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Aryamantavya

पाख ड खं डनी, ह द

मांस भ ण और वामी ववेकानंद ऋ व आय


JANUARY 12, 2014 | RISHWA ARYA | 53 COMMENTS

vivekanand 1

मांस भ ण  और वामी ववेकानंद

यद भारत के लोग चाहते ह क म मांसाहार न क ँ तो उनसे कहो क एक रसोइ सा                                 भेज द और प या त धन साम ी।

वामी ववेकानंद

ववेकानंद सा ह य , भाग -4, पृ -344

इसी भारत म कभी  ऐसा भी   समय  था जब कोई ाहमण बना गौ मांस                         खाए ाहमण नह रह पाता  था। वेद  पड़कर दे खो
क कस तरह जब कोई        स यासी या राजा या बड़ा आदमी मकान म आता था तब सबसे पु बैल मारा             जाता था

वामी ववेकानंद ( ववेकानंद सा ह य Vol 5 Pg 70)

अब दे श के लोग को मछली मांस  खलाकर  उ मशील बना डालना होगा जगाना        होगा  त पर बनाना होगा नह तो धीरे धीरे दे श के
सभी लोग पेड़ प थर क तरह             जड़ बन जायगे। इसी लये कह रहा था क मछली और मांस खूब खाना

वामी ववेकानंद

( ववेकानंद सा ह य भाग -6, पृ 144)

ववेकानंद ारा मांस भ ण

ववेकानंद  ारा वेद  म मांस भ ण क  मा यता वै दक ान के त उनक  अ ानता ,


पा ा य  व ान  का उन पर  भाव के अ त र  उनक  मांसाहार के त लाला य ा को  द शत करती है। ना केवल ववेकानंद मांस
भ ण कया करते थे अ पतु इनके गु वामी राम कृ ण परमहंस भी मांस भ ण कया करते थे। वामी राम कृ ण परम हंस को वामी
ववेकानंद इ र का अवतार घो षत करते थे, ले कन ये कैसी वड बना थी क वो  तथाक थत इ र अपने लए वयं मांस का नमाण
करने म असमथ था और अपनी मांस खाने क लालसा को नरीह ा णय के जीवन लीला समा त करके पूरा कया करता था।
वह  श य घो षत इ र  जसे हर व तु म काली माँ के दशन  आ  करते थे उन  नरीह मूक  ा णय  म  काली के दशन ना कर सका ज ह
उ ह ने तथा उनक आ ा अनुसार उनके श य ने र पपासा का ास बना लया ।  वामी  ववेकानंद और
वामी राम कृ ण परमहंस शायद ये भूल गए क   जस काली को  वे कण कण म दे खते ह सम त संसार को काली म ही  ा त मानते
ह वह आपक काली मां इन  ा णय  म  भी तो वास करती  है I या इन  नरीह  ा णय  म उस माँ का  नवास नह है ?
या ये  ाणी उस के ब चे नह  है? या कोई माँ अपने ब च पर इतनी  नदयी हो सकती है को क  वो उसके उ म कृ त मनु य
को  सरे  ा णय  को मारने क  आ ा दे  दे ?  ाय  यह दे खा जाता है    क  उ म संतान अपने से छोटे और असहाय का यान रखते ह उसी
कार इ र भी इसी नयम का पालन करता है  और मनु य के लए भोजन पैदा करने से पहले वह पशु के लए भोजन क व था
करता है। मनु य को अपने भोजन क   व था करने के  लए प र म करना पड़ता है।
 अनाज उगाने के  लए भूमी का चयन करना पड़ता है  फर उसे खेती यो य बनाना पड़ता है खेत को जोतकर पया त मा  म उवरक
और पाने दे कर अनाज उगाया जाता है जबक पशु  को भोजन पाने  के  लए ये सब करने क  आव यकता नह   होती है
उनके  लए इ र खुद ही खाने क   व था करता है यहाँ तक क  मनु य अपने  लए  जस अ  को उगाता है उसम
भी इ र पशु  का भाग पहले  ही  नधा रत कर दे ता है और पशु  ने  लए खरपतवार  वयं पैदा हो जाती है उसके
लए कोई प र म नह  करना पड़ता। जो इ र उन  ा णय के  त इतना दयालु है उसी ई र के  वघो षत भ  उ ह  
ा णय  को अपनी भूख  शांत करने का साधन बनाते रहे और उ ह इ र क  ये दया  दखाई नह  द

वामी ववेकानंद को  मांस भ ण म  होने  वाली बबरता और ू रता का पूण ान था ले कन फर भी वो मांस भ ण कया करते थे ये
उनक मांस खाने के लए ललक को ही द शत करता है जसके लए वो सारे स ांत   एवम सं कार को तलाजंली दे ने को त पर रहा
करते थे। ा णय को अपना बंधुगण बताते ए वामी ववेकानंद कहते ह क मुझे पता है क ये गलत है क अपने वाथ के लए  कसी 
के ाण लए लए जाएँ ले कन म इसके लए ववश हो जाता ँ।

I myself may not be a very strict vegetarian, but I understand the ideal. When I eat meat I know it is
wrong. Even if I am bound to eat it under certain circumstances, I know it is cruel. I must not drag my
ideal down to the actual and apologise for my weak conduct in this way. The ideal is not to eat esh, not
to injure any being, for all animals are my brothers. If you can think ofthem as your brothers, you have
made a little headway towards the brotherhood of all souls

–          The complete work of swamee vivekanand , Vol – 2- Pg 298

म  वयं एक क र शाकाहारी न भी  होऊं क तु म उस आदश को समझता ँ जब म मांस खाता ँ तब जानता ँ क यह ठ क नह है।
प र थ तवश उसे खाने को बा य होने पर भी म यह जानता ँ के यह ू रता है। आदश नीचा करके अपनी बलता का समथन मुझे नह
करना चा हए। आदश यही है। मांस न खाया जाए। कसी भी ाणी का अ न न कया जाए यूं क पशुगन भी हमारे भाई ह।

ववेकानंद सा ह य , भाग -8, पृ -9

  वामी ववेकानंद जीव ह या म होने वाली बबरता ू रता को वीकार भी करते ह उसे गलत और या य भी मानते ह वही सरे संदभ म
मांस भ ण को मनु य मा का अ धकार भी मानते ह। जब उनसे पूछा गया क आप मांस भ ण यूँ करते ह तो वो उ र दे ते ए कहते ह
क मेरे गु दे व कहा करते क थे संसार म कोई भी व तु या य नह है। वामी ववेकानंद को स बो धत  करते ए वामी राम कृ ण
परमहंस कहते ह क तुम मांस भ ण यागने का यास यूँ करते हो संसार क हर व तु मनु य मा के उपभोग के लए बनी यी है
इस लए कसी भी व तु को यागना थ है। दोन बात म अ त वरोध वामी ववेकानंद का ाणी मा के त दोहरेपन को ही दशाता है।

I am always asked the question: “Shall I give up meat?” My Master said, “Why should you give up
anything? It will give you up.” Do not give up anything in nature. Make it so hot for nature that she will
give you up.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 519

मुझसे बराबर यह कया जाता है – ” म मांस खान छोड़ ँ ?” मेरे गु दे व ने कहा था – कोई चीज छोड़ने का पयत तुम य करते हो ?
वही तु ह  को छोड़ दे गी। कृती का कोई पदाथ या य नह   है

ववेकानंद सा ह य , भाग -4, पृ -165

  वामी ववेकानंद जीव ह या म होने वाली पीड़ा को अनुभव करते ए कहते ह क मनु य और पशु को सुख ःख का आभास सामान
प से होता है जब क पशु म सुख एवं ःख को अनुभव करने क व ी मानव मा से अ धक होती है। वामी ववेकानंद जब
 जीव ह या को  यायसंगत ना स ध कर सके तो उ ह ने उसे माया का नाम दे   दया क  जो हम पशु  को उनको होने वाले क
को नजरअंदाज करके मारते ह वो माया है। ये तक कुछ ऐसा ही अनगल है जो जीव और   क  एकता को  स ध न कर  पर अ ै तवाद
दया करते ह । जस  कार  अ ै तवा दय   अपने तक क   स   के  लए  माया क  शरण
म जाना पड़ता है उसी  कार  वामी  ववेकानंद को भी मांसाहार को  यायसंगत  स ध करने के  लए  माया क  शरण म जाना पड़ा।
यह माया के शरणागत होगा  वामी  ववेकानंद का मांसाहार के त लगाव ही कहा जा सकता है जो उ ह  उन  नरीह  ा णय  मा मक
चीख पुकार न सुनने के लए  ववश कर दे ता है।

य द पशु  मनु य क  अपे ा इतनी ती ता से सुख का अनुभव करते ह तो यह भी स य है क उनके ःख का अनुभव भी उतना ही ती
होता है – मनु य क अप ा ती तर होता है। अतएव  मनु य को मरने म जो क होता हैउसक अपे ा सह गुना अ धक क उन
पशु को मरने म होता है । फर भी हम उनके क क कोई चता ना करते ए उ ह मार डालते ह। यही माया है।

ववेकानंद सा ह य , भाग -2, पृ -68

 मांसाहारी को मांस खाने से अव य सुख  मलता है , पर जसका मांस खाया जाता है उसके लए तो भयानक क ही है ।

ववेकानंद सा ह य , भाग -2, पृ -135

 The eating of meat produces pleasure to a man, but pain to the animal which is eaten. There has never
been anything which gives pleasure to all alike.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 2- Pg 177

वामी   ववेकानंद वयं मांस  भ ण कया करते थे जब कुछ लोग को इस बारे म पता चला तो उ ह ने उनसे इस बारे म प लखकर पूछा तो वामी जी अपने वचार इस
 के उ र म 9th  sepetember  को Paris  से ALasinga को लखे प म  ए  लखते ह क यद भारत के लोग चाहते ह क म मांसाहार न क ँ तो उनसे कहो
क एक रसोइ सा भेज ह और प या त धन साम ी।

. If the people in India want me to keep strictly to my Hindu diet, please tell them to send me a cook and
money enough to keep him. This silly bossism without a mite of real help makes me laugh.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 95

अगर भारत वासी मुझे नयमपूवक ह भोजन के सेवन पर बल दे ते ह तो उनसे एक रसोइया एवं उसको रखने के लए प या त पये का
बंध करने के लए कह दे ना। एक पैसे क सहायता करने का तो साम य नही क तु आगे बढकर उपदे श झाड़ते ह

ववेकानंद सा ह य , भाग -4, पृ -344

  वामी ववेकानंद को मांस भ ण म  पशु पर   होने वाली  नदयता का पूण ान था और वो इसे महसूस  भी करते थे ले कन उनका यह
ान केवल कहने भर का था उ ह ने इसे जीवन म कभी नह उतरा ब क इस पंच को समाज म सा रत करने म मह वपूण भू मका
नभाई। वो मांसाहार को श का साधन और आव यकता बताते रहे। मांस ा ती म होने वाली असहाय पशु क ह या के बारे म नदयता
का उनका यह ान  मील के उस प थर क भांती था जो रा ता  तो जानता  था ले कन उस पर चला कभी नह । वामी ववेकानंद वयं इस
बार म अपने वचार गट करते ह क:

I myself may not be a very strict vegetarian, but I understand the ideal. When I eat meat I know it is
wrong. Even if I am bound to eat it under certain circumstances, I know it is cruel. I must not drag my
ideal down to the actual and apologise for my weak conduct in this way. The ideal is not to eat esh, not
to injure any being, for all animals are my brothers. If you can think of them as your brothers, you have
made a little headway towards the brotherhood of all souls

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 2- Pg 298

म  वयं एक क र शाकाहारी न भी  होऊं क तु म उस आदश को समझता ँ जब म मांस खाता ँ तब जानता ँ क यह ठ क नह है।
प र थ तवश उसे खाने को बा य होने पर भी म यह जानता ँ के यह ू रता है। आदश नीचा करके अपनी बलता का समथन मुझे नह
करना चा हए। आदश यही है। मांस न खाया जाए। कसी भी ाणी का अ न न कया जाए यूं क पशुगन भी हमारे भाई ह।

ववेकानंद सा ह य , भाग -8, पृ -9

 वै दक धम के ऊपर उनके  ा यान  को उ रत  करते ए समाचार प का शत करता है क  वै दक काल म ा न मांस खाया करते
थे और अ त थय को स करने के लए बछड़े मारे जाते थे।

The Brahmins at one time ate beef and married Sudras. [A] calf was killed to please a guest.
Madura Mail on 28th Jan 1893

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 523

पुनः इस स दभ म वरोधाभासी वचार वामी ववेकानंद ने उ त कये। News Paper  Daily Lowa Capital,  November
28th, 1893  को का शत करता है क वामी ववेकानंद कहते ह क भारत म गाय को पूजा जाता है और ह जानवर के वध का
वरोध करते ह

He said that the Hindus were altogether opposed to the destruction of the life of any animal. He admit-
ted the worship of the sacred cow.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 438

वामी ववेकानंद ारा पशु ब ल

Sister Christine को बेलुर े मठ हावड़ा से 12th November 1901 को Sister Christine को लखे अपने प म लखते ह क
हमने काली मां  क पूजा क और बकरे क बली द ।   वामी जी जहाँ वै दक धम पर  बली का आरोप जड़ते ह वही खुद वो ही नदनीय
कम करने मे संल न होते ह।

We had an image, too, and sacri ced a goat and burned a lot of reworks.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 169

हालाँ क वामी ववेकानंद वाम माग के वरोधी रहे ह ले कन वयं भी उसी माग पर अनुसरण करते ह . भारत  म पशु ब ल का ोतक
वाम माग ही ह। या ई र  इस सम त  ा ड का सृजेता वह सवश मान  यायकारी परोपकारी परम पता परमे र  इतना नबल है क
वयं के भोजनाथ उसे अपने ही ब च को खाने के लए नभर रहना पड़ता है। यद ऐसा है तो उसके सवश मान  यायकारी परोपकारी 
आ द गुण का  या  अथ रह जाता है? यह कुल सत  मान सकता वाले मनु य का इ र के ऊपर दोषारोपण ही है जो वह उस परम दयालु
यायकारी सवश मान इ र को उन मांसाहारी जीव क ेणी म खड़ा करने का ष यं रचते ह जो अपने ब च को ज म दे खर भूख
लगने पर खा जाते ह। वह इस मांसाहा रय   को पशुओ को ही खाने के लए यूँ कहता है? वह इनसे इन मांस भ य के मांस क इ छा
यूँ जा हर नह करता ?यह इन मांसाहा रय का वयं का वाथ है जसका ये दोषारोपण ये इ र पर कया करते ह ।

जस काली को आप इ र क सं ा दे ते हो तो या वह इ र जसने इस संसार का सृजन कया है जो इस संसार का सृजन त थी पालन


और लय करता है संसार म लोग को कम का फल दे ता है या वो इ र इतना  लाचार है क अपने खाने के लए मानव मा के भरोसे
रहता है। या जन पशु क जान लेकर वह मांस व खून उसके लए चढ़ाया  वे या उसके बालक नह ह या वो मूक और असहाय उस
परम पता क दया के अ धकारी नह ह। इसे इ र को अपने खाने के लए  इन असहाय जीव पर आ त माना जाए या इन धम के
तथाक थक धम के ठे केदार क र पपासा ।

महष दयानंद सर वती  तो  सर के खो और हा न को ना समझने वाले मनु य को मनु य क सं ा से ही वमुख कर दे ते ह। महष कहते
ह क सर के सुख ःख  हा न लाभ को समझना मनु य धम है, मह ष इस  म बारे म लखते ए वमंता ामंता काश म  ह  लखते ह
क  मनु य उसी को कहना क मननशील हो कर वा मवत अ य के सुख ःख और हा न लाभ को समझे। अ यायकारी  से भी न डरे और
धमा मा नबल से भी डरता रहे। इतना ही नह अ पतु अपने सव साम य से धमा मा क चाहे वो महा अनाथ नबल और गुण र हत 
यूँ ना हो उनक र ा उ त और याचरण और अधम चाहे च वत सनाथ महाबलवान और गुणवान भी हो तथापी उसका नाश
अवन त और अ परयाचरण सदा कया करे अथात जहाँ तक हो सके वहाँ तक अया का रय के बल क हा न और या का रय के बल
क उ त सदा कया करे। इस काम म चाहे उसको कतना ही दा ण ःख ा त हो पर तु इस मनु य प धम से पृथक कभी न होवे।

वमंता ामंता काशः Papagpag पृ – 728

  Mrs Ole Bull को Alambazar Math Calcutta (Darjelling )  से  26th March 1897 को लखे अपने प म अपनी
बीमारी से त होने को बयां करते ए वामी ववेकानंद लखते ह क केवल मांस खाना ही ल बी आयु का राज है

Admitting about the diabetes problem he said that Eating only meat and drinking no water seems to be
the only way to prolong life

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 93

 Sister Christine को  12th December 1901 को Belur Math Hawrah


से  लखे प  म अपनी  गरते  वा य के बारेम लखते  ए कहते ह क   च क सक ने मुझ े आरामक  सलाहद  है और मुझ े मांस 
खानेस े मनाकर  दया है अब मुझ े मॉस  चखने तकक  मनाहीहै 

The doctors have put me to bed; and I am forbidden to eat meat, to walk or even stand up, to read and
write. I am prevented from the taste of meat.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 9- Pg 172

R.M.S. Brittannic  से अपने प म अपने भोजन के बारे म लखते ए वामी ववेकानंद कहते ह क कुछ दन से म केवल मांस ही
मांस खा रहा ँ मुझे स जयां खाने को नह मल रही
Writing on continuous eastin meat he wrote from R.M.S. Brittannic to his blessed and beloved that  So
far the journey has been very beautiful. The purser has been very kind to me and gave me a cabin to
myself. The only dif culty is the food — meat, meat, meat. Today they have promised to give me some
vegetables.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 8- Pg 358

Marry  क   28th April 1897  को अपने वा थय के बारे म लखते ए वामी ववेकानंद लखते ह क   मेरे बाल भूरे हो गए
ह चहरे पर झु रयां पड़ने लगी ह और म अपनी उ से 20 वष यादा का दखने लगा ँ। मेरा शरीर कमजोर हो रहा है। म मांस
खाने के लए ही बना ँ ना रोट ना आलू ना राइस ना ही श कर

My hair is turning grey in bundles, and my face is getting wrinkled up all over; that losing of esh has
given me twenty years of age more. And now I am losing esh rapidly, because I am made to live upon
meat and meat alone — no bread, no rice, no potatoes, not even a lump of sugar in my coffee!! I

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 391

Pramada Sas Mirtra को  Almora  से  39th May 1897 को  वामी जी  लखते ह क  म  मले छ   ँ शु  ँ य क म
 कुछ भी खा लेत े  ँ और  कसी के साथ भी कुछ भी खा लेता  ँ

I m a Mlechcha, shurdra and so foth I eat anything and everything and with anybody and everybody

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 393

ार भककालमअ नह होनेक   सेमांसखाननै तकथा

म ास 1892 -93  म वामी ववेकानंद कहते ह क समय के साथ वचार बतलाते रहते ह। गाय का मांस खाना एक समय नै तक था।
वातावरण ठं डा था और अ के बारे म  जानकारी नह थी। मांस सुगमता  से मल जाता था उस काल और  वातावरण के हसाब से मॉस
खाना आव यक था।ले कन मांस खान अब अनै तक माना जाता है

Every man, in every age, in every country is under peculiar circumstances. If the circumstances change,
ideas also must change. Beef-eating was once moral. The climate was cold, and the cereals were not
much known. Meat was the chief food available. So in that age and clime, beef was in a manner
indispensable. But beef-eating is held to be immoral now.

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 09


वामी जी के यह वचार क अ के बारे म पहले जानकारी नह थे इससे बात का ोतक है क उ ह ने वेदा यन नह कया और वो
वेद  के बारे म पा ा य  वचारधार के पोषक थे अ यथा वो यह नह कहते। परम पता परमा मा हम वेद म आदे श दे ते ए कहता है क
तुम अ खाओ। वेद म अ खाने का उपदे श होना हमारी स यता के स य एवं वक सत होने को द शत करता है ले कन  वेद  के बारे
म पा ा य  वचारधार के पोषक गुलाम वामी ववेकानंद  इस त य को ना पहचान सके. वेद  ना केवल हम शाकाहार  क आ ा दे ता है
अ पतु कृ ष  कैसे  क जाए इसके बारे म भी व तृत जानकारी हम वेद म ा त होती है  अथवद के तृतीय अ याय के  न न ल खत  मं
हम कृषी क प धती के बारे म जानकारी दे ते ए वामी ववेकानंद के इस कथन क क  पहले अ के बारे म ान नह था का पुरजोर
वरोध करते ह। आय ने जीवन के धान अंग भोजन क शु द पर वशेष यान दया है। हमारे ऋ षय का यह व ास रहा है क ”
आहार शु ौ स वशु : स वशु ौ ुवा मृ त: अथात आहार क   शु ध से स व क शु होती है और स व क शु द से   मरण श
न छल होती है पर तु अशु द आहार से स व और मृ त भी अशु द हो जाती है

ी हम म यवम थो मापमथो तलम।

ऐश वो भागो न हतो र नधेयाय दांत मा ह स ठं पतरे  मातरे च।।

बालक को अ ाशन कराने का उपदे श – हे बालक के थम उ प दांत तुम  भात खाओ जौ खाओ  और माप उड़द क दाल और तल 
खाओ

अथवद ष म   का डम अ याय 140 मं 2 पृ – 306 SC (ii)

अज म म षम भुरं ुमा नमीदे पुव च म नमो भ ।

स पव म रतुशः क मानो गाम  मा ह सीर द त वरा जम।।

यजुवद अ याय 13 मं 43 पृ 606  SC S SC (i)

अ हसक और अ वनाषी ऐ यवान जल के सामान शीतल और शु ध रोष र हत सब के पोषक पूण ानवान शानवान  परमे र या राजा
को म नम कार ारा म तु त करता ँ अ ारा पूव ही सं ह करने वाले धना पु ष को म ा त क ँ । वह तू पालनकारी साम य से
सुय जस कार अपने ऋतु  से सबको चलाता है उसी कार राज अपने राज सभा के सद य से साम यवान होता है। वह तू व वध
पदाथ गुण से का शत गौ और पृ वी को मत वन कर

सीरा यु त कवयो युगा व  त वते पृथक।

धीरा दे वेपुम सु नयौ।। अथवद 3/17/1  पृ 348

व ान पु ष म सुख के ा त करने वाले आ मा प े म व ान् रदश लोग  प हेलॉन को यु करते ह  और धीर बु धमान 
पु ष योग के अंग प जु को पृथक पृथक ाण प  के क ध पर  रखते ह   उसी कार हे पु षो   तुम भी करो।

युन सीरा व युगा तनोत कते वपतेह वीजम ।


वराजः ु : साभार सभरा  अस ो नेद य इ त सनय क वमान यवन।।

अथवद 3/17/2 पृ 350

कृषी कम का उपदे श करते ह हल   को जोत लो। बैल के जोड़ को हल के जु म लगाओ और हल चलाओ और बीज उ प के थान
े के   यो य हो जाने  पर उसम बीज जो बोओ। और     जब अ क बाल अ   से पूण हो जाएँ तब उसके कुछ काल बाद ही अ दरांती
काटने के ह थयार हसु   से काटकर ा त करो।

ला ल  पवीरवत सुशीम सोम स स ।

उ दद वपतु गाम व थावद रथवाहनम पीवरी च फवयम।V।

अथवद 3/17/3  पृ 350

कृषी से कतने कतने पदाथ उ प होते ह इसका उपदे श करते ह सीता   या फली से यु हल उ म सुख का उ पादक और सोम बीज
प अ के थापन करने के लए को हल चलाया जाता है वह अथात कृषी ही गौ को भेड़ को और र दे श म थान करने म समथ
रथ और बैल और घोड़ को और ह पु शरीर वाली तय को भी उ त   कया करता है

शुनं सुफाला व तुद तु भू म शुनं क नाशा अनु य तु वाहान।

शुनाशीरा ह वषा तोशमाना  सु प पला औषधी कत म मै।।

अथवद 3/17/5

उ म ती फा लय हल के नीचे लगी लोहे क ती ह लय खूब तेजी से सुख पूवक भू म को खोद और कसान लोग सुखपूवक अपने हल
के वाहने वाले बैल के पीछे पीछे चल। हे सुन और शीर! वायु और  सूय तुम दोन वी थ जल से पृ वी को ही स चत करते ए इस
आ मा के लए या इस संसार के लए या हमारे लए उ म फल से संप अ आ द औष धय को उ प करो।

शुन ं वाहाः शुन ं नरः शुन ं पतु ला लम।

शुन ं वर ा : व य ताम शुनम मु तामुद  अ य ।।

अथवद 3/17/6

वाहन बैल और घोड़े सुख पूवक हल को  ख चे  हांकने वाले कसान लोग सुख पूवक हल चलाए और हल भी सुख पूवक उ म प से
खेद को खोदे । र सयाँ भी सुख पूवक बांधी जाएँ और खूब उ म चाबुक को ऊपर उठा उठा कर चलाओ।

 
तेन सीता मधुना सम ा व दै वै रनुमता म :।

सा नः सीते पयसा या व वो वती तवत प वमाना ।।

 अथवद 3/17/9

हल म लगी  फली घृत और मधु से  चुपड़ी गयी और व ान् वै गन और सभी व तजन से उपयोगी प से वीकृत है।  हे सीते वह तू
पु कारक अ दे नेहारी और घी ध आ द  पदाथ से सब को तृ त करती यी पु कारक अ और जल के स हत    हमारे पास व मान
रह।

उजम वह त र त घृतं पयः क लाल प र ुतम।

वधा थ तपयत म तन।।

 यजुवद 2/34

आप उ म अ रस रोगहारी जीवन द तेजोदायक घृत पु कारक ध अ और सब  कार से वत रस से यु पके फल एवं औष ध


वधी से तैयार कये उ म रसायन आ द इन सब को धारण करते ए मेरे पाकल वृ ध जानो  को तृ त करो। आप अब वयं अपने 
और अपने वृ ध पालक स कार यो य पु ष को भी अपने बल पर  धारण पोषण करने म समथ हो।.

