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अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

टीम कोड : 023

सम्मानित सत्र न्यायलय, आर्यगढ़

एस.सी. क्र.._____/ 2019

राज्य………………………………………..(अभियोजनकर्ता)

बनाम

गुल है दर और अन्य……………………………….(अभियुक्त)

दं ड प्रक्रिया संहिता की धारा 177 के अंतर्गत

अभियक्
ु त की तरफ से मेमोरियल
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

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तत

विचाय सूचि

 संक्षिप्त शब्दों की सच
ू ी

 प्रधिकारी की सच
ू ी

 क्षेत्राधिकारी का कथन

 तथ्य विलेशव

 मद्द
ु े

 तर्कों का सार

 लिखित तर्क
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तत

संक्षिप्त शब्दों की सूची


अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

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तत

प्रधिकारी की सच
ू ी
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क्षेत्राधिकारी का कथन

The Hon’ble Court has jurisdiction to try the instant matter under Section 177 read with Section

209 of the Code of Criminal Procedure, 1973.

Section 177: ‘

177. Ordinary place of inquiry and trial: Every offence shall ordinarily be inquired into and

tried by a Court within whose local jurisdiction it was committed.’

Read with Section 209: ‘

209. Commitment of case to Court of Session when offence is triable exclusively by it:

When in a case instituted on a police report or otherwise, the accused appears or is brought

before the Magistrate and it appears to the Magistrate that the offence is triable exclusively by

the Court of Session, he shall- (a) commit the case to the Court of Session; (b) subject to the

provisions of this Code relating to bail, remand the accused to custody during, and until the

conclusion of, the trial; (c) send to that Court the record of the case and the documents and

articles, if any, which are to be produced in evidence; (d) notify the Public Prosecutor of the

commitment of the case to the Court of Session.’

STATEMENT OF JURISDICTION
THE PROSECUTION HAS APPROACHED THIS HON’BLE SESSIONS COURT UNDER SECTION
26 R/W SECTION 28 R/W SECTION 177 R/W SCHEDULE I OF THE CODE OF CRIMINAL
PROCEDURE, 1973, WHICH READS AS HEREUNDER:
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S. 26. Courts by which offences are triable:


Subject to the other provisions of this Code,-
(a) Any offence under the Indian Penal Code (45 of 1860) may be tried by-
(i) …
(ii) The Court of Session
(iii)…
S. 28. Sentences which High Courts and Sessions Judges may pass:
(1) …
(2) A Sessions Judge or Additional Sessions Judge may pass any sentence authorised by law; but any
sentence of death passed by any such Judge shall be subject to confirmation by the High court
(3) …
S. 177. Ordinary place of inquiry and trial
Every offence shall ordinarily be inquired into and tried by a Court within whose local jurisdiction it

was committed.
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तथ्य विलेशव

पष्ृ ठभूमि

रामपाल एक ३५ वर्षीय माधियंम वर्गी निवेश बैंकर है और हे मंत कुमार ४५ वर्षीय उच्च स्तरीय

व्यापारी है जो की बहादरु गढ़ के निवासी हैं। हे मंत कुमार ने रामपाल को Rs. २०००००० की

नगद धनराशि निवेश बाजार में लगाने के लिए दी। दो वर्ष के दौरान रामपाल ने अपना घर

पक्का कर I लिए किन्तु जब हे मंत कुमार ने दी हुई धनराशि वापस मांगी तोह रामपाल ने

बताय की धनराषि डूब चक


ु ी है । दिनाक २०/०६/२०१५ को हे मंत कुमार रामपाल के घर गया और

उसको आक्रोश में आकर यह धमकी दी की वह उसका पारिवारिक जीवन नष्ट कर दे गा यदि

उसने लिया हुआ धन वापस नहीं लौटाया तो।

घटना

दिनाक २४/०६/२०१५ को रामपाल के पडोसी सरु ें द्र जी ८० वर्षीय ने दे खा की रामपाल की पत्रि


ु या

रिंकी १५ वर्षीय और प्रिया १७ वर्षीय को शाम के ८:०० बजे टूशन से लौटते दौरान एक पिली

गाडी आई और कुछ लड़के ज़बरदस्ती उनको उठा कर ले गए। किन्तु वह गाडी का नंबर पढ़ने

में असमर्थ रहे । जब इसकी खबर उन्होंने रामपाल को दे ना चाही तोह रामपाल घर पर मौजूद

नहीं था। चिंतित सुरेंद्र जी थाने गए और वह से रामपाल को खबर करवाई|

पलि
ु स द्वारा जांच पड़ताल
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पलि
ु स की पड़ताल पर रामपाल ने बताया की उसके ग्राहक हे मंत कुमार के पास भी एक पिली

गाडी है , परन्तु कई दिनों से मस


ू लाधार बारिश के कारण पलिस की जांच पड़ताल ढीली पद

गयी थी। दिनाक ०५/०७/२०१५ को सब


ु ह ५:०० बजे पंचायत घर के सफाई कर्मचारी कल्लू (३०

वर्षीय) ने पलि
ु स को सूचना दी की दो लड़किया मर्छि
ू त अवस्था में मिली हैं। पलि
ु स के पहचने

