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बम
द ड : 3
िध कार : 16
लैला : 24
नेउर : 42
शूि : 52
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द ड
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जगत पांडे के चले जाने के बाद, कोई 9 बजे रात को, जंट साहब के
बंगले पर एक तांगा आकर का और उस पर से पं डत स यदे व उतरे जो
राजा साहब िशवपुर के मु तार थे।
िमःटर िसनहा ने मुःकराकर कहा—आप शायद अपने इलाके म
गर ब को न रहने दगे। इतना जु म!
स यदे व—गर ब परवर, यह क हए क गर ब के मारे अब इलाके म
हमारा रहना मु ँकल हो रहा है । आप जानते ह, साधी उं गली से घी नह ं
िनकलता। जमींदार को कुछ-न-कुछ स ती करनी ह पड़ती है , मगर अब यह
हाल है क हमने जरा चूं भी क तो उ ह ं गर ब क यो रयां बदल जाती
ह। सब मु त म जमीन जोतना चाहते ह। लगान मांिगये तो फौजदार का
दावा करने को तैयार! अब इसी जगत पांडे को दे खए, गंगा कसम है हुजरू
सरासर झूठा दावा है । हुजरू से कोई बात िछपी तो रह नह ं सकती। अगर
जगत पांडे मुकदमा जीत गया तो हम बो रयां-बंधना छोड़कर भागना पड़े गा।
अब हुजरू ह बसाएं तो बस सकते ह। राजा साहब ने हुजरू को सलाम कहा
है और अज क है हक इस मामले म जगत पांडे क ऐसी खबर ल क वह
भी याद करे ।
िमःटर िसनहा ने भव िसकोड़ कर कहा—कानून मेरे घर तो नह ं
बनता?
स यदे व—आपके हाथ म सब कुछ है ।
यह कहकर िग नय क एक ग ड िनकाल कर मेज पर रख द ।
िमःटर िसनहा ने ग ड को आंख से िगनकर कहा—इ ह मेर तरफ से
राजा साहब को नजर कर द जएगा। आ खर आप कोई वक ल तो करगे।
उसे या द जएगा?
स यदे व—यह तो हुजरू के हाथ म है । जतनी ह पेिशयां ह गी उतना
ह खच भी बढ़े गा।
िसनहा—म चाहूं तो मह न लटका सकता हूं।
स यदे व—हां, इससे कौन इनकार कर सकता है ।
िसनहा—पांच पेिशयां भी हुयीं तो आपके कम से कम एक हजार उड़
जायगे। आप यहां उसका आधा पूरा कर द जए तो एक ह पेशी म वारा-
यारा हो जाए। आधी रकम बच जाय।
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स यदे व ने 10 िग नयां और िनकाल कर मेज पर रख द ं और घमंड
के साथ बोले—हु म हो तो राजा साहब कह दं ,ू आप इ मीनान रख, साहब
क कृ पा हो गयी है ।
िमःटर िसनहा ने तीो ःवर म कहा ‘जी नह ं, यह कहने क ज रत
नह ं। म कसी शत पर यह रकम नह ं ले रहा। म क ं गा वह जो कानून क
मंशा होगी। कानून के खलाफ जौ-भर भी नह ं जा सकता। यह मेरा उसूल
है । आप लोग मेर खाितर करते ह, यह आपक शरारत है । उसे अपना
दँु मन समझूंगा जो मेरा ईमान खर दना चाहे । म जो कुछ लेता हूं, स चाई
का इनाम समझ कर लेता हूं।‘
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प ी—तो म ह चली जाऊं? शहर क तरफ से आऊंगी और सब
आदिमय को हटाकर अकेले म बात क ं गी। कसी को खबर न होगी क
कौन है । इसम तो कोई हरज नह ं है ?
िमःटर िसनहा ने सं द ध भाव से कहा-ताड़ने वाले ताड़ ह जायगे,
वाहे तुम कतना ह िछपाओ।
प ी—ताड़ जायगे ताड़ जाय, अब कससे कहां तक ड ं । बदनामी
अभी या कम हो रह है ,जो और हो जायगी। सार दिु नया जानती है क
तुमने पये िलए। य ह कोई कसी पर ूाण नह ं दे ता। फर अब यथ ऐंथ
य करो?
िमःटर िसनहा अब ममवेदना को न दबा सके। बोले— ूये, यह यथ
क ऐंठ नह ं है । चोर को अदालत म बत खाने से उतनी ल जा नह ं आती,
जतनी कसी हा कम को अपनी र त का परदा खुलने से आती है । वह
जहर खा कर मर जायगा; पर संसार के सामने अपना परदा न खोलेगा।
अपना सवनाश दे ख सकता है ; पर यह अपमान नह ं सह सकता, जंदा खाल
खींचने, या को हू म पेरे जाने के िसवा और कोई ःथित नह ं है , जो उसे
अपना अपराध ःवीकार करा सके। इसका तो मुझे जरा भी भय नह ं है क
ॄा ण भूत बनकर हमको सतायेगा, या हम उनक वेद बनाकर पूजनी
पड़े गी, यह भी जानता हूं क पाप का दं ड भी बहुधा नह ं िमलता; ले कन
हं द ू होने के कारण संःकार क शंका कुछ-कुछ बनी हुई है । ॄ ह या का
कलंक िसर पर लेते हुए आ मा कांपती है । बस इतनी बात है । म आज रात
को मौका दे खकर जाऊंगा और इस संकट को काटने के िलए जो कुछ हो
सकेगा, क ं गा। ितर जमा रखो।
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जगत पांडे ने आंख खोलकर दे खा और उठने क असफल चे ा करके
बोला—मेरा हाल पूछते हो? दे खते नह ं हो, मर रहा हूं?
िसनहा—तो इस तरह य ूाण दे ते हो?
जगत—तु हार यह इ छा है तो म या क ं ?
िसनहा—मेर तो यह इ छा नह ं। हां, तुम अलब ा मेरा सवनाश
करने पर तुले हुए हो। आ खर मने तु हारे डे ढ़ सौ पये ह तो िलए ह।
इतने ह पये के िलए तुम इतना बड़ा अनु ान कर रहे हो!
जगत—डे ढ़ सौ पये क बात नह ं है । जो तुमने मुझे िम ट म िमला
दया। मेर डमी हो गयी होती तो मुझे दस बीघे जमीन िमल जाती और
सारे इलाके म नाम हो जाता। तुमने मेरे डे ढ़ सौ नह ं िलए, मेरे पांच हजार
बगाड़ दये। पूरे पांच हजार; ले कन यह घमंड न रहे गा, याद रखना कहे
दे ता हूं, स यानाश हो जायगा। इस अदालत म तु हारा रा य है ; ले कन
भगवान के दरवार म वू ह का रा य है । वू का धन लेकर कोई सुखी
नह ं रह सकता।
िमःटर िसनहा ने बहुत खेद और ल जा ूकट क , बहुत अनुनय-से
काम िलया और अ त म पूछा—सच बताओ पांडे, कतने पये पा जाओ तो
यह अनु ान छोड़ दो।
जगत पांडे अबक जोर लगाकर उठ बैठे और बड़ उ सुकता से बोले—
पांच हजार से कौड़ कम न लूंगा।
िसनहा—पांच हजार तो बहुत होते ह। इतना जु म न करो।
जगत—नह ं, इससे कम न लूंगा।
यह कहकर जगत पांडे फर लेट गया। उसने ये श द िन या मक
भाव से कहे थे क िमःटर िसनहा को और कुछ कहने का साहस न हुआ।
पये लाने घर चले; ले कन घर पहुंचते-पहुंचते नीयत बदल गयी। डे ढ़ सौ के
बदले पांच हजार दे ते कलंक हुआ। मन म कहा—मरता है जाने दो, कहां क
ॄ ह या और कैसा पाप! यह सब पाखंड है । बदनामी न होगी? सरकार
मुला जम तो य ह बदनाम होते ह, यह कोई नई बात थोड़े ह है । बचा कैसे
उठ बैठे थे। समझा होगा, उ लू फंसा। अगर 6 दन के उपवास करने से
पांच हजार िमले तो म मह ने म कम से कम पांच मरतबा यह अनु ान
क ं । पांच हजार नह ं, कोई मुझे एक ह हजार दे दे । यहां तो मह ने भर
नाक रगड़ता हूं तब जाके 600 पये के दशन होते ह। नोच-खसोट से भी
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शायद ह कसी मह ने म इससे यादा िमलता हो। बैठा मेर राह दे ख रहा
होगा। लेना पये, मुंह मीठ हो जायगा।
वह चारपाई पर लेटना चाहते थे क उनक प ी जी आकर खड़ हो
गयीं। उनक िसर के बाल खुले हुए थे। आंख सहमी हुई, रह-रहकर कांप
उठती थीं। मुंह से श द न िनकलता था। बड़ मु ँकल से बोलीं—आधी रात
तो हो गई होगी? तुम जगत पांडे के पास चले जाओ। मने अभी ऐसा बुरा
सपना दे खा है क अभी तक कलेजा धड़क रहा है , जान संकट म पड़ हुई
है । जाके कसी तरह उसे टालो।
िमःटर िसनहा—वह ं से तो चला आ रहा हूं। मुझे तुमसे यादा फब
है । अभी आकर खड़ा ह हुआ था क तुम आयी।
प ी—अ छा! तो तुम गये थे! या बात हु , राजी हुआ।
िसनहा—पांच हजार पये मांगता है !
प ी—पांच हजार!
िसनहा—कौड़ कम नह ं कर सकता और मेरे पास इस व एक हजार
से यादा न ह गे।
प ी ने एक ण सोचकर कहा— जतना मांगता है उतना ह दे दो,
कसी तरह गला तो छूट। तु हारे पास पये न ह तो म दे दं ग
ू ी। अभी से
सपने दखाई दे न लगे ह। मरा तो ूाण कैसे बचगे। बोलता-चालता है न?
िमःटर िसनहा अगर आबनूस थे तो उनक प ी चंदन; िसनहा उनके
गुलाम थे, उनके इशार पर चलते थे। प ी जी भी पित-शासन म कुशल थीं।
स दय और अ ान म अपवाद है । सुंदर कभी भोली नह ं होती। वह पु ष के
ममःथल पर आसन जमाना जानती है !
िसनहा—तो लाओ दे ता आऊं; ले कन आदमी बड़ा च घड़ है , कह ं
पये लेकर सबको दखाता फरे तो?
प ी—इसको यहां से इसी व भागना होगा।
िसनहा—तो िनकालो दे ह दं ।ू जंदगी म यह बात भी याद रहे गी।
प ी—ने अ व ास भाव से कहा—चलो, म भी चलती हूं। इस व
कौन दे खता है ?
प ी से अिधक पु ष के च रऽ का ान और कसी को नह ं होता।
िमःटर िसनहा क मनोवृ य को उनक प ी जी खूब जानती थीं। कौन
जान राःते म पये कह ं िछपा द, और कह द दे आए। या कहने लग, पये
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लेकर भी नह ं टलता तो म या क ं । जाकर संदक
ू से नोट के पुिलंदे
िनकाले और उ ह चादर म िछपा कर िमःटर िसनहा के साथ चलीं। िसनहा
के मुंह पर झाडू -सी फर थी। लालटे न िलए पछताते चले जाते थे। 5000
0 िनकले जाते ह। फर इतने पये कब िमलगे; कौन जानता है ? इससे तो
कह ं अ छा था द ु मर ह जाता। बला से बदनामी होती, कोई मेर जेब से
पये तो न छ न लेता। ई र करे मर गया हो!
अभी तक दोन आदमी फाटक ह तकम आए थे क दे खा, जगत पांडे
लाठ टे कता चला आता है । उसका ःव प इतना डरावना था मानो ँमशान
से कोई मुरदा भागा आता हो।
प ी जी बोली—महाराज, हम तो आ ह रहे थे, तुमने य क
कया? पये ले कर सीधे घर चले जाओगे न?
जगत—हां-हां, सीधा घर जाऊंगा। कहां ह पये दे ख!ूं
प ी जी ने नोट का पुिलंदा बाहर िनकाला और लालटे न दखा कर
बोलीं—िगन लो। 5000 पये ह!
पांडे ने पुिलंदा िलया और बैठ कर उलट-पुलट कर दे खने लगा। उसक
आंख एक नये ूकाश से चमकने लगी। हाथ म नोट को तौलता हुआ
बोला—पूरे पांच हजार ह?
प ी—पूरे िगन लो?
जगत—पांच हजार म दो टोकर भर जायगी! (हाथ से बताकर) इतने
सारे पांच हजार!
िसनहा— या अब भी तु ह व ास नह ं आता?
जगत—ह-ह, पूरे ह पूरे पांच हजार! तो अब जाऊं, भाग जाऊं?
यह कह कर वह पुिलंदा िलए कई कदम लड़खड़ाता हुआ चला, जैसे
कोई शराबी, और तब धम से जमीन पर िगर पड़ा। िमःटर िसनहा लपट कर
उठाने दौड़े तो दे खा उसक आंख पथरा गयी ह और मुख पीला पड़ गया है ।
बोले—पांडे, या कह ं चोट आ गयी?
पांडे ने एक बार मुंह खोला जैसे मर हुई िच ड़या िसर लटका च च
खोल दे ती है । जीवन का अंितम धागा भी टू ट गया। ओंठ खुले हुए थे और
नोट का पुिलंदा छाती पर रखा हुआ था। इतने म प ी जी भी आ पहुंची
और शव को दे खकर च क पड़ ं!
प ी—इसे या हो गया?
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िसनहा—मर गया और या हो गया?
प ी—(िसर पीट कर) मर गया! हाय भगवान ्! अब कहां जाऊं?
यह कह कर बंगले क ओर बड़ तेजी से चलीं। िमःटर िसनहा ने भी
नोटो का पुिलंदा शव क छाती पर से उठा िलया और चले।
प ी—ये पये अब या ह गे?
िसनहा— कसी धम-काय म दे दं ग
ू ा।
प ी—घर म मत रखना, खबरदार! हाय भगवान!
