. 15 बी. राय “न्वायज प्लूशन" साइन्स रिपोर्ट
फरवरी 1975 पृ. 263-264.
उद्योग विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1951 खान और ( खनिज विनियमन एवं विकास)
अधिनियम-1957 वायु प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण) अधिनियम-1957 (ii) (i) (iv)
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण को शोर प्रदूषण भी कहते है। अवांछित ध्वनि को शोर कहते है। आजकल
वैज्ञानिक प्रगति के कारण मोटर गाड़ियों, स्वचालित वाहनों, लाउडस्पीकरों, टैक्टरों, कलकारखानों
एवं मशीनों का उपयोग काफी अधिक होने लगा है ये सभी उपकरण एवं मशीनों काफी आवाज
(शोर) करके उत्पन्न करती है। मनुष्य की श्रवण क्षमता 80 डेसिबल होती है। शोर की तीव्रता का
मापन डेसिबल की इकाई में किया जाता है। 16 (1 डेसिबलन/ 10 वेल)
शोर ध्वनि का वह रुप होता है जिसे हम सहन नहीं कर पाते। मनुष्य 0 डेसिबल तीव्रता की
आवाज सुनने में सक्षम होता है । 25 डेसिबल पर शान्ति का वातावरण होता 80 डेसिबल से
अधिक शोर होने व पर मनुष्य में अस्वस्थता आ जाती है या बैचेनी होने लगती है। तथा
130140 का डेसिबल शोर अत्यन्त पीड़ादायक होता है। इससे अधिक शोर होने पर मनुष्य में
बहरा होने का खतरा रहता है ध्वनि प्रदूषण के कारण व्यक्ति अनिद्रा, सिरदर्द, ह्दयरोग,
रक्तचाप, आदि का शिकार हो जाता है। 17
1. अधिक शोर के कारण सिरदर्द, थकान, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आक्रोश आदि रोग उत्पन्न होने
लगते है।
2. शोर प्रदूषण के कारण उपापचयी प्रक्रियाएं प्रभावी होती है। संवेदी व तन्त्रिका तन्त्र कमजोर
हो जाता है। मस्तिष्क तनाव ग्रस्त हो जाता है और पाचन क्रिया भी कमजोर हो जाती है।
16 | P a g e
मूदा प्रदूषण
16 आई.जी. सिमन्स (Simmons), दी इकोलॉजी ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज (1974) लन्दन पृ. 311
17 डॉ. अनिरुद्ध प्रसाद, (पर्यावरण विधि) नवम् संस्करण 2018 पृ. सं. 45, 47.
मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी उपजाऊ परत होती है जिस पर पौधे उगते है। पौधों के लिए यह
मृदा अत्यन्त आवश्यक होती है क्योंकि पौधे मृदा से ही जल एवं खनिज लवणों का अशोषक
करते है। शहरीकरण, औद्योगिकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण इनके अनुपयोगी पदार्थों ने
मृदा को प्रदूषित कर दिया है। इनके कारण मृदा की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है तथा
उसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं पर इसका प्रतिकू ल प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न प्रकार के उर्वरक
एवं कीटनाशक दवाइयाँ मृदा को प्रदूषित कर रहे है। 18 मृदा को प्रदूषित करने वाले प्रमुख स्रोत
निम्नानुसार है
समुन्द्रीय प्रदूषण
पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल है । कु ल जल का 97.25 प्रतिशत भाग समुद्र के रुप में पाया
जाता है। इसमें 3.5 प्रतिशत घुलित पदार्थ पाए जाते है। 19
परिभाषा
समुन्द्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से ऐसे पदार्थों का मिलना, जिसके कारण हानिकारक प्रभाव
उत्पन्न हो सके , जिससे मनुष्य जीव-जन्तु पर संकट उत्पन्न हो और समुद्र की गुणवत्ता पर
प्रभाव पड़े तो इसे समुन्द्रीय प्रदूषण कहते है। नदियों द्वारा लाये गये अधिक मात्रा में वाहित
मल, कू ड़ा मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी उपजाऊ परत होती है जिस पर पौधे उगते है। पौधों के
लिए यह मृदा अत्यन्त आवश्यक होती है क्योंकि पौधे मृदा से ही जल एवं खनिज लवणों का
अशोषक करते है। शहरीकरण, औद्योगिकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण इनके अनुपयोगी
पदार्थों ने मृदा को प्रदूषित कर दिया है। इनके कारण मृदा की उपजाऊ शक्ति कम होती जा
17 | P a g e
रही है तथा उसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं पर इसका प्रतिकू ल प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न
प्रकार के उर्वरक एवं कीटनाशक दवाइयाँ मृदा को प्रदूषित कर रहे है। 18 मृदा को प्रदूषित करने
वाले प्रमुख स्रोत निम्नानुसार है
19 बी. राम प्रसाद, “सालिड बेस्ट मैनेजमेण्ट” पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण सेमिनार 1976 कानपुर
में पढ़ा गया पेपर।
समुन्द्रीय प्रदूषण
पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल है । कु ल जल का 97.25 प्रतिशत भाग समुद्र के रुप में पाया
जाता है। इसमें 3.5 प्रतिशत घुलित पदार्थ पाए जाते है। 19
परिभाषा
समुन्द्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से ऐसे पदार्थों का मिलना, जिसके कारण हानिकारक प्रभाव
उत्पन्न हो सके , जिससे मनुष्य जीव-जन्तु पर संकट उत्पन्न हो और समुद्र की गुणवत्ता पर
प्रभाव पड़े तो इसे समुन्द्रीय प्रदूषण कहते है। नदियों द्वारा लाये गये अधिक मात्रा में वाहित
मल, कू ड़ा
1
9 बी. राम प्रसाद, “सालिड बेस्ट मैनेजमेण्ट” पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण सेमिनार 1976 कानपुर
में पढ़ा गया पेपर।
18 | P a g e
कचरा, कृ षि जन्य कचरा, भारी धातुएं, प्लास्टिक पदार्थ, पीडकनाशी, रेडियोधर्मी पदार्थ पैट्रोलियम
पदार्थ इत्यादि के समुन्द्र में आने से समुन्द्रीय वातावरण प्रदूषित हो जाता है इसी कहम
समुद्रीय प्रदूषण कहते है। 20
12. कीटनाशकों के समुन्द्र में आ जाने से जलीय जन्तु व उनके अण्डे प्रभावित होते है।
पड़ता है।
तापीय प्रदूषण
ऊर्जा के प्रमुख साधनों में एक ऊर्जा है ताप-ऊर्जा। ताप ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए सामान्यतः
कोयले को जलाया जाता है जिससे उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल दिया जाता है।
लेकिन इस प्रक्रिया ने जब कोयले को जलयान जलाया जाता है तो इससे बहुत सी ऐसी गैसे
निकलती है जो वातावरण को भी प्रदूषित करती है। ये गैसे प्रमुख रूप से कार्बनमोनो
ऑक्साइड, फ्लाइऐश, सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा हाइड्रोजनकार्बन इत्यादि होते है
इनका सांद्रण वातावरण में बढ़ाकर प्रदूषण फै लाते है इसे ताप प्रदूषण कहते है। ताप प्रदूषणा
हमारे वातावरण में बढ़ाकर प्रदूषण फै लाते है इसे ताप प्रदूषण कहते है। ताप प्रदूषण हमारे
वातावरण में उपयोग के पश्चात् कु छ पदार्थों में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसके कारण पर्यावरण
का ताप बढ़ जाता है इसे ही तापीय प्रदूषण कहते है। ताप विद्युत सयन्त्र सामान्यतः तापीय
प्रदूषण के प्रमुख कारण होते है। 21
प्रभाव
आनन्द पार्थ सारथी, एनिमल एण्ड राइट्स, फान्टलाइन, अगस्त 18, 2000 पृ. 97.