वै दककलाममांसभ ण

 Rakhal को 1895 म   लखते ए वामी ववेकानंद लखतेहक वै दककलामअ मेधसबसे  घृ णत कम था। सभी ा ण ने ऐसा
लखा है और माना भी है ये गलत कैसे हो सकता है

And in the Vedic Ashvamedha sacri ce worse things would be done…. All the Brâhmanas mention them,
and all the commentators admit them to be true. How can you deny them?

-The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 318

The old gods were found to be incongruous — these boisterous, ghting, drinking, beef-eating gods of
the ancients — whose delight was in the smell of burning esh and libations ofstrong liquor. Sometimes
Indra drank so much that he fell upon the ground and talked unintelligibly. These gods could no longer
be tolerated.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 2- Pg 109

 
ाचीन दे वता म चंचल लड़ाकू शराबी गौ मांसहारी दे वता म जनको जले ए मांस क गंध और ती सुरा क आ ती ही से परम
आनंद  मलता था – कुछ असंग त दे खने लगे। कभी कभी इं इतना म पान कर लेता था क वह बेहोश होकर गर् पड़ता था और अंड
बंड  बकने लगता था

ववेकानंद सा ह य , भाग -2, पृ -68

अ मेध के बारे म ऐसी मा यता रखना वामी जी के ऊपर सायन महीधर Max Muller के वेदभा य का भाव और वेद के बारे म
उनक अ ानता को ही द शत करता है।

वामी दयानंद ने अ मेध का अथ करते ए लखते ह क  रा ं वा अ मेध: – रा पालेन यानाम अ ामेधा यो य ो भव त। ना म
हटवा तदं गानाम हो करनम चे त ।

और जो  याय  से रा य का पालन करना है वही य का अ मेघ  है।अ    को मार के उसके  का होम करना यह अ मेघ नह है

ऋ वेदा दभा यभू मका पृ 180

य द वामी ववेकानंद अ मेघ य का अथ पशु ह या लेते ह तो या प य म माता पता क ह या कर उनके मांस से हवन करना
स ध करगे और अ तथी य म  या अ त थय क ह या करके उसके र और मांस से हवन करने का उपदे श अपने भ   को दान
करगे। य द यह  हो जाये तो संसार म मानवता का या होगा। यह  तो पतन क पराका होगी। य से तो परोपकार क स धी होती है।
  यद  य  का यह अथ ले  लया जाये तो यह तो य  के शा दक अथ के साथ भी  अ याचार ही होगा।  परोपकार का यह धम वेद ने ही
सम त संसार को पढाया  है उसके उस  उपदे श का या अथ रह जाएगा।

महष दयानंद   लखते ह  क जो सायन आचाय और महीधर आ द अ बु ध लोग के झूठे ा यान को दे ख के आजकल के आयावत
और युरो दे श के नवासी लोग जो वेद के ऊपर अपनी अपनी दे श भाषाआ म ा यान करते ह वे ठ क ठ क नह ह और उन अनथयु  
ा यान के  मानने से मानुष को अ यंत ःख  होता है।   इससे बु धमानो को माण करना यो य नह है।

ऋ वेदा दभा य भू मका पृ -58

पं डत गु अथ का अनथ करने वाल के वाल के त यह रोष ही था जसक वजह से वो लखते ह क   यूरो पयन व ान म  पां ड य
क यूनता वै दक भाषा और त व ान से उनक पूण अ न भ ता ही हमारे दे श म भी इतने कुसं कार और प पात का कारनहै

मु नवर गु   व ाथ – पृ 142

मांसाहार श का साधन और भारत क गुलामी का कारण

वामी ववेकानंद क यह अवधारणा थी क मांसाहार श दान करने का साधन है और मांसाहार मानव जीवन का आव यक अंग है।
वामी ववेकानंद के अनुसार जीवन म मांसाहार क अनुप थ त शारी रक एवं मान सक बलता को ज म दे ती है एवं मनु य एवं समाज
को  शारी रक बौ धक उ त के रा ते से पृथक कर दे ती है ।
वामी ववेकानंद के मांसाहार के इतने बल समथक थे क उ ह ने भारतवष क गुलामी का कारण भारतवा सय का मांसाहारी न होना
घो षत कर दया। वामी ववेकानंद कहते ह क य द भारतवासी मांसाहारी होते तो अं ेज कभी भारतवष पर रा य न कर पाते। वामी
ववेकानंद यह नह के अ पतु जापान के वकास के पीछे  भी जापान वा सय का मांसाहारी होना घो षत कर दया। वामी ववेकानंद
का वचार था क जो लोग कहते ह क मांसाहार वा य के लए ठ क नह है वो बकवास करते ह। वामी ववेकानंद के अनुसार
 मांसाहार न केवल शारी रक श दान करने का ोत है अ पतु बौ क श का भी हेतु है, भारत ने य द पूवकाल म उ त क थी तो
वह  क   भारत म ऋषी मु न मांसाहार पर आ त थे पर तु वामी जी क यह दलील एक नरथक तक ही सा बत होता है य क भारत
वष म ना तो कभी मांसाहार  लोग म   च लत रहा, नह वै दक शा म ऐसा करने का कोई वधान मलता है अ पतु पशु र ा एवं
संवधन हेतु अनेक उपदे श वेद म और शा ने दए ह। भारतवष म तो  आहार शु धी पर वशेष यान दया  है जैसा आहार होगा वैसी
ही बु धी होगी और मांसाहार इ या द को तो पूणतया या य एवं नदनीय कम कहा गया है। योगीराम ी कृ ण भी गीता म अजुन को
उपदे श दे ते ए  फल आहार क ही श ा दे ते ह :

व व सेवी ला वाशी या वाक यायमानसः ।

यानयोगपरो न यं वैरा यं समुपा तः।। .

गीता 18/52

क ा ती म  योगीराज ी कृ ण एकांत सेवी हल का आहार करने का उपदे श दे ते ह ी कृ ण बल का साधन सा वक आहार ही


बताते ह।

आयुः स व बलारो यसुख ी त ववधना।

र या: न धा: थर या आहारा: सा वक याः।।

गीता 17/8

आयु स व बल आरो य सुख तथा रसा वादन क श बदने वाले रसयु चकने थरता दान करने वाले दय श वधक आहार
सा वक लोग के य ह ।

वामी ववेवाकंद श का राज मांस खाने को बताते ए कहते ह क य द भारत म यश होती तो क अं ेज भारत पर राज कर
सकते थे? भारत को य द य श का वकास करना है तो उ ह मांस खाना चा हए

“Do you think that a handful of Englishmen could rule India if we had a militant spirit? I teach meat-eat-
ing throughout the length and breadth of India in the hope that we can build a militant spirit!”

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 318


ह और चीन दे श के नवा सय को दे खो वो कतने कमजोर ह वो मांस नह खाते और कसी तरह थोड़ा खा के स जय और चावल
पर जी वत रहते ह। उनक दयनीय हालत दे खो। जापान वासी भी उसी दयनीय हालत म थे ले कन वो अब बदल गए ह उनह ने मांस खान
ारंभ कर दया है भारतीय सेना म दे खो कतने सै नक शाकाहारी ह। उनम से े गोरखा और सख शाकाहारी नह ह। कुछ कहते ह क
मांसाहार व य के लए हा नकारक है। कुछ कहते ह क या बकवास है। सबसे यादा शाकाहारी पेट क सम या से त रहते ह हो
सकता है क शाकाहारी भोजन पेट को ठ क रखता हो ले कन इसका अथ यह नह है क आप पुरे संसार पर इसको थोप ।

“Look at the Hindus and the Chinamen, how poor they are. They do not take meat, but live somehow on
the scanty diet of rice and all sorts of vegetables. Look at their miserable condition. And the Japanese
were also in the same plight, but since they commenced taking meat, they turned over a new leaf. In the
Indian regiments there are about a lac and a half of native sepoys; see how many of them are
vegetarians. The best parts of them, such as the Sikhs and the Goorkhas, are never vegetarians”.

One party says, “Indigestion is due to animal food”. The other says, “That is all stuff and nonsense. It is
mostly the vegetarians who suffer from stomach complaints.” Again, “It may be the vegetable food acts
as an effective purgative to the system. But is that any reason that you should induce the whole world to
take it?”

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 484

कोई कुछ भी कहे ले कन वा त वकता यह है क जस दे श म मांसाहार कया जाता है वो बहा र श शाली और दयालु होते ह। जन
दे श म मांसाहार कया जाता है वो कहते ह क जन दन म भारत वष म य होता था और पशु क बली द जाती थे उस समय भारत
वष म महान धा मक बु धमान पु ष उ प ए। ले कन जब से भारत म ये शाकाहारी बाबा का आंद लन चला है जब से एक भी
क उनक बीच म ऐसा उनक बीच म पैदा नह आ

Whatever one or the other may say, the real fact, however, is that the nations who take the animal food
are always, as a rule, notably brave, heroic and thoughtful. The nations who take animal food also assert
that in those days when the smoke from Yajnas used to rise in the Indian sky and the Hindus usedto take
the meat of animals sacri ced, then only great religious geniuses and intellectual giants were born
among them; but since the drifting of the Hindus into the Bâbâji’s vegetarianism, not one great, original
man arose midst them. Taking this view into account, the meat-eaters in our country are afraid to give up
their habitual diet.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 484

मांस खाना बबरता है और शाकाहारी भोजन शु द उसे कौन झुठला सकता है। जो केवल आ ा मक जीवन जीना चाहता है उसके लए
यह आव यक भी है। ले कन जसे अपनी जीवन क नौका को क ठनतम म से  जीवन मृ यु के संघष एवं इस संसार के संघष से
नकालनी है उसे मांस खान चा हए जब तक संसार म कमाजोर पर श शाली क वजय क भावना रहेगी तब तक पशु का मांस
खान आव यक है अ यथा कमजोर श शा लय के पैर तले कुचले जाते रहगे। यह सही नह है क  कसी के शरीर पर शाकाहार से होने
वाले  लाभ  का वनन  कया जाये    आव यकता इस बात क है दो दे श का तुलाना मन अ ययन करके नतीजा नकाला जाए।

To eat meat is surely barbarous and vegetable food is certainly purer — who can deny that? For him
surely is a strict vegetarian diet whose one end is to lead solely a spiritual life. But he who has to steer
the boat of his life with strenuous labour through the constant life-and-death struggles and the compe-
tition of this world must of necessity take meat. So long as there will be in human societsuch a thing as
the triumph of the strong over the weak, animal food is required; otherwise, the weak will naturally be
crushed under the feet of the strong. It will not do to quote solitary instances of the good effect of veg-
etable food on some particular person or persons: compare one nation with another and then draw
conclusions.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 485

स यता के  वकास पर बोलते  ए  वामी  ववेकानंद कहते ह क   दे वता अ   और श जय पर जीते थे स य थे और गाँव क ब


और बाग   म रहते थे और बुने ए कपडे पहनते थे। असुर पहाड़ पर  पठार   पर रे ग तान म और समु  के  कनारे जंगली
जानवर  पर फल पर और दे वता  से जो उनक  गाय और भेड़  के बदले  मला उस पर जी वत रहे और पशु  क  खाल को ही पहनते
थे। दे वता कमजोर थे और क ठन प र म नह  कर सकते थे असुर उनक  अपे ा कह  अ धक श शाली थे

The Devas lived on grains and vegetables, were civilised, dwelt in villages, towns, and gardens, and wore
woven clothing. The Asuras (The terms “Devas” and “Asuras” are used here in the sense in which they
occur in the Gitâ (XVI), i.e. races in which the Daivi (divine) or the Âsuri (non-divine) traits
preponderate.) dwelt in the hills and mountains, deserts or on the sea-shores, lived on wild animals, and
the roots and fruits of the forests, and on what cereals they could get from the Devas in exchange for
these or for their cows and sheep, and wore the hides of wild animals. The Devas were weak in body and
could not endure hardships; the Asuras, on the other hand, were hardy with frequent fasting and were
quite capable os suffering all sorts of hardships.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 523

वामी  ववेकानंद के एक  श य ने उनसे पूछा  क  ” या मांस मछली खाना  ठ क है  ” वामी जी ने उ र  दया क  – खूब खाओ भाई
अगर इसम कुछ गलत भी है तो वह मेरा है, भारत क जनता क तरफ दे खो उनके चहरे पर कतनी दयनीयता है बड़े
बड़े पेट श वहीन हाथ पैर  और दय म साहस और कुछ कर जाने क इ छा। डरे ए कायर

 
Disciple: Is it proper or necessary to take sh and meat?

Swamiji: Ay, take them, my boy! And if there be any harm in doing so, I will take care of that. Look at the
masses of our country! What a look of sadness on their faces and want of courage and enthusiasm in
their hearts, with large stomachs and no strength in their hands and feet — a set of cowards frightened
at every tri e!

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 401

श य : या मछली और मांस श दान करते ह? बौ ध और वै णव यूँ कहते ह क अ हसा ही परम धम है

वामी ववेकानंद: बौ ध और वै णव अगल अलग नह ह बौ समाज का अ हसा का स धांत ब त अ छा है ले कन इसे बना लोग क
साम य और आव यकता को समझे थोपना ठ क नह है। बौ ध ने भारत को बबाद कर दया है।

Disciple: Does the taking of sh and meat give strength? Why do Buddhism and Vaishnavism preach ” —
Non-killing is the highest virtue”?

Swamiji: Buddhism and Vaishnavism are not two different things. During the decline of Buddhism in
India, Hinduism took from her a few cardinal tenets of conduct and made them her own, and these have
now come to be known as Vaishnavism. The Buddhist tenet, “Non-killing is supreme virtue”, is very good,
but in trying to enforce it upon all by legislation without paying any heed to the capacities of the people
at large, Buddhism has brought ruin upon India. I have come across many a “religious heron”!* in India,
who fed ants with sugar, and at the same time would not hesitate to bring ruin on his own brother for
the sake of “ lthy lucre”!

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 401

पूव बंगाल के नवासी मछली और कछु ए खाते ह वे बंगाल के इस भाग के नवा सय से यादा व थ ह

Just see — the people of East Bengal eat much sh, meat, and turtle, and they are much healthier than
those of this part of Bengal.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 402


वामी ववेकानंद मांसाहार के बारे म पूछे गए का उ र दे ते ए कहते ह क जतना खान है उतना खाओ और कसी नदा क चता न
करो। आज दे श म शाकाहारी बाबा क बाड़  आ गयी है

Swamiji: Yes, take as much of that as you can, without fearing criticism. Thecountry has been ooded
with dyspeptic Bâbâjis living on vegetables only.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 402

आज राजस त व क अ य धक आव यकता है। जन लोग को आप  सा वक त व का समझते हो उनम से 90 तशत से अ धक गहन


तामस म डू बे ए ह। पया त होगा यद उनम से 1/16 भी सा वक ह । हम अभी अ य धक राजस श क आव यकता है इस दे श को
राजस श से प रपूण करना है। इस दे श के लोग को खाने और कपड़ क आव यकता है उ ह और कारगर बनाना है अ यथा और पेड़
और नज व प थर क भांती हो जायगे। इस लए म कहता ँ मेरे ब च जतना हो सके मछली और मांस का सेवन करो

Swamiji: That is what I want you to have. Rajas is badly needed just now! More than ninety per cent of
those whom you now take to be men with the Sattva, quality are only steeped in the deepest Tamas.
Enough, if you nd one-sixteenth of them to be really Sâttvika! What we want now is an immense awak-
ening of Râjasika energy, for the whole country is wrapped in the shroud of Tamas. The people of this
land must be fed and clothed — must be awakened — must be made more fully active. Otherwise they
will become inert, as inert as trees and stones. So, I say, eat large quantities of sh and meat, my boy!

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 5- Pg 402

भ योग पर भाषण दे ते ए वामी जी कहते ह जो मांस खाता है वह खुद ही पशु को मारे। मांस खान उनको लए आव यक है
क ठन प र म करते ह और ज ह भ   नह बनाना है।

That It would be better if every amn who eats meat killed the animal himself Eating meast is only allow-
able for the people who do very hard work and who are not going to be bhakts

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 4- Pg 4-5

ा भ म मेरे गु शाकाहारी थे ले कन यद मांस काली माँ को चड़ाया जाए तो वह उसे म तक से लगा लया करते थे। कसी क या
करना नःसंदेह ही पाप कम है ले कन ले कन  रसायनशा  क खोज ने यह सा बत कया है क शाकाहार मानव शरीर के लए उपयु
नह है इस लए मॉस खाने के अलावा कोई नह है। यद मनु य को सं य रहना है तो मांस खान ही एक साधन है। यह स य है क स ाट
अशोक ने अन को जानवर का जीवन तलवार क धार से बचाया था ले कन हजार साल क गुलामी उससे कही अ धक बुरी है। कुछ
बक रय क जान लेना या फर अपनी प नी बे टय क र ा करने म असमथ रहना अपने पु के हाथ से खाने को लुटते
ए बचाना म असमथ रहना इसम से कोनसा  अ धक पाप कम है। जो क ठन प र म नह करते ह  लए शाकाहार पर जीना ठ क है
ले कन जो प र म करके अपनी जी वका चलाते ह उनके लए मासाहार आव यक है। सभी के ऊपर शाकाहार को थोपना ठ क नह है
और ये ही  दे श के गुलाम होने का  कारण है। जापान इसका उदाहरण है क   भोजन या कर सकता है

About vegetarian diet I have to say this — rst, my Master was a vegetarian; but if he was given meat of-
fered to the Goddess, he used to hold it up to his head. The taking of life is undoubtedly sinful; but so
long as vegetable food is not made suitable to the human system through progress in chemistry, there is
no other alternative but meat-eating. So long as man shall have to live a Râjasika (active) life under cir-
cumstances like the present, there is no other way except through meat-eating. It is true that the Em-
peror Asoka saved the lives of millions of animals by the threat of the sword; but is not the slavery of a
thousand years more dreadful than that? Taking the life of a few goats as against the inability to protect
the honour of one’s own wife and daughter, and to save the morsels for one’s children from robbing
hands — which of these is more sinful? Rather let those belonging to the upper ten, who do not earn
their livelihood by manual labour, not take meat; but the forcing of vegetarianism upon those who have
to earn their bread by labouring day and night is one of the causes of the loss of our national freedom.
Japan is an example of what good and nourishing food can do.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 4- Pg 487

मांसश कासाधननह अ पतुरोगयु जीवनकाआवाहन

मांस खाना श का साधन  अ पतु बीमा रय को दावत दे ने के सामान है। 12 March,2012 को The New York Times,
का शत करता है क मांस खाने से कसर और दय संबंधी रोग का खतरा अ धक बड़ जाता है। जतना आप मांस खाते ह उतना ही रोग
त होने  का खतरा बढता जाता है।

1980 से 2006 तक 121342 लोग पर कये  गए योग के आधार पर Archeivesof  Internal Medicines म का शत रपोट
कहती है क इस समूह म 23926 मौते    जनम से 5910 कसर क वजह से और 9464 दय रोग क वजह से थ ।

रपोट आगे कहती है क जो लोग यादा मांस काहते ह वो शारी रक प से कम याशील होते ह और उनम धु पान क लत यादा 
पायी जाती है। त दन मांस खान इस खतरे को और बड़ा दे ता है

मांस है ही सड़ी यी व तु। जब तक वो जी वत शरीर के अ दर है तब तक को ठ क है जैसे ही उसे मारकर रखा जाए कुछ समय प ात्
उसम से ग ध आने लगती है। कोई दो दन पुरानी  लाश के पास बैध भी नह सकता। यही वो कारण है क जस के कारण कोई
मांसाहारी जी वत पशु को मारकर ही मांस खाता है  भी वयं मरे ए जीव का मांस नह खाता यूं क उसम ाण नकलने के साथ ही
ग ध होने लगती है और यही रोग का कारण है।
 

  वामी ववेकानंद वयं को 31   तरह क बीमा रयां

वामी ववेकानंद वयं 31   तरह क बीमा रय से सत  थे।  The Indian Express 6  Jan,2012 को   का शत करता है क 
वामी ववेकानंद को 31 तरह क बीमा रयां  थ ।  प    क वो Insomnia ,Liver ,Kidney ,Malaria ,Migraine, Diabetes और
Heart जैसी बीमा रय से सत  थे।बंगाली   लेखक ने  ववेकानंद को बीमा रय के मं दर क सं ा दे डाली  है।

डॉ टर जगद रान द सर वती ने अपनी पु तक “ वा थय के श ु अंडे व मांस” म पा ा य व ान क इस बारे म न न ल खत


ट प ड़यां द ह:

Appendicites is practically unknown among vegetarians – Dr. Lucas Champoniere

शाकाहा रय म अपडीसाईतीज का रोग नह होता है

Cancer are caused by diseased meat- Dr. Lefenwill

कसर का रोग षत मांस खाने के कारण होता है

There is more suicide in England where most meast is eaten and beer is drunk and less in scotland where
less meat is taken…. suicides is believed to be increasing in England and so is the meat eaten per head of
population – Uric Acid – Dr. Heg

अथात इं लड म मांस और शराब का अ धक योग हो ा है अतः इं लड म आ मह या अ धक होती है। काटलड म कम है इस लए कम।


इं लड म मास  अ धक खाया जाता है प रणाम व प आ मह या बड़  रही है।

Mil bread butter vegetables and scotch broth ( mixed barley and other vegetables) are the very best of
all foods for children and they should be given in abundance …. Flesh eating chldre are often nervous
thin. Dr. T.S> Clouston

ध रोट म खन तरकारी और द लया ब च के लय सब भोजन म सव े है और पया त मा ा म दे ने चा हए। मांस खानेवाले ब चे 


धैयहीन और बल होते ह
As a medical man I desire to add my tesimoney both from the result of my personal experience and from
observation through many years of hospital and private practice I ascertain that esh eating is unneces-
sary un antural and unwholesome Dr. Jaanwood M. P.

