You are on page 1of 7

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥

!! श्रीगणेशायनम: !!

ऄस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्त्रस्य ।
बुधकौशशक ऊशष: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
ऄनुष्टुप् छन्त्द: । सीता शशि: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यथे मम अत्मरक्षणाथे च पाठे शवशनयोग: ॥
ऄथथ: — आस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचशयता बुध कौशशक ऊशष हैं, सीता और रामचंद्र देवता
हैं, ऄनुष्टुप छंद हैं, सीता शशि हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के
शलए राम रक्षा स्तोत्र के जप में शवशनयोग ककया जाता हैं |

॥ ऄथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।


पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धधनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ् कारूढसीता मुखकमलशमलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ् कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
ध्यान धररए — जो धनुष-बाण धारण ककए हए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में शवराजमान हैं और
पीतांबर पहने हए हैं, शजनके अलोककत नेत्र नए कमल दल के समान स्पधाथ करते हैं, जो बाएँ
ओर शस्थत सीताजी के मुख कमल से शमले हए हैं- ईन अजानु बाह, मेघश्याम,शवशभन्न ऄलंकारों
से शवभूशषत तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |

॥ आशत ध्यानम् ॥

चररतं रघुनाथस्य शतकोरटप्रशवस्तरम् ।


एकै कमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चररत्र सौ करोड़ शवस्तार वाला हैं | ईसका एक-एक ऄक्षर महापातकों को
नष्ट करने वाला है |

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।


जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमशण्डतम् ॥२॥
नीले कमल के श्याम वणथ वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोशभत, जानकी तथा
लक्ष्मण सशहत ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके ,

साशसतूणधनुबाथणपाणण निं चरान्त्तकम् ।


स्वलीलया जगत्त्रातुमाशवभूथतमजं शवभुम् ॥३॥
जो ऄजन्त्मा एवं सवथव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण ककए राक्षसों के संहार
तथा ऄपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु ऄवतीणथ श्रीराम का स्मरण करके ,

रामरक्षां पठॆ त्प्राज्ञ: पापघ्नीं सवथकामदाम् ।


शशरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
मैं सवथकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हँ |
राघव मेरे शसर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु शवश्वाशमत्रशप्रय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौशमशत्रवत्सल: ॥५॥
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, शवश्वाशमत्र के शप्रय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और
सुशमत्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |

शजवहां शवद्दाशनशध: पातु कण्ठं भरतवंकदत: ।


स्कन्त्धौ कदव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकामुथक: ॥६॥
मेरी शजह्वा की शवधाशनशध रक्षा करें, कं ठ की भरत-वंकदत, कं धों की कदव्यायुध और भुजाओं की
महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |

करौ सीतपशत: पातु हृदयं जामदग्नन्त्यशजत् ।


मध्यं पातु खरध्वंसी नाणभ जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मेरे हाथों की सीता पशत श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदशग्न ऊशष के पुत्र (परशुराम) को जीतने
वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकताथ और नाशभ की जांबवान के अश्रयदाता
रक्षा करें |

सुग्रीवेश: कटी पातु सशथथनी हनुमत्प्रभु: ।


उरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कु लशवनाशकृ त् ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हशडयों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कु ल का शवनाश
करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ् घे दशमुखान्त्तक: ।


पादौ शबभीषणश्रीद: पातु रामोSशखलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकताथ, चरणों की शवभीषण को ऐश्वयथ प्रदान
करने वाले और सम्पूणथ शरीर की श्रीराम रक्षा करें |

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆ त् ।


स शचरायु: सुखी पुत्री शवजयी शवनयी भवेत् ॥१०॥
शुभ कायथ करने वाला जो भि भशि एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुि होकर आस स्तोत्र का
पाठ करता हैं, वह दीघाथय,ु सुखी, पुत्रवान, शवजयी और शवनयशील हो जाता हैं |