19 | P a g e
रेडियो प्रदूषण
ऐसे विशेष गुण वाले तत्व जिन्हें आइसोटोप कहते है और रेडियोधर्मिता विकसित करते हैं इस
प्रदूषण का वातावरण में फै लने पर मानव जीव-जन्तु वनस्पतियों एवं अन्य पर्यावरणीय हानि
होने की संभावना रहती है, इसे नाभिकी प्रदूषण या रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते है। रेडियो प्रदूषण
के स्त्रोत को हम दो भागों में बांट सकते है। प्राकृ तिक स्रोत-प्राकृ तिक स्रोत के अन्तर्गत
निम्नलिखित सोल आते है-
(1) आन्तरिक किरणे (ii) पर्यावरण (जल, वायु, एवं शैल) (iii) जीव-जन्तु (आंतरिक)
2. मनुष्य निर्मित सोल- मानव निर्मित स्त्रोत के अन्तर्गत निम्नलिखित सोल आते है-
अनेक वनस्पतिक उद्योगों, कृ षि उद्यानों तथा नर्सरी आदि को ग्रीन हाउस होते है। ये ग्रीन
हाउस वास्तव में काँच से घिरे ऐसे ग्लास हाउस होते है, जिनके अन्दर का तापमान बाहर की
अपेक्षा अधिक होता है। ग्रीन हाउस के अन्दर तापमान बढने का कारण उसमें रखे पौधों द्वारा
मुक्त की गई Co2 एवं जलवाष्प है जो कि बाहर नहीं निकल पाती एवं इनके कारण ग्रीन हाउस
के अन्दर का तापमान बढ़ा रहता है। इन ग्रीन हाउसों की उपयोगिता पौधों को शीते के प्रकोप
से बचाना होता है। 3
*.पी.एस. नेगी, परिस्थतिकीय विकास एवं पर्यावरण भूगोल (1994-95) पृ. 165,
20 | P a g e
(घ) संस्मारक और पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958
राज्य को निर्दिष्ट नीति के इन सिद्धान्तों को हम राज्य के नैतिक कर्तव्य की संज्ञा दे सकते है,
क्योंकि इनका प्रवर्तन न्यायालय द्वारा नहीं कराया जा सकता है, फिर भी देश के शासन में इन
अधिकथित सिद्धान्तों का मूलभूत महत्व है और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना
राज्य का कर्तव्य है।
आधुनिक 20 वी सदी में राज्य का कर्तव्य देश और समाज में निधि और व्यवस्था को बनाने में
रखने के अतिरिक्त लोकहितकारी या कल्याणकारी राज्य और समाजवादी समाज की स्थापना
करने की दिशा में अधिकाधिक प्रवृत्त होता जा रहा है, भारतीय संविधान भारत में संसदीय
लोकतंत्र की स्थापना करता है जिसमें जनता को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, इसका
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय सुनिश्चित करने का संकल्प को साकार करने के
प्रयत्नमें संविधान के भाग-4 में राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्तों को उपबन्धित किया गया है।
25
जिसमें लोक हितकारी एवं कल्याणकारी राज्य और समाजवादी समाज स्वच्छ एवं साफ-सुथरा
रखने के लिए राज्य देश के पर्यावरण की संरक्षा एवं सुधार का प्रयास करेगा।
* डॉ. बसन्ती लाल बावेल : भारत का संविधान, संस्करण 2016, पृष्ट सं. 388.
48(ए) और अनुदेव 61-एजी) के अधीन बोहरा उत्तरदायित्व आरोपित करता है। एक तरफ यह
पर्यावरण के संरक्षण के लिए राज्य को निर्देश देता है और दूसरी तरफ प्रत्येक नागरिक पर
21 | P a g e
प्राकृ तिक पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन करने का कर्तव्य आरोपित करता है। 28 जो
संविधान के विकास के साथ विकसित हुआ है तभी तो इन तत्वों का कार्य एक कल्याणकारी
की स्थापना
जीवन का अधिकार
भारत समस्त संसार का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश हैं जिसमें व्यक्ति स्वच्छ पर्यावरण में
जीने की आशा करते हैं हमारे संविधान निर्माताओं ने यह ध्यान में रखते हुए संशोधन के भाग-
3 में मौलिक अधिकारों में अनुच्छे द 21 के अन्तर्गत जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है।
जिसमें जीवन के अधिकार में पर्यावरण संरक्षण का अधिकार भी शामिल है। जिससे सभी
प्राणियों को प्रदूषण मुक्त पर्यावरण प्राप्त हो सकें । अनुच्छे द 21 में प्राण का जो अधिकार प्रदान
किया गया है, उसका तब उल्लंघन होता है, जब प्रदूषित जलवायु में गम्भीर रुप से रहना पड़ता
है, प्राण के अधिकार में अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार शामिल है और जहां हवा में जहरीला धुआँ
प्राण के अधिकार का भाग माना गया है, जिससे किसी को भी उसके प्राण और दैहिक
स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना अन्यथा वंचित नहीं किया जा सकता है।
पर्यावरण प्रदूषण द्वारा कारित जहर युक्त प्रदूषित वातावरण मिलना भी अनुच्छे द 21 का
अतिक्रमण है,
वास्तव में इस अनुच्छे द के अधीन प्राण के अधिकार में प्रकृ ति के उपहार का संरक्षण एवं
परिक्षण भी शामिल है, जिसके बिना जीवन का निर्वाह नहीं किया जा सकता है। 30
"डॉ. मुरलीधर चतुर्वेदी: भारत का संविधान के अनुच्छे द-21 में जीवन जीने के अधिकार में मानव
स्वास्थ्य क्षेम के लिए पर्यावरण को माना गया है। पर्यावरण संरक्षण सरकार एवं न्यायालय का
दायित्व बताया गयाहै। अनुच्छे द-21 के अन्तर्गत सफाई एवं पर्यावरण शुद्धता को शामिल करते
हुए वह निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण प्रदूषण से पीड़ित एवं प्रभावित व्यक्ति प्रतिकार
22 | P a g e
पाने का हकदार है। संविधान के अनुच्छे द-21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित बाध्यताओं को
छोड़कर किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने और व्यक्तिगत आजादी से वंचित नहीं रखा
जायेगा। मेनका गाँधी V/s भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्माण के बाद अनुच्छे द-
21 के समय-समय पर उदारवादी तरीके से व्याख्या की जाती रही है। अनुच्छे द-21 जीवन जीने
का मौलिक अधिकार भी देता है। इसमें पर्यावरण का अधिकार, बीमारियों व संक्रमण के खतरे
से मुक्ति का अधिकार अंतनिर्हित है। स्वस्थ्य वातावरण का अधिकार प्रतिष्ठा में मानव जीवन
जीने के अधिकार की महत्वपूर्ण विशेषता है। संविधान के अनुच्छे द्र-21 के तहत स्वस्थ्य
वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को पहली बार उस समय मान्यता दी गई थी। जब रुरल
लिटिगेसन एण्ड एंटाइटलमेंट कें द्र VIs राज्य जो (देहरादून खदान के स के नाम से प्रसिद्ध है) के स
में सामने आया था।
यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण
(संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण व पर्यावरण संतुलन सम्बन्धी मुद्दों को ध्यान में
रखते हुए इस मामले में खनन (गैरकानूनी खनन) को रोकने के निर्देश दिये थे। वही एम.सी.
मेहता VIs भारतीय संघ 32, के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन
*ए.आई. आर. 1998 एस. सी. 2187. ए. आई. आर. 1988 1987 एस. सी. 638.
