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Date : 31-01-2020.
श्री गणेशाय नमः।

श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्‌।
(Easy To Learn)
॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मुख्य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक देवी-
देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-पहचुँ ाना है,
जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सुनने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रंथों और अन्य पुस्तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-
सनु ने-समझने-जानने और सजं ो कर सरु सित रखने योग्य है ।
पर इस जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका नुकसान कर
सकता है । अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही होंगे ।
(धन्यवाद )

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V. K. Rakesh, MSc.(Chem), PG.Dip In Computer Application, B.Ed.
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|| Shri Pitambari-Sahasranama-Stotram ||
॥ श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्‌॥
ु ी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्‌॥
॥ अथवा श्री-बगलामख
अथ श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्‌।
॥ पूव व पीठिका ॥

सरालय-प्रधाने त ु देव-देवं महेश्वरम्‌। ु
*सर-आलय = देवलोक
शैलाठधराज-तनया सङ्ग्रहे तमवु ाच ह ॥१॥ *तमवु ाच ह =तम्‌-उवाचः

श्री देव्यवाच = श्री देवी-उवाच
परमेठिन्‌-परन्धाम प्रधान परमेश्वर ।
ु ाद्या ब्रूठह वल्लभ ॥२॥
नाम्ां सहस्रम्‌-बगलामख्य
ईश्वर उवाच ॥
शृण ु देठव प्रवक्ष्याठम नामधेय-सहस्रकम्‌।
पर-ब्रह्मास्त्र-ठवद्यायाश्‌-चतवु ग
व -व फलप्रदम्‌॥३॥
ु ुह्यतरन्देठव सववठसद्धैकवठन्दतम्‌।
गह्याद्ग
*गहु ्‌-याद्‌-गहु ्‌-य-तरन्‌-देठव सवव-ठसद्धैक-वठन्दतम्‌।

अठत-गप्ततर-ठिद्या सवव-तन्त्रेष ु गोठपता ॥४॥
ु े महाठसद्ध-यौघ-दाठयनी ।
ठवशेषतः कठलयग
गोपनीयङ्गोपनीयङ्गोपनीयम्प्रयत्नतः ॥५॥
*गोपनीयङ्‌-गोपनीयङ्‌-गोपनीयम्‌-प्रयत्नतः ॥५॥
ु ।
अप्रकाश्यठमदं सत्यं स्वयोठनठरव सव्रते
ु ।
*अप्रकाश्यम्‌-इदं सत्यं स्व-योठनर्‌(=योठनः)-इव सव्रते
रोठधनी ठवघ्न-सङ्घानां मोठहनी परयोठषताम्‌॥६॥
स्तठिनी राजस ैन्यानािाठदनी परवाठदनाम्‌।
*स्तठिनी राज-स ैन्यानाव्‌-वाठदनी पर-वाठदनाम्‌।
ु चैकाणवव े घोरे काले परम-भ ैरवः ॥७॥
परा

सन्दरी-सठहतो देवः, के शवः क्लेश-नाशनः ।
उरगासनमासीनो, योगठनद्रामपु ागमत्‌॥८॥

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*? उरगासनम-आसीनो, योगठनद्राम्‌-उपा-गमत्‌॥८॥
ठनद्राकाले, च ते काले, मया प्रोक्तः सनातनः ।
महास्ति-करन्‌-देठव, स्तोत्रिा शतनामकम्‌॥९॥
सहस्रनाम परम-िद देवस्य कस्यठचत्‌।

श्री-भगवानवाच ॥
शृण ु शङ्कर देवश
े परमाठतरहस्यकम्‌* ॥१०॥ *परम-अठत-रहस्यकम्‌
अजोहं(=अजो-अहं) यत्‌-प्रसादेन, ठवष्ःु सवेश्वरेश्वरः*। *=सवव-ईश्वर-ईश्वरः
गोपनीयम्प्रयत्नेन, प्रकाशाठिठद्धहाठनकृ त्‌॥११॥
* गोपनीयम्‌-प्रयत्नेन, प्रकाशात्‌-ठसठद्ध-हाठन-कृ त्‌॥११॥
॥ ठवठनयोगः (सरल शब्दों में) ॥
ॐ अस्य श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान्‌-सदाठशव
ऋठषर्‌-अनष्टुु प्‌-छन्दश्‌-श्री-जगद-वश्यकरी
्‌ पीताम्बरी देवता ,
सवावभीष्टठसद्धयर्त्थे* जपे ठवठनयोगः ॥ *सवाव-अभीष्ट-ठसद्धयर्त्थे
॥ ठवठनयोगः (सरल शब्दों में, दूसरे तरीके से) ॥
ठवठनयोगः-ॐ अस्य श्री पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान्‌-
सदाठशव ऋठषः अनष्टुु प-छन्दः
्‌ श्री-जगद्‌-वश्यकरी पीताम्बरी देवता
सवावभीष्ट- ठसद्धयर्त्थे जपे ठवठनयोगः ॥
ऋष्याठदन्यासः- (This will be Same For Both Type of Nyasa)
ु े ।
सदाठशव ऋषये नमः ठशरठस । ठत्रष््‌टुप्‌ छन्दस ै नमः मख
ु ख
बगलाम ु ।
ु ी देवतायै नमः हृठद । ह््‌लीं बीजाय नमः गह्ये
स्वाहा शक्‍त्‌त्य ै नमः पादयोः॥
करन्यास:- (Added -Using 36-Akshara Mantras)
ॐ ह््‌लीं अंगष््‌ु िाभ्ां नमः। बगलाम
ु ख ु ी तजवनीभ्ां स्वाहा ।
ु ं पदं स्तंभय अनाठमकाभ्ां हुँ ।
सववदुष््‌टानां मध्यमाभ्ां वौषट्‌। वाचं मख
ठजह्ां कीलय कठनष््‌िकाभ्ां वौषट्‌। बद्धु द्ध ठवनाशय ह््‌लीं ॐ स्वाहा,
करतल कर पृष््‌िाभ्ां फट्‌॥
ु ठशरसे स्वाहा ।
अंगन्यासः:- ॐ ह््‌लीं हृदयाय नमः । बगलामखी