अथात एक डॉ टर के प म अपने वैय क तथा सावज नक अनुभव जो क अ पताल तथा नजी वसाय म ए ह के आधार पर म
बल पूवक घोषणा करता नक मांस भोजन अनाव यक अ वाभा वक तथा व य के लए हा नकारक है

वामी जगद रान द सर वती लखते ह क  मांस खाने से श और वीरता आती है यह वचार मपूण एवं मूखतापूण है। श शाक
और फल म है मांस म नह मांस का खाना तो नाना कार क बीमा रयाँ लाता है। मांस अ वाभा वक भोजन है इसके भ ण से भग दर
य और अंत ड़य म क ड़े पढ़ना आ द अनेक ा धयां उ पनन हो जाती ह। मांस भ ण से ाय क ज क बीमारी हो जाती है। क ज से
अ य रोग उ प हो जाते ह। मांस भ ण क ज ा मैली रहती है मुखमंडल का रंग फ का रहता है। आँख के इद गद झ लयाँ पद
जाती ह। साँस और पसीने म बदबू उ प हो जाती है। वभाव म चंचलता और चड चडापन आता है। डॉ टर टनर जो बने के
व था य थे ने एक बार लखा था क य रोग पशु म ब त फैला आ है। प य म इस रोग क मा ा और भी अ धक है वशेषकर
मु गय और हंस म। व य पशु भी इस रोग से ब त पी ड़त होते ह। सूअर का सारा शरीर इस रोग के क टाणु से भरा रहता है। ये पशु तो
केवल सफाई कमचारी का काम दे सकते ह। कदा चत ही कसी सूअर का मॉस वा यदायक हो, यो क इसका वाभाव ही ग दगी
खाना है। जो जानवर ऐसी घृ णत वा तु खाता है उसका मांस कदा प नह खाना चा हए

इसी स दभ म अ नी त नै क लखते ह क कुछ दन पूव मैड काऊ नामक बीमारी उरोप म फ़ैली जससे गोभ क पापी मरे। यह
बीमारी उन गाय का मांस खाने से फ़ैली थी ज ह यह रोग था। गाय म यह रोग उ ह मांस उ पादनाथ मोटा करने के लए मांस खलाने से
फैला और गाय मरने लगी। जब उनसे यह रोग मनु य म  फ़ैलने लगा तो नर पशाच ने नद ष गाय को जी वत जला दया। जब
शाकाहारी पशु को अ ाकृ तक आहार मांस खलाने से यह सम या उ प हई तब या शाकाहारी मनु य को अ कृत आहार मान
खलाने से रोग नह फैलगे? वष 1997 म हांगकांग म मुग के मांस व अ ड को खाने से बड लू नामक बीमारी फ़ैली थी जसम 12
लाख मु गय को जला कर मार डाला था तब से यह बीमारी आम हो गयी है और ाय दो चार साल बाद फैलती ही रहती है

वदे शीरा यफैलने  काकारण

वामी दयानंद सर वती लखते ह क वदे शय के आयावत म रा य होने के कारण – आपस क फूट  मतभेद हचय का सेवन न करना
व ा न पड़नी ना पडानी बा याव था म अ वर  ववाह वषयास म याभाशानाद   कुल ण वेद व ा का अ चार आ द कुकम ह।
जब आपस म भाई भाई लड़ते ह तभी तीसरा वदे शी आकर प च बन बैठता है। या तुम महाभारत क बाते जो पाच सह वष के पहले
यीथी उनको भूल गए? दे खो! महाभारत यु ध म सब लोग लड़ाई म सवा रय पर खाते पीते थे। आपस क फुट से कौरव पांडव और
यादव का स यानंश हो गया सो तो हो गया प तु अब भी वही रोग पीछे लगा है न जाने यह भयंकर रा स कभी छु टे गा वा आय को सब
सुख से छु ड़ाकर  खसागर म  डू बा मरेगा? उसी य धन गो ह यारे वदे श वनाशक नीच के माग म आय लोग अब तक बी चल
कर ःख बडा  रहे ह परमे र कृपा करे क यह महाराज रोग हम आय  म  न हो जाए

स याथ काश : दशम स मुलास


 

ा धमपशुबलीऔरमनुपरपशुह याकादोषारोपण

एक थान पर शा कहते ह क य मे क  य म पशु को मारो सरे  पर ये कहते ह क कसी क जान मत  लो। ह सोचते ह क
य के अलावा कसी क भी जान लेना पाप है ले कन य म बली   दे कर कोई बना पाप का भागी बने मांस का वाद ले सकता है।
वा तवमकुछगृह थके  लए कुछ   नयमहजहाँउसेकुछअवसर परपशु कोमारनाआव यकहैजैसक े ा धइ या द। य द वह इस अवसर
पर बली नह दे ता है तो पाप का   माना जाता
हैमनुकहतेहक जनको ा ध नमं ण दयागयाहैऔर सरेआयोजन मजहाँपशु कामानपरोसाजाताहैय दवोवहमांसनह खातेहतोअगले
ज ममपशु क ेणीमज मलेतेह।

In one place the Shastra dictates, “Kill animals in Yajnas”, and again, in another place it says, “Never take
away life”. The Hindus hold that it is a sin to kill animals except in sacri ces, but one can with impunity
enjoy the pleasure of eating meat after the animal is sacri ced in a Yajna. Indeed, there are certain rules
prescribed for the householder in which he is required to kill animals on occasions, such as

Shraddha and so on; and if he omits to kill animals at those times, he is condemned as a sinner. Manu
says that if those that are invited to Shraddha and certain other ceremonies do not partake of the animal
food offered there, they take birth in an animal body in their next.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 6- Pg 481

वामी ववेकानंद गृह थ के लए कुछ नयम बताते ए कहते ह क  उनके लए कुछ नयम के पालन हेतु जीव ह या करना एवं मांस
खान अ नवाय है ले कन यहाँ ना तो वे उन नयम का ज करते ह क वे कौनसे ऐसे नयम ह जो जीव ह या और मांसाहार को ाह य
के लए आव यक बताते ह ना ही कसी धम शा का ही उ रण दे ते ह। एक ा द का नाम उ ह ने अव य दया है क गृह थ को इसम
जीव ह या करना बली दे ना आव यक था।

वामी दयानंद सर वती ा श द क बड़ी ही अ छ   ा या करते ए लखते ह क जो व ान् दे व ऋषी और पतर क दा पूवक
सेवा करना है उसी को ा जानना चा हए। ( र वेदा द भा य भू मका पृ 197) यहाँ कह भी जीव या का वधान नह है।

मनु के बारे म यह दोषारोपण करना क मनु कहते ह क जनको ा ध म नमं ण दया गया है और सरे आयोजन म जहाँ
पशु का मांस परोसा जाता है य द वो वह मांस नह खाते ह तो अगले जनम म पशु     के प  म ज म लेते ह   वो ही कह
सकता है जसने कभी मनु को पडा ही  नह या फर वो त ोक   म भेद ना   कर  सका। मानवमा   के   लए कानून के
र चयता मह ष मनु ने मासाहार के स ब ध म एक नह   आठ कार के पाप एवं दोशारो पयो का वणन कया है –

अनुम ता वश सता नह ता य व यी ।

सं कता चोपहता  च खादक े त घटका। ।  मनु मृ त 5/51


अथात मांसाहार क अनुम त  दे न े  वाला खरीदने व बेचने वाला मांस काटने वाला पशु मारने वाला पकाने परोसने वा खाने
वाला ये आठ घोर पापी ह। ऐसा तीत होता है क वामी ववेकानंद ने मह ष मनु के ये ोक पड़े नह थे। जो मांसाहार के बारे
म इतनी व तृत ा या करने वाले महष मनु पर मांसाहार का आरोप लगना महष क छ व पर कुठाराघात का एक असफल
यास ही है।

मह ष मनु ने   मांस को    व जत कया है –

वजये मधु मासं। मनु 6/14

ना कृ वा ा णनां हसा मा मु प यते व चत ।

न च ा नवध: व य त मा मांसम ववजयेत। ।  मनु 5/48

ा णय क हसा कये बना कभी मांस ा त नह होता और जीव क ह या करना सुखदायक नह है इस कारण मांस नह खाना चा हए

यो बंधन व लेशान ा णनाम न चक ष त ।

स सव य ह े शु: सुख म यंत मं ुते । । मनु 5/46

जो ा णय को बंधन म डालने वध करने उनको पीड़ा प ंचाने क इ छा नह करता वह सब ा णय का हतैषी ब त अ धक सुख


को ा त करता है

समु प च मांस य व ब धौ च दे हनात।

समी य नवतत सव मांस य भ णात । मनु 4/49

मांस क उ प जैसे होती है असको ा णय क ह या और बंधन के  क को दे खकर सब कार के मांस भ ण से र रहे

यो ह सका न भूता न ह स या सुखे या ।

स जीवं मृत ैव न वा च मेधते । । मनु 5/45

जो मनु य अपने सुख के लए अ हसक ा णय क या करता है वह न इस जीवन म सुख पाता है न जीवांतर म

शा ममांसभ णका नषेध

सुरां  म सया मधु मांसमा सव सरौदनम ।

धुतः  व ततं े त ैतद वेदेषुक पतम। । शां तपव 264/9


सुरा मछली म आसव आअ द खाना धूत ने च लत कया ही वेद म इन पदात के खाने पीने का वधान नह है

अ ध सा परमो धमः स तम वर।   आ द पव 11/13

कसी भी ाणी को न मारना ही परम धम है

ा नना वध तात सव याया मतो मम ।

अनृतम वा वादे ाचं न तू ह या का ा त। । कण पव 69/23

म ा णय का न मरना ही सबसे उ म मानता ँ। झूठ चाहे बोल दे पर कसी क हसा ना करे।

जी वतुम यह वयं चे छे त  कथं सॊ यम घा येतु ।

य दा म न  चे छे त  त पर या प  च तयेत। ।  शांती पव 259/22

जो वयं जीने क इ छा करता है वह सर को कैसे मारता है ? ाणी जैसा अपने लए चाहता है वैसा सर के लए भी वह चाहे। कोई
मनु य यह नह कहता क कोई हसक पशु वा मनु य मुझे मेरे बल ब च इ म व सगे स ब धय को कसी कार का क दे वा हा न 
प ंचाए अथवा ाण ले वा इनका मांस खाए। एक कसाई जो त दन सैकड़ वा सह ा णय के गले पर छु री चलता है आप उसको
एक ब त छोट और बारीक सी सूरी चुभोएँ तो वह इसे कभी सहन नह करता। फर अ य ा णय क गदन काटने का अ धकार उसे
कहाँ से मल गया। ा णय का हसक कसाई महा पापी होता है ।

घातकः खडक वा प तथा ानुमंयते ।

याव त त य रोमानी तावडू वषानी म ज त। । अनुशाशन पव

मारने वाला खाने वाला स म त दे ने वाला ये सब उतने ःख म बे रहते ह जतने के मरने वाले पशु के रोम होते ह। अथात मांसाहारी
धातक आ द लोग बहतु ज म तक भयंकर ख को भोगते रहते ह।

धमशीलो नरो व ानी को नहॆकॉ प वा ।

आ मभूतः सदालोके चरेद भुता य हसया। । शां त पव 264/8

धा मक वभाव वालापु ष इस लोक को चाहता हो व न चाहता हो सबको सामान समझकर कसी क हसा न करता आ संसार या ा
करे कसी को ना सताए

बु धक वचारधाराऔर वामी ववेकानंद


 

जस बु ध को वामी ववेकानंद इ र का अवतार बताते ह उनके मांस भ ण के व ध कये काय को करते ए Francisco on
th
march 18 1900  म “ व को बु द का स दे श” पर बोलते ए कहते ह क बु द  ने केवल कहा ही नह ब क वो व के लए अपनी
जान दे ने तक तैयार थे। बु ध ने कहा क यद पशु को मारना अ छा है तो मनु य को मारना उससे बेहतर है।

बु ध को आ मा का अ त व मा य नह था ले कन फर भी उ ह ने बौ ध भ ु को उपदे श दे ते ए परोपकार धम को ही अपनाने को ही


बल दया। बु ध कहते ह क  जैसा म वैसे ही  ये जैसे ये वैसा  ही  म इस कार अपनी उपमा समझ कर न तो कसी को मारे और न
मरवाए।

यथा अहम् तथा एते यथा एते तथा अहम् ।

अ ानाम उपमं क वा न हने यम न घातये ।।

बु ध आगे उपदे श दे ते ह क  जो अपने सुख के लए जो सरे ा णय क हसा करता है उसे मरने पर सुख नह मलता

सु कामानी भूता न यो द दे न व हसती ।

अ नो सुखमेसानो पे य सो न लभते सुखं। धम पद 131

अफसोस है क जस बु ध के  जीव र ा के स दे श को वो जन जन तक प चाने का काम कर रहे थे और जनक कथनी और करनी को


एक जैसा होने का उ ह ान था उसी बु ध को इ र का अवतार बताने वाले वामी ववेकानंद अपनी कथनी और करनी म एकरसता नह
ला सके और पता नही कतने बेजबान पशु को अपनी मांस भ ण क लालासाका ास बना बैठे।

This was what Buddha taught. And he did not merely talk; he was ready to give up his own life for the
world. He said, “If sacri cing an animal is good, sacri cing a man is better”,

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 8- Pg 98

 योगे र ीकृ णऔर ववेकानंद

वामी ववेकानंद से 1898 म बैलुर मैथ नवाण के समय एक श य ने कया क मछली तथा मॉस या  उ चत तथा आव यक है।
वामी जी  दे ते ह क –  खूब   खाओ भाई  जो पाप होगा वह मेरा।   दे श के  क और एक बार यान से दे खो तो मुंह पर मलीनता क छाया
छाती म न साहस न उ लास पेट बड़ा  हाथ  पैर म   श नह – डरपोक और कायर ( ववेकानंद के  म –  पृ – 179 )

कम के स धांत के बारे म वही ऐसा कह सकता है जसने ी कृ ण को ना पड़ा  हो ले कन ी कृ ण को ई र का अवतार


बताने वाले एवं गीता पर उपदे श दे न े वाले  वामी  ववेकानंद  ऐसी बात कहे तो आ य होना वाभा वक ही है। योगे र ी कृ ण गीता के
पांचवे अ याय के पं हवे ोक म कहते ह क:

ना े क य च पापं न चैव सुकृतं वभु: ।


अ यानवृतम ानं तेन मु त ज तवः ।।

वह परमा मा न तो कसी के पाप को अपने ऊपर लेता है न कसी के पु य को छ नता है फर भी लोग परमा मा हमारे पाप के बदले
अवतार लेकर क भोगेगा अथवा हमारे अमुक मं ो चार से अमुक पु या मा के पु य न होकर वह भी न हो जाएगा इस कार के
म या व ास म पड़े रहतेह . हमारे सब पाप पु य का फल हमको ही भोगना है। पर तु यह ान अ ान से थका आ है इस लए ाणी  
मोह जाल म फंस जाते ह ( ीम ागव ता – पृ 126)

एक के कम सरे के सुख ःख का कारण कैसे बन सकते ह। को वयं के कये ए पाप कम का फल वयं ही


भोगना पड़ता है। यद कसी के कये ए का फल सरे को मलने लगे तो ई रीय नयम म   न यता का या अथ रह जाएगा। महाभारत
के शांती पव म भी यही कहा है क –

यथा धेनु सह ेशु व सो व दते मातरम ।

तथा पूव कृतं कम कतारमनु ग छ त  । । 5/15

अथात जैसे बछड़ा हजार गाय के बीच म अपनी माँ को ढूं ड  लेता है वैसे ही कया आ कम अपने करने वाले को जा पकड़ता है।

वेद भी इसी त य क पु ट करते ए कहते ह क  “ वयं ज व वयं जुश व  म हमा ते ना येन सनशे यजुवद 23/15” मनु य वयं ही
कम करे और वयं ही फल भोगे

योगे र ी कृ ण सम त  ा णय  म सम ी रखने का एवं सभी के सुख ःख को अपना सुख ःख समझकर सम ी रखने का  उपदे श
दे ते ए कहते ह क

आ मौप येन सव समं प य त यो अजुन ।

सुखं वास य द वा खम स योगी परमो मतः ।

हे अजुन जो अपने आपको उपमान रखकर अथात जैसा ःख मुझे होता है ऐसा ही  होता है यह समझकर समभाव से सबक सेवा करता
है उसे परम योगी माना जाता है। शंकर ने अपने गीता भा य म इस ोक क ा या करते ए लखा है क जो मनु य यह समझ जाता है
क जैसे मुझे अनुकूलता म सुख और तकूलता म ःख का अनुभव होता है वैसे ही सर को भी अनुकूलता म सुख और तकूलता म
ःख होता है वह कभी कसी के तकूल आचरण नह करता है।

जयदयाल इसी का भा य करते ए त वा ववेचनी म लखते ह क सव आ मदश   हो जाने के कारण सम त वराट व उसका व प
बन जाता है। जगत म उसके लए सरा कुछ रहता ही नह । इस लए जैसे मनु य अपने आपको कभी कसी कार ज़रा भी ःख प ंचाना
नह चाहता तथा वाभा वक ही नरंतर सुख पाने के लए ही अथक चे ा करता रहता है ऐसा करके न वह कभी अपने पर अपनेको कृपा
करने वाला मानकर बदले म कृत ता चाहता है न कोई अहसान करता है और न अपने को क परायण समझकर अ भमान ही करता
है वह अपने सुख क चे ा इसी लये करता है क उससे वैसा कये बना रहा ही नह जाता यह उसका सहज वभाव होता है ठ क वैसे ही
वह योगी सम त व को कभी कसी कार क चत भी ःख न प ंचाकर सदा उसके लए सहज वभाव ही चे ा करता है।

योगे र ी कृ ण सम त  म सम भाव रखने और सबके साथ शा ानुकुल वहार करने का  दे ते ए कहते ह क स भुता थतम यो मां
भ यॆ वम थत:. सवथा व मानोअपी स योगी म य वतते। (गीता 6/31)    ाणी मा को सुख ःख का अनुभव एक सा होता है इस
एकता को समझकर जो मुझे ाणी मा क सेवा समझकर मेरा ही अनुकरण करता है वह ही स चा योगी है।

इ र भ के ल ण बताते ए  योगे र ी कृ ण कहते ह क ” व ा वनय स प े हामने ग व  ह त न। शु न चैव पाके च पं डता:


समद शन: (गीता 5/18) भु को सव व मान जानने वालाल मनु स व ा वनय से यु ाहमण गौ हाथी कु े और चंडाल आ द म
सम प से अव थत भु का य अनुभव करता है और इन सबको सामान ी से दे खता अथात वहार करता है। जब मनु य हर
के अ दर भु का  त प दे खता है तो उसका उन ा णय   के त े ष क भावना जाती रहती है और वह सम त ा णय  म  े
ाहमण से लेकर चंडाल म तथा पशु म े गाय से लेकर पशु  म  नकृ कु े तक को समभाव  से दे खता है।

काश गीता पर उपदे श दे ने वाले वामी ववेकानंद ने योगे र ी कृ ण के उपदे श को अपने जीवन म उतारा होता।

वामी ववेका द का यह कथन क मॉस मचली खूब खाओ और पाप क चता मत करो चावाक दशन से ही मेल रखता है जहाँ  ऋण
लेकर भी सुख पूवक रहने क क पना क गयी है ।

यावा जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृ वा घृतं पबेत।

भ मीभूत य दे ह य पुनरागमनं कुतः।।

जब तक जीय सुख पूवक जीय। ऋण लेकर भी घी पी अथात सुख सु वधा का आअन द उठाये। इस शरीर के भ म हो जाने पर कस
का या लेना और कसी का या दे ना ना लेने वाला फर कभी यहाँ आएगा और न दे ने वाला।

वामी ववेकानंदके वरोधाभासी वचार

वामी ववेकानंद अपने वचार पर थर नह रहा करते थे जहाँ वो कह मांस भ ण को माया और यायसंगत श र रत श के लए
आव यक घो षत करते ह वह पर वो उसे गलत भी बोलते ह और अ हसा का समथन करते ह। वामी ववेकानंद जहाँ पर वेद क पशु
हसा को बढ़ावा दे ने के लए  अनथक न दा करते ह वही पर न केवल वयं मांस भ ण करते ह ब क अपने भ को मांस खाने के लए
े रत करते ए कहते ह क मांस खाना तो श   ा त करने के लए आव यक है। जो मेहनत करते ह उनके ल ये मांस भ ण को
अ नवाय बताते ह वामी ववेकानंद अपने वचार म इतने प रवतन करते थे. वामी ववेकानंद के भाषण   म पर पर वरोधी वचार क
भरमार है। स याथ भा कर म वामी व ानंद सर वती इस बारे म “Teachings of Swamee Vivekanand” के स पादक क
भू मका उ रत  क है
“ Vivekanand was the last person in the world to worry about formal consistency. He almost always
spoke extempore, red by the circumstances of the moment, addressing himself to the condition of a
particular group of hearers reacting to the intent of a certain question. That was his nature and he was
supremely indifferent if his words today seemed to contradict those of yesterday.