जीने के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छे द-21 के अन्तर्गत जीवन जीने के मौलिक
शिक्षण संस्थाओं में एक घण्टे पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देने का निर्देश माननीय उच्चतम
न्यायालय द्वारा प्रदूषण रहित जल और वायु के उपभोग को अनुच्छे द- 21 में मूल अधिकार
माना गया। पेट्रोल और डीजल से चलित वाहनों के कारण प्रदूषण को रोकने विशेष उपाय किये
जाने को सरकार को निर्देशित किया गया और इन ध्वनि प्रदूषण के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक
निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने सरकार को ध्वनि प्रदूषण रोकने के निर्देष दिया है कि देश
भर में व्यास ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए उससे सम्बन्धित कानूनों को कड़ाई से लागू
करें। मानव जीवन का आकर्षण सुख पूर्ण जीवन जीना है। प्रत्येक व्यक्ति को अनुच्छे द-21 के
अन्तर्गत ध्वनि प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन बिताने का अधिकार है।
जिसमें अनुच्छे द-19(1) (अ) में प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करने में विफल नहीं किया जा सकता
है। अनुच्छे द-19 (2) के अन्तर्गत युक्तियुक्त निर्बन्धन लागू किये जा सकते है। कोई भी व्यक्ति
23 | P a g e
लाउडस्पीकर और आधुनिक ध्वनि विस्तारकों द्वारा किसी को उसकी आवाज सुनने के लिए
बाध्य नहीं कर सकता है। इन री ध्वनि प्रदूषण में न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिये है-
पटाखों की ध्वनि स्तर वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली के अनुसार करना चाहिए जब तक कि इससे
अच्छी प्रणाली न खोज ली जाये। ध्वनि करने वाले पटाखों के प्रयोग पर 10 बजे रात से 6 बजे
सुबह तक पूर्ण रोक होगी। पटाखों को दो भागों में बांटना चाहिए। एक घरेलू प्रयोग के लिए
और दूसरा निर्यात के लिए। दोनों के रंग अलग होना चाहिए। घरेलू पटाखों पर रासायनिक
तत्वों की जानकारी प्रकाशित होनी चाहिए।
33 डॉ. जय जय राम उपाध्याय, (पर्यावरण विधि) संस्करण 2016-17 पृ. सं. 42.
24 | P a g e
तृतीय अध्याय
25 | P a g e
तृतीय अध्याय
अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण
रहा है। जिसमें सर्वप्रथम समस्या पर्यावरण प्रदूषण की है। पर्यावरण की समस्या किसी एक
व्यक्ति
समुदाय या राष्ट्र की नहीं बल्कि पूरे ही अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की समस्या बन गई है। पर्यावरण
प्रदूषण का खतरा अके ले राष्ट्रीय स्तर तक दी सीमित नहीं है, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक
इसकी
पहुँच हो गई है। औद्योगिक इकाइयों एवं मानव जीवन की विकासशीलता का यह परिणाम है।
पर्यावरण मानव जीवन का आधार है। स्वस्थ्य एवं स्वच्छ मानव जीवन के लिए आवश्यक है।
गाँधी जी ने कहा था कि “प्राकृ तिक” मानक की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा कर सकती है।
लेकिन
मानव के लोलुकता को पूरा नहीं कर सकती है। प्राकृ तिक संसाधनों के बेतहाशा दोहन से
परिस्थिति की संकट बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में पर्यावरण के प्रति अन्तर्राष्ट्रीय
सजगता
का आयाम लगातार बढ़ता जा रहा है। और महसूस किया जाने लगा है कि विश्व का बनना
बिगड़ना हमारे हाथों में है। अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण में इसका नैतिक दायित्व हो गया है। जिसमें
कोई राष्ट्र, कोई जाति, अथवा कोई व्यवस्था अके ले नहीं सुलझा सकता है। यह सम्पूर्ण विश्व
मानव जाति की समस्या है। इस सम्बन्ध में विश्व स्तर पर कोई स्पष्ट विधि नहीं है।
अप्रत्यक्ष तौर
पर इसकी विभिन्न प्रसंविदाओं सम्मेलनों, अभिसमयों व घोषणाओं में दिखती रही है।
26 | P a g e
अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
www.archiv.india.gov.in
2 डॉ. जय-जय राय उपाध्याय (पर्यावरण विधि) संस्करण 2016-17, पेज नं. 34
27 | P a g e
मानव को मानव होने के नाते प्राप्त अधिकार मानव अधिकार कहलाते है। मानवधिकारों
की सार्वभौमिक एवं घोषणा उन अधिकारों का संकलन जो मानव को मानव होने के नाते प्राप्त
होते है। और उनकी प्रारम्भिक जरुरतों को पूरा करना आवश्यक है। इस प्रकार मानव
गया है। धारा-3 के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की स्वतन्त्रता व व्यक्तिगत सुरक्षा का
अधिकार है।
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Down
सार्वभौमिक घोषणा है। अनुच्छे द-11 के ही अनुसार मानव प्राणी को कु छ ऐसे अधिकार है तथा
अनुच्छे द-12 के अनुसार “भौतिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर के ही उपयोग का
सार्वभौमिक घोषणा 1948 है, इसके अनुच्छे द-6 के अनुसार “संकट काल के समय भी प्रत्येक
व्यक्ति को जीवन का अधिकार है।' स्वच्छ पर्यावरण के बिना सम्भव नहीं है।
मानव अधिकारों के मानदण्डों की तीन प्रकार की आवश्यक पीढ़ीयां है। नागरिक राजनैतिक,
दावों का प्रतिनिधित्व करते है। राष्ट्रीय संघियों और सम्मेलनों में पहचाने गये मानदण्डों को
28 | P a g e
सुदृणता से स्वीकार करते है। अन्तिम रुप जो राज्यों के खिलाफ समूहों और लोगों के
सम्भावित
'डॉ. एस. के . कपूर मानव अधिकार एवं अन्तर्राष्ट्रीय विधि सी.एल.ए.इला. पेंज-803
'डॉ. एस. के . कपूर. मानव अधिकार एंव अन्तर्राष्ट्रीय विधि सी.एल.ए.इला. (2010)
से सम्बन्धित मानव अधिकारों के तीन प्रकार के मानदण्ड के तीन प्रकार है। पहले दो राज्यों
के
खिलाफ अलग-अलग व्यक्तियों को सम्भावित दावों का प्रति निधित्व करते है एवं राष्ट्रीय
संघियों
और परम्पराओं में पहचाने गये मानदण्ड है और पहली एवं दूसरी पीढी में कानूनी और
मानदण्ड और स्वैच्छिक संघ की स्वतन्त्रता शामिल है। आर्थिक सामाजिक मानव अधिकारों में
इसी प्रकार दो उप प्रकार शामिल है जीवन की आवश्यकताओं के लिए पोषण, आश्रय स्वास्थ्य
और निष्पक्ष मजदूरी एक पर्याप्त जीवन स्तर उप प्रकार में शामिल है। अन्त में सामूहिक
विकास
आत्मक मानव अधिकारों में दो उप-प्रकार शामिल है जो लोगों को आत्मनिर्धारण के लिए उनके
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विशेष अधिकार के लिए अपनी संस्कृ तियों भाषाओं और धर्मों आदि को प्राप्त करना शामिल हैं।
तीन पहलुओं में मानव अधिकार का यह विभाजन 1979 में चैक ज्यूरिस्ट के रेल वासक द्वारा
पेस
किया गया था तीन श्रेणियाँ फ्रें च क्रान्ति के तीन सिद्धान्तों के साथ स्वतन्त्रता समान्तता और
1. पहली पीढ़ी- स्वतन्त्रता और राजनीतिक जीवन में भागीदारी के साथ नागरिक राजनीतिक
गारन्टी दी गई है वो जो सीधे अपने पास अधिकार नहीं रखते है लेकिन उनपर सकारात्मक
कर्तव्यों का गठन करते है ताकि समान और सामाजिक आर्थिक मानव अधिकारों को पहचाना
शुरु हुआ और पहले पीढ़ी के अधिकारों की तरह सार्वभौमिक घोषणाओं के लेख 22 से 27 में
उपचार लिये गये है उन्हें आर्थिक सामाजिक और सांस्कृ तिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय
3. तृतीय पीढ़ी- मानव अधिकारों से सम्बन्धित राज्यों के खिलाफ आयोजित लोगों और समूहों