पातालभूतलव्योम चाररणश्छद्मचाररण: ।
न द्र्ष्ष्टुमशप शिास्ते रशक्षतं रामनामशभ: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और अकाश में शवचरते रहते हैं ऄथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे
राम नामों से सुरशक्षत मनुष्य को देख भी नहीं पाते |

रामेशत रामभद्रेशत रामचंद्रशे त वा स्मरन् ।


नरो न शलप्यते पापै भुणि मुणि च शवन्त्दशत ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र अकद नामों का स्मरण करने वाला रामभि पापों से शलप्त नहीं
होता. आतना ही नहीं, वह ऄवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्त्रेण रामनाम्नाशभरशक्षतम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सवथशसद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर शवजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरशक्षत आस स्तोत्र को कं ठस्थ कर लेता हैं,
ईसे सम्पूणथ शसशद्धयाँ प्राप्त हो जाती हैं |

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरे त् ।


ऄव्याहताज्ञ: सवथत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक आस राम कवच का स्मरण करता हैं, ईसकी अज्ञा का कहीं भी
ईल्लंघन नहीं होता तथा ईसे सदैव शवजय और मंगल की ही प्राशप्त होती हैं |

अकदष्टवान्त्यथा स्वप्ने रामरक्षाशममां हर: ।


तथा शलशखतवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशशक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में आस रामरक्षा स्तोत्र का अदेश बुध कौशशक ऊशष को कदया था, ईन्त्होंने
प्रातः काल जागने पर ईसे वैसा ही शलख कदया |

अराम: कल्पवृक्षाणां शवराम: सकलापदाम् ।


ऄशभरामशिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान शवश्राम देने वाले हैं, जो समस्त शवपशत्तयों को दूर करने वाले
हैं (शवराम माने थमा देना, ककसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल अपदा =
सारी शवपशत्तयों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (ऄशभराम + स्+ शत्रलोकानाम) हैं, वही
श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।


पुण्डरीकशवशालाक्षौ चीरकृ ष्णाशजनाम्बरौ ॥१७॥
जो युवा,सुन्त्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान शवशाल नेत्रों वाले हैं,
मुशनयों की तरह वि एवं काले मृग का चमथ धारण करते हैं |

फलमूलशशनौ दान्त्तौ तापसौ ब्रह्मचाररणौ ।


पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कं द का अहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के
पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाइ हमारी रक्षा करें |

शरण्यौ सवथसत्वानां श्रेष्ठौ सवथधनुष्मताम् ।


रक्ष:कु लशनहन्त्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मयाथदा पुरूषोतम समस्त प्राशणयों के शरणदाता, सभी धनुधाथररयों में
श्रेष्ठ और राक्षसों के कु लों का समूल नाश करने में समथथ हमारा त्राण करें |

अत्तसज्जधनुषा शवषुस्पृशा वक्षया शुगशनषङ् ग सशङगनौ ।


रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पशथ सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संघान ककए धनुष धारण ककए, बाण का स्पशथ कर रहे, ऄक्षय बाणों से युि तुणीर शलए हए राम
और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के शलए मेरे अगे चलें |

संनद्ध: कवची खड् गी चापबाणधरो युवा ।


गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण
सशहत अगे-अगे चलकर हमारी रक्षा करें |

रामो दाशरशथ: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।


काकु त्स्थ: पुरुष: पूण:थ कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकु त्स्थ , पुरुष, पूण,थ
कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्त्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
वेदान्त्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और ऄप्रमेय पराक्रम अकद नामों
का

आत्येताशन जपेशन्नत्यं मद्भि: श्रद्धयाशन्त्वत: ।


ऄश्वमेधाशधकं पुण्यं संप्राप्नोशत न संशय: ॥२४॥
शनत्यप्रशत श्रद्धापूवथक जप करने वाले को शनशित रूप से ऄश्वमेध यज्ञ से भी ऄशधक फल प्राप्त
होता हैं |

रामं दूवाथदलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।


स्तुवशन्त्त नामशभर्ददव्यैनथ ते संसाररणो नर: ॥२५॥
दूवाथदल के समान श्याम वणथ, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की ईपरोि कदव्य नामों से
स्तुशत करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |

रामं लथशमण पूवथजं रघुवरं सीतापणत सुंदरम् ।


काकु त्स्थं करुणाणथवं गुणशनणध शवप्रशप्रयं धार्धमकम्
राजेन्त्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्त्तमूर्धतम् ।
वन्त्दे लोकशभरामं रघुकुलशतलकं राघवं रावणाररम् ॥२६॥
लक्ष्मण जी के पूवथज , सीताजी के पशत, काकु त्स्थ, कु ल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-शनधान ,
शवप्र भि, परम धार्धमक , राजराजेश्वर, सत्यशनष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्धत, सम्पूणथ
लोकों में सुन्त्दर, रघुकुल शतलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हँ |

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।


रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, शवधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना
करता हँ |

श्रीराम राम रघुनन्त्दन राम राम ।


श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणककथ श राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्त्दन श्रीराम ! हे भरत के ऄग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मयाथदा पुरुषोत्तम श्रीराम !
अप मुझे शरण दीशजए |
श्रीरामचन्त्द्रचरणौ मनसा स्मराशम ।
श्रीरामचन्त्द्रचरणौ वचसा गृणाशम ।
श्रीरामचन्त्द्रचरणौ शशरसा नमाशम ।
श्रीरामचन्त्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हँ, वाणी द्धारा
और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्त्द्र के चरणों को प्रणाम करता हअ मैं ईनके चरणों की
शरण लेता हँ |

माता रामो मशत्पता रामचंन्त्द्र: ।


स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सवथस्वं मे रामचन्त्द्रो दयालु ।
नान्त्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे शपता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | आस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे
सवथस्व हैं. ईनके शसवा में ककसी दुसरे को नहीं जानता |

दशक्षणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।


पुरतो मारुशतयथस्य तं वन्त्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
शजनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही शवराजमान हैं, मैं
ईन्त्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हँ |

लोकाशभरामं रनरङ् गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।


कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मैं सम्पूणथ लोकों में सुन्त्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्धत और
करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं शजतेशन्त्द्रयं बुशद्धमतां वररष्ठम् ।


वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
शजनकी गशत मन के समान और वेग वायु के समान (ऄत्यंत तेज) है, जो परम शजतेशन्त्द्रय एवं
बुशद्धमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं ईन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हँ |

कू जन्त्तं रामरामेशत मधुरं मधुराक्षरम् ।


अरुह्य कशवताशाखां वन्त्दे वाल्मीकककोककलम् ॥३४॥
मैं कशवतामयी डाली पर बैठकर, मधुर ऄक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कू जते हए
वाल्मीकक रुपी कोयल की वंदना करता हँ |
अपदामपहताथरं दातारं सवथसंपदाम् ।
लोकाशभरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
मैं आस संसार के शप्रय एवं सुन्त्दर ईन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हँ, जो सभी
अपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पशत प्रदान करने वाले हैं |
भजथनं भवबीजानामजथनं सुखसंपदाम् ।
तजथनं यमदूतानां रामरामेशत गजथनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पशत
तथा ऐश्वयथ प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गजथना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |

रामो राजमशण: सदा शवजयते रामं रमेशं भजे ।


रामेणाशभहता शनशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नाशस्त परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे शचत्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा शवजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपशत भगवान् श्रीराम का भजन
करता हँ | सम्पूणथ राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हँ | श्रीराम के
समान ऄन्त्य कोइ अश्रयदाता नहीं | मैं ईन शरणागत वत्सल का दास हँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं
ही लीन रहँ | हे श्रीराम! अप मेरा (आस संसार सागर से) ईद्धार करें |

राम रामेशत रामेशत रमे रामे मनोरमे ।


सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शशव पावथती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘शवष्णु सहिनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम
का स्तवन करता हँ और राम-नाम में ही रमण करता हँ |

आशत श्रीबुधकौशशकशवरशचतं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूणथम् ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रापथणमस्तु ॥

You might also like