पर ज्ञात हुआ की वो दोनों लड़किया कोई और नहीं बल्कि रामपाल की गम


ु शुदा लड़कियां थी।

चिकत्सा रिपोर्ट

अस्पताल लेजाने पर पता चला की प्रिय की मत्ृ यु हो चुकी है और रिंकी की हालत थोड़ी गंभीर

है । रिपोर्ट में ये आया की दोनों लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया है किन्तु पानी में

ज़्यादा दे र रहने के कारण लड़कियों के शरीर में वीर्य की प्राप्ति नहीं हुई। उनके हाथ पेअर

किसी मज़बूत चीज़ से बांधे हुए थे तथा उनके रक्त में रोहिपनॉल नामक ड्रग काफी मात्रा में

था। प्रिय के शरीर पर संघर्ष के निशान हैं और उसकी मत्ृ यु का कारण रक्त की हानि था।

पीड़िता का बयान

रिंकी ने बताया की जब वह घर लौट रही थी तभी एक पिली गाड़ी में कुछ नकाबपोश लड़के

उन्हें बेहोश करके उठा लेगये। होश आने पर उसने यह दे खा की उसकी आँखों पे पट्टी व हाथ

पेअर बंधे हुए थे और शरीर में असहनीय पीड़ा हो रही थी तथा उसकी बेहेन की चीखों की

आवाज़ें आ रही थी। दब


ु ारा होश आने पर उसने कुछ लोगो को किसीकी मत्ृ यु के बारे में बात

करते हुए सुना किन्तु तभी किसीने उसके सर पर तीव्र प्रहार कर दिया जिसके पश्चात उसे कुछ

याद नहीं।

पलि
ु स द्वारा जांच पड़ताल
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हे मंत कुमार से पछ
ू ताछ करने पर पता लगा की २४/०६/२०१५ से ०४/०७/२०१५ तक वह विदे श

यात्रा पर था तथा सी सी टी वि फुटे ज एवं मोबाइल ट्रै क भी उब्लब्ध था। उसके घर से हवाई

अड्डे की दरू ी १:३० घंटे की थी। ११ बजे की हवाई यात्रा के लिए वह १० बजे ही पहच गया था।

पुलिस की जांच में यह पाया गया की उसकी गाडी की पिछली गद्दी सिलवाई गयी थी।

आरोपी का बयान

पुलिस की पूछताछ करने पर हे मंत ने यह बताय की उसने वो धमकी आक्रोश में आकर दी थी

परन्तु उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था जिसका फ़ायदा उठा कर रामपाल उससे फसा रहा है ।

हे मंत ने यह भी बताया की रामपाल एक शक्की मिज़ाज़ व अपरिवर्तनवादी सोच वाला आदमी

है । उसने अपनी दोनों बेटियों का दाखिला एक अच्छे अंग्रेजी विद्यालय से हटवा कर पास के ही

सरकारी कन्या विद्यालय में करवलिया सिर्फ इस वजह से की उसकी बेटी प्रिय के किसी लड़के

के साथ प्रेम सम्बन्ध हैं। उससे आशंका हुई की वह अब भी उस लड़के के साथ सम्बन्ध में हैं

जिसके कारण वह अपनी बेटियों को मारता पीटता था। अपने सम्मान के लिए वह किसी भी

हद्द तक जा सकता था।

परिणामस्वरूप

रामपाल के शक्ति मिज़ाज़ के बारे में पाशा, कुबेर और सुरेंद्र जी ने भी बताया है और वह अपनी

लड़कियों पर भट पावण्डियां भी लगाता है । सारे सबत


ू ों व बयानों को मद्दे नज़र रखते हुए पलि
ु स

ने हे मंत को गिरफ्तार करलिया है ।


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मुद्दे

o मुद्दा 1 - क्या सुरेंद्र जी जो ८० साल के हैं उनका गवाह होना वाजिब है ?

o मुद्दा 2 क्या गाडी की गद्दी फटी मिलना परिस्तिथिजन्य साक्ष्य गिरफ्तारी के

लिए पर्याप्त है ?

o मद्द
ु ा 3- हे मंत कुमार के अनस
ु ार हत्या रामपाल ने करवाई है । हां या न

दोनों ही परिस्थतियों में जैसा आप सोचते हैं तर्क दे कर सिद्ध करें ।

o मुद्दा 4- क्या हे मंत कुमार अपहरण व बलात्कार के लिए उत्तरदायी होगा?


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तर्कों का सार

मुद्दा 1 - क्या सुरेंद्र जी जो ८० साल के हैं उनका गवाह होना वाजिब है ?

मुद्दा 2 क्या गाडी की गद्दी फटी मिलना परिस्तिथिजन्य साक्ष्य गिरफ्तारी के लिए

पर्याप्त है ?