समझौता और संधियों में स्वीकृ ति प्राप्त करते है वे बड़े पैमाने पर दस्तावेजों में नरम कानून
जैसे की 1992 में पर्यावरण और विकास का रियो घोषण पत्र और स्वदेशी पीपुल्स राइट्स
के 1994 ड्राफ्ट घोषणापत्र के रूप में आगे बढ़ रहे है। हालांकि पारम्परिक राजनीतिक
सिद्धान्तिक स्वाधीनता और भाईचारे को स्वभाविक विरोध के रुप में प्रस्तुत करते हैं।'
और पिछली पीढ़ीयों के साथ सामूहिक विकास अधिकारों की आंसगित में अन्यायों आश्रित है
30 | P a g e
उदाहरण के लिए ट्वीश का तर्क है कि किसी भी पीढ़ी को समय के साथ व्यक्तियों और
समुदायों को खतरे में रखने के बिना दूसरों के बहिष्कार पर जोर दिया जा सकता है। जिसमें
अधिकारों पर जोर देने के लिए समाज के भीतर सामाजिक रुप से वंचित समूहों खतरा पैदा
होता है जिससे आगे बढ़ने (ट्गिर) की स्थिति में गिरावट होती है जो बदले में दमन के
प्रतिवहिस्कार के लिए सामाजिक आर्थिक अधिकारों पर जोर देने के लिए जहाँ राजनैतिक
भागीदारी की प्रतिक्र
31 | P a g e
असमानता आ जाएगी। अन्य प्रकारों को बहिस्कृ ति करने सामूहिक विकास के अधिकारों पर
जोर देने न के वल राजनैतिक, नागरिक दमन के खिलाफ प्रतिक्रिया या खतरा पैदा होता है
न्याय संघर्ष वितरण को भी कम करता है। टिवीश अधिकारों की तीन पीढ़ियों के बीच
असंगतियों को बीच खारिज कर दिया समाज में इस तरह हो सकता है। ऐसा नहीं है कि
सम्मान करता है। मानव अधिकार इतनी अच्छी तरह से जुड़े हुए है कि किसी अन्यायों
आश्रित और परस्पर सहायक तरीके को छोड़कर ठीक से संचालन के रुप में समझना मुश्किल
है यद्यपि अधिकारों के बारे में सोचने के लिए तीनों पीढ़ियों के ढाँचे का मूल्यांकन मूल्यवानं
समझना होगा द्वितीय पीढी के अधिकारों के प्रयोग के लिए जरुरी पृष्ठ भूमि ठीक हो और
अन्तर्राष्ट्रीय विधेयक के कु छ हिस्सों का सुझाव दें, क्या एक पीढ़ी दूसरे से अधिक महत्व रखती
है या सभी समान रुप से महत्वपूर्ण है? दूसरे और तीसरी पीढ़ी के अधिकारों को भी अधिकार
'से
अधिकारों की प्रकृ ति के लिए और उसकी पीढ़ियों के मामले में प्रमुख बहस क्या है यह हमें
अधिकारों के बारे में अपनी चुनौती देने के एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।
जैसे कि आगे के कु छ भागों में मानव अधिकारों के आवेदन में शामिल वास्तविक दुनिया की
32 | P a g e
"स्टार्क , इन्टरनेशनल लॉ, पृ. 365.
"देश बन्धु एवं वीणा भारद्वाज, इकोलॉजी ऐण्ड डेवलपमेट, इण्डिया इनवायर्मेण्ट सोसायटी 1979,
पृ. 10.
33 | P a g e
संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत् विकास के लक्ष्यों पर सहमति
सतत् विकास की अवधारणा का प्रारम्भ वर्ष 1962 में वैज्ञानिक रॉकल कारसन की
पुस्तक 'दी साइबेंट स्प्रिंग' तथा वर्ष 1968 में जीव विज्ञानी पॉल इरलिच की पुस्तक
पॉपुलेशन बम से हुआ है। लेकिन इस शब्द का वास्तविक अर्थ विकास वर्ष 1987 में ब्रुटलैंड
आयोग की रिपोर्ट हमारा साझा भविष्य के प्रकाशन के साथ हुआ। सतत् विकास संसाधनों का
4 अगस्त 2015 को संयुक्त राष्ट्र म महत्वाकांक्षी सतत् विकास का लक्ष्य प्रस्तुत किया गया,
जिसमें सतत् विकास एवं युवारोजगार पर विशेष बल दिया गया है सतत् विकास लक्ष्य को
2016 से 2030 तक के लिए लक्ष्यित किया गया है पहले से लागू सहस्राब्दि विकास लक्ष्य का
स्थान लेगा। 04 अगस्त 2015 को सतत् विकास लक्ष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की 193 सदस्यीय
महासभा ने सहमति बताते हुए कहा कि आगामी 25-27 सितम्बर 2015 को संयुक्त राष्ट्र
महासभा की होने वाली उच्चस्तरीय पूर्व बैठक में इसे स्वीकार किया जायेगा। सतत् विकास
लक्ष्य में 17 मुख्य विकास लक्ष्यों तथा 169 सहायक लक्ष्यों को निर्धारित करते हुए पी-5 पर
विशेष बल दिया गया है। 25-27 सितम्बर 2015 को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय
में आयोजित शिखर बैठक में पूर्व निर्धारित घोषणा के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193
• 25-27 सितम्बर 2015 को संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास सम्मेलन न्यूयॉर्क में आयोजित
किया गया जिस में 150 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लेते हुए एजेण्डा-2030 को
34 | P a g e
औपचारिक तौर पर अंगीकृ त कर लिया।
35 | P a g e
सतत् विकास लक्ष्य को नाम दिया गया है हमारी दुनिया का रुपान्तरणः सतत् विकास
•सतत् विकास लक्ष्य को वर्ष 2016-30 तक के लिए लक्ष्यित किया गया है।
•संयुक्त राष्ट्र का एजेण्डा 2030 सुनिश्चित करने वाला तथा भावी पीढ़ियों को स्वस्थ्य
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 70 वें सत्र के अध्यक्ष मोगेरु लाइके टॉफ के अनुसार एजेण्डा-2030
दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं-गरीबी तथा असमानता के उन्मूलन एवं पृथ्वी ग्रह के
लिए हितकर
सभी उम्र के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ्य जीवन को बढ़ावा देना।
करना।
• वर्ष 2030 तक नवजात तथा 5 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चों की मृत्यु रोकना जिन्हें
वर्ष 2030 तक नवजात बच्चों की मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्म पर 12 तक करना
36 | P a g e
•सभी के लिए सतत समावेशी, सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा
शहरों एवं मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित एवं सहनशीलता तथा सतत् बनाना।
सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले परिस्थितिकीय प्रणालियों सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण
सभी स्तरों पर इन्हें प्रणाली, जवाबदेही बनाना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो
सकें ।
37 | P a g e
सतत् विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्त कार्यान्वयन के
• सतत विकास लक्ष्य में 'सहस्राब्दि विकास लक्ष्य के 8 बिन्दुओं को भी शामिल किया
गया है।
प्रत्येक साल विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक विषय का चयन किया जाता है जिसके
अनुरूप ही सभी सभी देशों में कार्यक्रम आयोजितक किए जाते है विश्व पर्यावरण दिवस 2019
का थीम 'वायु प्रदूषण' है इस दिवस का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरुक
38 | P a g e
दिवस 2018 की थीम बीट प्लास्टिक पोल्यूशन रखी है। यानि प्लास्टि से होने वाले प्रदूषण को
कै से खत्म किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि थाइलैण्ड प्लास्टिक बैग का दुनिया के सबसे
बड़े
उपभोक्ताओं में से एक है और हर साल देश में बड़ी संख्या में समुद्री जीव मारे जाते है।
पर्यावरण
पर लापरवाही का मामला यही नहीं खत्म होता है भले ही आज भारत 2018 का पर्यावरण
दिवस को होस्ट कर रहा है, लेकिन पूरा देश वायु प्रदूषण, और पीने के पानी की कमी से जूझ
रहा है। और यह कहने में जरा भी शर्मिंदंगी नहीं होनी चाहिए कि भले ही हम अच्छे होस्ट हो
और अतिथि की उपमा देव से करते हो लेकिन पर्यावरण देव की चिन्ता हमें नहीं है। 15
विश्व पर्यावरण सम्मेलन राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण द्वारा 25 मार्च 2017 को नई दिल्ली
