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भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन् नि यंचकारचण्डताण्डवंतनोतु नः वो वम् ॥ 1॥
नादवड्डमर्व
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
म शेहाकपालिसंपदे शि रोजटालमस्तुनः॥6॥
सुधामयूखलेखया विराजमान खरं
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकु चाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥
दृषद् वि
चित्र
तल्पयोर्भु
जं गमौक् ति
कमस्र
जोर्ग
रिष् ठ
रत्न
लोष् ठ
योःसुह्र
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पक्ष
पक्ष
योः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदा वं भजे ॥
12॥
इमंहिनित्यमे
व मुक्तमुक्तमोत्त
म स्तवंपठन्स्मरन् ब्रु
वन्न
रोविद्ध
मे
ति
संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमा याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सु करस्य चिंतनम् ॥
16॥
पूजावसानसमये दवक्रत्रगीतं यः म्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति म्भुः ॥17॥