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श्री चित्रगुप्त ऩूजन विचध

ऩज
ू ा स्थान को साफ़ कय एक चौकी ऩय कऩड़ा विछा कय श्री चचत्रगप्ु त जी का पोटो स्थावऩत कयें मदद चचत्र
उऩरब्ध न हो तो करश को प्रतीक भान कय चचत्रगुप्त जी को स्थावऩत कयें |

दीऩक जरा कय गणऩतत जी को चन्दन ,हल्दी,योरी अऺत ,दफ


ू ,ऩुष्ऩ ि धूऩ अवऩित कय ऩूजा अचिना कयें |
श्री चचत्रगुप्त जी को बी चन्दन ,हल्दी,योरी अऺत ,ऩुष्ऩ ि धूऩ अवऩित कय ऩूजा अचिना कयें |
पर ,मभठाई औय विशेष रूऩ से इस ददन के मरए फनामा गमा ऩॊचाभत
ृ (दध
ू ,घी कुचरा अदयक ,गुड़ औय
गॊगाजर )औय ऩान सऩ
ु ायी का बोग रगामें |
इस विशेष ऩिि ऩय श्री चचत्रगुप्त जी भहायाज एिॊ धभियाज के ऩूजन से ऩहरे ऩूजा स्थर ऩय करश स्थाऩना (िरुण ऩूजन
कय) िरुण दे िता का आिाहन कयें | फपय गणेश अम्बफका का ऩूजन कय उनका आिाहन कयें | तत्ऩश्चात ईशान कोण भें
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िेदी फनाकय निग्रह की स्थाऩना कय आिाहन कयें | इसके ऩश्चात ् दिात,करभ,ऩत्र-ऩूजन एिॊ तरिाय की स्थाऩना कय
नीचे दी गमी विचध से ऩूजन कयें | साभग्री ऩय ऩवित्र जर तछड़कते हुए प्रबु का स्भयण कयें |
नमस्तेस्तु चित्रगुप्ते, यमऩुरी सुरऩूजजते |
ऱेखनी-मससऩात्र, हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते ||

स्िजस्तिािन -
ॐ गणना तिाॊ गणऩतत हिामहे, वियाणाॊ तिाॊ वियेऩत्र हिामहे तनधीनाॊ तिाॊ तनचधऩते हिामहे िसो मम
आहमजातन गर्भधामा तिमजासस गर्भधम |
ॐ गणऩतयादद ऩॊिदे िा निग्रहा् इन्द्रादद ददग्ऩाऱा दग
ु ाभदद महादे व्य् इहा गच्छत स्िकीयाम ् ऩज
ू ाॊ ग्रहीत र्गित्
चित्रगप्ु त दे िस्य ऩज
ू मॊ विघ्नरदहत कुरूत |

ध्यान -
तच्छरी रान्द्महाबाहु् श्याम कमऱ ऱोिन् कम्िु ग्रीिोगूढ सिर् ऩूणभ िन्द्र तनर्ानन् ||
काऱ दण्डोस्तिोिसो हस्ते ऱेखनी ऩत्र सॊयत
ु ् | तन्मतय दिभनेतस्थौ ब्रह्मणोतियक्त जन्द्मन् ||
ऱेखनी खडगहस्ते ि- मसस र्ाजन ऩस्
ु तक् | कायस्थ कुऱ उतऩन्द्न चित्रगप्ु त नमो नम् ||
मसी र्ाजन सॊयक्
ु तश्िरोसस तिॊ महीतऱे | ऱेखनी कदिन हस्ते चित्रगप्ु त नमोस्तत
ु े ||
चित्रगप्ु त नमस्तभ्
ु यॊ ऱेखकाऺर दायक | कायस्थ जातत मासाद्य चित्रगप्ु त मनोस्तत
ु े ||
योषातिया ऱेखनस्य जीविकायेन तनसमभत | तेषा ि ऩाऱको यस्र्ात्रत् िाजन्द्त ियच्छ मे ||

आिाहन-
हे !चित्रगुप्त जी मैं आऩका आिाहन करता हूॉ |
ॐ आगच्छ र्गिन्द्दे ि स्थाने िात्र जस्थरौ र्ि | याितऩूजॊ कररष्यासम ताितिॊ साजन्द्नधौ र्ि |
ॐ र्गिन्द्तॊ श्री चित्रगुप्त आिाहयासम स्थाऩयासम ||