मद्द
ु ा 3- हे मंत कुमार के अनस
ु ार हत्या रामपाल ने करवाई है । हां या न दोनों ही

परिस्थतियों में जैसा आप सोचते हैं तर्क दे कर सिद्ध करें ।

मुद्दा 4- क्या हे मंत कुमार अपहरण व बलात्कार के लिए उत्तरदायी होगा?


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लिखित तर्क

मुद्दा 1 - क्या सुरेंद्र जी जो ८० साल के हैं उनका गवाह होना वाजिब है ?

Numerous Judges have observed, that in India the rule generally is in favour of the
admission of evidence, though the weight to be attached to it will, of
course, be a matter for the Court's consideration.1

किसी भी साक्ष्य के स्वीकार्य होने के लिए मुद्दे में एक तथ्य के लिए प्रासंगिक होना चाहिए या

मामले की पष्ृ ठभूमि की व्याख्या के लिए योगदान करना चाहिए। इस मामले में गवाह का बयान

घटना की स्पष्ट पष्ृ ठभमि


ू दे ता है ।

गवाह के बयान को वद्ध


ृ ावस्था के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि गवाह तर्क संगतता

की कसौटी पर खरा उतरता है । इसके अलावा पीड़िता की गवाही द्वारा भी उसके बयान की पष्टि

की जा सकती है |

1.1 गवाह की योग्यता के अनम


ु ान का सामान्य नियम

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118, 1872 गवाहों की

योग्यता की बात करती है । एक सामान्य नियम के रूप में हर गवाह एक सक्षम गवाह है ।

1
Govind Balvant Laghate v. Emperor, AIR 1916 Bom 229
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हालाँकि, उनकी अक्षमता एक अपवाद है । एक वद्ध


ृ व्यक्ति के साक्ष्य के मल्
ू यांकन में अविश्वास

के अनम
ु ान के साथ शरू
ु करने का कोई कारण नहीं है । समझ क्षमता का एकमात्र परीक्षण है |
2

निम्नलिखित गवाह अपवादों के भीतर आते हैं। वे, जो कानन


ू की अदालत के विचार में हैं (1)

उनके लिए लगाए गए प्रश्नों को समझने में असमर्थ हैं, या (2) निम्नलिखित कारणों से उन

सवालों के तर्क संगत उत्तर दे ने में असमर्थ हैं। कारण: (i) कोमल आयु, (ii) अति वद्ध
ृ ावस्था, (iii)

मन या शरीर का रोग, या (iv) कोई अन्य कारण।

आर सेल्वाराजा बनाम एस लथा में कहा गया था की –


3

“बौद्धिक क्षमता साक्षी की क्षमता का प्रमुख परीक्षण है । उम्र की सीमा, या ज्ञान और बुद्धि की

डिक्री के रूप में कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता है , जो बहिष्कार का आधार

होगा। वास्तव में बोलना, उनकी योग्यता उम्र पर निर्भर नहीं करती है , क्योंकि एक ही उम्र के

व्यक्ति मानसिक क्षमता में भिन्न होते हैं। समझने की क्षमता, और नाकि उम्र , इस न्यायालय

की राय में योग्यता का निर्धारण कारक है । गवाह के साक्ष्य के मूल्यांकन में अविश्वास की

धारणा के साथ शुरू करने का कोई कारण नहीं है ।“

2
Ram Jolaha v. Emperor, AIR 1927 Pat 406.
3
2013 - 2 – L.W 958
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राज्य बनाम एलन में यह दे खा गया कि गवाह के विरोध करने वाले पक्ष पर गवाह की अक्षमता
4

साबित करने का बोझ है । न्यायालय किसी भी गवाह की योग्यता का निर्धारण करते समय 5

कारकों पर विचार करता है । उनमें से किसी की अनप


ु स्थिति व्यक्ति को गवाही दे ने के लिए

अक्षमता प्रदान करती है । वो हैं-

(१) गवाह स्टैंड पर सच बोलने की बाध्यता की समझ;

(२) उस घटना के समय की मानसिक क्षमता जिसके विषय में वह गवाही दे ना है , ताकि उसकी

सही धारणा प्राप्त कर सके;

(3) घटना के एक स्वतंत्र स्मरण को बनाए रखने के लिए पर्याप्त स्मति


ृ ;

(4) शब्दों में उसकी घटना को याद करने की क्षमता; तथा

(५) घटना के बारे में सवालों को समझने की क्षमता।

An eye witness, who has no motive to lie is a powerful form of evidence for

juror. जैसा कि इस मामले के तथ्यों से स्पष्ट है कि सुरेन्द्र जी परिस्थितियों को समझने में

सक्षम थे और इसलिए उन्होंने रामपाल को सूचित करने और उनकी अनुपस्थिति में तुरंत पुलिस

थाने पहुंचकर तर्क संगत तरीके से कार्य किया। इसलिए घटना के समय गवाह के कार्यों से,

