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Date:05-01-2020.
श्री गणेशाय नमः।
This Book Contains–
ु से ॥
॥ शशव-कवचं या अमोघ-शशव-कवचं , स्कन्द महापराण
( Easy To Learn: v.2)
and
ु से ॥ ( PRINT ).
॥ शशवकवचं अमोघशशवकवचं च , स्कन्द महापराण

॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मुख्य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक देवी-
देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-पहचुँ ाना है,
जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सुनने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रथं ों और अन्य पस्ु तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-
सुनने-समझने-जानने और संजो कर सुरसित रखने योग्य है ।
पर इस जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका नुकसान कर
सकता है । अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही होंगे ।
(धन्यवाद )

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Shiva-Kavach-Amogh-Skandapuran-v.2 e2Learn By VRakesh


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ु से ॥
॥ शशव-कवचं या अमोघ-शशव-कवचं , स्कन्द महापराण
ॐ श्री गणेशाय नमः। ( Easy To Learn: v.2)
॥ अथ शशव-कवचम ॥
॥ शवशनयोगः॥
अस्य श्री-शशव-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋश ः, (Var: वृ भ ऋश ः),
अनष्टुु प-छन्दः, श्री-सदाशशव-रुद्रो देवता, "ह्रीं" शशतः, "वं" (?"रं")- कीलकम,
"श्रीं ह्रीं क्लीं"- बीजम, श्री-सदाशशव-प्रीत्यथे शशव-कवच-स्तोत्र-जपे शवशनयोगः॥
॥ ऋष्याशदन्यासः = ऋष्य-आशद-न्यासः॥
ॐ ब्रह्म-ऋ ये नमः शशरशस । अनष्टुु प छन्दसे नमः, मख
ु े।
श्री-सदाशशव-रुद्र-देवताय नमः हृशद । ह्रीं शतये नमः, पादयोः।
ु ।
वं कीलकाय नमः नाभौ । श्री ह्रीं क्लीशमशत*(क्लीम-इशत) बीजाय नमः गह्ये
शवशनयोगाय नमः, सवााङ्गे ॥
॥ अथ करन्यासः॥ ( *See its another Ver. @ end)
ॐ नमो भगवते ज्वलज-ज्वाला-माशलने,
ॐ ह्रीं रां सवाशशत-धाम्ने ईशानात्मने अङ्गष्ठु ाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ नं रीं शनत्य-तृशि-धाम्ने तत्परुु ात्मने तजानीभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ मं रं अनाशद-शशत-धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ शश रैं स्वतन्त्र-शशत-धाम्ने वामदेवात्मने अनाशमकाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ वां रौं अलुि-शशत-धाम्ने सद्योजातात्मने कशनशष्ठकाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ यं रः अनाशद-शशत-धाम्ने सवाात्मने करतल-कर-पृष्ठाभ्ां नमः॥

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॥ हृदयाशदन्यासः = हृदय-आशद-न्यासः = ड-अङ-न्यास ॥


ॐ नमो भगवते ज्वलज-ज्वाला-माशलने ( *See its another Ver. @ end)
ॐ ह्रीं रां सवा-शशत-धाम्ने ईशानात्मने हृदयाय नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ नं रीं शनत्य-तृशि-धाम्ने तत्परुु ात्मने शशरसे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ मं रं अनाशद-शशत-धाम्ने अघोरात्मने शशखायै व ट ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज-ज्वाला-माशलने,
ॐ शश रैं स्वतन्त्र-शशत-धाम्ने वामदेवात्मने कवचाय हुम ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ वां रौं अलुि-शशत-धाम्ने, सद्योजातात्मने नेत्रत्रयाय वौ ट।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने,
ॐ यं रः अनाशद-शशत-धाम्ने सवाात्मने अस्त्राय फट॥

॥ अथ ध्यानम (सरल शब्दों में) ॥


वज्र-दंष्ट्र ं शत्र-नयनं, काल-कण्ठम-अशरन्दमम ।
सहस्र-करमप्यग्रु *ं वन्दे शम्भमु -उमा-पशतम ॥ *करमप्य-उग्रं.
रुद्राक्ष-कङ्कण-लसत-कर-दण्ड-यग्ु मः, पालान्तरा-लशसत-भस्म-धृत-शत्रपण्रः।

पञ्चाक्षरं (*पञ्च-अक्षरं) पशर-पठन वर-मन्त्र-राजं,
ध्यायन सदा पशपु शत शरणं व्रजेथाः॥

अथाःऽपरं(*अथाःअपरं) सवा-पराण-ग ु , शनःशे -पापौघ-हरं पशवत्रम ।
ह्यं

जय-प्रदं सवा-शवपत-प्रमोचनं, वक्ष्याशम शैवं कवचं शहताय ते॥

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॥ अथ कवचम मूल पाठ ॥


ऋ भ उवाचः।
नमस्कृ त्य महादेवं शवश्व-व्याशप-नमीश्वरम* । (?* शवश्व-व्याशपनम-ईश्वरम )
वक्ष्ये शशवमयं वमा सवा-रक्षाकरं नृणाम ॥१॥
ु ौ देश े समासीनो यथावत-कशितासनः*।
शच (?*कशित-आसनः)
शजतेशियो शजत-प्राणश-शचन्तयेशिवमव्यम*॥२॥
(*चिन्तयेि्‌-चिवम-व्यम्‌= चिन्तयेत्‌-चिवम-व्यम्‌)

