Professional Documents
Culture Documents
||राम ||
विषयानुक्रमविका
सूयय-स्तुवत २ श्रीराम-नाम-िन्दना ४६
काशी-स्तुवत २२ श्रीनर-नारायि-स्तुवत ६०
शिुघ्न-स्तुवत ४० ------
दण्डक ३७ विभास ७४
||राम ||
दो०
िौपाई
दो०
||इवत ||
विनय-पविका
राग विलािल
श्रीगिेश-स्तुवत
१
गाइये गनपवत जगिंदन. संकर-सुिन भिानी नंदन ||१
||
सूयय-स्तुवत
कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी. तेज-प्रताप-रूप-रस-रासी
||३ ||
वशि स्तुवत
राग धनाश्री
राग रामकली
वदये जगत जहँ लवग सिै, सुख, गज, रथ, घोरे ||२ ||
तुलसी दवल, रू
ँ ध्यो िहैं सठ साद्धख वसहोरे ||४ ||
राग धनाश्री
१०
दे ि,
भैरिरूप वशि-स्तुवत
११
दे ि,
१२
सदा-
१३
राग िसन्त
१४
दे िी-स्तुवत
राग मारू
१५
दु सह दोष-दु ख, दलवन, करु दे वि दाया.
राग रामकली
१६
जय जय जगजनवन दे वि सुर-नर-मुवन-असुर-सेवि,
मंगल-मुद-वसद्धि-सदवन, पियशियरीश-िदवन,
ताप-वतवमर-तरुि-तरवि-वकरिमावलका ||१
||
पूतना-वपंशाि-प्रेत-डावकनी-शावकनी-समेत,
भूत-ग्रह-िेताल-खग-मृगावल-जावलका ||२
||
जय महे श-भावमनी, अनेक-रूप-नावमनी,
समस्त-लोक-स्वावमनी, वहमशैल-िावलका.
गंगा-स्तुवत
राग रामकली
१७
१८
वमवलतजलपाि-अजयुक्त-हररिरिरज, विरज-िर-िारर
विपुरारर वशर-धावमनी.
१९
२०
दे खत दु ख-दोष-दु ररत-दाह-दाररद-दरवन.
यमुना-स्तुवत
राग विलािल
२१
काशी-स्तुवत
राग भैरि
२२
सेइअ सवहत सनेह दे ह भरर, कामधेनु कवल कासी.
वििकूट-स्तुवत
राग िसन्त
२३
सि सोि-विमोिन वििकूट. कवलहरन, करन कल्यान िूट
||१ ||
राग कान्हरा
२४
हनुमत-स्तुवत
राग धनाश्री
२५
राहु-रवि-शक्र-पवि-गिय-खिीकरि शरि-भयहरि जय
भुिन-भताय ||२ ||
जयवत दशकंठ-घटकिय-िाररद-नाद-कदन-कारन,
कालनेवम-हं ता.
२६
लोक-लोकप-कोक-कोकनद-शोकहर, हं स हनुमान
कल्यानकताय ||२ ||
शावकनी-डावकनी-पूतना-प्रेत-िेताल-भूत-प्रमथ-यूथ-यंता
||७ ||
२७
जयवत मंगलागार, संसारभारापहर, िानराकारविग्रह पुरारी.
यातुधानोित-क्रुि-कालाविहर, वसि-सुर-सज्जनानंद-वसंधो
||२ ||
राम-विरहाकय-संतप्त-भरतावद-नरनारर-शीतलकरि
कल्शाषी ||४ ||
जयवत वसंहासनासीन सीतारमि, वनरद्धख वनभयरहरि
नृत्यकारी.
२८
ईवत-अवत-भीवत-ग्रह-प्रेत-िौरानल-व्यावधिाधा-शमन घोर
मारी ||४ ||
२९
राग सारं ग
३०
राग गौरी
३१
राग विलािल
३२
३३
३४
३५
राम गौरी
३६
मंगल-मूरवत मारुत-नंदन. सकल-अमंगल-मूल-वनकंदन
||१ ||
लक्ष्मि-स्तुवत
दण्डक
३७
लाल लावडले लखन , वहत हौ जनके.
