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पर्यावरण संरक्षण अधिनयम

1986
प्रस्तावना(Introduction)
मानव पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं पेड़-पौधे और सम्‍पत्ति का
छोड़कर मानव जाति को आपदा से बचाने के लिए ईपीए पारित किया गया,
यह के न्‍द्र सरकार का पर्यावरणीय गुणवत्ता की रक्षा करने और सुधारने, सभी
स्रोतों से प्रदूषण नियंत्रण का नियंत्रण और कम करने और पर्यावरणीय आधार
पर किसी औद्योगिक सुविधा की स्‍थापना करना/संचालन करना निषेध या
प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य
वातावरण में द्यातक रसायनों की अधिकता को नियंत्रित करना व
पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषण मुक्त रखने का प्रयत्न करना है। इस अधिनियम
में 26 धाराएं है जिन्हें 4 अध्यायों में बाँटा गया है।
स्थापना(Installation)
पर्यावरण संरक्षण अधिनयम 1986, 19 नवम्बर 1986
को पूरे देश में यह पारित किया गया ।

संयुक्त राष्ट्र का प्रथम मानव पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, 1972 में


स्टाकहोम(स्वीडेन) में संपन्न हुआ। इसी से प्रभावित होकर भारत ने
पर्यावरण के संरक्षण लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पास
किया। यह एक विशाल अधिनियम है जो पर्यावरण के समस्त विषयों केा
ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वातावरण
में द्यातक रसायनों की अधिकता को नियंत्रित करना व पारिस्थितिकी तंत्र
को प्रदूषण मुक्त रखने का प्रयत्न करना है। इस अधिनियम में 26 धाराएं है
जिन्हें 4 अध्यायों में बाँटा गया है।
इस अधिनियम को 1986 में लागू करने का विशेष महत्व

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 2 दिसम्बर सन् 1984 को
एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी
के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कं पनी के
कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक
लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर
अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट
(मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिससे प्रभावित होकर भारत
सरकार ने 2 वर्ष बाद 19 नवम्बर 1986 को यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
पारित किया।
उददेश्य(objects)
अधिनियम की पृष्ठभूमि व उद्द्श्यों के अंतर्गत शामिल बिंदुओं के आधार पर सारांश में
अधिनियम के निम्न उद्दश्यों हैं:
* पर्यावरण का संरक्षण एवं सुधार करना।
* मानव पर्यावरण के स्टॉकहोम सम्मेलन के नियमों को कार्यान्वित करना।
* मानव, प्राणियों, जीवों, पादपों को संकट से बचाना।
* पर्यावरण संरक्षण हेतु सामान्य एवं व्यापक विधि निर्मित करना।
* विद्यमान कानूनों के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण प्रधिकरणों का गठन करना तथा उनके
क्रियाकलापों के बीच समन्वय करना।
* पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना।
* पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन हेतु राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की
योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना।
*पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना।
मानवीय पर्यावरण सुरक्षा एवं स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न करने वालों के लिए
दण्ड की व्यवस्था करना। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986) एक व्यापक
कानून है। इसके द्वारा कें द्र सरकार के पास ऐसी शक्तियां आ गई हैं जिनके द्वारा
वह पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण व सुधार हेतु उचित कदम उठा सकती है।
इसके अंतर्गत कें द्रीय सरकार को पर्यावरण गुणवत्ता मानक निर्धारित करने,
औद्योगिक क्षेत्रों को प्रतिबंध करने, दुर्घटना से बचने के लिए सुरक्षाट्टमक उपाय
निर्धारित करने तथा हानिकारक तट्टवों का निपटान करने, प्रदूषण के मामलों
की जांच एवं शोध कार्य करने, प्रभावित क्षेत्रों का तत्काल निरीक्षण करने,
प्रयोगशालाओं का निर्माण तथा जानकारी एकत्रित करने के कार्य सौंपे गए हैं।
इस कानून की एक महट्टवपूर्ण बात यह है कि पहली बार व्यक्तिगत रूप से
नागरिकों को इस कानून का पालन न करने वाली फै क्ट्रि यों के खिलाफ के स
दर्ज करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
क. वायु जल, और भूमि की गुणवत्ता के मानक
ख. खतरनाक वस्तुओं के संचालन हेतु तरीके व सुरक्षा उपाय।
ग. विविध क्षेत्रों में विविध पर्यावरण प्रदूषकों की अधिकतम स्वीकार्य सीमा।
घ. खतरनाक वस्तुओं के संचालन में रोक तथा प्रतिबंध।
ड. विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों के स्थान के लिए रोक तथा प्रतिबंध।
च. पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण बनने वाली विभिन्न दुर्घटनाओं को रोकने व
प्रतिबंध करने के उपाय सम्मिलित हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
1986 के नियमो तथा उन
नियमो बनाये रखने के लिए
4 अद्य्याय
(chapter)और 26 धराये
(section)बनाई गई हैं।
• धारा - 1
• संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
• धारा - 2
• परिभाषाएं
• धारा - 3
• पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने के लिए उपाय करने के लिए के न्द्र सरकार की पावर
• धारा - 4
• Appointment of officers
• धारा - 5
• निर्देश देने के लिए शक्तियां
• धारा - 6
• पर्यावरण प्रदूषण को विनियमित करने के लिए नियम
• धारा - 7
• उद्योग पर ले जाने के व्यक्तियों, आपरेशन, आदि, उत्सर्जन या मानकों से अधिक में पर्यावरण प्रदूषण की मुक्ति
की अनुमति नहीं
• धारा - 8
• प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के साथ पालन करने के लिए खतरनाक पदार्थों को संभालने व्यक्तियों
धारा - 10
प्रवेश और निरीक्षण की शक्तियां
धारा - 11
सिवा संबंध में अपनाई जाने वाली नमूना और प्रक्रिया लेने के लिए पावर
धारा - 12
पर्यावरण प्रयोगशालाओं
धारा - 13
सरकार विश्लेषकों
धारा - 14
सरकार विश्लेषकों की रिपोर्टें
धारा - 15
अधिनियम के प्रावधानों और नियमों, आदेशों और निर्देशों के उल्लंघन के लिए जुर्माना
धारा - 16
कं पनियों द्वारा अपराध
धारा - 17
सरकारी विभागों द्वारा अपराध
धारा - 18
अच्छा विश्वास में की गई कार्रवाई का संरक्षण
धारा - 19
अपराधों का संज्ञान
धारा - 20
सूचना, रिपोर्ट या रिटर्न
धारा - 21
सदस्य, प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों के होने की
धारा 3 के तहत गठित
धारा - 22
अधिकार क्षेत्र की बाधा
धारा - 23
को सौंपने का पावर
धारा - 24
अन्य कानूनों का प्रभाव
धारा - 25
नियम बनाने की शक्ति
धारा - 26
संसद के समक्ष रखे जाने वाले इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों
पर्यावरण के क्षेत्र मे गैर सरकारी संगठन और
वकालत संस्थान
पूरे विश्व और भारत मे पर्यावरण को इसकी दुर्दशा से
बचाने के लिए इस क्षेत्र मे बहुत सारे संस्थाएं और गैर
सरकारी संगठन कार्य कर रहे है।
कु छ भारतीय गैर सरकारी संगठन और संस्थाए
निम्नलिखित है:-
• बॉम्बे प्राकृ तिक इतिहास सोसाइटी (बीएनएचएस), मुंबई: बीएनएचएस 1833 मे
6 सदस्यो की एक छोटी सी सोसाइटी के रूप मे प्रारम्भ हुई । वन्य जीवन नीति निर्माण,
अनुसंधान, लोगो के लोकप्रिय प्रकाशन और कार्रवाई पर प्रभाव बहुआयामी समाज की
अनूठी विशेषता बन चुकी है। यह भारत की सबसे पुरानी संरक्षण अनुसंधान पर आधारित
गैर सरकारी संगठन है,

