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भारत क महान िवभूितयां

धी भाई अंबानी

eISBN: 978-81-2883-541-4
© काशकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712100
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2012
Dheerubhai Ambani
By - Renu Saran
िवषय सूची
1. प रचय
2. ज म व बा यकाल
3. अदन क ओर
4. अदन म लक
5. यवसाय का पहला पाठ
6. यापार का आरं भ
7. पहला कज
8. भारत वापसी
9. भारत म आरं भ
10. प रवार का िव तार
11. अदन के िम क सहायता
12. ओनली िवमल
13. मुंबई से गुजरात
14. रलायंस तेजी से आगे ब ी
15. पहला प लक इ यू
16. पटलगंगा प रयोजना
17. आधुिनक िवचारधारा के यि
18. ितभा का वागत
19. टीम वक म भरोसा
20. धी भाई क सफलता का मं
21. प रवार वृ
22. पुर कार व स मान
23. एक बड ा शो मैन
24. अंितम ण
प रचय
उ ोगपित धीरजलाल हीराचंद अंबानी अपने जीवनकाल म एक जाना-पहचाना नाम बनकर
उभरे व धी भाई अंबानी के नाम से जाने गए। एक साधारण अ यापक के इस पु ने अपने उ म
व संक पशि के बल पर वै वक प र य म भारत म होने वाले अथ यव था संबध ं ी बदलाव
म अहम भूिमका िनभाई।
वे मा स ह वष क आयु म अदन गए थे। वहां एक साधारण कमचारी के प म काम
करने पर भी उ ह ने वयं को एक उ ोगपित ही माना व उसी प म सोचा। वे अपने मन म एक
िवशाल कंपनी खोलने का सपना लए ‘शैल ऑयल कंपनी’ के लए काय कर रहे थे।

वे 50,000 क पूज
ं ी के साथ अदन से लौटे। कु छ ही दशक बाद उनके औ ोिगक घराने
क साम य पचास हजार करोड से भी ऊपर पहच ं गई।
ज म व बा यकाल
धीरजलाल अंबानी का ज म 28 िदसंबर 1932 को, गुजरात के जूनाग जले के
चोरवाड नामक गांव म हआ। उनके िपता का नाम हीराचंद गोव नदास था। वे पेशे से
अ यापक थे। माता का नाम जमुनाबेन था। प रवार बहत साधारण था, आ थक प से समृ न
होने पर भी वे लोग आ मिनभर थे।
िपता से ही उ ह ने जीवन के पहले सबक सीखे। उ ह गव था िक उनके िपता अ यापक जैसे
िति त पेशे से जुड े थे, परं तु उ ह यह सोचकर दःु ख होता था िक इतना िति त पेशा भी
उ ह आ थक प से समृ नह कर सकता था। यही कारण था िक उ ह ने िपता के पेशे को न
अपनाने का िनणय लया।
वे आरं भ से ही उसी पथ पर चले, जो भा य ने उनके लए तय कर रखा था। वे माता-िपता
क चौथी संतान थे।
प रवार क आ थक तंगी ने उ ह अहसास िदला िदया था िक शी ही प रवार के पालन-
पोषण का भार उ ह ही उठाना होगा। यही कारण था िक वे अपनी िश ा पूरी नह कर सके।
मैिटक क परी ा के बाद ही उनका यावसाियक जीवन आरं भ हो गया आरं भ म उ ह ने फेरी
लगाने का काय भी िकया।
एक बार उ ह ने थानीय दक ु ानदार से मूंगफली के तेल का टीन उधार म लया व उसे
सड क के िकनारे बैठकर खुला बेचा। इससे कु छ पय का लाभ हआ, जो उ ह ने मां को दे
िदए। िफर वे कू ल क छु ी के बाद गांव क हाट म भ जया बेचने क दक
ु ान लगाने लगे।
अदन क ओर
मैिटक परी ा का प रणाम भी नह आया था िक िपता ने उ ह चोरवाड बुलाकर कहा,
“बेटा! म जानता हं िक तुम आगे भी प ना चाहते हो, पर म तु हारी प ाई का भार नह
उठा सकता। म चाहता हं िक तुम प रवार के लए चार पैसे कमाओ। तु हारे बड े भाई रमणीक
भाई ने अदन म तु हारे लए नौकरी क यव था कर दी है। तुम वहां चले जाओ।”
धी भाई प ने क इ छा तो रखते थे, िकंतु रोगी िपता क आंख म देखते ही वे अपना
सपना भूल गए।
अगले ही िदन वे पासपोट बनवाने के लए राजकोट चल िदए।

