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नाड़ी ज्योतिष - भाग 1 (हिंदी संस्करण) PDF
नाड़ी ज्योतिष - भाग 1 (हिंदी संस्करण) PDF
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नाड़ी ज्योतिष
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भाग 1 (तहिंदी सिंस्करण)
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Astrological Researches Group
With
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तजिेन्द्र कुमार
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2
प्रूफ रीजडं ग में सहयोग और अन्य जिजशष्ट सुझािों के जलए मैं श्री मुकेश शमाि जी और अन्य
जमत्ों का जिशेषत: आभारी हूँ ।
यजद इस पु स्तक में कोई त्ुजि हो या आप कोई सुझाि दे ना चाहते है तो, आपके जिचारों का
सहषि स्वागत है ।
इस पां डुजलजप या ईबुक का कोई भी जहस्सा लेखक की जलखखत अनुमजत के जबना पुन:
प्रस्तुत नहीं जकया जा सकता है ।
3
नाड़ी ज्योतिष:
ज्योजतष-शास्त्र जहं दू-संस्कृजत का अजभन्न अंग है । जब हम ज्योजतष के बारे में बात करते हैं ,
जन्मकुंडली का जिचार स्वत: मन में आ जाता है । जन्म कुंडली गणना/जनमाि ण और उसके
जिश्लेषण हे तु ज्योजतष-शास्त्र के दो महत्वपूणि जिभाग हैं । कुंडली जनमाि ण में आिश्यक
गजणतीय गणनाओं के साथ खगोल-जिज्ञान और भूगोल भी शाजमल है । जबजक, कुंडली-
जिश्लेषण हे तु अत्यंत प्रभािशाली प्रणाजलयां और सूत् भी उपलब्ध हैं ।
कुंडली जिश्लेषण में "पाराशरी", "जैजमनी", "नाड़ी" और "के. पी." आजद अनेक की तरह
अलग-अलग अत्यंत प्रभािशाली प्रणाजलयां हैं । नाड़ी-ज्योजतष में पुनः भृगु, ध्रुि, सप्तजषि,
िजशष्ठ, चंद्र कला और नंदी नाड़ी आजद जैसे उच्च कोजि के ग्रन्थ उपलब्ध है । प्रत्येक नाड़ी-
ग्रन्थ/अनुशासन के अपने कुछ मौजलक जसद्ां त है ।
इस पुस्तक में, मैं भृगु-नाड़ी, नंदी-नाड़ी, सप्तजषि -नाड़ी, चंद्र-कला नाड़ी, मीन-नाडी आजद
के आधार पर अपने अध्ययन, जिचारों और अनुभिों को साूँ झा करने का प्रयास कर रहा
हं । मुझे उम्मीद है , जक यह प्रयास ज्योजतष-शोधाजथियों, छात्ों और ज्योजतजषयों के जलए
उपयोगी जसद् होगा।
यजद आपके पास िास्तजिक तकनीकी प्रश्न हैं , तो मैं जिाब दे ने के जलए अपनी पूरी कोजशश
कर
ूँ गा, लेजकन मैं इस संबंध में कोई प्रजतज्ञा नहीं कर सकता। इसके अलािा, व्यखिगत
प्रश्नों पर जिचार नही ं जकया जाएगा।
जजतेंद्र कुमार
Preface
ज्योजतष जिषय में पाराशरी, जैजमनी, के.पी., नाड़ी आजद जैसी जिजभन्न जिचार-धाराएं हैं । जहां
प्रत्येक जिचार-धारा अपने आप में जिजशष्ट है , लेजकन सभी का अंजतम लक्ष्य/गंतव्य
अजधकतम सिीकता के साथ जिश्लेषण करना है । ज्योजतष-जिषय में नाड़ी-ज्योजतष सबसे
पुरानी जिचारधाराओं में से एक है , जजसकी पुनः कई शाखाएं हैं , जहां प्रत्येक शाखा एक
जिजशष्ट कायिप्रणाली से संबंजधत है ।
ितिमान में, मैं जकसी भी भ्रम से बचने के जलए लाजहड़ी अयनां श का उपयोग करने की
सलाह दे रहा हं । िररष्ठ-छात् "सूयि जसद्ां त" के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं । ग्रहों की
खथथजत भूकेंजद्रत और मध्यम राहु-केतु का इस्तेमाल जकया जाना चाजहए। िररष्ठ छात् अन्य
जिकल्ों के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं ।
2. मीन-नाड़ी के जलए, पुस्तक के अनुसार निां श-जिजध और अन्य जनयमों का पालन करना
चाजहए। बाद में, िररष्ठ-छात् अन्य तरीकों से प्रयोग कर सकते हैं ।
3. भृगु-नंदी-नाड़ी और संबंजधत ग्रंथों (जैसा जक स्वगीय श्री आर. जी. राि द्वारा उपलब्ध
कराया गया है ) नए छात्ों के जलए पयाि प्त हैं । भृगु-नंदी-नाड़ी में, प्रत्येक "ग्रह के कारकत्व"
