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अध्माम -1
मोग का अथथ
मोग शब्द ऩाणणननव्माकयण के मज
ु धातु से फना जजसका अथथ हैं जोड़ना
|ऩाणणननव्माकयण शास्त्र के अनुसाय मूज शब्द के तीन अथथ हैं | मुज धातु का अथथ है
सभाधध |
१ - मुजजय मोगे - मुजजय मोग का अथथ जोड़ने से लरमा गमा है
२ - मुज सॊमभने – मुज सॊमभने का अथथ अऩने भन को इजरिमों को सॊमलभत कयना मा
वश भें कयना ही मोग है |
३ - मुज सभाधौ - मुज सभाधौ का अथथ है सभाधध को प्राप्त कयना | ईश्वय भें रीन हो
जाना ही सभाधध है |
मोग की ऩरयबाषा
द्धवलबरन ग्रॊथो भें एवॊ ऩयु ाणादद तथा इनतहास भें मोग की द्धवलबरन ऩरयबाषा प्राप्त है ,
ककरतु भहद्धषथ ऩतञ्जलर ने सभस्त्त शास्त्रों का सायसॊग्रह कयके मोग को दशाथमा है ,
जजसको ऩतञ्जलरमोगदशथन कहा गमा है |
भहद्धषथ जी के अनुसाय धित्त की वजृ त्तमों का सवथधा रुक जाना मा ननयोध हो जाना ही मोग
कहराता है |
धित्त की ऩाॊि वजृ त्तमाॉ है - प्रभाण , द्धवऩमथम , द्धवकल्ऩ , ननिा औय स्त्भनृ त है
अवस्त्थाद्धवशेष भें उतत वजृ त्तमाॉ रुक जाती है वही मोग कहराती है |
माऻवल्क्म थभनृ त के अनस
ु ाय:-
जीवात्भा औय ऩयभात्भा की सभानता सभाधध कहा गमा है एवॊ ऩयभात्भा एवॊ आत्भा के
सॊमोगो को ऩयभ ् मोग कहा गमा है |
हटमोगप्रदीवऩका के अनुसाय :-
जजस प्रकाय नभक जर भें लभरकय जर की सभानता को प्राप्त हो जाता है , उसी प्रकाय
जफ भन वजृ त्तशूरम होकय आत्भा के साथ ऐतम को प्राप्त कय रेता है , तो भन की उस
अवस्त्था का नाभ सभाधध है |
आत्भा औय भन की एकता बी सभाधध का पर है , उसका रऺण नहीॊ है | इसी प्रकाय भन
औय आत्भा की एकता मोग नहीॊ है अद्धऩतु मोग का पर है |….. (2)
श्रीभद्भगवद्गीता के अनुसाय
सफ़रता तथा द्धवफ़रता भें आसजतत को त्माग कय सभ-बाव भें जस्त्थत हुआ अऩना
कतथव्म सभझकय कभथ कय, श्री कृष्ण बगवान ने कहा अााशजतत को त्माग कय तथा
लसजध्द औय अलसजध्द भें सभान फजु ध्दवारा फनकय होकय मोग भें जस्त्थत हुआ कतथव्म
कभो को कयते यहना जफ इनभे (लसजध्द औय अलसजध्द ) सभ बावना प्राप्त कयना ही मोग
है |
सभत्व फद्धु ि-मोग के द्वाया भनष्ु म इसी जीवन भें अऩने-आऩ को ऩण्
ु म औय ऩाऩ कभों से
भत
ु त कय रेता है । अत: तू इसी मोग भें रग जा, तमोंकक इसी मोग के द्वाया ही सबी कामथ
कुशरता-ऩूवक
थ ऩूणथ होते है , फुजध्द को सभान कयना मा ऩुण्म औय ऩाऩ दोनों ही
को इस रोक भें त्माग दे ता है मा उनसे भुतत हो जाता है | इससे सभ बावना
,मोग भें रग जा तमोकक मह सभरूऩ मोग ही कभो भें कुशरता ( अऩने कामो
को ऩूणत
थ ् कयना ) है मा कभथ फॊधन से भुतत होने का उऩाम है | मही मोग
कहराता है |
ऩहरे उस अवस्त्था को जानना जजससे साधक बायी द्ु ख से द्धविलरत नहीॊ हो तमोकक
जजसको तू सत्म सभझता है वह केवर असत्म है ऩहरे से जानरो तमोकक मही सॊसारयक
दख
ु ् का कायण है जजसके वसीबूत तू है | अॊतत् तू उस सत्म को जानेगा वही मोग खेद
यदहत धित्त से अनुजष्ि होता है | इसी को मोग कहते है |
भनुष्म को िादहमे कक दृड़-द्धवश्वास के साथ मोग का अभ्मास कयते हुए सबी साॊसारयक
सॊसगथ से उत्ऩरन दख
ु ों से बफना द्धविलरत हुए है मोग सभाधध भें जस्त्थत यहकय कामथ कये ।
…..(3)
हट प्रदीवऩका के अनुसाय
मोग शब्द सभाधध का वािक है | मह सभाधध जीवात्भा एवॊ ऩयभात्भा की एकता से सबी
सॊकल्ऩो के नष्ट होने ऩय प्राप्त होती है |
जीवात्भा औय ऩयभात्भा के लभरन से सबी साधक के सबी सॊकल्ऩ नष्ट हो जाते है व
मही अवस्त्था सभाधध मा मोग की अवस्त्था है | इसी को मोग कहा जाता है |
एतमॊ जीवात्भनो याहुमोंग मोग द्धवशायदा् ||
तॊर मोग
याॊगेम याघव अऩनी ऩुस्त्तक ' गोयखनाथ ' औय उनका मुग भें लशव व शजतत लभरन को
मोग कहते है |
भहवषथ अयववन्द :-
भैत्रामण्मुऩननषद के अनुसाय:-
मोग का इनतहास
बगवान श्री दहयण्मगबथ जी मोग को मोग का प्रथभ प्रवतता भाना गमा है | भनु स्त्भनृ त भें
बगवान श्री दहयण्मगबथ को सजृ ष्ट के ननभाथण कताथ एवॊ द्धवनाशकताथ बी कहा है |
दहयण्मगबथ ककसी ऐनतहालसक ऩरु
ु ष का कही ऩय उल्रेख नहीॊ लभरता दहयण्मगबथ
भनष्ु म नहीॊ है मह ऩजु ष्ट वेदो भें की गमी है एवॊ मही मोग के प्रथभ प्रवतता है |
दहयण्मगबो संवतथगाग्रे बत
ू थम जात् ऩनतये कासीत |
सदाधाय ऩथ्
ृ वी धातुभेता कथभै दे वाम हववश ववधेभ ||
भैंने इस अद्धवनाशी मोग-द्धवधा का उऩदे श सजृ ष्ट के आयम्ब भें द्धववस्त्वान (सूमथ दे व) को
ददमा था, द्धववस्त्वान ने मह उऩदे श अऩने ऩुर भनुष्मों के जरभ-दाता भनु को ददमा औय
भनु ने मह उऩदे श अऩने ऩुर याजा इक्ष्वाकु को ददमा | इस प्रकाय गुरु-लशष्म ऩयम्ऩया से
प्राप्त इस द्धवऻान सदहत ऻान को याज-ऋद्धषमों ने बफधध-ऩव
ू क
थ सभझा, ककरतु सभम के
प्रबाव से वह ऩयभ-श्रेष्ि द्धवऻान सदहत ऻान इस सॊसाय से प्राम: निरन-लबरन होकय
नष्ट हो गमा। आज भेये द्वाया वही मह प्रािीन मोग (आत्भा का ऩयभात्भा से लभरन का
द्धवऻान) तुझसे कहा जा यहा है तमोंकक तू भेया बतत औय द्धप्रम लभर बी है , अत: तू ही इस
उत्तभ यहस्त्म को सभझ सकता है ।
अध्माम -2
ऩरयिम
ककसी द्धवषम मा बफॊद ु वस्त्तु ऩय एकाग्रता मा धिॊतन की किमा ' ध्मान '
कहराती है | ऩव
ू थ के भॊरो भें ध्मान की ऩरयबाषा दे ते हुए द्धवलबरन ग्रॊथो भें
ध्मान मोग को सभाधध की प्रथभ अवस्त्था फताई है | जफ कल्ऩना की
इस्त्थ्ती गहयी होती है औय वह एक धिर के रूऩ भें स्त्ऩष्ट रूऩ से अॊदय
ददखाई दे ने रगती है तफ वह ध्मान की स्त्थनत कहराती है |
ध्मान आऩका एक भार कतथव्म है तमोकक ध्मान से ब्रभाॊड की सभुॊद ऊजाथ
शयीय भें प्रवेश कयती है , वह ऊजाथ शयीय को शजततशारी एवॊ भानलसक रूऩ
से स्त्वस्त्थ्म फनाती है |
धायणा की अॊनतभ स्त्थनत दह ध्मान है | प्रायम्ब भै ध्मान कयना फहुत दह
भजु श्कर होता है इसलरए ध्मान को गरु
ु के साननध्म भें कयना दह उधित
यहता है तमोकक की ध्मान भें जाना औय ध्मान से वाऩस आना फड़ा दह
कदिन होता है , अऩनी एकग्रता को अगय कहहीॊ औय दह रे गए तो वाऩस
आना भुजश्कर हो जाता है इलसरए ध्मान गुरु के सभऺ कयना दह उत्तभ
यहता है |
तैर - धया के सतत प्रवाह के सदृश ककसी एक दह द्धविाय के प्रवाह को
फनामे यखना दह ध्मान की उत्तभ स्त्थनत है |
साधको को ध्मान मोग भें आने से ऩव
ू थ अस्त्टाॊग मोग का ऩारन कयना िादहए
ध्मान मोग भें मोगी तबी आमे जफ प्रत्माहाय औय धायणा को सस्त्
ु थनत कयरे
उसके उऩयाॊत दह ध्मान मोग मा ध्मान की तैमायी कये |
प्रायम्ब भें इजरिमो भें उिर - कूद भि जाता है ,वह ककसी की बफॊद ु ऩय
एकाग्र नहीॊ होती तमोकक हभ अद्धवधधमा से धगये हुए यहते हैं , भोह ,भामा
, इत्मादद के वशीबूत यहते हैं जो मोग के प्रनत श्रिा को नष्ट कय दे ता हैं
, साधना के भागथ अनतमॊत कदिन होते हैं , इस भागथ ऩय गुरु के ननदे श
दह हभे भोऺ की प्राजप्त कयामेगे मही मोग भागथ हैं |
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अभत
ू थ ध्मान:-
स्त्थूर ध्मान :-
स्त्थर
ू ध्मान भे साधक बगवान स्त्वरूऩ का ध्मान कयते हैं जो भत
ू थ ध्मान की
अवस्त्था हैं मह ध्मान की ऩहरी स्त्थर
ू िीजों के ध्मान को स्त्थर
ू ध्मान कहते हैं- जैसे
लसिासन भें फैिकय आॊख फॊदकय ककसी दे वता भूनतथ प्रकृनत मा शयीय के बीतय जस्त्थत
रृदम िि ऩय ध्मान दे ना ही स्त्थूर ध्मान है । इस ध्मान भें कल्ऩना का sअवस्त्था
भानी गमी हैं |
सूक्ष्भ ध्मान :-
सूक्ष्भ ध्मान भें साधक अऩने भन की सभस्त्त ऊजाथ को अिैत ब्रह्भा मा आत्भा के
द्धविाय ऩय ही एकाग्र कयता हैं तथा अरम रूऩों की स्त्भनृ तमों की तुरनात्भक
द्धविायणा से अऩने को दयू यहखता हैं |उसके भन भें केवर ब्रह्भ का एक भार
द्धविाय उसके भन भें यहता हैं | ककसी आॊतरयक औय फाह्म बफॊद ु मा ऩदाथथ ऩय भन को
केंदित कयना एकाग्रता हैं इसके फाद की जस्त्थनत ध्मान हैं |इसको अभत
ू थ ध्मान का
नाभ बी ददमा हैं|
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ध्मान का सभम :-
