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Date : 31-01-2020.
श्री गणेशाय नमः।
श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्।
(Easy To Learn)
॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मुख्य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक देवी-
देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-पहचुँ ाना है,
जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सुनने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रंथों और अन्य पुस्तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-
सनु ने-समझने-जानने और सजं ो कर सरु सित रखने योग्य है ।
पर इस जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका नुकसान कर
सकता है । अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही होंगे ।
(धन्यवाद )
|| Shri Pitambari-Sahasranama-Stotram ||
॥ श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्॥
ु ी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्॥
॥ अथवा श्री-बगलामख
अथ श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्रम्।
॥ पूव व पीठिका ॥
ु
सरालय-प्रधाने त ु देव-देवं महेश्वरम्। ु
*सर-आलय = देवलोक
शैलाठधराज-तनया सङ्ग्रहे तमवु ाच ह ॥१॥ *तमवु ाच ह =तम्-उवाचः
ु
श्री देव्यवाच = श्री देवी-उवाच
परमेठिन्-परन्धाम प्रधान परमेश्वर ।
ु ाद्या ब्रूठह वल्लभ ॥२॥
नाम्ां सहस्रम्-बगलामख्य
ईश्वर उवाच ॥
शृण ु देठव प्रवक्ष्याठम नामधेय-सहस्रकम्।
पर-ब्रह्मास्त्र-ठवद्यायाश्-चतवु ग
व -व फलप्रदम्॥३॥
ु ुह्यतरन्देठव सववठसद्धैकवठन्दतम्।
गह्याद्ग
*गहु ्-याद्-गहु ्-य-तरन्-देठव सवव-ठसद्धैक-वठन्दतम्।
ु
अठत-गप्ततर-ठिद्या सवव-तन्त्रेष ु गोठपता ॥४॥
ु े महाठसद्ध-यौघ-दाठयनी ।
ठवशेषतः कठलयग
गोपनीयङ्गोपनीयङ्गोपनीयम्प्रयत्नतः ॥५॥
*गोपनीयङ्-गोपनीयङ्-गोपनीयम्-प्रयत्नतः ॥५॥
ु ।
अप्रकाश्यठमदं सत्यं स्वयोठनठरव सव्रते
ु ।
*अप्रकाश्यम्-इदं सत्यं स्व-योठनर्(=योठनः)-इव सव्रते
रोठधनी ठवघ्न-सङ्घानां मोठहनी परयोठषताम्॥६॥
स्तठिनी राजस ैन्यानािाठदनी परवाठदनाम्।
*स्तठिनी राज-स ैन्यानाव्-वाठदनी पर-वाठदनाम्।
ु चैकाणवव े घोरे काले परम-भ ैरवः ॥७॥
परा
ु