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ु -ं पदं स्तंभय कवचाय हुँ ।


सववदुष््‌टानां ठशखायै वषट्‌ । वाचं-मख
ठजह्ां कीलय-२ नेत्र-त्रयाय वौषट्‌। बठु द्ध ठवनाशय ह््‌लीं ॐ अस्‍त्‌त्राय फट्‌ ॥
( 2-Type, Added -Using Beej-Akshara Mantra)
करन्यास: (2)- ॐ ह्ाां अांगष्ु ठाभ्ाां नमः। ॐ ह्ीं तर्जनीभ्ाां स्वाहा ।
ॐ ह्लां मध्यमाभ्ाां वषट । ॐ ह्ैं अनाममकाभ्ाां हुँ ।
ॐ ह्ौं कमनमष्ठकाभ्ाां वौषट । ॐ ह्ः करतलकर पृष्ठाभ्ाां फट ॥
अङ्गन्यासः (2)- ॐ ह्ाां हृदयाय नमः। ॐ ह्ीं मशरसे स्वाहा । ॐ ह्लां मशखायै वषट।
ॐ ह्ैं कवचाय हां । ॐ ह्ौं नेत्रत्रयाय वौषट । ॐ ह्ः अस्‍तत्राय फट ॥
॥ अथ ध्यानम्‌॥(पीले फू ल लेकर मंत्र पढकर अर्पपत करें ) .
पीताम्बरपरीधानां पीनोन्नतपयोधराम्‌।
ु ु टशोभाढ्याम्पीतभूठमसखासनाम
जटामक ु ्‌॥१२॥
शत्रोर्पिह्ां मद्गु रञ्च ठबभ्रतीम्परमाङ्कलाम्‌।
ु ष,ु ठवख्यातािवु नत्रये ॥१३॥
सवावगमपराणे
सृठष्टठिठतठवनाशानामाठद , भूताम्महेश्वरीम्‌।
गोप्या सववप्रयत्नेन, शृण ु ताङ्कथयाठम ते ॥१४॥
जगठिध्वंठसनीन्देवीमजरामरकाठरणीम्‌।
तान्नमाठम महामायाम्महदैश्चयवदाठयनीम्‌॥१५॥
॥ अथ ध्यानम्‌(सरल शब्दों में) ॥
पीताम्बर-परीधानां पीनोन्नत-पयो-धराम्‌।
ु ु ट-शोभाढ्याम्‌-पीतभूठम-सखासनाम
जटा-मक ु ्‌॥१२॥
शत्रोर्‌-ठिह्ां मद्गु रञ्च ठबभ्रतीम्‌-परमाङ्‌-कलाम्‌।

सवव-आगम-पराण-एष,ु ठवख्याताम्‌-भवन-त्रये
ु ॥१३॥
सृठष्ट-ठिठत- ठवनाशानाम्‌-आठद , भूताम्‌-महेश्वरीम्‌।
गोप्या सवव-प्रयत्नेन, शृण ु ताङ्‌-कथयाठम ते ॥१४॥
जगद्‌-ठवध्वंठसनीन्‌-देवीमजरामर*-काठरणीम्‌। *?देवीमजरामर = देवीम्‌-अजर-अमर
तान्‌-नमाठम महामायाम्‌-महद्‌-ऐश्चयव(?ऐश्वयव)-दाठयनीम्‌॥१५॥

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मानस- पूजनम्‌-
ॐ लं पृथ्वीतत्त्वात्मकं गन्धं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे समप वयाठम नमः।
ु श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे समप वयाठम नमः।
ॐ हं आकाशतत्त्वात्मकं पष्पं
ॐ यं वायतु त्त्वात्मकं धूप ं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे आघ्रापयाठम नमः।
ॐ रं अठितत्त्वात्मकं दीपं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे दशवयाठम नमः।
ॐ वं जलतत्त्वात्मकं न ैवेद्य ं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे ठनवेदयाठम नमः।
ॐ सं सववतत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे ठनवेदयाठम नमः।

॥ यहाुँ मन्त्रोद्धार ठदया हआ है ॥


व ्‌-उद्धृत्य, ठिर-मायान्‌-ततो वदेत्‌।
प्रणवम्‌-पूवम
ु ी सवेठत (=सवव-इठत ) दुष्टाना-िाचम-एव च ॥१६॥
बगलामख
ु म्‌-पदं, स्तियेठत (=स्तिय-इठत) ठजह्ाङ्‌-कीलय बठु द्धमत्‌।
मख
ठवनाशयेठत (=ठवनाशय-इठत), तारञ्च ठिर-मायान्‌-ततो वदेत्‌॥१७॥
वठिठप्रयान्‌-ततो, मन्त्रश्‌-चतवु ग
व -व फलप्रदः ।

(? प्रठसद्ध ३६-अक्षरी मन्त्र)

॥ स्पष्ट अथव और सरल शब्दों में मन्त्र ॥ (? प्रठसद्ध ३६-अक्षरी मन्त्र)


ु ी,
प्रणवम्‌= ॐ, ठिर-माया = ह्लीं । बगलामख
सवेठत = सवव, दुष्टाना,वाचम ॥१६॥
ु म्‌-पदं,
मख स्तियेठत = स्तिय, ठजह्ाङ्‌-कीलय,
बठु द्ध-मत्‌= बठु द्ध । ठवनाशयेठत =ठवनाशय-इठत = ठवनाशय,
तारञ्च = ॐ, ठिर-मायान्‌= ह्लीं ॥१७॥ वठिठप्रयान्‌= स्वाहा,
( मन्त्रश्‌-चतवु ग
व -व फलप्रदः = प्रठसद्ध ३६-अक्षरी मन्त्र)

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॥ सहस्रनाम , मख्य, मूल पाि ॥
ब्रह्मास्त्रम्‌-ब्रह्मठवद्या च ब्रह्ममाता सनातनी ॥१८॥
ब्रह्मेशी ब्रह्म-कै वल्य-बगला ब्रह्मचाठरणी ।
ठनत्यानन्दा* ठनत्य-ठसद्धा, ठनत्यरूपा ठनरामया ॥१९॥ *ठनत्य-आनन्दा
सन्धाठरणी महामाया, कटाक्ष-क्षेम-काठरणी ।

कमला ठवमला नीला, रत्न-काठि-गणाठश्रता ॥२०॥
कामठप्रया कामरता, कामा-काम-स्वरूठपणी ।
मङ्गला ठवजया जाया, सवव-मङ्गल-काठरणी ॥२१॥
ु ा काम-चाठरणी ।
काठमनी काठमनी-काम्या, कामक
कामठप्रया कामरता कामा-काम-स्वरूठपणी ॥२२॥
कामाख्या कामबीज-िा कामपीि-ठनवाठसनी ।
कामदा कामहा काली कपाली च कराठलका ॥२३॥
कं साठरः कमला कामा कै लासेश्वर-वल्लभा ।
ु ्‌॥२४॥
कात्यायनी के शवा च करुणा कामके ठल-भक
ठिया-कीर्पतः कृ ठतका च काठशका मथरु ा ठशवा ।

कालाक्षी काठलका काली, धवलानन-सन्दरी ॥२५॥
ु क्षद्र-क्ष
खेचरी च खमूर्पतश्‌-च, क्षद्रा ु धु ा-वरा ।
खड्ग-हस्ता खड्गरता खठड्गनी खप वर-ठप्रया ॥२६॥
गङ्गा गौरी गाठमनी च गीता गोत्र-ठववर्पद्धनी ।

