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दिसम्बर, 2023 | सं�करण–01, सं–08

माह के विशिष्ट व्यक्ति संपादक की कलम से


प्रिय पाठक,

वर्ष 2023 समाप्त हो रहा है एवं नया वर्ष 2024


हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। यह वर्ष हमारे लिए
आकलन करने का वर्ष है कि हमने क्या अच्छा किया
है और अगले वर्ष के लिए हमारी रणनीति क्या होगी?

वर्ष 2023 शिक्षा विभाग के लिए बहुत महत्वपूर्णं रहा है। राज्य के विद्यालयों में 2
लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति हुई है एवं विद्यालय में गुणवत्ता सुधार हेतु कई
डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रयास किए गए हैं। विद्यालयों का सघन अनुश्रवण किया जा रहा है और विद्यालयों में
03 दिसंबर 1884 – 28 फरवरी 1963 बच्चों एवं शिक्षकों को आधारभूत सुविधाएं प्राप्त हो सके ऐसा प्रयास किया जा रहा है।
''हर किसी को अपनी उम्र के साथ सीखने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं।
खेलना चाहिए। '' मिशन निपुण बिहार के लक्ष्यों को विस्तारित करते हुए शिक्षा विभाग की नवाचार पहल
— डॉ� राजेंद्र प्रसाद के रुप में मिशन दक्ष प्रारं भ किया गया है। इसके तहत कक्षा 3 से 8 तक के सभी ऐसे
बच्चों को चयनित किया गया है जो ऊपर की कक्षाओं में पहुंचने के बावजूद भाषा एवं
गणित के बुनियादी कौशल प्राप्त नहीं कर सके हैं। राज्य के सभी 69,438 विद्यालयों
दिसम्बर माह के महत्वपूर्ण दिवस
में लगभग 25 लाख बच्चों के लिए 5 लाख से अधिक शिक्षकों के द्वारा विशेष दक्ष
1 दिसंबर-विश्व एड् स दिवस कक्षाएं संचालित की जा रही है जिससे कि वे वर्ग सापेक्ष दक्षताएं प्राप्त कर सकें । मैं
2 दिसंबर- राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस, सभी शिक्षकों को बेहतर शिक्षा के लिए किए जा रहे इस प्रयास में जुड़ने के लिए हारदिक्
विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस सराहना करता हूं ।

3 दिसंबर- विश्व विकलांगता दिवस मेरा मानना है कि हमारी सर्वश्रेष्ठ प्राथमिकता है बच्चों में कक्षावार अधिगम उपलब्धि
5 दिसंबर- विश्व मृदा दिवस को सुनिश्चित करना एवं अभिभावकों को प्रेरित करना कि वे अपने बच्चों को विद्यालय
नियमित भेजें और बच्चे घर में भी पढें इसके लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध कराएं।
10 दिसंबर- मानवाधिकार दिवस
16 दिसंबर- विजय दिवस आप विद्यालयों में किए जा रहे नवाचार से हमें परिचित कराते रहें जिससे कि हम
आपके प्रयास को अन्य शिक्षकों से भी परीचित करा सकें । आपके बहुमूल्य सुझावों की
22 दिसंबर- राष्ट्रीय गणित दिवस
हमें प्रतीक्षा रहेगी। नव वर्ष की हारदिक
् शभ
ु कामनाओं सहित,
23 दिसंबर- किसान दिवस
आपका
24 दिसंबर- राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस
25 दिसंबर- क्रिसमस डे मिथिलेश मिश्र, (भा.प्र.से.)
निदेशक, प्राथमिक शिक्षा, सह-निदेशक, राज्य FLN मिशन, बिहार सरकार
26 दिसंबर- वीर बाल दिवस
संपादकीय विषय सूची
1 ये है अपना "जादुई पिटारा" 03
‘निपुण संवाद’ को निरं तर आपका सहयोग मिलने की बहुत- 2 डा. राजेंद्र प्रसाद 04
बहुत बधाई! ि
3 वशिष्ठ नारायण संह 05
4 गणित क्यों लगता है कठिन 06
दिसंबर माह के इस गुनगुनाते ठंड की आनं द तब दोहरी हो 5 गणित रटने का अभ्यास नहीं 08
जाती है, जब हम अपने सफ़र को आगे बढ़ते हुए देख पाते हैं।
6 चित्रों में अन्तर ढ़ं ूढ़ें 09
मई, 2023 से शरू ु हुई हमारी पत्रिका ‘निपुण संवाद’ अपने
7 मां का हृदय बच्चे का विद्यालय कक्ष 10
सफ़र के 8वें पायदान पर पहुँच चुकी है। वस्तुतः यह समय
8 मिट्टी के टी एल एम से बच्चों को सिखाया गणित 12
जीवनक्रम का महत्वपूर्ण समय होता है, इस समय के पोषण ि को प्राप्त हो कॉ� पी के पर्याप्त पन्ने
9 हर अरवंद 14
पर ही विकास की गति निर्भर होती है। ‘निपुण संवाद’ की गति a विद्यालई वातावरण: विद्यालय से जुड़ाव का प्रमुख कारक 15
या स्तर इस बात का द्योत्तक है कि इसे आपका स्ह ने और प्यार b शिक्षक बनने की खुशी 16
रूपी पर्याप्त पोषण प्राप्त हो रहा है, इसका साक्ष्य आपके द्वारा c गतिविधि आधारित शिक्षा - संख्याओं के बढ़ते और
प्राप्त फीडबैक है। घटते क्रम की समझ 17
d गतिविधि आधारित शिक्षा - जादुई वर्ग 18
दिसंबर के इस अं क में विशिष्ट व्यक्ति के तौर पर डॉ� राजेन्द्र
e गतिविधि आधारित शिक्षा - शब्द पहचान और लेखन 19
प्रसाद को रखा गया है जिनका योगदान न के वल बिहार
f गतिविधि आधारित शिक्षा - चित्र के लिए शब्द 20
प्रदेश बल्कि हमारे देश के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
g गतिविधि आधारित शिक्षा -Write the first
इस अं क में बिहार के महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण alphabet of the pictures 21
संह ि के बारे में जान पायेंग,े जो अपनी प्रतिभा से विश्व को h गतिविधि आधारित शिक्षा -
हतप्रभ करते रहे। साथ ही श्री संजय कु मार चौधरी (डिप्टी Write the missing letters 22
डायरेक्टर, शिक्षा विभाग) जी के ट्विटर से प्राप्त ‘गणित क्यों i क्या आप जानते हैं 23
लगने लगता है कठिन’ तथा ‘नॉ� र्वे डायरी’ जैसे लेख इस अं क j  कविता - फलों की टोकरी 24
के विशेष आकर्षण हैं। जहाँ अनं त शक्ति जी के द्वारा ‘हर
अरविन्द को प्राप्त हो पर्याप्त कॉ� पी के पन्’ने पाठकों को एक
संरक्षक
शिक्षक के रूप में संवेदनशील कर जायेंग,े वहीँ ‘माँ का हृदय के.के. पाठक (भा.प्र.से.)
बच्चे का विद्यालय कक्ष है’ के माध्यम से एफएलएन मिशन अपर मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार
में अभिभावकों की भूमिका के महत्व को शानदार तरीके से
मुख्य संपादक
समझाने में यह अं क सफल रहा है। बुनियादी कक्षाओं के
मिथिलेश मिश्र (भा.प्र.से.)
अधिगम में सहयोग के लिए NCERT के द्वारा लॉ� न्च की
निदेशक प्राथमिक शिक्षा, सह-निदेशक राज्य FLN मिशन
गई सहयोग सामग्री ‘जादुई पिटारा’, संख्याओं को सिखाने
के लिए मिट्टी से तैयार किया गया टीएलएम तथा विद्यालयी संपादक
वातावरण इस अं क को समृद्ध और रुचिकर बनाती है। पूर्ण मृदुला कुमारी
विश्वास है कि यह अं क आपके लिए महत्वपूर्ण होगा। आपकी संपादक मंडल
प्रतिक्रिया इस अं क की उपयोगिता को मापने का मानदं ड है। संजय कुमार चौधरी, उप निदेशक, प्राथमिक शिक्षा
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में- ‘टीम निपुण संवाद’ श्रीमती विभा रानी, व्याख्याता (SCERT)
संजय कुमार, राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी (प्रभारी), BEPC
अपने लेख nipunsamvad2023@gmail.com पर भेज।ें
तारेन्द्र किशोर ◌ कमल नाथ झा ◌ शिल्पी
और अपनी प्रतिक्रियाओं को https://docs.google.com/ सुभ्रा सेन ◌ पूजा मंडल
forms/ पर साझा करते रहें।

शभ
ु कामनाओं के साथ,

संपादक मंडल

2
ये है अपना जादईु पिटारा
रा ष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की अनुशंसा के अनुरूप छोटे बच्चों के लिए
खेल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देते हुए शिक्षण अध्यापन सामग्री के
रूप में “जादुई पिटारा” को लांच किया गया। जिज्ञासा बढ़ाने और मूलभूत
चरण में शिक्षारथियों
् की विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने के
लिए इसे डिज़ाइन किया गया है। फाउं डेशनल स्टेज के बच्चों के लिए जादुई
पिटारा 13 भाषाओँ में उपलब्ध कराई गई है। इसे प्रत्येक विद्यालय के लिए
अनिवार्य किया गया है। जादुई पिटारा सीखने-सिखाने के माहौल को समृद्ध
करने और नई पीढ़ी के लिए इसे अधिक बाल-कें द्रित, जीवं त और आनं दमय बनाने की दिशा में एक सशक्त
कदम है। विकास के सभी आयामों , जैस-े शारीरिक विकास, सामाजिक-भावनात्मक और नैतिक विकास, संज्ञानात्मक विकास, भाषा और साक्षरता
विकास, सौं दर्य और सांस्कृतिक विकास पर आधारित यह शिक्षण-अधिगम सामग्री खेल-खेल में बुनियादी शिक्षा एवं संख्या ज्ञान के उद्देश्यों को प्राप्त
करने में सक्षम है। यह मनोरं जक पिटारा संसाधनों की कमी और स्थानीय संसाधनों को समायोजित करने का लचीलापन प्रदान करती है।