सन्दरी-सठहतो देवः, के शवः क्लेश-नाशनः ।
उरगासनमासीनो, योगठनद्रामपु ागमत्॥८॥
*? उरगासनम-आसीनो, योगठनद्राम्-उपा-गमत्॥८॥
ठनद्राकाले, च ते काले, मया प्रोक्तः सनातनः ।
महास्ति-करन्-देठव, स्तोत्रिा शतनामकम्॥९॥
सहस्रनाम परम-िद देवस्य कस्यठचत्।
ु
श्री-भगवानवाच ॥
शृण ु शङ्कर देवश
े परमाठतरहस्यकम्* ॥१०॥ *परम-अठत-रहस्यकम्
अजोहं(=अजो-अहं) यत्-प्रसादेन, ठवष्ःु सवेश्वरेश्वरः*। *=सवव-ईश्वर-ईश्वरः
गोपनीयम्प्रयत्नेन, प्रकाशाठिठद्धहाठनकृ त्॥११॥
* गोपनीयम्-प्रयत्नेन, प्रकाशात्-ठसठद्ध-हाठन-कृ त्॥११॥
॥ ठवठनयोगः (सरल शब्दों में) ॥
ॐ अस्य श्री-पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान्-सदाठशव
ऋठषर्-अनष्टुु प्-छन्दश्-श्री-जगद-वश्यकरी
् पीताम्बरी देवता ,
सवावभीष्टठसद्धयर्त्थे* जपे ठवठनयोगः ॥ *सवाव-अभीष्ट-ठसद्धयर्त्थे
॥ ठवठनयोगः (सरल शब्दों में, दूसरे तरीके से) ॥
ठवठनयोगः-ॐ अस्य श्री पीताम्बरी-सहस्रनाम-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान्-
सदाठशव ऋठषः अनष्टुु प-छन्दः
् श्री-जगद्-वश्यकरी पीताम्बरी देवता
सवावभीष्ट- ठसद्धयर्त्थे जपे ठवठनयोगः ॥
ऋष्याठदन्यासः- (This will be Same For Both Type of Nyasa)
ु े ।
सदाठशव ऋषये नमः ठशरठस । ठत्रष््टुप् छन्दस ै नमः मख
ु ख
बगलाम ु ।
ु ी देवतायै नमः हृठद । ह््लीं बीजाय नमः गह्ये
स्वाहा शक्त्त्य ै नमः पादयोः॥
करन्यास:- (Added -Using 36-Akshara Mantras)
ॐ ह््लीं अंगष््ु िाभ्ां नमः। बगलाम
ु ख ु ी तजवनीभ्ां स्वाहा ।
ु ं पदं स्तंभय अनाठमकाभ्ां हुँ ।
सववदुष््टानां मध्यमाभ्ां वौषट्। वाचं मख
ठजह्ां कीलय कठनष््िकाभ्ां वौषट्। बद्धु द्ध ठवनाशय ह््लीं ॐ स्वाहा,
करतल कर पृष््िाभ्ां फट्॥
ु ठशरसे स्वाहा ।
अंगन्यासः:- ॐ ह््लीं हृदयाय नमः । बगलामखी
मानस- पूजनम्-
ॐ लं पृथ्वीतत्त्वात्मकं गन्धं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे समप वयाठम नमः।
ु श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे समप वयाठम नमः।
ॐ हं आकाशतत्त्वात्मकं पष्पं
ॐ यं वायतु त्त्वात्मकं धूप ं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे आघ्रापयाठम नमः।
ॐ रं अठितत्त्वात्मकं दीपं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे दशवयाठम नमः।
