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Sakshi Ki Sadhana साक्षी की साधना
Sakshi Ki Sadhana साक्षी की साधना
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-01
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
पहला-प्रिचन
इन प्रश्नों में कुछ िो अत्यंि जीिन की बुशनयाद से सं बंशधि हैं । जैसे मैं क्यों हं ?
मेरी सत्ता क्यों है ? मेरे होने की क्या आिश्यकिा है ? क्या अशनिाययिा है ? और
शफर मैं कौन हं ? और यह जन्म और यह मृ त्यु? और जीिन का यह सारा
व्यापार क्यों है ? यह शजज्ञासा, ये प्रश्न प्रत्येक व्यस्ि के मन में--चाहे िह शकसी
धमय में पैदा हो, चाहे शकसी दे ि में पैदा हो, उठिा है ।
भारि में शफिासफी जैसी कोई चीज पैदा नहीं हुई। जो िोग भारिीय दियन
को भी शफिासफी कहिे हैं , िे शनिां ि भू ि की बाि करिे हैं । िह िब्द
पयाय यिाची नहीं है । शफिासफी और दियन पयाय यिाची िब्द नहीं हैं ।
शिचार का अथय है : हम उन बािों के संबंध में सोच रहे हैं जो अननोन हैं ,
अज्ञाि हैं , शजन्ें हम जानिे नहीं। जै से मुझे प्रीशिकर िगिा है शक मैं कहं ,
जैसे अंधा प्रकाि के संबंध में शिचार करे , िो शिचार करे गा क्या? आँ ख
शजसके पास नहीं है ; प्रकाि के संबंध में शिचार करने का कोई उपाय भी
उसके पास नहीं है । कोई धारर्ा, कोई कंफेक्शन िह प्रकाि का नहीं बना
सकिा है । उसका शचंिन सब अंधेरे में टटोिना हो जाएगा।
िकय पृष्ठभू शम है शचंिन की, योग पृष्ठभू शम है दियन की। दे खने पर अगर प्रश्न
अटक गया, िो सिाि यह नहीं है शक िहां ईश्वर या आत्मा जैसा कोई है ,
सिाि यह है शक मेरे पास उसके प्रशि संिेशदि होने को आँ ख है या नहीं?
असिी सिाि िब सत्य का न होकर आँ ख का हो जाएगा। अगर मेरे पास
आँ ख है , िो जो भी है , उसे मैं दे ख सकूंगा। और अगर मेरे पास आँ ख नहीं है ,
िो जो भी हो, िह मेरे शिए अज्ञाि हो जाएगा। इसशिए भारिीय दियन केंशिि
हो गया मनुष्य के भीिर अंिःचक्षु के शिकास पर।
बुि ने कहा: अगर िे उत्तर उत्तर थे िो िुम अब भी उन्ीं प्रश्नों को क्यों पूछिे
चिे जािे हो?
बुि ने कहा: मैं अपने िचन पर शनभय र रहं गा, िुमने पू छे िो उत्तर दू ं गा, िुम
पूछो ही न, िो बाि अिग है ।
मौिुंकपुत्त िषय भर रुका। िषय भर बाद बुि ने कहा शक पूछिे हो? िह हं सने
िगा, िह बोिा, पूछने की कोई जरूरि नहीं है ।
हमारे मुल्क के िं बे योशगक प्रयोगों ने कुछ शनष्कषय शदए हैं । उनमें शनष्कषय
एक यह है : प्रश्न हमारे अिां ि शचत्त की उत्पशत्त है । शचत्त िां ि हो जाए, प्रश्न
उत्पन्न नहीं होिा है । समस्त प्रश्न हमारे अिां ि, उशद्वग्न शचत्त की उत्पशत्त हैं ।
शनष्प्रश्न हो जाना ज्ञान को उपिब्ध हो जाना है । प्रश्नों के उत्तर पा िेना पां शित्य
को उपिब्ध होना है , शनष्प्रश्न हो जाना ज्ञान को उत्पन्न हो जाना है । प्रश्नों के
बहुि उत्तर याद कर िेना बौस्िक है , प्रश्नों का शिसजयन आस्त्मक है ।
शजसे मैं ध्यान कह रहा हं , उससे कोई शििेष प्रश्नों का उत्तर नहीं शमिेगा,
क्रमिः धीरे -धीरे प्रश्न शिसशजयि हो जाएं गे । एक शनष्प्रश्न शचत्त की स्थथशि बनेगी,
िही समाधान है , िही समाशध है । जहां कोई प्रश्न खोजे से न उठे , जहां जीिन
के प्रशि कोई शजज्ञासा जाग्रि न हो, जहां कोई उशद्वग्निा, जहां कुछ अज्ञाि सा
प्रिीि न हो, जहां कुछ भी मुझे जानना है ऐसी उत्ते जना िेष न रह जाए, उसी
क्षर् इस प्रश्नों के शगर जाने की शनःिंक, शनःसंशदग्ध हो जाने की स्थथशि में
व्यस्ि को सत्य का साक्षाि होिा है । प्रश्नों के होने पर सत्य खोजा नहीं जा
सकिा, प्रश्नों के शगर जाने पर सत्य प्रकट हो जािा है ।
इसशिए कोई िीथंकर, कोई अििार, कोई पैगंबर यह दािा नहीं करिा शक
मैं आपको ज्ञान दे सकिा हं । िह केिि इिना कह सकिा है शक मुझे ज्ञान
शजसको मैं ध्यान कह रहा हं , िह प्रश्नों को शिसशजयि करने की शदिा है । प्रश्न हैं
क्योंशक शिचार हैं ; प्रश्न हैं क्योंशक शचत्त में शिचार हैं ; अगर शिचार न रह जाएं ,
प्रश्न भी नहीं रह जाएं गे । शनशियचार शचत्त में कौन सा प्रश्न उठे गा? कैसे उठे गा?
प्रश्न का ढां चा िो शिचार से बंधा है । अगर शिचार िून्य हो जाएं शचत्त में, िो
कोई प्रश्न न उठे गा, कोई शजज्ञासा जाग्रि न होगी। उस िां ि क्षर् में जहां कोई
शजज्ञासा, कोई प्रश्न नहीं उठ रहा, कुछ अनुभि होगा। जहां शिचार नहीं रह
जािे, िहां अनुभि का प्रारं भ होिा है । जहां िक शिचार हैं , िहां िक अनुभि
का प्रारं भ नहीं होिा। जहां शिचार शनःिेष हो जािे हैं , िहां भाि का जागरर्
होिा है , िहां दियन का प्रारं भ होिा है ।
शिचार पदे की िरह हमारे शचत्त को िेरे हुए हैं । उनमें हम इिने िल्लीन हैं ,
इिने आक्युपाइि हैं , इिने व्यस्त हैं , शिचार में इिने व्यस्त हैं शक शिचार के
कोई नाम, कोई रूप, कोई प्रशिमा अगर हम शचत्त में थथाशपि करें , िो भी
शिचार हो गया। क्योंशक शिचार के शसिाय शचत्त में कुछ और स्थथर नहीं होिा।
चाहे िह शिचार भगिान का हो, चाहे िह शिचार सामान्य काम का हो, इससे
कोई अंिर नहीं पड़िा, शचत्त शिचार से भरिा है । शचत्त को शनशियचार, शचत्त को
अनआक्युपाइि छोड़ दे ना ध्यान है ।
मैंने शपछिी बार, जब मैं आया था, िो मैंने जापान के साधु के बाबि आपको
कहा संभििः, ररं झाई िहां एक साधु हुआ। उसके आश्रम को दे खने जापान
का बादिाह एक दफा गया। बड़ा आश्रम था, कोई पां च सौ उसमें शभक्षु थे ।
िह साधु एक-एक थथान को शदखािा हुआ िूमा शक यहां साधु भोजन करिे
हैं , यहां साधु शनिास करिे है , यहां साधु अध्ययन करिे हैं । सारे आश्रम के
बीच में एक बहुि बड़ा भिन था, सबसे सुंदर, सबसे िां ि, सबसे शििाि।
िह राजा बार-बार पूछने िगा, और साधु यहां क्या करिे हैं ?
उस आश्रम के प्रधान ने कहा: उसको बिाने को इसशिए मैं रुका, िहां साधु
कुछ करिे नहीं, िहां साधु अपने को न करने की स्थथशि में छोड़िे हैं । िह
ध्यान-कक्ष है , िहां साधु अपने को न करने की स्थथशि में छोड़िे हैं , िहां कुछ
करिे नहीं। बाकी पूरे आश्रम में काम होिा है , िहां काम छोड़ा जािा है ।
बाकी पूरे आश्रम में शक्रयाएं होिी हैं , िहां शक्रया नहीं की जािी हैं । जब शकसी
को िहां शक्रया छोड़नी होिी है , िो िहां चिा जािा है , सारी शक्रयाएं छोड़ कर
चुप हो जािा है ।
शसफय जान रहा हं , शसफय हं , बोधमात्र होने का, सत्ता का बोधमात्र िेष रह
जाएगा। उसी बोध में, उसी सत्तामात्र में छिां ग िगाना धमय है । उसी में कूद
जाना, उसी अस्स्तत्व में, धमय है ।
यह िो आपने अनु भि शकया होगा, िरीर पर अगर कहीं भी िनाि हो; पैर में
अगर ददय हो, िो शचत्त बार-बार उसी ददय की िरफ जाएगा। अगर िरीर में
कहीं कोई िनाि न हो, िो शचत्त िरीर की िरफ जािा ही नहीं। यह आपको
अनुभि हुआ होगा, आपको िरीर में केिि उन्ीं अंगों का पिा पड़िा है , जो
बीमार होिे हैं । जो अंग स्वथथ होिे हैं , उनका पिा नहीं पड़िा। अगर आपके
शसर में ददय है , िो आपको पिा चिेगा शक शसर है और अगर शसर में ददय नहीं
है , िो शसर का पिा नहीं चिेगा। िरीर जहां -जहां िनािग्रस्त होिा है , िहीं-
िहीं उसका बोध होिा है । िरीर अगर शबिकुि िनाि-िू न्य हो, िो िरीर का
पिा नहीं चिेगा।
जब िरीर को शबिकुि शिशथि छोड़ दें गे, उसके बाद मैं दो शमनट िक
आपके सहयोग के शिए सुझाि दू ं गा, ये सजेिंस दू ं गा शक आपका िरीर
शिशथि होिा जा रहा है ।
अगर हमें पररपूर्य िून्यिा में जाना है , िो िरीर का शिशथि होना अशनिायय है ,
श्वास का िां ि होना अशनिायय है । दो शमनट भाि करने पर श्वास िां ि हो जािी
है । उसके बाद में दो शमनट िक कहं गा शक शचत्त मौन हो रहा है , शिचार िू न्य
हो रहे हैं । दो शमनट िक भाि करने पर शिचार िून्य हो जािे हैं । और इन छह
शमनट की छोटी सी प्रशक्रया में अचानक आप पाएं गे शक एक ररि थथान में,
एक अिकाि में, एक िून्य में प्रिेि हो गया। शचत्त मौन हो जाएगा।
एकाकीपन की हम ििाि करिे हैं जंगि में जाकर, िनों में भाग कर,
पहाड़ों पर भाग कर, िेशकन एकाकीपन का संबंध थथान से नहीं है , स्थथशि से
है । अकेिापन जंगि में जाकर नहीं खोजा जा सकिा। पिु-पक्षी होंगे, उनसे
ही मेि-जोि हो जाएगा, उनसे ही संगी-साथीपन बन जाएगा।
अकेिापन अपने में जाकर पाया जािा है , जहां सब ररि हो जाए और मैं
शबिकुि अकेिा रह जाऊं। उस अकेिी स्थथशि में, उस शनिां ि एकां ि स्थथशि
में, जहां केिि होने मात्र की स्पंदना रह गई, िहां कुछ अनुभि होिा है जो
जीिन में क्रां शि िा दे िा है । उसके शिए बहुि अत्यंि सरि सा छोटा सा प्रयोग
है । यह प्रयोग इिना छोटा सा है शक कई दफे िग सकिा है शक इिने से
प्रयोग से कैसे आं िररक साक्षाि हो सकिा है ? िेशकन बीज हमेिा छोटे होिे
हैं , पररर्ाम में िृक्ष शिराट हो जािे हैं ।
जो बीज को छोटा समझिे हैं ; यह भाि कर िें शक इससे क्या िृक्ष होगा, िह
िृक्ष से िंशचि रह जाएगा। बीच हमेिा छोटे होिे हैं , पररर्ाम में शिराट
मेरी बाि आप समझ गए होंगे। िीन चरर् में हम ध्यान के शिए जािे हैं अभी।
सब िोग उस समय दू र बैठेंगे , िाशक शगरने की सुशिधा हो। सारे िोग थोड़े
फासिे पर बैठ जाएं और काफी गौर से दे ख िें शक शगरने की सुशिधा हो।
कि कुछ असुशिधा हुई।
कथा है , नारद िैकुंठ जा रहे हैं । मागय में उन्ें एक िृि साधु शमिा, िृक्ष के
नीचे, उसने नारद को कहा शक िुम पू छ िेना प्रभु से शक मेरी मुस्ि को अभी
शकिनी दे र और है ? मुझे मोक्ष कब िक शमिेगा?
नारद ने कहा: जरूर िौटिे में पूछ िूंगा। पास में उसी शदन दीशक्षि हुआ एक
फकीर अपना िमूरा िेकर नाच रहा था। नारद ने मजाक में उससे भी कहा
शक िुम्हें भी पूछना है क्या? िह फकीर कुछ बोिा नहीं। नारद िापस िौटे ,
उस िृि साधु के पास जाकर उन्ोंने कहा: मैंने पूछा था, ईश्वर ने कहा: अभी
िीन जन्म और िग जाएं गे । उस साधु ने अपनी मािा नीचे फेंक दी और
कहा: िीन जन्म और! अन्याय है ! शकिना धीरज रखूं!
नारद िो आगे बढ़ गए। िह िृक्ष के नीचे अभी नया-नया दीशक्षि हुआ साधु
नाचिा था, नारद ने कहा: सुनिे हो, िुम्हारे संबंध में भी पू छा था, प्रभु ने कहा:
िह शजस िृक्ष के नीचे नाच रहा है , उसमें शजिने पत्ते हैं , उिने ही जन्म उसे
साधना में िगें गे, िब मुस्ि उपिब्ध हो सकेगी।
मुझे प्रीशिकर िगिी है यह बाि। िह उसी क्षर् मुि हो गया। इिना धैयय! शक
उसने कहा: इिने से पत्ते ! इिने से जन्म! िब िो जीि शिया, जगि में िो
शकिने पत्ते हैं ! इिना धैयय शजसमें है , उसने इसी क्षर् पा शिया।
अधैयय बाधा है । अधैयय िंबा करिा है । अगर अनंि धैयय के साथ मैं एक क्षर्
को भी िां ि हो जाऊं, उसी क्षर् सब हो जाएगा। िो थोड़ा सा अधैयय छोड़
कर, थोड़े से पररर्ाम की एकदम शनिां ि इच्छा और प्रयोजन छोड़ कर अगर
प्रयोग शकया, िो बहुि सुशनशिि है शक थोड़े ही शदनों में कुछ शदखना िुरू हो,
होना िुरू हो, और अगर िैसा कुछ हो जाए, िो उससे ज्यादा मूल्यिान कुछ
भी नहीं है ।
मैं आिा करिा हं शक थोड़े से िोग शजनको प्रीशिकर िगे गा िे प्रयोग करें गे ।
अगर प्रयोग शकया और अगर धीरज रखा, िो पररर्ाम शनशिि है । क्योंशक
शसिाय िां ि होने के, शसिाय पररपूर्य िां ि होने के, मनुष्य के शिए जगि-सत्य
को और स्वयं के सत्य को जानने का कोई उपाय नहीं। कोई धमयग्रंथ जो नहीं
दे सकेंगे , िह स्व के भीिर उिरने से उपिब्ध हो जाएगा।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
दू सरा-प्रिचन
ध्यान के संबंध में दोिीन बािें समझ िे और शफर हम ध्यान का प्रयोग करें ।
बैठने में दो िीन बाि बािें ख्याि िे िेंगे। एक िो कोई शकसी को छूिा हुआ न
बैठे। कोई भी शकसी को जरा भी स्पषय न करे , िो थोड़ा थोड़ा हट जाए। कोई
भी शकसी को स्पषय करिा हुआ न हो। और यहाँ िो जगह बहोि है इसशिए
शबल्कुि फैिके बै ठ सकिे हैं । दू सरे का स्पषय दू सरे को भू िने नहीं दे िा,
दू सरे की मौजूदगी ख्याि में बनी रहिी है । और ध्यान में जरूरी है सब भू ि
जाए, हम अकेिे रह जाए।
आँ ख बंध कर िें।
{दस शमनट का पहिा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }
{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे के ध्यान प्रयोग की बाि िु रू
करिें हैं }
“दु सरा प्रयोग हम, अिग अिग समझा रहा हँ िाशक आपको भी ख्याि में
आ जाएं । दू सरा प्रयोग है सिय स्वीकार का। अभी हम बैठें थे श्वास िे रहे हैं
और ध्यान कर रहे हैं । पक्षी आिाज कर रहे हैं , कोई बच्चा शचल्लाएगा, सड़क
से कोई टर क शनकिेगा, यह सारी आिाजें हमारे चारो ओर हो रही हैं ।
साधारर्िा ध्यान करने िािे िोग, प्राथय ना पूजा करने िािे िोग, अपने चारो
िरफ के जगि से दु िमनी िे िेिे हैं । अगर िर में एक आदमी ध्यान करने
रास्ते से टर क शनकि रहा है हम राजी हैं । कोई बच्चा रो रहा है हम राजी हैं ।
क्योंशक आज िो आप बगीचे में आके बैठ गएं है , अगर प्रयोग करना चाहें गे
िो िर में ही करें गे । सड़क चिेगी, बाहर िोर होगा। अगर यह दृशष्ट ही रही
शक यह सब बाधा बन रही हैं , िो ध्यान असंभि हो जाएगा।
कभी कभी राि रास्ते पर चििे हो, अंधेरी राि हो और कार शनकि जाए, िो
कारके प्रकाि के गु जर जाने के बाद रास्ता और अंधेरा मािूम पड़ने िगिा
है । ठीक ऐसे ही आिाज गु जरे गी, अगर हमने उसका शिरोध न शकया िो और
िनी िां शि पीछे से िौट आिी है । िो दस शमनट हम सिय स्वीकार का प्रयोग
करें गे क्योंशक, शबना सिय स्वीकार के प्रयोग के ध्यान में जाना असंभि है ।
िो हम दस शमनट के शिए शफर बैठें, गहरी श्वास िेंगे, श्वास पर ध्यान रखेंगे,
और साथ ही दू सरा प्रयोग करें गे शक जो भी हो रहा है उससे मैं राजी हँ , मैं
स्वीकार करिा हँ , मेरा कोई शिरोध नहीं। और जैसे ही यह भाि भीिर िना
होगा शक मैं राजी हँ , मैं स्वीकार करिा हँ ; िैसे ही मन गहरी िां शि में उिरने
िगे गा।
ओिो पृष्ठ संख्या 23
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पून: आँ ख बंध कर िें।
गहरी श्वास।
श्वास पर ध्यान।
शिरोध नहीं।
{दस शमनट का दू सरा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }
{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे के ध्यान प्रयोग की बाि िु रू
करिे हैं }
“िीसरी बाि: मनुष्य और परमात्मा के बीच में जो सबसे बड़ी दीिार है िह
दीिार परमात्मा की िरफ से नहीं, मनुष्य के ही िरफ से है । और िह दीिार
है मनुष्य का यह ख्याि ‘मैं हँ ’ – यह ख्याि शजिना मजबूि है , यह अहं कार,
यह इगो शक मैं हँ , शजिना मजबूि है उिनी ही बिी दीिार हमारे और उसके
बीच खड़ी हो जािी है । ध्यान की पूरी गहराई में मैं का मीट जाना जरूरी है ।
अन्यथा दीिार नहीं शगरे गी और उससे शमिना भी नहीं हो सकेगा। िो िीसरा
सूत्र ‘मैं’ को शिसजयन कर दे ने का है ।
जैसे जैसे यह भाि गहरा होगा – मैं खो गया हँ , मैं मीट गया हँ , मैं समाि हो
गया; िैसे िैसे ही िो है इस का भाि अपने आप प्रगट होने िगे गा। यहाँ मैं
शमटू ं गा िहाँ उसका होना िुरू हो जायेगा। इस िरफ मैं शमटू ं गा उस िरफ िो
होना िुरू जो जाएगा। बूंद शगरिी है सागर में, इधर बूंद शमटी नहीं शक उधर
सागर हुआ नहीं। बूंद शमटी और सागर हुई। मनुष्य शमट जाए िो परमात्मा
इसी क्षर् है ।
शमटने के शिए शहम्मि नहीं हमारी, अपने को संभाि के रखिे हैं शक कहीं खो
न जाए, कहीं शमट न जाए। िायद जरूरी भी है शजंदगी में। िेशकन िड़ी भर
को चौबीस िंटे में अगर शमट जाए, िो पिा चिेगा शक िेईस िंटे हो के जो
नहीं शमिा, िो एक िंटे ना हो के शमि गया। िेईस िंटे जो कोिीि कर कर
के सुख न शमिा, िां िी न शमिी, िो एक िंटा शमट गया और सब पा शिया।
आदमी कुंआ खोदिा है िो पहिे िो कंकड़ पत्थर ही हाथ िगिे हैं । सोचे शक
कंकड़ पत्थर ही है छोड़ो, दू सरी जगह खोदें । िहाँ भी खोदिा है , िहाँ भी
कंकड़ पत्थर ही हाथ िगिे हैं । पहिे िो दस-बीस फीट, पचास फीट कंकि
पत्थर ही खोदना पड़िे है । िब कहीं जिस्रोि आिे है । यहाँ जब हम मन की
खुदाई पर उिरिे हैं और ध्यान याशन मन की खुदाई, मन का कुंआ बनाना,
िो भी कंकड़ पत्थर ही हाथ आिे हैं पहिे। िेशकन अगर कोई िगा ही रहे ,
िगा ही रहे , िो जिस्रोि भी आ जािा है । और ज्यादा दे र नहीं है प्रिीक्षा
करने की। िेशकन हमारी थोड़ी प्रिीक्षा करने की भी क्षमिा नहीं रह गई। िो
िीसरे प्रयोग को करें :
श्वास भीिर जाए िो ध्यान भीिर जाए, श्वास बाहर जाए िो ध्यान बाहर जाए।
जो भी है स्वीकार है ।
मैं नहीं हँ ।“
{दस शमनट का िीसरा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }
{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे की बाि िुरू करिे हैं }
यह अगर रोज एक िंटा िीन मशहने िक शसफय इिना ही प्रयोग कर सके िो,
आपका िरीर आपसे अिग है इसकी स्पष्ट प्रशििी हो जाएगी। यह शकसी
िास्त्र में पढ़ने जाना नहीं पड़े गा। न केिि ये बस्ल्क, शजिने िोग हम यहाँ
ओिो पृष्ठ संख्या 28
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बैठे हैं , अगर इिने िोग इस प्रयोग को कर सके िो कम से कम िीस परसंट
िोगों को िो शकसी न शकसी यह भी अनुभि हो सकिा है शक िरीर अिग
पड़ा है , मैं अिग खड़ा हँ और अपने ही पड़े हुए िरीर को दे ख रहा हँ । िरीर
के बाहर भी होने का अनुभि हो सकिा है ।
आने िािे िीन शदनो प्रयोग को हम समझेंगे। ये सुबह की बैठक इसी शिए है
शक प्रयोग पूरी िरह आपके ख्याि में आ जाए। राि सोिे समय इसे करे आज
भी, सोिे सोिे शबस्तर पर ही िेट जाए, करिे करिे सो जाए। अगर करिे
करिे ही सो जाए, िो बहोि शकमिी पररर्ाम होंगे। क्योंशक राि सोिे समय
जो हमारी आखरी मन की दिा होिी है , िो शफर पूरी शनंद में उसकी
प्रशिध्वनी होिी रहिी है । और धीरे धीरे , धीरे धीरे ; पूरी नींद ध्यान में बदिी जा
सकिी है । और आज की दु शनया में इिना समय नहीं शकसी के पास शक
अिग से ध्यान के शिए बहोि समय दे सके।
इसशिए मेरी अपनी समझ है शक ध्यान राि सोिे समय अगर शकया जाए, िो
धीरे धीरे कोई शबना अिग से समय शनकािे; राि की पू री शनंद ध्यान में बदि
जािी है । और थोड़े दस पंिह शदन में ही आपको पिा पड़ना िुरू होगा शक
शनंद की क्वॉशिटी बदि गई, उसकी गहराई बदि गई। और जब सुबह उठें गे
िो ऐसा नहीं िगे गा की शनंद से उठे ; ऐसा िगे गा गहरे ध्यान से उठे । िाजगी,
एक िंटा, िीन मशहने ध्यान के शिए दे दे । शफर िीन महीने के बाद दे ना नहीं
पड़े गा ध्यान के शिए एक िंटा; ध्यान अपने आप िे िेगा। िीन मशहने िक
आपको दे ना पड़े गा और िीन मशहने के बाद आपकी कोई जरूरि न रहे गी।
िो जो आनंद की झिक आएगी, िो जो िां शि की शकरर् आएगी, िो जो
परमात्मा का स्पषय मािूम पड़ना होगा िुरू; िो अपने आप बुिा िेगा, अपने
आप पुकार िेगा।
कि सुबह शफर हम यहाँ साि बजे बै ठेंगे । िो िर से स्नान करके आएं । अगर
कोई नए शमत्र आपके साथ आिे हों िो उन्ें भी बिा दे शक िे स्नान करके
आएं , चूपचाप आएं । िर से ही चूप होना िुरू हो जाए और यहाँ आके
चुपचाप बैठ जाए। कोई िब्द का प्रयोग न करें ।
सुबह की बैठक हमारी पूरी हुई। बािचीि हम नहीं करें गे । चुपचाप यहाँ से
शिदा हो जाएं गे ।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-03
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
मेरी दृशष्ट शभन्न है । जीिन बहुि छोटी-छोटी बािों से बनिा है , बड़ी बािों से
नहीं। और जो व्यस्ि भी बहुि बड़ी-बड़ी बािों की महत्ता के संबंध में गं भीर
हो उठिा है , िह इस िथ्य को दे खने से िंशचि रह जािा है , अक्सर िंशचि रह
जािा है । उसे यह बाि नहीं शदखाई पड़ पािी है शक बहुि छोटी-छोटी चीजों
से शमि कर जीिन बनिा है ।
दू र से शमत्र बने रहना एक बाि है और िंबी यात्रा में सहयोगी और साथी होना
शबिकुि दू सरी। बहुि सी कशठनाइयां आनी िुरू हो गईं। छोटी-छोटी बािों
में उपिि और शिरोध िुरू हो गया। कटु िा आनी िुरू हो गई। पृथ्वी बड़ी
थी, पररक्रमा बहुि बड़ी थी। थोड़े ही शदनों में दोनों के बीच मनमुटाि गहरा
हो गया।
एक राि दोनों एक रे शगस्तान में सोए, बहुि सदय और ठं िी राि थी। सुबह जै से
ही अंधे शमत्र की आँ ख खुिी, उसने टटोि कर अपनी िकड़ी ढूंढनी चाही,
शजसे िह राि रख कर सो गया था। उसके हाथ में िकड़ी आ भी गई, दे ख
कर िह है रान हुआ, जो िकड़ी उसके हाथ में आई थी, िह बहुि शचकनी,
साफ-सुथरी, बहुि सुंदर मािूम हो रही थी। िह है रान हुआ शक यह िकड़ी
कहां से आ गई? उसकी िकड़ी िो बहुि साधारर् और खुरदु री थी। उसी
और मैं िुम्हारी चािाकी भी समझ गया। िायद यह सुं दर िकड़ी िुम्हें बहुि
मन को भा गई होगी और िुम चाहिे हो शक मैं इसे छोड़ दू ं िो िुम उठा िो।
िेशकन मुझे धोखा दे ना इिना आसान नहीं है । उसके शमत्र ने बार-बार प्राथय ना
की शक िुम कृपा करो और इसे छोड़ दो, िह सपय है और िकड़ी नहीं है ।
िेशकन शजिना िह शमत्र प्राथय ना करिा गया, उिना अंधे का आग्रह बढ़िा
चिा गया। अंििः बाि यहां पहुं च गई शक उस अंधे आदमी ने कहा शक अब
हमारा साथ आगे नहीं बन सकेगा। शफर दोनों शमत्र अिग हो गए।
कौन सी िस्ियां हमारे भीिर अंधी हैं , उनकी मैं बाि करू
ं गा। कौन सी
िस्ियां हमारे भीिर आँ ख िािी हैं , उनकी मैं बाि करू
ं गा। उन ित्वों की
भी बाि करू
ं गा जो अंधी िस्ियों को प्रबि करिे हैं और उनकी भी जो उन्ें
शनमयि करिे हैं और आँ ख िािी िस्ियों को जगािे हैं और चैिन्य करिे हैं ।
िेशकन जीिन में यह रोज होिा है , शक रोज बार-बार उन्ीं-उन्ीं गङ् ढों में
हमारे पैर जीिन के पथ पर शगरिे हैं । नये-नये गङ् ढों में भी नहीं; कि जो
क्रोध शकया था, िही क्रोध आज भी शकया। आज जो क्रोध शकया है , कि िही
क्रोध शफर भी होगा। क्रोध के बाद पछिाएं गे भी, दु खी भी होंगे, शनर्यय भी
करें गे न करने का, िेशकन शफर िड़ी दो िड़ी बाद िही भू ि सामने आ
जाएगी, िही गङ् ढा, िही आदमी, िही पैर और शफर िही गङ् ढे में शगरना हो
जाएगा।
और शफर जो कुछ हम जीिन में चाहिे हैं , िही-िही उपिब्ध नहीं हो पािा।
हर मनुष्य आनंद चाहिा होगा, िां शि चाहिा होगा, एक संगीिपूर्य व्यस्ित्व
चाहिा होगा, फूि की िरह सुरशभि आत्मा चाहिा होगा, िेशकन यह हो नहीं
पािा। और जो हम करिे हैं , िह सब ठीक हमें, जो हम चाहिे हैं उसके
शिरोध में िे जािा है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 36
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इससे शकस बाि की सूचना शमििी होगी? एक ही बाि की सूचना शमििी
होगी, आकां क्षाएं िो हमारी ठीक हैं , िे शकन आं खें हमारी अंधी हैं । और आं खें
अंधी हों, िो स्मरर् रस्खए, खुद की आं खें अंधी हों, िो कोई दु शनया में शकसी
दू सरे की आँ ख आपके काम नहीं पड़ सकिी हैं । कृष्ण की, या क्राइस्ट की,
या बुि की, या महािीर की, या शकसी की भी आँ ख आपके काम नहीं
पड़ें गी। और आपकी आँ ख अंधी हों, िो आपके हाथ में सूरज भी िाकर रख
शदया जाए, िो भी प्रकाि नहीं कर सकेगा, उसमें कोई अथय नहीं होगा।
एक अंधा आदमी, एक शमत्र के िर राि शिदा िे रहा था। उसके शमत्र ने कहा:
अंधेरी राि है , सन्नाटा है , अमािस है , रास्ते सुनसान हैं , िोगों के िर बंद हैं ,
अच्छा होगा शक िुम हाथ में एक दीया शिए जाओ। उस अंधे ने कहा शक आप
बड़ी पागिपन की बािें करिे हैं , मैं दीया भी िे जाऊं, उसका क्या अथय?
मेरी आं खें िो नहीं हैं । िो मेरे हाथ में प्रकाि भी होगा, िो मैं क्या करू
ं गा?
शफर भी शमत्र ने बहुि आग्रह शकया, उसके आग्रह को मान िेकर िह अंधा
आदमी एक कंदीि को िेकर रास्ते पर शनकिा। िेशकन िह कोई दस कदम
ही गया होगा शक कोई दू सरा आदमी आकर उससे टकरा गया। उस अंधे
आदमी ने कहा: मे रे शमत्र, मुझे िो िािटे न नहीं शदखाई पड़िी, िेशकन िुम्हें
िो शदखाई पड़िी होगी? क्या मैं शकसी दू सरे अंधे आदमी से मुिाकाि कर
रहा हं ? उस दू सरे आदमी ने कहा: नहीं भाई, मुझे िो शदखाई पड़िा है ,
िेशकन िुम्हारी कंदीि की बािी बुझ गई है , िुम बुझी हुई कंदीि शिए हुए हो,
इसशिए कैसे शदखाई पड़िा? िो अंधे आदमी को िो यह भी पिा नहीं चि
सकिा शक कंदीि बुझी है या जिी है ।
दु शनया भर के िास्त्र बुझी हुई कंदीिों की भां शि हमारे हाथों में हैं । शजससे
कोई अथय नहीं है । कोई कुरान को शिए हुए है ; कोई गीिा को; कोई बाइशबि
को, और िीनों टकरा जािे हैं रास्तों पर। िीनों की कंदीिें बुझ गई हैं । िेशकन
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कंदीि बुझी है या जिी है , इससे कोई फकय नहीं पड़िा, जब िक शक खुद के
पास आँ ख न हो।
मैं शफर दोहरािा हं , आँ ख बंद हो, िो प्रकाि में भी कोई रास्ता नहीं है और
आँ ख खुिी हो, िो अंधकार में भी रास्ता शमि जािा है ।
जीिन में जो हमारे इिनी शचंिाएं , इिना संिाप, इिनी एं ग्ज़ायटी, इिनी
अिां शि है , क्या कभी सोचा शक ये क्यों हैं ? क्या कभी शिचारा शक ये कैसे पैदा
हो गई हैं ? ये आसमान से नहीं बरसिी हैं , इसे हम पैदा करिे हैं । शजस ढं ग से
हम रोज जीिे हैं , उससे हम पैदा करिे हैं । हमारे जीने का ढं ग गिि है ,
सोचने का ढं ग गिि है ; दे खने की दृशष्ट मंद है , हाथ में, जीिन में कोई प्रकाि
नहीं है । जो भी हम करिे हैं , िह गिि िे जािा है । जो भी हम बनािे हैं , िह
गिि हो जािा है । शजस भां शि भी हम चििे हैं , िही रास्ता भटका दे िा है ।
इसके पहिे शक िे िीन शदन की चचाय एं आपके सामने हों, िे सारी बािें आपसे
कहं , इन िीन शदनों की बािों को सम्यक रूप से समझने, शिचार करने, उस
िरफ आँ ख उठाने के शिए कुछ छोटी-छोटी बािें आपसे अपेशक्षि होंगी।
पहिी अपेक्षा िो यह होगी शक इन िीन शदनों में--जो पीछे आप करिे आए हैं ,
सोचिे रहे हैं , शिचार करिे रहे हैं , उससे थोड़ा सा दू र हट कर अगर बािों को
सुनने की कोशिि करें गे , िो िायद कुछ हो सके। उससे थोड़ा िटथथ होकर
अगर सोचेंगे, िो कुछ हो सकिा है । आमिौर से हम उसे भू ि ही जािे हैं जो
हमारे मन में बैठा हुआ है ।
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
एक फकीर के पास एक नया युिक दीक्षा िेने गया था। उस युिक ने जाकर
उस फकीर के पैर पड़े और कहा शक मैं दीशक्षि होने आया हं ।
िह युिक हं सा और उसने कहा: क्षमा करें , पेशकंग को मैं पीछे छोड़ आया,
उसके चािि को भी, उसके भाि को भी, और शजस रास्ते से मैं गु जर जािा
हं , िह मेरे शिए शमट गया हो जािा है , और शजस पुि पर से मैं गु जर जािा हं ,
उसको मैं िोड़ दे िा हं । मुझे कुछ पिा नहीं शक पेशकंग में चािि के क्या भाि
हैं ।
उससे शभन्न बाि पर कोई कभी नहीं जागिा। राि शजस शचंिा को िेकर आप
सो गए हैं , सुबह उसी शचंिा पर आप िापस जाग जाएं गे । राि भर िह शचं िा
आपके मस्स्तष्क के द्वार पर खड़ी प्रिीक्षा करे गी, जब आप जागें गे, िह
हाशजर हो जाएगी। राशत्र का अंशिम शिचार सुबह का प्रथम शिचार होिा है ।
और आज राशत्र का अंशिम शिचार भी यही हो शक मैं जो पीछे है उसे छोड़िा
हं । कम से कम िीन शदन के शिए मैं जो सिि िियमान है उसमें जीऊंगा,
अिीि को बीच में नहीं िाऊंगा।
जो व्यस्ि अिीि को बीच में नहीं िािा शचत्त के, उसका शचत्त बहुि शनमयि
और िां ि हो जािा है । क्योंशक अिां शि सब अिीि से आिी है । िो िियमान में
कोई भी अिां शि नहीं होिी। इस ित्व पर अभी हम और शिचार करें गे , िो
समझ में आएगा शक िुम्हें कुछ थोड़े से सुझाि आपको दे रहा हं । िियमान में
िह जो प्रज्वशिि मूिमेंट है , उसमें कोई अिां शि नहीं होिी। सब अिां शि
अिीि से संबंशधि होिी है या भशिष्य से संबंशधि होिी है , िियमान में कभी
कोई अिां ि नहीं होिा। आप खुद ही अपनी अिां शि को दे खेंगे, िो समझ
जाएं गे । या िो िह बीिी हुई होगी या आने िािी होगी। ठीक क्षर् में मौजूद
कोई अिां शि नहीं होिी।
जीिंि क्षर् में कोई अिां शि नहीं होिी है । शपछिा भार, अिीि का भार शचत्त
को अिां शि दे िा है । और आने िािे शदन की कल्पना और योजना शचत्त को
अिां शि दे िी है ।
यहां िीन शदनों में, समझ िीशजए, न िो कोई अिीि है और न कोई भशिष्य
है । िीन शदन में बस ये िीन शदन के क्षर् हैं , जो सामने क्षर् आिा है , िही है ।
इन िीन शदनों में इस भां शि जीकर दे स्खए, एक शबिकुि नई दृशष्ट जीिन के
प्रशि खुि जा सकिी है । और एक बार यह खयाि में आ जाए शक जीिन पर
जो भार है , जो टें िन है , जो िनाि है , िह अिीि और भशिष्य का है , िो मनुष्य
को एक शबिकुि नया द्वार शमि जािा है खटखटाने का। और िब शफर िह
रोज िड़ी दो िड़ी को सारे अिीि और सारे भशिष्य से मुि हो सकिा है ।
और खयाि रस्खए, न िो अिीि की कोई सत्ता है , शसिाय स्मृशि के और न
भशिष्य की कोई सत्ता है , शसिाय कल्पना के, जो है िह िियमान है ।
इस मौजूद क्षर् में अगर मैं पू री िरह मौजूद हो सकूं, िो िायद सत्ता में मेरा
प्रिेि हो जाए। िो िायद जो सामने दरख्त खड़ा है , ऊपर िारे हैं , आकाि
है , चारों िरफ िोग हैं , इन सबके प्रार्ों से मेरा संबंध हो जाए। उसी संबंध में
मैं जानूंगा उसको भी जो मेरे भीिर है और उसको भी जो मेरे बाहर है ।
मििब यह शक जहां हम होिे हैं , िहां हम नहीं होिे हैं । िो जीिन में एक
शिशंखििा और एक खंशिि, और यह खंशिि स्थथशि बड़ी खिरनाक है । शक
जब हम सोिे हैं िब शचत्त शदन में जो उसने शकया उसका स्मरर् करिा है ,
सपने दे खिा है । जो हम शदन में काम करिे हैं , िो राि जो सपने अधूरे हैं ,
शचत्त उन सपनों को पूरा करिा है । शचत्त पूरे िि अनुपस्थथि है , एब्सेंट है
जहां हम हैं , िो हमारा जीिन से संबंध कैसे होगा?