एक पीले रं ग के आकर्षक बक्से में खिलौने, खेल, पहेलियाँ , कठपुतलियाँ , पोस्टर, फ्लैशकार्ड, कहानी कार्ड, के साथ-साथ छात्रों के लिए गतिविधि
पुस्तकें और शिक्षकों के लिए हैंडबुक दिया गया है। हैन्डबुक की मदद से शिक्षक जादुई पिटारा में दिए गए सभी अधिगम सामग्रियों का उपयोग
उत्तम प्रकार से कर पायेंगे तथा छात्र उस अधिगम सामग्री के अधिगम को प्राप्त कर पायेंग।े जादुई पिटारा न के वल बच्चों के सभी इन्द्रियों के
विकास के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इन आकर्षक खिलौनों की वजह से उनका विद्यालय के साथ जुड़ाव भी अच्छी तरह से हो पायेगा जिससे
विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति भी बढ़ेगी। —सुभ्रा सेन

पाठकों की प्रतिक्रियाएं
निपुण संवाद के नवं बर अं क को देखने और पढ़ने का अवसर शिक्षा विभाग के निपुण संवाद का नवम्बर संस्करण काफी
प्राप्त हुआ। इस अं क में बाल दिवस और शिक्षक दिवस पर रुचिकर लगा। इस पत्रिका में FLN किट समेत प्रस्तुत विषयवस्तु
रोचक जानकारियाँ दी गई हैं, जो शिक्षकों समेत शिक्षा से जुड़े अपने आप में गागर में सागर लिए हुए है। इस पत्रिका की
तमाम हितधारकों के लिए बहुमूल्य है। इसके अलावा शिक्षा के गतिविधि आधारित पाठ शिक्षकों को कक्ष संचालन में मददगार
परिप्रेक्ष्य और नवाचारी शिक्षण अभ्यास से जुड़े लेख भी शिक्षकों साबित होगा। निपुण पत्रिका के सभी लेख बहुत सकारात्मक एवंं
के लिए काफी उपयोगी है. बच्चों के लिए पत्रिका के अं त में भाषा और गणित से जुड़ी प्रेरणाप्रद हैं। इस पत्रिका की हार्ड कॉ� पी विद्यालयों एवं शिक्षक
गतिविधियाँ भी बहुत काम की हैं। हमारे शिक्षकों को चाहिए कि वे निपुण संवाद में प्रशिक्षण संस्थानों में उपलब्ध कराये जाने से शिक्षा जगत को नया आयाम मिल
प्रत्येक अं क में प्रकाशित हो रही इन शैक्षणिक गतिविधियों का इस्तेमाल भी अपने पायेगा। —अरविन्द कुमार अम्बे, व्याख्याता (भौतिकी), डायट, शिवहर
कक्षाकक्ष में करें। —नेहा रानी, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रा.शि. एवं सर्व शिक्षा
अभियान, शिवहर बेहतरीन विषय वस्तुओं से सजा निपुण संवाद का नवं बर अं क
नवं बर 2023 का निपुण संवाद अं क काफी उपयोगी है। FLN काफी रोचक है। भाषा और बोलियों का विकास, प्रथम शिक्षा
Kit का उपयोग, गुनिया की कहानी एवं विज्ञान का बीज कै से रोपें मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद, निरक्षर गुनिया, FLN Kit का
इत्यादि कई महत्वपूर्ण विषय वस्तुओं से सजा यह अं क मुझे बहुत उपयोग इत्यादि सभी बेहतरीन विषयों का चयन‌ किया गया है।
हीं पसंद आया। —नवीन कुमार, नगर प्रारं भिक शिक्षक, प्रा वि स्वयं के लिए एवं बच्चों के लिए काफी उपयोगी है।
कोठियां उत्तरवारी टोला, नगर परिषद, शिवहर। —नवनीत कुमार मनोरंजन, प्रभारी प्रधानाध्यापक, बेसिक स्कूल, बिसाही शिवहर 3
विशिष्ट
व्यक्ति

डॉ राजेन्द्र प्रसाद: स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्र पति


ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतं त्रता
आन्दोलन के शीर्ष स्वतं त्रता सेनानियों में डॉ� राजेन्द्र प्रसाद का
में कूद पड़े। 1918 के रौलेट एक्ट और 1919 के जलियांवाला बाग़
हत्याकांड से वे गांधी जी के और निकट आ गए। फलस्वरूप राजेन्द्र
नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अं कित है। वे भारत के प्रथम बाबू वकालत को छोड़कर स्वतं त्रता संग्राम में तन-मन से समरपित

राष्ट्र पति (सन 1950 से 1962 ई. तक) एवं भारतीय राष्ट्रीय काँ ग्रेस हो गए। वर्ष 1923 में नागपुर में फ्लैग-सत्याग्रह, 1930 में नमक
के अध्यक्ष ( सन् 1935, 1939 एवं 1947) के रूप में एक लोकप्रिय सत्याग्रह, 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में राजेन्द्र प्रसाद ने बढ़-
नेता, प्रसिद्ध कानूनविद, संवेदनशील सांसद, सुयोग्य प्रशासक, श्रेष्ठ चढ़ कर भाग लिया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बं दी भी बनाया। वे
राजनेता एवं महान मानवतावादी व्यक्ति थे। वे राष्ट्रपिता महात्मा 1945 के बाद जेल से रिहा हुए तथा 1935, 1939, 1947 में भारतीय
गांधी के सच्चे अनुयायी एवं भारतीय ज्ञान-विज्ञान तथा अध्यात्म के राष्ट्रीय कॉं ग्रेस काँ ग्रेस के अध्यक्ष हुए। वर्ष 1946 में राजेन्द्र प्रसाद की
प्रतिनिधि हस्ताक्षर थे। अं तरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने।

डॉ� राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई, सारण (संप्रति वर्ष 1946 में संविधान सभा का अध्यक्ष बनाने की महत्ती जिम्मेदारी
सिवान) बिहार के गाँव में हुआ था। उनके पिता महादेव सहाय एवं माता निभाते हुए 26 नवं बर, 1949 को संविधान को अं गीकृत करते समय
कमलेश्वरी देवी थीं। उनकी धर्मपत्नी राजवं शी देवी थीं। उन्हें सामजिक डा प्रसाद ने संविधान सभा के सभी सदस्यों को हारदिक
् बधाई दी।
एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि में क्रमशः सामासिक संस्कृति (composite 26 जनवरी, 1950 को डॉ� राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्र पति पद की शपथ ली।
Culture) एवं संयुक्त परिवार का विरासत मिला था, जिसका प्रतिबिम्ब
ि उर्दू, फारसी एवं बं गला भाषा एवं साहित्य से परिचित
वे अं ग्रेजी, हंदी,
उनके मानवीय व्यक्तित्व में देखा जा सकता है| संस्कृत एवं फारसी
ि से सर्वाधिक प्रेम था| वे हंदी
थे| पर उन्हें हंदी ि आंदोलन से भी जुड़े
भाषा की परम्परा उस युग की देन थी। उनका निधन 28 फरवरी 1963,
हुए थे। 1912 में कलकत्ता के अखिल भारतीय साहित्य सम्मलेन
सदाकत आश्रम, पटना में 78 वर्ष की आयु में हो गया।
के स्वागत समिति के प्रधानमंत्री थे। 1920 में अखिल भारतीय
उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँ व के मौलवी साहब से हुई थी। उन्होंने ि साहित्य सम्मलेन, पटना में 10वां अधिवेशन के भी प्रधानमंत्री
हंदी
राजेन्द्र प्रसाद को फ़ारसी भी पढ़ाई थी। बाद में उन्होंने छपरा जिला ि साहित्य सम्मलेन के सभापति
थे। 1926 में बिहार प्रदेशीय हंदी
स्कूल एवं टीके घोष अकादमी में शिक्षा प्राप्त की। 18 वर्ष की उम्र में ि में उनकी ‘आत्मकथा’ बहुत ही प्रसिद्ध है| उन्होंने हंदी
थे। हंदी ि
उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंसी कॉ� लेज में प्रवेश लिया। साप्ताहिक ‘देश’ और अं ग्रेजी पाक्षिक ‘सर्चलाईट’ का सम्पादन भी
1915 में उन्होंने स्वर्णपदक के साथ एलएलएम की परीक्षा पास की। किया। पटना से प्रकाशित ‘लॉ� वीकली’ का भी सम्पादन किया था|
पुनः उन्होंने लॉ� विषय में डॉ� क्टरेट की उपाधि हासिल की। उनके उनकी अन्य रचनाएं भी महत्वपूर्ण हैं- ‘आत्मकथा’ (1946), बापू के
व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के कु लपति कदमों में (1954), इण्डिया डिवाइडेड (1946), सत्याग्रह एंड चं पारण
तथा प्रसिद्ध विधिवेत्ता तथा विद्वान न्यायाधीश आशत
ु ोष मुखर्जी ने (1922), गांधी की देन, भारतीय संस्कृति, खादी का अर्थशास्त्र।
उन्हें विश्वविद्यालय के विधि विभाग में एक प्राध्यापक के पद पर
अं त में सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें “भारत रत्न”
उनकी नियुक्ति की अनुशंसा की। 1916 में पटना उच्च न्यायालय की
की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। वे भारत के एक महान सपूत
स्थापना के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने पटना में वकालत की।
थे। उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम होगी।
महात्मा गांधी के आह्वान पर शरू
ु हुए चं पारण सत्याग्रह के दौरान
अवधेश कुमार दीक्षित, सहायक प्राध्यापक (अतिथि), टीचर्स ट्रेनंग
ि
उनके संपर्क में राजेन्द्र बाबू आये। इस घटना ने उनके जीवन की
कॉ� लेज, बरारी, भागलपुर (बिहार) तथा रश्मि कुमारी, व्याख्याता,
दशा एवं दिशा ही बदल दी। वह देश को औपनिवेशिक गुलामी से
पीटीईसी, मसौढ़ी, बिहार
मुक्त करने के लिए एक संकल्प के साथ राजनितिक गतिविधियों