ॐ वं जलतत्त्वात्मकं न ैवेद्य ं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे ठनवेदयाठम नमः।
ॐ सं सववतत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री-पीताम्बरी-प्रीत्यथे ठनवेदयाठम नमः।
ु
॥ सहस्रनाम , मख्य, मूल पाि ॥
ब्रह्मास्त्रम्-ब्रह्मठवद्या च ब्रह्ममाता सनातनी ॥१८॥
ब्रह्मेशी ब्रह्म-कै वल्य-बगला ब्रह्मचाठरणी ।
ठनत्यानन्दा* ठनत्य-ठसद्धा, ठनत्यरूपा ठनरामया ॥१९॥ *ठनत्य-आनन्दा
सन्धाठरणी महामाया, कटाक्ष-क्षेम-काठरणी ।
ु
कमला ठवमला नीला, रत्न-काठि-गणाठश्रता ॥२०॥
कामठप्रया कामरता, कामा-काम-स्वरूठपणी ।
मङ्गला ठवजया जाया, सवव-मङ्गल-काठरणी ॥२१॥
ु ा काम-चाठरणी ।
काठमनी काठमनी-काम्या, कामक
कामठप्रया कामरता कामा-काम-स्वरूठपणी ॥२२॥
कामाख्या कामबीज-िा कामपीि-ठनवाठसनी ।
कामदा कामहा काली कपाली च कराठलका ॥२३॥
कं साठरः कमला कामा कै लासेश्वर-वल्लभा ।
ु ्॥२४॥
कात्यायनी के शवा च करुणा कामके ठल-भक
ठिया-कीर्पतः कृ ठतका च काठशका मथरु ा ठशवा ।
ु
कालाक्षी काठलका काली, धवलानन-सन्दरी ॥२५॥
ु क्षद्र-क्ष
खेचरी च खमूर्पतश्-च, क्षद्रा ु धु ा-वरा ।
खड्ग-हस्ता खड्गरता खठड्गनी खप वर-ठप्रया ॥२६॥
गङ्गा गौरी गाठमनी च गीता गोत्र-ठववर्पद्धनी ।
ु
गोधरा गोकरा गोधा, गन्धवव-पर-वाठसनी ॥२७॥
गन्धवाव गन्धवव-कला गोपनी गरुडासना ।
गोठवन्द-भावा गोठवन्दा गान्धारी गन्ध-माठदनी ॥२८॥
गौराङ्गी गोठपका-मूर्पतर्-गोपी-गोि-ठनवाठसनी ।
गन्धा गजेन्द्र-गामान्या*, गदाधर-ठप्रया ग्रहा ॥२९॥ *? गाठमन्या
घोर-घोरा घोर-रूपा, घन-श्रोणी घन-प्रभा ।
दैत्यन्द्र
े -प्रबला, घण्टा-वाठदनी घोर-ठनस्स्वना ॥३०॥
ु
डाठकन्यमा* उपेन्द्रा च उववशी उरगासना । *डाठकन्य्-उमा
व ा ॥५८॥
पीत-माल्याम्बर-धरा पीताभा ठपङ्ग-मूद्धज
ु
पीतपष्पार्च्व ु
नरता, पीतपष्पसमर्प ु
र्च्ता । *पीत-पष्प-अर्च्व ु
न-रता, पीत-पष्प-समर्पर्च्ता ।
परप्रभा ठपतृपठतः पर-स ैन्य-ठवनाठशनी ॥५९॥
परमा पर-तन्त्रा च पर-मन्त्रा परात्परा ।
पराठवद्या पराठसठद्धः परा-िान-प्रदाठयनी ॥६०॥
ु पष्पवती
पष्पा ु ु
ठनत्या, पष्प-माला-ठवभू
ठषता ।
ु
परातना पूवपव रा, परठसठद्ध-प्रदाठयनी ॥६१॥
पीता-ठनतठम्बनी पीता पीनोन्नत-पय-स्तनी ।
प्रेमा-प्र-मध्यमा-शेषा , पद्मपत्र-ठवलाठसनी ॥६२॥
ु ी परा ।
पद्मावती पद्म-नेत्रा, पद्मा, पद्म-मख