सफ
ु ह ४ से ६ फजे तक ध्मान कये | मह ध्मान का सवोतभ सभम हैं जफ आऩके
द्धविाय शुरम हो वहीॊ सभम ध्मान का उत्तभ सभम भन गमा हैं, तमोकक आऩ
इस सभम फहुत ही ऊजाथवान होते हैं| मही ध्मान के अभ्मास का उधित सभम
बी हैं ,मही आऩकी एकाग्रता को बी फढ़ाता है | इस सभम भन याग - द्वेष से
भुतत यहता है मही सभम शाश्रो भें बी उत्तभ भाना गमा है |अऩने एकाग्रता
को धीये धीये फढ़ाना िादहए ध्मान भें ज्मादा तेजी नहीॊ रानी िादहए धीये -धीये
कये औय प्रायम्ब भें ध्मान कभ सभम तक कयना िादहए |
ध्मान की द्धवधध :-
भन धोखा दे ता यहता है तमोकक भन भें द्धविाय धाया फहती यहती हैं जफतक वह द्धविाय
धाया शूरम नहीॊ होगी तफ तक ध्मान भें एकाग्रता राना भुभककन नहीॊ होता इसलरए
स्त्वाभी जी ने ध्मान की द्धवधध इस प्रकाय दी हैं -
ककसी बी ध्मान आसन भें आकय कभय गदथ न को सीधा कये एवॊ आॉखों को फॊद कये
औय अऩने द्धविायो को शुरम कये एवॊ अऩनी िेतना ऩय एकाग्रता फनाने की कोलशश
कयते हैं | अऩनी आत्भा को जानने का प्रमास कये |
आत्भा के आनॊद स्त्वरूऩ का ध्मान कयें | मदद आऩ मह ध्मान न कय सकें तो सम
ू थ,
प्रकाश, सवथव्माऩी आकाश मा वामु का ध्मान कयें | ह्रदम के प्रकाश को भहसस
ू कयें ,
आऩ ऩयभ ् शाॊनत औय आनॊद का अनब
ु व कयें गे |
"नाभरूऩभ न ते न भें |
अहॊ आत्भा ननयाकय् सवथव्माऩी स्त्वबावत् ||"
अथातथ
"आत्भा को अऩने स्त्वरूऩ का ऻान हैं, आत्भा को प्रत्मेक वस्त्तु का ऻान हैं |
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मह आऩका वास्त्तद्धवक स्त्वरूऩ हैं, इस सॊसाय भें आत्भा की तयह कोई ऩदाथथ नहीॊ हैं
|
इन श्रोको के ननदहताथथ का फाय - फाय भनन कये , इनभें ननदहत द्धविाय आऩको
शजतत प्रदान कयें गे
दीघथ प्रणव –
ॐ का १० मा १२ फाय उच्िायण कयें इसका गहन ध्मान कयें एवॊ शतत ध्मान कयें ,
प्रायम्ब भें मह आऩकी एकाग्रता ऩय ननबथय कयता हैं की आऩ ध्मान भें ककतना खो
सकते हैं धधये धये आऩ अऩने शयीय को जस्त्थर फनामे एवॊ आऩ भन भें ॐ शब्द के
उच्िायण से उत्तऩन प्रकाश को जानने का प्रमास कयें |
"मथालबभत ध्मानाद्वा"
अथातथ
अऩनी रूधि की ककसी बी वस्त्तु ऩय ध्मान कयें ध्मान से धीये - धीये वाऩस आइए
फहुत ही धीये - धीये वाऩस आना होगा | इसलरए आऩ सवथप्रथभ ध्मान गुरु मा
ध्मान मोगी के साननध्म भें आऩको ध्मान का अभ्मास कयना होगा | जफ आऩ
अऩने भन को एकाग्र कयने की जस्त्थ्ती भें आना व जाना शुरू कय सकने भें
सऺभ न हो तफ तक स्त्वमॊ ध्मान भें न जामे |
ववशेष :-
नम्रता , धिॊतन - भनन तथा ध्मान याजलसक स्त्वबाव को नष्ट कय दे , सावधान यहे
,भन को साजत्त्वक द्धविायो से बय दे , अध्मात्भ भागथ ऩय ननबीकता से िरते यहे तथा
शीघ्र ही अऩने गॊतव्म ऩय ऩहुॊि कय अऩना रक्ष्म प्राप्त कयें | जफ साधक
आध्माजत्भक द्धवकासकयने रगता है , तफ उसभे आध्माजत्भक दऩथ कक बावना
उतऩरन हो जाती हैं | आत्भद्धवश्रेषण था स्त्वारवेषण से मह दऩथ नष्ट हो जाता हैं |
दै ननक जीवन को सभमनुसाय व्मतत कयें | मह जस्त्थय न यहने वारा िॊिर भन जजस
कायण से साॊसारयक ऩदाथो भें द्धवियता है , उस - उस से योक कय फायम्फाय ऩयभात्भा
भें ननयोध कयें |मभ , ननमभ , का ऩारन अनतआवशमक है तबी आऩ मोग साधना
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कयने भें सभथथ हो सकते हो उसके फाद आसन , प्राणामाभ , प्रत्माहाय , धायणा ,
ध्मान , सभाधध मह मोग के आि अॊग है जो आऩको भोऺ मा केवल्मधाभ की
प्राजप्त कय सकते हो |
ॐ ऩय ध्मान
अभूतथ ध्मान
सम
ू थ का तेज , िॊरिभा की प्रबा तथा तयको की घत
ु ी का ध्मान कयें | सभि
ु के वैबव
औय असीभता का ध्मान कयें | कपय उसकी तुरना ब्रह्भ से कयें | सभि
ु की रहयों ,
पेनऔय दहभशैरों की तुरना वलबरन साॊसारयक नाभ - रूऩों से कयें | सोिे की आऩ
सभुि हैं | शाॊत हो जाए | सभुि के साभने के सभान अऩना द्धवस्त्ताय कयें , द्धवस्त्ताय
कयते जामें | दहभारम का ध्मान कयें | गॊगा के प्रवाह ऩय ध्मान एकर कयें अफ मह
प्रवाह भहसूस कयते जामें औय सभुि तक रे जामें | िेतना को इसी प्रकाय घुभामे |
आकायहीन वामु की औय टकटकी रगा कय दे खे | वामु ऩय भन को एकाग्र कयें | वामु
के सवथव्माऩक स्त्वरूऩ का ध्मान कयें | मह ध्मान आऩको नाभ - रूऩ - यदहत ब्रह्भ -
जो एकभार जीवॊत सत्म हैं - के साऺात्काय की औय रे जामेगा | अऩनी स्त्वास के
प्रवाह के प्रनत जागरूक फने | आऩको ‘सोऽहभ ्’ सूक्ष्भ ध्वनन सन
ु ामी ऩड़ेगी - स्त्वास
अॊदय रेते सभम 'सो' की तथा िोड़ते सभम 'हॊ ' की साथ आऩकी अलबरनता का
स्त्भयण कया यही हैं | प्रनत लभनट १५ की दय से आऩ सहज ही प्रनतददन २१,६०० फाय ''
का जऩ कय यहे हैं | ‘सोऽहभ’ के साथ सत , धित तथा आनॊद , ऩूणथ शुधिता ,शाॊनत ,
ऩूणत
थ ा तथा प्रेभ के द्धविायो को सॊफि कयें | भॊर का जऩ कयते सभम अऩने शयीय को
नकाये तथा ऩयभ आत्भा के साथ अऩनी अलबरनता का अनुबव कयें |
ननगुण
थ ब्रह्भ का ध्मान कयें | सोिे की सभस्त्त नाभ - रूऩो के भूर भें एक जीवॊत ऩयभ
शजतत हैं | शजतत सजच्िदारद - स्त्वरूऩ हैं तथा असीभता औय अभयता के रऺणों से
सम्ऩरन हैं - मथासभम मे रक्ष्ण ननगण
ु थ ध्मान भें द्धवरीन हो जामेगा |
ध्मान के राब :-
स्त्थूर ध्मान, ज्मोनतध्माथन , सूक्ष्भ ध्मान तीन प्रकाय के ध्मान घेयण्ड सॊदहता भें
फतामे गए है |
सूक्ष्भॊ बफरदभ
ु मॊ ब्रह्भ कुण्डरीऩयदे वता ॥१||
(१ - थथूर ध्मान )
ऩारयजातै् थथरऩद्मैगन्
थ धाभोददतददङ्भुखै् ॥४॥
तन्भध्मे संथभये द्मोगी कल्कऩवऺ
ृ ं भनोहयभ ्।
20
तिऩ
ू ं ध्मामते ननत्मं थथूरध्मानलभदं ववद्ु ॥८॥
अऩने ह्रदम भें ध्मान कीजजमे |कल्ऩना कीजजमे की वहाॉ एक सागय अभत
ृ से
बया हुआ है | उसके फीि भें एक द्वीऩ है , जो यत्न से बया हुआ है , औय वहाॉ
फारू यत्न िण
ू ों की है | इस द्वीऩ भें परो से रड़े अनेक वऺ
ृ है , जो द्वीऩ की
शोबा फड़ा यहे है | मे ऩष्ु ऩ द्वीऩ के कोने - कोने भें इन ऩष्ु ऩों की सग
ु ॊध पैरी
होती है | इस द्वीऩ भें कल्ऩवऺ
ृ नाभक के वऺ
ृ है | मह सुॊदय पर - पूरो से
रदा हुआ है | इसकी िाय शाखामे िायो वेदो का प्रनतननधधत्त्व कयती है | मह
वऺ
ृ सॊद
ु य पर - पूरो से रड़ा हुआ है | सम्ऩण
ू थ द्वीऩ भें कोमर की भधयु
फोरी गूॊज यही है |इस द्वीऩ ऩय एक िफयू ता है | मह एक हया िफत
ू या हीये ,
नीरभ आदद अनेक प्रकाय यत्नो से सजा हुआ है | ऩन
ु ् कल्ऩना कीजजमे की
उस िफत
ू ये ऩय आऩके इष्ट दे व फैिे हुए है | गरु
ु द्वाया फताई गमी द्धवधध के
अनस
ु ाय इष्ट ऩय ' ध्मान ' कीजजमे | इष्ट मदद गरु
ु है तो उनका शयीय दे णखमे
| उरहोंने शयीय भें जो आबूषण धायण की हुए है उन ऩय अऩना ध्मान एकाग्र
कये | इस द्धवधध से गुरु के स्त्थर
ू रूऩ का ध्मान कयते है |
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(२ - ज्मोनत ध्मान )
भर
ू ाधाये कुण्डलरनी बज
ु गाकायरूवऩणण।
भूराधाय भें सऩकाथय रूद्धऩणी कुजण्डरीन है | मही दीऩक की रौ के रूऩ भें आत्भा का
ननवास है | मह तेजोभम ऩयात्ऩय ब्रह्भ का ध्मान कयना ही तेजोध्मान, अथातथ
ज्मोनतध्मान है | बौंहो के भध्म औय भन के उध्वथ भें जो प्रणवात्भक ज्मोनत है , उस
ज्वारसवरी मुतत ज्मोनत का ध्मान ही ज्मोनतध्माथन कहराता है |
व्माख्मा:-
ताजत्त्वक दृजष्टकोण से दे खने ऩय भूराधाय िि ऩथ्
ृ वी तत्व का प्रतीक औय ऩथ्
ृ वी की
अॊनतभ ऩरयणनत, अॊनतभ अवस्त्था है | हभ ऩथ्
ृ वी तत्व के आकषथण के बीतय जीवन
व्माऩन कयते है | ऩथ्
ृ वी तत्व मह बलू भ मा ग्रह नहीॊ है औय न लभट्टी, फारू ,कॊकड़ इत्मादद
है | ऩथ्
ृ वी तत्व है स्त्व - ऩरयबाद्धषत ऩदाथथ मा ऊजाथ | सम्ऩण
ू थ सजृ ष्ट का रूऩ ऩथ्
ृ वी तत्व
का रूऩ होता |
23
ज्मोनत का दस
ू या तयीका है -
ऩहरे कहा गमा की भूराधाय भें आत्भा का ननवास है | कपय कहते है की भ्रूभध्म भें
आत्भा का ननवास है | दो जगह कैसे हो सकता है ? अगय भहद्धषथ की ऩरयबाषा के अनुसाय
