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१,१
गापवगिव ारौ भुवन ोदये यथा ।
भवरोगहरौ व े च काच शे खरौ ॥ १,१.१ ॥
रसोपरसलोहानां तै लमूलफलैः सह ।
असा ं योपेतं क ते रससाधनम् ॥ १,१.२ ॥
वै ानां यशसेऽथाय ािधतानां िहताय च ।
वािदनां कौतुकाथाय वृ ानां दे हिस ये ॥ १,१.३ ॥
म णां म िस थ िविवधा यकारणम् ।
प ख िमदं शा ं साधकानां िहत दम् ॥ १,१.४ ॥
रसख े तु वै ानां ािधतानां रसे के ।
वािदनां वादख े च वृ ानां च रसायने ॥ १,१.५ ॥
म णां म ख े च रसिस ः जायते ।
सुतरां ना सं देहः त िवलोिकनाम् ॥ १,१.६ ॥
हतो ह जरामृ ुं मू िछतो ािधघातकः ।
ध े च खे गितं ब ः कोऽ ः सूता ृ पाकरः ॥ १,१.७ ॥
जरामरणदा र रोगनाशकरोमतः ।
मूिछतो हरते ाधी सो दे हे चर िप ॥ १,१.८ ॥
मोहये ः परा ब ो जीवये मृतः परान् ।
मूिछतो बोधयेद ां ं सूतं को न सेवते ॥ १,१.९ ॥
आयु िवणमारो ं वि मधा मह लम् ।
पयौवनलाव ं रसोपासनया भवेत् ॥ १,१.१० ॥
मारये ा रतं सूतं ग केनै व मू छयेत् ।
ब ः ाद् ु ितस ा ां रस ैवं ि धा गितः ॥ १,१.११ ॥
दोषहीनो रसो ा मूिछत ु जनादनः ।
मा रतो पः ा ः सा ा हे रः ॥ १,१.१२ ॥
वेधको दे हलोहा ां सूतो दे िव सदािशवः ।
दशना सराज ह ां पोहित ॥ १,१.१३ ॥
शना ाशये े िव गोह ां ना संशयः ।
िकं पु नभ णा े िव ा ते परमं पदम् ॥ १,१.१४ ॥
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अ मा ोपयोिग ाद चेर तः ।
ि मारो दािय ा े षजे ो रसोऽिधकः ॥ १,१.१५ ॥
यदु ं श ु ना पूव रसख े रसायने ।
रस व नाथ च दीिपका रसम ले ॥ १,१.१६ ॥
ािधतानां िहताथाय ो ं नागाजुनेन यत् ।
उ ं चपिटिस े न गवै कपािलके ॥ १,१.१७ ॥
अनेकरसशा ेषु सं िहता ागमेषु च ।
यदु ं वा टे त े सु ुते वै सागरे ॥ १,१.१८ ॥
अ ै ब िभः िस ै यदु ं च िवलो तत् ।
त य दसा ं ा द् दु लभमौषधम् ॥ १,१.१९ ॥
त वपर सारभूतं समुद्धृतम् ।
िच ा े ि या ना मसं ा न च िचत् ॥ १,१.२० ॥
मा ा यु ः िच ा स दायो न च िचत् ।
तेन िस न त ा रसे वाथ रसायने ॥ १,१.२१ ॥
वै े वादे योगे च य ा ो मया कृतः ।
य द् गु मुखा ातं ानुभूतं च य या ।
त ोकिहताथाय कटीि यतेऽधुना ॥ १,१.२२ ॥
ीमान् सू तनृ पो ददाित िवलसं ी ं वपुः शा तं ानां ीितकरीमच लमनो मातेव
पुं सां यथा ।
अ ो ना शरीरनाशकगद ंसकारी ततः काय िन महो वैः थमतः
सूता पुःसाधनम् ॥ १,१.२३ ॥
सा ाद यदायको भुिव नृणां प मु ैः कुतो मू ा मूिछतिव हो गदभृतां ह ु कैः
ािणनाम् ।
ब ं ा सुरासु रे च रतां तां तां गितं ापयेत् ।
सोऽयं पातु परोपकारचतुरः ीसूतराजो जगत् ॥ १,१.२४ ॥
यद तद ा यद ा न त िचत् ।
रसर ाकरः सोऽयं िन नाथेन िनिमतः ।
ततः कुया य ेन रससं ारमु मम् ॥ १,१.२५ ॥
अिव ा ा च शा ाथ योगकुशलो िभषक् ।
यम एव स िव े यः म ानां मृ ु पधृ क् ॥ १,१.२६ ॥
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{रस महादोषाः}
नागो व ो मलो वि ां च ं च िवषं िग रः ।
अस ाि महादोषा िनिष ाः पारदे थताः ॥ १,१.२७ ॥
जायं ग नौ नागा ु ं व ा ु जा मलात् ।
व े दाहो बीजनाश ा ा रणं िवषात् ॥ १,१.२८ ॥
िगरे ः ोटो स ा ेद षा ोह उपजायते ।
{िनद षपारद गु णाः}
दोषहीनो यदा सूत दा मृ ुजरापहः ॥ १,१.२९ ॥
सा ादमृतम ेष दोषयु ो रसो िवषम् ।
त ा ोषिवशु थ रसशु िवधीयते ॥ १,१.३० ॥
रसो ा ः सु न े पलानां शतमा कम् ।
प ाशतं प िवंश ा ादशं चैकमेव वा ॥ १,१.३१ ॥
पलादू नं न कत ं रससं ारमु मम् ।
अघोरे ण च म ेण रससं ारपूजनम् ॥ १,१.३२ ॥
अघोरे ोऽथ घोरे ो घोरघोरतरे ः ।
सव ः सवसव ो नम ेऽ ु पे ः ॥ १,१.३३ ॥

१, २
िनःसारं वी िव ं गदिवकलवपु ा मेवाितत म् ।
भूयः का िस ोः सकलगु णिनधे ः सूतराज यु म् ॥ १,२.१ ॥
ा सू त शा ा विहतमनसा ािणनािम िस ै ।
ू ैमयो ं सु िवपु लमतयो भोिगके ाः सरे ाः ।
याव ूतं न शु ं न च मृतमथ नो मू िछतं ग ब ं ।
नो व ं मा रतं वा न च गगनवधो नापसूता शु ाः ।
णा ं सवलोहं िवषमिप न मृ तं तैलपातो न यावत् ।
ताव ै ः िस ो भवित वसुभुजां म ले ा यो ः ॥ १,२.२ ॥
{अ दोषिनवारण}
अथातः स व ािम दोषा किनवारणम् ।
इ कारजनीचूणः षोडशां शैः रस तु ॥ १,२.३ ॥
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मदये ख े तं ज ीरो वैिदनम् ।
ख ं लोहमयं वाथ पाषाणा मथािप वा ॥ १,२.४ ॥
काि कैः ालये ूतं नागदोष शा ये ।
िवशाला ोलचूणन व दोषं िवनाशयेत् ॥ १,२.५ ॥
राजवृ ो मलं ह िच कं ह वि जम् ।
चा ं कृ ध ूरै ै फलैिवषनाशनम् ॥ १,२.६ ॥
कटु यं िग रं ह अस ाि ं ि क कः ।
{(२)}
ितदोषं कलां शेन त चूण सक कम् ॥ १,२.७ ॥
सुव गािलतं सूतं ख े ि ा यथा मम् ।
े कं हं य ा रा ं िवमदयेत् ॥ १,२.८ ॥
उद् धृ ो ारनालेन मृ ा े ालये ुधीः ।
सवदोषिविनमु ः स क चुकविजतः ॥ १,२.९ ॥
जायते शु ः सूतोऽयं यु ते वै कमिण ।
{पारदशोधन}
अजाशकृ ुषाि ं च ालिय ा भुिव ि पेत् ।
त ोप र थतं ख ं त ो ं मदये सम् ॥ १,२.१० ॥
ीख ं दे वदा च काकतु ी ं जया वैः ।
कक टीमू षलीक ा वे द ा िवमदयेत् ।
िदनै कं पातनाय े शु ं च िविनयोजयेत् ॥ १,२.११ ॥
कुमाया िनशाचूण िदनं सूतं िवमदयेत् ।
पातये ातनाय े स ु ो भवे सः ॥ १,२.१२ ॥
{िहं गुलो पारदशोधन}
पा रभ रसै ः पे ं िहं गुलं याममा कम् ।
ज ीराणां वैवाथ पा ं पातालय के ॥ १,२.१३ ॥
तं सू तं योजये ोगे स क चुकविजतम् ।
इ ेवं शु यः ाता यथे ैका कारयेत् ॥ १,२.१४ ॥
{शु सूतमारणौषधयः}
अथैतां मू िलकां व े शु सूत मारणे ।
द ी मे घनादा िच कं तृणमु का ॥ १,२.१५ ॥
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व व ी बला शु ी कटु तु धच का ।
िवषमु कला ा गो ुरः काकतु का ॥ १,२.१६ ॥
क ा च ािलनीक ं सपा ी सरपुङ् खका ।
व ा र ा िनगु ी ल ाली दे वदािलका ॥ १,२.१७ ॥
जाती जय ी वाराही भूकद ं कुर कम् ।
कोषातकी नीरकणा ला ली सहदे िवकाः ॥ १,२.१८ ॥
च मद ऽमृताक ं काकमाची रिवि या ।
िव ु ा ा ह शु ी ु यो भृ राट् पटु ः ॥ १,२.१९ ॥
इ ेताः मूिलका आ ाता यो ा पारदमा रकाः ।
एताः सम ा ा वा दे या ादशािधकाः ॥ १,२.२० ॥
{पारदभ िनमाण}
अ सूतगवां मू े पे षये मूिलकाम् ।
तद् वै ः शोिधतं सूतं तु ं ग कसंयुतम् ॥ १,२.२१ ॥
त ख े चतुयाममिव ं िवमदयेत् ।
त ं पातये े ि ंश महापुटे ॥ १,२.२२ ॥
एवं दशपु टैमाय म पा ं पुनः पुनः ।
तदु द्धृ पुनम व मू षा रे ि पेत् ॥ १,२.२३ ॥
भूधरा े पुटे प ा शधा भ तां जेत् ।
वै वैः पु नम िस ोऽयं व सूतकः ॥ १,२.२४ ॥
मूिलकामा रतः सू तो जारण मविजतः ।
न मे े हलोहा ां रोगहता भवेद् ुवम् ॥ १,२.२५ ॥
{पारदभ िनमाण (२)}
रसं ग कतै लेन ि गुणेन िवमदयेत् ।
िदनै कं वाथ सपा ीिव ु ा ा भृ जैः ॥ १,२.२६ ॥
हं िवमदयेद् ावै ंश महापुटे ।
इ ेवम धा पा ं रसो भ ीभवेद् ुवम् ॥ १,२.२७ ॥
{रसभ िनमाण (३)}
ेता ोटजटावा र सूतं म िदन यम् ।
पु टये द्भूधरे य े मू षायां भ तां जेत् ॥ १,२.२८ ॥
दे वदालीं ह र ा ामारनालेन पे षयेत् ।
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स धा सू तकं तेन कुया मनमु तम् ॥ १,२.२९ ॥
तं सू तं खपरे कुया ा द ा चतु वम् ।
चु ोप र पचे ौ भ ाद णोपमम् ॥ १,२.३० ॥
{पारदमारण (४)}
का ोदु रजैः ीरै ः िसतां िहं गु िवभावयेत् ।
स वारं य ेन शो ं पे ं पुनः पुनः ॥ १,२.३१ ॥
का ोदु रप ा ै ः कषायं षोडशां शकम् ।
द ा तेन पु नम िहं गु व रसे रम् ॥ १,२.३२ ॥
ि ा िन मू षायां भूधरा े पुटे पचेत् ।
अ धा ि यते सूतो दे यं िहं गु पुटे पुटे ॥ १,२.३३ ॥
{पारदमारण (५)}
अपामाग बीजािन तथैर चूणयेत् ।
त ूण पारदे दे यं मूषायामेव रोधयेत् ॥ १,२.३४ ॥
द् ा लघुपुटे प ा तुिभभ तां जेत् ।
{पारदमारण (६)}
कटु तु ु वे क े गभ नारीपयःसु वै ॥ १,२.३५ ॥
स धा ि यते सूतः ेदये ोमयाि ना ।
{पारदमारण (७)}
अ ोल जटातोयैः िप ा ख े िवमदयेत् ॥ १,२.३६ ॥
सूतं ग कसं यु ं िदना े तं िनरोधयेत् ।
पु टये द्भूधरे य े िदना े तं समु रे त् ॥ १,२.३७ ॥
{पारदमारण (८)}
धा ा ं सू तकं तु ं मदये ारक वैः ।
िदनै कं तेन क े न व े िल ा च वितकाम् ॥ १,२.३८ ॥
िविल तैलैवित तामेर ो ैः पुनः पुनः ।
ा तद् धृतं भा े ाहये िततामधः ॥ १,२.३९ ॥
कृ भ भवे पुनम ि यामकैः ।
िदनै कं त चे े क पा े न संशयः ॥ १,२.४० ॥
मृतः सूतो भवे ोगेषु योजयेत् ।
{पारदमारण (९)}
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ि पलं शु सूतं तु सूताधशु ग कम् ॥ १,२.४१ ॥
मदये ारक ावैिदनमेकं िनर रम् ।
बद् ा तु भूधरे य े िदनैकं मारये ुटात् ॥ १,२.४२ ॥
{व मूषा}
तुषद भागौ ावेको व ीकमृि का ।
लोहिक भागै कं ेतपाषाणभागकम् ॥ १,२.४३ ॥
नरकेशसमं िकंिच ागी ीरे ण पेषयेत् ।
याम यं ढं म तेन मू षा संपुटाम् ॥ १,२.४४ ॥
शोषिय ाथ संिल त ै ः संिन च ।
व मू षा समा ाता स ारदमा रका ॥ १,२.४५ ॥
{भ सूतवणाः}
ेतं पीतं तथा र ं कृ ं चेित चतुिवधम् ।
ल णं भ सूत े ं ादु रो रम् ॥ १,२.४६ ॥

१, ३
{जारणपू व मारणम् }
अथातो जारणापूव बीजं मारणमु ते ।
अजीण चा बीजं च सू तकं य ु मारयेत् ॥ १,३.१ ॥
हा स दु राचारो मम ोही महे र ।
त ा व य ेन जा रतं मारये सम् ॥ १,३.२ ॥
{रस समु खकरणम्}
सं था गोमयं भूमौ प मूषां ततः परम् ।
त े कटु तु ु ं तैलं द ा रसं ि पेत् ॥ १,३.३ ॥
काकमाचीरसं दे यं तैलं तु ं ततः पुनः ।
ग कं ीिहमा ं च ि ा तं च िनरोधयेत् ॥ १,३.४ ॥
त ृ े पावको दे यः पूण वा वि खपरम् ।
ा शीतलतां ा ा जीण तैले च ग कम् ॥ १,३.५ ॥
काकमाची वं चा ौ द ा द ा च जारयेत् ।
मूषाधो गोमयं चा द ा चोदधव च पावकम् ॥ १,३.६ ॥
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षड् गुणं ग कं जाय सूत ैवं मुखं भवेत् ।
{समु खपारद जारणापूवको मारणिविधः}
तं सू तं मदये ीरै ज ीरो ैः पुनः पुनः ॥ १,३.७ ॥
चतुःष ंशकैः पू व ाि ंशां शं ततः पुनः ।
षोडशां शं शु हे मप ं सूतेषु िनि पेत् ॥ १,३.८ ॥
िश खिप ेन स ं तैलै सषपो वैः ।
िल ा हे मं ि पे ूतं यामं ज ीरजै वैः ॥ १,३.९ ॥
म तं पू वव ा ूषायां ज ीर वैः ।
पू रये ोधये ाि ं द ा य ेन जारयेत् ॥ १,३.१० ॥
ासे ासे च त ज ीराणां वैः ढम् ।
मूिलका लवणं ग मभावे िप तैलयोः ॥ १,३.११ ॥
िप ा ज ीरनीरे ण हे मप ं लेपयेत् ।
इ ेवं जारणा काया ततः सूतं च मारयेत् ॥ १,३.१२ ॥
अथवा िनमु खं सूतं िवडयोगेन मारयेत् ।
{िवडिनमाणिविध}
िवडम व ािम साधये षजां वरः ॥ १,३.१३ ॥
शं खचूण रिव ीरै ातपे भावयेि नम् ।
त ीरजै ावै िदनै कं धूमसारकम् ॥ १,३.१४ ॥
सुवचलमजामू ैः ा ं यामचतु यम् ।
क कारी ं च सं ा ं िदनैकं नरमू कैः ॥ १,३.१५ ॥
स ी ारं ित डीकं काशीशं च िशलाजतुम् ।
ज ीरो ै वैभा ं पृथ ामं चतु यम् ॥ १,३.१६ ॥
जयपालबीजं ीनं मू लकानां वैिदनम् ।
सै वं ट णं गु ां िश ुमूल वैिदनम् ॥ १,३.१७ ॥
एत व समां शं तु म ज ीरजै वैः ।
त ोलं र ये ाि डोऽयं वाडवानलः ।
अनेन मदये ूतं सते त ख के ॥ १,३.१८ ॥
{िवडयोगे न पारदािदमारण कारः}
णा कसवलोहािन यथे ािन च जारयेत् ।
मारये ूवयोगे न मारणं चा क ते ॥ १,३.१९ ॥
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{पारदमारण (१)}
कु ी ं समू लामुद्धृ गोमू ेण सुपेषयेत् ।
तद् वै मदये ूतं िदनै कं का स ुटे ॥ १,३.२० ॥
िल ा िनयामका दे या ऊ ाध द येत् ।
मृ ि ना िदनैकं तु पचे ु ां मृतो भवेत् ॥ १,३.२१ ॥
{पारदमारण (२)}
गोघृतं ग कं सू तं िप ा िप ी ं क येत् ।
कुमारीदलम थं कृ ा सू ेण वे येत् ॥ १,३.२२ ॥
तं का स ु टे द् ा ि िभलघुपुटैः पचेत् ।
ततो ाते भवे चा मूषे यं ुवम् ॥ १,३.२३ ॥
{पारदमारण (३)}
शाकवृ प ािन फला ादाय शोधयेत् ।
पे षये िवदु ेन तेन मूषां लेपयेत् ॥ १,३.२४ ॥
आिद सू तगोजातजरायो ूणपू रतः ।
त े सू तकं द् ा ातो भ मा ुयात् ॥ १,३.२५ ॥
{पारदमारण (४)}
कक टकी ं काकमाची ं च क चुकी ं कटु तु काम् ।
काकज ां काकतु ी ं कािकनी ं काकम रीः ॥ १,३.२६ ॥
िप ै तान् व मू षा ैलपं कृ ा रसं ि पेत् ।
मिदतं िदनमे कं तु तैरेवा तै रसैः ॥ १,३.२७ ॥
द् ाथ भूधरे प ाद वारं पुनः पुनः ।
मदये मूषा ा द् ा ातो मृ तो भवेत् ॥ १,३.२८ ॥
{पारदमारण (५)}
रसै िनयामकैम ढं यामचतु यम् ।
ि गुणैग तैलै पचे ृ ि ना शनै ः ॥ १,३.२९ ॥
याव ोटो भवे ोधये ौहस ुटे ।
हरीतकीं जले िप ा लौहिक े न मूिषकाम् ॥ १,३.३० ॥
कृ ा त तः ि ा स ुटं चा ये ुनः ।
त ो ावकाकारं ा नाग ु तं ि पेत् ॥ १,३.३१ ॥
किठने न धमे ाव ाव ागो ु तो भवेत् ।
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न धमे पु न ाव ाव िठनतां जेत् ॥ १,३.३२ ॥
एवं पु नः पु न ात यामैि यते रसः ।
{िनयामकौष ः}
िनयामका तो व े सू त मारकमिण ॥ १,३.३३ ॥
सपा ी ी रणी व ा म ा ी शरपुङ् खका ।
काकज ा िश खिशखा द ाखुपिणका ॥ १,३.३४ ॥
वषाभूः क चुकी मूवा प को लिचि का ।
शतावरी व लता व क ा ि पिणका ॥ १,३.३५ ॥
म ू कपण पाटली िच को ी सु रः ।
काकमाची महारा ी ह र ा ितलकिणका ॥ १,३.३६ ॥
ेताकिश ु ध ूरमृगदू वाहरीतकी ।
गुडूची मूषली पु ङ्खा भृ राड िच कम् ॥ १,३.३७ ॥
तगरं शूरणं मु ी मय ा पोतकोिकलम् ।
सै वं ेतवषाभूः सा रं िहं गु माि कम् ॥ १,३.३८ ॥
िव ुका ा सोमव ी ण ी य लोचनम् ।
ा पादी हं सपदी वृि काली कुर कम् ॥ १,३.३९ ॥
य ू कुसुमं कु ी ह शु ी वा णी ।
बीजा ह र ािप सव ैते िनयामकाः ॥ १,३.४० ॥
एताः सम ा ा वा दे या ादशािधकाः ।
मारणे मू ने ब े रस ैतािन योजयेत् ॥ १,३.४१ ॥
{रस जारणमारणिविधः}
अ सूतगवां मू ैः िप ा पूविनयािमकाः ।
तद् वै मदये ूतं यथा पू व िदतं मात् ॥ १,३.४२ ॥
इ ेवं जारणं ो ं मारणं प रकीिततम् ।
{रसभ परी ा}
परी ा मा रते सूते कत ा च यथोिदता ॥ १,३.४३ ॥
अध ुषाि ना त ो ीण ते यदा ।
तदा भ िवजानीया ु ां यामं िनरी येत् ॥ १,३.४४ ॥
मूिलकामा रतं सूतं सवयोगे षु योजयेत् ।
जा रतो याित सूतोऽसौ जरादा र रोगनुत् ॥ १,३.४५ ॥
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मूिछतो ािधनाशाय ब ः सव योजयेत् ॥ १,३.४६ ॥

१, ४
{मूछन}
अथातः शु सूत मू ना िविध ते ।
मेघनादो वचा िहं गु शू रणैमदये सम् ॥ १,४.१ ॥
न िप ं तु त ोलं िहङ्गु ना वे ये िहः ।
पचे वणय थं िदनैकं च वि ना ॥ १,४.२ ॥
ऊ ल ं समा ढं व ेण ब येत् ।
ऊ ाधो ग कं तु ं द ा सौ ानले पचेत् ॥ १,४.३ ॥
जीण ग े पु नदयं षड् िभवारै ः समं समम् ।
षड् गुणे ग के जीण मूिछतो रोगहा भवेत् ॥ १,४.४ ॥
{मेचुय्:: मू छन}
ग कं मधु सारं च शु सूतं समं समम् ।
यामै कं पाचये े काचकु ां िनवेशयेत् ॥ १,४.५ ॥
द् ा ादशयामं तं वालुकाय गं पचेत् ।
ोटये ां गशीतं तं तदू ग कं जेत् ॥ १,४.६ ॥
अधः थं रसमादाय सवरोगेषु योजयेत् ।
{मेचुय्:: fओमु लितओन् }
शु ं सूतं ि धा ग ं सूता सै वं ि पेत् ॥ १,४.७ ॥
वै ः िसतजय ा मदयेि वस यम् ।
कृ ा गोलं च संशो ि ा मूषां िन येत् ॥ १,४.८ ॥
शोषिय ा धमे ं िच ुत ां तां जले ि पेत् ।
त ा सं समु द्धृ ि क रसभािवतम् ॥ १,४.९ ॥
योजये वरोगेषु धमे ा भूधरे पचेत् ।
{मेचुय्:: fओमु लितओन् }
रसाध ग कं म घृतैयु ं तु गोलकम् ॥ १,४.१० ॥
कृ ा तं ब ये े दोलाय गतं पचेत् ।
गोमू ा ः कृतं यामं नरमू ैिदन यम् ॥ १,४.११ ॥
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शोषये पु नव े बद् ावे सदा ढम् ।
शु ं िन मूषायां तत ुषाि ना पचेत् ॥ १,४.१२ ॥
ऊ भागमधः कृ ा अधोभागं च ऊ गम् ।
इ ािदप रवतन ेदयेि वस यम् ॥ १,४.१३ ॥
प ादु द्धृ तं सू तं योगवाहं जापहम् ॥ १,४.१४ ॥
{मेचुय्:: fओमु लितओन् }
स ोजात बाल िव ां पालाशबीजकम् ।
चा ाली िधरं सू तं सूतपादं च ट णम् ॥ १,४.१५ ॥
जय ा मदयेद् ावैिदनैकं त ु गोलकम् ।
पे षये हदे ाथ लेपये ा संपुटम् ॥ १,४.१६ ॥
त े गोलकं ि ा ि यामं ेदये घु ।
वालु काय म े तु समुद्धृ ततः पुनः ॥ १,४.१७ ॥
िच कैः सहदे ा च ग कैलपये िहः ।
स ु टं ब ये े मृदाले च शोषयेत् ॥ १,४.१८ ॥
तं द् ा मूषायां ाते स ुटमाहरे त् ।
सू चूण हरे ोगान् योगवाहो महारसः ॥ १,४.१९ ॥
स ु टं सू ततु ं ा ा ेन कमणा ॥ १,४.२० ॥
{मेचुय्:: fओमु लितओन् }
ध ूरक वैम िदनं ग ं ससूतकम् ।
अ मूषे िदनं े ं भू धरे मूिछतो भवेत् ॥ १,४.२१ ॥
कृ ा षडङ्गुलां मूषां सु प ां मृ यीं ढाम् ।
मूषागभ िवले ाथ मूलैब लप कैः ॥ १,४.२२ ॥
त े सू तकं ि ा मू षां पूया ु तद् वैः ।
द् ा सलवणैय ै ु ां दी ाि ना पचेत् ॥ १,४.२३ ॥
स ाहा े समुद्धृ यवमानं रापहम् ।
{मेचुय्:: मू छन}
काशीशं सै वं सूतं तु ं तु ं िवमदयेत् ॥ १,४.२४ ॥
काशीश ा भागेन दात ा फु तू रका ।
ोक ोकं ि पे े ि यामं चैव मू छयेत् ॥ १,४.२५ ॥
े कं शतिन ं ादू नं नैवािधकं भवेत् ।
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थालीस ुटय ेण िदनं च ाि ना पचेत् ॥ १,४.२६ ॥
ऊ ल ं तत ु ां मूिछतं चाहरे ूतम् ।
{मेचुय्:: मू छन}
कुर करसैभा मातपे मदये सम् ॥ १,४.२७ ॥
लताकर प ैवाङ्गु ा े न िवमदयेत् ।
िदनै कं मू िछतं स वरोगेषु योजयेत् ॥ १,४.२८ ॥
{है र गभक}
अथ सूत शु मूिछत ा यं िविधः ।
सूततु ं घृतं जीण ा ां तु ं च ग कम् ॥ १,४.२९ ॥
रिव ीरै िदनं म म िय ा च भूधरे ।
पु टकेन भवे ो रसो है र गभकः ॥ १,४.३० ॥
{वै ा ब रस}
कटु तु ु वे क े व ायाः ीरक के ।
अप ै कं समादाय त भ िप का ततः ॥ १,४.३१ ॥
दशिन ं शु सू तं िन ै कं शु ग कम् ।
ोकं ोकं ि पे ं पाषाणे तं तु कु येत् ॥ १,४.३२ ॥
याममा े भवे ी रसं क े िविनि पेत् ।
अध ऊ भ वै ा ं द ा िन ा मा कम् ॥ १,४.३३ ॥
ततः क म ािभमु खं बद् ा मृदा ढम् ।
िल मङ्गुलमानेन सवतः शो गोलकम् ॥ १,४.३४ ॥
पाचयेद्भूधरे य े तत उद् धृ पुनः पचेत् ।
ऊ भागमधः कुयािद ेवं प रवतयेत् ॥ १,४.३५ ॥
मेण चालयेदू बिहयु ोपलैः पचेत् ।
ततो िभ ु सं ा ो ब ः ा ािडमोपमम् ।
ना ा वै ा ब ोऽयं सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,४.३६ ॥
{ग ब पारद}
अथवा ग पीठीनां व े बद् ा तु ग कम् ।
तु ं द ा िन ाथ स ुटे लोहजे ढे ॥ १,४.३७ ॥
पु टये द्भूधरे ताव ाव ीयित ग कम् ।
एवं पु नः पु नदयं याव ु षड् गुणम् ॥ १,४.३८ ॥
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इ ेवं ग के ब ः सू तः ा वरोग त् ।
{ग ब पारद (२)}
मूषा ज ीरिव ारा दै ण षोडशाङ्गु ला ।
अप ा सु ढा काया िसकताभा म गा ॥ १,४.३९ ॥
ि भागं वालु का ल ा पादां शेन बिहः थताः ।
पलै कं चूिणतं ग ं मूषाम े िविनि पेत् ॥ १,४.४० ॥
शु सू तं समं प ा पे पलं ततः ।
भा मारोपये ु ां मूषामा ा य तः ॥ १,४.४१ ॥
म ाि ना पचे ाव ावि धू मतां जेत् ।
ग धू मे गते पूया काकमाची वै ु सा ॥ १,४.४२ ॥
वे जीण पु नः पूया नागव ीदल वैः ।
जीण धु ूरक ावैः पू रिय ा पुनः पचेत् ॥ १,४.४३ ॥
याव ीयित त ं काकमा ािदिभः पुनः ।
द ा द ा पचे द् धु ुरािद मा सम् ॥ १,४.४४ ॥
िभ ा मू षां समादाय जरा ािधहरो रसः ।
योजये ब ोऽयं योगवाहे षु सवतः ॥ १,४.४५ ॥
{मेचुय्:: मू छन:: ते ्}
क लाभो यदा सूतो िवहाय घनचापलम् ।
मूिछतः स तदा ेयो नानारसगतः िचत् ॥ १,४.४६ ॥
माधु यगौरवोपेतः तेजसा भा रोपमः ।
वि म े यदा ित े दा वृ ल णम् ॥ १,४.४७ ॥
स जयित रसराजो मृ ु श ापहारी सकलगु णिनधानः कायक ािधकारी ।
विलपिलतिवनाशं से वना ीयवृ ं थरमिप कु ते यः कािमनीनां स े ॥ १,४.४८ ॥
इ ेता मा रताः सूता मू िछता ब मागताः ।
े कं योगवाहः ा ोगेषु योजयेत् ॥ १,४.४९ ॥
मा रतं दे हिस थ मूिछतं ािधनाशनम् ।
रसभ िच ोगे दे हाथ मूिछतं िचत् ॥ १,४.५० ॥
ब ं ा ां यु ीत शा ेन कमणा ।
{मेचुय्:: ोरगे }
द े े ऽथवा वंशे र ये ािधतं रसम् ॥ १,४.५१ ॥
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{मेचुय्:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
पारदं ि िमकु ं ब मायु ि दम् ।
सेवना वरोग ं ं गु कषायकम् ॥ १,४.५२ ॥
सूते गुणानां शतकोिटव े चा े सह ं कनके शतैकम् ।
तारे गुणाशीित दध का े ती णे चतुःषि ः रवौ तदधम् ॥ १,४.५३ ॥
रसािदिभया ि यते िचिक ा दै वीित स ः प रकीितता सा ।
सा मानुषी म कृता िशफा ैः सा रा सी श कृतािदिभया ॥ १,४.५४ ॥

१, ५
{उपरसनामािन}
ग कं व वै ा ं व ा ं तालकं िशला ।
खपरं िश खतु ं च िवमलां हे ममाि कम् ॥ १,५.१ ॥
कासीसं का पाषाणं वराटीमथ िहं गुलम् ।
कङ्कु ं शंखभूनागं टं कण िशलाजतु ॥ १,५.२ ॥
एते उपरसाः शो ाः माया ा ाः पु टे िचत् ॥ १,५.३ ॥
{ग :: अशु :: मेिदच् . ोपे ितएस्}
अप ग ं कु तेऽित कु ं तापं मं िप जां करोित ।
पं सु खं वीयबलं च ह त ा ंशु ं िविधयोजनीयम् ॥ १,५.४ ॥
{ग कशोधन}
सा ं भा े पयः ि ा मुखं व ेण ब येत् ।
त ृ े चूिणतं ग ं ि ा ावेण रोधयेत् ॥ १,५.५ ॥
भा ं िनि भू े ऊ दे यं पुटं लघु ।
ततः ीरे ु तं ग ं शु ं योगे षु योजयेत् ॥ १,५.६ ॥
{ग कशोधन (२)}
अथवाक ुही ीरै व ं ले ं च स धा ।
ग कं नवनीतेन िप ा व ं लेपयेत् ॥ १,५.७ ॥
त ि िलता दे शे ा धाया धोमुखा ।
तैलं पतेदधोभा े ा ं योगेषु योजयेत् ॥ १,५.८ ॥
{सु ल्fउर् :: शु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
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शु ो ग ो हरे ोगान् कु मृ ु रािदकान् ।
अि कारी महानु ो वीयवृ ं करोित च ॥ १,५.९ ॥
{व :: शोधन}
ा ीक युतं व ं दोलाय ेण पािचतम् ।
स ाहा ौ वे ाथे कौल े िवमलं भवेत् ॥ १,५.१० ॥
{व :: मारण}
ि स कृ ं खरमू ेण सेचयेत् ।
षड् गुणै ालकं िप ा त ोले कुिलशं ि पेत् ॥ १,५.११ ॥
ातं वािजमू ेण िस ं पूव िदत मैः ।
भ ीभवित त ं व व ु ते तनुम् ॥ १,५.१२ ॥
{व :: मारण}
ऊणा ं प रिप िप मेत म े तु िनधाय व म् ।
िप े ऽथवाधाय च व व ाः पु ट यं त रसे िवद ात् ॥ १,५.१३ ॥
मृ ु रेव भवे द व ा न संशयः ॥ १,५.१४ ॥
{व :: अशु :: मेिदच् . ोपे ितएस्}
अशु व मायु पीडां कु ं करोित च ।
पा ु तापगु ं च त ा ु ं तु कारयेत् ॥ १,५.१५ ॥
{व :: सु पेस्:: चोलोउर् , च े}
ेतर पीतकृ ा ि जा ाः व जातयः ।
रसायने भवेि ः ेतः िस दायकः ॥ १,५.१६ ॥
ि यो मृ ु िज ो वलीपिलतरोगहा ।
वकारी भवे ै ः पीतो दे ह दा कृत् ॥ १,५.१७ ॥
कृ ः शू ो जां ह वयः थैय करोित च ।
पुं ीनपुं सका ैते ल णेन तु ल येत् ॥ १,५.१८ ॥
{व :: पुंव :: परी ा}
वृ ाः फलकस ू णा ेज ो बृह वाः ।
पु षा े समा ाता रे खािब दु िवविजताः ॥ १,५.१९ ॥
{व :: ीव :: परी ा}
रे खािब दु समायु ाः षट् कोणा ाः यः ृताः ।
{व :: नपुं सक:: परी ा}
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ि कोणाय ा दीघा िव ेया ा नपुंसकाः ॥ १,५.२० ॥
पू वपूविममे श ाः पु षाः बलव राः ।
शरीरका जनका भोगदा व योिषतः ॥ १,५.२१ ॥
नपुंसका वीयाः कामुकाः स विजताः ।
ी तु ीणां दात ा ीबं ीबे तथैव च ॥ १,५.२२ ॥
सवषां सवदा यो ाः पु षाः बलव राः ॥ १,५.२३ ॥
{व :: शोधन}
गृही ा तु शु भं व ं ा ीक ोदरे ि पेत् ।
मिहषीिव या ले ं करीषा ौ िवपाचयेत् ॥ १,५.२४ ॥
िनशायां तु चतुयामं िनशा े वा मू के ।
सेचये ािन ेकं स रा ेण शु ित ॥ १,५.२५ ॥
{व :: शोधन}
मेघनादा शमी ामा ी मदनको वम् ।
कुल ं वेतसं चाथ अग ं िस ुवारकाः ॥ १,५.२६ ॥
एतेषां सजलैः ाथैव ं ज ीरम गम् ।
दोलाय े हं पा मेवं व ं िवशु येत् ॥ १,५.२७ ॥
{व :: शोधन}
कुल को व ाथे दोलाय े िवपाचयेत् ।
ा ीक गतं व ं स ाहा ु मृ ित ॥ १,५.२८ ॥
{व :: शोधन}
ा ी ं क गतं व ं मृदा िल ं पुटे पचेत् ।
अहोरा ा मु द्धृ हयमू ेण सेचयेत् ॥ १,५.२९ ॥
व ी ीरे ण वा िस ेदेवं शु ं च मारयेत् ॥ १,५.३० ॥
{व :: ा ण:: मारण}
िव जा ािदव ाणां मारणं क ते पुनः ।
अ बदरीिझ ीमाि कं ककटा थ च ॥ १,५.३१ ॥
तु ं ुहीपयः िप ा व ं त ोलके ि पेत् ।
द् ा गजपु टे प ाि जाितमृ तो भवेत् ॥ १,५.३२ ॥
{व :: ि य:: मारण}
करवीरं मेष ं च बदरं च उदु रम् ।
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अकदु समं िप ा िव व ारये ृपम् ॥ १,५.३३ ॥
{व :: वै :: मारण}
बलां चाितबलां ग ं पेषये पा थ च ।
एतैवा वा णीदु ैः ि ये ै ोऽिप िव वत् ॥ १,५.३४ ॥
{व :: शू :: मारण}
सूरणं लसुनं शङ्खं समं पे ं मनःिशलाम् ।
वट ीरे ण मू षा िव व ू मारणम् ॥ १,५.३५ ॥
{व :: ी, नपुंसक:: मारण}
य ेषां ि य े च त दौषधयोगतः ।
नपुंसकमृ ित ेषां चतुणामौषधै ः समम् ॥ १,५.३६ ॥
{व :: मारण}
ि वष ढकापासैमूलं का मुखैः सह ।
नारी ेन स िप ा ातं मृ तं भवेत् ॥ १,५.३७ ॥
{व :: मारण}
मेष भुज ा थकूमपृ ा वेतसैः ।
गजद समं िप ा व ीदु ेन गोलकम् ॥ १,५.३८ ॥
कृ ा त गं व ं ि यते धमनेन तु ।
{व :: मारण}
ि वषनागव ा ु कापास ाथ मूिलका ।
िप ा त गं व ं कृ ा मूषां िनरोधयेत् ॥ १,५.३९ ॥
पचे जपुटे तं च ि यते स धा पुटैः ॥ १,५.४० ॥
{व :: मारण}
म ु णानां तु र ेन स धातपशोिषतम् ।
कुिलशं भािवतं तद ूिणतािप मनःिशला ॥ १,५.४१ ॥
िल ा च बदरीप ैः वे िय ा पुरे पचेत् ।
पु नल ं पुनः पा ं स धा ि यतेऽिप च ॥ १,५.४२ ॥
{व :: मारण}
व ं महानदीशु ौ ि ं भा ं मु मु ः ।
ु क क ानां येणैकेन चाि कम् ॥ १,५.४३ ॥
कृ ककटमां सेन िपि तं वे ये िहः ।
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भूनाग मृ दा स ाते भ मा ुयात् ॥ १,५.४४ ॥
{व :: मारण}
र ो ल मू लै मेघनाद कुड् मलैः ।
िप तैवि तं ातं व ं भ भव लम् ॥ १,५.४५ ॥
{व :: मृ त:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
व मायुबलं पं दे हसौ ं करोित च ।
सेिवतो ह रोगां मृतो व ो न संशयः ।
{वै ा :: शोधन}
वै ा ं व व ो ं नीलं वा लोिहतं च वा ।
{वै ा :: मारण}
हयमू े त े ं त ं त ं ि स धा ॥ १,५.४६ ॥
तत ो रवा ाः प ा े गोलके ि पेत् ।
द् ा मूषापु टे प ादु द्धृ गोलके पुनः ॥ १,५.४७ ॥
ि ा द् ा पचेदेवं स धा भ तां जेत् ।
{वै ा :: सु तुते fओव }
भ ीभूतं च वै ा ं व थाने िनयोजयेत् ॥ १,५.४८ ॥

१, ६
{अ :: अशु :: मेिदच् . ोपे ितएस्}
अशु ा ं िनह ायुवधये ा तं कफम् ।
अहतं छे दये े हं म ाि ि िमदायकम् ॥ १,६.१ ॥
{अ :: सु पेस्}
कृ ं पीतं िसतं र ं यो ं योगे रसायने ।
िपनाकं ददु रं नागं व ं चेित चतुिवधम् ॥ १,६.२ ॥
िपनाका ा यो व ा व ं य ा माहरे त् ।
{िपनाक:: परी ा}
मु ौ िविनि े िपनाको दलसंचयम् ॥ १,६.३ ॥
अ ाना णं त महाकु दायकम् ।
{ददु र}
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ददु रो िनिहतो ौ कु ते ददु र िनम् ॥ १,६.४ ॥
{नाग}
नाग ाि गतः श ं फू ारं च िवमु ित ।
स च दे हगतो िन ं ािधं कुया ग रम् ॥ १,६.५ ॥
{व ा }
व ा कं वि सं थं न िकंिचि कृितं जेत् ।
त ा ा कं यो ं ािधवा मृ ुिजत् ॥ १,६.६ ॥
{धा ा क:: ोदु तओन्}
धमे ा कं व ौ ततः ीरे िनषेचयेत् ।
िभ प ं तु तं ा ा मेघनाद वा योः ॥ १,६.७ ॥
भावयेद यामं त ा ा ं कारये ुधीः ।
{धा ा क:: ोदु तओन्}
अथवा भागौ ौ ट ैकं जलैः सह ॥ १,६.८ ॥
ि िदनं थापये ा े सू ं कृ ा पेषयेत् ।
बद् ा धा युतं व े मदये ाि कैः सह ॥ १,६.९ ॥
अधो य ािलतं सू ं शु ं धा ा कं भवेत् ॥ १,६.१० ॥
{अ :: मारण:: िन }
पु ननवामे घनाद वैधा ा कं िदनम् ।
म गजपुटे प ा ुनि ाथ सूरणैः ॥ १,६.११ ॥
वै मु भवैम पृथ े यं पुट यम् ।
एवं मकदलैव ं दे यं वा मोचस ुटे ॥ १,६.१२ ॥
िन ं जायते ं यथा दोषेषु योजयेत् ।
{अ :: मारण:: िन }
गोघृतै फलां ाथैः प ा च पू वव चेत् ॥ १,६.१३ ॥
प िवंश ुटैरेव कासम ाः वैः पचेत् ।
दे यं पु ट यं ीरै मदये पुटे पुटे ॥ १,६.१४ ॥
िन ं जायते ं जरामृ ु जापहम् ।
{अ :: मारण}
धा ा क भागै कं ौ भागौ टं कण च ॥ १,६.१५ ॥
िप ा तद मूषायां द् ा ती ाि ना पचेत् ।
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भावशीतलं चूण सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,६.१६ ॥
{धा ा क:: मारण}
धा ा कम ंिप ं पुटे त ेऽ सेचनम् ।
त ा धारये े भा म ारनालकैः ॥ १,६.१७ ॥
त ं त ं चारनालैः पा ं शो ं पुनः पुनः ।
पु टे वा धमने पा ं िवंश ारं पु नः पुनः ॥ १,६.१८ ॥
त ं त ं ि पेद्दु े िप ाथ शोषये ुनः ।
दु त ं पुटं प ा ं दु ेन से चयेत् ॥ १,६.१९ ॥
एवं ि स वारािण शो ं पे ं पुटे पचेत् ।
पे षिय ा पचे था ां लौहद ा िवचालयेत् ॥ १,६.२० ॥
दु थं च ततो दु ैः पु टे प ा ुनः पुनः ।
एवं स िदनं प ाि वा चैकं पुटे िनिश ॥ १,६.२१ ॥
त ु ली व व ी च तालमूली पुननवा ।
चा े री म रचं चैव बलायाः पयसा सह ॥ १,६.२२ ॥
एिभ पेषये ा ं े कं तं हं हम् ।
थ ा त े पु टे प ा ेकेन पुनः पुनः ॥ १,६.२३ ॥
िप ा पुनः पुटे घृ ं क लाभं मृतं भवेत् ॥ १,६.२४ ॥
{अ :: मारण:: िन }
धा ा क शु दशां शं म रचं ि पेत् ।
पे षयेद वगण चा े भा ं िदन यम् ॥ १,६.२५ ॥
तं शु ं स ुटे धा ं खिदरा ारकै ढम् ।
ऊ पा ं िन ाथ से चयेद केन तत् ॥ १,६.२६ ॥
अग िश ुवषाभूमूलै ं प जै रसै ः ।
िप ा ं सेचये ेन य ा ा रसे न च ॥ १,६.२७ ॥
िसताम ा गो ीरै द ा ं पे म कम् ।
म ा ाः करवीरायाः वैः िप ा ि धा पचेत् ॥ १,६.२८ ॥
ततो गजपुरे पा ं िन ं जायतेऽ कम् ।
{अ :: मारण:: िन }
धा ा कं वैम म ा ीतुलसी वैः ॥ १,६.२९ ॥
मूलजैः कोिकला कुमारी ेतदू वयोः ।
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ा ीक पुननवया िदनमेतैिवमदयेत् ॥ १,६.३० ॥
कु रा ै ः पु टैः स िप ा िप ा पचे ुनः ।
त ामृ तैः पा ं िप ा िप ा तु स धा ॥ १,६.३१ ॥
एवं िन तां याित सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,६.३२ ॥
{अ :: मारण:: िन }
धा ा ं टं कणं तु ं गोमू ै ुलसीदलैः ।
वाकु ाः सूरणैर ै िदनं िप ा पुटे पचेत् ॥ १,६.३३ ॥
जय ा वै ः प ा म ि धा पुटेत् ।
चतुगजपुटेनैवं िन ं सवरोगिजत् ॥ १,६.३४ ॥
{अ :: मारण}
धा ा कं रिव ीरै ः रिवमूल वै वा ।
म म पु टे प ा धा ि यते ुवम् ॥ १,६.३५ ॥
{अ :: मारण}
धा ा कं तुषा ा ैरातपे थापयेि नम् ।
यामं म चतुग लं द् ा गजपु टे पचेत् ॥ १,६.३६ ॥
एवं गो ीरम थं था ं म पुटे पचेत् ।
एवं कापासतोयेन था ं पे ं पुटे पचेत् ॥ १,६.३७ ॥
ततोऽ ै ैव कापासै गवां ीरै ः पुनः पुनः ।
घमपाकं मदनं च पुटं चैवमनु मात् ॥ १,६.३८ ॥
एवं िवं श ुटे ा े मृतो भवित िनि तम् ॥ १,६.३९ ॥
{अ :: मृ त:: अमृतीकरण}
सवषां घाितता ाणाममृतीकरणं णु ।
ि फलो कषाय पला ादाय षोडश ॥ १,६.४० ॥
गोमू पला ौ मृता पला श ।
एकीकृ लौहपा े पाचये ृदुवि ना ॥ १,६.४१ ॥
वे जीण समादाय सव रोगेषु योजयेत् ।
{अ :: मे िदच् . ोपे ितएस्}
अनुपानं िवना ं जरामृ ु जापहम् ॥ १,६.४२ ॥
योजयेदनु पानैवा त ोगहरं णात् ।
मृतं चा ं हरे ोगान् जरामृ ुमनेकधा ॥ १,६.४३ ॥
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सेिवतं दे हदा च पवीय िववधयेत् ॥ १,६.४४ ॥

१, ७
{ह रताल:: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
अशु तालमायु ककमा तमेहकृत् ।
तापशोफा संकोचं कु ते तेन शोधयेत् ॥ १,७.१ ॥
{ह रताल:: शोधन}
तालकं कणशः कृ ा दशां शेन च ट णम् ।
ज ीराणां वैः ा ं काि कैः ालये ुनः ॥ १,७.२ ॥
व ै तुगुणै बद् ा दोलाय े िदनं पचेत् ।
संयु ं चारनालेन िदनं कु ा जैः रसैः ॥ १,७.३ ॥
ितलतै लैः पचे ामं यामं च ि फलाजलैः ।
ि वारं तालकं भा ं िप ा मू ै काि कैः ॥ १,७.४ ॥
त लैदशिभदयं द् ा पुटं च पेषयेत् ।
एवं ादशधा पा ं शु ं योगे षु योजयेत् ॥ १,७.५ ॥
{ह रताल:: शोधन}
तालकं पोटलीब ं स ाहं काि के पचेत् ।
दोलाय ेण यामै कं ततः कु ा जैः रसैः ॥ १,७.६ ॥
ितलतै ले पचे ामं यामं च ि फलाजलैः ।
एवं य े चतुयामं पा ं शु ित तालकः ॥ १,७.७ ॥
{ह रताल:: शु :: मेिदच् . ोपे ितएस्}
तालको हरते रोगान् कु मृ ु रापहः ।
शोिधतः शीतवीय च कु ते वायुवधनम् ॥ १,७.८ ॥
{मनःिशला:: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
अ री ं मू ोगमशु ा कु ते िशला ।
म ाि ं मलब ं च शु ा सव जापहा ॥ १,७.९ ॥
{मनःिशला:: शोधन}
अजामू े हं पा ा दोलाय े मनःिशला ।
स धा तैरजािप ैघम भा ं िवशु ये ॥ १,७.१० ॥
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{मनःिशला:: शोधन}
जय ीभृ राजो र ाग रसै ः िशला ।
दोलाय े िदनं पा ा यामं छाग मू के ॥ १,७.११ ॥
ालयेदारनालेन सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,७.१२ ॥
{रसक:: शोधन}
नरमू ै गोमू ैः स ाहं रसकं पचेत् ।
दोलाय ेण स ु ं योगे षु योजयेत् ॥ १,७.१३ ॥
{तु :: शोधन}
िव या मदये े माजारकपोतयोः ।
दशां शं ट णं द ा ा ं मृ ि ना ततः ॥ १,७.१४ ॥
पु टं द ा पुटं ौ ै दयं तु िवशु ये ॥ १,७.१५ ॥
{िवमला:: शोधन}
िवमला ि िवधं पा ा र ातोयेन सं युता ।
अ वेतसधा ा मेषीमू ेण पेषयेत् ॥ १,७.१६ ॥
दोलाय े चतुयामं शु रे षा महो मा ।
{िवमल:: शोधन}
ककटीमेष ङ् ु वैज ीरजै वैः ॥ १,७.१७ ॥
भावयेदातपे ती े िवमला शु ित ुवम् ॥ १,७.१८ ॥
{माि क:: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
म ाि ं बलहािनं च णिव ने क् ।
कु ते माि को मृ ु मशु ो ना संशयः ॥ १,७.१९ ॥
{माि क:: शोधन}
माि कं नरमू ेण ाथये ो वै वैः ।
वेतसे ना वगण टं कणेन कटु ि कैः ॥ १,७.२० ॥
दोलाय े िदनं पा ं सूरण ैव म गम् ।
िदनं र ा वै ः प ा द् धृ ा पेषयेद्घृतैः ॥ १,७.२१ ॥
एर तैलसं यु ं पुटे प ाि शु ये ।
{माि क:: शोधन}
माि क यो भागा भागैकं सै व च ॥ १,७.२२ ॥
मातुलु वैवाथ ज ीरो वैः पचेत् ।
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लोहपा े पचे ाव ाव ा ं सुलोिहतम् ॥ १,७.२३ ॥
ता वणमयो याित ताव ु ित माि कम् ।
{माि क:: शोधन}
अग पु िनयासै ः िश ु मूलं िवघषयेत् ॥ १,७.२४ ॥
वै ः पाषाणभे ा प ादे िभ माि कम् ।
त टीं चा मू षायां िवंश पलैः पचेत् ॥ १,७.२५ ॥
पु नः िप ाथ ा पुटैःषड् िभिवशु ित ॥ १,७.२६ ॥
{माि क:: शोधन}
मेघनादपाषाणभेदी िप ा त म े माि कं कणशः कृ ा िनि पेत् ।
त ोलकं व े बद् ा दोलाय े कुल ाथे िदनमेकं पचेत् ।
एत ु लोहानां यु थाने मारणे यो म् ॥ १,७.२७ ॥
{माि क:: परी ा:: गोओदॄउअिल ्}
भ े सु वणसं काशोऽ ः कृ ो बिह िवः ।
बृह णिमित ातो माि कः े उ ते ॥ १,७.२८ ॥
ापय म ािन तैलिब दु रवा िस ।
न िवना शोधनं सव धातवः बलादयः ॥ १,७.२९ ॥
रोगोपशमकतारः शोधनं तेन व ते ॥ १,७.३० ॥
{चोरल्:: मारण}
वालानां ीदु ेन भावना प ा काम े थापिय ा िन ोप र शरावकं द ा
लेपये त् ।
वि संदीपनं कृ ा हर येन िव ु मं ि यते ॥ १,७.३१ ॥
{उपरस (?):: मारण}
कुल पचेद् ोणे वा र ोणेन बु मान् ।
तेन पादावशेषेण ाथेऽ ौ मणयः िशला ॥ १,७.३२ ॥
आतपे ि िदनं शु ं ाथिस ं पुनः पुनः ।
मु ाचू ण समादाय करका ुिवभािवतम् ॥ १,७.३३ ॥
आतपे ि िदनं भा ं चू िणतं मृ ुमा ुयात् ॥ १,७.३४ ॥
{िशलाजतु:: शोधन}
शङ्खं नीला नं चैव पूवव ोधयेि नम् ।
गोमू ै फला ाथैभृ राज वैजतुम् ॥ १,७.३५ ॥
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मदयेदायसे पा े िदना ु ः िशलाजतोः ।
{दरद:: शोधन}
मेषी ीरे ण दरदम वग भािवतम् ॥ १,७.३६ ॥
स वारं य ेन शु मायाित िनि तम् ।
{उपरस:: शोधन}
सूयावत व क ं कदली दे वदािलका ॥ १,७.३७ ॥
िश ु कोशातकी व ा काकमाची च वायसी ।
आसामेकरसे नैव ि ारै लवणैयुतम् ॥ १,७.३८ ॥
भावयेद वगण िदनमेकं य तः ।
सौवीरं का पाषाणं शु भूनागमृ ि का ॥ १,७.३९ ॥
शङ्खं नीला नं चैव सव परसा ये ।
पृ थ ा ं िवधानेन शु ं या िदने िदने ॥ १,७.४० ॥
ततः प ा ु तद् ावैद लाय े िदनं सुधीः ।
शु े ना स े हः सवषु परमा अमी ॥ १,७.४१ ॥
मु ु तस ां मतं साधारणं ृतम् ॥ १,७.४२ ॥
{?:: स पातन}
गु ु लुं ट णं ला ा म ा सजरसं पुनः ।
ऊणा गु ा े मीनम थीिन शशक च ॥ १,७.४३ ॥
गुडम ा िप ाकं तु ं पे मजाजलैः ।
सव तु ं च धा ा ं भू नागं मृि कािप च ॥ १,७.४४ ॥
का पाषाणतु ं च किठ ुपरसा ये ।
मेलये ािहषैः प ा ािदगोमया कैः ॥ १,७.४५ ॥
ढं म वटी ं कुया षमा ं तु शोषयेत् ।
को ीय े धमे ाढम ारै िचरो वैः ॥ १,७.४६ ॥
ि वारं धमनादे व स ं पतित िनमलम् ।
असा ा ोचये ा ृि कादे का कथा ॥ १,७.४७ ॥
{ह रताल:: स पातन}
ला ा आ ं ितलाः िश ुः टं कणं लवणं गुडम् ।
तालकाधन संयो िछ मूषां िनरोधयेत् ॥ १,७.४८ ॥
पु टे पातालय ेण स ं पतित िनि तम् ।
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{??}
चा े री चणका ं च मातुलु ा वेतसम् ।
िच ा नार ं ज ीरन ण वग इित ृतम् ।
{ह रताल:: स पातन}
तालकं चूणिय ा तु छागी ीरे ण भावयेत् ॥ १,७.४९ ॥
वार यं ततो िव मूलं िप ा तु िमि तम् ।
कृ ा च गु डकं शु ं स ं ा ं च पूववत् ॥ १,७.५० ॥
{ह रताल:: स पातन}
तालकं मदयेद्दु ैः सपा ी ं वाथ मूलकैः ।
पू वव ाहये ं िछ मूषां िन च ॥ १,७.५१ ॥
{मनःिशला:: स पातन}
तालव िशलास ं ा ं तैरेव चौषधैः ।
तु े न टं कणेनैव ातं स ं चतुथकम् ॥ १,७.५२ ॥
{माि क:: स पातन}
गो ीरै तु ीरै भा मेर तैलकैः ।
माि कं िदनमे कं तु मिदतं वटकीकृतम् ॥ १,७.५३ ॥
अ व मने स ं स ग ा यं िविधः ।
{माि क (?):: स पातन}
जय ी ि फलाचूण ह र ागुडट णम् ॥ १,७.५४ ॥
पादां शं ट ण ेदं िप ा मूषां िवलेपयेत् ।
नािलकां स ु टे बद् ा शोषयेदातपे खरे ॥ १,७.५५ ॥
ा ं पातालय े च स ं ातं पुटेन च ॥ १,७.५६ ॥

१, ८
{मेत ्}
ण तारं ता ं नागं व ं का ं च ती णकम् ।
मु ा म धा लोहं कां ारं घोषकं ि धा ॥ १,८.१ ॥
{उपलोहाः}
उपलौहाः समा ाता म ू रोलौहिक कम् ।
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एते ादशधा शो ा माया ा ाः पु टािदषु ॥ १,८.२ ॥
{मेत ्:: शोधन}
तैले त े गवां मू े ारनाले कुल के ।
मा ा ं तथा त ं ावे ावे तु स धा ॥ १,८.३ ॥
णािदलोहप ाणां शु रे षा कीितता ।
{मेत ्:: मारण}
हे ः पादं मृ तं सूतं िप म ेन केनिचत् ॥ १,८.४ ॥
प े िल ा पुटे प ाद ािभि यते ुवम् ।
शु ानां सवलौहानां मारणे रीितरी शी ॥ १,८.५ ॥
{गो ् :: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
सौ ं वीय बलं ह नानारोगं करोित च ।
अशु ं ण सूतं च त ा ु ं तु मारयेत् ॥ १,८.६ ॥
{प मृि काः}
व ीकमृ ि काधू मगै रकं चेि कापुटे ।
{गो ् :: शोधन}
इ ा ाः मृ ि काः प ज ीरै रारनालकैः ॥ १,८.७ ॥
िप ा ले ं णप ं े ं पुटेन शु ित ।
{गो ् :: शोधन}
भावये ातुलु ा ै िदनं प मृि का ॥ १,८.८ ॥
सै वं भूिमभ ािप ण शु ित पूववत् ॥ १,८.९ ॥
{सु े स्fओमारण ओf मेत ्}
नागै ः सु वण रजतं च ता ैग ेन ता ं िशलया च नागम् ।
ताले न व ं ि िवधं च लौहं नारीपयो ह च िहं गुलेन ॥ १,८.१० ॥
{गो ् :: मारण}
माि कं नागचूण च िप मकरसे न तु ।
हे मप ं पु टेनैव ि यते णमा तः ॥ १,८.११ ॥
{गो ् :: मारण}
णाध पारदं द ा कुया ेन िपि काम् ।
द ो ाधो नागचूण पु टना यते ुवम् ॥ १,८.१२ ॥
{गो ् :: मारण}
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नागचूण िशलां व ी ीरे ण प रयिसतम् ।
तेनािल सुवण क ि यते पुटात् ॥ १,८.१३ ॥
{गो ् :: मारण}
मृतं नागं ुही ीरै रथवा ेन केनिचत् ।
िप ा ले ं सुवणप ं द् ा गजपु टे पचेत् ॥ १,८.१४ ॥
आदाय पेषयेद ैमृ ागं चा मां शकम् ।
बद् ा गजपु टे प ा ूवनागयुतं युतम् ॥ १,८.१५ ॥
एवं पु नः पु नः प ाद धा ि यते ुवम् ।
{गो ् :: मारण:: िन }
शु सू तसमं ग ं माि कं च महा कैः ॥ १,८.१६ ॥
अ ािभ पु टैह ो ि यते पूवव याम् ।
शु सू तं समं ण ख े कुया गोलकम् ॥ १,८.१७ ॥
अधो वै ग कं द ा सव तु ं िन च ।
ि ंश नोपलैदयं पुटा ेवं चतुदश ॥ १,८.१८ ॥
िन ं जायते भ ग ं दे यं पुटे पुटे ।
{गो ् :: मारण:: िन }
ण ि गुणं सूतं यामम ेन मदयेत् ॥ १,८.१९ ॥
अधः ऊ माि कं िप ा मूषायां णतु कम् ।
त ृ े मिदतं हे म त ृ े हे ममाि कम् ॥ १,८.२० ॥
दे यं ण समं त पृ े ग ं च त मम् ।
षड् वारं चूिणतं द ा द् ा मूषां धमेद् ढम् ॥ १,८.२१ ॥
भावशीतलं ा ं त भागप कम् ।
टं कणं ेतकाचं च भागैकं च योजयेत् ॥ १,८.२२ ॥
ि तयं मधुना ेन िमिलतं गोलकीकृतम् ।
धा ा क भागै कमध ो च दापयेत् ॥ १,८.२३ ॥
िन त मे ाढं मूषायां घिटका यम् ।
िन ं जायते भ त ोगेषु योजयेत् ॥ १,८.२४ ॥
{गो ् :: मारण:: िन }
शु माि कं भागै कं भागं चावोटमाि कम् ।
ि भागं सूतकं ि ा यम ेन मदयेत् ॥ १,८.२५ ॥
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त ोलं पातालय े तदा याम यं पचेत् ।
इ ेवं ि यते ण िन ं ना संशयः ॥ १,८.२६ ॥
{गो ् :: मारण}
तथैव च राजवृ भ ातै ंकणेन च ।
िल ा ण प ािण द् ा गजपु टे पचेत् ॥ १,८.२७ ॥
तैः वै पुनः िप ा ि यते स धा पुटे ।
हे ममार तोलैकं माषैकं शु नागकम् ॥ १,८.२८ ॥
िल ा दे यं तु तं चूण त ु ै ग माि कैः ।
अ ेन मदये ामं द् ा लघुपुटे पचेत् ॥ १,८.२९ ॥
ग ं पुनः पु नदयं ि यते दशिभः पुटैः ।
{गो ् :: मृ त:: मेिदच्. ोपे ितएस्}
सुवण च भवे ीतं ित ं ि ं िहमं गु ॥ १,८.३० ॥
बु िव ा ृितकरं िवषहा र रसायनम् ॥ १,८.३१ ॥
{िस े र्:: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
आयुः शु ं बलं ह रोगवेगं करोित च ।
अशु ममृ तं तारं शु ं मायमतो बुधैः ॥ १,८.३२ ॥
{िस े र्:: शोधन}
नागे न ट णेनैव ािवतं शु मृ ित ।
{िस े र्:: मारण}
माि कं ग कं चैवमक ीरे ण मदयेत् ॥ १,८.३३ ॥
तेन िल ं प ं पुटेन ि यते ुवम् ।
{िस े र्:: मारण}
तारं ि वारं िनि ं तैले ोित ती भवेत् ॥ १,८.३४ ॥
ु ीरै ः पेषये ा ं तारप ािण लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ा ूव ैः पे षये ुनः ॥ १,८.३५ ॥
भूधा ी माि कं तु ं िप ली सै वा कैः ।
िल ा तार प ािण द् ा स पुटे पचेत् ॥ १,८.३६ ॥
वै ः पु नः पु नः िप ा ि यते ना संशयः ।
{िस े र्:: मारण:: िन }
तारप ै िभभागैभागैकं शु माि कम् ॥ १,८.३७ ॥
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म ज ीरजै ावै ारप ािण लेपयेत् ।
शोषयेद ये ं च ि ंश ोपलैः पचेत् ॥ १,८.३८ ॥
चतुदशपु टेनैवं िन ं ि यते ुवम् ।
{िस े र्:: मारण}
प ं चतुभागा ागै कं मृ तव कम् ॥ १,८.३९ ॥
अथवा ग तालेन ले ं ज ीरपेिषतम् ।
द् ा ि ःपु टैः प ा िवंश नोपलैः ॥ १,८.४० ॥
ि यते ना संदेहो ग ो दे यः पुटे पुटे ।
{िस े र्:: मारण}
रसग ौ समौ कृ ा काकतु मूलकम् ॥ १,८.४१ ॥
मदये िहषी ीरै ः िप ा तं ालये लैः ।
ह र ागोलके ि ा गोलं हयपुरीषके ॥ १,८.४२ ॥
ि ा िदनैकिवंशं तं त ोलमु रे ुनः ।
त ा तारप ािण ले ा ेन केनिचत् ॥ १,८.४३ ॥
पु टैिवशितिभभ जायते ना संशयः ।
भ ना चा िप े न मेलये ालकं पुटैः ॥ १,८.४४ ॥
जायते ति धानेन सवरोगापहारकम् ॥ १,८.४५ ॥
{चो े र्:: अशु :: मेिदच्. ोपे ितएस्}
अप ता मायु का ं सवधातुहा ।
ा मू ा मो े शं नाना ु शू लकृत् ॥ १,८.४६ ॥
{चो े र्:: शोधन}
ु क ीरलवणकाि कै ा प कं िल ा ।
ता ं िनगु ीरसैः िस ा ुनः पुनः ॥ १,८.४७ ॥
वार ादशदाह ं ले पना ा िस नात् ।
खिटका लवणं त ै रारनालै पेषयेत् ॥ १,८.४८ ॥
तेन िल ा ता प ं त ं त ं िनषेचयेत् ।
षड् वारम िप ेन िनगु ा ु िवशु ये ॥ १,८.४९ ॥
{चो े र्:: शोधन}
गोमू ेण पचे ा प ं यामं ढाि ना ।
शु ते ना स े हो मारणं क तेऽधुना ॥ १,८.५० ॥
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{चो े र्:: मारण}
ग े न ता तु ेन िप ेन लेपयेत् ।
क कवेधीकृतं प ं िस िय ा पुटे पचेत् ॥ १,८.५१ ॥
उद् धृ चूणये न् पादां शं ग कं ि पेत् ।
ज ीरै रारनालैवा मृगदू वा वै था ॥ १,८.५२ ॥
िप ा िप ा पचे ग ं च चतु ुटे ।
मातुल रसै ः िप ा पुटमेकं दापयेत् ॥ १,८.५३ ॥
अनेनैव िवधानेन ता भ भवेद् ुवम् ।
{चो े र्:: मारण}
ता ि गुणं सूतं ज ीरा ेन मदयेत् ॥ १,८.५४ ॥
िसतशकरया े वं पुट ये मृतं भवेत् ।
{चो े र्:: मारण}
पाषाणभेदीम ा ी वै ि गुणग कैः ॥ १,८.५५ ॥
ता लेपये ं द् ा गजपु टे पचेत् ।
स ां शेन पु नद ं द ा ावै पेषयेत् ॥ १,८.५६ ॥
एवं स पु टे प ं ता भ भवेद् ुवम् ।
{चो े र्:: मारण}
ता िहङ्गु लं सूतं ज ीरा ेन पेषयेत् ॥ १,८.५७ ॥
आदौ मू षा रे ि ा ध ूर तु प कम् ।
त ृ े ता तु ं तु ग कं चूिणतं ि पेत् ॥ १,८.५८ ॥
त ृ े मिदतं ता ं पूवतु ं तु ग कम् ।
आ ा धु ूरप े द् ा गजपु टे पचेत् ॥ १,८.५९ ॥
ां गशीतं तु त ूण भ ीभवित िनि तम् ।
{चो े र्:: मारण}
िकंिच ेन चा ेन ालये ा प कम् ॥ १,८.६० ॥
तेन ग ेन सू तेन ता प ं लेपयेत् ।
ग े न पु िटतं प ा यते ना संशयः ॥ १,८.६१ ॥
{चो े र्:: मारण}
ता ि गु णग ेन चा िप ेन त ुनः ।
ि ा धोऽधभागेन दे या िप ा कैबु धः ॥ १,८.६२ ॥
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त ं भा गभ तु द् ा चु ां िवपाचयेत् ।
यामै कं ती पाकेन भ ीभवित िनि तम् ॥ १,८.६३ ॥
{चो े र्:: मारण}
सूतमे कं ि धा ग ं यामं कृ ा िवमिदतम् ।
यो ु ं ता प ं था ां गभ िनधापयेत् ॥ १,८.६४ ॥
स वणय थं पा भ िनधापयेत् ।
चतुयामं पचे ु ां पा पृ े सगोमयम् ॥ १,८.६५ ॥
जलं पुनः पु नदयं ा शै ं िवचूणयेत् ।
ि यते ना संदेहः सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,८.६६ ॥
{चो े र्:: मारण (शोधन?)}
नानािवधं मतं ता ं शु थ भागप कम् ।
भागै कं ेतकाचं च भागप ैकटं कणम् ॥ १,८.६७ ॥
मूषायां िमिलतं कृ ा भागैकं ता प कम् ।
ऊ द ा िन ाय ातै ा ं सुशीतलम् ॥ १,८.६८ ॥
िनद षं तु भवे ा ं सवरोगहरं भवेत् ।
{चो े र्:: मृ त:: मेिदच्. अ चितओन् }
अथवा मा रतं ता म ेनैकेन मदयेत् ॥ १,८.६९ ॥
त ोलं सूरण ा ा द् ा तु लेपयेत् ।
शु ं गजपुटे प ा वदोषहरो भवेत् ॥ १,८.७० ॥
वा ं ा ं िवरे कं च न करोित कदाचन ।
{चो े र्:: मृ त:: मेिदच्. ोपे ितएस्}
ता ं ती णो मधु रं कषायं शीतलं सरम् ॥ १,८.७१ ॥
कफिप यं पा ु कु ं च रसायनम् ।
प रणामशू लमशािस म ाि ं च िवनाशयेत् ॥ १,८.७२ ॥
{ितन् , लेअद् :: अमृत:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
पाकहीनौ नागवंगौ कु गु जाकरौ ।
मेहपा ू दरवातकफमृ ुकरौ िकल ॥ १,८.७३ ॥
{लेअद् :: शोधन}
िनगु ीमू लचूणन माकदु ेन लेपयेत् ।
नागप ं तु तं शु ं ाविय ा िनषेचयेत् ॥ १,८.७४ ॥
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िनगु ी वम े तु ततः प ं तु कारयेत् ।
िल ा भा ं पुनः से ं स वारं िवशु ये ॥ १,८.७५ ॥
{लेअद् :: शोधन}
िनशा तु बीजािन कोिकला ं कुठा रकाम् ।
गौरीफला का च ी ु ा ा ी सजीरकम् ॥ १,८.७६ ॥
यथालाभेन भ ैकं व ी ीरे ण भावयेत् ।
त े भािवतं नागं शु ं सेकं तु स धा ॥ १,८.७७ ॥
{लेअद् :: मारण:: िन }
अ िच ा नाग चतुरंशतः ।
ि ा चु ां पचे ा े चालये ोहच के ॥ १,८.७८ ॥
याव भवेदेत भ तु ं मनःिशलाम् ।
ज ीरै रारनालैवा िप ा द् ा पुटे पचेत् ॥ १,८.७९ ॥
ां गशीतं पु नः िप ा िवंश ंशैः िशला कैः ।
एवं षड् िभः पु टे पाको नाग ािप िन तः ॥ १,८.८० ॥
{लेअद् :: मारण}
अथवा नागप ािण चूणिल ािन खपरे ।
अ ौ पाचये ामं त िच क वैः ॥ १,८.८१ ॥
भजये ौहजे पा े चा मजुनद कैः ।
यामषोडशपय ं वं दे यं पुनः पुनः ॥ १,८.८२ ॥
द े न मदये ा मुद्धृ िच क वैः ।
गोलिय ा िन ाथ षट् पुटे मारये घु ॥ १,८.८३ ॥
{लेअद् :: मारण}
िच ा िम ुभ ातबलाव लताभवैः ।
अपामागाजुना भ िभभजयेद् ढम् ॥ १,८.८४ ॥
लोहपा ं तु स ाहं तु ं भ ािन चाशु च ।
द पलाशकेनैव ि यते ना संशयः ॥ १,८.८५ ॥
{लेअद् :: मारण}
िप ाग ं च भूनागं िल ा पा ं िवशोषयेत् ।
त ा े ावये ामं ढे भा े िविनि पेत् ॥ १,८.८६ ॥
वासािचिचटयोः ारे वासादले िवघ येत् ।
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यामै कं पाचये ु ां समु द्धृ िविम येत् ॥ १,८.८७ ॥
त ूण तु िशलाता ैवासक ारसंयुतैः ।
त ु ं पूवनागं िवंशदे कपुटे पचेत् ॥ १,८.८८ ॥
ि पु टं िचिचटा ारै ः दे यं वासारसैः सह ।
नागः िस दू रवणाभो ि यते सवकायकृत् ॥ १,८.८९ ॥
{लेअद् :: मारण}
कुनटी माि कं चैव समभागं तु कारयेत् ।
अकपणन त ा सीसप ािण मारयेत् ॥ १,८.९० ॥
{लेअद् :: मृ त:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
सित मधु रो नागो मृ तो भवित भ सात् ।
आयु ीित वीयवृ ं करोित सेवना दा ॥ १,८.९१ ॥
{ितन् :: मारण}
माि कं ह रतालं च पलाश रसे न च ।
कृतक े न संिल वंगप ािण मारयेत् ॥ १,८.९२ ॥
नागव ोधये ं त द िचंचयोः ।
त ह रतालं च तु म ेन केनिचत् ॥ १,८.९३ ॥
पलाशो वैवाथ गोलिय ा ये ुटे ।
उद् धृ दशमां शेन तालेन सह मदयेत् ॥ १,८.९४ ॥
पू व ावैः सहालो द् ा गजपु टे पचेत् ।
एवं िवं श ुटे प ा मृतं भवित भ सात् ॥ १,८.९५ ॥
{ितन् :: मारण}
व पादे न सू तेन व प ािण लेपयेत् ।
िच ावृ संगृ चा ं च त ु लैः ॥ १,८.९६ ॥
िप ा त म े तु व प ािण लेपयेत् ।
िशरीषरजनीचूणः कुमायाः शु भगोलकम् ॥ १,८.९७ ॥
सूतिल ं व प ं गोलके समलेिपतम् ।
द् ा गजपु टे प ं पूवसं ा मृतो भवेत् ॥ १,८.९८ ॥
{ितन् :: मारण}
अ भ ातकं तोयैः िप ा तािन िवलेपयेत् ।
तत लखली म े ि ा द् ा पुटे पचेत् ॥ १,८.९९ ॥
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गजा े जायते भ च ा रं शितव कम् ।
{ितन् :: मृ त:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
सित लवणं व ं पा ु ं ि िममेहिजत् ॥ १,८.१०० ॥
ले खनं िप लं िकंिच वदे हामयापहम् ॥ १,८.१०१ ॥

