Professional Documents
Culture Documents
Maha Yajna Ka Puraskaar
Maha Yajna Ka Puraskaar
(यशपाल)
3)धन्ना सेठ िहााँ रहते थे? उनिे बारे र्ें क्या अफवाह प्रचकलत थी?
उत्तर: धन्ना सेठ बहुत बडे सेठ थे। वे सेठ िे यहााँ से दस-बारह िोस िी दू री पर
िुंदनपुर नार्ि नगर र्ें रहते थे। धन िी उनिे पास िोई िर्ी नहीं थी। उनिी
पत्नी िे बारे र्ें ऐसी अफवाह थी कि उन्ें िोई दै वीय शखि प्राप्त है , कजससे वह
तीनों लोिों िी बात जान लेती है।
4) सेठ ने िुंदनपुर जाने िे कलए क्या-क्या तैयाररयााँ िैसे , िी थी? उन्ोंने िब
जाने िा कनश्चय किया और क्यों?
उत्तर : सेठ ने धन्ना सेठ से कर्लिर अपनी गरीबी िो दू र िरने िे कलए वहााँ जाने
िा कनश्चय िर कलया । सेठानी पडोसी से थोडा-सा आटा र्ााँग लाई। रास्े िे कलए
चार र्ोटी-र्ोटी रोकटयााँ बनािर पोटली र्ें बााँधिर सेठ िो दे दी। सेठ ने वहााँ
जाने िा कनश्चय एि दर् सुबह किया। गर्ी िे कदन थे ।सेठ ने सोचा कि सूरज
कनिलने से पहले िाफी रास्ा पार िर लें कजससे गर्ी से परे शान न हों। सेठ
िाफी तेज़ चले। आधा रास्ा पार िरते-िरते धूप इतनी तेज हो गई थी कि उन्ें
चलने र्ें िष्ट होने लगा। पसीने से शरीर भीग गया थI। उन्ें भूख भी सताने लगी ।
7) सेठ ने सेठानी से क्या बताया? उसे सुनिर सेठानी ने क्या र्हसूर् किया?
उत्तर: सेठ ने सेठानी से प्रारम्भ से लेिर अंत ति िी सारी घटना बता दी। सेठ
िो खाली हाथ वहााँ से वापस आना पडा था। सेठ ने सारी सच्चाई पत्नी से बता
कदया। उन सारी घटना िो सुनिर सेठानी िी सारी वेदना दू र हो गई। र्न प्रसन्न
हो गया। कवपकत्त र्ें भी उनिे पकत ने धर्म िा र्ागम नहीं छोडा। वे इस पर
गौरवाखित हुई। उन्ोंने पकत िे चरण िे रज िो र्स्ि पर लगाया। सेठानी ने
अपने पकत िो धैर्य बनाए रखने िी सलाह दी।
9) उद्दे श्यः
'र्हायज्ञ िा पुरस्कार' िहानी िे लेखि यशपाल जी हैं Iइस िहानी र्ें
र्ानवोकचत गुणों िा कनवामह िरने िी प्रेरणा दी गई है। यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ जैसे
िर्म िाण्ड ही सच्चा नहीं है बखि जीवों िो िष्टों से र्ुखि कदलाना ही परर्
पुनीत िर्म है? सत्कर्म एवं कनस्वाथम भाव से किया गया िर्म किसी र्हायज्ञ से िर्
नहीं होता है इस प्रिार िे िर्म िा फल अवश्य प्राप्त होता है। जीवों पर दया
िरना र्नुष्य िा परर् ितमव्य है।" नर सेवा ही नारायण सेवा होती है।" स्वयं िष्ट
सह िरिे दू सरों िे िष्टों िा कनवारण िरना र्ानव धर्म है। िेवल सोहरत और
कदखावे िे कलए किया गया यज्ञ र्हत्त्वहीन होता है। इस िहानी र्ें त्याग और
परोपिार िो सच्चा सुख र्ाना गया है। आज िे आधुकनि युग र्ें इन्ीं गुणों िी
र्कहर्ा िो थथाकपत िरना ही, इस िहानी िा उद्दे श्य है।
10) शीर्मि िी साथमिताः
"र्हायज्ञ िा पुरस्कार' िहानी प़िते ही हर्ारे र्न र्ें कजज्ञासा उठने लगती है कि
