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डॉक्टर हे डगेवार

(रे खाचित्र)

लेखक

ना. ह. पालकर

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Hardcover

Edition: 2014

Publisher: Lokhit Prakashan, Lucknow

ISBN: 9789381829875

Hindi

Size: 8.5 inch x 6.0 inch

Pages: 466 (21 B/W Illustrations)

Weight: 580 gms

Price: ₹380

Online ebook (free) http://www.archivesofrss.org/Biography_Gallery.aspx

Hardcover (available) http://www.exoticindiaart.com/book/details/dr-


hedgewar-life-NZE794/

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Table of Contents

Table of Contents ..........................................................................................4

प्रस्तावना ीश्र गग ीश्र : ...........................................................................................6

हुदगत नाना पालकर : .........................................................................................13

1. शैशव.........................................................................................................16

2. वन्दे मातरम् .................................................................................................27

3. यवतमाळ के चवद्यागृह में ..................................................................................38

4. कलकत्ता ....................................................................................................44

5. ीश्रवन कश्र चदशा .............................................................................................58

6. क्रान्न्तकारश्र गचतचवचियााँ ...................................................................................66

7. नागपगर का काांग्रेसनचिवेशन- ............................................................................78

8. नसहयोगगन्दोलन व नचोयोग- .......................................................................92

9. नागपगरकारागृह में- ...................................................................................... 102

10. चविारमन्न्न- .......................................................................................... 108

11. चदण्डश्रस-त्याग्रह ........................................................................................ 118

12. सांघ का सांकल्प ........................................................................................ 129

13. सांघ का शगोारम्ो ...................................................................................... 141

14. नागपगर का दां गा ........................................................................................ 159

15. सांघ कश्र रिना .......................................................................................... 174

16. सरसांघिालक.......................................................................................... 189

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17. ीांगलसत्याग्रह- ........................................................................................ 206

18. दूसरा कारावास ........................................................................................ 217

19. चवदोभ में प्रवेश ......................................................................................... 231

20. चववांिना ................................................................................................ 242

21. सरकार का पराोव ................................................................................... 254

22. गाांिश्रीश्र से ोेंट ......................................................................................... 268

23. दौड़िूप के दो वर्भ ..................................................................................... 279

24. कगछ खट्टा कगछ मश्रुा : ................................................................................ 297

25. चहन्दू यगवक पचरर्द् .................................................................................... 312

26. कायभचवस्तार ............................................................................................ 322

27. दृढश्रकरण ............................................................................................... 334

28. ीश्रवनमरण के णश्रि- .................................................................................. 347

29. राीचगचर में चिचकत्सा ................................................................................. 355

30. मृत्यग ..................................................................................................... 374

31. शवयात्रा ................................................................................................ 394

32. नसामान्य व्यचित्व ................................................................................... 396

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प्रस्तावना : ीश्र गग ीश्र

परमपूीनश्रय डॉ. हे डगेवारीश्र का कगछ चवस्तार के सान् चलखा हग ग ीश्रवन िचरत्र प्रकाचशत हो रहा है ।
उनकश्र मृत्यग के कगछ चदनों के नन्दर हश्र पाुकों के सम्मगख उनके ीश्रवन कश्र झााँकश्र दे नेवाला िचरत्र
प्रस्तगत चकया गया न्ा। प.पू.डॉक्टरीश्र के ीश्रवन और चविार कश्र कगछ ीानकारश्र हो सके, इसश्र उद्देश्य
से उसकश्र रिना हग ई न्श्र। कगछ प्रमाण में यह उद्देश्य पूरा ोश्र हो रहा न्ा। चकन्तग डॉक्टरीश्र को ीाननेवाले
तन्ा उनके प्रचत ीद्धा रखनेवाले ीो ननेक णन्िग दे श-ोर में फैले हैं उनका समािान उस छोटे -से स्फगट
ग्रन्न् से होना सम्ोव नहीं न्ा। नतः ननेक लोगों कश्र यह गग्रहपूवभक मााँग न्श्र चक एक चवस्तृत
ीश्रवनिचरत्र प्रकाचशत चकया ीाये। यह पगस्तक उनके गग्रह का हश्र पचरणाम है ।

इस पगस्तक के लेखक ीश्र नाना पालकर णिपन से राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के चनष्ठावान् स्वयांसेवक
हैं । उनके मन में परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के प्रचत नत्यन्त ीद्धा एवां गदर का ोाव है । लेखनकला में
ोश्र वे पटग हैं । यह कष्टसाध्य कायभ उनको सौंपा गया तो ोलश्र ोााँचत पूणभ हो सकेगा इसश्र चवश्वास से
उनके ऊपर यह ोार डाला गया। चीन-चीन व्यचियों नन्वा कायों के सान् परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र
के सम्णन्िों का उन्हें पता िल सका उन सोश्र स्न्ानों पर ीाकर तन्ा उन व्यचियों से एवां उन कायों
के सम्णन्ि में चीतनश्र ीानकारश्र सम्ोव न्श्र सण इकट्ठा कर तन्ा उसे तरतश्रण से लगाकर नत्यन्त
पचरीम के सान् उन्होंने इस ग्रन्न् कश्र रिना कश्र है ।

ग्रन्न्-चनमाण में गयश्र कचुनाइयों का उल्लेख करने का चवशेर् कारण नहीं है । चफर ोश्र कगछ प्रमगख णातों
का उल्लेख कर दे ना नसांगत नहीं होगा। सणसे प्रमगख णािा न्श्र िचरत्रनायक कश्र प्रचसचद्धपराड्;मगखता।
नतः स्वतः उनके द्वारा उनके ीश्रवन के सम्णन्ि में सही हश्र चकसश्र णात का पता नहीं िलता न्ा। इस
गगण के कारण समािारपत्रों में उनके सम्णन्ि में णहग त न्ोड़ा उल्लेख होता न्ा। उन्होंने नपने पास ोश्र
लगोग कगछ ोश्र चलखकर नहीं रखा। स्वश्रकृत कायभ में हश्र ीश्रवन पयभन्त तल्लश्रन होने के कारण तन्ा
कायभ में हश्र नपना सम्पूणभ व्यचित्व चवलश्रन कर दे ने के कारण नपने व्यचिगत ीश्रवन का ‘गत्मिचरत्र’
चलखने कश्र कल्पना एवां उसके चलए कगछ चटप्पचणयााँ चलख रखने के चविार कश्र सांगचत उनके स्वोाव
के सान् नहीं णैुायश्र ीा सकतश्र। चफर, उनके ीश्रवन का पहला काल क्रान्न्तकारश्र कायों में व्यतश्रत
हग ग न्ा नतः चवदे शश्र शासकों कश्र गृध्रदृचष्ट से स्वतः को तन्ा नपने सम्णन्ि कश्र सम्पूणभ ीानकारश्र
णिाये रखने कश्र सतकभता णरतना ोश्र गवश्यक न्ा। फलतः इस सतकभता के कारण उन्होंने नपने
नन्स्तत्व को हश्र पूणभतः नगोिर सा णनाये रखने का मानो स्वोाव हश्र णना चलया न्ा।

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उनकश्र चवचवि गचतचवचियों में सान् दे नेवाले ननेक सहयोगश्र कगछ ीानकारश्र दे सकते न्े परन्तग इस ग्रन्न्
को चलखने के चलए गवश्यक ननगकूल न्स्न्चत उनके चनिन के लगोग णश्रस वर्भ के उपरान्त उपलब्ि
हग ई तन्ा इस लम्णश्र नवचि में उनके सहयोचगयों में से ोश्र णहग त-से इहलोक-लश्रला का सांवरण कर गये।
इस प्रचतकूल पचरन्स्न्चत में यह नपचरहायभ न्ा चक उनके ीश्रवन के सम्णन्ि में णहग त हश्र तगटपूी
ाँ श्र एवां
गनगमाचनक ीानकारश्र प्राप्त हो। चफर ोश्र उनके ीो-ीो सहयोगश्र-चमत्र नन्वा पचरचित सगदैव से ीश्रचवत
न्े नन्वा हैं , तन्ा उसश्र प्रकार उनके सम्णन्ि में ीो कगछ न्ोड़ा-णहग त उल्लेख इिर-उिर चणखरा हग ग
चमल सका उस सणका सांग्रह करके लेखक ने यह सगसम्णद्ध एवां प्रामाचणक ग्रन्न् चलखा है । दश्रघभकाल
तक केवल एक हश्र िगन लेकर नत्यन्त लगन के सान् िारों ओर दौड़िूप करते हग ए सम्पूणभ सामग्रश्र
एकत्र करने में उनको चकतना शारश्रचरक एवां मानचसक कष्ट होगा इसकश्र कल्पना हश्र कश्र ीा सकतश्र है ।

नन्ात् यह कहना कचुन है चक परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र का पचरपूणभ चित्रण ग्रन्न् में हग ग है । णहग त-सश्र
छोटश्र-मोटश्र घटनाएाँ ननेक ीनों कश्र स्मृचतपटल से लोप हो गयश्र होंगश्र। उनके कारण उनके स्वोाव
एवां गगणों के चदग्दशभन कश्र सम्ोावना नष्ट हो गयश्र होगश्र। पर कोई नन्य उपाय सम्ोव न होने के कारण
इस िचरत्र-वणभन से हश्र हम सणको सन्तोर् करना होगा।

परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के कष्टपूणभ, पचरीमश्र एवां कमभु ीश्रवन से सवभसािारण व्यचि को एक


गशादायश्र सन्दे श चमलता है । दचरद्रता, प्रचसचद्धचवहश्रनता, णड़ों कश्र उदासश्रनता, पचरन्स्न्चत कश्र
प्रचतकूलता, पग-पग पर णािाएाँ, चवरोि, उपेक्षा, उपहास गचद के कटग ननगोव के सान्-सान् स्वश्रकृत
कायभ कश्र पूर्तत के चलए गवश्यक सािनों का नत्यन्त नोाव गचद चकतनश्र हश्र कचुनाइयााँ मागभ में
गयें तो ोश्र नपने कायभ के सान् तन्मय होकर ‘मगिसांगोऽनहां वादश्र.....’ इस वृचत्त से सगख-दगख,
मानापमान, यशापयश गचद चकसश्र कश्र ोश्र चिन्ता न करते हग ए यचद कोई प्रयत्नरत रहे गा तो उसे नवश्य
हश्र सफलता चमलेगश्र।’’ पूवभ प्रकाचशत डॉक्टरीश्र के छोटे ीश्रवनचिरत्र के गरम्ो में ‘‘चक्रयाचसचद्धः
सत्त्वे ोवचत महताां नोपकरणे’’ यह ीो सगोाचर्त चदया है वह उनके ऊपर पूरश्र तरह घटता है ; ककणहग ना
उनका सम्पूणभ ीश्रवन हश्र इस उचि का मूर्ततमन्त उदाहरण न्ा। नपने घरणार के कामकाी में हताश
होकर हान्-पााँव छोड़ दे नेवालों को, चकसश्र ोश्र सामाचीक कायभ को करते समय णािाओां से घणड़ाकर
चनराशा से कायभचवमगख होनेवालों को, इस पचवत्र ीश्रवन से गशा का सन्दे श प्राप्त होकर सदै व हश्र
कायभरत रहने कश्र प्रेरणा चमल सकेगश्र।

ऐसे प्रेरणादायक ीश्रवन के कचतपय प्रेरक गगणों एवां चसद्धान्तों को नपने ीश्रवन में ोश्र स्न्ान दे ना
चहतावह है इसचलए कगछ प्रमगख णातों का यहााँ उल्लेख करना लाोकारश्र होगा। उनका सवभप्रन्म
उल्लेखनश्रय गगण है उनके मन में राष्ट्रचवमोिन कश्र, राष्ट्रोन्नचत कश्र उत्कट लगन। उनमें राष्ट्रोचि का
यह ोाव णाह्य पचरन्स्न्चत के कारण उत्पन्न नहीं हग ग न्ा नचपतग उनका नचोीात स्न्ायश्र स्वोाव हश्र
न्ा। णिपन से हश्र वह प्रकट होता न्ा। तत्कालश्रन नांग्री
े श्र शासन कश्र दासता के कारण एक चवचशष्ट

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स्व प में उनकश्र राष्ट्रोचि का गचवोाव होना नपचरहायभ हश्र न्ा। चकसश्र-न-चकसश्र प्रकार चवदे शश्र राज्य
को दे श से उखाड़ फेंकना िाचहए, उनकश्र यह इच्छा इसश्र उत्कट राष्ट्रोचि में से पैदा हग ई न्श्र।
नन्तःकरण में चनोभय पौरुर् का ोाव होने के कारण सशस्त्र क्रान्न्त कश्र ओर उनका झगकाव सही न्ा।
चकन्तग दूसरे मागों का समादर न करने कश्र क्षग द्रता उनके नन्दर नहीं न्श्र। उनकश्र तो यहश्र उदात्त ोूचमका
न्श्र चक ‘‘सण नपने-नपने प्रकार से चवदे शश्र सत्ता को चनमूभल करने के चलए प्रयत्नशश्रल हों, उसमें चवचित्र
कगछ ोश्र नहीं है , नपने हश्र मागभ का हु िारण कर नन्य सण प्रकार के काम करनेवालों को हश्रन और
हे य न मानते हग ए सणके णश्रि चीतना सम्ोव हो सहयोग णना रहे ’’। गीकल के राीनश्रचतक
वातावरण में चवचोन्न दलों के परस्पर ईष्ट्या-द्वे र् को दे खते हग ए तो यह णड़े-णडों को ोश्र स्पष्ट समझ में
ग ीायगा चक डॉक्टरीश्र के ीश्रवन के इस चसद्धान्त को नपने नन्तःकरण में िारण करके सावभीचनक
ीश्रवन में सहकायभ, हे लमेल तन्ा परस्पर पूरकता का वायगमणडल चनमाण करने के चलए प्रयत्न चकतने
गवश्यक हैं ।

नपने उग्र स्वोाव के ननगसार सशस्त्र प्रचतकार उनको चप्रय न्ा, चफर ोश्र उसके मूल में राष्ट्रोचि कश्र
े के पराये, शतु एवां शोर्क होने पर ोश्र केवल उसके चवरोि का चविार
हश्र प्रेरणा होने के कारण नांग्री
उनके मन में रहे यह सम्ोव नहीं न्ा। नतः चीस राष्ट्र कश्र ोचि नन्तःकरण में है वह कैसा है , उसका
स्व प क्या है , उसका शरश्रर नन्ात् दृश्य प चकनके कारण णना है गचद मूलोूत प्रश्नों का उन्होंने
गहन चिन्तन चकया। प्रािश्रनतम ोूतकाल से घटनेवाले तन्ा प्रत्यक्ष गाँखों के समक्ष हग ए प्रसांगों से उन्हें
‘‘नपनश्र पगण्योूचम का राष्ट्रीश्रवन चहन्दू ीश्रवन हश्र है ’’ इस चत्रकालाणाचित सत्य का साक्षात्कार-िाहे
णाल्यावस्न्ा में उसकश्र ननगोूचत वे सप्रमाण, स्पष्ट एवां नसन्न्दग्ि प से न णता पायें हों-पूणभ प से
हो गया। उनके ीश्रवनकाल में तन्ा गी ोश्र चीस ननैचतहाचसक एवां नसत्य तन्ा कचन्त सन्म्मी
राष्ट्रवाद का मण्डन एवां गगणगान चकया ीाता है वह णगचद्ध और तकभ कश्र कसौटश्र पर खोटा तन्ा चवशगद्ध
राष्ट्रोावनाओां को दगःखानेवाला है । इस खोटे राष्ट्रवाद के कारण हश्र नपने और पराये, राष्ट्रश्रय समाी
और उसके शतु, चवदे शश्र गक्रमक एवां उनके गक्रमणों से स्वदे श, स्वसमाी और स्वीश्रवन कश्र
चवशेर्ताओां कश्र रक्षा करने में प्राणपण से ीूझनेवालों कश्र परख करने में नक्षम्य घोटाला हग ग है । ीण
तक नपना राष्ट्र इस भ्रम एवां नसत्य का गिार लेकर िलने का हु करता रहे गा तण तक उसके
ऊपर एक के णाद एक नचनष्ट गते रहें ग।े नपमाचनत, नसगरचक्षत एवां सांकटग्रस्त राष्ट्रीश्रवन का
उत्तरोत्तर ह्वास होते हग ए कदाचित् नन्त में उसके चवनाश कश्र घड़श्र ोश्र ग ीाय, यह दगःखद प्रतश्रचत
चपछले िालश्रस-पिास वर्ों कश्र घटनाओां से होतश्र है । यचद पक्षाचोचनवेश, दगराग्रह एवां नन्य समाीों का
ोय मन में से चनकाल कर नपने राष्ट्रीश्रवन का चविार चकया तो परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के पदचिन्हों
पर िलते हग ए हम सण यहश्र कहें गे चक ‘‘नपना चहन्दू राष्ट्र हश्र है , पहले न्ा और नपने पराक्रम से गगे
ोश्र सदै व के चलए उसे सवभीेष्ठ नवस्न्ा में रखना है ।’’ वास्तव में तो नपने राष्ट्र के चवर्य में पूवभपक्ष-
उत्तरपक्ष प्रस्तगत करते हग ए उसे चववाद का चवर्य णनाकर ‘चहन्दू राष्ट्रवाद’ कहना ोश्र परमपूीनश्रय

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डॉक्टरीश्र कश्र उत्कट ननगोूचत से चवसांगत है । यह वाद नहीं हो सकता। चहन्दू राष्ट्र तो वादातश्रत सत्य
है ।

नपने गराध्य चहन्दू राष्ट्र का पचरपूणभ साक्षात्कार होने के कारण हश्र उन्हें सम्पूणभ सांकट, सण णािाएाँ
सही प्रतश्रत हग ईां तन्ा नपने उपास्य कश्र ोचि कश्र प्रखर ज्वाला में व्यचिगत एवां कौटगन्म्णक ीश्रवन के
गकर्भण और सण प्रकार का स्वान्भ ीलाकर ोस्म करने का नलौचकक गनन्द उन्होंने ननगोव
चकया। इस ीश्रवन िचरत्र में उनके स्वराष्ट्रशरण, चनःस्वान्भ एवां ोव्य व्यचित्व का दशभन करने को
चमलेगा। व्यचिगत गशा-गकाांशा, मान-सम्मान गचद सम्पूणभ स्वान्ों को ोस्म कर राष्ट्रसेवक का
चवशगद्ध एवां पचरपूणभ स्व प यहााँ हमें चदखेगा। उनके सदै व प्रसन्न एवां हाँ समगख ीश्रवन का नभ्यास कर
नपने नन्तःकरण में यह स्पष्ट छाप पड़ेगश्र चक खरा सगख एवां ीश्रवन कश्र सान्भकता का समािान
स्वान्भशून्यता में हश्र चनचहत है ।

स्वान्भरचहत एवां ध्येयचनष्ठ ीश्रवन हश्र चवशगद्ध, पचवत्र एवां िचरत्रसम्पन्न रह सकता है । तन्ा परमपूीनश्रय
डॉक्टरीश्र तो नन्तणाह्य शगचिता कश्र साक्षात मूर्तत हश्र न्े। उनकश्र ओर दे खकर यहश्र लगता न्ा चक मानो
शगचिता मानव- प िारण कर व्यवहार कर रहश्र हो।

सावभीचनक ीश्रवन में िचरत्र कश्र रक्षा करने के सम्णन्ि में उदासश्रनता हश्र नहीं नचपतग िचरत्र गचद चवर्यों
कश्र नवहे लना करने कश्र ीो प्रवृचत्त िारों ओर चदख रहश्र है उस पृष्ठोूचम में प्रखर पाचवत्र्य के तेी से
िमिमाता उनका ीश्रवन नचिक उोरा हग ग चदखेगा तन्ा नपने मन को गकृष्ट करता हग ग हमारे
नन्तःकरण में ोश्र नपने ीश्रवन को शगचितापूणभ एवां मांगलमय णनाने कश्र प्रेरणा और चवश्वास चनमाण
कर सकेगा।

ननेक प्रकार दे खने को चमलता है चक यचद कतृभत्ववान् एवां गगणश्र व्यचि ननेक गपचत्तयों में से मागभ
चनकालता हग ग सफलता कश्र ओर प्रशस्त होता है तो उसमें गत्मचवश्वास के स्न्ान पर नहां कार उत्पन्न
हो ीाता है , स्वोाव उग्र हो ीाता है , दूसरों को तगच्छ समझने कश्र प्रवृचत्त होतश्र है । यह सण होना तन्ा
उसके कारण गैर-चमलनसारश्र कश्र वृचत्त उत्पन्न होना स्वाोाचवक होने पर ोश्र इष्ट नहीं है । चवशेर्कर
राष्ट्र-सेवा का व्रत लेनेवालों को तो इस प्रकार कश्र प्रवृचत्तयों को प्रीय दे ना सवभन्ा ननगचित है ।
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र को तो कगल-परम्परा से तेी-क्रोिश्र स्वोाव तन्ा गत्मचनोभर रहने का
स्वाचोमान प्राप्त हग ग न्ा। इसके नचतचरि सोश्र सांकटों का सामना करते हग ए उन्हें परास्त कर नकेले
हश्र राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ ीैसश्र नतगलनश्रय सांघचटत सामर्थयभ उत्पन्न करने में उन्हें कल्पनातश्रत सफलता
चमलश्र न्श्र। इस न्स्न्चत में उनके मन में नहां कार, तगनगकचमीाीश्र गचद नवगगणों के उत्पन्न होने के चलए
पयाप्त ननगकूलता न्श्र। परन्तग उनके ीश्रवन कश्र ओर दे खने से पता िलता है चक वे इन सोश्र नवगगणों
से सदै व नचलप्त रहे । उनके ीश्रवन में तो सौीन्य, चनरचोमानता, नहां कारशून्यता, चमलनसारश्र, स्वोाव

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ग ा, प्रत्येक पचरन्स्न्चत में क्षोोरचहतता गचद गगणों का हश्र पचरपोर् चदखता है । वांश-
एवां वाणश्र कश्र मृदत
परम्परा से प्राप्त क्रोिश्र स्वोाव ोश्र उनके णाद के ीश्रवन में नहीं-सा हो गया न्ा। ‘स्वोावो दगरचतक्रमः’
यह कहा गया है । चकन्तग उन्होंने उसको ोश्र ीश्रतकर नपने काणू में कर चलया न्ा। उनका यह स्वोाव-
पचरवतभन इतना चवलक्षण न्ा एवां मनोवैज्ञाचनक िमत्कार हश्र कहा ीायगा। यह सण कैसे हग ग? उन्होंने
यह सण चविारपूवभक एवां प्रयत्नपूणभ क्यों चकया? यचद यह समझ चलया तो इस िमत्कार का न्ोड़ा-णहग त
स्पष्टश्रकरण हो सकेगा।

नपने राष्ट्र के स्व प के चनचित एवां स्पष्ट साक्षात्कार कश्र ननगोूचत होते हश्र उन्होंने राष्ट्र कश्र नवनचत,
ह्वास और पराोव कश्र मश्रमाांसा सत्य मागभदशभक इचतहास के प्रकाश में कश्र। ‘‘नपने समाी के व्यचियों
में सामाचीक ोावना का नोाव, मातृोूचम, िमभ, सांस्कृचत गचद का केवल ताांचत्रक एवां औपिाचरक
स्मरण और पालन पयाप्त नहीं है नचपतग समस्त चवदे शश्र गघातों से उसकश्र रक्षा के चलए ीान को हन्ेलश्र
पर लेकर िलने कश्र तैयारश्र रखनश्र होतश्र है , इस चवर्य का नज्ञान सामाचीक और राष्ट्रश्रय कतभव्यों के
प्रचत उदासश्रनता, परस्पर कश्र चनत्य सहायता करने कश्र तत्परता न होना, क्षग द्र स्वान्भपरायणता गचद इसश्र
प्रकार के ननेक नवगगणों से व्याप्त होने के कारण समाी नसांघचटत, ीीभर एवां दगणभल हो गया है तन्ा
इस शचिहश्रनता से हश्र उसे पराोव, परतांत्रता एवां सोश्र क्षेत्रों में चनकृष्ट नवस्न्ा प्राप्त हग ई है ।’’ यह सत्य
उन्होंने हृदयांगम कर सम्पूणभ समाी के सम्मगख रखा। उन्होंने यह ोश्र चनष्ट्कर्भ चनकाला एवां दे श को
णताया चक इस दगरवस्न्ा को दूर करने का एक हश्र उपाय है चक ‘‘व्यचि-व्यचि पर सामाचीक एवां
राष्ट्रश्रय ीश्रवन के सत्सांस्कार कर उन्हें एक सूत्रणद्ध एवां ननगशाचसत शचि के नांग के प में चसद्ध
चकया ीाय तन्ा इस प्रकार के सोश्र व्यचियों के स्नेहमय व्यवहार, एकात्मता तन्ा राष्ट्र कश्र समचष्ट में
नपने व्यचित्व को चवलश्रन करने के गगणों के गिार पर एक नचखल दे शव्यापश्र ननगशाचसत एवां
सांघचटत सामर्थयभ का चनमाण चकया ीाय।’’

सांघटन कश्र णातें करना सरल है पर उसे व्यवहार में लाने के चलए गवश्यक न्ा चक एक ऐसा तांत्र
चनमाण चकया ीाये चीसके द्वारा शगद्ध राष्ट्रश्रय ोाव एवां राष्ट्र समर्तपत ीश्रवन के सांस्कार नन्तःकरण
पर हो सकें और दृढ रह सकें तन्ा परस्परानगकूल स्नेहपूणभ व्यवहार व्यचियों का स्न्ायश्र स्वोाव हश्र णन
ीाय। इस गवश्यकता कश्र पूर्तत के चलए हश्र उन्होंने राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र प्रचतचदन कश्र शाखाओां
के चवशेर् तांत्र का चनमाण चकया, इसके चलए योग्य एवां नांगोूत व्यवहार का चनिारण चकया तन्ा नपने
स्वयां के उदाहरण से-नपने दगरचतक्रम स्वोाव को ोश्र णदलकर उस व्यवहार के ननग प णनाकर-
उन्होंने नसम्ोव को ोश्र सम्ोव कर चदखाया। समर्तपत ीश्रवन का सामर्थयभ क्या क्या कर सकेगा ? यह
कौन णता सकता है ? वांशगत सांस्कारों को ोश्र शगद्ध कर, नचनष्ट को नष्ट करने तन्ा इष्ट एवां गवश्यक
गगणों कश्र स्न्ापना एवां सांग्रह करने कश्र नचत मानवश्रय शचि उन्हें सवभस्वापभण कश्र वृचत्त से हश्र प्राप्त हग ई
न्श्र।

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इस नसामान्य शचि का पचरपूणभ दशभन दे नेवालश्र एक और णात का उल्लेख गवश्यक है । प्रस्तगत िचरत्र
को पढते समय परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र कश्र ननेक राीनश्रचतक गचतचवचियों का हमें पता िलता है ।
नांग्री
े प्रत्यक्ष प से चवदे शश्र न्ा उसके नत्यािारश्र शासन कश्र नसह्यता ननगोव में गतश्र न्श्र। इस
पचरन्स्न्चत में प्रत्येक चविारवान् व्यचि को यहश्र लगता न्ा चक नांग्री
े ों को चनकालकर पूणभ स्वतांत्रता
प्राप्त करना हश्र ीश्रवन का प्रमगख कतभव्य है । इस चविार से लोकमान्य ने नपने काल में समाी-सगिार
या राीनश्रचत के चववाद में राीनश्रचत को नसन्न्दगि प से स्वश्रकार चकया न्ा और इसश्र गिार पर
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र कहते न्े चक ‘‘परतांत्र राष्ट्र के चलए स्वतांत्रता-सांग्राम के नचतचरि और कोई
राीनश्रचत नहीं हो सकतश्र।’’ इसश्रचलए िगनाव, कौंचसल गचद कश्र ओर उनकश्र सदै व उपेक्षा रहश्र।
नन्यान्य सामाचीक कायों कश्र ओर ोश्र उन्होंने इसश्र उद्देश्य से ध्यान चदया चक उनका स्वतांत्रता-सांग्राम
में उपयोग हो सके।

यद्यचप पचरन्स्न्चत के ननगसार उन्होंने राीनश्रचत का नवलम्णन चकया न्ा, चफर ोश्र राष्ट्र के उत्कर्ापकर्भ
के कारणों कश्र मश्रमाांसा कर उन्होंने यह ध्यान में रखा चक स्पिा- ईष्ट्याचदपूणभ प्रिचलत राीनश्रचत केवल
ननगपयगि हश्र नहीं नचपतग यचद पूरश्र सतकभता नहीं णरतश्र गयश्र तो हाचनकारक ोश्र चसद्ध हो सकतश्र है ।
सान् हश्र यह सत्य पहिानकर चक राष्ट्र के उज्जवल ोचवष्ट्य कश्र गिारचशला उसका ीागृत, ननगशाचसत
एवां सगसांघचटत सामर्थयभ हश्र है , उन्होंने पचरन्स्न्चत के गघात-प्रत्याघात, स्वकश्रयों कश्र टश्रका एवां
नवमानना गचद को हाँ सते-हाँ सते सहकर ोश्र, उस तांत्र को खड़ा करने में नपना ीश्रवन-सवभस्व लगा
चदया तन्ा नपने प्रारन्म्ोक ीश्रवन में सशस्त्र क्रान्न्त एवां काांग्रेस, चहन्दू महासोा गचद से ीो सम्णन्ि
णनाये न्े उन्हें िश्ररे-िश्ररे सही दूर कर चदया। उन क्षेत्रों के राष्ट्रोि नेताओां तन्ा उसके कायभ के चवर्य
में मन में गदरोाव रखते हग ए उन्होंने स्वयांसेवकों को यह सतकभता णरतने को णताया चक उनके चवर्य
में क्षण मात्र ोश्र ननादर का ोाव उत्पन्न न हो; चकन्तग उन्होंने नपना गदशभ सणके सामने रखते हग ए
यह चशक्षा ोश्र दश्र चक ‘‘इन कायभपद्धचतयों से दूर रहकर हश्र समाी-सांघटन सम्ोव है और वहश्र प्रत्येक
कायभकता को करना िाचहए।’’

णाल्यकाल से चवचवि राीनश्रचत गचतचवचियों में सांलग्न, चवदे शश्र राज्य के नाम मात्र से हश्र ीो क्षग ब्ि एांव
कुद्ध हो ीाये इस प्रकार नतश्रव सांवेदनशश्रल एवां उत्कट ोावनापूणभ व्यचि को प्रिचलत राीनश्रचत कायों
से नपना हान् खींिे चणना मन को हटा लेना तन्ा सण प्रकार से णगचद्ध को ीाँिनेवाले कायभ के ननगकूल
हश्र नपने मनोोाव को णनाना चकतना कचुन हग ग होगा और इस प्रकार का पचरवतभन नपने नन्दर
लानेवाले कश्र चववेकशचि चकतनश्र परा कोटश्र कश्र और सामर्थयभवान् होगश्र, तन्ा नपने चनष्ट्कर्ों एवां
तदनग प कायभ पर उनकश्र चनष्ठा चकतनश्र नटल होगश्र इसकश्र कल्पना करना ोश्र कचुन है । इस प्रकार
का कल्पनातश्रत शचिसम्पन्न चववेक एवां कायैकचनष्ठा उनके पचवत्र, चनःस्वान्भ एवां राष्ट्रसमर्तपत ीश्रवन

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के कारण हश्र प्राप्त करना सम्ोव न्ा। यह उनके ीश्रवन का नत्यन्त ोव्य एवां ननाकलनश्रय िमत्कार
है ।

इस दृचष्ट से प्रस्तगत िचरत्र का पुन लाोदायक होगा। णाहर से सामान्य चदखनेवाले स्व प में
नसामान्यता का तेी चदखेगा तन्ा प्रत्येक के मन में यह गत्मचवश्वास ीगेगा चक ‘‘मैं ोश्र नपने
नन्तःकरण पर राष्ट्रसमर्तपत ीश्रवन के सांस्कार डालकर, उन्हें दृढ रखते हग ए, नपने चवकारों को नष्ट
कर, स्वोाव को शगद्ध करके, राष्ट्र के चिरकालश्रन वैोव के चनमाण के चलए तन्ा णाह्य वातावरण के
गकर्भणों पर चवीय प्राप्त कर राष्ट्र कश्र स्न्ायश्र शचिके एक नटल नांग के नाते ीश्रवनपयभन्त पचरीम
करते हग ए नपना ीश्रवन सफल एवां सान्भक कर सकूाँगा।’’

परमपूीनश्रय डॉक्टर हे डगेवार के चदव्य ीश्रवन का यहश्र गशाप्रद एवां स्फूर्ततदायश्र सन्दे श है तन्ा मगझे
लगता है चक इस ग्रन्न् कश्र यहश्र फलशुचत है । यह सन्दे श घर-घर व्यचि-व्यचि के नन्तःकरणों में पहग ाँ िे
तन्ा लेखक का पचरीम सफल हो यहश्र कामना है ।

इचत।

ीश्रमच्छां करािायभ ीयन्तश्र

वैशाख शगक्ल 5, शके 1882

मा. स. गोळवलकर

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हुदगत : नाना पालकर
राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के सांस्न्ापक परमपूीनश्रय डॉ. केशव णचलराम हे डगेवार का िचरत्र गी
प्रस्तगत करते हग ए नत्यन्त गनन्द हो रहा है । एक महान् चवोूचत के ीश्रवनिचरत्र के चलए उसके हश्र
समान ीेष्ठ व्यचि से प्रस्तावना प्राप्त हो सकश्र यह मचणकाांिन योग हश्र है । प्रस्तगत ग्रन्न् कश्र प्रस्तावना
परमपूीनश्रय ीश्र गग ीश्र ने चलखश्र, यह मेरा परम सौोाग्य है ।

परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र का चवस्तृत िचरत्र इसके पगवभ हश्र प्रकाचशत होना िाचहए न्ा। उनका स्वगभवास
हग ए णश्रस वर्भ होते ग रहे हैं । इस नवचि में उनके ‘व्यचित्व कश्र एक झलक’ दे नेवाला छोटा-सा िचरत्र
प्रकाचशत हग ग न्ा और ोारत कश्र कई ोार्ाओां में उसकश्र ननेक गवृचत्तयााँ चनकल िगकश्र हैं । इसके
नचतचरि चनिन के उपरान्त उसके सम्णन्ि में चलखे हग ए लेखों का एक सांकलन ोश्र प्रकाचशत हो िगका
है । उसकश्र स्मृचतयााँ और एक छोटा-सा पत्रसांग्रह ोश्र छप िगका है । चपछले नुारह-उन्नश्रस वर्ों में समय-
समय पर ‘चववेक’, ‘केसरश्र’, ‘राष्ट्रोचि’, ‘ोारत’, ‘गगेनाइीर’ गचद पचत्रकाओां में ननेक लेख
और स्मृचतयााँ प्रकाचशत हग ई। इस िचरत्र के लेखन में इस सम्पूणभ साचहत्य का ोरपूर उपयोग चकया है ।

इस िचरत्र का स्व प तैयार करने के चलए ऐसे ननेक व्यचियों से ोेंट कश्र चीनका डॉक्टरीश्र के सान्
घचनष्ठ सम्णन्ि गया है । इस समय यह ननगोव गया चक डॉक्टरीश्र के सांघ-स्न्ापना के पूवभ के
चवशेर्कर क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन कश्र ीानकारश्र दे नेवाले ननेक लोगों का दे हावसान हो िगका है और ीो
णिे हैं उनकश्र स्मृतश्र ोश्र णहग त िगाँिलश्र हो गयश्र है । नतः िचरत्र कश्र सामग्रश्र ीगटाने में इतना चवलम्ण हग ग
इस चवर्य में पिात्ताप हग ए चणना नहीं रहता।

पर इससे ोश्र नचिक दगःख का यचद कोई चवर्य है तो यह चक 1948 में महात्माीश्र कश्र हत्या के उपरान्त
ीो गगीनश्र कश्र घटनाएाँ हग ई उसमें कई लोगों के पास डॉक्टरीश्र के ोार्णों के प्रचतवृत और पत्र नष्ट
हो गये। फलतः िचरत्र कश्र दृचष्ट से उपयगि ीानकारश्र तन्ा चहन्दगस्न्ान के नग्रगण्य सांघटक के मननश्रय
चविारों से इन घटनाओां के कारण हम सदै व के चलए वांचित हो गये हैं । उस समय सरकार द्वारा ीब्त
ननेक लोगों के कागी-पत्र ोश्र वाचपस नहीं चमले हैं और चीनके चमले उनमें से ोश्र कई के कागीों को
दश्रमक िाट िगकश्र है । इस कारण ोश्र णहग त-सश्र ीानकारश्र लगप्त हो गयश्र।

मृत्यग, चवस्मृचत, नचग्नकाण्ड, दगलभक्ष्य और चवलम्ण, इसके उपरान्त शेर् ीो सामग्रश्र मगझे उपलब्ि हो
सकश्र, उसके गिार पर यह िचरत्र-ग्रन्न् तैयार चकया गया है ।

प्रत्यक्ष परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के सान् मेरा सम्णन्ि णहग त न्ोड़ा गया और वह ोश्र चवद्यान्ी नवस्न्ा
में। इसचलए नपने प्रत्यक्ष ननगोव के स्न्ान पर दूसरों से सगनश्र हग ई णातें हश्र इस लेखन में नचिक हैं ।
इन णातों का मण्डन मैंने यन्ोपयगि और निूक करने का यन्ासम्ोव प्रयत्न चकया है । चफर ोश्र यह
नहीं कहा ीा सकता चक तुचटयााँ नहश्र रहश्र होंगश्र।

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सांघ-स्न्ापना के उपरान्त कश्र ीानकारश्र दे नेवाले ननेक कायभकता चमले। पर उसके पहले कश्र ीानकारश्र
दे नेवाले यद्यचप व्यचि नचिक नहीं चमले तो ोश्र उस कमश्र को नागपगर से प्रकाचशत पत्र ‘महाराष्ट्र’ के
पगराने नांकों ने णहग त नांशों में पूणभ चकया। कृतज्ञतापूवभक यह णात व्यि करना मैं नपना कतभव्य समझता
हू ाँ । यचद वे नांक न चमलते तो 1918 से लेकर 1925 तक डॉक्टरीश्र के ीश्रवन कश्र ननेक महत्वपूणभ
गचतचवचियों का पता नहीं िलता।

‘महाराष्ट्र’ के इन नांकों के पगराने, पश्रले पड़े हग ए और हान् लगाते हश्र टूट ीानेवाले पन्नों को साँोालकर
महश्रना-ोर पलटते हग ए मन में एक चविार णराणर घूमता रहता न्ा चक ऐचतहाचसक दृचष्ट कश्र ीानकारश्र
दे नेवाले इन सािनों को नचिक चटकाऊ णनाना िाचहए। यह काम राीसत्ता के द्वारा हश्र हो सकता है ।
इसके चलए राज्य कश्र ओर से यह व्यवस्न्ा होनश्र िाचहए चक सोश्र समािारपत्रों के नांक व्यवन्स्न्त प
से सांग्रह चकये ीायें और गवश्यकता पड़ने पर वे सन्दोभ के चलए उपलब्ि हो सकें। इसके चलए कगछ
नांकों को चटकाऊ, मीणूत कागी पर नलग से छपवाकर चील्द णाँिवाकर रखना पड़ेगा। नस्तग।

स्वाचोमानश्र लोगों का सामूचहक व सगसांघचटत ीश्रवन हश्र राष्ट्र का खरा गिार होता है । चपछलश्र ननेक
शतान्ब्दयों में समय-समय पर इस गिार के क्षश्रण हो ीाने के कारण हश्र नपने राष्ट्र को नये सांकटों
का लगातार मगकाणला करना पड़ा। इस गिार को नच्छश्र तरह, सगसूत्र और ुोस णनाने के चलए नोश्र
तक ननेक लोगों ने प्रयत्न चकये, पर यह स्पष्ट चदखता है चक वे प्रयत्न कोश्र गलत चदशा में हग ए तो कोश्र
सहश्र चदशा में होने के उपरान्त ोश्र निूरे रहे । राष्ट्र-चनमाण के इन प्रयत्नों का सातत्य और वृकद्धगत
उत्साह के सान् होते रहना चनतान्त गवश्यक होता है । पर िारों ओर ननगोव तो यहश्र गता है चक
चकसश्र ोश्र काम के चलए लगन से ीगटनेवाले व्यचि के िले ीाने के उपरान्त णहग िा वह काम
पचरन्स्न्चतयों कश्र चवकटता के सान् काल के गतभ में समा ीाता है । इस न्स्न्चत में पहले चदन से लेकर
गी कश्र घड़श्र तक यचद चकसश्र व्यचि का कायभ प्रगचत और कगशलता कश्र दृचष्ट से प्रोावश्र चसद्ध हग ग
होगा तो वह परमपूीनश्रय डॉक्टर हे डगेवारीश्र का हश्र। चनस्सन्दे ह उन्होंने सांघ के प में ऐसा तांत्र
उपन्स्न्त चकया है ीो समाी के नैचमचत्तक उत्साह को चनत्य और चटकाऊ स्व प दे ने तन्ा उसके दोर्ों
का मूलतः पचरमाीभन कर सामूचहक ीश्रवन के चदव्य दशभन करवानेवाले सांस्कार डालने में समन्भ है ।
दे श के एक कोने से दूसरे कोने तक लाखों स्वयांसेवकों से ोरश्र हग ई सांघ-शाखाएाँ इस उचि का पयाप्त
प्रमाण है । सांघ के स्वयांसेवकों कश्र दे शोचि, उनकश्र ध्येयचनष्ठा, प्रयत्नों का सातत्य और चवचीगश्रर्ग वृचत्त
गी ीनता के कौतगक का चवर्य हो गयश्र हैं । यह णात डॉक्टरीश्र के नसामान्य कतृभत्व का साक्षात
प्रमाण है ।

सांघ का सम्पूणभ सामर्थयभ परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के स्वतः के ीश्रवन से प्रोाचवत चहन्दू राष्ट्र कश्र
पगनरुत्न्ान कश्र गकाांक्षा का और सांघ कश्र शाखाओां के प में प्रिचलत कश्र हग ई निूक कायभपद्धचत का
हश्र पचरणाम है । डॉक्टरीश्र कश्र गकाांक्षा गी लाखों तरुणों के नन्तःकरणों में ििक रहश्र है तन्ा सांघ-

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शाखाओां के णढते हग ए चवस्तार के सान् वह गकाांक्षा उत्तरोत्तर णढतश्र हग ई दे शव्यापश्र होने के मागभ पर
है । ऐसे समय केवल चीस पगण्यपगरुर् कश्र नसािारण प्रचतोा एवां प्रताप से राष्ट्र का यह कायाकल्प
नपनश्र गांखों के सामने हो रहा है उसके उद्बोिक और और स्फूर्ततदायक ीश्रवन का चनकट से दशभन
करवाने का यह िचरत्र एक नल्प-सा प्रयत्न है ।

यह िचरत्र चलखते हग ए डॉक्टरीश्र के व्यवहार कश्र छोटश्र-छोटश्र णातें ध्यानपूवभक दश्र गयश्र हैं । इसके पश्रछे
यहश्र उद्देश्य है चक ‘लोकसांग्रह करना’ हश्र चीनका स्वोाव न्ा उनकश्र दूसरों के सान् णताव कश्र पद्धचत
का नभ्यास सण दृचष्ट से उपयगि होगा। एक दश्रवाल पर समन्भ रामदास का यह विन चक ‘शहाणे
क न सोडावे। सकल ीन।।’ यह विन चलखा हग ग दे खकर डॉक्टरीश्र ने कहा न्ा कश्र ‘‘मेरे मत से
तो ‘शहाणे क न िरावे। सकल ीन’ यह होना िाचहए।’’ इस प्रकार लोगों को योग्य चदशा से िलाने
का तांत्र हश्र उनके णोलिाल में चदखेगा। इसश्र प्रकार दे शोचि से प्रेचरत होकर चनःस्वान्भ ोाव से काम
करने हग ए कोश्र िन्दन के समान िश्ररे-िश्ररे चघसना होता है तो कोश्र कपूर के समान क्षण मात्र में ील
ीाना होता है । पचरन्स्न्तश्र के ननगसार इनमें से ीो ोश्र नवस्न्ा नपने ीश्रवन में प्राप्त हो उसका िैयभ के
सान् सामना करते हग ए मन कश्र वृचत्त सदै व गनन्दपूणभ और चवचीगश्रर्ग रहनश्र िाचहए, यहश्र उनके ीश्रवन
का सूत्र न्ा। उनके छायाचित्र के नश्रिे चकसश्र ने यह चलखा न्ा चक ‘‘Teach me how to die’’
(‘‘मगझे मरना चसखाओ’’)। उन्हें यह पसन्द नहीं गया। उन्होंने कहा चक यहााँ तो ‘‘Teach me how
to live’’ (‘‘मगझे ीश्रना चसखाओ’’) यह होना िाचहए। कारण वास्तचवक चशक्षा तो यहश्र िाचहए चक
कैसे चीया ीाये। उनके िचरत्र कश्र छोटश्र-छोटश्र णातों से ोश्र उनके ीश्रवन कश्र चवचीगश्रर्ा और
लोकसांग्राहक वृचत्त का दशभन होता है ।

परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र द्वारा प्रारम्ो राष्ट्रश्रय स्वांयसेवक सांघ चनरन्तर णलवान् हो रहा है तन्ा उसके
कारण चहन्दू राष्ट्र का वैोवकाल चनकट ग रहा है इसमें कोई सन्दे ह नहीं। इस समय यहश्र इच्छा है चक
राष्ट्रदशी डॉक्टरीश्र के इस िचरत्र से प्रत्येक को नपना राष्ट्रश्रय कतभव्य करने कश्र प्रेरणा सतत चमले।

---ना.ह.पालकर

गग पूर्तणमा शक 1882

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1. शैशव
राष्ट्रों का पगनरुत्न्ान चकसके सहारे होता है और चकस गिार पर राष्ट्र वैोवशालश्र एवां नीेय णनते
हैं ? ोूचम, ीनसांख्या, िन, णगचद्धमत्ता और पराक्रम, इन सणसे पचरपूणभ राष्ट्रों के िूल में चमलने के
उदाहरण इचतहास में उपलब्ि हैं । महान् साम्राज्यों के स्वप्न दे खनेवाले समाी नामशेर् हो गये। रोमन
गये, यूनानश्र गये तन्ा णेचणलोचनया का तो कोई नामलेवा ोश्र नहीं णिा। चवमल एवां उत्कट दे शोचि,
परम्परा कश्र नटूट ीद्धा तन्ा समचष्टीश्रवन का ोाव समाी में सातत्य के स-ाान् णनाये रखनेवाले
महापगरुर् चीस राष्ट्र में पैदा होते हैं वहश्र स्वयां सगख से ीश्रता है और सम्पूणभ सांसार को ोश्र सगख और
समािान दे सकने में समन्भ होता है ।

ीग का सम्पूणभ व्यवहार सांघर्भमय है । ीश्र समन्भ रामदास ने इसको ‘िकापेल का मामला’ कहकर
इसका नत्यन्त हश्र मार्तमक वणभन चकया है । इस सांघर्भ में कोश्र ीय तो कोश्र पराीय चमलतश्र है । परन्तग
चीस राष्ट्र में साांचघकता, दे शोचि और चवीय कश्र गकाांक्षा ीाग्रत् रखनेवाले महान् पगरुर् एक के
णाद एक गगे गते रहते हैं , उसका पराोव वैसा हश्र नल्पकाचलक रहता है ीैसे पतझड़ में वृक्षों के
पत्ते चगर ीाने के उपरान्त न्ोड़े हश्र चदनों में वसन्त के गगमन के सान् वे पगनः सरसा ीाते हैं । ऐसे
ीश्रवटवाले एांव पराक्रमश्र समाी हश्र सांसार में नमर रहते हैं ।

सगदैव से चहन्दू समाी को नमरता का यह उत्तराचिकार प्राप्त हग ग है । मानव इचतहास के प्रन्म पृष्ठ पर
हमारा हश्र ीयगान नांचकत है और तण से गी कश्र घड़श्र तक चहन्दू समाी ननेक ीयपराीयों के -
स्तम्ो के प में प्रणल गत्मचवश्वास के सान् चनरन्तर गगे णढता हग ग -णश्रि मानवता के प्रकाश
प्रवतभक एवां -णश्रसवीं शताब्दश्र के मध्य तक नवतचरत यगग चदखता है । वेदकाल से ईस्वश्र सन् कश्र
कतृभत्वशालश्र नररत्नों का पगण्य प्रताप हश्र हमारश्र इस परम्परा कश्र सांिालक शचि है । गी कश्र पतन कश्र
नवस्न्ा में ोश्र राष्ट्र के िैतन्य को ीगानेवाले ोारत माता के एक सपूत का िचरत्र हमारे सम्मगख प्रस्तगत
है । डॉक्टर केशव णचळराम हे डगेवार हश्र हैं वे महापगरुर्।

‘हे डगेवार’ कगलनाम यद्यचप मूलतः तैलांग है तो ोश्र यह घराना ऋग्वेदान्तगभत गश्वलायन सूत्र कश्र
शाकल शाखा के महाराष्ट्रश्रय तैलांग नन्ात् दे शस्न् ब्राह्यणों में से है । उनका गोत्र काश्यप है ।
गन्ध्रप्रदे श के तेलांगाना ोाग में कन्दकगती नाम का गााँव इस कगल का मूल स्न्ान है । लगोग डेढ सौ
वर्भ पूवभ णचळरामपन्त हे डगेवार के चपतामह नरहर शास्त्रश्र वहााँ से नागपगर गये और तण से उसकश्र
नगलश्र दो तश्रन पश्रचढयााँ नागपगर में हश्र णश्रतीं।-

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कन्दकगती गााँव महाराष्ट्र और गन्ध्र कश्र सश्रमा पर इन्दूर के णोिन ताल्लगके में न्स्न्त चीले )चनीामाणाद)
है । दो हीार कश्र ीनसांख्या के इस गााँव के चनकट हश्र गोदावरश्र, णांीरा और हचरद्रा इन तश्रनों नचदयों का
चत्रवेणश्र सांगम है । पगराणों में तश्रन्भराी णांीरा सांगम का उल्लेख चमलता है । तश्रनों नचदयों के समान हश्र यहााँ
मराुश्र, तेलगगू और कानड़श्र तश्रनों ोार्ाओां का ोश्र सांगम हग ग है । यद्यचप ये तश्रनों ोार्ाएाँ सगश्र णहनों के
समान नत्यन्त प्रेम से वहााँ रहतश्र हैं तन्ाचप मराुश्र का प्रिलन सवाचिक है ।

एक समय इस तश्रन्भस्न्ान में ननेक चवद्वान् ब्राह्मणों के सम्पन्न कगल चवद्यमान न्े। हे डगेवार घराना ोश्र
उनमें नग्रसर न्ा। वेदों का नध्ययन और नध्यापन हश्र उसकश्र कगलपरम्परा न्श्र। सान् हश्र नचग्नहोत्र -
कश्र दश्रक्षा ोश्र इस कगल ने ले रखश्र न्श्र।यह ोश्र पता िलता है चक ीणीण ीगसगरु शांकरािायभ इस ोाग -
कगल के चवद्वानों को िमभरक्षणान्भ नपना प्रचतचनचि -तण उन्होंने हे डगेवार-में सांिार के चनचमत्त गये न्े तण
इस गशय के मानपत्र गी ोश्र इन्दूर में उनके वांशीों के पास मौीूद हैं । कन्दकगती चनयगि चकया न्ा।
में ीश्रिर महाराी नाम के एक सन्त हग ए हैं । उसका एवां ननेक नन्य लोगों का कगलगगरुपद हे डगेवारों
ने मन्ण्डत चकया न्ा। ‘‘हे डगे कगलगगरु पूवापार। ीैसे सूयभ वांश वचसष्ठवर’’ इस प्रकार का वणभन उनके
सम्णन्ि में चमलता है ।

चवद्या में नैपगण्य के सान्सान् शारश्रचरक सगदढ


ृ ता ोश्र इस क-ागल में वांशानगवांश से दृचष्टगत होतश्र गयश्र
है । गााँव में चवचवि कगटगम्णों के वांशानगगत गगणदोर्ों कश्र चवशेर्ता का उल्लेख होता है । कोई कांीूस होता -
है तो कोई चफीूलखिभ, कोई क्रोिश्र होता है तो कोई चणलकगल ोोलानान्। हे डगेवारवांश के सम्णन्ि -
में ोश्र ऐसश्र हश्र कगछ णाते कन्दकगती माेाां प्रचसद्ध हैं । इस घराने के सोश्र लोगों का गहार णहग त नच्छा
न्ा तन्ा सोश्र डश्रलडौल से नत्यन्त पगष्ट एवां णलवान् न्े। णताते हैं चक एक णार गकन्स्मक वर्ा का -
पााँि मन न्ा। -रखे हग ए ज्वार के दाने ोश्रगने लगे। उनका वीन िार झोंका गने के कारण गाँगन में
वांश के एक-चकन्तग हे डगेवार यगगल ने उस णोझे को सही हश्र उुाकर घर में रख चदया। उसश्र प्रकार
गोदावरश्र के तट पर कगश्तश्र खेलने का शौक ोश्र इस घराने के लोगों को न्ा। उनमें कगछ तो इतने णलवान्
न्े चक वे नपने घर में लकड़श्र के खम्णों को नश्रिे कश्र पन्रौटश्र िूल पर से हाँ सते खेलते हश्र उुा लेते न्े।-

डेढ पौनेदो-सौ वर्भ पूवभ ननेक ब्राह्मण-कगटगम्ण नपना घरणार छोड़ तेलांगाना से णाहर िले गये। मगगल-
सत्ता के निश्रन चहन्दगओां कश्र उपेक्षा, प्रवांिना तन्ा दाचरद्र्य हश्र उनकश्र इस चनकासश्र के कारण न्े। नागपगर
में ोोंसलों ने नपने पराक्रम से राज्य कश्र स्न्ापना और वृचद्ध कश्र न्श्र। उसकश्र राीिानश्र में वेद चवद्या -
न्स्न्त कन्दकगती ोश्र पहग ाँ िा होगा। नतः इस न्स्न्चत -को प्राप्त प्रचतष्ठा का समािार नागपगर से ननचतदूर
रहने कश्र नपेक्षा नागपगर ीाकर पगरुर्ान्भ में चवद्या पास में होते हग ए ोश्र नपने घर में निपेट ोूखों मरते
वां-करने कश्र महत्त्वकाांक्षा कतृभत्ववान् हे डगेवारश के लोगों में ीाग्रत् हग ई हो तो कोई गियभ नहीं।

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मन में यह गकाांक्षा लेकर नागपगर गये हग ए हे डगेवारघराने के व्यचियों ने न्ोड़े हश्र चदनों में नपनश्र -
ख्याचत प्राप्त कर लश्र तन्ा सगख से ीश्रवन व्यतश्रत करने लगे। सािारणः चवद्वत्ता के णल पर नच्छश्र
उन्नश्रसवीं शताब्दश्र के मध्य तक इस कगटगम्ण के नच्छे चदन रहे । चकन्तग 1853 में नांग्री
े श्र सत्ता कश्र कृष्ट्ण
छाया नागपगर पर पड़ते हश्र नन्य स्न्ानों कश्र ोााँचत वहााँ ोश्र वेद नच्छे -चवद्या के चदन ल गये। नच्छे -
द्वार-शास्त्रचवद् एवां वेदों के प्रकाण्ड पन्ण्डत ोश्र चनरुपाय हो पौरोचहत्य स्वश्रकार कर द्वारघूमने लगे।
े श्र चवद्या का हश्र ीोर न्ा। वेदचवद्या के पाले तो दगदैव से उपेक्षा, उपहास एवां नज्ञातवास
उस समय नांग्री
हश्र पड़ा न्ा। चकन्तग इन णगरे चदनों में ोश्र वेदमूर्तत णचळराम पन्त हे डगेवार नागपगर में चणना चकसश्र कोर-
कसर के णड़श्र दक्षता से नपना व्यवहार िलाते रहे और उन्होंने णड़श्र दृढता के सान् नपनश्र कगल-
परम्परा कश्र रक्षा कश्र।

उनकश्र पत्नश्र पैुणकर घराने कश्र न्ीं। पैुणकर ोश्र मूलतः तैलांगश्र न्े तन्ा हे डगेवारों के समान हश्र दो
पश्रढश्र पहले नागपगर में गकर णसे न्े। उसका नाम रे वतश्रणाई न्ा कगछ लोगों कश्र स्मृतश्र के ननगसार )
। उसका रां ग ग)वह यमगनाणाई न्ााोरा तन्ा स्वोाव नत्यन्त हश्र चमलनसार एवां शान्त न्ा। उनकश्र
तगलना में णचळरामीश्र स्वोाव से गरम न्े। गरश्रणश्र होने पर ोश्र पचतपत्नश्र दोनों में हश्र चमतव्यचयता और -
का गगण होने के कारण उनकश्र गृहस्न्श्र िैन से िल रहश्र न्श्र। िोकर का ोश्र हलगग णना सकने

उन्हें कगछ छः सन्तानें हग ई। सणसे णड़े णेटे का नाम महादे व न्ा। उसकश्र पश्रु पर दो लड़चकयााँ हग ई। उनके
नाम राीू और शरयू न्े। उसके णाद चफर एक पगत्र हग ग चीनका नाम सश्रताराम रखा गया। इन णाल-
चपता दोनों हश्र -लश्रलाओां से माता-ोरा रहता न्ा। उनकश्र णाल-णरों के कारण घर सदै व ोरा
सगख से उनक-गन्नदचवोोर हो उुते। सन्तानाश्र गृहस्न्श्र में नये गन्नद का सांिार हो गया। एक तो
पहले हश्र सगसांस्कृत वैचदक घराना और उस पर णचळरामीश्र और उसकश्र पत्नश्र दोनों हश्र नपने णरों के
मन पर उज्जवल प्रािश्रन परम्परा के सांस्कार डालने के चवर्य में नत्यन्त प्रयत्नशश्रल न्े। प्रातः दे वमूर्तत
को नमस्कार करने से लेकर सायांकाल चदये ीलने पर ‘शगोां करोचत कल्याणां’ कश्र प्रान्भना कहने तक
ननेक णातें कगल कश्र पचरपाटश्र के ननगसार िलतश्र न्ीं। नतः सही हश्र णालकों का ीश्रवन सहश्र ााँिे में
लने लगा।

सगख, समािान और सांतोर् से ोरे हग ए इस कगटगम्ण में शक सम्वत 1811 कश्र िैत्र सगदश्र प्रचतपदा को
केवल साढे तश्रन घड़श्र के शगो मगहूतभ के वर्भप्रचतपदा के चदवस प्रातःकाल सौोाग्यवतश्र रे वतश्रणाई को
एक और पगत्ररत्न प्राप्त हग ग। उस चदन रचववार न्ा ीो चक प्रिण्ड तेी कश्र राचश ोगवान् सूयभ का वार
है । नांग्रेीश्र गणना से यह चदन 1889 ई कश्र .स .1लश्र नप्रैल गता है । ोोंसलों कश्र राीिानश्र नागपगर
में चवीय कश्र गग श्रवर्भप्रचतपदा के चदन महाराष्ट्र में प्रत्येक घर के ऊपर एक णााँस में सगन्दर वस्त्र एवां )
समय ीन्मा हग ग यह णालक हश्र चहन्दू फहराते )पात्र णाांिकर खड़ा चकया ीाता है । इसे गग श्र कहते हैं ।
राष्ट्र का द्रष्टा एवां सांघटन का स्रष्टा इस िचरत्र का नायक डॉक्टर केशवराव हे डगेवार न्ा।

18
कहते हैं चक नपनश्र ोावनाओां और गकाांक्षाओां के ननग प णालक नपने माताचपता को िगनता है । -
घर पर फहराने कश्र शगो वेला -घर चकन्तग शककता शाचलवाहन कश्र चवीय का स्मरण करानेवालश्र गग श्र
में ीन्म लेकर उस णालक नेतो मानों ीन्मकाल को ोश्र िगनकर नपनश्र मार्तमक समयज्ञता का हश्र
पचरिय चदया।

चशचशर ऋतग समाप्त हो िगकश्र न्श्र। चनष्ट्पणभ पादपों को कोमल चकसलयों से गपल्लचवत तन्ा वृक्ष-
ता हग ग ऋतगराी वसन्त प्रवेश कर रहा न्ा। राचत्र लताओां का सगगन्न्ित एवां मोहक पगष्ट्पों से ीांगार कर
का नन्िकार दूर कर दसों चदशाओां में गशा कश्र नसगचणमा चणखेरतश्र हग ई उर्ा नाँगड़ाई लेकर उु णैुश्र
न्श्र। प्रकृचत कश्र इस सगन्दर सांक्रमण वेला में इस णालक का ीन्म मानो उसकश्र मनश्रर्ा और ोावश्र का
सांकेत हश्र न्ा। उसके ीन्म के सान् हश्र ोारतश्रय ीश्रवन में उदातश्रनता का शश्रतकाल समाप्त होकर मांगल
गकाांक्षाओां का नांकगर फूटने लगा। चदव्य एवां उज्जवल ोचवष्ट्य के सन्दे श वाहक के प में हश्र इस
मांगल घड़श्र में उसका ीन्म हग ग। कारण, ‘चमट्टश्र के घगड़सवारों’ में ोश्र प्राण फूाँककर उनकश्र चदन्ग्वीयश्र
सेना खड़श्र कर उसके णल पर शकों ीैसे प्रणल चवदे शश्र शतुओां का समूलोच्छे दन करनेवाले शाचलवाहन
का चवीयचदन हश्र गचलतगात्र व गत्मचवस्मृत चहन्दू समाी में चवीयाकाांक्षश्र सांघटन चनमाण करनेवाले -
महापगरुर् का ीन्मचदन हो यह केवल गकन्स्मक घटना नहीं हो सकतश्र। उसके मूल में चनचित हश्र
चवचि का चविान चनचहत है ।

णचळराम हे डगेवार उस समय नागपगर में एक ीेष्ठ चवद्वान् के नाते चवख्यात न्े। उनका साांसाचरक ीश्रवन
यद्यचप चनिभनता का न्ा चफर ोश्र उनकश्र वृचत्त सान्त्त्वक एवां स्वाचोमानश्र न्श्र। नपने कगल में परम्परा से
िले गये वेदाध्ययन के सान् दक्षता एवां ोचिोाव से सान् उन्होंने नचग्नहोत्र कश्र दश्रक्षा लेकर नत्यन्त-
ीश्र नचग्ननारायण कश्र उपासना ोश्र नचाष्ठापूवभक िला रखश्र न्श्र। पहले कगछ वर्भ तो उन्होंने ‘स्माताचग्न’
का पूीन चकया तन्ा उसके उपरान्त चत्रकगण्ड नचग्नहोत्र का व्रत ग्रहण चकया। ीश्र णचळरामपन्त ने ऋग्वेद
का नच्छा नध्ययन चकया न्ा। वे नपनश्र कगलपरम्परा के ननगसार उपीश्रचवका के चलए पौरोचहत्य -
तन्ा कतभव्य समझकर चवद्यादान, दोनों हश्र काम करते न्े। गगे िलकर तो उन्होने चकसश्र के घर ोोीन
के चलए ीाना ोश्र छोड़ चदया न्ा। उस समय वे शास्त्रचवचहत पद्धचत से चनचित घरों से सश्रिा हश्र चोक्षा
के प में ग्रहण करते न्े। चसर पर लाल कनटोपा, मस्तक पर ोस्म और हान् में तााँणे का कटोरा चलये
णचळरामपन्त कश्र हाँ समगख, कृश व कृष्ट्ण मूर्तत गी ोश्र कगछ वृद्ध लोगों के स्मृचतटल पर नांचकत है ।
िोतश्र और तफेद उत्तरश्रय, यहश्र न्ा उसका पचरिान। इसश्र सादे वेश में वे सण काम काी करते।-

वेदमूर्तत णचळरामीश्र के पगत्रों में सणसे णड़े महादे व शास्त्रश्र न्े। वे नपने नाम के ननग प मानो रुद्र के
नवतार हश्र न्े। दूसरे सश्रतारामीश्र तन्ा तश्रसरे केशवराव को उसकश्र तगलना में शान्त हश्र मानना पड़ेगा।
पगत्रों के समान पगचत्रयााँ ोश्र तश्रन न्ीं। स , राी और रां गू। इनमें स कश्र ससगराल नागपगर में दे व के यहााँ
तन्ा राीू कश्र कविगरे के यहााँ न्श्र। तश्रसरश्र रां गूताई का चववाह पट्टलवारों के यहााँ हग ग न्ा।

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महादे व शास्त्रश्र तन्ा सश्रताराम और केशव कश्र गयग में काफश्र नन्तर न्ा। महादे व को वेदाध्ययन के
हे तग सांस्कृतर उसमें चवद्या के केन्द्र काशश्र नगरश्र ोेीा गया न्ा। वे वहााँ से नपना नध्ययन पूणभ कर औ-
प्रावश्रण्य प्राप्त कर नागगर वापस गये तन्ा नपना व्यवसाय ोश्र प्रारम्ो कर चदया। उस समय सश्रताराम
और केशव केवल पाुशाला में ीाने लगे न्े। नतः िश्ररेिश्ररे शास्त्रश्र कश्र िाक दोनों हश्र छोटे ोाइयों -
पर णैुना स्वाोाचवक हश्र न्ा।

महादे व शास्त्रश्र पहलवानश्र ुाु में रहते न्े। शरश्रर पर मलमल कश्र सदरश्र व गले में शचि कश्र चनशानश्र
के प में गण्डा और ताणश्री लटकता रहता न्ा। वणभ से वे काले न्े। मन से ीैसे वे दृढचनियश्र वैसे
हश्र उनकश्र णाहग ाँ ए फौलाद के समान शचिशालश्र न्ीं। व्यायाम का उन्हें खूण शौक न्ा। यहााँ तक चक
उन्होंने नपने घर के एक ोाग में नखाड़ा णना रखा न्ा। उसमें करे ल, मगग्दर, मलखम्ो, णेंत का
मलखम्ो, गदा गचद व्यायाम के मगख्यमगख्य सािन ीगटाये हग ए न्े। घर में गरश्रणश्र न्श्र चफर ोश्र नपनश्र -
णैुक लगानेवाले तन्ा -गमदनश्र में से घर को कगछ दे कर शेर् पैसे से वे नपने सान् नखाड़े में दण्ड
चपलाते रहते न्े। गमी के -चन्यों को नत्यन्त िाव से चखलातेमलखम्ो करनेवाले नपनश्र गलश्र के सा
दचानों में तो कोश्र कोश्र ोांग ोश्र छनतश्र न्श्र।-

सश्रताराम और केशव ने पाुशाला में प्रवेश प्राप्त कर नक्षरज्ञान चकया। घर में उनके ऊपर माताचपता -
न्ीं। णड़े ोाई के सान् नखाड़े कश्र तो िाक न्श्र हश्र परन्तग उन्हें महादे व शास्त्रश्र कश्र लहरें ोश्र झेलनश्र पड़तश्र
में उतरना तो कोई णात नहीं न्श्रपरन्तग महादे व शास्त्रश्र द्वारा गलश्र के चकसश्र शरारतश्र गगट के लड़के को
पश्रटने कश्र गज्ञा दे ने पर यचद दोनों ने णाांहें िढाकर नपनश्र तैयारश्र नहीं चदखायश्र तो ‘‘तगम लोग उसे
ुोककर नहीं गये तो चफर मेरे हान् कश्र खूण मार खानश्र पड़ेगश्र’’ यह िमकश्र ोश्र उन्हें सगननश्र पड़तश्र न्श्र।
वे ोलश्रोााँ-चत ीानते न्े चक वह िमकश्र केवल शब्दों तक सश्रचमत नहीं रहे गश्र। यह ोश्र सत्य है चक वे
दोनो हश्र चकसश्र से ोश्र दोदो हान् करने से कतरानेवाले नहीं न्े और इसचलए ऐसा नवसर सहसा नहीं -
ननगसार उन पर हान् उुाने पड़ते। महादे व शास्त्रश्र का गया चक महादे व शास्त्रश्र को नपनश्र िमकश्र के
क्रोिश्र सावोाव नन्याय या नपमान होते हश्र ज्वालामगखश्रसा ोड़क उुता न्ा। एक णार एक -
चनरपराि व्यचि को कगछ गगण्डों द्वारा सताये ीाते हग ए उन्होंने दगमांचीले से दे खा। णस, उनका क्रोि उणल
पड़ा। उसश्र गवेश में सश्रिे नश्रिे रास्ते पर कूद पड़े और नपनश्र वरमुमगचष्ट से उन गगण्डों कश्र ऐसश्र मरम्मत
कश्र चक उन्हें ोागते हश्र णना। तैलांगश्र ब्राह्मणों का ज्ञानकोर्कार द्वारा चकया गया वणभन चक ‘‘स्वोाव से
ये णड़े क्रोिश्र होते है ’’ हे डगेवार कश्र ओर दे खने से सत्य हश्र प्रतश्रत होता है ।

णाललगा न्ा। घर में ोश्र स्तोत्र केशव पाुशाला ीाने-, श्लोक, रामरक्षा गचद के पाु चमलने लगे न्े।
पढाई के णाद नपने साचन्यों के सांग गेंदटप्पा कश्र प्रचतस्पिा में उसका मन रम ीाता न्ा। यद्यचप यह -
सत्य है चक चवदोभ और मध्यप्रान्त में तत्कालश्रन सामान्य समृचद्ध कश्र तगलना में हे डगेवारों का ीश्रवन
गरश्रणश्र का हश्र न्ा तो ोश्र इतना ध्यान में रखना होगा कश्र उन्हें खाानेपश्रने कश्र कोई तांगश्र नहीं न्श्र। उस -
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काल के सस्तेपन ने गरश्रणों को णहग त सहारा चदया न्ा। एक रुपये में पोंे सवा मन से कगछ नचिक
ज्वार, णारह से पन्द्रह सेर तक दूि तन्ा घश्र णारह गने में एक सेर चमलता न्ा। प्रिगरता का न्ा वह
काल। णालक पााँिसात वर्भ से हश्र िोतश्र पहनने लगते न्े-। एक िोतश्र केवल णारह गने कश्र चमलतश्र
न्श्र, और यचद तचनक णारश्रक सूत का णचढया ीोड़ा चलया तो ढाई रुपये में। समय के सस्तेपन के सान्
हश्र लोगों कश्र प्रवृचत्त िार्तमक कृत्यों कश्र ओर ोश्र न्श्र तन्ा समृचद्ध के कारण दचक्षणा ोश्र खगले हान् से दश्र
ीातश्र न्श्र।

णचळरामपन्त ने नपने घर में एक गाय पाल रखश्र न्श्र। उसके कारण रे वतश्रणाई नपने णरों को व्यायाम
के णाद दूि चपलाने का लाड़ कर सकतश्र न्ीं। प्रान्चमक चशक्षण यन्ाक्रम िालू रहते हश्र नागपगर में िेिक
का प्रकोप हो गया। गुचपता कश्र पचरिया और -उमड़ गयश्र। माता नौ वर्भ के सारे शरश्रर पर माता-
प्रयत्न के कारण केशवउसमें से णि तो गया चकन्तग िेिक नपनश्र चनशानश्र उसके मगख पर नवश्य छोड़
गयश्र। उसके णाद शश्रघ्र हश्र केशव का यज्ञोपवश्रत सांस्कार हग ग। नण सन्ध्या, पूीा, रुद्रपाु इत्याचद
ब्रह्मकमभ उन्हें चनत्य चनयम से चसखाये ीाने लगे। णचळरामीश्र के घर पगरोचहतों का ोारश्र गनाीाना -
रहता न्ा। वाे लोग ीण केशव के वेद-पुन में स्वच्छ और शगद्ध उरारण कश्र प्रशांसा करते तो माता-
चपता कश्र छातश्र गवभ से फूल ीातश्र न्श्र।

केशव िश्ररेोाई कश्र िश्ररे नपने चमत्रों के सान् हान् में पचहया लेकर प्रातः मश्रलों दौड़ लगाने लगा। णड़े-
सांगचत में मलखम्ो कश्र कगछ पकड़े ोश्र उसने सश्रख लीं। केशव का प्रान्चमक चशक्षण पूणभ होने के पूवभ
हश्र सश्रताराम को नांग्री
े श्र पाुशाला में न ोेीते हग ए नागपगर के ीश्र रुन्क्मणश्र मन्न्दर में न्स्न्त वेदशाला
में ोती करवा चदया गया। वह वेदशाला प्रचसद्ध घनपाुश्र चवद्वान ीश्र नानाीश्र वझे के नेतृत्व में िल रहश्र
न्श्र। उस कगल कश्र परम्परा के ननगसार तो केशव को ोश्र प्रान्चमक चशक्षण के उपरान्त उसश्र वेदशाला
में ीाना िाचहए न्ा। चकन्तग उसकश्र रुचि उस ओर चवशेर् नहीं न्श्र। उसकश्र णातिश्रत में नपने चमत्रों से
सगनश्र हग ई णाहर कश्र राीनश्रचत कश्र णातें गने लगश्र न्ीं तन्ा ‘केसरश्र’ का वािन ोश्र वह नत्यन्त िाव से
करता न्ा। केशव कश्र यह नचोरुचि माताचपता के ध्यान में गये चणना कैसे रह सकतश्र न्श्र। नतः -
-से-उनका उस चदशा में चविार करना स्वाोाचवक हश्र न्ा। सान् हश्र उन्होंने यह ोश्र सोिा होगा चक कम
पहिानकर उनका यह सोिना नस्वाोाचवक कम एक पगत्र को तो नयश्र चशक्षा लें। समय कश्र गचत को
नहीं कहा ीा सकता। वैसेोश्र घर में सणसे छोटे णरे को सोश्र नचिक प्यार करते हैं और चफर णाल-
केशव कश्र णगचद्ध तो उसे सही हश्र सणके स्नेह और दगलार का पात्र णना दे तश्र न्श्र। नतः केशव को नांग्रेीश्र
ल के पास हश्र नश्रलचसटश्र हाई स्कूल में ोती करा चदया चवद्यालय में ोेीने का चनिय हग ग। उन्हें महा
गया।

नांग्री
े श्र स्कूल में प्रचवष्ट होने के पूवभ हश्र णालकेशव के मन में दे शोचि के चविार उुने लगे न्े। कक्षा -
में इचतहास के घण्टे में पढाये ीानेवाले त्रपचत चशवाीश्र के िचरत्र को वह नत्यन्त तन्मयता से सगनता

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तन्ा उसमें कश्र रोमाांिकारश्र नतगत घटनाओां के चित्र नपने मनःप न्ाटल पर नांचकत करते हग ए ‘हम
ोश्र ऐसा हश्र पराक्रम करें ’ इस प्रकार कश्र प्रेरणा उसके णालमन में णड़े प्रकर्भ से होतश्र न्श्र। नागपगर में -
प्रातःकाल िलनेवालश्र तोप, हान्श्र, घोड़े, और िौघड़े के सान् ुाटलश्र णाट के सान् चनकलनेवा-
ोोंसलों कश्र सवारश्र, ‘सरकार’ नाम से महाराी का उल्लेख, महल का राीवाड़ा, पगराने महाल कश्र सश्रमा
पर परकोटे के द्वार गचद णातों से केशव के णालमन में यह णात घर कर गयश्र न्श्र चक नागपगर में -
ोोंसलों का राज्य है । चकन्तग समािारपत्रों के पढने, चवद्यालय के चशक्षकों द्वारा ‘चशविचरत्र’ के ननगर्ांग
से सगने हग ए चविारों तन्ा डॉखानखोीे ., ीश्र रामलाल वाीपेयश्र गचद तत्कालश्रन तरुण क्रान्न्तकाचरयों
कश्र चवचदत होनेवालश्र गचतचवचियों से इस भ्रम को दूर होते दे र नहीं लगश्र। पचरन्स्न्चत ननेकदा मनगष्ट्य
को नयश्र दृचष्ट दे तश्र है , परन्तग उसश्र को चीसके पास उसका नन्तर्तनचहत सांदेश सगनने कश्र ोावनात्मक
पात्रता हो। इस दृचष्ट से चविार करें तो णालप्रचतचक्रया के गघात -केशव के मन में पचरन्स्न्चत कश्र चक्रया-
कश्र क्षमता गयग के नवें वर्भ में हश्र चदखने लगश्र न्श्र।

22 ीून, 1897 को इांगलैण्ड कश्र महारानश्र चवक्टोचरया के राज्यारोहण के साु वर्भ पूरे होते न्े। चवदे शश्र
सरकार ने यह नवसर चफर से एक णार नपने चवीेतापन का डांका चवचीतों के मन में णीाने के चलए
उपयगि समझा। राज्योहण के चदन सरकारश्र गज्ञा से समूिे दे श के गााँवगााँव में उत्सव मनाये गये। -
ीन हग ग। झण्डेप्रत्येक चवद्यालय में राीचनष्ठा प्रकट करनेवाले समारोहों का गयो, पताका, हार, तगरे,
वाद्य, इत्र, तन्ा स्वाचोमानशून्य ोार्णों के सान् हश्र णरों को चमुाई णााँटने का कायभक्रम ोश्र इन
समारोहों में रखा गया न्ा। छोटे णरो को तो चमुाई का गकर्भण रहता हश्र है । चीस समय नपने समाी
के णड़ेणड़ो ने ोश्र-, नश्रचत के समान स्तगचत गायश्र हो उस समय उन्हीं घरों में पले छोटे छोटे णरे यचद- इन
समारोहों में चवतचरत चमुाई के पगड़ो को हान् में लेकर गन्नद से नािने लगे तो इसमें कौन सा गियभ?