पद्मासना पद्म-ठप्रया, पद्मराग-स्वरूठपणी ॥६३॥
पावनी पाठलका पात्री, परदा वरदा ठशवा ।
प्रेत-संिा परानन्दा, परब्रह्म-स्वरूठपणी ॥६४॥
ठजनेश्वर-ठप्रया देवी पशरु क्त-रक्तठप्रया ।
पशमु ांस-ठप्रया पणाव परामृत-परायणा ॥६५॥ *परामृत = परा-अमृत
पाशीनी पाठशका चाठप, पशघ्नु ी पश-ु भाठषणी ।
फुल्लार-ठवन्द-वदनी*, फुल्लोत्पल-शरीठरणी ॥६६॥ *? फुल्ला (?फुल्ल)-अरठवन्द-वदनी
परानन्द-प्रदा, वीणा-पश-ु पाश-ठवनाठशनी ।
फू त्कारा फुत्परा फे णी, फुल्ले न्दी-वर-लोचना ॥६७॥
फट्-मन्त्रा स्फठटका स्वाहा, स्फोटा च फट्-स्वरूठपणी ।
ु
स्फाठटका घठटका घोरा, स्फठटका-ठद्र-स्वरूठपणी ॥६८॥
ु वरा ।
वराङ्गना वरधरा, वाराही वासकी
ठबन्दुिा ठबन्दुनी, वाणी ठबन्दु-चि-ठनवाठसनी ॥६९॥
ठवद्याधरी ठवशालाक्षी, काशी-वाठस-जन-ठप्रया ।
ु ्-बहरूठपणी ॥७०॥
वेदठवद्या ठवरूपाक्षी, ठवश्वयग
ब्रह्म-शठक्त-र्पवष्-ु शठक्तः पञ्च-वक्त्रा ठशवठप्रया ।
वैकुण्ि-वाठसनी देवी, वैकुण्ि-पद-दाठयनी ॥७१॥
ु
ब्रह्मरूपा ठवष्रूपा , परब्रह्म-महेश्वरी ।
भवठप्रया भवोद्भावा* भवरूपा भवोतमा ॥७२॥ *भवोद्-भावा
भवपारा भवधारा, भाग्यवठियकाठरणी* । *भाग्य-वत्-ठप्रय-काठरणी
ु
भद्रा सभद्रा ु
भवदा, शि-दै
त्य-ठवनाठशनी ॥७३॥
ु
भवानी भ ैरवी भीमा, भद्रकाली सभठद्रका ।
भठगनी भगरूपा च भगमाना भगोतमा ॥७४॥
भगठप्रया भगवती भगवासा भगाकरा ।
भगसृष्टा भाग्यवती, भगरूपा भगाठसनी ॥७५॥
भग-ठलङ्ग-ठप्रया देवी, भग-ठलङ्ग-परायणा ।
भग-ठलङ्ग-स्वरूपा च भग-ठलङ्ग-ठवनोठदनी ॥७६॥
भग-ठलङ्ग-रता देवी भग-ठलङ्ग-ठनवाठसनी ।
भगमाला भगकला, भगाधारा भगाम्बरा ॥७७॥
भगवेगा भगाभूषा भगेन्द्रा भाग्य-रूठपणी ।
भग-ठलङ्गाङ्ग-सिोगा, भग-ठलङ्गा-सवा-वहा ॥७८॥
भगठलङ्ग-समाधयु ाव*, भगठलङ्ग-ठनवेठशता । *?स-माधयु ाव = ? समा-धयु ाव
भगठलङ्ग-सपूु जा च भगठलङ्ग-समठन्वता ॥७९॥
भगठलङ्ग-ठवरक्ता च भगठलङ्ग-समावृता । *? समा-आवृता
माधवी माधवी-मान्या, मधरु ा मध-ु माठननी ॥८०॥
मन्द-हासा महामाया मोठहनी महदुतमा* । *महद्-उतमा
महामोहा महाठवद्या महाघोरा महा-स्मृठतः ॥८१॥
मनठस्वनी मानवती मोठदनी मधरु ानना ।
मेठनका माठननी मान्या, मठण-रत्न-ठवभूषणा ॥८२॥
मठल्लका मौठलका माला, मालाधर-मदोतमा ।
ु
मदना-सन्दरी मेधा, मधमु ता मधठु प्रया ॥८३॥
मतहंसासमोन्नासा मतद्धसहमहासनी । *मतहंसा-समोन्नासा, मतद्धसह-महासनी ।