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करना चाहते थे जनका बरादर म काई ःथान न था। इस तरह एक वष
बीत गया।
िमसेज िसनहा चारपाई पर पड़ कराह रह थीं, ऽवेणी भोजन बना
रह थी और िमःटर िसनहा प ी के पास िचंता म डू बे बैठे हुए थे। उनके
हाथ म एक खत था, बार-बार उसे दे खते और कुछ सोचने लगते थे। बड़
दे र के बाद रोिगणी ने आंख खोलीं और बोलीं—अब न बचूंगी पांडे मेर जान
लेकर छोड़े गा। हाथ म कैसा कागज है ?
िसनहा—यशोदानंदन के पास से खत आया ह। पाजी को यह खत
िलखते हुए शम नह ं आती, मने इसक नौकर लगायी। इसक शाद करवायी
और आज उसका िमजाज इतना बढ़ गया है क अपने छोटे भाई क शाद
मेर लड़क से करना पसंद नह ं करता। अभागे के भा य खुल जाते!
प ी—भगवान ्, अब ले चलो। यह दद
ु शा नह ं दे खी जाती। अंगरू खाने
का जी चाहता है , मंगवाये है क नह ं?
िसनाह—म जाकर खुद लेता आया था।
यह कहकर उ ह ने तँतर म अंगरू भरकर प ी के पास रख दये।
वह उठा-उठा कर खाने लगीं। जब तँतर खाली हो गयी तो बोलीं—अब
कसके यहां संदेशा भेजोगे?
िसनहा— कसके यहां बताऊं! मेर समझ म तो अब कोई ऐसा आदमी
नह ं रह गया। ऐसी बरादर म रहने से तो यह हजार दरजा अ छा है क
बरादर के बाहर रहूं। मने एक ॄा ण से र त ली। इससे मुझे इनकार
नह ं। ले कन कौन र त नह ं लेता? अपने ग पर कोई नह ं चूकता। ॄा ण
नह ं खुद ई र ह य न ह , र त खाने वाले उ ह भी चूस लगे। र त
दे ने वाला अगर कोई िनराश होकर अपने ूाण दे ता है तो मेरा या अपराध!
अगर कोई मेरे फैसले से नाराज होकर जहर खा ले तो म या कर सकता
हूं। इस पर भी म ूाय त करने को तैयार हूं। बरादर जो दं ड दे , उसे
ःवीकार करने को तैयार हूं। सबसे कह चुका हूं मुझसे जो ूाय त चाहो
करा लो पर कोई नह ं सुनता। दं ड अपराध के अनुकूल होना चा हए, नह ं तो
यह अ याय है । अगर कसी मुसलमान का छुआ भोजन खाने के िलए
बरादर मुझे काले पानी भेजना चाहे तो म उसे कभी न मानूंगा। फर
अपराध अगर है तो मेरा है । मेर लड़क ने या अपराध कया है । मेरे
अपराध के िलए लड़क को दं ड दे ना सरासर याय- व है ।
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प ी—मगर करोगे या? और कोई पंचायत य नह ं करते?
िसनहा—पंचायत म भी तो वह बरादर के मु खया लोग ह ह गे,
उनसे मुझे याय क आशा नह ं। वाःतव म इस ितरःकार का कारण ईंया
है । मुझे दे खकर सब जलते ह और इसी बहाने वे मुझे नीचा दखाना चाहते
ह। म इन लोग को खूब समझता हूं।
प ी—मन क लालसा मन म रह गयी। यह अरमान िलये संसार से
जाना पड़े गा। भगवान ् क जैसी इ छा। तु हार बात से मुझे डर लगता है
क मेर ब ची क न-जाने या दशा होगी। मगर तुमसे मेर अंितम वनय
यह है क बरादर से बाहर न जाना, नह ं तो परलोक म भी मेर आ मा
को शांित न िमलेगी। यह शोक मेर जान ले रहा है । हाय, ब ची पर न-जाने
या वप आने वाली है ।
यह कहते िमसेज िसनहा क आंख म आंसू बहने लगे। िमःटर िसनहा
ने उनको दलासा दे ते हुए कहा—इसक िचंता मत करो ूये, मेरा आशय
केवल यह था क ऐसे भाव मन म आया करते ह। तुमसे सच कहता हूं,
बरादर के अ याय से कलेजा छलनी हो गया है ।
प ी— बरादर को बुरा मत कहो। बरादर का डर न हो तो आदमी न
जाने या- या उ पात करे । बरादर को बुरा न कहो। (कलेजे पर हाथ
रखकर) यहां बड़ा दद हो रहा है । यशोदानंद ने भी कोरा जवाब दे दया।
कसी करवट चैन नह ं आता। या क ं भगवान ्।
िसनहा—डा टर को बुलाऊं?
प ी—तु हारा जी चाहे बुला लो, ले कन म बचूंगी नह ं। जरा ित बो
को बुला लो, यार कर लूं। जी डू बा जाता है । मेर ब ची! हाय मेर ब ची!!
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िध कार
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यू नािनय ने िोह क तलाश करनी शु क । कसके घर म से रात
को गाने क आवाज आती ह। सारे शहर म सं या होते ःयापा-सा
छा जाता था। अगर कह ं आवाज सुनायी दे ती थीं तो रोने क ; हं सी और
गाने क आवाज कह ं न सुनायी दे ती थी।
दन को सुगध
ं क लपट कस घर से आती ह? लोग जधर जाते थे,
कसे इतनी फुरसत थी क घर क सफाई करता, घर म सुगध
ं जलाता;
धो बय का अभाव था अिधकांश लड़ने के िलए चले गये थे, कपड़े तक न
धुलते थे; इऽ-फुलेल कौन मलता!
कसक आंख म मद क लाली झलकती है ? लाल आंख दखाई दे ती
थी; ले कन यह मद क लाली न थी, यह आंसुओं क लाली थी। म दरा क
दक
ु ान पर खाक उड़ रह थी। इस जीवन ओर मृ यु के संमाम म वलास
क कसे सूझती! लोग ने सारा शहर छान मारा ले कन एक भी आंख ऐसी
नजर न आयी जो मद से लाल हो।
कई दन गुजर गये। शहर म पल-पल पर रण ेऽ से भयानक खबर
आती थीं और लोग के ूाण सूख जाते थे।
आधी रात का समय था। शहर म अंधकार छाया हुआ था, मानो
ँमशान हो। कसी क सूरत न दखाई दे ती थी। जन ना यशालाओं म
ितल रखने क जगह न िमलती थी, वहां िसयार बोल रहे थे। जन बाजार
म मनचले जवान अ -श सजाय ऐंठते फरते थे, वहां उ लू बोल रहे थे।
मं दर म न गाना होता था न बजाना। ूासाद म अंधकार छाया हुआ था।
एक बूढ़ा यूनानी जसका इकलौता लड़का लड़ाई के मैदान म था, घर
से िनकला और न-जाने कन वचार क तरं ग म दे वी के मं दर क ओर
चला। राःते म कह ं ूकाश न था, कदम-कदम पर ठोकर खाता था; पर
आगे बढ़ता चला जाता। उसने िन य कर िलया क या तो आज दे वी से
वजय का वरदान लूंगा या उनके चरण पर अपने को भट कर दं ग
ू ा।
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उसी घर से जसम मं दर क पुजा रन रहती थी, गाने क आवाज
आती थीं! वृ व ःमत होकर खड़क के सामने खड़ा हो गया। िचराग तले
अंधेरा! दे वी के मं दर के पछवाड़े य अंधेर?
बूढ़े ने ार झांका; एक सजे हुए कमरे म मोमब यां झाड़ म जल
रह थीं, साफ-सुथरा फश बछा था और एक आदमी मेज पर बैठा हुआ गा
रहा था। मेज पर शराब क बोतल और यािलयां रखी हुई थीं। दो गुलाम
मेज के सामने हाथ म भोजन के थाल खड़े थे, जसम से मनोहर सुगंध क
लपट आ रह थीं।
बूढ़े यूनानी ने िच लाकर कहा—यह दे शिोह है , यह दे शिोह है !
मं दर क द वार ने दहु राया—िोह है !
बगीचे क तरफ से आवाज आयी—िोह है !
मं दर क पुजा रन ने घर म से िसर िनकालकर कहा—हां, िोह है !
यह दे शिोह उसी पुजा रन का बेटा पासोिनयस था। दे श म र ा के
जो उपाय सोचे जाते, शऽुओं का दमन करने के िलए जो िन य कय जाते,
उनक सूचना यह ईरािनय को दे दया करता था। सेनाओं क ू येक गित
क खबर ईरािनय को िमल जाती थी और उन ूय को वफल बनाने के
िलए वे पहले से तैयार हो जाते थे। यह कारण था क यूनािनय को जान
लड़ा दे ने पर भी वजय न होती थी। इसी कपट से कमाये हुये धन से वह
भोग- वलास करता था। उस समय जब क दे श म घोर संकट पड़ा हुआ था,
उसने अपने ःवदे श को अपनी वासनाओं के िलए बेच दया। अपने वलास
के िसवा और कसी बात क िचंता न थी, कोई मरे या जये, दे श रहे या
जाये, उसक बला से। केवल अपने कु टल ःवाथ के िलए दे श क गरदन म
गुलामी क बे ड़यां डलवाने पर तैयार था। पुजा रन अपने बेटे के दरु ाचरण से
अनिभ थी। वह अपनी अंधेर कोठर से बहुत कम िनकलती, वह ं बैठ
जप-तप कया करती थी। परलोक-िचंतन म उसे इहलोक क खबर न थी,
मने िय ने बाहर क चेतना को शू य-सा कर दया था। वह इस समय भी
कोठर के ार बंद कये, दे वी से अपने दे श के क याण के िलए व दना कर
रह थी क सहसा उसके कान म आवाज आयी—यह िोह है , यह िोह है !
उसने तुरंत ार खोलकर बाहर क ओर झांका, पासोिनयम के कमरे से
ूकाश क रे खाएं िनकल रह थीं और उ ह ं रे खाओं पर संगीत क लहर नाच
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रह थीं। उसके पैर-तले से जमीन-सी िनकल गयी, कलेजा धक् -से हो गया।
ई र! या मेरा बेटा दे शिोह है ?
आप-ह -आप, कसी अंत:ूेरणा से पराभूत होकर वह िच ला उठ —हां,
यह दे शिोह है !
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चीखने-िच लाने पर उसने आख खोली; पर जगह से हल न सका। कतनी
दयनीय दशा थी, कंतु कसी को उस पर दया न आयी। यूनान म दे शिोह
सबसे बडा अपराध था और िोह के िलए कह ं मा न थी, कह ं दया न थी।
एक—अभी मरा है ?
दस
ू रा—िो हय को मौत नह ं आती!
तीसरा—पडा रहने दो, मर जायेगा!
चौथा—मब कये हुए है ?
पांचवा—अपने कये क सजा पा चुका है , अब छोड दे ना चा हए!
सहसा पासोिनयस उठ बैठा और उ ड भाव से बोला—कौन कहता है
क इसे छोड दे ना चा हए! नह ं, मुझे मत छोडना, वरना पछताओगे! म
ःवाथ दं ;ू वषय-भोगी हूं, मुझ पर भूलकर भी व ास न करना। आह! मेरे
कारण तुम लोग को या- या झेलना पडा, इसे सोचकर मेरा जी चाहता है
क अपनी इं िय को जलाकर भःम कर दं ।ू म अगर सौ ज म लेकर इस
पाप का ूाय त क ं , तो भी मेरा उ ार न होगा। तुम भूलकर भी मेरा
व ास न करो। मुझे ःवयं अपने ऊपर व ास नह ं। वलास के ूेमी स य
का पालन नह ं कर सकते। म अब भी आपक कुछ सेवा कर सकता हूं, मुझे
ऐसे-ऐसे गु रहःय मालूम ह, ज ह जानकर आप ईरािनय का संहार कर
सकते है ; ले कन मुझे अपने ऊपर व ास नह ं है और आपसे भी यह कहता
हूं क मुझ पर व ास न क जए। आज रात को दे वी क मने स चे दल से
वंदना क है और उ होन मुझे ऐसे यंऽ बताये ह, जनसे हम शऽुओं को
पराःत कर सकते ह, ईरािनय के बढते हुए दल को आज भी आन क आन
म उड़ा सकते है । ले कन मुझे अपने ऊपर व ास नह ं है । म यहां से बाहर
िनकल कर इन बात को भूल जाऊंगा। बहुत संशय ह, क फर ईरािनय क
गु सहायता करने लगू।ं इसिलए मुझ पर व ास न क जए।
एक यूनानी—दे खो-दे खो या कहता है ?
दस
ू रा—स चा आदमी मालूम होता है ।
तीसरा—अपने अपराध को आप ःवीकार कर रहा है ।
चौथा—इसे मा कर दे ना चा हए और यह सब बात पूछ लेनी चा हए।
पांचवा—दे खो, यह नह ं कहता क मुझे छोड़ दो। हमको बार-बार याद
दलाता जाता है क मुझ पर व ास न करो!
छठा—रात भर के क ने होश ठं डे कर दये, अब आंखे खुली है ।
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पासोिनयस— या तुम लोग मुझे छोड़ने क बातचीत कर रहे हो? म
फर कहता हूं, म व ास के यो य नह ं हूं। म िोह हूं। मुझे ईरािनय के
बहुत-से भेद मालूम ह, एक बार उनक सेना म पहुंच जाऊं तो उनका िमऽ
बनकर सवनाश कर दं ,ू पर मुझे अपने ऊपर व ास नह ं है ।
एक यूनानी—धोखेबाज इतनी स ची बात नह ं कह सकता!
दस
ू रा—पहले ःवाथाध हो गया था; पर अब आंखे खुली ह!