उन िदन भारतीय को अदन वेश के लए वीजा क आव यकता नह होती थी, िकंतु यह


अफवाह फैली थी िक वीजा क आव यकता कभी भी पड सकती है। उ ह ने झट से सारा
बंध कर लेना उिचत समझा। कु छ िदन म ही वे मुंबई जा पहच
ं े तािक अदन जाने वाले जहाज
पर रवाना हो सक। जहाज पर ही एक गुजराती समाचार प म अपना परी ा प रणाम देखकर
जाना िक उ ह ने दसरी
ू ण
े ी म मैिटक पास कर ली थी।
अदन म लक
अदन पहचं ते ही उ ह ने ऑिफस का काम संभाल लया। वे ‘ए. बैसी एंड कंपनी’ म लक
क नौकरी कर रहे थे। उन िदन लंदन के बाद, अदन ही य त यापा रक तेल बंदरगाह था, जहां
से ितवष 6300 जहाज व 1500 टीमर रवाना होते थे।
वहां यह कंपनी िवशाल तर पर कायरत थी। बुिकंग से लेकर माल पहच
ं ाने तक क सारी
ज मेवारी इसी क होती थी।

यह यूरोिपयन, अमरीक , अ क व एिशयाई कंपिनय के यापा रक एजट के तौर पर काम


करती व हर तरह के माल को यहां से वहां पहच
ं ाती जसम चीनी, मसाले, अनाज, कपड े,
ऑिफस क टेशनरी, यं , मशीनरी व पैटो लयम उ पाद आिद शािमल थे।
धी भाई को पहले व तु िवभाग म भेजा गया और िफर बाद म वे ऑयल वाइंट शैल के
लए पेटोल उ पाद का काम देखने लगे।
यवसाय का पहला पाठ
धी भाई ने ज दी ही काम संभाल लया। उ ह ने ज द ही माल के य-िव य, माकिटंग,
िवतरण, पैसे के लेन-देन आिद के गुर सीख लए। वे दोपहर क छु ी के दौरान अदन के बाजार
म घूमते, जहां वे िविभ देश से आए यापा रय को करोड प ड ट लग का यापार करते
देखते।
धी भाई भी पैसा लगाना तो चाहते थे पर दांव लगाने के लए पैसा कहां था? वे काम के गुर
सीखने के लहाज से एक गुजराती यापा रक फम को िनःशु क सेवाएं देने लगे। वहां उ ह ने
लेखा-जोखा सीखा, जसके अंतगत सभी ज री द तावेज बनाने, बक व बीमा कंपिनय से लेन-
देन क णाली भी सीख ली।
यापार का आरं भ
यापार के आरं िभक गुर सीखने के बाद वे भी माल क खरीद पर दांव लगाने लगे। य िप
उनके पास अपना पैसा नह था, िकंतु अदन म िम व यापा रय ने पैसा देना वीकार िकया।
उन लोग के लए यह घाटे का सौदा नह था, य िक धी भाई का कहना था िक लाभ बांटा
जाएगा और हािन होगी तो सारी ज मेवारी उनक । वे ायः दोपहर को या शाम को छु ी के बाद
थानीय बाजार म यापार करते िदखते।