हृत-पण्डरी-कान्तर-सं
शन-शवष्टं स्वतेजसा व्याि-नभोऽवकाशम ।
अतीशियं सूक्ष्ममनन्तमाद्यं* ध्यायेत-परानन्दमयं महेशम ॥ ३॥
*? सूक्ष्मम-अनन्तम-आद्यं, *परा-आनन्द-मयं
ध्यानावधूताचिल-कममबन्धि्‌-चिरं चिदानन्द-चनमग्निेतााः।
(* ध्याना-अवधूत-अचिल-कमम-बन्धि्‌-चिरं -चिद्‌-आनन्द-चनमग्न-िेतााः। ) डक्षर-
न्यास-समाशहतात्मा, शैवने कुयाात-कवचेन रक्षाम ॥४॥
(* ड-अक्षर-न्यास-समाशहत-आत्मा, ** न्यास आवश्यक है॥४॥)
मां पात ु देवोऽशखल-देवतात्मा संसार-कू पे पशततं गभीरे ।
ु ु मे सवामघं हृशदस्थम ॥५॥
तन-नाम शदव्यं वर-मन्त्र-मूलं, धनोत
सवात्र मां रक्षत,ु शवश्व-मूर्ततर-ज्योशतर-मय-आनन्द-घनश-शचद-आत्मा ।

अणोरणीयानरु-शशतरे कः स ईश्वरः पात ु भयाद-शे ात ॥६॥
यो भू-स्व-रूपेण शबभर्तत शवश्वं पायात्स भूमर्ते गशरशोऽष्टमूर्ततः*।
(*भूमरे -शगशरशो-अष्ट-मूर्ततः)
योऽपां(*यो-अपां) स्वरपेण नृणां करोशत सञ्जीवनं सोऽवत ु मां जलेभ्ः॥७॥

किा-वसाने भवनाशन दग्वा, सवााशण यो नृत्यशत भूशरलीलः।
स कालरुद्रोऽवत ु मां दवाग्ने-वाात्य-आशदभीतेर-शखलाच्च तापात ॥८॥
प्रदीि-शवद्युत-कनका-व-भासो, शवद्या-वराभीशत*-कुठारपाशणः।*वराभीशत ?=वर-अभय-इशत
चतमु ख
ाु स-तत्परुु स-शत्रनेत्रः प्राच्ां शस्थतं रक्षत ु मामज-स्त्रम ॥९॥
कुठार-वेदाङ्कश ु
ु -पाश-शूल-कपाल-ढक्काक्ष-गणान्दधानः।
(* कुठार-वेद-अङ्कुश-पाश-शूल-कपाल-ढक्क-अक्ष-गणान
ु -दधानः।)

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चतमु ख
ाु ो नीलरुशचस-शत्रनेत्रः पायाद-घोरो शदशश दशक्षणस्याम ॥१०॥
कुन्दन्दु
े -शङ्ख-स्फशटकावभासो वेदाक्ष-माला-वरदाभयाङ्कः*।
(* कुन्दन्दु
े -शङ्ख-स्फशटका-वभासो, वेद-अक्ष-माला-वरद-अभयाङ्कः)
त्र्यक्षश-चतवु क्त्र
ा उरु-प्रभावः सद्योऽशधजातोऽवत ु मां प्रतीच्ाम ॥११॥
वर-अक्ष-माला-अभय-टङ्क-हस्तः सरोज-शकञ्जल्क-समान-वणाः।
शत्रलोचनश-चारु-चतमु ख
ाु ो मां, पायाद-उशदच्ां शदशश वामदेवः॥१२॥
वेदाभयेष्टाङ्कुश*-टङ्क-पाश-कपाल-ढक्काक्ष*-शूलपाशणः।
(*वेद-अभय-इष्ट(?अष्ट)-अङ्कुश, *ढक्क-अक्ष)
शसतद-यशु तः पञ्च-मख
ु ोऽवतान-माम-ईशान, ऊवं परम-प्रकाशः॥१३॥
मूधाानम-व्यान-मम चंद्रमौशलर-भालं ममाव्यादथ भालनेत्रः।
नेत्र े ममाव्याद-भगनेत्र-हारी, नासां सदा रक्षत ु शवश्वनाथः॥१४॥
पायाच्छ्रुती मे श्रशु त-गीत-कीर्ततः, कपोलम-व्यात-सततं कपाली ।
वक्त्रं सदा रक्षत ु पञ्च-वक्त्रो, शजह्ां सदा रक्षत ु वेदशजह्ः॥ १५॥
कण्ठं शगरीशोऽवत ु नील-कण्ठः पाशणद्वयं* पात ु शपनाक-पाशणः। *पाशणद्वयं=दोनो हाथ.
ा म-व्यान्मम धमाबाहुर-वक्षःस्थलं दक्ष-मखान्तकोऽव्यात ॥१६॥
दोमूल
ममोदरं* पात ु शगरीि-धन्वा, मध्यं ममाव्यान-मदनान्तकारी*।
*मम-उदरं, *मदन(कामदेव)-अन्त-कारी
हेरम्ब-तातो मम पात ु नाशभ, पायात-कटी धूजशा टरीश्वरो* मे ॥१७॥ *धूजशा टर-ईश्वरो
ऊरु-द्वयं पात ु कुबरे -शमत्रो, जान-द्वयं
ु मे जगदीश्वरोऽव्यात । *द्वयं="दो".
ु ं पङ्गव-के
जङ्घा-यग ु तरु -व्यात-पादौ ममाव्यात-सरवन्द्य-पादः॥१८॥

महेश्वरः पात ु शदनाशद-यामे, मां मध्य-यामे-अवत ु वामदेवः।
शत्रयम्बकः पात ु तृतीय-यामे, वृ वजः पात ु शदनान्त्य*-यामे ॥१९॥ *शदन-अन्त्य
पायान-शनशादौ(*शनशा-आदौ) शशश-शेखरो मां, गङ्गाधरो रक्षत ु मां शनशीथे।