महेन्द्र-वल्लभा भीमा मौल्यञ्च ठमथनु ात्मजा ॥८४॥
महाकाल्या महाकाली महाबठु द्ध-मवहोत्कटा ।
ु
माहेश्वरी महामाया मठहषासर-घाठतनी ॥८५॥
मधरु ा-कीर्पत-मता च मत-मातङ्ग-गाठमनी ।
ु ामकाठरणी* ॥८६॥ *मतयक
मदठप्रया मांसरता, मतयक्क ु ्-काम-काठरणी
ु -वल्लभा देवी महानन्दा मह्ोिवा ।
मैथन्य
मरीठचमावरठतम्मावया, मनोबठु द्धप्रदाठयनी ॥८७॥
*मरीठचमाव-रठतम्व-माया, मनो-बठु द्ध-प्रदाठयनी ॥८७॥
मोहा मोक्षा महालक्ष्मीम्मवहत्पदप्रदाठयनी ।
*मोहा मोक्षा महा-लक्ष्मी-म-्व महत्-पद-प्रदाठयनी ।
यमरूपा च यमनु ा, जयिी च जयप्रदा ॥८८॥
ु ा, यदोः कुल-ठववर्पद्धनी ।
याम्या यमवती यद्ध
रमा रामा रामपत्नी रत्नमाला रठतठप्रया ॥८९॥
रत्नद्धसहासनिा च रत्नाभरणमठण्डता ।
*रत्न-द्धसहासन-िा च रत्न-आभरण-मठण्डता ।
रमणी रमणीया च रत्या-रस-परायणा ॥९०॥
रतानन्दा रतवती रधूणाङ्-कुल-वर्पद्धनी ।
रमणाठर-पठरभ्राज्या रैधा-राठधक-रत्न-जा ॥९१॥
ु
रावी रस-स्वरूपा च राठत्रराज-सखावहा ।
ु ा ऋतदु ा ऋद्धा, ऋतरू
ऋतज ु पा ऋतठु प्रया ॥९२॥
रक्तठप्रया रक्तवती , रठङ्गणी रक्त-दठिका ।
लक्ष्मील्लविा लठतका च लीलालिाठनताठक्षणी ॥९३॥
*लक्ष्मी-ल्लविा लठतका च, लीला-लिा-ठनताठक्षणी ॥९३॥
लीला लीलावती लोमाहषावह्लादनपठिका* । *लोमाहषव-आह्लादन-पठिका
ब्रह्म-ठिता ब्रह्मरूपा ब्रह्मणा वेद-वठन्दता ॥९४॥
ब्रह्मोद्भवा*, ब्रह्मकला ब्रह्माणी ब्रह्मबोठधनी । *ब्रह्मोद्-भवा = ब्रह्म-उद्भवा
वेदाङ्गना वेदरूपा वठनता ठवनता वसा ॥९५॥
बाला च यवु ती, वृद्धा ब्रह्म-कमव-परायणा ।
ठवन्ध्यिा ठवन्ध्यवासी च ठबन्दुयठु ग्बन्दुभूषणा* ॥९६॥ *ठबन्दु-यग
ु ्-ठबन्दु-भूषणा
ु
क्षयङ्करी ठक्षतीशा च क्षीण-मध्य-सशोभना ॥१०८॥
अजानिा अपणाव च अहल्या*-शेष-शाठयनी । *? अठहल्या
स्वािगवता च साधूनाम्-अिरानि-रूठपणी ॥१०९॥ *? अिरा-अनि
ु
अरूपा अमला चाद्धाव अनि-गण-शाठलनी ।
स्वठवद्या ठवद्यका-ठवद्या ठवद्या चार्पवन्दलोचना* ॥११०॥*च-अर्पवन्द-लोचना
अपराठजता जातवेदा अजपा अमरावती ।
अल्पा स्वल्पा अनल्पाद्या अठणमा-ठसठद्ध-दाठयनी ॥१११॥
अष्ट-ठसठद्ध-प्रदा देवी रूप-लक्षण-संय्यतु ा ।
ु ा देवी भोग-सौख्य-प्रदाठयनी ॥११२॥
अरठवन्द-मख
आठदठवद्या आठदभूता आठदठसठद्ध-प्रदाठयनी ।
सीत्कार-रूठपणी देवी सवावसन-ठवभूठषता ॥११३॥ *सव्व-आसन