िरे तो आत्भा के बी दो रूऩ होते है , एक फाह्र्म जो ऩथ्
ृ वी है | दस
ू या होता है अव्मतत रूऩ
, जो भ्रभ
ू ध्म भें है ,आऻा भें | आऻा िि शध्
ु द प्रकृनत मा शध्
ु द िेतना का प्रतीक है उसके
फाद ही द्धवलबरन तत्वों औय बूतो का अनुबव होता है |
अत् जो आत्भा भूराधाय भें है , वह व्मतत है | वह बी एक केंि है झा ऩय हभ आत्भा
के प्रकाश का अनुबव कय सकते है औय जो आत्भा शुध्द तत्व के रूऩ भें है , वह
अव्मतत है , आऻा जजसका ननवास है , वह बी एक जस्त्थनत है जहाॉ ऩय हभ ऩया भें
आत्भा का अनुबव प्राप्त कय सकते है | मे दोनों अवस्त्थामे आत्भा के प्रकाश से ऩरयऩूणथ
है |
भर
ू ाधाय भें जो आत्भा है , वह कुण्डलरनी के रूऩ भें है औय भ्रभ
ू ध्म भें आत्भा का जो रूऩ
है , वह प्रणव रूऩ है |इन दोनों ऩय जफ ध्मान ककमा जाता है , तफ इस प्रकाय के ध्मान से
मोग-द्धवऻानॊ भें ऩण
ू त
थ ा प्राप्त होती है | शर
ू मावस्त्था भें जफ हभ ऩदाथथ औय द्धवषम को न
दे खकय भार आत्भा - प्रकाश का अनुबव कयते है , तफ स्त्ऩॊदन मा नाद की अनुबूनत
होती है |
24
(३ - सक्ष्
ू भ ध्मान )
शाम्बवी भुिा का ध्मान कयता हुआ मोगी कुण्डलरनी का ध्मान कये , मही शुक्ष्भ ध्मान है ,
जो अत्मॊत गोऩनीम औय दे वताओ के लरए दर
ु ब
थ है | स्त्थूर ध्मान से ज्मोनत ध्मान सौ
गुना श्रेष्ि है औय ज्मोनत ध्मान राख से शुक्ष्भ ध्मान राख गुना श्रेष्ि है |
25
व्माख्मा
कुण्डलरनी की जागनृ त होने ऩय असीभ सत्ता के साथ भनुष्म की िेतना का मोग होता है ,
तफ वह स्त्वमॊ आत्भभम फन जाता है | आत्भा भें औय उसभे ककसी प्रकाय का बेद नहीॊ
यहता |
सूक्ष्भ ध्मान का अथथ होता है वास्त्तद्धवक ध्मान अफ ककसी प्रकाय के अॊतयार भें हभ नहीॊ है
| अफ कोई दयु ी नहीॊ है | अफ भें प्रकाश ऩय ध्मान कय यहा हूॉ |वयन जजस केंि से उसकी
उत्ऩजत्त होती है , उसे भें प्राप्त कय िूका हूॉ | जफ भें उस केंि को प्राप्त कय रेता हूॉ , तफ
भें भोऺ की प्राप्त कय रेता हूॉ , तफ भोऺ औय ऻान की प्राजप्त होती है |इस ध्मान का
भार अनुबव ककमा जा सकता है , इस अवस्त्था भें ऩहुॊि जाने के फाद आत्भ -
साऺात्काय होना है | आत्भ तत्व से एक हो जाना है |….. (5)
ध्मान का थवरूऩ :-
धयना का अभ्मास मदद ननयॊ तय ढखा जामे तो वही धायणा ददहन फन जाती हैं | धायणा
का सभम मदद ऩाॉि घदटका है तो ध्मान का सभम साि घदटका है | मदद साि घदटका
तक धित्तवजृ त्त ककसी ध्मेमाकाय द्धवषम भें एकाग्र हो जामे तो वह धायणा ही ध्मान कही
जाती है | मही फात सूरकाय कह यहे हैं -
तत्र प्रत्ममैकतानता ध्मानभ ् ॥| मोसूत्र ३.२ ॥
अथातथ
जजस स्त्थान भें ध्मेम के रूऩ भें धायणा द्वाया धित्तवजृ त्त रगामा होव उसी ध्मेमरूऩ
आरॊफन भें धित्तवजृ त्त मदद एकाग्रता को प्राप्त होवे तो मह ध्मान कहराता हैं |
एकाग्रता का अथथ हैं की द्धवजातीम वजृ त्त से यदहत सजामतीम
वजृ त्त का प्रवाह ननयॊ तय िरता यहे तो वह प्रवाह ही ध्मान कहराता हैं | ध्मान भें
अरमवजृ त्त के व्मवधान से यदहत केवर ध्मेद्धवषमक वजृ त्त ही साि घदटका तक फनी
यहती हैं |
नालबिि रृदमदे श भें जो धायणा कयने का ननदे श ककमा हैं उसका अथथ मह नहीॊ हैं की
केवर उस नालबधेश भें ही धायणा कये अद्धऩतु उसका अथथ मह हैं की उस दे श भें जस्त्थत
ऩयभेश्वय आदद की धायणा कये | मही फात गरुड़ऩयु ाण भें कही गमी हैं –
प्राणामाभैदथशलबमाथवत्कारकृतो बवेत |
स तावत्कारऩमथन्तं भनो ब्रह्भणण धायमते ||
अथाथत
दस प्राणामाभ कयने भै जजतना सभम रगता है उतने सभम तक ब्रह्भ की धायणा कयनी
िादहए |
उतत श्रोक भे धायणा का सभम दस प्राणामाभ की अवधध फतामी गमी हैं |
शाजण्डल्मोऩननषद भै धायणा का ऩाॉि घदटका फतामा गमा है | धायणा औय ध्मान का
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लबरन - लबरन हो सकता है ककरतु दोनों के स्त्वरूऩ भें कोई अॊतय नहीॊ |
मोगेतत्वोऩननषद भें साि घदटका तक एक ध्मान की सीभा फताई गमी है | मही
अलबप्राम ननम्नोतत श्रोक का है :-
अथातथ
धायणा का सभम दस प्राणामाभ की अवधध फतामी गमी हैं | शाजण्डल्मोऩननषद भै धायणा
का ऩाॉि घदटका फतामा गमा है | धायणा औय ध्मान का लबरन - लबरन हो सकता है
ककरतु दोनों के स्त्वरूऩ भें कोई अॊतय नहीॊ | मोगेतत्वोऩननषद भें साि घदटका तक एक
ध्मान की सीभा फताई गमी है |
ध्मान के बेद:-
शाजण्डल्मोऩननषद भें ध्मान के दो बेद फतामे गए है - सगुण ध्मान औय ननगण
ुथ ध्मान |
ककसी दे वता की प्रनतभा का ध्मान कयना सगुण ध्मान है | द्धवशुध्द आत्भा की मथाथथता
का ध्मान कयना ननगण
ुथ ध्मान है |
ध्मान की द्धवधध
ध्मान कैसे रगाना िादहए इसका द्धववेिन गीता भें ककमा गमा है –
अऩने शयीय, गदथ न तथा लसय को अिर औय जस्त्थय यखकय, नालसका के आगे के लसये ऩय
दृजष्ट जस्त्थत कयके, इधय-उधय अरम ददशाओॊ को न दे खता हुआ, बफना ककसी बम से,
इजरिम द्धवषमों से भुतत ब्रह्भिमथ व्रत भें जस्त्थत, भन को बरी-बाॉनत शाॊत कयके, भुझे
अऩना रक्ष्म फनाकय औय भेये ही आश्रम होकय, अऩने भन को भझ
ु भें जस्त्थय कयके,
भनष्ु म को अऩने रृदम भें भेया ही धिरतन कयना िादहमे।
ध्मान तॊर के आरोक भें स्त्वाभी सत्मानॊद सयस्त्वती जी ने ध्मान मोग को द्धवस्त्ताय से
फतामा है स्त्वाभी जी ने १९४३ भें स्त्वाभी लशवानॊद सयस्त्वती जी से लशऺा प्राप्त की औय
उनके लशष्म फने | १९९३ भें स्त्वाभी सत्मानॊद जी ने अरतययाष्रीममोग लभर भण्डर एवॊ
१९९४ भें बफहाय मोग द्धवधारम की स्त्थाऩना की औय 1987 भें 'लशवानॊद भि की स्त्थाऩना
की औय फहुत ग्रॊथो के प्रणेता के रूऩ ग्राम्म - द्धवकास कयते यहे औय मोग ऩय वैऻाननक
शोध की दृजष्ट से मोग सॊस्त्थान की स्त्थाऩना की | १९८८ भें स्त्वाभी जी सॊरमास अऩनाकय
ऩयभहॊ स सॊरमासी का जीवन अऩना लरमा | ध्मान एवॊ ध्मान द्धवऻान , ध्मान औय
स्त्वास्त्थ्म , इस ऩुस्त्तक भें स्त्वाभी जी ने:-
"सैध्दाॊनतक द्धववेिन एवॊ अभ्मास के फीि सहज सॊतुरन यखते हुए ,इस अनऩ ु भ ऩस्त्
ु तक
भें उऩननषदों , तॊरो एवॊ ऩव
ू थ भें द्धवकलसत मोग की अनेक ऩध्दनतमो भें प्रनतऩाददक ध्मान
के लसध्दाॊतो का वणथन ककमा गमा है |"
‘द दहरद ू
ध्मान के प्रकाय:-
ध्मान दो प्रकाय के है :-
१:- सकिम ध्मान -
वास्त्तव भें मोग का उद्देश्म मह है की साभारम जीवन के
िभ-सम्ऩादन भें बी भनष्ु म की अवस्त्था भें यह सके | मही सकिम ध्मान है | इसका अथथ
मे नहीॊ की दै ननक कामो त्माग कयना, फजल्क मह की दै ननक कामो भें अधधक सकिम
यहना |
२:-ननजष्कम ध्मान:-
इस ध्मान भें एक आसन भें फैिकय ध्मान का अभ्मास ककमा जाता है |िॊिर भन को
एक बफॊद ु ऩय केंदित कयना ही इसका उद्देश्म है |
१:- ककसी वस्त्तु ऩय ध्मान को केंदित कयना | इससे भन को शाॊत होता है |
२:- इसके फाद ही भन को अिेतन ऺेर से द्धविायो , ग्रॊधथमों , दृश्मो औय स्त्भनृ तमों की
फाढ़ सी आ जाती है | मही सभम है है जफ हभ अऩने व्मजततत्व का ऩयीऺण कये औय
दग
ु ण
ुथ ों को ननकार पेके |
३:- ननम्न भन भें द्धवियण कयने के ऩश्िात उच्ितय िेतना के ऺेर भें अवगाहन प्रायम्ब
होता है |मही से वास्त्तद्धवक ऻान की प्राजप्त होती है | ऻान तथा शजतत के अनरत कोष
अनामास ददखने रगते है |
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४:- ननद्धषिम ध्मान के परस्त्वरूऩ सकिम ध्मान स्त्वत् सपर हो जाता है | जजतना इसभें
आगे फढ़ते है , ब्रह्भ जगत भें कभथ-शीर यहते इसभें उतनी ही अधधक सतत
ध्मानावजस्त्थत यहने की ऺभता फढ़ती है |t
ध्मान व्मजततगत प्रऺेऩ ऩय नबथय नहीॊ कयता | ध्मान कक अवस्त्था भें भन के उच्ितय
ऺेरों , द्धवकलसत िेतना तथा जाग्रत भन के सिेतन बागो के साथ सम्ऩकथ स्त्थाद्धऩत होता
है | इस सम्ऩकथ के फ्रस्त्वरूऩ साधक को उच्ितय भानलसक कम्ऩनों का प्रत्मऺ ऻान
प्राप्त होता है | मे शुक्ष्भ उच्ितय कम्ऩन सदा ही फने यहते है , ऩय सभारमत् उनका
अनुबव नहीॊ हो ऩता | कबी - कबी उनकी झाॉकी सज