4
गणित
दिवस पर
विशेष
वशिष्ठ नारायण सि ंह: गणित और उससे परे की यात्रा
2 अप्रैल, 1942 को भारत के बिहार प्रान्त में भोजपुर जिले के बसंतपुर
ि विनम्र परिस्थितियों के बीच
गाँ व में जन्मे, श्री वशिष्ठ नारायण संह
ि का काम, विशेष रूप से "रिप्रोड्यूसंग
महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। श्री संह
कर्नेल्स और ऑ� परेटर्स विथ ए साइक्लिक वेक्टर" पर विषय की गहरी
ि

एक गणितीय प्रतिभा के रूप में उभरे। पुलिस कॉ� न्स्टेबल लाल बहादुर संह ि समझ और आगे की खोज के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय था।
के पुत्र और लहासो देवी के पुत्र, श्री संहि की एक छोटे गाँ व से गणित में
संघर्ष और साहस: मानसिक स्वास्थ्य के साथ जूझना
अकादमिक उत्कृ ष्टता की ऊँचाइयों तक की यात्रा असाधारण बुद्धिमत्ता,
धीरज और मानवीय आत्मा की कहानी है। ि
गणित की दुनिया में अपनी तेज़ी से बढ़ती प्रतिष्ठा के बावजूद, श्री संह
का जीवन चुनौतियों से भरा रहा।
प्रारं भिक वर्ष और शिक्षा
1970 के दशक के अं त में, उन्हें
अपने शरु ु आती बचपन से ही, श्री सिज़ोफ्रेनिया का पता चला, एक
संह ि की गणित के प्रति असाधारण घटना जिसने उनके कै रियर और
प्रतिभा स्पष्ट थी। उन्होंने अपनी व्यक्तिगत जीवन पर गहरा प्रभाव
प्रारं भिक शिक्षा एक गाँ व के स्कूल डाला। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं
में प्राप्त की और बाद में नेतरहाट ि के जीवन
के साथ संघर्ष ने श्री संह
आवासीय स्कूल में पढ़ाई की, जहां के एक कठिन दौर को चिह्नित किया,
उनकी गणित में असाधारण प्रतिभा फिर भी उनका गणित के प्रति जुनून
और अधिक स्पष्ट हो गई। उनकी अडिग रहा।
अकादमिक प्रतिभा ने उन्हें पटना
विरासत और स्थायी प्रभाव
साइं स कॉ� लेज के लिए अग्रसर
किया, जहाँ उन्होंने अपनी स्नातक ि की कहानी मानव स्थिति की
श्री संह
की पढ़ाई की, इसके बाद पटना नाजुकता और साहसिकता की एक
विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की, जहाँ वे गणित में अपनी मारमिक
् याद दिलाती है। उनके मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष विशेष प्रतिभाओं
असाधारण क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध रहे। वाले व्यक्तियों के लिए इस क्षेत्र में अधिक जागरूकता और समर्थन की
आवश्यकता को उजागर करते हैं। श्री संह ि 14 नवं बर, 2019 को दुनिया से
वैश्विक अकादमिया में एक छलांग
चले गए, एक ऐसी विरासत छोड़कर जो आज भी गणितज्ञों और विद्वानों
ि की अकादमिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें
श्री संह को प्रेरित करती है।
कै लिफोरनिया
् विश्वविद्यालय, बर्कले में पढ़ाई करने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त
उनका जीवन मानव बुद्धि और आत्मा की शक्ति का प्रमाण है। एक समाज
हुई। यह अवसर उनके जीवन के एक शानदार अध्याय की शरु ु आत थी।
ि की
में, जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर गलत समझा जाता है, श्री संह
ि ने फंक्शनल एनालिसिस
प्रोफेसर जॉ� न एल. के ली के मार्गदर्शन में, श्री संह
यात्रा ऐसी चुनौतियों से जूझ रहे लोगों के लिए सहानुभूति, समझ और
में अपनी पीएचडी की पढ़ाई की, जिसमें उन्होंने "रिप्रोड्यूसंग ि कर्नेल्स और
समर्थन के महत्व को रेखांकित करती है।
ऑ� परेटर्स विथ ए साइक्लिक वेक्टर" पर के न्द्रित किया। उनकी डॉ� क्टरल
थीसिस, जो उन्होंने 28 वर्ष की आयु में पूरी की, गणित के क्षेत्र में एक निष्कर्ष
महत्वपूर्ण योगदान थी और यह उन्हें अं तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के एक गणितज्ञ के
वशिष्ठ नारायण संह ि का जीवन और गणित में उनके योगदान व् ज्ञान के
रूप में स्थापित किया।
प्रति अडिग जुनून, लचीलापन और विजय की कहानी है। बसंतपुर के एक
व्यावसायिक मील के पत्थर और योगदान साधारण गांव से गणित के विश्व मंच तक की उनकी यात्रा प्रेरणा का एक
प्रकाशस्तं भ है, जो मानव बुद्धि की असीम क्षमता और हर व्यक्ति में इस
ि के कै रियर का प्रक्षेपण नासा
अपनी डॉ� क्टरेट की सफलता के बाद, श्री संह
अमूल्य संपत्ति को पोषित और समर्थन करने के महत्व को दर्शाती है।
में काम करने और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में पढ़ाने के रूप
में हुआ। उनके शोध और शिक्षण ने फंक्शनल एनालिसिस के क्षेत्र पर सौजन्य से श्री संजय कुमार चौधरी, उप निदेशक, प्राथमिक शिक्षा, बिहार

5
गणित
दिवस पर
विशेष

गणित क्यों लगने लगता है कठिन

अ पितु हमारे दैनिक जीवन में गणितीय संक्रियाओं का


जितना अधिक प्रयोग होता है, उतना किसी दूसरे विषय
का नहीं हो पाता है फिर भी बच्चे गणित विषय से डरने लग
आवश्यकता होती है। यदि कोई छात्र नियमित रूप से
अभ्यास नहीं करता है, तो उसे पेश किए गए नए विषयों
के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो सकता है। उदाहरण
जाते हैं| आइये जानते हैं ऐसे कु छ विशेष कारणों को जिससे के लिए, द्विघात समीकरणों को हल करना सीखने के लिए
गणित कठिन लगने लगता है | समीकरणों को गुणनखंडित और सरल बनाने की गहन
समझ की आवश्यकता होती है - कौशल जो निरं तर अभ्यास
अमूर्त अवधारणाएँ : मूर्त अनुभव के माध्यम से गणितीय अमूर्त
से आते हैं। संभाव्यता के विषय पर विचार करें । स्वतं त्र
विचारों का विकास करना ही अमूर्त धारणाएं हैं | गणित अमूर्त
घटनाओं, आश्रित घटनाओं, या परस्पर अनन्य घटनाओं
अवधारणाओं और संख्याओं से संबं धित है। उदाहरण के लिए,
जैसी अवधारणाओं को
काल्पनिक संख्याओं की
समझने के लिए ना
अवधारणा (जैसे - 1,2,3
के वल सैद्धांतिक ज्ञान
आदि संख्याएँ ) ये कोई
की आवश्यकता होती है,
ऐसी चीज़ नहीं है जिसे
बल्कि इन अवधारणाओं
आप रोजमर्रा की दुनिया में
को मजबूत करने के लिए
देख सकते हैं। यह अमूर्त
समस्याओं को हल करने
प्रकृति कु छ लोगों के लिए
के लिए बहुत अभ्यास की
इन विचारों को समझना
भी आवश्यकता होती है।
कठिन बना सकती है।
पर्याप्त अभ्यास के बिना,
संचयी शिक्षण: गणित छात्र इन अवधारणाओं
एक ऐसा विषय है जहां के बीच भ्रमित हो सकते
अवधारणाएँ एक-दूसरे हैं, जिससे समस्याओं को
पर आधारित होती हैं। हल करने में त्रुटियां हो
यदि आप शरु
ु आत में सकती हैं।
ही किसी अवधारणा को
प्रासंगिकता का अभाव: कभी-कभी, छात्र गणित में जो सीख
समझने से चूक जाते हैं, तो इससे भविष्य की अवधारणाओं को
रहे हैं उसकी अपने दैनिक जीवन में प्रासंगिकता देखने के लिए
समझना मुश्किल हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी
संघर्ष करते हैं | अतः ये बहुत आवश्यक है कि जो भी बच्चे को
छात्र को गुणन में कठिनाई होती है, तो भिन्न या बीजगणित से
पढ़ाया जाये उसे दैनिक जीवन की क्रियाओं से जोड़कर बताना
परिचित कराने पर उन्हें कठिनाई होने की संभावना होगी।
चाहिए अन्यथा उन्हें यह समझने में कठिनाई हो सकती है कि
अपर्याप्त अभ्यास: गणित के लिए निरं तर अभ्यास की

