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ऩज
ू ा स्थान को साफ़ कय एक चौकी ऩय कऩड़ा विछा कय श्री चचत्रगप्ु त जी का पोटो स्थावऩत कयें मदद चचत्र
उऩरब्ध न हो तो करश को प्रतीक भान कय चचत्रगुप्त जी को स्थावऩत कयें |
स्िजस्तिािन -
ॐ गणना तिाॊ गणऩतत हिामहे, वियाणाॊ तिाॊ वियेऩत्र हिामहे तनधीनाॊ तिाॊ तनचधऩते हिामहे िसो मम
आहमजातन गर्भधामा तिमजासस गर्भधम |
ॐ गणऩतयादद ऩॊिदे िा निग्रहा् इन्द्रादद ददग्ऩाऱा दग
ु ाभदद महादे व्य् इहा गच्छत स्िकीयाम ् ऩज
ू ाॊ ग्रहीत र्गित्
चित्रगप्ु त दे िस्य ऩज
ू मॊ विघ्नरदहत कुरूत |
ध्यान -
तच्छरी रान्द्महाबाहु् श्याम कमऱ ऱोिन् कम्िु ग्रीिोगूढ सिर् ऩूणभ िन्द्र तनर्ानन् ||
काऱ दण्डोस्तिोिसो हस्ते ऱेखनी ऩत्र सॊयत
ु ् | तन्मतय दिभनेतस्थौ ब्रह्मणोतियक्त जन्द्मन् ||
ऱेखनी खडगहस्ते ि- मसस र्ाजन ऩस्
ु तक् | कायस्थ कुऱ उतऩन्द्न चित्रगप्ु त नमो नम् ||
मसी र्ाजन सॊयक्
ु तश्िरोसस तिॊ महीतऱे | ऱेखनी कदिन हस्ते चित्रगप्ु त नमोस्तत
ु े ||
चित्रगप्ु त नमस्तभ्
ु यॊ ऱेखकाऺर दायक | कायस्थ जातत मासाद्य चित्रगप्ु त मनोस्तत
ु े ||
योषातिया ऱेखनस्य जीविकायेन तनसमभत | तेषा ि ऩाऱको यस्र्ात्रत् िाजन्द्त ियच्छ मे ||
आिाहन-
हे !चित्रगुप्त जी मैं आऩका आिाहन करता हूॉ |
ॐ आगच्छ र्गिन्द्दे ि स्थाने िात्र जस्थरौ र्ि | याितऩूजॊ कररष्यासम ताितिॊ साजन्द्नधौ र्ि |
ॐ र्गिन्द्तॊ श्री चित्रगुप्त आिाहयासम स्थाऩयासम ||
आसन-
ॐ इदमासनॊ समऩभयासम | र्गिते चित्रगुप्त दे िाय नम् ||
ऩाद्य-
ॐ ऩादयो् ऩाद्यॊ समऩभयासम |र्गिते चित्रगुप्त दे िाय नम् ||
आिमन-
ॐ मुखे आिमनीयॊ समऩभयासम |र्गिते चित्रगुप्ताय नम् ||
स्नान-
ॐ स्नानातभ् जऱॊ समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगुप्ताय नम् ||
िस्त्र-
ॐ ऩवित्रों िस्त्रॊ समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगप्ु त दे िाय नम् ||
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ऩुष्ऩ-
ॐ ऩुष्ऩमाऱाॊ ि समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगुप्तदे िाय नम् ||
धूऩ-
ॐ धूऩॊ माधाऩयामी | र्गिते श्री चित्रगुप्तदे िाय नम् ||
दीऩ-
ॐ दीऩॊ दिभयासम | र्गिते श्री चित्रगप्ु त दे िाय नम् II
नैिेद्य -
ॐ नैिेद्यॊ समऩभयासम | र्गिते श्री चित्रगुप्त दे िाय नम् ||
ताम्बूऱ-दक्षऺणा -
ॐ ताम्बूऱॊ समऩभयासम | ॐ दक्षऺणा समऩभयासम | र्गिते श्री चित्रगुप्त दे िाय नम् ||