यह र्हायज्ञ क्या है और हर् िहानी प़िना आरम्भ िर दे ते हैं। यह उत्सुिता अंत
ति बनी रहती है। परोपिारी सेठ अिस्मात् बुरा सर्य आने पर अपना एि
'यज्ञ' बेचने िे कलए िुंदनपुर िे धन्ना सेठ िे यहााँ जाते हैं। रास्े र्ें अपने कलए लाई
चार रोकटयााँ एि भूखे व र्रणासन्न िुत्ते िो खखलाते हैं और स्वयं एि लोटा पानी
पीिर सन्तुष्ट हो जाते हैं। िुंदनपुर पहुाँचिर धन्ना सेठ िी पत्नी उन्ें 'र्हायज्ञ'
बेचने िो िहती है जो उनिी सर्झ र्ें नहीं आता। भूखे िुत्ते िो रोटी खखलाने िो
वे अपना ित्तमव्य सर्झते हैं। कनराश होिर वह अपने घर वापस आ जाते हैं। उसी
रात सेठानी िो दहलीज़ िे पास एि पत्थर उठा कदखाई दे ता है कजसिे
जवाहरातों से जगर्गाता हुआ एि तहखाना है। तहखाने र्ें जाने पर उन्ें कदव्य
वाणी सुनाई दे ती है कि उनिे द्वारा िुत्ते पर किए गए उपिार िा यह पुरस्कार
है। इस प्रिार िहानी िा अंत हो जाता है।
इस तरह से पूरी िहानी र्ें उत्सुिता बनी रहती है। शीर्मि साथमि व उद्दे श्यपूणम
है क्योंकि परोपिार ही जीवन िा सच्चा ध्येय है। परोपिार सर्य िे अधीन नहीं
है वह िाल-पररकध से बाहर हर्ेशा ही र्ानवोकचत गुण है। अतः यह िहानी आज
भी प्रासंकगि व औकचत्यपूणम है।
11)चररत्र-कचत्रण
सेठः
धनी सेठ अत्यंत कवनम्र एवं उदार प्रिृकत िे थे। िोई भी साधु-संत उनिे द्वार से
कनराश नहीं लौटता था, भर पेट भोजन पाता। जो भी उनिे सार्ने हाथ पसारता,
उसिी इच्छा अवश्य पूणम होती थी। गरीब होने पर भी उन्ोंने अपने ित्तमव्य-
भावना िो कवस्मृत नहीं किया स्वयं भूखे रहिर भी एि क्ुधाग्रस् िुत्ते िो अपनी
चारों रोकटयााँ खखला दीं। धन्ना सेठ िी पत्नी ने जब उनसे इस घटना िो र्हायज्ञ
बताया, तो उन्ोंने इसे िेवल ित्तमव्य भावना िा नार् कदया और र्ानवोकचत
ित्तमव्य िो बेचना उकचत न लगा। यद्यकप धन्ना सेठ िे यहााँ अपना यज्ञ बेचने आए
थे, पर सेठजी िी बातों िा िोई उत्तर न दे िर खाली हाथ घर लौट आए।
सेठानी:
सेठ िी पत्नी अत्यंत बुखिर्ती थी। कनधमनता से परे शान होिर उन्ोंने अपने पकत
िो अपना एि यज्ञ बेचने िी सलाह दी। उनिे पकत जब िुंदनपुर िे धन्ना सेठ िे
यहााँ से खाली हाथ लौटे तो पहले तो वे िााँप उठी पर जब उन्ें सारी घटना िी
जानिारी कर्ली तो उनिी वेदना जाती रही। उनिा हृदय यह दे खिर उल्लकसत
हो गया कि उनिे पकत ने कवपकत्त र्ें भी धर्म नहीं छोडा। उन्ोंने अपने पकत िो भी
धैयम बाँधाया तथा ईश्वर पर भरोसा रखने िो िहा। इस प्रिार सेठ िी पत्नी
धर्मपरायण, ईश्वर िी िृपा पर कवश्वास रखने वाली, धैयमवती तथा अत्यकधि संतोर्ी
वृकत्त िी थीं।
(ग). 'सेठानी ने ऐसा क्यों िहा कि र्हाराज! उसे बेचोगे तो हर् खरीदें गे, नहीं तो
नहीं। इस िथन िो सर्झािर कलखखए।
उत्तर, : सेठानी ने ऐसा इसकलए िहा क्योंकि दै वी शखि से उन्ें सेठ जी द्वारा
किए गए िायम िा पता चल गया था। सेठ जी यात्रा िे सर्य बहुत थि गए थे।
उन्ें भूख भी बहुत जोर से लग रही थी। उनिी पत्नी ने रास्े िे कलए पडोसी से