इस दौरान, 1954 म अदन म शैल तेल रफाइनरी व पहला तेल बंदरगाह बना। उसी वष वे
गुजरात लौटे तथा उनका िववाह कोिकलाबेन से हआ। ‘ए. वैसी एंड कंपनी’ को ही शैल
रफाइनरी उ पाद के िवतरण का काम स पा गया। धी भाई क पांच साल क मेहनत रं ग लाई।
उ ह पदो ित देकर नए बने बंदरगाह पर तेल भरने वाले टेशन भेज िदया गया।
हालांिक काम मु कल था पर उ ह बहत पसंद आया। यहां उ ह जहाज म जाकर इंजन
टाफ व नािवक से दो ती करने के भरपूर अवसर िमले।
पहला कज
तकरीबन चार दशक पहले िव ीय सं था आई. सी. आई. सी. आई. ने धी भाई को रलायंस
उ ोग के लए पहला ऋण िदया। उन अ धका रय ने सोचा तक नह था िक एक ही वष म
धी भाई िफर से उनके ऑिफस म तयशुदा कज क दसरी
ू िक त लेने आ पहच ं गे।

सं था का बंधक य िनदेशक उस समय िनचले दज का अ धकारी था। धी भाई को देखते ही


उसके मन ने गवाही दी िक उसके सामने बैठा गुजराती कोई साधारण यि नह था, जब
धी भाई एक ही साल म कज क दसरी ू िक त लेने पहच
ं े तो उसे यक न हो गया िक उसने
धी भाई को पहचानने म गलती नह क है।
भारत वापसी
1950 के अंत तक प हो गया था िक अदन म अ धक समय तक अं ेजी राज नह िटक
पाएगा य िक वतं ता ाि के लए यमनी आंदोलन तेज होता जा रहा था। िहंदओ ु ं का िवशाल
समुदाय व पारसी, गुजराती अदन से वापसी का बंधन करने लगे। कु छ तो भारत लौटे व कु छ
ने ि टेन म बसने का िनणय लया। उन िदन अदन म बसे भारतीय को ि टेन म रहने क
इज ाज त थी।

धी भाई के कु छ िम ने उ ह लंदन जाने क सलाह दी व कहा िक वे वहां अपनी ितभा व


गुण का बेहतर योग कर पाएंग।े
धी भाई वयं भी जानते थे िक उन िदन ि टेन म बसने का अथ था; सुख-सुिवधा व बहत-
सा धन जो िक भारत म इतनी ज दी हो पाना संभव नह था।
उ ह ने सभी िवक प पर गौर िकया। अब हाथ म थोड ी बचत भी थी और वे एक नया
यवसाय आरं भ करना चाह रहे थे। 1952 म िपता चल बसे थे और अ ैल 1955 म धी भाई
वयं मुकेश नामक पु के िपता बन चुके थे। कोिकलाबेन व मुकेश भारत म थे। लंदन म काम
खोजने का िवचार तो लुभावना था, पर उ ह लगा िक भारत उ ह पुकार रहा था।
भारत म आरं भ
वे जानते थे िक भारत म भी काम खोलना किठन नह होगा। 25 वष य धी भाई देश लौटे।
उ ह ने थोड ी-सी पूजं ी के साथ मुंबई म ‘ रलायंस कमिशयल कॉप रे शन’ क थापना क ।
अदन के बाजार का अ ययन करने के कारण वे जानते थे िक वहां वे मसाले आिद व तुओं क
आपूित कर सकते थे। उनक कंपनी अदरक, ह दी, इलायची व व अदन भेजने लगी, वह मांग
क गई कोई भी व तु िभजवाती थी।

धी भाई ने िकराए के मकान से यापार आरं भ िकया। अंबानी दि ण मुंबई म, चौथी मं जल


पर बने तीन कमर वाले घर म रहते थे। धी भाई व उनका प रवार भाई रमणीक व उनक प नी
नाटू के साथ रह रहे थे। धी भाई क यावसाियक बुि रं ग लाई व काम चल िनकला।
चार साल म ही एक िफएट कार खरीदने लायक हो गए, जो उस समय के िहसाब से
बड ी बात थी। म यमवग य कालोनी म िफएट का आना, चचा का िवषय था। तब मुंबईवासी
बड े ही मेलजोल से रहते थे। तब तक उनके यवसाय का और भी िव तार हो चुका था।
प रवार का िव तार
इस दौरान उनका प रवार भी िव तृत हआ। नौ वष य मुकेश कू ल जाने लगा था। 1959 म
दसरे
ू पु अिनल का ज म हआ। 1961 व 1962 म दीि व नीना नामक पुि य ने ज म लया।
अब वे दि ण मुंबई के एक बड े घर 7, अ टामांउट रोड पर आ गए थे।
अदन के िम क सहायता
1958 से 1965 के सात साल के दौरान रलांयस तेजी से ब ी। धी भाई के अनेक
िम व सहकम भी इसम शािमल हो गए। उनम से अनेक तो अदन से थे, जो समृ धी भाई क
सहायता पाने आए थे। अदन से आने वाला कोई भी प रिचत खाली हाथ नह जाता था। धी भाई
उसे उसके यो य काम अव य स प देते थे।