१, ९
{इरोन् :: अशु :: मेिदच् . ोपे ितएस्}
अशु ममृ तं लौहमायुहािन जाकरम् ।
ीडां च तृषां जा ं त ा ु ं च मारयेत् ॥ १,९.१ ॥
{का लोह:: परी ा}
पा े य सरित न चे ैलिब दु िवसृ ः ।
िहङ्गु ग ं सरित िनजं ित तां िन ुक ।
पाके द ं भवित िशखराकारता नैव भूमौ ।
का ं लौहं तिददमुिदतं ल णो ं न चा त् ॥ १,९.२ ॥
का ं मृ दुतरं तारं ाभं ितिमरं करम् ।
ादु यतो भवेि क ो राि िनवेिशतः ॥ १,९.३ ॥
का ं तदु मं य ेनाविततं िमलेत् ।
सवरोगहरमेत वकु हरं परम् ॥ १,९.४ ॥
{इरोन् :: सु पेस्:: शोधन}
शशछागर सं िल ं ि वारं चाि तािपतम् ।
का ािदमु पय ं सवरोगहरं परम् ॥ १,९.५ ॥
{इरोन् :: शोधन:: अि }
ि फला गु णै ोयै फलाषोडशं पलम् ।
त ाथे पादशे षे तु लौह प प कम् ॥ १,९.६ ॥
कृ ा प ािण त ािन स वारािण सेचयेत् ।
एवं लीयते दोषो िग रजो लौहस वः ॥ १,९.७ ॥
{इरोन् :: शोधन}
ि िवधं लौहचूण वा गोमू ैः षड् गुणैः पचेत् ।
ालयेदारनाले शो ं शु मवा ुयात् ॥ १,९.८ ॥
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{इरोन् :: सु पेस्:: शोधन}
र माला हं सपादो गोिज ा ि फलामृता ।
गोपाली तु ु द ी तु गोमू पेिषतम् ॥ १,९.९ ॥
अ े लौहप ं त ं त ं ि स धा ।
सेचये ा मु ा ं सवदोषापनु ये ॥ १,९.१० ॥
सव ौषधक ेषु लौहक ं श ते ।
त ा व य ेन लौहमादौ िवमारयेत् ॥ १,९.११ ॥
अयः प पलादू याव ल योदशात् ।
आदौ म तः कम यथाकत मु ते ॥ १,९.१२ ॥
{इरोन् :: मारण}
िहङ्गु ल पलान् प नारी ेन पे षयेत् ।
तेन लौह प ािण लेपये लप कम् ॥ १,९.१३ ॥
द् ा गजपु टे प ा षायै ैफलैः पु नः ।
ज ीरै रारनालैवा िवं श ंशेन िहङ्गुलम् ॥ १,९.१४ ॥
िप ा द् ा पुटे ोहं तथैवं पाचये ुनः ।
च ा रं श ुटैरेवं का ं ती णं च मु कम् ॥ १,९.१५ ॥
हो ि यते ालस े द ा द ा च िहङ्गु लम् ।
{इरोन् :: मारण}
अजुन चा पे ा काि केनाितलोिहता ॥ १,९.१६ ॥
त े लोहचूण च कां पा े िविनि पेत् ।
िदनै कं भावयेद्घम वैः पूय पुनः पुनः ॥ १,९.१७ ॥
अजुनैः सारनालै वा ि िवधं मारयेदयः ।
{इरोन् :: मारण}
द ीप ं वं य लौहचू ण िवलोडयेत् ॥ १,९.१८ ॥
िदनै कं भावयेद्घम वं दे यं पुनः पुनः ।
द् ा रा ौ पुटैः प ादे िभ ावै भावयेत् ॥ १,९.१९ ॥
एवम िदनं कुया िवधं ि यते यः ।
{इरोन् :: मारण}
िच ाप िनभां कुया िवधं लोहप कम् ॥ १,९.२० ॥
मृ ा थं ि पेद्घम द ा ावैः पूरयेत् ।
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प ं पु नः पु न ाव ाव रित वै यः ॥ १,९.२१ ॥
ि यते ती घमण चूण कृ िनयोजयेत् ।
{इरोन् :: मारण}
का ं ती णं तथा मु चूण म ा जै वैः ॥ १,९.२२ ॥
आतपे ि िदनं भा ं ि िदनं िच क वैः ।
ि क क वै हं सहदे ा वै हम् ॥ १,९.२३ ॥
गोमू ै फला ाथे भावये हं हम् ।
धात ा ततो म मा े यं पु टं पुटम् ॥ १,९.२४ ॥
द् ा गजपु टेनैवं मृ तं योगे षु योजयेत् ।
{इरोन् :: मारण}
वै ः कुर प ो ैः लौहचूण िवमदयेत् ॥ १,९.२५ ॥
िदनै कमातपे ती े वै म ि क कैः ।
व ाभृ ीपु ननवयोग मू ै िदनं पुनः ॥ १,९.२६ ॥
गोमू ै फला ा ा त षायेण भावयेत् ।
ि स ाहं य ेन िदनैकं मदये तः ॥ १,९.२७ ॥
द् ा गजपु टे प ािदं ाथेन मदयेत् ।
िदवा म पु टं रा ावेकिवंशितिदनािन वै ॥ १,९.२८ ॥
एकिवं शि ने नैव ि यते ि िवधं यः ।
{इरोन् :: मारण}
माि कं च िशला ैह र ा म रचािन च ॥ १,९.२९ ॥
िप ा म लोहप ं त ं त ं िनषेचयेत् ।
स धा ि फला ाथे जलेन ालये ुनः ॥ १,९.३० ॥
कु ये ोहद े न पे षये फलाजलैः ।
षोडशां शेन लोह दात ं माि कं िशला ॥ १,९.३१ ॥
अ ेन लोिडतं द् ा गजा कपुटे पचेत् ।
िन ं जायते भ का ं ती णािदमु कम् ॥ १,९.३२ ॥
{इरोन् :: मारण}
ित दू फल म ािभिल ा था ातपे खरे ।
धारये ां पा थं िदनैकेन पुट लम् ॥ १,९.३३ ॥
ले ं पुनः पुनः कुया दना ा ं लेपयेत् ।
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ि फला ाथसंयु ं िदनैकेन मृतं भवेत् ॥ १,९.३४ ॥
{इरोन् :: मारण}
था ां वा लोहपा े वा लौहद ा िवलोडयेत् ।
पाचये फला ाथे िदनै कं लोहचूणकम् ॥ १,९.३५ ॥
त ं ि फलातोयैः िप ा द् ा पुटे पचेत् ।
षोडशां शेन मू षायां िनवातेऽहिनशं पचेत् ॥ १,९.३६ ॥
एवं ि धा कत ं थालीपाकं पुटा रम् ।
भृङ् ा ावं तालमूली ह कण मूलकम् ॥ १,९.३७ ॥
शतावरी िवदाया मूल ाथे च ैफले ।
िप ा त ूवव था ां पा ं पे ं पुटे ि धा ॥ १,९.३८ ॥
ततः पुननवातोयैदशमूलकषायकैः ।
बृह ा कषायैवा बीजपूर तोयतः ॥ १,९.३९ ॥
बीज थािश ु ाथे गोपयसािप वा ।
े केन पे ादौ पू वगभपुटे पचेत् ॥ १,९.४० ॥
भावये ु वे नैव पुटा े याममा कम् ।
े केन मादे वं िप ा पुटै भावयेत् ॥ १,९.४१ ॥
ि यते ना संदेहः का ं ती णं च मु कम् ।
सवमेत ृतं लौहं ात ं िम प कैः ।
य ेवं ाि ानं से ं वा रतरं भवेत् ॥ १,९.४२ ॥
{इरोन् :: मारण}
म ा ं मृतं लौहं च स ं संपुटे ि पेत् ।
द् ा दभायं तु सं ा ं ं च पू वमानकम् ॥ १,९.४३ ॥
तदा लौहं मृ तं िव ादमृतं मारये ुनः ॥ १,९.४४ ॥
{इरोन् :: मारण:: िन }
ग कं तु मृ तं लौहं तु ं ख े िवमदयेत् ।
िदनै कं क का ावै द् ा गजपु टे पचेत् ॥ १,९.४५ ॥
इ ेवं सवलोहानां कत ोऽयं िन तः ॥ १,९.४६ ॥
{इरोन् :: मारण:: वा रतर}
शु सू तं ि धा ग ं कृ ा ख े तु क लीम् ।
योः समं लौहचूण मदये का वैः ॥ १,९.४७ ॥
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याम या मुद्धृ त ोलं ता पा के ।
आ ा ैर प ै यामा णो तां जेत् ॥ १,९.४८ ॥
धा राशौ से ा िदना े समु रे त् ।
स गालये े स ो वा रतरं भवेत् ॥ १,९.४९ ॥
का ं ती णं तथा मु ं िन ं जायते मृतम् ।
णादी ारयेदेवं चूण कृ तु लोहवत् ॥ १,९.५० ॥
िस योगिमदं ातं िस ानां स ुखागतम् ।
{इरोन् :: मृ त:: मे िदच्. उसे}
अ भूतमायसा ं सवरोग रापहम् ॥ १,९.५१ ॥
ि फलारससं यु ं सवरोगेषु योजयेत् ॥ १,९.५२ ॥
मृतािन लौहािन वशीभव ।
िन यु ा खलामयािन ।
अ ासयोगाद् ढयोगिस म् ।
कुव ङ्मृ ुजरािवनाशम् ॥ १,९.५३ ॥
{इरोन् :: मृ त:: अमृतीकरण}
तोया भागशे षेन ि फलापलप कम् ।
घृ तं ाथ तु ं ा ूण तु ं मृतायसम् ॥ १,९.५४ ॥
पाचये ा पा े च लौहद ा िवचालयेत् ।
मृ ि ना पचे ाव ाव ीयित ग कम् ॥ १,९.५५ ॥
लौहतु ा िशवा यो ा सुप े नैवावतारयेत् ।
योगवाहिमदं ातं मृ तं लोहं महामृतम् ॥ १,९.५६ ॥
एवं का ती ण मु ािप िविधः ृतः ।
{इरोन् :: मृ त:: अमृतीकरण}
गुड कुडवे प ं लौहभ पला तम् ॥ १,९.५७ ॥
कोल माणं रोगे षु त योगेन योजयेत् ।
घृ तं तु ं मृ तं लोहं लोहपा गतं पचेत् ॥ १,९.५८ ॥
जीण घृतं समादाय योगवाहेषु योजयेत् ॥ १,९.५९ ॥
ओममृ तेन भ ाय नमः अनेन मनुना लौहं भ येत् ।
{इरोन् :: मृ त:: मे िदच्. ोपे ितएस्}
आयुव य बलं द े पा ु मे हािदकु नुत् ।
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आमवातहरं लौहं वलीपिलतनाशनम् ॥ १,९.६० ॥
{उपलोह:: शोधन}
ि ारं प लवणं स धा ेन मदयेत् ।
कां ारघोषप ािण ितलक े न लेपयेत् ॥ १,९.६१ ॥
द् ा गजपु टे प ा ु मायाित ना था ।
{उपलोह:: मारण}
ता व ारये ेषां कृ ा सव योजयेत् ॥ १,९.६२ ॥
{ ो शे :: मे िदच्. ोपे ितएस्}
कां ं कषायमु ं च लघु ं च ित कम् ।
कफिप जं ह े हायु वधनम् ॥ १,९.६३ ॥
{ ् :: मे िदच्. ोपे ितएस्}
रीितका च गलं मित लवणं सरम् ।
शोधनं सवरोग ं बलवीयायु व नम् ॥ १,९.६४ ॥
{म ू र:: ोदु तओन्}
अ ा ारे धमे ं लौहजं च गवां जलैः ।
सेचयेद प ै स वारं पुनः पुनः ॥ १,९.६५ ॥
म ू रोऽयं समा ातः शु ं णं िनयोजयेत् ।
िक ा तगु णं मु ं मु ा ी णं शतािधकम् ॥ १,९.६६ ॥
ती णा गु णं का ं भ णा ु ते गु णम् ।
त ा ा ं सदा से ं जरामृ ुहरं परम् ॥ १,९.६७ ॥

१, १०
तैलानां पातनं व े सूयपाकेऽथवानले ।
य योगे न य ैलं ा ं योगेषु योजयेत् ॥ १,१०.१ ॥
{ध ूर:: ओइल्}
ध ूरबीजचूणािन व पूतािन कारयेत् ।
आिल कां पा ं तु धारयेदातपे खरे ॥ १,१०.२ ॥
सुत ं व पूतं च पातये ैलमाहरे त् ।
{िश ु :: ओइल् }
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िश ुपु रबीजानां बीज माकव च ॥ १,१०.३ ॥
ा ं ध ूरव ैलमे कैक पृथ ृथक् ।
यथा ध ूरजं तैलं ाथाद् घम समुद्धृतम् ॥ १,१०.४ ॥
तथा सव तैलािन सं ा ा ौषधा रै ः ।
{अ ोट:: ओइल्}
अ ोट ािप तैलं ा ाकतु या समूलया ॥ १,१०.५ ॥
वाकुचीदे वदा ा कक टीमूलतः भवेत् ।
अपामागकषायेण तैलं ाि षतु जम् ॥ १,१०.६ ॥
मूल ाथै ः कुमाया ु तैलं जैपालजं भवेत् ।
ाथेन र माग वाकुचीतैलमाहरे त् ॥ १,१०.७ ॥
ाथेन चे वा ा ैलमार धं भवेत् ।
काकतु पामाग ाथा ैलं समाहरे त् ॥ १,१०.८ ॥
{कटु तु ी:: ओइल्}
बीजािन कटु तु ा गोमयेन िवलोडयेत् ।
शु ं धा तुषैः सा कु ये उलूखले ॥ १,१०.९ ॥
िन ुषं तं िवचू ाथ भृ राजरसै ः सह ।
मदिय ातपे तैलं गृ ीया ीडने सित ॥ १,१०.१० ॥
{ओइल्fरों कृ ा अ ् काकतु ी}
कृ ायाः काकतु ा बीजं चूणािन कारयेत् ।
का पाषाणचूण चैकीकृ िनरोधयेत् ॥ १,१०.११ ॥
धा रािशगतं प ा उद् धृते तैलमाहरे त् ।
धा ीफलरसैभा ं चूण पाषाणबीजकम् ॥ १,१०.१२ ॥
िदनै कं च ततो य े तैलं ा ं च तैलके ।
{ओइल् :: fरों गु ा अ ् कर }
गु ाकर फलं च नरमू ेण भावयेत् ॥ १,१०.१३ ॥
स वारं ततो घम लेपये ां भाजनम् ।
उद् धृ धारयेद्घम तैलं पतित पीडनात् ॥ १,१०.१४ ॥
{ओइल् :: ोित ती}
वधमानारनालेन िप ा चूण िवभावयेत् ।
ोित ु बीजानामातपे तैलमाहरे त् ॥ १,१०.१५ ॥
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{ओइल् :: पु जीव}
पु जीव बीजानां चूणमग बीजजम् ।
आ ातव कत ं तत ैलं पृथ ृथक् ॥ १,१०.१६ ॥
{ओइल् :: िब }
ना रकेला ुना भा ं िब बीज चूणकम् ।
िदनै कं तैलय ेण तैलमाकृ योजयेत् ॥ १,१०.१७ ॥
{ओइल् :: अ ोल}
िन ुषा ोलबीजानां सुखं िकंिचि घषयेत् ।
लेपये ां पा े िप ा चणकलेपने ॥ १,१०.१८ ॥
त ु खे टं कणं चूण िकंिच ं िच लेपयेत् ।
धारयेदातपे ती े मु खा ैलं समाहरे त् ॥ १,१०.१९ ॥
{केशतैल}
शमीचूणसमं िप ा िछ मा े िनवेशयेत् ।
िछ ाधः थापये ा ं िछ े केशं च दापयेत् ॥ १,१०.२० ॥
जलेन से चयेद् ं िछ ाधो ाहये तम् ।
त े धृ तकेश ि पेदू पुटं शनैः ॥ १,१०.२१ ॥
त णा व पं च केशतैलिमदं भवेत् ।
{ओइल् :: एx तओन् (गेन्.)}
अप भानुप ाणां रसमादाय भावयेत् ॥ १,१०.२२ ॥
सम ं बीजचूण चो ानु ं पृथ ृथक् ।
आतपे मु ते तैलं सा ासा ं न सं शयः ॥ १,१०.२३ ॥
{ओइल् }
तथैवो रवा ाः कषायेण समाहरे त् ।
तैलं सम बीजानां ाहयेदातपे खरे ॥ १,१०.२४ ॥
{ओइल् }
सवबीजा थमां सानां शु ं िप ा नेकधा ।
सवबीजे षु वा तैलं ा ं पातालय के ॥ १,१०.२५ ॥
{ओइल् }
वंशािदसवका ानां ना रकेलकपालकम् ।
तुषधा ािदबीजानां गभय ेण तैलकम् ॥ १,१०.२६ ॥
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ाहये वबीजानां तं च योगेषु योजयेत् ॥ १,१०.२७ ॥
{व नाभ}
व नाभं िवषं ादु दीपनं कफवातिजत् ।
ि दोषशमनं योगयु ं सुधामयं भवेत् ॥ १,१०.२८ ॥
बृंहणं बलवीय वाडबाि शतोपमम् ।
सि पाते तीकारे भवः भवोऽ िह ॥ १,१०.२९ ॥
उद् धृतं फलपाका े नवं ि ं घनं गु ।
अ ापकं िवषहरं वातातपिवशोिषतम् ॥ १,१०.३० ॥
र सषपतैलेन िल ं वासिस धारयेत् ।
अथवािप यथा ा ं िवषं गोमू संयुतम् ॥ १,१०.३१ ॥
आतपे ि िदनं शु ं िनिहतं वीयधृ भवेत् ।
मृतं सूता कं लौहं िवषं च तु वीयकम् ॥ १,१०.३२ ॥
त ाि षं योगवाहे यो ं योगे रसायने ।
तािन चैव तु मानािन अ ौ षड् वा चतुथकम् ॥ १,१०.३३ ॥
मा ा यं समा ातमु माधमम म् ।
दात ं सवरोगे षु घृतािशने िहतािशने ॥ १,१०.३४ ॥
ीरािशने दात ं रसायनवते नरे ।
न ोिधने न िप ा े न ीबे राजय िण ॥ १,१०.३५ ॥
ु ृ ा मकमा शोिषणे यरोिगणे ।
गिभणीबालवृ े षु न िवषं राजम रे ॥ १,१०.३६ ॥
न दात ं न भो ं िवसं वादे कदाचन ।
आचायण तु भो ं िश यकारकम् ॥ १,१०.३७ ॥
अनेन म ेण मदयेद्भूमौ न थापयेत् ।
अमृतिमित वदे िदित मोऽयम् ।
ओं िस गु ो नमः ।
परमगु ो नमः ।
परा रगु ो नमः ।
परमेि गु ो नमः ।
{वेगेत े पोइसो ्}
स ुकं मु कं ी वालकं सषपा यम् ।
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व नाभं च कूम ेत ी तथा मम् ॥ १,१०.३८ ॥
इ ौ योजये ोगे कालकूटािद वजयेत् ।
{पोइसो ् }
कालकूटं मेष ी हालाहलं च ददु रम् ॥ १,१०.३९ ॥
ककटं मकटं हा र ं र कम् ।
केशवं दशमं चेित वजनीयं िभष रै ः ॥ १,१०.४० ॥
स ुका ान् यु ीत सवरोगे रसायने ।
एति षं जाितचतु यं च िवचाय यो ं िभषगु मेन ॥ १,१०.४१ ॥
िव ो र ित यौवनं नरपित द् भूतले पालतां वै ः कु िवनाशने च कुशलः शू ो
हरे ीवनम् ।
त ा ािप िभष रे ण िनपु णै े िदना भावये ु यादे व ततो िवषं नृपवरो मृ ुं जयाय
ि तौ ॥ १,१०.४२ ॥
ेता वा यिद वा िप ा मधु रा ऊषरािप वा ।
लोमशा जाितः ा जाित ु लोिहता ॥ १,१०.४३ ॥
पीता वा मधु रा िकंिच ै जाित ु धू सरा ।
कृ ा शू ेत एतेषां च िभष रै ः ॥ १,१०.४४ ॥
ीरं स ूणभा े ऽिप िवषं द ा िविच येत् ।
जायते ऽिप यदा वण तदा जाितं िविनिदशे त् ॥ १,१०.४५ ॥
शु ं र ं तथा पीतं कृ ं चेित चतुिवधम् ।
िवट् शू ाणां ात ो जाितिनणयः ॥ १,१०.४६ ॥
ि ं दु े िवषं वै ो जानीया मशो यिद ।
ेतं र ं तथा पीतं कृ ं चो लमेव च ॥ १,१०.४७ ॥
तु ेन ट णे नैव ि यते पेषणाि षम् ।
िवषेषु ज मा ेषु िवषं नागभवं िहतम् ॥ १,१०.४८ ॥
इदमेव महा े ं ि दोष पणं णात् ।
दीपनं कु ते स ो वडवाि शतोपमम् ॥ १,१०.४९ ॥
संिनपात ितकारे भावः भवो िह सः ॥ १,१०.५० ॥
नागो वं यथा ा ं िवषं गोमू संयुतम् ।
आतपे ि िदनं शु ं िनिहतं वीयधृ वेत् ॥ १,१०.५१ ॥
अितमा ं यदा भुङ् े तदा ट णं िपबे त् ।
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रजनी मे घनादा वा सपा ी वा घृता ता ॥ १,१०.५२ ॥
िलहे ा मधु सिप ा चूिणतामजुन चम् ।
पु जीवकम ां वा िपबे ा िन क यम् ॥ १,१०.५३ ॥
एवं िवषिविधः ातः योगं च वदा हम् ।
िवषं ि कटु कं मु ं ह र ािन प कम् ॥ १,१०.५४ ॥
िवड म मं चूण छागमू ैः समं समम् ।
चणकाभा वटी ाता ा या योगवािहका ॥ १,१०.५५ ॥
िवषं पाठा ग ा बला तालीसप कम् ।
म रचं िप ली िन मजामू ेण तु कम् ॥ १,१०.५६ ॥
विटका पूवव ाया विटका योगवािहका ।
िन ां त ां मं दाहं सफेनं लोमहषणम् ॥ १,१०.५७ ॥
शोषं चैवाितसारं च कु ते ज मं िवषम् ।
थावरं तु रं िह ां द हष गल हम् ॥ १,१०.५८ ॥
फेनछ िच ासं मू ा च कु ते िवषम् ।
न जानाित यदा म ी िवषं भ े िक तम् ॥ १,१०.५९ ॥
िवषमे व तदादाय म ुिनधािवव ।
त ा ेन संर े ाजा िवषिचिक कात् ॥ १,१०.६० ॥
थमं वि खप रकायां मना ृ ा व माणम ेण िनिवषं िवधाय गृ ीयािदित ।
िन ु वे िप ं वार यं िवभा ा संशो गृ ीयािदित ।
{िशलाजतु:: ओ रिगन् }
हे मा ाः सू यसं त ाः व िग रधातवः ।
ज ाभं मृदु मृ ाभं य लं त लाजतु ॥ १,१०.६१ ॥
{िशलाजतु:: मे िदच् . ोपे ितएस्}
अनघं चा कषायं च कटु पाके िशलाजतु ।
ना ु शीतं धातु तु स वः ॥ १,१०.६२ ॥
{िशलाजतु:: fरों गो ् :: मे िदच्. ोपे ितएस्}
हे ोऽथ रजता ा ा रं कालायसादिप ।
मधु रं च सित ं च जपापु िनभं च यत् ॥ १,१०.६३ ॥
िवपाके कटु शीतं च त ुवण िनसृ तम् ।
{िशलाजतु:: fरों िस ेर्:: मेिदच्. ोपे ितएस्}
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राजतं कटु कं ेतं शीतं ादु िवप ते ॥ १,१०.६४ ॥
{िशलाजतु:: fरों चो ेर्:: मेिदच्. ोपे ितएस्}
ता ा िहणक ाभं ती णो ं प ते कटु ।
{िशलाजतु:: fरोिमरोन् :: मे िदच्. ोपे ितएस्}
य गु ुलुसंकाशं सित ं लवणा तम् ॥ १,१०.६५ ॥
िवपाके कटु शीतं च सव े ं तदायसम् ।
गोमू ग ः सवषां सवकमसु यौिगकाः ॥ १,१०.६६ ॥
रसायन योगे षु पि मं तु िविश ते ।
यथा मं वातिप े े िप े कफे ि षु ॥ १,१०.६७ ॥
िवशेषेण श े मला हे मािदधातुजाः ।
{िशलाजतु:: स्. ोपे ितएस्}
लौहः िक ायते व ौ िवधू मं द तेऽ िस ॥ १,१०.६८ ॥
तृणा े कृतं े मधो गलित त ुवत् ।
दं शदं ौषधािददोषहरणाथ मेष ं भूजप ेण धूपयेत् ।
ा ं िशलाजतुसमं चतुगुणेन जलं द ा चतुभागावशेषेण भावयेिद े कः प ः ।
वा ु अ गु णजलदानेना ावशेषे पूववदु भयथैव वहारः ।
भ िशलाजतु ि फलादशमूलो ाथे िनि ।
केवलो ोदके वा थते ऊ वीभूते प प व व ा म् ।
ततः िशवागु िडको मेण भावनां द ा िवशो सालसारािदना भावये था ।
सालयु ौ कर ौ ौ खिदरं च न यम् ।
गदभा ोऽजुन ेह लो यु धवासनाः ॥ १,१०.६९ ॥
िशरीषागु कालीयपूगपूितकककटाः ।
सालसारािदर ेष गणः े गदापहः ॥ १,१०.७० ॥
मेहगु ाशःकु ा रमेदःपा ु जापहः ।
एिभिदवातपे शो ं रा ौ रा ौ च भावयेत् ॥ १,१०.७१ ॥
वे ण यावता मेकीभू या तां जेत् ।
भवे माणं िनिद ं िभष भावनािवधौ ॥ १,१०.७२ ॥
भवेद् ं समं ा ं ाथं चा ावशेिषतम् ।
तेना समं ं शोषये बलातपे ॥ १,१०.७३ ॥
द हीरकं यो ं िनि ा ौ ापिय ा िनगु ीरसेन स वाराि वा ा च
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गृ ीयात् ॥ १,१०.७४ ॥
जाय े वाम ाथे जनपदे ी ेऽकतापािदताः ।
शीतोषणे िशिशरे च गु ुलुरसं मु ते प धा ॥ १,१०.७५ ॥
हे माभं मिहषा तु मपरं त रागोपमं भृ ाभं कुमुदद् युितं च िविधना ा ा परी ा
ततः ॥ १,१०.७६ ॥
व ौ ल तपने िवलयं या को सिलले पयसा समानाः ॥ १,१०.७७

ा ाः शु भाः प रहरे रकालजातान ा फुटं खपरग कतु वणान् ॥ १,१०.७८ ॥
{गु ुलु:: मेिदच्. ोपे ितएस्}
ादे ादु ः कषायित कटु को वीय िवपाके कटु ः ।
वृ ो मागिवशोधनेऽितिवशद ी णो िवकाशी सरः ॥ १,१०.७९ ॥
सायु ः रद दोषशमनो मेधा ृित ीकरः ।
ध ः पापिनसूदनोऽि जननो शोधीपुनः ॥ १,१०.८० ॥
{गु ुलु:: शोधन}
दशमूल ाथे उ े पूते गु ुलुं प रि ालो च व पूतं िवधाय च ातपे िवशो घृतं
द ा िप त म् ॥ १,१०.८१ ॥
{चो छ् :: शोधन}
शं खनािभं तथा ेन स वारं िह भावयेत् ।
रौ े मलािदकं ा ा ाहयेिदित ॥ १,१०.८२ ॥
{मोने चोw रए:: शोधन}
वराटी ं त चा े रीज ीराणां रसे शुभे ।
ि भावये ाव ाव ु ा न प ित ॥ १,१०.८३ ॥
प ादु द्धृ गृ ीया राटी ं शु मागताम् ॥ १,१०.८४ ॥
{पे अल्:: शोधन}
भौिमकं जलमादाय मु ां च ुिषतामिप ।
ा मलािदकां तां च ा ाहयेिदित ॥ १,१०.८५ ॥

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२, १
जयित स रसराजो मृ ु श ापहारी सकलगु णिनधानं कायक ािधकारी ।
विलपिलतिवनाशं से िवतो वीयवृ ं थरमिप कु ते यः कािमनीनां स म् ॥ २,१.१ ॥
अथातः स व ािम दे हिस ं सुशोभनाम् ।
य ाः िस ौ मनु ाणां जाय े सविस यः ॥ २,१.२ ॥
न दे हेन िवना िकंिचिद म जग ये ।
त ा व य ेन त न् य ो िवधीयताम् ॥ २,१.३ ॥
शु भन िदवसे वमने रे चने कृते ।
ततो िवशे षशु थ केतकी नजं वम् ॥ २,१.४ ॥
ि िदनं कुडवैकैकं लोणदोषहरं िपबेत् ।
िवड ं च वचा कु ं केतकी नसं युतम् ॥ २,१.५ ॥
िथतं ि िदनं पीतम दोषहरं परम् ।
ामावि िवड ािन ूषणं ि फला वृषः ॥ २,१.६ ॥
सै वं दे वदा मु ा चैत मं समम् ।
घृ तैल ं तु कषकं स ाहा वदोषिजत् ॥ २,१.७ ॥
एवं िवशु दे ह ु पूजये े वतां गु म् ।
कुमारी ं योिगनीच ं ततः कुया सायनम् ॥ २,१.८ ॥
{रसायन}
िनवाते भूगृहे वाथ बा िच ािवविजतः ।
िजते यो िजत ोधः ीरशा भु वेत् ॥ २,१.९ ॥
ष ोदनं यवा ं च गोधू मं मु यूषकम् ।
जा लं भ ये ां सं केवलं ीरमेव वा ॥ २,१.१० ॥
बला ं वाथ भु ीत शाकलोणिवविजतम् ।
अ ं म ुना कुया ानं चैव सुखा ुना ॥ २,१.११ ॥
कािकनी ं ी ं भजेि ं ानुकूलां सुयौवनाम् ।
रसे े भ माणे तु कामा ो जायते नरः ॥ २,१.१२ ॥
मैथुनेन िवना त जीण जायते रसः ।
अजीण क दाहात िह ा मूछा रोऽरितः ॥ २,१.१३ ॥
कास ासा िच िद ममोहा भव िह ।
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सेवेत सुभगां त ाद् दु भगां प रवजयेत् ॥ २,१.१४ ॥
अ ं कटु तैलेन काि कं मिदरां दिध ।
किल कारव तैलकू ा रािजकाः ॥ २,१.१५ ॥
िब ाकवाताकिवदलं काकमािचकाम् ।
मूलकं लशुनं ती णं शीतमु ं च वजयेत् ॥ २,१.१६ ॥
रा ौ जागरणं ा ं िदवा ापं च मै थुनम् ।
कलहो े गिच ा शोकं चैव िववजयेत् ॥ २,१.१७ ॥
आवजना वे ू लं िन ाल ं रोऽरितः ।
हं िपबे शा ै वा रणा ककटीफलम् ॥ २,१.१८ ॥
शु ीसै वचूण वा मातुलु ा कैिलहे त् ।
सौवचलं गवां मू ैः िपबे ा त शा ये ॥ २,१.१९ ॥
व ाकक टकी ं पुङ्खां पातालग डी ं जलैः ।
ाथयेद गु िणतै द ां शं ससै वम् ॥ २,१.२० ॥
िपबे विवकार ं ि िदनं िशवभािषतम् ।
मूलं वा कारव ु ं सै वं वा गवां जलैः ॥ २,१.२१ ॥
ि िदनं कषमा ं तु िपबे विवकारिजत् ।
अप शीिलनामेत िथतं रससे िवनाम् ॥ २,१.२२ ॥
अमुमेव िविधं कुया सायनिवधौ िकल ।
अमृतं िविधसंयु ं िविधहीनं तु ति षम् ॥ २,१.२३ ॥
चातु जातककपूरक ोलं कटु कीफलम् ।
खादे ा ूलसंयु ं रससङ् ामणे िहतम् ॥ २,१.२४ ॥
अथा व ते स गादौ पारदमारणम् ।
समु ख रसे वासनामु खत वा ॥ २,१.२५ ॥
मेण जारये ण समां शं पूवव तः ।
त ु ं ग कं त न् द ा िद ौषिध वैः ॥ २,१.२६ ॥
मदये िदनं ख े मूषायां चा तं ततः ।
करीषा ौ िदवारा ं ि रा ं वा तुषाि ना ॥ २,१.२७ ॥
ेिदतं मदयेद्भूयो बीजैिद ौषधो वैः ।
तु ं ख े चतुयामं व मूषा तं धमेत् ॥ २,१.२८ ॥
भ सूतं भवे ै यो ं सवरसायने ।
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शु सू तं समं ण यामम ैिवमदयेत् ॥ २,१.२९ ॥
ा ाहये ी ं िप ध शु ग कम् ।
ग ाध ट णं द ा सवतु ां ह रि काम् ॥ २,१.३० ॥
ीपु े ण तु त व म र ा वा तम् ।
िदना े गोलकं कृ ा वालुकाय गं पचेत् ॥ २,१.३१ ॥
िदनं म ाि ना तं वै समु द्धृ िवचूणयेत् ।
चूणाशं ग कं द ा गभय े हं पचेत् ॥ २,१.३२ ॥
तुषाि ना लघु ेन जायते भ सूतकः ।
शु सू त भागः ा ागैकं ता चूणकम् ॥ २,१.३३ ॥
िदनै कं मदयेद ैः ािलतं िपि माहरे त् ।
माि का ौतस ं च िपि तु ं क येत् ॥ २,१.३४ ॥
त व ि िदनं म च मददल वैः ।
त ोलं गभय थं ि िदनं तुषवि ना ॥ २,१.३५ ॥
करीषा ौ िदवारा ं पचे ा भ तां जेत् ।
शु सू तं ोमस ं सुवण च समं समम् ॥ २,१.३६ ॥
सवतु ं िवडं द ा म र ा वैिदनम् ।
बीजै िद ौषधीनां च तु ैम िदन यम् ॥ २,१.३७ ॥
गभय गतं प ा यते पूवव ुटे ।
चतुरङ्गु लदीघ ाि ारे चाङ् गुल यम् ॥ २,१.३८ ॥
मृ यं स ु टं कृ ा छायाशु ं च कारयेत् ।
लवणं िवंशभागं ा ागमेकं तु गु ुलुम् ॥ २,१.३९ ॥
सव तोयैः िप ाथ तेनैव स ुटोदरम् ।
िल ा त रसं ा भय िमदं भवेत् ॥ २,१.४० ॥
िवमला पारदं शु ं तु ं िनगु का वैः ।
मदये िदनं तं वै काचकू ां िनवेशयेत् ॥ २,१.४१ ॥
काचकू ा भावे तु िन ा रावस ुटे ।
पाचये ालुकाय े चतुयामा ृतो भवेत् ॥ २,१.४२ ॥
माि का ौतस ं तु त मं शु ग कम् ।
ा ां तु ं शु रसं िदनं िनगु का वैः ॥ २,१.४३ ॥
त व मिदतं गोलं व मूषा तं पचेत् ।
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िदनै कं वालुकाय े मृ तं ा वणकम् ॥ २,१.४४ ॥
ऊ ाधो ग कं तु ं दात ं शु पारदे ।
उदरे प मू षायाः काकमाची वं पुनः ॥ २,१.४५ ॥
ा ां चतु गुणं द ा तामा ा पचे नैः ।
मा ौ वालु काय े चतुयामा ृतो भवेत् ॥ २,१.४६ ॥
ु ा वा हे मव ा वा ीरै ः शु रसं िदनम् ।
मदये कं तु ं गभय गतं पुटेत् ॥ २,१.४७ ॥
पू वव मयोगेन मृ तं योगेषु योजयेत् ।
शु सू तसमं गु ाला ोणामधु ट णम् ॥ २,१.४८ ॥
त व भृ जै ावैिदनमे कं िवमदयेत् ।
व मू षा तं ातं ि यते शिशसि भम् ॥ २,१.४९ ॥
वै ु कीटमा र ा जमोदा वै वा ।
अिहमाया वैवाथ िकंवा ेताङ् कुल वैः ॥ २,१.५० ॥
मदये ारदं शु ं समग ं िदन यम् ।
स ु टे मृ ये द् ा करीषा ौ िदवािनिश ॥ २,१.५१ ॥
पचे ुषाि ना वाथ ि िदना यते ुवम् ।
शु सू तं मृ तं व ं समां शं त ख के ॥ २,१.५२ ॥
हं सपा ा वैम ि िदना े समु रे त् ।
बीजै िद ौषधीनां च व मूषां लेपयेत् ॥ २,१.५३ ॥
त पूवरसं द् ा ि िदनं तुषवि ना ।
पाचिय ा समु द्धृ त मं शु पारदम् ॥ २,१.५४ ॥
एकीकृ हं म हं सपा ा वै ढम् ।
त ोलं पूवव ा ृतं भवित शोभनम् ॥ २,१.५५ ॥
व ा ा लोहानां रसख े यथोिदतम् ।
मारणं वािदख े वा तथा ेयं रसायने ॥ २,१.५६ ॥
एवं मृतो रसवरः परमामूतः ा ेवकाः सततम ढं तु तेषाम् ।
दे हं करोित सहसा सुरसु रीणां ीडा मं परमसु रमेव िन म् ॥ २,१.५७ ॥

२, २
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धम ै ः िशवव लैिनजरै भूपैमहासाधकैः स रसायने न सततं क ा सीमाविध ।
र ं गा मन पु िनचये मु य ा वे े परमाद् भुतं सुखकरं सा ा दं
धीमताम् ॥ २,२.१ ॥
अ कं भ येदादौ मा रतं चामृतीकृतम् ।
मासै कं िन िन ं वै े ीकरणहे तवे ॥ २,२.२ ॥
य ाद ं रस े ं ततः कुया सायनम् ।
अ े ीकरणे सूतो मृतो िवषतां जेत् ॥ २,२.३ ॥
फलिस ः कुत सुबीज ोषरे यथा ।
व पारदयोभ समभागं क येत् ॥ २,२.४ ॥
सूतपादं मृ तं ण सव म िदनाविध ।
हं सपा ा वैरेव त ोलं चा तं पुटेत् ॥ २,२.५ ॥
अक ीरै ः पुनम त जपुटे पचेत् ।
भ ये षपवृ ं याव ाषं िववधयेत् ॥ २,२.६ ॥
शर ः साधकानां तु रसोऽयं व प रः ।
िच का किस ू मृ तती णसुवचलम् ॥ २,२.७ ॥
समं सव सदा चानु भ ं ा ामणे िहतम् ।
मासषट् क योगे ण जीवेदाच तारकम् ॥ २,२.८ ॥
वलीपिलतिनमु ो िद कायो महाबलः ।
मृतसूता ् वादशां शं मृ तं व ं क येत् ॥ २,२.९ ॥
ा ां तु ं मृतं का ं का तु ं मृता कम् ।
त व भृ जै ावैमिदतं भावये हम् ॥ २,२.१० ॥
हं गो ुरक ावैः ौ ै माषं ततो िलहे त् ।
रसो व े रो नाम व कायकरो नृणाम् ॥ २,२.११ ॥
चतुमासै जरां ह जीवे िदनं िकल ।
भृ राज प ा ं चूणये फलासमम् ॥ २,२.१२ ॥
पलै कं मधु ना ले ं ामकं परमं रसे ।
व सूता हे ां तु भ शु ं तु माि कम् ॥ २,२.१३ ॥
तु ं स िदनं म िद ौषिधरसै ढम् ।
द् ा तं ि िदनं प ा ालुकाय गं पुनः ॥ २,२.१४ ॥
उद् धृ ि िदनं भा ं भृ सपाि जै वैः ।
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माषै कं मधु सिप ा व धारारसं िलहे त् ॥ २,२.१५ ॥
मासषट् क योगे ण तु ो भवे रः ।
वलीपिलतिनमु ो वायुवेगो महाबलः ॥ २,२.१६ ॥
पु ननवाभृ ितलवािजग ाः समां शकाः ।
सवतु ा िसता यो ा चूिणतं भ ये लम् ॥ २,२.१७ ॥
सुवण पारदं का ं मृ तं सव समं भवेत् ।
शतावयाः िशफा ावैभावयेि वस यम् ॥ २,२.१८ ॥
ि िदनं ि फला ाथैभृ ावैिदन यम् ।
भािवतं मधु सिप ा भ ये ै रवं रसम् ॥ २,२.१९ ॥
माषै कैकं वषमा ं जीवे ाकतारकम् ।
मूलचूण शतावयाः कृ ाजपयसा युतम् ॥ २,२.२० ॥
पलै कैकं िपबे ानु ामकं परमं िहतम् ।
रसभ समं ग ं िशलाज वेतसम् ॥ २,२.२१ ॥
यामै कं मदये व मधुसिपयुतं िलहे त् ।
िन ै कैकं वषमा ं िशलावीरो महारसः ॥ २,२.२२ ॥
जराकालं िनह ाशु जीवे षशत यम् ।
पलाध मु सलीचूण भृ राजरसै ः िपबेत् ॥ २,२.२३ ॥
धा ीफलरसैवाथ ामकं नुपानकम् ।
मेघनाद वै म शु सू तं िदन यम् ॥ २,२.२४ ॥
िवड ं ि िनशं ोषं समं चूण क येत् ।
आर ध मूलं तु चूण ि गुणं भवेत् ॥ २,२.२५ ॥
चूण ि गु णं चा ं ौ ं चैव चतुगुणम् ।
सव पूवरसे ि ा मृ ौ चालय चेत् ॥ २,२.२६ ॥
त ं कषमेकैकं भ येदमृताणवः ।
वषमा ा रां ह जीवे षशत यम् ॥ २,२.२७ ॥
वाकुचीचूणकषकं धा ीफलरसैः िपबेत् ।
पारदा ् िवगुणं ग ं शु ं सव िवमदयेत् ॥ २,२.२८ ॥
मु ा करसैः ख े ि स ाहं पुनः पुनः ।
एत ु ं शु ता ं स ुटे ति रोधयेत् ॥ २,२.२९ ॥
वे ये ख े न व मृ ि कया बिहः ।
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िल ा िवशोषये ं वै स जपुटे पचेत् ॥ २,२.३० ॥
उद् धृ स ुटं चू दे वदा ा वै हम् ।
भ ीपु ननवा ावैः पृथ ा ं हं हम् ॥ २,२.३१ ॥
त ु ं नागरा ूण ि ा म ा संयुतम् ।
िलहे ाष यं िन ं याव ंव राविध ॥ २,२.३२ ॥
रसोऽयमु दयािद ो जरामृ ुहरः परः ।
पु ननवादे वदालीभृ चूण समं समम् ॥ २,२.३३ ॥
म ा ा ां िलहे षमनु ा ामणं परम् ।
पारदो गगनं का ं ती णं च मा रतं समम् ॥ २,२.३४ ॥
भृ धा ीफल ावै ायायां भावये हम् ।
िसताम ा कै ु ं सव भा े िनरोधयेत् ॥ २,२.३५ ॥
धा राशौ थतं मासं ततो िन यं समम् ।
भ ये िपबे ीरं कषकं ि फलामनु ॥ २,२.३६ ॥
रा ौ शु ी ं कणां खादे षकादमरो भवेत् ।
जीवे िदनं वीरः ा सो गगने रः ॥ २,२.३७ ॥
वट ीरै हं म ग ं शु रसं समम् ।
वटका ाि ना प ा ृ ा े यामप कम् ॥ २,२.३८ ॥
ि पन् ि पन् वट ीरं त ा े नैव चालयेत् ।
समु द्धृ हं भा ं दे वदालीदल वैः ॥ २,२.३९ ॥
उ काले तु गु ैकं ता ूलप संयुतम् ।
च वृ ा सदा भ ं याव षोडशगु कम् ॥ २,२.४० ॥
चूणमु रवा ा वाकु ा दे वदािलजम् ।
म ा ा ां िलहे ष ामकं नुपानकम् ॥ २,२.४१ ॥
वषमा ा रां ह जीवे षशत यम् ।
रसो वटे रो नाम व कायकरो नृणाम् ॥ २,२.४२ ॥
मृतं सूतं शु ग ं ि फलां गु ुलुं समम् ।
सव वाता रतैलेन िम ं कष िलहे दा ॥ २,२.४३ ॥
ष ासे न जरां ह जीवे िदन यम् ।
त मू पुरीषेण शु ं भवित का नम् ॥ २,२.४४ ॥
अज वृ षणं पा ं गवां ीरे ण तं िनिश ।
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िसतायु ं िपबे ानु रसोऽयमचले रः ॥ २,२.४५ ॥
रसं व ं णका े मु ं च मा रतं समम् ।
माि कं ग कं शु ं सव ज ीरजै वैः ॥ २,२.४६ ॥
स ाहं मदये े त ोलं चा तं पुटेत् ।
भूधरे िदनमे कं तु ातः िस रसः परः ॥ २,२.४७ ॥
माषै कं मधु ना ले ं वषा ृ ुजरापहम् ।
िद कायो नरः िस ो भवेि ुपरा मः ॥ २,२.४८ ॥
ेतपौननवं मू लं ीरिप ं सदा िपबेत् ।
भ ये ा िसता साध ामकं परमे रसे ॥ २,२.४९ ॥
मृतसूत ि गुणं शु ं ग ं िविम येत् ।
िदनै कं क का ावैमदिय ा िनरोधयेत् ॥ २,२.५० ॥
िदनै कं मधु ना प ाि ै कं मधुना िलहे त् ।
ग ामृ तो रसो नाम व रा ृ ुिज वेत् ॥ २,२.५१ ॥
समू लं भृ राजं तु छायाशु ं िवचूणयेत् ।
त मं ि फलाचूण सवतु ा िसता भवेत् ॥ २,२.५२ ॥
एकीकृ पलैकैकं भ येदनु पानकम् ।
पारदा ं मृ तं तु ं ा ां तु ं तु ग कम् ॥ २,२.५३ ॥
त व भृ जै ावैमदयेि नस कम् ।
षड् वारं चाङ् कुलीतैलैभाविय ाथ भ येत् ॥ २,२.५४ ॥
माषमा ं तु वषकं रसोऽयं कालक कः ।
िप ा कर प ािण गवां ीरै ः िपबेदनु ॥ २,२.५५ ॥
जरामृ ु िविनमु ो जीवे िदनं नरः ।
मृतसूता कं का ं िवषं ता ं िशलाजतु ॥ २,२.५६ ॥
तु ां शं मधु सिप ा िलहे द्गु ा यं सदा ।
ष ासे न जरां ह जीवे िदनं नरः ॥ २,२.५७ ॥
अ ग ामू लचूण स भागघृतैः समम् ।
भागा कं गु डं त न् ि पे ागं च िप लीम् ॥ २,२.५८ ॥
मृ ि ना च त व िप तं भ ये लम् ।
ामकं मृतेश रसराज िस ये ॥ २,२.५९ ॥
ि गुणं शु सूत योजये ु ग कम् ।
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लोहपपिटकाचूण सू ततु ं िविनि पेत् ॥ २,२.६० ॥
ु कपयसा म त व िदवस यम् ।
त ु ं चा तं प ा रीषा ौ िदवािनशम् ॥ २,२.६१ ॥
तत ट णं काचं द ा द् ा धमे द् ढम् ।
गु ैकं मधुना खादे सवीरो महारसः ॥ २,२.६२ ॥
अ ै केन जरां ह जीवेदाच तारकम् ।
मुसलीमू लचूण तु गु ाप वैः िपबेत् ॥ २,२.६३ ॥
छागीमू ेण वा तं वै कषकं ामकं परम् ।
मृतसूतसमं ग ं काकमा ा वैिदनम् ॥ २,२.६४ ॥
मिदतं चा तं प ा रीषा ौ िदवािनशम् ।
िद ौषधदल ावैिदनं म तम येत् ॥ २,२.६५ ॥
ातं त ा मुद्धृ त ु ं हाटकं मृ तम् ।
एकीकृ घृतैल ं माषैकं व राविध ॥ २,२.६६ ॥
जरां मृ ुं िनह ाशु स ं का ायनो रसः ।
काकमाची वै भा ं चू ण धा ीफलो वम् ॥ २,२.६७ ॥
मधु ना भ ये षमनु ा ामकं परम् ।
मृतसूता कं ग ं तु ं स िदनाविध ॥ २,२.६८ ॥
िश ुमूल वैम त ोलं भा म गम् ।
द् ा प ा घु ेन शाकका ै िदनाविध ॥ २,२.६९ ॥
परान ो रसो नाम घृतैिन ं सदा िलहे त् ।
िदनै कं ि फला ाथै ः कु ं स पाचयेत् ॥ २,२.७० ॥
त ु ं चूिणतं कष म ा ा ां िलहे दनु ।
संव र योगे ण जीवेदाच तारकम् ॥ २,२.७१ ॥
मृतसूता कं तु ं मृतलोहं तयोः समम् ।
लोहां शं शोिधतं ग ं भावयेि नस कम् ॥ २,२.७२ ॥
त व ि फला ाथै भृ िश ुकिच कैः ।
वै ः पृ थ ृ थ ा ं स धा स धा मात् ॥ २,२.७३ ॥
स धा कटु की ाथैभािवतं चूणये ुनः ।
चूणतु ं कणाचूण पुरातनगु डैः समैः ॥ २,२.७४ ॥
सवमेकीकृतं खादे ि ै कं व राविध ।
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महाकालो रसो नाम जराकालभयंकरः ॥ २,२.७५ ॥
ितलकोर प ािण गु डेन भ येदनु ।
मृतपारदसं तु ं लोहपपटकं भवेत् ॥ २,२.७६ ॥
ि गुणं ग कं सू ता व िद ौषध वैः ।
मिदतं ति नं द् ा ातो ब ो भवे सः ॥ २,२.७७ ॥
त न् पादं मृतं ण ि ा वह् ा क वैः ।
म यामं िवचू ाथ ोषजीरकसै वैः ॥ २,२.७८ ॥
तु ं पूवरसं तु ं िन ै कैकं च भ येत् ।
जरामृ ुं िनह ाशु हे मपपटको रसः ॥ २,२.७९ ॥
अ ग ासमां यि ं धा ीफलरसैिदनम् ।
भािवतां लेहये ौ ै ः पलैकां ामकं परम् ॥ २,२.८० ॥
णताराकका ं च ती णं वा मा रतं समम् ।
कृ ा स मा ीकं ेकं णतु कम् ॥ २,२.८१ ॥
त व चा तं धा ं त ोटं मृतपारदम् ।
समं सूता ृ तं व ं पादां शं त योजयेत् ॥ २,२.८२ ॥
सव ज ीरजै ावै ख े िवमदयेत् ।
िदनै कं तं िन ाथ भूधरे पावयेि नम् ॥ २,२.८३ ॥
उद् धृ ग कं तु ं द ा द् ा धमे द् ु तम् ।
त ूण मधु ना ेन माषमा ं िलहे दा ॥ २,२.८४ ॥
रसः ीक नामायं खेचर ं य ित ।
संव र योगे न जीवे ा मेव च ॥ २,२.८५ ॥
त मू पुरीषा ां सवलोहािन का नम् ।
पलै कं ग कं ीरै ः ामकं चानु पाययेत् ॥ २,२.८६ ॥
शु ता भागैकं ि षट् शु रस च ।
यं भूनागस भागमे क वारयेत् ॥ २,२.८७ ॥
सव म त ख े ज ीराणां वैिदनम् ।
त व क पे य े ि ा त ैव ग कम् ॥ २,२.८८ ॥
कासमदरसै ः िप ं तु ं द ा िन च ।
याव ीण पुटे प ादे वं षड् गुणग कम् ॥ २,२.८९ ॥
जारये मयोगेन समु द्धृ ाथ मदयेत् ।
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यामं ज ीरजै ावै तो िन म कम् ॥ २,२.९० ॥
अ वेतससं तु ं मिदतं दापये से ।
षोडशां शं त ख े चणका ं च तालकम् ॥ २,२.९१ ॥
कासीसं च दशां शेन द ा म िदनाविध ।
त व प मूषायां ि ा व ेण ब येत् ॥ २,२.९२ ॥
दोलाय े सारनाले हं ल वि ना पचेत् ।
उद् धृ ालयेदु ैः काि कैज यते यिद ॥ २,२.९३ ॥
अजीण चे चे े क पा े िवडा तम् ।
एव पुनः पु नजाय गगनं सूततु कम् ॥ २,२.९४ ॥
िश खिप िल ािन णप ािण त वै ।
चतुःष ंशयोगे न द ा ख े िवमदयेत् ॥ २,२.९५ ॥
ेदये ूवव े जीण ण च दापयेत् ।
इ ेवं षोडशां शं तु ण जाय रस वै ॥ २,२.९६ ॥
ततो जाय मृ तं व ं षोडशां शं च हे मवत् ।
तालकासीसज ीरयु ं म च त रम् ॥ २,२.९७ ॥
ततो िद ौषध ावै ं सूतं मदये हम् ।
व मू षा तं धा ं ब ं ा ूणये ुनः ॥ २,२.९८ ॥
मधु शकरया साध गु ामा ं च भ येत् ।
रसः खे चरब ोऽयं ष ासा ृ ुिज वेत् ॥ २,२.९९ ॥
वलीपिलतिनमु ो महाबलपरा मः ।
स ाहं भृ जै ावैन लमु ीफल यम् ॥ २,२.१०० ॥
भावये धुसिप ा कषमा ं िलहे दनु ।
शु सू तं ि धा ग ं कुया ेन क लम् ॥ २,२.१०१ ॥
तयो ु ं का चूण ती णं वा मु मेव वा ।
सवमेकीकृतं ख े मदये का वैः ॥ २,२.१०२ ॥
िदनै कं गोलकं कृ ा ता पा े िनवेशयेत् ।
आ ा ैर प ै ु यामाधऽ ु तां जेत् ॥ २,२.१०३ ॥
धा राशौ से ं तु ि िदना े समु रे त् ।
क ाभृ ीकाकमाचीमु ीिनगु ीिच कम् ॥ २,२.१०४ ॥
कोर वाकुची ा ीसहदे वीपुननवाः ।
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शा लीिवजयाधू ता वैरेषां पृ थ ृथक् ॥ २,२.१०५ ॥
स धा स धा भा ं स धा ि फलो वैः ।
कषायैभािवतं चू जातीफललवंगकम् ॥ २,२.१०६ ॥
ि कटु ि फला चैला चूणये वकं समम् ।
त ूण पूवचूण च समं ौ े ण कषकम् ॥ २,२.१०७ ॥
वषकं लेहयेि ं जराकाल शा ये ।
यमि रसो नाम िस ानां सुमुखागतः ॥ २,२.१०८ ॥
ितला ग यो ूण पलाध मधुना िलहे त् ।
िनगु ी नीिलका व ी द ी ि द का ॥ २,२.१०९ ॥
शतपु ा मु पण ेताक वानरी जया ।
पे टारीकृ ध ूरिवजया ीरक कम् ॥ २,२.११० ॥
एतैः सम ै ै वा ैम िदन यम् ।
शु सू तं त ख े त ं ीरक के ॥ २,२.१११ ॥
व क े ऽथवा द् ा त ािभमृ दा पुनः ।
तं क ं व मू षायां द् ा लघुपुटे पचेत् ॥ २,२.११२ ॥
पु नम पु नः पा िम ेवं स धा मात् ।
रसः क पु टो नाम गु ैकं मधुना िलहे त् ॥ २,२.११३ ॥
जीवे िदनैकं तु वलीपिलतविजतः ।
वषकेन न संदेहो रसकायो भवे रः ॥ २,२.११४ ॥
भ ातबीजचूण च हयग ामृ ताघृतैः ।
पलै कं भ ये ानु ामकं परमं िहतम् ॥ २,२.११५ ॥
मृतसूता कं व ं का ताराकहाटकम् ।
ती णं च तु तु ां शं सवषां ग कं समम् ॥ २,२.११६ ॥
सव पालाशतैलेन मदयेि नस कम् ।
महाश रसो नाम ौ ै माषं िलहे दा ॥ २,२.११७ ॥
ष ासे न जरां ह जीवे िदन यम् ।
व रा क ािन जीव ेव न संशयः ॥ २,२.११८ ॥
इ ावेगी महािस ः पराश समो भवेत् ।
त मू पुरीषा ां ता ं भवित का नम् ॥ २,२.११९ ॥
पालाशबीजजं तैलं ौ ै ल ं पला कम् ।
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ामकं नु पानं ा छ ा कािशतम् ॥ २,२.१२० ॥
लोिहतं वाथ वा कृ ं वै ा ं मा रतं पलम् ।
णचूणपलैकं च ि पलं शु पारदम् ॥ २,२.१२१ ॥
बालर ाजमू ा ां त व मदयेि नम् ।
शरपु ङ्खा मेष ी सपा ीकटु तु का ॥ २,२.१२२ ॥
इ वा िणका चैषां वैम िदन यम् ।
त ोलं गभय े तु द् ा प ाि न यम् ॥ २,२.१२३ ॥
तुषाि ना लघु ेन समुद्धृ िवचूणयेत् ।
स धा भृ जै ावैभािवतं चूणये ुनः ॥ २,२.१२४ ॥
ि फला ूषम ा ै ः समं चूण िविम येत् ।
माषै कैकं सदा खादे सोऽयं नाटके रः ॥ २,२.१२५ ॥
सवरोगजरामृ ून् व रा ाशय लम् ।
िद तेजा महाकायो जीवेदाच तारकम् ॥ २,२.१२६ ॥
मूल चं वृ ा ायाशु ां िवचूिणताम् ।
िपबेि यां त ै ः ामकं परमं शुभम् ॥ २,२.१२७ ॥
सुशु ं ेतवै ा ं स ाहं भा मातपे ।
अ वेतसस ं तेनैव ु ितमा ुयात् ॥ २,२.१२८ ॥
एतद् ु ितं शु सू तं समं ौ ै िदन यम् ।
मिदतं लेहये ाषं मासा ालो भवे रः ॥ २,२.१२९ ॥
व रा तु ः ा सोऽयं बालसु रः ।
वाकुचीबीजकषकं म ा ा ां िलहे दनु ॥ २,२.१३० ॥
चतुःपलं शु सूतं पलै कं मृतहाटकम् ।
पलाशकुड् मल ावै ैलै िदन यम् ॥ २,२.१३१ ॥
मदये ख े तु णतु ं च ग कम् ।
शोिधतं िनि पे न् पूव ैमदयेि नम् ॥ २,२.१३२ ॥
माषमा ां वटीं खादे रा ृ ुिज वेत् ।
जीवे िदनं वीरो रसोऽयं प रः ॥ २,२.१३३ ॥
वानरीकाकतु ु बीजचूण समं समम् ।
शा ली ल ावैभावयेि वस यम् ॥ २,२.१३४ ॥
हं च भृ जै ावै भािवतं चूणये तः ।
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पु रातनगुडै ु ं कषकमनु भ येत् ॥ २,२.१३५ ॥
र भूमौ तु भूनागान् ाहिय ा परी येत् ।
छे दे िनयाित र ं चे ान् ीकुया य तः ॥ २,२.१३६ ॥
कृ वणागवा ेन समेन सह तान् पचेत् ।
लोहजे चालयन् पा े याव दू रवणकम् ॥ २,२.१३७ ॥
त व जायते भ त ु ं मृतपारदम् ।
मधु नालोिडतं सव गु ाधाध िववधयन् ॥ २,२.१३८ ॥
प ाद् गु ां सदा खादे ाव ंव राविध ।
िशवामृ तो रसो नाम जरामृ ुहरो नृणाम् ।
आयु िदनं द े िशवा ु पाययेदनु ॥ २,२.१३९ ॥
एवं िद रसायनै ः समुिचतैः साराितसारै ः शुभैः िस ं दे हमनेकसाधनबला ेषां तु ं मया

तानारा च तेषु सारम खलं संगृ शा ादिप भूपानां िवदु षां महामितमतां ो ं
िहताथाय वै ॥ २,२.१४० ॥

२, ३
िद योगगुिटकारसायनं ामणेन रिहतं न िस ित ।
शी िस करमेव से तां ामणाथमनुपानम वै ॥ २,३.१ ॥
काकतु ी काकमाची िनगु ी च कुमा रका ।
गोिज ा सै वं गु ा ा कं च समं समम् ॥ २,३.२ ॥
िप ा तेन ले ा मूषा सवाङ्गुलाविध ।
पारदं ोमस ं च का ं ती णं च मु कम् ॥ २,३.३ ॥
ता स ं च तु ां शं सव संचू मदयेत् ।
िदनं ज ीरजै ावै ूषायां िविनि पेत् ॥ २,३.४ ॥
आ ा ाले क े न चा िय ा िवशोषयेत् ।
करीषा ौ िदवारा ं पुटे प ा समु रे त् ॥ २,३.५ ॥
पु नः िल मूषायां ि ा द् ा पुटे तः ।
इ ेवं दशमू षासु िल ासु िवपाचयेत् ॥ २,३.६ ॥
जायते गुिटका िद ा मृतसंजीवनी परा ।
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व े िशरिस क े वा कण वा धा रता करे ॥ २,३.७ ॥
हे ा सु वेि ता स यः करी परा ।
वलीपिलतकालाि मृ ुश ािवनाशनी ॥ २,३.८ ॥
वषमा ा संदेहो जीवे षशत यम् ।
शु पलै कं तु गवां ीरै ः िपबे दा ॥ २,३.९ ॥
अनेन नु पाने न दे हे सं मते रसः ।
समु खं पारदं का ं मु लोहा स कम् ॥ २,३.१० ॥
त ं मृ तं व ं सव ज ीरजै वैः ।
स ाहं मदये ु ं कृ ा गोलं समु रे त् ॥ २,३.११ ॥
िनगु ी सै वं ौ ं गोिज ा काकतु का ।
िप ा तु लेपये ोलं सवतोऽङ्गुलमा कम् ॥ २,३.१२ ॥
तं द् ा व मू षायां पचे ामं तु भूधरे ।
िल ा द् ा पुनः पा िम ेवं प मा कम् ॥ २,३.१३ ॥
यविच ापलाशो राजीकापासबीजकैः ।
सुिप ै लपये ूषां त े पूवगोलकम् ॥ २,३.१४ ॥
ट णं ेतकाचं च द ा पृ े िन च ।
खिदरा ारयोगेन धमे ावद् ु तं भवेत् ॥ २,३.१५ ॥
तत ं िवडिल ायां मूषायां च िनवेशयेत् ।
त ु ं दापये ण जये ं धमन् धमन् ॥ २,३.१६ ॥
जीण ण समुद्धृ त ख े िवमदयेत् ।
हं िद ौषिध ावैव मूषा तं धमेत् ॥ २,३.१७ ॥
जायते गुिटका िद ा ना ा व े री परा ।
व था सा जरां मृ ुं ह संव रा ल ॥ २,३.१८ ॥
श ं च कु ते ायुय ित ुवम् ।
कृ ा ां समादाय सहदे वी ं सु चूणयेत् ॥ २,३.१९ ॥
कषकां भ येदा ै रनु ा ामे ण िहतम् ।
आर ं मे घनादं तु तथा पाषाणभेदकम् ॥ २,३.२० ॥
ी सिहतं िप ा तेन मूषां लेपयेत् ।
भगैकं मृ तव णचूण षोडश ॥ २,३.२१ ॥
ि ा त ां िन ाथ याममा ं ढं धमेत् ।
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उद् धृ िनि पे े शु सूतं च त मम् ॥ २,३.२२ ॥
मदये ा क ावैयाव वित गोलकः ।
च ालीक मादाय ी ेन सु पेषयेत् ॥ २,३.२३ ॥
अनेन गोलकं िल ा व मूषायां िनरोधयेत् ।
प ा गजपु टे ा ा गुिटका व सु री ॥ २,३.२४ ॥
वषकं धारये े जीवे िदन यम् ।
वृ ूण ीरै िन ं पलं िपबेत् ॥ २,३.२५ ॥
ामणं नुपानं ा ाधक ाितिस दम् ।
तदु वमलैिल ं ता ं तु धमनेन िह ॥ २,३.२६ ॥
जायते कनकं िद ं स ं शं करभािषतम् ।
समु ख रसे पू वव ा नं समम् ॥ २,३.२७ ॥
जारयेि डयोगे न ततो म िदन यम् ।
िद ौषधैः सगोमू ैव मूषा तं धमेत् ॥ २,३.२८ ॥
उद् धृ धारये े गुिटका हे मसु री ।
पलाध ग कं चा ैि गुणैलहयेदनु ॥ २,३.२९ ॥
वषकेन जरां ह जीवेदाच तारकम् ।
शु सू तं मृ तं व ं ोमस ं सहाटकम् ॥ २,३.३० ॥
अ वग समं सव मदयेि वस यम् ।
त ोलकं ढं कृ ा छायायां शोषये तः ॥ २,३.३१ ॥
कापासबीजािन रािजका यविचि का ।
व ा सव समं िप ा पूवगोलं लेपयेत् ॥ २,३.३२ ॥
द् ा गजपु टे प ा मुद्धृ ाथ लेपयेत् ।
द् ा मूषायां धमे ाढं गुिटका व खेचरी ॥ २,३.३३ ॥
जायते धा रता व े व रा ृ ुनािशनी ।
भूतारवटचूण तु पलैकं िसतया युतम् ॥ २,३.३४ ॥
भ ये ामणाथ तु ायुजायते नरः ।
कापा ाः काकमा ा क ाया दल वैः ॥ २,३.३५ ॥
शु सू तं िदनं म ा म ैः समु रे त् ।
त सं िन च ा र िन ाध ता चूणकम् ॥ २,३.३६ ॥
पादोनिन म ो ं स ं पादं च हाटकम् ।
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हे मतु ं मु चूण सवम ैिवमदयेत् ॥ २,३.३७ ॥
िदना े गोलकं कृ ा ज ीर ोदरे ि पेत् ।
ि िदनं दोलकाय े पाचये ारनालके ॥ २,३.३८ ॥
उद् धृ धारये े गुिटका ोमसु री ।
वषमा ा रां ह जीवे िदनं नरः ॥ २,३.३९ ॥
िच मूल चूण तु स ौ ं का पा के ।
आलो भ ये षमनु ा ामणे िहतम् ॥ २,३.४० ॥
िन मे कं णप ं ि िन ं शु पारदम् ।
ज ीरशरपुङ्खो वै म िदनाविध ॥ २,३.४१ ॥
त ोलं ब ये े पचे ो ीरपू रते ।
दोलाय े िदवारा ं गु िटका हाटके री ॥ २,३.४२ ॥
जायते धा रता व े जरामृ ुिवनािशनी ।
वषमा ा संदेहो जीवे षायुतं नरः ॥ २,३.४३ ॥
िदनै कं ि फलाचूण ाथैः खिदरबीजकैः ।
भािवतं मधु सिप ा पलैकं ामकं िलहे त् ॥ २,३.४४ ॥
रसिन यं शु ं िन ै कं ता चूणकम् ।
िच ाफला त ा ां ख े म िदनाविध ॥ २,३.४५ ॥
त ोलं ब ये ै िच ा पू रते ।
दोलाय े िदनं प ाद् गु िटकाक भावती ॥ २,३.४६ ॥
वषकं धारये े सू यतु ो भवे रः ।
पालाशबीजजं तैलं गो ीरै ः कषमा कम् ॥ २,३.४७ ॥
ामकं नु पानं ा रामृ ुहरं परम् ।
णमे कं का मेकं प तारं ि पारदम् ॥ २,३.४८ ॥
ि भागं ोमस ं ा षड् भागं शु चूणकम् ।
सवमेत ृ तं सू ं त ख े िदन यम् ॥ २,३.४९ ॥
मदयेद वगण दोलाय े सकाि के ।
त ोलं ि िदनं प ाद् गु िटका सुरसु री ॥ २,३.५० ॥
जायते धा रता व े वषा ृ ुजरापहा ।
भूतारवटमू लं च कष ीरै ः िपबेदनु ॥ २,३.५१ ॥
णताराकमु ं च व सीसा स कम् ।
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एत व समं चूण चूणाशं मृतव कम् ॥ २,३.५२ ॥
सवतु ं शु सूतं सव िद ौषिध वैः ।
मदयेि नमे कं तु व मूषा तं धमेत् ॥ २,३.५३ ॥
गुिटका व तु े यं जायते धा रता मुखे ।
जरामृ ुं श संघं नाशये रा ल ॥ २,३.५४ ॥
व कायो महावीरो जीवे षशत यम् ।
कुमायाः रसं ा ं गुडेन सह लोडयेत् ॥ २,३.५५ ॥
पलै कं ामकं ले मनुपानं सदै व िह ।
णचूण तु भागैकं ि भागं शु पारदम् ॥ २,३.५६ ॥
पादभागं मृ तं व ं त व ीरक जैः ।
वै दे वदा ु ै ख े िदनाविध ॥ २,३.५७ ॥
मदये ा चूण च व तु ं ि पे वै ।
व मू षा तं धा ं गु िटका कामसु री ॥ २,३.५८ ॥
जायते धा रता व े वषा ृ ुजरापहा ।
िन यं तैलं गवां ीरं पल यम् ॥ २,३.५९ ॥
िमि तं पायये ानु ल ायुजायते नरः ।
लोहपा े ु ते ग े पादां शं पारदं ि पेत् ॥ २,३.६० ॥
िकंिच ा ं तु का े न मु तादवतारयेत् ।
शतावरी ीरक ो व व ी वा णी ॥ २,३.६१ ॥
पाठा पुननवा िच ा ला ली सुरदािलका ।
एतासां व पूतै वै म िदन यम् ॥ २,३.६२ ॥
त न् पा े लोहमु ा छायाशु ं वटीकृतम् ।
लोहस ु टगं द् ा संिधं मृ वणै ढम् ॥ २,३.६३ ॥
तं धमे िदरा ारे यावदार मु रे त् ।
उ ो त ादु रे सं पुनः ॥ २,३.६४ ॥
काचट णसंयु ं मूषायां चा तं पचेत् ।
गा ारीगु िटका िस ा वष व े थता सदा ॥ २,३.६५ ॥
काकतु ीबीजतैलं कषकं न माचरे त् ।
ामकं नु पानं ा ीवे षसह कम् ॥ २,३.६६ ॥
शु सू तसमं ग ं मदना लीकृतम् ।
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त ा स ु टे द् ा लवणेन मृदा ढम् ॥ २,३.६७ ॥
शु ं दीपाि ना प ा ामै कं भ य के ॥ २,३.६८ ॥
स ु ट ो ल ं त मुद्धृ ाथ मदयेत् ।
तु पारदसं यु ं पूवव ुटे पचेत् ॥ २,३.६९ ॥
उद् धृ तु सूतेन संयु ं मिदतं पचेत् ।
इ ेवं स धा कुया ुनः पारदट णम् ॥ २,३.७० ॥
तु ं तु ं ि पे न् िदनं सव िवमदयेत् ।
व मू षागतं द् ा ाते खोटो भवे सः ॥ २,३.७१ ॥
मात ी गुिटका ेषा वषकं य व गा ।
वलीपिलतमु ोऽसौ जीवेदाच तारकम् ॥ २,३.७२ ॥
पलाशबीजजं तैलं पलैकं ीरतु कम् ।
ामणं िपबेि ं त णा ूिछतो भवेत् ॥ २,३.७३ ॥
त व े गवां ीरं ोकं ोकं िनषेचयेत् ।
बु े ीरम ं ा ोजने परमं िहतम् ॥ २,३.७४ ॥
त मू पुरीषा ां ता ं भवित का नम् ।
वायुवेगो महािस ां प ित मेिदनीम् ॥ २,३.७५ ॥
काकमा मृता ावैः पारदं तालकं समम् ।
मदयेि नमे कं तु कृ ा गोलं िवशोषयेत् ॥ २,३.७६ ॥
िनि पे मूषायामा ा लोहपपटै ः ।
द् ा सं िधं धमे ाढं खोटब ो भवे सः ॥ २,३.७७ ॥
लोहपपटकं द ा त ा ं ि धा पुनः ।
वषकं धारये े गुिटका तारके री ॥ २,३.७८ ॥
वाकुचीबीजकषकं गवां ीरै ः िपबेदनु ।
ोमस ं मृ तं व ं णताराकमु कम् ॥ २,३.७९ ॥
ती णं का ं तालकं च शु ं कृ ा िविम येत् ।
सू चूण समं सव चूणाशं शु पारदम् ॥ २,३.८० ॥
ि िदनं चा वगण मिदतं चा तं धमेत् ।
िव ावागी री ाता गु िटका व राविध ॥ २,३.८१ ॥
य व े थता त जरा मृ ुन िव ते ।
कष ोित तीतैलं ामणाथ िपबे दा ॥ २,३.८२ ॥
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वा ितजायते धीरो जीवे ाकतारकम् ।
का पाषाणमा ीकं ट णं ककटा थ च ॥ २,३.८३ ॥
ु क ीरभूनागं सवमेत मं भवेत् ।
ी े न िदनं म तेन मूषां लेपयेत् ॥ २,३.८४ ॥
त े ु तसूतं तु व भ समं समम् ।
ि ा द् ा पुटे प ा जा े याममा कम् ॥ २,३.८५ ॥
ततः िल मूषायां ि ा द् ा धमे ठात् ।
एवं पु नः पु नः काय व सूतं िमल लम् ॥ २,३.८६ ॥
तत ै व दात ं समं काचं सट णम् ।
एवं मूषाशते दे यं तु ं तु ं धमन् धमन् ॥ २,३.८७ ॥
तेजःपु ो रसे ोऽसौ भवे ात संिनभः ।
गुिटका व तु े यं व था मृ ुनािशनी ॥ २,३.८८ ॥
वषमा ा संदेहो तु ो भवे रः ।
त मू पुरीषा ां पूवव ा नं भवेत् ॥ २,३.८९ ॥
प ा ं भ ये ष द ा मधु सिपषा ।
ट णं ककटा थीिन ऊणा चैव िशलाजतु ॥ २,३.९० ॥
मिहषीकणने ो ं मलं ी कैः समम् ।
िप ा त मूषायाम स ं ि पे मेत् ॥ २,३.९१ ॥
स तु ं ि पे पूववद् ु तपारदम् ।
वं िद ौषधीनां च द ा त ैव त मेत् ॥ २,३.९२ ॥
िमिलतो जायते ब ः पूवव ाचट णैः ।
ातो मू षाशतेनायं तेजःपु ो भवे सः ॥ २,३.९३ ॥
वषकं धारये े िशवतु ो भवे रः ।
अजरामरकारीयं गुिटका गगने री ॥ २,३.९४ ॥
िब बीजो तं तैलं िन मा ं िपबेदनु ।
उदरे जायते वि ः िपबे ीरं पु नः पुनः ॥ २,३.९५ ॥
सा ा ाित र ं च किव ं ुतधारणम् ।
खे चर म ं जायते ना संशयः ॥ २,३.९६ ॥
अि म ो व व ी सूरणं वनशूरणम् ।
िच क वैरेषां शु सू तं िदनाविध ॥ २,३.९७ ॥
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मदये ख े तु तं रसं पलमा कम् ।
पलं पलं तालव ौ त व चा वेतसैः ॥ २,३.९८ ॥
मदयेि नमे कं तु कृ ा तं गोलकं पुनः ।
चतुःपलां नागमू षां कृ ा त ां तु त पेत् ॥ २,३.९९ ॥
चतुःपले शु ता स ु टे तां िनरोधयेत् ।
मृ ूषायां तु तां द् ा आर ो लकैः पुटेत् ॥ २,३.१०० ॥
शत य माणै ु ा शीतं समु रे त् ।
सव िद ौषध ावैमदयेि वस यम् ॥ २,३.१०१ ॥
चतुिन िमता काया विटका शोषये तः ।
एकैकां व मूषायां द् ा ती ाि ना धमे त् ॥ २,३.१०२ ॥
आन गु िटका ेषा व था मृ ुनािशनी ।
व रा ा संदेहो जीवे िदन यम् ॥ २,३.१०३ ॥
तैलं वाता रबीजो ं गो ीरै िन मा कम् ।
ामणाथ िपबेि ं शी िस करं परम् ॥ २,३.१०४ ॥
व भ समं सूतं हं सपा ा वै हम् ।
मिदतं ं िल ायां मू षायां चा तं पुटेत् ॥ २,३.१०५ ॥
भूधरा े िदवारा ौ समु द्धृ ाथ त वै ।
पू वाशं पारदं द ा हं सपा ा वै हम् ॥ २,३.१०६ ॥
मिदतं ं िल ायां मू षायां चा तं धमेत् ।
त ोटं धमना ो ं काचट णयोगतः ॥ २,३.१०७ ॥
न ाभं भवे ाव ाव ा ं पुनः पुनः ।
त सं ोमस ं च का नं च समं समम् ॥ २,३.१०८ ॥
समाव ततः काया गुिटका व म गा ।
व खेच रका नाम व रा ृ ुनािशनी ॥ २,३.१०९ ॥
वलीपिलतिनमु ो िद कायो भवे रः ।
िनगु ीमु िनचूण तु कषमा ैः िपबेदनु ॥ २,३.११० ॥
का ं शु ं समं चूण व मूषा तं धमेत् ।
त ोटिस चूण तु ग का ेन मदयेत् ॥ २,३.१११ ॥
द् ा स ुटे प ा मुद्धृ ाथ मदयेत् ।
पू वव मयोगेन पुटे ारां तुदश ॥ २,३.११२ ॥
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व े ण ं ि तं णमनेनैव तु र येत् ।
मूषाम े धम ेवं स वारं समं ि पेत् ॥ २,३.११३ ॥
त ोटं चूिणतं भा ं ीपु ेण िदनाविध ।
त ु ं ु तसूतं तु सव यामं िवमदयेत् ॥ २,३.११४ ॥
वे येद्भूजप ेण व े बद् ा पचे हम् ।
दोलाय े सारनाले जातं गोलं समु रे त् ॥ २,३.११५ ॥
गा ारी जीवनी चैव ला ली चे वा णी ।
एतासां िप क े न वे ये ूवगोलकम् ॥ २,३.११६ ॥
अ िय ा िदनं प ाद् भूधरे तं समु रे त् ।
पु नल ं पुनः पा ं चतुदशिदनाविध ॥ २,३.११७ ॥
गुिटका जायते िद ा ना ा र े री तथा ।
व था वषमा ं तु न तु ो भवे रः ॥ २,३.११८ ॥
जीवे षसह ािण िद तेजा महाबलः ।
वष ादशपय ं य व े थता तु सा ॥ २,३.११९ ॥
त ेदस काद लोहािन का नम् ।
जाय े ना सं देहः स मी रभािषतम् ॥ २,३.१२० ॥
प ा चूण म ा ै द ु ं िलहे दनु ।
ण कृ ा स ं च तारं ता ं सुचूिणतम् ॥ २,३.१२१ ॥
समां शं ं िल ायां मू षायां चा तं धमेत् ।
त ोटं भागच ा र भागैकं मृ तव कम् ॥ २,३.१२२ ॥
माि कं ती णका ं च भागैकैकं सुचूिणतम् ।
सम ं ं िल ायां मू षायां चा तं धमेत् ॥ २,३.१२३ ॥
त ोटं सू चूण तु चूणाशं ु तसूतकम् ।
ि िदनं त ख े तु म िद ौषिध वैः ॥ २,३.१२४ ॥
द् ाथ भूधरे प ादहोरा ा मु रे त् ।
ु तसूतं पुन ु ं द ा म पुटे था ॥ २,३.१२५ ॥
इ ेवं स वारां ु ु तं सूतं समं समम् ।
द ा म पु टे प ा ायते भ सूतकः ॥ २,३.१२६ ॥
भ सूतसमं ग ं द ा द् ा धमे द् ढम् ।
जायते गुिटका िद ा िव ाता िद खेचरी ॥ २,३.१२७ ॥
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वषकं धारये े जीवे सह कम् ।
त मू पुरीषा ां सवलोह लेपनात् ॥ २,३.१२८ ॥
जायते कनकं िद ं समावत न संशयः ।
पल यं भृ राज ं चानु िपबे दा ॥ २,३.१२९ ॥
पू व ं भ सूतं वा गु ामा ं सदा िलहे त् ।
वषकं मधु ना ेन ल ायुजायते नरः ॥ २,३.१३० ॥
वलीपिलतिनमु ो महाबलपरा मः ।
ण वै ा स ं च ं ि तं जारये से ॥ २,३.१३१ ॥
समां शं तु भवे ाव त ेनैव सारयेत् ।
समे न जायते ब ो धारये ं मु खे सदा ॥ २,३.१३२ ॥
संव र योगे ण जराकालापमृ ुिजत् ।
कुमाया दलजं ावं िसतायु ं िपबेदनु ॥ २,३.१३३ ॥
णवै ा ब ोऽयं ायुय ते नृणाम् ।
वै ा स तु ां शं शु सूतं िवमदयेत् ॥ २,३.१३४ ॥
िदनं िद ौषध ावै ोलं िनगडे न वै ।
िल ा लवणगभायां व मू ां िनरोधयेत् ॥ २,३.१३५ ॥
छायायां शोषये ंिधं ि िदनं तुषवि ना ।
ेदये ा करीषा ौ िदवारा मथो रे त् ॥ २,३.१३६ ॥
त ोलं िनगडे नैव िल ा त ि च ।
छायाशु ं धमे ाढं ब मायाित िनि तम् ॥ २,३.१३७ ॥
वषकं धारये े जीवे िदन यम् ।
वै ा गुिटका ेषा सवकामफल दा ॥ २,३.१३८ ॥
कषकं ि फलाचूण म ा ा ां िलहे दनु ।
हे ा य ् वंि तं व ं कुया ू चूिणतम् ॥ २,३.१३९ ॥
एत े यं गु सूते मू षायामधरो रम् ।
पादमा ं य ेन द् ा संिधं िवशोषयेत् ॥ २,३.१४० ॥
भूधरा े िदनं प ा मुद्धृ ाथ मदयेत् ।
िद ौषधफल ावै ख े िदनाविध ॥ २,३.१४१ ॥
द् ाथ भूधरे प ाि नं लघुपुटैः पु टेत् ।
समु द्धृ पु न द् ा िदन यम् ॥ २,३.१४२ ॥
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तुषाि ना शनै ः े मू ाधः प रवतयन् ।
जायते भ सू तोऽयं सवयोगे षु योजयेत् ॥ २,३.१४३ ॥
ु तसूत भागैकं भागैकं पूवभ कम् ।
शु नाग भागैकं सवम ेन मदयेत् ॥ २,३.१४४ ॥
अ मूषागतं धा ं खोटो भवित त सः ।
धमे कटमू षायां याव ाग यो भवेत् ॥ २,३.१४५ ॥
ु तसूत कारे ण ाविय ा मं रसम् ।
िनि पे पे य े िवडं द ा दशां शतः ॥ २,३.१४६ ॥
णािदसवलोहािन मेणैव च जारयेत् ।
े कं षड् गुणं प ा ं ं च जारयेत् ॥ २,३.१४७ ॥
ि गुणं तु भवे ाव तो र ािन वै मात् ।
जारयेद् ािवता ेव ेकं ि गुणं शनैः ॥ २,३.१४८ ॥
ततो य ा मु द्धृ िद ौषध वैिदनम् ।
म द् ा धमे ाढं जायते गु िटका शु भा ॥ २,३.१४९ ॥
पू जयेदङ्कुशीम ैना ेयं िद खेचरी ।
य व े थता ेषा स भवे ै रवोपमः ॥ २,३.१५० ॥
िद तेजा महाकायः खेचर ेन ग ित ।
य े ा त त ैव ीडते नािदिभः ॥ २,३.१५१ ॥
महाक ा पय ं ित ेव न संशयः ।
त मू पुरीषा ां ता ं भवित का नम् ॥ २,३.१५२ ॥
पलाशपु चूण तु ितलाः कृ ाः सशकराः ।
सव पल यं खादे ि ं ा ामणे िहतम् ॥ २,३.१५३ ॥
चूणम खुर ैव गु सूते समं ि पेत् ।
ि िदनं मातुलु ा ै व मदयेद् ढम् ॥ २,३.१५४ ॥
सूततु ं मृ तं व ं त न् ि ाथ मदयेत् ।
त ख े िदनं चा ै ोलं चा तं पुटेत् ॥ २,३.१५५ ॥
िदनै कं भूधरे य े भागैकं पूवपारदम् ।
ि ा त न् ढं म मातुलु वैिदनम् ॥ २,३.१५६ ॥
द् ाथ पूवव ा ुनदय पारदः ।
म पा ं यथापू वमेवं कुया स धा ॥ २,३.१५७ ॥
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रसं पुनः पु नद ा ादे वं भ सूतकः ।
योजये वयोगे षु जरामृ ुहरो भवेत् ॥ २,३.१५८ ॥
भागै कं नागचूण भागैकं पूवभ नः ।
ु तसूत भागैकं खोटं कुया पूववत् ॥ २,३.१५९ ॥
त ा ं गते नागे ािवतं जारये ुनः ।
पू वव ोहर ा ं जीण ब ा थता मुखे ॥ २,३.१६० ॥
च खेचरीना ी गुिटका खे गित दा ।
पू वव भते वीरः फलम दु लभम् ॥ २,३.१६१ ॥
िनगु ीमू लचूण तु कष त ै ः िपबेदनु ।
शु सू त दात ं कलां शं मृ तव कम् ॥ २,३.१६२ ॥
त वम वगण त ख े िदन यम् ।
मदिय ा तत ेन लेपये मभागतः ॥ २,३.१६३ ॥
प बीज प ािण तािन भानुदलैः पुनः ।
वेि तािन िन ाथ िनखने ु गभतः ॥ २,३.१६४ ॥
आ ा ालये का ाि ं िदवस यम् ।
उद् धृ ं िल ायां मूषायां तं िनरोधयेत् ॥ २,३.१६५ ॥
करीषा ौ पुटे प ादहोरा ा मु रे त् ।
वासनामु खते सूते तु मेति िनि पेत् ॥ २,३.१६६ ॥
अ ेन मदये ामं जातं गोलं समु रे त् ।
ि पे ीरगभ तं व े बद् ा हं पचेत् ॥ २,३.१६७ ॥
दोलाय े सारनाले जायते गुिटका शुभा ।
क ालखे चरी ना ा व था मृ ुनािशनी ॥ २,३.१६८ ॥
वषकं धारये ु स जीवे णो िदनम् ।
ग कं गु ु लुं तु मा ैः कष िलहे दनु ॥ २,३.१६९ ॥
कृ ा क स ं तु का मा ीकका नम् ।
ती णं सौवीरचूण च तु ं द् ा धमे द् ढम् ॥ २,३.१७० ॥
त ोटं सू चूण तु ु तसूतसमं भवेत् ।
सूताध मा रतं व ं सवम ेन मदयेत् ॥ २,३.१७१ ॥
िदनै कं त ख े तु तं द् ा भूधरे पचेत् ।
अहोरा ा मु द्धृ त मं पू वसूतकम् ॥ २,३.१७२ ॥
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द ा िद ौषध ावैम सव िदनाविध ।
पू ववद् भूधरे प ाद् ु तसूतं पुनः समम् ॥ २,३.१७३ ॥
द ा म पु नः प ािद ेवं स वारकम् ।
एत समं ग ं द ा चा ं धमेद् ढम् ॥ २,३.१७४ ॥
जायते गुिटका िद ा कालिव ंिसका परा ।
य व े थता ेषा त कालः करोित िकम् ॥ २,३.१७५ ॥
वषषट् क योगे ण जीवे सह कम् ।
त ा ेदमा ेण सवलोहािन का नम् ॥ २,३.१७६ ॥
जाय े ना सं देहः िशवा ु ामकं िपबेत् ।
णताराकका ं च ती णचूण समं समम् ॥ २,३.१७७ ॥
ं मेलापिल ायां मूषायां चा तं धमेत् ।
त ोटं चूिणतं कृ ा चािभिष ं तु पूववत् ॥ २,३.१७८ ॥
समु खे जारये ूते याव गुणं मात् ।
िद ौषध वै ं वै मदयेि वस यम् ॥ २,३.१७९ ॥
अ मूषागतं ातं जायते गुिटका शुभा ।
ना ा प ानना धाया व े संव राविध ॥ २,३.१८० ॥
वलीपिलतिनमु ो जीवे ाकतारकम् ।
ह कण समू ला तु चू ा म ा संयुता ॥ २,३.१८१ ॥
ि भा े तु तां द् ा धा राशौ िनवेशयेत् ।
ि स ाहा मु द्धृ पलैकं भ येदनु ॥ २,३.१८२ ॥
ऋ ख े तु य ो ं िविवधं रसब नम् ।
अ त ैव व ािम दे हवेध मं यथा ॥ २,३.१८३ ॥
जा रतैब तै ै ै रसराजैः पृथ ृथक् ।
कारयेद्गु िटकां िद ां बदरा माणकाम् ॥ २,३.१८४ ॥
सा धाया व रं व े ानु पफल दा ।
गुिटका शतवेधी ाद् युगायु करी नृणाम् ॥ २,३.१८५ ॥
सह वेधी गु िटका अ क ा रि का ।
ल वेधकरी या तु सा द े िव ुव लम् ॥ २,३.१८६ ॥
वेिधका दशल े या सा पददाियनी ।
कोिटवेधकरी या सा ई र करी नृणाम् ॥ २,३.१८७ ॥
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वेिधका दशकोटीनां सा सदा पद दा ।
गुिटकाबु दवेधी या सा ीक पद दा ॥ २,३.१८८ ॥
स वपदं द े गुिटका शङ् खवेिधका ।
धू वेधी तु या िस ा सा श पददाियनी ॥ २,३.१८९ ॥
पराश पदं द े शवेधकरी तु या ।
श वेधकरा या तु सा य व राविध ॥ २,३.१९० ॥
व े थता स वै िस ो िन ं िन पदं लभेत् ।
े ाचारी व कायो व पातैन िभ ते ॥ २,३.१९१ ॥
त मू पुरीषा ां सवलोहािन का नम् ।
जाय े ेदस का ा सं शनादिप ॥ २,३.१९२ ॥
सवषामु योगानामनु ा ु ग कम् ।
पलाध भ येि ं रससं ामणे िहतम् ॥ २,३.१९३ ॥
कािल कािल महाकािल मां सशोिणतभोिजिन ।
र कृ मुखे दे िव रसिस ं दद मे ॥ २,३.१९४ ॥
ाहा अने न िस म ेण श च ं पूजयेत् ।
कािलकां भैरवं िस ान् कुमारी ं सािधतं रसम् ॥ २,३.१९५ ॥
ततो रसायनं िद ं सेवये मा ुयात् ।
गुिटकां धारये े पूवम ं जपे दा ॥ २,३.१९६ ॥
रसम योगे ण शी ं िस मवा ुयात् ।
काला रसिस या ो ा म ानभैरवे ॥ २,३.१९७ ॥
तदथ प त ािन ष ं जीवं च साधयेत् ।
कािक ाः पु काले तु स ं कृ ा समाहरे त् ॥ २,३.१९८ ॥
त ोिन थं रजोबीजं गगनं तं िवदु बुधाः ।
कािक ु पु स ोिवड् वायु ते ॥ २,३.१९९ ॥
तेज ु कािकनीपु ं जलं त ु शोिणतम् ।
कािकनीपु सवा ं पृिथवीत मु ते ॥ २,३.२०० ॥
रससे वकदे हो वीय जीव ु क ते ।
त े कं कोिटवेधं कषकं रससं युतम् ॥ २,३.२०१ ॥
कृ ा संर ये ं सुिप ं गोलकीकृतम् ।
उ तं पौ षं यावि ारे ण तदधकम् ॥ २,३.२०२ ॥
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कुया ा कटाहं तु थूलं याव षडङ्गुलम् ।
चतुमुख को पृ े धाय ढं यथा ॥ २,३.२०३ ॥
गोघृतं नरतै लं च समभागेन मेलयेत् ।
तेनापू य कटाहं तं िस च ं ततोऽचयेत् ॥ २,३.२०४ ॥
कुमारीगु दे वा ीन् भै रवं भैरवीयुतम् ।
तपये िलमां सेन े पालं च पूजयेत् ॥ २,३.२०५ ॥
धमनं त कुव त चतुिद ु शनैः शनैः ।
चतुिभव नालै खिदरा ारयोगतः ॥ २,३.२०६ ॥
सुत ं फेनिनमु ं िनधू मं च यदा भवेत् ।
च ाक हन दे वताभुवनािन च ॥ २,३.२०७ ॥
नम ृ गु ं दे वं दे हं त िविनि पेत् ।
सु ु तं तं िवजानीयाि ि पे ािथवं रसम् ॥ २,३.२०८ ॥
धम ैव य ेन याव तां जेत् ।
अ ा ं रसं त न् ि पे ं भवे ु तत् ॥ २,३.२०९ ॥
वायुयु ं रसं ि ा शु वण जायते ।
तेजोयु ं रसं ि ाद् घनीभूतं भवे ु तत् ॥ २,३.२१० ॥
तत आकाशसंयु ं रसं त िविनि पेत् ।
आविततं सुवणाभं जायते त िनि पेत् ॥ २,३.२११ ॥
जीवयु ं रसं िद ं ततो ं कारमु रे त् ।
कृ ा त महारावं ं कार यसंयुतम् ॥ २,३.२१२ ॥
तत ोि ते िस ः पूवा े भा रो यथा ।
िद तेजा महाकायो महाबलपरा मः ॥ २,३.२१३ ॥
नवनागसह ाणां बलं त ािधकं भवेत् ।
जीवते व दे हः सन् स ं स ं िशवोिदतम् ॥ २,३.२१४ ॥
जराजज रता ानाम ानां पङ्गुकुि नाम् ।
न वा डष ानां कु ानां कु दे िहनाम् ॥ २,३.२१५ ॥
अनेक ािधयु ानां ा ो िपशािचनाम् ।
िकं पु नः दे हानां भूपानां रससेिवनाम् ॥ २,३.२१६ ॥
वीराणां साधकानां च िद िस दो भवेत् ।
त ा ीरतरो योऽ भैरवोऽसौ न संशयः ॥ २,३.२१७ ॥
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व कायो भवे ो मेधावी िद पवान् ।
अधयोजनिव ीण िवमानं चा रोयुतम् ॥ २,३.२१८ ॥
आयाित ना संदेह िस स ुखम् ।
त ा ढो लोके ीडते भैरवो यथा ॥ २,३.२१९ ॥
ु पासािविनमु ो जग ाशे न न ित ।
भु ानः सवभोगां योिगनां स ि यो भवेत् ।
इ ािस ो महावीरो िन ान मयो भवेत् ॥ २,३.२२० ॥
ा सम मनुभूय रसायनेषु साराितसारसुखसा तरं नराणाम् ।
दे ह दा करणे गुिटका योगाः ो ाः परं िशवकराः सततं सुिस ै ॥ २,३.२२१ ॥

