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साक्षी की साधना (साधना

शिशिर) 1966 कक ककक


ककक
कककककककक
(ककककककक,
"अअअअअअ अअअअअ अअ, अअ अअअअअअ ककककककक
अअअअ अअअअ अअअ अअ अअ अअ अअअअअ ककक) ककक
अअ, अअ अअअअअ अअअअ अअअअ अअअ अअ ककक
अअ अअअअअअअअअ अअअअ अअअअ अअ, ककककककक
अअअ अअअअअ अअ अअ अअ अअ अअ अअअअअ ककक
अअ अअअअअ अअ अअअअ अअअअअअ अअ (कककककक,
अअअअ अअअ अअ अअअअअ अअअअअअ कककककक)
अअअअअअ अअ अअअअ अअअ अअ अअ कक 1970 कक
अअअअअअ अअअअअ अअ अअ, अअअअ ककक ककक
अअअअअअ अअअअअ अअअअ अअअअ ककककक
अअअअअ, अअअअ अअअअअ अअअअ अअअअ ककककक
अअ अअ, अअअअ अअ, अअअअ अअअअअ ककककककक
अअअअअ, अअअअअअ अअअअ अअअ ककक ककक
अअअअअअ अ अअअ, अअअ अअअअअअअअ अ कककककक
अअअअ, अअअअ अअअअअअ अअअ अ ककक कक
अअअअअअ अअ, अअअ अअअअ अअअअअअ कककक कककक
अअअअअ अअ, अअ अअअअअअ अअअअ अअ कककककककक
अअअअअअ अअ अअअअ अअअअअअअअअ ककक ककककक
अअअअ अअ अअअअअ अअअअअ अअ अअअअ कककककककक
अअअअअअअ अअ अअअअअ अअ अअअअ अअअ कक कककककक
अअ अअअअअअ अअअ अअअअ अअअअअअअ कककककक
अअ अअअअअअ अअअअअअ अअअअ अअअ अअ
अअअ अअअअअअ अअअअअअ अअअ" – OSHO
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
वववववववव
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-01 ............................................ 2
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-02 ...........................................19
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-03 ........................................... 31
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-04 .......................................... 59
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-05 .......................................... 95
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-06 ......................................... 127
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-07 ......................................... 159
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-08 ......................................... 189
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-09 ......................................... 223
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-10 ......................................... 232
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-11......................................... 264
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-12 ......................................... 287
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-13.......................................... 307

ओिो पृष्ठ संख्या 1


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-01

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

पहला-प्रिचन

हम ध्यान के शिए बैठे थे । ध्यान से मे रा प्रयोजन है एक शचत्त की ऐसी स्थथशि


जहां कोई संिाप, जहां कोई प्रश्न, जहां कोई शजज्ञासा िेष न रह जाए। हम
शनरं िर जीिन-सत्य के संबंध में कुछ न कुछ पूछ रहे हैं । ऐसा मनुष्य खोजना
कशठन है जो जीिन के सत्य के संबंध में शकसी शजज्ञासा को न शिए हो। न िो
हमें इस बाि का कोई ज्ञान है शक हम कौन हैं , न हमें इस बाि का कोई ज्ञान
है शक हमारे चारों ओर जो जगि फैिा है , िह क्या है । हम जीिन के बीच में
अपने को पािे हैं शबना शकसी उत्तर के, शबना शकसी समाधान के। चारों िरफ
प्रश्न हैं और उनके बीच में मनुष्य अपने को शिरा हुआ पािा है ।

इन प्रश्नों में कुछ िो अत्यंि जीिन की बुशनयाद से सं बंशधि हैं । जैसे मैं क्यों हं ?
मेरी सत्ता क्यों है ? मेरे होने की क्या आिश्यकिा है ? क्या अशनिाययिा है ? और
शफर मैं कौन हं ? और यह जन्म और यह मृ त्यु? और जीिन का यह सारा
व्यापार क्यों है ? यह शजज्ञासा, ये प्रश्न प्रत्येक व्यस्ि के मन में--चाहे िह शकसी
धमय में पैदा हो, चाहे शकसी दे ि में पैदा हो, उठिा है ।

इस शजज्ञासा के हि करने के दो रास्ते हो सकिे हैं । एक रास्ता है ,


शफिासफी का, ित्व ज्ञान का--शक हम सोचें और शिचार करें शक हम कौन

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हैं ? शकसशिए हैं ? और जीिन की पहे िी के संबंध में शचंिन के माध्यम से कोई
समाधान खोजें। इस भां शि जो समाधान खोजा जाएगा, िह बौस्िक होगा।
शिचार करके हम शनर्यय करें गे । पशिम ने िैसा रास्ता पकड़ा। पशिम में जो
शफिासफी का जन्म हुआ, िह शचंिन के माध्यम से, शिचार के माध्यम से,
सत्य को जानने की चेष्टा से हुआ।

भारि में शफिासफी जैसी कोई चीज पैदा नहीं हुई। जो िोग भारिीय दियन
को भी शफिासफी कहिे हैं , िे शनिां ि भू ि की बाि करिे हैं । िह िब्द
पयाय यिाची नहीं है । शफिासफी और दियन पयाय यिाची िब्द नहीं हैं ।

पशिम में उन्ोंने सोचा शक शिचार के द्वारा हम सत्य के शकसी शनष्कषय पर


पहुं च जाएं गे । शपछिे ढाई हजार िषों में िे शकसी शनष्कषय पर नहीं पहुं चे। एक
शचंिक दू सरे शचंिक से सहमि नहीं होिा। एक शचंिक युिा अिथथा में जो
कहिा है स्वयं ही बुढ़ापे में उसे बदि दे िा है । आज जो कहिा है कि
पररिशियि हो जािा है । िाश्वि और शनत्य सत्य पर शचंिन नहीं िे जा सका।
असि में शिचार िे भी नहीं जा सकिा है ।

शिचार का अथय है : हम उन बािों के संबंध में सोच रहे हैं जो अननोन हैं ,
अज्ञाि हैं , शजन्ें हम जानिे नहीं। जै से मुझे प्रीशिकर िगिा है शक मैं कहं ,
जैसे अंधा प्रकाि के संबंध में शिचार करे , िो शिचार करे गा क्या? आँ ख
शजसके पास नहीं है ; प्रकाि के संबंध में शिचार करने का कोई उपाय भी
उसके पास नहीं है । कोई धारर्ा, कोई कंफेक्शन िह प्रकाि का नहीं बना
सकिा है । उसका शचंिन सब अंधेरे में टटोिना हो जाएगा।

िायद आपको यह खयाि हो शक अंधे को कम से कम अंधेरा िो शदखिा


होगा? सोच सकिा है शक अंधेरे के शिपरीि जो है िह सत्य होगा। िेशकन मैं
आपको स्मरर् शदिाऊं, अंधे को अंधेरा भी शदखिा नहीं। अंधे को अंधेरा भी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नहीं शदखिा है , क्योंशक अंधेरे को शदखने के शिए भी आँ ख चाशहए। न अंधे को
अंधेरे का पिा है और न प्रकाि का पिा है । उसे शिपरीि का भी पिा नहीं है ,
इसशिए प्रकाि के संबंध में कोई धारर्ा बनाने की सुशिधा उसे नहीं है ।

जीिन-सत्य के प्रशि िगभग हम अंधे हैं । हम जो भी सोचेंगे, जो भी शिचार


करें गे , िह हमें शकसी समाधान पर िे जाने िािा नहीं है । इसशिए भारि ने
एक शबिकुि नया दृशष्टकोर्, एक शबिकुि नया द्वार खोिने की कोशिि
की। िह द्वार शचंिन का न होकर दियन का है । िह शफिासफी का न होकर
दियन का है ।

दियन का अथय है : हम सत्य को शिचारना नहीं चाहिे, हम सत्य को दे खना


चाहिे हैं । शिचारना और दे खना, ये दोनों बहुि अिग बािें हैं । हम सत्य को
शिचारना नहीं चाहिे, हम शिचार भी नहीं सकिे, हम सत्य को दे खना चाहिे
हैं । अगर दे खना चाहिे हैं , िो प्रश्न की भू शमका बदि जाएगी। िब िकय
सहयोगी न होगा। शचंिन का सहयोगी है िकय, िॉशजक। और अगर दियन,
दे खना है , िो िकय सहयोगी न होगा, िब सहयोगी योग होगा। इसशिए पूरब
में दियन के साथ योग शिकशसि हुआ, पशिम में शफिासफी के साथ िकय
शिकशसि हुआ।

िकय पृष्ठभू शम है शचंिन की, योग पृष्ठभू शम है दियन की। दे खने पर अगर प्रश्न
अटक गया, िो सिाि यह नहीं है शक िहां ईश्वर या आत्मा जैसा कोई है ,
सिाि यह है शक मेरे पास उसके प्रशि संिेशदि होने को आँ ख है या नहीं?
असिी सिाि िब सत्य का न होकर आँ ख का हो जाएगा। अगर मेरे पास
आँ ख है , िो जो भी है , उसे मैं दे ख सकूंगा। और अगर मेरे पास आँ ख नहीं है ,
िो जो भी हो, िह मेरे शिए अज्ञाि हो जाएगा। इसशिए भारिीय दियन केंशिि
हो गया मनुष्य के भीिर अंिःचक्षु के शिकास पर।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बुि के जीिन में उल्लेख है । मौिुंकपुत्त नाम के एक युिक ने बुि से जाकर
ग्यारह प्रश्न पूछे थे । उन ग्यारह प्रश्नों में जीिन के सारे प्रश्न आ जािे हैं । उन
ग्यारह प्रश्नों में ित्व-शचंिन शजन्ें सोचिा है िे सारी समस्याएं आ जािी हैं ।
बहुि मीठा संिाद हुआ। मौिुंकपुत्त ने अपने प्रश्न पूछे। बुि ने कहा: मेरी एक
बाि सुनोगे ; छह महीने, साि भर रुक सकिे हो? साि भर प्रिीक्षा कर
सकिे हो? अच्छा हो शक साि भर मेरे पास रुक जाओ। साि भर बाद मुझसे
पूछ िेना। मैं िुम्हें उत्तर दे दू ं गा।

मौिुंकपुत्त ने कहा: अगर उत्तर आपको ज्ञाि है , िो अभी दे दें और अगर


ज्ञाि नहीं है , िो स्पष्ट अपने अज्ञान को स्वीकार िें, मैं िौट जाऊं। क्या साि
भर आपको शचंिन करना पड़े गा, िब आप उत्तर दें गे?

बुि ने कहा: मुझसे पहिे भी िुमने ये प्रश्न शकसी से पू छे थे ?

मौिुंकपुत्त ने कहा: अनेकों से। िेशकन उन सभी ने ित्काि उत्तर दे शदए,


शकसी ने भी यह नहीं कहा शक इिने शदन रुक जाओ।

बुि ने कहा: अगर िे उत्तर उत्तर थे िो िुम अब भी उन्ीं प्रश्नों को क्यों पूछिे
चिे जािे हो?

अगर िे उत्तर िस्तुिः उत्तर बन गए होिे िो अब िुम्हें दु बारा उन्ीं प्रश्नों को


पूछने की जरूरि न रह जािी? इिना िो शनशिि है शक िुम शफर उन्ीं को
पूछ रहे हो। िे उत्तर जो िुम्हें शदए गए उत्तर साशबि नहीं हुए हैं । मैं भी िुम्हें
ित्काि उत्तर दे सकिा हं , िेशकन िे उत्तर व्यथय होंगे। असि में शकसी भी
दू सरे के शदए गए उत्तर व्यथय होंगे, उत्तर िुममें पैदा होने चाशहए। इसशिए मैं
कह रहा हं शक िषय भर रुक जाओ। और अगर िुम िषय भर के बाद पूछोगे ,
िो मैं उत्तर दू ं गा।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बुि का एक शिष्य था आनंद, िह यह बाि सुन कर हं सने िगा। उसने
मौिुंकपुत्त से कहा शक िुम इनकी बािों में मि आना। मैं कोई बीस िषों से
इनके शनकट हं । अनेक िोग आए और उन अनेक िोगों ने अनेक-अनेक
प्रश्न पूछे। बुि सबसे यही कहिे हैं : िषय रुक जाओ, दो िषय रुक जाओ। मैं
प्रिीक्षा करिा रहा शक िषय भर बाद, दो िषय बाद िे पूछेंगे और हमें बुि के
उत्तर ज्ञाि हो सकेंगे । िेशकन न मािूम क्या होिा है , िषय भर बाद, दो िषय बाद
िे पूछिे नहीं, और बुि के क्या उत्तर हैं आज िक पिा नहीं चि पाया।
इसशिए अगर पूछना है िो अभी पूछ िो, यह िो िय है शक िषय भर बाद िुम
पूछोगे नहीं।

बुि ने कहा: मैं अपने िचन पर शनभय र रहं गा, िुमने पू छे िो उत्तर दू ं गा, िुम
पूछो ही न, िो बाि अिग है ।

मौिुंकपुत्त िषय भर रुका। िषय भर बाद बुि ने कहा शक पूछिे हो? िह हं सने
िगा, िह बोिा, पूछने की कोई जरूरि नहीं है ।

भारि की पूरी की पूरी जो पकड़ है , जो एप्रोच है सत्य के प्रशि, िह बाहर से


उत्तर उपिब्ध करने की नहीं, भीिर एक द्वार खोिने की है । उस द्वार के
खुिने पर प्रश्नों के पटीकुिर उत्तर शमििे हैं ऐसा नहीं, असि में प्रश्न शगर
जािे हैं । प्रश्नों का उत्तर शमिना एक बाि है , प्रश्नों का शगर जाना शबिकुि
दू सरी भू शमका की बाि है । महत्वपूर्य उत्तर का शमिना नहीं है , महत्वपूर्य प्रश्न
का शगर जाना है ।

हमारे मुल्क के िं बे योशगक प्रयोगों ने कुछ शनष्कषय शदए हैं । उनमें शनष्कषय
एक यह है : प्रश्न हमारे अिां ि शचत्त की उत्पशत्त है । शचत्त िां ि हो जाए, प्रश्न
उत्पन्न नहीं होिा है । समस्त प्रश्न हमारे अिां ि, उशद्वग्न शचत्त की उत्पशत्त हैं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ईश्वर के संबंध में, जन्म के संबंध में, मृत्यु के संबंध में, समस्त प्रश्न मात्र अिां ि
शचत्त की उत्पशत्त हैं । शचत्त िां ि हो जाए, िे शिसशजयि हो जािे हैं ।

शनष्प्रश्न हो जाना ज्ञान को उपिब्ध हो जाना है । प्रश्नों के उत्तर पा िेना पां शित्य
को उपिब्ध होना है , शनष्प्रश्न हो जाना ज्ञान को उत्पन्न हो जाना है । प्रश्नों के
बहुि उत्तर याद कर िेना बौस्िक है , प्रश्नों का शिसजयन आस्त्मक है ।

शजसे मैं ध्यान कह रहा हं , उससे कोई शििेष प्रश्नों का उत्तर नहीं शमिेगा,
क्रमिः धीरे -धीरे प्रश्न शिसशजयि हो जाएं गे । एक शनष्प्रश्न शचत्त की स्थथशि बनेगी,
िही समाधान है , िही समाशध है । जहां कोई प्रश्न खोजे से न उठे , जहां जीिन
के प्रशि कोई शजज्ञासा जाग्रि न हो, जहां कोई उशद्वग्निा, जहां कुछ अज्ञाि सा
प्रिीि न हो, जहां कुछ भी मुझे जानना है ऐसी उत्ते जना िेष न रह जाए, उसी
क्षर् इस प्रश्नों के शगर जाने की शनःिंक, शनःसंशदग्ध हो जाने की स्थथशि में
व्यस्ि को सत्य का साक्षाि होिा है । प्रश्नों के होने पर सत्य खोजा नहीं जा
सकिा, प्रश्नों के शगर जाने पर सत्य प्रकट हो जािा है ।

इसीशिए हम समाशध को समाधान कहिे हैं । समाशध का अथय ही समाधान है ।


यह समाधान कोई दू सरा व्यस्ि शकसी को दे सकिा है , अगर कोई ऐसा
कहिा हो, िो िह िंचक है , िंचना कर रहा है । यह समाधान कोई दू सरा
व्यस्ि आपको दे सकिा है , ऐसा कोई दािा करिा हो, िह आपके अज्ञान
का िोषर् कर रहा है । कोई भी दािा करिा हो--कोई पैगंबर, कोई िीथंकर,
कोई अििार अगर यह दािा करे शक यह ज्ञान मैं आपको दे सकिा हं , िो िह
धोखे की बाि कह रहा। िह केिि आपके अज्ञान का िोषर् कर रहा है ,
उसे सत्य का ज्ञान नहीं है ।

इसशिए कोई िीथंकर, कोई अििार, कोई पैगंबर यह दािा नहीं करिा शक
मैं आपको ज्ञान दे सकिा हं । िह केिि इिना कह सकिा है शक मुझे ज्ञान

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कैसे उपिब्ध हुआ, उसकी शिशध की मैं चचाय कर सकिा हं , शकसी को ठीक
प्रिीि हो, उसका उपयोग कर िे। ज्ञान नहीं शदया जा सकिा; मैं कैसे ज्ञान
िक पहुं चा, इसकी शिशध के बाबि चचाय की जा सकिी है । सत्य नहीं शदया जा
सकिा; सत्य का अंिःसाक्षाि कैसे हुआ, उस ‘कैसे' का उत्तर शदया जा
सकिा है । सत्य क्या है इसका उत्तर नहीं; सत्य कैसे साक्षाि हुआ, इसका
उत्तर शदया जा सकिा है । जो ‘क्या' का उत्तर दे िे हैं , िे शफिासफर, िे शचं िक
हैं । जो ‘कैसे' का उत्तर दे िे हैं , िे योगी हैं ।

योग ‘कैसे' का उत्तर है । अंिःचक्षु कैसे खुि सकिे हैं ? और जो भी सत्ता है ,


उसके हम आमने-सामने कैसे खड़े हो सकिे हैं ? उस सत्ता से एनकाउं टर
कैसे हो सकिा है ? उस सत्ता से साक्षाि कैसे हो सकिा है ? अगर यह बाि
समझ में आए, िो प्रश्न खोजने और उत्तर खोजने की शदिा व्यथय हो जाएगी।
िब प्रश्न को शिसशजय ि करने की शदिा साथय क होगी।

शजसको मैं ध्यान कह रहा हं , िह प्रश्नों को शिसशजयि करने की शदिा है । प्रश्न हैं
क्योंशक शिचार हैं ; प्रश्न हैं क्योंशक शचत्त में शिचार हैं ; अगर शिचार न रह जाएं ,
प्रश्न भी नहीं रह जाएं गे । शनशियचार शचत्त में कौन सा प्रश्न उठे गा? कैसे उठे गा?
प्रश्न का ढां चा िो शिचार से बंधा है । अगर शिचार िून्य हो जाएं शचत्त में, िो
कोई प्रश्न न उठे गा, कोई शजज्ञासा जाग्रि न होगी। उस िां ि क्षर् में जहां कोई
शजज्ञासा, कोई प्रश्न नहीं उठ रहा, कुछ अनुभि होगा। जहां शिचार नहीं रह
जािे, िहां अनुभि का प्रारं भ होिा है । जहां िक शिचार हैं , िहां िक अनुभि
का प्रारं भ नहीं होिा। जहां शिचार शनःिेष हो जािे हैं , िहां भाि का जागरर्
होिा है , िहां दियन का प्रारं भ होिा है ।

शिचार पदे की िरह हमारे शचत्त को िेरे हुए हैं । उनमें हम इिने िल्लीन हैं ,
इिने आक्युपाइि हैं , इिने व्यस्त हैं , शिचार में इिने व्यस्त हैं शक शिचार के

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अशिररि जो पीछे खड़ा है उसे दे खने का अंिराि, उसे दे खने का ररि
थथान नहीं शमि पािा। शिचार में अत्यंि आक्युपाइि होना, अत्यंि व्यस्त
होना, अत्यंि संिग्न होने के कारर् पूरा जीिन उन्ीं में शचंशिि होिे हुए बीि
जािा है , उनके पार कौन खड़ा था, उसकी झिक भी नहीं शमि पािी है ।

इसशिए ध्यान का अथय है : पूरी िरह अनआक्युपाइि हो जाना। ध्यान का अथय


है : पूरी िरह व्यस्तिा से रशहि हो जाना।

िो अगर हम अररहं ि-अररहं ि को स्मरर् करें , राम-राम को स्मरर् करें , िो


िह िो आक्युपेिन ही होगा, िह िो शफर एक व्यस्तिा हो गई, िह िो शफर
एक काम हो गया। अगर हम कृष्ण की मूशिय या महािीर की मूशिय का स्मरर्
करें , उनके रूप का स्मरर् करें , िो िह भी व्यस्तिा हो गई, िह ध्यान न
हुआ।

कोई नाम, कोई रूप, कोई प्रशिमा अगर हम शचत्त में थथाशपि करें , िो भी
शिचार हो गया। क्योंशक शिचार के शसिाय शचत्त में कुछ और स्थथर नहीं होिा।
चाहे िह शिचार भगिान का हो, चाहे िह शिचार सामान्य काम का हो, इससे
कोई अंिर नहीं पड़िा, शचत्त शिचार से भरिा है । शचत्त को शनशियचार, शचत्त को
अनआक्युपाइि छोड़ दे ना ध्यान है ।

मैंने शपछिी बार, जब मैं आया था, िो मैंने जापान के साधु के बाबि आपको
कहा संभििः, ररं झाई िहां एक साधु हुआ। उसके आश्रम को दे खने जापान
का बादिाह एक दफा गया। बड़ा आश्रम था, कोई पां च सौ उसमें शभक्षु थे ।
िह साधु एक-एक थथान को शदखािा हुआ िूमा शक यहां साधु भोजन करिे
हैं , यहां साधु शनिास करिे है , यहां साधु अध्ययन करिे हैं । सारे आश्रम के
बीच में एक बहुि बड़ा भिन था, सबसे सुंदर, सबसे िां ि, सबसे शििाि।
िह राजा बार-बार पूछने िगा, और साधु यहां क्या करिे हैं ?

ओिो पृष्ठ संख्या 9


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह कहने िगा, िहां के बाबि में बाद में बाि करें गे । बगीचा, िाइब्रेरी,
अध्ययन-कक्ष, िह सब बिािा हुआ िूमा। िह राजा बार-बार पूछने िगा,
और साधु यहां क्या करिे है ? यह जो बीच में भिन है । िह साधु बोिा, थोड़ा
ठहर जाएं , उसके संबंध में बाद में बाि कर िेंगे। जब पूरा आश्रम िूम कर
राजा िापस ही होने िगा, िब उसने दु बारा पूछा शक िह बीच का भिन छूट
ही गया, िहां साधु क्या करिे हैं ?

उस आश्रम के प्रधान ने कहा: उसको बिाने को इसशिए मैं रुका, िहां साधु
कुछ करिे नहीं, िहां साधु अपने को न करने की स्थथशि में छोड़िे हैं । िह
ध्यान-कक्ष है , िहां साधु अपने को न करने की स्थथशि में छोड़िे हैं , िहां कुछ
करिे नहीं। बाकी पूरे आश्रम में काम होिा है , िहां काम छोड़ा जािा है ।
बाकी पूरे आश्रम में शक्रयाएं होिी हैं , िहां शक्रया नहीं की जािी हैं । जब शकसी
को िहां शक्रया छोड़नी होिी है , िो िहां चिा जािा है , सारी शक्रयाएं छोड़ कर
चुप हो जािा है ।

ध्यान अशक्रया है । िह कोई शक्रया नहीं है । शक हम सोचें शक िह कोई काम है ,


शक हम बैठे हैं और एक काम कर रहे हैं । अगर काम कर रहे हैं , िो िह ध्यान
नहीं है । ध्यान का अथय है शक जो शनरं िर काम चि रहा है शचत्त में, उसको
शिराम दे दें गे िे। कोई काम नहीं करना, शचत्त को शबिकुि शक्रया-िून्य छोड़
दे ना। शचत्त की शक्रया-िून्य स्थथशि में क्या होगा? शचत्त की शक्रया-िून्य स्थथशि
में भी िो कुछ होगा। शचत्त की शक्रया-िून्य स्थथशि में केिि दियन रह जाएगा,
केिि दे खना रह जाएगा, शचत्त की शक्रया-िून्य स्थथशि में जो हमारा स्वभाि
है , िही केिि रह जाएगा।

दियन, ज्ञान हमारा स्वभाि है । हम सब छोड़ सकिे हैं , ज्ञान और दिय न को


नहीं छोड़ सकिे। सिि चौबीस िंटे ज्ञान हमारे साथ मौजूद है । जब गहरी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नींद में सोिे हैं , िब भी स्वप्न का हमें पिा होिा है ; जब स्वप्न भी शििीन हो
जािे हैं और सुषुस्ि होिी है , िब भी हमें इस बाि का पिा होिा है शक बहुि
आनंदपूर्य शनिा। सुबह उठ कर हम कहिे हैं , राशत्र बहुि आनंद से बीिी।
कोई हमारे भीिर उस समय भी जाग रहा है , उस समय भी जान रहा है ।

कोई हमारे भीिर उस समय भी चैिन्य है । उठिे-बैठिे, सोिे-जागिे, काम


करिे, न काम करिे, हमारे भीिर एक सिि ज्ञान का अशिशछन्न प्रिाह बना
हुआ है । समस्त शक्रयाएं छोड़ दे ने पर केिि ज्ञान का अशिशछन्न प्रिाह मात्र
िेष रह जाएगा।

शसफय जान रहा हं , शसफय हं , बोधमात्र होने का, सत्ता का बोधमात्र िेष रह
जाएगा। उसी बोध में, उसी सत्तामात्र में छिां ग िगाना धमय है । उसी में कूद
जाना, उसी अस्स्तत्व में, धमय है ।

और िहां जो अनु भूशि होिी है --िह जीिन के बं धन से, जीिन की आसस्ि


से, जीिन के दु ख से मुस्ि दे दे िी है । क्योंशक िहां जाकर ज्ञाि होिा है शक
िह जो अंिरसत्ता भीिर बैठी हुई है िह शनरं िर मुि है पाप से, दु ख से, पीड़ा
से। एक क्षर् को भी उस पर कभी कोई पाप का, पीड़ा का, दु ख का कोई
दाग नहीं िगा। िह चैिन्य शनत्य िां ि, शनत्य मुि है । िह चैिन्य शनत्य
ब्रह्मस्थथशि में है । उस चैिन्य में कभी कोई शिकार नहीं हुआ, न शिकार होने
की संभािना है । जैसे ही यह दियन होिा है , जीिन एक अिौशकक धरािि
पर आनं द की अनुभूशि के प्रशि उन्मुख हो जािा है । इस उन्मुखिा को मैं
ध्यान और समाशध कहिा हं ।

मैंने दो बािें कहीं: अव्यस्त, अनआक्युपाइि और अशक्रया। असि में दोनों


का एक अथय ही है । दोनों को एक िब्द में कहें , िो पररपूर्य िून्यिा ध्यान है ।
यह पररपूर्य िून्यिा व्यस्ि अगर िाना चाहे , िो मेरी समझ में, उसे िीन अंगों

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पर अपने प्रयोग करना होिा है । प्राथशमक रूप से उसका िरीर है , अगर
उसे अशक्रया में जाना है , शनस्ियिा में जाना है , िो िरीर को अशक्रय छोड़ना
होगा। िरीर को शबिकुि शनस्िय छोड़ना होगा, जैसे शक मृत्यु में िरीर छूट
जािा है । उिना ही शनस्िय छोड़ दे ना होगा, िाशक िरीर पर शजिने भी
िनाि, शजिने भी टें िंस हैं , िे सब िां ि हो जाएं ।

यह िो आपने अनु भि शकया होगा, िरीर पर अगर कहीं भी िनाि हो; पैर में
अगर ददय हो, िो शचत्त बार-बार उसी ददय की िरफ जाएगा। अगर िरीर में
कहीं कोई िनाि न हो, िो शचत्त िरीर की िरफ जािा ही नहीं। यह आपको
अनुभि हुआ होगा, आपको िरीर में केिि उन्ीं अंगों का पिा पड़िा है , जो
बीमार होिे हैं । जो अंग स्वथथ होिे हैं , उनका पिा नहीं पड़िा। अगर आपके
शसर में ददय है , िो आपको पिा चिेगा शक शसर है और अगर शसर में ददय नहीं
है , िो शसर का पिा नहीं चिेगा। िरीर जहां -जहां िनािग्रस्त होिा है , िहीं-
िहीं उसका बोध होिा है । िरीर अगर शबिकुि िनाि-िू न्य हो, िो िरीर का
पिा नहीं चिेगा।

िो िरीर को इिना शिशथि छोड़ दे ना है शक उसमें सारे िनाि शििीन हो


जाएं , िो थोड़ी दे र में दे ह-बोध शििीन हो जािा है । थोड़ी दे र में दे ह है या नहीं
है , यह बाि शििीन हो जािी है । थोड़े शदन के ही प्रयोग में दे ह-बोध शिसशजय ि
हो जािा है । िरीर का पररपूर्य िनाि-िून्य होना, िरीर से मुि हो जाने का
उपाय है । इसशिए ध्यान के पहिे चरर् में हम िरीर को ढीिा छोड़ दे िे हैं ।

अभी आज प्रयोग के शिए बैठेंगे, िरीर को शबिकुि उस समय ढीिा छोड़


दे ना है , जैसे मु दाय हो गया। जैसे उसमें कोई प्रार् नहीं है । उसमें कोई
कड़ापन, कोई िनाि, कोई अकड़, कोई कायम नहीं रखनी, सब छोड़ दे नी
है । इिना ढीिा छोड़ दे ना, जैसे यह शमट्टी का िोंदा है , हमारी इसमें कोई

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पकड़ नहीं, इसमें कोई जान नहीं। अपने ही िरीर को शबिकुि मुदाय की
भां शि छोड़ दे ना है ।

जब िरीर को शबिकुि शिशथि छोड़ दें गे, उसके बाद मैं दो शमनट िक
आपके सहयोग के शिए सुझाि दू ं गा, ये सजेिंस दू ं गा शक आपका िरीर
शिशथि होिा जा रहा है ।

मेरे दो शमनट िक शनरं िर कहने पर शक िरीर शिशथि हो रहा है , आपको


भाि करना है शक िरीर शिशथि हो रहा है । शसफय यह भाि मात्र करना है शक
िरीर शिशथि होिा जा रहा है ।

आप है रान होंगे, भाि की इिनी िस्ि है शक अगर आप बहुि संकल्पपूियक


भाि करें , िो प्रार् िक िरीर से छूट जा सकिे हैं । शजसको भारि में इच्छा-
मृत्यु कहिे हैं । िह केिि भाि मात्र है । अगर आप ठीक से भाि करें , िरीर
िैसा ही हो जाएगा।

रामकृष्ण के बाबि एक उल्लेख है । रामकृष्ण ने सारे धमों की साधना की।


इस िरह की साधना करने िािे जगि में िे पहिे साधु थे । दू सरे साधु जगि में
ढे र हुए हैं , िे अपने धमय की साधना करके सत्य को पा िे िे हैं । रामकृष्ण को
िगा शक और धमों की साधनाएं भी सत्य िक िे जािी या नहीं? िो उन्ोंने
सारे धमों की साधनाएं कीं और उन्ोंने पाया शक हर धमय की साधना सत्य
िक िे जािी है ।

बंगाि में एक संप्रदाय प्रचशिि है , राधा-संप्रदाय। उसकी भी साधना उन्ोंने


की। राधा-संप्रदाय की मान्यिा है शक केिि परम ब्रह्म ही पुरुष है , िेष सारे
िोग नाररयां हैं , सारे िोग राधाएं हैं । पुरुष भी उस संप्रदाय का अपने को िह
परम चैिन्य, परम ब्रह्म की पत्नी के रूप में ही स्वीकार करिा है । िह यही
भाि करिा है शक िह परम चैिन्य की नारी है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रामकृष्ण ने उसकी भी साधना की। आप है रान होंगे, रामकृष्ण ने िीन शदन
यह भाि शकया शक िे राधा हैं , और उन पर सारे स्त्री के िक्षर् प्रकट हो गए।
उनकी िार्ी बदि गई, उनके बोिने का ढं ग बदि गया, उनके अंगों में भी
पररिियन आया। इसे िाखों िोगों ने आँ ख से दे खा। िोग है रान हो गए शक यह
क्या हुआ? राधा-संप्रदाय के िो ढे र िोग हैं । उनमें दोहरािे भी हैं । िेशकन
रामकृष्ण में पहिी दफा यह िोगों ने साक्षाि शकया शक उनमें स्त्री के सारे
िक्षर् आ गए। िीन शदन की शनरं िर यह भाि-स्थथशि में शक िे राधा हैं , उन्ें
राधा की पररर्शि दे दी। उन िक्षर्ों को जाने में छह महीने िगे ।

अभी पशिम में, पूरब के और बहुि से मुल्कों में इस पर ढे र काम हो रहा है ।


हम जैसा भाि करें िरीर में िैसी पररर्शियां हो जािी हैं । अगर ठीक से हम
भाि करें शक िरीर शिशथि हो रहा है , पररपूर्य शचत्त से भाि करें , पूरे समग्र
शचत्त से भाि करें शक िरीर शिशथि हो रहा है , दो शमनट में आप पाएं गे शक
िरीर मृि हो गया। उसमें कोई प्रार् नहीं है । ऐसी स्थथशि में अगर िरीर
शगरने िगे , िो उसे रोकना नहीं है । अच्छा हो शक जरा भी उसे न रोकें, जब
िरीर शगरने िगे , उसे शबिकुि शगर जाने दें । उसके बाद दो शमनट िक भाि
करना है शक श्वास िां ि हो रही है । मैं दोहराऊंगा शक श्वास िां ि हो रही है , दो
शमनट िक आपको भाि करना है शक श्वास िां ि हो रही है ।

अगर हमें पररपूर्य िून्यिा में जाना है , िो िरीर का शिशथि होना अशनिायय है ,
श्वास का िां ि होना अशनिायय है । दो शमनट भाि करने पर श्वास िां ि हो जािी
है । उसके बाद में दो शमनट िक कहं गा शक शचत्त मौन हो रहा है , शिचार िू न्य
हो रहे हैं । दो शमनट िक भाि करने पर शिचार िून्य हो जािे हैं । और इन छह
शमनट की छोटी सी प्रशक्रया में अचानक आप पाएं गे शक एक ररि थथान में,
एक अिकाि में, एक िून्य में प्रिेि हो गया। शचत्त मौन हो जाएगा।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भीिर िार्ी और िब्दों का उठना शििीन हो जाएगा। भीिर एक ररि
थथान, खािी जगह रह जाएगी, जहां कुछ भी नहीं है । न कोई शिचार है , न
कोई रूप है , न कोई आकृशि है , न कोई गं ध है , न कोई ध्वशन है , जहां कुछ
भी नहीं है , केिि अकेिे आप रह गए।

उस अकेिेपन को, उस िोनिीनेस को, जहां शबिकुि अकेिा मैं रह गया


चारों िरफ ररि आकाि से शिरा हुआ, उस अकेिेपन में ही उस स्व का
अनुभि उदभू ि होिा है , शजसको महािीर ने आत्मा कहा है , शजसको िंकर
ने ब्रह्म कहा है , या शजनको और िोगों ने और नाम शदए हैं । उस सत्य का
अनुभि उस अत्यंि एकाकीपन में होिा है ।

एकाकीपन की हम ििाि करिे हैं जंगि में जाकर, िनों में भाग कर,
पहाड़ों पर भाग कर, िेशकन एकाकीपन का संबंध थथान से नहीं है , स्थथशि से
है । अकेिापन जंगि में जाकर नहीं खोजा जा सकिा। पिु-पक्षी होंगे, उनसे
ही मेि-जोि हो जाएगा, उनसे ही संगी-साथीपन बन जाएगा।

अकेिापन अपने में जाकर पाया जािा है , जहां सब ररि हो जाए और मैं
शबिकुि अकेिा रह जाऊं। उस अकेिी स्थथशि में, उस शनिां ि एकां ि स्थथशि
में, जहां केिि होने मात्र की स्पंदना रह गई, िहां कुछ अनुभि होिा है जो
जीिन में क्रां शि िा दे िा है । उसके शिए बहुि अत्यंि सरि सा छोटा सा प्रयोग
है । यह प्रयोग इिना छोटा सा है शक कई दफे िग सकिा है शक इिने से
प्रयोग से कैसे आं िररक साक्षाि हो सकिा है ? िेशकन बीज हमेिा छोटे होिे
हैं , पररर्ाम में िृक्ष शिराट हो जािे हैं ।

जो बीज को छोटा समझिे हैं ; यह भाि कर िें शक इससे क्या िृक्ष होगा, िह
िृक्ष से िंशचि रह जाएगा। बीच हमेिा छोटे होिे हैं , पररर्ाम में शिराट

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उपिब्ध हो जािा है । अत्यंि सूक्ष्म सा बीज ध्यान का बोने पर, शिराट
अनुभूशि की फसि को काटा जा सकिा है ।

मेरी बाि आप समझ गए होंगे। िीन चरर् में हम ध्यान के शिए जािे हैं अभी।
सब िोग उस समय दू र बैठेंगे , िाशक शगरने की सुशिधा हो। सारे िोग थोड़े
फासिे पर बैठ जाएं और काफी गौर से दे ख िें शक शगरने की सुशिधा हो।
कि कुछ असुशिधा हुई।

एक बहुि ही प्राचीन उपाख्यान है , उसे कह कर मैं आज के काययक्रम को


पूरा करू
ं गा। एक शबिकुि झूठी सी कथा है , िेशकन मुझे बहुि अथय पूर्य
मािूम होिी है ।

कथा है , नारद िैकुंठ जा रहे हैं । मागय में उन्ें एक िृि साधु शमिा, िृक्ष के
नीचे, उसने नारद को कहा शक िुम पू छ िेना प्रभु से शक मेरी मुस्ि को अभी
शकिनी दे र और है ? मुझे मोक्ष कब िक शमिेगा?

नारद ने कहा: जरूर िौटिे में पूछ िूंगा। पास में उसी शदन दीशक्षि हुआ एक
फकीर अपना िमूरा िेकर नाच रहा था। नारद ने मजाक में उससे भी कहा
शक िुम्हें भी पूछना है क्या? िह फकीर कुछ बोिा नहीं। नारद िापस िौटे ,
उस िृि साधु के पास जाकर उन्ोंने कहा: मैंने पूछा था, ईश्वर ने कहा: अभी
िीन जन्म और िग जाएं गे । उस साधु ने अपनी मािा नीचे फेंक दी और
कहा: िीन जन्म और! अन्याय है ! शकिना धीरज रखूं!

नारद िो आगे बढ़ गए। िह िृक्ष के नीचे अभी नया-नया दीशक्षि हुआ साधु
नाचिा था, नारद ने कहा: सुनिे हो, िुम्हारे संबंध में भी पू छा था, प्रभु ने कहा:
िह शजस िृक्ष के नीचे नाच रहा है , उसमें शजिने पत्ते हैं , उिने ही जन्म उसे
साधना में िगें गे, िब मुस्ि उपिब्ध हो सकेगी।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह फकीर बोिा, बस इिने ही पत्ते ! िब िो जीि शिया! जगि में शकिने पत्ते
हैं ! इस िृक्ष पर िो बहुि थोड़े से हैं ! िह िापस नाचने िगा और कथा कहिी
है , िह उसी क्षर् मुि हो गया।

मुझे प्रीशिकर िगिी है यह बाि। िह उसी क्षर् मुि हो गया। इिना धैयय! शक
उसने कहा: इिने से पत्ते ! इिने से जन्म! िब िो जीि शिया, जगि में िो
शकिने पत्ते हैं ! इिना धैयय शजसमें है , उसने इसी क्षर् पा शिया।

अधैयय बाधा है । अधैयय िंबा करिा है । अगर अनंि धैयय के साथ मैं एक क्षर्
को भी िां ि हो जाऊं, उसी क्षर् सब हो जाएगा। िो थोड़ा सा अधैयय छोड़
कर, थोड़े से पररर्ाम की एकदम शनिां ि इच्छा और प्रयोजन छोड़ कर अगर
प्रयोग शकया, िो बहुि सुशनशिि है शक थोड़े ही शदनों में कुछ शदखना िुरू हो,
होना िुरू हो, और अगर िैसा कुछ हो जाए, िो उससे ज्यादा मूल्यिान कुछ
भी नहीं है ।

मैं आिा करिा हं शक थोड़े से िोग शजनको प्रीशिकर िगे गा िे प्रयोग करें गे ।
अगर प्रयोग शकया और अगर धीरज रखा, िो पररर्ाम शनशिि है । क्योंशक
शसिाय िां ि होने के, शसिाय पररपूर्य िां ि होने के, मनुष्य के शिए जगि-सत्य
को और स्वयं के सत्य को जानने का कोई उपाय नहीं। कोई धमयग्रंथ जो नहीं
दे सकेंगे , िह स्व के भीिर उिरने से उपिब्ध हो जाएगा।

अमृि और अनंि और शनत्य चैिन्य को पाने की राह एक ही है और िह है


शकसी भां शि जो आं खें बाहर के जगि को दे ख रही हैं िे भीिर दे खने िगें ।
आँ ख से भीिर दे खने की िटना िू न्य में िशटि होिी है । जैसे ही शिचार िून्य
हुए, बाहर दे खने को कुछ भी नहीं रह जािा। जब बाहर दे खने को कुछ भी
नहीं रह जािा है , िो जो दे खने की िस्ि, जो दियन की िस्ि, बाहर उिझी
थी, िह बाहर शनराधार होने के कारर् अशनिाययिया स्व-आधार हो जािी है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बाहर से आिंबन छूट जाने के कारर् स्व-आिंशबि हो जािी है । बाहर उस
चेिना को थथान नहीं शमििा ठहरने को, अशनिाययिया िह स्वयं में ठहर
जािी है ।

इसशिए िून्य के अशिररि और कोई ध्यान नहीं है । इस पर थोड़ा प्रयोग


करें गे , ऐसी मैं आिा करिा हं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-02

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

दू सरा-प्रिचन

ध्यान के संबंध में दोिीन बािें समझ िे और शफर हम ध्यान का प्रयोग करें ।

पहिी बाि िो यह समझ िेनी जरूरी है , शक ध्यान का श्वास से बहोि गहरा


संबंध है । सधारर्िा दे खा होगा क्रोध में श्वास एक प्रकार से चििी है , िां शि
में दू सरे प्रकार से चििी है । कामिासना मन को पकड़ िे िो श्वास की गशि
ित्काि बदि जािी है । और कभी अगर श्वास बहोि िां ि, शधरी, गहरी
चििी हो िो मन बहोि अद् भू ि प्रकार के आनंद को अनुभि करिा है । मन
की सारी दिाए श्वास से गहरे में सं बंशधि हैं । इसशिए पहिे दस शमनट के
शिए श्वास पर थोड़ासा प्रयोग करें गे ।

श्वास इन दस शमनटो में गहरी िेनी है , शजिनी आप िे सके; शबना दबाि और


जोर के। कोई परे िानी और िकिीफ न हो और उिनी ही गहरी िापस
छोड़नी है । हमारे फेफिों में अगर बहोि काबयन-िाईऑक्साईि भरा हो िो
शचत्त का िां ि होना कठीन हो जािा है । अगर हमारे प्रार्ों में बहोि
ऑस्क्सजन चिा जाए, खून में श्वास में सब िरफ प्रार्िायु भर जाए; िो ध्यान
में जाना बहोि आसान हो जािा है ।

िो सबसे पह्ली बाि िो दस शमनट िक गहरे श्वास का प्रयोग करना है । इस


प्रयोग में सारा ध्यान श्वास पर ही रखना है । श्वास भीिर गई, िो हमें जानिे हुए
शक श्वास भीिर जा रही है , ध्यान को भीिर िे जाना। श्वास बाहर गई, िो
जानना है शक श्वास बाहर जा रही है , उसके साथ ही ध्यान को बाहर िे जाना।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ध्यान श्वास के झुिे पर झुिने िगे । श्वास भीिर जाए िो हमारा ध्यान भीिर
जाए, श्वास बाहर जाए िो हमारा ध्यान बाहर जाए।

दस शमनट के शिए एक ही काम है शक हम श्वास को जाने शक श्वास कहाँ है ।


भीिर गई िो हम भीिर चिें जाए और बाहर गई िो हम बाहर चिें जाए।
श्वास के साथ ही हमारी शचत्त की िोर बंध जाए। बस श्वास ही रह जाए और
सबकुछ मीट जाएगा। दस शमनट गहरी श्वास िेनी है , और श्वास के साथ ही
बाहर भीिर जाना है । आँ ख हम इन दस शमनटों में बं ध रखेंगे, िाशक और
कुछ शदखाई न पड़ें ।

बैठने में दो िीन बाि बािें ख्याि िे िेंगे। एक िो कोई शकसी को छूिा हुआ न
बैठे। कोई भी शकसी को जरा भी स्पषय न करे , िो थोड़ा थोड़ा हट जाए। कोई
भी शकसी को स्पषय करिा हुआ न हो। और यहाँ िो जगह बहोि है इसशिए
शबल्कुि फैिके बै ठ सकिे हैं । दू सरे का स्पषय दू सरे को भू िने नहीं दे िा,
दू सरे की मौजूदगी ख्याि में बनी रहिी है । और ध्यान में जरूरी है सब भू ि
जाए, हम अकेिे रह जाए।

दू सरी बाि, िरीर को सीधा रखकर बैठें। अकड़ा ने की जरूरि नहीं है ,


आराम से शजिना सीधा हो सकें। रीढ़ शसधी हो जमीन से नब्बे का कौन
बनािी हो, इिना भर ख्याि कर िें; िह भी पहिे दस शमनट के प्रयोग के
शिए। शफर आँ ख बंध कर िें। और आँ ख भी बंध करने का मििब है , आँ ख
पर भी जोर मि िािे, आशहस्ते से पिक बंध हो जाने दें ।

आँ ख बंध कर िें।

िरीर को सीधा रखें।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आँ ख बंध कर िें।

शफर िे जाए, शफर छोड़ दे , रूकना नहीं है । िे जाना है , छोड़ दे ना है । और


पूरे दस शमनट के बाद मैं कहँ गा िब आप आँ ख खोिेंगे, िब िक श्वास पर ही
ध्यान रखना है । श्वास भीिर गई िो हम जानिे हुए भीिर जाए, श्वास बाहर गई
िो हम जानिे हुए बाहर जाए। ध्यान का यह मििब है शक श्वास की जो गशि
है हम उसको चूक न पाएं । श्वास के साथ ही बाहर भीिर जाए।

िुरू करें । आँ ख बंध कर िें। गहरी श्वास िें। बस श्वास ही रह जाएगी दस


शमनट के शिए और सब बंध हो जाएगा। गहरी श्वास भीिर िे जाएं , पूरे
फेफड़ें भर िें। शफर बाहर शनकािें। भीिर िे जाएं , बाहर शनकािें। दस
शमनट में मन बहोि िुि और िां ि हो जाएगा। शफर हम दू सरा ध्यान का
प्रयोग करें गे । दस शमनट के शिए यह प्राथशमक काम करें । अब मैं चूप हो
जािा हँ । दस शमनट बाद आपको सूचना करू
ँ गा। िब िक आँ ख नहीं
खोिनी है । श्वास गहरी िेनी है और ध्यान श्वास पर रखना है ।“

{दस शमनट का पहिा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }

{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे के ध्यान प्रयोग की बाि िु रू
करिें हैं }
“दु सरा प्रयोग हम, अिग अिग समझा रहा हँ िाशक आपको भी ख्याि में
आ जाएं । दू सरा प्रयोग है सिय स्वीकार का। अभी हम बैठें थे श्वास िे रहे हैं
और ध्यान कर रहे हैं । पक्षी आिाज कर रहे हैं , कोई बच्चा शचल्लाएगा, सड़क
से कोई टर क शनकिेगा, यह सारी आिाजें हमारे चारो ओर हो रही हैं ।

साधारर्िा ध्यान करने िािे िोग, प्राथय ना पूजा करने िािे िोग, अपने चारो
िरफ के जगि से दु िमनी िे िेिे हैं । अगर िर में एक आदमी ध्यान करने

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िगे , िो िो ध्यान के पहिे शजिना अिां ि था उिना ध्यान के बाद शदखाई
पड़े गा। कहीं िर में बियन शगर जाएगा, कोई बच्चा रोने िगे गा िो उसका क्रोध
और बढ़ जाएगा। उसे िगे गा शक शिस्टबंस हो रहा है , बाधा पड़ रही है । मेरी
दृशष्ट में ध्यान ऐसी प्रशक्रया है जो समस्त बाधाओं को स्वीकार कर िेिी है ,
शकसी आधा को बाधा नहीं मानिी।

और जब िक हम ऐसी ध्यान की प्रशक्रया न िीख सकें, शजसमें हम बाधाओं


को भी सीशढ़यों की िरह प्रयोग कर िें िब िक ध्यान में जाना असंभि है ।
क्योंशक बाधाएं िो चारों िरफ हैं । रास्ते से टर क शनकिेगा, पक्षी आिाज करें गे ;
उन्ें कोई प्रयोजन नहीं शक आप ध्यान करने बैठे हैं , शक आपके ध्यान में
बाधा न पड़ जाए।

और अगर आपने ऐसा समझा शक बाधा पड़ रही है िो बाधा पड़ जाएगी।


बाधा बाधाओं के कारर् नहीं, हमारी इस भािदिा के कारर् होिी है शक
बाधा पड़ रही है । अगर यह भािदिा छोड़ जाए दी और हम स्वीकार कर िें
शक जो भी हो रहा है , हम राजी हैं । पक्षी आिाज कर रहें है , हम राजी हैं । िो
पक्षीओं की आिाज आपकी िां शि को गहरा दे गी, कम नहीं करे गी।

रास्ते से टर क शनकि रहा है हम राजी हैं । कोई बच्चा रो रहा है हम राजी हैं ।

क्योंशक आज िो आप बगीचे में आके बैठ गएं है , अगर प्रयोग करना चाहें गे
िो िर में ही करें गे । सड़क चिेगी, बाहर िोर होगा। अगर यह दृशष्ट ही रही
शक यह सब बाधा बन रही हैं , िो ध्यान असंभि हो जाएगा।

िो दू सरा दस शमनट के शिए हम प्रयोग करें गे, सिय स्वीकार का। जो भी हो


रहा है मैं उस से राजी हँ । मेरा कोई शिरोध नहीं। पक्षी आिाज कर रहें है , मैं
राजी हँ । और जब आप राजी होके पक्षी की आिाज सुनेंगे, क्योंशक शसफय
सूनने के शसिाय कोई उपाय न रहा, जब िां शि से, आनंद से, स्वीकार से,
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पक्षी की आिाज सूनेंगे; िो आप पाएं गे शक पक्षी की आिाज आपके भीिर
गूं जिी है , चिी जािी है , आप एक खािी िर की िरह रहिें है , िो आिाज
कोई बाधा नहीं ड़ाििी, बस्ल्क उस आिाज के बाद आप और िां ि हो गएं ,
शजिना शक आिाज के पहिे थे ।

कभी कभी राि रास्ते पर चििे हो, अंधेरी राि हो और कार शनकि जाए, िो
कारके प्रकाि के गु जर जाने के बाद रास्ता और अंधेरा मािूम पड़ने िगिा
है । ठीक ऐसे ही आिाज गु जरे गी, अगर हमने उसका शिरोध न शकया िो और
िनी िां शि पीछे से िौट आिी है । िो दस शमनट हम सिय स्वीकार का प्रयोग
करें गे क्योंशक, शबना सिय स्वीकार के प्रयोग के ध्यान में जाना असंभि है ।

न िो आप शहमािय पर भागकर जा सकिे हैं , और िहाँ भी भागके चिे जाएं


िो िहाँ भी कुछ न कुछ हो रहा है । आदमी न बोिेंगे, पक्षी बोिेंगे। सड़क पर
कोई न गु जरे गा िो िृक्षो में हिाएं बहे गी और आिाज होगी। सारे जगि में
जीिन है , जीिन की आिाज है । उससे भागा नहीं जा सकिा। उसे स्वीकार
कर िेना पड़े गा। और शफर सभी िरफ परमात्मा है , िो सभी आिाजें उसकी
हैं । शिरोध उचीि भी नहीं है । एक पक्षी भी शचल्ला रहा है िो िह भी परमात्मा
ही शचल्ला रहा है । और अगर िृक्ष में हिाएं आिी है , सूखे पत्ते उड़िे हैं , िे भी
परमात्मा के हैं । सब परमात्मा का है । और जब इस सब के साथ हमें एक हो
जाना हैं , िो शिरोध करके हम एक न हो पाएं गे । अशिरोध, नॉन-रे शझस्टं स
दू सरा सूत्र है ।

िो हम दस शमनट के शिए शफर बैठें, गहरी श्वास िेंगे, श्वास पर ध्यान रखेंगे,
और साथ ही दू सरा प्रयोग करें गे शक जो भी हो रहा है उससे मैं राजी हँ , मैं
स्वीकार करिा हँ , मेरा कोई शिरोध नहीं। और जैसे ही यह भाि भीिर िना
होगा शक मैं राजी हँ , मैं स्वीकार करिा हँ ; िैसे ही मन गहरी िां शि में उिरने
िगे गा।
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पून: आँ ख बंध कर िें।

गहरी श्वास।

श्वास पर ध्यान।

और चारों और के जीिन की स्वीकृशि।

शिरोध नहीं।

मन को गहरी से गहरी िां शि के रास्ते पर,

अपने आप गशि शमिनी िुरू हो जािी है ।

शकसी भी चीज़ का अस्वीकार नहीं, शिरोध नहीं।

शिरोध से ही बाधा बन जािी है ।“

{दस शमनट का दू सरा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }

{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे के ध्यान प्रयोग की बाि िु रू
करिे हैं }
“िीसरी बाि: मनुष्य और परमात्मा के बीच में जो सबसे बड़ी दीिार है िह
दीिार परमात्मा की िरफ से नहीं, मनुष्य के ही िरफ से है । और िह दीिार
है मनुष्य का यह ख्याि ‘मैं हँ ’ – यह ख्याि शजिना मजबूि है , यह अहं कार,
यह इगो शक मैं हँ , शजिना मजबूि है उिनी ही बिी दीिार हमारे और उसके
बीच खड़ी हो जािी है । ध्यान की पूरी गहराई में मैं का मीट जाना जरूरी है ।
अन्यथा दीिार नहीं शगरे गी और उससे शमिना भी नहीं हो सकेगा। िो िीसरा
सूत्र ‘मैं’ को शिसजयन कर दे ने का है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 24


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िीसरे सूत्र में पहिे दोनो सूत्रों का प्रयोग जारी रहे गा और िीसरा सूत्र भी जू ड़
जाएगा। श्वास हम गहरी िेंगे, सब स्वीकार का भाि रखेंगे शक जो भी हो रहा
है , मैं राजी हँ । कहीं कोई मन में शिरोध िेने की जरूरि नहीं है , धूप िेज है िो
िेज है – मैं राजी हँ , जो भी हो रहा है और ध्यान श्वास पर ही जारी रहे गा। और
िीसरी बाि उस में जोड़ दे नी है , उस में यह भाि जोड़ दे ना है शक मैं नहीं हँ ,
मैं मीट गया हँ , जैसे बूंद शगर जाए पानी में, सागर में और खो जाए ऐसा ही मैं
खो गया हँ ।

जैसे जैसे यह भाि गहरा होगा – मैं खो गया हँ , मैं मीट गया हँ , मैं समाि हो
गया; िैसे िैसे ही िो है इस का भाि अपने आप प्रगट होने िगे गा। यहाँ मैं
शमटू ं गा िहाँ उसका होना िुरू हो जायेगा। इस िरफ मैं शमटू ं गा उस िरफ िो
होना िुरू जो जाएगा। बूंद शगरिी है सागर में, इधर बूंद शमटी नहीं शक उधर
सागर हुआ नहीं। बूंद शमटी और सागर हुई। मनुष्य शमट जाए िो परमात्मा
इसी क्षर् है ।

शमटने के शिए शहम्मि नहीं हमारी, अपने को संभाि के रखिे हैं शक कहीं खो
न जाए, कहीं शमट न जाए। िायद जरूरी भी है शजंदगी में। िेशकन िड़ी भर
को चौबीस िंटे में अगर शमट जाए, िो पिा चिेगा शक िेईस िंटे हो के जो
नहीं शमिा, िो एक िंटे ना हो के शमि गया। िेईस िंटे जो कोिीि कर कर
के सुख न शमिा, िां िी न शमिी, िो एक िंटा शमट गया और सब पा शिया।

िीसरा प्रयोग दस शमनट के शिए और शफर इन िीनों प्रयोगो को साथ, सुबह


जब सो के उठें , िब एक आधा िं टे के शिए करें और राि जब सोने िगे
शबस्तर पर, िो शबस्तर पर ही िेट के करें और करिे करिे ही सो जाए। अगर
एक िंटा चौबीस िंटे में से इस बाि के शिए शदया जा सकें, िो दो िीन मशहने
के भीिर ही आप पाएं गे शक आपके भीिर से कोई नया आदमी का जन्म
िुरू हो गया। कुछ नया ही होना िुरू हो गया शजसका हमें पिा भी नहीं था।
ओिो पृष्ठ संख्या 25
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेशकन हम इिने कमजोर िोग हैं शक दो िीन मशहने भी िंटा भर परमात्मा
को दे ना संभि नहीं हो पािा। एक दो शदन करें गे और सोचेंगे शक पिा नहीं
कुछ होगा शक नहीं होगा। िीन मशहने एक बाि ख्याि रख िें शक कुछ न भी
होगा िो कुछ खो नहीं जाएगा।

आदमी कुंआ खोदिा है िो पहिे िो कंकड़ पत्थर ही हाथ िगिे हैं । सोचे शक
कंकड़ पत्थर ही है छोड़ो, दू सरी जगह खोदें । िहाँ भी खोदिा है , िहाँ भी
कंकड़ पत्थर ही हाथ िगिे हैं । पहिे िो दस-बीस फीट, पचास फीट कंकि
पत्थर ही खोदना पड़िे है । िब कहीं जिस्रोि आिे है । यहाँ जब हम मन की
खुदाई पर उिरिे हैं और ध्यान याशन मन की खुदाई, मन का कुंआ बनाना,
िो भी कंकड़ पत्थर ही हाथ आिे हैं पहिे। िेशकन अगर कोई िगा ही रहे ,
िगा ही रहे , िो जिस्रोि भी आ जािा है । और ज्यादा दे र नहीं है प्रिीक्षा
करने की। िेशकन हमारी थोड़ी प्रिीक्षा करने की भी क्षमिा नहीं रह गई। िो
िीसरे प्रयोग को करें :

िीसरा प्रयोग है ‘मैं नहीं हँ ’ इस भाि में िूब जाना है ।

शफर से पून: आँ ख बंध कर िें।

गहरी श्वास िेना िु रू करें ।

श्वास भीिर जाए िो ध्यान भीिर जाए, श्वास बाहर जाए िो ध्यान बाहर जाए।

दे खिे रहें यह श्वास भीिर गई, यह श्वास बाहर िौटी।

यह शफर भीिर गई, यह शफर बाहर िौटी।

श्वास को दे खिे रहें । श्वास अन्दे खी न रहे ।

श्वास की स्मृशि बनी रहे ।

ओिो पृष्ठ संख्या 26


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यह श्वास भीिर जा रही है , यह श्वास भीिर जाने िगी।

श्वास पर ही सारा ध्यान हो और गहरी श्वास हो।

शफर सब स्वीकार का भाि रहे । जो भी है स्वीकार है ।

जो भी है स्वीकार है ।

और िीसरे प्रयोग में िूब जाए।

भाि करें जैसे बूंद सागर में शगर जािी है ।

ऐसे ही मैं भी शगर गया अनंि के सागर में।

मीट गया। मैं नहीं हँ ।

मैं नहीं हँ ।“

{दस शमनट का िीसरा प्रयोग िुरू करिा कर ओिो मौन रहिे हैं }

{दस शमनट शबिने के बाद ओिो शफर आगे की बाि िुरू करिे हैं }

“- - - एक शमनट से ज्यादा क्रोध, शचंिा या अिां शि शकिनी असंभि हो


जाएगी।

जमीन पर जापान िायद अकेिा दे ि है , जहाँ अशधकिम िोग प्रसन्न शचत्त


शदखाई पड़िे हैं । इस संबंध में खोज बीन चििी थी िहाँ के िोगों की प्रसन्निा
का कारर् क्या है । बहोि अजीब बाि पिा चिी और िह यह शक जापान में
छोटे छोटे बच्चों को माँ बाप एक बाि जरूर शसखािे हैं शक जब भी क्रोध हो,
मन अिां ि हो, शचंशिि हो, िो गहरी श्वास िो और श्वास पर ध्यान करो। इससे
उनके पूरे व्यस्ित्व में बुशनयादी अं िर हुआ है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 27


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो इसे शदन में शकसी भी समय, शकसी भी क्षर् में अिां शि मािूम पड़े , क्रोध
मािूम पड़े , शचंिा मािूम पड़े िो यह प्रयोग कर के दे खे: गहरी श्वास िें और
श्वास पर ध्यान करे । और जब ध्यान के शिए बैठे िब िो अशनिायय रूप से दस
शमनट के शिए, पहिे गहरी श्वास िे। अगर इस प्रयोग को कोई एक िंटे पूरा
शकया जाए, िो अिग से और कुछ करने की जरूरि भी नहीं।

बुि की ध्यान की प्रशक्रया का नाम है , ‘अनपानसशि योग’। बुि अपने


शभक्षु ओं को एक ही बाि शसखािे थे और यह शक: ‘िुम अपने श्वास के आने
जाने शक स्मृशि रखो’। अनपानसशि योग का मििब है : ‘श्वासका आना जाना
और उसकी स्मृशि’ - जानिे हुए शक श्वास भीिर आई, जानिे हुए शक श्वास
बाहर गई। अगर कोई व्यस्ि श्वास की गशि पर शजिना ज्यादा ध्यान रख सके
शक रास्ते पर चििे हुए, बस में बैठे हुए, खाना खािे हुए, रास्तेपे चििे हुए,
उिना ही उसका मन िां शि की गहरी से गहरी पिो में उिरिा चिा जािा है ।

अगर इस प्रयोग को ही एक िंटा रोज शकया जा सके िो िीन मशहने में आप


एक रूपां िरर् दे खेंगे और कल्पना भी न कर पाएं गे शक इिना छोटा प्रयोग
इिने बड़े पररर्ाम कैसे िा सकिा है । िाने के कारर् है । जैसे ही हम गहरी
श्वास िेिें है और श्वास पर ध्यान करिे हैं , िो हमारी आत्मा और श्वास को
जोड़ने िािा सेिू है , ब्रीज है । उसी के द्वारा आत्मा और िरीर जूड़े हुए है ।
जब हम गहरी श्वास िेिे हैं िो िरीर और आत्मा के बीच का फासिा बड़ा हो
जािा है । और जब हम श्वास पर ध्यान करिे हैं िो िरीर धीरे धीरे बाहर अिग
पड़ा रह जािा है , आत्मा अिग हो जािी है और ध्यान बीच के अंिराि पर हो
जािा है ।

यह अगर रोज एक िंटा िीन मशहने िक शसफय इिना ही प्रयोग कर सके िो,
आपका िरीर आपसे अिग है इसकी स्पष्ट प्रशििी हो जाएगी। यह शकसी
िास्त्र में पढ़ने जाना नहीं पड़े गा। न केिि ये बस्ल्क, शजिने िोग हम यहाँ
ओिो पृष्ठ संख्या 28
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बैठे हैं , अगर इिने िोग इस प्रयोग को कर सके िो कम से कम िीस परसंट
िोगों को िो शकसी न शकसी यह भी अनुभि हो सकिा है शक िरीर अिग
पड़ा है , मैं अिग खड़ा हँ और अपने ही पड़े हुए िरीर को दे ख रहा हँ । िरीर
के बाहर भी होने का अनुभि हो सकिा है ।

और एक बार भी यह अनुभि हो जाए िो मृत्यु समाि हो गई। क्योंशक िब


हम जानिे है शक िरीर ही मरे गा, मेरे मरने का अब कोई कारर् नहीं। और
शजस व्यस्ि के जीिन से मृत्यु का भय चिा जाए, उस व्यस्ि के जीिन से
सभी भय चिे जािे हैं । क्योंशक मूि भय मृत्यु है । और शजस व्यस्ि को ऐसा
शदखाई पड़ जाए शक मैं िरीर से अिग हँ , उसके जीिन में िो द्वार खुि जािा
है जो प्रभु का द्वार है । िेशकन ऐसे दस शमनट, िुरू में इसे करे ।

आने िािे िीन शदनो प्रयोग को हम समझेंगे। ये सुबह की बैठक इसी शिए है
शक प्रयोग पूरी िरह आपके ख्याि में आ जाए। राि सोिे समय इसे करे आज
भी, सोिे सोिे शबस्तर पर ही िेट जाए, करिे करिे सो जाए। अगर करिे
करिे ही सो जाए, िो बहोि शकमिी पररर्ाम होंगे। क्योंशक राि सोिे समय
जो हमारी आखरी मन की दिा होिी है , िो शफर पूरी शनंद में उसकी
प्रशिध्वनी होिी रहिी है । और धीरे धीरे , धीरे धीरे ; पूरी नींद ध्यान में बदिी जा
सकिी है । और आज की दु शनया में इिना समय नहीं शकसी के पास शक
अिग से ध्यान के शिए बहोि समय दे सके।

इसशिए मेरी अपनी समझ है शक ध्यान राि सोिे समय अगर शकया जाए, िो
धीरे धीरे कोई शबना अिग से समय शनकािे; राि की पू री शनंद ध्यान में बदि
जािी है । और थोड़े दस पंिह शदन में ही आपको पिा पड़ना िुरू होगा शक
शनंद की क्वॉशिटी बदि गई, उसकी गहराई बदि गई। और जब सुबह उठें गे
िो ऐसा नहीं िगे गा की शनंद से उठे ; ऐसा िगे गा गहरे ध्यान से उठे । िाजगी,

ओिो पृष्ठ संख्या 29


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िां शि, हिकापन िो सब सु बह से ही मािूम होना िुरू हो जाएं गे । और यशद
संभि हो सके िो दो बार: सुबह स्नान के बाद कर िें, राि सोिे समय कर िें।

एक िंटा, िीन मशहने ध्यान के शिए दे दे । शफर िीन महीने के बाद दे ना नहीं
पड़े गा ध्यान के शिए एक िंटा; ध्यान अपने आप िे िेगा। िीन मशहने िक
आपको दे ना पड़े गा और िीन मशहने के बाद आपकी कोई जरूरि न रहे गी।
िो जो आनंद की झिक आएगी, िो जो िां शि की शकरर् आएगी, िो जो
परमात्मा का स्पषय मािूम पड़ना होगा िुरू; िो अपने आप बुिा िेगा, अपने
आप पुकार िेगा।

मन का शनयम है शक जहाँ आनंद है , िहाँ मन उस िरफ अपने आप बहा


चिा जािा है । एक बार हम रास्ता भर पकड़ िें आनंद का िो, जैसे नदी
सागर की िरफ भाग रही है ; ऐसा मन आनंद की िरफ भागने िगिा है ।
और जहाँ पूर्य आनं द है िहीं परमात्मा का शनिास भी है ।

कि सुबह शफर हम यहाँ साि बजे बै ठेंगे । िो िर से स्नान करके आएं । अगर
कोई नए शमत्र आपके साथ आिे हों िो उन्ें भी बिा दे शक िे स्नान करके
आएं , चूपचाप आएं । िर से ही चूप होना िुरू हो जाए और यहाँ आके
चुपचाप बैठ जाए। कोई िब्द का प्रयोग न करें ।

शजिनी दे र मैं आऊंगा, दस पां च शमनट पहिे आप आ गए हैं िो गहरी श्वास


िेिे हुए, कहीं भी कौने में बैठें हुए; जो मैंने कहा है करिे रहें । मैं शफर
आऊंगा िो शफर हम सामूशहक बैठ के प्रयोग करिे रहें गे।

एकाध दो शमत्र ऐसे ही दे खने आ गए है शक दू सरे क्या कर रहे हैं , उन्ें कि


नहीं आना है । क्योंशक शजसे प्रयोग नहीं करना है उसे नहीं आना है । िो सबके
शिए उपिि का कारर् बनिा है , उसे पिा नहीं होिा। और दू सरे को दे खके
कुछ भी नहीं समझा जािा। क्या समझेंगे दू सरे को अगर कोई दे खे? िो उसे

ओिो पृष्ठ संख्या 30


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
दे खके क्या समझेगा, िह आं ख बंध शकए बैठा है । उसे दे खके आप क्या
समझेंगे? कुछ भी समझना है िो अपनी ही आं ख बं ध करके भीिर दे खना
पड़े गा। दू सरे को दे खने से कुछ समझ में आनेिािा नहीं। िो िमाि बीन की
िरह कोई भी न आए, एक दो सज्जन आ गए हैं , िो कि से कष्ट न करे । अगर
आिे हो कि िो अपनी ही फीकर करें , दू सरा क्या कर रहा है इसकी शचंिा में
शकसी को पड़ने की जरूरि नहीं।

सुबह की हमारी बैठक पूरी हुई। इस संबंध में कोई भी प्रश्न हो िो कि


शिस्खि मुझे दे दें गे िो ध्यान के पहिे उनकी बाि कर िूंगा। और अगर
शकसी को व्यस्िगि इस संबंध में पू छना हो िो दोपहर को िीन से चार कोई
भी आकर पूछ िे सकिा है ।

सुबह की बैठक हमारी पूरी हुई। बािचीि हम नहीं करें गे । चुपचाप यहाँ से
शिदा हो जाएं गे ।

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-03

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

ओिो पृष्ठ संख्या 31


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
तीसरा-प्रिचन

जो शदखाई पड़ जाए उसका जीिन में प्रशिष्ट हो जाना, िह भी उिना


महत्वपूर्य नहीं है , उससे भी ज्यादा महत्वपूर्य है , जो जीिन में प्रशिष्ट हो। िह
आरोशपि, जबरदस्ती, चेष्टा और प्रयास से न हो, बस्ल्क ऐसे ही सहज हो
जाए--जैसे िृक्षों में फूि स्खििे हैं , या सूखे पत्ते हिाओं में उड़ जािे हैं , या
छोटे -छोटे शिनके और िकड़ी के टु कड़े नदी के प्रिाह में बह जािे हैं । उिना
ही सहज जीिन में उसका आगमन हो जाए।

िह िो िीन शदनों में मैं चचाय करू


ं गा, उसे आप समझने और सोचने की शदिा
में सहयोगी बनेंगे। अभी आज की राि िो कुछ बहुि थोड़ी सी प्राथशमक बािें
मुझे कहनी हैं । िेशकन इसके पहिे शक मैं िे बािें कहं , यह भी आपसे शनिेदन
कर दू ं , साधारर्िः जो िोग भी धमय और साधना में उत्सुक होिे हैं , िे सोचिे
हैं शक बहुि बड़ी-बड़ी बािें महत्वपूर्य हैं ।

मेरी दृशष्ट शभन्न है । जीिन बहुि छोटी-छोटी बािों से बनिा है , बड़ी बािों से
नहीं। और जो व्यस्ि भी बहुि बड़ी-बड़ी बािों की महत्ता के संबंध में गं भीर
हो उठिा है , िह इस िथ्य को दे खने से िंशचि रह जािा है , अक्सर िंशचि रह
जािा है । उसे यह बाि नहीं शदखाई पड़ पािी है शक बहुि छोटी-छोटी चीजों
से शमि कर जीिन बनिा है ।

परमात्मा और आत्मा और पुनजयन्म और इस िरह की सारी बािें धाशमय क


िोग शिचार करिे हैं । इसमें बहुि छोटे -छोटे जीिन के िथ्य, दृशष्टयां और
हमारे सोचने और जीने के ढं ग उनके खयाि में नहीं होिे , और िब बड़ी बािें
हिा में अटकी रह जािी हैं । और जीिन के पैर शजस भू शम पर खड़े हैं उस
भू शम में कोई पररिियन नहीं हो पािा।

ओिो पृष्ठ संख्या 32


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कुछ छोटे -छोटे थोड़ी सी बािों के संबंध में आज की राि चचाय करना चाहं गा।
अगर उन पर थोड़ा ध्यान दें गे, िो आने िािे िीन शदनों में कुछ गहरा काम भी
हो सकिा है ।

इसके पहिे शक मैं बाि िुरू करू


ं , एक छोटी सी कहानी कहं , िायद उस
कहानी के आधार पर पूरी चचाय होिी चिे।

दो शमत्र पृथ्वी की पररक्रमा के शिए शनकिे। उन्ोंने चाहा और आकां क्षा की


शक हम सारी पृथ्वी को िूम िािें और दे ख िािें, और जीिन के शिशिध रूपों
को अनुभि करें और जीिन में जो अनुभि की संपदा है उसे बटोरें । िेशकन
एक उनमें से अंधा था। बड़ी दया की दू सरे शमत्र ने, िह उसका हाथ पकड़
कर उसे सारी पृथ्वी िुमाने के शिए राजी हुआ था। अंधा आदमी अपनी
िकड़ी टे क कर और शमत्र का सहारा िेकर यात्रा िुरू की। िेशकन थोड़े ही
शदनों में अड़चनें आनी िुरू हुईं।

दू र से शमत्र बने रहना एक बाि है और िंबी यात्रा में सहयोगी और साथी होना
शबिकुि दू सरी। बहुि सी कशठनाइयां आनी िुरू हो गईं। छोटी-छोटी बािों
में उपिि और शिरोध िुरू हो गया। कटु िा आनी िुरू हो गई। पृथ्वी बड़ी
थी, पररक्रमा बहुि बड़ी थी। थोड़े ही शदनों में दोनों के बीच मनमुटाि गहरा
हो गया।

एक राि दोनों एक रे शगस्तान में सोए, बहुि सदय और ठं िी राि थी। सुबह जै से
ही अंधे शमत्र की आँ ख खुिी, उसने टटोि कर अपनी िकड़ी ढूंढनी चाही,
शजसे िह राि रख कर सो गया था। उसके हाथ में िकड़ी आ भी गई, दे ख
कर िह है रान हुआ, जो िकड़ी उसके हाथ में आई थी, िह बहुि शचकनी,
साफ-सुथरी, बहुि सुंदर मािूम हो रही थी। िह है रान हुआ शक यह िकड़ी
कहां से आ गई? उसकी िकड़ी िो बहुि साधारर् और खुरदु री थी। उसी

ओिो पृष्ठ संख्या 33


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िकड़ी से उसने अपने आँ ख िािे शमत्र को शहिाया और जगाया और कहा
शक उठो, सुबह हो गई है और पक्षी गीि गाने िगे हैं और मुगों ने बाँ ग दे दी है ,
और अच्छा होगा शक हम जल्दी यात्रा पर शनकि जाएं , इसके पहिे की सूरज
चढ़े और धूप बढ़ जाए।

आँ ख िािे शमत्र ने आँ ख खोिी, िह िबड़ा कर दू र खड़ा हो गया और उसने


अपने अंधे शमत्र से कहा शक शमत्र, िुम जो िकड़ी हाथ में शिए हो िह िकड़ी
नहीं है , कृपा करके उसे जल्दी छोड़ दें , िह राि में, सदी में शठठु र गया एक
सपय है और िुम उसे पकड़े हुए हो। िेशकन उस अंधे आदमी ने कहा: अब िो
हद्द हो गई, मेरे पास आं खें नहीं हैं , यह िो मैं समझिा हं , िेशकन मेरे पास
हाथ हैं । िुम िो िायद अब यह भी कहने िगे शक िुम्हारे पास हाथ भी नहीं
हैं । मुझे अनुभि हो रहा है शक िकड़ी है , सपय नहीं है ।

और मैं िुम्हारी चािाकी भी समझ गया। िायद यह सुं दर िकड़ी िुम्हें बहुि
मन को भा गई होगी और िुम चाहिे हो शक मैं इसे छोड़ दू ं िो िुम उठा िो।
िेशकन मुझे धोखा दे ना इिना आसान नहीं है । उसके शमत्र ने बार-बार प्राथय ना
की शक िुम कृपा करो और इसे छोड़ दो, िह सपय है और िकड़ी नहीं है ।
िेशकन शजिना िह शमत्र प्राथय ना करिा गया, उिना अंधे का आग्रह बढ़िा
चिा गया। अंििः बाि यहां पहुं च गई शक उस अंधे आदमी ने कहा शक अब
हमारा साथ आगे नहीं बन सकेगा। शफर दोनों शमत्र अिग हो गए।

आँ ख िािे ने बहुि दु ख से उस शमत्र को शिदा शकया, िेशकन कोई रास्ता नहीं


था। थोड़ी ही दू र चिने पर जब धूप िीखी हो गई, िो सपय की सदी थोड़ी कम
हुई, उसमें प्रार् िापस िौटे । और उस अंधे आदमी का जो होना था िह
हुआ। उस सपय ने उसे काटा और िह अंधा आदमी मरा। यह कहानी मैं
शकसी शििेष प्रयोजन से कह रहा हं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 34


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मनुष्य के जीिन में एक िंबी यात्रा है , हर मनुष्य के जीिन में, िंबी पररक्रमा
है पूरी पृथ्वी की। जन्म से मृत्यु के बीच िंबी यात्रा है । और हर मनुष्य के
भीिर दोनों शमत्र मौजूद हैं --आँ ख िािा भी और न आँ ख िािा भी। जो आँ ख
िािी िस्ियां हैं मनुष्य के भीिर, बहुि कम िोग उन्ें जगा पािे हैं और उन
पर...अशधकां ि िोग उन्ें ही पकड़ िेिे हैं और उनके ही अनुगामी हो जािे
हैं । यहां िक भी शक हम अंधी िस्ियों के साथ होकर आँ ख िािी िस्ियों
का साथ भी छोड़ दे ने को िैयार हो जािे हैं ।

िब शफर जीिन में बहुि भटकन, एक अंधापन, दु ख और पीड़ा िुरू होिी


है । और िह पूरा जीिन जीिन न रह कर मृत्यु की ही एक िंबी प्रशक्रया मात्र
हो जािी है । शफर हम मरिे हैं , रोज मरिे जािे हैं , और एक शदन मौि आिी है
और समाि हो जािे हैं । िेशकन जीिन के अथय को और आनंद को नहीं जान
पािे हैं । जीिन के अथय और आनंद को िो िही जान सकिा है , जो स्वयं के
भीिर आँ ख िािी िस्ियों का सहारा पकड़े ।

और जो स्वयं के भीिर अंधी िस्ियों का सहारा पकड़िा है , िह जीिन से


भटक जािा है और अंधकार में खो जािा है । अंधापन अंधकार में िे जा
सकिा है , आं खें प्रकाि में। और प्रकाि के अशिररि न जीिन का अथय है
कोई और न जीिन में आनंद है कोई। और प्रकाि के शबना जीिन भटक
जािा है ।

कौन सी िस्ियां हमारे भीिर अंधी हैं , उनकी मैं बाि करू
ं गा। कौन सी
िस्ियां हमारे भीिर आँ ख िािी हैं , उनकी मैं बाि करू
ं गा। उन ित्वों की
भी बाि करू
ं गा जो अंधी िस्ियों को प्रबि करिे हैं और उनकी भी जो उन्ें
शनमयि करिे हैं और आँ ख िािी िस्ियों को जगािे हैं और चैिन्य करिे हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 35


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यशद आपके जीिन में दु ख, शचंिा और पीड़ा हो, यशद आपने जीिन की कोई
शथरक और संगीि और आनंद अनुभि न शकया हो, िो एक बाि बहुि स्पष्ट
रूप से समझ िेना, जाने-अनजाने आपने जीिन की अंधी िस्ियों को ही
बि शदया होगा, अन्यथा यह नहीं हो सकिा था। अगर रास्ते पर हम चिें और
पैर बार-बार गङ् ढे में पड़ जािे हों और बार-बार शकसी से टकराहट हो जािी
हो और चोट िग जािी हो, िो हम समझेंगे शक...या आँ ख से अंधी हुई।

िेशकन जीिन में यह रोज होिा है , शक रोज बार-बार उन्ीं-उन्ीं गङ् ढों में
हमारे पैर जीिन के पथ पर शगरिे हैं । नये-नये गङ् ढों में भी नहीं; कि जो
क्रोध शकया था, िही क्रोध आज भी शकया। आज जो क्रोध शकया है , कि िही
क्रोध शफर भी होगा। क्रोध के बाद पछिाएं गे भी, दु खी भी होंगे, शनर्यय भी
करें गे न करने का, िेशकन शफर िड़ी दो िड़ी बाद िही भू ि सामने आ
जाएगी, िही गङ् ढा, िही आदमी, िही पैर और शफर िही गङ् ढे में शगरना हो
जाएगा।

जीिन शनरं िर कुछ थोड़ी सी भू िों को ही दोहरािे हैं हम जीिन भर। यह


शनरं िर उन्ीं-उन्ीं भू िों का दोहराना, शजनके शिए हम पछिाए, दु खी हुए,
पीशड़ि हुए, कष्ट उठाया, शनर्यय शकया नहीं करने का, शफर उन्ीं को दोहरािे
हैं , शकस बाि की सूचना होगी? इस बाि की शक भीिर आँ ख या िो बंद है या
हमने जीिन में जो भी दृशष्ट पकड़ी है िह अत्यंि अंधकारपूर्य और अंधी है ।
उन्ीं भू िों को इसके अशिररि दोहराने का कोई भी कारर् नहीं है ।

और शफर जो कुछ हम जीिन में चाहिे हैं , िही-िही उपिब्ध नहीं हो पािा।
हर मनुष्य आनंद चाहिा होगा, िां शि चाहिा होगा, एक संगीिपूर्य व्यस्ित्व
चाहिा होगा, फूि की िरह सुरशभि आत्मा चाहिा होगा, िेशकन यह हो नहीं
पािा। और जो हम करिे हैं , िह सब ठीक हमें, जो हम चाहिे हैं उसके
शिरोध में िे जािा है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 36
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इससे शकस बाि की सूचना शमििी होगी? एक ही बाि की सूचना शमििी
होगी, आकां क्षाएं िो हमारी ठीक हैं , िे शकन आं खें हमारी अंधी हैं । और आं खें
अंधी हों, िो स्मरर् रस्खए, खुद की आं खें अंधी हों, िो कोई दु शनया में शकसी
दू सरे की आँ ख आपके काम नहीं पड़ सकिी हैं । कृष्ण की, या क्राइस्ट की,
या बुि की, या महािीर की, या शकसी की भी आँ ख आपके काम नहीं
पड़ें गी। और आपकी आँ ख अंधी हों, िो आपके हाथ में सूरज भी िाकर रख
शदया जाए, िो भी प्रकाि नहीं कर सकेगा, उसमें कोई अथय नहीं होगा।

एक अंधा आदमी, एक शमत्र के िर राि शिदा िे रहा था। उसके शमत्र ने कहा:
अंधेरी राि है , सन्नाटा है , अमािस है , रास्ते सुनसान हैं , िोगों के िर बंद हैं ,
अच्छा होगा शक िुम हाथ में एक दीया शिए जाओ। उस अंधे ने कहा शक आप
बड़ी पागिपन की बािें करिे हैं , मैं दीया भी िे जाऊं, उसका क्या अथय?
मेरी आं खें िो नहीं हैं । िो मेरे हाथ में प्रकाि भी होगा, िो मैं क्या करू
ं गा?

शफर भी शमत्र ने बहुि आग्रह शकया, उसके आग्रह को मान िेकर िह अंधा
आदमी एक कंदीि को िेकर रास्ते पर शनकिा। िेशकन िह कोई दस कदम
ही गया होगा शक कोई दू सरा आदमी आकर उससे टकरा गया। उस अंधे
आदमी ने कहा: मे रे शमत्र, मुझे िो िािटे न नहीं शदखाई पड़िी, िेशकन िुम्हें
िो शदखाई पड़िी होगी? क्या मैं शकसी दू सरे अंधे आदमी से मुिाकाि कर
रहा हं ? उस दू सरे आदमी ने कहा: नहीं भाई, मुझे िो शदखाई पड़िा है ,
िेशकन िुम्हारी कंदीि की बािी बुझ गई है , िुम बुझी हुई कंदीि शिए हुए हो,
इसशिए कैसे शदखाई पड़िा? िो अंधे आदमी को िो यह भी पिा नहीं चि
सकिा शक कंदीि बुझी है या जिी है ।

दु शनया भर के िास्त्र बुझी हुई कंदीिों की भां शि हमारे हाथों में हैं । शजससे
कोई अथय नहीं है । कोई कुरान को शिए हुए है ; कोई गीिा को; कोई बाइशबि
को, और िीनों टकरा जािे हैं रास्तों पर। िीनों की कंदीिें बुझ गई हैं । िेशकन
ओिो पृष्ठ संख्या 37
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कंदीि बुझी है या जिी है , इससे कोई फकय नहीं पड़िा, जब िक शक खुद के
पास आँ ख न हो।

आँ ख के शबना प्रकाि का कोई भी अथय नहीं है । िो चाहे हम शकिने ही


प्रकाििान िोगों को पूजें, औरों के िचनों को आदर दें , कोई उससे, कोई
उससे जीिन में शहि होने िािा नहीं है , कोई मंगि होने िािा नहीं है । मंगि
िो िब होगा, जब आँ ख खुिी हो। और मैं स्मरर् शदिा रहा हं शक आँ ख खु िी
हो, िो अंधकार मैं भी रास्ता शमि सकिा है और आँ ख बंद हो, िो प्रकाि में
भी कोई रास्ता नहीं है ।

मैं शफर दोहरािा हं , आँ ख बंद हो, िो प्रकाि में भी कोई रास्ता नहीं है और
आँ ख खुिी हो, िो अंधकार में भी रास्ता शमि जािा है ।

जीिन में जो हमारे इिनी शचंिाएं , इिना संिाप, इिनी एं ग्ज़ायटी, इिनी
अिां शि है , क्या कभी सोचा शक ये क्यों हैं ? क्या कभी शिचारा शक ये कैसे पैदा
हो गई हैं ? ये आसमान से नहीं बरसिी हैं , इसे हम पैदा करिे हैं । शजस ढं ग से
हम रोज जीिे हैं , उससे हम पैदा करिे हैं । हमारे जीने का ढं ग गिि है ,
सोचने का ढं ग गिि है ; दे खने की दृशष्ट मंद है , हाथ में, जीिन में कोई प्रकाि
नहीं है । जो भी हम करिे हैं , िह गिि िे जािा है । जो भी हम बनािे हैं , िह
गिि हो जािा है । शजस भां शि भी हम चििे हैं , िही रास्ता भटका दे िा है ।

िो इन सारे िथ्यों को दे खने पर एक बाि खयाि में आ जानी चाशहए और िह


यह शक हमने अपने जीिन में आं खों िािी िस्ियों को शिकशसि करने में
संकोच शकया होगा और अं धी िस्ियों को सहारा शदया होगा। कोई भी अंधी
िस्ियां हों। श्रिा अंधी िस्ि है , शिश्वास अंधी िस्ि है । शिचार, शििे क,
आँ ख िािी िस्ियां हैं । िेशकन हमने श्रिा को, शिश्वास को, इनको बि शदया
है । शििेक को और शिचार को नहीं।

ओिो पृष्ठ संख्या 38


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मूच्छाय अंधी िस्ि है और हमने हर िरह से मूच्छाय खोजी है । हमने िरहत्तरह
से बेहोि होने के उपाय शकए हैं । न केिि हमने िराब और अफीम और
गां जा, और अभी नई दु शनया में मैक्सिीन और एि एस िी, और इस िरह की
चीजें खोजी हैं , शजनसे हम मूस्च्छय ि हो जाएं । बस्ल्क हमने भजन, कीियन, धूप,
नाम-जप, मािाएं और न मािूम ऐसी मानशसक िरकीबें खोजी हैं , शजनसे मन
िंिा में चिा जाए और सो जाए। हमने मन को जगाने और चैिन्य करने के
उपाय नहीं खोजे, हमने मन को सुिाने के, िंिा में िे जाने के, नींद में िे जाने
के, मूस्च्छय ि होने के उपाय खोजे हैं ।

शनशिि ही मूच्छाय और नींद से एक िरह की िां शि शमििी है , िेशकन िह िां शि


उसी िरह की है शजस िरह की मुदाय ओं में होिी है । जीिंि िह िां शि नहीं है ,
जो मूच्छाय से आिी हो। जीिंि िां शि िो िह है , जो परम जागरर् से उत्पन्न
होिी हो।

इस सबकी मैं बाि करू


ं गा शक हमने शकस भां शि मूच्छाय को, आं खें बंद करने
को बि शदया है , सहारा शदया है । और उसकी भी बाि करू
ं गा शक कैसे हम
उससे मुि हो सकें। और जीिन-िस्ियों को, शििेक की और चैिन्य की
िस्ियों को जगा सकें। इन दोंनो की इन िीन शदनों में मैं चचाय करू
ं गा।

इसके पहिे शक िे िीन शदन की चचाय एं आपके सामने हों, िे सारी बािें आपसे
कहं , इन िीन शदनों की बािों को सम्यक रूप से समझने, शिचार करने, उस
िरफ आँ ख उठाने के शिए कुछ छोटी-छोटी बािें आपसे अपेशक्षि होंगी।
पहिी अपेक्षा िो यह होगी शक इन िीन शदनों में--जो पीछे आप करिे आए हैं ,
सोचिे रहे हैं , शिचार करिे रहे हैं , उससे थोड़ा सा दू र हट कर अगर बािों को
सुनने की कोशिि करें गे , िो िायद कुछ हो सके। उससे थोड़ा िटथथ होकर
अगर सोचेंगे, िो कुछ हो सकिा है । आमिौर से हम उसे भू ि ही जािे हैं जो
हमारे मन में बैठा हुआ है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 39
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
एक फकीर के पास एक नया युिक दीक्षा िेने गया था। उस युिक ने जाकर
उस फकीर के पैर पड़े और कहा शक मैं दीशक्षि होने आया हं ।

िो उस फकीर ने पूछा, िुम शकस जगह से आिे हो?

उसने कहा: मैं पेशकंग से आिा हँ ।

उस फकीर ने पूछा शक पेशकंग में चािि के क्या भाि हैं ?

िह युिक हं सा और उसने कहा: क्षमा करें , पेशकंग को मैं पीछे छोड़ आया,
उसके चािि को भी, उसके भाि को भी, और शजस रास्ते से मैं गु जर जािा
हं , िह मेरे शिए शमट गया हो जािा है , और शजस पुि पर से मैं गु जर जािा हं ,
उसको मैं िोड़ दे िा हं । मुझे कुछ पिा नहीं शक पेशकंग में चािि के क्या भाि
हैं ।

उस फकीर ने कहा: िब ठीक है , िब मैं िु म्हें दीक्षा दे ने को राजी हं । अगर


िुम बिािे शक पेशकंग में चािि के क्या भाि हैं , िो मेरे दरिाजे बं द हो जािे
और मैं िुम्हें शिदा कर दे िा। क्योंशक जो आदमी पेशकंग से चिा आया और
अब भी िहां के भाि साथ में शिए आया है , िह आदमी सत्य की खोज के शिए
िां ि नहीं हो सकिा।

िो इन िीन शदनों में एक प्राथय ना करू


ं गा शक पेशकंग में चािि के क्या भाि हैं ,
उसको छोड़ दे ना। पेशकंग हो या अमराििी हो या कुछ और हो, िहां क्या
चािि के भाि हैं , अगर िह िीन शदन याद रहे , िो बहुि कुछ काम नहीं हो
सकिा। और जो कशठनाई है , यह स्मरर् रहे शक जो बीि जािा है , उसका
कोई भार शचत्त पर नहीं होना चाशहए। यह स्मरर् मात्र भीिर से शिदा दे दे िा
है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 40


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अभी राि जब आप सोएं , िो स्मरर्पूियक यह खयाि िेकर सोएं शक जो बीि
गया, िह बीि गया और इन िीन शदनों में मैं बीिे हुए को बार-बार मन पर
नहीं िौटने दू ं गा। इन िीन शदनों में जो सामने होगा उसको जीऊंगा और जो
बीि गया उसको छोड़ दू ं गा। अगर इस शिचारपू ियक स्मरर् के साथ आप
सोए, सुबह आप और िरह से उठें गे , जैसा शक आप रोज उठिे रहे होंगे,
उससे शबिकुि शभन्न उठें गे । क्योंशक एक मन का बहुि अदभु ि शनयम है , हम
शजस बाि को िेकर सो जािे हैं , ठीक उसी बाि पर सुबह जागना होिा है ।

उससे शभन्न बाि पर कोई कभी नहीं जागिा। राि शजस शचंिा को िेकर आप
सो गए हैं , सुबह उसी शचंिा पर आप िापस जाग जाएं गे । राि भर िह शचं िा
आपके मस्स्तष्क के द्वार पर खड़ी प्रिीक्षा करे गी, जब आप जागें गे, िह
हाशजर हो जाएगी। राशत्र का अंशिम शिचार सुबह का प्रथम शिचार होिा है ।
और आज राशत्र का अंशिम शिचार भी यही हो शक मैं जो पीछे है उसे छोड़िा
हं । कम से कम िीन शदन के शिए मैं जो सिि िियमान है उसमें जीऊंगा,
अिीि को बीच में नहीं िाऊंगा।

जो व्यस्ि अिीि को बीच में नहीं िािा शचत्त के, उसका शचत्त बहुि शनमयि
और िां ि हो जािा है । क्योंशक अिां शि सब अिीि से आिी है । िो िियमान में
कोई भी अिां शि नहीं होिी। इस ित्व पर अभी हम और शिचार करें गे , िो
समझ में आएगा शक िुम्हें कुछ थोड़े से सुझाि आपको दे रहा हं । िियमान में
िह जो प्रज्वशिि मूिमेंट है , उसमें कोई अिां शि नहीं होिी। सब अिां शि
अिीि से संबंशधि होिी है या भशिष्य से संबंशधि होिी है , िियमान में कभी
कोई अिां ि नहीं होिा। आप खुद ही अपनी अिां शि को दे खेंगे, िो समझ
जाएं गे । या िो िह बीिी हुई होगी या आने िािी होगी। ठीक क्षर् में मौजूद
कोई अिां शि नहीं होिी।

ओिो पृष्ठ संख्या 41


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अभी हम यहां बैठे हैं , अगर हमारा शचत्त इसी क्षर् में मौजूद हो जाए, कौन सी
अिां शि है ? अगर हम इसी क्षर् में जाग जाएं , कौन सी अिां शि है ? अगर
शकसी जादू से आपका सब अिीि पोंछ शदया जाए, िो कौन सी अिां शि है ?

जीिंि क्षर् में कोई अिां शि नहीं होिी है । शपछिा भार, अिीि का भार शचत्त
को अिां शि दे िा है । और आने िािे शदन की कल्पना और योजना शचत्त को
अिां शि दे िी है ।

यहां िीन शदनों में, समझ िीशजए, न िो कोई अिीि है और न कोई भशिष्य
है । िीन शदन में बस ये िीन शदन के क्षर् हैं , जो सामने क्षर् आिा है , िही है ।
इन िीन शदनों में इस भां शि जीकर दे स्खए, एक शबिकुि नई दृशष्ट जीिन के
प्रशि खुि जा सकिी है । और एक बार यह खयाि में आ जाए शक जीिन पर
जो भार है , जो टें िन है , जो िनाि है , िह अिीि और भशिष्य का है , िो मनुष्य
को एक शबिकुि नया द्वार शमि जािा है खटखटाने का। और िब शफर िह
रोज िड़ी दो िड़ी को सारे अिीि और सारे भशिष्य से मुि हो सकिा है ।
और खयाि रस्खए, न िो अिीि की कोई सत्ता है , शसिाय स्मृशि के और न
भशिष्य की कोई सत्ता है , शसिाय कल्पना के, जो है िह िियमान है ।

इसशिए शक शकसी भी शदन परमात्मा को या सत्य को जानना हो, िो िियमान


के शसिाय और कोई द्वार नहीं है । अिीि है नहीं, जा चुका; भशिष्य है नहीं,
अभी आया नहीं है , जो है एस्ग्झसटें शसयिी, शजसकी सत्ता है , िह है िियमान।
इसी क्षर् में सामने मौजूद क्षर् है िही।

इस मौजूद क्षर् में अगर मैं पू री िरह मौजूद हो सकूं, िो िायद सत्ता में मेरा
प्रिेि हो जाए। िो िायद जो सामने दरख्त खड़ा है , ऊपर िारे हैं , आकाि
है , चारों िरफ िोग हैं , इन सबके प्रार्ों से मेरा संबंध हो जाए। उसी संबंध में
मैं जानूंगा उसको भी जो मेरे भीिर है और उसको भी जो मेरे बाहर है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 42


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इन िीन शदनों में अगर हमने थोड़ा सा भी समझपूियक जीने की कोशिि की--
िो क्षर्-क्षर् में जीने की कोशिि करें गे , यह मेरा पहिा शनिे दन है । जब
भोजन कर रहे हों, िो शसफय भोजन करें । भोजन के पहिे की बाि भू ि जाएं
और साथ में भोजन करें । और सारा शचत्त और सारे प्रार् भोजन करने में ही
िल्लीन हो जाएं । िे यहां -िहां िूबिे हुए न हों। अभी िो यह होिा है शक हम
जब भोजन करिे हैं , िब शचत्त कहीं और होिा है --िर में होिा है , दु कान में
होिा है । जब दु कान में होिे हैं , िब िह भोजन कर रहा होिा है । जब बाजार
में होिे हैं , िब शचत्त िर होिा है , जब िर में होिे हैं , िब बाजार में होिा है ।

मििब यह शक जहां हम होिे हैं , िहां हम नहीं होिे हैं । िो जीिन में एक
शिशंखििा और एक खंशिि, और यह खंशिि स्थथशि बड़ी खिरनाक है । शक
जब हम सोिे हैं िब शचत्त शदन में जो उसने शकया उसका स्मरर् करिा है ,
सपने दे खिा है । जो हम शदन में काम करिे हैं , िो राि जो सपने अधूरे हैं ,
शचत्त उन सपनों को पूरा करिा है । शचत्त पूरे िि अनुपस्थथि है , एब्सेंट है
जहां हम हैं , िो हमारा जीिन से संबंध कैसे होगा?