को अत्यंत महत्त्व जदया जाता है । इसके अलािा, "प्रगजत (प्रोग्रेशन)~Progression" और
कुछ अजतररि जनयम ... जो जक मौजलक जनयम हैं ... को मैं जशक्षाजथियों के साथ मेरी चचाि में
(पीडीएफ फाइलें, ऑजडयो और िीजडयो व्याख्यान) पहले से ही साूँ झा करता आ रहा हूँ ।
6. भृगु-नंदी-नाड़ी से सम्बखन्धत ग्रंथों में "लग्न" को अत्यजधक महत्व नहीं जदया जाता है ।
इसका अपना तकि है , जजस पर मैं बाद में जिस्तार से चचाि कर
ं गा। एक बात मैं यह स्पष्ट
करना चाहं गा जक इसका अथि यह नहीं है जक "लग्न" का कोई महत्व नहीं है । अजग्रम स्तर
पर और नाड़ी ज्योजतष को समझने के जलए और कुंडली के जनमाि ण करने के जलए "लग्न"
की आिश्यकता और अपना जिजशष्ट महत्व है ।
7. जिंशोत्तरी दशा प्रणाली का उपयोग पाराशरी, जैजमनी और के. पी. आजद परम्परा में
सििजिजदत है । जिंशोत्तरी दशा प्रणाली ही "प्रगजत~Progression" का ही एक प्रकार है ,
जहां जन्मकाजलक चंद्रमा की नक्षत्-जिशेष में उपखथथजत के अनुसार जिजशष्ट-गजणतीय
प्रजकया के तहत चन्द्रमा का "प्रोग्रेशन" जकया जाता है । नाडी ज्योजतष में, इसी तरह ग्रहों
का प्रोग्रेशन जकया जाता है ।
8. मेरी चचाि में, मैं हमेशा नाड़ी-ज्योजतष को जकसी ऐसे व्यखि से व्यिखथथत तरीके से
सीखने का सुझाि दे ता हं , जो नाड़ी -ज्योजतष में शोधकताि हो।
इस प्रश्न के उत्तर में मेरा जिचार है ~ नाड़ी ज्योजतष को स्वतंत् रप से और अन्य पखद्जतयों
के साथ भी सखम्मजलत करके भी उपयोग जकया जा सकता है ।
7
पाराशरी जसद्ां त के अनुसार प्रचजलत जिजध अनुसार कुंडली (मुख्यत: लग्न कुंडली) और
प्रत्येक ग्रह से सम्ब्नजधत जनम्न जलखखत जानकारी नोि करें :
• प्रत्येक ग्रह गजत की दशा (Direction & Condition): जैसे मागी, िक्री (Retrograde)
या खथथर (Stationary)
• नाडी पद्जत के अनुसार प्रत्येक ग्रह द्वारा अजधजष्ठत राजश की जदशा की जानकारी आजद।
अब, सभी ग्रहों को उनके द्वारा जन्मकाजलक अजधजष्ठत राजश के अनुसार संबंजधत जदशाओं
में व्यिखथथत करें । कुंडली (चािि ) के जिश्लेषण के जलए "प्रोग्रेशन" के साथ आगे बढें । इस
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क्रम में सबसे से पहले जातक के जलंग (पुरुष अथिा स्त्री) के आधार पर "जीि कारक ग्रह-
बृहस्पजत (पुरुष जीि कारक) और शुक्र (स्त्री जीि कारक)" का जनणिय करना चाजहए।
आगामी अध्यायों में, ऊपर जदए गए सभी जबंदुओं पर सहायक उदाहरणों और चािि के साथ
जिस्तृत चचाि की जाएगी।
भाग - 1
नाड़ी-ज्योतिष के
प्रमुख तनयम
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नाड़ी ज्योजतष में फजलत जिचार के दौरान ग्रहों के कारकत्व, जदशा, दृजष्ट (अस्पेक्ट), िक्रत्व
(Retrogression), राजश-पररितिन (साइन एक्सचेंज), प्रोग्रेशन और गोचर (Transit ~
पारगमन) आजद जैसे कुछ जनयम / स्वभाि जसद्ां तों का पालन/उपयोग करते हैं ।
इसके अलािा, कुछ मूलभूत जनयमों का उल्लेख जकया गया है , मैं इस अध्याय में अपने
जिचारों को साूँ झा (शेयर) करता हं ।
प्रत्येक ग्रह की कुछ मौजलक जिशेषताएं /गुण होते हैं , जो मानिीय संबंधी जिषयों को “कमि-
जसद्ां त” के तहत प्रभाजित करते हैं । प्रत्येक ग्रह की जिशेषताएं /गुण उस ग्रह से संबंजधत
प्राथजमक, पौराजणक, ज्योजतषीय और खगोलीय जिचारों पर अजधक जनभिर हैं । प्रत्येक ग्रह के
अपनी जिजशष्टताओं/गुणों या प्राथजमक प्रकृजत के आधार पर कुछ जनजित कारकत्व
जनधाि ररत जकये गये है । नाड़ी ज्योजतष में प्रत्येक ग्रह के कारकत्वों के ज्ञान के जबना आगे
बढना मुखिल है ।
उदाहरण के जलए: जुड़िां जन्म के मामले में, दोनों जातकों की कुंडली लगभग एक-समान
होती है , इस कारण फजलत जिचार में मुखिल होती है । लेजकन, यजद ग्रहों के कारकत्व के