6
उन्हें ऐसे विषयों को सीखने की आवश्यकता गणित का संकट काल
क्यों है ।
मुख्यतः दो ऐसी जगह हैं जहाँ विशेष रूप से ध्यान देने की
ि
डर और चंता: ि एक वास्तविक घटना
गणित की चंता आवश्यकता है क्योंकि यहीं से बच्चों के गणित में पिछड़ने की
है। उदाहरण के लिए, समयबद्ध परीक्षा में समस्याओं को तुरंत संभावना सबसे अधिक होती है |
हल करने का दबाव अनुचित तनाव का कारण बन सकता है,
सबसे पहले हम प्राकृतिक संख्याओं की आरामदायक गिनती,
जिससे छात्रों के लिए स्पष्ट रूप से सोचना मुश्किल हो जाता है
0, 1, 2, 3 के परिचित अं कों के साथ आगे बढ़ते हैं... लेकिन
और संभावित रूप से गलतियाँ हो सकती हैं और यह धारणा
फिर, जैसे ही भिन्न दृश्य में प्रवेश करते हैं, वे हमसे न के वल
प्रबल हो सकती है कि गणित कठिन है। कल्पना कीजिए कि
'कितने', बल्कि 'क्या' पूछते हैं। और यह हमारे बच्चों के लिए
एक छात्र से उसकी पूरी कक्षा के सामने बोर्ड पर एक जटिल
गणित के डगर के रोड़े बनने लगते हैं | जिससे संख्याओं की
समीकरण को हल करने के लिए कहा जा रहा है। गलत होने
समझ पूरी तरह से प्रभावित होने लगती है |
ि का कारण बन सकता है,
का डर और समय का दबाव चंता
जिससे समस्या को सटीक रूप से हल करना अधिक चुनौतीपूर्ण दूसरा है बीजगणित - यह रोलरकोस्टर को पीछे की ओर
हो जाता है। चलाने जैसा है, क्योंकि अब हम के वल संख्याएँ दर्ज करने और
परिणाम निकालने तक
शिक्षण विधियाँ :
ही सीमित नहीं हैं।
कभी-कभी, जिस तरह
बीजगणित हमें अपनी
से गणित पढ़ाया जाता
सोच को उलटने की
है वह इसकी कठिनाई
चुनौती देता है। यह
में योगदान कर सकता
हमें परिणाम देता है -
है। यदि किसी शिक्षक
मान लीजिए, 'x प्लस
की पद्धति किसी छात्र
8 से 15 बराबर 15' -
की सीखने की शैली
और हमसे पूछता है
के अनुरूप नहीं है, तो
कि ज्ञात 8 के साथ,
इससे समझ कठिन हो सकती है। यदि कोई शिक्षक वास्तविक
गणना में क्या हुआ। यह एक रहस्य को सुलझाने जैसा है जहां
दुनिया के उदाहरणों का उपयोग करता है तो अवधारणा अधिक
उत्तर ज्ञात है, लेकिन हमें मूल घटकों को उजागर करने की
स्पष्ट और अधिक प्रासंगिक हो सकती है।
आवश्यकता है। हालाँकि याद रखें, बीजगणित कोई राक्षस
गणितीय भाषा: गणित की अपनी भाषा है जो प्रतीकों और नहीं है। आप इसे कभी भी उल्टा कर सकते हैं, जैसे 15 में से 8
नोटेशन से भरी हुई है। उदाहरण के लिए, जब छात्र पहली बार घटाकर 'x' को हल करना।
असमानताओं के बारे में सीखते हैं तो उन्हें यह भ्रमित करने
श्री संजय कुमार चौधरी
वाला लग सकता है क्योंकि वे समीकरणों के आदी हो चुके हैं।
उप निदेशक, प्राथमिक शिक्षा,
पर्याप्त स्पष्टीकरण और अभ्यास के बिना प्रतीकों और चित्रों की
बिहार X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल से
व्याख्या करना कठिन हो सकता है।

7
गणित रटने का अभ्यास नहीं

“अं कगणित तो जीवन का अं ग है। चाहे स्कूल में पढ़े हों या


नहीं , सभी गुणा-भाग करना जानते हैं। इसलिए जब कोई
गलत नहीं था। इस तरह के कई अनुमान हम हर समय लगाते रहते
हैं, जो हमने गणित की किताब से ही सीखा हो यह जरूरी नहीं ।
कहता है कि वह गणित में कमजोर है, मुझे समझ नहीं आता कि
भारतीय विद्यालयों में अक्सर पहाड़ा रटाने पर बहुत बल दिया जाता
कहना क्या चाहता है। शायद गति धीमी होगी, तरीका अलग होगा,
है। पूरी कक्षा जोर-जोर से समवेत स्वर में शिक्षक के साथ दो से
मगर इसे मैं कमजोरी नहीं मानता।”, एक शिक्षक ने कहा
बीस का पहाड़ा बोलती है, और यह धीरे-धीरे याद हो जाता है।
भारतीय बच्चों को गणित का अभ्यास खूब कराया जाता है। प्राथमिक लेकिन यह पद्धति यूरोप के कई विद्यालयों में है ही नहीं । वे पहाड़ा
शिक्षा का एक बड़ा समय गणित में जाता है, और गणित से प्रतिभा इस तरह नहीं रटते। मुमकिन है कि भारतीय बच्चे उनसे तेज गति से
तय की जाती है। कु छ गुणा-भाग कर लेते हों
बच्चे इस विषय से और उन्नीस को नौ से
खौफ खाने लगते हैं। गुणा करने के लिए उन्हें
गणित के अतिरिक्त मन में कु छ गिनती न
ट्यूशन पढ़वाए जाते करनी पड़ती हो। मगर
हैं। कु छ हार मान लेते इस तरह वह गुणा
हैं कि गणित उनके बस करने की पद्धति सीख
की नहीं । मगर क्या गए हों , यह जरूरी
वाकई गणित गिने- नहीं । उन्होंने सिर्फ रट
चुने लोगों के लिए लिया कि उन्नीस को नौ
है? क्या हर जगह हर से गुणा करने पर उत्तर
किसी के लिए गणित मौजूद नहीं ? एक सौ इकहत्तर आएगा। यह कै से आएगा, ये वह बाद में सीखते हैं।

मैं एक बार जिमनाजियम से निकल रहा था तो वहाँ लॉ� कर में तीन रामानुजन पर बनी अं ग्रेजी फिल्म ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी’ में एक
अं कों वाले ताले लगे हुए थे। एक पिता अपने बच्चे से पूछ रहे थे कि दृश्य है जब रामानुजन इं ग्लैंड पहुँचते हैं। वह बहुत तेज गति से
अगर तुम अं क भूल गए हो, तो तुम्हें यह ताला खोलने के लिए कितनी कठिन प्रश्न हल कर लेते हैं, मगर उनके गाइड उन्हें समझाते हैं कि
बार कोशिश करनी होगी? उस बच्चे ने थोड़ी देर सोचा और हँस कर शोधपत्र में हमें हल तक पहुँचने का रास्ता दिखाना होगा। अन्यथा
कहा- “फिर तो हजार बार कोशिश करनी होगी” वह मान्य नहीं होगा। रामानुजन कहते हैं कि उनके पास समय कम
है, और इस पद्धति में तो बहुत समय लगेगा। उनके गाइड कहते हैं
वह सही कह रहा था।
ि वह सर्वमान्य होता
कि वैज्ञानिक पद्धति में समय तो लगता है, कंतु
शून्य से नौ अं क तक हर खाँचे में दस संभावनाएँ हैं। अगर दो खाँचे है। अभी तुम्हारा उत्तर मात्र तुम्हारे लिए सही है और मुझे भी इसमें
होते तो सौ, और तीन खाँचे में हजार संभावनाएँ हो सकती हैं। इस शंका नहीं , लेकिन दुनिया को तो प्रूफ चाहिए। अन्यथा इन कागजों
सवाल को मुश्किल बनाया जा सकता है, मगर अपने अनुमान से वह का कोई मोल नहीं , जो तुमने लिखे हैं।