िेशकन जब हम प्रे म करिे हैं िब शचत्त कहीं और होिा है । और जहां शचत्त प्रेम
करिे िि होिा है , जब हम िहां आ गए, िो शचत्त िहां होिा है जहां उसे प्रेम
करिे िि होना चाशहए था। ऐसे जीिन में सारी चीज टू ट गई हैं । हम कहीं हैं ,
शचत्त कहीं है । जब हम प्राथय ना करिे हैं , िब शचत्त कहीं और है ; जब हम
इन िीन शदनों में एक छोटा सा प्रयोग करें --शक जो भी काम कर रहे हैं उसमें
पूरी िरह मौजूद हो जाएं । अभी राि को यहां से जाकर सोएं , िो पूरी िरह
सोएं । पूरी िरह सोने का मििब यह है शक सोिे िि इस भां शि सोएं शक
सारा काम समाि हुआ। अब शसिाय सोने के और कोई भी काम नहीं है ।
अब मैं अपने पूरे प्रार्ों से सोने जा रहा हं । और मे रे पूरे प्रार् शसफय सोने भर
के काम को करें और कोई भी काम नहीं है । उसी भां शि सोएं ।
सुबह स्नान करें िो इस भां शि स्नान करें शक स्नान करिे िि आपका पूरा
व्यस्ित्व स्नान कर रहा है , आपका शचत्त कहीं और नहीं भागा जा रहा है ।
थोड़े ही शदन स्मरर्पूियक अगर हम शचत्त के साथ सजगिा बरिें, िो बहुि
कशठन नहीं है शक एक शदन िह िड़ी आ जाए शक हम जो काम कर रहे हों,
उसमें हम पूरी िरह मौजूद हो जाएं । बुहारी िगा रहे हों, िो पूरी िरह मौजू द
हो जाएं । और अगर बुहारी िगािे हुए भी कोई पूरी िरह मौजूद हो जाए, िो
उसे बुहारी िगाने में िही आनंद उपिब्ध होगा, जो शकसी बड़े से बड़े योगी
को ध्यान करने में उपिब्ध हुआ है । कोई फकय नहीं रह जाएगा।
इधर हम िीन शदनों में सिि इस बाि की शफकर करें गे । जो भी काम कर रहे
हों, उसे इिनी पूर्यिा से करें , इिने पूरे, टोटि, इिने समग्ररूप से उसमें िूब
जाएं शक उसके बाहर कुछ भी न रह जाए, आप िही हो जाएं ।
बहुि से शचत्रकार मुगों के शचत्र बना कर िाए, नमूने के शिए, िेशकन उस बूढ़े
शचत्रकार ने कहा शक सब शफजूि हैं , ये कुछ भी नहीं हैं । आस्खर राजा
परे िान हो गया, उसने कहा: िुम खुद बनािे नहीं, दू सरों को बनाने दे िे नहीं।
शफर हम क्या करें ? उसने कहा शक मैं बनाऊं िेशकन मेरा पक्का नहीं है ,
क्योंशक कम से कम िीन िषय िग जाएं गे ।
उसने कहा: शचत्र बनाना िो दो क्षर् में हो जाएगा, िेशकन मुगाय बनने में िीन
िषय िग जाएं गे ।
राजा ने कहा: िुम पागि हुए हो! मुगाय िुमसे बनने को कह कौन रहा है ?
राजा ने कहा: हम यह नहीं चाहिे हैं , हमें शचत्र चाशहए। िुम मुगे की आिाज
सीख कर आए, इससे क्या होिा है ?
उसने कहा: इसकी क्या परीक्षा है ? हम कैसे जानें शक यह शचत्र इिना अदभु ि
बना?
उसने कहा: िीन िषय िक मैं मुगे के साथ एक होने की कोशिि शकया। मैं
अपने को भू ि गया और मुगाय होिा चिा गया। धीरे -धीरे , धीरे -धीरे ऐसे क्षर्
आए, जब मुझे यह स्मरर् भी नहीं रहा शक मैं हं । एक ही बाि स्मरर् रही,
मुगाय है । और उन्ीं क्षर्ों में मैंने मुगे की आत्मा को जाना।
िेशकन अगर इिनी िीनिा नहीं है सुनिे िि, िो आप िह नहीं सुनेंगे जो मैं
कह रहा हं , आप िही सुनेंगे जो आप सुनना चाहिे हैं , सुन सकिे हैं , पहिे से
सुने हुए हैं , पहिे से सोचे हुए हैं । िब आप िही सुनेंगे, िब शफर िह नहीं सुन
पाएं गे जो मैं आपसे कह रहा हं । िो यहीं से िुरू कर दें और इन िीन शदनों
एक छोटे सूत्र पर काम करें शक जो भी काम कर रहे हैं --उठ रहे हैं ; बैठ रहे
हैं ; सो रहे हैं , उसमें पूरी िरह िीन हो जाएं ।
यह िो पहिा सूत्र।
दू सरी बाि, अगर प्रत्येक कमय में आत्मिीनिा की बाि पर थोड़ा खयाि
शकया, िो शचत्त बहुि गहरी िां शि को अपने आप उपिब्ध होिा है , उसके
शिए कोई बहुि शििेष प्रयास नहीं करना पड़िा। दू सरी बाि, शचत्त इसशिए
अभी िो िीन शदन की ही कुि बाि है , इसशिए बहुि शचंिा में न पड़ें शक अगर
हम बहने िगें िो शफर शजंदगी का क्या होगा और अगर हमने कुछ भी होने
की शफकर छोड़ दी िो शफर शजं दगी का क्या होगा, इस शचंिा में न पड़ें । मैं
केिि िीन शदन की ही बाि कर रहा हं , इसके आगे की कोई बाि नहीं कर
रहा हं । िीन शदन कुछ प्रयोग करके दे खें, उसमें से कुछ अगर साथय क होगा,
िह अपने आप बच जाएगा, आपको बचाने के शिए नहीं कहं गा उसे। अगर
कुछ होगा, िो िह अपने आप आपको पकड़ िेगा, आप उसे पकड़ें यह
शनिेदन नहीं करू
ं गा।
अभी िो िीन शदन इस छोटी सी िीन शदन की िशड़यों के शिए सारी बाि कर
रहा हं । िो िीन शदन थोड़ी बहने की कोशिि करें । ये जो आमिौर से धमय में
उत्सुक िोग होिे हैं , िे बहुि ज्यादा सीररयसनेस पकड़ िेिे हैं , बहुि गं भीर;
िे समझिे हैं िे शक बहुि भारी गं भीर काम करने जा रहे हैं ।
नहीं, धमय के इस सत्य को जानने में केिि िे ही िोग सफि हो सकिे हैं , जो
बच्चों जैसे गै र-गं भीर हों, नॉन-सीररयस हों, जैसे बच्चे। गं भीर शचत्त िनाि से
भर जािा है । िो मैं आपसे शनिेदन करू
ं गा, यहां गंभीरिा को धारर् नहीं कर
िो प्रसन्न रहें गे, हं सेंगे, ऐसे ही समझेंगे जैसे िूमने चिे आए हैं , यहां कोई बहुि
बड़ी साधना, कोई बहुि बड़ी परमात्मा की खोज, कोई बड़ा योग साधने आए
हैं , िो बहुि गं भीर होकर, नहीं, उस िरह से चीजें नहीं पकड़ िेंगे। उस िरह
से शचत्त क्षु ि होिा है , उदास होिा है , उस िरह के शचत्त की जो भी सरििा है ,
िह सब नष्ट हो जािी है । ये साधु और संन्यासी सरि नहीं रह जािे, शजंदगी
को इिनी गं भीरिा से पकड़िे हैं । ठीक-ठीक व्यस्ि िही सरि हो सकिा है ,
जो शजंदगी को एक खेि की भां शि पकड़िा हो, एक गं भीर िटना की भां शि
नहीं--एक नाटक की भां शि, एक खेि की भां शि।
िीन फकीर हुए चीन में। अदभु ि फकीर थे । उनके बाबि, एक उन िीनों का
कोई नाम पिा नहीं है । उन्ोंने कभी बिाया भी नहीं। थ्री िाशफंग सेंट्स ही
उनको कहा जािा था। िीन हं सिे हुए फकीर। िे शजस गां ि में जािे, उनके
पहिे ही उस गां ि में खबर पहुं च जािी शक िे िीनों पागि आ रहे हैं । िे न िो
भाषर् करिे थे , क्योंशक भाषर् कैसे भी हो, कुछ न कुछ गं भीर पहिे ही
आिा है । न िे कुछ समझािे थे, बस चौराहों पर खड़े होकर हं सना िुरू कर
दे िे थे ।
िो मैं इधर कहं गा शक इस शिशिर को कोई गं भीर उपक्रम नहीं समझ िेना
आप। गं भीरिा रुग्ण शचत्त का िक्षर् है । सरििा से हं सिे हुए और एक
नाटक की भां शि जीिन को िेने में जो समथय हो जािा है , उसे जीिन के बहुि
से रहस्य खुि जािे हैं ।
िो यह शनिेदन करू
ं गा शक िीन शदन ऐसी सरििा से जीएं गे जैसे हम यहां
प्रकृशि के सौंदयय को दे खने इकट्ठे हुए हों। कुछ शमत्र इकट्ठे हुए हों, कुछ
गपिप करें गे , कुछ हं सेंगे। मौज से िीन शदन बहें , इस भां शि अपने को ढीिा
छोड़ दें गे। आक्रामक, एग्रे शसि माइं ि नहीं होना चाशहए। और ये साधक
शजिने होिे हैं , िथाकशथि, िे सब एग्रे शसि होिे हैं , आक्रामक होिे हैं ।
एकदम से आक्रमर् करिे हैं चीजों को पाने के शिए। जब शक सच्चाई यह है
शक सत्य जैसी चीज आक्रमर् करके नहीं पाई जा सकिी।
एक मशहिा मेरे पास आिी थीं, िह सं स्कृि की बहुि बड़ी पंशिि हैं , उन्ोंने
मुझसे कहा शक मुझे ईश्वर को पाना है । मैंने कहा शक कुछ ध्यान करें , िो
िायद कुछ इस शदिा में गशि हो। उन्ोंने एक शदन ध्यान शकया, िौटिे में
मुझसे बोिी, िेशकन अभी मुझे कुछ अनुभि नहीं हुआ। मैंने कहा: कि और
ईश्वर को एकाध मौका और दें । आप िो जल्दी में हैं और ईश्वर िो बड़ा सु स्त
है , िह िो जल्दी में मािूम नहीं होिा, हजारों साि ऐसे ही गु जरिे चिे जािे
हैं । उधर कोई जल्दी नहीं है । िाखों साि, करोड़ों साि ऐसे गु जर गए हैं , जैसे
कोई िहां जल्दी नहीं मािूम होिी।
उनको मैंने कहा कहा था: एक नदी पर एक बूढ़ा संन्यासी अपने एक युिक
संन्यासी के साथ नाि से उिरा। नाि से उिर कर उसने उस मां झी से पूछा,
नाि िािे से पूछा शक यह जो पास का गां ि है , क्या मैं सूरज िूबने के पहिे
िहां पहुं च जाऊंगा? सूरज िूबने को था और उस गां ि का शनयम था, सूरज
िूबिे ही उस गां ि के दरिाजे बंद हो जािे थे , शकिे के, शफर कोई प्रिेि नहीं
कर सकिा था। शफर राि भर मुझे बाहर रुकना पड़े गा, क्या मैं पहुं च जाऊंगा
सूरज िूबने के पहिे?
िे दोनों भागे , िेशकन थोड़ी ही दू र जाकर, सूरज नीचे उिरने िगा, अंधेरा
जंगि में शिरने िगा, िे और िेजी से भागे। और िह बूढ़ा संन्यासी पत्थर से
चोट खाकर शगर पड़ा। उसके पैर िहिुहान हो गए। पीछे से िह मां झी भी
मैं भी आपसे कहिा हं , परमात्मा के द्वार केिि उसी के शिए खुििे हैं जो
इिने धीरे जािा है , इिने धीरे शक उसके धीरज का कोई अंि नहीं। और जो
जल्दी करिा है , उसके शिए िो द्वार बंद हो जािे हैं । द्वार इसशिए बंद हो जािे
हैं शक जल्दी करने िािा मन अिां ि मन है , धीरे से और अनंि धैयय से जाने
िािा मन िां ि मन है । द्वार इसशिए बंद नहीं हो जािे शक परमात्मा बंद कर
दे िा है उनको, हम बंद कर िेिे हैं ।
और िीसरी बाि: कोई अधैयय, कोई जल्दी न करें । शजिनी जल्दी करें गे ,
उिनी दे र हो जािी है ।
एक संन्यासी िषों से, जन्म से प्राथय ना, पूजा में िगा था, ऊब गया और िबड़ा
गया और बेचैन हो गया। क्योंशक पूरे िि जब िह प्राथय ना कर रहा था, िब
दृशष्ट िो प्रास्ि पर िगी थी और शजस शदन उसकी प्राथयना असफि हो गई,
उसी शदन दु ख और मनोशचंिा व्याि होिी चिी गई।
नारद ने कहा: जरूर पूछ िूंगा। बगि में ही उसी शदन, उसी दरख्त के पीछे ,
बरगद का बड़ा दरख्त था, एक युिा फकीर अपना एकिारा िेकर नाचिा
था। नारद ने मजाक में उससे पूछा शक शमत्र, िुम्हें भी िो काफी दे र हो गई,
िह खूब हं सने िगा, और उसने कहा: कृपा करना, मेरा नाम िहां मि
उठाना, इस योग्य मेरा नाम नहीं है । और कृपा करना, कुछ पूछना मि,
क्योंशक जो पूछिा है , िह सौदा करिा है । और जो यह कहिा है , कब िक
शमिेगा? उसे करने में कोई आनंद नहीं है , शमिने में आनंद है । मैं िो जो गीि
गा रहा हं , मुझे सब शमिा जा रहा है उसमें ही। और मैं जो नाच रहा हं , मैं ने
उसमें पा शिया। िे शकन कुछ पूछना मि, मेरा नाम मि उठाना, मेरी बाि मि
उठाना।
िेशकन नारद कुछ शदनों बाद िौटे , और उन्ोंने उस बूढ़े फकीर को कहा शक
मैंने पूछा था, उन्ोंने कहा: िीन जन्म और िग जाएं गे ।
हो ही जाएगा। ऐसा शचत्त जो इिनी सरििा से, इिनी कृिज्ञिा से, इिनी
धन्यिा से, इिनी अपनी अपात्रिा से और परमात्मा की इिनी अनुकंपा के
बोध से भरा हो और शजसमें इिना धैयय हो शक िह कह सके शक जमीन पर
शकिने िृक्ष और शकिने पत्ते और इस छोटे से िृक्ष में पत्ते ही शकिने हैं , इिने
ही जन्मों में मैं मु ि हो जाऊंगा। िो यह िो बड़ी जल्दी हो गई, यह िो बड़ी
िीघ्रिा हो गई।
शजसकी इिनी पेिेंस है , इिना धैयय है , िह िो उसी क्षर्, उसी क्षर् मुि हो
जाएगा। क्योंशक ऐसे शचत्त को रोकने का कोई भी कारर् नहीं रह गया, ऐसे
शचत्त के द्वार बंद होने की कोई िजह नहीं रह गई।
िो यह कहं गा अंि में, अधैयय से नहीं कुछ होिा है इस शदिा में, अनंि धैयय
और प्रिीक्षा में। और िह केिि उनमें ही हो सकिी है जो जीिन को बड़ी
सरििा से खेि की िरह िेंगे, गंभीरिा से नहीं, हं सिे हुए, मौन में, िां शि में,
प्रेम में और धैयय में जो जीिन को िेंगे, जीिन उनके प्रशि अपने सब द्वार
अनायास खोि दे िा है ।
ये िीन छोटी सी बािें कहीं, इन िीन पर थोड़ा खयाि करें गे , शिचार करें गे
और शफर आने िािे िीन शदनों में इस भू शमका को िेकर, मन की इस
मेरी इन बािों को इिने थके हुए, इिनी यात्रा के बाद, इिने प्रेम से सुना है ,
उसके शिए बहुि-बहुि धन्यिाद।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-04
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
चौथा-प्रिचन
इन आं खों के आधार पर चिने िािा और कहीं नहीं पहुं चिा, शसिाय मृत्यु
के। िह कहीं भी दौड़े , कुछ भी कोशिि करे , कैसे भी प्रयास करे , िेशकन
अंि में पाया जािा है शक िह मौि के दरिाजे पर पहुं च गया। ये आं खें, जीिन
के, परम जीिन के द्वार िक नहीं िे जािी मािूम होिी हैं । जन्म के बाद हम
रोज-रोज मौि की िरफ सरकिे जािे हैं । और शफर हम चाहे कोई भी उपाय
करें , और कोई भी सुरक्षा और शसक्योररटी की व्यिथथा करें , मौि से बचना
नहीं हो पािा।
हमारी सारी व्यिथथा िायद उसी से बचने के शिए है --धन इकट्ठा करिे हैं ,
यि इकट्ठा करिे हैं , िस्ि इकट्ठी करिे हैं शक िायद िस्ि से, पद से और
धन से हम एक दीिाि बना िेंगे और अपने को मौि से बचा िेंगे।
िेशकन हमारा कोई भी उपाय साथयक नहीं होिा, िरन हम जो उपाय मौि से
बचने के करिे हैं , िे ही उपाय हमें और भी गशि से मौि की िरफ िे जािे हैं ।
क्राइस्ट को शजस राि पकड़ा गया और सुबह उनको सूिी दी जाने को थी,
उनके एक शमत्र ने, ल्यूक ने उनसे पूछा शक क्या आप िबड़ाए हुए नहीं हैं ?
कि मौि आ जाएगी, क्या आपके शचत्त में परे िानी और बेचैनी नहीं है ?
क्राइस्ट ने कहा: शजस शदन से भीिर दे खा, उस शदन से मौि शमट गई, अब
मुझे मारने िािे इस भ्रम में होंगे शक उन्ोंने मुझे मारा, और मैं नहीं मरू
ं गा।
िेशकन हम िो ऐसे अमृि को जानिे नहीं। हम िो जानिे हैं , रोज चारों िरफ
िटिी हुई मृत्यु को और खुद भी शनरं िर मृत्यु की िरफ सरकिे हैं , इसे भी
जानिे हैं । एक श्वास हम िेिे हैं और एक आदमी जमीन पर कहीं मर जािा
है । एक श्वास भीिर जािी है और एक आदमी मर जािा है , और एक श्वास
बाहर शनकििी है और एक आदमी मर जािा है । प्रशिक्षर् चारों िरफ मौि
िशटि हो रही है और हम उसके बीच खड़े हैं , और हम कुछ भी करें और
कहीं भी भागें ।
एक बादिाह हुआ, उसने राि एक स्वप्न दे खा। स्वप्न में उसने दे खा शक कोई
कािी छाया उसके कंधे पर हाथ रखे है और उससे कह रही है शक कि ठीक
समय और ठीक थथान पर मुझे शमि जाना, मैं मृत्यु हं और कि िुम्हें िेने आ
उन सारे िोगों ने बहुि सोचा और उन्ोंने कहा शक सोचने में समय खोना
गििी होगी, आपके पास जो िेज से िेज िोड़ा हो उसे िेकर आप भागने की
कोशिि करें । शजस राजधानी में िह था दशमि में, उसके शमत्रों ने और
उसके ज्ञाशनयों ने सिाह दी शक िेज से िेज िोड़ा िें और भागें और सूरज
िूबने के पहिे शजिनी दू र शनकि सकें शनकि जाएं । और इसके शसिाय अब
हम कुछ भी सोचने में समय गिां ना ठीक नहीं समझिे। हम सोचिे रहें और
शिश्लेषर् करिे रहें और व्याख्या और िास्त्रों में खोजिे रहें और सां झ हो
जाए और मौि आ जाए, शफर कौन शजम्मेिार होगा?
शजंदगी भर हम भागिे हैं , भागिे हैं और आस्खर में िहां पहुं च जािे हैं , शजससे
हम भागिे थे और शजससे हम बचिे थे और शजसके शिए हमने िोड़े दौड़ाए--
यि के, और धन के, और िस्ि के, और पद के, उसी जगह हम पहुं च जािे
हैं । और िब मौि हमें धन्यिाद दे गी शक िुम्हारी दौड़ बहुि अच्छी थी, िुम्हारे
पास िोड़े बहुि िेज थे और िुम ठीक जगह और ठीक समय पर आ पहुं चे
हो।
मैंने कहा राि, श्रिा और शिश्वास। बाि थोड़ी उिटी िगे गी, क्योंशक हजारों
िषों से यही शसखाया गया है शक जो श्रिा नहीं करिा और शिश्वास नहीं
करिा, िह िो परमात्मा को जान ही नहीं सकेगा। मैं आपसे यह कहना
चाहिा हं शक जो श्रिा करिा है और शिश्वास, उसके शिए परमात्मा को जानने
का कोई भी उपाय नहीं है । शकसी कारर् से यह मैं कहना चाहिा हं । इस
कारर् से यह कहना चाहिा हं , क्योंशक श्रिा करने िािा मन, शिश्वास करने
िािा मन, अंधा हो जािा है । श्रिा का अथय है : जो हम नहीं जानिे, उसे मान
िें; जो हमने नहीं दे खा, उसे स्वीकार कर िें; जो हमने नहीं सुना, उस पर
आथथा कर िें; जो हमारा अनुभि नहीं है , िह हमारी मान्यिा बन जाए, श्रिा
का यही अथय है । मैं कहं शक परमात्मा है और आप शिश्वास कर िें, यह श्रिा
होगी? हो सकिा है , मेरे शिए िह ज्ञान हो, िेशकन मेरा ज्ञान आपका ज्ञान बन
जाए, िो श्रिा है आपके शिए।
हो सकिा है मैंने जाना हो, मैं आपसे कुछ कहं और उसे आप स्वीकार कर
िें, िह आपका जाना हुआ नहीं है । आप अंधेपन में शगर रहे हैं , आप अंधे हो
रहे हैं , आप अपने भीिर की अंधी िस्ियों को बि दे रहे हैं । श्रिा अं धा
करिी है । और जो भी अंधा...उसके शिए भी बहुि सचेि आं खें चाशहए,
उसके शिए िो बहुि, बहुि उन्मुि प्रकाि से, आिोक से भरी हुई आं खें
चाशहए। उसके शिए श्रिा का अंधकार और अंधापन, नहीं उसका मागय है ।
िेशकन शसखाया हमें यह गया है शक हम श्रिा करें , और हम श्रिा करिे रहे
हैं । ऐसी कौमें हैं जमीन पर, सभी िरह के िोग पूरी जमीन पर श्रिाएं करिे
मुस्िि से कभी कोई व्यस्ि पैदा होिा है , जो इनकार करिा है श्रिा से।
जो इनकार करिा है श्रिा से, उसकी खोज िुरू होिी है , उसकी इं क्वायरी
िुरू होिी है । जो श्रिा के िेरे में आबि हो जािा है , उसकी खोज बंद हो
जािी है । खोज िो हम िभी करिे हैं , जब हम शकसी दू सरे को मानने के शिए
राजी नहीं होिे। िभी हमारे प्रार् अपनी खोज पर शनकििे हैं , िभी हमारे
प्रार्ों की िस्ि जागिी है और हम, हम खोज के शिए आगे बढ़िे हैं , हमारी
खोज की यात्रा िुरू होिी है ।
अज्ञाशनयों के आग्रह बहुि खिरनाक शसि हुए हैं । सारी दु शनया में धमय िड़िे
हैं अज्ञाशनयों के आग्रह के कारर्, शजन्ें कुछ भी पिा नहीं है । शजन बािों का
उन्ें पिा नहीं है , उन बािों के शिए मस्िद और मंशदरों को जिाने को िै यार
हैं । शजन बािों का उन्ें पिा नहीं है , उनके शिए िे िास्त्रों को नष्ट करने को
या नये िास्त्र शनशमय ि करने को िैयार हैं । शजन बािों का उन्ें कोई पिा नहीं
है , उनके शिए िे िाखों िोगों की हत्या करने को या मर जाने को िैयार हैं ।
अज्ञान में पकड़ी गई श्रिाएं बहुि स्युसाइिि शसि हुई हैं , बहुि आत्मिािी
शसि हुई हैं । सारी दु शनया में धाशमयक िोग िड़िे रहे हैं । कहीं धाशमयक व्यस्ि
भी िड़ सकिा है ? धाशमयक िोग हत्याएं करिे रहे हैं । धाशमयक व्यस्ि भी
उसे ये सारी जंजीरें िोड़ दे नी होंगी। ये जंजीरें कोई दू सरा हमारे ऊपर नहीं
िादिा है , हम खुद बां धिे हैं । इसशिए िोड़ने के शिए भी हम हमेिा स्विंत्र
हैं । कोई दू सरा हम पर बां धिा नहीं, यह खुद हम स्वीकार करिे हैं । हम खुद
इनको अंगीकार करिे हैं । सुरक्षा के शिए हम इनको अंगीकार कर िेिे हैं ।
अज्ञान में असुरक्षा है , इग्नोरें स में इनशसक्योररटी है । अज्ञान में कुछ रास्ता नहीं
शमििा, कोई शकनारा नहीं शमििा, िो हम शकसी ज्ञान के शकनारे को पकड़
िेिे हैं , िाशक एक सहारा शमि जाए, सुरक्षा शमि जाए, मुझे भी िगे शक मैं भी
जानिा हं ।
िेशकन अज्ञान में पकड़ा गया कोई भी ज्ञान ज्ञान कैसे हो सकिा है ? पकड़ने
िािा जब अज्ञान में है , िो िह जो भी पकड़े गा, िही अज्ञान हो जाएगा।
अज्ञान की स्थथशि में कोई ज्ञान ज्ञान नहीं बन सकिा। अज्ञानी गीिा को
पकड़े गा, गीिा खिरनाक हो जाएगी। अज्ञानी महािीर को पकड़े गा,
महािीर खिरनाक हो जाएं गे । अज्ञानी मोहम्मद को पकड़े गा, मोहम्मद
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
खिरनाक हो जाएं गे । िह अज्ञानी का जो जहर है , िह जो भी पकड़े गा, िही
जहर िहां व्याि हो जाएगा। अज्ञानी ने जो भी पकड़ा है , िह खिरनाक हो
गया है ।
साक्रेटीज से शकसी ने कहा शक िोग कहिे हैं शक िुम सबसे बड़े ज्ञानी हो।
साक्रेटीज ने कहा: उनसे कहना शक िे भ्रम में हैं , क्योंशक जैसे-जैसे मैं जानने
िगा, िैसे-िैसे मुझे पिा चिा शक मैं िो बड़ा अज्ञानी हं । जैसे-जैसे मैं जानिा
गया, िैसे-िैसे मेरा अज्ञान स्पष्ट होिा गया। और अब िो मैं एक ही बाि
जानिा हं शक मैं कुछ भी नहीं जानिा हं । यह जो स्थथशि है शचत्त की, अगर
पैदा हो जाए, िो एक क्रां शि िशटि हो जािी है ।
क्या होगा उससे? क्यों मैं इिना जोर दे रहा हं इस बाि पर शक अज्ञान स्पष्ट हो
जाना चाशहए? इसशिए जोर दे रहा हं शक जैसे ही अज्ञान स्पष्ट हुआ आपके
जीिन में एक क्रां शि की संभािना िुरू हो गई।
उस फकीर ने कहा शक िुम दोनों अदभु ि हो, िुमने दोनों ने मेरे सपने की
व्याख्या कर दी। अगर िुमने आज मेरे सपने की व्याख्या की होिी, मैं िुम्हें
आश्रम से शनकाि कर बाहर कर दे िा। क्योंशक सपनों की जो व्याख्या करिा
है , िह नासमझ है । सपना आया और एक आदमी पानी िे आया हाथ-मुंह
धोने के शिए, यह समझ िािी बाि है शक आप जाग जाएं ठीक से, िाशक शफर
न आ जाए सपना। और दू सरा आदमी चाय िे आया, शक अब आप चाय पी
िें, िाशक िापस िौटने की कोई गुं जाइि न रह जाए।
शसफय यह िथ्य स्मरर् में आ जाए शक मैं अज्ञानी हं और मेरा कोई भी ज्ञान
अपना नहीं है , यह मैंने दू सरों से स्वीकार कर शिया और पकड़ शिया।
िेशकन शसखाया िो हमें यह जािा है शक रोज सुबह गीिा पढ़ना और रोज-
रोज पढ़ना और जीिन भर पढ़ना।
ज्ञान, मेमोरी और नािेज में बुशनयादी फकय है । स्मृशि िो एक यां शत्रक व्यिथथा
है । ज्ञान यां शत्रक व्यिथथा नहीं है , स्मृशि पार। जो भी हमें स्मरर् है , िह बाहर
से आिा है । और जो भी हम जानिे हैं , िह भीिर से आिा है । सारी दु शनया में
स्मृशि को...आदमी अज्ञानी होिा जािा है और शसफय...
अजीब मुस्िि में फंस गई है सारी दु शनया। प्रशि सिाह पां च हजार शकिाबें
नई छप जािी हैं सारी दु शनया में। एक िि ऐसा आएगा आदमी को रहने की
जगह न बचेगी, शकिाबें इिनी हो जाएं गी शक आदमी को दफनाना हो, िो
शकिाबों में दफनाना पड़े गा। मकान बनाना हो, िो शकिाबों का बनाना
पड़े गा। क्या कररएगा? या शफर आदमी को कुछ और िरकीबें शसखानी
पड़ें गी शक आप अपनी पैदाइि कम करो, क्योंशक शकिाबों को रखने के शिए
जगह नहीं है । अगर पां च हजार ग्रं थ प्रशि सिाह िैयार होंगे, िो यह िो होना
स्वाभाशिक है , आज नहीं कि यह स्थथशि आ जाएगी।
एक आदमी प्रेम के संबंध में प्रेम की बािें जान िे, िो भी प्रेम को नहीं जान
सकेगा। और एक आदमी िैरने के संबंध में िास्त्र पढ़ िे और व्याख्यान दे
और शकिाबें शिखे, िो भी िैर नहीं सकेगा। और यह भी हो सकिा है शक एक
आदमी कोई बाि न बिा सके शक िैरना क्या है --न बिा सके, न व्याख्यान दे
सके, क्योंशक िैरना जानिा है । िैरना जानना एक बाि है , िैरने के संबंध में
जानना शबिकुि दू सरी बाि है ।
बहुि पुरानी भारिीय कथा है । एक व्यस्ि सिार हुआ है नाि में और नदी
पार कर रहा है और अपने साथ बड़े िास्त्र शिए हुए है । बीच मझधार में
उसने उस नाशिक से पूछा, िुमने कभी िास्त्र पढ़े हैं ? उसने कहा: कौन से
िास्त्र? उसने कहा: क्या िुमने धमयिास्त्र नहीं पढ़े ? नाशिक ने कहा: मौका
नहीं आया। िो उस पंशिि ने कहा: िुम्हारा चार आना जीिन बेकार गया।
थोड़ी सी दू र और आगे बढ़े और उसने पूछा शक न पढ़ा हो धमयिास्त्र, ठीक
और थोड़ी ही दे र में िूफान आया और नाि िूबने िगी, फुहारें पड़ने िगीं
और पानी भीिर आने िगा। उस नाशिक ने पूछा, पंशििजी, िैरना जानिे हो?
उस पंशिि ने कहा शक नहीं, िैरना िो आिा नहीं। िो आपका सोिह आना
जीिन गया। अब कोई उपाय नहीं है , मेरा िो आठ आना ही गया, आपका
सोिह आना गया। और उस शदन सोिह आना जीिन गया पंशििजी का और
नाशिक िैर कर शनकि गया और पंशिि िहीं िूब गया।
शजंदगी में भी यही होिा है । शजंदगी के सागर में भी रोज ही, ये जो स्मृशि के
बि पर बैठे हुए िोग हैं शजंदगी के सागर में िूबिे हैं । शजंदगी स्मृशि को नहीं
जानिी है , शजंदगी ज्ञान को जानिी है । शजंदगी ज्ञान को मानिी है , स्मृशि को
नहीं। िेशकन हम स्मृशि को ज्ञान समझे हुए हैं और भरे हुए हैं , और न मािूम
क्या-क्या भरे हुए हैं ।
यह िथ्य स्पष्ट रूप से खयाि में आ जाए शक स्मृशि ज्ञान नहीं है , िो आपको
अज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। यह बाि स्पष्ट हो जाए शक कोई श्रिा मेरा ज्ञान नहीं
बन सकिी, िो श्रिा को िोड़ने के शिए कोई िििारें नहीं उठानी पड़ें गी। टू ट
गई, बाि हो गई। जीिन बहुि अदभु ि है , कुछ बािें जानिे ही से नष्ट हो जािी
हैं । जैसे दीया जिा कर अंधेरे को खोज-खोज कर भगाना नहीं पड़िा--दीया
जिाया और खोज रहे हैं शक अंधेरा कहां है ? दीया जिा शक अंधेरा गया।
अंधेरा था ही नहीं, दीये की गै र-मौजूदगी थी, अनुपस्थथशि थी। शकंिु अंधेरे की
कोई...
अज्ञान हमारा है , िो हमारा ज्ञान उसे शमटा सकेगा। अज्ञान हमारा है , ज्ञान
दू सरे का है , इन दोनों का कहीं शमिना ही नहीं होगा। ये दू सरे को काट ही
नहीं पाएं गे , इनका कोई संबंध ही नहीं है । अज्ञान बचा रहे गा और ज्ञान स्मृशि
में इकट्ठा होिा चिा जाएगा। प्रार् अज्ञान में रहें गे, बुस्ि ज्ञान से भर जाएगी।
दू सरे का ज्ञान स्मृशि से ज्यादा गहरा नहीं जािा। खुद का ज्ञान ही आत्मा की
केंिीय चेिना को जगािा और प्रकट करिा है । इसीशिए िो यह दे खा जािा है
शक हम ऊपर से जो भी थोप िें, िह हममें बहुि गहरा नहीं होिा, स्स्कन िीप
भी नहीं होिा, चमड़ी के बराबर भी गहरा नहीं होिा, जरा सी खरोंच उसे
शमटा दे िी है ।
और हम बड़े होशियार हैं , धोखा ही नहीं दे िे, धोखा दे ने में सफि हो जािे हैं ।
मैं शफर से दोहरािा हं , हम बहुि होशियार हैं , धोखा ही नहीं दे िे, धोखा दे ने में
सफि हो जािे हैं । धन्य हैं िे िोग जो धोखा दे ने में असफि रह जािे हैं ।
क्योंशक िब उन्ें यह खयाि आिा है शक धोखा दे ना व्यथय है । दू सरों का ज्ञान
शिए बैठे हैं और ज्ञानी बन गए, इससे बड़ा धोखा हो सकिा है ? गीिा और
रामायर् दोहरािे हैं और ज्ञानी बन गए, इससे बड़ा धोखा हो सकिा है ? ज्ञान
के मामिे में अदभु ि धोखे हमने शदए हैं ।
अकेिे ही खेि रहा है , कोई दू सरा है नहीं, दू सरी िरफ से भी खुद चििा है ,
अपनी िरफ से भी, िेशकन चाि में धोखा करिा है । िह दू सरे आदमी को
धोखा दे िा है , जो मौजूद ही नहीं है । जब उन्ोंने बार-बार दे खा शक यह धोखा
करिा है , िो बहुि है रानी हुई। एक िो अकेिा िाि खेििा था, यही
पागिपन था, शफर िह जो मौजू द नहीं है उसको धोखा दे िा था, िह िो है
नहीं, िो धोखा िो अपने को ही दे िा था, और िो िहां कोई था नहीं।
दू सरों को आप धोखा दें गे, िो पकड़े भी जा सकिे हैं । अदाििें हैं , पुशिस हैं ,
और जमाने भर का जाि है , कानून है , दू सरे िोग हैं िे भी आं खें गड़ाए हुए
हैं । अपने को धोखा दें गे, कोई नहीं पड़े गा। कोई पकड़ने का कारर् नहीं है ।
इसीशिए िो दु शनया में सब िरह के धोखे पकड़ जािे हैं , िेशकन आत्मज्ञान का
धोखा पकड़ में नहीं आिा। यह सबसे गहरा शिसेप्िन है , यह पकड़ में नहीं
आिा, क्योंशक उसके स्खिाफ कोई भी नहीं है । आप बने रहो आत्मज्ञानी,
आप जानिे रहो परमात्मा को, न पुशिस पकड़िी है , न अदािि में मुकदमा
चििा है ।
शचत्त अगर इस भां शि श्रिा, अश्रिा से, शबिीफ से, शिसशबिीफ से मुि हो
जाए, बहुि शनमयि हो जािा है , बहुि सरि हो जािा है , बहुि सहज हो जािा
है । खोज की िैयारी हो जािी है , पहिा चरर् पू रा हो जािा है ।
शचत्त के समक्ष रह जाए अनंि िून्य, सन्नाटा और िां शि, साइिेंस। बस ये िीन
बािें पूरी हो जाएं , िो मनुष्य िहां खड़ा हो जािा है जहां परमात्मा है । िहां
उसकी आं खें खुि जािी हैं जहां सत्य है । िहां उसके प्रार् आं दोशिि होने
िगिे हैं , िहां उसके प्रार्ों में िहरें उठने िगिी हैं , जहां व्यस्ि शमट जािा है
और समस्त, िह जो टोटे शिटी है , िह जो सबकी सत्ता है , उससे मेि हो जािा
है ।
इसके पहिे शक हम ध्यान के शिए बै ठें, मैं दो थोड़ी सी बािें ध्यान के संबंध में
कह दू ं ।
और ध्यान कोई जबरदस्ती िाई गई चीज नहीं है , बड़ी सहज बाि है । ध्यान
िो बहुि सहज है , िेशकन हम बहुि उिटे -सीधे हैं । इसशिए गड़बड़ होिी है ,
इसशिए दे र होिी है । ध्यान िो बहुि सरि है , हम बहुि कशठन हैं । ध्यान िो
बहुि सरि है , हम बहुि जशटि हैं । हमारी जशटििा उपिि कर रही है ,
ध्यान के आने में कोई बाधा नहीं है । गु िाब के फूि में िो अब भी फूि आ
जाए, िेशकन हमने जड़ें ही काट िािीं। या हम पूरे पौधे को उखाड़ कर
जमीन के बाहर रखे हुए हैं , या हमने पानी न दे ने की कसम खािी, व्रि िे
शिया शक हम पानी नहीं दें गे, या हम खाद नहीं दे िे या खाद की जगह जहर
दे िे।
अगर ध्यान कशठन होिा, िो हमको कशठन बाि सीखनी पड़िी। कशठन बाि
सीखनी कशठन होिी है , कशठन बाि छोड़नी कशठन नहीं होिी। शकसी चीज
को शमटा दे ना कशठन नहीं होिा, बनाना बहुि कशठन होिा है । अगर ध्यान ही
कशठन होिा, िो हमें कशठनाई के शिए िैयारी करनी पड़िी है । िेशकन हम
कशठन हैं , और हम कशठन इसशिए हैं शक...ये हमारी जो गिि आदिें हैं ...