वामी अपनी पु तक राज योग के बारे म लखते ह के राज योग के आठ भाग म से एक है अ हसा। योगी को चा हए क वह तन- मन-
वचन से कसी के व ध हसाचार न कर।  भोजन के मानव शरीर पर होने वाले भाव के बारे म लखते ह क मानव शरीर पर भाव
दे खा जा सकता है आप च ड़या घर म जाके यह भली भां त समझ म आ जायेगा हाथी बड़ा भारी ाणी है पर तु उसक कृ त बड़ी शांत
है और य द तुम सह या बाघ के पजड़े क और जाओ तो दे खोगे क वो बड़े चंचल है इससे समझ म आ जाता है क आहार का तारत य
कतना भयानक प रवतन कर दे ता है हमारे शरीर  के अ दर जतनी श कायशील है  वो आहार से पैदा यी है।

योग को अ हसा का आव यक त व ब ाने वाले ववेकानंद इसक वकालत तो करते ह ले कन न वो इसे अपने जीवन म उतारते ह आना
सर को इसे अपनाने पर जोर दे ते ह अ पतु इसके व ध उपदे श दे ते ए कहते ह क यद संसार म जीना है तो मांस खान चा हए।
वामी व ानंद सर वती के श द म य द कह तो वामी ववेकानंद उस मील के प थर क भांती थे जो रा ता तो जानता है ले कन उस पर
चला कभी नह

राजयोग के बारे म वामी ववेकानंद लखते ह क यम नयम आसन ाणायाम याहार धारणा  यान और समा ध ये राजयोग के
व भ अंग या सोपान ह।यमका अथ है अ हसा स य अ तेय   चय औरअप र ह । इस यम से च शु ध होती है। शरीर मन और
वचन के ारा कभी कसी ाणी क हसा न करना या उ ह लेश न दे ना – यह अ हसा क ताला है/ अ हसा से बढकर और धम नह ।
मनु य के लए जीव के त यह अ हसा  भाव रखने से अ धक और कोई उ चतर सुख नह है

ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 101

जो योगी होने क इ छा करते ह और कठोर अ यास करते ह, उ ह पहली अव था म आहार के स बंध म कुछ वशेष सावधानी रखनी
होगी । जो शी   उ त करने क इ छा करते ह , वे य द कुछ  केवल  ध और अ आ द नरा मष भोजन पर रह सके तो उ ह साधना म
बड़े सहायता मलेगी।

“ याहार  और धारणा” ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 88

सभी नी त सं हता म एक ही भाव भ भ प का शत हो आ है और वह है – सर का उपकार करना। मनु य के  , त सारे 


ा णय के त दया ही मानव जाती के सम त स कम का पथ दशक ेरक है

मनु य  का यथाथ व प

ववेकानंद सा ह य भाग -2, पृ 15

सवशा पुरानेशु ास य वचन यम।


परोपकरा तु पु याय पापाय परपीडनम।।

सब शा और पुराण   म ास के ये दो वचन ह – परोपकार से पु य होता है और परपीड़ा से पाप

ववेकानंद सा ह य भाग -2, पृ 337

अ हसा का सदा पालन करो

अमे रका म वामी जी ारा लखाया आ नारद भ सू का मु अनुवाद

ववेकानंद सा ह य भाग -3, पृ 292

मन क    श के  म वामी ववेकानंद कहते ह क “जो नै तक है वह संभवतः कसी ाणी या क हसा नह करेगा। जो मु होना
चाहे उसे अ हसक बनाना पड़ेगा। जसम अ हसा का भाव है उससे बढकर श शाली कोई नह है।  उसक उप थ त म न तो कोई लड़
सकता है और न झगडा कर सकता है हाँ वह जहाँ कह होगा वह उसक उप थ त मा से शां त और ेम उ त होगा सरी कसी व तु
क आव यकता नह है। उसक उप थ त म न तो कोई ु होगा न लडेगा। उसके सामने पशु – हसक पशु तक भी शांत रहगे

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 182

To every man, this is taught: Thou art one with this Universal Being, and, as such, every soul that exists is
your soul; and every body that exists is your body; and in hurting anyone, you hurt yourself, in loving
anyone, you love yourself. As soon as a current of hatred is thrown outside, whomsoever else it hurts, it
also hurts yourself; and if love comes out from you, it is bound to come back to you.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 389-90

 हर मनु य  को  यह श ा द जाती है क तुम उस व ा मा से एक हो अतः हर जीवा मा  तु हारी ही आ मा है हर शरीर तु हारा ही शरीर है
इस लए सर को चोट प ँचाना अपने ही को ही चोट प ंचाना है और सर को ेम करना अपने आप से ेम करना है

ववेकानंद सा ह य भाग -9, पृ 119

Upanishads condemn all rituals, especially those that involve the killing of animals. They declare those
all nonsense

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 452

उप नषद ारा सभी अनु ान क नदा वशेषकर उनक जनम पशु का वध कया जाता है। वे उन सबसे अनगल घो षत करते ह।
ववेकानंद सा ह य भाग -7, पृ 288

Sâttvika people are very thoughtful, quiet, and patient. They take food in small quantities, and never
anything bad.

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 519

सा वक कृती वाले अ यंत वचारशील तर एवम शांत कृ त के होते ह। वह मताहारी होते ह और कभी भी षत आहार हण नह
करते ह।

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 165

There is, however, only one idea of duty which has been universally accepted by all mankind, of all ages
and sects and countries, and that has been summed up in a Sanskrit aphorism thus: “Do not injure any
being; not injuring any being is virtue, injuring any being is sin.”

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 64

 सभी   युग म सम त  स दाय  और दे श के मनी षय ारा मा य य द क का कोई एक सावभौ मक  भाव रहा है तो वह है –
 परोपकार: पु याय पापाय परपीडनम  अथात परोपकार ही पु य है और सर को ःख प ंचाना ही पाप है

ववेकानंद सा ह य भाग -3, पृ 39

Certain regulations as to food are necessary; we must use that food which brings us the purest mind. If
you go into a enagerie, you will nd this demonstrated at once. You see the elephants, huge animals, but
calm and gentle; and if you go towards the cages of the lions and tigers, you nd them restless, showing
how much difference has been made by food. All the forcesthat are working in this body have been pro-
duced out of food

The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 136

भोजन  के स ब ध म  कुछ नयम आव यक ह जससे मन खूब प व रहे ऐसा भोजन करना चा हए तुम य द कसी अजायबघर म जाओ
तो भोजन के साथ जीव का या समब ध  है यह भली भां त समझ म आ जायेगा हाथी बड़ा भारी ाणी है पर तु उसक कृ त बड़ी शांत
है और य द तुम सह या बाघ के पजड़े क और जाओ तो दे खोगे क वो बड़े चंचल है इससे समझ म आ जाता है क आहार का तारत य
कतना भयानक प रवतन कर दे ता है हमारे शरीर  के अ दर जतनी श कायशील है  वो आहार से पैदा यी है
ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 46

Râja-Yoga is divided into eight steps. The rst is Yama — non-killing, truthfulness, non-stealing,
continence, and non-receiving of any gifts.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 137

राज योग आठ अंग म वभ है पहला है  यम अथात अ हसा स य असते ( चोरी का अभाव ) चय और अप र ह

ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 48

A Yogi must not think of injuring anyone, by thought, word, or deed. Mercy shall not be for men alone,
but shall go beyond, and embrace the whole world.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 137

योगी को चा हए क वह तन- मन- वचन से कसी के व ध हसाचार न कर।  दया मनु य – जा त  म ही आब ध ना रहे वरन उसके परे
भी वह जायेगी और सारे संसार का आ लगन कर लेगी

ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 48

Non-killing being established, in his presence all enmities cease (in others).

If a man gets the ideal of non-injuring others, before him even animals which are by their nature fero-
cious will become peaceful. The tiger and the lamb will play together before that Yogi. When you have
come to that state, then alone you will understand that you have become rmly established in non-
injuring.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 262

अ ह स त ायाम तस धौ वैर यागः

भीतर अ हसा के त त हो जाने पर उसके नकट सब ाणी अपना वाभा वक वैर – भाव याग दे ते ह

य द कोई अ हसा क चरम अव था को ा त कर लेता है, तो उसके सामने जो सब ाणी वभावतः ही हसक ह वे भी शांतभाव
धारण कर लेते ह उस योगी के सामने शेर और मेमना एक साथ खेलगे। इस अव था क ा त होने पर ही समझनाक क  तु हारा
अ हसा त ड त त हो गया है
ववेकानंद सा ह य भाग -1, पृ 178

Though all religions have taught ethical precepts, such as, “Do not kill, do not injure; love your neighbour
as yourself,” etc., yet none of these has given the reason. Why should I not injure my neighbor?

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 384

Therefore in injuring his neighbour, the individual actually injures himself. This is the basic metaphysical
truth underlying all ethical codes.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 1- Pg 385

The Shrutis say, When the food is pure, the Sattva element gets puri ed, and the memory becomes
unwavering”, and Ramanuja quotes this from the Chhândogya Upanishad.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 64

ु त कहती है ” आहार शु होने से च शु ध हो जाता है और  च   शु ध होने से भगवान् का नर तर मरण होता है”

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 38

The materials which we receive through our food into our body-structure go a great way to determine
our mental constitution; therefore the food we eat has to be particularly taken care of.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 65

 हम भोजन के ारा अपने शरीर म जन उपादानो को लेते ह वो हमारे मान सक गंध पर वशेष भाव डालते ह। इसे हम खा पर वशेष
सावधान रहना चा हए।

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 38

According to him, “That which is gathered in is Ahara. The knowledge of the sensations, such as sound
etc., is gathered in for the enjoyment of the enjoyer (self); the puri cation of the knowledge which gath-
ers in the perception of the senses is the purifying of the food (Ahara). The word ‘puri cation-of-food’
means the acquiring of the knowledge of sensations untouched by the defects of attachment, aversion,
and

delusion; such is the meaning. Therefore such knowledge or Ahara being puri ed, the Sattva material of
the possessor it — the internal organ — will become puri ed, and the Sattva being puri ed, an unbroken
memory of the In nite One, who has been known in His real nature from scriptures, will result.”

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 65

 रामानुज के मतानुसार ” जो कुछ आ त हो वही आहार है।  श दा द वषय का     ान  अथात  के  के लए भीतर आ त  होता है।
इस   व या भु त प ान क शु धी को आहार शु द कहते ह। इस लए आहार शु ध का अथ है – राग े ष और मोह से र हत होकर
वषय का ान ा त करना। अतएव  यह ान या आहार शु ध हो जाने से उस का स व पदाथ अथान अंतःकरण शु हो जाता है
और स व शु ध हो जाने से आनंदत पु ष के यथाथ व प का ान और अ व छ मृ त ा त हो जाती है

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 38

In the list of qualities conducive to purity, as given by Ramanuja, there are enumerated, Satya,
truthfulness; Ârjava, sincerity; Dayâ, doing good to others without any gain to one’s self; Ahimsâ, not in-
juring others by thought, word, or deed; Anabhidhyâ, not coveting others’ goods, not thinking vain
thoughts, and not brooding over injuries received from another.

The one idea that deserves special notice is Ahimsa, non-injury to others. This duty of non-injury is, so to
speak, obligatory on us in relation to all beings. As with some, it does not simply mean the non-injuring of
human beings and mercilessness towards the lower animals; nor, as with some others, does it mean the
protecting of cats and dogs and feeding of ants with sugar — with liberty to injure brother-man in every
horrible way!

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 67

रामानुज ने आतं रक शौच (शु ध)  के लए न न ल खत गुण को उपा व व प बतलाया है। 1. स य 2. सरलता 3. दया अथान
नः वाथ परोपकार 4. दान 5. अ हसा अथात मन वचन और कम से कसी क हसा न करना 6. अ भ या अथान पर   लोभ न करना
वृथा चतन और सरे ारा कया गए अ न के आचरण के नरंतर चतन का याग। इन गुण म से अ हसा वशेष यान दे ने यो य है। सब
ा णय के त अ हसा का भाव हमारे लए परमाव यक है। इसका अथ यह नह क हम केवल मनु य के त दया का भाव रखे और
छोटे जानवर को नदयता से मारते रह और न यही – जैसा कुछ लोग समझते ह क हम कु े और ब लय क तो र ा करते रहे ची टय
को श कर खलाते रह पर इधर जैसा बने वैसा अपने मानव बनचुओन का गला काटने के लए बना कसी झझक के तैयार रह।
ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 40

The cow does not eat meat, nor does the sheep. Are they great Yogis, great non-injurers (Ahimsakas)?
Any fool may abstain from eating this or that; surely that gives him no more distinction than to herbivo-
rous animals.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 68

 गाय मांस नह खाती और न भेद ही तो या वे ब त बड़े योगी हो गए अ हसक हो गए। ऐसा गैर कोई भी कोई वशेष चीज खान छोड़ दे
सकता है पर उससे वह घासाहारी पशु क अपे ा कोई वशेषता नह ा त करता।

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 41

The renunciation necessary for the attainment of Bhakti is not obtained by killing anything, but just
comes in as naturally as in the presence of an increasingly stronger light, the less intense ones become
dimmer and dimmer until they vanish away completely. (check instance of sacri ce of goat in Kali temple
by swami vivekanand – Ref- Vivekanand on himself)

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 72

भ  के  लए  जस वैरा य क  आव यकता होती है उसको  ा त करने के  लए  कसी का नाश करने क  आव यकता नह होती।
वह वैरा य तो  वभावतः ही आ जाता है।

ववेकानंद सा ह य भाग -4, पृ 47

The earlier Buddhists in their rage against the killing of animals had denounced the sacri ces of the
Vedas; and these sacri ces used to be held in every house.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 3- Pg 264

 पहले बौ ध ाणी हसा क नदा करते ए वै दक य के घोर वरोधी हो गए थे

ववेकानंद सा ह य भाग -5, पृ 158

According to Ramanuja, there are three things in food we must avoid. First, there is Jâti, the nature, or
species of the food that must be considered. All exciting food should be avoided, as meat, for instance;
this should not be taken because it is by its very nature impure. We can get it only by taking the life
ofanother. We get pleasure for a moment, and another creature has to give up its life to give us that
pleasure. Not only so, but we demoralise other human beings. It would be rather better if every man
who eats meat killed the animal himself; but, instead of doing so, society gets a class of persons to do
that business for them, for doing which, it hates them. In England no butcher can serve on a jury, the idea
being that he is cruel by nature. Who makes him cruel? Society. If we did not eat beef and mutton, there
would be no butchers. Eating meat is only allowable for people who do very hard work, and who are not
going to be Bhaktas; but if you are going to be Bhaktas, you should avoid meat. Also, all exciting foods,
such as onions, garlic, and all evil-smelling food, as “sauerkraut”. Any food that has been standing for
days, till its condition is changed, any food whose natural juices have been almost dried ups any food
that is malodorous, should be avoided.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 4- Pg 4-5

 रामानुजम के  अनुसार हम आहार के तीन दोष से बचना चा हए।  तो जा त  दोष अथात आहार के वाभा वक गुण या क म क और
यान दे ना चा हए। सभी   का व तु का उदाहरणाथ मांस आ द का प र याग करना चा हए यो क ये वभावतः ही अ व व तुएं ह .
सरे का ाण लेकर ही हम मांस क ा त होती है। हम तो णमा के वाद सुख पते ह पर उधर सरे जीवधारी को हम यह णक
वाद सुख दे ने के लए सदा के लए अपने ाण से हाथ धोना पड़ता है। इतना ही नह हम सरे मनु य का भी नै तक अधोपतन करते ह।
अ छा तो यह होता क येक मांसाहारी वयं ही ाणी वध करता।

मांसाहार का अ धकार उ ही को है जो ब त क ठन प र म करते ह और ज ह भ नह बनाना है। पर य द तुम भ होना चाहते हो तो


हमको मांस का याग करना चा हए

ववेकानंद सा ह य भाग -9, पृ 4-5

According to Shankarach. When pure food is taken, the mind is able to take in objects and think about
them without attachment, jealousy or delusion; then the mind becomes pure, and then there is constant
memory of God in that mind.

It is quite natural for one to say that Shankara’s meaning is the best, but I wish  to add that one should
not neglect Ramanuja’s interpretation either.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 4- Pg 7

शंकराचाय के मतानुसार जब आहार शु ध होता है तभी मन अनास और इ या मोह से र हत होकर पदाथ को हण करने और उन पर
वचार करने म समथ हो सकता है। तब मन शु ध हो जाता है और ऐसे मन म ही इ र क सतत मृ त जा त रहती है

यह सोचना वाभा वक  है क शंकराचाय का अथ ही सब अथ ◌ंईएण े है पर तु फर भी यहाँ पर म एक बात और कह दे ना चाहता ँ


क हम रामानुज के अथ क भी अवहेलना नह करना चा हए
ववेकानंद सा ह य भाग -9, पृ 7

Although it partially succeeded in putting down the animal sacri ces of the Vedas, it lled the land with
temples, images, symbols, and bones of saints.

–          The complete work of Swamee Vivekanand, Vol – 4- Page -307

 शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव क शरीर संरचना म अंतर

वामी ओमानंद जी शाकाहारी और मांसाहारी जीव के शरीर क रचना म अंतर बताते ए लखते ह क व तुतः मांस मनु य का भोजन
है  ही नह   मनु य क  शरीर क  रचना भी मांसाहार  ा णय क  शरीर क  संरचना से पूणतया  भ  है।  मांसाहारी जीव ाय रात को
जागते  और दन म आराम  करते ह जबक शाकाहारी दन म जागते ह और रात म आराम करते ह। मांसाहारी अपना भोजन बना चबाये
नगल जाते यह ले कन शाकाहारी अपना भोजन चबा चबा के खाते ह। मांसाहारी सर को मारकर खाते ह  जब क शाकाहारी दयाभाव
से आवृत होते ह।मांसाहा रय  को  अ धक प र म के समय थकावट शी होती है और अ धक थक जाते ह जैसे शेर चीता भे ड़या आ द
मांसाहारी एक बार पेट भरकर खा लेते ह और फर एक स ताह व इससे भी अ दक समय तक कुछ भी नह खाते सोये पड़े रहते ह।
जब क मनु य अनेक बार खाता है घास और शक स जी खाने वाले ाणी दनभर चरते चुगते और जुगाली करते रहते ह। मांसाहारी जीव
के चलने से आहट  नह होती जब क शाकाहारी के चलने से आहट होती है। मांसाहारी ा णय को रात के अँधेरे म दखाई दे ता है अ  
और घास खाने वाल को रात के अँधेरे म दखाई नह   दे ता। मांसाहारी जीव क अंत ड़य क ल बाई अपने शरीर क ल बाई से केवल
तीन गुनी होती है जबक फलाहारी जीव क अंत ड़य क ल बाई अपने शरीर क ल बाई अपने शरीर क ल बाई से बारहगुनी तथा घास
फूस खाने वाले ा णय क अंत ड़यां उनके शरीर से तीन गुनी तक होती ह। मांसाहारी ा णय के ब चो क आँख ज म के समय बंद
होती ह जैसे शेर चीते कु े ब ले आ द के ब चो क । अ तथा शाकाहारी ा णय के ब च क आख ज म के समय खुली रहती ह जैसे
मनु य गाय भेद बकरी आअ द के ब च क । मांसाहारी जीव अ धक भूख लगाने पर अपने ब क को भी खा जाते ह जैसे स पणी  जो
ब त अ डे  दे ती है अपने ब च को अ ड   से नकलते ही खा जाती है। जो ब चे अ ड   से नकलकर इधर उधर छप  जाते ह उनके साप
का वंश चलता है। स जी खाने वाले  ाणी  चाहे मनु य हो अथवा पशु प ी भूख से तड़प कर भले ही मर जाव क तु अपने ब च क और
कभी भी बुरी ी से दे खते भी नह । ब ली बलाव से छपकर ब चे दे ती ह और इ ह छपाकर रखती है य द बलाव को ब ली के नर
ब चे मल जाएँ तो उ ह मार डालता है। मादा ब च   को छोड़ दे ता है। शाकाहारी ा णय  म  न माता ब च को मारता है न ब चे माता
पता को मार कर खाते ह

इससे न कष यही नकलता है क   मनु य क शरीर क रचना तथा उपयु गुण कम वभावानुसार मनु य का वाभा वक भोजन मांस
कदा प नह   हो सकता य क मनु य के शरीर क रचना भी उन ा णय से मलती है जो  अ फल शाक आ द खाते ह जैसे ब दर
गो र ला आ द क तु मांसाहारी े चीते भे ड़या  आ द से नह मलती

मनु य क शरीर रचना का अ ययन करने से ात होता है क मनु य मांस भ क ाणी नह है पर तु ववेकानंद ने न जाने यूँ इस त य को
ना समझा  और वयं मांस भ ण करते रहे और करने का उपदे श भी दे ते रहे, मांस भ ण से ना तो शारी रक उ ती होती है ना ही
आ मक व तुतः यह तो पतन का कारण  है इसक वजह से शरीर को ना जाने कतने असा य रोग घेर लेते ह। पशु तो भ ण यो य पदाथ
ही खाता है प तु मनु य को सव भ ी बन गया है। महान कवी मैथली शरण गु त ने ठ क ही कहा है –

केवल पतंग वहंगाम म  जलचर म नाव ही

भोजनाथ चतु पद म  चारपाई बच  रही


आज का मानव आकाश म उडनेवाले तीर बटे र कबूतर आ द सभी ा णय का भ ण कर जाता है बस उड़ने वाली व तु म  केवल
पतंग बची है और जल म रहने वाले मेडक  और मछली म मनु य सभी को चाट कर जाता है जलचर म  केवल नाव बची है। चौपाय म
 गाय बकरी भस सभी को मनु य अपना ास बना लेता है यहाँ केवल चारपाई बची यी है

वामी जगद रान द सर वती लखते ह क पं डत गु द व ाथ को रात दन अ य धक क स करने से य रॊग हो गया। डॉ टर ने


उ ह मांस का वान करने क स म त द । पं डत जी ने पूछा – मांस का सेवन कर म अ छा हो गया तो या फर कभी  नह म ँ गा? या म
 अमर हो जाऊँगा? या आप यह गारंट दे सकते ह? डॉ टर ने कहा क यह तो व ास तो नह दलाया जा सकता। पं डत जी ने कहा
अ छा अमरता क बात छोड़ो या आप यह गारंट दे सकते ह क मुझे पुनः कभी य रोग नह होगा? डॉ टर ने कहा क हम यह गारंट
भी नह दे सकगे पं डत जी ने कहा अ छा तो यह गारंट तो न त प से दे रहे ह गे के मांस खाने से मेरा य रोग र हो जाएगा।
डॉ टर ने कहाँ पं डत जी यह गारंट भी नह दे जा सकती। तब पं डत जी ने कहा क वै दक धम म मांस खाना सबसे बड़ा पाप है। म
मांस खाकर सबसे बड़ा पाप क ँ और मुझे अमरता क अथवा पुनः य न होने क या पूण व थ हो जाने क गारंट भी नह मलती तो
म यह पाप करने के लए तैयार नह ँ।अह है वै दक धम का आदश

ऐसा ही अदाहरण बनाड शा  के जीवन म मलता है उ ह भी च क सक ने उ ह भी मांस सेवन क स म त द थी तब उ ह ने उ र दे ते ए


कहा था क मेरी तथी गंभीर है। मुझे कहा जाता है क गौ मांस खाओ तुम जी वत रहोगे। इस रा सपन क अपे ा क अपे ा मृ यु
अ धक उ म है मेने अपनी वसीयत लख द है। मेरी मृ यु पर मेरी अथ के साथ वलाप करती गा ड़य क आव यकता नह है। मेरे साथ
बैल भेड़ मुग और जी वत मछ लय का चलता फरता घर होगा। इन सभी पशु और प य के गले म सफ़ेद प े ह गे उस मनु य के
स मान म जसने अपने साथी ा णय को खाने क अपे ा मरना उ म समझा। हजरत नुह क नुअक को छोड़कर यह य अ धक
उ म और मह वपूण होगा

“My situation is soleman one. Life is offered to me on condition of eating beef steaks. But death is btter
than cannibalism. My will contains directions for my funeral which will be followed not by mourning
coaches, but by oxen sheep ocks of poultry and a small travelling aquarium of live sh all wearing white
scars in hounour of the man who perished rather than eat his fellow creatures. It will be with the excep-
tion of Noah’s ark, the most remarkeable thing of the kind seen.