२, ४
सूतग गगनायसशु ं मा रतं च परमामृतीकृतम् ।
इ मे कमिप मूिलकागणं दे हिस करमाशु सेिवतम् ॥ २,४.१ ॥
मृतका ा कं सूतं ग ं भृ िवड कम् ।
ज िब बीजं च ेकं पलषोडश ॥ २,४.२ ॥
ि ंश लं ूषणं च ि ंश ंशद् घृतं मधु ।
िच मूलं दशपलं सव चूण िवलोडयेत् ॥ २,४.३ ॥
पलािन ि फलाया ु िवंशपूव चतुःशतम् ।
ा म गुणै ोयै ा म ावशेिषतम् ॥ २,४.४ ॥
कषायं भावये ेन मासै कं पूवलोिडतम् ।
लोहपा े खरे घम त लाध सदा िपबे त् ॥ २,४.५ ॥
ीरै ः शयनकाले तु वषा ृ ुजरापहम् ।
बालो िनिबडसं िध जीवे ाकतारकम् ॥ २,४.६ ॥
महारसायनं िद ं कािमनीशततोषकम् ।
अि वण ि पे ीरे कृ ा ं वि तािपतम् ॥ २,४.७ ॥
िभ प ं ततः कृ ा जलम े िविनि पेत् ।
ि ंश लािन य ेन म रचं पलप कम् ॥ २,४.८ ॥
चूिणतं िनि पे ं िदना े समु रे त् ।
त व पे षये ल णं िसतव ेण ब येत् ॥ २,४.९ ॥
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जलपू ण घटे घम दोलाय ेण धारयेत् ।
शु े तोये पु न ोयं द ा ाव ले गतम् ॥ २,४.१० ॥
तद कं ततो व ं सं जे ये लम् ।
ि ंश ागं ततः कुया लं सा कं सुधीः ॥ २,४.११ ॥
त ागै केन संलो पलैकं ेतत ु लात् ।
ि ंश ले गवां ीरे त चे ाथ शीतलम् ॥ २,४.१२ ॥
म ा ै ि पलैयु ं िन ै कै मरीचकैः ।
साधको भ येि ं मासा ृ ुजरापहम् ॥ २,४.१३ ॥
केशा द ा नखा पत ह्यु व च ।
व कायो भवे ो वायुवेगो महाबलः ॥ २,४.१४ ॥
अमृता कयोगोऽयं श ुना गिदतः पुरा ।
मृता ं ग कं शु ं कणा सव समं घृतैः ॥ २,४.१५ ॥
कषकं भ येि ं वषा ृ ुजरापहम् ।
कोर क प ािण मृता ं ग कं समम् ॥ २,४.१६ ॥
त व नीिलका ावैः स ाहं भा मातपे ।
त षकं िपबे ीरै र ा ृ ुजरापहम् ॥ २,४.१७ ॥
मृता क कषकं गवां ीरं पलं तथा ।
समू लप ां सपा ी ं सा ा िप ा च ग कम् ॥ २,४.१८ ॥
एकीकृ िपबे व वषकेन जरां जयेत् ।
व कायः खेचर जीवे िदन यम् ॥ २,४.१९ ॥
मृता ं का लोहं च ि फला मागधी समम् ।
प ा ं बदरीचूणम तु ं िनयोजयेत् ॥ २,४.२० ॥
िसताम ा संयु ं पलाध भ ये दा ।
ह वषा रां मृ ुमायुः ा णो िदनम् ॥ २,४.२१ ॥
अमृत ीडे िव ुसंवरिण ाहा ।
अनेन म ेण सव अ कयोगा अिभम भ णीयाः ।
मृतं का ं ितलाः कृ ा बदरीफलचूणकम् ।
काकतु ीबीजचूण सव तु ं क येत् ॥ २,४.२२ ॥
शा लीम प ाणां वैभा ं िदन यम् ।
ि िदनं भृ जै ावैभािवतं शोषये ुनः ॥ २,४.२३ ॥
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त न् तु ं गु डं ि ा विटकाः कषमा काः ।
द ु वै ः ीरै म ा ा ां िपबे दा ॥ २,४.२४ ॥
वषकेन जरां मृ ुं ह स ं न संशयः ।
मृतं का ं कृ ितलां फलां चूणये मम् ॥ २,४.२५ ॥
शा लीकेतकी ावैल िडतं का पा के ।
थतं रा ौ िपबे ातः पलाध मृ ुनाशनम् ॥ २,४.२६ ॥
व रै का रां ह जीवे िदन यम् ।
का भ कणाचूण िन िनयासमे व च ॥ २,४.२७ ॥
ि फलातु तु ां शं म ा ा ां पलाधकम् ।
िलहे ासा कं िन ं जीवे िदनं नरः ॥ २,४.२८ ॥
कु ख ािन संपा कषाये ैफले समे ।
शोषिय ा िवचू ाथ तािन का ं मृ तं समम् ॥ २,४.२९ ॥
म ा ा ां िलहे ष वषा ृ ुजरापहम् ।
कोर प चूण तु का भ ितला गु डम् ॥ २,४.३० ॥
तु ं भ ं पलाध त षा ृ ुजरापहम् ।
का भ समं ग ं तैलै ित तीभवैः ॥ २,४.३१ ॥
िलहे ि ं चतु िन ं ायुजायते नरः ।
बृह ितसमो वाचा व रा वित ुवम् ॥ २,४.३२ ॥
मृतती णं यो भागाः शु ग ा भागकम् ।
घम भा ं ि स ाहं त व क का वैः ॥ २,४.३३ ॥
गो ीरै बे ष जीवे िदन यम् ।
वषमा ा संदेहो िद तेजा महाबलः ॥ २,४.३४ ॥
मृतं का ं िशला शु ा तु ं म ा कैिलहे त् ।
िन ं िन ं तु वषकं जीवे िदन यम् ॥ २,४.३५ ॥
ि िन ं मृ तती णं तु मु ं वा का मेव वा ।
िपबे ारो पयसा वयः करं नृणाम् ॥ २,४.३६ ॥
वष य योगे ण जीवेदाच तारकम् ।
स ा मये पा े धा ीचूण िशवा ुना ॥ २,४.३७ ॥
रा ौ पलै कं संिल ात ाय भ येत् ।
वलीपिलतिनमु ो व रा ृ ुिज वेत् ॥ २,४.३८ ॥
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लेपये ा पा ा ः पलै कं ि फलामधु ।
िदवारा ं थतं पेयं ति ं तु िशवा ुना ।
वषा ृ ुं जरां ह जीवे षशत यम् ॥ २,४.३९ ॥
ओं हः अमृते अमृतश अमृतग ोपजीिव िन ं च ामृ तमा ािपतंकु कु ाहा हे
हे हं हः गिमित ग कलोहयोभ णम ः ।
सवषां लोहयोगानामनु ा ीरपानकम् ।
आ ादये ादु मु ानां रसं द पीिडतम् ॥ २,४.४० ॥
मूलािन भ ये ासामा वैर शा ये ।
ब े को े तु दी ा ौ त ं ीरं िपबे दा ॥ २,४.४१ ॥
ानमदनती णो ं िव े सित वजयेत् ।
ता ूलं भ येि ं सकपूरं मु मु ः ॥ २,४.४२ ॥
स ीण तु दी ा ौ िपबे ाद् बुभुि तः ।
तं ीरं ततोऽ ं च से ं लौहरसायने ॥ २,४.४३ ॥
वृ प ा ं छायाशु ं सुचूिणतम् ।
म ा ा ां िलहे ष वषकेन जरां जयेत् ॥ २,४.४४ ॥
जीवे षसह ैकं िद तेजा महाबलः ।
वृ पु ािण छायाशु ािण कारयेत् ॥ २,४.४५ ॥
ि ंश लं तु त ूण चतुिवश लं घृतम् ।
एकीकृ ि पे ा े तं द् ा धा रािशगम् ॥ २,४.४६ ॥
कृ ा मासा मुद्धृ भागान् कुया तुदश ।
भागै कं भ येि ं भु ीत का भाजने ॥ २,४.४७ ॥
एवं मास यं कुया कायो भवे रः ।
त मू पुरीषा ां ता मायाित का नम् ॥ २,४.४८ ॥
वृ बीजािन चूिणतािन घृतैः सह ।
पू वव ा म े तु ि ा मासा मु रे त् ॥ २,४.४९ ॥
पलै कैकं सदा खादे रा ृ ुिज वेत् ।
वलीपिलतिनमु ो जीवे िदन यम् ॥ २,४.५० ॥
बीजो तं तैलं गवां ीरै ः पल यम् ।
तु ै ः िपबे वे ूछा िस े मुखे पयः ॥ २,४.५१ ॥
बोधे ीरौदनं द ा ासा ानी भवे रः ।
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ि तीये शु तु ः ा ृतीये व व वेत् ॥ २,४.५२ ॥
दू र ावी चतुथ तु प मे खेगितभवेत् ।
मासषट् के यं कता िशवतु परा मः ॥ २,४.५३ ॥
महाक ा पय ं जीवे षकसेवनात् ।
वृ मित थूलं छे दयेदू भागतः ॥ २,४.५४ ॥
अधो र ं ि ह ं ा मूि िबलं कृतम् ।
प धा ीफलैः पूय त ा े न िन च ॥ २,४.५५ ॥
कुशै ु वे ये व ले ं मृ ोमयैः पुनः ।
आवे व ख े न िल े ृ ोमयै तः ॥ २,४.५६ ॥
शु े गजपुटं दे यं प रतोऽर को लैः ।
ा शीतलमुद्धृ स वािण फलािन च ॥ २,४.५७ ॥
ि पे ा संयु े भा े ता ेव भ येत् ।
यथे ं भूगृहा थः ीराहारी जरां जयेत् ॥ २,४.५८ ॥
मास येन वसुधां िछ ां प ित िनि तम् ।
जीवे िदनं याव पव चुकं जेत् ॥ २,४.५९ ॥
ेतपालाशप ा ं चूिणतं मधु ना सह ।
कषकं भ येि ं मासा ृ ुजरापहम् ॥ २,४.६० ॥
ायुजायते िस ो वषमा ा संशयः ।
अजाघृ तेन त ीजमेकैकं भ ये दा ॥ २,४.६१ ॥
शरीरं भ ना म मासा ृ ुजरां जयेत् ।
जीवे िदनं यावि कायो भवे रः ॥ २,४.६२ ॥
अ े योगा यथा र े वृ े च ये गुणाः ।
तथैव ेतपालाशे भवेयुः साधक वै ॥ २,४.६३ ॥
अमृतं कु कु अमृतमािल ै नमः ।
अनेन म ेण सवयोगाः स ािभम ता भ णीयाः ।
शु प ेऽथ पूणायां पु े वा वणे तथा ।
रे व ां वाथ स ू मु ीप ा मु रे त् ॥ २,४.६४ ॥
छायाशु ं तु त ूण कष गोपयसा सह ।
वषकेन जरां ह जीवे षशत यम् ॥ २,४.६५ ॥
त मू पुरीषा ां ता ं सौवणतां जेत् ।
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त ूण तु घृतैल ं त ा लमद् भुतम् ॥ २,४.६६ ॥
ओं नमोऽमृतो वाय अमृतं कु कु ाहा ओं ां सः ।
इित औषधभ णम ः ।
छायाशु ं दे वदालीप ा ं चूणये तः ।
म ा ा ां िलहे ष वषा ृ ुजरां जयेत् ॥ २,४.६७ ॥
जीवे सह ं तु तु ो भवे रः ।
त ूण कषमा ं तु िन ं पेयं िशवा ुना ॥ २,४.६८ ॥
पू वव ायते िस व रा ा संशयः ।
त ूण वाकुचीवि सपा ीभृ राट् समम् ॥ २,४.६९ ॥
चूिणतं कषमा ं तु िन ं पेयं िशवा ुना ।
वषा ृ ुं जरां ह िछ ां प ित मेिदनीम् ॥ २,४.७० ॥
पु ननवादे वदा ोन रै िन ं िपबे रः ।
दे वदा ा सपा ाः पलैकं वा िशवा ुना ॥ २,४.७१ ॥
िपबे ा ूवव व रा ा संशयः ।
दे वदालीं च िनगु ी ं िपबे ष िशवा ुना ।
वषकेन जरां ह जीवेदाच तारकम् ॥ २,४.७२ ॥
ओममृ तगण गणा ः ाहा ।
अयं च हणम ः ।
नमो भगवते ाय ं फट् ाहा ।
अयं साधक िशखाब नम ः ।
ओं चर र र ।
अयं भ णम ः ॥ २,४.७३ ॥
पु े ेताकमूलं तु ा ं छायािवशोिषतम् ।
चूणकष गवां ीरै ः पल ं ै युतं िपबेत् ॥ २,४.७४ ॥
मासषट् का रां ह जीवे िदन यम् ।
वं ेताकप ाणां भृ राज वैः समम् ॥ २,४.७५ ॥
एकीकृ ातपे शु ं चूण ीरै तुगुणैः ।
मृ ि ना पचे ाव ाव मागतम् ।
त षकं घृतैल ं वषा ा ूवव लम् ॥ २,४.७६ ॥
ओमां हं वासरमािलने ाहा ।
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अयं भ णम ः ।
ा ं सोम योद ां ह कण प कम् ।
छायाशु ं तु त ूण गवां ीरै ः िपबे लम् ॥ २,४.७७ ॥
वषमा ा रां ह जीवे िदनं नरः ।
ह कण प ा ं छायाशु ं िवचूिणतम् ॥ २,४.७८ ॥
कषमा ं िपबेि ं मासै कमुदकैः सह ।
आरनालै त ै दिध ीरा ौ कैः ॥ २,४.७९ ॥
े केन मा े ं मासैकेन जरापहम् ।
जीवे िदनं साध व कायो महाबलः ॥ २,४.८० ॥
ओं गरिवषं ौ गृ ािम ाहा ।
ह कण हणम ः ।
ओममृ तकुटीजातानाममृतं कु कु ाहा ।
अनेन पू जयेत् ।
ओममृ तो वाय अमृतं कु कु िन ं नमो नमः ।
भ णम ः ॥ २,४.८१ ॥
द ा ैव प ा ं छायाशु ं िवचूणयेत् ।
तदध मुसलीचू ण मु स ध फल यम् ॥ २,४.८२ ॥
मूलानां कतको ानां तैलं पातालय के ।
ाहये भय े वा त ैलं ालये लैः ॥ २,४.८३ ॥
नािलकेरजलै वाथ ा ं प ां शवारकम् ।
एत ैलेन संयु ं पूवचूण िलहे मात् ॥ २,४.८४ ॥
कषािदवधनं काय पला ं चाथ वधयेत् ।
एवम ा रां ह आयु ः ा णो िदनम् ॥ २,४.८५ ॥
िस योगो यं ातो व कायकरो नृणाम् ।
पु ाक ाहये ातिनगु ीमू लजां चम् ॥ २,४.८६ ॥
छायाशु ां िवचू ाथ कषमेकं िपबे दा ।
अजामू पलैकेन ष ासादमरो भवेत् ॥ २,४.८७ ॥
वषमा योगे ण िशवतु ो भवे रः ।
त ूण ीरम ा ैल िडतं ि भा के ॥ २,४.८८ ॥
द् ा ि पे ा राशौ मासादु द्धृ भ येत् ।
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ि पलं वषपय ं जीवे ाकतारकम् ॥ २,४.८९ ॥
त ूणाधपलं चा ैिलहे ा ूवव लम् ।
त ूण ि फला मु ी भृ ी िन ो गुडूिचका ॥ २,४.९० ॥
वचा चैषां समं चूण म ा ा ां िलहे लम् ।
वषा ृ ुं जरां ह जीवे िदन यम् ॥ २,४.९१ ॥
िनगु ीप जं ावं भा े मृ ि ना पचेत् ।
गुडव ाकमाप ं पीतं वा िवरे ककृत् ॥ २,४.९२ ॥
िनया कृमय मुखनासाि कणतः ।
राजय ािदरोगां स ाहे न िवनाशयेत् ।
मास या रां ह जीवे षशत यम् ॥ २,४.९३ ॥
ओं नमो माय गणपतये भूपतये कुबे राय ाहा इित भ णम ः ।
भ ातकोऽभया वीरा काकतु ाः फलं वचा ।
ला ली िन प ािण सहदे वी समं समम् ॥ २,४.९४ ॥
एषां पातालय ेण तैलं ा ं य तः ।
त ैलं नीिलकामू लयु मधपलं िपबेत् ॥ २,४.९५ ॥
व रा िलतं ह आयु ः ा णो िदनम् ।
तैलाधिन े त े कृते ा ूवव लम् ॥ २,४.९६ ॥
कृ जीरक थैकं त ु ं भृ ज वम् ।
य ी नीलो लं चैव ित थाधमाहरे त् ॥ २,४.९७ ॥
पाद थं ितला ैलं सवमेक पाचयेत् ।
ा ं तैलावशेषं त ं तेनैव कारयेत् ॥ २,४.९८ ॥
न ं चा ो तैलेन कुया ृ ुजरापहम् ।
िन ाधिन ं वषकं जीवे षशत यम् ॥ २,४.९९ ॥
काकमाचीफलं िप ा कषकमुदकैः िपबेत् ।
व रा िलतं ह आयु ः ा णो िदनम् ॥ २,४.१०० ॥
गुडूची मुसली मु ी िनगु ी च शतावरी ।
िवजया च समं चूण िसताम ा संयुतम् ॥ २,४.१०१ ॥
खादे ष यं िन ं व रा िलतं जयेत् ।
उ ं गोर नाथेन जीवे िदन यम् ॥ २,४.१०२ ॥
कृ ा ां कृ सू ैवृ ं शुनकशा लेः ।
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आवे ाघोरम ेण रा ौ कृ ाजकं बिलम् ॥ २,४.१०३ ॥
द ाघोरं जपे यावद सह कम् ।
त मूल चं ा ं छायाशु ं िवचूणयेत् ॥ २,४.१०४ ॥
म ा ा ां सदा खादे लैकं व राविध ।
वलीपिलतिनमु ो जीवे िदनं नरः ॥ २,४.१०५ ॥
त पु ािण संगृ गवां ीरै ः सदा पचेत् ।
पु वज िपबे ीरं मासा ृ ुजरापहम् ॥ २,४.१०६ ॥
फलैकं त वृ गवां ीरे ण पाचयेत् ।
फलवज िपबे ीरं ीरमे वं िपबे द्बुधः ॥ २,४.१०७ ॥
चतुमास योगे ण व कायो भवे रः ।
जीवे ा पय ं वायुवेगो महाबलः ॥ २,४.१०८ ॥
त मू पुरीषा ां ता ं भवित का नम् ।
काकमाची भृ राजः सपा ी सहदे िवका ॥ २,४.१०९ ॥
समू ला दे वदाली च िन वाकुचीबीजकम् ।
फलािन काकतु ा मूलं ा ग योः ॥ २,४.११० ॥
नीलकोर प ािण ि फला च समं समम् ।
चूण त का ावैभावये वासरम् ॥ २,४.१११ ॥
छायायां शोिषतं कुया ताम ा संयुतम् ।
भ े ष यं िन ं वषमा ा रां जयेत् ।
जीवे ाकन ं महाकायो महाबलः ॥ २,४.११२ ॥
ओं ठः ठः ठः सः सः सः अमृ ते अमृ तविषिण अमृतसंजीविन सवकाम दे भगवान्
सोमराज आ ापयित ाहा इित भ णम ः ।
ि फला वाकुचीबीजं िप ली चा ग का ।
सव तु ं कृतं चूण म ा ा ां िलहे लम् ।
वषा ृ ुं जरां ह जीवे िदन यम् ॥ २,४.११३ ॥
ओं ां ी ं ूं सः ाहा अनेन म ेण भ येत् ।
मूिलकाक योगे षु गु ैकं मृतपारदम् ।
ितयोगयुतं खादे लं शतगुणं भवेत् ।
रसे भावेण शी ं िस मवा ुयात् ॥ २,४.११४ ॥
अ थमु ाधरो म ी ल मेकं शानतः ।
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जपे हाभयं ह िस ं द े रसायनम् ॥ २,४.११५ ॥
तेन भि तमा ेण जीवेदाच तारकम् ।
अजेयो दे वदै ानां पवतानिप चालयेत् ॥ २,४.११६ ॥
ओं ी ं महाभये म् ।
ातः पु ाकमु े िविवधशुभिदने म पूजािवधानै ा ं िद ौषधीनां फलदलकुसुमं
मूलप ं रसं वा ।
सवा ं वाथ िस ै सकलमिभनवं सेवये चारी ीरा ं चोदका ं िहतमशनिमदं
सवम ि व म् ॥ २,४.११७ ॥

२, ५
उ तनं पिलतहा र परं नराणां शोभावहं सुखकरं कचर नं च ।
वृ ोपयोिगसुखसा मनेकयु ा व े सुिस मनुभूितपथेन म् ॥ २,५.१ ॥
पारदं ग कं तु ं नारी ेन मदयेत् ।
िव ु ा ा मेघनादा सपा ी मुिनमु का ॥ २,५.२ ॥
आसां वै िदनं ख े मदये मु रे त् ।
यवचूण ितला ैव ेकं रसतु कम् ॥ २,५.३ ॥
ि पे न् घृ तैः ौ ै ः सवमालो र येत् ।
अनेनो तनं स लीपिलतनाशनम् ॥ २,५.४ ॥
व राि दे हः ा ीवे षसह कम् ।
व कापािलनीमू लं पारदं च समं समम् ॥ २,५.५ ॥
िशवा ुना हं म मु ता ूवव लम् ।
उ लािन समू लािन पारदं च समं समम् ॥ २,५.६ ॥
स ाहं मदये े कीयेनािशवा ुना ।
तेनैव मदये ा ं जायते पूवव लम् ॥ २,५.७ ॥
पारद समां शेन द ीयमूलकम् ।
ि ा स िदनं म कीयेनािशवा ुना ॥ २,५.८ ॥
अनेनो तये ा ं जायते पूवव लम् ।
ग कं कटु तैलेन घम भा ं िदनाविध ॥ २,५.९ ॥
त लाध सदा खादे ि कायकरं नृणाम् ।
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जायते णव े हो व रा िलविजतः ॥ २,५.१० ॥
कु चूण सम ा ं िन ं कष िलहे ु यः ।
व राि दे हः ा ेन शतपु वत् ॥ २,५.११ ॥
का पाषाणचूण तु तैलम ा संयुतम् ।
काकतु ीफलं सव सममे त ु क येत् ॥ २,५.१२ ॥
भा े द् ा ि पे ासं धा राशावथो रे त् ।
अनेन लेपये ीष न ं कुयादनेन वै ॥ २,५.१३ ॥
हाद् मरसंकाशाः केशाः ुव राधकम् ।
नागचूणपलैकं तु शङ्खचूणपल यम् ॥ २,५.१४ ॥
प ाचूण िन मेकं सव पे ं िदनाविध ।
अ द ा युतं य ा ा ादौ िशरिस ि पेत् ॥ २,५.१५ ॥
मदयेद्घिटकाध तु वे मेर प कैः ।
िशरः संवे व ेण ातः ानं समाचरे त् ॥ २,५.१६ ॥
इ ेवं ि िदनं य ा ृ ा केशां र येत् ।
प ा ं नीिलकाभृ ि फलालोहचूणकम् ॥ २,५.१७ ॥
तु ं सव कृतं सू िमडामू ेण मदयेत् ।
िदनाध तेन क े न पू वव े शर नम् ॥ २,५.१८ ॥
गु ाबीजं तु कु ै लादे वदा कम् ।
तु ं चूण िदनं भा ं भृ राजभवै वैः ॥ २,५.१९ ॥
सव चतुगुणे तै ले पाचये ृदुवि ना ।
तेना े न केशानां र नं मरोपमम् ॥ २,५.२० ॥
ह द द समं यो ं रसा नम् ।
अजा ीरे ण त ा लेपना े शर नम् ॥ २,५.२१ ॥
ि फला लोहचूण तु कृ मृद्भृ ज वम् ।
इ ुद वं चैव मासं भा े िनरोधयेत् ॥ २,५.२२ ॥
त ेपा ये े शान् ा ाव ासप कम् ।
लोहिक ं जपापु ं िप ा धा ीफलं समम् ॥ २,५.२३ ॥
ि िदनं लेिपता ेन कचाः ु मरोपमाः ।
भृ राजरस थं तैलं कृ ितलो वम् ॥ २,५.२४ ॥
तु ं च नीिलका ावं सव यामं िवमदयेत् ।
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त ेप िदनं कायः केशानां र नं भवेत् ॥ २,५.२५ ॥
िस दू र समं चूण साबुणं च तयोः समम् ।
त ले पे िषतं ले ं त णा चर नम् ॥ २,५.२६ ॥
शतपु ा काकमाची ितलाः कृ ा रोचनम् ।
िदनं िशवा ुना सव मदये ोहपा के ॥ २,५.२७ ॥
त ेपं ि िदनं कुया े शानां र नं भवेत् ।
चूण सज यव ारं िस ाथ काि कैः सह ॥ २,५.२८ ॥
नागपु ा वैम त ेपा नं भवेत् ।
नीलीप ािण कासीसं भृ राजरसं दिध ॥ २,५.२९ ॥
लोहचूण समं िप ा त ेपं केशर नम् ।
चूण िस दू रम ारं कदलीक संयुतम् ॥ २,५.३० ॥
लोहपा े लोहमु ा म ज ीरजै वैः ।
िदनै कं च ततो ले ं केशानां र नं भवेत् ॥ २,५.३१ ॥
कुर क प ािण नागमु ा िवमदयेत् ।
त ेपं ि िदनं कुया ायते केशर नम् ॥ २,५.३२ ॥
आ ा थ ि फला भृ ी ि यङ्गु मातुलु कम् ।
िनशा नीली मृणालािन नागं लोहं च चूिणतम् ॥ २,५.३३ ॥
समं क ं का पा े िन तैलेन भावयेत् ।
मासमा ं तत ेन लेपा वित र नम् ॥ २,५.३४ ॥
काकमाचीयबीजािन समाः कृ ितला था ।
त ैलं ाहये ेत ं केशर नम् ॥ २,५.३५ ॥
गोघृतं भृ जं ावं मयू रिशखया सह ।
मृ ि ना पचे ेन ा ं केशर नम् ॥ २,५.३६ ॥
जपापु वं ौ ं कषकं न माचरे त् ।
स ाहा ये े शान् सवन े यं िविधः ॥ २,५.३७ ॥
ि फला लोहचूण तु वा रणा पेषये मम् ।
त ु ेन च तैलेन भृ राजरसे न च ॥ २,५.३८ ॥
पचे ैलावशे षं त भा े िनरोधयेत् ।
मासै कं भूगतं कुया ेन शीष लेपयेत् ॥ २,५.३९ ॥
कारव ा दलैव ततो व ेण ब येत् ।
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िनवाते ीरभोजी ा ालये फलाजलैः ॥ २,५.४० ॥
िन मे वं कत ं ले पनं िदनस कम् ।
कपालर नं ातं याव ीवं न संशयः ॥ २,५.४१ ॥
बीजािन काकतु ा िसयालीबीजसंयुतम् ।
त ूण िदनच ा र भा ं िनगु ीजै वैः ॥ २,५.४२ ॥
जपापु वै ाव तः पातालय के ।
तैलं ा ं तु त ेपा े शानां र नं भवेत् ॥ २,५.४३ ॥
वे मेर प ै िनवाते ीरभोजनम् ।
कुया ानं काि कै िन ं स िदने कृते ॥ २,५.४४ ॥
याव ीवं न सं देहः केशाः ु मरोपमाः ।
भृ राजं काचमाची ं समां शं जलम वीम् ॥ २,५.४५ ॥
संिप ापू िपकां कृ ा तैलम े िवपाचयेत् ।
प ां तां पेषये ैलैलपः ा े शर नम् ॥ २,५.४६ ॥
पू वव मयोगेन स ाहा लं भवेत् ।
अय ा मये पा े रा ौ ले ं फल यम् ॥ २,५.४७ ॥
भृ राज वै ः साध ातः केशान् लेपयेत् ।
एवं कुया स ाहं जायते पूवव लम् ॥ २,५.४८ ॥
ि पे ािहषे े कृ जीरं तद येत् ।
गृहा े कदमे ि ा ष ासा मु रे त् ॥ २,५.४९ ॥
तद् ु तं जायते कृ ं कषकं िशरिस ि पेत् ।
वे ये ूवयोगे न कपालर नं भवेत् ॥ २,५.५० ॥
मरा नसं काशं याव ीवं न संशयः ।
नीलीप ं भृ राजं ि फला कृ मायसम् ॥ २,५.५१ ॥
मदन च बीजािन पु ं कोर क च ।
अजुन चं चूण निलनीमूलकदमम् ॥ २,५.५२ ॥
सव तु ं ि पे ा े लोहजे ति रोधयेत् ।
प मे कं ि पेद्भूमौ भा ा ं समु रे त् ॥ २,५.५३ ॥
क ा तुगुणं तैलं तैला तुगुणं वम् ।
भृ ि फलजं यो ं पचे ैलावशे षकम् ॥ २,५.५४ ॥
परी ाथ ि पे ं बलाकाया यदा भवेत् ।
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कृ वण तदा िस ं पा े कृ ायसे ि पेत् ॥ २,५.५५ ॥
मासै कं धारये ं तः केशा लेपयेत् ।
ित मासषट् कं तु मर ोमसंिनभाः ॥ २,५.५६ ॥
वासापलाशिच ो ैद ै वा जै ढम् ।
नागं पा गतं चा ं याव वित मूिछतम् ॥ २,५.५७ ॥
पलै कं त मादाय लोहचूण पल यम् ।
ि पलं ि फलाचूण दािडम फल चः ॥ २,५.५८ ॥
शु ं चूण पलैकं त वषां काि कं समम् ।
भा े सव पचे ं िच ं ि पे ोहभाजने ॥ २,५.५९ ॥
भृ राजकुर ो वं द ातपे ि पेत् ।
ि स ाहं य ेन वो दे यः पुनः पु नः ॥ २,५.६० ॥
तत ं र ये ेन लेपा ा े शर नम् ।
उ ानु े षु लेपेषु वे मेर प कैः ॥ २,५.६१ ॥
िशरो रा ौ िदवा ानं यु रे षा श ते ।
व ी ीरे ण स ाहं भावयेदभयाफलम् ।
त ूणयु तैल लेपा ु ा भव िह ॥ २,५.६२ ॥
केशा सवरोमािण शङ्खवणा भव वै ।
स ाहं व दु ेन सु ेतान् भावयेि लान् ॥ २,५.६३ ॥
ते ैलं गृ ही ा त ेपा ु ा भव वै ।
गौयामलकचूण तु व ी ीरे ण स धा ॥ २,५.६४ ॥
भावये ेन लेपेन शु तां या मूधजाः ।
िस दू रं िटकां ेतां जलेन सह लेपयेत् ॥ २,५.६५ ॥
त ेपेन तु रोमािण सुशु ािन भव िह ।
मासै कं मागधीचू ण व ी ीरे ण भावयेत् ॥ २,५.६६ ॥
नरा गजवािजनां शु ीकरणमु मम् ।
इ गोपं तैिलनी च तालकं रजनी यम् ॥ २,५.६७ ॥
मनःिशला च तु ां शं चूण ु यसा हम् ।
भावयेदकजैः ीरै िदनं चातपे खरे ॥ २,५.६८ ॥
ततः कु ा जै ावैभावयेि नस कम् ।
कू ा ततो गभ ि ा मासा मु रे त् ॥ २,५.६९ ॥
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तैलेन सवरोमािण केशान् संलेपये हम् ।
वे येदकजैः प ैः शु वणा भव च ॥ २,५.७० ॥
ाने कृते शु कचेषु रा ौ लेपे कृते पूवदलै ु वे म् ।
द ा ितलैः ानमतः भाते कुया हं लेपनिम मेव ॥ २,५.७१ ॥

२, ६
येषां रामा रमणकुशला रागस ाः ग ाः कामास ा ह रणनयना िब ानना ।
तेषां व े मदनसु खदां वीयवृ ं भूतां म ाः िस ाः शतमिप ढा ा शा ोषय ॥
२,६.१ ॥
व हे माकसू ता लोहभ मो रम् ।
सव क ा वैम शा ा वै हम् ॥ २,६.२ ॥
त ु द् ा काचकू वालुकायां हं पचेत् ।
त ं मु सली ाथैव ाक ीरसंयुतैः ॥ २,६.३ ॥
िदनै कं मदये े द् ा भूधरे पुटेत् ।
यामादु द्धृ संचू िसताकृ ाि जातकैः ॥ २,६.४ ॥
समै ः समं िविम ाथ माषैकं भ ये दा ।
मागधी मु सली य ी वानरीबीजकं समम् ॥ २,६.५ ॥
चूण िसता गो ीरै ः पलाध पाययेदनु ।
कािमनीनां सह ैकं रममाणो न मु ित ।
सेवनाद् ढकायः ा सोऽयं मकर जः ॥ २,६.६ ॥
शु सू तं समं ग ं र ो लदल वैः ।
यामं म पु नग ं साध त िविनि पेत् ॥ २,६.७ ॥
पू व ावैिदनं म रसाध ग कं पुनः ।
द ा त ि नं म काचकू ां िनरोधयेत् ॥ २,६.८ ॥
िदनै कं वालुकाय े प मुद्धृ चूणयेत् ।
भूकु ा ीकषायेण भावयेि नस कम् ॥ २,६.९ ॥
छायायां त तातु ं िन ै कं भ ये दा ।
शणमूलं सबीजं च मु सली शकरा समम् ॥ २,६.१० ॥
गवां ीरै ः पलाध तु अनु रा ौ सदा िपबेत् ।
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अन ं वधते वीय रसोऽयं मदनोदयः ॥ २,६.११ ॥
शु सू तसमं ग ं बदरीिच क वैः ।
म चा ो जै ावै ख े िदन यम् ॥ २,६.१२ ॥
स ो हताजमां स िप े ं च सीवयेत् ।
त ं ितलतैलेन लोहपा े शनैः पचेत् ॥ २,६.१३ ॥
याव ां सं र वण ततः सूतं समु रे त् ।
ि िदनं मुसली ाथै भािवतं िसतया युतम् ॥ २,६.१४ ॥
िन ै कं भ येि ं रसोऽयं मदने रः ।
िवदारीक चूण तु ीरा ेन पलं िपबेत् ॥ २,६.१५ ॥
रमये ीशतं िन ं त ागाद तां जेत् ।
मृता ं पारदं ण तु ं म िदन यम् ॥ २,६.१६ ॥
मुसलीि फला ाथैवािजग ाकषायकैः ।
कदलीक जै ावै ोलं चा तं पुटेत् ॥ २,६.१७ ॥
भूधरे िदनमा ं तु समुद्धृ ाथ मदयेत् ।
िदनै कं पू वजै ावै ु द् ा पुटे पचेत् ॥ २,६.१८ ॥
पु नम पु नः पा मेवम पुटैः पचेत् ।
शा लीजातिनयासै ु ं शकरया सह ॥ २,६.१९ ॥
खादे ि यं िन ं ावये िनताशतम् ।
गो ीरै मकटीबीजं पलाध पाययेदनु ॥ २,६.२० ॥
सवा ो तनं कुया यवैः शा ली वैः ।
रसः कामकला ोऽयं महावीयकरो नृणाम् ॥ २,६.२१ ॥
मृतसूतं यो भागा भागै कं हाटकं मृतम् ।
कदलीक जै ावैः शा लीज वैिदनम् ॥ २,६.२२ ॥
गो ीरै िदनं म णैकं पाचयेद्घृतैः ।
त े शकरां ा ां धा ी ं र ाफलं मधु ॥ २,६.२३ ॥
गो ीरं मु सली ं माषान् कोिकला बीजकम् ।
सूता तुगुणं ि ा म शा िलजै वैः ॥ २,६.२४ ॥
त व िदनमे कं तु कामदे वो रसो भवेत् ।
िन मा ं सदा भ ं गवां ीरं िपबेदनु ॥ २,६.२५ ॥
मैथुने ढिल ः ाद् ावये िनताकुलम् ।
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ार रजसा ीणां मदये सूतकम् ॥ २,६.२६ ॥
मृतं ता ं च तारं च ग कं च समं िदनम् ।
िसताम ा संयु ं िन ं भु ा िपबे यः ॥ २,६.२७ ॥
रितकामरसो नाम कािमनीरमणे िहतः ।
वानरीमू लगोधूमं कोिकला बीजकम् ॥ २,६.२८ ॥
माषा े ुरसै ः सव लोिडतं पाचयेद्घृतैः ।
तेनैव वटकाः काया िन ं खादे ् वयं यम् ॥ २,६.२९ ॥
अनुपानिमदं िस ं सेवना मये तम् ।
शु सू तसमं ग ं हं क ारजै वैः ॥ २,६.३० ॥
मिदतं चा तं प ा ामं वालुकय के ।
र ाग वैभा ं िदनैकं तु िसतायुतम् ॥ २,६.३१ ॥
िन मा ं सदा खादे सोऽयं मदवधनः ।
अज वृ षणं ीरे प ं ितलिसतायुतम् ॥ २,६.३२ ॥
यथे ं भ ये ानु रमये ािमनीशतम् ।
पल यं यं शु ं पारदं ग कं शुभम् ॥ २,६.३३ ॥
कषकं मा रतं ण पलैकं मृतता कम् ।
रौ भ चतुिन ं सव प ामृ तैिदनम् ॥ २,६.३४ ॥
म द् ा िदनं प ाद् भूधरे तं समु रे त् ।
िप ा प ामृ तैः खादे िटकां बदराकृितम् ॥ २,६.३५ ॥
अन सु री ाता रामाणां रमते शतम् ।
शा लीमू लचूण तु मधुशकरया तम् ॥ २,६.३६ ॥
पलै कं भ ये ानु िसता ीरं तु पाययेत् ।
शा ु ै वैम ः प ैकं शु पारदः ॥ २,६.३७ ॥
शु ग ं ि स ाहं तद् वैमदये ृथक् ।
समावे तौ पु नम घृतैयामचतु यम् ॥ २,६.३८ ॥
त ोलं ब ये े घृतैयाम यं पचेत् ।
तत ं शा ली ावैमदयेि वस यम् ॥ २,६.३९ ॥
िनि पे ाचकू वालुकाय गं पचेत् ।
ि पे ा िलजं ावं कू ा गभ िदनाविध ॥ २,६.४० ॥
सा मेव समु द्धृ िम ं त तया समम् ।
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िन मा ं सदा खादे सोऽयं कामनायकः ॥ २,६.४१ ॥
मुसलीं सिसतां ीरै ः पलैकां पाययेदनु ।
कािमनीनां सह ं तु ोभयेि िमषा रे ॥ २,६.४२ ॥
शु सू त यो भागा भागै कं ता चूणकम् ।
कृ ा िप ी ं िन ाथ र ाक ोदरे पुनः ॥ २,६.४३ ॥
मृ ं शोिषतं प ाि नैकं करीषाि ना ।
एवं स िदनं प ा े क े िदनं िदनम् ॥ २,६.४४ ॥
उद् धृ ब ये े ढे चैव चतुगुणे ।
ु श ूकमां सा छागीर गतं पचेत् ॥ २,६.४५ ॥
दोलाय े हं याव े यं र ं पुनः पुनः ।
गुडू ा गजिप ा कद ा कोिकला कैः ॥ २,६.४६ ॥
गो ुरीवानरीमूलजातीमूल च वैः ।
पाचये षायैवा दोलाय े िदन यम् ॥ २,६.४७ ॥
ततः ीरे िसतायु े त ाि नाविध ।
उद् धृ मु सली ाथैम यामचतु यम् ॥ २,६.४८ ॥
रसः पू ण दु नामायं खादे ां सं िसतायुतम् ।
गो ुरो वानरीबीजं गुडूची गजिप ली ॥ २,६.४९ ॥
कोिकला बीजािन म ा कापासबीजजा ।
शतावरी च र ायाः फलं सव समं भवेत् ॥ २,६.५० ॥
सवतु ा िसता यो ा मधु ना लोिडतं िलहे त् ।
पलाधमनुपानं ा तः पेयं गवां पयः ॥ २,६.५१ ॥
कािमनीनां सह ैकं रमते कामदे ववत् ।
प बीजं कसे ं च क ं नालं च किणकाम् ॥ २,६.५२ ॥
मुसली भृ राट् ा ा प ं े ातकं फलम् ।
िवजया मकटी माषाः शणबीजािन वै ितलाः ॥ २,६.५३ ॥
कोिकला बीजािन भूकु ा ी शतावरी ।
ाटं िचिभटं फ ीबीजािन चा ग का ॥ २,६.५४ ॥
एत व समं चू पादां शं चाहरे ृथक् ।
पादां श ा मां शेन शु ं सूतं िविम येत् ॥ २,६.५५ ॥
पारदाद मां शं च कपू रं त िनि पेत् ।
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चातु जातकमे कैकं कपू रा ् िवगुणं भवेत् ॥ २,६.५६ ॥
सूततु ा िसता यो ा म र ा वैिदनम् ।
त ोलं डामरे य े मवृ ाि ना पचेत् ॥ २,६.५७ ॥
िदना े चो ल ं त ा ं र ा वै ढम् ।
मिदतं िसतया तु ं माषैकं भ ये दा ॥ २,६.५८ ॥
रसो मदनकामोऽयं बलवीयिववधनः ।
िद पा भजे ामाः कामाकुलकला ताः ॥ २,६.५९ ॥
भाग यं तु य ूव पृथ ू ण सुरि तम् ।
कुलीरमां स ागा चटका ािन वै पृथक् ॥ २,६.६० ॥
े कं चूणये ु ं सवतु ं गवां पयः ।
त व चालयन् प ा ाव मागतम् ॥ २,६.६१ ॥
साय का पा ा ायाशु ं िवचूणयेत् ।
अ चूण कपू रं चतुःष ंशकं ि पेत् ॥ २,६.६२ ॥
चातु जातकचूण तु ि पे ् वाि ंशदं शतः ।
सवतु ा िसता यो ा र ये ूतने घटे ॥ २,६.६३ ॥
कष यं गवां ीरै रनुपानैः सदा िपबेत् ।
िनषेकं मा रतं चा ं खादे करया समम् ॥ २,६.६४ ॥
शा लीमू लचूण तु भृ राज मूलकम् ।
पलै कं िसतया चानु सेवेत कािमनीशतम् ॥ २,६.६५ ॥
वानरीकोिकला बीजािन ितलमाषकाः ।
वासागो ुरयोमू लं सव चूण समं भवेत् ॥ २,६.६६ ॥
चूणतु ं मृ तं चा ं सवतु ा तु शकरा ।
एत ष गवां ीरै ः िपबे ामा नायकः ॥ २,६.६७ ॥
तैलेन प ं चटकं खादे ूव तु भोजनात् ।
भोजना े िपबे ीरं रामाणां रमये तम् ॥ २,६.६८ ॥
अ ग ाशतावय ः शा ाि क च ।
मूलं मु सलीजं क ं कोिकला बीजकम् ॥ २,६.६९ ॥
िवदारीपि नीक ं वानरीबीजकं समम् ।
एत ूण मृ ता ं तु तु ं शकरया समम् ॥ २,६.७० ॥
पलाध पायये ीरै ः खादे ु ु टमां सकम् ।
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ीरपानं ततः कृ ा रमये ािमनीशतम् ॥ २,६.७१ ॥
धा ीफल चूण तु भावये ल वैः ।
एकिवं शितवारान् वै शो ं पे ं पुनः पुनः ॥ २,६.७२ ॥
त ादां शं मृतं लोहं म ा शकरा तम् ।
पलै कं भ येि ं िसता ीरं िपबेदनु ॥ २,६.७३ ॥
धा ीलोह भावेन रमये ािमनीशतम् ।
पु ननवा नागबला वािजग ा शतावरी ॥ २,६.७४ ॥
गो ुरं मु सलीक ं मृतं सूतं समं समम् ।
चूण म ा सं यु ं िन ं भु ा िपबे यः ॥ २,६.७५ ॥
त ु लं वानरीबीजं चूणये तया समम् ।
आलोडये वां ीरै ेन प ादपूिपकाम् ॥ २,६.७६ ॥
तां घृतैभ ये ानु रमये ािमनीकुलम् ।
वानरीबीजचूण तु माषचूणकम् ॥ २,६.७७ ॥
नािलकेरोदकैभा ं यामा े पेषये तः ।
िवंश ंशेन िप मृतम ं िविम येत् ॥ २,६.७८ ॥
घृ तै टकं प ा म ा ा ां तु भ येत् ।
ीरं िसतां चानुिपबे ामाणां रमते शतम् ॥ २,६.७९ ॥
वालु कास वं म ं सुप ं भ येद्घृतैः ।
ष ोऽिप जायते कामी वीय ः जायते ॥ २,६.८० ॥
ऊणनािभं समं ौ ै ः िप ा नािभं लेपयेत् ।
मु ते ब ष ोऽिप ीरै वि ं िपबे दनु ॥ २,६.८१ ॥
यमि रसं चा ि िन ं भ ये दा ।
घृ ता ा दिलता माषाः ीरे ण सह पािचताः ॥ २,६.८२ ॥
िसता सं युता भ ा वीयवृ करा लम् ।
णे णे भजे ामां यथा पारावतो ुवम् ॥ २,६.८३ ॥
स ा रतम कं कटु फलं कु ा ग ामृ ता मेथी मोचरसो
िवदा रमु सलीगोक के ुरकाम् ।
र ाक शतावरी जमोदा माषा ला धा कं य ी नागबला कचोरमदनं जातीफलं
सै वम् ॥ २,६.८४ ॥
भाग ककटशुि भृ ि कटु ौ जीरकौ िच कं चातुजातपुननवागजकणा ा ाशणं
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वासकः ।
शा ङ्ि फलि कं किपभवं बीजं समं चूणये ूणाशा िवजयािसताि गुिणता
म ा िम ं तु तत् ॥ २,६.८५ ॥
कषाधा गुिलकां िवले मथवा कृ ा सदा सेवये ेया ीरिसतानु वीयकरणे े ऽ लं
कािमनाम् ।
ामाव करः समािधसुखदः स े ऽ ना ावकः ीणे पुि करः य यकरो
नानामय ं सकः ॥ २,६.८६ ॥
कास ासमहाितसारशमनो म ाि संदीपनो शािस
हणी मेहिनचय े ाितसार णुत् ।
िन ान कवेिवशे षकिवतावाचािवलासो वं द े सव महा थरदशां ानावसाने भृशम्
॥ २,६.८७ ॥
अ ासेन िनह मृ ुपिलतं कामे रो व रा वषां िहतकारको िनगिदतः
ीिन नाथेन वै वृ ानामिप कामवधनकरः ौढा नासंगमे िस ोऽयं
धनव मोघसु खदो भूपैः सदा से ताम् ॥ २,६.८८ ॥
इ ेतदु ं ब वीयवधनं रा ौ सदा ीरिसतासम तम् ।
भु ो रं से िवतमाशु कािमनां िवद रामाकुलव कारकम् ॥ २,६.८९ ॥

२, ७
वीय थरं योिनमुखेषु येषां थूलं ढं दीघतमं च िल म् ।
तेषां ग ाः मदा सवा भव तृ ाः सुरत स े ॥ २,७.१ ॥
नागव ीदल ावैः स ाहं शु पारदम् ।
मदये ख े तु ालये ाि कै तः ॥ २,७.२ ॥
त पे ि षक गभ िन चतु यम् ।
िवषेण त ुखं द् ा थूलवाराहमां सके ॥ २,७.३ ॥
िप ं गभ िन ाथ मुखं सू ेण सीवयेत् ।
सं ाकाले बिलं द ा कु ु टं मिदरायुतम् ॥ २,७.४ ॥
तत ु ां लोहपा े तैले ध ूरस वे ।
तं िवंशितपले प ा िप ं म वि ना ॥ २,७.५ ॥
सं ामार य ेन याव ूय दयं तथा ।
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हठा ागरणं कुयाद था त िस ित ॥ २,७.६ ॥
ात द् धृ गुिटकां ीरभा े िविनि पेत् ।
त ीरं शु ित ि मे त यमद् भुतम् ॥ २,७.७ ॥
ा तां धारये े वीय करी ं रतौ ।
ीरं पी ा रमे ामाः कामाकुलकला ताः ॥ २,७.८ ॥
मुखा ं यदा ा ा तदा वीय पत लम् ।
ा गुिटका नाम शोषय ी महोदिधम् ॥ २,७.९ ॥
द म ो मूलं तु कपू रं कुङ् कुमं तथा ।
रोचना सहदे वी च समं सव पेषयेत् ॥ २,७.१० ॥
िवषमु ि कतैलेन िल िल ो नेन वै ।
नरो नारीसह ैकं ग ीय न मु ित ॥ २,७.११ ॥
ेताकतूलजां वित कृ ा सूकरमे दसा ।
याव लित दीपोऽयं ताव ीय थरं नृणाम् ॥ २,७.१२ ॥
इ वा िणकामूलं पु े न ः समु रे त् ।
ूषणै गवां ीरै ः िप ा कुया टीं ढाम् ॥ २,७.१३ ॥
छायाशु ा थता व े वीय करी नृणाम् ।
वरम ोलतैलेन नािभलेपोऽिप वीयधृक् ॥ २,७.१४ ॥
र ापामागामूलं तु सोमवारे ऽिभम येत् ।
भौमे ा ः समुद्धृ ब े ां च वीयधृक् ॥ २,७.१५ ॥
चटकानङ्कुलीतैलैः पादाधः सं लेपयेत् ।
न मु ित नरो वीय श ां पादे न न ृशेत् ॥ २,७.१६ ॥
डु ु भो नाम यः सपः कृ वण माहरे त् ।
त ा थ धारये ां नरो वीय न मु ित ॥ २,७.१७ ॥
त ु े मु ते वीय िस योग उदा तः ।
सहदे वीयमू लं तु त मं प केसरम् ॥ २,७.१८ ॥
िप ा म ा सं यु ो लेपो नाभौ तु वीयधृक् ।
ेत कोिकला बीजं मूलं समाहरे त् ॥ २,७.१९ ॥
िप ं त ु लस ूतं बदरीणां फलं समम् ।
जलैः िप ा वटी धाया वीय करी मुखे ॥ २,७.२० ॥
नागव ीपयःिप ं ल ामू लं लेपयेत् ।
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त ाभौ वीयधृ ुंसां मूलं वा तुलसीभवम् ॥ २,७.२१ ॥
मूलेन ेतगु ाया वित कृ ा दीपयेत् ।
दीपं सू करतैलेन वीय करं नृणाम् ॥ २,७.२२ ॥
बीजमी रिलङ् ा ु सूतं वृि कक कम् ।
सव पूगफल ा ः ि ा वे ं ि लोहकैः ॥ २,७.२३ ॥
िज ोप र थते त रो वीय न मु ित ।
े ात कुर बीजं फ ाः समाहरे त् ॥ २,७.२४ ॥
अजा ीरे ण तं िप ा कष भु ा तु वीयधृक् ।
सूरणं तुलसीमू लं ता ूलैः सह भ येत् ॥ २,७.२५ ॥
न मु ित नरो वीय कषकेन पृथ ृथक् ।
नखा थीिन समादाय माजार िसत वै ॥ २,७.२६ ॥
ेतापरािजतामू लं नीलीमूलं शानजम् ।
सव बद् ा कटौ वीय िचरकालं न मु ित ॥ २,७.२७ ॥
भूलता िस कं तु ं िल े ैलैः कुसु जैः ।
पादौ वीयधरो भूया ां श ां न सं ृशेत् ॥ २,७.२८ ॥
नवनीतेन वा ले ं चटका ं च पूववत् ।
इ वा णीमू लमु ाज मू तः ॥ २,७.२९ ॥
भावये ेन लेपेन नरो वीय न मु ित ।
दािडम च ूण फलं भ ातका योः ॥ २,७.३० ॥
िप ा त टु तैलेन लेपः ा ूवव लम् ।
कपूरं ट णं सूतं मुिनपु रसं मधु ॥ २,७.३१ ॥
मदिय ा िल े ेन िल ं याव म तः ।
जलैः ालये ं भजे ामां यथोिचताम् ॥ २,७.३२ ॥
वीय यते पुंसां याममा ं न सं शयः ।
कृ ध ूरतै लेन पारदं घषयेि नम् ॥ २,७.३३ ॥
ि लोहै वि तं ब ं त ां वीयधारकम् ।
ण ोमस ं तारं ता ं च रोचनम् ॥ २,७.३४ ॥
बीजं वै शरपु ङ्खायाः कृ ध ूरबीजकम् ।
सव म वट ीरै ः कुबेरा बीजके ॥ २,७.३५ ॥
त ा धारये े वीय करं िचरम् ।
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कृकलास पु ा ं मुि काकारतां कृतम् ॥ २,७.३६ ॥
ऊणनाभ जालेन वे िय ाथ धारयेत् ।
वामह े किन ायां नरो वीय न मु ित ॥ २,७.३७ ॥
थलमीनं समादाय शु ं चूणन लेपयेत् ।
उ ं र ये ं िच े धाय वीयधृक् ॥ २,७.३८ ॥
पि मसमु तटे अमरच े रो नाम दे वतायतनं त ा े वालु काम े
थलमीना ते च वालुकामीनाः क े ।
शु सू ते िविनि ण वा नागमेव वा ।
अ मां शेन त व मदये ख के ॥ २,७.३९ ॥
शा ा ैव प ा रसं त िविनि पेत् ।
े ा फलं प ं कोिकला बीजकम् ॥ २,७.४० ॥
ितलिप ाकचूण तु द ा तावि मदयेत् ।
जलौका जायते याव तः कपू रट णम् ॥ २,७.४१ ॥
किपक ु करोमािण वाकुचीतैलकं पटु ।
मागधीं च जलैः िप ा त व त ख के ॥ २,७.४२ ॥
ि पे ूवजलौकां च ि स ाहं िवमदयेत् ।
सा यो ा कामकाले तु नारीणां योिनग रे ॥ २,७.४३ ॥
मददपहरा तासां मदिव लकारका ।
बा े षडङ्गुला यो ा यौवने सा नवाङ् गुला ॥ २,७.४४ ॥
ादशाङ् गु िलका यो ा ग ानां जलौिकका ।
यो वा तां धारये ूि वीय त थरं भवेत् ॥ २,७.४५ ॥
पारदाद मां शेन सुवण नागमे व वा ।
योजये ख े तु शा ली ङ्िनज वैः ॥ २,७.४६ ॥
मुिनप रसै न लीमू ल ावै मदयेत् ।
े ातकफलं प ं कोिकला बीजकम् ॥ २,७.४७ ॥
म ा सु प ा िब ि पे ैव मदयेत् ।
जलौका जायते याव त ा मु रे त् ॥ २,७.४८ ॥
ि स ाहं त ख े कपू रा ै पूववत् ।
मदये फलं त ायते ना संशयः ॥ २,७.४९ ॥
रसाद मभागं तु सुवण नागमे व वा ।
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यो ं च ि फला भृ ी शु ी छागपयो घृतम् ॥ २,७.५० ॥
ौ ं गोमू कं चैव सव स िदनाविध ।
मदये दव ं जलौका यावता भवेत् ॥ २,७.५१ ॥
कपूरा ैः पुनम त ख े तु पूववत् ।
पू वव ायते िस ोगे न संशयः ॥ २,७.५२ ॥
ि िदनं मदये े सूतं िन चतु यम् ।
ि फलाया ु िनयासं ोकं ोकं िविनि पेत् ॥ २,७.५३ ॥
पय ैव महा ङ् ा दात ं मदन मम् ।
जलौका मदना ेयं जायते सुखदा नृणाम् ॥ २,७.५४ ॥
रामाणां मदम ानां ािवका ौ घृतं यथा ।
पू वव मयोगेन वीय करी भवेत् ॥ २,७.५५ ॥
पारदं म रचं कु ं तगरं क का रका ।
अ ग ाितल ौ सै व ेतसषपाः ॥ २,७.५६ ॥
अपामाग यवा माषाः िप ली च समं जलैः ।
िप ा िवमदये ेन िल ं मासमहिनशम् ॥ २,७.५७ ॥
वधते ह मा ं त थौ ेन मुसलोपमम् ।
वराहवसया ौ ै िल ं मासं िवलेपयेत् ॥ २,७.५८ ॥
अितदीघ ढं थूलं जायते ना संशयः ।
अ ग ा वचा कु ं बृहती च शतावरी ॥ २,७.५९ ॥
पाचयेि लतैलेन मदये ेन पूववत् ।
िल ं थूलं ढं दीघ मासमा ा जायते ॥ २,७.६० ॥
ज ूसूकरजं तैलं महारा ी च ट णम् ।
मधु ना सह लेपोऽयं मासा वृ कृत् ॥ २,७.६१ ॥
िमि तं मुसलीचूण मािहषैनवनीतकैः ।
त ा ं धा राशौ च थतं स िदनैहरे त् ॥ २,७.६२ ॥
तेन लेपये ं वधते मासमा तः ।
िप ली म रचं ीरं िसता तु ं िवमदयेत् ॥ २,७.६३ ॥
मासै कं वृ कृ े ना काया िवचारणा ।
मािहषं गोघृ तं तु ं सै वं च समं समम् ॥ २,७.६४ ॥
अनेन लेपये ं थूलं ा ासमा तः ।
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अ ग ापमाग च सा रवा फलं ितलाः ॥ २,७.६५ ॥
सषपे यवं तु मजा ीरे ण पेषयेत् ।
तेन िल ं तु मासैकं मदनाद् वृ मा ुयात् ॥ २,७.६६ ॥
मां सीम फलं कु म ग ां शतावरीम् ।
तैले प ा लेपोऽयं मासा वृ कृत् ॥ २,७.६७ ॥
रोहीतम जं िप ं जलौका ला ली समम् ।
अनेन लेपये ं ा ासा ुसलोपमम् ।
िनशा िसता ग ा च पारदं मदये मम् ।
अनेन मदये ं योिनकण नां था ।
वध े मासमा ेण ना काया िवचारणा ॥ २,७.६८ ॥
ओं नमो भगवते उ ामरे राय सर सर २ कु ठ ठः ।
अनेन म ेण सव वधनयोगाः स ािभम ताः िस ा भव ।
जा ूमाजारयोः िप ं यवागूमिदतं िदहे त् ।
मासै का धते िल ं नौ कण च मदनात् ॥ २,७.६९ ॥
ओं नमो भगवते उ ामरे राय सर सर सर िनकल िनकल िनकालय िनकालय ाहा
ठः ठः ॥ २,७.७० ॥
गृहगोधा शु नो िज ा ीजरायुः समं समम् ।
िप ा धाय ता पा े स ाहा ं पुनः पचेत् ॥ २,७.७१ ॥
ितलतै लेन त ैलमदना धते खलु ।
िल ं नौ च कण च ह ौ पादौ न संशयः ।
ओं नमो भगवते उ ामरे राय सर सर िहिल िहिल ाहा ठः ठः ।
अिततरसु खसा ैय गराजैः िस ै ः सततसुरतयो ं नं वधनं च ।
िनपु णरिसकरामार कं मोहकं ा िदतिमह सम ं भोिगनां सौ हे तुः ॥ २,७.७२ ॥