पहिी बाि: ध्यान। दू सरी बाि: ध्यान से मेरा अथय एकाग्रिा नहीं है । जैसे
आपने सुना हो...एकाग्र शचत्त िो िना हुआ शचत्त है ...िगाएं गे िो मन खींच
जाएगा, िन जाएगा। िनाि के बाद एक िरह की उदासी, थकान आएगी।
स्वाभाशिक, जब भी कोई आप िना हुआ काम करें गे, िो पीछे से स्खंचाि
आएगा। स्खंचाि आने से शचत्त अिां ि होगा। इसशिए जो िोग भी
कनसनटर े िन या एकाग्रिा करिे हैं , िे बहुि िने हुए और स्खंचे हुए िोग हो
जािे हैं । िे सरि िोग नहीं रह जािे, और कां प्लेक्स और जशटि हो जािे हैं ।
दे खा ही होगा आपने, कोई आदमी अगर मािा फेरने िगे या राम-राम जपने
िगे , िो ज्यादा क्रोधी हो जािा है । कोई आदमी मंशदर जाने िगे , भगिान की
मूशिय के पास बैठ कर एकाग्रिा करने िगे , िो ज्यादा क्रोधी हो जािा है ,
यहां हमने मस्स्तष्क को शिश्रां शि नहीं दी। खींचने की कोशिि की, िनाि दे ने
की कोशिि की। िनाि के दु ष्पररर्ाम हुए हैं । भारि ने आज िक कुछ भी
इनिेंट नहीं शकया, कुछ खोजा नहीं, कुछ नया बनाया नहीं, कुछ शक्रएट नहीं
शकया। िीन हजार साि के इिने नपुंसक और बां झ शदन बीिे हैं हमारे ,
शजसका कोई शहसाब नहीं है । इिना बैरन, कुछ हमने िीन हजार साि में
सृजन नहीं शकया, कोई नई खोज नहीं की, कोई नई शदिाएं नहीं खोजीं, कोई
नया शिज्ञान, कोई नई किा, कोई हमने जीिन के प्रार्ों में कोई शछपे हुए
कोने नहीं खोजे, शकसी अज्ञाि का हमने उदिाटन नहीं शकया। हम बैठे हुए
दोहरािे हैं िास्त्रों को, और दोहराए चिे जािे हैं । और हम बड़ी एकाग्रिा की
बािें करिे हैं ।
अगर समझ िें, आपको मैं कहं शक यहां बैठ कर एकाग्रिा कररए, राम के
नाम पर एकाग्रिा कररए या ओम पर एकाग्रिा कररए या शकसी और पर,
कोई भी चीज काम दे सकिी है । िो जब आप एकाग्रिा करें गे , िो िेष जो
दु शनया है उससे आपका मन िड़े गा। क्योंशक एक कुत्ता यहां से भौंकिा हुआ
शनकि जाए, िो आप कहें गे, इसने सब गड़बड़ कर शदया, िो एकाग्रिा
खंशिि हो गई। िो कुत्ते के भौंकने से िशड़ए शक यह आपको सुनाई न पड़े ,
आपका नाम िो िही चििा रहे , ओम-ओम आप कहिे रशहए, यह भौंकना
कुत्ते का सुनाई न पड़े ।
ध्यान का अथय शकसी एक चीज पर सबके शिरोध में शचत्त को रोकना नहीं है ।
ध्यान का मेरा अथय है : सब चीजें बही जाएं और शचत्त िां ि हो, शचत्त अनुत्तेशजि
हो और चीजें बही जाएं । एक कुत्ता भौंके, िो आप कोई मुदाय थोड़े ही हैं शक
आपको सुनाई नहीं पड़े गा। आप जीशिि हैं , जो शजिना ज्यादा जीशिि है , उसे
उिना स्पष्ट सुनाई पड़े गा। शजसका शचत्त शजिना सेंशसशटि है , शजिना
संिेदनिीि है , शजिना ररसेशिि है , शजिना ग्राहक है , उसे उिना िीव्रिा से
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुनाई पड़े गा। शजसका शचत्त शजिना अनुत्तेशजि, िां ि है , उसे उिना स्पष्ट
सुनाई पड़े गा, एक सुई भी शगरे गी, िो उसे सुनाई पड़े गा। िां शि में िो छोटी सी
ध्वशन भी सुनाई पड़े गी। अिां शि में नहीं सुनाई पड़ सकिी।
कैसे होगा?
मैं एक छोटे से रे स्ट हाउस में एक गां ि में रुका था। एक शमत्र भी मेरे साथ थे।
िह रे स्ट हाउस अजीब था। सारे गां ि के कुत्ते िायद िहीं शिश्राम करिे थे राि
को। करिे होंगे, अच्छी जगह थी, िहां िे भी ठहरिे थे । िो राि को इिने जोर
से िोरगु ि करिे, और जब एक करे --कुत्तों की आदि करीब-करीब िैसी
होिी है , जैसे नेिाओं की होिी है --दू सरा उसके शिरोध में करे , िीसरा उसको
जिाब दे , चौथा उसको जिाब दे , िहां करीब-करीब िही हािि थी जो चुनाि
के िि हो जािी है ।
मैंने उनसे कहा: उनके भौंकने से नींद खराब नहीं होिी। उनके भौंकने के
प्रशि आप रे शसस्टें स मन में शिए हुए हैं शक नहीं भौंकने चाशहए। आपके मन में
शिरोध है उनके भौंकने के प्रशि, इसशिए नींद नष्ट हो जािी है । शिस्टबेंस
उनके भौंकने से पैदा नहीं होिा, आपके मन का यह आग्रह है शक उन्ें
भौंकना नहीं चाशहए, उन्ें यहां नहीं होना चाशहए। यह आग्रह पीड़ा दे रहा है
और नींद िोड़ रहा है ।
मैंने उनसे कहा: आग्रह छोड़ दीशजए, रे शसस्टें स छोड़ दीशजए। अपने मन में
सोशचए शक िुम कुत्ते हो िुम्हारा भौंकने का िि है , मेरे सोने का िि है , मैं
सोिा हं । उनको भौंकने दीशजए, उनकी आिाज को गूं जने दीशजए बराबर,
जब िक आप जागे होंगे िब िक िह आिाज सुनाई पड़े गी, िेशकन आपके
भीिर शिरोध मि रस्खए उसके प्रशि, आए गूं ज जाने दीशजए। मैंने उनसे कहा:
ठीक उिटा पररर्ाम होगा, यही आिाज सुिाने का काम करने िगे गी।
यह शकसी का कोई ठे का नहीं है । दरख्त शहिेंगे, हिाएं आएं गी, पत्ते शगरें गे ,
उड़ें गे, आिाजें होंगी, िेशकन इस पर आपका कोई जोर नहीं है । और ये जोर
दे ने िािे बेचारे जं गिों में भागिे हैं , पहाड़ों पर जािे हैं , शफर इस खयाि से
शक यहां गड़बड़ होिी है िो िहां जाएं --शहमािय पर जाएं या शिब्बि जाएं या
कहां जाएं । िे कहीं भी चिे जाएं , कुछ भी नहीं होगा, िह रे शसस्टें स माइं ि
साथ होगा। एक पक्षी िहां शचल्ला दे गा, िे कहें गे, सब ध्यान गड़बड़ हो गया
हमारा।
मन एक प्रिाह की भां शि है , बहा जाए। चारों िरफ िटनाएं हो रही हैं , उनके
प्रशि बेहोि होने की, मूस्च्छय ि होने की, या उनके शिए दरिाजा बं द करने की
कोई जरूरि नहीं है । कुछ नहीं है , बच्चों से शिरोध नहीं है , कुत्तों से, शबस्ल्लयों
से, शकसी से कोई शिरोध नहीं है , उसका संसार से कोई शिरोध नहीं। और
शजसका शकसी से कोई शिरोध नहीं है और हर चीज को जो इस िरह गु जर
जाने दे िा है , जैसे...
खािी बैठे हैं , कोई काम नहीं कर रहे हैं , एक शिश्राम कर रहे हैं । आदिें नहीं
हैं हमारी शिश्राम करने की। हम िो खािी भी बैठें िो कुछ न कुछ करिे हैं ,
नहीं िो रे शियो खोि िेंगे, अखबार उठा िेंगे, कुछ न कुछ करें गे । न करने
का हमें पिा ही नहीं है और न करना बहुि अदभु ि है । न करने का कोई
मुकाबिा ही नहीं है । न करने की स्थथशि का नाम ध्यान है ।
अगर आप िां शि से मात्र साक्षी रहे , प्रशिरोधी नहीं, शिरोधी नहीं, उनके...जो
भी आई आई, जो भी गई गई, अगर इिनी िां शि से उनका शनरीक्षर् शकया,
िो आप अभी दो क्षर् के भीिर ही पाएं गे शक शचत्त िो एकदम िां ि हुआ जा
रहा है । िह प्रशिरोध से अिां ि है , स्मरर् रखें, और कोई अिां शि नहीं है । िह
शिरोध से अिां ि है , िड़ रहा है इसशिए अिां ि है , जब नहीं िड़ रहा, िो
कोई अिां शि नहीं है ।
िाओत्से एक फकीर हुआ चीन में, उसने शिखा है : धन्य हैं िे िोग जो िड़िे
नहीं, क्योंशक उनको कोई हरा न सकेगा। धन्य हैं िे िोग जो िड़िे नहीं,
क्योंशक उनको कोई हरा न सकेगा। जो िड़िा ही नहीं उसके हारने का
सिाि ही नहीं है । शजसके हारने का सिाि नहीं उसके दु खी होने का कोई
सिाि नहीं। िड़ें न, ध्यान िड़ाई नहीं है । आमिौर से िड़ाई है , मंशदरों में
िोग बैठे हैं मािाएं शिए, िड़ रहे हैं । पहाड़ों पर िोग बै ठे हैं आं ख बंद शकए
हुए, आसन िगाए हुए, िड़ रहे हैं । िड़ाई है , कुछ भी नहीं है । ध्यान िो
िड़ाई से शबिकुि उिटी बाि है ।
िड़ें न, शबना िड़े थोड़ी दे र को...इसमें कोई फाइट नहीं करनी है । अगर
आपके पैर में ददय होने िगे , िो उससे िशड़ए मि, शक अब उसको रोके हुए
बैठें हैं शक हम िो ध्यान कर रहे हैं , पैर को बदिेंगे िो बगि िािा क्या
कहे गा? नहीं, िह ध्यान ही नहीं है , आप पैर ही से अटके हुए हैं । पैर में ददय
ओिो पृष्ठ संख्या 91
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होिा है , आप शबिकुि बदि िीशजए। आपको शजं दगी है , जान है अभी,
इसशिए पिा चि रहा है , मर जाएं गे या इं जेक्शन दे शदया, िो पिा नहीं
चिेगा, या अफीम खाकर बैठ गए, िो पिा नहीं चिेगा, या शकसी चीज पर
इिना कनसनटर े िन शकया शक शचत्त और सब िरफ से हट गया और उसी
एक चीज में अटक गया, िो पिा नहीं चिेगा।
माकय ट्वे न का नाम आपने सुना होगा, बहुि हं सोड़ और बशढ़या आदमी हुआ
अमरीका में। िह एक शदन बैठे-बैठे बहुि गपिप कर रहा था, बहुि प्रसन्न
था, खूब ऊंची बािें कर रहा था, हं सा रहा था शमत्रों को, एकदम गं भीर हो गया
और उदास हो गया, एकदम से। िो उसके एक शमत्र ने पूछा, आपको क्या हो
गया? उसने कहा: मािूम होिा है मे रे पैर को िकिा िग गया। िाक्टरों ने
मुझे दस साि पहिे कहा था शक कभी न कभी खिरा है , आपके पैर को
िकिा िग जाएगा। उन्ोंने कहा: आपको पिा कैसे चिा?
उसने कहा: मैं च्ूं टी िे रहा हं बड़ी दे र से, िेशकन कुछ पिा ही नहीं चि
रहा। बगि की मशहिा ने कहा: क्षमा कररए, मैं संकोच की िजह से कह नहीं
रही, च्ुं शटयां आप मुझे शिए जा रहे हैं । िह बेचारा जां च कर रहा था और
बगि की मशहिा की च्ुं शटयां िेिा रहा, िेिा रहा, उसने सोचा शक मेरा पैर
िो गया, पिा ही नहीं चि रहा कुछ।
गदय न थक गई हो, आगे -पीछे जािी हो, जाने दीशजए। ऐसे जाने दीशजए जै से
आपका कोई शिरोध नहीं है , जो हो रहा है िरीर को करने दीशजए। आप
इिना ही भर खयाि रस्खए शक मैं शकसी चीज का शिरोध नहीं करू
ं गा,
चुपचाप बैठा रहं गा। होने दू ं गा जो हो रहा है , मैं शकसी चीज पर पकड़ नहीं
रखूंगा शक ऐसा हो, िह जो हो रहा है होने दू ं गा। हिाएं आएं गी िो ठीक, नहीं
आएं गी िो ठीक। कोई शचल्लाएगा िो ठीक, नहीं शचल्लाएगा िो ठीक। मैं सब
कुछ स्वीकार करिा हं , टोटि एक्सेशिशबशिटी, और मैं शकसी चीज का शिरोध
नहीं करिा हं । बस इस भाि में एक दस शमनट हम यहां बैठेंगे ।
िो मैं मान िूं शक आप एक-दू सरे को नहीं छू रहे हैं । कुछ िोग िो छू रहे होंगे,
िे सोच रहे होंगे क्या हजाय है , बैठे रहें ।
शबिकुि ढीिा छोड़ दें आं ख को, आं ख बंद हो जाने दें । शबिकुि िां ि बैठ
जाएं , शकसी चीज से कोई शिरोध नहीं है , कोई शिरोध नहीं है । हम कोई बड़ी
साधना भी नहीं कर रहे हैं शक उसी खयाि से शक कुछ हो जािा। कोई साधना
नहीं कर रहे हैं , शिश्राम कर रहे हैं । पू री िां शि है ।
जैसे ही िां ि होने िगें गे, भीिर की श्वासों का पिा चिने िगे गा। श्वास का
आना-जाना भी मािूम होने िगे गा, श्वास भीिर-बाहर होगी िो पिा चिेगा।
हिाएं शहिाएं गी, िो पिा चिेगा। दू र कुछ गायन चि रही हैं , उनकी िंशटयां
बजेंगी, िो पिा चिेगा। जो कुछ भी ध्वशनयां चारों िरफ हो रही हैं , िां शि से
उन्ें गूं जने दें और चुपचाप उनका शनरीक्षर् करिे रहें । शकसी का कोई
शिरोध नहीं है । बस िां शि से सुनें, जो भी आिाजें हो रही हैं उन्ें सुनें। मौन
सुनिे रहें , सुनिे-सुनिे ही मन िां ि होिा जाएगा, एकदम िां ि।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
पाांचिाां-प्रिचन
जहां जीिन है िहां गशि है , जहां जीिन नहीं है जड़िा है , िहां कोई गशि नहीं
है । मन की चंचििा आपके जीशिि होने का िक्षर् है , जड़ होने का नहीं।
गहरी नींद में भी मन की चंचििा िां ि हो जािी है , गहरी मूच्छाय में भी िां ि
हो जािी है , बहुि गहरे निे में भी िां ि हो जािी है । और इसीशिए दु शनया के
बहुि से साधु और संन्याशसयों के संप्रदाय निा करने िगे हों, िो उसमें कुछ
संबंध है । मन की चंचििा से ऊब कर निे का प्रयोग िुरू हुआ। शहं दुस्तान
में भी साधुओं के बहुि से पंथ--गां जे, अफीम और दू सरे निों का उपयोग
करिे हैं । क्योंशक गहरे निे में मन की चंचििा रुक जािी है , गहरी मूच्छाय में
रुक जािी है , शनिा में रुक जािी है ।
चंचििा रोक िेना ही कोई अथय की बाि नहीं है , चंचििा रुक जाना ही कोई
बड़ी गहरी खोज नहीं है । और चंचििा को रोकने के शजिने अभ्यास हैं , िे
सब मनुष्य की बुस्िमत्ता को, उसकी शिज़िम को, उसकी इं टेशिजेंस को,
उसकी समझ, उसकी अंिरस्टैं शिं ग को, सबको क्षीर् करिे हैं , कम करिे
हैं । जड़ मस्स्तष्क मेधािी नहीं रह जािा।
िो क्या मैं यह कहं शक चंचििा बहुि िुभ है ? शनशिि ही, चंचििा िुभ है ,
बहुि िुभ है । िेशकन चंचि िो शिशक्षि का मन भी होिा है , पागि का मन
भी होिा है । शिशक्षि चंचििा िुभ नहीं है , पागि चं चििा िुभ नहीं है ।
चंचििा िो जीिन का िक्षर् है । जहां गशि है , िहां -िहां चंचििा होगी।
मैं गशि और चंचििा के शिरोध में नहीं हं । मैं जड़िा के पक्ष में नहीं हं । और
हम दो ही िरह की बािें जानिे हैं अभी, या िो शिशक्षि मन की गशि जानिे हैं
और या शफर राम-राम जपने िािे या मािा फेरने िािे आदमी की जड़िा
जानिे हैं । इन दो के अशिररि हम कोई िीसरी चीज नहीं जानिे।
चाशहए ऐसा शचत्त जो गशिमान हो, िे शकन शिशक्षि न हो, पागि न हो। ऐसा
शचत्त कैसे पैदा हो, उसकी मैं बाि करू
ं । उसके पहिे यह भी शनिे दन करू
ं
शक मन की चंचििा के प्रशि अत्यशधक शिरोध का जो भाि है , िह योग्य नहीं
है और न अनुग्रहपूर्य है और न कृिज्ञिापूर्य है । अगर मन गशििान न हो और
चंचि न हो, िो हम मन को न मािूम शकस कूड़े -करकट पर उिझा दें और
िहीं जीिन समाि हो जाए। िेशकन मन बड़ा साथी है , िह हर जगह से ऊबा
दे िा है और आगे के शिए गशििान कर दे िा है ।
उस फकीर ने कहा: उसके योग्य, उसके बैठने योग्य थथान हमारे पास नहीं
है , इसशिए िह टहििा है । उसके बैठने योग्य थथान हमारे पास नहीं है ,
इसशिए िह टहििा है , नहीं िो िह जरूर बैठ जािा। मैंने उसे बहुि बार बैठे
हुए भी दे खा है ।
परमात्मा के पूिय मन कहीं भी नहीं बैठ सकिा है , िही उसके बैठने का थथान
है । इसशिए मन की आप पर बड़ी कृपा है शक िह चं चि है । और हर कहीं
नहीं बैठ जािा है । िह परमात्मा के पहिे कहीं भी बैठेगा नहीं, यह उसकी
कृपा है । और शजस शदन िह बैठेगा, उस शदन ही इस कृपा को आप समझ
पाएं गे शक मन मुझे यहां िक िे आया।
जैसे अगर मैं यह मुट्ठी बां धे हं और कोई मेरे पास आए और मैं उससे पूछूं शक
इस मुट्ठी को मैं कैसे खोिूं? िो िह मुझसे क्या कहे गा? िह कहे गा, खोिने
के शिए कुछ भी करने की जरूरि नहीं है , बां धने के शिए जो कुछ कर रहे हैं ,
कृपा कर उिना ही न करें , मुट्ठी िो खुि जाएगी। मुट्ठी का खुिना िो अपने
आप हो जाएगा, हम उसे बां धने के शिए जो कर रहे हैं , िह भर न करें ।
िो मुट्ठी का खुिना अभ्यास नहीं है , बां धने के शिए हम जो अभ्यास कर रहे हैं ,
उसके छोड़िे ही मुट्ठी खुि जाएगी। जैसे एक िृक्ष की िाखा को हम खींच
कर पकड़ िें और शकसी से पूछें शक अब इसे इसकी जगह िापस िौटाने के
शिए क्या करें ? िो िह क्या कहे गा? िह कहे गा, आप कुछ भी न करें िापस
िौटाने के शिए, कृपया इसे रोक रखने के शिए जो कर रहे हैं , िह भर न करें ,
िाखा अपने आप िापस िौट जाएगी।
िे हमसे कहिे हैं , राम-राम जपो, ओम-ओम जपो, या मािा फेरो, या मंशदर
जाओ, या यह पढ़ो या िह पढ़ो, या यह मंत्र या िह जाप, िे हमें यह बिािे हैं ।
हम िह जाप िुरू कर दे िे हैं , शबना इस बाि को जाने हुए शक यह जाप कौन
कर रहा है ? िही शफिररस माइं ि, िही अिां ि, परे िान मन, िही बीमार
रुग्ण मन जाप फेर रहा है । बीमार मन, रुग्ण मन जाप फेरे गा िो जाप से क्या
फि आने िािा है ? यह सब खुद भी उसी बीमारी के शहस्से के भीिर यह
बाि सारी चिेगी। इससे कोई पररिियन होने िािा नहीं है । इससे कोई
पररिियन कभी नहीं हुआ है ।
मैं आपसे कहं गा, बजाय इसके शक आप िां शि की खोज में जाएं , उशचि है
शक आप समझें शक अिां शि क्यों है ? मेरे पास िो रोज शनरं िर िोग आिे हैं , िे
यह कहिे हैं शक हमें िां ि होना है । मैं उनसे पूछिा हं शक इसकी शफकर
छोड़ दें , अिां ि व्यस्ि कभी िां ि नहीं हो सकिा। िे बड़े है रान हो जािे हैं
शक अगर अिां ि व्यस्ि िां ि नहीं हो सकिा, िो क्या हम शबिकुि शनराि
हो जाएं ? मैं उनसे कहिा हं , नहीं। अिां ि व्यस्ि िां ि नहीं हो सकिा,
िेशकन अिां ि व्यस्ि अगर अिां शि के मूि कारर्ों को समझ िे, िो
अिां शि से मुि हो सकिा है । और जब अिां शि से मु ि हो जाएगा, िो जो
चीज िेष रह जाएगी, उसका नाम िां शि है ।
आपको समझ में आ जाए शक जहर रखा हुआ है , आप नहीं पीिे। आपको
समझ में आ जािा है शक यहां दीिाि है , यहां दरिाजा है , िो आप दरिाजे से
शनकििे हैं , दीिाि से नहीं शनकििे। क्यों? अभ्यास करिे हैं बहुि दीिाि से
न शनकिने का, शक दरिाजे से शनकिने का कोई अभ्यास करिे हैं , नहीं, बस
जान िेिे हैं शक यह दरिाजा है और यह दीिाि, शफर दीिाि से आप नहीं
शनकििे हैं । शजस शदन आपको स्पष्ट शदखाई पड़ जाए शक अिां शि कहां -कहां
है शचत्त में, कौन-कौन से कारर्ों से, उस शदन कोई अभ्यास नहीं करना
होिा। अंिरस्टैं शिं ग, समझ मात्र जीिन में एक क्रां शि िा दे िी है । आप और
ढं ग से चिना िुरू हो जािे हैं ।
ये सब अहं कार की चेष्टाएं हैं , इनका ज्ञान से कोई संबंध नहीं है । िह आिे से
ही उस संन्यासी से जूझ गया और उस संन्यासी को उसने िाम िक बहुि
परे िान कर शदया, उसके सारे िकय खंशिि कर शदए। सां झ हारा हुआ िह
संन्यासी चिा गया। िह युिक बहुि गौरि से अपने शमत्रों की िरफ दे खा।
उसके गुरु ने उससे कहा शक दे ख, मैंने िुझे कभी नहीं कहा, िेशकन िीन िषय
से शनरं िर िू यहां है और सुबह से सां झ िक शििाद करिा है , िकय करिा है ,
आज मैं िुझसे यह कहिा हं शक कभी मौन भी होकर दे खेगा या नहीं? और मैं
िुझसे यह शनिेदन करिा हं शक इिने शदन िूने िकय शकया और शििाद शकया,
क्या िुझे शमिा? अगर कुछ शमिा हो, िो मुझे भी बिा, मैं भी शििाद करू
ं , मैं
भी िकय करू
ं ।
उसके गु रु ने कहा: इस जैसे िोग मुस्िि से पाए जािे हैं , इिनी स्पष्ट समझ
मुस्िि से होिी है । इसे अभ्यास की भी जरूरि न पड़ी, इसे चीज शदखाई
कोई अभ्यास थोड़े ही करना पड़िा है छोड़ने के शिए। ज्ञान खुद क्रां शि बन
जािा है । अभ्यास िो िहां करना होिा है , जहां ज्ञान नहीं होिा, िहां अभ्यास
करना होिा है । अभ्यास अज्ञानी का िक्षर् है । जब हम शकसी चीज की
कोशिि कर-कर के करिे हैं , िो िह झूठी हो जािी है ।
िह कहीं खोिा नहीं, िह कहीं जािा नहीं। अगर मैं जबरदस्ती साध कर
अभ्यास करके ब्रह्मचयय को पा िूं, भीिर सेक्स मौजूद रहे गा, जा नहीं सकिा।
इसशिए शजनको हम ब्रह्मचारी कहिे हैं , उनकी दृशष्ट और मन में शजिनी
सेक्सुअशिटी होिी है , शजिनी कामु किा होिी है , उिनी सामान्यजन के मन
में नहीं होिी, हो भी नहीं सकिी। अभ्यास कर-कर के ऊपर से ब्रह्मचयय को
थोप िेिे हैं , भीिर का काम, भीिर की िासना कहां जाएगी?
बहुि है रानी की बाि है ! बहुि आियय की बाि है ! ये कैसे िोग हैं ? ऐसे
धमयग्रंथ हैं शजनमें यह शिखा है शक स्वगय में िराब के चश्मे बहिे हैं , झरने
बहिे हैं । िही धमय ग्रंथ यहां कहिे हैं शक िराब पीना पाप है , िही कहिे हैं शक
जो यहां िराब छोड़े गा उसे ऐसा स्वगय शमिेगा जहां झरने बह रहे हैं िराब
के। और िहां कोई चुल्लुओं से पीने का सिाि नहीं है , िहां िो नहाइए-धोइए
िराब में, कूदीए और पीइए, और जो भी करना हो। बड़ी है रानी की बाि है !
जरूर शजसने जबरदस्ती िराब पर संयम बां ध शिया होगा, उसी के मन में
यह कल्पना उठी होगी, स्वगय में िराब के चश्मे बहाने की। और िो शकसके
मन में उठे गी?
स्स्त्रयों को नरक का द्वार कह रहे हैं । िो मैं कई दफे है रान हुआ, मुझे िो ऐसा
िगने िगा शक स्स्त्रयां िो अब िक नरक गई ही नहीं होंगी, क्योंशक पुरुष िो
कोई नरक जाने का द्वार है नहीं, स्स्त्रयां द्वार हैं , िो उनसे पुरुष िो नरक चिे
गए होंगे, िेशकन स्स्त्रयां कहां गई होंगी? स्स्त्रयां िो नरक जा ही नहीं सकिीं,
िे िो द्वार हैं । उनके शिए िो कोई द्वार नहीं है , िे सब स्वगय में होंगी, मोक्ष में
होंगी, पिा नहीं कहां होंगी। अगर स्स्त्रयों ने ग्रं थ शिखे होिे, िो िे शिखिीं,
पुरुष नरक का द्वार है । िेशकन चूंशक पुरुषों ने शिखे हैं , इसशिए स्स्त्रयां नरक
का द्वार है ।
बुि ने कहा: क्षमा करें ! कोई दस िषय हुए िब से स्स्त्रयां शदखाई पड़नी संभि
नहीं रहीं। उन्ोंने कहा: आप पागि हो गए हैं ! उन्ोंने कहा: मैं सत्य कहिा
हं । शदखाई पड़िे हैं िोग आिे-जािे हुए, िेशकन शजस भां शि पहिे स्स्त्रयां
मैं सुनिा था, एक व्यस्ि यूरोप से िापस िौटा। उसकी पत्नी उसे एयरपोटय
पर िेने गई थी। िह नीचे उिरा, िे जो पररचाररकाएं हिाई जहाज पर थीं,
उसमें से एक पररचाररका ने उसे हाथ शमिाया और शिदा दी। उसने अपनी
पत्नी को कहा शक यह पररचाररका बहुि अदभु ि है और बहुि सेिा-कुिि
है । कुछ नाम बिाया शक यह इसका नाम है । उसकी पत्नी ने पूछा, आप
इसका नाम कैसे जान सके? उसने कहा शक पीछे अंदर िख्ती िगी हुई है ,
शजसमें सभी पररचाररकाओं, चािकों, सबके नाम शिखे हुए हैं । और उसने
कहा: कृपा करके बिाइए, चािक का नाम क्या है ? िह पशि जरा मुस्िि में
पड़ गया।
मैं एक जगह था, एक बड़ी साध्वी से बािें करिा था। बड़ी इसशिए शक उनके
बहुि अनुयायी हैं । और िो बड़े -छोटे का कोई पिा चििा नहीं दु शनया में,
शजसके शजिने अनुयायी होिे हैं , िह उिना बड़ा हो जािा है ।
जैसे शजसके पास शजिने ज्यादा रुपये होिे हैं , उिना बड़ा आदमी हो जािा
है । शजस साधु के पास शजिनी भीड़ होिी है , उिना बड़ा साधु हो जािा है । िो
िे बड़ी साध्वी हैं , बहुि भीड़-भाड़ उनके आस-पास है । और भीड़-भाड़ दे ख
कर भीड़-भाड़ बढ़िी जािी है । जैसे रुपये रुपये को खींचिे हैं , िैसे भीड़ भीड़
को खींचिी हैं ।
िकय होिा है चीजों का अपना। आपके पास बहुि रुपये हैं , रुपये अपने आप
चिे आिे हैं । आपके पास बहुि भीड़ है , और भीड़ चिी आिी है । क्योंशक
भीड़ सोचिी है शक इिनी भीड़ है , िो आदमी जरूर बड़ा होगा। िकय हमारे
मन का ऐसा काम करिा है । िो बड़ी भीड़ उनके पास है । उन्ोंने मुझे भी
कहा शक मुझसे शमिना चाहिी हैं । शमिना हुआ। जैसे अभी यहां हिाएं चि
रही हैं , ऐसी खूब िेज हिाएं थीं समुि के शकनारे , जहां मैं उनसे शमिा। िो
मेरा चादर उड़ कर उनको छूिा था, मेरा चादर छूिा था, िो उनको ऐसा
धक्का िगिा था, जैसे शबजिी का िॉक िग जाए।
मगर उनके एक शिष्य ने मेरे कान में कहा शक क्षमा कररए! िायद आपको
पिा नहीं है , पुरुष का चादर साध्वी नहीं छू सकिी है ।
िो मैंने उनसे पूछा, आप भी सहमि हैं , ये जो मेरे कान में कह रहे हैं ?
हां , उन्ोंने कहा शक यह िो पुरुष का चादर हमें नहीं छूना चाशहए, िशजयि है ।
िो मैंने कहा: मैं बहुि है रान हं ! मेरे ओढ़ने से चादर भी पुरुष हो गया, आपके
ओढ़ने से स्त्री हो जािा है , चादर भी? और बािें आप कर रही हैं आत्मा-
परमात्मा की? बािें आप कर रही हैं शक हम िरीर नहीं हैं , िरीर िो शमट्टी है ?
चादर भी शमट्टी नहीं है आपको, चादर भी पुरुष है और िरीर को शमट्टी होने
की बाि कर रही हैं ? िो मैंने उनको कहा शक यह चादर इसशिए पुरुष हो
गया, भीिर जो दबा हुआ काम है , भीिर जो सेक्सुअशिटी है दबी हुई, िह
सेक्सुअशिटी इस चादर के छूने से भी चौंकिी है , जगिी है , िबड़ाहट पै दा
करिी है ।
आपके द्वारा िाया गया पररिियन कोई भी अथय नहीं रखिा। उस पररिियन का
अथय है जो आपके अभ्यास से नहीं आिा, बस्ल्क आपके ज्ञान की छाया की
भां शि शिकशसि होिा है ।
यह िो शफर भी बड़ी दया है , चीन जैसे मुल्क में िो स्त्री के भीिर आत्मा भी
नहीं मानी जािी रही। स्त्री की हत्या कर दे िे, आज से िीस साि पहिे िक
चीन में मुकदमा नहीं चि सकिा था। क्योंशक स्त्री में कोई आत्मा ही नहीं है ,
स्त्री िो संपदा है पु रुष की। ऐसे िो हम भी कहिे हैं , स्त्री-संपशत्त। मूढ़िा िो
हमारी भी िही है । स्त्री को हम भी संपशत्त ही मानिे हैं । अभी भी हमारे में िही
भाि है , माशिक हैं हम।
इसशिए पुरुष के नाम से स्त्री जानी जािी है , स्त्री के नाम से पुरुष नहीं जाना
जािा। हमारी पकड़ ऐसी रही है । िो उसने सोचा, स्त्री है , इसकी बुस्ि में
कहां आ सकिा है िैराग्य िगै रह, अभ्यास भी इसका गहरा नहीं है । कहीं
इसका मन न िोि जाए। उसने उस थै िी को बगि के गङ् ढे में सरका कर
शमट्टी से ढं क शदया। िेशकन िह ढं क भी नहीं पाया था शक उसकी स्त्री पीछे
आ गई और उसने पूछा क्या करिे हैं ?