पर इस मेवाचमुाई पर नांचकत गगलामश्र कश्र छाप चीन न्ोड़े से लोगों कश्र दृचष्ट में गयश्र उनमें से एक -
उसने वह पगड़ा घर लाकर कूड़े के ेर में फेंक चदया। ीण केशव ोश्र न्ा।-णाल पासपड़ोस के णरे -
चमुाई के पगड़े घरवालों को चदखाकर गनांद मना रहे न्े उस समय‘केशव गम्ोश्रर क्यों हैं ’ यह प्रश्न
उसके ोाई के मन में गया। ‘‘लगता है चक तगम्हें चमुाई नहीं चमलश्र, केशव!’’, उन्होंने पूछा। ‘‘चमलश्र
तो’’, केशव ने उत्तर चदया, ‘‘परन्तग नपने ोोंसलों के राज्य को ीश्रतनेवाले राीा के समारोह का
गनन्द कैसा?’’ इस उत्तर का ममभ कोने में कूड़े के ेर पर पड़श्र हग ई चमुाई ने सणको नच्छश्र प्रकार से
समझा चदया न्ा।

यहश्र स्वाचोमान 1901 ईराज्यारोहण के नवसर पर केशव में इांसण्ै ड के णादशाह एडवडभ सप्तम के .
के णताव से प्रकट हग गन्ा। उस चदन ‘एम्प्रेस’ चमल के माचलकों ने गचतशणाीश्र ीलाकर नपनश्र
राज्यचनष्ठा णड़े ुाु के सान् प्रकट कश्र न्श्र। उसे दे खने के चलए ीण केशव के णाल चमत्र चनकले तो -
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उसने उन्हें उत्तर चदया, ‘‘चवदे शश्र राीा का राज्यारोहण उत्सव मनाना हमारे चलए लज्जा का चवर्य है ।
नतः मैं नहीं िलूाँगा।’’

इस समय केशव एवां उसके चमत्रों के णालसांस्न्ापक छत्रपचत चशवाीश्र महाराी के -मनों पर स्वराज्य-
ीश्रवन का ोारश्र प्रोाव न्ा। नागपगर में सश्रताणडी के चकले पर‘यूचनयन ीैक’ चदनोर फहरता चदखता -
के मन में यह चविार उुा चक यचद उसे हटाकर वहााँ ोगवा न्ा। उसे दे खकर इन णालकों झण्डा लगा
चदया तो चकला फतह हो ीायेगा। इस कल्पना के ननगसार उन णालकों ने चनिय चकया चक वहााँ नपना
झण्डा लगाना िाचहए। पर वहााँ तो णराणर पहरा लगा रहता है । नतः घर से चकले तक एक सगरांग तैयार
करने कश्र यगचि उन्हें सूझश्र और वैसा चनिय ोश्र कर चलया गया। णस, दूसरे हश्र चदन से वझे गगरुीश्र के
घर में पढने के कमरे में कगदालश्रमण्डलश्र ने उत्खनन प्रारम्ो कर चदया। यह -फावड़े लेकर इस णाल-
तश्रन चदन में हश्र ीण -कायभ गगरुीनों का ध्यान णिाकर कमरा णन्द करके हश्र चकया ीाता न्ा। चकन्तग दो
कश्र पढाई के कमरे का दरवाीा णहग त काल तक णन्द चदखने णरोंलगा तो वझे गगरुीश्र के मन में शांका
उत्पन्न हग ई। उसका चनराकरण करने ीण वे नन्दर गये तो क्या दे खते हैं चक एक ओर तो गड्ढा खगदा
हग ग है और दूसरश्र ओर उसकश्र चमट्टश्र का ेर लगा है । नण उनके हान् कश्र ोरपूर मार खानश्र पड़ेगश्र ,
इस कल्पना से हश्र केशव और उसके चमत्र एक कोने में सहमें हग ए िगपिाप खड़े न्े। ‘‘यह क्या व्यन्भ का
उद्योग प्रारम्ो चकया है ?’’, वझे गगरुीश्र ने प्रश्न चकया। णालकों ने सरश्र णात कह दश्र। पालक के नाते
वझे गगरुीश्र ने णरों को समझाया चक इस प्रकार व्यन्भ के पिड़ों में समय णणाद नहीं करना िाचहए।
परन्तग इस णिपन के खेल में चकतनश्र उद्दात्त दे शोचि का ोाव है यह दे खकर वे मनमन पगलचकत -हश्र-
हग ए चणना नहीं रह सके। गगे णड़े होने पर ीण केशवराव उर चशक्षा के चलए कलकत्ता गये तण ीश्र
न्े। वझे णड़े कौतगक के सान् यह घटना दूसरे लोगों को णताते

पचरस्न्चत का यह ज्ञान केवल गयग या चवद्यालय चशक्षा पर नवलन्म्णत नहीं रहता। दूसरे के समक्ष
‘शश्रश झगके नहीं माता’ ये उसार णाल चशवाीश्र के मगख से चनकलते हैं तन्ा-‘चिन्ता करता चवश्व कश्र’
यह णालरामदास णोल उुते हैं । इतना हश्र क्यों-? योगचवद्या के सामर्थयभ से िौदह सौ वर्भ तक ीश्रनेलाले
चकन्तग चफर ोश्र नहां कार से मगि न हग ए योगश्र िाांगदे व को उपदे श दे ने का ज्ञान और नचिकार छोटे से
ज्ञानदे व में रहता है , परन्तग वहश्र ज्ञानदे व ीण लोगों कश्र चनन्दा से घणड़ाकर और चिढकर दरवाीा णन्द
कर क्रोि में णैु ीाता है तो ‘‘रागें ोरावें कवणासश्र। गपण ब्रह्म सवभदेशश्र’’ (‘‘चीन प्रोगमय दे खकह
ीगत, का सन करकह चवरोि’’), ऐसा वेदान्त वाक्य नपने से ोश्र छोटश्र मगिाणाई के मगख से सगनता है ।
कगछ व्यचि स्वान्भ से गगे कोश्र ीा हश्र नहीं सकते, कगछ पचरन्स्न्चत के कारण िश्ररेिश्ररे ीानकार हो -
ीाते हैं , परन्तग कगछ कश्र ीानकारश्र उसके पूवभीन्म कश्र पगण्याई के कारण ीन्मतः हश्र उत्पन्न होतश्र है ।
उन्हें ज्ञान नचोीात प से हश्र प्राप्त हग ग चदखता है । उपयगभि सण ऐसे हश्र उदाहरण हैं ।

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घर का काम करने में तश्रनों ोाई सदै व तत्पर रहते न्े। पचरीम करने में कोई एक दूसरे से कम नहश्र
न्ा। उसके घर के पश्रछे एक नया कगगाँ खोदा गया न्ा। उस समय कश्र एक घटना उल्लेखनश्रय है । कगएाँ
का पानश्र उपयोग में लाने से पूवभ िार्तमक चवचि होनेवालश्र न्श्र। इन तश्रनों णन्िगओां के मन में गया चक
इस चवचि के पूवभ एक णार कगएाँ को नच्छश्र तरह से साफ कर चलया ीाये। पर इस णात के चलए घर के
नन्य लोगों कश्र सम्मचत चमलना सही नहश्र न्ा। नतः उन्होंने उसश्र चदन राचत्र को ीण सण सो गये तो
दूसरे चदन के उपयोग के चलए पानश्र ोरकर रख चदया तन्ा नपने सांकल्प कश्र पूर्तत में ीगट गये। प्रातः
होने तक उन्होंने कगाँए का तल साफ करके हश्र छोड़ा। इस प्रकार रातचदन एक कर काम करने कश्र -
सान् उन्हें ननेक णार दूसरो-रश्र रहतश्र न्श्र। घर के काम के सान्उनकश्र सदै व हश्र तैयााां के यहााँ ोश्र ीाना
पड़ता न्ा। केशव को यह णात नच्छश्र नहीं लगतश्र न्श्र। चकन्तग गयग में सणसे छोटे होने के कारण ीैसे
हश्र णड़े ोाई महादे व शास्त्रश्र ने गाँखें चदखायीं चक चफर गये चसवा इनके चलए कोई रास्ता हश्र नहीं रह
ीाता न्ा।

एक चदन पूीा समाप्त कर घर गते समय रास्ते में केशव ने ‘चवक्रम शचशकला’ नाटक के चोचत्तपत्र
स्न्ान स्न्ान पर लगे दे ख।े पत्रक दे खकर केशव के मन में प्रश्न उुा चक-‘‘यह कौनसा चवक्रम है चीसके
केवल ‘श’ सश्रखने पर इतना गाीाणाीा हो रहा है -?(‘चवक्रम शचशकला’ को णाल व नेकेश-‘‘चवक्रम
‘श’ चशकला’’ नन्ात् ‘‘चवक्रम ने ‘श’ सश्रखा ऐसा पढा।मैं तो मराुश्र कश्र पगस्तकें घड़ाघड़ पढ सकता )
हू ाँ पर उसके चलए कोई ोश्र पश्रु नहीं ुोकता।’’ णालपन में सही हश्र होनेवाला यह नन्भचवपयास गगे -
िलकर ननेक णार डॉक्टर हे डगेवार के मीाक का चवर्य णन गया।

उस समय कश्र सवभसामान्य रश्रचत के ननगसार उनके घर में ोश्र शौि-नशौि के णड़े कड़े )शौिािार)
चनयम न्े। उसका ीानणूझकर उल्लांघन करने कश्र यद्यचप केशव कश्र प्रवृचत्त नहीं न्श्र चफर ोश्र उनमें उसे
कोश्र तो इस कमभुता पर उसे हाँ सश्र ोश्र ग ीातश्र न्श्र।-चवशेर् गस्न्ा ोश्र नहीं रहश्र। कोश्र‘ई डणल् ीश्र
एग माने नण्डा’ इस प्रकार केशव नांग्रेीश्र शब्द याद करने लगता चक उसके णड़े ोाई का पारा िढ
ीाता न्ा और कोश्रकोश्र तो वे उसकश्र पगस्तक को ोश्र हान् से छश्रनकर णाहर गाँगन में फेंक दे ते न्े। -
हााँ, ऐसे नवसर पर रे वतश्रणाई गगे गकर महादे व शास्त्रश्र को डााँटतश्र न्ीं तन्ा केशव का पक्ष लेतश्र
न्ीं।

माता चपता कश्र छत्रछाया में िलनेवाला ीश्रवन नन्यन्त-हश्र सगखद होता है । कोई मातृछाया का कोचकल
के कूीन से चननाचदत पगष्ट्पवतश्र घनश्र नमराई कश्र शश्रतल छाया से उपमा दे ता है तो कोई ‘कल्पवृक्ष कश्र
छायासश्र मूर्ततमान् ममता का प-’ कहकर गगणगान करता है । परन्तग चनयचत कश्र नश्रचत चनरालश्र है ।
कोश्रकोश्र वह इस मिगर छाया के तले खेलनेवाले नणो-ि चशशगओां से ोश्र डाह करने लगतश्र है और
दूसरे हश्र क्षण उस शश्रतल छाया का नपसरण कर नन्हें नन्हें णालकों को चिलचिलातश्र िूप में नसहाय -

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फड़फड़ाता दे खकर नपना कलेीा ुण्डा करने कश्र कोचशश करतश्र है । इस चनदभ य चनयचत का चशकार
का प्रसांग शश्रघ्र हश्र केशव पर ोश्र ग पड़ा। उस समय उसक णननेाश्र गयग केवल तेरहतेरह वर्भ कश्र -
न्श्र और सश्रतारामीश्र नुारह वर्भ के न्े।

इस घटना के चनचित वर्भ का पता नहीं िलता। चकन्तग सन् 1902 नखवा 1903 का हश्र काल होना
िाचहए। उस वर्भ नागपगर में प्लेग का ोश्रर्ण प्रकोप हग ग न्ा। उन्नश्रसवश्र शताब्दश्र के नन्न्तम िार वर्भ
तन्ा णश्रसवीं शताब्दश्र का प्रन्म दशक, इन िौदह वर्ों कश्र नवचि में लगोग एक करोड़ लोग ोारत
में प्लेग के कारण कालदे खा -यगग कश्र यह घटना है । उस समय का गाँखों-कवचलत हग ए न्े। उसश्र प्लेग-
तश्रन सौ मनगष्ट्य -एक चदन में तश्रन हाल कगछ लोग णताते हैं चक एक लाख गणादश्र के नागपगर नगर में
मृत्यग के मगख में समाा ीाते न्े। एक पचरचित को श्मशान तक पहग ाँ िाकर गये चक दूसरे कश्र तैयारश्र
हो ीातश्र न्श्र। ऐसे नवसर पर समाीचनष्ठ एवां कतभव्यदक्ष व्यचि को चकतना ीम करना पड़ता होगा
इसकश्र कल्पना ोश्र नहीं कश्र ीा सकतश्र। एकाि चदन तो श्मशान के दसदस-, पन्द्रहपन्द्रह फेरे करने -
पड़ते न्े। इस परकार के कायभ में रत व्यचि का रोग के सांक्रमण से णिना ोश्र सरल नहीं। नगर में
रहना ोश्र कचुन और णाहर ीाकर झोपचड़यों में रहा ीाये तो घर में िोरश्रिकोरश्र का ोय। दगचविा कश्र -
वह चवचित्र नवस्न्ा न्श्र।

उस समय गी के समान प्रोावश्र और्िोपिार कश्र ोश्र व्यवस्न्ा नहीं न्श्र। परकश्रय सरकार तो
कककतभव्यमूढ होकर लोगों कश्र सहायता करने के स्न्ान पर उसके कष्टों को और ोश्र णढा रहश्र न्श्र। इस
चवर्य में प्रचसद्ध क्रान्न्तकारश्र डॉ खानखोीे चलखते हैं चक .‘‘चकसश्र को न्ोड़श्र सश्र ोश्र णश्रमारश्र हग ई और
सरकार को पता िला तो तगरन्त सरकारश्र नचिकारश्र उसे शहर से णाहर ले ीाकर टट्टरों के णने झोपड़ों
में मरने को छोड़ दे ते न्े। ननेक णार तो सरकारश्र डॉक्टरों को ोश्र प्लेग का इतना ोय लगता न्ा चक वे
रोगश्र को स्पशभ न करते हग ए ीणरदस्तश्र हश्र प्लेग कैम्प में ोेी दे ते न्े। यचद रोगश्र प्लेग से नहीं मरा तो इन
कैम्पों में सरकार कश्र लापरवाहश्र से तश्र चनचित हश्र मर ीाता न्ा।’’ (केसरश्र, 7 नगस्त 1953)

इस ोश्रर्ण महामारश्र के समय णचळरामपन्त हे डगेवार कश्र नत्यन्त चवर्म न्स्न्तश्र हो गयश्र न्श्र। उन्होंने
नपने घर में तो स्वच्छता कश्र दृचष्ट से सोश्र सम्ोव उपाय नपनाने कश्र दक्षता लश्र परन्तग शहर के णाहर
ीाकर झोंपड़श्र णनाकर रहने का चविार उन्हें स्वश्रकार नहीं न्ा। नचग्नहोत्र कश्र दश्रक्षा तन्ा चनिभनता, ये
सम्ोवतः उसके चनणभय के पश्रछे प्रमगख कारण होंगे नन्वा उनको नपने घर कश्र शगचिता नतएव
नसांक्राम्यता पर दृढ चनष्ठा होगश्र। उस समय ोश्र प्रातः िार णीे उुने तन्ा ुण्डे पानश्र से स्नान कर गूलर
के पेड़ के नश्रिे णैुकर साढे सात णीे तक गचह्यक कमभ करते रहने का उसका क्रम नणाि िलता
न्ा। पर एक चदन उनके घर में ोश्र िूहे मरने लगे। नतः उन्हें वहााँ से हटने का चनणभय करना पड़ा। सोश्र
णाल िगरे के यहााँ ग गये।णरों के सान् वे णडकस िौक के पास नपने ीमाई ीश्र कव-

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यहााँ गने के उपरान्त ोश्र वे चनत्यप्रचत दे वपूीा के चलए नपने घर ीाते हश्र न्े तन्ा नन्त्ययात्रा के चलए -
णगलावा गया तो वे कोश्र ोश्र टालमटोल ने करते हग ए कतभव्य समझकर नवश्य ीाते न्े। इतना हश्र नहीं
नश्र से नहाना पड़क तो ोश्र उन्होंने नपने तो एक चदन में ननेक िोंर करने पड़े तन्ा हर णार ुण्डे पा
सामाचीक कतभवाय में तन्ा गिारचनष्ठा में चकसश्र ोश्र प्रकार का व्याघात नहीं होने चदया।

नन्त में एक चदन णचळरामीश्र ोश्र प्लेग के चशकार हो गये। उनके सान् हश्र रे वतश्रणाई ोश्र णश्रमार हो गयीं।
ीश्र कविगरे और महादे व शास्त्रश्र ने वैद्यकश्रय चिचकत्सा और शगशूर्ा में कोई कसर नहीं रख छोड़श्र, पर
सण व्यन्भ हग ग। माघ णदश्र ितगन्ी को ीश्र कविगरे के णाहर के कमरे में ीश्र णचळरामपन्त और नन्दर कश्र
कोुरश्र में रे वतश्रणाई ने न्ोड़श्रन्ोड़श्र दे र के नन्तर से प्राण त्याग चदये। दोनों एक हश्र सान् गये। एक -
करना पड़े यहश्र ईश्वर कश्र योीना चदखतश्र है । लोग एक हश्र न दूसरे का चवयोग सहन नरन्श्र पर दोनों
को शमशान ले गये तन्ा एक हश्र चिता पर उसका दाह सांस्कार हग ग। उस माता ने-‘सहिाचरणश्र’ शब्द
को नक्षरशः सत्य करके चदखाया। माताचपता दोनों हश्र गये। उन्हें तो शान्न्त चमलश्र परन्तग नण णालकों -
का क्या होगा? उनके ऊपर तो ऐसा लगा चक एकाएक गसमान हश्र फट पड़ा हो।

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2. वन्दे मातरम्
वेदशास्त्र-सम्पन्न ीश्र णचळरामपन्त एवां उनके सान् हश्र उनकश्र पत्नश्र रे वतश्रणाई के गकन्स्मक चनिन के
उपरान्त हे डगेवार-कगटगम्ण का सम्पूणभ ोार सही क्रम से उनके ज्येष्ठ पगत्र महादे व शास्त्रश्र के कन्िों पर
पड़ा। णचळरामीश्र कश्र मृत्यग के उपरान्त यज्ञयाग तन्ा वेद-पुन के सहारे घर में गनेवाला पैसे का
प्रवाह मन्द पड़ गया। एक खम्ोे पर खड़े महल कश्र खम्ोा टूटने पर ीो न्स्न्तश्र होतश्र है वहश्र हाल नण
इस कगटगम्ण का न्ा। नण ननेक णार घर में खाना ोश्र केशव और सश्रताराम को हश्र पकाना पड़ता न्ा।
चीस चदन कहश्र से चनमांत्रण ग ीाये उस चदन नवश्य इस चनत्य के कमभ से छगट्टश्र चमल ीातश्र न्श्र। वरना
लकड़श्र फोड़ना, सफाई करना, पानश्र ोरना तन्ा ोोीन पकाना गचद घर के सोश्र काम चनयमपूवभक
उन्हें हश्र करने पड़ते न्े। इतना हश्र नहीं, गवश्यकतानगसार नन्य काम करने कश्र ोश्र उन्हें चसद्धता रखनश्र
पड़तश्र न्श्र।

गग ीनों का दणाव कम होते हश्र महादे व शास्त्रश्र णेलगाम हो गये। नण वे पत्रोारक )पेपरमेंट) हटाने
के णाद हवा के कारण इिर-उिर फड़फड़ानेवाले कागीों के समान स्वच्छन्द न्े। शारश्रचरक णल तोश्र
तक चहतकारक एवां सगखप्रद होता है ीण तक वह मानचसक णल के सान् और उसके चनयांत्रण में रहे ।
नन्यन्ा चविार के न्स्न्र प्रवाह से हटकर चवकारों के ोाँवरों में नन्वा िांिल लहरों के न्पेड़ों में वह
कण फाँस ीायेगा, कहा नहीं ीा सकता। माता-चपता कश्र मृत्यग के णाद तो ीो महादे व शास्त्रश्र करें वहीं
पूवभ-चदशा न्श्र। उस काल कश्र ननेक णगरश्र गदतें तन्ा व्यसन उसको ीान-ननीान में लग गये। इस
चवर्य में न्स्न्तश्र कश्र कल्पना दे ने के चलए एक हश्र उदाहरण का उल्लेख पयाप्त होगा। सािारणतः केशव
चकसश्र ोश्र काम से ीश्र नहीं िगराता न्ा। परन्तग ोांग घोंटने का काम उसे तो क्या सश्रताराम को ोश्र नहीं
रुिता न्ा। इस कारण कोश्र-कोश्र णड़े ोाई से साफ-साफ कहासगनश्र ोश्र हो ीातश्र न्श्र। यहााँ तक चक
उनसे न पटने के कारण परे शान होकर सश्रताराम तो घर छोड़ इन्दौर वेदाध्ययन के चलए िला गया और
केशव ोश्र िश्ररे-िश्ररे नपने चमत्रों के यहााँ हश्र नचिक समय व्यतश्रत करने लगा। इन चदनों दोनों हश्र कोश्र-
कोश्र ननखाये हश्र रह ीाते तन्ा फटे कपड़े पहने िारों ओर घूमते रहते न्े।

इस न्स्न्चत में सश्रताराम और केशव दोनों एक-दूसरे कश्र सम्हाल करते रहते न्े। एकाि चदन यचद केशव
का दोपहर को ोोीन नहीं हग ग तो सश्रताराम नपने चनत्य के ीश्रमने के स्न्ान ीश्र तात्याीश्र के यहााँ
नागा करके केशव को नपनश्र ीगह ोेी दे ते न्े। इस नोाव और चवपचत्त कश्र नवस्न्ा में णश्र केशव ने
कोश्र पढाई कश्र ओर दगलभक्ष्य नहीं चकया। नपनश्र कक्षा में यद्यचप वह एकदम प्रन्म तो नहीं न्ा चकन्तग
पहले पााँि में उसकश्र चगनतश्र नवश्य होतश्र न्श्र। इस गयग में ोश्र उसके सहवास में गने वाले चवद्यार्तन्यों
को उसके नलौचकक गकर्भक तन्ा प्रेमपूणभ व्यचित्व का पचरिय चमलता न्ा। दे खने में रां ग- प
नन्वा णाहर से गकर्भण करनेवालश्र कोई ोश्र वस्तग उसके पास नहीं न्श्र। उसका रां ग सााँवला न्ा तन्ा

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मगख पर िेिक के दाग न्े। उसके कपड़े सादे तन्ा कोश्र-कोश्र फटे ोश्र रहते न्े। परन्तग इतना होते हग ए
ोश्र गम्ोश्रर तन्श्र कम णोलनेवाला यह चवद्यान्ी नपने िारों ओर चमत्रों को इकट्ठा कर सकता न्ा, यह
णात उल्लेखनश्रय है ।

स्कूल से छगट्टश्र होने पर ोश्र इन चमत्रों को सान् लेकर केशव कोश्र घूमने के चलए चनकल ीाता तो कोश्र
पचहया घगमाते हग ए तेलांगखेड़श्र के तालाण तक दौड़ता ीाता और वहााँ ीश्र खोलकर तैरने का गनन्द
लेता। नागपगर में शगक्रवार तालाण के पूवभ में पहले एक छोटा-सा टश्रला न्ा। इस टश्रले पर यह चमत्र-
मण्डलश्र दो दल णनाकर ‘ध्वी ीश्रतकर लाने’ का खेल नत्यन्त उत्साह से और णाीश्र लगाकर खेलतश्र
न्श्र। सांघर्भचप्रयता मानव-स्वोाव कश्र एक सही प्रवृचत्त है । परन्तग महाराष्ट्र में छत्रपचत चशवाीश्र कश्र
पराक्रम-परम्परा लोगों के रि में इस प्रकार रम गयश्र है चक छोटे -छोटे णरों के खेल में ोश्र ीो दो दल
णनते हैं वे मगगल और मराुों के नाम से। चशवाीश्र के काल में छोटे -छोटे णालक नागफनश्र के डोडों
को मगगलों का चसर मान कर चीस गवेश से नपनश्र खेल कश्र तलवार से काटते न्े वहश्र गवेश इन
णरों कश्र लड़ाई में ोश्र सांिार कर ीाता न्ा। खेल में ऐस रां ग िढता चक शगक्रवार तालाण से लौटने पर
हश्र इन णरों को कहीं इस णात का ोान होता न्ा चक चकसके पैर में मोि ग गयश्र है और चकसका शरश्रर
खरोंि गया है ।

खेल का यह रां ग केवल ऊपरश्र नहश्र न्ा। उस समय सम्पूणभ दे श में तन्ा उसके ननगर्ांग से नागपगर ोाग
में ोश्र ीो राष्ट्रश्रय गन्दोलन िल रहे न्े उसका णालकों के मन पर पचरणाम होना स्वाोाचवक हश्र न्ा।
ये खेल उस प्रोाव के प्रकटश्रकरण मात्र न्े। उन चदनों लोकमान्य चतलक ने ‘केसरश्र’ द्वारा ीनता के
स्वाचोमान को ीगाकर ीो गीभना कश्र न्श्र उससे राज्यकता ोयाकगल हो उुे न्े। ीश्र चशवरामपन्त
पराांीपे के ‘काल’ में व्यि चविारों के फलस्व प तरुण-मन में चीस त्वेर् का सांिार होता न्ा उससे
तो नांग्रेीश्र राज्य को नपना काल हश्र सम्मगख नािता हग ग चदखायश्र दे ता न्ा। उसश्र समय नफ्रश्रका के
णोनर-यगद्ध से वापस लौटे हग ए डॉ. णालकृष्ट्ण चशवराम मगांीे ने नपने डॉक्टरश्र व्यवसाय के सान्-सान्
राष्ट्रश्रय स्व प के नये कायभक्रम ोश्र नागपगर में प्रारम्ो चकये न्े। उन्होंने राष्ट्रश्रय वृचत्त के चमत्रों का सांग्रह
कर उसके द्वारा चवचोन्न प्रकार से राष्ट्रश्रय चविार-ीागरण के कायभक्रमों कश्र योीना णनायश्र। उनमें
लोकमान्य द्वारा प्रवर्ततत उत्सव और गन्दोलनों का ोश्र समावेश होता न्ा। नतः ये सोश्र उत्सव एवां
गन्दोलनात्मक कायभक्रम नागपगर में ोश्र मनाये ीाने लगे। नन्ात् नये चविारों कश्र हवा िलने पर उन
चविारों से ीाग्रत् एवां प्रेचरत तरुणों को गस-पास कश्र पचरन्स्न्तश्र का नन्तणाह्य नवलोकन करने कश्र
दृचष्ट एवां उसका चनदान करने कश्र सम्यक् णगचद्ध ोश्र स्वाोाचवक तौर पर क्रमशः प्राप्त होतश्र गयश्र। ीैसे-
ीैसे ये तरुण गस-पास दे खते न्े वैसे-वैसे हश्र उसके मन में यह चविार णल पकड़ता ीाता चक
राष्ट्रोत्न्ान के चलए नपने प्रयत्नों कश्र पराकाष्ठा करनश्र िाचहए। कारण, तत्कालश्रन पचरन्स्न्चत का चित्र
प्रत्येक चविारवान् व्यचि को नशान्त करनेवाला तन्ा ोावनाशश्रल व्यचि के तो खून को ोश्र खौला

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दे नेवाला न्ा। उस समय के तरुणों को नागपगर का दृश्य चकतना ोश्रर्ण लगता न्ा इसका चित्र चपछले
ननेक वर्ों क्रान्न्तकायभ के चलए नमरश्रका में रहनेवाले चवख्यात क्रान्न्तकारक ीश्र रामलाल वाीपेयश्र
ने नपने ‘नप्रकाचशत’ गत्मिचरत्र में इस प्रकार खींिा है ः ‘‘एक काणगलश्र पुान लाखों कश्र णस्तश्र में
घगसकर गरश्रण लोगों को मारकर तन्ा उनके पैसे लूटकर सगरचक्षत लौट सकता है । चहस्लॉप कॉलेी कश्र
णगल में सोश्र गन्दश्र णन्स्तयााँ न्ीं। शराण, िरस और गााँीा पश्रकर ीरा-ीरा से मगसलमान छोकड़े हमें
कॉलेी ीाते हग ए गालश्र दे ते हैं और हम वह सण िगपिाप सहन कर कॉलेी िले ीाते हैं । एक नांग्री

चसपाहश्र नकेला हश्र नगर में गकर सहस्रों लोगों के सामने एकाघ गरश्रण को पश्रट-पश्रटकर वापस िला
ीाता है । हम सण दे खते रहते हैं । कोई ोश्र प्रचतकार नहीं करता। नखाड़े में कसरत करने के चलए नगर
हम चशचक्षत लोग गये तो शेर् समाी हमारश्र ओर घृणा-ोरश्र दृचष्ट से दे खता है । इस प्रकार के मगदा समाी
को दे खकर क्या करें यह समझ में नहीं गतश्र।’’

डॉ. मगांीे कश्र गयग 1904-5 में णत्तश्रस-तैंतश्रस वर्भ कश्र होगश्र। उनके गस-पास एकत्र व्यचियों में चविान
कश्र मयादाओां के नन्तगभत काम करनेवाले सान्त्त्वक मनोवृचत्त को लोगों से लेकर चपस्तौल का खेल
खेलनेवाले राीसश्र स्वोाव के तरुणों तक सोश्र का नन्तोाव होता न्ा। नागपगर में कोई ोश्र सरकार-
चवरोिश्र तन्ा लोक ीाग्रचत कश्र हलिल हो उसमें उसका प्रत्यक्ष नन्वा नप्रत्यक्ष हान् नवश्य रहता
न्ा।

लोकमान्य चतलक ने इसश्र समय ‘केसरश्र’ के द्वारा ‘पैसाफण्ड’ कश्र कल्पना प्रस्तगत कश्र। िारों ओर
उसके ननगसार काम ोश्र होने लगा। नागपगर में उस कल्पना को साकार करने के चलए ीो प्रयत्न हग ए
उसमें चवद्यान्ी केशव हे डगेवार नत्यन्त मन लगाकर ीगट गया। घर में निोूखा रहने पर ोश्र ीो दूसरों
के यहााँ कोश्र ोोीन करने नहीं गया तन्ा नपने चनकटतम चमत्रों के यहााँ से ोश्र ीो पूीापाु, नध्यापन
गचद का काम करके हश्र कगछ ग्रहण करता न्ा उस केशव को ‘पैसाफण्ड’ के चलए घर-घर मााँगने में
कोई चहिक नहीं न्श्र। ‘‘मर ीाऊाँ मााँगू नहीं नपने तन के काी। परमान्भ के करने मोचह न गवै लाी’’
यहश्र वृचत्त रहतश्र है समाीसेवश्र कश्र। नतः राष्ट्रकायभ के चलए ोूखों रहकर ोश्र दर-दर ोश्रख मााँगने कश्र
तत्परता यचद केशव ने नपने चवद्यान्ी-ीश्रवन में ोश्र चदखायश्र दश्र तो कोई गियभ नहीं।

माता-चपता कश्र मृत्यग के उपरान्त िश्ररे-िश्ररे केशव का घर से सम्णन्ि टूटने लगा न्ा। नतः वह नपने
चमत्र वझे के यहााँ पढने के चलए ीाता न्ा। चफर ोश्र णश्रि-णश्रि में घर में गना-ीाना रहता हश्र न्ा। पर
1905 के गस-पास तो महादे व शास्त्रश्र को नपने ोाई कश्र गचतचवचियााँ चणलकगल नापसन्द होने लगीं।
‘‘झण्डा ीश्रतने का खेल, सोाओां में ीाना, मगचष्टफण्ड ीमा करना, चमत्र-मण्डलश्र में गन्दोलनों कश्र
ििा करना गचद णातें नपने ीैसे गरश्रण लोगों के चलए नहश्र हैं । तू इन व्यन्भ कश्र झांझटों में क्यों पड़ता
है ? नरें , खाना-पश्रना, दण्ड-णैुक लगाना तन्ा घर का काम करना इतना हश्र नपने चलए णहग त है । इन

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व्यन्भ के झगड़ों से नपना क्या सरोकार? हम ोले हमारा घर ोला।’’ इस प्रकार का उनका उपदे श
रहा करता न्ा। उिर महादे व शास्त्रश्र के ीश्रवन और णताव से तरुण केशव को ोश्र चिढ लगने लगश्र
न्श्र। उसे लगने लगा कश्र इस प्रकार नपने णड़े ोाई के मनमौीश्रपन पर नवलन्म्णत रहने के स्न्ान पर
तो यहश्र नच्छा होगा चक कष्टों में रहकर ोश्र चशक्षा और दे शसेवा कश्र नपनश्र इच्छा को पूणभ करने का
प्रयास चकया ीाये। स्वावलम्णन कश्र ोावना और उसके चलए गवश्यक गत्मचवश्वास चदन-पर-चदन
णढने लगा। इसके पश्रछे उसके घचनष्ठ चमत्रों के प्रेम तन्ा दे शोि चशक्षकों के स्नेह कश्र प्रेरणा ोश्र काम
कर रहश्र न्श्र। डॉ. मगांीे का ोश्र उन्हें ोारश्र सहारा न्ा।

केशवराव नण सोलह वर्भ के हो गये न्े। उन्हें सोाओां में मन्ण्डत चवर्यों का िाव लग गया न्ा। दूसरों
के चविार सगनते-सगनते कगछ समवयस्क तरुणों के मन में यह ोश्र इच्छा हग ई कश्र हम लोगों को ोश्र ोार्ण
दे ना सश्रखना िाचहए। इसकश्र पूर्तत के हे तग उन्होंने एक ििा-मण्डल कश्र योीना कश्र। इस ििा-मण्डल
को गगे िलकर प्रचसचद्धप्राप्त डॉ. पाण्डगरांगराव खानखोीे के क्रान्न्तकारश्र गगट ‘स्वदे श णान्िव’ से ोश्र
प्रोत्साहन चमला न्ा। डॉ. खानखोीे ‘केसरश्र’ कश्र नपनश्र लेखमाला में कहते हैं चक ‘‘व्याख्यान-माला
तन्ा स्वदे शश्र-प्रिार के काम में गणू ीोशश्र, मो नभ्यांकर, खरे , सप्रे, णाणूराव सगतार, केशवराव
हे डगेवार वगैरह ननेक तरुण लोग गगे गये’’ डॉ. खानखोीे के ‘स्वदे श-णान्िव’ सांघटन कश्र ओर
से स्वदे शश्र वस्तगओां का प्रिार करने के हे तग महाल के रास्ते पर ‘गयभ णान्िव वश्रचन्का’ कश्र स्न्ापना
कश्र गयश्र न्श्र। इसमें हान् के णने णे ांगे साणगन, णटन, कागी, चलफाफे गचद वस्तगएाँ चणक्रश्र के चलए रखश्र
गयश्र न्ीं। इस दगकान कश्र वस्तगओां पर ‘पााँि शस्त्रों कश्र छाप’ लगश्र रहतश्र न्श्र। इससे ननगमान लगाया ीा
सकता है चक दगकान के प्रवतभकों कश्र वृचत्त कैसश्र न्श्र। इस दगकान में केशवराव चणक्रश्र करने के चलए कगछ
समय के चलए णैुते न्े तन्ा पाुशाला एवां नन्यत्र लोगों में स्वदे शश्र का व्यवहार करने के चलए प्रिार
करते न्े।

केशवराव के एक णालचमत्र ीश्र णळवन्तराव मण्डलेकर कश्र स्मृचत के ननगसार 1905-6 के गस-पास
डॉ. मगांीे के यहााँ चवचोन्न चवद्यालयों के कगछ िगने हग ए छात्रों कश्र एक गगप्त णैुक हग ई न्श्र। उसमें ‘णम’
णनाने का तरश्रका णताया गया न्ा। तन्श्र महाराष्ट्र और णांगाल कश्र पचरन्स्न्चत का वणभन ोश्र चकया गया
न्ा। इस णैुक में केशवराव हे डगेवार, मण्डलेकर गचद तरुण उपन्स्न्त न्े। चकन्तग यह सोा चकसकश्र
प्रेरणा से हग ई इसका पता नहीं लगता।

उस काल में ीो हवा सम्पूणभ दे श में णह रहश्र न्श्र उसश्र का एक उद्रेक नागपगर कश्र यह गगप्त णैुक न्श्र। यह
क्रान्न्त कश्र हवा न्श्र चीसको ीनता कश्र इच्छा के चवपरश्रत सरकार द्वारा चकये गये ‘णांग-चवोाीन’ ने
तात्काचलक कारण के प में णढावा दे चदया न्ा। णांगाल में मगसलमानों के चनकट लाने कश्र दृचष्ट से
सरकार ने सन् 1905 ई. कश्र 29 चसतम्णर को णांगाल के दो टगकड़े करने का चनणभय चकया। यह णात

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चकसश्र ोश्र दे शोि को नहीं रुि सकतश्र न्श्र। सरकार का ननगमान न्ा चक इस नचप्रय चनणभय कश्र
प्रचतचक्रया कगछ मगट्ठश्र-ोर चहन्दगओां में होगश्र और वह ोश्र ीरा डण्डा चदखाया तन्ा गाँखें लाल-पश्रलश्र कीं
चक वहीं-कश्र-वहीं दण ीायेगश्र। चकन्तग सरकार का यह ननगमान चक राष्ट्रश्रय गन्दोलनों का चहन्दगओां का
उत्साह इस चवोाीन कश्र घटना के कारण लकवा मारे हग ए व्यचि के समान नपांग हो ीायेगा गलत
चनकला। 16 निूणर 1905 का चदन ‘दगःख चदवस’ के प में सम्पूणभ णांगाल में मनाया गया तन्ा उसमें
लाखों व्यचियों ने सोा, ीगलूस, प्रदशभन एवां प्रस्ताव के द्वारा सरकार के इस कृत्य का तश्रव्र चवरोि
चकया। ननेक लोगों ने उस चदन ‘ननशन व्रत’ रखा। यह तो सवभमान्य ीनता कश्र प्रचतचक्रया न्श्र। चकन्तग
उणलतश्र हग ई ोावनाओां वाले तरुणों ने तो चवदे शश्र कपड़े कश्र होलश्र ीलाकर चवद्यालय छोड़ने तन्ा
नांग्री
े श्र वस्तगओां का णचहष्ट्कार कर स्वदे शश्र का व्यवहार करने कश्र प्रचतज्ञा कश्र। इनमें से कगछ तरुणों को
यह चनर्ेि चणलकगल ऊपरश्र तन्ा नप्रोावश्र लगने लगा। फलतः उन्होंने कगछ पचरणामकारश्र प्रयत्न करने
के उद्देश्य से कलकत्ता, ाका गचद स्न्ानों पर सशस्त्र क्रान्न्तकारश्र दल का गगप्त रुप से सांघटन प्रारम्ो
कर चदया। इस तरह चवचोन्न प्रकार से ीनता का सरकार-चवरोिश्र क्षोो प्रकट होने णगा तन्ा उसकश्र
प्रखरता चदनों-चदन णढतश्र हश्र गयश्र। सरकार ने ोश्र ीनता के इस उुाव को वहीं-का-वहीं दणा दे ने कश्र
इच्छा से ननेक कुोर उपायों का नवलम्णन चकया। चकन्तग प्रारम्ो में तो ये सोश्र उपाय क्रान्न्त-यज्ञ
कश्र प्रज्जवचलत नचग्न को शान्त करने के स्न्ान पर उसे और ोश्र ोड़कानेवाले हश्र चसद्ध हग ए। न्ोड़े हश्र
चदनों में णांग-ोांग केवल पूवभ के प्रदे श का हश्र नहीं सम्पूणभ ोारत के चलए एक महत्त्व का प्रश्न णन गया।
सोश्र प्रान्तों को एक सूत्र में गून्
ाँ नेवालश्र दे शोचि कश्र सगप्त ोावना णांगाल पर नांग्री
े ों के इस प्रत्यक्ष
गघात से ीाग्रत् हो गयश्र तन्ा उस ोावना कश्र चदव्यता को प्रकट करनेवाला ‘वन्दे मातरम्’ का मांत्र
ाँ ने लगा। उस काल में ‘वन्दे मातरम्’ के मांत्र ने ीन-मन में चकतना पचरवतभन चकया
सम्पूणभ दे श में गूी
न्ा इसका वणभन करते समय णाणू नरचवन्द घोर् चलखते हैं चक ‘‘ ‘वन्दे मातरम्’ यह मांत्र चदया गया
तन्ा एक हश्र चदन में सम्पूणभ ीनता को दे शोचि कश्र दश्रक्षा चमल गयश्र’’। दे शोचि कश्र दश्रक्षा दे नेवाला
यह मांत्र नागपगर में ोश्र गूी
ाँ उुा।

1906 के चदसम्णर में स्वदे शश्र-गन्दोलन कश्र प्रोावश्र पृष्ठोूचम में कलकत्ता में काांग्रेस-नचिवेशन हग ग।
वहााँ से स्वराज्य, स्वदे शश्र, णचहष्ट्कार और राष्ट्रश्रय चशक्षा के सचक्रय गन्दोलन कश्र ितगःसूत्रश्र लेकर
लोग नपने-नपने प्रान्तों में गये। उस नचिवेशन में चीनकश्र चवशेर् प्रेरणा और साहस के कारण यह
ितगःसूत्रश्र स्वश्रकृत हग ई न्श्र वे लोकमान्य चतलक लौटते हग ए नागपगर में रुके। उनके ओीस्वश्र ोार्णों को
केशवराव हे डगेवार ीैसे ीाग्रत् तरुणों ने नत्यन्त उत्सगकता और तन्मयता से सगना न्ा। इसका सही
पचरणाम उनकश्र राष्ट्रश्रय ोावनाओां को उद्दश्रप्त करने में हग ग।

णांगाल से यह चवक्षोो का तूफान सारे ोारत में फैलने लगा। पर यह कहा ीाये तो नचतशयोचि नहीं
होगश्र चक महाराष्ट्र में इसका पचरणाम णांगाल के समान तश्रव्र और व्यापक हश्र नहीं णन्ल्क उससे ोश्र

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नचिक हग ग। घर का गकर्भण कम हो ीाने पर स्कूल कश्र छगचट्टयााँ होते हश्र केशवराव नपने िािा के
यहााँ रामपायलश्र िले ीाते न्े। चरश्ते में दूर के िािा होने पर ोश्र उनके व्यवहार में नत्यन्त स्नेह और
गत्मश्रयता न्श्र। उनका नाम न्ा मोरे श्वर ीश्रिर हे डगेवार। पर उन्हें सण ‘गणाीश्र’ नाम से हश्र पगकारते
न्े। उनकश्र पढाई मैचरक तक हग ई न्श्र। तदगपरान्त वे राीस्व चवोाग में नौकरश्र करने लगे न्े। 1906-7
में वे रे वेन्यू इनसपेक्टर का काम कर कर रहे न्े। रामपायलश्र में उन्होंने एक छोटा सा घर तन्ा खेत ोश्र
खरश्रद चलया न्ा। उनके यहााँ िार णैल कश्र खेतश्र होतश्र न्श्र चीससे गेहूाँ, िावल, िना गचद पयाप्त िान्य
चमल ीाता न्ा। गाय-कोुे मे दगिा गायें ोश्र न्ीं। छग चट्टयों में िािा के घर गने पर केशवराव वहााँ
तरुणों को इकट्ठा करके उन्हें दे श कश्र पचरन्स्न्चत तन्ा िल रहे स्वदे शश्र गन्दोलन के चवर्य में णताते
न्े तन्ा उनमें यह इच्छा ोश्र ीाग्रत् करते न्े चक उन्हें िगप न णैुते हग ए नपनश्र ओर से ोश्र कगछ करना
िाचहए। नरहचर कसह ुाकगर, ोगोरे व डणश्रर गचद सज्जनों को उन्होंने इन्हीं णैुकों में नपने प्रोावश्र
व्यचित्व से गकृष्ट कर सही हश्र नपने सान्-चमलाकर गत्मसात् कर चलया न्ा।

सन् 1907 नन्वा 1908 कश्र चवीयादशमश्र कश्र एक घटना केशवराव कश्र उस समय कश्र मनःन्स्न्तश्र
पर नच्छा प्रकाश डालतश्र है । स्वदे शश्र के प्रिार तन्ा ‘वन्दे मातरम्’ के प्रसार में उनका मन चणल्कगल
रम गया न्ा। क्रान्न्तकारक दल के चविारों के कारण उनकश्र वृचत्त में चनोभयता और वाणश्र में ओीन्स्वता
ोश्र गना स्वाोाचवक हश्र न्ा। चवद्यालय के पहले कगछ वर्ों तो उनके व्यवहार में गाम्ोश्रयभ तन्ा मौन
चदखता न्ा पर ीैसे-ीैसे दे शोचि कश्र ोावना ििकने लगश्र वैसे-वैसे हश्र गाम्ोश्रयभ के सान् उत्साह और
मन के चविार कहने कश्र उत्सगकता स्पष्ट चदखने लगश्र। उस वर्भ दशहरे के पहले हश्र वे रामपायलश्र गये
न्े।

दशहरे का चदन गया तन्ा केशवराव को सन्ध्या के समय गााँव में होनेवाले सश्रमोल्लांघन के ीगलूस का
चमत्रों से पता िला। उन्होंने सोिा चक इस उत्सव में नगर के दो-तश्रन सौ लोग एकत्र होंगे, नतः वह
नपने स्वदे शश्र के प्रिार के चलए एक नच्छा नवसर रहे गा। तगरन्त उन्होंने नपना चविार नपने चमत्रों
के सम्मगख रखा तन्ा उसके कायभक्रम में स्वयां गने और नचिकाचिक सांख्या में पचरचितों को लाने को
कहा। स्वयां ोश्र उस दृचष्ट से काम में ीगट गये।

शाम के सदै व कश्र ोााँचत गााँव से णाहर ीाकर रावण का वि करने के चलए सश्रमोल्लांघन कश्र यात्रा
चनकलश्र। णाीों के सान्-सान् गााँव के प्रचतचष्ठत ीन एवां सरकारश्र नचिकारश्र सोश्र सी-िीकर मन्द
गचत से उस ीगलूस में ीा रहे न्े। गी के ीगलूस में तरुणों कश्र सांख्या प्रचतवर्भ से नचिक चदखतश्र न्श्र
तन्ा उनमें उत्साह ोश्र खूण चदखायश्र दे ता न्ा। ीगलूस चनचित स्न्ान पर पहग ाँ िने को हग ग चक केशवराव
ने ‘वन्दे मातरम्’ का उद्घोर् चकया और पूवभ सांकेत के ननगसार नन्य तरुणों ने उनका सान् चदया। सण
लोग रावण मारने के स्न्ान पर ीगलूस चवसीभन करके ीैसे हश्र कगछ रुके चक उन्हीं तरुणों के घेरे में खड़े
होकर केशवराव तता उनके चमत्र ोगोरे और डणश्रर ने ऊाँिश्र गवाी में ‘वन्दे मातरम्’ का राष्ट्रश्रगश्रत

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गाया। इसके तगरन्त णाद हश्र केशवराव ने ‘रावण मारने का वास्तचवक नन्भ क्या है ’ इस प्रकार का उस
समय के के ननगकूल चवर्य लेकर नपनश्र नचोनव कल्पना के गिार पर नचत उग्र ोार्ण चदया।
इस ोार्ण को सगनते हश्र नचिकारश्रगण सहम गये तन्ा पालक डर गये। गााँव में चीसके मगाँह सगनो एक
हश्र णात न्श्र। कगछ लोग इस घटना कश्र प्रशांसा करने लगे तो कगछ यह सोिकर चक ‘नण न ीाने क्या
होगा’ डरने लगे।

चनचित चदन पर चनचित रास्ते से गााँव के णाहर ीाकर िैतन्यहश्रन एवां केवल चढ के नाते रावण को
मारनेवाले लोगों कश्र कगन्ण्ुत वृचत्त को गी केशवराव ने सिमगि सश्रमोल्लांघन करवाया न्ा। 1920 के
सामूचहक गन्दोलन एवां उसके णाद में ‘वन्दे मातरम्’ कश्र घोर्णा एक सरल णात हो गयश्र न्श्र। चकन्तग
यह सगकरता उन दे शोिों कश्र तपिया का फल न्श्र चीन्होंने इस शताब्दश्र के प्रारम्ो में नत्यन्त चवपरश्रत
पचरन्स्न्चत में ोश्र चनोभयतापूवभक खड़े रहकर चनस्तेी और ुण्डे पड़े हग ए समाी के कणभरन्ध्रों में यह
सांीश्रवन मांत्र फूाँककर ीाग्रचत का प्रयत्न चकया।

घटना कश्र सूिना पगचलस ने ऊपर पहग ाँ िायश्र तन्ा राीद्रोह का मगकदमा िलाने का प्रयास हग ग। उसके
चनचमत्त सरकारश्र वकश्रल ीश्र गमभस्राांग रामपायलश्र गया। उसके पहले हश्र डणश्रर और ोगोरे दोनों
चवद्यार्तन्यों को चवद्यालय से चनकाल चदया गया न्ा। यचद मगकदमा िला तो तश्रनों तरुणों का ीश्रवन
णणाद हो ीायेगा यह सोिकर ोण्डारा के ीश्र पगरुर्ोत्तम सश्रताराम दे व गगे गये तन्ा उन्होंने
चीलाचिकारश्र ीश्र रुस्तमीश्र से चमलकर गग्रह चकया चक ‘‘इन णालकों कश्र णगचद्ध हश्र क्या है ? उसकश्र
गयग का चविार करके उस पर मगकदमा िलाने का चविार छोड़ दे ना िाचहए। चफर उनके द्वारा गाये
गये गश्रत में मातृोूचम कश्र वन्दना के चसवा है ोश्र क्या?’’ सरकारश्र नचिकाचरयों को यह यगचिवाद तो
शायद समझ में नहीं गया हो, परन्तग ीश्र दे व कश्र प्रान्भना और गग्रह के कारण मगकदमें का चविार
नवश्य छोड़ चदया गया और डणश्रर और ोगोरे को पगनः स्कूल में ोती कर चलया गया। ीश्र केशवराव
ोश्र रामपायलश्र से यशस्वश्र ननगोव लेकर छग चट्टयााँ समाप्त होने पर नागपगर वापस ग गये। मगकद्दमे का
सांकट तो टल गया पर इसके उपरान्त केशवराव के पश्रछे सदै व के चलए सरकारश्र गगप्तिरों कश्र झांझट
नवश्य लग गयश्र।

केशवराव लौट गये। पर उनके िािा गणाीश्र हे डगेवार कश्र ओर सरकार कश्र टे ढश्र नीर हो गयश्र।
रामपायलश्र से उनकश्र णदलश्र कर दश्र गयश्र। सरकरश्र नचिकारश्र उिर का क्रोि इिर चनकालने लगे।
िोणश्र का क्रोि गिे पर चनकाला ीाने लगा। नतः उनके मन में यह स्वाचोमानपूणभ चविार उुा चक
ऐसश्र सरकार कश्र नौकरश्र नहीं िाचहए और उन्होंने नपने पद से त्यागपत्र दे चदया। उस समय ीश्रवन का
चविार केवल रुपये-गने में करनेवाले उनके ननेक चमत्रों ने यहश्र कहा होगा चक ‘‘केशवराव कश्र

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दे शोचि िािा को खल गयश्र’’ परन्तग इस प्रकार कश्र टश्रका-चटप्पणश्र को सगनने कश्र उन्हें फगरसत हश्र कहााँ
न्श्र?