गौरी-पशतः पात ु शनशा-वसाने, मृत्यञ्जयो रक्षत ु सवा-कालम ॥२०॥
अन्तःशस्थतं रक्षत ु शङ्करो मां स्थाणःु सदा पात ु बशहःशस्थतं माम ।
तद-अन्तरे पात ु पशतःपशूनां, सदाशशवो रक्षत ु मां समन्तात ॥२१॥
ु ैकनाथः, पायाद-व्रजन्तं प्रमथाशधनाथः।
शतष्ठन्तम-व्याद-भवन

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(*? शतष्ठन-तम-व्याद-भवन-ऐकनाथः, पायाद-व्रज-अन्तं प्रमथ-अशधनाथः।)
वेदान्त-वेद्योऽवत ु मान-शन ण्णं मामव्ययः पात ु शशवः शयानम ॥२२॥
मागे ु मां रक्षत ु नील-कण्ठः, शैलाशद-दुगे ु पर-त्रयाशरः।
ु *शैल-आशद.
अरण्य-वास-आशद-महा-प्रवासे, पायान-मृग-व्याध उदार-शशतः ॥२३॥
कि-अन्त-काटोप-पटु-प्रकोपः, स्फुट-आट्टहासोच-चशलताण्ड-कोशः।
घोराशर-सेनाणाव-दुर्तनवार-महाभयाद्रक्षत ु वीरभद्रः ॥ २४॥
(*घोर-अशर-सेना-आणाव-दुर्तनवार-महा-भयाद-रक्षत ु वीरभद्रः॥२४॥)
पत्त्यश्व-मातङ्ग-घटावरथ-सहस्र-लक्षायतु *-कोशट-भी णम ।
*लक्ष-आयतु = लाख-आयतु (आयत=१००००)

अक्षौशहणीनां शतम-आतताशयनां शछन्द्यान्मृडो* घोर-कुठार-धारया॥२५॥
*शछन्द-यान-मृडो
शनहन्त ु दस्यून-प्रलयानलार्तचर*-ज्वलत-शत्रशूलं शत्रपरान्तकस्य
ु ।
*? प्रलय-अनल-अर्तचर
ृ ाशद-शहस्त्रान्सन्त्रासयत्वीश-धनःु शपनाकम ॥२६॥
शार्दाल-शसहक्षावक
* शार्दाल-शसह-क्षा-(र-क्ष)-वृक-आशद-शहस्त्रान-सन्त्रासय-त्वीश-धनःु शपनाकम
दुःस्वप्न-दुःशकुन-दुगाशत-दौमानस्य-दुर्तभक्ष-दुव्यासन-दुःसह-दुया-शांशस ।
उत्पात-ताप-शव -भीशतम-सद्ग्रहार्तत-व्याधींश-च नाशयत ु मे जगतामधीशः॥२७॥
ॐ नमो भगवते सदाशशवाय सकल-तत्त्वात्मकाय (?तत्त्व-आत्मकाय),
सकल-तत्त्व-शवहाराय, सकल-लोकै क-कत्रे, सकल-लोकै क-भत्रे,
ु , सकल-लोकै क-साशक्षणे,
सकल-लोककै क-हत्रे, सकल-लोककै क-गरवे

सकल-शनगम-गह्याय(*गहु -याय ), सकल-वर-प्रदाय, सकल-दुशरतार्तत-भञ्जनाय,
सकल-जगद-भयङ्काराय, सकल-लोकै क-शङ्कराय, शशाङ्क-शेखराय,
ाु ाय, शनरुपमाय नीरपाय शनराभासाय, शनराममाय शनष्प्रपञ्चाय
शाश्वत-शनजाभासाय, शनगण
शनष्कलङ्काय शनद्वान्द्वाय शनःसङ्गाय , शनमालाय शनगामाय शनत्यरप-शवभवाय, शनरुपम-शवभवाय,
शनराधाराय, शनत्य-शद्ध ु
ु -बद्ध-पशरपू
ण-ा सशच्चदानन्दा-द्वयाय, परम-शान्त-प्रकाश-तेजोरपाय,
जय-जय महारुद्र, महारौद्र भद्रावतार दुःखदा-अवदारण , महाभ ैरव कालभैरव किान्त-भ ैरव
कपाल-मालाधर , खट्वाङ्ग-खड्ग-चमा-पाशाङ्कुश (*पाश-अङ्कुश)-डमरु-शूल-चाप-बाण-गदा-

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ु ल-मद्गु र(मदु -गर)-पशट्टश-परश-ु पशरघ-भश


शशत-शभशण्डपाल-(?शभशन्दपाल), तोमर-मस ु ण्ु डी-
शतघ्नी-चक्राद्यायधु (चक्राद्य-आयधु ) - भी ण-कर-सहस्र मख
ु -दंष्ट्रा-कराल
शवकटाट्टहास(शवकट-आट्टहास) -शवस्फाशरत-ब्रह्माण्ड-मण्डल, नागेि-कुण्डल, नागेि-हार,

नागेि-वलय नागेि-चमाधर, मृत्यञ्जय, ु
त्र्यम्बक , शत्रपरान्तक(शत्रप ु
रा-अन्तक), शवरपाक्ष
ु सवातो रक्ष रक्ष, मां ज्वल-ज्वल, महा-
शवश्वेश्वर शवश्वरप वृ भ-वाहन , शव भू ण शवश्वतोमख