इस स्त्री का कोई अभ्यास नहीं था, इस स्त्री को कुछ शदखाई पड़ा था। सोने
का शमट्टी होना शदखाई पड़ा था, बाि खत्म हो गई थी, अभ्यास का कोई
सिाि न था। पशि को शदखाई िो सोना ही पड़िा था, अभ्यास कर-कर के शक
सब सोना बेकार है , काशमनी-कां चन सब व्यथय है , ऐसा दोहरा-दोहरा कर,
मन को समझा-समझा कर, बां ध-बां ध कर, संयम कर-कर के उन्ोंने शकसी
भां शि सोने से अपने को दू र रख शिया था। सोना िो खूब शदखाई पड़े गा ऐसी
स्थथशि में, आमिौर से और ज्यादा शदखाई पड़े गा। आमिौर से ज्यादा शदखाई
पड़े गा।
शजसने इस िरह अपने को दू र-दू र बां धा है सोने से, सोना उसे पागि करने
िगे गा, सोने के प्रशि उसका आकषयर् बहुि िीव्र हो जाएगा, िनीभूि हो
जाएगा। िह जहां भी दे खेगा, िहीं उसे सोना शदखाई पड़े गा। जरा सा भी
सोना होगा, उसके प्रार् िां िािोि होने िगें गे, क्योंशक उसने बां धा है ,
जबरदस्ती रोका है । जबरदस्ती से रोकने से रुग्ण चाह पैदा होिी है ,
अनासस्ि नहीं। रुग्ण चाह आसस्ि से भी ज्यादा िािक है ।
िेशकन चीजें शदखाई पड़ें , अनुभि में आएं , िो शफर एक पररिियन होिा है , जो
शबना अभ्यास के होिा है । मैं नहीं कहिा हं शक कोई अभ्यास करें , मैं कहिा
हं , शििेक को जगाएं , मन को िां शि की िरफ िे जाएं और दे खें चीजों को,
ऐसा दोहराना नहीं पड़े गा। ऐसा िर में रोज-रोज अभ्यास नहीं करना पड़े गा
शक जगि िो शमथ्या है और ब्रह्म सत्य है । जो ऐसा दोहरा-दोहरा कर याद
करिा हो शक जगि शमथ्या और ब्रह्म सत्य, उसको शदखाई नहीं पड़ रहा है ,
नहीं िो दोहरािा क्यों? दोहरािा िही है शजसे शदखाई नहीं पड़िा। शजसे
शदखाई पड़ रहा, िह क्यों दोहराएगा? शदखाई पड़ना पयाय ि है और उससे
क्रां शि हो जािी है ।
िो मैं चाहं गा शक दे खना िुरू करें , अभ्यास नहीं। िेशकन हजारों साि की
शिक्षाएं हैं िीक से बंधी हुईं और िे हमसे कहिी हैं , अभ्यास करो, नहीं िो
िैराग्य पैदा ही नहीं होगा; राग में पड़े रहोगे िो कैसे िैराग्य पै दा होगा।
इसशिए शिराग का अभ्यास करो, राग से हटो, शिराग का अभ्यास करो।
मैं कहिा हं , नहीं। राग से अगर भागे और िैराग्य पैदा शकया, उस िैराग्य के
भीिर भी राग मौजूद रहे गा, िह कहीं जा नहीं सकिा है । शफर मैं आपसे क्या
कहिा हं ? मैं कहिा हं , जहां आप हो, िहीं आं खें खोि कर जीओ। राग में भी
आं ख खोि कर जीओ। आं खें खोि कर जीने से अगर राग व्यथय है िो शदखाई
पड़ने िगे गा, िैराग्य िाना नहीं पड़े गा। राग की व्यथय िा शदखाई पड़ी शक राग
झड़ने िगे गा, जैसे पके पत्ते शगरने िगिे हैं ।
और भी कुछ प्रश्न हैं थोड़े से। एकाध-दो प्रश्न की और मैं बाि करू
ं गा, शफर
हम ध्यान के शिए बैठेंगे । जो प्रश्न बच जाएं गे , उनकी मैं कि बाि करू
ं गा।
उसे शदखाई पड़िा होगा शक इन दोनों में शिरोध है । मैं आपसे कहं , इन दोनों
में शिरोध नहीं है । परमात्मा को पा िेने पर ही ज्ञाि होिा है शक जीिन का कोई
ध्येय नहीं, उसके पहिे िो ज्ञाि हो ही नहीं सकिा। ऐसी शचत्त की स्थथशि को
पा िेना जहां कोई ध्येय न हो, कोई ध्येय िेष न रह जाए, िही िो परम ध्येय
है । जीिन की ऐसी स्थथशि को पा िेना, जहां शफर कोई और ध्येय न रह जाए,
आमिौर से हम जीिन में कुछ न कुछ पाने को ध्येय मानिे हैं --कोई धन पाने
को, कोई यि पाने को, कोई कुछ और, कोई कुछ और। िेशकन शकिना ही
धन पाएं , शफर भी ध्येय आगे िेष रह जािा है , समाि नहीं होिा, और धन
चाशहए। शकिना ही यि पाएं , शफर भी ध्येय िेष रह जािा, और यि चाशहए।
कुछ भी पािे जाएं , ध्येय आगे शफर बच रहिा है । इसशिए ये कोई भी ध्येय
अंशिम ध्येय नहीं हो सकिे हैं , क्योंशक इनके बाद ध्येय समाि नहीं होिा,
शफर बच रहिा है ।
शसकंदर शहं दुस्तान की िरफ आया था, उसे खयाि था सारी दु शनया जीि िेनी
है ।
रास्ते में, सुबह शजस िायोजनीज की मैंने बाि की, उससे उसका शमिना
हुआ, िो िायोजनीज ने उससे पूछा, शक अगर िुम सारी दु शनया जीि िोगे ,
िो शफर क्या करोगे ? उसने कहा: यह प्रश्न िो मेरे खयाि में नहीं आया। िुम
पूछिे हो, िो मैं बहुि िर गया, क्योंशक सच में ही शफर इसके आगे िो कुछ
बचिा नहीं, दू सरी दु शनया भी नहीं शजसको मैं जीिूं। अगर मैंने पूरी दु शनया
जीि िी, िो मैं बड़ी मुस्िि में पड़ जाऊंगा।
िायोजनीज खूब हं सने िगा और उसने कहा: शफर िुम पागि हो! अगर
शिश्राम ही करना है , िो मैं शिश्राम कर ही रहा हं । इिनी दौड़-धूप क्यों करिे
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हो? आओ और मे रे पास िेट जाओ; इस छोटे से जगह में, झोपड़े में, दो के
िायक काफी जगह है । अगर शिश्राम ही करना है अं ि में, और सब खोज
और सब जीि छोड़ दे नी है , िो इिनी दौड़-धूप क्यों? आ जाओ और अभी
िुरू कर दो, इिना समय क्यों खोिे हो? शसकंदर ने कहा: बाि िो िुम बड़ी
ठीक कहिे हो। िेशकन बड़ा मुस्िि है , मैं िो आधी यात्रा पर शनकि चुका।
आधे से िौटना िो ठीक नहीं।
िो दो िरह के ध्ये य हैं जीिन में। एक, जो कभी पूरे नहीं होिे, क्योंशक उनको
पूरा भी कर िो, िो नये ध्ये य पैदा हो जािे हैं । और एक ऐसा ध्येय भी है जीिन
में, जो पूरा हो जाए, िो सभी ध्येय समाि हो जािे हैं , उसके आगे शफर करने
को कुछ िेष नहीं रह जािा। उस ध्ये य का नाम ही िो परमात्मा है । परमात्मा
से कोई मििब थोड़े ही शक धनुषबार् शिए हुए रामचंिजी खड़े हैं , िो
परमात्मा है । शक मुरिी बजािे कृष्ण खड़े हैं , िो परमात्मा है । शक सूिी पर
िटके क्राइस्ट खड़े हैं , िो परमात्मा है ।
जब भी कोई व्यस्ि इिना िां ि हो जाएगा शक उसके जीिन में कोई कामना
और िासना नहीं रह जािी, शफर िह जीिा है ऐसे ही जैसे हिाएं बहिी हैं ,
जीिा है ऐसे ही जै से नशदयां बहिी हैं , जीिा है ऐसे ही जै से िृक्षों में फूि स्खििे
हैं , जीिा है ऐसे ही जैसे आकाि में बादि िूमिे हैं । शजस शदन मनुष्य ऐसा
जीने िगिा है शक उसके जीिन में कोई कामना और िासना के सूत्र नहीं रह
जािे खींचने िािे।
अकबर ने कहा: िेशकन कुछ भी हो, मैं सुनना चाहं गा। िुम्हारी बाि सुन कर
िो सुनने का मोह और भी िीव्र हो गया।
शफर गीि बंद हुआ, िो भी अकबर बैठा रहा। िानसे न ने शहिाया और कहा
शक गीि बंद हो गया, अब हम िौट चिें, और कहीं पकड़ न शिए जाएं इस
चोरी करिे हुए? अकबर चौंका, जैसे शकसी ने नींद िोड़ दी हो, उसने अपने
आं ख के आं सू पोंछे और िानसेन के साथ िापस िौटा। रास्ते भर चुप रहा,
बोिा नहीं, महि में प्रिेि करिे िि उसने िानसेन से कहा: मैं सोचिा था,
िुम्हारा कोई मुकाबिा नहीं, अब मैं सोचिा हं , गु रु के सामने िो िुम कुछ भी
नहीं हो। इिना फकय क्यों है ? इिना भे द क्यों है ?
िानसेन ने कहा: बाि बहुि साफ है । मैं इसशिए बजािा हं शक कुछ शमिेगा
बजाने से, कुछ पा िूंगा बजाने से। मैं बजािा हं , क्योंशक कोई कामना है जो
पूरी होगी। बजाना मेरे सामने पररपू र्य कृत्य नहीं है , टोटि एक्ट, पररपूर्य
कृत्य नहीं है , बजाना है मेरे सामने साधन, पाना है कुछ और। पाने पर नजर
शटकी रहिी है , बजािा हं , बजाना एक काम हो जािा है । नजर शटकी रहिी है
पाने पर, इसशिए बजाने में िह सौंदयय और आनंद नहीं हो सकिा।
मेरे गु रु बजािे हैं , इसशिए नहीं शक उन्ें कुछ पाना है , बस्ल्क इसशिए शक
उन्ोंने कुछ पा शिया है । इस फकय को मैं शफर से दोहरािा हं : मेरे गु रु बजािे
दो िरह के िोग हैं । िासनाओं से खींचे जािे हुए िोग, उनका जीिन शकसी
िक्ष्य, शकसी इच्छा, शकसी महत्वाकां क्षा से प्रेररि होगा। ऐसे जीिन में न िां शि
हो सकिी है , न आनंद हो सकिा है । ऐसा जीिन बोझ का जीिन होगा। एक
दू सरी िरह का शचत्त भी है , जो शकसी बहुि गहरे आनं द को उपिब्ध हुआ है ।
अब भी जीिा है , अब भी श्वास िेिा है , चििा है , उठिा है , बैठिा है , िेशकन
अब उसके सारे कृत्य उस आनंद को बां टने का कृत्य हो जािे हैं , अब उसे
कुछ पाना नहीं है , अब िो कुछ उससे बंटना है और शबखर जाना है ।
ऐसा जीिन परमात्मा को उपिब्ध जीिन है । ऐसे जीिन में कोई िक्ष्य नहीं है
अब, िस्तुिः जीिन में कोई िक्ष्य नहीं है । िेशकन जब िक जीिन में बहुि
िक्ष्य हैं , यह िक्ष्य है धन का, िह िक्ष्य है यि का, िह िक्ष्य है पद का, जब
िक बहुि िक्ष्य हैं , िब िक इन सारे िक्ष्यों से जीिन पीशड़ि और दु खी होगा।
जब हम कहिे हैं , परमात्मा को पाना है , िो ऐसा मि समझ िेना शक
परमात्मा को पाना भी एक िक्ष्य है ।
शजसको मैं ध्यान कह रहा हं , उसी शिशध से, उसी ध्यान के बोध से शनरं िर
शचत्त की िासना क्षीर् होिी चिी जािी है और एक िड़ी आिी है शक आपको
िगिा है कुछ भी पाने को नहीं है । न कुछ पाने की प्रेरर्ा है , न कुछ पाने की
कामना है , शचत्त िां ि है , मौन है । कुछ भी पाने की कोई पीड़ा और कोई
िनाि शचत्त को िे र नहीं रहा है । शजस क्षर् भी, एक क्षर् को भी शचत्त इस
स्थथशि में पहुं चेगा, उसी क्षर् आप पाएं गे परमात्मा का साशन्नध्य उपिब्ध हो
गया। उसी क्षर् आप पाएं गे , मेरे और उसके बीच की सारी दीिाि शगर गई,
मैं िही हो गया। उस शदिा में जाने के शिए शनरं िर, शनरं िर बोध को जगाने
की, शििेक को शिकशसि करने की और ध्यान को गहरा से गहरा िे जाने की
जरूरि है ।
सबसे पहिे िो बहुि आराम से बैठ कर िरीर को ढीिा छोड़ दें । उसमें
कोई, कोई िनाि िरीर के शकसी अंग पर न हो, और शबिकुि शफकर न
करें , उसे शबिकुि ढीिा छोड़ दें , कोई अंग िना हुआ न हो। दू सरी बाि,
आं ख को बहुि धीरे से बंद हो जाने दें ; बं द करें नहीं, बं द हो जाने दें । धीरे से
पिक को झपक जाने दें और बड़े हिके मन से बैठें, कोई गं भीरिा नहीं,
कोई बड़ा काम नहीं करने जा रहे हैं । एक मौज में दो, दस क्षर् शबिाने जा रहे
हैं , चुपचाप मौन में । कोई अपेक्षा न रखें शक कोई बड़ी िां शि शमि जाएगी,
कोई बहुि आनंद शमि जाए।
आपको कुछ भी नहीं करना है , कुछ होिा जाएगा। धीरे -धीरे मन िां ि होिा
जाएगा, मौन होिा जाएगा। शफर िो एक बड़ा िून्य हो जाएगा, आप उसमें
िूब जाएं गे , आपको पिा भी नहीं रहे गा शक आप हैं , बस यह सन्नाटा रह
जाएगा। सुनें, िां ि शबना शकसी िनाि के, शबना शकसी शिरोध के, चारों िरफ
गूं जिी हुई राि को सुनें।
दे खें, मन िां ि हो गया, मन कैसा िां ि हो गया, मन कैसा िां ि हो गया। इसी
िां शि में िूबिे चिे जाएं , इसी िां शि में शमटिे चिे जाएं , इसी िां शि में खो
जाएं ।
धीरे -धीरे दो-चार गहरी श्वास िें...धीरे -धीरे दो-चार गहरे श्वास िें...श्वास भी
बहुि िां शि िािी हुई मािूम पड़े गी, भीिर िक प्रार् िां ि हो जाएं गे । शफर
धीरे -धीरे आं ख की पिकों...
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
छठिाां-प्रिचन
िने जंगिों में दरख्त ऊंचे उठ जािे हैं , अफ्रीका के जंगिों में दरख्त
आकाि को छूने की िरफ बढ़ने िगिे हैं । िने जंगि में श्वास िेने की सुशिधा
दरख्तों को नीचे होने पर नहीं शमि सकिी, उनके सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हो
जािा होगा, उनके प्रार् संकट में पड़ जािे होंगे, िो िे शनरं िर ऊपर उठने
की कोशिि करिे हैं , िाशक हिा और रोिनी उन्ें शमि सके। िेशकन जहां
िने जंगि नहीं होिे, िहां दरख्त छोटे रह जािे हैं , िहां दरख्त बड़े नहीं होिे।
मरुथथिों में, ऊंटों ने अपनी गदय नें िं बी कर िीं, इसके शसिाय जीना असंभि
था। शजिना भयंकर मरुथथि हो, और शजस मरुथथि में नीचाइयों पर पशत्तयों
को पाना असंभि हो, िहां के ऊंट उिनी ही िंबी गदय न करने में समथय हो गए
हैं । ज़ीराफ होिा है , उसने भी अपनी गदय न बहुि िंबी कर िी है , क्योंशक शजन
जंगिों में िह होिा है , िहां दरख्त बहुि ऊंचे हैं ।
अगर बाहर के सब उत्तर व्यथय शदखाई पड़ने िगें , बाहर के सारे िास्त्र
शनरथय क शदखाई पड़ने िगें , बाहर कोई भी िरर् न मािूम पड़े और बाहर
श्रिा को कोई आधार न रह जाए, िो उस शनराधार शचत्त की दिा में, जब
बाहर के सब सहारे खो गए हों, और बाहर शिश्वास के शिए कोई कारर् न रह
गया हो, प्रार्ों में सोई हुई िह ऊजाय जगिी है , जो भीिर से उत्तर दे ना िुरू
करिी है । उसके पहिे भीिर से उत्तर नहीं आिे। उसके पहिे भीिर से
उत्तर आने का कोई कारर् भी नहीं है । भीिर से उत्तर िभी आ सकिे हैं , जब
बाहर के सब उत्तर व्यथय हो गए हों।
एक बार ऐसा हुआ, जापान में एक राजा अपने एक नौकर को बहुि, बहुि
प्रेम करिा था। िह नौकर इस योग्य था भी। युिों में उस नौकर को िह अपने
साथ िे गया, अपने महिों में उसे उसने अपने साथ रखा, अपनी यात्राओं में
उसे साथी समझा। उसने कभी उससे नौकर जैसा व्यिहार भी नहीं शकया,
प्रेम शकया शमत्र जैसा। िह युिा नौकर सुंदर भी था और स्वथथ भी था,
बुस्िमान भी था। उस राजा की पत्नी उस पर मोशहि हो गई। राजा को यह
पिा चिा। उसके शचत्त को बहुि िेदना हुई, सीधी बाि थी शक िह िििार
उठािा और नौकर की गदय न काट कर अिग कर दे िा। इसमें कोई बाधा न
थी, िेशकन उस नौकर को उसने बहुि प्रेम शकया था और शमत्र जैसा प्रेम
शकया था, िो उसने उसे अंशिम रूप से भी शमत्र के अनुसार एक मौका दे ने
की इच्छा प्रकट की।
उसने उस नौकर को बुिाया और कहा: शमत्र, चाहं िो मैं िुम्हारी गदय न काट
दू ं , िेशकन िुम्हें मैंने इिना प्रेम शकया, इसशिए एक मौका दू ं गा। यह िििार
अपने हाथ में िो और एक िििार मैं अपने हाथ में िे िा हं , और हम दोनों
िड़ें , और जो मर जाए, िह समाि हो जाए और जो िेष रह जाए, िह रानी
भी उसकी हो जाए, यह राज्य भी उसका हो जाए। शमत्र की है शसयि से यह
मौका दे ना जरूरी है ।
िेशकन शफर भी राजा ने कहा शक मेरे अंिःकरर् को यही उशचि मािूम होिा
है शक िुम्हें एक मौका दू ं ।
आज्ञा थी, उस नौकर को िििार िेकर खड़ा होना पड़ा। राजा बहुि बार
िििार की प्रशियोशगिाओं में उिरा था और हमेिा सफि हुआ था, उसकी
कल्पना में भी यह िटना नहीं थी, जो हुई।
उस फकीर ने कहा: यह िो होना शनशिि था, अगर िुम मुझसे पहिे आिे िो
मैं िुमसे पहिे ही कह दे िा। जब जीिन इिने खिरे में होिा है , िो प्रार्ों की
सारी की सारी संरशक्षि िस्ियां संिग्न हो जािी हैं , उस समय जीिना बहुि
कशठन। िुम्हारे शिए जीिन खिरे में नहीं था, िुम सुरशक्षि थे अपनी कुिििा
में, उस नौकर के शिए जीिन पूरी िरह खिरे में था, उसके पूरे प्रार् दां ि पर
थे , उसकी पूरी िस्ि जग गई हो, इसमें कोई आियय नहीं। और जब पू री
िस्ि जागिी है , िो एक साधारर् सा मनुष्य अदभु ि रूप से असाधारर् हो
जािा है ।
हम बेसहारा नहीं रह जािे, अकेिे नहीं रह जािे, इिने िोग साथ हैं , इिने
िोगों का साथ होना बि दे िा है , शहम्मि दे िा है , आसरा दे िा है , सहारा दे िा
है । खिरा कम हो जािा है जीिन का, हम सुरशक्षि हो जािे हैं । और जो
सुरशक्षि हो जािा है , उसके भीिर के शििेक जागरर् का कोई उपाय नहीं रह
जािा। शििेक जागरर् के शिए इनशसक्योररटी चाशहए, खिरा चाशहए, चारों
िरफ से ऐसी स्थथशि चाशहए, जो चुनौिी बन जाए, िो कुछ भीिर होिा है , िो
ही सोई हुई चीजें जागिी हैं , नहीं िो नहीं जागिी हैं ।
िेशकन हम िो शिश्वास के िेरे में खड़े होकर सब भां शि सुरशक्षि हो जािे हैं ।
और इसीशिए हम खोज करिे हैं इस बाि की शक फिां शकिाब शकिनी
पुरानी है ? दो हजार िषय पुरानी है , िो कम सुरक्षा दे िी है । पां च हजार िषय
पुरानी है , िो ज्यादा सुरक्षा दे िी है ; क्योंशक पां च हजार िषय से शजसे िोग
मानिे हैं , िह जरूर ही सच होगा। और अगर कोई यह भी शसि कर दे शक
िह शकिाब खुद ईश्वर की शिखी हुई है , ईश्वर-प्रर्ीि है , िो और सुरक्षा दे िी
है , क्योंशक शफर िो उसके िक होने का सिाि ही नहीं रहा, संदेह का कोई
सिाि नहीं रहा। इसशिए सारे दु शनया के धाशमयक िोग अपनी-अपनी शकिाब
को ईश्वर के द्वारा बनाए होने का प्रमार् दे ने की कोशिि करिे हैं ।
यह जो सारी हमारी कोशिि चििी है शक महािीर सियज्ञ हैं , बुि सियज्ञ हैं , िे
सब जानिे हैं , और जो जानिे हैं शबिकुि ठीक जानिे हैं । यह हम इिने जोर
से क्यों िड़िे हैं इस बाि के शिए?
नहीं; प्रयोजन था, अगर ईसा का एक िचन भी गिि होिा है , िो बाकी िचन
भी संशदग्ध हो जाएं गे । खिरा यही था। शक जमीन गोि है शक चपटी, शकसी
को क्या िेना-दे ना इस बाि से। नहीं; खिरा यह था, अगर ईसा का यह िचन
भी गिि है , िो दू सरे िचन संशदग्ध हो जाएं गे । िक हो जाएगा शक जो एक
आदमी एक बाि गिि बोि सकिा है , िो दू सरी बािें भी गिि बोि सकिा
है । िो िाउटफुि हो जाएगी स्थथशि। और अगर इससे भी कोई प्रयोजन नहीं
शक ईसा गिि हों शक सही हों, प्रयोजन िो इसका है शक शफर हमारे शिए
संदेह खड़ा हो जाएगा और हमारा शिश्वास िगमगा जाएगा। िो ऐसी-ऐसी
मूढ़िाओं पर भी शिश्वास जारी रहा है शजनकी आप कल्पना नहीं कर सकिे।
ऐसी स्स्त्रयां काफी हैं बहुिायि से, और अक्सर िो पुरुषों से थोड़ी ज्यादा हैं ,
कम नहीं हैं । और यूनान में िो बहुि थीं, क्योंशक शजन मुल्कों में िड़ाई चििी
है , दं गे-फसाद होिे हैं , िहां पुरुष कम हो जािे हैं , स्स्त्रयां ज्यादा हो जािी हैं ।
यूनान में िो संख्या कई दफा स्स्त्रयों की दु गुनी िक हो गई थी पुरुषों से,
क्योंशक आए शदन िििारबाजी थी।
िो उस बेिकूफी में पुरुष मर जािे हैं , स्स्त्रयां बच जािी हैं । िेशकन शकसी को
यह नहीं सूझा शक जाकर िे स्स्त्रयों के दां ि शगन िें। कोई खयाि ही नहीं
आया, संदेह पै दा नहीं हुआ न। ऐसी हजारों िरह की मूढ़िाएं हजारों िषय िक
चििी हैं ।
और हम क्यों िरिे हैं उनको उखाड़ने में? उनको खोिने में? िर इसशिए
पैदा होिा है शक अगर पूियजों की एक बाि गिि हो जाए, िो पूियजों की दू सरी
बािें भी गड़बड़ हो जाने का भय पैदा हो जािा है । और उस भय में शफर
हमारे भीिर सं देह खड़ा होगा और हमको खोज करनी पड़े गी, हम मुस्िि
में पड़ जाएं गे । िेशकन मैं आपसे कहं , शजसका शचत्त संदेह से नहीं भरिा और
जो संदेह की पीड़ा में नहीं पड़िा और जो संदेह की अशग्न में नहीं झुिसिा,
उसके भीिर शििेक कभी जाग्रि नहीं होिा है ।
आत्म-शनरीक्षर् हम करिे नहीं, हमारा शचत्त शनरं िर दू सरों के संबंध में सोचने
में संिग्न होिा है । स्वयं के संबंध में शिचार, स्वयं के सं बंध में ऑब्जिेिन,
शनरीक्षर्, स्वयं के बाबि भी िटथथ खड़े होकर सोचने की िृशत्त, मुस्िि से
होिी है । और शजसमें नहीं है ऐसी िृशत्त, िह करीब-करीब शजन बािों को
दू सरों में शनंदा करिा है , करीब-करीब उन्ीं बािों को स्वयं में जीिा है । शजन
पिा इसशिए नहीं चििा शक िह कभी खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा,
दे खिा रहिा है दू सरों की िरफ, खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा। और
जो व्यस्ि खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा, उसका शििेक कैसे जगे गा?
शििेक दू सरों की िरफ दे खने से नहीं जगिा। क्योंशक पहिी िो बाि यह है
शक जो व्यस्ि अभी खुद को ही दे खने में समथय नहीं है , िह दू सरों को दे खने
में कैसे समथय हो सकेगा? जो व्यस्ि अभी अपने ही संबंध में शनर्यय नहीं िे
सकिा, िह दू सरे के संबंध में शनर्यय कैसे िे सकेगा? खुद के भीिर के प्रार्ों
से भी जो पररशचि नहीं हो सका है , िह दू सरे के बाहर से दे ख कर उसके
भीिर से कैसे पररशचि हो सकेगा।
और अपने को दे खने से क्यों बचना चाहिे हैं ? बहुि पीड़ा होगी अपने को
दे खने से। इसशिए अपने को िो कभी नहीं दे खिे, अपने बाबि िो एक भ्रम
खड़ा कर िेिे हैं शक हम ऐसे हैं और दू सरे को दे खिे हैं । और दू सरे को नीचा
शदखाने की कोशिि करिे हैं शनरं िर अपने शचत्त में, अपनी िार्ी में, अपने
शिचार में। क्यों? िाशक इस भां शि हम खुद ऊंचे हो सकें। जब हम सारी
दु शनया को नीचा दे खने िगिे हैं , िो अनजाने खुद ऊंचे हो जािे हैं । जो
आदमी सब िोगों की बुराई दे खने िगिा है , िह एक बाि में शनशिंि हो जािा
है शक िह खुद बुरा नहीं है ।
बटर ें ि रसि ने कभी एक दफा कहा शक अगर शकसी िर में चोरी हो जाए,
और सबसे पहिे जो जोर-जोर से शचल्लाने िगे शक चोरी बहुि बुरी चीज है ,
पक्का समझ िेना शक उसके भीिर गहरा चोर है । िो सच है बाि। अगर यहां
चोरी हो जाए िो जो आदमी चोरी की सबसे ज्यादा शनंदा करने िगे , और जो
चोरों को गािी दे ने िगे और बहुि िोरगु ि मचाने िगे और दौड़-धू प करने
िगे चोर को पकड़ने की, पक्का समझना शक िह आदमी चोर है । क्योंशक
इस भां शि िह अपने चारों िरफ एक हिा पै दा करिा है शक आप एक भ्रम में
आ जाएं , एक बाि िो पक्की समझ िें शक इसने चोरी नहीं की, जो चोरी की
इिनी शनंदा कर रहा है िह चोरी कैसे करे गा? जो चोरी के इिने शिरोध में है
िह चोर नहीं हो सकिा।
जैसे हम दू सरे िोगों को दे खिे हैं , ठीक उसी भां शि खुद को भी दे खने की
जरूरि है । जब कोई व्यस्ि अपने भीिर स्वयं को इस भां शि दू र से खड़े
गु रशजएफ एक फकीर हुआ, यूनान में। उसने अपनी आत्म-कथा में शिखा
शक मेरा शपिा मृत्यु-िय्या पर था, उसने मुझे अपने पास बुिाया, िब चौदह
िषय की मेरी उम्र थी, मुझसे कान में उसने कहा: शक अगर मैं कोई सिाह दू ं
िो िुम बुरा नहीं मानोगे ? बहुि समझदार आदमी रहा होगा िह, क्योंशक
सिाह दे ने िािे यह कभी पूछिे नहीं शक बुरा मानोगे शक नहीं मानोगे ?
सिाह दे ने िािे मुफ्त सिाह बां टिे हैं । और दु शनया में जो चीज सबसे ज्यादा
दी जािी है और सबसे कम िी जािी है , िह सिाह ही है । उस बूढ़े आदमी ने
शजसकी नब्बे िषय उम्र थी, चौदह िषय के बच्चे से पूछा शक क्या मैं िुम्हें सिाह
दू ं िो िुम बुरा नहीं मानोगे ? और अगर मैं िुम्हें सिाह दू ं िो कभी िुम जीिन
उस बूढ़े आदमी ने कहा: मेरे पास न िो संपशत्त है िु म्हें दे ने को, न मेरे पास
और शकसी िरह की यि और प्रशिष्ठा है , िेशकन जीिन भर अनुभि से मैंने
एक बाि पहचानी और जानी, िह मैं िुम्हें दे ना चाहिा हं । और िह यह है शक
िुम खुद को खुद से जरा दू र रख कर दे खना सीखना। अगर रास्ते पर िुम्हें
कोई शमि जाए और िुम्हें गािी दे , िो जल्दी से उसकी गािी का उत्तर मि
दे ना, िर िौट आना, दू र खड़े होकर दे खना शक उसने जो गािी दी िह कहीं
ठीक ही िो नहीं है ? अगर िह ठीक हो, िो उसको जाकर धन्यिाद दे आना
शक िुमने मुझ पर बड़ी कृपा की और एक बाि मुझे बिाई शजसका मुझे पिा
नहीं था। अगर िह ठीक न हो, िो उसकी शचंिा छोड़ दे ना। क्योंशक जो बाि
ठीक नहीं है उससे िुम्हें प्रयोजन ही क्या?
गु रशजएफ ने शिखा है : शफर मैंने जीिन भर--उसी राि शपिा उसका मर गया-
-इस बाि की शफकर की, उसने शिखा है शक मेरे जीिन में शफर िड़ने का
कोई मौका नहीं आया। गाशियां िो मुझे िोगों ने बहुि बार दीं, िेशकन पहिे
मैंने उनसे कहा शक शमत्र रुको, मैं जरा िर जाऊं, सोच-समझ कर आऊं,
और शफर मैं आकर िुम्हें बिाऊं। जब मैं िर गया और मैंने सोचा-समझा, िो
मैंने पाया, कोई गािी इिनी बुरी नहीं हो सकिी शजिना बुरा मैं हं । मैंने जाकर
धन्यिाद शदया और कहा शक शमत्र बहुि-बहुि धन्यिाद, और सदा स्मरर्
रखना, और जब भी जरूरि पड़े और िुम्हारे मन में कोई गािी आ जाए, िो
शछपाना मि, मुझे दे दे ना।
शभक्षु भीखर् राजथथान के एक गां ि में थे , िहां कोई चार माह रुके, चिुमाय स
होगा। रोज ही आसोजी नाम का एक आदमी उनको सुनने आिा था। िेशकन
रोज ही शदन भर की दु कान के बाद िौटिा था, सां झ को उनको सुनिा था, िो
सो जािा था। बहुि कम िोग हैं जो सुनिे िि जागिे रहिे हों, बहुि कशठन
है । आं ख खुिी रखना एक बाि है , जागना शबिकुि दू सरी बाि है । िेशकन
िह आदमी आं खें भी बंद कर िेिा था, सीधा-सादा आदमी होगा। आं खें
खुिी रख कर धोखा नहीं दे िा था शक हम सुन ही रहे हैं । बहुि शदन भीखर् ने
दे खा शक यह िो सोिा है शनरं िर, सामने ही बैठिा था, और गां ि का सबसे
बड़ा धनपशि था, इसशिए पीछे िो बैठ ही नहीं सकिा था। सबसे ज्यादा धन
उसी के पास था, इसशिए बैठिा आगे ही था। पीछे िो कौन बैठिा, आगे ही
बैठिा था और सामने ही सोिा था।
ये भीखर् कुछ गड़बड़ रहे होंगे। इन्ोंने टोका। और भी साधु आिे थे, उनको
भी सुनने जािा था, क्योंशक जो साधुओं को सुनने जािे हैं िे शकसी भी साधु को
सुनने जािे हैं । िह िैसे ही है , जैसे जो शफल्म दे खने जािे हैं िे शकसी भी शफल्म
को दे खने जािे हैं , इससे कोई फकय नहीं पड़िा। िे कोई बहुि भे द नहीं
करिे, िहां िीन िंटा गु जरिा है , िापस िौट आिे हैं । मैं िो अपने गां ि में एक
ऐसे आदमी को भी जानिा था, क्योंशक मेरा गां ि बहुि छोटा, उसमें मुस्िि
से एक ही कहे जाने को टाकीज। िे एक ही शफल्म को रोज ही दे खिे थे , उसी
शफल्म को।
िहां उनका िीन िंटा गु जर जािा था। ऐसे ही िोग मंशदरों में जािे हैं , ऐसे ही
िोग मस्िदों में जािे हैं । पुराने जमानों में मंशदरों-मस्िदों में जािे थे , िही
अब शसनेमाओं में जाने िगे हैं , उनमें कोई बहुि फकय नहीं है । िह भी बेचारा
उनके सामने बैठा-बैठा सोिा था। ऐसे शफल्म में सो जाओ िो कोई टोकने
िािा नहीं होिा, न िो मैनेजर आकर कहिा है शक क्यों सो रहे हो? िेशकन ये
साधु थोड़े गड़बड़ होिे हैं , ये टोक दे िे हैं ।
िेशकन शफर थोड़ी दे र में सो गया, शफर भीखर् ने कहा: िेशकन अब की बार
दू सरी बाि कही, भीखर् ने कहा आसोजी जीिे हो? आसोजी िो नींद में थे,
उन्ोंने समझा, ये शफर पूछ रहे हैं , आसोजी सोिे हो। उसने कहा शक नहीं,
कौन कहिा है ? भीखर् ने कहा: अब िो पकड़ गए शक शनशिि सोिे थे ।
क्योंशक मैंने पूछा, आसोजी जीिे हो और िुम कहिे हो, कौन कहिा है ,
शबिकुि नहीं।
स्मरर् रस्खए, जो दोष हम शछपा िेिे हैं । िह दोष धीरे -धीरे भीिर बड़ा होने
िगिा है । जैसे बीज को हम जमीन में दबा दे िे हैं , िो शफर बड़ा होिा है ,
अंकुर आिे हैं और पौधा शनकििा है । और एक बीज से पौधा शनकि कर
शफर िह पौधा हजारों बीजों को पैदा कर दे िा है । ऐसे ही शचत्त की भू शमजन्य
दोषों को हम शछपा िेिे हैं , िे बीज की िरह भीिर बढ़ने िगिे हैं , बड़े होने
िगिे हैं , शफर उनमें अंकुर शनकिने िगिे हैं , और हम उनकी रक्षा करिे हैं ।
अगर कोई बिाए शक दे खो, िुम्हारे भीिर फिां -फिां बीज अंकुररि हो रहा
है , हम कहिे हैं , क्या झूठ बाि कह रहे हो? हम उसकी रक्षा करिे हैं , बागु ड़
जीिन से शजस चीज को नष्ट करना हो, उसे शछपाना सबसे खिरनाक बाि
है । उसे खोि दे ना सरििा से, सहजिा से। उसे अपने सामने िो खोि ही
िेना जरूरी है ।
पहिा फोटो िो कोई कहिा ही नहीं शक उिारो, शक जैसा मैं हं िैसा ही उिार
दो, ऐसा िो कोई उिरिाना ही नहीं चाहिा। और अगर कभी शकसी का भूि-
चूक से उिर जाए, िो िह नाराज होिा है शक यह िो शबिकुि मेरे जैसा नहीं
मािूम होिा, यह फोटो िो शबिकुि गड़बड़ है । यह क्या आप बिाए, यह
फोटो िो मेरे जैसा है ही नहीं शबिकुि। िो उसने कहा शक अगर कोई
उिरिाना भी चाहिा है िो भी हम पां च रुपये में ही दू सरा िािा फोटो उिार
दे िे हैं । िभी िह खुि होिा है ।
और िीसरा सूत्र है : मूछाय -पररत्याग। बहुि कुछ हम छोड़िे हैं शजंदगी में, िोग
कहिे हैं , त्याग करें --धन छोड़ें ; कोई कहिा है , िोभ छोड़ें ; कोई कहिा है ,
क्रोध छोड़ें । मैं कहिा हं , छोड़ ही नहीं सकेंगे , शकिना ही छोड़ें । धन छोड़ दें
शकिना ही, छोड़ ही नहीं सकेंगे ।
एक संन्यासी के पास में था, िे मुझसे कहे शक मैंने िाखों रुपयों पर िाि
मारी। मैंने उनसे पूछा, यह िाि कब मारी? उन्ोंने कहा: कोई बीस साि
हुए। मैंने कहा: िाि ठीक से िग नहीं पाई, नहीं िो बीस साि िक स्मृशि
कैसे बनी रहिी? िाि थोड़ी दू र पड़ी, धन िहीं का िहीं रखा हुआ है । जब
उन पर िाखों रुपये थे , िो िे अकड़ कर चििे रहे होंगे शक मेरे पास िाखों
रुपये हैं , अब भी अकड़ कर चि रहे हैं शक मैंने िाखों पर िाि मार दी! िह
रुपये से जो भ्रम पैदा होिा था, िह मौजूद है । कोई रुपया नहीं छोड़ सकिा।
मूस्च्छय ि शचत्त धन छोड़ दे गा िो धन के छोड़ने को पकड़ िेगा; भोग छोड़ दे गा
िो त्याग को पकड़ िेगा; गृ हथथी छोड़ दे गा िो संन्यास को पकड़ िेगा,
आप कहें गे, हम जागे हुए िो जीिन व्यिहार करिे हैं , मैं कहं गा, नहीं, हम
शबिकुि मूस्च्छय ि जीिन व्यिहार करिे हैं । अगर मैं जोर से आपको धक्का दे
दू ं , आप क्रोध से भर जाएं गे और मैं आपसे पूछूं शक यह क्रोध आप होिपू ियक
कर रहे हैं या बेहोिी में कर रहे हैं ?