स्वदे शश्र-गन्दोलन से प्रदश्रप्त नागपगर के वातावरण को ोश्र णदलने कश्र दृचष्ट से सरकार ने प्रयत्न प्रारम्ो
कर चदये। नतः गी कोई ‘स्वदे शश्र’ कश्र दगकान के चलए ीगह दे ने कश्र ‘हााँ’ कर लेता तो दूसरे हश्र चदन
‘‘मैं यह दगकान नहीं दे सकूाँगा’’ इस प्रकार नपनश्र नसमन्भता ोश्र प्रकट कर दे ता न्ा। तरुणों ने सांघचटत
होने तन्ा व्यायाम के चलए यचद नखाड़ा शग चकया तो पगचलस कश्र िमचकयों को कारण वह नचिक
चदन नहीं िल सकता न्ा। इतना हश्र नहीं, ीश्र छत्रपचत चशवाीश्र महाराी के ीन्मोत्सव के चनचमत्त ोश्र
स्न्ान चमलना कचुन होने लगा न्ा। लोकनायक मािवराव नणे के िचरत्र में इस समय का वणभन करते
समय िचरत्रकार चलखता है चक ‘‘वन्दे मातरम् का शब्दोरारण करनेवाले, चशवाीश्र-उत्सव, गणपचत-
उत्सव, रामदासनवमश्र गचद का सांिालन करनेवाले तन्ा प्रकट सावभीचनक समारोहों में ोाग लेनेवाले
व्यचि कसह कश्र चवकराल दाढ में हान् डालनेवाले के समान साहसश्र समझे ीाते न्े।’’

चकन्तग कसह कश्र चवकराल दाढ में हान् डालने का हश्र नहीं नचपतग उन्हें उखाड़ने का प्रयत्न करने का िैयभ
ोश्र कगछ तरुणों में न्ा तन्ा उन्होंने सरकारश्र कोप कश्र तश्रव्रता कश्र कल्पना होते हग ए ोश्र सोाओां और
ीगलूसों में ‘वन्दे मातरम्’ राष्ट्रगश्रत का गायन एवां मन्त्रोद्घोर् णराणर िलाये रखा न्ा। चवद्यान्ी वगभ में
गन्दोलन के प्रचत चदखनेवालश्र यह नचोरुचि शासन के चलए चसरददभ णनश्र हग ई न्श्र। नतः सरकार ने
एक पचरपत्रक ोेीकर चवद्यार्तन्यों के सोा एवां प्रदशभनों में ोाग लेने पर प्रचतणन्ि लगा चदया और
चशक्षकों को गदे श चदया चक वे इस गज्ञा का उल्लांघन करनेवाले छात्रों के नाम सरकार को सूचित
करें । सोश्र चवद्यार्तन्यों को स्कूलों में इस पचरपत्रक के ननगसार िेतावनश्र ोश्र दश्र गयश्र। यह पचरपत्रक
‘चरस्ले सक्यगभलर’ के नाम से कगख्यात है ।

नश्रलचसटश्र हाई स्कूल में ोश्र यह पचरपत्रक गया न्ा। इसके कारण वहााँ के चशक्षकों के सम्मगख णड़श्र
समस्या उत्पन्न हो गयश्र न्श्र। एक मन तो यह कहता न्ा चक सरकार कश्र छत्रछाया में िलनेवालश्र
पाुशाला होने के कारण उस पचरपत्रक का पालन करके ‘ीश्र हग ीूरश्र’ कश्र ीाय पर दूसरश्र ओर नन्दर
से उनका मन उन्हें हश्र खा रहा न्ा। उस चवद्यालय में नचिकाांश चशक्षक राष्ट्रश्रय वृचत्त के न्े और इसचलए
उन्होंने पचरपत्रक का नन्भ यद्यचप णता चदया न्ा तो ोश्र वे तरुणों कश्र योग्य चदशा में कदम णढानेवालश्र
वृचत्तके मागभ में गड़े नहीं गना िाहते न्े। उन चशक्षकों के सम्णन्ि में डॉक्टर हे डगेवार के एक सहपाुश्र
िााँदा के ीश्र नानासाहण ोागवत कहते हैं चक ‘‘चवद्यालय में णझलवार, सोमण तन्ा णाकरे , इन
नध्यापकों कश्र रहन-सहन नत्यन्त सादश्र और वेश चहन्दगओां का न्ा तन्ा वे मराुश्र राज्य का णड़ा
नचोमान रखते न्े। शालेय चशक्षण के सान्-सान् वे यह ोश्र णड़े मार्तमक ढां ग से णताते न्े चक ोोंसलों
का राज्य कैसे िला गया। वे सोश्र ुे ु स्वदे शश्र वस्तगओां का व्यवहार करने वाले न्े।’’

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चशक्षकों के राष्ट्रश्रय वृचत्त के होने के कारण सोाओां में चवद्यार्तन्यों कश्र ोारश्र सांख्या रहतश्र न्श्र। नतः
सरकार को यह ीानते दे र नहीं लगश्र चक ‘चरस्ले पचरपत्रक’ के ननगसार चशक्षक या तो चवद्यार्तन्यों पर
चनयांत्रण कर नहीं पाये या करना नहीं िाहते। चशक्षा-चवोाग कश्र ओर से चवद्यालयों तन्ा चवद्यार्तन्यों को
णार-णार िेतावनश्र चमलने लगश्र। चकन्तग उसकश्र प्रचतचक्रया यह हग ई चक ‘‘स्कूल के नचतचरि समय में
चवद्यान्ी क्या करता है , इस सम्णन्ि में सरकार को क्या मतलण’’ यह चविार चवद्यान्ीवगभ में उत्पन्न
होने लगा तन्ा शासन कश्र इस नन्यायश्र नश्रचत के चवरुद्ध गन्दोलन करने कश्र योीना णनायश्र ीाने लगश्र।
चवद्यालय कश्र सोाओां में ीानेवाले चवद्यार्तन्यों के नाम ऊपर ोेीने कश्र णात ोश्र उुश्र चकन्तग उससे
गन्दोलन के चविार को और ोश्र गचत चमलश्र। इस गन्दोलन का नेतृत्व चवद्यालयों कश्र नन्न्तम कक्षा
के चवद्यार्तन्यों के हान्ों में होना स्वाोाचवक हश्र न्ा। केशवराव उनमें नग्रगण्य न्े। यह 1908 कश्र घटना
है ।

उस समय केशवराव कश्र गयग उन्नश्रस वर्भ कश्र न्श्र। गयग के ननग प तेीस्वश्र स्वोाव, मन कश्र चनोभयता,
दे शोचि से ओत-प्रोत हृदय कश्र तन्मयता तन्ा िार ीनों को सान् लेकर हान् में चलये काम को निूक
पूरा करने कश्र कगशलता, ये सोश्र गगण उनमें एकत्र चवद्यमान न्े। इन गगणों के सान् हश्र चवद्यार्तन्यों में
लोकचप्रय यह छात्र नध्यापकों का ोश्र स्नेहपात्र न्ा। केशवराव और उनके साचन्यों ने यह चनिय चकया
चक चनकट ोचवष्ट्य में चवद्यालय कश्र ीााँि करने के चलए गनेवाले इन्स्पेक्टर के सम्मगख ‘चरस्ले
पचरपत्रक’ के चवरुद्ध प्रदशभन चकया ीाये। कानों-कान यह णात सोश्र चवद्यार्तन्यों में फैल गयश्र। चनिय
हग ग न्ा चक नपनश्र कक्षा में चनरश्रक्षक ने कदम रखा चक सोश्र छात्र एक स्वर में ‘वन्दे मातरम्’ का
उद्घोर् करें । इस दृचष्ट से चवद्यार्तन्यों में नन्य सूिनाएाँ ोश्र प्रसृत कश्र गयश्र न्ीं। उनमें प्रमगख यह न्श्र कश्र
चनदशभन होने के उपरान्त ीण ीााँि हो तो यह योीना चकसने णनायश्र इस सम्णन्ि में कोई चवद्यान्ी चकसश्र
का नाम न णताये। यह सण तैयारश्र होने के णाद सोश्र उस चदन कश्र णाट ीोहने लगे ीण चक चनरश्रक्षक
महोदय गनेवाले न्े।

चनचित चदवस पर चवद्यालय के मगख्याध्यापक ीश्र ीनादभ न चवनायक ओक तन्ा मगसलमान चनरश्रक्षक
कक्षाओां का चनरश्रक्षण करने के चलए िले। सणसे पहले उन्होंने मैचरक कक्षा में प्रवेश चकया। तगरन्त
‘वन्दे मातरम्’ के मन्त्रघोर् के द्वारा उनका नकन्ल्पत एवां नोूतपूवभ स्वागत चकया। उस समय
चवद्यार्तन्यों के मगख पर कृतृकृत्यता का गनन्द ोास रहा न्ा परन्तग चनरश्रक्षक एकदम गियभिचकत एवां
स्तन्म्ोत होकर इिर-उिर दे खने लगा। मगख्याध्यापक ोश्र घणड़ा गये। वे चनरश्रक्षक को दूसरश्र कक्षा कश्र
ओर ले गये। पर वहााँ ोश्र वहश्र ‘वन्दे मातरम्’ का उद्घोर् सगनने को चमला। पहलश्र कक्षा के चवद्यार्तन्यों
कश्र घनगम्ोश्रर गीभना से प्रोत्साचहत होकर दूसरश्र कक्षा ने और ोश्र ऊाँिश्र गवाी तन्ा गत्मचवश्वास
के सान् यह घोर्णा कश्र।

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चवद्यालय का चनरश्रक्षण वहीं समाप्त हो गया। चनरश्रक्षक सन्तप्त होकर तनतनाते हग ए णाहर िले गये।
चवद्यार्तन्यों कश्र खरश्र परश्रक्षा का काल तो नण गया न्ा। चीन कक्षाओां में यह घटना घटश्र न्श्र उनमें
ीााँि-पड़ताल प्रारम्ो हो गयश्र। यह योीना चकसने णनायश्र यह पता लगाने के चलए खोद-खोदकर प्रश्न
पून्े गये। परन्तग चवद्यार्तन्यों ने पूवभ चनिय के ननगसार ‘मौनां सवान्भसािनम्’ यहश्र मन्त्र चहतावह समझा।
कोई ोश्र कगछ कहने को तैयार नहीं न्ा।

चवद्यालय के सांिालकों को इस प्रकार कश्र घोर्णा करनेवाले चवद्यार्तन्यों को दण्ड तो दे ना हश्र न्ा। चकन्तग
उसके पूवभ उन्होंने णार-णार सणको िमकाकर पूछा चक ‘‘नोश्र ोश्र नाम णता दो नहीं तो कक्षा के सोश्र
चवद्यार्तन्यों को दण्ड ोगगतना पड़ेगा।’’ परन्तग कहीं से कगछ ोश्र पता नहीं िला। नन्त में ‘‘ीण तक नाम
नहीं णताये ीायेंगे तण तक दोनों कक्षाओां के छात्रों को चवद्यालय में नहीं गने चदया ीायेगा’’, यह
नसन्न्दग्ि प से सूचित कर चदया गया। सोश्र चवद्यान्ी ‘वन्दे मातरम्’ का गगनोेदश्र घोर् करते हग ए
पाुशाला से णाहर चनकल गये।

गगे क्या? यह प्रश्न खड़ा हो गया। ‘वन्दे मातरम्’ के उद्घोर् से चीतनश्र सरकार को परे शानश्र न्श्र उससे
ोश्र शायद नचिक उस पालकों के हग ई ीो केवल नपने पचरवार में हश्र रमे हग ए चकसश्र ोश्र झगड़े में न
पड़ते हग ए सश्रिे-सरल रास्ते से िलना हश्र नपने ीश्रवन का चसद्धान्त मान णैुे न्े। सरकार से सांघर्भ कश्र
कल्पना ीहााँ णड़े-णड़ों को कन्म्पत करनेवालश्र न्श्र वहााँ चणिारे सािारण पालकों पर इस घटना का क्या
पचरणाम हग ग होगा, यह णताने कश्र तो गवश्यकता हश्र नहीं। ननेक पालकों ने नपने णरों के सलाह
दश्र चक ‘‘नसलश्र नेता का नाम णता दो तन्ा छग ट्टश्र पाओ।’’ परन्तग नाम णताना इतना सरल नहीं न्ा।

चवद्यालय से लौटकर केशवराव हे डगेवार तन्ा उनके सहकारश्र, डॉ. मगांीे तन्ा ‘दे शसेवक’
समािारपत्रक के सम्पादक ीश्र नच्यगत णळवन्त कोल्हटकर से चमले और चविार-चवचनमय के णाद
यह चनचित हग ग चक ीण तक चकसश्र को ोश्र चणना दण्ड चदये सोश्र छात्रों को चवद्यालय में प्रवेश कश्र
ननगमचत न चमले तण तक चवद्यालय का हश्र णचहष्ट्कार चकया ीाये। दूसरे चदन चवचवि रास्तों पर िरना
दे कर चवद्यार्तन्यों को चवद्यालय में ीाने से रोकने कश्र योीना कश्र गयश्र। घर-घर ीाकर खगले प से
सम्ोव न होने के कारण गगप्त प से प्रत्येक चवद्यान्ी से व्यचिगत सम्पकभ कर इस गन्दोलन में दृढता
से ोाग लेने के चलए उनको तैयार करने कश्र ोश्र व्यवस्न्ा कश्र गयश्र।

यह गन्दोलन सािारणतः डेढ-दो महश्रने तक िला। इस नवचि में हड़ताल के कारण मारपश्रट न हो
ीाये इसचलए चवद्यालय के रास्ते पर पगचलस का पहरा लगा चदया गया न्ा। चवद्यार्तन्यों कश्र एकता णनाये
रखने के चलए केशवराव को णराणर प्रयत्न करना पड़ता न्ा। इस काम में उन्हें ीश्र नच्यगतराव
कोल्हटकर से णड़श्र सहायता चमलश्र। उन चदनों वे ‘नागपगर के चतलक’ के नाम से चवख्यात न्े। वे
चवद्यार्तन्यों कश्र सोाओां में ोार्ण दे कर उन्हें सदै व उत्साचहत करते रहते न्े। उन्होंने छात्रों का िैयभ कोश्र

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नहीं चडगने चदया।इस हड़ताल के कारण चवद्यार्तन्यों कश्र हाचन होतश्र दे खकर पालकों ओर स्वतांत्रतावादश्र
चशक्षकों का चदल नश्रि-े ऊपर होता रहता न्ा। पालक तो णराणर णरों के कान खाये रहते न्े चक ‘‘नण
हड़ताल खत्म करो ओर स्कूल में ीाओ।’’ नतः कगछ चवद्यान्ी चनदशभकों कश्र पांचि तोड़कर स्कूल में
ीाने का चविार करने लगे। उस समय उन्हें तगरन्त िूचड़यााँ ोेंट कश्र गयीं और कहा गया चक वे पहले
िूड़श्र पहन लें और चफर स्कूल में ीायें। चवद्यालय के सांिालकों को ोश्र चवद्यालय कश्र प्रचतष्ठा कश्र दृचष्ट
से हड़ताल का नचिक चदनों िलने रहना ुश्रक नहीं लगता न्ा। नतः वे इस उद्देश्य से णराणर प्रयत्न
कर रहे न्े चक कैसे ोश्र हो चवद्यान्ी नपनश्र ोू ल स्वश्रकार कर स्कूल में ग ीायें। उस चवद्यालय के
कायभवाह सर चवचपनकृष्ट्ण णोस यह सलाह दे ने के चलए एक णार चवद्यार्तन्यों के पास ोश्र गये। परन्तग
चनदशभकों ने इतना हो-हल्ला चकया चक वे उसे सहन नहीं कर सके। सम्प्रचत सवोदय के कायभकता स्व.
तात्याीश्र वझलदार णताते न्े चक सर णोस इतने शान्त और नरम स्वोाव के न्े चक उन्हें इस शोरगगल
के णाद तगरन्त नल के नश्रिे णैुकर नपना मान्ा ुण्डा करना पड़ा। नन्त में ीश्र चवचपनकृष्ट्ण णोस तन्ा
प्रिानाध्यापक ीश्र ीनादभ नपन्त ओक ने कगछ चवद्यार्तन्यों और णालकों को चवश्वास में लेकर एक रास्ता
चनकाला। वह यह न्ा चक पालक प्रत्येक चवद्यान्ी से पूछें चक ‘‘ोूल हो गयश्र ना’’ और चवद्यान्ी केवल
गदभ न चहलाकर ‘‘हााँ’’ कर दे । ‘‘नपना एक वर्भ णेकार ीाने से तो नच्छा है चक इस प्रकार कगछ रां ग-
ांग करके स्कूल में िला ीाये।’’ इस यगचि से चवद्यार्तन्यों में यह चविार णल पकड़ने लगा। न्ोड़े हश्र
चदनों में दो चवद्यार्तन्यों को छोड़कर शेर् तेरह-िौदह सौ चवद्यान्ी पगनः चवद्यालय में पढने लगे। इन दो
चवद्यार्तन्यों में से एक केशवराव हे डगेवार न्े, इसका चणना णताये हश्र ननगमान लगाया ीा सकता है ।

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3. यवतमाळ के चवद्यागृह में

चवद्यालय से नाम काटने के पहले कगछ चशक्षकों एवां चहतचिन्तकों ने केशवराव से नपना हु छोड़ दे ने
का ननगरोि चकया। चकन्तग उनका चनिय नटल न्ा। घर में उपीश्रचवका कश्र चिन्ता नहीं, नतः चवद्यालय
छू ट गया तो छूट गया, इस प्रकार कश्र सगरचक्षतता में से केशवराव ने यह चनणभय नहीं चलया न्ा। उनका
मन उनसे कहता न्ा चक ‘‘चीस मातृोूचम ने नपने समाी का सहस्त्रों वर्ों से िारण और पालन-पोर्ण
चकया है उस मातृोूचम कश्र वन्दना का हृदय में स्वाोाचवकतया उुनेवाला ोाव न तो चछपाया और न
दणाया हश्र ीा सकता है । चवदे शश्र सरकार कश्र सत्ता में मातृोूचम कश्र वन्दना यचद नपराि है तो वह
नपराि एक णार नहीं नसांख्य णार करुाँगा और उसके कारण उत्पन्न सोश्र सांकटों और यातनाओां को
सहर्भ झेलूाँगा।’’ हृदय कश्र इसश्र उत्कट दे शोचि कश्र प्रेरणा से उन्होंने वह गन्दोलन प्रारम्ो चकया न्ा
तन्ा उसके ननग प चनिय से हश्र ‘वन्दे मातरम्’ का उद्घोर् पाप नहीं पगण्य है इस सत्य के प्रचतपादन के
चलए प्रमाणोूत दृढता उन्होंने चदखायश्र न्श्र। ोावना कश्र हवा में उड़नेवालश्र तन्ा पचरन्स्न्चत के ननगसार
ोावना का गवेग कम हग ग तो गोता खाकर कहीं ोश्र काँटश्रलश्र झाचड़यों में उलझकर शरणागचत
स्वश्रकार करनेवालश्र पतांग कश्र वृचत्त उनमें नहीं न्श्र। उनकश्र वृचत्त में नपने गन्तचरक णल के पांखों पर
चनोभर हो झांझावातों कश्र परवाह न करते हग ए ध्येय कश्र ओर तेीश्र से उड़नेवालश्र णलशालश्र गरुड़ का दृढ
गत्मचवश्वास न्ा। दो-तश्रन वर्ों से डॉ. मगी
ां े के यहााँ उनका णराणर गना-ीाना न्ा तन्ा णश्रि में कगछ
चदनों तो वे उन्हीं के यहााँ रहे ोश्र न्े। डॉ. मगांीे स्वयां लड़ाकू वृचत्त के न्े। नतः डॉक्टर हे डगेवार ीैसे
कायभकता के दृढता और िैयभपूणभ व्यवहार से उन्हें नवश्य हर्भ हग ग होगा।

इन चदनों केशवराव डॉ. मगांीे के यहााँ रहते न्े चकन्तग ोोीन वहााँ नहीं करते न्े। नपने पश्रछे लगा हग ग
गगप्तिरों का झांझट कगछ मात्रा में कम हो ीाय इसश्र हे तग वे डॉ. मगांीे के यहााँ रहने लगे न्े और चदखता है
चक कगछ नांशों में उनका उद्देश्य सफल ोश्र हग ग न्ा। चकन्तग इन दो-तश्रन वर्ों में केशवराव के ोोीन
कश्र इतनश्र दगरवस्न्ा न्श्र चक उन्हें ननेक णार खालश्र पेट हश्र सो ीाना पड़ता न्ा। वे कोश्र-कोश्र केवल
िना-िणेना पर हश्र चदन काट दे ते। पर उन्होंने इस कष्टदायक ीश्रवन के सम्णन्ि में उस समय चकसश्र को
कगछ ोश्र नहीं णताया। ोचवष्ट्य में ोश्र कोश्र-कोश्र नपने चनकटवती चमत्रों के णश्रि उनके द्वारा नपने
ीश्रवन के सांस्मरण णताते समय हश्र यदा-कदा इन णातों का उल्लेख ग ीाता न्ा।

चवद्यालय से नाम कट गया न्ा। नण गगे क्या चकया ीाये इसका चविार िल रहा न्ा। इस णश्रि एक
णार केशवराव नपने िािाीश्र से इस सम्णन्ि में परामशभ लेने रामपायलश्र गये। गणाीश्र नपने ोतश्रीे
कश्र दे शोचि पर णड़े प्रसन्न हग ए तन्ा उन्होंने उसकश्र सराहना कश्र। उन्हीं चदनों यवतमाळ के ीश्र मािव
ीश्रहचर नणे )ीो 1939 से ‘लोकनायक’ के नाम से चवख्यात हग ए) तन्ा ीश्र नारायणराव वैद्य रामपायलश्र

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में व्याख्यान दे ने के चलए गये न्े। उनके ोार्ण समाप्त होने पर गणाीश्र ने उन्हें केशवराव के णारे में
णताया तन्ा पूछा चक ‘‘क्या यवतमाळ कश्र राष्ट्रश्रय शाला में उन्हें प्रवेश चमल सकेगा?’’ ीश्र नणे ने
नपनश्र सहमचत प्रकट कश्र।

गन्दोलन के कारण स्कूल छोड़नेवाले चवद्यान्ी के नाते प्रायशः सोश्र उसकश्र ओर गदर से दे खते न्े।
चकन्तग कगछ प्रौढ सज्जनों को दगःख होता न्ा चक इस लड़के का नगकसान हो गया। इन्हीं चदनों केशवराव
को एक समय गणाीश्र के सान् ोण्डारा के ीश्र ीकातदार के यहााँ ीाने का मौका गया। उस समय
उनके यहााँ नचसस्टे ण्ट कचमश्नर ीश्र नमृतराव णम्णावाले णैुे न्े। परस्पर पचरिय कराते हग ए ीश्र
ीकातदार ने कहा चक ‘‘केशवराव का पढाई कश्र ओर ध्यान नहीं है । वे चवद्यार्तन्यों के गन्दोलन में
फाँसकर नपनश्र हाचन कर रहे हैं ।’’ उस सरश्रखे सरकारश्र पदासश्रन व्यचि को केशवराव कश्र वृचत्त
हाचनकारक लगश्र, इसमें कोई गियभ कश्र णात नहीं। उन्होंने केशवराव को चवश्वास में लेकर समझाने
का प्रयत्न करते हग ए कहा ‘‘ोैया! नोश्र तो तगम कगछ ोश्र नहीं समझते पर गगे पिात्ताप करना पड़ेगा।
नतः यह शौक छोड़कर पढाई करो। राीनश्रचत कोई चवद्यार्तन्यों का काम नहीं है ।’’ यह सगनकर
केशवराव ने उन्हें शान्न्तपूवभक णताया ‘‘गपके कहे ननगसार मैं तो एक पैर पर खड़ा रहकर पढाई
करने को तैयार हू ाँ । चकन्तग राीचनचत में ोाग लेने के चलए गप सरश्रखे ीानकार व्यचियों को नौकरश्र
छोड़कर गगे गना िाचहए। ीण तक यह नहीं होता तण तक मगझ ीैसे तरुणों को हश्र पढते-पढते और
कोश्र पढाई छोड़कर ोश्र राीनश्रचत में प्रवेश चकये चणना कोई दूसरा िारा हश्र नहीं रह ीाता।’’ इस उत्तर
के पश्रछे चनिय और तन्मयता इतनश्र प्रोावश्र न्श्र चक ीश्र नमृतराव मगग्ि हो गये।

रामपायलश्र कश्र इस यात्रा में हश्र उन्होंने नाचरयल के एक कटोरे में णम णनाने का प्रयत्न चकया तन्ा
पगचलस-िौकश्र के पास राचत्र के नौ णीे एक िड़ाका कर चदया। ‘कर-िरकर नलग हो ीाने’ कश्र दक्षता
उनमें ोरपूर रहने के कारण ननेक चदनों उनके पश्रछे ीााँि कश्र रगड़ा लगा रहने पर ोश्र उससे कगछ
नचनष्ट नहीं हग ग।

न्ोड़े चदन वहााँ रहकर केशवराव नागपगर वापस गये तन्ा डॉ. मगांीे से ीश्र मािवराव नणे के नाम पत्र
लेकर यवतमाळ गये। यवतमाळ में णांग-ोांग के प्रारम्ो से हश्र डॉ. णाणासाहण उपाख्य नरहर चशवराम
पराांीपे के प्रयत्नों से एक राष्ट्रश्रय चवद्यालय िल रहा न्ा। उसका नाम ‘चवद्यागृह’ न्ा। इस सांस्न्ा में
केशवराव ने 1909 के प्रारम्ो में प्रवेश चकया।

उस समय सरकारश्र चवद्यालयों में चवद्यार्तन्यों के ऊपर राष्ट्रश्रय गन्दोलन में ोाग न लेने का ीो प्रचतणन्ि
लगा चदया गया न्ा उसके कारण केशवराव हे डगेवार सरश्रखे चवद्यार्तन्यों तन्ा णापूीश्र नणे एवां डॉ.
पराांीपे ीैसे नेताओां को यह ननगोव होने लगा चक तरुण पश्रढश्र कश्र ननगपन्स्न्चत के कारण गन्दोलन
कश्र प्रगचत रुक गयश्र है । इस प्रकार कश्र समस्या णांगाल में सवाचिक ननगोव होने लगश्र न्श्र। इस कचुनाई

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में से मागभ चनकालने के उद्देश्य से हश्र राष्ट्रश्रय चवद्यालय तन्ा उनके पायक्क्रम कश्र योीना कर और
परश्रक्षा लेकर पदवश्र-दान करनेवाला एक राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु स्न्ाचपत चकया गया। णाणू नरचवन्द घोर्,
डॉ. रासचणहारश्र घोर्, णै, सगरेन्द्रनान् वन्दोपाध्याय गचद सज्जन इस राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु के सांयोीक न्े।

णांगाल के णाद महाराष्ट्र, पांीाण इत्याचद प्रान्तों में ोश्र नयश्र पश्रढश्र को राष्ट्रश्रय वृचत्त कश्र चशक्षा दे ने के चलए
इस प्रकार के कायभक्रम न्यूनाचिक मात्रा में हान् में लेने पड़े। णरार में नमरावतश्र का ‘चशवाीश्र चवद्यालय’
तन्ा यवतमाळ का ‘चवद्यागृह’ इसश्र कल्पना को मूतभ प दे ने के चलए िलाये गये न्े।

यवतमाळ ‘चवद्यागृह’ के सांस्न्ापक तपस्वश्र णाणासाहण पराांीपे लोकमान्य चतलक के गन्दोलन में
इतने रम गये न्े चक 1908 के णाद उनकश्र व्यचिगत ीश्रवन ीैसश्र कोई वस्तग नहीं रह गयश्र न्श्र। यवतमाळ
चीले में ‘चवद्यागृह’ कश्र कल्पना सामने गते हश्र उस चीले के लोगों ने िान्य और पैसा एकत्र कर उसे
साकार चकया। घर-घर रखे हग ए मटकों में लोग िाव से मगट्ठश्र-ोर नन्न डालते न्े तन्ा उससे ननेक
गरश्रण चवद्यार्तन्यों कश्र ोोीन-व्यवस्न्ा होतश्र न्श्र। सान् हश्र चीले में वार्तर्क पिास रुपये ीमा करनेवाले
पिास तरुण, तपस्वश्र पराांीपे ने ाँढ
ू चनकाले न्े। इस पैसे से तन्ा नन्य दान कश्र राचश से चशक्षकों कश्र
उपीश्रचवका तन्ा ‘चवद्यागृह’ के नन्य खिे िलते न्े।

‘चवद्यागृह’ के मगख्याध्यापक ीश्र दत्तात्रय चवष्ट्णग गपटे लो. चतलक के स्नेहपात्र एवां एक चनष्ठावान्, त्यागश्र
और सान्त्त्वक कायभकता न्े। सन् 1896 के नकाल चनवारण गन्दोलन में लोकमान्य ने उन्हें चकसानों
में ीाग्रचत करने के चलए दे हात में ोेीा न्ा तन्ा उस सम्णन्ि में उन पर मगकदमा ोश्र िला न्ा।

यवतमाळ गने पर केशवराव प्रायः णापूीश्र नणे के यहााँ हश्र ोोीन करते न्े तन्ा पढने के चलए दत्तोपन्त
गपटे के कमरे पर ीाते न्े। नागपगर में चपछले दो-तश्रन महश्रने से ‘चरस्ले पचरपत्रक’ के चवरुद्ध गन्दोलन
कश्र दौड़िूप में उनकश्र पढाई काफश्र चपछड़ गयश्र न्श्र। चपछड़े हग ए चवद्यार्तन्यों को सणके णराणर लाने के
चलए दत्तोपन्त चवशेर् ध्यान दे ते न्े। उस समय के ‘चवद्यागृह’ के चशक्षक ीश्र टकले, ीश्र हचरोाऊ
फाटक, ीश्र दादासाहण उपाख्य चवष्ट्णग गांगािर केतकर गचद उस काल कश्र दृचष्ट से त्याग में णढे -ि ेे़ हश्र
न्े। वे सण केवल उपीश्रचवका मात्र के चलए वेतन लेकर काम करते न्े। 1916 में लोकमान्य से एक
प्रश्न पूछा गया न्ा चक ‘‘नपने दे श में णगचद्धमान् लोगों को कौनसा िन्िा करना िाचहए?’’ लोकमान्य ने
उस काल कश्र चीस वस्तगन्स्न्चत का वणभन चकया न्ा उसको ध्यान में रखे तो कहना पड़ेगा चक इन
राष्ट्रश्रय चवद्यालयों में चनवाह-योग्य वेतन पर काम कर नपने त्याग और दे शोचि से उन्हें
सफलतापूवभक चटकाये रखनेवाले ये नध्यापक उस काल के सगचशचक्षत मध्यम वगभ में नपवाद-स्व प
तन्ा उनके सामने त्याग और तपस्या का उदाहरण प्रस्तगत करनेवाले नग्रदूत हश्र न्े।

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लोकमान्य ने कहा न्ा चक ‘‘नपने दे श में णगचद्धमान् वगभ नोश्र ोश्र सरकारश्र नौकरश्र के ीाल में फाँसा
हग ग है । प्रन्म ीेणश्र के चवद्वान् को मैं नच्छा वेतन दे ने को तैयार हू ाँ चकन्तग उसका गकर्भण सरकारश्र
नन्वा निभ-सरकारश्र नौकरश्र कश्र ओर हश्र चदखतश्र है । इस न्स्न्चत को णदलने में नोश्र दस-पन्द्रह वर्भ
लगेंग।े ’’

केशवराव के चशक्षक ीश्र दत्तोपन्त ने गगे िलकर महाराष्ट्र में एक सन्तगचलत एवां वस्तगचनष्ठ इचतहास-
सांशोिक तन्ा गचणतज्ञ के नाते ख्याचत प्राप्त कश्र। ीश्र दादासाहण केतकर के पचरीम और प्रयत्नों के
पचरणामस्व प पूना और नाचसक में ‘ननान् चवद्यान्ी गृह’ नाम कश्र चवख्यात सांस्न्ा खड़श्र हग ई तन्ा ीश्र
हचरोाऊ फाटक ोश्र काांग्रेस के गन्दोलनों में सतत गगे रहे । ऐसे चवद्वान्, पगरुर्ान्ी, त्यागश्र तन्ा
दे शोचिपूणभ चशक्षकों के साचन्नध्य एवां मागभदशभन में केशवराव कश्र मैचरक परश्रक्षा कश्र पढाई हो रहश्र न्श्र
यह उनका हश्र नहीं सम्पूणभ राष्ट्र का सौोाग्य न्ा। राष्ट्र-चनमाता का चनमाण नत्यन्त तेीस्वश्र वातावरण
में हो रहा न्ा।

‘चवद्यागृह’ चवट्ठल मन्न्दर के पास के कमरे में िलता न्ा। केशवराव चनत्य प्रातः उुकर स्नान-सन्ध्या
से चनवृत्त होकर दस णीे तक नध्ययन करते न्े। णापूीश्र नणे के यहााँ दोपहर के ोोीन में कोश्र-कोश्र
दे र हो ीातश्र न्श्र। नतः ऐसे समय वे ोोीन न करते हग ए हश्र ‘चवद्यागृह’ में पढने ीाते न्े। परन्तग ‘मैं गी
ोूखा हू ाँ ’ यह णात उन्होंने कोश्र मगाँह से नहीं चनकालश्र। चकन्तग दत्तोपन्त कश्र सूक्ष्म दृचष्ट से यह नहीं णि
पाया चक कोश्र-कोश्र केशवराव ोूखे रहते हैं । नतः उन्होंने उसश्र स्कूल में पढनेवाले एक छात्र गणेश
सगळे को यह पता लगाने का काम सौंप चदया चक केशवराव ने ोोीन चकया है या नहीं। उनकश्र सूिना
के ननगसार कई णार सगळे केशवराव को ीश्र टकले के यहााँ ोोीन के चलए चलवा ले ीाता न्ा। दत्तोपन्त
को ताीे ोगने हग ए िने णड़े नच्छे लगते न्े तन्ा ीण ोश्र णाीार से िने गते वे याद रखकर केशवराव
के चलए उनमें से चहस्सा चनकालकर रख दे ते न्े। इस प्रकार उन दोनों कश्र खूण पटरश्र णैु गयश्र न्श्र।

दोपहर ग्यारह से पााँि तक नध्यापन िलने के णाद सायांकाल ‘चवद्यागृह’ के गदशभ नखाड़े में चनत्य
चनयम व्यायाम होता न्ा। चपछड़श्र हग ई पढाई को पूरा करने के चलए केशवराव राचत्र में काफश्र दे र तक
ीागते न्े। नतः ीश्र हचरोाऊ फाटक कोश्र-कोश्र उनसे यह कहते ते चक ‘‘यह गरोग्य कश्र दृचष्ट से ुश्रक
नहीं है ।’’ स्वास्र्थय कश्र चिन्ता गवश्यक होते हग ए ोश्र केशवराव पढाई कश्र ओर दगलभक्ष्य कैसे कर सकते
न्े। नध्ययन करते हग ए ोश्र ‘काळ’, ‘केसरश्र’, ‘ोाला’ तन्ा ‘दे शसेवक’ गचद पत्रों को पढना वे कोश्र
नहीं ोूलते न्े। परश्रक्षा का ध्यान रखकर केशवराव कश्र पढाई िल रहश्र न्श्र चकन्तग उसके पहले हश्र सरकार
इन चवद्यार्तन्यों कश्र परश्रक्षा लेने का चविार कर रहश्र न्श्र।

‘चवद्यागृह’ ीैसश्र सांस्न्ा केवल ीनता के णल-ोरोसे तश्रन-साढे तश्रन वर्भ तक िलतश्र रहे , तन्ा उसके
पचरणामस्व प सरकारश्र स्कूल के चवद्यार्तन्यों कश्र सांख्या में कमश्र हो और वहााँ के चशक्षक ोश्र राष्ट्रश्रय

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शाला में ीा चमलें, यह सण सरकार को सहन नहीं हो सकता न्ा। इसके नचतचरि इस प्रकार के
चवद्यालयों से राष्ट्रश्रय स्वाचोमान का पचरपोर्ण करनेवाले चविार प्रसृत होते न्े। यह तो चवदे शश्र सरकार
कश्र गाँखों में और ोश्र िगोता न्ा। केशवराव को यवतमाळ गये दो-तश्रन महश्रने हश्र हग ए होंगे चक
चहन्दगस्न्ान सरकार ने गगप्तिर-चवोाग के एक प्रमगख नचिकारश्र ीश्र क्लश्रवलैण्ड को णरार में राष्ट्रश्रय
गन्दोलन का समूलोच्छे दन करने के उद्देश्य से ोेीा। 1905 में लोकमान्य चतलक ने यवतमाळ के
तरुण कायभकताओां का उत्साह और कतृभत्व दे खकर यह कहा न्ा चक ‘‘यवतमाळ शश्रघ्र हश्र लोकमत
का केन्द्र णनेगा।’’ यवतमाळ चीलें में चदन-प्रचतचदन णढते हग ए राष्ट्रश्रय गन्दोलन ने यह चसद्ध कर चदया
चक लोकमान्य कश्र उचि में चकतनश्र सराई न्श्र। यवतमाळ पर सरकार कश्र वक्रदृचष्ट से वहााँ राष्ट्रश्रय
हलिलों कश्र गचत और तश्रव्रता दोनों का सही ननगमान लगाया ीा सकता है ।

‘चवद्यागृह’ को समाप्त करने के उद्देश्य से पहले तो पालकों पर नप्रत्यक्ष रश्रचत से सरकारश्र दणाव लाने
का प्रयत्न चकया गया। ग्रहणकाल के पहले हश्र वेि के समान ‘चवद्यागृह’ के सम्मगख पगचलस कश्र िौकश्र
णैुा दश्र गयश्र। शासन कश्र इस गतांकवादश्र एवां नन्यायपूणभ नश्रचत के चवरुद्ध कोई गवाी न उुा सके
इसचलए तपस्वश्र णाणा साहण पराांीपे से ोारतश्रय दण्ड चविान कश्र 108 िारश्र के नन्तगभत ीमानत
मााँगकर उन्हें ोार्णणन्दश्र का गदे श चदया गया। क्लश्रवलैण्ड लोगों पर िाक णैुाकर नमरावतश्र के
चवद्यालय को पहले हश्र णन्द करवा िगका न्ा। नण यवतमाळ कश्र ओर उसकश्र कगदृचष्ट गयश्र न्श्र। यह
1909 के नप्रैल कश्र घटना है ।

यवतमाल के ‘चवद्यागृह’ को सरकार ने समाप्त कर चदया तो ोश्र केशवराव और उनके कगछ सहकारश्र
चनराश नहीं हग ए। प्रत्यगत सांकटों को हश्र चनराश कर दे ने का ीश्रवन रखकर उन्होंने ीगलाई में कलकत्ता
कश्र राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु कश्र ‘प्रवेचशका’ परश्रक्षा दे ने कश्र दृचष्ट से नपनश्र पढाई िालू रखश्र। ीश्र दत्तोपन्त
गपटे व ीश्र हचरोाऊ फाटक से ोश्र उन्होंने सलाह लश्र। उन्होंने उनको पढाई के चलए पूना िलने का
परामशभ चदया। उन दोनों का इस चवर्य में गग्रह होने के कारण रामगोपाल हरदे व णाीोचरया, महादे व
चशवराम ीयवन्त तन्ा केशवराव तश्रनों हश्र पूना ग गये। पूना में मगांीाणा कश्र गलश्र में, गीकल ीहााँ
ीश्रमत् शांकरािायभ का मु है , दगमांचीले पर रहकर ये तश्रनों पढाई करने लगे। केशवराव और ीयवन्त
कश्र ोोीन-व्यवस्न्ा कगछ चदनों उपयगभि चशक्षकों के यहााँ तन्ा णाद में ‘महाराष्ट्र’ णोकडग में कर दश्र गयश्र।
दो महश्रने पूना में रहकर तश्रनों हश्र ीगलाई में नमरावतश्र गकर परश्रक्षा में णैुे। सम्पूणभ णरार के चलए
राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु का परश्रक्षा-केन्द्र नमरावतश्र में न्ा। परश्रक्षा दे कर केशवराव चफर नागपगर ग गये।
स्वाचोमान चटकाना हो तो चकतनश्र कचुनाई होतश्र है ! उस समय ‘वन्दे मातरम्’ काण्ड में क्षमा-यािना
करनेवाले चवद्यान्ी तो परश्रक्षा दे कर ऊपर िढ गये न्े पर केशवराव नोश्र एक के णाद दूसरश्र णािा का
सामना करते हग ए गगे णढ रहे न्े।

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4. कलकत्ता
नागपगर गने के णाद हे डगेवार ने पहले कश्र ोााँचत सावभीचनक कायों में हान् णाँटाना प्रारम्ो कर चदया।
नागपगर के पास हश्र कचव काचलदास-प्रणश्रत ‘मेघदूत’ में वर्तणत रामचगचर नन्ात् रामटे क पर ीश्र
रामनवमश्र का णड़ा मेला लगता है । इस मेले में चणकनेवाले पेड़े स्वदे शश्र हों इस हे तग उन्होंने गगड़ के पेड़े
णनवाये क्योंचक उन चदनों शोंर ीावा से गतश्र न्श्र। ये पेड़े सस्ते तन्ा काफश्र प्रमाण में चमल सकें,
इसकश्र ोश्र व्यवस्न्ा कश्र गयश्र न्श्र। उन चदनों नागपगर के क्रान्न्तकारश्र तरुणों के णश्रि वे सदै व हश्र गते -
ीाते रहते न्े तन्ा वे उनमें इतने ोश्रतर पैु िगके न्े चक चवचोन्न प्रान्तों में िलनेवाले क्रान्न्तकायभ के सूत्र
उन्हें नवगत हो गये न्े। इसश्र समय मािवदास सांन्यासश्र के नाम से चवख्यात एक णांगालश्र क्रान्न्तकारश्र
नागपगर में गया न्ा। इस तरुण को क्रान्न्तकारश्र दल कश्र गज्ञानगसार ीापान ीाना न्ा। चकन्तग परदे श
ोेीने कश्र योीना णनाने तन्ा पैसा एकत्र करने तक इस व्यचि को कहीं चछपाकर रखना न्ा चीससे
सण काम िगपिाप हो सके। केशवराव ने उसको मोहोपा के ीश्र गप्पाीश्र हळदे के, ीो चक उम्र से णड़े
होने पर ोश्र नपने को केशवराव का ननगयायश्र मानने में हश्र गवभ करते न्े, यहााँ रखने कश्र व्यवस्न्ा कश्र।
वह छः महश्रने वहााँ रहा तन्ा णाद में ीापान ोेी चदया गया। ीश्र हळदे ने इस कायभ में खगले हान् से
गर्तन्क सहायता ोश्र कश्र न्श्र।

इस समय नागपगर के क्रान्न्तकारश्र दल ने कलकत्ता कश्र ‘ननगशश्रलन सचमचत’ के सान् सम्णन्ि ीोड़
चलया न्ा। नतः ‘नलश्रपगर णम केस’ के समय उसमें फाँसे हग ए दे शोि तरुणों के णिाव के चलए नागपगर
से ोश्र िनसांग्रह करके ोेीा गया। केशवराव को इस चनचि में ीश्र म.रा.उपाख्य ोैयासाहण णोणड़े
वकश्रल ने सौ रुपये चदये न्े। इससे यह पता िलता है चक नन्य व्यचियों से ोश्र इसश्र प्रकार चनचि एकचत्रत
कश्र गयश्र होगश्र।

इन गचतचवचियों के िलते रहते हश्र केशवराव कश्र परश्रक्षा का पचरणाम घोचर्त हग ग। वे उत्तश्रणभ हो गये।
उन्हें इस सम्णन्ि में ीो प्रमाणपत्र चमला उस पर ‘चद नेशनल कौन्न्सल गफ ऐीगकेशन)णांगाल)’ के
नध्यक्ष के नाते डॉ. रासचणहारश्र घोर् के हस्ताक्षर हैं । यह प्रमाणपत्र उन्हें चदनाांक 1 चदसम्णर 1909 को
चदया गया, यह ोश्र उस पर नांचकत है । यह परश्रक्षा पास करने के णाद कहा ीा सकता है चक उस काल
में सवभसामान्य व्यचियों के चहसाण से उन्होंने पयाप्त चशक्षा प्राप्त कर लश्र न्श्र। केशवराव कश्र घर कश्र
न्स्न्चत को दे खते हग ए यचद वे उद्योग-िन्िे से लगकर गृहस्न् ीश्रवन में प्रवेश करने का चविार करते तो
कगछ नस्वाोाचवक नहीं लगता। चकन्तग उनका मन तो दूसरश्र हश्र ओर लगा हग ग न्ा। चवदे शश्र नांग्री
े ों
के पदाघात से कलगचर्त मातृोूचम का कलांक कैसे दूर चकया ीाये यहश्र चविार प्रणल प से उनके मन
को उद्वे चलत चकये हग ए न्ा। उत्कट नचोलार्ा, पूणभ चनोभयता तन्ा सवभस्वापभण कश्र वृचत्त लेकर िलनेवाले

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तरुण हृदय में, चीसके रि में गवेश और उफान हो, उन चदनों यहश्र चविार उुता चक सशस्त्र क्रान्न्त
हश्र मातृोूचम के उद्धार का एकमेव मागभ है । केशवराव के पग ोश्र उसश्र चदशा में णढ रहे न्े। उनके इस
समय के ीश्रवन से यहश्र प्रकट होता है चक दाचरद्र्य तन्ा एक के णाद एक गनेवाले सांकट मागभ चकतनश्र
हश्र णािाएाँ डालें परन्तग ध्येयचनष्ठ व्यचि कोश्र ोश्र हताश होकर रुकता नहीं। सांकटों से उसकश्र गचत मन्द
पड़ने के स्न्ान पर और णढ ीातश्र है । गगे कश्र पढाई के चलए कगछ पैसा इकट्ठा करने के उद्देश्य से
उन्होंने ट्यूशन चकये तन्ा इतवारश्र कश्र एक पाुशाला में चशक्षक के नाते काम ोश्र चकया। मन में तश्रव्र
इच्छा रहश्र तो ीेण खालश्र होने पर ोश्र समय पर कोई-न-कोई मागभ चनकल हश्र गता है , इसका ननगोव
उन्हें ननेक णार चमल िगका न्ा। नतः गगे कश्र पढाई चकसश्र ोश्र पचरन्स्न्चत में करने का उनके मन का
दृढ चनिय न्ा।

इन चदनों केशवराव डॉ. मगांीे के यहााँ रहते न्े। वह ोश्र उनको कलकत्ता के नेशनल मेचडकल कॉलेी
में गगे चक चशक्षा के चलए ोेीने का चविार कर रहे न्े। कलकत्ता ीाने का चविार केशवराव एवां
उनके क्रान्न्तकारश्र सहयोचगयों को तो ीाँिने लायक हश्र न्ा, क्योंचक इस दल ने ीश्र पगचलनचणहारश्र दास
के णांगालव्यापश्र सांघटन ‘ननगशश्रलन सचमचत’ से सम्णन्ि ीोड़ रखा न्ा। नतः उनका चविार न्ा चक
केशवराव के कलकत्ता ीाने से वह सम्णन्ि और दृढ होकर उनके चलए चहतकारक हश्र होगा। सम्ोव
है चक उनके कगछ चमत्रों ने केशवराव कश्र पढाई का गर्तन्क ोार ोश्र वहन चकया हो।

केशवराव के उस समय के एक घचनष्ठ क्रान्न्तकारश्र चमत्र ीश्र रामलाल वाीपेयश्र नपने िचरत्र में स्पष्ट
प से चलखते हैं चक केशवराव के कलकत्ता ीाने का प्रिान हे तग गगे कश्र पढाई कश्र नपेक्षा
क्रान्न्तकाचरयों के सांघटन-सम्णन्िश्र ीानकारश्र प्राप्त करना हश्र न्ा। वे कहते हैं ‘‘ीश्र केशवराव हे डगेवार,
गर.एस.एस. के सांस्न्ापक, को ीश्र दाीश्रसाहण णगटश्र से कगछ गर्तन्क मदद चदलाकर चशक्षा कश्र नपेक्षा
पगचलनचणहारश्र दास )कलकत्ता के क्रान्न्तकारक) के हान् के नश्रिे क्रान्न्त एवां सांघटन करने के चलए
ोेीा गया।’’ इस प्रकार क्रान्न्तकायभ और चशक्षण ये दोनों हश्र उद्देश्य मन में लेकर केशवराव ने 1910
के मध्य में नागपगर से सात सौ मश्रल दूर कलकत्ते के ननीान मागभ पर पग णढाये। उन्होंने सान् डॉ.
मगांीे से पचरियपत्र ोश्र ले चलया न्ा।

कलकत्ते में वह चिट्ठश्र लेकर वे सवभप्रन्म ‘महाराष्ट्र लॉी’ में गये। उस समय वह लॉी 70, णहू णाीार
मागभ पर न्ा। वहााँ पता िला चक रहने के चलए एक ोश्र स्न्ान खालश्र नहीं है । चकन्तग डॉ.मगांीे का पत्र
लेकर गनेवाले चवद्यान्ी को ‘‘यहााँ ीगह नहीं है , तगम स्वयां नपनश्र कोई व्यवस्न्ा कर लो’’ यह कहकर
टालना ोश्र सम्ोव नहीं न्ा। नतः उस समय नस्न्ायश्र प से वहााँ उनकश्र व्यवस्न्ा कर दश्र गयश्र। इसश्र
वर्भ ‘महाराष्ट्र लॉी’ में स्न्ान न चमलने के कारण नमरावतश्र के सगप्रचसद्ध दे शोि दादासाहण खापडे
के सगपगत्र नण्णासाहण तन्ा उनके चमत्र ीश्र शांकरराव नाईक ने पहल करके कगछ और सान्श्र ीगटाये तन्ा

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प्रेमिन्द गगराल मागभ पर 18।2 नम्णर के दगमांचीले पर छः कमरे चकराये पर ले चलये। इसे उन्होंने ‘शान्न्त
चनकेतन’ नाम चदया। ‘महाराष्ट्र लॉी’ के कायभवाह ने केशवराव को ोश्र ‘शान्न्त चनकेतन’ ोेी चदया।
चकन्तग चणना णािाओां के गगे कदम णढ हश्र नहीं सकता, केशवराव के चलए मानो चनयचत ने यहश्र चनयम
णना रखा न्ा। फलतः वहााँ पहग ाँ िने पर पता िला चक वहााँ ोश्र हाल वहश्र है । कहीं ीगह नहीं। इस पर
नण्णासाहण खापडे ने केशवराव कश्र खाचतर सोश्र चवद्यार्तन्यों को णगलाकर यह प्रस्ताव चकया चक एक
और चवद्यान्ी कश्र नपने यहााँ गगी
ां ायश कर लेनश्र िाचहए। परन्तग सणने नपनश्र चववशता हश्र प्रकट कश्र।
इस ननपेचक्षत नकार से नण्णासाहण के सम्मगख चवर्म न्स्न्चत उत्पन्न हो गयश्र। डॉ. मगी
ां े कश्र णात टालश्र
नहीं ीा सकतश्र न्श्र और इिर कोई ोश्र व्यचि नपने कमरे में केशवराव को ीगह दे ने के चलए तैयार
नहीं न्ा। नन्त में उन्होंने नाईक से नलग से णात करके नपने हश्र कमरे में उनको स्न्ान चदया।

‘शान्न्तचनकेतन’ का यह कमरा सड़क कश्र ओर न्ा तन्ा उसके दोनों तरफ छज्जा न्ा। इस छोटे से कमरे
में एक ओर ीश्र नाईक का तख्त तन्ा दूसरश्र ओर ीश्र खापडे का पलांग चणछा न्ा। इन दोनों के णश्रि ीो
न्ोड़श्र-सश्र साँकरश्र ीगह णिश्र न्श्र वहााँ केशवराव नपना नमदा चणछाकर सो रहते। चकन्तग उन्होंने नपने
व्यवहार से यह कोश्र नहीं प्रतश्रत होने चदया चक उन्हें कोई कचुनाई होतश्र न्श्र। ‘हाँ समगख सदासगखश्र’ इस
उिश्र को वे सदै व िचरतान्भ करते न्े। णांगाल के घरों में चखड़चकयााँ णहग तेक फशभ से लगश्र हग ई रहतश्र हैं ।
इस प्रकार कश्र एक चखड़कश्र इस कमरे में ोश्र न्श्र तन्ा उसमें से गनेवालश्र हवा के झोंके हश्र केशवराव
को चमल पाते न्े। एक हश्र कमरे में यचद परस्पर-चवरोिश्र गदतोंवाले व्यचियों को रहने का नवसर ग
ीाये तो दााँतचकटचकट हग ए चणना नहीं रहतश्र। केशवराव का कमरा-सान्श्र ीश्र नाईक स्वोाव के प्रेमश्र
चकन्तग झगड़ालू न्े। उन्हें ीरा ुण्ड लगश्र चक वे खट से केशवराव के चसरहाने कश्र चखड़कश्र णन्द कर
दे ते न्े। पर नाईक कश्र गाँख झपकते हश्र केशवराव पगनः चखड़कश्र खोल दे ते। इस पर नाईक उुकर ‘यह
क्या है ’ कहकर णरणराने लगता। परन्तग केशवराव मगस्कराते हग ए उसे डॉ. मगांीे का णताया हग ग
गरोग्यशास्त्र का चनयम चसखाने लगते चक ‘‘ुण्ड लगे तो ओढना ले लो पर चखड़कश्र तो खगलश्र हश्र
रहनश्र िाचहए।’’ नाईक के स्वोाव का वणभन करते हग ए कचवोूर्ण प्रा.नण्णासाहण खापडे गी ोश्र
पगलचकत होकर णताते हैं चक ‘‘नाईक के सम्णन्ि में एक हश्र चक्रयापद उपयगि न्ा और वह है
‘झगड़ना’।’’ केशवराव और नण्णासाहण ननेक णार उसे यह कहकर चिढते रहते चक ‘नाईक ोोीन
झगड़ते हैं ’, ‘नाईक स्नान झगड़ते है ’ गचद। इस मीाक का उत्तर नाईक ोश्र केशवराव को ‘हे ड गवार’
नन्ात् गाँवारों के मगख्य कहकर दे ते न्े। परन्तग केशवराव ोश्र िगकनेवाले नहीं न्े। वे ोश्र तगरन्त िगटकश्र
लेते चक ‘‘तगम ीैसे गाँवार रहे तो मेरे ीैसा हे ड हश्र उस पर िाचहए।’’ ऊपर से यद्यचप हाँ सश्र-मीाक का
यह फेन चदखायश्र दे ता न्ा चकन्तग नन्तर में दोनों में हश्र दे शोचि का नपार सागर उमड़ रहा न्ा। कारण,
केशवराव और नाईक ये दोनों हश्र क्रान्न्तपन् के पचन्क न्े।

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नपर सरक्यगलर रोड पर न्स्न्त ‘नेशनल मेचडकल कालेी’ चनवास से चनकट हश्र न्ा। वहााँ दोपहर के
ग्यारह णीे से पााँि णीे तक नध्यापन होता न्ा। डॉ. एस.के.मचलक इस महाचवद्यालय के प्रािायभ न्े।
वे एम.एस.एम.डश्र.)एचडनणरा) न्े। पािात्य दे शों में ननेक वर्ों तक सफल चिचकत्सक रहने के
उपरान्त ोश्र वे वृचत्त एवां णताव में पूणभतः ोारतश्रय न्े। वे महाचवद्यालय में केवल प ाे़ई के घण्टे में
नांग्री
े श्र णोलते न्े। शेर् सोश्र समय उनका गग्रह मातृोार्ा में व्यवहार करने का न्ा। दूसरे नध्यापक
ोश्र इसश्र वृचत्त और स्तर के न्े। उनके व्यवहार कश्र केशवराव के ऊपर इतनश्र छाप न्श्र चक गगे ीण
कोई सािारण घरेलू व्यवहार में नांग्रेीश्र का छौंक णघारने लगता तो वे नपने इन गगरुओां का उदाहरण
साचोमान उसके सम्मगख रखकर उसकश्र गलतश्र उसे समझा दे ते न्े।

इस महाचवद्यालय में पढते-पढते केशवराव ने चवचोन्न प्रान्तों के चवद्यार्तन्यों से चमत्रता कर लश्र। नण


महाचवद्यालय से वापस गने के णाद नपने कमरे पर वे न्ोड़श्र हश्र दे र ुहरते न्े। नेणूतला गलश्र में पांीाणश्र
चवद्यार्तन्यों ने एक वसचतगृह णना रखा न्ा। उस वसचतगृह के सरदार चनरां ीनकसह तन्ा ीश्र चशवदत्तीश्र
पाराशर से उनकश्र णड़श्र घचनष्ठता न्श्र। वे दोनों हश्र केशवराव के सहपाुश्र न्े तन्ा चनोभयता और चखलाड़श्र
मनोवृचत्त में समानिमी न्े। केशवराव ने पांीाणश्र वसचतगृह में पैर रखा चक चकसश्र के हान् से चकताण
छश्रनकर एक ओर पटक दे ते तो चकसश्र कश्र णत्तश्र णगझा दे ते। यह िींगामस्तश्र प्रायशः िलतश्र रहतश्र न्श्र
तन्ा यह सण दे खने के चलए सारा वसचतगृह वहााँ इकट्ठा हो ीाता न्ा। उनकश्र णोलिाल में ऐसश्र चमुास
न्श्र चक इतना ऊिम होने पर ोश्र कोश्र चकसश्र को उनका वहााँ गना खला नहीं। डॉ. पाराशर के
कन्नानगसार केशवराव को वहााँ के चमत्र ननेक णार पांीाणश्र चमुाई दे ते न्े तन्ा वे णदले में उन्हें महाराष्ट्र
का ीश्रखण्ड चखलाते न्े।

इन चदनों केशवराव के स्वोाव में नपनश्र कगल-परम्परा के ननगसार गमी कश्र मात्रा ोश्र कगछ कम नहीं
न्श्र। चकन्तग क्रोिाचग्न के ोड़कने का प्रसांग ककचित् हश्र गता न्ा। पांीाणश्र चनवासगृह में चनरांीनकसह स्नान
के णाद दगमचां ीले पर चखड़कश्र के सामने णैुकर नपने णाल सगखाते न्े तन्ा ऊाँिश्र गवाी से ‘ीपीश्र
साहण’ का पाु करते न्े। यह चखड़कश्र एक णांगालश्र कगटगम्ण के गगाँन कश्र एर खगलतश्र न्श्र। उन्हें यह
घनघनाहट नच्छश्र नहीं लगतश्र न्श्र। नतः उन्होंने चखड़कश्र णन्द करने को कहा। परन्तग चनरां ीनकसह ने
उस ओर कोई ध्यान नहीं चदया। एक चदन ीण चनरांीनकसह नश्रिे स्नानघर में नहा रहे न्े , णाहर से कोई
सज्जन सश्रढश्र लगाकर चखड़कश्र णन्द करने को िढने लगे। इस णात का पता लगते हश्र चनरां ीनकसह दौड़ते
हग ए गये तन्ा फटाक से सश्रढश्र को िकेल चदया। सश्रढश्र पर िढनेवाला व्यचि दूसरश्र ओर गाँगन में
चगरकर लहू लगहान हो गया। वह सन्तप्त होकर चिल्लाने लगा ‘‘कायदे से मैं चखड़कश्र णन्द करके हश्र
रहू ाँ गा।’’ परन्तग उसका वाक्य पूरा होने के पहले हश्र चनरां ीनकसह चखड़कश्र में से गरी उुे ‘‘ीा, ीा! मैं
कायदा-वायदा कगछ नहीं ीानता।’’

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इस झगड़े के णाद पगचलस में चरपोटभ कश्र गयश्र। इस पर वसचतगृह में नक्सर गनेवाले णांगाल के प्रचसद्ध
नेता ीश्र श्यामसगन्दर िक्रवती को केशवराव ने णश्रि में डालकर मामला रफा-दफा करवा चदया। पर
झगड़ा शान्त नहीं हग ग। पांीाणश्र चवद्यार्तन्यों को वहााँ से सदै व के चलए हटा दे ने कश्र योीना णनाकर उस
गलश्र के लोगों ने नांिेरे में उनके चनवास पर पत्न्र फेंकना प्रारम्ो कर चदया। णहग त कगछ ध्यान रखने
पर ोश्र यह पता नहीं िलता न्ा चक ेलेणाीश्र चकिर से हो रहश्र है । एक चदन शाम के समय केशवराव
वहााँ गये। उसश्र समय योगायोग से पत्न्र िलने शग हो गये। ‘‘इस झगड़े का गी नन्न्तम प से
चनणटारा कर दे ना िाचहए’’ यह सोिकर वे और चनरां ीनकसह दोनों दनदनाते हग ए ीश्रने से नश्रिे उतरे
और सामने हश्र गलश्र के दो ीनों को कसकर न्प्पड़ ीड़ चदये। वे इस ननपेचक्षत घटना से एकदम
स्तन्म्ोत होकर ‘‘मारते क्यों हो’’ पूछने लगे। इस पर केशवराव ने तेी स्वर में कहा ‘‘कोई हमारे
ऊपर पत्न्र फेंकता है , हम ोश्र चकसश्र को मारते हैं । ेले णन्द हो गये तो हम ोश्र रुक ीायेंग।े ’’ उन
दोनों का रुद्रावतार दे खकर तन्ा कड़कतश्र गवाी सगनकर वे चसटचपटा गये और कगछ न णोलते हग ए
िगपिाप वहााँ से चखसक गये। परन्तग ‘णेटश्र कश्र डााँटे णहू को लागे’ के न्याय के ननगसार गलश्रवालों पर
इसका इष्ट पचरणाम हो गया तन्ा पन्राव का झमेला सदा के चलए शान्त हो गया।

यदा-कदा इस प्रकार के होनेवाले झगड़ों का पचरणाम उन्होंने नपने मन पर कोश्र होने नहीं चदया। उनके
मन में चकसश्र ोश्र व्यचि नन्वा प्रान्त के सम्णन्ि में कोई चवकृत ोावना नन्वा पूवभग्रह नहीं न्ा। नचपतग
उनका तो यहश्र चनयम न्ा चक चीस प्रान्त में ीायें वहााँ के ीश्रवन से समरस होकर हश्र रहना िाचहए।
कलकत्ते में पदानशश्रन घरों में ोश्र वे कगटगम्ण के सदस्य कश्र ोााँचत रहते न्े। इसश्र वृचत्त के कारण सन्
1910 में कलकत्ता में ीण दां गा हग ग तो उन्होंने नपने महाचवद्यालयश्रन चवद्यार्तन्यों का एक शगशूर्ा-
पन्क चनमाण करने में गगे णढकर चहस्सा चलया।

काणगलश्र पुानों ने खगलेगम रास्ते में गोहत्या कर दश्र न्श्र। इस पर कलकत्ते में झगड़ा शग हो गया। इस
दां गे में मगसलमानों ने कलकत्ते के िनश्र मारवाचड़यों कश्र खूण लूटपाट कश्र। सोने कश्र णाचलयों और नन्ों
के चलए न्स्त्रयों के कान और नाक तक काटने से वे नहीं िूके। इस प्रकार का नत्यािार होते हग ए ोश्र
पास के हश्र णांगलश्र चहन्दगओां ने ीैसश्र िाचहए वैसश्र कोई सहायता नहीं कश्र। 1905 के णांग-ोांग गन्दोलन
में स्वदे शश्र के कायभक्रम में मारवाचड़यों के सहयोग कश्र कमश्र कश्र यह स्पष्ट प्रचतचक्रया न्श्र। इसश्रचलए तो
गाँखों के सामने चतीोरश्र टगटते तन्ा दगकानों को लगटते दे खकर ‘यह चकये कश्र सीा चमल रहश्र है ’ ऐसा
समािान मानकर उस ओर से नन्य चहन्दू गाँखे णन्द कर लेते न्े। चहन्दू समाी के इस परस्पर सम्णन्िों
को दे खकर केशवराव को नतश्रत दगःख हग ग तन्ा शगशूर्ा-पन्क में उन्होंने नत्यन्त उत्साह एव तन्मयता
से काम चकया। इस पन्क में कगल दस-णारह चवद्यान्ी न्े तन्ा घायल व्यचि को स्रेिर पर डालकर
चिचकत्सालय में पहग ाँ िाने तन्ा वहााँ शगशूर्ा करने का वे काम करते न्े।

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एक णार वे ीण एक णेहोश व्यचि को लेकर चिचकत्सालय कश्र ओर ीा रहे न्े तो एक व्यापारश्र के
िौकश्रदार ने झपटकर एक पुान कश्र पश्रु में छग रा ोोंक चदया। पन्क में से एक व्यचि ने कहा चक
‘‘गओ, इसका प्रन्मोपिार कर दें ।’’ परन्तग इस प्रकार कश्र गड़णड़ में चीसका ोला करने ीायें वहश्र
उलट सकता है तन्ा िोर के स्न्ान पर सांन्यासश्र को हश्र सीा हो ीातश्र है ऐसा ननेक णार दे खा ीाता
है । नतः केशवराव ने इस व्यवहार को ध्यान में रखकर कहा चक ‘‘हममें से यचद कोई उपिार करने
के चलए गया तो पगचलस गते हश्र हमें हश्र पकड़कर ले ीायेगश्र क्योंचक हम सण चहन्दू हैं । यह णला हमारे
हश्र चसर पर ग पड़ेगश्र।’’

इस दां गे के णाद ोश्र ये चवद्यान्ी व्यापारश्र-चवोाग में ीाकर वहााँ पचरचित व्यचियों से चमलते रहते न्े।

केशवराव ीण कलकत्ता गये तण ‘स्वदे शश्र-गन्दोलन’ णाह्यतः मन्द पड़ गया न्ा। 1908 कश्र नप्रैल
में खगदश्रराम णोस द्वारा णम फेंकने के णाद कगछ चदनों तो णांगाल का वातावरण णहग त गरम हो गया न्ा।
स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर ने उस काल का इन शब्दों में वणभन चकया है चक ‘‘उस णम के स्फोट के सान्
हश्र चहन्दगस्न्ान कश्र पगरानश्र राीनश्रचत में स्फोट होकर सशस्त्र क्रान्न्तगामश्र नया रिरां चीत यगग उचदत
हग ग।’’ इसे नये यगग कश्र गहट नांग्री
े ों के चलए चिन्ता का कारण न्श्र। चीस प्रकार कोई कृर्क दूण
कश्र एक-एक ीड़ खोदकर सम्पूणभ घास को नष्ट करने का मूखत
भ ापूणभ प्रयत्न करे उसश्र प्रकार से
क्रान्न्तकाचरयों के गन्दोलन को ीड़-मूल से समाप्त करने का प्रयास नांग्री
े ों ने प्रारम्ो कर चदया।
नकेले ‘नलश्रपगर णम केस’ के सम्णन्ि में सरकार ने ीो प्रमाणों एवां कागीों के ेर एकत्र चकये न्े उसे
दे खा ीाये तो उनके इस प्रयत्न का ननगमान लगाया ीा सकता है । उस नचोयोग में दो सौ छः गवाचहयााँ
पेश कश्र गयश्र न्ीं तन्ा सणूत के चलए िार हीार कागद। णम, चपस्तौल, रासायचनक द्रव्यों गचद कश्र
सांख्या पााँि हीार न्श्र। इतनश्र खोीणश्रन करने के चलए हीारों व्यचियों कश्र तलाशश्र लश्र गयश्र होगश्र तन्ा
नसांख्य लोगों को मारपश्रटकर णेचड़यों से ीकड़ चदया गया होगा, यह कहने कश्र गवश्यकता नहीं है ।
सरकार ने ननेक प्रचतणन्ि लगाकर समाी में एक प्रकार का ोय और गतांक का वातावरण चनमाण
कर रखा न्ा। सूयास्त के णाद सोश्र ओर िारा 144 लागू कर दश्र ीातश्र न्श्र तन्ा उसका उल्लांघन
करनेवाले को कुोर दण्ड चदया ीाता न्ा। ‘यगगान्तर’ का, चीसकश्र ग्राहक सांख्या णश्रस हीार से ोश्र
नचिक न्श्र, प्रकाशन ीश्र चकन्गीफोडभ कश्र वक्रदृचष्ट के कारण णन्द हो गया न्ा। फलतः एक ऐसा सािन
ोश्र, चीससे ीनता कश्र ोावनाएाँ तेीस्वश्र णनश्र रहें तन्ा उसे सोश्र सांकट सगसह्य लगें, हान् से ीाता रहा
न्ा। शासन कश्र इस दमननश्रचत से लोग ोयाक्रान्त होकर सहम गये न्े। नत्यािारों कश्र उग्रता दे खकर
ीॉन मोले सरश्रखे नांग्री
े राीनश्रचतज्ञ ोश्र चिन्ता में पड़ गये न्े। वे लॉडभ चमण्टो को ोेीे गये नपने एक
पत्र मे चलखते हैं चक ‘‘हमें शान्न्त कायम करना िाचहए परन्तग कुोरता का नचतरे क शान्न्त-प्रस्न्ापना
का मागभ नहीं है । उलटे वह तो णम कश्र ओर हश्र ले ीानेवाला मागभ है ।’’

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ीन-गन्दोलनों का गवेश सोडावाटर कश्र णोतल खोलने के णाद गये हग ए उफान कश्र ोााँचत एकाएक
िारों ओर फैलकर शनैः-शनैः कम हो ीाता है । शासन कश्र दमननश्रचत के िलने पर प्रारम्ो कश्र उत्कटता
शान्त हो ीातश्र है । गन्दोलनकारश्र समाी में यचद सांघटन और ध्येयचनष्ठा कश्र कमश्र रहश्र तो गन्दोलन
का णाह्य प तो न्ोड़े हश्र चदनों में ुण्डा पड़ ीाता है । केशवराव ीण कलकत्ता गये तो क्रान्न्तकारश्र
तरुणों को छोड़ शेर् ीनता में इसश्र प्रकार का िैतन्यहश्रन वातावरण फैला हग ग न्ा। नचोयोग से
दोर्मगि होकर णाहर गने के णाद सन् 1909 में ीश्र नरचवन्द घोर् ने इस न्स्न्चत का णहग त हश्र यन्ान्भ
वणभन चकया है । वे चलखते हैं चक ‘‘ीण मैं कारागृह में गया न्ा तण ‘वन्दे मातरम्’ कश्र गीभना से सम्पूणभ
दे श में एक िैतन्य का सांिार हो गया न्ा। एक राष्ट्र कश्र गशा-गकाांक्षा से सम्पूणभ दे श उज्जश्रचवत हो
उुा न्ा। निःपात कश्र दारुण दगरवस्न्ा से ऊपर उुने कश्र कोट्यचवचि ीनता कश्र गशा-गकाांक्षा िारों
ओर नांकगचरत हो रहश्र न्श्र। परन्तग णन्दश्रगृह से णाहर गने पर ीण मैंने उस उद्घोर् को सगनने का प्रयास
चकया तो मगझे िारों ओर शान्न्त नीर गयश्र। सम्पूणभ दे श में एक गियभीनक नश्ररवता छायश्र हग ई न्श्र
तन्ा ीनता कककतभव्यचवमूढ चदखतश्र न्श्र। यह स्वाोाचवक हश्र न्ा क्योंचक हमको चदखने वाले ोावश्र के
चदव्य स्वप्नों से उज्जवल दै वश्र गकाश से स्न्ान पर नण िारों ओर घना नन्िकार छाया हग ग न्ा चीससे
गसगरश्र वृचत्त कश्र कड़कड़ातश्र हग ई चणीलश्र गाँखों को िौंचिया रहश्र न्श्र।’’ इस चवर्म पचरन्स्न्चत में ोश्र
ीो ीाग क एवां साविान न्े उनके प्रयत्न चनरन्तर होते रहते न्े। उनमें दे शोि पगचलनचणहारश्र दास कश्र
‘ननगशश्रलन सचमचत’ का प्रमगखता से उल्लेख करना होगा। सरकार कश्र इतनश्र वक्रदृचष्ट रहते हग ए ोश्र इसके
कायभकता ीनता को ीाग्रत् करने के चलए गगप्त प से पत्रक और पगस्तकें छापकर िगपिाप चवतचरत
करते रहते न्े। इस काम में केशवराव ोश्र हान् णाँटाते रहते न्े। छगचट्टयों में घर ीानेवाले पचरचित
चवद्यार्तन्यों के सान् वे इस प्रकार के साचहत्य के गट्ठे -के-गट्ठे चवचोन्न प्रान्तों मां प्रिार के चलए ोेीते न्े।
उन्होंने ननेक लोगों से ीो घचनष्ठ सम्णन्ि प्रस्न्ाचपत कर चलये न्े वे हश्र इस समय काम दे रहे न्े। नागपगर
कश्र ओर ोश्र इस प्रकार के प्रत्रक वे ोेीते रहते न्े।

‘ननगशश्रलन सचमचत’ के प्रमगख ीश्र पगचलन णाणू स्नातक न्े। णांगोांग के णाद सरकार ने चवचोन्न कारणों
से उन्हें णन्द करने के ननेक दााँव िलाये। कोश्र शस्त्रास्त्र इकट्ठा करने का नचोयोग लगाया गया तो
कोश्र लड़के ोगाने का गरोप। ाका में ‘ननगशश्रलन सचमचत’ कश्र स्न्ापना के णाद सरकार के समान
मगसलमानों ने ोश्र वहााँ के नवाण के णल-ोरोसे उसके चवरुद्ध णहग त तूफान खड़ा चकया।

पहले उन्हें िमचकयााँ दश्र गयीं तन्ा णाद में प्रत्यक्ष गक्रमण ोश्र चकया गया। पगचलन णाणू के नखाड़े पर
एक चदन निानक सात सौ मगसलमानों ने हल्ला णोल चदया परन्तग नखाड़े में सचमचत के केवल छः
तरुणों ने इतनश्र सफाई और चहम्मत से उस गक्रमण का सामना चकया चक िालश्रस-पिास मगसलमान
नक्षरशः वहीं घायल होकर चगर गये। णांगाल में पगचलन णाणू के ये नखाड़े वास्तव में दे शोि तन्ा
िैयभशालश्र तरुणों के सांस्कार-केन्द्र हश्र न्े। केशवराव का पगचलन णाणू से चकतना सम्णन्ि गया यह