तीसरा—दे खिोह से भी अपने मतलब क बात मालूम कर लेने म
कोई हािन नह ं है । अगर वह अपने वचन पूरे करे तो हम इसे छोड़ दे ना
चा हए।
चौथा—दे वी क ूेरणा से इसक कायापलट हुई है ।
पांचवां—पा पय म भी आ मा का ूकाश रहता है और क पाकर
जामत हो जाता है । यह समझना क जसने एक बार पाप कया, वह फर
कभी पु य कर ह नह ं सकता, मान-च रऽ के एक ूधान त व का अपवाद
करना है ।
छठा—हम इसको यहां से गाते-बजाते ले चलगे। जन-समूह को चकमा
दे ना कतना आसान है । जनस ावाद का सबसे िनबल अंग यह है । जनता
तो नेक और बद क तमीज नह ं रखती। उस पर धूत , रं गे-िसयार का जाद ू
आसानी से चल जाता है । अभी एक दन पहले जस पासोिनयस क गरदन
पर तलवार चलायी जा रह थी, उसी को जलूस के साथ मं दर से िनकालने
क तैया रयां होने लगीं, य क वह धूत था और जानता था क जनता क
कल य कर घुमायी जा सकती है ।
एक ी—गाने-बजाने वाल को बुलाओ, पासोिनयस शर फ है ।
दस
ू र —हां-हां, पहले चलकर उससे मा मांगो, हमने उसके साथ
ज रत से यादा स ती क ।
पासोिनयस—आप लोग ने पूछा होता तो म कल ह कल ह सार
बात आपको बता दे ता, तब आपको मालूम होता क मुझे मार डालना उिचत
है या जीता रखना।
कई ी-पु ष—हाय-हाय हमसे बड भूल हुई। हमारे स चे पासोिनयस!
सहसा एक वृ ा ी कसी तरफ से दौडती हुई आयी और मं दर के सबसे
ऊंचे जीने पर खड होकर बोली—तुम लोग को या हो गया है ? यूनान के
बेटे आज इतने ानशू य हो गये ह क झूठे और स चे म ववेक नह ं कर
22
सकते? तुम पासोिनयस पर व ास करते हो? जस पासोिनयस ने सैकड़
य और बालक को अनाथ कर दया, सैकड घर म कोई दया जलाने
वाला न छोड़ा, हमारे दे वताओं का, हमारे पु ष का, घोर अपमान कया,
उसक दो-चार िचकनी-चुपड़ बात पर तुम इतने फूल उठे । याद रखो, अब
क पासोिनयस बाहर िनकला तो फर तु हार कुशल नह । यूनान पर ईरान
का रा य होगा और यूननी ललनाएं ईरािनय क कु का िशकार बनगी।
दे वी क आ ा है क पासोिनयस फर बाहर न िनकलने पाये। अगर तु ह
अपना दे श यारा है , अपनी माताओं और बहन क आब यार है तो
मं दर के ार को िचन द । जससे दे शिोह को फर बाहर न िनकलने और
तुम लोग को बहकाने का मौका न िमले। यह दे खो, पहला प थर म अपने
हाथ से रखती हूं।
लोग ने व ःमत होकर दे खा—यह मं दर क पुजा रन और पासोिनयस
क माता थी।
दम के दम म प थर के ढे र लग गये और मं दर का ार चुन दया
गया। पासोिनयस भीतर दांत पीसता रह गया।
वीर माता, तु ह ध य है ! ऐसी ह माता से दे श का मुख उ वल
होता है , जो दे श- हत के सामने मातृ-ःनेह क धूल-बराबर परवाह नह ं
करतीं! उनके पुऽ दे श के िलए होते ह, दे श पुऽ के िलए नह ं होता।
23
लैला
24
सारा तेहरान लैला पर फदा था। दिलत के िलए वह आशा क द पक
थी, रिसक के िलए ज नत क हूर, धिनय के िलए आ मा क जामित और
स ाधा रय के िलए दया और धम का संदेश। उसक भौह के इशारे पर
जनता आग म कूद सकती थी। जैसे चैत य जड़ को आक षत कर लेता है ,
उसी भांित लैला ने जनता को आक षत कर िलया था।
और यह अनुपम स दय सु वधा क भांित प वऽ, हम के समान
िनंकलंक और नव कु सुम क भांित अिनं था। उसके िलए ूेम कटा ,
एक भेदभर मुःकान, एक रसीली अदा पर या न हो जाता–कंचन के पवत
खड़े हो जाते, ऐ य उपासना करता, रयासत पैर क धूल चाटतीं, कव
कट जाते, व ान घुटने टे कते; ले कन लैला कसी क ओर आंख उठाकर भी
न दे खती थी। वह एक वृ क छांह म रहती िभ ा मांग कर खाती और
अपनी दयवीणा के राग अलापती थी। वह क व क सू क भांित केवल
आनंद और ूकाश क वःतु थी, भोग क नह ं। वह ऋ षय के आशीवाद
क ूितमा थी, क याण म डू बी हुई, शांित म रं गी हुई, कोई उसे ःपश न
कर सकता था, उसे मोल न ले सकता था।
२
ए
ली और दे र
क दन सं या समय तेहरान का शहजादा ना दर घोड़े पर सवार
उधर से िनकला। लैला गा रह थी। ना दर ने घोड़े क बाग रोक
तक आ म– वःमृत क दशा म खड़ा सुनता रहा। गजल का
पहला शेर यह था–
मरा ददःत अंदर दल, गोयम जवां सोजद,
बगैर दम दरकशम, तरसन क मगजी ईःत वां सोजद।
फर वह घोड़े से उतर कर वह ं जमीन पर बैठ गया और िसर
झुकाये रोता रहा। तब वह उठा और लैला के पास जाकर उसके कदम पर
िसर रख दया। लोग अदब से इधर-उधर हट गये।
लैला ने पूछा -तुम कौन हो?
ना दर—तु हारा गुलाम।
लैला—मुझसे या चाहते हो?
ना दर –आपक खदमत करने का हु म। मेरे झोपड़े को अपने कदम से
रोशन क जए।
लैला—यह मेर आदत नह ं
25
शहजादा फर वह ं बैठ गया और लैला फर गाने लगी। ले कन गला
थराने लगा, मानो वीणा का कोई तार टू ट गया हो। उसने ना दर क ओर
क ण नेऽ से दे ख कर कहा- तुम यहां मत बैठो।
कई आदिमय ने कहा- लैला, हमारे हुजरू शहजादा ना दर ह।
लैला बेपरवाह से बोली–बड़ खुशी क बात है । ले कन यहां शहजाद
का या काम? उनके िलए महल है , मह फल ह और शराब के दौर ह। म
उनके िलए गाती हूँ, जनके दल म दद है , उनके िलए नह ं जनके दल म
शौक है ।
शहजादा न उ म भाव से कहा–लैला, तु हार एक तान पर अपना
सब-कुछ िनसार कर सकता हूं। म शौक का गुलाम था, ले कन तुमने दद
का मजा चखा दया।
लैला फर गाने लगी, ले कन आवाज काबू म न थी, मानो वह उसका
गला ह न था।
लैला ने डफ कंधे पर रख िलया और अपने डे रे क ओर चली। ौोता
अपने-अपने घर चले। कुछ लोग उसके पीछे -पीछे उस वृ तक आये, जहां
वह वौाम करती थी। जब वह अपनी झ पड़ के ार पर पहुंची, तब सभी
आदमी वदा हो चुके थे। केवल एक आदमी झोपड़ से कई हाथ पर चुपचाप
खड़ा था।
लैला ने पूछा–तुम कौन हो?
ना दर ने कहा–तु हारा गुलाम ना दर।
लैला–तु ह मालूम नह ं क म अपने अमन के गोशे म कसी को नह ं
आने दे ती?
ना दर—यह तो दे ख ह रहा हूं।
लैला – फर य बैठे हो?
ना दर–उ मीद दामन पकड़े हुए ह।
लैला ने कुछ दे र के बाद फर पूछा- कुछ खाकर आये हो?
ना दर–अब तो न भूख है ना यास
लैला–आओ, आज तु ह गर ब का खाना खलाऊं, इसका मजा भी
चखा लो।
26
ना दर इनकार न कर सका। बाज उसे बाजरे क रो टय म अभूत-
पूव ःवाद िमला। वह सोच रहा था क व के इस वशाल भवन म कतना
आनंद है । उसे अपनी आ मा म वकास का अनुभव हो रहा था।
जब वह खा चुका तब लैला ने कहा–अब जाओ। आधी रात से यादा
गुजर गयी।
ना दर ने आंखो म आंसू भर कर कहा- नह ं लैला, अब मेरा आसन
भी यह जमेगा।
ना दर दन–भर लैला के नगमे सुनता गिलय म, सड़को पर जहां
वह जाती उसके पीछे पीछे घूमता रहाता। रात को उसी पेड़ के नीचे जा
कर पड़ा रहता। बादशाह ने समझाया मलका ने समझाया उमर ने
िम नत क , ले कन ना दर के िसर से लैला का सौदा न गया जन हालो
लैला रहती थी उन हालो वह भी रहता था। मलका उसके िलए अ छे से
अ छे खाने बनाकर भेजती, ले कन ना दर उनक ओर दे खता भी न था--
ले कन लैला के संगीत म जब वह ध
ु ा न थी। वह टू टे हुए तार का
राग,था जसम न वह लोच थ न वह जाद ू न वह असर। वह अब भी गाती
थीर सुननेवाले अब भी आते थे। ले कन अब वह अपना दल खुश करने को
गाती थी और सुननेवाले व ल होकर नह , उसको खुशकरने के िलए
आते थे।
इस तरह छ मह ने गुजर गये।
एक दन लैला गाने न गयी। ना दर ने कहा– य लैला आज गाने
न चलोगी?
लैला ने कहा-अब कभी न जाउं गा। सच कहना, तु ह अब भी मेरे गाने
म पहले ह का-सा मजा आता है ?
ना दर बोला–पहले से कह ं यादा।
लैला- ले कन और लोग तो अब पंसद नह ं करते।
ना दर–हां मुझे इसका ता जुब है ।
लैला–ता जुब क बात नह ं। पहले मेरा दल खुला हुआ
था उसम सबके िलए जगह थी। वह सबको खुश कर सकता था। उसम से
जो आवाज िनकलती थी, वह सबके दलो म पहुचती थी। अब तुमने उसका
दरवाजा बंद कर दया। अब वहां तु हारे िसवा और कसी के काम का नह ं
रहा। चलो मै तु हारे पीछे पीछे चलुगी। आज से तुम मेरे मािलक हो
27
होती हूं चलो मै तु हारे पीछे पीछे चलूगा। आज से तूम मेरे मािलक हो।
थोड सी आग ले कर इस झोपड़ म लगा दो। इस डफ को उसी म
जला दं ग
ु ी।
3
रा म
य म तो
सुलग
यह अशांित फैली हुईथी, विोह
रह थी◌ा। और राजभवन म ूेम
क आग
का शांितमय
दल
29
रात का समय था। ना दर और लैला आरामगाह म बैठे हुए,
शतरं ज क बाजी खेाल रहे थे। कमरे म को◌ाई सजावट न थी, केवल
एक जा जम वछ हुई थी।
ना दर ने लैला का हाथ पकड़कर कहा- बस अब यह यादती
नह ं,उ तु हार चाल हो चुंक । यह दे ख , तु हारा एक यादा पट गया।
लैला ‘ अ छा यह शह। आपके सारे पैदल रखे रह गये और
बादशाह को शह पड गयी। इसी पर दावा था।
ना दर –तु हारे हाथ हारने मे जो मजा है , वह जीतने म नह ं।
लैला-अ छा, तो गोया आप दल खुश कर रहे है ।‘ शह बचाइए, नह ं
दस
ू र चाल म मात होती।
ना दर–(अदब दे कर) अ छा अब संभल जाना, तुमने मेरे बादशाह
क तौह न क है । एक बार मेरा फज उठा तो तु हारे याद का सफाया
कर दे गा।
लैला-बसंत क भी खबर है । आपको दो बार छोड़ दया, अबक हिगज
न छोडू ं गी।
ना दर-अब तक मेरे पास दलराम (घोड़ा) है , बादशाह को कोई गम
नह ं
लैला – अ छा यह शह? लाइए अपने दलराम को।’ क हए अब तो
मात हुई?
ना दर-हां जानेमन अब मात हो गयी। जब मैह तु हार आदाओं पर
िनसार हो गया तब मेरा बादशाह कब बच सकता था।
लैला–बात न बनाइए, चुपके से इस फरमान पर दःतखत कर द जए
जैसा आपने वाद कया था।
यह कह कर लैला ने फरमान िनकाला जसे उसने खुद अपने मोती
के से अ रो से िलखा था। इसमे अ न का आयात कर घटाकर आधा कर
दया गया, था। लैला ूजा को भूली न थी, वह अब भी उनक हत
कामना म संल न रहती थी। ना दर ने इस शत पर फरमान पर दःतखत
करने का वचन दया था क लैला उसे शतरं ज म तीन बार मात करे । वह
िस हःत खलाड़ था इसे लैला जानती थी, पर यह शतरं ज क बाजी न
थी, केवल वनोद था। ना दर ने मुःकारते हुए फरमान पर हःता र कर
दये कलम के एक एक िच ह से ूजा क पांच करोड़ वा षक दर से
30
मु हो गयी। लैला का मुख गव से आर हो गया। जो काम बरस के
आ दोलन से न हो सकता था, वह ूेम कटा से कुछ ह दन म पुरा
होगया।
यह सोचकर वह फूली न समाती थी क जस व वह फरमान
सरकार पऽे मं ूकािशत हो जायेगा। और यवःथा पका सभा के लोगो को
इसके दशन ह ग, उस व ूजावा दय को कतना आनंद होगा। लोग मेरा
यश गायेग और मुझे आशीवाद दे गे।
ना दर ूेम मु ध होकर उसके चंिमुख क ओर दे ख रहा था, मानो
उसका वश होता तो सौदं य क इस ूितमा को दय म वठा लेता।
६
स हसा रा य–भवन
मालूम हुआ क
के ार पर शोर मचने
जनता का ट ड दल; अ
लगा।
श
एक
से सृस जत
ण म
31
आदे श पाते ह ना दर छत पर चढ़ गया, लैला भी उसक पीछे पीछे
ऊपर आ पहुंची। दोन अब जनता के स मुख आकर खड़े हो गये। मशल
के ूकाश म लोग न इन दोनो को छत पर खड़े दे खा मानो आकाश से
दे वता उतर आय ह , सह ो से विन िनकली–वह खड़ है लैला वह खड़ ।’
यह वह जनता थी जो लैला के मधुर संगीत पर मःत हो जाया करती थी।
ना दर ने उ च ःवर से विो हय को स बोिधत कया–ऐ ईरान क
बदनसीब रआया। तुमने शाह महल को यो घेर रखा है ? य बगावत
का झंडा खडा कया है ? या तुमको मेरा और अपने खुदा का ब कुल खौफ
कया। है ? या तुम नह ं जानत क मै अपनी आंख के एक इशारे से
तु हार हःती खाक म िमला सकता हूं? मै तु हे हु म दे ता हुं क एक
ल हे के अ दर यहां से चलो जाओं वरना कलामे-पाक क कसम, मै तु हारे
खून क नद बहा दं ग
ू ा।
एक आदमी ने, जो विो हय का नेता मालूम होता था, सामने आकर
कहा–हम उस व तक न जायेगे, जब तक शाह महल लैला से खाली न
हो जायेगा।
ना दर ने बगड़कर कहा-ओ नाशुबो, खुदा से डरो!’ तू हे अपनी
मलका क शान म ऐसी बेअदबी करते हुए शम नह आती!’ जब से लैला
तु हार मलका हुई है , उसने तु हारे साथ कनती रयायते क है ।‘ या उ ह
तुम बलकुल भूल गये? जािलमो वह मलका है , पर वह खना खाती है जो
तूम कु को खला दे ते हो, वह कपड़े पहनती है , जो तुम फक रो को दे
दे ते हो। आकर महलसरा म दे खो तुम इसे अपने झोपड़ो ह क तरह
तक लफु और सजावट से खाली पाओगे। लैला तु हार मलका होकर भी
फक रो क जंदगी बसर करती है , तु हार खदमत म हमेशा मःत रहती
है । तु ह उसके कदमो क खाक माथे पर लगानी चा हए आखो का सुरमा
बनाना चा हए। ईरान के त त पर कभी ऐसी गर बो पर जान दे ने वाली
उनके दद म शर क होनेवाली गर बो पर अपने को िनसार करने वाली
मलकाने कदम नह रखे और उसक शान म तुम ऐसी बेहूदा बात करते
हो।’ अफसोस मुझे मालूम हो गया क तुम जा हल इ सािनयत से खाली
और कमीने हो।’ तुम इसी का बल हो क तु हार गरदे न कु द छुर से
काट जाय तु ह पैरो तले रौदां जाये...