धरनी-धरनहार भंजन-भुिनभार ,
राग धनाश्री
३८
जयवत
प्रलय-पािक-महाज्वालमाला-िमन,
िारु-िंपक-िरन, िसन-भूषन-धरन,
जयवत गाधेय-गौतम-जनक-सुख-जनक,
विश्व-कंटक-कुवटल-कोवट-हं ता.
ििन-िय-िातुरी-परशुधर-गरिहर,
जयवत संग्राम-सागर-भयंकर-तरन,
रामवहत-करि िरिाहु-सेतु.
उवमयला-रिन, कल्याि-मंगल-भिन,
दासतुलसी-दोष-दिन-हे तू ||५ ||
भरत-स्तुवत
३९
जयवत
भूवमजा-रमि-पदकंज-मकरं द-रस-
राज-संम्राज-सुख-पद-विरागी.
जयवत वनरुपावध-भद्धक्तभाि-यंवित-ह्रदय ,
िंधु-वहत वििकुटावि-िारी.
माण्डिी-वित्त-िातक-निांिुद-िरन,
शिुघ्न-स्तुवत
राग धनाश्री
४०
शिुतम-तुवहनहर वकरिकेतू.
भुिन-विख्यात-भरतानुगामी.
िमयिमायसी-धनु-िाि-तूिीर-धर
लक्ष्मिानुज, भरत-राम-सीता-िरि-
रे िु-भूवषत-भाल-वतलकधारी ||३ ||
राग केदारा
४१
४२
किहुँ समय सुवध द्ययािी, मेरी मातु जानकी.
श्रीराम-स्तुवत
४३
जयवत
४४
जयवत
वतवमर-घनघोर-खरवकरिमाली ||१ ||
लोक नायक-कोक-शोक-संकट-शमन,
सविि-सेिक-सुखद, सियदाता ||
अधम, आरत, दीन, पवतत, पातक-पीन
सत्य-शम-दम-दया-दानशीला.
जयवत िैराग्य-विज्ञान-िारांवनधे
४५
राग रामकली
४६
सदा
राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु, राम जपु,
मूढ.मन िार िारं .
शोक-संदेह-पाथोदपटलावनलं, पाप-पियत-कवठन-
कुवलशरूपं.
४७
एवह
भक्त-ह्रवद-भिन, अज्ञान-तम-हाररनी.
मोह-मद-कोह-कवल-कंज-वहमजावमनी.
प्रनत-जन-कुमुद-िन-इं दु-कर-जावलका.
४९
दे ि-
५०
दे ि-
५१
दे ि
रत्न-हाटक-जवटत-मुकुट-मंवडत-मौवल, भानु-शत-सदृश
उद्योतकारी ||२ ||
सुरिास-नासं ||४ ||
सुमन सुविविि नि तुलवसकादल-युतं मृदृल िनमाल उर
भ्राजमानं.
५२
दे ि--
५३
दे ि--
५४
दे ि--
५५
दे ि--
मान-मद-मदन-मत्सर-मनोरथ-मथन, मोह-अंभोवध-मंदर,
मनस्वी ||४ ||
५६
दे ि--
५७
दे ि--
५८
दे ि--
दे ि--
६०
दे ि--
६१
दे ि--
सकल सुखकंद, आनंदिन-पुण्यकृत, विंदुमाधि िं ि-
विपवतहारी.
यस्यांवघ्रपाथोज अज-शंभु-सनकावद-शुक-शेष-मुवनिृंद-अवल-
वनलयकारी ||१ ||
६२
६३
राग िसन्त
६४
राग भैरि
६५
राम राम रमु, राम राम रटु , राम राम जपु जीहा.
६८
६९
७०
७१
७२
७३
राग विभास
७४
काम-कोह-लोभ-छोभ-वनकर अपडरे .
राग लवलत
७५
खोटो खरो रािरो हौं, रािरी सौ,
ं रािरे सों िठ
ू क्ों
कहौंगो,
जानो सि ही के मनकी.
सुर-नर-मुवनगनकी.
आगे ही या तनकी.