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कहना कचुन है क्योंचक 1909 के नगस्त में पगचलन णाणू को चणना चकसश्र ीााँि-पड़ताल के दो वर्भ के
चलए कारागार में डाल चदया गया न्ा तन्ा वहााँ से छूटने के णाद एक-दो वर्भ में हश्र उन्हें कालेपानश्र ोेी
चदया गया। नन्ात् 1911 से 1913 के प्रारम्ो तक हश्र केशवराव का न्ोड़ा-णहग त सम्णन्ि उनके सान्
रहा होगा। पर उन चदनों दोनों पर हश्र सरकार कश्र कड़श्र और टे ढश्र नीर न्श्र। ीश्र रामलाल वाीपेयश्र ने
नपने गत्मिचरत्र में चलखा है चक छगचट्टयों में वापस गते समय केशवराव के ऊपर यह चीम्मेदारश्र न्श्र
चक वे एक दो-तश्रन सौ रुपये का चरवॉल्वर नपने सान् नागपगर के क्रान्न्तकाचरयों के चलए लेते गयें।
इसश्र प्रकार उन्होंने यह ोश्र स्पष्ट उल्लेख चकया है चक उन्हें ‘ननगशश्रलन सचमचत’ में प्रवेश चमला न्ा।
प्रचसद्ध क्रान्न्तकारक ीश्र त्रैलोक्यनान् िक्रवती ने ोश्र नपनश्र पगस्तक ‘ीेल में तश्रस वर्भ’(पृ.159) मे
चलखा है चक केशवराव के महाचवद्यालय के हश्र एक छात्र ीश्र नचलनश्र चकशोर गगह उनको तन्ा डॉ.
नारायणराव सावरकर को ‘ननगशश्रलन सचमचत’ में लाये न्े।

कलकत्ते के चनवास में चीस ‘ननगशश्रलन सचमचत’ में केशवराव ने प्रेवश चकया न्ा वहााँ ननेक परश्रक्षाओां
के णाद प्रवेश चमलता न्ा। मनगष्ट्य कश्र वृचत्त, िाचरत्र्य, शारश्रचरक णल, साविानता, सहनशश्रलता,
गज्ञापालन, सांयम गचद ननेक णातों कश्र ुश्रक प्रकार से परख करके उसकश्र पात्रता के ननगसार हश्र
उसे क्रमेण सचमचत में प्रवेश चदया ीाता न्ा। इसके चलए सचमचत के चणल्कगल िगने हग ए तन्ा इने -चगने
लोगों के एक केन्द्र तन्ा उसके णाहर उतरते क्रम से ननेक मण्डलों कश्र योीना कश्र गयश्र न्श्र। सचमचत
का सदस्य णनने पर दस-णारह लोगों के सम्मगख कालश्र के मन्न्दर में नन्वा श्मशान में िार्तमक
चवचिपूवभक प्रचतज्ञा लेनश्र होतश्र न्श्र। पात्रता के ननगसार सदस्यों के िार वगभ न्े तन्ा उनकश्र प्रचतज्ञाएाँ ोश्र
उग्रता कश्र दृचष्ट से क्रमशः कुोर होतश्र ीातश्र न्ीं। केशवराव का यचद उस सचमचत के नन्तरां ग में प्रवेश
हो गया हो तो कोई निरी नहीं। उस सचमचत के एक नग्रगण्य सदस्य ीश्र त्रैलोक्यनान् िक्रवती ने
नपनश्र पगस्तक ‘ीेल में तश्रस वर्भ’ में ‘ननगशश्रलन सचमचत’ के कगछ सदस्यों के छायाचित्र चदये हैं । उनमें
केशवराव के छायाचित्र का ोश्र उन्होंने नन्तोाव चकया है । उन्होंने यह ोश्र चलखा है चक ‘‘ीो लोग
नन्त्य प्रचतज्ञा करते न्े वे हश्र दल के सरे सदस्य चगने ीाते न्े। घरणार छोड़े हग ए सोश्र सदस्य नन्त्य
प्रचतज्ञा के नचिकारश्र माने ीाते न्े।’’ सरे सदस्यों कश्र ीो कसौटश्र ीश्र िक्रवती ने दश्र है उस पर
केशवराव पूरश्र तरह खरे उतरते हैं ।

केशवराव के कलकत्ता के क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन कश्र ीानकारश्र नत्यन्त स्फगट प में उपलब्ि है । एक
तो सशस्त्र क्रान्न्त में वैसे हश्र गोपनश्रय रहतश्र है । वहााँ तो क्रान्न्तकाचरयों के नाम कश्र नपेक्षा चपस्तौल
और णम से हश्र उनके मनोगत का व्यिश्रकरण होता है । चफर केशवराव का तो स्वोाव हश्र चणना ोल
पश्रटे िगपिाप शान्न्त के सान् काम करने का न्ा। नपना ोल खगद हश्र पश्रटते रहना तो उन्हें चणल्कगल हश्र
पसन्द नहीं न्ा। इसचलए गणचपत-चवसीभन के उपरान्त ीैसे मगख्य मूर्तत तो पानश्र में गहरश्र डूण ीातश्र है
और केवल फूल और दूवा हश्र ऊपर तैरते रहते हैं उसश्र प्रकार केशवराव के क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन कश्र

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मगख्य कृचतयााँ तो काल के नन्तर में लश्रन हो गयश्र हैं , केवल उनके सहपाचुयों को ीो कगछ ऊपर-ऊपर
से नवगत हो पाया नन्वा उनके सान् हश्र ननगोव में गया उसमें से हश्र कगछ सम्प्रचत उपलब्ि है ।

केशवराव ने ीण से नागपगर छोड़ा तोश्र से सरकारश्र गगप्तिरों के नीर उनके पश्रछे लगश्र न्श्र तन्ा कलकत्ता
में तो कगछ चदनों एक गगप्तिर उनके चनवास में हश्र रहने लगा न्ा। पर मनगष्ट्य कश्र उत्तम परख होने के
कारण केशवराव को उसे पहिानने में दे र नहीं लगश्र तन्ा उन्होंने गवश्यक सतकभ ता ोश्र णरतश्र। ीश्र
गोपाळ वासगदेव केतकर नाम के सज्जन ने कलकत्ता के वैद्यकश्रय महाचवद्यालय में नपना नाम चलखाया
न्ा। उसने महाराष्ट्र से गये सोश्र चवद्यार्तन्यों के सान् णड़श्र घचनष्ठता णढा रखश्र न्श्र। ‘‘यह चवद्यान्ी सश्रिा
नहीं चदखता। नतः उसके रहते कमरे में चकसश्र राीकश्रय चवर्य कश्र ििा नहीं करनश्र िाचहए और उससे
सतकभ रहना िाचहए’’ यह सूिना केशवराव ने नपने सोश्र चमत्रों को दे रखश्र न्श्र। वणश्र के डॉ. यादवराव
नणे, िााँदा के डॉ. शांकर सश्रताराम वैद्य, णम्णई के डॉ. शांकरराव नाईक)गीकल उपनाम तेण्डगलकर
लगाते हैं ), गोपाळराव दे व, गवी के डॉ. मोहरश्रर गचद सोश्र सज्जनों को उि व्यचि का स्मरण गी
ोश्र नच्छश्र तरह से है । परन्तग उनके चमत्रों ने कहा चक ‘‘गपकश्र केतकर के चवर्य में शांका चनरािार
है ।’’ उस पर केशवराव ने इतना हश्र उत्तर चदया चक ‘‘योग्य नवसर पर णताऊाँगा, पर साविान रचहए।’’
गगे िलकर ीून 1911 में स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर के छोटे ोाई ीश्र नारायणराव सावरकर ने ीेल से
छू टने के णाद वैद्यकश्रय चशक्षा के चलए कलकत्ता गने का चविार चनचित चकया। केशवराव को इसका
पता नपने चमत्र के पत्र से लग िगका न्ा। नतः उन्होंने ननगमान लगाया चक इस समय णम्णई सरकार
कश्र ओर से केतकर को नवश्य कोई सूिना गनश्र िाचहए। उनका नन्दाीा सहश्र चनकला। केतकर
ीण कमरे से णाहर गया तो उन्होंने मौका पाकर उसकश्र सन्दूक का ताला खोलकर उसमें से एक नया
ू चनकाला। उस पत्र में चलखा न्ा ‘‘ना.दा.सा. वहााँ ग रहे हैं , उन पर चनगरानश्र
गया हग ग पत्र ाँढ
रखो।’’ इस गशय का ोाग चमत्रों को चदखाकर उन्होंने वह पत्र ीैसे-का-तैसा उसके णक्से में रखकर
ताला लगा चदया। इस घटना के णाद केशवराव के चमत्रों कश्र सलाह हग ई चक ‘‘इन सज्जन को यहााँ से
चखसका दे ना िाचहए।’’ पर केशवराव का मत न्ा चक ‘‘नपनश्र गचतचवचियों पर चनगाह रखने के चलए
उसकश्र योीना हग ई है , नतः हमें ोश्र उसके ऊपर नीर रखना गवश्यक हो गया है । यहश्र हमारे चलए
ोश्र लाोदायक चसद्ध होगा। हमारे यहााँ से िले ीाने कश्र नपेक्षा वह हमारे णश्रि में रहा तो उसके ऊपर
चनगाह रखना हमारे चलए सरल होगा। हााँ, उसके सम्णन्ि में यन्ान्भ कल्पना रखकर हमें साविानश्र से
णताव करना िाचहए, इतना हश्र पयाप्त है ।’’

इसश्र समय मध्यप्रान्त सरकार के गदे शानगसार उसके एक पगचलस-नचिकारश्र ीश्र तारे ने ोश्र, सींग
कटाकर णछड़ों में घगसने के समान, चवद्यान्ी के प में कलकत्ता के मेचडकल कॉलेी में प्रवेश प्राप्त
चकया न्ा। यद्यचप इस तर्थय का पता ननपेचक्षत प से 1920 में िला चफर ोश्र उनकश्र णातिश्रत से

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लगता न्ा चक केशवराव को उनकश्र नसलश्रयत का पहले से हश्र ज्ञान न्ा। तारे महोदय नन्य लोगों के
सान् णातें करते समय णड़श्र तेीश्र और ीोश चदखाते न्े, इतना चक कगछ लोगों को तो उनकश्र तश्रव्रता के
कारण ोय लगने लगता न्ा। चकन्तग उनकश्र णोलिाल में चदखनेवाले गवेश का नाटकश्रयपन चकसश्र
ोश्र सूक्ष्मदृचष्ट व्यचि से चछप नहीं सकता न्ा। चीसे खरश्र दे शोचि कश्र कल्पना है उसे तो मौके -णेमौके
केवल ोावनाओां का प्रदशभन करनेवाले व्यचि से घृणा हश्र होने लगेगश्र। परन्तग केशवराव तन्ा उनके
सहकाचरयों ने उसके गवेशयगि ोार्णों के सान् सगन लेने कश्र नश्रचत नपनायश्र न्श्र। गगे िलकर उस
व्यचि को नपने चकये का स्वयां हश्र पिात्ताप हग ग तन्ा वह सरकारश्र नौकरश्र से त्यागपत्र दे कर सागर
िला गया।

‘ननगशश्रलन सचमचत’ में केशवराव चनचित प से कौनसा काम करते न्े इसका पता नहीं लग सका।
पर इतना नवश्य पता िलता है चक वे ‘शान्न्तचनकेतन’ से णश्रि-णश्रि में रात-चणरात णाहर ीाते रहते
न्े तन्ा कोश्र-कोश्र तो णारह-एक णीे के लगोग सोने के चलए गते न्े। उस समय वे तन्ा उनके चमत्र
डॉ. पाराशर कगछ नन्य ीनों के सान् रसायनशास्त्र के प्राध्यापक ीश्र िौिरश्र के यहााँ ीाया करते न्े।
िौिरश्र लोगों को णम णनाने कश्र चशक्षा दे ते हैं ऐसश्र सरकार को शांका न्श्र। इसचलए ीैसे हश्र चवद्यान्ी
उनके घर में गये चक णाहर गगप्तिर घण्टों दरवाीे के सामने घूमता रहता न्ा। एक णार प्राध्यापक महोदय
कश्र चवद्यार्तन्यों के सान् गप्पें काफश्र रात िलतश्र रहीं। चणिारा गगप्तिर न्ककर उनके ीश्रने पर णैु गया
तन्ा न्ोड़श्र दे र में हश्र उसको झपकश्र लग गयश्र। राचत्र णारह णीे के लगोग ीण केशवराव , पाराशर
इत्याचद नश्रिे उतरने लगे तो नन्िकार के कारण नगले दो-एक चवद्यान्ी ीश्रने पर णैुे हग ए व्यचि से
टकराकर चगर पड़े। ‘‘कौन है ’’ कश्र गवाी लगते हश्र चणिारा गाँख मलता हग ग एकदम ोागने लगा।
परन्तग उन्होंने उसे पकड़ चलया तन्ा दो-िार तमािे रसश्रद चकये। ‘‘िौकश्र में िलो’’ यह कहते हश्र चणिारा
ोय के मारे कााँपने लगा। नन्त में उसके नत्यन्त ननगनय-चवनय करने पर केशवराव ने कहा ‘‘ीाने
दो, वह तो चणिारा नपना चमत्र है और इसश्रचलए तो चनत्य नपने सान् रहते हग ए कोश्र गलतश्र से ोश्र हमारे
णारे में कोई सूिना नहीं दे ता है ।’’ इस मार्तमक प्रहार से चणिारे गगप्तिर के मन पर क्या णश्रतश्र होगश्र यह
तो कल्पना हश्र करने लायक है । उस पर दया चदखाने के चलए चवद्यार्तन्यों ने उस रात उस गगप्तिर से
चमुाई ोश्र खायश्र।

‘स्वदे शश्र-गन्दोलन’ के काल में ननेक नेता चवचोन्न प्रान्तों से गये चवद्यार्तन्यों से चमलने के चलए
कोश्र-कोश्र वसचतगृह में गते न्े। ऐसे नवसरों पर हग ए पचरिय को केशवराव णारणार उनके यहााँ ग-
ीाकर णढाते रहते न्े। इनमें से दो व्यचियों का उल्लेख चवशेर् प से चकया ीा सकता है । एक हैं
श्यामसगन्दर िक्रवती तन्ा दूसरे मौलवश्र चलयाकत हग सैन।

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ीश्र श्यामसगन्दर िक्रवती चुगने तन्ा दगणले-पतले न्े। वे नपने नाम के समान हश्र वणभ से श्याम न्े,
चकन्तग िचरत्र में चनरभ्र गकाश के समान स्वच्छ। 1910 में वे ब्रह्मदे श में एकान्तवास का दण्ड ोोगकर
वापस गये न्े तन्ा नत्यन्त दाचरद्र्य में चकन्तग हाँ सते-हाँ सते ीश्रवन में कमभयोग का गिरण कर रहे न्े।
दे श-चनकाले के पूवभ उन्होंने नपनश्र िगोतश्र और चतरछश्र लेखनश्र से साप्ताचहक ‘प्रचतवासश्र’, ‘सन्िया’
और ‘वन्दे मातरम्’ पत्रों में ीो दे शोचि तन्ा उत्तेीनापूणभ और व्यांगात्मक लेख चलखे न्े उसके कारण
दे शान्तर का दण्ड पानेवाले प्रन्म नौ लोगों में सन्म्मचलत करने का सम्मान सरकार ने उन्हें प्रदान चकया
न्ा। श्यामसगन्दर कश्र पढाई णश्र.ए. तक हग ई न्श्र और उनका नांग्रेीश्र, सांस्कृत तन्ा णांगला तश्रनों हश्र ोार्ाओां
पर नच्छा प्रोगत्व न्ा। लोकमान्य चतलक के कलकत्ता गगमन पर ‘वन्दे मातरम्’ के नांक में ‘Crime
of Nationalism’ (‘राष्ट्रोचि का नपराि’) शश्रर्भक से एक नग्रलेख प्रकाचशत हग ग न्ा। उसकश्र
ोार्ा, ोावना और चविार के चत्रवेणश्र-सांगम को दे खकर लोकमान्य चतलक इतने प्रसन्न हग ए चक वे
स्वतः ीश्र मोतश्रलाल घोर् को लेकर ‘वन्दे मातरम्’ के सम्पादक ीश्र नरचवन्द घोर् का नचोनन्दन करने
के चलए उनके घर गये। परन्तग ीश्र नरचवन्द ने णताया चक इस नचोनन्दन के पात्र वे नहीं उस नग्रलेख
के लेखक ीश्र श्यामसगन्दर िक्रवती हैं । ऐसश्र प्रोावश्र लेखनश्र का लश्रलया उपयोग करने कश्र क्षमता
रखनेलाले श्यामसगन्दर िक्रवती सरकार के णराणर पश्रछे पड़े रहने के कारण दाचरद्र्य से ीूझते हग ए
कलकत्ता में नांगे पैरों घूमते रहते न्े। कोश्र-कोश्र तो उनके शरश्रर पर एक िोतश्र और दगपट्टा, णस इतना
हश्र गवरण रहता न्ा। परन्तग इतना होने पर ोश्र ीण-ीण वे वसचतगृह में गते तो तरुणों में प्रयत्नवाद
और ध्येयवाद के प्रचत चनष्ठा उत्पन्न करनेवाले चवर्यों को लेकर हश्र ििा करते न्े। केशराव तन्ा उनके
कगछ चमत्रों को श्याम णाणू कश्र न्स्न्चत का पता न्ा और इसचलए ीण ोश्र वे वसचतगृह में गते तो वे
गग्रह के सान् उन्हें नपने सान् ोोीन पर णैुाते न्े तन्ा ीाते समय सान् में कगछ पैसे दे ना ोश्र कोश्र
नहीं ोूलते न्े। श्यामसगन्दर स्वोाव से इतने चनरचोमानश्र तन्ा नपचरग्रहश्र न्े चक चकसश्र ने कगछ चदया तो
ले लेते न्े और न्ोड़श्र हश्र दे र में कोई मााँगनेवाला चमला तो हाँ सते-हाँ सते सण कगछ दे ोश्र दे ते न्े। ीश्र
चवचपनिन्द्र पाल उनकश्र उदारता का वणभन करते हग ए चलखते हैं चक ‘‘चकसश्र एकाि चमत्र नन्वा पचरचित
व्यचि कश्र नपने से नचिक नन्वा नपनश्र चीतनश्र हश्र गवश्यकता होगश्र नतः स्वतः नत्यन्त दचरद्र
होते हग ए ोश्र पास कश्र पाई-पाई ोश्र उसे दे डालने में उन्होंने कोश्र चहिचकिाहट नहीं कश्र। ीो-ीो
श्यामसगन्दर के चनकट सम्णन्ि में गया उसे हश्र उनकश्र सतत उदात्त प्रवृचत्तयों और महान् तन्ा उर
चविारों का पचरिय चमला।’’

इस प्रकार के सान्त्त्वक दे शोि के सम्णन्ि में केशवराव के हृदय में नत्यन्त गदर का ोाव न्ा। वे
उनके ोार्णों में चणला-नागा नवश्य पहग ाँ िते न्े। उनके घर पर ोश्र केशवराव का सदै व गना-ीाना
रहता न्ा। केशवराव स्वतः ोश्र इसश्र प्रकार दाचरद्र्य और चवपचत्तयों से लड़ते हग ए गगे ण रहे न्े नतः
श्याम णाणू के सम्णन्ि में उनके मन में समवेदना और गस्न्ा का चनमाण होना स्वाोाचवक हश्र न्ा।

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उन्होंने नपनश्र वृचत्त दूवादल के समान णना लश्र न्श्र। उस पर यचद नशुचणन्दगओां कश्र ोश्र वर्ा हग ई तो वह
उन्हें हास्य के मोचतयों के प में हश्र ीग के सम्मगख प्रकट करते न्े। केशवराव को श्यामसगन्दर के
सहवास में इस वृचत्त का नचिकाचिक पचरिय प्राप्त हग ग। श्याम णाणू के प्रचत समवेदना के कारण हश्र
केशवराव ने उनकश्र पगत्रश्र कश्र सगाई पोंश्र करने से लेकर चनर्तवघ्न प से चववाह होने तक सण कगछ
चकया तन्ा मांगलकायभ में गर्तन्क साहाय्य के चलए पैसे ोश्र इकट्ठे चकये।

मौलवश्र चलयाकत हग सैन चहन्दगस्न्ान में नकलश्र ‘राष्ट्रश्रय’ मगसलमानों के णश्रि ोााँग में तगलसश्र के पौिे के
समान हश्र न्े। केशवराव के कलकत्ता में चनवास के समय मौलवश्र कश्र गयग साु के ऊपर न्श्र। परन्तग
नखण्ड नध्यवसाय तन्ा कायभलश्रनता में वे तरुणों को ोश्र लीाते न्े। केवल दो-िार गने पर नपना
ीश्रवन व्यतश्रत करनेवाला यह वृद्ध मौलवश्र लोकमान्य चतलक का नत्यन्त ोि तन्ा स्वदे शश्र व्रत का
कट्टर पगरस्कता न्ा। गरश्रण-गगरणों के चलए चनचि एकत्र करके वह उनमें णााँटता न्ा। गरश्रण चवद्यार्तन्यों
को उस चनचि में से पगस्तकों तन्ा शगल्क कश्र व्यवस्न्ा करता न्ा। इस प्रकार उसके कगछ-न-कगछ काम
िलते हश्र रहते न्े। नपने सान् चीतने णन गये उतनों को हश्र लेकर वह ‘स्वदे शश्र’ के प्रिार के चलए
प्रोातफेरश्र चनकालता न्ा तन्ा णश्रडन और कॉलेी स्वायर में ननेक णार सोाएाँ ोश्र करता न्ा। इस
प्रोातफेचरयों और सोाओां में केशवराव नपनश्र चमत्र-मण्डलश्र के सान् ीाते न्े। वे उन सोाओां कश्र
व्यवस्न्ा ोश्र करते और कोश्र-कोश्र टूटश्र-फूटश्र चहन्दश्र में ोार्ण ोश्र दे ते न्े। कगछ चदनों दे श के मीनू इस
वृद्ध मौलवश्र ने ‘कगणेर वस्तग ोण्डार’ के नाम से एक स्वदे शश्र वस्तगओां कश्र दगकान ोश्र िलायश्र न्श्र। सफेद
टोपश्र, पायीामा तन्ा शेरवानश्र, यहश्र उसका सादा वेश न्ा। कगछ चदन नगर में और कगछ चदन कारागार
में, यहश्र उसका िोंर िलता रहता न्ा। एक णार णश्रमार होने पर केशवराव ने उसकश्र डेढ-दो महश्रने
ता सेवा-शगशूर्ा ोश्र कश्र न्श्र। डॉ. यादवराव नणे ने इस मौलवश्र के सम्णन्ि में नपनश्र स्मृचतयााँ णताते
हग ए एक उल्लेखनश्रय णात कहश्र चक स्वदे शश्र का पगरस्कार करते हश्र मौलवश्र ने तगकी टोपश्र छोड़ दश्र तन्ा
नपने ीगलूसों में ोगवाध्वी लेकर िलना प्रारम्ो चकया।

एक णार मौलवश्र चलयाकत हग सैन कश्र नध्यक्षता में होनेवालश्र एक सोा में चकसश्र विा ने लोकमान्य
चतलक के सम्णन्ि में कगछ ननगचित उसार व्यि कर चदये। सगनते हश्र केशवराव क्रोि से लाल होकर
उुे तन्ा उन्होंने ोरश्र सोा में विा महोदय के मगाँह पर कसकर तमािा ीड़ चदया। यह सांस्मरण डॉ.
घोर् ने चलखा है । मौलवश्र कश्र प्रोातफेरश्र के ोश्र एक-दो प्रसांग दे ना उपयगि होगा। एक समय केशवराव
प्रोातफेरश्र में ध्वी लेकर गगे-गगे िल रहे न्े चक इतने में एक नांग्री
े नचिकारश्र पास गकर मराुश्र
में उनसे पूछताछ करने लगा। इस घटना से उन्हें णड़ा गश्ययभ हग ग। उसे कैसे पता िला चक वे
महाराष्ट्रश्रय हैं ? चविार करने पर उन्हें पता िला चक चसर पर िोटश्र के णड़े घेरे के कारण हश्र उन्हें वह
पहिान सका होगा क्योंचक महाराष्ट्र कश्र चवशेर्तासूिक वहश्र चिन्ह उनके पास न्ा। कहने कश्र
गवश्यकता नहीं कश्र उन्होंने इस घटना के उपरान्त नपनश्र िोटश्र का घेरा छोटा कर चदया।

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कलकत्ता में इन सण गचतचवचियों के कारण केशवराव का पढाई कश्र ओर ध्यान कगछ कम हो गया।
नतः एक णार छगचट्टयों में नागपगर गने पर उनकश्र णड़े प्रेम से गर्तन्क सहायता करनेवाले डॉ. िोळकर
ने इस चवर्य पर नपनश्र नप्रसन्नता ोश्र व्यि कश्र न्श्र। यह तो सि है चक नन्य चवद्यार्तन्यों के समान
नपने कमरे को हश्र सांसार समझकर घण्टों पगस्तकों से हश्र मान्ा फोड़ते रहने कश्र उनकश्र गदत नहीं न्श्र।
परन्तग वे कक्षा में पढाई कश्र ओर सदै व ध्यान दे ते न्े और इसचलए परश्रक्षा के कगछ चदन पूवभ न्ोड़श्र-सश्र
तैयारश्र करके ोश्र वे नच्छे नांक प्राप्त कर लेते न्े। उनके प्रमाण-पत्र से पता िलता है चक 1912 कश्र
परश्रक्षा में उन्हें रसायनशास्त्र में णहत्तर प्रचतशत तन्ा शरश्ररशास्त्र में पैंसु प्रचतशत नांक चमले न्े। इतनश्र
उुा-पटक करते हग ए ोश्र वे इतने नांक प्राप्त कर सके यह उनकश्र नपूवभ िारणाशचि का हश्र ीादू न्ा।

पहला महायगद्ध िालू होते हश्र ोारत सरकार कश्र ओर से रणक्षेत्र पर डॉक्टरों कश्र चनयगचि होने लगश्र।
एक णार लड़ाई का प्रत्यक्ष ननगोव कर चलया ीाये तो गगे उपयोगश्र चसद्ध होगा इस कल्पना से
केशवराव, नश्र. स. मोहरश्रर गचद चमत्रों ने डॉ. सगहरावदी खााँ से चमलकर नपने नाम ोश्र सेना कश्र ोती
में चलखवा चदये। परन्तग उन तरुणों के नाम क्रान्न्तकाचरयों कश्र कालश्र सूिश्र)Black list) में होने के
कारण उन्हें यह नवसर नहीं चमल सका।

कलकत्ता के चनवास में केशवराव का मन सहश्र नन्ों में राष्ट्रश्रय चशक्षा ग्रहण करने कश्र ओर लगा हग ग
न्ा। स्वतः कश्र तन्ा नचिक हग ग तो कगटगम्ण कश्र चिन्ता करनेवाले सांसार में नसांख्य लोग हैं । पर समाी
कश्र चिन्ता कर उसके सान् इतना तादात्म्य कर, चक नपने सवभस्व का ोश्र चवस्मरण हो ीाये, नपने
मन और ीश्रवन को उन्नत करनेवाले न्ोड़े हश्र चमलते हैं । इस दगलभो मनःन्स्न्चत को गढने का काम
केशवराव उन चदनों कर रहे न्े। प्रान्त-प्रान्त से गये हग ए चवद्यान्ी दूसरे प्रान्तों के चवर्य में कैसे पूवभग्रह
रखकर िलते हैं इसकश्र वे परश्रक्षा कर रहे न्े तन्ा नपने समाी में गनेवाले उत्साह का ज्वार चकतना
क्षचणक होता है इसका वे ननगोव ले रहे न्े। ‘स्वराज्य णांगाल कश्र दृचष्ट से केवल एक चदन का प्रश्न है ’,
इस प्रकार ोार्ण के प्रवाह में णोलनेवाले विाओां को ीण वे सगनते न्े तो यहश्र सोिते न्े चक ‘‘यह
एक चदन में गनेवाला स्वराज्य नपने गी के स्वाचोमानशून्य तन्ा चवघचटत समाी कश्र न्स्न्तश्र में
सम्ोवतः एक हश्र चदन में िला ोश्र ीायेगा।’’ क्रान्न्तकायभ के नन्तरां ग प्रवाह का ोश्र उन्होंने नवलोकन
चकया न्ा तन्ा दे श के सम्मगख उपन्स्न्त प्रश्नों को सगलझाने कश्र दृचष्ट से समाी कश्र मनःन्स्न्चत तन्ा
सांघटन कैसा िाचहए इस सम्णन्ि मे ोश्र यगचि चविारने में उनका मन लगा हग ग न्ा। चकन्तग इस सणसे
ोश्र नचिक दूसरों को दे शोचि का पाु पढाने के पूवभ स्वयां शरश्रर और मन से वरमु के समान कुोर
णनकर नन्न्तम श्वास तक दे श के स्वातांत्र्य तन्ा समाी के वैोव के चलए प्रयत्न करते रहने का मांगल
सांकल्प उनके मन में दृढ होता ीाता न्ा। गाँख-कान खगले रखकर नपने सम्पकभ में गनेवाले व्यचियों
और घटनाओां के नन्तरां ग का चनरश्रक्षण करने तन्ा उसमें से, मिगमक्खश्र कश्र वृचत्त से, ीो नच्छा है उसे
ग्रहण कर नपने ीश्रवन में उपयोग करने कश्र प्रवृचत्त से हश्र इस काल में उनका गगणों का सांिय िल रहा

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न्ा। लोकमान्य चतलक को छः वर्भ कश्र सीा होने पर उसश्र चदन से नपने कोट पर कालश्र पट्टश्र णााँिकर
घूमनेवाले तपस्वश्र णाणासाहण पराांीपे हों या लोकमान्य से माांडले में ोेंट करके गनेवाले नमरावतश्र
के रईस दे शोि दादासाहण खापडे हों, चकसश्र के ोश्र कलकत्ता गने पर केशवराव उनको नपने
चनवास पर लाकर उनकश्र सण व्यवस्न्ा करते न्े तन्ा वतभमान समाी कश्र न्स्न्चत के सम्णन्ि में णड़श्र
उत्सगकता से उनके चविार सगनते न्े। नन्दमान कश्र कालकोुरश्र से मानो रिाशुओां से चलखा हग ग
स्वातन्त्र्यवश्रर सावरकर का पत्र ीण उनको डॉ. नारायणराव सावरकर से पढने को चमलता न्ा तो वे
उसका पारायण-सा करते रहते न्े। उसका गशय पढते-पढते वे मन से नन्दमान में ीाकर सण प्रकार
कश्र यातनाओां को हाँ सते-हाँ सते सहन करनेवाले उस राष्ट्रोि के िश्ररी और साहस के सान् ोचिोाव
से समरस होने लगते।

इस प्रकार गाँख खोलकर व्यवहार करते हग ए एक णार चीसे कतभव्य समझकर स्वश्रकार चकया उसके
चलए चफर ोश्र चकसश्र ोश्र प्रकार का कष्ट सहन करने में उन्होंने गगा-पश्रछा नहीं कश्रया। रात हो या चदन,
वे कतभव्य कश्र पगकार पर खड़े होने में कोश्र कतराये नहीं। एक चदन श्यामसगन्दर िक्रवती ील्दश्र-ील्दश्र
में महाराष्ट्र चनवास में गये तन्ा िगने हग ए महाराष्ट्रश्रय तरुणों को नलग णगलाकर राचत्र को कलकत्ता
के पास एक गााँव में गने कश्र सूिना दश्र। रत्नाचगचर का कोई तरुण क्रान्न्तकारश्र परदे श से णम णनाने
कश्र चवद्या सश्रखकर वहााँ नज्ञातवास में रहता न्ा। वहीं णड़श्र साविानश्र के सान् वह क्रान्न्तकाचरयों को
णम णनाना चसखाता न्ा। उसश्र नज्ञातवास में वह णश्रमार पड़ गया। चमत्रों के चकये हग ए उपिार से काम
नहीं िला और एक चदन उसके प्राण-पखे उड़ गये। उस तरुण ने इच्छा प्रकट कश्र न्श्र चक मेरा नन्न्तम
सांस्कार ब्राह्राणों के द्वारा हश्र हो। नतः उसको पूरा करने के चलए श्यामसगन्दर िक्रवती ने उन तरुणों
को उस गााँव में णगलाया न्ा। सांकेत के ननगसार गु-दस चवद्यान्ी रात में वहााँ गये। उनमें ीश्र रामकृष्ट्ण
सदाचशव चपम्पगटकर, केशवराव इत्याचद न्े।

वे गााँव के एक नांिेरे घर में से तरुण के शव को िगपिाप दूर ले गये। नत्यन्त शोकाकगल मनःन्स्न्चत
से कलकत्ते से गये इन तरुणों ने चिता णनायश्र। गकाश में काले णादल छाये न्े। दाह-सांस्कार करना
हश्र न्ा चक श्यामसगन्दर एक पोन्श्र लेकर गगे गये तन्ा एक व्यचि को चदया चदखाने के चलए सांकेत
करते हग ए णोले ‘‘मातृोूचम कश्र सेवा में णचलदान होनेवाले इस दे शोि को महाचग्न)मांत्रचवहश्रन चिता)
नहीं दश्र ीा सकतश्र।’’ उनकश्र वाणश्र को सगनकर सणकश्र गाँखें ोर गयीं। नपना एक टूटा हग ग डोरे
से णाँिा िश्मा कान पर िढाते हग ए उन्होंने पोन्श्र चनकालश्र तन्ा नन्न्तम सांस्कार के मांत्र कहने लगे।
न्ोड़श्र दे र में नचग्न कश्र ज्वाला िू-िू करके ीलने लगश्र तन्ा एक नज्ञात तरुण दे शोि नज्ञात प से
नज्ञात में चवलश्रन हो गया। ऊपर काले मेघ चघर गये न्े। चदव्यत्व कश्र प्रतश्रचत दे नेवाले उस तरुण का
ोावपूणभ वन्दन करके नन्य लोगों ने ोश्र नशुओां कश्र चतलाांीचल नर्तपत कश्र।

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5. ीश्रवन कश्र चदशा
कला और ीश्रवन के परस्पर सम्णन्ि के चवर्य में ननेक ििाएाँ हग ई हैं । परन्तग नोश्र तक कोई
समािानकारक उत्तर नहीं दे पाया है । गगे चमलेगा चक नहीं कहना कचुन है । णांगाल में ोश्र प्राकृचतक
सौन्दयभ और ीश्रवन के णश्रि ऐसा हश्र झगड़ा िलता हग ग चदखता है ।

सम्पूणभ णांगाल प्रान्त चणलकगल समतल तन्ा नदश्र-नालों से ोरा हग ग है । ोूचम कश्र यह समतलता नन्य
लोगों को िाहे नश्ररस लगे पर कचव-हृदय को वह नवश्य हश्र मोचहत करतश्र है । समतलता को प्रान्त का
दोर् मानकर नाक-ोौं चसकोड़ने वाले नरचसकों से कचववयभ रवश्रन्द्रनान् ुाकगर यह प्रश्न पूछते हैं चक
‘‘कहााँ है ऐसा कोई दे श चीसे नेत्रों से नपलक दे खते रहें तन्ा ीो मन में णस ीाये?’’ इतना हश्र नहीं
इससे गगे णढकर वे कहते हैं ‘‘णहग त से लोग णांगाल को सपाट प्रदे श होने के कारण तगच्छ ोाव से
दे खते हैं परन्तग यहश्र णात मगझे उसके सृचष्ट-सौन्दयभ कश्र नचिक नचोव्यांीना करनेवालश्र प्रतश्रत होतश्र है ।
सांध्या कश्र नश्रिे उतरतश्र हग ई गोा एवां शान्त तन्ा चनस्तब्ि दगपहरश्र का सगवणभपट सम्पूणभ गगनाांगण पर
ीण नचनणभन्ि प से फैलता है तो खगला गकाश नांीश्ररश्र रत्निर्क के समान कोर तक लणालण ोरा
हग ग चदखायश्र दे ता है ।’’

परन्तग कचव-हृदय को गनन्द दे नेवालश्र णांगाल कश्र इस ोूचम कश्र चवशेर्ता के हश्र कारण चपछले सहस्रों
वर्ों से लक्षावचि लोग णाढ के सांकट से प्रचववर्भ नखण्ड प से पश्रचड़त होते और लोहा लेते ग रहे
हैं । णाढ णांगाल के चलए नचोशाप हश्र चसद्ध होतश्र है । प्रान्त के उत्तर में मूसलािार वर्ा से नचदयों में
इतने प्रणल वेग से पानश्र णढता है चक णश्रस-णश्रस मश्रल तक के क्षेत्र में णसे हग ए गााँव द्वश्रपों के समान
चदखायश्र दे ते हैं । इन गााँवों के णश्रि परस्पर सम्णन्ि णनाये रखने के चलए छोटे -छोटे डोंगों का उपयोग
करना पड़ता है । िारों ओर िान के खेत एक-एक पगरसा पानश्र के णश्रि डूण ीाते हैं तन्ा चवचवि रां गों
के कमल-दलों से शोोायमान ताल एवां पोखरे णाढ के पानश्र में उसश्र प्रकार नपना पृन्क् नन्स्तत्व खो
णैुते हैं , ीैसे चनरहां कारश्र व्यचि समचष्ट में चवलश्रन होकर नपने को ोूल ीाता है । प्रौढ व्यचियों कश्र
पोशाक पहनकर उनका ननगकरण करनेवाले णालकों के समान णाढग्रस्त क्षेत्र ोश्र सागर के सान् होड़
लगाने का प्रयास करता है ।

णांगाल में दामोदर नदश्र में वर्भ में कम-से-कम एक णार तो यह णाढ नवश्य गतश्र है । उस समय
चवशेर्कर उसके पचिम तश्रर पर रहनेवाले विभमान चीले के लोग ोश्रर्ण चवपचत्त में पड़ ीाते हैं । पर
1913 में दामोदर कश्र णाढ तो णहग त हश्र ोश्रर्ण न्श्र। उसका वणभन सगनकर कलकत्ता कश्र ननेक
सावभीचनक सांस्न्ाओां ने तगरन्त एक चनचि एकत्र कर णाढग्रस्त ीनता कश्र सहायता करने कश्र व्यवस्न्ा
कश्र। समाी के सांकटों को नपना सांकट मानकर उस कायभ में सन्म्मचलत होनेवाले तरुणों में केशवराव

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ोश्र न्े। वे ‘रामकृष्ट्ण चमशन’ कश्र ओर से सहायता-कायभ के चलए गये न्े। उनके दल में छः लोग न्े।
उनके सान् नचवीान्त पचरीम करनेवाले मद्रास के दे शोि ीश्र के.एस. वेंकटरमण कश्र दै नन्न्दनश्र से
प्राप्त नामों के ननगसार सवभीश्र नचलनश्र, गोखले, दे शपाण्डे, गर.एस. सगवे, वेंकटरमण तन्ा केशवराव,
ये छः लोग एक गगट में कायभ कर रहे न्े। इसश्र प्रकार के नन्य गगट ोश्र वहााँ काम में लगे हग ए न्े।

उस ोाग में ीाने पर ीहााँ तक सम्ोव हो नौका से, नन्यन्ा कमर तक पानश्र में िलकर, चिउड़ा और
मगरमगरे कश्र णोचरयााँ णाढग्रस्त गााँवों में पहग ाँ िानश्र पड़तश्र न्ीं। पश्रु पर णोरश्र लादकर दलदल में से पार होते
हग ए गााँवों में पहग ाँ िना होता न्ा। वहााँ िारों ओर ील ोर ीाने के कारण गााँव के लोग नपने णाल-णरों
सचहत मिान के ऊपर सहायता कश्र गशा लगाये णैुे चमलते न्े। ये वहााँ पहग ाँ िे चक उन्हें नपार गनन्द
होता न्ा, मानो स्वयां ोगवान् उनकश्र रक्षा के चलए ग पहग ाँ िे हों। णोरश्र लादकर ीाते समय कोश्र पानश्र
में सााँप नपनश्र गचत से ील से ऊपर क्षणोांगगर टे ढश्र-मेढश्र रे खाएाँ णनाते हग ए पास से गगीर ीाता न्ा तो
कोश्र णाी कश्र गचत से चकरचकला झपट्टा मारकर नपना ोक्ष्य िोंि में दणाकर उसश्र गचत से उड़ता हग ग
चनकल ीाता न्ा। नगस्त 11, 12 और 13, तश्रनों चदन केशवराव तन्ा वेंकटरमण चनरन्तर उस
सेवाकायभ में ीगटे रहे । ीश्र वेंकटरमण चलखते हैं चक ‘‘डॉक्टर नक्षरशः रात-चदन णड़श्र शचि और उत्साह
के सान् काम करते रहे । उनका पचरीम चनःसन्दे ह नसामान्य न्ा।’’

कहावत है चक चवपचत्त कोश्र नकेलश्र नहीं गतश्र। णाढ के सान् हश्र उस क्षेत्र में चवर्ूचिका का ोश्र प्रकोप
हो गया। नण उसकश्र और्चि णााँटने के चलए राचत्र के एक-एक णीे तक ीगटे रहना पड़ता न्ा। दूसरे
का दगःख दूर करते हग ए खरे सेवक को नपने दगःखों का ोान चकस प्रकार नहीं रहता इसका मूर्ततमन्त
स्व प उस समय सेवारत केशवराव का व्यवहार न्ा।

कलकत्ता के छः वर्भ के ीश्रवन में केशवराव एक णार और णाढ-पश्रचड़तों कश्र सेवा करने के चलए गये।
इस समय उनके सान् डॉ.ना.दा. सावरकर, डॉ. यादवराव नणे तन्ा डॉ. तेण्डूलकर गचद ोश्र न्े।
कलकत्ता से साु मश्रल दूर गांगा और सागर के सांगम पर प्रचतवर्भ मकरसांक्रान्न्त पर णहग त णड़ा मेला
लगता है । एक वर्भ मेले के नवसर पर वहााँ है ीा णड़े ीोर से फैल गया। उस समय झोंपड़श्र-झोंपड़श्र में
घूमकर णश्रमारों कश्र सेवा-शगशूर्ा तन्ा और्िोपिार कलकत्ता से गये हग ए पन्क ने चकया न्ा। उसमें
केशवराव ोश्र न्े तन्ा स्वोाव के ननगसार यह कायभ ोश्र उन्होंने णड़श्र तन्मयता एवां नचवीान्त प से
चकया। इन चवचवि प्रसांगों से केशवराव का णांगाल कश्र ग्रामश्रण ीनता से चनकट का सम्णन्ि गया तन्ा
दाचरद्र्य, नज्ञान और रोग ने वहााँ के लोगों का ीश्रवन चकस प्रकार चनःसत्त्व तन्ा दयनश्रय णना चदया
इसका वे प्रत्यक्ष ननगोव कर सके। यह न्स्न्चत दे खकर उनका चदल चतल-चतल टूटता न्ा तन्ा नपना
सम्पूणभ ीश्रवन ोारत का दै न्य और दगःख दूर करने के चलए हश्र समपभण करने का उनका सांकल्प दृढतर
होता ीाता न्ा।

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पहले वर्भ केशवराव का ोोीन और रहना ‘शान्न्तचनकेतन’ में होता न्ा। णाद के िार-पााँि वर्ों में
रहने का चुकाना यद्यचप वहीं न्ा परन्तग ये ीगन्न्मत्र ोोीन के चलए चदन चनचित करके दूसरे वसचतगृहों
में ीाते रहते न्े। णश्रि में कोश्र-कोश्र उन्हें ाणे में ोश्र ोोीन करना पड़ता न्ा। ोोीन-व्यवस्न्ा में यह
पचरवतभन गर्तन्क न्स्न्चत के ननगसार होता रहता न्ा। वह सस्तेपन का काल न्ा। नतः केवल परश्रस
रुपये में कलकत्ते में णड़े गराम के सान् रहा ीा सकता न्ा। रुपये का गु सेर दूि चमलता न्ा तन्ा
दो-तश्रन पैसे में एक दीभन केले चमल ीाते न्े। नागपगर के समान यहााँ ोश्र व्यायाम करने का चनयम
केशवराव ने कायम रखा न्ा तन्ा उसके चलए पोर्क दूि ोश्र वे सस्तश्र के कारण णराणर ले सकते न्े।
केशवराव कश्र छातश्र नण उोर गयश्र न्श्र तन्ा उनकश्र कलाई और ोगीदण्ड कस गये न्े। उनका गहार
ोश्र णढ गया न्ा। एक णार में वे णश्रस-परश्रस रोचटयााँ तो सही खा ीाते न्े और कोश्र होड़ लग गयश्र तो
चफर उनकश्र सांख्या में काफश्र वृचद्ध हो सकतश्र न्श्र।

एक णार कक्षा में प्राध्यापक के गने में न्ोड़ा चवलम्ण होने के कारण सोश्र चवद्यान्ी तारुण्य-सगलो
वृचत्त से परस्पर हाँ सश्र-ुट्ठा तन्ा गप्पों में लगे हग ए न्े। मीाक-हश्र-मीाक में केशवराव के एक स्नेहश्र ीश्र
हावरा णाणू नन्ात् डॉ. नमूल्यरत्न घोर् ने प्रस्ताव चकया चक णाीू पर मगोंा मारकर दे खा ीाये चक कौन
चकसको पश्रछे हटा दे ता है । हावरा णाणू को मगोंा झेलने के चलए णााँहे िढाते दे खकर केशवराव ने कहा
‘‘तू पहले मेरा पराोव करके चदखा।’’ क्षण-ोर में केशवराव कश्र ोगीा पर दनादन घूस
ाँ े पड़ने लगे तन्ा
सारश्र कक्षा के चवद्यान्ी दोनों के िारों ओर खड़े होकर णड़श्र उत्सगकता से पचरणाम दे खने लगे। णहग त दे र
तक यह मगचष्टप्रहार होता रहा परन्तग केशवराव के िेहरे पर चशकन तक नहीं गयश्र। दे खनेवालों को
उनकश्र कष्टसचहष्ट्णगता पर गियभ होने लगा। नन्त में घूाँसे लगाते-लगाते हावरा णाणू का दम टूट गया
और वह न्ककर णैु गये। इस घटना के चवर्य में ‘मोडनभ चरव्यू’ के एक नांक में डॉ. नमूल्यरत्न घोर्
चलखते हैं चक ‘‘हे डगेवार एक इांि ोश्र पश्रछे नहीं हटे । मैं उन्हें हटाने के स्न्ान पर स्वयां हश्र हार खा गया।’’

कलकत्ता में 1906 में लोकमान्य चतलक के गगमन के नवसर पर हश्र सावभीचनक गणेशोत्सव का
ीश्रगणेश हो गया न्ा। राष्ट्रश्रय ीाग्रचत के इस कायभक्रम को चवचोन्न वसचतगृहों में पहग ाँ िाने का कायभ
केशवराव ने चकया। वे उन वसचतगृहों में गणपचत कश्र स्न्ापना कराके वहााँ चवद्यार्तन्यों तन्ा चोन्न-चोन्न
नेताओां के ोार्णों का गयोीन करते न्े। इन उन्सवों में महाराष्ट्रश्रय पद्धचत से गरतश्र होकर मांत्र
पगष्ट्पाांीचल के नवसर पर इतने ऊाँिे स्वर से मांत्रोरार चकया ीाता चक मानो गगन को हश्र काँपा दे ने का
प्रयत्न हो। कहते हैं इस समय ‘साम्राज्यां’, ‘वैराज्यां’ शब्दों को सगनकर पगचलसवालों को कगछ सांशय ोश्र
हग ग तन्ा चवद्यार्तन्यों को िौकश्र पर ोश्र ीाना पड़ा।

ीश्र केशवराव पदवश्र-परश्रक्षा के उपरान्त ोश्र कगछ चदनों कलकत्ता रहे । उस समय नागपगर के ीश्र
नानासाहण तेलांग ोश्र वहााँ उसश्र महाचवद्यालय में प्रवेश लेने के चलए गए न्े। डॉक्टर एक मद्रासश्र
ोोीनगृह से खाने का चडब्णा माँगाते न्े। उसमें णश्रस रोचटयााँ तन्ा उसश्र चहसाण से नन्य सण िश्रीें रहतश्र

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न्ीं। एक णार डॉक्टर के वहााँ रहते हश्र एक व्यचि ने उतने हश्र पैसे में इतना ोरा हग ग चडब्णा दे खकर
ोोीनगृह के सांिालक से चशकायत कश्र चक ‘‘उनको इतनश्र ोात-रोटश्र और साग क्यों दे ते हो?’’ उस
पर सांिालक ने कहा चक ‘‘डॉक्टर हे डगेवार को चीतना चडब्णा ोरकर मैं दे ता हू ाँ कगछ चदन उतना तगम
एक समय खाकर चदखाओ। तगम्हें ोश्र मैं उतना हश्र ोेीा क ाँगा। डॉक्टर हे डगेवार को ोश्र मैं पहले
न्ोड़ा-सा हश्र ोोीन ोेीता न्ा चकन्तग उन्होंने णताया चक इतने से मेरा कैसे काम िलेगा। मैंने उन्हें दो-
तश्रन चदन लगातार यहााँ गकर खाने को कहा और ीण दे ख चलया चक उनकश्र खगराक हश्र उतनश्र है तो
मैं णराणर उनको उसश्र चहसाण से चडब्णा ोरकर ोेीता हू ाँ ।’’ यह सगनकर उन सज्जन का मगाँह णन्द हो
गया। तेलांग का कन्न है चक चकसश्र-चकसश्र चदन उनके नकेले के चडब्णे में से तश्रन-तश्रन लोगों का पेट-
ोर ोोीन हो ीाता न्ा।

डॉक्टर हे डगेवार के नाम पर उनके ीाने के णाद ोश्र तेलांग उसश्र प्रकार ोरा हग ग चडब्णा माँगवाते रहे
तन्ा एक के स्न्ान पर तश्रन-तश्रन व्यचि ोोीन करते रहे । चकन्तग महश्रना समाप्त होने पर उन्होंने पैसे नहीं
पहग ाँ िाये। ोोीनगृह के माचलक को कगछ सांशय हो गया क्योंचक डॉक्टर हे डगेवार चनचित चदनाांक को
नवश्य पैसे पहग ाँ िाते न्े। उन्हें कोश्र एक चदन कश्र ोश्र दे र नहीं होतश्र न्श्र। डॉक्टर हे डगेवार के रहते पैसे-
ोगगतान कश्र तारश्रख टल ीाये यह हो नहीं सकता, इस प्रकार का उसे पूणभ चवश्वास न्ा। नतः उसने
ननगमान लगाया चक वे सम्ोवतः कलकत्ते के णाहर िले गये होंगे। एक चदन उसने प्रत्यक्ष वसचतगृह
गकर उनका पता लगाया तन्ा नपना ननगमान चणल्कगल सहश्र पाया। णस दूसरे चदन से चड़ब्णे में ोोीन
कश्र मात्रा कम हो गयश्र।

वर्भ में दो णार केशवराव छग ट्टश्र में नागपगर गते न्े। रास्ते में कगछ चदनों के चलए वे रामपायलश्र में नपने
िािा के यहााँ रुकते। वहााँ पहग ाँ िने के चलए चतरोडा स्टे शन पर उतरकर राचत्र में नकेले हश्र दस-पन्द्रन
मश्रल पैदल ीाना पड़ता न्ा। नागपगर में गने पर वे डॉ. मगी
ां े नन्वा ीश्र तात्याीश्र फडणवश्री के यहााँ
रहते न्े। छगट्टश्र के कगछ चदन वे नपने सहपाुश्र ीश्र यादवराव नणे के यहााँ यवतमाळ में ोश्र चणताते न्े।
इसश्र प्रकार क्रान्न्तकायभ में नपने सहकारश्र ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे से चमलने विा ोश्र ीाते न्े।

एक णार छगचट्टयों में वे यवतमाळ गये न्े। एक चदन केशवराव, गोचवन्दराव गवदे तन्ा यादवराव नणे
तश्रनों हश्र चसचवल लाइन्स के मागभ पर घूमने, के चलए चनकले। उन्हें सामने से नांग्रेी चीला-नचिकारश्र
गता हग ग चदखा। उसके सान् सरकारश्र डॉक्टर तन्ा एक नन्य नचिकारश्र ोश्र न्ा। उन चदनों नांग्री

नचिकाचरयों कश्र लोगों के मन पर णहग त िाक णैुश्र हग ई न्श्र तन्ा नपने णड़प्पन कश्र ऐांु में मान-सम्मान
प्राप्त करने कश्र उनकश्र उद्दण्ड वृचत्त का ोश्र लोगों को चनत्य पचरिय न्ा। यचद वह सामने से गता हो तो
लोगों को नपने स्न्ान पर रुक ीाना िाचहए तन्ा गगीरते समय उसे नम्रता से सेल्यूट करना िाचहए,
यह उस समय का नचलचखत चनयम हश्र णन गया न्ा। डॉक्टर केशवराव इस उस स्न्ान के चलए नये हैं
ऐसा ीानकर उनके चमत्रों ने ीरा एक ओर हट ीाने तन्ा साहण के पास में गने पर सेल्यूट करने कश्र

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सूिना दश्र। परन्तग केशवराव ऐसे मदोन्मत्त के सम्मगख कोई झगकनेवाले न्ोड़े हश्र न्े? और न वे इस
प्रकार के प्रयोीनहश्रन चनयम को हश्र माननेवाले न्े। उन्होंने कहा ‘‘यह सावभीचनक रास्ता है , नतः मैं
ीैसा िल रहा हू ाँ सश्रिे वैसा हश्र िलता रहू ाँ गा।’’ इतने में वह चतगड्डा केशवराव के चनकट ग पहग ाँ िा।
केशवराव से नपेचक्षत सेल्यूट तो उन्हें चमला हश्र नहीं णन्ल्क उनके एक ओर हटने का कोई रां ग - ांग न
दे खकर वे तश्रनों खगद ीरा हटकर गगे िले गये। चकन्तग इस नपमान के िोंे को उनका मन सहन
नहीं कर पाया। पूछ
ाँ पर पााँव पड़ने पर ीैसे सााँप एकदम उलटता है ऐसे हश्र दस कदम गगे ीाकर वे
वापस गये तन्ा केशवराव को रोक कर उनसे पूछताछ कश्र। चीला-नचिकारश्र के प्रश्नों का केशवराव
ने शान्न्तपूवभक उत्तर चदया। नन्त में ‘‘सेल्यूट करने का चशष्टािार पता नहीं है क्या’’ यह प्रश्न पूछा गया।
इस पर ‘‘यह प्रश्न पूछना हश्र नचशष्टता है ’’ यह ोाव व्यि करते हग ए केशवराव ने कहा ‘‘यहााँ के
चशष्टािार से मगझे क्या मतलण? मैं तो प्रान्त कश्र राीिानश्र में रहनेवाला नागचरक हू ाँ तन्ा वहााँ ऐसश्र कोई
प्रन्ा चशष्टािार के नन्तगभत नहीं गतश्र। चणना पचरिय के चकसश्र को ोश्र नमस्कार करना, यह चकस दे श
का चशष्टािार हो सकता है ?’’ चनोभयता के सान् यह णात करते हग ए केशवराव के दोनों हान् नपने कोट
कश्र ीेण में न्े। नतः सरकारश्र डॉक्टर पेड्रो ने केशवराव को ीरा समझाते हग ए ीेण में से णाहर हान्
चनकालने हो कहा तन्ा सलाह दश्र चक सेल्यूट करना चशष्टािार प्रतश्रत न होता हो तो ोश्र कम-से-का
गगे झगड़ा टालने के चलए नोश्र सेल्यूट कर दे ना िाचहए। केशवराव ने मगस्कराते हग ए कहा ‘‘इस
सूिना के चलए मैं गपका गोारश्र हू ाँ ’’ तन्ा मगह
ाँ मोड़कर गगे िलने लगे। इस घटना के णाद वहााँ
सरकारश्रवगभ में कगछ चदन णड़श्र खलणलश्र मिश्र। नागपगर वापस गने पर डॉ. मगांीे को ीण इस घटना का
समािार चमला तो उन्होंने ‘‘णहग त नच्छा चकया’’ कहकर उनकश्र पश्रु ुोंकश्र।

1914 के ीून मास में एल.एम.एण्ड एस. कश्र परश्रक्षा के पहले वे कगछ काल के चलए नागपगर गये न्े।
उसश्र समय चदनाांक 17 ीून को माांडले ीेल से लोकमान्य चतलक के छूटने का समािार प्राप्त हग ग।
नागपगर में यह वृत्त चदनाांक 18 ीून को चमला। साुश्र के नन्दर पहग ाँ िे हग ए लोकमान्य चतलक ीैसे नग्रणश्र
नेता माांडले के नस्वास्र्थयकर कारागृह से छः वर्भ का दे श-चनकाला समाप्त करके लौट रहे हैं यह
ीानकर सम्पूणभ दे श में एक हर्भ कश्र लहर दौड़ गयश्र। चदनाांक 18 को गनन्दोत्सव के चनचमत्त केशवराव
ने स्वतःप्रेरणा से डॉ. मगांीे के घर पर दश्रपमाचलका मनायश्र। डॉ. पाराशर के स्मरण के ननगसार केशवराव
लोकमान्य कश्र सीा होने के चदन से उनके छू टने तक णराणर एकादशश्र का व्रत रखते न्े तन्ा उनकश्र
दे खादे खश्र पांीाणश्र वसचतगृह को कई नन्य छात्र ोश्र व्रत रखने लगे न्े। लोकमान्य के चलए हृदय में यह
नगाि ीद्धा यचद उनकश्र मगचि के पवभ के नवसर पर नसांख्य दश्रपमाचलका के प में सोज्जवल होकर
प्रकट हग ई तो इसमें गियभ कौनसा?