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ना दर बात भी पूर न कर पाया था क विो हय ने एक ःवर से
िच लाकर कहा-लैला हमार दँु मन है , हम उसे अपनी मलका क सुरत म
नह दे ख सकते।
ना दर नेजोर से िच लाकर कहा-जािलमो, जरा खामोश हो जाओं,
यह दे खो वह फरमान है जस पर लैला ने अभी अभी मुझसे जबरदःतीर
दःतखत कराये है । आज से ग ले का महसूल घटाकर आधा कर दया गया
है और तु हारे िसर से महसूल का बोझ पांच करोड़ कम हो गया है ।
हजारो आदिमय ने शोर मचाया–यह महसूल बहुत पहले बलकुल माफ
हो जाना चा हए था। हम एक कौड़ नह दे सकते। लैला, लैला हम उसे
अपनी मलका क सुरत म नह दे ख सकते।
अब बादशाह बोध से कापंने लगा। लैला ने सजल नेऽ होकर कहा-
अगर रआया क यह मरजी है क म फर डफ बजा-बजा कर गाती फ ं
तो मुझे उळ नह ं, मुझे यक न है क मै अपने गाने से एक बार फर
इनके दल पर हुकूमत कर सकती हूं।
ना दर ने उ े जत होकर कहा- लैला, म रआया क तुनुक िमजा जय
का गूलाम नह ं। इससे पहले क मै तु हे अपने पहलू से जूदा क ं तेहरान
क गिलयां खून से लाल हो जायेगी। मै इन बदमाशो को इनक शरारत का
मजा चखाता हूं।
ना दर ने मीनार पर चढकर खतरे का घंटा बजाया। सारे तेहरान मे
उसक आवाज गूज
ं उठ , शाह फौज का एक आदमी नजर न आया।
ना दर ने दोबारा घंटा बजाया, आकाश मंडल उसक झंकार से क पत
हो गया। तारागण कापं उठे ; पर एक भी सैिनक न िनकला।
ना दर ने तीससी बार घंटा बजाया पर उसका भी उ र केवल एक
ीण ूित विन ने दया मानो कसी मरने वाले क अितंम ूाथना के श द
ह।
ना दर ने माथा पीट िलया। समझ गया क बुरे दन आ गये। अब
भी लैला को जनता के दरु ामह पर बिलदान करके वह अपनी राजस ा क
र ा कर सकता था, पर लैला उसे ूाण से ूय थी उसने छत पर
आकर लैला का हाथ पकड िलया और उसे िलये हुए सदर फाटक से िनकला
विो हय ने एक वजय विन क साथ उनका ःवागत कया, पर सब के
सब कसी गु ूरे णा के वश राःते से हट गये।
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दोनो चुपचाप तेहरान क गिलय म होते हुए चले जाते, थे। चार
ओर अंधकार था। दक
ु ाने बंदथी बाजार म स नाटा छाया हुआ था। कोई
घर से बाहर न िनकलता था। फक र ने भी मस जदो म पनाह ले ली थी
पर इन दोनो ूा णयो के िलए कोई आौय न था। ना दर क कमर म
तलवार थी, लैला के हाथ म डफ था उनके वशाल ऐ य का वलु िच
था।
7
सं
या का समय था। लैला और ना दर दिमँक म एक
वृ के नीचे बैठे हुए थे। आकाशा पर लािलमा छायी हुई थी।
और उससे िमली हुई पवत मालाओं क ँयाम रे खा ऐसी मालूम हो रह
थी मानो कमल-दल मुरझा गया हो। लैला उ लिसत नेऽो से ूकृ ित क यह
शोभा दे ख रह थी। ना दर मिलन और िचंितत भाव से लेटा हुआ सामने के
सुदरु ूांत क ओर तृ षत नेऽ से दे ख रहा था, मानो इस जीवन से तंग
आ गया है ।
सहसा बहुत दरू गद उड़ती हुई दखाई द और एक ण म ऐसा
मालूम हुआ क कुछ आदमी घोड़ो पर सवार चले आ रहे है । ना दर उठ
बैठा और गौर से दे खने लगा क ये कौन आदमी है । अकःमात वह उठकर
खड़ा हो गया। उसका मुख मंडल द पक क भाित चमक उठा जजर शर र
म एक विचऽ ःफुित दौड़ गयी। वह उ सुकता से बोला–लैला, ये तो ईरान
के आदमी, कलामे–पाक क कसम, ये ईरान के आदमी है । इनके िलबास
से साफ जा हए हो रहा है ।
लैला–पहले मै, भी उन या ऽय क ओर दे खा और सचेत होकर
बोली–अपनी तलवार संभाल लो, शायद उसक ज रत पड़े ,।
ना दर–नह ं लैला, ईरान केलोग इतने कमीने नह ं है क अपने
बादशाह पर तलवार उठाय।
लैला- पहले मै भी यह समझती थी।
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सवार ने समीप आकर घोड़े रोक िलये। उतकर बड़े अदब से ना दर
को सलाम कया। ना दर बहुत ज त करने पर भी अपने मनोवेग को न
रोक सका, दौड़कर उनके गले िलपट गया। वह अब बादशाह न था, ईरान
का एक मुसा फर था। बादशहत िमट गयी थी, पर ईरािनयत रोम रोम म
भर हुई ाी। वे तीन आदमी इस समय ईरान के वधाता थे। इ हे वह
खूब पहचानता था। उनक ःवािमभ क वह कई बार पर ा ले चुका था।
उ हे लाकर अपने बो रये पर बैठाना चाहा, ले कन वे जमीन पर ह
बैठे। उनक से वह बो रया उस समय िसंहासन था, जस पर अपने
ःवामी के स मुख वे कदम न रख सकते थे। बात होने लगीं, ईरान क
दशा अ यंत शोचनीय थी। लूट मार का बाजार गम था, न कोई यवःथा
थी न यवःथापक थे। अगर यह दशा रह तो शायद बहुत ज द
उसक गरदन म पराधीनता का जुआ पड़ जाये। दे श अब ना दर को
ढू ं ढ रहा था। उसके िसवा कोई दस
ू रा उस डु बते हुए बेडे को पार नह ं लगा
सकता था। इसी आशा से ये लोग उसके पास आये थे।
ना दर ने वर भाव से कहा- एक बार इ जत ली, या अबक जान
लेने क सोची है ? मै बड़े आराम से हूं।’ आप मुझे दक न कर।
सरदार ने आमह करना शु कया–हम हुजरू का दामन न छोड़े गे,
यहां अपनी गरदन पर छुर फेर कर हुजरू के कदमो पर जान दे दे गे।
जन बदमाश ने आपक परे शान कया। अब उनका कह ं िनशान भी नह ं
रहा हम लोगो उ ह फर कभी िसर न उठाने दे ग ,िसफॅ हुजरू क आड़
चा हए।
ना दर नेबात काटकर कहा-साहबो अगर आप मुझे इस इरादे से
ईरान का बादशाह बनाना चाहते है , तो माफ क जए। मैने इस सफर मे
रआया क हालत का गौर से मुलाहजा कया है और इस नतीजे पर
पहुंचा हूं क सभी मु को म उनक हालत खराब है । वे रहम के क बल है
ईरान म मुझे कभी ऐसे मौके ने िमले थे। म रआया को अपने
दरवा रय क आख से दे खता था। मुझसे आप लोग यह उ मीद न रखे
क रआया को लूटकर आपक जेब भ गां। यह अजाब अपनी गरदन पर
नह ने सकता। म इ साफ का मीजान बराबर रखूग
ं ा और इसी शत पर
ईरान चल सकता हूं।
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लैला ने मुःकराते कहा-तुम रआया का कसूर माफ कर सकते हो,
यो क उसक तुमसे कोई दँु मनी न थी। उसके दांत तो मुझे पर थे। मै
उसे कैसे माफ कर सकती हूं।
ना दर ने ग भीर भाव से कहा-लैला, मुझं यक न नह ं आता क
तु हारे मुंह से ऐसी बात सुन रहा हूं।
लोगो ने समझा अभी उ ह भड़काने क ज रत ह या है । ईरान म
चलकर दे खा जायेगा। दो चार मुख बरो से रआया के नाम पर ऐसे उपिव
खड़े करा दगे क इनके सारे याल पलट जायेग। एक सरदार ने अज
क - माज लाह; हुजरू यह या फरमाते है ? या हम इतने नादान है क
हुजरू ं को इ साफ के राःते से हटाना चाहे ग? इ साफ ह बादशाह का जौहर
है और हमार दली आरजू है क आपका इ साफ ह नौशेरवां को भी
शिमदां कर दे ,। हमार मंशा िसफ यह थी क आइं दा से हम रआया को
कभी ऐसा मौका न दे ग क वह हुजरू क शान म बेअदबी कर सके। हम
अपनी जान हुजरू पर िनसार करने के िलए हा जर रहगे।
सहसा ऐसा मालूम हुआ क सार ूकृ ित संगीतमय हो गयी है ।
पवत और वृ , तारे , और चॉद वायु और जल सभी एक ःवर से गाने लगे।
चॉदनी क िनमल छटा म वायु के नीरव ूहार म संगीत क तरं ग उठने
लगी। लैला अपना डफ बजा बजा कर गा रह थी। आज मालूम हुआ,
विन ह सृ का मूल है ।द पवत पर दे वयां िनकल िनकल कर नाचने
लगीं अकाशा पर दे वता नृ य करने लगे। संगीत ने एक नया संसार रच
डाला।
उसी दन से जब क ूजा ने राजभवन के ार पर उपिव मचाया था
और लैला के िनवासन पर आमह कया था, लैला के वचार म बांित हो रह
थी ज म से ह उसने जनता के साथ साहनुभूित करना सीखा था। वह
राजकमचा रय को ूजा पर अ याचार करते दे खती थी और उसका
कोमल दय तड़प उठता था। तब धन ऐ य और वलास से उसे घृणा
होने लगती थी। जसके कारण ूजा को इतने क भोगने पड़ते है । वह
अपने म कसी ऐशी श का आ ाहन करना चाहती थी क जो आतताइय
के दय म दया और ूजा के दय म अभय का संचार करे । उसक बाल
क पना उसे एक िसंहासन पर बठा दे ती, जहां वह अपनी याय नीित से
संसार म युगातर उप ःथत कर दे ती। कतनी रात उसने यह ःव न
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दे खने म काट थी। कतनी बार वह अ याय पी ड़य के िसरहाने
बैठकर रोयीथी ले कन जब एक दन ऐसा आया क उसके ःवण ःव न
आंिशक र ित से पूरे होने लगे तब उसे एक नया और कठोर अनुभव हुआ!