मृत्य-भयम ु
-अपमृत्य-भयं नाशय-नाशय, रोग-भयम-उत्सादयोत्सादय (उत्सादय-उत्सादय),
शव -सप ा-भयं शमय-शमय, चोर-भयं मारय-मारय, मम शत्रून-उच्चाटयोच्चाटय (उच्चाटय-
उच्चाटय) , शूलेन शवदारय शवदारय, कुठारेण शभशि-शभशि, खड्गेन शछशि-शछशि, खट्वाङ्गेन
ु लेन शनष्पे य-शनष्पे य, बाणैः सन्ताडय-सन्ताडय, रक्षांशस भी य-
शवपोथय शवपोथय, मस
भी य भूताशन शवद्रावय-शवद्रावय, कू ष्माण्ड-वेताल-मारीगण-ब्रह्म-राक्षसान-सन्त्रासय-
सन्त्रासय, मामभयं** (माम-अभयं) कुरु-कुरु, (** माम-भयं कुरु-कुरु ? माम-अभयं
कुरु-कुरु )
शवत्रस्तं माम-आश्वासय-आश्वासय, नरकभयां-माम-उद्धारय-उद्धारय,
सञ्जीवय-सञ्जीवय, क्षतु ड्भ्
ृ ां माम-आप्यायय-आप्यायय, दुःखातरु ं
माम-आनन्दय-आनन्दय, शशव-कवचेन माम-आिादय-आिादय,
त्र्यम्बक सदाशशव नमस्ते नमस्ते नमस्ते ।
॥ इचत कवि ॥
पूववा त हृदय-आशद न्यासः। पञ्चपूजा ॥ भूभवाु स्सवु रोम-इशत शदशग्वशमकः॥
॥ फलश्रशु तः॥
ऋ भ उवाचः।
इत्येतत-कवचं शैव,ं वरदं व्याहृतं मया ।
सवा-बाधा-प्रशमनं, रहस्यं सवादशे ह-नाम ॥२८॥
यः सदा धारये-न-मत्याः शैवं कवचम-उत्तमम ।

न तस्य जायते क्वाशप भयं शम्भोरनग्रहात ु
* ॥२९॥ (*शम्भोर-अनग्रहात)
क्षीण-आयरु -मृत्यम-आपन्नो,
ु महारोग-हतो-अशप वा ।

सद-यः सखम-वाप्नोशत, ु -च शवन्दशत ॥३०॥
दीघाम-आयश
सवा-दाशरद्र्य-शमनं, सौ-मङ्गल्य-शववधानम ।

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यो धत्ते(धत-ते) कवचं शैव,ं स देवरै -अशप पूज्यते ॥३१॥


ाु ते चोपपातकै ः*।(*च-उपपातकै ःऔर भी हर तरह का दुख-
महा-पातक-सङ्घातै-मच्
तकलीफ)

देहान्ते शशवम-आप्नोशत, शशव-वमाान-भावतः*॥३२॥ ु
*? चिव-वमम-अन-भावताः
त्वमशप श्रद्धया वत्स, शैवं कवचम-उत्तमम । * त्वम्‌-अचप
धारयस्व मया दत्तं सद्यः श्रेयो ह्यवाप्स्यशस ॥३३॥
सूत उवाच ।

इत्यक्त्वा* ऋ भो योगी तस्मै पार्तथव-सूनवे । *इत्य-उक्त्वा
ददौ शङ्खं महारावं खड्गं चाशरशन दू नम* ॥३४॥ *च-अशर-शन दू नम
ु -च भस्म सं-मंत्र्य, तद-अङ्गं सवातो-स्पृशत ।
पनश
ु च बलं ददौ ॥ ८॥
गजानां ट-सहस्रस्य, शद्वगणं
भस्म-प्रभावात-सम्प्राप्य, बलैश्वया*-धृशत-स्मृतीः। *बल-ऐश्वया
ु श-ु शभु े शरदका * इव शश्रया ॥९॥
स राज-पत्रः *?शरद-अका
तमाह प्राञ्जशल भूयः स योगी राज-नन्दनम ।

ए खड्गो मया दत्तस्तपो*-मन्त्रानभावतः॥१०॥ (*दत-तस-तपो? या दत्तस-तपो?)
शशतधारशममं* खड्गं यस्मै दशाय-अशस स्फुटम । *शशतधारम-इमं
स सद्यो शियते* शत्रःु साक्षान-मृत्यरु -अशप स्वयम ॥११॥ *शियते=मृत्य ु
अस्य शङ्खस्य शनह्रादं* ये शृण्वशन्त तवाशहताः। *शनह्रादं=आवाज
ते मूर्तिताः पशतष्यशन्त न्यस्त-शस्त्रा शवचेतनाः॥ १२॥
खड्ग-शङ्खाशवमौ शदव्यौ, पर-स ैन्य-शवनाशशनौ ।
आत्म-स ैन्य-स्व-पक्षाणां, शौया-तेजो-शववधानौ ॥१३॥
एतयोश-च प्रभावेन शैवने कवचेन च ।
शद्व ट-सहस्र-नागानां, बलेन महताशप* च ॥१४॥
*?? बल : of 200,000-Naag. महताशप?=महत-आशप
ु ैन्यं* शवजेष्यशस । *छत्रस
भस्म-धारण-सामर्थ्ााच-छत्रस ु ैन्यं= शत्र-ु स ैन्यं
प्राप्य शसहासनं प ैत्र्यं गोिाऽशस पृशथवीम-इमाम ॥४२॥
इशत भद्र-आय ु ं सम्यग-अनशास्य
ु स-मातृकम ।

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ताभ्ां सम्पूशजतः सोऽथ योगी स्वैर-गशत-यायौ ॥४३॥


ु एकाशीशतसाहस्र्ां संशहतायां तृतीये
इशत श्रीस्कान्दे महापराणे
ब्रह्मोत्तरखण्डे सीमशन्तनीमाहात्म्ये भद्रायूपाख्याने शशवकवचकथनं नाम द्वादशोऽध्यायः।
॥ ॐ नमः शशवाय ॥
( Another Version. of nyAsa is also available in Various books.
Devotee can choose any one, of their choice or tradition).
ॐ नमः शशवाय -के ६-वणों को " " में रखा गया है।
करन्यासः।
"ओ"ं सदाशशवाय अंगष्ठाभ्ां
ु नमः। "नं" गंगाधराय तजानीभ्ां नमः।