आसन-
ॐ इदमासनॊ समऩभयासम | र्गिते चित्रगुप्त दे िाय नम् ||
ऩाद्य-
ॐ ऩादयो् ऩाद्यॊ समऩभयासम |र्गिते चित्रगुप्त दे िाय नम् ||

आिमन-
ॐ मुखे आिमनीयॊ समऩभयासम |र्गिते चित्रगुप्ताय नम् ||

स्नान-
ॐ स्नानातभ् जऱॊ समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगुप्ताय नम् ||

िस्त्र-
ॐ ऩवित्रों िस्त्रॊ समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगप्ु त दे िाय नम् ||

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ऩुष्ऩ-
ॐ ऩुष्ऩमाऱाॊ ि समऩभयासम |र्गिते श्री चित्रगुप्तदे िाय नम् ||

धूऩ-
ॐ धूऩॊ माधाऩयामी | र्गिते श्री चित्रगुप्तदे िाय नम् ||

दीऩ-
ॐ दीऩॊ दिभयासम | र्गिते श्री चित्रगप्ु त दे िाय नम् II

नैिेद्य -
ॐ नैिेद्यॊ समऩभयासम | र्गिते श्री चित्रगुप्त दे िाय नम् ||

ताम्बूऱ-दक्षऺणा -
ॐ ताम्बूऱॊ समऩभयासम | ॐ दक्षऺणा समऩभयासम | र्गिते श्री चित्रगुप्त दे िाय नम् ||

दिात -ऱेखनी मॊत्र :-


ऱेखनी तनसमभताॊ ऩूिभ ब्रह्यणा ऩरमेजष्िना |
ऱोकानाॊ ि दहताथाभय तस्माताम ऩूजयाम्ह्यम||
ऩुस्तके िचिभता दे िी , सिभ विद्यान्द्न्द्दा र्ि् |
मदगह
ृ े धन-धान्द्यादद-समवृ ि कुरु सदा ||
ऱेखयै ते नमस्तेस्तु , ऱार्कत्रये नमो नम् |
सिभ विद्या िकासिन्द्ये , िर्
ु दायै नमो नम् ||

इसके फाद ऩरयिाय के सबी सदस्म अऩनी फकताफ,करभ,दिात आदद की ऩज


ू ा कयें औय चचत्रगप्ु त जी के सभऺ
यक्खें | अफ ऩरयिाय के सबी सदस्म एक सफ़ेद कागज ऩय एप्ऩन (चािर का आॊटा,हल्दी,घी, ऩानी )ि योरी से
स्िम्स्तक फनामें | उसके नीचे ऩाॊच दे िी दे ितािों के नाभ मरखें |
इसके नीचे एक तयप अऩना नाभ ऩता ि ददनाॊक मरखें औय दस
ू यी तयप अऩनी आम व्मम का विियण दें
,इसके साथ ही अगरे सार के मरए आिश्मक धन हे तु तनिेदन कयें |फपय अऩने हस्ताऺय कयें |
इस कागज औय अऩनी करभ को हल्दी योरी अऺत औय मभठाई अवऩित कय ऩज
ू न कयें |
अफ श्री चचत्रगुप्त जी का ध्मान कयते हुए तनबन मरखखत भॊत्र का कभ से कभ ११ फाय उच्चायण कयें -