इन्द्रठप्रया च इन्द्राणी, इन्द्रप्रि-ठनवाठसनी ।
इन्द्राक्षी इन्द्रवज्रा च इन्द्र-मद्योक्षणी तथा ॥११४॥
ईला काम-ठनवासा च ईश्वरीश्वर*-वल्लभा । *ईश्वरी-ईश्वर
जननी चेश्वरी दीना भेदाचेश्वर-कमवकृत्॥११५॥
*जननी चेश्वरी दीना भेदा-च-ईश्वर-कमवकृत्॥११५॥
उमा कात्यायनी ऊर्द्ध्ाव मीना चोतरवाठसनी* । *च-उतर-वाठसनी
उमापठत-ठप्रया देवी ठशवा चोङ्काररूठपणी* ॥११६॥
*चोङ्काररूठपणी = च-ओङ्कार-रूठपणी = च-ॐ-कार-रूठपणी
उरगेन्द्र-ठशरोरत्ना उरगोरग-वल्लभा ।
उद्यान-वाठसनी माला प्रशस्त-मठण-भूषणा ॥११७॥
उर्द्ध्वदिोतमाङ्गी च उतमा चोध्ववकेठशनी ।
*उर्द्ध्व-दिोतम-अङ्गी(आङ्गी) च उतमा च-उध्वव-के ठशनी ।
उमाठसठद्ध-प्रदा या च उरगासन-संठिता ॥११८॥
ु ऋठषच्छन्दा ऋठद्ध-ठसठद्ध-प्रदाठयनी ।
ऋठष-पत्री
ु
उिवोिव-सीमिा काठमका च गणाठन्वता ॥११९॥
एला एकारठवद्या च एणी-ठवद्या-धरा तथा ।
*ठहङ्गल
ु ोतम-वणव-आभा ठहङ्गल
ु -आभरणा च सा ।
जाग्रती च जगन्माता जगदीश्वर-वल्लभा ॥१५७॥ *जगद्-ईश्वर
ु ा जयप्रदा ।
जनार्द्वन-ठप्रया देवी जययक्त * जनार्द्वन = जनाद्व-दन
जगदानन्द-करी च जगदाह्लादकाठरणी* ॥१५८॥ *जगद्-आह्लाद-काठरणी
ज्ञान-दान-करी यज्ञा जानकी जनक-ठप्रया ।
जयिी जयदा ठनत्या ज्वलदठिसमप्रभा ॥१५९॥ *ज्वलद्-अठि-समप्रभा
ठवद्याधरा च ठबम्बोिी कै लास-चल-वाठसनी ।
ठवभवा वडवाठिश्च* अठिहोत्र-फल-प्रदा ॥१६०॥
*वडवा-अठिश्च, वडवा = ?वडवा पञ्चास्त्र मे एक है .
ु
मन्त्र-रूपा परा देवी, तथ ैव गरु-रूठपणी ।
ु
गया गङ्गा गोमती च प्रभासा पष्कराठप च ॥१६१॥
ठवन्ध्याचल-रता देवी ठवन्ध्याचल-ठनवाठसनी ।
ु
बहू बह-सन्दरी ु
च कं सासर-ठवनाठशनी ॥१६२॥
शूठलनी शूल-हस्ता च वज्रा वज्र-हराठप च ।
दूगाव ठशवा शाठिकरी ब्रह्माणी ब्राह्मण-ठप्रया ॥१६३॥
सववलोक-प्रणेत्री च सववरोग-हराठप च ।
ु ा ठनष्कला परमा कला ॥१६४॥
मङ्गला शोभना शद्ध
ठवश्वेश्वरी ठवश्वमाता लठलता वठसतानना ।
सदाठशवा उमा क्षेमा चठण्डका चण्ड-ठविमा ॥१६५॥
सववदवे -मयी देवी सवावगम-भयापहा ।
ब्रह्मेश-ठवष्-ु नठमता सवव-कल्याण-काठरणी ॥१६६॥
योठगनी योगमाता च योगीन्द्र-हृदय-ठिता ।
योठगजाया योगवती योगीन्द्रानन्द-योठगनी ॥१६७॥
इन्द्राठदनठमता देवी ईश्वरी चेश्वरठप्रया ।
*इन्द्र-आठद-नठमता देवी ईश्वरी च-ईश्वर-ठप्रया ।
ठवशठु द्ध-दा भयहरा भक्त-िेठष-भयङ्करी ॥१६८॥