जब हम शकसी को प्रेम कर रहे हैं , िब शचत्त हमारा कहीं और है , िो जीिन में


प्रेम कैसे होगा? और इसीशिए हम जीिन भर अनुभि करिे हैं शक हम प्रेम
चाहिे हैं शक करें और हम चाहिे हैं शक कोई हमें प्रेम दे , िेशकन न िो हम प्रेम
कर पािे हैं और न कोई हमें प्रेम दे पािा है । प्रेम के शिए जरूरी है शक हम
िियमान में हों।

िेशकन जब हम प्रे म करिे हैं िब शचत्त कहीं और होिा है । और जहां शचत्त प्रेम
करिे िि होिा है , जब हम िहां आ गए, िो शचत्त िहां होिा है जहां उसे प्रेम
करिे िि होना चाशहए था। ऐसे जीिन में सारी चीज टू ट गई हैं । हम कहीं हैं ,
शचत्त कहीं है । जब हम प्राथय ना करिे हैं , िब शचत्त कहीं और है ; जब हम

ओिो पृष्ठ संख्या 43


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
व्यिसाय करिे हैं , िब शचत्त कहीं और है । हम शकसी काम में भी ठीक-ठीक
मौजूद नहीं हैं ।

इन िीन शदनों में एक छोटा सा प्रयोग करें --शक जो भी काम कर रहे हैं उसमें
पूरी िरह मौजूद हो जाएं । अभी राि को यहां से जाकर सोएं , िो पूरी िरह
सोएं । पूरी िरह सोने का मििब यह है शक सोिे िि इस भां शि सोएं शक
सारा काम समाि हुआ। अब शसिाय सोने के और कोई भी काम नहीं है ।
अब मैं अपने पूरे प्रार्ों से सोने जा रहा हं । और मे रे पूरे प्रार् शसफय सोने भर
के काम को करें और कोई भी काम नहीं है । उसी भां शि सोएं ।

सुबह स्नान करें िो इस भां शि स्नान करें शक स्नान करिे िि आपका पूरा
व्यस्ित्व स्नान कर रहा है , आपका शचत्त कहीं और नहीं भागा जा रहा है ।
थोड़े ही शदन स्मरर्पूियक अगर हम शचत्त के साथ सजगिा बरिें, िो बहुि
कशठन नहीं है शक एक शदन िह िड़ी आ जाए शक हम जो काम कर रहे हों,
उसमें हम पूरी िरह मौजूद हो जाएं । बुहारी िगा रहे हों, िो पूरी िरह मौजू द
हो जाएं । और अगर बुहारी िगािे हुए भी कोई पूरी िरह मौजूद हो जाए, िो
उसे बुहारी िगाने में िही आनंद उपिब्ध होगा, जो शकसी बड़े से बड़े योगी
को ध्यान करने में उपिब्ध हुआ है । कोई फकय नहीं रह जाएगा।

ध्यान का एक ही अथय है शक हम जो कर रहे हैं , उसमें हमारा शचत्त पूरी िरह


मौजूद है , पूरी िरह िीन है , उससे बाहर नहीं है । कोई भी छोटा काम।

अभी यहां से उठ कर आप कमरे की िरफ जाएं गे , िो चिेंगे रास्ते पर, िो


इस भां शि चिें शक चिने के शसिाय और कोई शक्रया आपके शचत्त में नहीं हो
रही, बस शसफय चि रहे हैं , चिना ही रह जाए और आप शमट जाएं । अगर
चिना ही रह जाए और आप शमट जाएं , िो आपके कमरे िक जो सौ कदम

ओिो पृष्ठ संख्या 44


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उठाए जाएं गे , िे सौ कदम परमात्मा के शनकट िे जाएं गे। और उन सौ कदमों
में ही आपको पिा चिेगा शक शचत्त िो अपूिय रूप से िां ि हो गया है ।

इधर हम िीन शदनों में सिि इस बाि की शफकर करें गे । जो भी काम कर रहे
हों, उसे इिनी पूर्यिा से करें , इिने पूरे, टोटि, इिने समग्ररूप से उसमें िूब
जाएं शक उसके बाहर कुछ भी न रह जाए, आप िही हो जाएं ।

एक दफा ऐसा हुआ, शिब्बि में एक बादिाह को अपने राज्य की एक मोहर


बनाने थी। और मोहर पर उसके शकसी सिाहकार ने कहा शक एक बोििा
हुआ मुगाय उस मोहर पर खोदा जाए। उसे बाि जंच गई। उसने सारे राज्य के
शचत्रकारों को खबर की शक कोई बोििे हुए मुगे का शचत्र बनाए। राज्य में एक
बूढ़ा शचत्रकार था, उसे भी बुिाया, िेशकन उसने कहा शक मैं इिना बूढ़ा हो
गया हं शक अब मैं नहीं बना सकूंगा। िो राजा ने कहा शक िुम बनािे िो हो,
शचत्र िो बनािे हो, यह क्यों नहीं बना सकोगे ? उसने कहा शक कोई और बना
सके िो बेहिर।

बहुि से शचत्रकार मुगों के शचत्र बना कर िाए, नमूने के शिए, िेशकन उस बूढ़े
शचत्रकार ने कहा शक सब शफजूि हैं , ये कुछ भी नहीं हैं । आस्खर राजा
परे िान हो गया, उसने कहा: िुम खुद बनािे नहीं, दू सरों को बनाने दे िे नहीं।
शफर हम क्या करें ? उसने कहा शक मैं बनाऊं िेशकन मेरा पक्का नहीं है ,
क्योंशक कम से कम िीन िषय िग जाएं गे ।

िो राजा ने कहा: िीन िषय! एक मुगे के शचत्र बनाने में?

उसने कहा: शचत्र बनाना िो दो क्षर् में हो जाएगा, िेशकन मुगाय बनने में िीन
िषय िग जाएं गे ।

राजा ने कहा: िुम पागि हुए हो! मुगाय िुमसे बनने को कह कौन रहा है ?

ओिो पृष्ठ संख्या 45


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसने कहा: जब िक मैं मुगे को भीिर से न जानूं शक िह कैसा है ? और जब
िह बां ग दे िा है िो उसके प्रार्ों में क्या होिा है ? जब िक यह मैं न जान िूं,
जब यह स्फुरर्ा मेरे प्रार्ों में न हो जाए, िब िक मैं कैसे मुगे को बोििा
हुआ बना सकूंगा? िीन िषय िगें गे। मैं बूढ़ा आदमी हं , शिश्वास नहीं शदिा
सकिा, बीच में मर भी सकिा हं । िीन िषय राज्य की िरफ से मेरी व्यिथथा
करनी पड़े गी भोजन की, क्योंशक उस िि मैं कुछ भी नहीं करू
ं गा।

राजा ने कहा शक ठीक, हम व्यिथथा करें गे । िीन िषय की व्यिथथा की गई।


िह बूढ़ा किाकार जंगिों में चिा गया, जहां जंगिी मुगे रहिे थे । दो-िीन
महीने बाद राजा ने आदमी अपने दे खने भे जे शक िह आदमी पागि िो नहीं
है ? क्योंशक एक मुगाय बनाने के शिए िीन साि बहुि होिे हैं । और एक
शनष्णाि किाकार है , जीिन भर उसकी प्रशसस्ि रही है , उसके हाथ में
अदभु ि जादू है , िुम जाकर दे खो शक िह पागि क्या कर रहा है ? िे शमत्र
दे खने गए, दे ख कर है रान हो गए! िह बूढ़ा िो मुगों के बीच शछपा हुआ बै ठा
है , आस-पास मुगे बां ग दे रहे हैं । उन्ोंने िो उसे दे खा, िेशकन उस बूढ़े ने
उन्ें नहीं दे खा।

और िीन महीने बाद गए, दे खा शक िह िो मुगों के साथ दौड़ रहा है चारों


हाथ-पैर पर। िह िो शबिकुि पागि मािूम होिा है , यह क्या कर रहा है ?
िीन िषय पूरे हुए, राजा ने खबर भे जी, िह आदमी िापस दरबार में आया।
राजा ने कहा: शचत्र बना कर िाए हो?

उसने जोर से जैसे मुगाय आिाज दे िा है , िैसी आिाज दी।

राजा ने कहा: हम यह नहीं चाहिे हैं , हमें शचत्र चाशहए। िुम मुगे की आिाज
सीख कर आए, इससे क्या होिा है ?

ओिो पृष्ठ संख्या 46


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उस बूढ़े ने कहा: शचत्र िो बना दे ना अब एक क्षर् भर का काम है । सामान
बुिा िें, मैं यही बना दू ं गा। िेशकन िीन िषय मैं मुगे के साथ एक होने की
कोशिि शकया, िह बाि हो गई। उसने शचत्र बनाया। जो कहा जािा है
मनुष्य-जाशि के पूरे इशिहास में शकसी भी पिु या पक्षी का ऐसा शचत्र कभी
नहीं बनाया गया। िह शचत्र अदभु ि है । उसने राजा से कहा शक अब इस शचत्र
की परीक्षा कर िो।

उसने कहा: इसकी क्या परीक्षा है ? हम कैसे जानें शक यह शचत्र इिना अदभु ि
बना?

उसने कहा: शचत्र को रख दो और असिी मुगों को िे आओ। अगर असिी


मुगाय दे ख कर भाग जाए, िो िुम समझ िेना शक शचत्र बना। असिी मुगे िाए,
िे मुगे भाग गए। मुगे बाहर से झां क कर दे खे उस शचत्र को और िापस िौट
गए। िह जो मुगाय था, िो िड़ने की स्थथशि में पूरी बां ग दे कर खड़ा हुआ था।
उस शचत्रकार ने कहा: आदमी नहीं, मुगाय भी पहचान िेगा शक मुगाय है ।

यह जो उससे राजा ने पूछा शक कैसे यह िुमने बनाया?

उसने कहा: िीन िषय िक मैं मुगे के साथ एक होने की कोशिि शकया। मैं
अपने को भू ि गया और मुगाय होिा चिा गया। धीरे -धीरे , धीरे -धीरे ऐसे क्षर्
आए, जब मुझे यह स्मरर् भी नहीं रहा शक मैं हं । एक ही बाि स्मरर् रही,
मुगाय है । और उन्ीं क्षर्ों में मैंने मुगे की आत्मा को जाना।

जीिन में चौबीस िं टे जो भी हम कर रहे हैं , उसके साथ इिनी आत्मिीनिा,


इिना आत्मसाि हो जाना जरूरी है शक हम शमट जाएं और िही रह जाए जो
हम कर रहे हैं । चाहे िह काम शकिना ही छोटा क्यों न हो, बड़ा क्यों न हो।
जो भी काम हो, उसमें हम िूब सकें पूरे। यह िूबना इन िीन शदनों में एक
छोटा सा प्रयोग करें । और मैं कह रहा हं , चौबीस िंटे जो भी आप कर रहे हैं
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसमें उसका ध्यान रखें। इन िीन शदनों में ही एक बुशनयादी फकय अनु भि
होगा। एक बाि खयाि में आएगी।

आज राि सोने से ही िुरू कर दें । िह अभी दू र है , जब यहां से उठ कर जाएं ,


िभी िुरू कर दें । िह भी थोड़ा दू र है , अभी मुझे सुन रहे हैं , सुनने में ही िु रू
कर दें । सुनिे िि शसफय सुनने की शक्रया रह जाए, आप शजसे शसफय सुन रहे
हैं और कुछ भी नहीं कर रहे हैं । मात्र सुन रहे हैं , कान ही कान रह गए हैं और
आप नहीं हैं । जैसे आप शसफय कान ही हैं जो सुन रहे हैं , आँ ख ही हैं जो शसफय
दे ख रही हैं । अगर इस सुनने की शक्रया को भी इिनी िां शि से और इिनी
िीनिा से सुनें, िो कुछ और सुनाई पड़े गा। िब िायद िही सुनाई पड़ जाए
जो मैं आपसे कह रहा हं ।

िेशकन अगर इिनी िीनिा नहीं है सुनिे िि, िो आप िह नहीं सुनेंगे जो मैं
कह रहा हं , आप िही सुनेंगे जो आप सुनना चाहिे हैं , सुन सकिे हैं , पहिे से
सुने हुए हैं , पहिे से सोचे हुए हैं । िब आप िही सुनेंगे, िब शफर िह नहीं सुन
पाएं गे जो मैं आपसे कह रहा हं । िो यहीं से िुरू कर दें और इन िीन शदनों
एक छोटे सूत्र पर काम करें शक जो भी काम कर रहे हैं --उठ रहे हैं ; बैठ रहे
हैं ; सो रहे हैं , उसमें पूरी िरह िीन हो जाएं ।

(बच्चे जाओ। िुम जाओ।)

यह िो पहिा सूत्र।

(हां , िुम एकदम से ही चिे जाओ।)

दू सरी बाि, अगर प्रत्येक कमय में आत्मिीनिा की बाि पर थोड़ा खयाि
शकया, िो शचत्त बहुि गहरी िां शि को अपने आप उपिब्ध होिा है , उसके
शिए कोई बहुि शििेष प्रयास नहीं करना पड़िा। दू सरी बाि, शचत्त इसशिए

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अिां ि है शक हम कुछ होना चाहिे हैं , कुछ बनना चाहिे हैं , कोई दौड़ है
हमारे भीिर, कोई एं बीिन, कोई महत्वाकां क्षा है , कोई धनी होना चाहिा है ,
कोई बड़े पद पर होना चाहिा है , कोई बड़ा त्याग करना चाहिा है , कोई बड़ा
साधु होना चाहिा है , कोई मोक्ष जाना चाहिा है , कोई समाशध उपिब्ध करना
चाहिा है , कोई सत्य पाना चाहिा है , िेशकन कोई हमारी दौड़ है बड़ी गहरी।
उस गहरी दौड़ की िजह से सारा शचत्त अिां ि और शिकििा से भर जािा
है ।

मैं यह शनिे दन करू


ं , शजस व्यस्ि को सच में ही, सच में ही जीिन के साथ
आत्मिीन होना हो, सच में ही जीिन के साथ एकात्मिा साधनी हो, उसे एक
बाि खयाि में रखनी चाशहए, उसे अपने ना-कुछ होने को स्वीकार कर िेना
चाशहए। उसे कुछ होने की दौड़ से नहीं, बस्ल्क ना-कुछ होने के केंि को
स्वीकार कर िेना चाशहए।

जो व्यस्ि भी अपने नोबिी होने को स्वीकार कर िेिा है , ना-कुछ होने को,


उसके जीिन में अदभु ि बािें होनी िुरू हो जािी हैं । और िह जो-जो होना
चाहिा था, िह अनायास होना िुरू हो जािा है ।

दो बािें हैं , एक िो जैसे एक आदमी पानी में िैरिा है , हाथ-पैर फेंकिा है और


एक दू सरा आदमी है जो पानी में बहिा है , हाथ-पैर फेंकिा नहीं, पानी की
धारा पर अपने को छोड़ दे िा है और बहा जािा है । इन िीन शदनों में िैरने की
कोशिि न करें , बहने की कोशिि करें । कोई ऐसी बहुि सचेि चेष्टा न करें
शक यह करना है , िह करना है , यह होना है , िह होना है , बस्ल्क ऐसे जैसे िीन
शदन आएं गे और गु जर जाएं गे और हमें चुपचाप बहे जाना है ।

यह अदभु ि बाि है शक जो व्यस्ि बहने के अथय को समझ िेिा है , उसके


शचत्त से सारा िनाि शििीन हो जािा है । जो करने की कोशिि करिा है , िैरने

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
की, उसका शचत्त बहुि िनाि से, बहुि अिां शि से भर जािा है । और जो
अिां शि से भर जािा है , िह कभी सत्य को अनुभि नहीं कर सकिा और न
जीिन के आनंद को उपिब्ध हो सकिा है ।

जीिन के आनंद की अनुभूशि िो अत्यंि सरि शचत्त में हो सकिी है । और


सरि शचत्त का पहिा िक्षर् है : बहिा हुआ शचत्त, िैरिा हुआ नहीं। िो इन
िीन शदनों के शिए कह रहा हं शफिहाि अभी िो, शफर िीन शदनों में कुछ
अनुभि हो, िो िह िो अपने आप पूरे जीिन की, अपने आप पूरे जीिन की
शिशध बन जािी है ।

अभी िो िीन शदन की ही कुि बाि है , इसशिए बहुि शचंिा में न पड़ें शक अगर
हम बहने िगें िो शफर शजंदगी का क्या होगा और अगर हमने कुछ भी होने
की शफकर छोड़ दी िो शफर शजं दगी का क्या होगा, इस शचंिा में न पड़ें । मैं
केिि िीन शदन की ही बाि कर रहा हं , इसके आगे की कोई बाि नहीं कर
रहा हं । िीन शदन कुछ प्रयोग करके दे खें, उसमें से कुछ अगर साथय क होगा,
िह अपने आप बच जाएगा, आपको बचाने के शिए नहीं कहं गा उसे। अगर
कुछ होगा, िो िह अपने आप आपको पकड़ िेगा, आप उसे पकड़ें यह
शनिेदन नहीं करू
ं गा।

अभी िो िीन शदन इस छोटी सी िीन शदन की िशड़यों के शिए सारी बाि कर
रहा हं । िो िीन शदन थोड़ी बहने की कोशिि करें । ये जो आमिौर से धमय में
उत्सुक िोग होिे हैं , िे बहुि ज्यादा सीररयसनेस पकड़ िेिे हैं , बहुि गं भीर;
िे समझिे हैं िे शक बहुि भारी गं भीर काम करने जा रहे हैं ।

नहीं, धमय के इस सत्य को जानने में केिि िे ही िोग सफि हो सकिे हैं , जो
बच्चों जैसे गै र-गं भीर हों, नॉन-सीररयस हों, जैसे बच्चे। गं भीर शचत्त िनाि से
भर जािा है । िो मैं आपसे शनिेदन करू
ं गा, यहां गंभीरिा को धारर् नहीं कर

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेंगे। ज्यादा उशचि होगा, हं सेंगे, प्रसन्न होंगे। गं भीर और उदास होकर नहीं
बैठ जाएं गे । जो कौम भी परमात्मा के साथ गंभीरिा और उदासी को जोड़
िेिी है , उसको हमको परमात्मा िो नहीं शमििा, उसको उनके जीिन का
सारा आनंद भी नष्ट हो जािा है ।

िो प्रसन्न रहें गे, हं सेंगे, ऐसे ही समझेंगे जैसे िूमने चिे आए हैं , यहां कोई बहुि
बड़ी साधना, कोई बहुि बड़ी परमात्मा की खोज, कोई बड़ा योग साधने आए
हैं , िो बहुि गं भीर होकर, नहीं, उस िरह से चीजें नहीं पकड़ िेंगे। उस िरह
से शचत्त क्षु ि होिा है , उदास होिा है , उस िरह के शचत्त की जो भी सरििा है ,
िह सब नष्ट हो जािी है । ये साधु और संन्यासी सरि नहीं रह जािे, शजंदगी
को इिनी गं भीरिा से पकड़िे हैं । ठीक-ठीक व्यस्ि िही सरि हो सकिा है ,
जो शजंदगी को एक खेि की भां शि पकड़िा हो, एक गं भीर िटना की भां शि
नहीं--एक नाटक की भां शि, एक खेि की भां शि।

िीन फकीर हुए चीन में। अदभु ि फकीर थे । उनके बाबि, एक उन िीनों का
कोई नाम पिा नहीं है । उन्ोंने कभी बिाया भी नहीं। थ्री िाशफंग सेंट्स ही
उनको कहा जािा था। िीन हं सिे हुए फकीर। िे शजस गां ि में जािे, उनके
पहिे ही उस गां ि में खबर पहुं च जािी शक िे िीनों पागि आ रहे हैं । िे न िो
भाषर् करिे थे , क्योंशक भाषर् कैसे भी हो, कुछ न कुछ गं भीर पहिे ही
आिा है । न िे कुछ समझािे थे, बस चौराहों पर खड़े होकर हं सना िुरू कर
दे िे थे ।

एक हं सिा था और दू सरा हं सिा था और िीसरा और शफर िे िीनों हं सिे थे


और शफर भीड़ सं क्रामक हो जािी, आस-पास िोग सु निे और िे भी हं सिे
और िह सारा गां ि हं सने िगिा।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शजस गां ि में िे दो-चार शदन शटक जािे, िह सारा गां ि हं सने िगिा। शजस
गां ि से िे गु जर जािे, िह गां ि कहिा शक िषों का भार, िे िीन आदमी, िीन
शदन रुक गए गां ि में आकर िषों का भार चिा गया है ।

िो मैं इधर कहं गा शक इस शिशिर को कोई गं भीर उपक्रम नहीं समझ िेना
आप। गं भीरिा रुग्ण शचत्त का िक्षर् है । सरििा से हं सिे हुए और एक
नाटक की भां शि जीिन को िेने में जो समथय हो जािा है , उसे जीिन के बहुि
से रहस्य खुि जािे हैं ।

िो यह शनिेदन करू
ं गा शक िीन शदन ऐसी सरििा से जीएं गे जैसे हम यहां
प्रकृशि के सौंदयय को दे खने इकट्ठे हुए हों। कुछ शमत्र इकट्ठे हुए हों, कुछ
गपिप करें गे , कुछ हं सेंगे। मौज से िीन शदन बहें , इस भां शि अपने को ढीिा
छोड़ दें गे। आक्रामक, एग्रे शसि माइं ि नहीं होना चाशहए। और ये साधक
शजिने होिे हैं , िथाकशथि, िे सब एग्रे शसि होिे हैं , आक्रामक होिे हैं ।
एकदम से आक्रमर् करिे हैं चीजों को पाने के शिए। जब शक सच्चाई यह है
शक सत्य जैसी चीज आक्रमर् करके नहीं पाई जा सकिी।

एक मशहिा मेरे पास आिी थीं, िह सं स्कृि की बहुि बड़ी पंशिि हैं , उन्ोंने
मुझसे कहा शक मुझे ईश्वर को पाना है । मैंने कहा शक कुछ ध्यान करें , िो
िायद कुछ इस शदिा में गशि हो। उन्ोंने एक शदन ध्यान शकया, िौटिे में
मुझसे बोिी, िेशकन अभी मुझे कुछ अनुभि नहीं हुआ। मैंने कहा: कि और
ईश्वर को एकाध मौका और दें । आप िो जल्दी में हैं और ईश्वर िो बड़ा सु स्त
है , िह िो जल्दी में मािूम नहीं होिा, हजारों साि ऐसे ही गु जरिे चिे जािे
हैं । उधर कोई जल्दी नहीं है । िाखों साि, करोड़ों साि ऐसे गु जर गए हैं , जैसे
कोई िहां जल्दी नहीं मािूम होिी।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो आप िो जल्दी में हैं और िह जो जल्दी में नहीं। एक मौका और दें । कि
और आएं । िे कि आईं। बड़ी गं भीर थीं, भारी गं भीर थीं, गीिा उन्ें कंठथथ
थी, बािें करिीं िो उपशनषद आिे, गीिा आिी, िेद आिे, बहुि गंभीर थीं।
शफर आईं, शफर िौट कर मुझसे बोिीं, िेशकन क्षमा कररए, अभी िक मुझे
कोई ईश्वर का अनुभि नहीं हो पा रहा है । मैंने उनको कहा: होगा भी नहीं
कभी। और मैंने एक छोटी सी कहानी कही थी, िह मैं आपको भी कहं ।

उनको मैंने कहा कहा था: एक नदी पर एक बूढ़ा संन्यासी अपने एक युिक
संन्यासी के साथ नाि से उिरा। नाि से उिर कर उसने उस मां झी से पूछा,
नाि िािे से पूछा शक यह जो पास का गां ि है , क्या मैं सूरज िूबने के पहिे
िहां पहुं च जाऊंगा? सूरज िूबने को था और उस गां ि का शनयम था, सूरज
िूबिे ही उस गां ि के दरिाजे बंद हो जािे थे , शकिे के, शफर कोई प्रिेि नहीं
कर सकिा था। शफर राि भर मुझे बाहर रुकना पड़े गा, क्या मैं पहुं च जाऊंगा
सूरज िूबने के पहिे?

उस मां झी ने कहा शक जरूर पहुं च जाएं गे , िेशकन एक बाि खयाि रखना,


अगर धीरे -धीरे गए िो पहुं च जाएं गे और अगर जल्दी गए िो मुस्िि है ।

उस संन्यासी ने कहा: यह पागि मािूम होिा है , क्योंशक जल्दी जाऊंगा िो


पहुं चूंगा, समझ की बाि होिी है । यह कहिा है , धीरे । इसकी बािों में मि
पड़ो। अपने युिा साथी को कहा शक भागो! सूरज िूबने को है और अगर राि
रुक गए, िो राि जंगि, जंगिी जानिर और बाहर दीिाि के पड़े रहना
पड़े गा।

िे दोनों भागे , िेशकन थोड़ी ही दू र जाकर, सूरज नीचे उिरने िगा, अंधेरा
जंगि में शिरने िगा, िे और िेजी से भागे। और िह बूढ़ा संन्यासी पत्थर से
चोट खाकर शगर पड़ा। उसके पैर िहिुहान हो गए। पीछे से िह मां झी भी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अपनी नाि बां ध कर अपनी पििार िगै रह िेकर आिा था, उसने कहा शक
दे खिे हो, मैंने कहा था, धीरे गए िो पहुं च जाओगे । जल्दी चिने िािा कभी
पहुं चिा ही नहीं।

और िब उस संन्यासी को शदखाई पड़ा शक ठीक कहा था, िह आदमी पागि


नहीं है । बड़े अनुभि से उसने यह बाि कही थी।

मैं भी आपसे कहिा हं , परमात्मा के द्वार केिि उसी के शिए खुििे हैं जो
इिने धीरे जािा है , इिने धीरे शक उसके धीरज का कोई अंि नहीं। और जो
जल्दी करिा है , उसके शिए िो द्वार बंद हो जािे हैं । द्वार इसशिए बंद हो जािे
हैं शक जल्दी करने िािा मन अिां ि मन है , धीरे से और अनंि धैयय से जाने
िािा मन िां ि मन है । द्वार इसशिए बंद नहीं हो जािे शक परमात्मा बंद कर
दे िा है उनको, हम बंद कर िेिे हैं ।

िह जो अधैयय है , िह अिां ि है , िह जो गं भीरिा है , िह अिां ि है । िह


शजंदगी पर जो आक्रमर् है , िह अिां शि है । कोई आक्रमर् नहीं। एग्रे शसि
नहीं, ररसेशिि। आक्रामक नहीं, ग्रहर्िीि। जैसे सुबह हम अपना दरिाजा
खोििे हैं , हम सू रज पर हमिा नहीं करिे और रस्सी बां ध कर उसको िर में
नहीं िािे, शसफय द्वार खोि कर बैठ जािे हैं , शफर सूरज ऊगिा है , उसकी
रोिनी िर में पड़ जािी है । ऐसे ही अपने शचत्त के द्वार को खुिा छोड़ दें और
शफर प्रिीक्षा करें । सूरज उठे गा और िर रोिनी से भर जाएगा।

आक्रमर् नहीं शकया जा सकिा, केिि मन के द्वार खोिे जा सकिे हैं ,


ग्रहर्िीि हुआ जा सकिा है । और ग्रहर्िीि होने के शिए िीन बािें आज
की राि मैं आपसे कहिा हं ।

पहिी बाि: प्रशिक्षर् में जीने की कोशिि करें सहजिा से।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
दू सरी बाि: अशि गं भीरिा से जीिन को न िें। बड़ी सरििा से, जैसे खेि को
िेिे हों, िैसा ही शचत्त को िें।

और िीसरी बाि: कोई अधैयय, कोई जल्दी न करें । शजिनी जल्दी करें गे ,
उिनी दे र हो जािी है ।

और जो शजिनी धीर से खड़ा हो जािा है , उिनी ही जल्दी हो जािी है ।

एक और कहानी और मैं चचाय को पूरा करू


ं , शफर िो िीन शदन हम बाि
करें गे । उस कहानी को अपने साथ ही िेकर सो जाएं । शबिकुि झूठी कहानी
है , िेशकन सत्य उसमें बहुि है ।

एक संन्यासी िषों से, जन्म से प्राथय ना, पूजा में िगा था, ऊब गया और िबड़ा
गया और बेचैन हो गया। क्योंशक पूरे िि जब िह प्राथय ना कर रहा था, िब
दृशष्ट िो प्रास्ि पर िगी थी और शजस शदन उसकी प्राथयना असफि हो गई,
उसी शदन दु ख और मनोशचंिा व्याि होिी चिी गई।

एक शदन उसने दे खा शक नारद िहां से शनकििे हैं और उस बूढ़े संन्यासी ने


कहा शक सुनिे हैं , मैंने सुना है शक शनरं िर भगिान की िरफ आप जािे हैं ,
कभी उनसे पूछें शक मेरी मुस्ि को और शकिनी दे र है ? मेरे पीछे शजन्ोंने
िुरू शकया था, िे आगे शनकि गए और मैं िहीं का िहीं पड़ा हं , यह कैसा
अन्याय है ? और जन्म-जन्म हो गए उनकी प्राथय ना करिे, अब िक फि नहीं
शमिा? आस्खर कब मुझ पर कृपा होगी?

नारद ने कहा: जरूर पूछ िूंगा। बगि में ही उसी शदन, उसी दरख्त के पीछे ,
बरगद का बड़ा दरख्त था, एक युिा फकीर अपना एकिारा िेकर नाचिा
था। नारद ने मजाक में उससे पूछा शक शमत्र, िुम्हें भी िो काफी दे र हो गई,

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िुम भी िो सुबह से साधु हुए हो, अब सां झ होने को आ रही, िुम्हें भी पूछना है
परमात्मा से, िो िुम्हारे शिए भी पूछ िूंगा?

िह खूब हं सने िगा, और उसने कहा: कृपा करना, मेरा नाम िहां मि
उठाना, इस योग्य मेरा नाम नहीं है । और कृपा करना, कुछ पूछना मि,
क्योंशक जो पूछिा है , िह सौदा करिा है । और जो यह कहिा है , कब िक
शमिेगा? उसे करने में कोई आनंद नहीं है , शमिने में आनंद है । मैं िो जो गीि
गा रहा हं , मुझे सब शमिा जा रहा है उसमें ही। और मैं जो नाच रहा हं , मैं ने
उसमें पा शिया। िे शकन कुछ पूछना मि, मेरा नाम मि उठाना, मेरी बाि मि
उठाना।

िेशकन नारद कुछ शदनों बाद िौटे , और उन्ोंने उस बूढ़े फकीर को कहा शक
मैंने पूछा था, उन्ोंने कहा: िीन जन्म और िग जाएं गे ।

उस फकीर ने अपनी मािा नीचे पटक दी और भगिान की जो मूशिय रखी थी,


िो िाि मारी उसमें और कहा: हद हो गई अन्याय की! इसीशिए िो नास्स्तक
ठीक कहिे हैं शक ऐसा भगिान, िह कुछ िक की ही बाि है । मैं नहीं
मानिा-करिा ये सब बािें, बहुि हद हो गई! इिने शदन हो गए, अभी िीन
जन्म और िगें गे!

और नारद ने उस फकीर से कहा: जो नाच रहा था उसी दरख्त के पीछे , शक


शमत्र, अब िुमको बिाने में मुझे और भी िर िगिा है , क्योंशक शजसने िीन
जन्म की बाि ही सुन कर िाि मार दी और मािा फेंक दी, िुम पिा नहीं क्या
करोगे ? मैंने िुम्हारे शिए पूछ शिया था, यज्ञशप िुमने िो मना शकया था।
िेशकन उत्सुकिािि मैं नहीं रुक सका। मैंने पूछा, िो परमात्मा ने कहा शक
िह युिक शजस िृ क्ष के नीचे नाचिा है , उसमें शजिने पत्ते हैं , उिने ही जन्म
िग जाएं गे ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह युिक और िे जी से नाचने िगा, उसके एकिारे पर और भी गीि मधुर हो
उठा और उसकी आं खें ज्योशि सी चमक उठीं और उसने भगिान को
धन्यिाद शदया शक िेरा धन्यिाद, जमीन पर शकिने िृक्ष हैं और उन िृक्षों में
शकिने पत्ते हैं , िेरी कृपा अनंि है शक एक ही िृक्ष के पत्तों के बराबर जन्मों में
मेरी मुस्ि हो जाएगी। मैं कहां इस योग्य, िेशकन जरूर िेरी कृपा होगी
बड़ी। इसशिए मुझ पर जो कभी भी पात्र नहीं था, योग्य नहीं था, िूने इिनी
दया की है । और कथा यह है शक िह यह कहिे ही उसी क्षर् मुि हो गया।

हो ही जाएगा। ऐसा शचत्त जो इिनी सरििा से, इिनी कृिज्ञिा से, इिनी
धन्यिा से, इिनी अपनी अपात्रिा से और परमात्मा की इिनी अनुकंपा के
बोध से भरा हो और शजसमें इिना धैयय हो शक िह कह सके शक जमीन पर
शकिने िृक्ष और शकिने पत्ते और इस छोटे से िृक्ष में पत्ते ही शकिने हैं , इिने
ही जन्मों में मैं मु ि हो जाऊंगा। िो यह िो बड़ी जल्दी हो गई, यह िो बड़ी
िीघ्रिा हो गई।

शजसकी इिनी पेिेंस है , इिना धैयय है , िह िो उसी क्षर्, उसी क्षर् मुि हो
जाएगा। क्योंशक ऐसे शचत्त को रोकने का कोई भी कारर् नहीं रह गया, ऐसे
शचत्त के द्वार बंद होने की कोई िजह नहीं रह गई।

िो यह कहं गा अंि में, अधैयय से नहीं कुछ होिा है इस शदिा में, अनंि धैयय
और प्रिीक्षा में। और िह केिि उनमें ही हो सकिी है जो जीिन को बड़ी
सरििा से खेि की िरह िेंगे, गंभीरिा से नहीं, हं सिे हुए, मौन में, िां शि में,
प्रेम में और धैयय में जो जीिन को िेंगे, जीिन उनके प्रशि अपने सब द्वार
अनायास खोि दे िा है ।

ये िीन छोटी सी बािें कहीं, इन िीन पर थोड़ा खयाि करें गे , शिचार करें गे
और शफर आने िािे िीन शदनों में इस भू शमका को िेकर, मन की इस

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भू शमका को िेकर सुनेंगे, िो िायद कोई बाि आपके काम की हो सके और
िायद कोई बाि आपके मागय पर प्रकाि बन सके। िे शकन शनभय र करिा है
आप पर, मुझ पर नहीं। िह आपकी शचत्त की भू शमका और िैयारी, उसकी
दृशष्ट और उसकी शिराटिा और उसकी सरििा पर सब कुछ शनभय र करिा
है ।

िो पहिे शदन िो परमात्मा से यही प्राथय ना करू


ं गा शक िह आपके शचत्त को
ऐसी भू शमका दे । क्योंशक बीज कुछ भी नहीं कर सकिे हैं अगर भू शम िैयार न
हो। और अगर भू शम िैयार हो, िो बीज अंकुररि हो सकिे हैं और उनमें कुछ
आ सकिा है , उनमें कुछ पैदा हो सकिा है और कोई फूि िग सकिे हैं ।
यह प्राथय ना करू
ं गा इस पहिे शदन की पहिी सभा में।

परमात्मा आपके हृदय को ऐसी सरििा, िां शि और मौन दे शक िह भू शम बन


सके और उसमें कोई भी बीज जाए िो अंकुररि हो सके और पल्लशिि हो
सके।

मेरी इन बािों को इिने थके हुए, इिनी यात्रा के बाद, इिने प्रेम से सुना है ,
उसके शिए बहुि-बहुि धन्यिाद।

ओिो पृष्ठ संख्या 58


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-04

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

चौथा-प्रिचन

मनुष्य के जीिन में...और जीिन के आनंद का कोई अनुभि नहीं होिा, उस


संबंध में थोड़ी सी बाि मैंने आपसे कही थी। आज सुबह अंधेपन का कौन सा
मौशिक आधार है , उस पर हम बाि करें गे ।

कई सौ िषय पहिे, यूनान की सड़कों पर एक आदमी दे खा गया था। भरी


दोपहरी में सूरज के प्रकाि में भी िह हाथ में एक कंदीि शिए हुए था। िोगों
ने उससे पूछा शक यह क्या पागिपन है , इस कंदीि को िेकर इस भरी
दोपहरी में शकसे खोज रहे हो? उस आदमी ने कहा: एक ऐसे आदमी की
खोज करिा हं , शजसके पास आं खें हों। िह आदमी था उस समय का एक
बहुि अदभु ि फकीर िायोजनीज। िायोजनीज को मरे हुए बहुि िषय हो गए
और िायोजनीज जीिन भर िह िािटे न शिए हुए खोजिा रहा उस आदमी
को, शजसके पास आं खें हों। िेशकन उसे िह आदमी नहीं शमिा।

पीछे अमरीका में एक अफिाह उड़ी शक िायोजनीज शफर िौट आया है और


अमरीका में अब शफर िािटे न शिए हुए खोज रहा है । शकसी ने उससे पूछा
शक क्या हजार, िे ढ़ हजार साि हो गए िुम्हें खोजिे, अब िक िह आदमी
नहीं शमिा, शजसके पास आं खें हों? िायोजनीज ने कहा: िह आदमी िो नहीं
शमिा, एक ही संिोष मुझे है शक मेरी िािटे न अब भी मेरे पास है और कोई

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसे चुरा नहीं िेिा है ! और अब िो मैं ने आिा भी छोड़ दी है शक िह आदमी
शमिेगा!

िेशकन हम सबके पास आं खें हैं । और कोई यह कहे शक हम आं ख िािे


आदमी को खोजिे हैं और िह नहीं शमििा, िो हमें है रानी होगी। िेशकन जो
भी जानिे हैं , िे कहें गे शक हमारे पास आं खें हैं --केिि िस्तुओं को और पदाथय
को दे ख पािी हैं , उसे नहीं जो परमात्मा है । हमारी आं खें अत्यंि पाशथय ि को
दे ख पािी हैं , उसे नहीं जो अपाशथय ि है । और हमारी आं खें दू सरों को दे ख
पािी हैं , स्वयं को नहीं। ऐसी आं खों से जीिन का काम िो चि जािा है ,
िेशकन जीिन का अथय उपिब्ध नहीं होिा। ऐसी आं खों से हम टटोि-टटोि
कर शकसी भां शि शगरिे-शगरिे मृत्यु के दरिाजे िक िो पहुं च जािे हैं , िेशकन
जीिन के द्वार िक नहीं पहुं च पािे हैं ।

इन आं खों के आधार पर चिने िािा और कहीं नहीं पहुं चिा, शसिाय मृत्यु
के। िह कहीं भी दौड़े , कुछ भी कोशिि करे , कैसे भी प्रयास करे , िेशकन
अंि में पाया जािा है शक िह मौि के दरिाजे पर पहुं च गया। ये आं खें, जीिन
के, परम जीिन के द्वार िक नहीं िे जािी मािूम होिी हैं । जन्म के बाद हम
रोज-रोज मौि की िरफ सरकिे जािे हैं । और शफर हम चाहे कोई भी उपाय
करें , और कोई भी सुरक्षा और शसक्योररटी की व्यिथथा करें , मौि से बचना
नहीं हो पािा।

हमारी सारी व्यिथथा िायद उसी से बचने के शिए है --धन इकट्ठा करिे हैं ,
यि इकट्ठा करिे हैं , िस्ि इकट्ठी करिे हैं शक िायद िस्ि से, पद से और
धन से हम एक दीिाि बना िेंगे और अपने को मौि से बचा िेंगे।

िेशकन हमारा कोई भी उपाय साथयक नहीं होिा, िरन हम जो उपाय मौि से
बचने के करिे हैं , िे ही उपाय हमें और भी गशि से मौि की िरफ िे जािे हैं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और यह कोई एक आदमी की कथा नहीं है , सभी की कथा है --जो हुए
उनकी, जो हैं उनकी और जो होंगे उनकी। िेशकन थोड़े से िोग इस कथा से
शभन्न भी हैं , कुछ िोग अपिाद भी शसि हुए हैं ।

क्राइस्ट को शजस राि पकड़ा गया और सुबह उनको सूिी दी जाने को थी,
उनके एक शमत्र ने, ल्यूक ने उनसे पूछा शक क्या आप िबड़ाए हुए नहीं हैं ?
कि मौि आ जाएगी, क्या आपके शचत्त में परे िानी और बेचैनी नहीं है ?
क्राइस्ट ने कहा: शजस शदन से भीिर दे खा, उस शदन से मौि शमट गई, अब
मुझे मारने िािे इस भ्रम में होंगे शक उन्ोंने मुझे मारा, और मैं नहीं मरू
ं गा।

मंसूर नाम के एक फकीर को सूिी पर िटकाया गया और उसके हाथों में


कीशियां ठोंकी गईं। और जब िोगों ने उससे कहा शक िुम्हें अंशिम कोई बाि
कहनी है ? िो मंसूर ने कहा: यही शक िुम शजस भ्रम में हो, परमात्मा करे , िह
भ्रम िुम्हारा टू टे । उन िोगों ने कहा: कौन सा भ्रम? मंसूर ने कहा: यही शक
िुम मरिे हो या मार सकिे हो, जो है प्रार्ों के प्रार् में, िह अमृि है ।

िेशकन हम िो ऐसे अमृि को जानिे नहीं। हम िो जानिे हैं , रोज चारों िरफ
िटिी हुई मृत्यु को और खुद भी शनरं िर मृत्यु की िरफ सरकिे हैं , इसे भी
जानिे हैं । एक श्वास हम िेिे हैं और एक आदमी जमीन पर कहीं मर जािा
है । एक श्वास भीिर जािी है और एक आदमी मर जािा है , और एक श्वास
बाहर शनकििी है और एक आदमी मर जािा है । प्रशिक्षर् चारों िरफ मौि
िशटि हो रही है और हम उसके बीच खड़े हैं , और हम कुछ भी करें और
कहीं भी भागें ।

एक बादिाह हुआ, उसने राि एक स्वप्न दे खा। स्वप्न में उसने दे खा शक कोई
कािी छाया उसके कंधे पर हाथ रखे है और उससे कह रही है शक कि ठीक
समय और ठीक थथान पर मुझे शमि जाना, मैं मृत्यु हं और कि िुम्हें िेने आ

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रही हं । कि सूरज िूबने के पहिे ठीक जगह उपस्थथि हो जाना। उसकी
िबड़ाहट में नींद टू ट गई।

उसने अपने राज्य के बड़े ज्योशिशषयों को बुिाया और पूछा शक मैंने ऐसा


स्वप्न दे खा और स्वप्न शिश्लेषकों को बुििाया, उस समय के जो फ्रायि होंगे
और होंगे, उनको बुििाया और उनसे पूछा शक इस स्वप्न का क्या अथय है ?
और उन ज्योशिशषयों से पूछा शक इस स्वप्न का क्या अथय है ? और मैं क्या
उपाय करू
ं ? क्योंशक मुझे एक खबर शमिी स्वप्न में शक आज संध्या होने के
पूिय मौि मुझे पकड़ िे जाएगी।

उन सारे िोगों ने बहुि सोचा और उन्ोंने कहा शक सोचने में समय खोना
गििी होगी, आपके पास जो िेज से िेज िोड़ा हो उसे िेकर आप भागने की
कोशिि करें । शजस राजधानी में िह था दशमि में, उसके शमत्रों ने और
उसके ज्ञाशनयों ने सिाह दी शक िेज से िेज िोड़ा िें और भागें और सूरज
िूबने के पहिे शजिनी दू र शनकि सकें शनकि जाएं । और इसके शसिाय अब
हम कुछ भी सोचने में समय गिां ना ठीक नहीं समझिे। हम सोचिे रहें और
शिश्लेषर् करिे रहें और व्याख्या और िास्त्रों में खोजिे रहें और सां झ हो
जाए और मौि आ जाए, शफर कौन शजम्मेिार होगा?

उस राजा ने शफर एक क्षर् भी न खोया, उसने अपने अस्तबि से एक िेज से


िेज िोड़ा बुिाया, उस पर िह बैठा और िह भागा। अपने शमत्रों और अपनी
पत्नी और अपने बच्चों को शिदा के दो िब्द भी कहने की उसे फुसयि न थी।
रोिे हुए िोगों ने शिदा दी, िेशकन शफर भी उसे एक खयाि था शक बहुि िेज
िोड़ा उसके पास है और सां झ होने के पहिे िह सैकड़ों मीि दू र शनकि
जाएगा। सच में ही िह सैकड़ों मीि दू र शनकि गया।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उस शदन उसने न खाना शिया, न पानी पीया, न िह एक क्षर् को शिश्राम के
शिए रुका, िह िोड़े को भगािा ही रहा, भगािा ही रहा, आस्खर में सूरज
िूबने के पहिे िह सैकड़ों मीि दू र एक बगीचे में जाकर झाड़ के नीचे रुका,
िह िोड़े को बां ध ही रहा था शक मौि पीछे आकर खड़ी हो गई और उसने
कहा: शमत्र, हम है रानी में थे , इिनी दू र िुम्हारी मौि होने को थी, िुम पिा
नहीं आ भी पाओगे या नहीं आ पाओगे , ठीक जगह िुम आ पहुं चे और ठीक
समय पर, िोड़ा िु म्हारा िाजिाब है ।

शजंदगी भर हम भागिे हैं , भागिे हैं और आस्खर में िहां पहुं च जािे हैं , शजससे
हम भागिे थे और शजससे हम बचिे थे और शजसके शिए हमने िोड़े दौड़ाए--
यि के, और धन के, और िस्ि के, और पद के, उसी जगह हम पहुं च जािे
हैं । और िब मौि हमें धन्यिाद दे गी शक िुम्हारी दौड़ बहुि अच्छी थी, िुम्हारे
पास िोड़े बहुि िेज थे और िुम ठीक जगह और ठीक समय पर आ पहुं चे
हो।

यह जो शजंदगी है , जो अंििः हमें मृ त्यु के दरिाजे पर िे जािी है , जरूर कहीं


गिि और भू िभरी है । अगर जीिन ठीक हो, िो परम जीिन के द्वार पर
पहुं च जाना चाशहए। िेशकन बहुि कम सौभाग्यिािी िोग हैं , जो िहां पहुं चिे
हों। और नहीं पहुं चिे िो एक ही कारर् है , हम शकसी भां शि आं िररक जीिन
के प्रशि, िास्तशिक जीिन के प्रशि अंधे हैं । हमें पदाथय ही शदखाई पड़िा है ,
परमात्मा नहीं। और जब िक परमात्मा शदखाई न पड़े , पदाथय के ऊपर चे िना
के जब िक दियन न हों, आकार से शभन्न शनराकार अनुभूशियों का द्वार न
खुिे, िब िक जानना चाशहए आं खें बं द हैं ।

जो आं खें आकार ही दे खिी हैं , िे आं खें दे खिी ही नहीं, और जो आं खें केिि


ठोस िस्तुओं को ही दे ख पािी हैं , िे आं खें दे ख ही नहीं पािी हैं । इस सारे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आकार के साथ कुछ शनराकार व्याि है , और इस सारी दे ह के साथ कुछ
अदे ही भी, और इस सारे पदाथय के भीिर कोई और भी मौजूद है , उसे दे खने
िािी आं खों के शिए जरूरी है शक िे अंधी न हों।

मैंने कहा राि, श्रिा और शिश्वास। बाि थोड़ी उिटी िगे गी, क्योंशक हजारों
िषों से यही शसखाया गया है शक जो श्रिा नहीं करिा और शिश्वास नहीं
करिा, िह िो परमात्मा को जान ही नहीं सकेगा। मैं आपसे यह कहना
चाहिा हं शक जो श्रिा करिा है और शिश्वास, उसके शिए परमात्मा को जानने
का कोई भी उपाय नहीं है । शकसी कारर् से यह मैं कहना चाहिा हं । इस
कारर् से यह कहना चाहिा हं , क्योंशक श्रिा करने िािा मन, शिश्वास करने
िािा मन, अंधा हो जािा है । श्रिा का अथय है : जो हम नहीं जानिे, उसे मान
िें; जो हमने नहीं दे खा, उसे स्वीकार कर िें; जो हमने नहीं सुना, उस पर
आथथा कर िें; जो हमारा अनुभि नहीं है , िह हमारी मान्यिा बन जाए, श्रिा
का यही अथय है । मैं कहं शक परमात्मा है और आप शिश्वास कर िें, यह श्रिा
होगी? हो सकिा है , मेरे शिए िह ज्ञान हो, िेशकन मेरा ज्ञान आपका ज्ञान बन
जाए, िो श्रिा है आपके शिए।

हो सकिा है मैंने जाना हो, मैं आपसे कुछ कहं और उसे आप स्वीकार कर
िें, िह आपका जाना हुआ नहीं है । आप अंधेपन में शगर रहे हैं , आप अंधे हो
रहे हैं , आप अपने भीिर की अंधी िस्ियों को बि दे रहे हैं । श्रिा अं धा
करिी है । और जो भी अंधा...उसके शिए भी बहुि सचेि आं खें चाशहए,
उसके शिए िो बहुि, बहुि उन्मुि प्रकाि से, आिोक से भरी हुई आं खें
चाशहए। उसके शिए श्रिा का अंधकार और अंधापन, नहीं उसका मागय है ।
िेशकन शसखाया हमें यह गया है शक हम श्रिा करें , और हम श्रिा करिे रहे
हैं । ऐसी कौमें हैं जमीन पर, सभी िरह के िोग पूरी जमीन पर श्रिाएं करिे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रहे हैं । पूरी जमीन पर। िेशकन एक बाि में हम सब सहमि हैं , अंधश्रिा की
शदिा में।

मुस्िि से कभी कोई व्यस्ि पैदा होिा है , जो इनकार करिा है श्रिा से।
जो इनकार करिा है श्रिा से, उसकी खोज िुरू होिी है , उसकी इं क्वायरी
िुरू होिी है । जो श्रिा के िेरे में आबि हो जािा है , उसकी खोज बंद हो
जािी है । खोज िो हम िभी करिे हैं , जब हम शकसी दू सरे को मानने के शिए
राजी नहीं होिे। िभी हमारे प्रार् अपनी खोज पर शनकििे हैं , िभी हमारे
प्रार्ों की िस्ि जागिी है और हम, हम खोज के शिए आगे बढ़िे हैं , हमारी
खोज की यात्रा िुरू होिी है ।

मैं यह नहीं कह रहा हं शक अश्रिा करें , अश्रिा भी श्रिा का ही एक रूप है ।


मैं यह कह रहा हं शक अंधे न बनें, श्रिा में या अश्रिा में। एक आदमी मानिा
है , ईश्वर है ; हम कहिे हैं , यह श्रिािु है । एक आदमी मानिा है , ईश्वर नहीं है ;
हम कहिे हैं , यह अश्रिािु है । मेरे शिए दोनों अंधे हैं । क्योंशक जो कहिा है ,
ईश्वर है , उसने भी नहीं जाना और जो कहिा है , ईश्वर नहीं है , उसने भी नहीं
जाना। िे दोनों शबना जाने कुछ बाि को स्वीकार कर रहे हैं । जो शबना जाने
स्वीकार करिा है , चाहे आस्स्तक हो, चाहे नास्स्तक, िह श्रिािु है , और
श्रिािु अंधा हो जािा है ।

आस्स्तक भी अंधे हैं और नास्स्तक भी। आपका आस्स्तक या नास्स्तक होना


इस बाि पर शनभय र है शक आप शकस प्रोपेगेंिा और शकस प्रचार के िे रे में पै दा
हुए हैं । अगर आप शहं दू िर में पैदा हुए हैं , िो आपकी एक िरह की श्रिाएं
बन जाएं गी। अगर आप मुसिमान िर में पैदा हुए हैं , िो दू सरी िरह की।
अगर आप सोशियि रूस में पैदा हुए हैं , िो नास्स्तक की, िीसरी िरह की। ये
सारी की सारी श्रिाएं आस-पास के िािािरर्, प्रचार, शसिां िों की हिाओं में
पैदा होिी हैं , यह आपका ज्ञान नहीं है । और जो व्यस्ि इनको पकड़ िेिा है ,
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसे शफर ज्ञान के खोज की जरूरि ही समाि हो जािी है । शफर िह खोज ही
नहीं करिा।

खोज िो िब िुरू होिी है जब एक व्यस्ि बाहर से आए हुए शकन्ीं शसिां िों


को भी स्वीकार नहीं करिा है --मैं यह नहीं कह रहा हं शक िह अस्वीकार
करिा है , इस थोड़े से बारीक भे द को समझ िेना जरूरी है --अस्वीकार भी
नहीं करिा, स्वीकार भी नहीं करिा, िह यह कहिा है शक जो भी बाहर है ,
जो भी दू सरों का कहा हुआ है , िह मेरा जाना हुआ नहीं है । इसशिए मैं कैसे
कहं शक िह सच है ? या मैं कैसे कहं शक िह झूठ है ? िह अपने को मु ि
रखिा है । िह कोई आग्रह में अपने को आबि नहीं करिा। िह शकसी जंजीर
को पकड़िा नहीं।

िह यह कहिा है शक मैं नहीं जानिा हं , मुझे पिा नहीं शक ईश्वर है या नहीं है ।


मुझे पिा नहीं शक शहं दू ठीक कहिे हैं शक मुसिमान, शक ईसाई, शक जैन।
मुझे पिा नहीं है । मैं शनपट अज्ञानी हं , और इस अज्ञान में मैं कोई भी आग्रह
करू
ं गा, िो िह आग्रह खिरनाक होगा।

अज्ञाशनयों के आग्रह बहुि खिरनाक शसि हुए हैं । सारी दु शनया में धमय िड़िे
हैं अज्ञाशनयों के आग्रह के कारर्, शजन्ें कुछ भी पिा नहीं है । शजन बािों का
उन्ें पिा नहीं है , उन बािों के शिए मस्िद और मंशदरों को जिाने को िै यार
हैं । शजन बािों का उन्ें पिा नहीं है , उनके शिए िे िास्त्रों को नष्ट करने को
या नये िास्त्र शनशमय ि करने को िैयार हैं । शजन बािों का उन्ें कोई पिा नहीं
है , उनके शिए िे िाखों िोगों की हत्या करने को या मर जाने को िैयार हैं ।

अज्ञान में पकड़ी गई श्रिाएं बहुि स्युसाइिि शसि हुई हैं , बहुि आत्मिािी
शसि हुई हैं । सारी दु शनया में धाशमयक िोग िड़िे रहे हैं । कहीं धाशमयक व्यस्ि
भी िड़ सकिा है ? धाशमयक िोग हत्याएं करिे रहे हैं । धाशमयक व्यस्ि भी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हत्याएं कर सकिा है ? धाशमयक िोग मं शदरों की मूशिययां िोड़िे रहे हैं , मस्िदों
को जिािे रहे हैं । धाशमयक व्यस्ि भी यह कर सकिा है ? और अगर धाशमयक
यह करे गा, िो शफर अधाशमयक के शिए क्या िेष रह जािा है ? शफर अधाशमयक
क्या करे गा? नहीं, यह धाशमयक व्यस्ि ने नहीं शकया है , यह शकया है अज्ञान में
पकड़ी हुई श्रिा िािे िोगों ने। अज्ञान और श्रिा दोनों शमि कर बहुि
खिरनाक चीज बन जािी है ।

िेशकन मैं आपको स्मरर् शदिा दू ं शक अज्ञान के ही कारर् हम श्रिा कर िेिे


हैं । हम नहीं जानिे, इस सत्य को स्वीकार करने का साहस बहुि कम िोगों
में होिा है । मैं शफर से दोहराऊं, हम नहीं जानिे हैं इस सत्य को स्वीकार
करने का साहस बहुि कम िोगों में होिा है । और शजस व्यस्ि में यह साहस
ही नहीं है , िह समझ िे शक सत्य की खोज उसका, उसका जीिन नहीं बन
सकिी। यह िो प्राथशमक साहस है , यह िो पहिा चरर् है --शक मैं इस बाि
को जान िूं शक मैं नहीं जानिा हं । और जो अपने अज्ञान को स्वीकार कर
िेिा है , िह सभी िरह की श्रिाओं से मुि हो जािा है ।

जो अपने अज्ञान को स्वीकार करने से बचना चाहिा है और जो यह शदखाना


चाहिा है शक नहीं मैं जानिा हं , इस थोथे अहं कार की पूशिय करना चाहिा है ,
िह शकसी न शकसी िरह की श्रिा को पकड़ िेिा है और कहने िगिा है शक
ईश्वर है या ईश्वर नहीं है ; आत्मा है या आत्मा नहीं है ; पुनजयन्म है या पुनजय न्म
नहीं है , और इस िरह की बहुि सी बकिासें हैं , उनमें से िह शकसी को पकड़
िेिा है और उसको दोहराने िगिा है । और चूंशक िह खुद जानिा नहीं है ,
बहुि कमजोर है , इसशिए अगर आप उसकी बाि न मानें, िो िह िििार
िेकर खड़ा हो जािा है । क्योंशक उसके पास मनाने का और कोई उपाय भी
नहीं है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह खुद िो जानिा नहीं है , िो मनाने का एक ही उपाय है शक िह िििार
उठा िे। मनाने का एक ही उपाय है शक िह भीड़ खड़ी कर िे। मनाने का
एक ही उपाय है शक िह अपनी सं ख्या बढ़ािा जाए। इसशिए िो शहं दू शफकर
करिा है , संख्या कम न हो जाए; मुसिमान शफकर करिा है , संख्या बढ़
जाए; ईसाई शफकर करिा है , और िोगों को पी जाओ; और सारे धमय शफकर
करिे हैं , हमारी संख्या बढ़े और कम न हो जाए। क्योंशक संख्या बि है ,
िििार का बि, िस्ि का बि, भीड़ का बि। उस बि के आधार पर ही
हम अपने अज्ञान में पकड़ी गई श्रिाओं के शिए समथय न दे सकिे हैं । और
हमारे पास कोई भी समथय न नहीं है ।

ज्ञान का जहां समथय न है , िहां िस्ि का और शहं सा का कोई समथय न कभी


नहीं पकड़ा जािा है । जहां अज्ञान है , िहां समथय न में यही बाि होिी है ।
कमजोर क्रोधी हो जािा है , कमजोर िड़ने को िैयार हो जािा है ।

दु शनया के धाशमयक िोग िड़िे रहे हैं , इस बाि की सू चना है शक अज्ञानी और


कमजोर िोगों ने दू सरों के ज्ञान को जबरदस्ती अपना ज्ञान बना शिया है ।
और िब शकिने खिरे हुए हैं , उनका कोई शहसाब नहीं है । शकिने िाखों िोग
काटे गए हैं , उसका कोई शहसाब नहीं है । शकिने िाखों िोग जिाए गए हैं ,
उसका कोई शहसाब नहीं है । और शजन्ोंने ये जिाए हैं , उनके बुशनयाद में है ,
अज्ञानपूर्य श्रिा।

पहिी बाि जानने की जरूरी है शक शकसी भी िरह की श्रिा, जो मैं अपने


अज्ञान में पकिूंगा, मेरे शिए परिंत्रिा बन जाएगी। मैं शफर उस श्रिा के
ऊपर नहीं उठ सकूंगा। उस श्रिा के ऊपर उठने में मेरे प्रार् कंपने िगेंगे,
मुझे भय मािूम होने िगे गा, मुझे िर िगने िगे गा। क्यों? िर िगेगा इस
बाि का, और िह िो टू टना शबिकुि स्वाभाशिक है , जो व्यस्ि खोजने के
शिए चिा है , िह अगर शकसी भी श्रिा को पकड़े गा, उसकी श्रिा टू टनी
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
स्वाभाशिक है , खोज के पहिे ही टू ट जानी स्वाभाशिक है , नहीं िो खोज कैसे
िुरू होगी?

खोज िो िभी िुरू हो सकिी है , जब मैं शनष्पक्ष हं । जब मेरा माइं ि, मेरा मन


अनशप्रज्युशिथि है , शबना शकसी पक्षपाि के। िेशकन हम सब िो पक्षपाि से
भरे हैं । और शफर हम कहिे हैं , हम सत्य को खोजना चाहिे हैं और जीिन को
जानना चाहिे हैं , िेशकन अपने पक्षपाि को छोड़ने को हम राजी नहीं हैं ।
और हमारे पक्षपाि बहुि गहरे हमारे प्रार्ों को जकड़े हुए हैं । पक्षपाि मनुष्य
के शचत्त की सबसे बड़ी परिंत्रिा है । और पक्षपाि खड़े होिे हैं --श्रिाओं से ,
शिश्वासों से, शबिीफ से। इसके पहिे शक कोई आदमी सच में खोजने शनकिे
शक क्या है , उसे सब पक्षपािों से मुि हो जाना होगा, उसे सारे शिश्वासों से
मुि हो जाना होगा, उसे सारी श्रिाओं से मुि हो जाना होगा।

उसे ये सारी जंजीरें िोड़ दे नी होंगी। ये जंजीरें कोई दू सरा हमारे ऊपर नहीं
िादिा है , हम खुद बां धिे हैं । इसशिए िोड़ने के शिए भी हम हमेिा स्विंत्र
हैं । कोई दू सरा हम पर बां धिा नहीं, यह खुद हम स्वीकार करिे हैं । हम खुद
इनको अंगीकार करिे हैं । सुरक्षा के शिए हम इनको अंगीकार कर िेिे हैं ।
अज्ञान में असुरक्षा है , इग्नोरें स में इनशसक्योररटी है । अज्ञान में कुछ रास्ता नहीं
शमििा, कोई शकनारा नहीं शमििा, िो हम शकसी ज्ञान के शकनारे को पकड़
िेिे हैं , िाशक एक सहारा शमि जाए, सुरक्षा शमि जाए, मुझे भी िगे शक मैं भी
जानिा हं ।

िेशकन अज्ञान में पकड़ा गया कोई भी ज्ञान ज्ञान कैसे हो सकिा है ? पकड़ने
िािा जब अज्ञान में है , िो िह जो भी पकड़े गा, िही अज्ञान हो जाएगा।
अज्ञान की स्थथशि में कोई ज्ञान ज्ञान नहीं बन सकिा। अज्ञानी गीिा को
पकड़े गा, गीिा खिरनाक हो जाएगी। अज्ञानी महािीर को पकड़े गा,
महािीर खिरनाक हो जाएं गे । अज्ञानी मोहम्मद को पकड़े गा, मोहम्मद
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
खिरनाक हो जाएं गे । िह अज्ञानी का जो जहर है , िह जो भी पकड़े गा, िही
जहर िहां व्याि हो जाएगा। अज्ञानी ने जो भी पकड़ा है , िह खिरनाक हो
गया है ।

पहिी बाि जानने की है , अज्ञानी को अपने भीिर अज्ञान को नष्ट करना है ,


ज्ञान को पकड़ना नहीं। अज्ञान नष्ट हो जाए, िो ज्ञान का जन्म उसके भीिर
होगा। और अगर िह ज्ञान को पकड़ िे, अज्ञान भीिर होगा, ऊपर ज्ञान की
बािें होंगी। पंशिि में और क्या होिा है ? भीिर अज्ञान होिा है , ऊपर ज्ञान की
बािें होिी हैं । भीिर िना अंधकार होिा है , ऊपर िास्त्र होिे हैं । भीिर शनपट
अंधकार होिा है , ऊपर मंत्र और िब्द और िास्त्रों का जाि होिा है । उस
जाि के भीिर जाने पर शनपट अज्ञानी आदमी खड़ा हुआ है ।

एक पंशिि से िो एक सीधा-सादा अज्ञानी भी बेहिर है , इसशिए शक उसे


अपने अज्ञान का बोध होिा है । शजसे अपने अज्ञान का बोध होिा है , उसे
पीड़ा होिी है , दु ख होिा है । उसे िगिा है शक इस अज्ञान को मैं कैसे
शमटाऊं? िेशकन शजसको अज्ञान का बोध ही शमट जाए और थोथे ज्ञान को
पकड़ कर िह बै ठ जाए और सोचे शक मैंने जान शिया, िह िो िूब गया।
अज्ञान भीिर रहे गा, थोथा ज्ञान बाहर होगा।

आज िक िायद ही कभी कोई पंशिि ने सत्य जाना हो, िह जान नहीं


सकिा। िब्द उस पर इिने भारी होिे हैं , दू सरों के शसिां ि उसके प्रार्ों पर
पत्थर की िरह सिार होिे हैं । िह बािें जानिा है , शसिां ि जानिा है , िकय
जानिा है , उनके शिए आग्यूय कर सकिा है , िड़ सकिा है , शििाद कर
सकिा है , पच्चीस िरह की बािें और व्याख्याएं कर सकिा है , िेशकन जान
नहीं सकिा।

ओिो पृष्ठ संख्या 70


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जानने की पहिी ििय िो यह है शक िह दू सरे के ज्ञान को स्वीकार-अस्वीकार
न करे । कैसी होगी िह स्थथशि, जब हम दू सरों के ज्ञान को स्वीकार और
अस्वीकार नहीं करें गे ? बड़ी सरि होगी, बड़ी ह्यूशमशिटी की होगी, बड़ी
शिनम्रिा की होगी; क्योंशक हम जानेंगे, हम नहीं जानिे हैं ।

साक्रेटीज से शकसी ने कहा शक िोग कहिे हैं शक िुम सबसे बड़े ज्ञानी हो।
साक्रेटीज ने कहा: उनसे कहना शक िे भ्रम में हैं , क्योंशक जैसे-जैसे मैं जानने
िगा, िैसे-िैसे मुझे पिा चिा शक मैं िो बड़ा अज्ञानी हं । जैसे-जैसे मैं जानिा
गया, िैसे-िैसे मेरा अज्ञान स्पष्ट होिा गया। और अब िो मैं एक ही बाि
जानिा हं शक मैं कुछ भी नहीं जानिा हं । यह जो स्थथशि है शचत्त की, अगर
पैदा हो जाए, िो एक क्रां शि िशटि हो जािी है ।

क्या हमारे मन की इिनी िैयारी है शक हम अज्ञानी होने को राजी हो जाएं ?


अज्ञानी हम हैं , होना नहीं है , शसफय इस िथ्य को स्वीकार करना जरूरी है शक
हम अज्ञानी हैं । क्या सच में आपको पिा है शक ईश्वर है ? क्या सच में आपको
पिा है शक आपके िरीर के भीिर कोई आत्मा है ? कभी कोई झिक
आपको आत्मा की शमिी? कभी कोई स्पिय हुआ है ? कभी ईश्वर से कोई
मुठभे ड़ हुई है ? कोई मुिाकाि हुई है ? कोई एनकाउं टर हुआ है ? कभी
पदाथय के अशिररि और कुछ दे खा और जाना है ? मृत्यु के िेरे के बाहर
अमृि की कोई भी झिक कभी शमिी है ? नहीं, सुनी हैं बािें, िास्त्रों में पढ़ी
हैं , गु रुओं के मुंह से सुनी हैं और उनको हम पकड़े बैठे हैं । और उनको हम
पकड़े रहे हैं , िो हम उन्ें पकड़े -पकड़े समाि हो जाएं गे । समाि हो जाएं गे
शबना उसको जाने जो जाना जा सकिा था और शनरं िर शनकट था।

ओिो पृष्ठ संख्या 71


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इसके पहिे शक जीिन समाि हो जाए, यह शचत्त की परिंत्र स्थथशि समाि
होनी चाशहए। इस िथ्य को बहुि स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाना चाशहए हमारे
मन के समक्ष शक मेरे जानने का कुछ भी आधार नहीं है ।

क्या होगा उससे? क्यों मैं इिना जोर दे रहा हं इस बाि पर शक अज्ञान स्पष्ट हो
जाना चाशहए? इसशिए जोर दे रहा हं शक जैसे ही अज्ञान स्पष्ट हुआ आपके
जीिन में एक क्रां शि की संभािना िुरू हो गई।

जैसे हम यहां बैठे हैं और चारों िरफ आग िग जाए, िो शजसको यह शदखाई


पड़े शक चारों िरफ आग िगी है , िह शफर यहां आराम से और िां शि से बैठा
नहीं रहे गा। िेशकन उसे शदखाई पड़े शक नहीं, कोई आग िगै रह नहीं िगी है ,
िह यहां आराम से बैठा रहे गा और िां शि से बैठा रहे गा।

यह िथ्य शदखाई पड़ जाए शक मेरे भीिर गहन अंधकार और अज्ञान है , िो


िह अज्ञान और िह अंधकार आपको शफर िां शि से बैठने नहीं दे गा। उसकी
पीड़ा, उससे मुि होने के शिए द्वार बनेगी, मागय बनेगी। बीमारी का पिा चि
जाए, िो हमारे भीिर स्वास्थ्य की सहज आकां क्षा है । िेशकन बीमारी का पिा
न चिे, िो स्वास्थ्य की सहज आकां क्षा सशक्रय नहीं हो पािी है । अज्ञान का
पिा चि जाए, िो हमारे भीिर ज्ञान की गहन अभीप्सा है ।

िेशकन अज्ञान का पिा न चिे, िो ज्ञान की खोज प्रारं भ भी नहीं हो पािी।


अज्ञान का बोध मनुष्य को ज्ञान की प्यास से भर दे िा है । अज्ञान का बोध ही
ज्ञान की प्यास से भरिा है । िेशकन जो िोग झूठे ज्ञान को पकड़ िेिे हैं , उनके
भीिर ज्ञान की प्यास मंदी होिी जािी है , धीमी होिी जािी है । धीरे -धीरे -धीरे
बुझ ही जािी है ।

ज्ञान की प्यास जगे , उसके शिए अज्ञान का िीव्रिम बोध आिश्यक है । और


मजा यह है शक अज्ञान मौजूद है , उसको कहीं से िाना नहीं है , केिि बोध

ओिो पृष्ठ संख्या 72


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मौजूद नहीं है । अज्ञान मौजूद है , बोध मौजूद नहीं है । अज्ञान से अगर हमारा
बोध संयुि हो जाए, िह िभी होगा, जब हम इस झूठे ज्ञान के जािे और
िाने-बाने को िोड़ दें । इसे िोड़ने में कोई िषों के अभ्यास करने की जरूरि
नहीं है शक हम ज्ञान को िोड़ने जाएं ।

एक फकीर उठा और सुबह उठिे ही उसने अपने एक शिष्य को पास


बुिाया और उसने कहा शक राि मैंने एक सपना दे खा। क्या िुम मेरे सपने
की व्याख्या कर सकोगे ? उस युिक ने यह भी न पूछा शक िह सपना कैसा
है ? उसने कहा: आप रुकें, मैं पानी िे आिा हं , हाथ-मुंह धो िािें। िह युिक
पानी िेने चिा गया, िह पानी िेकर आया, िह फकीर अपना हाथ-मुंह धोिा
था, िभी दू सरा शिष्य भी करीब से शनकिा, उसने उसे भी बुिाया और उसने
कहा शक सुनो, राि मैंने एक सपना दे खा, क्या िुम उसकी व्याख्या कर
सकोगे ? उसने कहा: अगर आप हाथ-मुंह धो चुके हों, िो मैं चाय िे आऊं।

उस फकीर ने कहा शक िुम दोनों अदभु ि हो, िुमने दोनों ने मेरे सपने की
व्याख्या कर दी। अगर िुमने आज मेरे सपने की व्याख्या की होिी, मैं िुम्हें
आश्रम से शनकाि कर बाहर कर दे िा। क्योंशक सपनों की जो व्याख्या करिा
है , िह नासमझ है । सपना आया और एक आदमी पानी िे आया हाथ-मुंह
धोने के शिए, यह समझ िािी बाि है शक आप जाग जाएं ठीक से, िाशक शफर
न आ जाए सपना। और दू सरा आदमी चाय िे आया, शक अब आप चाय पी
िें, िाशक िापस िौटने की कोई गुं जाइि न रह जाए।

सपने की व्याख्या और िोड़ने की कोशिि और शमटाने की कोशिि इस बाि


का सबूि है शक सपने को हमने स्वीकार कर शिया है । ऐसे ही श्रिाओं को
िोड़ने का सिाि नहीं है , सपने की भां शि हैं , आप उनको पकड़े हैं , इसशिए
िे हैं । आपको यह स्पष्ट हो जाए शक कोई श्रिा ज्ञान नहीं बन सकिी, िे

ओिो पृष्ठ संख्या 73


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शििीन हो जाएं गी हिा में उसी िरह, शजस िरह सपने जागने पर शििीन हो
जािे हैं ।

शसफय यह िथ्य स्मरर् में आ जाए शक मैं अज्ञानी हं और मेरा कोई भी ज्ञान
अपना नहीं है , यह मैंने दू सरों से स्वीकार कर शिया और पकड़ शिया।
िेशकन शसखाया िो हमें यह जािा है शक रोज सुबह गीिा पढ़ना और रोज-
रोज पढ़ना और जीिन भर पढ़ना।

और शसखाया िो हमें यह जािा है शक कुरान जब िुम्हें पू री याद हो जाए, िो


िुम ज्ञानी हो जाओगे । और शसखाया िो हमें यह जािा है शक जो बाइशबि को
पूरी दोहरा दे िह ज्ञानी हो जािा है । चाहे िे उसे शकिने ही कंठथथ हो जाएं ,
चाहे नींद में भी िह उनको बकने िगे , बोिने िगे , िो भी ये िब्द हैं और मात्र
स्मृशि है , िेशकन ज्ञान नहीं है ।

ज्ञान, मेमोरी और नािेज में बुशनयादी फकय है । स्मृशि िो एक यां शत्रक व्यिथथा
है । ज्ञान यां शत्रक व्यिथथा नहीं है , स्मृशि पार। जो भी हमें स्मरर् है , िह बाहर
से आिा है । और जो भी हम जानिे हैं , िह भीिर से आिा है । सारी दु शनया में
स्मृशि को...आदमी अज्ञानी होिा जािा है और शसफय...

अजीब मुस्िि में फंस गई है सारी दु शनया। प्रशि सिाह पां च हजार शकिाबें
नई छप जािी हैं सारी दु शनया में। एक िि ऐसा आएगा आदमी को रहने की
जगह न बचेगी, शकिाबें इिनी हो जाएं गी शक आदमी को दफनाना हो, िो
शकिाबों में दफनाना पड़े गा। मकान बनाना हो, िो शकिाबों का बनाना
पड़े गा। क्या कररएगा? या शफर आदमी को कुछ और िरकीबें शसखानी
पड़ें गी शक आप अपनी पैदाइि कम करो, क्योंशक शकिाबों को रखने के शिए
जगह नहीं है । अगर पां च हजार ग्रं थ प्रशि सिाह िैयार होंगे, िो यह िो होना
स्वाभाशिक है , आज नहीं कि यह स्थथशि आ जाएगी।

ओिो पृष्ठ संख्या 74


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शकिाबें बढ़िी जािी हैं और आदमी का ज्ञान क्षीर् होिा जािा है । शकिाबें
और सारी शिक्षा स्मृशि पर बि दे िी है , ज्ञान पर नहीं। शिश्वशिद्यािय से स्मृशि
का प्रशिक्षर् होिा है , हम बाहर शनकि आिे हैं । कुछ बािें हम स्मरर् करिे
हैं और उन्ीं को जीिन भर दोहरािे रहिे हैं ।

ज्ञान बड़ी और बाि है । बड़ी गहरी बाि िो यह है शक जो व्यस्ि शजिनी


ज्यादा स्मृशि को पकड़े गा, उिना ही अज्ञानी रह जाएगा।

िही व्यस्ि ज्ञान को उपिब्ध हो सकिा है , जो पहिे िो यह जान िे शक स्मृशि


ज्ञान नहीं है । स्मृशि केिि सूचना संग्रह है । सूचना है , ज्ञान नहीं है । गीिा को
पढ़ िेना सू चनात्मक है , ज्ञान नहीं है । कुरान को याद कर िेना सूचना है , ज्ञान
नहीं है । सूचनाएं ज्ञान नहीं हैं ।

एक आदमी प्रेम के संबंध में प्रेम की बािें जान िे, िो भी प्रेम को नहीं जान
सकेगा। और एक आदमी िैरने के संबंध में िास्त्र पढ़ िे और व्याख्यान दे
और शकिाबें शिखे, िो भी िैर नहीं सकेगा। और यह भी हो सकिा है शक एक
आदमी कोई बाि न बिा सके शक िैरना क्या है --न बिा सके, न व्याख्यान दे
सके, क्योंशक िैरना जानिा है । िैरना जानना एक बाि है , िैरने के संबंध में
जानना शबिकुि दू सरी बाि है ।

बहुि पुरानी भारिीय कथा है । एक व्यस्ि सिार हुआ है नाि में और नदी
पार कर रहा है और अपने साथ बड़े िास्त्र शिए हुए है । बीच मझधार में
उसने उस नाशिक से पूछा, िुमने कभी िास्त्र पढ़े हैं ? उसने कहा: कौन से
िास्त्र? उसने कहा: क्या िुमने धमयिास्त्र नहीं पढ़े ? नाशिक ने कहा: मौका
नहीं आया। िो उस पंशिि ने कहा: िुम्हारा चार आना जीिन बेकार गया।
थोड़ी सी दू र और आगे बढ़े और उसने पूछा शक न पढ़ा हो धमयिास्त्र, ठीक

ओिो पृष्ठ संख्या 75


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
है , साशहत्य पढ़ा? काव्य पढ़ा? नाशिक ने कहा शक नहीं, मैंने िो नहीं पढ़ा।
उस पंशिि ने कहा: और चार आना गया।

और थोड़ी ही दे र में िूफान आया और नाि िूबने िगी, फुहारें पड़ने िगीं
और पानी भीिर आने िगा। उस नाशिक ने पूछा, पंशििजी, िैरना जानिे हो?
उस पंशिि ने कहा शक नहीं, िैरना िो आिा नहीं। िो आपका सोिह आना
जीिन गया। अब कोई उपाय नहीं है , मेरा िो आठ आना ही गया, आपका
सोिह आना गया। और उस शदन सोिह आना जीिन गया पंशििजी का और
नाशिक िैर कर शनकि गया और पंशिि िहीं िूब गया।

शजंदगी में भी यही होिा है । शजंदगी के सागर में भी रोज ही, ये जो स्मृशि के
बि पर बैठे हुए िोग हैं शजंदगी के सागर में िूबिे हैं । शजंदगी स्मृशि को नहीं
जानिी है , शजंदगी ज्ञान को जानिी है । शजंदगी ज्ञान को मानिी है , स्मृशि को
नहीं। िेशकन हम स्मृशि को ज्ञान समझे हुए हैं और भरे हुए हैं , और न मािूम
क्या-क्या भरे हुए हैं ।

यह िथ्य स्पष्ट रूप से खयाि में आ जाए शक स्मृशि ज्ञान नहीं है , िो आपको
अज्ञान स्पष्ट हो जाएगा। यह बाि स्पष्ट हो जाए शक कोई श्रिा मेरा ज्ञान नहीं
बन सकिी, िो श्रिा को िोड़ने के शिए कोई िििारें नहीं उठानी पड़ें गी। टू ट
गई, बाि हो गई। जीिन बहुि अदभु ि है , कुछ बािें जानिे ही से नष्ट हो जािी
हैं । जैसे दीया जिा कर अंधेरे को खोज-खोज कर भगाना नहीं पड़िा--दीया
जिाया और खोज रहे हैं शक अंधेरा कहां है ? दीया जिा शक अंधेरा गया।
अंधेरा था ही नहीं, दीये की गै र-मौजूदगी थी, अनुपस्थथशि थी। शकंिु अंधेरे की
कोई...

ऐसे ही श्रिाओं, शिश्वासों की कोई उपस्थथशि नहीं होिी। केिि इस बोध की


अनुपस्थथशि का नाम, इस बोध का शक मैं अज्ञान में हं और शकसी दू सरे का

ओिो पृष्ठ संख्या 76


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ज्ञान मेरा ज्ञान नहीं हो सकिा। महािीर आपको शमि जाएं या बुि या
क्राइस्ट--ज्ञान को िो खुद के ही प्रार्ों की शनरं िर खोज और अनुसंधान से
उपिब्ध करना होिा है । उसे न िो चुराया जा सकिा है , न शकसी से मुफ्त
पाया जा सकिा है , न भें ट में पाया जा सकिा है । कोई रास्ता नहीं है उसे और
िरह से पाने का। उसे िो खुद ही जीना पड़िा और खोजना पड़िा है ।

अज्ञान हमारा है , िो हमारा ज्ञान उसे शमटा सकेगा। अज्ञान हमारा है , ज्ञान
दू सरे का है , इन दोनों का कहीं शमिना ही नहीं होगा। ये दू सरे को काट ही
नहीं पाएं गे , इनका कोई संबंध ही नहीं है । अज्ञान बचा रहे गा और ज्ञान स्मृशि
में इकट्ठा होिा चिा जाएगा। प्रार् अज्ञान में रहें गे, बुस्ि ज्ञान से भर जाएगी।
दू सरे का ज्ञान स्मृशि से ज्यादा गहरा नहीं जािा। खुद का ज्ञान ही आत्मा की
केंिीय चेिना को जगािा और प्रकट करिा है । इसीशिए िो यह दे खा जािा है
शक हम ऊपर से जो भी थोप िें, िह हममें बहुि गहरा नहीं होिा, स्स्कन िीप
भी नहीं होिा, चमड़ी के बराबर भी गहरा नहीं होिा, जरा सी खरोंच उसे
शमटा दे िी है ।

एक व्यस्ि थे और िे बहुि क्रोधी थे और बहुि, बहुि अिां ि। िो उनके


शमत्रों ने उन्ें सिाह दी, उनके क्रोध ने उन्ें बहुि कष्ट शदया, बहुि पीड़ा दी।
आस्खर िे परे िान हो गए। उन्ोंने शकिाबें पढ़ीं और गु रुओं से पूछा, उन्ोंने
कहा शक जब िक संसार में रहोगे िब िक िो अिां शि रहे गी ही। संसार
छोड़ो, िो िां ि हो सकिे हो। िे पक्के क्रोधी थे , उनको यह भी चोट िग गई;
पक्के शजद्दी थे, बड़े हठी थे, उनको यह भी चोट िग गई। िो उन्ोंने एक शदन
गु स्से में आकर संसार भी छोड़ शदया, साधु हो गए। शजस व्यस्ि से उन्ोंने
दीक्षा िी, उसने उन्ें िां शिनाथ का नाम दे शदया, क्योंशक िे बड़े अिां ि और
क्रोधी थे और िां शि की साधना के शिए साधु हुए थे ।

ओिो पृष्ठ संख्या 77


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िे एक बड़े नगर में गए और उनके पुराने बचपन के एक शमत्र उनसे शमिने
गए। िे िां शिनाथ िो शमत्रों को भू ि चुके थे , क्योंशक संसार छोड़ चुके थे ।
िेशकन शमत्र अभी संसार में थे और िां शिनाथ को याद रखिे थे । उन शमत्र ने
उनसे पूछा, महानुभाि, आपका नाम? उन्ोंने कहा: िां शिनाथ! कोई दो
शमनट कुछ बाि चिी होगी, शफर उस शमत्र ने पूछा, क्षमा कररए, आपका
नाम? उन्ोंने कहा: िां शिनाथ! शफर कोई दो शमनट बाि चिी होगी, उस शमत्र
ने पूछा, क्षमा कररए, आपका नाम? उन्ोंने अपना िं िा उठा शिया, उन्ोंने
कहा: कहा नहीं िुझसे शक िां शिनाथ! उन्ोंने कहा: मैं समझ गया शक आप
शबिकुि िां शि को उपिब्ध हो चुके हैं । मैं जािा हं । मैं पुराना शमत्र हं , और
दे खने आया था शक िां शि शकिनी गहरी गई? िह स्स्कन िीप भी नहीं है , िह
चमड़े से ज्यादा गहरी भी नहीं है ।

जो दीक्षाएं दू सरों से िी जाएं , जो संन्यास दू सरों से शिया जाए, उसका कोई


भी मूल्य नहीं है । जो ज्ञान दू सरों से शमिे, िह गहरा नहीं जािा। जो िां शि
दू सरों से शमि जाए, िह उससे ज्यादा गहरी नहीं हो सकिी। प्रार् िो आपके
ही होंगे, चाहे िस्त्र बदि िें और िर छोड़ दें , फकय नहीं पड़े गा।

भागें दु शनया के कोने-कोने में, अपने आप से भागना असंभि है , आप अपने


साथ होंगे। और सबको छोड़ कर भाग जाएं गे, आप अपने साथ होंगे।

इसशिए एक बाि आज की सुबह मैं आपसे कहना चाहिा हं , िह यह शक जो


आपका है िही बस आपका है , और जो आपका है िही आपमें क्रां शि और
पररिियन िा सकिा है । जो ज्ञान कहीं और से आिा हो, जो नैशिकिा, जो
चररत्र बाहर से आिा हो, िह गहरा नहीं होिा, उसे जरा ही खरोंच दें , असिी
आदमी बाहर आ जाएगा, नकिी आदमी फट जाएगा। िह हमेिा असिी
आदमी भीिर मौजूद है । दु शनया में सबको धोखा शदया जा सकिा है , खुद को

ओिो पृष्ठ संख्या 78


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नहीं। िेशकन हम खुद को भी धोखा दे िे हैं । और कम से कम सत्य की खोज
में िो हम शनरं िर धोखा दे िे हैं ।

और हम बड़े होशियार हैं , धोखा ही नहीं दे िे, धोखा दे ने में सफि हो जािे हैं ।
मैं शफर से दोहरािा हं , हम बहुि होशियार हैं , धोखा ही नहीं दे िे, धोखा दे ने में
सफि हो जािे हैं । धन्य हैं िे िोग जो धोखा दे ने में असफि रह जािे हैं ।
क्योंशक िब उन्ें यह खयाि आिा है शक धोखा दे ना व्यथय है । दू सरों का ज्ञान
शिए बैठे हैं और ज्ञानी बन गए, इससे बड़ा धोखा हो सकिा है ? गीिा और
रामायर् दोहरािे हैं और ज्ञानी बन गए, इससे बड़ा धोखा हो सकिा है ? ज्ञान
के मामिे में अदभु ि धोखे हमने शदए हैं ।

मेरे एक शमत्र मुझसे कह रहे थे शक िे दू सरे महायुि में थे । एक जहाज पर थे ।


एक आदमी सामने बैठा हुआ शदन-राि अकेिा ही िाि का खेि खेििा
रहिा था--दोनों िरफ से; दू सरी पाटी की िरफ से भी चििा था, अपनी
िरफ से भी। अकेिे ही खेििा रहिा था। अब िह अकेिा था, कोई उपाय न
था। ये भी उसके साथ, उसी केशबन में यात्री थे , िो शदन-राि दे खिे रहिे थे ,
उन्ोंने दे खा शक िह आदमी चािों में धोखे करिा है ।

अकेिे ही खेि रहा है , कोई दू सरा है नहीं, दू सरी िरफ से भी खुद चििा है ,
अपनी िरफ से भी, िेशकन चाि में धोखा करिा है । िह दू सरे आदमी को
धोखा दे िा है , जो मौजूद ही नहीं है । जब उन्ोंने बार-बार दे खा शक यह धोखा
करिा है , िो बहुि है रानी हुई। एक िो अकेिा िाि खेििा था, यही
पागिपन था, शफर िह जो मौजू द नहीं है उसको धोखा दे िा था, िह िो है
नहीं, िो धोखा िो अपने को ही दे िा था, और िो िहां कोई था नहीं।

जब उनकी बरदाश्त के बाहर हो गया दे खिे-दे खिे, िो उन्ोंने कहा शक


ठहररए! आप िो हद्द शकए दे रहे हैं , धोखा शदए दे रहे हैं । उसने कहा: मुझे

ओिो पृष्ठ संख्या 79


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सब मािूम है । क्या मुझे मािूम नहीं शक मैं धोखा दे रहा हं ? िेशकन मैं इिना
होशियार आदमी हं शक पकड़ नहीं पािा, पकड़ा नहीं जािा हं , इिना
होशियार आदमी हं । क्या मुझे पिा नहीं शक मैं धोखा दे रहा हं ? मुझे पिा है ।
िेशकन इिना होशियार हं शक आज िक पकड़ा नहीं गया। पकड़ा कैसे
जाएगा?

दू सरों को आप धोखा दें गे, िो पकड़े भी जा सकिे हैं । अदाििें हैं , पुशिस हैं ,
और जमाने भर का जाि है , कानून है , दू सरे िोग हैं िे भी आं खें गड़ाए हुए
हैं । अपने को धोखा दें गे, कोई नहीं पड़े गा। कोई पकड़ने का कारर् नहीं है ।
इसीशिए िो दु शनया में सब िरह के धोखे पकड़ जािे हैं , िेशकन आत्मज्ञान का
धोखा पकड़ में नहीं आिा। यह सबसे गहरा शिसेप्िन है , यह पकड़ में नहीं
आिा, क्योंशक उसके स्खिाफ कोई भी नहीं है । आप बने रहो आत्मज्ञानी,
आप जानिे रहो परमात्मा को, न पुशिस पकड़िी है , न अदािि में मुकदमा
चििा है ।

और कुछ मूढ़ आपको शमि जाएं गे जो आपके इस धोखे में सहयोगी हो


जाएं गे । इस जमीन पर ऐसे मूढ़ खोजना कशठन नहीं, शजनके शिष्य न शमि
जाएं । शिष्य हमेिा उपिब्ध हो जाएं गे , क्योंशक बड़े मूखय हमेिा मौजूद हैं । िे
आपको सहयोगी हो जाएं गे आपके ज्ञान में और िािी बजाएं गे और शसर
शहिाएं गे । आप खुद अपने को धोखा दें गे और उनसे धोखा खाएं गे। िेशकन
जो आदमी जानिा है , थोड़ी भी शजसकी ईमानदारी की खोज है जीिन के
प्रशि, िह एक बाि जरूर समझ िेगा शक अपने को धोखा दे ने से कोई भी
अथय नहीं है । शसफय जीिन नष्ट होिा है और व्यय होिा है ।

दू सरे के ज्ञान को अपना ज्ञान मानना बहुि सूक्ष्म धोखा है । िेशकन हम सब


माने हुए हैं , न केिि माने हुए, बस्ल्क िड़ सकिे हैं उस ज्ञान पर, िोग
शििाद में आ जािे हैं और िड़िे हैं , मेरा शिचार! िििारें शनकि आिी हैं
ओिो पृष्ठ संख्या 80
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शिचार पर। और बड़े मजे की बाि है , आपका कोई भी शिचार नहीं है , सब
शिचार पराए हैं और दू सरों के हैं । मे रा शिचार शबिकुि झूठी बाि है । कौन सा
शिचार आपका है ? एकाध शिचार है , जो आप कह सकें मेरा है ? अगर खोज
करें गे , िो ऐसा एक भी शिचार नहीं पाएं गे । और जब ऐसे पराए शिचारों का
हम पर बोझ हो, िो स्वयं का अनुभि पैदा नहीं हो सकिा।

इसशिए मैं पहिी जो स्विंत्रिा चाशहए सत्य की खोज के शिए, िह श्रिा से


स्विंत्रिा, अश्रिा से स्विंत्रिा। उन्मुि अपने अज्ञान को स्वीकार करिा
हुआ शचत्त पहिी स्विंत्रिा है , िह फस्टय फ्रीिम है , इसके शबना कोई रास्ता
आगे बन नहीं सकिा।

िो आज की सुबह िो मैं यही प्राथय ना करू


ं गा शक श्रिा से स्विंत्र हो जाइए,
अश्रिा से स्विंत्र हो जाइए, शिश्वास से स्विंत्र हो जाइए। मान्यिा, परं परा,
संप्रदाय से मुि और स्विंत्र हो जाइए। शचत्त से इन जािों को िोड़ दीशजए।
और आपके जानिे और समझिे ही ये जाि टू ट जािे हैं , इनके शिए जाकर
कमरे पर िड़ने की जरूरि नहीं है , अंिरस्टैं शिं ग, इस बाि की समझ, जाि
टू ट गया।

शचत्त अगर इस भां शि श्रिा, अश्रिा से, शबिीफ से, शिसशबिीफ से मुि हो
जाए, बहुि शनमयि हो जािा है , बहुि सरि हो जािा है , बहुि सहज हो जािा
है । खोज की िैयारी हो जािी है , पहिा चरर् पू रा हो जािा है ।

यह िो पहिी बाि है जो आज की सुबह मैंने आपसे कही। हां , कि मैं शििेक


के जागरर् की बाि सुबह आपसे करू
ं गा। श्रिा से मुि हो जाएं िो शफर
शििेक जग सकिा है । श्रिा से शचत्त मुि हो, शििेक जाग्रि हो। शििेक की
बाि कि करू
ं गा। शििेक जाग्रि हो, श्रिा से मुस्ि हो। और शफर िीसरी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बाि परसों करू
ं गा शक जब शचत्त श्रिा से मुि हो जािा है और शििेक जाग्रि
हो जािा है ।

एक और छोटी सी बाि है िह भी अगर उसके जीिन में हो जाए, शजसको


हम समाशध कहिे हैं , अत्यंि शनशियकार और शनराकार शचत्त की स्थथशि कहिे
हैं , ओब्जे क्टिेसनेस कहिे हैं । श्रिा से मुि हो शचत्त, शििेक जाग्रि हो और
शचत्त के समक्ष सभी ऑब्जेक्ट, सभी शिषय, सभी शिचार, सभी कल्पनाएं
शििीन हो जाएं , शचत्त के समक्ष शफर कुछ भी न रह जाए। श्रिा से मुस्ि हो,
शििेक जाग्रि हो और शचत्त के समक्ष कुछ भी न रह जाए।

शचत्त के समक्ष रह जाए अनंि िून्य, सन्नाटा और िां शि, साइिेंस। बस ये िीन
बािें पूरी हो जाएं , िो मनुष्य िहां खड़ा हो जािा है जहां परमात्मा है । िहां
उसकी आं खें खुि जािी हैं जहां सत्य है । िहां उसके प्रार् आं दोशिि होने
िगिे हैं , िहां उसके प्रार्ों में िहरें उठने िगिी हैं , जहां व्यस्ि शमट जािा है
और समस्त, िह जो टोटे शिटी है , िह जो सबकी सत्ता है , उससे मेि हो जािा
है ।

समाशध की बाि अं शिम शदन करू


ं गा। आज मैंने श्रिा से मुि होने की बाि
कही। कि, शििेक को जाग्रि कैसे करें , उसकी बाि करू
ं गा। और परसों,
समाशध कैसे अििररि हो, कैसे आ जाए हमारे जीिन में। इन िीन चरर्ों में
चचाय करू
ं गा। इस संबंध में जो भी प्रश्न होंगे, िे आप संध्या को पूछ िेंगे, िाशक
इनके कुछ पहिे छूट गए होंगे िह आपके प्रश्नों में आ जाएं गे और उनकी
बाि हो सकेगी।

अब हम सुबह के ध्यान के शिए बैठेंगे ।

इसके पहिे शक हम ध्यान के शिए बै ठें, मैं दो थोड़ी सी बािें ध्यान के संबंध में
कह दू ं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ध्यान बड़ी अत्यंि सरि सी बाि है । और जो कोई भी कहिा हो, ध्यान बहुि
कशठन है , िह झूठ कहिा होगा। ध्यान से ज्यादा सरि और कोई बाि नहीं
है । क्योंशक ध्यान हमारा स्वरूप है । जो हमारा स्वरूप होिा है , िह एकदम
सरि होिा है । जै से गु िाब के पौधे में गु िाब के फूि िग जाना एकदम सरि
बाि है । इसमें कोई कशठन बाि नहीं है । शसफय हम पूरी पररस्थथशियां जुटा दें ,
िो फूि िग जाएं गे । फूि िगने में कोई कशठनाई नहीं है । फूि िो बड़ी
सहजिा से शनकि आिे हैं । किी बन जािी है और पंखुशड़यां स्खि जािी हैं ।

इिने स्पां टेशनयस, इिनी सहजिा से हो जािा है फूि का स्खिना शक हमें


पिा भी नहीं चििा। न कोई बैंिबाजे बजिे हैं , न कोई अखबार में खबर
छपिी है , न कोई रे शियो से, शदल्ली से एिाउं स होिा है , कुछ भी नहीं, फूि
िगिे हैं , स्खि जािे हैं । कहीं पिा नहीं चििा, कहीं कोई आिाज भी नहीं
होिी, कोई िोरगु ि नहीं मचिा, कशियां िगिी हैं और फूि स्खि जािे हैं ।
जैसे गु िाब के फूि में गु िाब का फूि स्खि जाना सहज सी बाि है , िैसे ही
मनुष्य के शचत्त में ध्यान का फूि स्खि जाना भी उिनी ही सहज बाि है ।

और ध्यान कोई जबरदस्ती िाई गई चीज नहीं है , बड़ी सहज बाि है । ध्यान
िो बहुि सहज है , िेशकन हम बहुि उिटे -सीधे हैं । इसशिए गड़बड़ होिी है ,
इसशिए दे र होिी है । ध्यान िो बहुि सरि है , हम बहुि कशठन हैं । ध्यान िो
बहुि सरि है , हम बहुि जशटि हैं । हमारी जशटििा उपिि कर रही है ,
ध्यान के आने में कोई बाधा नहीं है । गु िाब के फूि में िो अब भी फूि आ
जाए, िेशकन हमने जड़ें ही काट िािीं। या हम पूरे पौधे को उखाड़ कर
जमीन के बाहर रखे हुए हैं , या हमने पानी न दे ने की कसम खािी, व्रि िे
शिया शक हम पानी नहीं दें गे, या हम खाद नहीं दे िे या खाद की जगह जहर
दे िे।

ओिो पृष्ठ संख्या 83


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
गु िाब के फूि में िो फूि आ जाना बहुि सरि बाि है , इसमें िो िक का
कोई सिाि नहीं है । िेशकन उसकी अगर सारी पररस्थथशियों को हम उिटा-
सीधा कर दें और गु िाब के फूि को कहें शक िीषाय सन करो, जड़ें ऊपर करो
और शसर नीचा करो, िो शफर बहुि कशठन हो जाएगा, शफर फूि नहीं
आएं गे । और हम सब िीषाय सन कर रहे हैं , शजंदगी सब उिटी शकए हुए हैं ,
इसशिए ध्यान का फूि हममें नहीं स्खि पािा। एक बाि स्मरर् रख िें, हम
कशठन होंगे, ध्यान कशठन नहीं है । िो काम बन सकिा है , अपनी कशठनाई
छोड़नी पड़िी है , कोई बड़ी बाि नहीं है ।

अगर ध्यान कशठन होिा, िो हमको कशठन बाि सीखनी पड़िी। कशठन बाि
सीखनी कशठन होिी है , कशठन बाि छोड़नी कशठन नहीं होिी। शकसी चीज
को शमटा दे ना कशठन नहीं होिा, बनाना बहुि कशठन होिा है । अगर ध्यान ही
कशठन होिा, िो हमें कशठनाई के शिए िैयारी करनी पड़िी है । िेशकन हम
कशठन हैं , और हम कशठन इसशिए हैं शक...ये हमारी जो गिि आदिें हैं ...