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बीष्भ वऩताभह ने ऩुरस्त्म भुतन से ऩूछा के हे भहाभुतन सॊसाय भें कामस्थ नाभ से विख्मात भनुष्म फकस िॊश भें उत्ऩन्न
हुमे हैं तथा फकस िणि भें कहे जाते हैं इसे भें जानना चाहता हूॉ | इस प्रकाय के िचन कहकय बीष्भ वऩताभह ने ऩुरस्त्म
भुतन से इस ऩवित्र कथा को सुनने के इक्छा जादहय की ऩुरस्त्म भुतन ने प्रसन्न होकय गॊगा ऩुत्र बीष्भ वऩताभह से कहा -
हे गॊगेम भें कामस्थ उत्ऩम्त्त की ऩवित्र कथा का िणिन आऩसे कयता हूॉ | जो इस जगत का ऩारन कताि है िही फपय नाश
कये गा उस अब्मक्त शाॊत ऩुरुष रोक - वऩताभह ब्रबहा ने म्जस तयह ऩूिि भें इस सॊसाय की कल्ऩना की है | िही िणिन भें
कय यहा हूॉ -
भुख से ब्राबहण फाहु से ऺत्रत्रम, जॊघा से िैश्म, ऩैय से शूद्र, दो ऩाॉि चाय ऩाॉि िारे ऩशु से रेकय सभस्त सऩािदद जीिो का
एक ही सभम भें चन्द्रभा, सूमािदद ग्रहों को औय फहुत से जीिो को उत्ऩन्न कय ब्रबहा भें सूमि के सभान तेजस्िी ज्मेष्ठ ऩुत्र
को फुराकय कहा हे सुब्रत तुभ मत्न ऩूििक इस जगत की यऺा कयो | सम्ृ ष्ट का ऩारन कयने के मरमे ज्मेष्ठ ऩुत्र को आऻा
दे कय ब्रबहा ने एकाग्रचचत होकय दस हजाय सौ िषि की सभाचध रगाई अॊत भें विश्राॊत चचत्त हुमे तदउऩयाॊत उस ब्रबहा के
शयीय से फड़ी बुजाओ िारे श्माभ िणि, कभरित शॊक तुल्म गदिन, चक्रित तेजस्िी, अतत फुविभान हाथ भें करभ-दिात
मरमे तेजस्िी, अततसुन्दय विचचत्राॊग, म्स्थय नेत्र िारे, एक ऩुरुष अव्मक्त जन्भा जो ब्रबहा के शयीय से उत्ऩन्न हुआ है |
बीष्भ उस अव्मक्त ऩुरुष को नीचे ऊऩय दे खकय ब्रबहा जी ने सभाचध छोडकय ऩूछा हे ऩुरुषोत्तभ हभाये साभने म्स्थत आऩ
कौन हैं | ब्रबहा का मह िचन सुनकय िह ऩुरुष फोरा हे विधे भें आऩ ही के शयीय से उत्ऩन्न हुआ हूॉ इसभें फकॊ चचत भात्र
बी सॊदेह नहीॊ है | हे तात अफ आऩ भेया नाभ कयण कयने मोग्म हैं | सो करयमे औय भेये मोग्म कामि बी कदहमे | मह
िाक्म सुनकय ब्रबहा जी तनज शयीय यज ऩुरुष से हॊ सकय प्रसन्न भुद्रा से फोरे की भेये शयीय से तुभ उत्ऩन्न हुमे हो इससे
तुबहायी कामस्थ सॊऻा है | औय ऩथ्
ृ िी ऩय चचत्रगुप्त तुबहाया नाभ विख्मात होगा | हे ित्स धभियाज की मभऩुयी धभािधभि
विताय के मरमे तुबहाया तनम्श्चत तनिास होगा | हे ऩुत्र अऩने िणि भें जो उचचत धभि है उसका विचध ऩूििक ऩारन कयो औय
सॊतान उत्ऩन्न कयो इस प्रकाय ब्रबहा जी बाय मुक्त िय को दे कय अॊतध्मािन हो गमे श्री ऩुरस्त्म भुतन ने कहा है हे कुरूिॊश
के िवृ ि कयने िारे बीष्भ चचत्रगुप्त से जो प्रजा उत्ऩन्न हुई है | उसका बी िणिन कयता हूॉ सुतनमे - चचत्रगुप्त का प्रथभ