आधार पर दोनों जातकों के जलए जिचार करते हैं , तो दोनों जातकों की जन्मकुंडली का
अलग-अलग जिश्लेषण करना बहुत आसान हो जाता है । यजद जुड़िां-जन्म के अंतगित
दोनों जातक पुरुष है , तो ऐसी खथथजत में "बृहस्पजत ग्रह" जीि-कारक माना जाता है , लेजकन
बड़े जातक और छोिे जातक के जन्म/जन्मकुंडली के बीच अंतर करने के जलए, हम इस
प्रकार जिचार करते हैं :
• बड़े जातक के जलए: बृहस्पजत (जीि-कारक अथाि त् जीिन) + शजन (बड़े भाई का
कारक)।
• छोिे जातक के जलए: बृहस्पजत (जीि-कारक अथाि त् जीिन) + मंगल (छोिे भाई का
कारक) ।
2. चन्द्रमा: मां , बड़ी बहन, बड़ी साली, सास, मामा की पत्नी, मां के ररश्तेदार, तीसरी पत्नी
3. मंगल: पजत (स्त्री जातक के मामले में), भाई (जद्वतीय), दू सरा पुत्, साला, चाचा, दामाद,
सभी पै तृकपक्ष सम्बन्धी संबंध।
4. बुध*: दू सरी पत्नी, युिा भाई (तीसरा), युिा बहन, जमत्, करीबी जमत्, प्रेमी/प्रेजमका, मामा,
सबसे छोिी पुत्ी।
5. बृहपजत: पुरुष जातक के जलए बृहस्पजत जीिन कारक है (अथाि त् स्वयं ), गुरु, गाइड,
प्रजतजष्ठत व्यखि, दू सरा पजत।
6. शुक्र: स्त्री-जातक के जलए जीि-कारक ग्रह है , पत्नी, बेिी, बड़ी बहन (स्वयं से बड़ी),
बड़ी बेिी, बड़ी पुत्-िधु।
* बुध को नपुंसक ग्रह के रप में जाना जाता है या बेहतर अथि में बुध को "जद्वजलंग" माना
जाना चाजहए। यहाूँ जन्मकाजलक बुध जजस राजश-जिशेष में उपखथथत हो, उस राजश के
(जलंग~पु रुष/स्त्री) अनुसार गुण-धमि को भी अपनाता है , जैसे स्त्री-राजश में स्त्री कारक
और पु रुष-राजश में पुरुष कारक। सूयि के जबना बुध (यानी अस्त न हो तो) मजहला के रप
में कायि करता है ! सूयि से बुध यजद 14 जडग्री की श्रेणी के भीतर हो, तो ऐसी खथथजत में बुध
ग्रह को अस्त माना जाता है ।
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नीचे जदए गए जचत् के अनुसार, प्रत्येक राजश (Sign) की एक जिशेष जदशा जनधाि ररत की गई
है । जदशाएं ग्रहों को सामूजहक रप एकत् करने और जदशा-जिशेष के अनुसार ग्रहों के
संयुि प्रभाि के जिश्लेषण करने के जलए बारह राजशयों को 4 जदशाओं में जनम्नानुसार
समूहबद् जकया गया है :
उदाहरण चािि : 1
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उदाहरण: चाटट 2
नाड़ी- ज्योजतष के जनयमों के अनुसार ग्रहों की युजत के प्रभाि का जिश्लेषण करने के जलए
चािि - दो के अनुसार सभी ग्रहों को अजधजष्ठत-जदशा अनुसार व्यिखथथत करें । इससे ग्रहों के
आपसी प्रभाि को आसानी से समझने में आसानी होती हैं । एक ही जदशा (अथाि त परस्पर
जत्कोणथथ) में उपखथथत ग्रह एक दू सरे को 75% तक प्रभाजित कर सकते हैं , क्ोंजक िे
समान प्रकृजत साूँ झा करते हैं । परस्पर जत्कोणथथ ग्रह एक-दू सरे को 100% क्ों नहीं?
आगामी प्रकाशनों में इस जिषय पर ओर अजधक जिस्तार से जिचार साूँ झा जकये जायूँगे।
श्री आर. जी. राि के अनुसार, १२ राजशयों को जलंग (स्त्री/पुरुष) के अनुसार उस इस प्रकार
िगीकृत जकया गया है :
पुरुष-राजशयों के सामने िाली (सप्तम राजश) राजशयों को स्त्री-राजश माना जाता है । इसका
फजलत में महत्वपूणि उपयोग होता है ।
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इसके अलािा, पुरुष और मजहला ग्रहों को छोड़कर (यानी पुरुष~ सूयि, मंगल और
बृहस्पजत और स्त्री~ शुक्र), अन्य ग्रहों ~ शजन, बुध, चंद्रमा, राहु और केतु यजद राजश में
अकेले उपखथथजत हो तो, तात्काजलक रप में स्त्री कारक माने जाते है , लेजकन प्रोग्रेशन-चक्र
के अनुसार गुण-धमि में पररितिन भी आता है ।
ध्यान दें :
जसंह राजश (सूयि ~ पुरुष) ~ कुंभ (शजन ~ पुरुष) तो, संतान का जन्म कैसे हो सकता है ?