प्रकृ ति के लिए विश्व व्यापी निधि (डबल्यूडबल्यूएफ़ –I), नई दिल्ली :


डबल्यूडबल्यूएफ़ - I का आरंभ 1969 मे मुंबई मे हुआ था इसके बाद पूरे भारत मे
कई शाखा कार्यालयो के साथ इसके मुख्यालय को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया
था। प्रारम्भ के वर्षो मे वन्य जीवन शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान के न्द्रित था।

• विज्ञान और पर्यावरण के लिए कें द्र बिन्दु (सीएसई), नई दिल्ली : इस कें द्र के क्रिया
कलापों मे आंदोलन का आयोजन, कार्यशालाओ और सम्मेलनों का आयोजन, और
पर्यावरण से संबन्धित प्रकाशनों का उत्पादन करना शामिल है।
• भारती विद्यापीठ पर्यावरण शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
(बीवीआईईईआर), पूणे ।

• पर्यावरण शिक्षा कें द्र (सीईई), अहमदाबाद ।

• सीपीआर पर्यावरण शिक्षा कें द्र (ईईसी), मद्रास ।

• उत्तराखंड सेवा निधि (यूके एसएन), अल्मोणा

• भारतीय वन्यजीव संस्था (डबल्यूआईआई), देहरादून

• पर्यावरण अनुसंधान और शिक्षा कें द्र (सीईआरई) मुंबई ।


अधिनियमों तथा नियमों, आदेशों और निदेशों के उपबन्धों के
उल्लंघन के लिये शास्ति
(1) जो कोई इस अधिनियम के उपबन्धों या इसके
अधीन बनाए गए नियमों या निकाले गए आदेशों या दिये
गए निदेशों में से किसी का पालन करने में असफल
रहेगा या उल्लंघन करेगा, वह ऐसी प्रत्येक असफलता या
उल्लंघन के सम्बन्ध में कारावास से, जिसकी अवधि
पाँच वर्ष तक की हो सके गी, या जुर्माने से, जो एक
लाख रुपए तक का हो सके गा, या दोनों से और यदि
ऐसे असफलता या उल्लंघन चालू रहता है तो अतिरिक्त
जुर्मानेे से, जो ऐसी प्रथम असफलता या उल्लंघन के
लिये दोषसिद्धि के पश्चात ऐसे प्रत्येक दिन के लिये
जिसके दौरान असफलता या उल्लंघन चालू रहता है,
पाँच हजार रुपए तक का हो सके गा, दण्डनीय होगा।
(2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट असफलता या उल्लंघन
दोषसिद्धि की तारीख के पश्चात, एक वर्ष की अवधि से आगे
भी चालू रहता है तो अपराधी, कारावास से, जिसकी अवधि
सात वर्ष तक की हो सके गी, दण्डनीय होगा।
Thank you

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