क्योंशक क्रोध करने के िड़ी भर बाद पिात्ताप िुरू होिा है , िड़ी भर बाद
आपको िगिा है शक यह मैंने कैसे शकया, िड़ी भर बाद आपको िगिा है शक
यह िो मुझे नहीं करना था, िड़ी भर बाद आपको िगिा है शक यह कैसी भू ि
मुझसे हो गई, िो आप िड़ी भर पहिे कहां थे , जब भू ि हुई थी? जब िड़ी
मेरे एक शमत्र हैं उन्ें बड़ा क्रोध आिा था, िे बड़े परे िान थे , मुझसे पूछे,
इसके शिए क्या करू
ं ? मैंने कहा: कुछ करें न। खीसे में एक कागज पर
शिख कर रख िें शक अब मुझे क्रोध आ रहा है , और जब भी क्रोध आए, उसे
फौरन शनकाि कर पढ़ िें और िापस खीसे में रख दें , और कुछ भी न करें ।
िे बोिे इससे क्या होगा? मैंने कहा: मुझसे यह मि पूछें, दो-िीन महीने बाद
आएं । िे दो-िीन महीने बाद आए, िे बोिे, बड़ी है रानी की बाि है । खीसे की
िरफ हाथ ही जािा है शक क्रोध क्षीर् होने िगिा है । क्योंशक मुझे ित्क्षर्
खयाि आ जािा है शक क्रोध आ रहा है । शजस क्रोध के शिए मैं पछिाया हं
बहुि बार, दु खी हुआ हं , पीशड़ि हुआ हं , इस बाि का होि आिे ही शक मुझे
आ रहा है , िह क्षीर् होने िगिा है ।
इसशिए शजसे जागरर् िुरू करना है , उसे इसी क्षर् िुरू करना पड़े गा।
छोटी-छोटी चीजों में जागरूक होकर दे खें, होिपू ियक करके दे खें उन्ीं
चीजों को। जरा कोशिि करें , कभी क्रोध को होिपूियक करके दे खें। और
अगर आप सफि हो जाएं , िो आप बड़े अदभु ि आदमी हैं । अब िक दु शनया
में कोई सफि नहीं हो सका है । होिपूियक क्रोध नहीं शकया जा सकिा,
होिपूियक शकसी को दु ख नहीं पहुं चाया जा सकिा, होिपूियक शहं सा नहीं की
जा सकिी।
िेशकन िभी उस श्राशिका ने कहा शक शभक्षु बड़ी अनुकंपा होगी अगर भोजन
के बाद दो िड़ी शिश्राम करो। बहुि है रान हुआ। जब िह सोचिा था यह िभी
उसने यह कहा था, शफर भी सोचा संयोग शक ही बाि होगी शक मेरे मन भी
बाि आई और उसके मन में भी सहज बाि आई शक भोजन के बाद शभक्षु
शिश्राम कर िे।
िह उठ कर बैठ गया और उसने कहा शक मैं बड़ी है रानी में हं , क्या मेरे
शिचार िुम िक पहुं च जािे हैं ? क्या मेरा अंिःकरर् िु म पढ़ िेिी हो? उस
श्राशिका ने कहा: शनशिि ही।
बुि ने कहा: िहीं जाना पड़े गा। अगर ऐसी क्षमा मां गनी थी िो शभक्षु नहीं होना
था। जान कर िहां भे जा है । और जब िक मैं न रोकूंगा, िब िक िहीं जाना
पड़े गा, महीने दो महीने, िषय दो िषय, शनरं िर यही िु म्हारी साधना होगी।
िेशकन होिपूियक जाना, भीिर जागे हुए जाना और दे खिे हुए जाना शक
कौनसे शिचार उठिे हैं , कौन सी िासनाएं उठिी हैं , और कुछ भी मि करना,
िड़ना मि जागे हुए जाना, दे खिे हुए जाना भीिर शक क्या उठिा है , क्या
नहीं उठिा।
िह दू सरे शदन भी िहीं गया। सोच िें उसकी जगह आप ही जा रहे हैं , और
िह श्राशिका आपका मन पढ़ िेिी है , और िह बहुि सुं दर है , बहुि आकषयक
है , बहुि सम्मोहक है , और िह मन पढ़ िेिी है आपका। हां , मन न पढ़िी
होिी, यह आपको पिा न होिा, िो शफर मन में आप कुछ भी करिे, आज
क्या करें गे ? आज आप ही जा रहे हैं उसकी जगह शभक्षा मां गने, रास्ते पर
बुि के चरर्ों में शगर पड़ा और उसने कहा: अदभु ि हुई बाि। जैसे-जैसे मैं
उसके शनकट पहुं चा और जैसे-जैसे मैं जागा हुआ हो गया, िैसे-िैसे मैंने पाया
शक शिचार िो शििीन हो गए, कामनाएं िो क्षीर् हो गईं, और मैं जब उसके
िर में गया िो मेरे भीिर पूर्य सन्नाटा था, िहां कोई शिचार नहीं था, कोई
िासना नहीं थी, िहां कुछ भी नहीं था, मन शबिकुि िां ि और शनमयि दपय र्
की भां शि था।
बुि ने कहा: इसी बाि के शिए िहां भे जा था, कि से िहां जाने की जरूरि
नहीं। अब जीिन में इसी भां शि जीओ, जैसे िुम्हारे शिचार सारे िोग पढ़ रहे
हों। अब जीिन में इसी भां शि चिो, जैसे जो भी िु म्हारे सामने है , िह जानिा
है , िुम्हारे भीिर दे ख रहा है । इस भां शि भीिर चिो और भीिर जागे रहो।
िीन सूत्र मैंने कहें , उन पर शिचार करें । संदेह को आने दें , संदेह से भयभीि
न हों, सम्यक संदेह की भू शम बनने दें । आत्म-शनरीक्षर् करें , खुद के जीिन में
आं खों को गड़ाएं , खुद के जीिन में खोजें, कुछ शछपाएं न खुद के जीिन में,
सब
उिाड़ िें, अपने सामने पूरी िरह नग्न हो जाएं । और िीसरी बाि अमूस्च्छय ि
जीिन व्यिहार की शदिा में कुछ प्रयोग करें । होि साधें और मूच्छय छोड़ें ।
शफर जागे गा शििेक। और शजस शदन शििेक जागे गा, उस शदन जानना शक
जीिन के सबसे बड़े सौभाग्य का क्षर् शनकट आ गया है ।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
सातिाां-प्रिचन
बहुत से प्रश्न मेरे समक्ष हैं । सबसे पहले तो यह पूछा गया है शक मेरी बातें
अव्यािहाररक मालूम होती हैं । ठीक प्रतीत होती हैं , लेशकन
अव्यािहाररक मालूम होती हैं ।
यह ठीक से समझ िेना जरूरी है --मनुष्य के इशिहास में जो-जो हमें
अव्यािहाररक मािूम पड़ा है , िही कल्यार्प्रद शसि हुआ है । और शजसे हम
व्यािहाररक समझिे हैं , उसने ही हमें आिययजनक रूप से दु ख में, शहं सा में
और पीड़ा में िािा है । शनशिि ही जो आप कर रहे हैं िह आपको
व्यािहाररक मािूम होिा होगा, प्रेस्क्टकि मािूम होिा होगा, िेशकन उसका
पररर्ाम क्या है आपके जीिन में? व्यािहाररक जो आपको मािूम पड़िा है ,
आप कर रहे हैं , िे शकन उसका पररर्ाम क्या है ? उसका पररर्ाम िो शसिाय
दु ख और शचंिा के कुछ भी नहीं। शनशिि ही उससे शभन्न कोई भी बाि एकदम
से अव्यािहाररक मािूम होगी। इसशिए नहीं शक िह अव्यािहाररक है ,
बस्ल्क इसशिए शक शजसे आप व्यािहाररक समझिे रहे हैं , िह उससे शभन्न
और शिपरीि है , अपररशचि है ।
रोज गां धी चार बजे उठिे थे , उस शदन िीन बजे ही उठ आए। शमत्र सोिे थे,
चार बजे के खयाि में थे शक उठें गे िब िे भी उठ आएं गे । गां धी िीन बजे उठे
और उस आदमी के िर पहुं च गए, शजसके बाबि यह खबर थी शक िह पां च
हजार रुपये दे कर मरिाना चाहिा है । िीन बजे राि गां धी को दे ख कर उसे
शिश्वास ही नहीं आया, दो-चार दफे उसने आं ख मींड़ी होंगी, साफ की होंगी
शक अंधेरे में सपना िो नहीं दे खिा राि में, कहां गां धी सामने खड़े हैं । गां धी ने
जाकर कहा शक िुम्हारी बड़ी कृपा है , क्योंशक इस िरीर के शिए मर जाने पर
पां च हजार दे ने को कोई भी राजी नहीं होगा, आदमी के िरीर की कीमि
बहुि कम है ।
िायद आपको पिा न हो, दु शनया में शकसी भी जानिर की बजाय आदमी के
िरीर की कीमि बहुि कम है । एक जानिर का िरीर शबकिा है , िो उससे
कुछ पैसा शमि सकिा है , आदमी के िरीर में कुछ भी नहीं है ।
शहसाब िगाया जाए, िो मुस्िि से कोई साढ़े चार, पां च रुपये का सामान
शनकििा है आदमी के िरीर में से, इससे ज्यादा का नहीं। अब थोड़ा जमाना
महं गा है , िो साढ़े साि का, आठ का शनकििा होगा, इससे ज्यादा का नहीं।
गां धी िो िापस िौट आए, िेशकन िह आदमी बदि गया, िह दू सरा आदमी
हो गया।
बड़ी है रानी की बाि है ! अगर ठीक बािें अव्यािहाररक होिी हैं , िो शफर
गिि बािें व्यािहाररक होिी होंगी। िब िो शफर ठीक और अव्यािहाररक
बािें ही चुनना उशचि है बजाय गिि और व्यािहाररक बािों के। क्योंशक
चुनाि हमे िा ठीक और गिि के बीच है । जो आपको ठीक मािूम होिा हो,
उसे चुनने का साहस होना चाशहए। थोड़ी िकिीफ भी होगी ठीक को चुनने
में, थोड़ी असुशिधा भी होगी। िेशकन जो सत्य जीिन के शिए थोड़ी असुशिधा
और िकिीफ भी उठाने को राजी न हो, जो इिना भी मू ल्य न चुकाना चाहिा
हो, उसका जीिन सत्य नहीं हो सकिा, असत्य ही रहे गा।
िो इसशिए यह मेरी कोई भी बाि अव्यािहाररक मािू म होिी हो, उसे थोड़ा
सोचें, समझें, शिचारें , थोड़ा प्रयोग करें , नहीं पाएं गे शक िह अव्यािहाररक है ।
क्योंशक अव्यािहाररक बािें करने से फायदा भी क्या है ? अथय भी क्या है ?
प्रयोजन भी क्या है ? मेरी िरफ से मैं कोई अव्यािहाररक बाि आपसे नहीं
कह रहा हं । आपकी िरह से अव्यािहाररक शदखाई पड़िी हो, िो थोड़ा
शिचार करें , िो थोड़ा प्रयोग करें , दे खें। प्रयोग करिे ही पिा चिेगा शक हम
जो कर रहे थे , िही अव्यािहाररक था।
और शकसी चीज में कभी पररिशियि नहीं होिी। और जो िोग सेक्स से िड़ाई
िुरू कर दे िे हैं , उनका जीिन अत्यशधक कामुक हो जािा है , अत्यशधक
मानशसक व्यशभचार से भर जािा है । मन में व्यशभचार करिे हैं , ऊपर से िरिे
हैं , िबड़ािे हैं , िड़िे हैं । और िब शनरं िर एक नरक पैदा हो जाए िो इसमें
आियय कौन सा है !
न िो पत्नी नरक पैदा करिी है , न बच्चे नरक पैदा करिे हैं , न पशि नरक पैदा
करिा है , कोई नरक पैदा नहीं करिा। जीिन को दे खने का हमारा ढं ग अगर
बुशनयादी रूप से गिि है , िो नरक पैदा हो जािा है । नरक पैदा होिा है
जीिन के दे खने के ढं ग से। और हम शजस िरह के दे खने के आदी हो जािे हैं ,
शफर जीिन िैसा ही हो जािा है ।
िो आप गाशियां दे रहे हैं स्स्त्रयों को, स्स्त्रयां िास्त्र शिखें गी, िो िे भी आपको
गाशियां दें गी, अभी उन्ोंने शिखे नहीं हैं , अभी उन्ोंने कोई िास्त्र िैयार नहीं
शकए, अभी िे आपके िास्त्र ही पढ़िी हैं और उन्ीं को मानिी हैं । िो इसशिए
आपकी बािों में िे भी सहमि हैं , िेशकन िे शदन दू र नहीं, जब स्स्त्रयां िास्त्र
शिखेंगी और िे उसमें शिखेंगी शक ये सब पुरुषों के कारर् सारा जगि नष्ट हो
गया, सारा आिागमन चि रहा है और यह सारा का सारा नरक का द्वार ये
पुरुष ही हैं । और जब स्त्री और पुरुष एक-दू सरे को नरक का द्वार समझ िें,
िो दु शनया अगर नरक बन जाए--िो क्या बनेगी और क्या बनेगा शफर दु शनया?
िेशकन हम अजीब िोग हैं , हम जाएं गे िो फूि को कहें गे, बहुि सुंदर। और
शििशियां उड़ रही हैं और फूिों पर से पराग िे जा रही हैं और दू सरे फूिों
िक पहुं चा रही हैं । िे सब जन्म के बीजां कुर हैं । और फूि उड़ रहे हैं हिाओं
में, उनका पराग उड़ रहा है और दू सरे फूिों िक जा रहा है , िे सब बीज हैं ,
िह सब से क्सुअि एस्क्टशिटी है । िेशकन हम फूिों के शिए प्रसन्न हैं और
शििशियों के शिए गीि शिखिे हैं और फूिों के शिए गीि शिखिे हैं और
मनुष्य के जीिन में जब बच्चे का जन्म होिा है , िो शजस अदभु ि व्यिथथा से
बच्चे का जन्म होिा है , उसकी शनंदा करिे हैं ।
पत्नी के पास पशि िैसे जाएगा, जैसे उसे मंशदर के पास जाना चाशहए। पत्नी
पशि के पास िैसे जानी चाशहए, जैसे अत्यंि प्राथय नापूर्य हृदय से भरी हुई।
अगर पत्नी और पशि के बीच का संबंध अत्यंि प्राथय ना, पशित्रिा और ध्यान से
भरा हुआ हो, िो जो बच्चे पै दा होंगे, िे कुछ और ही िरह के पैदा होंगे, उस
पशित्रिा से पशित्रिा का जन्म होगा, उस प्रेम और प्राथयना से कुछ और िरह
की आत्माएं शिकशसि होंगी, िेशकन इस िृशर्ि सं बंध से जो भी पै दा होगा िह
बहुि श्रेष्ठ नहीं हो सकिा। मनुष्य-जाशि का पिन इसशिए हुआ है ।
अगर दोनों की भािनाएं ऐसी कुंशठि हैं , एक-दू सरे को नरक समझ रहे हैं ,
किह समझ रहे हैं और मजबूरी में, जबरदस्ती में एक-दू सरे से शमि रहे हैं ,
कहिे हैं , सृष्टा को हम आदर दें गे, परमात्मा को, सृजन का जो मूिस्रोि है
उसको आदर दें गे, िो शफर सृजन की इस मूि-शक्रया को कैसे अनादर करें गे
आप? मेरी दृशष्ट में सृजन का मूिस्रोि अनादर के योग्य नहीं, अत्यंि आदर
के योग्य है । एक और ही िरह का दां पत्य जीिन शिकशसि होना चाशहए। यह
दां पत्य जीिन शबिकुि रुग्ण और गिि है ।
और इसे गिि करने में िथाकशथि धाशमयक साधु-संिों के उपदे िों का हाथ
है । और एक खिरनाक षियंत्र कोई दो-िीन हजार िषय से चि रहा है
मनुष्य-जाशि को अदभु ि रूप से शिकृि करने में। और उनके हाथों से चि
रहा है शजनसे हम सोचिे हैं शक जीिन ऊंचा उठे गा। उनकी ही बािें और
उनकी खिरनाक और िािक बािें जीिन को नीचे िे जा रही हैं । क्या इसका
यह अथय है शक मैं आपसे यह कह रहा हं शक आप सब भां शि सेक्स में िूब
जाएं , नहीं, यह मैं आपसे नहीं कह रहा हं । मैं िो आपसे यह कह रहा हं शक
सृजन का जो मूि केंि है उसके प्रशि अनादर और शनं दा का भाि न रखें।
जब कोई व्यस्ि जीिन में श्रेष्ठिर सृजन के मागय खोज िेिा है िो उसके
भीिर से अपने आप सृजन की िस्ि नये-नये द्वारों से प्रकट होने िगिी है ।
और शजन्ें हम बच्चों का जन्म कहिे हैं , उस द्वार से शििीन हो जािी है । एक
टर ां सफॉरमेिन होिा है , एक पररिियन हो जािा है , एक शबिकुि ही नया
पररिियन हो जािा है । इसशिए शजन िोगों के जीिन में सृजन के नये द्वार होिे
हैं , प्रेम के नये द्वार होिे हैं , प्राथय ना और पशित्रिा की नई शदिाएं खुि जािी हैं ,
उन िोगों के जीिन में अनायास ही ब्रह्मचयय का प्रिेि हो जािा है । ब्रह्मचयय
ठोक-ठोक कर िाना नहीं पड़िा, और जो ठोक-ठोक कर िाया जािा हो,
और जबरदस्ती िाया जािा हो, िह ब्रह्मचयय झूठा है , उस ब्रह्मचयय में कोई भी
अथय नहीं है ।
यह शचत्त की दिा कैसे शिकशसि हो, उसके शिए मैं सारी बाि कर रहा हं ।
ध्यान है । आज मैंने कुछ िीन सूत्र कहे हैं , कि कुछ कहा है , कि कुछ और
आपसे कहं गा। अगर इन सारे सूत्रों पर शचत्त िां ि और सरि होिा जाए, िो
अदभु ि रूप से आपके जीिन से सेक्स शििीन हो जाएगा। इसका यह अथय
नहीं है शक आपके जीिन से समस्त सृजन शििीन हो जाएगा। नहीं, आपके
जीिन में सृजन के नये द्वार खुि जाएं गे । नये, नये मागय , नये आयाम खुि
जाएं गे । आपसे बहुि सृजन हो सकेगा, बहुि कुछ चीजें आपसे पैदा हो
सकेंगी। िेशकन यह इस भां शि नहीं हो सकेगा शजस भां शि हम सोचिे रहे हैं ।
मैं पढ़िा था, एक िटना पढ़िा था। एक मशहिा एक होटि में आकर ठहरी।
िह ब्रह्मचाररर्ी थी, कोई पचास िषय उसकी उम्र हो गई थी। उसने धमय की
शिक्षा में अपने जीिन को संयशमि शकया था। िह साििें मंशजि पर ठहरी
और थोड़ी ही दे र बाद नीचे उसने मै नेजर को फोन शकया शक एक आदमी
यहां आकर मेरे साथ बहुि बुरा दु व्ययिहार कर रहा है । िह मेरे सामने
शबिकुि ही करीब-करीब उिाड़ा खड़ा हुआ है । मैनेजर िबड़ा गया शक
कौन आदमी उसके पास पहुं च गया? िहां क्या हो गया? अकेिा जाना उसने
भी ठीक नहीं समझा। िह दो पुशिस के आदशमयों को िेकर भागा हुआ
ऊपर पहुं चा। िह मशहिा िहां अकेिी थी।
अभी शदल्ली में शहं दुस्तान के बहुि से बड़े साधु इकट्ठे हुए और उन्ोंने कहा
शक अश्लीि पोस्टर नहीं िगने चाशहए, अश्लीि पोस्टर दीिािों पर नहीं होने
चाशहए, अश्लीि शफल्में नहीं होनी चाशहए, अश्लीि उपन्यास नहीं होने
चाशहए। मैंने उनसे पूछा शक आप इनको पढ़िे कैसे हैं ? इन पोस्टरों को दे खिे
कैसे हैं ? साधु होकर आपको इनसे प्रयोजन कहां है ? ये आपको शदखाई कैसे
पड़ जािे हैं ? और आपको इनकी शचंिा इिनी क्यों?
नहीं िो स्वगय में शकसने धंधा खोि रखा होगा ये सब काम को करने का? और
शकसको प्रयोजन है शक इनको शिगाए? इनकी िपियाय से कौन परे िान है ?
िेशकन कथाएं यह कहिी हैं शक इं ि का आसन िां िािोि हो जािा है इनकी
िपियाय से, िो िे अपनी अप्सराएं भेजिे हैं इनको शबगाड़ने के शिए, बबाय द
करने के शिए। ये शबिकुि ही पागि शचत्त से पैदा हुई आकृशियां हैं , ये
आकृशियां कहीं हैं नहीं।
िेशकन इन्ोंने जो-जो दबाया है िह इनके सामने रूप िेकर खड़ा हो जािा
है , अशि दशमि स्थथशि में चीजें रूप िेकर खड़ी होने िगिी हैं । यह हजारों
साि से चििा रहा है और हमने इसका कोई खयाि नहीं शकया शक यह बाि
क्या है ?
एक बाि, जैसे ही प्रेम गहरा होगा, िैसे ही सेक्स शििीन हो जाएगा। शजिना
गहरा हृदय में प्रेम होगा, उिना ही सेक्स शििीन हो जाएगा। और शजिना
हृदय में गहरा प्रे म होगा, जीिन उिने ही ओज से भर जाएगा। प्रेम के
अशिररि और कोई ओज नहीं है , प्रेम के अशिररि और कोई िेजस्स्विा
नहीं है , प्रेम के अशिररि और कोई सौंदयय नहीं है । प्रे म के अशिररि और
कुछ भी परमात्मा का नहीं है । िेशकन ये जो िथाकशथि ब्रह्मचारी और ये िीयय
के संरक्षर् करने िािे और ये सब जो बािें हैं , ये सारे के सारे िोग प्रेम से
बहुि भयभीि हैं , ये प्रेम से बहुि िरे हुए हैं ।
जीिन सरििा से शिकशसि होिा है , दमन से, सप्रेिन से नहीं। शजस चीज को
भी हम दबा िेिे हैं , िही चीज िािक रोगार्ुओं की िरह भीिर इकट्ठी होने
िगिी है , आज नहीं कि उसका शिस्फोट होगा और शचत्त शदक्कि में पड़
जाएगा।
मैं एक छोटी सी कहानी शनरं िर कहिा रहा हं , िह मैं आपसे कहं । शफर
उसके बाद मैं दू सरा प्रश्न िूं।
िह शकसी िरह नदी पार हुआ। िह उस पार पहुं चा, बहुि थका-मां दा था,
क्योंशक जो शचत्त इिनी कां स्िक्ट में पड़ जाए, इिनी दु शिधा में, द्वं द्व, िह
थक ही जािा है ।
िभी उसे खयाि आया शक उसके पीछे ही पीछे थोड़ी दू र पर उसका युिक
साथी भी आ रहा है एक दू सरा शभक्षु , िह अभी अनजान है , अनुभिी भी नहीं
है , कहीं िह भी इसी दया के झंझट में न पड़ जाए शजसमें मैं पड़ा, कहीं उसे
भी दया न आ जाए इस युििी पर, उसे नदी पार करने का खयाि न सोचने
िगे । उसने पीछे िौट कर दे खा, दे ख कर है रान हो गया! िह युिक शभक्षु उस
िड़की को कंधे पर शिए उिर रहा है ।
सभी बूढ़ों को आिा है । युिक को कुछ न करने दें गे िे शबना आज्ञा शिए। और
सभी िृिजनों को एकर् ईष्या पकड़नी िुरू होिी है यु िकों से, क्योंशक युिक
उस युिक ने कहा: मैं बहुि आियय में हं । मैं िो उस िड़की को कोई दो मीि
पीछे कंधे से उिार भी आया, आप उसे अब भी कंधे पर शिए हुए हैं । उस
युिक ने कहा: मैं उसे कंधे से उिार भी आया, आप उसे अब भी कंधे पर
शिए हुए हैं । और कंधे से केिि िही उिार सकिा है , शजसने कभी शिया ही न
हो। स्मरर् रखें, कंधे से केिि िही उिार सकिा है , शजसने कभी कंधे पर
शिया ही न हो। और केिि इिने से शक हमने कंधे पर नहीं शिया है , इस भ्रम
में कोई न रहे शक िह कंधे पर नहीं है ।
जैसे-जैसे शचत्त दमन करिा है , िैसे-िै से चीजें शसर पर चढ़िी चिी जािी हैं ।
चीजों को सहजिा से िें, चीजों को सहजिा से जानें, चीजों के प्रशि अत्यंि
स्वाभाशिक रूप से जागरूक हों, िो कोई कारर् नहीं है शक जीिन धीरे -धीरे
सभी बंधनों से मुि हो जाए और एक परम मुस्ि की अिथथा, चेिना को
उपिब्ध हो सके। िेशकन शजन िोगों ने दमन शकया है िे कभी मुि नहीं हो
सकिे हैं । दमन ही उनका बंधन बन जािा है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 182
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो मैं िो आपसे कहं गा, शनिेदन करू
ं गा, जीिन को बहुि सहजिा से िें,
उसके शनसगय को बहुि सहजिा से स्वीकार करें । और जीिन को दे खें आं ख
खोि कर, आं ख बंद करके कभी कोई दे ख नहीं सकिा। पूरी आं ख खोि
कर दे खें।
अगर स्स्त्रयों को पुरुष आकषयक मािूम होिे हैं , िो पुरुषों से भागे न। भागने
से िो आकषयर् सदा के शिए थथायी हो जाएगा। आकषयर् भीिर एक फोड़े
की िरह बैठ जाएगा।
मैं दे खिा हं शक शजन चीजों को हम उनकी पूरी नग्निा में और पू री सत्यिा में
जान िेिे हैं उनसे हम मुि हो जािे हैं । िो शजस जीिन के बंधन से सच में ही
मुि होना हो, उस बंधन को उसकी पूरी सच्चाई में और सहजिा में दे खें
और जानें और मन में कोई दु शिधा और द्वे ष और द्वं द्व खड़ा न करें । जरूर
जीिन के अनुभि से, शनरीक्षर् से, बोध से, अमूस्च्छय ि होकर दे खने और
समझने से, एक िि आपके जीिन में आएगा शजसमें स्त्री और पुरुष के
बंधन और फासिे टू ट जाएं गे और शििीन हो जाएं गे और उस आत्मा का
दियन होगा, जो न स्त्री है और न पुरुष है । दे ह से दृशष्ट उठ सकिी है , िेशकन
शजिना दबाएं गे उिना दे ह से दृशष्ट बं ध जाएगी।
शजिना रोकेंगे , उिना बंधेंगे; शजिना भागें गे, उिना भयभीि होंगे; शजिने
भयभीि होंगे, उिनी ही छायाएं पीछा करें गी, जो शक अगर रुक जाएं , िो
पीछा नहीं करिीं, ठहर जाएं , िे भी आपके पीछे दौड़ना बंद कर दे िी हैं ।
िह युिक आया, उसे एक कोठरी में उसने बंद शकया और कहा: आं ख बंद
कर िो, मैं बाहर बैठा रहं गा और कहं गा शक जाओ, नरक पहुं च जाओ, िुम
नरक में पहुं च जाओगे , गौर से दे ख िेना िहां क्या शदखाई पड़िा है । शफर मैं
िुम्हें िापस िौटाऊंगा, कहं गा, िापस िौट आओ।
शफर आज्ञा दू ं गा, स्वगय में चिे जाओ, िुम स्वगय पहुं च जाओगे , स्वगय को भी
दे ख िेना। उसने युिक को शबठाया और कहा शक दे खो, आं ख बंद कर िो
अंधेरे में। उसने आं ख बंद कर िीं। उसने कहा: जाओ, नरक में पहुं च जाओ।
शफर उसने कहा: िापस िौट आओ। और कहा: स्वगय में पहुं च जाओ।
शफर थोड़ी दे र बाद उसने कहा: िापस िौट आओ, आं खें खोिो, मुझे बिाओ
क्या दे खा? उसने कहा: मैं िो बड़ा मुस्िि हो गया, न िो नरक में मुझे कुछ
शदखाई पड़ा और न स्वगय में मुझे कुछ शदखाई पड़ा। और आप िो कहिे थे
यही जमीन है , ये ही िोग हैं , यही सब कुछ है , ये ही चां दत्तारे हैं , जो आदमी
ठीक से दे खने में समथय हो जािा है , उसे यहां स्वगय उपिब्ध हो जािा है , यहीं
परमात्मा के दियन होने िगिे हैं , यहीं िह मुि हो जािा है और जो आदमी
गिि ढं ग से दे खने की आदि में ग्रशसि हो जािा है , यही फूि, यही जमीन,
यही चां दत्तारे , यही िोग नरक हो जािे हैं और यहीं िह गहरे बंधन पड़ जािा
है ।
यहां मैंने जान कर उधर से िकिीफ दी और यहां बुिाया कुछ कारर्ों से।
एक िो इस कारर् से शक िहां आस-पास प्रकृशि की कोई ध्वशन नहीं है जहां
हम बैठिे थे । यहां बहुि ध्वशनयां हैं , यहां बहुि छोटे -छोटे आिाजें गूं ज रही
हैं । िो ध्यान के शिए िहां बहुि कम आिाजें थीं। जब मन िां ि होने िगे िब
िो िहां भी बहुि सी धीमी ध्वशनयां सुनाई पड़ सकिी हैं । िेशकन जब िक न
हो, िब िक यहां बहुि बड़ा म्यूशजक, बहुि बड़ा संगीि चारों िरफ है ।
यह संगीि बहुि गहरे में िे जाएगा। शफर िहां हम एक पंिाि के नीचे बैठिे
थे , जो आदशमयों के द्वारा ठोका और खींचा गया है । और आदशमयों ने सब
िरह के पंिाि खींचे हैं , िास्त्रों के, धमों के और उनके नीचे हम बैठे हैं ।
उससे भी मुझे जरा िबड़ाहट हो रही थी। यहां हम परमात्मा के पंिाि के
नीचे बैठेंगे ।
यहां आदमी का खींचा हुआ कुछ भी नहीं है । ऊपर दरख्त हैं और ऊपर
आकाि है , और ऊपर चां द है और बड़ी दु शनया है और शिराट पंिाि है
उसके शनकट हम होंगे। जब हम छोटी-छोटी दीिािों में बंद होिे हैं , िो मन
भी शसकुड़ जािा है और छोटा हो जािा है । शजिने शिस्तार पर हम होंगे उिना
मन शिस्तीर्य होिा है और यात्रा करिा है । अगर कोई व्यस्ि रोज थोड़ी दे र
आं ख खोि कर आकाि को ही दे खिा रहे , िो उसकी आत्मा बड़ी होने
िगे गी। िेशकन हम िो आदशमयों के छोटे -छोटे छप्परों को दे खिे हैं और
उन्ीं में जीिे हैं ।
िो इसशिए मैंने चाहा शक िहां से हम यहां आएं , यहां ऊपर दरख्त हैं , चां दनी
है और बहुि अदभु ि दु शनया है । और शफर यह चारों िरफ प्रार् की गूं जिी
हुई आिाज है , िो यहां ध्यान में जाना बहुि, बहुि सरििा से, बहुि अदभु ि
रूप से हो सकेगा। हम शजनके करीब रहिे हैं िैसे ही हो जािे हैं । अगर आप
फूिों के करीब बहुि शदन रहें , िो फूिों की गं ध आपमें प्रशिष्ट हो जाएगी।
अगर आप दरख्तों के पास बहुि शदन रहें , िो आपका शचत्त भी उन्ीं जै सा
मौन होने िगे गा। अगर आप सागर के शकनारे बैठें, िो िैसे ही शिस्तार िरं गें
आपके हृदय को भी छु एं गी। अगर आप झरनों के पास बैठे हैं , िो झरने
आपमें प्रशिष्ट हो जाएं गे । हम शजन चीजों के करीब रहिे हैं शनरं िर, िे चीजें
हममें प्रशिष्ट होने िगिी हैं ।
िेशकन हम शनरं िर मनुष्यों के शनकट रहिे हैं और मनुष्य जो सोचिे हैं उसे ही
सुनिे हैं , मनुष्य जो शिचार करिे हैं उसी को जानिे हैं , और मनुष्य क्या
शिचार करिे हैं ? िे या िो सुबह से अखबार पढ़िे हैं और चुनािों की बािें
करिे हैं , या हड़िािों की बािें करिे हैं , या अनिनों की बािें करिे हैं , या
कहां दं गा-फसाद हो गया उसकी बाि करिे हैं , या कहां शहं दू धमय खिरे में है
या कहां मुसिमान धमय खिरे में है उसकी बािें करिे हैं , या िाि खेििे हैं ,
ओिो पृष्ठ संख्या 187
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
या िराब पीिे हैं , या जुआ खेििे हैं , या शििाद करिे हैं , इस िरह के कुछ
काम हैं । मनुष्य के पास शजिने ज्यादा हम रहिे हैं , उिने ही हम छोटे होिे
चिे जािे हैं । िेशकन हमें अपना छोटा होना पिा नहीं चििा, क्योंशक हमारे
चारों िरफ भी उसी िरह के छोटे िोग रहिे हैं और हमें यह िृस्ि रहिी है
शक और िोग भी िो ऐसे ही हैं ।
यह जो हमारे मनु ष्य को छोड़ कर चारों िरफ फैिा हुआ शिराट शिश्व है , इस
शिराट शिश्व ने अभी भी परमात्मा से संबंध नहीं छोड़ा है । ये पौधे अब भी
परमात्मा के हमसे ज्यादा शनकट हैं , ये चां दत्तारे अब भी ज्यादा शनकट हैं , ये
छोटे -छोटे कीड़ों की झंकार अब भी हमसे ज्यादा शनकट हैं , अब भी यह
पहाशड़यों की साइिेंस और सन्नाटा हमसे ज्यादा शनकट है परमात्मा के।
मनुष्य सिाय शधक अपने ही द्वारा शनशमयि कोिाहि में बंद हो गया है । मनुष्य
को हटा दें जमीन से, अब भी साइिेंस है । अब भी अदभु ि सन्नाटा है , अदभु ि
संगीि है । िो इसशिए मैंने चाहा शक इधर हम होंगे और थोड़ी दे र इस िां शि में
और सन्नाटे में बैठेंगे ।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-08
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
आठिाां प्रिचन
मैं भीिर बजरे की कोठरी में मोमबत्ती जिाए बैठा था और बाहर पूशर्यमा का
चां द था। िेशकन पूशर्यमा की रोिनी बाहर रुकी रही। बजरे की स्खड़शकयों
और द्वारों से उसने प्रिेि न शकया, िह छोटी सी मोमबत्ती का प्रकाि बाधा
बना हुआ था। जैसे ही मैंने मोमबत्ती बुझाई, मोमबत्ती के बुझिे ही चां द की
अपूिय शकरर्ें चारों िरफ रं ध्र-रं ध्र से बजरे में प्रशिष्ट हो गईं, द्वार से, स्खड़शकयों
से, सब िरफ से चां द भीिर आ गया। और िब रिींिनाथ ने कहा शक मैंने
जाना शक मेरी छोटी सी मोमबत्ती का पीिा सा प्रकाि बड़ी बाधा बना था।
द्वार पर चां द की रोिनी खड़ी थी, िेशकन द्वार पर ही शठठकी खड़ी रही,
भीिर प्रिेि न कर सकी। मोमबत्ती के बुझिे ही भीिर आ गई।
हमारे भीिर कुछ बाधाएं हैं , जो परमात्मा के प्रकाि को बाहर रोके हुए खड़ी
हैं । द्वार पर रुका है प्रकाि।
समाशध का आनंद शनकट है चारों िरफ, िेशकन हममें कुछ बाधाएं हैं , जो
उसे रोके हैं । उसे िाना नहीं है , उसे िाया नहीं जा सकिा, केिि बाधाएं
अिग कर दे नी हैं , िह आ जाएगा अपने से और सहज। और जीिन में जो भी
महत्वपूर्य है --प्रेम या परमात्मा, या सौंदयय का बोध, या सत्य की अनुभूशि हो,
िेशकन जब कोई मनुष्य ऐसा सोचने िगिा है शक मैं परमात्मा को पा िूंगा, मैं
मोक्ष पा िूंगा, मैं आत्मा को साध िूंगा, िब िह भू ि में पड़ जािा है । िह
अपने से बहुि बड़ी बािों को, अपने द्वारा शकए जाने की कामना कर रहा है ,
कल्पना कर रहा है , िह भू ि में है । िे बािें जरूर हो सकिी हैं , िे बािें हो
सकिी हैं , उसके द्वारा नहीं, बस्ल्क उसके हट जाने पर। उसके कारर् नहीं,
बस्ल्क उसके शििीन हो जाने पर। उसके िस्ि से नहीं, बस्ल्क उसकी
िून्यिा से।
महािीर ने कहा: िुम िौट जाओ, क्योंशक जो जीिने का भाि िेकर इस शदिा
में आिा है , उसकी हार सुशनशिि है । क्योंशक जीिने का भाि अहं कार का
भाि है । यहां िो िह जीििा है जो हारने को िैयार होिा है ।
िो पहिी बाि िो यह जान िेनी जरूरी है शक आप साध नहीं सकिे हैं सत्य
को और समाशध को, हां , अपने को शििीन कर सकिे हैं और शमटा सकिे हैं ।
कोई बूंद सागर को पा नहीं सकिी, िेशकन बूंद सागर में अपने को खो
सकिी है । और खोिे ही सागर हो जािी है । िेशकन कोई बूंद अगर इस
खयाि में हो शक िह सागर को जीि िेगी, िो गििी में है । सागर को जीिने
के खयाि में केिि िाप में उड़ जाएगी और भस्म हो जाएगी।
िेशकन अगर कोई बूंद सागर में खोने के शिए िैयार हो जाए और राजी हो
जाए, शमटने को राजी हो जाए, िो सागर में शगरिे ही, शमटिे ही सागर हो
जािी है । ऐसे सागर शमट कर पा शिया जािा है । सत्य को पाने की शदिा भी
शमट कर पाने की शदिा है । िह आपका अचीिमेंट नहीं है , आपकी उपिस्ब्ध
नहीं है , आपकी मृत्यु है , आपका शमटना है ।
इसशिए समाशध को मैं कहिा हं : स्वयं अपने हाथों स्वीकार शकया गया
शमटना। स्वयं अपने हाथों अपनी मृत्यु का अंगीकार। स्वयं अपने हाथों अपनी
बूंद को खो दे नी की िैयारी।
शकन सूत्रों से हम शमट सकिे हैं ? िो उन्ीं सूत्रों की बाि करें गे । िे ही सूत्र
समाशध के आगमन के शिए द्वार खोि दें गे, मागय बन जाएं गे । शकन सूत्रों से हम
खुद शमट सकिे हैं ? अगर परमात्मा को होने दे ना है , िो शमटना पड़े गा। इस
खयाि में मि रहें शक आप परमात्मा से शमि सकेंगे, जब िक आप हैं िब
कबीर ने कहा है शक उसकी गिी बड़ी संकरी, िहां दो नहीं समा सकिे हैं ।
उसकी गिी बहुि संकरी है , िहां दो नहीं समा सकिे हैं । या िो िह और या
आप।
िे द्वार खुि गए। शजस शदन व्यस्ि समथय हो जािा है इस बाि को जानने में
शक मैं नहीं हं , उसी शदन समाशध प्रशिष्ट हो जािी है , द्वार खुि जािे हैं , मागय
पहिा सूत्र है : सहज जीिन। हमारा जीिन बहुि असहज है , बहुि कृशत्रम,
बहुि आशटय शफशसयि, बहुि झूठा, बहुि शमथ्या, बहुि िंचक, बहुि शिसेशिि।
ऐसा नहीं शक हम शकसी और को धोखा दे िे होंगे, हम अपने को ही धोखा शदए
चिे जािे हैं । धोखा दे िे-दे िे हम उस स्थथशि में पहुं च जािे हैं शक यह भी िय
करना मुस्िि हो जािा है शक हमने कभी धोखा शदया था। धोखा भी शनरं िर
शदया जाए, शनरं िर शदया जाए, िो मुस्िि हो जािा है ।
सत्य क्या है हमारे व्यस्ित्व में? सहज क्या है हमारे व्यस्ित्व में? असहज
सब कुछ है हमारा; जो हम बोििे हैं िह असहज है , हम चििे हैं िह
असहज है । कभी खयाि शकया? अगर रास्ते पर आप अकेिे चिे जािे हैं , िो
आप और ढं ग से चििे हैं , उस िरफ से चार िोग आ जाएं , िो आप दू सरे ढं ग
से चिने िगिे हैं । कभी खयाि शकया इस बाि पर? अपने बाथरूम में जब
आप अकेिे होिे हैं , िो आप दू सरे आदमी होिे हैं , और अपने बैठकखाने में
जब बैठे होिे हैं , िो शबिकुि दू सरे आदमी होिे हैं । कभी खयाि शकया इस
बाि पर?