अब तो धी भाई मुंबई के यान बाजार व देश के हडलूम व पावरलूम क म पहचान बना


चुके थे, पर जब साठ के दशक के आरं भ म, उ ह ने िव कोस बे ड धागा ‘चमक ’ बनाया तो वे
अचानक सि के िशखर पर जा पहच ं े।
धी भाई अपने दल का नेतृ व उसी तरह करते थे, जस कार संय ु प रवार का मु खया
करता है। वे अपने लोग क कमजो रय को समझते, खुले िदल से गलितय को माफ करते व
सहायता का अवसर आने पर कभी पीछे न हटते और इसके बदले म उ ह लोग क पूरी
वफादारी िमलती।
ओनली िवमल
मुंबई म, धी भाई ने वही िकया, जो वे दसर
ू से करने को कहते थे। वे अ टामांउट रोड लैट
पर खड ी पुरानी कार म रलायंस का माल भरते व पूरे शहर म दक ु ान पर च कर लगाते हए
माल बेचते।

रलायंस ने यह बाजी मार ली। सारा माल सीधा रटेलर तक पहचं ने लगा। आज से पहले
खुदरा यापा रय को इतने स ते दाम पर माल नह िमला था। इस तरह िबना िकसी चार या
िव ापन के, रलायंस के बाजार ने पकड बना ली। इस दौरान प रवार ने रलायंस फैि क को
‘िवमल’ का नाम िदया। तीन अंबानी भाईय म से सबसे बड े के पु का नाम भी िवमल ही
था।
मुंबई से गुजरात
मुंबई म िमली ारं िभक सफलता से धी भाई का आ मिव वास ब ा और वे ऊंची छलांग
लगाने क तैयारी करने लगे। वे गुजरात लौटे, नरोदा म 15,000 क पूज
ं ी से िमल लगाई गई।
धी भाई ने िमल के लए संथिे टक फाइबर क बेच-खरीद का धंधा शु िकया। उ ह ने िनलान
केिमकल से क ची साम ी लेनी आरं भ क , पर पं ह ही वष ं म सब बदल गया। अब वे उसी
कंपनी को क चा माल देने लगे, जससे वे क चा माल लेते थे।

1966 म कह जाकर धी भाई को यान आया िक उनके ऑिफस के बाहर उनक नामप ी
होनी चािहए, सचमुच उनक सादगी बेजोड थी। तब तक वह नरोदा व अहमदाबाद म छः
दजन कमचा रय के साथ रै प-िनिटंग मशीन पर व उ पादन भी शु कर चुके थे।
रलायंस तेजी से आगे ब ी
िवमल ने तर क क तो दसरे
ू शहर के खुदरा यापा रय ने दसरे
ू ांड बेचने छोड िदए।
वे कहते थे, ‘हम सफ ओनली िवमल’ ही बेचगे।”

धीरे -धीरे ओनली िमल का नाम चमकने लगा। हालांिक कु छ साल बाद वह समय आया जब
इसे कंपनी के सू वा य के प म, रलायंस के अनूठे ओनली िवमल शो म के लए चुना
गया।
रलायंस तेजी से आगे ब ा उ पादन के चार-पांच साल म ही बुनाई क बीस मशीन हो
गई।ं 1972-73 तक बुनाई ‘लूमो’ क सं या 154 तक हो गई थी।
पहला प लक इ यू
1977 के दौरान, उ ह ने पहला प लक इ यू जारी करने क सोची। तब तक वे वयं को
वा लटी फैि क के उ पादक के प म थािपत कर चुके थे।

