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॥ श्रीश्रीराधादामोदरौ जयतः ॥

॥ हिरपाषर्ददास�वर�चतं ज��दवसप�कम् ॥
( तोटकं वृ�म् )

सु�दनं सु�दनं तव ज��दनं य�प��तम� सुचा�तमम् ।

अ�य वै�व न�दतीव हिर�णय��र्�नदान�मदं भवतु ॥१॥

श�ाथर्

सु�दनम् — सु�र �दवस ; सु�दनम् — म�लमय �दवस ; तव — आपका ; ज��दनम् —


ज��दवस ; यत् — जो ; उप��तम् — उप��त �आ है ; अ� — आज ; सुचा�तमम्
— सबसे मनोहर ; अ�य — हे ; वै�व — वै�व ; नः — हम सभी क� ; तत् — वह ;
अतीव — अ�तशय ; हिर-�णय-ऋ��-�नदानम् — श्रीकृ� क� �ी�त क� वृ�� का कारण
; इदम् — यह ; भवतु — हो ।

भावाथर्

हे वै�व ! आपका जो यह सु�र, म�लमय, अ�तशय मनोहर ज��दवस आज यह�


उप��त �आ है , वह हम सभी क� श्रीकृ��ी�त क� वृ�� का कारण हो ।

( �ट�णी :— वै��वय� के ज��दवस के अवसर पर इस प� के तृतीय चरण म� “अ�य


वै�व” के �ान म� “अ�य वै��व” कहना चा�हए , तथा अनुवाद म� “हे वै�व” के �ान
म� “हे वै�वी” होगा । अ� श� समान ही रह�गे । )

-- O --
गु�वै�व�व�कुले �सुराः �पतर� चराचरजीवगणाः ।

मु�दताः सकला� भव�ु सदा �भज��दनं सफलं भवतु ॥२॥

श�ाथर्

गु�-वै�व-�व�-कुल-इ�सुराः — श्रीगु�, सम� वै�वगण, सम� �व�गण तथा कुल के


इ�देवता ; �पतरः — �पतृगण ; च — और ; चराचर-जीवगणाः — चराचर जीव ;
मु�दताः — �स� ; सकलाः — सम� ; च — और ; भव�ु — ह� ; सदा — सदा ;
�भ-ज�-�दनम् — �भ ज��दवस ; सफलम् — सफल ; भवतु — हो ।

भावाथर्

श्रीगु�, सम� वै�वगण, सम� �व�गण, कुल के इ�देवता, सम� �पतृगण तथा
सम� चराचर जीव सदा �स� ह� । यह �भ ज��दवस सफल हो ।

-- O --

ब�ल-राम-�वभीषण-सा�वत-हनुमत्-कृप�व�-मृक�ु सुताः ।

ददतु �कजी�वतकाललवं �भज��दनं सफलं भवतु ॥३॥

श�ाथर्

ब�ल-राम-�वभीषण-सा�वत-हनुमत्-कृप�व�-मृक�ु सुताः — ब�ल महाराज, पर�राम,


�वभीषण, वेद�ास, हनुमान, कृपाचायर् नामक �व� तथा माक��ेय ऋ�ष ; ददतु — �दान
कर� ; �क-जी�वत-काल-लवम् — अपनी-अपनी आयु का छोटा अंश ; �भ-ज�-�दनम्
— �भ ज��दवस ; सफलम् — सफल ; भवतु — हो ।
भावाथर्

ब�ल महाराज, पर�राम, �वभीषण, वेद�ास, हनुमान, कृपाचायर् नामक �व� तथा माक��ेय
ऋ�ष अपनी-अपनी आयु का छोटा अंश �दान कर� । यह �भ ज��दवस सफल हो ।

�ट�णी — वै�दक ��� म� सात मु� �चरं जी�वय� के नाम �दए गए ह� — ब�ल , �ास ,
हनुमान , �वभीषण , कृपाचायर् , पर�राम और अ��ामा । ज��दवस पर �चरजी�वय�
से दीघ�यु� क� �ाथर्ना करने का भाव इस प� म� है , �क�ु अ��ामा को श्रीकृ� न�
शाप �दया है अतः कृ� के �ारा शा�पत ��� का नाम इस प� म� नह� �लया गया है ।
अ��ामा के �ान पर मृक�ु पुत्र श्री माक��ेय ऋ�ष का नाम यह� �लया गया है ।

-- O --

हिरनाम��चहर्िरधाम��चहर्िरकमर्��च� भव�ु सदा ।

न भवे�डज� कदा�प च नः �भज��दनं सफलं भवतु ॥४॥

श�ाथर्

हिर-नाम-��चः — हिरनाम स��ी ��च ; हिर-धाम-��चः — हिरधाम स�धी ��च ;


हिर-कमर्-��चः — हिरकायर् स��ी ��च ; च — और ; भव�ु — ह� ; सदा — सदा ;
न — नही ; भवेत् — हो ; जडज� — भौ�तक ज� ; कदा�प — �कसी भी समय ; च
— और ; नः — हमारा ; �भ-ज�-�दनम् — �भ ज��दवस ; सफलम् — सफल ;
भवतु — हो ।
भावाथर्

श्रीकृ� के नाम� म� , श्रीकृ� के धाम� म� तथा श्रीकृ� स��ी सम� काय� म� सदा
��च हो । हमारा कभी पुनः इस संसार म� भौ�तक ज� न हो । यह �भ ज��दवस
सफल हो ।

-- O --

अवधूत ! गदाधर ! गौर ! हरे ! वृषभानुसुते ! �गिरराज ! सखे ! ।

गु�वगर् ! कृप� कु�ता� मुदा �भज��दनं सफलं भवतु ॥५॥

श�ाथर्

अवधूत — हे अवधूत �न�ान� ; गदाधर — हे गदाधर ; गौर — हे गौर ; हरे — हे


श्रीहिर ; वृषभानुसुते — हे वृषभानुपुत्री रा�धके ; �गिरराज — हे �गिरराज ; सखे — हे
सखा ; गु�वगर् — हे सम� गु�वगर् ; कृपाम् — कृपा ; कु�त — क��जये ; अ� — आज
; मुदा — आन�पूवर्क ; �भ-ज�-�दनम् — �भ ज��दवस ; सफलम् — सफल ; भवतु
— हो ।

भावाथर्

हे �न�ान� ! हे गदाधर ! हे गौर ! हे कृ� ! हे वृषभानुपुत्री रा�धके ! हे सखा �गिरराज


! हे सम� गु�वगर् ! आज आप सभी आन�पूवर्क �कृपा �दान कर� । यह �भ
ज��दवस सफल हो ।

-- ॐ त�त् --

( �नम�ण�त�थः — आषाढ़कृ�एकादशी , �व�मा� २०७८ )

( ५ जुलाई २०२१ )

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