गोधरा गोकरा गोधा, गन्धवव-पर-वाठसनी ॥२७॥
गन्धवाव गन्धवव-कला गोपनी गरुडासना ।
गोठवन्द-भावा गोठवन्दा गान्धारी गन्ध-माठदनी ॥२८॥
गौराङ्गी गोठपका-मूर्पतर्‌-गोपी-गोि-ठनवाठसनी ।
गन्धा गजेन्द्र-गामान्या*, गदाधर-ठप्रया ग्रहा ॥२९॥ *? गाठमन्या
घोर-घोरा घोर-रूपा, घन-श्रोणी घन-प्रभा ।
दैत्यन्द्र
े -प्रबला, घण्टा-वाठदनी घोर-ठनस्स्वना ॥३०॥

डाठकन्यमा* उपेन्द्रा च उववशी उरगासना । *डाठकन्य्‌-उमा

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उतमा उन्नता उन्ना, उतम-िान-वाठसनी ॥३१॥


चामण्ु डा मठु ण्डता, चण्डी चण्ड-दप व-हरेठत च ।
उग्र-चण्डा चण्ड-चण्डा चण्ड-दैत्य-ठवनाठशनी ॥३२॥
चण्डरूपा प्रचण्डा च चण्डा-चण्ड-शरीठरणी ।
ु ज
चतर्ब् वु ा प्रचण्डा च चराचर*-ठनवाठसनी ॥३३॥ *चराचर = चर-अचर
क्षत्रप्रायश्‌-ठशरोवाहा छला छलतरा छली ।
क्षत्ररूपा क्षत्रधरा, क्षठत्रय-क्षयकाठरणी ॥३४॥
जया च जयदुगाव च, जयिी जयदा परा ।
जाठयनी जठयनी ज्योत्स्ना, जटाधर-ठप्रया ठजता ॥३५॥
ठजतेठन्द्रया ठजतिोधा जयमाना जनेश्वरी ।
ु रातीता जािवी जनकात्मजा* ॥३६॥ *जनक-आत्मजा
ठजतमृत्य-जव
झङ्कारा झञ्झरी झण्टा झङ्कारी झक-शोठभनी ।
झखा झमेशा झङ्कारी, योठन-कल्याण-दाठयनी ॥३७॥
झञ्झरा झमरु ी झारा झराझर-तरा परा ।
झञ्झा झमेता झङ्कारी झणा-कल्याण-दाठयनी ॥३८॥
ईमना मानसी ठचन्त्या, ईमनु ा शङ्कर-ठप्रया ।
टङ्कारी ठटठटका, टीका टठङ्कनी च टवगवगा* ॥३९॥ *?"ट"-वगव-गा
टापा टोपा टटपठतष्‌-टमनी टमन-ठप्रया ।
िकार-धाठरणी िीका िङ्करी ठिकर-ठप्रया ॥४०॥
िे क-िासा िकरती िाठमनी िमन-ठप्रया ।
डारहा डाठकनी डारा, डामरा डमर-ठप्रया ॥४१॥
ु ा च डमरू-कर-वल्लभा ।
डठखनी डडयक्त
ढक्का ढक्की ढक्क-नादा, ढोल-शब्द-प्रबोठधनी ॥४२॥
ढाठमनी ढामन-प्रीता, ढगतन्त्र*-प्रकाठशनी । * ? िगतन्त्र
अनेक-रूठपणी अम्बा, अठणमा-ठसठद्ध-दाठयनी ॥४३॥
ु री अणमु द्‌-भान-सं
अमठन्त्रणी अणक ु ठिता ।
तारा तन्त्रावती तन्त्र-तत्त्व-रूपा तपठस्वनी ॥४४॥

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तरठङ्गणी तत्त्व-परा तठन्त्रका तन्त्र-ठवग्रहा ।


तपोरूपा तत्त्व-दात्री तपःप्रीठत-प्रधर्पषणी ॥४५॥
तन्त्रा यन्त्रार्च्वन-परा, तलातल-ठनवाठसनी । *यन्त्रार्च्वन = यन्त्र-अर्च्वन
तल्पदा त्वल्पदा काम्या , ठिरा ठिर-तरा ठिठतः ॥४६॥
िाण-ु ठप्रया िपरा ठिता िान-प्रदाठयनी ।
ठदगम्बरा दयारूपा, दावाठि दमनी-दमा ॥४७॥
दुगाव दुगावपरा देवी दुष्ट-दैत्य-ठवनाठशनी ।
दमन-प्रमदा, दैत्य-दयादान-परायणा ॥४८॥
दुगावर्पत-नाठशनी दािा दठिनी दि-वर्पजता ।
ठदगम्बर-ठप्रया दिा दैत्य-दि-ठवदाठरणी ॥४९॥
दमना दशन-सौन्दयाव दानवेन्द्र-ठवनाठशनी ।
दया धरा च दमनी दर्ब्व-पत्र-ठवलाठसनी ॥५०॥ * दर्ब्व-पत्र = ? दूवाव घास,
धठरणी धाठरणी धात्री, धराधर-धरठप्रया ।
ु देवी सधमाव
धराधर-सता ु धमव-चाठरणी ॥५१॥
धमवज्ञा धवला धूला धनदा धन-वर्पद्धनी ।
धीरा धीरा धीरतरा, धीर-ठसठद्ध-प्रदाठयनी ॥५२॥
धन्विठर-धरा-धीरा ध्येया ध्यान-स्वरूठपणी ।
नारायणी नारद्धसही, ठनत्यानन्द-नरोतमा ॥५३॥
नक्ता नक्तावती ठनत्या नील-जीमूत-सठन्नभा ।
नीलाङ्गी नील-वस्त्रा, च नील-पववत-वाठसनी ॥५४॥

सनील-प ु
ष्प-खठचता, नील-जम्ब-ु समप्रभा ।

ठनत्याख्या षोडशी ठवद्या- ठनत्या ठनत्य-सखावहा ॥५५॥
नमवदा नन्दना-नन्दा, नन्दानन्द-ठववर्पद्धनी ।
यशोदा-नन्द-तनया, नन्दनोद्यान-वाठसनी ॥५६॥ *? = नन्दन-उद्यान
नागािका नाग-वृद्धा, नाग-पत्नी च नाठगनी ।
नठमता-शेष-जनता, नमस्कार-वती नमः ॥५७॥
पीताम्बरा पाववती च पीताम्बर-ठवभूठषता ।

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व ा ॥५८॥
पीत-माल्याम्बर-धरा पीताभा ठपङ्ग-मूद्धज

पीतपष्पार्च्व ु
नरता, पीतपष्पसमर्प ु
र्च्ता । *पीत-पष्प-अर्च्व ु
न-रता, पीत-पष्प-समर्पर्च्ता ।
परप्रभा ठपतृपठतः पर-स ैन्य-ठवनाठशनी ॥५९॥
परमा पर-तन्त्रा च पर-मन्त्रा परात्परा ।
पराठवद्या पराठसठद्धः परा-िान-प्रदाठयनी ॥६०॥
ु पष्पवती
पष्पा ु ु
ठनत्या, पष्प-माला-ठवभू
ठषता ।

