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अखण्डमण्डऱाकारं व्याप्तं येन चराचरम ् ।तत्ऩदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ अऻान ततर्मरान्धस्य ऻानाञ्जन शऱाकया।चऺुरून्मीर्ऱतं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ गुरूर्ब्िह्मा गुरूर्विषणुः गुरूदे वो महे श्वरः।गुरू साऺात ऩरं र्ब्ह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्त्कत्ञ्चत ् सचराचरम ् ।तत्ऩदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ चचन्मयं व्यार्ऩतं सवं त्रैऱोक्यं सचराचरम ् ।तत्ऩदं दर्शितं येन तस्मै श्री गर ु वे नमः॥ सविश्रत ु त र्शरोरत्न र्वरात्जत ऩदाम्बज ु ः।वेदान्ताम्बज ु सय ू ािय तस्मै श्री गर ु वे नमः॥ चैतन्य शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं तनञ्जनः।बबन्द ु नाद कऱातीतःतस्मै श्री गुरवे नमः॥ ऻानशत्क्त समारूढःतत्त्व माऱा र्वभर् ू षतम ्।भत् ु क्त मत् ु क्त प्रदाता च तस्मै श्री गुरवे नमः॥ अनेक जन्म सम्प्राप्त कमि बन्ध र्वदाहहने।आत्मऻान प्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः॥ शोषणं भव र्सन्धोश्च ऻाऩनं सार संऩदः।गर ं सम्यक् तस्मै श्री गर ु ोऩािदोदक ु वे नमः॥ न गर ं त्तत्वं न गर ं तऩः।तत्त्व ऻानात ् ऩरं नात्स्त तस्मै श्री गर ु ोरचधक ु ोरचधक ु वे नमः॥ ध्यानमऱ ि क ऩा॥ ू ं गर ु ोमत ूि तिः ऩज ू ामऱ ू ं गुरोऩिदम ् ।मन्त्रमऱ ू ं गुरोवािक्यं मोऺमऱ ू ं गुरोक र्ब्ह्मानन्दं ऩरमसख े वऱं ऻानमत ु दं क ू तं।्वन््वातीतं गगनसृशशं तत्त्वमस्याहदऱऺयम ्॥ एक ं तनत्यं र्वमऱमचऱं सविधीसाक्षऺभत ू ं।भावातीतं बत्रगण ु रहहतं स् गरू ु ं तन्नमार्म॥ अखण्डमण्डऱाकारं व्याप्तं येन चराचरम ्।तत्ऩदं दर्शितं येन तस्मै श्री गर ु वे नमः॥

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