You are on page 1of 2

सर्वैश्वर्यप्रद लक्ष्मी कवच – Vadicjagat

vadicjagat.co.in/सर्वैश्वर्यप्रद-लक्ष्मी/

August 19, 2015

सर्वैश्वर्यप्रद लक्ष्मी कवच

श्रीमधुसूदन उवाच
गृहाण कवचं शक् र
सर्वदुःखविनाशनम्।

परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्।।
ब्रह्मणे च पुरा दत्तं संसारे च जलप्लुते।

यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः।।


बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः।


सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि।।


पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वयं पद्मालया सुर।


सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित।।


यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्।।


।।मूल कवच पाठ।।



पातु हरिप्रिया।
मस्तकं पातु मे पद्मा कण्ठं

नासिकां पातु मे लक्ष्मीः कमला पातु लोचनम्।।


के शान् के शवकान्ता च कपालं कमलालया।

जगत्प्रसूर्गण्डयुग्मं स्कन्धं सम्पत्प्रदा सदा।।

ॐ श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।


ॐ श्रीं पद्मालयायै स्वाहा वक्षः सदावतु।।

1/2
पातु श्रीर्मम कं कालं बाहुयुग्मं च ते नमः।।
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः पादौ पातु मे संततं चिरम्।

ॐ ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा पातु नितम्बकम्।।


ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा सर्वांगं पातु मे सदा।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मां पातु सर्वतः।।


।।फलश्रुति।।

इति ते कथितं वत्स सर्वसम्पत्करं परम्। सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्।।


गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं शरयेत्तु यः। कण्ठे वा दक्षिणे बांहौ स सर्वविजयी भवेत्।।

महालक्ष्मीर्गृहं तस्य न जहाति कदाचन। तस्य छायेव सततं सा च जन्मनि जन्मनि।।


इदं कवचमज्ञात्वा भजेल्लक्ष्मीं सुमन्दधीः। शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः।।


।।इति श्रीब्रह्मवैवर्ते इन्द्रं प्रति हरिणोपदिष्टं लक्ष्मीकवचं।।


(गणपतिखण्ड २२।५-१७)

भावार्थः-

बोले- इन्द्र, (लक्ष्मी-प्राप्ति के लिये) तुम लक्ष्मीकवच ग्रहण करो। यह समस्त दुःखों का विनाशक, परम
श्रीमधुसूदन
ऐश्वर्य का उत्पादक और सम्पूर्ण शत्रुओं का मर्दन करने वाला है। पूर्वकाल में जब सारा संसार जलमग्न हो गया था, उस
समय मैनें इसे ब्रह्मा को दिया था। जिसे धारण करके ब्रह्मा त्रिलोकी में श्रेष्ठ और सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के भागी हुए थे।

में
देवराज, इस सर्वैश्वर्यप्रद कवच के ब्रह्मा ऋषि हैं, पङ्क्ति छन्द है, स्वयं पद्मालया लक्ष्मी देवी है और सिद्धैश्वर्य के जपों
इसका विनियोग कहा गया है। इस कवच के धारण करने से लोग सर्वत्र विजयी होते हैं।

पद्मा मेरे मस्तक की रक्षा करें। हरिप्रिया कण्ठ की रक्षा करें। लक्ष्मी नासिका की रक्षा करें। कमला नेत्र की रक्षा करें।
के शवकान्ता के शों की, कमलालया कपाल की, जगज्जननी दोनों कपोलों की और सम्पत्प्रदा सदा स्कन्ध की रक्षा करें।
“ॐ श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा” मेरे पृष्ठं भाग का सदा पालन करें। “ॐ श्रीं पद्मालयायै स्वाहा” वक्षःस्थल को सदा
सुरक्षित रखे। श्री देवी को नमस्कार है वे मेरे कं कालं तथा दोनों भुजाओं को बचावे। “ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः”
चिरकाल तक मेरे पैरों का पालन करें। “ॐ ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा” नितम्ब भाग की रक्षा करें। “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै
स्वाहा” मेरे सर्वांग की सदा रक्षा करे। “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा” सब ओर से सदा मेरा पालन करे।
वत्स, इस प्रकार मैंने तुमसे इस सर्वैश्वर्यप्रद नामक परमोत्कृ ष्ट कवच का वर्णन कर दिया। यह परम अद्भुत कवच
सम्पूर्ण
सम्पत्तियों को देने वाला है। जो मनुष्य विधिपूर्वक गुरु की अर्चना करके इस कवच को गले में अथवा दाहिनी भुजा पर धारण
करता है, वह सबको जीतने वाला हो जाता है। महालक्ष्मी कभी उसके घर का त्याग नहीं करती; बल्कि प्रत्येक जन्म में
छाया की भाँति सदा उसके साथ लगी रहती है। जो मन्दबुद्धि इस कवच को बिना जाने ही लक्ष्मी की भक्ति करता है, उसे
एक करोड़ जप करने पर भी मन्त्र सिद्धिदायक नहीं होता।

2/2

You might also like