वामी ववेका दं ने शायद यह ना सोचा होगा क उन ा णय म भी हमारी तरह ही आ मा का वास है, उ ह भी हमारी तरह सुख ःख का
अहसास होता है। जब हम थोड़े से दद से इतने चीख पड़ते ह तो फर उन जीव पर या गुजराती होगी जनक गदन को ू रता पूवक र
पपासा शांत करने के लए काट दया जाता है और वह बचारा मांसाहा रय क उदार पूत के लए तड़प तड़प कर ाण यागने पर
मजबूर हो जाता है। मनु य उन ा णय क उस न तडपन को दे ख सकता है ना ही उन चीख को सुनने क उसके अ दर श होती है यही
कारण है क वह यह काय करने के लए एक म य थ कसाई को चुनता है। यद हर मांसाहारी वयं मारकर मांस ा त करने लगे काफ
लोग तो मांस खान ही छोड़ दगे यूं क हर मांसाहारी उस वीभ सता का सा ी नह बन सकता। इस संसार के सम त ाणी चाहे वो प ी
ह या जलचर या थलचर सभी अपने भ याभ साम ी को भली भांती पहचानते ह। जो शाकाहारी जानवर ह वह मांस क तरफ दे खते
भी नह ह और जो मांसाहारी ह वह घास फूंस से कोई मो ह नह रखते केवल मनु य ही ऐसा ाणी है जो सव भ ी बना आ है और
पशु को मार मार कर अपने पेट को क तान क सं ा दे द है। रा ीय कवी मैथली शरण गु त ने बड़ा सु दर लखा है –

वीरा वा हसा म रहा जो मूल उनके ल य का

कुछ भी वचार उन नह है आज भ याभ का


अथात जो अपने श ु का वध यु ध म करके अपनी वीरता दखाते थे आज वे भ याभ का कुछ वचार न करके नद ष ा णय को
मारकर अभ य भोजन करने के लए ही अपनी वीरता का दशन करनेम े ताc का पदशन करते ह

दयानंदक वचारधारा

वामी दयानंद का दय ाणी मा पर दया से आ ला वत था। उ ह ने उन पर ाण आघात करने वाले मानुष को जीवन भर माफ़ कया।
जानते ए अपने ाण घातक को, जसने उनक जीवन लीला ही समा त कर द , ऋषी  ारा
जीवन दान दे कर भाग जाने के  लए कहना दया क  एक पराका ा ही कही जा सकती है . यही महापु ष  का ल ण
है क  वे समाज से लेन े क  अपे ा दे ते ब त अ धक ह न उ ह यश क   चता होती है ना मान स मान व राजपाट
क  उनके जीवन का एक ही  येय होता है  ाणी मा  क याण  सच ही कहा है क  परोपकाराय इदं  शरीरं और  महष ने इस  कथन को
च रताथ कर दया। संत  के  के बारे म लखते ए गो वामी तुलसीदास जी लखते ह क उनके दय क तुलना  से करना ठ क नह है   
संत का दय तो म खन से भी अ धक कोमल होता है  म खन तो खुद को ताप लगने पर पघलता है जब क संतो का दय तो सर के
ख को दे ख कर ही वत हो    है जाता है।

संत दय नवनीत समाना कहह क वन  पर मरम ना जाना

नज  प रताप व ह नवनीता पर ख व ह जे संत पुनीता

ऋषी ने समाज म फल  फूल  रही इस वषम कुरी त को समझा और मनु य को  ा णय क र ाथ उपदे श भी दया वामी जी ने वेद म
ा णय का  संर ण क  इ र क  आ ा  और इस हेतु वेद एवं  मनु ारा तपा दत धम अधम से भी अवगत कर ाणीय के जीवन
र ाथ रलभ यास कये। दयानंद सर वती ने इस हेतु गौका ना न ध लभ थ भी हम दान कया तथा स याथ काश म भी इस हेतु
ान दया

वामी दयानंद के  मांस भ ण पर वचार

1 वामी दयानंद सर वती का दय दया क णा  से अ यनत आ ला वत था। वामी दयानंद सर वती पशु से मनु य को ा त होने वाले
उपकार को दयां म रखते ए कहते ह क “भला जन के ध आ द खाने पीने म आते ह वे माता पता के सामान माननीय य न होने
चा हए?”   ऋषी के दय म पशु के त स मान धा मक भावना का न केवल श द ब क वहार और साम जक जीवन म एकरसता
का दशन है।

2. वामी दयानंद सर वती जीव ह या को महापाप क सं ा दे ते ह क      जब एक आदमी क हा न करने से चोरी आ द कम पाप म गनाते
हो तो गौ आ द पशु   को मार के ब त क हनी करना महा पाप  य   नह ।

वेद उप नषद आ द आय सा ह य म त त इस सामान वहार और परोपकार धम क ा या करते ए ासमुनी भी   कहते ह :

न त पर य संद यात तकुलम यदा मनः

एष  सं ेपतो धमः कामादा य: वतते . महाभारत अनु। 113/6


   मनु य ऐसा वहार  के   करे को वयं अपने को तकूल और खद जान पड़े यही सब धम और नी तय का सार  है

ऋषी लखते ह क मांसाहारी म दया आ द उ म गुण होते ही नह कतु वे वाथ वश होकर सरे क   करके अपना  योजन स ध करने
म ही सदा रहते ह

3. जस जस वहार से सर क हाने हो वह वह अधम और जस जस वहार से उपकार हो वह वह धम कहता है तो लाख के सुख


लाभ  पशु का नाश करना अधम और उनक र ा से लाख को सुख प ंचाना धम य नह मानते?

वामी जी   क रद शता  दे खये  क  मांस भ ण से होने वाले प रणाम  से सावधान    करते ए  लखते ह क हे मांसाहा रय ! तुम
लोग जब  कुछ काल के    प ात् पशु न मलगे  तब मनु य   का मांस  भी छोड़ोगे वा नह

काश  हमने वामी जी क बात को समझकर वहार  म उतारा होता तो आज नठारी जैसे मानव मांस भ ण के    दन ना   दे खने पड़ते

पशु के गले  छु र    से काटकर जो मनु य अपना पेट भर  सब संसार क हा न करते ह या संसार  म उनसे भी अ धक कोई कोई
व ासघाती अनुपकारी ःख दे ने वाले और पापी जन ह गे ?

ऋषी जीव र ा के लए यजुवद म उ ले खत परमा मा क आ ा उ रत करते ह क – ( अघ या य माना य पशुं पा ह ) हे पु ष तू इसं


पशु को कभी मत मार और यजमान अथात सब के सुख दे ने वाली जानो के संबंधी पशु क र ा कर जस से तेरी भी र ा यूरी होवे
और इसी लए ा से लेकर आज पय त आय लोग पशु क हसा म पाप और अधम समझते ह और अब भी समझते ह।

पशु के वध को घोर अ याय घो षत करते ए ऋषी लखते  ह    क  सवश मान जगद र ने इस ृ म जो जो पदाथ बनाए ह वे
न योजन नह क तु एक एक व तु अनेक अनेक योजन के लए रची है इस लए उस से वे ही योजन लेना याय अ यथा अ याय है

ऋषी कहते ह क भैरव आ द के न म से भी मॉस खाना मारना व मरवाना महापाप कम है। इस लए दयालु परमे र ने वेद मं मांस खाने
वे पशु आ द के मारने क वधी नह लखी। इसीसे समझ ली जये क

इ र का अ भ ाय उनके मारने म नह    कतु  करने म है। ऋषी मनु का  माण दे ते ह

अनुम ता  वश सता  नह ता  य  व यी

सं कता चोपहता च खादक े त  ाताका . मनु 5/51

अथ – अनुम ता = मारने क  आ ा दे न,े मान के काटने , पशु आ द के मारने उन को मारने के  लए लेन और बेचने
मांस के पकाने परसने और खाने वाले आठ आठ मनु य घटक  हसक अथात ये सब पाप कारी ह

ऋषी केवल  हसा का  वरोध ही नह   द शत करते अ पतु पशु र ा के  लए उपदे शत करते  ए  लखते ह क  हे धा मक स जन  आप
इस पशु क  र ा तन मन और धन से  य नह  करते? हाय बड़े शोक क  बात है जब हसक लोग  बकरे आ द
पशु और मोर आ द प य  को मारने के  लए ले जाते ह तब वे अनाथ तुम हम को दे ख के राजा और  जा पर बड़े शोक  का शत
करते ह अक  दे खो हम को  बना अपराध बुर े  हाल से मारते ह और हम र ा करने तथा
मारने वाल  को भी  ध आ द अमृत पदाथ दे न े के  लए उप थत रहना चाहते ह और मारे जाना नह  चाहते।
दे खो हम लोग  का सव व परोपकार के  लए हाई और हम इसी लये पुकारते ह क  हम को आप लोग बचाव। हम तु हारी भाषा
नह  जानते नह  तो  या हम म से  कसी को कोई मारता तो हम भी आप लोग  के स य अपने मारने वाल  को  याय  व था से फांसी 
पर न चढ़ावा  दे ते

महष स याथ काश के दशम समु लास म लखते ह क जो  लोग मांस भ ण और म पान करते ह उनके शरीर और वीयाद धातु भी
गधाद से षत होते ह। अनेक कार के म गंजा भांग  अफ म आ द जो जो बु का नाश करने वाले पदाथ ह उनका सेवन कभी न
कर और जतने अ सड़े बगड़े गधाद से षत अ छे कार न  बने ए और म मांसाहारी ले छ क जनका शरीर म मांस के
परमाणु ही से  पू रत है उनके हाथ का ना खाएं। जसमे उपकारक ा णय क हसा अथात जैसे एक गाय के शरीर से ध घी बैल गाय
उ प   होने से एक पीडी म कुछ कम चार लाख मनु य को सुख प ँचता है वैसे पशु को न मार न मारने द

ऋषी आगे लखते ह क जो उपकारी ह वे इनके बचाने म अ यंत पु षाथ कर जैसा क आय लोग ृ के आर भ से आज तक वेदो
री त से शंसनीय कम करते आये ह।  वैसे ही सब भुलो थ स जन मानुष को करना उ चत है

”  वषाद या ता म” स पु स का यही स धांत है क   से भी  वश से भी अमृत लेना। सुनो ब धुवाग तु हारा तन मन धन गाय आ द
क र ा प परोपकार म न लगे तो कस काम का है? दे खो परमा मा का वभाव क जसने सब व और सब पदाथ परोपकार के लए
ही रचे र खे ह वैसे तुम भी अपना तन मन धन परोपकार ही के अपण करो

वामी ववेकानंद क वचारधारा को उन लोग क तरह तीत होती है जो  ” ब म ला हर र ा नरहीम ( खुदा बड़ा रहम दल है) कहते
ए मूक ा णय के गले पर छु री  चलने म संकोच नह करते। कालाइल  ने इसे बड़े सु दर श द म कहा था क ” मनु य के जीवन का
ल य कम है वचार नह , चाहे वह कतना ही े यूँ न हो कतना ही उ म व ास हो जब तक वह वहार म नह आता तब तक क
काम का नह ।

स धा त का उतना मह व नह होता जतना वहार  होता है। जस कार पेड का अ छा बुरा होना उसके फल पर नभर करता है।
उसी कार मनु य अपने वहार से जाना जाता है। इस स दभ म उ के एक कवी ने बड़ी ही सु दर बात कही है –

खुदा के ब द को दे ख कर खुदा से मुन कर यी है नया

क ऐसे ब दे ह जस खुदा के वो कोई अ छा खुदा नह

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को पो षत करते वामी ववेकानंद और स य- December 1, 2013 भीमसेन शमा
ऋ व आय In "मांसाहार नषेध" March 6, 2017
January 12, 2014 In "IMP"
In "पाख ड खं डनी"

MEAT EATER VIVEKANAND

53 THOUGHTS ON “मांस भ ण और वामी ववेकानंद ऋ व आय”

Roshan Lal Arya


JULY 29, 2015 AT 10:27 AM

ध यवाद जी

आ द य भार ाज
SEPTEMBER 18, 2016 AT 6:38 PM

ान क पराका ा है यह लेख। आज इस लेख को पढ़कर यह अनुभू त ई मानो क सा ात् मह ष दयान द सर वती क शु , बु ,


स य ान क लेखनी पाख ड का ख डन कर उसका समूल नाश कर रही हो। लेखक को सह को ट णाम। आपका अभी हो।

Shekhar Pratap Singh


OCTOBER 26, 2016 AT 2:57 PM

वामी ववेकानंद ने मांस भ ण वा तव म कभी कया ही नह ।कैसे! जैसे महाभारत के यु म अजुन ने कसी को नह मारा।
कैसे!
अभी समझाता ँ–
ी कृ ण गीता के 18 वे अ याय के 17 वे ोक म अजुन से कहते ह,” जसम अहंकृत भाव नह है, जसक बु ल त नह है वो
स पूण ा णय ( यान दो-स पूण ा णय को) को मारकर भी न मारता है और न ही बंधता है।”
वही ी कृ ण गीता के 8 वे अ याय के 7 वे ोक म अजुन से कहते है,”तू सब समय म मेरा मरण कर और यु द भी कर (यानी
ह याय कर)।मुझम मन और बु अ पत करने वाला तू मुझे ही ा त होगा।”
उपरो ोक से ये सहज ही ात हो जाता है क हमारा शरीर या करता है इसका मु य आ या मक जगत म कुछ नह ब क
हमारा मन या करता है इसी का मू य है।इस लये अगर मन भगवान म लगा रहता हो तो चाहे कुछ भी करो (चाहे मांस
खाओ)आ या मक पतन हो ही नह सकता।
और ये म नह कहता ये बात तो वयं भगवान ी कृ ण ने गीता के 9 वे अ याय के 30 वे ोक म कही है,”अगर कोई राचारी से
भी राचारी मेरी अन य भ करे तो उसे साधू ही समझो।”इससे अगले ोक (9/31) म वही ी कृ ण फर कहते ह,”मेरे भ का
पतन नह होता।”

इस लये कहता ँ क वामी ववेकानंद मांस खाते थे या नह इसक ओर यान दे ने से कोई लाभ नह होगा।
य क मांस भ ण मेरे वामी ववेकानंद का कुछ बगाड ही नह सका जैसे जहर मीरा बाई का कुछ नह बगाड पाया था।
शंका नवारण के लये कोई भी whatsapp no.9568344790 पर message भेज सकता है।म को शश क ं गा शंका नवारण
करने क ।
Amit Roy
OCTOBER 29, 2016 AT 4:15 AM

शेखर ताप सह जी
आपको यह जानकारी दे क यहाँ हमारे साईट पर बना माण का कोई लेख नह डाला जाता रशव आय जी ने जो लेख म
लखा है वह माण के आधार पर है | सरी बात यह क गीता क आप बात कर रहे हो तो यह जान लो मूल गीता म मा ७०
ोक ह | और मूल महाभारत म १०००० ोक ह शायद | आज जब क मलावट करके लाख ोक से भी यादा हो गया है | म
यहाँ पौरा णक का खंडन नह करना चाहता य द खंडन करना शु कर तो कई सरे सं दाय के लोग फायदा उठाएंगे और जो
जानकार नह है उ ह अपने सं दाय म धमा त रत करगे जैसे जा कर नायक जैसे लोग इसका फायदा उठाते ह | आप हमारे
फेसबुक पेज पर मेसेज बॉ स म मेसेज कर | जवाब दे ने क को शश क जायेगी य द समय मला तो कसी भी एड मन के ारा |
ध यवाद

Shekhar Pratap Singh


JUNE 6, 2017 AT 8:49 AM

सारी नया जानती है क गीता म 18 अ याय ह और 700 ोक.


Amit Roy जी!
ये बात कल-परसो से नह चली क गीता म 18 अ याय और 700 ोक ह ब क सदा से चली आ रही है और ये भी अका
स य है क ये बात य क यो सदा सवदा ऐसे ही चलती रहेगी.
और ये बात तो गधे क बु म भी आ जायेगी क इस नया म सफ वही चीज टक सकती है जसम ताकत हो;श
हो. बना ताकत के कोई धारणा नह चल सकती.इसका मतलब यही नकलता है क यही बात स य है क गीता म 18 अ याय
और 700 ोक ह.और तु हारी 70 ोको वाली बात बलकुल अस य है.
रही बात खंडन करने क तो तुम मुझे सफ इतना बता दो क सरो क मा यता का खंडन करने वाले “तुम” कौन होते हो?
आय समाजी तो वयं अपनी ही जड काट रहे ह.कैसे!
अभी समझाता ँ– वामी दयानंद सर वती जी ने मू त पूजा का खंडन कया.ले कन दयानंद जी को गु कहने वाले आय
समाजी भी उनके इस खंडन को वीकार नह करते. य क आय समा जय के यहाँ भी दयानंद जी क त वीर जो क एक
तरह क “मू त” ही है मैने अपनी आँख से दे खी ह.
ये आय समा जय क मू त पूजा नह तो और या है???
लो हो गया खंडन.
आय समा जय से म ये पूछना चाहता ँ क जब कभी व दयानंद सर वती जी क त वीर दे खते ह तो उ ह कैसा महसूस होता
है?
तो इस का एकमा उ र यही हो सकता है क दयानंद जी क त वीर को दे खकर उ ह दयानंद जी का मरण होता है;व
महापु ष उनके मन-बु म आ वराजते ह.
ठ क इसी कार जब भगवान का भ भगवान क मू त को दे खता है तो उसे भी भगवान का मरण होता है.मू त पूजा का
यही सबसे बडा मह व है.और जब कभी हम लोग मू त पूजा के “इस” मह व को भूलकर भगवान को सफ मू त तक सी मत
कर दे ते ह तभी दयानंद सरीखे महापु ष का आ वभाव होता है.
अभी भी कोई संदेह हो तो मेरा ये No. याद तर लो–9568344790—शेखर ताप सह… वामी ववेकानंद का एक छोटा
सा भ .
Amit Roy
JUNE 7, 2017 AT 9:49 AM

Shekhar Pratap Singh जनाब


सबसे पहली बात जो हमने बताया वह बलकुल सही है उस पु तक को अब भी मांगा सकते हो जहा तक मुझे मालुम है |
यह कोई ज री नह क जो नया जो बाते जाने वह स य ही हो | चलो आपको कुछ उदाहरन दे ता म | सभी लोग जानते
ह क क़तुबमीनार को कुतुबुद न ऐबक ने बनाया मगर हक कत कुछ और है जनाब इसका नाम व ु त भ है | चलो एक
और उदाहरन दे ता जनाब लाल कला | इसे बोला जाता है स जहाँ ने बनवाया मगर इसे सहजहाँ ने नह बनवाया था |
चलो एक और उदाहरन दे ता ताजमहल का | बोला जाता है मुमताज महल के लए ताजमहल बनाया गया मगर यह शव
तेजो महालय है | शव मं दर है | तो इस तरह लोगो को गलत जानकारी होती है तो म या कर सकता | मेरा मकसद होता
है स य सबके सामने लाने का इस कारण हम स य को लाते ह स य को वीकार करना या ना करना यह लोगो पर नभर
करता है | चलो अब आपके ारा बताये गए गीता क बात करे | आपका बोलना है ७०० ोक और अ याय है | म
पौरा णक हसाब से ही सा बत कर ं गा क 18 अ याय और ७०१ ोक है | कृपया मुझे श ा दे ने क को शश ना कर
आप जतने पढ़ाई कर रहे हो उसे करके मने छोड़ दया | एक बात और जानकारी दे म कोई आय समाजी नह म खुद को
मनु य समझता और म राम कृ ण का वंशज होने के कारण खुद को आय बोलता | चलो गीता क ही बात कर रहे हो
७०० ोक वाली तो उसमे भी वेद क म हमा का गुणगान क गयी है तो फर वेद क शरण म य नह आते | गीता मृ त
रामायण पुराण सब वेद का अनुसरण करते ह तो वेद क शरण म य नह आते | आप अपने माता पता दे शभ सुभाष
च , भगत सह इ या द का घर म फोटो लगते हो तो इसका या मतलब क उनका पूजा करते हो | आप ववेकानंद का
भ बने रहो या रजनीश (ओशो ) का या रामपाल का हम कोई फक नह पड़ता | हम स य क जानकारी दे ते रहगे आपको
मच लगे तो हम कुछ नह कर सकते | स य हमेशा स य ही रहता है | और स य को वीकार करना सबके बस क बात नह
| ध यवाद

Shekhar Pratap Singh


JUNE 12, 2017 AT 10:20 AM

Amit Roy जी!


चील उडती तो ब त ऊँचाई पर है ले कन उसक नजर धरती पर पडे ए सडे मांस के टु कडो पर ही रहती है
उसी कार कुछ लोगो क “ ववेकानंद-सा ह य” म केवल वह -वह नजर जाती है जहाँ से म क आग नया म फैलाई
जा सके.
ये बात तो गधे क खोपडी भी समझ सकती है क ऐसा तो कभी हो ही नह सकता क “ ववेकानंद-सा ह य” म से जो
बात तुमने अपनी समझ क प ँच के कोण से पेश क ह व तो सब सही ह !ले कन “उसी” ववेकानंद-सा ह य म 🔰
फर से सुन लो “उसी” ववेकानंद-सा ह य म वामी ववेकानंद क “जो” महानता गाई गई है-भारत म ही नह , वदे शो म
भी!
“उस” महानता पर तु हारी नजर नह जाती!!!!!

चील उडी तो आकाश म ब त ऊपर


ले कन नजर गई मांस के ऊपर

या कर!
कुछ नह कर सकते…
वभाव है– वभाव.

अ छा अब आगे चलो…
तुम कहते हो क तुम वो पढाई छोड चुके हो जो म पढ रहा ँ. य भाई?
गीता आ द शा या बेकार क चीज ह जो तुमने पढनेे छोड दये?
गीता को अगर याद भी कर लया है तो भी ये समझ लो क गीता को याद करने से बात नह बनेगी.भोजन सामने रखा
है–ये बात सुनने या याद कर लेने से बात नह बनेगी ब क भोजन करने “से” बात बनेगी.

तुम कहते हो क गीता आ द तो वेद का ही अनुसरण करती है तो वेद को ही पढो ना!


तो इस बात का सीधा सा उ र एक उदाहरण से दे ता ँ–दे खो! पेड क जड म भी रस होता है,तने म भी रस होता
है,शाखा म भी रस होता है,प य म,फूल म भी रस होता है ले कन जो रस पेड के “फल” म होता है “उसक ” तो बात
ही अलग होती है.पेड क जड के रस म वो वाद नह आता जो “फल के रस” म आता है.उसी कार वेदो से हम वो लाभ
नह मल सकता जो लाभ वेदो के सार-गीता आ द से मल सकता है.