8
यूँ भी कंप्यूटर के जमाने में पहाड़ा रटने का मूल्य घट गया गणित हमें विश्लेषण की बुद्धि देती है। यह हर किसी के लिए है।
है। गणित की उच्च शिक्षा की परीक्षाओं में आप कै लकु लेटर अमरीकी विश्वविद्यालयों में अगर कोई इतिहास में भी एम.ए. करना
का प्रयोग कर सकते हैं। एकाउं ट के काम भी कागज पर चाहता है, तो उसकी पहले गणित की परीक्षा ली जाती है। मैंने भी
जोड़ कर नहीं , एक्सेल शीट पर होते हैं। वह परीक्षा दी थी, जब मैं डाक्टरी से जुड़े रिसर्च के लिए गया। मुझे
पहले समझ नहीं आया कि मेरा गणित से क्या लेना-देना? मगर सच
सच पूछिए तो गणित में हमेशा अव्वल अं क लाने के बावजूद जब मैं
यही है कि गणित के प्राथमिक ज्ञान के बिना आप दुनिया में कु छ भी
विभाग का बजट उठाता हूँ, मेरे हाथ-पाँ व फूल जाते हैं। वहीं नॉ� र्वे के
नहीं कर सकते। चाहे कु र्सी की मरम्मत करनी हो, तबला बजाना हो
औसत व्यक्ति भी पैसों का गणित खूब समझते हैं। मैं पूछता हूँ कि
या चाहे आलू उबालने हों ।
आपने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है? कहते हैं- नहीं ! स्कूल में जो गणित
पढ़ा, बस वही। (हँस कर) बाकी तो बिजली के बढ़ते बिल और पेट्रोल ि
एक बार वंबलडन टेनिस देखते हुए मित्र ने पूछा कि मान लो इस
के दाम सिखा देते हैं। टू र्नामेंट में दो हजार खिलाड़ी हैं। हर मैच में हारने वाला बाहर हो
जाता है, तो कु ल कितने मैच हों ग?
े एक मित्र कापी-कलम लेकर
यह उत्तर गौर करने लायक है। जो गणित हर व्यक्ति को जीवन भर
जोड़ने लगे कि पहले दो से एक हजार बचेंग,े फिर पाँच सौ, फिर ढाई
काम आएगा, उसे रटा कर नहीं सिखाया जा सकता। एक गणित की
सौ…वह जोड़ ही रहे थे तो मित्र ने पूछा कि जीतेंगे कितने, और हारेंगे
किताब में गुणा सिखाने के अध्याय की पहली पंक्ति है- रट कर गुणा
कितने? उन्होंने कहा- एक जीतेगा और 1999 हारेंग…
े चूँकि हर हारने
करना हमें भूलना होगा।
वाला एक मैच हारेगा, और बाहर जाएगा। कु ल खेलों की संख्या भी
सभी शिक्षक यह अच्छी तरह जानते हैं कि उन्नीस को नौ से गुणा 1999 होगी।
करने की विधि क्या है। इसे वह अलग-अलग उदाहरणों से समझा
यह कु छ ऐसा ही आकलन था, जो उस बच्चे ने जिमनाजियम में किया
सकते हैं। जैसे यह बताना कि उन्नीस गुणा नौ और नौ गुणा उन्नीस
था। और दोनों सही थे।
एक ही है। शून्य का महत्व समझाना कि उन्नीस को दस से, या नौ
को बीस से गुणा करना सुलभ है। इन दोनों तरीकों से उत्तर के करीब अगर गणित को सवालों की लं बी लड़ियों और रटने की पद्धति से
पहुँचा जा सकता है। तालिका से परिचय कराना, जो एक्सेल शीट मुक्त कर दिया जाए, और बच्चों को उत्तर का रास्ता बताया जाए, तो
का मूल है। तीन-चार (3 x 4) की तालिका उन्हें बारह खाने का रास्ता उन्हें यह जीवन भर साथ देगी।
दिखा सकती है। एक बार ऐसे चित्र उनके मन में छपते गए तो अं क
डॉ� प्रवीण कुमार झा, चिकित्सक एवं लेखक, नॉ� र्वे
उन्हें कीड़े-मकोड़े की तरह नहीं दिखेंग।े

दोनों चित्रों में 5 अन्तर ढू ं ढें

9
समुदाय
विशेष

"माँ का हृदय बच्चे का विद्यालय कक्ष है।"


—हेनरी वार्ड बीचर

मु झे उन सभी संघर्षशील माताओं का प्रतिनिधित्व


करने में गर्व है जो अपने बच्चों को शिक्षित करने में
एक बच्चे के जीवन में हमारी भूमिका उनकी शैक्षिक यात्रा
पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। विश्व बैंक द्वारा "सीखने
चुनौतियों का सामना कर रही हैं। यह संभव है कि हममें से के संकट" को स्वीकार करना हममें से उन लोगों के लिए
कई लोगों को सिनैप्स और निराशाजनक था जो कम
न्यूरो कनेक्शन के पीछे के उम्र से ही बच्चों को शिक्षित
तं त्रिका विज्ञान के बारे में करने का प्रयास कर रहे हैं।
सटीक जानकारी नहीं हो, यह समझना महत्वपूर्ण है
जो मस्तिष्क के विकास के कि इस संकट से निपटना
लिए महत्वपूर्ण हैं। प्रोफ़े सर एक जटिल कार्य है जिसका
हेकमैन के अनुसार, बचपन कोई आसान समाधान नहीं
के शरु
ु आती वर्ष यकीनन है। हालाँकि, एक साथ काम
किसी व्यक्ति के जीवन में करके और सफल तरीकों
सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। को साझा करके , हम सभी
जन्म से पांच वर्ष की आयु के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
तक मस्तिष्क का तेजी सुनिश्चित करने की दिशा में
से विकास होता है और महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते
यह भविष्य की सफलता हैं। इसे ध्यान में रखते हुए,
के लिए आवश्यक बड़ी संख्या में बच्चों और
संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक कौशल प्राप्त शिक्षकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बिहार में एफएलएन
करता है। अर्थशास्त्रियों , मनोवैज्ञानिकों , सांख्यिकीविदों और मिशन की शरु
ु आत की गई। जबकि उन्हें निरं तर समर्थन
तं त्रिका विज्ञानियों की एक टीम के साथ आयोजित प्रोफेसर प्राप्त होता है, प्रभावी कार्यान्वयन के लिए समग्र योजना में
हेकमैन का अभूतपूर्व शोध दर्शाता है कि प्रारं भिक बचपन के माता-पिता, विशेषकर माताओं को शामिल करना महत्वपूर्ण
विकास का व्यक्तियों और समग्र रूप से समाज के आरथिक,
् है। कु छ लोग सामान्यवादी बनाम विशेषज्ञ दृष्टिकोण के
स्वास्थ्य और सामाजिक परिणामों पर सीधा प्रभाव पड़ता बारे में बहस कर सकते हैं, लेकिन जो लोग शिक्षा प्रणाली
है। इस तथ्य को माता-पिता को अवश्य समझना चाहिए, में शामिल हैं उनमें पूरी प्रक्रिया को सकारात्मक रूप से
विशेषकर माँ को जो आमतौर पर प्राथमिक देखभालकर्ता के प्रभावित करने की क्षमता है। शिक्षकों और शिक्षण विशेषज्ञों
रूप में कार्य करती है।

10
की अलग-अलग भूमिकाएँ और प्राथमिकताएँ पास की जगह का पता लगाने के लिए इं द्रियों के उपयोग
होती हैं, जैसे स्कूल समुदाय में माताओं की एक को प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार शिक्षक का कार्य माँ
अद्वितीय स्थिति होती है। माताएं, उनकी शिक्षा के के समान होता है और उसका निर्वहन भी माँ ही करती है।
स्तर की परवाह किए बिना, अज्ञानता के खिलाफ लड़ने के न्यूरो-साइं स में व्यापक शोध के बावजूद, हम अभी भी पहली
लिए प्रेरित होती हैं। यूनिसेफ का बाल विकास देखभाल बार स्कूल में प्रवेश करने वाले छोटे बच्चे की सीखने की
(सीसीडी) ढांचा समग्र प्रारं भिक बचपन के विकास में मातृ प्रक्रिया को पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं। परिणामस्वरूप,
भागीदारी के महत्व को पहचानता है। यह रूपरेखा बच्चे के हमें एक ऐसे शिक्षक की आवश्यकता होती है जिसके पास
जीवन के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करने के लिए एक शिक्षा विशेषज्ञ के समान स्तर की समझ न हो, लेकिन वह
व्यापक दृष्टिकोण अपनाती है। एनआईपीयूआर दिशानिर्देश बच्चे को सही रास्ते पर मार्गदर्शन कर सके । के वल विशेषज्ञों
स्कूलों और आंगनवाड़ी कें द्रों के साथ माताओं की भागीदारी से समाधान मांगना अक्सर वास्तविक शिक्षक के लिए
के विस्तार के रूप में अतिरिक्त जटिलताएँ
सामुदायिक भागीदारी पैदा करता है। सीखना
का प्रस्ताव करते हैं। दही बनाने के समान
राज्य को ऐसी नीतियां है, जहां अनुकूल
लागू करनी चाहिए जो परिस्थितियां बनाना
ईसीसीई/एफएलएन आवश्यक है, और
में मातृ भागीदारी के वल निरं तर निगरानी
का समर्थन करती हैं, से वांछित परिणाम
जिसमें माताओं की नहीं मिलेंग।े तत्काल
उपस्थिति, लचीली परिणाम तलाशते समय
कार्य व्यवस्था और नीति निर्माताओं को इसे
रचनात्मक भागीदारी ध्यान में रखना चाहिए।
शामिल है। इसलिए, सभी सरकारी
पहलों में माताओं
जब एक शिक्षक कक्षा
को प्राथमिकता देना
में प्रवेश करता है,
महत्वपूर्ण है, जिससे हम एक सक्षम बिहार के दृष्टिकोण को
तो वे छोटे बच्चों के दिमाग में प्रवेश कर रहे होते हैं, जो
पूरा कर सकें । आर्यभट्ट और विद्यापति जैसी शख्सियतों की
अपने सिनैप्टिक कनेक्शन के चरम पर पहुंच गए हैं। सीखना
समृद्ध विरासत के साथ, हम साक्षरता और संख्यात्मकता
ब्लैकबोर्ड और चॉ� क का उपयोग करने के पारं परिक तरीकों
जैसे बुनियादी क्षेत्रों में भावी पीढ़ियों को विफल होने का
से परे है। शिक्षण की पुरानी पद्धति, जिसे "चॉ� क एंड टॉ� क"
जोखिम नहीं उठा सकते।
के नाम से जाना जाता है, अब बच्चों के लिए रोमांचक नहीं
है, और साक्षरता उनके लिए अरुचिकर हो गई है। इसके डॉ� . अं शू कुमारी,
बजाय, इस स्तर पर, शिक्षक की भूमिका याद करके अक्षरों मुख्य सलाहकार, समग्र शिक्षा, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता
या रं गों को सिखाना नहीं है, बल्कि उनके भीतर और आस- विभाग, नई दिल्ली