ृ नात्भक रूऩ भें दे खी जाती है |ऻान
के मे उच्ितय रूऩ हभे दै ननक जीवन कक स्त्थूरता भें ननदहत सत्म का दशथन कयाते है |
जीवन के गूढ़तय तत्व ध्मान हभाये सम्भुख आ जाते है |
ध्मान धायणा शजतत का प्रसाय है | ऩतञ्जलर ने इसे वस्त्तु ऩय एकाग्रता का ननफाथध रूऩ से
प्रवादहत होना फतरामा है | दोंनो के फीि एक सक्ष्
ू भ अॊतय है | धायणा भें भन ध्मातव्म
वस्त्तु से बागने कक िेष्टा भें यहता है औय साधक उसे णखॊि राने कक कोलशश कयता है |
ध्मान कक जस्त्थनत भें वस्त्तु के सूक्ष्भ स्त्वरूऩ कक अनुबूनत होती है | धायणा कक अऩेऺा
ध्मान भें एकाग्रता कक गहयाई फहुत ज्मादा होती है , जो व्माहारयक जीवन के लरए
आवश्मक है |
ध्मान का भहत्व
ध्यान क्या है ? आस प्रसंग में ओशो का एक प्रससद्ध वचन है-क्या तुम ध्यान करना चाहते हो
? तो ध्यान रखना ! ध्यान में न तो सामने कु छ हो और न तुम्हारे पीछे ही कु छ हो। ऄतीत
को समट जाने दो और भसवष्य को भी। स्मृसत और कल्पना दोनों को शून्य हो जाने दो। फिर न
तो समय होगा और न अकाश ही होगा। और सजस क्षण कु छ भी नहीं होता है, तभी जानना
फक तुम ध्यान में हो। महामृत्यु का यह क्षण ही सनत्य-जीवन का क्षण भी है।’
लेफकन, ऄपने को ऄतीत और भसवष्य से, स्मृसत और कल्पना से शून्य कै से करना ? समय
और अकाश का लीन होना तो ध्यान की चरम ऄवस्था है। वही तो सनर्ववचार और मौन है,
समासध और मोक्ष और सनवााण है। ध्यान का अरं भ तो वह हो सकता है, जो ओशो द्वारा
बताइ गइ ऄनेक ध्यान-सवसधयों का पहला या दूसरा चरण कहाता है। समसाल के सलए
‘सफिय-ध्यान’ में तीव्रतम सांस लेना, हाथ-पााँव ईछालकर, चीख-सचल्लाकर शरीर और मन
का रे चन करना अरं भ हो सकता है। जहााँ हम हैं, वहीं से तो हमें अरं भ करना है।
ध्यान चेतना की ऄंतयाात्रा है, सजसमें चेतना बोधपूवाक, बाहर से भीतर की ओर, पररसध से
कें द्र की ओर, पर से स्वयं की ओर, ऄथवा दृश्य से द्रष्टा की ओर प्रसतिमण करती है। दूसरे
शब्दों में, ऄसस्तत्व का जो एक ही जीवंत क्षण है, जो ऄभी और यहीं है और सजसमें समस्त
जीवन समाया है, ईससे संबद्ध और संपृक्त होना, ईसमें ही होना ध्यान है।
आस ध्यान को साधने से चेतना सनबंध और सनर्ग्रंसथ, ऄखंड और ऄडोल, ऄसंग और ऄसीम
ऄवस्था को ईपलब्ध होती है। थोडे शब्दों में-ध्यान, समासध और ऄंततः अत्मबोध का,
परमात्मा का द्वार बनता है।
नवीन सवसधयााँ और ईपाय खोजे हैं और वे चाहते हैं फक साधक प्रयोग और भूल की प्रफिया से
गुज़रकर ऄपनी ऄपनी-ऄपनी सवसध का चुनाव करें । आस संदभा में ओशो के ये वचन ध्यान में
धर लेने योग्य हैं-
‘बुद्ध और महावीर सजनको समझा रहे थे, वे बडे सरल लोग थे। ईनका कु छ दबा हुअ नहीं
था, आससलए ईन्हें ध्यान में सीधे ले जाया जा सकता था। अप सीधे ध्यान में नहीं ले जाए जा
सकते, अप बहुत जरटल हैं। अप ईलझन हैं। एक पहले तो अपकी ईलझन को सुलझाना
पडेगा और अपकी जरटलता कम करनी पडेगी और अपके रोगों से थोडा छु टकारा करना
पडेगा। टेंपरे री ही सही। चाहे ऄस्थायी ही हो, लेफकन थोडी देर के सलए अपकी भाप को
ऄलग कर देना जरूरी है-जो अपको ईलझाए हुए है-तो अप ध्यान की तरि मुड सकते हैं;
ऄन्यथा अप नहीं मुड सकते।
‘आससलए दुसनया की सारी पुरानी पद्धसतयााँ ध्यान की, अपके कारण व्यथा हो गइ हैं। अज
ईनसे कोइ काम नहीं हो रहा। अपमें सौ में से कभी एकाध अदमी मुसश्कल से होता है,
सजसको पुरानी पद्धसत पुराने ही ढंग से काम कर पाए। सनन्यानबे अदसमयों के सलए कोइ
पुरानी पद्धसत काम नहीं कर पाती। ईसका कारण यही नहीं फक पुरानी पद्धसतयााँ गलत हैं;
ईसका कु ल कारण आतना है फक अदमी नया है और पद्धसतयााँ सजन अदसमयों के सलए
सवकससत की गइ थीं, वे पृथ्वी से खो गए। अदमी दूसरा है। यह जो आलाज है, वह अपके
सलए सवकससत नहीं हुअ था। अपने आस बीच नइ बीमाररयााँ आकट्ठी कर ली हैं।
‘तीन हजार, चार हजार, पााँच हजार साल पहले ध्यान के जो प्रयोग सवकससत हुए थे, वे ईस
अदमी के सलए थे, जो मौजूद था। वह अदमी ऄब नहीं है। ईस अदमी का जमीन पर कहीं
कोइ सनशान नहीं रह गया है। ऄगर कहीं दूर जंगलों में थोडे-से लोग समल जाते हैं, तो हम
ईनको जल्दी से सशसक्षत करके सभ्य बनाने की पूरी कोसशश में लगे हैं और हम सोचते हैं, हम
बडी कृ पा कर रहे हैं, ईनकी सेवा करके ।
‘अदमी जैसा अज है, ऐसा अदमी जमीन पर कभी भी नहीं था। यह बडी नइ घटना है। और
आस नइ घटना को सोचकर ध्यान की सारी पद्धसतयों में रे चन, कै थार्वसस का प्रयोग जोडना
ऄसनवाया हो गया है। आसके पहले फक अप ध्यान में ईतरें , अपका रे चन हो जाना जरूरी है,
37
एक
ईन लोगों ने कहा, ‘क्या सवचार कर रहे हैं, चलना है या नहीं ?’ तो ईस अदमी ने कहा,
‘ऄगर तुम्हारे साथ जहाज पर कु छ ऄखबार हों जो तुम्हारी दुसनया की खबर लाए हों, तो मैं
सपछले फदनों के कु छ ऄखबार देख लेना चाहता हाँ।’ ऄखबार देखकर ईसने कहा, ‘तुम ऄपनी
दुसनया सम्हालो और ऄखबार भी, और मैं जाने से आं कार करता हाँ।’
बहुत हैरान हुए वे लोग। ईनकी हैरानी स्वाभासवक थी। पर वह अदमी कहने लगा, ‘आन
पााँच वषों में मैंने सजस शांसत, सजस मौन और सजस अनंद का ऄनुभव फकया है, वह मैंने पूरे
जीवन के पचास वषों में भी तुम्हारी ईस बडी दुसनया में कभी ऄनुभव नहीं फकया था। और
सौभाग्य और परमात्मा की ऄनुकंपा फक ईस फदन तूिान में नाव ईलट गइ और मैं आस द्वीप
पर अ लगा। यफद मैं ऄभी आस द्वीप पर न लगा होता, तो शायद मुझे पता भी न चलता फक
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हम ईस बडे पागलखाने के सहस्से हैं, ईसमें ही पैदा होते हैं, ईसमें ही बडे होते हैं, ईसमें ही
जीते हैं-और आससलए कभी पता भी नहीं चल पाता फक जीवन में जो भी पाने योग्य है, वह
सभी हमारे हाथ से चूक गया है। और सजसे हम सुख कहते हैं और सजसे हम शांसत कहते हैं,
ईसका न तो सुख में कोइ संबंध है और न शांसत से कोइ संबंध है। और सजसे हम जीवन कहते
हैं, शायद वह मौत से फकसी भी हालत में बेहतर नहीं है।
लेफकन पररचय करठन है। चारों ओर शोरगुल की दुसनया है। चारों ओर शब्दों का, शोरगुल
का ईपद्रवर्ग्रस्त वातावरण है। ईस सारे वातावरण में हम वे रास्ते भूल जाते हैं, जो भीतर
मौन और शांसत में ले जा सकते हैं।
आस देश में-और आस देश के बाहर भी-कु छ लोगों ने ऄपने भीतर भी एकांत द्वीप की खोज कर
ली है। न तो यह संभव है फक सभी की नावें डू ब जाएाँ, न यह संभव है फक आतने तूिान ईठें ,
और न यह संभव है फक आतने सनजान द्वीप समल जाएाँ, जहााँ सारे लोग शांसत और मौन का
ऄनुभव कर सकें । लेफकन, फिर भी यह संभव है फक प्रत्येक व्यसक्त ऄपने भीतर ही ईस सनजान
द्वीप को खोज ले।
ध्यान ऄपने ही भीतर ईस सनजान द्वीप की खोज का मागा है। यह भी समझ लेने जैसा है फक
दुसनया के सारे धमों में बहुत सववाद हैं-ससिा एक बात के संबंध में सववाद नहीं है-और वह
बात ध्यान है। मुसलमान कु छ और सोचते; हहदू कु छ और, इसाइ कु छ और, पारसी कु छ और,
जैन, बौद्ध और। ईनके ससद्धांत सबके बहुत सभन्न हैं। लेफकन एक बात के संबंध में आस पृथ्वी
पर कोइ भी भेद नहीं है, और वह यह फक जीवन के अनंद का मागा ध्यान से होकर जाता है।
और परमात्मा तक ऄगर कोइ भी कभी पहुाँचा है, तो ध्यान की सीढी के ऄसतररक्त और फकसी
सीढी से नहीं। वह चाहे, जीसस, और फिर चाहे बुद्ध, और चाहे मुहम्मद, और चाहे महावीर-
कोइ भी, सजसने जीवन की परम धन्यता को ऄनुभव फकया है, ईसने ऄपने ही भीतर में डू ब
के ईस सनजान द्वीप की खोज कर ली।
आस ध्यान के सवज्ञान के संबंध में दो-तीन बातें अपसे कहना चाहाँगा। पहली बात तो यह फक
साधारणतः जब हम बोलते हैं, तभी हमें पता चलता है फक हमारे भीतर कौन-कौन सवचार
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चलते हैं। ध्यान का सवज्ञान आस सस्थसत को ऄत्यंत उपरी ऄवस्था मानता है। ऄगर एक
अदमी न बोले, तो हम पहचान भी न पाएाँ फक वह कौन है, क्या है ?