२, ८
ीशैले दे हिस ः भवित सहसा वृ मृ तोयै ा ंश ु नो ं गहनम खलं
वीि तं य ु सारम् ।
ा ाने कयु ा सकलसुखकरं िस ं तु य े साधकानामनुभवपथगं भु ये
मु ये च ॥ २,८.१ ॥
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{Fए गु ुलु बेइ ◌ं काजुन}
म काजुनदे व पु रतो गजसंिनभा ।
िशला ित ित या रा ौ वते गु ुलुं सदा ॥ २,८.२ ॥
पालाशचाटु ना ा ं ि पे दलाबुपा के ।
तद् गु ु लुसमं ग ं िन ै कं भ ये दा ॥ २,८.३ ॥
मासा ृ ु जरां ह जीवेदाच तारकम् ।
तद् गु ु लुं ु ते ता े कोिटभागेन योजयेत् ॥ २,८.४ ॥
त वे नकं िद ं जा ूनदसम भम् ।
{ङ्लो के बे इ ङ्ह ािस े र}
वामतो म नाथ घ ािस े रः थतः ॥ २,८.५ ॥
त ् वारे िव ते कु ं त घ ा िवल ते ।
रा ौ कृ चतुद ां सोपवासै िभजनैः ॥ २,८.६ ॥
कत ं साधनं त िनिवक ैरिनि तैः ।
एक ु ापये े वं जलमेक ु वाहयेत् ॥ २,८.७ ॥
एक ु वादयेद्घ ामिव ं िनशाविध ।
तत ु ो भवे ु ः खेचर ं य ित ॥ २,८.८ ॥
घ ािस े र ैव दि णे ोशमा के ।
िनखने द् ते त मृ ोरोचनसंिनभा ॥ २,८.९ ॥
िसता ीरै ः िपबे ष स ाहादमरो भवेत् ।
{च ोदक इम् ॡ वोन् ◌ं नाथ}
च ोदकं िस ं वै म नाथ पि मे ॥ २,८.१० ॥
थतं वैशाखमासे तु पूणमा ां सुसाधयेत् ।
साधको िनिवक ेन थ ा त समीपतः ॥ २,८.११ ॥
रा ौ जपं कुवाण ोयं चाधरा के ।
टुं च ो यदा ग े दा ि ं करा िलम् ॥ २,८.१२ ॥
कृ ा ित े दा याित त लं त णा बेत् ।
व कायो भवे ीरो जीवेदाच तारकम् ॥ २,८.१३ ॥
{टम र े बौिमम् O ेन् वोन् ीशैल}
ीशैलपूव ारे तु दे वोऽ ि पुरा कः ।
दे व ो रिद ागे िच ावृ ः समीपतः ॥ २,८.१४ ॥
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िव ते त मूले तु भैरवो ते यम् ।
त ा े िनखने द्भूिमं पु ष माणतः ॥ २,८.१५ ॥
ते त कु ं तु नीलवणजला तम् ।
िच ावृ प ािण स ेण ब येत् ॥ २,८.१६ ॥
त न् कु े िविनि तािन मीना भव वै ।
संगृ त का े न पचे ेषां िववजयेत् ॥ २,८.१७ ॥
क कािन िशरः पु ं शे षं भ ेत साधकः ।
णं मूछा भवे ेन बु ो जायते यम् ॥ २,८.१८ ॥
िछ ं प ित मेिद ां जीवे षायुतं नरः ।
ि पु रा कदे व पि मे ग ूित ये ॥ २,८.१९ ॥
मिणप रित ाम पि मतो िग रः ।
त पि मिद ागे कपाटं ते शुभम् ॥ २,८.२० ॥
पू वािभमुखः िवशे तो ग े दि णम् ।
दशध रं यावद् े लन भाः ॥ २,८.२१ ॥
आ ाकाराः सुपाषाणा ा ा व ेण ब येत् ।
र वण भवे ं ीरम े ि पे तः ॥ २,८.२२ ॥
त ीरं जायते र ं त ीरं साधकः िपबेत् ।
स ाहा कायः ा ीवे ाकतारकम् ॥ २,८.२३ ॥
ि पु रा कदे व उ रे कोिकलािबलम् ।
िव ातं सवलोकेषु कृ ा वमनरे चनम् ॥ २,८.२४ ॥
साधकः िवशे दशध राविध ।
पाषाणाः कोिकलाकारा तां ु चाहरे त् ॥ २,८.२५ ॥
तेषां पृ े ितलाः ि ाः ु ट ेव िह त णात् ।
इ ेवं यं ा तां घृ ा पर रम् ॥ २,८.२६ ॥
ीरम े ि पे ान् वै ीरं कृ ं जायते ।
आक ा ं िपबे ु िद का ो भवे रः ॥ २,८.२७ ॥
वलीपिलतिनमु ो जीवे िदन यम् ।
िछ ं प ित मेिद ां वायुवेगो महाबलः ॥ २,८.२८ ॥
ि पु रा कदे व पू विद ोजना रे ।
दे वः गपु री नाम िव ते त वै खनेत् ॥ २,८.२९ ॥
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दे वा े भूिमकां जानुमा ां त फला इव ।
िनग तु पाषाणाः खर शा भव वै ॥ २,८.३० ॥
ि पु रा कदे व पि मे योजनाधके ।
िव ते िह िबल ारं त े धनुषां यम् ॥ २,८.३१ ॥
ग े जूरवृ ो वै ते कृ वणकः ।
त लानां रसं पी ा मू छा संजायते णम् ॥ २,८.३२ ॥
ततः सं जायते िस ो जीवे ाकतारकम् ।
ीशैले दि णे ारे जाले रसु रे रौ ॥ २,८.३३ ॥
दे वौ िस ौ िव ेते िनखने भूिमकाम् ।
पाषाणाः ीफलाकारा िनया शभेदकाः ॥ २,८.३४ ॥
दे वो रामे र िव ते त संिनधौ ।
ा ाकारपाषाणाः खर शा भव ते ॥ २,८.३५ ॥
ोितःिस वटे वृ े एकपादे न ित ित ।
आवतदे वको नाम त मीपे तु पि मे ॥ २,८.३६ ॥
िव ते पवत पाषाणा ालकोपमाः ।
आदाय तान् धमे ी ं िद ं भवित का नम् ॥ २,८.३७ ॥
त ैव दि ण ारे दे वः ा ु ले रः ।
त मीपे खनेद्भूिमं जानुमा ां ततो हरे त् ॥ २,८.३८ ॥
पाषाणाः ीफलाकारा र ा शवेधकाः ।
पु षे रदे व कु म समीपतः ॥ २,८.३९ ॥
गु ा च र क ैव ौ वृ ौ त ित तः ।
तयोः प ािण संभ त णादमरो भवेत् ॥ २,८.४० ॥
तथा ह िशला त त ा दि णतः खनेत् ।
ह मा ं ततः प े ूफलसमाकृितः ॥ २,८.४१ ॥
िशला त समा ाता श ा ा य तः ।
ना ा ह िशरः ातं सैव ह िशला भवेत् ॥ २,८.४२ ॥
त ा दि णिद ागे योजनैकेन ित ित ।
छायाछ ं िस ं त व पं िशवोिदतम् ॥ २,८.४३ ॥
शतह माणं तु त े ं प रवतुलम् ।
योऽसौ ग ित त ाधो नासौ केनािप ते ॥ २,८.४४ ॥
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तु ो भवे ः ीडते भुवन ये ।
अथवा साधयेद्दू रा ातं िस कं तु यत् ॥ २,८.४५ ॥
का ा ं का नं सूतं म मगुणो रम् ।
त ोलं वे ये ोहै िभय ा मेण वै ॥ २,८.४६ ॥
व े बद् ा तु त ं वंशा े ब येद् ढम् ।
म ये ालीम ेण छायाछ े िनवेशयेत् ॥ २,८.४७ ॥
त ं शा ं णैकेन जायते गुिटका तु ताम् ।
साधको धारये े खेचर दाियकाम् ॥ २,८.४८ ॥
तालकं कुनटी ं त ं शे बद् ा िनवेशयेत् ।
ता ामि तने ो यो िनिधं प ित भूगतम् ॥ २,८.४९ ॥
वंशे बद् ा ि पे ड् गं पूवम ेण म तम् ।
त ड् गं धारये े ैलो िवजयी भवेत् ॥ २,८.५० ॥
व े गोरोचनं बद् ा वंश थं त वेशयेत् ।
तेनैव ितलकं कुयाद् ा मोहयते जगत् ॥ २,८.५१ ॥
ोतो नं क लं च ि ा त ैव पूववत् ।
तेन चाि तने ो यो दे वैरिप न ते ॥ २,८.५२ ॥
पादु कां ते न योगे न ि ा प ां तु धारयेत् ।
य े ा त त ैव ग ा भवित त णात् ॥ २,८.५३ ॥
त पटं त ि ा संवे साधकः ।
अ ो जायते स टे मु े तु ते ॥ २,८.५४ ॥
का ा ं का नं सूतं कृ ा गोलं तु वेशयेत् ।
वंशा थं म यु ं शवेधी भवे ु तत् ॥ २,८.५५ ॥
ीशैले पि मे ारे ना ा े रे रः ।
त ं शिम ा दु गा त ैव ता शी ॥ २,८.५६ ॥
नवमं य ु सोपानं न ां त ा शं थतम् ।
दे व ित ित ारे मु वण िवलोकयेत् ॥ २,८.५७ ॥
े र नै रृ े सं थतं ित णीवनम् ।
त न् वने थतं कु ं त ित ित च का ॥ २,८.५८ ॥
एकपादे न िच ाध द् वृ ा माहरे त् ।
बद् ा व े ि पे ु े ानं त समाचरे त् ॥ २,८.५९ ॥
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ाना े पोटली ा ा सव म ा भव ते ।
त ा ै ः पाचये ािन क ं पु ं िशर जेत् ॥ २,८.६० ॥
भागं दे वाय संक ि तीयमितथेभवेत् ।
तृतीयं साधको भु ा णं भवित मूिछतः ॥ २,८.६१ ॥
त णा ायते िस ां प ित मेिदनीम् ।
अजरामरतां याित न बा दशैरिप ॥ २,८.६२ ॥
अल ु रो रे भागे ामः ा ीमपादु कः ।
त ाम पा तु ह मा ं खने द्भुवम् ॥ २,८.६३ ॥
पाषाणाः सपव ा ा ाः शा भव ते ।
योगे रीित िव ाता दे वता या ल ुरे ॥ २,८.६४ ॥
दे ा े गु हा र ा त े िनखनेद्भुवम् ।
पाषाणा भेकसंकाशा ा ा माजारिव या ॥ २,८.६५ ॥
िम ीकृ ि पे े त ं तारतां जेत् ।
म ा सिहतान् भ े ाषाणां ा च णः ॥ २,८.६६ ॥
ीशैल ो र ारे महे शो नाम दे वता ।
मरा ः थत त प फलािन वै ॥ २,८.६७ ॥
ोटये िनया मरा जीवसंयुताः ।
इ ेवं यं ा ा मरां ान् प र जेत् ॥ २,८.६८ ॥
फलािन पाचये ीरै ः िपबे ीरं यथे कम् ।
िकंिच ू छा भवे ेन ततो बोधे िपबे ुनः ॥ २,८.६९ ॥
एवं कुया स ाहं व कायो भवे रः ।
वलीपिलतिनमु ो जीवेदाच तारकम् ॥ २,८.७० ॥
सववा यवे ा च वायुवेगी भवे रः ।
तेनैवा फलैकेन विजत मरे ण च ।
सह पलव ं तु ािवतं येद् ुवम् ॥ २,८.७१ ॥
ेपा ारमवा ोित स मी रभािषतम् ।
त लं िछि तं कृ ा उ ा मरं ततः ॥ २,८.७२ ॥
शु पारदकषकं त ु ं कृ म कम् ।
ि ात ुखं द् ा िल े ृ ोमयेन च ॥ २,८.७३ ॥
छायाशु ं तदा ो ैः ाथैयामं िवपाचयेत् ।
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भावशीतला ा ा गु िटका फलम गा ॥ २,८.७४ ॥
मुख था खेचरं द े अ ं महाबला ।
ाथे वा िततु ः ा ीवेदाच तारकम् ॥ २,८.७५ ॥
तारं ता ं भुजंगं वा कोिटभागेन वेधयेत् ।
कृ ा ं शु सूतं च पू वव ले ि पेत् ॥ २,८.७६ ॥
िल े ृ ोमयै दार ो लकैः पुटेत् ।
भावशीतलं ा ं त सं मधु सिपषा ॥ २,८.७७ ॥
गु ामा ं सदा खादे ासा ालो भवे रः ।
जीवे िदनं वीरो नवनागबला तः ॥ २,८.७८ ॥
िव ते लोकिव ातः पू ः प ोपचारकैः ।
ओं ं फट् कारम ेण िनिवक ेन साधकैः ॥ २,८.७९ ॥
वी पि मिद ागे र े च त णात् ।
प ेि िवमानािन जायते यो महान् ॥ २,८.८० ॥
ततः पि मिद ागे ग े दीं तरे ुधीः ।
ग रं ते त िवशे ि ममु खम् ॥ २,८.८१ ॥
योजनि तयं ग े दे काकी िनिवक कः ।
प योजनिव ीण ते कदलीवनम् ॥ २,८.८२ ॥
त म ेऽितिव ीण जलपूण सरोवरम् ।
िसं हासनं तु त े शु िटकसंिनभम् ॥ २,८.८३ ॥
तं ा द वद् भूमौ िनपते मु रे त् ।
ओं ी ं िव ावागी रािधपतये ीमों ाहा ।
ानं कृ ा य ेन ल मेकं जपे दनु ।
यथे ं भोजनं कृ ा क मूलफलािदकम् ॥ २,८.८४ ॥
ततः िसं हासन ो शु िटकसंिनभः ।
चतुभुज ने ते परमे रः ॥ २,८.८५ ॥
ो म ैनम ारै ः िणप पुनः पुनः ।
वरं द े यथे ं वै साधक न संशयः ॥ २,८.८६ ॥
शतमायतनं त कूपानां च शतं नव ।
ताव ं ा थारामा न ना वनािन च ॥ २,८.८७ ॥
तथा नवशतं वा ो िव े कदलीवने ।
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िबल ारािण ताव क वृ ा थैव च ॥ २,८.८८ ॥
त ैव मौकली नाम यि णी कटा थता ।
सा व भोजनं दे िह यदी िस समीिहतम् ॥ २,८.८९ ॥
तत व ं दा ािम परमे र ।
ीरा ं वा फलाहारं तद े दापये ुधीः ॥ २,८.९० ॥
सा व मम पु ोऽयं णं व िस धारय ।
यदा न मु से भूमौ तदा िस कं तव ॥ २,८.९१ ॥
दा ेऽहं ना संदेहो भोजना ेऽथवा पुनः ।
े करोिम संहारं त ा ेन र य ॥ २,८.९२ ॥
इ ेवं साधको वीरः कुया मवा ुयात् ।
ग े दु रिद ागे त रो योजनाधकम् ॥ २,८.९३ ॥
त ा पु स ूण िद ा ं न नं वनम् ।
पु ाणां ाणमा ेण ु पासा न िव ते ॥ २,८.९४ ॥
अथवा भ ये ा लमेकं यथािचतम् ।
तेन भि तमा ेण व कायो भवे रः ॥ २,८.९५ ॥
सरो दि णिद ागं ग े ोजनपादकम् ।
त दािडमस ूण ते न नं वनम् ॥ २,८.९६ ॥
त लं भ ये ो जीवेद्युगसह कम् ।
त रःपूविद ागे ग े ोशाधमा कम् ॥ २,८.९७ ॥
त धा ीफलैः पूण ामलं न नं वनम् ।
फलािन भ ये ािन जीवे शत यम् ॥ २,८.९८ ॥
त रःपि मभागे ग े ोजनमा कम् ।
त िब फलैः पूण ते न नं वनम् ॥ २,८.९९ ॥
त लं भ ये ीरो जीवे ाकतारकम् ।
त नवने र े िल ं ा ीलवणकम् ॥ २,८.१०० ॥
िवशे दु र ारे त नागो महाबलः ।
उ ः स फणाकारो तेऽितभयंकरः ॥ २,८.१०१ ॥
त कुया म ारं ुं ुं कुया मु रे त् ।
तदासौ वदते वाणीम ं ददािम ते ॥ २,८.१०२ ॥
ग ं पि म ारे त ा िद क का ।
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ग े महावीरः साधको म मु रन् ॥ २,८.१०३ ॥
हारं दा ित सा तु ा न वेशं य ित ।
तं हारं धारये े सा ा ागी रो भवेत् ॥ २,८.१०४ ॥
तत ु दि णं ारं ग े भयंकरम् ।
मु केशं व ने ं गदाह ं िदग रम् ॥ २,८.१०५ ॥
नीलवण े पालं ा म ं समु रे त् ।
ह हा हे हे हं ुं कारं फठुं ाहा मेव च ॥ २,८.१०६ ॥
अनेन म पाठे न े पालः सीदित ।
ददाित खे चरीं िस ं न वेशं कदाचन ॥ २,८.१०७ ॥
तत ु पू विद ागे ारं त गणे रः ।
ते पू जये ं वै साधकः िवशे तः ॥ २,८.१०८ ॥
ते िद चापं तु तथा िल ं मनोहरम् ।
पू जये वम ेण रकारे णैव ना था ॥ २,८.१०९ ॥
तत जपं कुयादहोरा मुपोिषतः ।
ो जायते ो वरं द े यथे तम् ॥ २,८.११० ॥
इ ेवमादयः स िस यः कदलीवने ।
अ रै िल खतं ारे त प ावतीिबलम् ॥ २,८.१११ ॥
सरसः पू विद ागे योजनैकेन ित ित ।
वमनं रे चनं कृ ा िवशे साधकः ॥ २,८.११२ ॥
ध रं शतं याव े मृद म् ।
ा तं वादये ीरः स ावती ततः ॥ २,८.११३ ॥
आग चामृ तं द े य ानादमरो भवेत् ।
तत ं ाथय े व आग मम म रम् ॥ २,८.११४ ॥
िद ं क ाप शतं प रवारे ण ीकु ।
अहं प ी भिव ािम याव ा च जीवित ॥ २,८.११५ ॥
तद े परमं थानं ग ामो ना संशयः ।
कद े रदे व ु आ े ां िदिश िव ते ॥ २,८.११६ ॥
त पू वतटाका े थतो वृ ः कद कः ।
त प ािण संगृ कटु तैलेन लेपयेत् ॥ २,८.११७ ॥
तद् वृ बीजतैलैवा त ा ै ः पाचये ुधीः ।
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म ा भव ते सव ता पा े िविनि पेत् ॥ २,८.११८ ॥
क पु िशरोवज म ा ा ां तु भ येत् ।
त णा ायते िस ो तु ो महाबलः ॥ २,८.११९ ॥
नदी थाने च यो वृ ो िव ते कु ले रे ।
पू वव मयोगेन िस ः ा ा संशयः ॥ २,८.१२० ॥
कपोते रदे व ो रे पु िग रः थतः ।
त कुया य ेन ि वारं तु दि णम् ॥ २,८.१२१ ॥
ततः िशरः समा खेचर ं लभे रः ।
त ूव रिद ागे छे िलका ार थतम् ॥ २,८.१२२ ॥
उ रािभमु खं त िवशे नुषां यम् ।
मूिषकाकारपाषाणा तान् समाहरे त् ॥ २,८.१२३ ॥
त ै ः िप ा तदे कं तु िपबे ूछामवा ुयात् ।
णादु ि ते िस ो जीवे िदन यम् ॥ २,८.१२४ ॥
स एव सवलोहानां शवेधकरो भवेत् ।
अहोरा ोिषतो भू ा दे वा े िस मा ुयात् ॥ २,८.१२५ ॥
कपोते रदे व दि णे दे वता यम् ।
त े किटमा ं तु खने ोरोचनोपमाः ॥ २,८.१२६ ॥
पाषाणा ान् समादाय म ा ा ां पेषयेत् ।
त ाना ायते म ः क ायुना संशयः ॥ २,८.१२७ ॥
कपोते रदे व वाय े ह मा कम् ।
खने ारावत ाः पाषाणाः शभेदकाः ॥ २,८.१२८ ॥
ित ाहयेदेकं दे वताराधने कृते ।
म काजुनदे व ऐशा ां भृगुपातनम् ॥ २,८.१२९ ॥
िव ते त मीप थं कु ं त ा ृदाहरे त् ।
प ग ेन स ां खिदरा ारकैधमेत् ॥ २,८.१३० ॥
नीलो लसमं लोहं पत ेवाथ सेचयेत् ।
म ा ा ां सुत ं त वारं पुनः पुनः ॥ २,८.१३१ ॥
त ोलं धारये े िव ुतु ो भवे रः ।
भृगुपाता ूवभागे ोशोदिधकपाटके ॥ २,८.१३२ ॥
त ा े अ तैला ः पवतो नाम िव ुतः ।
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त ि मे िबल ारं त े ध प कम् ॥ २,८.१३३ ॥
गते तु ते कु ं रसो ला ारस भः ।
अलाबु पा े संगृ कोिटवेधी भवे ु सः ॥ २,८.१३४ ॥
{ शवेध:: रो े अर ते ुल्}
म काजुनदे व पू वतो लोकिव ुतः ।
ाकार गु िव ते त म रम् ॥ २,८.१३५ ॥
त पू व थत ै ै पूव महािशला ।
मु वणा च सा ाता शवेधकरा तु सा ॥ २,८.१३६ ॥
गज ैव िव ात मा समािहतः ।
त पृ ा ृणं ा ं त व कनकं भवेत् ॥ २,८.१३७ ॥
गज चो रे पा जानुमा ं खने द्भुवम् ।
ज ूफलसमाकाराः स ते शवेधकाः ॥ २,८.१३८ ॥
गज ाधः खने ाथ जानु मा ं लभे तः ।
ि कोणगु िटकां िस ां ल वेधकरां पराम् ॥ २,८.१३९ ॥
ीशैल तु वाय े तीथ दे व दः थतम् ।
त कु े मु वणाः पाषाणाः शवेधकाः ॥ २,८.१४० ॥
त कूम पमं िल ं शवेधकरं परम् ।
कृि कायां सुपूणायां कृ ा पूजां समाहरे त् ॥ २,८.१४१ ॥
ग ूित यत ा ा ा नीलवनं ृतम् ।
त िल ं नीलवण जलं चैव तु ता शम् ॥ २,८.१४२ ॥
अ ा काकस शाः पाषाणाः शवेधकाः ।
स दे वगृ ह ा ः खने ा रा रे त् ॥ २,८.१४३ ॥
ीशैल तु नै रृ े ना ा गु भा थता ।
त ा ा तमृ ा ा पीतवणा पुटैदहे त् ॥ २,८.१४४ ॥
त ाि ःसरते हे म ु र ू पं न संशयः ।
त ैव मराः ु पू वव लदायकाः ॥ २,८.१४५ ॥
तथा त ीपु रे नाि तीथ च िवपुले शुभम् ।
सदाफलं तु िव ातं पूवव ाधये ुधीः ॥ २,८.१४६ ॥
महान े रं नाम ीशैल तु नैरृते ।
त पू व रे पा ग े ाजपथेन तु ॥ २,८.१४७ ॥
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कालवण रो नाम दे व ा कु कम् ।
इ गोपकसंकाश े िव ते रसः ॥ २,८.१४८ ॥
त ािन स लोहािन त ेका ा नं भवेत् ।
ीशैल तु ईशाने दे वः ा ुरले रः ॥ २,८.१४९ ॥
त ो रे सुिव ात उमापवत उ मः ।
त मूि ि शू लाभा दभा शोभनाः ॥ २,८.१५० ॥
त ाधः किटमा ं तु खा ा नीलां मृदं हरे त् ।
तां पचेद जैः का ै भागं दे वाय क येत् ॥ २,८.१५१ ॥
अितथे तथा े भागं भागं क येत् ।
भागमा िन भु ीत जीवे ायुतं नरः ॥ २,८.१५२ ॥
त कोटी रं ातिमले रसमीपतः ।
त ा े पु मा ं तु शवेधकरं भवेत् ॥ २,८.१५३ ॥
अचले श त ैव शवेधकरः परः ।
दि णे लेश योजनैकेन िव ते ॥ २,८.१५४ ॥
अमरे रदे वा णिशला शुभा ।
त पृ े च गोमां सं महामां सं च वा ि पेत् ॥ २,८.१५५ ॥
ा बदरीका ै ः ातः ण पमा तु सा ।
ते रजसा ीणां भािवतं व ख कम् ॥ २,८.१५६ ॥
त लालोिडतं कुया ेदलाबुपा के ।
तेन सं शमा ेण लोहं भवित हाटकम् ॥ २,८.१५७ ॥
ीशैले त त ैव पाषाणाः िप भू थताः ।
त ूण ि फलासाध कषकं भ ये दा ॥ २,८.१५८ ॥
मासाध तु जरां ह जीवेदाच तारकम् ।
नैरृ े शै लराज पटाहकण ई रः ॥ २,८.१५९ ॥
त चेशानिद ागे प िवंशितध के ।
ि ह मा ो िशला त ह यं खनेत् ॥ २,८.१६० ॥
ावस ुटसंकाशान् पाषाणां ंशदाहरे त् ।
कृ ा तानि वणा िस े ू ा जै वैः ॥ २,८.१६१ ॥
त ा वनीतं तु गृ ीया े वाय भागकम् ।
अितथेभागै कं तु भागैकं भ येद्बु धः ॥ २,८.१६२ ॥
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मूछा भवेि वारा ं बु ो जायते नरः ।
जीवे षायुतं वीरो वलीपिलतविजतः ॥ २,८.१६३ ॥
त दे व सोपानं ि तीयं शवेधकम् ।
त दे व पा तु पाषाणाः ेतपीतकाः ॥ २,८.१६४ ॥
सव शा न सं देह एकमेव समाहरे त् ।
त दे व पू व तु कूपः ा ाितदू रतः ॥ २,८.१६५ ॥
त े भेकसंकाशाः पाषाणाः शवेधाः ।
उ रे त दे व िव ातो िल पवतः ॥ २,८.१६६ ॥
त चो रपा तु नदी ा ूववािहनी ।
न ाः पि मिद ागे िल ं िप लवणकम् ॥ २,८.१६७ ॥
त शैलोदकैः कु ं पूण ा णवेधकम् ।
महे शा ि णे भागे च का योजन ये ॥ २,८.१६८ ॥
िप ादे वीित िव ाता त ा वाय कोणतः ।
कूप ित त े पाषाणा मु वणकाः ॥ २,८.१६९ ॥
तथा प ािनभा ैव सव ते शवेधकाः ।
शनाद सवषां वेधयु िवधीयते ॥ २,८.१७० ॥
थूल े ेषये ल णं ते न मूषां तु कारयेत् ।
अ लोहािन त े समाव ािन कारयेत् ॥ २,८.१७१ ॥
त व जायते णमेवं कुया थे तम् ।
सू ेद लोहानां ु तानां य कु िचत् ॥ २,८.१७२ ॥
तं सव िनि पे े सव त ा नं भवेत् ।
म काजुनवाय े तीथ सव रं थतम् ॥ २,८.१७३ ॥
त दि णिद ागे जलमागऽधयोजने ।
गते डा रकं त ते त मूधिन ॥ २,८.१७४ ॥
धा ीफलािन कृ ािन िव े तािन भ येत् ।
यथे ािन तु स ाहं व कायो भवे रः ॥ २,८.१७५ ॥
वलीपिलतिनमु ो जीवे शत यम् ।
त ा दि णे भागे काकलेरीमहानवम् ॥ २,८.१७६ ॥
त ा कदली िवशे साधकः ।
ग े ोशाधमा ं तु ते रसकु कम् ॥ २,८.१७७ ॥
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गृही ालाबु पा े तु कोिटवेधी भवे सः ।
त न् वने मयू रः ा ीलवणिशलामयः ॥ २,८.१७८ ॥
मुखा े त कु ं तु ादशाङ् गुलनीलकम् ।
त े शु वं शं तु ि ा ा ूतनः णात् ॥ २,८.१७९ ॥
िदने प ं फलं पु ं जायते त ना था ।
त पारद थैकं ि ा ताव लं हरे त् ॥ २,८.१८० ॥
ौ तु ं िपबे ं वै त णा ूिछतो भवेत् ।
मु ता रा ः ा ीवेद्युगसह कम् ॥ २,८.१८१ ॥
शै ल ा ेयभागे तु गु िटकािस के रः ।
िव ते त पुरतः प ह ां खनेद्भुवम् ॥ २,८.१८२ ॥
पाषाणा बदराकाराः स खेगितदायकाः ।
एकमेव समा व े धायः खगािमिभः ॥ २,८.१८३ ॥
ीशैले सवयोगानामु ानां िविध ते ।
म ासं पु रा कृ ा प ा ं जपेदनु ॥ २,८.१८४ ॥
अघोरं तेन वै शी ं त मवा ुयात् ।
े दे वतामावाहयेत् ।
त े दे वता ीभूय वरं ददाित ।
एवं म परै ः सुिन लतरै भ ै त ाधकैः श ोः पू जनत रै ः ितिदनं पूजािवधेः
पालकैः ।
काय ीिग रसाधनं जपपरै रा ायपारं गतैन चे ेशकरं पराकृतमहो थ भवेि ि तम्
॥ २,८.१८५ ॥

३, १
येन सृ ं िवदा िचदा म ेजोजलोव गणाः स ंिव वश भैरवकलाः
ीक प ाननः ।
ईशो मु रा रधातृिवबु धा ाकतारागणाः सोऽयं पातु चराचरं जगिददं
िननामनामािधपः ॥ ३,१.१ ॥
सूते सू तवरो वरं च कनकं श ा रं शनाद् धूमाि ित त णादघहरं सं ां
सखवाशतः ।
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सं ामबु दकोिटल मयुतं यु ा सह ं शतं द े खेगितम यं िशवपदं त ै पर ै नमः
॥ ३,१.२ ॥
न ा ीपावती ं दे वीं भैरवं िस संतितम् ।
रसर ाकरं व े दे हे लोहे िशवंकरम् ॥ ३,१.३ ॥
{रसनामािन}
िशवबीजः सू तराजः पारद रसे कः ।
एतािन रसनामािन तथा ािन िशवे यथा ॥ ३,१.४ ॥
द े िशवपदं िस ं साधकानां महो माम् ।
िशवबीजं तदा ातं सविस दायकम् ॥ ३,१.५ ॥
{मेचुय्:: िन }
यतः परिशवा ूत ेन सूतः स चोिदतः ।
संसार परं पारं द ेऽसौ पारदः ृतः ॥ ३,१.६ ॥
रसीभव लोहािन दे हा अिप सुसेवनात् ।
रसे ेन िव ातो व ा रसः ृतः ॥ ३,१.७ ॥
रसशा ेषु सवषु श ुना सूिचतं पुरा ।
रसो रसायनं िद ं सू चना ैव बु ते ॥ ३,१.८ ॥
िस ै ः िशवमु खा ा ं तेषां िस ु साधनात् ।
स दाय मो यु ैः शा ेषु गोिपता ॥ ३,१.९ ॥
मयािप त ु खा ा ं सािधतं ब धा ततः ।
रसशा ािण सवािण समालो यथा मम् ॥ ३,१.१० ॥
साधकानां िहताथाय कटीि यतेऽधुना ।
न मे ण िवना शा ं न शा ेण िवना मः ॥ ३,१.११ ॥
शा ं मयुतं ा ा यः करोित स िस भाक् ।
{आचाय}
आचाय ानवा ो रसशा िवशारदः ॥ ३,१.१२ ॥
म िस ो महावीरो िन लः िशवव लः ।
दे वीभ ः सदा धीरो दे वतायागत रः ॥ ३,१.१३ ॥
सवा ायिवशे ष ः कुशलो रसकमिण ।
एवं ल णसंयु ो रसिव ागु भवेत् ॥ ३,१.१४ ॥
{िश }
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गु भ ाः सदाचाराः स व ो ढ ताः ।
िनरालसाः धम ाः सदा ाप रपालकाः ॥ ३,१.१५ ॥
द मा यिनमु ाः कुलाचारे षु दीि ताः ।
अ साधकाः शा ा म ाराधनत राः ॥ ३,१.१६ ॥
इ ेवं ल णै यु ाः िश ाः ू रसिस ये ।
{अनु चराः}
सहायाः सो माः सव यथा िश ा तोऽिधकाः ॥ ३,१.१७ ॥
कुलीनाः ािमभ ा कत ा रसकमिण ।
{बद छे िम ्}
ना का ये दु राचारा ु का गु त गाः ॥ ३,१.१८ ॥
िव ां गृ हीतुिम चौयण च बला लात् ।
न तेषां िस ते िकंिच िणम ौषधािदकम् ॥ ३,१.१९ ॥
कुव यिद मोहे न नाशय कं धनम् ।
इह लोके सु खं ना परलोके तथैव च ॥ ३,१.२० ॥
त ा बलादे व सं तु ित यथा गु ः ।
तथा िश ेण सा ा ा रसिव ा िस ये ॥ ३,१.२१ ॥
ह म कयोगे न वरं ल ा सुसाधयेत् ।
{रसशाला}
आत रिहते दे शे धमरा े मनोरमे ॥ ३,१.२२ ॥
उमामहे रोपेते समृ े नगरे शु भे ।
कत ं साधनं त रसराज धीमता ॥ ३,१.२३ ॥
अ ोपवने र े चतु ारोपशोिभते ।
त शाला कत ा सुिव ीणा मनोरमा ॥ ३,१.२४ ॥
स ातायनोपेता िद िच ैिविचि ता ।
{रसम प}
त मीपे समे दीघ कत ं रसम पम् ॥ ३,१.२५ ॥
अितगु ं सु िव ीणकपाटागलभूिषतम् ।
जछ िवताना ं पु मालािवल तम् ॥ ३,१.२६ ॥
भेरीकाकलघ ािद ि नादिवनािदतम् ।
भूः समा त कत ा सु ढा दपणोपमा ॥ ३,१.२७ ॥
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त े वेिदका र ा कत ा ल णा ता ।
{रसिल }
िन यं हे मप ं रसे ो नविन कम् ॥ ३,१.२८ ॥
अ ेन मदये ामं तेन िल ं तु कारयेत् ।
दोलाय े सारनाले ज ीर थं िदनं पचेत् ॥ ३,१.२९ ॥
{रसिल :: wओ हप्}
त ं पूजये सुशुभै पचारकैः ।
िल कोिटसह य लं स गचनात् ॥ ३,१.३० ॥
त लं कोिटगु िणतं रसिल ाचना वेत् ।
ह ासह ािण गोह ा युता िप ॥ ३,१.३१ ॥
त णाि लयं या रसिल दशनात् ।
शना ा ते मु रित स ं िशवोिदतम् ।
वा ायां ीमद् घोरे ण म राजेन वाचयेत् ॥ ३,१.३२ ॥
अ ादशभु जं शु ं प व ं ि लोचनम् ॥ ३,१.३३ ॥
ेता ढं नीलक ं रसिल ं िविच येत् ।
त ो े महादे वीमेकव ां चतुभुजाम् ॥ ३,१.३४ ॥
अ मालाङ्कुशं द े वामे पाशाभयं शुभम् ।
दध ी ं त हे माभां पीतव ां िविच येत् ॥ ३,१.३५ ॥
वा ाया ी कामराजश ब जरसाङ् कुशा ।
यै नमो ादशैतेषां कामिव ा रसाङ्कुशा ॥ ३,१.३६ ॥
अनया पूजये े वी ं ग पु ा तािदिभः ।
न भृि महाकाला ूजये ूविद मात् ॥ ३,१.३७ ॥
पू जये ामम ै ु णवािदनमोऽ कैः ।
एवं िन ाचनं त कत ं रसिस ये ॥ ३,१.३८ ॥
{रसदी ा}
रसदी ा िशवेनो ा दात ा साधकाय वै ।
यथो े न िवधानेन गु णा मुिदता ना ॥ ३,१.३९ ॥
सुमु त सुन े च ताराबला ते ।
कलशं तोयस ूण हे मर फलैयुतम् ॥ ३,१.४० ॥
थापये सिल ा े िद व ेण वेि तम् ।
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ग पु ा तधू पदीपैनवे तोऽचयेत् ॥ ३,१.४१ ॥
पू जा े हवनं कुया ोिनकु े सुल णे ।
ितला ैः पायसै ः पु ैर ािधकशतैः पृथक् ॥ ३,१.४२ ॥
अघोरे ण रसाङ् कु ा होमा े िश मावहे त् ।
कािकनीश संयु ं रसिस परायणम् ॥ ३,१.४३ ॥
{कािकनी (दे f.)}
य ाः संकुिचताः केशाः ामा या प लोचना ।
सु पा त णी िच ा िव ीणजघना शुभा ॥ ३,१.४४ ॥
संकीणरदना पीन नभारे ण चानता ।
चु नािल न शकोमला मृदुभािषणी ॥ ३,१.४५ ॥
अ प स शयोिनदे शेन शोिभता ।
कृ प े पु वती सा नारी कािकनी ृता ॥ ३,१.४६ ॥
रसब े योगे च उ मा रससाधने ।
{कािकणी:: सु तुते}
तदभावे सु पा तु या कािच णा ना ॥ ३,१.४७ ॥
त ा दे यं ि स ाहं ग कं घृतसंयुतम् ।
कषकैकं भाते तु सा भवे ािकनीसमा ॥ ३,१.४८ ॥
{रसदी ा (चो ्.)}
एवं श युतो योऽसौ दी ये ं गु मः ।
सु ातमिभिष ेत िवमलैः कलशोदकैः ॥ ३,१.४९ ॥
अघोरमङ्कुशी ं िव ां द ा ाय सद् गु ः ।
यथाश ाथ िश ेण दात ा गु दि णा ॥ ३,१.५० ॥
अथा या गुरोम ं ल ं ल ं पृथ पेत् ।
दशां शेन ने ु े ि कोणे ह मा के ॥ ३,१.५१ ॥
कमलं चतुर ं च चतु ारै ः सुशोिभतम् ।
जाितपु ं ि म ं पूणा े क काचनम् ।
कृ ाथ िवशे ालां शुभां िल ां सुवेिदकाम् ॥ ३,१.५२ ॥
षट् कोणं म लं त िस दू रे ण ि ह कम् ।
वेिदकायां िलखे िह ा प कम् ॥ ३,१.५३ ॥
कमलं चतुर ं च चतु ारे षु शोिभतम् ।
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किणकायां से ं लोहजं णरे खतम् ॥ ३,१.५४ ॥
त े रसराजं तु पलानां शतमा कम् ।
प ाश िवंशं वा पूजये सिल वत् ॥ ३,१.५५ ॥
व वै ा व ा का पाषाणट णम् ।
भूनागं श य ैताः षट् सु प ेषु पूजयेत् ॥ ३,१.५६ ॥
{उपरसाः}
ग तालककासीसिशलाकङ्कु भूखगम् ।
राजावत गै रकं च ाता उपरसा अमी ॥ ३,१.५७ ॥
{उपरस:: wओ हप् }
पू ा अ दले ेते पूवादीशा गाः मात् ।
{महारसाः}
रसकं िवमला ता ं चपला तु म नम् ॥ ३,१.५८ ॥
िहङ्गु लं स कं चैव ाता एते महारसाः ।
पू वादीशानपय ं प ा ेषु पूजयेत् ॥ ३,१.५९ ॥
पू व ारे णरौ े दि णे ता सीसके ।
पि मे व का ौ च उ रे ती णमु के ॥ ३,१.६० ॥
सवमेतमघोरे ण पूजयेदङ्कुशा तम् ।
{आउ ु े सा छे िम ेन्}
िवडकाि कय ािण ारमृ वणािन च ॥ ३,१.६१ ॥
को ी मू षा व नाली तु षा ारवनोपलाः ।
भ का दं शकाने का िशला ख ोऽ ुदूखलम् ॥ ३,१.६२ ॥
णकारोपकरणं सम तुलनािन च ।
मृ ा ता लोहा पा ािण िविवधािन च ॥ ३,१.६३ ॥
िद ौषधािन वगा र कं ेहनािन च ।
एतािन ारबा े तु मू लम ेण पूजयेत् ॥ ३,१.६४ ॥
वा ायां ह ततः च प ा रो मनुः ।
अनेन मू लम ेण भैरवं त पूजयेत् ॥ ३,१.६५ ॥
{रसिस स् }
सवषां रसिस ानां नामािन कीतये दा ।
ालाचाय से नः सुबु नरवाहनः ॥ ३,१.६६ ॥
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नागाजुनो र घोषः सुरान ो यशोधरः ।
इ द् यु मा पिटः शूरसेनकः ॥ ३,१.६७ ॥
वाडबो नागबु ख ः कापािलको हरः ।
कामली ता कः श ुल को ल टशारदौ ॥ ३,१.६८ ॥
बाणासु रो मु िन े ो गोिव ः किपलो बिलः ।
एते सव तु भूपे ा रसिस ा महाबलाः ॥ ३,१.६९ ॥
चर सवलोकेषु िनजरामरणाः सदा ।
स िवंशितसं ाका रसिस दायकाः ॥ ३,१.७० ॥
व ाः पू ाः य ेन ततः कुया सायनम् ।
हषये ् िवजदे वां तपयेिद दे वताम् ॥ ३,१.७१ ॥
कुमारीयोिगनीयोिगमुिनमाियकसाधकान् ।
तपये ूजये ा िनजश नुसारतः ॥ ३,१.७२ ॥
इ ेवं सवस ारयु ं कुया सो वम् ।
सविव शा थ सव तफल दम् ॥ ३,१.७३ ॥
अ था चेि मूढा ा म दी ा मं िवना ।
कतुिम ित सू त साधनं गु विजतः ॥ ३,१.७४ ॥
नासौ िस मवा ोित य कोिटशतैरिप ।
त ा व य ेन शा ो ां कारये याम् ॥ ३,१.७५ ॥
स ाधनसो मा गु युता राजा यालंकृता नानाकमिण कोिवदा रसपरा ा ा
जनै ािथताः ।
मा ाय सुपाककमकुशलाः सव षधीकोिवदा ेषां िस ित ना था िविधबला ी पारदः
पारदः ॥ ३,१.७६ ॥

३, २
भ ा शा िवचारणादनुिदनं पूजािवधेः
पालना ा ान िनम ना रिहता ायि यागोपनात् ।
िन ं सद् गु से वनादनु भवा ूत स ावना ा े िनजर यो
वरबला दाया फुटम् ॥ ३,२.१ ॥
रसािदलोहपय ं शोधने मारणे िहतम् ।
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भावनायां िच ैव नानावग िनग ते ॥ ३,२.२ ॥
{दे fऔ लुएस्}
अ े नो े भवे ू लं वः सवा तो भवेत् ।
अमा ायां समा मा ा िव ेया रसकमिण ॥ ३,२.३ ॥
{ ारवग}
ितलापामागकदलीिच का कमूलकम् ।
िश ुमो पलाशं च सवम ःपु टे दहे त् ॥ ३,२.४ ॥
समालो जलैव ै बद् ा ा मधोजलम् ।
शोधये ाचयेद ौ मृ ा े न तु त लम् ॥ ३,२.५ ॥
ा ं ारावशेषं तद् वृ ारिमदं ृतम् ।
{ ेतवग, शु वग}
चु ं कूप शङ्खशु वराटै ः शु वगकः ॥ ३,२.६ ॥
{िवड् वग}
कपोतचाषगृ ाणां िश खकु ु टयो िवट् ।
{अ वग}
चा े री चणका ं तु मातुलु ा वेतसम् ॥ ३,२.७ ॥
िच ानार ज ीरम वग इित ृतः ।
{लवणप क}
सामु ं सै वं काचं चु का च सुवचलम् ॥ ३,२.८ ॥
चूिलकानवसारः ादे त वणप कम् ।
{ि ार}
स ी ारं यव ारं ट णं च तृतीयकम् ॥ ३,२.९ ॥
{मू वग}
ार यिमदं ातमजा मिहषीगवाम् ।
नारीमे षीखरो ाणां मू वग गज च ॥ ३,२.१० ॥
{िम प क}
म ा ट णं गु ा गुडः ा प कम् ।
{िप वग}
नरा िश खगोम िप ािन िप वगके ॥ ३,२.११ ॥
{वसावग}
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म ािहनरमे षीणां िश खनां च वसा मता ।
{र वग}
मि ा कुङ् कुमं ला ा दािडमं र च नम् ॥ ३,२.१२ ॥
ब ू कं करवीरं च र वग यं भवेत् ।
{पीतवग}
कुसु ं िकंशु कं राि ः पतंगं मदय का ॥ ३,२.१३ ॥
पीतवग यं ातो िद ौषिधगणं णु ।
{िद ौषिधगण}
अजकण शङ्खपु ी द ी काकतु का ॥ ३,२.१४ ॥
हं सपादी ा नखी चा ाली ीरक कः ।
व ाकक टकी र ा गोिज ा कोिकला कः ॥ ३,२.१५ ॥
शाकवृ ो हे मव ी पातालग डी शमी ।
कटु तु ी व लता सूरणं वनसू रणम् ॥ ३,२.१६ ॥
मेष ी च मद जलकु ी शतावरी ।
गु ा कोशातकी नीली आखुकण ि पिणका ॥ ३,२.१७ ॥
कु ु टी कृ तुलसी पु ङ्खा ेतापरािजता ।
ग डी ला ली ा ी चा े री प चा रणी ॥ ३,२.१८ ॥
{व शोधनम् (१)}
गृही ाथ शु भं व ं ा ीक ोदरे ि पेत् ।
मिहषीिव या िल ा तुला ौ च पु टे पचेत् ॥ ३,२.१९ ॥
अहोरा ा मु द्धृ हयमू ैिनषेचयेत् ।
ा ीक े पुनः ि ा व कंदोदरे ि पेत् ।
हयमू ैिनिष ा पु टे ा पूववत् ॥ ३,२.२० ॥
एवं स िदनै ः शु ं व ं ा ा संशयः ।
{व शोधनम् (२)}
कुल को व ाथहयमू ुहीपयः ॥ ३,२.२१ ॥
ि ा भा े ि पे न् ा ीक गतं पिवम् ।
दोलायं े िदवारा ौ समु द्धृ पुनः ि पेत् ॥ ३,२.२२ ॥
ा ीक ं महाक े ि ा गजपु टे पचेत् ।
त ं का नी ावैः सेचये ु मा ुयात् ।
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{व शोधनम् (३)}
आखुकण मे घनादः ि यङ्गु मष ि का ।
अ वेतसिनगु ीकुल को वाः शमी ॥ ३,२.२३ ॥
मुिन हयमू ेण कषायं कारये ु भम् ।
ज ीरे सू रणे वाथ ि ा व ं िदनं पचेत् ॥ ३,२.२४ ॥
पू व ाथे न दोलायां शु मा ोित ना था ।
{व :: मारण}
शु ं व ं म ु णानां र ैिल ा धमे ु तत् ॥ ३,२.२५ ॥
अि वण ि पे ू े गदभो े पुनः पुनः ।
लेिपतं धािमतं त दे वं कुया स धा ॥ ३,२.२६ ॥
{व :: मारण}
तालकं म ु णैः िप ा गोले त पे ु तत् ।
द् ा मूषां धमे ा ाथयमू े िविनि पेत् ॥ ३,२.२७ ॥
समु द्धृ पु न वारा ृतो भवेत् ।
{व मारणम् (३)}
मेष ंगी भुजगा थ कूमपृ ं िशलाजतु ॥ ३,२.२८ ॥
ग कं का पाषाणं मुिनपु ं सतालकम् ।
ि ारं पं चलवणं मे ष ी वा णी ॥ ३,२.२९ ॥
व व ी मूषकण बदरीकुड् मलािन च ।
मूषक मलं ं ु क ीरम ु णाः ॥ ३,२.३० ॥
प ा ां शरपुङ्खां च ह नीरं नृ छागयोः ।
पे टारीबीजं ीपु ं पारावतमलं िशलाम् ॥ ३,२.३१ ॥
पु ािण चैव वाकु ाः प ा ं िन क च ।
धा ीवृ प ा ं गोर ा चाजमू कम् ॥ ३,२.३२ ॥
हं सपादी व क ं बृहतीफलसूरणे ।
गोिज ा ककटं मां सं मू वग च िम येत् ॥ ३,२.३३ ॥
एत म ं ं वा यथालाभं सुिप तम् ।
त े िनि पे म मूषागतं पुटेत् ॥ ३,२.३४ ॥
कुल ं को वं िप ा हयमू ैिवलोडयेत् ।
त े से चये ां मू षां पुटिविनगताम् ॥ ३,२.३५ ॥
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एवं पु नः पु नः कुयादे किवंशितवारकम् ।
आदाय पूवजं व ताले म ु णपे िषते ॥ ३,२.३६ ॥
गोलके िनि पे ु द् ा मूषां ती ानले धमेत् ।
इ ेवं स धा धा ं हयमू ैिनषेचयेत् ॥ ३,२.३७ ॥
अनेन मयोगेन मृतं भवित िनि तम् ।
तं मृ तं चूणये े िस योग उदा तः ॥ ३,२.३८ ॥
{मेचुय्:: शोधन}
ामक मु खं ता ं पेटारीबीजट णे ।
ारं चो रवा ा ग कं तालकं शमी ॥ ३,२.३९ ॥
भूधर थं पु टैकेन समु द्धृ िवमदयेत् ।
पू वव ूवजै ावै ु द् ा च पाचयेत् ॥ ३,२.४० ॥
पु नम पु नः पा ं दशवारं च पूववत् ।
पातये ातनायं े स ु ो भवे सः ॥ ३,२.४१ ॥
{मेचुय्:: शोधन}
रस दशमां शं तु ग ं द ा िवमदयेत् ।
ज ीरो ै वैयामं पा ं पातनय के ॥ ३,२.४२ ॥
पु नम पु नः पा ं स वारं िवशु ये ।
{मेचुय्:: शोधन}
अथवा पारदं म त ख े िदनाविध ।
कुमारीरजनीचु ैः पा ं पातनय के ॥ ३,२.४३ ॥
क ाि ि फलािभ पु नम च पातयेत् ।
पु नम पु नः पा ं स वारं िवशु ये ।
इ ेवं स धा कुया ु ो भवे सः ॥ ३,२.४४ ॥
{मेचुय्:: मदन:: अ चितओन् }
यु ं सव सूत त ख े िवमदनम् ।
शोधने चारणे चैव जारणे च िवशेषतः ।
मूछने मारणे चैव ब ने च श ते ॥ ३,२.४५ ॥
{त ख }
अजाशकृ ुषाि ं च भूगत ि तयं ि पेत् ।
त ोप र थतं ख ं त ख िमदं भवेत् ॥ ३,२.४६ ॥
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ख ं लोहमयं श ं मदकं चैव लोहजम् ।
तदभावे िशलो ं वा यो ं ख ं च मदकम् ॥ ३,२.४७ ॥
{मेचुय्:: िहङ् गु लाकृ }
अथवा िहं गुला ूतं ाहये ि ग ते ।
गोमू ैमािहषैमू ै लतैलसुरा कैः ॥ ३,२.४८ ॥
स ाहं िहं गुलं पा ं लोहपा े माि ना ।
चालये ोहद े न ावं द ा पुनः पुनः ॥ ३,२.४९ ॥
स वं तं समादाय िश खिप ेन भावयेत् ।
िदना े पातनाय े पातये वि ना ॥ ३,२.५० ॥
स क चुकिनमु ः ातोऽयं शु सूतकः ॥ ३,२.५१ ॥
क ािभ फलािभ पुनम च पातयेत् ।
इ ेवं स धा कुया ु ो भवे सः ॥ ३,२.५२ ॥
{मेचुय्:: िहङ् गु लाकृ }
िदनै कं िहङ्गु लं ख े म म ेन केनिचत् ।
पातये ातनायं े िदना े त मु रे त् ।
िवना कमा केनै व सूतोऽयं सवकायकृत् ॥ ३,२.५३ ॥
सविस मतमे तदी रतं सूतशु करमद् भुतं परम् ।
अ कमिविधभू रिस दं दे हलोहकरणे िह श ते ॥ ३,२.५४ ॥

३, ३
षट् का कं कम कं च शो ं िवम च यथोिदतं तत् ।
व ािदलोहा कमु पूव त ते सूतवर िस ै ॥ ३,३.१ ॥
{व :: सु पेस्}
ेता र ाः पीतकृ ा ि जा ा व जातयः ।
पुं ीनपुं सका ेित ल णेन तु ल येत् ॥ ३,३.२ ॥
{पुं व :: परी ा}
वृ ाः फलकस ू णा ेज ो बृह राः ।
पु षा े समा ाता रे खािब दु िवविजताः ॥ ३,३.३ ॥
{ ीव :: परी ा}
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रे खािब दु समायु ाः षड ा ाः यः ृताः ।
{नपुं सक:: परी ा}
ि कोणं प दे हं य ीघ य ा पुंसकम् ॥ ३,३.४ ॥
सवषां पु षाः े ा वे धका रसब काः ।
ीव ा दे हिस थ ामकं ा पुंसकम् ॥ ३,३.५ ॥
{िद ौषिध}
अजामारी काकमाची दे वदाली वा णी ।
काकज ा िश खिशखा सपा ी नागव का ॥ ३,३.६ ॥
मीना ी कृ ध ूरो बला नागव ी जया ।
मु ी महाबला पू गी ि िवधं िच कं िनशा ॥ ३,३.७ ॥
मूवा का ाननं क ा पे टारी सूयवतकः ।
िव ु ा ा कारव ी वाकुची िस दु वा रका ॥ ३,३.८ ॥
णपु ी ख जारी मि ा पीलुकं वचा ।
ु ही र ुही िब ं कापासः कंगुणी घना ॥ ३,३.९ ॥
पलाशा ोलिवजया मे घनादाकसषपाः ।
द ी महारा ी ेता र ा पुननवा ॥ ३,३.१० ॥
उदु रसोमलता कु ी पु रमूलकम् ।
ितलपण कृ जीरा वृि काली च कािलका ॥ ३,३.११ ॥
करवीरोऽि दमनी बृहती भूिमपाटली ।
यविच ी च लता मकटी वनराजकम् ॥ ३,३.१२ ॥
बदरी ल री ला ा चणा वतुलप का ।
अपामाग भूकद ो िवषमु ेकवीरकः ॥ ३,३.१३ ॥
गोर ा कदली जाती मुसली सहदे िवका ।
एर ः सै वं प ा शुं ठी म ू कपिणका ॥ ३,३.१४ ॥
म वको िहं गु वालो ल णा ह मूिलका ।
ीरवृ ा ये सव तथा नानािवधं िवषम् ॥ ३,३.१५ ॥
िद ौषिधगणः ातो रसराज साधने ।
ं वाथ सम ं वा यथालाभं िनयोजयेत् ॥ ३,३.१६ ॥
{िवषवगः}
ती ग रस शिविवधै ु वनो वैः ।
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मदना ेदना ूतो ि यते ब तेऽिप च ॥ ३,३.१७ ॥
र ी कालकूटं हा र ं स ूकं तथा ।
मौ कं िवषवगः ा ूषाकरणमु ते ।
{व मूषा:: ोदु तओन् }
तुषं व ं समं द ं त ादां शा च मृि का ।
कूपीपाषाणपादं च व व ा वैिदनम् ॥ ३,३.१८ ॥
मदये ारये ूषां व ा ां रसब काम् ।
{व मूषा (२)}
व ीकमृ ि का ाराः पुराणं लोहिक कम् ॥ ३,३.१९ ॥
ेतपाषाणकं चैत व चू समं समम् ।
सवतु ं तुषं द ं सव तोयै मदयेत् ॥ ३,३.२० ॥
मूषासं पुटकं कुया ं िल ा तेन वै ।
सवकायकरा एषा व मूषा महाबला ॥ ३,३.२१ ॥
{व मूषा (३)}
गारा द ा ुषा द ा द ा व ीकमृि का ।
गजा ानां मलं द ं याव ृ तां गतम् ॥ ३,३.२२ ॥
पाषाणभेदीप ािण कृ ा मृ समं समम् ।
व व ा वै म िदनं वा शोषयेद् ढम् ॥ ३,३.२३ ॥
तेन को ं व नालं व मूषां च कारयेत् ।
वतुला गो नाकारा व मूषा कीितता ॥ ३,३.२४ ॥
मूछने मारणे ब े ं मेलापके िहता ।
सैव िछ ा ता म ग ीरा सारणोिचता ॥ ३,३.२५ ॥
कटा शरावकाकारा बीजिनवापणे िहता ।
{व :: मारण}
सूतं धा ा कं तु ं िदनं पुननवा वैः ।
मिदतं त ख े तु व मूषा तं पचेत् ॥ ३,३.२६ ॥
िच ाबीजं मे ष ंगी ीपु ं चा वेतसम् ।
प ा ं शरपु ङ्खायाः शशद ाः िशलाजतु ॥ ३,३.२७ ॥
एत म ं ं वा यथालाभं सुचूणयेत् ।
ु क वा ाः ीरै ः ैिवमदयेत् ॥ ३,३.२८ ॥
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त ोलके ि पे ं द् ा मूषां धमेद् ढम् ।
गुडूची ं सै वं िहं गु समु ो रवा णीम् ॥ ३,३.२९ ॥
ाथैः कौल कैः िप ा त ावे िनषेचयेत् ।
त ं पू वव ोले ि ा द् ा धमे था ॥ ३,३.३० ॥
सेचना ं पु नः कुयादे किवंशितवारकम् ।
तालम ु णयोगे न स वारं पुनधमेत् ॥ ३,३.३१ ॥
सेचयेद मू ेण त ं ि यते ुवम् ।
{व :: मारण}
ि वष ढकापासमू लमादाय पेषयेत् ॥ ३,३.३२ ॥
ि वषनागव ा वा िनज ावैः पेषयेत् ।
त ोलके ि पे ं द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,३.३३ ॥
एवं स पु टैः प एकैकेन मृ तो भवेत् ।
{व मारणम् (६)}
तालकासीससौरा यो पामाग भ च ॥ ३,३.३४ ॥
िप ा कौल कैः ाथै ं सुतािपतम् ।
ि ा ि स वारािण ि यते ना संशयः ॥ ३,३.३५ ॥
{व मारणम् (७)}
वै ा भ ना साध पेषयेद वेतसम् ।
त ोलके ि पे म मूषागतं धमेत् ॥ ३,३.३६ ॥
सेचयेद मू ेण पूवगोले पुनः ि पेत् ।
द् ा ातं पु नः से मेवं कुया स कम् ॥ ३,३.३७ ॥
ि यते ना स े हः सवकमसु योजयेत् ।
{व मारणम् (८)}
उ रावा णी ीरै ः का पाषाणजं मुखम् ॥ ३,३.३८ ॥
णं िप ा तु त ोले व ं ि ा पचेदनु ।
नृतैले ग तैले वा ि यते ना संशयः ॥ ३,३.३९ ॥
{व मारणम् (९)}
भूनागं ग कं वाथ नारी ेन पे षयेत् ।
त ोल पचे ं पूवतैले मृतं भवेत् ॥ ३,३.४० ॥
{व मारणम् (१०)}
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ुही ीरे ण िवमलां िप ा त ोलके ि पेत् ।
व ं िन मूषां तां शु ां ती ाि ना धमे त् ॥ ३,३.४१ ॥
त म मू े तु ि ा व ं समाहरे त् ।
इ ेवं स धा काय तत ालकम ु णाः ॥ ३,३.४२ ॥
कृ ा गोलं ि पे मूषां िन च ।
धािमतं पूवव े ं स वारै मृतं भवेत् ॥ ३,३.४३ ॥
{व मारणम् (११)}
व ं म ु णर ेषु ि ा िल ातपे ि पेत् ।
शु ं ले ं पुनः शो ं याव िदनाविध ॥ ३,३.४४ ॥
िव ु ा ापे टकाय वैः िस े ुनः पुनः ।
त ं त ं तु त ं शतवारा ृतं भवेत् ॥ ३,३.४५ ॥
{व मारणम् (१२)}
ग कं चूिणतं भा ं ीपु ेण तु स धा ।
पु नः ीरजसालो त ं सुतािपतम् ॥ ३,३.४६ ॥
सेचये ापयेदेवं मृतं ा ु ि स धा ।
{व :: मृ दूकरण}
मातुलु गतं व ं द् ा बा े मृ दा िलपेत् ।
पचे ुटे समु द्धृ त तपुटैः पचेत् ॥ ३,३.४७ ॥
नागव ा वै िल ं त ेणैव वेि तम् ।
जानुम थतं यामं त ं मृदुतां जेत् ॥ ३,३.४८ ॥
{व ौदनं व मृदूकरणम् (२)}
मातृवाहकजीव म े व ं िविनि पेत् ।
ज ीरोदरगं वाथ दोलाय े िदनं पचेत् ॥ ३,३.४९ ॥
कुल को व ाथै ैफले वा कषायके ।
अहोरा ा मु द्धृ ज ीरे तु पुनः ि पेत् ॥ ३,३.५० ॥
मातृवाहकजीवे वा ि ा प ा च पू ववत् ।
पु नः े ं पु नः पा ं ि िदना े समु रे त् ॥ ३,३.५१ ॥
बदरीवटिन ानामङ्कुरािण समाहरे त् ।
िप ा त ोलके व ं पूवप ं िविनि पेत् ॥ ३,३.५२ ॥
अ प कैव ं त ोलं जानुम गम् ।
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िदनं वा धारये े मृ दुभवित िनि तम् ॥ ३,३.५३ ॥
{व मृदूकरणम् (३)}
पारदं ती णचूण च िदनम ेन मदयेत् ।
त ोले िनि पे ं सू ेणावे ये िहः ॥ ३,३.५४ ॥
नागव ी वै ैव वे ि तं धा रािशगम् ।
मासा े त मुद्धृ नागव ा वैिलपेत् ।
त लैवि तं जानुम थं मृदुतां जेत् ॥ ३,३.५५ ॥
{व मृदूकरणम् (४)}
का पाषाणव ं वा चूण वा का लोहजम् ॥ ३,३.५६ ॥
ससूतम योगे न िदनमेकं िवमदयेत् ।
त ोले िनि पे ं िन कापासकोलजैः ॥ ३,३.५७ ॥
प ैः िप ै ु संवे नागव ीदलै तः ।
वे ं त ानु म थं िदना े मृ दुतां जेत् ॥ ३,३.५८ ॥
{वजमृदूकरणम् (५)}
एर वृ म े तु त ले वा ि पे िवम् ।
मासमा ा मुद्धृ जानुम े तु पूववत् ॥ ३,३.५९ ॥
कोमलं जायते व ं िदना े ना संशयः ।
{व मृदूकरणम् (६)}
व ं िति रमां सेन वे येि ि पे ुखे ॥ ३,३.६० ॥
अित थूल भेक मु खं सू ेण वे येत् ।
िनखने मा ायां भूमौ मासा मु रे त् ॥ ३,३.६१ ॥
म ू कसं पुटे द् ा स जपुटे पचेत् ।
त ं पू वगोल थं जानुम े गतं िदनम् ॥ ३,३.६२ ॥
भवे ौदनं सा ा ाय प ा योजयेत् ।
सवव ौदनानां तु मारणं पूवव वेत् ॥ ३,३.६३ ॥
{वै ा शोधनम्}
ि ारै ः प लवणैवसामू ा को वैः ।
म िप ै ैलघृतैः कुल ैः काि का तैः ॥ ३,३.६४ ॥
स ाहं दोलकाय े ा ीक गतं पचेत् ।
स वण तु वै ा ं शु मायाित िनि तम् ॥ ३,३.६५ ॥
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{उपरसानां शोधनम्}
ज ीराणां वे म मातपे धारयेि नम् ।
शु ट णं शं खो वराटा नगै रकम् ।
कासीसं भूखगं चैव शु ं योगे षु योजयेत् ॥ ३,३.६६ ॥
{ग कशु ः (१)}
यामै कं ग कं म वै िन ाजग योः ।
ीध ूरयोवाथ ितलप ा वा वैः ।
तदादाय घृतै ु ं लोहपा े णं पचेत् ॥ ३,३.६७ ॥
ल वि ना ु तं त ै अजा ीरे िविनि पेत् ।
इ ेवं स धा कुया ु मायाित ग कम् ॥ ३,३.६८ ॥
{ग कशोधनम् (२)}
कर ैर तैलं च छागीदु ं च भा के ॥ ३,३.६९ ॥
ि ा त मुखं द् ा व ेण बु मान् ।
ग कं धू तजै ावैिदनं भा ं िवशोषयेत् ॥ ३,३.७० ॥
त ूण पूवभा व ोप र िनधारयेत् ।
आ ा च शरावे ण पृ े दे यं पुटं लघु ॥ ३,३.७१ ॥
ु तं ग ं समादाय भा ं ध ूरजै वैः ।
त द् ा ं पुनभा ं ावये पुन तः ॥ ३,३.७२ ॥
आदाय म िप ेन स धा भा मातपे ।
ततः कोशातकीबीजचूणन सह पेषयेत् ॥ ३,३.७३ ॥
भावयेद्भृ जै ावैः स ाहमातपे खरे ।
तोयेन ािलतं शो ं ततो मृ ि ना णम् ॥ ३,३.७४ ॥
घृ ता े लोहपा े तु ािवतं ढालये तः ।
भृ राज वा थं स ु ं भवे ु तत् ॥ ३,३.७५ ॥
{ग तैल}
अथ शु ग तैलपातनमु ते ।
अ पण दे वदाली दािडमं मातुलु कम् ॥ ३,३.७६ ॥
नार ं वा यथालाभं वमेक चाहरे त् ।
ग क तु पादां शं ट णं वसंयुतम् ॥ ३,३.७७ ॥
एता ां ग कं भा ं घम वार यं पुनः ।
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ध ूर ुलसी कृ ा लशु नं दे वदािलका ॥ ३,३.७८ ॥
िश ुमूलं काकमाची कपू रं शङ्खपु का ।
कृ ागु च क ूरी व ाकक टकी समम् ॥ ३,३.७९ ॥
मातुलु रसै ः िप ा ि पे देर तैलके ।
अनेन लोहपा थं भावये ूवग कम् ॥ ३,३.८० ॥
ि वारं ौ तु ं त ायते ग विजतम् ।
इदं ग कतै लं ा ोगेषु योजयेत् ॥ ३,३.८१ ॥
{ह रतालशु ः (१)}
सचूणणारनालेन दोलाय ेण तालकम् ।
िदनं प ं िवचू ाथ भा ं कू ा जै वैः ॥ ३,३.८२ ॥
शो ं पे ं पुनभा ं शतवारं िवशु ये ।
{ह रतालशु ः (२)}
तालकं कणशः कृ ा ताला ादां शट णम् ॥ ३,३.८३ ॥
यं ज ीरजै ावैः ालये ाि कै था ।
त ु ं पोटलीब ं सचूण काि के पचेत् ॥ ३,३.८४ ॥
ि िदनं दोलकाय े त ू ा जै वैः ।
पािचतं शु मायाित तालं सव योजयेत् ॥ ३,३.८५ ॥
{िवमलशु ः}
सुवणवण िवमलं ता ं वा कणशः कृतम् ।
पु ननवायाः क थं कौल े ेदये ले ॥ ३,३.८६ ॥
सै वैब जपूरा ैयु ं वा पोटलीकृतम् ।
दोलाय े िदनं े ं शु मायाित िनि तम् ॥ ३,३.८७ ॥
{रसकशु ः}
रज लारजोमू ै रसकं भावयेि नम् ।
तैरेव िदनमे कं तु मदये ु मा ुयात् ॥ ३,३.८८ ॥
{उपरस:: शोधन}
पु ननवामे घनादकिपज ीरित दु कैः ।
अग पु कुमुदयविच ा वेतसैः ॥ ३,३.८९ ॥
यवसू रणभूधा ीमा ू कीकरवीरकैः ।
कारव ी ीरक र ो लशमीवनैः ॥ ३,३.९० ॥
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मेष ङ् ा चो वसाश वा िणट णैः ।
तैलम वसा ोषै वै रेतैः सकाि कैः ॥ ३,३.९१ ॥
एतैः सम ै ैवा दोलाय े िदन यम् ।
अ प ाद् युपरसान् शु हे तो ु पाचयेत् ॥ ३,३.९२ ॥
{उपरस:: शोधन}
सूयावत व क ः कदली दे वदािलका ।
िश ुः कोशातकी व ा काकमाची च वालुकम् ॥ ३,३.९३ ॥
आसामेकरसे नैव ि ारपटु प कम् ।
भावयेद वगण ती घम िदनाविध ॥ ३,३.९४ ॥
एत े न संले म कं व माि कम् ।
वै ां तं स कं तालं का पाषाणम नम् ॥ ३,३.९५ ॥
िवमलां च िशलां तु म ानुपरसां था ।
दोलाय े सारनाले पूवक युते पचेत् ।
ती ानले िदनै केन शु माया तािन वै ॥ ३,३.९६ ॥
{धा ा करणम्}
शु म ं िभ प ं कृ ा ीिहयुते ढे ।
व े बद् ा सारनाले भा म े िवमदयेत् ॥ ३,३.९७ ॥
ह ा ां यमायाित यावद ा रे तु तत् ।
वं ा तु त ो ं िदनं धा ा कं भवेत् ॥ ३,३.९८ ॥
{अ :: मारण:: िन }
एत ा ा कं म भानु दु ैिदनाविध ।
कृ ा पू पं भानुप ैवि तं पाचये ुटे ॥ ३,३.९९ ॥
इ ेवं दशधा पा ं दु ैभा ं पुनः पुनः ।
ततो वटजटा ाथैम दशपुटैः पचेत् ॥ ३,३.१०० ॥
सघृ तैमिहषी ीरै म दे यं पुट यम् ।
िन ं जायते ं योजनीयं रसायने ॥ ३,३.१०१ ॥
{अ कभ (२)}
पु ननवा ौषधािन ातािन शोधने ॥ ३,३.१०२ ॥
धा ा कं तु तैरेव ि िदनं तु पुटे पचेत् ।
पू वव मयोगेन ि यते प िभः पुटैः ॥ ३,३.१०३ ॥
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{मेत ्:: शोधन}
तैले त े गवां मू े काि के रिवदु के ।
कुल ानां कषाये च ज ीराणां वे तथा ॥ ३,३.१०४ ॥
त ा त ा िनिष ेदेकैक ं ु स धा ।
णािदलोहप ािण शु माया िनि तम् ॥ ३,३.१०५ ॥
{लेअद् , ितन् :: शोधन}
ािवते नागव े च पचे ि शु ये ।
{ ो शे , चो ेर्:: शोधन}
ि ारं पं चलवणं ज ीरा ेन स धा ॥ ३,३.१०६ ॥
भावयेदातपे ती े त े न िवले च ।
घोषारता प ाणां शु ै गजपुटे पचेत् ॥ ३,३.१०७ ॥
{लेअद् :: मारण}
लोहपा े पचे ागं तु ं यावद् ु तं भवेत् ।
चा ं पलाशद े न भ ीभूतं समु रे त् ॥ ३,३.१०८ ॥
भ तु ां िशलां त ा चा ेन केनिचत् ।
पे षये ाममा ं तु द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,३.१०९ ॥
ा शीतं पुनः िप ा िवंश ंशिशलायुतम् ।
अ ेन याममा ं च द् ा पचे पूववत् ।
एवं षि पु टैः प ो मृतो भवित प गः ॥ ३,३.११० ॥
{इरोन् (गेन्.):: मारण}
नारी ेन स ं िहङ् गूलं पलप कम् ॥ ३,३.१११ ॥
तेन लोह प ािण लेपये लप कम् ।
द् ा गजपु टे प ा षायै ैफलैः पु नः ॥ ३,३.११२ ॥
ज ीरै रारनालैवा िवं शां शदरदे न च ।
िप ा द् ा पुटे ोहं त ा ं पुनः पुनः ॥ ३,३.११३ ॥
च ा रं श ुटैरेव ती णं का ं च मु कम् ।
ि यते ना संदेहो द ा द ैव िहङ्गुलम् ॥ ३,३.११४ ॥
{व भ }
लोहपा े ु ते व े पादां शं तालकं ि पेत् ।
चा म द े न जातं भ समु रे त् ॥ ३,३.११५ ॥
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त ह रतालं तु तु म ेन मदयेत् ।
पलाशक वै वाथ यामा े चोद् धृ तं पुटेत् ॥ ३,३.११६ ॥
उद् धृ दशमां शेन तालेन सह मदयेत् ।
पू व ावै ु यामै कं द् ा गजपु टे पचेत् ।
च ा रं श ुटैरेवं प ं ा ृतव कम् ॥ ३,३.११७ ॥
{चो े र्:: मारण}
क वे धीकृतं ता प ं तु ां शग कैः ॥ ३,३.११८ ॥
अ िप ैः िल ाथ द् ा गजपु टे पचेत् ।
उद् धृ चूणये न् पादां शं ग कं ि पेत् ॥ ३,३.११९ ॥
ज ीरै रारनालैवा िप ा द् ा पुटे ुनः ।
एवं चतुःपुटैः प ा ो दे यः पुटे पुटे ॥ ३,३.१२० ॥
मातुलु वैरेवं पुटमे कं दापयेत् ।
िसतशकरया प पु टं दे यं मृतं भवेत् ॥ ३,३.१२१ ॥
{िस े र्:: मारण}
माि केना िप ेन त ु ं तारप कम् ।
िल ा द् ा पुटे प ा समु द्धृ िवचूणयेत् ॥ ३,३.१२२ ॥
कणामाि किस ू भूधा समं समम् ।
पू वचूणन तु ां शिमदम ेन मदयेत् ॥ ३,३.१२३ ॥
द् ा गजपु टे प ा ैरेव मदये ुटेत् ।
एवं स पु टैः प ं तारं भ मा ुयात् ॥ ३,३.१२४ ॥
{गो ् :: मारण}
मृतं नागं ुही ीरै रथवा ेन केनिचत् ।
िप ा तेन समां शेन णप ािण लेपयेत् ॥ ३,३.१२५ ॥
द् ा गजपु टे प ा समु द्धृ िवचूणयेत् ।
त े वं मृ तं नागम मां शेन लेपयेत् ॥ ३,३.१२६ ॥
यामै कं मदयेद ै द् ा गजपु टे पचेत् ।
एवम पुटैः प ं मृतं भवित हाटकम् ।
{ ् , ो शे :: मारण}
आरे घोषे कत ं ता व ारणं परम् ॥ ३,३.१२७ ॥
िविवधपरमयोगै यु यु ैः िस ै रनुभवपथ ैः शोधनं मारणं च ।
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पिवबिलगगनानां सवलोहे िवशे षा िदतिमह िहताथ वाितकानां िवभू ै ॥ ३,३.१२८ ॥