पहिी बाि: ध्यान। दू सरी बाि: ध्यान से मेरा अथय एकाग्रिा नहीं है । जैसे
आपने सुना हो...एकाग्र शचत्त िो िना हुआ शचत्त है ...िगाएं गे िो मन खींच
जाएगा, िन जाएगा। िनाि के बाद एक िरह की उदासी, थकान आएगी।
स्वाभाशिक, जब भी कोई आप िना हुआ काम करें गे, िो पीछे से स्खंचाि
आएगा। स्खंचाि आने से शचत्त अिां ि होगा। इसशिए जो िोग भी
कनसनटर े िन या एकाग्रिा करिे हैं , िे बहुि िने हुए और स्खंचे हुए िोग हो
जािे हैं । िे सरि िोग नहीं रह जािे, और कां प्लेक्स और जशटि हो जािे हैं ।

दे खा ही होगा आपने, कोई आदमी अगर मािा फेरने िगे या राम-राम जपने
िगे , िो ज्यादा क्रोधी हो जािा है । कोई आदमी मंशदर जाने िगे , भगिान की
मूशिय के पास बैठ कर एकाग्रिा करने िगे , िो ज्यादा क्रोधी हो जािा है ,

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ज्यादा िायिेंट हो जािा है , ज्यादा शहं सक, ज्यादा दं भी हो जािा है , अहं कार
उसका और िना हो जािा है । स्वाभाशिक है यह होगा। ये सब कनसनटर े िन
के, एकाग्रिा के पररर्ाम हैं । और अगर एकाग्रिा बहुि बढ़ जाए, िो आदमी
पागि भी हो सकिा है । अगर शचत्त को इिना खींचा जाए, िो उसकी...टू टने
िगे िो आदमी पागि भी हो जािा है । हजारों पागिों...

यह कोई ईश्वर का उन्माद नहीं है । ईश्वर का उन्माद नहीं होिा, ईश्वर की


िां शि होिी है । ईश्वर का कोई पागिपन नहीं होिा, ईश्वर की िां शि होिी है ,
आनंद होिा है , प्रफुल्लिा होिी है , उन्माद नहीं होिा। ये सब पागि हैं ।
कनसनटर े िन से यह पररर्ाम पैदा हुआ है । और आप समझ िें, शजस कौम
में बहुि ज्यादा कनसनटर े िन का बि रहा हो, उस कौम का मस्स्तष्क धीरे -
धीरे िि हो जािा है । धीरे -धीरे उस कौम के मस्स्तष्क की जो ऊजाय और
प्रशिभा चाशहए, िह क्षीर् हो जािी है । भारि जैसे मुल्कों की प्रशिभा के क्षीर्
होने का बुशनयादी कारर् यह है ।

यहां हमने मस्स्तष्क को शिश्रां शि नहीं दी। खींचने की कोशिि की, िनाि दे ने
की कोशिि की। िनाि के दु ष्पररर्ाम हुए हैं । भारि ने आज िक कुछ भी
इनिेंट नहीं शकया, कुछ खोजा नहीं, कुछ नया बनाया नहीं, कुछ शक्रएट नहीं
शकया। िीन हजार साि के इिने नपुंसक और बां झ शदन बीिे हैं हमारे ,
शजसका कोई शहसाब नहीं है । इिना बैरन, कुछ हमने िीन हजार साि में
सृजन नहीं शकया, कोई नई खोज नहीं की, कोई नई शदिाएं नहीं खोजीं, कोई
नया शिज्ञान, कोई नई किा, कोई हमने जीिन के प्रार्ों में कोई शछपे हुए
कोने नहीं खोजे, शकसी अज्ञाि का हमने उदिाटन नहीं शकया। हम बैठे हुए
दोहरािे हैं िास्त्रों को, और दोहराए चिे जािे हैं । और हम बड़ी एकाग्रिा की
बािें करिे हैं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
एकाग्रिा ध्यान नहीं है । ध्यान है शचत्त की परम शिश्रां शि की अिथथा और
एकाग्रिा है शचत्त की िनाि की स्थथशि। एकाग्रिा होिी है शकसी चीज के
शिरोध में, ध्यान शकसी चीज के शिरोध में नहीं है ।

अगर समझ िें, आपको मैं कहं शक यहां बैठ कर एकाग्रिा कररए, राम के
नाम पर एकाग्रिा कररए या ओम पर एकाग्रिा कररए या शकसी और पर,
कोई भी चीज काम दे सकिी है । िो जब आप एकाग्रिा करें गे , िो िेष जो
दु शनया है उससे आपका मन िड़े गा। क्योंशक एक कुत्ता यहां से भौंकिा हुआ
शनकि जाए, िो आप कहें गे, इसने सब गड़बड़ कर शदया, िो एकाग्रिा
खंशिि हो गई। िो कुत्ते के भौंकने से िशड़ए शक यह आपको सुनाई न पड़े ,
आपका नाम िो िही चििा रहे , ओम-ओम आप कहिे रशहए, यह भौंकना
कुत्ते का सुनाई न पड़े ।

एक बच्चा रोने िगे , यह सुनाई न पड़े । िो आप िशड़ए, चारों िरफ जो


िटनाएं िट रही हैं , जो दु शनया खड़ी है उससे िशड़ए और अपने शचत्त को एक
िरफ िगाइए। आप थक जाएं गे , परे िान हो जाएं गे । िब आप कहें गे, यह
अपने बस की बाि नहीं। नहीं, यह शकसी के बस की बाि नहीं, शसिाय
पागिों को छोड़ कर। पागि यह कर सकिे हैं । शसफय पागिों को छोड़ कर
यह शकसी के बस की बाि नहीं है । और होनी भी नहीं चाशहए, क्योंशक अगर
हो जाए, िो पररर्ाम िािक होंगे।

ध्यान का अथय शकसी एक चीज पर सबके शिरोध में शचत्त को रोकना नहीं है ।
ध्यान का मेरा अथय है : सब चीजें बही जाएं और शचत्त िां ि हो, शचत्त अनुत्तेशजि
हो और चीजें बही जाएं । एक कुत्ता भौंके, िो आप कोई मुदाय थोड़े ही हैं शक
आपको सुनाई नहीं पड़े गा। आप जीशिि हैं , जो शजिना ज्यादा जीशिि है , उसे
उिना स्पष्ट सुनाई पड़े गा। शजसका शचत्त शजिना सेंशसशटि है , शजिना
संिेदनिीि है , शजिना ररसेशिि है , शजिना ग्राहक है , उसे उिना िीव्रिा से
ओिो पृष्ठ संख्या 86
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुनाई पड़े गा। शजसका शचत्त शजिना अनुत्तेशजि, िां ि है , उसे उिना स्पष्ट
सुनाई पड़े गा, एक सुई भी शगरे गी, िो उसे सुनाई पड़े गा। िां शि में िो छोटी सी
ध्वशन भी सुनाई पड़े गी। अिां शि में नहीं सुनाई पड़ सकिी।

एक आदमी के िर में आग िग गई हो और िह सड़क से अपने िर की


िरफ भागा जाए और आप उससे कहें , जयरामजी, उसे सुनाई नहीं पड़े गा।
इसशिए नहीं शक िह कोई परम स्थथशि को उपिब्ध हो गए हैं , बस्ल्क इसशिए
शक मस्स्तष्क कनसनटर े शटि है , एक चीज पर िगा है । उनके िर में आग िगी
है , आप जयरामजी कर रहे हैं । या कि उनसे शमशिए शक कि हम आपको
रास्ते में शमिे थे , खयाि है ? िे कहें गे, मुझे कुछ खयाि नहीं, कौन शदखा,
कौन नहीं शदखा, मुझे कुछ पिा नहीं। शचत्त एकाग्रिा था। िेशकन शचत्त की
एकाग्रिा शचत्त पर िनाि है , बोझ है , भार है । शचत्त होना चाशहए िां ि और
अनुत्तेशजि।

कैसे होगा?

मैं एक छोटे से रे स्ट हाउस में एक गां ि में रुका था। एक शमत्र भी मेरे साथ थे।
िह रे स्ट हाउस अजीब था। सारे गां ि के कुत्ते िायद िहीं शिश्राम करिे थे राि
को। करिे होंगे, अच्छी जगह थी, िहां िे भी ठहरिे थे । िो राि को इिने जोर
से िोरगु ि करिे, और जब एक करे --कुत्तों की आदि करीब-करीब िैसी
होिी है , जैसे नेिाओं की होिी है --दू सरा उसके शिरोध में करे , िीसरा उसको
जिाब दे , चौथा उसको जिाब दे , िहां करीब-करीब िही हािि थी जो चुनाि
के िि हो जािी है ।

िो िे मेरे शमत्र, सोना उनको मुस्िि हो गया, उन्ोंने मुझसे कहा: यह िो


बड़ी मुसीबि हो गई, यह िो यहां सोना असंभि है । मैंने उनसे कहा शक कुत्तों
को पिा भी नहीं शक आप यहां ठहरे हुए हैं । और आपसे उनकी कोई दु श्मनी

ओिो पृष्ठ संख्या 87


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नहीं, शपछिे जन्म का कोई संबंध हो िो मुझे पिा नहीं। उनको पिा भी नहीं,
िे आपको शिस्टबय भी नहीं कर रहे हैं , परे िान भी नहीं कर रहे हैं , आप क्यों
उनसे है रान हो रहे हैं ? आप सो जाइए। उन्ोंने कहा: कैसे सो जाएं ? ये
भौंकिे हैं िो सब नींद खराब हो जािी है ।

मैंने उनसे कहा: उनके भौंकने से नींद खराब नहीं होिी। उनके भौंकने के
प्रशि आप रे शसस्टें स मन में शिए हुए हैं शक नहीं भौंकने चाशहए। आपके मन में
शिरोध है उनके भौंकने के प्रशि, इसशिए नींद नष्ट हो जािी है । शिस्टबेंस
उनके भौंकने से पैदा नहीं होिा, आपके मन का यह आग्रह है शक उन्ें
भौंकना नहीं चाशहए, उन्ें यहां नहीं होना चाशहए। यह आग्रह पीड़ा दे रहा है
और नींद िोड़ रहा है ।

मैंने उनसे कहा: आग्रह छोड़ दीशजए, रे शसस्टें स छोड़ दीशजए। अपने मन में
सोशचए शक िुम कुत्ते हो िुम्हारा भौंकने का िि है , मेरे सोने का िि है , मैं
सोिा हं । उनको भौंकने दीशजए, उनकी आिाज को गूं जने दीशजए बराबर,
जब िक आप जागे होंगे िब िक िह आिाज सुनाई पड़े गी, िेशकन आपके
भीिर शिरोध मि रस्खए उसके प्रशि, आए गूं ज जाने दीशजए। मैंने उनसे कहा:
ठीक उिटा पररर्ाम होगा, यही आिाज सुिाने का काम करने िगे गी।

िे मान गए, समझदार थे , इिने समझदार कम िोग होिे हैं , और सो गए, सो


जाना स्वाभाशिक था। सुबह उठे और मुझसे बोिे शक मैं है रान हं , यह मे रे
खयाि में कभी नहीं आया शक मेरा जो प्रशिरोध था कुत्तों के प्रशि िही बाधा दे
रहा था। कुत्ते कैसे बाधा दें गे? हमारा जो प्रशिरोध है िह बाधा दे िा है ।

अप्रशिरोध का नाम ध्यान है । नॉन-रे शसस्टें ट माइं ि, अप्रशिरोधी मन, जो


रे शसस्ट नहीं करिा, चीजों को आने-जाने दे िा है । इिनी बड़ी दु शनया है , चीजें
आएं गी-जाएं गी, कोई आपका ठे का है शक आप िां ि होकर बैठें िो कुत्ते न

ओिो पृष्ठ संख्या 88


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भौंके, मस्ियां न उड़ें , मच्छर न आएं , कोई बच्चा न रोएं , कोई औरि बाि न
करे । यह कोई शनयम िो है नहीं।

यह शकसी का कोई ठे का नहीं है । दरख्त शहिेंगे, हिाएं आएं गी, पत्ते शगरें गे ,
उड़ें गे, आिाजें होंगी, िेशकन इस पर आपका कोई जोर नहीं है । और ये जोर
दे ने िािे बेचारे जं गिों में भागिे हैं , पहाड़ों पर जािे हैं , शफर इस खयाि से
शक यहां गड़बड़ होिी है िो िहां जाएं --शहमािय पर जाएं या शिब्बि जाएं या
कहां जाएं । िे कहीं भी चिे जाएं , कुछ भी नहीं होगा, िह रे शसस्टें स माइं ि
साथ होगा। एक पक्षी िहां शचल्ला दे गा, िे कहें गे, सब ध्यान गड़बड़ हो गया
हमारा।

ऐसा ध्यान जो शकसी की िजह से गड़बड़ हो जािा है , िह ध्यान ही नहीं है ,


िह एकाग्रिा है । एकाग्रिा गड़बड़ होिी है , क्योंशक एकाग्रिा का मििब है
एक चीज को पकड़ कर रह जाना और बाकी सब चीज के शिए दरिाजा बंद
कर दे ना, िे सब चीजें धक्के दे ने िगिी हैं । बस्ल्क सच्चाई यह है शक जब आप
एकाग्र होने की कोशिि नहीं करिे, िब िे चीजें उिना धक्का नहीं दे िीं।
स्वाभाशिक, जब आप एकाग्र होने की कोशिि करिे हैं , िो िे चीजें ज्यादा
धक्का दे ने िगिी हैं ।

मन एक प्रिाह की भां शि है , बहा जाए। चारों िरफ िटनाएं हो रही हैं , उनके
प्रशि बेहोि होने की, मूस्च्छय ि होने की, या उनके शिए दरिाजा बं द करने की
कोई जरूरि नहीं है । कुछ नहीं है , बच्चों से शिरोध नहीं है , कुत्तों से, शबस्ल्लयों
से, शकसी से कोई शिरोध नहीं है , उसका संसार से कोई शिरोध नहीं। और
शजसका शकसी से कोई शिरोध नहीं है और हर चीज को जो इस िरह गु जर
जाने दे िा है , जैसे...

बहुि शनकट है िह, और शकसी भी शदन द्वार खुि सकिे हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 89


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यहां हम छोटे से प्रयोग करें गे इन िीन शदनों में अप्रशिरोध के। अभी हम यहां
बैठेंगे , बैठने का मििब अकड़ कर और रीढ़ को बहुि सीधा करके और
शसर को बहुि खींच कर बैठ जाना नहीं, क्योंशक प्रशिरोध िुरू हो गया। बहुि
सहजिा से, जैसे छोटे -छोटे बच्चे बैठ जािे हैं , िैसे सहजिा से बैठ जाना। शसर
झुके झुक जाए, रीढ़ झुके झुक जाए, कोई रीढ़, कोई शसर बाधा नहीं दे रहा है
ध्यान में। ध्यान िो भीिर शचत्त की स्थथशि है , उसका इस सबसे कोई िास्ता
नहीं है । इिने एट इज़, इिनी सरििा से बैठ जाना है , जैसे आप कोई काम
नहीं कर रहे हैं , खािी िि गु जार रहे हैं , खािी िि गु जार रहे हैं ।

आं ख की पिक धीरे से शफर बं द कर िेनी है । बंद कर िेने का मििब यह


नहीं शक आप कोशिि करके उसे दबा िें, िह रे शसस्टें स िुरू हो गया। नहीं,
पिक को शगर जाने दे ना है , जैसे झपकी आ गई हो और पिक शगर गया।
पिक को बंद नहीं करना है , शगर जाने दे ना है , िेट गो, उसे धीरे से शगर जाने
दें । उसमें भी यह न हो शक मैंने बंद शकया, उसको भी शगर जाने दें । सारे िरीर
को ढीिा छोड़ दें , जैसे हम कुछ बड़ा काम नहीं कर रहे हैं , खािी बैठे हैं ।

खािी बैठे हैं , कोई काम नहीं कर रहे हैं , एक शिश्राम कर रहे हैं । आदिें नहीं
हैं हमारी शिश्राम करने की। हम िो खािी भी बैठें िो कुछ न कुछ करिे हैं ,
नहीं िो रे शियो खोि िेंगे, अखबार उठा िेंगे, कुछ न कुछ करें गे । न करने
का हमें पिा ही नहीं है और न करना बहुि अदभु ि है । न करने का कोई
मुकाबिा ही नहीं है । न करने की स्थथशि का नाम ध्यान है ।

यहां हम न करने की स्थथशि में दस-पंिह शमनट बैठेंगे । आं ख को, पिक को


ढीिा छोड़ दें गे, सारे िरीर को ढीिा छोड़ दें गे, शफर क्या करें गे ? बाि िो
इिनी है , अगर इिना ही कर िें िो काम हुआ।

ओिो पृष्ठ संख्या 90


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कोई भी आिाज सुनाई पड़ रही हो, कोई रुकी िो रहे गी नहीं, आएगी, गूं जेगी
और चिी जाएगी। आप शिरोध न करें शक यह आिाज क्यों गूं जी? आप
आिाज के प्रशि सजग रहें , आिाज िेजी से गूं जे, िब जानें, धीमी होने िगे गी,
धीमी होने िगे गी, िब जानिे रहें , शफर िह शििीन हो जाएगी, िब जानिे रहें ।
जैसे धुआं आया, भर गया...ऐसी आिाजें होंगी, िटनाएं होंगी चारों िरफ,
शकसी से कोई शिरोध नहीं है , िे आएं गी और चिी जाएं गी।

अगर आप िां शि से मात्र साक्षी रहे , प्रशिरोधी नहीं, शिरोधी नहीं, उनके...जो
भी आई आई, जो भी गई गई, अगर इिनी िां शि से उनका शनरीक्षर् शकया,
िो आप अभी दो क्षर् के भीिर ही पाएं गे शक शचत्त िो एकदम िां ि हुआ जा
रहा है । िह प्रशिरोध से अिां ि है , स्मरर् रखें, और कोई अिां शि नहीं है । िह
शिरोध से अिां ि है , िड़ रहा है इसशिए अिां ि है , जब नहीं िड़ रहा, िो
कोई अिां शि नहीं है ।

िाओत्से एक फकीर हुआ चीन में, उसने शिखा है : धन्य हैं िे िोग जो िड़िे
नहीं, क्योंशक उनको कोई हरा न सकेगा। धन्य हैं िे िोग जो िड़िे नहीं,
क्योंशक उनको कोई हरा न सकेगा। जो िड़िा ही नहीं उसके हारने का
सिाि ही नहीं है । शजसके हारने का सिाि नहीं उसके दु खी होने का कोई
सिाि नहीं। िड़ें न, ध्यान िड़ाई नहीं है । आमिौर से िड़ाई है , मंशदरों में
िोग बैठे हैं मािाएं शिए, िड़ रहे हैं । पहाड़ों पर िोग बै ठे हैं आं ख बंद शकए
हुए, आसन िगाए हुए, िड़ रहे हैं । िड़ाई है , कुछ भी नहीं है । ध्यान िो
िड़ाई से शबिकुि उिटी बाि है ।

िड़ें न, शबना िड़े थोड़ी दे र को...इसमें कोई फाइट नहीं करनी है । अगर
आपके पैर में ददय होने िगे , िो उससे िशड़ए मि, शक अब उसको रोके हुए
बैठें हैं शक हम िो ध्यान कर रहे हैं , पैर को बदिेंगे िो बगि िािा क्या
कहे गा? नहीं, िह ध्यान ही नहीं है , आप पैर ही से अटके हुए हैं । पैर में ददय
ओिो पृष्ठ संख्या 91
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होिा है , आप शबिकुि बदि िीशजए। आपको शजं दगी है , जान है अभी,
इसशिए पिा चि रहा है , मर जाएं गे या इं जेक्शन दे शदया, िो पिा नहीं
चिेगा, या अफीम खाकर बैठ गए, िो पिा नहीं चिेगा, या शकसी चीज पर
इिना कनसनटर े िन शकया शक शचत्त और सब िरफ से हट गया और उसी
एक चीज में अटक गया, िो पिा नहीं चिेगा।

या यह हो सकिा है शक शनरं िर अभ्यास कररए, िो शनरं िर पैर की आदि हो


जाएगी, िो शफर पिा नहीं चिेगा, िेशकन उससे कोई मििब नहीं है । पैर में
ददय हो रहा है , चुपचाप बदि िीशजए, एक ही बाि का खयाि रस्खए, रे शसस्ट
मि कररए, शदि में दु खी मि होइए शक पैर को बदिना पड़ रहा है । पैर
आपका अभी शजंदा है इसशिए खबर दे िा है , मर जाएगा िो खबर नहीं दे गा।

माकय ट्वे न का नाम आपने सुना होगा, बहुि हं सोड़ और बशढ़या आदमी हुआ
अमरीका में। िह एक शदन बैठे-बैठे बहुि गपिप कर रहा था, बहुि प्रसन्न
था, खूब ऊंची बािें कर रहा था, हं सा रहा था शमत्रों को, एकदम गं भीर हो गया
और उदास हो गया, एकदम से। िो उसके एक शमत्र ने पूछा, आपको क्या हो
गया? उसने कहा: मािूम होिा है मे रे पैर को िकिा िग गया। िाक्टरों ने
मुझे दस साि पहिे कहा था शक कभी न कभी खिरा है , आपके पैर को
िकिा िग जाएगा। उन्ोंने कहा: आपको पिा कैसे चिा?

उसने कहा: मैं च्ूं टी िे रहा हं बड़ी दे र से, िेशकन कुछ पिा ही नहीं चि
रहा। बगि की मशहिा ने कहा: क्षमा कररए, मैं संकोच की िजह से कह नहीं
रही, च्ुं शटयां आप मुझे शिए जा रहे हैं । िह बेचारा जां च कर रहा था और
बगि की मशहिा की च्ुं शटयां िेिा रहा, िेिा रहा, उसने सोचा शक मेरा पैर
िो गया, पिा ही नहीं चि रहा कुछ।

ओिो पृष्ठ संख्या 92


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यह जो पै र का पिा न चिना है , या िरीर का पिा न चिना है , यह कोई
अच्छी स्थथशि नहीं है । आपको पिा चिना चाशहए। भीिर होि है , कां िसनेस
शजिनी ज्यादा होगी, पिा चिेगा। उसकी कोई शफकर न करें , चु पचाप पैर
को बदि िीशजए। नॉन-रे शसस्ट, कोई शिरोध नहीं, चुपचाप पैर बदि
िीशजए।

गदय न थक गई हो, आगे -पीछे जािी हो, जाने दीशजए। ऐसे जाने दीशजए जै से
आपका कोई शिरोध नहीं है , जो हो रहा है िरीर को करने दीशजए। आप
इिना ही भर खयाि रस्खए शक मैं शकसी चीज का शिरोध नहीं करू
ं गा,
चुपचाप बैठा रहं गा। होने दू ं गा जो हो रहा है , मैं शकसी चीज पर पकड़ नहीं
रखूंगा शक ऐसा हो, िह जो हो रहा है होने दू ं गा। हिाएं आएं गी िो ठीक, नहीं
आएं गी िो ठीक। कोई शचल्लाएगा िो ठीक, नहीं शचल्लाएगा िो ठीक। मैं सब
कुछ स्वीकार करिा हं , टोटि एक्सेशिशबशिटी, और मैं शकसी चीज का शिरोध
नहीं करिा हं । बस इस भाि में एक दस शमनट हम यहां बैठेंगे ।

िो थोड़े -थोड़े फासिे पर हो जाएं गे िो अच्छा होगा। क्योंशक हो सकिा है


आप इस भाि में हों, िेशकन बगि िािा इस भाि में न हो। थोड़े -थोड़े फासिे
पर, िाशक कोई शकसी को छूिा न हो। थोड़े ऐसे फासिे पर बैठे जाएं गे बहुि
आराम से। हां , बाहर भी बैठ सकिे हैं ।

हं , आप िोग भी थोड़ा एक-दू सरे से दू र हो जाएं िो अच्छा है , एक-दू सरे को


छूिा हुआ कोई न बैठे। और शबिकुि आराम से बैठ जाएं , जैसा आपके शिए
बैठना शनरं िर सुखद रहा हो, िैसे बैठ जाएं । यहां जगह कम है इसशिए बैठने
को कह रहे हैं , आप िर पर करें गे , सोकर सकिे हैं , कोई सोने-बैठने का
सिाि नहीं है । सिाि है भीिर की स्टे ट ऑफ माइं ि, भीिर जो मन की
स्थथशि है उसका। कोई चीज का कोई सिाि नहीं है । सोए रहें , खड़े रहें , बैठे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रहें , आराम कुसी पर हों, इससे कोई फकय नहीं पड़िा। बड़ी बाि है शक
शबिकुि सहजिा से, सरििा से, आनंद से बैठ जाएं ।

िो मैं मान िूं शक आप एक-दू सरे को नहीं छू रहे हैं । कुछ िोग िो छू रहे होंगे,
िे सोच रहे होंगे क्या हजाय है , बैठे रहें ।

शफर अब धीरे से आं ख की पिकों को छोड़ दें , आं ख को बंद हो जाने दें ; बंद


न करें , बंद हो जाने दें , धीरे से पिक छोड़ दें और आं ख बंद हो जाए। धीरे से
पिक को छोड़ दें , ऐसा भाि करें गे शक पिक छूट गई, छूट जाएगी और धीमे
से बंद हो जाएगी, दबाि भी नहीं होगा आं ख धीरे से बंद हो जाएगी। अगर
आं ख शबिकुि धीरे से छोड़ दी िो आं ख के छोड़िे से िगे गा भीिर एक
हिकापन आ जाएगा। आधे से ज्यादा िनाि िो जीिन में आं ख के िने होने
का है ।

शबिकुि ढीिा छोड़ दें आं ख को, आं ख बंद हो जाने दें । शबिकुि िां ि बैठ
जाएं , शकसी चीज से कोई शिरोध नहीं है , कोई शिरोध नहीं है । हम कोई बड़ी
साधना भी नहीं कर रहे हैं शक उसी खयाि से शक कुछ हो जािा। कोई साधना
नहीं कर रहे हैं , शिश्राम कर रहे हैं । पू री िां शि है ।

जैसे ही िां ि होने िगें गे, भीिर की श्वासों का पिा चिने िगे गा। श्वास का
आना-जाना भी मािूम होने िगे गा, श्वास भीिर-बाहर होगी िो पिा चिेगा।
हिाएं शहिाएं गी, िो पिा चिेगा। दू र कुछ गायन चि रही हैं , उनकी िंशटयां
बजेंगी, िो पिा चिेगा। जो कुछ भी ध्वशनयां चारों िरफ हो रही हैं , िां शि से
उन्ें गूं जने दें और चुपचाप उनका शनरीक्षर् करिे रहें । शकसी का कोई
शिरोध नहीं है । बस िां शि से सुनें, जो भी आिाजें हो रही हैं उन्ें सुनें। मौन
सुनिे रहें , सुनिे-सुनिे ही मन िां ि होिा जाएगा, एकदम िां ि।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-05

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

पाांचिाां-प्रिचन

सबसे पहले एक प्रश्न पूछा है । और उससे सांबांशधत एक-दो प्रश्न और भी


पूछे हैं ।
पूछा है : मन चांचल है और शबना अभ्यास और िैराग्य के िह कैसे शथर
होगा?
यह बहुि महत्वपू र्य प्रश्न है । और शजस ध्यान की साधना के शिए हम यहां
इकट्ठे हुए हैं , उस साधना को समझने में भी बहुि सहयोगी होगा। इसशिए मैं
थोड़ी सूक्ष्मिा से इस संबंध में बाि करना चाहं गा।

पहिी बाि िो यह शक हजारों िषय से मनुष्य को समझाया गया है शक मन


चंचि है और मन की चंचििा बहुि बुरी बाि है । मैं आपको शनिेदन करना
चाहिा हं , मन शनशिि ही चंचि है , िे शकन मन की चंचििा बुरी बाि नहीं है ।
मन की चंचििा उसके जीिंि होने का प्रमार् है ।

जहां जीिन है िहां गशि है , जहां जीिन नहीं है जड़िा है , िहां कोई गशि नहीं
है । मन की चंचििा आपके जीशिि होने का िक्षर् है , जड़ होने का नहीं।

मन की इस चंचििा से बचा जा सकिा है , अगर हम शकसी भां शि जड़ हो


जाएं । और बहुि रास्ते हैं मन को जड़ कर िेने के। शजन बािों को हम
समझिे हैं साधनाएं , उनमें से अशधकां ि मन को जड़ करने के उपाय हैं । जैसे
शकसी भी एक िब्द की, नाम की शनरं िर पुनरुस्ि, ररपीटीिन मन को

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जड़िा की िरफ िे जािा है । शनशिि ही उसकी चंचििा क्षीर् हो जािी है ।
िेशकन चंचििा क्षीर् हो जाना ही न िो कुछ पाने जैसी बाि है , न कुछ
पहुं चने जैसी स्थथशि है ।

गहरी नींद में भी मन की चंचििा िां ि हो जािी है , गहरी मूच्छाय में भी िां ि
हो जािी है , बहुि गहरे निे में भी िां ि हो जािी है । और इसीशिए दु शनया के
बहुि से साधु और संन्याशसयों के संप्रदाय निा करने िगे हों, िो उसमें कुछ
संबंध है । मन की चंचििा से ऊब कर निे का प्रयोग िुरू हुआ। शहं दुस्तान
में भी साधुओं के बहुि से पंथ--गां जे, अफीम और दू सरे निों का उपयोग
करिे हैं । क्योंशक गहरे निे में मन की चंचििा रुक जािी है , गहरी मूच्छाय में
रुक जािी है , शनिा में रुक जािी है ।

चंचििा रोक िेना ही कोई अथय की बाि नहीं है , चंचििा रुक जाना ही कोई
बड़ी गहरी खोज नहीं है । और चंचििा को रोकने के शजिने अभ्यास हैं , िे
सब मनुष्य की बुस्िमत्ता को, उसकी शिज़िम को, उसकी इं टेशिजेंस को,
उसकी समझ, उसकी अंिरस्टैं शिं ग को, सबको क्षीर् करिे हैं , कम करिे
हैं । जड़ मस्स्तष्क मेधािी नहीं रह जािा।

िो क्या मैं यह कहं शक चंचििा बहुि िुभ है ? शनशिि ही, चंचििा िुभ है ,
बहुि िुभ है । िेशकन चंचि िो शिशक्षि का मन भी होिा है , पागि का मन
भी होिा है । शिशक्षि चंचििा िुभ नहीं है , पागि चं चििा िुभ नहीं है ।
चंचििा िो जीिन का िक्षर् है । जहां गशि है , िहां -िहां चंचििा होगी।

िेशकन शिशक्षि चंचििा--जैसे एक नदी समुि की िरफ जािी है , जीशिि


नदी समुि की िरफ बहे गी, गशिमान होगी। िेशकन कोई नदी अगर पागि
हो जाए, अभी िक कोई नदी पागि हुई नहीं। आदशमयों को छोड़ कर और
कोई पागि होिा ही नहीं है । िो कोई नदी अगर पागि हो जाए, िो भी गशि

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
करे गी, कभी पूरब जाएगी, कभी दशक्षर् जाएगी, कभी पशिम जाएगी, कभी
उत्तर जाएगी और भटकेगी, अपने ही शिरोधी रास्तों पर भटकेगी, सब िरह
दौड़े गी-धूपेगी, िेशकन सागर िक नहीं पहुं च पाएगी। िब उस गशि को हम
पागि गशि कहें गे। गशि बुरी नहीं है , पागि गशि बुरी है ।

आप यहां िक आए, शबना गशि के आप यहां िक नहीं आिे, िेशकन गशि


अगर आपकी पागि होिी है , िो आप पहिे कहीं जािे थोड़ी दू र, शफर कहीं
दू र जािे थोड़ी दू र, शफर िौट आिे, शफर इस कोने से उस कोने िक जािे,
शफर िापस हो जािे और भटकिे एक पागि की िरह। िब आप कहीं पहुं च
नहीं सकिे थे । िह मन जो पागि की भां शि भटकिा है , िािक है । िेशकन
स्वयं गशि िािक नहीं है । शजस मन में गशि ही नहीं है , िह मन िो जड़ हो
गया।

िो इस बाि को थोड़ा ठीक से समझ िेना जरूरी है ।

मैं गशि और चंचििा के शिरोध में नहीं हं । मैं जड़िा के पक्ष में नहीं हं । और
हम दो ही िरह की बािें जानिे हैं अभी, या िो शिशक्षि मन की गशि जानिे हैं
और या शफर राम-राम जपने िािे या मािा फेरने िािे आदमी की जड़िा
जानिे हैं । इन दो के अशिररि हम कोई िीसरी चीज नहीं जानिे।

चाशहए ऐसा शचत्त जो गशिमान हो, िे शकन शिशक्षि न हो, पागि न हो। ऐसा
शचत्त कैसे पैदा हो, उसकी मैं बाि करू
ं । उसके पहिे यह भी शनिे दन करू

शक मन की चंचििा के प्रशि अत्यशधक शिरोध का जो भाि है , िह योग्य नहीं
है और न अनुग्रहपूर्य है और न कृिज्ञिापूर्य है । अगर मन गशििान न हो और
चंचि न हो, िो हम मन को न मािूम शकस कूड़े -करकट पर उिझा दें और
िहीं जीिन समाि हो जाए। िेशकन मन बड़ा साथी है , िह हर जगह से ऊबा
दे िा है और आगे के शिए गशििान कर दे िा है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
एक आदमी धन इकट्ठा करिा है , शकिना ही धन इकट्ठा कर िे, मन उसका
राजी नहीं होिा, इनकार कर दे िा है , इिने से कुछ भी न होगा। मन कहिा
है , और िाओ। िह और धन िे आए, मन शफर कहे गा, और िाओ। मन
शकिने ही धन पर िृि नहीं होिा। शकिना ही यि शमि जाए, मन िृि नहीं
होिा। शकिनी ही िस्ि शमि जाए, मन िृि नहीं होिा। यह मन की अिृस्ि
बड़ी अदभु ि है । अगर यह अिृस्ि न हो, िो दु शनया में कभी कोई आदमी
आध्यास्त्मक नहीं हो सकिा है ।

अगर बुि का मन िृि हो जािा उस धन से जो उनके िर में उपिब्ध था


और उस संपशत्त से , उस राज्य से जो उन्ें शमिा था, िो शफर बुि के जीिन में
आध्यास्त्मक क्रां शि नहीं होिी। िेशकन मन अिृि था और चं चि था, उन
महिों से िह िृि न हुआ और िह मन आगे भागने िगा। इसशिए एक क्षर्
आया शक मन की अिृस्ि क्रां शि बन गई।

िह जो शिसकंटें ट है मन की, िह जो मन का असंिोष है , िही िो क्रां शि


बनिा है , नहीं िो क्रां शि कैसे होगी जीिन में? अगर मन चंचि न हो, िो धन से
िृि हो जाएगा, भोग से िृि हो जाएगा, िासना से िृि हो जाएगा।

इशजि में एक फकीर था, इशजि का बादिाह उससे कभी-कभी शमिने


जािा था। एक बार िह बादिाह शमिने गया, फकीर के द्वार पर ही उसकी
पत्नी बैठी थी, उस बादिाह ने कहा शक मैं फकीर को शमिने आया हं , िह
कहां हैं ? उसकी पत्नी ने कहा: आप बै ठें, दो क्षर् शिश्राम करें , पीछे के बगीचे
में िह काम करिा है , मैं उसे बुिा िाऊं। िेशकन िह बादिाह बैठा नहीं, िह
खेि की मेड़ पर टहिने िगा। उसकी पत्नी ने शफर भी कहा शक आप बैठ
जाएं । उसने कहा: िुम बुिा िाओ, मैं टहििा हं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पत्नी ने सोचा, िायद खेि की मेड़ पर बैठना उसे िोभायुि न मािूम होिा
हो, उसे भीिर बुिाया, चटाई शबछाई और कहा: आप यहां बैठ जाएं । िेशकन
िह आकर दहिान में टहिने िगा। उसने कहा: िुम बु िा िाओ, मैं टहििा
हं । िह पत्नी गई, उसने अपने पशि को बुिाया और मागय में उससे कहा शक
यह बादिाह िो बड़ा पागि मािूम होिा है । मैंने उसे बहुि आग्रह शकया बै ठ
जाने का, िेशकन िह बैठा नहीं।

उस फकीर ने कहा: उसके योग्य, उसके बैठने योग्य थथान हमारे पास नहीं
है , इसशिए िह टहििा है । उसके बैठने योग्य थथान हमारे पास नहीं है ,
इसशिए िह टहििा है , नहीं िो िह जरूर बैठ जािा। मैंने उसे बहुि बार बैठे
हुए भी दे खा है ।

यह कहानी मैं इसशिए कह रहा हं शक हमारा मन जो इिना चंचि है , िह


इसीशिए शक हम मन के बैठने योग्य थथान आज िक नहीं दे सके। अगर हम
मन के बैठने योग्य थथान दे दें , िह िो ित्क्षर् बैठ जाएगा। उसकी सारी
चंचििा शििीन हो जाएगी।

परमात्मा के पूिय मन कहीं भी नहीं बैठ सकिा है , िही उसके बैठने का थथान
है । इसशिए मन की आप पर बड़ी कृपा है शक िह चं चि है । और हर कहीं
नहीं बैठ जािा है । िह परमात्मा के पहिे कहीं भी बैठेगा नहीं, यह उसकी
कृपा है । और शजस शदन िह बैठेगा, उस शदन ही इस कृपा को आप समझ
पाएं गे शक मन मुझे यहां िक िे आया।

अगर मन कहीं बै ठ जािा, िो मैं परमात्मा िक आने में असमथय था। मन िे


जाएगा, हर जगह अिृि कर दे गा, कहीं रुकेगा नहीं, हर जगह चं चि हो
जाएगा, उस क्षर् िक चंचि होिा रहे गा, जब िक शक परम शिश्राम का क्षर्
न आ जाए, जब िक शक िह शबंदु न आ जाए, जहां मन बैठ सकिा है । शजस

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जगह मन बैठ जाए शबना जड़ हुए, जीशिि, गशिमान मन शजस जगह जाकर
शिश्राम को उपिब्ध हो जाए, जान िेना परमात्मा शनकट आ गया।

िो मैं यह नहीं कहिा हं शक मन शथर हो जाए, िो परमात्मा शमि जाएगा, मैं


यह कह रहा हं शक परमात्मा शमि जाए, िो मन एकदम शथर हो जाएगा। िह
शथरिा शफर जड़िा नहीं होगी, िह शथरिा बड़ी जीिंि होगी, बड़ी जागरूक
होगी। िेशकन हम करिे हैं उिटा, हम मन को जड़ करना चाहिे हैं । मन के
जड़ करने से परमात्मा नहीं शमिेगा, केिि गहरी नींद आ जाएगी, केिि
मूच्छाय हो जाएगी, केिि िंिा हो जाएगी। केिि मन जड़ हो जाएगा।

िो शजसको हम अभ्यास कहिे हैं , िह सब अभ्यास करीब-करीब इसी भां शि


का है शजससे मन जड़ होिा है । मैं जो कह रहा हं , िह अभ्यास नहीं है । अगर
ठीक से समझें, िो िह अन-अभ्यास है । मन ने अब िक जो अभ्यास शकए हैं ,
उन सबको छोड़ दे ना है , कोई नया अभ्यास नहीं करना है ।

क्योंशक मन जो भी अभ्यास करिा है , मन ही िो करे गा न अभ्यास, और मन


का कोई भी अभ्यास मन के ऊपर िे जाने में मागय नहीं बन सकिा। िह मन
से बड़ा नहीं हो सकिा। आप ही अभ्यास करें गे न? िो आपके शचत्त की जो
दिा है , उस दिा से ऊपर आप कभी नहीं जा सकेंगे । अभ्यास कौन करे गा?
आप ही करें गे , आप का ही मन करे गा।

इसशिए मैं कहिा हं , अभ्यास से कभी आप ऊपर नहीं जा सकेंगे । मन का


सारा अभ्यास छोड़ दें , िां ि हो जाएं । अभ्यास भी एक अिां शि है । िां ि हो
जाएं , जैसे कुछ भी नहीं कर रहे हैं । न करने की स्थथशि में हो जाएं , धीरे -धीरे
जैसे-जैसे न करने की स्थथशि गहरी होगी, आप पाएं गे शक मन शििीन होिा जा
रहा है । जैसे-जैसे मन िां ि और शििीन होगा, िैसे-िै से आप पाएं गे शक एक
दू सरे िोक में चेिना उठ रही है और जाग रही है । िेशकन आप कहें गे, यह

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भी िो अभ्यास ही हुआ। हम िां ि होकर बैठें, शचत्त को शिश्राम में िे जाएं , यह
भी अभ्यास है , यह भी एक प्रैस्क्टस हुई। नहीं, मैं आपसे शनिेदन करू
ं गा, यह
अभ्यास नहीं है ।

जैसे अगर मैं यह मुट्ठी बां धे हं और कोई मेरे पास आए और मैं उससे पूछूं शक
इस मुट्ठी को मैं कैसे खोिूं? िो िह मुझसे क्या कहे गा? िह कहे गा, खोिने
के शिए कुछ भी करने की जरूरि नहीं है , बां धने के शिए जो कुछ कर रहे हैं ,
कृपा कर उिना ही न करें , मुट्ठी िो खुि जाएगी। मुट्ठी का खुिना िो अपने
आप हो जाएगा, हम उसे बां धने के शिए जो कर रहे हैं , िह भर न करें ।

िो मुट्ठी का खुिना अभ्यास नहीं है , बां धने के शिए हम जो अभ्यास कर रहे हैं ,
उसके छोड़िे ही मुट्ठी खुि जाएगी। जैसे एक िृक्ष की िाखा को हम खींच
कर पकड़ िें और शकसी से पूछें शक अब इसे इसकी जगह िापस िौटाने के
शिए क्या करें ? िो िह क्या कहे गा? िह कहे गा, आप कुछ भी न करें िापस
िौटाने के शिए, कृपया इसे रोक रखने के शिए जो कर रहे हैं , िह भर न करें ,
िाखा अपने आप िापस िौट जाएगी।

हम मन के साथ जो कर रहे हैं शनरं िर, क्या कर रहे हैं हम मन के साथ? हम


कुछ काम कर रहे हैं मन के साथ। अगर हम िह न करें , मन अपने आप
िां ि हो जाएगा। मन अपने आप िां ि हो जाएगा।

जैसे सुबह मैंने आपसे कहा शक हम मन के साथ शनरं िर प्रशिरोध की एक


साधना कर रहे हैं , रे शसस्टें स की साधना कर रहे हैं । हम चौबीस िंटे मन से
प्रशिरोधी बने हुए हैं । शकसी न शकसी स्थथशि के प्रशि हमारा प्रशिरोध इिना
ज्यादा है शक जीिन भर हम िड़ रहे हैं । मन हमारा चौबीस िंटे िड़ रहा है ।
कभी भी गै र-िड़ाई की स्थथशि में हमारा मन नहीं है । यह िड़ाई मन को
िनाि से भर दे िी है , बेचैनी से भर दे िी है , दु ख असफििा से भर दे िी है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और िब, िब मन में इिना ज्यादा रुग्ण, शफिररस, इिना बुखार की स्थथशि हो
जािी है शक शफर हम िां शि की खोज करिे हैं , गु रुओं के पास जािे हैं और
उनसे पूछिे हैं , िां ि कैसे हो जाएं ?

िे हमसे कहिे हैं , राम-राम जपो, ओम-ओम जपो, या मािा फेरो, या मंशदर
जाओ, या यह पढ़ो या िह पढ़ो, या यह मंत्र या िह जाप, िे हमें यह बिािे हैं ।
हम िह जाप िुरू कर दे िे हैं , शबना इस बाि को जाने हुए शक यह जाप कौन
कर रहा है ? िही शफिररस माइं ि, िही अिां ि, परे िान मन, िही बीमार
रुग्ण मन जाप फेर रहा है । बीमार मन, रुग्ण मन जाप फेरे गा िो जाप से क्या
फि आने िािा है ? यह सब खुद भी उसी बीमारी के शहस्से के भीिर यह
बाि सारी चिेगी। इससे कोई पररिियन होने िािा नहीं है । इससे कोई
पररिियन कभी नहीं हुआ है ।

मैं आपसे कहं गा, बजाय इसके शक आप िां शि की खोज में जाएं , उशचि है
शक आप समझें शक अिां शि क्यों है ? मेरे पास िो रोज शनरं िर िोग आिे हैं , िे
यह कहिे हैं शक हमें िां ि होना है । मैं उनसे पूछिा हं शक इसकी शफकर
छोड़ दें , अिां ि व्यस्ि कभी िां ि नहीं हो सकिा। िे बड़े है रान हो जािे हैं
शक अगर अिां ि व्यस्ि िां ि नहीं हो सकिा, िो क्या हम शबिकुि शनराि
हो जाएं ? मैं उनसे कहिा हं , नहीं। अिां ि व्यस्ि िां ि नहीं हो सकिा,
िेशकन अिां ि व्यस्ि अगर अिां शि के मूि कारर्ों को समझ िे, िो
अिां शि से मुि हो सकिा है । और जब अिां शि से मु ि हो जाएगा, िो जो
चीज िेष रह जाएगी, उसका नाम िां शि है ।

अिां ि मन िां ि नहीं हो सकिा, हां , अिां शि से मुि हो सकिा है । अिां शि


से मुि हो जाए, िो िां शि िो हमारा स्वभाि है । हम िो उसमें खड़े हो
जाएं गे । िो बजाय इसके शक हम िां शि खोजें और उसके शिए कोई अभ्यास

ओिो पृष्ठ संख्या 102


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
करें , मेरी दृशष्ट यह है शक हम समझें शक हम अिां ि क्यों हैं ? और अगर हम
समझ िें शक अिां ि क्यों हैं , िो शजस चीज को हम समझ िेंगे शक िह हमें
अिां शि दे रही है , उसे छोड़ने के शिए कुछ भी नहीं करना पड़े गा। क्योंशक
जो चीज हमें अिां शि दे रही हो, िह समझ में ही आ जाए िो छूट जाएगी।

आपको समझ में आ जाए शक जहर रखा हुआ है , आप नहीं पीिे। आपको
समझ में आ जािा है शक यहां दीिाि है , यहां दरिाजा है , िो आप दरिाजे से
शनकििे हैं , दीिाि से नहीं शनकििे। क्यों? अभ्यास करिे हैं बहुि दीिाि से
न शनकिने का, शक दरिाजे से शनकिने का कोई अभ्यास करिे हैं , नहीं, बस
जान िेिे हैं शक यह दरिाजा है और यह दीिाि, शफर दीिाि से आप नहीं
शनकििे हैं । शजस शदन आपको स्पष्ट शदखाई पड़ जाए शक अिां शि कहां -कहां
है शचत्त में, कौन-कौन से कारर्ों से, उस शदन कोई अभ्यास नहीं करना
होिा। अंिरस्टैं शिं ग, समझ मात्र जीिन में एक क्रां शि िा दे िी है । आप और
ढं ग से चिना िुरू हो जािे हैं ।

एक दशक्षर् में फकीर हुआ। उसके आश्रम में एक युिक बहुि-बहुि


बकिादी, बहुि िाशकयक और शििादी था। जैसे आमिौर से धाशमयक िोग होिे
हैं । धाशमयक िोग आमिौर से शििादी होिे हैं । और जो शजिना बड़ा शििादी
होिा है , हम कहिे हैं , िह उिना ही बड़ा महशषय है । जो शजिना खंिन करे ,
िकय करे , शििाद करे , कहिे हैं , उिना ही बड़ा ज्ञानी है । िह युिक भी बड़ा
ज्ञानी था, िह सुबह से सां झ िक शसिाय खंिन-मंिन के उसे कोई काम ही
नहीं था। यह िास्त्र ठीक है और िह िास्त्र गिि है , और यह धमय ठीक है
और िह धमय गिि है , शनरं िर।

एक शदन यात्रा करिा हुआ एक संन्यासी मेहमान हुआ उस आश्रम में। उस


युिक ने उससे भी बहुि शििाद शकया। उसे बहुि पराशजि भी शकया, शििाद

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
का सुख ही और क्या है शसिाय इसके शक हम शकसी को पराशजि करें । और
जहां पराशजि करने िािा व्यस्ि मौजूद है , िहां फकय नहीं पड़िा शक पराजय
िकय शक द्वारा िाई गई या िििार के द्वारा, शहं सा मौजू द है । िे एक िरह के
िोग हैं । पुराने शदनों में गुरु शनकििे थे गां ि-गां ि, खोजिे थे दु श्मनों को,
िड़ने जािे थे उनसे, उनको शििाद में हराने जािे थे ।

ये सब अहं कार की चेष्टाएं हैं , इनका ज्ञान से कोई संबंध नहीं है । िह आिे से
ही उस संन्यासी से जूझ गया और उस संन्यासी को उसने िाम िक बहुि
परे िान कर शदया, उसके सारे िकय खंशिि कर शदए। सां झ हारा हुआ िह
संन्यासी चिा गया। िह युिक बहुि गौरि से अपने शमत्रों की िरफ दे खा।

उसके गुरु ने उससे कहा शक दे ख, मैंने िुझे कभी नहीं कहा, िेशकन िीन िषय
से शनरं िर िू यहां है और सुबह से सां झ िक शििाद करिा है , िकय करिा है ,
आज मैं िुझसे यह कहिा हं शक कभी मौन भी होकर दे खेगा या नहीं? और मैं
िुझसे यह शनिेदन करिा हं शक इिने शदन िूने िकय शकया और शििाद शकया,
क्या िुझे शमिा? अगर कुछ शमिा हो, िो मुझे भी बिा, मैं भी शििाद करू
ं , मैं
भी िकय करू
ं ।

अगर न शमिा हो, िो मौन होकर दे ख, कब से िू मौन होगा? उस युिक ने


क्या शकया आपको पिा है ? उसने आं ख बंद कीं, दो क्षर् िह मौन बैठा, और
उसने अपने गु रु को कहा शक मैं ये अंशिम िब्द बोि रहा हं शक आगे अब
कभी नहीं बोिूंगा। िह अंशिम शदन था, शफर जीिन भर िह नहीं बोिा। िोगों
ने आकर उसके गुरु को कहा शक यह युिक िो शबिकुि पागि मािूम होिा
है , पहिे िो बहुि शििाद करिा था और अब शबिकुि चुप हो गया!

उसके गु रु ने कहा: इस जैसे िोग मुस्िि से पाए जािे हैं , इिनी स्पष्ट समझ
मुस्िि से होिी है । इसे अभ्यास की भी जरूरि न पड़ी, इसे चीज शदखाई

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पड़ी और हो गई। इसने सुना, समझा, दो क्षर् आं ख बंद करके मौन हुआ,
उसे बाि शदखाई पड़ गई शक िकय में जो िां शि नहीं थी, िह दो क्षर् के मौन में
थी। िकय गया और शििीन हो गया।

कोई अभ्यास थोड़े ही करना पड़िा है छोड़ने के शिए। ज्ञान खुद क्रां शि बन
जािा है । अभ्यास िो िहां करना होिा है , जहां ज्ञान नहीं होिा, िहां अभ्यास
करना होिा है । अभ्यास अज्ञानी का िक्षर् है । जब हम शकसी चीज की
कोशिि कर-कर के करिे हैं , िो िह झूठी हो जािी है ।

एक आदमी कहिा है शक मैं िराब छोड़ने का अभ्यास कर रहा हं । उसका


क्या मििब? उसका मििब है शक उसे यह दियन नहीं हुए शक िराब जीिन
के शिए िािक है , इसशिए अभ्यास कर रहा है । एक आदमी कहिा है शक मैं
यह काम करने का अभ्यास कर रहा हं , िह काम छोड़ने का अभ्यास कर
रहा हं , इसका अथय क्या? अगर शदखाई पड़े िो दियन ही क्रां शि हो जािी है ,
पररिियन हो जािा है । मेरा आग्रह है शक चीजों को समझना चाशहए, अभ्यास
करने की शफकर नहीं करनी चाशहए। समझ से जो आिा है , िह सहज
पररिियन है , अभ्यास से जो आिा है , िह जबरदस्ती िाया हुआ पररिियन है ।
और जबरदस्ती िाए हुए पररिियन के पीछे शिरोधी शचत्त शनरं िर मौजूद रहिा
है ।

िह कहीं खोिा नहीं, िह कहीं जािा नहीं। अगर मैं जबरदस्ती साध कर
अभ्यास करके ब्रह्मचयय को पा िूं, भीिर सेक्स मौजूद रहे गा, जा नहीं सकिा।
इसशिए शजनको हम ब्रह्मचारी कहिे हैं , उनकी दृशष्ट और मन में शजिनी
सेक्सुअशिटी होिी है , शजिनी कामु किा होिी है , उिनी सामान्यजन के मन
में नहीं होिी, हो भी नहीं सकिी। अभ्यास कर-कर के ऊपर से ब्रह्मचयय को
थोप िेिे हैं , भीिर का काम, भीिर की िासना कहां जाएगी?

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह भीिर बैठी रहिी है । शफर िह नये-नये रूपों से शनकििी है । उसके बड़े
अजीब-अजीब रूप हैं , शजनकी हमें पहचान भी नहीं है । क्या आपको पिा है
शक शजन िोगों ने स्वगय में शनरं िर युिा रहने िािी अप्सराओं की कल्पना की
है , ये कौन िोग होंगे? ये िे ही िोग होंगे, शजनको हम जमीन पर ब्रह्मचारी की
िरह जानिे हैं । इन्ोंने स्वगय में शनरं िर युिा रहने िािी अप्सराओं की कल्पना
कर िी है । इन्ोंने स्वगय में सारे सुख-भोग और सारी िासनाओं की िृस्ि का
इं िजाम कर शिया है । ये यहां त्याग कर रहे हैं िहां पाने के शिए। और शजस
चीज का त्याग कर रहे हैं , उसी को बड़े रूप में पाने का िहां इं िजाम कर रहे
हैं ।

बहुि है रानी की बाि है ! बहुि आियय की बाि है ! ये कैसे िोग हैं ? ऐसे
धमयग्रंथ हैं शजनमें यह शिखा है शक स्वगय में िराब के चश्मे बहिे हैं , झरने
बहिे हैं । िही धमय ग्रंथ यहां कहिे हैं शक िराब पीना पाप है , िही कहिे हैं शक
जो यहां िराब छोड़े गा उसे ऐसा स्वगय शमिेगा जहां झरने बह रहे हैं िराब
के। और िहां कोई चुल्लुओं से पीने का सिाि नहीं है , िहां िो नहाइए-धोइए
िराब में, कूदीए और पीइए, और जो भी करना हो। बड़ी है रानी की बाि है !
जरूर शजसने जबरदस्ती िराब पर संयम बां ध शिया होगा, उसी के मन में
यह कल्पना उठी होगी, स्वगय में िराब के चश्मे बहाने की। और िो शकसके
मन में उठे गी?

शजन िोगों ने जबरदस्ती स्स्त्रयों से अपने को दू र कर शिया होगा, उन्ीं ने


स्वगय में अप्सराओं के नृत्य कस्ल्पि शकए होंगे। नहीं िो कौन करे गा? करे गा
कौन? यह दशमि, सप्रेसि माइं ि, दमन शकए हुए िोग, इस िरह की
कल्पनाएं करें गे , यह है रानी की बाि नहीं है । और शजन िोगों ने इस िरह का
ब्रह्मचयय साधा है , उन सारे िोगों ने अपने ग्रं थों में, अपने िास्त्रों में स्स्त्रयों के
अंग-अंग का िर्यन भी शकया है । ऐसा रसपूर्य िर्यन शकया है शक है रानी होिी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
है शक ये कैसे िोग हैं ? इनके शदमाग में जरूर कोई रुग्णिा है , कोई खराबी
है ।

स्स्त्रयों को नरक का द्वार कह रहे हैं । िो मैं कई दफे है रान हुआ, मुझे िो ऐसा
िगने िगा शक स्स्त्रयां िो अब िक नरक गई ही नहीं होंगी, क्योंशक पुरुष िो
कोई नरक जाने का द्वार है नहीं, स्स्त्रयां द्वार हैं , िो उनसे पुरुष िो नरक चिे
गए होंगे, िेशकन स्स्त्रयां कहां गई होंगी? स्स्त्रयां िो नरक जा ही नहीं सकिीं,
िे िो द्वार हैं । उनके शिए िो कोई द्वार नहीं है , िे सब स्वगय में होंगी, मोक्ष में
होंगी, पिा नहीं कहां होंगी। अगर स्स्त्रयों ने ग्रं थ शिखे होिे, िो िे शिखिीं,
पुरुष नरक का द्वार है । िेशकन चूंशक पुरुषों ने शिखे हैं , इसशिए स्स्त्रयां नरक
का द्वार है ।

और उन पुरुषों ने शिखे हैं , शजन्ोंने जोर-जबरदस्ती से अपने को स्त्री से रोका


होगा और दू र रखा होगा। नहीं िो शजस व्यस्ि के शचत्त से काम शििीन हो
जाए, सेक्स शििीन हो जाए, उसे िो स्त्री और पुरुष में फकय और फासिा भी
नहीं रह जाना चाशहए।

बुि एक पहाड़ी के शकनारे ध्यान करिे थे । िैिािी से कुछ युिक एक िेश्या


को िेकर िन में शिहार करने को आए होंगे। जब िे खा पी रहे थे और िराब
पी रहे होंगे, िब िह िेश्या मौका पाकर उनके हाथ से शनकि भागी। िे युिक
उसका पीछा करिे हुए खोजने शनकिे। उस जंगि में कोई न शदखा, एक
झाड़ के नीचे बु ि शदखाई पड़े । िो उन्ोंने उन्ें शहिाया और कहा शक
महानुभाि, आं खें खोशिए, क्या कोई स्त्री यहां से जािी हुई शदखाई पड़ी है ?

बुि ने कहा: क्षमा करें ! कोई दस िषय हुए िब से स्स्त्रयां शदखाई पड़नी संभि
नहीं रहीं। उन्ोंने कहा: आप पागि हो गए हैं ! उन्ोंने कहा: मैं सत्य कहिा
हं । शदखाई पड़िे हैं िोग आिे-जािे हुए, िेशकन शजस भां शि पहिे स्स्त्रयां

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पृथक शदखाई पड़िी थीं, िैसा अब शदखाई नहीं पड़िा। िह जो स्त्री के पृथक
होने का बोध था, िह भीिर काम के कारर् था, भीिर सेक्स के कारर् था।

मैं सुनिा था, एक व्यस्ि यूरोप से िापस िौटा। उसकी पत्नी उसे एयरपोटय
पर िेने गई थी। िह नीचे उिरा, िे जो पररचाररकाएं हिाई जहाज पर थीं,
उसमें से एक पररचाररका ने उसे हाथ शमिाया और शिदा दी। उसने अपनी
पत्नी को कहा शक यह पररचाररका बहुि अदभु ि है और बहुि सेिा-कुिि
है । कुछ नाम बिाया शक यह इसका नाम है । उसकी पत्नी ने पूछा, आप
इसका नाम कैसे जान सके? उसने कहा शक पीछे अंदर िख्ती िगी हुई है ,
शजसमें सभी पररचाररकाओं, चािकों, सबके नाम शिखे हुए हैं । और उसने
कहा: कृपा करके बिाइए, चािक का नाम क्या है ? िह पशि जरा मुस्िि में
पड़ गया।

जब एक पुरुष शकसी िख्ती को पढ़िा है , िो शसफय स्स्त्रयों के नाम उसे खयाि


रह जािे हैं , पुरुषों के नाम खयाि नहीं रह जािे। शजन पशत्रकाओं पर शिखा
रहिा है , ओनिी फॉर मैन, उनको शसफय स्स्त्रयां पढ़िी हैं । शजन पर शिखा
रहिा है , शसफय पुरुषों के शिए, उनको शसफय स्स्त्रयां पढ़िी हैं । शजन पशत्रकाओं
पर शिखा रहिा है , शसफय स्स्त्रयों के शिए, उनको स्स्त्रयां नहीं पढ़िीं, शसफय
पुरुष पढ़िे हैं । यह बहुि स्वाभाशिक है । यह आियय जनक नहीं है । हमारे
शचत्त में जो, जो शिरोधी सेक्स के प्रशि आकषयर् है , िह शनरं िर काम करिा है ,
उसी से हमें चीजें अिग शदखाई पड़िी हैं ।

बुि ने कहा: क्षमा करें ! इधर दस िषों से जब िक शक मैं कोशिि करके ही


पहचानने का खयाि न करू
ं , िब िक स्त्री और पुरुष को अिग-अिग दे ख
पाना अचानक नहीं हो जािा है । कोई शनकिा िो जरूर है यहां से, िेशकन
स्त्री थी या पुरुष यह कहना कशठन है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शजन िोगों के शचत्त से काम और से क्स शिसशजयि हो जाएगा, उनके मन में
स्स्त्रयों के प्रशि गाशियां नहीं हो सकिी हैं । अगर िे स्स्त्रयां हैं , िो उनके मन में
पुरुषों के प्रशि शनंदा का, कंिे मनेिन का भाि नहीं हो सकिा। अगर यह
भाि मौजूद है , िो जानना चाशहए, भीिर काम मौजूद है , ऊपर से ब्रह्मचयय को
थोप शिया गया, अभ्यास कर शिया गया। अभ्यास बड़ी खिरनाक बाि है ,
खिरनाक इसशिए शक भीिर कोई क्रां शि नहीं होिी और ऊपर से हम
शबिकुि बदिे हुए शदखाई पड़ने िगिे हैं ।

मैं एक जगह था, एक बड़ी साध्वी से बािें करिा था। बड़ी इसशिए शक उनके
बहुि अनुयायी हैं । और िो बड़े -छोटे का कोई पिा चििा नहीं दु शनया में,
शजसके शजिने अनुयायी होिे हैं , िह उिना बड़ा हो जािा है ।

जैसे शजसके पास शजिने ज्यादा रुपये होिे हैं , उिना बड़ा आदमी हो जािा
है । शजस साधु के पास शजिनी भीड़ होिी है , उिना बड़ा साधु हो जािा है । िो
िे बड़ी साध्वी हैं , बहुि भीड़-भाड़ उनके आस-पास है । और भीड़-भाड़ दे ख
कर भीड़-भाड़ बढ़िी जािी है । जैसे रुपये रुपये को खींचिे हैं , िैसे भीड़ भीड़
को खींचिी हैं ।

िकय होिा है चीजों का अपना। आपके पास बहुि रुपये हैं , रुपये अपने आप
चिे आिे हैं । आपके पास बहुि भीड़ है , और भीड़ चिी आिी है । क्योंशक
भीड़ सोचिी है शक इिनी भीड़ है , िो आदमी जरूर बड़ा होगा। िकय हमारे
मन का ऐसा काम करिा है । िो बड़ी भीड़ उनके पास है । उन्ोंने मुझे भी
कहा शक मुझसे शमिना चाहिी हैं । शमिना हुआ। जैसे अभी यहां हिाएं चि
रही हैं , ऐसी खूब िेज हिाएं थीं समुि के शकनारे , जहां मैं उनसे शमिा। िो
मेरा चादर उड़ कर उनको छूिा था, मेरा चादर छूिा था, िो उनको ऐसा
धक्का िगिा था, जैसे शबजिी का िॉक िग जाए।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िे आत्मा-परमात्मा की मुझसे बाि कर रही थीं और कह रही थीं, हम िो
िरीर नहीं हैं हम िो परमात्मा हैं , आत्मा हैं , ब्रह्म हैं , फिां -शढकां हैं । और मे रा
चादर उनको छूिा था हिा में, िो उनके प्रार् कंप जािे थे । िर के मारे िे हट
भी नहीं सकिी थीं, क्योंशक मैं पूछूंगा शक आप हटी क्यों? मुझसे कह भी नहीं
सकिी थीं शक आपका चादर छू रहा है , िो बड़ा पाप हो रहा है ।

मगर उनके एक शिष्य ने मेरे कान में कहा शक क्षमा कररए! िायद आपको
पिा नहीं है , पुरुष का चादर साध्वी नहीं छू सकिी है ।

िो मैंने उनसे पूछा, आप भी सहमि हैं , ये जो मेरे कान में कह रहे हैं ?

हां , उन्ोंने कहा शक यह िो पुरुष का चादर हमें नहीं छूना चाशहए, िशजयि है ।

िो मैंने कहा: मैं बहुि है रान हं ! मेरे ओढ़ने से चादर भी पुरुष हो गया, आपके
ओढ़ने से स्त्री हो जािा है , चादर भी? और बािें आप कर रही हैं आत्मा-
परमात्मा की? बािें आप कर रही हैं शक हम िरीर नहीं हैं , िरीर िो शमट्टी है ?
चादर भी शमट्टी नहीं है आपको, चादर भी पुरुष है और िरीर को शमट्टी होने
की बाि कर रही हैं ? िो मैंने उनको कहा शक यह चादर इसशिए पुरुष हो
गया, भीिर जो दबा हुआ काम है , भीिर जो सेक्सुअशिटी है दबी हुई, िह
सेक्सुअशिटी इस चादर के छूने से भी चौंकिी है , जगिी है , िबड़ाहट पै दा
करिी है ।

यह जो हमारा शचत्त है , शजिनी चीजों को दबा िेिा है और अभ्यास कर िेिा


है , उिनी कशठनाई में पड़ जािा है ।

िो मैं आपसे शनिे दन करू


ं गा, अभ्यास के शिए मेरा आग्रह नहीं है । मे रा
आग्रह बहुि सहज जीिन पररिियन के शिए है । कोशिि करके िाए हुए
पररिियन का कोई भी मूल्य नहीं है । मूल्य है उस पररिियन का जो ज्ञान से

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आिा है । मूल्य है उस पररिियन का जो भीिर से आिा है और शिकशसि होिा
है । मूल्य है उस पररिियन का जो अनायास और सहज आपके जीिन को िेर
िेिा है , आिोक से मंशिि कर दे िा है । उस पररिियन का कोई भी मूल्य नहीं
है , शजसको खींच-खींच कर, व्यिथथा कर-कर के आप अपने चारों िरफ
खड़ा कर िेिे हैं ।

आपके द्वारा िाया गया पररिियन कोई भी अथय नहीं रखिा। उस पररिियन का
अथय है जो आपके अभ्यास से नहीं आिा, बस्ल्क आपके ज्ञान की छाया की
भां शि शिकशसि होिा है ।

िो मैं आपको कहं , शििेक ही पररिियन है , ज्ञान ही पररिियन है । और ज्ञान


कोई अभ्यास नहीं है । ज्ञान कोई अभ्यास नहीं है , ज्ञान है सिि जागरर्, ज्ञान
है चेिना का िां ि होना और शिकशसि होना।

उसकी मैं कि बाि करू


ं गा शक शििेक कैसे जाग्रि हो और ज्ञान कैसे फशिि
हो। अभी िो इिना कहं गा, इस प्रश्न के संबंध में और शक ऐसे अभ्यास से
आया हुआ िैराग्य, चाहे कोई भी िास्त्र उसका समथय न करिे हों और चाहे
कोई भी धमय-ग्रंथ उसके पक्ष में खड़े हों, उनसे मुझे प्रयोजन नहीं है । जो मु झे
शदखाई पड़िा है , िह मैं आपसे कह रहा हं । और उसे स्पष्ट, शनष्पक्ष भाि से
आप सोचेंगे, यह भी आिा करिा हं ।

अभ्यास से आया हुआ िैराग्य झूठा है , जो िैराग्य सहज जीिन के जीने से


शिकशसि होिा है , िही सच्चा है । िैसे िैराग्य में न िो कुछ छोड़ना है , न शकसी
से भागना है , चीजें अपने आप छूटिी हैं और बदिाहट होिी चिी जािी है ।
जैसे सूखे पत्ते िृक्ष से शगर जािे हैं , न िृक्ष को पिा चििा, न पत्तों को, िैसे ही
शजसके जीिन में ज्ञान की पररपक्विा आिी है , उसके जीिन में कुछ चीजें
छूटिी चिी जािी हैं और बदििी चिी जािी हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 111


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
एक छोटी सी कहानी कहं , उससे मेरी बाि समझ में आ सके।

एक िकड़हारा और उसकी पत्नी जंगि से िापस िौटिे थे । िह िकड़हारा


साधारर्जन नहीं था। अभ्यासी था और बहुि अथों में उसने िैराग्य को साधा
था। उसने सब िरह के धन-संपशत्त से शिराग िे शिया था। िर की सब संपशत्त
बां ट दी थी, अशकंचन हो गया था। िर में एक पैसा भी नहीं रखिा था। रोज
सुबह िकशड़यां काट िेिा, बेच दे िा, जो बचिा खा-पी िेिा और जो बच
जािा सां झ को सूरज िूबने के पहिे उसको बां ट दे िा। राि िह परम दररि
होकर सो जािा। सुबह शफर िकशड़यां काटनी, शफर बां ट िेना, शफर सो
जाना। िेशकन कुछ शदन पानी शगरा था और पां च-साि शदन िह िकशड़यां
नहीं काट सका था।

िो पां च-साि शदन भू खे ही गु जारने पड़े थे , उसकी पत्नी और उसको, दोनों


को। आज पां च-साि शदन के बाद िह िकशड़यां काट कर जंगि से िापस हो
रहा था। आगे खुद था, पीछे पत्नी थी, पां च शदन का भू खा, थका, बूढ़ा आदमी,
शसर पर िकशड़यों का बोझ, िेशकन बगि में उसने दे खा शक शकसी राहगीर,
शकसी िोड़े के सिार की, बगि में िोड़े के टापों के शनिान हैं और पास में ही
एक बड़ी थै िी पड़ी है । कुछ मोहरें बाहर पड़ी हैं सोने की, कुछ थै िी के
भीिर हैं , थै िी खुि गई है । उसके मन को हुआ शक मैंने िो शनरं िर अभ्यास से
अनासस्ि को साध शिया, धन के प्रशि मेरी कोई आसस्ि नहीं है , िेशकन
मेरी पत्नी का मन िोि सकिा है , िह उसका इिना अभ्यास नहीं है , उसका
इिना िैराग्य नहीं है , स्त्री ही ठहरी।

पुरुष के मन में सदा ऐसा िगिा है शक स्त्री को भी कहीं िैराग्य हो सकिा है ?


आपको पिा है , मुस्िि से कोई धमय हो जो स्त्री को स्वगय जाने का हक दे िा
हो। कोई धमय नहीं दे िा। धमय कहिे हैं शक स्त्री जब िक पुरुष की पयाय य में
नहीं आएगी, िब िक मोक्ष उसका हो ही नहीं सकिा। मुझे जगह-जगह
ओिो पृष्ठ संख्या 112
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
स्स्त्रयां पूछिी हैं शक हम पुरुष के पयाय य में कैसे आएं , इसका रास्ता बिाइए?
क्योंशक जब िक पुरुष न हो जाएं िे अगिे शकसी जन्म में, िब िक मोक्ष नहीं
जा सकिीं।

यह िो शफर भी बड़ी दया है , चीन जैसे मुल्क में िो स्त्री के भीिर आत्मा भी
नहीं मानी जािी रही। स्त्री की हत्या कर दे िे, आज से िीस साि पहिे िक
चीन में मुकदमा नहीं चि सकिा था। क्योंशक स्त्री में कोई आत्मा ही नहीं है ,
स्त्री िो संपदा है पु रुष की। ऐसे िो हम भी कहिे हैं , स्त्री-संपशत्त। मूढ़िा िो
हमारी भी िही है । स्त्री को हम भी संपशत्त ही मानिे हैं । अभी भी हमारे में िही
भाि है , माशिक हैं हम।

इसशिए पुरुष के नाम से स्त्री जानी जािी है , स्त्री के नाम से पुरुष नहीं जाना
जािा। हमारी पकड़ ऐसी रही है । िो उसने सोचा, स्त्री है , इसकी बुस्ि में
कहां आ सकिा है िैराग्य िगै रह, अभ्यास भी इसका गहरा नहीं है । कहीं
इसका मन न िोि जाए। उसने उस थै िी को बगि के गङ् ढे में सरका कर
शमट्टी से ढं क शदया। िेशकन िह ढं क भी नहीं पाया था शक उसकी स्त्री पीछे
आ गई और उसने पूछा क्या करिे हैं ?

िो उसका यह भी अभ्यास था शक झूठ नहीं बोिना है , सत्य ही बोिना है । िब


बड़ी मुस्िि में पड़ गया, दु शिधा में, अगर झूठ बोिे, िो पाप हो जाए और
सत्य बोिे, िो कहीं स्त्री का मन न िोि जाए। शफर भी मजबूरी में भगिान
का नाम िेिे-िेिे उसने सत्य बोिा और उसने कहा शक ऐसी-ऐसी बाि हुई,
यहां सोने की मुिाएं पड़ी थीं, मेरा िैराग्य िो दृढ़ है , िेरा संशदग्ध है । यह सोच
कर शक भू ख-प्यास में, िबड़ाहट में कहीं िेरा मन न िोि जाए।

मन है चं चि, िोि सकिा है । िो व्यथय ही िेरे मन को पाप िगे , काशिमा िगे ,


इसशिए मैंने इन मोहरों को हटा कर गङ् ढे में िाि कर शमट्टी से ढं क शदया

ओिो पृष्ठ संख्या 113


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
है । उसकी स्त्री बहुि जोर-जोर से हं सने िगी। उसके पशि ने पूछा, इिने जोर
से क्यों हं सिी हो? बाि क्या हो गई इसमें हं सने की?

उसने कहा: बाि िो बड़ी हो गई। मैं िो सोचिी थी शक िुम्हारे मन से सोने का


मोह चिा गया, िेशकन अभी गया नहीं। िुम्हें सोना शदखाई पड़िा है ? िु म्हें
स्वर्य शदखाई पड़िा है ? और मैं दु खी भी मन बहुि हो रही हं , क्योंशक िुम
शमट्टी पर शमट्टी को िाि रहे हो और सोच रहे हो शक बड़ा काम कर रहे हो।

इस स्त्री का कोई अभ्यास नहीं था, इस स्त्री को कुछ शदखाई पड़ा था। सोने
का शमट्टी होना शदखाई पड़ा था, बाि खत्म हो गई थी, अभ्यास का कोई
सिाि न था। पशि को शदखाई िो सोना ही पड़िा था, अभ्यास कर-कर के शक
सब सोना बेकार है , काशमनी-कां चन सब व्यथय है , ऐसा दोहरा-दोहरा कर,
मन को समझा-समझा कर, बां ध-बां ध कर, संयम कर-कर के उन्ोंने शकसी
भां शि सोने से अपने को दू र रख शिया था। सोना िो खूब शदखाई पड़े गा ऐसी
स्थथशि में, आमिौर से और ज्यादा शदखाई पड़े गा। आमिौर से ज्यादा शदखाई
पड़े गा।

शजसने इस िरह अपने को दू र-दू र बां धा है सोने से, सोना उसे पागि करने
िगे गा, सोने के प्रशि उसका आकषयर् बहुि िीव्र हो जाएगा, िनीभूि हो
जाएगा। िह जहां भी दे खेगा, िहीं उसे सोना शदखाई पड़े गा। जरा सा भी
सोना होगा, उसके प्रार् िां िािोि होने िगें गे, क्योंशक उसने बां धा है ,
जबरदस्ती रोका है । जबरदस्ती से रोकने से रुग्ण चाह पैदा होिी है ,
अनासस्ि नहीं। रुग्ण चाह आसस्ि से भी ज्यादा िािक है ।

िेशकन चीजें शदखाई पड़ें , अनुभि में आएं , िो शफर एक पररिियन होिा है , जो
शबना अभ्यास के होिा है । मैं नहीं कहिा हं शक कोई अभ्यास करें , मैं कहिा
हं , शििेक को जगाएं , मन को िां शि की िरफ िे जाएं और दे खें चीजों को,

ओिो पृष्ठ संख्या 114


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जीिन को, आपको खुद शदखाई पड़ने िगे गा शक जीिन एक सपने की भां शि
है । कोई इसका अभ्यास नहीं करना पड़े गा। और ऐसा बैठ कर रोज दोहराना
नहीं पड़े गा शक जगि शमथ्या है और ब्रह्म सत्य है ।

ऐसा दोहराना नहीं पड़े गा। ऐसा िर में रोज-रोज अभ्यास नहीं करना पड़े गा
शक जगि िो शमथ्या है और ब्रह्म सत्य है । जो ऐसा दोहरा-दोहरा कर याद
करिा हो शक जगि शमथ्या और ब्रह्म सत्य, उसको शदखाई नहीं पड़ रहा है ,
नहीं िो दोहरािा क्यों? दोहरािा िही है शजसे शदखाई नहीं पड़िा। शजसे
शदखाई पड़ रहा, िह क्यों दोहराएगा? शदखाई पड़ना पयाय ि है और उससे
क्रां शि हो जािी है ।

िो मैं चाहं गा शक दे खना िुरू करें , अभ्यास नहीं। िेशकन हजारों साि की
शिक्षाएं हैं िीक से बंधी हुईं और िे हमसे कहिी हैं , अभ्यास करो, नहीं िो
िैराग्य पैदा ही नहीं होगा; राग में पड़े रहोगे िो कैसे िैराग्य पै दा होगा।
इसशिए शिराग का अभ्यास करो, राग से हटो, शिराग का अभ्यास करो।

मैं कहिा हं , नहीं। राग से अगर भागे और िैराग्य पैदा शकया, उस िैराग्य के
भीिर भी राग मौजूद रहे गा, िह कहीं जा नहीं सकिा है । शफर मैं आपसे क्या
कहिा हं ? मैं कहिा हं , जहां आप हो, िहीं आं खें खोि कर जीओ। राग में भी
आं ख खोि कर जीओ। आं खें खोि कर जीने से अगर राग व्यथय है िो शदखाई
पड़ने िगे गा, िैराग्य िाना नहीं पड़े गा। राग की व्यथय िा शदखाई पड़ी शक राग
झड़ने िगे गा, जैसे पके पत्ते शगरने िगिे हैं ।

और जहां हो आप, िहीं एक शदन आप पाओगे , िैराग्य आ गया है । िैराग्य


आिा है , िाया नहीं जािा, िह कस्ििेट नहीं शकया जािा। संन्यास आिा है ,
िाया नहीं जा सकिा। और आिा कैसे है ? जहां दे खने की दृशष्ट शनमयि हो
जािी है , िहां अपने आप चिा आिा है । जैसे बैिगाड़ी चििी है , िो पीछे

ओिो पृष्ठ संख्या 115


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
चक्के के शनिान बन जािे हैं , िैसे ही जहां भी ज्ञान जीिन में जगिा है , िहीं
अपने आप पीछे िै राग्य के शनिान बनिे चिे आिे हैं । िैराग्य ज्ञान की छाया
है , अभ्यास का फि नहीं। और जीिन में जो भी महत्वपूर्य है , िह ज्ञान से
फशिि होिा है , अभ्यास से फशिि नहीं होिा।

अभ्यास से कोई एस्क्टं ग कर सकिा है , अशभनेिा बन सकिा है , पाखंि पैदा


कर सकिा है । िेशकन िस्तुिः जीिन-क्रां शि उससे न कभी पैदा हुई है और न
हो सकिी है । िो इस संबंध यह मुझे शनिेदन करना है ।

इस संबंध में और भी कुछ बािें िायद होंगी, िो िह आप पूछेंगे , िो इन दो


शदनों में उनकी भी चचाय हो सकेगी।

और भी कुछ प्रश्न हैं थोड़े से। एकाध-दो प्रश्न की और मैं बाि करू
ं गा, शफर
हम ध्यान के शिए बैठेंगे । जो प्रश्न बच जाएं गे , उनकी मैं कि बाि करू
ं गा।

पूछा है : हम ऐसा क्ोां मानते हैं शक परमात्मा की प्राप्ति ही मानि-


जीिन का ध्येय है। क्ा यह नही ां हो सकता शक मानि-जीिन का कोई
ध्येय न हो? प्रयोजन ही न हो?
इन दोनों बािों में शजसने पूछा है उसे शिरोध शदखाई पड़िा होगा। उसने पूछा
है शक क्या मानि-जीिन का ध्येय परमात्मा को पाना है ? या शक मानि-जीिन
का कोई ध्येय ही नहीं?

उसे शदखाई पड़िा होगा शक इन दोनों में शिरोध है । मैं आपसे कहं , इन दोनों
में शिरोध नहीं है । परमात्मा को पा िेने पर ही ज्ञाि होिा है शक जीिन का कोई
ध्येय नहीं, उसके पहिे िो ज्ञाि हो ही नहीं सकिा। ऐसी शचत्त की स्थथशि को
पा िेना जहां कोई ध्येय न हो, कोई ध्येय िेष न रह जाए, िही िो परम ध्येय
है । जीिन की ऐसी स्थथशि को पा िेना, जहां शफर कोई और ध्येय न रह जाए,

ओिो पृष्ठ संख्या 116


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यही िो परम ध्येय है । परमात्मा को पाने का और कोई अथय ही नहीं है । और
कोई अथय नहीं है ।

आमिौर से हम जीिन में कुछ न कुछ पाने को ध्येय मानिे हैं --कोई धन पाने
को, कोई यि पाने को, कोई कुछ और, कोई कुछ और। िेशकन शकिना ही
धन पाएं , शफर भी ध्येय आगे िेष रह जािा है , समाि नहीं होिा, और धन
चाशहए। शकिना ही यि पाएं , शफर भी ध्येय िेष रह जािा, और यि चाशहए।
कुछ भी पािे जाएं , ध्येय आगे शफर बच रहिा है । इसशिए ये कोई भी ध्येय
अंशिम ध्येय नहीं हो सकिे हैं , क्योंशक इनके बाद ध्येय समाि नहीं होिा,
शफर बच रहिा है ।

शसकंदर शहं दुस्तान की िरफ आया था, उसे खयाि था सारी दु शनया जीि िेनी
है ।

रास्ते में, सुबह शजस िायोजनीज की मैंने बाि की, उससे उसका शमिना
हुआ, िो िायोजनीज ने उससे पूछा, शक अगर िुम सारी दु शनया जीि िोगे ,
िो शफर क्या करोगे ? उसने कहा: यह प्रश्न िो मेरे खयाि में नहीं आया। िुम
पूछिे हो, िो मैं बहुि िर गया, क्योंशक सच में ही शफर इसके आगे िो कुछ
बचिा नहीं, दू सरी दु शनया भी नहीं शजसको मैं जीिूं। अगर मैंने पूरी दु शनया
जीि िी, िो मैं बड़ी मुस्िि में पड़ जाऊंगा।

शफर मैं क्या करू


ं गा? यह िो मैंने सोचा नहीं। क्योंशक और आगे कोई दू सरी
दु शनया नहीं, शजसको मैं शफर जीिने जाऊं। शफर भी िायोजनीज ने कहा शक
शफर क्या करोगे आस्खर? कुछ िो सोचो? उसने कहा शक शफर मैं शिश्राम
करू
ं गा। शफर मैं जीिना छोड़ दू ं गा। शफर मैं परम िां शि से शिश्राम करू
ं गा।

िायोजनीज खूब हं सने िगा और उसने कहा: शफर िुम पागि हो! अगर
शिश्राम ही करना है , िो मैं शिश्राम कर ही रहा हं । इिनी दौड़-धूप क्यों करिे
ओिो पृष्ठ संख्या 117
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हो? आओ और मे रे पास िेट जाओ; इस छोटे से जगह में, झोपड़े में, दो के
िायक काफी जगह है । अगर शिश्राम ही करना है अं ि में, और सब खोज
और सब जीि छोड़ दे नी है , िो इिनी दौड़-धूप क्यों? आ जाओ और अभी
िुरू कर दो, इिना समय क्यों खोिे हो? शसकंदर ने कहा: बाि िो िुम बड़ी
ठीक कहिे हो। िेशकन बड़ा मुस्िि है , मैं िो आधी यात्रा पर शनकि चुका।
आधे से िौटना िो ठीक नहीं।

िह िायोजनीज ने कहा: िुम शबिकुि पागि हो! अब िक दु शनया में पूरी


यात्रा िो शकसी ने की ही नहीं, सभी आधे पर ही िौट जाना पड़िा है । क्योंशक
जो जहां िक पहुं च जािा है , यात्रा उसके आगे भी बहुि िेष रह जािी है ।

िो दो िरह के ध्ये य हैं जीिन में। एक, जो कभी पूरे नहीं होिे, क्योंशक उनको
पूरा भी कर िो, िो नये ध्ये य पैदा हो जािे हैं । और एक ऐसा ध्येय भी है जीिन
में, जो पूरा हो जाए, िो सभी ध्येय समाि हो जािे हैं , उसके आगे शफर करने
को कुछ िेष नहीं रह जािा। उस ध्ये य का नाम ही िो परमात्मा है । परमात्मा
से कोई मििब थोड़े ही शक धनुषबार् शिए हुए रामचंिजी खड़े हैं , िो
परमात्मा है । शक मुरिी बजािे कृष्ण खड़े हैं , िो परमात्मा है । शक सूिी पर
िटके क्राइस्ट खड़े हैं , िो परमात्मा है ।

नहीं; परमात्मा का अथय है : जीिन में ऐसी परम शिश्रां शि की अिथथा को पा


िेना, शजसके बाद पाने को शफर कुछ िेष न रह जाए। परमात्मा जीिन की
ऐसी आनंद अनुभूशि है शजसके बाद शफर पाने की कोई आकां क्षा िेष नहीं
रह जािी है ।

िो िे पूछिे हैं शक यह भी िो हो सकिा है शक जीिन का कोई ध्येय न हो।

यह सच है , िस्तुिः जीिन का कोई ध्येय नहीं है । और जब िक हम ध्येय के


पीछे दौड़िे हैं िभी िक हम जीिन से िंशचि रहिे हैं , जीिन को नहीं उपिब्ध
ओिो पृष्ठ संख्या 118
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कर पािे हैं । िेशकन इस भां शि भी जीिन जीया जा सकिा है शक उसमें शफर
कोई ध्येय, कोई आकां क्षा और कोई िासना और कोई शिजायर और कोई
एं बीिन न रह जाए, इस भां शि भी जीिन जीया जा सकिा है । उस िरह के
जीिन को जीने का ढं ग ही परमात्मा का मागय है , और उस िरह की स्थथशि
को पा िेना ही परमात्मा को पा िेना है । िो इन दोनों बािों में शिरोध नहीं है ।
जो पूछा है , पूछने िािे को खयाि होगा, शिरोध है । इन दोनों बािों में शिरोध
नहीं, ये दोनों बािें एक ही हैं ।

जब भी कोई व्यस्ि इिना िां ि हो जाएगा शक उसके जीिन में कोई कामना
और िासना नहीं रह जािी, शफर िह जीिा है ऐसे ही जैसे हिाएं बहिी हैं ,
जीिा है ऐसे ही जै से नशदयां बहिी हैं , जीिा है ऐसे ही जै से िृक्षों में फूि स्खििे
हैं , जीिा है ऐसे ही जैसे आकाि में बादि िूमिे हैं । शजस शदन मनुष्य ऐसा
जीने िगिा है शक उसके जीिन में कोई कामना और िासना के सूत्र नहीं रह
जािे खींचने िािे।

आनंद में और िां शि में, दो िरह के जीिन के जीने के ढं ग हैं । एक जीिन का


ढं ग है , शजसमें िासना आगे से खींचिी है , िो हम चििे हैं । जैसे कोई आदमी
शकसी को बां ध कर खींच रहा हो, िैसे ही िासना हमें खींचिी है । हम सब
इसी िरह चििे हैं । कोई हमें खींच रहा है आगे से। कोई कामना खींच रही
है --शकसी को शमशनस्टर बनना है , िो शकसी को गिनयर बनना है , या शकसी को
राष्टरपशि बनना है , िो खींच रही है एक िासना उसे। आगे से कोई कामना
खींचे जा रही है , िह बंधे हुए बै ि की िरह खींचा जा रहा है उसकी िरफ।
एक िो इस िरह का जीिन है , िासना से खींचा गया जीिन। एक इस िरह
का जीिन है , िासना से खींचा गया नहीं, आनंद से झरा हुआ जीिन।

एक छोटी िटना कहं , उससे भे द समझ में आए।

ओिो पृष्ठ संख्या 119


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िानसेन का नाम िो सुना ही है । अकबर बहुि, बहुि प्रभाशिि था िानसेन से।
उसके संगीि से, उसकी किा से। अदभु ि थी उसकी क्षमिा और प्रशिभा।
एक शदन अकबर ने िानसेन को पू छा शक शमत्र, बहुि बार एक प्रश्न मन में
उठिा है , िेशकन पूछिा नहीं, संकोच से रह जािा हं , िेशकन आज पूछूंगा,
कोई है भी नहीं, िुम अकेिे हो।

और राि शकसी राग को सुना कर िानसेन िापस िौटिा था, सीशढ़यों पर


अकबर ने उसे रोक शिया और कहा: यह पूछना है , कल्पना में भी यह बाि
नहीं बैठिी शक िुमसे बेहिर भी कोई बजा सकिा होगा या गा सकिा होगा?
िेशकन यह बाि मन में खयाि में आिी है , िुम्हारा कोई गु रु भी होगा? शकसी
से िुमने सीखा भी होगा? िो िायद िह िुमसे बे हिर बजािा हो? िायद?
िुम्हारे गु रु जीशिि हैं ? अगर जीशिि हों, िो मैं उनको भी दे खना और सु नना
चाहं ।

िानसेन ने कहा: गु रु िो जीशिि हैं , िेशकन सुनना उन्ें बहुि कशठन है ।


क्योंशक िे शकसी कारर् से बजािे और गािे नहीं, अकारर् गािे और बजािे
हैं । उनसे कोई कहे शक गाओ और बजाओ, िो िे हं सने िगिे हैं । िे कहिे हैं ,
मैं जानिा ही कहां । कोई प्रिोभन उन्ें बजाने को राजी नहीं कर सकिा। िो
शकसी के कहने से िे कभी गािे-बजािे नहीं; कभी मौज में होिे हैं , िो नाचिे
हैं , गािे हैं , बजािे हैं । अकारर् है उनका बजाना; शबना शकसी ध्येय के और
शबना शकसी िक्ष्य के, िो उन्ें िो सुनना बहुि दू भर, बहुि मुस्िि बाि है ।
कभी राि िीन बजे बजािे हैं , कभी दो बजे, आप कहां सुनने जाएं गे ? कैसे
सुनने जाएं गे ?

अकबर ने कहा: िेशकन कुछ भी हो, मैं सुनना चाहं गा। िुम्हारी बाि सुन कर
िो सुनने का मोह और भी िीव्र हो गया।

ओिो पृष्ठ संख्या 120


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िानसेन ने पिा िगाया, ज्ञाि हुआ शक उन शदनों िे कोई िीन बजे सुबह उठ
कर--यमुना के शकनारे रहिे थे , हररदास नाम के एक साधु थे --िे कोई िीन
बजे सु बह कुछ गािे हैं , कुछ बजािे हैं । राि दो बजे से िानसेन और अकबर
झोपड़े के बाहर शछप कर बैठ गए। कभी शकसी बादिाह ने चोरी से शकसी
का संगीि सुना नहीं होगा, इसके पहिे और न इसके बाद। कोई िीन बजे
हररदास ने गीि गाना िुरू शकया, अपने िंबूरे पर धु न शनकािनी िुरू की। िे
गािे रहे और इधर अकबर रोिा रहा।

शफर गीि बंद हुआ, िो भी अकबर बैठा रहा। िानसे न ने शहिाया और कहा
शक गीि बंद हो गया, अब हम िौट चिें, और कहीं पकड़ न शिए जाएं इस
चोरी करिे हुए? अकबर चौंका, जैसे शकसी ने नींद िोड़ दी हो, उसने अपने
आं ख के आं सू पोंछे और िानसेन के साथ िापस िौटा। रास्ते भर चुप रहा,
बोिा नहीं, महि में प्रिेि करिे िि उसने िानसेन से कहा: मैं सोचिा था,
िुम्हारा कोई मुकाबिा नहीं, अब मैं सोचिा हं , गु रु के सामने िो िुम कुछ भी
नहीं हो। इिना फकय क्यों है ? इिना भे द क्यों है ?