इस तरह से भारत म एक नई अथ यव था सं कृित का ज म हआ। इससे पहले सभी


यवसायी, िव ीय सहायता के लए िव ीय सं थाओं पर ही िनभर रहते थे। इन पारं प रक िव ीय
ोत का योग करने वाले यवसायी वतं ता ाि के बाद अपने पैर नह िटका सके। सारा
लाभ कज क भट च जाता। उ ोगपितय ने िनजी संप यां तो बनाई,ं पर उ ोग-धंधे मंदे
होते गए। केवल कु छ उ ोग ही जीिवत रह सके।
1977 म धी भाई क पहल ने पी. आर. के मा यम से सफलता अ जत क । आलोचना व
िनंदा के बावजूद रलायंस ने अपना काम जारी रखा। पूरे भरोसे से िनवेश करने वाल ने, अपने
िनवेश का, सौ गुना लाभ के प म पाया। शेयर व िडबचर के मामले म अंबानी ुप लोकि य
हो गया। जनता ने धी भाई क मह वाकां ी प रयोजनाओं के लए िव ीय सहायता दान क ।
पटलगंगा प रयोजना
1968 म िवमल ांड क थापना हई थी और उ ह ने 1982 म महारा म पटलगंगा म
पॉ ल टर फाइबर धागे का कारखाना खोला। 1986 से उ पादन आरं भ हो गया। िफर 1988 म,
पैरो सीलीन उ पादन के लए उसम एक और इकाई जोड ी गई।

वे नह चाहते थे िक उ ह क चे माल के लए िकसी पर िनभर रहना पड े। ायः बड े


उ ोगपित इस त य पर यान नह देते थे, वे अपने उ पादन के लए बाहर से क चा माल
खरीदते रहते ह, जससे उ पाद क क मत ब जाती है।
धी भाई ने इस भूल को नह दोहराया। इस तरह उ ह ने अपने उ पादक को ितयोगी क मत
पर बाजार म उतारा व सफल रहे।
िवमल फैि क बाजार म हमेशा आगे रहा य िक उसके पास अपना क चा माल होता था।
धी भाई अपने उ पाद क उ पादन लागत, ऊपरी खच व अथ यव था के सभी तकनीक
पहलुओं क सू म जानकारी रखते थे।
आधुिनक िवचारधारा के यि
धी भाई कभी भी पुरानी व अ च लत परं पराएं तोड ने से पीछे नह हटे। उनका मानना था
िक यिद कोई आधुिनक सोच कह साथक मू य रखती है तो उसे अव य अपनाना होगा। उ ह ने
अपनी सफलता का रह य बताते हए कहा था, “भारतीय उ पाद आधुिनक होना चािहए व
गुणव ा अंतरा ीय होनी चािहए, िकंतु इसक क मत बाजार म ितयोगी होनी चािहए।” उनके
उ पाद म यही िचंतन झलकता था। वे हमेशा दसर ू से तेज व आगे क सोचते थे, तभी उनक
येक योजना सफल होती। हालांिक िकसी क सफलता दसर ू क जलन व िनंदा का कारण भी
बन जाती है। यहां भी ऐसा ही था, पर उनके आगे कोई िटक न सका।
ितभा का वागत
धी भाई ारा ितभा क खोज (टैलट हंट) का उपाय भी काफ स हआ। वे हमेशा
सुयो य यि य क तलाश म रहते। जब वे िकसी को अपने काम के लए उपयु पाते तो उसे
िनमंि त करते, बड ी ही संतु लत बातचीत होती, अनेक बंधक य व इंजीिनय रं ग ितभाओं
को वे अपने यहां काम करने क पेशकश देते।