है। महात्मा गाँधी ने कहा था कि "पृथ्वी प्रत्येक व्यक्ति की जरुरतें पूरी करने के लिए
पर्यावरण
को स्वच्छ रखना होगा, ताकि स्वस्थ्य जीवन वर्षों के सन्दर्भ में दूषित पर्यावरण का वैश्विक
बोझ
दूषित पर्यावरण से होने वाली बीमारियों का बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है जिनकी मृत् पेंचिस,
39 | P a g e
भारत के इस प्रमुख पर्यावरण नियन्त्रण संगठन राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण ने वैश्विक
संयुक्त राष्ट्र का 22 वां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-2016 मोरक्कों के शहर “माराके श” में 7
समझौता है। ये समझौता 4 नवम्बर 2016 से लागू हुआ। 1 वर्ष 2018 से सभी पक्ष पेरिस
समझौते में निर्धारित लक्ष्यों की प्रगति का प्रयास किया गया है। और 21 वीं सदी के औसत
तापमान में औद्योगिकरण के पूर्व के वैश्विक तापमान के स्तर में 2 डिग्री सेंटीग्रेड (20 से) से
अधिक वृद्धि न होकर 15 से तक सीमित रखा जायेगा। जलवायु कार्यवाही के ही लेखांकन हेतु
एक पादर्शी वैश्विक सर्वेक्षण प्रणाली के विकास की वर्ष 2023 तक हर 5 वर्ष में समीक्षा होगी।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन फ्रांस की राजधानी पेरिस में 30 नवम्बर 2015 के
दौरान
आयोजित किया गया, इस सम्मेलन में तापमान, तूफान, बाढ़, सूखा एवं पर्यावरण को प्रदूषित
40 | P a g e
करने वाली समस्याओं पर ध्यान दिया गया।
देश
चीन
यूरोपियन यूनियन
41 | P a g e
भारत
रुस
आधार वर्ष
2005
2005
1990
2005
1990
2013
+ Shif
2030
2030
2030
2030
2030
42
2030
End
42 | P a g e
60-65%
26-28%
40%
33-35%
25-30%
जापान
कनाडा
2005
2030
प्रस्ताव रखा गया है। 19 जिससे संसार की धरती की तपन एवं पर्यावरण स्वच्छ किया जा
सकें ।
भारत में इस वर्ष पेरिस में होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले जलवायु पर अपने रोडमैप की
घोषणाकर दी थी। के न्द्र सरकार ने फै सला लिया है कि 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता
में
33 प्रतिशत तक कटौती करेगी। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलनल पेरु की राजधानी सीमा में 14
दिसम्बर 2014 को सम्पन्न हुआ था। भारत संहित 190 राज्य इसके भागीदार बने, इसका लक्ष्य
पूर्व औद्योगिक स्वरों में इस शताब्दी के अन्त तक वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि को 2
डिग्री
सैटीग्रेट से कम पर सीमित करने और हरित गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के उद्देश्य से
2020
43 | P a g e
समुद्री पर्यावरण पर मनीला सम्मेलन-2012
26%
समुन्द्री पर्यावरण के संरक्षण एवं स्थल आधारित कार्यों पर होने वाले प्रदूषण को रोकने के
लिए फिलीपींस की राजधानी मनीला में 27 जनवरी 2012 को समुद्री पर्यावरण संरक्षण हेतु
वैश्विक सम्मेलन सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य "वर्तमान एवं भविष्य में समुद्री
पर्यावरण समाधान के प्रबन्धन एवं विकास सम्बन्धी चुनौतियों से निपटने हेतु समाधान ढूँढना
था।
End
स्टॉक सम्मेलन की 20 वीं वर्षगांठ बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने ब्राजील की राजधानी
रियो डी जेनरों में 1992 में पर्यावरण और विकास सम्मेलन आयोजित किया। इसे 'अर्थ
सम्मिट' या प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है। इसमें सम्मिलित देशों ने टिकाऊ
विकास के लिए व्यापक कार्यवाई योजना एजेंडा 21 स्वीकृ त किया। इस सम्मेलन में सहमति के
44 | P a g e
महत्वपूर्ण बिन्दु निम्न थे-
एक देश किसी भी दूसरे देश को प्राकृ तिक दुर्घटना या आपातकालीन स्थितियों की सूचना
तुरन्त
देगा।
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सभी लोगों के लिए सतत् विकास और जीवन की उच्च गुणवत्ता की प्राप्ति के लिए।
शिखर सम्मेलन कई अर्थों में असफल साबित हुआ, क्योंकि विकास के नाम विकसित देश
45 | P a g e
उल्लेखनीय है कि रियो डी जेनेरियो में यह निर्धारित किया गया कि सदस्य राष्ट्र प्रत्येक
वर्ष एक सम्मेलन में एकत्रित होगें तथा जलवायु सम्बन्धित चिन्ताओं और कार्य योजनाओं पर
चर्चा करेंगे। इस सम्मेलन को फ्रांसिस ऑफ पार्टीज (कोप) की संज्ञा प्रदान की गई। वर्ष 1995 में
पहला कोप सम्मेलन बर्लिन (जर्मनी) में आयोजित किया जा चुका है। कोष शका आयोजन वर्ष
2015 में फ्रांस के प्ले बुरंगे नामक स्थान पर 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर तक, कोप-22 का
नवम्बर 2017 के मध्य जर्मनी के बॉन शहर में आयोजित किया गया है। दयातव्य है कि कोप-
24
का आयोजन उसे 14 दिसम्बर, 2018 के मध्य पोलैण्ड के कटोबिस शहर में प्रस्तावित है।
यह सम्मेलन परिस्थितिकी की संरक्षण व सन्तुलन हेतु वैश्विक एवं तत्काल कार्यवाही हेतु
आयोजित किया जाता है। इस सम्मेलन में यह संकल्प जोड़ा गया कि पर्यावरणीय समस्याओं
जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत क्षरण, सागर प्रदूषण, भू-संसाधन, नष्टीकरण, सूखा,
आवश्यकता होगी-
46 | P a g e
आवश्यकता है।
2. पर्यावरण संरक्षण में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाना चाहिए।
1988 में टोरण्टो (कनाडा) में आयोजित पर्यावरणीय सम्मेलन में एक प्रस्ताव पारित कर
सभी देशों से कहा गया कि वे वर्ष 2005 तक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में स्वेच्छा से
बीस
प्रतिशत कटौती करके ताकि ग्रीनहाउस प्रभाव को कम किया जा सके । इस सम्मेलन के प्रस्ताव
22 डॉ. जय जय राम उपाध्याय (पर्यावरण विधि), संस्करण 2016-17, पेज नं. 326
47 | P a g e
को विकसित देशों ने गम्भीरता से नहीं लिया, क्योंकि विश्व में किये जाने वाले सकल खनिज
तेल
के 50 प्रतिशत भाग का उपयोग औद्योगिक स्तर पर विकसित देशों में किया जाता है और
खनिज
तेल के उपयोग से निकलने वाली गैसे ग्रीन हाउस के प्रभाव को बढ़ाती है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 को
स्टॉक होम में पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। इस प्रकार यह वह सम्मेलन था
सम्मेलन था। और इस सम्मेलन में 119 देश शामिल हुए थे और इस सम्मेलन में सभी देशों
न
एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को स्वीकार किया, सम्मेलन में पर्यावरण से होने वाले खतरों व
औद्योगीकरण से होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर चिन्ता जाहिर की गई। विकसित देशों ने
उत्सर्जित
प्रदूषणकारी जैसे पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की थी तथा पर्यावरण सुरक्षा पर स्टॉक होम घोषणा
पत्र जारी किया गया। जिसे विश्व पर्यावरण दिवस का “मैग्राकाटा" कहा जाता है। इस घोषणा
पत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि पर्यावरण संरक्षण पर जोर दे ताकि प्राकृ तिक
परिस्थितिकी तन्त्र को वर्तमान समय और भावी पीड़ितों के लिए संरक्षित रखा जाये। इस
48 | P a g e
हेल सिल्वी सम्मेलन- 1974
सन्
में वाल्टिक सागर क्षेत्र में समुद्री पर्यावरण की रक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में पर्यावरण के सभी श्रोतों पर विचार किया गया और
* विकिपीडिया.