भववेषा काठमनी च भरुण्डा भयकाठरणी ।
ु ।
स्तवस्या-स्य प्रभावेण, साक्षाद्-भवठत सव्रते
मोक्षार्त्थी लभते मोक्षन्-धनाथी लभते धनम्॥१८१॥
ठवद्यार्त्थी लभते ठवद्यान्-तकव -व्याकरण-आठन्वताम्।
ु
मठहत्व-ििरान्-तार्च्, शत्रहाठनः प्रजायते ॥१८२॥
क्षोणी-पठत-ववशस्-तस्य स्मरणे सदृशो भवेत्। *ववशस्= ववशः
यः पिे त्-सववदा भक्त्या, श्रेयस्त ु भवठत ठप्रये ॥१८३॥
गणाध्यक्ष-प्रठतठनठधः कठव-काव्य-परो वरः ।
गोपनीयम्प्रयत्नेन जननीजारविदा ॥१८४॥
*गोपनीयम्-प्रयत्न्-एन, जननी-जार-वत्-सदा ॥१८४॥
ु ो भवेन्-ठनत्यं, शठक्त-यक्त
हेत-ु यक्त ु ः सदा भवेत्।
य इदम्-पिते ठनत्यं, ठशवेन सदृशो भवेत्॥१८५॥
व ोगी स्यान्मृतो मोक्षपठतर्ब्ववते ्।
जीवन्धमावर्त्थभ
*जीवन्-धमावर्त्थ-व भोगी स्यान-मृ
् तो मोक्ष-पठत-र्ब्ववते ्।
सत्यं सत्यम्-महादेठव, सत्यं सत्यन्-न संशयः ॥१८६॥
स्तवस्या-स्य प्रभावेण, देवने सह मोदते ।
ु
सठचताश ु
्-च सरास्सवे
*, स्तव-राजस्य कीतवनात्॥१८७॥
ु
*सरास्सवे ु ्-सवे = सराःसवे
= सरास ु
ु पना ।
पीताम्बरपरीधाना पीतगन्धानले
परमोदयकीर्पतः स्यात्परतस्सरु सन्दठर
ु ॥१८८॥
ु पना ।
* पीताम्बर-परीधाना, पीत-गन्धा-अनले
ु न्दठर
* परमोदय-कीर्पतः स्यात्-परतस्-सर-स ु ॥१८८॥
|| General Information ||
To repeat Sahastranama-Stotras 3/7/11.. - Always repeat only Main Part.
श्री बगलामख ु ी "माता भगवती जगदम्बा" का एक सौम्य के साथ ही साथ उग्र, गप्तु और रहस्यमय
दोनो रूप हैं । अतः उनके ककसी भी पूजा, पाठ मन्त्र-जप इत्याकद में, कोई भी एक कवच पाठ अवश्य
करना चाकहये । कवच का पाठ हमेशा ज्यादा सुरकित होता है,
तथा कवच से भी साधक के सारे - कायय कसद्ध होते है ।
श्री बगलामख ु ी माता का रूप, पजू ा पद्धती, ध्यान मन्त्र, मकू तय, कचर, आचार-कवचार, साधक की भावना,
प्रयोग मे कलया हुआ संकल्प, पूजन सामग्री और स्थान कवशेष पर कनभयर है ।
जैसे सुना गया है की मासं -मकदरा, कनजयन और गुप्त स्थान पर शरुओ ं के नाश के कलये की गयी पूजा
उग्र मानी जाती है ।
गृहस्थों द्वारा घर में फल-फूल कमठाई से, शद्ध
ु और साकत्वक भावना से की गयी पजू ा साकत्वक मानी
जाती है । इसमे साधक माता की भकि और उनकी कृ पा चहता है । अपने और और पररवार के कलये
धन-धान्त्य-सुख-और-शरु से सुरिा चाहता है ।