ये झूठे व्यस्ित्व, ये जो फॉल्स पसय नैशिटीज हैं , ये झूठे व्यस्ित्व सबसे बड़ी
बाधा हैं परमात्मा के शनकट आने में।
शियो टािस्टाय एक दफा सुबह-सु बह, सदी के शदन थे , एक चचय में गया। िो
रूस का एक बड़ा शिचारिीि व्यस्ि था। अंधेरा था और एक गां ि का सबसे
बड़ा धनपशि िहां खड़ा हुआ परमात्मा के सामने कनफेिन कर रहा था। िह
अपने पापों का अपराध स्वीकार कर रहा था। और िह कह रहा था शक मैं
बहुि बेईमान हं , मैं बहुि चोर हं , मैं ने बहुि पाप शकए हैं , परमात्मा मुझे क्षमा
कर।
टािस्टाय ने अंधेरे में खड़े हुए, ये बािें सुन िीं। शफर िह आदमी बाहर
शनकिा, टािस्टाय उसके पीछे हो शिया। सुबह होने िगी थी और सूरज
शनकि रहा था और बीच चौरस्ते पर जाकर टािस्टाय शचल्लाया शक रुको! जो
िेशकन टािस्टाय ने कहा शक िुम अभी चचय में कहिे थे शक मैं पापी हं , मैं
बेईमान हं ? उसने कहा: बस, बंद। मु झे पिा नहीं था शक िुम िहां मौजूद हो,
मैं िो समझा, अकेिा परमात्मा है । जो बािें परमात्मा के सामने कहीं हैं , िे
िोगों के सामने कहने की नहीं हैं । और उसने कहा: अगर इस बाि को आगे
बढ़ाया, िो मानहाशन का मुकदमा चिेगा, और कशठनाई में पड़ जाओगे ।
टािस्टाय ने िौट कर अपनी िायरी में शिखा शक आज मुझे पिा चिा गया
शक परमात्मा से अकेिे में जो बािें कहीं जािी हैं , िे सबके सामने नहीं कही
जा सकिी हैं ।
ऐसे हमारे चेहरे हैं , ऐसे चेहरों को िेकर क्या हम सोचिे हैं शक हम साक्षाि
कर सकेंगे सत्य का कभी? सत्य का साक्षाि िो बहुि दू र, हम खुद ही सत्य
नहीं हैं , िो सत्य का साक्षाि कैसे होगा?
िो पहिी बाि, अहं कार के केंि पर कुछ होने की कोशिि भ्रां ि है । शसकंदर
िही करिा है , नेपोशियन िही करिा है , राजनीशिज्ञ िही करिा है , धनपशि
िही करिा है ; शजसको हम कहिे हैं , सच्चररत्र और चररत्रिान, सज्जन, साधु,
िह भी िही करिा है । अहं कार के केंि पर िह सारी कोशिि करिा है ।
कि ही शकसी ने मु झसे कहा शक मैं बहुि अच्छा आदमी होना चाहिा हं । मैं ने
कहा: क्यों िेशकन? आस्खर िुम्हारी कौन सी जरूरि पड़ गई बहुि अच्छा
आदमी होने की? एक आदमी बहुि धनी होना चाहिा है , िो हम कहिे हैं ,
यह पागि है । िेशकन एक आदमी कहिा है शक मैं बहुि अच्छा आदमी होना
चाहिा हं , महात्मा होना चाहिा हं । िो हम कहिे हैं , यह बड़ा ऊंचा आदमी
है । यह दौड़ शबिकुि एक सी है , दोनों का केंि अहं कार है । दोनों जै से हैं
सहज और सामान्य, िैसे होने को स्वीकार नहीं करिे हैं ।
एक आदमी बड़ा मकान बना िेिा है , इससे थोड़े ही खुि होिा है शक मैंने
बड़ा मकान बनाया, इससे खुि होिा है शक मैंने दू सरों के मकान छोटे कर
शदए। अभी उसके बड़े मकान के बगि में एक बड़ा मकान खड़ा हो जाने दें ,
िह दु खी हो जाएगा। मकान उसका िही है , िेशकन दु ख कैसे आ गया?
शकसी और ने उसके मकान को छोटा कर शदया। आप बहुि अच्छे कपड़े
पहन कर थोड़े ही सुखी होिे हैं , नहीं, दू सरों के कपड़ों को दररि बना कर,
नीचा बना कर सुखी हो जािे हैं ।
और हमारे समाि होने की इस शिराट शिश्व में कहीं भी कोई सूचना नहीं
शनकिेगी, कोई अखबार में खबर नहीं छपेगी। कहीं कोई पिा नहीं चिेगा
शक एक पृथ्वी पर मनुष्यों की एक छोटी सी जाशि थी िह समाि हो गई।
कहीं कोई खबर भी पिा नहीं चिेगी। ये िीन अरब आदमी यहां ठं िे हो जाएं ,
िो यह जो शिराट जगि है , शजसकी सीमाओं का भी हमें कोई पिा नहीं, इसमें
कहीं कोई िहर भी कंशपि नहीं होगी कहीं कोई संिेदना की, सभा भी नहीं
होगी, कहीं कोई िोक-प्रस्ताि भी नहीं होंगे, कहीं कुछ भी नहीं होगा, पिा
भी नहीं चिेगा।
हमें पिा चििा है जब कोई िर में एक चींटी मर जािी है ? हमें पिा चििा है
जब शक कोई िास का एक पौधा सुख जािा है ? इससे ज्यादा और कुछ भी
पिा नहीं चिेगा पूरी मनुष्य-जाशि समाि हो जाए िो भी। आज है भी, िो भी
कहीं कोई पिा नहीं है । िहां िो इटरनि साइिेंस है चारों िरफ। और जहां
िक हमारी आं खें बढ़िी हैं , और जहां िक दे खने की हमारी क्षमिा बढ़िी है ,
हम पािे हैं शक हम शकिने छोटे हैं ।
जैसे सागर पर िहरें उठिी हैं और शििीन हो जािी हैं । अगर िहरों को भी
पिा हो, िो उठने को िे कहें गी, जन्म-शदन, और शगरने को कहें गी, मृत्यु-
शदिस। जो जरा ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, िे संगमरमर की कब्रें बनिाएं गी।
जो जरा और ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, िे अपनी आत्मकथाएं शिखेंगी। जो
जरा और ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, उनके नाम पर झगड़े होने िुरू हो
जाएं गे शक ये भगिान की शििेष अििार थीं। िेशकन िहरों से ज्यादा जीिन
में और कुछ भी नहीं है । पत्ते आिे हैं और पिझड़ में झड़ जािे हैं । और मनुष्य
पैदा होिा है और शििीन हो जािा है ।
अगर जीिन को आं ख खोि कर दे खेंगे, शबना शकसी पूिाय ग्रह के, और मनुष्य
के बहुि पूिाय ग्रह हैं , न मािूम क्या-क्या अपने को समझे हुए हम बैठे हैं ।
अगर हम थोड़ा आं ख खोि कर और शनष्पक्ष होकर दे खेंगे, िो पाएं गे ,
अहं कार के शिए िो कोई भी कारर् नहीं। मेरे भीिर भी जीिन ने एक िाखा
को शिकशसि शकया है , शकसी भी शदन खींच िेगा। आपके भीिर भी जीिन ने
एक पंखुड़ी खोिी है , शकसी भी शदन भी बंद हो जाएगी, कुम्हिा जाएगी और
शगर जाएगी।
एक फकीर हुआ, नानईन। जापान में हुआ कोई हजार िषय पहिे। जापान
का बादिाह उससे शमिने गया। िह अपनी बशगया में बाहर गङ् ढे खोद रहा
था। बादिाह ने सोचा था कोई बहुि शिशिष्ट महापुरुष होगा, शजसके शसर के
चारों िरफ, प्रकाि का आिृि बना होगा। साधु-संिों के बना रहिा है । पहिे
ओिो पृष्ठ संख्या 207
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
से ही फोटोग्राफर को कह रखिे हैं , बना दे ना। पुराने शदनों में फोटोग्राफर िो
होिे नहीं थे , शचत्रकार होिे थे, िे बना दे िे थे । िो उसने सोचा था शक इिना
महापुरुष है , िो कोई प्रकाि चारों िरफ इसके मुखमंिि के आिृि बना
होगा। जाकर गङ् ढा खोदिे आदमी से उसने पूछा शक महात्मा नानईन से
शमिना चाहिा हं ।
िो उसने कहा: महात्मा का िो मुझे कोई पिा नहीं, नानईन का मुझे पिा है ,
कशहए िो बिा दू ं ?
िह कहिा है , ब्रह्ममुहिय में उठना, चाहे नींद खुिे, चाहे न खुिे। अहं कार का
कृत्य है । िह कहिा है , इिना खाना, इिना मि खाना, यह उपिास करना,
िह उपिास करना, यह मंत्र पढ़ना, यह शकिाब पढ़ना, इस िरह उठना, यह
टीका िगाना, इस िरह का मािा पहनना, यह सब िह।
जीिन की सहजिा को स्वीकार नहीं करिा अहं कार, उसमें फकय िािा है ,
काट-छां ट िािा है । जीिन जैसा अपने से शिकशसि होिा है सहज, उसे िह
स्वीकार नहीं करिा। और इसशिए शफर एक शक्रशपल्ड और अग्ली, एक पंगु
एक नदी बहिी है , िो बही चिी जािी है । जहां मागय शमििा है , जहां ढिान
होिी है , बही चिी जािी है । अगर नशदयों को खयाि आ जाए शक शकस रास्ते
पर बहना चाशहए, शकस ढं ग से बहना चाशहए, शकस शमट्टी के करीब से बहना
चाशहए, शकस पहाड़ से दू र रहना चाशहए, और कौनसा काम करना चाशहए,
नहीं करना चाशहए, शफर कोई नदी सागर िक नहीं पहुं च सकेगी। शफर कोई
नदी सागर िक नहीं पहुं च सकेगी। िेशकन सभी नशदयां सागर िक पहुं च
जािी हैं । जहां उनकी जीिंि गशि िे जािी, चुपचाप चिी जािी है ।
शजस व्यस्ि को परमात्मा के सागर िक पहुं चना हो, उसे सररिाओं की भां शि
हो जाना चाशहए। पटररयों पर दौड़िी हुई रे िगाशड़यों की भां शि नहीं। शक
पटररयां पहिे शबछा दें और शफर रे िगाशड़यां उस पर चिा शदए। नहीं,
सररिाओं की भां शि शजनका का कोई मागय शनर्ीि नहीं, और शजनकी जीिंि
िस्ि जहां मागय पािी है बही चिी जािी है , अत्यंि सहजिा से। िेशकन हम
अभी हमें िर िगे गा, क्योंशक हमारी हजारों साि की पू री परं पराएं हमसे यह
कहिी हैं शक यह िो बड़ा मुस्िि हो जाएगा। िेशकन कभी जीकर दे खें,
िड़ी, आधी िड़ी, शदन, दो शदन को, कभी एकां ि में महीने, दो महीने को
इिने सहज, जैसे आप एक पिु हैं , एक पक्षी हैं , एक पौधा हैं । जीकर दे खें
और पाएं शक आपके भीिर कैसे अदभु ि िां शि के िोक खुििे चिे जािे हैं ।
दू सरा सूत्र है : अद्वं द्व। शचत्त में कां स्िक्ट न हो, द्वं द्व न हो। शचत्त में शिरोधी स्वर
न हो।
हमारे शचत्त में बहुि शिरोधी स्वर हैं । एक स्वर कुछ कहिा है , दू सरा स्वर कुछ
कहिा है । दोनों के बीच िड़िे हैं । और जब हमारे ही दोनों स्वर हों, िो िड़ाई
का क्या हि हो सकिा है ? अगर मेरे ही दोनों हाथ आपस में िड़ें , िो क्या
होगा? कोई जीिेगा? कोई हारे गा? कोई जीिेगा नहीं, कोई हारे गा नहीं।
िड़ाई जीिन भर चिेगी, हार-जीि कुछ भी नहीं होगी। एक बाि हो जाएगी,
दोनों हाथों की िड़ाई में मैं टू टिा चिा जाऊंगा।
क्योंशक दोनों हाथ मेरे हैं और दोनों में मेरी िस्ि ही िड़िी है । दोनों िरफ से
मेरी िस्ि िड़िी है , दाएं हाथ से भी मेरी और बाएं हाथ से भी मेरी। चाहे
दायां बुरा हो और बायां अच्छा हो, चाहे बायां बु रा हो, चाहे दायां अच्छा हो।
दोनों हािि में मेरी िस्ि ही दोनों िरफ से िड़िी है । हाथ िो कोई जीि नहीं
सकिे, क्योंशक दोनों मेरे हैं , हार-जीि कुछ शनर्यय नहीं हो सकिा, एक बाि
िय है शक दोनों शक िड़ाई में मेरी िस्ि का अपव्यय होिा है ।
शचत्त में िेशकन हमने बहुि द्वं द्व खड़े कर शिए हैं , िुभ के, अिुभ के; भिे के,
बुरे के; यह अच्छा है , िह बुरा है ; यह नीशि है , िह अनीशि है ; यह पाप है ,
िह पुण्य है ; और हम िड़ रहे हैं चौबीस िंटे। मैं आपको स्मरर् शदिा दू ं ,
िड़ने िािा शचत्त ही एकमात्र पाप है । भीिर शजसने सारी िड़ाई को शिसशजय ि
शचत्त में िोभ है , िो िोभ से िड़िे हैं ; अिोभ को साधिे हैं । शचत्त में झूठ है , िो
झूठ से िड़िे हैं ; सत्य को साधिे हैं । िेशकन झूठ शकसका है ? िोभ शकसका
है ? आपका। िड़ने िािा कौन है ? आप। बड़ी है रानी की बाि है ! शकससे
िड़ रहे हैं ? और इस िड़ाई में कैसे हि होगा? क्या यह िैसी ही भ्रां ि िड़ाई
नहीं है , जैसे कोई आदमी अपने कमरे में बं द हो जाए और िििारें उठा िें
और िड़ने िगे अपने से ही। क्या होगा? सुबह िक क्षि-शिक्षि हो जाएगा।
खुद के हाथ-पैर िोड़ िेगा। िेशकन जीि क्या होगी? जीिेगा शकससे? कोई
दू सरा मौजूद ही नहीं है , िड़ शकससे रहे हैं आप? आप अकेिे हैं ।
िो क्या करें ?
पहिी बाि िो यह जानें शक मेरे भीिर मैं अकेिा हं , इसशिए ििूंगा शकससे?
इससे िड़ाई का िो सारा खयाि ही छोड़ दें ।
क्रोध हो, िो क्रोध को जानें; िड़े नहीं। िोभ हो, िो िोभ को जानें; िड़े नहीं।
मेरा िोभ है , मेरा क्रोध है , मैं जानूंगा, पहचानूंगा। क्यों है ? क्या है ? ििूं क्यों?
जैसे मुझे दो आं खें शमिी हैं , दो हाथ शमिे हैं , िैसे ही मु झे क्रोध भी शमिा है ।
जरूर प्रकृशि में उसका कोई उपयोग होगा, कोई अथय होगा, अन्यथा
अकारर् कुछ शमििा नहीं।
अगर मुझे िोभ शमिा है , िो उसका भी कोई अथय होगा। अगर मुझे भय शमिा
है , िो उसका भी कोई अथय होगा, जीिन संरक्षर् में और शिकास में उसका
कोई प्रयोजन होगा। ििूं क्यों? उसे जानूं और पहचानूं और उसकी िस्ि
को खोजूं।
क्या आपको पिा है , बीज फूि का हम बोिे हैं , िो बीज के ऊपर एक सख्त
खोि होिी है , और उसके भीिर बीज का प्रार् होिा है । िह सख्त खोि बीज
के प्रार् की रक्षा करिी है ।
क्या आपको पिा है , शजन िोगों में क्रोध नहीं होिा, उनके जीिन में व्यस्ित्व
ही नहीं होिा। क्या आपको पिा है , शजन िोगों के जीिन में भय नहीं होिा, िे
ईशियट हैं , जड़बुस्ि हैं । िे मर जाएं गे , िे जी नहीं सकिे। जीिन की सुरक्षा
नहीं हो सकिी उनकी। सां प आ रहा होगा, िो िहीं खड़े रहें गे। मकान शगर
रहा होगा, िो िहीं बैठे रहें गे। मकान में आग िग जाएगी, िो और सो जाएं गे ।
अगर उनके जीिन में भय न हो...शफयर है , कोई सुरक्षा है भीिर। िेशकन
अगर हम भय में प्रिेि करें और समझने की कोशिि करें , िो हम पाएं गे शक
भय िो जीिन की रक्षा का एक उपाय है ।
एक नियुिक शभक्षु उससे शमिने गया। िह शभक्षु जब उससे शमि रहा था,
एक चट्टान के पास पीछे से आकर शकसी जंगिी जानिर ने जोर की गजयना
की, िह शभक्षु एकदम उठ कर खड़ा हो गया, िह युिा शभक्षु जो शमिने आया
था, िबड़ा कर खड़ा हो गया।
उस िृि फकीर ने कहा: िरिे हो? भय खािे हो? अगर भय खािे हो, िो
स्मरर् रखो, परमात्मा को कभी नहीं पा सकिे, सत्य को कभी नहीं पा
सकिे। जो भयभीि है , िह कैसे पाएगा?
िह िृि उठा और अपने झोपड़े में भीिर गया पानी िेने। जब िह पानी
िेकर बाहर आया, उस नये शभक्षु ने, उस युिा शभक्षु ने, शजस चट्टान पर िह
बैठा था, िहां शिख शदया--नमो बुिाय। एक पत्थर से उठा कर शिख शदया--
नमो बुिाय। जैसे िह िृि शभक्षु आया और पैर रखने िगा, उसका पैर कंप
गया और िह नीचे उिर गया और उसने कहा: यह िुमने क्या शकया?
बुि भी चिेंगे, िो जहां कां टा पड़ा होगा, िहां से दू र पैर रखेंगे। क्यों?
स्वाभाशिक है , जीिन सुरक्षा है , कां टे पर पै र रखने का कोई मििब नहीं है ।
बुि को भी आप थािी में भोजन परोसेंगे, िो खाना खाएं गे और थािी को
छोड़ दें गे, थािी को थोड़े ही खा जाएं गे । जीिन की सुरक्षा है ।
जीिन में शजसको हम बुरा कहिे हैं , अिुभ कहिे हैं और उससे िड़िे हैं , िह
अिुभ नहीं है , उस अिुभ से ही पररिियन होगा और जीिन में क्रां शि होगी।
जो-जो दु गंधपूर्य है , िही सुगंधपूर्य बन जाएगा। िेशकन उसके बदिने की
कीशमया, उसके बदिने का राज, जो सीक्रेट है : िड़ाई नहीं; उसका सम्यक
ज्ञान, राइट नािेज। जो भी जीिन में है उसका सम्यक ज्ञान, उसका ठीक-
ठीक जानना। िड़ने िािा िो कभी जान ही नहीं पािा, शजससे आप िड़िे हैं
उसको आप कभी नहीं जान सकिे हैं । जाना जा सकिा है उसको शजसे आप
प्रेम करिे हैं और शमत्र हैं ।
मेरे पास न मािूम शकिने िोग आिे हैं , कोई पूछिा है शक परमात्मा शत्रमूशिय हैं
या नहीं? कोई पूछिा है , उनके शकिने शसर हैं ? कोई पूछिा है , शकिने हाथ
हैं ? िेशकन कोई यह नहीं पूछिा शक हमारे शचत्त के शकिने हाथ हैं , शकिने
शसर हैं । हमारा शचत्त, जो कुछ भी होना है िह शचत्त से होना है । धमय
मेटाशफशजक्स नहीं है । धमय कोई शफजूि की बकिास और ित्व शचंिन नहीं
है । धमय िो पूरी की पूरी साइकोिॉशजकि म्यूटेिन है । पूरा का पूरा शचत्त का
आिियन और पररिियन है । पूरी क्रां शि है शचत्त में। िो उसी शचत्त की िो क्रां शि
हो सकेगी, शजसको हम जानेंगे।
िह शबजिी न मािू म शकिने िोगों के प्रार् बचा रही है । क्या हो गया? हमने
शबजिी को जान शिया। हम जान गए शबजिी को शक क्या सीक्रेट है इसका,
बस जानिे से ही शबजिी जीिन के शिए सहयोगी हो गई, अज्ञान में बाधा थी,
ज्ञान में सहयोगी हो गई।
िो मेरा कहना है शक जीिन में कुछ भी बुरा नहीं है । हम नहीं जानिे, यह बुरा
है । अज्ञान में बुरा हो जािा है ।
एक छोटे से बच्चे के हाथ में िििार दे दें , खिरा हो जाएगा। िििार ऐसे
िाकि है , छोटे बच्चे के हाथ में खिरा हो जाएगा। और अभी सभी छोटे बच्चों
के हाथों में िििारें हैं । इससे दु शनया में बड़ा खिरा होिा जा रहा है ।
समझदार आदमी के हाथ में िििार सहयोगी हो जाएगी, िाकि बन जाएगी,
शजंदगी के शिए आधार बन जाएगी।
धन्य हैं िे िोग, जो क्रोध कर सकिे हैं , िेशकन नरक में पड़ जािे हैं , क्योंशक
क्रोध का उन्ें कोई ज्ञान नहीं। िस्ियां शमिी हैं , िेशकन िस्ियों के प्रशि
हम अज्ञानी हैं । और अज्ञान में िड़ना िुरू कर दे िे हैं । और अज्ञान में न
मािूम कौन-कौन सी मूढ़िापूर्य शिक्षाएं , उनको पकड़ िेिे हैं और िड़ाई
िुरू कर दे िे हैं । शफर जीिन टू टिा है , शबगड़िा है , बनिा नहीं है ।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
नौिाां प्रिचन
यानी हमारी स्थथशि ऐसी है शक हम चारों िरफ से दरिाजे बंद करके अंधकार
में खड़े हो जािे हैं और शफर शचल्लािे हैं , हे परमात्मा! हम क्या करें ? बहुि
अंधकार है । परमात्मा से शचल्लाने की कोई जरूरि नहीं है , उसकी रोिनी
हमेिा चारों िरफ मौजूद है । हमें दे खना और जानना होगा शक हम खुद ही
िो अपने दरिाजे बंद शकए हुए नहीं खड़े हैं ? और जै सा मैं दे खिा हं , मुझे
शदखिा है , हम दरिाजे बंद शकए हुए हैं ।
िो आज की सुबह िो मैं यही पहिी बाि आपसे कहं : संिुशष्ट की दौड़ व्यथय है ,
इसे दे खने की आग पैदा कररए। जब भी मन शकसी संिोष की ििाि में िगे ,
एक बहुि बड़े संन्यासी सारे यूरोप, अमेररका में बड़ा प्रभाि छोड़ कर भारि
िापस िौटे । बड़ा उनका नाम था, बड़ी उनकी ख्याशि थी, हजारों िोगों ने
उनको सम्मान शदया, आदर शदया, बािें उनकी बहुमूल्य थीं। क्योंशक बािें
बहुमूल्य करना बहुि आसान बाि है । बहुमूल्य बाि करना कोई बड़ी कशठन
बाि नहीं है । क्योंशक बािें िो उपिब्ध हैं --ग्रं थ हैं , िास्त्र हैं , शिक्षा है ; सब
सीखा जा सकिा है और शकया जा सकिा है । शफर िे भारि आए। कहिे थे ,
सारा जगि जो है माया है ; कहिे थे , सारा जगि व्यथय है ; कहिे थे , सब
असार है । यहां आए, जब भाग कर गए थे , िो अपनी पत्नी को छोड़ कर चिे
गए थे, िह पत्नी उनसे शमिने आई, िो उन्ोंने दरिाजा बंद कर शिया और
अपने शिष्यों से कहा शक उससे कह दो शक मैं नहीं शमि सकिा हं ।
जीिन में िड़ने का प्रश्न नहीं, जागने का प्रश्न है । जो नहीं जाग पािा, िह
िड़िा है । और जो िड़िा है , िह आज नहीं कि हार जाएगा। क्योंशक िह
एक ऐसे दु श्मन से िड़ रहा है , िह एक ित्रु से िड़ रहा है जो है ही नहीं।
अगर ित्रु हो, िो उससे हम जीि भी सकिे हैं । िेशकन जो ित्रु है ही नहीं,
उससे जीिेंगे कैसे?
संसार में संिुशष्ट की खोज में जाना िािा आदमी भ्रम में है । संिुशष्ट के शिरोध
में जाना िािा आदमी और भी बड़े भ्रम में है । छाया को मानने िािा आदमी
भ्रम में है । छाया का शिरोध करने िािा आदमी और भी बड़े भ्रम में है । गृ हथथ
अज्ञान में है , िथाकशथि संन्यासी और भी गहरे अज्ञान में है । सिाि िड़ने का
नहीं है , सिाि जागने और दे खने का है , सिाि दृशष्ट के खुिने का है ।
दु शनया में दो िरह के पागि हैं , दो टाइप हैं : एक भोग के पीछे जाने िािा,
एक भोग के शिरोध में जाने िािा। ये दोनों कोई मागय नहीं हैं । मागय इनके
बहुि बीच में है : न शिरोध में है , न भोग में है । मागय दृशष्ट में है , दियन में है । िह
शजिनी सम्यक दृशष्ट होगी, शजिना राइट एशटट्यूि होगा, शजिना ठीक-ठीक
बोध होगा, उसमें सारी बाि है । िह बोध के बाबि हम धीरे -धीरे शिचार
करें गे ।
अभी सुबह की चचाय िो मैं पूरा करिा हं , इस खयाि में शक आप सोचें गे,
संिुशष्ट के बाबि दे खना िुरू करें गे , िब आपमें कोई सत्य की आकां क्षा पैदा
होनी िुरू होगी।
शदन में दो बार इस शिशिर में हम ध्यान करें गे , सुबह और राशत्र को। िो ध्यान
के संबंध में थोड़ी बाि समझा दू ं ।
नहीं; मैं कहिा हं , ध्यान को कहीं न िगाएं , िो आप ध्यान में हो जाएं गे । इसे
थोड़ा सा समझ िें, शफर प्रयोग हम करें गे , उससे थोड़ा अनुभि िायद होगा
शक ऐसी स्थथशि है जब शक ध्यान कहीं न िगा हो। क्योंशक ध्यान िो िाकि है ।
मैं यहां बैठा हं , अभी नहीं दौड़ रहा हं , िो भी दौड़ना मेरे भीिर है । दौड़ने की
िस्ि के शिए दौड़ना जरूरी नहीं है । नहीं िो शफर जो बैठे हैं िे कभी दौड़ ही
नहीं सकेंगे । शफर जो दौड़ रहे हैं , िे कभी बैठ ही नहीं सकेंगे । दौड़ने की
िस्ि मेरे भीिर इस क्षर् भी है , जब शक मैं नहीं दौड़ रहा हं । जब आपका
ध्यान शकसी चीज पर नहीं है िब भी ध्यान की िस्ि आपके भीिर होिी है ।
ध्यान की िस्ि अिग बाि है और शकसी चीज पर ध्यान होना उसका प्रयोग
है । दौड़ने की िस्ि अिग बाि है , दौड़ना उसका प्रयोग है , ईंस्प्लमेंटेिन है ।
िह िो उसका उपयोग है ।
जब आपके ज्ञान में कुछ भी नहीं आ रहा है , िब आप अपने ज्ञान में आने
प्रारं भ हो जािे हैं । और जब िक आपके ज्ञान का कोई उपयोग हो रहा है ,
कहीं न कहीं कोई चीज उससे आ रही है , िब िक आपका ज्ञान उसे पकड़े
रहिा है और अपने पर आने में असमथय होिा है ।
ध्यान आस्त्मक दिा है । यह आस्त्मक दिा बड़ी सहज है , अगर बाि ठीक-
ठीक अंिरस्टैं शिं ग में और समझ में हो। अन्यथा इससे कशठन और कोई
चीज नहीं है । यह दु शनया में शफर सबसे कशठन बाि है । यह शफर सबसे
कशठन बाि है । शफर एिरे स्ट पर चढ़ना बहुि आसान है और चां द पर
पहुं चना बहुि आसान है और स्वयं के भीिर जाना बहुि कशठन है । इसशिए
जो िोग समुि की पां च-पां च मीि की गहराइयों में उिर जािे हैं , उनसे भी
कहो शक अपने भीिर उिरो, िो िे कहें गे, बड़ा मुस्िि है , अपने भीिर कैसे
उिरें ? जो िोग एिरे स्ट चढ़ गए हैं , उनसे कहो, अपने भीिर, िो िे कहें गे,
बड़ा कशठन है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 230
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफर यह जो अत्यं ि शनकट है यह कशठन है , अगर बाि ठीक से बोध में न हो।
और अगर बाि बोध में हो, िो एक कदम उठा कर बाहर जाना बहुि कशठन
बाि है , भीिर आना बहुि सरि बाि है । क्योंशक भीिर आने के शिए कहीं भी
जाना नहीं है । जाने में िो कुछ कशठनाई हो सकिी है , भीिर आने के शिए
कहीं भी नहीं जाना है । कैसे यह सबसे सरि और सबसे कशठन बाि संभि
हो सकिी है , उसकी हम सुबह और सां झ को प्रयोग करें गे ।
सुबह के शिए अभी हम सारे िोग थोड़े -थोड़े फासिे से बैठ जाएं गे , िाशक
कोई एक-दू सरे को छूिा हुआ न हो, कोई पड़ोसी न रह जाए, आप अकेिे हो
जाएं ।
िो सारे िोग थोड़े -थोड़े फैि जाएं , अगर बाहर भी फैि जाना पड़े , िो कोई
हजाय नहीं, आिाज मेरी पहुं च सकेगी। जहां -जहां छाया हो िहां -िहां हट
जाएं । िेशकन यहां भी थोड़े -थोड़े फैि जाएं , कोई शकसी को छूिा हुआ न हो,
िाशक दू सरे को आपका खयाि न रह जाए, आपको िगे आप अकेिे ही बै ठे
हुए हैं । ................
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
दसिाां प्रिचन
आप राि को स्वप्न दे खिे हैं , सुबह जाग कर पािे हैं शक स्वप्न था और मैंने
समझा की सत्य है । सुबह स्वप्न िो झूठा हो जािा है , िेशकन शजसने स्वप्न दे खा
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
था, िह झूठा नहीं होिा। उसे आप मानिे हैं शक शजसने दे खा था, िह था, जो
दे खा था िह स्वप्न था। आप बच्चे थे , युिा हो गए; बचपन िो चिा गया,
युिापन आ गया; युिािथथा भी चिी जाएगी, बुढ़ापा आ जाएगा, िेशकन
शजसने बचपन को दे खा, युिािथथा को दे खा, बुढ़ापे को दे खेगा, िह न आया
और न गया, िह मौजूद रहा। सुख आिा है , सुख चिा जािा है । दु ख आिा है ,
दु ख चिा जािा है । िेशकन जो दु ख को दे खिा है और सु ख को दे खिा है , िह
मौजूद बना रहिा है ।
आपके भीिर शिचार चि रहे हैं : आप िां ि बैठ जाएं , आपको शिचारों का
अनुभि होगा शक िे चि रहे हैं , आपको शदखाई पड़ें गे। अगर िां ि भाि से
दे खेंगे, िो िे शिचार िैसे ही शदखाई पड़ें गे, जैसे रास्ते पर चििे हुए िोग
शदखाई पड़िे हैं । शफर अगर शिचार िून्य हो जाएं गे , शिचार िां ि हो जाएं गे ,
िो यह शदखाई पड़े गा शक शिचार िां ि हो गए हैं , िून्य हो गए हैं , रास्ता खािी
हो गया।
भारि से एक शभक्षु कोई चौदह सौ, पंिह सौ िषय पहिे चीन गया। नाम था,
बोशधधमय। जब िह चीन गया, उसके पहिे उसकी ख्याशि पहुं च गई, सारे
चीन में उसकी चचाय हो गई उसके पहुं चने के पहिे, िैसा व्यस्ि था, अदभु ि
था। चीन का जो राजा था, िू नाम का, िह उसके स्वागि करने को सीमा पर
सैकड़ों मीि चि कर आया।
मंशदर बनाने में नहीं, या मंशदर में पूजा करने में नहीं, िह जो मंशदर के बनाने
को भी दे खिा है और जानिा है और मंशदर की पू जा को भी दे खिा है और
जानिा है । कभी मंशदर में पूजा करिे िि एकदम से ख्याि करें , िो आपको
पिा चिेगा, आप पूजा भी कर रहे हैं और आपके भीिर एक शबंदु है जो जान
भी रहा है शक पू जा हो रही है , पू जा की जा रही। रास्ते पर आप चि रहे हैं ,
चििे-चििे िि एकदम से खयाि करें , आपको शदखाई पड़े गा, आप चि
भी रहे हैं और आपके भीिर कोई जान भी रहा है शक आप चि रहे हैं ।
िह िू बोिा शक अगर ऐसी बाि है , िो मेरा शचत्त बहुि अिां ि रहिा है , उसी
के शिए मैंने ये धमय के कायय शकए, मेरा शचत्त कैसे िां ि हो जाए, यह बिा दें ?
सुबह िह चार बजे क्या, िीन बजे ही आ गया। आिे ही बोशधधमय ने पू छा,
िाए, शचत्त को िे आए।
उसने कहा शक आप कैसी बािें करिे हैं मैं आया हं , िो शचत्त िो आए।
िो उसने कहा: आं ख बंद करो, खोजो, शचत्त कहां है ? शमि जाए, िो पकड़ो
और कहो, यह है । और मैं उसी िि िां ि कर दू ं गा।
पूछा है शक भय क्या है ?
आप संपशत्त को समझे हुए हैं शक संपशत्त मेरी है , िेशकन आप बहुि गहरे में
हरे क व्यस्ि जानिा है संपशत्त मे री नहीं है । क्योंशक आप नहीं थे िब भी
संपशत्त थी, आप नहीं होंगे िब भी संपशत्त होगी। आप उसके माशिक हो नहीं
सकिे, िेशकन माशिक बने हैं ।
फकीर िाया गया। उस फकीर ने कहा शक मैं इस सराय में कुछ शदन ठहरना
चाहिा हं । कौन मुझे रोक सकिा है !
उस राजा ने कहा शक शबिकुि ही अशिष्ट बाि बोि रहे हो। एक िो पेहरे दारों
के साथ िुमने दू व्यय िहार शकया, दू सरा अब िुम मेरे शनिास को, मेरे महि को
कहिे हो, सराय! धमयिािा! अपने िब्द िापस िे िो?