परातना पूवपव रा, परठसठद्ध-प्रदाठयनी ॥६१॥
पीता-ठनतठम्बनी पीता पीनोन्नत-पय-स्तनी ।
प्रेमा-प्र-मध्यमा-शेषा , पद्मपत्र-ठवलाठसनी ॥६२॥
ु ी परा ।
पद्मावती पद्म-नेत्रा, पद्मा, पद्म-मख
पद्मासना पद्म-ठप्रया, पद्मराग-स्वरूठपणी ॥६३॥
पावनी पाठलका पात्री, परदा वरदा ठशवा ।
प्रेत-संिा परानन्दा, परब्रह्म-स्वरूठपणी ॥६४॥
ठजनेश्वर-ठप्रया देवी पशरु क्त-रक्तठप्रया ।
पशमु ांस-ठप्रया पणाव परामृत-परायणा ॥६५॥ *परामृत = परा-अमृत
पाशीनी पाठशका चाठप, पशघ्नु ी पश-ु भाठषणी ।
फुल्लार-ठवन्द-वदनी*, फुल्लोत्पल-शरीठरणी ॥६६॥ *? फुल्ला (?फुल्ल)-अरठवन्द-वदनी
परानन्द-प्रदा, वीणा-पश-ु पाश-ठवनाठशनी ।
फू त्कारा फुत्परा फे णी, फुल्ले न्दी-वर-लोचना ॥६७॥
फट्‌-मन्त्रा स्फठटका स्वाहा, स्फोटा च फट्‌-स्वरूठपणी ।

स्फाठटका घठटका घोरा, स्फठटका-ठद्र-स्वरूठपणी ॥६८॥
ु वरा ।
वराङ्गना वरधरा, वाराही वासकी
ठबन्दुिा ठबन्दुनी, वाणी ठबन्दु-चि-ठनवाठसनी ॥६९॥
ठवद्याधरी ठवशालाक्षी, काशी-वाठस-जन-ठप्रया ।
ु ्‌-बहरूठपणी ॥७०॥
वेदठवद्या ठवरूपाक्षी, ठवश्वयग
ब्रह्म-शठक्त-र्पवष्-ु शठक्तः पञ्च-वक्त्रा ठशवठप्रया ।
वैकुण्ि-वाठसनी देवी, वैकुण्ि-पद-दाठयनी ॥७१॥

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ब्रह्मरूपा ठवष्रूपा , परब्रह्म-महेश्वरी ।
भवठप्रया भवोद्भावा* भवरूपा भवोतमा ॥७२॥ *भवोद्‌-भावा
भवपारा भवधारा, भाग्यवठियकाठरणी* । *भाग्य-वत्‌-ठप्रय-काठरणी

भद्रा सभद्रा ु
भवदा, शि-दै
त्य-ठवनाठशनी ॥७३॥

भवानी भ ैरवी भीमा, भद्रकाली सभठद्रका ।
भठगनी भगरूपा च भगमाना भगोतमा ॥७४॥
भगठप्रया भगवती भगवासा भगाकरा ।
भगसृष्टा भाग्यवती, भगरूपा भगाठसनी ॥७५॥
भग-ठलङ्ग-ठप्रया देवी, भग-ठलङ्ग-परायणा ।
भग-ठलङ्ग-स्वरूपा च भग-ठलङ्ग-ठवनोठदनी ॥७६॥
भग-ठलङ्ग-रता देवी भग-ठलङ्ग-ठनवाठसनी ।
भगमाला भगकला, भगाधारा भगाम्बरा ॥७७॥
भगवेगा भगाभूषा भगेन्द्रा भाग्य-रूठपणी ।
भग-ठलङ्गाङ्ग-सिोगा, भग-ठलङ्गा-सवा-वहा ॥७८॥
भगठलङ्ग-समाधयु ाव*, भगठलङ्ग-ठनवेठशता । *?स-माधयु ाव = ? समा-धयु ाव
भगठलङ्ग-सपूु जा च भगठलङ्ग-समठन्वता ॥७९॥
भगठलङ्ग-ठवरक्ता च भगठलङ्ग-समावृता । *? समा-आवृता
माधवी माधवी-मान्या, मधरु ा मध-ु माठननी ॥८०॥
मन्द-हासा महामाया मोठहनी महदुतमा* । *महद्‌-उतमा
महामोहा महाठवद्या महाघोरा महा-स्मृठतः ॥८१॥
मनठस्वनी मानवती मोठदनी मधरु ानना ।
मेठनका माठननी मान्या, मठण-रत्न-ठवभूषणा ॥८२॥
मठल्लका मौठलका माला, मालाधर-मदोतमा ।

मदना-सन्दरी मेधा, मधमु ता मधठु प्रया ॥८३॥
मतहंसासमोन्नासा मतद्धसहमहासनी । *मतहंसा-समोन्नासा, मतद्धसह-महासनी ।
महेन्द्र-वल्लभा भीमा मौल्यञ्च ठमथनु ात्मजा ॥८४॥
महाकाल्या महाकाली महाबठु द्ध-मवहोत्कटा ।

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माहेश्वरी महामाया मठहषासर-घाठतनी ॥८५॥
मधरु ा-कीर्पत-मता च मत-मातङ्ग-गाठमनी ।
ु ामकाठरणी* ॥८६॥ *मतयक
मदठप्रया मांसरता, मतयक्क ु ्‌-काम-काठरणी
ु -वल्लभा देवी महानन्दा मह्ोिवा ।
मैथन्य
मरीठचमावरठतम्मावया, मनोबठु द्धप्रदाठयनी ॥८७॥
*मरीठचमाव-रठतम्‌व-माया, मनो-बठु द्ध-प्रदाठयनी ॥८७॥
मोहा मोक्षा महालक्ष्मीम्मवहत्पदप्रदाठयनी ।
*मोहा मोक्षा महा-लक्ष्मी-म-्‌व महत्‌-पद-प्रदाठयनी ।
यमरूपा च यमनु ा, जयिी च जयप्रदा ॥८८॥
ु ा, यदोः कुल-ठववर्पद्धनी ।
याम्या यमवती यद्ध
रमा रामा रामपत्नी रत्नमाला रठतठप्रया ॥८९॥
रत्नद्धसहासनिा च रत्नाभरणमठण्डता ।
*रत्न-द्धसहासन-िा च रत्न-आभरण-मठण्डता ।
रमणी रमणीया च रत्या-रस-परायणा ॥९०॥
रतानन्दा रतवती रधूणाङ्‌-कुल-वर्पद्धनी ।
रमणाठर-पठरभ्राज्या रैधा-राठधक-रत्न-जा ॥९१॥

