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11 िहंदी कोर
पुनरावृित नो स
पाठ 1 नमक का दरोगा

पाठ का सारांश - ‘नमक का दरोगा’ ेमचंद क बहचिचत कहानी है जो आदश मुख यथाथवाद का एक मुक मल उदहारण है | यह
कहानी धन के ऊपर धम क जीत है | ‘धन’ और ‘धम’ को मश: स ृ और अस ृ , बुराई और अ छाई, अस य और स य
कहा जा सकता है | कहानी म इनका ितिन ध व मशः पंिडत अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पा ने िकया है | ईमानदार
कमयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने म असफल रहने के बाद पंिडत अलोपीदीन अपने धन क मिहमा का उपयोग कर उ ह नौकरी से
हटवा देते है, लेिकन अंत: स य के आगे उनका सर झुक जाता है | वे सरकारी िवभाग से बखा त वंशीधर को बहत ऊँचे वेतन और
भ े के साथ अपनी सारी जायदाद का थायी मैनेजर िनयु करते है और गहरे अपराध-बोध से भरी हई वाणी म िनवेदन करते है –

“परमा मा से यही ाथना है िक वह आपको सदैव वही नदी के िकनारे वाला बेमुरौवत, उ ंड, िकंतु धमिन दरोगा बनाए रखे |”

नमक का िवभाग बनने के बाद लोग नमक का यापार चोरी-िछपे करने लगे | इस काले यापार से ाचार बढ़ा | अ धकारीय के
पौ-बारह थे | लोग दरोगा के पद के लए लालाियत थे | मुंशी वंशीधर भी रोज़गार को मुख मानकर इसे खोजने चले | इनके िपता
अनुभवी थे | उ ह ने घर क ददु शा तथा अपनी वृ ाव था का हवाला देकर नौकरी म पद क और यान न देकर ऊपरी आय वाली
नौकरी को बेहतर बताया | वे कहते है िक मा सक वेतन तो पूणमासी का चाँद है जो एक िदन िदखाई देता है और घटते-घटते लु
हो जाता है | ऊपरी आय बहता हआ ोत है जससे सदैव यास बुझती है | आव यकता व अवसर देखकर िववेक से काम करो |
वंशीधर ने िपता ने क बात यान से सुन ओर चल िदए | धैय, बुि आ मावलंबन वा भा य के कारण नमक िवभाग के दरोगा पद पर
िति त हो गए | घर म खुशी छा गई |

सद के मौसम क रात म नमक के सपाही नशे म म त थे | वंशीधर ने छह महीने म ही अपनी कायकुशलता व उ म आचार से
अफसर का िव वास जीत लया था | यमुना नदी पर बने नाव के पुल से गािड़य क आवाज़ सुनकर वे उठ गए | उ ह गोलमाल
िक शंका थी | जाकर देखा तो गािडय क कतार िदखाई दी | पूछताछ पर पता चला िक उसम नमक है |

पंिडत अलोपीदीन अपने सजीले रथ म ऊँघते हए जा रहे थे तभी गाड़ी वाल ने गािड़याँ रोकने क खबर दी | पंिडत सारे संसार म
ल मी को मुख मानते थे | याय, िनित सब ल मी के खलौने है | उसी घमंड म िन चत होकर दरोगा के पास पहँचे | उ ह ने
कहा िक मेरी सरकार तो आप ही है | आपने यथ ही क उठाया | म सेवा म वयं आ ही रहा था | वंशीधर पर ईमानदारी का नशा
था | उ ह ने कहा िक हम अपना ईमान नही बेचते | आपको गर तार िकया जाता है |

यह आदेश सुनकर पंिडत अलोपीदीन हैरान रह गए | यह उनके जीवन क पहली घटना थी | बदलू संह उसका हाथ पकड़ने से
घबरा गया, िफर अलोपीदीन ने सोचा िक नया लड़का है | दीनभाव म बोले-आप ऐसा न कर | हमारी इ जत िम ी म िमल जाएगी
| वंशीधर ने साफ़ मना कर िदया | अलोपीदीन ने चालीस हजार तक क र वत देनी चाही, परंतु वंशीधर ने उनक एक न सुनी |
धम ने धन को पैर तले कुचल डाला |