46
49 | P a g e
End
संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम द्वारा जारी बढ़ते पर्यावरण अपराध के द्वारा कमजोर कानून रक्षा
विभाग के हालात के कारण पर्यावरणीय अपराध को बढ़ावा मिलता है। जिसमें ईंधन की कमी,
परिस्थितियों तंत्र प्राणी वन्य जीव आदि शामिल है जो विलुप्त होते जा रहे है। 24
भारत में पर्यावरण संरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। हडप्पा संस्कृ ति पर्यावरण में
ओत-प्रोत थी, तो वैदिक संस्कृ ति पर्यावरण संरक्षण हेतु पर्याय बनी रही। भारतीय मनीषियों ने
समूची प्रकृ ति ही क्या, सभी प्राकृ तिक शक्तियों को देवता, स्वरुप माना ऊर्जा के स्त्रोत सूर्य को
देवता माना तथा उसको “सर्य दैवो भवः” कहकर पुकारा। भारतीय संस्कृ ति में जल को भी
देवता स्वरुप माना गया है। सरिताओं के किनारे उपर्जी और पनपी। भारतीय संस्कृ ति में के ला,
पीपल, तुलसी, बरगद, आम आदि पेड़-पौधों की पूजा की जाती रही है। मध्यकालीन एवं
मुगलकालीन भारत में भी पर्यावरण प्रेम बना रहा। अंग्रेजों ने भारत में अपने आर्थिक लाभ के
कारण पर्यावरण को नष्ट करने का कार्य प्रारम्भ किया। विनाशकारी दोहन नीति के कारण
परिस्थितिकीय असंतुलन भारतीय पर्यावरण में ब्रिटिश काल में ही दिखने लगा था। स्वतन्त्रता
के बाद भारत के लोगों में पश्चिमी प्रभाव, औद्योगिकरण तथा जनसंख्या विस्फोट के परिणाम
-स्वरुप तृष्णा जाग गई जिसमें देश में विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को जन्म दिया। 25
भारत वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। जहाँ पर जनता के द्वारा, जनता पर
जनता के लिए शासन किया जाता है, और जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न विधि
बना
कर की जाती है। पर्यावरण विधि अन्य विधियों में प्रतिपादित सिद्धान्तों, संकल्पनाओं, मानों
50 | P a g e
पर्यावरण विधि का सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध प्रशासनिक विधि से है। उसके अतिरिक्त सांसद ने
समय-समय पर अनेक अधिनियम पारित किये है। और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार सभी
मनुष्य का मौलिक अधिकार है। सरकार ने इस अधिकार तक सभी की पहुँच सुनिश्चित करने
के
लिए विधि बनायी है। और विभिन्न योजनाओं को संचालित किया है जिसका विवरण निम
संविधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान जिसे 1950 में लागू किया गया था परन्तु सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण के
• प्रावधानों से नहीं जुड़ा था। सन् 1972 के स्कॉटहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान
51 | P a g e
पर्यावरण संरक्षण की ओर खिंचा। सरकार ने 1976 में संविधान में संशोधन कर दो महत्वपूर्ण
अनुच्छे द 48(ए) तथा 51 ए(जी) जोड़े। अनुच्छे द 48(ए) राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह
पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार सुनिश्चित करें, तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की
रक्षा
करें अनुच्छे द 51 ए(जी) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे प्राकृ तिक पर्यावरण की
रक्षा करें तथा उसका संवर्धन करें और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहें। स्वतन्त्रता के
पश्चात
बढ़ते औद्योगिकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता में निरन्तर
कमी
आती गई। पर्यावरण की गुणवत्ता की इस कमी में प्रभावी नियन्त्रण व प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में
सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए। इनमें से अधिकांश का मुख्य आधार
*पी. एस. नेमी, पास्थिरभिकीय विकास एवं पर्यावरण भूगोल (1994-95) पृ. 190.
"पर्यावरण एवं पर्यावरणीय संरक्षण विधि की रूपरेखा (डॉ अनिरुद्ध प्रसाद) नमम् संस्करण पू. सं.
234.
52 | P a g e
जल उपकर (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1977
Shift
53 | P a g e
इण्डस्ट्रीज (डेवलपमेंट एण्ड रेगुलेशन) अधिनियम, 1951
भारत में पर्यावरण सम्बन्धित उपरोक्त कानूनों का निर्माण उस समय किया गया था। जब
पर्यावरण प्रदूषण देश में इतना व्यापक नहीं था। अतः इनमें से अधिकांश कानून अपनी
उपयोगिता खो चुके है। परन्तु कु छ अभी भी पर्यावरण संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे
निरन्तकर बढ़ते जल प्रदूषण के प्रति सरकार का ध्यान 1960 के दशक में गया और वर्ष
1963 में गठित समिति ने जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए एक के न्द्रीय कानून
बनाने
की सिफारिश की। वर्ष 1969 में के न्द्र सरकार द्वारा एक विधेयक तैयार किया गया जिसे संसद
में
पेश करने से पहले इसके उद्देश्यों व कारणों को सरकार द्वारा इस प्रकार बताया गया, “उद्योगों
54 | P a g e
की वृद्धि तथा शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के फलस्वरुप हाल में वर्षों में नदी तथा दरियाओं
के
प्रदूषण की समस्या काफी आवश्यक व महत्वपूर्ण बन गयी है। अतः यह आश्वस्त किया जाना
आवश्यक हो गया है कि घरेलु तथा औद्योगिक बहिस्स्राव उस जल में नहीं मिलने दिया जाये
जो
पीने के पानी के स्त्रोत, कृ षि उपयोग तथा मत्स्य जीवन के पोषण के योग्य हो, नदी व
दरियाओं
निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1974 कहलाया। यह अधिनियम 26 मार्च 1974 से पूरे देश
में लागू माना गया। यह अधिनियम भारतीय पर्यावरण विधि के क्षेत्र म थम व्यापक प्रयास है।
उपाय करके स्वच्छ जल आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें । इन कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति
जानबूझकर जहरीले अथवा प्रदूषण फै लाने वाले तत्वों को पानी में प्रवेश करने देता है, जो कि
निर्धारित दंड दिया जायेगा। इस कानून में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारों को समुचित
55 | P a g e
जल प्रदूषण को रोकने की दिशा में यह कानून सरकार द्वारा उठाया गया महत्वपूर्ण कदम था।
महत्वपूर्ण कानून है जिसे राष्ट्रपति ने दिसम्बर, 1977 को मंजूरी प्रदान की। 28 जहाँ
अधिकार देता है वही जल प्रदूषित करने पर दंड का प्रावधान भी करता है। यह अधिनियम
कें द्रीय तथा राज्य प्रदूषण करने पर दंड का प्रावधान भी करता है।
56 | P a g e
किसी भी जल में छोड़े जाने वाले तरल कचरे के नमूने लेने का अधिकार-
औद्योगिक तरल कचरा तथा सीचेज के तरीकों के लिए बोर्ड से सहमति ले, बोर्ड किसी
भी औद्योगिक इकाई को बन्द करने के लिए कह सकता है। वह दोषी इकाई को पानी का
बिजली
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 स्टॉकहोम सम्मेलन विनिश्चयों को लागू करने हेतु
पर्यावरण संरक्षण हेतु सरकार एवं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है।
अधिनियम के उद्देश्य -
विद्यमान विधियों के अधीन विभिन्न अधिकरणों के क्रिया कलापों के बीच समन्वय करना
तथा
57 | P a g e
को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त है-
शक्तियाँ जो के न्द्र को प्राप्त है- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अध्ययन में के न्द्र सरकार
• के न्द्र सरकार की पर्यावरण संरक्षण एवं उसमें सुधार हेतु उपाय करने की शक्ति धारा (3)।
पर्यावरण'
आपराधिक अज्ञाप्ति लागू करते है, धारा-15 सामान्य दण्ड का प्रावधान करती है। जो सभी
58 | P a g e
पर समान रूप से लागू है। धारा-16 कम्पनी से सम्बन्धित प्रावधान करती है। धारा-17
अनुच्छे दत-14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को व धि की समानता, और
विधि के समान संरक्षण में, प्रत्येक व्यक्ति को समान स्वच्छ पर्यावरण का समान अधिकार
प्रदान
अनुच्छे द 21 के अनुसार भारतीय संविधान के अनुच्छे द-21 के तहत किसी व्यक्ति को उसके
प्राण या दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के द्वारा ही वंचित किया जा सकता
है.