"मं" मृत्यञ्जयाय मध्यमाभ्ां नमः। "शश" शूलपाणये अनाशमकाभ्ां नमः।
"वां" शपनाकपाणये कशनशष्ठकाभ्ां नमः। "यं" उमापतये करतलकरपृष्ठाभ्ां नमः।
हृदयाशद अंगन्यासः-
"ओ"ं सदाशशवाय हृदयाय नमः। "नं" गंगाधराय शशरसे स्वाहा ।

"मं" मृत्यञ्जयाय शशखायै व ट । "शश" शूलपाणये कवचाय हुम ।
"वां" शपनाकपाणये नेत्रत्रयाय वौ ट । "यं" उमापतये अस्त्राय फट ।
भूभवाु स्सवु रोशमशत शदग्बिः॥

॥ मानशसक पञ्चपूजा = मानशसक पूजा ॥


ु ः पूजयाशम ।
"लं" पृशथव्यात्मने गिं समप ायाशम । "हं" आकाशात्मने पष्पै
"यं" वाय्वात्मने धूपम आघ्रापयाशम । "रं" अग्न्यात्मने दीपं दशायाशम ।
"वं" अमृतात्मने अमृत ं महान ैवेद्य ं शनवेदयाशम ।
"सं" सवाात्मने सवोपचार*-पूजां समप ायाशम ॥ *सवा-उपचार.

मानशसक पूजा = इसमे पञ्च महाभूतों के बीज-अक्षरों


"लं, हं, वं, रं, यं इत्याशद" का प्रयोग करते हैं ।
॥ ॐ नमः शशवाय ॥

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|| shiva-kavacha ||
॥ शशवकवचं अमोघशशवकवचं च ॥
श्री-गणेशाय नमः। ॥ ॐ नमः शशवाय ॥
॥अथ शशवकवचम ॥
॥ शवशनयोगः॥
अस्य श्री शशवकवचस्तोत्रमन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋश ः, var वृ भ ऋश ः,
अनष्टुु प्छन्दः, श्रीसदाशशवरुद्रो देवता, ह्रीं शशतः, वं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजम,
श्रीसदाशशवप्रीत्यथे शशवकवचस्तोत्रजपे शवशनयोगः॥
॥ ऋष्याशदन्यासः॥
ॐ ब्रह्मऋ ये नमः शशरशस । अनष्टुु प छन्दसे नमः, मख
ु े।
श्रीसदाशशवरुद्रदेवताय नमः हृशद । ह्रीं शतये नमः, पादयोः।वं कीलकाय नमः नाभौ।
ु । शवशनयोगाय नमः, सवााङ्गे ॥
श्री ह्रीं क्लीशमशत बीजाय नमः गह्ये
॥ अथ करन्यासः॥ *See another version at the end
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ ह्रीं रां सवाशशतधाम्ने ईशानात्मने अङ्गष्ठु ाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ नं रीं शनत्यतृशिधाम्ने तत्परुु ात्मने तजानीभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ मं रं अनाशदशशतधाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ शश रैं स्वतन्त्रशशतधाम्ने वामदेवात्मने अनाशमकाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ वां रौं अलुिशशतधाम्ने सद्योजातात्मने कशनशष्ठकाभ्ां नमः।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ यं रः अनाशदशशतधाम्ने सवाात्मने करतलकरपृष्ठाभ्ां नमः॥
॥हृदयाद्यङ्गन्यासः॥ *See another version at the end
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने

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ॐ ह्रीं रां सवाशशतधाम्ने ईशानात्मने हृदयाय नमः।


ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ नं रीं शनत्यतृशिधाम्ने तत्परुु ात्मने शशरसे स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ मं रं अनाशदशशतधाम्ने अघोरात्मने शशखायै व ट ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ शश रैं स्वतन्त्रशशतधाम्ने वामदेवात्मने कवचाय हुम ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ वां रौं अलुिशशतधाम्ने सद्योजातात्मने नेत्रत्रयाय वौ ट ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्ज्वालामाशलने
ॐ यं रः अनाशदशशतधाम्ने सवाात्मने अस्त्राय फट ॥
॥ अथ ध्यानम ॥
वज्रदंष्ट्र ं शत्रनयनं कालकण्ठमशरन्दमम ।
सहस्रकरमप्यग्रु ं वन्दे शम्भमु मु ापशतम ॥
रुद्राक्षकङ्कणलसत्करदण्डयग्ु मः पालान्तरालशसतभस्मधृतशत्रपण्रः।

पञ्चाक्षरं पशरपठन वरमन्त्रराजं , ध्यायन सदा पशपु शत शरणं व्रजेथाः॥

अतः परं सवापराणग ु ,
ह्यं शनःशे पापौघहरं पशवत्रम ।
जयप्रदं सवाशवपत्प्रमोचनं , वक्ष्याशम शैवं कवचं शहताय ते ॥
॥ अथ कवचम ॥
ऋ भ उवाच ।
नमस्कृ त्य महादेवं शवश्वव्याशपनमीश्वरम ।
वक्ष्ये शशवमयं वमा सवारक्षाकरं नृणाम ॥१॥
ु ौ देश े समासीनो यथावत्कशितासनः।
शच
शजतेशियो शजतप्राणशिन्तयेशिवमव्यम ॥२॥
हृत्पण्ु डरीकान्तरसंशनशवष्टं स्वतेजसा व्यािनभोऽवकाशम ।
अतीशियं सूक्ष्ममनन्तमाद्यं ध्यायेत्परानन्दमयं महेशम ॥३॥
ध्यानावधूताशखलकमाबिशिरं शचदान्दशनमग्नचेताः।

