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गुरु चांडाल योग

वैदिक ज्योतिष में गुरु चांडाल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कंु डली में गुरु अर्थात बह
ृ स्पति के साथ
राहु या केतु में से कोई एक स्थित हो अथवा किसी कंु डली में गरु
ु का राहु अथवा केतु के साथ दृष्टि आदि से कोई संबंध
बन रहा हो तो ऐसी कंु डली में गुरु चांडाल योग बनता है जिसके दष्ु प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है
तथा ऐसा जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है । इस दोष के निर्माण में बह
ृ स्पति को गुरु कहा
गयाअ है तथा राहु और केतु को चांडाल माना गया है और गरु
ु का इन चांडाल माने जाने वाले ग्रहों में से किसी भी ग्रह
के साथ स्थिति अथवा दृष्टि के कारण संबंध स्थापित होने से कंु डली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है ।
उदाहरण के लिए किसी कंु डली में गुरु यदि कंु डली के पहले घर में स्थित हैं तथा राहु अथवा केतु में से कोई एक ग्रह गुरु
के साथ ही पहले घर में स्थित है या फिर इन दोनों ग्रहों में से कोई एक ग्रह कंु डली के किसी अन्य घर में स्थित होकर
गुरु के साथ दृष्टि के माध्यम से संबंध बनाता है तो कंु डली में गुरु चांडाल योग बन जाता है । बहुत से वैदिक ज्योतिषि
यह मानते हैं कि किसी कंु डली में राहु का गरु
ु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना दे ता है जिसके
चलते ऐसा जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है जिसके लिए ऐसा
जातक अधिकतर अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है । इन वैदिक ज्योतिषियों के इस वर्ग का यह भी
मानना है कि केतु का किसी कंु डली में गरु
ु के साथ संबंध स्थापित होने पर जातक के चरित्र में अवांछित त्रटि
ु यां आ
जातीं हैं तथा इस प्रकार का प्रभाव जातक को हिंसक, धार्मिक कट्टरवादी तथा पाखंडी बना सकता है जिसके चलते जातक
अपने आस पास रहने वाले व्यक्तियों तथा समाज के लिए संकट बन सकता है ।

               किन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गुरु चांडाल नाम का यह योग प्रत्येक जातक को अशुभ प्रभाव नहीं
दे ता बल्कि इस योग के प्रभाव में आने वाले अनेक जातक बहुत अच्छे चरित्र तथा उत्तम मानवीय गुणों के स्वामीं भी
होते हैं जिन्हें समाज में विशिष्ट स्थान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त होती है । किसी कंु डली में गरु
ु तथा राहु का संयोग निश्चिय
ही जातक में भौतिकता को बढ़ावा दे सकता है किन्तु इस प्रकार के गुरु चांडाल योग का फलादे श करने से पहले कंु डली
में गुरु तथा राहु के स्वभाव को जान लेना अति आवश्यक है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी कंु डली में अशुभ राहु के
शभ ु गरुु के साथ संयोग होने से बनने वाला गरुु चांडाल योग गरु
ु की सामान्य तथा विशिष्ट विशेषताओं पर दष्ु प्रभाव
डाल सकता है जैसे कि यदि किसी कंु डली में शुभ गुरु यदि जातक के व्यवसाय को प्रदर्शित कर रहे हैं तो इस कंु डली में
गुरु तथा अशुभ राहु के संयोग से बनने वाले गुरु चांडाल योग के कारण निश्चय ही ऐसा जातक धन कमाने के लिए
अवैध तथा अनैतिक कार्यों का चुनाव कर सकता है क्योंकि अशुभ राहु का प्रभाव गुरु को भ्रष्ट कर दे गा जिसका असर
गुरु की विशेषता से संबंधित क्षेत्र अर्थात जातक के व्यवसायिक क्षेत्र में दे खने को मिल सकता है ।
           किसी कंु डली में सबसे बरु ी स्थिति तब दे खने को मिल सकती है जब कंु डली में अशभ
ु राहु तथा अशभु गरुु के
संयोग से गुरु चांडाल योग का निर्माण हो रहा हो क्योंकि इस प्रकार के गुरु चांडाल योग के प्रभाव में आने वाले जातक
को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है । किसी कंु डली में शुभ गुरु तथा शुभ राहु द्वारा बनाए
जाने वाले गरु
ु चांडाल योग के परिणाम इस योग के साथ जोड़े गए दष्ु परिणामों से बिल्कुल भिन्न होते हैं तथा शभ ु गरु