11
गणित
दिवस पर
विशेष

मिट्टी के टीएलएम से बच्चों को सिखाया गणित

नि पुण भारत अभियान के अं तर्गत बच्चों को भाषा और गणित


में समझ के साथ सीखने की दिशा में जोर-शोर से विभिन्न
अलग रं गों से रं ग कर अलग रखीं । गोलियों को रं गने में भी बच्चों
ने अपना सहयोग प्रदान किया। इस प्रकार हमारा पहला टीएलएम
कार्यक्रम व कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं। बच्चों को निपुण बच्चों को गिनती सिखाने के लिए तैयार हुआ। सादी गोलियों की मदद
बनाने की दिशा में हम शिक्षक भी आए दिन नित नए-नए प्रयास से बच्चों ने 1 से 100 तक की गिनती का अभ्यास शरू
ु किया। बच्चों
कर रहे हैं। इन प्रयासों की श्रृं खला में अपना एक नवीन अनुभव यहां को मिट्टी की गोलियों से गिनती करने में बहुत आनं द आ रहा था। जब
साझा कर रही हूं । एक बच्चा गिनती करता तो बाकी सभी बच्चे गौर से सुनते रहते और
जहां कहीं भी गिनती में गलती होती तो बच्चे टोक पड़ते।
मिट्टी की टीएलएम
मिट्टी की गणितीय डाइस - गिनती के बाद हमने जोड़ और घटाव
हम अक्सर शिक्षा में शून्य निवेश टीएलएम एवं नवाचार के प्रयोग
के लिए गणितीय डाइस बनाई। इसमें तीन डाइस बनायी गई एक
की बात करते हैं। इस क्रम में आइए मिट्टी से बने रं ग-बिरं गे
छोटी और दो बड़ी आकार की। छोटे डाइस में हमने जोड़ और घटाव
टीएलएम के बारे में जानते हैं जिससे भाषा और गणित विषय
के गणितीय चिह्न का आकार बनाया। बाकी दो डाइस में 1 से 6 तक
की प्रारं भिक समझ बच्चों में अच्छे से विकसित की जा सकती
के अं क और दूसरे में
है। निपुण भारत के
7 से 12 तक संख्या
उद्देश्य की प्राप्ति
लिखी। इससे जोड़
में भी यह मिट्टी की
और घटाव की
टीएलएम काफी
क्रिया खेल-खेल में
सहयोगी साबित हो
बच्चे कर पाते हैं।
सकती है। खासकर
जैसे – अब इन तीनों
फांउडेशनल एज
डाइस को एक साथ
ग्रुप के बच्चों को
फेंकते हैं और देखते
संख्या ज्ञान के
हैं कि किस डाइस के उपर क्या लिखा है। मान लेते हैं कि अं क वाले
अं तर्गत गिनना, जोड़ना,घटाना खेल-खेल में सिखाया जा सकता
डाइस में एक में 5 लिखा है और दूसरे में 8 लिखा है तथा गणितीय
है। साथ ही भाषा के अं तर्गत अक्षरों का ज्ञान बच्चों को आसानी
चिह्न वाले डाइस में जोड़ का चिह्न है तो इसे क्रम से सजा दिया जाता
से करवाया जा सकता है।
है 5+8। इसके बाद जो रं गीन गोलियां बनाई गई हैं, उसका उपयोग
मिट्टी की गोलियों - बच्चों को कंचे/मिट्टी की गोलियों से खेलना बहुत किया जाता है। अगर 5 अं क वाले डाइस का रं ग हरा है तो हरे रं ग
पसंद होता है। ऐसे में बच्चों को एक होमवर्क दिया कि कल सभी लोग की पांच गोली डब्बे में से उठा कर एक जगह रखी जाती है और फिर
मिट्टी की पांच गोलियां बना कर लाएंगे। यह सुनकर सभी बच्चे खुशी 8 अं क वाले डाइस का रं ग पीला है तो पीले रं ग की आठ गोलियां
से झूम उठे । चूं कि यह कार्य पहली और दूसरी कक्षा में बच्चों को बोला एक जगह रखी जाती है। हैं। फिर दोनों रं ग की गोलियों को एक साथ
गया था पर आश्चर्य कि सभी कक्षा के बच्चों ने पांच-पांच मिट्टी की मिलाकर गिना जाता है, जिससे बच्चे इस निष्कर्ष पर पहुंच पाते हैं
गोलियां बनाकर लाएं। इस तरह हमारे पास मिट्टी की 200 से अधिक कि 5 और 8 को जोड़ने पर 13 होता है।
गोलियां जमा हो गईं। जिनमें से लगभग 100 गोलियां हमने अलग-

12
इसी प्रकार से जब गणितीय डाइस का यह खेल पुन: खेला गये हैं जिनकी गिनती करने के बाद सही अं क में गोल घेरा बनाना
जाता है तब अगर घटाव का चि‌ह्न आता है तो सिर्फ बड़े है। बच्चों ने बड़े आराम से गिनती करना और दिए गए तीन विकल्पों
अं क की रं गीन गोलियां निकाली जाती हैं और जितने अं क में से एक विकल्प (अं क) में गोल घेरा करना शरू
ु किया। इसी क्रम
घटाना होता है उतनी गोलियां उसमें से गिन कर हटा ली जाती हैं में मेरी नजर नं दिनी की वर्क बुक पर गई (नं दिनी एक से दस तक की
और शेष बची गोलियों को गिन कर उत्तर प्राप्त किया जाता है। इस गिनती बहुत ही सुन्दरता के साथ लिखना और बोलना जानती है) जो
प्रक्रिया में बच्चों का उत्साह अपनी चरम सीमा पर होती है क्योंकि कि गलत विकल्प में गोल घेरा लगा रही थी। मैंने उससे गिनवाया
यह गणितीय खेल उन्हें लुड्डो के खेल जैसा प्रतीत होता है। जोड़ने, और फिर बोला कि बताओ छह कौन सा है तो वह पुनः सात के बारे
घटाने के साथ-साथ बच्चों में गणितीय चिह्न की समझ भी विकसित में इं गित करने लगी। यह देखकर मैं ठहर सी गई। मैंने तुरंत इस तथ्य
होती है। की जांच कु छ और बच्चों के संबं ध में भी की और फिर मुझे महसूस
हुआ कि कहीं न कहीं भयंकर चूक हुई है जिस पर तत्काल कार्य करने
अल्फाबेटिकल डाइस - मिट्टी के टीएलएम बनाने के क्रम में हमने
की आवश्यकता है।
अल्फाबेटिकल डाइस भी बनाया
जिस पर एबीसीडी के अक्षर फिर बिना एक पल गंवाए फर्श
अं कित थे। इस डाइस के उपयोग पर ही मैंने 1 से 10 तक की
के लिए सादे पेपर पर दाहिनी गिनती लिखी और हर अं क के
ओर सारे अल्फाबेट्स क्रम से सामने उसके बराबर मिट्टी से
लिख दिए गए थे और बायीं बनी सादी और रं गीन गोलियां
ओर शतरं ज की बोर्ड की तरह रखी ताकि बच्चे जब गोलियों की
चौकोर खाने बनाए गए थे जिसमें गिनती करें तब उस के बराबर
बेतरतीब तरीके से अल्फाबेट्स में वो अं क दिखाई दे जो उनका
के क्रम को लिखा गया था। प्रतिनिधित्व करते हैं। सबसे
अब बच्चे डाइस को फेंकते और पहले नं दिनी अपनी कॉ� पी-पेंसिल
जो भी अं ग्रेजी का अक्षर आता लेकर आयी और उसने गोलियों
उसे खोजकर उच्चारण के साथ की गिनती कर-कर के सामने
संबं धित खाने में डाइस को रख लिखे अं कों को नोट करना शरू

देत।े पुनः अल्फाबेटिकल डाइस किया। इसी तरह से अन्य बच्चों
को फेंकते और जब जो अक्षर ने भी किया। इसके बाद बच्चों ने
आता उसका उच्चारण करते अपने वर्क बुक में सही विकल्प में
हुए संबं धित खाने में डाइस को निशान लगाएं।
रखते। जैसे कि डाइस फेंकने पर ‘डी’ आए तो बच्चे जहां ‘डी’ लिखा
और इस तरह से मुझे मिट्टी की गोलियों के साथ-साथ अल्फाबेटिकल
होता उस खाने में ‘डी’ बोलते हुए डाइस को रखते। इससे बाकी
डाइस और गणितीय डाइस बनाने की प्रेरणा मिली जिसने बच्चों के
बच्चों में भी अल्फाबेट्स की समझ विकसित होती है। इस क्रिया में
अं दर स्पष्ट समझ को विकसित करने में सहयोग किया।
भी बच्चे बहुत आनं द के साथ भाग लेते हैं।
प्रियंका कुमारी
मुझे पहली कक्षा की एक बच्ची नं दिनी के कारण उपरोक्त टीएलएम
(सहायक शिक्षिका)
की आवश्यकता महसूस हुई। कु छ दिन पूर्व की बात है। पहली कक्षा
मध्य विद्यालय मलहाटोल, सीतामढ़ी
में बच्चों को गणित की वर्क बुक से कार्य करवा रही थी। कार्य से पूर्व
बच्चों को पहले समझाया कि देखो इसमें कु छ वस्तुओं के चित्र दिये

13
शिक्षक की
डायरी से

हर अरविन्द को प्राप्त हो कॉपी के पर्याप्त पन्ने


श्री अनं त शक्ति 2015 से उच्च प्राथमिक शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और वर्तमान में विवेकानं द सेवाश्रम मध्य विद्यालय,
टुंडी, धनबाद में पदस्थापित हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में अपने नवीन विचारों के लिए प्रसिद्ध, अनं त शक्ति ने
समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्ग से आने वाले बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आपकी डायरी से उद्धृत प्रसंग “अरविन्द मुर्मू” की चर्चा हम इस स्तम्भ के माध्यम से कर रहे हैं |

