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* 🌷नेत्र रोगों के कारक ग्रह 🌷*

*वैसे तो सूर्य ग्रह धरती का जीवनदाता है लेकिन ज्योतिष में इसे एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई
है । यह मानव स्वभाव में तेजी लाता है । यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आँखों का रोग
आदि दे ता हैं। जब भी किसी जातक के जन्मपत्र में दस
ू रे व बारहवें भाव में शुक्र का वर्ग हो या
स्वयं शुक्र निर्बल बैठा हो अथवा शुक्र सूर्य के साथ किसी भी भाव में बैठा हो तो आँखों से
संबंधित रोग होते हैं। इसके साथ ही अगर मंगल-सूर्य की युति अथवा दृष्टि, सूर्य नीचोंन्मुख
होकर शनि से युत अथवा चंद्रमा या मंगल से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होती है ।इसके साथ
इन दशाओं में शारीरिक लापरवाही मोतियाबिंद अथवा रतौंधी संबंधी बीमारी का कारण बनता है ।
जिसमें चंद्रमा के होने से रतौंधी तथा शुक्र के होने से मोतियाबिंद होने का कारण होता है । जिस
मनुष्य के जन्म में षष्ठे श मंगल लग्र या षष्ठे श मेष या वश्चि
ृ क को हो अथवा मंगल के साथ
चंद्रमा या सूर्य बारहवें स्थान में हो या शनि 5, 7, 8, 9 स्थान में सिंह राशि का हो अथवा पापी
ग्रहों के साथ नीच का हो जायें अथवा राहु से पापाक्रांत हो तो आँखों में से पानी आना अथवा
फुंसी होना जैसी बीमारी होती है । यदि सूर्य शनि की युति द्वितीय तथा बारहवें स्थान में अथवा
द्वितीयेश या द्वादशेश होकर 6, 8, 12 स्थान में हो जाये तो आखों से पानी निकलता तथा रोशनी
का मंद होना संबंधित बीमारी होती है ।*

*यदि सूर्य या चंद्रमा मंगल के साथ पाप अथवा नीच स्थानों पर हो तो नेत्र में जाला बनना,
मस्सा, गुहेरी अथवा घाव होने जैसी बीमारी इन दशाओं में होती है । व्ययेश अथवा धनेश होकर
शुक्र सूर्य की यति
ु में अथवा षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो जाये या राहु से दृष्ट हो
तो नेत्र ज्योति के क्षीण होने की आशंका होती है । धनेश-व्ययेश यदि सूर्य शुक्र हो, यति
ु बनाये
अथवा दृष्टि हो, मंगल शनि की किसी भी प्रकार की दृष्टि इन ग्रहों पर हो,या द्वितीयेश व्ययेश,
यदि इन ग्रहों के छठे , आठवे अथवा बाहरवें स्थान में हो, ग्रहों के प्रभाव में हो, तो नेत्र रोग अवश्य
होता है । इन ग्रहों की दशाओं अथवा अंतरदशाओं में इन रोगों के होने की संभावना होती है ।*

*शुक्र की बुध के साथ समीपी 6, 8, 12 स्थानों में हो या त्रिक स्थानों में स्थिति हो तो रतौंधी रोग
होता है । अगर षष्ठे श मंगल लग्र में हो अथवा द्वितीयेश या द्वादशेश सूर्य राहु से पापाक्रांत
होकर नीच स्के थानों में हों तो आँखों के रोग बचपन में ही हो जाते हैं। कंु डली के दस
ू रे अथवा
बारहवें दोनों घरों में से जिसमें सूर्य अथवा शुक्र बैठा होता है उस आंख में तकलीफ होने की
संभावना अधिक रहती है । ज्योतिषशास्त्र के ग्रंथ सारावली में बताया गया है कि जिनकी कुण्डली
में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बारहवें घर में होते हैं उन्हें नेत्र रोग होता है । ये दोनों ही घर
मंगल, शनि, राहु एवं केतु के अशभ
ु प्रभाव में होने पर भी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है ।*
*कभी-कभी तो यह ग्रह दोनों आँखों को अगर प्रभावित न भी करें -आदमी को काना तो कर ही
दे ते हैं। सर्य
ू , चन्द्र तथा शनि का मंगल के साथ कोई भी सम्बंध दर्घ
ु टना में एक आँख फोड़
सकता है ।इससे स्पष्ट होता है कि सर्य
ू , शक्र
ु और चंद्रमा जो कि सब ज्योतिकारक ग्रह हैं। और
धनेश और व्ययेश जोकि नेत्रस्थ ज्योति हैं व इसके अलावा दस
ू रा, लग्र और बारहवां स्थान नेत्र
भाव का स्थान है । यदि इन में से किसी ग्रह का भी संबंध छठवे, आठवे अथवा बारहवें स्थानों से
या उनके अधिपतियों से अथवा किसी भी प्रकार से बने तथा शत्र,ु नेष्ट, अस्त, नीच अथवा
नीचास्त, पापी क्रूर ग्रहों से संबंध इन में से किसी भी ग्रहों का बनें तो नेत्र से संबंधित कष्ट दे ता
है ।*

*उपाय:- नेत्र रोग के कई योग ज्योतिषशास्त्र में बताये गये हैं। साथ ही बताया गया है कि मंत्रों
एवं ग्रहों के उपायों से नेत्र रोग दे ने वाले अशुभ योगों के प्रभाव को काफ़ी कम किया जा सकता
है । इनमें सबसे आसान उपाय है नियमित सूर्योदय के समय उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल
भरकर अर्पित करना।हर रोज़ ऐसा करने से नेत्र रोग होने की संभावना कम रहती है ।कृष्ण यजुर्वेद
साखा का उपनिषद् है चाक्षुषोपनिषद। इस उपनिषद् में आंखों को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य की
प्रार्थना का मंत्र दिया गया है । माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ करने से नेत्र रोग से
बचाव होता है । जिन लोगों की आंखों की रोशनी अल्पायु में ही कमज़ोर हो गयी है , उन्हें भी इस
मंत्र के जप से लाभ मिलता है । अगर सर्य
ू के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सर्य
ू के दिन
यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसरू ी रत्न को धारण किया जा
सकता है । सर्य
ू को अनक
ु ू ल करने के लिए यह मंत्र- 'ॐ सः सर्या
ू य नम:' का एक लाख 47 हजार
बार विधिवत जपे l*

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