७७
राग टोडी
७८
दे ि-
७९
दे ि-
८०
दे ि--
८१
८२
राग जैतश्री
८३
८४
राग धनाश्री
८५
वनज वहत नाथ वपता गुरु हररसों हरवष हदै नवह आन्यो.
९०
ऐसी मूढ़ता या मनकी.
९१
९२
माधिजू, मोसम मंद न कोऊ.
९३
९४
तौ हरर रोष भरोस दोष गुन तेवह भजते तवज गारो ||४
||
९५
९६
जौ पै वजय धररहौ अिगुन जनके |
९७
९८
९९
१००
सुवन सीतापवत-सील-सुभाउ.
१०१
१०२
१०३
१०४
१०५
राग रामकली
१०६
विहाग
राग ---------
विलािल
१०७
१०९
विविधताप-संदेह-सोक-संसय-भय-हारर ||१ ||
दु ख-सुख सहौ,
ं रहौं सदा सरनागत तोरे ||४ ||
तो सम दे ि न कोउ कृपालु, समुिौं मनमाही ं.
११०
कोउ कह सत्य, िठ
ू कह कोऊ, जुगल प्रिल कोउ मानै.
श्
११२
केसि! कारन कौन गुसाई.
११३
तैं उदार, मैं कृपन, पवतत मैं, तैं पुनीत, श्रुवत गािै.
ष् ११४
११५
ईध
ं न अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पािै ||२
||
तरु-कोटर महँ िस विहं ग तरु काटे मरै न जैसे.
११६
११७
११८
हे हरर ! किन जतन सुख मानहु |
११९
१२०
१२१
१२२
१२३
१२४
१२६
१२७
१२८
१२९
रुविर रसना तू राम राम राम क्ों न रटत.
१३०
१३१
१३२
तोसो हौं वफरर वफरर वहत, वप्रय, पुनीत सत्य ििन कहत.
१३५
! ! ! !
अजहँ समुवि वित दै सुनु परमारथ.�
वप्रय लगत जाके प्रेमसों, विनु हे तु वहत तैं नवह लखा ||२
||
! ! ! !
दू रर न सो वहतू हे रर वहये ही है .
! ! ! !
ठाकुर अवतवह िड़ो, सील, सरल, सुवठ.
! ! ! !
(१)
(२)
(३)
(४)
(५)
(६)
(७)
(८)
(९)
(११)
(१२)
१३७
जो पै कृपा रघुपवत कृपालुकी, िैर औरके कहा सरै .
१३८
१३९
त्यों त्यों नीि िढ़त वसर ऊपर, ज्ों ज्ों सीलिस ढील दई
है .
१४०
१४१
१४२
१४३
१४४
१४५
१४६
१४७
१४८
१४९
१५०
१५१
नसातो
नसातो
१५२
अस काल-गहा
१५३
१५४
दे ि ! दू सरो कौन दीनको दयालु |
१५५
विस्वास एक राम-नामको |
१५६
कवल नाम कामतरु रामको |
१५७
राग नट
१५८
राग मलार
१६१
ज्ों मुदमय िवस मीन िारर तवज उछरर भभरर लेत गोतो
||३ ||
रागसोरठ
१६२
१६३
१६४
१६६
१६७
१६८
जो पै राम-िरन-रवत होती.
१६९
१७१
१७२
१७३
१७४
तवजये तावह
सो छाँवड़ये
अंजन कहा आँ द्धख जेवह फूटै , िहुतक कहौं कहाँ लौं ||३
||
१७५
रहवन
जो पै -----रामसों नाही ं.
लगन
१७६
१७७
जो तुम त्यागों राम हौं तौं नही ं त्यागो. पररहरर पाँय कावह
अनुरागों ||१ ||
१७८
राग विलािल
१७९
१८०
१८१
१८२
राग आसािरी
१८३
राम! प्रीवतकी रीवत आप नीके जवनयत है .
१८४
१८५
हौं वतनसों हरर! परम िैर करर , तुम सों भलो मनाित
||५ ||
१८६
१८८
राग गौरी
१८९
राम कहत िलु, राम कहत िलु, राम कहत िलु भाई रे .