िह फकीर बोिा, मैं अपने िब्द िापस िे िूं, जो शक शबिकुि सच हैं । नहीं,
मैं िुमसे कहं गा, अपने िब्द िापस िे िो। क्योंशक मैं इसके पहिे आया, िो
उस राजा ने सुना, उसने दरबाररयों से कहा: मैं अपने िब्द ही नहीं िापस
िेिा, अपना जीिन भी िापस िेिा हं । उठा और फकीर के पीछे हो गया।
इससे मुझे शदखाई पड़ गया शक यह सराय है । मैं इसमें हमेिा नहीं था।
इसी बोध से, जब शक हरे क चीज उसे आश्वासन दे ने में असमथय हो जाएगी,
जब कोई भी चीज उसे ऐसी न रह जाएगी जो अभय दे सके। शजसको दे रही
अभय, िह नासमझ है । एक आदमी दस िाख रुपये पकड़े बैठा है और
सोचिा है शक मैं शफयरिेस हो गया, अब मुझे कोई भय नहीं है , िह पागि है ।
िेशकन शजसके पास बोध होगा, उसे दस िाख का क्या, दस करोड़ भी, दस
अरब भी अभय नहीं दे सकिे। उसे शदखाई पड़े गा यह मामिा शक शकिने ही
मेरे पास हो, इससे भय शमटिा नहीं। बस्ल्क शजिना यह होिा जािा है , यह
और इसका होना भी एक नये भय का कारर् हो जािा है । उसकी सुरक्षा,
उसकी व्यिथथा, शफर भी िह सुरशक्षि रहने िािा नहीं है ।
उसके पहिे शजनको आप समझिे हैं शक शजनमें कोई शफयर नहीं है , समझिे
हैं शक बड़े बहादु र हैं , बड़े शहम्मििर हैं , िे भी सब भयभीि हैं । उनके हाथ में
िििारें हैं । और िििारें भय का िक्षर् है ।
इसशिए बड़े से बड़े िोग शजन्ोंने शक अपनी बड़ी शनशिंििा कर िी, बड़ी
शसक्योररटी कर िी, िे भी भीिर भयभीि बने रहिे हैं ।
चंगीज जब शहं दुस्तान को िूट-खसोट कर िापस िौट रहा था, हजारों आदमी
काट शदए थे, शजस दे ि में गया, िहां हजारों िोगों को काट शदया, शजस
राजधानी में गया, पहिे जाकर दस हजार बच्चों के शसर कटिा दे िा था और
अपने सैशनकों से कहिा था, उनको भािों पर िगा कर एक जुिूस शनकाि
दो पूरे नगर में, िाशक िोग दे ख िें शक चंगीज आ गया और समझ जाएं शक
कौन आ गया है । राि को जहां से फौजें शनकििी थीं, बगि के गां ि में आग
िगा दे िा था िाशक रोिनी हो जाए, फौजों का रास्ता साफ हो जाए।
िेशकन अपनी मौि से ऐसा भयभीि था शक राि भर सो नहीं सकिा था, बार-
बार िििार उठा िेिा था। जरा ही खटका हो शक िििार पर हाथ रख िेिा
था, राि सो नहीं सकिा था, शदन में सोिा था। कभी नहीं सोया राि में। शदन में
सोिा था, जब चारों िरफ िििार शिए नंगे फौजी खड़े रहिे थे , िब िह सोिा
था। राि के अंधकार में, मान िो फौशजयों को झपकी आ जाए, मान िो अंधेरे
में कोई िुस आए, इसशिए राि को नहीं सो सकिा था।
अंधेरे से िरिा था। और ऐसे ही उसकी मौि हुई, जब शहं दुस्तान से िौट रहा
था, एक राि को उसे ऐसा िगा, सपने में िगा, और जो आदमी शदन भर हत्या
आदमी राज्य जीि िे, बड़े पदों पर पहुं च जाए, इसीशिए चेष्टा है । राजनैशिक
बहुि भयभीि आदमी होिा है । बड़े से बड़े पद पर पहुं चने की उसकी जो
िेशकन यशद भीिर दृशष्ट िूम जाए, िो अभय का थथान शमि जािा है । क्योंशक
िहां शदखाई पड़िा है जो है उसकी कोई मृत्यु नहीं। िहां शदखाई पड़िा है जो
है उसका कोई अंि नहीं। िहां शदखाई पड़िा है जो है उसे छीना नहीं जा
सकिा। िहां जो संपदा शमििी है िह नष्ट नहीं हो सकिी। यह जहां स्थथशि
स्पष्ट हो जाए, िहीं अभय िुरू हो जािा है ।
उपाय मि पूछें। क्योंशक उपाय सारे िोग कर रहे हैं । भय-मुस्ि के ही उपाय
कर रहे हैं । धन को इकट्ठे करने िािा भी, पद को इकट्ठा करने िािा भी,
िििार इकट्ठी करने िािा भी, िरीर को मजबूि करने िािा भी, ईश्वर का
भजन-कीियन करने िािा भी, सब भय-मुस्ि के उपाय कर रहे हैं । भय-
मुस्ि का उपाय मि पूछें, िह िो सारी दु शनया कर रही है ।
मुझे जैसा शदखाई पड़िा है , िह यही शक जीिन में शकसी चीज से बचने की
कोशिि न करें , उसे जानने की कोशिि करें । भय कुछ बुरा नहीं है , उसे
जानने की कोशिि करें , उसके जानने से ही क्रां शि होिी है ।
िेशकन हजारों टीकाएं हैं गीिा पर। िो ये टीकाएं गीिा पर नहीं हैं , ये अपने-
अपने मन पर हैं । यह टीकाकार का मन है जो बोि रहा है । और हममें ऐसा
पागिपन रहा है शक हम अपने शिचार को शकसी बड़े आदमी के नाम पर थोप
दें , िो हमें सुख शमििा, हमें ऐसा िगिा है शक शिचार िो अब शनशिि ही ठीक
होना। हम पर िो खुद हमें शिश्वास होिा नहीं। हमें िो शिश्वास होिा नहीं शक
हमको ज्ञान हो सकिा है ।
िेशकन अगर हम अपने शिचार को कृष्ण पर थोप दें , िो शफर हमको धीरे -धीरे
शिश्वास आने िगिा है शक जरूर ठीक होगा, क्योंशक कृष्ण कह रहे हैं । कह
हम ही रहे हैं । ये सारी टीकाएं कृष्ण पर जो शिखी गई हैं , ये अपने-अपने मन
शिखी गई टीकाएं हैं , चाहे कोई भी शिखिा हो। क्योंशक कृष्ण का मििब िो
गीिा है । टीका, टीका उसका मििब है जो शिख रहा है । जब भी हम कोई
शकिाब पढ़िे हैं , िो जाने-अनजाने टीका करिे हैं । िह जो टीका है िह हमारा
भाि है , हमारा शिचार है ।
इसशिए मैंने कहा शक गीिा को अिग कर दें , मैं और आप काफी हैं । मैंने जो
कहा: शजस बाि को मैं आपको सु बह कहा या कि राि कहा या आगे कहं गा,
उसमें और अनासि कमय के शिचार में बुशनयादी भे द है । मेरा कहना यह है
शक अनासि कमय शकया नहीं जा सकिा, अनासि कमय होिा है । क्योंशक
जब आप उसे करें गे , कस्ििेट करें गे, िो उसमें आसस्ि आ जाएगी। जब
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आप चेष्टा करें गे , िो िह कमय आसि हो जाएगा। जब आप कोशिि करें गे
शक ये कमय मेरा अनासि हो, िो क्यों कोशिि करें गे ? आस्खर अनासि
होने की िजह क्या है ?
िो मैं जो कह रहा हं , अगर शचत्त िां ि हो, िां ि शचत्त से जो कमय शनकििा है
िह अपने आप अनासि होिा है , िह करना नहीं होिा। अनासि कमय
करने से शचत्त कभी िां ि नहीं होगा, क्योंशक अनासि कमय िो शकया ही नहीं
जा सकिा। िेशकन शचत्त यशद िां ि हो जाए, िो जो कमय शनकिेगा, िह
अनासि होगा, क्योंशक िां ि शचत्त से आसि कमय शनकि नहीं सकिा। िो
सिाि आपके कमय का शबिकुि भी नहीं है । क्योंशक कमय महत्वपूर्य नहीं है ,
महत्वपूर्य आप हो। और आप जैसे होिे हो, िैसा कमय शनकििा।
अनासि कमय िभी हो सकिा है जब भीिर शचत्त इिना िां ि हो, शचत्त शजस
मात्रा में िां ि होगा, शििीन होगा, उसी मात्रा में कमय से आसस्ि शििीन हो
जाएगी। शचत्त की अिां शि ही आसस्ि का मूि उदगम है ।
अगर जोर-जबरदस्ती करे , िो ऊपर से फूि िटका सकिा है िृक्ष में जाकर,
िेशकन िृक्ष में फूि िा नहीं सकिा। क्योंशक िृक्ष में फूि कोई आिे नहीं
एकदम से, िृक्ष की आस्खरी नीचे जो जड़ है िहां से फूि का बनना िुरू
होिा है , शफर िह सारे िृक्ष की यात्रा करिा है फूि और शफर कहीं ऊपर
आकर प्रकट होिा है । जहां आपको शदखाई पड़िा है , िह िो केिि
कमय भी हमारे जीिन की अंिःसत्ता के फूि की भां शि हैं , िहां िे बन नहीं रहे
हैं , िहां िो प्रकट हो रहे हैं ; बन िो बहुि गहरे में रहे हैं , बहुि अंधेरे में, बहुि
अज्ञाि में, अदृश्य में, िहां िे िैयार हो रहे हैं । िहां आपको पिा भी नहीं शक
िहां क्या िैयार हो रहा है ? जब िे प्रकट हो जािे हैं , िब आप कहिे हैं , यह हो
गया।
एक िर में से ऊपर छप्पर में से धुआं शनकि रहा हो, और आप जा-जा कर,
खपड़ों पर बैठ कर उसको धुएं को रोकने की कोशिि कर रहे हों शक हमको
धुआं नहीं शनकिने दे ना है अपने िर में से, और िर में नीचे आग जि रही हो
उसकी कोई शफकर न हो। िो उसको आप धुएं को इधर से रोकेंगे , िह दू सरी
िरफ से शनकिना िुरू हो जाए, िह िो शनकिेगा। उसे कैसे दबाएं गे ? उसे
कहां भे जेंगे? भीिर आग बुझनी चाशहए।
िेशकन हम सारे िोग अशभव्यस्ि पर जोर दे ने िािे हो गए, धीरे -धीरे हजारों
िषों से हमने यही समझने की कोशिि की शक कमय को अच्छा करो, व्यस्ि
को नहीं, कमय को। यह बाि शबिकुि ही गिि है ।
उन्ोंने कपड़े बदि शिए हैं , आचरर् में व्यिथथा ऊपर की कर िी, भीिर
का शचत्त िही का िही है । दो राजनीशिज्ञ एक-दू सरे से शमिने को राजी हो
ओिो पृष्ठ संख्या 252
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाएं , िो साधु शमिने को राजी नहीं होिे। क्योंशक यह िर िगा रहिा है , पहिे
कौन नमस्कार करे गा?
अगर दो िोग शमिें, िो पहिे कौन नमस्कार करे गा? अगर शमि गए, िो
ऊपर कौन बैठेगा? नीचे कौन बैठेगा? यह जो शचत्त है , इसको शबना बदिे
यह सब धोखा और पाखंि हो जािा है ।
हम बच्चे से कहिे हैं : झूठ मि बोिो; हम उसको कह रहे हैं : अपने आचरर्
को बदिो। हम बच्चे से कहिे हैं : दे खो, बेईमानी मि करना; हम उससे कह
रहे हैं : अपना कमय ठीक रखना। हम कभी यह बिा ही नहीं रहे शक अपने
अंिस को ठीक बनाना। हम जो बिा रहे हैं , िह कमय को ठीक करने के शिए
बिा रहे हैं । अंिस िो िही होगा, कमय को बदिने से पाखं ि पैदा होगा, धोखा
पैदा होगा। और अगर िह व्यस्ि बहुि ईमानदार हो, शजसको कहिे हैं
शसंशसयर हो, िो िह पागि हो जाएगा, क्योंशक उसका अंिस शिपरीि,
उसका आचरर् शिपरीि।
शजिनी दु शनया में सभ्यिा बढ़िी उिने पागि बढ़िे जािे हैं , उसका कोई और
कोई कारर् नहीं है । उसका एक ही कारर् है शक अगर कोई ईमानदारी से
आचरर् को बदिने की कोशिि करे शबना अंिस को बदिे, िो पागि होना
सुशनशिि है , बच ही नहीं सकिा। बच कैसे सकिा है ? क्योंशक भीिर से
आएगा धुआं और बाहर िगाएगा फूि, भीिर से आएगी गं दगी और बाहर से
करे गा व्यिथथा सौंदयय की, िो शकिनी कशठनाई नहीं पड़ जाएगी और
िेशकन इसको हमें शदखिा है पागिपन। कमय जो हैं आपके, िे आपके अंिस
की खबर दे ने िािे हैं शक भीिर आग िगी है । आचरर् में, कमय में झूठ आ
रहा है , बेईमानी आ रही, खबर िा रहा है कमय।
इसशिए नैशिक मनुष्य बड़े कष्ट में जीिा है । सज्जन शजनको हम कहिे हैं , िे
इिने कष्ट में जीिे हैं , शजिने दु जयन नहीं जीिे। क्योंशक उनकी सारी िकिीफ
यह है शक अंिस िो उनके खुद ही शिरोध में खड़ा है और आचरर् उनमें
शिपरीि। भीिर मन िो झूठ बोिने का होिा है और िे सच बोिना चाहिे हैं
या सच बोिने की कोशिि करिे हैं , उनका जीिन एक कां स्िक्ट और द्वं द्व
हो जािा है । इसशिए सज्जन बड़े कष्ट में जीिा है ।
...बशगया था, मकान था, सब सुशिधा थी। शफर गां ि में कुछ नये शिकास हुए,
कुछ िोगों ने पैसा कमाया और उनके ही भिन के बगि में और बड़े भिन
खड़े कर शदए। िब से िह दु खी हो गया। मैंने उनसे पूछा, िुम्हारा मकान िही
का िही है , दु ख का क्या कारर् है ? उन्ोंने कहा: शदखाई पड़ने में िो िही का
िही है , िेशकन अब शबिकुि छोटा हो गया।
िो मैंने उनसे कहा: अब िुम्हें यह खयाि करना चाशहए, बड़ा मकान िु म्हारे
दु ख का कारर् है िो कहीं झोपड़े का होना ही िुम्हारे सु ख का कारर् नहीं है ?
िे जो बगि में झोपड़े खड़े थे । अगर बड़ा मकान िुम्हारे दु ख का कारर् हो
गया है , िो िुम्हारे सुख के कारर् िे झोपड़े रहे होंगे, जो बगि में खड़े हैं । िुम
जो सुख िे रहे थे अपने मकान में, िह िुम्हारे मकान में नहीं था, दू सरों के
झोपड़े में था। क्योंशक अब िुम जो दु ख िे रहे हो, िह िुम्हारे मकान में नहीं
है , दू सरे के बड़े मकान में है ।
िह संपशत्त छूट ही नहीं सकिी शकसी आदमी की शजसको अभय न शमिा हो।
िोग गिि ही सोचिे हैं मेरी दृशष्ट में, िोग सोचिे हैं , महािीर ने, बुि ने सारी
संपशत्त छोड़ दी, संपशत्त छोड़ने के कारर् उनको अभय शमिा, गिि बाि है ,
संपशत्त कोई छोड़ ही नहीं सकिा भय में। अभय शमि जाए, िो संपशत्त छूट
जािी है ।
िो अगर दु शनया में अभय बढ़े , अभय का अथय है : अगर आत्मज्ञान बढ़े , िो
दु शनया में दररििा अपने आप शििीन हो जाएगी। दररििा का कारर् िोषर्
है , िोषर् का कारर् भय है । िो आप ऊपर से कोई भी उपाय करें , अगर
आप ऊपर से सारे िोषर् को शमटाने की व्यिथथा करें , िो नये िरह के
िोषर् िुरू हो जाएं गे ।
उन्नीस सौ सत्रह में सोशियि रूस में क्रां शि हुई। उन्ोंने पुराने िगय शमटा शदए।
नये िगय पैदा हो गए। क्योंशक भय िो मौजूद है । िो पुराने िि में जो आदमी
धन इकट्ठा करिा था, िह आदमी अब कम्युशनस्ट पाटी में भरिी होकर बड़े
पद पर होने की कोशिि करिा है । िही आदमी है , िह जो धन इकट्ठा करके
सुरक्षा करिा था, अब िह बड़े पद पर होकर सुरक्षा करिा है । क्योंशक कोई
जीिन भी पास है , चेिना भी पास है , जैसे शकसी आदमी के पास िेि भी हो,
बािी भी हो, माशचस भी हो, िेशकन न िेि को बािी से जोड़े , न माशचस को
बािी से जोड़े , और बैठा रोिा रहे शक बड़ा िना अंधकार है , मैं क्या करू
ं ?
हम उससे कहें गे, सब िेरे पास है , िेशकन संयुि नहीं है शियुि है । िेरे पास
दीया है , िेरे पास िेि है , िेरे पास बािी है , िेरे पास आग को भड़काने और
जिाने का उपाय है । िेशकन िू उन सबको जोड़ नहीं रहा है ।
िहां पात्र शगरा िो चोर है रान हो गया! पहिे ही है रान था, एक नंगा फकीर
और हाथ में िाखों की कीमि की चीज शिए हो, अब और है रान हुआ शक इस
पागि ने फेंक क्यों शदया? उसे कुछ बड़ी है रानी हुई। अभी िक िो सोच रहा
था शक इसको पा जाऊंगा िो बहुि कुछ शमि जाएगी, बहुि उपिस्ब्ध हो
जाएगी, अब ऐसा िगा शक एक आदमी ने जब इसे फेंक शदया, िो इसको मैंने
पा भी शिया, िो कौनसी उपिस्ब्ध हुई? जब ऐसे िोग भी जमीन पर हैं जो
इसे फेंक सकिे हैं , और मैंने पा भी शिया िो कौनसी उपिस्ब्ध हुई?
जरूर इससे भी ऊपर कोई उपिस्ब्ध की चीजें होनी चाशहए, नहीं िो इसको
फेंकने िािे िोग नहीं हो सकिे! िह उसने कहा शक मैं जरा भीिर, उसने
स्खड़की से खड़े होकर कहा शक शभक्षु मैं धन्यिाद करिा हं , मैं आया था चोरी
करने, िुमने भें ट कर शदया। क्या इिनी आज्ञा और दोगे शक मैं भीिर आऊं
और पां च क्षर् िुम्हारे पास बैठ जाऊं?
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
ग्यारहिाां प्रिचन
इसशिए मैंने कहा: आध्यास्त्मक जीिन में कोई गु रु नहीं होिा। शिष्य होिे हैं ।
िे भी गुरु से नहीं बनिे, ज्ञान की खोज करिे हैं और जहां से शमि जाए--
अगर ज्ञान न हो, िो भस्ि अंधी होगी। और अंधी भस्ि कहीं भी नहीं िे जा
सकिी है । अगर भस्ि न हो, िो ज्ञान शबिकुि रूखा और मानशसक होगा,
उसमें कोई गहराई नहीं हो सकिी, हाशदय क उसके भीिर कोई जड़ें नहीं हो
सकिीं। अगर अकेिा कमय हो, भस्ि न हो, ज्ञान न हो, िो कमय अंधा होगा,
रस-िून्य होगा, हृदय-ररि होगा, िैसा कमय भी कहीं नहीं िे जािा है ।
अगर अकेिा ज्ञान हो, कमय न हो, िो िैसा कमय, िैसा ज्ञान िंध्वा होगा, उससे
कोई सृजनात्मकिा, कोई शक्रएशटशिटी पैदा नहीं होिी। िह केिि मानशसक
खयाि होगा। जीिं ि नहीं होगा, शिशिंग नहीं होगा। कमय उसे जीिंि गु र् दे िा
है ।
ऐसा कोई मनुष्य दे खा है जो केिि हृदय हो? ऐसा मनुष्य नहीं हो सकिा।
हां , कहीं शकसी यं त्र में हृदय को शनकाि कर रखा जा सकिा है और कृशत्रम
आप कहें गे, शकसी में कमय की प्रभािना होिी है , शकसी में ज्ञान की, शकसी में
हृदय की, भाि की। मैं कहं गा, अगर एक भी अंग इनमें से प्रधान है , िो िह
मनुष्य अभी ठीक से संयम को, संिुिन को उपिब्ध नहीं हुआ। अभी िह
आदमी बीमार है । जैसे एक बच्चे का शसर बहुि बड़ा हो जाए और हाथ-पैर
शबिकुि छोटे रह जाएं , जैसे हमारे पंशिि हैं । उनका शसर िो बहुि बड़ा हो
जािा और सब छोटा रह जािा। जैसे शकसी के हाथ-पैर िो बहुि बड़े -बड़े हो
जाएं और शसर शबिकुि छोटा रह जाए, ऐसे हमारे कमययोगी हैं । िे जो
कमयशनष्ठ मािूम होिे हैं , िे हैं ।
और जैसे शकसी में केिि भाि ही भाि रह जाएं , रोिा हो, गािा हो, कशििा
करिा हो और जीिन में कुछ भी न हो। भजन करिा हो, शचल्लािा हो,
कूदिा-फां दिा हो, ऐसे हमारे िथाकशथि भि हैं , कशि। ये जीिन के अपं ग
जीिन के उदाहरर् हैं । ये कोई भी ठीक-ठीक संयम को, संिुिन को, बैिेंस
को, जीिन की शसंशथशसस को उपिब्ध हुए िोग नहीं हैं । ये सब अधू रे शिकास
हैं ।
मेरी दृशष्ट में संपूर्य रूप से मनुष्य का व्यस्ित्व िभी शिकशसि होिा है , जब ये
िीनों एक समिेि स्वर को उपिब्ध हो जािे हैं । जब एक हामयनी को, एक
संगीि को, इन िीनों के भीिर उपिब्ध हो जािा है । िे शकन उस संगीि का
प्रारं भ, न िो मैं मानिा हं ज्ञान है , न मैं मानिा हं भस्ि है , न मैं मानिा हं कमय
ओिो पृष्ठ संख्या 266
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
है । मैं िो ध्यान को मानिा हं । ध्यान िीनों का प्रार् है । अगर कमय में ध्यान हो,
िो कमय करने योग्य हो जािा है । अगर प्रेम ध्यानयुि हो, िो प्रेम भस्ि हो
जािा है । अगर ज्ञान ध्यानपूर्य हो, िो ज्ञान ज्ञानयोग हो जािा है । ध्यान इन
िीनों को जोड़ने िािा सेिु, इन िीनों के भीिर प्रिाशहि होने िािा आं िररक
हृदय है ।
ध्यान न िो ज्ञान है , क्योंशक कोई ग्रं थ पढ़ने से ध्यान नहीं उपिब्ध होिा। और
न ध्यान भस्ि है । क्योंशक शगड़शगड़ाने से और प्राथय ना करने से, नाचने से,
कूदने से और संगीि में अपने को भु िाने से कोई ध्यान उपिब्ध नहीं होिा।
िरन क्या होिा है , िह मैं कहं गा।
और न ही ध्यान मात्र कमय है शक कोई कमयठ हो, सेिा करे या कुछ करे , िो
ध्यान उपिब्ध हो जािा है । ध्यान िो एक अिग शबंदु है , िह िो जीिन में
साक्षीभाि को थथाशपि करने से उपिब्ध होिा है ।
शिंची ने कहा: पूछिे हैं क्या करिा हं ? नहीं; धमय मेरे शिए कोई शििेषरूप का
करना या कमय नहीं है , िरन जो भी करिा हं उसे बोधपूियक करिा हं । सु बह
झािू िगािा हं , िो उसे भी बोधपूियक िगािा हं । बगीचे में जाकर गङ् ढा
खोदिा हं , िो उसे भी बोधपूियक खोदिा हं । भोजन करिा हं िो भी और
कपड़े पहनिा हं िो भी। चौबीस िंटे जो भी करिा हं उसे बोधपूियक करिा
हं ।
िैसे ही अगर कोई शिचारों को इकट्ठा करिा रहे , िास्त्र पढ़िा रहे , व्याख्याएं
पढ़िा रहे , शिश्लेषर् करिा रहे , िकय करिा रहे और सोचे शक ज्ञान उपिब्ध
हो गया, िो गििी में है । िैसे ज्ञान नहीं उपिब्ध होिा, केिि ज्ञान का बोझ
बढ़ जािा है । िैसे मस्स्तष्क में कोई चैिन्य का संचार नहीं होिा, केिि उधार
शिचार संगृहीि हो जािे हैं । िेशकन अगर ज्ञान के शबंदु पर ध्यान का संयोग हो,
साक्षी का संयोग हो, िो शफर शिचार िो नहीं इकट्ठे होिे, बस्ल्क शिचार-िस्ि
जाग्रि होना िुरू हो जािी है । िब शफर बाहर से िो िास्त्र नहीं पढ़ने होिे,
भीिर से सत्य का उदिाटन िुरू हो जािा है ।
मेरी दृशष्ट में ध्यान एकमात्र योग है । न िो कमय कोई योग है , न भस्ि कोई योग
है और न ज्ञान कोई योग है । ध्यान योग है । और आपकी प्रकृशि कुछ भी हो,
ध्यान के अशिररि और कोई मागय नहीं है । ध्यान को छोड़ कर जो शकसी भी
मागय को पकड़ने के खयाि में हो, िह भू ि में पड़ जाएगा। भू ि में पड़ना
शफर चाहे िह दु कान हो, चाहे आश्रम हो। शफर चाहे िह पैसा कमाना हो,
चाहे सेिा करना हो। अगर सफििा में सुख शमििा है , असफििा में दु ख
शमििा है , िो कमय हमारा आसि है । और आसि कमय मुस्ि नहीं िा
सकिा। िेशकन ध्यान उपिब्ध हो, िो कमय अनासि हो जाएगा और कमय
मुस्ि िाने का मागय हो जाएगा। िेशकन मूििः मागय होगा ध्यान, कमय नहीं।
अब कोई भस्ि करिा हो, प्राथय ना करिा हो, भगिान के मंशदर में जािा हो,
पूजा करिा हो, गीि गािा हो, नाचिा हो, संगीि में धुन िगािा हो, िह
आदमी मूस्च्छय ि हो जाएगा इन सब बािों से। संगीि मूच्छाय िािा है , इसशिए
सुखद मािूम होिा है । जब आप सं गीि सुनिे हैं , िो उसका रस आपके
भीिर मूच्छाय िािा है । कभी आपने खयाि नहीं शकया। अगर कोई आपसे
कहे शक भोजन करने में खूब रस िो और अच्छे -अच्छे भोजन करो, िो
भगिान शमि जाएगा, िो आप िायद राजी नहीं होंगे शक ऐसे कैसे शमि
जाएगा। अगर कोई कहे शक बहुि अच्छे -अच्छे मखमिी िस्त्र पहनो, उनके
स्पिय का आनंद िो, बहुि बशढ़या गद्दों पर सोओ, बहुि बड़े महिों में रहो, िो
िल्लीन होने से सारी शदक्कि पैदा होिी है । धमय का संबंध िल्लीनिा से नहीं,
जागरूकिा से है । िल्लीनिा िो एक िरह की मूच्छाय है । िल्लीनिा का अथय
है : दू सरी शकसी बाि में अपने को खो दे ना, भू ि जाना। िह एक िरह की
फॉरगे टफुिनेस है । और जब भी हम शकसी चीज में अपने को भू ििे हैं िो
सुख शमििा है , क्योंशक शदन-राि अपने से ऊबे हैं और परे िान हैं । चौबीस
िंटे की शचंिाएं िबड़ाए हुए हैं , परे िान शकए हुए हैं ।
सारी दु शनया के भस्ि-पंथों ने शकसी न शकसी रूप में निे का उपयोग करना
िुरू कर शदया। सं गीि में भी निे की िरकीब शदखाई पड़ी, सारे भस्ि-पंथों
ने संगीि का उपयोग िुरू कर शदया।
ये, ये कोई आप, मैं एक मंशदर में गया था पीछे , िहां मैंने दे खा, सब िरफ से
द्वार बं द हैं , अं दर बहुि धूप जि रही है , दीप जि रहे हैं , उनकी गं ध िेजी से
फैि रही, िेज गं ध भी बेहोि करिी है । इसशिए सारी दु शनया के भस्ि-पंथ
िेज गं ध का उपयोग करिे हैं । गं ध बेहोि करिी है , मूच्छाय िािी है । अगर
बहुि िीव्र गं ध हो, आप मूस्च्छय ि हो जाएं गे । िो िहां िीव्र गं ध है , द्वार सब बंद
हैं , दीिािें बड़ी हैं , कहीं से कोई रास्ता नहीं शनकिने का, गं ध भरी हुई है जोर
से, गं ध मूस्च्छय ि कर रही। शफर जोर से बैंि बजाए जा रहे , संगीि हो रहा, नृत्य
हो रहा है एक पुजारी का, और सारे िोग खड़े हैं मंत्रमुग्ध। मैंने िहां चे हरे
दे खे, िे चेहरे मुझे सब शहप्नोटाइज्ड मािूम हुए, िे सब चेहरे आत्म-सम्मोशहि
मािूम हुए। िे होि में नहीं हैं । और बे होिी का सब इं िजाम है ।
इसको मैं भस्ि नहीं कहिा। इसको कहिे रहे होंगे आप, मैं इसको भस्ि
नहीं कहिा। यह िो सब मूच्छाय है । यह िो अपने को भु िाना है ।
उसने कहा: आप शबिकुि सच माशनए, रत्ती भर कभी ये प्रेम के झंझट में मैं
पड़ा ही नहीं, मैंने कभी शकसी को प्रेम शकया ही नहीं।
उसने कहा: आप शबिकुि पक्का माशनए। उसने रामानुज के पैर पकड़ शिए
शक आप िक क्यों करिे हैं , मैंने कभी प्रेम, प्रेम का मुझे पिा ही नहीं क्या
होिा है ?
रामानुज ने कहा: मैं बड़ी मुस्िि में पड़ गया। जब िुम्हें प्रेम का ही पिा
नहीं, िो भस्ि का कैसे पिा होगा? िुमने अगर शकसी को प्रेम शकया होिा,
िो िही प्रेम भस्ि बनाया जा सकिा था। िह प्रेम में काफी िाकि थी, उसमें
और ध्यान जोड़ दे िे िो िह भस्ि बन जािा। िेशकन िुम कहिे हो, िुमने प्रेम
ही नहीं शकया, िो अब मैं असमथय हं । अब कुछ भी नहीं शकया जा सकिा।
िुम जाओ, पहिे प्रे म करो। पहिे प्रेम को अनुभि करो।
िो शजनको आप प्रेम करिे हैं , उनके प्रशि अगर प्रेम पररिुि हो जाए, उन्ीं
के भीिर भगिान के दियन िुरू हो जािे हैं । भगिान के शिए कोई अिग,
कोई मंशदर बनाने की और मूशिय खड़ी करने की जरूरि नहीं है । यह सब जो
शिभस्ििादी िोगों की करिूि है शक उन्ोंने मंशदर अिग कर शदया है
मकान से और भगिान अिग कर शदया है मनुष्य से। यह बड़ी अजीब बाि
है ।
पूर्य मनुष्य का जन्म होिा है । बाकी सब अधू रे मनुष्य होिे हैं । उन सबके
भीिर अपंग स्थथशियां होिी हैं । मनुष्य पूरा होना चाशहए। धमय मनुष्य के भीिर
पूरा मनुष्य शिकशसि हो िो िही मोक्ष है । मोक्ष मेरे शिए कोई भौगोशिक जगह
नहीं है शक आप कहीं मरें गे और चिे जाएं गे । कोई ज्याग्रशफ में खोजने से
मोक्ष नहीं शमिेगा। और शमि गया, िो िे जो भौशिकिादी हैं , िे अपने यान
िेकर आपसे पहिे िहां पहुं च जाएं गे और आप जो अध्यात्मिादी हैं , अपने
मंशदर में िंशटयां बजािे रहें गे।
कोई भौगोशिक जगि में कोई मोक्ष नहीं है । एक आं िररक शिकास की चरम
अिथथा है । एक मानशसक, आध्यास्त्मक, िारीररक। जो हम जीिन जानिे हैं
उसकी पररपूर्य शिकास का एक शबंदु है , जहां जाकर आपके भीिर सब पूरा
हो जािा है । पूर्यिा मुस्ि है । अपूर्यिा बंधन है । शजिने आप अपूर्य हैं , उिने
बंधे हुए होंगे, उिनी आपकी सीमा होगी। शजिने आप पूर्य होंगे, उिने आप
बंधन के बाहर होंगे।
मेरी दृशष्ट में जो है िह मैंने आपसे कहा। कोई मेरा शकसी भी मामिे में यह
आग्रह नहीं शक मे री बाि को मान िें, आग्रह कुि इिना: उसे शिचार करें ,
सोचें, उसे समझें।
अज्ञान में दो ही शिकल्प हैं , िीसरा कोई शिकल्प अज्ञान में नहीं है । अज्ञान में
दो ही शिकल्प हैं , या िो पकड़ो या छोड़ो। एक िीसरा शिकल्प ज्ञान का है ,
िेशकन िह अज्ञान में शिकल्प नहीं है । अज्ञान न हो, ज्ञान भीिर हो, िो िीसरा
शिकल्प है । शफर उस स्थथशि में इन चीजों के प्रशि शिचार का भी, क्या दृशष्ट
रखना इसका भी कोई सिाि नहीं उठिा।
एक छोटी सी कहानी कहं , शफर उसे समझाऊं, िो िायद समझ में आ जाए।
एक बहुि अदभु ि व्यस्ि हुआ। बहुि त्यागी था। जीिन भर त्याग शकया।
जीिन भर दृशष्ट को िुि करने की कोशिि की। समस्त पररग्रह छोड़ शदया।
िर-द्वार में कुछ भी न रखा। सारी सं पशत्त थी बां ट दी। शफर िकशड़यां काटने
िगा, उन्ीं को बेच कर जीने िगा। उसकी पत्नी भी थी। िे दोनों िकशड़यां
ओिो पृष्ठ संख्या 277
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
काटिे, िािे, बाजार में बेच दे िे। जो शमििा उससे भोजन कर िेिे, जो बच
जािा, सां झ को उसे बां ट दे िे। राि खािी होकर, उनके पास कोई संपशत्त न
होिी, िे सो जािे।
एक बार ऐसा हुआ शक अनायास िषाय आ गई। पां च-साि शदन िक पानी
पड़िा रहा, िे िकशड़यां नहीं काट सके। पां च-साि शदन उन्ें भू खा मरना
पड़ा। कोई संपशत्त उनके पास न थी। शकसी से मां गने का उनका शनयम न
था। जब पां च-साि के बाद धूप खुिी, िे शफर िकशड़यां काटने जंगि में गए।
जब िे िकशड़यां काट कर भू खे और थके और शसर पर गठररयां बां धे हुए
िौटिे थे , िो रास्ते में एक िटना िटी, िह मैं आपसे कहना चाहिा हं । उसे
थोड़ा दे खने की जरूरि है । क्या उस िटना में िटा। उसके प्रशि थोड़ा बोध
जगाने की जरूरि है ।
सत्य बोिने का शनयम था, सत्य बोिने का व्रि था, इसशिए अब असत्य भी
नहीं बोि सकिा था, उसे बिाना पड़ा, उसे कहना पड़ा शक यहां ऐसा हुआ,
दे खा, िो उसकी आं ख में आं सू हैं । िह बहुि है रान हुआ! उसने कहा: रोने
की क्या बाि है ? क्या िेरे मन में मोह आ रहा है शक िे रुपये मैंने क्यों गड़ा
शदए? शमि क्यों न गए? क्या उसकी पीड़ा िुझे हो रही?
िह युिा फकीर हं सिा बैठा रहा। राजा ने सोचा शक मैं गया शक थोड़ी दे र में
िह शनकाि िेगा, िेशकन छह महीने बाद िह आया और उसने आकर पू छा
शक मैं एक भें ट कर गया था, हीरा, िह कहां है ? उस युिा ने कहा शक मैं कभी
शकसी की जीिन में भें ट शिया ही नहीं। िोग िाि जािे हैं िे जाने।
संसार के प्रशि कोई दृशष्ट नहीं बनानी है । संसार के प्रशि कोई भाि नहीं बनाना
है । कोई भी भाि अज्ञान में आप बनाएं गे िह गिि होगा। अपने भीिर स्वयं
के बोध को जगाना है । बोध के जगने पर जो भी होगा, िही ठीक होगा।
असम्यक दृशष्ट होगी िो सब संबंध असम्यक होंगे, गिि होंगे, शमथ्या होंगे।
दृशष्ट भीिर िुि होगी, ठीक होगी, सम्यक होगी, िो जो भी संबंध होंगे, जो भी
भाि होंगे, जो भी शिचार होंगे जगि के संबंध में, िे ठीक होंगे। सब ठीक
होना दृशष्ट के ठीक होने पर शनभय र है ।
इसशिए मैं यह नहीं कह सकिा शक पत्नी के प्रशि आप क्या भाि रखें। क्योंशक
अगर आप यह भाि रखिे हैं शक पत्नी मेरी पत्नी है िो भू ि है , अगर आप यह
भाि रखिे हैं शक पत्नी िो मेरी मां जैसी है , िो भी भू ि है , क्योंशक जब आप यह
सोचिे हैं शक पत्नी को िो मैं मां जैसा मानूं, िब आप उसे पत्नी जैसा ही मान
रहे हैं ।
इसके कहने की जरूरि में यह शछपा हुआ है शक हर स्त्री आपकी बहन नहीं
है , िह आपको पिा है । उसे झुठिाने को, उसे शछपाने को आप यह दू सरा
रूप ओढ़ रहे हैं । जब कोई आदमी कहिा है शक यह सब संसार असार है , िो
समझना की अभी उसके मन में सार शछपा हुआ है । इसे बार-बार दोहराने
की कोई जरूरि नहीं है शक संसार असार है । यह अपने को समझाना है ।
एक आदमी रोज सुबह-सुबह बैठ कर िय करिा है शक मैं िो िरीर नहीं हं मैं
एक साधु मेरे पास आए, मैंने उनसे पू छा, आप क्या साधना करिे हैं ? उन्ोंने
कहा: मैं िो यही साधना करिा हं शक मैं िरीर नहीं हं मैं आत्मा हं । मैंने कहा:
अगर यह पिा चि गया, िो इसे दोहरािे क्यों हैं ? और अगर यह पिा नहीं
चिा, िो दोहराने से क्या होगा? और जब आप दोहरािे हैं बार-बार शक नहीं,
मैं िरीर नहीं, मैं िो आत्मा हं , िब मैं समझिा हं शक आप जानिे हैं शक आप
िरीर हैं , िह आपके भीिर शछपी हुई है बाि।
शजस बाि को आप जानिे हैं शक आप नहीं हैं , आप कभी कहिे नहीं सुने जािे
शक यह मैं नहीं हं । आप यहां आकर यह नहीं कहें गे शक यह जो पहाड़ है , यह
मैं नहीं हं । कोई कहे गा, आप पागि हो गए, इसे कहने की कोई जरूरि
नहीं। िेशकन आप बार-बार अगर कहिे हैं शक मैं िरीर नहीं हं , िो िक है ,
आपको िरीर होने का िक है ।
शििरागिा अंिदृय शष्ट के जागने से िुरू होिी है । संसार के प्रशि कोई दृशष्ट
रखने को नहीं कहिा हं , अपनी अंिदृय शष्ट जगाने को कहिा हं । उस जाग जाने
पर जो दृशष्ट होगी, िह सम्यक होगी। उस दृशष्ट में न िो भोग होगा, न राग
ओिो पृष्ठ संख्या 283
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होगा, न द्वे ष होगा, न शिराग होगा। न िो पकड़ होगी, न छोड़ने का आग्रह
होगा। जीिन होगा, सरि जीिन होगा।
स्त्री स्त्री है , पत्थर पत्थर है , मकान मकान है , सब अपने अपने में हैं । आपको
कोई दृशष्ट रखने बड़ी जरूरि नहीं शक िह साथय क है शक शनरथय क है । उस
िि एक सहज जीिन, स्पां टेशनयस िाइफ िुरू होिी है । चीजें जहां हैं िे
िहां हैं , हम जहां हैं हम जहां हैं , और जीिन में िब, हम उनके प्रशि कोई दृशष्ट
बां ध कर नहीं चििे, बस्ल्क सहज जीिे हैं , क्योंशक दृशष्ट हमारी जागी होिी है ।
मैं समझिा हं मेरी बाि आपको खयाि में आई होगी। अब हम राशत्र के ध्यान
को बैठेंगे ।
थोड़ी सी बािें राशत्र के ध्यान के संबंध में दो बािें समझ िें, सुबह का ध्यान जो
हमने शकया, िह बै ठ कर करने के शिए था। सुबह उठ कर जब आप िर पर
उस प्रयोग को करें गे , िो िह बैठ कर करने का है । राशत्र का ध्यान सोने के
पहिे करने का है जब आप नींद को जाने को हों, अपने शबस्तर पर ही करने
का है । िो सामान्यिया राशत्र का ध्यान िेट कर करना उशचि है । चूंशक यहां
िेटने िायक जगह नहीं होगी, इसशिए हम बैठ कर करें गे ।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-12
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
बारहिाां प्रिचन
सत्य को खोजने की कोई जरूरि नहीं है । यशद चाहें पूरी हो जािीं, िो सत्य
को कोई भी नहीं खोजिा। अगर संिुशष्ट शमि जािी, सुख शमि जािा, सत्य को
कोई भी नहीं खोजिा। िेशकन जो हमारी सहज चाह है िह शकिनी ही पूरी
हो, िो भी जीिन को अथय और संिोष नहीं शमििा। इसी पीड़ा, इसी ददय , इसी
परे िानी से ऊब कर मनुष्य संिुशष्ट से हटिा है और सत्य की खोज में िगिा
है । शकसी के कहने से कोई सत्य की खोज में नहीं िगिा, उसके जीिन का
अनुभि ही उसे उस िरफ िे जािा है ।
अगर मन चंचि न हो, िो शजस चीज में भी इच्छा िगे गी मन िहीं अटका रह
जाएगा। िेशकन मन कहीं भी नहीं अटकिा, सब चीजों को व्यथय कर दे िा है
अिाइस ने दौड़ना िुरू शकया, सुबह थी, सूरज ऊग रहा था, अिाइस दौड़ने
िगी। पास का ही झाड़ था, काफी दौड़ी, शफर उसने खड़े होकर दे खा, झाड़
उिना ही दू र है शजिना पहिे था। उसने शचल्ला कर पूछा--ज्यादा दू र नहीं
था, शचल्ला कर पू छ सकिी थी, इिना ही फासिा था--उसने शचल्ला कर
पूछा, मामिा क्या है ?