उसने दे खा ूजा इतनी सहनशील इतनी द न और दब
ु ल नह ं है , जतना
वह समझती थी इसक अपे ा उसम ओछे पन, अ वचार और अिश ता
क माऽा कह ं अिधक थी। वह स यहार क कि करना नह जानती,
शा पाकर उसका सदप
ु योग नह ं कर सकती। उसी दन से उसका दल
जनता से फर गया था।
जस दन ना दर और लैला ने फर तेहरान म पदापण कया,
सारा नगर उनका अिभवादन करने के िलए िनकल पड़ा शहर पर
आतंक छाया हुआ था।, चारो ओर क ण दन क विन सुनाई दे ती
थी। अमीर के मुह ले म ौी लोटती फरती थी गर बो के मुह ले उजड़े
हुएथे, उ हे दे खकर कलेजा फटा जाता था। ना दर रो पड़ा, ले कन लैला
के होठ पर िन ु र िनदय हाःय छटा दखा रहा था।
ना दर के सामने अब एक वकट सम या थी। वह िन य दे खता
क मै जो करना चाहता हूं वह नह होता और जो नह ं करना चाहता
वह होता है और इसका कारण लैला है , पर कुछ कह न सकता था।
लैला उसके हर एक काम म हःत ेप करती रहती, थी। वह जनता के
उपकार और उ ार के िलए वधान करता, लैला उसमे कोई न कोई व न
अवँय डाल दे ती और उसे चुप रह जाने के िसवा और कुछ न सुझता
लैला के िलए उसने एक बार रा य का याग कर दया था तब
आपित-काल ने लैला क पर ा क थी इतने दन क वपित म उसे
लैला के च रऽ का जो अनुभव ूा हुआ था, वह इतना मनोहर इतना
सरस था क वह लैला मय हो गया था। लैला ह उसका ःवग थी,
उसके ूेम म रत रहना ह उसक परम अिधलाषा थी। इस लैला के िलए वह
अब या कुछ न कर सकता था? ूजा क ओर साॆा य क उसके
सामने या हःती थी।
इसी भांित तीन साल बीत गये ूजा क दशा दन दन बगड़ती ह
गयी।
९
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सािथय का
ए क दन ना दर िशकर खेलने गया। और सािथय
होकर जंगल म भटकता फरा यहां तक क रात हो गयी और
पता न चला। घर लौटने का भी राःता न
से अलग
जानता था। आ खर
खुदा का नाम लेकर वह एक तरफ चला क कह ं तो कोई गांव या बःती
का नाम िनशान िमलेगा! वहां रात, भर पड़ रहुंगा सबेरे लौट जाउं गा। चलते
चलते जंगल के दस
ू रे िसरे पर उसे एक गांव नजर आया। जसम मु ँकल
से तीन चार घर होग हा, एक मस जद अलब ा बनी हुई थी। मस जद मे
एक द पक टम टमा रहा था पर कसी आदमी या आदमजात का
िनशान न था। आधी रात से यादा बीत चुक थी, इसिलए कसी को क
दे ना भी उिचत न था। ना दर ने घोड़े का एक पेड़ स बाध दया और उसी
मस जद म रात काटने क ठानी। वहां एक फट सी चटाई पड़ हुई थी।
उसी पर लेट गया। दन भर तक सोता रहा; पर कसी क आहट पाकर
चौका तो या दे खता है क एक बूढा आदमी बैठा नमाज पढ़ रहा है । उसे
यह खबर न थी करात गुजर गयी और यह फजर क नमाज है । वह पड़ा–
पड़ा दे खता रहा। वृ पु ष ने नमाज अदा कह फर वह छाती के सामने
अ जल फैलकर दआ
ु मांगने लगा। दआ
ु के श द सुनकर ना दर का खून सद
हो गया। वह दआ
ु उसके रा यकाल क ऐसी तीो, ऐसी वा ःतवक ऐसी
िश ाूद आलोचना थी जो आज तक कसी ने न क थी उसे अपने
जीवन म अपना अपयश सुनने का अवसर ूा हुआ। वह यह तो
जानता था क मेरा शासन आदश नह ं है , ले कन उसने कभी यह क पना
न क थी क ूजा क वपित इतनी अस य हो गयी है । दआ
ु यह थी-
‘‘ए खुदा! तू ह गर बो का मददगार और बेकस का सहारा है ।
तू इस जािलम बादशह के जु म दे खता है और तेरा वहर उस पर नह ं
िगरता। यह बेद न का फर एक हसीन औरत क मुह बत म अपने
को इतना भूल गया है क न आख से, दे खता है , न कानो से सुनता है ।
अगर दे खता है तो उसी औरत क आंख से सुनता है तो उसी औरत के
कानो से अब यह मुसीबत नह ं सह जाती। या तो तू उस जािलम को
जह नुम पहुंचा दे ; या हम बेकस को दिु नया से उठा ले। ईरान उसके
जु म से तंग आ गया है । और तू ह उसके िसर से इस बाला को टाल
सकता है ।’
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बूढ ने तो अपनी ड संभाली और चलता हुआ, ले कन ना दर मृतक
क भाितं वह ं पड़ा रहा मान उसे पर बजली िगर पड़ ह ।
१०
ए
सोचा करता क
क
को अपने
स ाह तक ना दर दरबार म न आया, न कसी कमचार
पास आने क आ ा द । दन के दन अ दर पड़ा
या क ं । नाम माऽ को कुछ खा लेता। लैला बार बार
उसके पास जाती और कभी उसका िसर अपनी जांघ पर रखकर कभी
उसके गले म बाह डालकर पूछती–तुम य इतने उदास और मिलन हो।
ना दरा उसे दे खकर रोने लगता; पर मुंह से कुछ न कहता। यश या लैला,
यह उसके सामने क ठन समःया थी। उसक दय म भीषण
रहाता और वह कुद िन य न कर सकता था। यश यारा था; पर लैला
उससे भी यार थी वह बदनाम होकर जंदा रह सकता था। लैला उसके
रोम रोम म या थी।
अंत को उसने िन य कर िलया–लैला मेर है मै लैला का हूं। न मै
उससे अलग न वह मुझेस जुदा। जो कुछ वह करती है मेरा है , जो मै
करता हू। उसका है यहां मेरा और तेरा का भेद ह कहां? बादशाहत
न ार है ूेम अमर । हम अनंत काल तक एक दस
ू रे के पहलू म बैठे
हुए ःवग के सुख भोगेग। हमारा ूेम अनंत काल तक आकाश म तारे
क भाित चमकेगा।
ना दर ूस न होकर उठा। उसका मुख मंडल वजय क लािलमा से रं जत
हो रहा था। आंख म शौय टपका पड़ता था। वह लैला के ूेमका याला
पीने जा रहा था। जसे एक स ाह से उसने मुंह नह ं लगाया था। उसका
दय उसी उमंग से उछता पड़ताथा। जो आज से पांच साल पहले उठा करती
थी। ूेम का फूल कभी नह मुरझाता ूेम क नीदं कभी नह ं उतरती।
ले कन लैला क आरामगाह के ार बंद थे और उसका उफ जो ार
पर िन य एक खूंट से लटका रहता था, गायब था। ना दर का कलेजा
स न-सा हो गया। ार बदं रहने का आशय तो यह हो सकता हे क लैला
बाग म होगी; ले कन उफ कहां गया? स भव है , वह उफ लेकर बाग म
गयी हो, ले कन यह उदासी यो छायी है ? यह हसरत यो बरस रह है ।’
ना दर ने कांपते हुए हाथो से ार खोल दया। लैला अंदर न थी
पंगल बछा हुआ था, शमा जल रह थी, वजू का पानी रखा हुआथा। ना दर
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के पावं थराने लगे। या लैला रात को भी नह ं सोती? कमरे क एक एक
बःतु म लैला क याद थी, उसक तःवीर थी योित-ह न नेऽ।
ना दर का दल भर आया। उसक ह मत न पड़ क कसी से कुछ
पूछे। दय इतना कातर हो गया क हतबु क भांित फश पर बैठकर
बलख- बलख कर रोने लगा। जब जरा आंसू थमे तब उसने वःतर को
सूघां क शायद लैला के ःपश क कुछ गंध आये; ले कन खस और गुलाब
क महक क िसवा और कोई सुगध
ं न थी।
साहसा उसे त कये के नीचे से बाहर िनकला हुआ एक कागज का
पुजा दखायी दया। उसने एक हाथ से कलेजे को सभालकर पुजा िनकाल
िलया और सहमी हुई आंखो से उसे दे खा। एक िनगाह म सब कुछ मालूम
हो गया। वह ना दर क कःमत का फैसला था। ना दर के मुंह से िनकला,
हाय लैला; और वह मुिछत होकर जमीन पर िगर पड़ा। लैला ने पुज म
िलखा था-मेरे यारे ना दर तु हार लैला तुमसे जुदा होती है । हमेशा के
िलए । मेर तलाश मत करना तुम मेरा सुराग न पाओगे । मै तु हार
मुह बत क लौड़ थी, तु हार बादशाहत क भूखी नह ं। आज एक हफते से
दे ख रह हूं तु हार िनगाह फर हुई है । तुम मुझसे नह ं बोलते, मेर
तरफ आंख उठाकर नह ं दे खते। मुझेसे बेजार रहते हो। मै कन कन
अरमान से तु हारे पास जाती हूं और कतनी मायूस होकर लौटती हूं
इसका तुम अंदाज नह ं कर सकते। मैने इस सजा के लायक कोई काम
नह ं कया। मैने जो कुछ है , तु हार ह भलाई केखयाल से। एक हफता
मुझे रोते गुजर गया। मुझे मालूम हो रहा है क अब मै तु हार नजर
से िगर गयी, तु हारे दल से िनकाल द गयी। आह! ये पांच साल हमेशा
याद रहे ग, हमेशा तड़पाते रहग! यह डफ ले कर आयी थी, वह लेकर
जाती हूं पांच साल मुह बत के मजे उठाकर जंदगी भर केिलए हसरत का
दाग िलये जाती हूं। लैला मुह बत क ल ड थी, जब मुह बत न रह , तब
लैला य कर रहती? खसत!’
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नेउर
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द ना–जवान औरत उसक या बराबर करे गी? सदरु , टकुली, काजल,
मेहद म तो उसका मन बसाता है । बना कनारदार रं गीन धोती के उसे
कभी उदे खा ह नह ं उस पर गहान से भी जी नह ं भरता। तुम गऊ हो
इससे िनबाह हो जाता है , नह ं तो अब तक गली गली ठोकर खाती होती।
गोबर – मुझे तो उसके बनाव िसंगार पर गुःसा आताहै । कात
कुछन करे गी; पर खाने पहनने को अ छा ह चा हए।
नेउर-तुम या जानो बेटा जब वह आयी थी तो मेरे घर सात हल क
खेती होती थी। रानी बनी बैठ रहती थी। जमाना बदल गया, तो या
हुआ। उसका मन तो वह है । घड़ भर चू हे के सामने बैठ जाती है तो
या हुआ! उसका मन तो वह है । घड़ भर चू हे के सामने बैठ जाती है तो
आंखे लाल हो जाती है और मूड़ थामकर पड़ जाती है । मझसे तो यह नह
दे खा जाता। इसी दन रात के िलए तो आदमी शाद याह करता है और
इसमे या रखा है । यहां से जाकर रोट बनाउं गा पानी, लाऊगां, तब दो कौर
खायेगी। नह ं तो मुझे या था तु हार तरह चार फंक मारकर एक लोटा
पानी पी लेता। जब से ब टया मर गयी। तब से तो वह और भी लःत हो
गयी। यह बड़ा भार ध का लगा। मां क ममता हम–तुम या समझेग
बेटा! पहले तो कभी कभी डांट भी दे ता था। अब कस मुंह से डांटूं?
द ना-तुम कल पेड़ काहे को चढे थे, अभी गूलर कौन पक है ?
नेउर-उस बकर के िलए थोड़ प ी तोड़ रहा था। ब टया को दध
ू
पलाने को बकर ली थी। अब बु ढया हो गयी है । ले कन थोड़ा दध
ू दे दे ती
है । उसी का दध
ू और रोट बु ढया का आधार है ।
घर पहुंचकर नेउर ने लोटा और डोर उठाया और नहाने चला क ी
ने खाट पर लेटे–लेटे कहा- इतनी दे र य कर दया करते हो? आदमी
काम के पीछे परान थोड़े ह दे ता है ? जब मजूर सब के बराबर िमलती है
तो यो काम काम केपीछे मरते हो?
नेउर का अ त:करण एक माधुय से सराबोर हो गया। उसके आ मसमपण से
भरे हुए ूेम म म क ग ध भी तो नह ं थी। कतनी ःनेह! और कसे
उसके आराम क , उसके मरने जीने क िच ता है ? फर यह य न
अपनी बु ढया के िलए मरे ? बोला–तू उन जनम म कोई दे वी रह होगी
बु ढया,सच।
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‘‘अ छा रहने दो यह चापलूसी । हमारे आगे अब कौन बैठा हुआ है ,
जसके िलए इतनी हाय–हाय करते हो?’’
नेउर गज भर क छाती कये ःनान करने चला गया। लौटकर उसने
मोट मोट रो टयां बनायी। आलू चू हे म डाल दये। उनका भुरता बनाया,
फर बु ढया और वह दोनो साथ खाने बैठे।
बु ढया–मेर जात से तु हे कोई सुख न िमला। पड़े -पड़े खाती हूं और
तु हे तंग करती हूं और इससे तो कह ं अ छा था क भगवान मुझे उठा
लेते।’
‘भगवान आयगे तो मै कहूंगा पहले मुझे ले चल । तब इस सूनी
झोपड़ म कौन रहे गा।’
‘तुम न रहोगे, तो मेर या दशा होगी। यह सोचकर मेर आंखो म
अंधेरा आ जाता है । मैने कोई बड़ा पुन कया था। क तु ह पाया था।
कसी और के साथ मेरा भला या िनबाह होता?’
ऐसे मीठे सं तोष के िलए नेउर या नह ं कर डालना चाहता था।
आलिसन लोिभन, ःवािथन बु ढयांअपनी जीभ पर केवल िमठास रखकर
नेउर को नचाती थी जैसे कोई िशकार कं टये म चारा लगाकर मछली को
खलाता है ।
पहले कौन मरे , इस वषय पर आज यह पहली ह बार बातचीत न
हुई थी। इसके पहले भी कतनी ह बार यह ू उठा था और या ह
छोड़ दया गया था;! ले कन न जाने य नेउर ने अपनी डमी कर ली
थी और उसे िन य था क पहले म जाऊंगा। उसके पीछे भी बु ढया जब
तक रह आराम से रहे , कसी के सामने हाथ न फैलाये, इसीिलए वह
मरता रहता था, जसमे हाथ म चार पैसे जमाहो जाये।‘ क ठन से क ठन
काम जसे कोई न कर सके नेउर करता दन भर फावड़े कुदाल का काम
करने के बाद रात को वह ऊख के दन म कसी क ऊख पेरता या खेत
क रखवाली करता, ले कन दन िनकलते जाते थे और जो कुछ कमाता
था वह भी िनकला जाता था। बु ढया के बगैर वह जीवन....नह ं, इसक वह
क पना ह न कर सकता था।
ले कन आज क बाते ने नेउर को सशंक कर दया। जल म एक बूंद
रं ग क भाित यह शका उसके मन मे समा कर अितर जतं होने लगी।
२
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गां
व म नेउर को काम क कमी न थी, पर मजूर तो वह
िमलती थी, जो अब तक िमलती आयी थी; इस म द म वह
मजूर भी नह रह गयी थी। एकाएक गांव म एक साधु कह ं से घूमते– फरते
आ िनकले और नेउर के घर के सामने ह पीपल क छांह मे उनक धुनी
जल गई गांव वालो ने अपना ध य भा य समझा। बाबाजी का सेवा
ः कार करने के िलए सभी जमा हो गये। कह ं से लकड़ आ गयी से कह ं
से बछाने को क बल कह ं से आटा–दाल। नेउर के पास या था।?