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डक्षरन्याससमाशहतात्मा शैवने कुयाात्कवचेन रक्षाम ॥४॥


मां पात ु देवोऽशखलदेवतात्मा संसारकू पे पशततं गभीरे ।
तन्नाम शदव्यं वरमन्त्रमूलं धनु ोत ु मे सवामघं हृशदस्थम ॥५॥
सवात्र मां रक्षत ु शवश्वमूर्ततज्योशतमायानन्दघनशिदात्मा ।

अणोरणीयानरुशशतरे कः स ईश्वरः पात ु भयादशे ात ॥६॥
यो भूस्वरपेण शबभर्तत शवश्वं पायात्स भूमर्ते गशरशोऽष्टमूर्ततः।
योऽपां स्वरपेण नृणां करोशत सञ्जीवनं सोऽवत ु मां जलेभ्ः॥७॥

किावसाने भवनाशन दग्वा सवााशण यो नृत्यशत भूशरलीलः।
स कालरुद्रोऽवत ु मां दवाग्नेवाात्याशदभीतेरशखलाच्च तापात ॥८॥
प्रदीिशवद्युत्कनकावभासो शवद्यावराभीशतकुठारपाशणः।
चतमु ख
ाु स्तत्परुु शस्त्रनेत्रः प्राच्ां शस्थतं रक्षत ु मामजस्त्रम ॥९॥
कुठारवेदाङ्कश ु
ु पाशशूलकपालढक्काक्षगणान्दधानः।
चतमु ख
ाु ो नीलरुशचशस्त्रनेत्रः पायादघोरो शदशश दशक्षणस्याम ॥१०॥
कुन्दन्दु
े शङ्खस्फशटकावभासो वेदाक्षमालावरदाभयाङ्कः।
त्र्यक्षितवु क्त्र
ा उरुप्रभावः सद्योऽशधजातोऽवत ु मां प्रतीच्ाम ॥११॥
वराक्षमालाभयटङ्कहस्तः सरोजशकञ्जल्कसमानवणाः।
शत्रलोचनिारुचतमु ख
ाु ो मां पायादुशदच्ां शदशश वामदेवः॥१२॥
वेदाभयेष्टाङ्कुशटङ्कपाशकपालढक्काक्षशूलपाशणः। पाशटङ्क
ु ोऽवतान्मामीशान ऊवं परमप्रकाशः॥१३॥
शसतद्युशतः पञ्चमख
मूधाानमव्यान्मम चंद्रमौशलभाालं ममाव्यादथ भालनेत्रः।
नेत्र े ममाव्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षत ु शवश्वनाथः॥१४॥
पायाच्छ्रुती मे श्रशु तगीतकीर्ततः कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्त्रं सदा रक्षत ु पञ्चवक्त्रो शजह्ां सदा रक्षत ु वेदशजह्ः॥१५॥
कण्ठं शगरीशोऽवत ु नीलकण्ठः पाशणद्वयं पात ु शपनाकपाशणः।
ा मव्यान्मम धमाबाहुवाक्षःस्थलं दक्षमखान्तकोऽव्यात ॥१६॥
दोमूल
ममोदरं पात ु शगरीिधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनान्तकारी ।
हेरम्बतातो मम पात ु नाशभ पायात्कटी धूजशा टरीश्वरो मे ॥१७॥

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ऊरुद्वयं पात ु कुबरे शमत्रो जानद्वयं


ु मे जगदीश्वरोऽव्यात ।
ु ं पङ्गवके
जङ्घायग ु तरु व्यात्पादौ ममाव्यात्सरु वन्द्यपादः॥१८॥
महेश्वरः पात ु शदनाशदयामे मां मध्ययामेऽवत ु वामदेवः।
शत्रयम्बकः पात ु तृतीययामे वृ वजः पात ु शदनान्त्ययामे ॥१९॥
पायाशन्नशादौ शशशशेखरो मां गङ्गाधरो रक्षत ु मां शनशीथे ।

गौरीपशतः पात ु शनशावसाने मृत्यञ्जयो रक्षत ु सवाकालम ॥२०॥
अन्तःशस्थतं रक्षत ु शङ्करो मां स्थाणःु सदा पात ु बशहःशस्थतं माम ।
तदन्तरे पात ु पशतः पशूनां सदाशशवो रक्षत ु मां समन्तात ॥२१॥
शतष्ठन्तमव्याद्भवु न ैकनाथः पायाद्व्रजन्तं प्रमथाशधनाथः।
वेदान्तवेद्योऽवत ु माशन्न ण्णं मामव्ययः पात ु शशवः शयानम ॥२२॥
मागे ु मां रक्षत ु नीलकण्ठः शैलाशददुगे ु परत्रयाशरः।

अरण्यवासाशदमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशशतः॥२३॥
किान्तकाटोपपटुप्रकोपः स्फुटाट्टहासोच्चशलताण्डकोशः।
घोराशरसेनाणावदुर्तनवारमहाभयाद्रक्षत ु वीरभद्रः॥२४॥
पत्त्यश्वमातङ्गघटावरथसहस्रलक्षायतु कोशटभी णम ।
अक्षौशहणीनां शतमातताशयनां शछन्द्यान्मृडो घोरकुठारधारया ॥२५॥
शनहन्त ु दस्यून्प्रलयानलार्तचज्वालशिशूलं शत्रपरान्तकस्य
ु ।
ृ ाशदशहस्त्रान्सन्त्रासयत्वीशधनःु शपनाकम ॥२६॥
शार्दालशसहक्षावक
दुःस्वप्नदुःशकुनदुगाशतदौमानस्यदुर्तभक्षदुव्यास नदुःसहदुयाशांशस ।
उत्पाततापशव भीशतमसद्ग्रहार्ततव्याधींि नाशयत ु मे जगतामधीशः॥२७॥
ॐ नमो भगवते सदाशशवाय सकलतत्त्वात्मकाय सकलतत्त्वशवहाराय सकललोकै ककत्रे
ु सकललोकै कसाशक्षणे
सकललोकै कभत्रे सकललोककै कहत्रे सकललोककै कगरवे