सूयि और शजन - दोनों में से कौन स्त्री होगी? यहां , कुंभ राजश एक खाली “कुम्भ” (मिका)
का प्रतीक है ! खाली मिके के अंदर अंधकार माना जाता है । मिके के अंदर का अंधेरा
(या "छाया" अथाि त सूयि की दू सरी पत्नी) है । शजन का जन्म सूयि और छाया के संयोग से
हुआ था।
ककि - मकर के मामले में, चंद्रमा को दे िी पाििती और शजन को भगिान जशि के रप में
माना जाता है ।
इसके अलािा, पां च स्त्री राजशयां को ~ िृषभ, जमथुन, ककि, कन्या और तुला के रप में
"पंचकन्या" कहा जाता है ।
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ज्योजतष में फजलत जिचार हे तु अनेक प्रकार के जसद्ां त प्रचजलत है , जहां प्रत्येक जसद्ां त/
जिद्यालय कुछ जनजित जनयमों का पालन करता है । ग्रह एक-दू सरे पर कैसे प्रभाि डालते
हैं ? यह फजलत-ज्योजतष का प्रमुख जिषय और उद्दे श्य होता है , जजसे समझने के जलए प्रमुख
जसद्ां त इस प्रकार है :
१. दृजष्ट
२. युजत
३. पारस्पररक-उपखथथजत
नाडी ज्योजतष में, "दृजष्ट और युजत" महत्वपूणि जसद्ां त है । ग्रहों की युजत को अजधक प्रभािी
रप से समझने हे तु ग्रहों की पारस्पररक-उपखथथजत (म्यूच्यूअल-प्लेसमेंि) का जिशेष महत्व
होता है , जोजक कुंडली में ग्रहों की प्रभाि क्षमता और बल को समझने हे तु आिश्यक है ।
सभी 12 राजशयां एक दू सरे से श्रंखला (Closed Chain) के रप में जुड़ी हुई है , जैसा जक
नीचे चािि में जदखाया गया है । इसके अलािा, इन 12 राजशयों को जदशाओं (Directions)
के आधार पर भी िगीकृत जकया गया है ।
1. जनकििती भाि/राजशयां
3. राजश पररितिन
4. जत्कोण भाि/राजशयां
सभी ग्रहों के आपसी प्रभाि को आसानी से समझने हे तु, लग्न-कुंडली में उपखथथत ग्रहों को
जचत् 2 के अनुसार सम्बंजधत जदशाओं में व्यिखथथत करें ।
1 1 (b): जनकििती भािों में उपखथथत ग्रह एक-दू सरे को नीचे जचत् में जदखाए अनुसार
प्रभाजित करते हैं :
खथथर ग्रह ~ जब एक ग्रह अपनी जदशा बदलता है अथाि त मागी या िक्री होने के
दौरान कुछ समयािजध के जलए खथथर प्रतीत होता है .... ऐसी खथथजत में उस ग्रह को
खथथर-ग्रह कहा जाता है । जिचारणीय ग्रह की जन्मकुंडली में "गजत के अनुसार
खथथजत ~ मागी, िक्री अथिा खथथर" ... जिचारणीय ग्रह की प्रभाि क्षमता के आकलन
के जलए एक प्रमुख कारक भी होती है ।
स्मरण रखें~ सूयि और चंद्र सदै ि मागी ही रहते है तथा राहु और केतु सदै ि िक्री ही
रहते है । इसजलए "गजत के अनुसार खथथजत ~ मागी, िक्री अथिा खथथर"... केिल बुध,
शुक्र, मंगल, गुरु और शजन के जलए ही जिचारणीय होती है ।
2 1 (c): जिचारणीय भाि/राजश से 7 िें भाि/राजश में उपखथथत ग्रह (और 7 िें
भाि/राजश के जत्कोण में उपखथथत ग्रह भी) जिचारणीय भाि/राजश में उपखथथत ग्रह
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5 (e): िक्रत्व: इस जिषय पर अलग अध्याय में जिस्तार से चचाि होगी। संक्षेप
में, िक्रत्व काल्जनक (Hypothetical) रप से ग्रह-जिशेष की गजत एक
प्रकार की जदशा है , जजसमे ग्रह-जिशेष गोचर में िक्री अथाि त जिपरीत जदशा में
भ्रमण करता हुआ प्रतीत होता है । जबजक खगोलीय दृजष्टकोण से, सभी ग्रह
हमेशा एक जदशा में भ्रमण करते हैं ।
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बी.पी.एच.एस. के अनुसार:
नाडी ज्योजतष में, कुंडली में उपखथथत ग्रहों की प्रभाि क्षमता को समझने हे तु "िक्रत्व
(Retrogression)" को भी जिशेष ध्यान दे ने की आिश्यकता होती है । िक्री ग्रह के प्रभाि
को समझने हे तु "िक्रत्व" के जिजभन्न प्रकारों को समझना आिश्यक है ।
अब, जन्म/प्रश्न कुंडली में जबंदुओं (पॉइं ि्स) "क" और "ख" के बीच में दे खें की... क्ा कोई
जन्मकाजलक ग्रह उपखथथत है ? अगर ग्रह िहां उपखथथत हैं ... तो िहां उपखथथत
जन्मकाजलक ग्रह/ग्रहों को िक्री ग्रह के गोचर के दौरान अच्छे / बुरे पररणामों का अनुभि
करने की काफी अजधक संभािना होती है ।
(2). िक्री ग्रह द्वारा जन्म के बाद पुनः (गोचर में) अपनी जन्मकाजलक राजश और अंश-
कलाजद पर आने की जतजथ।
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(३). िक्री ग्रह द्वारा जन्म के बाद पुनः (गोचर में) िक्रत्व के आरम्भ-थथल (राजश और अंश-
कलाजद) पर आने की जतजथ। उपरोि तीनो "सूत्" अत्यंत मह्तिपूणि है और इनके जिषय
में पु नः इतना ही जलखूंगा जक ये सूत् "शोधकताि छात्ों के उपयोगी जसद् हो सकते है "।.