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बीष्भ वऩताभह ने ऩुरस्त्म भुतन से ऩूछा के हे भहाभुतन सॊसाय भें कामस्थ नाभ से विख्मात भनुष्म फकस िॊश भें उत्ऩन्न
हुमे हैं तथा फकस िणि भें कहे जाते हैं इसे भें जानना चाहता हूॉ | इस प्रकाय के िचन कहकय बीष्भ वऩताभह ने ऩुरस्त्म
भुतन से इस ऩवित्र कथा को सुनने के इक्छा जादहय की ऩुरस्त्म भुतन ने प्रसन्न होकय गॊगा ऩुत्र बीष्भ वऩताभह से कहा -
हे गॊगेम भें कामस्थ उत्ऩम्त्त की ऩवित्र कथा का िणिन आऩसे कयता हूॉ | जो इस जगत का ऩारन कताि है िही फपय नाश
कये गा उस अब्मक्त शाॊत ऩुरुष रोक - वऩताभह ब्रबहा ने म्जस तयह ऩूिि भें इस सॊसाय की कल्ऩना की है | िही िणिन भें
कय यहा हूॉ -
भुख से ब्राबहण फाहु से ऺत्रत्रम, जॊघा से िैश्म, ऩैय से शूद्र, दो ऩाॉि चाय ऩाॉि िारे ऩशु से रेकय सभस्त सऩािदद जीिो का
एक ही सभम भें चन्द्रभा, सूमािदद ग्रहों को औय फहुत से जीिो को उत्ऩन्न कय ब्रबहा भें सूमि के सभान तेजस्िी ज्मेष्ठ ऩुत्र
को फुराकय कहा हे सुब्रत तुभ मत्न ऩूििक इस जगत की यऺा कयो | सम्ृ ष्ट का ऩारन कयने के मरमे ज्मेष्ठ ऩुत्र को आऻा
दे कय ब्रबहा ने एकाग्रचचत होकय दस हजाय सौ िषि की सभाचध रगाई अॊत भें विश्राॊत चचत्त हुमे तदउऩयाॊत उस ब्रबहा के
शयीय से फड़ी बुजाओ िारे श्माभ िणि, कभरित शॊक तुल्म गदिन, चक्रित तेजस्िी, अतत फुविभान हाथ भें करभ-दिात
मरमे तेजस्िी, अततसुन्दय विचचत्राॊग, म्स्थय नेत्र िारे, एक ऩुरुष अव्मक्त जन्भा जो ब्रबहा के शयीय से उत्ऩन्न हुआ है |
बीष्भ उस अव्मक्त ऩुरुष को नीचे ऊऩय दे खकय ब्रबहा जी ने सभाचध छोडकय ऩूछा हे ऩुरुषोत्तभ हभाये साभने म्स्थत आऩ
कौन हैं | ब्रबहा का मह िचन सुनकय िह ऩुरुष फोरा हे विधे भें आऩ ही के शयीय से उत्ऩन्न हुआ हूॉ इसभें फकॊ चचत भात्र
बी सॊदेह नहीॊ है | हे तात अफ आऩ भेया नाभ कयण कयने मोग्म हैं | सो करयमे औय भेये मोग्म कामि बी कदहमे | मह
िाक्म सुनकय ब्रबहा जी तनज शयीय यज ऩुरुष से हॊ सकय प्रसन्न भुद्रा से फोरे की भेये शयीय से तुभ उत्ऩन्न हुमे हो इससे
तुबहायी कामस्थ सॊऻा है | औय ऩथ्
ृ िी ऩय चचत्रगुप्त तुबहाया नाभ विख्मात होगा | हे ित्स धभियाज की मभऩुयी धभािधभि
विताय के मरमे तुबहाया तनम्श्चत तनिास होगा | हे ऩुत्र अऩने िणि भें जो उचचत धभि है उसका विचध ऩूििक ऩारन कयो औय
सॊतान उत्ऩन्न कयो इस प्रकाय ब्रबहा जी बाय मुक्त िय को दे कय अॊतध्मािन हो गमे श्री ऩुरस्त्म भुतन ने कहा है हे कुरूिॊश
के िवृ ि कयने िारे बीष्भ चचत्रगुप्त से जो प्रजा उत्ऩन्न हुई है | उसका बी िणिन कयता हूॉ सुतनमे - चचत्रगुप्त का प्रथभ
वििाह सूमनि ायामण के फड़े ऩुत्र श्रािादे ि भुतन की कन्मा नॊदनी एयािती से हुआ इसके चाय ऩुत्र उत्ऩन्न हुमे प्रथभ बानु
म्जनका नाभ धभिध्िज है म्जसने श्रीिास्ति कामस्थ िॊश फेर को जन्भ ददमा | द्वितीम ऩुत्र भततभान म्जनका नाभ
सभदमारु है | म्जसने सक्सेना िॊश फेर को जन्भ ददमा | तत
ृ ीम ऩुत्र चारु म्जनका नाभ मुगन्धय है | म्जसने भाथुय
कामस्थ िॊश फेर को जन्भ ददमा | चतुथि ऩुत्र सुचारू म्जनका नाभ धभिमज
ु है म्जसने गौंड कामस्थ िॊश को जन्भ ददमा |