और शुभ राहु द्वारा बनाया जाने वाला यह गुरु चांडाल योग जातक को उसके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छे
तथा शुभ फल प्रदान कर सकता है । उदाहरण के लिए शुभ गुरु तथा शभ ु राहु के किसी कंु डली के पांचवे घर में स्थित
होने से बनने वाले गुरु चांडाल योग का शुभ प्रभाव जातक को एक प्रसिद्ध तथा प्रतिष्ठित दार्शनिक, समाज सेवी, संत,
आध्यतामिक गुरु अथवा आध्यतमिक रूप से विकसित व्यक्ति अथवा ज्योतिषी इत्यादि बना सकता है तथा इस योग के
प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक समाज के हित के लिए विशेष रूप से प्रयास करते हैं जिसके कारण इन्हें समाज में
यश तथा सम्मान प्राप्त होता है ।
                         इसके अतिरिक्त किसी कंु डली में गुरु तथा राहु का संयोग होने पर यह भी संभव होता है कि इन दोनों
ग्रहों में से राहु शभ ु हों तथा गरु
ु अशभु हों जिसके चलते कंु डली में गरुु चांडाल योग तो बनेगा किन्तु यहां पर अशभ
ु गरु

ही वास्तव में चांडाल का काम करें गे तथा अशुभ गुरु के प्रभाव में आने के कारण राहु को दोष लग जाएगा जिसके चलते
जातक को राहु की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है । इसलिए किसी कंु डली में गुरु तथा राहु के
संयोग से बनने वाले गरु
ु चांडाल योग के फलों के बारे में बताने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि उस कंु डली में
गुरु तथा राहु के शुभ अशुभ स्वभाव तथा इन दोनों के बल आदि के बारे में भली भांति जान लिया जाए। इसी प्रकार
किसी कंु डली में गुरु तथा केतु के संयोग से गुरु चांडाल योग बनने की स्थिति में भी गुरु राहु द्वारा निर्मित गुरु चांडाल
योग की भांति ही विभिन्न संभावनाएं हो सकतीं हैं तथा इस योग का फल गरु ु और केतु के शभ ु अशभ ु स्वभाव तथा बल
इत्यादि पर निर्भर करे गा। किसी कंु डली में अशुभ गुरु तथा अशुभ केतु के संयोग से बनने वाला गुरु चांडाल योग जातक
को एक घणि
ृ त व्यक्ति बना सकता है तथा ऐसा जातक जाति, धर्म आदि के आधार पर बहुत सारे लोगों को कष्ट पहुंचा
सकता है या उनकी हत्या भी कर सकता है जबकि शुभ गुरु तथा शुभ केतु के संयोग से बनने वाला गुरु चांडाल योग
समाज को आध्यतमिक तथा मानवीय रूप से बहुत विकसित जातक प्रदान कर सकता है जो अपना सारा जीवन मानवता
की सेवा तथा जन कल्याण में ही व्यतीत कर दे ते हैं। इस प्रकार गरु
ु चांडाल योग का परिणाम विभिन्न जातकों के लिए
भिन्न भिन्न हो सकता है तथा किसी कंु डली में गुरु तथा राहु केतु के शुभ होने की स्थिति में जातक को इस योग से
बहुत अच्छे परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं।

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