सुसग
ं तता के साथ-साथ गवाह के विचार की स्पष्टता पर्याप्त साबित होती है ।

4
70 Wn.2d 690, 424 P.2d 1021 (1967)
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1.2 पीड़िता के बयान से गवाह के बयान को पष्टि


एक बार अदालत में सबत


ू स्वीकार्य होने के बाद उस पर कार्रवाई हो सकती है । मंडन, जब तक

कि क़ानन
ू द्वारा आवश्यक नहीं है , केवल सबत
ू का वजन और मल्
ू य दे ता है ।
5

एक यौन अपराध के अभियोजक को सह-अपराधी के साथ सममूल्य पर नहीं रखा जा सकता है ।

वह वास्तव में अपराध का शिकार है । साक्ष्य अधिनियम में कहीं नहीं कहा गया है कि उसके

साक्ष्य को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे पुष्टि न दी जाए। वह

निस्संदेह S.118 के तहत एक सक्षम गवाह है और उसके साक्ष्य को वैसा ही वजन प्राप्त करना

चाहिए जैसा कि शारीरिक हिंसा के मामलों में किसी घायल को दिया जाता है |
6

]सुरेंद्र जी का बयान अभियुक्तों के खिलाफ तथ्यों की संभावना को बढ़ाता है और इसे स्पष्ट

बनाता है ।और मामले में आरोपियों की भागीदारी स्थापित करने के लिए आवश्यक वजन है ।

To be admissible, any evidence must be relevant to a fact in issue or


contribute towards an explanation of the background to the case.
As held in the English case of DPP v Kilbourne, evidence is relevant if it
makes the matter which requires proof, more or less probable.‟

मुद्दा 2 क्या गाडी की गद्दी फटी मिलना परिस्तिथिजन्य साक्ष्य गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त है ?

5
Namdeo vs State Of Maharashtra
6
Ganga Singh vs State of Madhya Pradesh AIR 2013 SC 3008
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CRIMINAL INTIMIDATION***

यह विनम्रतापर्व
ू क इस माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तत
ु किया गया है कि इस मामले में

परिस्थितिजन्य साक्ष्य यह दर्शाता है कि सभी मानवीय संभावनाओं के भीतर, कार्य आरोपी

द्वारा ही किया जा सकता है |

यह अच्छी तरह से तय सिद्धांत है कि जहां मामला मख्


ु य रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर

आधारित है , अदालत को खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि साक्ष्य की श्रंख


ृ ला में विभिन्न

परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है और पूर्ण श्रंख


ृ ला ऐसी है की वह

अभियुक्त की बेगुनाही की उचित संभावना को खारिज करती है ।


7

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर दोष सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है तो न्यायालय को

निम्नलिखित पाँच बातों से संतुष्ट होना चाहिए:


8

i. जिन परिस्थितियों से अपराधबोध का निष्कर्ष निकालना है , उन्हें पूरी तरह से सिद्ध किया

जाना चाहिए। परिस्तिथियों का होना केवल एक संभावना नहीं होनी चाहिए;

ii. स्थापित किए गए तथ्य केवल आरोपियों के अपराध की परिकल्पना के अनुरूप होना

चाहिए, अर्थात ् उन्हें किसी अन्य परिकल्पना पर समझाया नहीं जाना चाहिए सिवाय

इसके कि अभियुक्त दोषी है ;

iii. परिस्थितियाँ एक निर्णायक प्रकृति और प्रवत्ति


ृ की होनी चाहिए;

iv. इसे सिद्ध किए जाने वाले परिकल्पना के अलावा हर संभव परिकल्पना को बाहर करना

चाहिए;

7
Mohan Lal v. State of Uttar Pradesh AIR 1974 SC 1144
8
Sharad Bircichand Sarda v State of Maharashtra, AIR 1984 SC 1622
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v. आरोपियों की बेगन
ु ाही के अनरू
ु प निष्कर्ष के लिए कोई उचित आधार नहीं छोड़ने के लिए

सबूतों की एक श्रंख
ृ ला इतनी पूरी और सक्षम होनी चाहिए और उससे यह साबित होना

चाहिए कि सभी मानवीय संभाव्यता में अभियक्


ु त द्वारा ही आपराधिक कार्य किया जा

सकता है

ये पांच सुनहरे सिद्धांत परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर एक मामले के सबूत के "पंचशील"

का गठन करते हैं। निष्कर्ष निकालने में , कानून का असली नियम वह नियम है जिसके लिए

यह आवश्यक है कि अपराध का अनुमान न लगाया जा सके जब तक कि केवल वही निष्कर्ष न

हो, जो मामले की परिस्थितियों से स्पष्ट होता है और कोई अन्य असत्य निष्कर्ष नहीं निकाला

जा सकता है |

बख्शीश सिंह बनाम पंजाब राज्य में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “परिस्थितिजन्य
9