हालांिक यह काम इतना आसान नह होता था। य िक वे पहले से ही िकसी िति त सं था


को अपनी सेवाएं दे रहे होते थे। ायः वे अपने मा लक के दल
ु ारे भी होते थे। वे इतनी आसानी
से जाने-पहचाने माहौल को छोड ने के लए राजी नह होते थे। कई साल से पुरानी कंपनी के
साथ काम करते हए लगाव हो जाना वाभािवक ही था। वफादारी व िन ा का भी न होता था।
उ ह लगता था िक कंपनी छोड ने का मतलब होगा, अपने मा लक से ग ारी।
सबसे बड ी बाधा यह थी िक अपने जीवन म उ च िशखर पर पहच
ं चुके, इन सफल लोग
के जीवन म ऊंचे मू य का मोल था, पैसा तो कोई अहिमयत ही नह रखता था। वे िकसी भी
तरह का नैितक पतन सहन नह कर पाते थे, िकंतु धी भाई िकसी-न-िकसी तरह उ ह अपने यहां
लाने म सफल हो जाते।
उनके लए यह एक आसान-सा काम हो जाता। पहले वे ितभा को तलाशते िफर उसे कहा
जाता िक कंपनी के लाभ के लए रलायंस टीम को उसक आव यकता है। यि िवन ता से
ताव ठु करा देता तो वे उसे हवाई िटकट भेजते व यि गत बातचीत के लए बुलाते। तकरीबन
मामल म तो यवसायी धी भाई से भट का अवसर नह गंवाते थे। उ यि को सुिवधा दी
जाती िक वह अपने िहसाब से भट का समय रख। इससे बड ा ही अनुकूल भाव पड ता
तथा उस यि को लगता िक उसे आदर-मान िदया जा रहा था।
टीम वक म भरोसा
धी भाई कहते थे, “िकसी प रयोजना क अंितम ित थ तय कर देना ही काफ नह होता।
उ मीद यही होनी चािहए िक काम उस ित थ से पहले समा हो।’’
उनके पु भी इसी सू वा य का पालन करते आ रहे ह। िपता ने पु पर भी यथे छाप
छोड ी है। धी भाई बड ी-बड ी प रयोजनाओं का मान सक िच ण करते व उनके पु िबना
िकसी बाधा के उ ह ठोस प दे देते। उस समय धी भाई जीिवत थे व उनके पु सि य प से
सहयोगी बनकर साथ थे।