चचत्रगप्ु त का दस
ू या वििाह सुशभाि ऋवष की कन्मा शोबािती से हुआ इनसे आठ ऩुत्र हुमे प्रथभ ऩुत्र करुण म्जनका नाभ
सुभतत है म्जसने कणि कामस्थ को जन्भ ददमा | द्वितीम ऩुत्र चचत्रचारू म्जनका नाभ दाभोदय है | म्जसने तनगभ कामस्थ
को जन्भ ददमा | तत
ृ ीम ऩुत्र म्जनका नाभ बानुप्रकाश है | म्जसने बटनागय कामस्थ को जन्भ ददमा म्जनका नाभ मुगन्धय
है | अबफष्ठ कामस्थ को जन्भ ददमा | ऩॊचभ ऩुत्र िीमििान म्जनका नाभ दीन दमारु है | म्जसने आस्थाना कामस्थ को
जन्भ ददमा शास्त्हभ ऩुत्र जीतें द्रीम म्जनका नाभ सदा नन्द है | म्जसने कुरश्रेष्ट कामस्थ को जन्भ ददमा | अष्टभ ऩुत्र
विश्व्भानु म्जनका नाभ याघियाभ है म्जसने फाल्भीक कामस्थ को जन्भ ददमा है | हे भहाभुने चचत्रगप्ु त से उत्ऩन्न सबी
ऩुत्र सबी शास्त्रों भें तनऩुण उत्ऩन्न हुमे धभाि धभि को जानने िारे भहाभुतन चचत्रगुप्त ने सबी ऩुत्रो को ऩथ्
ृ िी भें बेजा औय
धभि साधना के मशऺा दी औय कहा की तुबहे दे िताओॊ का ऩूजन वऩतयो का श्राि तथा तऩिण, ब्राबहणों का ऩारन ऩोषण
औय सदे ि अभ्मागतो की मत्न ऩूििक श्रिा कयनी चादहमे | हे ऩुत्र तीनो रोको के दहत के मरमे मत्न कय धभि की काभना
कयके भहवषिभददिनी दे िी का ऩूजन अिश्म कयें | जो प्रकृतत रूऩ भामा चण्ड भुण्ड का नाश कयने िारी तथा सभस्त
मसविमों को दे ने िारी है उसका ऩूजन कयें म्जसके प्रबाि से दे िता रोग बी मसविमों को ऩाकय स्िगि रोक को गए औय
स्िगि के अचधकाय को ऩाकय सदे ि मऻ भें बाग रेने िारे हुमे | ऐसी दे िी के मरमे तुभ सफ उत्तभ मभष्ठानादद सभऩिण