आटा र्ााँगिर चार रोकटयााँ बना िर दे दी थीं। ज्ों ही सेठ जी ने खाने िे कलए रोटी
िा एि टु िडा तोडा त्यों ही उनिी नज़र एि ऐसे िुत्ते पर पडी, जो दु बमलता िे
िारण अपनी गरदन भी नहीं उठा पा रहा था। उन्ोंने धीरे -धीरे िुत्ते िो अपनी
चारों रोकटयााँ खखला दी तथा स्वयं एि लोटा पानी पी िर तृप्त हो गए थे। ऐसे
कनःस्वाथम भाव से किये गये िर्म िो धन्ना सेठानी खरीदना चाहती थीं अथामत् उस
पुण्य िे फल िो प्राप्त िरना चाहती थीं। सेठ जी तो इस पुण्य िायम िो अपना
ित्तमव्य सर्झ रहे थे। उन्ोंने तो दया िे भाव से िुत्ते िो अपनी रोकटयााँ खखलाई थीं
न कि परोपिार िी भावना से।
प्रश्न (घ). यज्ञ िे क्रय-कवक्रय से क्या तात्पयम है? आज र्नुष्य स्वाथी व लालची होता
जा रहा है। यह िहानी एि प्रेरणा दे ने वाली िहानी है, िैसे ? सर्झािर कलखखए।
उत्तर : क्रय-कवक्रय िा साधारण अथम है खरीदना व बेचना। किसी वस्ु िो भी
खरीदा व बेचा जा सिता है पर इस िहानी र्ें पुण्य िायम िो भी खरीदा व बेचा
जाता है। सेठ जी अपनी दररद्रता से दु ःखी हो गए थे । इसकलए उनिी पत्नी ने उन्ें
अपना एि यज्ञ बेचने िी सलाह दी थी। परन्तु धन्ना सेठानी ने उनिे सबसे बडे
पुण्य िायम अथामत् र्हायज्ञ िो खरीदने िी इच्छा प्रिट िी। पर सेठ जी िो िुछ
सर्झ र्ें नहीं आया। सेठानी द्वारा िुत्ते िो रोटी खखलाने िी बात याद कदलाने पर
उन्ोंने उस िायम िो अपना ित्तमव्य बताया और वाकपस घर चले गए।
हााँ, यह िहानी एि प्रेरणाप्रद िहानी है। आज र्नुष्य स्वाथी, लालची और िेवल
अपने बारे र्ें ही सोचने वाला हो गया है। वह दू सरे र्ानव िी भी परवाह नहीं
िरता। घायल पडे व्यखि िो भी अनदे खा िरिे र्ुाँह र्ोड िर चला जाता है , तो
िुत्ते या अन्य जीव िी क्या परवाह िरे गा? ऐसे पररवेश व सोच िो बदलने िे
कवचार से यह िहानी अत्यन्त प्रेरणादायि है। लेखि ने अंत र्ें उसी िे घर िे
दालान र्ें कछपे तहखाने र्ें रखे जवाहरातों िे कर्लने िी बात बतािर यह भी
सीख दी है कि कबना किसी स्वाथम िे किए गए परोपिार िे िायम से ईश्वर खुश
होिर ऐसे परोपिारी व्यखि िो भी सुखी रखता है।
अकतररि प्रश्न:
1)िहानी िे अनुसार र्हायज्ञ क्या है? इसिे बदले र्ें सेठ िो क्या कर्ला?
2)प्राकणर्ात्र िी सेवा ही नारायण सेवा है तथा जीबों िे िष्ट कनवारण से ही प्रभु
प्रसन्न होते हैं।" िहानी िे संदर्भभम र्ें स्पष्ट िीकजए।
3) उन कदनों क्या प्रथा प्रचकलत थी?
4)'सब कदन होत न एि सर्ान अथम स्पष्ट िीकजए।
5) कदन कफरने पर सेठ जी पर क्या प्रभाव पडा?
6) तंगी होने पर सेठानी ने अपने पकत िो क्या सलाह दी?
7)धन्ना सेठ िी पत्नी िे सम्बन्ध र्ें क्या अफवाह थी?
8) सेठजी ने क्या सोचिर अपनी चौथी रोटी भी िुत्ते िो खखला दी?
9) धन्ना सेठ िी पत्नी ने र्हायज्ञ िी क्या पहचान बताई?
10) भूखे िुत्ते िो रोटी खखलाना सेठ ने र्हायज्ञ क्यों नही ं र्ाना?