३, ४
स मता रै ः समुिचतैः स ं दायैः शुभैः ातैग कजारणािदिविवधै य गै ः
सुिस ै ः मात् ।
यद् ं सु लभं सु वणकरणं तार संरंजनात् ।
स ं स नर णातुरतया संत ते त तः ॥ ३,४.१ ॥
{ग िपि }
दशिन ं शु सू तं िन ै कं शु ग कम् ।
ोकं ोकं ि पे े मदकेन शनैः शनैः ॥ ३,४.२ ॥
कु ना ायते िपि ः सेयं ग किपि का ।
{ णिपि }
भाग यं शु सूतं भागैकं शु हाटकम् ॥ ३,४.३ ॥
अ ेन मदये ामं ातेयं णिपि का ।
{सु ल्fउर् :: षड् गुणजारण}
ग िपि ं हे मिप ा समया वे ये िहः ॥ ३,४.४ ॥
व ेण वे ये ाढं सूता े लोहसंपुटे ।
िनधाय पोटलीम े सवतु ं च ग कम् ॥ ३,४.५ ॥
ि ा िनरोधये ंिधं मृ ोणेन च रोधयेत् ।
भूधरा े पुटे प ा जीण ग ं पुनः ि पेत् ॥ ३,४.६ ॥
षड् गुणे ग के जीण शनैव ं िनवारयेत् ।
पु नः पुनः समं ग ं द ा जाय शनैः शनैः ॥ ३,४.७ ॥
िनःशे षं नैव कत ं मादा ाित सूतकः ।
एवं शतगु णे जीण य ादु द्धृ िपि काम् ॥ ३,४.८ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
त ु े सं पुटे हे ि द् ा बा े च वे येत् ।
कुमारी विप ेन काचेनाङ्गु लमा कम् ॥ ३,४.९ ॥
त िह णे नैव लोणमृि कया ततः ।
वे मङ्गुिलतै लेन सूयतापेन शोिषतम् ॥ ३,४.१० ॥
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को ीय े गतं धा ं व नाले ढाि ना ।
त ोटं जायते िद ं िस दू रा णसंिनभम् ॥ ३,४.११ ॥
तेन वेध ु तार ु त शतभागतः ।
दे यः संजायते ण िस योग उदा तः ॥ ३,४.१२ ॥
{ग िपि }
ग कं शोिधतं चू स धा कनक वैः ।
भावयेदातपे त ारीणां रजसा पु नः ॥ ३,४.१३ ॥
त ं कषमेकं तु नरिप ेन लोिलतम् ।
पलै कं पारदं शु मातपे खपरे ि पेत् ॥ ३,४.१४ ॥
त ृ े लोिलतं ग ं ि ाङ्गु े न मदयेत् ।
िपि का जायते िद ा सवकामफल दा ॥ ३,४.१५ ॥
{ग िपि }
ितलपण रसे नैव स धा शु गंधकम् ।
भावये ेषये छायाशु ं पुनः पुनः ॥ ३,४.१६ ॥
शु ं सूतं पलैकं च मू षायां िह िनधापयेत् ।
शु ण गु िलकां िन मा ां िविनि पेत् ॥ ३,४.१७ ॥
तां मू षां वालुकाय े थापये ूवग कम् ।
ुिटश ु िटशो द ा चु ां म ाि ना पचेत् ॥ ३,४.१८ ॥
पादां शे ग के जीण जायते ग िपि का ।
ग िपि ः पृथ ा ा ण गुिलकां िवना ॥ ३,४.१९ ॥
{ग िपि }
छायायां ग कं भा ं शतधा मकटी वैः ।
घम मृ परे सू तं ि पे ं िच ग कम् ॥ ३,४.२० ॥
मकटी वसं यु ं जीण ग े वं पुनः ।
दे यं पादां शकं याव कं स वं मात् ॥ ३,४.२१ ॥
जायते िपि का िद ा सवकामफल दा ।
{ग िपि }
ग कं सू चूण तु काि कैः ालये धा ॥ ३,४.२२ ॥
ि धा ज ीरजै ावै हसपा ा स धा ।
कपूरं च पृ थ ा ं ेताि किणका वैः ॥ ३,४.२३ ॥
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आतपे ीिण वारािण ततो जारणमारभेत् ।
ि गु ामा कपूरै य गभ लेपयेत् ॥ ३,४.२४ ॥
त भ भािवतं ग ं साधिन ं दापयेत् ।
शु सू तं पलं चाध कपू रं पूवतु कम् ॥ ३,४.२५ ॥
पू वतु ं ततो ग ं मेणाथ दापयेत् ।
ेताि किणकामूलं गोमू ेण पेषयेत् ॥ ३,४.२६ ॥
आ ा तेन क े न शरावेण िन च ।
पाचये िलकाय े िदना े तं समु रे त् ॥ ३,४.२७ ॥
कपूरािद पु नदयं त ाय िदनाविध ।
इ ेवं तु पु नः कुया ायते ग िपि का ॥ ३,४.२८ ॥
{ग िपि }
पारद पलैकं तु कषकं शु ग कम् ।
ि ख े कराङ्गु ा दे वदाली वे ुतम् ॥ ३,४.२९ ॥
मदयेदातपे ती े जायते ग िपि का ।
{ग िपि }
शु सू तं पलैकं तु कषाध शु ग कम् ॥ ३,४.३० ॥
िनधाय ता ख े तु तदधोऽि ं मृ दंु ि पेत् ।
कराङ्गु े न संम यामा वित िपि का ॥ ३,४.३१ ॥
{ग िपि :: न}
ित कोशातकीबीजं चा ालीक एव च ।
नारी ेन स लेपये िपि काम् ॥ ३,४.३२ ॥
िनि पे ूरणे क े ीरक ोदरे तथा ।
व ाकक टकीव क े वा कुडु ि के ॥ ३,४.३३ ॥
मुखं क म ाभी द् ा क ं मृदा िलपेत् ।
पु टये द्भूधरे य े करीषा ौ िदनाविध ॥ ३,४.३४ ॥
ऊ ाधः प रवतन यथा क ो न द ते ।
ततः िप ी ं समु द्धृ ता जायते ुवम् ॥ ३,४.३५ ॥
{ग िपि :: त:: जारण}
अथा ा जारणा काया ना े लोहसंपुटे ।
िनधाय जारये ं तु ं तु ं तु भूधरे ॥ ३,४.३६ ॥
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जीण ग े पु नदयं य े जाय च पूववत् ।
एवं शतगु णं जाय जीण य ा मु रे त् ॥ ३,४.३७ ॥
सवासां ग िप ीनां र नं ा ु जारणात् ।
{ग िपि :: मारण}
िद ौषधगण ावैः िपि ः ख े िवमदयेत् ।
िदना े गोलकं कृ ा बीजैिद गणो वैः ॥ ३,४.३८ ॥
लेपये मूषां तु गोलं त िनरोधयेत् ।
िदनै कं भूधरे प ादू ाधः प रवतयेत् ॥ ३,४.३९ ॥
समु द्धृ पु नम पूव ावै ु पूववत् ।
पु टा ं कारयेदेवं दशवारं पुनः पुनः ॥ ३,४.४० ॥
{ग िपि :: वे ध:: िस ेर्=> गो ् }
ि यते ना संदेहो ग िप ा तः पुनः ।
मृतिपि पलैकं तु पे षये ासक वैः ॥ ३,४.४१ ॥
त ै नागप ं तु लेपिय ा पला कम् ।
छायाशु ं से े वासाप समु वे ॥ ३,४.४२ ॥
तं िप ं सं पुटे द् ा पुटेदार को लैः ।
समु द्धृ पु नदया पलैका मृतिपि का ॥ ३,४.४३ ॥
वासा ावैिदनं म तं गोलं वे ये ुनः ।
वासाप ो िप े न द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,४.४४ ॥
एवं पु नः पु नः कुया वण मृतं भवेत् ।
त ागं पलमा ं तु यामै कं वासक वैः ॥ ३,४.४५ ॥
मिदतं लेपये ेन ता प ं पला कम् ।
िदनै कं पाचनाय े पाचये यते ुवम् ॥ ३,४.४६ ॥
षोडशां शेन तेनैव तारे वेधं दापयेत् ।
त ारं जायते ण जा ूनदसम भम् ॥ ३,४.४७ ॥
यया कया ग िप ा नं जारणं िवना ।
पू वव मयोगेन िद ं भवित का नम् ॥ ३,४.४८ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
अजुन चो भ वासाभ समं समम् ।
गृहक ा वैम िदनैकं तेन लेपयेत् ॥ ३,४.४९ ॥
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क वे ं नागप ं द् ा लघुपुटे पचेत् ।
उद् धृ मदये ामं पूव ावैः सभ कैः ॥ ३,४.५० ॥
द् ा गजपु टे प ा ा शीतं समु रे त् ।
एवं शतपु टैः पा ं भ ावै मदयेत् ॥ ३,४.५१ ॥
तेनैव तारप ािण मधु िल ािन लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ा पुनिल ा पुटे पचेत् ॥ ३,४.५२ ॥
इ ेवं तु ि धा कुया ारमायाित का नम् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
लोहपा े ु ते नागे चू िणतं रसकं समम् ॥ ३,४.५३ ॥
ि ा चु ां पचे ामं चा ं पाषाणमुि ना ।
यामा े िहङ्गु लं े ं चूिणतं नागतु कम् ॥ ३,४.५४ ॥
सुसू ं मदये ाव ढं पाषाणमुि ना ।
पचे ाि ना तावि नानामे किवंशितम् ॥ ३,४.५५ ॥
जायते कुङ्कुमाभं तु तारं तेनैव वेधयेत् ।
चतुःषि तमां शेन िद ं भवित का नम् ॥ ३,४.५६ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
ावये परे नागं पादां शं त िनि पेत् ।
िच ा चः ारं लोहद ा िवमदयेत् ॥ ३,४.५७ ॥
यामा े त मु द्धृ व ी ीरै िदनाविध ।
म ख े समु द्धृ मृ ा ा िनरोधयेत् ॥ ३,४.५८ ॥
पचे ा ौ चतुयामं चु ां च ाि ना पुनः ।
उद् धृ मदये े व ी ीरै िदनाविध ॥ ३,४.५९ ॥
रा ौ पा ं िदवा म याव ष ासमेव च ।
यथा न पतते त लं धूिल ु र येत् ।
सह ां शे धृते शरे वेधे द े सुका नम् ॥ ३,४.६० ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
िशलाग ककपूरकुङ्कुमं मदये मम् ।
ज ीरो वैयामं त मं नागप कम् ॥ ३,४.६१ ॥
िल ा िल ा पुटैः प ा ाव ि पुटी भवेत् ॥ ३,४.६२ ॥
त ागं िवद् यु दाभासं जायते तेन वेधयेत् ।
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चतुःषि तमां शेन तारमायाित का नम् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
ती णं शु ं नागव ौ ु तं नागं तु तु कम् ।
चूिणतं भागमेकैकं ौ भागौ हे ममाि कम् ॥ ३,४.६३ ॥
व मू षागतं द् ा ातं खोटं सुचूिणतम् ।
िस चूणन संयु ं तारमायाित का नम् ॥ ३,४.६४ ॥
{तारा र }
शु चूण ती णचूण तु ं द् ा धमे थठात् ।
त ोटं िस चूण च म पा ं च पू ववत् ॥ ३,४.६५ ॥
तेनैव मधु यु ेन तारप ािण लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ादे वं वार यं कृते ॥ ३,४.६६ ॥
पीतवण भवे ु तारा र ं िनग ते ।
{तारा र }
व नागसमं का मथवा ता नागकम् ॥ ३,४.६७ ॥
माि कं शु ती णं वा शु नागं सव कम् ।
एते योगा ु च ारः पृथ ूणािन कारयेत् ॥ ३,४.६८ ॥
पृ थ ातािन खोटािन िस चूणयुतािन च ।
मदनािदपुटा ािन तारा र करािण वै ॥ ३,४.६९ ॥
पू वव ेपयोगेन ेकेन तु कारयेत् ।
तारा र त ैव ण करणमु ते ॥ ३,४.७० ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
शु वै ा भागैकं िकंवा वै ा स कम् ।
नागचूण च भागैकम मू षागतं धमेत् ॥ ३,४.७१ ॥
िस चूणन संयु ं मदनािदपुटा कम् ।
कत ं पूवव ा ै ामादाय िवमदयेत् ॥ ३,४.७२ ॥
मधु ना याममा ं तु तेन ले पं तु कारयेत् ।
शतां शेन तु प ाणां तारा र य तः ॥ ३,४.७३ ॥
द् ा गजपु टे प ाि ं भवित का नम् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
मूलप फलं िब ा ाकवृ ा त यम् ।
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िश ुमूलं रसं चै त दये ं शुक वैः ॥ ३,४.७४ ॥
अनेन नागचूण तु म म पुटे पचेत् ।
एवं शतपु टैः प ं जायते प रागवत् ॥ ३,४.७५ ॥
तेनैव तारप ािण मधु िल ािन लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ादे वं वार ये कृते ॥ ३,४.७६ ॥
त ारं जायते िद ं जा ूनदसम भम् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
राजावत िहं गुलकं कंकु ं च वालकम् ॥ ३,४.७७ ॥
े कं कषमा ं ा सक पलं तथा ।
सू चूण कृतं सव िस चूणन संयुतम् ॥ ३,४.७८ ॥
अ मूषागतं ातं मदनािदपुटा कम् ।
पू वव ारये ा धुना सह िम येत् ॥ ३,४.७९ ॥
तारा र प ािण लेपिय ा पुटे पचेत् ।
एवं वार यं कुयाि ं भवित का नम् ॥ ३,४.८० ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
माि कं दरदं तु ं राजावत वालकम् ।
एतािन समभागािन ि भागं रसकं भवेत् ॥ ३,४.८१ ॥
मेषी ीरे ण त व िदनमेकं िवमदयेत् ।
छायाशु ं तु त ृ ा तु ां शं िम प कम् ॥ ३,४.८२ ॥
द ा तु मदये े तारा र ं तु लेपयेत् ।
थमं समक े न द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,४.८३ ॥
अधक े न ले ाथ पादक े न वा पु नः ।
एवं पु ट यं दे यं िद ं भवित का नम् ॥ ३,४.८४ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
रसकं नागसंतु ं द् ा खोटं कारयेत् ।
िस चूणन संयु ं पुटा ं पूवव ृ तम् ॥ ३,४.८५ ॥
तेनैव मधु नो े न तारा र ं लेपयेत् ।
द् ा द् ा पु टे प ा धा भवित का नम् ॥ ३,४.८६ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ लेअद् )}
गंधकं तालकं शु ं समिहं गुलपेिषतम् ।
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मातुलु वैः साध नागप ािण तेन वै ॥ ३,४.८७ ॥
िल ा द् ा पुटे प ा ुन ेनैव मदयेत् ।
एवं षि पु टैः प ो नागः ा ु ङ्कुम भः ॥ ३,४.८८ ॥
तेन तार प ािण मधु िल ािन लेपयेत् ।
द् ा ती ाि ना धा मेवं वार ये कृते ॥ ३,४.८९ ॥
त ारं जायते िद ं जा ूनदसम भम् ।
{वेध:: लेअद् => गो ् }
ला ली िग रक ि ः करवीरजमू लकम् ।
सौवीरं ट णं ैः िप ा िप ं क येत् ॥ ३,४.९० ॥
चतुधा िवमला शु ा ते ेका पलमा कम् ।
ि पलं पारदं शु ं शु ं हे मपल यम् ॥ ३,४.९१ ॥
यामै कं मदये व पूविप ोदरे ि पेत् ।
त ं व मू षायां द् ा धा ं हठाि ना ।
त ोटं शतमां शेन ु तं नागं तु वेधयेत् ॥ ३,४.९२ ॥
त ागे न शतां शेन ु तं शु ं तु वेधयेत् ।
त ोटं शतमां शेन ु तं नागं तु वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणमु मम् ॥ ३,४.९३ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
पारदं कुङ्कुमं ग ं ीपु ेण िदनाविध ।
मदये ु तु ां शं तेन क े न साधयेत् ॥ ३,४.९४ ॥
शु ािन तारप ािण िल ा द् ा धमे ठात् ।
प ं कृ ा पुनल ं द् ा धा ं च पू ववत् ॥ ३,४.९५ ॥
इ ेवं स धा कुया ेपनं ावणं मात् ।
तत ै व प ािण तेन क े न लेपयेत् ॥ ३,४.९६ ॥
उद् घाटं ावये ं च ु तमा े िविनि पेत् ।
स ाहं धारये ं भवित का नम् ॥ ३,४.९७ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
कुङ्कुमं ग कं सूतं मि ा त मं समम् ।
शाकवृ फल ावैः सु प ै मदयेि नम् ॥ ३,४.९८ ॥
तेन तार प ािण िल ािन िवशोषयेत् ।
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आव ढालये ं ेन क े न भािवतम् ॥ ३,४.९९ ॥
एवं पु नः पु नः कुयादे किवंशितवारकम् ।
त ारं जायते ण स ादशवणकम् ॥ ३,४.१०० ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
पारदं का पाषाणं ग कं र च नम् ।
द ी वसंयु ं िदनमे कं िवमदयेत् ॥ ३,४.१०१ ॥
तेन तार प ािण िविल ािन शोषयेत् ।
धामयेद मू षायामे वं कुया स धा ॥ ३,४.१०२ ॥
शाकवृ मूलं तु भा ं त जै वैः ।
र ा मारजै ैव पृथ ा ं ि धा ि धा ॥ ३,४.१०३ ॥
अनेन पू वतार ुत ितवापनम् ।
दापये वारं तु िद ं भवित का नम् ॥ ३,४.१०४ ॥
{िस चूण}
ग कं ग मूली च रिवदु ेन मदयेत् ।
मृ ये सं पुटे द् ा मासं भूमौ िविनि पेत् ॥ ३,४.१०५ ॥
उद् धृ तेन तार प लेपं तु कारयेत् ।
पू वतारे ु ते दे यः ितवापः पुनः पुनः ॥ ३,४.१०६ ॥
स िवंशितमे वापे त ारं का नं भवेत् ।
{िस चूण}
शु सू तसमं ग ं ख े म िदनाविध ॥ ३,४.१०७ ॥
जायते क ली े ा सवकायकरी शुभा ।
क ली ट णं ता ं ेकं कषमा कम् ॥ ३,४.१०८ ॥
कष यं शु ग ं यामं सव िवचूणयेत् ।
िस चूणिमदं ातं भवे ादािदकं पलम् ॥ ३,४.१०९ ॥
य य िमल ेत चूण पलं पलम् ।
योजये ोहवादे षु तिददानी ं िनग ते ॥ ३,४.११० ॥
{वेध, र न:: िस े र्=> गो ् }
ता ती णारका ानां चूणमेक चाहरे त् ।
यथा लोहे पलैकं तु िस चूणन संयुतम् ॥ ३,४.१११ ॥
व मू षागतं द् ा ातं खोटं भवे ु तत् ।
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तु ै भूनागजीवै वा ग केन समेन वा ॥ ३,४.११२ ॥
मदये ातुलु ा ैः पू वखोटं िदनाविध ।
त ं प मूषायां द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,४.११३ ॥
आर ोपलकैरे वं पु टं द ा तुदश ।
इ गोपकसंकाशं जायते पूजये वम् ॥ ३,४.११४ ॥
ौ यु ेन तेनैव तारप ािण लेपयेत् ।
द् ा धमे ुटे ाथ एवं वार ये कृते ॥ ३,४.११५ ॥
जायते कनकं िद ं िस ोऽयं तारर कः ।
इ ेवं सवयोगानाम ानां पृथ ृथक् ॥ ३,४.११६ ॥
िस चूणन संयु ं कत ं िविधना बु धैः ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
शु ं नागं समं धा ं समं वा शु व कम् ॥ ३,४.११७ ॥
आवतते तु त ूण िस चूणन पूववत् ।
शु ं नागं व घोषं यथे ै कं िवचूणयेत् ॥ ३,४.११८ ॥
त मं ती णचूण च मूषागतं धमेत् ।
एत ोटं िवचू ाथ िस चूणन संयुतम् ॥ ३,४.११९ ॥
पू वव मयोगेन तारमायाित का नम् ।
{??}
शु भागि तयमेकैकं नागव योः ॥ ३,४.१२० ॥
समाव िवचू ाथ िस चूणन पूववत् ।
नागमेकं यं शु ं त ु ेनैव प गम् ॥ ३,४.१२१ ॥
द् ा ातं च त ू िस चूणन पूववत् ।
िस चूण यो भागा भागै कं हे मगै रकम् ॥ ३,४.१२२ ॥
द् ा ातं पु न ू िस चूणन पूववत् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
ग केन हतं शु ं माि कं च समं समम् ॥ ३,४.१२३ ॥
हं सपा क ावैिदनमेकं िवमदयेत् ।
तेनैव तारप ािण िल ा द् ा पुटे पचेत् ॥ ३,४.१२४ ॥
तमु द्धृ धमे ा ृ ा प ािण लेपयेत् ।
पू वक े न द् ाथ पु टं द ा समु रे त् ॥ ३,४.१२५ ॥
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इ ेवं दशधा कुया ारमायाित का नम् ।
{िस े र्:: र न}
ती णं यं यं घोषमारं भागचतु यम् ॥ ३,४.१२६ ॥
नवभागं ता चूण नागं च नवभागकम् ।
अंधमू षागतं ातं त ोटं सू चूिणतम् ॥ ३,४.१२७ ॥
िस चूणन संयु ं पूवव ारर नम् ।
{??}
मृतनागसमं तु ं ा ां तु ं च माि कम् ॥ ३,४.१२८ ॥
केवलं मृ तनागं वा िस चूणन पूववत् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
नागा ं वाथ व ा म िय ा धमे ठात् ॥ ३,४.१२९ ॥
त ोटं सू चूण तु िस चूणन संयुतम् ।
पू वव मयोगेन तारमायाित का नम् ॥ ३,४.१३० ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
ती णं शु ं नागव ं मृतं नागं तु तु कम् ।
चूिणतं भागमेकैकं ौ भागौ हे ममाि कम् ॥ ३,४.१३१ ॥
व मू षागतं द् ा ातं खोटं सुचूिणतम् ।
िस चूणन संयु ं तारमायाित का नम् ॥ ३,४.१३२ ॥
{तारा र :: ोदु तओन्}
शु चूण ती णचूण तु ं द् ा धमे ठात् ।
त ोटं िस चूण तु म पा ं च पू ववत् ॥ ३,४.१३३ ॥
तेनैव मधु यु ेन तारप ािण लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ादे वं वार ये कृते ॥ ३,४.१३४ ॥
पीतवण भवे ु तारा र ं िनग ते ।
{तारा र :: ोदु तओन्}
व ं नागं समं का मथवा ता नागकम् ॥ ३,४.१३५ ॥
माि कं शु ती णं च शु ं नागं सव कम् ।
एते योगा ु च ारः पृथ ूणािन कारयेत् ॥ ३,४.१३६ ॥
पृ थ ातािन खोटािन िस चूणयुतािन च ।
मदनािदपुटा ािन तारा र करािण वै ॥ ३,४.१३७ ॥
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{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
पू वव ेपयोगेन ेकेन तु कारयेत् ।
तारा र त ैव ण करणमु ते ॥ ३,४.१३८ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
शु वै ा भागैकं िकंवा वै ा स कम् ।
नागचूण तु भागैकम मू षागतं धमेत् ॥ ३,४.१३९ ॥
िस चूणन संयु ं मदनािदपुटा कम् ।
कत ं पूवव ा ै मादाय िवमदयेत् ॥ ३,४.१४० ॥
मधु ना याममा ं तु तेन ले पं तु कारयेत् ।
शतां शेन तु प ाणां तारा र य तः ॥ ३,४.१४१ ॥
द् ा गजपु टे प ा िद ं भवित का नम् ।
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
राजावत िहङ्गुलकं कंकु ं च वालकम् ॥ ३,४.१४२ ॥
े कं कषमा ं ा सक पलं तथा ।
सू चूण कृतं सव िस चूणन संयुतम् ॥ ३,४.१४३ ॥
अ मूषागतं ातं मदनािदपुटा कम् ।
पू वव ारये ा धुना सह िम येत् ॥ ३,४.१४४ ॥
तारा र प ािण लेपिय ा पुटे पचेत् ।
एवं वार यं कुयाि ं भवित का नम् ॥ ३,४.१४५ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
माि कं दरदं तु ं राजावत वालकम् ।
एतािन समभागािन ि भागो रसको भवेत् ॥ ३,४.१४६ ॥
मेषी ीरे ण त व िदनमेकं िवमदयेत् ।
छायाशु ं तु त ृ ा तु ां शं िम पंचकम् ॥ ३,४.१४७ ॥
द ा तु मदये े तारा र ं तु लेपयेत् ।
थमं समक े न द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,४.१४८ ॥
अधक े न ले ोऽथ पादक े न वै पुनः ।
एवं पु ट ये द े िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,४.१४९ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ तारा र )}
रसकं नागसंतु ं द् ा खोटं कारयेत् ।
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िस चूणन संयु ं पुटा े पूवव ृ तम् ॥ ३,४.१५० ॥
तेनैव मधु ना े न तारा र ं लेपयेत् ।
द् ा द् ा पु टैः प ा धा भवित का नम् ॥ ३,४.१५१ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् (wइ चो ेर्)}
शु प ािण त ािन आरनाले िविनि पेत् ।
पु नः पा ं पुनः े ं याव ैव शीयते ॥ ३,४.१५२ ॥
त मारनाल थं ालयेदारनालकैः ।
पादां शं ट णं द ा यामम ेन पेषयेत् ॥ ३,४.१५३ ॥
द् ा लघुपुटैः प ादे वं शतपुटैः पचेत् ।
म ा ं ट णः प ा ा ु द् ा धमे ठात् ॥ ३,४.१५४ ॥
त ु ं कािलकाहीनं जायते शुकतु वत् ।
त ु ं ि गुणं तारे िनवा ं का नं भवेत् ॥ ३,४.१५५ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
िश ुप समै ः प ैमूलैः वालसंिनभैः ।
ेया िद ौषधी िस ा ना ा सा कीटमा रणी ॥ ३,४.१५६ ॥
तद् वै ः पारदो म याव िदनाविध ।
तेनैव तारप ािण िल ािन िवशोषयेत् ॥ ३,४.१५७ ॥
द् ा गजपु टे प ादे वं कुया स धा ।
जायते कनकं िद ं पुरा नागाजुनोिदतम् ॥ ३,४.१५८ ॥
{वेध:: िस े र्=> गो ् }
शु सू तसमा राजी सूतपादं च ग कम् ।
मृ ा े पाचये ु ां ध ूर वसंयुतम् ॥ ३,४.१५९ ॥
वासाका े न त वो दे यः पुनः पु नः ।
एवं िदन यं कुया ायते भ सूतकः ॥ ३,४.१६० ॥
त मातुलु ा ैिदनमेकं तु तेन वै ।
चतुःषि तमां शेन तारप ािण लेपयेत् ॥ ३,४.१६१ ॥
द् ा गजपु टे प ादे वं वार ये कृते ।
त ारं जायते ण महादे वेन भािषतम् ॥ ३,४.१६२ ॥
तार र निमदं सुखभोगहे तुं कृ ा िववेकमितिभभुवने जनानाम् ।
दे यं सदा सकलकीितशु भा िस ै नो चे ने वसितरे व परा िह ध ा ॥ ३,४.१६३ ॥
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३, ५
महारसै ोपरसै ः ससू तैह ो दलं र नम यु ा ।
नानािवधं वणिववधनं च त ते वाि कभु यो म् ॥ ३,५.१ ॥
{गो ् :: fरों िसत ण}
वै ा स भागैकं शु वै ा मेव वा ।
कां ा ा िवमला वािप हे मा ा िवमलािप वा ॥ ३,५.२ ॥
समे न नागचूणन अ मूषागतं धमेत् ।
िस चूणन संयु ं मदनािदपुटा कम् ॥ ३,५.३ ॥
आदाय मधु ना पे ं याममा ं य तः ।
ण तारं समं ा ं तेन प ािण कारयेत् ॥ ३,५.४ ॥
िसत णिमदं ातं पूवक े न लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ादे वं वार ये कृते ॥ ३,५.५ ॥
जायते कनकं िद ं से चये वणोदकैः ।
लोहसं ा नु थ से ं ा ी वेण वा ॥ ३,५.६ ॥
एवं िवमलनागा ां पृथ ोग उदा तः ।
{गो ् :: fरों िसत ण}
नागवै ा योगे न मधू ेन लेपयेत् ॥ ३,५.७ ॥
सह ां शे िसते हे मे िद ं भवित का नम् ।
{िसत ण => गो ् }
मेषी ीरा वगा ां दरदं घमभािवतम् ॥ ३,५.८ ॥
शतधा त य ेन शो ं पे ं पुनः पुनः ।
अनेन िसत ण प ं िल ा पुटे पचेत् ॥ ३,५.९ ॥
एवं ि स धा कुयाि ं भवित का नम् ।
{िसत ण => गो ् }
नागचूण ता चूण नागवै ा मेव वा ॥ ३,५.१० ॥
अंधमू षागतं खोटं िस चूणन संयुतम् ।
मदनं पुटपाकं च पूवव ारये मात् ॥ ३,५.११ ॥
तेनैव मधु ना े न शु ं हाटकप कम् ।
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िल ा िल ा पुटैः प ा ाव ु ङ्कुमसंिनभम् ॥ ३,५.१२ ॥
एत णशतां शेन िसत ण तु वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं र वगण सेचयेत् ॥ ३,५.१३ ॥
{िसत ण => गो ् }
वै ा ं नागचूण च पु टा ं पूवव ृ तम् ।
शतां शे नैव वे धंतु िसतहे मेन पू ववत् ॥ ३,५.१४ ॥
लेपना ुटपाका िद ं भवित कां चनम् ।
{िसत ण => गो ् }
माि क समां शेन राजावत िदन यम् ॥ ३,५.१५ ॥
मातुलु वैम तेन प ािण लेपयेत् ।
पू वा िसत ण द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,५.१६ ॥
पु नल ं पुनः पा ं स धा कां चनं भवेत् ।
{िस े र्=> गो ् }
राजावत च िस दू रं पारावतमलं समम् ॥ ३,५.१७ ॥
अशी ंशेन कु ते ण रौ ं च पू ववत् ।
{िमxतुरे ओf गो ् िस ेर्=> गो ् }
रसै ः िशरीषपु आ क रसैः समै ः ॥ ३,५.१८ ॥
भावये वारािण राजावत सुचूिणतम् ।
तेनैव शतमां शेन णतारं ु तं समम् ॥ ३,५.१९ ॥
वेधये ूवव ं िद ं भवित का नम् ।
{िमxतुरे ओf गो ् िस ेर्=> गो ् }
कङ्कु ं िवमला ता ं रसकं दरदं िशला ॥ ३,५.२० ॥
राजावत वालं च का ीगै रकट णम् ।
सै वं चूणये ु मशी ंशेन वापयेत् ॥ ३,५.२१ ॥
ु ते समे णतारे पूवव ेचये मात् ।
ि वारं वापये देवं िद ं भवित का नम् ॥ ३,५.२२ ॥
{बीज:: प :: ोदु तओन्}
गै रकं च वालं च काकमा ा वैः समम् ।
यामं म तु त ु द् ा आर ो लकैः पुटेत् ॥ ३,५.२३ ॥
इ ेवं तु ि धा कुया दनं पुटपाचनम् ।
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तदध िहङ्गु लं शु ं ि ात मदयेत् ॥ ३,५.२४ ॥
काि कैयाममा ं तु पुटेनैकेन पाचयेत् ।
अ क भागैकं भागा ा र हाटकम् ॥ ३,५.२५ ॥
अ मूषागतं ातं समादाय िवचूणयेत् ।
पू वव ूवक े न द् ा दे यं पुटं पुनः ॥ ३,५.२६ ॥
एवं चतुःपुटैः प ं ण गु ािनभं भवेत् ।
प बीजिमदं िस ं त मिण योजयेत् ॥ ३,५.२७ ॥
{िसत ण => गो ् }
अनेन षोडशां शेन िसत ण तु वेधयेत् ।
सेचये ु ङ्कुणीतैले र वगण वािपतम् ॥ ३,५.२८ ॥
पु नव ं पु नः से ं षोडशां शेन बु मान् ।
एवं वार यं वे ं िद ं भवित का नम् ॥ ३,५.२९ ॥
{गो ् :: र न:: दशवण}
पू व प बीजेन वेधयेद वगकम् ।
त ण दशवण ा ुटे द े न हीयते ॥ ३,५.३० ॥
{गो ् :: र ी (र न)}
िन ाः षोडश तु सूतिहङ् गुलग कम् ।
ट णं च तथैकैकं यो ं िन चतु यम् ॥ ३,५.३१ ॥
सवमेति नं म ि धार ु योऽ तम् ।
िन मा ां वटीं कृ ा े े ण ु ते ि पेत् ॥ ३,५.३२ ॥
एकैकं िन मा ं तु मू षाम े िदनं धमेत् ।
जीण जीण पु नदया एवं सवाः दापयेत् ॥ ३,५.३३ ॥
गु ावण भवे ण ातेयं हे मर का ।
{गो ् :: र न:: अ वण => दशवण}
अ वणसुवण ािवत दशां शतः ॥ ३,५.३४ ॥
ि पे ायते स ं दशवण तु शोभनम् ।
{गो ् :: र न:: अ वण => दशवण}
ता तु ेन नागे न शोधये मनेन च ॥ ३,५.३५ ॥
ता तु ं शु हे म समाव तु प येत् ।
इि का तुवरी चै व खिटका लवणं तथा ॥ ३,५.३६ ॥
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गै रकं भागवृ ां शमारनालेन पे षयेत् ।
तेन िल ा पू वप ं द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,५.३७ ॥
एवं पु नः पु नः पा ं याव णावशे िषतम् ।
त ण ता संयु ं समाव तु प येत् ॥ ३,५.३८ ॥
पू वव ुटपाकेन पचे णावशे िषतम् ।
इ ेवं षड् गुणं ता ं ण बा ं मेण तु ॥ ३,५.३९ ॥
त व जायते िद ं प रागसम भम् ।
षट् ि ंशां शेन तेनैव अ वण तु वेधयेत् ॥ ३,५.४० ॥
त ण जायते िद ं दशवण न संशयः ।
{गो ् :: र न:: अ वण => दशवण}
समं ता ं ता चूण ता ाध लोहचूणकम् ॥ ३,५.४१ ॥
क ा ावैः णं म घम तेनैव भावयेत् ।
एवं वारां तुःषि तः शु ं िवचूणयेत् ॥ ३,५.४२ ॥
षोडशां शेन तेनैव अ वण तु वेधयेत् ।
त ण जायते िद ं दशवण न संशयः ॥ ३,५.४३ ॥
{गो ् :: र न:: अ वण => दशवण}
रसकं घोषता ं च काचं ेतं नृकेशकम् ।
पलािन प प ैव े कं चूणये ृथक् ॥ ३,५.४४ ॥
रसका गु णं यो ं ती णचूण पुन तः ।
ग कं रसकं कां माि कं चा िन कम् ॥ ३,५.४५ ॥
िवंशिन ं धू मसारं सवमेति नाविध ।
म ज ीरजै ावै ः कषाशं वटकीकृतम् ॥ ३,५.४६ ॥
को ीय े हठा ा ं याव ा ावशेिषतम् ।
षड् गुणं त ता सीसे वा ं धम मन् ॥ ३,५.४७ ॥
षट् ि ंशां शेन तेनैव अ वण तु वेधयेत् ।
दशवण भवे ु ना काया िवचारणा ॥ ३,५.४८ ॥
{चो े र्:: रे मोिव कािलका}
अथा च ता नागशु कारयेत् ।
िनगु कारसेनैव प ाश ारढालनम् ॥ ३,५.४९ ॥
कु ा रसे नैव स वारं तु ढालनम् ।
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िनशायु े न त े ण स वारं तु ढालनम् ।
एवं ता ं ु तं ढा ं कािलकारिहतं भवेत् ॥ ३,५.५० ॥
{चो े र्, िस े र्, गो ् => गो ् }
एत ा ं ि भागं ा ागाः प ैव हाटकम् ।
रौ ं भाग यं शु ं सवमावतये तः ॥ ३,५.५१ ॥
जायते कनकं िद ं पुरा नागाजुनोिदतम् ।
{गो ् :: र न:: Vएब े गुं श् wएइ Fअ ुfएन्}
अ ो का ं ा आर ोपलचूणकम् ॥ ३,५.५२ ॥
अ ो बीजचूण तु ल ा ोप र ि पेत् ।
तद ारान् समादाय शीतलां पुनधमेत् ॥ ३,५.५३ ॥
अ ो बीजचूण तु ि ा व ेण ब येत् ।
तद् धू मैः णप ािण दशवणािन धूपयेत् ॥ ३,५.५४ ॥
ाविय ा ि पे ैले पु जीवो ते पुनः ।
एवं वार ये ि े वधते वणक यम् ॥ ३,५.५५ ॥
अ ा यु िवभवैः सुखसा योगै र ा कमिविधना ब िभिवशे षैः ।
लाभाथपाददशमां शकरोपदे शः ो ो मया सकललोकिहताय स म् ॥ ३,५.५६ ॥

३, ६
नानार सुपीतपु िनचयादादाय सारं िनजम् ।
त ोिधतप गं ु तमतः सं ढा ं वारं शतम् ।
प ा नवेधनं च िविधना च ाकता यत् ।
त व गु शा तः मितना संक ते सां तम् ॥ ३,६.१ ॥
{मेचुय्:: र पारद:: ोदु तओन्}
ता ग िप ी या ग जारणविजता ।
त ाः षोडशभागा वै भागैकं मृतव कम् ॥ ३,६.२ ॥
दे वदा ाः शङ्खपु ा वैम िदन यम् ।
पचे पय थं पु टैकेन समु रे त् ॥ ३,६.३ ॥
यामै कं पू वजै ावैम त ूवव ुटेत् ।
एवं स पु टैः प ो यामं म तै वैः ॥ ३,६.४ ॥
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िदनै कं पातनाय े पाचये घुनाि ना ।
पु नम पु नः पा ं यावदू न ग ित ॥ ३,६.५ ॥
अधोय े यदा ित े दा ा पारदः ।
{लेअद् => गो ् }
र पारदभागैकं यं कृ ा स कम् ॥ ३,६.६ ॥
ट ण च भागैकं सव म िदनाविध ।
व ी ीरै ु त ं द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,६.७ ॥
पु नम पु नः पा मेवं वारां तुदश ।
षोडशां शेन नाग वेधे द े च का नम् ॥ ३,६.८ ॥
जायते िद पा ं दे वाभरणमु मम् ।
{लेअद् => गो ् }
शाकिकंशुककोर वैः कङ्गुिणतैलतः ॥ ३,६.९ ॥
मदये ागचूण तु िदनं संपुटगं पचेत् ।
स जपुटेनैव म पा ं पुनः पुनः ॥ ३,६.१० ॥
च ा रं श ुटैः िस ं िद ं भवित का नम् ।
{लेअद् => गो ् }
रसकं कुङ् कुमं तु ं बालव पुरीषकम् ॥ ३,६.११ ॥
पीता कं िवषं तु ं मातुलु वैिदनम् ।
मिदतं छायया शु ं मधुना सह क येत् ॥ ३,६.१२ ॥
तेन नाग प ािण िल ा शो ािण छायया ।
अ मूषागतं ातं शाकप वे ततः ॥ ३,६.१३ ॥
सेचयेदु रे ा कटं ावये ुनः ।
शाकप वै ः से ं पुन ा ं च सेचयेत् ॥ ३,६.१४ ॥
इ ेवं स धा कुया ुनः प ािण कारयेत् ।
लेपये ूवव ो ं द् ा धा ं च पू ववत् ॥ ३,६.१५ ॥
सेचनं ावणं चैव स वारािण कारयेत् ।
इ ेवं स धा कुया ेपािद ावणा कम् ॥ ३,६.१६ ॥
त ागं जायते िद ं जा ूनदसम भम् ।
{लेअद् => गो ् }
द ं तु चु पाषाणमारनाले िविनि पेत् ॥ ३,६.१७ ॥
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मृ ा े लोिलतं था ं िदवारा ं य तः ।
त ं ाहयेद् ावं तद् ावैः शाककुड् मलान् ॥ ३,६.१८ ॥
पे षये ेन क े न नागचूण िवमदयेत् ।
यामा े शोषयेद्घम पुनम च शोषयेत् ॥ ३,६.१९ ॥
इ ेवं दशधा कुया ोलं िनि पे ुनः ।
शाकद सा गभ तेनैव रोधयेत् ॥ ३,६.२० ॥
मृदा िल ं तु त ु ं स जपुटे पचेत् ।
समु द्धृ भवे ीतं नं चा क ते ॥ ३,६.२१ ॥
{लेअद् => गो ् }
गोमू ैः ालयेदादौ भूनागा ीवसंयुतान् ।
सौवीरा नमेतेषु तु ं ि ा िवमदयेत् ॥ ३,६.२२ ॥
िदनै कं मिहषीमू ैजातं गोलं समु रे त् ।
त ा ातालय ेण ा ं तैलं य तः ॥ ३,६.२३ ॥
त ं ैले पू वनागमथवा शु नागकम् ।
ािवतं ािवतं े मेकिवंशितवारकम् ॥ ३,६.२४ ॥
त ागं जायते िद ं जा ूनदसम भम् ।
{लेअद् => गो ् }
शु नाग चूण तु समं भूनागचूणकम् ॥ ३,६.२५ ॥
शाकिकंशुककोर पु ाणां ाहये सम् ।
यथालाभेन तद् ावैिदनमे कं िवमदयेत् ॥ ३,६.२६ ॥
अंधमू षागतं धा ं तत ूण तु कारयेत् ।
पू वव िदतं धा मेवं कुया स धा ॥ ३,६.२७ ॥
जायते कनकं िद ं त ागं दे वभूषणम् ।
{चो े र्=> गो ् }
शु नागपलैकेन मू षा काया सुवतुला ॥ ३,६.२८ ॥
पलं शु रसं त ां ि पे ं पल यम् ।
तां मू षां मृ ये पा े धारयेदातपे खरे ॥ ३,६.२९ ॥
िदनं ज ीरनीरे ण काकमाची वैिदनम् ।
कासमदरसै ाहो िदनं ध ूरजै वैः ॥ ३,६.३० ॥
मेण भावयेदेवं घम िदनचतु यम् ।
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मृ ा ा वमुद्धृ यथा िकंिच ग ित ॥ ३,६.३१ ॥
िप ा ध ूरजै ावैः कर तु बीजकम् ।
तेनैवाङ् गु लमा ं तु मू षागभ लेपयेत् ॥ ३,६.३२ ॥
पू व िप ं ि पे पलैकं चाथ ग कम् ।
भूनागानां वं त िनि पेि प कम् ॥ ३,६.३३ ॥
िवधाय लेपक े न ततो मू षां िन च ।
भूधरे िदनमे कं तु करीषा ौ िवपाचयेत् ॥ ३,६.३४ ॥
ा शीतं समु द्धृ मूषायां पूवव पेत् ।
लेपं ग ं च भूनागं पू वव पुटे पचेत् ॥ ३,६.३५ ॥
एवं िवं शगु णं याव ाय ग ं सुसािधतम् ।
साध पल यं तालं रसकं चािप त मम् ॥ ३,६.३६ ॥
पलै कं ट णं िप ा ि धा कुया यं पृथक् ।
काचकू रे ि ा तालकाध ततः ि पेत् ॥ ३,६.३७ ॥
रसकं ट णं प ा ं पूवरसं पुनः ।
ट णं रसकं तालं मा ा ुन यम् ॥ ३,६.३८ ॥
काचकू ा मुखं दीपत ं ा न वे येत् ।
अथवा काचकीलेन द् ा मृ वणेन च ॥ ३,६.३९ ॥
कूिपकां च मृ दा ले सव ाङ्गुलमा कम् ।
तां शु ां भूधरे य े ि ा पूव च खपरम् ॥ ३,६.४० ॥
द ा मृ दा िलपे ंिधं दे यं गजपु टं पुनः ।
ा शीतं समु द्धृ बिलं पूजां च कारयेत् ॥ ३,६.४१ ॥
चतुःषि तमां शेन ु तं शु ं तु वेधयेत् ।
ण भवित पा ं िस योग उदा तः ॥ ३,६.४२ ॥
{च ाक => गो ् }
पलािन दश ग सूतक ैकिवंशितः ।
महाकाल बीजो तैलं प पलं भवेत् ॥ ३,६.४३ ॥
सव ि घटे द् ा पाचये ृदुवि ना ।
माषिप लेपेन यथा धू मो न ग ित ॥ ३,६.४४ ॥
स सू तो जायते खोट ाक ािवते ि पेत् ।
सह ां शेन तेनैव िद ं भवित का नम् ॥ ३,६.४५ ॥
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{चो े र्=> गो ् }
पारदं गंधकं तु ं दे वदाली वैिदनम् ।
मिदतं तेन ता प लेपं तु कारयेत् ॥ ३,६.४६ ॥
आव चा मूषायां समु द्धृ ततः पुनः ।
शाकवृ प ाणां कोमलानां वं हरे त् ॥ ३,६.४७ ॥
तद् वे पू वशु ं तु ािवतं ािवतं ि पेत् ।
इ ेवं शतधा कुयाि ं भवित का नम् ॥ ३,६.४८ ॥
{चो े र्=> गो ् }
पीतग कचूण तु नागव ा वै हम् ।
भािवतं ते न ता प लेपं तु कारयेत् ॥ ३,६.४९ ॥
शु ं द् ा पुटे प ादार ोपलकैः शु भैः ।
शाकवृ चा म वै र ा मारकैः ॥ ३,६.५० ॥
पू वता प ािण क े नानेन लेपयेत् ।
द् ा ती ाि ना धा मेवं वारशते कृते ॥ ३,६.५१ ॥
त ा ं जायते ण जा ूनदसम भम् ।
{चो े र्=> गो ् }
का नीमूलचूण तु ह रतालं मनःिशला ॥ ३,६.५२ ॥
ट णं माि कं तु ं वासापु वै हम् ।
मिदतं लेपये ेन ता पा ं सुशोिधतम् ॥ ३,६.५३ ॥
शनै म ाि ना ता ं शु लेपं च दापयेत् ।
पु न ा ं पुनल ं स धे ं य तः ॥ ३,६.५४ ॥
तत ी ाि ना धा ं जायते का नं शुभम् ।
{चो े र्, िस े र्=> गो ् }
तालं ता ं दरदकुनटी ं सू तकं साधभागम् ॥ ३,६.५५ ॥
ख े कृ ा ि िदनमिथतं काकमा ा वेत् ।
तेनाले ं रिवशिशदलं खपरे वि प म् ॥ ३,६.५६ ॥
शु ातीतं भवित कनकं सौबलं पा कानाम् ।
{चो े र्=> गो ् }
ालामु खी वैम पलैकं शु पारदम् ॥ ३,६.५७ ॥
िदना े िनि पे ादां शं मृतम कम् ।
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ता चूण पादां शं पादां शं फु तो रका ॥ ३,६.५८ ॥
सव ालामुखी ावैमदयेि नस कम् ।
त ोलं व मूषायां द् ा ती ाि ना धमे त् ॥ ३,६.५९ ॥
त ोटं भागमे कं तु शु ता ं चतु यम् ।
अंधमू षागतं धा ं समु द्धृ ततः पुनः ॥ ३,६.६० ॥
ा ं कटमूषायां पु जीवो तैलके ।
ढालये पु न ा मेवं कुया स धा ॥ ३,६.६१ ॥
जायते कनकं िद ं ना काया िवचारणा ।
{चो े र्=> गो ् }
ग कं ेतपालाशफल ावैिवभावयेत् ॥ ३,६.६२ ॥
शतवारं य ेन शो ं पे ं पुनः पुनः ।
शतवारं य ेन ते न प ािण लेपयेत् ॥ ३,६.६३ ॥
स ु ता द् ा गजपु टे पचेत् ।
समु द्धृ पु नधा ं ततः प ािण कारयेत् ॥ ३,६.६४ ॥
पु नल ं पुनः पा ं पुनरावतये मात् ।
एवं ि स धा कुयाि ं भवित का नम् ॥ ३,६.६५ ॥
{िस े र्, चो े र्=> अ वण गो ् }
भागा ादश तार शु भागषोडश ।
आव कारये ं िल ा द् ा पुटे पचेत् ॥ ३,६.६६ ॥
मिह ीप िनयासैरेवं वारािण षोडश ।
रसग िशला भागा मवृ ा िवमदयेत् ॥ ३,६.६७ ॥
िदनम ोलतैलेन पू वव मेण तु ।
िल ा द् ा धमे ाढं पु नः प ं च कारयेत् ॥ ३,६.६८ ॥
पु नल ं पुनःपा ं याव ां ं यं जेत् ।
अ वण भवे े म ना काया िवचारणा ॥ ३,६.६९ ॥
{मेचुय्=> गो ् }
औषधी क णी नाम ावृट्काले जायते ।
नीलपु ा ेतप ा िप लाितरसा तु सा ॥ ३,६.७० ॥
तद् वं पारदे शु े धा माने िविनि पेत् ।
व मू षा थते चैव याव िदनाविध ॥ ३,६.७१ ॥
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जायते कनकं िद ं रस एव न संशयः ।
{मेचुय्, लेअद् , गो ् => गो ् }
पलं सूतं पलं ग ं कृ ो वै हम् ॥ ३,६.७२ ॥
मिदतं व मूषायां द् ा व ं िपधाय च ।
िदना े त मुद्धृ त च पाचयेत् ॥ ३,६.७३ ॥
एवं स िदनं कुया ृतो भवित वै रसः ।
त सं प गं ण च ाकव ये मात् ॥ ३,६.७४ ॥
समां शं चा तं धा ं िद ं भवित का नम् ।
{च य }
गताम े रसमूषा बा गत सवतोऽि ः ॥ ३,६.७५ ॥
च य िमदं ो ं सवशा ाथकोिवदै ः ।
{चो े र्=> गो ् }
माि कं रसकं तु ं रसकाध च सै वम् ।
मातुलु ै िदनं म मृ ा े पाचयेि नम् ॥ ३,६.७६ ॥
याव ु ङ्कुमवण ा ाव ु ां िवपाचयेत् ।
िसता ौ े ण सं यु ं त ं मदयेि नम् ॥ ३,६.७७ ॥
पु नमृ परे प ा ो ीरे ण समायुतम् ।
चालयन् िदनमे कं तु अवताय िवलेपयेत् ॥ ३,६.७८ ॥
शु ािन शु प ािण द् ा ती ाि ना धमे त् ।
ततः प ीकृतं ले ं त ा ं ढाि ना ॥ ३,६.७९ ॥
इ ेवं च पु नः कुया ीतवण भवे ु तत् ।
मुिनपु ै हं भा ा अितर ा मनःिशला ॥ ३,६.८० ॥
अनया पूवशु ं तु प ं कृ ा लेपयेत् ।
अ मूषागतं ातं कङ्गुणीतैलके ि पेत् ॥ ३,६.८१ ॥
इ ेवं तु ि धा कुयाि ं भवित का नम् ।
{तारा र => गो ् }
अनेनैव कारे ण तारा र ं तु र येत् ॥ ३,६.८२ ॥
जायते कनकं िद ं जा ूनदसम भम् ।
{सु ल्fउर् :: िप ी}
शु सू तपलकं तु कषकं ग क च ॥ ३,६.८३ ॥
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ि ख े िविनि दे वदालीरस ुतम् ।
मदये ु कराङ्गु ा जायते ग िपि का ॥ ३,६.८४ ॥
{मेचुय्(खोट), च ाक => गो ् }
धा ा क भागै कं भागा ौ शु पारदम् ।
कु गोलकसंयु ं मदना ि का भवेत् ॥ ३,६.८५ ॥
एत ि यं म ज ीरो ै वैिदनम् ।
पालाशमूल ाथेन मदये िदन यम् ॥ ३,६.८६ ॥
मूलं गुडं गु ामू णा ट णकं समम् ।
िप ा ौ े ण संयु ं पूविप ं िवलेपयेत् ॥ ३,६.८७ ॥
द् ा ती ाि ना धा ं खोटो भवित त सः ।
पा ं कटमू षायां काचं ट णकं ि पेत् ॥ ३,६.८८ ॥
एवं पु नः पु नः शो ं याव वित िनमलम् ।
तत कटं धा ं द ा नागं पुनः पुनः ॥ ३,६.८९ ॥
ि गुणं वाहयेदेवं रसराज प गम् ।
कृ ा ैः पुिटतैरेव त ोटं र ये मात् ॥ ३,६.९० ॥
मूषायां धा मानं त तवारं पुनः पुनः ।
द ा द ा कं कृ ं रि तो जायते ुवम् ॥ ३,६.९१ ॥
सह ां शेन तेनैव च ाक का नं भवेत् ।
{मेचुय्(खोट), लेअद् => गो ् }
ता ग िप ी या ग जारणविजता ॥ ३,६.९२ ॥
पलै कं मदये ा ज ीराणां वैिदनम् ।
ाथै हं प ा मं गुडट णम् ॥ ३,६.९३ ॥
ऊणा गु ां ि पे वमेक मदयेत् ।
छायाशु ां वटीं कुया हदि गतां धमेत् ॥ ३,६.९४ ॥
तं खाठं शोधये ा ेतट णकाचकैः ।
शोधये मनेनैव खोटो भवित िनमलः ॥ ३,६.९५ ॥
तं खोटं कुिटलं ग ं ितकष लेपयेत् ।
अ मूषागतं धा ं याव ोटावशे िषतम् ॥ ३,६.९६ ॥
अनेन मयोगेन व ं िनवा षड् गुणम् ।
ततो ग ं च नागं च वाहये षड् गुणं पुनः ॥ ३,६.९७ ॥
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शु चूण पलैकं तु िस चूणन संयुतम् ।
द् ा तं च धमे ोटं गंधकं तेन मदयेत् ॥ ३,६.९८ ॥
द् ा गजपु टे प ादे वं वारां तुदश ।
अनेन पू वव ोटं ािवतं योजये नैः ॥ ३,६.९९ ॥
याव ु ङ्कुमवण ा ाव ं ि प पन् ।
ततः ण च ग ं च खोटं तु ं पृथ ृथक् ॥ ३,६.१०० ॥
ततो द् ा धमे ी ं याव ोटावशे िषतम् ।
इ ेवं ि गुणं वा ं ण ग कसंयुतम् ॥ ३,६.१०१ ॥
पु नः णन तु ेन समावत तु कारयेत् ।
पु नि गुणहे ा तु ि गुणेन ततः पुनः ॥ ३,६.१०२ ॥
ि धैव सा रतः सू तः सह ां शेन िव ते ।
ु तं शु ं न संदेहो िद ं भवित का नम् ॥ ३,६.१०३ ॥
{गो ् :: र न:: िसत ण => षड् वण}
पू व य ोिधतं खोटमाव णतु कम् ।
सू चूण ततः कृ ा ि गुणे शु पारदे ॥ ३,६.१०४ ॥
द ा िन मूषायां ेदये ृदुवि ना ।
त ैव वते गभ ताव े ं य तः ॥ ३,६.१०५ ॥
अथवा दोिलकाय े ेदयेद् ु तसूतकम् ।
अनेन शतमां शेन िसतं ण िवलेपयेत् ॥ ३,६.१०६ ॥
ि िदनं दोिलकाय े अकप ै वेि तम् ।
काि कैः ेदये ं तु अ मूषागतं धमेत् ॥ ३,६.१०७ ॥
ण भवित पा ं षड् वण षणं परम् ।
{गो ् :: र न:: => षड् वण}
शोिधतं सूतखोटं च भागमे कं समाहरे त् ॥ ३,६.१०८ ॥
ण षोडशभागं ाद मूषागतं धमेत् ।
पू वव मयोगेन वेधये सगभकः ॥ ३,६.१०९ ॥
तेनैव शतमां शेन षड् वण पूवव वेत् ।
{र न:: लेअद् => चो ेर्=> िस ेर्=> गो ् }
अक ीरे ण धा ा ं यामं िप ा तथा येत् ॥ ३,६.११० ॥
कपोता े पु टे प ा ुनम पुनः पचेत् ।
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एवं िवं शपु टैः प ं तद ं षोडशां शकम् ॥ ३,६.१११ ॥
शु सू ते दात ं प मूषोदरे ण तत् ।
अकप वैः पूव द् ा े ं िदन यम् ॥ ३,६.११२ ॥
तुषाि ना य ेन समुद्धृ ाथ िनि पेत् ।
त ं वं चैव द ा त चे हम् ॥ ३,६.११३ ॥
इ ेवं जारये ूते याव ु ा कं भवेत् ।
ितलपण रसे नैव त ूतं चा कं पुनः ॥ ३,६.११४ ॥
मदये ख े तु याव वित गोलकः ।
पृ थ ूतेन तु ेन ग िप ी ं तु कारयेत् ॥ ३,६.११५ ॥
ता ग िप ी या ग जारणविजता ।
त ी णिप ी च रसा ं गोलकं तथा ॥ ३,६.११६ ॥
समां शं ि तयं म वै ः कापासजैिदनम् ।
त ोलं वतुलं कृ ा व े बद् ाथ शोषयेत् ॥ ३,६.११७ ॥
पाचये तैलं तु याव ु ङ्कुमसंिनभम् ।
संजातं त मुद्धृ िप ा िनगु जै वैः ॥ ३,६.११८ ॥
तेनैव चा मां शेन नागप ािण लेपयेत् ।
िप ा कापासप ािण त े न च लेपयेत् ॥ ३,६.११९ ॥
नागप ािण द् ाथ भूधरा े पुटे पचेत् ।
समु द्धृ पु नल म मां शेन तेन वै ॥ ३,६.१२० ॥
कापासप क े न िल ा द् ा पुटे पचेत् ।
ऊ ाधः प रवतन अहोरा ा मु रे त् ॥ ३,६.१२१ ॥
अ मां शं पु नद ा पूवक ं च मदयेत् ।
िदनं िनगु जै ावै ोलं लेपये िहः ॥ ३,६.१२२ ॥
कापासप क े न द् ा गजपु टे पचेत् ।
एवं पु नः पु नः कुया दनं पुटपाचनम् ॥ ३,६.१२३ ॥
ि यते कुङ्कुमाभं त ागं दशपुटैः मात् ।
अनेन चा मां शेन ु तं शु ं तु वेधयेत् ॥ ३,६.१२४ ॥
तेन शु े न तारं तु अ मां शेन वेधयेत् ।
जायते कनकं शु ं दे वाभरणमु मम् ।
नागर निमदं िवशेषतः शु सूतरिवच वेधनम् ।
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धमकामसुखभाजनै जनैः सा ताम खललोकर णे ॥ ३,६.१२५ ॥

३, ७
धातुस युतिपि का म नं च िनगडे न लेपनम् ।
खोटब कृतिव ु ितं तथा वेधयु र खला िनग ते ॥ ३,७.१ ॥
{िपि गोलम्}
िद ौषध वैम त ख े िदन यम् ।
शु ं सूतं ततो घम शो ं ं समाहरे त् ॥ ३,७.२ ॥
णनागाकका ं च ती णं व ं च कम् ।
यथे ैकं िवचू ादौ ोमस मथािप वा ॥ ३,७.३ ॥
पू वसूतेन संतु ं यामम ेन मदयेत् ।
महारसा कादे कं सू ततु ं िविनि पेत् ॥ ३,७.४ ॥
िद ौषधी वैरेव यामा ातपे खरे ।
मदये के गाढं त ोलं व वेि तम् ॥ ३,७.५ ॥
ग तैले िदनं प ा तो व ा मु रे त् ।
िपि गोलिमदं ातं तथा मतमु ते ॥ ३,७.६ ॥
{िपि गोल}
पू व य िदतं सू तं त भाग यं भवेत् ।
नाग यं यथे ैकं त ागं िविनि पेत् ॥ ३,७.७ ॥
वै ा ं कु गोलं च िद ौषिध वं तथा ।
म याम यं ख े छायाशु ं तु गोलकम् ॥ ३,७.८ ॥
कृ ाथ ब ये े ग तैले िदनं पचेत् ।
व म ा मुद्धृ िपि गोलिमदं भवेत् ॥ ३,७.९ ॥
{िपि गोल:: िनगड}
अथा िपि गोल िनगडः ो ते शुभः ।
गु ु लुं बीजािन तै ु ं चैव सै वम् ॥ ३,७.१० ॥
ु कपयसा म िनगडोऽयं महो मः ।
{िपि गोल:: िनगड}
पालाशं कोिकला बीजािन सै वं तथा ॥ ३,७.११ ॥
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उ नीिलजै ावै म ः ाि गडो मः ।
{िपि गोल:: िनगड}
अ कं सै वं ता ं वालूमृ ोहिक कम् ।
ु कपयसा िप ं यामा े िनगडो भवेत् ॥ ३,७.१२ ॥
{िपि गोल:: िनगड}
वाकुची ध ूरबीजािन चा वेतसम् ॥ ३,७.१३ ॥
काकिवट् कदलीक तालग मनःिशला ।
गु ु लुं प लोणािन गोिज ा कोिकला कम् ॥ ३,७.१४ ॥
ित कोशातकी नीली िवषमु ी वा णी ।
जीर यं ककटा थ ीरजोमू िमि तम् ॥ ३,७.१५ ॥
ु क ीरतै लै म याम यं ढम् ।
ं वाथ सम ं वा िनगडोऽयं महो मः ।
{मेचुय्:: खोट}
एते े केन त ोलं ले मङ्गुलमा कम् ॥ ३,७.१६ ॥
मूषायां िब मा ायां लोणं िकंिचदधः ि पेत् ॥ ३,७.१७ ॥
िल ं गोलं ि पे ामू लोणं च दापयेत् ।
द् ा मृ वणैः स ं सवतो द शङ्खकैः ॥ ३,७.१८ ॥
मूषाले पः कत ः छायाशु ं तु कारयेत् ।
करीषा ौ िदवारा ौ ि रा ं वा तुषाि ना ॥ ३,७.१९ ॥
मृदुना ेदये ा मुद्धृ ाथ लेपयेत् ।
स ङ्िनगडक े न पू वमूषां िनरोधयेत् ॥ ३,७.२० ॥
ऊ ाधो लवणं द ा द् ा ले ा च पू ववत् ।
छायाशु ं धमे ाढं रसो भवित खोटताम् ॥ ३,७.२१ ॥
सौवीरं ट णं काचं द ा द ा धमे द् ढम् ।
त ु ं जायते खोटमभी णं ना संशयः ॥ ३,७.२२ ॥
इ ेवं सवस ै िपि कां कारये ृथक् ।
पू वव मयोगेन खोटो भवित त सः ॥ ३,७.२३ ॥
{मेचुय्:: खोट}
भाग यं सुवण ि भागं पारद च ।
पू वव ारये ीं त ोटं च शोधयेत् ॥ ३,७.२४ ॥
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इ ेवं िपि खोटािन कृ ा सव योजयेत् ।
{िवडवटी}
त ोटं णसं तु ं समावत तु कारयेत् ।
माि कं का पाषाणं िशलाग ं समं समम् ॥ ३,७.२५ ॥
भूनागै मदये ामं चणमा वटीकृतम् ।
एषा िवडवटी ाता यो ा सव जारणे ॥ ३,७.२६ ॥
एकैकं वाहये ूते धा माने पु नः पुनः ।
एवं दशगुणं हे म जारये मेण तु ॥ ३,७.२७ ॥
काशमू षागभ तु सते वडवानलः ।
{मेचुय्:: र न, => शतवेिधन्}
माि कं दरदं ग ं राजावत वालकम् ।
िशला तु ं च कङ्कु ं समं चूण क येत् ॥ ३,७.२८ ॥
वगा ां पीतर ा ां कङ्गुणीतैलकैः सह ।
भावयेि वसा सूयतापे पु नः पुनः ॥ ३,७.२९ ॥
जा रतं सूतखोटं तु क े नानेन संयुतम् ।
वालु काह म थं ावसंपुटम गम् ॥ ३,७.३० ॥
ि िदनं पाचये ु ां क ं दे यं पुनः पुनः ।
रि तो जायते सूतः शतवेधी न संशयः ॥ ३,७.३१ ॥
तारे ता े भुज े वा च ाक वाथ योजयेत् ।
जायते कनकं िद ं जा ूनदसम भम् ॥ ३,७.३२ ॥
{ ु तसूत}
िपि खोटं सू चूण ीपु ेण तु भावयेत् ।
िदन यं खरे घम शु ौ वा नािलकेरजे ॥ ३,७.३३ ॥
मीना ी कदलीक ं ेता र ा पुननवा ।
िशलाजतु सिस ू ं नारीपु ेण मदयेत् ॥ ३,७.३४ ॥
पू वव ािवतं खोटं त े िविनि पेत् ।
पू वव ािवतं खोटं त ं िविनि पेत् ॥ ३,७.३५ ॥
मुखं त क े न द् ा िप ं च ब येत् ।
भूजप ं हं प ा ोलाय े सकाि के ॥ ३,७.३६ ॥
ु तं सूतं भवे ा ा ुन ं दापयेत् ।
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पू वव ािवतं खोटं खोटपादं पुनः पुनः ॥ ३,७.३७ ॥
िनि पे ूविप े तु त ाि न यम् ।
एवं पु नः पु नदयं िपि ं खोटं सुभािवतम् ॥ ३,७.३८ ॥
आरोट समं याव ाव े यं ु तं भवेत् ।
{ ु तसूत}
आ कं मू लकं शु ी लशु नं िहङ्गुमाि कम् ॥ ३,७.३९ ॥
ि ारं प लवणं का ी कासीसग कम् ।
अ वगण संयु ं म िप ं तु क येत् ॥ ३,७.४० ॥
त न् िप े यथा पूव ु तं सूतं तु कारयेत् ।
माजारी चे री गु ा कु ु टी ीरक कम् ॥ ३,७.४१ ॥
एतेषां िप म े तु पू वव ावये सम् ।
ु तसूतिमदं ातं सवकमसु योजयेत् ॥ ३,७.४२ ॥
{च ाक => गो ् (wइ ु तसूत)}
ु तसूत भागौ ावेकं कृ ा स कम् ।
भागं रसकस कृ ो वैिदनम् ॥ ३,७.४३ ॥
मिदतं कारये ोलं गोलपादं मृतं पिवम् ।
द ाथ मदये ामं सवमु वा रणा ॥ ३,७.४४ ॥
द् ाथ भूधरे प ा ुटैकेन समु रे त् ।
पू वाशं ु तसूतं तु तं द ा मदये ुनः ॥ ३,७.४५ ॥
ध ूरो वैयामं त ा भूधरे ।
इ ेवं स वारािण सूतं द ा पुनः पुनः ॥ ३,७.४६ ॥
भूधरे पाचये े भ ीभवित त सः ।
तेनैव शतभागेन ौ े ण सह पेषयेत् ॥ ३,७.४७ ॥
च ाकजातप ािण अ मूषागतं धमेत् ।
ण भवित पा ं जा ूनदसम भम् ॥ ३,७.४८ ॥
{लेअद् => गो ् }
त ग कं तु म मूषागतं धमेत् ।
वे ं तेन शतां शेन नागं भवित का नम् ॥ ३,७.४९ ॥
{च ाक => गो ् }
रसका कयोः स ं ु तं स ं समं समम् ।
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याणां पलमे कं तु िस चूणन संयुतम् ॥ ३,७.५० ॥
म मु क ावैिदनैकं चा तं धमेत् ।
त ोटं चूिणतं म मातुलु ा ग कैः ॥ ३,७.५१ ॥
द् ा गजपु टे प ादे वं वारां योदश ।
म म पचे ु द् ा आर ो लकैः मात् ॥ ३,७.५२ ॥
च ाकशतभागेन मधु ना ेन तेन वै ।
िल ा द् ा धमे ाढं ण भवित शोभनम् ॥ ३,७.५३ ॥
{चो े र्=> गो ् }
रसका कयोः स ं ु तसूतं च ट णम् ।
सवमेत मं म कृ ो वैिदनम् ॥ ३,७.५४ ॥
छायाशु ां वटीं कृ ा महदि गतां धमेत् ।
त ोटं शोधये ा तकाचेन ट णैः ॥ ३,७.५५ ॥
णन च समाव समेन जारये तः ।
पू वा िवडवटी या तु तामेकैकां दापयेत् ॥ ३,७.५६ ॥
धम कटमू षायां याव ूतावशेिषतम् ।
ततः शु सुवणन सारये ारणा यम् ॥ ३,७.५७ ॥
वे ं तेन शतां शेन शु ं भवित का नम् ।
{िस े र्=> गो ् }
भागै कं ु तसूत सारणाय के ि पेत् ॥ ३,७.५८ ॥
त ा तुगुणं नागं शु ं तद् ािवतं पृ थक् ।
त े िविनि जातं खोटं समाहरे त् ॥ ३,७.५९ ॥
त ु ं माि कं शु मेकीकृ िवमदयेत् ।
िदनं ध ूरजै ावैमृ ा े पाचये तः ॥ ३,७.६० ॥
याव ु ङ्कुमवण ा ाव ु ां समु रे त् ।
एत ैव पलैकं तु िस चूणन संयुतम् ॥ ३,७.६१ ॥
द् ा ाते भवे ोटं म ैमदयेि नम् ।
आर ो लकैरे व द् ा मधु पुटैः पचेत् ॥ ३,७.६२ ॥
अनेन मधु यु ेन तारप ािण लेपयेत् ।
द् ा धा ं पुनल ं ि िभवारै ु का नम् ॥ ३,७.६३ ॥
जायते िद पा ं स ं शं करभािषतम् ।
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माि क भावे तु वै ा ं वा योजयेत् ॥ ३,७.६४ ॥
{मृत लेअद् , िस ेर्=> गो ् }
ु तसूतं िहङ्गुलं च कङ्कु ं ग कं िशला ।
एकि ि चतु ःप पलािन मतो भवेत् ॥ ३,७.६५ ॥
गोिप ेन तु त व म यामचतु यम् ।
शु ािन नागप ािण सममानेन लेपयेत् ॥ ३,७.६६ ॥
द् ा गजपु टे प ा मुद्धृ ाथ मदयेत् ।
समे न पू वक े न द् ा त ुटे पचेत् ॥ ३,७.६७ ॥
एवं शतपु टैः प ो ि यते प गो ुवम् ।
अनेन शतभागे न तारवेधा ु का नम् ॥ ३,७.६८ ॥
{िस े र्(+ मृतनाग अ ो ् ) => गो ् }
तेन वा मृ तनागेन िप ेन लेपयेत् ।
समां शं णप ं तु द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,७.६९ ॥
नागं पुनः पु नदयमेवं दे यं पु ट यम् ।
अनेन मृ तहे ा तु ु तं तारं तु वे धयेत् ॥ ३,७.७० ॥
सह ां शेन त ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,७.७१ ॥
{मेचुय्:: खोटब }
वै ु व ा ु धा ा ं स धातपे ।
भावये ोटये ा षके ु तसूतके ॥ ३,७.७२ ॥
माषमा ं ि पेदेत ख े िवमदयेत् ।
गो नाकारमूषायां ि ा मृ ि ना पचेत् ।
वालु काय म े तु जीण वापं पुनः ि पेत् ।
इ ेवं जारये ु ं खोटब ो भवे सः ॥ ३,७.७३ ॥
{चो े र्=> गो ् }
अ ब माषैकं माषाध शु हाटकम् ।
शु सू त माषाध सवमेक मदयेत् ॥ ३,७.७४ ॥
ि िदनं मातुलु ा ैरेत े न लेपयेत् ।
कषकं नागप ािण वृि का ा था वैः ॥ ३,७.७५ ॥
िल ा त ातनाय े पाचयेि वस यम् ।
िप ा िदनाविध ॥ ३,७.७६ ॥
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अनेन तारप ािण कषमेकं लेपयेत् ।
पू वव ातनाय े पाचयेि वस यम् ॥ ३,७.७७ ॥
अनेनैव ु तं शु ं सह ां शेन वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,७.७८ ॥
{मेचुय्:: मारण:: wिहते चोलोउर् }
ीरे णो रवा ा िदनं शु पारदम् ।
मदये ख े व तं [... औ५ Zएइछे झ्] ॥ ३,७.७९ ॥
करीषा ौ िदवारा ौ ि िदनं वा तुषाि ना ।
समु द्धृ पु नम त ु द् ाथ पाचयेत् ॥ ३,७.८० ॥
त पु नः पा ं ि यते पा ु रो रसः ।
{च ाक => गो ् }
आ कं तुवरी िस ुकङ्गुणीतैलकं मधु ॥ ३,७.८१ ॥
अ वेतसमेतै ु त सं मदयेि नम् ।
गोलकं ब ये े दोलाय े हं पचेत् ॥ ३,७.८२ ॥
कङ्गु णीतैलम े तु ब ो भवित त सः ।
त सं हाटकं नागं समं द् ा धमे द् ढम् ॥ ३,७.८३ ॥
त ोटं सू चूण तु चूणाशं ु तसूतकम् ।
अ ैम भवे ोलं काि कैः ेदयेि नम् ॥ ३,७.८४ ॥
गंधक यो भागा गंधतु ं सुवचलम् ।
कृ ा कं तु भागैकं सव ेन पे षयेत् ॥ ३,७.८५ ॥
अनेन लेिपतं गोलमंधमू षागतं धमेत् ।
याव ूतावशे षं ा ाव ा ं पुनः पुनः ॥ ३,७.८६ ॥
पू वचूण पुनद ा त ाय मेण तु ।
इ ेवं हाटकं याव ा रतं ि गुणं भवेत् ॥ ३,७.८७ ॥
णन च समाव सारणा यसा रतम् ।
च ाक वेधये ेन शतां शा ां चनं भवेत् ॥ ३,७.८८ ॥
{चो े र्=> गो ् }
िप ीखोटसमं ण णतु ं च प गम् ।
का लोहं ोमस मेकैकं प गाधकम् ॥ ३,७.८९ ॥
एकीकृ धमे ाव ाव णावशे िषतम् ।
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द ा िवडवटीं चैव सारये ारणा यम् ॥ ३,७.९० ॥
शतां शेन ने नैव शु ं भवित का नम् ।
{मेचुय्:: ब :: खोट}
सुवण रजतं ता ं का ं ती णं च माि कम् ।
कृ ा क स ं च समं द् ा धमे द् ढम् ॥ ३,७.९१ ॥
त ोटं सू चूण तु पादां शं ु तपारदम् ।
द ाथ मदयेद ैयाव वित गोलकम् ॥ ३,७.९२ ॥
गोलक चतुभागा भागैकं मृतव कम् ।
मदये ख े तु िदनैकं क का वैः ॥ ३,७.९३ ॥
द् ाथ भूधरे प ाि ना े तु समु रे त् ।
त े ु तसूतं च पु नः क ासु मदयेत् ॥ ३,७.९४ ॥
पू ववद् भूधरे प ादे वं दे यं तु स धा ।
ु तसूतं मेणैव मदनं च पुटं तथा ॥ ३,७.९५ ॥
त गं धतु ं च ंधमूषागतं धमेत् ।
जायते खोटब ं तु र नं चा क ते ॥ ३,७.९६ ॥
{तारा र , च ाक, माि क => गो ् }
कृ ा स ं व ं च ं ं मेलापयेद् ु तम् ।
तु ां शमं धमू षायां ातं खोटं भवे ु तत् ॥ ३,७.९७ ॥
त ोटं पलमे कं तु िस चूणन संयुतम् ।
मदये ं धका ेन द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,७.९८ ॥
पु नम पु नः पा मेवं वारां तुदश ।
अनेन पू वखोटे तु ािवतं र ये मात् ॥ ३,७.९९ ॥
र ये तवारािण भवे ुं कुमसि भम् ।
सुवणन समाव सारये ारणा यम् ॥ ३,७.१०० ॥
सह ां शेन तेनैव तारा र ं च वेधयेत् ।
च ाक ता शु ं तु िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,७.१०१ ॥
{लेअद् , िस े र्=> गो ् }
ती णं शु ं समं चू व मूषा तं धमेत् ।
त ोटं पलमे कं तु िस चूणन संयुतम् ॥ ३,७.१०२ ॥
मदये ं धका ेन द् ा गजपु टे पचेत् ।
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पु नम पु नः पा मेवं वारां तुदश ॥ ३,७.१०३ ॥
त े यं ािवते ण शतवारं पु नः पुनः ।
प बीजं भवे ु ु तसूते समं िदनम् ॥ ३,७.१०४ ॥
मदयेद योगे न त भागचतु यम् ।
एवं व भागै कं त ख े िदनाविध ॥ ३,७.१०५ ॥
मदये का ावै ु द् ा भूधरे पचेत् ।
ु तसूतं पुन ु ं द ा म पुटे ततः ॥ ३,७.१०६ ॥
इ ेवं स धा दे यं ु तसूतं पुटा कम् ।
तत ं मदयेद ै द् ा मूषां पुटे था ॥ ३,७.१०७ ॥
पु नम पु नः पा ं ष ािधकशत यम् ।
पु टं दे यं य ेन जायते िस दू र भम् ॥ ३,७.१०८ ॥
सह ां शेन नाग ु त रजत च ।
दे यो वेधो भवे ण िद ाभरणमु मम् ॥ ३,७.१०९ ॥
{िस े र्=> गो ् }
गंधकं सू चूण तु चणका ेन भावयेत् ।
शतवारं य ेन ीपु ेण तु स धा ॥ ३,७.११० ॥
ु तपारदम े तु िकंिच पू रसं युतम् ।
गंधकं दापयेद्घम वापये ा ख के ॥ ३,७.१११ ॥
कपूरं गं धकं चै व िकंिच ं िच ुनः पुनः ।
ि स ाहं दात ं जायते ग िपि का ॥ ३,७.११२ ॥
कटु कोशातकीबीजं चा ालीक संयुतम् ।
े न पे िषतं तु ं िप ी ं तेन लेपयेत् ॥ ३,७.११३ ॥
बा े तु मृ ि का ले ा सवतोऽङ्गुलमा कम् ।
शोिषतं भूधरे प ादू ाधः प रवतयेत् ॥ ३,७.११४ ॥
जायते तं गोलं समु द्धृ ाथ तं पुनः ।
तु ां शे सं पुटे हे ि िल ा मूषा तं धमेत् ॥ ३,७.११५ ॥
अनेन चा मां शेन तारे वेधं दापयेत् ।
त ारं जायते िद ं जा ूनदसम भम् ॥ ३,७.११६ ॥
{च ाक => गो ् }
अथवा तं गोलं ण संपुटविजतम् ।
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त ैव भागा ारो भागै कं मृ तव कम् ॥ ३,७.११७ ॥
मदये का ावैिदनमेकं ततः पुनः ।
अ तं भूधरे प ा ाव ामचतु यम् ॥ ३,७.११८ ॥
समु द्धृ पु न ूवाशं पूवसूतकम् ।
द ा म पु टे दे वं कुया स धा ॥ ३,७.११९ ॥
त न् भ पलमेकं पारदं गंधक तु ।
अंधमू षागतं ातं त ोटं प गं समम् ॥ ३,७.१२० ॥
प ग समं ण याणां ि गुणं ि पेत् ।
ु तं च त वम वगण मदयेत् ॥ ३,७.१२१ ॥
िदना े व मू षायां द् ा धा ं य तः ।
जायते प गं ण यो ं जायते मात् ॥ ३,७.१२२ ॥
सारये ि धा हे म च ाक वेधये तः ।
सह ां शेन तेनैव िद ं भवित का नम् ॥ ३,७.१२३ ॥
{िसत ण => गो ् }
हे माकती णचूण च समं द् ा धमे द् ढम् ।
त ोटं भागमे कं तु ि भागं ु तसूतकम् ॥ ३,७.१२४ ॥
मदये ं धका ेन द् ा स ुटे पचेत् ।
पु नम पु नः पा मेवं वारां तुदश ॥ ३,७.१२५ ॥
अनेन शतमां शेन िसतहे म च वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं कङ्गुणीतैलसेचनात् ॥ ३,७.१२६ ॥
ब े ु ते रसवरे वरहे ि जीण ो मया दशगुणः सुखसा लाभः ।
व े मृ ते गगनस युते नराणां त ैव भू रगुिणतं फलम स म् ॥ ३,७.१२७ ॥

३, ८
{ितन् :: शोधन}
कापासाककर धूतमुिनजैभ ातगु ाि जैः ु ीपयसा च सूरणभवै ावै मूलैः फलैः

त ा ै ब त खपरगतं व ं िनिष ा ु याव िदनं तदे व िवमलं वादे सदा योजयेत्
॥ ३,८.१ ॥
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{ितन् :: शोधन}
अथवा व चूण तु माषैभ ातजैः फलैः ।
समं ख े िदनं म भ ाततैलसंयुतम् ॥ ३,८.२ ॥
त ं मािहषे े ि ा द् ा महापुटे ।
पचे ा मु द्धृ पुन मदयेत् ॥ ३,८.३ ॥
इ ेवं स धा कुया ोटं पाकं च मदनम् ।
त ं मलिनमु ं कमिण योजयेत् ॥ ३,८.४ ॥
{ितन् :: न}
ती णपाषाणस ं च ु तव े ु तं ि पेत् ।
चतुःषि तमां शेन मायाित िनि तम् ॥ ३,८.५ ॥
{ितन् => िस े र्}
ेता ं ेतकाचं च टं कणं शङ्खपु का ।
िवषं च तु तु ां शं चूण भा ं ि स धा ॥ ३,८.६ ॥
काकमाची वै ः ीरै ः ु क ातपे खरे ।
ु ते व े दात ं ितवापं च सेचयेत् ॥ ३,८.७ ॥
पु जीवो तैलेन स वारं पुनः पुनः ।
त ारं जायते िद ं याव ाकतारकम् ॥ ३,८.८ ॥
{ितन् => िस े र्}
ेता ं ेतकाचं च िवषसै वटं कणम् ।
ुही ीरै िदनं म े तव प कम् ॥ ३,८.९ ॥
ले ं पादां शक े न चां धमूषागतं धमेत् ।
आदाय ावयेद्भूमौ पूवतैलेन सेचयेत् ॥ ३,८.१० ॥
प ािदले पसे कं च स वारािण सेचयेत् ।
त ं जायते तारं शं खकु े दु सि भम् ॥ ३,८.११ ॥
{ितन् => िस े र्}
समं तालं िशलां िप ा दे वदा ा वैिदनम् ।
वै री रिलङ् ा िदनमेकं िवमदयेत् ॥ ३,८.१२ ॥
नागं व ं समं ा ं त ूण पलप कम् ।
पू वक े न संतु ं समालो ा तं पुटेत् ॥ ३,८.१३ ॥
एवं पु नः पु नः पा ं पूवक े न संयुतम् ।
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भवे षि पुटैः िस ं व करं परम् ॥ ३,८.१४ ॥
शतमां शेन दात ं वेधा ारं करो लम् ॥ ३,८.१५ ॥
{ितन् => िस े र्}
सूतकं तालमेकैकं नृ कपालं ि भागकम् ।
सवतु ं िवषं यो ं प ा ं र िच कात् ॥ ३,८.१६ ॥
िवषतु ं ि पे ूण व ी ीरे ण भािवतम् ।
मासमा ं िदवारा ौ त ापं षोडशां शतः ॥ ३,८.१७ ॥
द े वार यं व े तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.१८ ॥
{ितन् => िस े र्}
गोर ा ौषधी नाम नरमू ेण पेषयेत् ।
तेन िप यं कृ ा त ैक ोप र ि पेत् ॥ ३,८.१९ ॥
ार य चूण तु त ृ े व चूणकम् ।
ार यं ततो द ा िप ं त ोप र ि पेत् ॥ ३,८.२० ॥
मुखं बद् ा पुटे प ा ा शीतं समु रे त् ।
एवं वार यं कुया ारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.२१ ॥
वस े जायते सा तु गोर ा पीतपु का ।
त ा म मका ाध ेतकापासव वेत् ॥ ३,८.२२ ॥
वस पु कां वािप तदभावे िनयोजयेत् ।
बाला नाम समा ाता क ा धूलीसमा तथा ॥ ३,८.२३ ॥
{ितन् => िस े र्}
ेतपालाशपु ािण छायाशु ािण चूणयेत् ।
एकिवं शितवारे ण मे षी ीरे ण भावयेत् ॥ ३,८.२४ ॥
त ूण षोडशां शेन ु ते व े दापयेत् ।
तारं भवित पा ं शं खकु े दु सि भम् ॥ ३,८.२५ ॥
{ितन् => िस े र्}
त ु ं ह रतालं च मेषीदु ेन पे षयेत् ।
त ापं षोडशां शेन ु ते व े दापयेत् ॥ ३,८.२६ ॥
तारं भवित पा ं शं खकु े दु सि भम् ।
{ितन् => िस े र्}
त े ण तािन पु ािण भाविय ा ि स धा ॥ ३,८.२७ ॥
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तेन क े न व प ािण प रलेपयेत् ।
अंधमू षागतं धा मेवं कुया स धा ॥ ३,८.२८ ॥
त ारं जायते िद ं धमकामफल दम् ।
{ितन् => िस े र्}
रसो मू षकपाषाणं फट् िकरी नीलम नम् ॥ ३,८.२९ ॥
अग प िनयासैः सव म िदनाविध ।
भा म े िनधायाथ पाचये ीपवि ना ॥ ३,८.३० ॥
अग प िनयासं जीण जीण दापयेत् ।
िदना े त मुद्धृ ु ते व े दापयेत् ॥ ३,८.३१ ॥
ि ंशदं शेन त ारं जायते दे वभूषणम् ।
{ितन् => िस े र्}
तारे ण ं ये ं णन ं ि तं यथा ॥ ३,८.३२ ॥
अ ं भागौ ौ ि भागं शु पारदम् ।
अ ेन मदये ाव ाव वित गोलकम् ॥ ३,८.३३ ॥
मेष ङ् ा ु प ा ं ी ेन तु पे षयेत् ।
अनेन वे ये ोलं त िहिनगडे न च ॥ ३,८.३४ ॥
ेदािदधमना ं च कत ं हेमिपि वत् ।
उ रावा णी ीरै ोटं च लेपयेत् ॥ ३,८.३५ ॥
मूषाम े िनधायाथ तारं द ा समं समम् ।
द ा िवडवटीं चैव धमे ूतावशेिषतम् ॥ ३,८.३६ ॥
एवं पु नः पु न ा मेकिवंशितवारकम् ।
द ा समं समं जाय ि धा तारे ण सारयेत् ॥ ३,८.३७ ॥
इदमेव सह ां शं ु ते व े िविनि पेत् ।
त ं जायते तारं व ं िशवोिदतम् ॥ ३,८.३८ ॥
{ितन् => िस े र्}
र पारदभागैकं भागैकं शंखचूणकम् ।
े ता क स ं च स ाग यं भवेत् ॥ ३,८.३९ ॥
टं कण च भागैकं सवमेति न यम् ।
व ी ीरे ण सं म मेवं वारां तुदश ॥ ३,८.४० ॥
अनेन शतमां शेन ु तं व ं च वेधयेत् ।
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ते ना सं देह ारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.४१ ॥
{ितन् => िस े र्}
हे मसूता था जातं िप ीखोटं तु शोभनम् ।
तथैव तारसू तेन िप ीखोटं तु कारयेत् ॥ ३,८.४२ ॥
त ोटं तारव ं च स ं ेता जं समम् ।
जाय िवडवटी ं द ा याव ोटावशे िषतम् ॥ ३,८.४३ ॥
जारणेन ि धा साय ु ते शु े िनयोजयेत् ।
शतां शेन तु त ारं जायते शंभुभािषतम् ॥ ३,८.४४ ॥
{ितन् => िस े र्}
ु तं सूतं ती णचूण समां शं त ख के ।
टे ू छ ी वै म याव वित गोलकम् ॥ ३,८.४५ ॥
गोलक चतुभागा भागैकं मृतव कम् ।
त ख े िदनं म टे ू छ ीरसैनवैः ॥ ३,८.४६ ॥
अ तं भूधरे प ाि ना े त मु रे त् ।
पू वतु ं ु तं सूतं द ा म च पूववत् ॥ ३,८.४७ ॥
पू ववद् भूधरे प ािद ेवं स धा मात् ।
ु तसूतं दात ं मदनं च पुटं मात् ॥ ३,८.४८ ॥
अनेन षोडशां शेन ु तं व ं तु वेधयेत् ।
जायते िद पा ं तारं कु े दु सि भम् ॥ ३,८.४९ ॥
{ितन् => िस े र्}
षोडशां शेन य ं व ं त ापरो िविधः ।
त ु ं गं धकं द् ा ाते खोटं जायते ॥ ३,८.५० ॥
त ोटं ती णचूण च समभागं क येत् ।
ता ां तु ं ु तं सूतं त व त ख के ॥ ३,८.५१ ॥
मदये े ु ज ावैयाव वित गोलकम् ।
द् ाथ भूधरे प ादहोरा ा मु रे त् ॥ ३,८.५२ ॥
पू वाशं ु तसूतं च द ा त मदयेत् ।
तं द् ा च पु टे दे वं कुया स धा ॥ ३,८.५३ ॥
अंधमू षागतं धा ं त ोटं जायते रसः ।
तु े न ती णचूणन मदये ा तं धमेत् ॥ ३,८.५४ ॥
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अनेन मयोगेन ती णं दे यं पुनः पुनः ।
याव गु णं ती णं द ा द ा धमे तत् ॥ ३,८.५५ ॥
तं खोटं सारये ा ारे णैव ि धा मात् ।
ल ां शेनैव ते नैव व वेधं दापयेत् ।
शं खकु े दु संकाशं तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.५६ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
मधु संजीवनी ं िप ा गदभ तु मू तः ।
स ाहं तेन मू ेण भाविय ा ततः पुनः ॥ ३,८.५७ ॥
तेनैव मदये ूतं त ख े िदन यम् ।
त ु ं गं धकं द ा ंधमूषागतं धमेत् ॥ ३,८.५८ ॥
त ोटं जायते िद ं र नं त क ते ।
व ं ेता स ं च ं मेलापसंयुतम् ॥ ३,८.५९ ॥
मूषाम े तु त ोटं पलमा ं िवचूणयेत् ।
मदये ं धका ेन द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,८.६० ॥
पु नम पु नः पा मेवं वारां तुदश ।
अनेन पू वखोटं तु र ये वारकम् ॥ ३,८.६१ ॥
यथा व ा केनै व तथा नागा कैः पुनः ।
र ये वारािण सू चूण तु कारयेत् ॥ ३,८.६२ ॥
ु तसूतेन सं यु ं ावये ूवव मात् ।
ु त जारये ारं दोला ेदेन य तः ॥ ३,८.६३ ॥
ि षड् गुणं यदा तारं जीण भवित पारदे ।
सारये ारणा ः सह ां शेन वेधयेत् ॥ ३,८.६४ ॥
ु तं शु ं भवे ारं शंखकु े दु सि भम् ॥ ३,८.६५ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
ेता क स ं तु का स ं तथायसम् ।
व ं तारं च वै ां तं कद ं नागमे व च ॥ ३,८.६६ ॥
तु ां शमं धमू षायां ाते खोटं िवचूणयेत् ।
ु तसूतेन सं म यावद ेन गोलकम् ॥ ३,८.६७ ॥
गोलक चतुभागा भागैकं मृतव कम् ।
मदये ख े तु िदनैकं क का वैः ॥ ३,८.६८ ॥
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द् ाथ भूधरे प ादे वं कुया स धा ।
त ु ं गं धकं द ा चां धमूषागतं धमेत् ॥ ३,८.६९ ॥
रजतेन समाव सारणा यसा रतम् ।
सह ां शेन शु ु त ोप र दापयेत् ॥ ३,८.७० ॥
त ारं जायते िद ं पुटे द े न हीयते ॥ ३,८.७१ ॥
{चो े र्Oऋ ितन् => िस ेर्}
व े ण सा रतं य ु सूतभ पुरा कृतम् ।
तेनैव चा िप ेन तारप ं चतुगुणम् ॥ ३,८.७२ ॥
िल ा द् ा पुटे प ा मुद्धृ ाथ मदयेत् ।
पादां शं भ सूतं च द ा द् ा पुटे पचेत् ॥ ३,८.७३ ॥
एवं चतुःपुटैः प ं त ारं ि यते ुवम् ।
तेनैव षोडशां शेन ु तं ता ं तु वेधयेत् ।
अथवा ािवतं व ं तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.७४ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
तारव ारये ं तेन ता ं तु वेधयेत् ।
त ारं जायते िद ं षोडशां शे न सं शयः ॥ ३,८.७५ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
शु सूतसमां राजी ं मदये का वैः ।
ि िदनं त ख े तु त ूतं खपरोदरे ॥ ३,८.७६ ॥
चु ां च ाि ना पा ं ि पे का वैः ।
ि िदना े समुद्धृ सै वं त तुगुणम् ॥ ३,८.७७ ॥
द ा िवमदये ामं पातनाय के पचेत् ।
चतुयामा मु द्धृ ालयेदारनालकैः ॥ ३,८.७८ ॥
अधः थतं समाद ा शु ः ा ारदः शुभः ।
एत ूतं मृतं व ं ेता स ट णम् ॥ ३,८.७९ ॥
िवषं च तु तु ां शं तालस ं चतुःसमम् ।
म ु कस ा ां ख के िदवस यम् ॥ ३,८.८० ॥
त टीः काचकू ा ः ि ा कूपी ं मृदा िलपे त् ।
स वालु काय े ह ी ं म ाि ना पचेत् ॥ ३,८.८१ ॥
शु े ावे मुखं द् ा शनै यामा कं पचेत् ।
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ा शीतं समु द्धृ ु तं शु ं तु वेधयेत् ।
चतुःषि तमां शेन तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.८२ ॥
{ितन् + िस ेर्+ चो ेर्=> िस ेर्}
पलं सूतं पलं तालं ताल थानेऽथवा िशला ।
कृ ो वैम ि िदना े समु रे त् ॥ ३,८.८३ ॥
व मू षागतं द् ा च य े िदनं पचेत् ।
पु नम पु नः पा मेवं स िवधे कृते ॥ ३,८.८४ ॥
त ृ तं व ताराकः मे णावे ये मैः ।
द् ा ती ाि ना धा ं तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.८५ ॥
{चो े र्+ िस ेर्=> िस ेर्}
शु सू त यो भागा भागै कं ता प कम् ।
ी े मदये ामं जायते तारिपि का ॥ ३,८.८६ ॥
बीजा ु रवा ाः ी ेन तु पे षयेत् ।
तेनैव लेपये ी ं व मूषां िनरोधयेत् ॥ ३,८.८७ ॥
िदनै कं भूधरे प ा ुनिल ा च पाचयेत् ।
इ ेवं स धा पा ं िप ी ो भवेद् ढः ॥ ३,८.८८ ॥
ाि ंशां शेन तेनैव शु े वेधं दापयेत् ।
दशां शं च ि पे ारं रौ ं भवित शोभनम् ॥ ३,८.८९ ॥
{चो े र्+ िस ेर्=> िस ेर्}
ाटी शं खचूण तु गोमू ैः सारनालकैः ।
िप ा त म े तु त ं त ं िनिष येत् ॥ ३,८.९० ॥
शु प ं भवे ाव ीण त समु रे त् ।
म ा टं कणैः साध मूषाम े गतं धमेत् ॥ ३,८.९१ ॥
ताराधन समाव शु ं तारं भवे ु तत् ॥ ३,८.९२ ॥
{चो े र्:: दलयो }
अकापामागकदली ारम ेन लोिलतम् ।
तेन िल ं ता प ं धा ं मूषागतं पुनः ॥ ३,८.९३ ॥
प ं कृ ा िल ाथ त ा ं पुनः पुनः ।
इ ेवं स धा कुया ादे ा लयो कम् ॥ ३,८.९४ ॥
{चो े र्:: दलयो }
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अथवा ता प ािण सु त ािन िनषेचयेत् ।
लोणारनालम े तु शतधा पूवव वेत् ॥ ३,८.९५ ॥
पलाशमू लजं ारं फट् िकरी चा पेिषतम् ।
ता प ािण संिल ावये ये ुनः ॥ ३,८.९६ ॥
इ ेवं स धा कुया लयो ं भवे ु तत् ॥ ३,८.९७ ॥
{चो े र्+ िस ेर्=> िस ेर्}
सुशु ं तालकं सू तं सामु लवणं समम् ।
ि यामं मदये े नवभा गतं पचेत् ॥ ३,८.९८ ॥
म ा ौ चालये ाव ाव ृ ि भवे ु तत् ।
ततः समु लवणं तालां शं मदये ृथक् ॥ ३,८.९९ ॥
याव टिचटीश ो िनवतत समाहरे त् ।
चूिणतं मृ ये य े लवणाधमथो ि पेत् ॥ ३,८.१०० ॥
त ृ े पू वि तयं त े लवणाधकम् ।
ि ा मृ वणै ः संिधं िल ा शु ं िवचूणयेत् ॥ ३,८.१०१ ॥
याम ादशपय ं भा पृ े ढाि ना ।
त ं मृ तसूताभमू ल ं समाहरे त् ॥ ३,८.१०२ ॥
बद् ा व े ण द ा े कु वेधं िनयोजयेत् ।
दशां शे तु ु ते ता े ढालये िधगोमये ।
ताराधन समाव शंखकु े दु सि भम् ॥ ३,८.१०३ ॥
{िस े र्:: ोदु तओन् }
इ ेवं मदये ागं का लोहा भागकम् ।
मूषायां ं िल ायां सवचूण ढं धमेत् ।
त ोटं समतारे ण ािवतं तारतां जेत् ॥ ३,८.१०४ ॥
{िस े र्:: र न}
ता ाय ां तनागं च चूिणतं पूवव मेत् ।
ताराधन समाव तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.१०५ ॥
{िस े र्:: र न, ओ िमिस थे चोलोउर् }
तारं बंगं तथा कां ं समं ा ं सट णम् ।
अ खोट भागैकं ि भागं शु ता कम् ॥ ३,८.१०६ ॥
समाव कृतं खोटं समे तारे िविम येत् ।
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त ारं जायते शु ं िहमकुंदे दु सि भम् ॥ ३,८.१०७ ॥
{िस े र्:: र न, ओ िमिस थे चोलोउर् }
मु लोह चूण तु ाहये ागप कम् ।
त भ तालस ं तु भागैकं संिनवेशयेत् ॥ ३,८.१०८ ॥
टं कणं ेतकाचं च ऊ द ा िनरोधयेत् ।
ातं ती ं तु संचू पुनः स ं तु दापयेत् ॥ ३,८.१०९ ॥
काचं टं कणकं द ा मूषायां चा तं धमेत् ।
इ ेवं प धा कुया ं द ा पुनः पुनः ॥ ३,८.११० ॥
त ु ं शु तारं च मृतो ं बंगभ कम् ।
ि तयं तु समाव ता ारे ािवते समे ॥ ३,८.१११ ॥
वेधो दे यो दशां शेन बीजं पादं च योजयेत् ।
त ारं जायते िद ं शंखकुंदे दु सि भम् ॥ ३,८.११२ ॥
{िस े र्:: र न}
शु सू तं मृ तं बं गं ेता ं टं कणं समम् ।
तथा मूषकपाषाणं प ानां च चतुगुणम् ॥ ३,८.११३ ॥
योजये ालकं शु ं ु कपयसा ढम् ।
सव िदन यं म काचकू ां िनवेशयेत् ॥ ३,८.११४ ॥
स ङ्मृ िल ायां सुशु ायां पचे तः ।
स े वालुकाय े कू ामारोिपतं पचेत् ॥ ३,८.११५ ॥
शु े वे मु खं द् ा लोणमृि कया ढम् ।
तत ाि ना प ा ाव षोडशयामकम् ॥ ३,८.११६ ॥
ां गशीतं समु द्धृ ोटये ाचकूिपकाम् ।
ऊ ल ं तालस ं सं ा तेन वेधयेत् ॥ ३,८.११७ ॥
षोडशां शेन शु ं तु ढालये िधगोमये ।
ततः शु े न तारे ण समाव समेन तु ।
त ारं जायते शु ं िहमकु े दु सि भम् ।
{चो े र्=> िस ेर्}
तालकं साबु णीतु ं िप ा ं च खपरे ॥ ३,८.११८ ॥
चालय े व ल व ौ याव ृ ं भवे ु तत् ।
मृ काचकू ा ः ि ा त ां ि पे ुनः ॥ ३,८.११९ ॥
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भिजतं लवणं चैव तालका शमां शकम् ।
पू वव ालुकाय े प ा स ं समाहरे त् ॥ ३,८.१२० ॥
साबु णीस पादां शं द ा िप ा पचे ुनः ।
पू वव ालुकाय े कूिपकाम यामकम् ॥ ३,८.१२१ ॥
त ं ितलतै लं च समां शे िपिशते पचेत् ।
चालये ोहपा े तु तैलं याव ु जीयते ॥ ३,८.१२२ ॥
इ ेवं स धा पा ं समं तैले पुनः पुनः ।
त स धा पा ं िस ं कथकेन समं समम् ॥ ३,८.१२३ ॥
चतुःषि तमां शेन ु तं शु ं तु वेधयेत् ।
वेधये ु वेधेन ढालये िधगोमये ।
पादां शं दापये ीजं तारं भवित शोभनम् ॥ ३,८.१२४ ॥
{िस े र्:: शोधन (?); चो ेर्+ िस ेर्=> िस ेर्(?)}
टं कणं शु ताल दशां शेन दापयेत् ।
मेषी ीरै था ै ख े म िदन यम् ॥ ३,८.१२५ ॥
िदनमे रंडतैलेन म कू ां िनवेशयेत् ।
पू वव ाचये ं े वे शु े िनवेशयेत् ॥ ३,८.१२६ ॥
ा ं षोडशयामा े स ं मृ दुतरं महत् ।
षोडशां शेन तेनैव शु कं तेन वेधयेत् ॥ ३,८.१२७ ॥
ताराध च ु तं ा ं शु ं भवित पूववत् ॥ ३,८.१२८ ॥
{चो े र्+ िस ेर्=> िस ेर्}
ष न ं ता माव आखु पाषाणिन कम् ।
दे यं कुंतवे धेन धबीजं भवे लम् ॥ ३,८.१२९ ॥
तालकं टं कणं सिज ारं चैवापामागजम् ।
वि दु ैः समं म ख े यामचतु यम् ॥ ३,८.१३० ॥
अनेन चाधभागेन ता प ािण लेपयेत् ।
अंधमू षागतं ातमे वं वार ये कृते ।
ताराधन समाव शु तारं भवे ु तत् ॥ ३,८.१३१ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
गुंजाकापासिश ूणां तैलमेक चाहरे त् ।
त ं ैले ु तं ता ं ढालये ि स धा ॥ ३,८.१३२ ॥
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षडं शं दापये ीजं शु तारं भवे ु तत् ।
िश ुमूल िल ायां मूषायां ावये तः ॥ ३,८.१३३ ॥
{िस े र्, गो ् :: मृ दूकरण}
अकापामागकदलीभ तोयेन लोलयेत् ।
त गिलतं ा ं ं तोयं तदातपे ॥ ३,८.१३४ ॥
शोिषतं लवणं त ा मादाय य तः ।
रौ े वा यिद वा ण ािवते शतमां शतः ॥ ३,८.१३५ ॥
तदे व दापये ा ं ढालयेि लतैलके ।
इ ेवं तु ि धा कुयाद ं मृ दुतां जेत् ॥ ३,८.१३६ ॥
{मृदूकरण}
अ गोमिहषीणां च खुरं ं समाहरे त् ।
त ूणवापमा ेण अ ं मृ दुतां जेत् ॥ ३,८.१३७ ॥
{मृदूकरण}
गजद चूण वा शु ं वाथ नृणां मलम् ।
किठने दापये ापं भवे ृदुतरं महत् ॥ ३,८.१३८ ॥
{दल (?):: िनमलीकरण (?)}
नानािवधािन कायािण भूषणािन दलेन वै ।
ेतं र ं च वषाभूमूलं िप ारनालकैः ॥ ३,८.१३९ ॥
िप ाथ लवणं िकंिच ा त ैव पेषयेत् ।
त ं िच लजातं तु घिटकाधा मु रे त् ॥ ३,८.१४० ॥
घषयन् लवणा ा ां धा म ौ पुनः पचेत् ।
इ ेवं तु ि धा कुया दलं भवित िनमलम् ॥ ३,८.१४१ ॥
{दल (?):: िनमलीकरण (?)}
फट् करीचूणमादाय खपरे धरो रम् ।
द ा दल सं स जपुटे पचेत् ॥ ३,८.१४२ ॥
आदाय र ुकां बद् ा दोलायं े िदनं पचेत् ।
िच ारनालभा े तु शु ं भवित शंखवत् ॥ ३,८.१४३ ॥
अिभनवसु खसा ैः साधने यु गभगिदतिमह सुिस ं नं शु बंगे ।
सुगममिप च तारं सूतशु ारयोगैः दलमितमलहीनं वाितकानां िहताथम् ॥ ३,८.१४४ ॥