बाबाजी के िलए भेजन बनाने क सेवा उसने ली। चरस आ गयी , दम
लगने लगा।
दो तीन दन म ह बाबाजी क क ित फैलने लगी। वह
आ मदश है भूत भ वंय ब बात दे ते है । लोभ तो छू नह ं गया। पैसा हाथ
से नह ं छूते और भोजन भी या करते है । आठ पहर म एक दो बा टयां
खा ली; ले कन मुख द पक क तरह दमक रहा है । कतनी मीठ बानी
है ।! सरल दय नेउर बाबाजी का सबसे बड़ा भ था। उस पर कह ं
बाबाजी क दया हो गयी। तो पारस ह हो जायगा। सारा दख
ु दिल र
िमट जायगा।
भ जन एक-एक करके चले गये थे। खूब कड़ाके क ठं ड़ पड़
रह थी केवल नेउर बैठा बाबाजी के पांव दबा रहा था।
बाबा जी ने कहा- ब चा! संसार माया है इसम य फंसे हो?
नेउर ने नत मःतक होकर कहा-अ ानी हुं महाराज, या क ं ?
ी है उसे कस पर छोडू ं !
‘तू समझता है तू ी का पालन करता है ?’
‘और कौन सहारा है उसे बाबाजी?’
‘ई र कुद नह है तू ह सब कुछ है ?’
नेउर के मन म जैसे ान-उदय हो गया। तु इतना अिभमानी हो
गया है । तेरा इतना दमाग! मजदरू करते करते जान जाती है और तू
समझता है मै ह बु ढया का सब कुछ हूं। ूभु जो संसार का पालन
करते है , तु उनके काम म दखल दे ने का दावा करता है । उसके सरल
करते है । आःथा क विन सी उठकर उसे िध कारने लगी बोला–अ ानी
हूं महाराज!
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इससे यादा वह और कुछ न कह सका। आख से द न वषाद के
आंसु िगरने लगे।
बाबाजी ने तेज ःवता से कहा –‘दे खना चाहता है ई र का चम कार!
वह चाहे तो ण भर मे तुझे लखपित कर दे । ण भर म तेर सार
िच ताएं। हर ले! मै उसका एक तु छ भ हूं काक व ा; ले कन मुझेम
भी इतनी श है क तुझे पारस बना दँ ।ू तू साफ दल का, स चा
ईमानदार आदमी है । मूझे तुझपर दया आती है । मैने इस गांव म सबको
यान से दे खा। कसी म श नह ं व ास नह ं । तुझमे मैने भ का
दय पाया तेरे पास कुछ चांद है ?’’
नेउर को जान पड रहा था क सामने ःवग का ार है ।
‘दस पॉच पये होगे महाराज?’
‘कुछ चांद के टू टे फूटे गहने नह ं है ?’
‘घरवाली के पास कुछ गहने है ।’
‘कल रात को जतनी चांद िमल सके यहां ला और ई र क ूभुता
दे ख। तेरे सामने मै चांद क हांड़ म रखकर इसी धुनी म रख दं ग
ू ा
ूात:काल आकर हांड िनकला लेना; मगर इतना याद रखना क उन
अश फयो को अगर शराब पीने म जुआ खेलने म या कसी दस
ू रे बुरे काम
म खच कया तो कोढ हो जाएगा। अब जा सो रह। हां इतना और सुन ले
इसक चचा कसी से मत करना घरवाल से भी नह ं।’
नेउर घर चला, तो ऐसा ूस न था मानो ई र का हाथ उसके िसर
पर है । रात-भर उसे नींद नह आयी। सबेरे उसने कई आदिमय से दो-दो
चार चार पये उधार लेकर पचास पये जोडे ! लोग उसका व ास करते
थे। कभी कसी का पैसा भी न दबाता था। वादे का प का नीयत
का साफ। पये िमलने म द कत न हुई। पचीस पये उसके पास थे।
बु ढया से गहने कैसे ले। चाल चली। तेरे गहने बहुत मैले हो गये है । खटाई
से साफ कर ले । रात भर खटाई म रहने से नए हो जायेगे। बु ढया
चकमे म आ गयी। हांड़ म खटाई डालकर गहने िभगो दए और जब रात
को वह सो गयी तो नेउर ने पये भी उसी हांड मे डाला दए और
बाबाजी के पास पहुंचा। बाबाजी ने कुछ म ऽ पढ़ा। हांड़ को छूनी क राख
म रखा और नेउर को आशीवाद दे कर वदा कया।
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रात भर करबट बदलने के बाद नेउर मुंह अंधेरे बाबा के दशन
करने गया। मगर बाबाजी का वहां पता न था। अधीर होकर उसने धूनी
क जलती हुई राख टटोली । हांड़ गायब थी। छाती धक-धक करने लगी।
बदहवास होकर बाबा को खोजने लगा। हाट क तरफ गया। तालाब क ओर
पहुंचा। दस िमनट, बीस िमनट, आधा घंटा! बाबा का कह ं िनशान नह ं।
भ आने लगे। बाबा कहां गए? क बल भी नह बरतन भी नह ं!
भ ने कहा–रमते साधुओं का या ठकाना! आज यहां कल वहां, एक
जगह रहे तो साधु कैसे? लोगो से हे ल-मेल हो जाए, ब धन म पड़ जाय।
‘िस थे।’
‘लोभ तो छू नह ं गया था।’
नेउर कहा है ? उस पर बड़ दया करते थे। उससे कह गये होगे।’
नेउर क तलाश होने लगी, कह ं पता नह ं। इतने म बु ढया नेउर
को पुकारती हुई घर म से िनकली। फर कोलाहल मच गया। बु ढया रोती
थी और नेउर को गािलयां दे ती थी।
नेउर खेतो क मेड़ो से बेतहाशा भागता चला जाता था। मानो उस
पापी संसार इस िनकल जाएगा।
एक आदमी ने कहा- नेउर ने कल मुझसे पांच पये िलये थे। आज
सांझ को दे ने को कहा था।
दस
ू रा–हमसे भी दो पये आज ह के वादे पर िलये थे।
बु ढ़या रोयी–दाढ जार मेरे सारे गहने लेगया। पचीस पये रखे थे
वह भी उठा ले गया।
लोग समझ गये, बाबा कोई धूत था। नेउर को साझा दे गया। ऐसे-
ऐसे ठग पड़े है संसार म। नेउर के बारे म बारे म कसी को ऐसा
संदेह नह ं थी। बेचारा सीधा आदमी आ गया प ट म। मारे लाज के
कह ं िछपा बैठा होगा
३
ती
न मह ने गुजर गये।
झांसी जले म धसान नद के कनारे एक छोटा सा गांव है -
काशीपुर नद के कनारे एक पहाड़ ट ला है । उसी पर कई दन से
एक साधु ने अपना आसन जमाया है । नाटे कद का आदमी है , काले तवे
का-सा रं ग दे ह गठ हुई। यह नेउर है जो साधु बेश म दिु नया को धोखा
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दे रहा है । वह सरल िनंकपट नेउर है जसने कभी पराये माल क
ओर आंख नह ं उठायो जो पसीना क रोट खाकर म न था। घर क गावं
क और बु ढया क याद एक ण भी उसे नह ं भूलती इस जीवन म
फर कोई दन आयेगा। क वह अपने घर पहुंचेगा और फर उस
संसार मे हं सता- खेलता अपनी छोट –छोट िच ताओ और छोट –छोट
आशाओ के बीच आन द से रहे गा। वह जीवन कतना सुखमय था।
जतने थे। सब अपने थे सभी आदर करते थे। सहानुभूित रखते थे। दन
भर क मजूर , थोड़ा-सा अनाज या थोड़े से पैसे लेकार घर आता था,
तो बुिधया कतने मीठे ःनेह से उसका ःवागत करती थी। वह सार
मेहनत, सार थकावट जैसे उसे िमठास म सनकर और मीठ हो जाती
थी। हाय वे दन फर कब आयेगे? न जाने बुिधया कैसे रहती होगी। कौन
उसे पान क तरह फेरे गा? कौन उसे पकाकर खलायेगा? घर म पैसा भी
तो नह ं छोड़ा गहने तक ड़बा दये। तब उसे बोध आता। क उस बाबा
को पा जाय, तो क च ह खा जाए। हाय लोभ! लोभ!
उनके अन य भ ो म एक सु दर युवती भी थी जसके पित ने
उसे याग दया था। उसका बाप फौजी-पशनर था, एक पढे िलखे आदमी
से लड़क का ववाह कया: ले कन लड़का मॉ के कहने म था और युवती
क अपनी सांस से न पटती। वह चा हती थी शौहर के साथ सास से
अलग रहे शौहर अपनी मां से अलग होने पर न राजी हुआ। वह
ठकर मैके चली आयी। तब से तीन साल हो गये थे और ससुराल से
एक बार भी बुलावा न आया न पितदे व ह आये। युवती कसी तरह
पित को अपने वश म कर लेना चाहती थी। महा माओं के िलए तरह
पित को अपने वश म कर लेना चाहती थी महा माओ के िलए कसी
का दल फेर दे ना ऐसा या मुिशकल है ! हां, उनक दया चा हए।
एक दन उसने एका त म बाबाजी से अपनी वपित कह सुनायी।
नेउर को जस िशकार क टोह थी वह आज िमलता हूआ जान पड़ा गंभीर
भाव से बोला-बेट मै न िस हूं न महा मा न मै संसार के झमेलो म
पड़ता हूं पर तेर सरधा और परे म दे खकर तुझ पर दया आती हौ। भगवान
ने चाहा तो तेरा मनोरध पूरा हो जायेगा।
‘आप समथ है और मुझे आपके ऊपर व ास है ।’
‘भगवान क जो इ छा होगी वह होगा।’
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‘इस अभािगनी क डोगी आप वह होगा।’
‘मेरे भगवान आप ह हो।’
नेउर ने मानो धम-सकटं म पड़कर कहा-ले कन बेट , उस काम म
बड़ा अनु ान करना पडे गा। और अनु ान म सैकड़ो हजार का खच है ।
उस पर भी तेरा काज िस होगा या नह , यह मै नह ं कह सकता। हां
मुझसे जो कुछ हो सकेगा, वह मै कर दं ग
ू ा। पर सब कुछ भगवान के हाथ
म है । मै माया को हाथ से नह ं छूता; ले कन तेरा दख
ु नह दे खा
जाता।
उसी रात को युवती ने अपने सोने के गहन क पेटार लाकर
बाबाजी के चरण पर रख द बाबाजी ने कांपते हुए हाथ से पेटार
खोली और च िमा के उ जवल ूकाश म आभूषणो को दे खा । उनक
बाधे झपक गयीं यह सार माया उनक है वह उनके सामने हाथ बाधे
खड़ कह रह है मुझे अंगीकार क जए कुछ भी तो करना नह है
केवल पेटार लेकर अपने िसरहाने रख लेना है और युवती को आशीवाद
दे कर वदा कर दे ना है । ूात काल वह आयेगी उस व वह उतना दरू होग
जहां उनक टागे ले जायेगी। ऐसा आशातीत सौभा य! जब वह पये से
भर थैिलयां िलए गांव म पहुंचेगे और बुिधया के सामने रख दे गे! ओह!
इससे बडे आन द क तो वह क पना भी नह ं कर सकते।
ले कन न जाने य इतना जरा सा काम भी उससे नह ं हो सकता
था। वह पेटार को उठाकर अपने िसरहाने कंबल के नीचे दबाकर नह ं
रख सकता। है । कुछ नह ं; पर उसके िलए असूझ है , असा य है वह उस
पेटार क ओर हाथ भी नह बढा सकता है इतना कहने मे कौन सी
दिु नया उलट जाती है । क बेट इसे उठाकर इस क बल के नीचे रख दे ।
जबान कट तो न जायगी, ;मगर अब उसे मालूम होता क जबान पर
भी उसका काबू नह है । आंखो के इशारे से भी यह काम हो सकता है ।
ले कन इस समय आंखे भीड़ बगावत कर रह है । मन का राजा इतने
म ऽय और साम तो के होते हुए भी अश है िनर ह है लाख पये
क थैली सामने रखी हो नंगी तलवार हाथ म हो गाय मजबूत रःसी
के सामने बंधी हो, या उस गाय क गरदन पर उसके हाथ उठे ग। कभी
नह ं कोई उसक गरदन भले ह काट ले। वह गऊ क ह या नह कर
सकता। वह प र या ा उसे उसी गउ क ह या नह कर सकता
49
वह प प या ा उसे उसी गऊ क तरह लगर ह थी। जस अवसर
को वह तीन मह ने खोज रहा है उसे पाकर आज उसक आ मा कांप रह
है । तृंणा कसी व य ज तु क भांित अपने संःकारे से आखेट ूय है
ले कन जंजीरो से बधे–बधे उसके नख िगर गये है और दातं कमजोर हो
गये ह।
उसने रोते हुंए कहा–बेट पेटार उठा ले जाओ। मै तु हार पर ा कर
रहा था। मनोरथ पूरा हो जायेगा।
चॉद नद के पार वृ ो क गोद म वौाम कर चुका था। नेउर
धीरे से उठा और धसान मे ःनान करके एक ओर चल दया। भभूत और
ितलक से उसे घृणा हो रह थी उसे आ य हो रहा था क वह घर से
िनकला ह कैसे? थोड़े उपहास के भय से! उसे अपने अ दर एक
विचऽ उ लास का अनुभव हो रहा था मानो वह बे ड़यो से मु हो गया
हो कोई बहुत बड़ िचजय ूा क हो।
4
आ ठवे दन
कुछकर,
नेउर गांव पहुंच गया। लड़को
उसक लकड़ उसके हाथ उसका ःवागत कया।
एक लड़के ने कहा काक तो मरगयी दादा।
ने दौठकर उछल
नेउर के पांव जैसे बंध गये मुंह के दोनो कोने नीचे झुके गये।
द न वषाद आख म चमक उठा कुछ बोला नह ं, कुछ पूछा भी नह ं। प भर
जैसे िनःसं खड़ा रहा फर बड तेजी से अपनी झोपड़ क ओर चला।
बालकवृनद भी उसके पीछे दौडे मगर उनक शरारत और चंचलता
भागचली थी। झोपड़ खुली पड़ थी बुिधया क चारपाई जहा क तहां थी।
उसक िचलम और ना रयल यो के यो धरे हुए थे। एक कोने म दो
चार िमटट और पीतल के बरतन पडे हुंए थे लडे क बाहर ह खडे
रह गये झेपड के अ दर कैसे जाय वहां बुिधया बैठ है ।
गांव मे भगदड मच गयी। नेउर दादा आ गये। झोपड़ के ार पर
भीड़ लग गयी ूशनो कातांता बध गया।–तूम इतने दनोकहां थे। दादा?