िपता के जीवनकाल म ही दोन पु ने सारा कायभार अपने कंध पर ले लया था। िपता व
पु म गहरी समझ व तालमेल था। वे ितिदन सुबह के समय दो घंटे, उ ोग से जुड े मु पर
चचा करते। उसम िदन के काय म व रणनीितयां भी शािमल होत थ । इ ह बैठक म, दसरी ू
कंपिनय के बंधक से िमली सलाह पर भी िवचार होता।
इन बैठक म बड ी-से-बड ी सम या हल हो जाती। यिद पूज ं ी क आव यकता होती तो
िमलकर तय िकया जाता िक पूज
ं ी का बंध कहां से हो। यह भी देखा जाता िक िकसी सरकारी
नीित म फेरबदल के कारण उ ह अपनी औ ोिगक नीित को बदलना होगा या नह । येक के
क य व दािय व िन चत थे। इस कार िपता-पु एक टीम क तरह काम करते थे।
धी भाई क सफलता का मं
धी भाई के काम ही उनक सफलता क दा तान ह। वे दसर ू क भलाई के लए अपनी
सफलता का मं बताने म भी नह सकु चाते थे। वे ायः अपने लोग म उ साह व ेरणा का
संचार करने के लए, अपने सफलता मं को नार म बदल देते।
िकसी बड ी बंधक य सं था से िड ी न लेने के बावजूद उनका अनुभव ही यावसाियक
कौशल रखता था और वे सबके बीच इसी अनुभव के बल पर बंधन गु कहलाए।
प रवार वृ
28 िदसंबर 1932 को हीराचंद गोव न दास अंबानी के घर एक पु ने ज म लया। जसका
नाम ‘धीरजलाल हीराचंद अंबानी’ रखा गया। िपता को अनुमान तक नह था िक उनक चौथी
संतान ‘अंबानी’ प रवार को भारतीय कॉप रे ट जगत का जाना-पहचाना नाम बना देगी। जो िक
‘फा यून’ व ‘फो स’ जैसी पि काओं म थान पाएगा। बाद म यह नाम छोटा होकर ‘धी भाई
अंबानी’ हो गया। बेशक वे लंबे नाम के साथ समय बबाद करने वाल म से नह थे। बड ा
नाम लेने म समय न होता था। जब उनका ज म हआ तो प रवार म एक भाई व दो बहन थ ।
उनके बाद एक और भाई का ज म हआ। इस कार वे तीन भाई तथा दो बहन थे।
बड ी बहन ि लोचना का िववाह लालूभाई मेसवानी से हआ। उनके पु र सकलाल
मेसवानी का िववाह रजनीबेन से हआ। उनके यहां िन खल व हेतल ने ज म लया। इस कार
ि लोचना िन खल व हेतल क दादी मां ह।
बड े भाई रमणीक लाल अंबानी का िववाह पदमाबेन से हआ। उनके यहां एक पु व तीन
पुि य ने ज म लया। पु का नाम िवमल तथा पुि य के नाम नीता, इला व मीना रखे गए।
दसरी
ू बहन जसुमती का िववाह सी. पटेल से हआ व उनके यहां वीरे न, अतुल, िवमल व
मनीष नाम के पु ने ज म लया। छोटे भाई नटवरलाल का िववाह मताबेन से हआ। उनके यहां
दो बेट िवपुल व नीरज तथा दो बेिटय अनीता व टीना ने ज म लया। इस कार अंबानी एक
िव तृत प रवार है।
धी भाई अंबानी का िववाह कोिकलाबेन से हआ। कहते ह िक येक सफल यि के पीछे
एक मिहला का हाथ होता है। कोिकलाबेन ने पित क सफलता म पूरा योगदान िदया। उ ह ने पित
पर पूरा भरोसा रखा व उनके वैवािहक जीवन म कभी कोई िववाद नह हआ। वे िववाह के बाद
पित के साथ अदन गई ं तथा बड े बेटे मुकेश का ज म वह हआ।
मुकेश का ज म 1957 म हआ। बाक तीन ब च दीि (1958) अिनल (1959) व नीना
(1961) का ज म भारत म हआ।
मुकेश का िववाह एक समृ प रवार क प ी- लखी लड क नीता से हआ, उनके दो
पु व एक पु ी है। पु का नाम आकाश व अनंत तथा पु ी का नाम ईशा है। धी भाई क बेटी
नीना का िववाह चे ई के कोठारी प रवार के याम कोठारी से हआ। कोठारी भी उ ोगपित ह।
दसरी
ू बेटी दीि का िववाह गोवा के द ाराज सलगांवकर से हआ। वे भी यवसाय म ह।
धी भाई क चौथी संतान है अिनल। उसका िववाह जानी-मानी वॉलीवुड अिभने ी टीना मुनीम से
हआ है। उनके दो पु ह - जय अनमोल, जय अंशुल।
पुर कार व स मान
‒यू.एस.ए. क ‘िबजनेस वीक’ पि का ने 1958 म धी भाई अंबानी को ‘ टार ऑफ
एिशया’ क उपा ध दी।
‒1999 म ‘द टाइ स ऑफ इंिडया’ ने उ ह ‘द मो ट एडमायड िबजनेस लीडर’ घोिषत
िकया। यह चुनाव टाइ स क कमिशयल वोिटंग के आधार पर हआ।
‒1999 म धी भाई पावर-50 िबजनेस मै स म से एक चुने गए। यह सूची राजनीित, उ ोग
व आ थक े के िद गज को लेकर बनाई गई थी।
‒िदसंबर 1999 म, भारतीय मचटं चबर ने धी भाई अंबानी को भारतीय उ ोग व पूज
ं ी
बाजार म गित, िवकास व उपल धय के लए ‘िवज नरी ए टाऑडनरी ऑफ टव थ
सचुरी’ चुना।
‘इंिडया टु डे’ पि का ने ‘बीसव सदी म भारत के सौ िनमाता’ नामक सं करण म उ ह
‘आथर ऑफ फाइनिशयल इ वटी’ के प म चुना। यह सं करण िदसंबर 1999 म िनकाला
गया।
‒जनवरी 2000 म, ‘टाइ स ऑफ इंिडया’ पोल म उ ह ‘वे थ ि एटर’ चुना गया।
‒‘जी नेटवक’ ारा ायो जत व ‘अन ट एंड यंग’ ारा आयो जत इवट ‘लीज स-
सेली ेशन ऑफ ए सीलस’ म धी भाई को ‘सदी का सवा धक सराहा जाने वाला भारतीय’ चुना
गया।
‒धी भाई को 2000 म ‘एिशया वीक’ ने िफर से एिशया क पचास शि शाली ह तय म
से एक चुना।
‒माच 2000 म धी भाई को उनक असाधारण औ ोिगक रचना मकता के लए ‘एफ.
आई. सी. सी. आई.’ ने ‘बीसव सदी का भारतीय उ ोगपित’ चुना।
‒नवंबर 2000 म धी भाई अंबानी को कैमटैक फांउडेशन’ व ‘केिमकल इंजीिनय रं ग
व डस’ क ओर से ‘मैन ऑफ द सचुरी’ चुना गया। भारत के रसायन उ ोग म योगदान के
लए यह पुर कार िदया गया।
‒िदसंबर 2000 म उ ह ‘ ेटर मुंबई कॉप रे शन’ क ओर से ‘ श त प ’ िदया गया। वे
1999 से 2000 तक िनरं तर इंिडयाज मो ट एडमायड सी. ई. ओ. चुने जाते रहे। यह उपा ध
‘िबजनेस बैर स’ व टेलर ने सन सारे फूल’ ारा िकए गए सव ण पर आधा रत थी।
‒अग त 2002 म उ ह ‘लाइफटाइम अचीवमट इन िबजनेस ए सीलस’ के लए चुना गया।
यह स मान ‘द इकोनॉिमक टाइ स’ ारा िदया गया।
‒अग त 2002 म उ ह िफर से ‘इंिडया एच.आर.डी. कां ेस’ ने ‘लाइफ टाइम अचीवमट’
से स मािनत िकया।
एक बड ा शो मैन
धी भाई एक िनपुण बंधक व उ मी होने के अलावा बड े शो मैन भी थे। वे जानते थे िक
आधुिनक जगत म िव ापन व बड े इवट, िकसी सफल यवसायी के लए िकतना मह व
रखते ह। केवल उ पाद क गुणव ा ही काफ नह होती, उसे ाहक को बताना भी होता है।
उ ह ने लोग तक पहच ं बनाने के लए िव ापन के मह व को वीकारा िक सफलता क
माकिटंग के लए क मत चुकानी पड ती है। वे लोग को रलायंस क भ यता िदखाना चाहते
थे। कु छ लोग का तो यह भी मानना है िक अ सी के दशक म रलायंस उ ोग के िवशाल
िव ापन ने उसक सफलता म िवशेष योगदान िदया।
अंितम ण