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३, ९
व े ण हे मिमिलतेन तु रि तेन सूतेन हे मिमिलतेन सु रि तेन ।
योगै ः सु सु रतरै ः कनकाि कूटं कृ ाथ श पदहे तुमखां कुयात् ॥ ३,९.१ ॥
{ मेलापन}
अय ां तमु खं गुं जां तयोि गुणगंधकम् ।
ी ै ः पे िषतं ले ं मूषायां ं मेलकम् ॥ ३,९.२ ॥
{ मेलन:: व }
गंधशशद ा ामक मुखं तथा ।
अ वेतसः िशलाधातुः सव तु ं पेषयेत् ॥ ३,९.३ ॥
मूषाले पेन तेनैव व ं ं िमल लम् ॥ ३,९.४ ॥
{व मेलापन (३)}
मिहषीकणने ो मलं चूण च टं कणम् ।
ी ं ककटा थीिन िशलाजतु समं समम् ।
िप ा मू षां लेपेन व े षु मेलकम् ॥ ३,९.५ ॥
{व मेलापन (४)}
मरा थनृ केशां टं कणं कां तजं मुखम् ।
बालव पुरीषं च ी ेन तु पे षयेत् ।
त िल मू षायां व ं ं िमल लम् ॥ ३,९.६ ॥
{व सूतमे लापन}
भूनागं कां तपाषाणं माि कं टं कणं मधु ।
ु यःककटा थीिन काचमकपयः समम् ॥ ३,९.७ ॥
ी ै ः पे िषतं सव मू षालेपं तु कारयेत् ।
त थं व सू तं हठाद् ाते िमल लम् ॥ ३,९.८ ॥
{ णव मेलापन ( खोट)}
मृतव च ारो भागा ादशहाटकम् ।
नाग च यो भागाः षट् शु च पारदात् ॥ ३,९.९ ॥
एकीकृ तु त िदनम ेन केनिचत् ।
त ख े तु त ं समु द्धृ िनरोधयेत् ॥ ३,९.१० ॥
मूषायां िल ायां हठाद् ाते िमल लम् ॥ ३,९.११ ॥
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{ णव मेलापन (२)}
ारै लसा र ा मृतं व ं िवभावयेत् ।
िदनै कं शोिधतं िप मेकैकां कारये टीम् ॥ ३,९.१२ ॥
ि भागं पारदं चैव भागा ा र हाटकम् ।
अ ेन कारये ी ं त भ तां ि पे टीम् ॥ ३,९.१३ ॥
भूजप ेण त द् ा धा राशौ िविनि पेत् ।
प मा ा मु द्धृ पूवमूषागतं धमेत् ॥ ३,९.१४ ॥
िमल े व न संदेहो धा मानं पु नः पुनः ॥ ३,९.१५ ॥
{ णव मेलापन ( खोट, २)}
मृतव भागैकं णप ेण वे येत् ।
स ोडशभागेन मू षायां पूवव पेत् ॥ ३,९.१६ ॥
णतु ं िसतं काचमथवा नृकपालकम् ।
चूणिय ा ि पे ां द् ा ती ाि ना धमे त् ॥ ३,९.१७ ॥
समु द्धृ पु नदयं काचं वा नृकपालकम् ।
िल ा मूषां धमे दे वं मूषासु स सु ॥ ३,९.१८ ॥
हे ा िमलित त िम ेवं मेलये ुनः ।
याव लित पादां शं सुवण मृतव कम् ॥ ३,९.१९ ॥
{चो े र्=> गो ् }
ि भागं ं खोट ि भागं ु तसूतकम् ।
मदयेद योगे न िदना े तं च गोलकम् ॥ ३,९.२० ॥
मेष ं ा ु प ा ं ी ेन तु पे षयेत् ।
अनेन वेधये ोलं त िहिनगलेन च ॥ ३,९.२१ ॥
ेदािदमे लना ं च कारये े मिपि वत् ।
मेष ंगीभवै ः ारै ोटं मदये णम् ॥ ३,९.२२ ॥
मूषा लपये ेन त ु ं हाटकं ि पेत् ।
याव ीण धमे ाव ुनः ण च दापयेत् ॥ ३,९.२३ ॥
जारये मने नैव द ा िवडवटीं मात् ।
एवं िवं शगु णं याव ाव ण च जारयेत् ॥ ३,९.२४ ॥
णन तु समाव सारणा ययोगतः ।
तेनैव वे धये ु ं सह ां शेन कां चनम् ।
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जायते िद पा ं जां बूनदसम भम् ॥ ३,९.२५ ॥
{िसत ण => गो ् }
व मू षागतं ातं ं खोटं हठाि ना ।
माि का ौतस ं वा स ं वा माि को वम् ॥ ३,९.२६ ॥
ोकं ोकं ि पे ाते जीण पुनः पुनः ।
याव ुं कुमाभं ा ाव ं समु रे त् ॥ ३,९.२७ ॥
ल ां शेन तु तेनैव िसतहे मं तु वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणमु मम् ॥ ३,९.२८ ॥
{िसत ण => गो ् }
वै ां तं माि कं तु ं रसका नगै रकम् ।
िवमला चैव वैडूयमेते े कं पलाधकम् ॥ ३,९.२९ ॥
नागबं गाकके ेकं यथालाभं पलाधकम् ।
ं चूण ततो द् ा व मूषागतं धमेत् ॥ ३,९.३० ॥
पू वव ं धका ेन म द् ा पुटे पचेत् ।
चतुदशपु टैरेवं बालाकस शं भवेत् ॥ ३,९.३१ ॥
अनेन व खोटं तु यथापू व तु र येत् ।
त ं िसतं हे म ल ां शा ां चनं भवेत् ॥ ३,९.३२ ॥
अथवा ं खोटं तु सू चूण तु कारयेत् ।
एत ोटं शु चूणमंधमूषागतं धमेत् ॥ ३,९.३३ ॥
आरोटरसत ु ं ज ीरै मदये दनम् ।
व े बद् ा िदनं े ं दोलायं े सकां िजके ॥ ३,९.३४ ॥
सव ं पाचये ा तैले िदनाविध ।
ततो व ा मुद्धृ िनगडे न तुले पचेत् ॥ ३,९.३५ ॥
ेदािदधमना ं च कारये े मिपि वत् ।
त ोटं तु समु द्धृ र ये ि ग ते ॥ ३,९.३६ ॥
ती णं शु ं समं चू अंधमूषागतं धमेत् ।
त ोटं पलमे कं तु िस चूणन संयुतम् ॥ ३,९.३७ ॥
चूण द् ा धमे ाढं त ोटं मदये ुनः ।
पू वव ं धका ेन पु टा ा तुदश ॥ ३,९.३८ ॥
अनेन पू वखोटं तु मूषाम े च पूववत् ।
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याव ुं कुमवण ा ाव ारं शनैः शनैः ॥ ३,९.३९ ॥
णन च समाव सारणा यसा रतम् ।
अनेन ल भागे न ु तं शु ं तु वेधयेत् ॥ ३,९.४० ॥
जायते कनकं िद ं स ं शं करभािषतम् ॥ ३,९.४१ ॥
{मेचुय्:: रे न्}
कषकं ु तसूत गुंजं तु हाटकम् ।
चतुगुजं मृतं व ं हं सपा ा वैिदनम् ॥ ३,९.४२ ॥
मदये ख े तु व मूषा तं पचेत् ।
भूधरा पुटैकेन समुद्धृ ाथ मदयेत् ॥ ३,९.४३ ॥
हं सपा ा वैरेवं त ख े िदनाविध ।
पू ववद् भूधरे प ादे वं शतपुटैः पचेत् ॥ ३,९.४४ ॥
र वण भवे सवयोगे षु योजयेत् ॥ ३,९.४५ ॥
{मेचुय्:: जारण:: ओf अ }
वै वतुलप ायाः सोमव ा वै वा ।
धा ा ं स धा भा ं ततो जारणमारभेत् ॥ ३,९.४६ ॥
गो नाकारमूषायां सूतं शु ं िविनि पेत् ।
पू वा ं षोडशां शं च मू षायां चणक वैः ॥ ३,९.४७ ॥
वालु काभा म े तु चु ां मृ ि ना पचेत् ।
अ के चणक ावं जीण जीण ि पे ुनः ॥ ३,९.४८ ॥
इ ेवं जारये ु ं पारदे गगनं मात् ।
{अ :: िप ी}
सोमव ीरसैयामं म धा ा कं ततः ॥ ३,९.४९ ॥
द् ा वनो लैद ा मादे वं पुट यम् ।
स धा भावयेद्घम सोमव ा वैिदनम् ॥ ३,९.५० ॥
ेतायाः शरपुङ्खाया मूलैग ीरघिषतैः ।
क तैमृ यं पा ं िल ा त ा कं ि पेत् ॥ ३,९.५१ ॥
त े िनि पे ूतं त ृ े चा कं पुनः ।
सोमव ी वै ः पूव त ा ं चातपे खरे ॥ ३,९.५२ ॥
धारये रते दीघ जायते ोमिपि का ।
{चो े र्=> गो ् ; कोिटवेध}
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पू व ा ग िप ी या ता जारणं िवना ॥ ३,९.५३ ॥
तथा किप ी च अ स ं तृतीयकम् ।
चतुथ र भ ािप पूव व ेण य ृ तम् ॥ ३,९.५४ ॥
च ारः ितकषाशं जा रतं पारदं पलम् ।
सवमेत ख े हं सपा ा वैिदनम् ॥ ३,९.५५ ॥
मिदतं त मुद्धृ पचे पयं के ।
याव ूतावशे षं तु ताव ाय पुटेन वै ॥ ३,९.५६ ॥
अ सूत तु ां शं व ं ं िनयोजयेत् ।
दोला ेदेन प ं याव वित गोलकम् ॥ ३,९.५७ ॥
जारये पे यं े याव ूतावशेिषतम् ।
इ ेवं षड् गुणं जाय व ं ं य तः ॥ ३,९.५८ ॥
तेनैव व ं े न सारये ारणा यम् ।
अनेन कोिटभागेन ु तं शु ं तु वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,९.५९ ॥
{च ाक => गो ् }
भागै कं मृ तव शु सूत षोडश ।
मदयेद वगण त ख े िदनाविध ॥ ३,९.६० ॥
प बीज प ािण तु ा ेतेन लेपयेत् ।
सुप भानुप ै ु िल प ािण वे येत् ॥ ३,९.६१ ॥
शरावसं पुटे द् ा िनखने ु म तः ।
ि िदनं ालये वि म ा शः मात् ॥ ३,९.६२ ॥
ततो िनगडिल ायां मूषायां तेन रोधयेत् ।
कारीषवि ना प ातहोरा ा मु रे त् ॥ ३,९.६३ ॥
मधु ना मदये ं िच त ेन शतां शतः ।
िल ा च ाकप ािण ंधमूषागतं धमेत् ।
ण भवित पा ं स ं शं करभािषतम् ॥ ३,९.६४ ॥
{चो े र्=> गो ् }
मृतव भागैकं भागैकं हाटक च ।
ि भागं ु तसूत सव ेन मदयेत् ॥ ३,९.६५ ॥
त ोलं ब ये े ग तैले हं पचेत् ।
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तत ु े न णन समावत तु कारयेत् ॥ ३,९.६६ ॥
द ा िवडवटीं चैव एकिवंशितवारकम् ।
एकिवं शगु णे जीण सारये ारणा यम् ॥ ३,९.६७ ॥
सह ां शेन तेनैव शु े वेधं दापयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,९.६८ ॥
{िस े र्, चो े र्=> गो ् }
शु सू तं मृ तं व ं हं सपा ा वैः समम् ।
मदये ख े तु ि िदना े समु रे त् ॥ ३,९.६९ ॥
बीजै िद ौषधानां च िप ा मूषां लेपयेत् ।
त पूवरसं ि ा द् ा त रषाि ना ॥ ३,९.७० ॥
समु द्धृ पु न न् शु सूतं समं ि पेत् ।
हं सपा ा वैम पूववि वस यम् ॥ ३,९.७१ ॥
त ोलं पूवमू षायां द् ा गजपु टे पचेत् ।
जायते भ सूतोऽयं सवकमसु योजयेत् ॥ ३,९.७२ ॥
अ तु ं शु सूतं सू तपादं च टं कणम् ।
सवम ैिदनं म कृ ा गोलं समु रे त् ॥ ३,९.७३ ॥
र कापासयोब जं रािजका यविचि का ।
व ाकक टकी चैव िप ा गोलं लेपयेत् ॥ ३,९.७४ ॥
ऊ ाधो लवणं द ा द् ा मूषां िवशोषयेत् ।
कारीषा ौ िदवारा ौ पाचिय ा समु रे त् ॥ ३,९.७५ ॥
पू वक े न त ोलं ि ा द् ाथ पूववत् ।
पु टे प ाि वारा ौ एवं कुया स धा ॥ ३,९.७६ ॥
तत ेनैव क े न िल ा द् ाथ शोषयेत् ।
स जपुटे प ा तो मूषागतं धमेत् ॥ ३,९.७७ ॥
शतमां शेन ते नैव च ाक वेधयेद् ु तम् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,९.७८ ॥
{च ाक => गो ् }
अथवा भ सूतं त ाय टं कणसंयुतम् ।
अंधमू षागतं ातं खोटं भवित शोभनम् ॥ ३,९.७९ ॥
खोटतु ं शु हे म सवमेक ावयेत् ।
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च ाक वेधये ेन पूवव ां चनं भवेत् ॥ ३,९.८० ॥
{शतवेिधक ः - तारे ता े}
व भ ुही ीरै िदनमे कं िवमदयेत् ।
द् ा गजपु टे प ातेवं शतपुटैः पचेत् ॥ ३,९.८१ ॥
त ु ं पारदं शु ं ि ा म िदन यम् ।
दे वदा ा वैरेवं त ोलं चा तं पुटेत् ॥ ३,९.८२ ॥
कारीषा ौ िदवारा ौ समु द्धृ ाथ मदयेत् ।
दे वदा ा वै हं त ु द् ा पुटे पचेत् ॥ ३,९.८३ ॥
एवं दशपु टैः पा ं व तु ं च हाटकम् ।
ि ा कां चनक ावैमदयेि वस यम् ॥ ३,९.८४ ॥
पू वव ुटपाकेन एवं दशपुटैः पचेत् ।
णतु ं तत ी णं चूण कृ ा िनयोजयेत् ॥ ३,९.८५ ॥
मदये फला ावै व िदवस यम् ।
पु टये ूवयोगे न एवं दशपुटैः पचेत् ॥ ३,९.८६ ॥
ती णतु ं मृ तं नागं द ा सव िवमदयेत् ।
वासार ा मारो ावैः ख े िदन यम् ॥ ३,९.८७ ॥
द् ा गजपु टे प ा ुनम च पाचयेत् ।
एवं दशपु टैः प ं समु द्धृ ाथ मदयेत् ॥ ३,९.८८ ॥
अ वगण त व म यामचतु यम् ।
द् ा गजपु टे प ा ुनम च पाचयेत् ॥ ३,९.८९ ॥
एवं दशपु टैः पा ं िस दू रस शं भवेत् ।
अनेन शतमां शेन च ाक वेधयेद् ु तम् ॥ ३,९.९० ॥
अथवा मधुना ेन च ाक लेपये तः ।
जायते कनकं िद ं पुटे द े न हीयते ॥ ३,९.९१ ॥
अथवा तारप ािण मधु ना ेन लेपयेत् ।
चतुःषि तमां शेन िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,९.९२ ॥
{च ाक => गो ् (शतवेिधक ः)}
चतुःषि गुणं सू तं भागैकं मृतव कम् ।
मदयेद वगण त ख े िदन यम् ॥ ३,९.९३ ॥
भाग यं हे मप मनेनैव लेपयेत् ।
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द् ाथ भूधरे प ा मुद्धृ ाथ मदयेत् ॥ ३,९.९४ ॥
शु े न सू तराजेन ि गुणेन च संयुतम् ।
अ वग हं म द् ाथ भूधरे पुटेत् ॥ ३,९.९५ ॥
पु नम पु नः पा मेकिवंशितवारकम् ।
अनेन शतमां शेन चं ाक मधुना सह ॥ ३,९.९६ ॥
िल ा द् ा धमे ाढं िद ं भवित का नम् ॥ ३,९.९७ ॥
{िस े र्=> गो ् (षोडशवेिधक ः)}
पू व भ सूतेन अ िप ेन लेपयेत् ।
चतुगुणं णप ं द् ा गजपु टे पचेत् ।
पादां शेन पुन न् भ सूतं िनयोजयेत् ॥ ३,९.९८ ॥
मदयेद वगण त ु द् ा पुटे पचेत् ।
एवं चतुःपुटैः प ं ि यते हाटकं शुभम् ॥ ३,९.९९ ॥
तेनैव षोडशां शेन ु तं तारं तु वे धयेत् ।
अथवा प लेपेन िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,९.१०० ॥
{चो े र्=> गो ् ; शतवेिधक ः}
मृतव भागैकं शु सूत षोडश ।
दे वदालीशङ् खपु ीरसैम िदन यम् ॥ ३,९.१०१ ॥
व मू षागतं द् ा िदनै कं भूधरे पचेत् ।
समु द्धृ ाथ तद् ावैिदनं म िन च ॥ ३,९.१०२ ॥
िदनै कं भूधरे प ा च पाचयेत् ।
इ ेवं स धा कुया ायते भ सूतकम् ॥ ३,९.१०३ ॥
त सू तकं तु ं व मूषा तं धमेत् ।
त ोटं जायते िद ं र ये ि ग ते ॥ ३,९.१०४ ॥
ती णं शु ं समं चू अंधमूषागतं धमेत् ।
त ोटं िस चूण तु गंधका ेन मदयेत् ॥ ३,९.१०५ ॥
पू वव मयोगेन पुटा ा तुदश ।
अनेन पू वखोटं तु ु तं वा ं पुनः पुनः ॥ ३,९.१०६ ॥
त गं धकं तु ं व मूषा तं धमेत् ।
दशवारे ण त ोटं जायते कुंकुम भम् ॥ ३,९.१०७ ॥
णन च ि धा साय शतवेधी भवे तत् ।
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ु तशु े दात ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,९.१०८ ॥
{तारा र => गो ् (सह वेिधक ः)}
पू व ं भ सूतं तु पलैकं समप गम् ।
कां तपा गतं म िदनै कं लोहमुि ना ॥ ३,९.१०९ ॥
मृ ि ना तु त ा े मदये ाचये नैः ।
याव ं समु द्धृ द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,९.११० ॥
म वासारसै ः प ादे वं वारचतुदश ।
गोिप ेन पु नम दे यं पुटचतुदश ॥ ३,९.१११ ॥
त ु ं णचूण च द ा िप ेन मदयेत् ।
िदना े त मुद्धृ ामणेन समायुतम् ॥ ३,९.११२ ॥
सह ां शेन तेनैवं तारा र ं तु वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणमु मम् ॥ ३,९.११३ ॥
नाग थाने यदा बंगं पू वव मयोगतः ।
तारचूणन सं यु ं शु े वेधं दापयेत् ।
सह ां शेन त ारं भवे ुं दे दु सि भम् ॥ ३,९.११४ ॥
{चो े र्=> गो ् }
ु तसूतेन व े ण व ैः शु रसे न वा ।
मृतसूतेन व ेण व ैः शु रसे न वा ॥ ३,९.११५ ॥
िद योगवरै ः खोटं पू व नानािवधं तु यत् ।
ो ं त ोटमे कं तु ावये ि खोटवत् ॥ ३,९.११६ ॥
ु तं तु पारदं िद ं मृ ुदा र नाशनम् ।
अथा ु तसूत जारये बीजकम् ॥ ३,९.११७ ॥
मेण षड् गुणं याव पा े िवडा ते ।
व माण कारे ण ोमस ं यथा जरे त् ॥ ३,९.११८ ॥
जा रतं त धा साय प बीजेन वै मात् ।
अनेन कोिटमां शेन ु तशु ं तु वेधयेत् ॥ ३,९.११९ ॥
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,९.१२० ॥
{व :: ावण}
अथा कोिटवे ध रसे ापरो िविधः ।
िव ु ा ा च च ा ा क ारी चैव िचि का ॥ ३,९.१२१ ॥
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एतासां वमादाय मूषालेपं तु कारयेत् ।
त ां पू वरसं ि ा धमे द् ावं ि पन् ि पन् ॥ ३,९.१२२ ॥
व ं त ैव दात ं व ेव न संशयः ।
{मेचुय्:: श वेिधन् }
तत ा मु द्धृ दोलायं े हं पचेत् ॥ ३,९.१२३ ॥
उद् धृ िवडिल ायां मूषायां कटं धमे त् ।
स ेव न संदेह ी ातानलेन च ॥ ३,९.१२४ ॥
व ं वा प रागं वा जाय दशगुणे रसे ।
कारये बीजेन श वेधी भवे सः ॥ ३,९.१२५ ॥
{स रे :: ावण}
अथवा मा रते त न् जारणं सारये ुनः ।
उ टा मीननयना सपा ी र िच कम् ॥ ३,९.१२६ ॥
एतासां िनि पेद् ावं ु ते मू षागते रसे ।
इ नीलं ि पे व ेव न संशयः ॥ ३,९.१२७ ॥
{स रे :: => खे चरी}
पू वव ेदने नैव िवडयोगे न जारयेत् ।
इ ेवं ि गुणं जायिम नीलं मेण तु ॥ ३,९.१२८ ॥
त सं व म े तु यः करोित नरो मः ।
स पू ो दे वदे वानां खेचर ेन मोदते ॥ ३,९.१२९ ॥
त मू पुरीषा ां सवलोहािन कां चनम् ।
जायते िद पा ं स ं शं करभािषतम् ॥ ३,९.१३० ॥
इ ेवं िवि खोटं प ररसमपरं संकरै ः खोटब ं जातं तद् ािवतं वै मृतमथ िवमलं
णरािशं करोित ।
िकंवा सा प बीजं सित यिद ु तो जायते कोिटवेधी व ा ं र जातं चरित यिद रसः
खे चर ं द े ॥ ३,९.१३१ ॥

३, १०
लोहै महारसवरै िवडप बीजं कृ ाथ पारदवरे िविधव जायम् ।
यो ं तथा सकलसारणकमयोगे त ते िविवधबीजिवडािधकारम् ॥ ३,१०.१ ॥
{प बीज (१)}
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ता ं समं शु ं ािवतं लेपये ुनः ।
सा ेन ता क े न धमे णावशे िषतम् ॥ ३,१०.२ ॥
एवं दशगुणं वा ं ता ं वा तु स कम् ।
प बीजिमदं ातं णशे षं समाहरे त् ॥ ३,१०.३ ॥
{प बीज}
नागा ं ं ि तं तु ं ण वा ं ि षड् गुणम् ।
पू वव णशे षं तु ा ं ा बीजकम् ॥ ३,१०.४ ॥
{प बीज (३)}
ण पीता स ं च तु ां शं ं ि तं धमेत् ।
ता ं तालकवापेन णशे षं समाहरे त् ।
एवं दशगुणं स ं वा ं ा बीजकम् ॥ ३,१०.५ ॥
{प बीज (४)}
रसका कयोः स ं ता ं नागं मो रम् ॥ ३,१०.६ ॥
चूिणतं ं िल ायां मूषायां चा तं धमेत् ।
त ोटं माि कं तु म ैः िप ा पुटे पचेत् ॥ ३,१०.७ ॥
समु द्धृ पु न ा ैम द् ा पुटे पचेत् ।
एवं प पुटैः प ं ु ते ण तु वाहयेत् ।
धमे शगुणं याव ाव ा बीजकम् ॥ ३,१०.८ ॥
{बीज:: fरों ले अद् }
लोह कु मान सुत दलािन वै ।
पत तािन ीकृ ातोऽयं लोहपपटः ॥ ३,१०.९ ॥
लोहपपटमा ीकं कंकु ं िवमला कम् ।
मृतशु ं िशलासू तं दरदाक ुहीपयः ॥ ३,१०.१० ॥
एतैः समं नागचूण म द् ा पुटे पचेत् ।
पु नम पु नः पा ं याव ारां तुदश ॥ ३,१०.११ ॥
एवं शतगु णं वा ं शु हे ि धमन् धमन् ।
त ण नागबीजं ा ोरोचनिनभं भवेत् ॥ ३,१०.१२ ॥
{बीज:: fरों लेअद् :: प :: र न}
खपर थे ु ते नागे बीजदलािन िह ।
ि ाि ं ालये ं द े न चालयेत् ॥ ३,१०.१३ ॥
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चतुयामा ु त जातं पा ा मु रे त् ।
द् ा गजपु टे प ा ादां शं गंधकं पुनः ॥ ३,१०.१४ ॥
द ा मिदतं प ादे वं वारां तुदश ।
र वण भवे त ागं खपरे ि पेत् ॥ ३,१०.१५ ॥
भाग यं िशलाचूण पृथ ा े िविनि पेत् ।
प ा ं वासकाचू ण ूण चाजुन वै ॥ ३,१०.१६ ॥
शाकिकंशुककोर िश ूणां पु माहरे त् ।
नािगनी नागक ा च कुमारी चािहमारकम् ॥ ३,१०.१७ ॥
सवषां ितभागैकं िशलाम े िविनि पेत् ।
सव चतुगुणैमू ै ागजैः ाथमाचरे त् ॥ ३,१०.१८ ॥
पू व नागभूतै खपर थ संि पेत् ।
चालये ाचये ु ां याव िदनाविध ॥ ३,१०.१९ ॥
य ेन मृ तनागे न वापो दे यो ु त च ।
प बीज वारां ीन् रि तं जायते शुभम् ॥ ३,१०.२० ॥
{लेअद् :: मृ त:: अ छे म् . उसे}
दलानां चैव बीजानां िप ी े िवशेषतः ।
उ ाटे ामणे यो ं पूव ं मृतनागकम् ॥ ३,१०.२१ ॥
{बीज:: प :: र न}
मि ा पु ं च पु ं च करवीरकम् ॥ ३,१०.२२ ॥
सवासां वृ जातीनां र पु ािण चाहरे त् ।
खािदरं दे वदा ं च ि िनशा र च नम् ॥ ३,१०.२३ ॥
सव ला ारसैः िप ा ि ा तैलं चतुगुणम् ।
पचे ैलावशे षं तु त ं ैले िनषेचयेत् ।
ि स धा प बीजं र ते जायते शुभम् ॥ ३,१०.२४ ॥
{बीज:: प , रि त:: अ छे म्. उसे}
गभ ावैः यो ं तथा सव सारणे ।
समे न जारये ूतं ि गु णेन तु सारयेत् ॥ ३,१०.२५ ॥
ि गुणेन नेनैव कत ं ितसारणम् ।
सा रतं ामणेनैव वेधकाले िनयोजयेत् ॥ ३,१०.२६ ॥
{बीज:: fरों िस ेर्}
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िवमला ती णचूण च स ं ेता क च ।
रसकं तारमा ीकं समभागं िवचूणयेत् ॥ ३,१०.२७ ॥
चूणा तुगुणं व ं ं मेलापकं धमेत् ।
मदयेद योगे न द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,१०.२८ ॥
एवं प पुटैः प ं तत ारे तु वाहयेत् ।
धम शगु णं याव ारं तारबीजकम् ॥ ३,१०.२९ ॥
{बीज:: fरों िस ेर्}
ता े न मारये ं गं यथा तालेन मा रतम् ।
त ् वाि ंशगु णं तारे वाहये ालवापतः ।
ता बीजं तु त े ं सारणे र ने िहतम् ॥ ३,१०.३० ॥
{बीज:: fरों िस ेर्}
कुिटलं िवमला ती णं समं चूण क येत् ।
ात ं ं िल ायां खोटम ेन पेिषतम् ॥ ३,१०.३१ ॥
पु िटतं प वारं तु तारे वा ं शनैधमेत् ।
याव शगुणं त ु तारबीजं भवे ु भम् ॥ ३,१०.३२ ॥
{बीज:: fरों िस ेर्}
बंगं ेता स ं च तारमाि कस कम् ।
ं मूषागतं धा ं ि तयं चूिणतं समम् ॥ ३,१०.३३ ॥
वा ं दशगुणं तारे तारमाि कवापतः ।
त ारं जायते बीजं सवकायकर मम् ॥ ३,१०.३४ ॥
{तारबीजर न}
यथा ा ैः ेतपु ैनानावृ समु वैः ॥ ३,१०.३५ ॥
रसं चतु गुणं यो ं कङ्गुणीतैलवापतः ।
पचे ैलावशे षं तु त ं ैले िनषेचयेत् ॥ ३,१०.३६ ॥
ािवतं तारबीजं तु एकिवंशितवारकम् ।
रि तं जायते त ु रसराज र कम् ॥ ३,१०.३७ ॥
{सारणातै ल}
ोित तीकर ा कटु तु ीसमु वम् ।
तैलमे कं समादाय म ू कवसया समम् ॥ ३,१०.३८ ॥
कूमसू करमे षािहजलूकाम जािप वा ।
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एते े का वसा ा ा पू वतैलं समाहरे त् ॥ ३,१०.३९ ॥
र वग पीतवग काय ीरै तुगुणैः ।
पु ाणां र पीतानामेकैकानां वं हरे त् ॥ ३,१०.४० ॥
एत ् वं िवभागं ा ूव ाथचतु यम् ।
पाटलीकाकतु ु ं महारा ी वं तथा ॥ ३,१०.४१ ॥
े कं भागमेकैकं पू वतैलवसायुतम् ।
यो ं भाग यं त भूलतामलता कम् ॥ ३,१०.४२ ॥
मे लापयोरे कं तैला षोडशकां शकम् ।
े कं योजये न् सवमेक पाचयेत् ॥ ३,१०.४३ ॥
ा ं तैलावशेषं तु व पू तं सुर येत् ।
िव ातं सारणातैलं रसराज कमिण ॥ ३,१०.४४ ॥
{ ामण:: सु ेस्fओर्ँ }
नागं व ं मृतं तु म ेन च वटीकृतम् ।
ामणाथ यो ं वेधकाले रस तु ॥ ३,१०.४५ ॥
{ ामण:: सु ेस्fओर् }
सौरा ी ं भावयेद्घम गवां िप ैः ि धाततः ।
त ं सोमव ा ं ामकं योजये से ॥ ३,१०.४६ ॥
{ ामण:: सु ेस्fओर्ँ }
मनःिशला िवषं ता ं मिहषीकणजं मलम् ।
काकिवट् खरर ं च ामणं ु योऽ तम् ॥ ३,१०.४७ ॥
{ ामण:: सु ेस्fओर्ँ }
नरर ाकदु ं च टं कणं भूलता िशला ।
समां शं ामकं यो ं वेधकाले रस तु ॥ ३,१०.४८ ॥
{ ामणस (५)}
इ गोपं िवषं कां तं नरर ं ुहीपयः ।
रसकं दरदं तैलं सवमेक मदयेत् ।
ामकं ेपलेपा ां वेधकाले िनयोजयेत् ॥ ३,१०.४९ ॥
{ ामण:: सु ेस्fओर्ँ ; वेध:: ◌ँ }
रसं धा ा कं स ं काकिवठ रतालकम् ।
नयनं सहदे वानां भूनाग समं समम् ॥ ३,१०.५० ॥
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िप तं ामणे िस ं ेपे लेपे िनयोजयेत् ॥ ३,१०.५१ ॥
{ ामणस (७)}
कदलीक सौवीरं क कारीरस ुतम् ।
ामणं सवधातूनां सव ं े षु मेलनम् ॥ ३,१०.५२ ॥
ामणेन िवना सूतो न मे े हलोहयोः ।
उ थाने षु योगेषु त ा वषु योजयेत् ॥ ३,१०.५३ ॥
{महािवड}
द ं शं खं रिव ीरै भािवतं शतधातपे ।
ततः प पु टैः प ं द् ा द् ाथ संपुटे ॥ ३,१०.५४ ॥
त मं टं कणं ि ा वगण भावयेत् ।
राजावत वालं च दरदं गं धकं िशला ॥ ३,१०.५५ ॥
प ानां तु समं चूण शङ्खतु ं िनयोजयेत् ।
सव तद वगण मदयेि वस यम् ॥ ३,१०.५६ ॥
अयं महािवडः ातः खोटानां जारणे िहतः ।
मूषाले पं तु सव जारणे योजये दा ॥ ३,१०.५७ ॥
त णा रते सूतो व ादीिन न संशयः ॥ ३,१०.५८ ॥
{िवड (२)}
ि ारं प लवणं नवसारं कटु यम् ।
इ गोपं घनं िश ु सू रणं वनसू रणम् ॥ ३,१०.५९ ॥
भावयेद वगण ि िदनं ातपे खरे ।
अनेन मिदतः सूतो भ येद लोहकम् ॥ ३,१०.६० ॥
{िवड (३)}
ोषं गं धकं कासीसं णपु ी सुवचलम् ।
सज टं कणं सौवीरं सै वं िश ुजै वैः ।
दशाहं भावयेद्घम िवडोऽयं जारणे िहतः ॥ ३,१०.६१ ॥
{िवड (४)}
द शङ्खं रिव ीरै भािवतं शतधातपे ।
ततः प पु टैः प ं जारणे िवडमु मम् ॥ ३,१०.६२ ॥
{िवड (५)}
ि ारं प लवणम वे तससंयुतम् ।
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अनेन मदये ूतम स ं चर लम् ॥ ३,१०.६३ ॥
{िवड (६)}
गोमू ं गं धकं घम शतवारं िवभावयेत् ।
िश ुमूल वै ं शङ्खं िवभावयेत् ॥ ३,१०.६४ ॥
एत ं धकशं खा ां समां शं िवषसै वम् ।
एतैिवमिदतं सूतं सते सवलोहकम् ॥ ३,१०.६५ ॥
{वि मुखो िवड (७)}
टं कणं शतधा भा ं वै ः पालाशवृ जैः ।
िवडो वि मुखो नाम िहतः सव जारणे ॥ ३,१०.६६ ॥
{िवड (८)}
गंधकं नवसारं वा मुखं कां त चातपे ।
शतधा मू वगण भािवतं ाि डं पृ थक् ॥ ३,१०.६७ ॥
{ ालामुखो िवडः (९)}
ि ारं गं धकं तालं भू खगं नवसारकम् ।
सधवं च समं सव मू वगिदनं पचेत् ॥ ३,१०.६८ ॥
ालामु खो िवडो नाम िहतः सव जारणे ॥ ३,१०.६९ ॥
{िवड (१०)}
गंधकं शतधा भा ं वनिश ुिशफा वैः ।
ज ीरै नवसारं वा भािवतं ाि डं पृ थक् ॥ ३,१०.७० ॥
{िवड:: वडवानल}
वासकैरं डकदली दे वदाली पुननवा ।
वासापालाशिनचुलं ितलं का नमो कम् ॥ ३,१०.७१ ॥
एतान् समू लानादाय नाितशु ान् िवख येत् ।
प ा ं मू लकं द ा ितलका ं च त मम् ॥ ३,१०.७२ ॥
एत ारै ः पूवक ं मू वगण भावयेत् ।
व पूतं वं प ा ृ ौ लोहपा के ॥ ३,१०.७३ ॥
बा ाणां बु द्बुदानां च ब नामु मो यदा ।
तदा कासीसं सौरा ी ार यं कटु यम् ॥ ३,१०.७४ ॥
गंधकं पं चलवणं नवसारं च िहं गुलम् ।
एतेषां िनि पे ूण त ा ेऽथ चालयेत् ॥ ३,१०.७५ ॥
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गुडपाकं समु ाय लोहसंपुटके ि पेत् ।
स ाहं भूिमगभऽथ धा राशौ तथा पु नः ।
स ाहं सं थतः िस ो िवडोऽयं वडवानलः ॥ ३,१०.७६ ॥
{िवड:: fओस जारण}
भावयेि चुल ारं दे वदालीदल वैः ।
एकिवं शितवारं तु िबडोऽयं स जारणे ॥ ३,१०.७७ ॥
{िवड:: ती ानल}
दे वदालीिशफाबीजं गुंजासधवटं कणम् ।
समां शं िनचुल ारम वगण स धा ॥ ३,१०.७८ ॥
कोशातकीदलरसैभावयेि नस कम् ।
ती ानलो नाम िबडो िविहतो हे मजारणे ॥ ३,१०.७९ ॥
{िवड:: fओजारण ओf गो ् }
मूलका कव ीनां ारं गोमू लोिलतम् ।
व पूतं वं ा ं गं धकं तेन भावयेत् ॥ ३,१०.८० ॥
शतवारं खरे घम िवडोऽयं हे मजारणे ॥ ३,१०.८१ ॥
{िवड:: fओजारण ओf गो ् }
ि ारं पं चलवणं शङ्खं तालं मनःिशला ।
िदनै कम वगण प ं ा े मजारणे ॥ ३,१०.८२ ॥
{िवड:: fओजारण ओf गो ् }
गंधकं नवसारं च ज ीरा ेन मदयेत् ।
शतवारं खरे घम िबडोऽयं हे मजारणे ॥ ३,१०.८३ ॥
{िवड:: fओजारण}
क ाहया रध ूर वैभा ं तु गंधकम् ।
शतधा तं खरे घम िवडोऽयं सवजारणे ॥ ३,१०.८४ ॥
अनेन सते शी ं शु संभवसंपुटे ॥ ३,१०.८५ ॥
{िवड:: fओ र ोवेमे ोf ासन}
सधवं गं धकं तु ं ता व ी वैः ुतम् ।
अनेन िबडयोगेन गगनं सते रसः ॥ ३,१०.८६ ॥
{िस िवड}
िशलागंधकिस ू ं ेकं च पलं पलम् ।
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पल यं च भूनागं सवमेक मदयेत् ॥ ३,१०.८७ ॥
शोषये पु नदयं भूनागानां पल यम् ।
त पु नः शो ं पाचये वि ना ॥ ३,१०.८८ ॥
एवम गु णं द ा म पा ं िवचूणयेत् ।
अयं िस िवडो यो ो जारणे हे मकमिण ॥ ३,१०.८९ ॥
स ं ृ तगंधकाद् युपरसं स ं ततो ोमजं प ा ाि कस हाटकवरं गभ ु तौ
ािवतम् ।
रागै रि तबीजजालम खलं बा ां ु ितं ं ि तां सूते सविमदं मे ण िविधना
िस ै िबडै जारयेत् ॥ ३,१०.९० ॥

३, ११
{रस १८ सं ाराः}
िस ै ः सू तवर कम िविवधं ातं िविच ैः मैः सा ासा िववेकतो नु भवन् ा
सम ं मया ।
यु ा ादशधा िवशे षिविधना ेदािदवेधा कं द ाणां सुखसा मे व सु खदं सं त ते
सा तम् ॥ ३,११.१ ॥
{१८ सं ारस्}
ेदनं मदनं मूछ ापनं पातनं ि धा ।
िनरोधनं िनयाम दीपनं चानुवासनम् ॥ ३,११.२ ॥
जारणं चारणं चै व गभबा ु ित था ।
र नं सारणं चानु सारणा ितसारणा ामणं दे हलोहे षु ॥ ३,११.३ ॥
{काि क:: ोदु तओन्}
नानाधा ैयथा ा ै ुषवजजला तैः ।
मृ ा ं पू रतं र े ावद मा ुयात् ॥ ३,११.४ ॥
त े भृ राङ्मु ी िव ु ा ा पुननवा ।
मीना ी चैव सपा ी सहदे वी शतावरी ॥ ३,११.५ ॥
ि फला िग रकण च हं सपादी च िच कम् ।
समू लं ख िय ा तु यथालाभं िनवेशयेत् ॥ ३,११.६ ॥
पू वा भा म े तु धा ा किमदं भवेत् ।
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{का :: उसे}
ेदनािदषु सव रसराज योजयेत् ।
{काि क:: सु तुतेद् ारनाल}
अ मारनालं वा तदभावे िनयोजयेत् ॥ ३,११.७ ॥
{ ेदनम्}
ूषणं लवणं राजी िच कं ि फला कम् ।
महाबला नागबला मेघनादः पु ननवा ॥ ३,११.८ ॥
मेष ी िच कं च नवसारं समं समम् ।
एत म ं ं वा पूवा ेनैव मदयेत् ॥ ३,११.९ ॥
त े न िल े े यावदङ्गुलमा कम् ।
त े िनि पे ूतं बद् ा प ाि न यम् ।
दोलाय ेऽ संयु े ेिदतो जायते रसः ॥ ३,११.१० ॥
{मदनम्}
ा काि कैः सो ै मादाय िवमदयेत् ।
अ मारनालं त दभावे िनयोजयेत् ॥ ३,११.११ ॥
गृहधू मेि काचूण द ोणा लवणं गुडम् ।
रािजका ि फला क ा िच कं बृ हती कणा ॥ ३,११.१२ ॥
व ाकक टकी चाथ ं वाथ सम कम् ।
ाथयेदारनालेन तेन म हं रसम् ।
ा काि केनै व समादाय िवमू छयेत् ॥ ३,११.१३ ॥
{मूछनम् }
मेष ी कृ धूत बला ेतापरािजता ॥ ३,११.१४ ॥
क ाि ि फला चैव सपा ी सूरणं वचा ।
गोिज ा चाङ्गुली नीली मु ी ीरक कम् ॥ ३,११.१५ ॥
रािजका काकमाची च रिव ीरं च का नम् ।
ानां वा सम ानां ावै ैषां िवमदयेत् ॥ ३,११.१६ ॥
यामै कं रसराजं च मूषायां संिनरोधयेत् ।
पु टैकेन पचे ं तु भूधरे वाथ मदयेत् ॥ ३,११.१७ ॥
सव ावैयथापूव द् ा द् ा िवपाचयेत् ।
इ ेवं स धा कुया ायते मूिछतो रसः ॥ ३,११.१८ ॥
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{उ ापनम् }
जलैः सो ारनालैवा लोलनादु तो भवेत् ।
अथवा पातनाय े पाचनादु तो भवेत् ।
एवमु ािपतः सूत धा पा ः मेण तु ॥ ३,११.१९ ॥
{ऊ पातनम्}
काकमाची जया ा ी चा े री र िच कम् ।
अ ोली राजवृ ितलपण कुमा रका ॥ ३,११.२० ॥
म ू की िच कं पाठा काकज ा शतावरी ।
भूपाटली दे वदाली िनगु ी िग रकिणका ॥ ३,११.२१ ॥
शणपु ा कं ी गोिज ा ीरक कम् ।
नीली चैषां सम ानां ानां च वैिदनम् ॥ ३,११.२२ ॥
ता पादयु तं सूतं मदयेद कैः सह ।
त ः पातये े चो पातनके पुनः ॥ ३,११.२३ ॥
आदाय मदये ा चूणन संयुतम् ।
पातये दये ैव ता ं द ा पुनः पुनः ।
इ ेवं स धा कुया दनं पातनं मात् ॥ ३,११.२४ ॥
ऊ ल ं समादाय अधःपातेन पातयेत् ॥ ३,११.२५ ॥
{अधःपातनम्}
ि फला रािजका िश ु ूषं लवणिच कम् ।
सूततु ं तु त व काि कैमदयेि नम् ॥ ३,११.२६ ॥
तेन िल े दू भा ं पृ े दे यं पुटं लघु ।
अधःपातनय े तु पािततं तु समु रे त् ॥ ३,११.२७ ॥
{ितय ातनम्}
ि फला रािजका िश ु ूषं लवणिच कम् ।
धा ा कं रसं सव मदयेदारनालकैः ॥ ३,११.२८ ॥
न िप ं तु त ा ं ितय े ढाि ना ॥ ३,११.२९ ॥
{िनरोधनम्}
लवणेना ुिप ेन ह का गतं रसम् ।
आ ा ाथ जलं िकंिच ा ावेण रोधयेत् ।
ऊ लघुपुटं दे यं ल ा धो भवे सः ॥ ३,११.३० ॥
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{दीपनम् }
ि ारं प लवणं भूखगं िश ुमूलकम् ।
णपु ी च कासीसं म रचं रािजका मधु ॥ ३,११.३१ ॥
ीरक ो जया क ा िवजया िग रकिणका ।
काकज ा शोणपु ी पातालग डी कणा ॥ ३,११.३२ ॥
व ाकक टकी वि ं वाथ सम कम् ।
पे षयेद वगण तद् वैमदये सम् ॥ ३,११.३३ ॥
िदना े ब ये े दोलाय े हं पचेत् ।
पू व ावैघटे पूण ासाथ जायते रसः ॥ ३,११.३४ ॥
{अनु वासनम् }
दीिपतं रसराजं तु ज ीररससंयुतम् ।
िदनै कं धारयेद्घम मृ ा े वािसतो भवेत् ॥ ३,११.३५ ॥
ेदनािदशुभकमसं ृ तः स क चुकिवविजतो भवेत् ।
अ मां शमविश ते तदा शु सूत इित क ते बु धैः ॥ ३,११.३६ ॥

३, १२
समु खिवमु खसूते जारणाथ व े िविवधसुलभयोगैभ जनं गंधक ।
तदनु च घनचूणभ जनं पाचनं ाि खलसूतिवभू ै वाितकानां सु खाय ॥ ३,१२.१ ॥
{मेचुर् :: जारण ओf सुल्fउर् }
गंधकं सू चूण तु स धा बृहती वैः ।
भावये ाथ वृ ाकरसे नैव तु स धा ॥ ३,१२.२ ॥
पलै कं पारदं शु ं काचकू रे ि पेत् ।
कषकं भािवतं गं धं कपू रं माषमा कम् ॥ ३,१२.३ ॥
ि ा त मु खं द् ा मृदा कूपीं च लेपये त् ।
दीपाि ना िदनं प ा ु खमुद्घाटये ुनः ॥ ३,१२.४ ॥
जीण गंधं च कपू रं द ा त जारयेत् ।
एवं शतगु णे जीण गंधकं जारये से ॥ ३,१२.५ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf सुल्fउर् }
कासीसं चैव सौरा ी स ी ारे ण मोदकम् ।
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िश ुतोयेन सं यु ं कृ ा भा मनेन वै ॥ ३,१२.६ ॥
स ाहं चूिणतं गं धं तं गंधं जारये ुनः ।
इि कागतम े तु स ु रसं ि पेत् ॥ ३,१२.७ ॥
मुखं े न व ेण छादये पृ तः ।
दशां शं गंधकं द ा ावकेण िनरोधयेत् ॥ ३,१२.८ ॥
पृ े लघुपुटं दे यं जीण गं धं पुनः ि पेत् ।
एवं शतगु णं जाय गं धकं पारदे शनैः ॥ ३,१२.९ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf प बीज}
तं रसं त ख े तु ि पे ेण गािलतम् ।
पादां शकं प बीजं द ा ैमदयेि नम् ॥ ३,१२.१० ॥
तं ि पे ारणाय े जंबीररससंयुतम् ।
तं यं ं धारयेद्घम जा रतो जायते रसः ॥ ३,१२.११ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf प बीज}
सिवडं कलये ं े िदनैकं तु पुटे पचेत् ।
जा रतं ा ुनब जं द ा जाय च पूववत् ।
जारये पु न दे वं जाय समं मात् ॥ ३,१२.१२ ॥
{मेचुय्:: सारणा wइ प बीज}
जा रतं सारणाय े ि पे ैलं वसा तम् ।
ािवतं नालमूषायां प बीजरसा तम् ॥ ३,१२.१३ ॥
त ं े धारयेदेवं सा रतो जारये सः ।
सा रतं त ुनम पू ववि डसं युतम् ॥ ३,१२.१४ ॥
जारये पे यं े जीण बीजे तु सारयेत् ।
पू वव ारणाय े बीजेन ि गुणेन वै ॥ ३,१२.१५ ॥
पु न ं जारये थैव ितसारयेत् ।
ि गुणेन तु बीजे न पूवव ारये ुनः ॥ ३,१२.१६ ॥
{मेचुय्:: मु ख:: ◌ँ ब न}
त सं तालकं तु ं तैलं ध ूरसंभवम् ।
िद ौषधीगण ावं सव म िदनाविध ॥ ३,१२.१७ ॥
व मू षा तं प ा रीषा ौ िदनाविध ।
पु निद ौषधी ावैम पा ं िदनाविध ।
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इ ेवं च पु नः कुया ूतो ब मुखो भवेत् ॥ ३,१२.१८ ॥
{रसब नम् }
तं रसं धौतमा ीकं ती णं शु ं रसः शशी ।
समां शं दे वदा ु वैम िदनाविध ॥ ३,१२.१९ ॥
ि िदनं मधु सिप ा मिदतं गोलकीकृतम् ।
व मू षागतं द् ा शो ं ती ाि ना धमे त् ॥ ३,१२.२० ॥
खिदरा ारयोगेन खोटब ो भवे सः ।
त ोटं टं कणैः काचै ः शोधये ै धम मन् ॥ ३,१२.२१ ॥
तेजःपु ो रसो ब ो बालाकस शो भवेत् ॥ ३,१२.२२ ॥
{िस े र्=> गो ् }
त सं िस केनै व वे िय ा पूजयेत् ।
शतां शं तु ु ते तारे ामणेनैव संयुतम् ॥ ३,१२.२३ ॥
त ारं जायते ण जां बूनदसम भम् ।
अ ानवितभागं ािद े वं वेधको मतः ॥ ३,१२.२४ ॥
{मेचुय्:: मु खकरण}
अथ व े रसे वािसत मुखं मात् ।
येन ोमािदवै ा ं चर ा िभषेिचतम् ॥ ३,१२.२५ ॥
अ वेतसजंबीरबीजपूरकभूखगैः ।
ि िदनं मदये ूतं भूनागै िदन यम् ।
त ख े िदनं म सूत े ं मु खं भवेत् ॥ ३,१२.२६ ॥
{मेचुय्:: मु खकरण}
म गतसमायु ं कारयेिदि का यम् ।
धा ा ं गंधकं शु ं ेकं दशिन कम् ॥ ३,१२.२७ ॥
यामं ज ीरजै ावैम तेनैव लेपयेत् ।
गत यं समां शेन धोगत सुशोिधतम् ॥ ३,१२.२८ ॥
िवंशिन ं ि पे ूतमू दे यापरे ि का ।
िल ा मृ वणै ः संिधं दी ाि ं ालयेदधः ॥ ३,१२.२९ ॥
अिव ं िदवारा ौ याव िदनाविध ।
ां गशीतं समु द्धृ रसं िक िवविजतम् ।
इ ेवं तु ि धा कुया स तु मुखं भवेत् ॥ ३,१२.३० ॥
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{मेचुय्:: मु खकरण}
वंशनाला तं सूतं भा े गोमू पू रते ।
ि स ाहं पचे ु ां सूत े ं मु खं भवेत् ॥ ३,१२.३१ ॥
{पर े ेत्wएएन् सं ारस तुअल्}
समु खे िनमुखे सू ते व ते जारणं मात् ।
ख पीतं रसो िल ं मदनं माजनं ृतम् ॥ ३,१२.३२ ॥
नानौषधीरसै ः ानं स ैब जैः पूजनम् ।
णािदर जातै उपहारं क येत् ॥ ३,१२.३३ ॥
नैवे ं र नं िद ं सारणा ाि सजनम् ।
वेधनं दे हलोहे षु स ूजािवधेः फलम् ॥ ३,१२.३४ ॥
यावि नािन व ौ तु धारणे जायते रसः ।
तावद् युगसह ािण िशवलोके महीयते ॥ ३,१२.३५ ॥
य ं िच सराज साधनाथ यो भवेत् ।
त व कोिटगुिणतं द े ी भैरवी ुवम् ॥ ३,१२.३६ ॥
साधकानां सुधीराणािमह लोके पर च ।
अतो भूपैवाितके ै ः सा ः ाद् भु मु दः ॥ ३,१२.३७ ॥
{अ :: े परितओन् fओचारण}
अक ीरे ण धा ा ं िदनं म िन च ।
कपोता े पु टे प ा ीरै यामं िवमदयेत् ॥ ३,१२.३८ ॥
द् ाधः पू वव ादे वं वारचतु यम् ।
ि धा च मूलक ावै र ाक वै धा ॥ ३,१२.३९ ॥
अपामागकाकमाचीमीना ीभृ रा ुिनः ।
पु ननवा मेघनादो िवदा रि कं तथा ॥ ३,१२.४० ॥
मादे षां वैरेव मदनं पुटपाचनम् ।
एकैकेनैकवारं च द ा त ावये ुनः ॥ ३,१२.४१ ॥
शतावरी तालमूली कदली त ु लीयकम् ।
अकः पुननवा िश ु यविच ा नु मात् ॥ ३,१२.४२ ॥
ित वै िदनैकं तु भािवतं चारणे िहतम् ॥ ३,१२.४३ ॥
{अ :: Vओबरे इतु गौf चारण}
अक ीरै ु धा ा ं यामं म िन च ।
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कपोता े पु टे प ादे वं वारां तुदश ॥ ३,१२.४४ ॥
कदली मु सली िश ु व ा ो ाकपीलुकम् ।
नागव ी कुबेरा ी भू पामागतु ः ॥ ३,१२.४५ ॥
एषामेक वं ा ं कां िजके ोमसंयुतम् ।
सवमेत पे ा े त े पाचये हम् ॥ ३,१२.४६ ॥
पू वा ं दोिलकाय े समुद्धृ ाथ शोषयेत् ।
कासीसं तुवरी िस ु ंकणं च समं समम् ॥ ३,१२.४७ ॥
सवमेत शां शं तु ि ात मदयेत् ।
िदनै कं त ख े तु ि ात मदयेत् ॥ ३,१२.४८ ॥
िदनै कं त ख े तु तद ं चारणे िहतम् ॥ ३,१२.४९ ॥
{अ :: े परितओन् fओचारण}
शतवारं ु तं नागं मु ी ावे िविनि पेत् ।
तेन ावेण धा ा ं मिदतं स धा पुटेत् ।
म म िन ाथ कपोता े पुटे पचेत् ॥ ३,१२.५० ॥
त ु ं गं धकं द ा पू व ैमु का वैः ॥ ३,१२.५१ ॥
स ै ब जपूरो ै ावैभा ं िदनाविध ।
एतद ं तु सू त चारणे परमं िहतम् ॥ ३,१२.५२ ॥
{िस मू ली}
ा पादी हं सपादी कद ि कुमा रकाः ।
बृहती ला ली व ी ख जारी वा णी ॥ ३,१२.५३ ॥
व ाकक टकी मूषा सपा ी शङ्खपु का ।
म ू की अि मथनो िव ाता िस मूिलका ॥ ३,१२.५४ ॥
एताः सम ा ा वा चो थाने िनयोजयेत् ॥ ३,१२.५५ ॥
{मेचुय्:: समु ख:: चारण ओf अ }
अथातः समु खे सूते पूवा ं षोडशां शकम् ।
द ा म त ख े िस मूली वैिदनम् ॥ ३,१२.५६ ॥
तत ं चारणायं े जंबीररससंयुतम् ।
घम धाय िदनैकं तु चर ेव न संशयः ॥ ३,१२.५७ ॥
{मेचुय्:: ल -।कोिटवेिधन्}
चा रतं ब ये े दोलायं े िदनाविध ।
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िस मूली वै यु ै ः पातना ीयते लम् ॥ ३,१२.५८ ॥
अजीण चे चे ं े क पा े िदनाविध ।
अ मां शं िवडं द ा चर ेव न संशयः ॥ ३,१२.५९ ॥
अनेन मयोगेन चाय जाय पुनः पुनः ।
जीण शतगुणे स ह ां शेन िव ित ॥ ३,१२.६० ॥
सह गु िणते जीण ल वे धी भवे सः ।
त गु णे जीण कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१२.६१ ॥
कृ ा ं वा सु वण वा यथाश ा तु जारयेत् ।
पू वव मयोगेन फलं ादु भयोः समम् ॥ ३,१२.६२ ॥
{मेचुय्:: fओ दु तओनोf िस ेर्}
अनेनैव मेणैव तारं वा ेतम कम् ।
जारये ु यथाश ा तारकमिण श ते ॥ ३,१२.६३ ॥
{मेचुय्:: मु खब न, कोिटवेिधन्}
पू वव बीजे न सारणािद यथा मम् ।
कत ं रसराज वेधनं ामणं तथा ॥ ३,१२.६४ ॥
चं ाक जारये व ता ं वा तारकमिण ।
एवं शतगु णे जीण सह ां शेन वेधयेत् ॥ ३,१२.६५ ॥
सह गु िणते जीण पू वव ारणा यम् ।
कृ ा जाय पुन ारये ि धा पुनः ॥ ३,१२.६६ ॥
इ ेवं च पु नः साय पुनः साय च जारयेत् ।
मुखब ािदवेधा ं कारये ूवव से ॥ ३,१२.६७ ॥
तेनैव ल भागे न िद ं भवित कां चनम् ।
यदा ल गुणे जीण ि धा साय च जारयेत् ॥ ३,१२.६८ ॥
इ ेवं स धा काय ब ये ततो मुखम् ।
पू वव ामणा ं च कृतोऽसौ जायते रसः ॥ ३,१२.६९ ॥
कोिटवेधी तु चं ाक स ं शं करभािषतम् ॥ ३,१२.७० ॥
{मेचुय्:: िनमुख:: चारण}
अथ िनमु खसू त व े चारणजारणे ।
शु सू ते तु वै ां तं मा रतं षोडशां शकम् ॥ ३,१२.७१ ॥
ि ा म त ख े िस मूलीरसै हम् ।
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सं ारे ण नेनैव िनमुख रित ुवम् ॥ ३,१२.७२ ॥
{मेचुय्:: चारण:: िनमु ख}
अथवा त ख े तु भूलतासंयुतं रसम् ।
मदये िदनं प ा ा ं पातनय के ॥ ३,१२.७३ ॥
सं ारे ण नेनािप िनमुखं चरित णात् ॥ ३,१२.७४ ॥
{मेचुय्:: जारण:: िनमुख}
अ ैव जारणायो ो ोमसं ार उ ते ।
धा ा म वगण दोलायं े हं पचेत् ।
ुही ीरै तो म यामै कं चा तं धमेत् ॥ ३,१२.७५ ॥
कपोता पुटैकेन तमादायाथ मदयेत् ।
मूलकं कदलीक ं मीना ी काकमािचका ॥ ३,१२.७६ ॥
मुिनरा कवषाभूमेघनादापामागकम् ।
एर वैरेषां पृ थ े यं पुटं लघु ॥ ३,१२.७७ ॥
दोलायं े ततः प ा ी ीरै िदनाविध ।
वचा िन ं धू मसारं कासीसं च सुचूिणतम् ॥ ३,१२.७८ ॥
अ षोडशां शेन े कं िम ये तः ।
मदये ा ख े तु चणका ैिदनाविध ॥ ३,१२.७९ ॥
नवसारै रयःपा ं ले पये िनि पेत् ।
पारदं सािधतं सा ं चणका ं च कां िजकम् ॥ ३,१२.८० ॥
मृ ि ना पचे ु ां रस रित त णात् ।
जारये ूवयोगे न तत ाय च जारयेत् ॥ ३,१२.८१ ॥
मा ा यु यथापूव सेयं िनमुखजारणा ।
कृ ा कं सुवण च जाय ा े मकमिण ॥ ३,१२.८२ ॥
तारं वा ेतम ं वा जाय ा ारकमिण ।
सारणािद ामणा ं यथापूव तु जारयेत् ॥ ३,१२.८३ ॥
कत ं सू तराजे तु त वित कां चनम् ।
ेतेन जारये ेतं यथाबीजं तथाङ् कुरम् ॥ ३,१२.८४ ॥
ो ं यथा सुगमसािधतपीतगं धं कृ ा हे मरजतं िसतम कं च ।
संसाय त सवरे वरवाितके ः कुया हाकनकभारसह सं म् ॥ ३,१२.८५ ॥

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३, १३
योगफलिस दं ु वं पारद वरजारणे िहतम् ।
स पातनमनेकयोगतो ं मेलमिभषेकमायकम् ॥ ३,१३.१ ॥
{अ :: शोधन}
मु ा ाथे न स ाहं कुया ा ा कं ुतम् ।
िश ुसूरणर ानां कंद ैक च वैः ॥ ३,१३.२ ॥
पे टारीमू लजंबीर ावैवा ं प र ुतम् ।
इ ं ुत ा क पादां शं टं कणं ि पेत् ॥ ३,१३.३ ॥
िदनै कं मदये े यु म ेन केनिचत् ॥ ३,१३.४ ॥
{का लोह, माि क, उपरस:: स :: पातन}
गु ागु ुलुला ोणासज सजरसं गु डम् ।
ु मीनं यव ारं काचिप ाकसूरणम् ॥ ३,१३.५ ॥
भूलता ि फला वि ः ीरक ं पुननवा ।
ध ूरो ला ली पाठा बला गं धकित कम् ॥ ३,१३.६ ॥
गो ीरं पं चलवणं सपवृ ि किवषं मधु ।
षड् िब दु ः ु श ूकम थीिन शशक च ॥ ३,१३.७ ॥
पारावतमलं ूषिमं गोपं च िश ुकम् ।
गोधू मं सषपं तु ं छागीदु ेन मदयेत् ॥ ३,१३.८ ॥
एत ं सम ं वा याममा ेण िप तम् ।
अ िप भागैकं ि भागं शोिधता कम् ॥ ३,१३.९ ॥
प मािहषभागैकं सवमेक लोलयेत् ।
कषाशा विटकाः कायाः िकंिच ायािवशोिषताः ॥ ३,१३.१० ॥
खिदरा ारसंत े को ीय े ि पन् ि पन् ।
विटकाः प प ैव व नालेन संधमन् ॥ ३,१३.११ ॥
समा ौ िक मादाय ोटये ा शीतलम् ।
वतुलं स मादाय शेषिक ं िवचूणयेत् ॥ ३,१३.१२ ॥
चूणादध पूविप ं त ािहषप कम् ।
एकीकृ धमे ंत माहरे त् ॥ ३,१३.१३ ॥
इ ेवं च पु नः कुया धा स ं िवमु ित ।
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अनेन मयोगेन का स ं च माि कम् ॥ ३,१३.१४ ॥
किठनोपरसा ा े शु ा भूनागमृ ि का ।
मु स संघातं ाहये ृथ ृथक् ॥ ३,१३.१५ ॥
{अ :: स :: मृदूकरण}
अ स ं समादाय समां शं काचटं कणम् ।
द ा द ा ि वारं तु व मूषागतं धमेत् ॥ ३,१३.१६ ॥
अ वग ुहीप ं िच ाबीजं सव लम् ।
क ये त ं स वारं िनषेचयेत् ॥ ३,१३.१७ ॥
मृदुशु ं भवे ं स वारं िनषेचयेत् ॥ ३,१३.१८ ॥
{अ :: स :: पातन}
धा ा ं दशभागं ा शु नागं ि भागकम् ।
टं कणं माि कं सूतं भागैकैकं सुशोिधतम् ॥ ३,१३.१९ ॥
ऊणा सज यव ारं भागं भागं िविम येत् ।
म मू ा वगा ां यथा ा ं िदनाविध ॥ ३,१३.२० ॥
अजाप ा संयु ं पूवव पातनम् ।
कृ ादाय मृ दु सा ाि मलं योजयेदधः ॥ ३,१३.२१ ॥
{माि क:: स म् :: पातन}
दोलायं े सारनाले माि कं ेदयेि नम् ।
चूिणतं मधु सिप ा लोहपा े िदनं पचेत् ॥ ३,१३.२२ ॥
आदाय भावयेद्घम व ी ीरै िदनाविध ।
गृहधू मैघृतैः ौ ै ः संयु ं मदयेि नम् ॥ ३,१३.२३ ॥
अंधमू षागतं ातं स ं गुंजािनभं भवेत् ॥ ३,१३.२४ ॥
{माि क:: स :: पातन}
कदलीकंदतोयेन माि कं शतधातपे ।
भािवतं पाचये ामं सा ैवाता रतैलकैः ।
पू वव मना िमं गोपिनभं भवेत् ॥ ३,१३.२५ ॥
{माि क:: स म् :: पातन}
ु कपयसा ैमाि कं मदयेि नम् ।
कंकु ं टं कणं चैव ितपादां शिमि तम् ॥ ३,१३.२६ ॥
मूकमूषागतं ातं स ं मिणिनभं भवेत् ॥ ३,१३.२७ ॥
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{माि क:: स :: पातन}
कदलीकंदतुलसीजंबीराणां वैः मात् ।
भावये ाि कं णं ित ावेण स धा ।
द् ा ाते पते ं शुकसंिनभं शुभम् ॥ ३,१३.२८ ॥
{माि क:: स :: पातन}
मू वगा वग ि स ाहं िवभावयेत् ।
माि कं ती घमण िदनैर ै मदयेत् ॥ ३,१३.२९ ॥
िम प कसंयु ैवटी कृ ा धमे द् ढम् ।
ोमव ं कनालेन स ं शु िनभं भवेत् ॥ ३,१३.३० ॥
{माि क:: स :: पातन}
ै ः कङ्कु कै ैव कदलीतोयसं युतैः ।
िम पं चकसंयु ैमाि कं िदनस कम् ॥ ३,१३.३१ ॥
भािवतं मदये ामं िदनं वाता रतैलकैः ।
मृ ि ना पचे ामं याव वित गोलकम् ।
स ं िकंशुकपु ाभं ोमव मना वेत् ॥ ३,१३.३२ ॥
{िवमल:: स :: पातन}
िवमलानां च शु ानां स या ा वि िधः ॥ ३,१३.३३ ॥
{माि क:: स :: धौतस }
सुशु ं माि कं चूण म म ेन केनिचत् ।
ालयेदारनालै ु ध थं णचूणवत् ॥ ३,१३.३४ ॥
जायते त मुद्धृ धौतस िमदं भवेत् ।
योजये ापने चैव बीजानां य य वै ॥ ३,१३.३५ ॥
{माि क:: स :: पातन}
माि कं प िम ा ं स ाहा े वटीकृतम् ।
पू वव मनेनैव स ं ला ािनभं भवेत् ॥ ३,१३.३६ ॥
{मनःिशला:: स :: पातन}
अग िश ुजै ोयै हं भा ा मनःिशला ।
तालकौषधयोगे न स ं हे मिनभं भवेत् ।
{मनःिशला:: स :: पातन}
गोमू ैमातुलु ा ैिदनं भा ा मनःिशला ।
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तां र पीतपु ाणां रसैः िप ै भावयेत् ॥ ३,१३.३७ ॥
िदना े मदये ामं िम पंचकसंयुतम् ।
गुिटकां काचकू ःि ा तां काचकूिपकाम् ।
सवतोऽङ्गु लमाने न व मृि कया िल ेत् ॥ ३,१३.३८ ॥
शु ां तां वालुकायं े शनैमृ ि ना पचेत् ।
शु े वे िन ाथ स ृ वणैमुखम् ॥ ३,१३.३९ ॥
च ाि ना पचे ाव ाव ् वादशयामकम् ।
ां गशीतं समु द्धृ िभ ा कूपी ं समाहरे त् ॥ ३,१३.४० ॥
ऊ ल ं िशलास ं बालाकिकरणोपमम् ॥ ३,१३.४१ ॥
{ह रताल:: स :: पातन}
भागाः षोडश ताल िवषं पारदटं कणम् ।
ेता बं गयो ूण ितभागं िविम येत् ॥ ३,१३.४२ ॥
सव ु कपयसा मदयेि वस यम् ।
िशलाव ाहये ं तालका फिटकोपमम् ॥ ३,१३.४३ ॥
{ह रताल:: स :: पातन}
ु ीरकटु तु ु ै ालं भा ं ि स धा ॥ ३,१३.४४ ॥
ितलसषपिश ूिण लवणं िम पंचकम् ।
एिभ ु ं पूवतालं िदनमे कं िवमदयेत् ॥ ३,१३.४५ ॥
िछ मूषागतं ातं भू धरे स माहरे त् ॥ ३,१३.४६ ॥
{ह रताल:: स :: पातन}
ला ा राजी गुडं िश ु ंकणं लवणं ितलाः ।
एिभ ु ं शु तालं मदये िवदु कैः ॥ ३,१३.४७ ॥
िदनं वा वि णीदु ैः कु ा वै था ।
तेन क े न िल ां त मूषां िनरोधयेत् ॥ ३,१३.४८ ॥
पु टा ा धमना ा ं स ं पातालय के ॥ ३,१३.४९ ॥
{ह रताल:: स :: पातन}
तालकाद मां शेन दे यं सूतं च टं कणम् ।
कु ा रसै ः ु ाः ीरै म िदन यम् ।
त ोलं िछ मूषां त ा ं स ं च पूववत् ॥ ३,१३.५० ॥
{तु :: स :: पातन}
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ला ाभया च भूनागं गृ हधूमं जटाकणा ।
िनशाटं कणम ा ा ेिभ ु ं च तु कम् ॥ ३,१३.५१ ॥
सव म मजा ीरै र मू षागतं धमेत् ।
स ं िकंशुकपु ाभं जायते ना संशयः ॥ ३,१३.५२ ॥
{तु :: स :: पातन}
ह र ासू रणा ो ं त ु ली गंधकं गुडम् ।
म ा टं कणं तु ं तु मेिभः समं भवेत् ॥ ३,१३.५३ ॥
े न मदये व िछ मूषां िवलेपयेत् ।
द् ा पातालयं ेण ाते स ं िवमु ित ॥ ३,१३.५४ ॥
{तु :: स :: पातन}
तु टं कणं पादं चूणये धुसिपषा ।
तु ेन िमि तं ातं को ीय े ढाि ना ।
धािमते मु ते स ं कीरतु सम भम् ॥ ३,१३.५५ ॥
{वरनागस }
सौवीरं ती णचूण च मूषायाम ये मम् ।
हठाद् ाते भवे ं वरनागं तदु ते ॥ ३,१३.५६ ॥
{रसक:: स :: पातन}
ारा ं ेहिप ै मा ा ं िदनं िदनम् ।
पु ाणां र पीतानां रसैभा ं िदन यम् ॥ ३,१३.५७ ॥
रसकं चूणये ादू णा ला ा िनशाभया ।
टं कणं िश ु धूमं च भूनागं स मं भवेत् ॥ ३,१३.५८ ॥
एिभः समं तु त ूणमजा ीरे ण मदयेत् ।
याममे तेन क े न ले ा वाताकमूिषका ॥ ३,१३.५९ ॥
शु ा चाधमुखा ारै ाते स ं समाहरे त् ॥ ३,१३.६० ॥
{रसक:: स :: पातन}
रसक ैकभागं तु ि फलािम पंचकम् ।
रजनीगृहधू मं च दशानामेकभागकम् ॥ ३,१३.६१ ॥
अजा ीरै िदनं म मथवा ेन केनिचत् ।
पू वव ाहये ं रसका ु िटल भम् ॥ ३,१३.६२ ॥
{वै ा :: स :: पातन}
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व ाचूण च वै ां तं छायाया मदये मम् ।
अजामू ैिदनै कं तु स ं रजतव वेत् ॥ ३,१३.६३ ॥
{वै ा :: स :: पातन}
मो मोरटपालाश ारं गोमू गािलतम् ।
गृहीतमातपे शु ं व क ं च टं कणम् ॥ ३,१३.६४ ॥
ला ा िश खिशखातु ं वै ां तं सवतु कम् ।
मेष ंगी वै म मेत व िदनाविध ॥ ३,१३.६५ ॥
िप तं मूकमू षां तः कृ ा धा ं हठाि ना ।
त ैव मु ते स ं वै ां तं रसब कम् ॥ ३,१३.६६ ॥
{वै ा :: स :: पातन}
वै ां तानां पलैकं तु कषकं टं कण च ।
रिव ीरै िदनं भा मथ िश ु वैिदनम् ॥ ३,१३.६७ ॥
गुंजािप ाकव ीनां ितकष िनयोजयेत् ।
एतेन गु िलकां कृ ा को ीय े धमेद् ढम् ॥ ३,१३.६८ ॥
शं खकु े दु संकाशं स ं वै ां तजं भवेत् ॥ ३,१३.६९ ॥
{वै ा :: स :: पातन}
वै ां तं व कंदं च समं ु यसा समम् ।
मिहषीनवनीतं च स ौ ं मदयेि नम् ।
पू वव मना िमं गोपिनभं भवेत् ॥ ३,१३.७० ॥
{गै रक:: स :: पातन}
गै रकं र वगण पीतवगण भािवतम् ।
स ाहं मदये ामं िम पंचकसंयुतम् ।
त टी कोि कायं े स ं मु ित िनमलम् ॥ ३,१३.७१ ॥
{सौरा ी:: स :: पातन}
िसता िसता च सौरा ी गोिप ैभावये ु ताम् ।
शतवारं य ेन िम पंचकसंयुतम् ।
धमना ु ते स ं ामकं कोि यं के ॥ ३,१३.७२ ॥
{स क:: स :: पातन}
स कं चूिणतं भा ं िदनं शशकर कैः ।
ीमू ैवाथ गोमू ै ादां शां िनशां ि पेत् ।
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म करं जतैलेन यामै कं गोलकं च तत् ॥ ३,१३.७३ ॥
अंधमू षागतं धा ं घिटकाध ढाि ना ।
इं गोपकसंकाशं स ं मु ित शोभनम् ॥ ३,१३.७४ ॥
{कासीस:: स :: पातन}
चतुिवधं तु कासीसं र ं पीतं िसतािसतम् ।
मदये वगण ित कोशातकी वैः ॥ ३,१३.७५ ॥
कासमद वै ैव िम पं चकसंयुतैः ।
त टीः कोि कायं े ाते स ं िवमु ित ॥ ३,१३.७६ ॥
{राजावत:: स :: पातन}
राजावतमयः पा े पाचये ािहषैघृतैः ।
पयोिभ िदनं प ा पंचकसंयुतम् ॥ ३,१३.७७ ॥
रज ाः प ग ेन िप ीब ं तु कारयेत् ।
खिदरां गारसं योगा ो ां स ं िवमु ित ॥ ३,१३.७८ ॥
{ ोतो न:: परी ा}
व ीकिशखराकारं भ े नीलो लद् युित ।
घषणे गै रक ायं ोतोंजनिमदं भवेत् ॥ ३,१३.७९ ॥
{ ोतो न:: स :: पातन}
राजावतकव ं ा ं ोतोंजनादिप ॥ ३,१३.८० ॥
{ म्. ओf ोमस अ नेर ्}
ोमस चूण तु य ं िच ातुचूणकम् ।
मे लापिल ायां मू षायां त ् वयं समम् ॥ ३,१३.८१ ॥
ात म रवगण ि े िमलित त णम् ॥ ३,१३.८२ ॥
{स :: मेलापन}
िवषं ट णगुं जा खु रं ं च भेषजम् ।
म ू कवसया िप ा मूषालेपं तु कारयेत् ॥ ३,१३.८३ ॥
त ां िमलित स ािन चूणािन िविवधािन च ।
{ मेल्.:: लेप fओर्ँ }
ि ारं धातकीपु ं गु ुलुं च समं समम् ।
ी ै ः पे िषतो लेपो ं मेलापने िहतः ॥ ३,१३.८४ ॥
{सवस मे लापन (२)}
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वषाभूः कदलीकंदः काकमाची पुननवा ।
गुंजा नरकपालं च टं कणं पेषये मम् ।
अनेन पू वव ेपा े मा ं िमलित णात् ॥ ३,१३.८५ ॥
{मेलापन:: मे त ्, स अनोमहारसस्}
तारं च ोमस ं च अने नैव तु मे लयेत् ।
ला ली चमरीकेशा ु शकापासयोः फलम् ॥ ३,१३.८६ ॥
भूलतािमं गोपं च पाषाणभेिदका समम् ।
नारी े न सं पे मूषालेपं तु कारयेत् ॥ ३,१३.८७ ॥
सवलोहािन स ािन तथा चैव महारसाः ।
िमल ना सं देह ी ानानलेन तु ॥ ३,१३.८८ ॥
{ मेलापक}
िवषं छु छु रीमां सं टं कणं समपेिषतम् ।
मूषाले पमने नैव कृ ा त िविनि पेत् ।
य ं िच ् वं योगं तु धमनेन िमल लम् ॥ ३,१३.८९ ॥
{ मेलापक}
कङ्गु णीतैलस मपामाग भ कम् ।
तेन िल ायां ं ं ि ा धमे ठात् ।
िमल े व न संदेह ारकवापनात् ॥ ३,१३.९० ॥
{अ :: ोदु तओनोf अ -मेतल्-चो ोउ ् स्}
हे मा ं नागता ा ं शु ा ं गंधकेन च ।
िस ू िहं गुला ां तु ती णा ं धमनाद् ढम् ॥ ३,१३.९१ ॥
नागा ं िशलया यु ं व ा ं तालकेन च ।
तारा ं बंगताला ां तालव वस कम् ॥ ३,१३.९२ ॥
{अ :: व ा }
िमल े व न संदेहः पू वमूषागतं णात् ।
ेता क स ं तु व चूण समं समम् ॥ ३,१३.९३ ॥
कदलीकंदतोयेन मदये ं कणैः सह ।
अंधमू षागतं ातं व ा ं िमलित णात् ॥ ३,१३.९४ ॥
{अ :: व ा }
गुंजा नरकपालं च टं कणं वनिश ुकम् ।
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ी े न समं िप ा मूषालेपं तु कारयेत् ॥ ३,१३.९५ ॥
बंगं ेता स ं च चूिणतं त िनि पेत् ।
द् ा ाते िमल ेव तारकमिण जारयेत् ॥ ३,१३.९६ ॥
{अ :: व ा }
अ स ं िवचू ादौ त ादां शं तु टं कणम् ।
पारदं टं कणां शं च काकमाची वैिदनम् ॥ ३,१३.९७ ॥
िप ा त ोलकं पे म ां शैव प कैः ।
पू वमू षागतं ातं व ा ं िमलित णात् ॥ ३,१३.९८ ॥
{अिभषेक (१)}
स गाविततं नागं पलैकं कां िजके ि पेत् ।
पलानां शतमा े तु शतवारं ु तं ु तम् ॥ ३,१३.९९ ॥
अनेन कां िजकेनैव शतवारं िवभावयेत् ।
य ं िच ारणाव ु तत ं जारये से ।
अिभषे को यं ातः क ते तु मता रम् ॥ ३,१३.१०० ॥
{अिभषेक (२)}
ि ारं पं चलवणं का ीकासीसगंधकम् ।
मािहषं कां िजकैयु ं ता पा े िदन यम् ॥ ३,१३.१०१ ॥
थतं घम पुन न् ु तं नागं िविनि पेत् ।
तारकमिण बंगं वा शतवारािण सेचयेत् ॥ ३,१३.१०२ ॥
तद् वं ता पा थमिभषेकं िवदु बुधाः ।
अनेन चारणाव ु शतवारािण भावयेत् ॥ ३,१३.१०३ ॥
{सारणायां सं केतः}
ं ि तं ोमस ं च बीजािन िविवधािन च ।
ं ि तं व बीजं च भािवतं सारये दा ॥ ३,१३.१०४ ॥
णािद लोहम खलं कृतशु चूण यो ं पृथ गनस वरे समां शम् ।
त ् वंि तं चरित सू तवरोऽिभिष ं िव ो यथा मधुरपायसमा यु म् ॥ ३,१३.१०५ ॥