वििाह सूमनि ायामण के फड़े ऩुत्र श्रािादे ि भुतन की कन्मा नॊदनी एयािती से हुआ इसके चाय ऩुत्र उत्ऩन्न हुमे प्रथभ बानु
म्जनका नाभ धभिध्िज है म्जसने श्रीिास्ति कामस्थ िॊश फेर को जन्भ ददमा | द्वितीम ऩुत्र भततभान म्जनका नाभ
सभदमारु है | म्जसने सक्सेना िॊश फेर को जन्भ ददमा | तत
ृ ीम ऩुत्र चारु म्जनका नाभ मुगन्धय है | म्जसने भाथुय
कामस्थ िॊश फेर को जन्भ ददमा | चतुथि ऩुत्र सुचारू म्जनका नाभ धभिमज
ु है म्जसने गौंड कामस्थ िॊश को जन्भ ददमा |
चचत्रगप्ु त का दस
ू या वििाह सुशभाि ऋवष की कन्मा शोबािती से हुआ इनसे आठ ऩुत्र हुमे प्रथभ ऩुत्र करुण म्जनका नाभ
सुभतत है म्जसने कणि कामस्थ को जन्भ ददमा | द्वितीम ऩुत्र चचत्रचारू म्जनका नाभ दाभोदय है | म्जसने तनगभ कामस्थ
को जन्भ ददमा | तत
ृ ीम ऩुत्र म्जनका नाभ बानुप्रकाश है | म्जसने बटनागय कामस्थ को जन्भ ददमा म्जनका नाभ मुगन्धय
है | अबफष्ठ कामस्थ को जन्भ ददमा | ऩॊचभ ऩुत्र िीमििान म्जनका नाभ दीन दमारु है | म्जसने आस्थाना कामस्थ को
जन्भ ददमा शास्त्हभ ऩुत्र जीतें द्रीम म्जनका नाभ सदा नन्द है | म्जसने कुरश्रेष्ट कामस्थ को जन्भ ददमा | अष्टभ ऩुत्र
विश्व्भानु म्जनका नाभ याघियाभ है म्जसने फाल्भीक कामस्थ को जन्भ ददमा है | हे भहाभुने चचत्रगप्ु त से उत्ऩन्न सबी
ऩुत्र सबी शास्त्रों भें तनऩुण उत्ऩन्न हुमे धभाि धभि को जानने िारे भहाभुतन चचत्रगुप्त ने सबी ऩुत्रो को ऩथ्
ृ िी भें बेजा औय
धभि साधना के मशऺा दी औय कहा की तुबहे दे िताओॊ का ऩूजन वऩतयो का श्राि तथा तऩिण, ब्राबहणों का ऩारन ऩोषण
औय सदे ि अभ्मागतो की मत्न ऩूििक श्रिा कयनी चादहमे | हे ऩुत्र तीनो रोको के दहत के मरमे मत्न कय धभि की काभना
कयके भहवषिभददिनी दे िी का ऩूजन अिश्म कयें | जो प्रकृतत रूऩ भामा चण्ड भुण्ड का नाश कयने िारी तथा सभस्त
मसविमों को दे ने िारी है उसका ऩूजन कयें म्जसके प्रबाि से दे िता रोग बी मसविमों को ऩाकय स्िगि रोक को गए औय
स्िगि के अचधकाय को ऩाकय सदे ि मऻ भें बाग रेने िारे हुमे | ऐसी दे िी के मरमे तुभ सफ उत्तभ मभष्ठानादद सभऩिण
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कयो म्जससे िह चम्ण्डका दे िताओॊ की बाॉती तुभको बी मसि दे ने िारी होिे औय िैष्णि धभि का अिरॊफन कय भेये िाक्म
का प्रतत ऩारन कयो सबी ऩुत्रो को आऻा दे कय चचत्रगुप्त स्िगि रोक चरे गमे स्िगि जाकय चचत्रगुप्त धभियाज के अचधकाय
भें म्स्थत हुमे | हे बीष्भ इस प्रकाय चचत्रगुप्त की उत्ऩम्त्त भैंने आऩसे कही |