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कयो म्जससे िह चम्ण्डका दे िताओॊ की बाॉती तुभको बी मसि दे ने िारी होिे औय िैष्णि धभि का अिरॊफन कय भेये िाक्म
का प्रतत ऩारन कयो सबी ऩुत्रो को आऻा दे कय चचत्रगुप्त स्िगि रोक चरे गमे स्िगि जाकय चचत्रगुप्त धभियाज के अचधकाय
भें म्स्थत हुमे | हे बीष्भ इस प्रकाय चचत्रगुप्त की उत्ऩम्त्त भैंने आऩसे कही |
अफ भें उन रोगो का विचचत्र इततहास औय चचत्रगप्ु त का जैसा प्रबाि उत्ऩन्न हुआ सो बी कहता हूॉ सुतनमे - श्री ऩुल्सत्म
भुतन फोरे की धभािधभि को जानते हुमे तनत्म ऩाऩ कभि भें यत ऩथ् ृ िी ऩय सौदास नाभक याजा ऩैदा हुआ, उस ऩाऩी दयु ाचायी
तथा धभि कभि से यदहत याजा ने म्जस प्रकाय स्िगि भें जाकय ऩुण्म के पर का बोग फकमा िह कथा सुना यहा हूॉ |
याजनीतत को नहीॊ जानते हुमे याजा ने अऩने याज्म भें दढॊडोया वऩटिा ददमा की दान धभि हिन श्राि तऩिण अततचथमों का
सत्काय जऩ तनमभ तथा तऩस्मा का साधन भेये याज्म भें कोई ना कये | दे िी आदद की बम्क्त भें तत्ऩय िहाॊ के तनिासी
ब्राबहण रोग उसके याज्मों को छोड़ िहीीँ से अन्म याज्मों भें चरे गमे | जो यह गमे मऻ हिन श्रिा तथा तऩिण कबी नहीॊ
कयते थे | हे गॊगा ऩुत्र तफसे उसके याज्म भें कोई बी मऻ हिन आदद ऩुण्म कभि नहीॊ कय ऩता था | उस सभम ऩुण्म उस
याज्म से ही फाहय हो गमा था | ब्राबहण तथा अन्म िणि के रोग नाश कयने रगे | अफ आऩको उस दष्ु ट याजा का कभि
पर सुनाता हूॉ हे बीष्भ काततिक शुक्र ऩऺ की उत्तभ ततचथ द्वितीम को ऩवित्र होकय सबी कामस्थ चचत्रगप्ु त का ऩूजन
कयते थे | िे बम्क्त बाि से ऩरयऩूणि होकय धूऩदीऩादद कय यहे थे दे ि मोग से याजा सौदस बी घूभता हुआ िहाॊ ऩॊहुचा औय
ऩूजन दे खकय ऩूछने रगा मह फकसका ऩूजन कय यहे हो तफ िे रोग फोरे की याजन हभ रोग चचत्रगुप्त की शुब ऩूजा कय
यहे हैं | मह सुनकय याजा सौदस ने कहा की भें बी चचत्रगप्ु त की ऩूजा करूॉगा मह कहकय सौदस ने विचध ऩूििक
स्नानाददकय भन से चचत्रगुप्त की ऩूजा की, इस बम्क्तमुक्त ऩूजा कयने से उसी ऺण याजा सौदस ऩाऩ यदहत होकय स्िगि
चरा गमा इस प्रकाय चचत्रगुप्त का प्रबािशारी इततहास भैंने आऩसे कहा | अफ हे तऩ
ृ श्रेष्ठ औय क्मा सुनने की आऩकी
इक्छा है | मह सुनकय बीष्भ वऩताभह ने भहवषि ऩुरस्त्म भुतन से कहा हे विऩेन्द्र फकस विचध से िहाॊ उस याजा सौदस ने
चचत्रगुप्त का ऩूजन फकमा म्जसके प्रबाि से हे भुतन याजा सौदस स्िगि रोक को चरा गमा | श्री ऩुरस्त्म भुतन जी फोरे -
हे बीष्भ चचत्रगप्ु त के ऩूजन फक सॊऩूणि विचध भें आऩ से कह यहा हूॉ घत ृ से फने तनिेध, ऋतुपर, चन्दन, ऩुष्ऩ, यीऩ तथा
अनेक प्रकाय के तनिेध, ये शभी औय विचचत्र िस्त्र से भेयी, शॊख भद
ृ ॊ ग, डडभडडभ अनेक फाजे का बम्क्त बाि से ऩयऩूणि होकय
ऩूजन कयें | हे विद्िान निीन करश राकय जर से ऩततऩूणि कयें उस ऩय शक्कय बया कटोया यखें औय मतनऩूििक ऩूजन
कय ब्राबहण को दान दे िें | ऩूजन का भॊत्र बी इस प्रकाय ऩढ़े - दिात करभ औय हाथ भें खल्री रेकय ऩथ्
ृ िी भें घूभने
िारे हे चचत्रगुप्त आऩको नभस्काय हे चचत्रगुप्त आऩ कामस्थ जाती भें उत्ऩन्न होकय रेखकों को अऺय प्रदान कयते हैं |
म्जसको आऩने मरखने की जीविका दी है | आऩ उनका ऩारन कयते हैं | इसमरमे भुझे बी शाॊतत दीम्जए | हे याजेन्द्र
कुरूिॊश को फढाने िारे हे बीष्भ इन भॊत्रो के सॊकल्ऩ ऩूििक चचत्रगुप्त का ऩूजन कयना चादहमे | इस प्रकाय याजा सौदस ने
बम्क्त बाि से ऩूजन कय तनजयाज्म का शाशन कयता हुआ कुछ ही सभम भें भत्ृ मु को प्राप्त हुआ हे बायत मभदतू याजा
सौदस को बमानक मभरोक भें रे गमे | चचत्रगप्ु त ने मभयाज से ऩूछा की मह दयु ाचायी ऩाऩ कभियत सौदस याजा है |
म्जसने अऩनी प्रजा से ऩाऩकभि कयिामा है | इस प्रकाय धभियाज से ऩूछे गमे धभािधभि को जानने िारे भहाभुतन चचत्रगुप्त
जी हॊ सकय उस याजा के मरमे धभि विऩाक मुक्त शुब िचन फोरे हे धभियाज - मह याजा मद्दवऩ ऩाऩ कभि कयने िारा ऩथ्
ृ िी
भें प्रमसि है | औय भें आऩकी प्रसन्नता से ऩथ्
ृ िी भें ऩूज्म हूॉ हे स्िामभन आऩने ही भुझे िह िय ददमा है | आऩका सदे ि
कल्माण हो आऩको नभस्काय है | हे दे ि आऩ बरी बाॉती जानते है औय भेयी बी भतत है की मह याजा ऩाऩी है तफ बी
इस याजा ने बम्क्त बाि से भेयी ऩूजा की है इससे भें इससे प्रसन्न हूॉ | हे इष्टदे ि इस कायण मह याजा फैकॊु ठ रोक को
जाए | चचत्रगुप्त का मह िचन सुनकय मभयाज ने याजा सौदस का फैकॊु ठ जाने की आऻा दी औय याजा सौदस फैकॊु ठ रोक
को चरा गमा श्री ऩुल्सत्म भुतन जी ने कहा हे बीष्भ जो कोई साभान्म ऩुरुष मा कामस्थ चचत्रगुप्त जी की ऩूजा कये गा
िह बी ऩाऩ से छूटकय ऩयभगतत को प्राप्त कये गा | हे गॊगेम आऩ बी सिि विचध से चचत्रगप्ु त की ऩूजा करयमे | म्जसकी
ऩूजा कयने से हे याजेन्द्र आऩ बी दर
ु िब रोक को प्राप्त कयें गे | ऩुरस्त्म भुतन के िचन सुनकय बीष्भ जी ने बम्क्त भन से
चचत्रगुप्त जी की ऩूजा की | चचत्रगुप्त की ददव्म कथा को जो श्रेष्ठ भनुष्म बम्क्त भन से सुनेगे िे भनुष्म सभस्त
व्माचधमों से छूटकय दीघािमु होंगे औय भयने ऩय जहाॉ तऩस्िी रोग जाते है | एसे विष्णु रोक को जामेंगे |