तु हारे जाने के बाद तीसरे ह दन काक चल बसीं रात दन तु ह गािलयां
दे ती थी। मरते मरते तु हे ग रयाती ह रह । तीसरे दन आये तो मेर
पड़ थी। तुम इतने दन कहा रहे ?
50
नेउर ने कोई जवाब न दया। केवल शु य िनराश क ण आहत
नेऽो से लोगो क ओर दे खता रहा मानो उसक वाणी हर लीगयी है । उस
दन से कसी ने उसे बोलते या रोते-हं सते नह ं दे खा।
गांव से आध मील पर प क सड़क है । अ छ आमदरफत है ।
नेउर बेड सबेरे जाकर सड़क के कनारे एक पेड के नीचे बैठ जाता है ।
कसी से कुछ मांगता नह पर राहगीर कूछ न कुछ दे ह दे ते है ।– चेबना
अनाज पैसे। स यां सयम वह अपनी झोपड़ मे आ जाता है , िचराग
जलाता है भोजन बनाता है , खाना है और उसी खाट पर पड़ा रहता है ।
उसके जीवन, मै जो एक संचालक श थी,वह लु हो गयी है ◌ै वह
अब केवल जीवधार है । कतनी गहर मनो यधा है । गांव म लेग आया।
लोग घर छोड़ छोड़कर भागने लगे नेउर को अब कसी क परवाह
न थी। न कसी को उससे भय था न ूेम। सारा गांव भाग गया। नेउर
अपनी झोपड़ से न िनकला और आज भी वह उसी पे के नीचे
सड़क के कनारे उसी तरह मौन बैठा हुआ नजर आता है - िन े ,
िनज व।‘
51
शूिा
मां
और बेट एक झ पड़ म गांव के उसे िसरे पर रहती थीं।
बेट बाग से प यां बटोर लाती, मां भाड़-झ कती। यह उनक
जी वका थी। सेर-दो सेर अनाज िमल जाता था, खाकर पड़ रहती थीं। माता
वधवा था, बेट वांर , घर म और कोई आदमी न था। मां का नाम गंगा
था, बेट का गौरा!
गंगा को कई साल से यह िच ता लगी हुई थी क कह ं गौरा क
सगाई हो जाय, ले कन कह ं बात प क न होती थी। अपने पित के मर
जाने के बाद गंगा ने कोई दस
ू रा घर न कया था, न कोई दस
ू रा ध धा ह
करती थी। इससे लोग को संदेह हो गया था क आ खर इसका गुजर कैसे
होता है ! और लोग तो छाती फाड़-फाड़कर काम करते ह, फर भी पेट-भर
अ न मयःसर नह ं होता। यह ी कोई धंधा नह ं करती, फर भी मां-बेट
आराम से रहती ह, कसी के सामने हाथ नह ं फैलातीं। इसम कुछ-न-कुछ
रहःय अवँय है । धीरे -धीरे यह संदेह और भी ढ़ृ हो गया और अब तक
जी वत था। बरादर म कोई गौरा से सगाई करने पर राजी न होता था।
शूि क बरादर बहुत छोट होती है । दस-पांच कोस से अिधक उसका ेऽ
नह ं होता, इसीिलए एक दस
ू रे के गुण-दोष कसी से िछपे नह ं रहते, उन पर
परदा ह डाला जा सकता है ।
इस ॅांित को शा त करने के िलए मां ने बेट के साथ कई तीथ-
याऽाएं क ं। उड़ सा तक हो आयी, ले कन संदेह न िमटा। गौरा युवती थी,
सु दर थी, पर उसे कसी ने कुएं पर या खेत म हं सते-बोलते नह ं दे खा।
उसक िनगाह कभी ऊपर उठती ह न थी। ले कन ये बात भी संदेह को और
पु करती थीं। अवँय कोई- न- कोई रहःय है । कोई युवती इतनी सती नह ं
हो सकती। कुछ गुप-चुप क बात अवँय है ।
य ह दन गुजरते जाते थे। बु ढ़या दन दन िच ता से घुल रह थी। उधर
सु दर क मुख-छ व दन दन िनहरती जाती थी। कली खल कर फूल हो
रह थी।
२
52
ए क दन एक परदे शी गांव से होकर िनकला। दस-बारह कोस से
आ रहा था। नौकर क खोज म कलक ा
गयी। कसी कहार का घर पूछता हुआ गंगा के
जा रहा था। रात हो
घर आया। गंगा ने उसका
खूब आदर-स कार कया, उसके िलए गेहूं का आटा लायी, घर से बरतन
िनकालकर दये। कहार ने पकाया, खाया, लेटा, बात होने लगीं। सगाई क
चचा िछड़ गयी। कहार जवान था, गौरा पर िनगाह पड़ , उसका रं ग-ढं ग
दे खा, उसक सजल छ व ऑ ंख म खुब गयी। सगाई करने पर राजी हो
गया। लौटकर घर चला गया। दो-चार गहने अपनी बहन के यहां से लाया;
गांव के बजाज ने कपड़े उधार दे दये। दो-चार भाईबंद के साथ सगाई करने
आ पहुंचा। सगाई हो गयी, यह रहने लगा। गंगा बेट और दामाद को आंख
से दरू न कर सकती थी।
पर तु दस ह पांच दन म मंग के कान म इधर-उधर क बात
पड़ने लगीं। िसफ बरादर ह के नह ं, अ य जाित वाले भी उनके कान
भरने लगे। ये बात सुन-सुन कर मंग पछताता था क नाहक यहां फंसा।
पर गौरा को छोड़ने का याल कर उसका दल कांप उठता था।
एक मह ने के बाद मं ग अपनी बहन के गहने लौटाने गया। खाने के
समय उसका बहनोई उसके साथ भोजन करने न बैठा। मंग को कुछ
संदेह हुआ, बहनोई से बोला- तुम य नह ं आते?
बहनोई ने कहा-तुम खा लो, म फर खा लूंगा।
मंग – बात या है ? तु खाने य नह ं उठते?
बहनोई –जब तक पंचायत न होगी, म तु हारे साथ कैसे खा सकता
हूं? तु हारे िलए बरादर भी नह ं छोड़ दं ग
ू ा। कसी से पूछा न गाछा, जाकर
एक हरजाई से सगाई कर ली।
मंग चौके पर उठ आया, िमरजई पहनी और ससुराल चला आया।
बहन खड़ रोती रह गयी।
उसी रात को वह कसी वह कसी से कुछ कहे -सुने बगैर, गौरा को छोड़कर
कह ं चला गया। गौरा नींद म म न थी। उसे या खबर थी क वह र , जो
मने इतनी तपःया के बाद पाया है , मुझे सदा के िलए छोड़े चला जा रहा
है ।
३
53
क ई साल बीत गये। मंग
न आया, पर गौरा
का कुछ पता न चला। कोई पऽ तक
बहुत ूस न थी। वह मांग म सदरु
डालती, रं ग बरं ग के कपड़े पहनती और अधर पर िमःसी के धड़े जमाती।
मंग भजन क एक पुरानी कताब छोड़ गया था। उसे कभी-कभी पढ़ती
और गाती। मंग ने उसे ह द िसखा द थी। टटोल-टटोल कर भजन पढ़
लेती थी।
पहले वह अकेली बैठली रहती। गांव क और य के साथ बोलते-
चालते उसे शम आती थी। उसके पास वह वःतु न थी, जस पर दस
ू र
यां गव करती थीं। सभी अपने-अपने पित क चचा करतीं। गौरा के पित
कहां था? वह कसक बात करती! अब उसके भी पित था। अब वह अ य
य के साथ इस वषय पर बातचीत करने क अिधका रणी थी। वह भी
मंग क चचा करती, मंग कतना ःनेहशील है , कतना स जन, कतना
वीर। पित चचा से उसे कभी तृि ह न होती थी।
यां- मंग तु ह छोड़कर य चले गये?
गौर कहती – या करते? मद कभी ससुराल म पड़ा रहता है । दे श –
परदे श म िनकलकर चार पैसे कमाना ह तो मद का काम है , नह ं तो
मान-मरजादा का िनवाह कैसे हो?
जब कोई पूछता, िच ठ-पऽी य नह ं भेजते? तो हं सकर कहती-
अपना पता- ठकाना बताने म डरते ह। जानते ह न, गौरा आकर िसर पर
सवार हो जायेगी। सच कहती हूं उनका पता- ठकाना मालूम हो जाये, तो
यहां मुझसे एक दन भी न रहा जाये। वह बहुत अ छा करते ह क मेरे
पास िच ठ -पऽी नह ं भेजते। बेचारे परदे श म कहां घर िगरःती संभालते
फरगे?
एक दन कसी सहे ली ने कहा- हम न मानगे, तुझसे ज र मंग से
झगड़ा हो गया है , नह ं तो बना कुछ कहे -सुने य चले जाते ?
गौरा ने हं सकर कहा- बहन, अपने दे वता से भी कोई झगड़ा करता
है ? वह मेरे मािलक ह, भला म उनसे झगड़ा क ं गी? जस दन झगड़े क
नौबत आयेगी, कह ं डू ब म ं गी। मुझसे कहकर जाने पाते? म उनके पैर से
िलपट न जाती।
४
54
मंग
ए क दन कलक ा से एक
पास ह के कसी
आदमी आकर
गांव म अपना
के पड़ोस ह म रहता था। मंग
गंगा के घर ठहरा।
घर बताया। कलक ा म वह
ने उससे गौरा को अपने साथ लाने
को कहा था। दो सा ड़यां और राह-खच के िलये पये भी भेजे थे। गौरा
फूली न समायी। बूढ़े ॄा ण के साथ चलने को तैयार हो गयी। चलते व
वह गांव क सब औरत से गले िमली। गंगा उसे ःटे शन तक पहुंचाने
गयी। सब कहते थे, बेचार लड़क के भाग जग गये, नह ं तो यहाँ कुढ़-कुढ़
कर मर जाती।
राःते-भर गौरा सोचती – न जाने वह कैसे हो गये ह गे ? अब तो
मूछ अ छ तरह िनकल आयी ह गी। परदे श म आदमी सुख से रहता है । दे ह
भर आयी होगी। बाबू साहब हो गये ह गे। म पहले दो-तीन दन उनसे
बोलूंगी नह ं। फर पूछूंगी-तुम मुझे छोड़कर य चले गये? अगर कसी ने
मेरे बार म कुछ बुरा-भला कहा ह था, तो तुमने उसका व ास य कर
िलया? तुम अपनी आंख से न दे खकर दस
ू र के कहने पर य गये? म
भली हूं या बूर हूं, हूं तो तु हार , तुमने मुझे इतने दन लाया यो?
तु हारे बारे म अगर इसी तरह कोई मुझसे कहता, तो या म तुमको
छोड़ दे ती? जब तुमने मेर बांह पकड़ ली, तो तुम मेरे हो गये। फर तुमम
लाख एब ह , मेर बला से। चाहे तुम तुक ह य न हो जाओ, म तु ह
छोड़ नह ं सकती। तुम य मुझे छोड़कर भागे? या समझते थे, भागना
सहज है ? आ खर झख मारकर बुलाया क नह ं? कैसे न बुलाते? मने तो
तु हारे ऊपर दया क , क चली आयी, नह ं तो कह दे ती क म ऐसे िनदयी
के पास नह ं जाती, तो तुम आप दौड़े आते। तप करने से दे वता भी िमल
जाते ह, आकर सामने खड़े हो जाते ह, तुम कैसे न आते? वह धरती बार-
बार उ न हो-होकर बूढ़े ॄा ण से पूछती, अब कतनी दरू है ? धरती के
छोर पर रहते ह या? और भी कतनी ह बात वह पूछना चाहती थी,
ले कन संकोच-वश न पूछ सकती थी। मन-ह -मन अनुमान करके अपने को
स तु कर लेती थी। उनका मकान बड़ा-सा होगा, शहर म लोग प के घर
म रहते ह। जब उनका साहब इतना मानता है , तो नौकर भी होगा। म
नौकर को भगा दं ग
ू ी। म दन-भर पड़े –पड़े या कया क ं गी?
बीच-बीच म उसे घर क याद भी आ जाती थी। बेचार अ मा रोती ह गी।
अब उ ह घर का सारा काम आप ह करना पड़े गा। न जाने बक रय को
55
चराने ले जाती है । या नह ं। बेचार दन-भर म-म करती ह गी। म अपनी
बक रय के िलए मह ने-मह ने पये भेजूंगी। जब कलक ा से लौटू ं गी तब
सबके िलए सा ड़यां लाऊंगी। तब म इस तरह थोड़े लौटू ं गी। मेरे साथ बहुत-
सा असबाब होगा। सबके िलए कोई-न-कोई सौगात लाऊंगी। तब तक तो
बहुत-सी बक रयां हो जायगी।
यह सुख ःव न दे खते-दे खते गौरा ने सारा राःता काट दया।
पगली या जानती थी क मेरे मान कुछ और क ा के मन कुछ और।
या जानती थी क बूढ़े ॄा ण के भेष म पशाच होते ह। मन क िमठाई
खाने म म न थी।
५
62
गौरा को मंग से इस िन ु रता का आशा न थी। उसने सोचा, अगर यह
स य भी हो क इ ह ने मुझे नह ं बुलाया, तो भी इ ह मेरा य अपमान न
करना चा हए था। या वह समझते ह क म इनक रो टय पर आयी हूं?