शब्द हमारे बाहर प्रकट होता है, तभी हमें पता चलता है-‘हमारे भीतर क्या था’। ध्यान का
सवज्ञान कहता है, यह ऄवस्था, सबसे उपरी ऄवस्था है सचत की; सरिे स है, उपर की पता है।
हम नहीं बोले होते हैं तब भी पहले ईसके सवचार भीतर चलता है, ऄन्यथा हम बोलेंगे कै से ?
ऄगर मैं कहता हाँ ओम् तो आसके पहले फक मैंने कहा-मेरे भीतर, ओठों के पार, मेरे हृदय के
फकसी कोने में ‘ओम्’, का सनमााण हो जाता है। ध्यान कहता है, यह दूसरी पता है, व्यसक्त की
गहराइ की।
साधारणतः अदमी उपर की पता पर ही जीता है, ईसे दूसरी पता का भी पता नहीं होता।
ईसके बोलने की दुसनया के नीचे भी एक सोचने का जगत् है, ईसका भी ईसे कु छ पता नहीं
होता। काश, हमें हमारे सोचने के जगत् का पता चल जाए, तो हम बहुत हैरान हो जाएाँ।
सजतना हम सोचते हैं, ईसका बहुत थोडा-सा सहस्सा वाणी में प्रकट होता है। ठीक ऐसे ही
जैसे एक बिा के टु कडे को हम पानी में डाल दें, तो एक सहस्सा उपर हो और नौ सहस्सा
नीचे डू ब जाए। हमारा भी नौ सहस्सा जीवन का, सवचार का तल नीचे डू बा रहता है, एक
सहस्सा उपर फदखाइ पडता है।
ध्यान कहता है, पहले तल का नाम ‘बैखरी’ है, दूसरे तल का नाम ‘मध्यमा’ है। और ईसके
नीचे भी एक तल है, सजसे ध्यान का सवज्ञान ‘पश्यंसत कहता है। आसके पहले फक भीतर, ओठों
के पार, हृदय के कोने में शब्द सनर्वमत हो, ईससे भी पहले, शब्द का सनमााण होता है। लेफकन
ईस तीसरे तल का तो हमें साधारणतः कोइ भी पता नहीं होता, ईससे हमारा कोइ संबंध
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नहीं होता। दूसरे तक हम कभी-कभी झााँक पाते हैं, तीसरे तक हम कभी नहीं झााँक पाते।
ध्यान का सवज्ञान कहता है फक पहला तल ‘बोलने’ का है, दूसरा तल ‘सोचने’ का है, तीसरा
तल ‘दशान’ का है। पश्चयंसत का ऄथा है ‘देखना’, जहााँ शब्द देखे जाते हैं। मुहम्मद कहते हैं-मैंने
कु रान देखी-सुनी नहीं। वेद के ऊसष कहते हैं-हमनें ज्ञान देखा-सुना नहीं। मूसा कहते हैं-मेरे
सामने टेन कमांडमेंट्स प्रकट हुए, फदखाइ पडे, मैंने सुने नहीं। यह तीसरे तल की बात है,
जहााँ सवचार फदखाइ पडते हैं-सुनाइ नहीं पडते हैं।
ये चार हमारी पतें हैं। आन चार दीवारों के भीतर हमारी अत्मा है। हम बाहर के परकोटे की
दीवार के बाहर ही जीते हैं। पूरे जीवन शब्दों की पता के साथ जीते हैं-और स्मरण नहीं अता
फक खजाने बाहर नहीं हैं, बाहर ससिा रास्तों की धूल है। अनंद बाहर नहीं है, बाहर अनंद
की धुन भी सुनाइ पड जाए तो बहुत। जीवन का सब-कु छ भीतर है-जडों में-गहरे ऄाँधेरे में
दबा हुअ। ध्यान वहााँ तक पहुाँचने का मागा है।
पृथ्वी पर बहुत से रास्तों से ईस पााँचवीं सस्थसत में पहुाँचने की कोसशश की जाती रही है। और
जो व्यसक्त आन चार सस्थसतयों को पार करके पााँचवीं गहराइ में नहीं डू ब पाता, ईस व्यसक्त को
जीवन तो समला, लेफकन जीवन को जानने की ईसने कोइ कोसशश नहीं की, ईस व्यसक्त को
खजाने तो समले, लेफकन खजानों से वह ऄपररसचत रहा और रास्तों पर भीख मााँगने में ईसने
समय सबताया। ईस व्यसक्त के पास वीणा तो थी-सजससे संगीत पैदा हो सकता था, लेफकन
ईसने ईसे कभी छु अ नहीं, ईसकी ऄाँगुसलयों का कभी कोइ स्पशा ईसकी वीणा तक नहीं
पहुाँचा।
हम सजसे सुख कहते हैं, धमा ईसे सुख नहीं कहता। है भी नहीं, हम भली-भााँसत जानते हैं।
हमारा सुख करीब-करीब ऐसा है....मुझे एक छोटी-सी कहानी याद अती है-
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एक अदमी ऄपने समत्रों के पास बैठा है-बहुत बेचैन, बहुत परे शान। और ऐसा मालूम पडता
है ईसके भीतर कोइ बहुत कष्ट है; फकसी पीडा को वह दबाए हुए है। ऄंततः एक समत्र ईससे
पूछता है-आतने परे शान हैं, बात क्या है ? ससर में ददा है ? पेट में ददा है ?’
ईस अदमी ने कहा, ‘नहीं, न ससर में ददा है, न पेट में ददा है; मेरे जूते बहुत काट रहे हैं, बहुत
तंग हैं जूते।’ ईसके समत्र ने कहा-‘तो जूतों को सनकाल दें। और ऄगर आतने तंग जूते हैं फक
आतना परे शान कर रहे हैं, तो थोडे ठीक जूते खरीद लें।’
ईस अदमी ने कहा, ‘नहीं, यह न हो सके गा, मैं वैसे ही बहुत मुसीबत में हाँ।’ पत्नी मेरी
बीमार है, लडकी ने, नहीं चाहता था फक सजस व्यसक्त को, ईससे शादी कर ली, लडका
शराबी है, जुअरी है, और मेरी हालत दीवाले के करीब है।...नहीं, मैं वैसे ही बहुत दुःख में
हाँ। ‘ईन समत्रों ने कहा-‘अप पागल हैं ?
वैसे ही बहुत दुःख में हैं तो आस जूते को तो बदल ही लें।’ ईस अदमी ने कहा, ‘आस जूते के
साथ ही मेरा एकमात्र सुख रह गया है।’ तब तो वे बहुत चफकत हुए। ईन्होंने कहा, ‘यह सुख
फकस प्रकार का है? ईस अदमी ने कहा, ‘मैं आतनी मुसीबतों में हाँ, फदनभर यह जूता मुझे
काटता है, शाम जब मैं जूते को ईतारता हाँ, तो मुझे बडी राहत समलती है। बस एक ही सुख
मेरे पास बचा है, वह यह फक सााँझ जब मैं आस जूते को घर जा के ईतारता हाँ, तो बडी
ररलीि, बडी राहत समलती है। बस एक ही सुख मेरे पास है और तो दुःख ही दुःख हैं। आस
जूते को मैं नहीं बदल सकता हाँ।’
सजसे हम सुख कहते हैं, वह तंग जूते से ज्यादा सुख नहीं है, ररलीि से ज्यादा सुख नहीं है।
सजसे हम सुख कहते हैं, वह थोडी-सी देर के सलए फकसी तनाव से मुसक्त है।...नकारात्मक है,
सनगेरटव है।
एक अदमी थोडी देर के सलए शराब पी लेता है और सोचता है सुख में है। एक अदमी थोडी
देर के सलए सैक्स में ईतर जाता है और सोचता है सुख में है। एक अदमी थोडी देर के सलए
संगीत सुन लेता है और सोचता है फक सुख में है। एक अदमी बैठ के गपशप कर लेता है,
हाँसी-मजाक कर लेता है, हाँस लेता है, और सोचता है फक सुख में है।
ये सारे सुख तंग जूते को सााँझ ईतारने से सभन्न नहीं हैं, ईनका सुख से कोइ संबंध नहीं है।
सुख एक पॉसजरटव, एक सवधायक सस्थसत है-नकारात्मक नहीं। सुख छींक-जैसी चीज नहीं है-
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फक अपको छींक अ जाती है और पीछे थोडी राहत समलती है। क्योंफक छींक परे शान कर
रही थी। वह एक नकारात्मक चीज नहीं है फक एक बोझ मन से ईतर जाता है और पीछे
ऄच्छा लगता है।
सुख एक सवधायक ऄनुभव है। लेफकन सबना ध्यान के वैसा सवधायक सुख फकसी को ऄनुभव
नहीं होता। और जैसे-जैसे अदमी सभ्य और सशसक्षत हुअ है, वैसे-वैसे ध्यान से दूर हुअ है।
सारी सशक्षा, सारी सभ्यता-अदमी को दूसरों से कै से संबंसधत हों, यह तो ससखा देती है,
लेफकन ऄपने से कै से संबंसधत हो, यह नहीं ससखाती। समाज को कोइ प्रयोजन भी नहीं है फक
अप ऄपने से संबंसधत हों, समाज चाहता है अप दूसरों से संबंसधत हों-ठीक से, कु शलता से-
बात पूरी हो जाती; अप कु शलता से काम करें , बात पूरी हो जाती है।
समाज अपको एक िं क्शन से ज्यादा नहीं मानता। ऄच्छे दुकानदार हों, ऄच्छे नौकर हों,
ऄच्छे पसत हों, ऄच्छी मााँ हों, ऄच्छी पत्नी हों,-बात समाप्त हो गइ, अपसे समाज को कोइ
लेना-देना नहीं है। आससलए समाज की सारी सशक्षा ईपयोसगता है, यूरटसलरट है। समाज सारी
सशक्षा ऐसी देता है, सजससे कु छ पैदा होता हो। अनंद से कु छ भी पैदा होता फदखाइ नहीं
पडता। अनंद कोइ कमोसडटी नहीं है जो बाजार में सबक सके ।
अनंद कोइ ऐसी चीज नहीं है, सजसे रुपये में भाँजाया जा सके । अनंद कोइ ऐसी चीज नहीं है,
सजसे बैंक-बैलेंस में जमा फकया जा सके । अनंद कोइ ऐसी चीज नहीं है, सजसकी बाजार में
कोइ कीमत हो सके । आससलए समाज को अनंद से कोइ प्रयोजन नहीं है। और करठनाइ यही
है फक अनंद-भर एक ऐसी चीज है, जो व्यसक्त के सलए मूल्यवान है, बाकी कु छ भी मूल्यवान
नहीं है। लेफकन जैस-े जैसे अदमी सभ्य होता जाता है-यूरटसलटेररयन होता है-‘सब चीजों की
ईपयोसगता होनी चासहए।’
मेरे पास लोग अते हैं वे कहते हैं ‘ध्यान से क्या समलेगा ?’ शायद वे सोचते होंगे-रुपए समलें,
मकान समले, कोइ पद समले।’ ध्यान से न पद समलेगा, न रुपए समलेंगे, न मकान समलेगा,
ध्यान की कोइ ईपयोसगता नहीं है।
लेफकन जो अदमी ससिा ईपयोगी चीजों की तलाश में घूम रहा है, वह अदमी ससिा मौत की
तलाश में घूम रहा है। जीवन की भी कोइ ईपयोसगता नहीं है। जीवन में जो भी महत्त्वपूणा है,