िानसेन ने कहा: बाि बहुि साफ है । मैं इसशिए बजािा हं शक कुछ शमिेगा
बजाने से, कुछ पा िूंगा बजाने से। मैं बजािा हं , क्योंशक कोई कामना है जो
पूरी होगी। बजाना मेरे सामने पररपू र्य कृत्य नहीं है , टोटि एक्ट, पररपूर्य
कृत्य नहीं है , बजाना है मेरे सामने साधन, पाना है कुछ और। पाने पर नजर
शटकी रहिी है , बजािा हं , बजाना एक काम हो जािा है । नजर शटकी रहिी है
पाने पर, इसशिए बजाने में िह सौंदयय और आनंद नहीं हो सकिा।

मेरे गु रु बजािे हैं , इसशिए नहीं शक उन्ें कुछ पाना है , बस्ल्क इसशिए शक
उन्ोंने कुछ पा शिया है । इस फकय को मैं शफर से दोहरािा हं : मेरे गु रु बजािे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हैं , इसशिए नहीं शक उन्ें कुछ पाना है , बस्ल्क इसशिए शक उन्ोंने कुछ पा
शिया है । और जो पा शिया है , िह बंटना चाहिा है , फैिना चाहिा है ।

िह जो आनंद उन्ें उपिब्ध हुआ है , िह शबखरना चाहिा है और बंट जाना


चाहिा है , और हिाओं पर सिारी करना चाहिा है , और दू र-दू र शछटक
जाना चाहिा है । आनंद पहिे है , संगीि उससे शनकि रहा है । मेरी िरफ
संगीि पहिे है , आनंद उससे शनकिेगा।

दो िरह के िोग हैं । िासनाओं से खींचे जािे हुए िोग, उनका जीिन शकसी
िक्ष्य, शकसी इच्छा, शकसी महत्वाकां क्षा से प्रेररि होगा। ऐसे जीिन में न िां शि
हो सकिी है , न आनंद हो सकिा है । ऐसा जीिन बोझ का जीिन होगा। एक
दू सरी िरह का शचत्त भी है , जो शकसी बहुि गहरे आनं द को उपिब्ध हुआ है ।
अब भी जीिा है , अब भी श्वास िेिा है , चििा है , उठिा है , बैठिा है , िेशकन
अब उसके सारे कृत्य उस आनंद को बां टने का कृत्य हो जािे हैं , अब उसे
कुछ पाना नहीं है , अब िो कुछ उससे बंटना है और शबखर जाना है ।

ऐसा जीिन परमात्मा को उपिब्ध जीिन है । ऐसे जीिन में कोई िक्ष्य नहीं है
अब, िस्तुिः जीिन में कोई िक्ष्य नहीं है । िेशकन जब िक जीिन में बहुि
िक्ष्य हैं , यह िक्ष्य है धन का, िह िक्ष्य है यि का, िह िक्ष्य है पद का, जब
िक बहुि िक्ष्य हैं , िब िक इन सारे िक्ष्यों से जीिन पीशड़ि और दु खी होगा।
जब हम कहिे हैं , परमात्मा को पाना है , िो ऐसा मि समझ िेना शक
परमात्मा को पाना भी एक िक्ष्य है ।

नहीं, परमात्मा को पाने का यह अथय है शक सारे िक्ष्यों से मुि हो जाना। इस


बाि को समझ िें, परमात्मा को पाना कोई िक्ष्य नहीं है । जैसे धन को पाना
एक िक्ष्य है और यि को पाना एक िक्ष्य है , ऐसा परमात्मा को पाना एक

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िक्ष्य नहीं है । िेशकन िथाकशथि साधु और संन्यासी परमात्मा को इसी िरह
का िक्ष्य बनाए हुए हैं ।

िह सोचिा है , परमात्मा को पाना है । िेशकन जो शचत्त पाने की इच्छा से भरा


है , िह शचत्त कभी परमात्मा को पा नहीं सकेगा। परमात्मा को पािा िो िह
शचत्त है शजसकी पाने की सारी इच्छा शिसशजयि हो गई है । जो न पाने की स्थथशि
में राजी हो गया और िृि हो गया, िह उसी क्षर् परमात्मा को पा िेिा है ।

िह कि राि मैंने जो कहानी कही थी, उसे आप स्मरर् करना। पाने की


इच्छा से भरा हुआ शचत्त कभी नहीं पा सकिा। िेशकन शजसकी पाने की कोई
कामना नहीं रह गई, िह पा िेिा है । परमात्मा को पाना यह केिि िास्ब्दक
भू ि है , परमात्मा कोई िासना नहीं है हमारी शक हम उसे पा िें। हां , परमात्मा
को पा शिया जािा है , उस समय जब शचत्त शनिाय सना में, शिजायरिेसनेस में
मौजूद हो जािा है । कैसे शचत्त शनिाय सना में, न कुछ पाने की स्थथशि में आ
सकिा है ?

शजसको मैं ध्यान कह रहा हं , उसी शिशध से, उसी ध्यान के बोध से शनरं िर
शचत्त की िासना क्षीर् होिी चिी जािी है और एक िड़ी आिी है शक आपको
िगिा है कुछ भी पाने को नहीं है । न कुछ पाने की प्रेरर्ा है , न कुछ पाने की
कामना है , शचत्त िां ि है , मौन है । कुछ भी पाने की कोई पीड़ा और कोई
िनाि शचत्त को िे र नहीं रहा है । शजस क्षर् भी, एक क्षर् को भी शचत्त इस
स्थथशि में पहुं चेगा, उसी क्षर् आप पाएं गे परमात्मा का साशन्नध्य उपिब्ध हो
गया। उसी क्षर् आप पाएं गे , मेरे और उसके बीच की सारी दीिाि शगर गई,
मैं िही हो गया। उस शदिा में जाने के शिए शनरं िर, शनरं िर बोध को जगाने
की, शििेक को शिकशसि करने की और ध्यान को गहरा से गहरा िे जाने की
जरूरि है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 123


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और कुछ प्रश्न हैं , उनकी मैं कि आपसे बाि करू
ं गा। अब हम राशत्र के ध्यान
के शिए बैठेंगे । ध्यान में कोई फकय नहीं है ।

सबसे पहिे िो बहुि आराम से बैठ कर िरीर को ढीिा छोड़ दें । उसमें
कोई, कोई िनाि िरीर के शकसी अंग पर न हो, और शबिकुि शफकर न
करें , उसे शबिकुि ढीिा छोड़ दें , कोई अंग िना हुआ न हो। दू सरी बाि,
आं ख को बहुि धीरे से बंद हो जाने दें ; बं द करें नहीं, बं द हो जाने दें । धीरे से
पिक को झपक जाने दें और बड़े हिके मन से बैठें, कोई गं भीरिा नहीं,
कोई बड़ा काम नहीं करने जा रहे हैं । एक मौज में दो, दस क्षर् शबिाने जा रहे
हैं , चुपचाप मौन में । कोई अपेक्षा न रखें शक कोई बड़ी िां शि शमि जाएगी,
कोई बहुि आनंद शमि जाए।

कोई अपेक्षा न रखें। सब अपेक्षा छोड़ दें । शबिकुि हिके हो जाएं , मन से


सारा भार अिग कर िें। और खयाि कर िें, आं ख बंद करने के बाद
मस्स्तष्क पर कोई िनाि न हो, चेहरा खींचा न हो, शबिकुि ढीिा छोड़ दें ।
माथे पर कोई बि न रह जाए, शबिकुि ढीिा छोड़ दें । खयाि करें , जब आप
छोटे -छोटे बच्चे रहे होंगे, िैसे ही हिके-फुिके होकर बैठ जाएं ठीक है !
ढीिा छोड़ दें िरीर को, आं ख बंद हो जाने दें ।

शबिकुि हिके-फुिके हो जाएं , अपने को शबिकुि शमटा दें , आप हैं ही


नहीं। अब सुनें, चारों िरफ आिाजें होंगी, झींगुर बोि रहे हैं , राि का
सन्नाटा बोिेगा, उसे िां शि से सुनें। शबना शकसी प्रशिरोध के। आप साक्षीमात्र
हैं , इस िां ि राशत्र में झींगुर बोििी हुई राशत्र में आप साक्षी मात्र हैं । बस सु न
रहे हैं , कुछ कर नहीं रहे हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 124


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुनिे-सुनिे ही मन मौन होिा जाएगा, सुनिे ही सुनिे मन िां ि होिा जाएगा,
सुनिे ही सुनिे भीिर एक सन्नाटा छाने िगे गा और ऐसा िगे गा बाहर की
सन्नाटे से भरी राि भीिर भी िुस गई, आप उसी में िूब गए। सुनें।

दस शमनट के शिए शबिकुि अपने को छोड़ दें और दे खें, क्या होिा है ?

आपको कुछ भी नहीं करना है , कुछ होिा जाएगा। धीरे -धीरे मन िां ि होिा
जाएगा, मौन होिा जाएगा। शफर िो एक बड़ा िून्य हो जाएगा, आप उसमें
िूब जाएं गे , आपको पिा भी नहीं रहे गा शक आप हैं , बस यह सन्नाटा रह
जाएगा। सुनें, िां ि शबना शकसी िनाि के, शबना शकसी शिरोध के, चारों िरफ
गूं जिी हुई राि को सुनें।

सुनिे-सुनिे ही मन मौन होिा जािा है । मन मौन हो रहा है ...मन िां ि हो रहा


है ...हो जाने दें , शबिकुि छोड़ दें । आप हैं ही नहीं, छोड़ दें , अपने को
शबिकुि छोड़ दें , सारी पकड़ छोड़ दें । मन िां ि हो रहा है ...स्वयं की श्वास
सुनाई पड़ने िगे गी, सब सुनाई पड़ने िगे गा और भीिर ऐसी चुप्पी आिी
जाएगी।

मन मौन होिा जाएगा...मन मौन होिा जाएगा...मन िां ि होिा जाएगा...मन


िां ि हो जाएगा...मन शबिकुि मौन हो जाएगा...छोड़ दें , शबिकुि छोड़ दें ,
शबिकुि छोड़ दें , मन िूबिा जाएगा, मौन होिा जाएगा, छोड़ दें , छोड़ दें ,
शबिकुि छोड़ दें , सारी पकड़ छोड़ दें , होने दें जो होिा है ।

दे खें, मन िां ि हो गया, मन कैसा िां ि हो गया, मन कैसा िां ि हो गया। इसी
िां शि में िूबिे चिे जाएं , इसी िां शि में शमटिे चिे जाएं , इसी िां शि में खो
जाएं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मन िां ि हुआ है , हिाएं रह गईं, राि रह गई, सदय राि रह गई और आप शमट
गए, आप अब नहीं हैं , राि है , हिाएं हैं , आिाजें हैं , आप अब नहीं हैं , मन
शबिकुि िां ि हो गया।

धीरे -धीरे दो-चार गहरी श्वास िें...धीरे -धीरे दो-चार गहरे श्वास िें...श्वास भी
बहुि िां शि िािी हुई मािूम पड़े गी, भीिर िक प्रार् िां ि हो जाएं गे । शफर
धीरे -धीरे आं ख की पिकों...

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-06

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

छठिाां-प्रिचन

शचत्त मुि हो, इस संबंध में कि सु बह हमने बाि की है । िह पहिा चरर् है


स्वयं का शििेक जग सके इस शदिा में। दू सरे चरर् में स्वयं का शििेक कैसे
जाग्रि हो, शकन शिशधयों, शकन मागों से भीिर सोई हुई शििेक की िस्ि जाग
जाए, इस संबंध में हम आज बाि करें गे ।

इसके पहिे शक हम इस संबंध में शिचार करना िु रू करें , एक अत्यंि


प्राथशमक बाि समझ िेनी जरूरी है । और िह यह शक मनुष्य के भीिर
केिि िे ही िस्ियां जाग्रि होिी हैं और सशक्रय, शजन िस्ियों के शिए
जीिन में चुनौिी खड़ी हो जािी है , चैिेंज खड़ा हो जािा है । िे िस्ियां सोई
हुई ही रह जािी हैं , शजनके शिए जीिन में चुनौिी नहीं होिी।

यशद शकसी व्यस्ि को िषों िक आं खों का उपयोग न करना पड़े , िो आं खों


की जागी हुई िस्ि भी सो जाएगी। अगर शकसी व्यस्ि को िषों िक पै रों से
न चिना पड़ें , िो पैर भी पंगु हो जाएं गे । जीिन उन िस्ियों का शनरोध कर
दे िा है , शजन िस्ियों के शिए हम सशक्रय रूप से उपयोग नहीं करिे हैं ।
ठीक इसके शिपरीि, जीिन उन िस्ियों को पैदा भी कर दे िा है , शजनके
शिए चुनौिी उपस्थथि हो जािी है ।

शिज्ञान भी इस शदिा में शजन खोजों को कर पाया है , िे भी इसकी समथय क हैं ।


पिुओं में, प्राशर्यों में, पशक्षयों में या मनुष्यों में, केिि िे ही िस्ियां जाग
गई हैं , और सशक्रय हो गई हैं , शजनके शिए जीिन ने चुनौिी खड़ी कर दी है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जहां चुनौशियों का अभाि है , जहां प्रेरर्ाएं नहीं हैं , िहां िस्ियों के जागने
का कोई कारर् नहीं रह जािा।

िने जंगिों में दरख्त ऊंचे उठ जािे हैं , अफ्रीका के जंगिों में दरख्त
आकाि को छूने की िरफ बढ़ने िगिे हैं । िने जंगि में श्वास िेने की सुशिधा
दरख्तों को नीचे होने पर नहीं शमि सकिी, उनके सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हो
जािा होगा, उनके प्रार् संकट में पड़ जािे होंगे, िो िे शनरं िर ऊपर उठने
की कोशिि करिे हैं , िाशक हिा और रोिनी उन्ें शमि सके। िेशकन जहां
िने जंगि नहीं होिे, िहां दरख्त छोटे रह जािे हैं , िहां दरख्त बड़े नहीं होिे।

मरुथथिों में, ऊंटों ने अपनी गदय नें िं बी कर िीं, इसके शसिाय जीना असंभि
था। शजिना भयंकर मरुथथि हो, और शजस मरुथथि में नीचाइयों पर पशत्तयों
को पाना असंभि हो, िहां के ऊंट उिनी ही िंबी गदय न करने में समथय हो गए
हैं । ज़ीराफ होिा है , उसने भी अपनी गदय न बहुि िंबी कर िी है , क्योंशक शजन
जंगिों में िह होिा है , िहां दरख्त बहुि ऊंचे हैं ।

प्रार्ी-शिज्ञान इस बाि को कहे गा शक हम केिि उन्ीं िस्ियों को शिकशसि


कर पािे हैं शजन्ें शबना शिकशसि शकए जीिन संकट में पड़ जाए।
मनोिैज्ञाशनक कहिे हैं शक मनुष्य के मस्स्तष्क में बहुि से शहस्से शनस्िय पड़े
हुए हैं ।

मस्स्तष्क का बहुि छोटा सा शहस्सा काम कर रहा है , बाकी शहस्से सब बंद


पड़े हुए हैं । िायद उनकी जरूरि नहीं पड़ी है , िायद उनके शिए चुनौिी
खड़ी नहीं हुई, िायद उनके शिए जीिन ने अभी मौका नहीं शदया शक िे जागें
और सशक्रय हो जाएं ।

यह मैं इसशिए कह रहा हं प्राथशमक रूप से शक शििेक की िस्ि भी प्रत्येक


मनुष्य के भीिर उपस्थथि है , िेशकन यशद हम शििे क की िस्ि के शिए

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
चुनौिी उपस्थथि नहीं करें गे , िो िह सोई रह जाएगी, िह जागे गी नहीं। श्रिा
रोक दे िी है , शिश्वास रोक दे िा है , क्योंशक शिश्वास कर िेने पर शििेक को
जागने का कोई कारर् ही नहीं रह जािा।

इसशिए श्रिा शििे क की िस्ि के जागरर् में बाधा है , िो ठीक श्रिा के


शिपरीि जो शचत्त की दिा होिी है िह सहयोगी होगी। संदेह, िाउट, शििेक
को जगाने में सहयोगी होिा है । धन्य होिा हैं िे िोग शजनके जीिन में सम्यक
संदेह का जन्म हो जािा है । क्यों? क्योंशक सम्यक संदेह के िीव्र दबाि में,
प्रेिर में, सं देह की शचत्त-दिा में शििेक सोया हुआ नहीं रह सकिा, उसे
जागना ही पड़े गा। क्योंशक संदेह बाहर िो शकसी बाि पर शिश्वास करने को
राजी नहीं होिा है और जब बाहर शकसी बाि पर शिश्वास करने को हम राजी
नहीं होिे, िो एक ही मागय रह जािा है , राजी होने का, संिुष्ट होने का शक
उत्तर भीिर से आए।

अगर बाहर के सब उत्तर व्यथय शदखाई पड़ने िगें , बाहर के सारे िास्त्र
शनरथय क शदखाई पड़ने िगें , बाहर कोई भी िरर् न मािूम पड़े और बाहर
श्रिा को कोई आधार न रह जाए, िो उस शनराधार शचत्त की दिा में, जब
बाहर के सब सहारे खो गए हों, और बाहर शिश्वास के शिए कोई कारर् न रह
गया हो, प्रार्ों में सोई हुई िह ऊजाय जगिी है , जो भीिर से उत्तर दे ना िुरू
करिी है । उसके पहिे भीिर से उत्तर नहीं आिे। उसके पहिे भीिर से
उत्तर आने का कोई कारर् भी नहीं है । भीिर से उत्तर िभी आ सकिे हैं , जब
बाहर के सब उत्तर व्यथय हो गए हों।

जब िक हम शिश्वास से जकड़े हुए हैं , िब िक भीिर से उत्तर उठने का कोई


कारर् नहीं रह जािा। िे ही थोड़े से िोग स्वयं के शििे क को जगा पािे हैं , जो
क्रमिः बाहर के सब भां शि के उत्तरों से, बाहर के सब समाधानों से अपने
शचत्त को मुि कर िेिे हैं , उस स्थथशि में गहरे और िीव्र संदेह की स्थथशि में
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भीिर का शििेक जगिा है । जैसे कोई आपके पीछे बंदूक िेकर दौड़िा हो,
िो आपके दौड़ने की अंशिम िस्ि जाग जाएगी, आप अपनी पूरी िस्ि से
भागें गे।

एक बार ऐसा हुआ, जापान में एक राजा अपने एक नौकर को बहुि, बहुि
प्रेम करिा था। िह नौकर इस योग्य था भी। युिों में उस नौकर को िह अपने
साथ िे गया, अपने महिों में उसे उसने अपने साथ रखा, अपनी यात्राओं में
उसे साथी समझा। उसने कभी उससे नौकर जैसा व्यिहार भी नहीं शकया,
प्रेम शकया शमत्र जैसा। िह युिा नौकर सुंदर भी था और स्वथथ भी था,
बुस्िमान भी था। उस राजा की पत्नी उस पर मोशहि हो गई। राजा को यह
पिा चिा। उसके शचत्त को बहुि िेदना हुई, सीधी बाि थी शक िह िििार
उठािा और नौकर की गदय न काट कर अिग कर दे िा। इसमें कोई बाधा न
थी, िेशकन उस नौकर को उसने बहुि प्रेम शकया था और शमत्र जैसा प्रेम
शकया था, िो उसने उसे अंशिम रूप से भी शमत्र के अनुसार एक मौका दे ने
की इच्छा प्रकट की।

उसने उस नौकर को बुिाया और कहा: शमत्र, चाहं िो मैं िुम्हारी गदय न काट
दू ं , िेशकन िुम्हें मैंने इिना प्रेम शकया, इसशिए एक मौका दू ं गा। यह िििार
अपने हाथ में िो और एक िििार मैं अपने हाथ में िे िा हं , और हम दोनों
िड़ें , और जो मर जाए, िह समाि हो जाए और जो िेष रह जाए, िह रानी
भी उसकी हो जाए, यह राज्य भी उसका हो जाए। शमत्र की है शसयि से यह
मौका दे ना जरूरी है ।

उस नौकर ने कहा: यह िो बड़ी आप बाि िो बहुि ऊंची कर रहे हैं , िेशकन


इसमें कोई अथय नहीं है , क्योंशक मैंने कभी िििार उठाई नहीं। मैं, िििार
कैसे पकड़ी जाए, यह भी नहीं जानिा हं । िो नाम मात्र को िो युि होगा,
मरू
ं गा मैं, झूठी बाि होगी, प्रिंसा भी आपको शमिेगी और जान भी मेरी
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाएगी, इससे बेहिर है आप ऐसे ही िििार उठा कर मेरी गदय न काट दें ।
इसमें कोई अथय ही नहीं है , मैं िो िििार पकड़ना भी नहीं जानिा, और
आप, िह जो राजा था, उस समय का कुिििम िििारबाज था, पूरे मुल्क
में उसका कोई मुकाबिा नहीं था। उससे कोई मुकाबिा करने की शहम्मि
भी नहीं कर सकिा था। उसकी कुिििा अप्रशिम थी, िो एक नौकर शजसने
कभी िििार न उठाई हो, िह उससे कैसे जीिेगा? कैसे िड़े गा?

िेशकन शफर भी राजा ने कहा शक मेरे अंिःकरर् को यही उशचि मािूम होिा
है शक िुम्हें एक मौका दू ं ।

आज्ञा थी, उस नौकर को िििार िेकर खड़ा होना पड़ा। राजा बहुि बार
िििार की प्रशियोशगिाओं में उिरा था और हमेिा सफि हुआ था, उसकी
कल्पना में भी यह िटना नहीं थी, जो हुई।

उस शदन उस नौकर को पराशजि करना मुस्िि हो गया। क्योंशक नौकर को


मरने का िो कोई भय ही नहीं था, मरना िो शनशिि था, बचने का कोई उपाय
नहीं था, िििार चिानी उसे आिी नहीं थी, िेशकन इिनी खिरे की स्थथशि
में, इिने िें जर में, उसके प्रार्ों की सारी िस्ि जग गई, िह साधारर् सा
नौकर एकदम असाधारर् हो उठा, उसके हाथ में िििार बड़ी खिरनाक
शसि होने िगी। िह शबिकुि बेबूझ िििार चिा रहा था, उसे िििारों के
दां ि-पेंच का कोई पिा नहीं था, िह बेबूझ िििार चिा रहा था। िेशकन
बचने का कोई उपाय नहीं था, इसशिए प्रार्ों की सारी िस्ि इकट्ठी हो गई
थी, राजा पीछे हटने िगा, हर िार राजा को पीछे धकेिने िगा, और राजा
िबड़ाया, शजंदगी में ऐसा मौका कभी नहीं आया था, बड़े से बड़े कुिि
िििारबाजों से िह िड़ा था, एक अकुिि आदमी से िड़ना?

ओिो पृष्ठ संख्या 131


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेशकन अकुिि आदमी बढ़ा जा रहा था, राजा को प्रार्ों की रक्षा का सिाि
खड़ा हो गया और राजा शचल्लाया शक रुक जाओ! और उसने कहा शक मैं हार
गया, मेरी कल्पना के बाहर थी यह बाि। उसने अपने गुर से, िह राजा राज्य
छोड़ कर चिा गया, उस नौकर के हाथ में सारी संपशत्त और पत्नी को छोड़
गया। बाद में उसने एक फकीर से पूछा शक यह क्या िटना िटी? यह कैसे
संभि हुआ?

उस फकीर ने कहा: यह िो होना शनशिि था, अगर िुम मुझसे पहिे आिे िो
मैं िुमसे पहिे ही कह दे िा। जब जीिन इिने खिरे में होिा है , िो प्रार्ों की
सारी की सारी संरशक्षि िस्ियां संिग्न हो जािी हैं , उस समय जीिना बहुि
कशठन। िुम्हारे शिए जीिन खिरे में नहीं था, िुम सुरशक्षि थे अपनी कुिििा
में, उस नौकर के शिए जीिन पूरी िरह खिरे में था, उसके पूरे प्रार् दां ि पर
थे , उसकी पूरी िस्ि जग गई हो, इसमें कोई आियय नहीं। और जब पू री
िस्ि जागिी है , िो एक साधारर् सा मनुष्य अदभु ि रूप से असाधारर् हो
जािा है ।

शििेक के इस संबंध में भी यही सत्य है । शििेक िभी जागिा है , जब संदेह


पूरा खिरा उपस्थथि कर दे । िेशकन जो िोग संदेह के खिरे से बचिे हैं ,
उनका शििेक कभी नहीं जगे गा।

शिश्वास में एक िरह की शसक्योररटी है , एक िरह की सुरक्षा है । हजारों साि


से मां -बाप पीशढ़यां दर पीशढ़यां शजसे मानिे रहे हैं , उसे हम भी मान िेिे हैं ,
इसमें एक सुरक्षा है । इिने िोग गिि िो नहीं रहे होंगे। हजारों िषय से िाखों
िोगों ने शजस बाि को माना है , िे कोई भ्रां ि िो नहीं रहे होंगे, िे कोई नासमझ
िो नहीं रहे होंगे, िो हम सुरशक्षि हैं । उन्ोंने, जब इिनी भीड़ इस बाि को

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सच कहिी है , िो हम भी उस भीड़ में खड़े हो जािे हैं । और भीड़ के प्रभाि
में, भीड़ की संख्या में हम भी अपनी सुरक्षा पा िेिे हैं ।

हम बेसहारा नहीं रह जािे, अकेिे नहीं रह जािे, इिने िोग साथ हैं , इिने
िोगों का साथ होना बि दे िा है , शहम्मि दे िा है , आसरा दे िा है , सहारा दे िा
है । खिरा कम हो जािा है जीिन का, हम सुरशक्षि हो जािे हैं । और जो
सुरशक्षि हो जािा है , उसके भीिर के शििेक जागरर् का कोई उपाय नहीं रह
जािा। शििेक जागरर् के शिए इनशसक्योररटी चाशहए, खिरा चाशहए, चारों
िरफ से ऐसी स्थथशि चाशहए, जो चुनौिी बन जाए, िो कुछ भीिर होिा है , िो
ही सोई हुई चीजें जागिी हैं , नहीं िो नहीं जागिी हैं ।

िेशकन हम िो शिश्वास के िेरे में खड़े होकर सब भां शि सुरशक्षि हो जािे हैं ।
और इसीशिए हम खोज करिे हैं इस बाि की शक फिां शकिाब शकिनी
पुरानी है ? दो हजार िषय पुरानी है , िो कम सुरक्षा दे िी है । पां च हजार िषय
पुरानी है , िो ज्यादा सुरक्षा दे िी है ; क्योंशक पां च हजार िषय से शजसे िोग
मानिे हैं , िह जरूर ही सच होगा। और अगर कोई यह भी शसि कर दे शक
िह शकिाब खुद ईश्वर की शिखी हुई है , ईश्वर-प्रर्ीि है , िो और सुरक्षा दे िी
है , क्योंशक शफर िो उसके िक होने का सिाि ही नहीं रहा, संदेह का कोई
सिाि नहीं रहा। इसशिए सारे दु शनया के धाशमयक िोग अपनी-अपनी शकिाब
को ईश्वर के द्वारा बनाए होने का प्रमार् दे ने की कोशिि करिे हैं ।

यह प्रामाशर्किा अपने संदेह को समाि करने की कोशिि है । हम


शबिकुि शनशिंि हो जाएं शक अब िक की कोई बाि ही नहीं रही। हम खिरे
के शबिकुि बाहर हो जाएं , सुरक्षा हमें पूरी शमि जाए, शसक्योररटी में कोई
िक न रहे । इसशिए िो सारी दु शनया के धाशमयक िोग िड़िे हैं । शहं दू कहें गे,
िेद ईश्वर के द्वार बनाया हुआ है ; मुसिमान कहें गे शक नहीं, यह कैसे हो
सकिा है ? ईश्वर ने िो कुरान भे जी है । जैन कहें गे शक नहीं-नहीं, ये कोई ईश्वर
ओिो पृष्ठ संख्या 133
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
के बनाए हुए नहीं हैं , यह िो िीथं कर का प्रर्ीि िो महािीर ने जो कहा है ,
िही है , िे सियज्ञ के िचन हैं । बौि कहें गे शक बुि के जो िचन हैं , िे ही सत्य
हैं , बाकी कुछ और भी सत्य नहीं है । सारी दु शनया के धाशमयक िोग इसशिए िो
िड़िे हैं ।

यह िड़ाई इस बाि की िड़ाई नहीं है , शक इनको इस बाि से प्रयोजन हो शक


कौन सी शकिाब ईश्वर की बनाई हुई है , इनका प्रयोजन केिि एक है शक जब
शसि हो जाए शक फिां शकिाब ईश्वर की बनाई हुई है , िो इनका शचत्त शनशिंि
हो जाए। और जो शचत्त शनशिंि हो गया, िह मर गया, उसकी खोज खत्म हो
गई। उसने सहारा खोज शिया और इं क्वायरी बंद हो गई।

यह जो सारी हमारी कोशिि चििी है शक महािीर सियज्ञ हैं , बुि सियज्ञ हैं , िे
सब जानिे हैं , और जो जानिे हैं शबिकुि ठीक जानिे हैं । यह हम इिने जोर
से क्यों िड़िे हैं इस बाि के शिए?

अगर कोई कह दे शक नहीं, महािीर की बाि में फिां चीज गिि है , िो हम


मरने-मारने को उिारू हो जाएं गे । कृष्ण ने फिां बाि गीिा में गिि कह दी,
िो हम िड़ने को िैयार हो जाएं गे । क्यों? इिना हमारा आग्रह क्यों है उनके
ठीक होने में। आग्रह इसशिए नहीं है शक हमको मििब है शक िे ठीक हों,
आग्रह इसशिए है शक अगर िे संशदग्ध हो गए िो हम िो मुस्िि में पड़
जाएं गे । िे अगर संशदग्ध हो गए िो हम संदेह में पड़ जाएं गे । शफर हमारे
शिश्वास का आधार कहां रह जाएगा, और शफर हमें सुरक्षा कहां रह जाएगी,
शफर िो संदेह खड़ा हो जाएगा, िाउट खड़ा हो जाएगा।

इसशिए ऐसी-ऐसी बािों पर भी हम िक करने में और कशठनाई में पड़ गए,


जैसे बाइशबि। बाइशबि में कहा होगा शक जमीन चपटी है और जमीन सूरज
के इदय -शगदय िूमिी है । जब पहिी दफा पशिम में िैज्ञाशनकों ने पिा िगाया शक

ओिो पृष्ठ संख्या 134


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जमीन गोि है , िो पुरोशहि और पादरी बहुि नाराज हुए। उन्ोंने कहा: यह
शबिकुि ही गिि है , यह हो ही नहीं सकिा। प्रमार् सब सामने थे जमीन
गोि होने के, िेशकन िे कहिे शक बाइशबि में शिखा है शक जमीन चपटी है ,
यह गोि हो नहीं सकिी। िैज्ञाशनक के प्रमार् को िे इनकार करिे रहे ,
उन्ोंने गै िीशियो को पकड़िा कर कहा शक हम गदय न कटिा दें गे, कहो शक
जमीन चपटी है । गै िीशियो ने कहा शक बड़ी मुसीबि है , िुम्हें इिनी क्या
शफकर है जमीन चपटी होने की? िुम्हें इससे क्या प्रयोजन है ?

नहीं; प्रयोजन था, अगर ईसा का एक िचन भी गिि होिा है , िो बाकी िचन
भी संशदग्ध हो जाएं गे । खिरा यही था। शक जमीन गोि है शक चपटी, शकसी
को क्या िेना-दे ना इस बाि से। नहीं; खिरा यह था, अगर ईसा का यह िचन
भी गिि है , िो दू सरे िचन संशदग्ध हो जाएं गे । िक हो जाएगा शक जो एक
आदमी एक बाि गिि बोि सकिा है , िो दू सरी बािें भी गिि बोि सकिा
है । िो िाउटफुि हो जाएगी स्थथशि। और अगर इससे भी कोई प्रयोजन नहीं
शक ईसा गिि हों शक सही हों, प्रयोजन िो इसका है शक शफर हमारे शिए
संदेह खड़ा हो जाएगा और हमारा शिश्वास िगमगा जाएगा। िो ऐसी-ऐसी
मूढ़िाओं पर भी शिश्वास जारी रहा है शजनकी आप कल्पना नहीं कर सकिे।

यूनान में अरस्तू के िि िक समझा जािा था शक स्स्त्रयों के दां ि पुरुषों से


कम होिे हैं । होने चाशहए, स्स्त्रयां कहीं पुरुषों के बराबर हो सकिी हैं । यह हो
ही नहीं सकिा, िे िो हीन हैं , पुरुष से हीन हैं , इसशिए उनके दां ि कम होने
चाशहए। अरस्तू जै सा समझदार, शिचारिीि व्यस्ि उसने भी अपनी शकिाब
में शिखा शक स्स्त्रयों के दां ि कम होिे हैं । बड़ी है रानी की बाि है , उसकी खुद
की दो औरिें थीं, एक भी नहीं। िह कभी भी बैठा कर शगनिी करिा सकिा
था, िेशकन उसने शकया नहीं। क्योंशक पुराना धमय यह कहिा था यूनान का शक

ओिो पृष्ठ संख्या 135


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
स्स्त्रयों के दां ि कम होिे हैं । अरस्तू के मरने के एक हजार बाद िक भी यूनान
में यही माना जािा रहा शक स्स्त्रयों के दां ि कम होिे हैं ।

ऐसी स्स्त्रयां काफी हैं बहुिायि से, और अक्सर िो पुरुषों से थोड़ी ज्यादा हैं ,
कम नहीं हैं । और यूनान में िो बहुि थीं, क्योंशक शजन मुल्कों में िड़ाई चििी
है , दं गे-फसाद होिे हैं , िहां पुरुष कम हो जािे हैं , स्स्त्रयां ज्यादा हो जािी हैं ।
यूनान में िो संख्या कई दफा स्स्त्रयों की दु गुनी िक हो गई थी पुरुषों से,
क्योंशक आए शदन िििारबाजी थी।

िो उस बेिकूफी में पुरुष मर जािे हैं , स्स्त्रयां बच जािी हैं । िेशकन शकसी को
यह नहीं सूझा शक जाकर िे स्स्त्रयों के दां ि शगन िें। कोई खयाि ही नहीं
आया, संदेह पै दा नहीं हुआ न। ऐसी हजारों िरह की मूढ़िाएं हजारों िषय िक
चििी हैं ।

और हम क्यों िरिे हैं उनको उखाड़ने में? उनको खोिने में? िर इसशिए
पैदा होिा है शक अगर पूियजों की एक बाि गिि हो जाए, िो पूियजों की दू सरी
बािें भी गड़बड़ हो जाने का भय पैदा हो जािा है । और उस भय में शफर
हमारे भीिर सं देह खड़ा होगा और हमको खोज करनी पड़े गी, हम मुस्िि
में पड़ जाएं गे । िेशकन मैं आपसे कहं , शजसका शचत्त संदेह से नहीं भरिा और
जो संदेह की पीड़ा में नहीं पड़िा और जो संदेह की अशग्न में नहीं झुिसिा,
उसके भीिर शििेक कभी जाग्रि नहीं होिा है ।

शििेक िो जाग्रि िब होिा है , जब सं देह पीड़ा दे ने िगिा है , कष्ट दे ने िगिा


है , संिाप दे ने िगिा है , एं ग्ज़ायटी पैदा करने िगिा है । जब संदेह चारों िरफ
से प्रार्ों को छे दने िगिा है और जब कोई उपाय नहीं रह जािा शिश्वास करने
का शक ये िेद ईश्वर के बनाए हुए हैं , शक यह कुरान परमात्मा शक भे जी हुई है ,
शक यह बाइशबि खुद ईश्वर के पुत्र की बनाई हुई है , जब इस पर कहीं कोई

ओिो पृष्ठ संख्या 136


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आसरा नहीं रह जािा और सब िरफ शचत्त में संदेह खड़ा हो जािा है , सब
जगह प्रश्निाचक शचह्न खड़े हो जािे हैं , कहीं कोई सुरक्षा नहीं मािूम होिी है ,
िो शफर प्रार्ों की जो बहुि ररजिय फोसय है , िह जो बहुि संरशक्षि और केिि
खिरे के शिए जरूरी है , िह िस्ि जागनी िुरू होिी है और भीिर शििेक
पैदा होिा है ।

शििेक के अशिररि ईश्वर-प्रर्ीि कुछ भी नहीं है , बाकी सब िास्त्र मनुष्य के


बनाए हुए हैं । और बाकी सब िास्त्र में िैसी ही कशमयां और भू िें हैं जैसी
मनुष्य में होनी स्वाभाशिक है ।

एक भर िस्ि मनुष्य की बनाई हुई नहीं है , िह है शििेक। िह है प्रार्ों में


सोई हुई शििेक की जानने की ज्ञान की क्षमिा, िह मनुष्य की बनाई हुई नहीं
है । िह है ज्ञान की क्षमिा मात्र, िो परमात्मा की हो सकिी है , बाकी कुछ
परमात्मा का नहीं हो सकिा। बाकी सब मनुष्य का शनमाय र् है , सोच-शिचार,
खोज-बीन है । और इसीशिए िो मनु ष्य के सोच-शिचार और खोज-बीन में
बहुि शिरोध और बहुि झगड़ा है ।

यह जो भीिर सोई हुई प्रार्ों की शििेक-िस्ि है , इसे जागने के शिए पहिा


सूत्र है : सम्यक रूप से संदेह। सम्यक रूप से संदेह मैं क्यों कह रहा हं ?
अकेिा संदेह भी कह सकिा हं , िेशकन मैं कह रहा हं , राइट िाउट। मैं कह
रहा हं , सम्यक रूप से संदेह। यह मैं इसशिए कह रहा हं शक कहीं संदेह
अशिश्वास न बन जाए। संदेह और अशिश्वास में भे द है । बुशनयादी भे द है ।
शिश्वास के शिरोध में होिा है अशिश्वास। संदेह शिश्वास का शिरोधी नहीं है ,
संदेह अशिश्वास और शिश्वास दोनों का शिरोधी है ।

िीसरी बाि है संदेह। अगर हम एक टर ाएं गि खींचे, एक शत्रभु ज बनाएं ; िो दो


भु जाओं पर होंगे शिश्वास और अशिश्वास, िीसरे कोर् पर होगा संदेह। संदेह

ओिो पृष्ठ संख्या 137


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बड़ी अिग बाि है । संदेह अत्यंि िैज्ञाशनक शचत्त की प्राथशमक अिथथा है ।
अशिश्वास नहीं, अशिश्वास शिश्वास का ही रूपां िरर् है । अशिश्वास शिश्वास की
ही प्रशिशक्रया, ररएक्शन है ।

एक कोई मानिा है , ईश्वर है ; कोई मानिा, नहीं है । कोई मानिा है , आत्मा है ;


कोई मानिा है , नहीं है । कोई कहिा है शक मोक्ष है ; कोई कहिा है , नहीं है ।
कोई कहिा है , जन्म, मृत्यु के बाद शफर जन्म है , शफर मृत्यु है ; कोई कहिा
है , नहीं है । ये दोनों ही स्थथशियां एक ही िरह की हैं , इनमें िुि संदेह नहीं है ।

िुि संदेह का अथय यह है शक न मैं शिश्वास पर पिूं और न अशिश्वास में, मैं


अपने शचत्त को मुि रखूं, खोजूं, पूछूं, चेष्टा करू
ं जानने की और जब िक मेरे
शििेक के समक्ष कोई चीज सत्य की भां शि स्पष्ट न हो जाए, िब िक उसे न िो
मानूं और न न मानूं , दोनों से अपने को मुि रखूं। सं देह का अथय है : अशिश्वास
और शिश्वास से मुस्ि। संदेह पहिी, पहिी स्थथशि है । संदेह के शबना शििे क
नहीं जगे गा।

दू सरा ित्व है शििे क के जागरर् में, आत्म-शनरीक्षर्। संदेह की भू शम हो,


आत्म-शनरीक्षर् की खाद दे नी पड़े । आत्म-शनरीक्षर् का क्या अथय है ? हम
सारे िोग दू सरों का िो बहुि शनरीक्षर् करिे हैं , स्वयं का शनरीक्षर् कभी कोई
मुस्िि से करिा होगा। हम प्रिंसा भी करिे हैं और शनंदा भी करिे हैं ,
िेशकन प्रिंसा भी दू सरों की होिी है और शनंदा भी दू सरों की।

आत्म-शनरीक्षर् हम करिे नहीं, हमारा शचत्त शनरं िर दू सरों के संबंध में सोचने
में संिग्न होिा है । स्वयं के संबंध में शिचार, स्वयं के सं बंध में ऑब्जिेिन,
शनरीक्षर्, स्वयं के बाबि भी िटथथ खड़े होकर सोचने की िृशत्त, मुस्िि से
होिी है । और शजसमें नहीं है ऐसी िृशत्त, िह करीब-करीब शजन बािों को
दू सरों में शनंदा करिा है , करीब-करीब उन्ीं बािों को स्वयं में जीिा है । शजन

ओिो पृष्ठ संख्या 138


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बािों के शिए दू सरों को कोसिा है , कंिे मनेिन करिा है , उन्ीं बािों को
स्वयं में पाििा है और पोसिा है । और उसे पिा भी नहीं चििा शक यह क्या
हो रहा है ?

पिा इसशिए नहीं चििा शक िह कभी खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा,
दे खिा रहिा है दू सरों की िरफ, खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा। और
जो व्यस्ि खुद की िरफ िौट कर नहीं दे खिा, उसका शििेक कैसे जगे गा?
शििेक दू सरों की िरफ दे खने से नहीं जगिा। क्योंशक पहिी िो बाि यह है
शक जो व्यस्ि अभी खुद को ही दे खने में समथय नहीं है , िह दू सरों को दे खने
में कैसे समथय हो सकेगा? जो व्यस्ि अभी अपने ही संबंध में शनर्यय नहीं िे
सकिा, िह दू सरे के संबंध में शनर्यय कैसे िे सकेगा? खुद के भीिर के प्रार्ों
से भी जो पररशचि नहीं हो सका है , िह दू सरे के बाहर से दे ख कर उसके
भीिर से कैसे पररशचि हो सकेगा।

दू सरे के बाहर जो शदखाई पड़ रहा है , िह दू सरे का अंिस्ति नहीं है । क्योंशक


खुद हम अपने बाबि समझ िें, अपने बाबि हम अपने बाहर जो शदखिा रहे
हैं , िह क्या हमारा अंिःकरर् है ? िह क्या हमारा अंिस्ति है ? शजससे हम
कह रहे हैं , मैं िुम्हें प्रेम करिा हं , शजससे हम कह रहे हैं शक मैं िुम्हारा आदर
करिा हं , क्या सच में हमारे भीिर भी िही भाि है ? िही आदर और प्रेम है ?
या शक हम धोखा दे रहे हैं ? या शक हम चारों िरफ एक पाखंि का व्यस्ित्व
खड़ा कर रहे हैं ? एक अशभनय कर रहे हैं ?

हमारे बाहर िो जो है , िह झूठा है , भीिर कुछ सच्चा है । िेशकन दू सरे के


बाहर को हम सच्चा मान कर शिचार करने िगिे हैं और दू सरे के भीिर को
िो हम दे ख नहीं सकिे, झां क नहीं सकिे हैं । इसशिए दू सरे को जानने के
पहिे खुद को जानना बहुि जरूरी है । और बड़े मजे की बाि है , दू सरे के

ओिो पृष्ठ संख्या 139


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
संबंध में जानने की हमारी इिनी उत्सुकिा क्यों हैं ? दू सरों के दीिािों के छे द
में से हम झां कने की कोशिि क्यों करिे हैं ? दू सरों के िस्त्र उठा कर दे खने
का हमारा प्रयोजन क्या है ? कहीं ऐसा िो नहीं है शक अपने को दे खने से
बचने के शिए हम ये सब उपाय करिे हों? ऐसा ही है । अपने को दे खने से
बचना चाहिे हैं , इसशिए दू सरों को उखाड़िे हैं और दे खिे हैं ।

और अपने को दे खने से क्यों बचना चाहिे हैं ? बहुि पीड़ा होगी अपने को
दे खने से। इसशिए अपने को िो कभी नहीं दे खिे, अपने बाबि िो एक भ्रम
खड़ा कर िेिे हैं शक हम ऐसे हैं और दू सरे को दे खिे हैं । और दू सरे को नीचा
शदखाने की कोशिि करिे हैं शनरं िर अपने शचत्त में, अपनी िार्ी में, अपने
शिचार में। क्यों? िाशक इस भां शि हम खुद ऊंचे हो सकें। जब हम सारी
दु शनया को नीचा दे खने िगिे हैं , िो अनजाने खुद ऊंचे हो जािे हैं । जो
आदमी सब िोगों की बुराई दे खने िगिा है , िह एक बाि में शनशिंि हो जािा
है शक िह खुद बुरा नहीं है ।

बटर ें ि रसि ने कभी एक दफा कहा शक अगर शकसी िर में चोरी हो जाए,
और सबसे पहिे जो जोर-जोर से शचल्लाने िगे शक चोरी बहुि बुरी चीज है ,
पक्का समझ िेना शक उसके भीिर गहरा चोर है । िो सच है बाि। अगर यहां
चोरी हो जाए िो जो आदमी चोरी की सबसे ज्यादा शनंदा करने िगे , और जो
चोरों को गािी दे ने िगे और बहुि िोरगु ि मचाने िगे और दौड़-धू प करने
िगे चोर को पकड़ने की, पक्का समझना शक िह आदमी चोर है । क्योंशक
इस भां शि िह अपने चारों िरफ एक हिा पै दा करिा है शक आप एक भ्रम में
आ जाएं , एक बाि िो पक्की समझ िें शक इसने चोरी नहीं की, जो चोरी की
इिनी शनंदा कर रहा है िह चोरी कैसे करे गा? जो चोरी के इिने शिरोध में है
िह चोर नहीं हो सकिा।

ओिो पृष्ठ संख्या 140


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हम जो भीिर होिे हैं उससे शबिकुि उिटा िािािरर् चारों िरफ खड़ा
करने की कोशिि करिे हैं । यह स्थथशि खुद के संबंध में अत्यंि आत्मिंचक
हो जािी है । शजसे शििेक को जगाना हो, िह आत्मिंचना नहीं कर सकिा,
िह अपने से धोखा नहीं कर सकिा। िह इसके पहिे शक दू सरों के द्वार पर
झां के, अपने द्वार की खोज करे गा।

मैंने सुना है , एक सुबह एक मनोशचशकत्सक के द्वार पर एक आदमी भागा


हुआ पहुं चा। उस आदमी की उम्र को पचास िषय होगी। उसने जाकर अंदर
बहुि िबड़ाहट में कहा शक ऐसा मािूम होिा है शक मेरे शपिा का शदमाग
खराब हो गया। मनोशचशकत्सक ने कहा: क्या? कैसे िुम्हें पिा चिा? उसने
कहा: उनकी उम्र अस्सी िषय हो गई, िे शदन भर टब में बैठे रहिे हैं , पानी में
बैठे रहिे हैं िंटों और गु ड्डे-गु शड्डयों से खेििे रहिे हैं । अस्सी िषय की उम्र में
क्या यह पागिपन का िक्षर् नहीं है ? शक कोई आदमी बाथरूम में बैठा रहे ,
टब में बैठा रहे , गु ड्डे-गु शड्डयों से खेििा रहे । यह िो शनशिि ही पागिपन का
िक्षर् है ।

उस मनोशचशकत्सक ने कहा शक शफर भी यह कोई बहुि खिरनाक पागिपन


नहीं है । इससे नुकसान क्या है ? उनका शदि बहििा होगा, अस्सी िषय के
आदमी को शदि बहिाने दो, िुम्हारा कोई हजाय िो करिे नहीं, शकसी को
कोई नुकसान नहीं पहुं चािे, कोई िोड़-फोड़ नहीं करिे, शकसी को िे मार-
पीट नहीं करिे, चुपचाप बाथरूम में बैठे रहिे हैं , गु शड्डयों से खेििे रहिे हैं ,
खेिने दो। िह बोिा, आप कहिे हैं , हजाय नहीं है । उस आदमी की आं खों में
आं सू आ गए और उसने कहा: गुशड्डयां मेरी हैं और उनकी िजह से मैं
शबिकुि भी नहीं बैठ पािा हं टब में, िे सब गु ड्डे-गु ड्डी मेरे हैं और सब खराब
शकए दे रहे हैं शबिकुि। जरूर उनका शदमाग खराब हो गया है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इस आदमी को यह िो शदखाई पड़ा शक उनके शपिा का शदमाग खराब हो
गया है , िेशकन यह शदखाई नहीं पड़ा शक गु ड्डे-गु ड्डी मेरी हैं िो मेरा शदमाग भी
कोई बहुि अच्छा नहीं हो सकिा। इसे यह िो बहुि जल्दी शदखाई पड़ गया
शक कौन पागि है ।

दु शनया में दू सरों का पागिपन दे ख िेना बहुि आसान है । और केिि िही


आदमी पागि नहीं है जो अपना पागिपन दे खने में समथय हो जािा है , इसे मैं
शफर दोहरािा हं , केिि िही आदमी पागि नहीं है जो अपना पागिपन
दे खने में समथय हो जािा है । बाकी िेष सारे िोग पागि हैं जो दू सरों का
पागिपन दे खने में बड़े कुिि हैं ।

गै र-पागि आदमी की, स्वथथ आदमी की पहिी पहचान यह है शक िह सबसे


पहिे अपने पागिपनों को पहचानिा है , अपनी भू िों को पहचानिा है , अपने
जीिन के दोषों को दे खिा-पहचानिा है । जो आदमी अपनी भू िों, अपने
दोषों, अपनी शिशक्षििाओं को पहचानने में समथय हो जािा है , उसने पहिा
कदम उठा शिया मुस्ि की ओर। िह उनसे कि मुि भी हो सकेगा।

आत्म-शनरीक्षर् शजिना गहरा होिा है , उिना ही भीिर चे िना शिकशसि होने


िगिी है । क्यों? क्योंशक आत्म-शनरीक्षर् अत्यंि दु रूह, अत्यंि आरिु अस
बाि है , बहुि िप की बाि है , िपियाय की बाि है । खुद की भू िों को दे खना
बड़ी िपियाय है । क्योंशक खुद की भूिों को दे खने के शिए स्वयं से ही थोड़े दू र
खड़े होने की साधना करनी होिी है । स्वयं से थोड़ी दू र खड़े होने की साधना
करनी पड़िी है । िभी िो हम दे ख सकिे हैं , ओब्जिय कर सकिे हैं , शनरीक्षर्
कर सकिे हैं । खुद से अपने को थोड़ा दू र करके दे खने की जरूरि है ।

जैसे हम दू सरे िोगों को दे खिे हैं , ठीक उसी भां शि खुद को भी दे खने की
जरूरि है । जब कोई व्यस्ि अपने भीिर स्वयं को इस भां शि दू र से खड़े

ओिो पृष्ठ संख्या 142


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होकर दे खने िगिा है , िो िह जो दे खने िािी िस्ि है , उसके शनरं िर
अभ्यास से िह शिकशसि होिी है , उसी का नाम शििेक है । िह जो साक्षी होने
की िस्ि है , िह जो शिटनेस होने की िस्ि है , िह जो ऑब्जिेिन की
िस्ि है , शनरीक्षर् की िस्ि है , िही िो शििेक है ।

जब कोई अपने से दू र खड़े होकर दे खने िगिा है शक कहां -कहां मुझमें


पागिपन, कहां -कहां मुझमें दोष, कहां -कहां मेरा जीिन भ्रां शियों से भरा,
कहां -कहां मेरे जीिन में पाखंि, कहां -कहां मेरे जीिन में असत्य, कहां -कहां
मेरे जीिन में शहं सा, जब कोई कहां -कहां मेरे शचत्त में अहं कार, जब कोई
शनरं िर इनके प्रशि जागिा है , दे खिा है , समझिा है , िो उसके भीिर शििेक
जगना िुरू होिा है । इसी क्रम में उसके भीिर शििेक की िस्ि जागने
िगिी है । और बड़े आियय की बाि िो यह है शक जैसे-जैसे शििेक जागिा है ,
िैसे-िैसे उसके दोष अपने आप क्षीर् होने िगिे हैं । क्योंशक जहां शििेक का
प्रकाि है , िहां दोषों का अंधकार बहुि शदन नहीं शटक सकिा है , िह हट
जाएगा, िह टू ट जाएगा, िह शमट जाएगा।

गु रशजएफ एक फकीर हुआ, यूनान में। उसने अपनी आत्म-कथा में शिखा
शक मेरा शपिा मृत्यु-िय्या पर था, उसने मुझे अपने पास बुिाया, िब चौदह
िषय की मेरी उम्र थी, मुझसे कान में उसने कहा: शक अगर मैं कोई सिाह दू ं
िो िुम बुरा नहीं मानोगे ? बहुि समझदार आदमी रहा होगा िह, क्योंशक
सिाह दे ने िािे यह कभी पूछिे नहीं शक बुरा मानोगे शक नहीं मानोगे ?
सिाह दे ने िािे मुफ्त सिाह बां टिे हैं । और दु शनया में जो चीज सबसे ज्यादा
दी जािी है और सबसे कम िी जािी है , िह सिाह ही है । उस बूढ़े आदमी ने
शजसकी नब्बे िषय उम्र थी, चौदह िषय के बच्चे से पूछा शक क्या मैं िुम्हें सिाह
दू ं िो िुम बुरा नहीं मानोगे ? और अगर मैं िुम्हें सिाह दू ं िो कभी िुम जीिन

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
में मेरे प्रशि रुष्ट िो नहीं रहोगे ? उस यु िक ने कहा शक आप कैसी बाि करिे
हैं ? आप कहें , आपको मुझे क्या कहना है ?

उस बूढ़े आदमी ने कहा: मेरे पास न िो संपशत्त है िु म्हें दे ने को, न मेरे पास
और शकसी िरह की यि और प्रशिष्ठा है , िेशकन जीिन भर अनुभि से मैंने
एक बाि पहचानी और जानी, िह मैं िुम्हें दे ना चाहिा हं । और िह यह है शक
िुम खुद को खुद से जरा दू र रख कर दे खना सीखना। अगर रास्ते पर िुम्हें
कोई शमि जाए और िुम्हें गािी दे , िो जल्दी से उसकी गािी का उत्तर मि
दे ना, िर िौट आना, दू र खड़े होकर दे खना शक उसने जो गािी दी िह कहीं
ठीक ही िो नहीं है ? अगर िह ठीक हो, िो उसको जाकर धन्यिाद दे आना
शक िुमने मुझ पर बड़ी कृपा की और एक बाि मुझे बिाई शजसका मुझे पिा
नहीं था। अगर िह ठीक न हो, िो उसकी शचंिा छोड़ दे ना। क्योंशक जो बाि
ठीक नहीं है उससे िुम्हें प्रयोजन ही क्या?

गु रशजएफ ने शिखा है : शफर मैंने जीिन भर--उसी राि शपिा उसका मर गया-
-इस बाि की शफकर की, उसने शिखा है शक मेरे जीिन में शफर िड़ने का
कोई मौका नहीं आया। गाशियां िो मुझे िोगों ने बहुि बार दीं, िेशकन पहिे
मैंने उनसे कहा शक शमत्र रुको, मैं जरा िर जाऊं, सोच-समझ कर आऊं,
और शफर मैं आकर िुम्हें बिाऊं। जब मैं िर गया और मैंने सोचा-समझा, िो
मैंने पाया, कोई गािी इिनी बुरी नहीं हो सकिी शजिना बुरा मैं हं । मैंने जाकर
धन्यिाद शदया और कहा शक शमत्र बहुि-बहुि धन्यिाद, और सदा स्मरर्
रखना, और जब भी जरूरि पड़े और िुम्हारे मन में कोई गािी आ जाए, िो
शछपाना मि, मुझे दे दे ना।

जैसे-जैसे व्यस्ि का आत्म-शनरीक्षर् गहरा होगा, िह कुछ और ही शदिा में


अपने शििेक को जगिा हुआ पाएगा।

ओिो पृष्ठ संख्या 144


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेशकन आत्म-शनरीक्षर् है शबिकुि सोया हुआ हमारा। हम कभी दे खिे नहीं-
-हम क्या कर रहे हैं , क्या हो रहे हैं , क्या चि रहा है । अगर कोई हमको बिाए
भी, िो हम िड़ने को खड़े हो जािे हैं । स्मरर् रखना, अगर शकसी गािी पर
आप िड़ने को खड़े हो गए, िो पक्का समझ िेना शक आप उस गािी के
योग्य थे , नहीं िो आप िड़ने को िैयार नहीं होिे। आप िड़ने को िैयार नहीं
होिे।

आपको यह शफकर पड़ गई फौरन की मैं शसि कर दू ं शक यह गािी गिि है ,


इसीशिए शक आप बहुि भीिर जानिे हैं शक यह गािी सही है । और अगर मैंने
शसि न शकया शक गिि है , िो दु शनया को पिा चि जाएगा। िो जब भी आप
यह शसि करने की कोशिि में िगे हैं शक फिां दोष मु झमें नहीं है , िो बहुि
िां शि से समझ िेना, िह दोष जरूर आपमें होगा। नहीं िो आप उसे गिि
शसि करने की शफकर न करिे। कोई शफक्र आपमें पैदा न होिी।

शभक्षु भीखर् राजथथान के एक गां ि में थे , िहां कोई चार माह रुके, चिुमाय स
होगा। रोज ही आसोजी नाम का एक आदमी उनको सुनने आिा था। िेशकन
रोज ही शदन भर की दु कान के बाद िौटिा था, सां झ को उनको सुनिा था, िो
सो जािा था। बहुि कम िोग हैं जो सुनिे िि जागिे रहिे हों, बहुि कशठन
है । आं ख खुिी रखना एक बाि है , जागना शबिकुि दू सरी बाि है । िेशकन
िह आदमी आं खें भी बंद कर िेिा था, सीधा-सादा आदमी होगा। आं खें
खुिी रख कर धोखा नहीं दे िा था शक हम सुन ही रहे हैं । बहुि शदन भीखर् ने
दे खा शक यह िो सोिा है शनरं िर, सामने ही बैठिा था, और गां ि का सबसे
बड़ा धनपशि था, इसशिए पीछे िो बैठ ही नहीं सकिा था। सबसे ज्यादा धन
उसी के पास था, इसशिए बैठिा आगे ही था। पीछे िो कौन बैठिा, आगे ही
बैठिा था और सामने ही सोिा था।

ओिो पृष्ठ संख्या 145


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और भी साधु आए थे गां ि में, िेशकन धनपशि सोिा है यह साधु कैसे कहे ?
इसशिए साधु बदाय श्त करिे थे ।

ये भीखर् कुछ गड़बड़ रहे होंगे। इन्ोंने टोका। और भी साधु आिे थे, उनको
भी सुनने जािा था, क्योंशक जो साधुओं को सुनने जािे हैं िे शकसी भी साधु को
सुनने जािे हैं । िह िैसे ही है , जैसे जो शफल्म दे खने जािे हैं िे शकसी भी शफल्म
को दे खने जािे हैं , इससे कोई फकय नहीं पड़िा। िे कोई बहुि भे द नहीं
करिे, िहां िीन िंटा गु जरिा है , िापस िौट आिे हैं । मैं िो अपने गां ि में एक
ऐसे आदमी को भी जानिा था, क्योंशक मेरा गां ि बहुि छोटा, उसमें मुस्िि
से एक ही कहे जाने को टाकीज। िे एक ही शफल्म को रोज ही दे खिे थे , उसी
शफल्म को।

िहां उनका िीन िंटा गु जर जािा था। ऐसे ही िोग मंशदरों में जािे हैं , ऐसे ही
िोग मस्िदों में जािे हैं । पुराने जमानों में मंशदरों-मस्िदों में जािे थे , िही
अब शसनेमाओं में जाने िगे हैं , उनमें कोई बहुि फकय नहीं है । िह भी बेचारा
उनके सामने बैठा-बैठा सोिा था। ऐसे शफल्म में सो जाओ िो कोई टोकने
िािा नहीं होिा, न िो मैनेजर आकर कहिा है शक क्यों सो रहे हो? िेशकन ये
साधु थोड़े गड़बड़ होिे हैं , ये टोक दे िे हैं ।

भीखर् ने उसको कहा: आसोजी सोिे हो? उसने जल्दी से आं ख खोिी,


उसने कहा शक नहीं, कौन मानिा है शक मैं सोिा हं ? शफर थोड़ी दे र बाि
चिी, शफर िह सो गया, क्योंशक सोने िािा आदमी जबरदस्ती शकिनी दे र
जगा रहे गा। शफर भीखर् ने बीच में कहा: आसोजी सो गए? उसने आं ख
खोिी, उसने कहा शक नहीं, आप यह क्या बार-बार बीच-बीच में िगािे हैं शक
सो गए? उसे गु स्सा आना स्वाभाशिक था। क्योंशक कोई आदमी सोिा हो और

ओिो पृष्ठ संख्या 146


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कोई उसको बार-बार बिाए शक आप सो गए, िो गु स्सा आना शबिकुि
स्वाभाशिक है ।

िेशकन शफर थोड़ी दे र में सो गया, शफर भीखर् ने कहा: िेशकन अब की बार
दू सरी बाि कही, भीखर् ने कहा आसोजी जीिे हो? आसोजी िो नींद में थे,
उन्ोंने समझा, ये शफर पूछ रहे हैं , आसोजी सोिे हो। उसने कहा शक नहीं,
कौन कहिा है ? भीखर् ने कहा: अब िो पकड़ गए शक शनशिि सोिे थे ।
क्योंशक मैंने पूछा, आसोजी जीिे हो और िुम कहिे हो, कौन कहिा है ,
शबिकुि नहीं।

हम मानने को राजी नहीं होिे। दू सरा बिाए िब िो बहुि कशठन हो जािा है


मानना। िेशकन जो आत्म-शनरीक्षर् करे गा, जो शनरं िर अपने पर शिचार
करे गा, िह अनुगृहीि होएगा; उसका जो बिा दे शक िुम सोए हो, िह
धन्यिाद करे गा उसका शक जरूर मैं सोया था। और िुम्हारी कृपा शक िुमने
जगाया, अन्यथा कौन शकसको जगािा है ? शकसको क्या प्रयोजन है ? और न
केिि िह दू सरों के द्वारा दोष शदए जाने पर, शदखाए जाने पर उनको
पहचानेगा, बस्ल्क खुद शनरं िर उनकी खोज करे गा, खुद शनरं िर खोजेगा।

स्मरर् रस्खए, जो दोष हम शछपा िेिे हैं । िह दोष धीरे -धीरे भीिर बड़ा होने
िगिा है । जैसे बीज को हम जमीन में दबा दे िे हैं , िो शफर बड़ा होिा है ,
अंकुर आिे हैं और पौधा शनकििा है । और एक बीज से पौधा शनकि कर
शफर िह पौधा हजारों बीजों को पैदा कर दे िा है । ऐसे ही शचत्त की भू शमजन्य
दोषों को हम शछपा िेिे हैं , िे बीज की िरह भीिर बढ़ने िगिे हैं , बड़े होने
िगिे हैं , शफर उनमें अंकुर शनकिने िगिे हैं , और हम उनकी रक्षा करिे हैं ।
अगर कोई बिाए शक दे खो, िुम्हारे भीिर फिां -फिां बीज अंकुररि हो रहा
है , हम कहिे हैं , क्या झूठ बाि कह रहे हो? हम उसकी रक्षा करिे हैं , बागु ड़

ओिो पृष्ठ संख्या 147


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िगािे हैं , व्यिथथा करिे हैं , सब िरफ से दीिािें उठािे हैं , सुरक्षा करिे हैं ,
शफर िह बड़ा होिा है , एक बीज के हजार बीज हो जािे हैं ।

जीिन से शजस चीज को नष्ट करना हो, उसे शछपाना सबसे खिरनाक बाि
है । उसे खोि दे ना सरििा से, सहजिा से। उसे अपने सामने िो खोि ही
िेना जरूरी है ।

आत्म-शनरीक्षर् का अथय है : जैसा मैं हं , िैसा ही स्वयं को जानने की सिि


चेष्टा।

आत्म-मूच्छाय का अथय है : जैसा मैं नहीं हं , िैसा स्वयं को बिाने की चेष्टा।

आत्म-शनरीक्षर् का अथय है : जैसा मैं हं , िैसा ही स्वयं को जानने की सिि


चेष्टा।

हममें से कोई भी हम अपने आपको िैसा ही जानना नहीं चाहिा है , हम कुछ


और भां शि अपने को शदखाना चाहिे हैं , और भां शि बिाना चाहिे हैं जैसे हम
नहीं हैं । और हमारी संस्कृशि और सभ्यिा ने इस धोखे के शिए खूब पोषर्
शदया है , बहुि पोषर् शदया है ।

िंदन में एक फोटोग्राफर ने अपनी दु कान पर एक िख्ती िगा रखी थी और


शिख रखा था उसमें शक यहां िीन िरह के शचत्र उिारे जािे हैं । एक िो जैसे
आप हैं , िेशकन उसके पां च ही रुपये िगिे हैं । दू सरे , जैसे आप सोचिे हैं शक
आप हैं , उसके दस रुपये िगिे हैं । िीसरा, जैसा आप सोचिे हैं शक भगिान
को आपको बनाना चाशहए था, उसके पंिह रुपये िगिे हैं । एक गां ि का
आदमी पहिी दफा पहुं चा, िह भी फोटो उिरिाना चाहिा था। और गां ि के
आदशमयों के शसिाय, गं िारों के शसिाय कोई फोटो उिरिाना चाहिा है ? िह
भी उिरिाना चाहिा था। िह गया, उस फोटोग्राफर की दु कान पर गया,

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसने जाकर दे खा शक िहां िीन िरह के फोटो उिरिे हैं । िह बहुि है रान
हुआ।

उसने कहा: हम िो सोचिे थे फोटो एक ही िरह का होिा है । क्योंशक हम िो


एक ही िरह के हैं , िीन िरह के फोटो कैसे हो सकिे हैं ? उस गां ि के सीधे-
साधे आदमी ने उस फोटोग्राफर से पूछा शक शमत्र, क्या पहिे फोटो के
अिािा दू सरे फोटो उिरिाने िािे भी यहां आिे हैं ? उसने कहा: िुम पहिे
आदमी हो जो पहिी फोटो को उिरिाने का शिचार कर रहा है , अब िक िो
यहां जो भी आिा है , िह दू सरा उिरिािा है या िीसरा, दू सरा मजबूरी में
उिरिािा है , पैसे कम हो िो, ऐसे िो िीसरा ही उिरिािा है ।

पहिा फोटो िो कोई कहिा ही नहीं शक उिारो, शक जैसा मैं हं िैसा ही उिार
दो, ऐसा िो कोई उिरिाना ही नहीं चाहिा। और अगर कभी शकसी का भूि-
चूक से उिर जाए, िो िह नाराज होिा है शक यह िो शबिकुि मेरे जैसा नहीं
मािूम होिा, यह फोटो िो शबिकुि गड़बड़ है । यह क्या आप बिाए, यह
फोटो िो मेरे जैसा है ही नहीं शबिकुि। िो उसने कहा शक अगर कोई
उिरिाना भी चाहिा है िो भी हम पां च रुपये में ही दू सरा िािा फोटो उिार
दे िे हैं । िभी िह खुि होिा है ।

िो उस आदमी ने कहा: िेशकन मैं िो अपनी फोटो उिरिाने आया हं शकसी


और का नहीं; मुझे िो िही फोटो चाशहए जैसा मैं हं , बुरा या भिा, जैसा मैं हं
िही मेरा शचत्र है ।

आत्म-शनरीक्षर् का अथय है : पहिे िरह के शचत्र को उिरिाने की सिि चे ष्टा।


हम जैसे हैं , िैसा हमको स्वयं को जानना चाशहए। क्यों? इसशिए शक जीिन,
जीिन के शिज्ञान का यह अत्यंि रहस्यमय सूत्र है शक जो व्यस्ि जैसा है अगर
िैसा ही अपने को जानने िगे िो उसके िैसे हो जाने में बहुि दे र नहीं रह

ओिो पृष्ठ संख्या 149


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जािी जैसा िह होना चाहिा है । नहीं रह जािी दे र, क्योंशक जब हमें दोष
शदखाई पड़ने िु रू होिे हैं , िो हम उनसे मुि होने िगिे हैं । और जब
बीमाररयां हमारे आं खों में आिी हैं , िो हम स्वथथ होने की चेष्टा करने िगिे
हैं । और जब अंधकार-खंि हमें अपने शचत्त में मािूम होने िगिे हैं , िो हम
िहां दीये जिाने िगिे हैं ।

िेशकन कोई भी क्रां शि के शिए और कोई भी शििेक जागरर् के शिए अत्यंि


अशनिायय और जरूरी है शक मैं जैसा हं िैसा अपने को जानने में िग जाऊं।
इसशिए मैंने कहा: आत्म-शनरीक्षर्। आत्म-शनरीक्षर् दू सरा सूत्र है , िो ही
शििेक जगे गा, नहीं िो नहीं जगे गा।

और िीसरा सूत्र है : मूछाय -पररत्याग। बहुि कुछ हम छोड़िे हैं शजंदगी में, िोग
कहिे हैं , त्याग करें --धन छोड़ें ; कोई कहिा है , िोभ छोड़ें ; कोई कहिा है ,
क्रोध छोड़ें । मैं कहिा हं , छोड़ ही नहीं सकेंगे , शकिना ही छोड़ें । धन छोड़ दें
शकिना ही, छोड़ ही नहीं सकेंगे ।

एक संन्यासी के पास में था, िे मुझसे कहे शक मैंने िाखों रुपयों पर िाि
मारी। मैंने उनसे पूछा, यह िाि कब मारी? उन्ोंने कहा: कोई बीस साि
हुए। मैंने कहा: िाि ठीक से िग नहीं पाई, नहीं िो बीस साि िक स्मृशि
कैसे बनी रहिी? िाि थोड़ी दू र पड़ी, धन िहीं का िहीं रखा हुआ है । जब
उन पर िाखों रुपये थे , िो िे अकड़ कर चििे रहे होंगे शक मेरे पास िाखों
रुपये हैं , अब भी अकड़ कर चि रहे हैं शक मैंने िाखों पर िाि मार दी! िह
रुपये से जो भ्रम पैदा होिा था, िह मौजूद है । कोई रुपया नहीं छोड़ सकिा।
मूस्च्छय ि शचत्त धन छोड़ दे गा िो धन के छोड़ने को पकड़ िेगा; भोग छोड़ दे गा
िो त्याग को पकड़ िेगा; गृ हथथी छोड़ दे गा िो संन्यास को पकड़ िेगा,

ओिो पृष्ठ संख्या 150


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेशकन पकड़ जारी रहे गी। क्योंशक मूस्च्छय ि शचत्त मूस्च्छय ि है , उसके छोड़ने से
कोई फकय नहीं पड़िा। मूस्च्छय ि शचत्त िोभ नहीं छोड़ सकिा।

एक गां ि मैं गया, एक संन्यासी िहां बोििे थे । उन्ोंने िोगों को समझाया शक


जब िक िुम िोभ न छोड़ोगे , िब िक िुमको मोक्ष नहीं शमि सकिा। मैंने
उनसे पूछा शक अगर इन्ोंने इस आिा से िोभ छोड़ भी शदया शक मोक्ष पाना
है , िो यह िोभ का शिस्तार हुआ या िोभ का अंि हुआ? इस आिा से िोभ
छोड़ दे ना शक िोभ छोड़ने से मोक्ष शमि जाएगा, यह िो िोभ का शिस्तार
हुआ, यह िोभ का छोड़ना नहीं हुआ। मोक्ष पाने को, ईश्वर पाने को या स्वगय
पाने को अगर कोई िोभ छोड़िा है , िो यह िो िोभ का शिस्तार है । यह िो
िोभ के शिए ही िोभ छोड़िा है , इससे िोभ शमटिा नहीं है ।

हमारा शचत्त जो है िह अगर मूस्च्छय ि है , िो कुछ भी नहीं छोड़ सकिा। और


अगर मूस्च्छय ि नहीं है , िो कुछ भी पकड़ नहीं सकिा। इसशिए बहुि केंिीय
सूत्र कुछ और छोड़ने का नहीं, केंिीय सूत्र है : मूच्छाय -पररत्याग। शचत्त से
बेहोिी और मू च्छाय छूटनी चाशहए, अमूस्च्छय ि जीिन व्यिहार होना चाशहए,
जागा हुआ जीिन व्यिहार होना चाशहए।

आप कहें गे, हम जागे हुए िो जीिन व्यिहार करिे हैं , मैं कहं गा, नहीं, हम
शबिकुि मूस्च्छय ि जीिन व्यिहार करिे हैं । अगर मैं जोर से आपको धक्का दे
दू ं , आप क्रोध से भर जाएं गे और मैं आपसे पूछूं शक यह क्रोध आप होिपू ियक
कर रहे हैं या बेहोिी में कर रहे हैं ?

क्योंशक क्रोध करने के िड़ी भर बाद पिात्ताप िुरू होिा है , िड़ी भर बाद
आपको िगिा है शक यह मैंने कैसे शकया, िड़ी भर बाद आपको िगिा है शक
यह िो मुझे नहीं करना था, िड़ी भर बाद आपको िगिा है शक यह कैसी भू ि
मुझसे हो गई, िो आप िड़ी भर पहिे कहां थे , जब भू ि हुई थी? जब िड़ी

ओिो पृष्ठ संख्या 151


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भर बाद पछिािे हैं , िो िड़ी भर पहिे कहां थे ? जरूर आप अनुपस्थथि रहे
होंगे, एब्सेंट थे , आप मौजूद नहीं थे । जब क्रोध आपको पकड़िा है , आप
अनुपस्थथि होिे हैं , आप मौजूद ही नहीं होिे। मैं आपको शनिेदन करिा हं ,
अगर आप मौजूद हो जाएं , िो क्रोध उसी क्षर् शििीन हो जाएगा, दोनों चीजें
एक साथ नहीं खड़ी हो सकिीं। आप और क्रोध दोनों साथ नहीं हो सकिे।
कभी नहीं हुआ ऐसा, न हो सकिा है । जैसे ही आप होि से भरें गे , आप पाएं गे
क्रोध गया।

मेरे एक शमत्र हैं उन्ें बड़ा क्रोध आिा था, िे बड़े परे िान थे , मुझसे पूछे,
इसके शिए क्या करू
ं ? मैंने कहा: कुछ करें न। खीसे में एक कागज पर
शिख कर रख िें शक अब मुझे क्रोध आ रहा है , और जब भी क्रोध आए, उसे
फौरन शनकाि कर पढ़ िें और िापस खीसे में रख दें , और कुछ भी न करें ।
िे बोिे इससे क्या होगा? मैंने कहा: मुझसे यह मि पूछें, दो-िीन महीने बाद
आएं । िे दो-िीन महीने बाद आए, िे बोिे, बड़ी है रानी की बाि है । खीसे की
िरफ हाथ ही जािा है शक क्रोध क्षीर् होने िगिा है । क्योंशक मुझे ित्क्षर्
खयाि आ जािा है शक क्रोध आ रहा है । शजस क्रोध के शिए मैं पछिाया हं
बहुि बार, दु खी हुआ हं , पीशड़ि हुआ हं , इस बाि का होि आिे ही शक मुझे
आ रहा है , िह क्षीर् होने िगिा है ।

अगर हम जीिन के प्रशि सिि जागरूक हो जाएं और जो भी हो रहा है


उसके प्रशि पूरे होि से भर जाएं , िो जीिन में जो भी बु रा है , िह असंभि हो
जाएगा। क्योंशक बुरे के आगमन का द्वार मूच्छाय है , बेहोिी है । बुरे को छोड़ा
नहीं जा सकिा, कोई छोड़ नहीं सकिा बुरी बािों को, िेशकन अगर होि आ
जाए, िो बुरे को पकड़ा नहीं जा सकिा, कोई पकड़ नहीं सकिा बुरी बाि
को।

ओिो पृष्ठ संख्या 152


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इसशिए केंिीय जीिन की जो क्रां शि है , िह मूच्छाय के आस-पास िूमिी है ,
मूच्छाय या अमूच्छाय । दो ही िरह के िोग होिे हैं , मूस्च्छय ि या अमूस्च्छय ि, सोये
हुए या जागे हुए। िो जागने की कोशिि करें शनरं िर, जीिन चौबीस िंटे
मौका दे िा है , जब आप सोिे हैं , उस िि जागें । आज से ही इसे िुरू करें ,
क्योंशक कि के शिए जो छोड़िा है िह शफर सोने का एक काम कर रहा है ।
िो िह कहिा है , कि से िुरू करें गे । िह शफर नींद की बािें कर रहा है ।
क्योंशक कि का कोई पक्का भरोसा नहीं। िह नींद में है शफर। अगर िह
मानिा है शक कि भी होगा, अगर िह मानिा है शक मैं कि भी रहं गा, िो िह
नींद में है , सपना दे ख रहा है । कि का कोई पक्का नहीं है शक आप रहें गे या
नहीं रहें गे।

इसशिए शजसे जागरर् िुरू करना है , उसे इसी क्षर् िुरू करना पड़े गा।
छोटी-छोटी चीजों में जागरूक होकर दे खें, होिपू ियक करके दे खें उन्ीं
चीजों को। जरा कोशिि करें , कभी क्रोध को होिपूियक करके दे खें। और
अगर आप सफि हो जाएं , िो आप बड़े अदभु ि आदमी हैं । अब िक दु शनया
में कोई सफि नहीं हो सका है । होिपूियक क्रोध नहीं शकया जा सकिा,
होिपूियक शकसी को दु ख नहीं पहुं चाया जा सकिा, होिपूियक शहं सा नहीं की
जा सकिी।

होिपूियक शजन-शजन चीजों को हम पाप कहिे हैं , िह कोई भी नहीं शकया जा


सकिा, इसशिए मैं िो पाप की ही यह पररभाषा करिा हं शक जो बेहोिी में
शकया जा सके, िह पाप है और जो बे होिी में न शकया जा सके, िह पुण्य है ।
िीसरा सूत्र है : अमूस्च्छय ि जीिन व्यिहार।

(यह क्या मामिा है ? )

ओिो पृष्ठ संख्या 153


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अमूस्च्छय ि जीिन व्यिहार िीसरा सू त्र है । पहिे दो सू त्र मैंने कहे : संदेह की
भू शम, आत्म-शनरीक्षर् की खाद और अमूस्च्छय ि जीिन व्यिहार की िषाय ।
अगर ये िीन बािें जीिन में हों, िो शििेक के बीज सबके भीिर मौजूद है , िे
अंकुररि हो जाएं गे। और शििेक जाग्रि हो जाए, िो एक आत्मानुिासन पैदा
होिा है , एक शिशसस्प्लन पैदा होिी है , एक अनुिासन पैदा होिा है जो स्वयं
के भीिर से आिा है , बाहर से नहीं। एक अनुिासन है जो बाहर से आिा है ,
िह झूठा है । एक अनुिासन है जो भीिर से जगिा है , एक आचरर् है जो
भीिर से जगिा है , िह अदभु ि है , उसका सौंदयय अदभु ि है , जो अनुिासन
बाहर से आिा है , िह कुरूप कर दे िा है व्यस्ित्व को, शक्रशपल्ड कर दे िा है ,
पंगु कर दे िा है । उससे ज्यादा अग्लीनेस और कुछ भी नहीं है , उससे ज्यादा
कुरूप स्थथशि और कोई भी नहीं है ।

िेशकन जो अनुिासन भीिर से आिा है ! इन िीन सूत्रों के आधार पर जो


शििेक जागिा है और अनुिासन आिा है , िह व्यस्ित्व को सुंदर कर जािा
है , प्रार्ों को सौंदयय से भर दे िा है , संगीि से भर दे िा है । और शफर जीिन में
एक सहज चयाय उत्पन्न होिी है , अत्यंि सहज चयाय उत्पन्न होिी है , हम क्षर्-
क्षर् जीए जािे हैं होिपूियक, शििेकपूियक, और जो ठीक है िही हमसे होिा
है , जो ठीक नहीं है , िह होिा ही नहीं। अिुभ को रोकना नहीं पड़िा, िुभ
को िाना नहीं पड़िा। िुभ आिा है , अिुभ आिा ही नहीं।

एक छोटी सी कहानी और शफर मैं चचाय पूरी करू


ं । और शफर हम ध्यान के
शिए बैठें।

बुि के पास एक राजकुमार दीशक्षि हो गया, दीक्षा के दू सरे ही शदन शकसी


श्राशिका के िर उसे शभक्षा िेने बुि ने भे ज शदया। िह िहां गया। रास्ते में दो-
िीन िटनाएं िटीं िौटिे आिे में, उनसे बहुि परे िान हो गया। रास्ते में

ओिो पृष्ठ संख्या 154


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसके मन में खयाि आया शक मुझे जो भोजन शप्रय हैं , िे िो अब नहीं शमिेंगे।
िेशकन श्राशिका के िर जाकर पाया शक िही भोजन थािी हैं जो उसे बहुि
प्रीशिकर हैं । िह बहुि है रान हुआ। शफर सोचा संयोग होगा, को-इनसीिें स है
एक, जो मुझे पसंद है िही आज बना होगा। िह भोजन करिा है िभी उसे
खयाि आया शक रोज िो भोजन के बाद में शिश्राम करिा था दो िड़ी, आज
िो शफर धूप में िापस िौटना है ।

िेशकन िभी उस श्राशिका ने कहा शक शभक्षु बड़ी अनुकंपा होगी अगर भोजन
के बाद दो िड़ी शिश्राम करो। बहुि है रान हुआ। जब िह सोचिा था यह िभी
उसने यह कहा था, शफर भी सोचा संयोग शक ही बाि होगी शक मेरे मन भी
बाि आई और उसके मन में भी सहज बाि आई शक भोजन के बाद शभक्षु
शिश्राम कर िे।

चटाई शबछा दी गई, िह िेट गया, िेटिे ही उसे खयाि आया शक आज न िो


अपना कोई साया है , न कोई छप्पर है अपना, न अपना कोई शबछौना है , अब
िो आकाि छप्पर है , जमीन शबछौना है । यह सोचिा था, िह श्राशिका िौटिी
थी, उसने पीछे से कहा: भं िे! ऐसा क्यों सोचिे हैं ? न िो शकसी की िय्या है , न
शकसी का साया है । अब संयोग मानना कशठन था, अब िो बाि स्पष्ट थी।

िह उठ कर बैठ गया और उसने कहा शक मैं बड़ी है रानी में हं , क्या मेरे
शिचार िुम िक पहुं च जािे हैं ? क्या मेरा अंिःकरर् िु म पढ़ िेिी हो? उस
श्राशिका ने कहा: शनशिि ही।

पहिे िो, सबसे पहिे स्वयं के शिचारों का शनरीक्षर् िु रू शकया था, अब िो


हािि उिटी हो गई, स्वयं के शिचार िो शनरीक्षर् करिे-करिे क्षीर् हो गए
और शििीन हो गए, मन हो गया शनशियचार, अब िो जो शनकट होिा है उसके
शिचार भी शनरीक्षर् में आ जािे हैं । िह शभक्षु िबड़ा कर खड़ा हो गया और

ओिो पृष्ठ संख्या 155


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसने कहा शक मुझे आज्ञा दें , मैं जाऊं, उसके हाथ-पैर कंपने िगे । उस
श्राशिका ने कहा: इिने िबड़ािे क्यों हैं ? इसमें िबड़ाने की क्या बाि है ?
िेशकन शभक्षु शफर रुका नहीं। िह िापस िौटा, उसने बुि से कहा: क्षमा करें ,
उस द्वार पर दु बारा शभक्षा मां गने मैं न जा सकूंगा।

बुि ने कहा: कुछ गििी हुई? िहां कोई भू ि हुई?

उस शभक्षु ने कहा: न िो भू ि हुई, न कोई गििी, बहुि आदर-सम्मान और


जो भोजन मुझे शप्रय था िह शमिा, िेशकन िह श्राशिका, िह युििी दू सरे के
मन के शिचारों को पढ़ िेिी है , यह िो बड़ी खिरनाक बाि है । क्योंशक उस
सुंदर युििी को दे ख कर मेरे मन में िो कामिासना भी उठी, शिकार भी उठा
था, िह भी पढ़ शिया गया होगा? अब मैं कैसे िहां जाऊं? कैसे उसके सामने
खड़ा होऊंगा? मैं नहीं जा सकूंगा, मुझे क्षमा करें !

बुि ने कहा: िहीं जाना पड़े गा। अगर ऐसी क्षमा मां गनी थी िो शभक्षु नहीं होना
था। जान कर िहां भे जा है । और जब िक मैं न रोकूंगा, िब िक िहीं जाना
पड़े गा, महीने दो महीने, िषय दो िषय, शनरं िर यही िु म्हारी साधना होगी।
िेशकन होिपूियक जाना, भीिर जागे हुए जाना और दे खिे हुए जाना शक
कौनसे शिचार उठिे हैं , कौन सी िासनाएं उठिी हैं , और कुछ भी मि करना,
िड़ना मि जागे हुए जाना, दे खिे हुए जाना भीिर शक क्या उठिा है , क्या
नहीं उठिा।

िह दू सरे शदन भी िहीं गया। सोच िें उसकी जगह आप ही जा रहे हैं , और
िह श्राशिका आपका मन पढ़ िेिी है , और िह बहुि सुं दर है , बहुि आकषयक
है , बहुि सम्मोहक है , और िह मन पढ़ िेिी है आपका। हां , मन न पढ़िी
होिी, यह आपको पिा न होिा, िो शफर मन में आप कुछ भी करिे, आज
क्या करें गे ? आज आप ही जा रहे हैं उसकी जगह शभक्षा मां गने, रास्ते पर

ओिो पृष्ठ संख्या 156


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आप हैं । िह शभक्षु बहुि खिरे में है , अपने मन को दे ख रहा है , जागा हुआ है ,
आज पहिी दफा शजंदगी में िह जागा हुआ चि रहा है सड़क पर, जैसे-जैसे
उस श्राशिका का िर करीब आने िगा, उसका होि बढ़ने िगा, भीिर जैसे
एक दीया जिने िगा और चीजें साफ शदखाई पड़ने िगीं और शिचार िूमिे
हुए मािूम होने िगे ।

जैसे उसकी सीशढ़यां चढ़ा, एक सन्नाटा छा गया भीिर, होि पररपूर्य जग


गया। अपना पै र भी उठािा है िो उसे मािूम पड़ रहा है , श्वास भी आिी-
जािी है िो उसके बोध में है । जरा सा भी कंपन शिचार का भीिर होिा है ,
िहर उठिी है कोई िासना की, िह उसको शदखाई पड़ रही है ।

िह िर के भीिर प्रशिष्ट हुआ, मन में और भी गहरा िां ि हो गया, िह


शबिकुि जागा हुआ है । जैसे शकसी िर में दीया जि रहा हो और एक-एक
चीज, कोना-कोना प्रकाशिि हो रहा हो। िह भोजन को बैठा, उसने भोजन
शकया, िह उठा, िह िापस िौटा, िह उस शदन नाचिा हुआ िापस िौटा।

बुि के चरर्ों में शगर पड़ा और उसने कहा: अदभु ि हुई बाि। जैसे-जैसे मैं
उसके शनकट पहुं चा और जैसे-जैसे मैं जागा हुआ हो गया, िैसे-िैसे मैंने पाया
शक शिचार िो शििीन हो गए, कामनाएं िो क्षीर् हो गईं, और मैं जब उसके
िर में गया िो मेरे भीिर पूर्य सन्नाटा था, िहां कोई शिचार नहीं था, कोई
िासना नहीं थी, िहां कुछ भी नहीं था, मन शबिकुि िां ि और शनमयि दपय र्
की भां शि था।

बुि ने कहा: इसी बाि के शिए िहां भे जा था, कि से िहां जाने की जरूरि
नहीं। अब जीिन में इसी भां शि जीओ, जैसे िुम्हारे शिचार सारे िोग पढ़ रहे
हों। अब जीिन में इसी भां शि चिो, जैसे जो भी िु म्हारे सामने है , िह जानिा
है , िुम्हारे भीिर दे ख रहा है । इस भां शि भीिर चिो और भीिर जागे रहो।

ओिो पृष्ठ संख्या 157


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जैसे-जैसे जागरर् बढ़े गा, िैसे-िैसे शिचार, िासनाएं क्षीर् होिी चिी जाएं गी।
शजस शदन जागरर् पूर्य होगा उस शदन िुम्हारे जीिन में कोई काशिमा, कोई
किुष रह जाने िािा नहीं है । उस शदन एक आत्म-क्रां शि हो जािी है । इस
स्थथशि के जागने को, इस चैिन्य के जागने को मैं कह रहा हं --शििेक का
जागरर्।

िीन सूत्र मैंने कहें , उन पर शिचार करें । संदेह को आने दें , संदेह से भयभीि
न हों, सम्यक संदेह की भू शम बनने दें । आत्म-शनरीक्षर् करें , खुद के जीिन में
आं खों को गड़ाएं , खुद के जीिन में खोजें, कुछ शछपाएं न खुद के जीिन में,
सब

उिाड़ िें, अपने सामने पूरी िरह नग्न हो जाएं । और िीसरी बाि अमूस्च्छय ि
जीिन व्यिहार की शदिा में कुछ प्रयोग करें । होि साधें और मूच्छय छोड़ें ।
शफर जागे गा शििेक। और शजस शदन शििेक जागे गा, उस शदन जानना शक
जीिन के सबसे बड़े सौभाग्य का क्षर् शनकट आ गया है ।

कि हम िीसरी बाि करें गे सुबह। दो बािें हमने कीं: श्रिा से मुस्ि और


शििेक का जागरर्। और कि हम बाि करें गे : समाशध का अििरर्, समाशध
कैसे उिर आए, उसकी चचाय कि होगी।

ये दो बािें जो अभी हुई हैं , इन पर जो भी प्रश्न होंगे, उनकी हम राि चचाय कर


िेंगे।

अब हम सुबह के ध्यान के शिए बैठेंगे ।

थोड़े -थोड़े फासिे पर हो जाएं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 158


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-07

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

सातिाां-प्रिचन

बहुत से प्रश्न मेरे समक्ष हैं । सबसे पहले तो यह पूछा गया है शक मेरी बातें
अव्यािहाररक मालूम होती हैं । ठीक प्रतीत होती हैं , लेशकन
अव्यािहाररक मालूम होती हैं ।
यह ठीक से समझ िेना जरूरी है --मनुष्य के इशिहास में जो-जो हमें
अव्यािहाररक मािूम पड़ा है , िही कल्यार्प्रद शसि हुआ है । और शजसे हम
व्यािहाररक समझिे हैं , उसने ही हमें आिययजनक रूप से दु ख में, शहं सा में
और पीड़ा में िािा है । शनशिि ही जो आप कर रहे हैं िह आपको
व्यािहाररक मािूम होिा होगा, प्रेस्क्टकि मािूम होिा होगा, िेशकन उसका
पररर्ाम क्या है आपके जीिन में? व्यािहाररक जो आपको मािूम पड़िा है ,
आप कर रहे हैं , िे शकन उसका पररर्ाम क्या है ? उसका पररर्ाम िो शसिाय
दु ख और शचंिा के कुछ भी नहीं। शनशिि ही उससे शभन्न कोई भी बाि एकदम
से अव्यािहाररक मािूम होगी। इसशिए नहीं शक िह अव्यािहाररक है ,
बस्ल्क इसशिए शक शजसे आप व्यािहाररक समझिे रहे हैं , िह उससे शभन्न
और शिपरीि है , अपररशचि है ।

और कोई भी अज्ञाि जीिन-शदिा में प्रिेि करने के पूिय पररशचि भू शम


छोड़नी पड़िी है । शजस पररशचि को हम जानिे हैं , ज्ञाि और नोन, उसको
छोड़ना पड़िा है िो ही अज्ञाि में प्रिेि होिा है । शनशिि ही थोड़ा
अव्यािहाररक होने को कभी न कभी िैयार होना चाशहए।

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जैसे उदाहरर् को यह बाि शबिकुि ही व्यािहाररक मािूम होिी है शक कोई
मुझे गािी दे , िो मैं दु गुने िजन की गािी उसे दू ं । यह बाि व्यािहाररक
मािूम होिी है , कोई मुझे ईंट मारे , िो मैं पत्थर से जिाब दू ं । क्राइस्ट ने जब
िोगों को कहा शक िुम अपना बायां गाि भी उनके सामने कर दे ना जो दाएं
पर चोट करे , िो बाि शबिकुि अव्यािहाररक िगे गी।

िेशकन ईंट के जिाब में पत्थर से मारना, इस अव्यािहाररक बाि पर ही िीन


हजार िषय में साढ़े चार हजार युि हुए हैं । िीन हजार िषों के मनुष्य-जाशि के
इशिहास में साढ़े चार हजार युि इस व्यािहाररक बाि पर हुए हैं शक िुम ईंट
का जिाब पत्थर से दे ना और जो िु म्हारी एक आं ख फोड़े , िुम दोनों फोड़
दे ना। सोचें थोड़ा सा, अगर िीन हजार िषों में साढ़े चार हजार बार मनुष्य-
जाशि पागि हो जािी हो, इस मनुष्य-जाशि की व्यािहाररकिा में कुछ न कुछ
बुशनयादी भू ि होनी चाशहए। और यह पागिपन कुछ थोड़ा नहीं है , शपछिे दो
महायुिों में दस करोड़ िोगों की हत्या की है हमने। शफर भी हम कहिे हैं
शक हम जो सोचिे हैं िह व्यािहाररक है ।

और अब िो हम उस समय के करीब आ रहे हैं शक हो सकिा है पूरी मनुष्य-


जाशि समाि हो जाए, िेशकन शफर भी हम कहें गे शक हम जो सोचिे हैं िह
व्यािहाररक है ।

सारा जीिन नरक हो गया है , िेशकन हम कहिे हैं शक हम व्यािहाररक


आधारों पर नरक में खड़े हैं । और जो कोई भी बाि इस नरक से बाहर
शनकािने की हो, िह अव्यािहाररक मािूम होिी है । जरूर होगी, होनी ही
चाशहए। अगर िह आपको अव्यािहाररक मािूम न होिी, िो आपने कभी
का उसे कर शिया होिा और जीिन बदि गया होिा।

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इसशिए कृपा करके अपनी व्यािहाररकिा पर थोड़ा संदेह करें । आपकी
व्यािहाररकिा िािक है , आपके जीिन में और सारी जाशि के जीिन में।
थोड़ा उस पर िक करें , थोड़ा शिचार करें शक िह व्यािहाररकिा कहां िे
आई है ?

जरूर क्राइस्ट की बाि शबिकुि अव्यािहाररक मािू म होिी है । क्राइस्ट ने


कहा: उन्ें क्षमा कर दे ना जो िुम्हें चोट करे । शबिकुि अव्यािहाररक बाि
है । क्राइस्ट को शजस शदन सूिी दी गई, िे सूिी पर िटकाए गए, िटकाने
िािे िोगों ने कहा शक कुछ अंशिम बाि कहनी हो िो कहो? िो उन्ोंने कहा:
हे परम शपिा! इन सबको क्षमा कर दे ना, क्योंशक ये नहीं जानिे शक ये क्या
कर रहे हैं ! यह िो नहीं कहना था, भगिान से प्राथय ना करनी थी शक जिा कर
इन सबको खाक कर दे ना और साििें में नरक में िािना और अशग्न में
चढ़ाना और कड़ाशहयों में िािना और इनको सिाना दु ष्टों को। िेशकन
उन्ोंने बड़ी अव्यािहाररक बाि कही शक इन्ें माफ कर दे ना, क्योंशक ये नहीं
जानिे शक ये क्या कर रहे हैं ! इन्ें अपने करने का भी कोई पिा नहीं है , होि
नहीं है ।

जरूर यह बाि अव्यािहाररक िगिी है । िेशकन अव्यािहाररक होने से कोई


बाि न िो गिि होिी है और न िस्तुिः जीिन में न उिारने योग्य हो जािी है ।
िो मेरा शनिेदन है , अगर कोई बाि ठीक िगिी हो और अव्यािहाररक
मािूम होिी हो, िो यही समझना ज्यादा उशचि होगा शक शजसे हम
व्यािहाररक समझिे रहे हैं िह हमारी समझ भू ि है । रह गई बाि यह शक नये
प्रयोग िो जीिन में िुरू करिे िि अजनबी होंगे, िेशकन यशद उन्ें कोई
करे गा, िो िे क्रमिः पररशचि होिे जािे हैं । और ठीक उिटी बाि िटिी है ।

एक छोटी सी िटना कहं ।

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चंपारन में गां धी थे । शकसी अंग्रेज चाय बगीचे के माशिक ने, गां धी ने िहां कुछ
आं दोिन चिाया, एक चाय बगीचे के माशिक अंग्रेज ने शकसी गुं िे को कहा:
पां च हजार रुपये दें गे, गां धी को मार िािो। अदािि में मुकदमे से िबड़ाना
मि, हमारी अदाििें हैं , उसमें भी हम बचा िेंगे।

यह खबर गां धी के शमत्रों को िगी, उन्ोंने गां धी को जाकर कहा शक ऐसी-


ऐसी खबर है । रोज सुबह चार बजे उठ कर आप अंधेरे में िूमने जािे हैं , ठीक
नहीं। कि से इिने जल्दी न जाएं , सूरज शनकि आए िब जाएं , कोई भी
खिरा हो सकिा है ।

रोज गां धी चार बजे उठिे थे , उस शदन िीन बजे ही उठ आए। शमत्र सोिे थे,
चार बजे के खयाि में थे शक उठें गे िब िे भी उठ आएं गे । गां धी िीन बजे उठे
और उस आदमी के िर पहुं च गए, शजसके बाबि यह खबर थी शक िह पां च
हजार रुपये दे कर मरिाना चाहिा है । िीन बजे राि गां धी को दे ख कर उसे
शिश्वास ही नहीं आया, दो-चार दफे उसने आं ख मींड़ी होंगी, साफ की होंगी
शक अंधेरे में सपना िो नहीं दे खिा राि में, कहां गां धी सामने खड़े हैं । गां धी ने
जाकर कहा शक िुम्हारी बड़ी कृपा है , क्योंशक इस िरीर के शिए मर जाने पर
पां च हजार दे ने को कोई भी राजी नहीं होगा, आदमी के िरीर की कीमि
बहुि कम है ।

िायद आपको पिा न हो, दु शनया में शकसी भी जानिर की बजाय आदमी के
िरीर की कीमि बहुि कम है । एक जानिर का िरीर शबकिा है , िो उससे
कुछ पैसा शमि सकिा है , आदमी के िरीर में कुछ भी नहीं है ।

शहसाब िगाया जाए, िो मुस्िि से कोई साढ़े चार, पां च रुपये का सामान
शनकििा है आदमी के िरीर में से, इससे ज्यादा का नहीं। अब थोड़ा जमाना
महं गा है , िो साढ़े साि का, आठ का शनकििा होगा, इससे ज्यादा का नहीं।

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िो गां धी ने उनको कहा शक पां च हजार बहुि हैं , मुझे इिना दाम दे ने को कोई
राजी नहीं होगा, और शफर मुझे जरूरि भी है हररजन फंि में, िो ये पां च
हजार रुपये मुझको दे दें और गोिी मार दें , और यहां कोई भी मौजूद नहीं है ,
इससे कोई सिाि भी नहीं उठे गा, कोई झंझट भी नहीं उठे गी, कोई परे िानी
भी खड़ी नहीं होगी।

िह आदमी िो िबड़ा गया, यह शिश्वास करना सं भि नहीं हुआ, ऐसी


अव्यािहाररक बाि पर कोई शिश्वास करिा है , िो बहुि िबड़ा गया, क्या
करे , क्या न करे , उसकी समझ न आया, शसिाय इसके शक गां धी के पैर छु ए।
उसने गां धी के पैर छु ए और कहा शक मैं अब िक सोचिा था शक यह जीसस
क्राइस्ट की सारी िटना काल्पशनक है , आपने आज मेरे द्वार पर उपस्थथशि
होकर स्पष्ट कर शदया शक क्राइस्ट भी हुआ होगा, और फां सी पर िटके हुए
उसने कहा होगा शक क्षमा कर दे इनको, क्योंशक इन्ें पिा नहीं शक ये क्या
कर रहे हैं ! आपने मुझे शक्रशियन बना शदया।

गां धी िो िापस िौट आए, िेशकन िह आदमी बदि गया, िह दू सरा आदमी
हो गया।

शनशिि ही कोई भी व्यािहाररक आदमी इस िरह का काम करने को राजी


नहीं होगा। िेशकन दु शनया उन िोगों से आगे बढ़िी है , जो थोड़े से
अव्यािहाररक होिे हैं । और उन िोगों से िो रोज गङ् ढे में शगरिी है , शजनको
हम व्यािहाररक कहिे हैं । आपकी बड़ी कृपा होगी, अपने पर भी और दू सरों
पर भी, अगर आप अपने थोड़ी व्यािहाररकिा से हटें और थोड़े
अव्यािहाररक होने की भी शहम्मि करें । स्मरर् रखें, अव्यािहाररक होने की
थोड़ी सी भी चेष्टा जीिन में क्रां शि िा सकिी है ।

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िो मैं जो कह रहा हं , ऐसे िो जीिन के मूिभू ि सूत्रों से संबंशधि है ,
अव्यािहाररक उसमें कुछ भी नहीं है । जो भी करे गा, िह पाएगा, उससे
ज्यादा सम्यक व्यिहार और कोई भी नहीं हो सकिा। िेशकन हम बहुि
होशियार िोग हैं , हम जो करिे हैं , उससे न हटने के शिए हजार बहाने
खोजिे हैं । और सबसे बड़ा बहाना यह होिा है शक हम शकसी बाि को कह दें
शक बाि िो शबिकुि ठीक है , िेशकन अव्यािहाररक है । कहीं ठीक बािें भी
अव्यािहाररक होिी हैं ?