१९०
साँिो जान्यो िठ
ू को, िठ
ू े कहँ साँिो जावन.
िेद कह्यो, िुध कहत हैं , अरु हौहुँ कहत हौं टे रर.
तुलसी प्रभु साँिो वहतू, तू वहयकी आँ द्धखन हे रर ||७ ||
१९१
१९२
विवहत
विवदत
१९३
िालमीवक-केिट-कथा, कवप-भील-भालु-सनमान.
१९४
१९५
१९६
सि ही को एक मत सुनु, मवतधीर.
१९७
राग भैरिी
१९८
वक
१९९
काहे को वफरत मूढ़ मन धायो.
२००
२०१
तेवह सुख कहँ िहु जतन करत मन, समुित नवहं समुिाये
||२ ||
२०२
प्रभु गुरु वपता सखा रघुपवत तैं मन क्रम ििन विसार् यो.
२०३
राग कान्हरा
२०४
२०७
२०८
२०९
२१०
मोह-मद-मान-कामावद खलमंडली,
राग केदारा
२१२
रघुपवत विपवत-दिन.
हरर-सम आपदा-हरन.
राग कल्यान
२१४
ऐसी कौन प्रभुकी रीवत ?
श्रीरघुिीरकी यह िावन.
२१६
२१७
२१८
२१९
२२०
२२१
२२२
२२३
२२४
२२५
२२६
२२९
तुमसों कपट करर कलप-कलप कृवम ह्वे हौं नरक घोरको हौं
||२ ||
२३०
अकारन को वहतू और को है .
२३१
२३२
२३३
२३४
२३५
२३६
२३७
२३८
तौ जनु तनुपर अछत सीस सुवध क्ों किंध ज्ों जूिै ||१
||
२३९
जाको हरर दृढ़ करर अंग कर् यो.
२४०
२४१
कैसेहु नाम लेइ कोउ पामर, सुवन सादर आगे ह्वे लेते ||१
||
वतन्ह के काज
२४२
तुम सम दी ंनिंधु, न दीन कोउ मो सम, सुनहु नृपवत
रघुराई.
२४४
खोजत वगरर, तरु, लता, भूवम, विल परम सुगंध कहाँ तें
आयो ||२ ||
२४५
तुलवसदास प्रभु! कृपा करहु अि, मैं वनज दोष कछू नवहं
गोयो.
२४६
दू नी न हरष-सोक-सांसवत सहवत.
२४८
दीनिंधु! दीनता-दररि-दाह-दोष-दु ख,
२४९
२५०
तौं हौं िार िार प्रभुवह पुकाररकै द्धखिाितो न,
२५१
२५२
२५३
२५४
२५६
२५७
२५८
२५९
२६०
सावहि उदास भये दास खास खीस होत,
२६१
दोष
िे ष
िठ
ू े -साँिे आसरो साहि रघुराउ मैं ||४ ||
२६२
सीतापवत-भद्धक्त-सुरसरर-नीर-मीनता ||५ ||
२६३
२६४
२६५
तन सुवि, मनरुवि, मुख कहौं ' जन हौं वसय-
पीको' .
२६६
ज्ों ज्ों वनकट भयो िहौं कृपालु! त्यों त्यों दू रर
पर् यो हौं.
२६७
पन करर हौं हवठ आजुतें रामिार पर् यो हौं.
२६८
तुम अपनायो ति जावनहौं, जि मन वफरर पररहै .
२६९
२७०
२७१
टू वटयो िाँह गरे परै , फूटे हु विलोिन पीर होत वहत कररये
||४ ||
२७२
अधम
अगुन-अलायक-आलसी जावन-------अनेरो.
अधनु
दे ि
दीन
२७३
२७४
अधम
२७५
जन्यो
जनतेऊ
२७६
मान
असु
मन
श्रिन-नयन-मग------लगे, सि थल
पवतयायो.
अग
२७७
२७८
पिन-सुिन! ररपु-दिन! भरतलाल! लखन!
दीनकी.
२७९
रघुनाथ
रघुनाथ हाथ
||श्रीसीतारामापयिमस्तु ||
||इवतश्री ||