कु छ वर्ष पहले पारा शिक्षकों के हड़ताल के दरम्यान मेरा


प्रतिनियोजन कु छ दिनों के लिए प्राथमिक विद्यालय कोकराद
जहां अन्य बच्चे एक नं बर या दो नं बर जाने की बात कह कर छु ट्टी
ि सदैव अं ग्रेजी में कह कर ही बाहर जाता था।
मांगते थे, वहीं अरवंद
,टुं डी कर दिया गया था। उस वक्त बाइक न होने के कारण मुझे टुं डी उसे देखकर मैं मन ही मन सोचा करता था कि कु छ इसी तरह के
मुख्य बाजार से स्कूल तक करीब छः किलोमीटर की यात्रा पैदल प्रतिभावान छात्र ही आगे चलकर राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री,
ही करनी पड़ रही थी। मन ही मन मैं चाह रहा था कि पारा शिक्षकों अबुल कलाम, आदि बनते हों ग।े सरकारी स्कूल में पढने वाले बच्चे
की हड़ताल जल्द से जल्द समाप्त हो जाए ताकि मैं पुनः अपने मूल किसी भी दृष्टिकोण में कमजोर नहीं होते हैं, इस बात का प्रत्यक्ष
विद्यालय में जा सकूं। आरं भ के कु छ दिनों में काफी परेशानी हुई परं तु प्रमाण था अरव़िंद।
धीरे धीरे मैनें स्वयं को अभ्यस्त कर लिया।
एक बार छु ट्टी के बाद स्कूल बं द कर ज्यों ही मैं जा रहा था, मेरी भेंट
मेरे नये विद्यालय का परिवेश बहुत ही सुंदर था। स्कूल के चारों ओर ि का जिक्र
गांव के मुखिया जी से हुई। बातचीत के क्रम में मैनें अरवंद
खेत ही खेत थे और जहां तक भी दृष्टि जाती थी लहलहाते हरे हरे धान ि सचमुच में बहुत ही
उनसे किया। मुखिया जी ने बताया कि अरवंद
की फसल नजर आती थी, स्कूल के ठीक पीछे एक तालाब और घने अच्छा लड़का है, परं तु........बेचारे की किस्मत ही फूटी है। बचपन में
वृक्षों के बीच झांकता पहाड़ मन व हृदय प्रफुल्लित कर देता था। उस दुर्भाग्यवश इसके मां पिता और इकलौती बहन सड़क हादसे में मारे
ू होती थी।
स्वच्छ और सुंदर वातावरण को देख कर एक सुखद अनुभति गए और तब से लेकर आज तक यह मेरे ही साथ रह रहा है।

ि मुर्मू। छोटा कद,


उसी स्कूल में पांचवीं कक्षा का एक छात्र था अरवंद ि का
मुखिया जी की बातें सुन कर मुझे काफी दुःख हुआ और अरवंद
सांवला रं ग, छोटे छोटे बाल, बड़ी बड़ी आंखे, चेहरे पर मासुमियत मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमने लगा।
और होठों पर नित रहने वाली मंद मंद मुस्कान बरबस ही मेरा ध्यान
ि को काफी उदास देखा। पूछने पर पता चला
अगले दिन मैनें अरवंद
उसकी ओर खीं च लेती थी।
की उसकी कॉ� पी के पन्ने खत्म हो गये हैं। इस पर मैनें उसे कु छ रुपये
ि उस स्कूल का सबसे प्रतिभाशाली और आज्ञाकारी छात्र था..।
अरवंद देते हुए कहा "जाकर नई कापी खरीद लो। हिचकिचाते हुए उसने
वह पढाई में जितना तेज था, उतना ही तेज वह अन्य गतिविधियों में मुझसे पैसे लिए और तुरंत दुकान की ओर दौड़ पड़ा।
भी था..। इस बात का पता मुझे प्रथम दिन ही चल गया था.।
साथियों ! आज भी हम सभी के किसी न किसी स्कूल में अनेकों ऐसे
गणित में वह काफी तेज था और अक्सर मुझसे अपनी कॉ� पी में नए ि मुर्मू हैं जिनकी पढ़ाई कॉ� पी के पन्ने खत्म हो जाने के कारण
अरवंद
नए सवाल ले कर बनाया करता था..। जहां और बच्चे ठीक ठीक बोल रुक गई है। आवश्यकता है हमें उन अनगिनत बच्चों के कॉ� पी के पन्ने
भी नहीं पाते थे वह बहुत ही शद्ध ि बोला करता था। अं ग्रेजी में भी
ु हंदी बनने की जिनकी कॉ� पी किसी न किसी कारणवश खत्म हो गई है।
और बच्चों की अपेक्षा उसकी स्थिति काफी अच्छी थी।
—श्री अनन्त शक्ति

14
विद्यालयी
वातावरण

विद्यालय से जुड़ाव का प्रमुख कारक

व र्त्तमान में हमारे विद्यालयी शिक्षा की गुणवत्ता में हुए सापेक्षिक


परिवर्तन को नजरअं दाज नहीं किया जा सकता है। शिक्षकों की
बड़े पैमाने पर नियुक्ति, कक्षा कक्ष की मरम्मत, TLM आधारित शिक्षा,
और घरों में सिर्फ अच्छे अं क लाने और परीक्षा पास करने पर ही बल
दिया जा रहा है जबकि हमें बच्चों की प्रतिभाओं को पहचानकर उन्हें नया
आयाम देने की आवश्यकता है। इस हेतु हम अपने विद्यालयों में एक
विद्यालयों की निगरानी आदि जैसे अनेकों कार्य के वजह से शिक्षक-छात्र की विशेष सत्र का आयोजन कर सकते हैं। इस सत्र का आयोजन दिन के
बढ़ती उपस्थिति विद्यालय के परिवेश में सकारात्मक बदलाव के परिचायक अं तिम घंटी में करने से मध्याह्न भोजन खाने के बाद घर चले जाने वाले
हैं। बच्चों को सीखने के लिए अधिगमपूर्ण वातावरण का निर्माण करना बेहद बच्चे उत्साहित और आनं दपूर्ण रहेंगे और निरं तर विद्यालय आने के लिए
आवश्यक है, हालांकि पहले से भी स्कूलों में हम अधिगमपूर्ण वातावरण का तत्पर भी।
प्रयोग करते आ रहे हैं। अपितु विद्यालयी वातावरण को अधिगमपूर्ण और
ि सत्र-हमारी मातृभाषा हंदी
इं ग्लिश स्पीकंग ि है परन्तु अं ग्रेजी की
रुचिकर बनाने के लिए कु छ और भी सुधार करने की आवश्यकता है, जैस-े -
व्यापकता को देखते हुए सरकारी विद्यालय के छात्रों को अं ग्रेजी भाषा
प्रत्येक विद्यालय में बाउंड्रीवाल का विकास, पर्याप्त कक्षा कक्ष एवं सीखना भी अति आवश्यक है। अगर भारत के सभी राज्यों में भ्रमण
ि
बुनियादी वर्ग कक्ष में बाला पेंटंग-बाउं ड्रीवाल से विद्यालय की सुरक्षा किया जाये तो सिर्फ अं ग्रेजी भाषा ही है जिसके माध्यम से हम अपने
सुनिश्चित हो सके गी जिससे अभिभावक अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर विचारों को सभी जगह आसानी से प्रस्तुत कर सकते हैं।
निश्चिन्त हो सकें गे। पर्याप्त कक्षाकक्ष होने से बिना किसी रुकावट के
प्राथमिक विद्यालयों में दैनिकचर्या में छु ट्टी होने से पहले इस सत्र का
अध्यन-अध्यापन का कार्य जारी रह सके गा। कक्षाकक्ष की दीवारों पर
आयोजन किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों से वार्तालाप करते
ि का प्रयोग किया जाना चाहिए और साथ ही साथ कक्षा-1
बाला पेंटंग
समय अं ग्रेजी के छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं, अं ग्रेजी हैं,
और कक्षा-2 बालों के लिए फर्श पर कम से कम 100 तक की गिनती
जैस-े बाबू आपका हैण्ड कहाँ है, बाबू आपके लेग कहाँ हैं, बाबू आपके
लिखी जानी चाहिए जिससे बच्चों को खेल-खेल में 100 तक की गिनती
शूज कहाँ है इत्यादि।
सिखाई जा सके । साथ ही साथ इन संख्याओं से सरल जोड़ और घटाव
भी बच्चों को सिखाई जा सके । जहाँ तक मेरा मानना है कि प्राथमिक जब बच्चा इतना सीख जाए तो धीरे-धीरे महीने के नाम, दिनों के नाम
स्कूलों में छोटे कक्षाओं को सिखाने के लिए उनकी बैठक प्रणाली अं ग्रेजी में बोलकर बच्चे को अं ग्रेजी के प्रति सहज किया जा सकता
परम्परागत ना होकर के U शेप में होनी चाहिए जिससे की सभी बच्चों है। अं ग्रेजी के भय से मुक्त करने के लिए बच्चों के साथ hands on
का ध्यान शिक्षक पर हो और शिक्षक का ध्यान सभी बच्चों पर, इसका Activities किया जा सकता है।
परिणाम यह होगा कि शरारती बालक भी बिना शैतानी किये सीख सकें । विज्ञान प्रतियोगिता- इस प्रतियोगिता के अं तर्गत माध्यमिक स्तर के
ि का प्रयोग हम स्कूलों की बाउं ड्री या जिन स्कूलों में बाउं ड्री
बाला पेंटंग्स बच्चों को शामिल किया जा सकता है। बच्चों के अधिगम स्तर के अनुरूप
नहीं है उनमें कक्षाकक्ष की बाहरी दीवार की पर कर सकते हैं। भारत किसी प्रोजेक्ट का चयन करके उसके बारे में बच्चों को बताया जा सकता
के प्रमुख स्मारक अथवा विद्यालय जिस जिले में अवस्थित है वहां की है। और फिर उसे बच्चों से करवाया जा सकता है। इस प्रतियोगिता का
प्रसिद्ध स्मारकों को चित्रित किया जा सकता है जिससे बच्चे को चलते- ि
आशय बच्चों में चंतनशीलता को बढ़ाना है। बाद में इस प्रतियोगिता
फिरते सामान्य ज्ञान सीखाया जा सके । का आयोजन प्रखंड स्तर पर भी किया जा सकता है, इस प्रकार विज्ञान
में बच्चों की रुचि तो बढ़ेगी ही साथ साथ शिक्षक भी अपने विद्यालय का
इस प्रकार बच्चे को गणित और सामान्य ज्ञान से जोड़कर उनमें इन
नाम रौशन करने के लिए प्रेरित हों ग।े
विषयों के प्रति रुचि उत्पन्न की जा सकती है।
मनु कुमार, शिक्षक
बच्चों की रुचि जानने का सत्र- पठन-पाठन के इस दौर में कहीं न कहीं
ु राय
GMS CHHITRAUD, मटिहानी, बेगस
बच्चों के अन्दर की प्रतिभाएं अनदेखी होती जा रही हैं। हमारे विद्यालय