सकलशनगमगह्याय सकलवरप्रदाय सकलदुशरतार्ततभञ्जनाय
सकलजगदभयङ्काराय सकललोकै कशङ्कराय शशाङ्कशेखराय
ाु ाय शनरुपमाय नीरपाय शनराभासाय
शाश्वतशनजाभासाय शनगण
शनराममाय शनष्प्रपञ्चाय शनष्कलङ्काय शनद्वान्द्वाय शनःसङ्गाय शनमालाय शनगामाय
ु पशरपूण ासशच्चदानन्दाद्वयाय
ु बद्ध
शनत्यरपशवभवाय शनरुपमशवभवाय शनराधाराय शनत्यशद्ध

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परमशान्तप्रकाशतेजोरपाय जयजय महारुद्र महारौद्र भद्रावतार दुःखदावदारण महाभ ैरव


कालभैरव किान्तभ ैरव कपालमालाधर
खट्वाङ्गखड्गचमापाशाङ्कश
ु डमरुशूलचापबाणगदाशशतशभशण्डपाल- var शभशन्द
तोमरमस ु ण्ु डीशतघ्नीचक्राद्यायधु -भी णकरसहस्र मख
ु लमद्गु रपशट्टशपरशपु शरघभश ु दंष्ट्राकराल
शवकटाट्टहासशवस्फाशरतब्रह्माण्डमण्डल नागेिकुण्डल नागेिहार
ु त्र्यम्बक , शत्रपरान्तक
नागेिवलय नागेिचमाधर मृत्यञ्जय ु शवरपाक्ष शवश्वेश्वर शवश्वरप
ु सवातो रक्ष रक्ष मां ज्वलज्वल
वृ भवाहन शव भू ण शवश्वतोमख

महामृत्यभयमपमृ ु नाशयनाशय , रोगभयमत्स
त्यभयं ु ादयोत्सादय शव सप ाभयं

शमयशमय चोरभयं मारयमारय मम शत्रूनच्चाटयोच्चाटय
शूलेन शवदारय शवदारय कुठारेण शभशिशभशि , खड्गेन शछशिशछशि खट्वाङ्गेन शवपोथय
ु लेन शनष्पे यशनष्पे य बाणैः सन्ताडय सन्ताडय रक्षांशस भी यभी य भूताशन
शवपोथय मस
शवद्रावयशवद्रावय कू ष्माण्डवेतालमारीगणब्रह्मराक्षसान्सन्त्रासयसन्त्रासय मामभयं **(माम-
अभयं) कुरुकुरु शवत्रस्तं मामाश्वासयाश्वासय नरकभयान्मामद्ध
ु ारयोद्धारय
सञ्जीवयसञ्जीवय क्षतु ड्भ्
ृ ां मामाप्याययाप्यायय दुःखातरु ं मामानन्दयानन्दय शशवकवचेन
मामािादयािादय त्र्यम्बक सदाशशव नमस्ते नमस्ते नमस्ते ।

पूववा त हृद्याशद न्यासः। पञ्चपूजा ॥ भूभवाु स्सवु रोशमशत शदशग्वशमकः॥


॥ फलश्रशु तः॥
ऋ भ उवाच ।
इत्येतत्कवचं शैवं वरदं व्याहृतं मया ।
सवाबाधाप्रशमनं रहस्यं सवादशे हनाम ॥२८॥
ु मम ।
यः सदा धारयेन्मत्याः शैवं कवचमत्त

न तस्य जायते क्वाशप भयं शम्भोरनग्रहात ॥२९॥
क्षीणायमु त्य ु
ृ ा मापन्नो महारोगहतोऽशप वा ।

सद्यः सखमवाप्नोशत ु शवन्दशत ॥३०॥
दीघामायि
सवादाशरद्र्यशमनं सौमङ्गल्यशववधानम ।
यो धत्ते कवचं शैवं स देवरै शप पूज्यते ॥३१॥

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ाु ते चोपपातकै ः।
महापातकसङ्घातैमच्

देहान्ते शशवमाप्नोशत शशववमाानभावतः॥३२॥
ु मम ।
त्वमशप श्रद्धया वत्स शैवं कवचमत्त
धारयस्व मया दत्तं सद्यः श्रेयो ह्यवाप्स्यशस ॥३३॥
सूत उवाच ।
ु ऋ भो योगी तस्मै पार्तथवसूनवे ।
इत्यक्त्वा
ददौ शङ्खं महारावं खड्गं चाशरशन दू नम ॥३४॥
ु भस्म संमत्र्य
पनि ं तदङ्गं सवातोऽस्पृशत ।
ु च बलं ददौ ॥८॥
गजानां ट्सहस्रस्य शद्वगणं
भस्मप्रभावात्सम्प्राप्य बलैश्वयाधशृ तस्मृतीः।
ु शश
स राजपत्रः ु भु े शरदका इव शश्रया ॥९॥
तमाह प्राञ्जशल भूयः स योगी राजनन्दनम ।

