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गह

ृ कार्य (Homework)
पाठ -1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के
प्रश्न 1) दिए गए शब्िार्थ को अपनी नोटबुक में लिखें I
शब्िार्थ :
1. उन्मुक्त - खुिा, बंधन रदित 9. स्वर्थ - सोना
2. गगन - आसमान 10. श्ंख
र िा - जंजीरें
3. पि
ु ककत - प्रसन्नता से भरे 11. तरु - पेड़
4. कनक - सोना 12. फुनगी - वक्ष
र का सबसे ऊपरी भाग
5. कटुक - कड़वी 13. तारक - तारे
6. ननबौरी - नीम का फि 14. सीमािीन - असीलमत
7. कनक-कटोरी - सोने से बना बतथन 15. िोड़ा-िोड़ी - आगे बढ़ने की प्रनतयोगगता
8. क्षक्षनतज - जिााँ धरती और आसमान
परस्पर लमिते िुए प्रतीत िोते िैं

प्रश्न 2) नीचे िी गयी कववता का गचत्र बनाकर उसके भावार्थ लिखखए –


िम पंछी उन्मुक्त गगन के
वपंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुिककत पंख टूट जाएंगे ।
िम बिता जि पीनेवािे
मर जाएंगे भूखे-प्यासे
किीं भिी िै कटुक ननबोरी
कनक-कटोरी की मैिा से ।
भावार्य: कवव लशवमंगि लसंि सुमन ने िम पंछी उन्मुक्त गगन के कववता की इन पंक्क्तयों में
पंनछयों की स्वतंत्र िोने की चाि को िशाथया िै। इन पंक्क्तयों में पक्षी मनुष्यों से किते िैं कक िम
खुिे आकाश में उड़ने वािे प्रार्ी िैं, िम वपंजरे में बंि िोकर खुशी के गीत निीं गया पाएंगे। आप
भिे िी िमें सोने से बने वपंजरे में रखो, मगर उसकी सिाखों से टकरा कर िमारे कोमि पंख टूट
जाएाँगे।
आगे पक्षी कि रिे िैं कक िम तो बिते झरनों-नदियों का जि पीते िैं। वपंजरे में रिकर िमें कुछ भी
खाना-पीना अच्छा निीं िगेगा। चािे आप िमें सोने की कटोरी में स्वादिष्ट पकवान िाकर िो, िमें
तब भी अपने घोंसिे वािे नीम की ननबौरी ज्यािा पसंि आएगी। वपंजरे में िम कुछ भी निीं खाएंगे
और भूख-े प्यासे मर जाएंगे।
स्वर्थ-श्ंख
र िा के बंधन में
अपनी गनत, उड़ान सब भि
ू े
बस सपनों में िे ख रिे िैं
तरू की फुनगी पर के झूिे ।
ऐसे र्े अरमान कक उड़ते
नीि गगन की सीमा पाने
िाि ककरर्-सी चोंच खोि
चुगते तारक-अनार के िाने ।
भावार्य: कवव लशवमंगि लसंि जी ने िम पंछी उन्मुक्त गगन के कववता की इन पंक्क्तयों में वपंजरे
में बंि पक्षक्षयों का िख
ु -ििथ दिखाया िै। वपंजरे में बंि रिते-रिते बेचारे पक्षी अपनी उड़ने की सब
किाएं और तेज़ उड़ना भि
ू चक
ु े िैं। कभी वो बाििों में उड़ा करते र्े, पेड़ों की ऊाँची टिननयों पर
बैठ करते र्े। अब तो उन्िें बस सपने में िी पेड़ की सबसे ऊाँची डाि पर बैठना नसीब िोता िै।
पंनछयों के मन में यि इच्छा र्ी कक वो उड़कर आसमान की सभी सीमाओं को पार कर जाएं और
अपनी िाि चोंच से लसतारों को िानों की तरि चुनें। मगर, इस गुिामी भरी क्ज़ंिगी ने उनके सभी
सपनों को चूर-चूर कर दिया िै। अब तो वपंजरे में कैि िोकर रि गए िैं और बबल्कुि खुश निीं िैं।