३, १४
सूतेन स रिचतेन च जा रतेन प ा बीजगुणसं सुसा रतेन ।
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िव ाय य ु मितमान् स तु वाितके ं ाकवेधिविधना कनकं करोित ॥ ३,१४.१ ॥
{मेचुय्:: चारण}
ण नागं समाव माषमा ं तु घषयेत् ।
त ख े तत लमेकं रसं ि पेत् ॥ ३,१४.२ ॥
िस मूली वं द ा मदये ां िजकैिदनम् ।
घम वा त ख े वा ततो ासं तु दापयेत् ॥ ३,१४.३ ॥
चतुःष ंशकं पू व ं ं स ं िवभािवतम् ।
द ा म िदनैकं तु चारणायं के ि पेत् ॥ ३,१४.४ ॥
सज ीरै िदनं घम धा रतं चरित ुवम् ॥ ३,१४.५ ॥
{मेचुय्:: जारण}
जारणं ि ारं पं चलवणम वग ुहीपयः ।
गोमू ैल लये व तेन व ं घनं िलपेत् ॥ ३,१४.६ ॥
त े जा रतं सूतं बद् ा भूजन वे येत् ।
िस मू संयु ं दोलायं े हं पचेत् ॥ ३,१४.७ ॥
उद् धृ ो ारनालेन ालये ोहपा के ।
व पूतं ततः कृ ा सो पा े िवमदयेत् ॥ ३,१४.८ ॥
ह ेनैव भवे ाव ुधौतं पारदं पुनः ।
चतुगुणे न व ेण ालयेि मलो भवेत् ॥ ३,१४.९ ॥
अजीण च पुनम म ं द ा िदनाविध ।
दोलायां ेदये वे ीण न संशयः ॥ ३,१४.१० ॥
{मेचुय्:: े परितओन् fओ ासन}
इि का गु डद ोणा गृ हधूमं च सिजका ।
सधवेन युतं सव षोडशां शं रस तु ॥ ३,१४.११ ॥
द ा ततोऽ वगण घम म िदनाविध ।
इि काद वगण दोलायं े िदनं पचेत् ।
जीण जीण दं कुया ास ाही भवे सः ॥ ३,१४.१२ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf बीजस्}
ाि ंशां शं ततो ासं द ा चाय च जारयेत् ।
पू वव ेदना ं च कृ ा ासं तृतीयकम् ॥ ३,१४.१३ ॥
षोडशां शं दात ं त ीण चा मां शकम् ।
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जारये ूवयोगे न ेवं ासचतु यम् ॥ ३,१४.१४ ॥
ततः क पय ेण जारये ि ग ते ।
ऊ ाध ा मां शेन ासे ासे िबडं ि पेत् ॥ ३,१४.१५ ॥
चतुथाशं ततो ासं ासं दे यं समं पु नः ।
जीण जीण समं दे यमेवं जाय च षड् गुणम् ॥ ३,१४.१६ ॥
रागाणां हणाथ च ासे ासे तु पूववत् ।
इ ेवं ं योगानां स ानां च िवशे षतः ॥ ३,१४.१७ ॥
णािदसवलोहानां बीजानां जारणािहतम् ।
कत ं व ते त मा ायु पूववत् ॥ ३,१४.१८ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf स्}
अभावे ोमस का पाषाणस कम् ।
ती णपाषाणस ं वा ं ि तं ोमस वत् ॥ ३,१४.१९ ॥
जारये ूवयोगे न सवषां ा लं समम् ।
इ ेवं षड् गुणं ं ं य ं िच ारये से ॥ ३,१४.२० ॥
{िस बीज:: ेपरितओन्}
जा रतं िस बीजेन सारये ि ग ते ।
ता स ं घोषता ं शु हे म समं समम् ॥ ३,१४.२१ ॥
आव ं िल ायां मू षायाम तं पुनः ।
समु द्धृ पु नधा ं मूषायां कटं धमे त् ॥ ३,१४.२२ ॥
माि का ौतस ं च ोकं ोकं िविनि पेत् ।
णशे षं भवे ाव ाव ा ं च त ुनः ॥ ३,१४.२३ ॥
पू वव धमे ाव ाव णावशे िषतम् ।
ता स ेन ता ेण ं मेवं पुनः पुनः ॥ ३,१४.२४ ॥
षड् वारं धमने नैव ा ं णावशे िषतम् ।
िस बीजिमदं ातं दािडमीपु व वेत् ॥ ३,१४.२५ ॥
अनेन िस बीजेन पूवव ारणा यम् ।
कृ ाथ जारये ीण बद् ा मुखं तथा ॥ ३,१४.२६ ॥
ब नं शोधनं चैव ामणं चैव पू ववत् ।
चं ाक ािवते यो ं सह ां शेन कां चनम् ॥ ३,१४.२७ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf सुल्fउर् }
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अथातः शु सूत जारणे पूवभािवतम् ।
अथ शु स जारये ूवभािषतम् ।
गंधकं तु तुलाय े प ा व स लम् ॥ ३,१४.२८ ॥
मुखनाला ता ऊ व ा ा ् वादशाङ् गु ला ।
ढा लोहमयी कुयादनया स शी परा ॥ ३,१४.२९ ॥
एक ां िनि पे ूतम ां गं धकं समम् ।
एक ा मु खम े तु पर ा मुखं ि पेत् ॥ ३,१४.३० ॥
िल ा मृ वणै ः संिधं गंधकाधः पुटं लघु ।
रस ाधो जलं था ं गं धधूमं िपब लम् ॥ ३,१४.३१ ॥
जीण गंधे समुद्घा तु ं गं धं च दापयेत् ।
इ ेवं षोडशगुणं गं धं जाय पुनः पुनः ॥ ३,१४.३२ ॥
जा रतः सू तराजोऽयं वासनामु खतो भवेत् ॥ ३,१४.३३ ॥
{मेचुय्:: वासनामु खत:: ?}
ोमस ं ता स ं शु ं शु ं समं समम् ।
आव ं िल ायां मू षायामथ चूणयेत् ॥ ३,१४.३४ ॥
भावयेदिभषेकेण पू वव शतवारकम् ।
पू वव ारयेदेत ासनामु खते रसे ॥ ३,१४.३५ ॥
त ाय य ेन याव वित षड् गुणम् ।
त ूते सा रतं जाय िस बीजं तु पूववत् ॥ ३,१४.३६ ॥
मुखं च बंधनं कृ ा वे धाया ं दापयेत् ।
ामणेन समायु ं चं ाक कां चनं भवेत् ।
सह ां शेन त ं रसोऽयं काम पकः ॥ ३,१४.३७ ॥
{िस े र्=> गो ् }
पू वव शु सू त पू वसं ृ तगंधकम् ।
जारये षड् गुणं स ुलायं ेण पूववत् ॥ ३,१४.३८ ॥
ित कोशातकी ावं लां गली ावसंयुतम् ।
दापये ूवसूत ख े म िदनाविध ॥ ३,१४.३९ ॥
पादां शं प बीजं च चारिय ाथ जारयेत् ।
पू ववि डयोगेन एवं जाय सम मात् ॥ ३,१४.४० ॥
ि धाथ प बीजं तु सारिय ाथ जारयेत् ।
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तारे वेधं शतां शेन दापये ा नं भवेत् ॥ ३,१४.४१ ॥
{शतां शिविध; ोदु तओनोf गो ् }
तारं ाद ानवितभागाः ण भागकम् ।
भागै कं वेधकं सूतं सं ेयं शतवेधके ॥ ३,१४.४२ ॥
{गो ् :: ोदु तओन्}
रसक तु य ं चू िणतं वािभषेिकतम् ।
पू वव मयोगेन रसे चाय च जारयेत् ॥ ३,१४.४३ ॥
यावद गु णं प ा मं कृ ा स कम् ।
चाय जाय मेणैव प बीजं चतुगुणम् ॥ ३,१४.४४ ॥
जारये पु नः सू ते क पा े िवडा ते ।
राग हणपय ं कृ ा ा तं रसम् ॥ ३,१४.४५ ॥
उ मुिनप ािण रजनी काकमािचका ।
धा ा ैः पे षये ु ं तद् वैमदये सम् ॥ ३,१४.४६ ॥
स ाहं त ख े तु क पे तु िदनं पचेत् ।
ततो िद ौषधैरेव मदयेि वस यम् ॥ ३,१४.४७ ॥
तं द् ा व मू षायां ि िदनं तुषवि ना ।
ेिदतं च पु नम त ु द् ा धमे द् ढम् ॥ ३,१४.४८ ॥
कु ु टा िनभं ब ं जायते चूणये ुनः ।
पु वम िदनै कं चा ये ुनः ॥ ३,१४.४९ ॥
पचे जपुटेऽ े वं दे यं पु टचतु यम् ।
वृि का ा वै रेवं त ुटचतु यम् ॥ ३,१४.५० ॥
कुंकुमसु रसेनैव त ुटचतु यम् ।
मातुलु रसे नैकं पु टं द ा समाहरे त् ॥ ३,१४.५१ ॥
सह ां शेन तेनैव तं शु ं तु वेधयेत् ।
शु ं वा ािवतं नागं वेधं ा ामणेन वै ।
त व जायते ण दे वाभरणमु मम् ॥ ३,१४.५२ ॥
{बीज:: ओf गो ् }
णाक ती णनागं च स ा क च ।
वै ां त च स ं च चूण कुया मं समम् ॥ ३,१४.५३ ॥
मे लापिल ायां मू षायाम तं धमेत् ।
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समु द्धृ तु त ोटं मू षायां कटं धमे त् ॥ ३,१४.५४ ॥
वापो माि कचूणन द े दे यः शनैः शनैः ।
याव णावशे षं ादकायां दापये ुनः ॥ ३,१४.५५ ॥
पू वव मयोगेन धमे णावशे िषतम् ।
इ ेवं च पु नः कुया ायते णबीजकम् ॥ ३,१४.५६ ॥
{बीज:: fरों गो ् }
अ स ायसं ता ं चूण कृ ा समं समम् ।
शु ता चूण च ता ि गुणं भवेत् ॥ ३,१४.५७ ॥
मूषायां ं िल ायां द् ा ती ाि ना धमे त् ।
त ोटं सू चूण च द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,१४.५८ ॥
एवं प पुटैः प ं ु ते ण च वाहयेत् ।
धमे कटमू षायां याव शगुणं शनैः ॥ ३,१४.५९ ॥
ता चूण दात ं िकंिच ं िच ु वापयेत् ।
णशे षं समुद्धृ ािददं णबीजकम् ॥ ३,१४.६० ॥
{च ाक => गो ् }
णबीजं समं सूते जारयेद स वत् ।
तत ेन शतां शेन मधु ना ेन लेपयेत् ॥ ३,१४.६१ ॥
समं चं ाकप ािण वे ये ाकप कैः ।
दोलायं े सारनाले दशाहं पाचये नैः ॥ ३,१४.६२ ॥
उद् धृ ावतये ािन िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१४.६३ ॥
{बीज:: fरों गो ् }
मृतती णाकभागं च ता चूण समम् ।
एत ा ं ु ते ण याव शगुणं शनैः ।
णशे षं समादाय ािददं णबीजकम् ॥ ३,१४.६४ ॥
{बीज:: fरों गो ् }
ती णं कां तं मृतं चैव शु ं तारं समं समम् ।
मूषायां ं िल ायां द् ा ती ाि ना धमे त् ॥ ३,१४.६५ ॥
त ोटं ािवते ण वा ं दशगुणैः शनैः ।
पू वव ा चूणन णबीजिमदं परम् ॥ ३,१४.६६ ॥
{िस े र्=> गो ् }
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यथे ं णबीजै कं पादां शं जारये से ।
पू वव मयोगेन स बीजेन सारयेत् ॥ ३,१४.६७ ॥
सा रते जारये दनुसायण जारयेत् ।
ितसाय ततो जाय मुखं बद् ा च ब येत् ॥ ३,१४.६८ ॥
प ां शं दशयोगे न तारे वेधं दापयेत् ।
ामणेन समायु ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१४.६९ ॥
{िस े र्=> गो ् }
नागं रसकस ं च ता ं भागं मो रम् ।
ािपतं वाहये ण षड् गुणं वापये नैः ॥ ३,१४.७० ॥
णशे षं तु त ाय समां शं पारदे मात् ।
यथापूव मारणािदबंधना ं च कारयेत् ॥ ३,१४.७१ ॥
अनेन षि भागेन पूवव ां चनं भवेत् ॥ ३,१४.७२ ॥
{च ाक => ण}
ता े न मारये ु ं यथागंधेन मा रतम् ।
त ा ं वाहये ागे मूषाम े धमन् धमन् ॥ ३,१४.७३ ॥
शनै ः शतगु णं याव ा चूण ि प पन् ।
त ा ं वाहये ण ाि ंशद् गु िणतं मात् ॥ ३,१४.७४ ॥
णशे षं तु त ीजं समां शं जारये से ।
अनेनैव तु बीजे न सारये ारये ुनः ॥ ३,१४.७५ ॥
पू वव मयोगेन बं धना ं च कारयेत् ।
ामणेन समायु ं सह ां शेन वेधयेत् ।
चं ाक जायते ण दे वाभरणमु मम् ॥ ३,१४.७६ ॥
{िस े र्=> गो ् }
रसका कयोः स ं ता चूण मो रम् ।
मूषायां ं िल ायां द् ा ाते समु रन् ॥ ३,१४.७७ ॥
त ोटां शं ता चूण द ा चा ेन मदयेत् ।
द् ा लघुपुटे प ादे वं प पुटैः पचेत् ॥ ३,१४.७८ ॥
त ूण वाहये ण धा माने शनैः शनै ः ।
सह गु िणतं याव ीजं जारये से ॥ ३,१४.७९ ॥
याव तगु णं य ादनेनैव तु सारयेत् ।
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जारणं सारणं चैव बंधना ं च पूववत् ॥ ३,१४.८० ॥
कृ ाथ ल भागेन तारं भवित कां चनम् ॥ ३,१४.८१ ॥
{िस े र्=> गो ् }
अ स ं रिवं नागं मवृ ा िवचूणयेत् ।
मूषायां ं िल ायां द् ा ती ाि ना धमे त् ॥ ३,१४.८२ ॥
त मं ता चूण तु सवम ेन मदयेत् ।
द् ा प पु टैः प ा ूण वाहयेद् ु तम् ॥ ३,१४.८३ ॥
ण शतं याव ाव ण च जारयेत् ।
यु ा शतगुणं याव धानेनैव सारयेत् ॥ ३,१४.८४ ॥
सा रते जारणं कुया ं धना ं च पूववत् ।
अयु तां शेन तेनैव तारं भवित कां चनम् ॥ ३,१४.८५ ॥
{च ाक => गो ् }
अथवा पू वचूण तु सह गुिणतं ु ते ।
ण वा ं मे णैव त ीजं जारये से ॥ ३,१४.८६ ॥
सह गु िणतं याव धा तेनैव सारयेत् ।
सा रतं जारये ा ुनः साय च जारयेत् ॥ ३,१४.८७ ॥
स ङ्खिलकायोगा ा रतं जारयेद्बुधः ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा कोिटवेधी भवे सः ।
ामणेन समायु ं चं ाक कां चनं भवेत् ॥ ३,१४.८८ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
िवमला तालकं ती णं भागवृ ा िवचूणयेत् ।
मूषायां ं िल ायां त ोटं सुिवचूणयेत् ॥ ३,१४.८९ ॥
अ ैम पु टे प ािद ेवं पंचधा पुटेत् ।
तारे दशगु णं वा ं तालचूण ि प पन् ॥ ३,१४.९० ॥
एत ीजं समं सूते जारये ूवव मात् ।
तत ु तारबीजे न सारये ारणा यम् ॥ ३,१४.९१ ॥
तेनैव तु शतां शेन ु तं ता ं तु वेधयेत् ।
शं खकुंदे दु संकाशं तारं भवित शोभनम् ॥ ३,१४.९२ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
मृतबं गं तालस ं समं चूण क येत् ।
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ि र गुिणतं तारे वाहये ं धमन् धमन् ॥ ३,१४.९३ ॥
त ीजं जारये ूते याव शगुणं मात् ।
तत ं तारबीजे न सारये ारणा यम् ॥ ३,१४.९४ ॥
सह ां शेन चाने न ता वेधं दापयेत् ।
त ा ं जायते तारं शं खकुंदे दु सि भम् ॥ ३,१४.९५ ॥
{मेचुय्:: शतवेिधन् }
ेता तालयोः स ं रसक च स कम् ।
चतुथ तारमा ीकं समं चूण क येत् ॥ ३,१४.९६ ॥
चूणतु ं बं गचूण सवमेक तं धमेत् ।
ं मेलापिल ायां जातं खोटं िवचूणयेत् ॥ ३,१४.९७ ॥
अ िप ं पु टे प ािद ेवं पंचधा पुटेत् ।
त ूण वाहये ारे याव शगुणं धमेत् ॥ ३,१४.९८ ॥
त ारं रसराज समं जाय मेण वै ।
पू वव ि धा साय शतवेधी भवे सः ॥ ३,१४.९९ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
एवं स ा स ं च चूण ं ं च पूववत् ।
पादां शं तालकं द ा अ ैः िप ा िन च ॥ ३,१४.१०० ॥
पचे पुटैरेवं तारे वा ं ि षड् गुणम् ।
एत ीजं समं जाय ेकं दशभागकम् ॥ ३,१४.१०१ ॥
बंगं ेता स ं च ेकं दशभागकम् ।
तारा ा िवमला ती णं ेकं प भािगकम् ॥ ३,१४.१०२ ॥
ं मेलापिल ायां मूषायां तं धमेद् ढम् ।
अ िप ं पु टे पा ं प वारं पुनः पुनः ॥ ३,१४.१०३ ॥
त ा ं तारभाग तारचूण ि पन् ि पन् ।
त ीजं रसराज जाय शतगुणं मात् ॥ ३,१४.१०४ ॥
सारये ारबीजेन िविधना सारणा यम् ।
अनेनैवायुतां शेन ु तं ता ं तु वेधयेत् ।
जायते रजतं िद ं शंखकु े दु सि भम् ॥ ३,१४.१०५ ॥
इ ं रसे कनकबीजमन योगै ः कृ ा िभष म खलं िविधव जायम् ।
तेनैव हे मिनचयं रजतं च कृ ा दा र दाहम खलेषु जने षु कुयात् ॥ ३,१४.१०६ ॥
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३, १५
गभयो मथ बीजसाधनमनेकयोगतो र ने िहतम् ।
जा रत नरपारद वै त म मधु ना िनग ते ॥ ३,१५.१ ॥
{बीज:: ेपरितओन्}
गंधकं माि कं नागं सव तु ं िवचूणयेत् ।
ि गुणं वाहये ण ािवतं तु धमन् धमन् ॥ ३,१५.२ ॥
पू ितबीजिमदं थूलं गभ वित त णात् ॥ ३,१५.३ ॥
{बीज:: ेपरितओन्}
नागं ण समं ता ं िशलाचूण ि पन् ि पन् ।
जीण नागे पुनदयमे वं वार यं शनैः ।
एत ीजं व ेव रसगभ तु मदनात् ॥ ३,१५.४ ॥
{बीजसाधनम् (३)}
ता स ं सुवण च धमे ा ं ि प पन् ।
इ ेवं ि गुणं वा ं ता स ं च हाटके ।
त ीजं रसराज गभ वित त णम् ॥ ३,१५.५ ॥
{बीजसाधन (४)}
ता स ं सुवण च समां शं ावये तः ।
क वे धीकृतं प ं गंधेन लवणेन च ॥ ३,१५.६ ॥
ि ा सा ेन त ा ुटे हे मावशेिषतम् ।
एत ीजं रसे गभ वित मदनात् ॥ ३,१५.७ ॥
{बीजसाधन (५)}
सै वेन समं ता म ैम पुटे पचेत् ।
पु नम पु नः पा ं याव ् वादशवारकम् ॥ ३,१५.८ ॥
अ तु ं मृतं नागं सवम ेन पेषयेत् ।
अनेन णप ािण िल ा िल ा धमे द् ढम् ॥ ३,१५.९ ॥
ु तं च वापये ं तु स वारं पुनः पुनः ।
एत ीजं रसे गभ वित मदनात् ॥ ३,१५.१० ॥
{बीजसाधन (६)}
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िशला सौवचलं ता गंधकासीसटं कणम् ।
मदये णका ै सवमेति नाविध ॥ ३,१५.११ ॥
रस ैत षोडशांशं द ा बीजं च दापयेत् ।
मु ते य य ैव त द् वित त णात् ॥ ३,१५.१२ ॥
{मेचुय्:: ास ओf अ बीज}
अपामागपलाशो भ ारं समाहरे त् ।
टं कणं च यव ारं कासीसं च सुवचलम् ॥ ३,१५.१३ ॥
सामु ं सधवं राजी माि कं नवसारकम् ।
कपूरं कां िजकं तु ं ु क ीरमिदतम् ॥ ३,१५.१४ ॥
मूषाले पमने नैव कृ ा कुयाि डे न च ।
लेपमङ्गु लमानेन मूषाय िमदं भवेत् ॥ ३,१५.१५ ॥
गभ ािवतबीजा ु सूतम िविनि पेत् ।
द् ा े ं िदनैकं तु कारीषा ौ स लम् ॥ ३,१५.१६ ॥
{मेचुय्(?):: र न (?)}
ता स ा योः स ं ं ि तं ावये ुनः ।
मृतशु ं ता चूण त ा ं शनैः शनैः ॥ ३,१५.१७ ॥
ि गुणे वािहते त न् रि तं वािहतं तु तत् ॥ ३,१५.१८ ॥
{मेचुय्:: र न (ओf ◌ँ)}
गोमू ै र वग तु िप ा तेनैव भावयेत् ।
िहङ्गु लं माि कं गं धं िशलाचूण समं समम् ॥ ३,१५.१९ ॥
भािवतं स वारािण शो ं पे ं पुनः पुनः ।
ती णं ता ं समं चू पूवव ् वं मेिलतम् ॥ ३,१५.२० ॥
त न् ु तं पूवचूण वापिय ाथ सेचयेत् ।
र वगसमायु े तैले ोित तीभवे ।
इ ेवं दशधा कुया ािददं रसर कम् ॥ ३,१५.२१ ॥
{रसर कम् (३)}
र वगण गोमू ैभावये रदं ि धा ।
समां शे िवमले ता े ािवते वाहये मन् ।
स धा दरदं तं तु ािददं रसर कम् ॥ ३,१५.२२ ॥
{रसर कम् (४)}
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णनागं ोमस ं समां शं ं मेिलतम् ।
िशला गै रकं मा ीकं रसकं र वगकम् ॥ ३,१५.२३ ॥
समां शं चू णये व वापो दे यो नेन वै ।
पू व ं ि तखोट ािवत पुनः पुनः ॥ ३,१५.२४ ॥
दशवारं कृते वापे र कोऽयं रस च ॥ ३,१५.२५ ॥
{लेअद् => गो ् }
यविच ारसै भा ा र वणा मनःिशला ।
िवंशवारं य ेन तेन क े न लेपयेत् ॥ ३,१५.२६ ॥
नागप ं पु टे प ा ाव ूणमुपागतम् ।
रसक तु भागां ी भागैकं दरद च ॥ ३,१५.२७ ॥
िशलागंधिवषाणां च याणामेकभागकम् ।
पे षये ातुलुंगा ै ेन क े न लेपयेत् ॥ ३,१५.२८ ॥
मूषागभ ि पे पू वनागं ि पे तः ।
ु तं याव मुद्धृ िल ा मूषां पुनधमेत् ॥ ३,१५.२९ ॥
इ ेवं स धा धा ं नागं णिनभं भवेत् ।
{तारा र , लेअद् , चो ेर्=> गो ् }
पीता क स ं तु पूवनागं च त मम् ॥ ३,१५.३० ॥
ं ि तं पू वयोगे न िभिष ं च कारयेत् ।
समु खे सू तराजे तु पूवव षड् गुणं मात् ॥ ३,१५.३१ ॥
तत रसे गभ ावणबीजकम् ।
पादां शं दापये े मातुलुंग वैः सह ॥ ३,१५.३२ ॥
मदये णका ैवा गभ ावणकेन वा ।
व ेव तु त भ मूषाय ेऽथ जारयेत् ॥ ३,१५.३३ ॥
इ ेवं ािवतं जाय याव ीजसमं रसे ।
सारणािद येणा ं पू वव ारये मात् ॥ ३,१५.३४ ॥
तारा र मिहं शु ं यथे ैकं तु वेधयेत् ।
सह ां शेन तेनैव िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१५.३५ ॥
{च ाक => गो ् }
णन ं ि तं व ं पूवव ािभषेिकतम् ।
जारये मु खे सूते समां शम स वत् ॥ ३,१५.३६ ॥
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जा रतं जारये ेन णव ेण वै ि धा ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा ामणेन तु योजयेत् ।
चं ाक तु सह ां शं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१५.३७ ॥
{ग नाग ु ितः}
वृष मू मादाय गज मिहष वा ।
त े सू तनागं तु ािवतं स धा ि पेत् ॥ ३,१५.३८ ॥
तत ै व प ािण क वे ािन कारयेत् ।
गंधकं चू िणतं शु ं प ाणां तु चतुगुणम् ॥ ३,१५.३९ ॥
अल केन संिस ं कापासप व ृ तम् ।
त शु पृ े तु नररोमािण दापयेत् ॥ ३,१५.४० ॥
त ृ े चूिणतं गं धं ततो नागदलािन च ।
गंधकं नररोमािण त ापासं च पृ तः ॥ ३,१५.४१ ॥
अनेन कारये ित बिहः सू ेण वे येत् ।
करं जतैलम े तु दशरा ं तु धारयेत् ॥ ३,१५.४२ ॥
ा चोभया े तु ु तं तैलं समाहरे त् ।
भा े सकां िजके चैव त ादु द्धृ र येत् ।
काचकू ां य ेन ग नाग ु ित यम् ॥ ३,१५.४३ ॥
{मेचुय्:: े परितओन् fओजारण}
शु सू तं ढं म रजनीचूणसंयुतम् ।
चूण याव वे ृ ं ालयेदु कां िजकैः ॥ ३,१५.४४ ॥
एवं ि स धा कुया तो जारणमारभेत् ।
{मेचुय्:: गभ ु ित}
अ ैमनःिशलां िप ा तेन लेपं तु कारयेत् ॥ ३,१५.४५ ॥
गो नाकारमूषायाम ां पूवरसं ि पेत् ।
चतुःष ंशतः पूवा दे या गं ध ु ितः मात् ॥ ३,१५.४६ ॥
द् ा मूषां िवशो ाथ गत गोमयपू रते ।
मूषाध िव से करीषतुषवि ना ॥ ३,१५.४७ ॥
कपोता ं पु टं दे यं ां गशीतं समु रे त् ।
द ादजीणश ायां िसंहव ीरस तु ॥ ३,१५.४८ ॥
चतुिब दु माणं तु त त पुटे पचेत् ।
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एवं पु नः पु नजाय ग नाग ु ितः मात् ॥ ३,१५.४९ ॥
ि गुणं जा रतः सू तो भवे ां बूनद भः ।
अ सूत पादां शं प बीजं सुचूिणतम् ।
मदये णका ेन यामा भ व लम् ॥ ३,१५.५० ॥
{गो ् :: ावण}
मूषाय गतं ा ं पूवव ेदनेन वै ।
जीण बीजं पु नद ा ा ं गभऽथ जारयेत् ॥ ३,१५.५१ ॥
एवं बीजं समं जाय प ं वा र ने मात् ।
गभ ावणबीजं वा यथे ैकं तु जारयेत् ॥ ३,१५.५२ ॥
तत ु ि गु णं रीित ारं वा ं धमन् धमन् ।
तारा र ं भवे ु कृ ा प ं लेपयेत् ॥ ३,१५.५३ ॥
स ौ ं पूवसू तेन ाि ंशां शेन त ुनः ।
वे मकदलैः प ा ोलायं े सकां िजकैः ॥ ३,१५.५४ ॥
दशाहा े समुद्धृ ािवतं कां चनं भवेत् ॥ ३,१५.५५ ॥
{मेचुय्:: जारण wइथ स }
समु खे िनमुखे वाथ रसराजे तु जारयेत् ।
पू वव ोमचूण तु चा रतं जारये मात् ॥ ३,१५.५६ ॥
चतुःषि गुणं याव तः साय च जारयेत् ।
चारये ारये ाव षि गुणं भवेत् ।
ततो माि कस ं च पादां शं त जारयेत् ॥ ३,१५.५७ ॥
{मेचुय्:: गभ ु ित}
महारसै ोपरसै य ं िच माहरे त् ।
त गं तु पादां शं सूते द ा िवमदयेत् ॥ ३,१५.५८ ॥
त ख े चतुयामं गभ ावकसंयुतम् ।
त व व ेव मूषाय ेऽथ जारयेत् ॥ ३,१५.५९ ॥
इ ेवं सवस ािन ावयोगा जारयेत् ।
{मेचुय्:: गभ ु ित, जारण}
रि तं प बीजं च शु ं ता ं च हाटकम् ॥ ३,१५.६० ॥
गभ ावणबीजं च मृतती णं समं समम् ।
सव च मिदतं खोटं कृ ा धा ं पुनः पुनः ॥ ३,१५.६१ ॥
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ि पे ाि कचूण च ता े ती णे यं गते ।
समु द्धृ तु त ीजं पादां शं पूवपारदे ॥ ३,१५.६२ ॥
पू ववद् ावये भ मूषाय ेऽथ जारयेत् ।
ाि ंशद् गु िणतं बीजं मेणानेन जारयेत् ।
जीण गभ ु तं सूतं र ये ि ग ते ॥ ३,१५.६३ ॥
{मेचुय्:: जारण}
गंधेन य ृतं नागं प बीज साधनम् ।
त ागं हे मसं तु मंधमूषागतं धमेत् ॥ ३,१५.६४ ॥
त ूणमिभिष ं च पादां शं दापये से ।
मदयेद वगण गभ ावणकेन वा ॥ ३,१५.६५ ॥
त ख े चतुयामं मूषाय ेऽथ जारयेत् ।
अनेन मयोगेन जारये ं कलागु णम् ॥ ३,१५.६६ ॥
{चो े र्=> गो ् }
मृतं शु ं मृतं ती णं ण वा ं तु षड् गुणम् ।
एत ीजं ततो जाय मा ाव तुगुणम् ॥ ३,१५.६७ ॥
पू ववद् ािवतं ख े मूषाय े च पूववत् ।
ब राग दा सूतो जायते कुंकुम भः ॥ ३,१५.६८ ॥
इ ेवं र नं सूते कृ ा साय ि धा मात् ।
सा रतं जारये ू े मू षाय े पुट ुटन् ॥ ३,१५.६९ ॥
जा रतं सारये ा ा रतं चैव जारयेत् ।
अनेन मयोगेन स ङ्खिलका मात् ॥ ३,१५.७० ॥
तत मुखं बद् ा पूवव ये तम् ।
ामणेन समायु ं कोिटभागेन वेधयेत् ।
ु तं ता ं तु ति ं भवे ण न संशयः ॥ ३,१५.७१ ॥
{िस े र्=> गो ् }
िहं गुलो तसूतं च भूनागैमदये हम् ।
त ख े ततः पा मू ल ं समाहरे त् ॥ ३,१५.७२ ॥
पादां शं जारये ं ि तं ोमस कम् ।
ततो माि कस ं च पादां शं त जारयेत् ॥ ३,१५.७३ ॥
पू वव ् वं योगे न मा ापाकं च पू ववत् ।
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महारसै ोपरसै य ं पािततं पुरा ॥ ३,१५.७४ ॥
त ं च पृथ ादं सूते द ा िवमदयेत् ।
त ख े िदनै कं तु गभ ावणसंयुतम् ॥ ३,१५.७५ ॥
व ेव ततो जाय मूषाय ं तु पूववत् ।
जीण जीण पु नदयं ितस ं मेण वै ॥ ३,१५.७६ ॥
तत थैव पादां शं गभ ावणबीजकम् ।
पू ववद् ािवतं जाय मेणानेन षड् गुणम् ॥ ३,१५.७७ ॥
सारणािद ामणा ं तारे वेधं दापयेत् ।
सह ां शेन त ण भवे ां बूनद भम् ॥ ३,१५.७८ ॥
{मेचुय्:: जारण ओf सुल्fउर् }
शाकवृ प ाणां कोमलानां वं हरे त् ।
वं च पु ाणां िव ु ा ा वं तथा ॥ ३,१५.७९ ॥
वै रेिभः शु गंधं भावयेि नस कम् ।
इि कागभम े तु सुशु ं पारदं ि पेत् ॥ ३,१५.८० ॥
मुखं े न व ेण छादये पृ तः ।
दशां शं पू वगं धं तु द ा ावेण रोधयेत् ॥ ३,१५.८१ ॥
पृ े लघुपुटं दे यं जीण गं धं पुनः ि पेत् ।
त ाय पुटेनैव पु नदयं च गं धकम् ॥ ३,१५.८२ ॥
एवं जाय समं गं धं ततो यं ा मु रे त् ।
अथवा गं धतु ं तु जाय तेन रस तु ॥ ३,१५.८३ ॥
जारये ूवयोगे न काचकू रे ऽिप वा ॥ ३,१५.८४ ॥
{चो े र्, लेअद् => गो ् }
अ ैव रसराज समां शं ोमस कम् ।
ं ि तं पू वव ाय मा ायु पूववत् ॥ ३,१५.८५ ॥
ततो रसकस ं च जायम गुणं रसे ।
ती णशु ोरगं चैव माद गुणं रसे ॥ ३,१५.८६ ॥
े कं जारये ादिभिष ं तु पूववत् ।
प बीजं ततो जाय ाि ंशद् गु िणतं मात् ॥ ३,१५.८७ ॥
अथा रसराज गभ ावणबीजकम् ।
त ख े समं द ा गभ ावकसंयुतम् ॥ ३,१५.८८ ॥
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मदयेि नमे कं तु गभ वित तद् ु तम् ।
मूषाय े ततो जाय पूवव ेदनेन वै ॥ ३,१५.८९ ॥
त ीण रं जकं बीजं तु ं द ाथ पूववत् ।
ावये वगभ तु त ाय मेण वै ॥ ३,१५.९० ॥
याव तुगुणं य ाद् ु तं गभऽथ जारयेत् ।
अनेन मयोगेन भवे ा ािनभो रसः ॥ ३,१५.९१ ॥
तत ं प बीजेन सा रतं जारये मात् ।
ितसारणकं कुया ारये ाथ सारयेत् ॥ ३,१५.९२ ॥
स ङ्खिलकायोगा ुखं बद् ाथ ब येत् ।
ामणेन समायु ं शु े वेधं दापयेत् ॥ ३,१५.९३ ॥
नागे वा कोिटभागेन िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१५.९४ ॥
{रसबीज}
ित णी मा ू की वैधा ा कं मात् ।
मदये िदनं चाथ भावयेि ंितणी वैः ॥ ३,१५.९५ ॥
घम िदन यं याव शो ं पे ं पुनः पुनः ।
मृ परे शु सू तं ि ा सो ं तु कारयेत् ॥ ३,१५.९६ ॥
गंधकं ुिटमा ं तु पूवा ं ुिटमा कम् ।
द ा द ा च मृ ौ पचे ाद िपि का ॥ ३,१५.९७ ॥
एकवीरारसै भा ं गं धं घम ि स धा ।
तं गं धकं ि भा े ा मृ ि ना ि पेत् ॥ ३,१५.९८ ॥
त े पूविपि ं तु दोलायं े िवधौ पचेत् ।
षड् गुणं जारयेदेवं गं धकं मृ दुवि ना ॥ ३,१५.९९ ॥
त सं भागमे कं तु प बीज षोडश ।
भागाः सुरि त ैव चूण कृ ाथ ं येत् ॥ ३,१५.१०० ॥
पू वव ् वं िल ायां मू षायां धमनेन च ।
रसबीजिमदं ातं चूिणतं चािभषेचयेत् ॥ ३,१५.१०१ ॥
{मेचुय्:: जारण:: wइ सबीज}
अथातः शु सूत काचकू ां गत च ।
पू वव ािवतं गंधं जाय त ैव षड् गुणम् ॥ ३,१५.१०२ ॥
जारये ा तुलायं े गौरीयं मेण वै ।
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त ैव रसराज पादां शं रसबीजकम् ॥ ३,१५.१०३ ॥
पू ववद् ावये भ मूषाय ेऽथ जारयेत् ।
अनेन मयोगेन ा ं जाय पुनः पुनः ।
ि र गुिणतं याव सबीजं रस वै ॥ ३,१५.१०४ ॥
{िस े र्=> गो ् }
भाग यं शु तारं भागैकं शु हाटकम् ।
समाव तु त ं कृ ा पूवरसे न वै ॥ ३,१५.१०५ ॥
लेपये धु ना े न सह ां शेन त ुनः ।
वे येदकजैः प ैद लायं े सकां िजके ॥ ३,१५.१०६ ॥
दशाहं पािचतं ा ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१५.१०७ ॥
{मेचुय्:: कोिटवेिधन्}
सुशु ं नागचूण तु पूवव ािभषेिकतम् ।
समु खे सू तराजे े जारयेद स वत् ॥ ३,१५.१०८ ॥
षट् ि ंशगु िणतं याव ाव ाय मेण वै ।
गभ ावणबीजं च पूववद् ािवतं मात् ॥ ३,१५.१०९ ॥
जारये गुणं त बीजं य ं जकं पुनः ।
समं जाय पुनः जाय प बीजेन वै मात् ॥ ३,१५.११० ॥
स ंखिलकायोगा ुखं द् ाथ ब येत् ।
ामणेन समायु ं कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१५.१११ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
नागव ारये ं गं षट् ि ंशगु िणतं मात् ।
पू ववद् ािवतं गभ तारबीजं तु जारयेत् ॥ ३,१५.११२ ॥
ि गुणं तु भवे ाव त ेनैव सारयेत् ।
स ङ्खिलकायोगा ुखं बद् ाथ ब येत् ॥ ३,१५.११३ ॥
ामणेन समायु ं ता े वेधं दापयेत् ।
कोिटभागेन त ारं भवे ुं दे दु सि भम् ॥ ३,१५.११४ ॥
{िस े र्, चो े र्, लेअद् => गो ् }
समु खे िनमुखे वाथ सूतराजे तु जारयेत् ।
ं ि तं ोमस ं तु यावद गुणं तथा ॥ ३,१५.११५ ॥
ततो रसकस ं च जायम गुणं तथा ।
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प बीजं समां शं च जारयेद स वत् ॥ ३,१५.११६ ॥
णन ं ि तं व ं समां शेन तु जारयेत् ।
पू वव पे य े िबडयोगेन वै तथा ॥ ३,१५.११७ ॥
गभ ावणबीजं च पादां शं त ख के ।
मदये ातुिलंगा ैगभ वित त णात् ॥ ३,१५.११८ ॥
गभ ावणयोगं वा द ा वित मदनात् ।
मूषाय ेण त ूतं पचे ारीषवि ना ॥ ३,१५.११९ ॥
जीण बीजं पु न ा ं जारयेद् ावये ुनः ।
एवं चतुगुणं जाय गभ ावणबीजकम् ॥ ३,१५.१२० ॥
तत ु रं जकं बीजं त ाय समं मात् ।
सारणािद ामणा ं पूवव ारये मात् ॥ ३,१५.१२१ ॥
तारे ता े भुजंगे वा कोिटभागेन योजयेत् ।
करोित कनकं िद ं दे वाभरणमु मम् ॥ ३,१५.१२२ ॥
{मेचुय्:: धू मवेिधन्; चो ेर्=> गो ् }
समु खे सू तराजे े जारयेद स वत् ।
णािदमु पय म लोहं पृथ मात् ॥ ३,१५.१२३ ॥
े कम गुिणतमिभषेकं च पूववत् ।
अ ािदस ं य व ेकं ि गुणं मात् ॥ ३,१५.१२४ ॥
पृ थ ाय कूमय े िबडयोगेन पू ववत् ।
तत ु पादपादां शं गभ ावणबीजकम् ॥ ३,१५.१२५ ॥
पू ववद् ािवतं जाय ि गुणं तु यदा भवेत् ।
तत ु प बीजेन सारये ारये धा ॥ ३,१५.१२६ ॥
इ ेवं स धा कुया ुखं बद् ाथ ब येत् ।
धूमावलोकवेधी ा ा ं भवित कां चनम् ॥ ३,१५.१२७ ॥
एवं चारणजारणं ब िवधं कृ ा रसे सं मं गभ ावणबीजकं च िविधना गभ ु तं कारयेत्

जीण रं जनसारणामुखमथो बद् ाथ बद् ा रसं कुया ां चनम मे स शं दानाय
भोगाय वै ॥ ३,१५.१२८ ॥

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३, १६
यासां छे दे न र ं वहित सततं ायशो र भूमौ ।
सं ा ा भूलता ा िवषहरधनदं पातये ेषु स म् ।
तद् यु ा पारदे े चरित यिद समं सारणाकमयोगै ब ोऽयं कोिटवे धी समरिवरजते
योजये ा रे वा ॥ ३,१६.१ ॥
{भूनागस (१)}
भूलता कां तपाषाणं चूण कृ ा समं समम् ।
त म व ा ं त ै रौषधैः सह ॥ ३,१६.२ ॥
{भूनागस (२)}
सौवीरं कां तपाषाणं ती णं पाषाणचूणकम् ।
एतेषां तु भूनागचूणमे क क येत् ॥ ३,१६.३ ॥
अ व ाहये ं त ैरौषधैधमन् ॥ ३,१६.४ ॥
{भूनागस (३)}
कां तपाषाणसौवीरचूण ाद् भूलतासमम् ।
अ व ाहये ं रसराज ब कम् ॥ ३,१६.५ ॥
{भूनागस (४)}
सौवीरकां तती णानां चू ण भूनागमृ मम् ।
धाय भा े ि पे न् सजीवा भूलता पुनः ॥ ३,१६.६ ॥
उदकैः सेचयेि ं याव य वै ।
त म व ं बद् ा स ं समाहरे त् ॥ ३,१६.७ ॥
{भूनागस (५)}
कां तपाषाणचूण तु भूलताचूणसंयुतम् ।
अजामू ै स ाहं भावयेदातपे खरे ।
त ं धारये ो ां स ं ा ं सुशोभनम् ॥ ३,१६.८ ॥
{भूनागस (६)}
गोमू ं रजनी राजी लवणं क ये मम् ।
तेन िस ा ु भूनागं खरे घम व लम् ॥ ३,१६.९ ॥
कंकु ं तद् वं तु ं कृ ा स ं समाहरे त् ।
ोमव मयोगे न रसब करं भवेत् ॥ ३,१६.१० ॥
{भूनागस (७)}
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गंधकं रसकं चू भूलताचूणतु कम् ।
व मू षा तं ातं स ं भवित शोभनम् ॥ ३,१६.११ ॥
एत ं िवचू ाथ पू वव ािभषेिकतम् ॥ ३,१६.१२ ॥
{भूनागतैल}
िदनं भूनागसंतु ं म सौवीरम नम् ।
प मािहषसंिम ं कृ ाथ वटकीकृतम् ।
त ा ातालयं ेण तैलं ा ं पुटेन वै ॥ ३,१६.१३ ॥
{भूनागतैल}
भूलता ु गवां मू ैः ालये ािभराहरे त् ।
तैलं पातालयं ेण त ैलं जारणे िहतम् ॥ ३,१६.१४ ॥
{गु सू त}
त ख े शु सूतं जीवद् भूनागसंयुतम् ।
ि िदनं मदये ाढं त म ं समुद्धृतम् ॥ ३,१६.१५ ॥
भूनागचूणयु ायां मूषायां संिनवेशयेत् ।
तदू भूलताचूण द ा द् ाथ शोषयेत् ॥ ३,१६.१६ ॥
गता ग मयं साध ि ा मूषां िनवेशयेत् ।
पादमा ं तु तां गभ करीषं तुषवि ना ॥ ३,१६.१७ ॥
पु टे प ाि नैकं तु समु द्धृ ाथ दापयेत् ।
ऊ ाधो भूलताचूण द ा त ुटे पचेत् ॥ ३,१६.१८ ॥
मासमा िमदं कुया वेदि सहो रसः ।
जायते मू ितब रा सो वडवामु खम् ॥ ३,१६.१९ ॥
सते सवलोहािन स ािन िविवधािन च ।
व ािदसवलोहािन द ािन च मृ तािन च ।
गु सूतिमदं ातं व ते चा जारणम् ॥ ३,१६.२० ॥
{च ाक => गो ् }
अ ैव षोडशां शेन द ा भूनागस कम् ।
त ख े िदनं म ततः िस िवडा तम् ॥ ३,१६.२१ ॥
भूनागतैलिल ायां मूषायां ति वेशयेत् ।
द् ा े ं करीषा ौ जीणस ं च पूववत् ॥ ३,१६.२२ ॥
द ा म त ख े िवडं दे यं दशां शतः ।
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पू वव मू षायां जारये ेदनेन वै ॥ ३,१६.२३ ॥
एवं स ं समं जाय पू वव पेन वा ।
गभ ावेण बीजं च पूवव षड् गुणं शनैः ॥ ३,१६.२४ ॥
जारयेद् ािवतं गत मूषाय े तु पूववत् ।
तत ु रं जकं बीजं जायम ैव षड् गुणम् ॥ ३,१६.२५ ॥
तत ु प बीजेन स ङ्खिलका मात् ।
सारणं जारणं कुया ु खं बद् ा तु ब येत् ॥ ३,१६.२६ ॥
अनेन कोिटभागेन चं ाक कां चनं भवेत् ॥ ३,१६.२७ ॥
{चो े र्=> गो ् }
गु सूतं सुवण च तु म ेन मदयेत् ।
याव ोलं तु तं कृ ा सारणायां तु म तः ॥ ३,१६.२८ ॥
यो ु ं तु भूनागस ं मू षागतं ु तम् ।
त न् स े तु तं ढा ं सव खोटं भवे ु तत् ॥ ३,१६.२९ ॥
भूनागतैलिल ायां मूषायां चा तं पुटेत् ।
याव ूतावशे षं ा ाव घुपुटैः पचेत् ॥ ३,१६.३० ॥
एवं पु नः पु नः कुया ा मूषागतं पुटम् ।
अथवा िबडिल ायां मूषायां चा तं पुटेत् ॥ ३,१६.३१ ॥
याव ूतावशे षं ा ाव घुपुटैः पचेत् ।
गभ ावणबीजं च समं त ैव सारयेत् ॥ ३,१६.३२ ॥
सारणाय म े तु पूवव ारये तः ।
ततो ोमािदस ािन तु तु ािन त वै ॥ ३,१६.३३ ॥
मा रतािन पृ थ ू यो जा रतािन च कारयेत् ।
तत ु रं जकं बीजं सा रतं त जारयेत् ॥ ३,१६.३४ ॥
चतुगुणं यथा पू व िल मूषागतं पुटेत् ।
त ाय प बीजेन यथा पूव मेण वै ॥ ३,१६.३५ ॥
स ङ्खिलकायोगा ुखं बद् ाथ ब येत् ।
कोिटभागेन तेनैव ता ं भवित कां चनम् ॥ ३,१६.३६ ॥
{च ाक => गो ् }
भूनागस संतु ं गु सूतं तु मदयेत् ।
िद ौषधी वैम त ख े िदन यम् ॥ ३,१६.३७ ॥
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त व व मूषायां द् ा स ं िवशोषयेत् ।
कारीषा ौ िदवारा ौ ि शतं वा तुषाि ना ॥ ३,१६.३८ ॥
ेदये ृ दुपाकेन समुद्धृ ाथ मदयेत् ।
िद ौषधी वैरेव त ख े िदनाविध ॥ ३,१६.३९ ॥
ततो द् ा धमे ाढं खोटं भवित त सः ।
गु सूतं पु न ु ं द ा त न यम् ॥ ३,१६.४० ॥
मदये ेदये ु या ं च पू ववत् ।
तु े न कां िजकेनै व सारये ाथ तेन वै ।
वेधये तभागेन चं ाक कां चनं भवेत् ॥ ३,१६.४१ ॥
{च ाक, चो ेर्, लेअद् => गो ् }
र वण तु वै ां तं सु शु ं पलमा कम् ।
ा ीकंदोदरे प ा ोलायां हयमू कैः ॥ ३,१६.४२ ॥
अधयामा मु द्धृ ा ीकंद वैः पुनः ।
भावये धा घम प ा मकां चने ॥ ३,१६.४३ ॥
शु सू तं पलैकं तु यमेक मदयेत् ।
ा ीकंद वै ा मू ैयामचतु यम् ॥ ३,१६.४४ ॥
त ोलं ह काय े यामं ल वि ना पचेत् ।
उद् धृ मदये ामं पूव ावैः समू कैः ॥ ३,१६.४५ ॥
शतं पलं णप े अनेनैव तु लेपयेत् ।
द् ा लघुपुटैः प ाि ं श ारं पु नः पुनः ॥ ३,१६.४६ ॥
ा ीकंद वै ा मू ै ैव तु मदयेत् ।
एत ण सािभिष ं स व मुखे रसे ॥ ३,१६.४७ ॥
चारये ारयेदेवं याव तगु णं शनैः ।
त सं चा मू ेण ा ीकंद वेण च ॥ ३,१६.४८ ॥
बीजै िद ौषधीनां च त ख े िवमदयेत् ।
ि िदना े समुद्धृ व मूषा तं पुटेत् ॥ ३,१६.४९ ॥
िदवारा ौ करीषा ौ ि रा ं च तुषाि ना ।
एवं पु नः पु नः कुया दनं पुटपाचनम् ॥ ३,१६.५० ॥
स धा त य ेन त सो ि यते ुवम् ।
अनेनैवायुतां शेन ामणा ेन वेधयेत् ॥ ३,१६.५१ ॥
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चं ाक वा ु तं ता ं नागं वा कां चनं भवेत् ।
चा रतं पू वसू तं य ारणेन िवना तु तत् ॥ ३,१६.५२ ॥
मारये बीजािन ि धा तं जारये मात् ।
पू वव ं धन ं च कृ ा तं ामणेन वै ॥ ३,१६.५३ ॥
योजये भागेन चं ाक ािवते तु तम् ।
ण भवित पा ं शं भुना प रकीिततम् ॥ ३,१६.५४ ॥
{मेचुय्:: कोिटवेिधन्}
पीतवण तु वै ां तं शु ं भा ं िदनाविध ।
ा ी वा मू ा ां ा ीकंदगतं पचेत् ॥ ३,१६.५५ ॥
दोलायं े िदवारा ं समु द्धृ ाथ चूणयेत् ।
एत ूण पलैकं तु सूते दशगुणे ि पेत् ॥ ३,१६.५६ ॥
ा ीकंद वै ा मू ैम िदनाविध ।
अनेन लेपये णप ं शतपलं पुनः ॥ ३,१६.५७ ॥
व मू षागतं द् ा ि िदनं तुषवि ना ।
ेदये ा िदवारा ौ कारीषा ावथो रे त् ॥ ३,१६.५८ ॥
ा ीकंदा मू ा ां म त ुटे पचेत् ।
एवं शतपु टैः प मिभिष ं च कारयेत् ॥ ३,१६.५९ ॥
समु खे रसराजे े चायमेत जारयेत् ।
ोमस मेणैव याव शतगुणं शनैः ॥ ३,१६.६० ॥
मूषाय ेऽथवा जाय यथा पूव मेण वै ।
त थ रसे गभ ावणबीजकम् ॥ ३,१६.६१ ॥
पू ववद् ािवतं गत मा ाय चतुगुणम् ।
त थं प बीजेन जारये ङ्खलैः ॥ ३,१६.६२ ॥
मुखं बद् ा रसं बद् ा कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१६.६३ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
कृ वण तु वै ां तं ा ीकंदोदरे ि पेत् ।
अ मू ैिदनं े ं त ागैकं िवचूणयेत् ॥ ३,१६.६४ ॥
शु सू त भागैकं त ख े िदनाविध ।
ा ीकंद वै ा मू ै ैव तु मदयेत् ॥ ३,१६.६५ ॥
तारं द ा षडं शेन पुन मदयेत् ।
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सवतु ं पुनः सूतं द ा त ैव मदयेत् ॥ ३,१६.६६ ॥
जातं गोलं समु द्धृ िनगलेन तु लेपयेत् ।
व मू षागतं द् ा ि िदनं तुषवि ना ॥ ३,१६.६७ ॥
ेदये ा िदवारा ौ िनवाते क रषाि ना ।
उद् धृ मदये ाथ बीजैिद ौषधी वैः ॥ ३,१६.६८ ॥
ि िदनं त ख े तु हयमू ेण संयुतम् ।
पू वव ेिपतं द् ा त ा ं पुटेन वै ॥ ३,१६.६९ ॥
अनेन मयोगेन स धा पाचये ुटैः ।
अनेन वेधये ा ं ािवतं शतमां शतः ।
पू वव ामणं द ा तारं भवित शोभनम् ॥ ३,१६.७० ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
ेतवण तु वै ां तं सुशु ं पूवव मात् ।
र वै ां तयोगेन तारं तेनैव मारयेत् ॥ ३,१६.७१ ॥
त ारं जारये ूते त तगु णैः शनैः ।
त ाय पु टेनैव भवेदयुतवेधकः ॥ ३,१६.७२ ॥
त ै तारबीजेन सा रतं जारये मात् ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा ल वेधी भवे सः ॥ ३,१६.७३ ॥
ु ते ता े दात ं त ारं जायते शुभम् ॥ ३,१६.७४ ॥
{िस े र्=> गो ् }
ता वण तु वै ां तं शु िहं गुलसंयुतम् ।
मदयेद वगण त ख े िदन यम् ॥ ३,१६.७५ ॥
अनेन णप ािण िल ािन पुटे पचेत् ।
समु द्धृ पु नम म वगण संयुतम् ॥ ३,१६.७६ ॥
पचे पुटैरेवं त पलमा कम् ।
शु सू तपलै कं तु िद ौषधी वै हम् ॥ ३,१६.७७ ॥
मिदतं कारये ोलं िनमलेन च लेपयेत् ।
द् ा िदन यं े ं करीषतुषवि ना ॥ ३,१६.७८ ॥
ततो िद ौषधी ावैमिदतं िनगलेन च ।
द् ा िल ा धमे ाढं बंधमायाित िनि तम् ॥ ३,१६.७९ ॥
अनेन शतमां शेन तारं भवित कां चनम् ॥ ३,१६.८० ॥
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{िस े र्=> गो ् }
र वै ां तस ं तु सह हे ा तु चूणयेत् ।
ं मेलापिल ायां मूषायां चा तं धमेत् ॥ ३,१६.८१ ॥
त ोटं वािभिष ं तु समुखे जारये से ।
अ स कारे ण जारये ारदं समम् ॥ ३,१६.८२ ॥
त सं प बीजे न सारये ूवव धा ।
त जारणा काया मु खं बद् ाथ ब येत् ॥ ३,१६.८३ ॥
सह ां शेन तेनैव तारं भवित कां चनम् ॥ ३,१६.८४ ॥
{िस े र्, चो े र्, लेअद् => गो ् }
र वै ां तस ं च शु सूतं समं समम् ।
म िद ौषधी ावै ख े िदन यम् ॥ ३,१६.८५ ॥
ततो िनगलिल ायां मूषायां चा तं पुटेत् ।
करीषा ौ िदवारा ौ ि िदनं च तुषाि ना ॥ ३,१६.८६ ॥
समु द्धृ पु नल ं त ोलं िनगलेन च ।
मूषा े लवणं द ा द् ा संिधं िवशोषयेत् ॥ ३,१६.८७ ॥
पु न लवणं द ा द् ा संिधं िवशोषयेत् ।
लेपये शं खचूणन तां मू षां सवतोऽङ्गुलम् ।
को ीय े हठा ा ं ब ो भवित त सः ॥ ३,१६.८८ ॥
तारे ता े भुजंगे वा सह ां शेन वेधयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणमु मम् ॥ ३,१६.८९ ॥
{चपलाभेदाः}
र ा पीता िसता कृ ा चपला तु चतुिवधा ।
वै ां त कारे ण शो ाः ू रसब काः ॥ ३,१६.९० ॥
{चपला:: वे ध wइथ्ँ}
लां गली करवीराि िग रकण च टं कणम् ।
सौवीरा नतु ां शं नारी ेन पे षयेत् ॥ ३,१६.९१ ॥
व मू षोदरं तेन लेपये वतोऽङ्गुलम् ।
चपला र पीता वा भागमेकं िवचूणयेत् ॥ ३,१६.९२ ॥
सुवणभागा ारो ि भागं शु पारदम् ।
िद ौषधी वैम सवमेति न यम् ॥ ३,१६.९३ ॥
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पू वमू षां िन ाथ छायाशु ं धमे ठात् ।
त व जायते खोटं शतां शेन तु तेन वै ॥ ३,१६.९४ ॥
सुशु ं वे धये ागं भवेद्गुंजािनभं तु तत् ।
नागे नानेन शु ं तु शतां शेनैव वेधयेत् ॥ ३,१६.९५ ॥
अ णाभं भवे ु ं तेन शु ेन वेधयेत् ।
शु तारं शतां शेन त ारं कां चनं भवेत् ॥ ३,१६.९६ ॥
त जारणा काया मु खं बद् ाथ ब येत् ।
सह ां शेन तेनैव तारं भवित कां चनम् ॥ ३,१६.९७ ॥
सुशु ं वे धये ागं भवेद्गुंजािनभं च तत् ।
नागे नानेन शु ं तु शतां शेनैव वेधयेत् ॥ ३,१६.९८ ॥
{लेअद् => चो ेर्=> िस ेर्=> गो ् }
षड् भागं चपलाचूण तारं ा भागकम् ।
भागा कं सु वण च नवभागं च पारदम् ॥ ३,१६.९९ ॥
सव िद ौषधी ावैमदयेि वस यम् ।
त ोलं िनगलेनैव सवतो लेपयेद्घनम् ॥ ३,१६.१०० ॥
लां गली करवीराि गृ िव ा समं समम् ।
पे षये ातुिलंगा ै ेन मूषां लेपयेत् ॥ ३,१६.१०१ ॥
त ु द् ा पू वव ोलं धमे ोटं भवे ु तत् ।
तेनैव तु शतां शेन नागे वेधं दापयेत् ॥ ३,१६.१०२ ॥
तेन नागे न शु ं च शतां शेनैव वेधयेत् ।
ता े ण वेधये ारं पू वव ां चनं भवेत् ॥ ३,१६.१०३ ॥
{िस े र्=> गो ् }
पलै कं शु सू तं च काचपा े िविनि पेत् ।
पू वव ा रतं गंधं ि पे ल यम् ॥ ३,१६.१०४ ॥
जं बीराणां वं द ा गंधतु ं शनै ः पचेत् ।
वालु काभा म े तु याव ीयित गं धकम् ॥ ३,१६.१०५ ॥
पू वसं ृ तधा ा ं पलमेकं च त वै ।
ि ा जंबीरनीरं च िबडं द ाथ पाचयेत् ॥ ३,१६.१०६ ॥
जीण याव वे ु ं ताव प चेत् ।
त ण पलैकं तु चू िणतं चािभषेिकतम् ॥ ३,१६.१०७ ॥
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ि पे डं चाथ दे यं जंबीरसंयुतम् ।
पचे ीण भवे ाव ैव मृ दुवि ना ॥ ३,१६.१०८ ॥
िबडम ं ि प ेव जीण चोद् धृ मदयेत् ।
ि िदनं त ख े तु िद ौषधी वैयुतम् ॥ ३,१६.१०९ ॥
मूलमी रिलङ् ु ं िश ुमूलं च पेषयेत् ।
व मू षामने नैव िल ा पूवरसं ि पेत् ॥ ३,१६.११० ॥
द् ा े ं करीषा ावहोरा ा मु रे त् ।
पू वव िदतं द् ा धमे ो भवे सः ॥ ३,१६.१११ ॥
चतुःषि तमां शेन द े तारमनेन वै ।
वेधये ारयेि ं कां चनं िस संमतम् ॥ ३,१६.११२ ॥
{िस े र्=> गो ् }
शतिन ं शु सूतं दशिन ं तु गंधकम् ।
णं क ा वैम पातनायं गं पचेत् ॥ ३,१६.११३ ॥
ऊ ल ं समादाय गंधकं दशिन कम् ।
द ा म पु न ं े प ा मु रे त् ॥ ३,१६.११४ ॥
एवं पु नः पु नः कुयादे किवंशितवारकम् ।
गौरीय े तु त ूतं ि ा दे यं तु गंधकम् ॥ ३,१६.११५ ॥
भािवतं पूवयोगे न िवंश ं शेन चूिणतम् ।
द् ा लघुपुटे प ा ीण गंधं दापयेत् ॥ ३,१६.११६ ॥
एवं पु नः पु नजाय यथाश मेण वै ।
जीण शतगुणे ग े शतवेधी भवे सः ॥ ३,१६.११७ ॥
सह गु िणते जीण सह ां शेन वेधयेत् ।
ल जीण ल वे धी कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१६.११८ ॥
जीण कोिटगुणे ग ेऽ ेवं ादु रो रम् ।
सारये बीजेन पूवव ारये मात् ॥ ३,१६.११९ ॥
मुखं बद् ा रसं बद् ा तारे वेधं दापयेत् ।
जायते कनकं िद ं दे वाभरणभूषणम् ॥ ३,१६.१२० ॥
भूस कैः परमगु तमैः ससूतैव ा कैः सचपलै रसगंधकै ।
ानुभूय सकलं सुखसा योगै ः स ुवणकरणं गिदतं सुधीनाम् ॥ ३,१६.१२१ ॥

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३, १७
व ा स वरहाटकलोहजालं कुयाद् ु तं वभवं िकल बं धयो म् ।
नानािवधैः सु गमसं ृ तयोगराजै ते परमिस करं नराणाम् ॥ ३,१७.१ ॥
{अ क ु ित (१)}
शु कृ ा प ािण पीलु तैलेन लेपयेत् ।
घम शो ािण स ाहं िल ा िल ा पुनः पुनः ॥ ३,१७.२ ॥
ि िदनं चा वगण त ो ािण चाथ वै ।
ु काजुनव ीणां कटु तुं ा समाहरे त् ॥ ३,१७.३ ॥
ारं ार यं चैतद कं चूिणतं समम् ।
व कंदं ीरक ं बृ हती क का रका ॥ ३,१७.४ ॥
वनवृ ाक एतेषां वैभा ं िदन यम् ।
अनेन ारक े न पू वप ािण लेपयेत् ॥ ३,१७.५ ॥
आतपे कां पा े तु था ं ले ं पुनः पुनः ।
एवं िदन यं कुयाद् ु ितभवित िनमला ॥ ३,१७.६ ॥
{अ क ु ित (२)}
अ वगण प ािण ि पे द्घम िदन यम् ।
तथा ा प ािण ालये ीरकंदकैः ॥ ३,१७.७ ॥
ारै याव वे ै ः पूवप कम् ।
िल ा िल ा ि पेद्घम कां पा े िवशोषयेत् ॥ ३,१७.८ ॥
स ाहा ा सं देहो रस पा ु ितभवेत् ॥ ३,१७.९ ॥
{अ क ु ित (३)}
काका ाफलचूण तु िम पंचकसंयुतम् ।
एत ु ं च धा ा म ैम िदनाविध ।
अंधमू षागतं ातं ु ितभवित िनमला ॥ ३,१७.१० ॥
{अ क ु ित (४)}
धा ा कं सगोमां सम पादं च सधवम् ।
ु कपयसा ावैमुिनिभमदये हम् ॥ ३,१७.११ ॥
त ोलं कदलीकंदे ि ा बा े मृ दा िलपेत् ।
करीषा ौ हं प ाद् ु ितभवित िनमला ॥ ३,१७.१२ ॥
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{अ क ु ित (५)}
अग प िनयासै म धा ा कं िदनम् ।
त ोलं िनि पे ं दे सू रणो े िन च ॥ ३,१७.१३ ॥
त ं दं िनखने ो भूमौ मासा मु रे त् ।
कंदोदराद् ु ित ा ा सू ततु ा तु िनमला ॥ ३,१७.१४ ॥
{अ क ु ित (६)}
धा ा कं िदनं म मजमाया वैिदनम् ।
थापये ृ ये पा े हाद् घम भव लम् ॥ ३,१७.१५ ॥
{अ क ु ित (७)}
स ाहं मुिनतोयेन धा ा ं सधवं िशला ।
मदये ावयेद्घम ततो दाव सुवचलम् ॥ ३,१७.१६ ॥
म रचम पादां शं मूवाप रसै िदनम् ।
मदये व ु ै वैभा ं िदनाविध ॥ ३,१७.१७ ॥
शरावसं पुटे तं तु द् ा ाते ु ितभवेत् ॥ ३,१७.१८ ॥
{अ क ु ित (८)}
धा ा कं यो ं कािकनीबीजतु कम् ।
ुही ीरे ण स ाहं घम ता ं ु ितभवेत् ॥ ३,१७.१९ ॥
{अ क ु ित (९)}
व व ी वैम धा ा ं ससु वचलम् ।
तु ं ि िदनपय ं तत ं शरावसंपुटे ॥ ३,१७.२० ॥
द् ा ाते व े व रस पं न संशयः ।
इ ेवं रस पं च जायते नैव संशयः ॥ ३,१७.२१ ॥
{अ क ु ित (१०)}
उदुं बरो वै ः ीरै र प ािण पाचयेत् ।
था ां वा पाचयेदेतान् भव नवनीतवत् ॥ ३,१७.२२ ॥
तत ं वटकं कृ ा िछ मूषां िन च ।
याम यं धमे ाढमधोभा े ु ितः पतेत् ॥ ३,१७.२३ ॥
{अ क ु ित (११)}
काकोदुं ब रजैः ीरै म धा ा कं िदनम् ।
वनमू षकबीजािन ा कैः समम् ॥ ३,१७.२४ ॥
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मदिय ाधयामं तं ा ं पातालयं कैः ।
अहोरा ं पुटं दे यं ु ितभवित िनमला ॥ ३,१७.२५ ॥
{अ क ु ित (१२)}
किपितंदुजातफलैः समं धा ा कं ढम् ।
मदयेि नमे कं तु काचकू ां िनवेशयेत् ॥ ३,१७.२६ ॥
नरकेशै मुखं द् ा कूिपकां लेपये ृदा ।
पु टे ातालयं ेण िदना े ु ितमा ुयात् ॥ ३,१७.२७ ॥
{अ क ु ित (१३)}
धा ा कसमां शेन चूण गुंजाफल तु ।
ुही ीरे ण स ाहं भािवतं धमना वेत् ॥ ३,१७.२८ ॥
{अ क ु ित (१४)}
र ो ल नीलो वै म िदन यम् ।
धा ा कं धमे ु द् ा व मूषागतं धमेत् ॥ ३,१७.२९ ॥
वेगीफल चूणन तु ं धा ा कं हम् ।
भा ं घम ुही ीरै ातं संपुटगं वेत् ॥ ३,१७.३० ॥
{अ क ु ित (१५)}
अथवा छागमू ेण भावये िपितंदुजम् ।
फलचूण तु त ु ं ु ते स े वापयेत् ॥ ३,१७.३१ ॥
ि ि वार योगे ण ु ितभवित िनमला ॥ ३,१७.३२ ॥
{अ कस ु ित (२)}
नरकेशो वै ैलैः सेचयेद स कम् ।
त ोलं गोमयैिल ा व मूषा रे ि पेत् ।
हठाद् ाते व ेव ित ते रसराजवत् ॥ ३,१७.३३ ॥
{अ कस ु ित (३)}
भावये रमू ेण ीरकंद चूणकम् ।
दशवारं य ेन शो ं पे ं पुनः पुनः ॥ ३,१७.३४ ॥
तेनावापं ु ते स े द ा द ा च संधमेत् ।
याव द् वतां याित ताव े यं पु नः पुनः ।
लोहं च वते तेन हठाद् ाते न संशयः ॥ ३,१७.३५ ॥
{अ कस ु ित (४)}
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पं चां गं दे वदा ु ं चूण भा ं च तद् वैः ।
शो ं पे ं पुनभा ं शतवारं य तः ॥ ३,१७.३६ ॥
त ूण दशमां शेन ु ते स े तापयेत् ।
त ुनजायते ब ो वापो दे यः पुनः पुनः ॥ ३,१७.३७ ॥
{अ कस ु ित (५)}
ीरकंद वै भा ं शतधा ीरकंदकम् ।
त ापे न वे ं लोहािन सकलािन च ॥ ३,१७.३८ ॥
{अ कस ु ित (६)}
सव धा ा संधानैभा म कस कम् ।
िनचुल ारसं यु ं ातं ित ित सूतवत् ॥ ३,१७.३९ ॥
{सु वण ु ित (१)}
इं गोपकचूण तु दे वदालीफल वैः ।
भािवतं चैकिवंशाहाद् ु ते हे ि वापयेत् ॥ ३,१७.४० ॥
िकंिच ं िच मं याव ावि ित सूतवत् ॥ ३,१७.४१ ॥
{सु वणरौ ु ित (२)}
शतधा नरमू ेण भावये े वदािलकाम् ।
त ूण वापमा ेण ु ितः ा णतारयोः ॥ ३,१७.४२ ॥
{ती णलोह ु ित (१)}
सुरदालीभवं भ नरमू ेण भािवतम् ।
ि स वारं तं ारं वापे ती ण ु ितभवेत् ॥ ३,१७.४३ ॥
{ती णलोह ु ित (२)}
मेष ंगी सकूमा थिशलाजतुिन वापयेत् ।
सारं ु ितभवे माव ादौ दापयेत् ॥ ३,१७.४४ ॥
{सवधातु ु ित (१)}
गंधकं कां तपाषाणं चूणिय ा समं समम् ।
ु ते लोहे तीवापो दे यो लोहा कं वेत् ॥ ३,१७.४५ ॥
{सवधातु ु ित (२)}
दे वदा ा वैभा ं गंधकं िदनस कम् ।
तेन वापमा ेण लोहं ित ित सूतवत् ॥ ३,१७.४६ ॥
{सु वण ु ित (३)}
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अित थूल भेक िनवाया ािण िनि पेत् ।
उदरे टं कणं पूण त े ां डम गम् ॥ ३,१७.४७ ॥
अ ाहा ाहये ा ैलं पातालयं के ।
त ैलं ािवते ण ि पेद् ु ितमवा ुयात् ॥ ३,१७.४८ ॥
{सु वण ु ित (४)}
इं गोपोऽ लाला च शशम ू कयोवसा ।
अ थीिन च समं िप ा ु ते हे ि वापयेत् ॥ ३,१७.४९ ॥
जायते रस पं त रकालं च ित ित ॥ ३,१७.५० ॥
{सु वण ु ित (५)}
इं गोपं कुलीरा थ दे वदा ा बीजकम् ।
चूिणतं भावयेद् ावैदवदा ु वैिदनम् ॥ ३,१७.५१ ॥
अनेन ािवते हे ि वापो दे यः पुनः पुनः ।
ित ते रस पं त रकालं िशवोिदतम् ॥ ३,१७.५२ ॥
{ती णलोह ु ित (३)}
ती णचूण च स ाहं प धा ीफल वैः ।
लोिलतं भावयेद्घम ीरक वैः पुनः ॥ ३,१७.५३ ॥
स ाहं भावये ावसंपुटके तथा ।
धािमतं वमायाित िचरं ित ित सूतवत् ॥ ३,१७.५४ ॥
{का लोह ु ित}
गालमेषकूमािहश ािन च िशलाजतु ।
एत व चूणिय ा सुत े कां तचूणके ।
वापयेद् वतां याित यथा सूतं सुिनि तम् ॥ ३,१७.५५ ॥
{सवलोह ु ित (३)}
लोहचूण यथे ैकं पनस फल वैः ।
स ाहं भावयेद्घम वगण मदयेत् ।
वते धमने नैव िलिपयो ं न सं शयः ॥ ३,१७.५६ ॥
{सवलोह ु ित (४)}
गंधकं र लवणं तु ं दे यं पुनः पु नः ।
ु तानां त चूणानां सवषां ावणं परम् ॥ ३,१७.५७ ॥
{सवलोह ु ित (५)}
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पीतम ू कगभ तु चूिणतं टं कणं ि पेत् ।
द् ा भां डे ि पेद्भू मौ ि स ाहा मु रे त् ॥ ३,१७.५८ ॥
त म ं िवचू ाथ ु ते लोहे वापयेत् ।
ित रस पािण सवलोहािन ना था ॥ ३,१७.५९ ॥
{माि कस ु ित (२)}
एरं डो ेन तै लेन गुं जा ौ ं च टं कणम् ।
मिदतं त वापेन स ं माि कजं वेत् ॥ ३,१७.६० ॥
{सवर ानां सवलोहानां ु ितः}
ार यं रामठं च चणका ा वेतसम् ॥ ३,१७.६१ ॥
ालामु खी चे ुरकं थलकु ीफलािन च ।
ु कपयसा णं िप ा त ोलकं ि पेत् ॥ ३,१७.६२ ॥
व मु ािन र ािन व े बद् ा पचे ठात् ।
दोलायं ेण धा ा े भवे ामा कं ु तम् ॥ ३,१७.६३ ॥
व ा कं नीलपु ं मु ािव ु ममाि कम् ।
पौ ं वैडूयमािण ं राजावत नीलकम् ॥ ३,१७.६४ ॥
वै ां तं ािटकं चैव व रससि भाः ।
एतैरेवौषधैल हजातं वित वापनात् ॥ ३,१७.६५ ॥
{व ु ित (१)}
व व र थं च कृ ा व ं िन तम् ।
जलभां डगतं े ं स ाहाद् वतां जेत् ॥ ३,१७.६६ ॥
{व ु ित (२)}
सू चूण तु स ाहं वेतसा े िविनि पेत् ।
स ाहादु द्धृ तं तं वै पुटे द् ा ु ितभवेत् ॥ ३,१७.६७ ॥
{वै ा ु ित (१)}
ेतवण तु वै ां तम वे तसभािवतम् ।
स ाहा ा सं देहः खरे घम व लम् ॥ ३,१७.६८ ॥
{वै ा ु ित (२)}
केतकी रसं ा ं सधवं णपु का ।
इं गोपकसंयु ं सव भां डे िविनि पेत् ॥ ३,१७.६९ ॥
स ाहं ेदये ै ां तं वतां जेत् ।
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लोहा कं च र ािन योग ा भावतः ॥ ३,१७.७० ॥
कु ते योगराजोऽयं र ानां ावणं परम् ॥ ३,१७.७१ ॥
{सव ु तीनां थापनाधारः}
कुसु तैलम े तु सं था ा ु तयः पृथक् ।
ित िचरकालं तु ा े काय िनयोजयेत् ॥ ३,१७.७२ ॥
इ ेवं ु ितसंचयं समु िचतैः साराितसारै मतैः कृ ा वाितकपुंगवोऽ सततं ीपारदे
मेलये त् ।
तेनैवाद् भुतभ णं सु कनकं कृ ाथ िव रे दे यं दीनजने च दु ःखिवमुखं कुया म ं
जगत् ॥ ३,१७.७३ ॥