साक्ष्यों के आधार पर एक मामले में सामने आई परिस्थितियों को संतोषजनक साबित किया

जाना चाहिए और उन परिस्थितियों को केवल अभियक्


ु तों के अपराध की परिकल्पना के अनरू
ु प

होना चाहिए। वे परिस्थितियाँ एक निर्णायक प्रकृति और प्रवत्ति


ृ की होनी चाहिए|

आरोपियों की बेगुनाही के अनुरूप निष्कर्ष के लिए किसी भी उचित आधार को न छोड़ने के लिए

सबत
ू ों की एक श्रंख
ृ ला इतनी परू ी होनी चाहिए और उससे यह साबित होना चाहिए कि सभी

मानवीय संभाव्यता में आपराधिक कृत्य अभियुक्त द्वारा ही किया गया है ।


10

मधु बनाम कर्नाटक राज्य में माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य ही

सजा का एकमात्र आधार हो सकता है ।


11

9
AIR 1971 SC 2016:1971 CriLJ 1452:(1971) 3 SCC 182
10
State of Uttar Pradesh v Satish, (2005) 3 SCC 114:AIR 2005 SC 1000
11
AIR 2014 SC 394
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अभियक्
ु तो का कृत्य इस तरीके से किया गया है की वह एक साथ बना जा सके ताकि

परिस्तिथियों का नेटवर्क बनाया जा सके जो केवल उनके अपराध की ओर इशारा करता यह| यह

संयोग भी उनके खिलाफ कई परिस्तिथियों को समझा नहीं सकता था, और उनकी निर्दोषता की

धरना को नाश्ता करदे ता है |


12

इसे माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है इस वर्तमान मामले में :

परिस्थितियाँ पूरी तरह से स्थापित हैं

प्रतिवादी के पैसे वापस करने में अभियोजन की विफलता के कारण, प्रतिवादी अभियोजन पक्ष को

उसके परिवार को नष्ट करने की धमकी दे ता है ।

यह स्पष्ट रूप से अभियुक्त की ओर से अपराध करने के इरादे को दर्शाता है | उसके उपरांत घंटा

के वक़्त पिली गाड़ी का शामिल होना और घंटा घटित होने के तुरंत बाद हे मंत कुमार का विदे श

भाग जाना तथा लड़कियों के मिलने से एक दिन पहले वापस आना साडी परिस्तिथियों की

शरणकाला का निर्माण करता है | इसके अलावा, यह तथ्य कि हे मत


ं कुमार राजनीति में भट पहुँच

और लड़कियों का पंचायत घर के सफाई कर्मचारी कल्लू को मिलना महज़ एक इत्तेफाक नहीं है |

परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर मामलों में , अपराध को सही ठहराने के लिए, सभी तथ्यों और

परिस्थितियों को आरोपी की निर्दोषता या किसी अन्य व्यक्ति के अपराध के विपरीत होना चाहिए

और उसके अपराध की तुलना में किसी अन्य उचित परिकल्पना पर स्पष्टीकरण दे ने में असमर्थ

होना चाहिए|
13
इंसान झूट बोल सकते हैं झूट छुपा सकते हैं पर परिस्तिथिया नहीं| सारी

परिस्तिथियों को दे ख के एक ही निष्कर्ष निकलता है की आरोपी दोषी हैं।

12
Anant chintamani vs state of Bombay
13
Hukam v State, AIR 1977 SC 1063, C. Chenga Reddy v State of A.P, (1996) 10 SCC 193
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तत

हे मंत का रामपाल को उसका पारिवारिक जीवन नष्ट करने की धमकी दे ना उसका इरादा दर्शाता

है |

ब्लाक लॉ डिक्शनरी
14
के अनस
ु ार इरादा, उद्देश्य को दर्शाता है जिसके लिए कृत्य किया गया है

और मकसद वे होता है जो कृत्य के लिए उत्तेजित करे |


15

धरा 8
16
के अनुसार कोई भी तथ्य प्रासंगिक है जो दिखता है या मुद्दा या प्रासंगिक तात्या में

किसी भी तात्या के लिए एक मकसद या तैयारी का गठन करता है , या प्रासंगिक तथ्य में किसी

भी तथ्य के लिए एक मकसद या तयारी को दर्शाता है या बना दे ता है |

राममुन बनाम। सम्राट , यह माना गया था कि मकसद और कार्य के बीच संबंध कारण और
17

प्रभाव के बीच संबंध के समान है , और एक कार्य किसी मकसद के बिना वैसे ही अधूरा है जैसे

एक प्रभाव किसी कारण के बिना अधूरा है | यदि किसी व्यक्ति पर अपराध किया जाता है , तो

यह तथ्य कि उसके पास ऐसा करने का कोई मकसद नहीं था, यह उसके पक्ष में एक परिस्थिति

है , क्योंकि यह उसकी निर्दोषता को मजबूत करता है । दस


ू री ओर, जहां किसी आरोपी व्यक्ति के

अपराधबोध के अन्य सबत


ू हैं, मकसद का अस्तित्व उसके खिलाफ मामले का एक

परिस्थितिजन्य है ।

पार्श्वनाथ बनाम कर्नाटक राज्य , इस मामले में यह आयोजित किया गया था कि जब मामला
18

परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित होता है , तो मकसद के प्रमाण मल


ू भत
ू सामग्री प्रदान करते

हैं। सिवराजन बनाम स्टे ट


19
इस मामले में यह माना गया था कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य की

14
१०वी संस्करण २०१४
15
इस रघुबीर सिंह संथालिया बनाम आयकर आयुक्त, पंजाब PUN 1957 SCC ONLINE P and H 138
16
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
17
7 L 84
18
AIR 2010 SC 2914
19
ILR 1959 Kerala 319
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तत

श्रंख
ृ ला में मकसद एक अनिवार्य लिंक नहीं है , फिर भी यह एक महत्वपर्ण
ू भमि
ू का निभाता है

और एक पूर्ण श्रंख
ृ ला बनाने में मदद करता है ।

अपराध परीहश्य में हे मंत कुमार की पिली गाड़ी ही उसकी उपस्तिथि दर्शाती है और यह की वह

पीड़िताओं का अपहरण और बलात्कार के लिए पर्व


ू नियोजित उद्देश्य के साथ आया था|

रे ह दे वा श्याम
20
में , माननीय मदर्स उच्चय न्यायालय में यह कहा की "आरोपी के आपराधिक

इरादे की इस्थापना में ज्ञान और मकसद मह्त्वपूण है |

जैसा की वाद समाया में स्पष्ट रूप से ये बताया गया है की अभियोजन पक्ष की पैसे लौटाने की

विफलता के कारन बचाव पक्ष का स्पष्ट इरादा था कि अभियोजन पक्ष को पैसे वापस करने के

लिए मजबूर किया जा सके| मकसद वह भावना है जो एक आदमी को एक विशेष कार्य करने के

लिए प्रेरित करती है और इस तरह की प्रेरणा के कारन ज़रूरी नहीं की अपराध को करने के लिए

आनुपातिकता करता हो|


21

इसके अलावा, अभियुक्त की ओर से धमकी स्पष्ट रूप से अभियुक्त की ओर से अपराध करने

का इरादा दिखाती है । इसलिए मामले में मकसद और इरादा दोनों स्पष्ट रूप से स्थापित हैं|

इस मामले में आपराधिक मानिस्तिथि साबित करने के लिए ज्ञान होना आवश्यक है |
22

जैसा कि ववाद समस्या में स्पष्ट रूप से सिद्ध है कि रामपाल और हे मंत कुमार दोनों ने घटना

से पहले एक सौहार्दपूर्ण संबंध साझा किया था। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसे प्रिय

और रिंकी के टूशन के आने जाने के वक़्त का भान न हो| इसलिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा

अभियक्
ु त का अपराधबोध पर्याप्त रूप से स्थापित हो चक
ू ा है |

20
1962 1 MLJ
21
Nathuni Yadav v State of Bihar AIR 1997 SC 1808
22
ऐ आर राष्ट्रीय आई पि सी वॉल्यम ू ३ २६६७ (इस के सावरिया) १०वी संस्करण 2008
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

मद्द
ु ा 3- हे मंत कुमार के अनस
ु ार हत्या रामपाल ने करवाई है । हां या न दोनों ही परिस्थतियों में

जैसा आप सोचते हैं तर्क दे कर सिद्ध करें ।

न्यायालय के समक्ष यह दलील दी जाती है की हे मंत कुमार भारतीय दं ड संहिता की धरा ३०२ के

तहत दोषी है । धरा ३०० के अनुसार, ये ज़रूरी नहीं की धरा ३०० में दी हुई सभी शर्तें, किसी

हत्या के साबित करने के लिए पूरी की जाए, अगर धरा ३०० में रे खांकित शर्तों में से कोई भी

शर्त पूरी होती है तोह हत्या का दोष साबित किया जा सकता है ( सलीम बनाम राज्य राजस्थान

१९९९ इस सी आर १४१९) यह साबित किया जाना चाहिए की अपराधी के द्वारा मत


ृ क पर ऐसी

शारीरिक क्षति इरादे से की गयी हो जिसका परिणाम मत्ृ यु हो। (२००७ (३) राज २०७७)

हत्या को सिद्ध करने के लिए इरादा, कारण, जानकारी आवश्यक सत्र


ू होते हैं। ( २००५ (९) इस

सी सी ७१) धरा ३०० भारतीय दं ड संहिता, ऐसा आपराधिक कृत्य जिसका परिणाम मत्ृ यु व ऐसी

चोट जो मत्ृ यु का कारण बने उसे किसी उचित संदेह से अलग स्पष्ट करना होगा जर्म
ु को

निर्मित करने के लिए कृत्य और मकसद का मिलना आवश्यक है । ( लक्ष्मी सिंह बनाम बिहार

राज्य १९७६ (४) इस सी सी ३९४)

मकसद वह होता है जो किसी व्यक्ति को विशेष रूप से कोई कार्य करने के लिए उत्तेज्जित करे ।