िोती सीमािीन क्षक्षनतज से


इन पंखों की िोड़ा-िोड़ी
या तो क्षक्षनतज लमिन बन जाता
या तनती सााँसों की डोरी ।
नीड़ न िो, चािे टिनी का
आश्य नछन्न-लभन्न कर डािो
िेककन पंख दिए िैं तो
आकुि उड़ान में ववघ्न न डािो ।
भावार्य: कवव लशवमंगि लसंि सुमन जी ने िम पाँछी उन्मुक्त गगन के कववता की आखखरी पंक्क्तयों
में पक्षक्षयों की स्वतंत्र िोकर उड़ने की इच्छा का बड़ा िी मालमथक वर्थन ककया िै।
इन पंक्क्तयों में पक्षी किते िैं कक अगर िम आजाि िोते तो उड़कर इस आसमान की सीमा को ढूंढने
ननकि जाते। अपनी इस कोलशश में िम या तो आसमान को पार कर िेते, तो कफर अपनी जान गंवा
िे ते। पक्षक्षयों की इन बातों से िमें पता चिता िै कक उन्िें अपनी आज़ािी ककतनी प्यारी िै।
िम पंछी उन्मुक्त गगन के कववता की आखखरी पंक्क्तयों में मनुष्यों से उन्िें स्वतंत्र कर िे ने की
ववनती की िै। वो मनष्ु यों से किते िैं कक आप िमसे िमारा घोंसिा छीन िो, िमें आश्य िे ने वािी
टिननयां छीन िो, िमारे घर नष्ट कर िो, िेककन जब भगवान ने िमें पंख दिए िैं, तो िमसे उड़ने का
अगधकार ना छीनो। करपया िमें इस अंतिीन आकाश में उड़ने के लिए स्वतंत्र छोड़ िो।
प्रश्न-उत्तर :
1. पंछी अपना मधुर गीत कब निीं गा पाएाँगें?
उ- पंछी अपना मधुर गीत वपंजरे में बंि िोकर निीं गा पाएाँगें।

2. िम पंछी उन्मुक्त गगन के पाठ के रचनयता कौन िैं?


उ- िम पंछी उन्मुक्त गगन के पाठ के रचनयता लशवमंगि लसंि 'सुमन' िैं।

3. िर तरि की सुख सुववधाएाँ पाकर भी पक्षी वपंजरे में बंि क्यों निी रिना चािते?
उ- पक्षी के पास वपंजरे के अंिर वे सारी सुख सुववधाएाँ िै जो एक सुखी जीवन जीने के लिए
आवश्यक िोती िैं, परन्तु िर तरि की सुख-सुववधाएाँ पाकर भी पक्षी वपंजरे में बंि निीं रिना
चािते क्योंकक उन्िें बंधन निीं अवपतु स्वतंत्रता पसंि िै । वे तो खुिे आकाश में ऊाँची उड़ान
भरना, बिता जि पीना, कड़वी ननबौररयााँ खाना िी पसंि करते िैं।

4. पक्षी उन्मुक्त रिकर अपनी कौन-कौन सी इच्छाएाँ पूरी करना चािते िैं?
उ- पक्षी उन्मक्
ु त िोकर वनों की कड़वी ननबोररयााँ खाना, खि
ु े और ववस्तत
र आकाश में उड़ना, नदियों
का शीति जि पीना, पेड़ की सबसे ऊाँची टिनी पर झूिना और क्षक्षनतज से लमिन करने की
इच्छाओं को परू ी करना चािते िैं।

5. भाव स्पष्ट कीक्जए –


“या तो क्षक्षनतज लमिन बन जाता/या तनती सााँसों की डोरी।”
उ- प्रस्तुत पंक्क्त का भाव यि िै कक पक्षी क्षक्षनतज के अंत तक जाने की चाि रखते िैं, जो कक
मुमककन निीं िै परन्तु कफर भी क्षक्षनतज को पाने के लिए पक्षी ककसी भी क्स्र्नत का सामना
करने के लिए तैयार िै यिााँ तक कक वे इसके लिए अपने प्रार्ों को भी न्योछावर कर सकते िैं।
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