ईसकी बाजार में कोइ कीमत नहीं है। प्रेम की कोइ कीमत है बाजार में ? कोइ कीमत नहीं
43
है। ध्यान की, परमात्मा की ? आनकी कोइ भी कीमत नहीं है। लेफकन सजस हजदगी में
ऄनुपयोगी, नॉन-यूरटसलटेररयन मागा नहीं होता, ईस हजदगी में ससतारों की चमक भी खो
जाती है, ईस हजदगी में िू लों की सुगंध भी खो जाती है, ईस हजदगी में पसक्षयों के गीत भी
खो जाते हैं, ईस हजदगी में नफदयों की दौडती हुइ गसत भी खो जाती है, ईस हजदगी में कु छ
भी नहीं बचता, ससिा बाजार बचता है। ईस हजदगी में काम के ससवाय कु छ भी नहीं बचता।
ईस हजदगी में तनाव और परे शानी और हचताओं के ससवाय कु छ भी नहीं बचता। और
हजदगी हचताओं का एक जोड नहीं है। लेफकन हमारी हजदगी हचताओं का एक जोड है।
ध्यान हमारी हजदगी में ईस डायमेंशन, ईस अयाम की खोज है, जहााँ हम सबना प्रयोजन के -
ससिा होने मात्र में जस्ट टू बी-होने-मात्र से अनंफदत होते हैं। और जब भी हमारे जीवन में
कहीं से भी सुख की कोइ फकरण ईतरती है, तो वे वे ही क्षण होते हैं, जब हम खाली, सबना
काम के -समुद्र के तट पर या फकसी पवात की ओट में, या रात अकाश के तारों के नीचे, या
सुबह ईगते सूरज के साथ, या अकाश में ईडते हुए पसक्षयों के पीछे, या सखले हुए िू लों के
पास-कभी जब हम सबना काम-सबल्कु ल बेकाम, सबल्कु ल व्यथा, बाजार में सजसकी कोइ कीमत
न होगी-ऐसे फकसी क्षण में होते हैं, तभी हमारे जीवन में सुख की थोडी-सी ध्वसन ईतरती है।
लेफकन यह अकसस्मक, एसक्सडेंटल होती है। ध्यान, व्यवसस्थत रूप से आस फकरण की खोज है।
कभी होती है यह टयूहनग। कभी सवश्व के और हमारे बीच संगीत का सुर बाँध जाता है, कभी,
ठीक वैसे ही, जैसे कोइ बच्चा ससतार को छेड दे और कोइ राग पैदा हो जाए-अकसस्मक।
ध्यान व्यवसस्थत रूप से जीवन में ईस द्वार को बडा करने का नाम है, जहााँ से अनंद की
फकरण ईतरनी शुरू होती है। जहााँ से हम पदाथा से छू टते हैं और परमात्मा से जुडते हैं।
मेरे देखे ध्यान से ज्यादा सबना कीमत की कोइ चीज नहीं है। और ध्यान से ज्यादा बहुमूल्य
भी कोइ चीज नहीं है। और अश्चया की बात यह है फक यह जो ध्यान, प्राथाना-या हम और
कोइ नाम दें, यह आतनी करठन बात नहीं है, सजतना लोग सोचते हैं। जैसे हमारे घर के
फकनारे पर ही कोइ िू ल सखला हो, और हमने सखडकी न खोली हो; जैसे बाहर सूरज खडा
हो और हमारे द्वार बंद हों, जैसे खजाना सामने पडा हो और हम अाँख बंद फकए बैठे हों, ऐसी
करठनाइ है। ऄपने ही हाथ से ऄपररचय के कारण कु छ हम खोए हुए बैठे हैं, जो हमारा फकसी
भी क्षण हो सकता है।
44
ध्यान प्रत्येक व्यसक्त की क्षमता है। क्षमता ही नहीं, प्रत्येक व्यसक्त का ऄसधकार भी। परमात्मा
सजस फदन व्यसक्त को पैदा करता है, ध्यान के साथ ही पैदा करता है। ध्यान हमारा स्वभाव
है। ईसे हम जन्म के साथ लेकर पैदा होते हैं।
आससलए ध्यान से पररसचत होना करठन नहीं है। प्रत्येक व्यसक्त ध्यान में प्रसवष्ट हो सकता है।
बीज को स्वयं की संभावनाओं का कोइ भी पता नहीं होता है। ऐसा ही मनुष्य भी है। ईसे भी
पता नहीं है फक वह क्या है-क्या हो सकता है। लेफकन, बीज शायद स्वयं के भीतर झााँक भी
नहीं सकता। पर मनुष्य तो झााँक सकता है। यह झााँकना ही ध्यान है। स्वयं के पूणा सत्य को
ऄभी और यहीं (सहयर एंड नाई) जानना ही ध्यान है। ध्यान में ईतरे -गहरे और गहरे ।
गहराइ के दपाण में संभावनाओं का पूणा प्रसतिलन ईपलब्ध हो जाता है। और जो हो सकता
है, वह होना शुरू हो जाता है। जो संभव है, ईसकी प्रतीसत ही ईसे वास्तसवक बनाने लगती
है। बीज जैसे ही संभावनाओं के स्वप्नों से अंदोसलत होता है, वैसे ही ऄंकुररत होने लगता है।
शसक्त, समय और संकल्प सभी ध्यान को समर्वपत कर दें। क्योंफक ध्यान ही वह द्वारहीन द्वार
है, जो स्वयं को ही स्वयं से पररसचत कराता है। …. (7)
भौन
वाणी ऩय सॊमभ कयते हुए कभ से कभ फोर ि व्मवहाय कयना भौन कहराता
है | भोन को भानलसक तऩ कहा जाता है इसके अनेक राब है इसके
अभ्मास से भन की स्त्वबाद्धवक िॊिरता नष्ट होकय भन शाॊत एवॊ एकाग्र
यहता है |
गुरु बत््त
श्रध्दा
मोग साधना भें श्रध्दा का द्धवशेष भहत्व है | मह ऩद्धवर बावना है जो साधक
की हय प्रनतकूरता को अनुकूरता भें फदर दे ती है | मह अभोघ दै वी शजतत
है ,जजसके फर ऩय साधक भहान से भहान फाधाओॊ एवॊ द्धवऩजत्तमों के ऩवथतो
को ऩायकयता हुआ अऩने रक्ष्म को प्राप्त कय रेता है |
ननमभानुवनतथता
मोग साधना भें प्रगनत के लरए ननमभानुवनतथता का होना फहुत जरूयी है | उसका सोना ,
जागना , बोजन , बजन , मोधगक अभ्मास , ध्मानाभ्मास आदद किमा ननमत सभम का
ऩारन ही द्धवशेष सपरता लभर सकती है | अत् साधक का मही प्रमत्न होना िादहए की
वह अऩने अभ्मास का िभ न टूटने दे |
अहॊ काय का त्माग बी मोग भागथ का प्रफर शरु है | अत् इसके वशीबूत नहीॊ होना िादहए |
सभस्त्त काभनाओ का त्माग
वस्त्तुत् साधना के भागथ भै सफसे फड़ी रुकावट काभ ही है | वासना, काभना आदद शब्द के
ही ऩमाथमवािी है | साधक को कबी काभना नहीॊ कयनी िादहए जफ तक भन भै काभनामे
है तफ तक ऩयभात्भा की प्राजप्त नहीॊ हो सकती |
जफ साधक की काभनाओ का आबाव होने रगता है तफ सबी कामथ अनामास ही सम्ऩरन
होते जाते है |
अत् हभे अऩने भन को द्धवषमो के धिॊतन से हटाकय प्रबु धिॊतन भै रगाए यखना िादहए
| ऐसा कयने से काभनामे स्त्वत् ही नष्ट होती जाएगी | …. (8)
अध्माम -3
ध्मान की तैमायी
ध्मान से ऩव
ू थ ध्मान की तैमायी की जाती है जजसे ध्मान की जस्त्थनत भें रम्फे सभम तक फैि
सकते है | ध्मान के लरए सवथप्रथभ तमा - तमा आवशमक है मह अऩने गरु
ु से जान रेना
अनत अाावशमक ध्मान गरु
ु के साननध्म भें कयना ही उधित है |कुि आवशमक ननदे शो का
ऩारन कयना आवशमक है जो ननम्न है :-
ध्मान कक जस्त्थनत प्राप्त कयने के लरए उसकी तैमायी का भहत्व कभ नहीॊ है | ध्मान कक प्रफर जस्त्थनत भें
आना फहुत ही भुजश्कर होता है इसलरए ध्मान से ऩहरे इनकी तैमायी कयनी ऩड़ती है | ध्मान के साधको
को आवश्मक तैमायी के कुि ननदे श औय सुझाव होते , इसके लरए उधित भागथदशथन कक आवश्मकता
होती है |
एकाग्रता की कभी :-
भन की िॊिरता को वश भें न कय ऩाना ही एकाग्रता भें कभी का कायण है | ऐसे बटकने वारे प्रवनृ तसे
भन को उफायने के लरए अनत उत्तभ उऩाम है - "ॐ " भॊर का उच्िायण | मह भॊरौच्ियण ह्रदम से
होना िदहमे न की , केवर भॉह
ु से | इसके साथ तीव्र अनुबूनत बी होना िादहए | अऩने अहॊ को भॊर की
इस अनुबूनत भें द्धवरीन के दें | शयीय औय भन भें इसका प्रकम्ऩन भहसूस कयें | ॐ का उच्िायण भन
को शाॊत कयने के लरए ब्रह्भास्त्र के सभान है |
आशावाददता :-
ध्मान भें प्रथभ फाय फैिते ही अनुबूनतमाॉ होगी , ऐसी आशा न कयें | आऩ धैमथ के साथ कयते जामे |
कबी- कबी तो ऐसा रगेगा , ऐसे भें केवर सभम की फयफादी हो यही है | ऩय ननयाश होने की
आवश्मकता नहीॊ है | आऩ अऩने आऩ को सभद्धऩथत कय दें औय सभम आने ऩय ध्मान की अनुबूनत का
प्रवाह उभड़ेगा | आऩ हभेशा अभ्मास कयें ककसी फी प्रकाय की आशा न कयें , अत् आऩको ध्मान की
अनब
ु नू तमाॉ प्राप्त होगी |
49
ध्मान का स्त्थान हभेशा एक सा हो जहाॊ बी आऩ ध्मान कयते हो वहाॉ ननलभत औय प्रनतददन उसी स्त्थान
ऩय ध्मान कयें | वहाॉ स्त्वच्िता का द्धवशेष ध्मान यखे |
मदद आऩ ककसी कऺ भें ध्मान कय यहे तो वहाॉ बफकुर खारी स्त्थान होना िदहमे औय वहाॉ कऺ बफकुर
स्त्वच्ि हो | उस कऺ भें प्रवेश वजजथत होना अनत आवश्मक होना िादहए | वहाॉ फाहय के दृश्म न ददखाए
दें |
सभम :-
ध्मान का सभम प्रात् कर का है ४ से ६ फजे तक इसके फाद ही नाश्ता कयें | औय बोजन के ४ घॊटे फाद
ही सामॊकार ध्मान कयें इसलरए सामॊकार का ध्मान ८ से १० फजे के बफि कयें |
आहाय :-
उधित आहाय रेना अनत आवश्मक है | ददन भें ऩोजस्त्टक आहाय रे औय यत भें हल्का बोजन कयें |
बोजन बयी ऩेट न कयें इससे आरस्त्म की उत्ऩरन होता है इसलरए उजच्ित बोजन ही ग्रहण कयें |
ननिा :-
सभम ऩय सोमे औय जागे | ज्मादा सोना उजच्ित नहीॊ है तमोकक ज्मादा सोने ने द्धवलबरन प्रकाय की
फीभायी शयीय भें प्रवेश कयती है जजससे आऩका अभ्मास नहीॊ हो ऩामेगा औय आऩका दै ननक जीवन