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|| चित्रगुप्त िासऱसा ||

काततिक शुक्र ददनाॊक दो, श्रिा सौयब भान,


अऺय जीिी जनकयें, चचत्रगुप्त का ध्मान ||ऻानी िीय गहीयभन, भॊद भॊद भुस्कान,
तनणिम मरखते कभि का, चचत्रगुप्त का ध्मान ||

ब्रह्भा ऩुत्र नभामभ नभामभ, चचत्रगुप्त अऺय कुर स्िाभी ||


अऺयदामक ऻान विभरकय, न्मामतुराऩतत नीय-छीय धय ||
हे विश्राभहीन जनदे िता, जन्भ-भत्ृ मु के अचधनेिता ||
हे अॊकुश सभ्मता सम्ृ ष्ट के, धभि नीतत सॊगयऺक गतत के ||
चरे आऩसे मह जग सुॊदय, है नैमातमक दृम्ष्ट सभॊदय ||

हे सॊदेश मभत्र दशिन के, हे आदशि ऩरयश्रभ िन के ||


हे मभमभत्र ऩुयाण प्रततम्ष्ठत, हे विचधदाता जन-जन ऩूम्जत ||
हे भहानकभाि भन भौनभ, चचॊतनशीर अशाॊतत प्रशभनभ ||
हे प्रात् प्राची नि दशिन, अरुणऩूिि यम्क्तभ आितिन ||
हे कामस्थ प्रथभ हो ऩरयघन, विष्णु रृद्‌म के योभकुसुभघन ||

हे एकाॊग जनन श्रुतत हॊ ता, हे सिाांग प्रबूत तनमॊता ||


ब्रह्भ सभाचध मोगभामा से, तुभ जन्भे ऩूयी कामा से ||
रॊफी बुजा साॉिरे यॊ ग के, सुॊदय औय विचचत्र अॊग के ||
चक्राकृत गोरा भुखभॊडर, नेत्र कभरित ग्रीिा शॊखर ||
अतत तेजस्िी म्स्थय द्रष्टा, ऩथ्
ृ िी ऩय सेिापर स्रष्टा ||