(करार सिंह बनाम पंजाब राज्य १९९४ इस सी सी (३) ५६९)

वीरसा सिंह बनाम पंजाब राज्य ( १९५८ इस आयी आर ४६५) में न्यायालय ने यह उर्जित किया

की किसी गुनाह को धरा ३०० के अधीन गठित करने के लिए चार मुभूत आधारों का स्थापित

होना आवश्यक है :-
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तत

१)शारीरिक क्षति का मौजद


ू होना

२) क्षति की प्रवत्ति

३) क्षति पहचाने का इरादा

४)क्षति का मत्ृ यु के लिए पर्यापत होना (२००५ ९ इस सी सी ७१)

करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (१९९४ ईए सी सी (३) ५६९) में , माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह

पाया था की यह अपराध साबित करने के लिए, अपराध किया गया है और उसका उद्देश्य स्पष्ट

रूप से स्थापित होना चाइये। यह साबित करने के लिए की अपराध, धरा ३०० के दायरे के

अंतर्गत आता है । हमें अपराधियों के इरादे और साथ ही उनके कारण और अपराध के आयोग के

समय अपराध के ज्ञान को साबित करना होगा (लक्ष्मी सिंह बनाम बिहार राज्य १९७६ (४) इस

सी सी ३९४)

राजेंद्र बनाम हरियाणा राज्य ( २००६ सी आर एल २९ २६ इस सी) के मामले में सर्वोच्च

न्यायालय ने, ए पि बनाम आर पन्


ु यया (ए आई आर १९७७ इस सी ४५) पर निर्भर होते हुए,

माननीय सर्वोच्च न्यायाया ने तीन चरणों को स्थापित करदिया था ताकि यह पता लगाया जा

सके की अपराध ३०० की धरा के तहत था। पहला चरण यह है की अभियुक्त के ऐसा करने से

एक कार्य किया है जिसके कारण उसने दस


ु रे व्यक्ति की मत्ृ यु की है । दस
ू रा चरण यह है की

अभिनियम दोषपूर्ण हत्या के लिए साबित हो और तीसरा चरण था की यह अधिनियम भारत्या

दं ड सहित धरा ३०० के तहत निर्दिष्ट हत्या की परिभाषा के चार में से किसी एक के अंतर्गत

आए।
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तत

यदि अभियक्
ु त द्वारा मत
ृ क का अपहरण साबित हो जाता है और अपहरण के तरु ं त बाद मत
ृ क

की हत्या हो जाती है , तो यह अभियुक्त के लिए है कि वह अदालत को संतुष्ट करे कि आरोपी

द्वारा अपहरण किए गए पीड़ित के साथ कैसे निपटा गया। इस तरह के किसी भी मामले की

अनुपस्थिति में , अदालत यह अनुमान लगा सकती है कि अपहरणकर्ता हत्यारा भी था।

मुद्दा 4- क्या हे मंत कुमार अपहरण व बलात्कार के लिए उत्तरदायी होगा?

 आरोपी भारतीय दं ड संहिता की धारा 120 बी के तहत उत्तरदायी है

धारा 120 बी की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए यह साबित करना होगा कि सभी

अभियुक्तों के पास सामान्य इरादा था और वे अपराध करने के लिए सहमत हो गए। इसमें कोई

शक नहीं है कि साजिश निजी तरह से और गोपनीयता में रची जाती है जिनके लिए प्रत्यक्ष

प्रमाण शायद ही कभी उपलब्ध होंगे। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी

आपराधिक साजिश के लिए उत्तरदायी है , यह साबित करना होगा की अभियुक्त एक ऐसा कार्य

करने के लिए सहमत हो गया जिसे वह जानता था कि उस अपराध के एक दस


ू रे अपराध को

अंजाम दिया जा रहा है एक या अधिक व्यक्तियों के समझौते द्वारा।

के आर पुरुषोत्तमन बनाम केरल राज्य


23
में यह आयोजित किया गया था कि अधिकांश मामलों

में , साजिशों को परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा साबित किया जाता है , क्योंकि साजिश शायद ही

कभी खुले तौर पर रची जाती है । साजिश और उसके लक्ष्य का अस्तित्व आमतौर पर की

परिस्थितियों और साजिश में शामिल अभियुक्तों का आचरण से समझा जाता है ।

23
(2001) 1 SCC 652
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तत

साजिश के सबत
ू ों की सराहना करते हुए, यह प्रसिद्ध नियम को ध्यान में रखने के लिए अदालत

पर अवलंबी है की परिस्थितिजन्य साक्ष्य को नियंत्रित करना जो प्रत्येक और हर भयावह

परिस्थिति होनी चाहिए वह स्पष्ट रूप से विश्वसनीय सबत


ू ों द्वारा स्थापित की गयी है ।

और जो परिस्थितिया साबित की गयी हैं उनकी एक श्रंख


ृ ला बननी चाहिए जिनसे अभियुक्तों के

अपराधबोध के बारे में एकमात्र अप्रतिरोध्य निष्कर्ष निकले।

योगेश सचिन जगदीश जोशी बनाम महाराष्ट्र राज्य , में , सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला
24