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सुबह तक हर जबान पर यही िक सा था | पंिडत के यवहार िक चार तरफ िनंदा हो रही थी | भी उसक िनंदा कर रहे थे |
अगले िदन अदालत म भीड़ थी | अदालत म सभी पंिडत अलोपीदीन के माल के गुलाम थे | वे उनके पकडे जाने आ मण को
रोकने के लए वक ल क फ़ौज तैयार क गई | याय के मैदान म धम और धन म यु ठन गया | वंशीधर के पास स य था, गवाह
लोभ से डाँवाडोल थे |

मुंशी जी को याय म प पात होता िदख रहा था | यहाँ के कमचारी प पात करने पर तुले हए थे | मुक़दमा शी समा हो गया |
िड टी म ज टेट ने लखा िक पंिडत अलोपीदीन के िव माण आधारहीन है | वे ऐसा काय नही कर सकते | दरोगा का दोष
अ धक नही है, पर तु एक भले आदमी को िदए क के कारण उ ह भिव य म ऐसा न करने क चेतावनी दी जाती है | इस फैसले से
सबक बाँछे खल गई | खूब पैसा लुटाया गया जसने अदालत क न व तक िहला दी | वंशीधर बाहर िनकले तो चार तरफ से
यं य क बात सुनने को िमल | उ ह याय, िव वता, उपा धयाँ आिद सभी िनरथक लगने लगे |

वंशीधर क बखा तगी का प एक स ाह म ही आ गया। उ ह क यपरायणता का दंड िमला। दख


ु ी मन से वे घर चले। उनके िपता
खूब बड़बड़ाए। यह अ धक ईमानदार बनता है। जी चाहता है िक तु हारा और अपना सर फोड़ लूँ। उ ह अनेक कठोर बात कह । माँ
क तीथया ा क आशा िम ी म िमल गई। प नी कई िदन तक मुँह फुलाए रही।

एक स ाह के बाद अलोपीदीन सजे रथ म बैठकर मुंशी के घर पहँचे। वृ मुंशी उनक चापलूसी करने लगे तथा अपने पु को कोसने
लगे। अलोपीदीन ने उ ह ऐसा कहने से रोका और कहा िक कुलितलक और पु ष क क ित उ वल करने वाले संसार म ऐसे िकतने
धमपरायण मनु य ह जो धम पर अपना सब कुछ अपण कर सक। उ ह ने वंशीधर से कहा िक इसे खुशामद न सम झए। आपने मुझे
परा त कर िदया। वंशीधर ने सोचा िक वे उसे अपमािनत करने आए ह, परंतु पंिडत क बात सुनकर उनका संदेह दरू हो गया।
उ ह ने कहा िक यह आपक उदारता है। आ ा दी जए।

अलोपीदीन ने कहा िक नदी तट पर आपने मेरी ाथना नह सुनी, अब वीकार करनी पड़ेगी। उसने एक टांप प िनकाला और पद
वीकारने के लए ाथना क । वंशीधर ने पढ़ा। पंिडत ने अपनी सारी जायदाद का थायी मैनेजर छह हजार वािषक वेतन, रोजाना
खच, सवारी, बंगले आिद के साथ िनयत िकया था। वंशीधर ने काँपते वर म कहा िक म इस उ च पद के यो य नह हँ। ऐसे महान
काय के लए बड़े अनुभवी मनु य क ज रत है।

अलोपीदीन ने वंशीधर को कलम देते हए कहा िक मुझे अनुभव, िव ता, मम ता, कायकुशलता क चाह नह । परमा मा से यही
ाथना है िक वह आपको सदैव वही नदी के िकनारे वाला बेमुरौवत, उ ंड, कठोर, परंतु धमिन दरोगा बनाए रखे। वंशीधर क आँ ख
डबडबा आई। उ ह ने काँपते हए हाथ से मैनेजरी के कागज पर ह ता र कर िदए। अलोपीदीन ने उ ह गले लगा लया।

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