Amit Roy जी!


आप कहते ह–,” म आय-समाजी नह ; म एक मनु य ँ.”
तो या आय-समाजी लोग मनु य नह ह या?व पशु-प ी ह या?
मनु य तो हम “सभी” ह और सबका स मान करना ही मनु यता है.
हम सब मनु य ह.केवल इतना ही भेद है हमम क ई र तक प च
ँ ने के हमारे रा ते अलग-अलग हो सकते ह.
जैसे अलग-अलग न दय के रा ते ब कुल अलग-अलग होते ए भी व सब उसी एक समु म अपना जल मला दे ती
ह.ठ क वैसे ही नया के सारे धम हम ई र तक प ँचा सकते ह.ले कन हम लोग इस बात मानने क बजाय सरो म दोष
दे खने लगते ह.
या कर!चील का वभाव है मांस पर नजर रखना और उडान ब त ऊँची भरना.
वचार करो, व ास करो!
सरो म दोष दे खना वयं दोषी होने का “प का” माण है….
मेरे वामी ववेकानंद कहते ह–“अगर दन-रात यही चता लगी रही क ये या कह रहा है;वो या लख रहा है तो जीवन
म कोई भी महान काय नह कर सकोगे.”

Amit Roy
JUNE 15, 2017 AT 6:27 AM

या या लख दे ते हो महाशय जसका कोई मतलब ही नह था | यूं क आप मु े को घुमाने क बात करते हो |


जवाब दया तो चल कौवे क बात करने लगे | अब चलो आपक कुछ बातो का जवाब दे ते ह मगर जवाब दे ने से
पहले यह बतला आपक बाते कई बार ब चा जैसे होती है | च लए जवाब दे ता | और कृपया इतना ल बा कमट
ना करे जससे जवाब ना दया जा सके | छोटे छोटे कमट कर |
सबसे पहले जो लेख म लखा गया वह ववेकानंद जी क सा ह य से लया गया है और जो स य बात थी उसेक
जानकारी द हमने |

आपका बोलना है अ छा अब आगे चलो…


तुम कहते हो क तुम वो पढाई छोड चुके हो जो म पढ रहा ँ. य भाई?
अरे भाई कोई पढ़ाई छोड़कर आगे चला जाता है जैसे आपने जो 10 क ए जाम दया तो उसे ही बार बार दे ते हो या
10 को छोड़कर आगे बढ़ जाते हो वही बोला क हमने कब का गीता पुराण इ या द क पढ़ाई करके छोड़ दया और
अब इ लाम इसाई आ द क पढ़ाई कर रहे ह | और इसका मतलब नह क 10 का पढ़ा हो तो 10 क बाते आप भूल
गए हो | उसके बारे म आपको जानकारी होती है वह जानकारी हमारे पास है | थोड़ा बातो को समझने क को शश
करे जनाब |

एक उदाहरण से दे ता ँ–दे खो! पेड क जड म भी रस होता है,तने म भी रस होता है,शाखा म भी रस होता


है,प य म,फूल म भी रस होता है ले कन जो रस पेड के “फल” म होता है “उसक ” तो बात ही अलग होती
है.पेड क जड के रस म वो वाद नह आता जो “फल के रस” म आता है.उसी कार वेदो से हम वो लाभ
नह मल सकता जो लाभ वेदो के सार-गीता आ द से मल सकता है. अरे जनाब जब जड़ ही नह रहेगा तो पेड़
कहा से खड़ा रह पायेगा और ना उस पर फल ही होगा | आपके सवाल का जवाब दे दया हमने |

Amit Roy जी!


आप कहते ह–,” म आय-समाजी नह ; म एक मनु य .ँ ”
तो या आय-समाजी लोग मनु य नह ह या?व पशु-प ी ह या?
मनु य तो हम “सभी” ह और सबका स मान करना ही मनु यता है.

आय मतलब े | और म अभी े नह जो खुद को आय बोलू या आय समाजी इस कारण खुद को मनु य बोलता


| कोई भी मनु य होता है मगर वे खुद को मनु य ना बोलकर hindu बोलते ह इसाई बोलते ह मु लम बोलते ह
इ या द | और यह सब उनके थ बोलते ह क तुम इसाई बनो मु लम बनो का फर को मारो मलेछ को मारो | फर
मनु य कैसे | इस बात को समझो | केवल वेद ही सखाता है मनु य बनो |
खैर आपको हमारी बात समझ म नह आएगी यूं क स य को समझना सबके बस क बात नह |
यादा जवाब नह ं गा | ध यवाद

Shekhar Pratap Singh


JUNE 15, 2017 AT 7:03 AM

Amit Roy जी!


आप मुझे एक बात बताईये क “ ववेकानंद-सा ह य” म ववेकानंद जी क “जो” महानता जोर-जोर से गाई गई है
“उस” पर आपक नजर य नह जाती???????
इसका जवाब आप नह दगे. य क मनु य का अहंकार अपने खलाफ उसे बोलने ही नह दे ता.

Amit Roy
JUNE 16, 2017 AT 11:33 AM

अरे भाई जान जो जो अ छा काय करता है उसका हम स मान करते ह जैसे कलाम साहब ने दे श के लए ब त
कया तो उनका स मान करते ह मगर जहा पर वे गलत कये वहा पर उनका वरोध भी कया गया कां ेस और
बीजेपी इ या द पाट ारा | हम उनका स मान करते ह इसका मतलब यह नह क उनक मत का वरोध ना करे
| मोद जी ने काला धन के लए नोट बंद क इसका हम समथन करते ह मगर बक म पैसा जमा करने पर पैसा
काटना इस सब का वरोध करते ह जहा जो गलत करेगा उसका वरोध और अ छे काम म समथन | हम
ववेकानंद जी क उन कामो का समथन करते ह जससे दे श का उ ह ने स मान दलाया पूरा संसार म | मगर
इसका मतलब यह नह क उनक गलती को भी आँखे बंद कर वीकार कर ल | य द आप समझदार हो तो मेरी
बातो को अब समझ गए होगे उनक गलती का भी जानकारी लोगो को होना चा हए जससे लोग उनक गलती
से सख ले सके और आगे गलती करने से बच सके |ध यवाद |

Shekhar Pratap Singh


JUNE 14, 2017 AT 4:34 AM

Amit Roy जी!


आपक ये बात बलकुल स य है क ये ज री नह क जो बात नया जाने वो स य ही हो.
ले कन ये सीधी सी बात आपक बु य नह पकडती क–“जो बात नया सदा-सवदा जाने रहे-वो अस य नह हो
सकती.”
एक उदाहरण से समझाता ँ-
धरती के गु वाकषण बल के स ांत को नया सदा-सवदा जाने रहेगी;मेरे या आपके ज म से पहले भी जानती
थी,अब भी जानती है और हमारे मरने के बाद भी ऐसे ही जानती रहेगी.इसका मतलब ये ही नकल सकता है क ये
गु वाकषण का स ांत स य है;स य है;स य है.
ठ क इसी कार गीता के 18 अ याय और 700 या 701 ोको वाली बात सदा-सवदा ऐसे ही चलती रहेगी; मेरे या
आपके बकने से कुछ नह होता.अगर होता तो ये बात नया से न जाने कब क मट गई होती!
ले कन कुछ लोगो क समझ म ये बात आती ही नह .स य को वीकार करना सबके बसक बात नह है ना!
शूकर को कतना ही समझाओ क मल से े भी कुछ “है”.ले कन वो समझेगा ही नह . य क मल भ ण ही उसका
सव व होता है.वैसे ही मनु य म अपनी बु का इतना अहंकार है क वो अपने सामने कसी और को गनता ही
नह .और मनु य को उस बु का अहंकार है जो आधे घ टे पहले ई बात को भी भूल जाती है!!!!!!
कतना बडा आ य है ये!

 Rishwa Arya
JUNE 18, 2017 AT 2:21 PM

Suar ka udaharan aapka satya ho sakta hai.


Chalo aapje in shabdon ka to kya uttar den

Lekin vivekanand max muller ko sayan ka awtar mante the isake bare men aap kya
kahenge

Saurabh Tiwari
AUGUST 12, 2017 AT 5:40 PM

Mai aapse keval itna punchhta hu ki Kya aapko kisi bhi trah ki anubhuti prapt hui hai,jb ho
Jaye tb mujhe btana ki sree Ramakrishna dev and swami Vivekananda g ka level Kya
tha,keval itna jaan lo ki body zero hai aur man hi sb hai or man ke control se hi body ka con-
trol hota hai.
Amit Roy
AUGUST 14, 2017 AT 7:53 PM

इसका या मतलब मेरे बंधू Ramakrishna dev and swami Vivekananda g ka level Kya tha ??? या
आप राम जी कृ ण जी क तुलना ववेकानंद से कर रहे है ? आशय समझाए फर आगे चचा क जायेगी |

न तन
OCTOBER 23, 2018 AT 3:44 AM

पर sir , य कृ णा को माने वाले इन चीज़ से घृणा करते है।हनुमानजी के मं दर म भी खाने वाला मंगलवार का नयम नही बना
सकता।

ेम आय
JUNE 7, 2017 AT 5:09 PM

OM..
NAMASTE..
ववेकानंद KE AVIVEKI BHAKT- Shekhar Pratap Singh JI,
JISNE ANDAA-MAANS-MACHHLI KAA SEVAN KARTAA HO OH KAISE SWAMI ?! AUR USKI
ANDHE BHAKT KI VUDDHI BHI IS SW ADHIK AUR KYAA …..!
LAUTO VEDON KI OR….
AUR APNI AACHARAN SUDDH KARO…
DHANYAVAAD..

Shekhar Pratap Singh


JUNE 15, 2017 AT 6:30 AM

ेम आय जी!
गीता तक क बाते तो आपक खोपडी म आ नह रही और बात करते हो “वेदो क ओर लोट चलो” क !
मैन जो कुछ कहा गीता के आधार पर कहा इस लये स य कहा.अब इस बात को तु हारी खोपडी नह पकड पा रही तो इसम कौन
या कर सकता है!
तुम एक काम करो मेरी बात को कई बार पढो.शायद खोपडी म आ जाये!
तुम कहते हो मांस खाने वाला वामी कैसे हो सकता है!तो इसका सीधा सा उ र ये है क हलवाई मठाईय म रहता है ले कन
उनम आस नह होता; ल त नह होता.कमल क चड म धसा होता है ले कन उससे हर कोई ेम करता है.ऐसे ही ह मेरे वामी
ववेकानंद.पर उ ह तु हारे जैस क बु या समझेगी!
नीम का क डा रसगु ले को समझ ही कैसे सकता है?चाहे तो उसे हम रसगु ले म पूरा धसा द. फर भी वो रसगु ले को नह
खायेगा. य ! य क उसका interest तो कडवे नीम म है ना!
वैसे ही तु हारे जैसे लोगो का interest भी सर म क मयाँ ही क मयाँ दे खने म है.तुम जैसे लोगो के लये तो सफ एक ही उपमा
द जा सकती है क -“चील उडती तो ब त ऊँचाई पर है ले कन उसक नजर धरती पर पडे ए मांस पर ही रहेगी.ठ क वैसे ही तुम
जैसे लोग बात तो करते ह-वेदो क ;शास क ले कन काम करते ह सरो म क मयाँ ढूँ ढने का.
वामी ववेकानंद कहते ह-“जब म वयं म ‘इतनी’ क मयाँ होते ए वयं से ेम करता ँ तो सर म थोडी-ब त क मयाँ होने पर
उनसे ेम य नह कर सकता!”
े आय जी!

आप मुझे अ ववेक कहते ह ना!
ले कन मुझे उपदे श दे ने से पहले ये बात तो अपनी खोपडी म डाल ली होती क -“ सरो म दोष दे खना वयं दोषी होने का ‘प का’
माण है.”

Amit Roy
JUNE 16, 2017 AT 11:22 AM

आपने ेम आय जी से सवाल कया है इस कारण इसका जवाब वे ही दगे | वैसे जनाब यह बताये क या आप ववेकानंद का
अनुसरण कर रहे हो ? आप खुद ववेकानंद का भ बोलकर उनका अपमान नह कर रहे ? ववेकानंद या इस तरह का
जवाब दे ते ?

ेम आय
JUNE 17, 2017 AT 9:30 AM

ओ३म
नम ते।।
Shekhar Pratap Singh जी, आप पछले जनम म चील-कौवे ही थे शायद इसी लए आपको चील-कौवे क सं कार बार-
बार मरण म आती है और आपको यह सं कार सट क बैठती भी है ..खैर, छोडो इस स को।
सव थम आप यह बताओ क आपक आ था-मत-मजहब-स दाय या धम या है ? आप कस ई र-रब-अ लाह या गाड़
को मानते हो ? इसको न य ल कए बना आगेक चचा करना असंभव होगा। आपका हर संशय क समाधान कया जाएगा।
ध यवाद। .

Bravo
JUNE 17, 2017 AT 7:06 PM

शेखर ताप सह जी,

नम कार. आप कहते हो क हलवाई कभी मठाई म आस नह होता, य क वही उसका वसाय है. क चड म धसा कमल
सबको यारा लगता है. पर कमल का फूल टू ट कर क चड़ म गर जाये तो वो कसी को यारा लगेगा?

और जो गीता क आप बात करते हो, को कब आयी है बता सकते हो? और ये न कहना क वो कृ णा ने रणभू म पर कही थी.
य क, मेरा अगला सवाल होगा क गीता इतनी पुरानी है तो जैन या बौ ंथो म य उ लेख नह है, जब क महाभारत यु
दोन के ंथो म बताया गया है?

– ध यवाद्
Shekhar Pratap Singh
JUNE 18, 2017 AT 12:18 PM

Bravo जी!
अपनी बु म ये बात अ छे से बठा लो क गीता कोई पु तक नह है.गीता का मतलब है–अना द-स य का सं चत-
कोष.एक उदाहरण से समझाता ँ-जैसे ‘गु वाकषण का स ांत’ यूटन के बताने से पहले भी था और अगर आज हम
उसे भूल भी जाय तो भी ये स य ही रहेगा.इस लये गीता का अथ कोई पु तक नह ब क अना द-स य का सं चत कोष
है.इस लये गीता कभी आई नह ;इसे तो भगवान ी कृ ण ने महाभारत के यु के समय कट मा कया था.ये तो अना द-
स य का सं चत-कोष है.
और जैन या बौ धम के थो क जो आप बात कर रह ह तो जो बात उन थो म लखी ह सफ व ही स य ह या???
बारीक-बु लगाओ-कमल का फूल अगर क चड म गर जाये तो उसक सुंदरता न हो जाती है.ले कन वामी ववेकानंद
क महानता तो य क य है और सदा-सवदा बनी रहेगी.इसका मतलब यही नकलता है क वामी ववेकानंद को
समझने म भूल ई है.और हो भी य ना!लौ कक-बु अलौ कक-व तु को समझ ही नह सकती.जब आँख सुनने का
काम नह कर सकती,कान दे खने का काम नह कर सकता तो फर लौ कक- अलौ कक-महापु ष को समझ ही
कैसे सकता है???
Nursury class का ब चा PHD Class क बात नह समझ सकता.

Amit Roy
JUNE 18, 2017 AT 1:31 PM

iska jawab bravo ji hi denge sawal unse hai… main koi jawab nahi dunga….waise aapko
jaankaari de du janab geetaa kaa updesh geetaa ke aadhaar par bhi pahle surya dev ko diya
gaya thaa aur mahabhart ke yudh ke samay me arjun ko diya gaya… kripya pahle geeta to
theek se parhe janab…. r charchaa kare…..

Bravo
JUNE 18, 2017 AT 2:02 PM

शेखर ताप सह जी,

नम कार! आपने स य कहा क नसर लास का ब चा पीएच.डी क बात नह समाज सकता। यही आप पर लागु होता
दख रहा है।

कसने कहा क गीता अना द कोष है। मुझे ऐसी कोई पांचवी सद से पहले क पु तक दखाइए जसमे गीता का उ लेख
हो, तो बात मन सकते है। मने पंचतं , चाण य नी त और कई सारी पु तके दे ख है। यहाँ तक क का लदास क पु तक
म भी गीता का उ लेख नह है। आप २-५ पु तके पढ़ कर वयं को ानी स करने का यास करते हो, मने माण मांगे
है वो तो तुत करो।

म ये नह कह रहा क जैन और बु पूणतः स य है, अ पतु उनक पु तक म वेदो के बारे म लखा आ मलता है।
महाभारत और रामायण भी उनके पु तक म है। अगर गीता इतना मह वपूण है तो दोन भी धम के ंथो म य नह है,
य क गीता उस समय पर बनी ही नह थी। और आप कृ ण को भगवान कहते हो, तो जैन शा के अनुसार कृ ण नक
म जाते है। अगर गीता का उस समय अ त व होता और अवतारवाद होता, तो जैनो को सूली पर चढ़ाया जाता था।

और कमल वाली यही बात आप नह समझोगे, क अ छा मनु य भी अगर कुरी त का आचरण करता है तो उसे भी
स मान के यो य नह मानना चा हए। अगर कोई बहोत बड़ा पं डत भी अपने वाथ के लए कसी क ह या करता है तो
अपना स मान खो दे ता है।

मुझे पता है क आप नह समझोगे और पुनः कोई अ ानतापूण वतक अव य ही लाओगे। आपके पास कोई त य हो
उतना ही उ र दे ना अ यथा वतक तो हर कोई दे ता है।

– ध यवाद्

PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 5:13 PM

गीता महाभारत का नवनीत :


लेखकः ी बी.के. ीवा तव स भागीय लेखा धकारी (से. न.) रायपुर भारत (JULY 21, 2016)

ीम गव ाीता का भारतवष के पौरा णक व ान म ब त मा य है। भारत के स व ान एवं स दाय आचाय


( ै त अ ै त षु ा ै त व ष ा ै त ) ने अपने अपने कोण के अनुसार अनेक कार के भा य गीता पर कये ह। सभी
पौरा णक ट काकार जो गीता के समथक रहे ह उनको गीता के कृ ण ई वर के अवतार के प म मान रहे ह। अतः
उ ह गीता के अ दर कुछ भी त या अ वाभा वक गोचर नही आ। य क गीता उनके लए व तुतः
‘ ीम गव ता’ ( ीमान भगवान व णु यानी उनके अवतार कृ ण के ारा गाई गयी – कही गई ही थी ) इस वषय म
एक कथा भी च लत है क महाभारत का यु आर भ होने से पहले अजुन अपने ब धु-बा धव के मोह मे फंसकर
यु से वमुख हो गया था। उसे समझाने के लए ही कृ ण ने जो उपदे ष दया वही गीता के प म स आ है।
इसी आधार पर गीता को वेदा द षा से अ धक मा यता द जाती है।
गीता के मह व वषयक न न लोक स भी हैः-
गीता सुगीता कत ा कम यै षा व तरै।
या वयं पदमानाभ य मुखपदमाह व नःसृता।
अथ- गीता क ठ क से चचा करनी चा हए, अ य षा के व तार से या योजन। गीता वयं व णु (कृ ण)के मुख
से नकली है।
इस लोक का प नाभ ष द गीता को वेदो से उ म बताने का य न करता है। व णु के ना भ से कमल नकला
कमल से हा उ प ए और हा के मुख से वेदो का ज म आ। इस कार वेद का हा से पर परा स ब ध है
जब क गीता वयं उ ह के मुख से उ चा रत है। इस बात को इसी प मे मान लया जाये तो गीता का रचना काल
ापर स होता है। आधु नक व ान क भाषा मे कहा जाये तो गीता का रचना आज से पांच हजार वष पहले ई ।
पर तु य द बु का थोड़ा सा योग करते ए यानपूवक महाभारत का अ ययन कया जाये तो कोई भी इस न कष
मे प चे वना नही रहेगा क गीता का न तो ीकृ ण से कोई संबंध है, न ही ास मु न महाभारत से , ब क यह सवथा
का प नक है- इसके कई कारण है।
PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 5:15 PM