बताया कि प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता के साथ स्वच्छ पर्यावरण और पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध
संरक्षण का अधिकार जीवन के अधिकार स्वच्छ पानी का अधिकार, शुद्ध वायु का अधिकार,
• अनुच्छे द 48-(ए) के अनुसार राज्य, देश में पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्धन का एवं वन तथा
वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। राज्य के नीति निदेशक तत्व समान्यता जन
कल्याण
59 | P a g e
* भारत का संविधान (1950), विधि एवं न्याय मंत्रालय, नई दिल्ली पेज नं. 5
3" डॉ. जय जय राम उपाध्याय (पर्यावरण विधि, संस्करण 2016-17 पेज नं. 46
अनुच्छे द 51-ए (जी) के अनुसार- "प्राकृ तिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी, वन्य
जीव की रक्षा करें और उसका संवर्धन करें और प्राणी मात्र के लिए दयाभाव रखें।"(20)32 यह
भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण के संरक्षण एवं संवर्धन में भाग लें
अनुच्छे द 246 के अनुसार पर्यावरण की दृष्टि से विधायी शक्तियों को संघ और राज्यों के बीच
विभाजित किया गया है कि संविधानिक योजनाओं के अधीन विधायी शक्तियों को संघ एवं
राज्यों के बीच विभाजित किया गया है। संविधानिक योजनाओं के अधीन विधायी शक्तियों की
60 | P a g e
तीन सूचियां निर्मित की गई है। 33
उद्योग-प्रविष्टि 52,
"42 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 की धारा 10 द्वारा अन्तः स्थापित
61 | P a g e
जल-प्रविष्टि 17
समवर्ती सूची- संसद और विधान मण्डल दोनों विधि बनाने में सक्षम-
वन-प्रविष्टि 17(क)
मानवों, जीव-जन्तुओं या पौधों पर प्रभाव डालने संक्रामक या सांसर्गिक रोगों अथवा जीवों के
सातवीं अनुसूची- 7 वीं अनुसूची में के न्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया
है।
जिसमें संघ सूची में 100 विषय राज्य सूची म (61 विषय) एवं समवर्ती सूची में
बांटा गया है। संघ सूची पर विधि बनाने की शक्ति के न्द्र सरकार (संसद) की है
और संघ सूची
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की प्रवृष्टि संख्या 56 के अनुसार अन्तर्राज्यीय नदियों और नदी दूनों का विनियमन और
विकास
सूची की प्रवष्टि संख्या-6 द्वारा लोक स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण पर राज्य सरकार विधि
बना
सकती है 134
ग्याहरवी अनुसूची- मूल्य संविधान में 12 अनुसूचियों का प्रावधान किया गया था। लेकिन
वर्तमान समय में 12 अनुसूचियाँ है। संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची को 73 वे संविधान संशोधन
' अधिनियम 1992 की धारा-4 के तहत जोड़ा गया है। जिसका लक्ष्य पंचायती राज्य व्यवस्था की
स्थापना करना है। जो त्रिस्तरीय व्यवस्था है, इस व्यवस्था में ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत, तथा
● भारत का संविधान (1950 भारत सरकार विधि एवं न्याय मंत्रालय नई दिल्ली
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जिला पंचायत शामिल है और यह पंचायतें 29 विषय पर कार्य करती है। जिसमें ग्रामीण
बाहरवीं अनुसूची-संविधान के 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा संविधान में
"भारत का संविधान, विधि संविधान न्याय मंत्रालय, नई दिल्ली, पेज नं. 217
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भाग-9 (ए) जोड़ा गया जिसे नगरपालिका नाम दिया है। और इसमें 18 विषयों का उल्लेख किया
* गया है। इन विषयों जिसमें सामाजिक संरक्षण एवं सार्वजनिक सुख-सुविधाओं आदि का भी
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इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों के तहत होते हुए संसद को किसी अन्य देश के साथ की
गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संगम, या अन्य
निकाय में किये गये किसी विनिश्चित के कार्यान्वयन के लिए भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र या उसके
• अनुच्छे द-253 और संघ सूची की प्रविष्टि -13 और 14 के अनुसरण में अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में
कोई विधि जिसमें पर्यावरण विधि शामिल है पारित कर सकती है। और इसको इस आधार पर
न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है कि संसद के पास विधायी क्षमता का अभाव था।
और
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संसद ने इन शक्ति का प्रयोग वायु प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण) अधिनियम, 1981 और
अनुच्छे द 262
संविधिक प्रावधान
भारत में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या गम्भीर रुप धारण किये हुए है। इसके निवारण एवं
नियन्त्रण हेतु विभिन्न विधिक प्रावधान किये गये है और संशय ने समयन्सम पर अधिनियम
पारित किये है। और पर्यावरण प्रदूषण को एक दण्डनीय अपराध बनाया गया है। इसी प्रकार
अपकृ त विधि, में कठोर दायित्व का सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है। इसी प्रकार अपकृ त
विधि, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 पुलिस अधिनियम, 1861, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
आपराधिक दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 आदि में पर्यावरण
प्रदूषण के निवारण एवं नियन्त्रण हेतु जो प्रावधान किये गये है जो निम्नलिखित है.
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अपकृ त्य विधि
आधुनिक पर्यावरण विधि की जड़ उपताप सम्बन्धी कॉमन लॉ में पायी जाती है। भारत में
कॉमन लॉ में अपकृ त्य के लिए प्रदूषण के विरुद्ध उपचार प्राप्त है। इसका आधार न्याय, साम्या
और शुद्ध अन्तः करण है अतः अपकृ त्य विधि भारतीय परिवेश के अनुकू ल है तथा न्यायालयों
द्वारा स्वीकार्य है उपताप अतिचार, उपेक्षा और कठोर दायित्व भारत में लागू है। और इन
अपकृ त्यों के लिए सिविल उपचार (नुकसानी) एवं (व्यादेश प्राप्त है। 37
यदि कोई व्यक्ति अपने प्रयोजन के लिए अपनी भूमि पर कोई खतरनाक वस्तुओं को
लाता है रखता है या एकत्रित करता है तो उसके पलायन करने पर यदि दूसरे व्यक्तियों को
• नहीं करता है तो उस व्यक्ति पर कठोर दायित्व का सिद्धान्त लागू होगा। जिसे रायलैण्ड
बनाम
पूर्ण दायित्व के नियम का प्रतिपादन उच्चतम न्यायालय द्वारा एम.सी. मेहता बनाम भारत
संघ
* 38 के मामले में किया गया है। इसे पूर्ण दायित्व का नियम इस कारण कहा जाता है कि
इसके
अन्तर्गत किसी दोष के बिना भी दायित्व उत्पन्न होता है और इसके नियम के कोई अपवाद
नहीं है।
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जैसा रायलैण्ड्स बनाम फ्लेचर के कठोर दायित्व के नियम के है। एम.सी. मेहता के मामले में
रिसाव से अनेक व्यक्तियों पर बड़ा हानिकारक प्रभाव पड़ा तथा एक वकील की मृत्यु भी हो
गयी।
लोकहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की विनिश्चित करने के समय न्यायालय के
विचार
में यह बात भी थी। कि इस दिल्ली गैस के रिसाव की दुर्घटना से ठीक एक वर्ष पूर्व भोपाल में
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यूनियन कार्बाइड के उद्योग से जहरीली गैसों के रिसने से कम से कम 4000 व्यक्तियों की
मृत्यु हो
गई थी और लाखों लोग विभिन्न प्रकार गम्भीर रोगों से ग्रस्त हो गये थे। न्यायालय के विचार
में