रावी रस-स्वरूपा च राठत्रराज-सखावहा ।
ु ा ऋतदु ा ऋद्धा, ऋतरू
ऋतज ु पा ऋतठु प्रया ॥९२॥
रक्तठप्रया रक्तवती , रठङ्गणी रक्त-दठिका ।
लक्ष्मील्लविा लठतका च लीलालिाठनताठक्षणी ॥९३॥
*लक्ष्मी-ल्लविा लठतका च, लीला-लिा-ठनताठक्षणी ॥९३॥
लीला लीलावती लोमाहषावह्लादनपठिका* । *लोमाहषव-आह्लादन-पठिका
ब्रह्म-ठिता ब्रह्मरूपा ब्रह्मणा वेद-वठन्दता ॥९४॥
ब्रह्मोद्भवा*, ब्रह्मकला ब्रह्माणी ब्रह्मबोठधनी । *ब्रह्मोद्‌-भवा = ब्रह्म-उद्भवा
वेदाङ्गना वेदरूपा वठनता ठवनता वसा ॥९५॥
बाला च यवु ती, वृद्धा ब्रह्म-कमव-परायणा ।
ठवन्ध्यिा ठवन्ध्यवासी च ठबन्दुयठु ग्बन्दुभूषणा* ॥९६॥ *ठबन्दु-यग
ु ्‌-ठबन्दु-भूषणा

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ठवद्यावती वेदधारी व्याठपका बर्पहणी कला ।


वामाचार-ठप्रया वठि-वावमाचार-परायणा ॥९७॥
वामाचार-रता देवी वामदेव-ठप्रयोतमा* । * ठप्रयोतमा = ठप्रया-उतमा
ु ठे न्द्रया ठवबद्धा
बद्ध ु च बद्ध
ु ाचरण-माठलनी ॥९८॥
ु ाचरण = बद्ध
*? बद्ध ु ा-चरण = ? बद्ध
ु -आचरण
बन्ध-मोचन-कत्री च वारुणा वरुणालया ।
ु ा, शद्ध
ठशवा ठशवठप्रया शद्ध ु ाङ्गी शक्ल-वर्प
ु णका ॥९९॥
ु -पष्प-ठप्रया
शक्ल ु ु ठशवधमव-परायणा ।
शक्ला
ु िा शठु क्लनी शक्ल
शक्ल ु रूप-शक्ल
ु पश-ु ठप्रया ॥१००॥
ु िा शठु िणी शिा
शि ु शिरूपा
ु च शठु िका ।
ु ी च षडङ्गा* च षट्चि-ठव-ठनवाठसनी ॥१०१॥ *षड्‌-अङ्गा
षण्मख
ु ा षोढा च षण्माता च षडाठत्मका* ।
षड्ग्रठि-यक्त *षड्‌-आठत्मका
षडङ्ग-यवु ती देवी षडङ्ग-प्रकृ ठत-ववशी ॥१०२॥
षडानना षड्रसा* च षिी षिेश्वरी-ठप्रया । *? षड्‌-रसा (?६-रस=६-इठन्द्रय)
षङ्गवादा षोडशी च षोढा-न्यास-स्वरूठपणी ॥१०३॥
षट्चि-भेदन-करी षट्चि-ि-स्वरूठपणी । * षट्चि =कुण्डठलनी
ु ी षड्रदाठन्वता* ॥१०४॥
षोडश-स्वर-रूपा च षण्मख
*? षोडश-स्वर = अ, आ, - - अं, अः । षड्र-दाठन्वता = ?षड-रदाठन्वता
्‌
सनकाठदस्वरूपा च ठशवधमव-षरायणा ।
*सनक-आठद-स्वरूपा च ठशवधमव-षरायणा । *?षरायणा ? परायणा
ु सरमाता
ठसद्धा सप्त-स्वरी* शद्धा, ु स्वरोतमा ॥१०५॥
*? सप्त-स्वरी , सप्त-स्वर = ? सा, रे, गा, मा..
ठसद्धठवद्या ठसधमाता , ठसद्धा , ठसद्ध-स्वरूठपणी ।
ु ्‌ तथा ॥१०६॥
हरा हठरठप्रया हारा , हठरणी हारयक
हठररूपा हठरधारा हठरणाक्षी* हठरठप्रया । *=हठरण-अक्षी(?आुँख)
हेतठु प्रया हेतरु ता ठहताठहत-स्वरूठपणी ॥१०७॥ *? ठहताठहत ? ठहत-अठहत
क्षमा क्षमावती क्षीता क्षद्रु -घण्टा-ठवभूषणा ।

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क्षयङ्करी ठक्षतीशा च क्षीण-मध्य-सशोभना ॥१०८॥
अजानिा अपणाव च अहल्या*-शेष-शाठयनी । *? अठहल्या
स्वािगवता च साधूनाम्‌-अिरानि-रूठपणी ॥१०९॥ *? अिरा-अनि

अरूपा अमला चाद्धाव अनि-गण-शाठलनी ।
स्वठवद्या ठवद्यका-ठवद्या ठवद्या चार्पवन्दलोचना* ॥११०॥*च-अर्पवन्द-लोचना
अपराठजता जातवेदा अजपा अमरावती ।
अल्पा स्वल्पा अनल्पाद्या अठणमा-ठसठद्ध-दाठयनी ॥१११॥
अष्ट-ठसठद्ध-प्रदा देवी रूप-लक्षण-संय्यतु ा ।
ु ा देवी भोग-सौख्य-प्रदाठयनी ॥११२॥
अरठवन्द-मख
आठदठवद्या आठदभूता आठदठसठद्ध-प्रदाठयनी ।
सीत्कार-रूठपणी देवी सवावसन-ठवभूठषता ॥११३॥ *सव्‌व-आसन
इन्द्रठप्रया च इन्द्राणी, इन्द्रप्रि-ठनवाठसनी ।
इन्द्राक्षी इन्द्रवज्रा च इन्द्र-मद्योक्षणी तथा ॥११४॥
ईला काम-ठनवासा च ईश्वरीश्वर*-वल्लभा । *ईश्वरी-ईश्वर
जननी चेश्वरी दीना भेदाचेश्वर-कमवकृत्‌॥११५॥
*जननी चेश्वरी दीना भेदा-च-ईश्वर-कमवकृत्‌॥११५॥
उमा कात्यायनी ऊर्द्ध्ाव मीना चोतरवाठसनी* । *च-उतर-वाठसनी
उमापठत-ठप्रया देवी ठशवा चोङ्काररूठपणी* ॥११६॥
*चोङ्काररूठपणी = च-ओङ्कार-रूठपणी = च-ॐ-कार-रूठपणी
उरगेन्द्र-ठशरोरत्ना उरगोरग-वल्लभा ।
उद्यान-वाठसनी माला प्रशस्त-मठण-भूषणा ॥११७॥
उर्द्ध्वदिोतमाङ्गी च उतमा चोध्ववकेठशनी ।
*उर्द्ध्व-दिोतम-अङ्गी(आङ्गी) च उतमा च-उध्वव-के ठशनी ।
उमाठसठद्ध-प्रदा या च उरगासन-संठिता ॥११८॥
ु ऋठषच्छन्दा ऋठद्ध-ठसठद्ध-प्रदाठयनी ।
ऋठष-पत्री