गीता और ी कृ ण
(अ) ऐ तहा सक से दे खा जाये तो कसी भी समय प ब बातचीत का चलन इ तहास मे स नही होता। अतः
गीता वयं प नाभ व णु के मुख से नकली यह तो कसी कार कहा ही नही जा सकता। हां यह हो सकता है क कसी
अ य ने कृ णाजुन संवाद ही गीता का वतमान प दया हो।
(आ) य द यह भी मान लया जाये क गीतो कृ णाजुन संवाद प ब न होकर ग मे ही आ था, बाद मे कसी अ य
ने ग मे भाव को प ब प दे दया तो यह भी नही माना जा सकता य क यु भू म मे इतना समय कहां था
क 700 लोको का वातालाप चलता रहता जसमे क कम से कम चार घ टे यानी क लगभग सवा हर से कम का
समय नही लग सकता था।
(इ) गीता का कथानक ार भ होता है महाभारत यु के पूव से। अब य द यु के पहले दन क घटना पर यान दे तो
मालुम होता है क गीता के इतने ल बे और उबाऊ उपदे ष के लए समय ब कुल नही था य क दोनो सेना ने सं या
हवन करके ूह रचना क । कौरव सेना क ूह रचना दे खकर यु ध र घबरा गये। अजुन ने उ ह भां त भां त के
आ वासन दे करषा त कया। फर अजुन तमोह और गीता का ल बा उपदे ष चला । अजुन के तैयार हो जाने के बाद
यु ध र यु क अनुम त लेने के लए पतामह भी म, आचाय ोण, कृपाचाय तथा ष य नरेष के पास गये। बाद मे दोनो
सेनाओ ने दो हर तक यु कया।
यहां यान रखने यो य तथ यह है क महाभारत का यु अगहन-पूष मे आ था जब क दन ब त ही छोटा होता है-
लगभग सवा तीन हर का । इसमे से यु के दो हर नकाल दए जाये तो सवा हर ही बचता है। जो सं या हवन जैसे
आव यक कम करने, अपनी अपनी सेना के ुह रचना करने , कौरवो क ूह रचना दे खने यु ध र के घबरा जाने,
अजुन ारा उ ह भां त भां त के आ वासन दे कर उ ह समझाने व षा त करने पतामह भी म व अ य आचाय जन के
पास यु के लए अनुम त लेने हेतु जाने वहां से लौटकर आने आ द कम के बाद षेष समय तो गीता जैसे ल बे उपदे ष
के लउ कतई पया त नह ।
गीता और मह ष ास
पर तु न न तक और माण मह ष ास को भी गीता का रच यता नही मानने दे ते ।
(अ) गीता को गहराई से दे खने पर प तीत होता है क गीता मह ष ास क रचना नही है। य क जस मह ष ास
के महाभारत का गीता नवनीत बतीई जाती है वह एै तहा सक महाका है। जसने कौरव पा डव और उनके पूवज ,
ब धु-बा धव , इ म , स ब धय आ द सभी के जीवन मरण यष अपयष, उ थान पतन, कुषल अकुषल अ छे बुरे
सभी काम का वसद वणन है, पर तु गीता के 18 अ याय म थम अ याय के कुछ लोक को छोडकर सेष स पूण
गीता ऐ तहा सक घटना म से र हत दाष नक उहापोह से भरी पड़ी है जैसे आ मा क अमरता, ानयोग, कम
सं यासयोग, यो नय क प रभाषा, य का वणन, सकाम- न काम कम का ववेचन, यान योग कार,योग लोग
क ग त, दे वता उपासना, दे वी व आसुरी स दाय वाल क ववेचन ,षु ल व कृ ण माग, जगत क उतप का वणन,
सकाम न काम, उपासना का व लेपण, न काम कम क षंसा, व व प दषन, साकार उपासना क षंसा, कृती
पु ष क ा या, जीवा मा क ववेचना, संसार वृ का कथन, स व रज तम का ववेचन, ी कृ ण ही परमे वर है, वह
ओमवाची ह, य से भी केवल वही ा त ह, वेद म भी उ ह क षंसा है, वण धम का कथन, यो या यास करने का
कार, हा ानी को अ य सुख क ा ती, मु जीव का भ भ लोको से लौटना केवल कृ ण लोक से न लौटना,
कमफल याग क षंसा, चार कार के भ का वणन, अ य अ य दे वो क उपासना क न दा, े े के व प
का कथन परमा मा क एकता न पण, परमे वर का सगुण नगुण व प कथन, आ मा को अकता और गुणहीन
जानने से भगवत् ा ती आ द पचास वषय का उपदे ष ीकृ ण अजुन के वातालाप के प म तुत कया गया है
जसका क इ तहा सकता से र का भी संबंध नह है।
जहां तक दाष नकता का न है भरतीय वै दक पर परा म 6 दषन थ स ह। सां य, योग, वैषे सक, पूवमीमांसा
एवं उ रमीमांसा ( जसे सू या वेदां त दषन भी कहते है) इस वेदांत दषन के रच यता भी मह ष ास ही ह। इसके
साथ साथ योग दषन के भा यकार भी मह ष ास ही ह इतनी उ च को ठ का व ान ऋ ष ऋ ष ही नही मह ष गीता
जैसी न न तर क पु तक क रचना करे। कोई भी बु मान मानने को तैयार न होगा। गीता के अ धकांष
दाष नक वचार वेद वरोधी है। जब क वेदांत दषन सवथा वेदानुकूल है।
वेद मं जस परमे वर क ा या क गई है। गीताकार उसके वपरीत भी ीकृअण को ई वर माना है। जीवा मा भी
ववेचना भी वेद व है, ई वरावतार क क पना भी गीता क सवथा अवै दक तक एवं बु के व है, दे वतावाद
एवं वग नक क मा यता एवं मो के स ा त पर भी गीता का प वेद व है। वेद के व प पर भी गीताकार का
प य के व है। गीताकार वेद को ई वर एवं अ या म वषय से र हत केवल भो तक जगत क ा या करने
वाला वीकार करते ह। गीता सब धम अधम के बखेड़ो को यागकर केवल ीकृ ण जी क षरण मे जाने मा से पाप
नाष व मो दलाने क बात कहती है जो सवथा म या है। गीता को पढ़ने या सुनने मा से पाप नाष होना व सदग त
गार ट दे ना गीता क म या लोभन मा है जैसे क रामायण, भागवत, हनुमान चालीसा व गंगा आ द के महा य
लेखको ने अपने अपने थ के चार के लए लखे ह। ।
इस कार गीता दषनकार ास क रचना न होकर कसी पौरा णक कालीन सं कृ त क व क रचना तीत होती है।
जसम उस युग के सभी अंध व वास व ह। जैसे अवतारवाद, जातीवाद, साकारोपासना, ब दे वतावाद, भा यवाद,
आ द आ द। यहां तक क गीता के कृ ण अपने आप को जुआ बनाने मे भी नही लजाते।
(इ) इ तहास को यान म रखकर वचार कर तो मह ष ास महाभारतकालीन महापु ष ह जसे आज लगभग 5000
से कुछ अ धक समय हो चुका है। जब क गीता का रचनाकाल आठवी षता द से पहले का नही ठहरता। गीता क ा त
टका म सबसे ाचीन ट का ी षंकराचाय जी क है। ी षंकराचाय जी का काल भी व ान ारा आठवी षता द
ही मा य है। गीता क ात तय म भी कोई त आठव षता द से पूव ा त नही होती इस कार से गीता को मह ष
ास क रचना बताना यह सरासर उनके साथ अ यान हां यह पौरा णक काल क रचना तो हो सकती है जैसा क उपर
दषाया जा चुका है और सह भी स भव हो सकता है क इस चा रत करने क से उसके लेखक ने मह ष ास के
नाम का सहारा लया हो जससे क खोटा स का चलन म आ जाये
(ई) य द जनतोष याय से मान भी लया जाये क गीता मह ष ास क ही रचना है।तो न उप थत होता क आज
से ढाई हजार वष पूव के जन बौ व ान ने नाम ले लेकर ा हण धम के थ का ख डन कया है उनमे से कसी मे
भी गीता का नाम नही लया इससे ात होता है। क उस समय या तो गीता थी नही और यद थी तो उसे कोई मा यता
ा त नही थी ।
केवल बौ सा ह य ही नह ब क सं कृत सा ह य के स थ पंचतं जसम क सभी स एवं च लत अ छ
अ छ पु तक के लोक उ त कये गये ह।
उसम भी गीता का एक भी लोक नही है। आजकल जो पंचतं च लत है उसे पांचवी षता द म सं हत कया गया है।
इससे स होता है क गीता कोई ाचीन रचना न होकर आवाचीन रचना है। तथा मह ष ास से इसका कोई संबंध
नही है
गीता और महाभारत
अब हम यह दे खने का यास करेगे क गीता महाभरत का भी अंग है या नही । आगे कुछ भी लखने से पूव म अपने
पाठको से नवेदन करना चा गां क अब तक के तक और माण के लए तो महाराज ीकृ ण और मह ष ास को
स ात् उप थत करना मेरे बष क बात न थी ले कन अब बात महाभारत क है जो क बाजार मे उपल ध होता है।

PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 5:15 PM
गीता का सबसे बड़ा्र चारक गीता ेस गोरखपुर है जस गीता को महाभारत का नवनीत बताया जाता है वह
महाभारत भी 6 खंड़ो म यही से का षत होता है। इसका तृतीय ख ड हाथ म लेकर दे खने का क कर क इसमे दये
भी म पव को इस त ा के साथ ‘ स य के हण करने और अस य को छोड़ने मे सदा उ त रहेग’े तो वयं पता लग
जायेगा क गीता क सही थ त या है।
अ. महाभारत के भी मवप के अ याय 25 से लेकर अ याय 42 तक वाला भाग गीता कहलाता है। 23 वे अ याय गा
ोत है। 24वे म संजय धृतरा संवाद है।43 वे अ याय के थम 6 लोको म गीता का महा य है। अब य द इन सबको
नकालकर 22 व अ याय के साथ 43वे अ याय के सातव लोक का पढ़ा जाये तो कथानक म कोई अ तर नही आता ।
न कथानक का सू टू टा आ लगता हैः- दे खए (भी मपव अ. 22 लोक 14 से 16 तक ) उस समय सेना के म य म
खढे ए न ा वजय राजकुमार जयवीर अजुन से कृ ण ने कहा
ये जो अपनी सेना के म य म थत रोष से तप रहे ह तथा हमारी सेना क ओर सह क भां त दे ख रहे ह ज होने 300
अ वमेघ य कये है। ये कौरव सेना महानुभाव भी म को इस कार ढके ए ह जस ◌्रपकार बादल सूय को ढक लेते
ह। हे नरवीर अजुन ! तुम इन सेना को मारकर भी म के साथ यु क अ भलाषा करो। (भी मपव अ याय 43 लोक
6-7)
अजुन को धनुष बाण धारण कये दे खकर पा डव महार थय सै नको तथा उनके अनुगामी सै नको ने सहनाद कया,
सभी वीर ने स तापूवक षंख वजाये ।
यहां वचारणीय त य यह है क या कसी ऐ तहा सक लेखक क रचना म से एैसा होना संभव है क उसके 20 अ याय
हटाने पर भी कथानक पर कोई भाव न पड़े। म समझता ं क डा.सा.भी. ऐसा कोई उदाहरण न कर पायेगे
जनसाधारण क तो बात ही या है। इसका सीधा अथ है क गीता क रचना न तो ीकृ ण ने क , न मह ष ास ने
ब क कसी अ य ने इसे रचकर बाद म महाभारत घुसेड़ दया है।
(आ) महाभारत के भी म पव मे गीता के कुल लोक सं या संबंधी न न लोक ा त होता है। :-
षट् षता न स वषा न लोका न ाह केषवः
अज◌र्ुूनः स त पंचाषत स तष तु संजयः
धृतरा ः लोकमेकं गीतायाः मानमु यते।
जसके अनुसार 620 लोक कृ ण ने कहे 57 अजृन ने कहे 67 संजय ने कहे और 1 धृतरा ने कहा इस कार गीता के
लोक क सं या 745 बैठती है। जब क वतमान मे ा त गीता मे 700 लोक ही पाये जाते ह जनका वभाजन इस
कार है। कृ ण ने 574 अजुन ने 86 संजय ने 39 और धृतरा ने 1 ही कहा है।
इससे प है क आजकल च लत गीता मह ष ास कृत नही है न महाभारत का अंग है य क इसम पा ो के बोलने
के मा ा मे भी प रवतन दखाई दे ता है। यवगीता वा तव मे इतना मह वपूण थ होता तो इसक मौ लकता सुर त
रखने के लए अथात घटा बढ रोकने के लए कढ़े कदम उठाये जाते। जैसे क वेदो क सुर ा के लए वर ,पद , म,
घन, जटा, माला, आ द अनेक कार के पाठ चलाये गये थे ।
(इ) जस कार गीता के थम अ याय म अजुन ामोह का वणन है उसी कार महाभारत म अजुन से ब त पहले
यु ध र ामोह का वणन है जसमे अजुन ने यु ध र को अनेक कार से समझाया, तब कह वह षांत ए। य द गीता
के रच यता मह ष ास ही होते या गीता महाभारत का ही अंग होती तो वह अजुन को समझाते समय कृ ण ारा यह
बात अव य कहलाते क ” भले मानुष ! अभी तो तू अपने भाई को समझा रहा था अब वयं बहक गया। पर गीता मे
इसका कोई संकेत नही है। इससे भी संकेत मलता है क गीता महाभारत का अंग नही है। न दोन काले एक है।
(ई) अजुन ने यु न करने के जो कारण बताए उनमे से एक यह भी है क :7
हे मधुसूदन! म यु मे भी म और ोण को बाणो से कैसे मा ं गा ये दोनो तो मेरे पू य ह।
य द गीता महाभारतकार मह ष ास क ही रतचा होती तो वह पहले के उस यु को न भूल जाते जहां वराट क गाय
छनने के संग मे अजुन ने इ ह पू योुं को मार मारकर बेहाल कर दया था पर तु गीता मे अजुन को समझाने के लए
ऐसा कोई संकेत इधर नही कया गया है। व तुतः अजुन को त वयं ही यह बात करनी नही चा हए था क या उस दन
ये लोग पू य नही थे। पर दोनो ही इतनी बड़ी घटना भूले रहे जो स करता है क गीता महाभारत का अंष नही अ यथा
इसे पूव मे ए यु का यान अव य रहा होता।
(उ) गीता के 11 वे अ याय मे इस बात का वणन आता है क जब ीकृ ण ही बात नही मानी तो उ होने अपना वराट
प् दखाया और बाद म ीकृ ण ने अहसान जतातु ए कहा क ” हे अजुन! मैने स होकर आ मयोग से यह प
तुझे दखाया है। मेरा यह आ द अ त सीमा से र हत तेजो मय प तेरे अ त र पहले कसी ने नह दे खा है।
अब वचारनीय बात यह है क य ह गीता और महाभारत एक ही क रचनाये होती तो वह उस संग को कैसे भूल
जाता जब ीकृ ण ारा वराट प् दखाकर य धन को अ भभूत कया थौ इसका सीधा अथ यह है क गीता
महाभारत का अंग नही है। य द गीता ीकृ ण का उपरो कथन कैसे संगत हो सकता है।
(ऊ) महाभारत मे छोट बड़ी दजन गीताय भरी पड़ी है। ज हे कसी न कसी बहाने घुसेड़ा गया है हम यहां केवल
अनुगीता क ी बात करगे जो इस बात का इल माण है क महाभारत मे इस कार क गीता को घुसेरने के लए
कस कार से बयानवाजी से काम कया गया है। और ये गीताये महाभारत का अंग नही है।
महाभारत के अ वमेघ पव मे (अ. 16 लोक 5-12) मे ीकृ ण जब ारका चलने लगे तो उनसे अजुन ने कहा ”हे
दे वतीन दन महाबा ! महाभारत यु के समय मुझे आपके महा मय और ई वरीय प का ान आ था। आपने
म तावष जो भी ान मुझे उस समय दया वह मै भूल गया उसको दोबारा सुनना चाहता ं आपषीघ ही ारका जाने
वाले ह एक बार गीता का वह उपदे ष फर से सुनाते जाइये।
यह सुनकर पहले तो ीकृ ण अजुन पर ब त बगड़े फर असमथता जताते ए बोले तो उसे तो मै भी भूल गया, वह
ान तो तु हे योगयु होकर तु हे सुनाया था। अब उसे फर से दोहराना संभव नही लो तु हारा काम चलाने के लए
सरा इ तहास बताता ं।
इसके बाद जो उपदे ष आ उसका नाम अनुगीता है। व ा और ोता दोनो एक न बर के भुल कड़ नकले।
इस करण से प तीत होता है क अनुगीता के महाभारत मे मलाने के लए अजुन और ीकृ ण के भुल कड़पन
का बहाना करने वाला व ान यह भूल ही गया क जब अजुन और ीकृ ण दोनो ही गीता को भूल गये थे तो बाद म
इसका चार कैसे आ यो क अजुन और ीकृ ण क बात के समय कोई भी उप थत नही था, संजय क द ी
भी वहां सहायता नही कर सकती थी। यो क से सुनने का काम नही लया जा सकता । महाभारत के अनुसार
द वाली बात गलत है य क उसमे संजय ारा धृतरा को य दे खी बात का उ लेख है।(दे खए भी म पव
अ. 13 लोक 1-2) इससे स होता है क महाभारत का गीता से कोई संबंध है।
एक ओर भी बात वचारणीय है – और वह यह क महाभारत और गीता क पु पका मे भी अ तर है। य द गीता
महाभारत क ही भाग होती तो इसक पु पकाये भी महाभारत क भां त होनी चा हए। पर तु ऐसा नही है महाभारत के
अ याय के अ त मे जो पु पकाये द गई ह वे गीता के अ याय के अ तवाली पु पकाओ से भ है। महाभारत म नाम
केवल पव के है – अ याय के नही जब क गीता के येक अ याय का नाम अलग अलग दया गया है। गीता के
पु पका मे उसे प प् से उप नषद या हा व ा वीकार कया गया ह इस कार भी गीता महाभारत का अंग
नही ठहरती एक नमूना दे खए :-
ठ त ीम गवदगीतासूप नष सु हा व ा योगषा ं कृ णाजुन संवादे कमसं यासयोगानम् पंचमो यायः
अ त म एक मुख बात वचारणीय यह है क कोई भी लेखक या क व पु तक क समा त पर ही ायः उसका महा य
लखता है क कोई भी पढ़ने या सुनने मा़ से अमुख अमुख लाभ है ऐसा नही है क कसी एक भाग या संग क
समा त पर उसका महा य अलग से लखता फरे । गीता के अ त म उसका महा य लखा आ है जो उसको एक
वतं पु तक या रचना स करता है और यह भी स करता है क यह महाभारत के लेखक मह ष ास क रचना
नही य क कोई भी लेखक या क व यह नही भूल जाता क यह मेरी सरी पु तक है या इसी का भाग है। गीता के 18
अ याय के बाद इसका महा य इस कार बताया गया हैः-
गीता सुगीता क ा कम यैःषा सं हैः
या वयं प नाम य मुखपदमाद व नसृतः
सवषा मयीगीता सवषा मयी ह रः
सवतीथमयी गंगा च गाय ाी गो व दोती द थते।।
चतुमकार संयु े पुनज म न व ते ।
महाभारत सव यं गीताया म थत य च।
सारमुदधृ य कृ णेन अजुन य मुखे तम्।।
इस कार माण तक और ऐ तहा सक ववेचन के प चात यह अ धक व वास से कहा जा सकता है क गीता का न तो
कृ ण से कोई संबंध है न मह ष ास से न महाभारत से । इस रचना को ब त बाद म महाभारत के चोखटे मे फर कर
दया है।।

PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 5:19 PM

शेखर ताप सह जी,


आपक आ था-मत-मजहब-स दाय या धम या है ? आप कस ई र-रब-अ लाह या गाड़ को मानते हो ?

Shekhar Pratap Singh


JUNE 17, 2017 AT 7:13 AM

Amit Roy जी!


आप ये बात अ छे से समझ ल जये क – “महापु ष” से गलती नह आ करती.गलती तो हम लोगो से होती है उनको समझने म.
य क भगवान और भगवान को पा लेने वाले महापु ष अलौ कक होते ह तो फर आप ही बारीक-बु लगाकर बताओ क
लौ कक-बु अलौ कक-व तु को समझ ही कैसे सकती है?
इस लये कहता ँ–गलती महापु ष से नह ;हम लोगो से होती है उनको समझने म.
अगर महापु ष से गलती हो तो उ ह महापु ष कहे कौन???
वचार करो, व ास करो!
बंगाली लोग मांस खाते ह. य ? य क बंगाल समु के कनारे है.इस लये वहाँ क भू म उपजाऊ नह है;खाने पीने को कुछ खास
नह होता.इस लये व लोग अपनी जलवायु के अनुसार मछ लयाँ पकड कर खाते ह;मांस खाते ह.वहाँ अगर आपका या मेरा ज म
आ होता तो हम लोग भी मांस खाया करते. वामी ववेकानंद भी उसी बंगाल से ह.

Amit Roy
JUNE 17, 2017 AT 5:57 PM

अरे जनाब कोई ऐसा नह जो गलती ना करता हो | उदाहरन आप महा मा गांधी को केवल आप ही नह पूरा दे श महान बतलाता
है | गांधी ने कतनी गलती क फर भी उसे सब रा पता के प म बोलते ह | जब क हक कत यह है क वह कोई महान नह
था | स य ब त कम को मालुम होता है भाई जान | नेह ने भी ब त गलती फर भी उसे चाचा बोला जाता है | आप य द
समझदार होगे तो समझ जाओगे और नह तो आपको कोई नह समझा सकता यूं क आप समझना ही नह चाहते |

Shekhar Pratap Singh


JUNE 18, 2017 AT 3:57 AM
े आय जी!

आप मेरी ही य बात करते ह ?
अनंत ज म म आप भी चील-कोए बन “चुके” ह!इसम कोई आ य क बात नह क हम सब जीव अना द-काल से संसार के बंधन
म ह.इस लये ये बात तो प क ही है क हम सब हर एक योनी म अनंत बार रह चुके ह;कु ा, ब ली,गधा,चील,कोए,म छर…सब
कुछ बन चुके ह.इस लये चील कोआ म ही नह ;आप भी अनंत बार बन चुके ह.अब तक भगव ा त नह ई यही इस बात का
प का माण है.
रही बात मेरी शंका का समाधान करने करने क तो म ऐसे लोगो से कसी भी शंका के समाधान क अपे ा रख ‘ही’ नह सकता
ज ह सर म क मयाँ दे खने के अलावा सरा कोई काम ही नह .एक बात कान म अ छे से डाल लो महा य क हर शंका का
समाधान केवल महापु ष(भगव ा त संत) ही कर सकते ह.आप तो महापु ष ह नह य क आपका काम तो क मयाँ ढूँ ढने का
है;क मयाँ मटाने का नह .
वचार करो, व ास करो!
“ सरो म दोष दे खना वयं दोषी होने का ‘प का’ माण है.”
श ा तो ‘मुझे’ आपको दे नी पड रही है;आप मुझे या श ा दगे?अगर कोई भखारी ये कहे क वो करोड पये दान करना चाहता
है तो उसक मजाक बनते दे र नह लगेगी!
अ छा, अब म आपको बताता ँ क वामी ववेकानंद मांस य खाते थे?
दे खये!बंगाली लोग मांस खाते ह. य ! य क बंगाल समु कनारे है.इस लये वहाँ क भू म उपजाऊ नह है.इस लये वहाँ खाने को
कुछ खास नह होता.इस लये वो समु से मछ लयाँ पकड कर लाते ह और खाते ह.मांस भ ण व अपनी जलवायु के अनुसार करते
ह.अगर मेरा या आपका ज म वहाँ आ होता तो हम भी खूब मछ लयाँ खाया करते.
मांस तो “आप” भी अनंत बार खा चुके ह!जब आप चील,बाज, ग ,कु ा, ब ली,शेर….आ द अनंत बार बन चुके ह तो फर ये तो
प का ही है क कम से कम इन यो नय म तो आप मांस खा ही चुके ह.आप या!सब जीव खा चुके ह.
फर भी आपको इ ह बात म खोपडा खपाने क आदत है!और अगर यही आदत बनी रही; सरो म दोष दे खने क तो कभी भी
भगव ा त नह होगी-इस बात को रट लो;रट लो.जब कभी ये बात बु म बैठ जाये तब आगे क बात करना;नह तो मुँह बंद ही
रखना!

PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 4:48 PM

OM
NAMASTE..
Shekhar Pratap Singh JI, PICHHLE JANAM ME AAP KUTTAA AUR SUVAR THE TO AAP KUTTAA
AUR SUVAR KA HI BHOJAN KARLO, KYUN MANUSHYA KAA BHOJAN KARTE HO?
AAP JAISAA MAND VUDDHIKE LOGONKO DEKH KAR MUJHE DAYAA AATI HAI..
JALDI HI EESHWAR SADVUDDHI DE DE ..AHI KAMANA HAI..

Shekhar Pratap Singh


JUNE 19, 2017 AT 5:35 AM

े आय!

तू भी कु ा,सूअर बन चुका है और इनका भोजन कर चुका है.भगव ा त अब तक नह ई यही इस बात का प का
PROOF है.
अरे!तुम तो शूकर भी बन चुके हो जसे मल-लै न म ही आनंद आता है.
तुझे बोलने क तमीज नह और कहता अपने आप को आय है!
तक का त तक मालूम नह है तुझे.
नाम ेम है ले कन मन म े ष ही े ष भरा पडा है.
अपना नाम बदल लो;ये नाम तु ह सूट नह करता!
ये सब म नह लखना चाहता था ले कन अब मजबूरी हो गई थी.जब जुकाम के कारण नाक बंद हो जाये तो मुंह से सांस लेना
ही पडता है.

PREM ARYA
JUNE 19, 2017 AT 5:00 PM

OM..
Shekhar Pratap Singh JI, NAMASTE..
AB TO PAKKAA NISCHAYA HOGAYAA KI AAP KE ANDAR EK KUTTAA AUR SUVAR KAA
SANSKAAR JIVIT HAI..ISILIYE HOGAA SAAYAD AAP KI BHOJAN LAALASAA BHI KUTTON
AUR SUVARON KI JAISI HAI..AACHARAN BHI KUTTON JAISI DEKHNEKO
MILAA..MANUSHYA YONI ME JANM LEKARKE KYAA KAROGE JI, SANSKAAR JO PISHAA-
CHON JAISI HAI? SUDHARJAAO ABHI BHI SAMAYA HAI..
AAP SAAYAD KISI CHARCH KI JUTHAN CHAAT CHUKE HO ISI LIYE AISI GHRINAATMAK
SONCH HAI..ULLOO KO PRAKAASH PASAND NAHIN HAI TO ISME SURAJ KI DOSH HI
KYAA?