किया“यह स्पष्ट है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मन की बैठक, अवैध कार्य या कोई

कार्य गैरकानूनी तरीकों से करने के लिए, आपराधिक साजिश की अनिवार्य शर्त है लेकिन प्रत्यक्ष

प्रमाण द्वारा उनके बीच समझौते को साबित करना कई बार संभव नहीं होता है । फिर भी,

साजिश का अस्तित्व और इसका उद्देश्य आसपास की परिस्थितियों और अभियुक्तों के आचरण

से अनम
ु ान लगाया जा सकता है ।

गैरकानन
ू ी कृत्य करने के लिए मन की बैठक साजिश के अपराध की अनिवार्य शर्त है ।

यह भी स्पष्ट है कि मन की बैठक, जिसके परिणामस्वरूप पार्टियों के बीच आम सहमति बनती

है , एक मिनट के एक अंश में तय किया गया एक अचानक कार्य हो सकता है । यह आवश्यक

नहीं है कि प्रत्येक साजिशकर्ता हर षड्यंत्रकारी कार्य के कमीशन में सक्रिय भाग लेता है , न ही

यह आवश्यक है कि सभी षड्यंत्रकारियों को साजिश के प्रत्येक विवरण को जानना चाहिए।

24
(2008) 10 SCC 39
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तत

आपराधिक साजिश का सार "कानन


ू तोड़ने के लिए एक समझौता" है । जिसे उपयक्
ु त रूप से

दे खा गया था मेजर ई.जी. बारसे बनाम बंबई राज्य के मामले में


25

साक्ष्य अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, एक बार उचित आधार दिखा दिया जाता है यह

विश्वास करने के लिए की दो या दो से अधिक व्यक्तियों ने एक अपराध करने की साज़िश की

फिर, उनमें से किसी एक द्वारा अपने सामान्य इरादे के संदर्भ में किया गया कुछ भी, दस
ू रों के

खिलाफ स्वीकार्य है ।

जैसा कि महाराष्ट्र राज्य बनाम दमू और अन्य , के मामले में आयोजित किया गया है की
26

साक्ष्य अधिनियम की धारा 10 में नियम की इकलौती शर्त यह है कि उचित आधार होनी

चाहिए यह विश्वास करने के लिए कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों ने मिलकर साज़िश की है

एक अपराध करने की।

वर्तमान मामले में , जैसा कि यह पहले से ही स्थापित किया जा चक


ू ा है कि प्रतिवादी के पास

दोनों मकसद और इरादा था अपराध करने के लिए| हे मंत कुमार राजनेताओं के बीच में काफी

पहुँच थी इसलिए उनके लिए गंड


ु े रखना मश्कि
ु ल नहीं था। परिस्थितिजन्य साक्ष्य की अटूट कड़ी

स्पष्ट रूप से स्थापित करती है कि हत्या के इरादे से अपहरण का अपराध अभियुक्तों द्वारा

आपराधिक साजिश के तहत किया गया है ।

25
(1962) 2 SCR 195
26
(2000) 6 SCC 269
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

अपहरण तब होता है जब किसी व्यक्ति को बल द्वारा मजबरू किया जाता है (या ऐसा व्यक्ति

को छल द्वारा प्रेरित किया जाता है ) किसी भी जगह से जाने के लिए।


27

¶- धारा 364 आईपीसी की सावधानीपूर्वक व्याख्या यह दर्शाती है कि धारा 364 के तहत किसी

व्यक्ति को उत्तरदायी बनाने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा:


28

अपहरण के मामले में -

(i) कि आरोपी ने उस व्यक्ति को विचाराधीन स्थान से जाने के लिए मजबूर किया,

(ii) उसने उस व्यक्ति को बल के माध्यम से मजबूर किया, या उसने उस व्यक्ति को धोखे से

ऐसा करने के लिए प्रेरित किया,

(iii) आरोपी ने व्यक्ति का अपहरण कर लिया ताकि वह

(क) ऐसे व्यक्ति की हत्या कर सके, या

(ख) ऐसे व्यक्ति को हत्या के खतरे में डाला जा सके

यह माननीय अदालत में प्रस्तत


ु किया जाता है कि प्रिया और रिंकी को गंड
ु ों द्वारा बलपर्व
ू क

लिया गया था जैसा कि सुरेंद्र जी की गवाही के साथ-साथ रिंकी ने भी साबित किया। इसके

अलावा गाड़ी की गद्दी फटी मिलना साफ़ रूप से संघर्ष के संकेत दे ता है । इसलिए आरोपी भारतीय

दं ड संहिता की धारा 364 के तहत उत्तरदायी है |

27
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मीर मोहम्मद उमर एंड ओआरएस (2000) 8 एससीसी 382
28
Chakra Pal Singh & Another vs State Of U.P. on 27 August, 2019

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