यह बात भी थी कि ऐसी दुर्घटना में गैस के पीड़ितों को रायलैण्ड्स बनाम फ्लेचर में निरुपित
किये गये कठोर दायित्व के नियम के अधीन प्रायः कोई राहत दिये जाने की सम्भावना नहीं
ती
गैस का रिसाव किसी अन्य व्यक्ति द्वारा तोड़-फोड़ से हुआ हो, तो इस नियम के अधीन
उद्योग
उक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक नया नियम पूर्णदायित्व
का
नियम प्रतिपादित किया और रायलैण्ड्स बनाम फ्लेचर इग्लैण्ड 1668 में अधिकथित किए गए
कठोर दायित्व के सिद्धान्त को भारत में अमान्य ठहराया। इस नियम के अनुसार यदि कोई
उद्योग किसी ऐसे खतरनाक और स्वभाव संकटपूर्ण व्यवसाय में कार्यरत् है जिससे लोगों के
से किसी को क्षति होती है तो वह उद्योग उस क्षति की क्षतिपूर्ती के लिए पूर्णतया दायी होगा
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प्रतिकर प्रदान कर सकता है इसलिए उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि गैस पीड़ित
व्यक्तियों की ओर से प्रतिकर प्राप्त करने के लिए सम्बन्धित न्यायालय में वाद लाया जाए।
भारत में पर्यावरण संरक्षण का इतिहास एक शतक से अधिक पुराना है भारतीय दण्ड
संहिता- 1860 के अध्याय 14 के अन्तर्गत धारा 268 प्रथम बार लोक उपताप को परिभाषित
करती है। और उनकी शक्तियों को भी अधिकथित किया गया है। और धारा 278 में वायु
मण्डल
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को स्वेच्छता इस प्रकार दूषित करेगा जिससे जन साधारण के स्वास्थ्य के लिए, जो पड़ोस में
निवास या कारोबार करते है स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तो वह व्यक्ति 500 रुपये तक के
पुलिस अधिनियम की धारा 32 के अनुसार कोई व्यक्ति शहर के किसी मार्गों पर खुले
व यात्रियों को क्षोम, असुविधा, बाधा जोखिम, संकट पैदा करेगा, वह 50 रुपये में जुर्माना से
व्यक्तियों द्वारा महाधिवक्ता की लिखित सम्पत्ति प्राप्त करके घोषणा और न्यादेश या ऐसे
अन्य
अनुतोष के लिए वाद संस्थित किया जा सकता है। और लोक उपताप के मामले में, व्यादेश
" डॉ. जय जय राम उपाध्याय (पर्यावरण विधि), संस्करण 2016-17 पेज नं. 32
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सामान्य उपचार है इस प्रकार वायु या ध्वनि प्रदूषण या लोक न्यूसेंस करने वाले व्यक्ति
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबन्धों का सहारा लगभग सभी प्रकार के प्रदूषण के
निवारण के लिए लिया जा सकता है, और धारा 133 से 143 तक का जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण
कारित करने वाले लोक न्यूसेंस का निवारण और नियन्त्रण करने के लिए सबसे प्रभावी और
शीघ्र
हमारा भारतीय नाभिकीय उद्योग परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 द्वारा संस्थापित हुआ है।
नाभिकीय दुर्घटना को लेकर नहीं थी। इसके अतिरिक्त अन्य कोई कानून भी नहीं था। इसलिए
नाभिकीय दुर्घटना अथवा घटना के परिणाम स्वरुप उससे नाभिकीय क्षति उठाने वाले पीढ़ित
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व्यक्ति की क्षतिपूर्ति हेतु नाभिकीय दायित्व के लिए इस अधिनियम की आवश्यकता पड़ी।
भारत
में नाभिकीय उद्योग का विकास हो रहा है और इसके लिए विशेष तौर पर कदम उठाये गये है
* और ऐसी आशा है कि देश मिश्रित ऊर्जा का विशेष भाग बनेगा। हालांकि नाभिकीय उद्योग
का
ढाँचा बनाते समय और उसका निर्माण करते समय पूरी देखभाल और सुरक्षा बनाते समय और
उसका निर्माण करते समय पूरी देखभाल और सुरक्षा रखी जाती है। लेकिन फिर भी नाभिकीय
दुर्घटना होने से व्यक्तिगत सम्पत्ति एवं वातावरण को बढ़े पैमाने पर नुकसान होने की
सम्भावना
को नकारा न हीं जा सकता इसका प्रभाव सीमाओं से बाहर भी हो सकता है अतः यह जरुरी
भी
है पीड़ितों को तृतीय पक्षकार के अनुरूप मुआवजा दिया जाये। भारत में 4 मई, 1987 से 22
" डॉ. जय जय राम उपाध्याय (पर्यावरण विधि), संस्करण 2016-17 पेज नं. 32
" डॉ जय जय राम उपाध्या (पर्यावरण विधि), संस्करण 2016-17 पेज नं. 105
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अब यदि बहुत बुरी नाभिकीय दुर्घटनाओं की बात की जाये तो विश्व में 1986 को यूक्रे न में
घटित
चैर नोबिल आपदा और मार्च 2011 में जापान के फु कु शिमा में घटित होने वाली न भिकीय
दुर्घटना विश्व की सबसे बड़ी नाभिकीय दुर्घटनाएँ है। इन नाभिकीय दुर्घटनाओं को स्तर 7
अर्थात्
सबसे बड़ी दुर्घटना घोषित किया गया इन दुर्घटनाओं में होने वाली क्षति का सही मूल्याकन
पर्यावरण और विकास के मुद्दों ने भारत में पर्यावरण प्रबन्ध की बात 1972 में जोर
पकड़ा। जब माननीय पर्यावरण पर स्टॉकहोम संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। भारत में पीताम्बर
पंत
तैयार करने को कहा गया। समिति ने पर्यावरण सम्बन्धी योजनाओं और कार्यक्रमों में अधिक
सुव्यवस्थित विकास के लिए पर्यावरण योजनाएं एवं कार्यक्रम का आयोजन आवश्यक होता है।
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यह सरकार का दायित्व है कि वह जल, भूमि, वायु और वन्य जीवों की उत्पाद क्षमता इस तरह
संरक्षित रखे कि भावी लोगों द्वारा स्वास्थ्य पर्यावरण निर्माण में विकल्प मिल सकें । क्योंकि
• पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित वर्तमान समय में सरकारी योजनाओं का संचाललन स्वास्थ्य
पर्यावरण के लिए किया जा रहा है और इन नीतियों एवं कार्यक्रम में स्वच्छ भारत मिशन ग्रीन
इण्डिया मिशन, स्मार्ट सिटी, हरित राजमार्ग नीति, गंगा सफाई अभियान, नमामि गंगे, राष्ट्रीय
है। म
शहरी स्वास्थ्य मिशन, आदि कार्यक्रम और योजनाओं का संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा
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अब यदि बहुत बुरी नाभिकीय दुर्घटनाओं की बात की जाये तो विश्व में 1986 को यूक्रे न में
घटित
चैर नोबिल आपदा और मार्च 2011 में जापान के फु कु शिमा में घटित होने वाली न भिकीय
दुर्घटना विश्व की सबसे बड़ी नाभिकीय दुर्घटनाएँ है। इन नाभिकीय दुर्घटनाओं को स्तर 7
अर्थात्
सबसे बड़ी दुर्घटना घोषित किया गया इन दुर्घटनाओं में होने वाली क्षति का सही मूल्याकन
पर्यावरण और विकास के मुद्दों ने भारत में पर्यावरण प्रबन्ध की बात 1972 में जोर
पकड़ा। जब माननीय पर्यावरण पर स्टॉकहोम संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। भारत में पीताम्बर
पंत
तैयार करने को कहा गया। समिति ने पर्यावरण सम्बन्धी योजनाओं और कार्यक्रमों में अधिक
सुव्यवस्थित विकास के लिए पर्यावरण योजनाएं एवं कार्यक्रम का आयोजन आवश्यक होता है।
यह सरकार का दायित्व है कि वह जल, भूमि, वायु और वन्य जीवों की उत्पाद क्षमता इस तरह
संरक्षित रखे कि भावी लोगों द्वारा स्वास्थ्य पर्यावरण निर्माण में विकल्प मिल सकें । क्योंकि
• पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित वर्तमान समय में सरकारी योजनाओं का संचाललन स्वास्थ्य
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पर्यावरण के लिए किया जा रहा है और इन नीतियों एवं कार्यक्रम में स्वच्छ भारत मिशन ग्रीन
इण्डिया मिशन, स्मार्ट सिटी, हरित राजमार्ग नीति, गंगा सफाई अभियान, नमामि गंगे, राष्ट्रीय
है। म
शहरी स्वास्थ्य मिशन, आदि कार्यक्रम और योजनाओं का संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा
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