Shekhar Pratap Singh


JUNE 18, 2017 AT 7:51 AM

Amit Roy जी!


अगर नया म कोई ऐसा हो ही नह सकता जो गलती ना करे तो फर तो इस नया म कोई महापु ष हो ही नह “सकता” और जब
कोई महापु ष हो ही नह सकता तो फर तो स य-त व अथात परमा मा के बारे म हम कोई बता ही नह सकता. फर हम लोग ये
जान ही कैसे सके क परमा म-त व है!!!
आप कहते ह क नया म सब गलती करते ह.
और उन गल तय को जानने का ‘आप’ दावा करते ह तो फर या म ये समझूँ क आप ही सव -परमा मा ह!!!

Amit Roy
JUNE 18, 2017 AT 9:39 AM

जनाब मने पहले ही बोल दया था क य द आप समझदार ह गे तो समझ जायगे मगर आप अब तक समझ नह सके | मुझे यह
बताये आज भारत ही नह पूरा व नेह महा मा गांधी को महान बताता है या उ ह ने कोई गलती नह क ? गांधी क महानता
के कारण लोग रा पता बोलते ह नेह को चाचा | आप इन महान आदमी म कोई बुराई नह दे खते यह बताये | और हाँ म कोई
परमा मा नह | म तो परमा मा का एक तु छ सेवक | और एक बात जान जाए महाशय एक कहावत है और कहावत नह
स चाई है जसे शायद कबीर ने बोला था या चाण य ने इस बारे म अभी पूरी जानकारी नह दे सकता | उ ह ने बोला था जो
आपक क मयां आपको आपके सामने उजागर करे उसे आप अपने घर म स मान द वे आपक कमी बताएँगे जससे आप
अपना उस गलती को सुधार सकते हो | जो चापलूसी करते ह वे आपके गलत काम को भी सही बोलगे यूं क उनको आपसे
काम लेना होता है | नदक समीप बठाई | अब आप अब भी नह समझगे तो आपको आपके ववेकानंद जी ही समझा सकगे |
वैसे म जतना आपको समझा आपको मेरे बात समझ म नह आएगी यूं क आप अंधभ होकर ववेकानंद जी के शरण म
हो जैसे कोई रामपाल क शरण म जाता है तो कोई आशाराम बापू क शरण म | ध यवाद

Shekhar Pratap Singh


JUNE 18, 2017 AT 11:45 AM

Amit Roy जी!


महा मा गांधी,प. नेह या कसी और क भी तुलना अलौ कक महापु ष से मत करना. य क अलौ कक महापु ष बु से
परे होते ह;हम उ ह समझ ही नह सकते.
वचार करो, व ास करो!
जब आँख सुनने का काम नह कर सकती,कान दे खने का काम नह कर सकता तो फर लौ कक-बु अलौ कक-व तु को
कैसे समझ सकती ह?
लौ कक-बु से अलौ कक-व तु भी लौ कक ही दखाई पडती है ठ क वैसे ही जैसे बेवकूफ को बु मान भी बेवकूफ ही
नजर आता है.ले कन वा तव म होता नह .उसी कार हम लोगो क लौ कक-बु अलौ कक-व तु को समझ ही नह सकते.
लौ कक- लौ कक-व तु क कमी बताए तो बात समझ म बात आती भी है.ले कन अगर कोई लौ कक- होकर
अलौ कक-व तु म क मयाँ बताए तो वो तो उस अंधे के समान है जो ये कहे क-“ऐ नयाँ वालो! हम अंधे ह तो या
आ!हम तो कान से दे खने का काम करते ह;हम सब पता है क कसका प कैसा है!!!!!
जैसे य लोग हंसी के पा है वैसे ही अलौ कक-महापु ष म क मयाँ ढूँ ढने वाले लोग हंसी के ही पा ह.Nursury class का
ब चा PHD class क बात समझ ही नह सकता.उसके लये तो यही बात ठ क है क वो PHD क बात म अभी खोपडा ना
खपाय और धीरे-धीरे आगे बढता जाये.तो जब वो PHD class म बैठ जायेगा तब उसक समझ म PHD Class क बात
आयगी;इसके पहले नह .

 Rishwa Arya
JUNE 18, 2017 AT 2:19 PM

Vekanand chilam peeta thaa ye kaisa ala vyaktitva tha

PREM ARYA
JUNE 18, 2017 AT 5:33 PM

वामी ववेकान द का ह व
( वामी स य काश सर वती क म)
– नवीन म
ववेकान द के अनेक वचार उदा और श त थे, पर वे अवतारवाद से अपने आपको मु न कर पाये और न भारतीय
को मुसलमान, ईसाई बनने से रोक पाये। यह मरण र खये क य द मह ष दयान द और आय समाज न होता तो वषुवत
रेखा के द ण भाग के प समूह म कोई भी भारतीय ईसाई होने से बचा न रहता। ववेकान द के सामने भारतीय का
ईसाई हो जाना कोई सम या न थी।
आज दे श के अनेक अंचल म ववेकान द के य दे श अमे रका के षड़य से भारतीय को तेजी से ईसाई बनाया जा रहा
है। मरण र खये क ववेकान द के वचार भारतीय को ईसाई होने से रोक नह सकते, युत म तो यही क ँगा क य द
ववेकान द क वचारधारा रही तो भारतीय का ईसाई हो जाना बुरा नह माना जायेगा, य
े कर ही होगा। ववेकान द के
न न श द पर वचार कर- (दशम् ख ड, पृ. ४०-४१)
मनु य और ईसा म अ तरः– अ भ ा णय म ब त अ तर होता है। अ भ ा ण के प म तुम ईसा कभी नह हो
सकते। , ई र और मनु य दोन का उपादान है। …… ई र अन त वामी है और हम शा त सेवक ह, वामी ववेकान द
के वचार से ईसा ई र है और हम और आप साधारण ह। हम सेवक और वह वामी है।
इसके आगे वामी ववेकान द इस वषय को और प करते ह, ‘‘यह मेरी अपनी क पना है क वही बु ईसा ए। बु ने
भ व यवाणी क थी, म पाँच सौ वष म पुनः आऊँगा और पाँच सौ वष बाद ईसा आये। सम त मानव कृ त क यह दो
यो तयाँ ह। दो मनु य ए ह बु और ईसा। यह दो वराट थे। महान् द गज व दो ई र सम त संसार को आपस म
बाँटे ए ह। संसार म जहाँ कही भी क चत ान है, लोग या तो बु अथवा ईसा के सामने सर झुकाते ह। उनके स श
और अ धक य का उ प होना क ठन है, पर मुझे आशा है क वे आयगे। पाँच सौ वष बाद मुह मद आये, पाँच सौ
वष बाद ोटे टे ट लहर लेकर लूथर आये और अब पाँच सौ वष फर हो गए ह। कुछ हजार वष म ईसा और बु जैसे
य का ज म लेना एक बड़ी बात है। या ऐसे दो पया त नह ह? ईसा और बु ई र थे, सरे सब पैग बर थे।’’
कहा जाता है क शंकराचाय ने बौ धम को भारत से बाहर नकाल दया और आ तक धम क पुनः थापना क । महा मा
बु (अथात् वह बु जो ई र था) को भी मा नये और उनके धम को दे श से बाहर नकाल दे ने वाले शंकराचाय को भी
मा नये, यह कैसे हो सकता है? व ह प रषद् वाले वामी शंकराचाय का भारत म गुणगान इस लए करते ह क उ ह ने
भारत को बु के भाव से बचाया, वरना ये ही व ह प रषद् वाले सनातन धम वयं सेवक संघ क थापना करके बु
क मू तय के सामने नत म तक होते। यह ह व क वड बना है। य द वामी ववेकान द क म बु और ईसा दोन
ई र ह तो भारत म ईसाई धम के वेश म आप य आप करते ह। पूव र भारत म ईसाइय का जो वेश हो रहा है,
उसका आप वागत क जये। य द ववेकान द को तुमने ‘‘ ह व’’ का चारक माना है तो तु ह धम प रवतन करके कसी
का ईसाई बनना कसी को ईसाई बनाना य बुरा लगता है?
म प कहना चाहता ँ क ववेकान द ह ( ज ह बु और ईसा दोन को ई र मानना चा हए) दे श को ईसाई होने से
नह बचा सकते। भारतवासी ईसाई हो जाएँ, बौ हो जाय या मुसलमान हो जाएँ तो उ ह आप य ? ईसा और बु
सा ात् ई र और हजरत मुह मद भी पैग बर!
मह ष दयान द और आयसमाज क थ त प है। हजरत मुह मद भी मनु य थे, ईसा भी मनु य थे, राम और कृ ण भी
मनु य थे। परमा मा न अवतार लेता है न वह ऐसा पैग बर भेजता है, जसका नाम ई र के साथ जोड़ा जाए और जस पर
ईमान लाये बना वग ा त न हो।
भारत को ईसाइय से भी बचाइये और मुसलमान से भी बचाइये जब तक क यह ईसा को मसीहा और मुह मद साहब को
चम कार दखाने वाला पैग बर मानते ह।
– आयसमाज, अजमेर

Bravo
JUNE 18, 2017 AT 11:11 AM

शेखर ताप सह जी,

नम ते।
परमा मा को जानने के लए वयं को ही यास करना पड़ता है। कोई अ य मनु य आपको परमा मा क अनुभू त नह करवा
सकता। और, आप कहते हो क आय समाज वाले गलती नकालते है तो आप उसको य सही माने वो भी म या हो सकता है,
आपका तक यो य है। पर ानी मनु य ही अ ानी को दशा दे सकता है जैसे बी.एड/ऍम.एड. पढ़ कर जो श क बनता है वो
शाला के छा को पढ़ाता है। जो बारहव म उ ीण आ है वो पांचवी या दसव क ा म नह पढ़ा सकता। उसी तरह दयान द
सर वतीजी सं कृत म व ान् थे और इसके अलावा उ ह ने ३०००-३५०० पु तक का गहन प से ता कक अ ययन कया था।
इस लए, वे वेदो का उपयु अथघटन कर सकते थे और अ य पु तक म या यो य है और या त है उसका भी ठ क-ठ क
नणय भी ले सकते थे। और उ ह ने अपने अनुभव और गहन ान से ही स यास य का नणय कया है।

ववेकानंदजी ने भी बड़े अ छे काम कये है, और वे भी ता कक थे। पर तु उ ह सं कृत का उतना ान नह था और ना ही अ य


शतपथ और गोपथ पु तक का। इस लए उ ह ने अपने ान के अनुसार वेदो का अथघटन कया। ववेकानंद सवधम संभव म
मानते थे, क तु म नह मानता उ ह ने हर धम क पु तके पढ़ होगी। य क, हर धम वयं को े और अ य को हीन मानता है।
जैसे मु लम वयं को े और अ य को का फर कहते है, ईसाइयो के अनुसार इसा के अलावा और कोई मो नह दे सकता,
वै णव और शैव के अनुसार उनके भगवान उनके सारे पापो को मा कर दे ता है और उनको नह मानने पर अ छे कम वाले भी
नक म जाते है। हर मतवालोने अपने-अपने वग बनाये है, जसमे बहोत सारी औरत मलती है। या ई र को दलाल नह बना
रहे हे लोग?

आप कहते है क बंगाल के लोग मछली खाते है य क वहा पर शाकाहार के पयाय उपल ध नह है। म इस बात से सवथा
असहमत ं य क मठाई क वानगीयां अ धकतर बंगाली ही होती है, और मै काफ शाकाहारी बंगा लय को भी जानता ं।
क तु अगर कसी स दभ म आपका तक मान भी ल तो अ का के एक जगह पर आ दवासी लोग मनु य का मांस खाते है,
य प कोई ऐसा अ कन भारत म आकर मनु य मांस खाना चाहे तो उसको उ चत मानना चा हए?

– ध यवाद्

Shekhar Pratap Singh


JUNE 19, 2017 AT 5:24 AM

Rishwa Arya जी!


हमम से हर एक जीव अना द-काल से संसार के बंधन म है.इस लये हम सब अनंत बार हर एक योनी म रह चुके ह.इस लये
Rishwa Arya जी!आप भी अनंत बार चील,बाज,कौआ, ग ,कु ा, ब ली,लोमडी,शेर आ द बन चुके हो और इन यो नय म
अनंत बार मांस खा चुके हो और वो भी चटकारे लगा-लगा कर.अनंत बार नसेडी-मनु य बन चुके हो.इस लये आप भी अनंत बार
चलम त बाकू पी चुके ह.और जब आप ये सब काम कर चुके हो तो सरो को दोष दे ने के लायक हो ही नह !
और इस लायक तुम कभी बन भी नह सकते य क य काम तो तुम अनंत ज म म कर चुके हो.तो फर य सर म दोष दे ख-दे ख
कर अपना खोपडा खराब करते हो?
एक बात को अ छे से बु म बठा ल जये महा य क-“ सरो म दोष दे खना वयं दोषी होने का ‘प का’ माण है.”
और जब ये बात बु म बैठ जाये तब मुझसे आगे बात करना;नह तो मुंह बंद ही रखना!!!

 Rishwa Arya
JUNE 19, 2017 AT 6:22 AM

Bandhu
Men kya tha kya naheen tha wah mere karmanusar ishwar ka nirnay tha.

Lekin men kise follow karun ya n karun logon ko jaagruk karun isake liye ishwar ne buddhi pradan
ki hai.

Aap meru baton se sahmat ho ya n ho ye aapka adhikar hai.

Lekin jo satya hai wah satya hai

Vivekanand aapke liye pujneey ho sakte hein


Mere liye wo mans bhakshi chilam peene wale aur angrejo. Ke hitaishee hee rahenge kyonki pra-
man yahee kahte hein

Shekhar Pratap Singh


JUNE 19, 2017 AT 8:57 AM

Rishwa Arya जी!


आप सरो का ख डन करने से पहले आय-समाज का ख डन वीकार कर ल.ये बात म ऐसे ही नह कह रहा ब क तक के
आधार पर कह रहा ँ.एक-एक श द पर यान दे ना–
वामी दयानंद सर वती जी ारा र चत “स याथ काश” पर ग भीर वचार करते ह-
स याथ काश के 15वे अ याय वम त ाम त वषय: म सर वती जी “ई र” श द क ा या करते ए कहते ह
क-“ई र के गुण,कम( यान दो-कम), वभाव प व ह…जो(ई र) नराकार है…”
सर वती जी के इस कथन म एक अका - ुट है.वह या है?अभी समझाता ँ-
सर वती जी के इस कथन म ऐसी दो वरोधी बात लखी ह जनका मेल कभी हो ही नह ‘सकता’.व कौन सी बात है!
एक ओर तो सर वती जी कहते ह क ई र नराकार है और सरी ओर ये भी कहते ह क वो कम करता है.
य दोन बात इतनी वरोधी ह क चाहे कोई करोड वष तक इन बात को मलान क को शश करे,तब भी नह मला सकता.
दे खये!अगर ई र नराकार है तो वो कम कर ही नह सकता. य क नराकार-व तु कम कर ही नह सकती. नराकार-व तु तो
नराकार ही रहेगी;वो कुछ कर नह सकती. य क कुछ करने के लये इ याँ चा हय,मन चा हये,बु चा हये ले कन तु हारे
नराकार- के पास तो य चीज ह ही नह .तो फर तु हारा ये नराकार- सृ कैसे कर सकता है?और अगर वो सृ नह
करता तो वेद क बात तो झूठ हो गई.इस कार तो सर वती जी ने वेद का ही ख डन कर डाला! सर वती जी इसी अ याय म
थोडा आगे चलकर कहते ह क-“जो वेद- व है वो अधम है.”ऐसे तो उ ह न वयं को ही अधम स कर दया!
तक का सरा पहलू सु नये–
“गाय मनु य को ज म नह दे सकती;गाय सफ गाय को ‘ही’ ज म दे सकती है.”ठ क उसी कार नराकार व तु साकार-संसार
को ज म दे ही नह सकती. य क नराकार-व तु कुछ कर ही नह सकती.ये बात COMMON SENSE से समझ म आ
जायेगी NON-SENSE से नह .
वचार करो, व ास करो!
सर वती जी क उपरो कही ई बात म एक ठ क तो सरी गलत और सरी सही तो पहली गलत.इस तरह य दोन ही बात
गलत ह.और दोन बात गलत ह तो सारा थ (स याथ काश) ही गलत है.और अगर थ ही गलत है तो आय-समाज का मूल
ही गलत है.और अगर आय-समाज का मूल ही गलत है तो सारा आय-समाज ही गलत है.और अगर आय-समाज गलत है तो
फर आय-समाज से जुडे लोग कस है सयत से कहते ह क व स य का चार करते ह!
Rishwa Arya जी!
उपरो तक दे ने का मेरा आ य कसी का अपमान करने का नह है ब क आपको ब क हर-एक को ये समझाने का है क
कसी सरे क मा यता का ख डन करने से सर को वही महसूस होता है जो अपनी मा यता का ख डन होने पर ‘हम’
महसूस होता है.और सरो का ख डन करना; सर म दोष दे खना वयं दोषी होने का “प का” माण है. य क दोष दे खने से
दोष का चतन होता है जो हमारे ही मन को दोष-यु कर दे ता है.इस लये हम ये बात सदै व यान म रखनी चा हये क हमारी
दोष पर न जाकर धारण करने यो य गुण पर ही जाये.इसी से हमारा लाभ हो सकता है अ यथा नह हो सकता. वामी
ववेकानंद क ये बात “सबको” अपने जीवन म धारण करनी चा हये – “जब म वयं म ‘इतनी’ क मयाँ होते ए वयं से ेम
करता ँ तो फर सरो म थोडी-ब त क मयाँ होने पर उनसे ेम य नह कर सकता!”

 Rishwa Arya
JUNE 19, 2017 AT 3:23 PM

Satya ko sweekar karne men ham t9 sadiav udyat hein

Lekin yahan prashan aarya samaj ka naheen vibekanand ka hai


Usee par charcha karen to behtar hein

PREM ARYA
JUNE 19, 2017 AT 7:38 AM

ओ३म्..
हे मनु य ! तू ई र के नज नाम ‘ओ३म्’ का मरण कर अपने सभी ःख को र कर..

“वायुर नलममृतमथेदं भ मा तं शरीरम्।


ओ३म् तो मर लबे मर कृतं मर।।”
: हे कम करने वाले जीव ! तू अपनी मृ यु के समय होने वाली थ त का अनुमान कर अपने जीवन म सदा ई र के नज नाम
ओ३म् का मरण कर। ई र द अपनी साम य, ई र और अपनी आ मा के व प का मरण कर और अपने जीवन म कये
ए कम का मरण कर।

Shekhar Pratap Singh


JUNE 19, 2017 AT 5:53 AM

चाहे कु े एक हजार भ क पर हाथी तो वैसी क वैसी ही चाल चलता रहेगा….

Amit Roy
JUNE 19, 2017 AT 6:44 AM

janab aap kuttaa khud ko bol rahe ho yaa haathi… aur ab main charcha me bhaag nahi lunga
kyunki rishabh ji charcha kar rahe hain aapse….
Ashok Patel
JULY 19, 2017 AT 8:15 AM

Hriom namaste
ek bat sab ke sab samaj lo bhiya ham sab hindu h kisi ko sreshth ya nicha dikhana bekar jo mahapu-
rush h vah mahapurush hi rhega aur jo mahan ha vh mahan rhega hme apne darm ki rksha krni
chahiye aur ye hamara param kartavya h ha hme hinduo ko isai aur muslimo se bchana h hum
akhandh bharat ke nivasi h aur sb hindu h hme kabko milkar kam krna h sbhi hindu bhai avam sadhu
santo se mera nivedan h ki ve sb ek ho jaye tbhi ham apne hindu dharm ki rksha kr payenge
dhanyavad.

VINAY UP ADHYAY
JULY 30, 2017 AT 1:44 PM

Kripa karke in Mahapurushon ka Naam lekar Ye Asahaj Vaak Yuddh Samapt Karo. Ek Vichardhara
ko hi jeevan samajhne ki bhool hi iss Yug ki sabse badi vidambana hai. Meri baat mano varna main
Bomb ban ke foot jata hun yehi Aatmaghati Aatankwadiya bhavna Sansar mein Prabal ho gayi hai.
Aap Sabhayon aur in Naxli, Jihadi logon mein moolbhoot antar hai. Ya Evam Ved Sa Shokam Tarati.
ISSLIYE hey Aryon apni mahima mein jago. Swami Dayanand ji humare Rashtra ke Pitamah hain. To
Swami Vivekanand ji Aaj bhi Bharat ke Vaidik Yuvaon ke Rashtra Gaurav ka abhipraay hain. Humare
Shashtron mein 6 Darshan mein Meemansa to swayam ishwar ko bhi criticise karne aur Shashtrarth
roopi samudra manthan se satya roopi amrit Prashan ki vidya hai. LEKIN HARDIK MARYADA
SAHIT. MARYADIT SAMVAD NA KAR SAKEN TO JAAIYE BAS… PRARTHANA HAI UUS
PARMEAHWAR SE BRAHMAND KE SABHI AAYUD SATYA KE SAMMUKH APNA AAYUDH GAU-
RAV SAMARPAN KAR DENGE.

Amit Roy
JULY 30, 2017 AT 6:28 PM

vinay ji
yadi mahapurush me kuch khaami ho to uski jaankaari deni chahiye jisse unke us khaami ko log
naa grahan kar sake …. aap samjhdaar ho samjh gaye hoge baato ko… dhanywaad

Hari Shankar Soni


DECEMBER 22, 2017 AT 3:07 PM

When one chooses to deal with such a subject like analysing the teachings and life of Swami
Vivekananda ,one must be either at par or above him.His teachings has awakened the soul of the
many persons in the world.His persona was too high to be cricized.He was in nite knowledge
embodied, and we are fortunate such a soul incarnated on earth.
 Rishwa Arya
DECEMBER 24, 2017 AT 9:37 AM

Swami vivekanand had been one of the most confused personality of his era.
Rightly said by Dr dharmveer he was person who was teaching Vedant with having Biryani in
his hand

Debjani Mahanty
DECEMBER 29, 2017 AT 9:50 AM

वामी ववेकान द सबसे बड़ा वेद ानी है. वै दक ान क त दयान द सर वती अ ानता. वै दक ान क त आपक अ ानता.
दयान द सर वती मे इ लाम पंथ का भाव था. जो समाज दयान द ने बनाया वह एक इ लाम समाज है. वामी ववेकान द वै दक
थेे इस लए बौ , ईसाई और वै दक सब एक है. वामी ववेकान द इस नया मे वै दक ( ान का) धम का त ा कया है. दयान द
ने इस नया मे सा दायीक भेद सृ कया.

 Rishwa Arya
JANUARY 3, 2018 AT 6:49 PM

yes dear that’s why vivekanand asaid below statement

“Vedanta Brain and Islam Body is the only hope” “

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