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उदगार

शिक्षक बनने की ख़ुशी

मैं अपने इस आलेख के द्वारा नवनियुक्त शिक्षक समुदाय


के मन की भावना को व्यक्त कर रही हूँ। मुझे यह बताने
में लिखा जाएगा। आशा है कि व्यापक पैमाने पर अध्यापकों
की भर्ती होने से विद्यालयों में एक नये शैक्षिक सकारात्मक
में काफी खुशी हो रही है कि मेरा चयन शिक्षा विभाग, बिहार माहौल बनेगा और बिहार की शिक्षा व्यवस्था को एक नइ
सरकार के अन्तर्गत BPSC के माध्यम से प्राथमिक अध्यापक मजबूती मिलेगी।
पद पर हुआ है। यद्यपि मैं पटना
बच्चों के बीच रहने व उन्हें शिक्षा
वीमेन्स कॉ� लेज से वाणिज्य में
देने में मुझे आत्मीय खुशी होती है
स्नातक और ललित नारायण
जो शायद कारपोरेट सेक्टर में कभी
मिथिला प्रबं धन एवं सामाजिक
ना मिले। BPSC जैसी संवैधानिक
परिवर्तन संस्थान, पटना से MBA
संस्था से योग्य अध्यापकों की
की छात्रा हूँ। शरू
ु आती दौर से
बहाली होने से बच्चों, अभिभावकों ,
ही मुझे शिक्षा के क्षेत्र में समाज
नागरिकों में हर्ष का माहौल है।
और देश की सेवा करने में रूचि ने
यह राज्य भर में उत्कृ ष्ट शैक्षिक
मुझे सत्र 2021-2023 में DIET
माहौल बनाने में अन्य राज्यों के
खगड़िया से D.L.ED करने के
लिए अनुकरणीय है। अध्यापकों
लिए प्रेरित किया। और 2023 में
की बहाली सुदूरवर्ती गाँ व के
मुझे CTET एवं BPSC अध्यापक
इलाकों में की गई जिससे ग्रामीण
भर्ती परीक्षा में सम्मिलित होने का
बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके ।
अवसर मिला। ‘जहाँ चाह वहां
हम सभी शिक्षक भी उत्साहित
राह’ की लोकोक्ति चरितार्थ होते
एवं प्रफुल्लित हैं और बच्चों को
हुए ईश्वर की असीम कृपा से मुझे
आधुनिक तरीके से शिक्षित कर
सभी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त
पाने के लिए कृत संकल्पित भी।
हुई और अं ततः मैंने BPSC अध्यापक परीक्षा उत्तीर्ण कर गया
मुझे विश्वास है कि इस ऐतिहासिक कदम से राज्य भर के शिक्षा
जिला के फतेहपुर प्रखंड के म० वि० भेड़वा में अध्यापिका के
में सुधार होगा और बिहार को भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय
रूप में अपना योगदान दिया।
- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति और विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त हो
ससमय और कदाचार रहित परीक्षा संचालन एवं प्रबं धन के पाएगी।
लिए BPSC और शिक्षा विभाग दोनो को श्रेय जाता है। लाखों
ऐसी शभ
ु कामनाओं के साथ
अध्यापकों की बहाली निरविवादित
् और इतने कम समय में
करने के लिए शिक्षा विभाग का नाम इतिहास में स्वरणिम
् अक्षरों नवनियुक्त शिक्षक
हर्षा राज

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इस गतिविधि से बच्चों में संख्याओं के बढ़ते और घटते क्रम की अवधारणा मज़बूत होगी।

1  निम्नलिखित में से किन पंक्तियों में संख्याएँ बढ़ते क्रम में हैं?

a)   5, 6, 8, 9, 7

b)   3, 4, 5, 6, 2

c)   2, 3, 4, 5, 6

d)   9, 8, 7, 6, 5


2  निम्नलिखित में से किन पंक्तियों में संख्याएँ घटते क्रम में हैं?

a)   29, 28, 26, 25, 27

b) 22, 21, 20, 19, 18

c)   21, 22, 23, 24, 25

d)   17, 16, 15, 18, 14

इस गतिविधि से बच्चों में संख्या सम्बंधित तारकिक


् क्षमता विकसित होगी।

खाली स्थानों को उपयुक्त संख्याओं से भरें।

10 6 60

30 20

20 70 50 14 12 40 50

7 13 12

15 14 11 17 9 15

17
जादईु वर्ग
इस गतिविधि से बच्चों में पंक्ति, स्तं भ एवं विकर्ण को पहचानने की क्षमता विकसित होगी।

एक जादुई वर्ग में, प्रत्येक पंक्ति, स्तं भ और विकर्ण के सभी संख्याओं को जोड़कर एक समान योग बनते हैं।

नीचे एक 3 बटा 3 जादुई वर्ग का उदाहरण दिया गया है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति, स्तं भ और विकर्ण के
सभी संख्याओं को जोड़कर 15 बनते हैं ।

अब आप इस जादुई वर्ग का समाधान कीजिए जिससे कि प्रत्येक पंक्ति, स्तं भ और विकर्ण के


सभी संख्याओं  का योग 15 आए।

एक और जादुई वर्ग का समाधान करें, जिससे कि प्रत्येक पंक्ति, स्तं भ और विकर्ण के


सभी संख्याओं  का योग 12 आए।

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शब्द पहचान और लेखन
इस गतिविधि के माध्यम से बच्चों में शब्दों को पहचानने और उन्हें लिखने का कौशल विकसित होगा।

1 मेरे जोड़ीदार शब्दों को खोजकर लिखो


______________
पापा नानी
______________
नानी पापा
______________
खेलना दाल
______________
दाल खेलना

इस गतिविधि के माध्यम से बच्चों में सही शब्द की पहचान करने का कौशल विकसित होगा।

2 शब्द और चित्र का सही मिलान कीजिए

चीं टी

गाजर

मछली

ऊँट

19
इस गतिविधि के माध्यम से बच्चों में दिए गए चित्र के लिए सही शब्द की पहचान करने का कौशल
विकसित होगा।

3 दिए गए चित्र को देखकर उनके नीचे लिखे सही नाम पर गोला लगाएं।

आम अनार बिल्ली तितली दीवार चीं टी

संतरा जामुन किताब हिरन मछली बकरी

इस गतिविधि के माध्यम से बच्चों में दिए गए चित्र के लिए सही शब्द लिखने का कौशल विकसित होगा।

4 चित्र देखकर उसका नाम लिखिए

____________ ____________ ____________ ____________

20
Write the first alphabet of the following
pictures and corresponding words.
This activity will help students write and identify the following pictures' first letter.

__rain

__ar

__us

__cooter

__eep

21
Write the letter in the box that comes
between the given words.
This activity will help students to learn the correct spelling of the following words.

B    D C    T

R    T M    T

D    Y P    N

E    G C    P

22
क्या आप जानते हैं ?

1 शून्य को रोमन अंकों में प्रदर्शित नहीं किया जाता है।

अधिकांश गणितीय प्रतीकों के आविष्कार से पहले, लोग समीकरणों को संख्याओं में


2
लिखते थे।

3 कैलकुलेटर का मुख्य स्रोत अबेकस है।

4 एक लीप वर्ष में 366 दिन होते हैं।

5 संख्या ब्रहमाण का नियम पाइथोगोरस ने दिया था।

6 एक वृत्त में 360 डिग्री होती है।

7 शकुंतला दे वी को भारत में मानव कैलकुलेटर के नाम से जाना जाता है।

नंबर एक शॉर्टकट है, (उदहारण के लिए: यदि 25 नंबर होता ही नहीं तो आप दुकान वाले को
8
कैसे समझाते कि आपको 25 कलम खरीदनी है।)

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फलों की टोकरी बाहर लाल अं दर उजली
उसमें थी रसभरी लीची आठ।
अम्मा की रसोई में,
छोटे-छोटे काले-काले
फलों की टोकरी थी एक।
उसमें थे जामुन नौ।
लाल-लाल मीठे -मीठे ,
पीले-पीले ताकत से भरे
उसमें थे तरबूज दो।
उसमें थे केले दस।
पीली-पीली खट्टी-मीठी,
खा कर सारे फलों को
उसमें थी नारं गी तीन।
हमने कहा बस भाई बस।
अं दर-बाहर हर जगह लाल,
उसमें थे अनार चार।
हरे पीले और रसीले
उसमें थे आम पांच।
लाल गुलाबी मीठे -मीठे
उसमें थे सेब छह।
हरी भी और काली भी
उसमें थे अं गूर सात। —­प्रियंका कुमारी

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