ए खड्गो मया दत्तस्तपोमन्त्रानभावतः॥१०॥
शशतधारशममं खड्गं यस्मै दशायशस स्फुटम ।
ु स्वयम ॥११॥
स सद्यो शियते शत्रःु साक्षान्मृत्यरशप
अस्य शङ्खस्य शनह्रादं ये शृण्वशन्त तवाशहताः।
ते मूर्तिताः पशतष्यशन्त न्यस्तशस्त्रा शवचेतनाः॥१२॥
खड्गशङ्खाशवमौ शदव्यौ परस ैन्यशवनाशशनौ ।
आत्मस ैन्यस्वपक्षाणां शौयातज
े ोशववधानौ ॥१३॥
एतयोि प्रभावेन शैवने कवचेन च ।
शद्व ट्सहस्रनागानां बलेन महताशप च ॥१४॥
ु ैन्यं शवजेष्यशस ।
भस्मधारणसामर्थ्ााित्रस
प्राप्य शसहासनं प ैत्र्यं गोिाऽशस पृशथवीशममाम ॥४२॥
इशत भद्राय ु ं सम्यगनशास्य
ु समातृकम ।
ताभ्ां सम्पूशजतः सोऽथ योगी स्वैरगशतयायौ ॥४३॥
ु एकाशीशतसाहस्र्ां संशहतायां तृतीये ब्रह्मोत्तरखण्डे
इशत श्रीस्कान्दे महापराणे
सीमशन्तनीमाहात्म्ये भद्रायूपाख्याने शशवकवचकथनं नाम द्वादशोऽध्यायः।

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ु एकाशीशत(:८१)-साहस्र्ां संशहतायां तृतीये


इशत श्री-स्कान्दे महा-पराणे
ब्रह्म-उत्तर-खण्डे सीमशन्तनी-माहात्म्ये भद्रायूप-आख्याने
शशव-कवच-कथनं नाम द्वादशोऽध्यायः।
Meaning: This Shiva kavach is from Skanda Mahapuran, Brahma-Uttara
Khanda(3rd-Khand, Chapter 12 , Page-196-197).

( Another Ver. of nyAsa is also available in Various books.


Devotee can choose any one, of their choice or tradition).
ॐ नमः शशवाय -के ६-वणों को " " में रखा गया है।
करन्यासः।
"ओ"ं सदाशशवाय अंगष्ठाभ्ां
ु नमः। "नं" गंगाधराय तजानीभ्ां नमः।

"मं" मृत्यञ्जयाय मध्यमाभ्ां नमः। "शश" शूलपाणये अनाशमकाभ्ां नमः।
"वां" शपनाकपाणये कशनशष्ठकाभ्ां नमः। "यं" उमापतये करतलकरपृष्ठाभ्ां नमः।
हृदयाशद अंगन्यासः-
"ओ"ं सदाशशवाय हृदयाय नमः। "नं" गंगाधराय शशरसे स्वाहा ।

"मं" मृत्यञ्जयाय शशखायै व ट । "शश" शूलपाणये कवचाय हुम ।
"वां" शपनाकपाणये नेत्रत्रयाय वौ ट । "यं" उमापतये अस्त्राय फट ।
भूभवाु स्सवु रोशमशत शदग्बिः॥
॥ मानशसक पञ्चपूजा = मानशसक पूजा ॥
ु ः पूजयाशम ।
"लं" पृशथव्यात्मने गिं समप ायाशम । "हं" आकाशात्मने पष्पै
"यं" वाय्वात्मने धूपम आघ्रापयाशम । "रं" अग्न्यात्मने दीपं दशायाशम ।
"वं" अमृतात्मने अमृत ं महान ैवेद्य ं शनवेदयाशम ।
"सं" सवाात्मने सवोपचार*-पूजां समप ायाशम ॥ *सवा-उपचार.

मानशसक पूजा = इसमे पञ्च महाभूतों के बीज-अक्षरों


"लं , हं, वं, रं, यं इत्याशद" का प्रयोग करते हैं ।
॥ ॐ नमः शशवाय ॥

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Notes: This Stotra contains the words as-


कूष्माण्ड-वेताल-मारीगण-ब्रह्म-राक्षसान्‌-सन्त्रासय-सन्त्रासय,
मामभयं**्‌(माम्‌-अभयं)्‌कुरु-कुरु, ववष-सर्प-भयं्‌शमय-शमय,
चोर-भयं्‌मारय-मारय, मम्‌शरून्‌-्‌उच्चाटय-उच्चाटय
These words in mantras, kavach, stotra makes it very ugra,
as it tells, deva-devi to kill, burn, hit, the bhuta, preta, dakini, shakini,
sometimes grahas, pishach, navagrahas etc.

So! you should use this type of stotra,


kavach if you really need to do, but with a precaution.
This is a vidhya (knowledge) from tantras,
there is no harm to read and have knowledge.
But! before its paatha and its use,
one must seek proper guru guidance , and must protect oneself,
otherwise these strong-negative powers may harm,
whom we try to kill,burn, hit and agitate.

** नोट्‌-्‌शब्दों्‌के्‌बीच-बीच्‌में्‌"-"्‌लगाकर्‌छोटा्‌और्‌सरल्‌वकया्‌गया्‌ह्‌ै ।
कुछ्‌कविन्‌शब्द्‌*्‌को्‌वचवन्त्हत्‌करके ्‌, उसे्‌सरल्‌के्‌साथ्‌नजदीक्‌ही्‌रखा्‌गया्‌है,
साधक्‌लोग्‌दोनो्‌शब्दों्‌को्‌एक्‌ही्‌जगह्‌र्र्‌देख्‌कर्‌्‌तुलना्‌कर्‌सकें ्‌।
कुछ्‌संवध-ववच्छे द, सही्‌तरह्‌से्‌करने्‌का्‌का्‌प्रयास्‌वकया्‌गया्‌ह्‌ै ।्‌
विर्‌भी्‌कुछ्‌गलती/रवु ट्‌्‌हो्‌तो, क्षमा्‌प्राथी्‌ह्‌ूँ ।

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