उिवोिव-सीमिा काठमका च गणाठन्वता ॥११९॥
एला एकारठवद्या च एणी-ठवद्या-धरा तथा ।

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ओङ्कार-वलयोपेता ओङ्कार-परमा कला ॥१२०॥



ओवदवदवाणी च ओङ्काराक्षरमठण्डता ।

*ओ-वद-वदवाणी च ओङ्कारा-अक्षर-मठण्डता ।

ऐन्द्री कुठलश-हस्ता च ओ-लोक-पर-वाठसनी ॥१२१॥

ओङ्कार-मध्यबीजा च ओ-नमो-रूप-धाठरणी ।
ु ांशक-वल्लभा
प्र-ब्रह्म-स्वरूपा च अंशक ु ॥१२२॥
ओङ्कारा अःफड्मन्त्रा च अक्षाक्षर-ठवभूठषता ।
*? अक्षाक्षर = अ, आ, - , क्ष-अक्षर (सभी वणव)
अमन्त्रा मन्त्ररूपा च पदशोभा-समठन्वता ॥१२३॥
ु ।
प्रणवोङ्काररूपा च प्रणवोर्च्ारभाक्‌पनः
ु ।
*प्रणव-ओङ्कार-रूपा च प्रणव-उर्च्ार-भाक्‌पनः
ह्रीङ्कार-रूपा ह्रींङ्कारी वाग्बीजाक्षर-भूषणा ॥१२४॥
हृल्ले खा ठसठद्ध योगा च हृत्पद्मासनसंठिता* । *हृत्‌-पद्म-आसन-सं
्‌ ठिता
ु श्वरी* ॥१२५॥ *ह्रीम्‌-बीजा-भवने
बीजाख्या नेत्र-हृदया ह्रीम्बीजाभवने ु श्वरी
क्लीङ्‌-कामराजा ठक्लन्ना च चतवु ग
व -व फलप्रदा ।
क्लीङ्क्लीङ्क्लींरूठपका देवी िीङ्क्रीङ्क्रींनामधाठरणी ॥१२६॥
*क्लीङ्‌क्लीङ्‌ क्लीं रूठपका देवी, िीङ्‌िीङ्‌िीं नामधाठरणी ॥१२६॥
कमला-शठक्त-बीजा च पाशाङ्कश
ु *-ठवभूठषता । *पाश-अङ्कश

श्रीं-श्रीङ्कारा महाठवद्या श्रद्धा श्रद्धावती तथा ॥१२७॥
ओ ं ऐ ं क्लीं ह्रीं श्रीम्‌-परा च क्लीङ्‌-कारी परमा कला ।
ह्रीङ्‌क्लीं श्रीङ्‌-कार-स्वरूपा सववकमव-फलप्रदा ॥१२८॥
सवावढ्या सववदवे ी च सवव-ठसठद्ध-प्रदा तथा ।
सववज्ञा सवव-शठक्तश्‌-च वाठग्वभूठत-प्रदाठयनी ॥१२९॥ *वाठग्वभूठत = वाग्‌-ठवभूठत
सवव-मोक्ष-प्रदा देवी सवव-भोग-प्रदाठयनी ।
ु न्द्र-वल्लभा वामा सववशठक्त-प्रदाठयनी ॥१३०॥
गणे
सवावनन्दमयी* चैव सववठसठद्ध-प्रदाठयनी । *सवव-आनन्दमयी
सवव-चिे श्वरी देवी सवव-ठसद्धेश्वरी तथा ॥१३१॥

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सवव-ठप्रयङ्करी चैव सववसौख्य-प्रदाठयनी ।


सवावनन्द-प्रदा देवी ब्रह्मानन्द-प्रदाठयनी ॥१३२॥
मनोवाठित- दात्री च मनोवृठद्ध-समठन्वता ।
अकाराठद-क्षकारािा दुगाव दुगावर्पत-नाठशनी ॥१३३॥
(*अकार्‌-आठद-क्ष-कारािा = "अ" .. "क्ष" वणव तक. )
ु त्रा च स्वधा-स्वाहा-वषट्‌-करी ।
पद्मनेत्रा सने
स्ववगाव देववगाव च तवगाव च समठन्वता ॥१३४॥
अिस्‍तिा वेश्मरूपा च नवदुगाव नरोतमा ।
तत्त्व-ठसठद्ध-प्रदा नीला तथा नील-पताठकनी ॥१३५॥
ठनत्यरूपा ठनशाकारी स्तठिनी मोठहनीठत च ।
वशङ्करी तथोर्च्ाटी* उन्मादी कर्पषणीठत च ॥१३६॥ * तथा-उर्च्ाटी
मातङ्गी मधमु ता च अठणमा लठघमा तथा ।
ठसद्धा मोक्षप्रदा ठनत्या, ठनत्यानन्द-प्रदाठयनी ॥१३७॥
रक्ताङ्गी रक्तनेत्रा च रक्त-चन्दन-भूठषता ।

स्वल्प-ठसठद्धस्‌-सकल्पा ु भा ॥१३८॥
च ठदव्य-चारण-शि
सङ्क्राठिस्‌-सववठवद्या च सस्य-वासर-भूठषता ।
प्रथमा च ठितीया च, तृतीया च चतर्पु र्त्थका* ॥१३९॥ *चतरु ्‌-त्‌-ठथका
ु सप्तमी तथा ।
पञ्चमी चैव षिी च ठवशद्धा
अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी* तथा ॥१४०॥ *दशम्य्‌-ऐकादशी
िादशी त्रयोदशी च चतर्द्ु श्व यथ* पूर्पणमा । *चतदु ्‌व-दश्यथ
आमावस्या तथा पूवाव उतरा पठर-पूर्पणमा ॥१४१॥
खठड्गनी चठिणी घोरा गठदनी शूठलनी तथा ।
ु ण्ु डी चाठपनी बाणा सवावयधु -ठवभूषणा ॥१४२॥ *सवव-आयधु
भश
कुलेश्वरी कुलवती कुलाचार-परायणा ।
कुल-कमव-स-रक्ता
ु च कुलाचार-प्रवर्पद्धनी ॥१४३॥
कीर्पतश्श्रीश्च* रमा रामा धमावय ै सततन्‌-नमः । *कीर्पतश्‌-श्रीश्‌-च
क्षमा धृठतः स्मृठत-मेधा कल्प-वृक्ष-ठनवाठसनी ॥१४४॥

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उग्रा उग्रप्रभा गौरी वेद-ठवद्या-ठवबोठधनी ।