इसश्र गनन्द में वे कलकत्ता गये तन्ा नन्न्तम परश्रक्षा में णैुे। उस परश्रक्षा का पचरणाम ननगकूल चनकला
तन्ा केशवराव एल.एम.एण्ड एस. कश्र पदवश्र लेकर डॉक्टर हो गये। चदनाांक 12 चसतम्णर 1914 कश्र

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दश्रक्षान्त समारोह हग ग। उसके णाद एक वर्भ के चलए चनयम के ननगसार चिचकत्सालय में वे तज्ञ डॉक्टरों
के मागभदशभन में रोग-चनदान, चिचकत्सा गचद कश्र व्यावहाचरक चशक्षा के चलए रहे । 1915 कश्र 9 ीगलाई
को उनका यह चशक्षणक्रम पूरा हग ग तन्ा उन्हें पदवश्र के पिात् का प्रत्यक्ष प्रायोचगक नभ्यासक्रम पूणभ
करने का प्रमाणपत्र ोश्र चमल गया।

यह प्रमाणपत्र चमलने के णाद उन्होंने णांकोक में एक प्रख्यात डॉक्टर के.एस.नय्यर के पास नौकरश्र के
चलए गवेदनपत्र ोेीा। इस स्न्ान पर तश्रन सौ रुपये माचसक वेतन तन्ा एक चवख्यात शल्यचिचकत्सक
के सान् काम करने का ननगोव दोनों हश्र चमलनेवाले न्े। परन्तग उन्होंने यह प्रान्भनापत्र नपने मन से
नहीं नचपतग प्रािायभ डॉ. मचलक के चवशेर् ननगरोि के कारण ोेीा न्ा। यह गवेदनपत्र ोेीते समय
उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘सत्य तो यह है चक मेरा इस प्रकार कश्र कोई नौकरश्र नन्वा व्यवसाय करने का
चविार नहीं है ।’’ योगायोग से 29 ीगलाई को हश्र उस गवेदन का उत्तर ग गया चक स्न्ान पहले हश्र
ोर गया है । डॉक्टर केशवराव को इससे नत्यन्त समािान हग ग क्योंचक डॉ. मचलक कश्र ोश्र णात रह
गयश्र और उनके नपने मन कश्र ोश्र।

इस प्रकार के राष्ट्रश्रय चवद्यालयों से पदवश्र लेकर णाहर चनकलनेवाले व्यचियों को चनरुपयोगश्र णताकर
इन लोकमान्य पदवश्रिरों को राीमान्यता चमले चणना हश्रन समझने का सरकारश्र प्रयत्न िालू हश्र न्ा। इस
हे तग सर पाडे लूचकस ने तो केन्न्द्रय चविानसोा में इस चवर्य का एक चविेयक ोश्र प्रस्तगत चकया न्ा।
उसके ननगसार इस प्रकार के चशक्षाप्राप्त व्यचियों को व्यवसाय का नचिकार तो चदया गया न्ा चकन्तग
यह शतभ न्श्र चक उनके द्वारा रोगश्र को चदये गये प्रमाणपत्र सरकार को मान्य नहीं होंगे। सरकार कश्र
नवहे लना करके ोश्र लोकीय पर िलने और णढनेवालश्र सांस्न्ाओां को रोकने के चलए हश्र इस प्रकार
के प्रचतणन्िों कश्र कल्पना कश्र गयश्र न्श्र। सरकार का यह दााँव चवफल करने कश्र दृचष्ट से डॉक्टर हे डगेवार
ने नये-पगराने सोश्र पदवश्रिरों के सहयोग से एक गन्दोलन समािारपत्रों में िलाया।

चवचोन्न प्रान्तों के समािारपत्रों में ‘णोगस मेचडकल चडग्रश्री चणल’ के चवरुद्ध कलकत्ता में होनेवालश्र
चनर्ेि-सोाओां के समािार छपने लगे तन्ा सरकार द्वारा इन राष्ट्रश्रय सांस्न्ाओां को नामशेर् करने के
दगष्ट हे तग कश्र कड़श्र गलोिना करनेवाले नग्रलेख ोश्र उन समािारपत्रों में प्रकाचशत हग ए। वस्तगन्स्न्चत तो
यह न्श्र चक ये सोाएाँ प्रत्यक्ष कहीं नहीं होतश्र न्ीं। चफर ोश्र इस न होनेवालश्र सोाओां के णनावटश्र वृत्तों
तन्ा ोार्णों का समािार ीण नखणार में सरकारश्र नचिकारश्र पढने लगे तो उनके सामने यह प्रश्न
उपन्स्न्त हो गया चक इन सोाओां का पता गगप्तिरों को कैसे नहीं लग पाया।

इस गन्दोलन को शग करने के पहले डॉक्टर हे डगेवार ने डॉ. गशगतोर् मगखीी से चमलकर उनको
नपना चविार णता चदया न्ा। उस समय उन्होंने इस गन्दोलन को पूरा समन्भन दे ने का गश्वासन दे ते
हग ए यह ोश्र सलाह दश्र न्श्र चक ‘‘ीो गन्दोलन करो उसका समािारपत्रों में नच्छश्र तरह प्रिार होना

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िाचहए।’’ डॉक्टर ने चवचोन्न समािारपत्रों के सम्पादकों से ोश्र ोेंट कश्र। ‘नमृत णाीार पचत्रका’ के
सगचवख्यात ीश्र मोतश्रलाल घोर् ने उन्हें पूणभ रुप से सहकायभ दे ने का चवश्वास चदलाया न्ा।

इस चविेयक के चवरुद्ध कलकत्ता में कगछ सोाओां का गयोीन ोश्र चकया गया। परन्तग चवशेर् णात तो
यह न्श्र चक कमरे में णैुे-णैुे हश्र कलकत्ते के चवचोन्न नये-नये स्न्ानों पर कन्ल्पत सोा होने के समािार
चलखे ीाने लगे और वे पत्रों में प्रकाचशत ोश्र होने लगे। इन सोाओां में नध्यक्ष और विा के नाते
चीनके ोार्ण छापे ीाते न्े उनसे पहले चमलकर णातिश्रत कर लश्र ीातश्र न्श्र। नतः ीण कोश्र कोई
गगप्तिर उस चवर्य में उनसे ीाकर पूछता तो वे यहश्र उत्तर दे ते चक ‘‘सोा णड़श्र ीोरदार हग ई तन्ा उसका
समािार छपा है । वह पूरा-पूरा सहश्र है ।’’ इस पर गगप्तिर-चवोाग णगरश्र तरह परे शान हो गया। इिर तो
उन्हें सोाओां का पता नहश्र िलता न्ा और उिर नचिकाचरयों कश्र ओर से उनके कान ऐांुे ीाते न्े।

कलकत्ते के इन पत्रों कश्र कतरन दूसरे प्रान्तों के समािारपत्रों के पास ोश्र ोेीश्र ीातश्र न्श्र तन्ा वे ोश्र
ीोरदार टश्रका करते हग ए नग्रलेख चलखते न्े।

सोश्र प्रान्तों में ीनमत तश्रव्र स्व प में व्यि करने कश्र इस योीना को नपनश्र कल्पना से सफल करने
के उपरान्त डॉक्टर केशवराव ने कलकत्ता में एक चवराट् सोा का गयोीन चकया। इस सोा में उस
काल के चवख्यात नेता ीश्र सगरेन्द्रनान् णनीी नध्यक्ष न्े। उस सोा में सम्मत प्रस्ताव पर लोकमत कश्र
पूणभतः छाप लग गयश्र।

इस प्रिार का पचरणाम यह हग ग चक सरकार ने इन राष्ट्रश्रय महाचवद्यालयों के पदवश्रघरों के चलए एक


परश्रक्षा लेने का चनणभय चकया। इस नाम-मात्र कश्र परश्रक्षा से इस पदवश्रघरों को राीमान्यता प्राप्त कर
व्यवसाय करने का रास्ता खगल गया। उस वर्भ यह परश्रक्षा 3 नवम्णर 1915 को होनेवालश्र न्श्र तन्ा
उनमें णैुने कश्र ननगमचत ोश्र डॉक्टर हे डगेवार के पास ग गयश्र न्श्र।

यह परश्रक्षा केवल चदखाऊ न्श्र चफर ोश्र डॉक्टर हे डगेवार ने कलकत्ता में रहकर ोश्र उसमें न णैुने का
चनणभय चलया। उनका कहना न्ा चक ‘‘हम लोग राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु के चवद्यान्ी हैं तन्ा उस चवद्यापश्रु ने
हमें पदवश्र दश्र है । चफर सरकार कश्र मान्यता कश्र गवश्यकता क्या है ?’’ पराये लोगों कश्र िाकरश्र कर
उनके तलगवे न िाटने पड़ें इसश्रचलए तो सरकारश्र चवद्यालय का णचहष्ट्कार कर हम लोगों ने यह मागभ
स्वश्रकार चकया है ।’’

डॉक्टर हे डगेवार लगोग पााँि वर्भ का चशक्षण समाप्त कर 1916 के प्रारम्ो में कलकत्ता से नागपगर
वापस गये। वे कलकत्ता गये तण ोश्र उनके मन का यहश्र चनिय न्ा चक ‘‘मैं सरकार के सामने नहीं
झगकूाँगा’’ और नण तो ‘‘सरकारश्र, मान्यता कश्र परश्रक्षा कश्र ओर मगड़कर ोश्र नहीं दे खग
ूाँ ा’’ इस प्रकार
कश्र स्वाचोमानश्र वृचत्त का झण्डा लहराते हग ए वे नागपगर लौटे । ीश्रवन में स्न्ैयभ लाने के चविार से उनके

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साचन्यों ने सरकार के सामने चसर झगकाकर व्यवसाय प्रारम्ो चकया होगा परन्तग उसश्र समय डॉक्टर
हे डगेवार नपनश्र ीश्रवनचनष्ठा को न्स्न्र कर लौट रहे न्े। पैसा या व्यचिगत प्रचतष्ठा के चलए उन्होंने चशक्षा
नहीं लश्र न्श्र। णाणू नरचवन्द घोर् ने नपने ऊपर लगाये गये नचोयोग के कारण राष्ट्रश्रय चवद्यापश्रु के
प्रािायभ पद से त्यागपत्र दे ने समय उनका उद्देश्य स्पष्ट चकया न्ा। उन्होंने कहा न्ा ‘‘गपको कगछ
पगस्तकश्रय ज्ञान दे कर पेट ोरने के चलए कोई व्यवसाय करने का मागभ खगल ीाये इस हे तग से हम लोग
इस कायभ में उद्यत नहीं हग ए। नचपतग गपमें से मातृोूचम के चलए काम करनेवाले तन्ा कष्ट झेलनेवाले
सगपगत्र खड़े हों यहश्र हमारश्र नपेक्षा है ।’’

पर राष्ट्रश्रय चवद्यालयों कश्र यह वास्तचवकता डॉक्टर हे डगेवार को छोड़कर चकतने पदवश्रिरों ने समझश्र
होगश्र? उनका णलोन्मगख ध्येयचनष्ठ मन केवल व्यचिगत ीश्रवन के सगख-दगःख का चविार छोड़कर ह्रत्तांत्रश्र
पर एक हश्र राग नलाप रहा न्ा।

दुुःख विघटता वदखे चतुर्ददक्

मन में चु भता है जो शल्य।

उसे वनकालें यत्न करें हम

इसमें ही जीिन साफल्य।।

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6. क्रान्न्तकारश्र गचतचवचियााँ

डॉक्टर केशवराव ीण नागपगर गये तो घर में उनके णड़े ोाई महादे व शास्त्रश्र रहते न्े। घर के एक ोाग
में कगछ चदन पूवभ से ीश्र वामनराव िमाचिकारश्र गकर रहे न्े। नतः घर कश्र टूट-फूट कश्र कगछ मरम्मत
हो गयश्र न्श्र। ीश्र वामनराव 1910 के उपरान्त ीण सवभप्रन्म रहने को गये तो उस समय मकान कश्र
ओर महादे व शास्त्रश्र के ध्यान ने दे ने के कारण उसकश्र नवस्न्ा णहग त हश्र चणगड़ गयश्र न्श्र। स्न्ान-स्न्ान
पर छत से पानश्र िूने लगा न्ा तन्ा कहीं-कहीं तो घास ोश्र उग गयश्र न्श्र। केशवराव डॉक्टर होकर यचद
व्यवसाय करने लगते तो उनके उग्रप्रकृचत णन्िग का मन शान्त होकर, उन्हें घर में रहने के चलए ननगकूल
वातावरण चमलता। परन्तग डॉक्टर को नागपगर में गये काफश्र चदन णश्रत गये चफर ोश्र व्यवसाय प्रारम्ो
करने का कोई रां ग ांग नहीं चदखा। उलटे ीश्र तात्याीश्र फडणवश्रस के दगमांचीले पर रहते हग ए वे
सावभीचनक कामों में हश्र नचिकाचिक उलझे रहते न्े। इस कारण उस समय तो दोनों ोाइयों के णश्रि
पटरश्र णैुना सम्ोव नहीं न्ा। पर इतना होने पर ोश्र डॉक्टर कोश्र-कोश्र घर ीाकर शास्त्रश्रीश्र से चमल
गते न्े। डॉक्टर के नागपगर गगमन के न्ोड़े हश्र चदन णाद वहााँ पगनः प्लेग फैल गया। पहले के समान
नण लोग प्लेग के चवर्य में नीानकार नहीं न्े। नतः उन्होंने फटाफट नपना घर छोड़कर शहर से
णाहर ीाकर झोंपचड़यााँ णनाकर रहना तन्ा प्लेग के टश्रके लेना प्रारम्ो कर चदया। इस समय डॉक्टर तन्ा
सश्रतारामीश्र दोनों हम्पयाडभ के पास झोंपड़श्र णनाकर रहने लगे। उन्होंने महादे व शास्त्रश्र से ोश्र वहााँ गकर
रहने का णारम्णार गग्रह चकया चकन्तग उनकश्र मस्तश्र कगछ ऐसश्र न्श्र चक उन्होंने ‘‘हमको साला प्लेग क्या
कर सकता है ’’ कहकर गने से इनकार कर चदया। पर यह हु नन्त में घातक ुहरा। कारण, न्ोड़े
हश्र चदनों में उन्हें ोश्र प्लेग ने िर दणाया तन्ा उसमें वे णि नहीं पाये। उनकश्र मृत्यग का लाो उुाकर
गसपास के कगछ िोर-उिोंे उनके घर के णासन-ोाण्डे तन्ा नन्य वस्तगओां को ोश्र पार करने से नहीं
िूके।

इस दगघभटना के उपरान्त महामारश्र शान्त होने पर 1917 के प्रारम्ो में सश्रतारामीश्र तन्ा केशवराव नपने
घर में गकर रहने लगे। इन्दौर से चशक्षा लेकर गने के णाद से नोश्र तक सश्रतारामीश्र फडणवश्रस के
यहााँ रहते न्े तन्ा पौरोचहत्य करते न्े। नण दोनों ोाई एक सान् ग गये न्े पर दोनों कश्र रश्रचत नलग-
नलग न्श्र। सश्रतारामीश्र पगरोचहताई के कारण चनमांत्रण चमलने से ोोीन के चलए नक्सर णाहर हश्र ीाते
न्े परन्तग डॉक्टर मन के मगताचणक कोश्र घर में तो कोश्र चमत्रों के यहााँ ोोीन करते न्े। उन चदनों उनके
चमत्र व्यवसाय प्रारम्ो करने के चलए णराणर उनके पश्रछे पड़े रहते न्े। ‘‘व्यवसाय शग करो, हम लोग
स्न्ान दे खकर और्िालय कश्र व्यवस्न्ा कर दे ते हैं ’’, सगणह-शाम, उुते-णैुते यहश्र राग चनरन्तर सगनने
को चमलता। इस पर डॉक्टर शान्त प से यहश्र उत्तर दे ते न्े चक ‘‘न्ोड़े चदनों में दे खा ीायेगा। नोश्र
ील्दश्र क्या है ?’’ पर कगछ न करते हग ए ोश्र कोश्र-कोश्र तो चवर्य केवल मीाक में हश्र टाल दे ते न्े। इन
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चदनों में उनके पास दस-पााँि और्चियााँ, एक स्टे न्ॉस्कोप, छोटा-सा तराीू तन्ा कगछ िगनश्र हग ई डॉक्टरश्र
पगस्तकें ीमा हो गयश्र न्ीं। चमत्रों में से कोश्र चकसश्र को गवश्यकता हग ई तो वे दवा ोश्र दे ते न्े। चकन्तग
इतने मात्र से यह नहीं कहा ीा सकता चक उन्होंने व्यवसाय िला रखा न्ा। व्यवसाय का चविार तो
उनके मन में न्ा हश्र नहीं।

चीन चदनों वे डॉक्टरश्र परश्रक्षा पास करके गये न्े उन चदनों इस िन्िे कश्र णड़श्र मााँग न्श्र। उस समय के
ीश्र कृ. दा. वह्राडपाण्डे के एक लेख से पता िलता है चक उन चदनों सम्पूणभ मध्यप्रान्त और णरार में
चनीश्र डॉक्टरश्र का व्यवसाय करनेवालों कश्र सांख्या पिहत्तर से नचिक नहीं न्श्र। चीस प्रान्त में गी
हीारों कश्र सांख्या में डॉक्टर हैं वहााँ 1917 में केवल पिहतर लोग हश्र यह व्यवसाय कर रहे न्े। इस
कारण डॉक्टर कश्र उन चदनों स्वाोाचवक रश्रचत से काफश्र प्रचतष्ठा न्श्र तन्ा डॉक्टर केशवराव िाहते तो
नच्छश्र कमाई कर सकते न्े। एक ओर व्यवसाय प्रारम्ो करने का गग्रह िल रहा न्ा तो दूसरश्र ओर
पााँि-पााँि हीार रुपये दहे ी में चदलानेवाला चववाह का प्रस्ताव लेकर ोश्र लोग ग रहे न्े। कोई िगपके
से नपनश्र कन्या कश्र ीन्मपत्रश्र उनके पास ोेीकर उनकश्र प्रचतचक्रया ीानने का प्रयत्न करता, तो कोई
इिर-उिर पचरचितों कश्र चसफाचरश पहग ाँ िाकर नपनश्र णात का वीन णढाने कश्र कोचशश करता। चकन्तग
इन कगण्डचलयों के नवग्रह में वे फाँस नहीं पाये। वे सदै व एक हश्र उत्तर दे ते न्े चक ‘‘नोश्र णड़े ोाई का
चववाह होना णाकश्र है । वह हो गया चक चविार क ाँगा।’’ पर यह तरकश्रण ोश्र गगे णहग त चदनों नहीं
िल पायश्र। क्योंचक 1917 में सश्रतारामीश्र का चववाह हो गया तन्ा हे डगेवार-घराने में गृहलक्ष्मश्रने प्रवेश
चकया। सूना घर णस गया। क्ष वातावरण में सरसता ग गयश्र। िारों ओर माांगल्य का सांिार होने
लगा। पर डॉक्टर कश्र तो ऐसश्र न्स्न्चत हो गयश्र चक मानो प्रािश्रर कश्र ओट से प्रत्यक्ष रण के मैदान पर
गकर खड़े हो गये हों।

इसके उपरान्त कगण्डचलयों तन्ा चववाह-प्रस्तावों कश्र झांझट से ीान णिाने के चलए वे नपने पास
गनेवाले सज्जनों को गणाीश्र से चमलने के चलए रामपायलश्र ीाने को कहने लगे। चववाहयोग्य कन्या
ू ने के चलए क्या नहीं करता? इसचलए ऐसे लोग रामपायलश्र के ोश्र िोंर काटने लगे।
का चपता वर ाँढ
लोगों का यह गवागमन दे खकर नन्त में गणाीश्र ने डॉक्टर को पत्र चलखा तन्ा पूछा चक ‘‘गपका
चववाह के सम्णन्ि में क्या चविार है , यह एक णार स्पष्ट प से णता दो।’’ इस पर उन्होंने िािाीश्र को
चलख ोेीा ‘‘नचववाचहत रहकर ीन्म-ोर राष्ट्रकायभ करने का मैंने चनिय चकया है । दे श-कायभ करते
हग ए कोश्र ोश्र ीश्रवन पर सांकट ग सकता है , यह ीानते हग ए ोश्र एक लड़कश्र के ीश्रवन का नाश करने
में क्या नन्भ है ?’’ इसके उपरान्त चववाह का पचरच्छे द यहीं समाप्त हो गया।

ोाई के चववाह से घर नये चसरे से णस गया न्ा। नतः नण डॉक्टर कश्र ोोीन सम्णन्िश्र नव्यवस्न्ा
कगछ नांशों में कम हो गयश्र। महादे व शास्त्रश्र के ीमाने के नखाड़े कश्र दशा चणगड़ ीाने के कारण उसकश्र
सािन-सामग्रश्र दूसरे नखाड़ों को दे दश्र गयश्र। मलखम्ो ‘ोारत व्यायामशाला’ को दे चदया। करे ल

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डॉक्टर ने नपने चलए रख चलये। नखाड़ा िाहे णन्द हो गया हो परन्तग घर में व्यायाम णराणर िलता
न्ा। कलकत्ता से वापस गने के णाद ोश्र कोश्र-कोश्र दोनों ोाई ोागते हग ए कामुश्र तक ीाते न्े तन्ा
वहााँ कन्हान में स्नान करके पूीा के चलए फूल लेकर लौटते न्े।

यगद्धकाल के नन्त तक डॉक्टर सम्पूणभ नगर में घूम-घूमकर लोगों से चमलते रहते न्े। उन चदनों 1908
से उनके स्नेहश्र ीश्र ोाऊीश्र कावरे के नेतृत्व में मध्यप्रान्त में ीो क्रान्न्तकाचरयों कश्र हलिलें िल रहश्र
न्ीं डॉक्टर उनकश्र योीना णनाने और उसे कायान्न्वत करने के चलए प्रयत्नशश्रल रहते न्े। वे चोन्न-चोन्न
लोगों से ीाकर चमलते तन्ा उनको सौंपा हग ग काम चकतने नांशों में पूणभ हग ग है इसकश्र ीानकारश्र
लेकर गगे कश्र योीना णताकर गते न्े। एक त्यागश्र तन्ा शश्रलवान् तरुण के नाते सोश्र डॉक्टर का
गदर करते न्े और इसचलए ीण ोश्र वे चकसश्र के पास ीाते लोग नत्यन्त प्रेम और ीद्धा के सान्
उनसे उनके काम के सम्णन्ि में णातिश्रत करते।

1916 से गगे दो-तश्रन वर्भ मध्यप्रान्त के क्रान्न्तकारश्र दल कश्र ीो कगछ गचतचवचियााँ न्ीं उनकश्र कगछ
चणखरश्र हग ई स्मृचतयााँ नोश्र ोश्र सगनने को चमलतश्र हैं । इनसे एक णात स्पष्ट हो ीातश्र है चक इन योीनाओां
में ोाऊीश्र कावरे तन्ा डॉक्टर का प्रमगख हान् रहता न्ा। परन्तग प्रत्यक्ष चकसश्र योीना को कायान्न्वत
करने का दाचयत्व ोाऊीश्र ने हश्र स्वश्रकार चकया न्ा। योीना तन्ा मागभदशभन डॉक्टर कश्र ओर तन्ा उसे
कायभ प में पचरणत करने कश्र चीम्मेदारश्र ोाऊीश्र कश्र ओर, इस प्रकार का ीम-चवोाग दोनों ने कर
चलया न्ा, ऐसा चदखता है । इसका कारण स्पष्ट है । डॉक्टर नागपगर, कलकत्ता, तन्ा पांीाण के
क्रान्न्तकाचरयों से पचरचित एवां सम्णन्न्ित न्े। नतः नन्य लोगों का सहकायभ प्राप्त करने तन्ा गपस
कश्र कड़श्र के प में वे हश्र उपयोगश्र हो सकते न्े। इसके नचतचरि 1908-9 से हश्र सरकारश्र गगप्तिर
डॉक्टर हे डगेवार के पश्रछे लगे न्े। नतः चकसश्र को ोश्र सांशय न हो सके तन्ा णाहर से कायदे कश्र
मयादाओां में चदखे इसश्र प्रकार के काम करना हश्र सम्पूणभ क्रान्न्तकायभ कश्र सगरक्षा तन्ा सफलता कश्र दृचष्ट
से नचिक सगचविाीनक तन्ा यगचियगि न्ा। ीश्र ोाऊीश्र कावरे कश्र णात कगछ चोन्न न्श्र। मैचरक तक
चशक्षा लेकर तन्ा कगछ वैद्यकश्रय ग्रन्न्ों का नध्ययन कर उनके गिार पर व्यवसाय करनेवाले वे एक
गृहस्न् न्े। उनका णाह्य प नत्यन्त सादा न्ा चकन्तग नन्तर में ‘नाना कलाओां’ का चनवास न्ा। वे
डॉक्टर से दो वर्भ णड़े तन्ा शरश्रर से हट्टे -कट्टे न्े। उग्र तन्ा ककचित् कपगल छटा चलये हग ए तेी दृचष्ट तन्ा
झब्णेदार मूाँछें उनकश्र चवशेर्ता न्श्र। उनका चववाह हो गया न्ा। चकन्तग पत्नश्र कश्र मृत्यग हो गयश्र न्श्र। नतः
‘नकेले प्राण, सदा कल्याण’ इस उचि के ननगसार वे चणलकगल चनचिन्त तन्ा चनोभय न्े। चकसश्र ोश्र
गपचत्त में उनके मन का सन्तगलन तन्ा चनिय डगमगा ीाये यह कल्पना ोश्र नहीं कश्र ीा सकतश्र न्श्र।
नपने दल के लोगों पर उनका ोारश्र प्रोाव न्ा। उसके पश्रछे कुोर ननगशासन के सान् प्रेमपूणभ हृदय
कश्र सरसता ोश्र न्श्र। उनके कहे ननगसार िलने में कृतान्भता का ननगोव करनेवाले उनके एक सहकारश्र
ने पूवभस्मृचत णाताते हग ए एक णार कहा चक ‘‘ोाऊीश्र का व्यचित्व ऐसा न्ा चक उन्हें मााँ कहें या चपता
कहें , ोाई कहें या चमत्र कहें , यह समझ में नहीं गता न्ा। कारण, इन सणका प्रेम वहााँ इकट्ठा चमलता

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न्ा।’’ इस वाक्य को कहते हग ए उस सहकारश्र कश्र डणडणायश्र हग ई गाँखें हश्र इस उचि के पश्रछे कश्र यन्ान्भता
को प्रकट कर रहश्र न्ीं।

ोाऊीश्र कावरे तन्ा डॉक्टर कश्र चमत्रता नपूवभ न्श्र। ीैसे दो ओुों से एक हश्र शब्द चनकलता है , दो
गाँखों से एख हश्र दृश्य चदखता है , दो कानों से एक हश्र णात सगनायश्र दे तश्र है तन्ा दो हान्ों से एक हश्र तालश्र
णीतश्र हैं वैसे हश्र उन दोनों के णश्रि पूणभ एकत्व कश्र ननगोूचत होतश्र न्श्र। हााँ, डॉक्टर कश्र नपेक्षा नचिक
ोावनाशश्रल होने के कारण ोाऊीश्र रिमय क्रान्न्त के नचतचरि नन्य मागों से ीानेवालों का साचोनय
उपहास करने में णड़े कगशल न्े। नरहचर सगनार के समान उन्हें दे शोचि के रि क्रान्न्तमय प से हश्र
ोचि न्श्र। उनका ध्येय-दे वता पाण्डगरांग के समान कमर पर हान् रखकर खड़ा होनेवाला नहीं न्ा नचपतग
उसका प चनत्य कोदण्डिारश्र राम का हश्र न्ा। डॉक्टर में चविारों कश्र शगद्धता और व्यापकता तन्ा
उसके सान् हश्र ोावना को सांयम कश्र लगाम लगाकर योग्य मागभ से िलाने कश्र पात्रता तन्ा कगशलता
नचिक न्श्र। इसचलए ोाऊीश्र के णोलने में नन्य मागों से ीानेवालों के सम्णन्ि में ीैसा कटग उपहास
चदखता न्ा वैसा ननगोव डॉक्टर के व्यवहार में न गते हग ए वहााँ सचहष्ट्णगता कश्र चस्नग्िता चमलतश्र न्श्र।
परन्तग स्वोाव के ये दो चोन्न प परस्पर उत्कट प्रेम तन्ा दे शोचिपूणभ नन्तःकरण होने के कारण एक
हश्र िौखट में णैुकर एक दूसरे के चलए पूरक हो गये न्े।

ोाऊीश्र डॉ. मगांीे के घर के पास हश्र रहते न्े। वहााँ डॉक्टर का णराणर गना-ीाना रहता न्ा। उसश्र प्रकार
ोारश्र पग्गड़ णााँिे तन्ा णड़श्र-णड़श्र मूाँछवाले ोाऊीश्र डॉक्टर के यहााँ ोश्र गते न्े तन्ा दोनों के णश्रि
चविार-चवचनमय होता रहता न्ा। इन दोनों के नचतचरि यचद कोई नन्य णैुक में रहा तो चफर नागपगर
कश्र रश्रचत के ननगसार नचनणभन्ि गप्पें तन्ा हाँ सश्र-मीाक शग हो ीाता न्ा। णश्रि-णश्रि में हाँ सश्र के फव्वारे
ोश्र छूटते रहते न्े। इस हाँ सश्र-खगशश्र के तन्ा मनोचवनोद के वातावरण से चकसश्र को यह शांका ोश्र नहीं हो
सकतश्र न्श्र चक वहााँ गोला-णा द कश्र ोश्र कोश्र ििा होतश्र होगश्र। पास-पड़ोस के लोग तो यहश्र गियभ
करते रहते न्े चक इन्हें कोई दूसरे काम हैं या नहीं? परन्तग इस प्रकार कश्र णैुकों में से हश्र सशस्त्र चवद्रोह
कश्र सामूचहक चसद्धता करने के चविार गगे िल रहे न्े। मनगष्ट्य, पैसा, तन्ा शस्त्र तश्रनों हश्र सािनों को
इकट्ठा करने का काम प्रारम्ो न्ा। इस क्रान्न्तकारश्र दल में नये-नये तरुणों कश्र ोती में सगचविा कश्र दृचष्ट
से नण्णा खोत ने ‘नागपगर व्यायामशाला’ कश्र स्न्ापना कश्र। इसश्र प्रकार विा और नागपगर दोनों स्न्ानों
पर वािनालय प्रारम्ो चकये गये। मध्यप्रान्त तन्ा णरार में दल का ीाल फैलाने का प्रयास िल रहा न्ा
तन्ा उसमें णहग त-कगछ सफलता ोश्र चमल रहश्र न्श्र।

ीश्र ोाऊीश्र कावरे और डॉक्टर का प्रान्त में मगख्य-मगख्य स्न्ानों पर योीनानगसार दौरा हग ग। चकसश्र के
चववाह के प्रसांग पर, तो कहीं हरडा के चनचमत्त, ीैसा मौका चमलता, वे वहााँ ीाने का कायभक्रम णनाते
न्े। पर उनका नन्द नश्र उद्देश्य तो दूसरा हश्र रहता न्ा। णाहर के लोगों को पता न िले इसचलए ये
चनचमत्त ाँढ
ू े ीाते न्े। नागपगर तन्ा णरार ोाग में क्रान्न्तकारश्र दल में सन्म्मचलत होनेवाले तन्ा प्रत्यक्ष-

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नप्रत्यक्ष इस काम में गर्तन्क सहायता करनेवाले मालगगीारों का ोश्र एक वगभ ोाऊीश्र तन्ा डॉक्टर
ने खड़ा चकया न्ा। इन लोगों कश्र ओर हर णार नये-नये गााँवों में चमष्ठान-ोोीन के कायभक्रम गयोचीत
होते न्े। उस समय एकत्र व्यचियों का णाह्य उद्देश्य तो सैर-सपाटा हश्र रहता न्ा। पर इन्हीं णैुकों में
चपस्तौल तन्ा गोला-णा द को गगप्त प से खरश्रदने तन्ा नन्य कामों के चलए लगनेवाला सहस्रों रुपया
इकट्ठा चकया ीाता न्ा। ऐसश्र एक-एक णैुक में से पााँि-पााँि, दस-दस हीार रुपया लेकर डॉक्टर तन्ा
कावरे लौटते न्े। इस प्रकार कश्र णैुकों को तत्कालश्रन राीाओां कश्र सोा के चमर् से मीाक में
‘नरे न्द्रमण्डल’ के नाम से पगकारा ीाता न्ा। इन णैुकों में िोटश्रवाडे के ीश्र समश्रमगल्ला खााँ ोश्र िोतश्र
पहनकर तन्ा चतलक लगाकर सणके सान् पांचि में णैुते न्े।

उपयगभि पद्धचत से सांग्रहश्रत िन से स्न्ान-स्न्ान के तरुणों को चपस्तौल तन्ा नन्य शस्त्रास्त्र खरश्रदकर
चदये गये। इसके चलए कलकत्ता, ोागानगर)है दराणाद) और गोग गचद स्न्ानों पर लोग ोेीकर तन्ा
ीगगाड़ णैुाकर शस्त्र प्राप्त करने पड़ते न्े। नन्य प्रान्तों के क्रान्न्तकाचरयों के चणगड़े हग ए चपस्तौलों को
साफ करके दगरुस्त करने का काम ोश्र डॉक्टर के एक चमत्र ीश्र दादासाहण णख्शश्र सफाई से करते न्े।
ीश्र णख्शश्र एक नच्छे तन्त्रज्ञ हैं तन्ा उन्हें 1914-15 में डॉ. सावरकर तन्ा डॉ. हे डगेवार द्वारा लायश्र हग ई
चपस्तौलों कश्र याद नोश्र ोश्र ताीश्र है ।

इसश्र प्रकार केशवराव ने णांगाल तन्ा पांीाण के क्रान्न्तकाचरयों से सम्पकभ स्न्ाचपत कर विा तन्ा नागपगर
चीलों के लगोग णश्रस तरुणों का एक पन्क उत्तर कश्र ओर ोेी चदया। इस पन्क का नेतृत्व विा के
एक नत्यन्त हश्र साहसश्र तन्ा कट्टर क्रान्न्तकारक ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे को सौंपा गया। गांगाप्रसाद पाण्डे
ने राीस्न्ान के चोन्न-चोन्न राज्यों कश्र ननगकूल न्स्न्चत का चविार कर इन लोगों कश्र नलग-नलग
चरयासतों में चनयगचि कश्र तन्ा चवद्रोह के सम्पूणभ सूत्रों का सांिालन करने कश्र दृचष्ट से नीमेंर को केन्द्र
णनाया। इस कायभ में नीमेर के प्रचसद्ध नेता ीश्र िााँदकरण शारदा कश्र ोश्र गांगाप्रसाद को सहायता चमलश्र
न्श्र। इस पन्क कश्र गर्तन्क व्यवस्न्ा करने तन्ा कगशल, सीग एवां ितगर तरुणों को वहााँ कश्र व्यवस्न्ा
का काम डॉक्टर ने नागपगर से हश्र िलाया।

महायगद्ध प्रारम्ो होने पर चोन्न-चोन्न मोिों को सम्हालने के चलए नांग्रेीों को णहग त-सश्र सेना ोारत से
णाहर ोेीनश्र पड़श्र। चकन्तग इस समय ीनता के ऊपर नपनश्र िाक ीमश्र रहे इस उद्देश्य से ीो न्ोड़श्र-सश्र
सेना यहााँ णिश्र न्श्र उसकश्र हश्र टगकचड़यों का सांिालन करते हग ए गााँव-गााँव में प्रदशभन चकया ीाता न्ा।
नवि के नवाणों के वांशी ोूखों मरते हग ए ोश्र ीैसे मूाँछ पर घश्र िगपड़कर नपनश्र रईसश्र का रोण ीमाने
का प्रयत्न करते रहते हैं वैसा हश्र यह प्रयत्न न्ा। इस वस्तगन्स्न्चत का ज्ञान चवद्रोह कश्र तैयारश्र करनेवाले
क्रान्न्तकाचरयों को न्ा। केशवराव को लगने लगा चक दे श में चवदे शश्र सत्ता के तत्कालश्रन टगटपूचाँ ीये
सामर्थयभ का लाो उुाकर दे श के सोश्र प्रमगख नेताओां को ‘‘चहन्दगस्न्ान स्वतांत्र हो गया’’ यह घोर्णा
कर दे नश्र िाचहए तन्ा ‘स्वतांत्रता का घोर्णापत्र’ एक हश्र समय चवचोन्न दे शों में ोश्र प्रकचशत होना

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िाचहए। उन्होंने नपनश्र इस कल्पना को डॉ. मगी
ां े के सम्मगख रखा। चकन्तग उन्हें वह मान्य नहीं हग ई। ऐसा
चदखता है चक उन्होंने इस सम्णन्ि में नन्य कगछ नेताओां से ोश्र णात कश्र चकन्तग कहीं से समन्भन नहीं
चमला।

इसश्र णश्रि डॉक्टर के मन में एक णार पूना ीाकर लोकमान्य के दशभन करने कश्र इच्छा हग ई। इसके पश्रछे
उनका यह ोश्र उद्देश्य न्ा चक वतभमान पचरन्स्न्चत के सम्णन्ि में लोकमान्य का चवश्लेर्ण तन्ा चविार
सगनने का ोश्र नवसर चमल ीायेगा। डॉ. मगी
ां े से पचरियपत्र लेकर वे पूना गये तन्ा लोकमान्य से ोेंट
कश्र। डॉ. मगांीे के पत्र के कारण ोेंट के णाद लोकमान्य ने उन्हें णाहर कहीं न ुहरने दे ते हग ए नपने यहााँ
हश्र रहने का गग्रह चकया। डॉक्टर दो चदन उनके घर रहे । लोकमान्य नत्यन्त व्यस्त होते हग ए ोश्र स्वयां
समय चनकालकर दे खोाल करते न्े चक डॉक्टर के ीलपान तन्ा सोने गचद कश्र ुश्रक व्यवस्न्ा हग ई है
या नहीं। इस प्रकार के गचतर्थय के कारण डॉक्टर को वहााँ रहने में सांकोि लगने लगा। इसचलए काम
पूरा होते हश्र उन्होंने चशवनेरश्र ीाने का चविार प्रकट चकया तन्ा इस चनचमत्त को लेकर गायकवाड-वाडा
से णाहर गये। इस चनवास के समय उन्होंने यगद्ध-पचरन्स्न्चत तन्ा नागपगर-णरार क्षेत्र में होनेवाले प्रयत्नों
के सम्णन्ि में लोकमान्य से चविार-चवमशभ चकया न्ा।

लोकमान्य से ोेंट करने के उपरान्त डॉक्टर चशवनेरश्र गये तन्ा चशव छत्रपचत कश्र णाल-लश्रला से
पचवत्रश्रकृत वातावरण में राष्ट्रसेवा के नपने सांकल्प को और ोश्र प्रदश्रप्त करते हग ए नागपगर लौटे । उस
समय चशवाीश्र के ीन्म-स्न्ान के पास हश्र खड़श्र मन्स्ीद तन्ा दरगाह उन्हें दे खने को चमलश्र। इस चवसांगचत
को दे खकर उन्हें णड़श्र पश्रड़ा हग ई। उनके मन कश्र यह व्यन्ा ीण ोश्र चशवनेरश्र का उल्लेख होता न्ा तो प्रकट
हग ए चणना नहीं रहतश्र न्श्र।

नागपगर में एकत्र कश्र हग ई सािन-सामग्रश्र पांीाण और राीस्न्ान ोेीश्र ीातश्र न्श्र। एक समय ोगसावळ
स्टे शन पर यह सामान ले ीानेवाला एक दल दगदैव से पकड़ा गया। इस घटना से सतकभ होकर गगे
यह काम स्त्रश्रवेशिारश्र तरुणों के द्वारा कराने कश्र योीना कश्र गयश्र। 1917 में ऐसे तरुणों को चवशेर् प
से िगना गया ीो पूरश्र तरह स्त्रश्र का वेश िारण कर सकें। उसश्र प्रकार नागपगर में कगछ फगतीले, उत्साहश्र
तन्ा ितगर तरुणों को लाकर ीश्र नानासाहण टालाटगले तन्ा ोाऊसाहण टालाटगले के मागभदशभन में
चनशानेणाीश्र कश्र ोश्र चशक्षा दश्र गयश्र। इस वगभ में डॉक्टर ने सणको नच्छश्र तरह से णताया न्ा चक
क्रान्न्तकायभ में ीगटे हग ए व्यचियों को चकस प्रकार साविानश्र णरतनश्र िाचहए। इसश्र वगभ के चनचमत्त से
डॉक्टर तन्ा विा के ीश्र हचर कृष्ट्ण)गप्पाीश्र) ीोशश्र का चनकट का सम्णन्ि गया और वह गगे
िलकर प्रगाढ मैत्रश्र के प में चवकचसत हो गया। क्रान्न्त के काम में नये ोती होनेवालों कश्र परश्रक्षा
करके प्रचतज्ञा दे ने का काम डॉक्टर तन्ा ोाऊीश्र कावरे करते न्े। यह चदक्षा छत्रपचत चशवाीश्र महाराी
तन्ा समन्भ रामदास स्वामश्र कश्र प्रचतमा के सम्मगख दश्र ीातश्र न्श्र।

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तरुणों कश्र परश्रक्षा कश्र एक पद्धचत का पता िला है । एक चदन ोाऊीश्र कावरे तश्रन तरुणों को लेकर
नागगपर से पााँि-छः मश्रल दूर इन्दोरा गााँव में राीा ोोंसले के कगाँए के पास गये तन्ा उन्हें उसमें कूदने
का गदे श चदया। उस कगएाँ कश्र गहराई िालश्रस फश्रट से ोश्र नचिक न्श्र। इस कारण दो तरुण तो सहम
गये चकन्तग तश्रसरे ने गदे श के ननगसार णेखटके छलााँग लगा दश्र। यह णालवश्रर णाणूराव हरकरे न्े।
णाणूराव के पश्रछे हश्र ोाऊीश्र ोश्र कूद पड़े तन्ा उसको ऊपर ले गये। इसके णाद उन्हें क्रान्न्तकारश्र दल
में प्रवेश कश्र ननगमचत दे दश्र गयश्र।

इस प्रकार परखे हग ए तन्ा कसौटश्र पर खरे उतरनेवाले यगवकों कश्र णैुकें नागपगर में णारहद्वारश्र,
तगलसश्रणाग, सोनेगााँव के मन्न्दर, कनभलणाग, इन्दोरा के मन्न्दर तन्ा मोचहतेणाड़े में नदल-णदलकर
होतश्र न्ीं। णैुक समाप्त होने पर नगलश्र णैुक का णदला हग ग स्न्ान तन्ा समय और चदन णता चदया
ीाता न्ा। मेचीनश्र, ीोन गफ गकभ, णांगालश्र क्रान्न्तकाचरयों कश्र वश्रर-कन्ाएाँ, नलश्रपगर तन्ा
माचणकतत्ला णमकाण्ड का मगकदमा, तन्ा ‘टू ब्यूटश्रज़’ के गवरण में चछपश्र हग ई णै. सावरकर कश्र
पगस्तक ‘इन्ण्डयन वार गफ इन्ण्डपेण्डेन्स’ गचद साचहत्य उन्हें पढने के चलए चदया ीाता न्ा।

इस समय मध्यप्रदे श के क्रान्न्तकरश्र दल में लगोग डेढ सौ तरुण सन्म्मचलत हो गये न्े। चकन्तग पहले
से हश्र साविानश्र रखने के कारण से तैयारश्र का कहीं ोश्र सगराग नहीं लग पाया। एकाि व्यचि का कोश्र
पता िल ोश्र गया तो उसके कारण एक-एक कड़श्र ीोड़ते हग ए सम्पूणभ योीना का हश्र ोण्डाफोड़ न हो
ीाये इसका ोश्र चविार चकया गया न्ा। इसके चलए प्रत्येक व्यचि को पूरश्र तरह परखने, उसकश्र चनचित
कायभ पर योीना करने तन्ा उसमें व्यन्भ कश्र चीज्ञासा एवां कगतूहल न उत्पन्न होने दे ने गचद सोश्र
गवश्यक णातों में पयाप्त सतकभता णरतश्र गयश्र न्श्र। सन्दे शपत्र डाक से न ोेीते हग ए व्यचि के द्वारा हश्र
ोेीा ीाता न्ा तन्ा गशय को साांकेचतक ोार्ा, उपनाम गचद का व्यवहार कर पूणभतः गगप्त रखा ीाता
न्ा।

नागपगर में उपाध्ये के णाड़े में ीश्र नानासाहण तेलांग तन्ा उनके छः-सात महाचवद्यालयश्रन चमत्र इकट्ठा
रहते न्े। वे सोश्र इस क्रान्न्तकारश्र दल में सन्म्मचलत न्े तन्ा उनकश्र पगस्तकों के णक्से हश्र कगछ चदनों
डॉक्टर कश्र चपस्तौल तन्ा कारतूसो को चछपाने के काम गते न्े।

ीश्र ोाऊीश्र कावरे तन्ा डॉक्टर के नेतृत्व में िलनेवाले नागपगर ोाग के इस क्रान्न्तकारश्र दल ने शस्त्र
एवां िन-सांिय के हे तग चवचवि मागों का नवलम्णन चकया न्ा। उसके चलए गवश्यक नचोयानों कश्र
योीना नत्यन्त साविानश्र से कायान्न्वत होने के कारण उनका कोश्र पता नहीं िल पाया। कगछ लोगों
कश्र स्मृचत के ननगसार इस प्रकार के नचोयान पर ीानेवाले लोगों को डॉक्टर स्वयां न्ालश्रपश्रु णनाकर
पान्ेय के प में दे ते न्े। एक णार इस प्रकार के एक सांकन्ल्पत नचोयान पर ीाने के चलए नानासाहण
तेलांग को णाहर से नागपगर णगलवाना न्ा। उस समय वे णश्र.ए. कश्र परश्रक्षा दे कर केवल िार चदन पहले

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हश्र नपने गााँव गये न्े। ऐसे नवसर पर उनके घर के लोगों को तगरन्त लौटना सयगचिक लगे इसके चलए
डॉक्टर ने एक चमत्र के चववाह में गने के चलए नत्यन्त गग्रह-ोरा पत्र चलखा न्ा। इस सांकेत से दोनों
हश्र काम ुश्रक प्रकार से ीम गये।

िन-सांिय के समान हश्र कामुश्र कश्र सैचनक छावनश्र में कगछ लोगों से सन्िान णैुाकर गगप्त प से शस्त्र
खरश्रदने का काम ोश्र चकया गया न्ा। एक णार तो नागपगर से ीानेवालश्र सरकारश्र गोला-णा द कश्र
पेचटयों को कगछ लोगों ने सैचनक वेश िारण कर णड़श्र ितगराई से गाड़श्र में से उतरवा चलया। िगपिाप इन
पेचटयों को योग्य स्न्ान पर पहग ाँ िा दे ने के उपरान्त, गगे सरकारश्र ीााँि में कोई सणूत न चमल सके
इसचलए डॉक्टर ने सैचनक वेश के कपड़ों को ीलाकर उनकश्र राख ोश्र एक नाले मां फेंक दश्र न्श्र। इस
प्रकार कश्र ननेक रम्य कन्ाएाँ कई लोगों ने नोश्र तक मन में हश्र दणाकर रखश्र न्ीं। नण कहीं न्ोड़श्र-
न्ोे़ड़श्र वे प्रकाश में ग रहश्र हैं । सम्ोवतः योग्य काल गने पर उन पर कोई लेखनश्र पूरा प्रकाश डाल
सकेगश्र।

मनगष्ट्य तन्ा शस्त्रास्त्रों का यह सांग्रह चनचित हश्र चकसश्र चवद्रोह के चलए चकया गया न्ा। परन्तग उस चवद्रोह
कश्र कल्पना और स्व प क्या न्ा इसका पता िलने का गी कोई सािन उपलब्ि नहीं है । इस प्रकार
कश्र णातें सािारणतः तोश्र प्रकट होतश्र हैं ीण चक क्रान्न्त कश्र पूवभचसद्धता होते हग ए हश्र सरकार कश्र दृचष्ट में
वह ग ीाये तन्ा चखलने के पहले हश्र कलश्र को मसल चदया ीाये, नन्वा क्रान्न्त कश्र चसद्धता पूणभ
होकर दल कश्र योीना के ननगसार सरकार को ोयकन्म्पत करने के चलए व्यचिगत नन्वा सामूचहक
गक्रमण का िड़ाका प्रकट हो ीाये।

उपलब्ि ीानकारश्र से इतना नवश्य कहा ीा सकता है चक इस चवद्रोह का स्व प सामूचहक न्ा क्योंचक
वह पांीाण से लेकर नागपगर तक व्याप्त न्ा। सान् हश्र ऐसा लगता हैं चक वह चवदे श से ीहाी पर
गनेवाले शस्त्रों पर ोश्र कगछ नांशों तक चनोभर न्ा। यवतमाळ के ीश्र वामनराव िमाचिकारश्र णताते हैं
चक ‘‘1917-18 के लगोग डॉक्टर ने चवद्रोह का चविार हमारे कानों पर डाला न्ा।’’ इतना हश्र नहीं,
डॉक्टर ने उनको 1918 में मामागोग ोेीा न्ा तन्ा णताया न्ा चक ‘‘सांकेत के ननगसार एक ीहाी
गनेवाला है । नतः ीैसे हश्र वह वहााँ गकर पहग ाँ िे वैसे हश्र नागपगर में गकर खणर दे ना।’’ उस समय
उनके सान् पयाप्त पैसे ोश्र चदया गये न्े। उस गदे श के ननगसार वामनराव णम्णई से समगद्रश्र मागभ से
गोग गये। वहााँ सातारा के ीश्र पाटश्रल से चमलकर नगला काम होनेवाला न्ा। तदनगसार वे पाटश्रल से
चमले। पाटश्रल पैंतश्रस वर्भ का चदखने में काला पर छरहरा ीवान न्ा। उसने उनकश्र गोग में केरश्र में ीश्र
दादासाहण वैद्य के यहााँ ुहरने कश्र व्यवस्न्ा कर दश्र। पर चीन गु चदनों में वह ीहाी गनेवाला न्ा
नहीं गया। उलटे यह पता िला चक नांग्री
े ों ने एक नौका णश्रि में हश्र रोक रखश्र है । फलतः वामनराव
ने पूना होते हग ए वापस नागपगर गकर डॉक्टर को सम्पूणभ सन्दे श दे चदया। िमभचिकारश्र को इसके पूवभ
ोश्र ीश्र नानासाहण तेलांग के सान् गोग ोेीकर डॉक्टर ने कगछ चपस्तौलें माँगवायश्र न्ीं। पहले का

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ीानकार होने के कारण उन्हें दगणारा ोेीा गया न्ा। इस प्रकार इिर-उिर से चमलनेवालश्र फगटकर
घटनाओां के वृत्त से उस चवद्रोह कश्र पूरश्र कल्पना करना तो कचुन है चकन्तग उसका स्व प साांचघक न्ा
यह तो चनचित प से कहा ीा सकता है ।

ीमभनश्र को पराचीत कर नण नांग्रेी सरकार णेखटके हो गयश्र न्श्र। फलतः ोारत में क्रान्न्तकारश्र
कायभवाचहयों को पूणभतः नष्ट करने कश्र उसकश्र नश्रचत और ोश्र तेी हो गयश्र। चीस प्रकार नांग्रेीों के ऊपर
गया महायगद्ध का सांकट परािश्रन ोारत कश्र स्वतांत्रता-प्राचप्त के प्रयत्नों के चलए स्वणभ नवसर न्ा, उसश्र
प्रकार नांग्रेीों कश्र चवीय उन्हें पददचलत ोारत को नपने िांगगल में कसकर ीकड़ने का साहस प्रदान
करनेवालश्र होकर ोारत के चलए नचोशाप चसद्ध हग ई। ोारत में इस नश्रचत का ननगोव ीहााँ-तहााँ होने
लगा। णड़श्र गशा और उत्साह से हान् में चलए गन्दोलनों के चवफल मनोरन् होने पर सवभसामान्य
ीनता तन्ा चवशेर्कर क्रान्न्तकाचरयों में िारों ओर घोर चनराशा के णादल छा गये। क्रान्न्तकारश्र कायभ
का ीाल िारों ओर फैला हग ग न्ा, चकन्तग नण उसकश्र सम्ोावना समाप्त हो िगकश्र न्श्र। उलटे
कायभकताओां कश्र चनराश एवां चवफलता कश्र मनःन्स्न्चत के कारण यह सम्ोावना णढतश्र ीातश्र न्श्र कहीं
पेट कश्र णात मगाँह पर न ग ीाये। नतः गवश्यक हो गया चक िारों ओर के व्याप को समेटकर
नत्यन्त शान्त ोाव एवां सतकभता के सान् लश्रला का सांवरण कर चलया ीाये। यह कायभ चववाह के चलए
णड़े ुाट-णाट से चनर्तमत मण्डप को चणना चववाह पूणभ हग ए हश्र उखाड़ने ीैसा न्ा। णन्ल्क यह तो उससे
ोश्र नचिक कचुन, दगःखदायक तन्ा उद्वे गीनक न्ा। चकन्तग शतरां ी के खेल में एक िाल गलत हो
गयश्र तन्ा उसका पचरणाम नपने हश्र ऊपर उलटा ग पड़ा तो ोश्र न घणराते हग ए ीो गगे नचिक
कगशलता तन्ा साविानश्र से मोहरें णढता है वह हारश्र हग ई णाीश्र को ोश्र पलट सकता है । उसश्र प्रकार
राीनश्रचत में ोश्र कदम रखने पड़ते हैं । यहााँ कोई ोश्र घटना नन्न्तम नहीं होतश्र।

नसफलता हश्र पल्ले में पड़तश्र दे खकर कई तरुणों को पिात्ताप होने लगा तन्ा उन्होंने चनिय चकया चक
चफर ोूलकर ोश्र इस प्रकार के झगड़ों में नहीं पड़ेंग।े उनके चलए तो यह घटना सावभीचनक कायभ कश्र
दृचष्ट से पूणभ चवराम हश्र समझना िाचहए। इसके चवपरश्रत दूसरा उन लोगों का वगभ हो सकता है ीो उस
समय िाहे तो चनराशा के न्पेड़े खाकर कमभचवरत होकर िगप णैु गये हों चकन्तग, पतझड़ में सूखे वृक्षों
के वसन्त में चफर लहलहाने के समान, न्स्न्चत कश्र ननगकूलता के सान् हश्र चनराशा को छोड़कर पगनः
उत्साह के सान् ीगटने कश्र तैयारश्र रखते न्े। चकन्तग स्वयांप्रेरणा से ीान-णूझकर नचसिारा-व्रत ग्रहण
करनेवालों कश्र न्स्न्चत इन दोनों से चोन्न रहतश्र है । यह नहीं चक उन्हें इन घटनाओां से पश्रड़ा नहीं होतश्र
चकन्तग उनकश्र ध्येयचनष्ठा इतनश्र दृढ एवां नटल होतश्र है चक वे उस पचरन्स्न्चत में घटश्र हग ई घटनाओां का
चवश्लेर्ण कर, गगे इस प्रकार कश्र चवर्म पचरन्स्न्चत में ोश्र गगे कैसे णढा ीा सकेगा इसका मागभ
ाँढ
ू ने में लग ीाते हैं । यह करते हग ए ोावना के वशश्रोूत होकर उनमें सन्ताप नन्वा चवरचि का उदय
नहीं होता। वे ीानते हैं चक गम्र-वृक्षों में गया हग ग सण-का-सण मौर फलता नहीं है । उसमें से कगछ
झड़ ीाता है तो कगछ को पक्षश्र खा ीाते हैं । वे नपनश्र ओर से पराकाष्ठा के प्रयत्न करते हैं चकन्तग उनमें

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यचद नपेक्षानगसार सफलता नहीं चमलश्र तो वे नपने मागभ और सािनों का ुश्रक-ुश्रक परश्रक्षण कर उनके
दोर् दूर कर, नन्वा समय पड़ा तो उनका त्याग करके ोश्र, गगे पग णढाने के चलए उससे ोश्र प्रोावश्र
मागभ तन्ा सािन खोी चनकालते हैं । नसफलता को गत्मचनरश्रक्षण का नवसर मानकर ‘तोड़ा हग ग
तरु णड़श्र गचत से णढे गा’ इस उचि का पचरिय दे नेवाले कोश्र-न-कोश्र पचरन्स्न्तश्र पर हावश्र होते हग ए
नवश्य हश्र चदखते हैं । डॉक्टर तन्ा उनके सहकाचरयों ने इसश्र प्रकार कश्र कायानगकूल मनःन्स्न्चत में उस
पचरन्स्न्चत का सामना चकया।

इन चदनों गणेशोत्सवों में डॉक्टर के णड़े गरम ोार्ण होते न्े। इस चनचमत्त को लेकर उन्होंने सम्पूणभ
प्रान्त का दौरा कर सम्णन्न्ित तरुणों से व्यचिगत प से चमलकर उनको चनराशा के गतभ में डूणने से
णिाने का प्रयत्न चकया। मध्यप्रान्त कश्र ‘होम ल लश्रग’ में ोश्र उन्होंने प्रवेश चकया तन्ा उसकश्र सोाओां
और चवचोन्न क्षेत्रश्रय पचरर्दों में कोश्र नध्यक्ष के नाते तो कोश्र प्रमगख विा के नाते लोगों के सम्मगख
उत्साहविभक चविार रखे। उस वर्भ णरार में लोकमान्य के दौरे के पूवभ डॉक्टर ने स्वयां सांिार करके
स्न्ान-स्न्ान पर डॉ. मगांीे कश्र नपेक्षा के ननगसार लोकमान्य के यन्ोचित सत्कार कश्र सण प्रकार कश्र
तैयारश्र कश्र। नपने से सम्णन्न्ित चकसश्र ोश्र व्यचि को हतोत्साह होकर णैुने नहीं दें गे इसश्र चनिय से
नवसर का लाो उुाने के चलए उन्होंने यह दौड़िूप कश्र। एक ओर यह सावभीचनक काम िालू न्ा तो
दूसरश्र ओर इसके सान्-सान् क्रान्न्त के चलए एकत्र िन, शस्त्रास्त्र तन्ा मनगष्ट्यों कश्र ुश्रक-ुश्रक व्यवस्न्ा
करने का काम ोश्र डॉक्टर णराणर कर रहे न्े। इतना हश्र नहीं, यह सण समेटने के काम कश्र ओर चकसश्र
कश्र चनगाह न ीाये इसचलए णाहर से सावभीचनक सोा तन्ा ोार्णों का ीोरदार सत्र ोश्र िालू चकया
गया न्ा।

इस काम में ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे, ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र, ीश्र णाणूराव हरकरे तन्ा ीश्र नानाीश्र पगराचणक
गचद व्यचि प्रमगख न्े। नमृतसर ोेीश्र गयश्र सामग्रश्र कश्र ुश्रक व्यवस्न्ा का समािार 1919 के प्रारम्ो
में हश्र चमल गया न्ा। चकन्तग नोश्र उत्तर में ोेीे गये व्यचियों को वापस लाना न्ा। इस हे तग ीश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र को नमृतसर ोेीा गया। उनको वापस लाकर तन्ा कगछ गर्तन्क सहायता दे कर उनकश्र
व्यवस्न्ा से गप्पाीश्र ीैसे हश्र मगि हग ए चक उनको डॉक्टर कश्र ओर से उसश्र समय कारागृह से मगि हग ए
ीश्र नीगन
भ लाल शेुश्र कश्र विा में व्यवस्न्ा करने का गदे श चमला। नीगन
भ लाल क्रान्न्तकारश्र गन्दोलन
में पकड़े गये न्े तन्ा उनसे ीानकारश्र प्राप्त करने के चलए पगचलस ने उनको ोश्रर्ण यांत्रणाएाँ दश्र न्ीं। उसमें
उन्होंने णड़ा िैयभ चदखाय न्ा तन्ा नपने चकसश्र ोश्र सहकारश्र का नाम ओुों पर नहीं गने दश्रया। पर इन
यांत्रणाओां के कारण ीेल में हश्र वे कगछ पागल हो गये तन्ा उनका स्वास्र्थय णेहद चगर गया। 1919 के
प्रारम्ो में इसश्र हालत में वे ीेल से छू टे । ऐसे सहकारश्र को गड़े वि सहारा दे ने का कतभव्य समझकर
हश्र डॉक्टर ने गप्पाीश्र को उपयगभि गदे श चदया न्ा। इसके ननगसार उन्हें पचरवार सचहत विा लाकर
वहााँ उनकश्र व्यवस्न्ा कर दश्र गयश्र। तश्रन-िार वर्भ में उनका पागलपन ीाता रहा तन्ा स्वास्र्थय ोश्र ुश्रक

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हो गया। 1917 में िलाये गये ‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक मण्डल’ के एक सदस्य ीश्र चिरां ीश्रवलालीश्र
णडीाते ने प्रमगखता से उनका गर्तन्क ोार वहन चकया।

सोश्र प्रमगख लोगों को यह ोय लगा रहता न्ा चक कहीं ोूल से यचद नपनश्र योीना का पता शासन को
लग गया तो कगछ ोश्र साध्य न होते हग ए ननेक लोगों के ीश्रवन िूल में चमल ीायेंग।े इस हे तग वे णड़े
सतकभ रहते न्े। पर इतने में हश्र पांीाण से लौटे हग ए एक सज्जन ने कहगणश्र में णम का िड़ाका कर चदया।
फलतः ीााँि-पड़ताल का रगड़ा पश्रछे लग गया। इससे प्रमगख व्यचियों चक चिन्ता और ोश्र णढ गयश्र।
सान् हश्र उस प्रचतकूल समय में क्रान्न्तकाचरयों में ननगशासन ोश्र श्रला हो गया न्ा। कगछ व्यचियों का
स्वान्भ उोरने लगा। चीन क्रान्न्तकाचरयों के पास पैसे और शस्त्र न्े उनमें से कगछ ने उनको लौटाने के
गदे श कश्र पूरश्र-पूरश्र नवहे लना कश्र। ीण चलखा-पढश्र होने के णाद ोश्र लोग दूसरों के पैसे हड़प करने
से नहीं िूकते तण सम्पूणभ काम हश्र ीहााँ चवश्वास पर िला हो वहााँ का क्या कहना? न तो कोई चिट्ठश्र
और न िपाटश्र। इतना हश्र नहीं यचद चकसश्र ने चवश्वासघात करके ुग ोश्र चलया तो उसके सम्णन्ि में मगहाँ
से शब्द ोश्र चनकालना गगनाह हश्र न्ा। ऐसे ननगोवों के कई कड़वे घूाँट कावरे और डॉक्टर को उस समय
पश्रने पड़े।

पर सफलता के नमृत-घट के चलए चीतने उत्साह से उन्होंने हान् णढाया न्ा उतने हश्र सही ोाव से
उन्होंने नसफलता का हलाहल-कगम्ो ोश्र स्वश्रकार चकया। सफलता चमलश्र तो नपना पराक्रम कहकर
वाहवाहश्र लूटना तन्ा नसफलता रहश्र तो पचरन्स्न्चत के मत्न्े पर उसका खप्पर फोड़ने कश्र प्रवृचत्त
सािारण मनगष्ट्य में होतश्र है । चकन्तग वे दोनों हश्र इस प्रवृचत्त से ऊपर उुे हग ए न्े। उन्होंने सम्पूणभ घटना कश्र
ोलश्र प्रकार परश्रक्षा कश्र तन्ा उसमें कहााँ तुचट रह गयश्र इसकश्र खोी कश्र।

डॉक्टर को उस चनरश्रक्षण में से यह स्पष्ट चदखने लगा चक पूणभ प्रोावश्र सांस्कार चकये चणना दे शोचि का
स्न्ायश्र स्व प चनमाण होना सम्ोव नहीं है तन्ा इस प्रकार कश्र न्स्न्चत चनमाण होने तक सामाचीक
व्यवहार में प्रामाचणकता ोश्र सम्ोव नहीं। इसके सान् हश्र उन्होंने यह ोश्र दे खा चक ोावना के वेग तन्ा
ीवानश्र के ीोश में कई तरुण खड़े हो ीाते हैं परन्तग दमनिक्र प्रारम्ो होते हश्र वे मगहाँ मोड़कर सदा के
चलए सामाचीक क्षेत्र से दूर हट ीाते हैं । ऐसे लोगों के ोरोसे दे श कश्र चवकट तन्ा उलझश्र हग ई समस्याएाँ
कैसे सगलझ सकेंगश्र? इसके चलए ध्येय पर नचविल दृचष्ट रखकर मागभ में मखमलश्र चणछौने हों या कााँटे
चणखरे हों उनकश्र चिन्ता न करते हग ए चनरन्तर गगे हश्र णढने के दृढ चनियवाले िृचत-कृचतशश्रल तरुण
खड़े करने पड़ेंग।े उन्होंने दे खा चक दे शोि कहलाने वाले तरुणों को ोश्र ननगशासन सहन नहीं होता।
चनःस्वान्भता ीश्रवन में गये चणना खरा ननगशासन चनमाण नहीं होता तन्ा ननगशासन के चणना परकश्रयों
के यांत्र-तांत्रसज्ज पाशवश्र णल को ुोकर मारने का समार्थयभ चकसश्र ोश्र राष्ट्रश्रय उत्न्ान के प्रयत्न में नहीं ग

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सकता। इस नसफलता से डॉक्टर ने तत्कालश्रन समाी कश्र न्स्न्चत का णहग त हश्र स्पष्ट एवां सहश्र णोि
चलया तन्ा उसके गिार पर नगले पगों कश्र चदशा चनचित कश्र। पर सशस्त्र क्रान्न्त पर से उनका
चवश्वास यत्त्कित् ोश्र नहीं चडगा न्ा। उनका यह चनचित मत न्ा चक दे श के शतुओां को चीस चकसश्र
ोश्र मागभ से इस ोूचम से चनकाला ीा सके वहश्र इष्ट तन्ा योग्य है । हााँ, चकसश्र ोश्र मागभ पर िलकर
सफलता प्राप्त करने के चलए चीस वृचत्त कश्र गवश्यकता होतश्र है उसका नोाव उन्हें उस समय प्रमगख
प से चदख रहा न्ा। चीनके पास दृचष्ट है वे णगरे में से ोश्र नच्छा खोी लेते हैं ।

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7. नागपगर का काांग्रस
े -नचिवेशन
प्रन्म महायगद्ध समाप्त हग ग। उस समय चहन्दगस्न्ान के मगसलमानों में ‘चखलाफत’ गन्दोलन ने एक
नयश्र लहर पैदा कर दश्र न्श्र। चहन्दग-मगसलमानों कश्र एकता के चलए महात्मा गाांिश्रीश्र ने उस लहर के सान्
हान् चमलाया। इस यगचत में से नसहयोग गन्दोलन का ीन्म हग ग। इस गन्दोलन में डॉक्टर हे डगेवार
ोश्र सन्म्मचलत हग ए न्े। नतः इस घटनािक्र कश्र पृष्ठोूचम का तचनक सूक्ष्म रश्रचत से नवलोकन उद्बोिक
होगा।

प्रन्म चवश्वयगद्ध में तगकी नांग्री


े ों के चवरुद्ध तन्ा ीमभनश्र के सान् न्ा। दगचनयााँ के सोश्र मगसलमानों का
िमभगगरु ‘खलश्रफा’ उस समय तगकी का णादशाह न्ा। नतः सोश्र मगसलमानों कश्र यहश्र कामना न्श्र चक
तगकी कश्र चवीय होनश्र िाचहए। परन्तग नांग्रेी ीमभनश्र के चवरुद्ध मगसलमानों कश्र सहायता िाहते न्े।
इसचलए गगा खााँ ीैसे कगछ मगसलमानों कश्र ‘वाह-वाह’ करके नांग्री
े ों ने मगसलमानों को यह चवश्वास
चदलाया चक ीमभनश्र के पराोव के णाद वे खलश्रफा तन्ा मगन्स्लम िमभस्न्ानों कश्र प्रचतष्ठा में लव मात्र ोश्र
कमश्र नहीं गने दें ग।े मगसलमानों ने उनके इस विन पर नांग्री
े ों का चवश्वास कर उनकश्र सण प्रकार से
सहायता कश्र, तन्ा नांग्रेी चवीयश्र ोश्र हग ए। परन्तग राीनश्रचत में काम पड़े तो गिे को ोश्र मामा करने कश्र
तन्ा नवसर चनकल ीाने पर मामा का ोश्र कश्रमा णनाकर िट कर ीाने कश्र चनचत नांग्रेी ोलश्र-ोााँचत
ीानते न्े। नतः नांग्री
े ों ने तगकी के गटोमन साम्राज्य को चछन्न-चवन्च्छन्न करके वासाई कश्र सन्न्ि के
ननगसार चमस्र, सश्रचरया चफलस्तश्रन, नरे चणया गचद पृन्क् राज्यों कश्र स्न्ापना कश्र। इतना हश्र नहीं, प्रत्यक्ष
तगकी पर ोश्र चमत्र-राष्ट्रों के प्रोगत्व के चिन्ह मगसलमानों को चदखने लगे। इस प्रकार विन ोांग
करनेवालों के प्रचत क्षोो होना स्वाोाचवक न्ा। इस क्षोो में से हश्र मगसलमानों कश्र यह मााँग पैदा हग ई चक
‘‘खलश्रफा के ऊपर चमत्र-राष्ट्रों का नत्यािार व नन्याय समाप्त होना िाचहए, नन्यन्ा हम नांग्री
े ों के
सान् नसहयोग करें ग।े ’’

मगसलमानों में चीस समय नसन्तोर् फैल हश्र रहा न्ा चक उसश्र समय ीन्स्टस सर चसडनश्र रौलट कश्र
नध्यक्षता में ोारत में क्रान्न्तकारश्र गन्दोलन कश्र ीााँि करने तन्ा उपाय-योीना सगझाने के चलए
‘चसडश्रशन इन्वायरश्र कमेटश्र’(राीद्रोह ीााँि सचमचत) चनयगि कश्र गयश्र। इस सचमचत का प्रचतवेदक नप्रैल
1918 में प्रकाचशत हग ग। वह नत्यन्त हश्र दूचर्त तन्ा प्रक्षोोक न्ा। चकन्तग उसश्र प्रचतवेदन को मान्य
कर उसके गिार पर ोारत सरकार ने केन्न्द्रय चविानसोा के समक्ष एक चविेयक पेश चकया। इसमें
शासन को नचिकार चदया गया न्ा चक वह कहसक उपायों से गन्दोलन करनेवालों को चणना ीााँि-
पड़ताल के णन्दश्र णना सकतश्र है तन्ा चणना पांि)ीूरश्र) के मगकदमा िला सकतश्र है । यहश्र कगख्यात ‘रौलट
एक्ट’ को ीन्म दे नेवाला चविेयक न्ा।

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दे शोि क्रान्न्तकाचरयों ने चकस प्रकार नपनश्र मृत्यग कश्र ोश्र चिन्ता न करके नांग्री
े श्र राज्यसत्ता को
उखाड़ने का गगप्त प्रयत्न चकया इसका न्ोड़ा-णहग त पता रौलट-सचमचत के प्रचतवेदन से लगता है ।
डॉक्टरीश्र को लगा चक इस प्रचतवेदन के पढने से ीनमन में दे शोचि कश्र ोावना प्रज्ज्वचलत होगश्र तन्ा
उसका गत्मचवश्वास णढे गा। नतः उन्होंने उस प्रचतवेदन कश्र प्रचतयों का काफश्र प्रिार चकया। ीैसे हश्र
सरकार को यह पता िला चक मध्यप्रान्त में इस प्रचतवेदन का णहग त प्रिार हो रहा है उसे सांशय हो गया
तन्ा उसकश्र चणक्रश्र णन्द कर दश्र गयश्र।

सरकार द्वारा प्रस्ताचवत चविेयक के द्वारा दमन का एक नया खतरनाक शस्त्र उसके हान् में गनेवाला
न्ा, नतः उसका िारों ओर कड़ा चवरोि हग ग। चदनाांक 13 नप्रैल 1919 को णैशाखश्र के पगण्य पवभ पर
नमृतसर के ीचलयााँवाला णाग में एक ोारश्र चनर्ेि-सोा हग ई। इस ीगह एकत्र लगोग दस हीार
लोगों पर ीनरल डायर ने निानक गोचलयााँ िलाने का गदे श दे चदया। सैकड़ो लोगों कश्र लाशें वहााँ
चगर गयीं। सरकार कश्र इस दमननश्रचत से सम्पूणभ दे श सन्तप्त हो उुा।

चखलाफत के कारण मगसलमानों में नसन्तोर् न्ा हश्र। ीचलयााँवाला णाग काण्ड से दे श और ोश्र चवक्षग ब्ि
हो गया। इन दोनों का मेल णैुाकर व्यापक ीन गन्दोलन चकया ीाये ऐसे प्रयत्न प्रारम्ो हो गये।
इसके चलए चखलाफत-सचमचत कश्र ओर से मौ.शौकत नलश्र और मौ.मोहम्मद नलश्र तन्ा स्वतांत्र प
से गाांिश्रीश्र सिेष्ट न्े। 24 नवम्णर 1919 को नचखल ोारतश्रय चखलाफत पचरर्द् हग ई। उसमें चहन्दू-
मगसलमान सोश्र सन्म्मचलत हग ए न्े। पचरर्द् के नध्यक्ष के नाते गाांिश्रीश्र ने ीो चविार रखे वे , इन सण
प्रयत्नों के पश्रछे कौनसश्र मनोवृचत्त काम कर रहश्र न्श्र, उसकश्र कल्पना दे सकते हैं । उन्होंने कहा न्ा चक
‘‘हम लोग चहन्दू-मगन्स्लम एकता का राग नलापते हैं । परन्तग मगसलमानों पर गपचत्त गने पर हम चहन्दू
यचद ीश्र िगराने लगें तो एकता कश्र घोर्णाओां का क्या नन्भ है ? कगछ लोग कहते हैं चक हमें मगसलमानों
कश्र सहायता सशतभ करनश्र िाचहए चकन्तग सरश्र सहायता तो चनःस्वान्भ सहायता हश्र है ।’’ ये शब्द गगे
मगसलमानों के हान् में ‘कोरा िेक’ दे ने तक गाांिश्रीश्र कश्र नश्रचत के नान्दश्रवाक्य मात्र न्े। इसके पश्रछे यहश्र
ोावना काम कर रहश्र न्श्र चक चकसश्र-न-चकसश्र प्रकार चहन्दू-मगन्स्लम एकता कर लेनश्र िाचहए। चकन्तग
स्पष्ट है चक इस नत्यगत्कट तन्ा प्रामाचणक कल्पना के पश्रछे, चहन्दू समाी नकेला गत्मचनोभर होकर
े ों का मगकाणला नहीं कर सकता, यह गत्मचवश्वासहश्रन तन्ा दगणभल मनोवृचत्त ोश्र काम कर रहश्र
नांग्री
न्श्र।

चहन्दू-मगन्स्लम एकता हश्र ‘स्वराज्य का पयाय है ’, इस प्रकार कश्र ऐकान्न्तक चविारसरणश्र हश्र महात्माीश्र
के सारे प्रयत्नों का मूल न्श्र। वे इस एकता को प्राप्त करने के चलए कगछ ोश्र करने को तैयार हो सकते हैं
इस णात को नलश्र णन्िगओां ने ोलश्र-ोााँचत ीान चलया न्ा। पर इस सताव का लाो ले नपने समाी
को ीाग्रत् करने तन्ा चहन्दगओां के सहयोग से नांग्री
े ों को सणक चसखाने के केवल स्वान्भपूणभ एवां

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साम्प्रदाचयक उद्देश्य से वे िल रहे न्े। महात्माीश्र के सामने तो स्वराज्य कश्र कल्पना न्श्र पर नलश्र
णन्िगओां को स्वराज्य से कोई सरोकार नहीं न्ा। वे तो ‘चखलाफत’ के चलए हश्र मतवाले न्े चीसका
चहन्दगस्न्ान के चहताचहत के सान् कोई सम्णन्ि नहीं न्ा। एक के हृदय में ोोलश्र राष्ट्रोचि न्श्र तो दूसरे
के मन में दे शणाह्य चनष्ठा से उत्पन्न राीचनचतक कगचटलता। महात्माीश्र नकहसा के पगीारश्र न्े चकन्तग नलश्र
णन्िगओां के मगाँह से चखलाफत के चलए रिरां चीत क्रान्न्त के उसार चनकलते न्े। महात्माीश्र यचद सचहष्ट्णगता
कश्र मूर्तत न्े तो नलश्र णन्िगओां के प में िमान्िता हश्र शरश्रर िारण कर चविर रहश्र न्श्र। पन्ण्डत
ीवाहरलाल नेह ने नपने ‘गत्मचिरत्र’ में मौ.मोहम्मद नलश्र के चलए ‘most irrationally re-
ligious’ नन्ात् ‘परमावचि का िमान्ि’ इस नत्यन्त हश्र उपयगि चवशेर्ण का प्रयोग चकया है । इन
परस्पर-चवरुद्ध प्रवृचत्तयों कश्र 1919 में यगचि हो गयश्र न्श्र। उसमें समानता इतनश्र हश्र न्श्र चक दोनों को
एकता िाचहए न्श्र। परन्तग यह कहना पड़ेगा चक यह एकता एक स्वान्ी सांघचटत वगभ कश्र दूसरे प्रामाचणक
परन्तग गत्मचवस्मृत वगभ का पूरा-पूरा लाो उुाने के चलए िलश्र हग ई िाल हश्र न्श्र।