अफ भें उन रोगो का विचचत्र इततहास औय चचत्रगप्ु त का जैसा प्रबाि उत्ऩन्न हुआ सो बी कहता हूॉ सुतनमे - श्री ऩुल्सत्म
भुतन फोरे की धभािधभि को जानते हुमे तनत्म ऩाऩ कभि भें यत ऩथ् ृ िी ऩय सौदास नाभक याजा ऩैदा हुआ, उस ऩाऩी दयु ाचायी
तथा धभि कभि से यदहत याजा ने म्जस प्रकाय स्िगि भें जाकय ऩुण्म के पर का बोग फकमा िह कथा सुना यहा हूॉ |
याजनीतत को नहीॊ जानते हुमे याजा ने अऩने याज्म भें दढॊडोया वऩटिा ददमा की दान धभि हिन श्राि तऩिण अततचथमों का
सत्काय जऩ तनमभ तथा तऩस्मा का साधन भेये याज्म भें कोई ना कये | दे िी आदद की बम्क्त भें तत्ऩय िहाॊ के तनिासी
ब्राबहण रोग उसके याज्मों को छोड़ िहीीँ से अन्म याज्मों भें चरे गमे | जो यह गमे मऻ हिन श्रिा तथा तऩिण कबी नहीॊ
कयते थे | हे गॊगा ऩुत्र तफसे उसके याज्म भें कोई बी मऻ हिन आदद ऩुण्म कभि नहीॊ कय ऩता था | उस सभम ऩुण्म उस
याज्म से ही फाहय हो गमा था | ब्राबहण तथा अन्म िणि के रोग नाश कयने रगे | अफ आऩको उस दष्ु ट याजा का कभि
पर सुनाता हूॉ हे बीष्भ काततिक शुक्र ऩऺ की उत्तभ ततचथ द्वितीम को ऩवित्र होकय सबी कामस्थ चचत्रगप्ु त का ऩूजन
कयते थे | िे बम्क्त बाि से ऩरयऩूणि होकय धूऩदीऩादद कय यहे थे दे ि मोग से याजा सौदस बी घूभता हुआ िहाॊ ऩॊहुचा औय
ऩूजन दे खकय ऩूछने रगा मह फकसका ऩूजन कय यहे हो तफ िे रोग फोरे की याजन हभ रोग चचत्रगुप्त की शुब ऩूजा कय
यहे हैं | मह सुनकय याजा सौदस ने कहा की भें बी चचत्रगप्ु त की ऩूजा करूॉगा मह कहकय सौदस ने विचध ऩूििक
स्नानाददकय भन से चचत्रगुप्त की ऩूजा की, इस बम्क्तमुक्त ऩूजा कयने से उसी ऺण याजा सौदस ऩाऩ यदहत होकय स्िगि
चरा गमा इस प्रकाय चचत्रगुप्त का प्रबािशारी इततहास भैंने आऩसे कहा | अफ हे तऩ
ृ श्रेष्ठ औय क्मा सुनने की आऩकी
इक्छा है | मह सुनकय बीष्भ वऩताभह ने भहवषि ऩुरस्त्म भुतन से कहा हे विऩेन्द्र फकस विचध से िहाॊ उस याजा सौदस ने
चचत्रगुप्त का ऩूजन फकमा म्जसके प्रबाि से हे भुतन याजा सौदस स्िगि रोक को चरा गमा | श्री ऩुरस्त्म भुतन जी फोरे -
हे बीष्भ चचत्रगप्ु त के ऩूजन फक सॊऩूणि विचध भें आऩ से कह यहा हूॉ घत ृ से फने तनिेध, ऋतुपर, चन्दन, ऩुष्ऩ, यीऩ तथा
अनेक प्रकाय के तनिेध, ये शभी औय विचचत्र िस्त्र से भेयी, शॊख भद
ृ ॊ ग, डडभडडभ अनेक फाजे का बम्क्त बाि से ऩयऩूणि होकय
ऩूजन कयें | हे विद्िान निीन करश राकय जर से ऩततऩूणि कयें उस ऩय शक्कय बया कटोया यखें औय मतनऩूििक ऩूजन
कय ब्राबहण को दान दे िें | ऩूजन का भॊत्र बी इस प्रकाय ऩढ़े - दिात करभ औय हाथ भें खल्री रेकय ऩथ्