बड़ी है रानी की बाि है ! अगर ठीक बािें अव्यािहाररक होिी हैं , िो शफर
गिि बािें व्यािहाररक होिी होंगी। िब िो शफर ठीक और अव्यािहाररक
बािें ही चुनना उशचि है बजाय गिि और व्यािहाररक बािों के। क्योंशक
चुनाि हमे िा ठीक और गिि के बीच है । जो आपको ठीक मािूम होिा हो,
उसे चुनने का साहस होना चाशहए। थोड़ी िकिीफ भी होगी ठीक को चुनने
में, थोड़ी असुशिधा भी होगी। िेशकन जो सत्य जीिन के शिए थोड़ी असुशिधा
और िकिीफ भी उठाने को राजी न हो, जो इिना भी मू ल्य न चुकाना चाहिा
हो, उसका जीिन सत्य नहीं हो सकिा, असत्य ही रहे गा।

िो इसशिए यह मेरी कोई भी बाि अव्यािहाररक मािू म होिी हो, उसे थोड़ा
सोचें, समझें, शिचारें , थोड़ा प्रयोग करें , नहीं पाएं गे शक िह अव्यािहाररक है ।
क्योंशक अव्यािहाररक बािें करने से फायदा भी क्या है ? अथय भी क्या है ?
प्रयोजन भी क्या है ? मेरी िरफ से मैं कोई अव्यािहाररक बाि आपसे नहीं
कह रहा हं । आपकी िरह से अव्यािहाररक शदखाई पड़िी हो, िो थोड़ा
शिचार करें , िो थोड़ा प्रयोग करें , दे खें। प्रयोग करिे ही पिा चिेगा शक हम
जो कर रहे थे , िही अव्यािहाररक था।

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और भी कुछ प्रश्न पूछें हैं । ऐसे तो एक ही प्रश्न ऐसा होता है शक उसे और
गहरे में जाया जाए, तो िह लांबा हो, लेशकन शिर सब प्रश्नोां के उत्तर
सांभि नही ां होांगे।
कल या आज सुबह मैंने कहा शक शजन्ोांने कहा है , स्त्री नरक का द्वार
है , उन्ोांने गलत कहा है , तो शकसी ने पूछा है शक हम तो ऐसा ही
अनुभि करते हैं शक शकसी स्त्री के चक्कर में पड़ गए शक शिर नरक का
दरिाजा खुला। और शिर जन्म-मरण का शसलशसला िुरू हो जाता है ।
तो आप यह शकस आधार पर कहते हैं शक स्त्री नरक का द्वार नही ां है ?
यह इन्ोंने बड़ी सीधी और साफ बाि पूछी है । िेशकन िे यह भी िो सोचें शक
जो स्त्री आपके चक्कर में पड़ गई है , उसका नरक का दरिाजा आपने खोि
शदया शक नहीं? आप ही स्त्री के चक्कर में पड़े हैं यह बड़ी कमजोर बाि
होगी, स्त्री भी आपके चक्कर में पड़ गई है । िेशकन इस बाि को आप चक्कर
में पड़ना क्यों समझिे हैं ? इस बाि को चक्कर में पड़ना समझिे हैं , िायद
इसशिए नरक का द्वार खुि जािा है । हम जीिन को सहजिा से िेिे ही नहीं,
हमारा शचत्त बहुि जशटि हो गया और हम जीिन को बड़ी दु रूहिा से िेिे हैं ,
बड़ी कशठनाई से िेिे हैं । हमने जीिन की सारी शनसगय िा को, सारी सहज
स्वाभाशिकिा को झूठे शसिां िों, झूठी मान्यिाओं से इस भां शि दबा रखा है
शक हम अदभु ि रूप से मूखयिापूर्य शचं िन में उिर गए हैं और सारे जीिन को
खराब शकया हुआ है ।

मैं एक िर में मेहमान था, उस िर की गृ शहर्ी ने मुझसे कहा शक मैं पशि को


बहुि सम्मान दे िी हं , िेशकन शफर भी रोज किह हो जािी है । आदर करिी
हं , जैसा मुझे शसखाया शक परमात्मा समझो पशि को, िैसे ही समझने की
कोशिि करिी हं , िेशकन शफर भी चौबीस िंटे किह चििी है , बहुि
मुस्िि हो गया, नारकीय जीिन हो गया। मैंने उन मशहिा को कहा शक
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िायद िुम्हें यह पिा न हो शक इस नारकीयिा में उन्ीं िोगों का हाथ है , जो
नरक-स्वगय की बहुि बािें करिे हैं । िह बोिी, कैसे?

मैंने उनको कहा शक हम बहुि छोटे से बच्चों को भी सेक्स के प्रशि िृर्ा


शसखािे हैं , कंिे मनेिन शसखािे हैं , शनंदा शसखािे हैं , सेक्स को एक पाप
बििािे हैं । बीस िषय की युििी हो जािी है , िब िह शििाशहि होिी है या बीस
िषय, बाईस िषय का युिक हो जािा है , िब िह शििाशहि होिा है । बीस िषय
िक शजस िड़की ने काम की िृशत्त को पाप और िृशर्ि समझा हो, जब
शििाह के बाद पशि उसके शनकट आए, िो यह आदमी उसे पापी मािूम पड़े ,
इसमें कोई आियय नहीं है ।

और इस आदमी के प्रशि उसके मन में अनादर और िृ र्ा का भाि आए, यह


भी आिययजनक नहीं है । शजस दे ि में सेक्स के प्रशि शनंदा का भाि हो, उस
दे ि में पत्नी पशि का आदर नहीं कर सकिी और न पशि पत्नी का आदर कर
सकिा है । दोनों के मन में िृर्ा है , िीव्र िृर्ा। और शकस बाि के प्रशि िृर्ा
है ?

काम की िस्ि समस्त सृजन का मू ि है , सारा जीिन उसी से शिकशसि होिा


है , उसी केंि से। पौधे और पिु और पक्षी और फूि और मनुष्य सभी उसी से
पैदा होिे हैं । अगर परमात्मा की कोई भी िस्ि काम कर रही है शिश्व के
शनमाय र् में, िो िह काम की िस्ि है , िह सेक्स की िस्ि है , िह सेक्स
एनजी है । जो भी सृशष्ट हो रही है , जो भी सृजन हो रहा है , िह उससे हो रहा
है ।

उस मूि िस्ि को जब हम शनंदा के भाि से दे खिे हैं , िो जीिन में कुंठा पै दा


हो जाए, दु ख पैदा हो जाए, इसमें कोई आियय नहीं। और जब हम उसे शनं दा
के भाि से दे खिे हैं , िबड़ाहट से दे खिे हैं , परे िानी से दे खिे हैं , िो उससे

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िड़िे भी हैं और िह िृशत्त हमारे प्रार्ों के केंि पर काम भी करिी है , िो हम
उससे आकशषयि भी होिे हैं , उससे भागिे भी हैं , उसके शनकट भी जािे हैं ,
उससे दू र भी होना चाहिे हैं और इस खींचत्तान में, इस कां स्िक्ट में अगर
जीिन नरक बन जािा हो, िो न िो इसमें स्त्री का कोई कसूर है , न पुरुष का
कोई कसूर है ।

जीिन में जो शनसगय है , जो प्रकृशि है , उसे हमने सहजिा से िेना ही छोड़


शदया। हमने उसे सहजिा से शिया ही नहीं। और बड़े आियय की बाि है ,
अगर हम उसे सहजिा से िे सकें, और अगर हम--पशि पत्नी को प्रेम दे सके,
पत्नी पशि को प्रेम दे सके, अबाध, अनकंिीिनि; शकसी ििय के कारर्
नहीं, शकसी बाधा के कारर् नहीं, सहज और उन्मुि प्रेम दे सके, िो सबसे
जो महत्वपूर्य बाि है , िह यह है शक शजिना प्रेम गहरा और िना होगा, उिना
ही सेक्स, काम का संबंध शििीन होिा चिा जाएगा। काम की सारी िस्ि
प्रेम में पररिशियि हो सकिी है ।

और शकसी चीज में कभी पररिशियि नहीं होिी। और जो िोग सेक्स से िड़ाई
िुरू कर दे िे हैं , उनका जीिन अत्यशधक कामुक हो जािा है , अत्यशधक
मानशसक व्यशभचार से भर जािा है । मन में व्यशभचार करिे हैं , ऊपर से िरिे
हैं , िबड़ािे हैं , िड़िे हैं । और िब शनरं िर एक नरक पैदा हो जाए िो इसमें
आियय कौन सा है !

न िो पत्नी नरक पैदा करिी है , न बच्चे नरक पैदा करिे हैं , न पशि नरक पैदा
करिा है , कोई नरक पैदा नहीं करिा। जीिन को दे खने का हमारा ढं ग अगर
बुशनयादी रूप से गिि है , िो नरक पैदा हो जािा है । नरक पैदा होिा है
जीिन के दे खने के ढं ग से। और हम शजस िरह के दे खने के आदी हो जािे हैं ,
शफर जीिन िैसा ही हो जािा है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और जब जीिन को हम गिि ढं ग से दे खिे हैं , और िह गिि होिा चिा
जािा है , िबड़ाहट बढ़िी चिी जािी है , बेचैनी बढ़िी चिी जािी है । िो हर
आदमी दू सरे पर दोष दे िा है , अपने पर िो दोष नहीं दे िा। पशि पत्नी पर दोष
दे िा है , पत्नी पशि पर दोष दे िी है ।

और यह दोष दे ने की दू सरे पर थोपने की प्रिृशत्त इिनी जिन्य है , इिनी


अपराधपूर्य है , शजसका कोई शहसाब नहीं। और िब शनंदा का एक आदान-
प्रदान चििा है शजसमें कोई हि नहीं हो सकिा, समाधान नहीं हो सकिा।

िो आप गाशियां दे रहे हैं स्स्त्रयों को, स्स्त्रयां िास्त्र शिखें गी, िो िे भी आपको
गाशियां दें गी, अभी उन्ोंने शिखे नहीं हैं , अभी उन्ोंने कोई िास्त्र िैयार नहीं
शकए, अभी िे आपके िास्त्र ही पढ़िी हैं और उन्ीं को मानिी हैं । िो इसशिए
आपकी बािों में िे भी सहमि हैं , िेशकन िे शदन दू र नहीं, जब स्स्त्रयां िास्त्र
शिखेंगी और िे उसमें शिखेंगी शक ये सब पुरुषों के कारर् सारा जगि नष्ट हो
गया, सारा आिागमन चि रहा है और यह सारा का सारा नरक का द्वार ये
पुरुष ही हैं । और जब स्त्री और पुरुष एक-दू सरे को नरक का द्वार समझ िें,
िो दु शनया अगर नरक बन जाए--िो क्या बनेगी और क्या बनेगा शफर दु शनया?

हम शजंदगी को जै सा िेना िुरू करिे हैं , िैसी शजं दगी हो जािी है । हम जै सा


शजंदगी को दे खना िुरू करिे हैं , िैसी शजंदगी हो जािी है ।

मेरी दृशष्ट यह है शक जो आदमी िस्तुिः सरि और िां ि होना चाहिा है , िह


जीिन की जो प्रकृशि है , िह जो नेचर है , िह जो शनसगय है , उसको अत्यंि
धन्यिा से स्वीकार करे गा, अत्यंि धन्यिा से, अत्यंि थैंकफुि होगा, धन्यिाद
से भरा होगा। कहां है गिि? कहां है कुछ गिि? कुछ भी गिि नहीं है ।
फूि पैदा होिे हैं बीज से, कभी आपने जाकर यह कहा शक यह बीज
नारकीय है , इससे फूि पैदा होिे हैं । नहीं, आपने कभी नहीं कहा। और

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आपको पिा नहीं शक फूि से भी बीज उसी िरह पैदा होिे हैं शजस िरह
मनुष्य, मनुष्य पैदा होिा है । उसी िरह सेक्स िहां भी काम कर रहा है फूिों
में भी।

िेशकन हम अजीब िोग हैं , हम जाएं गे िो फूि को कहें गे, बहुि सुंदर। और
शििशियां उड़ रही हैं और फूिों पर से पराग िे जा रही हैं और दू सरे फूिों
िक पहुं चा रही हैं । िे सब जन्म के बीजां कुर हैं । और फूि उड़ रहे हैं हिाओं
में, उनका पराग उड़ रहा है और दू सरे फूिों िक जा रहा है , िे सब बीज हैं ,
िह सब से क्सुअि एस्क्टशिटी है । िेशकन हम फूिों के शिए प्रसन्न हैं और
शििशियों के शिए गीि शिखिे हैं और फूिों के शिए गीि शिखिे हैं और
मनुष्य के जीिन में जब बच्चे का जन्म होिा है , िो शजस अदभु ि व्यिथथा से
बच्चे का जन्म होिा है , उसकी शनंदा करिे हैं ।

आपको पिा है शक जब, जब भी प्रेम से कोई स्त्री और पुरुष का शमिन होिा


है , िो उस क्षर् िे दोनों शमट जािे हैं और उनके दोनों के भीिर परमात्मा के
सृजनात्मक िस्ि काम करने िगिी है और एक बच्चे का जन्म होिा है , एक
नया जीिन पैदा होिा है । इससे बड़ी शमस्टर ी, इससे बड़ा कोई रहस्य नहीं है ।
िेशकन इस सबसे बड़े रहस्य को जहां से जीिन के अंकुर बढ़िे हैं , बड़े होिे
हैं , जहां से जीिन फैििा है , न मािूम शकन नासमझों ने कुंशठि शकया हुआ है ,
शनंशदि शकया हुआ है और शनंदा भर दी है इस बाि के प्रशि। और जब शनंदा
हमारे मन में होगी, िो स्वाभाशिक है शक बच्चे शिकृि पैदा होंगे। इस बाि को
आप समझ िें, दु शनया में मनुष्य-जाशि का जो पिन हो रहा है , िह इस बाि से
हो रहा है शक जब मां -बाप दोनों का हृदय काम के संबंध के प्रशि, मैथुन के
प्रशि िृर्ा से भरा हुआ हो, िो उन दोनों से जो बच्चे पैदा होंगे, िे पशित्रिा में
पैदा नहीं हो सकिे हैं । िे बच्चे कंसीि ही नहीं होिे पशित्रिा में।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मैं िो मानिा हं शक अगर जीिन के बाबि हमारी समझ गहरी होगी, िो हम
सेक्स के प्रशि उिना ही पशित्रिा की धारर्ा और दृशष्ट रखेंगे, जैसे हम मंशदर
में प्राथय ना के प्रशि रखिे हैं , उससे भी ज्यादा। उससे भी ज्यादा इसशिए शक
मंशदर में हो सकिा है पत्थर की मूशिय हो, परमात्मा न हो, िेशकन सेक्स के
संबंध में, मैथुन में िो परमात्मा की स्पष्ट िस्ि काम कर रही है , जीिन का
जन्म हो रहा है ।

पत्नी के पास पशि िैसे जाएगा, जैसे उसे मंशदर के पास जाना चाशहए। पत्नी
पशि के पास िैसे जानी चाशहए, जैसे अत्यंि प्राथय नापूर्य हृदय से भरी हुई।

अगर पत्नी और पशि के बीच का संबंध अत्यंि प्राथय ना, पशित्रिा और ध्यान से
भरा हुआ हो, िो जो बच्चे पै दा होंगे, िे कुछ और ही िरह के पैदा होंगे, उस
पशित्रिा से पशित्रिा का जन्म होगा, उस प्रेम और प्राथयना से कुछ और िरह
की आत्माएं शिकशसि होंगी, िेशकन इस िृशर्ि सं बंध से जो भी पै दा होगा िह
बहुि श्रेष्ठ नहीं हो सकिा। मनुष्य-जाशि का पिन इसशिए हुआ है ।

मनुष्य-जाशि रोज पशिि होिी जा रही है । और उसके पिन के पीछे यह


कारर् नहीं है शक भौशिकिाद है और पशिम के िैज्ञाशनक हैं , और ये हिाई
जहाज बनाने िािे , मोटर बनाने िािे िोग हैं और अच्छे कपड़े बनाने िािे
िोग हैं । ये िोग नहीं हैं पिन के पीछे , न ये शफल्में हैं पिन के पीछे और न
कोई और है पिन के पीछे , पिन के पीछे सेक्स के प्रशि हमारा जो शनं दा का
भाि है , िह मनुष्य-जाशि को बीजों से नष्ट कर रहा है , उसके भीिर से जन्म
जहां से िुरू होिा है िहां से शिकृि और कुरूप कर रहा है । दोनों की
भािनाएं नये बच्चे को शनशमयि करिी हैं ।

अगर दोनों की भािनाएं ऐसी कुंशठि हैं , एक-दू सरे को नरक समझ रहे हैं ,
किह समझ रहे हैं और मजबूरी में, जबरदस्ती में एक-दू सरे से शमि रहे हैं ,

ओिो पृष्ठ संख्या 170


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो स्वाभाशिक है शक जो पैदा होगा, िह कोई श्रेष्ठ नहीं हो सकिा, िह सुंदर
नहीं हो सकिा, िह सत्य और शिि नहीं हो सकिा। सेक्स के संबंध में मे री
अत्यंि आदरपूर्य, अत्यंि पशित्रिा की भािना है , उससे ज्यादा पशित्र कुछ भी
नहीं है ।

हम मां को आदर दे िे हैं , िेशकन हमको पिा नहीं, हम शपिा को आदर दे िे


हैं , िेशकन हमें पिा नहीं, मां और शपिा से भी गहरे में जो सृजन का मूि है िह
कौन है ? और मां को आप कैसे आदर दें गे जब आप सेक्स की शनंदा करें गे ?
और शपिा को कैसे आदर दें गे? और बहुि गहरे में जब आप सृजन को ही
शनंदा कर रहे हैं , िो सृष्टा को कैसे आदर दें गे? यह मेरी समझ में नहीं आिा
शक कौन सा िकय है ? कौन सा गशर्ि है ?

कहिे हैं , सृष्टा को हम आदर दें गे, परमात्मा को, सृजन का जो मूिस्रोि है
उसको आदर दें गे, िो शफर सृजन की इस मूि-शक्रया को कैसे अनादर करें गे
आप? मेरी दृशष्ट में सृजन का मूिस्रोि अनादर के योग्य नहीं, अत्यंि आदर
के योग्य है । एक और ही िरह का दां पत्य जीिन शिकशसि होना चाशहए। यह
दां पत्य जीिन शबिकुि रुग्ण और गिि है ।

और इसे गिि करने में िथाकशथि धाशमयक साधु-संिों के उपदे िों का हाथ
है । और एक खिरनाक षियंत्र कोई दो-िीन हजार िषय से चि रहा है
मनुष्य-जाशि को अदभु ि रूप से शिकृि करने में। और उनके हाथों से चि
रहा है शजनसे हम सोचिे हैं शक जीिन ऊंचा उठे गा। उनकी ही बािें और
उनकी खिरनाक और िािक बािें जीिन को नीचे िे जा रही हैं । क्या इसका
यह अथय है शक मैं आपसे यह कह रहा हं शक आप सब भां शि सेक्स में िूब
जाएं , नहीं, यह मैं आपसे नहीं कह रहा हं । मैं िो आपसे यह कह रहा हं शक
सृजन का जो मूि केंि है उसके प्रशि अनादर और शनं दा का भाि न रखें।

ओिो पृष्ठ संख्या 171


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफर क्या होगा? जब आप अत्यंि प्रे म और पशित्रिा से उस केंि को दे खना
िुरू करें गे , उस िृशत्त को, िो आप खुद है रान हो जाएं गे । अगर एक पशि
अपनी पत्नी को अत्यंि आदर और प्रे म से दे खना िुरू करे , नरक का द्वार न
समझे और िैसा ही पत्नी न समझे, और शजस सं बंध के कारर् िे एक-दू सरे
का नरक बन गए हैं उस संबंध को प्रेम और आदर और सम्मान से स्वीकार
करें , िो आप बहुि है रान हो जाएं गे ।

जैसे-जैसे यह प्रेम गहरा होगा और यह पशित्रिा गहरी होगी और यह प्राथय ना


गहरी होगी, िैसे-िै से सेक्स की जो सृ जनात्मक िस्ि है िह और ऊपर उठ
कर प्रकट होनी िु रू हो जाएगी, िह नये सृजन के रूप िे िेगी। हो सकिा
है आपसे शफर बच्चे ही पैदा न हों, एक गीि पैदा हो, कशििा पैदा हो, एक
मूशिय बने, सेिा शनकिे, सत्य का जन्म हो, सौंदयय का जन्म हो, आपसे कुछ
और नये िि पर सृजन िुरू होगा। आपका जीिन सृजनात्मक और
शक्रएशटि हो जाएगा।

जब कोई व्यस्ि जीिन में श्रेष्ठिर सृजन के मागय खोज िेिा है िो उसके
भीिर से अपने आप सृजन की िस्ि नये-नये द्वारों से प्रकट होने िगिी है ।
और शजन्ें हम बच्चों का जन्म कहिे हैं , उस द्वार से शििीन हो जािी है । एक
टर ां सफॉरमेिन होिा है , एक पररिियन हो जािा है , एक शबिकुि ही नया
पररिियन हो जािा है । इसशिए शजन िोगों के जीिन में सृजन के नये द्वार होिे
हैं , प्रेम के नये द्वार होिे हैं , प्राथय ना और पशित्रिा की नई शदिाएं खुि जािी हैं ,
उन िोगों के जीिन में अनायास ही ब्रह्मचयय का प्रिेि हो जािा है । ब्रह्मचयय
ठोक-ठोक कर िाना नहीं पड़िा, और जो ठोक-ठोक कर िाया जािा हो,
और जबरदस्ती िाया जािा हो, िह ब्रह्मचयय झूठा है , उस ब्रह्मचयय में कोई भी
अथय नहीं है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 172


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और उस िरह के ब्रह्मचयय से स्वथथ, सामान्य काम का जीिन, सेक्स का
जीिन ज्यादा उशचि और योग्य है । इन बािों को सुनेंगे, समझेंगे, आग्रह मेरा
नहीं है शक मान िें गे, क्योंशक मैं जो कह रहा हं िह िो हजारों िषय से जो कहा
गया है उससे इिना शभन्न और शिरोधी है शक मैं यह अपेक्षा नहीं कर सकिा
शक िह एकदम से आपकी समझ में भी आ जाएगा। िेशकन आज नहीं कि
मनुष्य-जाशि को समझना होगा, क्योंशक कुछ भू ि हुई है और कहीं कोई
बुशनयादी रुग्णिा हमको पकड़ िी है ।

यह मैं आपसे कहं शक सेक्स को छोड़ कर कोई व्यस्ि ब्रह्मचयय को उपिब्ध


नहीं होिा। हां , जो व्यस्ि सृजन के नये द्वार खोज िेिा है , िह अनायास ही
ब्रह्मचयय को उपिब्ध हो जािा है ।

यह शचत्त की दिा कैसे शिकशसि हो, उसके शिए मैं सारी बाि कर रहा हं ।
ध्यान है । आज मैंने कुछ िीन सूत्र कहे हैं , कि कुछ कहा है , कि कुछ और
आपसे कहं गा। अगर इन सारे सूत्रों पर शचत्त िां ि और सरि होिा जाए, िो
अदभु ि रूप से आपके जीिन से सेक्स शििीन हो जाएगा। इसका यह अथय
नहीं है शक आपके जीिन से समस्त सृजन शििीन हो जाएगा। नहीं, आपके
जीिन में सृजन के नये द्वार खुि जाएं गे । नये, नये मागय , नये आयाम खुि
जाएं गे । आपसे बहुि सृजन हो सकेगा, बहुि कुछ चीजें आपसे पैदा हो
सकेंगी। िेशकन यह इस भां शि नहीं हो सकेगा शजस भां शि हम सोचिे रहे हैं ।

इसी सांबांध में एक प्रश्न और पूछा हुआ है शक शििे कानांद ने या शकसी ने


कहा है शक िीयय को सांरशक्षत करो, उससे ओज पैदा होगा।
ये जो इस िरह की जो बािें हमें शिक्षा में दी गई हैं , ये भी बहुि आिययजनक
रूप से गिि हैं । जीिन में ओज का शिकास हो, िो िीयय अपने आप संरशक्षि

ओिो पृष्ठ संख्या 173


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होिा है , िेशकन िीयय के संरक्षर् से ओज का शिकास नहीं होिा। िीयय के
संरक्षर् से शिशक्षििा आ सकिी है , ओज नहीं, पागिपन आ सकिा है , ओज
नहीं। िेशकन ओज का शिकास हो जीिन में, िो िीयय अपने आप संरशक्षि
होिा है ।

इसशिए जोर इस बाि पर जहां भी शदया जािा हो शक िीयय को संरशक्षि करो,


यह िािक शिक्षा है । और इसका कुि पररर्ाम इिना हो सकिा है शक ओज
िो पैदा न हो, और जीिन अत्यंि कुंशठि और कुरूप और दशमि हो जाए,
सप्रेथि हो जाए। शजन कौमों ने इस िरह की बािें सोची हैं , जो शक उिटी हैं ।
मुझे शदखाई यह पड़िा है , जैसे शक यह सब ऐसा ही मामिा है जैसे मैं आपसे
कहं शक इस िर में बहुि अंधेरा है , अंधेरे को शनकाि बाहर करो िो दीया
अपने आप जि जाएगा, कोई ऐसा कहे , िो हम कहें गे, यह बड़ी गड़बड़ बािें
कह रहा है ।

अंधेरे को िो बाहर शनकािा ही नहीं जा सकिा। अगर हम अंधेरे को बाहर


शनकािने िगें गे, िो हम टू ट जाएं गे, अंधेरा िो िही रहे गा। अंधेरा शनकाि कर
दीया नहीं जििा, हां , दीया जि जाए िो अंधेरा अपने आप बाहर शनकि
जािा है । अंधेरे को शनकािने से दीया नहीं जििा, दीये के जिने से अंधेरा
पाया ही नहीं जािा है ।

िो मैं आपसे यह कह रहा हं , ओज को जिाओ, ओज को जगाओ, िीयय


अपने आप संरशक्षि हो जाएगा। िेशकन हम शफक्र करिे हैं िीयय को संरशक्षि
करने की, और िीयय संरक्षर् में आप क्या करें गे ? शजस व्यस्ि के जीिन में
ओज ही नहीं जगा, शजस व्यस्ि के जीिन में कोई आं िररक िां शि की और
प्रकाि की ज्योशि नहीं जगी, िह क्या करे गा?

ओिो पृष्ठ संख्या 174


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह करे गा यह शक उसके भीिर शजिनी भी काम की भािनाएं होंगी उनको
दबाएगा, िड़े गा उनसे, उनको जबरदस्ती रोकेगा। इस रोकने में, दबाने में
उसका शचत्त शिकृि होगा, खंशिि होगा, इस दबाने में िबड़ाहट और भय
पैदा होगा, इस दबाने में शनरं िर िर होगा शक कब यह दमन छूट जाए, कब
कहीं यह संयम थोड़ा सा शिशथि हो जाए, िो मुस्िि खड़ी हो जाए,
शिस्फोट हो जाए, चीजें टू ट जाएं । और यह शिस्फोट होगा। और इस शिस्फोट
को बचाने के िह जो भी उपाय करे गा उसमें उसका जीिन नष्ट होगा और
कुछ भी नहीं होगा।

मैं पढ़िा था, एक िटना पढ़िा था। एक मशहिा एक होटि में आकर ठहरी।
िह ब्रह्मचाररर्ी थी, कोई पचास िषय उसकी उम्र हो गई थी। उसने धमय की
शिक्षा में अपने जीिन को संयशमि शकया था। िह साििें मंशजि पर ठहरी
और थोड़ी ही दे र बाद नीचे उसने मै नेजर को फोन शकया शक एक आदमी
यहां आकर मेरे साथ बहुि बुरा दु व्ययिहार कर रहा है । िह मेरे सामने
शबिकुि ही करीब-करीब उिाड़ा खड़ा हुआ है । मैनेजर िबड़ा गया शक
कौन आदमी उसके पास पहुं च गया? िहां क्या हो गया? अकेिा जाना उसने
भी ठीक नहीं समझा। िह दो पुशिस के आदशमयों को िेकर भागा हुआ
ऊपर पहुं चा। िह मशहिा िहां अकेिी थी।

उसने पूछा, िह दू सरा आदमी कहां ? उसने कहा: आप दे खिे नहीं, िह


सामने। िेशकन सामने िो स्खड़की थी, और कोई आधा मीि िक कोई दू सरा
मकान भी नहीं था। मैनेजर ने कहा: कोई हमें शदखाई नहीं पड़िा, कहां ?
उसने कहा: िह सामने िािे मकान में दे स्खए। आधा मीि दू र एक मकान
था, िहां िो कुछ शदखाई नहीं पड़िा था। उस मैनेजर ने कहा: हमें कुछ
शदखाई नहीं पड़िा। िहां से ही उसने टे बि पर से दू रबीन उठाई और कहा:
दू रबीन से दे स्खए, िह आदमी छि पर शबिकुि उिाड़ा खड़ा हुआ है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 175


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मैनेजर है रान हुआ शक कैसी पागि औरि है ! उसने नीचे खबर की शक एक
आदमी मेरे साथ बहुि दु व्ययिहार कर रहा है ।

यह जो स्त्री है इसने मन में सेक्स की भािनाओं को शनरं िर दबाया होगा, िो


अब यह दू रबीन िगा-िगा कर दे ख रही है शक कौन-कौन इसके साथ
दु व्ययिहार कर रहा है , कौन-कौन इसके संयम को िोड़ने की कोशिि कर
रहा है , कौन-कौन इसे नरक के रास्ते पर िे जाने के शिए चेष्टारि है । दू र
मकान पर कोई आदमी व्यायाम कर रहा था अपनी छि पर, िह आदमी
उिाड़ा होकर हाथ-पैर शहिा रहा है , इसको दे ख कर ही, अपनी दू रबीन से
दे ख कर समझ रही है ।

यह दशमि शचत्त है , यह कोई ब्रह्मचयय को उपिब्ध शचत्त नहीं है । और ऐसे


दशमि शचत्त बड़े खिरनाक हैं , और ऐसे दशमि शचत्त ही सेक्स के संबंध में जो
शनंदा का प्रचार करिे हैं , िही आमजन पकड़ िेिे हैं और दोहरािे हैं । और
यही शचल्लािे रहिे हैं शक फिां नरक है , शढकां नरक है , यह बाि बु री है , िह
बाि बुरी है । इनको भारी शचंिा िगी रहिी है , भारी शचंिा। और इनकी शचंिा
बड़ी आिययजनक है , इनको िो शचंिा होनी नहीं चाशहए।

अभी शदल्ली में शहं दुस्तान के बहुि से बड़े साधु इकट्ठे हुए और उन्ोंने कहा
शक अश्लीि पोस्टर नहीं िगने चाशहए, अश्लीि पोस्टर दीिािों पर नहीं होने
चाशहए, अश्लीि शफल्में नहीं होनी चाशहए, अश्लीि उपन्यास नहीं होने
चाशहए। मैंने उनसे पूछा शक आप इनको पढ़िे कैसे हैं ? इन पोस्टरों को दे खिे
कैसे हैं ? साधु होकर आपको इनसे प्रयोजन कहां है ? ये आपको शदखाई कैसे
पड़ जािे हैं ? और आपको इनकी शचंिा इिनी क्यों?

जरूर इनको आपसे ज्यादा शदखाई पड़िे होंगे, जब एक साधु सड़क से


शनकििा होगा, िो जो शफल्म का पोस्टर िगा है , िायद आपने न भी दे खा

ओिो पृष्ठ संख्या 176


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हो, उसको जरूर शदखाई पड़िा है , िह दू रबीन िगा कर दे खिा है । दे खना
शबिकुि स्वाभाशिक है , उसने शचत्त में शजन-शजन िृशत्तयों को दबा कर रखा
है , िे ही उखड़-उखड़ कर उसके सामने आ जािी हैं ।

आपने सुना होगा, साधु-संन्यासी जब बड़ी िपियाय करिे हैं , िो स्वगय की


अप्सराएं आकर उनको शिगािी हैं । आप पागि हो गए, स्वगय की अप्सराओं
ने कोई धंधा खोि रखा है शक इनको शिगाने आएं गी। और यह क्या पागिपन
है ? नहीं, कोई अप्सराएं नहीं आिीं, इनके शचत्त में ही दशमि जो िासनाएं हैं ,
जब शचत्त शिशथि होिा है और मन कमजोर होिा है , िे ही िासनाएं अप्सराएं
बन कर खड़ी हो जािी हैं ।

कोई िहां है नहीं, अगर आप जाओगे िो आपको कोई अप्सरा न शदखाई


पड़े गी। िेशकन िे मरे जा रहे हैं , आं ख दबा-दबा कर िरे जा रहे हैं , अप्सराएं
नाच रही हैं उनके आस-पास। ये अप्सराएं रुग्ण शचत्त से पैदा हुई कल्पनाएं
हैं , ये कहीं कोई स्वगय -िगय से आिीं नहीं।

नहीं िो स्वगय में शकसने धंधा खोि रखा होगा ये सब काम को करने का? और
शकसको प्रयोजन है शक इनको शिगाए? इनकी िपियाय से कौन परे िान है ?
िेशकन कथाएं यह कहिी हैं शक इं ि का आसन िां िािोि हो जािा है इनकी
िपियाय से, िो िे अपनी अप्सराएं भेजिे हैं इनको शबगाड़ने के शिए, बबाय द
करने के शिए। ये शबिकुि ही पागि शचत्त से पैदा हुई आकृशियां हैं , ये
आकृशियां कहीं हैं नहीं।

िेशकन इन्ोंने जो-जो दबाया है िह इनके सामने रूप िेकर खड़ा हो जािा
है , अशि दशमि स्थथशि में चीजें रूप िेकर खड़ी होने िगिी हैं । यह हजारों
साि से चििा रहा है और हमने इसका कोई खयाि नहीं शकया शक यह बाि
क्या है ?

ओिो पृष्ठ संख्या 177


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नहीं िो जो व्यस्ि िां शि से, प्रेम से और आनंद से भर गया है , शजसके शचत्त में
काम की िासना पररिशियि, रूपां िररि होकर प्रेम की अशभव्यस्ि बन गई
है , उसे न िो कोई अप्सराएं आने का सिाि है , न उसके सपनों में स्स्त्रयों के
खड़े होने का सिाि है , न अगर िह स्त्री हो िो दू र छिों पर से दू रबीन दे खने
की कोई जरूरि है शक िहां कोई पुरुष दु व्ययिहार कर रहा है । शचत्त जैसे-
जैसे िां ि होिा चिा जाएगा, ये सारी शिकृशियां शििीन हो जाएं गी।

एक बाि, जैसे ही प्रेम गहरा होगा, िैसे ही सेक्स शििीन हो जाएगा। शजिना
गहरा हृदय में प्रेम होगा, उिना ही सेक्स शििीन हो जाएगा। और शजिना
हृदय में गहरा प्रे म होगा, जीिन उिने ही ओज से भर जाएगा। प्रेम के
अशिररि और कोई ओज नहीं है , प्रेम के अशिररि और कोई िेजस्स्विा
नहीं है , प्रेम के अशिररि और कोई सौंदयय नहीं है । प्रे म के अशिररि और
कुछ भी परमात्मा का नहीं है । िेशकन ये जो िथाकशथि ब्रह्मचारी और ये िीयय
के संरक्षर् करने िािे और ये सब जो बािें हैं , ये सारे के सारे िोग प्रेम से
बहुि भयभीि हैं , ये प्रेम से बहुि िरे हुए हैं ।

और जहां भय है , िहां ओज क्या होगा? जहां भय है , िहां ओज कैसे होगा?


ओज िो िहां होिा है जहां शफयरिेसनेस है , जहां अभय है । इनकी स्थथशि िो
बड़ी कमजोर है । इनकी स्थथशि िो बड़ी कमजोर है । और ये शजन चीजों से
िड़ रहे हैं , शजन चीजों को दबा रहे हैं , िे ही चीजें इनके जीिन का संिषय बन
गई हैं , िे ही इनके जीिन के प्रार्ों को सोखे जा रही हैं ।

और मैं सैकड़ों साधुओं को जानिा हं , जब िे मुझसे सबके सामने शमििे हैं ,


िो आत्मा-परमात्मा की बािें पूछिे हैं , शक आत्मा है या नहीं, परमात्मा है या
नहीं, ईश्वर ने दु शनया बनाई या नहीं, िेशकन जब िे मुझे अकेिे में, एकां ि में
शमििे हैं , िो शसिाय सेक्स के और कोई दू सरी बाि नहीं पूछिे। जब िे सबके

ओिो पृष्ठ संख्या 178


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सामने बािें पूछिे हैं , िो आत्मा-परमात्मा की; जब अकेिे में पूछिे हैं िो
कहिे हैं , यह सेक्स के साथ क्या शकया जाए? यह िो हमारे प्रार् खाए जा रहा
है , यह िो शनरं िर हमको सिाए हुए है । यह स्वाभाशिक है । इसमें कोई
आिययजनक बाि नहीं है , यह शबिकुि स्वाभाशिक है । यह होगा, यह होना
शनशिि है ।

जीिन सरििा से शिकशसि होिा है , दमन से, सप्रेिन से नहीं। शजस चीज को
भी हम दबा िेिे हैं , िही चीज िािक रोगार्ुओं की िरह भीिर इकट्ठी होने
िगिी है , आज नहीं कि उसका शिस्फोट होगा और शचत्त शदक्कि में पड़
जाएगा।

मैं एक छोटी सी कहानी शनरं िर कहिा रहा हं , िह मैं आपसे कहं । शफर
उसके बाद मैं दू सरा प्रश्न िूं।

दो शभक्षु , कोररया की कहानी है , दो शभक्षु एक नदी को पार कर रहे हैं , पहाड़ी


नदी को। एक युििी नदी के शकनारे खड़ी है , उसे भी नदी पार होना है ।
िेशकन युििी अकेिी है , पहाड़ी नदी है अपररशचि और शबना सहारे के
उसकी शहम्मि नहीं पड़ रही शक िह पार हो जाए। िृि शभक्षु आगे -आगे
आया है , उसके मन में हुआ शक मैं इसे हाथ का सहारा दे दू ं और नदी पार
करा दू ं । उसने कोई िीस िषय से शकसी स्त्री का स्पिय नहीं शकया है , अपने को
दू र-दू र रखा है , दीिािें खड़ी कर रखी हैं , शनरं िर दू र भागिा रहा है । उसके
मन में खयाि आया, हाथ का सहारा दे दू ं , कोई सत्तर िषय की उसकी उम्र है ।

िेशकन यह खयाि ही मन में आिे से शक हाथ का सहारा दे दू ं और कल्पना में


ही हाथ का हाथ से स्पिय होिे ही उसके मन में िो िीस साि से सोई हुई
िासना जाग पड़ी, शजसको मंत्रों से दबाया हुआ था, जप करके दबाया हुआ
था, िह मौजूद है , िह जा नहीं सकिी कहीं, िह जाग उठी, उसे एक िरह का

ओिो पृष्ठ संख्या 179


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रस मािूम हुआ, िभी िह िबड़ा भी गया, उसे याद आया अपने सं यम,
अपने िैराग्य का शक मैं यह क्या कर रहा हं , िीस साि की िपियाय , जरा सा
हाथ छूकर नष्ट हो जाएगी। और ऐसी िपियाय का मूल्य भी शकिना है जो एक
स्त्री के हाथ छूने से नष्ट हो जाए और ऐसी िपियाय कहीं मोक्ष िे जाएगी?
कैसे पागिपन का मन है ? िेशकन उसने सोचा शक यह िो बड़ा सब गड़बड़
हो जाएगा। उसने आं खें बंद कीं, िह नदी पार होने िगा।

उस युििी को िो पिा भी नहीं है शक साधु बे चारा स्वगय से नरक िक पहुं च


गया इिने जल्दी, मोक्ष छीना जा रहा है , आिागमन का मागय शफर से खोिा
जा रहा है । उसे पिा भी नहीं, िह अपने शकनारे खड़ी है । यह िो इन्ोंने अपने
मन में ही सब शहसाब-शकिाब िगाया है । िह आं ख बं द शकए नदी पार करने
िगा, िेशकन आं ख बंद करने से कुछ होिा है ? आं ख बं द करने से स्त्री और
भी सुंदर हो जािी है । खुिी आं ख से दे खने पर स्त्री में क्या सौंदयय है या पु रुष
में क्या सौंदयय है । और आं ख अगर और भी गहरी हो, िो शसिाय हड्डी और
मां स के क्या रह जाएगा। और अगर आं ख और भी एक्सरे िािी हो, िब िो
बहुि िबड़ाहट हो जाएगी। िेशकन आं ख अगर बंद हो, िो शफर बहुि सुंदर
हो जािा है , सब बहुि सुंदर हो जािा है । बंद आं ख में सब सपने हो जािे हैं ,
जो स्त्री कभी इिनी सुंदर नहीं, बंद आं ख में बहुि अिौशकक रूप सी होकर
प्रकट होने िगिी है , अप्सरा बन जािी है सामान्य स्त्री आं ख बंद करिे से।

िो मैं कहिा हं , आं ख खोिो और स्त्री को ठीक से दे ख िो, िो मुि हो सकिे


हो। आं ख बं द शकया िब िो स्त्री से छु टकारा मुस्िि है , या स्त्री के शिए कहं
िो पुरुष से छु टकारा मुस्िि है ।

िह आं ख बंद करके बढ़ा, स्त्री और भी सुंदर होकर प्रकट होने िगी। एक


साधारर् सी गां ि की िड़की थी, जो िहां खड़ी थी। उसका मन बार-बार

ओिो पृष्ठ संख्या 180


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िोिने िगा शक पीछे जाऊं सहारा दे ही क्यों न दू ं , इसमें क्या शबगड़ने िािा है
और यहां कोई दे खने िािा भी िो नहीं। कोई गु रु को भी खबर करने िािा
नहीं है , कोई खास बाि भी नहीं, िेशकन शफर मन में दोहरा द्वं द्व खड़ा हो गया
शक िीस साि की िपियाय है , जरा सी बाि में खत्म कर रहा हं , अरे यह
असार संसार है इसकी बािों में पड़ना नहीं चाशहए, यह िो सब, यही िो नरक
का द्वार है , सोचा होगा, इसी में िो चक्कर हो जाएगा।

िह शकसी िरह नदी पार हुआ। िह उस पार पहुं चा, बहुि थका-मां दा था,
क्योंशक जो शचत्त इिनी कां स्िक्ट में पड़ जाए, इिनी दु शिधा में, द्वं द्व, िह
थक ही जािा है ।

िभी उसे खयाि आया शक उसके पीछे ही पीछे थोड़ी दू र पर उसका युिक
साथी भी आ रहा है एक दू सरा शभक्षु , िह अभी अनजान है , अनुभिी भी नहीं
है , कहीं िह भी इसी दया के झंझट में न पड़ जाए शजसमें मैं पड़ा, कहीं उसे
भी दया न आ जाए इस युििी पर, उसे नदी पार करने का खयाि न सोचने
िगे । उसने पीछे िौट कर दे खा, दे ख कर है रान हो गया! िह युिक शभक्षु उस
िड़की को कंधे पर शिए उिर रहा है ।

उसके प्रार्ों में िो आग िग गई। आग के कई कारर् थे । एक िो कारर् था


शक िह खुद िंशचि रह गया उस िड़की को कंधे पर िेने से, बुशनयादी िो
यही था। दू सरा उपदे ि दे ने से िंशचि रह गया। िीसरा शचत्त में बहुि क्रोध
आया शक मुझसे शबना आज्ञा शिए मेरी मौजूदगी में और यह युिक क्या कह
रहा है ?

सभी बूढ़ों को आिा है । युिक को कुछ न करने दें गे िे शबना आज्ञा शिए। और
सभी िृिजनों को एकर् ईष्या पकड़नी िुरू होिी है यु िकों से, क्योंशक युिक

ओिो पृष्ठ संख्या 181


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जो कर रहे हैं उसमें से िे बहुि कुछ िे नहीं कर पाए और न कुछ करने की
स्थथशि में अब हो गए।

बहुि कशठनाई हो गई उसे, अब कोई शिकल्प भी न रहा। िेशकन उसने सोचा


शक आज जाकर गु रु से कहं गा और इसको या िो शनकाि कर बाहर
करिाऊंगा आश्रम से, यह िो हद्द पाप की बाि हो गई। इिनी दे र से खु द
उसी पाप को करने का शिचार करिा था, िह भू ि गया। यह िो हद्द पाप की
बाि हो गई। गु स्से में आगे -आगे चिा, पीछे -पीछे िह युिक भी आया। दोनों
द्वार पर शमिे, उस बूढ़े आदमी ने कहा शक सुनिे हो, यह बदाय श्त के बाहर है ।
बाि शछपाई नहीं जा सकिी, मुझे गु रु से कहना ही होगा, शनयम उल्लंिन
हुआ है , शभक्षु जीिन का शनयम खंिन हुआ है । िुमने उस िड़की को कंधे पर
क्यों उठाया?

उस युिक ने कहा: मैं बहुि आियय में हं । मैं िो उस िड़की को कोई दो मीि
पीछे कंधे से उिार भी आया, आप उसे अब भी कंधे पर शिए हुए हैं । उस
युिक ने कहा: मैं उसे कंधे से उिार भी आया, आप उसे अब भी कंधे पर
शिए हुए हैं । और कंधे से केिि िही उिार सकिा है , शजसने कभी शिया ही न
हो। स्मरर् रखें, कंधे से केिि िही उिार सकिा है , शजसने कभी कंधे पर
शिया ही न हो। और केिि इिने से शक हमने कंधे पर नहीं शिया है , इस भ्रम
में कोई न रहे शक िह कंधे पर नहीं है ।

जैसे-जैसे शचत्त दमन करिा है , िैसे-िै से चीजें शसर पर चढ़िी चिी जािी हैं ।
चीजों को सहजिा से िें, चीजों को सहजिा से जानें, चीजों के प्रशि अत्यंि
स्वाभाशिक रूप से जागरूक हों, िो कोई कारर् नहीं है शक जीिन धीरे -धीरे
सभी बंधनों से मुि हो जाए और एक परम मुस्ि की अिथथा, चेिना को
उपिब्ध हो सके। िेशकन शजन िोगों ने दमन शकया है िे कभी मुि नहीं हो
सकिे हैं । दमन ही उनका बंधन बन जािा है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 182
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो मैं िो आपसे कहं गा, शनिेदन करू
ं गा, जीिन को बहुि सहजिा से िें,
उसके शनसगय को बहुि सहजिा से स्वीकार करें । और जीिन को दे खें आं ख
खोि कर, आं ख बंद करके कभी कोई दे ख नहीं सकिा। पूरी आं ख खोि
कर दे खें।

और जो चीज शजिनी आकषयक मािूम होिी है , उिने शनकटिा से उसका


शनरीक्षर् करें , आप पाएं गे , आकषयर् शििीन हो गया। अगर स्स्त्रयां आकषयक
मािूम होिी हैं पुरुषों को, िो स्स्त्रयों से भागे न।

अगर स्स्त्रयों को पुरुष आकषयक मािूम होिे हैं , िो पुरुषों से भागे न। भागने
से िो आकषयर् सदा के शिए थथायी हो जाएगा। आकषयर् भीिर एक फोड़े
की िरह बैठ जाएगा।

मैं दे खिा हं शक शजन चीजों को हम उनकी पूरी नग्निा में और पू री सत्यिा में
जान िेिे हैं उनसे हम मुि हो जािे हैं । िो शजस जीिन के बंधन से सच में ही
मुि होना हो, उस बंधन को उसकी पूरी सच्चाई में और सहजिा में दे खें
और जानें और मन में कोई दु शिधा और द्वे ष और द्वं द्व खड़ा न करें । जरूर
जीिन के अनुभि से, शनरीक्षर् से, बोध से, अमूस्च्छय ि होकर दे खने और
समझने से, एक िि आपके जीिन में आएगा शजसमें स्त्री और पुरुष के
बंधन और फासिे टू ट जाएं गे और शििीन हो जाएं गे और उस आत्मा का
दियन होगा, जो न स्त्री है और न पुरुष है । दे ह से दृशष्ट उठ सकिी है , िेशकन
शजिना दबाएं गे उिना दे ह से दृशष्ट बं ध जाएगी।

शजिना रोकेंगे , उिना बंधेंगे; शजिना भागें गे, उिना भयभीि होंगे; शजिने
भयभीि होंगे, उिनी ही छायाएं पीछा करें गी, जो शक अगर रुक जाएं , िो
पीछा नहीं करिीं, ठहर जाएं , िे भी आपके पीछे दौड़ना बंद कर दे िी हैं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
खुिी आं ख से दे खें, िो पिा चििा है , िैिोज, छायाएं हैं , उनमें कोई भी प्रार्
जैसा ित्व नहीं। न भय का कोई कारर्, न भागने का कोई कारर् है ।

जो पिायन करिा है , िह बंधिा चिा जािा है , जो शचत्त का पररिियन करिा


है , िह मुि हो जािा है । िो इस पर सोचें। अन्यथा जो हो रहा है अनेक-
अनेक िोगों के जीिन में जो दु ख, िह आपके जीिन में भी होगा और जो
नरक िे पैदा कर रहे हैं अपनी गिि दृशष्टयों से, िह आप भी पैदा कर िें गे।
नरक कहीं है नहीं, हर आदमी अपना पैदा करिा है ।

एक फकीर हुआ, उसका एक शिष्य बहुि बार उसके पीछे पड़ गया शक


आप नरक-स्वगय की बहुि बािें करिे हैं , कभी मुझे भी िो शदखिाए? िह
फकीर टाििा रहा। िेशकन जब नहीं माना युिक, िो उसने कहा: आज िु म
आ ही जाओ, आज अमािस की राि है , आज मैं िुम्हें शदखिा ही दू ं ।

िह युिक आया, उसे एक कोठरी में उसने बंद शकया और कहा: आं ख बंद
कर िो, मैं बाहर बैठा रहं गा और कहं गा शक जाओ, नरक पहुं च जाओ, िुम
नरक में पहुं च जाओगे , गौर से दे ख िेना िहां क्या शदखाई पड़िा है । शफर मैं
िुम्हें िापस िौटाऊंगा, कहं गा, िापस िौट आओ।

शफर आज्ञा दू ं गा, स्वगय में चिे जाओ, िुम स्वगय पहुं च जाओगे , स्वगय को भी
दे ख िेना। उसने युिक को शबठाया और कहा शक दे खो, आं ख बंद कर िो
अंधेरे में। उसने आं ख बंद कर िीं। उसने कहा: जाओ, नरक में पहुं च जाओ।
शफर उसने कहा: िापस िौट आओ। और कहा: स्वगय में पहुं च जाओ।

शफर थोड़ी दे र बाद उसने कहा: िापस िौट आओ, आं खें खोिो, मुझे बिाओ
क्या दे खा? उसने कहा: मैं िो बड़ा मुस्िि हो गया, न िो नरक में मुझे कुछ
शदखाई पड़ा और न स्वगय में मुझे कुछ शदखाई पड़ा। और आप िो कहिे थे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शक नरक में आग की िपटें जि रही हैं और स्वगय में कल्पिृक्ष खड़े हैं शजनके
नीचे सब कामनाएं पूरी हो रही हैं , िह िो मुझे कुछ भी नहीं शदखाई पड़ा।

िो िह फकीर हं सने िगा, उसने कहा शक िह िो िब शदखाई पड़े गा जो िु म


अपने साथ िे जाओगे िही शदखाई पड़े गा। अगर िुम नरक अपने साथ िे
जाओगे िो िुम्हें नरक शदखाई पड़े गा, अपने साथ स्वगय िे जाओगे िो स्वगय
शदखाई पड़े गा। अभी िो िुम कोरे कागज हो, अभी िुम्हारे पास न नरक है , न
स्वगय , िो शदखाई क्या पड़े गा? उस फकीर ने कहा शक िह िो िुम्हें अपने साथ
िे जाना पड़े गा, जो िहां दे खना है उसे । अगर नरक की कड़ाशहयां दे खनी हैं
जििी हुई आग की, िो अपने साथ िे जानी पड़ें गी; और अगर स्वगय के फूि
और सुगंध दे खनी है , िो िे भी अपने साथ िे जानी पड़ें गी।

स्वगय और नरक मन की अिथथाएं हैं और हम उन्ें शनशमयि करिे हैं । हम


उनमें जािे नहीं, हम उन्ें बनािे हैं , िे हमारे साथ हैं , िे कहीं दू र नहीं हैं , कोई
ज्याग्रफीकि, कोई भू गोि में कहीं नरक और स्वगय नहीं हैं । स्वगय है कहीं िो
साइकोिाशजकि है , मानशसक है , अंिःकरर् में है । िो अगर आपको इस
िरह के स्वगय -नरक शदखाई पड़िे हों दु शनया में, िो आप समझ िेना शक आप
उनको बना रहे हैं ।

यही जमीन है , ये ही िोग हैं , यही सब कुछ है , ये ही चां दत्तारे हैं , जो आदमी
ठीक से दे खने में समथय हो जािा है , उसे यहां स्वगय उपिब्ध हो जािा है , यहीं
परमात्मा के दियन होने िगिे हैं , यहीं िह मुि हो जािा है और जो आदमी
गिि ढं ग से दे खने की आदि में ग्रशसि हो जािा है , यही फूि, यही जमीन,
यही चां दत्तारे , यही िोग नरक हो जािे हैं और यहीं िह गहरे बंधन पड़ जािा
है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और बहुि से प्रश्न हैं , उनकी मैं बाद में बाि करू
ं । कि बाि कर िूंगा। अभी
िो हमें राशत्र के ध्यान के शिए बैठना पड़े गा।

यहां मैंने जान कर उधर से िकिीफ दी और यहां बुिाया कुछ कारर्ों से।
एक िो इस कारर् से शक िहां आस-पास प्रकृशि की कोई ध्वशन नहीं है जहां
हम बैठिे थे । यहां बहुि ध्वशनयां हैं , यहां बहुि छोटे -छोटे आिाजें गूं ज रही
हैं । िो ध्यान के शिए िहां बहुि कम आिाजें थीं। जब मन िां ि होने िगे िब
िो िहां भी बहुि सी धीमी ध्वशनयां सुनाई पड़ सकिी हैं । िेशकन जब िक न
हो, िब िक यहां बहुि बड़ा म्यूशजक, बहुि बड़ा संगीि चारों िरफ है ।

यह संगीि बहुि गहरे में िे जाएगा। शफर िहां हम एक पंिाि के नीचे बैठिे
थे , जो आदशमयों के द्वारा ठोका और खींचा गया है । और आदशमयों ने सब
िरह के पंिाि खींचे हैं , िास्त्रों के, धमों के और उनके नीचे हम बैठे हैं ।
उससे भी मुझे जरा िबड़ाहट हो रही थी। यहां हम परमात्मा के पंिाि के
नीचे बैठेंगे ।

यहां आदमी का खींचा हुआ कुछ भी नहीं है । ऊपर दरख्त हैं और ऊपर
आकाि है , और ऊपर चां द है और बड़ी दु शनया है और शिराट पंिाि है
उसके शनकट हम होंगे। जब हम छोटी-छोटी दीिािों में बंद होिे हैं , िो मन
भी शसकुड़ जािा है और छोटा हो जािा है । शजिने शिस्तार पर हम होंगे उिना
मन शिस्तीर्य होिा है और यात्रा करिा है । अगर कोई व्यस्ि रोज थोड़ी दे र
आं ख खोि कर आकाि को ही दे खिा रहे , िो उसकी आत्मा बड़ी होने
िगे गी। िेशकन हम िो आदशमयों के छोटे -छोटे छप्परों को दे खिे हैं और
उन्ीं में जीिे हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 186


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िंदन में पीछे एक सिे हुआ, और िहां के बच्चों से पूछा गया, िो पिा चिा,
पंिह िाख बच्चे ऐसे हैं िं दन में शजन्ोंने खेि नहीं दे खा। दस िाख ऐसे बच्चे
हैं शजन्ोंने गाय नहीं दे खी।

इन बच्चों के जीिन में क्या होगा? इन बच्चों का जीिन िो शिकृि हो जाएगा।


शजन्ोंने गाय नहीं दे खी, शजन्ोंने खेि नहीं दे खे, िो इन बच्चों ने शसफय मकान
दे खे हैं , सड़कें दे खी हैं , भागिी हुई मोटरें और धुआं दे खा और टर े नें दे खीं, यही
सब दे खा, िो इनका शचत्त मनुष्य के शनशमयि जो दु शनया है उससे ऊपर नहीं
उठ सकिा।

िो इसशिए मैंने चाहा शक िहां से हम यहां आएं , यहां ऊपर दरख्त हैं , चां दनी
है और बहुि अदभु ि दु शनया है । और शफर यह चारों िरफ प्रार् की गूं जिी
हुई आिाज है , िो यहां ध्यान में जाना बहुि, बहुि सरििा से, बहुि अदभु ि
रूप से हो सकेगा। हम शजनके करीब रहिे हैं िैसे ही हो जािे हैं । अगर आप
फूिों के करीब बहुि शदन रहें , िो फूिों की गं ध आपमें प्रशिष्ट हो जाएगी।
अगर आप दरख्तों के पास बहुि शदन रहें , िो आपका शचत्त भी उन्ीं जै सा
मौन होने िगे गा। अगर आप सागर के शकनारे बैठें, िो िैसे ही शिस्तार िरं गें
आपके हृदय को भी छु एं गी। अगर आप झरनों के पास बैठे हैं , िो झरने
आपमें प्रशिष्ट हो जाएं गे । हम शजन चीजों के करीब रहिे हैं शनरं िर, िे चीजें
हममें प्रशिष्ट होने िगिी हैं ।

िेशकन हम शनरं िर मनुष्यों के शनकट रहिे हैं और मनुष्य जो सोचिे हैं उसे ही
सुनिे हैं , मनुष्य जो शिचार करिे हैं उसी को जानिे हैं , और मनुष्य क्या
शिचार करिे हैं ? िे या िो सुबह से अखबार पढ़िे हैं और चुनािों की बािें
करिे हैं , या हड़िािों की बािें करिे हैं , या अनिनों की बािें करिे हैं , या
कहां दं गा-फसाद हो गया उसकी बाि करिे हैं , या कहां शहं दू धमय खिरे में है
या कहां मुसिमान धमय खिरे में है उसकी बािें करिे हैं , या िाि खेििे हैं ,
ओिो पृष्ठ संख्या 187
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
या िराब पीिे हैं , या जुआ खेििे हैं , या शििाद करिे हैं , इस िरह के कुछ
काम हैं । मनुष्य के पास शजिने ज्यादा हम रहिे हैं , उिने ही हम छोटे होिे
चिे जािे हैं । िेशकन हमें अपना छोटा होना पिा नहीं चििा, क्योंशक हमारे
चारों िरफ भी उसी िरह के छोटे िोग रहिे हैं और हमें यह िृस्ि रहिी है
शक और िोग भी िो ऐसे ही हैं ।

यह जो हमारे मनु ष्य को छोड़ कर चारों िरफ फैिा हुआ शिराट शिश्व है , इस
शिराट शिश्व ने अभी भी परमात्मा से संबंध नहीं छोड़ा है । ये पौधे अब भी
परमात्मा के हमसे ज्यादा शनकट हैं , ये चां दत्तारे अब भी ज्यादा शनकट हैं , ये
छोटे -छोटे कीड़ों की झंकार अब भी हमसे ज्यादा शनकट हैं , अब भी यह
पहाशड़यों की साइिेंस और सन्नाटा हमसे ज्यादा शनकट है परमात्मा के।
मनुष्य सिाय शधक अपने ही द्वारा शनशमयि कोिाहि में बंद हो गया है । मनुष्य
को हटा दें जमीन से, अब भी साइिेंस है । अब भी अदभु ि सन्नाटा है , अदभु ि
संगीि है । िो इसशिए मैंने चाहा शक इधर हम होंगे और थोड़ी दे र इस िां शि में
और सन्नाटे में बैठेंगे ।

ध्यान के शिए िो मैंने आपको कहा: बहुि सरि सी बाि है । अभी हम सब


िोग थोड़े -थोड़े एक-दू सरे से दू र बै ठें। इस राि का पू रा उपयोग करें । कुछ
हो सकिा है , भीिर कुछ पैदा हो सकिा है । थोड़ा-थोड़ा दू र बैठें, न िो सदी
की शफकर करें और न शकसी और चीज की। थोड़े फासिों पर बैठ जाएं और
इस राि का जो भी फायदा मन को शमि सकिा है उसे शमिने दें । दे खें, एक-
दू सरे को न छु एं । आदमी आदमी से थोड़ा बचें, आदमी बड़ा खिरनाक प्रार्ी
है , थोड़ा सा मोह छोड़ें उसके फासिे का। जरा थोड़ा सा हट जाएं । दे खें,
थोड़ा हटें , यहां िो काफी भीड़-भाड़ शकए बैठे हैं । इिने भी नहीं हटें गे िो मैं
इिनी जो बािें कर रहा हं उसमें कहां हटें गे, मुस्िि है । थोड़ा जमीन ही
नहीं छोड़िे!

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आज इिना ही।

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-08

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

आठिाां प्रिचन

...उसके शबना समाशध को उपिब्ध करना संभि नहीं है । आज के िीसरे


चरर् में समाशध का आगमन कैसे हो, उस संबंध में हम शिचार करें गे ।

समाशध साधी नहीं जा सकिी, िेशकन उसका आगमन हो सकिा है । यह िो


पहिी बाि है , जो जान िेनी जरूरी है । समाशध साधी नहीं जा सकिी, उसका
आगमन हो सकिा है । जैसे हम िर के भीिर सूयय के प्रकाि को गठररयों में
बां ध कर नहीं िा सकिे, िेशकन अगर द्वार खुिा छोड़ दें , िो प्रकाि आ
सकिा है । िाया नहीं जा सकिा, आ सकिा है । िो समाशध के आगमन में
हमें जो करना है , िह द्वार खोिने जैसा काम है । अत्यंि नकारात्मक है ,
शनगे शटि है । शसफय बाधाएं हटा दे ने की जरूरि है , समाशध आएगी।

एक छोटी सी िटना से इस बाि को मैं समझाने की कोशिि करू


ं ।

रिींिनाथ एक बजरे पर यात्रा करिे थे । बहुि जीिन की राशत्रयां उन्ोंने


नशदयों पर और बजरों में व्यिीि कीं। िायद यही कारर् होगा शक उनके
काव्य में जो शनसगय की ध्वशन है िह बहुि कम काव्यों में होिी है । जो
सररिाओं की कि-कि और िीिि, स्वच्छ हिाओं की जो छाप उनके गीिों
पर है िह मुस्िि से होिी है । क्योंशक अशधक िोग िो बंद कमरों में गीि
शिखिे हैं , िो उन गीिों में भी िैसा बंदीगृ ह स्वभाि शछपा होिा है । या शमट्टी के

ओिो पृष्ठ संख्या 189


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेि से जििी िािटे न के शकनारे बै ठ कर शिखिे हैं , िो िह साशहत्य में भी
िासिेट की बास आ जािी हो, िो कोई आियय नहीं है ।

रिींिनाथ ने जीिन का बहुि अशधक समय शनसगय के अनुकूि व्यिीि शकया।


िो चां द की रािें थीं और िे बजरे पर थे । एक छोटी सी मोमबत्ती को जिा कर
दे र िक कोई िास्त्र पढ़िे रहे , शफर दो बजे के करीब राि मोमबत्ती बुझाई,
िेटने को शबस्तर पर हुए, िो िेट नहीं सके। उठ आए, बजरे के बाहर, नाि
पर शनकि आए और उन्ोंने एक गीि उस राि शिखा, और उस गीि में
उन्ोंने यह कहा शक मुझे सत्य का आज िक पिा भी नहीं था।

मैं भीिर बजरे की कोठरी में मोमबत्ती जिाए बैठा था और बाहर पूशर्यमा का
चां द था। िेशकन पूशर्यमा की रोिनी बाहर रुकी रही। बजरे की स्खड़शकयों
और द्वारों से उसने प्रिेि न शकया, िह छोटी सी मोमबत्ती का प्रकाि बाधा
बना हुआ था। जैसे ही मैंने मोमबत्ती बुझाई, मोमबत्ती के बुझिे ही चां द की
अपूिय शकरर्ें चारों िरफ रं ध्र-रं ध्र से बजरे में प्रशिष्ट हो गईं, द्वार से, स्खड़शकयों
से, सब िरफ से चां द भीिर आ गया। और िब रिींिनाथ ने कहा शक मैंने
जाना शक मेरी छोटी सी मोमबत्ती का पीिा सा प्रकाि बड़ी बाधा बना था।
द्वार पर चां द की रोिनी खड़ी थी, िेशकन द्वार पर ही शठठकी खड़ी रही,
भीिर प्रिेि न कर सकी। मोमबत्ती के बुझिे ही भीिर आ गई।

हमारे भीिर कुछ बाधाएं हैं , जो परमात्मा के प्रकाि को बाहर रोके हुए खड़ी
हैं । द्वार पर रुका है प्रकाि।

समाशध का आनंद शनकट है चारों िरफ, िेशकन हममें कुछ बाधाएं हैं , जो
उसे रोके हैं । उसे िाना नहीं है , उसे िाया नहीं जा सकिा, केिि बाधाएं
अिग कर दे नी हैं , िह आ जाएगा अपने से और सहज। और जीिन में जो भी
महत्वपूर्य है --प्रेम या परमात्मा, या सौंदयय का बोध, या सत्य की अनुभूशि हो,

ओिो पृष्ठ संख्या 190


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कोई भी िाई नहीं जा सकिी, शसफय बाधाएं हम अिग कर दें , िे आ जािी हैं ।
क्योंशक शजसे भी हम िाएं गे िह हमसे बड़ा नहीं हो सकिा, इसे स्मरर् रखें।

मनुष्य का शचत्त शजस चीज को भी िा सकिा है , िह मनुष्य के शचत्त से बड़ी


नहीं हो सकिी, उससे क्षु ि होगी। और मनुष्य का शचत्त ही बहुि क्षु ि है , िो
िह जो िाएगा िह अशि क्षु ि होगा। मनुष्य जो भी िाएगा और बनाएगा िह
अशि क्षु ि होगा। क्योंशक मनुष्य ही िो बनाएगा उसे और िाएगा।

समाशध या परमात्मा की अनुभूशि मनुष्य की िाई हुई अनुभूशि नहीं। मनुष्य


क्या कर सकिा है ? मनुष्य केिि द्वार दे सकिा है । मनुष्य केिि बाधाएं
अिग कर सकिा है , जो शहं िरें से ज हैं , उन्ें अिग कर सकिा है । मनु ष्य
केिि मागय छोड़ सकिा है । शफर कुछ आएगा, जो मनुष्य से ज्यादा शिराटिर
है , जो मनुष्य से शििाि है , जो मनु ष्य से बहुि बड़ा है , मनुष्य का बहुि
अशिक्रमर् कर जािा है ।

िो एक बाि प्राथशमक रूप से समाशध के संबंध में जान िेनी जरूरी है शक


समाशध साधी नहीं जा सकिी, आ सकिी है । मनुष्य का मन कुछ भी ऐसा
नहीं कर सकिा शक िह समाशध को पा िे। हां , जो बाधाएं हैं उन्ें अिग
करके प्रिीक्षा कर सकिा है । बाधाएं हटिे ही द्वार खुि जािा है प्रिीक्षा
करनी नहीं पड़िी। इसशिए समाशध की सारी साधना शनगे शटि है ,
नकारात्मक है । कुछ चीजें हटा दे नी हैं । कुछ चीजें मागय से हटा दे नी हैं , रास्ता
साफ कर दे ना है , शफर कोई आएगा, शफर कोई आएगा, कुछ होगा। और िह
कुछ शफर हमारे हाथ का नहीं होगा, हमसे बहुि बड़ा होगा। हमें बहा िे
जाएगा, हम शमट जाएं गे उसमें।

यह प्राथशमक रूप से समझ िेना जरूरी है । अन्यथा साधक, धमय की शदिा


में जाने िािे िोग इसी खयाि में होिे हैं शक िे साधेंगे, िे साध िेंगे--समाशध

ओिो पृष्ठ संख्या 191


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साध िेंगे, यह कर िेंगे, िह कर िेंगे, परमात्मा का दियन कर िेंगे। ये सारी
की सारी बािें अत्यंि अहं कारग्रस्त हैं । शक मैं मोक्ष को पा िूंगा, मैं परमात्मा
को पा िूंगा, मैं योग साध िूंगा, मैं ध्यान साध िूंगा, ये सब अहं कारग्रस्त हैं । ये
बहुि नासमझी की बािें हैं । यह िो समझ में भी आ सकिा है शक आप एक
मकान बना िेंगे, एक दु कान खोि िेंगे, आप शकसी राज्य के मंत्री हो जाएं गे
या कुछ और हो जाएं गे । यह िो समझ में भी आ सकिा है , क्योंशक से सब
बािें अत्यंि क्षु ि हैं । मनुष्य का मन इन्ें करने में समथय है ।

िेशकन जब कोई मनुष्य ऐसा सोचने िगिा है शक मैं परमात्मा को पा िूंगा, मैं
मोक्ष पा िूंगा, मैं आत्मा को साध िूंगा, िब िह भू ि में पड़ जािा है । िह
अपने से बहुि बड़ी बािों को, अपने द्वारा शकए जाने की कामना कर रहा है ,
कल्पना कर रहा है , िह भू ि में है । िे बािें जरूर हो सकिी हैं , िे बािें हो
सकिी हैं , उसके द्वारा नहीं, बस्ल्क उसके हट जाने पर। उसके कारर् नहीं,
बस्ल्क उसके शििीन हो जाने पर। उसके िस्ि से नहीं, बस्ल्क उसकी
िून्यिा से।

यह बहुि-बहुि समझ िेनी जैसी बाि है , नहीं िो धमय की साधना में जो


बुशनयादी भू ि हो जािी है आधारभू ि, िह यहीं हो जािी है । और इसीशिए
शजसे हम संन्यासी कहें , साधु कहें , िह बहुि अहं कारग्रस्त होिा चिा जािा
है । क्योंशक आप िो मकान ही बनािे हैं , िो आपका अहं कार शकिना बड़ा
होगा? आप िो राज्य ही जीििे हैं , आपका अहं कार शकिना बड़ा होगा? िह
परमात्मा की शिजय पर शनकिा हुआ है , उसका आक्रमर् बहुि बड़ा है । िह
ईश्वर को जीिने चिा है , स्वगय को जीिने चिा है , मोक्ष को जीिने चिा है ,
उसका अहं कार बहुि प्रबि है ।

इसशिए संन्यासी में दं भ का होना बहुि स्वाभाशिक है । उसका बहुि ईगोइस्ट


होना बहुि स्वाभाशिक है । यह स्वाभाशिक है शक उसका दं भ बहुि बड़ा हो।
ओिो पृष्ठ संख्या 192
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आप िो संसार को जीिने चिे हैं , िह िो सत्य को ही जीिने चिा है । और
आप िो असार संसार को जीि रहे हैं , िह सार संसार को जीि रहा है । और
आप िो साधारर् से क्षु ि पदाथय की दु शनया में खोज रहे हैं , िह परमात्मा की
ही शिजय के शिए शनकिा हुआ है ।

यह जो शिजय की यात्रा है , यह भ्रां ि है । परमात्मा की शिजय नहीं की जा


सकिी, और परमात्मा पर कोई आक्रमर् भी नहीं शकया जा सकिा। क्योंशक
आक्रमर् करने िािा और शिजय की कामना करने िािा शचत्त इिना क्षु ि है ,
आक्रमर् का भाि ही इिना क्षु ि है , शिजय की कामना ही इिनी क्षु ि है , और
िह भी परमात्मा की शिजय की कामना, मोक्ष को जीि िेने की कामना।

महािीर के पास उस समय का एक बहुि बड़ा राजा श्रेशर्क शमिने गया।


श्रेशर्क ने कहा शक मैंने बहुि राज्य जीिे, मैंने राज्य की बड़ी सीमाएं कीं, मैंने
बहुि धन जीिा, आज अकूट धन है मेरे पास, उसका कोई शहसाब नहीं।
शहसाब िगाने की सुशिधा और समय भी नहीं, क्योंशक इिना धन है , इिना
अकूि शक अगर मैं शहसाब िगाने बैठूं, िो मेरा सारा जीिन उसी में व्यिीि हो
जाए, इसशिए कोई शहसाब का कारर् भी नहीं है । िेशकन सब मैंने जीिा।
अभी-अभी मैं सुनिा हं शक शबना आत्मा को पाए कुछ भी नहीं हो सकिा। िो
अब मैं आत्मा को भी शजिना चाहिा हं । उसने महािीर से जाकर कहा: अब
मैं आत्मा को भी जीिना चाहिा हं । अगर कोई परमात्मा है , िो मैं उसको भी
जीिना चाहिा हं ।

महािीर ने कहा: िुम िौट जाओ, क्योंशक जो जीिने का भाि िेकर इस शदिा
में आिा है , उसकी हार सुशनशिि है । क्योंशक जीिने का भाि अहं कार का
भाि है । यहां िो िह जीििा है जो हारने को िैयार होिा है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 193


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
दो िरह की दु शनया है , एक जो हम शजस दु शनया को जानिे हैं , पदाथय की, िहां
िह जीििा है जो जीििा है । एक और दु शनया भी है , िहां िह जीििा है जो
हारिा है । समाशध िो हारने से शमििी है , जीिने से नहीं शमििी। जैसे-जै से
आप हारिे जाएं गे , िैसे-िैसे शमििी चिी जाएगी। शजस शदन आप शबिकुि
नहीं होंगे, उस शदन िह उपिब्ध हो जाएगी।

िो पहिी बाि िो यह जान िेनी जरूरी है शक आप साध नहीं सकिे हैं सत्य
को और समाशध को, हां , अपने को शििीन कर सकिे हैं और शमटा सकिे हैं ।
कोई बूंद सागर को पा नहीं सकिी, िेशकन बूंद सागर में अपने को खो
सकिी है । और खोिे ही सागर हो जािी है । िेशकन कोई बूंद अगर इस
खयाि में हो शक िह सागर को जीि िेगी, िो गििी में है । सागर को जीिने
के खयाि में केिि िाप में उड़ जाएगी और भस्म हो जाएगी।

िेशकन अगर कोई बूंद सागर में खोने के शिए िैयार हो जाए और राजी हो
जाए, शमटने को राजी हो जाए, िो सागर में शगरिे ही, शमटिे ही सागर हो
जािी है । ऐसे सागर शमट कर पा शिया जािा है । सत्य को पाने की शदिा भी
शमट कर पाने की शदिा है । िह आपका अचीिमेंट नहीं है , आपकी उपिस्ब्ध
नहीं है , आपकी मृत्यु है , आपका शमटना है ।

इसशिए समाशध को मैं कहिा हं : स्वयं अपने हाथों स्वीकार शकया गया
शमटना। स्वयं अपने हाथों अपनी मृत्यु का अंगीकार। स्वयं अपने हाथों अपनी
बूंद को खो दे नी की िैयारी।

शकन सूत्रों से हम शमट सकिे हैं ? िो उन्ीं सूत्रों की बाि करें गे । िे ही सूत्र
समाशध के आगमन के शिए द्वार खोि दें गे, मागय बन जाएं गे । शकन सूत्रों से हम
खुद शमट सकिे हैं ? अगर परमात्मा को होने दे ना है , िो शमटना पड़े गा। इस
खयाि में मि रहें शक आप परमात्मा से शमि सकेंगे, जब िक आप हैं िब

ओिो पृष्ठ संख्या 194


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िक शमिना नहीं हो सकिा। जब िक आप हैं िब िक आप ही रहें गे,
परमात्मा नहीं हो सकिा। शजस शदन आप नहीं हैं , शजस शदन आप अनुपस्थथि
हैं , उस शदन परमात्मा है ।

कबीर ने कहा है शक उसकी गिी बड़ी संकरी, िहां दो नहीं समा सकिे हैं ।
उसकी गिी बहुि संकरी है , िहां दो नहीं समा सकिे हैं । या िो िह और या
आप।

रूमी ने एक गीि शिखा है , एक सूफी गीि है : एक प्रेमी ने अपनी प्रेयसी के


द्वार पर जाकर दरिाजे खटखटाए, पीछे से पूछा शकसी ने, कौन है ? उसने
कहा: मैं हं , िुम्हारा प्रेमी। शफर भीिर से कोई आिाज नहीं आई। उसने बहुि
द्वारा खटखटाए, बहुि शचल्लाया और उसने कहा: क्या हो गया है ? इिनी
चुप्पी क्यों? ऐसा मािूम होिा है िर सू ना है । भीिर से आिाज आई, जो अभी
यह कहिा है शक मैं हं , उसके शिए प्रेम के द्वार खुिने असंभि है । क्योंशक "मैं'
ही िो प्रेम के द्वार बंद शकए हुए है ।

िो िह प्रेमी िापस िौट गया। कई चां द आए और गए, कई रािें और शदन


आए और बीिे, और िह "मैं' कैसे शमट जाए इसकी खोज करिा रहा। और
िषों के बीिने के बाद शफर इस द्वार पर आया। और उसने शफर सां कि
खटखटाई, पीछे से िही प्रश्न, कौन है ? हमेिा प्रेम के मंशदर में यही पूछा गया
है , कौन है ? और हमेिा परमात्मा के भीिर से भी आिाज आिी है , कौन है ?
उस मकान से भी आिाज आई, कौन है ? उसने अब की बार कहा: अब िो
कोई भी नहीं, अब िो िुम ही हो। और िे द्वार खु ि गए। िे द्वार िायद खुिे ही
थे , मैं की अंधी आं खें उन्ें नहीं खुिा हुआ दे ख पािी थीं।

िे द्वार खुि गए। शजस शदन व्यस्ि समथय हो जािा है इस बाि को जानने में
शक मैं नहीं हं , उसी शदन समाशध प्रशिष्ट हो जािी है , द्वार खुि जािे हैं , मागय

ओिो पृष्ठ संख्या 195


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शनष्कंटक हो जािा है । बाधाएं हैं हमारी खड़ी की हुई। एक-एक बाधा को
स्खसका दे ना होगा, एक-एक बाधा को हटा दे ना होगा। शफर िो आप पाएं गे
शक समाशध िायद बाहर भी नहीं थी, िह भीिर ही थी। मौजूद ही था सत्य,
परमात्मा मौजूद ही था, िेशकन हमारी ही बाधाओं के कारर् शदखाई नहीं
पड़िा था।

कौन-कौन सी बाधाएं हैं ? कैसे-कैसे िे बाधाएं दू र हो जाएं ? िीन सूत्रों की मैं


चचाय करना चाहं गा।

पहिा सूत्र है : सहज जीिन। हमारा जीिन बहुि असहज है , बहुि कृशत्रम,
बहुि आशटय शफशसयि, बहुि झूठा, बहुि शमथ्या, बहुि िंचक, बहुि शिसेशिि।
ऐसा नहीं शक हम शकसी और को धोखा दे िे होंगे, हम अपने को ही धोखा शदए
चिे जािे हैं । धोखा दे िे-दे िे हम उस स्थथशि में पहुं च जािे हैं शक यह भी िय
करना मुस्िि हो जािा है शक हमने कभी धोखा शदया था। धोखा भी शनरं िर
शदया जाए, शनरं िर शदया जाए, िो मुस्िि हो जािा है ।

एक आदमी ने हत्या की थी। और उस पर मुकदमा जिा, और िह पकड़ा


गया। िेशकन उसके पक्ष के िकीि ने बड़ी िगड़ी दिीिें कीं उसके पक्ष में,
उसके बचाने में। महीनों िह मुकदमा चिा और आस्खर में िह आदमी बच
गया। िह हत्यारा छूट गया। छूट जाने के बाद उस िकीि ने उस हत्यारे से
अपने िर पर जाकर पूछा, क्या शमत्र, अब िुम सच कह सकोगे शक िुमने
हत्या की थी या नहीं? उसने कहा: पहिे िो मेरा खयाि था शक मैंने की थी,
िेशकन आपकी दिीिें सुनिे-सुनिे मुझे िक हो गया। अब मैं संशदग्ध हं शक
मैंने की या नहीं की? और अगर दो-चार महीने यह मु कदमा और चििा िो
पक्का हो जािा शक मैंने नहीं की। पहिे िो मुझे खयाि था शक मैंने की,
िेशकन आपकी बािें और दिीिें सुनिे-सुनिे मुझे संदेह पैदा हो गया शक मैं ने
की या नहीं की है ?
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जीिन भर जो बािें हम दू सरों को शदखिािे रहिे हैं , धीरे -धीरे खुद को यह
शिश्वास पड़ जािा है शक हम िैसे हैं और जीिन शबिकुि कृशत्रम और झूठा हो
जािा है । हमारा प्रे म झूठा, हमारा चररत्र झूठा, हमारा व्यस्ित्व झूठा, हमारा
मन झूठा, हमारे प्रार् झूठे, िो इिने असहज व्यस्ित्व के कारर् िो बाधा
खड़ी हो जािी है । सब झूठा जहां हैं , िहां एकदम बाधा खड़ी हो जािी है ।

सत्य क्या है हमारे व्यस्ित्व में? सहज क्या है हमारे व्यस्ित्व में? असहज
सब कुछ है हमारा; जो हम बोििे हैं िह असहज है , हम चििे हैं िह
असहज है । कभी खयाि शकया? अगर रास्ते पर आप अकेिे चिे जािे हैं , िो
आप और ढं ग से चििे हैं , उस िरफ से चार िोग आ जाएं , िो आप दू सरे ढं ग
से चिने िगिे हैं । कभी खयाि शकया इस बाि पर? अपने बाथरूम में जब
आप अकेिे होिे हैं , िो आप दू सरे आदमी होिे हैं , और अपने बैठकखाने में
जब बैठे होिे हैं , िो शबिकुि दू सरे आदमी होिे हैं । कभी खयाि शकया इस
बाि पर?

कैसा यह हमारा व्यस्ित्व है ? हम िोगों की आं खों को दे ख कर, उसे


बदििे, और िे चार आदमी अगर बहुि बड़े आदमी हों, िो आप और बदि
जािे हैं । हमारा सब शहसाब बदि जािा है । हमारा पूरा व्यस्ित्व, जैसे हमने
कई िरह के मुखौटे बना रखे हैं अपने भीिर, और जब जैसी जरूरि होिी है
उसको पहन िेिे हैं । धीरे -धीरे मुखौटों में खोिे-खोिे हम यह भू ि ही जािे हैं
शक हमारा कोई अपना चे हरा भी है , शनपट हमारा चेहरा, जो हमने शकसी की
अपेक्षा में खड़ा नहीं शकया है । जो हमने शकसी की अपेक्षा में खड़ा नहीं शकया,
जो हमारा ही चे हरा है , पिा है आपको? आपका ओररशजनि फेस, आपका
िस्तुिः जैसा चेहरा है , पिा नहीं आपको।

ओिो पृष्ठ संख्या 197


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आपने बहुि चे हरे बनाएं हैं , हमने बहुि चेहरे बनाएं हैं , और हर आदमी की
अपेक्षा में चेहरा बदि जािा है । सुबह कुछ होिे हैं , िड़ी भर बाद कुछ,
दोपहर कुछ, राशत्र कुछ; पत्नी के सामने कुछ, शमत्र के सामने कुछ, पुत्र के
सामने कुछ, शपिा के सामने कुछ, नौकर के सामने कुछ, माशिक के सामने
कुछ, चौबीस िंटे इिना जो कृशत्रम व्यिहार चििा है और अशभनय चििा है
और जीिन भर, िो गहरी पिें खड़ी हो जािी हैं । उसमें एक चीज खो जािी है ,
ओररशजनि फेस खो जािा है । िह जो मौशिक व्यस्ित्व है िह खो जािा है
और झूठे व्यस्ित्व चारों िरफ खड़े हो जािे हैं ।

ये झूठे व्यस्ित्व, ये जो फॉल्स पसय नैशिटीज हैं , ये झूठे व्यस्ित्व सबसे बड़ी
बाधा हैं परमात्मा के शनकट आने में।

एक आदमी सुबह से उठ कर मंशदर चिा जािा है , उस िि उसका चेहरा


दे खा? मंशदर में खड़े हुए उसे पहचाना? क्या यह िही आदमी है जो दु कान
पर अभी शमिा था? दफ्तर में अभी शमिा था? आशफस में अभी शमिा था?
यह िही आदमी है यह जो चचय में खड़ा है हाथ जोड़े ?

शियो टािस्टाय एक दफा सुबह-सु बह, सदी के शदन थे , एक चचय में गया। िो
रूस का एक बड़ा शिचारिीि व्यस्ि था। अंधेरा था और एक गां ि का सबसे
बड़ा धनपशि िहां खड़ा हुआ परमात्मा के सामने कनफेिन कर रहा था। िह
अपने पापों का अपराध स्वीकार कर रहा था। और िह कह रहा था शक मैं
बहुि बेईमान हं , मैं बहुि चोर हं , मैं ने बहुि पाप शकए हैं , परमात्मा मुझे क्षमा
कर।

टािस्टाय ने अंधेरे में खड़े हुए, ये बािें सुन िीं। शफर िह आदमी बाहर
शनकिा, टािस्टाय उसके पीछे हो शिया। सुबह होने िगी थी और सूरज
शनकि रहा था और बीच चौरस्ते पर जाकर टािस्टाय शचल्लाया शक रुको! जो

ओिो पृष्ठ संख्या 198


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बािें िुमने चचय में कहीं हैं , मैं सब िोगों को बिा दू ं ? उस आदमी ने कहा शक
जबान बं द रखना, नहीं िो सां झ होने के पहिे हिािाि के अंदर बंद हो
जाओगे ।

िेशकन टािस्टाय ने कहा शक िुम अभी चचय में कहिे थे शक मैं पापी हं , मैं
बेईमान हं ? उसने कहा: बस, बंद। मु झे पिा नहीं था शक िुम िहां मौजूद हो,
मैं िो समझा, अकेिा परमात्मा है । जो बािें परमात्मा के सामने कहीं हैं , िे
िोगों के सामने कहने की नहीं हैं । और उसने कहा: अगर इस बाि को आगे
बढ़ाया, िो मानहाशन का मुकदमा चिेगा, और कशठनाई में पड़ जाओगे ।

टािस्टाय ने िौट कर अपनी िायरी में शिखा शक आज मुझे पिा चिा गया
शक परमात्मा से अकेिे में जो बािें कहीं जािी हैं , िे सबके सामने नहीं कही
जा सकिी हैं ।

ऐसे हमारे चेहरे हैं , ऐसे चेहरों को िेकर क्या हम सोचिे हैं शक हम साक्षाि
कर सकेंगे सत्य का कभी? सत्य का साक्षाि िो बहुि दू र, हम खुद ही सत्य
नहीं हैं , िो सत्य का साक्षाि कैसे होगा?

सत्य के साक्षाि के शिए स्वयं का व्यस्ित्व िो सत्य होना ही चाशहए। हम जैसे


हैं --जैसे हैं , बुरे और भिे, छोटे और बड़े , जैसे भी हम हैं , हमें अपने िैसे होने
को जानना चाशहए। और हमें, उस जैसे हम हैं , उस सहज केंि पर ही जीने
को आिशियि करना चाशहए, िो जीिन में सहजिा होगी, कपट शििीन होगा।

कौन सी कशठनाई है शक हम सहज नहीं हो पािे हैं ? कौन सी कशठनाई है ?


कौन सी बाि रोकिी है हमें शक हम सहज नहीं हो पािे ? जरूर कोई बाि
रोकिी है , अन्यथा सारी मनुष्य-जाशि क्यों असहज होिी? कोई बाि रोकिी
है । िह बाि है , शिशिष्ट होने का खयाि रोकिा है । समबिी होने का खयाि
रोकिा है । कुछ होने का खयाि रोकिा है । हर आदमी को यह िहम है शक
ओिो पृष्ठ संख्या 199
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह शिशिष्ट है । और इस िहम की पूशिय के शिए िह शिशिष्ट रूप खड़े करिा
है । और इस िहम की, इस भ्रम की पूशिय के शिए िह शिशिष्ट होने की कोशिि
करिा है ।

इस सत्य को शनरं िर जानिे हुए भी शक जो शिशिष्ट थे िे, और जो साधारर् थे


िे, जो सामान्यजन थे िे, और जो अशि असाधारर्जन थे िे, िे सब शमट्टी में
धूि-धूसररि हो जािे हैं । िे सब शमट्टी में शगर जािे हैं और शििीन हो जािे हैं ।

िेशकन, हरे क को यह खयाि है शक िह शिशिष्ट हो जाए। और शिशिष्ट होने से


जो टें िन और िनाि पैदा होिा है जीिन में, िह असहज कर दे िा है । शफर
हम जो नहीं होिे, उसे शदखिाने की कोशिि करने िगिे हैं । जो हममें नहीं
होिा, िह हम अशभव्यि करने करिे हैं । जो हमारे भीिर नहीं होिा, उसे
हम बाहर से ओढ़ िेिे हैं ।

हम जैसे हैं िैसे को स्वीकार नहीं कर पािे, क्योंशक हम कुछ और शदखिाने


की कोशिि से और प्रेरर्ा से भरे हुए हैं । िेशकन जो भी आं ख खोि कर
दे खेगा, िह पाएगा, िह एक बाि पाएगा, और िह बाि बड़ी सीधी है , और
िह यह है शक जो व्यस्ि जैसा है और जो है उससे अन्यथा न िो िह हो
सकिा है न कभी होने की संभािना है । शदखने की कोशिि कर सकिा है
और भ्रम में रह सकिा है िेशकन हो नहीं सकिा। गु िाब का फूि गु िाब का
फूि है और चंपा का फूि चंपा का फूि है । और कोई कारर् नहीं है शक चंपा
का फूि गु िाब का फूि शदखने की कोशिि करे ।

और कोई कारर् नहीं है शक नीम का िृक्ष आम का िृक्ष बनने की कोशिि


करे । छोटे पौधे हैं और बड़े पौधे हैं , छोटे िारे हैं और बड़े िारे हैं , सारे जगि में
जो जहां है और जैसा है , अगर िह अपने िहां होने को और िैसे होने को
सहज भाि से स्वीकार कर िे, उसके जीिन में एक क्रां शि हो जाएगी। और

ओिो पृष्ठ संख्या 200


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफर कुछ होगा। और उसके भीिर कुछ शिकशसि होगा। िेशकन शफर िह
उसके अहं कार के केंि पर शिकशसि नहीं होगा, शफर जैसे परमात्मा ही
उसके भीिर काम करने िगे गा और कुछ होिा चिा जाएगा। अभी िो हम
अहं कार के केंि पर कुछ होने की कोशिि करिे हैं और अहं कार के केंि
पर हम जो भी होने की कोशिि करें गे, िह एक झूठे व्यस्ित्व से ज्यादा नहीं
हो सकिा है ।

स्मरर् रखें, अहं कार से प्रेररि होकर जो भी होगा िह एक झूठा व्यस्ित्व का


शनमाय र् होगा और अहं कार िून्य होकर जो भी होगा, िह एक बहुि
आत्यंशिक रूप से आस्त्मक शनमाय र् होगा।

िो पहिी बाि, अहं कार के केंि पर कुछ होने की कोशिि भ्रां ि है । शसकंदर
िही करिा है , नेपोशियन िही करिा है , राजनीशिज्ञ िही करिा है , धनपशि
िही करिा है ; शजसको हम कहिे हैं , सच्चररत्र और चररत्रिान, सज्जन, साधु,
िह भी िही करिा है । अहं कार के केंि पर िह सारी कोशिि करिा है ।

कि ही शकसी ने मु झसे कहा शक मैं बहुि अच्छा आदमी होना चाहिा हं । मैं ने
कहा: क्यों िेशकन? आस्खर िुम्हारी कौन सी जरूरि पड़ गई बहुि अच्छा
आदमी होने की? एक आदमी बहुि धनी होना चाहिा है , िो हम कहिे हैं ,
यह पागि है । िेशकन एक आदमी कहिा है शक मैं बहुि अच्छा आदमी होना
चाहिा हं , महात्मा होना चाहिा हं । िो हम कहिे हैं , यह बड़ा ऊंचा आदमी
है । यह दौड़ शबिकुि एक सी है , दोनों का केंि अहं कार है । दोनों जै से हैं
सहज और सामान्य, िैसे होने को स्वीकार नहीं करिे हैं ।

एक बहुि अच्छे िस्त्र पहन कर खड़ा हो जाना चाहिा है , एक बहुि अच्छा


चररत्र ओढ़ कर खड़ा हो जाना चाहिा है ; िेशकन क्यों? दू सरों को नीचे

ओिो पृष्ठ संख्या 201


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शदखाने के शिए? दू सरों को पीछे छोड़ने के शिए? दू सरों को दु ख दे ने के
शिए? अहं कार का सारा सुख दू सरों को दु ख दे ने पर खड़ा होिा है ।

एक आदमी बड़ा मकान बना िेिा है , इससे थोड़े ही खुि होिा है शक मैंने
बड़ा मकान बनाया, इससे खुि होिा है शक मैंने दू सरों के मकान छोटे कर
शदए। अभी उसके बड़े मकान के बगि में एक बड़ा मकान खड़ा हो जाने दें ,
िह दु खी हो जाएगा। मकान उसका िही है , िेशकन दु ख कैसे आ गया?
शकसी और ने उसके मकान को छोटा कर शदया। आप बहुि अच्छे कपड़े
पहन कर थोड़े ही सुखी होिे हैं , नहीं, दू सरों के कपड़ों को दररि बना कर,
नीचा बना कर सुखी हो जािे हैं ।

दु शनया में इिनी दररििा क्यों है ? इिना दु ख क्यों है ? क्योंशक हर आदमी


दू सरे को शबना दु खी शकए सुखी होने का कोई उपाय ही नहीं जानिा है । और
अहं कार जो कुछ भी करे गा--एक सज्जन है , साधु-चररत्र व्यस्ि है , उसका
भी जो सुख है िह सज्जनिा और साधु-चररत्रिा का नहीं है , िह दू सरों को
दु जयन और असाधु शसि करके मजा िे रहा है । अगर सारे िोग उसी जै से
साधु हो जाएं , िह बड़ी परे िानी में और कष्ट में पड़ जाएगा। उसका सारा
सुख और सारा मजा इस बाि में है शक िह दू सरों को नीचे शदखा पा रहा है ।
शकसी भी िजह से िह दू सरों को नीचे शदखा पा रहा है , िोगों को नीचा कर पा
रहा है ।

अहं कार एक ही सुख जानिा है , दू सरों को नीचे करने का सुख। आत्मा एक


ही सुख जानिी है , शकसी को नीचे-ऊपर करने का सुख नहीं जानिी, बस्ल्क
स्वयं के भीिर जो भी शछपा है , उसे प्रकट और अशभव्यि करने का सु ख।
िेशकन आत्मा के गशि और आत्मा के केंि पर शिकास िभी हो सकिा है जब
अहं कार के केंि पर हमारी गशि और शिकास बंद हो जाए। हम सब उसी
केंि पर दौड़े चिे जािे हैं इस बाि की शबना शफकर शकए, आं खें खोिे शबना
ओिो पृष्ठ संख्या 202
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शक शकिने िोग उस िि पर दौड़िे हैं िेशकन कहां पहुं चिे हैं ? कहां पहुं चिे
हैं ? और मनुष्य के अहं कार के शिए कारर् भी कहां है ? कौन सा कारर् है
मनुष्य के अहं कार के शिए? िेशकन मनुष्य बड़ा अहं कारी है ।

बनाय िय िा से शकसी ने पूछा शक क्या आप यह मानिे हैं शक जमीन सूरज का


चक्कर िगािी है ? बनाय िय िा ने कहा: यह मैं कभी मान ही नहीं सकिा।
पूछने िािे ने कहा: आपके मानने, न मानने का कहां सिाि है , यह िो शसि
है और प्रमाशर्ि है शक जमीन सूरज का चक्कर िगािी है । उसने कहा:
जरूर इसमें कुछ गििी होगी, बनाय िय िा शजस जमीन पर रहिा है िह कहीं
सूरज का चक्कर िगा सकिी है , सूरज ही जमीन का चक्कर िगािा होगा।

बाि िो उसने बड़े व्यंग्य में कही, िेशकन कही िो मििब की है ।

मनुष्य से पूशछए, मनुष्य की शकिाबों में शिखा है शक मनुष्य जो है परमात्मा


की सियश्रेष्ठ कृशि है । यह शकसने िु म्हें बिाया? या खु द िुम ही कहे चिे जा
रहे हो? सारे पिु-पशक्षयों से ऊपर ये ही हैं , भगिान ने इनके शिए शििेष रूप
से बनाया है । कौन िुमको कहिा है ?