ोारतश्रय राीनश्रचत में चहन्दू-मगन्स्लम एकता का ीण चडमचडम णी रहा न्ा उस समय डॉक्टर हे डगेवार
का इस चवर्य में क्या रुख न्ा यह दे खना गवश्यक है । महायगद्ध-काल के पिात् क्रान्न्त का मनोरन्
चवफल होने पर ोश्र उदास न होते हग ए वे काांग्रेस के मांि से राीनश्रचत में सचक्रय होते ीा रहे न्े। उस
समय मध्यप्रान्त कश्र राीनश्रचत के सूत्र लोकमान्य के ननगयाचययों के हान् में न्े। डॉ. णा. चश. मगांीे, ीश्र
नश्रलकण्ुराव उिोीश्र, ीश्र नारायणराव नळे कर, ीश्र नारायणराव वैद्य, णै. मो ोाऊ नभ्यांकर,
ीश्रगोपाळराव ओगले, णै. गोचवन्दराव दे शमगख, डॉ. िोळकर, ीश्र ोवानश्रशांकर चनयोगश्र, डॉ. ना. ोा.
खरे , ीश्र चवश्वनान् राव केळकर, डॉ. पराांीपे गचद सोलह लोगों ने चमलकर ‘राष्ट्रश्रय मण्डल’ नाम से
एक सांस्न्ा िला रखश्र न्श्र। इस मण्डल कश्र नामावलश्र से स्पष्ट हो ीायेगा चक मध्यप्रान्त के उस समय
के राीनश्रचत के सोश्र महारन्श्र इसमें सन्म्मचलत न्े। काांग्रेस के ऊपर उनका इतना प्रोाव न्ा चक ीो
णात यह मण्डल चनचित करता न्ा काांग्रेस उसे हश्र स्वश्रकार करके िलतश्र न्श्र। डॉक्टर हे डगेवार इस
‘राष्ट्रश्रय मण्डल’ के नेताओां कश्र तगलना में तरुण तन्ा मनोवृचत्त में उनसे उग्र न्े। उस समय काांग्रेस में
‘साम्राज्यान्तगभत स्वराज्य’ नन्वा ‘औपचनवेचशक स्वराज्य’ यहश्र ोार्ा प्रिचलत न्श्र। चकन्तग डॉक्टर
हे डगेवार ने चनोभयता से ‘शगद्ध स्वातांत्र्य’ कश्र कल्पना लोगों के सम्मगख रखना प्रारम्ो चकया। उसश्र
प्रकार, केवल शान्न्तपूणभ तन्ा वैिाचनक मागभ हश्र स्वातांत्र्य-प्राचप्त का न्याय मागभ है इस चसद्धान्त से उनका
कड़ा चवरोि न्ा। इस मतचोन्नता के कारण, यद्यचप वे ‘राष्ट्रश्रय मण्डल’ के सान् काम कर रहे न्े चफर
ोश्र वे उसकश्र सदस्यता स्वश्रकार नहीं कर सकते न्े। डॉ. मगांीे के प्रेम के कारण प्रारम्ो में डॉक्टर ने
मण्डल द्वारा गयोचीत सोा-णैुकों गचद में ोाग चलया पर वहााँ ोश्र उनकश्र तन्ा उनके गगट कश्र
चवशेर्ता प्रकट हग ए चणना नहीं रहश्र। नन्त में ‘राष्ट्रश्रय मण्डल’ के हश्र कगछ लोगों के सहयोग से डॉक्टर
ने ‘नागपगर नेशनल यूचनयन’ नाम से एक नयश्र राीनैचतक सांस्न्ा स्न्ाचपत कश्र। इसमें ीश्र णोणड़े , ीश्र

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चवश्वनान् राव केळकर, ीश्र णळवन्तराव मण्डलेकर, ीश्र िोरघड़े गचद चमत्र-मण्डलश्र एकत्र ग गयश्र
न्श्र। कगछ चदनों के णाद डॉ. ना.ोा. खरे ोश्र उसमें सन्म्मचलत हो गये।

इसश्र समय ‘राष्ट्रश्रय मण्डल’ कश्र ओर से नागपगर से ‘सांकल्प’ नाम से एक चहन्दश्र साप्ताचहक प्रकाचशत
करने का चविार हग ग। इसके पूवभ हश्र मराुश्र में ‘महाराष्ट्र’ का प्रकाशन प्रारम्ो हो िगका न्ा। इस नये
साप्ताचहक का महाकोशल के चहन्दश्र ोाग में प्रिार करना गवश्यक न्ा। 1919 कश्र ीनवरश्र में इस
कायभ के चलए डॉक्टरीश्र को ‘सांकल्प’ का सांघटक चनयगि चकया गया। इस चनचमत्त से उन्होंने उस वर्भ
िार-पााँि महश्रने सम्पूणभ महाकोशल का दौरा चकया। उनके सान् ‘नागपगर व्यायामशाला’ के प्रमगख ीश्र
नण्णा खोत ोश्र न्े। इस दौरे में उन्होंने ‘सांकल्प’ का प्रिार तो चकया हश्र पर सान् में महाकोशल में
ननेक व्यचियों से चनकट का पचरिय ोश्र प्राप्त कर चलया। यह पचरिय गगे महाकोशल में सांघ के
कायारम्ो कश्र दृचष्ट से णहग त उपयोगश्र चसद्ध हग ग।

‘सांकल्प’ साप्ताचहक के प्रिार के चलए रायपगर ीाने पर डॉक्टरीश्र ननेक लोगों से चमले। प्रायशः ीहााँ-
ीहााँ वे ीाते न्े इस पत्र का स्वागत हश्र होता न्ा। परन्तग ीण वे ीश्र ज्ञानरां ीन सेन के पास गये तन्ा
उनसे ग्राहक णनने को कहा तो ीश्र सेन णोले ‘‘मेरे पास नांग्री
े श्र और णांगला समािारपत्र गते हैं ।
नतः चहन्दश्र पत्र लेने का क्या उपयोग?’’ इस पर डॉक्टरीश्र का रुख ीरा कड़ा हो गया। वे णोले
‘‘गपका सम्पूणभ ीश्रवन इस चहन्दश्र-ोार्ाोार्श्र प्रान्त में णश्रत रहा है चफर यहााँ कश्र ोार्ा का समािारपत्र
लेने में इतना ोार क्यों लग रहा है ?’’ डॉक्टर यहीं नहीं रुके उन्होंने गगे कहा ‘‘चहन्दगस्न्ान में हम
चकसश्र ोश्र प्रान्त में ीायें तो यहश्र समझकर चक यह प्रान्त मेरा हश्र है वहााँ के ीश्रवन से समरस होना
िाचहए। यचद यह नहीं हो सकता तो इस प्रान्त को छोड़ क्यों नहीं ीाते?’’ इस सहीोसार के पश्रछे
ोारतश्रय एकात्मता कश्र इतनश्र गहरश्र ननगोूचत तन्ा उत्कटता न्श्र चक ज्ञानरां ीन ने तगरन्त ‘सांकल्प’ का
एक वर्भ का िन्दा डॉक्टर के हान् में लाकर रख चदया।

लगोग इन्हीं चदनों ीण डॉक्टरीश्र गवी गये न्े एक चदन सायांकाल ीश्र गांगािरराव दे शपाण्डे से चमलने
गये। वे डॉक्टरीश्र के घचनष्ठ चमत्र न्े। उस समय ीश्र दे शपाण्डे को चिन्ताकगल दे खकर डॉक्टरीश्र ने
उसका कारण पूछा। उन्होंने उत्तर चदया चक ‘‘ोानीश्र का पत्र गया है चक उसका िािा उसे एक णूढे
के गले मढ रहा है ।’’ यह सगनकर डॉक्टरीश्र का मन ोश्र नशान्त हो गया। उन्होंने पूछा ‘‘चफर गपकश्र
इच्छा क्या है ? यचद गप उसके चववाह का खिभ करने को तैयार हों तो दे खता हू ाँ क्या चकया ीा सकता
है ।’’ दे शपाण्डे को तो मानो ोगवान् का सहारा चमल गया। उन्होंने तगरन्त ‘‘हााँ’’ कह दश्र। डॉक्टरीश्र
नपने चमत्र को सान् लेकर, चववाह के कगछ दे र पहले हश्र नागपगर पहग ाँ िे तन्ा एक योग्य व्यचि के द्वारा
उस लड़कश्र को सूिना दे ने कश्र व्यवस्न्ा कश्र चक ‘‘‘तेलवण’ के समय गांगािरराव मोटर लेकर गयेंगे,

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उस समय उनके सान् िलने को तैयार रहो।’’ ीैसे हश्र णाीे-गाीे के सान् लड़कश्र ‘तेलवण’ के चलए
गाड़श्र में ीा रहश्र न्श्र पूवभसांकेत के ननगसार वहााँ मोटर गयश्र तन्ा गांगािरराव लड़कश्र को उसमें णैुाकर
गवी ले गये। गगे िलकर इस घटना के कारण कई मगकदमे वगैरह ोश्र िले चकन्तग यह वृद्ध-णाला
चववाह टल गया तन्ा योग्य तरुण ाँढ
ू कर उसके सान् उस कन्या का चववाह कर चदया गया।

इन चदनों नागपगर में डॉक्टरीश्र का चवद्यार्तन्यों के सान्, उनकश्र सोा में ोार्ण करने के कारण, सम्णन्ि
ग गया तन्ा उनका डॉक्टरीश्र के घर गना-ीाना ोश्र शग हो गया। समाी में राष्ट्रश्रय महापगरुर्ों के
िचरत्र का गिार लेकर उसका स्वत्व ीाग्रत करने के उद्देश्य से एक ‘राष्ट्रश्रय उत्सव मण्डल’ कश्र ोश्र
स्न्ापना कश्र गयश्र। डॉक्टरीश्र इस मण्डल के मांत्रश्र के प में ननेक वर्ों काम करते रहे । इस मण्डल
कश्र ओर से छत्रपचत चशवाीश्र महाराी का ीन्म तन्ा राज्यारोहण-चदवस, गणेशोत्सव, दासनवमश्र,
शस्त्रपूीन, सांक्रान्न्त गचद प्रमगख-प्रमगख त्योहार एवां पवभ मनाये ीाते न्े तन्ा उनमें डॉ. मगांीे, शां.दा.
पेण्डसे, खापडे, लोकनायक नणे गचद के ोार्ण कराये ीाते न्े। ीश्र छत्रपचत चशवाीश्र तन्ा रामदास
दोनों हश्र डॉक्टरीश्र के स्फूर्ततदाता न्े। नतः णताया ीाता है चक इन उत्सवों में उनके नत्यन्त ओीस्वश्र
ोार्ण होते न्े। डॉक्टरीश्र का चमत्रमण्डल नण णढता ीाता न्ा। उनके चमत्रों कश्र यह चवशेर्ता न्श्र चक
वे स्न्ान-स्न्ान पर चणखरे हग ए तन्ा चवचोन्न मतप्रणाचलयों को मानने वाले न्े। सािारणतया चदखता तो
यह है चक दो चोन्न मतों के माननेवाले गपस में मैत्रश्र-सम्णन्ि नहीं रखते और रहा ोश्र तो वह ऊपरश्र
एवां चदखाऊ मात्र होता है । गीकल तो उससे ोश्र गगे णढकर नपने स्वर में न चमलनेवाले व्यचि
को िार हान् दूर रखने तन्ा उसकश्र झूुश्र-सरश्र सण प्रकार कश्र णगराई एवां नवहे लना करने कश्र
नसचहष्ट्णगता कश्र वृचत्त ोश्र दगोाग्य से समाी में प्रचतष्ठा प्राप्त कर रहश्र है । परन्तग डॉक्टरीश्र कश्र चमत्रता कश्र
छाया तले गरम और नरम सोश्र चविारवाले सगख और गनन्द का ननगोव कर सकते न्े। िनवान्
ोश्र वहााँ गकर रम ीाते न्े और गरश्रणों को तो वह गीय-स्न्ान हश्र लगता न्ा। उन्होंने नपने प्रेमपूणभ
व्यवहार से चवचवि मतों के लोगों को खगले चदल से नपने चविारों का गदान-प्रदान करने का नवसर
प्राप्त करा चदया न्ा। इसका लाो उुाने कश्र दृचष्ट से हश्र शरतपूर्तणमा के नवसर पर डॉक्टरीश्र के चनमांत्रण
पर सण लोग उनके घर के गाँगन में इकट्ठा होते न्े। यगद्धकाल के नन्त में ढ हग ई शरतपूर्तणमा के
चमत्र-सम्मेलन कश्र प्रन्ा 1925-26 तक नखण्ड प से िलतश्र रहश्र तन्ा उसने नागपगर के राीनश्रचतक
वातावरण में ीो नन्यत्र सहसा नहीं चदखतश्र ऐसश्र सहयोग एवां सौहादभ कश्र वृचत्त उत्पन्न करने में ोारश्र
योगदान चदया न्ा।

ोारत में चनरभ्र शारदश्रय पूर्तणमा नत्यन्त गन्नद का पवभ मानश्र ीातश्र है । इस हाँ सतश्र हग ई िााँदनश्र में
डॉक्टरीश्र के सत्तर-नस्सश्र चमत्रों के सान्-सान् राीा लक्ष्मणराव ोोंसले, डॉ. मगांीे गचद तत्कालश्रन
णड़े एवां णगीगगभ लोग ोश्र उपन्स्न्त होते न्े। औटाये हग ए केशरश्र दूि के चवतरण के पहले ननेक चवर्यों
पर ििा होतश्र न्श्र। ऐसे नवसर पर परस्पर हाँ सश्र-मीाक होना तो स्वाोाचवक हश्र है । इस समय कश्र

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णातिश्रत एवां व्यवहार से डॉक्टरीश्र णराणर प्रत्येक व्यचि के स्वोाव कश्र परख करते रहते न्े। कोश्र-
कोश्र चपछले कायभक्रम एवां गन्दोलनों का कसहावलोकन होता न्ा तन्ा गगे क्या करना िाचहए इसका
चविार होकर चनणभय ोश्र चलए ीाते न्े। कायभक्रम के नन्त में दूि तन्ा पान-सगपारश्र के णाद डॉक्टरीश्र
सणका गोार मानना ोश्र नहीं ोूलते न्े। उनका ोार्ण ोोीन के नन्त में लौंग-इलायिश्र पेश करने
के समान हश्र छोटा परन्तग नन्भगर्तोत एवां िगटकश्र लेनेवाला रहता न्ा। एक णार सणका िन्यवाद करने
के णाद डॉक्टरीश्र चवख्यात मीदूर नेता ीश्र रामोाऊ रुईकर कश्र ओर मगड़े और कहा ‘‘शरतपूर्तणमा
का मश्रुा और मोद-ोरा कायभक्रम नण पूरा हो रहा है । नतः दूि कश्र कढाई तन्ा णतभन िोने-मााँीने का
काम नण मेरे चमत्र रामोाऊ रुईकर करें गे क्योंचक वे ीचमक नेता हैं ।’’ इस िगोते हग ए चवनोद से िारों
ओर ुहाका मि गया। राीनश्रचतक मत चोन्नता से उतपन्न होनेवाले सांघर्भ कश्र तश्रव्रता इस प्रकार के
सम्मेलनों से कम हो ीातश्र न्श्र तन्ा नयश्र और पगरानश्र पश्रढश्र के नेताओां को परस्पर चविारों के गदान-
प्रदान का नवसर चमल ीाता न्ा।

सरकार कश्र नश्रचत के कारण दे श का वातावरण नत्यन्त क्षग ब्ि होता ीा रहा न्ा। ‘चखलाफत गन्दोलन’
तन्ा महात्मा गाांिश्रीश्र द्वारा शग चकये हग ए सत्याग्रह से इस वातावरण कश्र तश्रव्रता चदनों-चदन और ोश्र
णढतश्र ीातश्र न्श्र। 1919 के चदसम्णर में नांग्रेीों ने ‘शान्न्त चदवस’ मनाने का गदे श चदया न्ा चकन्तग
उसकश्र िचज्जयााँ उड़ाने कश्र दृचष्ट से नागपगर के नेताओां ने उसश्र चदन ‘सरकार का चनर्ेि चदवस’ मनाने कश्र
सलाह ीनता को दश्र। इसके चलए प्रिाचरत पत्रक पर डॉक्टरीश्र के ोश्र हस्ताक्षर हैं ।

‘क्या हम शान्न्त चदन मना सकते हैं ?’ इस प्रकार का िगोता हग ग शश्रर्भक उस पत्रक का न्ा। उस वर्भ
डॉक्टरीश्र नमृतसर में काांग्रेस के नचिवेशन में ोश्र गये न्े। नचिवेशन के समय वे ीचलयााँवाला णाग
कश्र यात्रा करना नहीं ोूले। इस नचिवेशन में होनेवालश्र ििा से यह चदखने लगा न्ा चक सामान्यतः
गाांिश्रीश्र के चविारों को लोगों का समन्भन प्राप्त हो ीायेगा।

इस नचिवेशन के पूवभ हश्र ‘चखलाफत गन्दोलन’ के सान् गाांिश्रीश्र का गुणन्िन हो गया न्ा। इसचलए
महात्माीश्र ने 24 नवम्णर 1919 को चहन्दू-मगसलमानों के नचखल ोारतश्रय सांयगि ‘चखलाफत
गन्दोलन’ का समन्भन कर चहन्दगओां से मगसलमानों कश्र चनःस्वान्भ सहायता करने कश्र मााँग कश्र न्श्र। इस
वातावरण में हश्र 1920 का काांग्रेस का नचिवेशन नागपगर में करने का चनिय हग ग तन्ा उसकश्र पूणभ
चसद्धता का िक्र ीोरों से घूमने लगा। 1907 में नागपगर के नेताओां ने लोकमान्य चतलक कश्र नध्यक्षता
में काांग्रेस का नचिवेशन करने के चलए काफश्र प्रयत्न चकये न्े। परन्तग उस समय गरम और नरम दोनों
दलों के णश्रि मारपश्रट होकर काांग्रस
े के ऊपर नरम दलवालों का प्रोगत्व होकर नागपगरवालों कश्र इच्छा
पूणभ नहीं हो सकश्र न्श्र और उसमें से सूरत का णखेड़ा उत्पन्न हो गया न्ा। उस समय चवफल होनेवाले

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दााँव को इस समय सफल करने कश्र इच्छा के कारण नागपगर में इस नचिवेशन के चलए एक नया ीोश
और ीोर चदखने लगा न्ा।

डॉ. ल. वा. पराांीपे के नेतृत्व में 1920 कश्र ीनवरश्र में ‘ोारत स्वयांसेवक मण्डल’ कश्र स्न्ापना कश्र
गयश्र। इस मण्डल का उद्देश्य सावभीचनक कायों को व्यवन्स्न्त प से करने के चलए गवश्यक
सहायता दे ना न्ा। इस मण्डल में डॉक्टरीश्र पराांीपे के सहकारश्र के नाते से न्े। इसके सान् हश्र मध्यप्रान्त
में स्वागत सचमचत कश्र ओर से प्रिार-दौरा ोश्र प्रारम्ो हो गया। 1920 के मई मास में हग ए दौरे का
समािार दे ते हग ए ‘महाराष्ट्र’ चलखता है चक ‘‘................ ीहााँ-ीहााँ दौरा हग ग वहीं लोगों ने गााँव को
सीाकर नचतचन्यों का स्वागत चकया। चकसान ोाइयों के द्वारा चदखाया गया उत्साह एवां उत्सगकता
नपूवभ न्श्र। डॉ. मगांी,े डॉक्टर हे डगेवार, गणपचतराव ीोशश्र तन्ा णाणासाहण दे शपाण्डे के व्याख्यान
नत्यन्त प्रोावश्र रहे ।’’ इस दौरे में छब्णश्रस चदनों में सत्ताईस स्न्ानों का दौरा चकया गया और लगोग
पन्द्रह-सोलह हीार ीनता के सम्मगख इन लोगों ने ोार्ण चदये न्े। इन सोाओां में कोश्र डॉ. मगांीे तो
कोश्र डॉ. हे डगेवार नध्यक्ष होते न्े।

इन प्रिार-दौरों के सान् हश्र ीगलाई के प्रारम्ो से काांग्रेस नचिवेशन के हे तग हीार-णारह सौ स्वयांसेवक


ोती करने का काम ोश्र प्रारम्ो हो गया न्ा। यह चनिय चकया गया चक इन स्वयांसेवकों को नपनश्र वदी
स्वयां हश्र णनवानश्र पड़ेगश्र। उस समय इस प्रकार कश्र स्वयांसेवक-पद्धचत नयश्र होने के कारण िारों ओर
से यह कगरकगर शग हो गयश्र चक वदी णनवाना तो णड़ा महाँ गा पड़ेगा। तण एक पत्रक के द्वारा यह णताया
गया चक ‘‘ये स्वयांसेवक केवल नचिवेशन-ोर के चलए नहीं रहें गे नचपतग उनके पन्क स्न्ायश्र प से
रखे ीायेंग।े ’’ उस पत्रक में चलखा न्ा ‘‘यह गणवेश-सम्णन्िश्र चनयम गरश्रणों के मागभ में नड़िन पैदा
करने के चलए नहीं है । काांग्रेस का नचिवेशन समाप्त होने के उपरान्त ोश्र नये हग ए स्वयांसेवकों के पन्क
णनाये रखने कश्र योीना करने का चविार है ।.......... समय ऐसा ग गया है चक गााँव -गााँव में नपनश्र
राष्ट्रश्रय सांस्न्ाओां कश्र सहायता करने तन्ा ीलसे-ीगलूसों में ुश्रक व्यवस्न्ा णनाये रखने के चलए
स्वयांसेवकों के पन्क तैयार होने िाचहए।

िारों ओर के उत्साह के वातावरण में चदनाांक 31 ीगलाई को एकाएक वरमुाघात हो गया। ोारत के
ननचोचर्ि सम्राट् लोकमान्य चतलक णम्णई में न्ोड़े हश्र चदन कश्र णश्रमारश्र के णाद 31 ीगलाई कश्र राचत्र
को गोलोकवासश्र हग ए। सम्पूणभ दे श दगःख के सागर में समा गया। पर नागपगरवालों के दगःख का तो कगछ
पूछना हश्र नहीं। उस समय ीश्र नच्यगत णळवन्त कोल्हटकर ने चलखा न्ा चक ‘‘लोकमान्य नध्यक्ष हों
इसके चलए नागपगरवाले णराणर णारह-तेरह वर्भ से तपस्या कर रहे न्े। 1920 में दगोाग्य से वह चवफल
हो गयश्र।..... लोकमान्य कराल काल द्वारा कवचलत हग ए। ‘ये हश्र नध्यक्ष हों, ये हश्र नध्यक्ष हों, इस

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प्रकार कश्र माला ीण नागपगर-काांग्रस
े ीप रहश्र न्श्र उसश्र समय लोकमान्य के स्वगभवास से िरतश्र पर दसों
चदशाओां में घोर नन्िकार छा गया। ’’

लोकमान्य के चनिन कश्र वाता सगनते हश्र डॉक्टरीश्र डॉ. मगांीे के यहााँ गये। मागभ में एक स्न्ान पर पााँि -
छः स्कूलश्र लड़के गेंद खेल रहे न्े। उन्हें दे खकर डॉक्टरीश्र को ीरा रोर् ग गया और वे णोले ‘‘नरे
! लोकमान्य कश्र मृत्यग हो गयश्र और तगम लोग खेल खेल रहे हो।’’ इस पर एक-दो लड़कों ने कगछ
णकवास शग कश्र। डॉक्टर ने उनकश्र ओर कगछ ऐसश्र नीर से दे खा चक वे एकदम सहम गये और उनकश्र
णकवास तो रुक हश्र गयश्र पर वे खेल णन्द करके घर ोश्र िले गये। उस समय डॉक्टरीश्र द्वारा चकया
गया प्रश्न एक तरुण के मन में इतना घर कर गया चक उससे गगे िलकर उसका ीश्रवनप्रवाह हश्र
णदल गया। गेंद-णल्ला खेलनेवाले यह तरुण डॉक्टरीश्र के सान् सांघ-स्न्ापना के णाद प्रिारकायभ के
चलए चनकले हग ए दादाराव परमान्भ हश्र न्े।

लोकमान्य चतलक कश्र मृत्यग के दसवें चदन सोमवार चदनाांक 9 नगस्त को नागपगर में हड़ताल, सोा,
शोकयात्रा गचद कायभक्रमों कश्र योीना णनाने तन्ा उन्हें पूरा करने में डॉक्टरीश्र ने गगे णढकर काम
चकया। इसश्र समय चदनाांक 11 नगस्त से 18 नगस्त तक नागपगर में नसहयोग-सप्ताह ोश्र मनाया गया।
इस सप्ताह में लोग कैसे ोाग लें तन्ा क्या-क्या कायभक्रम करें इसका मागभदशभन करने के चलए एक
पत्रक प्रकाचशत चकया गया न्ा। उस पत्रक में ‘मांत्रश्र नॉन-कोऑपरे शन णोडभ’ के नाते िार लोगों के
हस्ताक्षर हैं । उनमें डॉक्टरीश्र का ोश्र नाम है ।

लोकमान्य कश्र मृत्यग के चदन हश्र ‘चखलाफत सचमचत’ द्वारा नांग्री


े सरकार को चदये गये एक महश्रने के
नन्न्तमेत्न्म् कश्र नवचि समाप्त हग ई तन्ा नसहयोग-पवभ प्रारम्ो हो गया। चसन्ि, उत्तर-पचिम
सश्रमाप्रान्त, पांीाण गचद प्रान्तों में मगसलमानों में यह चविार फैला चक ‘‘नांग्री
े ों का राज्य गैर-
मगसलमानश्र होने के कारण चहन्दगस्न्ान ‘दार-उल-हरण’ (यगद्धोूचम) है । इस राज्य में रहना इस्लाम के
चवरुद्ध है नतः यहााँ से ‘चहीरत’ करके दार-उल-इस्लाम में नन्ात् नफगाचनस्तान गचद दे शों में िला
ीाना िाचहए।’’ फलतः कगछ हश्र चदनों में लगोग नुारह हीार मगसलमानों ने नपना घरणार छोड़कर
नफगाचनस्तान कश्र ओर प्रयाण कर चदया। उनके इस ‘चहीरत’ के कायभक्रम को तत्कालश्रन ‘चखलाफत
सचमचत’ के नेताओां का गशश्रवाद न्ा। पर चहन्दगस्न्ान के मगसलमानों कश्र मीहण-परस्तश्र और ‘चहीरत’
कश्र ोावना दूसरे दे शवालों को समझ में नहीं गयश्र। दे श के णाहर पैर रखते हश्र कणश्रलेवालों ने उन पर
गक्रमण णोल चदया। ‘दार-उल-इस्लाम’ का स्वप्न लेकर गनेवाले मगसलमान होंे-णोंे रह गये।
उनका सगखस्वप्न िूल में चमल गया। नपना सण कगछ हम-मीहण गक्रमणकाचरयों को सौंप नपनश्र
ीान णिाकर ीैसे-तैसे वापस गये।

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‘चखलाफत सचमचत’ के नसहयोग गन्दोलन के िलते हग ए लोकमान्य चतलक के चनिन के उपरान्त
चसतम्णर मास में काांग्रेस का एक चवशेर् नचिवेशन कलकत्ता में णगलाया गया। इस नचिवेशन में
चतलकानगयायश्र प्रचतसहयोगवादश्र पश्रछे पड़ गये तन्ा नसहयोगवादश्र गाांिश्रीश्र का प्रोगत्व काांग्रेस पर
स्न्ाचपत हो गया। फलतः काांग्रेस ने ‘चखलाफत सचमचत’ द्वारा प्रयाग-नचिवेशन में स्वश्रकृत नसहयोग
के कायभक्रम को ोश्र नपना चलया।

कलकत्ता-काांग्रेस के चनणभयों का रुख दे खकर नागपगरवालों के समक्ष यह चविार गया चक कम-से-


कम नागपगर-नचिवेशन के चलए तो ऐसा व्यचि नध्यक्ष के नाते ांढ
ू ा ीाये चीनका मत चतलकवाचदयों
से मेल खाता हो तन्ा ीो उसश्र स्तर का हो। चविार के पिात् ीश्र नरचवन्द घोर् का नाम सामने गया।
यह चनचित हग ग चक एक णार डॉ. मगी
ां े वहााँ ीाकर उनका इस सम्णन्ि में चविार लें। 1910 से नरचवन्द
णाणू पाण्डेिरे श्र में नध्यात्मचिन्तन में लश्रन न्े। चकन्तग वे चतलकमत के तन्ा प्रचतसहकारवादश्र न्े। नतः
चतलकीश्र कश्र मृत्यग के उपरान्त काांग्रेस में गरम दल कश्र न्स्न्चत दे खकर पगनः राीनश्रचत में पदापभण करने
कश्र सम्ोावनाओां कश्र टोह लेना उपयगि हश्र न्ा।

डॉ. मगांीे ने योगश्र नरचवन्द से ीाकर चमलने का चविार चकया। उनका यह चविार डॉक्टर हे डगेवार तन्ा
उनके नन्य क्रान्न्तप्रवण साचन्यों को ोश्र णहग त पसन्द गया। डॉ. मगी
ां े के सान्-सान् नागपगर के तरुणों
कश्र ओर से गमन्त्रण दे ने के चलए डॉक्टर केशवराव ोश्र पाण्डिेरश्र गये। यह पाण्डिेरश्र कश्र ोेंट 1920
के चसतम्णर में हग ई चदखतश्र है ।

योगश्र नरचवन्द से चमलने के चलए ीण ये दोनों ीने गाड़श्र से ीा रहे न्े उस समय कश्र एक घटना चहन्दू
समाी के नन्तरां ग में स्वाोाचवक एवां दृढ णद्धमूल दे शोचि के ोाव को प्रकट करनेवालश्र होने के
कारण उसका उल्लेख यहााँ उपयगि रहे गा। इस समय डॉ. मगांीे प्रन्म ीेणश्र में यात्रा कर रहे न्े तन्ा
डॉक्टर हे डगेवार तश्रसरे दरीे में न्े। रास्ते में गाड़श्र ुहरने पर डॉक्टर हे डगेवार मगांीी
े श्र के पास ीाकर
उनसे पूछताछ करते रहते न्े चक चकसश्र िश्री कश्र गवश्यकता तो नहीं है । मद्रास के पहले ीण गाड़श्र
रुकश्र तो डॉक्टरीश्र डॉ. मगी
ां े के चडब्णे में ीाकर उनका चणस्तर वगैरह णााँिने लगे। उनका काम पूरा
होने के पहले हश्र गाड़श्र िल दश्र। नतः वे तश्रसरे दीे के नपने चडब्णे में नहीं ीा पाये। सांयोग से उसश्र
समय चटचकट-िेकर उनके चडब्णे में िढ गया। केशवराव के पास तश्रसरे दीे का चटचकट दे खकर वह
उनसे पहले दीे में िलने के कारण शेर् चकराया तन्ा ीगमाना मााँगने लगा। डॉ. मगांीे ने उसके समक्ष
वास्तचवक न्स्न्चत रखश्र तन्ा समझाने का प्रयत्न चकया, चकन्तग वह नपने चनयम पर नड़ता हग ग कगछ
तैश में गकर पैसे मााँगने लगा। डॉ. मगांीे को उसका यह व्यवहार सहन कहााँ होनेवाला न्ा। उन्होंने ोश्र
कड़कते हग ए कहा ‘‘ीा, तगझे क ोश्र पाई नहीं चमलेगश्र। याद रखो तगम नौकर हो और हम तगम्हारे स्वामश्र।’’
चणिारे चटचकट-िेकर को नोश्र तक ऐसा कोई प्रवासश्र नहीं चमला न्ा। सािारणतया तो लोग पकड़े
ीाने पर ननगनय-चवनय हश्र करते रहते न्े। परन्तग डॉ. मगांीे के शब्द सगनकर वह ोश्र सन्तप्त हो गया तन्ा

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णोला ‘‘मेरे ऊपर रोण मत गााँचुए। याद रचखए यह मगन्स्लम दे श नहीं है ।’’ डॉ. मगांीे कश्र ऊाँिश्र गोल
कालश्र टोगश्र तन्ा लम्णश्र दाढश्र और घगटा हग ग चसर दे खकर उसे यह भ्रम हग ग चक वे मगसलमान हैं ।
उसके इस उत्तर से दोनों हश्र डॉक्टर मन-हश्र-मन हाँ सने लगे। उन्हें मन में एक प्रकार का सन्तोर् लगने
लगा। उस समय िारों ओर यहश्र प्रिार न्ा चक चहन्दगस्न्ान में रहनेवाले सण लोग इसके स्वामश्र है ।
परन्तग सांघर्भ का नवसर गया चक चहन्दू-मन कश्र दे शोचि चकस प्रकार ीाग्रत् हो ीातश्र है तन्ा यह दे श
केवल चहन्दगओां का है यह इचतहास-पूत सत्य चनोभयता से उस दे शोचि के कारण चकस प्रकार सही
प से मगख पर ग ीाता है , इसका प्रत्यक्ष उदाहरण दे खकर उनका हृदय गनांद-चवोोर हो गया।
प्रवास के समय यह प्रसांग डॉक्टरीश्र के मन में इतना णैु गया न्ा चक ननेक णार चहन्दगओां कश्र स्वतः
प्रमाण राष्ट्रश्रयता का चववेिन करते हग ए वे इसका उल्लेख करते न्े।

पाण्डिेरश्र में डॉक्टरीश्र िार-पााँि चदन ुहरे । इस नवचि में योगश्र नरचवन्द के सम्मगख दे श कश्र पचरन्स्न्चत
रखकर उन्हें नेतृत्व ग्रहण करने का गग्रह उन्होंने चकया होगा। उस चविार-चवचनमय के समय उपन्स्न्त
कोई ोश्र व्यचि नहीं चमल पाया। नतः उनके णश्रि चकतनश्र और क्या-क्या णातें हग ईां इसका पूरा चववरण
दे ना सम्ोव नहीं। परन्तग स्पष्ट है चक योगश्र नरचवन्द का पाण्डिेरश्र न छोड़ने का चनिय दृढ रहा। इसके
पूवभ ोश्र राीनश्रचत में उन्हें वापस लाने का प्रयत्न ननेक व्यचियों ने चकया न्ा। 1920 में स्वयां लोकमान्य
चतलक के कहने पर ीश्र ीॉसेफ णचिस्टा ने उन्हें एक राष्ट्रश्रय समािारपत्र का सम्पादन स्वश्रकार करने
कश्र प्रान्भना कश्र न्श्र। उसका नरचवन्द णाणू ने उत्तर चदया न्ा चक ‘‘मेरे सामने कामों का इतना ेर है चक
कम-से-कम नोश्र तो सरकार का मेहमान णनकर समय णणाद करने कश्र मेरश्र चणल्कगल इच्छा नहीं।
मगझे ोारत के चलए ीो-ीो करना है वह मैं नपने प्रकार से कर रहा हू ाँ । मेरा मनोगत पूणभ हग ए चणना
नोश्र तो मैं कोई ोश्र दाचयत्व नपने चसर पर नहीं ले सकता। ोारत में वापस गया तो ननेक णातों में
हान् डालना होगा।’’ इसश्र प्रकार का उत्तर इन्हें ोश्र चमला होगा।

चदनाांक 10 निूणर को नागपगर में स्वागत-सचमचत कश्र सोा हग ई। उसमें नचिवेशन के नध्यक्षपद के
चलए णारह प्रान्तों में से छः प्रान्तों ने ीश्र चवीय राघवािायभ के नाम का प्रस्ताव चकया न्ा। चसन्ि ने ीश्र
नरचवन्द घोर्, णांगाल ने णैचरस्टर िक्रवती तन्ा गन्ध्र ने मोहम्मद नलश्र का नाम ोेीा न्ा। इस नवसर
पर डॉक्टरीश्र कश्र ध्येयचनष्ठा चकतनश्र चवशगद्ध एवां कुोर न्श्र इसका एक ननगोव गया। डॉ. मगांीे ने सोा
के सम्मगख चविार रखा चक छः प्रान्तों से ीश्र चवीयराघवािायभ का नाम गया है नतः हमें ोश्र उसे हश्र
मान्य कर लेना िाचहए। चकन्तग इसका डॉक्टर हे डगेवार ने चवरोि करते हग ए कहा ‘‘चवीयराघवािायभ
नोश्र कगछ चदन पूवभ गवभनर कश्र पाटी में गये न्े। न्ोड़ा ोश्र दाग लगा हग ग व्यचि हमें काांग्रेस के नध्यक्ष
के नाते नहीं िगनना िाचहए। नतः इस स्न्ान पर णांगाल के ीश्र िक्रवती का नाम सगझाकर िगनाव का
यह काम नचखल ोारतश्रय काांग्रेस सचमचत के पास ोेी दे ना िाचहए।’’ नन्त में ीैसे-तैसे ीश्र
चवीयराघवािायभ चवीयश्र हग ए। डॉक्टर को ीण ोश्र कोई मतोेद प्रतश्रत होता न्ा तो वे णेखटक उसे

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प्रकट कर दे ते न्े। प्रान्तश्रय काांग्रेस कश्र णैुक में ननेक णार उनका यह मतोेद प्रकट होता न्ा। चकन्तग
इस मतोेद के पश्रछे सदै व उनके चविारों कश्र चवशगद्धता तन्ा प्रामाचणकता हश्र कारण रहतश्र न्श्र। सान् हश्र
ननगशासन के सम्णन्ि में ोश्र उनमें णड़श्र दृढता एवां गस्न्ा न्श्र। चदनाांक 28 नवम्णर कश्र णैुक में प्रान्तश्रय
काांग्रेस ने णारह लोगों को नचखल ोारतश्रय काांग्रस
े सचमचत के चलए नामाांचकत चकया। उस समय ोश्र
उन्होंने कहा ‘‘.......... प्रान्तश्रय काांग्रेस सचमचत के ीो सदस्य लोकमत कश्र नवहे लना करके कौंचसल
के चलए खड़े रहे उनको प्रचतचनचि नहीं िगनना िाचहए।’’ परन्तग राीनश्रचत में घगसश्र हग ई नवसरवादश्र
मनोवृचत्त को ननगशासन तन्ा चवशगद्धता कश्र ये णातें कहााँ सहन हो सकतश्र न्ीं ?

नागगपर-काांग्रेस के सान्-सान् ‘नचखल ोारतश्रय महाचवद्यालयश्रन चवद्यान्ी पचरर्द्’ के गयोीन का


चनणभय नागपगर के चवद्यार्तन्यों ने नपनश्र एक चवराट् सोा में चलया। इस पचरर्द् के प्रिार के चलए ीश्र
रामोाऊ गोखले ने सरकारश्र नौकरश्र से त्यागपत्र दे कर िारों ओर दौरा करना प्रारम्ो कर चदया। ‘यांग
पेचरयट’ में यह समािार प्रकाचशत होते हश्र डॉक्टरीश्र ने नपने णड़े ोाई सश्रतारामीश्र के द्वारा रामोाऊ
के चपताीश्र से घर कश्र पचरन्स्न्चत तन्ा त्यागपत्र से होनेवालश्र उनकश्र प्रचतचक्रया के णारे में पूछताछ
करवायश्र। रामोाऊ नपने काम के हे तग सणसे पहले णम्णई गये तन्ा उन्होंने गाांिश्रीश्र से चोन्न-चोन्न
प्रान्तों के प्रमगख व्यचियों के नाम पचरियपत्र दे ने कश्र प्रान्भना कश्र। परन्तग उन्होंने पचरियपत्र दे ना
नस्वश्रकार कर चदया। इससे रामोाऊ चखन्न होकर नागपगर लौट गये तन्ा डॉक्टरीश्र को सण णात
णतायश्र। डॉक्टरीश्र का तो यह स्वोाव न्ा चक यचद कोई व्यचि स्वयांप्रेरणा से काम करने को गगे
गये तो उसे प्रोत्साहन चदया ीाये। उन्होंने रामोाऊ को ाढस णाँिाया तन्ा चदल्लश्र, कलकत्ता, ाका,
मेमनकसह, पटना, वाराणसश्र, प्रयाग गचद स्न्ानों के चलए पचरियपत्र दे कर पचरर्द् के प्रिार के चलए
ीाने को प्रोत्साचहत चकया। इस चवर्य में ीश्र गोखले चलखते हैं चक ‘‘..........डॉक्टरीश्र ने दौरे के चलए
नपना रे शमश्र साफा चदया तन्ा उस ोाग में नपने चवर्य का प्रचतपादन चकस प्रकार चकया ीाये इस
सम्णन्ि में सूिनाएाँ ोश्र दीं। उनका मगझे चकतना उपयोग हग ग यह शब्दों में व्यि करना कचुन हैं ।’’

काांग्रेस का नचिवेशन चदनाांक 26 चदसम्णर को प्रारम्ो होनेवाला न्ा। उसके पूवभ प्रान्तश्रय काांग्रेस सचमचत
ने एक नसहयोग-मण्डल चनयगि चकया न्ा। उस मण्डल में डॉक्टरीश्र कश्र ोश्र चनयगचि हग ई न्श्र तन्ा
सोाओां को चनचित करने एवां उनका गयोीन करने का काम प्रमगखतया उन पर सौंपा गया न्ा।
डॉक्टरीश्र को राष्ट्र कश्र स्वतांत्रता के चलए ीैसे कहसा से घृणा नहीं न्श्र वैसे हश्र उस उद्देश्य कश्र पूर्तत के
चलए नसहयोग से ोश्र उनका नसहयोग नहीं न्ा। चवदे चशयों को चकसश्र ोश्र मागभ से णाहर चनकालने के
चलए गगे गनेवाले व्यचि का डॉक्टरीश्र को नचोमान हश्र होता न्ा और इसचलए उसके सान् वे
ोरसक सहयोग करते न्े। वैसे ोश्र डॉक्टर व उनके सहयोचगयों का चविानसोाओां के द्वारा
स्वतांत्रताप्राचप्त के मागभ पर चवश्वास नहीं न्ा। नतः मॉण्टे ग्यू-िेम्सफोडभ सगिारों के प्रचत नसहयोग कश्र
नश्रचत में इनके चलए खटकने वालश्र कोई िश्री नहीं न्श्र। नरम नश्रचत नपनाकर िलने वालश्र काांग्रेस के

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सान् सहयोग कश्र चनचत के पश्रछे डॉक्टरीश्र और उनके साचन्यों का एक और उद्देश्य हो सकता है । उन
चदनों सरकार को क्रान्न्तकारश्र के प में चीसकश्र ोश्र शांका हो ीातश्र न्श्र उसके पश्रछे गगप्तिरों का दल
छाया कश्र ोााँचत पड़ा रहता न्ा। सरकार कश्र दृचष्ट से सौम्य तन्ा नकहसा का नखण्ड रट लगाने वालश्र
केवल काांग्रेस का हश्र एक ऐसा गन्दोलन न्ा चीसमें यचद वे लोग चमल गये तो सरकार को यह गोास
करवाया ीा सकता न्ा चक वे लोग ोश्र नकहसा-मागानगयायश्र णन गये हैं । इस गोास से सरकार के
मन से शांका दूर हो गयश्र तो शेर् काम करने को काफश्र छू ट चमलना सम्ोव हो सकता न्ा।

काांग्रेस के नचिवेशन के कगछ चदनों पहले डॉक्टर हे डगेवार, ीश्र लळवन्तराव मण्डलेकर गचद
व्यचियों ने नागपगर के ‘व्यांकटेश नाट्यगृह’ में एक सोा करके ‘चवशगद्ध स्वातन्त्र्य हश्र हमारा उद्देश्य है ’
इस णात कश्र घोर्णा करनेवाला एक प्रस्ताव स्वश्रकृत चकया। काांग्रेस ोश्र इसश्र प्रकार का प्रस्ताव
स्वश्रकार करे यह कहने के चलए इनमें से िार लोग गाांिश्रीश्र से ीाकर चमले। गाांिश्रीश्र ने उनकश्र णात
सगनकर केवल यहश्र टश्रका कश्र चक स्वराज्य में चवशगद्ध स्वातांत्र्य का समावेश हो ीाता है ।

चदनाांक 26 चदसम्णर को काांग्रेस-नचिवेशन प्रारम्ो हो गया। गीकल ‘काांग्रेस नगर’ नाम से नागपगर
में ीो मोहल्ला चवख्यात है वहााँ नचिवेशन का मण्डप न्ा। ‘‘इस स्न्ान पर 14583 प्रचतचनचि, तश्रन हीार
स्वागत सचमचत के सदस्य तन्ा सात-गु हीार दशभक उपन्स्न्त न्े’’ इस प्रकार का वणभन चमलता है ।
यह नचिवेशन सांख्या कश्र दृचष्ट से चपछले सोश्र नचिवेशनों से णढकर न्ा। काांग्रेस के इचतहास से यह
पता िलता है चक यह नचिवेशन इतना णढा हग ग न्ा चक गगे सन् 1928 तक के सोश्र नचिवेशन
उसके सामने फश्रके लगते न्े। स्वयांसेवकों के प्रमगख के नाते डॉ. पराांीपे तन्ा डॉ. हे डगेवार को इतने
लोगों कश्र व्यवस्न्ा करने में णहग त पचरीम करना पड़ा। खाकश्र गणवेश तन्ा साफा पहनाकर स्वयांसेवक
तो खड़े कर चदये न्े चकन्तग सांिलन और नभ्यास के नोाव में शरश्रर को ननगशासन कश्र कतई गदत
नहीं न्श्र। नतः लोगों कश्र व्यवस्न्ा करने के सान्-सान् इन स्वयांसेवकों को सम्हालना ोश्र एक काम
न्ा, चीसमें डॉक्टरीश्र को णहग त खपना पड़ता न्ा। डॉक्टरीश्र ने ोोीन-व्यवस्न्ा तन्ा वसचतगृह कश्र
ओर चवशेर् ध्यान चदया। सांख्या और समय कश्र दृचष्ट से उन्होंने इतनश्र उत्तम व्यवस्न्ा कश्र चक सण लोगों
के मगाँह पर केवल प्रांशसा के हश्र शब्द न्े। व्यवस्न्ा के सान् उनका सेवाोाव और चवनम्रता दे खकर तो
प्रत्येक प्रचतचनचि उनका कायल हो गया न्ा। इस समय उन्हें ीो ननगोव गया उससे स्वयांसेवक कैसा
हो तन्ा उसका चनमाण कैसे चकया ीाये इसका चविार उनके मन में उुने लगा। उस समय कश्र यह
पद्धचत न्श्र चक काम पड़ा तो कगछ तरुण इकट्ठे चकये ीायें तन्ा उनका ीैसा स्वोाव व गदत हो वैसा
हश्र उनको स्वश्रकार कर काम िलाया ीाये और चफर उन्हें छग ट्टश्र दे दश्र ीाये। यह उन्हें नच्छा नहीं लगा।
इसश्र प्रकार उन्हें यह ोश्र ननगोव गया चक दूसरों कश्र सहायता के चलए गगे गनेवाला स्यवांसेवक
यचद ननगशासनशश्रल एवां दृढ नहीं हग ग तो शरश्रर कश्र हड्डश्र के नरम एवां चशचन्ल पड़ ीाने पर ीो हाल

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होता है वहश्र हाल कायभ का हो ीाता है । इन ननगोवों में से हश्र गगे गदशभ स्वयांसेवक कश्र कल्पना ने
मूतभ स्व प ग्रहण चकया।

काांग्रेस-नचिवेशन में नचखल ोारतश्रय कायभसचमचत कश्र एक घटना ने डॉक्टरीश्र के चविारों को ीोर
का िोंा चदया। ‘‘ननद का ननदोई। मेरा लगे न कोई’’ यह उचि िचरतान्भ होते हग ए ोश्र मगसलमानों को
चनकट लाने चक चलए काांग्रेस ने चखलाफत का प्रश्न हान् में ले चलया न्ा। परन्तग उसश्र काांग्रेस से ीण ीश्र
ण े ने यह प्रान्भना कश्र चक गोरक्षण का प्रश्न राष्ट्रश्रय है नतः काांग्रेस को उस सम्णन्ि में ोश्र कगछ करना
िाचहए तो कहा गया चक ‘‘इससे मगसलमानों कश्र ोावनाएाँ दगखग
ें श्र नतः यह प्रश्न काांग्रेस हान् में नहीं ले
सकतश्र।’’ इस पर वाद-चववाद शग हो गया। तण महात्मा ीश्र ने ीश्र ण े से कहा वे मण्डल छोड़कर
िले ीायें। पर ण े न तो नपना हु छोड़ते न्े और नपनश्र ीगह से हश्र चहलते न्े। उनकश्र गत्मा उन्हें
पगकार-पगकारकर कह रहश्र न्श्र चक गोमाता कश्र यह उपेक्षा सत्य कश्र हश्र कहसा है । इस प्रकार के तांग
वातावरण में गाांिश्रीश्र ने नपनश्र ननत्यािारश्र वृचत्त के ननगसार उन्हें हान् पकड़कर णाहर न चनकालते
हग ए न.ोा. कायभकाचरणश्र कश्र णैुक हश्र स्न्चगत कर दश्र। डॉक्टर को इस घटना से णड़श्र िोट पहग ाँ िश्र। वे
कोश्र-कोश्र यह णात णताकर कहते न्े चक ‘‘उस समय प्रत्येक प्रश्न कश्र एक हश्र कसौटश्र न्श्र चक
मगसलमान प्रसन्न होकर हमारश्र ओर कैसे गयें।’’

णै. चित्तरांीन दास द्वारा प्रस्तगत नसहयोग कश्र नौ िाराओां के प्रस्ताव का गाांिश्रीश्र ने ननगमोदन चकया
तन्ा लाला लाीपतराय, ीश्र शांकरािायभ)पगरश्र), स्वामश्र ीद्धानन्द, ीश्र श्यामसगन्दर िक्रवती तन्ा ीश्र
ीमनादास मेहता ने समन्भन चकया। प्रस्ताव स्वश्रकृत होने पर ‘चखलाफत सचमचत’ तन्ा काांग्रेस के
गुणन्िन पर नचिकृत प से मोहर लग गयश्र।

एक और चवर्य का उल्लेख करना गवश्यक होगा। वह न्ा स्वागत-सचमचत का एक प्रस्ताव। इस


प्रस्ताव में कहा गया न्ा चक ‘‘काांग्रस
े का ध्येय चहन्दगस्न्ान में प्रीातन्त्र कश्र स्न्ापना कर पूी
ाँ श्रवादश्र दे शों
के िांगगल से चवश्व को दे शों कश्र मगचि है ।’’ चवर्य-सचमचत ने ‘चवश्व के दे शों कश्र मगचि’ कश्र कल्पना का
उपहास करके उसे नमान्य कर चदया। इस सम्णन्ि में कलकत्ता के ‘मोडभन चरव्यू’ के मािभ 1921 के
नांक में चलखा है चक “The draft resolution deserved a better fate, than what it met
with, in the subjects committee.” नन्ात् उस प्रस्ताव कश्र ओर चवर्य-चनयामक सचमचत में
नचिक लक्ष्य चदया ीाना िाचहए न्ा। इससे गगे पत्र ने इस चवर्य में गनन्द ोश्र व्यि चकया चक
नागपगर कश्र स्वागत-सचमचत में कगछ प्रीातांत्रवादश्र व्यचि हैं । स्वागत-सचमचत का यह प्रस्ताव ‘नागपगर
नेशनल यूचनयन’ के डॉक्टर हे डगेवार, चवश्वनान्राव केळकर गचद तरुणवगभ कश्र प्रेरणा से गगे गया
न्ा। उस समय ‘स्वातांत्र्य’ शब्द का ोश्र उरारण करने से घणड़ानेवाले व्यचि उसका उपहास न करते
तो एक णड़ा गियभ हश्र घचटत होता।

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चहन्दगस्न्ान कश्र राीनश्रचत में प्रीासत्ता कश्र गकाांक्षा चनोभयता से रखनेवाले तरुणों कश्र गवाी उस
समय िाहे उपहास के कहकहे में डूण गयश्र हो परन्तग वतभमान प्रीातन्त्र तन्ा ीागचतक मगचि कश्र
घनगम्ोश्रर घोर्णाएाँ क्या उस उपहास का हश्र उपहास करतश्र हग ई नहीं चदखाई दे रहश्र हैं ?

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8. नसहयोग-गन्दोलन व नचोयोग
ीण डॉक्टरीश्र और उनके सहयोगश्र नागपगर के काांग्रेस-नचिवेशन में व्यस्त न्े तण ोाऊीश्र कावरे ने
उिर झााँककर ोश्र नहीं दे खा। सशस्त्र क्रान्न्त के नचतचरि नन्य सण मागभ उन्हें नत्यन्त चनःसत्त्व एवां
चनरुपयोगश्र लगते न्े। नतः कोई गियभ नहीं चक दे श के प्रमगख-प्रमगख नेताओां के नगर में उपन्स्न्त
होने पर ोश्र उन्हें उनका दशभन करने कश्र कोई उत्सगकता प्रतश्रत नहीं हग ई। उलटे , ीण काांग्रेस कश्र चवर्य-
चनयामक सचमचत में हग ए वाद-चववाद का समािार डॉक्टरीश्र गचद से उनको सगनने को चमला तो उनका
मीाक उड़ाकर उन्होंने इस व्यन्भ णकवास के प्रचत नपना चतरस्कार का ोाव हश्र प्रकट चकया।

नचिवेशन पूणभ हग ग तन्ा डॉक्टरीश्र ने नपने चमत्रों के सान् णैुकर चविार-चवमशभ चकया। उस समय
उन्होंने यह गशांका व्यि कश्र न्श्र चक चखलाफत-गन्दोलन नन्त में दे श के चलए घातक चसद्ध होगा।
उन्होंने यह स्पष्ट चकया चक एक वर्भ में स्वराज्य कश्र घोर्णा िाहे कर दश्र गयश्र हो परन्तग समाी कश्र
मनःन्स्न्चत को दे खते हग ए उसकश्र चसचद्ध नसम्ोव हश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र का यह ोश्र कन्न न्ा चक ोारत में
मगसलमानों के नचतचरि ईसाई, पारसश्र, यहू दश्र गचद दूसरे लोग ोश्र रहते हैं , परन्तग उनका कोई उल्लेख
न करते हग ए केवल चहन्दू-मगसलमान कश्र एकता कश्र णात मगसलमानों में यह ोावना चनमाण करे गश्र चक
वे नन्य लोगों से कगछ चवशेर् हस्तश्र रखते हैं । इससे उनमें एक पृन्कतावादश्र मनोवृचत्त उत्पन्न होगश्र ीो
उनका ोारत के राष्ट्रीश्रवन के सान् एकश्रकरण नहीं होने दे गश्र। उनके ये चविार होते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र
यह नवश्य मानते न्े चक नसहयोग-गन्दोलन के द्वारा ीनता को कगछ प्रमाण में ीाग्रत् चकया ीा
सकता है । सान् हश्र ीण दे श में हीारों लोग नांग्रेी सरकार से नसहयोग कर सांघर्भ कर रहे हों उस
समय केवल प्रेक्षक कश्र ोूचमका लेकर इसश्रचलए खड़े रहना चक इस सांघर्भ से नपेक्षानगसार लाो नहीं
होगा, उन्हें पसन्द नहीं न्ा। नन्याय से सांघर्भ करना उनका स्वोाव न्ा तन्ा ‘कष्टाांचस माांनू झोला।
मृत्यूशश्र खेळूां खेळा’ (‘कष्ट को झूला णनाकर मृत्यग से मैं खेल खेलूाँ’) ऐसा न्ा उनका मनोिैयभ। इसके
नचतचरि एक और कल्पना गन्दोलन में ोाग लेने कश्र प्रेरणा के पश्रछे हो सकतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र
राष्ट्रीश्रवन से नचलप्त नपनश्र व्यचिगत उन्नचत में लश्रन व्यचियों में से तो न्े नहीं। वे तो सतत राष्ट्र कश्र
हश्र चिन्ता करते हग ए उसके उद्धार का सहश्र और सरल मागभ शोि रहे न्े। नतः उन्हें पता न्ा चक गी
नहीं तो कल समाी के सामने नपना कल्पनाओां को लेकर उन्हें प्रयत्न करना पड़ेगा। उस समय यचद
लोगों ने पूछा चक ‘‘ीण गन्दोलन िल रहा न्ा उस समय कहााँ न्े ? नण गये हो नपनश्र नयश्र-नयश्र
कल्पनाओां को लेकर।’’ तो क्या उत्तर चदया ीा सकेगा ? नतः गन्दोलन के दोर् और गगण दोनों को
ध्यान में रखकर उन्होंने उसमें ोाग लेने का चनणभय कर चलया तन्ा नपने स्वोाव के ननगसार पूरश्र
ताकत से वे उस मोिे पर डट गयें।

चवद्यान्ी स्कूल छोड़े, लोग न्यायालय का णचहष्ट्कार करें , सरकार कश्र दश्र हग ई पदचवयााँ वापस कश्र ीायें,
स्न्ान-स्न्ान पर राष्ट्रश्रय चवद्यालय खोले ीायें तन्ा घर-घर में िरखा िले इस प्रकार का प्रिार िारों

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ओर शग हो गया न्ा। सोा एवां पचरर्दों में इसश्र चवर्य का प्रिार होने लगा। लोकमान्य चतलक के
नाम पर ीमा कश्र हग ई ‘स्वराज्य-चनचि’ का गाँकड़ा चदन-प्रचतचदन ऊपर िढता गया। गाांिश्रीश्र के ‘एक
वर्भ में स्वराज्य’ कश्र घोर्णा पर लोग मगग्ि न्े तन्ा उससे उत्साचहत होकर नसहयोग-गन्दोलन में
कूद रहे न्े। इस समय डॉक्टरीश्र ने मध्यप्रान्त के गााँव-गााँव में घूमकर ोार्णों के द्वारा प्रिार शग कर
चदया। इतना हश्र नहीं डॉ. नारायणराव सावरकार के सान् णम्णई नगर तन्ा उपनगर में ोश्र उन्होंने नपने
ओीस्वश्र एवां दे शोचिपूणभ ोार्णों से सहस्रों लोगों का मगाँह स्वातांत्र्य-सांग्राम कश्र ओर मोड़ने में सफलता
पायश्र। उस काल के उनके ोार्ण नचोीात स्वातांत्र्य प्रेम से ओतप्रोत तन्ा परकश्रयों के सम्णन्ि में
सन्ताप के ीलते हग ए नांगारों के समान न्े। उनके शब्द ‘पहले कृचत पश्रछे उचि’ इस तत्व का ननगसरण
करनेवाले होने के कारण ीनमन को तगरन्त पकड़ लेते न्े। उस काल के उनके विृत्व से नत्यचिक
प्रोाचवत ीश्र दादाराव परमान्भ कहते हैं चक ‘‘नांग्रेी तन्ा नांग्री
े श्र राज्य कश्र ििा शग हग ई कश्र डॉक्टरीश्र
का गवेश काणू में नहीं रहता न्ा। उस समय उनके शब्द सगनकर ऐसा लगता चक मानो शतु सामने हश्र
खड़ा है और वह उसके ऊपर प्रणल गक्रमण कर रहे हों। चसर से लेकर पैर तक उनके शरश्रर में
गवेश का सांिार हो ीाता न्ा। लाल-लाल गाँख,ें णाँिश्र हग ई मगट्ठश्र तन्ा णाहग ओां में स्फगरण इस प्रकार
गज्वल्यमान स्व प उस समय उनका चदखता न्ा।’’ उनके ोार्णों कश्र यह दाहकता गाांिश्रीश्र के
गसपास रहनेवाले नरम प्रवृचत्त के लोगों के मन को परे शान करतश्र न्श्र और इसचलए ीण कोश्र
डॉक्टरीश्र का नाम चनकलता तो वे लोग गप्पाीश्र ीोशश्र तन्ा गप्पाीश्र हळदे गचद उनके सहकाचरयों
से यहश्र कहते चक ‘‘डॉक्टरीश्र को ोार्ण के चलए क्यों णगलाते हो? चकसश्र और को दे खो न।’’

1921 के पहले दो-तश्रन महश्रनों में डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार के ोण्डारा, खापा, केळवद, तळे गााँव
दशसहस्र, दे वळश्र, विा, णोरश्र गचद ग्रामों में परगना नन्वा चीला-पचरर्दों में ोार्णों का पता
समािारपत्रों के वृत्त से लगता है । डॉक्टर ीश्र ने नध्यक्ष के नाते ीहााँ ोश्र ोार्ण चकया वहााँ का यहश्र
वणभन चमलता है चक ‘‘नध्यक्ष महोदय का नत्यन्त स्फूर्ततदायक तन्ा हृदय को झकझोर दे नेवाला
ोार्ण हग ग।’’ इस प्रिार-दौरे में कई स्न्ानों पर चवदे शश्र कपड़े कश्र होलश्र ोश्र ीलायश्र गयश्र।

डॉक्टरीश्र को ‘चहन्दू-मगन्स्लम एकता’ का शब्दप्रयोग खटकता न्ा। इसके चलए एक णार उन्होंने
महात्माीश्र कश्र ोेंट लेकर उनसे प्रश्न चकया चक ‘‘वास्तव में तो चहन्दगस्न्ान में चहन्दू, मगसलमान, ईसाई,
पारसश्र, यहू दश्र गचद ननेक लोग रहते हैं । उस सणकश्र एकता कश्र कल्पना रखने के स्न्ान पर गप
केवल यहश्र क्यों णोलते हैं चक चहन्दू-मगसलमानों कश्र एकता होनश्र िाचहए ?’’ इस पर गाांिश्रीश्र ने उत्तर
चदया ‘‘इस कारण मैंने मगसलमानों के मन में दे श के सम्णन्ि में गत्मश्रयता उत्पन्न कश्र है , चीससे गप
प्रत्यक्ष दे ख रहे हैं चक वे इस राष्ट्रश्रय गन्दोलन में कन्िे से कन्िा चमलाकर काम कर रहे हैं । ’’ इस
उत्तर से डॉक्टरीश्र का चणल्कगल समािान नहीं हग ग। उन्होंने कहा ‘‘ ‘चहन्दू-मगन्स्लम एकता’

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शब्दप्रयोग प्रिार में गने के पूवभ ोश्र ननेक मगसलमान राष्ट्र के सम्णन्ि में नपने प्रेम के कारण
लोकमान्य चतलक के नेतृत्व में काम करते न्े। णै. चीन्ना, डॉ. नांसारश्र, हकश्रम नीमल खााँ गचद कई
के नाम चलये ीा सकते हैं । परन्तग इस नये शब्दप्रयोग से तो मगझे गशांका है चक मगसलमानों में एकता
के स्न्ान पर पृन्कता कश्र हश्र ोावना णढे गश्र।’’ ‘‘मगझे तो ऐसश्र कोई गशांका नहीं’’ यह कहकर
महात्माीश्र ने डॉक्टरीश्र से छग ट्टश्र लश्र। समय ने णता चदया है चक डॉक्टरीश्र कश्र गशांका सत्य न्श्र। उनकश्र
निूक दूरदृचष्ट से ोचवष्ट्य के गोभ में चछपश्र ोयावह सम्ोावनाएाँ चछप नहीं सकतश्र न्ीं।

डॉक्टरीश्र के ीोरदार प्रिार और गरम ोार्णों के कारण सरकार ने फरवरश्र में उनके ऊपर एक महश्रने
के चलए प्रचतणन्ि लगा चदया। चीलाचिकारश्र ीश्र चसचरल ीेम्स इरचवन नपने गदे श में चलखते हैं चक
“I hereby require you ………to refrain from attending, holding or otherwise be-
ing concerned in any way in any public meeting or public assembly of five or
more persons, for the period of one month from the date thereof.” िारा 144 के
नन्तगभत कश्र यह गज्ञा चदनाांक 23 फरवरश्र 1921 कश्र है । उसके ननगसार उन्हें एक महश्रने तक चकसश्र
ोश्र सावभीचनक सोा में उपन्स्न्त रहने नन्वा णोलने या कोई ोश्र गयोीन करने कश्र मनाहश्र न्श्र। सान्
हश्र पााँि या उससे नचिक व्यचि ीहााँ एकत्र हों वह इस गज्ञा के ननगसार सावभीचनक सोा मानश्र गयश्र
न्श्र। एक णार सरकार के सान् नसहयोग का चनणभय लेने के उपरान्त डॉक्टरीश्र को इस प्रकार कश्र
गज्ञा के सम्णन्ि में कोई ोश्र चविार करने का कारण नहीं न्ा। उनका सोाओां में ोार्ण दे ने का काम
यन्ापूवभ ीोरों से िलता रहा। इस सण कश्र पचरणचत उनके ऊपर नचोयोग िलने में हश्र हो सकतश्र न्श्र।
मई 1921 में डॉक्टरीश्र के चवरुद्ध मगकदमा दीभ कर चदया गया। परन्तग सरकार ने एक मास कश्र
ोार्णणन्दश्र कश्र उपयगभि गज्ञा के उल्लांघन का नचोयोग न लगाते हग ए उनके काटोल तन्ा ोरतवाडा
के पहले के ोार्णों को गक्षेपीनक मानकर उन पर राीद्रोह का नचोयोग लगाया।

नागपगर के न्यायािश्रश ीश्र चसराी नहमद के सम्मगख यह मगकदमा 31 मई को शग हग ग तन्ा न्ोड़श्र हश्र
दे र में 14 ीून कश्र तारश्रख पड़ गयश्र। 14 ीून को मगकदमा ीश्र स्मेलश्र के न्यायालय में पेश चकया गया।
सवभीश्र णोणडे, चवश्वनान्राव केळकर, णाणासाहण पाध्ये, हरकरे तन्ा णळवन्तराव मण्डलेकर, ये सण
डॉक्टरीश्र कश्र ओर से वकश्रल न्े। चदनाांक 24 निूणर को काटोल तालूका-सोा के तन्ा काटोल
परगना-सोा के नध्यक्ष के नाते चदये गये ोार्णों के गिार पर सरकार ने नचोयोग लगाया न्ा।

पहले चदन 14 ीून को पगचलस इन्स्पेक्टर गणाीश्र कश्र गवाहश्र हग ई तन्ा दूसरे चदन ीश्र णोणडे ने
प्रचतपरश्रक्षण)चीरह) चकया। चकन्तग ीश्र स्मेलश्र कश्र ओर से ीश्र णोणडे के मागभ में णराणर रुकावट होने
लगश्र। ‘‘यह प्रश्न पूछा नहीं ीा सकता’’, ‘‘यह प्रश्न नसम्णद्ध है ,’’ ‘‘यह नचोयोग से सांगचत नहीं
खाता’’ इस प्रकार के वाक्य ीश्र णोणडे को एक कदम नहीं िलने दे ते न्े। गाड़श्र कश्र ीांीश्रर यचद णारणार
खींिश्र ीाये तो वह नपनश्र यात्रा पूरश्र कर सकेगश्र इसमें सन्दे ह हश्र है । चदनाांक 20 ीून को गणाीश्र का
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प्रचतपरश्रक्षण करते हग ए ीश्र णोणडे ने प्रश्न पूछा ‘‘डॉक्टर हे डगेवार यहश्र प्रचतपादन कर रहे न्े न चक
चहन्दगस्न्ान चहन्दगस्न्ान के लोगों का है ।’’ परन्तग ीश्र स्मेलश्र ने यह प्रश्न चलखने से इन्कार कर चदया। इस
पर णोणडे क्रोि में गकर ‘‘न्यायािश्रश मगझे चीरह नहीं करने दे ता नतः मैं यह मगकदमा नहीं कर
सकता’’ यह कहते हग ए किहरश्र से णाहर िले गये। उस समय डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘मैं नपना मगकदमा
दूसरे न्यायालय में ोेीने कश्र नीी दे नेवाला हू ाँ । नतः नोश्र मगकदमा स्न्चगत कर चदया ीाये।’’ इस
पर दोपहर दो णीे काम रोक चदया गया।