उसने शफर दौड़ना िुरू कर शदया। दोपहर हो गई, सूरज ऊपर आ गया,
पसीना छूटने िगा, उसने खड़े होकर दे खा, िह झाड़ उिने के उिने दू र है ।
िह रानी िहीं खड़ी है और कहिी है , आ जाओ।
उसने शफर पूछा, यह मामिा क्या है ? मैं दौड़िी हं , पहुं चिी नहीं।
िह दौड़ने िगी, सां झ हो गई, सूरज ढिने िगा, अंधेरा होने िगा। उसने
शचल्ला कर पूछा, अब िो यह शबिकुि पागिपन हो गया। मैं दौड़ी जा रही हं
और सूरज भी िूबने िगा, अंधेरा भी आने िगा, झाड़ उिने ही दू र है । उसने
उस रानी से पूछा, क्या िुम्हारे मुल्क में रास्ते कहीं पहुं चािे नहीं? उस रानी ने
कहा: शकसी मुल्क में रास्ते कहीं नहीं पहुं चािे। िुम्हारी जमीन पर भी नहीं
पहुं चािे।
रास्ते कहीं नहीं पहुं चािे, इससे िबड़ा कर सत्य की खोज िुरू होिी है । यह
शकसी के सीखने शसखाने की बाि नहीं है । जब आपको यह शदखाई पड़िा है
एक राजा हुआ शमश्र में। एक फकीर था। उसे आदर करिा था, िो कभी-
कभी फकीर के पास शमिने जािा था। एक शदन दोपहर में राजा फकीर से
शमिने गया। फकीर का छोटा सा खेि था, बशगया थी, िहीं फकीर काम
करिा था, ऊब जािा था मेहनि से।
जब राजा पहुं चा, िो फकीर िो नहीं था, एक और छोटा युिा शिष्य बैठा हुआ
था। राजा ने कहा शक जाओ अपने गु रु को ढूंढ़ िाओ, बुिा िाओ। िो उस
शिष्य ने कहा शक आप बैठ जाएं , मैं बुिा िािा हं । खेि की मेंड़ थी, शमट्टी थी,
इस पर बैठ जाएं झाड़ के नीचे मैं बुिा िािा हं । राजा ने कहा: िुम बुिा
िाओ, मैं यहीं टहिूंगा। िह उस शमट्टी पर टहिने िगा। युिा ने सोचा, िायद
शमट्टी पर बैठना उसे पसंद नहीं, उसने राजा से कहा, आप झोपड़े के भीिर
आ जाएं । झोपड़े के भीिर राजा चिा गया। उसने एक चटाई िाि दी और
युिा दौड़ा हुआ गया, पीछे खेि से, बगीचे से फकीर को बुिा कर िाया।
रास्ते में उसने कहा: यह राजा का शदमाग कुछ ठीक नहीं मािूम होिा। मैंने
कई दफे कहा, बै ठ जाओ, िह कहिा है , िुम जाओ, बुिा िाओ और टहिने
िगिा है , बैठिा नहीं है । िह फकीर हं सने िगा, उसने कहा: राजा का
शदमाग खराब नहीं, हमारे झोपड़े में उसके बैठने िायक कोई थथान ही नहीं
है । शसंहासन चाशहए उसे। िह होिा, िो िह बैठ जािा। शमट्टी पर, मेंड़ पर
नहीं बैठिा, झोपड़े में गं दी चटाई है उस पर नहीं बैठिा, असि में उसके
बैठने िायक कोई जगह नहीं है ।
बाहर की सारी दौड़ व्यथय हो जािी है , िो अंिस में जाने का प्रश्न और शिचार
और शजज्ञासा खड़ी होिी है । कोई दू सरा आपको यह नहीं शसखा सकिा।
शकिना ही कोई िास्त्र पढ़ाए, शकिना ही कोई समझाए, शकिने ही उपदे ि
करे , नहीं समझा सकिा। जीिन का अनुभि।
इसशिए मैंने कहा: सत्य की खोज के शिए खुिी हुई आं खें होनी चाशहए। खुिी
हुई आं खों से मििब है : जीिन के अनुभि को दे खने की क्षमिा होनी
चाशहए। चारों िरफ यशद हम दे खेंगे, िो िह अनुभि अपने जीिन में दे खेंगे,
िो िह अनुभि, सारे अनुभि इकट्ठे होकर मनुष्य को सत्य की खोज में
अग्रसर करिे हैं ।
मैं नहीं कहिा शक आप खोजें। मैं नहीं कहिा शक आप खोजें। िेशकन शफर
आप क्या खोजेंगे? आप कहिे हैं हम सत्य को क्यों खोजें? मैं नहीं कहिा
आप खोजें। िेशकन शफर आप क्या खोजेंगे? संिुशष्ट खोजेंगे; संिुशष्ट को
खोज-खोज कर पाएं गे शक नहीं शमििी, शफर क्या करें गे ? शफर सत्य को
खोजेंगे।
संिुशष्ट जहां असफि हो जािी है िहीं सत्य की खोज िुरू हो जािी है । सुख
की खोज जहां असफि हो जािी है , पूर्यिया असफि हो जािी है , िहीं सत्य
की खोज िुरू हो जािी है । इसमें कोई शकसी के शसखाने की बाि नहीं। मैं
शकसी से नहीं कहिा शक सत्य खोजें । मैं िो यही कहिा हं शक जो आपको
ठीक िगे , उसी को खोजें। िेशकन आं खें खुिी रखें, अंधे होकर न खोजें। जो
आपको ठीक िगे--िासना ठीक िगे , िासना खोजें; सुख ठीक िगे , सुख
बहुि िोग इकट्ठे हो गए। रामकृष्ण को िोगों ने कहा शक बड़ी मुस्िि होने
िािी है , केिि आिे हैं शििाद करने को। और बहुि िोग दे खने को आिे हैं ।
केिि आए, बड़ी भीड़ साथ आई। किकत्ते के बड़े शिचारिीि, िाशकयक,
सारे िोग इकट्ठे थे । रामकृष्ण के भि बड़े िबड़ाए हुए। रामकृष्ण बड़े प्रसन्न
ओिो पृष्ठ संख्या 294
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
थे शक जब इिने िोग आ रहे हैं , िो जरूर कोई मजे की बाि होगी ही। शफर
केिि ने शििाद िुरू शकया। केिि ने कहा: ईश्वर-िगैरह कुछ भी नहीं है ।
और बड़े िकय शदए। जब केिि िकय दे िे थे , िकय पूरा होिा था, रामकृष्ण खड़े
होकर केिि को गिे िगा िेिे थे शक शकिना अदभु ि, शकिनी अदभु ि बाि
कही।
रामकृष्ण खड़े हुए, बोिे, अब मैं कुछ कहं : हाथ जोड़े भगिान के और कहा:
कैसा अदभु ि है परमात्मा! ऐसी बुस्ि भी िू पैदा करिा है ! और केिि को
कहा: शिश्वास मान केिि, िू ज्यादा शदन नास्स्तक नहीं रह सकेगा। ऐसी बुस्ि
जहां है , िहां नास्स्तकिा शकिनी दे र शटकेगी? िू ज्यादा शदन नास्स्तक नहीं
रह सकेगा। ऐसी बुस्ि जहां है , ऐसा शििेक जहां है , िहां िू ज्यादा दे र िक
नास्स्तक नहीं रह सकेगा। अदभु ि है , मैं िो खूब प्रसन्न हो गया। परमात्मा के
मैं भी आपसे कहिा हं , शििेक हो, िो बहुि शदन संिुशष्ट की खोज नहीं कर
सकिे। सत्य की खोज अशनिायय है । िो मैं नहीं कहिा शक सत्य की खोज करें ।
मैं िो इिना ही कहिा हं , शििेक जाग्रि हो, होि जाग्रि हो। शफर जो आपको
करना है करें । जहां जाना है जाएं । जो आपका मन हो करें । कोई अंिर नहीं
पड़िा शक आप कहां जािे हैं । मैं आपसे नहीं कहिा शक मंशदर जाएं , मैं नहीं
कहिा शक कोई सत्य की खोज मैं कोई शििेष काम करें ।
होि जाग्रि होगा, िो आज नहीं कि, आपकी जो संिोष की, सुख की,
िासना की खोज है िह व्यथय हो जाएगी और उसकी जगह थथाशपि हो जाएगी
सत्य की खोज। िह आपके अनुभि से थथाशपि होिी है शकसी की शिक्षा और
उपदे ि से नहीं।
एक आदमी के पैर में फोड़ा हो, अगर िह शकसी भां शि यह भू ि जाए शक मेरे
पैर में फोड़ा है िो उसे बड़ा सुख शमिेगा, िेशकन इस सुख में और फोड़े के
शमट जाने में बड़ा भे द है ।
एक छोटा सा बच्चा राि में न सोिा हो, िो उसकी मां िोरी गाकर उसे सुिा
दे िी है । एक गीि गाकर सुिा दे िी है । गीि में एक कड़ी होिी है या दो कड़ी
होिी है । एक ही कड़ी को बार-बार दोहराने से िायद मां यह सोचिी हो शक
सारी दु शनया में शहप्नोशटस्टों ने, सम्मोहकों ने, मैस्मेररजम िािों ने, शकसी भी
चीज को बार-बार दोहरा कर िोगों को मूस्च्छय ि करने के उपाय शनकािे हैं ।
आप शकसी भी चीज को बार-बार दोहराए जाएं , आप मूस्च्छय ि हो जाएं गे ।
शनशिि सहयोगी है । क्योंशक अगर बुस्िहीन हो, िो शिचार कहां होंगे। िेशकन
मैं जो कह रहा हं शक शिचार से मुि होना चाशहए, िह शिचार का, प्रिाह का
इस भां शि नष्ट होना नहीं है शक आप जड़बुस्ि हो जाएं । शिचार िून्य होने
चाशहए, चेिना जाग्रि होनी चाशहए। शिचार दो िरह से िून्य होिे हैं : चेिना
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जड़ हो जाए, िो भी शिचार िून्य हो जािे हैं और चेिना मुि हो जाए, िो भी
शिचार िून्य हो जािे हैं । चेिना को जड़ करके शिचार िून्य नहीं होना है ,
शिचार मुि होना है । िो शकसी िरह का ररपीटीिन, पुनरुस्ि मस्स्तष्क को
शिकशसि नहीं करिी, न कर सकिी, न कोई कारर् है ।
अभी मैं एक जगह था, और एक व्यस्ि को मेरे पास िाया गया। शकसी साधु
के, शकसी गु रु के चक्कर से उसका जीिन बबाय द हुआ। बहुि िोगों का
बबाय द हुआ है । बहुि िोगों का बबाय द हो रहा है और आगे भी होिा रहे गा।
क्योंशक यह परं परा इिनी ज्यादा गहरी हमारे मन को पकड़े हुए है , उसे
शकसी ने कहा होगा शक राम का जप करो, इससे सत्य शमि जाएगा।
मन में राम-राम उसने िुरू कर दी। कोई भी काम करिा, भीिर मन में
राम-राम चिाए रखिा। स्वाभाशिक था, एब्सेंट माइं िेिनेस पैदा हो गई।
क्योंशक बाहर एक काम करे गा और भीिर राम-राम जपेगा। मन का जो बोध
है िह एक ही िरफ रह सकिा है । िो बाहर उससे भू ि-चूक होने िगी।
शमशिटरी में िेस्िनेंट था। बड़ी परे िानी हो गई। उसके आशफसरों ने भी
िह पागि था, शहम्मि से िगा रहा। शहम्मि से िगा रहा। छह महीने के बाद
उसकी नींद उचट गई। क्योंशक अगर चौबीस िंटे कोई टें िन मन में हो, यह
बड़ा टें िन है शक राम-राम, राम-राम जपिा रहे कोई आदमी चौबीस िंटे। िो
इिना भीिर िनाि हो, िो शचत्त का शिश्राम खो गया। शिश्राम खोने से िह
उदास हो गया, अस्वथथ हो गया, मन में न मािूम क्या-क्या परे िाशनयां पै दा
हो िगीं। िेशकन गु रु ने कहा: यह सब िो होगा। यह सब िो होिा है । िो िुम
जारी रखो। िो उसने और भी जारी रखा।
दु शनया में मैं शमशिटरी के शिरोध में इसशिए नहीं हं शक िह शहं सा करिी है ,
इसशिए शिरोध में हं शक िाखों िोग बुस्िहीन हो जािे हैं , उनकी बुस्ि खो
जािी है । िे शसफय आज्ञा पाि सकिे हैं । उनमें शिचार नहीं रह जािा।
बुि के जीिन में सुना कभी बेहोि हो गए? क्राइस्ट के जीिन में सु ना कभी
बेहोि हो गए? बेहोि होना, मूस्च्छय ि हो जाना और आप समझिे हैं शक यह
मेरे पास िोग आिे हैं , अभी एक प्रश्न भी आया, पीछे शकसी ने आकर भी पूछा
शक आपका जो ध्यान है , हम करिे रहिे हैं , िेशकन हमें पशक्षयों की आिाज
सुनाई पड़िी है , हमें आस-पास का पिा चििा है । िो मैंने कहा: पिा िो
बढ़ना चाशहए, क्योंशक भीिर हम बोध को जगाने की कोशिि कर रहे हैं , बोध
को सुिाने की नहीं।
िोग सोचिे हैं , ध्यान का अथय है , कुछ भी पिा न चिे। िह िो मूच्छाय है । कुछ
भी पिा न चिे िह मूच्छाय है । सब कुछ पिा चिे, िेशकन भीिर ररएक्शन न
हो। सब कुछ पिा चिे, िेशकन भीिर प्रशिशक्रया न हो।
एक कौिे की आिाज आए, सुनाई पड़नी चाशहए। जो आदमी ध्यान में है , उसे
आपकी बजाय ज्यादा स्पष्ट सुनाई पड़नी चाशहए। उसकी सेंसेशटशिटी बढ़
जाएगी। उसकी संिेदनिीििा बढ़ जाएगी। क्योंशक िह इिना िां ि बैठा है ,
उसके भीिर कोई शिचार नहीं चि रहा है , होि में बै ठा है , एक सुई भी
शगरे गी िो उसे उसकी आिाज मािू म पड़नी चाशहए। आप शिचार में उिझे
हुए हैं , आपको पिा नहीं चिेगा। अभी मैं बोि रहा हं , आप मुझमें उिझे हुए
हैं ; यह इिनी बड़ी मिीन चि रही है , हो सकिा है िह आपको सुनाई न
पड़े , जब मैं कहं गा, िब सुनाई पड़े गी, नहीं िो आपका पिा नहीं चि रही थी
शक िह है । चि रही है । एक कौआ बोिेगा, आपको सुनाई नहीं पड़े गा।
आप मुझमें उिझे हुए हैं , उिझे होने की िजह से कौआ सुनाई नहीं पड़
रहा। िेशकन जब आप शबिकुि नहीं उिझे हुए हैं , शबिकुि िां ि हैं , िो
धीमी सी आिाज भी सुनाई पड़े गी। फकय क्या पड़े गा? आिाज िो सुनाई
पड़े गी, िेशकन आपके भीिर कोई प्रशिध्वशन पैदा नहीं होगी। आप यह नहीं
बोध नहीं मर जाना चाशहए। अगर बोध मर गया, िो आप मूस्च्छय ि हो रहे हैं ।
मूस्च्छय ि नहीं होना है । िेशकन जप जैसी शक्रयाएं मूस्च्छय ि करिी है मन को।
मूच्छाय में सुख आिा है । शनशिि सु ख आिा है । असि में दु शनया में जब भी
सुख आिा है , समझ िेना शकसी न शकसी भां शि की मूच्छाय काम कर रही है ।
मूच्छाय में ही सुख आिा है । और अमूच्छाय में आनं द आिा है । मूच्छाय में सुख,
अमूच्छाय में आनंद। मूच्छाय में संिुशष्ट, अमूच्छाय सत्य। िह जो मैंने पहिे आपसे
पहिे शदन कहा था, एक खोज संिुशष्ट की है , संिुशष्ट की खोज का अथय है ,
मूच्छाय की खोज, शकसी भां शि हम मूशछय ि हो जाएं । हमें अपना पिा न रहे । हम
शकसी भां शि अपने को भू ि जाएं । शफर चाहे िराब में भू िें, चाहे संगीि में
भू िें, चाहे सेक्स में भू िें और चाहे भजन-कीियन में भू िें, जपत्तप में भू िें, भू ि
जाएं शकसी िरह अपने को, िो बड़ा अच्छा रहे । ये सब आत्मिािी प्रिृशत्तयां
हैं , स्युसाइिि प्रिृशत्तयां हैं , अपने को मारने की प्रिृशत्तयां हैं , अपने को, अपने
को जीिन को जगाने की प्रिृशत्तयां नहीं हैं ।
औरं गजेब ने जब अपने बाप को बंद कर शदया, जेि में बंद कर शदया, िो
बादिाह था, सारी िस्ि थी, उसने कहा शक बंद करने के बाद उसने
औरं गजेब को कहा: एक काम कम से कम करो, मुझे िीस बच्चे दे दो, िो मैं
उनको पढ़ािा-शिखािा रहं गा। औरं गजेब ने शकसी से कहा: उसकी
बादिाहि नहीं जािी। जेि में बं द है , िीस बच्चों के ऊपर माशिक हो
जाएगा। उनको समझाएगा, बुझाएगा, ज्ञान दे गा, िहां िह शफर केंि हो
जाएगा।
आपके उपदे ि, आपकी शिक्षाएं , उसे जड़बि करें गी, उसके शचत्त को
परिंत्र करें गी, िह स्वयं जानने में असमथय हो जाएगा। आप उसके बोध को
जगाएं ।
पहिी जरूरि होगी अपने बोध को जगाने की। जब आपका बोध जगे गा िो
आप जानेंगे शक क्या शनयम है बोध के जगने के।
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-13
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)
ओिो
तेरहिाां प्रिचन
प्रकृशि चारों िरफ फैिी हुई है , िेशकन हमारा मन दपयर् की भां शि नहीं है ।
इसशिए उसके भीिर उस प्रकृशि की कोई छशि नहीं उिरिी, कोई शचत्र नहीं
बनिे। और िब हम िंशचि हो जािे हैं उसे जानने से जो हमारे चारों िरफ
मौजूद है ।
कैसे हमारा मन दपयर् बन जाए? थोड़ी सी बािें इस सं बंध में मैंने िुमसे की
हैं , आज और दो-िीन सूत्रों पर िुमने बाि करू
ं ।
अगर इन सूत्रों पर थोड़ा प्रयोग करो, श्रम करो, िो कोई कशठनाई नहीं है शक
िुम भी एक शनमयि शचत्त को उपिब्ध हो जाओ, एक िां ि मन को उपिब्ध हो
क्राइस्ट से शकसी ने एक बार पूछा, िे एक बाजार में खड़े थे , कुछ िोग उन्ें
िेर कर खड़े हुए थे और उनसे कुछ बािें पूछ रहे थे, िभी शकसी ने उनसे
पूछा शक परमात्मा के राज्य में कौन िोग प्रिेि कर सकेंगे ?
श्वास पर भी हमारा कोई िि नहीं है , कोई िस्ि नहीं, कोई िाकि नहीं,
शफर भी हम सोचिे हैं , मैं कुछ हं ! क्या हमारी सामथ्यय है ? शकिनी हमारी
िस्ि है ? मनुष्य का बि शकिना है ? अगर हम जीिन को दे खें, िो ज्ञाि
होगा, हमारा कोई भी िो बि नहीं है । बहुि छोटी सी सीशमि सामथ्यय है । उसी
सामथ्यय में हमारे भीिर दं भ और अहं कार पैदा हो जािा है ।
समझेंगे िो ज्ञाि होगा हम िो ना-कुछ हैं । जैसे हिा में उड़िे हुए पत्ते होिे हैं ,
िैसी हमारी स्थथशि है । पै दा हुए, हमें ज्ञाि नहीं, क्यों? पैदा होने में िुमसे
शकसी से पूछा नहीं गया शक पैदा होना है या नहीं? िुमसे कोई, िुम्हारी कोई
चुनाि, िुम्हारी कोई इच्छा काम नहीं की। मरिे िि यह कोई पूछेगा नहीं।
जीिन की शक्रया में भी िुम्हारा कोई िि नहीं है । शजस शदन श्वास आनी बं द हो
जाएगी, िुम चाहो िो भी श्वास आ नहीं सकिी। अगर मनुष्य के हाथ में यह
होिा शक िह जब िक चाहे श्वास िे सकिा, िब िो कोई आदमी मरिा ही
नहीं। और शकिना छोटा सा जीिन है , और उस जीिन में हमारे हाथ में क्या
है ।
एक छोटी सी िटना कहं , उससे मेरी बाि िुम्हें समझ में आए।
एक बहुि बड़े राज्य महि के शनकट कुछ थोड़े से बच्चे खेि रहे थे । एक बच्चे
ने एक पत्थर की ढे री में से एक पत्थर उठाया और राजमहि की स्खड़की की
िरफ फेंका। िह पत्थर अपने पत्थर की ढे री से ऊपर उठा। बच्चे ने फेंका िो
पत्थर ऊपर उठा। उस पत्थर ने नीचे जो पत्थर पड़े थे उनसे कहा: शमत्रो, मैं
आकाि की सैर को जा रहा हं । बाि ठीक ही थी, गिि कुछ भी न था।
यह भी बाि ठीक ही थी। कां च टू ट ही गया था, टु कड़े -टु कड़े हो गया था।
पत्थर का यह गरूर भी ठीक ही था शक मैंने कहा है शक मेरे रास्ते में जो
िेशकन उसे जानने के शिए सरि होना जरूरी है । और सरि होने के शिए
जो-जो झूठ हमने ओढ़ रखे हैं , उन सबको शिदा कर दे ना जरूरी है । जो-जो
अशभनय हमने ओढ़ रखे हैं , िे सब समाि कर दे ने जरूरी हैं । झूठा व्यस्ित्व
टू ट जाए िो ही सत्य का अनुभि हो सकिा है । और अगर यह बचपन से ही
स्मरर् हो, और यह बहुि छोटी उम्र से खयाि में हो, िो शफर हम झूठे
व्यस्ित्व से ओढ़ने से भी बच सकिे हैं ।
िुम खुद खयाि करोगी, शकिनी बािें हम झूठी ओढ़े रखिे हैं । शकिनी बािें?
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हम जैसे होिे हैं िै सा हम कभी बिािे नहीं। हम जैसे नहीं होिे हैं िैसा हम
बिाने की कोशिि करिे हैं । हम शजिने सुंदर नहीं हैं , उिने सुंदर शदखने की
कोशिि करिे हैं । हम शजिने सच्चे नहीं हैं , उिने सच्चे शदखने की कोशिि
करिे हैं । हम शजिने ईमानदार नहीं हैं , उिने ईमानदार शदखने की कोशिि
करिे हैं । हम शजिने प्रेमपूर्य नहीं हैं , उिने प्रेमपूर्य शदखने की कोशिि करिे
हैं । िब क्या होगा? िब इस कोशिि में झूठ धीरे -धीरे हमारे चारों िरफ
शिपटिा चिा जाएगा। और जो हम नहीं हैं िही हमें ज्ञाि होने िगे गा शक हम
हैं ।
मैंने सुना है , िंदन में कोई सौ िषय पहिे िेक्सशपयर का एक नाटक चि रहा
था। िहां का जो सबसे बड़ा धमय-पु रोशहि था, धमयगुरु था, जो सबसे बड़ा
शबिप था िंदन का, िह भी दे खना चाहिा था उस नाटक को। िेशकन
संन्यासी, साधु, धमयगुरु नाटक दे खने नहीं जािे, और अगर िुम्हें िे शमि जाएं
शसनेमागृ ह में िो िुमको भी है रानी होगी, और िे िो परे िान हो ही जाएं गे ।
नाटक दे खने िे नहीं जािे, क्योंशक जीिन में जहां भी सुख है और रस है िे
सबके शिरोधी हैं ।
िैसे ही जैसे िुम्हें शदखाई पड़े शक िुम्हारे पैर में फोड़ा है और िुम शबना इिाज
के जीना चाहो। या िुम्हें जैसे शदखाई पड़ जाए, िुम्हें पिा चि जाए शक िुम्हारे
फेफड़े खराब हो गए हैं , क्षयरोग हो गया, टी.बी. हो गया, कैंसर हो गया, और
िुम शबना इिाज के जी जाओ। अगर िुम्हें पिा ही न चिे िो दू सरी बाि है ।
िेशकन अगर िुम्हें ज्ञाि हो जाए शक िुम्हारे भीिर कोई गहरी बीमारी है , िो
िुम उस बीमारी के इिाज में शनशिि ही उत्सुक हो जाओगे । अगर िुम्हें पिा
चि जाए शक िुम्हारे भीिर झूठ है , िो उस झूठ के साथ जीना कशठन है ।
क्योंशक झूठ बड़े से बड़े फोड़ों से भी ज्यादा पीड़ादायी है । और झूठ बड़ी से
बड़ी बीमाररयों से भी बड़ी बीमारी है ।
एक बार िुम्हें स्पष्ट रूप से अपने पूरे व्यस्ित्व का बोध होना चाशहए शक मेरे
भीिर क्या है और क्या नहीं है । और इसे कोई दू सरा िुम्हें नहीं बिा सकिा।
यशद िुम खुद ही शनरीक्षर् करोगी, िो शदखाई पड़े गा। िेशकन शनरीक्षर् िभी
सफि होगा, जब िुम अपने को धोखा दे ने के शिए शनरं िर श्रम न करो। अगर
िुम शनरं िर अपने को धोखा दे ने में िगी रहो, िो बहुि कशठनाई है ।
िे िोग बहुि है रान हुए। क्योंशक कोई गाशियों का उत्तर कि नहीं दे िा! अगर
मैं िुम्हें गािी दू ं , िो िुम अभी कुछ करोगी। अगर कोई िुम्हारा अपमान करे ,
िो िुम उसी िि कुछ करोगी। ऐसा िो कोई भी नहीं कहे गा िां शि से शक
हम कि आएं गे और उत्तर दें गे।
उसने कहा: पहिे मैं सोचूं जाकर शक िुमने जो अपमान शकया कहीं िह ठीक
ही िो नहीं है ? हो सकिा है िुमने जो बुराइयां मुझमें बिाईं, िे मुझमें हों?
और अगर िे मुझमें हैं , िब मैं िुम्हें कि धन्यिाद दू ं गा आकर शक िुमने
अच्छा मेरे ऊपर उपकार शकया, मेरे ऊपर कृपा की। और अगर िे मुझमें
नहीं हैं , िो मैं शनिे दन कर जाऊंगा शक िुम और सोचना, िे बुराइयां मैंने अपने
में नहीं पाईं। झगड़े का इसमें कोई कारर् नहीं है ।
िह दू सरे शदन आया और उसने कहा शक िुमने जो बािें कहीं, िे मेरे भीिर
हैं । इसशिए मैं धन्यिाद दे िा हं । और भी िुम्हें कोई बुराई कभी मुझमें शदखाई
पड़े , िो संकोच मि करना, मुझे रोकना और बिा दे ना।
ऐसा व्यस्ि होना चाशहए। ऐसा हमारा शचंिन होना चाशहए। ऐसी हमारी दृशष्ट
होनी चाशहए। और ऐसा आदमी बहुि शदन िक बुराइयों में नहीं रह सकिा,
उसका जीिन िो बदि जाएगा। और इिनी सरििा होनी चाशहए। िो ऐसा
सरि मनुष्य परमात्मा से ज्यादा शदन दू र नहीं रह सकिा। इिनी सरििा
होनी चाशहए। इिनी ह्यूशमशिटी होनी चाशहए। इिनी शिनम्रिा होनी चाशहए
मन की, इिना मुिपन होना चाशहए शक हम अपनी बुराइयां दे ख सकें,
नहीं िो सारे िोग करीब-करीब अशभनेिा हो जािे हैं । जो उनके भीिर नहीं
होिा, उसको ओढ़िे हैं ; जो नहीं होिा, उसको शदखिािे हैं । और िब शफर
शचत्त कशठन और जशटि होिा चिा जािा है ।
छोटी उम्र से अगर यह बोध िुम्हारे मन में आ जाए शक मुझे अपने भीिर कम
से कम अपनी सच्चाई को जानने की सिि चेष्टा में संिग्न रहना चाशहए। जो
भी मेरे भीिर है उसे दे खने का मुझमें साहस होना चाशहए। उसे ढां कना, उसे
ओढ़ना, उसे शछपाना, शकससे शछपाएं गे हम? दू सरों से शछपा िेंगे, िेशकन
खुद से कैसे शछपाएं गे ? और शजस बाि को हम शछपािे चिे जाएं गे , िह शजं दा
रहे गी, िह शमटे गी नहीं। उसे उिाड़ें और दे खें और पहचानें, और जब उसकी
पीड़ा अनुभि होगी, िो उसकी बदिाहट का शिचार, उसको पररिियन करने
का खयाि, उसे स्वथथ करने की िृशत्त भी पैदा होिी है ।
और सबसे बड़ी बाि है , इस सारी प्रशक्रया में शचत्त सरि होिा चिा जािा है ।
इस सारी प्रशक्रया में शचत्त में एक िरह की अदभु ि िां शि और सरििा आने
िगिी है । क्योंशक कुछ शछपाने को नहीं होिा, िो आदमी जशटि नहीं होिा
है । और जो व्यस्ि इिना सजग हो शक उसे अहं कार का भाि न पैदा हो शक
मैं कुछ हं खास। जब उसे ऐसा शदखाई पड़ने िगे --जैसे िास-पाि है , जैसे
िृक्ष हैं , पिु हैं , पक्षी हैं ; जैसे और सारी दु शनया है िैसा मैं हं । इस सारे शिराट
जीिन का एक छोटा सा टु कड़ा, एक अत्यंि छोटा सा अर्ु, मेरा होना कोई
बहुि मूल्य नहीं रखिा, मेरे होने का कोई बहुि अथय नहीं है , मैं शबिकुि ना-
कुछ हं ।
िाओत्से नाम का एक बहुि अदभु ि फकीर चीन में हुआ। िह इिना शिनम्र
और सरि व्यस्ि था, इिना अदभु ि व्यस्ि था, ऐसे उसकी एक-एक
अंिददृय शष्ट बहुमूल्य है , उसके एक-एक िब्द में इिना अमृि है , उसके एक-
एक िब्द में इिना सत्य है शजनका कोई शहसाब नहीं। िेशकन आदमी िह
बहुि सीधा और सरि था। खुद सम्राट के कानों िक उसकी खबर पहुं ची।
और सम्राट ने कहा शक मैंने सुना है , यह िाओत्से नाम का जो व्यस्ि है बहुि
अशि असाधारर् है , बहुि एक्सटर ा आशिय नरी है ; सामान्यजन नहीं है , बहुि
असामान्य है , बहुि असाधारर् है ।
सम्राट उसे दे खने गया। सम्राट दे खने गया, िो उसने सोचा था, कोई बहुि
मशहमािािी, कोई बहुि प्रकाि को युि, कोई बहुि अदभु ि व्यस्ित्व का,
कोई बहुि प्रभाििािी व्यस्ि होगा। िेशकन जब िह द्वार पर पहुं चा, िो उस
झोपड़े के बाहर ही छोटी सी बशगया थी और िाओत्से उस बशगया में अपनी
िाओत्से ने कहा: भीिर चिें, बैठें, मैं अभी िाओत्से को बुिा कर आ जािा
हं ।
राजा बहुि है रान हुआ। उसने कहा: िुम िो िही बागिान मािूम होिे हो जो
बाहर थे ।
उसने कहा: मैं ही िाओत्से हं । कसूर माफ करें , क्षमा करें शक मैं छोटा सा
काम कर रहा था। िेशकन आप कैसे आए?
उस राजा ने कहा: मैंने िो सुना है शक िुम बहुि असाधारर् व्यस्ि हो, िुम िो
एकदम साधारर् मािूम होिे हो।
राजा िापस िौट गया। अपने मंशत्रयों से उसने जाकर कहा शक िुम कैसे
नासमझ हो, एक साधारर् जन के पास मुझे भे ज शदया।
उसने कहा: अगर मैं कोशिि करके साधारर् बनिा, िो शफर साधारर् बन
ही नहीं सकिा था। क्योंशक कोशिि करने में िो आदमी असाधारर् बन
जािा है । नहीं, मुझे िो शदखाई पड़ा, और मैं एकदम साधारर् था, मैंने
अनुभि कर शिया, बना नहीं। मैंने जाना शक मैं साधारर् हं । मैं बना नहीं हं
साधारर्। क्योंशक बनने की कोशिि में िो आदमी असाधारर् बन जािा है ।
मैं बना नहीं, मैंने िो जाना जीिन को, पहचाना, मैंने पाया, मुझे न मृत्यु का
पिा है , न जन्म का पिा है ।
मैंने पाया, यह श्वास क्यों चििी है , यह मुझे पिा नहीं; यह खून क्यों बहिा है ,
यह मुझे पिा नहीं। मुझे भू ख क्यों िगिी है , मुझे प्यास क्यों िगिी है , यह मुझे
पिा नहीं। मैंने पाया, मैं िो शबिकुि अज्ञानी हं । शफर मैंने पाया, मैं िो
शबिकुि अिि हं , मेरी कोई िस्ि नहीं। शफर मैं ने पाया, मैं िो कुछ
शिशिष्ट नहीं हं । जैसी दो आं खें दू सरों को हैं , िैसी दो आं खें मेरे पास हैं ; जैसे
दो हाथ दू सरों के पास हैं , िैसे दो हाथ मेरे पास हैं । मैं िो एक अशि सामान्य
व्यस्ि हं यह मैंने दे खा, पहचाना, मैं साधारर् बना नहीं हं , मैंने िो दे खा और
समझा और पाया, िो मैंने पाया शक मैं साधारर् हं ।
िेशकन यह िटना ऐसे िटी, शक मैं एक जंगि गया था, िाओत्से ने कहा: और
िहां मैंने िोगों को िकशड़यां काटिे दे खा, बड़े -बड़े दरख्त काटे जा रहे थे ,
ऊंचे-ऊंचे दरख्त काटे जा रहे थे , सारा जंगि कट रहा था, बढ़ई िगे हुए थे
िो मेरे शमत्र और मैं िहां गया, और मैंने िृि बढ़इयों से पूछा, जो िकशड़यां
काटिे थे , शक यह इिना दरख्त बड़ा कैसे हो गया?
इन बातोां को इतनी िाांशत और प्रेम से तुम सुनती रही हो, उसके शलए
बहुत-बहुत धन्यिाद। जो तुम्हारे प्रश्न होां, िह मैं रात उत्तर दे सकूांगा।
समाि