उत्तरः िहृी ग्रह कमटफल* के िीव्रिा से तनष्पादन को इिं तगि करिा है।
"तट् पल ट् ािंत़िट थ्योरी" के िहि भी िहृी ग्रह का अध्ययन तकया जाना चातहए, जैसा
तक मेरे द्वारा तलम्भखि शोध-पत्: “Triple Transits- A forbidden Predictive Tool”,
जोतक “Astrological Researches Group” में फेस बुक पर पोस्ट तकया गया िा :
https://www.facebook.com/download/preview/1388218624774530
जब भी जन्म/प्रश्न-कुंडली में "ए" ग्रह "बी" ग्रह की राजश में उपखथथत हो और साथ ही "बी"
ग्रह भी "ए" ग्रह की राजश में उपखथथत हो तो, यह खथथजत उपरोि "ए" और "बी" ~ दो ग्रहों
के बीच "राजश-पररितिन (साइन-एक्सचेंज)" के रप में जानी जाती है ।
* यह जनयम नक्षत् स्तर पर ग्रहों के बीच पररितिन (एक्सचेंज) में भी लागू जकया जा सकता
है , अथाि त~ यजद "ए" ग्रह "बी" ग्रह के नक्षत् में उपखथथत हो और "बी" ग्रह "अ" ग्रह के नक्षत्
में उपखथथत हो तो, यह खथथजत उपरोि "ए" और "बी" ~ दो ग्रहों के बीच "नक्षत्-पररितिन"
के रप में जानी जाती है ।
उदाहरण चाटट : 1
राजश-पररितिन के कारण, जब दोनों ग्रहों को उनकी अपनी-अपनी राजश में थथानां तररत
माना जाता है ... तो ऐसी खथथजत में दोनों ग्रहों को स्वाभाजिक तौर पर शखिशाली और
शुभथथ माना जाना चाजहए, लेजकन यहाूँ सािधानी बरतने की जररत होती है , क्ोजक
राजश-पररितिन के बाद िास्तजिक रप में यह जां चना आिश्यक है जक क्ा दोनों ग्रहों को
असल में शुभता जकस स्तर तक प्राप्त हुई है ।
* मंगल ~ उच्चथथ
27
* शजन ~ नीचथथ
* मंगल ~ स्वराजशथथ
* शजन ~ स्वराजशथथ
इस चािि में, सूयि और मंगल के मध्य राजश-पररितिन है । सूयि मेष राजश में उच्चथथ है ,
जबजक मंगल जमत् राजश- जसंह में उपखथथत है । अब राजश-पररितिन के बाद, सूयि अपनी
राजश- जसंहथथ माना जायगा, लेजकन यहाूँ सूयि उच्च पद खो दे ता है । लेजकन, इसी खथथजत
28
में मंगल को लाभ होता है , क्ोंजक राजश-पररितिन के बाद मंगल स्वराजशथथ माना जाता
है ।
उदाहरण चािि : 3
29
ध्यान दे ने योग्य:
ध्यान दे ने योग्य: मंगल अपनी मेष राजश शुभ ग्रह: बृहस्पजत से युजत में जमलता है । इसजलए,
बृहस्पजत के शुभ प्रभाि के तहत मंगल शुभ और अजधक शखिशाली बना। दू सरी तरफ,
सूयि जसं ह राजश में राहु से युजत में शाजमल होता है , लेजकन यहां सूयि उच्च पद को खो दे ता है
और राहु के प्रभाि में भी आता है ।
30
नोि: सभी ग्रह सूयि के चारों ओर अपने जनधाि ररत मागि में भ्रमण करते हैं और िे
िस्तुतः एक-दू सरे को कभी नहीं जमलते हैं । लेजकन, जब हम धरती पर दे खते हैं ,
ऐसा लगता है ... सभी ग्रह एक ही मागि पर भ्रमण कर रहे हैं , लेजकन यह केिल
दृश्य-प्रभाि है । उपरोि जिचारणीय खथथजतयों से पररणाम प्रभाजित होते है ।
*मान लीजजए, राहु 14 जडग्री पर और मंगल 9 जडग्री पर है .... यहां राहु और मंगल~
एक-दू सरे को दे खते है (दृजष्ट सम्ब््बध बन रहा है )। इस तरह, मंगल और राहु दोनों
एक-दू सरे को प्रभाजित करें गे।
*मान लीजजए, उपरोि थथजत में यजद मंगल 24 जडग्री पर है ... तो, राहु पर मंगल का
कोई भी प्रभाि नहीं होगा अथिा परस्पर युजत के कारण न्यूनतम प्रभाि माना
जायेगा।
*मान लीजजए, सूयि 28 जडग्री पर है और बृहस्पजत 19 जडग्री पर है ... ऐसी खथथजत में
सूयि-बृहस्पजत की युजत में सूयि ग्रह अजधक लाभाखन्रत होंगे।
हालां जक राजश पररितिन के बाद, सूयि उच्चपद से नीचे आये है , लेजकन राहु (14
जडग्री) पर, जबजक सूयि 28 जडग्री पर है । क्ोंजक सूयि और राहु दोनों एक-दू सरे से
जिपरीत जदशाओं में जा रहे हैं । ऐसी खथथजत में सूयि पर राहु का दु ष्प्रभाि अत्यंत न्यून
ही माना जायेगा।
पहले अध्यायों में, नाड़ी-ज्योजतष के सन्दभि में अनेक महत्वपूणि आधारभूत बातों पर चचाि
हुई है । उसी जनरं तरता में, इस अध्याय में नाड़ी-ज्योजतष के एक और बहुत महत्वपूणि और
मौजलक जिषय ~ "प्रगजत (प्रोग्रेशन-Progression)" पर मैं अपने शोधात्मक जिचार साूँ झा
कर
ूँ गा।
"प्रगति को तिकास के रूप में पररभातषि तकया जा सकिा है ", खासकर धीरे -धीरे
या चरणोिं में।
जड़ और चेतन रपी प्रकृजत सदै ि पररितिनशील रहती है जड़-प्रकृजत में बदलाि बेहद
धीरे और चेतन-प्रकृजत में बदलाि अत्यंत शीघ्र अनुभूत होते है । जीि को चेतन-प्रकृजत का
स्वरुप माना जाता है । नाड़ी-ज्योजतष में मनुष्यरपी जीि के जिकास-क्रम को कुंडली,
उसमे उपखथथत ग्रहों और प्रत्येक ग्रह से सम्बखन्धत जिजभन्न कारकत्वों के माध्यम से समझने
हे तु ग्रहों की "चहृीय-प्रगति (Cyclic-Progression)" का उपयोग जकया जाता है ।
जकसी भी ग्रह का प्रोग्रेशन का दो स्तरों पर जिश्लेषण जकया जाना चाजहए, जैसा जक:
प्रत्येक ग्रह सम्पूणि राजशमंडल का एक चक्र एक जनजित अिजध में पूणि करता है ।