अभी कि ही मैं कह रहा था शक एक पशि ने जाकर अपने शमत्रों को कहा शक


मेरी स्त्री से ज्यादा सुंदर और कोई भी नहीं है । उन शमत्रों ने पूछा, शकसने िुम्हें
बिाया? उसने कहा: मेरी स्त्री ने ही बिाया। उस पर िोग हं से। िेशकन मनुष्य
शनरं िर हजारों िषय से यह दोहरा रहा है शक हम सियश्रेष्ठ कृशि हैं परमात्मा की।
कोई इस पर हं सिा नहीं। क्योंशक हम सभी मनुष्य इसमें सहमि हैं । हम
सभी इसमें सहमि हैं । शकसने यह कहा आपसे? कौन बिा गया यह
आपको?

मनुष्य के अहं कार की सीमा नहीं है । िस्ि क्षु ि है और ना-कुछ है । एक


श्वास आिी है और िौट कर न आए, िो हमारा िि नहीं है । िेशकन नहीं, जरा
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सा िाप बढ़ जाए, िो हम समाि हो जाएं गे । जरा सी िीि बढ़ जाए, िो हम
समाि हो जाएं गे । कब जमीन टू ट जाए, कब सूरज ठं िा हो जाए, हम
समाि हो जाएं गे ।

और हमारे समाि होने की इस शिराट शिश्व में कहीं भी कोई सूचना नहीं
शनकिेगी, कोई अखबार में खबर नहीं छपेगी। कहीं कोई पिा नहीं चिेगा
शक एक पृथ्वी पर मनुष्यों की एक छोटी सी जाशि थी िह समाि हो गई।
कहीं कोई खबर भी पिा नहीं चिेगी। ये िीन अरब आदमी यहां ठं िे हो जाएं ,
िो यह जो शिराट जगि है , शजसकी सीमाओं का भी हमें कोई पिा नहीं, इसमें
कहीं कोई िहर भी कंशपि नहीं होगी कहीं कोई संिेदना की, सभा भी नहीं
होगी, कहीं कोई िोक-प्रस्ताि भी नहीं होंगे, कहीं कुछ भी नहीं होगा, पिा
भी नहीं चिेगा।

हमें पिा चििा है जब कोई िर में एक चींटी मर जािी है ? हमें पिा चििा है
जब शक कोई िास का एक पौधा सुख जािा है ? इससे ज्यादा और कुछ भी
पिा नहीं चिेगा पूरी मनुष्य-जाशि समाि हो जाए िो भी। आज है भी, िो भी
कहीं कोई पिा नहीं है । िहां िो इटरनि साइिेंस है चारों िरफ। और जहां
िक हमारी आं खें बढ़िी हैं , और जहां िक दे खने की हमारी क्षमिा बढ़िी है ,
हम पािे हैं शक हम शकिने छोटे हैं ।

एक िि था शक हम बहुि बड़े थे , जैसे-जैसे हमारी समझ बढ़ी है हम छोटे


होिे चिे गए हैं । जमीन िो कुछ भी नहीं है , आदमी िो कुछ है ही नहीं।
जमीन से बड़ा, साठ हजार गु ना बड़ा सूरज है । और सूरज सबसे छोटा सूरज
है इस सारे जगि में। ऐसे कोई दो करोड़ सूरज, हम पिा िगा सके हैं । उनके
पार भी अनंि शिस्तार है । और उनके पार भी शकिने सूरज होंगे, कुछ कहा
नहीं जा सकिा। और सीमा कहीं होगी यह िो असंभि है , क्योंशक सीमा िो

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िभी हो सकिी है जब दू सरी दु शनया िुरू हो जाए आगे । सीमा से िो हमे िा
दू सरी चीज िुरू हो जािी है ।

जहां आपका िर समाि होिा है , दू सरे का िर िु रू हो जािा है । जहां


आपका खेि समाि होिा है , दू सरे का खेि िुरू हो जािा है । सीमा िो
हमेिा दो के बीच होिी है , इसशिए इस शिश्व की कोई सीमा िो हो नहीं
सकिी, नहीं िो दू सरा शिश्व िुरू हो जाएगा। दू सरा समाि होगा, िीसरा
िुरू हो जाएगा। उससे कोई मििब हि नहीं होगा।

शिश्व की कोई सीमा िो हो नहीं सकिी। यह जो असीम जगि है , शजसमें ये


छोटे -छोटे से शबंदु हैं --पृथ्वी के, सूरज के, और इनके बीच अनंि खड्ड हैं ,
खाइयां हैं , जहां कुछ भी नहीं है , िहां एक छोटा सा मनुष्य है , शजसके
अहं कार का शहसाब नहीं। जो अपने झंिे ऊंचे शकए जािा है िं िों पर िगा-
िगा कर। और शचल्लािा है , और उन झंिों के शिए मरिा है और मारिा है ,
और शजसके दं भ की कोई सीमा नहीं। दं भ के शिए कोई भी कारर् नहीं है ।
एक पत्ते के शिए कोई कारर् नहीं है , एक बूंद के शिए कोई कारर् नहीं है ।
आपके शिए, मेरे शिए भी कोई कारर् नहीं है ।

अगर हम आं ख खोि कर दे खेंगे, िो हम पाएं गे , अहं कार के शिए कोई भी िो


कारर् नहीं है । कोई भी िो कारर् नहीं है । िेशकन जीिन भर हम अहं कार
के शिए कारर् खोजिे हैं । और िस्ि हमारी इिनी अल्प है , न जीिन पर
कोई िि है , न मृत्यु पर कोई िि है । चीजें हमारे भीिर होिी हैं , िेशकन हम
भ्रमिि कहिे हैं शक मैं कर रहा हं ।

शकसी से आपको प्रेम हो जािा है , िो आप कहिे हैं शक मैं प्रेम कर रहा हं ।


कभी शकसी ने प्रेम शकया है ? प्रेम हुआ है । क्रोध आपको आ जािा है , आप

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कहिे हैं शक मैं क्रोध कर रहा हं । कभी शकसी ने क्रोध शकया है ? क्रोध हुआ
है । आप कहिे हैं , मेरा जन्म-शदन! आपका कोई जन्म-शदन है ? आपने कोई
िय शकया था? आपसे शकसी ने पूछा था? कोई शकसी का जन्म-शदन नहीं,
कोई शकसी का मृत्यु-शदिस नहीं; जीिन आिा है और जािा है ।

जैसे सागर पर िहरें उठिी हैं और शििीन हो जािी हैं । अगर िहरों को भी
पिा हो, िो उठने को िे कहें गी, जन्म-शदन, और शगरने को कहें गी, मृत्यु-
शदिस। जो जरा ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, िे संगमरमर की कब्रें बनिाएं गी।
जो जरा और ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, िे अपनी आत्मकथाएं शिखेंगी। जो
जरा और ज्यादा ऊंची उठ जाएं गी, उनके नाम पर झगड़े होने िुरू हो
जाएं गे शक ये भगिान की शििेष अििार थीं। िेशकन िहरों से ज्यादा जीिन
में और कुछ भी नहीं है । पत्ते आिे हैं और पिझड़ में झड़ जािे हैं । और मनुष्य
पैदा होिा है और शििीन हो जािा है ।

अगर जीिन को आं ख खोि कर दे खेंगे, शबना शकसी पूिाय ग्रह के, और मनुष्य
के बहुि पूिाय ग्रह हैं , न मािूम क्या-क्या अपने को समझे हुए हम बैठे हैं ।
अगर हम थोड़ा आं ख खोि कर और शनष्पक्ष होकर दे खेंगे, िो पाएं गे ,
अहं कार के शिए िो कोई भी कारर् नहीं। मेरे भीिर भी जीिन ने एक िाखा
को शिकशसि शकया है , शकसी भी शदन खींच िेगा। आपके भीिर भी जीिन ने
एक पंखुड़ी खोिी है , शकसी भी शदन भी बंद हो जाएगी, कुम्हिा जाएगी और
शगर जाएगी।

आप कहां हैं ? जीिन है और िाइफ फोसय है , आप कहां हैं ? मैं कहां हं ?


एक-एक पत्ते को होि आ जाए िो िह शचल्लाने िगे शक मैं कुछ हं । और जो
पत्ता ऊपर की िाखा पर स्खिा है िह नीचे की िाखा िािे से कहे शक िू िूि
है और हम ब्राह्मर् हैं , या शक हम क्षशत्रय हैं , या कुछ और, पागिपन कई
िरह के हैं । िेशकन नीचे की िाखा पर जो पत्ता स्खिा है िह भी उसी िरह
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
परमात्मा से स्खि रहा है जैसे ऊपर की िाखा पर। और परमात्मा के जगि
में कोई ऊपर की और नीचे की िाखा नहीं है , क्योंशक ऊपर और नीचे िहां
हो सकिा है जहां शिश्व की सीमा हो। जहां कोई सीमा नहीं िहां कोई ऊपर
और नीचे कैसे हो सकिा है ?

सीमा हो िो कोई ऊपर और नीचे हो सकिा है , िेशकन जहां सीमा न हो िहां


ऊपर-नीचे नाशपएगा कैसे शक कौन नीचे कौन ऊपर? कहीं कोई ऊपर सीमा
हो, आपके िर का ऊपर छप्पर है , िो आप एक छोटी कुसी रखिे हैं और
एक बड़ी कुसी, िो नापने का उपाय है । छप्पर से जो कुसी करीब है िह
ऊंची, जो कुसी दू र है िह नीची। िेशकन जहां कोई छप्पर न हो, िहां कौन
नीचे? कौन पीछे ? कौन आगे ? जहां ओर-छोर न हो, िहां कोई आगे नहीं है ,
कोई पीछे नहीं है , कोई नीचे नहीं है , कोई ऊपर नहीं है । ये सारी ऊपर-नीचे
की कल्पनाएं हमारी कल्पनाएं हैं जो हम जबरदस्ती थोपे हुए हैं ।

एक कंकड़ भी िैसे ही परमात्मा की अशभव्यस्ि है , िैसी ही अनूठी। एक


पक्षी भी िैसी ही अनूठी कृशि है । एक पौधे में भी िैसा ही अनूठा व्यस्ित्व
उठा है , जैसा आप में या शकसी और में , या कृष्ण में, या राम में, या बुि में, या
महािीर में। कोई ऊंचा-नीचा नहीं है । िाइफ फोसय, जीिन की िस्ि अनंि-
अनंि रूपों में अशभव्यि होिी है , शििीन होिी है , अशभव्यि होिी है , िहरें
उठिी हैं और जािी हैं । इसमें आप कहां हैं ? मैं कहां हं ? िेशकन हम बहुि
िनीभू ि रूप से होकर बैठ गए हैं शक हम हैं , मैं हं । और यह मेरा होना हमें
असहज शकए जािा है , हमें जीिन की सहजिा को स्वीकार नहीं करने दे िा।

एक फकीर हुआ, नानईन। जापान में हुआ कोई हजार िषय पहिे। जापान
का बादिाह उससे शमिने गया। िह अपनी बशगया में बाहर गङ् ढे खोद रहा
था। बादिाह ने सोचा था कोई बहुि शिशिष्ट महापुरुष होगा, शजसके शसर के
चारों िरफ, प्रकाि का आिृि बना होगा। साधु-संिों के बना रहिा है । पहिे
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
से ही फोटोग्राफर को कह रखिे हैं , बना दे ना। पुराने शदनों में फोटोग्राफर िो
होिे नहीं थे , शचत्रकार होिे थे, िे बना दे िे थे । िो उसने सोचा था शक इिना
महापुरुष है , िो कोई प्रकाि चारों िरफ इसके मुखमंिि के आिृि बना
होगा। जाकर गङ् ढा खोदिे आदमी से उसने पूछा शक महात्मा नानईन से
शमिना चाहिा हं ।

िो उसने कहा: यहां िो कोई महात्मा रहिे ही नहीं; एक नानईन नाम का


आदमी रहिा है ।

िो उसने कहा: िू बहुि अशिष्ट मािू म होिा है । कहां है िह?

िो उसने कहा: महात्मा का िो मुझे कोई पिा नहीं, नानईन का मुझे पिा है ,
कशहए िो बिा दू ं ?

उसने कहा: कहां है ?

िो उसने कहा: मैं ही हं ।

राजा है रान हुआ! समझा शक यह पागि, यह क्या नानईन होगा, जो गङ् ढा


खोद रहा है दरिाजे के बाहर बैठा हुआ? और कहिा है , यहां कोई महात्मा
रहिे ही नहीं, मुझे िो पिा ही नहीं, मैं िो यहां कई साि से रहिा हं । यहां िो
एक नानईन नाम का आदमी रहिा है ।

िेशकन राजा के िजीर ने कहा शक मैं एक दफा और दे ख कर गया था, यही


आदमी मािूम होिा है । िह िो एक िंगोटी सी िगाए हुए गङ् ढा खोद रहा
है । िो राजा बड़ा है रान हुआ! उसने सोचा मन में शक यह िो उशचि नहीं शक
ऐसे आदमी से शमिने और मैं और आया। िेशकन अब आ ही गया हं िो इससे
थोड़ी-बहुि बाि कर िूं। िो उसने उस नानईन से पूछा शक िुम्हारी साधना
क्या है ?

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसने कहा: साधना! यह िब्द मैंने सुना ही नहीं। मैंने कभी कुछ साधना की
नहीं। आप गििी से कहीं आ गए, और कहीं जाइए। शकसी साधु के पास
जाइए, मैं क्या साधना-िगै रह।

शफर भी आप करिे क्या हैं ?

उसने कहा: जब मुझे भू ख िगिी है , मैं खाना खाने की कोशिि करिा, और


जब नींद आ जािी, िो सो जािा हं , जब नींद खुि जािी, िो उठ जािा हं , और
िो मैंने कुछ शकया नहीं।

उस राजा ने कहा शक यह िो हम भी करिे हैं ।

नानईन ने कहा शक जहां िक मैं समझिा हं , यह आप नहीं करिे होंगे, नहीं


िो मेरे पास क्यों आिे। यह आप नहीं करिे होंगे। नहीं िो मेरे पास आने का
कोई कारर् नहीं था।

शजसने जीिन को इिनी सरििा से शिया हो शक भू ख िगे िो खाना िे, नींद


आए िो सो जाए, नींद खुि जाए िो उठ आए। और शजसने जीिन पर
जबरदस्ती थोपा न हो कुछ, जो इिना सहज हो गया हो, क्योंशक थोपने का
कृत्य अहं कार का कृत्य है ।

िह कहिा है , ब्रह्ममुहिय में उठना, चाहे नींद खुिे, चाहे न खुिे। अहं कार का
कृत्य है । िह कहिा है , इिना खाना, इिना मि खाना, यह उपिास करना,
िह उपिास करना, यह मंत्र पढ़ना, यह शकिाब पढ़ना, इस िरह उठना, यह
टीका िगाना, इस िरह का मािा पहनना, यह सब िह।

जीिन की सहजिा को स्वीकार नहीं करिा अहं कार, उसमें फकय िािा है ,
काट-छां ट िािा है । जीिन जैसा अपने से शिकशसि होिा है सहज, उसे िह
स्वीकार नहीं करिा। और इसशिए शफर एक शक्रशपल्ड और अग्ली, एक पंगु

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और कुरूप व्यस्ित्व का जन्म होिा है , शजसे हमने चारों िरफ से ठोंक-ठोंक
कर शबठाया। चारों िरफ से जबरदस्ती शजसको हमने बां धा और एक ढां चे में
खड़ा शकया, शफर अिां शि होिी है , दु ख होिा है ।

िो शफर हम िां शि की खोज में शहमािय जािे हैं । शफर दु ख होिा है , िो हम


सोचिे हैं , कोई गुरु के आिीिाय द से ठीक हो जाए। िेशकन हम यह नहीं
दे खिे शक जीिन असहज होिा है , इसशिए दु ख और अिां शि होिी है ।

कोई पौधा दु खी नहीं है और कोई पक्षी नहीं है । मनुष्य बहुि दु खी है । मनुष्य


ने जीिन के ऊपर ढां चे थोपने िुरू शकए हैं , हजार िरह के ढां चे थोपिा है ।
और अपने को शजस िरह का िह बां धने का, सम्हािने का सब िरफ से
प्रयास करिा है । उसके सब प्रयास, जीिंि जो िस्ि है उसके भीिर, उसके
शिरोध में खड़े हो जािे हैं , और उस जीिन की धारा को प्रिाह दे ने िगिे हैं ।

एक नदी बहिी है , िो बही चिी जािी है । जहां मागय शमििा है , जहां ढिान
होिी है , बही चिी जािी है । अगर नशदयों को खयाि आ जाए शक शकस रास्ते
पर बहना चाशहए, शकस ढं ग से बहना चाशहए, शकस शमट्टी के करीब से बहना
चाशहए, शकस पहाड़ से दू र रहना चाशहए, और कौनसा काम करना चाशहए,
नहीं करना चाशहए, शफर कोई नदी सागर िक नहीं पहुं च सकेगी। शफर कोई
नदी सागर िक नहीं पहुं च सकेगी। िेशकन सभी नशदयां सागर िक पहुं च
जािी हैं । जहां उनकी जीिंि गशि िे जािी, चुपचाप चिी जािी है ।

शजस व्यस्ि को परमात्मा के सागर िक पहुं चना हो, उसे सररिाओं की भां शि
हो जाना चाशहए। पटररयों पर दौड़िी हुई रे िगाशड़यों की भां शि नहीं। शक
पटररयां पहिे शबछा दें और शफर रे िगाशड़यां उस पर चिा शदए। नहीं,
सररिाओं की भां शि शजनका का कोई मागय शनर्ीि नहीं, और शजनकी जीिंि
िस्ि जहां मागय पािी है बही चिी जािी है , अत्यंि सहजिा से। िेशकन हम

ओिो पृष्ठ संख्या 210


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सब िोगों का जीिन रे िगाशड़यों की भां शि है जो शबछी हुई पटररयों पर दौड़
रहे हैं ।

शबछी हुई पटररयों पर जो व्यस्ि दौड़ रहा है िह असहज हो जाएगा। िेशकन


मेरी बाि सुन कर िबड़ाहट होगी शक हम अगर शबिकुि सहज हो गए, िब
िो पिु हो जाएं गे । अगर हम शबिकुि सहज हो गए, िो शफर िो सब गड़बड़
हो जाएगा, शफर हम मनुष्य कैसे रहें गे?

शनशिि ही, अगर शबिकुि सहज हो जाएं , िो मनुष्य िो नहीं रह जाएं गे ,


िेशकन पिु नहीं होंगे, परमात्मा हो जाएं गे । पिु की सहजिा बोधपूियक नहीं
है , आपकी सहजिा अत्यंि बोधपूियक होगी, कां िस होगी, होिपूियक होगी।
और जहां पररपूर्य होि के साथ जीिन की सहजिा को स्वीकार कर शिया
जािा है , जीिन अपने आप ही उन श्रेष्ठिम शदिाओं की और गशिमान होने
िगिा है । शजनकी और हम िाख उपाय करिे, िो भी गशिमान नहीं हो
सकिा था।

ऐसे व्यस्ि को शजसने सब भां शि सहज जीिन को अंगीकार कर शिया, मैं


साधु कहिा हं । ऐसे व्यस्ि को मैं साधु कहिा हं , शजसने जीिन की सहजिा
को स्वीकार कर शिया। और शजसने अपने अहं कार की जो काट-छां ट थी,
और अहं कार की हर िरफ जो रुकािट थी, उससे अपने को मुि कर
शिया। और उसने मान शिया शक जो होना है उसे हो जाने दे ना है ।

अभी हमें िर िगे गा, क्योंशक हमारी हजारों साि की पू री परं पराएं हमसे यह
कहिी हैं शक यह िो बड़ा मुस्िि हो जाएगा। िेशकन कभी जीकर दे खें,
िड़ी, आधी िड़ी, शदन, दो शदन को, कभी एकां ि में महीने, दो महीने को
इिने सहज, जैसे आप एक पिु हैं , एक पक्षी हैं , एक पौधा हैं । जीकर दे खें
और पाएं शक आपके भीिर कैसे अदभु ि िां शि के िोक खुििे चिे जािे हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 211


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और बड़े आियय की बाि है , शजिना सहज और िां ि व्यस्ित्व होगा, शजनको
हम बुराई कहिे हैं और शिकार कहिे हैं , िे उसमें उठने बंद हो जािे हैं । िे
उसमें उठिे भी नहीं। िे उठिे हैं असहज व्यस्ित्व में।

स्पां टेशनयस, अत्यंि सहज जीिन को समझना, जानना और गशिमान होने


दे ना पहिा सूत्र है शक परमात्मा आए।

दू सरा सूत्र है : अद्वं द्व। शचत्त में कां स्िक्ट न हो, द्वं द्व न हो। शचत्त में शिरोधी स्वर
न हो।

हमारे शचत्त में बहुि शिरोधी स्वर हैं । एक स्वर कुछ कहिा है , दू सरा स्वर कुछ
कहिा है । दोनों के बीच िड़िे हैं । और जब हमारे ही दोनों स्वर हों, िो िड़ाई
का क्या हि हो सकिा है ? अगर मेरे ही दोनों हाथ आपस में िड़ें , िो क्या
होगा? कोई जीिेगा? कोई हारे गा? कोई जीिेगा नहीं, कोई हारे गा नहीं।
िड़ाई जीिन भर चिेगी, हार-जीि कुछ भी नहीं होगी। एक बाि हो जाएगी,
दोनों हाथों की िड़ाई में मैं टू टिा चिा जाऊंगा।

क्योंशक दोनों हाथ मेरे हैं और दोनों में मेरी िस्ि ही िड़िी है । दोनों िरफ से
मेरी िस्ि िड़िी है , दाएं हाथ से भी मेरी और बाएं हाथ से भी मेरी। चाहे
दायां बुरा हो और बायां अच्छा हो, चाहे बायां बु रा हो, चाहे दायां अच्छा हो।
दोनों हािि में मेरी िस्ि ही दोनों िरफ से िड़िी है । हाथ िो कोई जीि नहीं
सकिे, क्योंशक दोनों मेरे हैं , हार-जीि कुछ शनर्यय नहीं हो सकिा, एक बाि
िय है शक दोनों शक िड़ाई में मेरी िस्ि का अपव्यय होिा है ।

शचत्त में िेशकन हमने बहुि द्वं द्व खड़े कर शिए हैं , िुभ के, अिुभ के; भिे के,
बुरे के; यह अच्छा है , िह बुरा है ; यह नीशि है , िह अनीशि है ; यह पाप है ,
िह पुण्य है ; और हम िड़ रहे हैं चौबीस िंटे। मैं आपको स्मरर् शदिा दू ं ,
िड़ने िािा शचत्त ही एकमात्र पाप है । भीिर शजसने सारी िड़ाई को शिसशजय ि

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कर शदया है , िह शचत्त एकमात्र पुण्य है । िेशकन जब िक हमें यह खयाि नहीं
है शक िड़ने में दोनों िरफ मैं ही हं , िब िक िड़ाई बंद नहीं हो सकिी है ।

जब आपके भीिर क्रोध उठिा है , िो क्रोध के भीिर िस्ि शकसकी जािी


है ? आपकी। और जब आपके भीिर क्रोध का पिात्ताप उठिा है , िो
शकसकी िस्ि जािी है ? आपकी। जब आप क्रोध में होिे हैं , िब भी आपकी
िस्ि व्यय होिी है और जब आप क्रोध के स्खिाफ िड़िे हैं , िब भी
आपकी ही िस्ि व्यय होिी है । क्रोध में टू टिे हैं , शफर क्रोध से िड़ने में टू टिे
हैं । और िड़ने से क्रोध कभी समाि हुआ है आज िक शकसी का? इसके
ऊपर खयाि भी नहीं करिे शक िड़ने से कभी क्रोध समाि नहीं हुआ।
बस्ल्क यह िड़ने िािा शचत्त जो है यह क्रोधी शचत्त है । नहीं िो क्रोध ही न हो
िो िड़े कैसे? अपने क्रोध से िड़ना भी क्रोध का ही उपक्रम है ।

शचत्त में िोभ है , िो िोभ से िड़िे हैं ; अिोभ को साधिे हैं । शचत्त में झूठ है , िो
झूठ से िड़िे हैं ; सत्य को साधिे हैं । िेशकन झूठ शकसका है ? िोभ शकसका
है ? आपका। िड़ने िािा कौन है ? आप। बड़ी है रानी की बाि है ! शकससे
िड़ रहे हैं ? और इस िड़ाई में कैसे हि होगा? क्या यह िैसी ही भ्रां ि िड़ाई
नहीं है , जैसे कोई आदमी अपने कमरे में बं द हो जाए और िििारें उठा िें
और िड़ने िगे अपने से ही। क्या होगा? सुबह िक क्षि-शिक्षि हो जाएगा।
खुद के हाथ-पैर िोड़ िेगा। िेशकन जीि क्या होगी? जीिेगा शकससे? कोई
दू सरा मौजूद ही नहीं है , िड़ शकससे रहे हैं आप? आप अकेिे हैं ।

इस िथ्य को जानना जरूरी है शक मैं अकेिा हं अपने जीिन में, िड़ शकससे


रहा हं ? शजससे मैं िड़ रहा हं िह मेरा ही अं ि होगा, मेरा ही खंि होगा। इस
भां शि हर िड़ाई मेरे व्यस्ित्व को खंशिि करे गी, शिसइं शटग्रे शटि करे गी, िोड़
दे गी, व्यस्ित्व टु कड़े -टु कड़े हो जाएगा, मैं अपने भीिर ही कई आदमी हो

ओिो पृष्ठ संख्या 213


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाऊंगा। और हर आदमी कई आदमी हो गया है । जब यह सीमा बहुि
ज्यादा बढ़ जािी है , आदमी पागि हो जािा है । खुद ही कई आदमी है िह।
होना चाशहए एक आदमी, कई आदमी नहीं। यह जो मिी-साइशकक बीइं ग
हमारे भीिर पैदा हो जािा है , बहुशचत्तिा पैदा हो जािी है , यही िो खिरा है ,
यही िो जीिन को क्षीर् करिा और िोड़ दे िा।

िो क्या करें ?

पहिी बाि िो यह जानें शक मेरे भीिर मैं अकेिा हं , इसशिए ििूंगा शकससे?
इससे िड़ाई का िो सारा खयाि ही छोड़ दें ।

शफर क्या करें ?

शफर हमको िबड़ाहट होिी है । इसका िो मििब यह हुआ शक क्रोध हो, िो


हम क्रोध करें और िोभ हो, िो हम िोभ करें ।

नहीं, इसका यह मििब नहीं होिा।

क्रोध हो, िो क्रोध को जानें; िड़े नहीं। िोभ हो, िो िोभ को जानें; िड़े नहीं।
मेरा िोभ है , मेरा क्रोध है , मैं जानूंगा, पहचानूंगा। क्यों है ? क्या है ? ििूं क्यों?
जैसे मुझे दो आं खें शमिी हैं , दो हाथ शमिे हैं , िैसे ही मु झे क्रोध भी शमिा है ।
जरूर प्रकृशि में उसका कोई उपयोग होगा, कोई अथय होगा, अन्यथा
अकारर् कुछ शमििा नहीं।

अगर मुझे िोभ शमिा है , िो उसका भी कोई अथय होगा। अगर मुझे भय शमिा
है , िो उसका भी कोई अथय होगा, जीिन संरक्षर् में और शिकास में उसका
कोई प्रयोजन होगा। ििूं क्यों? उसे जानूं और पहचानूं और उसकी िस्ि
को खोजूं।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बड़े है रानी की बाि है , जो व्यस्ि अपने क्रोध को जानने में िग जाएगा िह
क्रोध के भीिर ही उस िस्ि को उपिब्ध कर िेगा जो करुर्ा बन जािी है ।
जो व्यस्ि अपने िोभ को समझने में िग जाएगा, िह िोभ के भीिर ही उस
िस्ि को उपिब्ध कर िेगा, जो अिोभ और दान बन जािी है ।

क्या आपको पिा है , बीज फूि का हम बोिे हैं , िो बीज के ऊपर एक सख्त
खोि होिी है , और उसके भीिर बीज का प्रार् होिा है । िह सख्त खोि बीज
के प्रार् की रक्षा करिी है ।

अगर हम उस सख्त खोि को दे ख कर कहें शक यह सख्त खोि से फूि का


क्या संबंध होगा? और सख्त खोि को नष्ट कर दें , िो बीज भी नष्ट हो
जाएगा। िेशकन हम जानिे हैं , सख्त खोि का भी प्रयोजन है । िह भीिर जो
अत्यंि कोमि प्रार्िंिु शछपा है उसकी रक्षा कर रही है । शजिना कोमि
प्रार्िंिु होिा है बीज के भीिर, उिनी ही सख्त खोि होिी है । िेशकन हम
उसे जमीन में बो दे िे हैं , जब जमीन में िह प्रार्िंिु शिकशसि होने िगिा है ,
सख्त खोि अपने आप टू ट जािी है और शििीन हो जािी है और प्रार्िं िु
बाहर शनकि आिा, और पौधा बन जािा, और फूि पैदा होने िगिे हैं ।

मैं आपको यह शनिेदन करना चाहिा हं , आपके िोभ की खोि के भीिर,


आपके क्रोध की खोि के भीिर बड़े दू सरे प्रार्िंिु शछपे हैं । िेशकन अगर
आप खोि से ही िड़ने िगे , िो उन प्रार्िंिुओं को आप कभी शिकशसि न
कर पाएं गे । खोि से िशड़ए मि, समशझए। जो कुछ भी है जीिन में अकारर्
नहीं है , उसकी उपयोशगिा है , उसकी उपादे यिा है । िेशकन झूठी,
िथाकशथि मॉरे शिटी और नैशिकिा और शिक्षा उसकी उपादे यिा को
इनकार कर दे िी है । और हम उससे िड़ना िुरू कर दे िे हैं । खोि से ही
िड़ना िुरू कर दे िे हैं । और जो खोि से िड़ने िगिा है , उसके जीिन में
मुस्िि खड़ी हो जािी है , कां स्िक्ट खड़ी हो जािी है ।
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो मैं कहिा हं , क्रोध को खोशजए, क्रोध अदभु ि िस्ि है । क्रोध के भीिर
बहुि कुछ शछपा है । िेशकन जो द्वार से ही िौट आया खोि कर दे ख कर िह
कभी भीिर नहीं गया, िह क्रोध के महि में क्या शछपा था, पिा भी न कर
पाएगा। क्रोध िो व्यिथथा थी कुछ चीज को शछपा रखने की भीिर।

क्या आपको पिा है , शजन िोगों में क्रोध नहीं होिा, उनके जीिन में व्यस्ित्व
ही नहीं होिा। क्या आपको पिा है , शजन िोगों के जीिन में भय नहीं होिा, िे
ईशियट हैं , जड़बुस्ि हैं । िे मर जाएं गे , िे जी नहीं सकिे। जीिन की सुरक्षा
नहीं हो सकिी उनकी। सां प आ रहा होगा, िो िहीं खड़े रहें गे। मकान शगर
रहा होगा, िो िहीं बैठे रहें गे। मकान में आग िग जाएगी, िो और सो जाएं गे ।
अगर उनके जीिन में भय न हो...शफयर है , कोई सुरक्षा है भीिर। िेशकन
अगर हम भय में प्रिेि करें और समझने की कोशिि करें , िो हम पाएं गे शक
भय िो जीिन की रक्षा का एक उपाय है ।

और शजिना हम भय के भीिर प्रिेि करें गे , और भय को समझने की


कोशिि करें गे , शजिना हम भय को समझिे जाएं गे, उिने हम अभय को
उपिब्ध होिे चिे जाएं गे । जो व्यस्ि भय को समझ िेिा है , िह अभय को
उपिब्ध हो जािा है । और जो व्यस्ि भय से िड़ने िगिा है , िह नये िरह के
भय खड़े कर िेिा है ।

एक फकीर हुआ चीन में, उसने भय से िड़ाई छे ड़ दी अभय को पाने के


शिए। उसने मनुष्यों की बस्ती छोड़ दी, दू र जंगि में जहां जंगिी जानिर,
रीछ और भािू और िेर और शसंह थे , िहां रहने िगा, जहां सां प थे िहां रहने
िगा। उसने कहा शक भय छोड़ना ही है , िो अभ्यास करना पड़े गा अभय का।
उसने जरूर अभय को उपिब्ध कर शिया उस िरह का। एक िि आ गया
शक सारे चीन में उसकी ख्याशि पहुं च गई। सारे चीन में उसकी ख्याशि पहुं च
गई। िोग उसके दियन को जाने िगे । उसके गिे में से सां प िपट जाए, िो
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह कंपिा भी नहीं था। उसके पीछे आकर उसको भे शड़या धक्का दे दे , िो
िह िौट कर भी नहीं दे खिा था। उसके झाड़ के पीछे से शसंह गजयना करने
िगे , िो उसकी पिकें नहीं झपिी थीं। ऐसा िह शफयरिेस हो गया। ऐसा िह
भय-िून्य हो गया।

एक नियुिक शभक्षु उससे शमिने गया। िह शभक्षु जब उससे शमि रहा था,
एक चट्टान के पास पीछे से आकर शकसी जंगिी जानिर ने जोर की गजयना
की, िह शभक्षु एकदम उठ कर खड़ा हो गया, िह युिा शभक्षु जो शमिने आया
था, िबड़ा कर खड़ा हो गया।

उस िृि फकीर ने कहा: िरिे हो? भय खािे हो? अगर भय खािे हो, िो
स्मरर् रखो, परमात्मा को कभी नहीं पा सकिे, सत्य को कभी नहीं पा
सकिे। जो भयभीि है , िह कैसे पाएगा?

उस युिक ने कहा: मैं िो बहुि िबड़ा गया हं । मुझे एकदम से प्यास िग आई


िबड़ाहट में, आप थोड़ा पानी िा दें गे?

िह िृि उठा और अपने झोपड़े में भीिर गया पानी िेने। जब िह पानी
िेकर बाहर आया, उस नये शभक्षु ने, उस युिा शभक्षु ने, शजस चट्टान पर िह
बैठा था, िहां शिख शदया--नमो बुिाय। एक पत्थर से उठा कर शिख शदया--
नमो बुिाय। जैसे िह िृि शभक्षु आया और पैर रखने िगा, उसका पैर कंप
गया और िह नीचे उिर गया और उसने कहा: यह िुमने क्या शकया?

पर उसने कहा: िरिे िो आप भी हैं । और मैं िो शसंह से िरा था, जो शक


शबिकुि िास्तशिक था, और यहां शसफय मैंने "नमो बु िाय' शिख शदया, बुि
का नाम शिख शदया, उस पर पैर रखने से िरिे? िो जो िरिा है , िह मोक्ष
को कैसे पा सकेगा?

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इस आदमी ने अभय को नहीं पाया है , इसने केिि भय को टर ां सफर कर
शिया, रूपां िररि कर शिया। यह अब बुि से िरने िगा, राम से िरने िगा,
भगिान से िरने िगा। िेशकन भगिान से, राम से और बुि से िरना
शबिकुि काल्पशनक है और शसंह से िरना एकदम िास्तशिक है । शसंह के
भय से जीिन संिधयन होिा है , राम के भय से जीिन संिधयन नहीं होिा। यह
काल्पशनक है शबिकुि। िेशकन भय मौजूद है । भय से िड़ाई करके उसने
दू सरे भय को खड़ा कर शिया। िह भय हमें शदखाई नहीं पड़े गा। कोई नरक
से िर रहा है , कोई शकसी से िर रहा है और चररत्रिान बना हुआ है । िह भय
हमें शदखाई नहीं पड़िा शक िह भय है ।

मैं आपसे कहिा हं , भय से िड़ कर कोई अभय को कभी उपिब्ध होिा


नहीं। भय को जान कर अभय को उपिब्ध होिा है । भय की जो िृशत्त है
भीिर, उसे हम जानें, उसके प्रशि पूरे कां िस हो जाएं , पूरे सचेि हो जाएं ,
िड़ने की कोई जरूरि नहीं है । और जैसे-जैसे आप भय को जानेंगे, भय की
जो व्यथय िा है िह शििीन हो जाएगी और जो साथय किा है िह जीिन के शिए
सहयोगी हो जाएगी। सहयोगी हो जाएगी जीिन के शिए।

बुि भी चिेंगे, िो जहां कां टा पड़ा होगा, िहां से दू र पैर रखेंगे। क्यों?
स्वाभाशिक है , जीिन सुरक्षा है , कां टे पर पै र रखने का कोई मििब नहीं है ।
बुि को भी आप थािी में भोजन परोसेंगे, िो खाना खाएं गे और थािी को
छोड़ दें गे, थािी को थोड़े ही खा जाएं गे । जीिन की सुरक्षा है ।

जो व्यस्ि भय के प्रशि सचेि हो जाएगा, भय का जो भी जीिन संरक्षक ित्व


है िह िेष रह जाएगा और बाकी सब भय शििीन हो जाएं गे ।

जो व्यस्ि क्रोध के प्रशि सचेि हो जाएगा, क्रोध में जो भी जीिन संरक्षक है


िह िेष रह जाएगा और जो जीिन संरक्षक नहीं है िह शििीन हो जाएगा।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और िब क्रोध ही िेज बन जािा है । शजस व्यस्ि में क्रोध ही नहीं, उसमें िेज
ही नहीं होिा। िह िो इं पोटें ट होिा है , उसमें रीढ़ ही नहीं होिी। उसमें कोई
रीढ़ नहीं होिी है । उसमें कोई व्यस्ित्व नहीं होिा। कोई बि नहीं होिा।

जीिन में जो भी मैं उसे खाद की भां शि समझिा हं । हम खाद को िाकर िर


में ढे र िगा िें, िो दु गंध फैिने िगिी है । िेशकन समझदार उसे बशगया में
िाि दे िा है और फूिों के बीज िाि दे िा है । फूिों से सुगंध शनकिने िगिी
है । खाद में जो दु गंध थी, िही फूिों में सुगंध बन गई। टर ां सफामेिन हुआ,
पररिियन हुआ।

जीिन में शजसको हम बुरा कहिे हैं , अिुभ कहिे हैं और उससे िड़िे हैं , िह
अिुभ नहीं है , उस अिुभ से ही पररिियन होगा और जीिन में क्रां शि होगी।
जो-जो दु गंधपूर्य है , िही सुगंधपूर्य बन जाएगा। िेशकन उसके बदिने की
कीशमया, उसके बदिने का राज, जो सीक्रेट है : िड़ाई नहीं; उसका सम्यक
ज्ञान, राइट नािेज। जो भी जीिन में है उसका सम्यक ज्ञान, उसका ठीक-
ठीक जानना। िड़ने िािा िो कभी जान ही नहीं पािा, शजससे आप िड़िे हैं
उसको आप कभी नहीं जान सकिे हैं । जाना जा सकिा है उसको शजसे आप
प्रेम करिे हैं और शमत्र हैं ।

िो अपनी सारी िस्ियों को एकदम से शनर्यय न करें शक कौन िुभ है , कौन


अिुभ है । जो भी मनुष्य के भीिर है उसमें जरूर कुछ िुभ है । जो भी मनु ष्य
के भीिर है िह जरूर परमात्मा से है । जो भी मनुष्य के भीिर है उसका कोई
फि होगा आगे , कोई यात्रा होगी, कोई बीज में शछपी हुई चीज होगी।
िबड़ाएं न उससे, जल्दी िड़ाई न छे ड़ दें । िड़ाई छे ड़ कर रुक जाएं गे और
टू ट जाएं गे।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो मैं कहं गा, उसे जानें, उसे पहचानें, उसके प्रशि बोधपूियक समझ को
शिकशसि करें । द्वं द्व नहीं चाशहए मन में, अद्वं द्व ज्ञान चाशहए मन का। िेशकन
जो िोग ज्ञान की िरफ उत्सुक होिे हैं , िे पूछिे हैं , परमात्मा कैसा है ? यह
हम जानना चाहिे हैं । िे यह नहीं पू छिे शक क्रोध कैसा है , यह हम जानना
चाहिे हैं । िे पूछिे हैं शक स्वगय कैसा है ? यह हम जानना चाहिे हैं । िे यह नहीं
पूछिे शक हमारे भीिर भय कैसा है , यह हम जानना चाहिे हैं ।

मेरे पास न मािूम शकिने िोग आिे हैं , कोई पूछिा है शक परमात्मा शत्रमूशिय हैं
या नहीं? कोई पूछिा है , उनके शकिने शसर हैं ? कोई पूछिा है , शकिने हाथ
हैं ? िेशकन कोई यह नहीं पूछिा शक हमारे शचत्त के शकिने हाथ हैं , शकिने
शसर हैं । हमारा शचत्त, जो कुछ भी होना है िह शचत्त से होना है । धमय
मेटाशफशजक्स नहीं है । धमय कोई शफजूि की बकिास और ित्व शचंिन नहीं
है । धमय िो पूरी की पूरी साइकोिॉशजकि म्यूटेिन है । पूरा का पूरा शचत्त का
आिियन और पररिियन है । पूरी क्रां शि है शचत्त में। िो उसी शचत्त की िो क्रां शि
हो सकेगी, शजसको हम जानेंगे।

एक शदन था शक आकाि में शबजशियां चमकिी थीं और िोगों पर शगरिी थीं


और िोग मरिे थे । आज मैं बोि रहा हं उसी शबजिी से, आपके िर में पंखा
चि रहा है , हिा हो रही है , मिीन चि रही है । िही शबजिी जो िोगों पर
शगरिी थी और प्रार् िेने के शसिाय कोई काम नहीं करिी थी।

िह शबजिी न मािू म शकिने िोगों के प्रार् बचा रही है । क्या हो गया? हमने
शबजिी को जान शिया। हम जान गए शबजिी को शक क्या सीक्रेट है इसका,
बस जानिे से ही शबजिी जीिन के शिए सहयोगी हो गई, अज्ञान में बाधा थी,
ज्ञान में सहयोगी हो गई।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भीिर क्रोध शबजिी की िरह िस्ि है । अभी हम जानिे नहीं, इसशिए उससे
टू टिे हैं , परे िान होिे हैं , शमटिे हैं । जान िेंगे, िो िही क्रोध जीिन को न
मािूम क्या गशि दे ने िगे गा।

िो मेरा कहना है शक जीिन में कुछ भी बुरा नहीं है । हम नहीं जानिे, यह बुरा
है । अज्ञान में बुरा हो जािा है ।

एक छोटे से बच्चे के हाथ में िििार दे दें , खिरा हो जाएगा। िििार ऐसे
िाकि है , छोटे बच्चे के हाथ में खिरा हो जाएगा। और अभी सभी छोटे बच्चों
के हाथों में िििारें हैं । इससे दु शनया में बड़ा खिरा होिा जा रहा है ।
समझदार आदमी के हाथ में िििार सहयोगी हो जाएगी, िाकि बन जाएगी,
शजंदगी के शिए आधार बन जाएगी।

धन्य हैं िे िोग, जो क्रोध कर सकिे हैं , िेशकन नरक में पड़ जािे हैं , क्योंशक
क्रोध का उन्ें कोई ज्ञान नहीं। िस्ियां शमिी हैं , िेशकन िस्ियों के प्रशि
हम अज्ञानी हैं । और अज्ञान में िड़ना िुरू कर दे िे हैं । और अज्ञान में न
मािूम कौन-कौन सी मूढ़िापूर्य शिक्षाएं , उनको पकड़ िेिे हैं और िड़ाई
िुरू कर दे िे हैं । शफर जीिन टू टिा है , शबगड़िा है , बनिा नहीं है ।

जीिन के शिकास का सूत्र है : जीिन की िस्ियों का सम्यक ज्ञान।

अपने भीिर जो भी शछपा है उसे जानने में िगें और दे खें शक जैसे-जैसे आप


जानिे जाएं गे िैसे-िैसे आप पाएं गे शक िे ही िस्ियां जो आपके शिए िािक
शसि होिी थीं, आपके शिए साधक हो गईं। िे ही जो आपके शिए मागय के
पत्थर थे , सीशढ़यां बन गईं। िे ही शजन्ोंने आपको रोका था, आपको पहुं चाने
िािी बन गईं। िेशकन उनके जानने से यह हो सकेगा।

शिज्ञान काम कर रहा है ...

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-09

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

नौिाां प्रिचन

मैं बंद शकए हुए हं , उनकी मैं चचाय करू


ं गा। क्योंशक शदखाई पड़ना िुरू हो
जाए, पहिा िो यह जरूरी है शक दीिाि शदखाई पड़े भीिर, शदखाई पड़े िो
शफर टू ट सकिी है । अब शजस कैदी को यही भू ि गया हो शक मैं कैदी हं , शफर
िो मुस्िि हो गया, शफर कैद से छु टकारे का कोई रास्ता न रहा। पहिी िो
बाि यह शक यह शदखाई पड़े , अनुभि में आए शक हम भीिर कैद में शिर गए
हैं , एक शबिकुि एक कारागृ ह में बंद हैं । और खुद ही उसे सम्हािे हुए हैं ,
खुद ही उसके ईंटें रखिे हैं , खुद ही उसकी दीिािों पर जहां -जहां द्वार है
िहां -िहां बंद कर दे िे हैं , रोिनी भीिर न पहुं चे इसके सब उपाय करिे हैं
और शफर शचल्लािे हैं शक हे परमात्मा! हम अंधकार में खड़े हुए हैं , हम क्या
करें ?

यानी हमारी स्थथशि ऐसी है शक हम चारों िरफ से दरिाजे बंद करके अंधकार
में खड़े हो जािे हैं और शफर शचल्लािे हैं , हे परमात्मा! हम क्या करें ? बहुि
अंधकार है । परमात्मा से शचल्लाने की कोई जरूरि नहीं है , उसकी रोिनी
हमेिा चारों िरफ मौजूद है । हमें दे खना और जानना होगा शक हम खुद ही
िो अपने दरिाजे बंद शकए हुए नहीं खड़े हैं ? और जै सा मैं दे खिा हं , मुझे
शदखिा है , हम दरिाजे बंद शकए हुए हैं ।

िो आज की सुबह िो मैं यही पहिी बाि आपसे कहं : संिुशष्ट की दौड़ व्यथय है ,
इसे दे खने की आग पैदा कररए। जब भी मन शकसी संिोष की ििाि में िगे ,

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो स्मरर् रस्खए शक संिोष की चीज िो शमि जाएगी, िेशकन संिोष नहीं
शमिेगा। जब भी कोई दौड़ कामना की और िासना की मन को पकड़े , िो
खयाि में बोधपूियक दे स्खए शक िह शमि भी जाएगी िो भी कुछ शमिेगा नहीं।
दौड़ हो जाएगी, समय व्यिीि होगा, िस्ि क्षीर् होगी, िेशकन कुछ भीिर
उपिस्ब्ध नहीं होगी। सब उपिस्ब्धयां बाहर की शमि कर भी भीिर कुछ
उपिब्ध नहीं करिी हैं , यह आपको शदखाई पड़ना चाशहए।

और ऐसे दे खने के शिए बाहर चारों िरफ शजनकी उपिस्ब्धयां हैं , उन पर


ध्यान कररए, उनको दे स्खए। चारों िरफ शजनके पास सब कुछ है , उनके
असंिोष को दे स्खए। शजनके पास बहुि कुछ है , उनकी पीड़ा और संिाप को
अनुभि कररए। आं ख खोशिए और चारों िरफ दे स्खए। अपने, दू सरे के
अनुभि, इनके प्रशि बोधपूियक स्मरर्, इनका शनरीक्षर्, इनका ठीक-ठीक
ऑब्जिेिन, आपके भीिर संिुशष्ट का जो भ्रम है , उसे िोड़ दे गा। ठीक है शक
संिुशष्ट की कामना है , िेशकन अगर संिुशष्ट के प्रशि आं ख आ जाए, िो कामना
शििीन हो जाएगी।

िो मैं संिुशष्ट की कामना से िड़ने को नहीं कह रहा हं , यह स्मरर् रखें , मैं


केिि बोध के शिए कह रहा हं । अगर उससे आप उससे िड़ने िगे , िो आप
एक और नये पागिपन में पड़ जाएं गे । एक िरफ गृ हथथ हैं , जो संिुशष्ट के
पीछे दौड़ रहे हैं । एक िरफ संन्यासी हैं , जो संिुशष्ट से िड़ रहे हैं ।

इन दोनों को ही मैं गिि समझिा हं । ये एक-दू सरे की प्रशिशक्रयाएं हैं , एक-


दू सरे के ररएक्शंस हैं । गृ हथथ जो गििी कर रहा है , ठीक उसके शिरोध में
दू सरी गििी संन्यासी करिा है । एक संिुशष्ट के पीछे भाग रहा है , एक संिुशष्ट
से भाग रहा है । एक आदमी है जो धन के पीछे दौड़ रहा है , उसकी िार
टपकी जा रही है , एक आदमी है जो कहिा है धन मुझे न छू िे, उसके हाथ-

ओिो पृष्ठ संख्या 224


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पैर कंपिे हैं , िर िगिा है शक धन कहीं छू िेगा, िो क्या होगा? िेशकन दोनों
का शिश्वास धन में हैं , दोनों धन को मािने हैं , दोनों धन के उपयोग और धन
की गररमा को और धन के प्रभाि को स्वीकार करिे हैं ।

यानी िह आदमी जो धन के पीछे भाग रहा है , उिना ही धन से ग्रस्त है


शजिना िह आदमी जो धन को छोड़ कर भाग रहा है , िह भी धन से ग्रस्त है ।
दोनों के पास आं खें नहीं हैं । ये दो अंधे हैं , जो दोनों एक-दू सरे के शिरोध में
भाग रहे हैं । जो गृ हथथ है और जो िथाकशथि संन्यासी है , इन दोनों को मैं एक
ही बीमारी के दो छोर मानिा हं । िीसरा व्यस्ि मैं उसको मानिा हं , शजसको
बोध आना िुरू होिा है । संिुशष्ट से िड़ने का खयाि नहीं रह जािा, सं िुशष्ट
व्यथय हो जािी है । िड़िा िो िह है शजसे अभी संिुशष्ट साथय क हो।

एक बहुि बड़े संन्यासी सारे यूरोप, अमेररका में बड़ा प्रभाि छोड़ कर भारि
िापस िौटे । बड़ा उनका नाम था, बड़ी उनकी ख्याशि थी, हजारों िोगों ने
उनको सम्मान शदया, आदर शदया, बािें उनकी बहुमूल्य थीं। क्योंशक बािें
बहुमूल्य करना बहुि आसान बाि है । बहुमूल्य बाि करना कोई बड़ी कशठन
बाि नहीं है । क्योंशक बािें िो उपिब्ध हैं --ग्रं थ हैं , िास्त्र हैं , शिक्षा है ; सब
सीखा जा सकिा है और शकया जा सकिा है । शफर िे भारि आए। कहिे थे ,
सारा जगि जो है माया है ; कहिे थे , सारा जगि व्यथय है ; कहिे थे , सब
असार है । यहां आए, जब भाग कर गए थे , िो अपनी पत्नी को छोड़ कर चिे
गए थे, िह पत्नी उनसे शमिने आई, िो उन्ोंने दरिाजा बंद कर शिया और
अपने शिष्यों से कहा शक उससे कह दो शक मैं नहीं शमि सकिा हं ।

िो उनके एक शिष्य ने कहा: मैं है रान हं ! आप कहिे हैं , जगि सब झूठा है ,


सब असार है , और मैंने आपको दे खा, आपने शकसी स्त्री के शिए कभी नहीं
कहा शक द्वार बंद कर दो, उसे भगा दो, इस स्त्री को क्यों भगा रहे हैं ? जरूर

ओिो पृष्ठ संख्या 225


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इसे आप अपनी स्त्री मानिे हैं ? इस स्त्री के प्रशि आपकी दृशष्ट जो है िह
सामान्य नहीं है , जै सी और स्स्त्रयों के प्रशि है । इस इस स्त्री में कुछ सार जरूर
कहीं न कहीं है । नहीं िो इिनी िबड़ाहट क्या है ? जहां सार होिा है , िहां
आकषयर् होिा है । अगर आकषयर् के शिरोध में चिे जाएं , िो िबड़ाहट िुरू
हो जािी है । जो आदमी अपने आकषयर् के शिरोध में जाएगा, िह िबड़ा
जाएगा। शजस चीज से िह िड़े गा, उससे िरे गा, क्योंशक कहीं िह जीि न
जाए।

िो एक भोगी है , जो स्वीकार कर िेिा है संिुशष्ट को, एक िथाकशथि त्यागी है ,


जो उसके शिरोध में खड़ा हो जािा है । मैं कोई त्यागी का पक्षपािी नहीं हं । मेरे
शिए िह अंधेपन का दू सरा शिकार है । मैं पक्षपािी हं उसका, प्रबुि चेिना
का। होि होना चाशहए। अगर होि आ जाए, िो संिुशष्ट शििीन हो जािी है ,
िड़ने का सिाि नहीं है । क्योंशक शजस व्यस्ि को शदखाई पड़ने िगे संिुशष्ट
का भ्रम, िह संिुशष्ट से िड़े गा कैसे? िड़ने का कोई सिाि नहीं रह जािा।

जीिन में िड़ने का प्रश्न नहीं, जागने का प्रश्न है । जो नहीं जाग पािा, िह
िड़िा है । और जो िड़िा है , िह आज नहीं कि हार जाएगा। क्योंशक िह
एक ऐसे दु श्मन से िड़ रहा है , िह एक ित्रु से िड़ रहा है जो है ही नहीं।
अगर ित्रु हो, िो उससे हम जीि भी सकिे हैं । िेशकन जो ित्रु है ही नहीं,
उससे जीिेंगे कैसे?

जैसे एक आदमी अपनी छाया से िड़ने िगे , िो कौन जीिेगा? छाया


जीिेगी। क्योंशक छाया इसशिए नहीं जीिेगी शक िाकििर है , छाया इसशिए
जीिेगी शक िह है ही नहीं। िो जो इल्युजन से िड़िा है िह आदमी हार जािा
है । जो भ्रम से िड़िा है िह आदमी हार जािा है । क्योंशक भ्रम को हरा ही
नहीं सकिे आप, िह है ही नहीं, हराएं गे क्या? िेशकन िड़ें गे खुद, िो अपनी

ओिो पृष्ठ संख्या 226


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िाकि िो क्षीर् करें गे ही िड़ने में, धीरे -धीरे आप टू ट जाएं गे और नष्ट हो
जाएं गे और भ्रम जीि जाएगा, जो शक नहीं था।

संसार में संिुशष्ट की खोज में जाना िािा आदमी भ्रम में है । संिुशष्ट के शिरोध
में जाना िािा आदमी और भी बड़े भ्रम में है । छाया को मानने िािा आदमी
भ्रम में है । छाया का शिरोध करने िािा आदमी और भी बड़े भ्रम में है । गृ हथथ
अज्ञान में है , िथाकशथि संन्यासी और भी गहरे अज्ञान में है । सिाि िड़ने का
नहीं है , सिाि जागने और दे खने का है , सिाि दृशष्ट के खुिने का है ।

और दृशष्ट के खुििे ही छाया शििीन हो जािी है । ज्ञाि होिा है िह थी ही नहीं।


और िब शदखाई पड़िा है शक एक गििी संन्यासी कर रहा है , एक गििी
गृ हथथ कर रहा है । जो छाया नहीं है , एक उससे हाथ जोड़ कर प्राथय ना कर
रहा है शक मुझे शमि जाओ और एक िििार शिए खड़ा है शक मैं िुझे नष्ट कर
दू ं गा। िब जब आपको दृशष्ट शमििी है , आप दे खिे हैं , ये दोनों पागि हैं । दोनों
पागि हैं , संन्यास और गृ हथथ, ये जो िथाकशथि भोगी और िथाकशथि योगी।

दु शनया में दो िरह के पागि हैं , दो टाइप हैं : एक भोग के पीछे जाने िािा,
एक भोग के शिरोध में जाने िािा। ये दोनों कोई मागय नहीं हैं । मागय इनके
बहुि बीच में है : न शिरोध में है , न भोग में है । मागय दृशष्ट में है , दियन में है । िह
शजिनी सम्यक दृशष्ट होगी, शजिना राइट एशटट्यूि होगा, शजिना ठीक-ठीक
बोध होगा, उसमें सारी बाि है । िह बोध के बाबि हम धीरे -धीरे शिचार
करें गे ।

अभी सुबह की चचाय िो मैं पूरा करिा हं , इस खयाि में शक आप सोचें गे,
संिुशष्ट के बाबि दे खना िुरू करें गे , िब आपमें कोई सत्य की आकां क्षा पैदा
होनी िुरू होगी।

ओिो पृष्ठ संख्या 227


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुबह के ध्यान के संबंध में दो-चार बािें आपसे कह दू ं । और शफर हम सुबह
के ध्यान के शिए बैठें।

शदन में दो बार इस शिशिर में हम ध्यान करें गे , सुबह और राशत्र को। िो ध्यान
के संबंध में थोड़ी बाि समझा दू ं ।

बड़ी सरि सी बाि है , आमिौर से समझा जािा है शक ध्यान का अथय है शकसी


पर ध्यान करना। उसको मैं ध्यान नहीं कहिा। आमिौर से समझा जािा है ,
ध्यान का मििब है शकसी पर ध्यान करना--कृष्ण पर, राम पर, बुि पर,
महािीर पर; शकसी नाम पर, शकसी मंत्र पर, शकसी रूप पर, शकसी आकार
पर, ये कोई भी ध्यान नहीं है । ये सबके सब शिचार हैं । शिचार की ही एकाग्र
स्थथशियां हैं ।

ध्यान शकसी पर नहीं करना होिा, ध्यान की मेरी जो पररभाषा है िह यही है


शक जब आपके शचत्त में कोई नहीं होिा है िो आप ध्यान में होिे हो। ध्यान,
जब आपके शचत्त में कोई नहीं होिा है --राम भी नहीं, कृष्ण भी नहीं, संसार
भी नहीं, दु कान भी नहीं, मंशदर भी नहीं, कोई िास्त्र भी नहीं, कोई भजन,
कुछ भी नहीं, जब आपके शचत्त में कुछ भी नहीं होिा है , आप हीं अकेिे रह
जािे हो, िो िह जो स्टे ट ऑफ माइं ि है , िह ध्यान है ।

शकस भां शि आप अपने भीिर शबिकुि अकेिे रह जाओ शक िहां कोई भी न


रहे आपके शसिाय, कोई पड़ोसी न रह जाए, िो आप ध्यान में हो। जब िक
कोई पड़ोसी भीिर है िब िक आप ध्यान में नहीं हो। क्योंशक जब िक
पड़ोसी भीिर है , िब िक आपका ध्यान उस पड़ोसी पर रहे गा। जब िक
कोई भी चीज आपके भीिर है , िब िक आपका ध्यान उस चीज पर रहे गा,
उस ऑब्जे क्ट पर रहे गा। और जब िक शकसी चीज पर ध्यान रहे गा, िब िक
स्वयं पर नहीं रहे गा। ध्यान एक ही िरफ रह सकिा है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 228


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अगर आप यहां बै ठे हैं , और आपका ध्यान मेरी िरफ है , शफर आपका ध्यान
आपकी िरफ नहीं रह जाएगा। ठीक ही है । ध्यान की शदिा एक ही िरफ
होिी है ।

िो अगर स्वयं पर जाना है और स्वयं की सत्ता और जीिन को दे खना है ,


पहचानना है शक कौन है िहां , क्या है , िो सब िरफ से ध्यान-िून्य हो जाना
चाशहए।

आमिौर से िोग कहें गे, यह िो ठीक है , सब िरफ से ध्यान-िून्य हो जाएं , िो


हम उसे कहां िगाएं ? बस आपने िगाने का पूछा शक आप शफर शकसी िरफ
िगाने की बाि पूछने िगे । मैं कह रहा हं , सब िरफ से ; िो स्वाभाशिक प्रश्न
उठिा है शक यह िो ठीक है , आप कहे रहे हैं , िेशकन हम उसे कहां िगाएं ?
जब आपने पूछा, कहां िगाएं , शफर आप पूछने िगे शक शफर, शफर िह, शफर
कोई चीज आप चाहिे हैं शजस पर िगाया जाए।

नहीं; मैं कहिा हं , ध्यान को कहीं न िगाएं , िो आप ध्यान में हो जाएं गे । इसे
थोड़ा सा समझ िें, शफर प्रयोग हम करें गे , उससे थोड़ा अनुभि िायद होगा
शक ऐसी स्थथशि है जब शक ध्यान कहीं न िगा हो। क्योंशक ध्यान िो िाकि है ।

मैं यहां बैठा हं , अभी नहीं दौड़ रहा हं , िो भी दौड़ना मेरे भीिर है । दौड़ने की
िस्ि के शिए दौड़ना जरूरी नहीं है । नहीं िो शफर जो बैठे हैं िे कभी दौड़ ही
नहीं सकेंगे । शफर जो दौड़ रहे हैं , िे कभी बैठ ही नहीं सकेंगे । दौड़ने की
िस्ि मेरे भीिर इस क्षर् भी है , जब शक मैं नहीं दौड़ रहा हं । जब आपका
ध्यान शकसी चीज पर नहीं है िब भी ध्यान की िस्ि आपके भीिर होिी है ।

ध्यान की िस्ि अिग बाि है और शकसी चीज पर ध्यान होना उसका प्रयोग
है । दौड़ने की िस्ि अिग बाि है , दौड़ना उसका प्रयोग है , ईंस्प्लमेंटेिन है ।
िह िो उसका उपयोग है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 229


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो अभी हम जो कर रहे हैं , िह ध्यान का उपयोग कर रहे हैं । अगर उपयोग
छोड़ दें , िो िुि ध्यान रह जाएगा। अगर सब उपयोग छूट जाए, िो ध्यान की
िस्ि मात्र रह जाएगी। िह जो ध्यान की िस्ि मात्र है , उसको मैं ध्यान कह
रहा हं । उस क्षर् में जब आप कुछ भी नहीं जान रहे हैं , स्वयं का जानना िुरू
होिा है ।

जब आपके ज्ञान में कुछ भी नहीं आ रहा है , िब आप अपने ज्ञान में आने
प्रारं भ हो जािे हैं । और जब िक आपके ज्ञान का कोई उपयोग हो रहा है ,
कहीं न कहीं कोई चीज उससे आ रही है , िब िक आपका ज्ञान उसे पकड़े
रहिा है और अपने पर आने में असमथय होिा है ।

ध्यान का अथय एकाग्रिा नहीं है शक शकसी एक चीज पर उसे िगा दे ना है ।


ध्यान का अथय है : शचत्त कहीं न िगा हो, कहीं भी न िगा हो, नो व्हे यर, िह जो
नो व्हे यर की, कहीं भी न होने की स्थथशि है , िह स्वयं में होने की स्थथशि है ।
जब आप कहीं भी नहीं होिे, िब आप स्वयं में होिे हैं । और जब आप कहीं
भी होिे हैं , िब आप स्वयं में नहीं होिे । यह जो स्थथशि है कहीं भी न होने की,
यह आत्म-स्थथशि है । और कहीं भी होने की स्थथशि मानशसक स्थथशि है ।

ध्यान आस्त्मक दिा है । यह आस्त्मक दिा बड़ी सहज है , अगर बाि ठीक-
ठीक अंिरस्टैं शिं ग में और समझ में हो। अन्यथा इससे कशठन और कोई
चीज नहीं है । यह दु शनया में शफर सबसे कशठन बाि है । यह शफर सबसे
कशठन बाि है । शफर एिरे स्ट पर चढ़ना बहुि आसान है और चां द पर
पहुं चना बहुि आसान है और स्वयं के भीिर जाना बहुि कशठन है । इसशिए
जो िोग समुि की पां च-पां च मीि की गहराइयों में उिर जािे हैं , उनसे भी
कहो शक अपने भीिर उिरो, िो िे कहें गे, बड़ा मुस्िि है , अपने भीिर कैसे
उिरें ? जो िोग एिरे स्ट चढ़ गए हैं , उनसे कहो, अपने भीिर, िो िे कहें गे,
बड़ा कशठन है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 230
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफर यह जो अत्यं ि शनकट है यह कशठन है , अगर बाि ठीक से बोध में न हो।
और अगर बाि बोध में हो, िो एक कदम उठा कर बाहर जाना बहुि कशठन
बाि है , भीिर आना बहुि सरि बाि है । क्योंशक भीिर आने के शिए कहीं भी
जाना नहीं है । जाने में िो कुछ कशठनाई हो सकिी है , भीिर आने के शिए
कहीं भी नहीं जाना है । कैसे यह सबसे सरि और सबसे कशठन बाि संभि
हो सकिी है , उसकी हम सुबह और सां झ को प्रयोग करें गे ।

और मेरा मििब समझ िें, मििब है , शबिकुि ही खािी और िून्य हो


जाना। उसके शिए कुछ आशटय शफशसयि, कुछ बड़ा कृशत्रम उपाय प्रारं भ में,
बाद में िो उसका कोई अथय नहीं है , छूट जाना चाशहए। िेशकन प्रारं भ में थोड़ा
सा एक कृशत्रम उपाय करें गे ।

और िह कृशत्रम उपाय यह है , सुबह के शिए, और राशत्र के शिए अिग उपाय


करें गे ।

सुबह के शिए अभी हम सारे िोग थोड़े -थोड़े फासिे से बैठ जाएं गे , िाशक
कोई एक-दू सरे को छूिा हुआ न हो, कोई पड़ोसी न रह जाए, आप अकेिे हो
जाएं ।

िो सारे िोग थोड़े -थोड़े फैि जाएं , अगर बाहर भी फैि जाना पड़े , िो कोई
हजाय नहीं, आिाज मेरी पहुं च सकेगी। जहां -जहां छाया हो िहां -िहां हट
जाएं । िेशकन यहां भी थोड़े -थोड़े फैि जाएं , कोई शकसी को छूिा हुआ न हो,
िाशक दू सरे को आपका खयाि न रह जाए, आपको िगे आप अकेिे ही बै ठे
हुए हैं । ................

ओिो पृष्ठ संख्या 231


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-10

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

दसिाां प्रिचन

सुबह जो हमने साधना की साक्षीभाि की, हम जगाना चाहते हैं , क्ा


िह भी शचत्त का एक अांि नही ां होगा या शक शचत्त से परे होगा?
प्रश्न बहुि महत्वपू र्य है और ठीक से समझने योग्य है । साधारर्िः हम जो भी
जानिे हैं , जो भी करिे हैं , जो भी प्रयत्न होगा, िह सब शचत्त से होगा, िह मन
से होगा, माइं ि से होगा। अगर आप राम-राम जपिे हैं , िो जपने की शक्रया
मन से होगी। अगर आप मंशदर में पूजा करिे हैं , िो पूजा करने की शक्रया मन
का भाि होगी। और अगर आप कोई ग्रं थ पढ़िे हैं , िो पढ़ने की शक्रया मन की
होगी। और आत्मा को जानना हो, िो मन के ऊपर जाना होगा। मन की कोई
शक्रया मन के ऊपर नहीं िे जा सकिी। मन की कोई भी शक्रया मन के भीिर
ही रखेगी। स्वाभाशिक है शक मन की शकसी भी शक्रया से, जो मन के पीछे है ,
उससे पररचय नहीं हो सकिा।

यह पूछा है शक यह जो साक्षीभाि है , क्ा यह भी मन की शिया होगी?


नहीं, अकेिी एक ही शक्रया है , जो मन की नहीं है , और िह साक्षीभाि है । इसे
थोड़ा समझना जरूरी है । और केिि साक्षीभाि ही मनुष्य को आत्मा में
प्रशिष्ठा दे सकिा है । क्योंशक िही हमारे जीिन में एक सूत्र है जो मन का नहीं
है , माइं ि का नहीं है ।

आप राि को स्वप्न दे खिे हैं , सुबह जाग कर पािे हैं शक स्वप्न था और मैंने
समझा की सत्य है । सुबह स्वप्न िो झूठा हो जािा है , िेशकन शजसने स्वप्न दे खा
ओिो पृष्ठ संख्या 232
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
था, िह झूठा नहीं होिा। उसे आप मानिे हैं शक शजसने दे खा था, िह था, जो
दे खा था िह स्वप्न था। आप बच्चे थे , युिा हो गए; बचपन िो चिा गया,
युिापन आ गया; युिािथथा भी चिी जाएगी, बुढ़ापा आ जाएगा, िेशकन
शजसने बचपन को दे खा, युिािथथा को दे खा, बुढ़ापे को दे खेगा, िह न आया
और न गया, िह मौजूद रहा। सुख आिा है , सुख चिा जािा है । दु ख आिा है ,
दु ख चिा जािा है । िेशकन जो दु ख को दे खिा है और सु ख को दे खिा है , िह
मौजूद बना रहिा है ।

िो हमारे भीिर दियन की जो क्षमिा है , िह सारी स्थथशियों में मौजू द बनी


रहिी है । साक्षी का जो भाि है , िह जो हमारी दे खने की क्षमिा है , िह मौजूद
बनी रहिी है । िही क्षमिा हमारे भीिर अशिस्च्छन्न रूप से, अपररिशियि रूप
से मौजूद है । आप बहुि गहरी नींद में हो जाएं , िो भी सुबह कहिे हैं , राि
बहुि गहरी नींद आई, राि बड़ी आनंदपूर्य शनिा हुई। आपके भीिर शकसी ने
उस आनंदपूर्य अनुभि को भी जाना, उस आनंदपूर्य सुषुस्ि को भी जाना।
िो आपके भीिर जानने िािा, दे खने िािा जो साक्षी है , िह सिि मौजू द है ।
मन सिि पररििय निीि है और साक्षी सिि अपररिियनिीि है । इसशिए
साक्षीभाि मन का शहस्सा नहीं हो सकिा। और शफर मन की जो-जो शक्रयाएं
हैं , उनको भी आप दे खिे हैं ।

आपके भीिर शिचार चि रहे हैं : आप िां ि बैठ जाएं , आपको शिचारों का
अनुभि होगा शक िे चि रहे हैं , आपको शदखाई पड़ें गे। अगर िां ि भाि से
दे खेंगे, िो िे शिचार िैसे ही शदखाई पड़ें गे, जैसे रास्ते पर चििे हुए िोग
शदखाई पड़िे हैं । शफर अगर शिचार िून्य हो जाएं गे , शिचार िां ि हो जाएं गे ,
िो यह शदखाई पड़े गा शक शिचार िां ि हो गए हैं , िून्य हो गए हैं , रास्ता खािी
हो गया।

ओिो पृष्ठ संख्या 233


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शनशिि ही जो शिचारों को दे खिा है , िह शिचार से अिग होगा। िह जो हमारे
भीिर दे खने िािा ित्व है , िह हमारी सारी शक्रयाओं से, सबसे शभन्न और
अिग है । जब आप श्वास को दे खेंगे, श्वास को दे खिे रहें गे, दे खिे-दे खिे श्वास
िां ि होने िगे गी, एक िड़ी आएगी आपको पिा ही नहीं चिेगा शक श्वास चि
भी रही या नहीं चि रही। जब िक श्वास चिेगी, िब िक शदखाई पड़े गा शक
श्वास चि रही है और जब श्वास नहीं चििी हुई मािूम पड़े गी, िब शदखाई
पड़े गा शक श्वास नहीं चि रही है । िेशकन दोनों स्थथशियों में दे खने िािा पीछे
खड़ा हुआ है ।

यह जो साक्षी है , यह जो शिटनेस है , यह जो अिेयरनेस है पीछे , यह िो बोध


का शबंदु है , यह शबं दु मन के बाहर है , मन की शक्रयाओं का शहस्सा नहीं है ।
क्योंशक मन की शक्रयाओं को भी यह जानिा है । शजसको हम जानिे हैं , उससे
हम अिग हो जािे हैं । शजसको भी आप जान सकिे हैं , उससे आप अिग हो
सकिे हैं , क्योंशक आप अिग हैं ही, नहीं िो उसको जान ही नहीं सकिे।
शजसको आप दे ख रहे हैं , उससे आप अिग हो जािे हैं । क्योंशक जो शदखाई
पड़ रहा है , िह अिग होगा और जो दे ख रहा है , िह अिग होगा।

साक्षी को आप कभी नहीं दे ख सकिे। आपके भीिर जो साक्षी है , उसको


आप कभी नहीं दे ख सकिे, उसको कौन दे खेगा। जो दे खेगा, िह आप हो
जाएं गे और जो शदखाई पड़े गा, िह अिग हो जाएगा। साक्षी आपका स्वरूप
है । उसे आप दे ख नहीं सकिे। क्योंशक दे खने िािा, आप अिग हो जाएं गे , िो
शफर िही साक्षी होगा, जो दे ख रहा है । जो दृश्य बन जाएगा, ओब्जे क्ट बन
जाएगा, िह शफर आत्मा नहीं रहे गी।

साक्षीभाि जो है िह आत्मा में प्रिेि का उपाय है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 234


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
असि में पूर्य साक्षी स्थथशि को उपिब्ध हो जाना, स्वरूप को उपिब्ध हो
जाना है । िह मन की कोई शक्रया नहीं है । और जो भी मन की शक्रयाएं हैं , िे
शफर ध्यान नहीं होंगी। इसशिए मैं जप को ध्यान नहीं कहिा हं । िह मन की
शक्रया है । शकसी मंत्र को स्मरर् करने को ध्यान नहीं कहिा हं , िह भी मन की
शक्रया है । शकसी पूजा को, शकसी पाठ को ध्यान नहीं कहिा हं , िे सब मन की
शक्रयाएं हैं । शसफय एक ही आपके भीिर रहस्य का मागय है , जो मन का नहीं है ,
िह साक्षी का है । शजस-शजस मात्रा में आपके भीिर साक्षी का भाि गहरा
होिा जाएगा, आप मन के बाहर होिे जाएं गे । शजस क्षर् साक्षी का भाि पूरा
प्रशिशष्ठि होगा, आप पाएं गे मन नहीं है ।

भारि से एक शभक्षु कोई चौदह सौ, पंिह सौ िषय पहिे चीन गया। नाम था,
बोशधधमय। जब िह चीन गया, उसके पहिे उसकी ख्याशि पहुं च गई, सारे
चीन में उसकी चचाय हो गई उसके पहुं चने के पहिे, िैसा व्यस्ि था, अदभु ि
था। चीन का जो राजा था, िू नाम का, िह उसके स्वागि करने को सीमा पर
सैकड़ों मीि चि कर आया।

उसने स्वागि शकया बोशधधमय का और बोशधधमय से पूछा, मैंने बहुि शिहार


बनिाए, मंशदर बनिाए, भगिान बुि की हजारों-हजारों मूशिययां बनिाईं, धमय
का प्रचार शकया, धमयिािाएं बनाईं, िाखों शभक्षु ओं को भोजन करािा हं , मेरे
इन सारे पुण्य कमों का क्या फि होगा?

बोशधधमय ने कहा: कुछ भी नहीं।

िह िू चौंक गया! जो भी शभक्षु आिे थे , िे कहिे थे , ऐसा करो, इनसे बहुि


िाभ है , बहुि िाभ है , बहुि पुण्य है । बोशधधमय ने कहा: कुछ भी नहीं। और
यह भी मि सोचना शक इनका कोई धमय से संबंध है । िह बहुि है रान हुआ!

उसने पूछा, शफर धमय से शकस बाि का संबंध है ?


ओिो पृष्ठ संख्या 235
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो बोशधधमय ने कहा: िुमने मंशदर बनिाए, िुमने शभक्षुओं को भोजन कराया,
या िुमने धन बां टा, या मूशिययां खड़ी कीं; जब िुम यह सब कर रहे थे , िो
िुम्हारे भीिर कोई जानिा है शक यह सब हो रहा है , यह सब शकया जा रहा
है । िह जो साक्षी है जो िुम्हारे भीिर जानिा है , अगर उसमें प्रशिशष्ठि हो
जाओ, िो धमय है ।

मंशदर बनाने में नहीं, या मंशदर में पूजा करने में नहीं, िह जो मंशदर के बनाने
को भी दे खिा है और जानिा है और मंशदर की पू जा को भी दे खिा है और
जानिा है । कभी मंशदर में पूजा करिे िि एकदम से ख्याि करें , िो आपको
पिा चिेगा, आप पूजा भी कर रहे हैं और आपके भीिर एक शबंदु है जो जान
भी रहा है शक पू जा हो रही है , पू जा की जा रही। रास्ते पर आप चि रहे हैं ,
चििे-चििे िि एकदम से खयाि करें , आपको शदखाई पड़े गा, आप चि
भी रहे हैं और आपके भीिर कोई जान भी रहा है शक आप चि रहे हैं ।

िह जो जान रहा है , िह आपका आत्यंशिक रूप से अंिःथथ केंि है , िह


आपकी इनरमोस्ट, सबसे गहरी स्थथशि है जहां आप हैं , जहां आपका स्वरूप
है । िो बोशधधमय ने कहा: िहां प्रशिशष्ठि हो, िो धमय में प्रशिशष्ठि हैं , बाकी सब
अच्छे काम हैं , धमय से उनका कोई बहुि गहरा संबंध नहीं।

िह िू बोिा शक अगर ऐसी बाि है , िो मेरा शचत्त बहुि अिां ि रहिा है , उसी
के शिए मैंने ये धमय के कायय शकए, मेरा शचत्त कैसे िां ि हो जाए, यह बिा दें ?

बोशधधमय ने उसे दे खा और उससे कहा शक कि सुबह चार बजे अंधेरे में आ


जाना, मैं िुम्हारे शचत्त को िां ि कर ही दू ं गा। ऐसा कहने िािा कभी कोई
व्यस्ि उसे शमिा नहीं था। उसने दु बारा पूछा शक क्या मेरे शचत्त को िां ि कर
ही दें गे?

ओिो पृष्ठ संख्या 236


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
बोशधधमय ने कहा: अब दु बारा मि पू छो। सुबह चार बजे आ जाना। दु बारा
पूछने की क्या बाि है ? मैंने कहा शक मैं शचत्त को िां ि कर ही दू ं गा। िुम
जाओ। जब िह सीशढ़यां उिरने िगा, िो बोशधधमय ने कहा: िेशकन खयाि
रखना, जब आओ िो शचत्त को साथ िेिे आना, नहीं िो मैं िां ि शकसको
करू
ं गा?

िह रास्ते में बादिाह सोचने िगा शक यह िो बड़ी गड़बड़ बाि है , शचत्त को


साथ िेिे आना? जब मैं आऊंगा, िो शचत्त िो साथ आएगा ही। इसमें क्या बाि
थी कहने की? यह कैसा पागि आदमी है ? शचत्त को साथ िेिे आना, इसका
क्या मििब? मैं आऊंगा, िो शचत्त साथ आएगा ही।

सुबह िह चार बजे क्या, िीन बजे ही आ गया। आिे ही बोशधधमय ने पू छा,
िाए, शचत्त को िे आए।

उसने कहा शक आप कैसी बािें करिे हैं मैं आया हं , िो शचत्त िो आए।

िो उसने कहा: आं ख बंद करो, खोजो, शचत्त कहां है ? शमि जाए, िो पकड़ो
और कहो, यह है । और मैं उसी िि िां ि कर दू ं गा।

अब उस फकीर के साथ, उस अंधेरी राि में, उस बादिाह ने आं ख बंद कीं,


भीिर खोजा, आं ख थोड़ी दे र बाद खोिीं, उसने कहा: िह शमििा नहीं।

िो बोशधधमय ने कहा: िां ि कर शदया; जो शमििा ही नहीं है , िह िां ि हो गया।


िुमने कभी खोजा ही नहीं।

और िह है रान हुआ बादिाह शक भीिर जब िह खोजने गया, िो िहां सब


िां ि था। असि में जब आप भीिर खोजने जाएं गे , िो शसफय साक्षी रह
जाएगा, खोजने िािा रह जाएगा। और अगर खोजने िािा बहुि प्रशिष्ठा से,
बहुि िस्ि से अपने भीिर जाए, िो शचत्त पाया ही नहीं जाएगा। शचत्त हमारे

ओिो पृष्ठ संख्या 237


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सोए हुए होने का नाम है । शचत्त हमारे भीिर साक्षी शजिना मूस्च्छय ि है उसका
नाम है । शचत्त कुछ है नहीं, साक्षी की मूच्छाय का ही नाम शचत्त है , मन। अगर
साक्षी सजग हो जाए, मन नहीं पाया जाएगा।

यह जो मैंने प्रयोग कहा: िह कोई मन की शक्रया नहीं है , िह साक्षीभाि में


धीरे -धीरे प्रिे ि करने का शबिकुि प्राथशमक चरर् है । उस भाि में शजिने
आप गहरे जाएं गे , पाएं गे शक शचत्त है ही नहीं। जब साक्षीभाि पैदा होगा, आप
पाएं गे मन जैसी कोई भी चीज नहीं, मात्र आत्मा है भीिर।

यह साक्षीभाि मन का शहस्सा नहीं है , मन के बाहर है । असि में साक्षीभाि के


सोए हुए होने का नाम मन है और साक्षीभाि के जग जाने का नाम अ-मन है
या आत्मा है , िह नो-माइं िगी, उस िि कोई मन आपके भीिर नहीं रह
जािा।

पूछा है : भय क्ा है ? और भय-मुप्ति का उपाय क्ा है ?

यह जो मैंने अभी कहा: साक्षी का सोया हुआ होना मन है । इसे और हम दो


शदन बािें करें गे , िो समझ में आ सकेगा शक साक्षी का सोया हुआ होना क्या
है ? यह जो साक्षी का सोया हुआ होना है इससे मन पैदा हो जािा है । यानी िह
सोया हुआ होना ही मन है । यह मन बड़ी छाया, अस्स्तत्व की चीज है , बड़ा
िैिो एस्झझस्टें स है इसका। इसकी कोई िास्तशिक स्थथशि नहीं है । इसशिए
मन हमेिा शमटने से िरा रहिा है । िबड़ाहट िगी रहिी है कब शमट जाए!
उस शमटने के भय से, िह शमटने का जो संभािना है , आिंका है , उससे भय
पैदा होिा है , शफयर पैदा होिा है ।

पूछा है शक भय क्या है ?

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शजस-शजस चीज को आप अपना होना समझे हुए हैं , िे सभी चीज मरर्धमाय
हैं , यह भय है । शजस-शजस चीज को आप अपना होना समझे हुए हैं शक यह मैं
हं , िे सभी मरर्धमाय हैं । भीिर प्रत्येक की मृत्यु का स्पष्ट बोध।...

आप संपशत्त को समझे हुए हैं शक संपशत्त मेरी है , िेशकन आप बहुि गहरे में
हरे क व्यस्ि जानिा है संपशत्त मे री नहीं है । क्योंशक आप नहीं थे िब भी
संपशत्त थी, आप नहीं होंगे िब भी संपशत्त होगी। आप उसके माशिक हो नहीं
सकिे, िेशकन माशिक बने हैं ।

िो मािशकयि झूठी है , इसका बहुि भीिर गहरे में बोध प्रत्येक को है । िो


मािशकयि खोने का िर पीछे िगा हुआ है शक िह झूठी है । इसशिए हर
आदमी अपनी संपशत्त की सुरक्षा के शिए िरा हुआ है शक संपशत्त कहीं छूट न
जाए। शजस यि हो आप समझे हुए हैं मेरा है , आप बहुि गहरे में, प्रत्येक
व्यस्ि जानिा है यि मेरा नहीं, क्षर् में छूट सकिा है । शकसी का शदया हुआ
है , शबिकुि उधार है , अभी छीना जा सकिा है । िो यि के बचाि के शिए
आप भयभीि हैं । शजस दे ह को आप समझिे हैं शक यह मैं हं , रोज चारों िरफ
दे खिे हैं शक दे ह शमट जािी है । आप भी शकसी िि पर जानिे हैं शक दे ह शमट
जाएगी। इसशिए दे ह के शमटने का भय िगा हुआ है ।

आप शजन-शजन चीजों के जोड़ हैं , उन सभी चीजों के शिनष्ट होने का, उन


सभी चीजों के पराए होने का, उन सभी चीजों का िास्तशिक संपशत्त न होने
का, आपके भीिर थोड़ा न बहुि बोध है । िही बोध आपको भयभीि शकए हुए
है । उस बोध के कारर् ही आप भयभीि हैं । उसी से शफयर पैदा हो रहा है ।
अगर एक ईशियट हो, जड़बुस्ि हो, उसको कोई भय नहीं है । िह आग में
हाथ िाि दे गा। िर में आग िगी हो, िह बैठा रहे गा। िो कोई िह जड़बुस्ि
कोई परमज्ञान को उपिब्ध नहीं हो गया है । असि में बोध न होने से, जो-जो

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
चीजें मरर्धमाय हैं , उनका उसे पिा ही नहीं चि रहा है । इसशिए उसे कोई
भय नहीं है ।

मनुष्य सबसे भयभीि प्रार्ी है । और भयभीि होने का कारर् है , उसे बोध है ।


िो जो-जो चीज गिि है उसकी सरकिी हुई अनुभूशि उसे होिी रहिी है शक
यह गिि है , यह ठीक नहीं है , यह छूट जाएगी।

एक मुसिमान बादिाह हुआ। सु बह-सुबह िह अपने दरबार में जाकर बै ठा


था शक एक फकीर भीिर आया। पेहरे दारों ने रोकने की कोशिि की, िो
उसने कहा शक कौन मुझे रोक सकिा है ? कोई इसका माशिक नहीं है जो
मुझे रोक सके। िह इिना दबंग था फकीर, ऐसा प्रभाििािी था शक
पेहरे दार िबड़ा कर खड़े हो गए। ऐसा कोई आदमी नहीं आया था। उसने
कहा: हट जाओ यहां रास्ते से! कौन मुझे रोक सकिा है ! शकसका है यह? यह
शकसी का भी नहीं।

पेहरे दारों ने खबर दी शक ऐसा फकीर आया है , बड़ा प्रभाििािी है और िह


कहिा है , शकसी का मकान नहीं, कोई मुझे भीिर जाने से रोक नहीं सकिा।

राजा ने कहा: उसे िे आओ।

फकीर िाया गया। उस फकीर ने कहा शक मैं इस सराय में कुछ शदन ठहरना
चाहिा हं । कौन मुझे रोक सकिा है !

उस राजा ने कहा शक शबिकुि ही अशिष्ट बाि बोि रहे हो। एक िो पेहरे दारों
के साथ िुमने दू व्यय िहार शकया, दू सरा अब िुम मेरे शनिास को, मेरे महि को
कहिे हो, सराय! धमयिािा! अपने िब्द िापस िे िो?

िह फकीर बोिा, मैं अपने िब्द िापस िे िूं, जो शक शबिकुि सच हैं । नहीं,
मैं िुमसे कहं गा, अपने िब्द िापस िे िो। क्योंशक मैं इसके पहिे आया, िो

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िुम यहां नहीं थे कोई और था, जो इसका माशिक बना था। इस शसंहासन पर
मैंने पहिे भी यही झंझट हो चुकी है ।

उसने कहा: िे कोई नहीं थे , मेरे शपिा थे ।

और उसने कहा शक उनके पहिे भी मैं आया हं । और िब भी यह झंझट हो


चुकी है । िब िे नहीं थे , कोई और था।

राजा ने कहा: िे उनके शपिा थे ।

और फकीर ने कहा शक ऐसा मैं बहुि बार आया हं , जब भी यहां पाया, िो


दू सरे आदमी को पाया और मैं िुमको पक्का कहिा हं , जब दु बारा आऊंगा,
िो िुम नहीं रहोगे। िो मैं इसको सराय कहने िगा, क्योंशक यहां िो आदमी
बदििे रहिे हैं । यहां मािशकयि शकसी की नहीं, िुम अपना िब्द िापस िे
िो शक यह शनिास है , यह सराय है , यहां िुम आए िो, ठहरे हो, चिे जाओगे ।

उस राजा ने सुना, उसने दरबाररयों से कहा: मैं अपने िब्द ही नहीं िापस
िेिा, अपना जीिन भी िापस िेिा हं । उठा और फकीर के पीछे हो गया।
इससे मुझे शदखाई पड़ गया शक यह सराय है । मैं इसमें हमेिा नहीं था।

िेशकन सराय को अगर हम शनिास समझें, िो शफयर होगा। चाहे हम ऊपर


से शकिना ही समझे रहें शक यह हमारा शनिास, िेशकन अगर आप धमयिािा
में ठहरे हुए हैं और आप यह समझे रहें शकिने ही शक मेरा मकान है , शफर भी
भीिर शकसी िि पर आप झुठिा नहीं सकिे, आप जानिे हैं शक यह मकान
नहीं, ठहरा हुआ हं , िो िबड़ाहट िगी रहे गी, कब शनकि जाऊं, कब अिग
कर शदया जाऊं। कब बेिर हो जाऊंगा, यह िर बना ही रहे गा, क्योंशक जहां
आप ठहरे हैं , िह िर है ही नहीं।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफयर पैदा होिा है , भय पैदा होिा है । भय इसशिए पैदा होिा है शक जहां िर
नहीं िहां िर समझे हुए हैं ।

यह भय बुरा नहीं है । मेरी दृशष्ट से शजसमें यह भय नहीं है , िही बाि बु री है ।


यह भय बुरा नहीं है , क्योंशक जड़बुस्ि में यह भय नहीं होगा। इसशिए शजिनी
सिेज बुस्ि होगी, उिनी भयभीि होगी। क्योंशक सब िरफ उसे िगे गा शक
जहां -जहां मैं पैर रखे हुए हं , जमीन समझे हुए हं , िहां जमीन है ही नहीं। उसे
शदखाई पड़े गा न, अंधा आदमी नहीं है । शजसके पास आं ख है , बोध है , उसे
हर चीज भयभीि करिी हुई मािूम पड़े गी। उसका जीिन धीरे -धीरे
शबिकुि ही भय से भर जाएगा, िह कंपने िगे गा पत्ते की िरह, सब भयभीि
हो जाएगा भीिर। िेशकन इसी भय से अभय पैदा होगा।

इसी बोध से, जब शक हरे क चीज उसे आश्वासन दे ने में असमथय हो जाएगी,
जब कोई भी चीज उसे ऐसी न रह जाएगी जो अभय दे सके। शजसको दे रही
अभय, िह नासमझ है । एक आदमी दस िाख रुपये पकड़े बैठा है और
सोचिा है शक मैं शफयरिेस हो गया, अब मुझे कोई भय नहीं है , िह पागि है ।
िेशकन शजसके पास बोध होगा, उसे दस िाख का क्या, दस करोड़ भी, दस
अरब भी अभय नहीं दे सकिे। उसे शदखाई पड़े गा यह मामिा शक शकिने ही
मेरे पास हो, इससे भय शमटिा नहीं। बस्ल्क शजिना यह होिा जािा है , यह
और इसका होना भी एक नये भय का कारर् हो जािा है । उसकी सुरक्षा,
उसकी व्यिथथा, शफर भी िह सुरशक्षि रहने िािा नहीं है ।

भय का बोध बुस्ि का िक्षर् है । इसशिए भय कोई बुरी बाि नहीं है । असि


में बुरी बाि इस जीिन में और इस जगि में कुछ भी नहीं है । और शजन-शजन
को हम बुरा मानिे हैं , उनसे ही उसके शिए मागय शमििा है शजसको हम िुभ
कहिे हैं । अगर भय का बोध आपका पूरा हो जाए, अगर एं स्िस टोटि हो
जाए, अगर िबड़ाहट और संिाप पूरा हो जाए, िो आपके जीिन में क्रां शि हो
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाएगी। आप उस अशग्न से दू सरे आदमी होकर पैदा हो जाएं गे , आपका नया
जन्म हो जाएगा।

क्योंशक जब आपको सब िरफ भय शदखाई पड़ने िगे गा स्पष्ट और कोई िर


िर नहीं मािूम होगा, कोई अपना अपना नहीं मािू म होगा, कोई संपशत्त
संपशत्त नहीं मािूम होगी, पैर के नीचे कोई भू शम नहीं मािूम होगी, जब ऐसे
आप चारों िरफ भय से भर जाएं गे , उसी भय में बाहर का शिश्वास चिा जािा
है और भीिर आं ख मुड़िी है । उसी भय में बाहर की आथथा खो जािी है और
भीिर की शनष्ठा पै दा होिी है । िब आप िहां खोजिे हैं शक िायद यहां िर
शमि जाए। जब िक बाहर िर को समझिे हैं शक शमि सकिा है , िब िक
आप भयभीि रहें गे।

क्योंशक िर शकिना ही शमि जाए, कोई बाहर िर हो नहीं सकिा, क्योंशक है


नहीं। िस्तुस्थथशि ऐसी है शक बाहर कोई िर नहीं है । शकिना ही खोजें, शमि
सकिा नहीं है । भय भीिर बना ही रहे गा। हां , िेशकन अगर बाहर के सारे िर
व्यथय मािूम हों और भय पूरा हो जाए, िो भीिर प्रिेि होगा। और िहां िर है ।
उसके शमििे ही अभय पैदा हो जािा है । भीिर जो भू शम है , उस पर पैर पड़िे
ही अभय पैदा हो जािा है ।

उसके पहिे शजनको आप समझिे हैं शक शजनमें कोई शफयर नहीं है , समझिे
हैं शक बड़े बहादु र हैं , बड़े शहम्मििर हैं , िे भी सब भयभीि हैं । उनके हाथ में
िििारें हैं । और िििारें भय का िक्षर् है ।

संपशत्त को इकट्ठा कर रहे हैं , संपशत्त के बि पर कहें गे शक मुझे कोई भय नहीं


है । िेशकन संपशत्त को इकट्ठा करना भय का िक्षर् है ।

क्राइस्ट ने अपने शिष्यों को एक शदन कहा: कि की जो शचंिा करिा है , िह


भयभीि है । क्योंशक िह िरा हुआ है शक कि क्या होगा? कि का िर है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
क्राइस्ट ने कहा शक इन फूिों की िरह हो जाओ; जो स्खििे हैं ; मुरझा जािे
हैं , िेशकन इन्ें कोई शचंिा नहीं। िेशकन फूिों को शचंिा न होने को मैं कोई
बहुि अच्छी बाि नहीं मानिा। बोध की कमी है िहां । फूि की भां शि नहीं
होना। यानी बोध हट जाए आपके भीिर से, िो आप भी शनशिंि हो जाएं गे ।
िेशकन उस िरह की शनशिंििा अभय नहीं िाएगी। उस िरह की शनशिंििा
के पीछे भय बना ही रहे गा।

इसशिए बड़े से बड़े िोग शजन्ोंने शक अपनी बड़ी शनशिंििा कर िी, बड़ी
शसक्योररटी कर िी, िे भी भीिर भयभीि बने रहिे हैं ।

चंगीज जब शहं दुस्तान को िूट-खसोट कर िापस िौट रहा था, हजारों आदमी
काट शदए थे, शजस दे ि में गया, िहां हजारों िोगों को काट शदया, शजस
राजधानी में गया, पहिे जाकर दस हजार बच्चों के शसर कटिा दे िा था और
अपने सैशनकों से कहिा था, उनको भािों पर िगा कर एक जुिूस शनकाि
दो पूरे नगर में, िाशक िोग दे ख िें शक चंगीज आ गया और समझ जाएं शक
कौन आ गया है । राि को जहां से फौजें शनकििी थीं, बगि के गां ि में आग
िगा दे िा था िाशक रोिनी हो जाए, फौजों का रास्ता साफ हो जाए।

िेशकन अपनी मौि से ऐसा भयभीि था शक राि भर सो नहीं सकिा था, बार-
बार िििार उठा िेिा था। जरा ही खटका हो शक िििार पर हाथ रख िेिा
था, राि सो नहीं सकिा था, शदन में सोिा था। कभी नहीं सोया राि में। शदन में
सोिा था, जब चारों िरफ िििार शिए नंगे फौजी खड़े रहिे थे , िब िह सोिा
था। राि के अंधकार में, मान िो फौशजयों को झपकी आ जाए, मान िो अंधेरे
में कोई िुस आए, इसशिए राि को नहीं सो सकिा था।

अंधेरे से िरिा था। और ऐसे ही उसकी मौि हुई, जब शहं दुस्तान से िौट रहा
था, एक राि को उसे ऐसा िगा, सपने में िगा, और जो आदमी शदन भर हत्या

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
करे गा, राि मारे जाने का सपना दे खना उसे बहुि कशठन नहीं है , स्वाभाशिक
है । उसने दे खा शक ये दु ष्ट िुस आए हैं , दु श्मन िुस आए हैं , और उसे मारने
की ििाि में हैं , िह एकदम नींद में उठा और भागा। बाहर जो उसका टें ट
था, उसकी रस्सी से उसका पैर फंस गया, शगर पड़ा और िबड़ाहट में मर
गया। ऐसा आदमी शजसने िाखों िोग मार शदए शनमयमिा से, िह ऐसा
भयभीि था।

ये शसकंदर और ने पोशियन और शहटिर कोई बहादु र आदमी मि समझना,


ये सब भयभीि िोग हैं । असि में ये दू सरे को मार कर अपने को यह शिश्वास
शदिाना चाहिे हैं शक हम इिने िोगों को मार सकिे हैं िो हमको कौन मार
सकेगा। कुि और कोई बाि नहीं। इसशिए जो शजिना भयभीि है , उिने
िोगों को मारने की कोशिि करे गा, दबाने की कोशिि करे गा।

िह सेल्फ-कां शफिें स पैदा करना चाह रहा, आत्मशिश्वास, शक जब मैं इिने


िोगों को मार सकिा हं िो मुझे कौन मार सकेगा। मरने का भय है , बहुि
िोगों को मार कर, िािों को शबछा कर, िह यह शिश्वास िे आिा है , यह
शसक्योररटी पैदा कर िेिा है , सुरक्षा, मुझे कोई नहीं मार सकिा अब। ये सब
भयभीि िोग हैं । यह इशिहास शजन िोगों के खून-खराबे से भरा हुआ, ये
दु शनया के सबसे ज्यादा भयभीि िोग थे ।

...जा नहीं सकिा, बाहर की कोई...शहं सा पैदा होिी है । भयभीि आदमी


शहं सा करे गा। करिाएगा। क्योंशक उससे उसे शिश्वास आिा है शक मेरे भीिर
भय नहीं है ऐसा शिश्वास अपने को शदिािा है । िेशकन भय भीिर बना रहिा
है ।

आदमी राज्य जीि िे, बड़े पदों पर पहुं च जाए, इसीशिए चेष्टा है । राजनैशिक
बहुि भयभीि आदमी होिा है । बड़े से बड़े पद पर पहुं चने की उसकी जो

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कोशिि है , िह इसी खयाि में है शक िहां पहुं च कर मैं शनभय य हो जाऊंगा,
शफर मुझे कोई भय नहीं रहे गा। शनशिि ही।

एक गां ि का चपरासी और एक राष्टरपशि है , िो सोचिा है चपरासी, अगर मैं


राष्टरपशि हो जाऊं, शफर मुझे कोई भय नहीं। राष्टरपशि होने की जो कोशिि, या
शप्रशमयर होने की जो कोशिि, या मंत्री होने की जो कोशिि, सत्ता को पाने
की जो कोशिि है िह अपने भीिर भय को झुठिाने की कोशिि है । िेशकन
शकिनी ही व्यिथथा कर िो, भय िो कहीं जा नहीं सकिा। बाहर की कोई
व्यिथथा भय को नष्ट नहीं करिी, बस्ल्क एक नये भय को पैदा कर दे िी है शक
जो व्यिथथा शमि जािी है , अब कहीं यह छूट न जाए। िो बड़े की चेष्टा िु रू
होिी है और नीचे जो शमिा है उसे पकड़ रखने की बचाए रखने की, कोशिि
िुरू होिी है और ऐसा हम भय से शगरिे जािे हैं ।

िेशकन यशद भीिर दृशष्ट िूम जाए, िो अभय का थथान शमि जािा है । क्योंशक
िहां शदखाई पड़िा है जो है उसकी कोई मृत्यु नहीं। िहां शदखाई पड़िा है जो
है उसका कोई अंि नहीं। िहां शदखाई पड़िा है जो है उसे छीना नहीं जा
सकिा। िहां जो संपदा शमििी है िह नष्ट नहीं हो सकिी। यह जहां स्थथशि
स्पष्ट हो जाए, िहीं अभय िुरू हो जािा है ।

पूछा है शक भय-मुस्ि का उपाय क्या?

