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कालभैरवाष्टक

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कालभैरवाष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा संस्कृ त भाषा


में संपादित एक नौ श्लोकों का समूह है. इस के आठ
श्लोकों में कालभैरव के गुणों का वर्णन एवं स्तुति की
गयी है.

कालभैरव हिन्दू देवता भगवान शिव का एक रूप माने


जाते है. यह एक उग्र किन्तु न्यायप्रिय देवता है इन्हें
क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।ऐसी मान्यता है. इन का
निवास हिंदू तीर्थ काशी नगरी के तट पर है. आदि
शंकराचार्य ने भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के हेतु
से नौ श्लोकों के एक स्तोत्र की रचना की. जिसमें से
आठ श्लोक कालभैरव की महिमा तथा स्तुति करने
वाले हैं और नौंवा श्लोक फलश्रुति है. इसीकारण नौ
श्लोक होते हुए भी इसे कलभैरवाष्टक कहा जाता
है.[1][2]

स्तोत्रम्
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ् घ्रिपङ् कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृ पाकरम्
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥१॥

अनुवाद: देवराज इंद्र जिनके पवित्र चरणों की सदैव


सेवा करते है, जिन्होंने चंद्रमा को अपने शिरोभूषण के
रूप में धारण किया है, जिन्होंने सर्पो का यज्ञोपवीत
अपने शरीर पर धारण किया है, नारद सहित बड़े बड़े
योगीवृन्द जिनको वंदन करते है, ऐसे काशीपुरी के
स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं


नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥२॥

अनुवाद: जो करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्वी है,संसार


रूपी समुद्र को तारने में जो सहायक हैं, जिनका कं ठ
नीला है, जिनके तीन लोचन है, और जो सभी ईप्सित
अपने भक्तों को प्रदान करते है, जो काल के भी काल
(महाकाल) है, जिनके नयन कमल की तरह सुंदर है,
तथा त्रिशूल और रुद्राक्ष को जिन्होंने धारण किया है,
ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना)
करता हूँ.

शूलटङ् कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

अनुवाद: जिनकी कांति श्याम रूपी है, तथा जिन्होंने


शूल, टंक, पाश, दंड आदि को जिन्होंने धारण किया है,
जो आदिदेव, अविनाशी तथा आदिकारण है, जो
महापराक्रमी है तथा अद्भुत तांडव नृत्य करते है, ऐसे
काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ् किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥
अनुवाद: जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका
स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, चारों
लोकों में स्थिर है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन
करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन
(आराधना) करता हूँ.

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥५॥

अनुवाद: जो धर्म मार्ग के पालक तथा अधर्ममार्ग के


नाशक है, जो कर्मपाश का नाश करने वाले तथा
कल्याणप्रद दायक है, जिन्होंने स्वर्णरूपी शेषनाग का
पाश धारण किया है, जिस कारण सारा अंग मंडित हो
गया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन
(आराधना) करता हूँ.

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

अनुवाद: जिन्होंने रत्नयुक्त पादुका (खड़ाऊ) धारण


किये हैं, और जिनकी कांति अब सुशोभित है, जो नित्य
निर्मल, अविनाशी, अद्वितीय है तथा सब के प्रिय देवता
है, जो मृत्यु का अभियान दूर करने वाले हैं, तथा काल
के भयानक दाँतों से मुक्ति प्रदान करते है, ऐसे काशीपुरी
के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

अनुवाद: जिनके अट्टहास से समुचित ब्रह्मांड विदीर्ण


होता है, और जिनके दृष्टिपात से समुचित पापों का
समूह नष्ट होता है, तथा जिनका शासन कठोर है,
जिन्होंने कपालमाला धारण की है और जो आठ प्रकार
की सिद्धियों के प्रदाता है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का
मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भूतसङ् घनायकं विशालकीर्तिदायकं


काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥
अनुवाद: जो समस्त भूतसंघ के नायक है, तथा विशाल
कीर्तिदायक है, जो काशीपुरी में रहनेवाले सभी भक्तों
के पाप-पुण्यों का शोधन करते है तथा सर्वव्यापी है, जो
नीतिमार्ग के वेत्ता है, पुरातन से भी पुरातन है, तथा
समस्त संसार के स्वामी है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का
मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं


ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ् घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

अनुवाद: ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने हेतु, भक्तों के


विचित्र पुण्य का वर्धन करनेवाले, शोक, मोह, दैन्य,
लोभ, कोप-ताप आदि का नाश करने हेतु, जो इस
कालभैरवाष्टक का पाठ करते है, वो निश्चित ही
कालभैरव के चरणों की प्राप्ति करते हैं.

॥ इति श्रीमच्छङ् कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं


संपूर्णम् ॥

यह भी देखें
स्तोत्र
शंकराचार्य
काशी
महादेव

संदर्भ
1. "Kalabhairava Ashtakam - Symbolisms
of Kalabhairava Ashtakam" (https://w
ww.artofliving.org/mahashivratri/kaal-
bhairav-ashtkam) (इंग्लिश में). अभिगमन
तिथि 6 March 2021.
2. "काल भैरव क्रू र नहीं, बड़े दयालु-कृ पालु" (http
s://www.livehindustan.com/news//arti
cle1-story-147683.html) (हिंदी में).
अभिगमन तिथि 6 March 2021.

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में (https://hi.wikipedia.org/w/index.php?titl
e=%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%
E0%A4%AD%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%
A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%
8D%E0%A4%9F%E0%A4%95&action=edit)
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