३, १८
ु ित रह प रपा ा जारये ारदे े मुिनगिणतमथासौ सा रतः कोिटवेधी ।
अथ पिवकृतबीजं र गभ ु तं वा चरित यिद रसे ः ा दा श वेधी ॥ ३,१८.१ ॥
{ ु तीनां रसे न सह मे लापनम् (१)}
पाठा वं ा तालमूली नीलीिस दू रिच का ।
प क ं ीरक ं समं नागबला तथा ॥ ३,१८.२ ॥
एतेषां ाहये ं रसं व ेण गािलतम् ।
ु ितं समुखसू तं च औषधीनां तथा वम् ॥ ३,१८.३ ॥
सव ि ा घोषपा े शोषयेदातपे खरे ।
वः पुनः पु नदयो याव ाम यं भवेत् ॥ ३,१८.४ ॥
िमल ु तयः सवाः पारदे ना संशयः ॥ ३,१८.५ ॥
{सव ु ितमेलापन (२)}
व कंदामृता गुं जा वै म च पूववत् ।
िमल ु तयः सवा रसराजे न संशयः ॥ ३,१८.६ ॥
{सव ु ितमेलापन (३)}
कृ ागु िसता िहङ्गु क ूरी बीजकम् ।
तु ं चूण दशां शेन सूते ु ितयुते ि पेत् ॥ ३,१८.७ ॥
िमल ु तयः सवा अने नैव न सं शयः ॥ ३,१८.८ ॥
{सव ु ितमेलापन (४)}
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कृ ागु ेतिहं गु िसता लशुननाभयः ।
पू वव दने नैव िमल ु तयो रसे ॥ ३,१८.९ ॥
{सव ु ितमेलापन (५)}
अ लाला कं िन प ािण लशुनं समम् ।
टं कणे न समायु ं पूववद् ु ितमेलकम् ॥ ३,१८.१० ॥
{सव ु ितमेलापन (६)}
माि कं सिवषं गुं जा टं कणं ीरजः समम् ।
ी ं सं युतं िप ा तेन मूषां लेपयेत् ॥ ३,१८.११ ॥
ु ितयु ं रसं त ि ा द् ा िदनाविध ।
ेदये रीषाि थं ि िदनं वा तुषाि ना ।
िमल ु तयः सवा मीिलता जारये तः ॥ ३,१८.१२ ॥
ु तयो मीिलता ये न मू षां तेनैव लेपये त् ।
तथा च जीवयोगे न ातेऽयं िल मूिषका ॥ ३,१८.५७ ॥
{चो े र्=> गो ् }
हे मकां त ु ितं तु ां मेलये मुखे रसे ।
षोडशां शं रसा व िल मूषा तं पुटेत् ॥ ३,१८.५८ ॥
सतुषेऽथ करीषा ौ याव ूतावशेिषतम् ।
पु न मेलये वव ारये तः ॥ ३,१८.५९ ॥
एवं समां ु ितं सूते जारये मयोगतः ।
तत ं प बीजेन सारये ारणा यम् ॥ ३,१८.६० ॥
मूषाय े तु त ाय मु खं बद् ाथ ब येत् ।
तारारे ता सं यु े शतां शेन िनयोजयेत् ॥ ३,१८.६१ ॥
ामणेन समायु ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१८.६२ ॥
{चो े र्=> गो ् }
हे मा शु ु तयो ि गुणं जारये से ।
पू वव मयोगेन ततो रं जकबीजकम् ॥ ३,१८.६३ ॥
मूषाय े समं जाय सारये ारणा यम् ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा सह ां शेन वेधयेत् ।
तारारं ता सं यु ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१८.६४ ॥
{=> गो ् }
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कां तशु सुवणानां ु तयः समु खे रसे ।
जारये ूवयोगे न ेकं ि गुणं मात् ॥ ३,१८.६५ ॥
ततो रं जकबीजािन ि गुणं त जारयेत् ।
अथ बीजै धा साय जारये ारये ुनः ॥ ३,१८.६६ ॥
जा रतोऽथ मुखं बद् ा रसं बद् ाथ वेधयेत् ।
अयु तां शेन तेनैव पूवव ां चनं भवेत् ॥ ३,१८.६७ ॥
{ल वे धी रसः ( ु ितजारणेन)}
कां तहे मा ु तयो याव गुणं मात् ।
जारये ूवयोगे न ततो रं जकबीजकम् ॥ ३,१८.६८ ॥
जाय प गु णं त ूषाय े य तः ।
सारये बीजेन ि धा तं जारये ुनः ॥ ३,१८.६९ ॥
पु नः साय पु नजायमेवं वार ये कृते ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा ल वेधी भवे सः ॥ ३,१८.७० ॥
{दशल वेधी रसः}
आ र हे म ु तयः षड् गुणं जायते रसे ।
षड् गुणं रं जकं बीजं तत ैव जारयेत् ॥ ३,१८.७१ ॥
ि धा साय पुनजायमेवं वारचतु यम् ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा नागतैलेन वेधयेत् ।
दशल ां शयोगे न िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,१८.७२ ॥
{मेचुय्:: वेिधन्:: १०० तो कोिट}
े कं सू ततु ां शम हे म ु ित यम् ।
मेिलतं पूवयोगे न जारये मेण वै ॥ ३,१८.७३ ॥
शतवेधी भवे ूतो ि धा सह वेधकः ।
ि गुणेऽयुतवेधी ा वेधी चतुगुणे ॥ ३,१८.७४ ॥
स गुणे जीण दशल ािण िव ित ।
एवं रसगुणे जीण कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१८.७५ ॥
ततः स गुणं त जाय रं जकबीजकम् ।
ि धाथ प बीजे न सारये ूवव मात् ॥ ३,१८.७६ ॥
जारणा सारणा काया पु नः सारणजारणे ।
अनेन मयोगेन स ङ्खिलका मात् ॥ ३,१८.७७ ॥
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मुखं बद् ा रसं बद् ा कोिटवेधी भवे ु सः ।
तारे च ता संयु े ामणा ं िनयोजयेत् ॥ ३,१८.७८ ॥
{मेचुय्:: ब न (?)}
ेता तारघोषार ु तयः समु खे रसे ।
जायाः समा यथापूव तारबीजेन सारयेत् ।
ि धा तं पूवव ाय मुखं बद् ाथ ब येत् ॥ ३,१८.७९ ॥
{ितन् => िस े र्}
कां ततारार ु तयो ि गुणाः समुखे रसे ।
जारये गुणा याव बीजेन चाथवा ॥ ३,१८.८० ॥
सा रतं जा रतं कुया ूवव ृ ङ्खला यम् ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा अयुतां शेन वेधयेत् ॥ ३,१८.८१ ॥
ु ते बं गे तु त ारं भवे ुं दे दु सि भम् ॥ ३,१८.८२ ॥
{ितन् :: न}
तारती णघोषजाता ु तयः समु खे रसे ।
कुया चतु गुणा याव ारबीजेन सारयेत् ॥ ३,१८.८३ ॥
चत ः ङ्खला याव ु खं बद् ाथ ब येत् ।
अनेन ल भागे न बंग ो भवेद् ढः ॥ ३,१८.८४ ॥
{मेचुय्:: कोिटवेधी}
तारा कां त ु तयो जाया स गुणा रसे ।
त ाय तारबीजे न स ंखिलका मात् ॥ ३,१८.८५ ॥
मुखं बद् ा रसं बद् ा कोिटवेधी भवे सः ॥ ३,१८.८६ ॥
{स ङ्खला}
समु ख रसे धा ा ं पूवसं ृ तम् ।
चारये ारये मां शं चाथ त वै ॥ ३,१८.८७ ॥
षड् गुणं ं ि ते ोि सव जाय च पूववत् ।
ततो माि कस ं च पादां शं त गभतः ॥ ३,१८.८८ ॥
ावये ारये ाव सकस कम् ।
पू ववद् ािवतं जाय मूषाय े तु त मात् ॥ ३,१८.८९ ॥
गभ ावणकं बीजं ािवतं जारये ुनः ।
भवे तुगुणं याव ाद सुवणयोः ॥ ३,१८.९० ॥
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ु ितं समसमां सू ते ं िय ाथ जारयेत् ।
पू वव मयोगेन कां तहे ो ु ितः पुनः ॥ ३,१८.९१ ॥
े कं जारये ु ं णती ण ु ित था ।
ं ि तां जारये ु ां ततो रं जकबीजकम् ॥ ३,१८.९२ ॥
पू वव मयोगेन जाय त न् चतुगुणम् ।
तत ं प बीजेन सारये ारणा यम् ॥ ३,१८.९३ ॥
तदे व जा रतं कुया ूषाय े तु पूववत् ।
इ ेवं स वारािण सा रतं त धा ि धा ॥ ३,१८.९४ ॥
पू वव ारणा काया ातेयं स ङ्खला ।
सारणा य य ो ा िव े या वाितकैः पुनः ॥ ३,१८.९५ ॥
मुखं बद् ा रसं बद् ा कोिटवेधी भवे सः ।
ामणेन समायु ं चं ाक कां चनं भवेत् ॥ ३,१८.९६ ॥
कमा ादशकेनैव मा े धः कािशतः ।
समु खं िनमुखं बंधं रसबंधं तथे रतम् ॥ ३,१८.९७ ॥
गोिपतं शं भुना िस ै ः सू िचतं न कािशतम् ।
वाितकानां िहताथाय मया त कटीकृतम् ॥ ३,१८.९८ ॥
{व बीज}
व भ शु हे म ोमस मयोरजः ।
च ा र समभागािन नागचूण चतुःसमम् ॥ ३,१८.९९ ॥
ं मेलापिल ायां मूषायां चा तं धमेत् ।
एकीभूते समु द्धृ मूषायां कटं धमे त् ॥ ३,१८.१०० ॥
माि का ौतस ं च ोकं ोकं िविनि पेत् ।
हे मव ावशे षं तु याव ादु रे तः ॥ ३,१८.१०१ ॥
त ागं ोमस मय ूण च पूववत् ।
िनि पे ् वं िल ायां मूषायां चा तं धमेत् ॥ ३,१८.१०२ ॥
िम ीभू तं समुद्धृ मू षायां कटं धमे त् ।
णव ावशे षं त ाव ातं समु रे त् ॥ ३,१८.१०३ ॥
एवं पु नः पु नजाय ोमस ायसं फणी ।
पू वव मयोगेन षड् गुणं जारये ुनः ॥ ३,१८.१०४ ॥
माि का ौतस कम् [... औ६ Zएइछे झ्] ।
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ि पन् ि प मे ं तु बा मेवं तु षड् गुणम् ॥ ३,१८.१०५ ॥
व बीजिमदं ातं जारणे परमं िहतम् ॥ ३,१८.१०६ ॥
{व बीजजारणेन शवे धी श वेधी रसः}
वासनामु खते सूते ं ि तं ोमस कम् ।
पू वव मयोगेन षड् गुणं जारये ुनः ॥ ३,१८.१०७ ॥
त न् जाय व बीजं ोमस मेण वै ।
सते क पे यं े यथाजीण तथा फलम् ॥ ३,१८.१०८ ॥
ि गुणेऽयुतवेधी ा गुणे ल वेधकः ।
यदा चतु गुणं जीण दशल ािण िव ित ॥ ३,१८.१०९ ॥
कोिटवेधी प गुणे दशको ु षड् गुणे ।
अबु दां शा गु णे शङ् खवे मे गुणे ॥ ३,१८.११० ॥
नवमे खववे धी ा शमे प वेधकः ।
योदशगु णे जीण शवे धी भवे सः ॥ ३,१८.१११ ॥
चतुदशगुणे जीण भवे ाषाणवेधकः ।
ि प गुिणते जीण सशै लवनकाननाम् ॥ ३,१८.११२ ॥
वेधये ेिदनी ं सवा स भवेद्भूचरो रसः ।
एवं कलागु णे जीण ैलो ापको भवेत् ॥ ३,१८.११३ ॥
खे चरो रसराजे ो मुख थः खेगित दः ।
जायते च यथाश ा ततः साय मेण वै ॥ ३,१८.११४ ॥
व बीजेन तु ेन थमा सारणा भवेत् ।
पू वव ारणा काया ि गुणेनानुसारयेत् ॥ ३,१८.११५ ॥
तथैव जारयेद्भूयः कत ा ितसारणा ।
ि गुणेन तु ते नैव मुखं बद् ाथ ब येत् ॥ ३,१८.११६ ॥
ि सह ािदल ा ं वेधक ा यं िविधः ।
इ ेवं च पु नः कुया ारणां कोिटवेधके ॥ ३,१८.११७ ॥
दशको ा बुदा े च जा रते वेधके रसे ।
ि कारा कत ा सारणा तु ि धा ि धा ॥ ३,१८.११८ ॥
चतुगुणा शङ्खवेधे तदू प धा भवेत् ।
षड् गुणा प वे धे तु मू लवेधे तु स धा ॥ ३,१८.११९ ॥
अ धा शवेधे तु दशधा श वेधके ।
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तत योदशगु णाः कलागुणे कलागुणाः ॥ ३,१८.१२० ॥
मशः सारणा काया यथाश ानुसारतः ।
मुखं बद् ा रसं बद् ा प ा े धं क येत् ॥ ३,१८.१२१ ॥
चं ाक वा भुजंगे वा ामणेन समायुतम् ।
इ ेवं प पय ं सं ावेधा ु यो रसः ॥ ३,१८.१२२ ॥
त े ि तं मधू ै ः कुंतवेधे तु योजयेत् ।
त व कनकं िद ं जायते शंभुभािषतम् ॥ ३,१८.१२३ ॥
{धूमवे धिविध}
धूमवेधे रसं िप ा तेन व ं लेपयेत् ।
ततो ोित तीतैले धृ ा वित क येत् ॥ ३,१८.१२४ ॥
िलतां तां ता कूटे योजये तां गते ।
तद् धू मगंधमा ेण सव भवित कां चनम् ॥ ३,१८.१२५ ॥
{ शवेधिविध}
शवेधी रसो योऽसौ गुिटकां तेन कारयेत् ।
ु तानाम लोहानां ि ा म े समु रे त् ।
त वे ां चनं िद मसं ं ना संशयः ॥ ३,१८.१२६ ॥
{श वेधिविध}
श वेधी रसो योऽसौ गु िटकां तेन कारयेत् ।
धारये म े तु ततो लोहािन वेधयेत् ।
त व जायते ण ु ते श े न संशयः ॥ ३,१८.१२७ ॥
{पाषाणवे धिविध}
पाषाणवेधको योऽसौ पवतािन तु तेन वै ।
वेधयेदि ना त ान् सव भवित कां चनम् ॥ ३,१८.१२८ ॥
{मेिदनीवेधिविध}
मेिदनीवेधको योऽसौ रािजकाधाधमा कः ।
तेनैव वे धये वा सशै लवनकाननाम् ।
मेिदनी सा णमयी भवे ं िशवोिदतम् ॥ ३,१८.१२९ ॥
{ ै लो ापकिविध}
ै लो ापको योऽसौ तं करे धारये ु यः ।
स भवे े चरो िद ो महाकायो महाबलः ॥ ३,१८.१३० ॥
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े ाचारी महावीरः िशवतु ो भवे ु सः ।
त मू पुरीषा ां सवलोहािन कां चनम् ॥ ३,१८.१३१ ॥
जाय े ना सं देह ेद शनादिप ।
रसकायो महािस ः सवलोकेषु पू ते ॥ ३,१८.१३२ ॥
अव ो दे वदै ानां याव ाकमेिदनी ।
भु ानो िद भोगां ीडते भैरवो यथा ॥ ३,१८.१३३ ॥
{रसबीजं शतवेधी}
भाग यं शु सूतं भागैकं मृ तव कम् ।
कािकनीरजसा म त ख े िदनाविध ॥ ३,१८.१३४ ॥
तेनैव पादभागेन हे मप ािण लेपयेत् ।
ोमव ीरसैः िप ं कां तटं कणतालकम् ॥ ३,१८.१३५ ॥
अनेन चा मां शेन पूविल ािन लेपयेत् ।
द् ा े ं िदवारा ौ करीषा ौ ततः पुनः ॥ ३,१८.१३६ ॥
कदलीकंदसौवीरटं कणं च समं समम् ।
क काया वैः िप ा मूषा ले ा नेन वै ॥ ३,१८.१३७ ॥
त े पूवप ं य ु द् ा धा ं ढाि ना ।
त व जायते खोटं सौवीरं काचटं कणम् ॥ ३,१८.१३८ ॥
द ा द ा धमे ोटं जायते भा रोपमम् ।
रसबीजिमदं ातं वेधके जारणे िहतम् ।
चं ाक शतवे धी ा ां चनं कु ते शुभम् ॥ ३,१८.१३९ ॥
{श वेधी रसः}
अथ व े रसे समां श च भ णम् ।
पू व ं रसबीजं तु समुखे चारये से ॥ ३,१८.१४० ॥
अ स कारे ण जारये मेण वै ।
प प ां शगुिणतं यदा सित पारदः ॥ ३,१८.१४१ ॥
तत ेनैव बीजे न सारणा ामणा यम् ।
तत जा रतं कुया ु खं बद् ाथ ब येत् ।
श वेधी भवे ो िह रसः शं करभािषतम् ॥ ३,१८.१४२ ॥
{रसबीजं शतवेिध}
समु ख रसे प बीजं समां शकम् ।
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जारये ािभिष ं तद स मेण वै ॥ ३,१८.१४३ ॥
मृतव ं षोडशां शं त ूते िविनि पेत् ।
तालकं टं कणं कां तं तृतीयं चा मां शकम् ॥ ३,१८.१४४ ॥
द ा त ं दा ख े ोमव ी वैिदनम् ।
त व मिदतं कृ ा छायाशु ं य तः ॥ ३,१८.१४५ ॥
ं मेलापिल ायां मूषायां चा तं धमेत् ।
करीषा ौ िदवारा ौ ाते खोटं भवे ु तत् ॥ ३,१८.१४६ ॥
काचटं कणसौवीरै ः शोधये ं धमन् धमन् ।
रसबीजिमदं ातं पूवव शतवेधकम् ।
जायते रसराजोऽयं कु ते कनकं शुभम् ॥ ३,१८.१४७ ॥
{मेचुय्:: र न:: रे द् }
अथवा समुखे सूते पू वव ारयेि नम् ।
प प ां शगुिणतं यदा सित पारदः ॥ ३,१८.१४८ ॥
रसबीजेन चा ेन ि धा साय मेण वै ।
सा रते जारणा काया मु खं बद् ाथ ब येत् ।
श वेधी भवे ा ा ा ं ण करोित वै ॥ ३,१८.१४९ ॥
{रसबीजम्}
प बीज चूण तु पूवव ािभषेिकतम् ।
षोडशां शेन सू त समुख तु चारयेत् ॥ ३,१८.१५० ॥
ङ्गु ां मदनेनैव घम चरित त णात् ।
त ीजं जारये ेदनै ा स वत् ॥ ३,१८.१५१ ॥
अनेन मयोगेन समं बीजं तु सारयेत् ।
त ् वादशभागे न प बीजं तु त वै ॥ ३,१८.१५२ ॥
चारये दय ेव क पा ेऽथ जारयेत् ।
अ स कारे ण समं याव जारयेत् ॥ ३,१८.१५३ ॥
तत ा मां शेन प बीजं तु दापयेत् ।
मदये ख े त चर ेव िह त णात् ॥ ३,१८.१५४ ॥
तं सू तं सू रणे कंदे गभ ि ा िन च ।
िल ा कंदं पुटे प ा था कंदो न द ते ॥ ३,१८.१५५ ॥
त ैव सते सूतो जीण ासं तु दापयेत् ।
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अनेन मयोगेन समबीजं समं पुनः ॥ ३,१८.१५६ ॥
पादां शं प बीजं तु द ा चाय च मदयेत् ।
मूषाय े ततो जाय ेदनेन पु नः पुनः ॥ ३,१८.१५७ ॥
अनेन मयोगेन समबीजं च जारयेत् ।
एवं चतुगुणे जीण प बीजे तु पारदे ।
जायते कुंकुमाभ ु रसे ो बलव रः ॥ ३,१८.१५८ ॥
{धूमवे धी श वेधी पाषाणवेधी रसः}
अ कं ामकं ा ी मृतलोहा कं तथा ।
महारसा ोपरसाः कटु तु ा बीजकम् ॥ ३,१८.१५९ ॥
शङ्खनािभमष ी व कंदं समं समम् ।
मयूर तु र ेन सव पा ं िदनाविध ॥ ३,१८.१६० ॥
तत ं मदये ोटं िश खर े िदन यम् ।
अनेन मृ तव ं तु लेिपतं कारये तः ॥ ३,१८.१६१ ॥
मूषामा फलाकारां ि ि िल ां तु कारयेत् ।
त े पूवसू तं तु पादां शं िल व कम् ॥ ३,१८.१६२ ॥
अथवा व बीजं च पूवक े न लेिपतम् ।
अथवा ं ि तं व ं समं णन य ृ तम् ॥ ३,१८.१६३ ॥
त ं पू वक े न पादां शं त िनि पेत् ।
आ ािदतं धमे ं मू षाधोमु खवायुना ॥ ३,१८.१६४ ॥
िकंिच ं िचि डं द ा जीण त ा मु रे त् ।
पु न मूषायां ि ा व ेण संयुतम् ।
पू वव मयोगेन जीण व े समु रे त् ।
अनेन मयोगेन व ं वा व बीजकम् ॥ ३,१८.१६५ ॥
ण ं ि तव ं वा जारये ुनः पुनः ।
एकादशगु णं याव ाव ाय रसे के ॥ ३,१८.१६६ ॥
सुद ां शङ्खनािभं तु मातुिलंगरसैिदनम् ।
मदये ोलये ेन मु ाचूण सुशोभनम् ॥ ३,१८.१६७ ॥
ािवतं मौ कं वाथ पू वव ारये मन् ।
मूषायां िबडिल ायां पादं पादं शनैः शनैः ॥ ३,१८.१६८ ॥
एकादशगु णं याव ाय क पेन तत् ॥ ३,१८.१६९ ॥
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नीलीिनयाससंतु ं िश खिप ं िवमदयेत् ।
इ नीलं च नीलं च तेन िल ाथ जारयेत् ॥ ३,१८.१७० ॥
पू वव मयोगेन धमना ेदनेन वा ।
िवडलेिपतमूषायामेकादशगुणं मात् ॥ ३,१८.१७१ ॥
ािवतं चे नीलं वा नीलं च ािवतं मात् ।
ं ि तं रसराज जायम ु ितयथा ।
इ ेवं जारये ीलं ािवतं किठनं तु वा ॥ ३,१८.१७२ ॥
िश खिप नृ र ा ां लेिपतं प रागकम् ।
जारये सराज ेकादशगुणं मात् ।
जाय वा ािवतं त ु यथा चा ु ितः पुरा ॥ ३,१८.१७३ ॥
रजनी तु कंकु ं पु वैिदनम् ।
भािवतं ते न िल ं तु पु रागं तु जारयेत् ॥ ३,१८.१७४ ॥
किठनं ािवतं वाथ सं ा मेण वै ।
एवं र ैभवे ृ ो रसराजो महाबलः ॥ ३,१८.१७५ ॥
अनेनैव शतां शेन मधू ेन लेपयेत् ।
शु हाटकप ािण द् ा गजपु टे पचेत् ॥ ३,१८.१७६ ॥
इं गोपसमाकारं त ण जायते शु भम् ।
अनेनैव सु वणन सारये ारणा यम् ॥ ३,१८.१७७ ॥
र तृ ं सूतराजं मूषाय े िविनि पेत् ।
शनै ः शनै धमे ाव ाव ूतावशेिषतम् ॥ ३,१८.१७८ ॥
मुखं बद् ा रसं बद् ा धूमवेधी भवे ु तत् ।
अनेन मयोगेन पुनः सारणजारणा ॥ ३,१८.१७९ ॥
कत ा कारा वै मु खं बद् ाथ ब येत् ।
श वेधी रसे ोऽयं जायते खेगित दः ॥ ३,१८.१८० ॥
पु न ि िवधा काया सारणा ारणा मात् ।
त ैव तु रसे मुखब ं च कारयेत् ॥ ३,१८.१८१ ॥
तेनैव वे धये व िग रपाषाणभूतलम् ।
जायते कनकं िद ं जा ूनदसम भम् ॥ ३,१८.१८२ ॥
िस ै भूचरखे चरा िशवमुखा ा ा महाजारणा कृ ा तां च रसे रसातलिमदं णन पूण
कृतम् ।
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तेषां कम िवचाय सारम खलं ीकृतं त या यः कि द् गु त म िनरत ैव िस ं
भवेत् ॥ ३,१८.१८३ ॥

३, १९
संसारे सारभू तं सकलसुखकरं सु भूतं धनं वै त ा ं साधके ै गु मुखिविधना व ते
त िस ै ।
र ादीनां िवशेषा रणिमह शुभं गं धवादं सम ं ा ा त ुिस ं नु भवपथगं पावनं
प तानाम् ॥ ३,१९.१ ॥
{प रागकरणम् }
चतुगुणे न तोयेन ला ां िप ा तु तद् वैः ।
व पूतं शतपलं गृ मृ ा गं पचेत् ॥ ३,१९.२ ॥
मृ ि ना पादशे षं जातं याव त वै ।
ि पे लं पलं चूण सिजटं कणलो कम् ॥ ३,१९.३ ॥
िकंिच ा तः शीतं काचकू ां सुर येत् ।
थूलम चं प ाि वारा ं जलेन तत् ॥ ३,१९.४ ॥
घनीभूतं समु ाय ातोऽयं म क लम् ।
एत ष यं त ाः काचकू ां िविनि पेत् ॥ ३,१९.५ ॥
वष पला ु तेनैव लालिय ा सुपािचते ।
मधू कतैलम े तु णं प ा समु रे त् ।
जाय े प रागािण िद तेजोमयािन च ॥ ३,१९.६ ॥
{इ नीलकरणम्}
नीलीचूण पलैकं तु पूवकू ां तु तद् वम् ।
तद् वं ि पलं चूण ि ा सव िवलोलयेत् ॥ ३,१९.७ ॥
ि ा वष लां ेन पू वतैलगता चेत् ।
इ नीलािन ता े व जाय े ना संशयः ॥ ३,१९.८ ॥
{मरकतमिणकरणम् }
मि ां तालकं नीली समचूण क येत् ।
काचकू ां थतै ावै ः सवमेत ुलोलयेत् ॥ ३,१९.९ ॥
वष लां ु तेनैव िस ा प ा पूववत् ।
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सव मरकता ेन समीचीना भव वै ॥ ३,१९.१० ॥
{गोमेदमिणकरणम्}
मि ायाः कषायेण पे षये क लम् ।
वष लां ु तेनैव िस ा प ा पूववत् ॥ ३,१९.११ ॥
गोमे दािन तु ता ेव वत े न सं शयः ॥ ३,१९.१२ ॥
{पु रागकरणम् }
िप ा तालकतु ं तु जलैके रसकुङ्कुमम् ।
त े चा मां शं तु ि पे ो क लम् ॥ ३,१९.१३ ॥
त व पाचये ाममवताय सुर येत् ।
वष पलां ु तेनैव िस ा ा पूववत् ।
भव पु रागा े यथा ख ु तािन च ॥ ३,१९.१४ ॥
{नीलमािण करणम् }
नीलीचूण तु ां शं ि पे ो क लम् ।
बीजका ं च तु ां शं जले था ं िदनाविध ॥ ३,१९.१५ ॥
त व पाचये ाममवताय सुर येत् ।
वष पलां ु तेनैव िस ाः प ा पूववत् ।
नीलमािण स शा े भव न संशयः ॥ ३,१९.१६ ॥
{मु ाकरणम् (१)}
ो ािन र ािण काचकू ां पृथ ृथक् ।
र िय ा य ेन ा े काय िनयोजयेत् ॥ ३,१९.१७ ॥
सूयकां त म े तु िबलं कुया ुवतुलम् ।
तथा ं सू यका ं च कुयादा ादने िहतम् ॥ ३,१९.१८ ॥
सू मु ाफला ादौ ावये ूवयोगतः ।
तद् ु तं सूयकां त िबले पूय य तः ॥ ३,१९.१९ ॥
सूयका ेनापरे ण छािदतं घमधा रतम् ।
याममा ा वे ं मौ कं चाितशोभनम् ॥ ३,१९.२० ॥
िछ ं कृ ा िनब ाथ सुशु े व ख के ।
सुशु ै ु लैः साध क ये दु लूखले ॥ ३,१९.२१ ॥
लघु ह ेन यामैकं तत उद् धृ ालयेत् ।
चा र फलानां तु जलेन सह पेषयेत् ।
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तेनैव ािलते मु ाफलं भवित शोभनम् ॥ ३,१९.२२ ॥
{मु ाकरणम् (२)}
मौ कािन सुसू ािण चूिणतािन िविनि पेत् ।
सू ताया इडाया ु स ः ीरै ः णाविध ॥ ३,१९.२३ ॥
तेनैव वतुलाकारा गुिटकाः कारये तः ।
काचपा े थताः शो ाः छायायां िदनमा कम् ॥ ३,१९.२४ ॥
ोतयेद वाले न मालां कृ ाथ शोषयेत् ।
छायायां किठना याव ाव था ा िवल ताः ॥ ३,१९.२५ ॥
थूल कृ म एकक चोदरात् ।
िनवाया ािण त ैव पू वमालां िनवेशयेत् ॥ ३,१९.२६ ॥
उदरं सीवये ू ेणैव भा े िन तत् ।
मासमा ा मुद्धृ छायायां शोषये ुनः ॥ ३,१९.२७ ॥
क नं ालनं चैव पूवव ारये नैः ।
भव तािन शु ािण स ङ्मु ाफलािन वै ॥ ३,१९.२८ ॥
{मु ाकरणम् (३)}
मु ाशु ं समादाय जलशु मथािप वा ।
घषये ृ भागं तु त का ापनु ये ॥ ३,१९.२९ ॥
ताः शु ा ूणये ल णमीडा ीरािदपूववत् ।
कारये ालना ं च मौ कािन भव वै ॥ ३,१९.३० ॥
{मु ाकरणम् (४)}
स उद् धृ म थूल च ुषी हरे त् ।
एकैकं ब ये े ईडा ीरै िदनं पचेत् ॥ ३,१९.३१ ॥
छायायां शोषये ा नं ालनं ततः ।
कारये ूवव ािन मौ कािन भव वै ॥ ३,१९.३२ ॥
{ वालकरणम् (१)}
द शं खं च दरदं समं चूण क येत् ।
सू ताया मिह ा ु प मे िदवसे हरे त् ॥ ३,१९.३३ ॥
ीरं तेनैव त यामैकं पूवचूणकम् ।
वतुलां गु िटकां कृ ा ोतये ा सू के ॥ ३,१९.३४ ॥
र ागभदलेनैव म मां गु तजनी ।
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वे िय ा तु तै ा ा गु िलका ाः पृ थ ृथक् ॥ ३,१९.३५ ॥
आव ाव सं था ा रं भाप ैः य तः ।
छायाशु ाः शु भाः ो ा ा सू ेण वै पुनः ॥ ३,१९.३६ ॥
मधु कं त तैला ं धू मेन ेदये नैः ।
जायते प रागाभं वालं ना संशयः ॥ ३,१९.३७ ॥
{ वालकरणम् (२)}
द ः शं खः सिस दू रं समां शं चूणये तः ।
ीरै ः स ः सू ताया एडाया मदयेद् ढम् ॥ ३,१९.३८ ॥
पू रये तृणो े वा नाले वंशािदसंभवे ।
सुप े चा भा े तु यवागूविजते ि पेत् ॥ ३,१९.३९ ॥
आ ा प ा ा ौ घिटका े समु रे त् ।
वाला निलकागभ जाय े प रागवत् ॥ ३,१९.४० ॥
{िहङ्गुलकरणम्}
अशु ं पारदं भागं चतुभागं च टं कणम् ।
उभौ ि ा लोहपा े णं मृ ि ना पचेत् ॥ ३,१९.४१ ॥
त नःिशलाचूण पारदा शमां शतः ।
ि ा चा मयोद ा वताय सुशीतलम् ॥ ३,१९.४२ ॥
कृ ाथ ख शः ि ा काचकू ां िन च ।
व मृ ि कया स ाचकूपीं लेपयेत् ॥ ३,१९.४३ ॥
सवतोऽङ्गु लमाने न छायाशु ं तु कारयेत् ।
वालु कायं गभ तु ि िदनं मृदुनाि ना ॥ ३,१९.४४ ॥
मवृ ाि ना प ा चेि वसप कम् ।
स ाहा मुद्धृ िहं गुलं ा नोहरम् ॥ ३,१९.४५ ॥
{िस दू रकरणम् (१)}
िचं चा पादां शं ु ते नागे िविनि पेत् ।
पाचये ोहजे पा े लोहद ा िनघषयेत् ।
च ाि ना िदनैकं तु िस दू रं जायते शुभम् ॥ ३,१९.४६ ॥
{िस दू रकरणम् (२)}
र शा ख पामागकुटज तु भ कम् ।
चतुथाशं ु ते नागे द ा म िदन यम् ॥ ३,१९.४७ ॥
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पू वव ोहपा े तु िस दू रं जायते शुभम् ॥ ३,१९.४८ ॥
{िस दू रकरणम् (३)}
भ ना पूवव ागं शाक वा रज वा ।
िस दू रं जायते िद ं यथे ं ना संशयः ॥ ३,१९.४९ ॥
{िस दू रकरणम् (४)}
पलानां ि शतं नागं ावये ोहभाजने ।
समू लवासकाभ पादां शं त िनि पेत् ॥ ३,१९.५० ॥
पीतवण भवे ाव ाव ा चालयेत् ।
ततः सु शीतलं कृ ा जलेन चालये ुनः ॥ ३,१९.५१ ॥
पलमा ा वटी कृ ा वासाभ ोप र ि पेत् ।
छायाशु ा समा मृ ा े नूतने ि पेत् ॥ ३,१९.५२ ॥
ि ा द् ा पचे ु ां िनवाते ती वि ना ।
िछ ं कुया ा व े शलाकां लोहजां ि पेत् ॥ ३,१९.५३ ॥
र वणा यदा ा ा ताव ा री येत् ।
िस दू रं जायते िद ं िस योग उदा तः ॥ ३,१९.५४ ॥
{सै वकरणम् }
नवभा े पलशतं सामु लवणं ि पेत् ।
िन ं िन ं सूतगंधौ ि ा च ाि ना पचेत् ॥ ३,१९.५५ ॥
ि यामा े ि पे ं ोहनाराचकं यिद ।
र वण भवे ै तदा वि ं िनवारयेत् ॥ ३,१९.५६ ॥
भावशीतलं ा ं िस ू ं लवणं भवेत् ॥ ३,१९.५७ ॥
{सु वचलकरणम् }
आरनालं पलैकं तु ि िन ं च सुवचलम् ।
माषै कं गं धकं िप ा सव पा े तु धारयेत् ॥ ३,१९.५८ ॥
पलै कं सधवं त ं कृ ा त िनषेचयेत् ।
पु न ा ं पुनः से ं वो यावि शु ित ।
सुवचलं भवे ाव ा काया िवचारणा ॥ ३,१९.५९ ॥
{िहङ्गुकरणम् (१)}
िहङ्गु नागरमेकैकं लशुन पल यम् ।
चतु लं िन बीजं माषचूण पला कम् ॥ ३,१९.६० ॥
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सवतु ां िब म ामजा ीरे ण पेषयेत् ।
त व ब ये ाढं सा गोचमगभतः ।
प यं धा राशौ ि पे ं गु भवे तः ॥ ३,१९.६१ ॥
{िहङ्गुकरणम् (२)}
ब ूलवृ िनयासं सामु लवणं तथा ।
च कणा तु ं मेषी ीरे ण पेषयेत् ॥ ३,१९.६२ ॥
अ िप पादां शं शु िहं गु िनयोजयेत् ।
त व पू वव ं चमणा िदवस यम् ॥ ३,१९.६३ ॥
िनवाते ल तं र ेिथंगु ा ु िहं गुवत् ॥ ३,१९.६४ ॥
{िहङ्गुकरणम् (३)}
पलै कैकं गु डं शु ी ि कं टं कणगु ुलुम् ।
एर बीजम ा च तुषव पल यम् ॥ ३,१९.६५ ॥
िन ाषा पल ं मे कीकृ पेषयेत् ।
ि कष िहङ्गु त ेि ा तोयेन लोलयेत् ॥ ३,१९.६६ ॥
त व पू वव द् ा स ाहा ङ्गुतां जेत् ॥ ३,१९.६७ ॥
{िहङ्गुकरणम् (४)}
ि पले शु िहं गु ादे डा ीरं च िवंशितः ।
गोधू ममाषयो ूण ेकं तु चतु लम् ॥ ३,१९.६८ ॥
अलाबु पा म थं त व लोिलतं ि पेत् ।
छायाशु ं भवे ाव ाव ं गु शु भं भवेत् ॥ ३,१९.६९ ॥
{व करणम् (१)}
ध ूरबीजचूण तु व ी ीरे ण भावयेत् ।
शो ं पे ं पुनभा मेवं घम ि स धा ॥ ३,१९.७० ॥
त ा ं ु तनाग दशमां शेन दापयेत् ।
ढालये ु योम े त ं जायते शुभम् ।
भावये जनीम े त ं गं जायते शुभम् ॥ ३,१९.७१ ॥
{व करणम् (२)}
भावये जनीचू ण व ीदु ेन स धा ।
त ापं दशमां शेन ु ते नागे दापयेत् ॥ ३,१९.७२ ॥
त ापं ु तनाग दशमां शेन दापयेत् ।
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त ढा ं ि फला ाथे पुन वापयेत् ॥ ३,१९.७३ ॥
टं कणं नवसारं च द ा से ं नृमू के ।
ािवतं च पु नढा ं नृ मू े व तां जेत् ॥ ३,१९.७४ ॥
{अ वे तसकरणम् }
ीजरिहतं िचंचाफलं कां िजकसंयुतम् ।
प ा कुया पूतं ज ीरा ं तु त मम् ॥ ३,१९.७५ ॥
चा े रीमातुिलंगा ैयथा ा ं समाहरे त् ।
व पूतं तु त व पचे ादावशे िषतम् ॥ ३,१९.७६ ॥
सौरा ी तु कासीसं ि ारं पटु प कम् ।
मूलसारं च तु ां शं सव चूण िविनि पेत् ॥ ३,१९.७७ ॥
पू वप े तु पादां शं पुनमृ ि ना पचेत् ।
घनीभूतं भवे ाव केनै व चालयेत् ।
अ वेतसिम े त ायते शोभनं परम् ॥ ३,१९.७८ ॥
{साहीकरणम् }
ि फला भृ कोर भ ातकरवीरकम् ।
बीजा सममेतेषां समां शं बोलक ले ॥ ३,१९.७९ ॥
ि ा म ता पा े प ाहा ायते मषी ।
तालप ेषु भूजषु िल ते परमं ढम् ॥ ३,१९.८० ॥
{घृ तकरणम् }
ना रकेला लरसं ा ं भागचतु यम् ।
त े घृतमे कं तु ि ा भा े िवलोलयेत् ॥ ३,१९.८१ ॥
शतां शेन ि पे न् र शािकिनमू लकम् ।
मृ ि ना पचे ं िच व जायते घृतम् ॥ ३,१९.८२ ॥
{घृ तकरणम् (२)}
घृ तं तोयं समं कृ ा िवंश ंशेन चु कम् ।
ि ा सव तु मृ ां डे णं ह ेन मदयेत् ।
घृ तं त ायते सव न चाि ं सहते िचत् ॥ ३,१९.८३ ॥
{घृ तकरणम् (३)}
मेषीमेदः प पलं ितलतैलं च त मम् ।
पचे ृ ि ना ताव ाव े नं िनवतते ॥ ३,१९.८४ ॥
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ि िन ं कां िजकं त न् ि ा व ेण चालयेत् ।
पादां शं च घृतं त न् द ा व घृतं भवेत् ॥ ३,१९.८५ ॥
{घृ तकरणम् (४)}
ितलतै लं िवप ादौ याव े नं िनवतते ।
गु ु लुं िनि पे न् िकंिच ं धिनवृ ये ॥ ३,१९.८६ ॥
िवंश ंशेन तोय ि ा चु ं िवलोलयेत् ।
जलतु ं पू वतैलं िम ये ुशीतलम् ॥ ३,१९.८७ ॥
मदये ृ ये पा े ह ेन णमा कम् ।
घनीभूते घृतं चाध ि ा सव घृतं भवेत् ॥ ३,१९.८८ ॥
{च नकरणम्}
संछे िन वृ ं तु ह ैकं र येदधः ।
त मूि िबलं कुया ैव नवगु ुलुम् ॥ ३,१९.८९ ॥
पू रये ेन का े न िबलं द् ाथ लेपयेत् ।
संिधं मृ वणेनैव शु ं गजपुटे पचेत् ॥ ३,१९.९० ॥
भावशीतलं ा ं त ूलं च नं भवेत् ॥ ३,१९.९१ ॥
{कपू रकरणम्}
पल यं पचे ंस ाजा त ु लम् ।
त ं शीतलं कृ ा गवां ीरै ः य तः ॥ ३,१९.९२ ॥
िन मा ं च कपू रं ि ा त ं पेषयेत् ।
शु वंशनाल थूल तेन चोदरम् ॥ ३,१९.९३ ॥
ले मङ्गुलमानेन छायाशु ं च कारयेत् ।
िछ ाथ कदलीपु ं ति यासेन पूरयेत् ॥ ३,१९.९४ ॥
वंशनालं पुनव ख े द् ा च त ुखम् ।
आतपे ि िदनं शो ं भूगत िनखने तः ॥ ३,१९.९५ ॥
ि स ाहा मु द्धृ शोषिय ा समाहरे त् ।
कपूरं त गभ थं र े पू रभाजने ।
कपूरं जायते िद ं यथा बीजं न सं शयः ॥ ३,१९.९६ ॥
{जवादीया ूरीकरणम्}
पनस ाध प बीजा ेक ख येत् ।
नवभा े िविनि िन ं शु ी पलं तथा ॥ ३,१९.९७ ॥
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चूणिय ा ि पे न् त व वतां जेत् ।
तेन घृ ा ि पे न् चतुिन ं च च नम् ॥ ३,१९.९८ ॥
मृ ौ पाचये ाव ावदार तां गतम् ।
त ीतलं काचपा े ि ा त ोप र ि पेत् ॥ ३,१९.९९ ॥
च कं केतकीम ीजातीपु ािण त ुनः ।
िदनं शु पटे बद् ा मुखं त ैव र येत् ॥ ३,१९.१०० ॥
ततः पु ािण सं ा क ूरीं माषमा काम् ।
माषै कं शु कपूरे त ेव िविनि पेत् ॥ ३,१९.१०१ ॥
िनि पेि ं शदं शेन स ावािदकामिप ।
त व मिथतं पूव स ावािदभाजने ॥ ३,१९.१०२ ॥
वे ये कापु ै ां डं िदवस यम् ।
स वित जावािद वणः प रमलैरिप ॥ ३,१९.१०३ ॥
{क ूरीकरणम्}
मधू कतैलं तैलं वा ितलो ं पलप कम् ।
मु ी ावं दशपलं सवमेक योजयेत् ॥ ३,१९.१०४ ॥
म का मालती जाती केतकी शतप का ।
अ ािन च सुग ीिन पु ािण त िनि पेत् ॥ ३,१९.१०५ ॥
िदनै कं मु ि तं र े ु ं िन ी सं जेत् ।
िस कं िवं शितिन ान् ि ात चे नैः ॥ ३,१९.१०६ ॥
याव ैलावशे षं ा पू रं चाधिन कम् ।
िन ं माजारजावािदं ि ा तदवतारयेत् ॥ ३,१९.१०७ ॥
अ पा े िविनि शीतलं त ुनः पचेत् ।
णमा ा दु ाय ि पे ावािद भाजने ॥ ३,१९.१०८ ॥
सा ं भवित त व यथा बीजं न सं शयः ।
पु ािण बकुल ैव र मालां समं समम् ॥ ३,१९.१०९ ॥
त ूणिम ुद कृतनाल चोदरे ।
ि ा त मुखं द् ा त ािभमृ दा पुनः ॥ ३,१९.११० ॥
पु टे ृणाि ना ताव ाव ं धो न द ते ।
व तािन पु ािण मुखं िभ ा वं हरे त् ॥ ३,१९.१११ ॥
क ूरीचम िनल मं मु ातु ं िवचूणयेत् ।
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चूण दशमां शेन स ू रकां ि पेत् ॥ ३,१९.११२ ॥
पू व ावेण त व पे िषतं गोलकीकृतम् ।
क ूरीमदनाकारा िकंिच ाया य तः ॥ ३,१९.११३ ॥
त व छायया शो ं मदना र ये ृथक् ।
गुिटकाः ख शः कृ ा मदनैः सह िम येत् ।
क ूरीचमणा बद् ा स ङ्मृ गमदो भवेत् ॥ ३,१९.११४ ॥
{कु कुमकरणम् (१)}
ना रकेलकपालं वा घृ ं वा िन का कम् ।
य ं िच ु का ं वा तोयेन सह कारयेत् ॥ ३,१९.११५ ॥
त ादं रजनी चाथ त े िविनि पेत् ।
गै रकं वा रज ध त व कुंकुमं भवेत् ॥ ३,१९.११६ ॥
{कुङ् कुमकरणम् (२)}
पालाशपु जं ाथं घम धाय तु खपरे ।
िवंश ंशं ि पे न् पेिषतं शु त ु लम् ॥ ३,१९.११७ ॥
त ु लाध तथा चु ं सव का े न लोलयेत् ।
घनीभूतं भवे ाव ावद् घम चालयेत् ।
तत ेनैव विटकाः कृ ा ुः कुङ्कुमोपमाः ॥ ३,१९.११८ ॥
{कुङ् कुमकरणम् (३)}
पालाशपु पादां शं स ु ं च त ु लम् ।
िप ाथ विटकाः काया शो ाः ुः कुंकुमोपमाः ॥ ३,१९.११९ ॥
{िद धू प (१)}
मा रगुणं कुया ूरी शिशकुङ्कुमम् ।
नखमां सी सजरसमु ा कृ ागु ः िसता ॥ ३,१९.१२० ॥
च नं च दशैतािन चूिणतािन िविम येत् ।
चूणतु ैगु ु लुिभः सवमेक कु येत् ॥ ३,१९.१२१ ॥
ोकं ोकं ि पे ैलं िशलायां लोहमुि ना ।
िदनमे कं य ेन वितकां तेन कारयेत् ॥ ३,१९.१२२ ॥
तद िलतं कुया ालां िनवाय त णात् ।
दे वानां िद धूपोऽयं म ाणां साधने िहतः ॥ ३,१९.१२३ ॥
{िद धू प (२)}
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पाषाणभेदचूण तु गु ुलुं च पलं पलम् ।
मां सी मु ा नखं बोलच नागु वालकम् ॥ ३,१९.१२४ ॥
ला ागु डं सजरसं िसताकपू रसं युतम् ।
ित िन यं चू क ूरी कुंकुमं तथा ॥ ३,१९.१२५ ॥
माषै कैकं ि पे न् सव कु ादु लूखले ।
ितलतै लं ि पे ं िच ोहद े न तद् ढम् ॥ ३,१९.१२६ ॥
यामै कं कु ये ो िद ो धूपः िशवोिदतः ।
दे वादे वाकरो दे यः पूवव तकीकृतः ।
सवसौभा जनकः सवम ोऽघनायकः ॥ ३,१९.१२७ ॥
{पु ु ित}
व ी ीरे ण सं यु ं शु ं व ं पुनः पुनः ।
आतपे शोिषतं कुयािद ेवं िदनस कम् ॥ ३,१९.१२८ ॥
जातीपु पलै कं तु िन ं चूिणतटं कणम् ।
ौ ं िन यं यो ं सवमेक लोलयेत् ॥ ३,१९.१२९ ॥
मृ ा े धारयेद्घम र े वा काचभाजने ।
आ ादये ु व े ण जलिस ेन त णात् ॥ ३,१९.१३० ॥
व तािन पु ािण यु ा ोगेषु तद् वम् ।
अनेनैव कारे ण पु ाणां च पृथ ृथक् ।
ु ितः काया सुग ानां गंधवादे षु योजयेत् ॥ ३,१९.१३१ ॥
{धा वृ करणम् (१)}
म ारमू लमा ायां भर ां वा कुशो वम् ।
ऊ सं ा य ेन धवमा े िविनि पेत् ॥ ३,१९.१३२ ॥
वाताितमु खं य ु त ा ं तु समाहरे त् ।
धा रािशगं कुया ा वृ करं परम् ॥ ३,१९.१३३ ॥
{धा वृ करणम् (२)}
कृकलास वामाि हे ावे ािभम तम् ।
धा राशौ िविनि धा वृ करं परम् ॥ ३,१९.१३४ ॥
{धनधा वृ करणम् (३)}
त ैव दि णं ने ं हे ावे ततः ि पेत् ।
य भवे े धा े वा वृ कारकम् ॥ ३,१९.१३५ ॥
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{ ािदवृ करणम्}
कृ िच कमूलं तु ि ं य न् सुव ुिन ।
त व चा यं िन ं यीकृ न ीयते ॥ ३,१९.१३६ ॥
धनं धा ं घृतं तैलं सुवण नवर कम् ।
य ं िचद् जातं तद ं ित ित ुवम् ॥ ३,१९.१३७ ॥
{धा वृ करणम् (४)}
मूलं सु ेतगुं जाया जलम े िविनि पेत् ।
त ू लं धा राशौ च ि ा म िवधानतः ॥ ३,१९.१३८ ॥
त ा ं वधते िन ं भ माणं सह शः ।
म ख े यथा ो ं गु ामू ल साधनम् ।
तथैवा कत ं िस भवित ना था ॥ ३,१९.१३९ ॥
आदौ सविदशा रे षु गमनं कृ ा गुरोः संमुखा ा ं भ बलेन यु िविधना
साराितसारं महत् ।
त व धनवधनं िनगिदतं भूिय म ां िचद् भूपानां िवदु षां महामितमतां िव ान्
भवे ालनैः ॥ ३,१९.१४० ॥

३, २०
सा ोपा मनेकयोगिनचयं सारं वरं चोद् धृतं यु ं पारदब नं मृ दुहठा ं परं य या ।
त व सुगमं व सहसा िस ाननादागतं ानुभवेन वाितकगणै ः सा ा दं
वी तात् ॥ ३,२०.१ ॥
{पारदब न (१)}
शु पारदभागैकं ट णेन समं समम् ।
मदये फला ाथैनरमू ैयुतै तः ॥ ३,२०.२ ॥
कषाशा गु िलकाः कृ ा माषचूणजला तैः ।
सूता गुणैिल ा छायाशु ां धमे द् ढम् ॥ ३,२०.३ ॥
को ीय े वंकनाले िक ं िभ ा समाहरे त् ।
रसोऽसौ वतुलाकारः ष ब ो भव लम् ॥ ३,२०.४ ॥
{पारदब नम् (२)}
आर म का ावैमूषां क ा वै वा ।
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वै ह रणखु या वा नरमू युतं रसम् ॥ ३,२०.५ ॥
ि िदनं मदये े मू ं द ा पुनः पुनः ।
त टीं माषिप ेन िल ा धा ं च पू ववत् ॥ ३,२०.६ ॥
त ूतो भवे ो ं काचटं कणैः ॥ ३,२०.७ ॥
{पारदब नम् (३)}
मकटीमू लज ावैः पारदं मदयेि नम् ।
मकटीमू लजे िप े ि पे िदतं रसम् ॥ ३,२०.८ ॥
त े व मू षायां द् ा ती ाि ना धमे त् ।
जायते खोटब ोऽयं सवकायकर मः ॥ ३,२०.९ ॥
{पारदब नम् (४)}
अकमू लं रिव ीरै ः िप ा मूषां घनं ि पेत् ।
त े जा रतं सूतं ि ा द् ाथ रोधयेत् ॥ ३,२०.१० ॥
मृ ये सं पुटे तं च िन ा ोहसंपुटे ।
ततो गजपुटे प ा ारदो ब मा ुयात् ॥ ३,२०.११ ॥
{पारदब नम् (५)}
जलकु ा वैः सूतं मदयेि वस यम् ।
जलकु ा दलैमूषां कृ ा त ि पे ु तत् ॥ ३,२०.१२ ॥
द् ा तां व मूषायां छायाशु ां पुटे घु ।
उ लैकैकवृ ा तु िवंश ारं पु टैः पचेत् ॥ ३,२०.१३ ॥
ततो गजपुटं दे यं स ो भवे सः ॥ ३,२०.१४ ॥
{पारदब नम् (६)}
एकवीरा वै म ि िदनं शु पारदम् ।
एकवीराक क ै व मूषां लेपयेत् ।
त ां पू वरसं द् ा ाते ब ो भवे सः ॥ ३,२०.१५ ॥
{पारदब नम् (७)}
आर ीरकंदो वै ीन् संयुतैः ।
ि िदनं पारदं म व कंद वै हम् ॥ ३,२०.१६ ॥
ीरकंद क े न व मूषां लेपयेत् ।
त पूवरसं द् ा ाते ब ो भवे सः ॥ ३,२०.१७ ॥
{पारदब नम् (८)}
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कृ ा ता मयं च ं िव ीण चतुरङ्गुलम् ।
उ तं चाङ्गुलीकं तु सु ढं वतुलं समम् ॥ ३,२०.१८ ॥
गंधकं पारदं तु ं कुया ेन क लीम् ।
त लं ता तु ं मूषाम े िविनि पेत् ॥ ३,२०.१९ ॥
तं च ं मूिषकाव े द ा द् ाथ शोषयेत् ।
तं पचे कायं े ि यामं लघुवि ना ॥ ३,२०.२० ॥
उद् धृ ाहये ा सराजं पुनः पुनः ।
त ु ं टं कणं काचमू ाध दापयेत् ॥ ३,२०.२१ ॥
अंधमू षागतं धा मेवं वार ये कृते ।
रसे ो जायते ब ो ीणो ना संशयः ॥ ३,२०.२२ ॥
{पारदब नम् (९)}
शु सू तं समं गंधं ा ां तु ं च तालकम् ।
म मु क ावैः ख े यामचतु यम् ॥ ३,२०.२३ ॥
पातये ातनायं े िदनैकं म वि ना ।
ऊ ल मधः थं च त व तु समाहरे त् ॥ ३,२०.२४ ॥
म मु क ावै ढं यामचतु यम् ।
त ोलं पूवव ा ं पुनरादाय मदयेत् ॥ ३,२०.२५ ॥
पु नः पा ं पुनम मू ाधः थं य तः ।
सव यावदधो भा े ित ते तावताविधः ॥ ३,२०.२६ ॥
त व पू वव गोलं कृ ाथ शोषयेत् ।
स ंपेषयेद ैनिलकं कु मेव च ॥ ३,२०.२७ ॥
पीता नं वा पे ं च तेन गोलं लेपयेत् ।
व मू षोदरे चाथ तेन क े न ले वै ॥ ३,२०.२८ ॥
गोलकं तापये वंकनालेन तं धमन् ।
खोटब ो भवे ा ा ी धामानलेन तु ॥ ३,२०.२९ ॥
{पारदब नम् (१०)}
पलं सूतं पलं नागं ा ां तु ा मनःिशला ।
पू वव मयोगेन खोटब ो भवे सः ॥ ३,२०.३० ॥
{पारदब नम् (११)}
नागं तारं समं ा ं त ूण पलमा कम् ।
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शु सू तं पलैकं च सवतु ा मनःिशला ।
पू वव मयोगेन खोटब ो भवे सः ॥ ३,२०.३१ ॥
{मेचुय्:: ब न}
पलं सूतं पलं तारं िप म ेन केनिचत् ।
ा ां तु ा िशला यो ा पूवयोगे न पाचयेत् ॥ ३,२०.३२ ॥
{मेचुय्:: ब न}
तारव णिप ी ं च गंधकेन च पू ववत् ॥ ३,२०.३३ ॥
{मेचुय्:: ब न}
कृ ा क स ं च ती णं कां तं च हाटकम् ।
शु ं तारं च मा ीकं समं सू ं िवचूणयेत् ।
व मू षागतं द् ा ाते खोटं भवे ु तत् ॥ ३,२०.३४ ॥
{मेचुय्:: ब न}
ेता क स ं च तारं ती णं च माि कम् ।
समं चू कृतं खोटं खोटां शं शु सूतकम् ॥ ३,२०.३५ ॥
ह रतालं यो ु ं सू ं म च पूववत् ।
महदि गतं ातं खोटं भवित त सम् ॥ ३,२०.३६ ॥
{मेचुय्:: ब न}
पारदं गंधकं तु ं म क ा वैिदनम् ।
त ोलं ि गु णं गं धं द ा मूषाधरो रम् ॥ ३,२०.३७ ॥
द् ा सं िधं िवशो ाथ को ीय े ढं धमन् ।
त ूतं जायते खोटं ग ब िमदं भवेत् ॥ ३,२०.३८ ॥
{मेचुय्:: ब न}
प ा ं राजवृ ाथम ावशेिषतम् ।
तद् वं तु रसे ि ा पा ं याम यं शुभम् ॥ ३,२०.३९ ॥
चोवाब ो भव ेष खोटो वै सवकायकृत् ॥ ३,२०.४० ॥
{मेचुय्:: ब न}
च व ा वैम ि िदनं शु पारदम् ।
टं कणे न तु सं यो विटकां कारयेद्बुधः ।
को य गतं ातं खोटब ो भवे सः ॥ ३,२०.४१ ॥
{मेचुय्:: ब न}
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भ ातकानां तैला ः पलमेकं ि पे सम् ।
याव ैलं पचे ाव िव ीरं ि पन् ि पन् ॥ ३,२०.४२ ॥
घ ये ोहद े न खोटब ो भवे सः ॥ ३,२०.४३ ॥
{... पारदब नम् (२०)}
वै ः समू लकापा ा िदनं मदये मम् ।
टं कणे न पादां शेन विटकाः कारये घु ॥ ३,२०.४४ ॥
व ीकमृ ि कामाषगोधूमानां च चूणकम् ।
समं म दकेनैव मूषां तेनैव कारयेत् ॥ ३,२०.४५ ॥
तद मिदतं सू तं वटीं ि ा धमे द् ढम् ।
खोटब ो भवे ोऽिप अंधमूषागतो रसः ॥ ३,२०.४६ ॥
{पारदब नम् (२१)}
रसं प गुणं चैव ि गुणं ेतटं कणम् ।
ेतवाता रतैलानां म ाम कोमला ॥ ३,२०.४७ ॥
ि िदनं मदये े नरमू ेण साधकः ।
ततो गोधूमचूण तु ि ा कुया टीः शुभाः ॥ ३,२०.४८ ॥
िवशो ाथ धमे ा ाचटं कणयोगतः ।
खोटब ो भवे ूत ेज ी सवकायकृत् ॥ ३,२०.४९ ॥
{पारदभ (१)}
कक टी ला लीकंद वैम िदन यम् ।
वं ाकक टकीकंदे तं रसं तु िनवेशयेत् ॥ ३,२०.५० ॥
कंदबा े मृ दा ले ं सवतोऽङ्गुलमा कम् ।
शु ं तुषपु टे प ा िदनं प रवतयन् ॥ ३,२०.५१ ॥
समु द्धृ पु नम पूवकंद वै हम् ।
पू वव ुटपाकेन पारदो जायते मृतः ॥ ३,२०.५२ ॥
{पारदभ (२)}
हं सपा ा वैम स ाहं शु पारदम् ।
ीरकंदोदरा व ि ा कंदं मृ दा िलपेत् ॥ ३,२०.५३ ॥
करीषा ौ िदनं प ा ूवव दये ुनः ।
कंदे ि ा पचे तो म च पूववत् ॥ ३,२०.५४ ॥
ीरकंदोदरे द् ा मृदा िल ं च शोषयेत् ।
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स जपुटे प ा ृतो भवित िनि तम् ॥ ३,२०.५५ ॥
{पारदभ (३)}
हं सपादी ीरकंद वै म िदन यम् ।
रसं त ौ पादा ः ि ा पादं मृदा िलपेत् ॥ ३,२०.५६ ॥
करीषा ौ िदनं प ा ा ूव वै हम् ।
िदनं त ुटे प ा ुनम च पाचयेत् ।
जायते भ सू तोऽयं सवकायकर मः ॥ ३,२०.५७ ॥
{मुखकरणम्; िस ेर्, चो ेर्, लेअद् => गो ् }
उ ानां खोटब ानां मु खं कुया दु ते ।
वचा च ािलनीकंदं द ीयमूलकम् ॥ ३,२०.५८ ॥
गंधकं टं कणं तु ं भानु दु ेन पे षयेत् ।
चणमा ां वटीं कृ ा पूवसूते ु ते ि पेत् ॥ ३,२०.५९ ॥
एकामे कां धम ेव विटकास कं मात् ।
सते सवलोहािन यथे ािन न संशयः ॥ ३,२०.६० ॥
ासो दे यो यथाश ा पूवव ारये ुनः ।
मुखं बद् ा िनयु ीत तारे ता े भुजंगमे ॥ ३,२०.६१ ॥
त व जायते ण वेधो दशगुणो मतः ।
िस योगः समा ातः स ा गुरोमुखात् ॥ ३,२०.६२ ॥
{चो े र्=> गो ् }
सूता ं गंधकं शु ं तृण ोतोयमू लकम् ।
त व मातुिलं गा ैिदनमेकं समं समम् ॥ ३,२०.६३ ॥
शु ािन ता प ािण तेन क े न लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ा ुन ा लेपयेत् ॥ ३,२०.६४ ॥
एवं पु ट ये प ं त ा ं कां चनं भवेत् ॥ ३,२०.६५ ॥
{चो े र्=> गो ् }
र ुहीपयोिभ ता प ािण लेपयेत् ।
कारयेदि त ािन त न् ीरे िनषेचयेत् ॥ ३,२०.६६ ॥
इ ेवं स धा कुया ेपतापिनषेचनम् ।
समाव तु त ा ं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.६७ ॥
{चो े र्, लेअद् , िस े र्=> गो ् }
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रसकं दरदं गंधं गगनं कुनटी समम् ।
आर ु योिभ दयेि वस यम् ॥ ३,२०.६८ ॥
तेन वे ं ु तं ता ं नागं वा तारमेव वा ।
सह ां शेन ति ं सुवण जायते ुवम् ॥ ३,२०.६९ ॥
{नाग णम्}
र ुहीभवैः ीरै रजनी ं मदये हम् ।
तेन नाग प ािण िल ािन पुटे पचेत् ।
पु नल ं पुनः पा ं स धा कां चनं भवेत् ॥ ३,२०.७० ॥
{चो े र्=> लेअद् }
पि नीप पु ाभा िव ेया थलपि नी ।
भ े र ं वे ीरं ा ा तामु रे तः ॥ ३,२०.७१ ॥
पारदं गंधकं तालं मािहषी कुनटी समम् ।
पू व पि नीयु ं मदयेि नस कम् ।
तेन शु ं भवे ण सह ां शेन वेिधतम् ॥ ३,२०.७२ ॥
{तारबीजक ः}
नागं बं गं ती णसारं तारं च मश उ रम् ।
प ानां तु समं ता ं सव मूषागतं धमेत् ॥ ३,२०.७३ ॥
कटं वं कनालेन याव ारावशेिषतम् ।
त ारं प रागाभं जायते ावये ुनः ॥ ३,२०.७४ ॥
वे ं रसकस ेन प मां शेन य तः ।
त वे ां चनं िद ं िस योग उदा तः ॥ ३,२०.७५ ॥
{ितन् => िस े र्}
र िच कप ा ं छायाशु ं िवचूणयेत् ।
त ापं ु तबंग द् ा द् ा ि वारकम् ॥ ३,२०.७६ ॥
दे यं त ायते तारं शंखकु े दु सि भम् ॥ ३,२०.७७ ॥
{चो े र्=> गो ् }
र िच कमूलं तु कां िजकं शु पारदम् ।
कङ्गु णीतैलसंयु ं सव क ं लेपयेत् ॥ ३,२०.७८ ॥
ता प ािण त ािन त न् िस े स धा ।
एत ा ं ि षड् भागं तारं षोडशभागकम् ॥ ३,२०.७९ ॥
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एकीकृ समाव तेन प ािण कारयेत् ।
र िच कमूलािन भ ाततैलपेिषतम् ॥ ३,२०.८० ॥
अनेन पू वप ािण िल ािन पुटे पचेत् ।
एवं ि स धा कुयाि ं भवित का नम् ॥ ३,२०.८१ ॥
{चो े र्=> गो ् }
नािगनीक सूते र िच कमूलकम् ।
िप ा तेनैव प ािण पूव ािन लेपयेत् ।
त ा ुटैरेवं िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.८२ ॥
{चो े र्=> गो ् }
ोित तीभवै ैलै ा कु ं पूरयेत् ।
मुखं द् ा ि पेद्भू मौ पृ े तुषपुटं सदा ॥ ३,२०.८३ ॥
एवं ष ासपय ं पुटयेदु रे मात् ।
बिह ुषपु टे प ा िदनं ति विनशम् ॥ ३,२०.८४ ॥
त ा ं हाटकं तु ं समावत तु कारयेत् ।
ि े ोित तीतैले सव भवित कां चनम् ॥ ३,२०.८५ ॥
{चो े र्=> गो ् }
ीरक भवे ीरे त ं ता ं िनषेचयेत् ।
शतवारं य ेन त ा ं कां चनं भवेत् ॥ ३,२०.८६ ॥
{िस े र्=> गो ् }
गंधकं रसकं ता ं पारदं र च नम् ।
म द का ावैरिव ं िदन यम् ॥ ३,२०.८७ ॥
तेन तार प ािण िल ा द् ा पुटे पचेत् ।
इ ेवं स धा कुया द ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.८८ ॥
{चो े र्=> गो ् }
कृ ाया वाथ पीताया दे वदा ा फल वम् ।
िव ु ा ा वं तु ं कृ ा तेनैव मदयेत् ॥ ३,२०.८९ ॥
स ाहं पारदं शु ं तत ा ं लेपयेत् ।
द् ा गजपु टे प ा त ी ाि ना धमे त् ॥ ३,२०.९० ॥
दशां शं त सं ि ा िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.९१ ॥
{सोfतेिन गोf fइ ुरेि नेर ्}
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वसुभ रसे नाथ ि धा िस े ुतािपतम् ।
लोणव फुिटतो धातुमृदु ः ा को यथा ॥ ३,२०.९२ ॥
{ितन् => िस े र्}
दे वदा ा फलं मू लमी रीफलज वम् ।
िप ा त वापेन ु तं बं गं ढं भवेत् ॥ ३,२०.९३ ॥
भूयो भू य यं वा ारं भवित शोभनम् ॥ ३,२०.९४ ॥
{चो े र्=> गो ् }
कृ प े चतुद ाम ां हणेऽथवा ।
नृकपाले ेतगुंजां वापये ु भूिमषु ॥ ३,२०.९५ ॥
सेचये िललं िन ं याव लवती भवेत् ।
म पू जां ततः कृ ा पु े ा फलािन वै ॥ ३,२०.९६ ॥
शु ता पलं ेतं िवंश ु रकं शतम् ।
एकैकं पूवबीजानां स ुद् ा धमे द् ढम् ॥ ३,२०.९७ ॥
त ा ं जायते तारं शं खकु े दु सि भम् ।
तारं त ायते ण सुशु ा ब रीितका ॥ ३,२०.९८ ॥
{चो े र्=> िस ेर्}
भूनागानां रसैम शु ं तालं िदनाविध ।
त ं ह काम े तालकां शं िनरोधयेत् ॥ ३,२०.९९ ॥
ता प ािण त ा ढ णेन िन च ।
हं िडका भ ना पूया द् ा च ाि ना पचेत् ॥ ३,२०.१०० ॥
प यामा मु द्धृ िन टं कणसंयुतम् ।
मूकमूषागतं धा ं गु िटकां तां समु रे त् ॥ ३,२०.१०१ ॥
ां गशीतं समा मूषायां कटं धमे त् ।
वार यं ि पे न् विटकां वेधना ुखम् ॥ ३,२०.१०२ ॥
मुखं त भवे ी ं शु ं बं गं व लम् ।
यदा न सते त ा टी दे या पुनः पुनः ॥ ३,२०.१०३ ॥
जीण शतगुणे व े ततरता दापयेत् ।
ु त शतभागेन त ारं जायते शुभम् ॥ ३,२०.१०४ ॥
{नागमुखकरणम् }
गंधकं धू मसारं च फट् करी टं कणं समम् ।
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एर बीजम ािप सवषां ि गुणा भवेत् ॥ ३,२०.१०५ ॥
भूनागाः सवतु ाः ुः सवमेक मदयेत् ।
चणमा ा वटीः काया ातेयं वडवामुखा ॥ ३,२०.१०६ ॥
शु नागं ु तं े ं तैले एर के पुनः ।
ा ं ा ं पुनः े ं याव ारं तं भवेत् ॥ ३,२०.१०७ ॥
पु न ु ते दे या विटका वडवामु खा ।
ि ि वारं य ेन नाग े ं मु खं भवेत् ॥ ३,२०.१०८ ॥
सते सवलोहािन स ािन िविवधािन च ।
यदा न सते त ा टी दे या पुनः पुनः ॥ ३,२०.१०९ ॥
{किठनधातोमृदू करणम् }
मधू कपु ी य ीकं रं भाकंदं घृतं गुडम् ।
ितलतै लमजा ीरं ौ ं च तु तु कम् ॥ ३,२०.११० ॥
त े किठनं धातु ि धा िस ा ुतािपतम् ।
मृदु ं याित नो िच ं सू यो ं न सं शयः ॥ ३,२०.१११ ॥
{किठनधातोमृदू करणम् (२)}
वसुभ रसे नाथ ि धा िस सुतािपतम् ।
लोणव फुिटतो धातुमृदु ः ा कोपमः ॥ ३,२०.११२ ॥
{किठनधातोमृदू करणम् (३)}
अित थूल भेक िनवाया ािण त वै ।
चूिणतं टं कणं ि ात ा थं खनेद्भुिव ॥ ३,२०.११३ ॥
ि स ाहं समु द्धृ त ापे मृदुतां जेत् ।
ण वा यिद वा रौ ं मृदु ा यो कम् ॥ ३,२०.११४ ॥
{अ ासी रसः}
तृण ोतीयमू लेन मातुिलंगरसेन च ।
ि िदनं मदये ूतं गगनं सते णात् ॥ ३,२०.११५ ॥
{गु ा सू तेन नागवेधः}
भूनागसू चूण तु टं कणेन समं भवेत् ।
त ूण तु ु ते नागे वा ं शतगुणं धमन् ॥ ३,२०.११६ ॥
गु ा ं त वे ं ासं त ैव व ते ।
िशलागंधकमा ीकैभूनाग वपेिषतैः ॥ ३,२०.११७ ॥
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मूषागभ िलपे ेन गु ा ं त िनि पेत् ।
भु ं त पे ण ोकं ोकं धम मन् ॥ ३,२०.११८ ॥
सते भारसं ा तु मू षा ले ा पुनः पुनः ।
मु सौ ु ते नागे गु ाद् गु ं कािशतम् ॥ ३,२०.११९ ॥
{गु ा सू तेन व वेधः}
भूनागं टं कणं तु ं सू चूणािन कारयेत् ।
तं वाहयेद् ु ते बं गे याव तगु णं धमन् ॥ ३,२०.१२० ॥
ततः शतगुणं बंगं त ैवोप र वाहयेत् ।
ोकं ोकं धम ेव सते ना संशयः ॥ ३,२०.१२१ ॥
{गु व करणं तेन वेधः}
तालकं सधवं तु ं भूनाग वपेिषतम् ।
मूषागभ िलपे ेन त ं गं त िनि पेत् ॥ ३,२०.१२२ ॥
ोकं ोकं ि पे न् िबडं द ा धम मन् ।
भारसं ा स ेवं गु व िमित ृतम् ॥ ३,२०.१२३ ॥
ु ते बं गे िविनि ं याव ं ा न संशयः ।
तावद् ु ते न संदेहः िस योग उदा तः ॥ ३,२०.१२४ ॥
ि ाथ मािहषे े मदय ि ना पचेत् ।
िन मे कं भवे ाव ाव ि पन् ि पन् ॥ ३,२०.१२५ ॥
त वे सतु ं तु समादायाथ त मम् ॥ ३,२०.१२६ ॥
{गु योगः}
पारदं शु हे माथ स ं भू नागसंभवम् ।
च ा रं श ागभागा म जंबीरज वैः ॥ ३,२०.१२७ ॥
त ोलकं िवशो ाथ क े भूनागसंभवे ।
मूषागभ िवले ादौ त ां गोलं िनरोधयेत् ॥ ३,२०.१२८ ॥
धमे ी ाि ना ताव ाव ा ावशेिषतम् ।
सवव सते द े गु ा ं योगमु मम् ॥ ३,२०.१२९ ॥
{कामधेनुः (१)}
अथातः स व ािम गु िटकाबंधमु मम् ।
समजीण कृतं ोम समतो रसं जारयेत् ॥ ३,२०.१३० ॥
रिवसं ां शकं शु ं द ा िपि ं च कारयेत् ।
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धा ा कसमं गं धं शु े ि ा िवमदयेत् ॥ ३,२०.१३१ ॥
तयोमू षाकृितं कृ ा िप ीम े िवमोचयेत् ।
नरमां सेन सं वे माषिप ा तथैव च ॥ ३,२०.१३२ ॥
पचे दतसीतैलेन मासमा ं तु साधकः ।
अ या कामधेनु व नका रणी ॥ ३,२०.१३३ ॥
{कामधेनुः (२)}
पारदे जाय कृ ा ं म गुणं यिद ।
रि तं ग रागेण नरमां सेन वेि तम् ॥ ३,२०.१३४ ॥
माषिप ा िल ाथातसीतैलेन पाचयेत् ।
कामधेनु रयं ाता नाग नका रणी ॥ ३,२०.१३५ ॥
{कामधेनुः (३)}
रसा ादां शकं हे मिपि ं कुया सु राम् ।
िविल कामधे नुं च नाग ावे िनयोजयेत् ॥ ३,२०.१३६ ॥
तं नागं कु ते ं वा ताथषु िस दम् ।
गुिटकां कामधेनुं तां हं धारये ुखे ।
श ा ै न च िभ ेत िद दे हमवा ुयात् ॥ ३,२०.१३७ ॥
{िस े र्=> गो ् }
िशलया मा रतो नागः सूतराजसम तः ।
रि तो ग रागे ण समहे ा च सारयेत् ।
तारवेधः दात ो िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.१३८ ॥
{लेअद् => गो ् }
िशलया रिवदु ेन नागप ािण लेपयेत् ।
मारये ुटयोगे न िद ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.१३९ ॥
{िसत ण => गो ् }
मेषी ीरा वगा ां दरदं घमभािवतम् ।
शतधा त योगे न शो ं पे ं खरातपे ॥ ३,२०.१४० ॥
िसत ण प ािण िल ा िल ा पुटे पचेत् ।
एवं ि स धा कुयाि ं भवित कां चनम् ॥ ३,२०.१४१ ॥
{गगन ासः}
तृणजातीयमू लं तु मातुिल रसे न च ।
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ि िदनं मदये ूतं गगनं सते णात् ॥ ३,२०.१४२ ॥
िस ै गणैः सु रवरै रसिस कामैब ं हठा रमम बलेन तै ।
त ाि िश मनुजैः कृतम जापैः काय ततो रसवरे वरब नं च ॥ ३,२०.१४३ ॥
 

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