चदनाांक 25 ीून को चीलाचिकारश्र ीश्र इरचवन के पास मगकदमा दूसरश्र न्यायालय मां ोेीने के चलए
गवेदनपत्र चदया गया। उसमें डॉक्टरीश्र ने चलखा न्ा चक ‘‘मचीस्रेट साहण को मराुश्र का टूटा-फूटा
ज्ञान ोश्र है या नहीं यह शांका मगकदमा िलते-िलते पैदा हो गयश्र है । ोार्ण तन्ा टश्रपें तो सण मराुश्र में
हश्र हैं । नतः इस प्रकार के मचीस्रेट के चलए चनयम और न्याय के ननगसार मगकदमा समझना हश्र नशक्य
है । नतः ीश्र स्मेलश्र यह मगकदमा सगनने के चलए नपात्र हैं । इसके नचतचरि ीश्र स्मेलश्र में एक महत्त्व
के राीनैचतक फौीदारश्र मगकदमे को सगनने के चलए गवश्यक सामान्य ज्ञान का ोारश्र नोाव चदखता
है । गरोपों के वकश्रल ने चीरह में ीण कगछ प्रश्न पूछे तो ‘मगख्य परश्रक्षण में ीो मगद्दे णाहर गये हैं उनके
सम्णन्ि में हश्र प्रचतप्रश्न पूछो। नन्य कोई णात चसद्ध करनश्र हो तो नपनश्र ओर से गवाहश्र और सणूत पेश
करो।’ इस प्रकार कश्र चवचोन्न गपचत्तयााँ उुाकर वे प्रश्न नहीं पूछने चदये गये। उन प्रश्नों का यचद गवाह
से उत्तर चमलता तो यह तगरन्त चसद्ध हो ीाता चक नचोयगि के ोार्ण में राीद्रोह कश्र कोई णात नहीं है ।
परन्तग मचीस्रेट कश्र तो प्रत्येक प्रश्न के सम्णन्ि में कगछ-न-कगछ गपचत्त हश्र न्श्र। प्रत्येक प्रश्न के नवसर
पर उस प्रश्न का उद्देश्य उनको समझाना पड़ता न्ा तण कहीं काम गगे िलता न्ा। इस कारण गवाह
को टालमटोल करना तन्ा प्रश्न को उड़ा दे ना सरल न्ा। चदनाांक 14 ीून को इतनश्र दे र चीरह हग ई परन्तग
मचीस्रेट साहण के टश्रप के कागी नगर दे खे ीायें तो वे वैसे हश्र कोरे -कोरे चमलेंग।े फलतः नचोयगि
के वकश्रल को न्यायालय छोड़कर ीाना पड़ा। सदर मचीस्रेट के न्यायालय में मगकदमें कश्र योग्य
सगनवाई होगश्र ऐसा नहीं लगता। सान् हश्र इस मगकदमे में पैरवश्र करने के चलए दूसरा कोई वकश्रल उस
न्यायालय में नहीं ीा सकता। नतः यह मगकदमा दूसरे न्यायालय में ोेीना िाचहए।’’

इस गवेदन कश्र ोार्ा से यह णताने कश्र गवश्यकता नहीं चक नांग्री


े नचिकारश्र ीश्र इरचवन ने इस पर
क्या फैसला चदया होगा। चदनाांक 27 ीून को नीी खाचरी कर दश्र गयश्र। उस समय न्यायालय में
डॉक्टरीश्र कश्र ओर से एक ोश्र वकश्रल उपन्स्न्त नहीं न्ा। उस चदन ीश्र स्मेलश्र ने डॉक्टरीश्र को नपना
चलचखत उत्तर दे ने को कहा। इस पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘सणूत पक्ष कश्र सण णातें सामने ग ीाने
दश्रचीए, उसके णाद मगझे ीो कगछ कहना होगा कहू ाँ गा।’’ ‘‘कोटभ को ीण गवश्यक लगे तण चलचखत
उत्तर मााँगा ीा सकता है ,’’ ीश्र स्मेलश्र ने कहा। इस पर डॉक्टरीश्र चनियात्मक स्वर में णोले ‘‘मगझे ीो
कहना न्ा कह चदया। नन्त में उत्तर दूाँगा।’’ उस चदन का काम यहीं पूरा हो गया।
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चदनाांक 8 ीगलाई को मगकदमा चफर से शग हग ग और काटोल चवोाग के सर्तकल इन्सपेक्टर ीश्र
गांगािरराव कश्र साक्षश्र हग ई। उसके समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र ने स्वयां हश्र चीरह करना प्रारम्ो कर चदया।
उसका कगछ ोाग यहााँ उद्धृत करना चुक होगा। ीश्र गांगािरराव ने कहा ‘‘लगोग सात-पौने गु णीे
के नन्दर हश्र सोा खत्म हो गयश्र। हम लोग िोरणत्तश्र के प्रकाश में चरपोटभ चलख रहे न्े।’’ इस पर
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘ये नांिेरे में न्े तन्ा इनके पास कोई ोश्र िोरणत्तश्र नहीं न्श्र। मैं शगद्ध मराुश्र णोलनेवाला
ाँ में इन्होंने ‘णायकोिा पोर’ ऐसे शब्द डाले हैं ।’’ इस पर गवाह ने कहा ‘‘मगझे व्याकरण
हू ाँ परन्तग मेरे मगह
के चनयम नहीं गते। मैं नपनश्र माताीश्र से तेलगू में णोलता हू ाँ तन्ा पत्नश्र से मराुश्र में। मैं औसतन एक
चमनट में परश्रस-तश्रस शब्द चलख सकता हू ाँ । कोश्र-कोश्र पूरे वाक्य चलख लेता न्ा तन्ा कोश्र-कोश्र
एकाि शब्द नन्वा वाक्य का साराांश चलख लेता न्ा। साराांश चलखने के चलए सम्पूणभ वाक्य सगनने कश्र
गवश्यकता नहीं। साराांश चलखते समय मगझे चविार करना नहीं पड़ा। ीैसे-ीैसे गप णोलते गये
वैसे-वैसे मैं साराांश चलखता गया। ीो समझ में नहीं गता न्ा उसका साराांश मैं दूसरों से पूछकर
चलखता न्ा। यह काम मैं चीस समय विा णश्रि में दूसरे से णोलता न्ा उस समय करता न्ा )तन्ा
प्रत्येक विा णश्रि-णश्रि में दूसरे से णोलता हश्र है )......डॉक्टर प्रचत चमनट णश्रस-परश्रस शब्द णोलते न्े।
व्याख्यान सगनते समय विा कश्र कहश्र हग ई णातें सहश्र हैं ऐसा मानकर दूसरों के समान मेरे मन पर ोश्र
प्रोाव हग ग। परन्तग विा सण झूु णातें णतानेवाला है यह मगझे पोंा पता न्ा।’’

चीरह से इस प्रकार कश्र णातें चनकालने के णाद डॉक्टर स्मेलश्र कश्र ओर मगड़े तन्ा णोले ‘‘ोार्ण कश्र
चरपोटभ लेने में सर्तकल साहण चकतने पटग हैं इसकश्र परश्रक्षा लेने कश्र ननगमचत दश्र ीाये।’’ परन्तग यह
ननगमचत नहीं दश्र गयश्र।

इस पर डॉक्टर ने ोार्ण दे कर नपने पक्ष का प्रचतपादन चकया। उसमें चवचिज्ञ का मादभ व न रहा हो तो
ोश्र उसकश्र मार्तमकता और स्पष्टवाचदता उल्लेखनश्रय है । उन्होंने कहा ‘‘कोटभ के समक्ष गये हग ए ोार्ण
मेरे नहीं हैं । मैं प्रचत चमनट औसतन दो सौ शब्द णोलता हू ाँ तन्ा ीो मेरे ोार्ण कश्र चरपोटभ लेने के चलए
लॉन्गहै ण्ड के नौचसचखये चरपोटभ र गये वे तो ोार्ण का गुवााँ ोाग ोश्र नहीं चलख सके होंगे। नतः
वादश्र कश्र ओर से प्रस्तगत सम्पूणभ चरपोटभ में टूटे-फूटे वाक्य एवां शब्द तन्ा निूरश्र णातें हैं तन्ा उन सणका
पारस्पचरक सम्णन्ि राीनश्रचतक कल्पनाओां एवां चविारों को समझने में नत्यन्त नयोग्य पगचलस ने
नपने उपीाऊ मन्स्तष्ट्क से, ीैसा समझ में गया वैसा तन्ा ीण गवश्यकता हग ई तण, नपनश्र
स्मरणशचि कश्र मदद लेकर लगाया होगा, इसमें कोई सांशय नहीं। सम्पूणभ चरपोटभ से यह चकसश्र को ोश्र
पता नहीं िल सकता चक मैं क्या नन्वा कैसा णोला। चफर ोरतवाडा के मेरे नन्न्तम ोार्ण कश्र तो
चरपाटभ लेना हश्र सम्ोव नहीं न्ा क्योंचक उस समय इतना नन्िकार न्ा चक उसमें कागी नन्वा पेन्न्सल
ोश्र चदखना सम्ोव नहीं न्ा, तन्ा पगचलस के पास कोई प्रकाश नहीं न्ा। नतः मेरे ोार्ण कश्र चरपोटभ ीो
यहााँ दश्र गयश्र है वह चणल्कगल णनावटश्र तन्ा यह चदखाने के चलए है चक ‘ीनता के गन्दोलन को दणाने

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के चलए हम लोग चकतनश्र दौड़िूप कर रहे है ।’ स्पष्ट हश्र यह पगचलसवालों के द्वारा णाद में योीनापूवभक
णनायश्र हग ई चदखतश्र है । चरपोटभ को तचनक ोश्र गौर से दे खा ीाये तो पढे -चलखे व्यचि को साफ समझ में
ग ीायेगा चक वह चकतनश्र झूुश्र है । इसश्र ोय के कारण, ऐसा चदखता है चक, कोटभ में कगछ नोट्स पढे
ोश्र नहीं गये। तात्पयभ यह है चक योग्य रश्रचत से मगकदमा िलता तो वादश्रपक्ष कश्र ोूचमका पूरश्र तरह से ह
ीातश्र, यह नोश्र णतायश्र गयश्र णातों से स्पष्ट हो ीायेगा। नपनश्र चरपोटभ लेने कश्र पद्धचत तन्ा मेरे ोार्ण
करने के वेग के सम्णन्ि में ीश्र गांगािरराव ने ीो हास्यास्पद णातें कहीं हैं उसे दे खकर चकसश्र ोश्र
ीूचडचशयल माइण्ड को यह प्रतश्रत हग ए चणना नहीं रहे गा चक वादश्र-पक्ष कश्र चरपोटभ चकसश्र ोश्र काम कश्र
नहीं है । इसश्र प्रकार सोाओां में मेरे ोार्ण के सामान्य गचत से णोलने पर गवाह चकतने शब्द चलख
सकता है यह चदखाने का यचद मगझे नवसर चदया ीाता तो पगचलस नचिकाचरयों कश्र नसत्यता तन्ा नश्रि
वृचत्त सणके सामने प्रकट हो ीातश्र। परन्तग गियभ और खेद कश्र णात तो यह है चक मेरे मगकदमें में
नचिकतम नड़िने डालश्र गयश्र हैं । मातृोूचम के ोिों को दमनिक्र में पश्रसनेवालश्र सरकार पर मेरे यहााँ
चकये हग ए चनर्ेि का कोई पचरणाम नहीं होगा यह मैं ीानता हू ाँ । मैं नोश्र ोश्र यहश्र कहता हू ाँ चक चहन्दगस्न्ान
इस दे शवाचसयों का है तन्ा स्वराज्य हमारा ध्येय है । गी तक चब्रचटश प्रिानमांत्रश्र तन्ा चब्रचटश सरकार
द्वारा कश्र हग ई गत्मचनणभय कश्र घोर्णाएाँ यचद ोंग न्श्र तो सरकार खगशश्र से मेरे ोार्ण को राीद्रोह समझे।
पर मेरा ईश्वर के न्याय पर चवश्वास नटल है ।’’

डॉक्टरीश्र ने मााँग कश्र चक उनको नन्य गवाहों से ोश्र चीरह करनश्र है । परन्तग एक का ीण यह हाल हग ग
तो गगे क्या होगा सम्ोवतः यह सोिकर स्मेलश्र ने उसे स्वश्रकार नहीं चकया। मगकदमा 5 नगस्त तक
के चलए स्न्चगत हो गया।

5 नगस्त को मगकदमा प्रारम्ो होने पर डॉक्टरीश्र ने नपना चलचखत उत्तर तन्ा नपनश्र ोूचमका स्पष्ट
करनेवाला एक ोार्ण चदया। उनके सान् कोई वकश्रल न होने के कारण सण कगछ उन्हें नकेले हश्र
करना पड़ता न्ा। नपने चलचखल उत्तर में उन्होंने कहा चकः-

)1) ‘‘मेरे ोार्ण कायदे से प्रस्न्ाचपत चब्रचटश राज्य के चवरुद्ध नसन्तोर्, द्वे र् व द्रोह उत्पन्न करनेवाले
तन्ा चहन्दश्र और यूरोपश्रय लोगों के णश्रि शतुोाव पैदा करनेवाले हैं , मेरे ऊपर लगाये गये इस नचोयोग
का स्पष्टश्रकरण मगझसे मााँगा गया है । एक ोारतश्रय के चकये कश्र ीााँि और न्यायदान के चलए एक परायश्र
राीसत्ता णैुे इसे मैं नपना तन्ा नपने महान् दे श का नपमान समझता हू ाँ ।

)2) ‘‘चहन्दगस्न्ान में न्यायाचिचष्ठत कोई शासन है ऐसा मगझे नहीं लगता तन्ा यचद मगझे इस प्रकार कश्र
णात णताये तो मगझे गियभ हश्र होगा। हमारे यहााँ गी ीो कगछ है वह तो पाशवश्र शचि के णल पर लादा
हग ग ोय और गतांक का साम्राज्य है । कानू न उसका दास तन्ा न्यायालय उसके चखलौने-मात्र हैं ।
चवश्व के चकसश्र ोश्र ोूोाग में यदश्र चकसश्र शासन को रहने का नचिकार है तो वह ीनता के द्वारा, ीनता

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के चलए तन्ा ीनता कश्र सरकार को है । इसके नचतचरि नन्य सोश्र शासन राष्ट्रों को लूटने के चलए
िूतभ लोगों द्वारा योीनापूवभक िलाये हग ए िोखेणाीश्र के नमूने हैं ।

)3) ‘‘मैंने नपने दे शणान्िवों में नपनश्र दश्रन-हश्रन मातृोूचम के प्रचत उत्कट ोचिोाव ीगाने का प्रयत्न
चकया। मैंने उनके हृदय पर यह नांचकत करने का प्रयत्न चकया चक ोारत ोारतवाचसयों का हश्र है । यचद
एक ोारतश्रय राीद्रोह चकये चणना राष्ट्रोचि के ये तत्त्व प्रचतपाचदत नहीं कर सकता तन्ा ोारतश्रय एवां
यूरोपश्रय लोगों में शतुोाव ीगाये चणना वह साफ सत्य नहीं णोल सकता, यचद न्स्न्चत इस कोचट तक
पहग ाँ ि गयश्र है तो यूरोपश्रय तन्ा वे ीो नपने को ोारत सरकार कहते हैं उन्हें साविान हो ीाना िाचहए
चक नण उनके ससम्मान वापस िले ीाने कश्र घड़श्र ग गयश्र है ।

)4) ‘‘मेरे ोार्ण कश्र चटप्पचणयााँ पूरश्र तरह सहश्र-सहश्र नहीं लश्र गयीं यह स्पष्ट चदख रहा है तन्ा ीो मैंने
कहा ऐसा णताया ीा रहा है , वह मेरे ोार्ण का टूटा-फूटा, कगछ-का-कगछ तन्ा चवपयभस्त चववरण है ।
चकन्तग मगझे इसकश्र चिन्ता नहीं। राष्ट्र-राष्ट्र के सम्णन्ि चीन मूलोूत तत्त्वों से चनिाचरत होते हैं उसश्र
गिार पर ग्रेट चब्रटे न तन्ा यूरोपश्रय लोगों के प्रचत मेरा णताव है । मैंने ीो-ीो कहा वह नपने दे श-
णन्िगओां के नचिकार तन्ा स्वातन्त्र्य कश्र प्रस्न्ापना के चलए कहा तन्ा मैं नपने प्रत्येक शब्द का दाचयत्व
लेने के चलए तैयार हू ाँ । ीो मेरे ऊपर गरोचपत है उसके सम्णन्ि में यचद मैं कगछ नहीं कह सकता तो मैं
उसके एक-एक नक्षर का समन्भन करने के चलए तैयार हू ाँ तन्ा कहता हू ाँ चक वह सण न्यायोचित है ।’’

इन ीलते हग ए नांगारों के हान् में पड़ते हश्र मचीस्रेट साहण णोल उुे ‘‘इनके मूल ोार्ण कश्र नपेक्षा तो
यह प्रचतवाद करनेवाला विव्य नचिक राीद्रोहपूणभ है ।’’ (“This statement is more sedi-
tious than his speech.”)

इसमें गियभ कश्र कोई णात नहीं। क्योंचक नपने विव्य में डॉक्टरीश्र ने चकसश्र ोश्र प्रकार का गवरण
न रखते हग ए नपना नन्तरां ग हश्र विव्य चकया न्ा। उसमें स्पष्टता तन्ा नसन्न्दग्िता न्श्र और प्रचतपक्ष
पर झपटनेवाले कसह का गवेश एवां रौद्रता झलक रहश्र न्श्र। नागपगर-काांग्रेस में स्वागत-सचमचत के
प्रस्ताव के प में चीस प्रीातांत्रश्रय राज्य का स्वर दणा चदया गया न्ा उसश्र प्रीातन्त्र कश्र घन गम्ोश्रर
घोर्णा से डॉक्टरीश्र नांग्रेीों के नन्यायश्र शासन को कम्पायमान कर रहे न्े।

चलचखत विव्य तो दे चदया, परन्तग मानो उसमें कोई कमश्र रह गयश्र हो इस हे तग से उस समय ोार्ण
करके उन्होंने न्यायालय के सम्पूणभ वातावरण को तपा चदया। उसमें ीैसा नपूवभ यगचिवाद न्ा वैसा हश्र
चनोभयता का स्वर ोश्र न्ा।

सरकार पगचलस के नचतचरि और कोई गवाहश्र लायश्र नहीं न्ा तन्ा पगचलसवाले तो सण सरकार के
णगलणरे होने के कारण उन्हें ‘‘गवाह के स्न्ान पर वादश्र कहना सयगचिक होगा’’, इन शब्दों में सरकार

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कश्र टश्रका करते हग ए उन्होंने गगे कहा ‘‘चहन्दगस्न्ान चहन्दगस्न्ान के लोगों का हश्र है । नतः हमें चहन्दगस्न्ान
में स्वराज्य िाचहए यहश्र णहग िा मेरे व्याख्यानों का चवर्य रहता है । परन्तग इतने से काम नहीं िलता।
स्वराज्य कैसे प्राप्त करना िाचहए तन्ा प्राप्त करने के णाद हमें कैसे रहना िाचहए यह ोश्र लोगों को णताना
होता है । नहीं तो ‘यन्ा राीा तन्ा प्रीा’ के न्याय के ननगसार हमारे लोग नांग्रेीों का ननगकरण करने
लगेंग।े नांग्रेी तो नपने दे श के राज्य से सन्तगष्ट न होकर दूसरे के दे श पर डाका डालकर , वहााँ के
लोगों को गगलाम णनाकर उन पर राज्य करने को तन्ा स्वयां कश्र स्वतांत्रता पर यचद गपचत्त गयश्र तो
तलवार चनकालकर रि कश्र नचदयााँ णहाने को तैयार रहते हैं । यह नोश्र हाल के महायगद्ध से सणको
पता िल िगका है । नतः हमें लोगों को णताना पड़ता है चक ‘णन्िगओां ! तगम नांग्री
े ों के इस राक्षसश्र गगण
का ननगकरण मत करना। केवल शान्न्त के मागभ से हश्र स्वराज्य प्राप्त करो तन्ा स्वराज्य चमलने के णाद
चकसश्र दूसरे के दे श पर िढाई न करते हग ए नपने हश्र दे श में सन्तगष्ट रहो।’ यह णात लोगों के मन में
ीमाने के चलए मैं उन्हें यह तत्त्व ोश्र समझाता हू ाँ चक एक दे श के लोगों का दूसरे दे श के लोगों पर
राज्य करना नन्याय है । उस समय प्रिचलत राीनश्रचत से सम्णन्ि ग ीाता है । कारण नपने इस
चप्रयतम दे श पर दगदैव से पराये नांग्रेी लोग नन्याय से राज्य कर रहे हैं यह हमें प्रत्यक्ष चदख रहा है ।
वास्तव में ऐसा कोई चनयम है क्या चीसके नन्तगभत एक दे श के लोगों को दूसरे दे श पर राज्य करने
का नचिकार प्राप्त होता हो ? सरकारश्र वकश्रल साहण ! गपसे मेरा यह प्रश्न है । क्या गप इस प्रश्न का
उत्तर मगझे दें गे ? क्या यह णात चनसगभ के चनयम के चवरुद्ध नहीं है ? यचद यह तत्त्व सहश्र है चक एक दे श
के लोगों को दूसरे पर राज्य करने का नचिकार नहीं है तो चफर चहन्दगस्न्ान को लोगों को नपने पैरों के
नश्रिे दणाकर उन पर राज्य करने का नचिकार नांग्रेीों को चकसने चदया ? नांग्री
े लोग इस दे श के नहीं
है न ? चफर चहन्दगोूचम के लोगों को गगलाम णनाकर ‘चहन्दगस्न्ान के हम माचलक हैं ’ ऐसा कहना न्याय
का, नश्रचत का, तन्ा िमभ का खून नहीं है क्या ?

‘‘इांसण्ै ड को परतांत्र करके उस पर राज्य करने कश्र हमें इच्छा नहीं है । परन्तग चीस प्रकार इांसण्ै ड के लोग
इांसण्ै ड में और ीमभनश्र के ीमभनश्र में राज्य करते हैं वैस हश्र हम चहन्दगस्न्ान के लोग चहन्दगस्न्ान से स्वामश्र
होकर राज्य करना िाहते हैं । नांग्रेीश्र साम्राज्य में रहकर नांग्री
े ों कश्र दासता कश्र सदा के चलए छाप
नपने ऊपर नांचकत कर लेने कश्र हमारश्र इच्छा नहीं है । हमें पूणभ स्वातांत्र्य िाचहए तन्ा वह चलये चणना
हम िगप नहीं णैुेंग।े हम नपने दे श में स्वतांत्रता के सान् रहने कश्र इच्छा करें , क्या यह नश्रचत और चवचि
के चवरुद्ध है ? मेरा चवश्वास है चक चवचि नश्रचत को पदाक्रान्त करने के चलए नहीं उसका सांरक्षण करने
के चलए होतश्र है । यहश्र उसका उद्देश्य होना िाचहए।’’

डॉक्टरीश्र के मगकद्दमे में न्यायालय में लोगों कश्र नपार ोश्रड़ लग ीातश्र न्श्र। इसके पूवभ चीन लोगों पर
मगकदमे हग ए न्े उन्होंने नपना णिाव करने से इन्कार कर चदया न्ा। नतः उन मगकदमों में ‘सीा’ के

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नचतचरि और कगछ सगनने के लायक नहीं न्ा। परन्तग डॉक्टरीश्र ने सरकार कश्र नपात्रता तन्ा नसहयोग
के उद्देश्य, सोाओां के समान हश्र, न्यायालय में स्पष्ट प से णताने कश्र नश्रचत स्वश्रकार कश्र न्श्र। लोगों
द्वारा इस प्रकार एकत्र होकर उनके ोार्णों को णड़श्र उत्सगकता से सगनना हश्र उनकश्र इस नश्रचत कश्र
यन्ान्भता का प्रमाण है । डॉक्टर ने इस प्रकार मैदान कश्र सोा कश्र िूम न्यायालय में ोश्र उत्पन्न कर दश्र।

डॉक्टरीश्र के नपनश्र ोूचमका को स्पष्ट करनेवाले इस विव्य के उपरान्त सरकारश्र वकश्रल ने इन न्ोड़े
से शब्दों में उस पर टश्रका कश्र‘‘....डॉक्टर हे डगेवार ने नोश्र ीो ोार्ण चकया है वह नत्यन्त सश्रिा-
सादा है । परन्तग उनकश्र सोा में ोार्ण पद्धचत इससे चोन्न होनश्र िाचहए। प्रचतवृत्त लेनेवालों को
गलतफहमश्र होने का कोई कारण नहीं चदखता।’’ सरकारश्र वकश्रल के ननगसार इस ोार्ण के सरल
होने का प्रमाणपत्र चमल िगका न्ा। चफर उनके सोाओां के ोार्ण कैसे होते होंगे इसकश्र कल्पना कश्र
ीा सकतश्र है ।

चदनाांक 19 नगस्त को डॉक्टरीश्र के ऊपर िारा 108 के नन्तगभत ीमानत के मगकदमें का फैसला
होनेवाला न्ा इसचलए न्यायालय में लोगों कश्र ोारश्र ोश्रड़ ीमा हो गयश्र न्श्र। दोपहर साढे णारह णीे ीश्र
स्मेलश्र ने चनणभय चदया ‘‘गपके ोार्ण राीद्रोहपूणभ हैं । नतः एक वर्भ तक गप राीद्रोहश्र ोार्ण नहीं
करें गे इसका नचोविना दे ते हग ए एक-एक हीार कश्र दो ीमानतें तन्ा एक हीार रुपये का मगिलका
चलखकर दें ।’’ यह चनणभय होते हश्र डॉक्टरीश्र इस सम्णन्ि में नपना मनोगत व्यि करते हग ए णोले
‘‘गप कगछ ोश्र चनणभय दश्रचीये। मैं चनदोर्श्र हू ाँ इस सम्णन्ि में मेरश्र गत्मा मगझे णता रहश्र है । सरकार कश्र
दगष्ट नश्रचत के कारण पहले हश्र ीलतश्र गग में यह दमननश्रचत तेल का हश्र काम कर रहश्र है । चवदे शश्र
राज्यसत्ता को नपने पाप के प्रायचित का नवसर शश्रघ्र हश्र गयेगा ऐसा मगझे चवश्वास है । सवभसाक्षश्र
परमेश्वर के न्याय पर मगझे पूरा ोरोसा है । नतः मगझसे मााँगश्र हग ई ीमानत दे ना मगझे स्वश्रकार नहीं।’’

डॉक्टरीश्र का कन्न पूरा होते हश्र ीश्र स्मेलश्र ने उन्हें एक वर्भ सीम कारावास के दण्ड कश्र घोर्णा कश्र।
उस समय डॉक्टरीश्र ने हाँ सते हग ए दण्ड का स्वागत चकया तन्ा पगचलस नचिकाचरयों कश्र सूिना के
ननगसार कारागृह ीाने के चलये णाहर गये। णाहर गते हश्र उनके िारों ओर चमत्रों और ीनता कश्र
ोश्रड़ इकट्ठश्र हो गयश्र तन्ा नगर-काांग्रेस कश्र ओर से ीश्र गोखले ने माला पहनायश्र। तदगपरान्त सवभीश्र
चवश्वनान्राव केळकर, दामूपन्त दे शमगख, हरकरे तन्ा नन्य ीनों ने ोश्र पगष्ट्पमालाएाँ समपभण कर उनका
ीय-ीयकार चकया। तााँगे में णैुने के पूवभ रामपायलश्र से गये हग ए गणाीश्र हे डगेवार, णड़े ोाई ीश्र
सश्रतारामीश्र तन्ा डॉ.मगांीे को डॉक्टरीश्र ने प्रणाम चकया तन्ा णै. मो ोाऊ नभ्यांकर, समश्रमगल्ला खााँ,
ीश्र नळे कर, वैद्य, मण्डलेकर, हरकरे गचद चमत्रों से चमलकर एकत्र ीनता से, छोटा सा ोार्ण दे कर,
चवदाई लश्र। वे णोले ‘‘राीद्रोह के इस मगकदमे में मैंने णिाव चकया न्ा। गीकल णहग तों कश्र ऐसश्र
िारणा हो गयश्र है चक ीो णिाव करे गा वह दे शद्रोहश्र है । परन्तग गप इतने लोग यहााँ इस समय इकट्ठा

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हैं इससे यह पता िलता है चक कम-से-कम गपकश्र तो यह िारणा नहीं है । नपने ऊपर मगकदमा होने
के णाद नपना णिाव न करते हग ए खटमल के समान रगड़े ीाना मगझे योग्य नहीं लगता। हमें प्रचतपक्ष
कश्र नश्रिता ीगत् को नवश्य चदखा दे नश्र िाचहए। इसमें ोश्र दे शसेवा है । उलटे णिाव न करना
गत्मघातक है । गपको पसन्द न हो तो णिाव मत कश्रचीए। पर णिाव करनेवालों को कम योग्यता
का समझना ोूल होगश्र। दे शकायभ करते हग ए ीेल तो क्या कालेपानश्र ीाने नन्वा फााँसश्र के तख्ते पर
लटकने को ोश्र हमें तैयार रहना िाचहये। परन्तग ीेल में ीाना मानो स्वगभ है , वहश्र स्वातांत्र्य-प्राचप्त है , इस
प्रकार का भ्रम लेकर मत िचलए। केवल ीेल ोरने से नपने को स्वतांत्रता नन्वा स्वराज्य चमलेगा
ऐसा ोश्र मत समचझए। ीेल में न ीाते हग ए णाहर ोश्र णहग त-सा दे श का काम चकया ीा सकता है इसको
ध्यान में रचखये। मैं एक वर्भ में वापस गऊांगा। तण तक दे श के हालिाल का मगझे पता नहीं लगेगा।
परन्तग चहन्दगस्न्ान को पूणभ स्वतांत्रता प्राप्त कराने का गन्दोलन शग होगा ऐसा मगझे चवश्वास है ।
चहन्दगस्न्ान को नण चवदे शश्र सत्ता के निश्रन रहना नहीं है । उसे नण गगलामश्र में नहीं रखा ीा सकेगा।
गप सणका हृदय से गोार मानकर गपसे एक वर्भ के चलए गज्ञा लेता हू ाँ ।’’ ऐसा कहते हग ए
डॉक्टरीश्र ने हान् ीोड़कर सणको नमस्कार चकया। ताचलयों कश्र गड़गड़ाहट के णश्रि ‘वन्दे मातरम्’ कश्र
घोर्णा हग ई।

डॉक्टरीश्र मगस्कराते हग ए तााँगे में िढे । तााँगा िलने लगा। गाँख से ओझल होने तक लोग सतत घोर्णा
कर रहे न्े, ‘ोारत माता कश्र ीय’, डॉक्टर हे डगेवार कश्र ीय।’

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9. नागपगर-कारागृह में

शगक्रवार चदनाांक 19 नगस्त 1921 को डॉक्टरीश्र कारागृह गये। उसश्र चदन सायांकाल टाउन हॉल के
मैदान में णै. गोचवन्दराव दे शमगख कश्र नध्यक्षता में डॉक्टर ीश्र का नचोनन्दन करने के चलए सोा हग ई।
उसमें डॉ. मगांी,े ीश्र नारायणराव नळे कर, ीश्र हरकरे तन्ा ीश्र चवश्वनान् केळकर के नत्यन्त हश्र
हृदयस्पशी ोार्ण हग ए। ‘‘नपनश्र लगन तन्ा स्वान्भत्याग के कारण गनेवालश्र पश्रढश्र के ने ता डॉक्टर
हे डगेवार हश्र होंगे’’ इस प्रकार का गशीवाद ीश्र नळे कर ने व्यि चकया। ीश्र हरकरे ने डॉक्टरीश्र कश्र
पूणभ स्वातांत्र्य पर चनष्ठा कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा कश्र। सोा के नन्त में ीश्र चवश्वनान्राव केळकर ने
डॉक्टरीश्र द्वारा ीेल ीाते हग ए लोगों को चदये गये सन्दे श को णताते हग ए कहा ‘‘काम करते-करते ीेल
में ीाना पड़े तो नवश्य ीाइए परन्तग नपने सम्मगख ध्येय ीेल ीाना नहीं णन्ल्क दे शसेवा होना िाचहए।
यह डॉक्टरीश्र का गपको सन्दे श है ।’’

डॉक्टरीश्र को कारावास का दण्ड होने पर नागपगर के साप्ताचहक ‘महाराष्ट्र’ के चदनाांक 24 के नांक में
उनके चनकटवती चमत्र तन्ा सम्पादक ीश्र गोपाळराव ओगले ने नपने सम्पादकश्रय के द्वारा उनका
स्वतांत्र प से नचोनन्दन चकया। डॉक्टरीश्र उनके सान् चनत्य उुते-णैुते न्े नतः इस नचोनन्दन-
लेख में प्रकट चविारों को णहग त कगछ प्रमाण माना ीा सकता है । ‘डॉक्टरीश्र ने ीेल क्यों स्वश्रकार कश्र
?’ इस सम्णन्ि में चलखते हग ए ीश्र गोपाळराव कहते हैं ‘‘डॉ. हे डगेवार नपनश्र सदसद् चववेकणगचद्ध के
चवरुद्ध ीेल गए। ‘यह ीेल ीाने से डर गया’ इस प्रकार का ीनापवाद न गये इसचलए उन्हें ीेल
ीाना गवश्यक प्रतश्रत हग ग। ीनापवाद नत्यन्त हश्र चनघृभण दगवासा ऋचर् है । वह णड़े-णड़ों को कसौटश्र
पर कसता है । उससे डरकर हश्र ीश्र रामिन्द्रीश्र ने सश्रताीश्र को चनष्ट्पाप ीानते हग ए ोश्र वनवास चदया
न्ा। उसश्र प्रकार डॉक्टरीश्र का यह चवश्वास होते हग ए ोश्र चक ीेल में गकर िगपिाप णैुे रहने कश्र नपेक्षा
मैं णाहर नचिक काम कर सकूांगा, लोकापवाद टालने कश्र दृचष्ट से उन्हें ीेल में ीाना पड़ा। ‘लोकपवादो
णलवान्मतो मे’ ोगवान् रामिन्द्रीश्र का यह वाक्य सोश्र नेताओां को ननेक णार गिरण में लाना
पड़ता है । ीानणूझकर ीेल स्वश्रकार करनेवाले डॉक्टर हे डगेवार कारावास के स्वान्भत्याग से खरे एवां
नचिक प्रदश्रप्त हो नागपगर कश्र उदयोन्मगखश्र पश्रढश्र का नेतृत्व करने एवां नपने चवशगद्ध स्वातांत्र्य के ध्येय
का प्रचतपादन करने के चलए शश्रघ्र हश्र कदाचित् एक वर्भ के पूवभ हश्र ीेल से वापस गयेंगे, ऐसश्र हमें
गशा है ।’’

एक वर्भ के सीम कारावास के चलए डॉक्टरीश्र नीनश्र ीेल में रखे गये न्े। उन्हें कारावास में कोई
नवश्रनता प्रतश्रत नहीं हग ई क्योंचक कलकत्ता में रहते समय ननेक णार उन्हें पगचलस-िौकश्र पर घण्टों णैुना

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पड़ता न्ा तन्ा एक-दो णार तो िार-िार चदनों के चलए हवालातश्र णनकर ोश्र रहना पड़ा न्ा। नचतपचरिय
के कारण गगप्तिर और पगचलस का ोय तो णिपन से हश्र ीाता रहा न्ा और कष्टों के णारे में तो यहश्र
कहना होगा चक उनके सान् डॉक्टरीश्र कश्र णहग त पगरानश्र एवां घचनष्ठ चमत्रता हश्र न्श्र।

उन चदनों के चनयम के ननगसार कारागृह में प्रवेश करते समय णन्दश्र को नपना यज्ञोपवश्रत उतारकर
रख दे ना पड़ता न्ा। डॉक्टरीश्र को यह चनयम णताया गया परन्तग उन्होंने ीनेऊ उतारने से स्पष्ट शब्दों
में इन्कार कर चदया। वहााँ के नचिकाचरयों ने उनके नकार के पश्रछे दृढ चनिय दे खकर णगचद्धमानश्र इसश्र
में समझश्र चक इस चनयम के पालन पर ीोर न चदया ीाये। ीेल के पयभवेक्षक ीश्र फोडभ एक गयचरश
सज्जन न्े तन्ा मन में स्वयां नांग्रेीों के चवरोिश्र न्े। नतः डॉक्टरीश्र का स्वाचोमान उन्हें ोूर्णावह लगा
हो तो कोई गियभ नहीं। इसके णाद तो ननेक कारणों से ीैसे-ीैसे ीेलें ोरने लगश्र तन्ा सत्याग्रचहयों
को राीनश्रचतक कैचदयों कश्र मान्यता चमलश्र वैसे-वैसे हश्र यह नपमानास्पद चनयम नपने गप रद्द हो
गया।

डॉक्टरीश्र के कारागृह में पहग ाँ िने के पहले हश्र ीश्र रघगनान् रामिन्द्र उपाख्य कमभवश्रर णापूीश्र पाुक
सरकारश्र दमनिक्र के कारण वहााँ पहग ाँ ि िगके न्े। उनके णाद हश्र पां. रािामोहन गोकगलीश्र, डॉक्टरीश्र
तन्ा णालवश्रर ीश्र णापूराव हरकरे ीेल में गये। कगछ चदनों णाद ‘चखलाफत-गन्दोलन’ में सीा पाया
हग ग एक णश्रस वर्भ का तरुण काीश्र इनामगल्ला ोश्र इन्हीं कश्र कोुरश्र में ग गया। वह इण्टरमश्रचीयेट में
पढने वाला उत्तर प्रदे श का चवद्यान्ी न्ा तन्ा वृचत्त से कट्टर मगसलमान न्ा।

इन लोगों को प्रारम्ो में चोन्न-चोन्न प्रकार के काम चदये गये। ीश्र पाुक को कगछ चदनों दलने का तन्ा
डॉक्टरीश्र को हान् से णने हग ए कागीों को चिकनाने का काम चदया गया न्ा। इन चदनों ीश्र चवश्वनान्राव
केळकर तन्ा ीश्र िोरघड़े ने कारागृह में उनसे ोेंट कश्र। उस ोेंट का ीो वृत्तान्त प्रकाचशत हग ग उससे
यह पता िलता है चक पेपर पॉचलकशग के कारण डॉक्टरीश्र के हान्ों में छाले पड़ ीाने के णाद उन्हें
कागद कश्र लगगदश्र तैयार करने का काम दे चदया गया न्ा। न्ोड़े हश्र चदनों के णाद इन पााँिों को पगस्तकों
कश्र चील्द णााँिने का काम चदया गया।

उन सणकश्र कल्पनाएाँ, चनष्ठा, स्वोाव तन्ा चविारों को दे खा ीाये तो यह चनचित न्ा चक उनके एक
सान् रहने पर झगड़े और मनोरां ीन कश्र घटनाएाँ होनश्र हश्र िाचहए न्ीं। ीश्र पाुक वकश्रल न्े तन्ा उनका
स्वोाव नत्यन्त हश्र सरल एवां सान्त्त्वक न्ा। णालवश्रर हरकरे तरुण तन्ा वश्ररव्रत को शोोा दे ने लायक
उग्र न्े। पन्ण्डतीश्र कट्टर गयभसमाीश्र तन्ा गक्रामक चहन्दगत्व के पगरस्कता न्े। इनामगल्ला तो इतना
नसचहष्ट्णग एवां िमान्ि न्ा चक उसे णाकश्र के िारों लोग ‘उल्लू’ कहकर हश्र सम्णोचित करते न्े। नपने
गगमन के दूसरे चदन प्रातः काल मगगे के णााँग दे ने के पहले हश्र इनामगल्ला उुकर ीोर-ीोर से कगरान
शरश्रफ कश्र गयतें पढने लगा। एक-दो चदन पाुक तन्ा हरकरे गचद ने उसे समझाया चक ‘‘तगम्हारे

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कगरान शरश्रफ पढने में कोई हीभ नहीं है परन्तग इतने ऊाँिे स्वर तो मत पढो चक दूसरों कश्र नींद हश्र हराम
हो ीाये।’’ परन्तग उसके पास उनकश्र नेक सलाह ग्रहण करने लायक चववेक तन्ा सद्वृचत्त नहीं न्श्र। इस
पर दूसरे चदन पां. रािामोहनीश्र उसश्र समय तगलसश्रकृत ‘रामिचरतमानस’ में से िौपाइयााँ खूण ऊाँिे स्वर
में पढने लगे। उनकश्र गवाी इतनश्र तेी न्श्र चक उसके सम्मगख इनामगल्ला का स्वर नगाड़े के सामने तूतश्र
ीैसा लगता न्ा। इनामगल्ला सामोपिार से तो नहीं समझा परन्तग गयभसमाीश्र पन्ण्डतीश्र कश्र यह दवा
काम कर गयश्र। इसके णाद प्रातःकाल कश्र मश्रुश्र नींद में उसने कोश्र णािा नहीं पहग ाँ िायश्र।

‘चखलाफत-गन्दोलन’ के कारण मगसलमानों में कौन सश्र वृचत्त चनर्तमत हो रहश्र न्श्र इसकश्र कल्पना
इनामगल्ला के णताव से ग सकतश्र न्श्र। ीैसे-ीैसे इनामगल्ला के रां ग चखलने लगे वह पाुकीश्र तन्ा
डॉक्टरीश्र को इस्लाम कश्र ीेष्ठता का उपदे श दे ने लगा। पन्ण्डतीश्र तो गयभसमाीश्र ुहरे । उनके सामने
तो यह चवर्य चनकालना सरल नहीं न्ा। परन्तग वह इन दोनों को मूाँड़ने कश्र णराणर कोचशश करता रहा।
वह कगछ कहता तो डॉक्टरीश्र मगस्कराकर रह ीाते तन्ा पाुकीश्र उसे सलाह दे ते चक ‘‘पहले णालवश्रर
पर प्रयास करो, चफर दे खग
ें ।े ’’ वे नच्छश्र तरह से ीानते न्े चक णालवश्रर के सम्मगख यह प्रश्न चनकालना
मानो णरभ के छत्ते में हान् डालना है ।

डॉक्टरीश्र सणके सान् चहल-चमलकर रहते न्े। वे तत्कालश्रन काांग्रस


े कश्र प्रान्तश्रय सचमचत के सदस्य न्े
तन्ा नसहयोग-गन्दोलन में ीेल गये न्े। चफर ोश्र कोई झगड़ा-णखेड़ा करके तन्ा कारण ाँढ
ू कर
कारागृह में काम णन्द कर दे ने कश्र उनकश्र प्रवृचत्त नहीं न्श्र। चदनाांक 13 नप्रैल को ‘ीचलयााँवाला चदन’
मनाया ीानेवाला न्ा। चविार हग ग चक उस चदन पााँिों लोग काम न करें । इस कल्पना को मन से
डॉक्टरीश्र कश्र सहमचत नहीं न्श्र। इसचलए ‘‘दे खा ीायेगा’’ इस प्रकार नचनचित प से उन्होंने नपना
चविार प्रकट चकया। इनामगल्ला तो ‘चखलाफत’ छोड़कर और चकसश्र पवभ या सूतक का चविार हश्र नहीं
करता न्ा। चकन्तग उसने डॉक्टरीश्र का रुख दे खकर ितगराई चदखाते हग ए उत्तर चदया चक ‘‘डॉक्टरीश्र
काम णन्द करें गे तो मैं ोश्र णन्द क ाँगा।’’ ीचलयााँवाला णाग के राक्षसश्र नत्यािारों के स्मरणमात्र से
यद्यचप डॉक्टरीश्र का मन सन्तप्त हो उुता न्ा चफर ोश्र ीेल कश्र िारचदवाचरयों में एक चदन चील्द णााँिने
का काम णन्द कर दे ना उन्हें नपने हृदय का क्षोो व्यि करने का नत्यन्त हश्र गौण एवां ननावश्यक
मागभ-सा प्रतश्रत होता न्ा। चकन्तग डॉक्टर को यह नहीं रुिा चक इनामगल्ला उनका सहारा लेकर
ीचलयााँवालाणाग-काण्ड के प्रचत नपने मन कश्र उपेक्षा को चछपा ले। उन्होंने काम णन्द करने कश्र हामश्र
ोर लश्र। तण तो चनरुपाय होकर चणिारे इनामगल्ला को ोश्र हड़ताल करनश्र पड़श्र तन्ा उसका दण्ड ोश्र
ोगगतना पड़ा। उस चदन उसकश्र णातिश्रत से यह ोाव स्पष्ट होता न्ा चक मानो डॉक्टरीश्र ने उसको उलटे
मगाँह चगरा चदया हो।

चीस समय डॉक्टरीश्र कारागृह गये उसश्र समय डॉ. नश्रलकण्ु ीुार कश्र ‘णन्दश्रपाल’ के नाते चनयगचि
हग ई न्श्र। चणल्कगल नये होने के कारण उन्हें नपने काम का कोई ज्ञान नहीं न्ा। डॉक्टरीश्र ने पचरिय होने

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के उपरान्त पगस्तकों के सहारे उन्हें नपने काम को समझने में णहग त सहायता दश्र। ‘‘चकन्तग इस सहायता
के पश्रछे नपना कोई ोश्र स्वान्भ चसद्ध करने नन्वा सााँुगााँु करने कश्र ककचित् मात्र ोावना उनके मन
में नहीं न्श्र,’’ स्वयां स्व. कनभल सर नश्रळकण्ुराव ीुार यह मत व्यि करते न्े। इतना हश्र नहीं डॉक्टरीश्र
के सौीन्यपूणभ एवां प्रोावश्र व्यचित्व का पचरणाम कनभल ीुार पर इतना नचिक हग ग चक उन्होंने उसे
स्वश्रकार करते हग ए कहा चक ‘‘डॉक्टरीश्र के ीेल से छग टने के णाद उनके प्रेमपूणभ व्यवहार के कारण हम
सरकारश्र नौकर होते हग ए ोश्र उनसे चमलने उनके घर पर ीाते न्े। शहर में गये चक उनके घर कश्र ओर
हश्र कखिे िले ीाते न्े।’’

इन चदनों नसहयोग-गन्दोलन के णन्न्दयों को ोश्र नन्य कैचदयों के समान हश्र ीेल के कपड़े पहनते न्े
तन्ा रोटश्र, दाल, तरकारश्र गचद ोोीन ोश्र उनके समान हश्र चमलता न्ा। राीचनचतक णन्दश्र का नलग
वगभ तो हग तात्मा यतश्रन्द्रनान् दास के ननशन एवां चदव्य णचलदान के कारण णाद में णनाया गया। उस
समय तक तो घोर नपरािश्र और राीनश्रचतक णन्दश्र सोश्र एक हश्र तराीू से तौले ीाते न्े। कागी के
गट्ठे णााँिना, चील्द णााँिना गचद काम करने के णाद ीो समय णिता न्ा उसमें डॉक्टरीश्र तकलश्र से
सूत कातते न्े तन्ा कोश्र महाोारत पढते न्े। कहते हैं चक उन चदनों उनके सान् ‘शान्न्तपवभ’ न्ा।

चील्द णााँिने का काम दो टगकचड़यों में होता न्ा। डॉक्टरीश्र तन्ा पाुकीश्र एक में तन्ा शेर् तश्रनों दूसरश्र
टगकड़श्र में काम करते न्े। यह काम ीेल कश्र कोुरश्र में हश्र होता न्ा। एक णार चिपकने के णाद पगस्तक
के ऊपर दणाव डालने कश्र दृचष्ट से इनामगल्ला ने हरकरे कश्र रामायण कश्र पोन्श्र उुाकर उसके ऊपर रखश्र
तन्ा वीन दे ने कश्र दृचष्ट से उस पर खगद खड़ा हो गया। पगस्तकों को दणाने के चलए याांचत्रक व्यवस्न्ा न
होने के कारण इनामगल्ला ने यह तरकश्रण चनकालश्र न्श्र। परन्तग डॉक्टरीश्र को यह सहन होना सम्ोव नहीं
न्ा चक कोई रामायण ीैसे ग्रन्न् पर, िाहे ीो ोश्र कारण हो, पैर रखकर खड़ा हो ीाये। इस घटना से वे
हरकरे पर कुद्ध ोश्र हग ए।

न्ोड़े चदनों णाद डॉक्टरीश्र के हान् में सूीन ग गयश्र। नतः वे राचत्र को कोुरश्र के एक कोने में मेी पर
रखश्र हग ई लालटेन के ऊपर सेंकने के चलए माल गरम करने के चलए वहीं णैु ीाते न्े। एक चदन चनत्य
के ननगसार वे मेी पर णैुे हग ए हान् सेंक रहे न्े। उनसे पन्द्रह-णश्रस फगट कश्र दूरश्र पर सोने के ओटे पर
हरकरे तन्ा इनामगल्ला णैुे न्े। उनके पास हश्र कगरान कश्र पगस्तक रखश्र हग ई न्श्र। उस चदन इनामगल्ला तचनक
तश्रखे स्वर में डॉक्टरीश्र से कहने लगा ‘‘गप कगरान कश्र नपेक्षा ऊाँिे स्न्ान पर णैुे हैं । यह कगरान का
नपमान नहीं है क्या ?’’ डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘मैं एक कोने में णैुा हू ाँ तन्ा तगम्हारश्र कगरान यहााँ से दस-
पन्द्रह फश्रट पर रखश्र है । कगरान का और मेरा क्या सम्णन्ि है ? चफर मेरे मन में तगम्हारे िमभग्रन्न् कश्र
नप्रचतष्ठा करने का कोई ोाव नहीं है । मैं तो रोी यहााँ णैुता हू ाँ , गी हश्र क्या हो गया ीो तगम्हारे चदमाग
में यह णात गयश्र ?’’ उस चदन तो णात यहीं समाप्त हो गयश्र।

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दूसरे चदन ीण हरकरे , रािेमोहन तन्ा इनामगल्ला काम कर रहे न्े तो इनामगल्ला ने हरकरे से रामायण कश्र
मोटश्र पगस्तक खड़े होने के चलए माांगश्र। उस समय हरकरे ने तचनक रोर् में कहा ‘‘मेरश्र इस पगस्तक पर
पैर नहीं रख सकते। वह मेरा िमभग्रन्न् है ।’’

‘‘कल तक नहीं न्ा, गी हश्र कैसे हो गया ?’’ इनामगल्ला ने पूछा।

इस पर हरकरे ने उत्तर चदया ‘‘तेरे मन में पागलपन ग गया है , हमारश्र नश्रचत हमें णतातश्र है ‘शुे शायक्ां
समािरे त्’। वास्तव में हमारा िमभ पगस्तकों में नहीं है ।’’

इस घटना को दो चदन णाद इनामगल्ला गराम के समय सोने के िणूतरे पर णैुकर हरकरे से कहने लगा
‘‘गप चखलाफत कश्र सहायता कर रहे हैं इसश्रचलए हम लोग ोश्र नसहयोग में सान् दे रहे हैं । वैसे हश्र
गोरक्षा का है । ‘गोहत्या मत करो’ ऐसा ीण गप हमसे प्रान्भनापूवभक कहें गे तो कदाचित् हम गोहत्या
नहीं करें ग।े मगर ीण गप उस गोहत्याणन्दश्र पर ीोर दें गे तो गौ काटना यह हमारा फीभ हो ीाता है ।’’

इस णात को सगनकर हरकरे इतने ोड़क उुे चक उन्होंने उसकश्र दाढश्र खींिकर दो-िार ीमा ोश्र चदये।
‘नरे यह क्या’ कहते हग ए डॉक्टरीश्र गगे गये और णात यहीं रुक गयश्र। डॉक्टरीश्र ने चखलाफत का
नन्तरां ग पहले हश्र पहिान चलया न्ा। मगसलमानों कश्र राष्ट्रचवरोिश्र िाल का उन्हें पता न्ा। नतः इनामगल्ला
कश्र णातें सगनकर उन्हें कोई ननोखापन नहीं लगा। उलटा उन्हें इसका प्रणाम हश्र चमल गया चक उनका
ननगमान चकतना ुश्रक न्ा।

दूसरे हश्र चदन इनामगल्ला को उस कोुरश्र से हटा चदया गया तन्ा डॉक्टरीश्र के मनोचवनोद का सािन ीाता
रहा। णश्रि-णश्रि में रात में गप्पें िलतश्र रहतश्र न्ीं तन्ा ोावश्र काल के चवर्य में ोश्र ििा होतश्र न्श्र। उस
णातिश्रत में डॉक्टरीश्र ने नपने मन का ोाव स्पष्ट चकया न्ा चक ‘‘मेरा नकेला णम पयाप्त नहीं है तन्ा
सामूचहक चवद्रोह कश्र सम्ोावना नहीं है । नतः इस समय कारागृह में गया हू ाँ ।’’ 1922 में सणसे पहले
कमभवश्रर पाुकीश्र ीेल से मगि हग ए तन्ा उसके णाद नन्य लोग ोश्र छूटते गये।

डॉक्टरीश्र कश्र मगचि चदनाांक 12 ीगलाई 1922 को प्रातःकाल हग ई। णाहर गते समय ीण वे नपने घर
के कपड़े पहनने लगे तो उनका णन्द गले का कोट तन्ा नाँगरखा उन्हें तांग होने लगा। डॉक्टरीश्र का
वीन पिश्रस पौण्ड णढ गया न्ा। उसश्र का यह स्वाोाचवक पचरणाम न्ा। प्रत्येक पचरन्स्न्चत में हाँ सते-
हाँ सते ीश्रवन व्यतश्रत करने का उनका स्वोाव न्ा। इसश्र कारण ीेल ोश्र उनके चलए स्वास्र्थयकर चसद्ध
हग ई।

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डॉक्टरीश्र ीण कारागृह से णाहर गये तो मूसलािार वर्ा हो रहश्र न्श्र। उस नवस्न्ा में ोश्र डॉ. मगांीे ,
डॉ. पराांीपे, डॉ. ना. ोा. खरे तन्ा ननेक चमत्र णाहर णाट दे ख रहे न्े। उनके द्वारा नर्तपत पगष्ट्पहारों को
सहर्भ स्वश्रकार करते हग ए डॉक्टरीश्र सणके सान् घर को िले। रास्ते में स्न्ान-स्न्ान पर रोककर उनका
स्वागत चकया गया। ‘महाराष्ट्र’ ने ोश्र उसश्र चदन ‘छपते छपते’ में डाक्टरीश्र के स्वागत का नवसर हान्
से नहीं ीाने चदया। ‘महाराष्ट्र’ ने चलखा न्ा चक ‘‘डॉक्टर हे डगेवार कश्र दे शोचि, चनःस्वान्भवृचत्त तन्ा
उत्कटता के सम्णन्ि में चकसश्र के ोश्र मन में शांका नहीं न्श्र। परन्तग ये सण गगण स्वान्भत्याग कश्र ोट्ठश्र में
से चनखरकर णाहर चनकल रहे हैं । उनके इन गगणों का इसके गगे राष्ट्रकायभ के चलए सौगगना नचिक
उपयोग हो यहश्र हमारश्र कामना है ।’’

उसश्र चदन साांयकाल चिटणश्रस पाकभ में ‘स्वागत-सोा’ कश्र घोर्णा कश्र गयश्र। इस समय पां. मोतश्रलाल
नेह , ीश्र चवट्ठलोाई पटे ल, हकश्रम नीमल खााँ, डॉ. नांसारश्र, ीश्र राीगोपालािारश्र, ीश्र कस्तूरश्र रां ग
नय्यांगार गचद नेता काांग्रेस कायभ सचमचत कश्र णैुक के चलए नागपगर गये हग ए तन्ा वे सण स्वागत-
सोा में उपन्स्न्त रहें गे इसकश्र घोर्णा ोश्र कश्र गयश्र न्श्र।

परन्तग सायांकाल वर्ा कश्र झड़श्र लग ीाने के कारण ुश्रक समय पर ‘व्यांकटे श नाट्यगृह’ में सोा करनश्र
पड़श्र। नाट्यगृह नागचरकों से खिाखि ोर गया न्ा। डॉ. ना.ोा. खरे ने नध्यक्ष-स्न्ान ग्रहण चकया।
डॉक्टरीश्र के स्वागत का प्रस्ताव रखा गया ीो ताचलयों कश्र गड़गड़ाहट के णश्रि स्वश्रकृत हग ग। इसके
णाद पां. मोतश्रलाल नेह तन्ा हकश्रम नीमल खााँ के ोार्ण हग ए। तदगपरान्त डॉक्टरीश्र णोलने को खड़े
हग ए। उनका छोटा-सा चकन्तग नत्यन्त मार्तमक ोार्ण हग ग। उन्होंने कहा ‘‘एक वर्भ सरकार का मेहमान
णनकर रह गने से मेरश्र योग्यता पहले से णढश्र नहीं है और यचद णढश्र है तो उसके चलए हमें सरकार का
गोार हश्र मानना िाचहए। दे श के सम्मगख ध्येय सण से उत्तम एवां ीेष्ठ हश्र रखना िाचहए। पूणभ स्वतांत्रता
से कम कोई ोश्र लक्ष्य नपने सम्मगख रखना उपयगि नहीं होगा। मागभ कौनसा हो इस चवर्य में
इचतहासवेत्ता ीोताओां को कगछ ोश्र कहना उनका नपमान करना हश्र होगा। स्वतांत्रता के चलए सांघर्भ
करते हग ए मृत्यग ोश्र गयश्र तो उसकश्र चिन्ता नहीं करनश्र िाचहए। यह सांघर्भ उर ध्येय पर दृचष्ट तन्ा चदमाग
ुण्डा रखकर हश्र िलाना िाचहए।’’

नागपगर के णाद यवतमाळ, वणश्र, गवी, वा ोणा, मोहोपा गचद ननेक स्न्ानों पर चमत्रों ने चनमांत्रण
दे कर डॉक्टरीश्र को णगलाया तन्ा उनकश्र शोोायात्रा चनकाल कर सत्कार-समारोहों का गयोीन
चकया। स्न्ान-स्न्ान पर उनकश्र गरतश्र कश्र गयश्र तन्ा उन्हें खादश्र का वेश ोेंट चकया गया। यवतमाळ
का समारोह लोकनायक णापूीश्र नणे कश्र नध्यक्षता में हग ग न्ा। ीग कश्र दृचष्ट से तो डॉक्टरीश्र मगि
हो गये न्े। परन्तग उनका मन्स्तष्ट्क इसश्र िगन में लगा न्ा चक इस चवर्म पचरन्स्न्चत में से कौनसा मागभ
चनकाला ीाये। उन्हें चिन्ताओां ने घेर रखा न्ा। ऊपर से पगष्ट्पमालाओां से लदे होने के णाद ोश्र उनकश्र
गदभ न के ोार से दणश्र हग ई न्श्र। कौनसश्र उिेड़णगन न्श्र ीो उनके मन को उस समय व्यचन्त कर रहश्र न्श्र ?

107
10. चविार-मन्न्न

डॉक्टरीश्र 12 ीगलाई 1922 को कारागृह से छग टे । नसहयोग-गन्दोलन इसके पूवभ हश्र णन्द हो िगका
न्ा। गाांिश्रीश्र णन्दश्र णना चलये गये न्े। ोावनाओां के गवेश में उस गन्दोलन में ोाग लेनेवाले लोग
भ्रान्तमन इिर-उिर ोटक रहे न्े। चदनाांक 5 फरवरश्र को उत्तर प्रदे श में िौरश्र िौरा नामक स्न्ान पर
एक कुद्ध ोश्रड़ ने पगचलस कश्र िौकश्र पर हमला करके इोंश्रस चसपाहश्र तन्ा एक नचिकारश्र को मार डाला
न्ा तन्ा िौकश्र को गग लगा दश्र न्श्र। गाांिश्रीश्र ने इस घटना से व्यचन्त होकर चदनाांक 12 फरवरश्र को
नसहयोग-गन्दोलन स्न्चगत कर चदया। चकन्तग यह कारण तात्काचलक तन्ा गौण न्ा। नकहसा के
पर्थय का पूणभतः पालन करने के चलए ीनता में चीस प्रकार कश्र पात्रता और ननगशासन िाचहए उसका
नोाव इसके पूवभ हश्र स्पष्ट प से िारों ओर ननगोव होने लगा न्ा। ऐसश्र न्स्न्चत में डूणते गन्दोलन
के चलए चतनके का सहारा लेकर गाांिश्रीश्र ने नपनश्र लाी णिायश्र। उस समय महात्माीश्र चलखते हैं चक
‘‘ईश्वर ने मगझे तश्रसरश्र णार साविान चकया है चक चीसके णल पर सामूचहक नसहयोग समन्भनश्रय एवां
न्यायोचित ुहराया ीा सकता है वह सत्यपूणभ एवां नकहसामय वातावरण नोश्र ोारत में नहीं है ।’’

णश्रस हीार लोगों ने इस गन्दोलन में ोाग चलया न्ा। इसके चलए सवभमान्य लोगों कश्र प्रेरणा तो ‘एक
वर्भ में स्वराज्य’ कश्र घोर्णा हश्र न्श्र। चकन्तग गन्दोलन णन्द होते हश्र लोग एकदम हतप्रो से रह गये।
निानक चवद्यगतघात से ीो न्स्न्चत होतश्र है वैसश्र हश्र उनकश्र मनःन्स्न्चत हो गयश्र। लोग नत्यन्त हश्र चवक्षगब्ि
तन्ा चनराश न्े। 1923 में कारागृह से णाहर गने पर पन्ण्डत ीवाहरलाल नेह इस पचरन्स्न्चत का
वणभन करते हग ए चलखते हैं चक ‘‘..........ध्येयवाद का कहीं पता नहीं न्ा। उसके स्न्ान पर सरे
नन्तःकरणवाले ोावनाशश्रल व्यचि को राीनश्रचत से घृणा हो ीाये इस प्रकार कश्र िालणाचीयााँ िल
रहश्र न्ीं। काांग्रेस को नपने हान् में लेने के चलए चवचवि गगट ताल ुोंककर खड़े न्े।’’ ऐसश्र न्स्न्चत में
स्कूल छोड़कर गन्दोलन में ोाग लेनेवाले चवद्यान्ी चफर से नपनश्र पढाई में ीगट गये तन्ा किहचरयों
का णचहष्ट्कार करनेवाले वकश्रल ोश्र नपने िन्िों मे लग गये।

परन्तग राष्ट्रश्रय गन्दोलन में सफलता कश्र नन्न्तम सश्रढश्र हश्र एकमेव सश्रढश्र नहीं होतश्र। तण तक मकड़श्र
के समान णराणर ीाला पूरते रहना तन्ा एक णार टूट गया तो चफर से पूरना, यह कमभयोग एवां चनष्ठा हश्र
सरे दे शोि के गिरण कश्र गिारचशला णन सकतश्र है । णश्रि के प्रयत्न चवफल हग ए तो ोश्र उनके
ननगोवों के गिार पर गगे के प्रयत्न तेीस्वश्र एवां प्रोावश्र हो सकते हैं । इस गन्दोलन ने ऐसे हश्र
ननगोव के पाु पढाये न्े चीन्हें लेकर डॉक्टरीश्र गगे पग णढाने का मागभ खोी रहे न्े।

108
1921 का गन्दोलन सरकार के चवरुद्ध होने के णाद ोश्र उसके पश्रछे गाांिश्रीश्र का ‘चहन्दग-मगन्स्लम
एकता’ का ोाव हश्र प्रणल चदखायश्र दे ता न्ा। इस गन्दोलन के प्रारम्ो होने के पहले हश्र से चखलाफत
के गन्दोलन के सूत्रिार नांग्री
े ों को यहााँ से चनकालकर नफगाचनस्तान के नमश्रर को गद्दश्र पर णैुाने
कश्र योीना णना रहे न्े। गाांिश्रीश्र को इस योीना कश्र ीानकारश्र तो न्श्र हश्र पर स्वामश्र ीद्धानन्द ीश्र के
ननगसार उनका इसको गशीवाद ोश्र न्ा। चहन्दगस्न्ान के सद्-ोाग्य से यह र्ड्यांत्र यद्दचप उस समय
सफल नहीं हो पाया तो ोश्र हमें स्मरण रखना होगा चक इसके पश्रछे चखलाफत के नेताओां ने मगसलमानों
कश्र नराष्ट्रश्रय गकाांक्षा के गिार पर ीो सांगुन चनमाण चकया न्ा वह दे श के चलए सदै व को नचोशाप
णन गया। कगछ लोगों का मत है चक यह चहन्दू-मगन्स्लम एकता के चलए चकया हग ग महात्माीश्र का
ोारश्र साहस न्ा। परन्तग है ीे के स्न्ान पर गरोग्य के चलए प्लेग को स्वश्रकार करने का साहस महात्माीश्र,
चीस समाी के वे प्रचतचनचि न्े उसकश्र गत्मचवश्वासहश्रनता के कारण हश्र, कर सके नन्यन्ा राष्ट्रश्रय
ोावना से पचरपूणभ व्यचि इसे गौरवास्पद नहीं मान सकता। डॉ. ोश्रमराव नम्णेडकर ने इस प्रयत्न के
सम्णन्ि में कहा न्ा ‘‘क्या कोई ोश्र समझदार गदमश्र चहन्दू-मगन्स्लम एकता के चलए इतनश्र दूर तक ीा
सकता है ? (“Can any sane man go so far, for the sake of Hindu Muslim unity?”)
डॉ. नम्णेडकर ने िाहे महात्माीश्र पर प्रहार चकया होगा चकन्तग डॉक्टरीश्र ने यह ोलश्र ोााँचत समझ चलया
न्ा चक इस प्रकार के सोश्र प्रयत्नों के पश्रछे केवल व्यचि-चवशेर् कश्र लहर या इच्छा कारण न होकर
गत्मचवस्मृत चहन्दू समाी कश्र सामर्थयभचवहश्रन एवां दयनश्रय नवस्न्ा हश्र है ।

डॉक्टरीश्र ीण ीेल से छू टे तो मगसलमानों के मगहाँ से ‘वन्दे मातरम्’ के स्न्ान पर ‘नल्ला हो नकणर’ के


नारे गूी
ाँ रहे न्े तन्ा सोाओां में मगल्ला-मौलवश्र ‘काचफरों’ के वि तन्ा ‘चीहाद’ का गदे श दे नेवालश्र
कगरानशरश्रफ़ कश्र गयतों को पढ-पढकर सगनाते न्े। चीस चखलाफत के नलश्रणन्िग ीैसे नेता हों उसमें
से और क्या चनकल सकता न्ा ? क्योंचक चहन्दगओां का िमान्तर करने में नपना कौशल चदखाने के
कारण हश्र ‘चफरांगश्र महाल’ कश्र ओर से उन्हें मौलाना कश्र सनद चमलश्र न्श्र। गियभ तो यह है चक पढे -
चलखे मगसलमानों में ोश्र यह ोाव चदख रहा न्ा चक मगसलमान शेर् लोगों से नलग तन्ा कगछ चवशेर् हैं ।
नांग्री
े श्र चशक्षा का ीो पचरणाम चहन्दगओां पर चदखायश्र दे रहा न्ा वह मगसलमानों पर नीर नहीं गया।
पन्ण्डत ीवाहरलाल नेह नपने गत्मिचरत्र में चलखते हैं चक ‘‘िार्तमकता का कोई गकर्भण न
रखनेवाले पचिमश्र रां ग ांग के मगसलमान ोश्र दाढश्र णढाने लगे तन्ा कमभु मतािार का पालन करने
लगे।’’ चणिारे ोोले-ोाले चहन्दगओां कश्र ीेण से चनकलश्र हग ई नस्सश्र लाख कश्र चनचि उस समय मगसलमान
नेताओां के हान् लग गयश्र न्श्र। इसके णाद तो नलग होकर खड़ा होना हश्र उन्हें सयगचिक ीाँिा तन्ा
उन्होंने पृन्कता का चवर्ैला प्रिार णड़े ीोरों से प्रारम्ो कर चदया।

डॉक्टरीश्र एक पचरर्द् के चलए ीा रहे न्े। उस समय समश्रउल्ला खााँ ोश्र उनके सान्-सान् न्े। डॉक्टरीश्र
उन चदनों सफेद खद्दर कश्र टोपश्र तन्ा कोश्र-कोश्र खद्दर का दगपट्टा काम में लाते न्े। खााँ साहण के चसर

109
पर तगकी टोपश्र दे खकर डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘नसहयोग-गन्दोलन के काल से सफेद टोपश्र का इतना
प्रिार होने के णाद ोश्र गपने वह पहनना शग नहीं चकया ?’’ तगरन्त खााँ साहण ने साफ-साफ उत्तर
चदया ‘‘मैं पहले मगसलमान हू ाँ तन्ा यह टोपश्र उसकश्र चनशानश्र है । नतः इसे छोड़ने का तो प्रश्न हश्र नहीं
पैदा होता।’’ मगसलमान-मन कश्र यह न्ाह लेते समय एक और घटना ने उनका ध्यान गकृष्ट चकया।
ीण वे ीेल में न्े तोश्र मलाणार के मोपलाओां द्वारा सरकार तन्ा चहन्दगओां के चवरुद्ध सशस्त्र णलवा
करने का समािार चमला न्ा। चकन्तग काांग्रेस के नेताओां कश्र चकसश्र ोश्र प्रकार मगसलानों को समेटकर
ले िलने कश्र नश्रचत के कारण इन घटनाओां कश्र ोश्रर्णता का पता ीनता को नहीं लग पाया न्ा। मोपला-
काण्ड के णाद ीण काांग्रेस ने उस पर दगःख व्यि करनेवाला प्रस्ताव स्वश्रकृत चकया तो उसमें मोपलाओां
के नत्यािारों के पवभत को राई के समान तन्ा सरकारश्र दमन राई को ोश्र पवभत के समान णढा-िढाकर
णताया न्ा। ‘ोारत सेवक समाी’ (सरवेण्ट्स गफ इन्ण्डया सोसाइटश्र))इस सांस्न्ा का नाम णदलकर
‘चहन्द सेवक सांघ’ कर चदया गया।) कश्र ओर से मोपला-चवद्रोह का ीो प्रचतवृत्त प्रकाचशत हग ग हैं उसमें
यह णताया गया न्ा चक डेढ हीार चहन्दग मारे गये तन्ा णश्रस हीार चहन्दगओां का ीणरदस्तश्र से िमभपचरवतभन
चकया गया। िन-सम्पचत्त कश्र हाचन लगोग तश्रन करोड़ रुपये कश्र कूतश्र गयश्र न्श्र। परन्तग काांग्रेस को
नपने रां गश्रन िश्में में से यह दृश्य कैसा चदखा इसका ननगमान उसके प्रस्ताव से लगाया ीा सकता है ।
प्रस्ताव में कहा गया न्ा चक‘‘................चीन चहन्दू कगटगम्णों का ीणरदस्तश्र िमभपचरवतभन चकया गया
वे माीेरश्र रहनेवाले न्े तन्ा चीन िमान्ि व्यचियों ने यह कृत्य चकया उनका चखलाफत तन्ा नसहयोग-
गन्दोलन से चवरोि न्ा, तन्ा नोश्र तक ीो ीानकारश्र चमलश्र है उससे केवल तश्रन पचरवारों के ऊपर
यह ीणरदस्तश्र कश्र गयश्र चदखतश्र है ’’ (राष्ट्रश्रय सोा का इचतहास पृष्ठ 254-255)। कहााँ णश्रस हीार और
कहााँ तश्रन पचरवार !