साध्या ठसद्धा सठसद्धा च ठवप्ररूपा तथ ैव च ॥१४५॥
काली कराली काल्या च, कलादैत्य*-ठवनाठशनी । *? काल-दैत्य
कौठलनी काठलकी चैव क-च-ट-त-प-वर्पणका ॥१४६॥
ु ा च जयदा जृठिनी तथा ।
जठयनी जययक्त
स्राठवणी द्राठवणी देवी भरुण्डा ठवन्ध्य-वाठसनी ॥१४७॥
ज्योठतर्ब्ूतव ा च जयदा ज्वाला-माला-समाकुला ।
ठभन्ना ठभन्न-प्रकाशा च ठवठभन्ना ठभन्न-रूठपणी ॥१४८॥
अठश्वनी भरणी चैव नक्षत्र-सिवाठनला ।
काश्यपी ठवनता ख्याता ठदठतजाठदठतरेव च ॥१४९॥ *? ठदठतज-अठदठतर्‌-एव
कीर्पतः कामठप्रया देवी कीर्त्त्ाव कीर्पत-ठववर्पद्धनी ।
सद्योमांससमालब्धा सद्यठश्छन्नाठसशङ्करा ॥१५०॥
*सद्यो-मांस-समा-लब्धा सद्यश-ठछन्नाठस-शङ्करा
्‌ ॥१५०॥
दठक्षणा चोतरा* पूवाव पठश्चमा ठदक्‌तथ ैव च । *च-उतरा
अठिन ैऋठतवायव्या ईशान्याठदक्‌ तथा स्मृता ॥१५१॥
* अठि-न ैऋठत-वायव्या ईशान्या-ठदक्‌तथा स्मृता ॥१५१॥
ऊध्वावङ्गाधोगता* श्वेता कृ ष्ा रक्ता च पीतका । *ऊध्वावङ्ग-अधोगता
चतवु ग
व ाव चतवु ण
व ाव चतमु ावत्राठत्मकाक्षरा* ॥१५२॥ *चतरु ्‌-मात्रा-ठत्मका-अक्षरा
चतमु ख
वु ी चतवु दे ा चतर्पु वद्या चतमु ख
वु ा ।
ु ण
चतग व ा चतमु ावता चतवु ग
व -व फलप्रदा ॥१५३॥ वु
ु णा
*? चतग
धात्री ठवधात्री ठमथनु ा नारी नायक-वाठसनी ।
ु दु ा मदु वती मोठदनी मेनकात्मजा* ॥१५४॥ *=मेनका-आत्मजा
सराम
ऊर्द्ध्व-काली ठसठद्धकाली दठक्षणा-काठलका ठशवा ।
नील्या सरस्वती सात्वम्‌-बगला ठछन्नमस्तका ॥१५५॥
सवेश्वरी ठसद्धठवद्या परा परम-देवता ।
ठहङ्गल
ु ा ठहङ्गल
ु ाङ्गी च ठहङ्गल
ु ा-धर-वाठसनी ॥१५६॥
ठहङ्गलु ोतमवणावभा ठहङ्गल ु ाभरणा च सा ।

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*ठहङ्गल
ु ोतम-वणव-आभा ठहङ्गल
ु -आभरणा च सा ।
जाग्रती च जगन्माता जगदीश्वर-वल्लभा ॥१५७॥ *जगद्‌-ईश्वर
ु ा जयप्रदा ।
जनार्द्वन-ठप्रया देवी जययक्त * जनार्द्वन = जनाद्‌व-दन
जगदानन्द-करी च जगदाह्लादकाठरणी* ॥१५८॥ *जगद्‌-आह्लाद-काठरणी
ज्ञान-दान-करी यज्ञा जानकी जनक-ठप्रया ।
जयिी जयदा ठनत्या ज्वलदठिसमप्रभा ॥१५९॥ *ज्वलद्‌-अठि-समप्रभा
ठवद्याधरा च ठबम्बोिी कै लास-चल-वाठसनी ।
ठवभवा वडवाठिश्च* अठिहोत्र-फल-प्रदा ॥१६०॥
*वडवा-अठिश्च, वडवा = ?वडवा पञ्चास्त्र मे एक है .

मन्त्र-रूपा परा देवी, तथ ैव गरु-रूठपणी ।

गया गङ्गा गोमती च प्रभासा पष्कराठप च ॥१६१॥
ठवन्ध्याचल-रता देवी ठवन्ध्याचल-ठनवाठसनी ।

बहू बह-सन्दरी ु
च कं सासर-ठवनाठशनी ॥१६२॥
शूठलनी शूल-हस्ता च वज्रा वज्र-हराठप च ।
दूगाव ठशवा शाठिकरी ब्रह्माणी ब्राह्मण-ठप्रया ॥१६३॥
सववलोक-प्रणेत्री च सववरोग-हराठप च ।
ु ा ठनष्कला परमा कला ॥१६४॥
मङ्गला शोभना शद्ध
ठवश्वेश्वरी ठवश्वमाता लठलता वठसतानना ।
सदाठशवा उमा क्षेमा चठण्डका चण्ड-ठविमा ॥१६५॥
सववदवे -मयी देवी सवावगम-भयापहा ।
ब्रह्मेश-ठवष्-ु नठमता सवव-कल्याण-काठरणी ॥१६६॥
योठगनी योगमाता च योगीन्द्र-हृदय-ठिता ।
योठगजाया योगवती योगीन्द्रानन्द-योठगनी ॥१६७॥
इन्द्राठदनठमता देवी ईश्वरी चेश्वरठप्रया ।
*इन्द्र-आठद-नठमता देवी ईश्वरी च-ईश्वर-ठप्रया ।
ठवशठु द्ध-दा भयहरा भक्त-िेठष-भयङ्करी ॥१६८॥
भववेषा काठमनी च भरुण्डा भयकाठरणी ।

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बलभद्र-ठप्रयाकारा संसाराणववताठरणी* ॥१६९॥ * संसार-आणवव-ताठरणी