यह तो इतने ओछे ःवभाव के न थे। शायद दरजा पाकर इ ह मद हो गया
है । नार सुलभ अिभमान से गरदन उठाकर उसने कहा- तु हार इ छा हो, तो
अब यहां से लौट जाऊं, तु हारे ऊपर भार बनना नह ं चाहती?
मंग कुछ ल जत होकर बोला – अब तुम यहां से लौट नह ं सकतीं
गौरा ! यहां आकर बरला ह कोई लौटता है ।
यह कहकर वह कुछ दे र िच ता म म न खड़ा रहा, मानो संकट म
पड़ा हुआ हो क या करना चा हए। उसक कठोर मुखाकृ ित पर द नता का
रं ग झलक पड़ा। तब कातर ःवर से बोला –जब आ ह गयी हो तो रहो।
जैसी कुछ पड़े गी, दे खी जायेगी।
गौरा – जहाज फर कब लौटे गा।
मंग – तुम यहां से पांच बरस के पहले नह ं जा सकती।
गौरा – य , या कुछ जबरदःती है ?
मंग – हां, यहां का यह हु म है ।
गौरा – तो फर म अलग मजूर करके अपना पेट पालूंगी।
मंग ने सजल-नेऽ होकर कहा—जब तक म जीता हूं, तुम मुझसे
अलग नह ं रह सकतीं।
गौरा- तु हारे ऊपर भार बनकर न रहूंगी।
मंग – म तु ह भार नह ं समझता गौरा, ले कन यह जगह तुम-जैसी
दे वय के रहने लायक नह ं है , नह ं तो अब तक मने तु ह कब का बुला
िलया होता। वह ं बूढ़ा आदमी जसने तु ह बहकाया, मुझे घर से आते समय
पटने म िमल गया और झांसे दे कर मुझे यहां भरती कर दया। तब से यह ं
पड़ा हुआ हूं। चलो, मेरे घर म रहो, वहां बात ह गी। यह दस
ू र औरत कौन
है ?
गौरा – यह मेर सखी है । इ ह भी बूढ़ा बहका लाया।
मंग -यह तो कसी कोठ म जायगी? इन सब आदिमय क बांट
होगी। जसके हःसे म जतने आदमी आयगे, उतने हर एक कोठ म भेजे
जायगे।
गौरा – यह तो मेरे साथ रहना चाहती ह।
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मंग – अ छ बात है इ ह भी लेती चलो।
य ऽय रके नाम तो िलखे ह जा चुके थे, मंग ने उ ह एक चपरासी को
स पकर द न औरत के साथ घर क राह ली। दोन ओर सघन वृ क
कतार थी। जहां तक िनगाह जाती थी, ऊख-ह -ऊख दखायी दे ती थी। समुि
क ओर से शीतल, िनमल वायु के झ के आ रहे थे। अ य त सुर य ँय
था। पर मंग क िनगाह उस ओर न थी। वह भूिम क ओर ताकता, िसर
झुकाये, स द ध चवाल से चला जा रहा था, मानो मन-ह -मन कोई समःया
हल कर रहा था।
थोड़ ह दरू गये थे क सामने से दो आदमी आते हुए दखाई दये।
समीप आकर दान क गये और एक ने हं सकर कहा –मंग , इनम से एक
हमार है ।
दस
ू रा बोला- और दस
ू रा मेर ।
मंग का चेहरा तमतमा उठा था। भीषण बोध से कांपता हुआ बोला-
यह दोन मेरे घर क औरत है । समझ गये?
इन दोन ने जोर से कहकहा मारा और एक ने गौरा के समीप आकर
उसका हाथ पकड़ने क चे ा करके कहा- यह मेर ह चाहे तु हारे घर क हो,
चाहे बाहर क । बचा, हम चकमा दे ते हो।
मंग – कािसम, इ ह मत छे ड़ो, नह ं तो अ छा न होगा। मने कह
दया, मेरे घर क औरत ह।
मंगर क आंख से अ न क वाला-सी िनकल रह थी। वह दान के
उसके मुख का भाव दे खकर कुछ सहम गये और समझ लेने क धमक
दे कर आगे बढ़े । क तु मंग के अिधकार- ेऽ से बाहर पहुंचते ह एक ने
पीछे से ललकार कर कहा- दे ख कहां ले के जाते हो?
मंग ने उधर यान नह ं दया। जरा कदम बढ़ाकर चलने लगा, जेसे
स या के एका त म हम क ॄःतान के पास से गुजरते ह, हम पग-पग पर
यह शंका होती है क कोई श द कान म न पड़ जाय, कोई सामने आकर
खड़ा न हो जाय, कोई जमीन के नीचे से कफन ओढ़े उठ न खड़ा हो।
गौरा ने कहा—ये दान बड़े शोहदे थे।
मंग – और म कसिलए कह रहा था क यह जगह तुम-जैसी य
के रहने लायक नह ं है ।
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सहसा दा हनी तरफ से एक अंमेज घोड़ा दौड़ाता आ पहुंचा और मंग
से बोला- वेल जमादार, ये दोन औरत हमार कोठ म रहे गा। हमारे कोठ म
कोई औरत नह ं है ।
मंग ने दोन औरत को अपने पीछे कर िलया और सामने खड़ा
होकर बोला--साहब, ये दोन हमारे घर क औरत ह।
साहब- ओ हो ! तुम झूठा आदमी। हमारे कोठ म कोई औरत नह ं और तुम
दो ले जाएगा। ऐसा नह ं हो सकता। ( गौरा क ओर इशारा करके) इसको
हमार कोठ पर पहुंचा दो।
मंग ने िसर से पैर तक कांपते हुए कहा- ऐसा नह ं हो सकता।
मगर साहब आगे बढ़ गया था, उसके कान म बात न पहुंची। उसने
हु म दे दया था और उसक तामील करना जमादार का काम था।
शेष माग िन व न समा हुआ। आगे मजूर के रहने के िम ठ के घर
थे। ार पर ी-पु ष जहां-तहां बैठे हुए थे। सभी इन दोन य क ओर
घूरते थे और आपस म इशारे करते हं सते थे। गौरा ने दे खा, उनम छोटे -बड़े
का िलहाज नह ं है , न कसी के आंख म शम है ।
एक भदै सले और ने हाथ पर िचलम पीते हुए अपनी पडोिसन से कहा-
चार दन क चांदनी, फर अंधेर पाख !
दस
ू र अपनी चोट गूथ
ं ती हुई बोली – कलोर ह न।
८
मं
ग दन-भर ार पर बैठा रहा, मानो कोई कसान अपने मटर
के खेत क रखवाली कर रहा हो। कोठर म दोन यां बैठ
अपने नसीब को रह थी। इतनी दे र म दोन को यहां क दशा का प रचय
कराया गया था। दोन भूखी- यासी बैठ थीं। यहां का रं ग दे खकर भूख यास
सब भाग गई थी।
रात के दस बजे ह गे क एक िसपाह ने आकर मंग से कहा- चलो,
तु ह ज ट साहब बुला रहे ह।
मंग ने बैठे-बैठे कहा – दे खो न बी, तुम भी हमारे दे श के आदमी
हो। कोई मौका पड़े , तो हमार मदद करोगे न? जाकर साहब से कह दो,
मंग कह ं गया है , बहुत होगा जुरमाना कर दगे।
न बी – न भैया, गुःसे म भरा बैठा है , पये हुए ह, कह ं मार चले,
तो बस, चमड़ा इतना मजबूत नह ं है ।
65
मंग – अ छा तो जाकर कह दो, नह ं आता।
न बी- मुझे या, जाकर कह दं ग
ू ा। पर तु हार खै रयत नह ं है के
बंगले पर चला। यह वह साहब थे, जनसे आज मंग क भट हुई थी।
मंग जानता था क साहब से बगाड़ करके यहां एक ण भी िनवाह नह ं
हो सकता। जाकर साहब के सामने खड़ा हो गया। साहब ने दरू से ह
डांटा, वह औरत कहां है ? तुमने उसे अपने घर म य रखा है ?
मंग – हजूर, वह मेर याहता औरत है ।
साहब – अ छा, वह दस
ू रा कौन है ?
मंग – वह मेर सगी बहन है हजूर !
साहब – हम कुछ नह ं जानता। तुमको लाना पड़े गा। दो म से कोई,
दो म से कोई।
मंग पैर पर िगर पड़ा और रो-रोकर अपनी सार राम कहानी सुना
गया। पर साहब जरा भी न पसीजे! अ त म वह बोला – हुजरू , वह दस
ू र
औरत क तरह नह ं है । अगर यहां आ भी गयी, तो ूाण दे दगी।
साहब ने हं सकर कहा – ओ ! जान दे ना इतना आसान नह ं है !
न बी – मंग अपनी दांव रोते य हो? तुम हमारे घर नह ं घुसते थे!
अब भी जब घात पाते हो, जा पहुंचते हो। अब य रोते हो?
एजे ट – ओ, यह बदमाश है । अभी जाकर लाओ, नह ं तो हम
तुमको ह टर से पीटे गा।
मंग – हुजरू जतना चाहे पीट ल, मगर मुझसे यह काम करने को
न कह, जो म जीते –जी नह ं कर सकता !
एजे ट- हम एक सौ ह टर मारे गा।
मंग – हुजरू एक हजार ह टर मार ल, ले कन मेरे घर क औरत से
न ब ले।
एजे ट नशे म चूर था। ह टर लेकर मंग पर पल पड़ा और लगा
सड़ासड़ जमाने। दस बाहर कोड़े मंग ने धैय के साथ सहे , फर हाय-हाय
करने लगा। दे ह क खाल फट गई थी और मांस पर चाबुक पड़ता था, तो
बहुत ज त करने पर भी क ठ से आ - विन िनकल आती थी टौर अभी
एक स म कुछ प िह चाबुक पड़े थ।
रात के दस बज गये थे। चार ओर स नाटा छाया था और उस नीरव
अंधकार म मंग का क ण- वलाप कसी प क भांित आकाश म मुंडला
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रहा था। वृ के समूह भी हतबु से खड़े मौन रोन क मूित बने हुए थे।
यह पाषाण दय ल पट, ववेक शू य जमादार इस समय एक अप रिचत ी
के सती व क र ा करने के िलए अपने ूाण तक दे ने को तैयार था, केवल
इस नाते क यह उसक प ी क संिगनी थी। वह समःत संसार क नजर
म िगरना गंवारा कर सकता था, पर अपनी प ी क भ पर अखंड रा य
करना चाहता था। इसम अणुमाऽ क कमी भी उसके िलए अस थी। उस
अलौ कक भ के सामने उसके जीवन का या मू य था?
ॄा णी तो जमीन पर ह सो गयी थी, पर गौरा बैठ पित क बाट जोह रह
थी। अभी तक वह उससे कोई बात नह ं कर सक थी। सात वष क
वप –कथा कहने और सुनने के िलए बहुत समय क ज रत थी और रात
के िसवा वह समय फर कब िमल सकता था। उसे ॄा णी पर कुछ बोध-सा
आ रहा था क यह य मेरे गले का हार हुई? इसी के कारण तो वह घर
म नह ं आ रहे ह।
यकायक वह कसी का रोना सुनकर च क पड़ । भगवान ्, इतनी रात
गये कौन द:ु ख का मारा रो रहा है । अवँय कोई कह ं मर गया है । वह
उठकर ार पर आयी और यह अनुमान करके क मंग यहां बैठा हुआ है ,
बोली – वह कौन रो रहा है ! जरा दे खो तो।
ले कन जब कोई जवाब न िमला, तो वह ःवयं कान लगाकर सुनने
लगी। सहसा उसका कलेजा धक् से हो गया। तो यह उ ह ं क आवाज है ।
अब आवाज साफ सुनायी दे रह थी। मंग क आवाज थी। वह ार के
बाहर िनकल आयी। उसके सामने एक गोली के अ प पर एजट का बंगला
था। उसी तरफ से आवाज आ रह थी। कोई उ ह मार रहा है । आदमी मार
पड़ने पर ह इस तरह रोता है । मालूम होता है , वह साहब उ ह मार रहा
है । वह वहां खड़ न रह सक , पूर श से उस बंगले क ओर दौड़ , राःता
साफ था। एक ण म वह फाटक पर पहुंच गयी। फाटक बंद था। उसने जोर
से फाटक पर ध का दया, ले कन वह फाटक न खुला और कई बार जोर-
जोर से पुकारने पर भी कोई बाहर न िनकला, तो वह फाटक के जंगल पर
पैर रखकर भीतर कूद पड़ और उस पार जाते ह ं उसने एक रोमांचकार
ँय दे खा। मंग नंगे बदन बरामदे म खड़ा था और एक अंमेज उसे
ह टर से मार रहा था। गौरा क आंख के सामने अंधेरा छा गया। वह एक
छलांग म साहब के सामने जाकर खड़ हो गई और मंग को अपने अ य-
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ूेम-सबल हाथ से ढांककर बोली –सरकार, दया करो, इनके बदले मुझे
जतना मार लो, पर इनको छोड़ दो।
एजट ने हाथ रोक िलया और उ म क भांित गौरा क ओर कई
कदम आकर बोला- हम इसको छोड़ द, तो तुम मेरे पास रहे गा।
मंग के नथने फड़कने लगे। यह पामर, नीच, अंमेज मेर प ी से इस
तरह क बात कर रहा है । अब तक वह जस अमू य र क र ा के िलए
इतनी यातनांए सह रहा था, वह वःतु साहब के हाथ म चली जा रह है ,
यह अस था। उसने चाहा क लपककर साहब क गदन
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Title: ूेमचंद
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Author: Gour Mohan
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Creation Date: 2/19/2004 3:12:00 PM
Change Number: 1
Last Saved On: 2/19/2004 3:18:00 PM
Last Saved By: Gour Mohan
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Last Printed On: 9/7/2007 11:59:00 AM
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Number of Pages: 68
Number of Words: 16,052 (approx.)
Number of Characters: 91,502 (approx.)