1. िृ हत स्तर (Macro Level): नाड़ी ज्योजतष के मूल जसद्ां तों के अनुसार, प्रत्येक ग्रह के
प्रोग्रेशन की अिजध (प्रजत चक्र प्रजत 30 अंश)" उस ग्रह-जिशेष द्वारा राजशमंडल के एक
भ्रमण के औसत समय के बराबर होती है । यह "िृहत- प्रोग्रेशन (Macro
Progression)" के रप में जाना जाता है . उदाहरण के जलए, बृहस्पजत पूरे राजशमंडल
का एक चक्र (ि् ां जजि) पूरा करने के जलए 12 साल (लगभग) लेता है । इसजलए, चक्र के
जलए बृहस्पजत की प्रगजत 12 िषि की अिजध है । नोि: शुक्र स्त्री-जीि का कारक ग्रह है
और इसकी "िृहत- प्रोग्रेशन अिजध प्रजत चक्र" 12 िषि की अिजध ही मानी जाती है ।
सामान्यत: जीि कारक ग्रह- “बृहस्पजत और शुक्र”, कमि कारक ग्रह- “शजन”, काल कारक
ग्रह- “राहु” और मोक्ष कारक ग्रह- “केतु” के प्रोग्रेशन (Progression) का जिचार जकया
जाता है . इनके अजतररि, सूयि, मंगल और बुध ग्रह के प्रोग्रेशन का भी जिचार जकया जाता
है ।
2. सूक्ष्म स्तर (Micro Level): अब, अगला प्रश्न उठता है जक, जकसी राजश-जिशेष में
प्रोग्रेशन के दौरान जीि-कारक ग्रह 12 साल की अिजध के जलए प्रोग्रेशन करे गा, तो अन्य
राजशयों/भािों से सम्बंजधत फजलत का जिचार कैसे होगा? यहां , "सूक्ष्म प्रोग्रेशन तितध
(माइहृो प्रोग्रेशन मेिड)" का उपयोग करना चाजहए। इस पद्जत के तहत, जीि-कारक
ग्रह अपने 12 साल की प्रगजत की अिजध सम्बखन्धत चक्र के आरम्भ थथल से आगे की
अलग-अलग राजशयों/भािों में प्रजत एक िषि 2 अंश 30 कला प्रोग्रेशन करे गा।
जपछले अध्याय में, मैंने जीि-कारक ग्रहों~ बृहस्पजत और शु क्र के प्रोग्रेशन पर जिचार साझा
जकए हैं । जीि-कारक ग्रहों का प्रोग्रेशन मूलतः आयु और जीिन के सुख-दु ःख आजद
खथथजतयों से संबंजधत है ।
पौराजणक जहं दू कथाओं के अनुसार, जीि कमि करता है और कमि के फल के अनुसार जीि
की आगे गजत तय होती है । जैसा जक पहले से ही बताया गया है जक ~ शजन सभी प्रकार के
कमों से सम्बखन्धत कारक-ग्रह है । कमि और कमिफल के संभाजित पररणामों के बारे में
समझने के जलए हमें शजन-ग्रह के प्रोग्रेशन की आिश्यकता होती है । राजश-चक्र का एक
भ्रमण पूरा करने के जलए शजन-ग्रह को 30 िषि (औसत) लेता है । प्रोग्रेशन की अिजध के
जनयम के अनुसार, शजन-ग्रह के प्रोग्रेशन की अिजध ~ 30 िषि प्रजत 30 अंश (राजश/भाि
आजद) होती है ।
शजन ग्रह द्वारा पूरे राजशमंडल का एक बार भ्रमण पूरा करने के जलए 30 साल (औसत)
लगते हैं । नाड़ी ज्योजतष के मूल जसद्ां तों के अनुसार, शजन ग्रह के प्रोग्रेशन की अिजध भी
30 िषि-प्रजत चक्र मानी गई है । यह "िृहत स्तर का प्रोग्रेशन" माना जाता है , जजसके अंतगित
प्रोग्रेशन के दौरान शजन ग्रह जन्मकाजलक अजधजष्ठत राजश-अंश-कलाजद से आगे प्रत्येक
चक्र में 30 अंश के जहसाब से प्रजत 30 िषि में आगे बढता है . प्रथम चक्र जन्मजदन (प्रथम
िषि) से 30 िषि की आयु तक, दू सरा चक्र 31 िें िषि से 60 िें िषि तक, तीसरा चक्र 61िें िषि
से 90 िषि की आयु तक और आगे इसी तरह लागू होगा। प्रथम चक्र जन्मकाजलक
अजधजष्ठत राजश/अंश-कलाजद से आरम्भ होकर अगले ३० अंश तक प्रभािी रहता है ।
दू सरा-चक्र प्रथम-चक्र के समाखप्त अंश-कलाजद से आरम्भ होकर अगले ३० अंश तक
प्रभािी रहता है . इसी प्रकार आगे जिचार करें ।
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अब, अगला सिाल उठता है जक, प्रोग्रेशन के प्रत्येक चक्र के दौरान शजन ग्रह प्रत्येक 30
अंश/ राजश/भाि में 30 िषों की अिजध के जलए प्रोग्रेस (Progress) करे गा। तो ऐसी खथथजत
में अन्य राजशयों/भािों के सन्दभि में शजन ग्रह के प्रोग्रेशन का फजलत जिचार कैसे करें ? यहां ,
"सूक्ष्म स्तर जिजध" (माइक्रो प्रोग्रेशन मेथड)" का उपयोग करना चाजहए। "सूक्ष्म स्तर जिजध"
(माइक्रो प्रोग्रेशन मेथड)" पुनः दो प्रकार का है :
उदाहरण चािि : 1
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39
जपछले अध्यायों में, मैंने बृहस्पजत, शुक्र और शजन ग्रह के प्रोग्रेशन के संदभि में अपने
शोधात्मक जिचार साूँ झा जकये है । इस अध्याय में, मैं राहु के प्रोग्रेशन से सम्बखन्धत अपने
शोधात्मक जिचार साझा कर
ं गा।
राहु ग्रह नाड़ी-ज्योजतष में काल-पुरुष या काल के रप में जाना जाता है । एक तरफ, राहु
िृ खद् का कारक है ; दू सरी तरफ जीि के जलए काल (दै जहक- मृत्यु) कारक भी होता है ।
जीिन और मृत्यु चक्र के अनुसार अगर जन्म होता है , तो मौत भी होती है । बृहस्पजत
(जीि~जीिन) और राहु (काल~मृत्यु) का संबंध "जीिन और मृत्यु चक्र" में अंतजनिजहत है ।
राहु सभी प्रकार के सां साररक कायि, उनमे रजच और जिकास, और अंतत: पुनः "जीिन
और मृत्यु चक्र" में उलझाए रखता है । अब सिाल उठता है , कुंडली-जिश्लेषण में राहु के
प्रोग्रेशन का ताजकिक उपयोग कैसे करें ?