तुभ ही ब्रह्भा-विष्ण-ु रुद्र हो, ब्राह्भण-ऺत्रत्रम-िैश्म-शुद्र हो ||


चचत्रत्रत चारु सुिणि मसॊहासन, फैठे फकमे सम्ृ ष्ट ऩे शासन ||
करभ तथा कयिार हाथ भे, खडड़मा स्माही मरए साथ भें ||
कृत्माकृत्म विचायक जन हो, अवऩित बूषण औय िसन हो ||
तीथि अनेक तोम अमबभॊत्रत्रत, दि
ु ाि-चॊदन अर्घमि सुगॊचधत ||

गभ-गभ कुभकुभ योरी चॊदन, हे कामस्थ सुगॊचधत अचिन ||


ऩुष्ऩ-प्रदीऩ धूऩ गुग्गुर से, जौ-ततर समभधा उत्तभ कुर के ||
सेिा करूॉ अनेको फयसो, तुबहें चढाॉऊ ऩीरी सयसों ||
फुक्का हल्दी नागिम्ल्र दर, दध
ू -ददह-घत
ृ भधु ऩुॊचगपर ||
ऋतुपर केसय औय मभठाई, करभदान नत
ू न योशनाई ||

जरऩूरयत नि करश सजा कय, बेरय शॊख भद


ृ ॊ ग फजाकय ||
जो कोई प्रबु तुभको ऩूजे, उसकी जम-जम घय-घय गुॊजे ||
तुभने श्रभ सॊदेश ददमा है , सेिा का सबभान फकमा है ||
श्रभ से हो सकते हभ दे िता, मे फतरामे हो श्रभदे िता ||
तुभको ऩूजे सफ मभर जामे, मह जग स्िगि सदृश्म खखर जाए ||
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तनॊदा औय घभॊड तनझामे, उत्तभ िम्ृ त्त-पसर रहयामे ||
हे मथाथि आदशि प्रमोगी, ऻान-कभि के अद्‌बुत मोगी ||
भुझको नाथ शयण भे रीजे, औय ऩचथक सत्ऩथ का कीजे ||
चचत्रगुप्त कभिठता ददजे, भुझको िचन फध्दता दीजे ||
कॊु दठत भन अऻान सतािे, स्िाद औय सुखबोग रुरािे ||

आरस भें उत्थान रुका है, साहस का अमबमान रुका है ||


भैं फैठा फकस्भत ऩे योऊ, जो ऩामा उसको बी खोऊ ||
शब्द-शब्द का अथि भाॊगते, बू ऩय स्िगि तदथि भाॉगते ||
आशीिािद आऩका चाहू, भैं चयणो की सेिा चाहू ||
सौ-सौ अचिन सौ-सौ ऩूजन, सौ-सौ िॊदन औय तनिेदन ||