प्रबाद्धवत होगा | आनॊद रेनी वारी वस्त्तु से हभे थकावट रगती है जजससे तरेश उत्ऩरन होता है | मदद
ध्मान से आऩको थकावट हो यही है तो अऩनी ध्मान - द्धवधध की जाॉि कय रे |
लशधथरीकयण :-
ध्मान की सफसे फड़ी फाधा है तनाव | मदद शयीय भें ककसी प्रकाय का तनाव मा कष्ट है तो िेतना उसी
औय उरभुख यहे गी | ऐसे भें ध्मान का अनुबव कयना अत्मॊत कदिन है | इसी लरए शयीय को लशधथर
कये | ऩहरे शयीय को तनाव भुतत कयरे | मह किमा ऩहरे ऩैय से प्रायम्ब कये औय धीये -धीये सम्ऩूणथ
शयीय एवॊ भन को लशधथर कयरे | उसके फाद ध्मान का अभ्मास शरू
ु कये |
आऩ ध्मान ककसी द्धवशेष वस्त्तु मा अऩने इष्ट दे व ऩय एकाग्र कये , औय खुद को अऩने इष्ट को सभद्धऩथत
कय दो औय अऩनी व्माकुर को धीये -धीये नष्ट कय दो | अऩने द्धविायो ऩय एकाग्रता रामे , केवर अऩने
इष्ट ऩय ध्मान कये |अऩने भन को ननजश्ित वस्त्तु ऩय दटकाना कदिन होता है ऩय अभ्मास से मह आसन
होता जामेगा | लसपथ धैमथ औय अध्मवसाम की आवश्मक होती है | धीये - धीये ध्मातव्म ऩय दटकने
रगेगा | दृश्म वस्त्तु ऩय द्धविाय ऩय बी भन को एकाग्र ककमा जाता है , जैसे अलसभता , अनॊतता , िेतना ,
अजस्त्तत्व आदद |….. (6)
स्त्वाभी जी के अनस
ु ाय ध्मान के लरए उधित स्त्थान होना अनत आवशमक है ,
ध्मान के लरए आऩ जजस स्त्थान का उऩमोग कयते है वह शुि एवॊ धालभथक
स्त्थान होना िादहए , धालभथक स्त्थान होने से वहा सकायात्भक ऊजाथ का प्रवाह
अधधक होता है जजसे ध्मान ननयॊ तयता फना यहता है |
[१]
ककसी एक बफॊद ु ऩय भन केंदित कयना एकाग्रता हैं | मोग दशथन भें एकाग्रता को
धायणा कहा हैं औय धायणा की उच्ि अवस्त्था को ध्मान कहा गमा हैं |
भन औय द्धविायो को जफ ककसी एक बफॊद ु ऩय एकाग्र कयते हैं वही एकाग्र की
अवस्त्था ध्मान हैं |
जफ आऩ ऩहरी फाय ध्मान भें फैिते हैं तो भन अजस्त्थय यहता हैं
तो आऩ भन औय द्धविायो को एकाग्र कयना भुजश्कर होता हैं , इलसरए आऩ
ऩहरी फाय अऩने द्धविायो के प्रवाह भें आओ औय जाओ रुको भत कुि सभम
फाद आऩ उन द्धविायो के सभह
ू फनाओ जो िोटे - िोटे हो अफ उनकी आऩस
भें तुरना कीजजमे इस अवस्त्था भें आऩ उन द्धविायो के फाये भें अधधक ऻान
प्राप्त कय सकते हैं , अफ शावधानीऩूवक
थ उन द्धविायो को धीये - धीये अऩनी
एकाग्रता से हटाओ औय अॊत भें वाऩस आओ |
[२]
ध्मान के ककसी सुद्धवधाजनक आसन भें फैदिमे | अऩने से एक पुट की दयु ी ऩय
एक घड़ी यख रें | घड़ी की दटक - दटक ऩय भन को धीये - धीये एकाग्र कयें |
जफ बी भन इधय - उधय बागने रगे , फाय - फाय घड़ी की आवाज को सन
ु ने
की कोलशश कयें | मह तफ तक कयें जफ तक आऩ वहाॉ ऩय भन को केंदित नहीॊ
कय ऩायहे हैं कुि समभ फाद आऩ घड़ी की आवाज ऩय एकाग्र कय ऩाएॊगे |
[३]
रेट कय िरिभा ऩय भन को एकाग्र कयें | जफ - जफ भन बागे , इसे वाऩस
िरिभा के बफम्फ ऩय रें आमे | बावनात्भक स्त्वबाव वारे व्मजततमों के लरए मह
अब्मास फहुत राबदामक हैं |
[४]
53
एक नदी के तट ऩय फैिे जजसकी रहये आऩस भें टकया कय ' ॐ ' का उच्ि
घोष कय यही हों | इस आवाज ऩय भन को केंदित कयें | …. (4)
ध्मान के आसन
ऩध्भासन :-
लसध्दासन :-
मह ध्मान का श्रेष्ि आसन है | प्राम् द्धवलशष्ट साधनाओ भें इसका उऩमोग गुदा तथा ऻानेजरिम के
भध्म ( भूराधाय िि ऩय ) द्धवशेष दफाव हे तु ककमा जाता |
लसिमोनन आसन :-
इससे काभ बावना ऩय ननमॊरण प्राप्त होता है | स्त्नामद्धवक सॊस्त्थान को शाॊत एवॊ सॊतुलरत यखते है तथा
उसे फर प्रदान कयते है |
स्त्वजस्त्तकासन :-
मह सफसे सयर आसन है |
56
फाह्भ तौय ऩय मह लसध्दासन की तयह ही है ; अॊतय केवर इतना है की इसभें भूराधाय ऺेर ऩय एड़ी का
दवाव नहीॊ ऩड़ता |
सुखासन :-
जफ सफ सभस्त्त ध्मान आसनो का अभ्मास हो जामे , तो इसका अभ्मास नहीॊ कयना िादहए |
57
जो रोग ध्मान के अरम आसनो भें नहीॊ फैि सकते , उनके लरए मह एक आदशथ आसन है |
वज्ज्रासन :-
मह सबी धभो के लरए उधित आसन है कतमोकक रगबग हय धभो के रोग इसी आसन भें प्राथथना का
आसन है |
श्रोणीम तथा आॊतरयक ऺेरों भें स्त्नामद्धवक आवेगो तथा यतत के प्रवाह को फदर दे ता है | साइदटका से
ऩीडड़त रोगो के लरए मह ध्मान का उऩमोगी आसन है |
भि
ु ा
शयीय तथा धित्त के ककसी द्धवशेष बाव को भुिा कहते है | मोधगक अभ्मास भें भुिाओ का फड़ा भहत्व
का फड़ा भहत्व है | मे धित्त ककी सूक्ष्भ जस्त्थनतमों तथा घटनाओ को ननमॊबरत कयती है | भुिाओ की
द्धवधधमाॉ अनेक है | हाथ की बॊधगभा से रेकय सूक्ष्भ एकाग्रता तक की जस्त्थनतमाॉ इनके अॊतगथत है |
ऻान भुिा:-
जफ बी हभ ऻान भुिा कयते हैं तो ऐसा कयने से हभें फहुत से स्त्वास्त्थ्म राब लभरते हैं जो कुि एस प्रकाय
से है
58
ऻान भुिा कयने से हभायी फुद्धि औय स्त्भयणशजतत फढ़ती है। ऻान भुिा ध्मान के लरए सफसे अच्िठ ओय
उऩमोगी भुिा होती है। मह सफसे आसन भुिा होती है। इसको कयने से एकाग्रता भें द्धवकास होता है।
शयीय भें योग प्रनतकाय की शजतत फढ़ती है। इसको कयने से हभें िोध, बम, ईष्माथ आदद का साभना नहीॊ
कयना ऩड़ता। तमोंकक इसको कयने से हभाया भन किोय हो जाता है।
ऻान भुिा कयने से हभें जो तनाव के कायण योग होते हैं जैसे कक उच्ि यततिाऩ, हाई ब्रडप्रेशय, ह्रदम
योग का खतया नहीॊ होता। इसको कयने से हभाया आत्भद्धवश्वास फढ़ता है। जजसके कायण हभ अऩना
काभ औय अच्िे से कय सकते हैं। ऻान भुिा कयने से हभाये भन को फहुत ही शाॊनत लभरती है। जफ बी
हभें गस्त्
ु सा आता है औय हभ ऻान भि
ु ा कये , तो हभ अऩने गस्त्
ु से को काफू भें कय सकते हैं।जजन रोगों को
लसयददथ, अननॊिा आदद जैसी फीभारयमों का साभना कयना ऩड़ता है उरहें ऻान भि
ु ा कयने से फहुत ही राब
होता है।ऻान भि
ु ा को जफ हभ रगाताय कयते हैं तो इससे हभ रत से िुटकाया ऩा सकते हैं।
सावधाननमां:-
बोजन कयने के तुयॊत फाद एवॊ िाम, कॉपी ऩीने के तुयॊत फाद हभें कोई बी भुिा नहीॊ कयनी िादहए। ऐसे
कयने से हभें पामदे की फजाम नक
ु सान का साभना कयना ऩड़ सकता है। भि
ु ा कयते सभम ककसी प्रकाय
की असहजता मा ककसी प्रकाय का कोई कष्ट हो तो हभें भुिा फीि भें हो िोड़ दे नी िादहए।
धिन भुिा:-
धिन भुिा भें फैिने से ध्मान औय एकाग्रता की ऺभता फढ़ती है।अगय आऩको नीॊद से जुड़ी सभस्त्माएॊ हैं
तो आऩको इस भुिा का अभ्मास कयने से कापी राब होगा।रोअय फैक ऩेन को कभ कयने के लरए मे
अच्िठ भि
ु ा है।
59
इसकी भदद से शयीय का तनाव दयू होता है। मे भुिा आऩके ददभाग भें शाॊनत राने भें भदद कयती है।
इस भुिा से प्राणामाभ को लसि कयने औय साभधध रगाने भें द्धवशेष सहामता लभरती है।
साधनायत साधुओॊ के लरए मह भुिा फहुत ही राबदामी भानी जाती है।
खेियी भुिा:-
खेियी मोगसाधना की एक भुिा है। इस भुिा भें धित्त एवॊ जजह्वा दोनों ही आकाश की ओय केंदित ककए
जाते हैं जजसके कायण इसका नाभ 'खेियी' ऩड़ा है (ख = आकाश, ियी = ियना, रे जाना, द्धवियण कयना)|
इस भि
ु ा की साधना के लरए ऩद्मासन भें फैिकय दृजष्ट को दोनों बौहों के फीि जस्त्थय कयके कपय जजह्वा
को उरटकय तारु से सटाते हुए ऩीिे यॊ ध्र भें डारने का प्रमास ककमा जाता है इसके लरमे जजह्वा को
फढ़ाना आवश्मक होता है।
जजह्वा को रोहे की शराका से दफाकय फढ़ाने का द्धवधान ऩामा जाता है। कौर भागथ भें खेियी भि
ु ा को
प्रतीकात्भक रूऩ भें 'गोभाॊस बऺण' कहते हैं।
'गौ' का अथथ इॊदिम अथवा जजह्वा औय उसे उरटकय तारू से रगाने को 'बऺण' कहते हैं। खेियी भुिा से
अनेकों शायीरयक, भानलसक, साॉसारयक एवॊ आध्माजत्भक राबों के उऩरब्ध होने का शास्त्रों भें वणथन है।
इससे साभारम दीखने वारी इस भहान ् साधना का भहत्त्व सभझा जा सकता है। स्त्भयणीम इतना ही है
60
कक इस भुिा के साथ साथ बाव सम्वेदनाओॊ की अनुबूनत अधधकतभ गहयी एवॊ श्रिा लसतत होनी
िादहए।
शाम्बवी भि
ु ा:-
आऻा िि को जाग्रत कयने वारी एक शजततशारी किमा है आऩको फता दें आऻा िि ननम्न औय उच्ि
िेतना को जोड़ने वारा केंि ह।
मह भुिा शायीरयक राब प्रदान कयने के अरावा आॊखों के स्त्नामुओॊ को भजफूत फनाता है। भानलसक
स्त्तय ऩय इस अभ्मास मोग से भन की शाॊनत प्राप्त होती है। आॊखें खुरी यखकय बी व्मजतत नीॊद औय