पञ्चभूता सववभतू ा ठवभूठतब्‌व-भूठत-धाठरणी ।
द्धसहवाहा महामोहा मोहपाश-ठवनाठशनी ॥१७०॥
मन्दुरा मठदरा मद्रु ा मद्रु ा-मद्गु र-धाठरणी ।
साठवत्री च महादेवी परठप्रय-ठननाठयका ॥१७१॥
यमदूती च ठपङ्गाक्षी वैष्वी शङ्करी तथा ।
चन्द्रठप्रया चन्द्ररता चन्दनारण्यवाठसनी* ॥१७२॥ *चन्दना-अरण्य-वाठसनी
ु ा चण्ड-दैत्य-ठवनाठशनी ।
चन्दनेन्द्र-समायक्त
सवेश्वरी यठक्षणी च ठकराती राक्षसी तथा ॥१७३॥
महा-भोगवती देवी महामोक्ष-प्रदाठयनी ।
ठवश्वहन्त्री ठवश्वरूपा ठवश्व-संहार-काठरणी ॥१७४॥
धात्री च सववलोकानां, ठहत-कारण-काठमनी ।
कमला सूक्ष्मदा देवी धात्री हर-ठवनाठशनी ॥१७५॥
सरेु न्द्र-पूठजता ठसद्धा महा-तेजोवती-ठत च ।
परा-रूपवती देवी त्रैलोक्याकषवकाठरणी* ॥१७६॥ *त्रैलोक्य-आकषव-काठरणी
॥ फलश्रठु त ॥
इठत ते कठथतन्‌-देठव पीतानाम सहस्रकम्‌।
पिे िा पाियेिाठप सववठसठद्धभववठे िये ॥१७७॥
*पिे द्‌-वा पाियेद्‌-वाठप सवव-ठसठद्ध-भववते ्‌-ठप्रये ॥१७७॥
इठत मे ठवष्नु ा प्रोक्तम्महास्तिकरम्परम्‌।
*इठत मे ठवष्नु ा प्रोक्तम्‌-महा-स्ति-करम्‌-परम्‌।
प्रातः काले च मध्यािे, सन्ध्या-काले च पाववठत ॥१७८॥
एकठचतः पिे दते िववठसठद्धर्ब्वठवष्यठत ।
*एकठचत्‌-तः पिे द्‌-एतत्‌-सवव-ठसठद्धब्‌व-भठवष्यठत ।
एकवारम्‌-पिे द्‌-यस्त,ु सवव-पाप-क्षयो भवेत्‌॥१७९॥
ठि-वारम्‌-प्रपिे द्‌-यस्त,ु ठवघ्नेश्वर-समो भवेत्‌।
ठत्र-वारम्‌-पिनाद्‌-देठव , सवं ठसद्धयठत सववथा ॥१८०॥

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ु ।
स्तवस्या-स्य प्रभावेण, साक्षाद्‌-भवठत सव्रते
मोक्षार्त्थी लभते मोक्षन्‌-धनाथी लभते धनम्‌॥१८१॥
ठवद्यार्त्थी लभते ठवद्यान्‌-तकव -व्याकरण-आठन्वताम्‌।

मठहत्व-ििरान्‌-तार्च्, शत्रहाठनः प्रजायते ॥१८२॥
क्षोणी-पठत-ववशस्‌-तस्य स्मरणे सदृशो भवेत्‌। *ववशस्‌= ववशः
यः पिे त्‌-सववदा भक्त्या, श्रेयस्त ु भवठत ठप्रये ॥१८३॥
गणाध्यक्ष-प्रठतठनठधः कठव-काव्य-परो वरः ।
गोपनीयम्प्रयत्नेन जननीजारविदा ॥१८४॥
*गोपनीयम्‌-प्रयत्न्‌-एन, जननी-जार-वत्‌-सदा ॥१८४॥
ु ो भवेन्‌-ठनत्यं, शठक्त-यक्त
हेत-ु यक्त ु ः सदा भवेत्‌।
य इदम्‌-पिते ठनत्यं, ठशवेन सदृशो भवेत्‌॥१८५॥
व ोगी स्यान्मृतो मोक्षपठतर्ब्ववते ्‌।
जीवन्धमावर्त्थभ
*जीवन्‌-धमावर्त्थ-व भोगी स्यान-मृ
्‌ तो मोक्ष-पठत-र्ब्ववते ्‌।
सत्यं सत्यम्‌-महादेठव, सत्यं सत्यन्‌-न संशयः ॥१८६॥
स्तवस्या-स्य प्रभावेण, देवने सह मोदते ।

सठचताश ु
्‌-च सरास्सवे
*, स्तव-राजस्य कीतवनात्‌॥१८७॥

*सरास्सवे ु ्‌-सवे = सराःसवे
= सरास ु
ु पना ।
पीताम्बरपरीधाना पीतगन्धानले
परमोदयकीर्पतः स्यात्परतस्सरु सन्दठर
ु ॥१८८॥
ु पना ।
* पीताम्बर-परीधाना, पीत-गन्धा-अनले
ु न्दठर
* परमोदय-कीर्पतः स्यात्‌-परतस्‌-सर-स ु ॥१८८॥

इठत श्रीउत्कटशम्बरे नागेन्द्रप्रयाणतन्त्रे षोडशसहस्रे


ु ङ्करसंवादे पीताम्बरीसहस्रनामस्तोत्रं समाप्तम्‌॥
ठवष्श

इठत श्री-उत्कट-शम्बरे नागेन्द्र-प्रयाण-तन्त्रे षोडश-सहस्रे


ठवष्-ु शङ्कर-संवादे, पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रं समाप्तम्‌॥

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|| General Information ||
To repeat Sahastranama-Stotras 3/7/11.. - Always repeat only Main Part.

श्री बगलामख ु ी "माता भगवती जगदम्बा" का एक सौम्य के साथ ही साथ उग्र, गप्तु और रहस्यमय
दोनो रूप हैं । अतः उनके ककसी भी पूजा, पाठ मन्त्र-जप इत्याकद में, कोई भी एक कवच पाठ अवश्य
करना चाकहये । कवच का पाठ हमेशा ज्यादा सुरकित होता है,
तथा कवच से भी साधक के सारे - कायय कसद्ध होते है ।

श्री बगलामख ु ी माता का रूप, पजू ा पद्धती, ध्यान मन्त्र, मकू तय, कचर, आचार-कवचार, साधक की भावना,
प्रयोग मे कलया हुआ संकल्प, पूजन सामग्री और स्थान कवशेष पर कनभयर है ।

जैसे सुना गया है की मासं -मकदरा, कनजयन और गुप्त स्थान पर शरुओ ं के नाश के कलये की गयी पूजा
उग्र मानी जाती है ।
गृहस्थों द्वारा घर में फल-फूल कमठाई से, शद्ध
ु और साकत्वक भावना से की गयी पजू ा साकत्वक मानी
जाती है । इसमे साधक माता की भकि और उनकी कृ पा चहता है । अपने और और पररवार के कलये
धन-धान्त्य-सुख-और-शरु से सुरिा चाहता है ।

कवशेष -तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, जानने-देखने-सुनने-और पढ़ने में कोई हजय नहीं ।


पर ठीक से जाने-समझे कबना दसू रे पे कभी प्रयोग ना करें ।
नोट-
कुछ ककठन शब्द * को कचकन्त्हत करके , उसे "-" से सरल ककया है,
और मूल शब्द के साथ नजदीक ही रखा गया है,
साधक लोग दोनो शब्दों को एक ही जगह पर देख कर तुलनात्मक पाठ कर सकें ।
कुछ ही शब्दों का सही तरह से संकध-कवच्छे द, करने का का प्रयास ककया गया है ।
अगर कुछ गलती/रकु ट हो तो, िमा प्राथी हूँ ।

Notes : Some word has been -


- Split using "-" to improve readability.
- Repeated using (*/- ) to make easy to Read and Compare at same
place.
(धन्त्यवाद) < Share if you like >

Bagala-1000-Stotra-V1 e2Learn By VRakesh

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