धी भाई अंबानी ने 69 वष क आयु म, ीच कडी अ पताल म अपनी अंितम सांस ल ।


िदल व िदमाग के टोक के कारण उ ह तेरह िदन पहले अ पताल म दा खल कराया गया था। वे
कोमा म चले गए। अपनी संक पशि के बल पर ही उनका शरीर तेरह िदन तक संघषरत रहा।
डा टर ने माना िक दो दौर के बावजूद उनक जीवन शि बेजोड रही। कोमा क थित म
भी, शरीर क येक कोिशश ने हार मानने से इंकार कर िदया था। उ ोग जगत म संकट के
समय म भी हार न मानने क वृ , यहां भी िदखाई दी।
6 जुलाई 2002, आधी रात से थोड ा पहले धी भाई क मृ यु हो गई। इस समाचार से पूरे
देश म शोक क लहर दौड गई। जब कोई महान ह ती या सफल यि इस दिु नया से जाता
है तो ऐसा ही होता है। सबको ऐसा जान पड ता है िक मानो उनका कोई अपना ही संसार से
िवदा हो गया हो। लोग अपने ि य क मृ यु क वा तिवकता को मानने से ही इंकार कर देते ह,
उ ह लगता है िक वह यि तो जैसे मृ यु से भी परे था। धी भाई अंबानी क मृ यु पर भी लोग
ने कु छ ऐसा ही अनुभव िकया।

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