अन्य ग्रहों की भां जत ही, राहु-ग्रह के प्रोग्रेशन का दो स्तरों पर जिश्लेषण करना चाजहए:
राहु ग्रह पूरे राजशमंडल का एक भ्रमण 18 िषि (लगभग) लेते हैं । इसजलए, राहु के प्रोग्रेशन
के प्रत्येक चक्र की अिजध 18 िषि होती है । इसे राहु के "िृहत स्तर के प्रोग्रेशन" के रप में
जाना जाता है । राहु ग्रह के प्रोग्रेशन का प्रथम चक्र की अिजध~ जन्म-जदन (प्रथम िषि) से
18 िें िषि तक होती है । दू सरा चक्र 19िें िषि से 36 िें िषि तक प्रभािी रहता है । तीसरा चक्र
37िें िषि से 54 िें िषि प्रभािी रहता है । इसी प्रकार आगे जिचार करें ।
राहु और केिु ~ ऐसे दो ग्रह है , जो सदै ि िहृी ही रहिे है । राहु और केिु का प्रोग्रेशन
भी िहृी अिाटि तिपरीि ही तिचारणीय होिा है ।
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उदाहरण के जलए, जन्मकाजलक राहु मेष राजश में ५ अंश पर उपखथथत है । उपरोि खथथजत
में राहु के प्रोग्रेशन का प्रथम चक्र मेष राजश में ५ अंश से आरम्भ होगा और जिपरीत जदशा
में अथाि त मीन राजश के 5 अंश पर पूणि होगा। राहु के प्रोग्रेशन का दू सरा चक्र मीन राजश में
5 अंश से आरम्भ होगा और जिपरीत जदशा में अथाि त कुम्भ राजश के 5 अंश पर पूणि होगा।
इसी प्रकार आगे जिचार करें ।
अब, अगला प्रश्न, प्रत्येक चक्र के दौरान राहु ग्रह मात् ३० अंश प्रोग्रेस करे गा। इस अिजध के
दौरान अन्य राजशयों/भािों से सन्दभि में फजलत जिचार कैसे जकया जाये? यहाूँ "सूक्ष्म स्तर
जिजध" का उपयोग करना चाजहए।
18 िषि की अिजध के जलए प्रत्येक चक्र के भीतर (या 30 अंश का क्षेत्) में राहु ग्रह को प्रजत
िषि ~ 1 अंश 40 कला प्रोग्रेस जकया जाता है , अथाि त 1 अंश ४० कला * 18 = 30 अंश।
यहां जिशेष ध्यान दें ~ चक्र-जिशेष (या ितिमान समय में आयु के अनुसार में जिचारणीय
चक्र) से सम्बखन्धत ३० अंश के क्षेत् (राजश/भाि) में मौजूद जन्मकाजलक ग्रह/ग्रहों से
प्रोग्रेशन फजलत हे तु जिशेषतः जिचारणीय होता है ।
2. अन्य राजशयों/भािों के जलए: राहु की चक्र-जिशेष (या ितिमान समय में आयु के अनुसार
जिचारणीय चक्र) से आगे प्रत्येक ३० अंश (या राजश/भाि) को डे ढ िषि की समयािजध में
प्रोग्रेस करता है अथाि त 1 और ½ िषि प्रजत ३० अंश (या राजश/भाि) * १२ (राजशयां /भाि) =
18 िषि।
उदाहरण चािि : 1
जपछले अध्यायों में, मैंने बृहस्पजत, शुक्र, शजन और राहु ग्रह के प्रोग्रेशन के संदभि में अपने
शोधात्मक जिचार साूँ झा जकये है । इस अध्याय में, मैं केतु ग्रह के प्रोग्रेशन से सम्बखन्धत अपने
शोधात्मक जिचार साझा कर
ं गा।
केतु ग्रह नाड़ी-ज्योजतष में मोक्ष और सां साररक कायों में बाधा-कारक के रप में जाना
जाता है । जीिन और मृत्यु चक्र के अनुसार अगर जन्म होता है , तो मृत्यु भी होती है ।
बृहस्पजत (जीि~जीिन) और राहु (काल~मृत्यु) का संबंध "जीिन और मृत्यु चक्र" में
अंतजनिजहत है । यहाूँ राहु पुनजिन्म के भेद से सभी प्रकार के सां साररक कमि, उनमे रजच
और जिकास, और अंतत: पुनः "जीिन और मृत्यु चक्र" में उलझाएं रखता है । यहाूँ ध्यान
योग्य बात यह है जक राहु सां साररक-कमि-बंधन "ऋण" के रप में एकजत्त कराता जाता है
और साथ ही "दै जहक मृत्यु" का बोधक भी है ।
लेजकन दू सरी तरफ केतु सां साररक-कमि-बंधन रपी "ऋण" से मुखि उपरां त मोक्ष कारक
होता है और यह तभी सम्भि हो पायेगा जब कमि-कारक शजन ग्रह का केतु से सम्बन्ध बने ।