ृ िी भें घूभने
िारे हे चचत्रगुप्त आऩको नभस्काय हे चचत्रगुप्त आऩ कामस्थ जाती भें उत्ऩन्न होकय रेखकों को अऺय प्रदान कयते हैं |
म्जसको आऩने मरखने की जीविका दी है | आऩ उनका ऩारन कयते हैं | इसमरमे भुझे बी शाॊतत दीम्जए | हे याजेन्द्र
कुरूिॊश को फढाने िारे हे बीष्भ इन भॊत्रो के सॊकल्ऩ ऩूििक चचत्रगुप्त का ऩूजन कयना चादहमे | इस प्रकाय याजा सौदस ने
बम्क्त बाि से ऩूजन कय तनजयाज्म का शाशन कयता हुआ कुछ ही सभम भें भत्ृ मु को प्राप्त हुआ हे बायत मभदतू याजा
सौदस को बमानक मभरोक भें रे गमे | चचत्रगप्ु त ने मभयाज से ऩूछा की मह दयु ाचायी ऩाऩ कभियत सौदस याजा है |
म्जसने अऩनी प्रजा से ऩाऩकभि कयिामा है | इस प्रकाय धभियाज से ऩूछे गमे धभािधभि को जानने िारे भहाभुतन चचत्रगुप्त
जी हॊ सकय उस याजा के मरमे धभि विऩाक मुक्त शुब िचन फोरे हे धभियाज - मह याजा मद्दवऩ ऩाऩ कभि कयने िारा ऩथ्
ृ िी
भें प्रमसि है | औय भें आऩकी प्रसन्नता से ऩथ्
ृ िी भें ऩूज्म हूॉ हे स्िामभन आऩने ही भुझे िह िय ददमा है | आऩका सदे ि
कल्माण हो आऩको नभस्काय है | हे दे ि आऩ बरी बाॉती जानते है औय भेयी बी भतत है की मह याजा ऩाऩी है तफ बी
इस याजा ने बम्क्त बाि से भेयी ऩूजा की है इससे भें इससे प्रसन्न हूॉ | हे इष्टदे ि इस कायण मह याजा फैकॊु ठ रोक को
जाए | चचत्रगुप्त का मह िचन सुनकय मभयाज ने याजा सौदस का फैकॊु ठ जाने की आऻा दी औय याजा सौदस फैकॊु ठ रोक
को चरा गमा श्री ऩुल्सत्म भुतन जी ने कहा हे बीष्भ जो कोई साभान्म ऩुरुष मा कामस्थ चचत्रगुप्त जी की ऩूजा कये गा
िह बी ऩाऩ से छूटकय ऩयभगतत को प्राप्त कये गा | हे गॊगेम आऩ बी सिि विचध से चचत्रगप्ु त की ऩूजा करयमे | म्जसकी
ऩूजा कयने से हे याजेन्द्र आऩ बी दर
ु िब रोक को प्राप्त कयें गे | ऩुरस्त्म भुतन के िचन सुनकय बीष्भ जी ने बम्क्त भन से
चचत्रगुप्त जी की ऩूजा की | चचत्रगुप्त की ददव्म कथा को जो श्रेष्ठ भनुष्म बम्क्त भन से सुनेगे िे भनुष्म सभस्त
व्माचधमों से छूटकय दीघािमु होंगे औय भयने ऩय जहाॉ तऩस्िी रोग जाते है | एसे विष्णु रोक को जामेंगे |
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|| चित्रगुप्त िासऱसा ||
अफ सबी सदस्म श्री चचत्रगुप्त जी की आयती गािें| इसके ऩश्चात ् ख़ुशी ऩूििक श्री चचत्रगुप्त जी भहयाज औय श्री गणेश जी
भहायाज से अऩने औय अऩने रोगों के मरए भॊगर आशीिािद प्राप्त कयते हुए शीश झुकाएॊ एिॊ प्रसाद का वितयण कयें |
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