फाय फाय िय भाॊगता, हाथ जोड़ श्रीभान ||


प्राणी प्राणी दे िता, धयती स्िगि सभान |
चित्रगुप्त िाऱीसा -2 :-
|| दोहा ||
सुमभय चचत्रगुप्त ईश को, सतत निाऊ शीश।ब्रह्भा विष्णु भहे श सह, रयतनहा बए जगदीश ।।
कयो कृऩा करयिय िदन, जो सयशुती सहाम।चचत्रगुप्त जस विभरमश, िॊदन गुरूऩद राम ।।
|| िौऩाई ||
जम चचत्रगप्ु त ऻान यत्नाकय । जम मभेश ददगॊत उजागय ।।
अज सहाम अितये उ गुसाॊई । कीन्हे उ काज ब्रबह कीनाई ।।
श्रम्ृ ष्ट सज
ृ नदहत अजभन जाॊचा । बाॊतत-बाॊतत के जीिन याचा ।।
अज की यचना भानि सॊदय । भानि भतत अज होइ तनरूत्तय ।।
बए प्रकट चचत्रगुप्त सहाई । धभािधभि गुण ऻान कयाई ।।
याचेउ धयभ धयभ जग भाॊही । धभि अिताय रेत तुभ ऩाॊही ।।
अहभ वििेकइ तुभदह विधाता । तनज सत्ता ऩा कयदहॊ कुघाता ।।
श्रम्ष्ट सॊतुरन के तुभ स्िाभी । त्रम दे िन कय शम्क्त सभानी ।।
ऩाऩ भत्ृ मु जग भें तुभ राए । बमका बूत सकर जग छाए ।।
भहाकार के तुभ हो साऺी । ब्रबहउ भयन न जान भीनाऺी ।।
धभि कृष्ण तुभ जग उऩजामो । कभि ऺेत्र गुण ऻान कयामो ।।
याभ धभि दहत जग ऩगु धाये । भानिगण
ु सदगण
ु अतत प्माये ।।
विष्णु चक्र ऩय तुभदह वियाजें । ऩारन धभि कयभ शुचच साजे ।।
भहादे ि के तुभ त्रम रोचन । प्रेयकमशि अस ताण्डि नतिन ।।
सावित्री ऩय कृऩा तनयारी । विद्मातनचध भाॅॎॅॊ सफ जग आरी ।।
यभा बार ऩय कय अतत दामा । श्रीतनचध अगभ अकूत अगामा ।।
ऊभा विच शम्क्त शुचच याच्मो । जाकेत्रफन मशि शि जग फाच्मो ।।
गुरू फह
ृ स्ऩतत सुय ऩतत नाथा । जाके कभि गहइ ति हाथा ।।
यािण कॊस सकर भतिाये । ति प्रताऩ सफ सयग मसधाये ।।
प्रथभ ् ऩूज्म गणऩतत भहदे िा । सोउ कयत तुबहायी सेिा ।।
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रयवि मसवि ऩाम द्िैनायी । विर्घन हयण शुब काज सॊिायी ।।
व्मास चहइ यच िेद ऩुयाना । गणऩतत मरवऩफध दहतभन ठाना ।।
ऩोथी भमस शुचच रेखनी दीन्हा । असिय दे म जगत कृत कीन्हा ।।
रेखतन भमस सह कागद कोया । ति प्रताऩ अजु जगत भझोया ।।
विद्मा विनम ऩयाक्रभ बायी । तुभ आधाय जगत आबायी ।।
द्िादस ऩूत जगत अस राए । याशी चक्र आधाय सुहाए ।।
जस ऩूता तस यामश यचाना । ज्मोततष केतुभ जनक भहाना ।।
ततथी रगन होया ददग्दशिन । चारय अष्ट चचत्राॊश सुदशिन ।।
याशी नखत जो जातक धाये । धयभ कयभ पर तुभदह अधाये ।।
याभ कृष्ण गुरूिय गह
ृ जाई । प्रथभ गुरू भदहभा गुण गाई ।।
श्री गणेश ति फॊदन कीना । कभि अकभि तुभदह आधीना ।।
दे िित
ृ जऩ तऩ ित
ृ कीन्हा । इच्छा भत्ृ मु ऩयभ िय दीन्हा ।।
धभिहीन सौदास कुयाजा । तऩ तुबहाय फैकुण्ठ वियाजा ।।
हरय ऩद दीन्ह धभि हरय नाभा । कामथ ऩरयजन ऩयभ वऩताभा ।।
शुय शुमशभा फन जाभाता । ऺत्रत्रम विप्र सकर आदाता ।।
जम जम चचत्रगुप्त गुसाॊई । गुरूिय गुरू ऩद ऩाम सहाई ।।
जो शत ऩाठ कयइ चारीसा । जन्भभयण द्ु ख कटइ करेसा ।।
विनम कयैं कुरदीऩ शुिेशा । याख वऩता सभ नेह हभेशा ।।
|| दोहा ||
ऻान करभ, भमस सयस्िती, अॊफय है भमसऩात्र।कारचक्र की ऩुम्स्तका, सदा यखे दॊ डास्त्र।।
ऩाऩ ऩुन्म रेखा कयन, धामो चचत्र स्िरूऩ।श्रम्ृ ष्टसॊतुरन स्िाभीसदा, सयग नयक कय बूऩ।।

अफ सबी सदस्म श्री चचत्रगुप्त जी की आयती गािें| इसके ऩश्चात ् ख़ुशी ऩूििक श्री चचत्रगुप्त जी भहयाज औय श्री गणेश जी
भहायाज से अऩने औय अऩने रोगों के मरए भॊगर आशीिािद प्राप्त कयते हुए शीश झुकाएॊ एिॊ प्रसाद का वितयण कयें |

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