अब यहाूँ पुनः ध्यान दे ने की जररत है : शजन और केतु की जन्मकाजलक/तात्काजलक
परस्पर-खथथजत (म्यूच्यूअल प्ले समेंि) बेहद महत्वपूणि होती है , यहां मोक्ष हे तु शजन और केतु
का एक दू सरे की तरफ दृजष्ट होना आिश्यक शति है , जबजक शजन और केतु का एक दू सरे
की तरफ दृजष्ट होना सां साररक कायों- नौकरी/व्यिसाय आजद में बाधायें या परे शानी
कारक हो सकता है । यजद शजन और केतु का परस्पर दृजष्ट सम्बन्ध न हो तो आरखम्भक
पररश्रम के बाद स्वतंत् प्रकृजत के कायि/व्यिसाय में अजधक सफलता जमलती है ।
सिाल उठता है , कुंडली-जिश्लेषण में केतु ग्रह के प्रोग्रेशन का ताजकिक उपयोग कैसे करें ?
अन्य ग्रहों की भां जत ही, केतु -ग्रह के प्रोग्रेशन का दो स्तरों पर जिश्लेषण करना चाजहए:
केतु ग्रह पूरे राजशमंडल का एक भ्रमण 18 िषि (लगभग) लेता है । इसजलए, केतु के
प्रोग्रेशन के प्रत्येक चक्र की अिजध 18 िषि होती है । इसे केतु के "िृहत स्तर के प्रोग्रेशन" के
रप में जाना जाता है । केतु ग्रह के प्रोग्रेशन का प्रथम चक्र की अिजध~ जन्म-जदन (प्रथम
िषि) से 18 िें िषि तक होती है । दू सरा चक्र 19िें िषि से 36 िें िषि तक प्रभािी रहता है ।
तीसरा चक्र 37िें िषि से 54 िें िषि प्रभािी रहता है । इसी प्रकार आगे जिचार करें ।
राहु और केिु ~ ऐसे दो ग्रह है जो सदै ि िहृी ही रहिे है । राहु और केिु का प्रोग्रेशन
भी िहृी अिाटि तिपरीि ही तिचारणीय होिा है ।
उदाहरण के जलए, जन्मकाजलक केतु मेष राजश में ५ अंश पर उपखथथत है । उपरोि खथथजत
में केतु के प्रोग्रेशन का प्रथम चक्र मेष राजश में ५ अंश से आरम्भ होगा और जिपरीत जदशा
में अथाि त मीन राजश के 5 अंश पर पूणि होगा। केतु के प्रोग्रेशन का दू सरा चक्र मीन राजश में
5 अंश से आरम्भ होगा और जिपरीत जदशा में अथाि त कुम्भ राजश के 5 अंश पर पूणि होगा।
इसी प्रकार आगे जिचार करें ।
अब, अगला प्रश्न, प्रत्येक चक्र के दौरान केतु ग्रह मात् ३० अंश प्रोग्रेस करे गा। इस अिजध के
दौरान अन्य राजशयों/भािों से सन्दभि में फजलत जिचार कैसे जकया जाये? यहाूँ "सूक्ष्म स्तर
जिजध" का उपयोग करना चाजहए।
18 िषि की अिजध के जलए प्रत्येक चक्र के भीतर (या 30 अंश का क्षेत्) में केतु ग्रह को प्रजत
िषि ~ 1 अंश 40 कला प्रोग्रेस जकया जाता है , अथाि त 1 अंश ४० कला * 18 = 30 अंश. यहां
जिशेष ध्यान दें ~ चक्र-जिशेष (या ितिमान समय में आयु के अनुसार में जिचारणीय चक्र) से
सम्बखन्धत ३० अंश के क्षेत् (राजश/भाि) में मौजूद जन्मकाजलक ग्रह/ग्रहों से प्रोग्रेशन
फजलत हे तु जिशेषतः जिचारणीय होता है ।
2. अन्य राजशयों/भािों के जलए: केतु की चक्र-जिशेष (या ितिमान समय में आयु के अनुसार
जिचारणीय चक्र) से आगे प्रत्येक ३० अंश (या राजश/भाि) को डे ढ िषि की समयािजध में
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प्रोग्रेस करता है अथाि त 1 और ½ िषि प्रजत ३० अंश (या राजश/भाि) * १२ (राजशयां /भाि) =
18 िषि।
उदाहरण चािि : 1
ग्रहों के कारकत्वों के माध्यम से नाड़ी-ज्योजतष को जानने के जलए ये मूल जनयम हैं । उम्मीद,
पाठकों को लाभ होगा।
ॐ श्रीकृष्णापिणमस्तु।
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Astrological Researches
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तित्त
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• भाग्य- उदय?
• गु प्त ख़िाना
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