उपाय मि पूछें। क्योंशक उपाय सारे िोग कर रहे हैं । भय-मुस्ि के ही उपाय
कर रहे हैं । धन को इकट्ठे करने िािा भी, पद को इकट्ठा करने िािा भी,
िििार इकट्ठी करने िािा भी, िरीर को मजबूि करने िािा भी, ईश्वर का
भजन-कीियन करने िािा भी, सब भय-मुस्ि के उपाय कर रहे हैं । भय-
मुस्ि का उपाय मि पूछें, िह िो सारी दु शनया कर रही है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भय-मुस्ि का उपाय नहीं; भय के प्रशि जागरर्, भय के प्रशि होि शक भय है
क्यों? क्या है उसकी बुशनयाद में कारर्? और अगर कारर् शदखाई पड़ जाए
शक भय का कारर् यह है शक जो अभय की भू शम है उसमें हमारा प्रिे ि नहीं
है , और जो भय की भू शम है िहीं हम कोशिि कर रहे हैं शक अभय उपिब्ध
हो जाए। अगर यह शदख जाए, िो पररिियन िुरू हो जाएगा।

अगर भय का स्पष्ट कारर् शदख जाए, उसकी कॉज़ेशिटी शदखाई पड़ जाए,


उसकी बुशनयाद शदखाई पड़ जाए, िो आप अभय में प्रिेि करना िुरू कर
जाएं गे ।

भय को दे खें और समझें की िह क्यों है ? शबना उसे समझे भय-मुस्ि के


उपाय की कोशिि मि करें । और मेरा कहना है , जो समझ िेिा है , उसे
उपाय करने की कोई जरूरि नहीं रह जािी। क्योंशक शजसने समझ शिया
शक भय क्यों है , उसका भय गया। भय को खोजिे ही से भय चिा जाएगा।
हम भय को िो खोजिे नहीं, उपाय खोजिे हैं उससे बचने का। और िब सब
उपाय व्यथय हो जािे हैं ।

मुझे जैसा शदखाई पड़िा है , िह यही शक जीिन में शकसी चीज से बचने की
कोशिि न करें , उसे जानने की कोशिि करें । भय कुछ बुरा नहीं है , उसे
जानने की कोशिि करें , उसके जानने से ही क्रां शि होिी है ।

दू सरा प्रश्न है : आपने मन और शिचार की गशत रोकने के शलए साधना


बताई, गीता ने आसप्ति रशहत कमय का जो तरीका बताया, उसमें और
इस तरीके में क्ा िकय है ?
गीिा को बीच में न िाएं । मैं और आप काफी हैं । क्योंशक यह पक्का मि
समझें शक जो आप समझिे हैं गीिा में शिखा है िही गीिा में शिखा हो। गीिा
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
को कृष्ण हुए शबना समझना असंभि है । अजुयन भी समझिा था, ऐसी मेरी
धारर्ा नहीं है । शजस िि पर जो बाि कही जािी है , उसी िि पर केिि
समझी जा सकिी है । यही िजह है शक गीिा की हजारों टीकाएं हैं । और
कृष्ण कोई पागि िो थे नहीं शक उनकी एक ही बाि में हजार-हजार मििब
रहे हों। एक ही आदमी की अगर एक ही बाि में हजार मििब हो, िो िह
पागि होना चाशहए। उनका मििब िो स्पष्ट ही एक रहा होगा।

िेशकन हजारों टीकाएं हैं गीिा पर। िो ये टीकाएं गीिा पर नहीं हैं , ये अपने-
अपने मन पर हैं । यह टीकाकार का मन है जो बोि रहा है । और हममें ऐसा
पागिपन रहा है शक हम अपने शिचार को शकसी बड़े आदमी के नाम पर थोप
दें , िो हमें सुख शमििा, हमें ऐसा िगिा है शक शिचार िो अब शनशिि ही ठीक
होना। हम पर िो खुद हमें शिश्वास होिा नहीं। हमें िो शिश्वास होिा नहीं शक
हमको ज्ञान हो सकिा है ।

िेशकन अगर हम अपने शिचार को कृष्ण पर थोप दें , िो शफर हमको धीरे -धीरे
शिश्वास आने िगिा है शक जरूर ठीक होगा, क्योंशक कृष्ण कह रहे हैं । कह
हम ही रहे हैं । ये सारी टीकाएं कृष्ण पर जो शिखी गई हैं , ये अपने-अपने मन
शिखी गई टीकाएं हैं , चाहे कोई भी शिखिा हो। क्योंशक कृष्ण का मििब िो
गीिा है । टीका, टीका उसका मििब है जो शिख रहा है । जब भी हम कोई
शकिाब पढ़िे हैं , िो जाने-अनजाने टीका करिे हैं । िह जो टीका है िह हमारा
भाि है , हमारा शिचार है ।

इसशिए मैंने कहा शक गीिा को अिग कर दें , मैं और आप काफी हैं । मैंने जो
कहा: शजस बाि को मैं आपको सु बह कहा या कि राि कहा या आगे कहं गा,
उसमें और अनासि कमय के शिचार में बुशनयादी भे द है । मेरा कहना यह है
शक अनासि कमय शकया नहीं जा सकिा, अनासि कमय होिा है । क्योंशक
जब आप उसे करें गे , कस्ििेट करें गे, िो उसमें आसस्ि आ जाएगी। जब
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आप चेष्टा करें गे , िो िह कमय आसि हो जाएगा। जब आप कोशिि करें गे
शक ये कमय मेरा अनासि हो, िो क्यों कोशिि करें गे ? आस्खर अनासि
होने की िजह क्या है ?

िजह है शक मोक्ष पाना, िो आसि हो गया। अगर कोई चीज पानी है , िो िह


आसि हो जाएगा। िजह यह है शक हमको िां शि पानी है , इसशिए
अनासि कमय करिे हैं । िो अनासि कहां रहा? धन न पाना हो, यि न
पाना हो, िेशकन िां शि पानी है या परमात्मा पाना है । असि में जहां भी पाने
का भाि है , िहां कमय अनासि नहीं होगा।

िो आप सोच-सोच कर चाहें शक मैं अपने कमय को अनासि कर िूंगा, िो


आप गििी में हैं । सोच कर कभी कमय अनासि हो ही नहीं सकिा। क्योंशक
सोचना िो आसस्ि का ही उपाय है ।

िो मैं जो कह रहा हं , अगर शचत्त िां ि हो, िां ि शचत्त से जो कमय शनकििा है
िह अपने आप अनासि होिा है , िह करना नहीं होिा। अनासि कमय
करने से शचत्त कभी िां ि नहीं होगा, क्योंशक अनासि कमय िो शकया ही नहीं
जा सकिा। िेशकन शचत्त यशद िां ि हो जाए, िो जो कमय शनकिेगा, िह
अनासि होगा, क्योंशक िां ि शचत्त से आसि कमय शनकि नहीं सकिा। िो
सिाि आपके कमय का शबिकुि भी नहीं है । क्योंशक कमय महत्वपूर्य नहीं है ,
महत्वपूर्य आप हो। और आप जैसे होिे हो, िैसा कमय शनकििा।

िो आप अपने को िो बदिो न और कमय को अनासि करना चाहो, िो


पागिपन है , िह िो हो ही नहीं सकिा। िो कैसे होगा? यानी आप भीिर िो
कोई बदिाहट न हो और कमय को अनासि करने की कोशिि चिे, िो कमय
शनकििा कहां से है ? कमय आपसे शनकििा है । आप उसके मूि उदगम हो।
और आप िही हो पुराने के पुराने और कमय को अनासि करना चाहिे हो।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो हो सकिा है , कमय अनासि शदखने िगे , िेशकन हो नहीं सकिा। उसमें
आसस्ि बनी रहे गी। साधु भी जो कर रहा है उसमें आसस्ि है । िह चाहे
मोक्ष की हो, चाहे ईश्वर की हो, ये भी सब िासना के ही एक्सटें िंस हैं , उसके
ही शिस्तार हैं ।

एक साधु चेष्टा में िगा है , उपिास कर रहा है , सेिा कर रहा है , या कुछ और


कर रहा है , सारे के पीछे एक िासना है शक शचत्त िां ि हो जाए, ईश्वर शमि
जाए, आत्मा शमि जाए, मोक्ष शमि जाए, यह हो जाए, िह हो जाए, आिागमन
से छु टकारा हो जाए, यह सब िासना के रूप हैं , ये सब शिजायर हैं । यह कमय
अनासि कैसे होगा?

अनासि कमय िभी हो सकिा है जब भीिर शचत्त इिना िां ि हो, शचत्त शजस
मात्रा में िां ि होगा, शििीन होगा, उसी मात्रा में कमय से आसस्ि शििीन हो
जाएगी। शचत्त की अिां शि ही आसस्ि का मूि उदगम है ।

इसशिए मैं कमय के बदिने को नहीं कहिा। कमय को बदिा ही नहीं जा


सकिा। िह िो ऐसा ही है शक एक आदमी िृक्ष के पास जाए और कहे शक
इसमें, िृक्ष को िो कुछ न करे और कहे शक फूि इसमें बड़े आने चाशहए या
छोटे आना आना चाशहए, या िैसा होना चाशहए, या ऐसा होना चाशहए, फूिों
पर शिचार करे और िृक्ष की कोई शफकर न करे , िो क्या होगा?

अगर जोर-जबरदस्ती करे , िो ऊपर से फूि िटका सकिा है िृक्ष में जाकर,
िेशकन िृक्ष में फूि िा नहीं सकिा। क्योंशक िृक्ष में फूि कोई आिे नहीं
एकदम से, िृक्ष की आस्खरी नीचे जो जड़ है िहां से फूि का बनना िुरू
होिा है , शफर िह सारे िृक्ष की यात्रा करिा है फूि और शफर कहीं ऊपर
आकर प्रकट होिा है । जहां आपको शदखाई पड़िा है , िह िो केिि

ओिो पृष्ठ संख्या 250


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अशभव्यस्ि है , िह कोई शनमाय र् का थथि नहीं है । शनमाय र् िो बड़े अंधेरे में
और बड़े अज्ञाि में हो रहा है ।

कमय भी हमारे जीिन की अंिःसत्ता के फूि की भां शि हैं , िहां िे बन नहीं रहे
हैं , िहां िो प्रकट हो रहे हैं ; बन िो बहुि गहरे में रहे हैं , बहुि अंधेरे में, बहुि
अज्ञाि में, अदृश्य में, िहां िे िैयार हो रहे हैं । िहां आपको पिा भी नहीं शक
िहां क्या िैयार हो रहा है ? जब िे प्रकट हो जािे हैं , िब आप कहिे हैं , यह हो
गया।

एक आदमी ने हत्या कर दी, िो आप कहिे हैं , उसने हत्या कर दी। हत्या


करना इिनी आसान बाि नहीं है । हत्या पैदा हो रही थी, शनशमयि हो रही थी,
बन रही थी, िषों से उसके भीिर िैयारी चि रही थी, उसकी चेिना उसका
शनमाय र् कर रही थी, शफर एक शदन िह प्रकट हुई। जब प्रकट हुई, िब आपने
दे खा। आप समझिे हैं एक्शन िहीं हुआ, िहां नहीं हुआ, िहां िो प्रकट हुआ
केिि, होना िो बहुि पीछे से चि रहा था। हो सकिा था अनंि जन्मों से चि
रहा हो।

और कमय को बदिने को जो सोच रहा है , शबिकुि पागि है , िह िो


अशभव्यस्ि को बदिने की सोच रहा है , जहां शक चीजें प्रकट हो रही हैं , िहां
कुछ नहीं होगा।

एक िर में से ऊपर छप्पर में से धुआं शनकि रहा हो, और आप जा-जा कर,
खपड़ों पर बैठ कर उसको धुएं को रोकने की कोशिि कर रहे हों शक हमको
धुआं नहीं शनकिने दे ना है अपने िर में से, और िर में नीचे आग जि रही हो
उसकी कोई शफकर न हो। िो उसको आप धुएं को इधर से रोकेंगे , िह दू सरी
िरफ से शनकिना िुरू हो जाए, िह िो शनकिेगा। उसे कैसे दबाएं गे ? उसे
कहां भे जेंगे? भीिर आग बुझनी चाशहए।

ओिो पृष्ठ संख्या 251


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कमय महत्वपूर्य नहीं है , अंिःथथ, अंिःकरर्, कमय िो केिि ऊपर शनकिने
िािा धुआं है । िह िो खबर दे िा है शक भीिर क्या है । और कुछ नहीं।

िो भीिर की स्थथशि बदिनी चाशहए। िह अगर बदि जाए, िो बाहर भी


अशभव्यस्ि अपने आप बदि जाएगी।

िेशकन हम सारे िोग अशभव्यस्ि पर जोर दे ने िािे हो गए, धीरे -धीरे हजारों
िषों से हमने यही समझने की कोशिि की शक कमय को अच्छा करो, व्यस्ि
को नहीं, कमय को। यह बाि शबिकुि ही गिि है ।

अंिस को अच्छा होना चाशहए, आचरर् अपने आप अच्छा होगा। िेशकन हम


कहिे हैं , आचरर् अच्छा करो। हमारी यह भ्रां शि है शक आचरर् अच्छा होगा
िो अंिस अच्छा हो जाएगा। आचरर् शबिकुि ही बुरी चीज है , उसका कोई
मूल्य ही नहीं है , मूल्य िो अंिस का है , िहीं से शनकििा है । िो आप मूि को
शबना बदिे ऊपर के आिरर् को बदिने की कोशिि में िगे हैं िो धोखा
होगा, पाखंि होगा। आचरर् आप बदि सकिे हैं चेष्टा करके, अंिस िही
रहा आएगा।

एक राजनीशिज्ञ साधु हो सकिा है । कोई कशठनाई नहीं। िो िेि बदि िेगा,


राजनीशि कैसे जाएगी? कपड़े बदि िेगा, शसर िुटा िेगा, रं गीिे कपड़े पहन
िेगा, िेशकन भीिर का अंिस कैसे बदिेगा? अंिस िो िही रहे गा। िो िह
साधु हो जाएगा, िेशकन शफर साधुओं से प्रशिस्पधाय करने िगे गा,
कास्िटीिन िहां आ जाएगा। मैं एक बड़ा साधु हो जाऊं, दू सरा साधु छोटा
हो जाए, शफर साधुओं से िड़ने िगे गा। साधुओं को दे खें करीब जाकर, िो
पाएं गे , ये सारे पोशिशटशियंस हैं , ये िो सब राजनीशिज्ञ हैं ।

उन्ोंने कपड़े बदि शिए हैं , आचरर् में व्यिथथा ऊपर की कर िी, भीिर
का शचत्त िही का िही है । दो राजनीशिज्ञ एक-दू सरे से शमिने को राजी हो
ओिो पृष्ठ संख्या 252
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाएं , िो साधु शमिने को राजी नहीं होिे। क्योंशक यह िर िगा रहिा है , पहिे
कौन नमस्कार करे गा?

अगर दो िोग शमिें, िो पहिे कौन नमस्कार करे गा? अगर शमि गए, िो
ऊपर कौन बैठेगा? नीचे कौन बैठेगा? यह जो शचत्त है , इसको शबना बदिे
यह सब धोखा और पाखंि हो जािा है ।

यह सारी में जो शहपोक्रेसी है , यह जो पाखंि है , िह इसीशिए है शक हम


आचरर् को बदिने की कोशिि करिे हैं , अंिस की शफकर नहीं करिे ।
दु शनया जो पाखंि से भर गई, उसका और कोई कारर् नहीं है । उसका कुि
कारर् इिना, आचरर् बदिने पर हम जोर दे िे हैं ।

हम बच्चे से कहिे हैं : झूठ मि बोिो; हम उसको कह रहे हैं : अपने आचरर्
को बदिो। हम बच्चे से कहिे हैं : दे खो, बेईमानी मि करना; हम उससे कह
रहे हैं : अपना कमय ठीक रखना। हम कभी यह बिा ही नहीं रहे शक अपने
अंिस को ठीक बनाना। हम जो बिा रहे हैं , िह कमय को ठीक करने के शिए
बिा रहे हैं । अंिस िो िही होगा, कमय को बदिने से पाखं ि पैदा होगा, धोखा
पैदा होगा। और अगर िह व्यस्ि बहुि ईमानदार हो, शजसको कहिे हैं
शसंशसयर हो, िो िह पागि हो जाएगा, क्योंशक उसका अंिस शिपरीि,
उसका आचरर् शिपरीि।

शजिनी दु शनया में सभ्यिा बढ़िी उिने पागि बढ़िे जािे हैं , उसका कोई और
कोई कारर् नहीं है । उसका एक ही कारर् है शक अगर कोई ईमानदारी से
आचरर् को बदिने की कोशिि करे शबना अंिस को बदिे, िो पागि होना
सुशनशिि है , बच ही नहीं सकिा। बच कैसे सकिा है ? क्योंशक भीिर से
आएगा धुआं और बाहर िगाएगा फूि, भीिर से आएगी गं दगी और बाहर से
करे गा व्यिथथा सौंदयय की, िो शकिनी कशठनाई नहीं पड़ जाएगी और

ओिो पृष्ठ संख्या 253


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शकिना टें िन नहीं पैदा हो जाएगा, कैसे यह चिेगा? और इसीशिए मेरी दृशष्ट
में कमय का, आचरर् का, शसिाय सूचक होने के और कोई मूल्य नहीं, िह
खबर दे िा है शक आपका अंिस कैसा है ?

अगर आपके आचरर् में झूठ आिा है , झूठ को बदिने की शफकर मि


कररए, पहचाशनए शक आपका अंिस झूठ को पैदा करने में समथय है । अंिस
को बदिने की शफकर कररए। यह िो केिि खबर हुई, यह िो खबर दे दी
गई आपके शिए। एक आदमी आया और मुझे खबर दे दे शक िुम्हारे िर में
आग िगी है , और मैं उस आदमी पर पानी िािने िगूं शक चिो, आग को
बुझा दू ं , िो मुझे िोग पागि कहें गे, शक उसने केिि खबर दी है शक िर में
आग िगी है , िुम उसी पर पानी िाि रहे हो! िो इससे आग िर की थोड़े ही
बुझेगी। िह आदमी भी मर सकिा है उिटा।

िेशकन इसको हमें शदखिा है पागिपन। कमय जो हैं आपके, िे आपके अंिस
की खबर दे ने िािे हैं शक भीिर आग िगी है । आचरर् में, कमय में झूठ आ
रहा है , बेईमानी आ रही, खबर िा रहा है कमय।

मेरी दृशष्ट में कमय जो है संदेििाहक है । आचरर् जो है खबर दे ने िािा है । िो


उसी को हम ठं िा करने िगिे हैं शक इसको ठीक करो, आचरर् को ठीक
करो, कमय को ठीक करो।

न, िह िो गििी हो गई। खबर को समझ िें और उस खबर के अब पीछे


जाएं शक अंिस पर क्या हो रहा है शजससे शक झूठ आचरर् िक आ रहा है ?

िो अंिस में पररिियन के उपाय हैं ।

अंिस में पररिियन का उपाय धमय है । और आचरर् में पररिियन का उपाय


नीशि है । और नीशि और धमय बुशनयादी रूप से शभन्न बािें हैं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 254


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
धाशमयक आदमी िो अशनिायय रूप से नैशिक होगा। शजसका अंिस बदिा,
उसका आचरर् िो बदि जाएगा। िेशकन नैशिक मनुष्य अशनिायय रूप से
धाशमयक नहीं होिा है । क्योंशक आचरर् का बदिना एक बाि है , अंिस का
बदिना जरूरी नहीं है ।

इसशिए नैशिक मनुष्य बड़े कष्ट में जीिा है । सज्जन शजनको हम कहिे हैं , िे
इिने कष्ट में जीिे हैं , शजिने दु जयन नहीं जीिे। क्योंशक उनकी सारी िकिीफ
यह है शक अंिस िो उनके खुद ही शिरोध में खड़ा है और आचरर् उनमें
शिपरीि। भीिर मन िो झूठ बोिने का होिा है और िे सच बोिना चाहिे हैं
या सच बोिने की कोशिि करिे हैं , उनका जीिन एक कां स्िक्ट और द्वं द्व
हो जािा है । इसशिए सज्जन बड़े कष्ट में जीिा है ।

उससे िो दु जयन कम कष्ट में जीिा है । कम से कम उसके आचरर् में और


अंिस में एक समानिा होिी है । दु जयन, अपराधी िां शि में जीिा है , उसके
अंिस और आचरर् में समानिा होिी है । सज्जन बड़े कष्ट में जीिा है , उसके
आचरर् और अंिस में शिरोध होिा है । संि भी िां शि में जीिा है , उसके भी
आचरर् और अंिस में समानिा होिी है ।

इसशिए संिों में और अपराशधयों में एक िरह की समानिा है । समानिा यही


है शक उन दोनों के अंिस और आचरर् समान होिे हैं । अपराधी के मन में जो
बुराई उठिी है , उसके आचरर् में प्रकट होिी है । संि के मन में बुराई उठिी
ही नहीं, भिाई ही उठिी है , िह उसके आचरर् में प्रकट होिी है । भेद
भिाई और बु राई का होिा है , िैसे सं ि और अपराधी समान होिे हैं । सज्जन
बड़ा उपिि में अटका होिा है , िह शत्रिंकु होिा है , िह दोनों के बीच में
अटका रहिा है । उसके अंिस में िो अपराधी बैठा रहिा है और आचरर् में
साधु बैठा रहिा है । इससे सारी गड़बड़ हो जािी है । उसके भीिर बड़ा
टें िन, बड़ा िनाि, बड़ी परे िानी पै दा होिी है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 255
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उस परे िानी से बचने के दो ही उपाय होिे हैं । या िो िह पाखंिी हो जाए,
यानी िह शदखाए कुछ, िस्तुिः करे कुछ। िो उसके भीिर थोड़ी िां शि आिी
है । मििब िह अपराधी के करीब आ जािा है , शकसी भां शि अपराधी के
शनकट पहुं च जािा है । और या शफर िह पागि हो जाए। उसे बोध ही न रहे
शक िह क्या कर रहा है और क्या नहीं कर रहा है , और क्या हो रहा है और
क्या नहीं हो रहा है । उस हािि में भी िह अपराधी के करीब पहुं च जािा है ।

िीसरा रास्ता यह है शक िह अंिस में क्रां शि कर िे और संि के करीब पहुं च


जाए। मेरा जोर अं िस की क्रां शि पर है , िाशक आचरर् की क्रां शि हो सके।
आचरर् की क्रां शि पर मेरा जोर नहीं है , क्योंशक उससे अशनिाययरूपेर् अं िस
की क्रां शि नहीं होिी है ।

इस पर हम और धीरे से शिचार कर सकें।

आज भी मानिीय असमानता आज का जशिल प्रश्न है , बताइए सत्य के


खोजी को क्ा करना चाशहए?
कुछ भी नहीं। ...गरीबी का हो, दररििा का हो। अगर बहुि गौर से दे खें,
मनुष्य के भीिर प्रेम की कमी का प्रश्न है , और कोई प्रश्न नहीं है । आज से दो
हजार साि पहिे अगर दु शनया दररि होिी, िो और भी कारर् हो सकिे थे।
आज िो दु शनया में प्रत्येक मनुष्य को बहुि समृस्ि, बहुि सुशिधा शमि सकिी
है , अगर प्रेम थोड़ा सा शिकशसि हो। प्रेम की कमी का प्रश्न है , अब और कोई
प्रश्न नहीं है ।

इिने साधन हैं , इिनी व्यिथथा है , इिनी िैज्ञाशनक प्रगशि है शक अब शकसी


मनुष्य को असुशिधा में होने का कोई कारर् नहीं रह गया शसिाय एक बाि के
शक मनुष्य के भीिर प्रेम की कमी है । प्रेम की कमी सारा उपिि बनी हुई है ।
ओिो पृष्ठ संख्या 256
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
संिेदना की कमी है । दू सरे के दु ख-बोध की कमी है । सहानुभूशि की कमी है ।
और यह रहे गी। यह िब िक रहे गी, जब िक मनुष्य भयभीि है । क्योंशक मैंने
कहा: जो भयभीि मनुष्य है ...

...बशगया था, मकान था, सब सुशिधा थी। शफर गां ि में कुछ नये शिकास हुए,
कुछ िोगों ने पैसा कमाया और उनके ही भिन के बगि में और बड़े भिन
खड़े कर शदए। िब से िह दु खी हो गया। मैंने उनसे पूछा, िुम्हारा मकान िही
का िही है , दु ख का क्या कारर् है ? उन्ोंने कहा: शदखाई पड़ने में िो िही का
िही है , िेशकन अब शबिकुि छोटा हो गया।

िो मैंने उनसे कहा: अब िुम्हें यह खयाि करना चाशहए, बड़ा मकान िु म्हारे
दु ख का कारर् है िो कहीं झोपड़े का होना ही िुम्हारे सु ख का कारर् नहीं है ?
िे जो बगि में झोपड़े खड़े थे । अगर बड़ा मकान िुम्हारे दु ख का कारर् हो
गया है , िो िुम्हारे सुख के कारर् िे झोपड़े रहे होंगे, जो बगि में खड़े हैं । िुम
जो सुख िे रहे थे अपने मकान में, िह िुम्हारे मकान में नहीं था, दू सरों के
झोपड़े में था। क्योंशक अब िुम जो दु ख िे रहे हो, िह िुम्हारे मकान में नहीं
है , दू सरे के बड़े मकान में है ।

हम अगर अपने सुख को दे खें, िो हम पाएं गे , िह शकसी न शकसी रूप में


दू सरे के दु ख पर शनभय र है । और जो सुख दू सरे के दु ख पर शनभय र है , िह क्या
सच में सुख हो सकिा है ? िेशकन हमारे भय ने ऐसी स्थथशि की है । हम
भयभीि हैं , सुरक्षा की खोज करिे हैं , संपशत्त को इकट्ठा करिे हैं , संपशत्त को
इकट्ठा करिे हैं , शफर उसकी सुरक्षा करिे हैं , और सारी दु शनया में िोषर्
हमारे भय के कारर् पैदा होिा है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 257


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हमारे भय के कारर् िोषर् पै दा है । हमारे भय के कारर् हम सुरक्षा चाहिे
हैं । सुरक्षा शबना िोषर् के, शबना संपशत्त के, शबना पद के इकट्ठा शकए हुए नहीं
हो सकिी। इसशिए हम उसे इकट्ठा करिे हैं ।

जो आदमी भय-िून्य हो जािा है , अशनिाययरूपेर् अपररग्रही हो जािा है ,


संपशत्त पर कब्जा उसका नहीं रह जािा। क्योंशक कोई कारर् नहीं रह गया।
िोग सोचिे हैं शक महािीर ने सारी संपशत्त छोड़ी, इसशिए उनको अभय
शमिा, मैं नहीं सोचिा। मैं समझिा हं , अभय शमिा इसशिए संपशत्त छूटी।

िह संपशत्त छूट ही नहीं सकिी शकसी आदमी की शजसको अभय न शमिा हो।
िोग गिि ही सोचिे हैं मेरी दृशष्ट में, िोग सोचिे हैं , महािीर ने, बुि ने सारी
संपशत्त छोड़ दी, संपशत्त छोड़ने के कारर् उनको अभय शमिा, गिि बाि है ,
संपशत्त कोई छोड़ ही नहीं सकिा भय में। अभय शमि जाए, िो संपशत्त छूट
जािी है ।

िो अगर दु शनया में अभय बढ़े , अभय का अथय है : अगर आत्मज्ञान बढ़े , िो
दु शनया में दररििा अपने आप शििीन हो जाएगी। दररििा का कारर् िोषर्
है , िोषर् का कारर् भय है । िो आप ऊपर से कोई भी उपाय करें , अगर
आप ऊपर से सारे िोषर् को शमटाने की व्यिथथा करें , िो नये िरह के
िोषर् िुरू हो जाएं गे ।

उन्नीस सौ सत्रह में सोशियि रूस में क्रां शि हुई। उन्ोंने पुराने िगय शमटा शदए।
नये िगय पैदा हो गए। क्योंशक भय िो मौजूद है । िो पुराने िि में जो आदमी
धन इकट्ठा करिा था, िह आदमी अब कम्युशनस्ट पाटी में भरिी होकर बड़े
पद पर होने की कोशिि करिा है । िही आदमी है , िह जो धन इकट्ठा करके
सुरक्षा करिा था, अब िह बड़े पद पर होकर सुरक्षा करिा है । क्योंशक कोई

ओिो पृष्ठ संख्या 258


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुरशक्षि नहीं है , िबड़ाहट है । िो अब िह बड़े पद पर होकर, िो एक नया
िगय पैदा हो गया।

...हमारी प्रेजेंस, हमारी मौजूदगी भीिर नहीं है , हमेिा कहीं और है । कोई


मंशदर का शचंिन कर रहा है , कोई दु कान का शचंिन कर रहा है , कोई संसार
का शचंिन कर रहा है , कोई मोक्ष का शचंिन कर रहा है , िेशकन प्रेजेंस कहीं
और है , कहीं दू र है । िहां नहीं है , जहां हम हैं । जहां हम हैं अगर िहीं हमारी
चेिना की उपस्थथशि हो, िो आपको आत्म-बोध होना िुरू हो जाएगा। और
इसके शिए शकसी िास्त्र में और शकसी से पूछने जाने की बहुि जरूरि नहीं
है , सबको जीिन शमिा है , सबको चेिना शमिी है , केिि जीिन और चेिना
को जोड़ने की बाि है ।

जीिन भी पास है , चेिना भी पास है , जैसे शकसी आदमी के पास िेि भी हो,
बािी भी हो, माशचस भी हो, िेशकन न िेि को बािी से जोड़े , न माशचस को
बािी से जोड़े , और बैठा रोिा रहे शक बड़ा िना अंधकार है , मैं क्या करू
ं ?
हम उससे कहें गे, सब िेरे पास है , िेशकन संयुि नहीं है शियुि है । िेरे पास
दीया है , िेरे पास िेि है , िेरे पास बािी है , िेरे पास आग को भड़काने और
जिाने का उपाय है । िेशकन िू उन सबको जोड़ नहीं रहा है ।

प्रत्येक मनुष्य के पास उिना ही सामान, उिना ही साधन है , शजिना महािीर


के पास हो, बुि के पास हो, कृष्ण के पास हो, क्राइस्ट के पास हो, या शकसी
और के पास हो। प्रत्येक मनुष्य को जीिन से, परमात्मा से उिना ही शमिा है
शजिना शकसी और को शमिा है । परमात्मा ने कोई कंजूसी या कोई पक्षपाि
नहीं शकया हुआ है । सबके शिए बराबर शमिा हुआ है । िेशकन आियय है शक
कुछ के दीये जििे हैं और कुछ अंधेरे में बैठे रोिे रह जािे हैं । उसका संयोग
नहीं है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 259


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कमय का और ध्यान का संयोग मनुष्य को आत्मा में िे जािा है । कमय का और
ध्यान का संयोग मनुष्य को भीिर िे जािा है , अंिस में िे जािा है । कमय और
ध्यान का शियोग मनुष्य को भटकािा है अंधेरे में और शनिा में और जीिन में,
पीड़ा और दु ख और शचंिा के अशिररि कुछ भी उपिब्ध नहीं होिा।

िो मैं आज की संध्या यह छोटी सी बाि ही आपसे कहना चाहिा हं , बड़ी


छोटी है जैसे अर्ु छोटा सा होिा है । िेशकन अर्ु का शिस्फोट िािक हुआ।
इिनी िस्ि, इिनी ऊजाय पैदा हुई शक मनुष्य चशकि हो गया। इिनी िस्ि
और इिनी ऊजाय पैदा हुई शक हम चाहें िो पूरी पृथ्वी को नष्ट कर दें । एक
छोटे से अर्ु में इिना राज शछपा था, हमें कभी पिा नहीं था।

ऐसी एक छोटी सी बाि है , कमय को और ध्यान को संयुि कर दे ना बड़ी


एटाशमक है , बड़ी छोटी है । िेशकन अगर इसका संयोग हो जाए, िो शिराट
ऊजाय पैदा होिी है । इसी छोटे से शबंदु में परमात्मा िक की उपिस्ब्ध संभि
है । जो हम करें िह बोधपूियक हो, जो हम करें िह ध्यानयुि हो, जो हम करें
िह हमारी प्रे जेंस, हमारी मौजूदगी, हमारी उपस्थथशि पूरी-पूरी उसमें हो।

एक फकीर हुआ नागाजुयन, एक गां ि से शनकििा था, अदभु ि फकीर था।


कुछ थोड़े से ऐसे अदभु ि िोग हुए हैं उनमें से एक था। नंगा ही रहिा था, एक
िकड़ी का शभक्षा-पात्र ही उसकी कुि संपशत्त थी। शजस गां ि से शनकिा उस
गां ि की महारानी ने उसे बुिाया और कहा शक िुम जै से अदभु ि फकीर के
हाथ में िकड़ी का यह शभक्षा-पात्र िोभा नहीं दे िा। मैंने एक शभक्षा-पात्र
बनाया सोने का, उसमें बहुि बहुमू ल्य जिाहराि जड़े हैं , िह िुम्हें मैं भें ट
करिी हं , इिनी कृपा करो, इनकार मि करना।

नागाजुयन बोिा, मैं क्यों इनकार करू


ं गा। जैसा िकड़ी िैसा सोना; हमें भीख
मां गने से मििब, रोटी खाने से मििब। कोई साधारर् संन्यासी होिा, िह

ओिो पृष्ठ संख्या 260


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कहिा, क्षमा करें , हम सोने को छू सकिे हैं ! सोना और हम छु एं गे ! आं ख फेर
िेिा, भागिा िहां से शक सोना कहीं पकड़ न िे। िेशकन जो जानिा है उसे
सोना और शमट्टी में भे द नहीं। जो नहीं जानिा िह सोने से भागिा है या सोने
के शिए भागिा है । ये दोनों अज्ञाशनयों के दो दि हैं ।

एक सोना पाने के शिए भागिा है , एक सोने से िबड़ा कर भागिा है ।


अज्ञाशनयों के दो दि हैं । िेशकन जो जानिा है , उसे सोने से भागना नहीं है ,
सोने के शिए भी भागना नहीं है । उसने कहा शक अगर िु झे इससे सुख शमििा
है िो ठीक है , यही ठीक है , हमें िो रोटी खानी है , हम इसमें ही मां ग कर खा
िेंगे।

िह िेकर चिा, िेशकन चििे िि उसने रानी को कहा शक दे ख, िेशकन


इसमें एक खिरा है । िकड़ी का था िो कोई चुरािा नहीं था, इसको कोई न
कोई िे जाएगा। थोड़ी दे र में हम शबना पात्र के हो जाएं गे । िो इिना खयाि
रखना, मेरा पात्र फेंक मि दे ना, कि में उसको मां ग िूंगा।

िो रानी ने कहा शक इिने जल्दी!

उसने कहा: बहुि मुस्िि है यह पात्र मेरे पास बचे।

िह िहां से शनकिा, िेशकन गां ि में एक नंगा आदमी, एक सोने का एक


चमकिा हुआ पात्र, उसमें जिाहराि जड़े हुए हैं , िो सबकी आं खें गईं। गां ि
का जो बड़ा चोर था िह पीछे हो शिया। नागाजुयन ने बार-बार उसके पैर की
आिाज सुनी। उसने कहा शक ठीक है , शजसको चाशहए िह आ गया। िह गां ि
के बाहर एक खंिहर में ठहरा हुआ था। िहां न कोई द्वार थे , न स्खड़की थी,
न कोई दरिाजा था।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िह अंदर गया, दोपहर का िि था, िह भोजन करके दोपहर को सो
जाएगा। उसने सोचा शक िह आदमी िो आ ही गया है , िह बाहर आकर
दीिाि के पीछे शछप कर बैठ गया। उसने सोचा, इसे व्यथय बाहर शबठाए रखूं,
दोपहर ही है , मैं िो भीिर बैठा हं िह धूप में बैठा हुआ है । शफर थोड़ी-बहुि
दे र में िे ही जाएगा, िो इिनी दे र शबठािने का पाप मैं क्यों मोि िूं। और
शफर शजसे िे ही जाना है , उसे दे दे ना उशचि। कम से कम दान का िो मजा
आएगा और उसको भी चोरी का कष्ट न होगा। उसने पात्र को उठाया,
स्खड़की के बाहर फेंक शदया।

िहां पात्र शगरा िो चोर है रान हो गया! पहिे ही है रान था, एक नंगा फकीर
और हाथ में िाखों की कीमि की चीज शिए हो, अब और है रान हुआ शक इस
पागि ने फेंक क्यों शदया? उसे कुछ बड़ी है रानी हुई। अभी िक िो सोच रहा
था शक इसको पा जाऊंगा िो बहुि कुछ शमि जाएगी, बहुि उपिस्ब्ध हो
जाएगी, अब ऐसा िगा शक एक आदमी ने जब इसे फेंक शदया, िो इसको मैंने
पा भी शिया, िो कौनसी उपिस्ब्ध हुई? जब ऐसे िोग भी जमीन पर हैं जो
इसे फेंक सकिे हैं , और मैंने पा भी शिया िो कौनसी उपिस्ब्ध हुई?

जरूर इससे भी ऊपर कोई उपिस्ब्ध की चीजें होनी चाशहए, नहीं िो इसको
फेंकने िािे िोग नहीं हो सकिे! िह उसने कहा शक मैं जरा भीिर, उसने
स्खड़की से खड़े होकर कहा शक शभक्षु मैं धन्यिाद करिा हं , मैं आया था चोरी
करने, िुमने भें ट कर शदया। क्या इिनी आज्ञा और दोगे शक मैं भीिर आऊं
और पां च क्षर् िुम्हारे पास बैठ जाऊं?

नागाजुयन ने कहा: शमत्र, इसीशिए पात्र बाहर फेंका शक िू भीिर आ सके। िू


भीिर िो आिा, िेशकन चोर की िरह आिा, िो िेरा शचत्त भीिर न आ पािा,
िेरा शचत्त बाहर रहिा। िबड़ाया हुआ आिा, शचत्त िेरा बाहर ही जाने का

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रहिा। िेिा और भागिा। अब िू आएगा, िो शनशिंि आ सकिा है । िुम
भीिर आ जाओ।!

िह चोर भीिर आया। यह आदमी अदभु ि था, है रानी...

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-11

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

ग्यारहिाां प्रिचन

िह िां शि का अनु भि आपके भीिर सत्य की प्यास बन जाए, िो ठीक, अगर


आप समझ िें शक िही सत्य है , िो आप भू ि में पड़ गए हैं और भ्रां शि में पड़
गए हैं । िह सत्य नहीं है । उससे केिि प्यास पै दा होनी चाशहए शक जो इस
व्यस्ि के भीिर उपिब्ध हुआ है , िह मेरे भीिर कैसे पैदा हो जाए? िह
व्यस्ि जो आपके भीिर इस भां शि की प्यास, असंिोष पैदा कर दे िा है ,
ठीक अथों में आपका सहयोगी है । और जो व्यस्ि इस भ्रां शि को पैदा करिा
है शक आपको मैं सत्य दे दू ं गा। उससे बड़ा ित्रु इस जमीन पर आपका दू सरा
नहीं हो सकिा है ।

मेरी दृशष्ट में जो शदखाई पड़िा है , सीखने का मूल्य है । शिसाइपििीप का,


शिष्य होने का मूल्य है । िेशकन गु रु बनाने का कोई मूल्य नहीं है । और गु रु
होना िो बहुि मूखयिापूर्य बाि है । बहुि ईशियाशटक है ।

कोई आदमी इस खयाि में हो शक मैं शकसी का गु रु बन जाऊं, यह आदमी


िो बहुि इम्मैच्ोर है , इसकी िो अभी बुस्ि पररपक्व नहीं हुई, अभी यह बहुि
बच्चे जैसा है । शकसी को नीचे शबठािने का, पैर छु िाने का मजा िेना चाहिा
है , और इसे कोई अथय नहीं। इसकी बािों का कोई बहुि मूल्य नहीं हो
सकिा।

इसशिए मैंने कहा: आध्यास्त्मक जीिन में कोई गु रु नहीं होिा। शिष्य होिे हैं ।
िे भी गुरु से नहीं बनिे, ज्ञान की खोज करिे हैं और जहां से शमि जाए--

ओिो पृष्ठ संख्या 264


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अज्ञाि श्रोिों से, अज्ञाि िोगों से, अज्ञाि िटनाओं से, उनका हृदय खुिा होिा
है और िे िेने को राजी होिे हैं ।

और प्रश्न पूछा है : मेरे खयाल से साधकोां की शभन्न-शभन्न प्रकृशत होती है ।


ज्ञान, भप्ति या कमय से स्व-चेतन में जागरण का होता है , क्ा आप
स्वीकारते हैं ? क्ोांशक भप्ति की अनन्य उपासना से भी साधक स्व-
चेतन पूणयरूपेण जाग्रत होता है ।
मेरी दृशष्ट में कोई ज्ञान, भस्ि और कमय अिग बािें नहीं हैं । ऐसा समझा जािा
रहा है शक िीनों अिग बािें हैं । मेरी दृशष्ट में िीनों बािें अिग नहीं हैं ।

अगर ज्ञान न हो, िो भस्ि अंधी होगी। और अंधी भस्ि कहीं भी नहीं िे जा
सकिी है । अगर भस्ि न हो, िो ज्ञान शबिकुि रूखा और मानशसक होगा,
उसमें कोई गहराई नहीं हो सकिी, हाशदय क उसके भीिर कोई जड़ें नहीं हो
सकिीं। अगर अकेिा कमय हो, भस्ि न हो, ज्ञान न हो, िो कमय अंधा होगा,
रस-िून्य होगा, हृदय-ररि होगा, िैसा कमय भी कहीं नहीं िे जािा है ।

अगर अकेिा ज्ञान हो, कमय न हो, िो िैसा कमय, िैसा ज्ञान िंध्वा होगा, उससे
कोई सृजनात्मकिा, कोई शक्रएशटशिटी पैदा नहीं होिी। िह केिि मानशसक
खयाि होगा। जीिं ि नहीं होगा, शिशिंग नहीं होगा। कमय उसे जीिंि गु र् दे िा
है ।

ये िीनों अिग हैं , यह बाि ही बड़ी गिि है । ये िीनों शबिकुि संयुि और


इकट्ठे हैं ।

ऐसा कोई मनुष्य दे खा है जो केिि हृदय हो? ऐसा मनुष्य नहीं हो सकिा।
हां , कहीं शकसी यं त्र में हृदय को शनकाि कर रखा जा सकिा है और कृशत्रम

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रूप से चिाया जा सकिा है , िेशकन अकेिा हृदय हो ऐसा कोई मनुष्य नहीं
हो सकिा।

ऐसा कोई मनुष्य दे खा है जो अकेिा मस्स्तष्क हो? या ऐसा कोई मनुष्य दे खा


है जो अकेिा कमय हो? ऐसा कोई मनुष्य नहीं होिा।

मनुष्य िीनों का जोड़ है , संयुि समन्वय है ।

आप कहें गे, शकसी में कमय की प्रभािना होिी है , शकसी में ज्ञान की, शकसी में
हृदय की, भाि की। मैं कहं गा, अगर एक भी अंग इनमें से प्रधान है , िो िह
मनुष्य अभी ठीक से संयम को, संिुिन को उपिब्ध नहीं हुआ। अभी िह
आदमी बीमार है । जैसे एक बच्चे का शसर बहुि बड़ा हो जाए और हाथ-पैर
शबिकुि छोटे रह जाएं , जैसे हमारे पंशिि हैं । उनका शसर िो बहुि बड़ा हो
जािा और सब छोटा रह जािा। जैसे शकसी के हाथ-पैर िो बहुि बड़े -बड़े हो
जाएं और शसर शबिकुि छोटा रह जाए, ऐसे हमारे कमययोगी हैं । िे जो
कमयशनष्ठ मािूम होिे हैं , िे हैं ।

और जैसे शकसी में केिि भाि ही भाि रह जाएं , रोिा हो, गािा हो, कशििा
करिा हो और जीिन में कुछ भी न हो। भजन करिा हो, शचल्लािा हो,
कूदिा-फां दिा हो, ऐसे हमारे िथाकशथि भि हैं , कशि। ये जीिन के अपं ग
जीिन के उदाहरर् हैं । ये कोई भी ठीक-ठीक संयम को, संिुिन को, बैिेंस
को, जीिन की शसंशथशसस को उपिब्ध हुए िोग नहीं हैं । ये सब अधू रे शिकास
हैं ।

मेरी दृशष्ट में संपूर्य रूप से मनुष्य का व्यस्ित्व िभी शिकशसि होिा है , जब ये
िीनों एक समिेि स्वर को उपिब्ध हो जािे हैं । जब एक हामयनी को, एक
संगीि को, इन िीनों के भीिर उपिब्ध हो जािा है । िे शकन उस संगीि का
प्रारं भ, न िो मैं मानिा हं ज्ञान है , न मैं मानिा हं भस्ि है , न मैं मानिा हं कमय
ओिो पृष्ठ संख्या 266
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
है । मैं िो ध्यान को मानिा हं । ध्यान िीनों का प्रार् है । अगर कमय में ध्यान हो,
िो कमय करने योग्य हो जािा है । अगर प्रेम ध्यानयुि हो, िो प्रेम भस्ि हो
जािा है । अगर ज्ञान ध्यानपूर्य हो, िो ज्ञान ज्ञानयोग हो जािा है । ध्यान इन
िीनों को जोड़ने िािा सेिु, इन िीनों के भीिर प्रिाशहि होने िािा आं िररक
हृदय है ।

ध्यान न िो ज्ञान है , क्योंशक कोई ग्रं थ पढ़ने से ध्यान नहीं उपिब्ध होिा। और
न ध्यान भस्ि है । क्योंशक शगड़शगड़ाने से और प्राथय ना करने से, नाचने से,
कूदने से और संगीि में अपने को भु िाने से कोई ध्यान उपिब्ध नहीं होिा।
िरन क्या होिा है , िह मैं कहं गा।

और न ही ध्यान मात्र कमय है शक कोई कमयठ हो, सेिा करे या कुछ करे , िो
ध्यान उपिब्ध हो जािा है । ध्यान िो एक अिग शबंदु है , िह िो जीिन में
साक्षीभाि को थथाशपि करने से उपिब्ध होिा है ।

अगर कोई अपने कमय के जीिन में साक्षीभाि को उपिब्ध हो जाए, जो भी


करे , उसका साक्षी भी हो, िो कमय ही धमय का अंग हो जाएं गे । िब सेिा धमय हो
जाएगी। िब जो शकया जा रहा है िह धमय हो जाएगा। जापान में एक साधु था,
शिंची। शकसी ने उससे पूछा शक िुम क्या करिे हो? क्या है िुम्हारी साधना?
क्या है िुम्हारा योग?

शिंची ने कहा: पूछिे हैं क्या करिा हं ? नहीं; धमय मेरे शिए कोई शििेषरूप का
करना या कमय नहीं है , िरन जो भी करिा हं उसे बोधपूियक करिा हं । सु बह
झािू िगािा हं , िो उसे भी बोधपूियक िगािा हं । बगीचे में जाकर गङ् ढा
खोदिा हं , िो उसे भी बोधपूियक खोदिा हं । भोजन करिा हं िो भी और
कपड़े पहनिा हं िो भी। चौबीस िंटे जो भी करिा हं उसे बोधपूियक करिा
हं ।

ओिो पृष्ठ संख्या 267


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
इस बोधपूियक करने में ही कमय ध्यान का शहस्सा हो जािा है । प्रेम हम करिे
हैं , प्रेम अगर बोधपूियक न हो, िो िासना बन जािा है और मोह बन जािा है ।
प्रेम यशद बोधपूियक हो, िो उससे बड़ी मुस्ि इस जगि में दू सरी नहीं है , प्रे म
भस्ि हो जािा है ।

और भस्ि के शिए मंशदर जाने की जरूरि नहीं है । भस्ि के शिए प्रेम का


ध्यानयुि होना जरूरी है । अगर आप अपनी बच्चे को, अपनी पत्नी को,
अपनी मां को, अपने शमत्र को, शकसी को भी प्रेम करिे हैं , अगर िही प्रेम
ध्यान से सं युि हो जाए, अगर उसी प्रेम के आप साक्षी हो जाएं , िो िही प्रे म
भस्ि हो जाएगा। प्रेम जब बोधपूियक हो, िो भस्ि हो जािा है । प्रेम जब
अबोधपूियक हो, िो मोह हो जािा है । ज्ञान जब बोधपूियक हो, िो मुि करने
िगिा है और ज्ञान जब अंधा हो, मूस्च्छय ि हो, िो बां धने िगिा है ।

िैसे ही अगर कोई शिचारों को इकट्ठा करिा रहे , िास्त्र पढ़िा रहे , व्याख्याएं
पढ़िा रहे , शिश्लेषर् करिा रहे , िकय करिा रहे और सोचे शक ज्ञान उपिब्ध
हो गया, िो गििी में है । िैसे ज्ञान नहीं उपिब्ध होिा, केिि ज्ञान का बोझ
बढ़ जािा है । िैसे मस्स्तष्क में कोई चैिन्य का संचार नहीं होिा, केिि उधार
शिचार संगृहीि हो जािे हैं । िेशकन अगर ज्ञान के शबंदु पर ध्यान का संयोग हो,
साक्षी का संयोग हो, िो शफर शिचार िो नहीं इकट्ठे होिे, बस्ल्क शिचार-िस्ि
जाग्रि होना िुरू हो जािी है । िब शफर बाहर से िो िास्त्र नहीं पढ़ने होिे,
भीिर से सत्य का उदिाटन िुरू हो जािा है ।

मेरी दृशष्ट में ध्यान एकमात्र योग है । न िो कमय कोई योग है , न भस्ि कोई योग
है और न ज्ञान कोई योग है । ध्यान योग है । और आपकी प्रकृशि कुछ भी हो,
ध्यान के अशिररि और कोई मागय नहीं है । ध्यान को छोड़ कर जो शकसी भी
मागय को पकड़ने के खयाि में हो, िह भू ि में पड़ जाएगा। भू ि में पड़ना

ओिो पृष्ठ संख्या 268


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सुशनशिि है । क्योंशक िब ध्यान से ररि होकर, अगर उसने कमय शकया, िो
कमय ही उसके अहं कार को मजबूि करने का साधन हो जाएं गे ।

हम जो भी कमय करिे हैं , प्रत्येक कमय की सफििा में हमें रस आिा है । और


असफििा में शिषाद होिा है , दु ख होिा है । यशद ध्यानयु ि कमय न हो िो।

जैसा मैंने दोपहर को कहा: अगर ध्यान उपिब्ध हो िो कमय अनासि हो


जाएं गे । अगर ध्यान उपिब्ध न होगा, िो कमय शकसी न शकसी रूप में आसि
होंगे। और आसि कमय यशद सफि हो, िो सुख शमििा है , असफि हो जाए
िो दु ख शमििा है ।

शफर चाहे िह दु कान हो, चाहे आश्रम हो। शफर चाहे िह पैसा कमाना हो,
चाहे सेिा करना हो। अगर सफििा में सुख शमििा है , असफििा में दु ख
शमििा है , िो कमय हमारा आसि है । और आसि कमय मुस्ि नहीं िा
सकिा। िेशकन ध्यान उपिब्ध हो, िो कमय अनासि हो जाएगा और कमय
मुस्ि िाने का मागय हो जाएगा। िेशकन मूििः मागय होगा ध्यान, कमय नहीं।

अब कोई भस्ि करिा हो, प्राथय ना करिा हो, भगिान के मंशदर में जािा हो,
पूजा करिा हो, गीि गािा हो, नाचिा हो, संगीि में धुन िगािा हो, िह
आदमी मूस्च्छय ि हो जाएगा इन सब बािों से। संगीि मूच्छाय िािा है , इसशिए
सुखद मािूम होिा है । जब आप सं गीि सुनिे हैं , िो उसका रस आपके
भीिर मूच्छाय िािा है । कभी आपने खयाि नहीं शकया। अगर कोई आपसे
कहे शक भोजन करने में खूब रस िो और अच्छे -अच्छे भोजन करो, िो
भगिान शमि जाएगा, िो आप िायद राजी नहीं होंगे शक ऐसे कैसे शमि
जाएगा। अगर कोई कहे शक बहुि अच्छे -अच्छे मखमिी िस्त्र पहनो, उनके
स्पिय का आनंद िो, बहुि बशढ़या गद्दों पर सोओ, बहुि बड़े महिों में रहो, िो

ओिो पृष्ठ संख्या 269


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
भगिान शमि जाएगा, िो आपको शिश्वास नहीं होगा। क्योंशक आप कहें गे शक
यह िो इं शिय सुख है ।

िेशकन संगीि पर आपने खयाि शकया? िह भी कान की इं शिय का सुख है


और कुछ भी नहीं है । भोजन सुख है िह भी इं शिय का है , िस्त्र सुख है िह भी
इं शिय का है , सेक्स सुख है िह भी इं शिय का है , संगीि सुख है िह भी इं शिय
का है । िेशकन संगीि को आप समझिे हैं िह कोई आध्यास्त्मक बाि हो गई।
िह भी आपकी ध्वशन के रस, कान पर पड़ी हुई मधुर ध्वशनयों का रस है ।
उससे आपकी कान की इं शिय प्रभाशिि हो रही है और सुख में जा रही है ।
शफर जब आप शकसी भी चीज में प्रभाशिि होिे हैं , िो िल्लीन हो जािे हैं ।
िल्लीन होने से भ्रां शि पैदा होिी है ।

िल्लीन होने से सारी शदक्कि पैदा होिी है । धमय का संबंध िल्लीनिा से नहीं,
जागरूकिा से है । िल्लीनिा िो एक िरह की मूच्छाय है । िल्लीनिा का अथय
है : दू सरी शकसी बाि में अपने को खो दे ना, भू ि जाना। िह एक िरह की
फॉरगे टफुिनेस है । और जब भी हम शकसी चीज में अपने को भू ििे हैं िो
सुख शमििा है , क्योंशक शदन-राि अपने से ऊबे हैं और परे िान हैं । चौबीस
िंटे की शचंिाएं िबड़ाए हुए हैं , परे िान शकए हुए हैं ।

एक आदमी शसनेमा दे खने चिा जािा है , िीन िंटे भू ि जािा है शक मैं हं । िह


सोचिा है शक कहानी बहुि अच्छी थी शचत्र की, इसशिए बहुि आनंद आया।
असिी आनंद यह नहीं है । असिी आनंद का कारर् यह है शक चौबीस िंटे
की ऊब, बेचैनी, अपने से िबड़ाया हुआ पन, िह िीन िंटे को भू ि गया, उसे
खयाि नहीं रहा शक मैं कौन हं । मैं कौन हं उसे खयाि नहीं रहा िीन िंटे।
इस िीन िंटे के शिस्मरर् ने उसे शचंिा से मुि कर शदया, िह सोचिा है बहुि
आनंद आया। इसशिए सारी दु शनया में िोग िराब पीिे हैं और निा करिे हैं

ओिो पृष्ठ संख्या 270


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िाशक अपने को भूि जाएं । अपने को भू ि जाने में सुख शमििा है । सेक्स का,
कामुकिा का इिना आकषयर् है , क्योंशक हम अपने को भू ि पािे हैं ।

शजन-शजन चीजों से हम अपने को भू ि जािे हैं , उन्ीं-उन्ीं चीजों में रस है ।


अगर भस्ि ध्यानपूियक न हो, िो भस्ि भु िाने का उपाय है , अपने को
भु िाने का उपाय है । आप उिनी दे र अपने को भू ि जािे हैं । और शजिनी दे र
आप अपने को भू ि जािे हैं , उिनी दे र इसी खयाि में न रहना शक आप
परमात्मा के शनकट हैं । क्योंशक जो आदमी अपने को भू ि गया, िह अपने ही
शनकट नहीं, परमात्मा के शनकट कैसे होगा? परमात्मा के शनकट होने के शिए
पहिे अपने शनकट होना जरूरी है । िो जो भी चीज आपको भु िािी है िह
स्वयं से दू र कर रही है , स्वयं के शनकट नहीं िा रही।

धमय का संबंध आत्म-शिस्मरर् से नहीं, सेल्फ-फॉरगे टफुिनेस से नहीं, बस्ल्क


सेल्फ-ररमेंबररं ग, आत्म-स्मरर् से है । शजिना आपको स्व-बोध स्मरर् में
आएगा, उिने ज्यादा आप स्वयं के शनकट और परमात्मा के शनकट होंगे।
शजिना ज्यादा आप अपने को भू िेंगे, उिने ही ज्यादा आप स्वयं से दू र होंगे
और परमात्मा से दू र होंगे।

परमात्मा के शनकट होने का द्वार स्वयं के भीिर है । िह स्व-बोध है । िह


कां िसनेस है । िह जो चेिना है आपके भीिर िह है । इस चेिना को िु बाने
की कोशिि मि कररए। इस चेिना को िु बाने के सब उपाय इं टास्क्सकेंस हैं ,
सब निे हैं । शफर चाहे िह संगीि का हो, चाहे भजन-कीियन का हो, चाहे ...

जब कोई आदमी गां जा पी िे, भां ग पी िे, या मै क्सिीन पी िेिा है , या बहुि


पुराने शदनों में हम सुनिे हैं , सोमरस पी िेिे थे , या अभी अमेररका में नई-नई
ईजादें --शिसशजयक एसीि है , उसको िे िें, या अभी एक नया इं जेक्शन

ओिो पृष्ठ संख्या 271


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उन्ोंने बनाया, मै क्सिीन है , उसका इं जेक्शन िगिा िें, छह िंटे के शिए
आप शबिकुि िल्लीन हो जाएं गे ।

सारी दु शनया के भस्ि-पंथों ने शकसी न शकसी रूप में निे का उपयोग करना
िुरू कर शदया। सं गीि में भी निे की िरकीब शदखाई पड़ी, सारे भस्ि-पंथों
ने संगीि का उपयोग िुरू कर शदया।

शजस चीज में भी भु िाने का उपाय है , उसका उपयोग िुरू हो गया।

ये, ये कोई आप, मैं एक मंशदर में गया था पीछे , िहां मैंने दे खा, सब िरफ से
द्वार बं द हैं , अं दर बहुि धूप जि रही है , दीप जि रहे हैं , उनकी गं ध िेजी से
फैि रही, िेज गं ध भी बेहोि करिी है । इसशिए सारी दु शनया के भस्ि-पंथ
िेज गं ध का उपयोग करिे हैं । गं ध बेहोि करिी है , मूच्छाय िािी है । अगर
बहुि िीव्र गं ध हो, आप मूस्च्छय ि हो जाएं गे । िो िहां िीव्र गं ध है , द्वार सब बंद
हैं , दीिािें बड़ी हैं , कहीं से कोई रास्ता नहीं शनकिने का, गं ध भरी हुई है जोर
से, गं ध मूस्च्छय ि कर रही। शफर जोर से बैंि बजाए जा रहे , संगीि हो रहा, नृत्य
हो रहा है एक पुजारी का, और सारे िोग खड़े हैं मंत्रमुग्ध। मैंने िहां चे हरे
दे खे, िे चेहरे मुझे सब शहप्नोटाइज्ड मािूम हुए, िे सब चेहरे आत्म-सम्मोशहि
मािूम हुए। िे होि में नहीं हैं । और बे होिी का सब इं िजाम है ।

इसको मैं भस्ि नहीं कहिा। इसको कहिे रहे होंगे आप, मैं इसको भस्ि
नहीं कहिा। यह िो सब मूच्छाय है । यह िो अपने को भु िाना है ।

मैं िो भस्ि कहिा हं उस प्रेम को जो ध्यानयुि हो जाए। प्रेम जब ध्यानयु ि


होिा है िो भस्ि बन जािा है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 272


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
रामानुज एक गां ि में गए। एक व्यस्ि ने उनसे आकर कहा शक मुझे ईश्वर को
खोजना है , मुझे भस्ि का कोई रास्ता बिा दें । रामानुज ने उस व्यस्ि को
दे खा और कहा: िुम शकसी को प्रेम करिे हो?

उस आदमी ने सोचा, प्रेम करना िो शिसक्वाशिशफकेिन होगी, यह िो एक


अयोग्यिा होगी। मैं कहं शक मैं प्रेम करिा हं शकसी को, िायद ये कहें गे,
भागो यहां से। अब ये सब प्रेम-िगै रह छोड़ कर आओ, िब भस्ि हो सकिी
है । भगिान को चाहना हो और प्रेम शकए जा रहे हो। िो उसने कहा: मैं िो
कभी शकसी को प्रेम शकया ही नहीं।

िो रामानुज ने कहा: थोड़ा सोचो, शकसी को थोड़ा-बहुि कभी शकया हो?

उसने कहा: आप शबिकुि सच माशनए, रत्ती भर कभी ये प्रेम के झंझट में मैं
पड़ा ही नहीं, मैंने कभी शकसी को प्रेम शकया ही नहीं।

रामानुज ने कहा: शफर एक मौका दे िा हं शक थोड़ा सोचो?

उसने कहा: आप शबिकुि पक्का माशनए। उसने रामानुज के पैर पकड़ शिए
शक आप िक क्यों करिे हैं , मैंने कभी प्रेम, प्रेम का मुझे पिा ही नहीं क्या
होिा है ?

रामानुज ने कहा: मैं बड़ी मुस्िि में पड़ गया। जब िुम्हें प्रेम का ही पिा
नहीं, िो भस्ि का कैसे पिा होगा? िुमने अगर शकसी को प्रेम शकया होिा,
िो िही प्रेम भस्ि बनाया जा सकिा था। िह प्रेम में काफी िाकि थी, उसमें
और ध्यान जोड़ दे िे िो िह भस्ि बन जािा। िेशकन िुम कहिे हो, िुमने प्रेम
ही नहीं शकया, िो अब मैं असमथय हं । अब कुछ भी नहीं शकया जा सकिा।
िुम जाओ, पहिे प्रे म करो। पहिे प्रेम को अनुभि करो।

ओिो पृष्ठ संख्या 273


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मैं नहीं मानिा हं शक आप जो प्रेम करिे हैं िह कोई परमात्मा के शिरोध में है ,
िह भी परमात्मा की शदिा में गशि है और चरर् है । अधूरा चरर् है । पू रा नहीं
है । उस पर ही रुक जाएं गे िो भू ि हो जाएगी। उसके शिरोध में चिे जाएं गे िो
भी भू ि हो जाएगी। िह जो प्रेम हमारे भीिर बह रहा है अभी अंधा है ,
मोहग्रस्त है , उसे ध्यान के द्वारा अंधेपन से और मोह से मुि कर िें, िही प्रेम
पररिुि होकर भस्ि हो जािा है ।

िो शजनको आप प्रेम करिे हैं , उनके प्रशि अगर प्रेम पररिुि हो जाए, उन्ीं
के भीिर भगिान के दियन िुरू हो जािे हैं । भगिान के शिए कोई अिग,
कोई मंशदर बनाने की और मूशिय खड़ी करने की जरूरि नहीं है । यह सब जो
शिभस्ििादी िोगों की करिूि है शक उन्ोंने मंशदर अिग कर शदया है
मकान से और भगिान अिग कर शदया है मनुष्य से। यह बड़ी अजीब बाि
है ।

भगिान अगर है , िो सबमें समाशहि है । िो मैं शजसको भी प्रेम करू


ं , उसके
भीिर भी भगिान है । अगर भगिान कहीं भी है , िो उसके भीिर भी है ।
िेशकन मेरा प्रेम अं धा है , इसशिए िरीर से िौट आिा है । अगर प्रेम जाग्रि हो
जाए, िो उस व्यस्ि के िरीर को पार कर जाएगा और जहां उसकी आत्मा
है , जहां परमात्मा है , िहां िक उसके संपकय िुरू हो जाएं गे । प्रेम में केिि
दे ह शदखाई पड़िी है , िथाकशथि प्रेम में, मोहग्रस्त प्रे म में। और उसी के
भीिर भस्ि उत्पन्न हो जाए, िो दे ह िो शििीन हो जािी और भीिर आत्मा के
दियन िुरू हो जािे हैं ।

प्रेम को गहरा कर िेना भस्ि है । और प्रेम को होिपूियक...

पूर्य मनुष्य का जन्म होिा है । बाकी सब अधू रे मनुष्य होिे हैं । उन सबके
भीिर अपंग स्थथशियां होिी हैं । मनुष्य पूरा होना चाशहए। धमय मनुष्य के भीिर

ओिो पृष्ठ संख्या 274


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पररपूर्यिा के शिकास का शिज्ञान है । कोई अधूरे, अपंग शिकास का नहीं।
पररपूर्य शिकास का। उसका पूरा व्यस्ित्व अपनी पररपूर्य गररमा में प्रकट
होना चाशहए। एक फूि की िरह उसका व्यस्ित्व स्खि जाए। उसमें शजिनी
सुगंध है , सब फैिे।

उसमें शजिना ज्ञान है , िह सब प्रकाि बने। उसमें शजिनी िस्ि है , िह सब


कमय बन जाए। उसके भीिर कोई िस्ि न रह जाए जो शक सेिा में पररशर्ि
न हो। और उसके भीिर कोई ज्ञान की क्षमिा न रह जाए, जो शक ज्योशि न
बन जाए। उसके भीिर कोई भािना न रह जाए, जो शक प्रेम बन कर भस्ि में
पररशर्ि न हो।

पूरा मनुष्य शिकशसि हो िो िही मोक्ष है । मोक्ष मेरे शिए कोई भौगोशिक जगह
नहीं है शक आप कहीं मरें गे और चिे जाएं गे । कोई ज्याग्रशफ में खोजने से
मोक्ष नहीं शमिेगा। और शमि गया, िो िे जो भौशिकिादी हैं , िे अपने यान
िेकर आपसे पहिे िहां पहुं च जाएं गे और आप जो अध्यात्मिादी हैं , अपने
मंशदर में िंशटयां बजािे रहें गे।

कोई भौगोशिक जगि में कोई मोक्ष नहीं है । एक आं िररक शिकास की चरम
अिथथा है । एक मानशसक, आध्यास्त्मक, िारीररक। जो हम जीिन जानिे हैं
उसकी पररपूर्य शिकास का एक शबंदु है , जहां जाकर आपके भीिर सब पूरा
हो जािा है । पूर्यिा मुस्ि है । अपूर्यिा बंधन है । शजिने आप अपूर्य हैं , उिने
बंधे हुए होंगे, उिनी आपकी सीमा होगी। शजिने आप पूर्य होंगे, उिने आप
बंधन के बाहर होंगे।

शजस शदन आप पररपूर्य होंगे शक आपके भीिर अब शिकास के शिए कोई


कोना नहीं रह जाए, अंधकार के शिए कोई थथान न रह जाए, अज्ञान के शिए
कोई शहस्सा न रह जाए, कोई सीमा न रह जाए आपके भीिर, आपकी संपूर्य

ओिो पृष्ठ संख्या 275


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िस्ियां अपनी समग्रिा में शिकशसि हो जाएं , उसी क्षर् आप मुि हो
जाएं गे । पूर्यिा मुस्ि है । और पूर्यिा के शिए बड़ा इं शटग्रे शटि, बड़ा संयुि
मागय है ।

कोई ज्ञान, भस्ि और ये कमय के अिग-अिग मागय नहीं हैं । मागय िो एक है ।


और िह है ध्यान का। िह है होि का। िह है जागृ शि का। िह है आत्म-स्मरर्
का। िह है अिेयरनेस का। िह है अमूच्छाय का। अप्रमत्त शजिने आप होिे
जाएं गे , शजिना होि जगिा जाएगा, उिना ही आपके जीिन में पूर्यिा शनकट
आिी जािी है ।

मेरी दृशष्ट में जो है िह मैंने आपसे कहा। कोई मेरा शकसी भी मामिे में यह
आग्रह नहीं शक मे री बाि को मान िें, आग्रह कुि इिना: उसे शिचार करें ,
सोचें, उसे समझें।

अंशिम एक प्रश्न और, चचाय कर िे िा हं , शफर हम राशत्र के ध्यान के शिए


बैठेंगे ।

ग्रांथगुरु, िरीर, धन, स्त्री, पुत्र, पररिार, भोजन, मकान और सारी


सृशि में हम सांतुशि या लड़ने की, त्यागने की, घृणा या उपलप्ति की िस्तु
न मानें, तो उनके प्रशत हमारा दियन शकस तरह का होना चाशहए,
शजससे दोनोां दोषोां से बच जाएां ।
मैंने कि कहा: संिुशष्ट के शिए, भोग के शिए, सुख के शिए जो आदमी खोज
कर रहा है , िह भ्रां शि में है । और मैंने साथ में यह भी कहा शक उन्ें छोड़ने के
शिए िड़ने में जो िगा है , संिषय कर रहा है , संन्यासी बन रहा है , शिरागी बन
रहा है , िह मनुष्य भी भ्रां शि में है । मागय इन दोनों के बीच में और मध्य में है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 276


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मागय न िो भोग है और न त्याग है । मागय बोध है । न भोग, न त्याग, िरन बोध
की अिथथा है ।

यह पूछा है शक उसके शिए इन सबके प्रशि क्या दृशष्ट रखनी चाशहए?

इन सबके प्रशि िो दो ही दृशष्ट हो सकिी है : या िो भोग की या त्याग की।


अगर आप शफर मु झसे पूछिे हैं शक धन के प्रशि, मकान के प्रशि, स्त्री के प्रशि
क्या दृशष्ट रखनी चाशहए, िो आप शफर दो ही दृशष्टयों में से एक शकसी शिकल्प
को चुनने की कोशिि में िगे हैं । सिाि इनके प्रशि कोई दृशष्ट रखने का नहीं,
सिाि िो अपने प्रशि दृशष्ट रखने का है । अगर स्वयं के प्रशि दृशष्ट का जागरर्
होगा, िो इनके प्रशि जो सम्यक दृशष्ट है िह उपिस्ब्ध हो जाएगी। और अगर
स्वयं का जागरर् नहीं हुआ, िो इनके प्रशि कोई भी दृशष्ट रखी जाएगी, िह या
िो भोग की होगी या त्याग की होगी, दो ही दृशष्टयां हो सकिी हैं । या िो राग
की होगी या शिराग की होगी। या िो पकड़ने की होगी या छोड़ने की होगी, ये
दो ही शिकल्प हैं ।

अज्ञान में दो ही शिकल्प हैं , िीसरा कोई शिकल्प अज्ञान में नहीं है । अज्ञान में
दो ही शिकल्प हैं , या िो पकड़ो या छोड़ो। एक िीसरा शिकल्प ज्ञान का है ,
िेशकन िह अज्ञान में शिकल्प नहीं है । अज्ञान न हो, ज्ञान भीिर हो, िो िीसरा
शिकल्प है । शफर उस स्थथशि में इन चीजों के प्रशि शिचार का भी, क्या दृशष्ट
रखना इसका भी कोई सिाि नहीं उठिा।

एक छोटी सी कहानी कहं , शफर उसे समझाऊं, िो िायद समझ में आ जाए।

एक बहुि अदभु ि व्यस्ि हुआ। बहुि त्यागी था। जीिन भर त्याग शकया।
जीिन भर दृशष्ट को िुि करने की कोशिि की। समस्त पररग्रह छोड़ शदया।
िर-द्वार में कुछ भी न रखा। सारी सं पशत्त थी बां ट दी। शफर िकशड़यां काटने
िगा, उन्ीं को बेच कर जीने िगा। उसकी पत्नी भी थी। िे दोनों िकशड़यां
ओिो पृष्ठ संख्या 277
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
काटिे, िािे, बाजार में बेच दे िे। जो शमििा उससे भोजन कर िेिे, जो बच
जािा, सां झ को उसे बां ट दे िे। राि खािी होकर, उनके पास कोई संपशत्त न
होिी, िे सो जािे।

एक बार ऐसा हुआ शक अनायास िषाय आ गई। पां च-साि शदन िक पानी
पड़िा रहा, िे िकशड़यां नहीं काट सके। पां च-साि शदन उन्ें भू खा मरना
पड़ा। कोई संपशत्त उनके पास न थी। शकसी से मां गने का उनका शनयम न
था। जब पां च-साि के बाद धूप खुिी, िे शफर िकशड़यां काटने जंगि में गए।
जब िे िकशड़यां काट कर भू खे और थके और शसर पर गठररयां बां धे हुए
िौटिे थे , िो रास्ते में एक िटना िटी, िह मैं आपसे कहना चाहिा हं । उसे
थोड़ा दे खने की जरूरि है । क्या उस िटना में िटा। उसके प्रशि थोड़ा बोध
जगाने की जरूरि है ।

जब िे िौटने िगे , पशि आगे है , पत्नी थोड़ी दू र पर पीछे है । पशि ने राह के


शकनारे दे खा शक शकसी राहगीर की स्वर्य की थै िी शगर गई है , उसकी मोहरे
शछिरी हुई हैं , कुछ उसके भीिर हैं । उसके मन में ित्क्षर् खयाि हुआ, मैंने
िो स्वर्य पर शिजय पा िी है , मैंने िो स्वर्य का त्याग कर शदया, िेशकन मेरी
पत्नी है , अज्ञानी है , ज्यादा उसे ज्ञान नहीं, ज्यादा पढ़ी-शिखी नहीं, साि शदन
की भू खी है , थकीमां दी है , िकशड़यां ढोकर आ रही, कहीं मन में उसके मोह
आ जाए शक उठा िें, िो जीिन भर का कष्ट दू र हो जाएगा। कहीं शिचार ही
आ जाए िो व्यथय पाप हो जाएगा। उसने दे खा, पत्नी अभी दू र है , जल्दी से उन
मोहरों को उठाया, गङ् ढे में िाि कर शमट्टी से ढं क शदया, िह ढं क भी नहीं
पाया और पत्नी आ गई। और उसने पूछा, कैसे रुके हो? क्या कर रहे हो?

सत्य बोिने का शनयम था, सत्य बोिने का व्रि था, इसशिए अब असत्य भी
नहीं बोि सकिा था, उसे बिाना पड़ा, उसे कहना पड़ा शक यहां ऐसा हुआ,

ओिो पृष्ठ संख्या 278


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
स्वर्य की मोहरें पड़ी थीं, मेरे मन को हुआ शक मैंने िो स्वर्य पर शिजय पा िी,
मैं िो त्यागी हं , िेशकन िू है अज्ञानी, और िुझे पिा नहीं, िुझे यह पिा नहीं है
शक स्वर्य का मोह अगर मन में पै दा हो जाए, िो पाप हो जाएगा। िू न भी
उठाए िेशकन अगर शिचार भी उठाने का आ गया, िो पाप हो गया। भू खी-
प्यासी है , दु खी-परे िान है , इसशिए मैं ने सोचा, इन्ें ढं क दू ं शमट्टी से िाशक िुझे
शदखाई न पड़े ।

पत्नी ने यह सुना, िह अपनी गठरी िे कर आगे बढ़ गई।

उसके पशि ने पूछा, िूने कुछ कहा नहीं?

दे खा, िो उसकी आं ख में आं सू हैं । िह बहुि है रान हुआ! उसने कहा: रोने
की क्या बाि है ? क्या िेरे मन में मोह आ रहा है शक िे रुपये मैंने क्यों गड़ा
शदए? शमि क्यों न गए? क्या उसकी पीड़ा िुझे हो रही?

उस स्त्री ने कहा शक नहीं, पीड़ा मुझे यह हो रही है , िुम्हें अभी भी स्वर्य


शदखाई पड़िा है ? और िुम्हें शमट्टी पर शमट्टी िाििे हुए िमय नहीं आिी? मैं
िो है रान हो गई! िुम शमट्टी पर शमट्टी िाि रहे हो और कह रहे हो शक मैं सोने
पर शमट्टी िाि रहा हं ! िह स्वर्य िु म्हें शदखाई पड़िा है , जीि अभी पूरी हुई
नहीं।

यह त्यागी दृशष्ट है शक सोने पर शमट्टी िाि दो शक शदखाई न पड़े । िह भोगी की


दृशष्ट है शक शमट्टी पर सोना ढां क िो शक शमट्टी शदखाई न पड़े । त्यागी की दृशष्ट
है , सोने पर शमट्टी िाि दो शक सोना शदखाई न पड़े । भोगी की दृशष्ट है शक जहां
शमट्टी है िहां भी सोने से मढ़ दो शक शमट्टी शदखाई न पड़े । सोना सोना शदखाई
पड़े , शमट्टी शमट्टी शदखाई पड़े । ऐसी उनकी दृशष्टयां हैं । अब यह िीसरी दृशष्ट है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 279


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यह िीसरी दृशष्ट शबिकुि दू सरी बाि है । सोने को छोड़ना नहीं, सोना अथय हीन
हो जाना चाशहए।

एक और छोटी िटना कहं । एक बहुि बड़े फकीर का िड़का था। बड़ी


ख्याशि है उनकी, उनका िड़का था। उस िड़के को हमेिा कहिे थे , गां ि में
कोई िुम्हें कुछ भें ट करे , कुछ करे , िो िाना मि, मु झे सोने-पैसे से बड़ा
शिराग है । िेशकन िह िड़का जािा और कोई उसे भें ट कर दे िा िो िह िे
आिा। िो उसके शपिा ने उसे अिग कर शदया और कहा शक िुम अिग हो
जाओ, िुम मोही हो, पररग्रही हो, िुम चीजों िर िे आिे हो। शपिा ने अिग
कर शदया, िो िह पास में एक झोपड़ा बना कर रहने िगा।

एक नरे ि आिा था उस फकीर के पास, उसने पूछा शक िुम्हारा िड़का


शदखाई नहीं पड़िा? उसने कहा शक मैंने उसे अिग शकया, उसके मन में
बड़ा पररग्रह भाि है । कोई कुछ दे दे िा है , िो िे आिा है ।

उस राजा ने कहा: मैं भी दे खूं। िह एक बड़ा बहुमूल्य हीरा िेकर गया। िह


युिा फकीर उसी फकीर का िड़का था, िह फकीर ही था, िह उस झोपड़े
में बैठा हुआ था, उसके एक-दो भि बैठे हुए थे । इस राजा ने जाकर िह
हीरा उसके चरर्ों में रखा। उस युिा फकीर ने कहा शक िाए भी िो एक
पत्थर िाए, कुछ और िािे िो काम का भी होिा। िो राजा ने सोचा, यह िो
कह रहा पत्थर और इसका शपिा कहिा पररग्रही, कुछ बाि समझ में आिी
नहीं। िो उसने जब िड़के ने इनकार कर शदया, यु िा फकीर ने मना कर
शदया, िो हीरे को उठा कर रखने िगा, िो उस फकीर ने कहा: िेशकन, अब
पत्थर को बोझ यहां िक ढोया, िो िौट कर भी क्यों ढोओगे , छोड़ ही जाओ।
जब पत्थर ही है , िो यहां िक एक िो भू ि की शक बोझ िेकर आए और अब
शफर बोझ िेकर जाओगे । छोड़ दो।

ओिो पृष्ठ संख्या 280


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उसने सोचा शक बड़ा होशियार, बड़ा चािाक मािूम होिा है । बािें फकीरी
की हैं , मन िो भोग िािे का है । शफर भी उसने सोचा, ठीक है , िो उसने कहा:
कहां रख दू ं ? िो िह युिा हं सने िगा, उसने कहा: जब िुम पूछिे हो, कहां
रख दू ं , िो िे ही जाओ, शफर िह पत्थर नहीं है । िुम पूछिे हो, कहां रख दू ं , िो
शफर िे ही जाओ, शफर िह पत्थर नहीं है । िह मे री िरफ से पत्थर है िुम्हारी
िरफ से कुछ और है । िेशकन राजा नहीं माना, सोचा, दे खें िो, उसकी
झोपड़ी में उसके सामने ही खोंस गया। सनोिी की झोपड़ी थी, उसमें रख
गया। और कहा: यह मैं रखे जािा हं ।

िह युिा फकीर हं सिा बैठा रहा। राजा ने सोचा शक मैं गया शक थोड़ी दे र में
िह शनकाि िेगा, िेशकन छह महीने बाद िह आया और उसने आकर पू छा
शक मैं एक भें ट कर गया था, हीरा, िह कहां है ? उस युिा ने कहा शक मैं कभी
शकसी की जीिन में भें ट शिया ही नहीं। िोग िाि जािे हैं िे जाने।

राजा ने सोचा शक मैं समझ गया, यह है िो चािाक पू रा ही। ये सारी बािें


िफ्फाजी हैं । हीरा शनकाि शिया गया। िह गया उसने सनोइयां हठाईं, हीरा
िहीं था।

यह ज्ञानी की दृशष्ट है । एक दृशष्ट भोगी की है , एक त्यागी की है , एक ज्ञानी की


है । ज्ञानी की दृशष्ट बड़ी अिग बाि है । ज्ञानी की दृशष्ट को ही शििरागिा कहा
है । न िह राग है , न शिराग है । िह शििरागिा है । िह दोनों के बाहर हो जाना
है । िेशकन उसमें कोई दृशष्ट नहीं रखनी होिी, उसमें िो स्वयं के बोध को
जगाना होिा है ।

संसार के प्रशि कोई दृशष्ट नहीं बनानी है । संसार के प्रशि कोई भाि नहीं बनाना
है । कोई भी भाि अज्ञान में आप बनाएं गे िह गिि होगा। अपने भीिर स्वयं
के बोध को जगाना है । बोध के जगने पर जो भी होगा, िही ठीक होगा।

ओिो पृष्ठ संख्या 281


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यानी ठीक नहीं शकया जा सकिा अज्ञान में। अज्ञान में कोई भी संबंध ठीक
नहीं हो सकिा है ।

असम्यक दृशष्ट होगी िो सब संबंध असम्यक होंगे, गिि होंगे, शमथ्या होंगे।
दृशष्ट भीिर िुि होगी, ठीक होगी, सम्यक होगी, िो जो भी संबंध होंगे, जो भी
भाि होंगे, जो भी शिचार होंगे जगि के संबंध में, िे ठीक होंगे। सब ठीक
होना दृशष्ट के ठीक होने पर शनभय र है ।

इसशिए मैं यह नहीं कह सकिा शक पत्नी के प्रशि आप क्या भाि रखें। क्योंशक
अगर आप यह भाि रखिे हैं शक पत्नी मेरी पत्नी है िो भू ि है , अगर आप यह
भाि रखिे हैं शक पत्नी िो मेरी मां जैसी है , िो भी भू ि है , क्योंशक जब आप यह
सोचिे हैं शक पत्नी को िो मैं मां जैसा मानूं, िब आप उसे पत्नी जैसा ही मान
रहे हैं ।

अभी मैं एक कािेज में था, एक शप्रंशसपि एक िड़के को समझा रहे थे शक


हर िड़की को अपनी बहन जैसा समझो।

िो मैंने उनसे कहा शक अगर यह कोशिि करके समझे भी शक हर िड़की


मेरी बहन है , िो इस समझने में ही िह गड़बड़ शछपी हुई है । क्यों जब हम यह
कहिे हैं शक हर िड़की मेरी बहन है , िो कहिे क्यों है अगर िह है ? अगर
हम यह कहिे हैं शक हर स्त्री मेरी बहन है , िो इसे कहने की जरूरि क्या है ?

इसके कहने की जरूरि में यह शछपा हुआ है शक हर स्त्री आपकी बहन नहीं
है , िह आपको पिा है । उसे झुठिाने को, उसे शछपाने को आप यह दू सरा
रूप ओढ़ रहे हैं । जब कोई आदमी कहिा है शक यह सब संसार असार है , िो
समझना की अभी उसके मन में सार शछपा हुआ है । इसे बार-बार दोहराने
की कोई जरूरि नहीं है शक संसार असार है । यह अपने को समझाना है ।
एक आदमी रोज सुबह-सुबह बैठ कर िय करिा है शक मैं िो िरीर नहीं हं मैं

ओिो पृष्ठ संख्या 282


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो आत्मा हं । ऐसे समझाने िािे िोग हैं मुल्क में, जो िोगों को समझािे हैं
शक यह शिचार करो शक मैं िो आत्मा हं िरीर नहीं हं ।

एक साधु मेरे पास आए, मैंने उनसे पू छा, आप क्या साधना करिे हैं ? उन्ोंने
कहा: मैं िो यही साधना करिा हं शक मैं िरीर नहीं हं मैं आत्मा हं । मैंने कहा:
अगर यह पिा चि गया, िो इसे दोहरािे क्यों हैं ? और अगर यह पिा नहीं
चिा, िो दोहराने से क्या होगा? और जब आप दोहरािे हैं बार-बार शक नहीं,
मैं िरीर नहीं, मैं िो आत्मा हं , िब मैं समझिा हं शक आप जानिे हैं शक आप
िरीर हैं , िह आपके भीिर शछपी हुई है बाि।

आप जानिे हैं शक मैं िरीर हं , इसको झुठिाने के शिए आप बार-बार दोहरा


कर एक रूप खड़ा कर रहे हैं शक नहीं, मैं िो आत्मा हं । अगर आपको पिा
हो, िो मैं िो नहीं कहिा शक मैं िो दरख्त नहीं हं , यह मैं माइक नहीं हं , यह िो
मैं नहीं दोहरािा। क्योंशक मैं जानिा हं शक मैं नहीं हं ।

शजस बाि को आप जानिे हैं शक आप नहीं हैं , आप कभी कहिे नहीं सुने जािे
शक यह मैं नहीं हं । आप यहां आकर यह नहीं कहें गे शक यह जो पहाड़ है , यह
मैं नहीं हं । कोई कहे गा, आप पागि हो गए, इसे कहने की कोई जरूरि
नहीं। िेशकन आप बार-बार अगर कहिे हैं शक मैं िरीर नहीं हं , िो िक है ,
आपको िरीर होने का िक है ।

जो आदमी कहिा है , सब व्यथय है , जो आदमी कहिा है , यह पैसा-ित्ता सब


जंजाि है , अभी इसे अथय है । यह दोहराना, यह कहना ही, इस कहने में ही
सारी भू ि और भ्रां शि शछपी हुई है । यह शिराग िो है , शििरागिा नहीं है ।

शििरागिा अंिदृय शष्ट के जागने से िुरू होिी है । संसार के प्रशि कोई दृशष्ट
रखने को नहीं कहिा हं , अपनी अंिदृय शष्ट जगाने को कहिा हं । उस जाग जाने
पर जो दृशष्ट होगी, िह सम्यक होगी। उस दृशष्ट में न िो भोग होगा, न राग
ओिो पृष्ठ संख्या 283
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होगा, न द्वे ष होगा, न शिराग होगा। न िो पकड़ होगी, न छोड़ने का आग्रह
होगा। जीिन होगा, सरि जीिन होगा।

स्त्री स्त्री है , पत्थर पत्थर है , मकान मकान है , सब अपने अपने में हैं । आपको
कोई दृशष्ट रखने बड़ी जरूरि नहीं शक िह साथय क है शक शनरथय क है । उस
िि एक सहज जीिन, स्पां टेशनयस िाइफ िुरू होिी है । चीजें जहां हैं िे
िहां हैं , हम जहां हैं हम जहां हैं , और जीिन में िब, हम उनके प्रशि कोई दृशष्ट
बां ध कर नहीं चििे, बस्ल्क सहज जीिे हैं , क्योंशक दृशष्ट हमारी जागी होिी है ।

एक अंधा आदमी की अगर आं खें ठीक होने िगें , िो िह पूछेगा शक जब मेरी


आं खें ठीक हो जाएं गी, िो मैं इस िकड़ी, शजससे मैं अब िक टटोििा था,
इसका कैसे उपयोग करू
ं गा? िो हम उससे कहें गे, िुम शबिकुि पागि हो,
जब आं खें ठीक हो जाएं गी, िो िकड़ी के उपयोग की जरूरि ही नहीं रह
जाएगी, िुम चिोगे , िुम सीधे चिे जाओगे । िह पूछेगा शक जब मेरी आं खें
ठीक हो जाएं गी, िो मैं शकससे पूछूंगा शक दरिाजा कहां है ? हम उससे
कहें गे, िुम शकसी से नहीं पूछोगे , सिाि ही नहीं उठे गा शक दरिाजा कहां है ,
िुम्हें जाना होगा, िुम्हें शदखेगा, िुम शनकि जाओगे ।

अभी हम पूछिे हैं शक संसार के प्रशि क्या दृशष्ट रखें?

अगर ज्ञान जग जाएगा, िो सिाि ही नहीं है शक कौनसी दृशष्ट रखें, आपको


शदखाई पड़े गा, आप िैसा व्यिहार करोगे । दृशष्ट रखने की कोई बाि नहीं है ,
दृशष्ट होनी चाशहए। शकसी चीज के प्रशि कोई भाि बनाने की बाि नहीं, भीिर
अंिदृय शष्ट जागनी चाशहए। िह जागी हो, शफर कोई सिाि नहीं है , कोई पूछना
नहीं है । दरिाजा शदखाई पड़े गा, आप शनकि जाएं गे । हाथ में िकड़ी िेने की
कोई जरूरि नहीं है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 284


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ये सब दृशष्टयां -िगै रह िकशड़यां िेना जैसा है । इनसे टटोि-टटोि कर चििे
हैं , अंधे आदमी हैं , क्या करें , िो इनसे टटोि कर शकसी िरह रास्ता बना िे िे
हैं । शकसी िरह रास्ता बना िेिे हैं , अपनी पत्नी को अपनी पत्नी समझिे हैं ,
दू सरों की पशत्नयों को अपनी बहन समझ कर रास्ता बना िेिे हैं । शकसी िरह
िकड़ी से टटोि िेिे हैं , शकसी िरह शनकि जािे हैं , थोड़ी-बहुि भू ि-चूक
हुई, शफर ठीक रास्ते पर आ जािे हैं । िेशकन आं खें अंधी हैं , टटोि कर
शनकिना पड़िा है । अगर आं खें ठीक हों, िो कोई दृशष्ट बनाने की जरूरि
नहीं।

शकसी की स्त्री को बहन समझने की जरूरि नहीं। कोई सोने को शमट्टी


समझने की जरूरि नहीं। सोने को असार समझने की जरूरि नहीं। सं सार
को माया और शमथ्या समझने की जरूरि नहीं। शदखाई पड़े गा और जीिन
होगा। दृशष्ट होनी चाशहए, िो जीिन सहज हो जािा है । उस पर कोई व्रि और
शनयम नहीं बां धने होिे। शफर िो जीिन सहज होिा है । ठीक-ठीक शदखिा है ,
ठीक-ठीक होिा है । ठीक-ठीक नहीं शदखिा है इसशिए अड़चन है ।

मेरा जोर शकसी भां शि के भाि िेने का नहीं है , अंिभाय ि को जगाने का है ।

मैं समझिा हं मेरी बाि आपको खयाि में आई होगी। अब हम राशत्र के ध्यान
को बैठेंगे ।

थोड़ी सी बािें राशत्र के ध्यान के संबंध में दो बािें समझ िें, सुबह का ध्यान जो
हमने शकया, िह बै ठ कर करने के शिए था। सुबह उठ कर जब आप िर पर
उस प्रयोग को करें गे , िो िह बैठ कर करने का है । राशत्र का ध्यान सोने के
पहिे करने का है जब आप नींद को जाने को हों, अपने शबस्तर पर ही करने
का है । िो सामान्यिया राशत्र का ध्यान िेट कर करना उशचि है । चूंशक यहां
िेटने िायक जगह नहीं होगी, इसशिए हम बैठ कर करें गे ।

ओिो पृष्ठ संख्या 285


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िेशकन िर पर आप जो प्रयोग करें गे िह िेट कर ही करना है । यहां जगह
होिी ज्यादा िो हम सारे िोग िेट कर सकिे थे । िेशकन जगह कम है , इिने
िोगों के िेटने के शिए बहुि जगह चाशहए। और शकसी को छूना नहीं चाशहए।
िो करें गे बैठ कर, िेशकन प्रशक्रया आप समझ िेंगे। अभी राि में जब आप
जाकर अपने शबस्तर पर सोएं , िो िहां उसे दोहरा िें। उसे िेट कर ही करना
है ।

अभी कैसे हम करें गे , िह आप समझ िें। जैसा सु बह मैंने कहा: रीढ़ को


सीधा रखना है , अभी बैठेंगे , इसशिए रीढ़ को सीधा रखेंगे, िेटने में कोई
सिाि नहीं है । दू सरी बाि मैं ने कहा: िरीर को ढीिा छोड़ दे ना है । िेशकन
सुबह के ध्यान में िरीर को सामान्यिया ढीिा छोड़ा था, राशत्र के ध्यान में
चूंशक िेट कर करना है , िरीर को पूरी िरह ढीिा छोड़ दे ना है , उसे पूरा
कैसे ढीिा छोड़ें गे, िह प्रशक्रया मैं आपको बिा दे िा हं ।

िरीर को सबसे पहिे पूरा ढीिा छोड़ दे ना है । और दो शमनट िक शसफय यही


भाि करना है शक िरीर शबिकुि शिशथि हो रहा है । भाि की बड़ी क्षमिा है ।
अगर आप दो शमनट िक शसफय यही भाि करिे रहें शक िरीर शबिकुि
शिशथि हो रहा; िरीर के सारे िनाि शििीन हो जाएं गे , िरीर मुदे की भां शि
पड़ा हुआ रह जाएगा। दस-पां च शदन के प्रयोग में आप पाएं गे शक िह बहुि
सरि बाि है , कशठन बाि नहीं है । पूरे भाि से करें िो आज ही सरि होगी,
इसी िि हो जाएगी।

दो शमनट िक यह भाि करें गे शक िरीर शबिकुि शिशथि हो रहा, मैं दोहरा


दू ं गा शक आपका िरीर शिशथि हो रहा है , आप मे रे साथ सहयोग करें गे और
भाि करें गे शक िरीर शिशथि हो रहा, िो िरीर शबिकुि शिशथि हो जाएगा।
अभी िो हम बैठ कर करें गे । िो अगर िरीर आपका आगे झुक जाए, िो

ओिो पृष्ठ संख्या 286


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफकर न करें , कड़ा नहीं रखना है , उसे ढीिा जाने दे ना है । दू सरी बाि, दो
शमनट के बाद यह भाि करें गे ...