ध्मान का आनॊद रे सकता है। मह मोग भुिा कयने से तनाव औय धिॊता दयू होती है। इस अभ्मास के
सधने से व्मजतत बूत औय बद्धवष्म का ऻाता फन सकता है |
भर
ू फॊध:-
उदय योग से भुजतत हो जाती है। वीमथ योग हो ही नहीॊ सकता। भूरफॊध का साधक ननद्थवॊद्व होकय
वास्त्तद्धवक स्त्वस्त्थ शयीय से आध्माजत्भक आनॊद का अनुबव कयता है। आमु फढ़ जाती है। इसका साधक
बौनतक कामो को बी उल्रासऩूवक
थ सॊऩरन कयता है। सबी फॊधों भें भूरफॊध सवोच्ि एवॊ शयीय के लरमे
अत्मॊत उऩमोगी है।
जारॊधय फॊध:-
जारॊधय के अभ्मास से प्राण का सॊियण िठक से होता है। इड़ा औय द्धऩॊगरा नाड़ी फॊद होकय प्राण-अऩान
सुषुरभा भें प्रद्धवष्ट होता है। इस कायण भजस्त्तष्क के दोनों दहस्त्सों भें सकिमता फढ़ती है।
इसके अभ्मास से प्राणों का सॊियण सही तयीके के साथ होता है। हभायी गदथ न की भाॊसऩेलशमों भें यतत
सॊिाय सही ढॊ ग से होने रगता है । इसको कयने से भन भें दृढ़ता आती है । इसको कयने से कण्ि की
रुकावट दयू हो जाती है । इसको कयने से हभायी यीढ़ की हड्डडमों भें णखिाव ऩैदा हो जाता है जजसके
कायण हभाया यतत तेजी से फढ़ने रगता है। इसे ननमलभत रूऩ से कयते यहने से हभाये लसय, भजस्त्तष्क,
आॉख, नाक आदद के सॊिारन ननमॊबरत यहता है। शयीय के धभननमों आदद को स्त्वस्त्थ फनाकय यख सकते
हैं।
उड्डडमान फंध:-
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इसका ननमलभत अभ्मास कयने से आभाशम, लरवय व गुदे सकिम होकय सही तयीके के साथ काभ कयने
रगते हैं।
इसके साथ इन अॊगों से सॊफॊधधत जो बी योग होते है वो दयू हो जाते हैं। मह फॊध से ऩेट, ऩेडू औय कभय
की भाॊसऩेलशमाॊ सकिम होकय शजततशारी फनता है औय इसके साथ हभायी ऩािन शजतत फढ़ती है।
इसके साथ ही हभाये ऩेट औय कभय की िफी कभ होती है।
इसके ननमलभत अभ्मास से हभायी उम्र के फढ़ने का असय कभ हो जाता है। इसको कयने वारा व्मजतत
हभेशा मव
ु ा फना यहता है।
प्राण वह शजतत है जो हभाये शयीय को ज ॊदा यखती है औय हभाये भन को शजतत दे ती है। तो 'प्राण' से
हभायी जीवन शजतत का उल्रेख होता है औय 'आमाभ' से ननमलभत कयना। इसलरए प्राणामाभ का अथथ
हुआ खुद की जीवन शजतत को ननमलभत कयना।प्राण शयीय की ह ाय सूक्ष्भ ऊजाथ ग्रॊधथमों ( जजरहें नाडड़
कहते है ) औय ऊजाथ के केंिों (जजरहें िि कहते है ) से गु यती है औय शयीय के िायो ओय आबाभॊडर
फनाती है। प्राणशजतत की भारा औय गुणवत्ता भनुश्मा की भनोजस्त्थनत ननधाथरयत कयते है। अगय
प्राणशजतत फरवान है औय उसका प्रवाह ननयॊ तय औय सुजस्त्थय है तो भन सुखी, शाॊत औय उत्साहऩूणथ
यहता है। ऩय ऻान के आबाव भें औय साॊस ऩय ध्मान न यखने की वजह से भनुष्म की नाडड़मा, प्राण के
प्रवाह भें रूकावट ऩैदा कय सकती है। ऐसी जस्त्थनत भन भें आशॊका, धिॊताएॊ, औय डय उत्ऩरन कयती है।
हय तकरीप ऩहरे सक्ष्
ू भ भें उत्ऩरन होती है। इसलरए कोई बफभायी ऩहरे प्राणशजतत भें उत्ऩरन होती है
। प्राण शजतत की भारा औय गण
ु वत्ता फढ़ाता है । रुकी हुई नाडड़मा औय ििों को खोर दे ता है। आऩका
आबाभॊडर पैरता है। भानव को शजततशारी औय उत्साहऩण
ू थ फनाता है । भन भें स्त्ऩष्टता औय शयीय भें
अच्िठ सेहत आती है । शयीय, भन, औय आत्भा भें तारभेर फनता है।
कऩारबानत प्राणामाभ :-
मह एक शजतत से ऩरयऩूणथ साॉस रेने का प्राणामाभ है जो आऩको व न कभ कयने भें भदद कयता है औय
आऩके ऩूये शयीय को सॊतुलरत कय दे ता है | जफ आऩ कऩारबानत प्राणामाभ कयते हैं तो आऩके शयीय से
८०% द्धवषैरे तत्त्व फहाय जाती साॉस के साथ ननकर जाते हैं| कऩारबानत प्राणामाभ के ननयॊ तय अभ्मास
से शयीय के सबी अॊग द्धवषैरे तत्व से भत
ु त हो जाते हैं| ककसी बी तॊदयु स्त्त व्मजतत को उसके िभकते हुए
भाथे से ऩहिाना जा सकता है | कऩारबानत प्राणामाभ की उधित व्माख्मा है , "िभकने वारा भाथा”| एक
िभकता हुआ भाथा प्राप्त कयना तबी सॊबव है जफ आऩ प्रनतददन इस प्राणामाभ का अभ्मास कयें |
इसका तात्ऩमथ मह है कक आऩका भाथा लसपथ फहाय से नही िभकता ऩयॊ तु मह प्राणामाभ आऩकी फद्धु ि
को बी स्त्वच्ि व तीक्ष्ण फनाता है | ….. (6)
स्त्वाभी लशवानॊद जी ने अऩने जीवन भें मोग को फहुत ही भहत्व ददमा था इसी कायण
स्त्वाभी जी ने मोग का अनसु यण ककमा औय भोऺ को प्राप्त ककमा , स्त्वाभी जी ने
ध्मान मोग की फाधाए फताई जो ध्मान भागथ से भनष्ु म को द्धविलरत कयती है :-
१:- रम (ननिा) :-
ननिा से दह आऩ द्धविलरत होंगे | ऩहरे आऩको ननिा ऩय द्धवजम ऩानी होगी तबी आऩ
ध्मान मोग भें आ सकते है , इसके लरए हल्का बोजन कयें औय प्राणामाभ , आसन ऩय
द्धवजम प्राप्त कयें तबी ध्मान भें आऩ रम्फे सभम तक यह ऩाएॊगे |
२:- द्धवऺेऩ (भन की िॊिरता):-
भन की िॊिरता का नाश कयना आवशमक तमोकक इसके नाश से दह आऩ एकाग्रता
(धायणा) भें आ ऩाएॊगे औय उसके फाद ध्मान भें | प्राणामाभ, जऩ, उऩासना,राटक से
द्धवऺेऩ दयू कयें |
३:- वासना (कषाम):-
वासना से लरप्त भनुष्म केवर सॊसारयक भामा भें फॊधा यहता है मे ध्मान भागथ ऩय नहीॊ
िरऩाते है , इसीलरए वासना को वेयानम, द्धववेक, स्त्वाध्माम, त्माग से दह दयू होगा |
४:- यसास्त्वाद:-
यसास्त्वाद वह ऩयभारद है जो सभाधध की अवस्त्था भें यहते हुए प्राप्त होता है | मह
ऩयभारद बी ध्मान की एक फाधा है | इसका कायण मह है कक मोगी इस अवास्त्तद्धवक
सॊतोष को दह सफ कुि भान फैिता है |उसे रगता है कक वह सभाधध कक अवस्त्था भें
प्रवेश ि गमा है , वह साधना कयना फॊद ि दे ता है औय ध्मान कक वह उच्ितभ
अवस्त्था तक ऩहुॊिने के लरए प्रमत्न नहीॊ कयता | इसलरए यसास्त्वाद का त्माग कयें
औय सभाधध कक जस्त्थनत भें प्रवेश कयें |
५:- ब्रह्भिमथ का अबाव:-
ब्रह्भिमथ का ऩारन न कयने से भन अशुि हो जाता है | साॊसारयक जीवन कक अवधध
फढ़ जाती है औय काभुक वासनाओ कक जड़े भजफूत हो जाती है | अत् अखॊड ब्रम्हिमथ
का ऩारन कयें |
६:- आरस्त्म:-
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आरस्त्म एक दस
ू यी फाधा है | आसन, प्राणामाभ के अभ्मास औय गुरु के आदे श भें
यहकय इसको दयू ककमा जा सकता है | कभथ मोगी फने | आरस्त्म दयू हो जामेगा |
७:- अधधक जनसम्ऩकथ :-
रोगो के अधधक सम्ऩकथ भें न यहे तमोकक आऩकी ऊजाथ का अधधक नाश होता है ,
जजस से आऩ िॊिरता को प्राप्त कयोगे औय आऩ ऩन
ु ्ध्मान कक अवस्त्था भें नहीॊ
आऩओगे |
अधधक जनसम्ऩकथ से याग - द्देष कक बावनाएॊ उतऩरन होती है , भन बी अशाॊत हो
जाता है | …. (4)
उऩसंहाय
ध्मान मोग के ७ वे अॊग के रूऩ भें जाना जाता है | ध्मान भन को शाॊत कय
दे ती है | द्धविायो को शूरम कय दे ती है | ध्मान भें द्धविाय एक ही तयह होते हैं |
इन द्धविायो की प्रवजृ त्त बी एक होती है | द्धविाय धाया का प्रवाह बी एक ही
होता है | कैवल्म धाभ की प्राजप्त ध्मान से सभाधध की औय से ही होता है |
ध्मान अत्मॊत आवश्मक है भानलशक शजतत के लरए , जफ आऩ भानलशक रूऩ
से स्त्वस्त्थ्म यहें गे तबी आऩ साधना भें रीन यह सकते है | ध्मान के द्धवलबरन
प्रकाय है |
जजसभे भूतथ ध्मान औय अभूतथ ध्मान है |
घेयण्ड सॊदहता भें स्त्थर
ू ध्मान, ज्मोनत ध्मान, सूक्ष्भ ध्मान भें फतामे गए है |
अरम ऋद्धष भुननमो ने ध्मान को अऩने अरग अरग तरयके से सभझामा है |
अस्त्टाॊग मोग भें ध्मान को धायणा की अॊनतभ जस्त्थनत फतरामी गमी है |
दर
ु ब
थ ॊ रमभेवेतत, दे वानग्र
ु ह हे तुकभ |
भनष्ु मत्वॊ भुभुऺत्वॊ, भहाऩरु
ु ष सॊश्रम् ||
भनष्ु म जरभ, भोऺ की इच्िा औय भहाऩरु
ु षो की आश्रम मे
तीन िीजे अत्मॊत दर
ु ब
थ है | तबी भनष्ु म का कल्माण सम्बव है | तबी
भनष्ु म जरभ - भयण के इस िि से भुतत हो ऩामेगा |
मा ननशा सवथबूतानाॊ,
तस्त्माॊ जाग्रनतथ सॊमभी |
तस्त्माॊ जाग्रनतथ बत
ू ानन,
सा ननशा ऩश्मतो भुने्||
सॊसाय भें यहते हुए साॊसारयकता से प्रबाद्धवत न होना मही साधना की कसौटी है
| ऐसा कयने से हभ अऩनी एकाग्रता को फनामे यखते है , मही साधक के लरए
उत्तभ अभ्मास बी भाना गमा है |
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ॐ ऩण
ू भ
थ द् ऩण
ू लथ भदभ ् ऩण
ू ाथत ् ऩण
ू भ
थ द
ु च्मते |
ऩण
ू थ
थ म ऩण
ू भ
थ ादाम ऩण
ू भ
थ ेवावलशष्मते ||
ॐ शात्न्त् शात्न्त् शात्न्त् ||
….
68
अनुक्रभणणका