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-12

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

बारहिाां प्रिचन

पूछा है : सत्य के खोजने की आिश्यकता ही क्ा है ? साधना की


जरूरत क्ा है ? ध्यान को करने से क्ा प्रयोजन? जो-जो हमारी

ओिो पृष्ठ संख्या 287


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िासनाएां हैं , इच्छाएां हैं , उनको पूरा करें , िही जीिन है , सत्य को
खोजने इत्याशद की क्ा आिश्यकता है ?
बहुि महत्वपूर्य है । पहिे शदन मैंने यह कहा: सामान्यिया हमारा मन सुख
चाहिा है , िेशकन जो भी हम उपिब्ध करिे हैं उससे सुख शमििा नहीं।
सामान्यिया हमारा मन पद चाहिा है , िेशकन शजस पद पर भी हम पहुं च
जाएं , चाह का अंि नहीं आिा, चाह आगे बढ़ जािी है । सामान्यिया हमारा
मन जो भी चाहिा है िह शमि जाए, िो भी चाह समाि नहीं होिी, चाह आगे
बढ़ जािी है ।

सत्य को खोजने की कोई जरूरि नहीं है । यशद चाहें पूरी हो जािीं, िो सत्य
को कोई भी नहीं खोजिा। अगर संिुशष्ट शमि जािी, सुख शमि जािा, सत्य को
कोई भी नहीं खोजिा। िेशकन जो हमारी सहज चाह है िह शकिनी ही पूरी
हो, िो भी जीिन को अथय और संिोष नहीं शमििा। इसी पीड़ा, इसी ददय , इसी
परे िानी से ऊब कर मनुष्य संिुशष्ट से हटिा है और सत्य की खोज में िगिा
है । शकसी के कहने से कोई सत्य की खोज में नहीं िगिा, उसके जीिन का
अनुभि ही उसे उस िरफ िे जािा है ।

और हम शिचार करें गे िो है रान होंगे, हमारा मन सहज रूप से इसमें


सहयोगी है , सत्य की खोज में हमारा मन सहज रूप से सहयोगी है ।
सामान्यिया आपने सुना होगा, मन बड़ा चंचि है , और मन की चंचििा को
बहुि गाशियां भी दी जािी हैं , बहुि बुरा भी कहा जािा है । मैं नहीं कहिा हं ,
मैं मन की चं चििा को बहुि बुरा नहीं कहिा। क्योंशक मन अगर चं चि न हो,
िो सत्य की खोज संभि ही नहीं होगी।

अगर मन चंचि न हो, िो शजस चीज में भी इच्छा िगे गी मन िहीं अटका रह
जाएगा। िेशकन मन कहीं भी नहीं अटकिा, सब चीजों को व्यथय कर दे िा है

ओिो पृष्ठ संख्या 288


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और शफर आगे मां गने िगिा है शक और आगे िे चिो। मन कहीं शटकिा
नहीं; नहीं िो आपने न मािूम शकस गं दगी के ढे र पर उसे िगाया शदया होिा
और मन िहीं शटक जािा अगर िह चं चि न होिा।

आपने धन में िगाया होिा, मन धन में ही शटक जािा। शफर िह धन से कभी


हटिा ही नहीं। िेशकन आप शकिने ही धन में िगाएं , मन और ज्यादा धन की
मां ग करने िगिा है । उिना धन शमि जाए, िो और ज्यादा की मां ग करने
िगिा है । मन की मां ग और ज्यादा के शिए है । और और ज्यादा का कोई
अंि नहीं आिा। आप शकिने ही पा जाएं , िो और ज्यादा चाशहए।

मन कहीं रुकिा नहीं आपको और आगे बढ़ािा है । एक सीमा आिी है मन


की इस दौड़ की शक आप िबड़ा कर सजग, जाग जािे हैं शक यह क्या है ?
यह और ज्यादा की दौड़ क्या है ? यह कहां अंि होगी?

यह कहीं अंि नहीं हो सकिी। और िब आपको िगिा है शक यह दौड़ िो


कुछ अंधी है , इसका कोई अंि नहीं। शजस रास्ते पर हम चि रहे हैं यह कहीं
भी नहीं पहुं चेगा।

बच्चों की एक छोटी से शकिाब है : अिाइस एं ि िंिरिैंि। छोटी सी शकिाब


है , और बच्चों की शकिाब है , िेशकन बूढ़े भी उसे समझ िे, िो कशठन है । बाि
बहुि सरि सी है उसमें। कहाशनयां हैं छोटी-छोटी। उसमें एक छोटी सी
कहानी है ।

अिाइस नाम की िड़की है , िह पररयों के मुल्क में चिी गई। िो जमीन से


पररयों के मुल्क िक की यात्रा बड़ी िंबी। बहुि थक गई, बहुि परे िान हो
गई, क्ां ि हो गई, भू ख िग आई। जब िह पररयों के दे ि में पहुं ची, िो बड़ा
सुंदर दे ि था, दू र िक हररयािी थी, पहाड़ी झरने थे , सुंदर रास्ते थे , उसमें
एक झाड़ के नीचे पररयों की रानी को खड़े दे खा। उसके हाथ में बड़े थाि हैं ,

ओिो पृष्ठ संख्या 289


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
उनमें बड़ी शमठाइयां हैं , फि हैं , फूि हैं । उसे भू ख िग रही। थोड़ी ही दू र पर
झाड़ के नीचे एक छाया में रानी खड़ी है और िह रानी उसे बुिा रही है शक
आओ।

अिाइस ने दौड़ना िुरू शकया, सुबह थी, सूरज ऊग रहा था, अिाइस दौड़ने
िगी। पास का ही झाड़ था, काफी दौड़ी, शफर उसने खड़े होकर दे खा, झाड़
उिना ही दू र है शजिना पहिे था। उसने शचल्ला कर पूछा--ज्यादा दू र नहीं
था, शचल्ला कर पू छ सकिी थी, इिना ही फासिा था--उसने शचल्ला कर
पूछा, मामिा क्या है ?

रानी ने कहा: मामिा मि पूछो, दौड़ी आओ।

उसने शफर दौड़ना िुरू कर शदया। दोपहर हो गई, सूरज ऊपर आ गया,
पसीना छूटने िगा, उसने खड़े होकर दे खा, िह झाड़ उिने के उिने दू र है ।
िह रानी िहीं खड़ी है और कहिी है , आ जाओ।

उसने शफर पूछा, यह मामिा क्या है ? मैं दौड़िी हं , पहुं चिी नहीं।

रानी ने कहा: यह मि शफकर करो, िुम िो दौड़ो।

िह दौड़ने िगी, सां झ हो गई, सूरज ढिने िगा, अंधेरा होने िगा। उसने
शचल्ला कर पूछा, अब िो यह शबिकुि पागिपन हो गया। मैं दौड़ी जा रही हं
और सूरज भी िूबने िगा, अंधेरा भी आने िगा, झाड़ उिने ही दू र है । उसने
उस रानी से पूछा, क्या िुम्हारे मुल्क में रास्ते कहीं पहुं चािे नहीं? उस रानी ने
कहा: शकसी मुल्क में रास्ते कहीं नहीं पहुं चािे। िुम्हारी जमीन पर भी नहीं
पहुं चािे।

रास्ते कहीं नहीं पहुं चािे, इससे िबड़ा कर सत्य की खोज िुरू होिी है । यह
शकसी के सीखने शसखाने की बाि नहीं है । जब आपको यह शदखाई पड़िा है

ओिो पृष्ठ संख्या 290


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शक कोई रास्ता कहीं नहीं पहुं चािा, जब सब रास्ते व्यथय हो जािे हैं , िो शफर
एक ही रास्ता और खुिा रह जािा है जो भीिर जािा है । सब रास्तों से ऊबा
और असंिुष्ट हो गया व्यस्ि एक रास्ते में और खोजिा है जो भीिर जािा है ,
िायद िहां कुछ शमि जाए।

भीिर की खोज सत्य की खोज है , बाहर की खोज संिुशष्ट की खोज है । और


यह जो चंचि मन है , यह सहयोगी है , यह कहीं रुकने नहीं दे िा, यह कहीं
ठहरने नहीं दे िा।

मैंने कहना िुरू शकया है , मन की चंचििा िभी समाि होिी है जब हम िहां


पहुं च जािे हैं जहां पहुं चने में जीिन का अथय उपिब्ध होिा है , उसके पहिे
मन की चंचििा नष्ट नहीं होिी। उसके पहिे शजसकी मन की चंचििा नष्ट
हो गई, िह जड़ हो जाएगा, उसके जीिन में गशि शििीन हो जाएगी।

एक राजा हुआ शमश्र में। एक फकीर था। उसे आदर करिा था, िो कभी-
कभी फकीर के पास शमिने जािा था। एक शदन दोपहर में राजा फकीर से
शमिने गया। फकीर का छोटा सा खेि था, बशगया थी, िहीं फकीर काम
करिा था, ऊब जािा था मेहनि से।

जब राजा पहुं चा, िो फकीर िो नहीं था, एक और छोटा युिा शिष्य बैठा हुआ
था। राजा ने कहा शक जाओ अपने गु रु को ढूंढ़ िाओ, बुिा िाओ। िो उस
शिष्य ने कहा शक आप बैठ जाएं , मैं बुिा िािा हं । खेि की मेंड़ थी, शमट्टी थी,
इस पर बैठ जाएं झाड़ के नीचे मैं बुिा िािा हं । राजा ने कहा: िुम बुिा
िाओ, मैं यहीं टहिूंगा। िह उस शमट्टी पर टहिने िगा। युिा ने सोचा, िायद
शमट्टी पर बैठना उसे पसंद नहीं, उसने राजा से कहा, आप झोपड़े के भीिर
आ जाएं । झोपड़े के भीिर राजा चिा गया। उसने एक चटाई िाि दी और

ओिो पृष्ठ संख्या 291


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कहा शक बैठ जाएं । राजा ने कहा शक िुम जाओ, बुिा िाओ, मैं टहिूंगा। िह
उस झोपड़ी की दहिान में िूमने िगा।

िह युिा बहुि है रान हुआ। या िो राजा का शदमाग गड़बड़ है । िहां बै ठ


जाओ, नहीं बैठा; झोपड़े में भीिर िाया, कहा, बैठ जाओ, उसने कहा शक
िुम जाओ, मैं यहीं टहििा हं । िह उस छोटी सी दहिान में टहिने िगा।

युिा दौड़ा हुआ गया, पीछे खेि से, बगीचे से फकीर को बुिा कर िाया।
रास्ते में उसने कहा: यह राजा का शदमाग कुछ ठीक नहीं मािूम होिा। मैंने
कई दफे कहा, बै ठ जाओ, िह कहिा है , िुम जाओ, बुिा िाओ और टहिने
िगिा है , बैठिा नहीं है । िह फकीर हं सने िगा, उसने कहा: राजा का
शदमाग खराब नहीं, हमारे झोपड़े में उसके बैठने िायक कोई थथान ही नहीं
है । शसंहासन चाशहए उसे। िह होिा, िो िह बैठ जािा। शमट्टी पर, मेंड़ पर
नहीं बैठिा, झोपड़े में गं दी चटाई है उस पर नहीं बैठिा, असि में उसके
बैठने िायक कोई जगह नहीं है ।

और उस फकीर ने कहा: स्मरर् रखो, ऐसा ही मन है । मन भी कहीं नहीं


बैठिा, शसिाय परमात्मा के। कहीं भी शबठाओ, िह नहीं बैठेगा। सत्य के
शसिाय मन और कहीं नहीं बैठेगा, उसके पहिे उसका चिना चििा ही
रहे गा, िह चंचि बना रहे गा, यहां से िहां िोिेगा, िहां से यहां िोिेगा।

मन िहीं बैठिा है जहां परम िृस्ि का शबंदु आ जािा है । और उस परम िृस्ि


के शबंदु को ही मैं सत्य कह रहा हं । हां , मैं कहं इसशिए कोई सत्य की खोज
नहीं करिा, न कोई और आपसे कहे िो सत्य की खोज होिी है । सत्य की
खोज की िरफ आप शनरं िर अपनी ही िासनाओं के कारर् पहुं चिे हैं ।
आपकी ही इच्छाएं , िासनाएं , आपके ही फ्रस्टर े िंस, आपकी ही अिृस्ियां ,
असंिोष, आपकी ही असफििाएं , िासना के जगि में कोई रास्ता कहीं नहीं

ओिो पृष्ठ संख्या 292


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
पहुं चािा यह अनु भि, आपको शनिाय सना के जगि में िे जाना िुरू कर दे िा
है ।

बाहर की सारी दौड़ व्यथय हो जािी है , िो अंिस में जाने का प्रश्न और शिचार
और शजज्ञासा खड़ी होिी है । कोई दू सरा आपको यह नहीं शसखा सकिा।
शकिना ही कोई िास्त्र पढ़ाए, शकिना ही कोई समझाए, शकिने ही उपदे ि
करे , नहीं समझा सकिा। जीिन का अनुभि।

इसशिए मैंने कहा: सत्य की खोज के शिए खुिी हुई आं खें होनी चाशहए। खुिी
हुई आं खों से मििब है : जीिन के अनुभि को दे खने की क्षमिा होनी
चाशहए। चारों िरफ यशद हम दे खेंगे, िो िह अनुभि अपने जीिन में दे खेंगे,
िो िह अनुभि, सारे अनुभि इकट्ठे होकर मनुष्य को सत्य की खोज में
अग्रसर करिे हैं ।

शफर आप पूछिे हैं : हम सत्य को क्यों खोजें?

मैं नहीं कहिा शक आप खोजें। मैं नहीं कहिा शक आप खोजें। िेशकन शफर
आप क्या खोजेंगे? आप कहिे हैं हम सत्य को क्यों खोजें? मैं नहीं कहिा
आप खोजें। िेशकन शफर आप क्या खोजेंगे? संिुशष्ट खोजेंगे; संिुशष्ट को
खोज-खोज कर पाएं गे शक नहीं शमििी, शफर क्या करें गे ? शफर सत्य को
खोजेंगे।

संिुशष्ट जहां असफि हो जािी है िहीं सत्य की खोज िुरू हो जािी है । सुख
की खोज जहां असफि हो जािी है , पूर्यिया असफि हो जािी है , िहीं सत्य
की खोज िुरू हो जािी है । इसमें कोई शकसी के शसखाने की बाि नहीं। मैं
शकसी से नहीं कहिा शक सत्य खोजें । मैं िो यही कहिा हं शक जो आपको
ठीक िगे , उसी को खोजें। िेशकन आं खें खुिी रखें, अंधे होकर न खोजें। जो
आपको ठीक िगे--िासना ठीक िगे , िासना खोजें; सुख ठीक िगे , सुख

ओिो पृष्ठ संख्या 293


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
खोजें, िेशकन आं ख खुिी रखें। अगर आं ख खुिी रही, िो बहुि शदन िक
सुख नहीं खोज सकिे हैं ।

रामकृष्ण परमहं स के जीिन में एक अदभु ि िटना है । केििचंि, बंगाि के


एक बड़े शिचारक थे , िाशकयक थे, बड़े बुस्िमान आदमी थे । बंगाि में या इस
भारि में कम ही ऐसे िोग पैदा शकए शजनकी ऐसी प्रशिभा और शिचार थे । बड़े
िकयकुिि थे, शजस बाि में िग जाएं , शजस बाि का समथय क करें , उसका,
उसका शिरोध करने की सामथ्यय शकसी में बंगाि में नहीं थी। बड़ा अदभु ि
पैना िकय था। िोगों ने केििचंि को कहा शक कभी रामकृष्ण के पास चिें, िे
बड़ी ईश्वर की, बड़ी आत्मा की बािें करिे हैं , जरा उनका खंिन करें िो मजा
आ जाए। केिि ने कहा: चिो।

सारे किकत्ते में खबर फैि गई। जो भी शिचारिीि उत्सुक िोग थे िे


दशक्षर्ेश्वर में जाकर इकट्ठे हो गए, फजीहि दे खने को। और रामकृष्ण बेपढ़े -
शिखे, रामकृष्ण गां ि के गं िार थे । केिि प्रशिभा का धनी था, िकयकुिि था।
िोगों ने कहा: बहुि आनंद आएगा; रामकृष्ण की क्या-क्या फजीहि होगी,
दे खेंगे।

बहुि िोग इकट्ठे हो गए। रामकृष्ण को िोगों ने कहा शक बड़ी मुस्िि होने
िािी है , केिि आिे हैं शििाद करने को। और बहुि िोग दे खने को आिे हैं ।

रामकृष्ण खूब हं सने िगे , उन्ोंने कहा: हम भी दे खेंगे। फजीहि होगी िो


मजा हमको भी आएगा। जब इिने िोगों को फजीहि में मजा आएगा, िो
हमको क्यों नहीं आएगा, हमको भी बहुि मजा आएगा। उन िोगों ने कहा: ये
िो हैं पागि, ये समझिे नहीं शक मििब क्या है ।

केिि आए, बड़ी भीड़ साथ आई। किकत्ते के बड़े शिचारिीि, िाशकयक,
सारे िोग इकट्ठे थे । रामकृष्ण के भि बड़े िबड़ाए हुए। रामकृष्ण बड़े प्रसन्न
ओिो पृष्ठ संख्या 294
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
थे शक जब इिने िोग आ रहे हैं , िो जरूर कोई मजे की बाि होगी ही। शफर
केिि ने शििाद िुरू शकया। केिि ने कहा: ईश्वर-िगैरह कुछ भी नहीं है ।
और बड़े िकय शदए। जब केिि िकय दे िे थे , िकय पूरा होिा था, रामकृष्ण खड़े
होकर केिि को गिे िगा िेिे थे शक शकिना अदभु ि, शकिनी अदभु ि बाि
कही।

एक-दो दफे हुआ, केिि हिप्रभ हो गए शक यह िो बड़ा मुस्िि मामिा है ।


यह आदमी शिरोध करिा नहीं, उिटा हमको गिे िगािा है । और िोग जो
दे खने आए थे मजा, िे भी शनराि हो गए शक इसमें िो कोई मििब ही नहीं,
यहां एक ही पाटी है , दू सरी पाटी िो मौजूद नहीं है । िहां बड़ी उदासी फैि
गई। प्रसन्न अकेिे रामकृष्ण थे ।

जो सब प्रसन्न होने आए थे, सब दु खी हो गए। िे जो सब प्रसन्न होने आए थे , िे


सब दु खी हो गए। प्रसन्न अकेिा एक ही आदमी था, िह रामकृष्ण था।
केििचंि शिरोध का िकय दे िे, िे खड़े होकर गिे िगािे और कहिे, कैसा,
कैसा अदभु ि! जब सारी बािें पू री हो गईं, केिि को कुछ कहने को भी न
सूझा शक अब क्या करें क्या न करें ? दू सरा आदमी शिरोध करे , िो बाि आगे
बढ़े । बाि आगे बढ़े कैसे? िो रामकृष्ण ने कहा: क्यों, क्या बाि पूरी हो गई?
केिि ने कहा: हां , जो मुझे कहना था, मैंने कह शदया।

रामकृष्ण खड़े हुए, बोिे, अब मैं कुछ कहं : हाथ जोड़े भगिान के और कहा:
कैसा अदभु ि है परमात्मा! ऐसी बुस्ि भी िू पैदा करिा है ! और केिि को
कहा: शिश्वास मान केिि, िू ज्यादा शदन नास्स्तक नहीं रह सकेगा। ऐसी बुस्ि
जहां है , िहां नास्स्तकिा शकिनी दे र शटकेगी? िू ज्यादा शदन नास्स्तक नहीं
रह सकेगा। ऐसी बुस्ि जहां है , ऐसा शििेक जहां है , िहां िू ज्यादा दे र िक
नास्स्तक नहीं रह सकेगा। अदभु ि है , मैं िो खूब प्रसन्न हो गया। परमात्मा के

ओिो पृष्ठ संख्या 295


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
गु र् मैंने बहुि दे खे--फूिों में दे खे, िृक्षों में दे खे, पहाड़ों में दे खे, नशदयों में
दे खे; आज मनुष्य में दे खा है । ऐसी प्रशिभा, शबना परमात्मा के ऐसी प्रशिभा हो
ही कैसे सकिी है ?

रामकृष्ण ने कहा: ऐसी प्रशिभा हो िो बहुि शदन नास्स्तक नहीं रह सकिे।

मैं भी आपसे कहिा हं , शििेक हो, िो बहुि शदन संिुशष्ट की खोज नहीं कर
सकिे। सत्य की खोज अशनिायय है । िो मैं नहीं कहिा शक सत्य की खोज करें ।
मैं िो इिना ही कहिा हं , शििेक जाग्रि हो, होि जाग्रि हो। शफर जो आपको
करना है करें । जहां जाना है जाएं । जो आपका मन हो करें । कोई अंिर नहीं
पड़िा शक आप कहां जािे हैं । मैं आपसे नहीं कहिा शक मंशदर जाएं , मैं नहीं
कहिा शक कोई सत्य की खोज मैं कोई शििेष काम करें ।

मैं इिना ही कहिा हं , होि जाग्रि रखें।

होि जाग्रि होगा, िो आज नहीं कि, आपकी जो संिोष की, सुख की,
िासना की खोज है िह व्यथय हो जाएगी और उसकी जगह थथाशपि हो जाएगी
सत्य की खोज। िह आपके अनुभि से थथाशपि होिी है शकसी की शिक्षा और
उपदे ि से नहीं।

बहुत महत्वपूणय है । पूछा है शक मनुष्य का मन तो शिचारोां का प्रिाह है ।


शिचारोां के इस प्रिाह को क्ा जप के द्वारा रोका जा सकता है ? बहुत
लोगोां का अनुभि है शक जप के द्वारा शिचार का प्रिाह रुकता है और
प्रबुद्ध चेतना की प्तथथशत उपलि हो जाती है ।
यह पूछा है , महत्वपूर्य है । समझना चाशहए। मैंने कि कहा: मनुष्य के मन में
शसिाय साक्षीभाि के और सारी शक्रयाएं मानशसक हैं । शसिाय साक्षीभाि को

ओिो पृष्ठ संख्या 296


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
छोड़ कर बाकी मन की सारी शक्रयाएं मानशसक हैं , में टि हैं । यशद उनमें से
कोई भी शक्रया की गई, िो मन के बाहर नहीं जाया जा सकिा है । िह कि
शिस्तार में मैंने आपको समझाया। मन के बाहर जाना हो, िो मन की शकसी
शक्रया का सहारा नहीं शिया जा सकिा। जप मन की शक्रया है ।

एक आदमी राम-राम या ओम या नमोकार या कोई और का जप करे ,


शनरं िर एक बाि को दोहराए, जरूर पररर्ाम होंगे, िे शकन पररर्ाम में ध्यान
नहीं आएगा, पररर्ाम में आएगी मूच्छाय ; पररर्ाम में आएगा, आत्म-
सम्मोहन, ओटो-शहप्नोशसस, आप मू स्च्छय ि हो जाएं गे । िो मूस्च्छय ि होने का
शनयम समझ िें, िो जप को भी आप समझ िेंगे। और शजिने िोगों को यह
खयाि है शक जप से कोई सत्य के दियन होिे हैं , गििी में हैं । जप से दिय न
सत्य के नहीं होिे, केिि गहरी प्रसुस्ि के दियन होिे हैं , गहरी नींद के दियन
होिे हैं । उस गहरी मूच्छाय के बाद आपको िगिा है शक बड़ा सुख शमिा। सु ख
शमििा नहीं, मात्र शचंिा, दु ख का बोध शििीन हो जािा है ।

एक आदमी के पैर में फोड़ा हो, अगर िह शकसी भां शि यह भू ि जाए शक मेरे
पैर में फोड़ा है िो उसे बड़ा सुख शमिेगा, िेशकन इस सुख में और फोड़े के
शमट जाने में बड़ा भे द है ।

िो ऐसी िरकीबें हैं शक हम जीिन के दु ख को भू ि जाएं । जीिन के दु ख को


भू ि जाना और जीिन के दु ख के शमट जाने में बहुि भे द है । जप उसी िरह
की िरकीब है मूच्छाय की। कैसे जप से मच्छाय आिी है , िह मैं आपको
समझाना चाहं गा।

एक छोटा सा बच्चा राि में न सोिा हो, िो उसकी मां िोरी गाकर उसे सुिा
दे िी है । एक गीि गाकर सुिा दे िी है । गीि में एक कड़ी होिी है या दो कड़ी
होिी है । एक ही कड़ी को बार-बार दोहराने से िायद मां यह सोचिी हो शक

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
संगीि के प्रभाि में बच्चा सो रहा है , िो गििी में है । एक ही कड़ी को बार-
बार दोहराने से बोिय म पैदा होिी है , ऊब पैदा होिी है , िबड़ाहट पै दा होिी
है । ऊब के कारर् नींद आ जािी है । शचत्त की जो सजगिा है िह क्षीर् हो
जािी है । िो बच्चे को जब एक ही एक कड़ी दोहराई जािी है िो िह सोने
िगिा है ।

शजन सभाओं में कोई व्यस्ि एक ही एक ही बाि को बार-बार एक ही टोन में


बोििा जाए, िहां बहुि से िोग सोने िगिे हैं । शफर िह बोिने िािा आदमी
उनको दोष दे गा शक आप सो रहे हैं , मैं बड़ी ऊंची बािें कह रहा हं । जब शक
दोष बोिने िािे का ही होगा, सोने िािों का नहीं। कोई इस ढं ग से बोि रहा
है शक एक ही बाि को बार-बार दोहरा रहा है , उस दोहराने का, ररपीटीिन
का पररर्ाम होिा है शक सुनने िािे का मस्स्तष्क सजगिा खो दे िा है , िि हो
जािा है , सोने िगिा है ।

सारी दु शनया में शहप्नोशटस्टों ने, सम्मोहकों ने, मैस्मेररजम िािों ने, शकसी भी
चीज को बार-बार दोहरा कर िोगों को मूस्च्छय ि करने के उपाय शनकािे हैं ।
आप शकसी भी चीज को बार-बार दोहराए जाएं , आप मूस्च्छय ि हो जाएं गे ।

राम-राम बार-बार दोहराए जाएं , आप मूस्च्छय ि हो जाएं गे । क्योंशक शचत्त की


सजगिा निीन के कारर् होिी है । जब कोई निीन चीज सामने खड़ी हो,
शचत्त सजग होिा है । और जब िही-िही चीज बार-बार सामने खड़ी हो, शचत्त
उसमें अथय खो दे िा है , रस खो दे िा है , ईंटरेस्ट खो दे िा है । इं टरेस्ट के खोने की
िजह से नींद आ जािी है ।

जो जप आपके मस्स्तष्क को शिकशसि नहीं करिा, िि करिा है , नींद में िे


जािा है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आपने कभी जप करने िािे व्यस्ि के भीिर शकसी बड़ी अिौशकक प्रशिभा
के कोई दियन कभी नहीं शकए होंगे। असि में अगर आदमी मूढ़ न हो, िो
एक ही बाि को बहुि बार-बार दोहरा नहीं सकिा। ये स्टु शपशिटी के िक्षर्
हैं । एक आदमी बैठा है और एक ही बाि को बार-बार दोहराए चिा जा रहा
है , एक आदमी बै ठा है और मािा को फेरे चिा जा रहा है , ये शकसी न शकसी
रूप में बुस्िमत्ता के नहीं, बुस्ि के अभाि के िक्षर् हैं । इनसे कोई मनुष्य के
भीिर बुस्ि का शिकास नहीं होिा। इसशिए आप दे खेंगे, जपत्तप करने िािी
कौमें उन कौमों से पीछे शपछड़ गई हैं समस्त प्रशिभाओं में शजन कौमों ने
कोई जपत्तप नहीं शकया।

आप अपने ही मु ल्क को िे िें, आपका मुल्क आज इस समय दु शनया में


प्रशिभा की कमी का नमूना है । शपछड़े हैं हर बाि में। शपछड़े होने का कारर्
है । जीिन की समस्याओं को जीना नहीं चाहिे, भु िाना चाहिे हैं । कोई
िरकीब शमि जाए, कोई एस्केप शमि जाए, शकसी भां शि हम भू ि जाएं शक
शजंदगी में कोई समस्या है । यह हमारी प्रिृशत्त है । इससे बचने के शिए कोई न
कोई इं टास्क्सकेिन, कोई मच्छाय की दिा, कोई नींद की दिा हम खोजिे हैं ।
यह जप भी नींद की दिा है । नींद न आिी हो, बड़ा सहयोगी है । होि बना हो,
उसको शमटाने के शिए बड़ा सहयोगी है । बुस्ि िकिीफ दे िी है , क्योंशक
बुस्ि हो िो शचंिा होिी है , शिचार होिे हैं । बुस्ि ही न हो, िो न शचंिा होगी, न
शिचार होंगे।

िो आपने जो कहा है शक शिचार-प्रिाह को शमटाने में जप सहयोगी है ।

शनशिि सहयोगी है । क्योंशक अगर बुस्िहीन हो, िो शिचार कहां होंगे। िेशकन
मैं जो कह रहा हं शक शिचार से मुि होना चाशहए, िह शिचार का, प्रिाह का
इस भां शि नष्ट होना नहीं है शक आप जड़बुस्ि हो जाएं । शिचार िून्य होने
चाशहए, चेिना जाग्रि होनी चाशहए। शिचार दो िरह से िून्य होिे हैं : चेिना
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जड़ हो जाए, िो भी शिचार िून्य हो जािे हैं और चेिना मुि हो जाए, िो भी
शिचार िून्य हो जािे हैं । चेिना को जड़ करके शिचार िून्य नहीं होना है ,
शिचार मुि होना है । िो शकसी िरह का ररपीटीिन, पुनरुस्ि मस्स्तष्क को
शिकशसि नहीं करिी, न कर सकिी, न कोई कारर् है ।

कभी सोशचए थोड़ा सा, एक आदमी बैठा है --एक एक एक दोहराए जा रहा है


या राम-राम दोहराए जा रहा है , इस दोहराने से मस्स्तष्क का शिकास कैसे हो
जाएगा? इस दोहराने से कैसे प्रशिभा जग जाएगी? इस दोहराने से क्या
होगा? इस दोहराने से केिि इिना होगा शक चूंशक अब िह एक ही बाि
दोहराए जाएगा।

अभी मैं एक जगह था, और एक व्यस्ि को मेरे पास िाया गया। शकसी साधु
के, शकसी गु रु के चक्कर से उसका जीिन बबाय द हुआ। बहुि िोगों का
बबाय द हुआ है । बहुि िोगों का बबाय द हो रहा है और आगे भी होिा रहे गा।
क्योंशक यह परं परा इिनी ज्यादा गहरी हमारे मन को पकड़े हुए है , उसे
शकसी ने कहा होगा शक राम का जप करो, इससे सत्य शमि जाएगा।

िोभ मन को पकड़ िेिा है शक जब राम ही के जप करने से सत्य शमि


जाएगा, िो कौन पागि छोड़े , काम ही कौन बढ़ाए। िोभ मन में है , सोचा,
ठीक है , राम का जप करो। उसने कहा शक सिि, अखंि जप करो। कोई भी
काम करिे रहो, मन में राम-राम करिे रहो।

मन में राम-राम उसने िुरू कर दी। कोई भी काम करिा, भीिर मन में
राम-राम चिाए रखिा। स्वाभाशिक था, एब्सेंट माइं िेिनेस पैदा हो गई।
क्योंशक बाहर एक काम करे गा और भीिर राम-राम जपेगा। मन का जो बोध
है िह एक ही िरफ रह सकिा है । िो बाहर उससे भू ि-चूक होने िगी।
शमशिटरी में िेस्िनेंट था। बड़ी परे िानी हो गई। उसके आशफसरों ने भी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कहा शक क्या मामिा है ? कुछ िुम्हारा, कुछ मन ठीक नहीं है । पर उसने
सोचा, अपने गु रु को कहा। उसने कहा: अड़चनें िो आिी हैं भगिान के मागय
में, बड़ी अड़चनें आिी हैं । िो इससे िुम िरो मि, शहम्मि से िगे रहो।

िह पागि था, शहम्मि से िगा रहा। शहम्मि से िगा रहा। छह महीने के बाद
उसकी नींद उचट गई। क्योंशक अगर चौबीस िंटे कोई टें िन मन में हो, यह
बड़ा टें िन है शक राम-राम, राम-राम जपिा रहे कोई आदमी चौबीस िंटे। िो
इिना भीिर िनाि हो, िो शचत्त का शिश्राम खो गया। शिश्राम खोने से िह
उदास हो गया, अस्वथथ हो गया, मन में न मािूम क्या-क्या परे िाशनयां पै दा
हो िगीं। िेशकन गु रु ने कहा: यह सब िो होगा। यह सब िो होिा है । िो िुम
जारी रखो। िो उसने और भी जारी रखा।

सामान्य आदमी होिा, िौट आिा। उसने और जारी रखा, शमशिटरी का


आदमी था, िौटना जानिा नहीं था। और शमशिटरी के आदमी धीरे -धीरे
बुस्िहीन हो ही जािे हैं । क्योंशक शमशिटरी में सब ररपीटीिन करिाया जािा
है । ऐसे ही जब जै से ही ररपीटीिन शमशिटरी करिािी है --एक आदमी को
कहिा है , बाएं िूमो, दाएं िूमो; आगे जाओ, पीछे जाओ। िीन-चार साि िक
शकसी आदमी से ऐसा मूखयिापूर्य काम करिाया जाए, उसकी बुस्ि क्षीर् हो
जािी है । और शमशिटरी चाहिी शक बुस्ि क्षीर् हो जाए। नहीं िो दु शनया में
शहं सा नहीं करिाई जा सकिी।

दु शनया में मैं शमशिटरी के शिरोध में इसशिए नहीं हं शक िह शहं सा करिी है ,
इसशिए शिरोध में हं शक िाखों िोग बुस्िहीन हो जािे हैं , उनकी बुस्ि खो
जािी है । िे शसफय आज्ञा पाि सकिे हैं । उनमें शिचार नहीं रह जािा।

िो िह शमशिटरी का आदमी था, िेि-राइट करने की आदि थी, उसी िरह


िह राम-राम भी जपने िगा भीिर। िह करिे ही चिा गया। िषय पूरा होिे-

ओिो पृष्ठ संख्या 301


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
होिे उसके मन ने एक रट पकड़ िी, एक यां शत्रक दोहराने का भाि पकड़
शिया, िब खिरा िुरू हुआ, िब कोई उसे मेरे पास िाया।

खिरा यह हुआ शक राम-राम दोहराने से इिना मन शिचारहीन हो गया;


शिचारमुि नहीं, शिचारहीन। शििेक जाग्रि नहीं हुआ, शििेक सो ही गया।
और मन ने एक मेकेशनकि ररपीटीिन पकड़ शिया, यां शत्रक पु नरुस्ि
पकड़ िी। शफर यह शदक्कि िुरू हो गई, अगर िह रास्ते से जा रहा है और
उसे शदखाई पड़ गया, कुत्ता, दो उसका मन दोहराने िगे गा, कुत्ता कुत्ता
कुत्ता। साइशकि जा रही, िो उसका मन दोहराने िगे गा, साइशकि
साइशकि। अब उसको शनकािना भी चाहिा है , िो नहीं शनकाि सकिा।
क्योंशक िषों का अभ्यास हो गया। और उस अभ्यास ने मन को जड़िा दे दी।

मन को जड़िा नहीं दे नी है , मन को उन्मुि करना है । उसके चैिन्य के


प्रिाह को जगाना है । यानी केिि शिचारहीन हो जाने से कुछ न होगा, नहीं िो
अनेक जड़बुस्ि िोग हैं , िे परमात्मा को उपिब्ध हो जाएं गे । पिु-पक्षी हैं , िे
परमात्मा को उपिब्ध हो जाएं गे , शिचारहीन हैं ।

शिचारहीन नहीं होना है , शिचारमु ि होना है । शिचारहीनिा में और


शिचारमुस्ि में बड़ा फकय है । इस भां शि की चेष्टाएं आपके शिचार को जड़
कर दें गी। आपका बोध क्षीर् हो जाएगा। इसशिए आपने दे खा होगा, इस
िरह के िोग, जप करने िािे या शकसी मंत्र को बार-बार दोहराने िािे बेहोि
होिे दे खे जाएं गे । जब िे बे होि हो जाएं गे , िोग कहें गे, समाशध में चिे गए। िे
केिि बेहोि हैं , आप समझ रहे हैं समाशध में चिे गए। समाशध में कोई
बेहोिी में नहीं जािा, समाशध में िो पररपूर्य होि पैदा हो जािा है ।

बुि के जीिन में सुना कभी बेहोि हो गए? क्राइस्ट के जीिन में सु ना कभी
बेहोि हो गए? बेहोि होना, मूस्च्छय ि हो जाना और आप समझिे हैं शक यह

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ध्यान है ? आप राम-राम जपेंगे, थोड़ी दे र में आपको बाहर का बोध खो
जाएगा।

मेरे पास िोग आिे हैं , अभी एक प्रश्न भी आया, पीछे शकसी ने आकर भी पूछा
शक आपका जो ध्यान है , हम करिे रहिे हैं , िेशकन हमें पशक्षयों की आिाज
सुनाई पड़िी है , हमें आस-पास का पिा चििा है । िो मैंने कहा: पिा िो
बढ़ना चाशहए, क्योंशक भीिर हम बोध को जगाने की कोशिि कर रहे हैं , बोध
को सुिाने की नहीं।

िोग सोचिे हैं , ध्यान का अथय है , कुछ भी पिा न चिे। िह िो मूच्छाय है । कुछ
भी पिा न चिे िह मूच्छाय है । सब कुछ पिा चिे, िेशकन भीिर ररएक्शन न
हो। सब कुछ पिा चिे, िेशकन भीिर प्रशिशक्रया न हो।

एक कौिे की आिाज आए, सुनाई पड़नी चाशहए। जो आदमी ध्यान में है , उसे
आपकी बजाय ज्यादा स्पष्ट सुनाई पड़नी चाशहए। उसकी सेंसेशटशिटी बढ़
जाएगी। उसकी संिेदनिीििा बढ़ जाएगी। क्योंशक िह इिना िां ि बैठा है ,
उसके भीिर कोई शिचार नहीं चि रहा है , होि में बै ठा है , एक सुई भी
शगरे गी िो उसे उसकी आिाज मािू म पड़नी चाशहए। आप शिचार में उिझे
हुए हैं , आपको पिा नहीं चिेगा। अभी मैं बोि रहा हं , आप मुझमें उिझे हुए
हैं ; यह इिनी बड़ी मिीन चि रही है , हो सकिा है िह आपको सुनाई न
पड़े , जब मैं कहं गा, िब सुनाई पड़े गी, नहीं िो आपका पिा नहीं चि रही थी
शक िह है । चि रही है । एक कौआ बोिेगा, आपको सुनाई नहीं पड़े गा।

आप मुझमें उिझे हुए हैं , उिझे होने की िजह से कौआ सुनाई नहीं पड़
रहा। िेशकन जब आप शबिकुि नहीं उिझे हुए हैं , शबिकुि िां ि हैं , िो
धीमी सी आिाज भी सुनाई पड़े गी। फकय क्या पड़े गा? आिाज िो सुनाई
पड़े गी, िेशकन आपके भीिर कोई प्रशिध्वशन पैदा नहीं होगी। आप यह नहीं

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
सोचेंगे, कौआ बोि रहा है । कैसा कौआ है , कािा है शक शकसका है शक
शकसका नहीं है , या क्यों बोि रहा है या नहीं बोिना था, यह मुझे क्यों सुनाई
पड़ गया, इस िरह की कोई प्रशिशक्रया आपके भीिर नहीं होगी। बोध होगा,
प्रशिशक्रया नहीं होगी।

बोध नहीं मर जाना चाशहए। अगर बोध मर गया, िो आप मूस्च्छय ि हो रहे हैं ।
मूस्च्छय ि नहीं होना है । िेशकन जप जैसी शक्रयाएं मूस्च्छय ि करिी है मन को।
मूच्छाय में सुख आिा है । शनशिि सु ख आिा है । असि में दु शनया में जब भी
सुख आिा है , समझ िेना शकसी न शकसी भां शि की मूच्छाय काम कर रही है ।

मूच्छाय में ही सुख आिा है । और अमूच्छाय में आनं द आिा है । मूच्छाय में सुख,
अमूच्छाय में आनंद। मूच्छाय में संिुशष्ट, अमूच्छाय सत्य। िह जो मैंने पहिे आपसे
पहिे शदन कहा था, एक खोज संिुशष्ट की है , संिुशष्ट की खोज का अथय है ,
मूच्छाय की खोज, शकसी भां शि हम मूशछय ि हो जाएं । हमें अपना पिा न रहे । हम
शकसी भां शि अपने को भू ि जाएं । शफर चाहे िराब में भू िें, चाहे संगीि में
भू िें, चाहे सेक्स में भू िें और चाहे भजन-कीियन में भू िें, जपत्तप में भू िें, भू ि
जाएं शकसी िरह अपने को, िो बड़ा अच्छा रहे । ये सब आत्मिािी प्रिृशत्तयां
हैं , स्युसाइिि प्रिृशत्तयां हैं , अपने को मारने की प्रिृशत्तयां हैं , अपने को, अपने
को जीिन को जगाने की प्रिृशत्तयां नहीं हैं ।

मेरी दृशष्ट में शकसी भां शि की पुनरुस्ि शचत्त के िि पर जीिन के बोध को


ऊपर नहीं िे जािी, न िे जा सकिी है । कोई िैज्ञाशनक कारर् नहीं है िे जाने
का। पुनरुस्ि नहीं; होि, सजगिा। उसकी में कि चचाय करू
ं गा शक
सजगिा क्या है , शिधायक अंग में शक सजगिा कैसे जगे और कैसे िह सत्य
की ओर और चैिन्य जीिन की ओर, परमात्मा की ओर, आत्मा के पररपूर्य
शिकास की ओर िे जाने में सहयोगी हो जाए।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)

इसमें पूछे गए हैं , जो इस बात से सांबांशधत हैं शक मैंने कहा शक धमय की


शिक्षा नही ां दे नी चाशहए।
तो पूछा है : हम बच्ोां को क्ा शिक्षा दें ? धमय की शिक्षा न दें , तो शिर
उन्ें क्ा शिक्षा दें ?
मजा यह है शक शिक्षा दे ने में बड़ा रस आिा है । उपदे ि करने में बड़ा मजा
आिा है । जरा उम्र बड़ी हुई, िो छोटी उम्र के आदमी को उपदे ि दे ने में बड़ा
रस आिा है । जरा पद बड़ा हुआ, िो छोटे पद िािे को जरा उपदे ि दे ने में
रस आिा है ।

उपदे ि और शिक्षा में जो रस है िह अहं कार का रस है । आप उनके जीिन


को बदिने के शिए उिने उत्सुक नहीं; न इस बाि में उत्सुक हैं उनका
जीिन िुि और पशित्र हो जाए; न इस बाि में उत्सुक हैं शक िे सत्य की और
उत्सुक हो जाएं । आप इस बाि में उत्सुक हैं शक शकसी भां शि हम शिक्षा दें ।

औरं गजेब ने जब अपने बाप को बंद कर शदया, जेि में बंद कर शदया, िो
बादिाह था, सारी िस्ि थी, उसने कहा शक बंद करने के बाद उसने
औरं गजेब को कहा: एक काम कम से कम करो, मुझे िीस बच्चे दे दो, िो मैं
उनको पढ़ािा-शिखािा रहं गा। औरं गजेब ने शकसी से कहा: उसकी
बादिाहि नहीं जािी। जेि में बं द है , िीस बच्चों के ऊपर माशिक हो
जाएगा। उनको समझाएगा, बुझाएगा, ज्ञान दे गा, िहां िह शफर केंि हो
जाएगा।

जब आप शकसी को शिक्षा दे ना चाहिे हैं िो सच में आपकी उत्सुकिा क्या है ?


अगर आप अपने बच्चे को ही शिक्षा दे ना चाहिे हैं , आपकी उत्सुकिा क्या है ?
क्या आप इस बाि में उत्सुक हैं शक िह जीिन को, श्रेष्ठिर जीिन को उपिब्ध
ओिो पृष्ठ संख्या 305
साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हो? अगर आप इस बाि में उत्सुक हैं शक उसे जीिन को समझने की योग्यिा
दें , शिक्षा नहीं।

जीिन को दे खने की क्षमिा दें , संस्कार नहीं। जीिन को पहचानने और


जानने की प्रशिभा दें , शिचार नहीं। अपना प्रेम दें , िेशकन अपनी समझ नहीं,
उपदे ि नहीं।

आपके उपदे ि, आपकी शिक्षाएं , उसे जड़बि करें गी, उसके शचत्त को
परिंत्र करें गी, िह स्वयं जानने में असमथय हो जाएगा। आप उसके बोध को
जगाएं ।

पूछा है दू सरा प्रश्न, बोध हम कैसे जगाएां गे उसमें?


सबसे पहिी बाि होगी, अपने में बोध को जगाएं । क्योंशक शकिनी है रानी
होगी शक आपमें बोध नहीं है और आप दू सरे में बोध के जगाने का शिचार कर
रहे हैं । अपना दीया बुझा हुआ है , पूछिे हैं , दू सरे का दीया कैसे जिाएं ?

पहिी जरूरि होगी अपने बोध को जगाने की। जब आपका बोध जगे गा िो
आप जानेंगे शक क्या शनयम है बोध के जगने के।

ओिो पृष्ठ संख्या 306


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)-प्रिचन-13

साक्षी की साधना-(साधना-शिशिर)

ओिो

तेरहिाां प्रिचन

...परमात्मा के दियन िुरू हो जाएं गे । िह एक पक्षी का गीि सुनेगा, िो पक्षी


के गीि में उसे परमात्मा की िार्ी सुनाई पड़े गी। िह एक फूि को स्खििे
दे खेगा, िो उस फूि के स्खिने में भी परमात्मा की सुिास की सुगंध उसे
शमिेगी। उसे चारों िरफ एक अपूिय िस्ि का बोध होना िुरू हो जािा है ।
िेशकन यह होगा िभी जब मन हमारा इिना शनमयि और स्वच्छ हो शक उसमें
प्रशिशबंब बन सके, उसमें ररिेक्शन बन सके।

ओिो पृष्ठ संख्या 307


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िुमने दे खा होगा झीि पर कभी जाकर, अगर झीि पर बहुि िहरें उठिी हों,
आकाि में चां द हो, िो शफर झीि पर कोई चां द का प्रशिशबंब नहीं बनिा।
और अगर झीि शबिकुि िां ि हो, उसमें कोई िहर न उठिी हो, दपयर् की
िरह चु प और मौन हो, िो शफर चां द उसमें शदखाई पड़िा है । और जो चां द
झीि में शदखाई पड़िा है , िह उससे भी सुंदर होिा जो ऊपर आकाि में
होिा है ।

प्रकृशि चारों िरफ फैिी हुई है , िेशकन हमारा मन दपयर् की भां शि नहीं है ।
इसशिए उसके भीिर उस प्रकृशि की कोई छशि नहीं उिरिी, कोई शचत्र नहीं
बनिे। और िब हम िंशचि हो जािे हैं उसे जानने से जो हमारे चारों िरफ
मौजूद है ।

िोग पूछिे हैं , िुमने भी प्रश्न पूछे: ईश्वर है या नहीं?

यह िैसे ही है जैसे कोई मछिी पूछे शक सागर कहां है ? समुि कहां है ? उस


मछिी को हम क्या कहें गे? उससे कहें गे, िुम्हारे चारों िरफ जो है िह सागर
ही है , समुि ही है ।

जब हम पूछिे हैं , ईश्वर है या नहीं है ? उसका मििब क्या हुआ? उसका


मििब यह हुआ शक हमारे पास ईश्वर को दे खने िािा दपयर् नहीं है । अन्यथा
ईश्वर िो चारों िरफ मौजूद है । िेशकन हमारे भीिर दपयर् मौजू द नहीं है
इसशिए कशठनाई है ।

कैसे हमारा मन दपयर् बन जाए? थोड़ी सी बािें इस सं बंध में मैंने िुमसे की
हैं , आज और दो-िीन सूत्रों पर िुमने बाि करू
ं ।

अगर इन सूत्रों पर थोड़ा प्रयोग करो, श्रम करो, िो कोई कशठनाई नहीं है शक
िुम भी एक शनमयि शचत्त को उपिब्ध हो जाओ, एक िां ि मन को उपिब्ध हो

ओिो पृष्ठ संख्या 308


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
जाओ। और शफर उस िां ि मन में उन सारी चीजों के प्रशिशबंब बने जो
परमात्मा की और इिारा करिी हैं ।

पहिा सूत्र है : सरििा।

मनुष्य की सभ्यिा शजिनी शिकशसि हुई है , मनुष्य उिना ही जशटि, कठोर


और कशठन होिा गया है । शसंप्लीशसटी, सरििा जैसी कोई भी चीज उसके
भीिर नहीं रह गई है । उसका मन अत्यंि कठोर और धीरे -धीरे पत्थर की
भां शि, पाषार् की भां शि सख्त होिा गया है । और शजिना हृदय पत्थर की
भां शि कठोर हो जाएगा, उिना ही कशठन है बाि। उिना ही जीिन में कुछ
जानना कशठन है , मुस्िि है ।

सरि मन चाशहए। कैसे होगा सरि मन?

सरि मन की जो पहिी ईंट है , जो पहिे आधार हैं , पहिी बुशनयाद है , िह


कहां से रखनी होगी? आमिौर से िो जीिन में, हम जैसे-जैसे उम्र बढ़ी होिी
है , कठोर ही होिे चिे जािे हैं । और यही िो िजह है , िुमने सुना होगा बूढ़ों
को भी यह कहिे हुए शक बचपन के शदन बहुि सुखद थे । बचपन बहुि
आनंद से भरा था। बचपन बहुि आनं दपूर्य था। िुम्हें भी िगिा होगा, अभी यूं
िो िुम्हारी उम्र ज्यादा नहीं, िेशकन िुम्हें भी िगिा होगा जो शदन बीि गए
बचपन के, िे बहुि आनंदपूर्य थे । और अब धीरे -धीरे उिना आनंद नहीं है ।
क्यों? यह िुमने सु ना िो होगा िेशकन शिचार नहीं शकया होगा शक बचपन के
शदन इिने आनंदपू र्य क्यों होिे हैं ? बचपन के शदन इसशिए आनंदपूर्य हैं शक
बचपन के शदन सरििा के शदन हैं । हृदय होिा है सरि, इसशिए चारों िरफ
आनंद का अनुभि होिा है ।

ओिो पृष्ठ संख्या 309


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शफर जैसे-जैसे उम्र बढ़िी है हृदय होने िगिा है कशठन और कठोर, शफर
आनंद क्षीर् होने िगिा है । दु शनया िो िही है , बूढ़ों के शिए भी िही है , बच्चों
के शिए भी िही है , िेशकन बच्चों के शिए चारों िरफ आनंद की िषाय मािूम
होिी है । मौज ही मौज मािूम होिी है । सौंदयय ही सौंदयय मािूम होिा है ।
छोटी-छोटी चीज में अदभु ि दियन होिे हैं । छोटे -छोटे कंकड़-पत्थर को भी
बच्चा बीन िेिा और हीरे -जिाहरािों की िरह आनंशदि होिा है । क्या कारर्
हैं ? कारर् है , भीिर हृदय सरि है । जहां हृदय सरि है िहां कंकड़-पत्थर भी
हीरे -मोिी हो जािे हैं ।

और जहां हृदय कठोर है , िहां हीरे -मोिी भी ढे र िगे रहें िो भी कंकड़-


पत्थरों से ज्यादा नहीं होिे। जहां हृदय सरि है िहां छोटे से फूि में अपूिय
सौंदयय के दियन होिे हैं । जहां हृदय कशठन है , िहां फूिों का ढे र भी िगा रहे ,
िो उनका कोई दियन नहीं होिा। जहां हृदय सरि है , छोटे से झरने के
शकनारे भी बैठ कर अदभु ि सौंदयय का बोध होिा है । और जहां हृदय कशठन
है , िहां कोई कश्मीर जाए या स्स्वटजरिैंि जाए, या और सौंदयय के थथानों पर
जाए, िहां भी उसे कोई सौंदयय का बोध नहीं होिा है । िहां भी उसे कोई
आनंद की अनुभूशि नहीं होिी।

िेशकन बूढ़े िोग यह िो कहिे हैं शक बचपन के शदन सुखद थे , िेशकन यह


शिचार नहीं करिे शक क्यों सुखद थे? अगर इस बाि पर शिचार करें , िो पिा
चिेगा, हृदय सरि था इसशिए जीिन में सुख था। िो अगर बुढ़ापे में भी
हृदय सरि हो, जो जीिन में बचपन से भी ज्यादा सुख होगा। होना भी यही
चाशहए। यह िो बड़ी उिटी बाि है शक बचपन के शदन सुखद हो और शफर
सुख धीरे -धीरे कम होिा जाए, यह िो उिटी बाि हुई। जीिन में सुख का
शिकास होना चाशहए। शजिना सुख बचपन में था, बुढ़ापे में उससे हजार गु ना
ज्यादा होना चाशहए।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
क्योंशक इिना जीिन का अनुभि, इिना शिकास, इिनी समझ का बढ़ जाना,
सुख का भी बढ़ना होना चाशहए। िेशकन होिी बाि उिटी है , बूढ़ा आदमी
दु खी होिा है और बच्चा सुखी होिा है ।

इसका अथय है शक जीिन की गशि हमारी कुछ गिि है , हम जीिन को ठीक


से व्यिथथा नहीं दे िे। अन्यथा िृि व्यस्ि को शजिना आनंद होगा उिना
बच्चे को क्या हो सकिा है । यह िो पिन हुआ। बचपन में सुख हुआ और
बुढ़ापे में दु ख हुआ, यह िो पिन हुआ, हमारा जीिन नीचे शगरिा गया।
बजाय बढ़ने के जीिन नीचे शगरा। बजाय ऊंचा होने के हम पीछे गए। यह िो
उिटी बाि है । अगर ठीक-ठीक मनुष्य का शिकास हो, िो बुढ़ापे के अंशिम
शदन सिाय शधक आनंद के शदन होंगे। होने चाशहए। और अगर न हों, िो जानना
चाशहए, हम गिि ढं ग से जीए। हमारा जीिन गिि ढं ग का हुआ।

अगर शकसी स्कूि में ऐसा हो शक पहिी कक्षा में जो शिद्याथी आए िह िो


ज्यादा समझदार, और जब िह कािेज छोड़ कर शनकिे िो कम समझदार
हो जाए, िो उस कािेज को हम क्या कहें गे? हम कहें गे, यह िो पागिखाना
है । होना िो यह चाशहए शक पहिी कक्षा में जो शिद्याथी आए, बच्चे आए,
उनकी समझ िो बहुि कम थी। जब िे कािेज को छोड़ें , स्कूि को छोड़ें , िो
उनकी समझ और बढ़ जानी चाशहए। जीिन में जो बच्चे आिे हैं िे िो ज्यादा
सुखी मािूम होिे हैं और जो बूढ़े जीिन को छोड़िे हैं िे ज्यादा दु खी हो जािे
हैं । िो यह िो बहुि उिटी बाि हो गई। इस उिटी बाि में हमारे हाथ में कुछ
गििी होगी, कोई कसूर होगा।

सबसे बड़ा कसूर है , सरििा को हम खो दे िे हैं , कमािे नहीं। सरििा


कमानी चाशहए। सरििा बढ़नी चाशहए। गहरी होनी चाशहए। शिस्तीर्य होनी
चाशहए। शजिना हृदय सरि होिा चिा जाएगा उिना ही ज्यादा जीिन में,
इसी जीिन में सुख की संभािना बढ़ जाएगी।
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कैसे शचत्त सरि होगा? मन कैसे सरि होगा? और कैसे कशठन हो जािा है ?
इन दो बािों पर शिचार करना जरूरी है ।

उन िोगों का मन सिाय शधक कशठन हो जािा है शजनके भीिर अहं कार का


भाि शजिना ज्यादा होिा है । शजिना उन्ें िगिा है शक मैं कुछ हं , शजन्ें
समबिी होने का भ्रम पैदा हो जािा है शक मैं कुछ खास हं , मैं कुछ हं ।
अहं कार शजनमें, ईगो शजनमें बहुि िीव्र हो जािी है , शजनमें दं भ बहुि गहरा
हो जािा है , उनका हृदय कठोर होिा चिा जािा है । शजसके भीिर अहं कार
का भाि शजिना कम होिा है , उसका हृदय उिना ही सरि होिा है । बच्चे में
कोई अहं कार नहीं होिा, इसशिए िह सरि है ।

क्राइस्ट से शकसी ने एक बार पूछा, िे एक बाजार में खड़े थे , कुछ िोग उन्ें
िेर कर खड़े हुए थे और उनसे कुछ बािें पूछ रहे थे, िभी शकसी ने उनसे
पूछा शक परमात्मा के राज्य में कौन िोग प्रिेि कर सकेंगे ?

क्राइस्ट ने एक छोटे से बच्चे को उठाया और कहा: शजनके हृदय इस बच्चे


की भां शि होंगे, िे ही केिि परमात्मा के राज्य में प्रिे ि कर सकिे हैं । शजनके
हृदय बच्चों की भां शि होंगे। िेशकन हम िो सभी बच्चों के हृदय खो दे िे हैं
धीरे -धीरे । खो दे िे हैं , क्योंशक हमारे भीिर एक अहं कार पैदा होना िुरू हो
जािा है शक मैं कुछ हं । िगने िगिा है शक मैं कुछ हं । अगर हम धन िािे िर
में पैदा हुए हैं , िो िगिा है शक मैं धनी हं । अगर हम बहुि पद िािे िर में पै दा
हुए हैं , िो िगिा है शक मैं कुछ हं , शिशिष्ट, और िोगों से शभन्न।

और एक व्यस्ि अच्छे कपड़े पहनिा है , िो सोचिा है , मैं कुछ हं । अगर एक


व्यस्ि ज्यादा शिक्षा पा िेिा है और कुछ उपाशधयां उपिब्ध कर िेिा है , िो
सोचिा है , मैं कुछ हं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
यह "मैं कुछ' होने भाि शजिना िीव्र होिा जािा है , उिना ही हृदय कठोर
होिा चिा जािा है । जब शक आिययजनक बाि यह है शक मनुष्य की िस्ि
क्या है ! मनुष्य की सामथ्यय क्या है ! कुछ होने का बोध शकिना गिि है , इसे
अगर शिचार करो िो शदखाई पड़े गा। जैसे, िुम्हें यह भी पिा नहीं होगा िुम
क्यों पैदा हुईं? िु म्हें यह भी पिा नहीं होगा शक िुम क्यों मर जाओगी? िुम्हें
यह भी पिा नहीं होगा शक िुम्हारी जो श्वास बाहर गई है , अगर िह भीिर नहीं
आई, िो िुम्हारा क्या िि है उसके ऊपर?

श्वास पर भी हमारा कोई िि नहीं है , कोई िस्ि नहीं, कोई िाकि नहीं,
शफर भी हम सोचिे हैं , मैं कुछ हं ! क्या हमारी सामथ्यय है ? शकिनी हमारी
िस्ि है ? मनुष्य का बि शकिना है ? अगर हम जीिन को दे खें, िो ज्ञाि
होगा, हमारा कोई भी िो बि नहीं है । बहुि छोटी सी सीशमि सामथ्यय है । उसी
सामथ्यय में हमारे भीिर दं भ और अहं कार पैदा हो जािा है ।

समझेंगे िो ज्ञाि होगा हम िो ना-कुछ हैं । जैसे हिा में उड़िे हुए पत्ते होिे हैं ,
िैसी हमारी स्थथशि है । पै दा हुए, हमें ज्ञाि नहीं, क्यों? पैदा होने में िुमसे
शकसी से पूछा नहीं गया शक पैदा होना है या नहीं? िुमसे कोई, िुम्हारी कोई
चुनाि, िुम्हारी कोई इच्छा काम नहीं की। मरिे िि यह कोई पूछेगा नहीं।
जीिन की शक्रया में भी िुम्हारा कोई िि नहीं है । शजस शदन श्वास आनी बं द हो
जाएगी, िुम चाहो िो भी श्वास आ नहीं सकिी। अगर मनुष्य के हाथ में यह
होिा शक िह जब िक चाहे श्वास िे सकिा, िब िो कोई आदमी मरिा ही
नहीं। और शकिना छोटा सा जीिन है , और उस जीिन में हमारे हाथ में क्या
है ।

एक छोटी सी िटना कहं , उससे मेरी बाि िुम्हें समझ में आए।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हमारे हाथ में करीब-करीब कुछ भी नहीं है । िेशकन शफर भी हमको यह
िहम पैदा होिा है शक मैं कुछ हं । और उससे हम कठोर हो जािे हैं । बड़े से
बड़ा धनी आदमी, शजसके पास शकिनी ही संपशत्त हो, जब मृत्यु उसके द्वार
खड़ी हो जािी है , उसे पिा चििा है , मेरी कोई िाकि नहीं। बड़े से बड़ा
सम्राट, शजसके पास बहुि िस्ि हो, शजसने दु शनया में न मािूम शकिने िोगों
को हत्या की हो, जब मौि उसके द्वार खड़ी हो जािी, िो पािा है , मैं कुछ भी
नहीं हं । अब िक शकसी मनुष्य को भी इस िहम को कायम रखने का कोई
कारर् नहीं शमिा है शक उसकी कोई िस्ि है शक िह कुछ है ।

एक िटना मैं िुम्हें कहने को हं ।

एक बहुि बड़े राज्य महि के शनकट कुछ थोड़े से बच्चे खेि रहे थे । एक बच्चे
ने एक पत्थर की ढे री में से एक पत्थर उठाया और राजमहि की स्खड़की की
िरफ फेंका। िह पत्थर अपने पत्थर की ढे री से ऊपर उठा। बच्चे ने फेंका िो
पत्थर ऊपर उठा। उस पत्थर ने नीचे जो पत्थर पड़े थे उनसे कहा: शमत्रो, मैं
आकाि की सैर को जा रहा हं । बाि ठीक ही थी, गिि कुछ भी न था।

जा ही रहा था, नीचे के पत्थर पड़े दे ख रहे थे , उनके िि के बाहर था शक िे


भी जाएं , इसशिए इस पत्थर की शिशिष्टिा को अस्वीकार करने का कोई
कारर् भी न था, स्वीकार करना ही पड़ा।

िह पत्थर ऊपर उठिा गया, िह जाकर कां च की स्खड़की से टकराया महि


की, कां च चकनाचूर होकर टू ट गया। उस पत्थर ने जोर से कहा शक मैंने
शकिनी बार कहा: मेरे रास्ते में कोई न आए, नहीं िो चकनाचूर होकर टू ट
जाएगा।

यह भी बाि ठीक ही थी। कां च टू ट ही गया था, टु कड़े -टु कड़े हो गया था।
पत्थर का यह गरूर भी ठीक ही था शक मैंने कहा है शक मेरे रास्ते में जो

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
आएगा िह टू ट जाएगा। शफर पत्थर भीिर शगरा। िहां ईरानी कािीन शबछा
हुआ था, उस पर शगरा। उस पत्थर ने मन में कहा: बहुि थक गया, एक ित्रु
का भी सफाया शकया, अब थोड़ी दे र शिश्राम कर िूं। उसने शिश्राम भी शकया।

िेशकन िभी महि के नौकर को खबर पड़ी, कां च के टू टने की आिाज


पहुं ची, िह भागा हुआ आया, उसने उस पत्थर को उठा कर िापस स्खड़की
से नीचे फेंका। जब िह पत्थर िापस िौटने िगा, िो उसने कहा: शमत्रों की
मुझे बहुि याद आिी है , अब मुझे िापस चिना चाशहए।

िह नीचे गया, जब िह ढे री के ऊपर िापस शगरा अपने पत्थरों की ढे री पर,


िो उसने पत्थरों से कहा: शमत्रो, बड़ी अदभु ि यात्रा रही, बड़ी...

जब उसको खािी, पशित्रिम, िुििम व्यस्ित्व को जान कर ही व्यस्ि


जीिन में आनंद को, अमृि को उपिब्ध हो सकिा है । उसे हम जान िें,
उसकी कोई मृत्यु नहीं है , उसका शफर कोई अंि नहीं, उसकी कोई समास्ि
नहीं है । उसे हम जान िें, उसके जानने के बाद कोई दु ख नहीं है , कोई पीड़ा
नहीं, कोई अपमान नहीं। उसे हम जान िें, शफर जीिन में कोई शिषमिा नहीं
है । समिा है , शफर जीिन में िां शि है । शफर जीिन में कुछ अदभु ि है , शजसे
िब्दों में कहना कशठन है ।

िेशकन उसे जानने के शिए सरि होना जरूरी है । और सरि होने के शिए
जो-जो झूठ हमने ओढ़ रखे हैं , उन सबको शिदा कर दे ना जरूरी है । जो-जो
अशभनय हमने ओढ़ रखे हैं , िे सब समाि कर दे ने जरूरी हैं । झूठा व्यस्ित्व
टू ट जाए िो ही सत्य का अनुभि हो सकिा है । और अगर यह बचपन से ही
स्मरर् हो, और यह बहुि छोटी उम्र से खयाि में हो, िो शफर हम झूठे
व्यस्ित्व से ओढ़ने से भी बच सकिे हैं ।

िुम खुद खयाि करोगी, शकिनी बािें हम झूठी ओढ़े रखिे हैं । शकिनी बािें?
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
हम जैसे होिे हैं िै सा हम कभी बिािे नहीं। हम जैसे नहीं होिे हैं िैसा हम
बिाने की कोशिि करिे हैं । हम शजिने सुंदर नहीं हैं , उिने सुंदर शदखने की
कोशिि करिे हैं । हम शजिने सच्चे नहीं हैं , उिने सच्चे शदखने की कोशिि
करिे हैं । हम शजिने ईमानदार नहीं हैं , उिने ईमानदार शदखने की कोशिि
करिे हैं । हम शजिने प्रेमपूर्य नहीं हैं , उिने प्रेमपूर्य शदखने की कोशिि करिे
हैं । िब क्या होगा? िब इस कोशिि में झूठ धीरे -धीरे हमारे चारों िरफ
शिपटिा चिा जाएगा। और जो हम नहीं हैं िही हमें ज्ञाि होने िगे गा शक हम
हैं ।

शनरं िर के प्रयास से झूठ को ओढ़ने में ऐसा िगने िगे गा शक हम हैं । और िब


भ्रां शि हो जाएगी। और िब भीिर पहुं चना कशठन हो जाएगा। अगर इस उम्र
से ही यह बोध रहे शक मैं जो हं उससे शभन्न न मुझे शदखाई पड़ना चाशहए, न
मुझे कोशिि करनी चाशहए, जो भी सीधा-सच्चा मेरा व्यस्ित्व है , िही जगि
जानें, िही दु शनया जानें, िही उशचि है । और मैं िो कम से कम जानूं ही शक मैं
कौन हं , क्या हं । और अगर धीरे -धीरे इसका साहस बढ़िा चिा जाए, िो
िुम्हारे ऊपर झूठे व्यस्ियों का, फाल्स पसयनैशिटीज का िुम्हारे ऊपर प्रभाि
नहीं होगा। िुम्हारा कोई व्यस्ित्व झूठा खड़ा नहीं होगा। धीरे -धीरे िुम्हारे
जीिन में सरििा िनी होिी जाएगी।

और जैसे-जैसे उम्र बढ़े गी िैसे-िैसे सरििा बढ़े गी, और एक क्षर् आएगा


जीिन में जब िुम्हारा हृदय इिना शनमयि होगा, इिना सरि और सीधा होगा,
उसमें कोई कठोरिा, उसमें कोई कृशत्रमिा, उसमें कोई झूठ न होने से िह
इिना शनदोष होगा, जैसे पानी का झरना होिा है , शजसमें कोई कचरा नहीं है ,
शजसमें कोई धूि नहीं है , शजसमें कोई गं दगी नहीं है , शजसमें कोई शमट्टी नहीं
है , उस झरने के शनदोष जि में नीचे के कंकड़-पत्थर सब शदखाई पड़िे हैं ,
नीचे की रे ि भी शदखाई पड़िी है ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
ठीक िैसे ही जब मन इिना झरने की भां शि सरि होिा है , सीधा होिा है ,
स्पष्ट होिा है , साफ होिा है , िो उस मन के भीिर जो आत्मा शछपी है , उसकी
अनुभूशि िुरू होिी है । और आत्मा की अनुभूशि हो, िो परमात्मा की खबर
शमिनी िुरू हो जािी है । जो अपने ही भीिर के सत्य को नहीं जानिा, िह
सारे जगि में शछपे हुए सत्य को कैसे जान सकेगा।

पहिा द्वार खु द के भीिर जाकर स्वयं को जानने का है । और खुद के भीिर


िही जा सकिा है , शजसने अपने जीिन में झूठ और असत्य न ओढ़े हों।
िेशकन सारे िोग ओढ़े हुए हैं । जो आदमी साधु नहीं है , िह साधु बना हुआ है ।
जो आदमी सेिक नहीं है , िह सेिक बना हुआ है । शजस आदमी के जीिन में
कोई प्रेम नहीं, िह प्रेम की बािें कर रहा है । शजसके जीिन में कोई सौंदयय
नहीं, िह सौंदयय के गीि गा रहा है । िो शफर िो जीिन शिकृि हो जाएगा। दू र
हो जाएगा सत्य से । और शजिना यह दू र होिा जाएगा, उिनी कशठनाई होिी
जाएगी। और हम सब धोखा दे ने को अशि उत्सुक हैं । दू सरों को नहीं, अपने
को भी धोखा दे ने को उत्सुक हैं । दू सरों को धोखा दे ना उिना खिरनाक नहीं
है , शजिना अपने को धोखा दे िेना।

मैंने सुना है , िंदन में कोई सौ िषय पहिे िेक्सशपयर का एक नाटक चि रहा
था। िहां का जो सबसे बड़ा धमय-पु रोशहि था, धमयगुरु था, जो सबसे बड़ा
शबिप था िंदन का, िह भी दे खना चाहिा था उस नाटक को। िेशकन
संन्यासी, साधु, धमयगुरु नाटक दे खने नहीं जािे, और अगर िुम्हें िे शमि जाएं
शसनेमागृ ह में िो िुमको भी है रानी होगी, और िे िो परे िान हो ही जाएं गे ।
नाटक दे खने िे नहीं जािे, क्योंशक जीिन में जहां भी सुख है और रस है िे
सबके शिरोधी हैं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
िो उस धमयगुरु के मन में इच्छा िो बहुि थी शक नाटक दे खूं। रोज-रोज िोग
प्रिंसा करिे थे , बहुि अच्छा नाटक है । िेशकन कैसे जाए? िो उसने एक पत्र
उस नाटक के मैनेजर को शिखा। और उस पत्र में शिखा, शक क्या िुम्हारे
नाटकगृ ह में, िुम्हारे शसनेमाहॉि में पीछे की िरफ से कोई दरिाजा नहीं है
शक मैं िहां से आकर नाटक दे ख सकूं? िाशक िोग मुझे न दे ख सकें और में
नाटक दे ख िूं।

उस मैनेजर ने पत्र का उत्तर शदया, शक मेरे नाटयगृ ह में पीछे से दरिाजा है ,


और अनेक बार अनेक िोग पीछे के दरिाजे से भी दे खने आिे हैं । ऐसे
अनेक िोग आिे हैं दे खने, जो चाहिे हैं शक िे िो नाटक दे खें िेशकन िोग
उन्ें न दे ख पाएं । िेशकन जहां िक आपका संबंध है , मैं यह शनिेदन कर दे ना
चाहिा हं , ऐसा दरिाजा है िो है जो पीछे है , िेशकन ऐसा कोई भी दरिाजा
हमारे इस भिन में नहीं है शजसको परमात्मा न दे खिा हो। शिखा: ऐसा कोई
भी दरिाजा हमारे भिन में नहीं है शजसको परमात्मा न दे खिा हो। मनुष्यों
की आँ ख से शछपाना िो संभि हो जाएगा, िेशकन परमात्मा की आँ ख से?
और खुद की आँ ख से शछपाना कैसे संभि होगा?

हम खुद की आँ ख से बहुि सी बािें अगर शछपािे चिे जाएं , िो शफर खुद को


नहीं जान सकिे हैं । खुद की आँ ख से कोई बाि नहीं शछपानी चाशहए। साहस
के साथ, हम जैसे हैं , जैसे भी, बुरे और भिे, स्वयं को िैसा ही जानना चाशहए।
जब िुम अपनी सीधी-सीधी सच्चाई से पररशचि होओ, जब िुम अपने सीधे-
सीधे व्यस्ित्व को जानोगी, िो िुम्हारे जीिन में एक क्रां शि हो जाएगी। क्यों?
क्योंशक अगर कोई व्यस्ि बहुि स्पष्ट रूप से स्वयं को दे खे, िो उसमें जो भी
गिशियां हैं उनका शटकना असंभि है । िे गिशियां इसीशिए शटकिी हैं शक
हम उन्ें शछपा िेिे हैं । कोई आदमी गिि नहीं हो सकिा, अगर िह अपने
को सीधा और स्पष्ट दे खने का साहस जुटा िे। अगर िुम्हें स्पष्ट शदखाई पड़े

ओिो पृष्ठ संख्या 318


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
शक िुम्हारे भीिर झूठ है , और िुम अच्छी-अच्छी बािों से उसे न शछपाओ, िो
झूठ के साथ बहुि शदन जीना असंभि है ।

िैसे ही जैसे िुम्हें शदखाई पड़े शक िुम्हारे पैर में फोड़ा है और िुम शबना इिाज
के जीना चाहो। या िुम्हें जैसे शदखाई पड़ जाए, िुम्हें पिा चि जाए शक िुम्हारे
फेफड़े खराब हो गए हैं , क्षयरोग हो गया, टी.बी. हो गया, कैंसर हो गया, और
िुम शबना इिाज के जी जाओ। अगर िुम्हें पिा ही न चिे िो दू सरी बाि है ।
िेशकन अगर िुम्हें ज्ञाि हो जाए शक िुम्हारे भीिर कोई गहरी बीमारी है , िो
िुम उस बीमारी के इिाज में शनशिि ही उत्सुक हो जाओगे । अगर िुम्हें पिा
चि जाए शक िुम्हारे भीिर झूठ है , िो उस झूठ के साथ जीना कशठन है ।
क्योंशक झूठ बड़े से बड़े फोड़ों से भी ज्यादा पीड़ादायी है । और झूठ बड़ी से
बड़ी बीमाररयों से भी बड़ी बीमारी है ।

एक बार िुम्हें स्पष्ट रूप से अपने पूरे व्यस्ित्व का बोध होना चाशहए शक मेरे
भीिर क्या है और क्या नहीं है । और इसे कोई दू सरा िुम्हें नहीं बिा सकिा।
यशद िुम खुद ही शनरीक्षर् करोगी, िो शदखाई पड़े गा। िेशकन शनरीक्षर् िभी
सफि होगा, जब िुम अपने को धोखा दे ने के शिए शनरं िर श्रम न करो। अगर
िुम शनरं िर अपने को धोखा दे ने में िगी रहो, िो बहुि कशठनाई है ।

एक फकीर हुआ, गु रशजएफ। एक गां ि से शनकििा था, कुछ िोगों ने उसे


गाशियां दीं। अपमान भरे िब्द कहे , अभि बािें कहीं, उसने उनकी सारी
बािें सुनीं और उनसे कहा शक मैं कि आकर उत्तर दू ं गा।

िे िोग बहुि है रान हुए। क्योंशक कोई गाशियों का उत्तर कि नहीं दे िा! अगर
मैं िुम्हें गािी दू ं , िो िुम अभी कुछ करोगी। अगर कोई िुम्हारा अपमान करे ,
िो िुम उसी िि कुछ करोगी। ऐसा िो कोई भी नहीं कहे गा िां शि से शक
हम कि आएं गे और उत्तर दें गे।

ओिो पृष्ठ संख्या 319


साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
गु रशजएफ ने कहा: मैं कि आऊंगा और उत्तर दू ं गा।

उन िोगों ने कहा: यह िो बड़ी अजीब बाि है , हमने कभी सुनी भी नहीं आज


िक! कुछ िो कहो, हमने इिना अपमान शकया!

उसने कहा: पहिे मैं सोचूं जाकर शक िुमने जो अपमान शकया कहीं िह ठीक
ही िो नहीं है ? हो सकिा है िुमने जो बुराइयां मुझमें बिाईं, िे मुझमें हों?
और अगर िे मुझमें हैं , िब मैं िुम्हें कि धन्यिाद दू ं गा आकर शक िुमने
अच्छा मेरे ऊपर उपकार शकया, मेरे ऊपर कृपा की। और अगर िे मुझमें
नहीं हैं , िो मैं शनिे दन कर जाऊंगा शक िुम और सोचना, िे बुराइयां मैंने अपने
में नहीं पाईं। झगड़े का इसमें कोई कारर् नहीं है ।

एक स्थथशि में मैं िुम्हें धन्यिाद दे दू ं गा शक िुमने मुझ पर कृपा की। और जो


काम मुझे खुद करना चाशहए था िह िु मने कर शदया। िुम मेरे शमत्र हो। दू सरी
स्थथशि में मैं कह जाऊंगा शक मैंने खोजा, मेरे भीिर िे बुराइयां नहीं शदखीं जो
िुमने बिाईं। िो िुम और शिचार करना। और इसमें िो कोई, इसमें कोई
झगड़े का कारर् नहीं है ।

िह दू सरे शदन आया और उसने कहा शक िुमने जो बािें कहीं, िे मेरे भीिर
हैं । इसशिए मैं धन्यिाद दे िा हं । और भी िुम्हें कोई बुराई कभी मुझमें शदखाई
पड़े , िो संकोच मि करना, मुझे रोकना और बिा दे ना।

ऐसा व्यस्ि होना चाशहए। ऐसा हमारा शचंिन होना चाशहए। ऐसी हमारी दृशष्ट
होनी चाशहए। और ऐसा आदमी बहुि शदन िक बुराइयों में नहीं रह सकिा,
उसका जीिन िो बदि जाएगा। और इिनी सरििा होनी चाशहए। िो ऐसा
सरि मनुष्य परमात्मा से ज्यादा शदन दू र नहीं रह सकिा। इिनी सरििा
होनी चाशहए। इिनी ह्यूशमशिटी होनी चाशहए। इिनी शिनम्रिा होनी चाशहए
मन की, इिना मुिपन होना चाशहए शक हम अपनी बुराइयां दे ख सकें,

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अपने ठीक-ठीक व्यस्ित्व को दे ख सकें, और झूठे व्यस्ित्व से बचने का
साहस कर सकें।

नहीं िो सारे िोग करीब-करीब अशभनेिा हो जािे हैं । जो उनके भीिर नहीं
होिा, उसको ओढ़िे हैं ; जो नहीं होिा, उसको शदखिािे हैं । और िब शफर
शचत्त कशठन और जशटि होिा चिा जािा है ।

छोटी उम्र से अगर यह बोध िुम्हारे मन में आ जाए शक मुझे अपने भीिर कम
से कम अपनी सच्चाई को जानने की सिि चेष्टा में संिग्न रहना चाशहए। जो
भी मेरे भीिर है उसे दे खने का मुझमें साहस होना चाशहए। उसे ढां कना, उसे
ओढ़ना, उसे शछपाना, शकससे शछपाएं गे हम? दू सरों से शछपा िेंगे, िेशकन
खुद से कैसे शछपाएं गे ? और शजस बाि को हम शछपािे चिे जाएं गे , िह शजं दा
रहे गी, िह शमटे गी नहीं। उसे उिाड़ें और दे खें और पहचानें, और जब उसकी
पीड़ा अनुभि होगी, िो उसकी बदिाहट का शिचार, उसको पररिियन करने
का खयाि, उसे स्वथथ करने की िृशत्त भी पैदा होिी है ।

और सबसे बड़ी बाि है , इस सारी प्रशक्रया में शचत्त सरि होिा चिा जािा है ।
इस सारी प्रशक्रया में शचत्त में एक िरह की अदभु ि िां शि और सरििा आने
िगिी है । क्योंशक कुछ शछपाने को नहीं होिा, िो आदमी जशटि नहीं होिा
है । और जो व्यस्ि इिना सजग हो शक उसे अहं कार का भाि न पैदा हो शक
मैं कुछ हं खास। जब उसे ऐसा शदखाई पड़ने िगे --जैसे िास-पाि है , जैसे
िृक्ष हैं , पिु हैं , पक्षी हैं ; जैसे और सारी दु शनया है िैसा मैं हं । इस सारे शिराट
जीिन का एक छोटा सा टु कड़ा, एक अत्यंि छोटा सा अर्ु, मेरा होना कोई
बहुि मूल्य नहीं रखिा, मेरे होने का कोई बहुि अथय नहीं है , मैं शबिकुि ना-
कुछ हं ।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
अगर यह खयाि भीिर शनरं िर बैठिा चिा जाए, िो एक शदन िुम पाओगी,
िुम्हारा मन दपयर् की भां शि शनदोष हो गया। एक शदन िुम पाओगी, िुम्हारे
हृदय में एक ऐसी िां शि आई है , जो अपूिय है । एक शदन िुम पाओगी, एक
सन्नाटा आया है शजसको िुमने कभी नहीं जाना था। एक ऐसा अज्ञाि आनंद
िुम्हारे भीिर प्रशिष्ट हो जाएगा शजसका िुम्हें अभी कोई भी खबर नहीं है ।
और उस शदन िुम्हारे जीिन में नये अंकुरर् होंगे, िुम्हारा जीिन धीरे -धीरे
परमात्मा के जीिन में शिकशसि होने िगे गा।

एक छोटी सी कहानी और मैं चचाय को पूरा करू


ं गा। शफर िुम्हें कुछ प्रश्न होंगे
इस संबंध में, िो िह राशत्र में बाि करू
ं गा।

िाओत्से नाम का एक बहुि अदभु ि फकीर चीन में हुआ। िह इिना शिनम्र
और सरि व्यस्ि था, इिना अदभु ि व्यस्ि था, ऐसे उसकी एक-एक
अंिददृय शष्ट बहुमूल्य है , उसके एक-एक िब्द में इिना अमृि है , उसके एक-
एक िब्द में इिना सत्य है शजनका कोई शहसाब नहीं। िेशकन आदमी िह
बहुि सीधा और सरि था। खुद सम्राट के कानों िक उसकी खबर पहुं ची।
और सम्राट ने कहा शक मैंने सुना है , यह िाओत्से नाम का जो व्यस्ि है बहुि
अशि असाधारर् है , बहुि एक्सटर ा आशिय नरी है ; सामान्यजन नहीं है , बहुि
असामान्य है , बहुि असाधारर् है ।

िो उसके िजीरों ने कहा: यह बाि िो सच है , उससे ज्यादा असाधारर्


व्यस्ि इस समय पृथ्वी पर दू सरा नहीं है ।

सम्राट उसे दे खने गया। सम्राट दे खने गया, िो उसने सोचा था, कोई बहुि
मशहमािािी, कोई बहुि प्रकाि को युि, कोई बहुि अदभु ि व्यस्ित्व का,
कोई बहुि प्रभाििािी व्यस्ि होगा। िेशकन जब िह द्वार पर पहुं चा, िो उस
झोपड़े के बाहर ही छोटी सी बशगया थी और िाओत्से उस बशगया में अपनी

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
कुदािी िेकर शमट्टी खोद रहा था। सम्राट ने उससे पू छा, बागिान िाओत्से
कहां है ? क्योंशक यह िो कोई खयाि ही नहीं कर सकिा था शक यही
िाओत्से होगा। फटे से कपड़े पहने हुए बाहर शमट्टी खोद रहा हो इसकी िो
कल्पना नहीं हो सकिी थी, सीधा-साधा शकसान जैसा मािूम होिा था।

िाओत्से ने कहा: भीिर चिें, बैठें, मैं अभी िाओत्से को बुिा कर आ जािा
हं ।

सम्राट भीिर जाकर बैठा और प्रिीक्षा करने िगा। िह जो िाओत्से था जो


बगीचे में शमट्टी खोद रहा था, िह पीछे के रास्ते से गया, झोपड़े में से अं दर
आया, आकर नमस्कार शकया और कहा: मैं ही िाओत्से हं ।

राजा बहुि है रान हुआ। उसने कहा: िुम िो िही बागिान मािूम होिे हो जो
बाहर थे ।

उसने कहा: मैं ही िाओत्से हं । कसूर माफ करें , क्षमा करें शक मैं छोटा सा
काम कर रहा था। िेशकन आप कैसे आए?

उस राजा ने कहा: मैंने िो सुना है शक िुम बहुि असाधारर् व्यस्ि हो, िुम िो
एकदम साधारर् मािूम होिे हो।

िाओत्से बोिा, मैं शबिकुि ही साधारर् हं । आपको शकसी ने गिि खबर दे


दी।

राजा िापस िौट गया। अपने मंशत्रयों से उसने जाकर कहा शक िुम कैसे
नासमझ हो, एक साधारर् जन के पास मुझे भे ज शदया।

उन सारे िोगों ने कहा: उस आदमी की यही असाधारर्िा है शक िह एकदम


साधारर् है । मंशत्रयों ने कहा: उस आदमी की यही खूबी है शक िह एकदम
साधारर् है । साधारर् से साधारर् आदमी भी यह स्वीकार करने को राजी
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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
नहीं होिा शक िह साधारर् है । उस आदमी की यही खूबी है , यही शिशिष्टिा
है शक उसने कुछ भी असाधारर् होने की इच्छा नहीं की, िह एकदम
साधारर् हो गया है ।

राजा दु बारा गया। और उसने िाओत्से से पूछा शक िुम्हें यह साधारर् होने


का खयाि कैसे पैदा हुआ? िुम साधारर् कैसे बने?

उसने कहा: अगर मैं कोशिि करके साधारर् बनिा, िो शफर साधारर् बन
ही नहीं सकिा था। क्योंशक कोशिि करने में िो आदमी असाधारर् बन
जािा है । नहीं, मुझे िो शदखाई पड़ा, और मैं एकदम साधारर् था, मैंने
अनुभि कर शिया, बना नहीं। मैंने जाना शक मैं साधारर् हं । मैं बना नहीं हं
साधारर्। क्योंशक बनने की कोशिि में िो आदमी असाधारर् बन जािा है ।
मैं बना नहीं, मैंने िो जाना जीिन को, पहचाना, मैंने पाया, मुझे न मृत्यु का
पिा है , न जन्म का पिा है ।

मैंने पाया, यह श्वास क्यों चििी है , यह मुझे पिा नहीं; यह खून क्यों बहिा है ,
यह मुझे पिा नहीं। मुझे भू ख क्यों िगिी है , मुझे प्यास क्यों िगिी है , यह मुझे
पिा नहीं। मैंने पाया, मैं िो शबिकुि अज्ञानी हं । शफर मैंने पाया, मैं िो
शबिकुि अिि हं , मेरी कोई िस्ि नहीं। शफर मैं ने पाया, मैं िो कुछ
शिशिष्ट नहीं हं । जैसी दो आं खें दू सरों को हैं , िैसी दो आं खें मेरे पास हैं ; जैसे
दो हाथ दू सरों के पास हैं , िैसे दो हाथ मेरे पास हैं । मैं िो एक अशि सामान्य
व्यस्ि हं यह मैंने दे खा, पहचाना, मैं साधारर् बना नहीं हं , मैंने िो दे खा और
समझा और पाया, िो मैंने पाया शक मैं साधारर् हं ।

िेशकन यह िटना ऐसे िटी, शक मैं एक जंगि गया था, िाओत्से ने कहा: और
िहां मैंने िोगों को िकशड़यां काटिे दे खा, बड़े -बड़े दरख्त काटे जा रहे थे ,
ऊंचे-ऊंचे दरख्त काटे जा रहे थे , सारा जंगि कट रहा था, बढ़ई िगे हुए थे

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और जंगि कट रहा था, िेशकन बीच जंगि में एक बहुि बड़ा दरख्त था,
इिना बड़ा दरख्त था शक उसकी छाया इिने दू र िक फैि गई थी, िह इिना
पुराना और प्राचीन मािूम होिा था शक उसके नीचे एक हजार बैिगाशड़यां
शिश्राम कर सकिी थीं, इिनी उसकी छाया थी।

िो मैंने अपने शमत्रों से कहा शक जाओ और पूछो, इस दरख्त को कोई क्यों


नहीं काटिा है ? यह दरख्त इिना बड़ा कैसे हो गया? जहां पूरा जंगि कट
रहा है िहां एक इिना बड़ा दरख्त कैसे? जहां सब दरख्त ठूंठ रह गए हैं ,
जहां नये दरख्त काटे जा रहे हैं रोज, िहां यह इिना बड़ा दरख्त कैसे बच
रहा? इसको क्यों िोगों ने छोड़ शदया।

िो मेरे शमत्र और मैं िहां गया, और मैंने िृि बढ़इयों से पूछा, जो िकशड़यां
काटिे थे , शक यह इिना दरख्त बड़ा कैसे हो गया?

उन्ोंने कहा: यह दरख्त बड़ा अजीब है । यह दरख्त शबिकुि साधारर् है ।


इसके पत्ते कोई जानिर नहीं खािे, इसकी िकशड़यों को जिाया नहीं जा
सकिा, िे धुआं करिी हैं । इसकी िकशड़यां शबिकुि ऐड़ीत्ते ड़ी हैं , इनको
काट कर फनीचर नहीं बनाया जा सकिा, द्वार-दरिाजे नहीं बनाए जा
सकिे। दरख्त शबिकुि बेकार है , शबिकुि साधारर् है । इसशिए इसको
कोई काटिा नहीं। िेशकन जो दरख्त सीधा है , और ऊंचा गया है , उसे काटा
जािा है , उसके खंभे बनाए जािे हैं । िाओत्से हटा और िापस िौट आया।
और उसने कहा: उस शदन से मैं समझ गया शक अगर सच में िुम्हें जीिन में
बड़ा होना है , िो उस दरख्त की भां शि हो जाओ जो शबिकुि साधारर् है ,
शजसके पत्ते भी अथय के नहीं, शजसकी िकड़ी भी अथय की नहीं। िो उस शदन
से मैं िैसे ही दरख्त हो गया, बेकार।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
मैंने शफर सारी महत्वाकां क्षा छोड़ दी--बड़ा होने की, ऊंचा होने की।
असाधारर् होने की सारी दौड़ छोड़ दी। क्योंशक मैंने पाया शक जो ऊपर होना
चाहे गा, िह काटा जाएगा। मैंने पाया शक जो बड़ा होना चाहे गा, िह काट कर
छोटा कर शदया जाएगा। मैंने पाया शक प्रशियोशगिा में, प्रशिस्पधाय में,
महत्वाकां क्षा में शसिाय मृत्यु के और कुछ भी नहीं है । और िब मैं अशि
साधारर्, जैसा मैं था, ना-कुछ, चुपचाप िैसे ही बैठ रहा। और शजस शदन मैं ने
सारी दौड़ छोड़ दी, उसी शदन मैंने पाया शक मेरे भीिर कोई अदभु ि चीज का
जन्म हो गया है । उसी शदन मैंने पाया शक मेरे भीिर परमात्मा के अनुभि की
िुरुआि हो गई है ।

जो व्यस्ि साधारर् से साधारर् और सरि से सरि होने को राजी हो जािा


है , सत्य खुद उसके द्वार आ जािा है । और जो व्यस्ि असाधारर् होने की,
शिशिष्ट होने की, बड़ा होने की, महत्वाकां क्षा होने की, अहं कार को िृि
करने की दौड़ में पड़ जािा है , उसके जीिन में असत्य िना से िना होिा
जािा है और सत्य से उसके संबंध सदा के शिए क्षीर् होिे जािे हैं । अंििः,
अंििः उसके पास झूठ का एक ढे र रह जािा है और सत्य की कोई भी
शकरर् नहीं। िेशकन जो सरि हो जािा है , सीधा, साधारर्, सामान्य, उसके
जीिन में झूठ की कोई गुं जाइि नहीं रह जािी, उसके जीिन में सत्य की
शकरर् का जन्म होिा है , और सारा अंधकार समाि हो जािा है ।

ये थोड़ी सी बािें मैं ने कही हैं सरििा के शिए, इन पर शिचार करना, इन पर


सोचना, अपने जीिन में शनरीक्षर् करना और दे खना शक क्या िुम्हारे जीिन में
सरििा बढ़ रही है या जशटििा बढ़ रही है ? अगर जशटििा बढ़ रही हो िो
समझना शक िुमने गिि मागय चुना है --और जीिन के अंि में िुम्हें शिफििा
शमिेगी, दु ख शमिेगा, पीड़ा, शचंिा के अशिररि िुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं
आएगा।

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साक्षी की साधना (साधना शिशिर)
और अगर िुमने सरििा का मागय जीिन में चुना, और स्मरर्पूियक रोज
सरि से सरि होिी गईं, िो िुम पाओगी शक बचपन में जो आनंद था, उससे
बहुि बड़ा आनंद शनरं िर बढ़िा जाएगा। और बुढ़ापा िुम्हारा एक अदभु ि
गौरि-किि की भां शि होगा, शजसमें आनंद की पू री छाया, शजसमें आनंद की
पूरी अनुभूशि, शजसमें एक आं िररक सौंदयय, सत्य का एक बि, और शजसमें
आं िररक रूप से अमृि का अनुभि, उसका अनुभि शजसकी कोई मृत्यु नहीं
होिी है , उपिब्ध होिा है । इन पर िुम शिचार करना, इन पर िुम सोचना
और अपने जीिन से िोिना शक िुम्हारे जीिन की शदिा क्या है ।

स्मरर् रहे , जो व्यस्ि भी परमात्मा की शदिा के प्रशिकूि जािा है िह अपने


ही हाथों अपने को नष्ट कर िेिा है । और जो व्यस्ि परमात्मा की शदिा में
चरर् उठािा है , िह धीरे -धीरे शिकशसि होिा है , उसके भीिर अनुभूशियां
िनी होिी हैं , उसके जीिन में अथय आिा है , उसके जीिन में बहुि आं िररक
संपदा आिी है , और अंििः उसे कृिाथय िा और धन्यिा का अनुभि होिा है ।

इन बातोां को इतनी िाांशत और प्रेम से तुम सुनती रही हो, उसके शलए
बहुत-बहुत धन्यिाद। जो तुम्हारे प्रश्न होां, िह मैं रात उत्तर दे सकूांगा।

समाि

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