मोपलाओां के इस चवद्रोह को दणाने के चलए सरकार ने सदा कश्र ोााँचत कुोर उपायों का नवलम्णन
चकया। उसके कारण महात्माीश्र तन्ा ीवाहरलालीश्र नत्यन्त व्यचन्त हग ए। महात्माीश्र ने चलखा न्ा
चक‘‘........ईश्वर-चवश्वासश्र शूर मोपले, ीो चक, चीसे वे िमभ समझते न्े उसके चलए, उस मागभ से चीसे
वे िार्तमक मानते न्े, लड़ रहे न्े।’’ (‘‘......brave, god-fearing moplahs who were
fighting for what they consider as religion and in a manner which they con-
sider as religious”) । इसश्र प्रकार नेह ीश्र ने ोश्र मोपलाओां के प्रचत सहानगोूचत प्रकट करते हग ए
हश्र सरकारश्र नत्यािारों का वणभन करते हग ए चलखा ‘‘मोपलाओां का चवद्रोह तन्ा उसका नसािारण
प से दमन, णन्द रे लवे के चडब्णों में मोपला णन्न्दयों का गमी के मारे तड़प-तड़पकर मर ीाना,
चकतनश्र ोयांकर एवां कूरतापूणभ घटना न्श्र।’’ (“The Moplah rising and its extraordinary
cruel suppression, what a horrible thing was the baking to death of the Moplah
prisoners in the closed railway vans”) एक णार कूरता को शूरता मान चलया तो चफर यह
नशुपात समन्भनश्रय हश्र है । परन्तग यह कटग तर्थय न्ा चक मालाणार के पश्रचड़त चहन्दगओां को नपनश्र दगदभशा

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पर खगद हश्र गाँसू णहाने के चलए छोड़ चदया गया तन्ा काांग्रेस-नेताओां के चवपगल सहानगोूचत के कोर्
पर, नपनश्र िमान्िता के ीोश में शासन के प्रचत चवद्रोह के गवरण में चीन मोपलाओां ने चहन्दगओां पर
कहर ाया, उनका हश्र एकाचिकार णना रहा।

मगसलमानों को खगश करने के चलए मोपला-चवद्रोह कश्र ोश्रर्णता पर ीण इस प्रकार कश्र लश्रपापोतश्र हो
रहश्र न्श्र उसश्र समय डॉ. मगांीे स्वयां मलाणार में घूमकर गये तन्ा उन्होंने वहााँ के चहन्दगओां कश्र घोर
यातनाओां का गाँखों दे खा वणभन लोगों के सामने रखा। डॉक्टरीश्र डॉ. मगी
ां े के यहााँ चनत्य गते-ीाते
न्े। उनको यह सण वणभन पूरश्र तरह सगनने को चमला। चकसको क्या लगेगा इसकश्र तचनक ोश्र चिन्ता न
ां े ने कहा न्ा चक ‘‘मगसलमानश्र राज्य कश्र समाचप्त के णाद चहन्दू ीनता पर इतने णड़े
करते हग ए डॉ. मगी
प्रमाण में गयश्र हग ई यह पहलश्र हश्र गपचत्त है ।’’ उस समय डॉ. मगांीे ने यह ोश्र योीना रखश्र चक इन
ीांगलश्र िमान्ि मगसलमानों से चहन्दगओां कश्र रक्षा करने के चलए उस ोाग में चसख, राीपूत तन्ा मराुों
को ले ीाकर णसाना िाचहए। यह घटना मई 1923 कश्र है ।

इस समय मलाणार कश्र न्स्त्रयों ने तत्कालश्रन वाइसराय लॉडभ रश्रकडग कश्र पत्नश्र के पास एक नत्यन्त हश्र
करुणा-ोरा गवेदनपत्र ोेीा न्ा। उसमें वे चलखतश्र है ‘‘.......... हमारश्र मााँग के ननगसार क्षचतपूर्तत
करना तन्ा हमारा सांरक्षण करना सरकार को नसम्ोव लगता हो तो हमारश्र यहश्र प्रान्भना है चक इस
प्रान्त के पास हमें ोश्र ीमश्रन दे दश्र ीाये। वह प्रदे श यद्दचप हमारे प्रदे श के समान प्रकृचत के वरदान के
कारण सम्पन्न न ोश्र हग ग तो ोश्र वह मानव कश्र पाशचवक कूरता के नचोशाप से तो मगि रहे गा।’’

मोपलाओां के इस चवद्रोह के णाद ोश्र मगसलमानों को पगिकारने का काांग्रेस का प्रयत्न णराणर िल रहा
न्ा। नसहयोग-गन्दोलन में महाँ गे चवदे शश्र वस्त्रों कश्र होचलयााँ ीलायश्र ीातश्र न्ीं तन्ा उससे ीनता के
मन में स्वाचोमान तन्ा दे शोचि कश्र नचग्न प्रदश्रप्त होतश्र न्श्र। चकन्तग प्रतश्रत होता हैं चक मगसलमानों का
दे श और स्वतांत्रता से न तो कोई सम्णन्ि न्ा और न उसके प्रचत कोई कतभव्य। उन्होंने ऐसे कपड़ो कश्र
होलश्र न ीलाते हग ए उन्हें नपने तगकी के णन्िगओां को ोेीने कश्र ननगमचत गाांिश्रीश्र से मााँगश्र, तन्ा
मगसलमानों के चलए मोम से ोश्र मगलायम महात्माीश्र ने उसे मान्य ोश्र कर चलया। इसश्र प्रकार मगसलमानों
के चप्रय नारे ‘नल्हा हो नकणर’ का लगाना ोश्र प्रारम्ो चकया गया। परन्तग नवम्णर 1923 में मौ. शौकत
नलश्र ने ‘मगख में राम णगल में छग रश्र’ कश्र उचि को िचरतान्भ करते हग ए कणावतश्र कश्र एक सोा में कहा
‘नल्ला हो नकणर’ तन्ा ‘वन्दे मातरम्’ कश्र घोर्णाओां में पहले के समान मगझे एकता नहीं चदखायश्र
दे तश्र। चहन्दगओां के ‘नल्ला हो नकणर’ कश्र घोर्णा करने के णाद ोश्र मगसलमान ‘वन्दे मातरम्’ कश्र घोर्णा
नहीं करते। महात्मा गाांिश्र के नेतृत्व में चहन्दगओां ने हमारश्र चखलाफत के प्रश्न पर चकतनश्र सहायता कश्र है
इसे ोूलना नहीं िाचहए।’’ये सण ऊपर-ऊपर कश्र णातें न्श्र। इसमें से ‘नल्ला हो नकणर’ कश्र घोर्णाओां
को हश्र प्रोत्साहन चमला तन्ा चवघचटत चहन्दू समाी के मन में ोश्रचत उत्पन्न करके उसके ऊपर पाशचवक
नत्यािार करनेवालश्र मगसलमानों कश्र वृचत्त दृढतर हग ई। इन सण िालणाचीयों तन्ा णदलतश्र हग ई

111
पचरन्स्न्चत का डॉक्टरीश्र नत्यन्त सूक्ष्मता से चनरश्रक्षण कर रहे न्े। वे ऊपर चदखनेवालश्र णातों से हश्र
पचरन्स्न्चत का तगरन्त चनदान करने के स्न्ान पर मगसलमानों कश्र गक्रामक तन्ा चहन्दगओां कश्र दब्णू
मनोवृचत्त के कारणों कश्र, चणलकगल उसकश्र ीड़ में ीाकर, मश्रमाांसा करने में लगे हग ए न्े। यह चिन्तन
िलते हग ए ोश्र उनकश्र समाीसेवा के ननेकों कायों में चकसश्र ोश्र प्रकार का व्यविान नहीं पड़ा। णन्ल्क
उस समय ोश्र वे नये-नये ननगोव हश्र नहीं नये कायभकता ोश्र समाी में से प्राप्त करने के चलए णराणर
प्रयत्नशश्रल न्े। नगस्त 1922 के णाद कश्र घटनाओां पर यचद एक सरसरश्र नीर डालश्र ीाये तो उनके
नचवीान्त पचरीम तन्ा समाी का चनरश्रक्षण करने के चलए िलनेवाले प्रयत्नों कश्र कगछ कल्पना ग
सकेगश्र।

1922 में उनको प्रान्तश्रय काांग्रेस के चलए िगना गया तन्ा वे उसके सहमांत्रश्र के पद पर चनयगि हग ए। इस
पद पर काम करते हग ए उन्हें पग-पग पर ननगशासन कश्र कमश्र खटकतश्र न्श्र। उसे दूर करने के चलए
उन्होंने काांग्रेस के नन्दर हश्र एक सांघटन खड़ा करने का प्रयत्न चकया। इसके चनचमत्त प्रत्येक तहसश्रल
से िार-िार व्यचियों को णगलाया गया। चकन्तग इस कायभ में चवशेर् सफलता नहीं चमलश्र क्योंचक
स्वयांसेवक के सम्णन्ि में मेी-कगसी उुानेवाला तन्ा िार णताये हग ए काम करनेवाला ‘फरमााँणरदार’
व्यचि होने कश्र नत्यन्त चवकृत कल्पना उस समय के नेताओां के मन में णैुश्र हग ई न्श्र। सान् हश्र गाांिश्रीश्र
कश्र नकहसा कश्र ीन्मघगट्टश्र चपये हग ए लोगों का तो इस प्रकार के सांघटन से मूलतः हश्र चवरोि न्ा। उसका
पचरणाम डॉक्टर के इन प्रयत्नों पर ोश्र हग ग। डॉक्टरीश्र के इन प्रयत्नों के उपरान्त 1923 में कोकोनाडा
काांग्रेस नचिवेशन में डॉक्टरीश्र के कलकत्ता के चवद्यान्ी-ीश्रवन के समय से हश्र उनके एक चमत्र हग णलश्र
के डॉ.ना.सग. हडीकर ने ‘चहन्दगस्न्ानश्र सेवा दल’ कश्र स्न्ापना कश्र। उन्हें पन्ण्डत ीवाहरलाल नेह का
समन्भन चमलने के उपरान्त ोश्र ीो ननगोव गया वह पन्ण्डतीश्र ने नपने गत्मिचरत्र में चलखा है । यह
कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक डॉक्टरीश्र को ोश्र ऐसे हश्र ननगोव गये होंगे। पन्ण्डत नेह चलखते
हैं चक ‘‘प्रमगख-प्रमगख काांग्रेसश्र नेताओां का सेवा दल के प्रचत चवरोि दे खकर हमें णड़ा गियभ हग ग।
कगछ लोगों ने कहा चक यह णहग त हश्र खतरनाक पचरवतभन है क्योंचक इससे काांग्रेस में एक सैचनकवगभ
प्रवेश कर ीायेगा तन्ा नन्त में सैचनक दल नसैचनक तत्त्व पर हावश्र हो ीायेगा। कगछ लोगों का चविार
न्ा चक स्वयांसेवक के पास ऊपर से गयश्र गज्ञा को मानने मात्र का ननगशासन िाचहए तन्ा नन्य
चकसश्र णात कश्र ी रत नहीं, यहााँ तक चक कदम चमलाकर िलना ोश्र स्वयांसेवक के चलए वाछां नश्रय
नहीं। कगछ के मन में यह ोाव काम कर रहा न्ा चक प्रचशचक्षत एवां ननगशासनणद्ध कवायद करनेवाले
स्वयांसेवकों कश्र कल्पना काांग्रेस के नकहसा के चसद्धान्त से चवसांगत है ।’’

‘स्वयांसेवक दल’ तन्ा ननगशासन-सम्णन्िश्र इस प्रकार कश्र चवकृत िारणाओां के णश्रि डॉक्टरीश्र के
मन कश्र कल्पनाएाँ साकार करने को वहााँ सगचविा कैसे चमल सकतश्र न्श्र ? डॉक्टरीश्र केवल
‘फरमााँणरदार’ सेवक नहीं तैयार करना िाहते न्े। उनकश्र तो इच्छा न्श्र चक दे शोचि से ओतप्रोत, शश्रल
से चवोूचर्त, गगणोत्कर्भ से प्रोावश्र तन्ा चनस्सश्रम सेवाोाव से स्वयांस्फूतभ ननगशाचसत ीश्रवन व्यतश्रत

112
करने कश्र गकाांक्षा लेकर िलनेवाले चक्रयाशश्रल एवां कतभव्यशश्रल तरुण लाखों कश्र सांख्या में खड़े चकये
ीायें। इस रिना में कायभ कश्र गवश्यकता के ननगसार कोई नेता तन्ा दूसरा ननगयायश्र हग ग तो ोश्र
उनके गगण, स्वोाव, कतभव्य तन्ा ननगशासन में दोनों के णश्रि न्ोड़ा-सा ोश्र नन्तर नहीं होना िाचहए।
ीो चकसश्र कश्र ोश्र सगनेंगें नहीं परन्तग यह मानेंगे चक उनकश्र णात सणको सगननश्र िाचहए तन्ा न सगनश्र तो
हान्-पैर पटककर तनतनाते रहें गे तन्ा ननगयाचययों के सान् मनिाहा व्यवहार करें गें, इस प्रवृचत्त और
िारणा के नेता डॉक्टरीश्र को हर घड़श्र दे खने को चमलते न्े। ऐसे नेताओां को केवल मेी -कगसी उुाने
वाले स्वांयसेवकों कश्र हश्र िाह रहतश्र है । डॉक्टरीश्र को लगता न्ा चक नेतृत्व उन्हीं लोगों के हान्ों में
होना िाचहए चीनका सेवाोाव ज्वलन्त एवां उत्साहपूणभ है । सान् हश्र उन्हें यह ोश्र चदख रहा न्ा चक
नकहसा-तत्त्व कश्र चवकृत कल्पना से समाी के पौरुर् एवां तारुण्य कश्र घोर उपेक्षा हो रहश्र है । उस समय
एक प्रदशभन के चलए स्वयांसेवक खड़े करने का प्रसांग गने पर उनके सहयोचगयों को एक मीेदार
ननगोव हग ग न्ा। डॉक्टरीश्र के कचतपय चमत्रों ने एक णार एक प्रदशभन के चनचमत्त कगछ हट्टे -कट्टे तन्ा
साहसश्र यगवकों को सांघचटत चकया। उनको दे खते हश्र काांग्रेस के नकहसक नेताओां के मान्े पर णल पड़
गये। वे णोले ‘‘ऐसे तरुण गपने प्रदशभन के चलए ोेीे तो पगचलस कश्र लाुश्र कश्र मार स्वयां सहन करने
के स्न्ान पर वे उसे छश्रनकर पगचलस को हश्र मार ोगायेंग।े ’’ यह शब्द सगनते हश्र डॉक्टरीश्र के चमत्रों को
हाँ सश्र ग गयश्र तन्ा उन्होंने उत्तर चदया ‘‘इनको प्रचतकार नहीं करने को कहा तो ये प्रचतकार नहीं करें ग।े
परन्तग मचरयल स्वयांसेवक तो लाुश्र कश्र मार से स्वयां मर ीायेंगे तन्ा इस प्रकार कहसा होगश्र। इससे तो
कहसा को टालनेवाला इन णलवान् तरुणों को प्रचतकार नच्छा है ।’’ यह है 1922-23 में शराणणन्दश्र के
चलए चकये गये एक प्रदशभन का ननगोव।

पांीाण तन्ा राीस्न्ान प्रान्तों में ोेीे हग ए क्रान्न्तकरश्र तरुणों को वाचपस लाने तन्ा उन्हें िन्िे से लगाने
का काम णहग त-कगछ पूरा हो िगका न्ा। परन्तग उस पन्क के प्रमगख ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे नोश्र वापस
नहीं गये न्े। नतः नपने इस चमत्र को वापस लाकर उसके गगणों तन्ा ननगोवों का लाो उुाया ीाये
इस उद्देश्य से विा में ीश्र राळे गणकर का एक स्न्ान चकराये पर लेकर वहााँ गांगाप्रसाद के नेतृत्व में
‘राष्ट्रश्रय मल्लचवद्या शाला’ नाम से एक सांस्न्ा शग कश्र गयश्र। इस सांस्न्ा के चलए एक ‘चवश्वस्त मण्डल’
कश्र चनयगचि कर गगे-पश्रछे सम्पूणभ प्रान्त में उसकश्र शाखाएाँ खोलने का ोश्र चविार हग ग। तदनगसार
डॉक्टरीश्र कश्र नध्यक्षता में एक ‘चवश्वस्त मण्डल’ गचुत चकया गया। क्रान्न्तकाल में सम्णन्ि में गये
हग ए तरुणों को गून् ू ते रहने कश्र व्यवस्न्ा करना,
ाँ कर रखना तन्ा दूसरे नये-नये कतृभत्ववान् तरुणों को ाँढ
इन दो उद्देश्यों को लेकर इस सांस्न्ा का चनमाण चकया गया न्ा। इस शाला में पांीाण कश्र ओर के दस-
णारह तन्ा मध्यप्रान्त के णारह-तेरह तरुण न्े। नौकर-िाकर चमलाकर कगल सांख्या तश्रस के लगोग
न्श्र। ीोड़श्र, कगश्तश्र, तन्ा मलखम्ो के सान् यहााँ िनगर्तवद्या कश्र ोश्र चशक्षा दश्र ीातश्र न्श्र।

गांगाप्रसाद डॉक्टरीश्र का क्रान्न्तकाल का नत्यन्त चवश्वसनश्रय, चनोभय तन्ा णगचद्धमान् सहयोगश्र न्ा।
परन्तग वह स्वोाव से हश्र णहग त खिीला न्ा। चमतव्यचयता तो ीानता हश्र नहीं न्ा। नतः उस चवद्यालय
113
को उसका ोार सहना कचुन होने लगा। सणेरे दूि, णादाम तन्ा दोनों समय के णचढया ोोीन के सान्
णश्रि-णश्रि में चमुाई और मलाई, यह न्ा उसका चदन ोर का ोोीन। चफर णाकश्र ोश्र खिे हान् खोलकर
हश्र होते न्े। वह स्वयां एक हीार दण्ड पेलता न्ा तन्ा दूसरों से ोश्र ोरपूर व्यायाम करवा लेता न्ा। वहााँ
के तरुणों कश्र िौड़श्र छातश्र, मोटे ोरे हग ए णाहग दण्ड, सतेी गाँखें तन्ा नांगकान्न्त दे खकर डॉक्टरीश्र को
नत्यन्त सन्तोर् होता न्ा और इसश्रचलए पाण्डे के खिे के चलए पैसा इकट्ठा करने में उन्हें ीो दौड़िूप
तन्ा कष्ट करने पड़ते न्े उन्हें वे गनांद के सान् सहन कर लेते न्े। ीैसे-तैसे इस सांस्न्ा को िले डेढ
वर्भ णश्रता होगा चक पांीाण से ीााँि-पड़ताल कश्र एक झांझट गांगाप्रसाद के पश्रछे लग गयश्र तन्ा नागपगर-
ोाग के गगप्तिर ोश्र कगछ सचक्रय हो गये। डॉक्टरीश्र ने सरकार का रुख दे खकर वह सांस्न्ा णन्द कर
दश्र। यह करते हग ए वे गांगाप्रसाद कश्र व्यवस्न्ा करना नहीं ोूले। यह ोार उन्होंने विा के ीश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र को सौंपा न्ा।

इस शाला के काम से उन्हें णश्रि-णश्रि में विा ीाना पड़ता न्ा। उस समय वे णिे हग ए समय में महात्माीश्र
े में ‘पचरवतभन-नपचरवतभन’ का चववाद प्रारम्ो हो
के सत्याग्रह-गीम में ोश्र ीाते न्े। उस समय काांग्रस
गया न्ा तन्ा चवशेर् ििा इसश्र चवर्य को लेकर होतश्र रहतश्र न्श्र। इस चववाद में डॉ. मगांीे के सान् घचनष्ठता
के कारण उनकश्र प्रवृचत्त कौंचसल-प्रवेश कश्र ओर होने के णाद ोश्र वे उस पर कोई णल नहीं दे ते न्े। उस
समय काांग्रेस-कायभकताओां के चशचवर में रहनेवाले पां.रामगोपाल चवद्यालांकार से उनका नच्छा पचरिय
हो गया न्ा। वे डॉक्टरीश्र के णारे में कहते हैं चक ‘‘डॉक्टरीश्र रामोाऊ कपगळे , वामनराव घोरपडे,
राीाोाऊ डााँगरे गचद चमत्रों के णश्रि उुते-णैुते चदखते न्े। वे चशचवर में गये चक ‘नकहसा को नश्रचत
के स्न्ान पर चसद्धान्त क्यों मानते हो ?’ ‘मगसलमानों का पक्षपात क्यों करते हो ?’ गचद प्रश्न पूछे ीाते
तन्ा ये गग्रह के सान् प्रचतपाचदत करते चक पचरवतभनवादश्र चविारसरणश्र को स्वश्रकार कर
ननगशासनणद्ध ीश्रवन चनमाण करना िाचहए। इसके नचतचरि दूसरा तरणोपाय नहीं है ।’’ चीनके मत
से नपना मेल नहीं खाता उनसे िार हान् दूर रहकर उन पर टश्रकास्त्र छोड़ते रहना डॉक्टरीश्र को पसन्द
नहीं न्ा। वे नपने चविारों को रखने के चलए खगले चदल से नन्य चविारों के पगरस्कताओां के पास ीाते
तन्ा चनोभयता और चनःसांकोि ोाव से चविारों का गदान-प्रदान करते न्े। इसका पचरणाम सदै व
नच्छा हश्र होता न्ा। पां. रामगोपालीश्र इस सम्णन्ि में कहते हैं चक ‘‘डॉक्टरीश्र मतोेद होते हग ए ोश्र प्रेम
णनाये रखते न्े। इसश्रचलए ीण मैं उनके घर ीाता न्ा तो ीश्र खोलकर हाँ सते हग ए कहते ‘‘मैं गपका
स्वागत करता हू ाँ , पर गपके चविारों का नहीं।’’चविार और व्यचि को मन में नलग-नलग रखकर
मतचोन्नता होते हग ए ोश्र उसका पचरणाम व्यचिगत प्रेम पर न पड़ने दे ने कश्र कला डॉक्टरीश्र के स्वोाव
का एक नलौचकक तन्ा लोकसांग्रह कश्र दृचष्ट से नत्यन्त हश्र प्रोावश्र पहलू न्ा। उस समय रामगोपालीश्र
विा से प्रकाचशत साप्ताचहक ‘राीस्न्ान केसरश्र’ के सम्पादक न्े। पर डॉक्टरीश्र चशचवर में गये चक वहााँ
के इन सोश्र चमत्रों के सान् हाँ सते-खेलते, तन्ा खूण िींगामस्तश्र करके हश्र वापस गते न्े।

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चीस वर्भ कारागृह से डॉक्टरीश्र छू टे उस वर्भ कश्र एक और उल्लेखनश्रय घटना है , नागपगर के ‘ननान्
चवद्यान्ी गृह’ कश्र स्न्ापना। उसश्र वर्भ गणेशितगन्ी के चदन डॉक्टरीश्र के चमत्र ीश्र गोचवन्द गणेश िोळकर
ने यह सांस्न्ा शग कश्र। इसमें उन्हें डॉक्टरीश्र का सहयोग चमला न्ा। इसमें सन्दे ह नहीं चक ीश्र िोळकर
द्वारा स्न्ाचपत यह सांस्न्ा चनिभन चवद्यार्तन्यों के चलए नत्यन्त उपकारक चसद्ध हग ई है । परन्तग इस सांस्न्ा ने
नगर के णाहर ोण्डारामागभ पर स्न्ान चमलने के उपरान्त प्रान्त-प्रान्त से गये हग ए ोूचमगत क्रान्न्तकाचरयों
को ोश्र समय-समय पर गीय दे ने का ोारश्र काम चकया है । इस स्न्ान पर कगछ चदनों डॉक्टरीश्र ने
शस्त्रास्त्र कश्र पेचटयााँ ोश्र चछपायश्र न्ीं तन्ा क्रान्न्तकाचरयों को वहााँ रखकर चनत्य चनयमपूवभक उनको
ोोीन पहग ाँ िाने कश्र व्यवस्न्ा कश्र न्श्र। उस समय ोोीन का चडब्णा पहग ाँ िानेवाले ीश्र तात्या तेलांग तन्ा
ोेदश्र गचद कगछ िगने हग ए तरुणों को इस णात का पता है । इस सांस्न्ा के कायभकारश्र-मण्डल में प्रारम्ो
से लेकर नन्त तक डॉक्टरीश्र का समावेश न्ा तन्ा वे णश्रि-णश्रि में इसके काम कश्र ओर ध्यान ोश्र दे ते
न्े। कालक्रम से गगे कश्र होने पर ोश्र चवर्यानगर्ांग से एक और णात कश्र ििा यहीं कर दे ना यगचिसांगत
होगा। एक णार ‘ननान् चवद्यान्ी गृह’ के दो णालको को एक चमशनरश्र मचहला ोगाकर ले गयश्र न्श्र।
डॉक्टरीश्र ने नपने सहकाचरयों के सान् णहग त प्रयत्न करके वे णरे वाचपस ला चदये। इस णात का उल्लेख
सांस्न्ा के 1926 के प्रचतवेदन में ीश्र गोचवन्द राव िोळकर ने चदया है ।

इन चदनों चवचोन्न पचरर्दों में ीाने का काम ोश्र शग हश्र न्ा तन्ा डॉ. मगांीे द्वारा स्न्ाचपत ‘रायफल
एसोचसएशन’ में ोश्र डॉक्टरीश्र ोाग लेते न्े। उनकश्र यह दृढ िारणा न्श्र चक ननगशासन, सांिालन तन्ा
लक्ष्योेद, ये णातें पददचलत राष्ट्र का स्वत्व णनाये रखने के चलए णहग त उपयगि हैं । यह िारणा नकहसा
के उस श्रले-पोले वातावरण में ोश्र लव मात्र कम नहीं हग ई न्श्र। कलकत्ता में रहते हग ए हश्र उन्होंने चनशाना
लगाना सश्रखा न्ा। इसचलए सगचविा चमलश्र तो वे नपने चमत्र ीश्र ोाऊसाहण टालाटगले के सान् णड़े शौक
से चशकार के चलए ोश्र ीाते न्े। इस नवसर पर दो-तश्रन चदन ीांगल में हश्र रहना पड़ता न्ा। ऐसे हश्र एक
नवसर पर वान्नेरा ग्राम में एक वृक्ष पर णेंगन टााँगकर उसका चनशाना लगाने हश्र होड़ लग गयश्र। उस
समय केवल डॉक्टरीश्र ने निूक चनशाना लगाकर शेर् सणको हरा चदया न्ा। एक दूसरे नवसर पर
उनके एक चमत्र ने यह समझकर चक णन्दूक में कारतूस नहीं है घोड़ा दणा चदया। डॉक्टरीश्र के चणल्कगल
चनकट से सूांऽऽऽ करतश्र हग ई गोलश्र िलश्र गयश्र। चणल्कगल नांग से सटकर ीानेवालश्र मृत्यग का वणभन
करते हग ए डॉक्टरीश्र कहते न्े चक ‘‘गोलश्र हो या न हो, पर चकसश्र ोश्र व्यचि पर मीाक में चनशाना नहीं
लगना िाचहए।’’

नगर में कोई नया काम प्रारम्ो हो और उसमें डॉक्टरीश्र न हो, ऐसा सहसा नहीं हो सकता न्ा। 1922
में होनेवाले खेलों कश्र प्रान्तश्रय सचमचत में ोश्र उनका नाम चमलता है । महाल में ‘नरकसह चसनेमाघर’ के
पास के हनगमानीश्र के मन्न्दर में होनेवालश्र दै चनक सायां-प्रान्भना में ोश्र वे नन्य लोगों के सान् उपन्स्न्त
रहते न्े। स्वाध्याय-मण्डलों में ीाकर ीैसे वे ििा में ोाग लेते न्े वैसे हश्र चमत्रों के यहााँ क्रमानगसार
होनेवाले प्रश्रचतोोी में ोश्र सन्म्मचलत होते न्े। ीहााँ कगछ समवयस्क व्यचि एकत्र हों तन्ा राष्ट्रश्रय एवां

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सामाचीक दृचष्ट से कगछ कायभक्रम हो वहााँ वे प्रयत्नपूवभक ीाते न्े। शराण कश्र ोचट्टयों के सामने प्रदशभन
करनेवालों कश्र पश्रु पर ोश्र वे हान् चफराते न्े तन्ा उसश्र प्रकार णालक-णाचलकाओां द्वारा नत्यन्त िाव
से प्रारम्ो चकये गये गणेशोत्सव के गयोीनों में ोश्र नपनश्र गरश्रणश्र कश्र चिन्ता न करते हग ए िन्दा दे ते
न्े।

कगछ लोगों को यह ोश्र स्मरण है चक इन चदनों डॉक्टरीश्र ने नागपगर के ‘खण्डोणा’ के मन्न्दर में कचव
परमानन्द-कृत ‘चशव ोारत’ पर कगछ प्रविन ोश्र चकये न्े। उस काल के प्रविन का स्व प ोश्र चवशेर्
रहता न्ा। प्रा.ना.सश्र. फडके इस चवर्य में चलखते हैं चक ‘‘विा ने व्याख्यान के चवर्य मे प में िाहे
गश्रता का एकाि श्लोक नन्वा दासणोि का विन रखा हो पर गश्रता नन्वा दासणोि के गिार से
वह राीनश्रचत और वह ोश्र लोकमान्य चतलक कश्र उग्र राीनश्रचत पर हश्र णोलता न्ा।’’ चनचित हश्र
डॉक्टरीश्र का प्रविन इसश्र प्रकार का रहा होगा।

उस वर्भ कलकत्ता में हग ई क्रान्न्तकाचरयों कश्र एक गगप्त णैुक में ोश्र वे गये न्े। परन्तग णाह्य कारण उन्होंने
यहश्र प्रकट चकया न्ा चक ‘‘नेशनल मेचडकल कॉलेी के पूवभ-छात्रों के एक सम्मेलन में ीा रहा हू ाँ ।’’
इस णैुक में क्या चनचित हग ग इसको ीानने का कोई सािन नहीं है । परन्तग उन चदनों क्रान्न्तकाचरयों
के चछतर-चणतर हो ीाने के कारण समय नत्यन्त प्रचतकूल न्ा। नतः कगछ चदन रुककर योग्य नवसर
कश्र णाट दे खते हग ए नपना णल णढाते रहे , यहश्र सम्ोवतः चनचित हग ग होगा।

महात्मा गाांिश्रीश्र को 18 मािभ 1922 को छः वर्भ कश्र सीा हो गयश्र। तण से उनकश्र मगचि तक प्रत्येक
महश्रने कश्र 18 तारश्रख ‘गाांिश्र चदन’ के प में मनायश्र ीातश्र न्श्र। इस वर्भ निूणर में होनेवाला ‘गाांिश्र
चदन’ उल्लेखनश्रय है । महात्माीश्र कारागृह में न्े तन्ा उनके ननगयायश्र कहलानेवाले लोग नपने स्वान्भ में
मग्न काम-िन्िे में लगे रहकर केवल शान्ब्दक दे शोचि का खेल खेल रहे न्े। समाी के सोश्र वगो में
गाँखे खोलकर िलनेवाले डॉक्टरीश्र को यह चवसांगचत णड़श्र खटकतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र के मन में कैसा
तूफान उु रहा न्ा इसकश्र कल्पना 1922 के निूणर मास में ‘गाांिश्र चदन’ के नवसर पर चदये गये
ोार्ण से लग सकेगश्र। उन्होंने कहा ‘‘गी का चदन नत्यन्त पचवत्र है । महात्माीश्र ीैसे पगण्यश्लोक
पगरुर् के ीश्रवन में व्याप्त ससगणों के ीवण एवां चिन्तन का यह चदन है । उनके ननगयायश्र कहलाने में
गौरव ननगोव करनेवालों के चसर पर तो उनके इन गगणों का ननगकरण करने कश्र चीम्मेदारश्र चवशेर्कर
है । महात्माीश्र का नत्यन्त महत्त्व का ससगगण है हान् में चलये हग ए काम के चलए गत्यन्न्तक स्वान्भत्याग
कश्र प्रवृचत्त। महात्मा गाांिश्रीश्र के गन्दोलन को उनके ननगयाचययों से यचद चकसश्र िश्री कश्र नपेक्षा है तो
वह है गत्यन्न्तक स्वान्भत्याग कश्र। कहना एक और करना दूसरा, इस प्रकार के दगहरे व्यवहारवाले
लोग महात्माीश्र को नहीं िाचहए। मगहाँ से महात्माीश्र कश्र ीय णोलेंग,े हान् ऊाँिा करके उनके कायभक्रम
का ननगमोदन करें गे तन्ा घर ीाकर नपने सगख-िैन तन्ा द्रव्याीभन के सण काम वैसे हश्र िलाते हग ए
उस कायभक्रम के चवरुद्ध णताव करेंगे, ऐसे दोगले ननगयाचययों के सहारे महात्माीश्र के कायभ कश्र नौका

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कोश्र पार नहीं लगेगश्र। नपनश्र दगणभलताओां को चछपाने के चलए शान्न्त का गवरण मत डाचलए।
प्रचतपक्षश्र के समान शरश्रर में सामर्थयभ लाइए और चफर शान्न्त कश्र ोार्ा णोचलए तो वह शोोा दे गश्र।
महात्माीश्र का ननगयायश्र णनना है तो नपने घर पर तगलसश्रपत्र रखकर, सवभस्व का त्याग कर रणाांगण
में उतचरए।’’

डॉक्टरीश्र के नन्तःकरण में णराणर इस प्रकार के चविारों का उद्रेक होता रहता न्ा। उन्हें सामने चवकट
समस्याएाँ स्पष्ट चदख रहश्र न्ीं तन्ा उनको कैसे हल चकया ीाये इस चविार से हश्र वे पचरन्स्न्चत का मन्न्न
कर रहे न्े। इस काल कश्र तन्ा उसके णाद कश्र डॉक्टरीश्र कश्र न्स्न्चत दे खश्र तो समन्भ रामदास का यह
नोांग कानों में गूी
ाँ ने लगता है ः

भाग्यिन्त नर यत्नासी तत्पर अखण्ड विचार चाळणे चा।

चाळणे चा यत्न यत्नाची चाळणा अखण्ड शहाणा तोवच एक।।

(भाग्यिान् नर िह जो यत्नों में तत्पर है , चलने ही की वजसे टे क है ।


सं चालन का यत्न, यत्न का सं चालन हो पू णण सयाना िही एक है ।।)

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11. चदण्डश्र-सत्याग्रह
नागपगर-नचिवेशन के उपरान्त काांग्रेस में चदन-प्रचतचदन गाांिश्रीश्र का प्रोाव णढता गया तन्ा उसके सूत्र
उनके ननगयाचययों के हान्ों में ीाने लगे। इस नयश्र न्स्न्चत में काांग्रेस कश्र ीो पगनरभ िना कश्र गयश्र उसमें
नागपगर, ोण्डारा, विा तन्ा िााँदा चीले चमलाकर मराुश्र मध्यप्रेदश के नाम से नलग प्रान्त णना चदया
गया। चकन्तग इस प्रदे श कश्र काांग्रेस पहले से हश्र चतलक-मतावलन्म्णयों के हान्ों में न्श्र तन्ा नसहयोग-
गन्दोलन के काल में ोश्र उनके प्रोाव में कोई कमश्र नहीं हग ई न्श्र। िारों ओर गाांिश्रवाचदयों के हान् में
काांग्रेस ीाने के णाद ोश्र यह नकेला प्रान्त नपवादस्व प णिा रहे यह णात सेु ीमनालाल णीाी
ीैसे गाांिश्रोिो को खलनेवालश्र न्श्र। नतः 1922 के गसपास इस प्रदे श में काांग्रेस के सूत्र हान् में लेने
के चलए दोनों गगटों में काफश्र प्रचतस्पिा चवद्यमान न्श्र।

इिर डॉक्टरीश्र चखलाफत तन्ा नसहयोग-गन्दोलन कश्र गन्तचरक न्स्न्चत दे खकर काफश्र चिन्न्तत न्े
तन्ा नया रास्ता खोीने का प्रयास कर रहे न्े। चकन्तग यह नया रास्ता चमलने तक उन्होंने नपने
सहयोचगयों को यहश्र सूिना दे रखश्र न्श्र चक स्न्ान-स्न्ान पर काांग्रेस के सूत्र नपने हश्र हान्ों में रखे ीायें।
नतः ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र तन्ा उनके कगछ समवयस्क तरुण कायभकताओां ने ‘गया-काांग्रेस’ के पूवभ के
िगनावों में गाांिश्र-गगट का डटकर मगकाणला चकया। इस समय पगरानश्र पश्रढश्र में से चतलकपन्न्श्र डॉ. मगांीे,
णै. नभ्यांकर, िााँदा के ीश्र णळवन्तराव दे शमगख गचद सज्जन इस तरुणवगभ कश्र पश्रु पर न्े। नतः िगनाव
में उनकश्र चवीय हग ई। इन दोनों गगटों कश्र प्रचतस्पिा गगे ोश्र कई वर्ों तक िलतश्र रहश्र।

डॉक्टरीश्र इस समय काांग्रेस में हश्र न्े तन्ा खादश्र कश्र टोपश्र एवां दगपट्टे का उपयोग करते न्े। स्न्ान-स्न्ान
पर लोगों के द्वारा ोेंट चकये हग ए खादश्र के वस्त्रों को उन्होंने प्रेम से ग्रहण चकया न्ा। काांग्रेस में रहने के
णाद ोश्र उसके नचतरेकश्र चविार तन्ा गिार पर उनकश्र ीद्धा नहीं न्श्र। वे खादश्र के चवरुद्ध नहीं न्े।
परन्तग काांग्रेस में होनेवाले मतदान के समय चकराये के नन्वा मााँगे के खादश्र के कपड़े पहनकर मतदान
करनेवाले उदाहरणों का सणको पता होने के णाद ोश्र उस चनयम का गग्रह उन्हें समझ में नहीं गता
न्ा। सान् हश्र वे मानते न्े चक स्वयां सूत कातकर खादश्र का प्रयोग करना उत्तम है । परन्तग ोारत के हश्र
कारखानों में ोारतश्रय मीदूरों के द्वारा णने वस्त्रों का क्यों णचहष्ट्कार चकया ीाये ? मेन्िेस्टर के तन्ा
नन्य चवदे शश्र कपड़ों को पूणत
भ ः त्याज्य मानकर िलना तो ुश्रक न्ा परन्तग दे श के करोड़ों लोगों को
खादश्र के कपड़े कश्र व्यवस्न्ा करना सम्ोव न होते हग ए ोश्र तन्ा गर्तन्क दृचष्ट से वह लाोदायक न होते
हग ए ोश्र एवां ोारत में णगने वस्त्र उपलब्ि हो सकने के उपरान्त ोश्र खादश्र पर नत्यचिक णल दे ना उन्हें
नमान्य न्ा। वे स्वयां चीतना सम्ोव हो उतना खादश्र नन्यन्ा दे शश्र वस्त्रों का हश्र व्यवहार करते न्े।

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स्वयांसेवक खड़े करने कश्र दशा में उनके प्रयत्न णराणर िल रहे न्े तन्ा वृत्तपत्रों से पता िलता है चक वे
1923 कश्र विा में होनेवालश्र स्वयांसेवक-पचरर्द् में ोश्र उपन्स्न्त न्े। उन चदनों वे सोा, पचरर्द् गचद
में ोाग तो लेते न्े परन्तग उनकश्र नपूणभता उन्हें सदै व खटकतश्र रहतश्र न्श्र। सदा कश्र ोााँचत इस वर्भ ोश्र वे
गणेशोत्सव के कायभक्रमों के चलए स्न्ान-स्न्ान पर गये। इस समय के उनके ोार्णों में वे णराणर इस
णात पर णल दे ते हग ए चदखते हैं चक प्रयत्नों में पचरवतभन करने कश्र गवश्यकता है । चदनाांक 4 नप्रैल को
सालोड कश्र नािणगााँव परगना-पचरर्द् के नध्यक्ष के नाते वे वहााँ गये न्े। वहााँ उन्होंने ीो ोार्ण चदया
वह इतना गरम न्ा चक लोगों के मत में वह नकहसा कश्र मयादा को पार कर ीाता न्ा। दूसरे चदन दे हगााँव
में परगना-पचरर्द् न्श्र। वहााँ ोश्र डॉक्टरीश्र हश्र नध्यक्ष न्े। उस स्न्ान पर गयोचीत चकया गया न्ा चक
सोा के प्रारम्ो में गोपूीन चकया ीाये तन्ा पचरर्द् में गोरक्षण के सम्णन्ि में प्रस्ताव रखा ीाये। चकन्तग
उस पचरर्द् में गनेवाले कगछ गाांिश्रवादश्र सज्जनों को यह णात नखरश्र तन्ा वे ोड़क गये। महात्मा
ोगवानदश्रन ने डॉक्टरीश्र से कहा चक ‘‘गोपूीन तन्ा गोरक्षण काांग्रस
े के कायभक्रम में नहीं है । नतः
यचद सोा में ये णातें होंगश्र तो मैं उपन्स्न्त नहीं रहू ाँ गा।’’

डॉक्टरीश्र ने उनका कहना शान्न्त के सान् सगन चलया पर पूवभचनयोचीत कायभक्रम में पचरवतभन करने कश्र
सम्मचत नहीं दश्र। ीैसा चनचित चकया न्ा सोा के पूवभ गोपूीन हग ग उस समय ोगवानदश्रन गवेश में
उुकर सोा से ीाने लगे। ऐसे नवसर पर डॉक्टरीश्र ने समझदारश्र तन्ा लोकसांग्रह कश्र वृचत्त से काम
लेते हग ए ोगवानदश्रनीश्र को गग्रहपूवभक रोक चलया तन्ा स्वागताध्यक्ष का ोार्ण होने के उपरान्त
उनसे नपने चविार पचरर्द् के सम्मगख रखने को कहा। उनके ोार्ण दे कर ीाने के उपरान्त डॉक्टरीश्र
ने सहस्रों लोगों से सम्मगख नपना नध्यक्षश्रय ोार्ण चदया। सण व्यचि एक हश्र सााँिे में ले गणपचत कश्र
मूर्तत के समान नहीं हो सकते। नतः उनमें स्वोाव, मत तन्ा व्यवहार कश्र चोन्नताएाँ होना स्वाोाचवक
हश्र है । ीहााँ ोश्र मतचोन्नता प्रकट हग ई वहीं झगड़ा प्रारम्ो करने के स्न्ान पर सौीन्य तन्ा समझदारश्र से
उसे समाप्त कर दे ने में हश्र लोकसांग्रह का रहस्य नन्तर्तनचहत है । डॉक्टरीश्र सदै व ध्यान रखते न्े चक
मतोेदों के कारण कटगता उत्पन्न न होने पाये।

ननेक णार यह दे खने को चमलता है चक णहग त से लोगों को ीो है वह रुिता नहीं तन्ा और कगछ सूझता
नहीं। वे इस मनःन्स्न्चत के कारण नन्यमनस्क होकर चनन्ष्ट्क्रय णन ीाते है । डॉक्टरीश्र इस ीेणश्र के
नहीं न्े। उन्होंने प्रिचलत कायों से हान् ोश्र नहीं खींिा तन्ा नवश्रन को शोिन का प्रयत्न ोश्र नहीं छोड़ा।
1922 के पिात् के एक-दो वर्ों में डॉक्टरीश्र तन्ा उनके साचन्यों ने कई णार णैुक करके, प्राप्त
पचरन्स्न्चत में से कौनसा मागभ चनकाला ीाये इस पर पयाप्त ििा कश्र न्श्र। इस सम्णन्ि में कमभवश्रर णापूीश्र
पाुक कहते हैं चक ‘‘डॉक्टर, ण े, हरकरे, वामनराव घोरपडे, कहगणघाट के घटवाई गचद हम सण
चमत्र टोंगू के घर के पास तश्रन-िार णार इकट्ठा हग ए। इसमें सणका एक मत नहीं हो सका। डॉक्टरीश्र

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का रुख िगनावों कश्र राीनश्रचत से नचलप्त रहकर ऐसश्र सांस्न्ा णनाने का न्ा चीसमें नयश्र पश्रढश्र को
सांस्काचरत चकया ीा सके। परन्तग यह कल्पना दूसरों को नहीं ोायश्र।’’

महात्माीश्र के कारागृह में ीाने के पहले हश्र नसहयोग-गन्दोलन स्न्चगत हो गया न्ा तन्ा काांग्रेस में
िगनाव लड़कर चविान-मण्डलों में ीाने का चविार णल पकड़ रहा न्ा। इस न्स्न्चत में चखलाफत कश्र
ओर ोश्र चकसश्र का ध्यान ीाना सम्ोव नहीं न्ा। नतः उसके नेता ोश्र नसन्तगष्ट हो गये न्े। इसश्र समय
इन नेताओां पर णाह्य पचरन्स्न्चत कश्र ोश्र मार पड़श्र। चीस खलश्रफा का पक्ष लेकर ोारत के मगसलमान
नांग्री
े ों के सान् नसहयोग कर रहे न्े उसका तगकी के नेता कमाल पाशा ने खलश्रफा को हटाते हग ए
उससे कहा ‘‘खलश्रफा, तगम्हारश्र गद्दश्र एक ऐचतहाचसक नवशेर् मात्र है । इस णने रहने का कोई औचित्य
नहीं’’ (“The caliphate ! your office is no more than a historical relic. It has no
justification for existence”)। इस घटना के उपरान्त तो चखलाफत के नेताओां ने कमाल पाशा
से हश्र चवनतश्र कश्र चक ‘‘गप हश्र खलश्रफा णन ीाइए।’’ परन्तग इस चशष्टमण्डल को कमाल पाशा ने उत्तर
चदया ‘‘गप लोग नांग्री
े ों और फ्राांसश्रचसयों के साम्राज्य में रहते हो। यचद मैं खलश्रफा हो गया तो मेरा
गदे श पालन कर सकोगे क्या ?’’ यह सगनकर चशष्टमण्डल के सदस्य नवाक् एक दूसरे कश्र तरफ
दे खने लगे। इस पर कमाल हाँ सता हग ग णोला ‘‘यचद गज्ञा नहीं मान सकते तो खलश्रफा केवल
कागोगौग मात्र रहे गा।’’ कमाल इतना कहकर हश्र नहीं रुका णन्ल्क उसने सम्पूणभ तगकी में प्रिार
चकया चक चवचीगश्रर्ग तगकी कश्र दृचष्ट से इस्लाम पराचीतों को िमभ है तन्ा ीण से वह तगकी में गया तोश्र
से दे श का ह्वास प्रारम्ो हो गया। इस प्रकार ीनमत ीाग्रत् कर 1924 के प्रारम्ो में उसने खलश्रफा का
तगकी से समूल उराटन कर चदया। चखलाफत-गन्दोलन का चहण्डोला चीस डालश्र में लटक रहा न्ा
वहश्र टूट गयश्र। इस घटना से चखलाफत-गन्दोलन के कारण सांघचटत एवां ीाग्रत् मगसलमानों में एक
पराोूत मनोवृचत्त एवां वैफल्य कश्र ोावना का णल पकड़ना स्वाोाचवक हश्र न्ा। चकन्तग उस समय के
मगन्स्लम नेताओां ने ीाग क रहकर ितगराई के सान् मगसलमानों कश्र ोावनाओां को चहन्दगओां के चवरुद्ध
ोड़का चदया तन्ा ‘पैन-इस्लाचमज़्’ का नया नारा लगाकर चखलाफत के कारण उत्पन्न मगसलमानों के
सांघटन को नोांग रखा। 1923 के उपरान्त के मगसलमानों द्वारा चकये गये दां गे इसश्र नश्रचत का पचरणाम
न्े।

इस वर्भ वर्ा के प्रारम्ो से हश्र कहीं खगले में गोहत्या करके तो कहीं चहन्दगओां के णाीे को रोककर
मगसलमानों ने स्न्ान-स्न्ान पर चहन्दगओां पर गक्रमण करना प्रारम्ो कर चदया। 1923 कश्र गर्तमयों में
उत्तरप्रदे श में सहारनपगर में ीो दां गा हग ग उससे चखलाफत-गन्दोलन का चहन्दू चवरोिश्र स्व प स्पष्ट
प से सामने ग गया। वहााँ कश्र ोश्रर्ण न्स्न्चत को दे खने के णाद नपनश्र मनोदशा का वणभन करते हग ए
दे वतास्व प ोाई परमानन्द नपनश्र गत्मकन्ा में चलखते हैं ‘‘वहााँ के चहन्दगओां का दै न्य एवां यातनाएाँ
दे खकर मैं नत्यन्त व्यचन्त हो गया। ीण मगझे पता िला चक स्न्ानश्रय ‘चखलाफत-सचमचत’ के

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पदाचिकारश्र दां गा करने तन्ा चहन्दगओां कश्र ीान और माल का चवनाश करने के चलए उत्तरदायश्र न्े, तो
मगझे चववश होकर यह चनष्ट्कर्भ चनकालना पड़ा चक चखलाफत-गन्दोलन हश्र चहन्दू-मगन्स्लम दां गों कश्र ीड़
में न्ा।’’ इस ननगोव से ीाग्रत् होकर ोाई परमानन्द लाहौर गये तन्ा वहााँ उन्होंने ‘चहन्दू सांघ’ नाम
से एक सांस्न्ा कश्र स्न्ापना कश्र। चालाफत-गन्दोलन का यह स्व प 1923 में नागपगर में ोश्र दे खने
को चमला तन्ा उससे डॉक्टरीश्र द्वारा प्रकन्ल्पत कायभ के पश्रछे कश्र तान्त्त्वक ोूचमका और दृढ हो गयश्र।

नागपगर में शगक्रवार तालाण के दचक्षण कश्र ओर गणेश पेु हैं । उसमें एक ‘गणेश मण्डल’ िलता न्ा।
इस कायालय के सामने खगलश्र ीगह दे खकर मगसलमानों ने वहााँ एक झोंपड़श्र णनाकर मन्स्ीद णना लश्र।
यह 1921 कश्र घटना है । उस समय ‘चहन्दू-मगन्स्लम ोाई-ोाई’ के नारे लगाये ीा रहे न्े। नतः चहन्दूओां
ने मगसलमानों के इस कायभ का कोई चवरोि न करते हग ए उन्हें सण प्रकार कश्र सहायता हश्र दश्र। मगसलमानों
के गक्रमण का स्व प प्रारम्ो में इतना छोटा तन्ा चछपा हग ग होता है चक उिर या तो चकसश्र का ध्यान
नहीं ीाता और ीाता ोश्र है तो वह कोई सांकट नहीं है यह मानकर लोग दगलभक्ष्य कर दे ते हैं । परन्तग िश्ररे-
िश्ररे चहन्दूओां कश्र नरमश्र के कारण गीय चमलने पर छोटा-सा कााँटा शूल णनकर चहन्दगओां को हश्र चवदीण
करने लगता है । नागपगर में मन्स्ीद के चलए कश्र गयश्र सहायता इसश्र प्रकार नपने हश्र चसर पर गकर
पड़श्र। मन्स्ीद न्स्न्र होते हश्र मगसलमानों ने चहन्दगओां को िमकश्र दश्र चक ‘‘णाीे मत णीाओ’’ तन्ा उनकश्र
यात्रा और ीगलूस रोके ीाने लगे। ‘‘मगसलमानों को नराी नहीं करना िाचहए’’ यह ोाव चहन्दगओां के
मन में उस समय इतना गहरा णैुा हग ग न्ा चक उन्होंने ोल, ताशे इत्याचद णाीे णीाना चणल्कगल णन्द
कर चदया। इतनश्र सफलता चमलने के णाद ‘पखावी’ णन्द करने कश्र मााँग हग ई तन्ा गगे िलकर तो
वश्रणा गचद मांीगल वाद्य ोश्र उनके कानों में खटकने लगे। कहा ीाता है चक ीण मन्स्ीद को सहायता
दश्र गयश्र न्श्र तो मगसलमानों ने यह गश्वासन चदया न्ा चक वे चहन्दगओां के णाीे गचद को नहीं रोकेंगे।
परन्तग 1923 के णाद से सण गश्वासन ताक पर रख चदये गये। इतना हश्र नहीं, मन्स्ीद के चपछले ोाग
में कोई दरवाीा नहीं न्ा परन्तग रातों-रा पश्रछे कश्र ओर ोश्र दरवाीा णनाकर उस ओर के रास्ते पर ोश्र
णाीे के सान् ीगलूस चनकालने के मागभ में नड़िन डालने कश्र सगचविा कर लश्र गयश्र।

नागपगर कश्र नचिकाांश मन्स्ीदें वास्तव में तो ोोंसलो कश्र उदार एवां सचहष्ट्णग मनोवृचत्त का हश्र पचरणाम
हैं । 1920-21 तक चकसश्र ोश्र मन्स्ीद के सामने णाीा णीाने में कोई प्रचतणन्ि नहीं न्ा। परन्तग 1923
में मगसलमानों ने शोर मिाकर चसतम्णर में चीलचिकारश्र कश्र ओर से उस मन्स्ीद के सामने से गणपचत
का ीगलूस चनकालने पर प्रचतणन्ि लगवा चदया। गणपचत कश्र स्न्ापना हग ए केवल िार-पााँि चदन णश्रते
न्े तन्ा इस गदे श के कारण उस ोाग में गणपचत कश्र कोई ोश्र यात्रा चनकलना सम्ोव नहीं न्ा। नतः
राीा लक्ष्मणराव ोोंसले, डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार इन सणके ोरोसे पर वहााँ कश्र चहन्दू ीनता ने यह
चनिय चकया चक ‘‘ीण तक णाीा णीाते हग ए ीगलूस चनकालने कश्र ननगमचत नहीं चमल ीातश्र तण तक
गणपचत-चवसीभन नहीं करें ग।े ’’

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काांग्रेस तन्ा चखलाफत-सचमचत के णश्रि काफश्र चदन तक णातिश्रत िलतश्र रहश्र परन्तग उसमें से कोई फल
चनकलता नहीं चदखायश्र दे ता न्ा। स्न्ानश्रय चखलाफत-सचमचत के प्रचतचनचि ने ‘वकश्रलश्र ोार्ा’ प्रारम्ो
करते हग ए प्रस्ताव रखा चक ‘‘गप मन्स्ीद के सामने दस कदम ीगह खालश्र छोड़कर दोनों तरफ णाीे
खड़े कर दश्रचीए। केवल मन्स्ील के सामने से ीाते हग ए णाीा नहीं णीाना िाचहए। इस योीना से
गपका णाीा णन्द नहीं होगा तन्ा मन्स्ीद के सामने णाीे णीे यह ोश्र नहीं होगा।’’ इससे एक णात
तो स्पष्ट हो गयश्र चक उनको णाीे से कोई कष्ट नहीं होता न्ा चकन्तग मन्स्ीद के सामने दस कदम में णाीा
नहीं णीना िाचहए इस दगराग्रह मात्र को वे चहन्दगओां के ऊपर लादना िाहते न्े। यह प्रस्ताव चहन्दगओां को
मान्य नहीं हो सकता न्ा। फलतः गणपचत वहााँ-के-वहीं रह गये। नगर में चहन्दू-मगसलमानों के णश्रि
तनाव णढता गया।

निूणर मास में उसश्र मागभ से काकड गरतश्र कश्र चदण्डश्र)ोीन-मण्डलश्र) ीानेवालश्र न्श्र। उसके मागभ
में ोश्र मगसलमान णािा डाल सकते हैं , इस गशांका से राीा लक्ष्मणराव ोोंसले ने मगसलमान नेताओां
को णगलाकर पूछा चक ‘‘गप काकड गरतश्र तन्ा पााँि माँीश्ररों कश्र चदण्डश्र ीाने दें गे चक नहीं ? सोिकर
उत्तर चदचीए।’’ यह स्पष्ट प्रश्न सगनकर तन्ा उनका रुख दे खकर उन्होंने ‘‘हााँ’’ कह चदया। इसके ननगसार
चदनाांक 23 निूणर को चदण्डश्र चनर्तवघ्न प से णाीे णीते हग ए चनकल गयश्र। पर दूसरे हश्र चदन मगसलमानों
ने नपना विन ोांग करके चदण्डश्र के मागभ में रुकावट डालश्र। पगचलस ोश्र उनकश्र सहायता कर रहश्र न्श्र।
परन्तग इन दोनों हश्र नड़िनों कश्र चिन्ता न करते हग ए वह चदण्डश्र ोश्र गगे िलतश्र गयश्र तन्ा पार हो गयश्र।
परन्तग चदनाांक 25 निूणर से पगचलसवाले चदण्डश्र को रोकने लगे। वे लोगों को चगरफ्तार कर पगचलस-
िौकश्र पर ले ीाकर दस-दस रुपये कश्र ीमानत पर उन्हें छोड़ दे ते।

इस समय डॉ. हे डगेवार, डॉ. िोळकर और ीश्र दाीश्र शास्त्रश्र िााँदकर ने चोन्न-चोन्न ोागों में सोा करके
तन्ा घर-घर में प्रिार करके णताया चक नचिकाचिक लोगों को चदण्डश्र में ोाग लेना िाचहए। चदनाांक
30 निूणर को चीला नचिकारश्र ने गज्ञा चनकालश्र चक उस रास्ते से चदण्डश्र न ले ीायश्र ीाये। इसका
कारण यह णताया गया चक मगसलमानों का ‘फीर का नमाी’ तन्ा चदण्डश्र दोनों का समय एक सान्
सूयोदय के पूवभ पौने छः से सवा छः तक पड़ता न्ा। सरकार कश्र गज्ञा गने के उपरान्त ोश्र सणका
यहश्र चनिय न्ा चक चदण्डश्र का क्रम णराणर िलते रहना िाचहए। इस चनिय को चक्रयान्न्वत करने के
चलए लोग नचिकाचिक सांख्या में उपन्स्न्त हों इसके चलए डॉक्टरीश्र णड़े ीोर के सान् ीगटे हग ए न्े।
सरकारश्र गज्ञा चीस चदन गयश्र उसश्र चदन एक चवराट् सोा हग ई तन्ा उसमें राीा लक्ष्मणराव ोोंसले ,
सरदार तात्यासाहण गगीर, गांगािरराव चिटणवश्रस, डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार कश्र एक सचमचत चहन्दगओां
के नचिकारों कश्र रक्षा करने के चलए चनयगि कश्र गयश्र। डॉक्टर हे डगेवार उस सचमचत के मांत्रश्र न्े। चदनाांक
31 निूणर से दस-णारह चदन सम्पूणभ नागपगर नगर ‘ीय चवट्ठल, ीय-ीय चवट्ठल’ के ोीन से गूी
ाँ

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गया। इस प्रोावश्र वातावरण में णाहर के राीनश्रचतक मतोेद तन्ा सामाचीक ोेद सण िगल गये तन्ा
चदण्डश्र सत्याग्रह-गन्दोलन को एक सामूचहक एवां प्राचतचनचिक स्व प प्राप्त हो गया।

गग वार चदनाांक 8 नवम्णर कश्र चदण्डश्र में डॉ. िोळकर, डॉ. पराांीपे, डॉ. हे डगेवार गचद इकतालश्रस
लोगों ने ोाग चलया न्ा। चदण्डश्र-गन्दोलन के प्रवतभक नेता उस चदन सत्याग्रह के चलए ीानेवाले न्े
इसश्रचलए मागभ में दोनों ओर ीनता कश्र नपार ोश्रड़ खड़श्र न्श्र। चदण्डश्र माँीश्ररा णीातश्र हग ई मन्स्ीद के
नीदश्रक गयश्र तन्ा सदा चक ोााँचत उन्हें रोककर पकड़ चलया गया। वहााँ से पगचलसवाले सण लोगों को
वाकर रोड तन्ा केळश्रणाग रास्ते से मगख्य िौकश्र पर ले गये। सारे रास्ते सत्याग्रह-मण्डलश्र णराणर ोीन
गातश्र रहश्र। उस चदन राीा लक्ष्मणराव ोोंसले तन्ा सर गांगािरराव चिटणवश्रस सत्याग्रह में सन्म्मचलत
न होकर चदण्डश्र के पश्रछे-पश्रछे िल रहे न्े।

इन चदनों मन्स्ीद के पास सौ-सवासौ सशस्त्र पगचलस के चसपाहश्र तैनात रहते न्े। नगर में वातावरण
गरम तन्ा नाीगक हो गया न्ा, नतः इिर-उिर पहरे कश्र व्यवस्न्ा न्श्र। इस तनाव के वातावरण में डॉ.
मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार को खून करने कश्र िमकश्र-ोरे पत्र गने लगे। डॉ. मगांीे के पास तो मोटर न्श्र
परन्तग डॉक्टरीश्र को तो सण काम पैदल हश्र होता न्ा। ोय नाम कश्र वस्तग तो वे ीानते हश्र नहीं न्े। उन
चदनों ोश्र वे तड़के या रात को नकेले-दगकेले ुे ु मगसलमानों कश्र णस्तश्र में से ोश्र िले ीाते न्े। उनके
चमत्र साविानश्र के चलए उनकश्र इच्छा के चवरुद्ध ोश्र उनके सान् रहने का ध्यान रखते न्े। इस पर
डॉक्टरीश्र कहते ‘‘मेरा कौन क्या करनेवाला है ? यह व्यन्भ का ोय क्यों ?’’

वातावरण ज्यों-ज्यों गम्ोश्रर होता गया त्यों-त्यों चहन्दू समाी का उत्साह णढता गया तन्ा चदण्डश्र-
सत्याग्रह दे खने के चलए रोी पूरा नागपगर उमड़ पड़ता न्ा। चदनाांक 11 नवम्णर को राीा लक्ष्मणराव
ोोंसले ने सत्याग्रह चकया। उस चदन तो रास्तों पर खिाखि ोश्रड़ न्श्र। कहीं चतल रखने को ोश्र ीगह
नहीं न्श्र। ननगमान न्ा चक िालश्रस सहस्र से ोश्र नचिक लोग होंगे। ीनात-ीनादभ न का यह चवराट
स्व प नागपगर में नोूतपूवभ न्ा। इसका पचरणाम यह हग ग चक उस चदन कश्र चदण्डश्र को पगचलस के द्वारा
रोकने के पहले हश्र मगसलमानों ने पााँि व्यचियों कश्र चदण्डश्र मन्स्ीद के सामने से ले ीाने चक सहमचत दे
दश्र। यह छोटश्र-सश्र सफलता दे खकर सणको चवश्वास होने लगा चक सांघचटत प्रयत्नों से सफलता प्राप्त कश्र
ीा सकतश्र है । इस उत्साह को स्न्ायश्र स्व प दे ने कश्र दृचष्ट से उसश्र चदन शाम को सावभीचनक सोा हग ई।
डॉक्टर हे डगेवार उस सोा के नध्यक्ष न्े।

इस सोा में दस हीार लोगों के सम्मगख णोलते हग ए राीा लक्ष्मणराव ोोंसले ने ‘चहन्दू सोा’ कश्र स्न्ापना
कश्र घोर्णा कश्र। उन्होंने कहा चक ‘‘चहन्दू िमभ के नचिकारों का उपोोग चहन्दगस्न्ान में सोश्र चहन्दगओां
को कर सकना िाचहए। यचद इन नचिकारों का उपोोग चहन्दू चहन्दूस्न्ान में, नपनश्र मातृोूचम में हश्र नहीं
कर सकता तो और कहााँ कर सकेगा ? चहन्दू िमभ का नन्भ गणेश पेु कश्र काकड गरतश्र नन्वा

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गणपचत कश्र शोोायात्रा मात्र नहीं है । इन झगड़ो को तो नन्िश्र चहन्दू ीाचत को दृचष्ट दे नेवाला नांीन हश्र
कहना पड़ेगा।’’

उस चदन घोचर्त चहन्दू सोा के नध्यक्ष राीा लक्ष्मणराव ोोंसले तन्ा उपाध्यक्ष डॉ. मगांीे न्े। डॉक्टर
हे डगेवार के ऊपर मांत्रश्र का ोार सौंपा गया न्ा। सोा के प्रिारक-मण्डल में ोश्र डॉक्टरीश्र तन्ा
चवश्वनान्राव केळकर कश्र योीना कश्र गयश्र न्श्र।

इस सम्पूणभ काण्ड से मगसलमानों को लगा चक उन्हें मात खानश्र पड़श्र। इस ोावना के कारण चिढ उत्पन्न
होना उनकश्र मनोवृचत्त के ननगकूल हश्र है । नतः कार्ततक एकादशश्र चदनाांक 19 को चनकलनेवालश्र यात्रा
में इस नपमान का णदला िगकाने कश्र ििा उनके मोहल्लों में ीहााँ-तहााँ होने लगश्र। डॉ. मगांीे तन्ा डॉ.
हे डगेवार को इन सण णातों का पता लग िगका न्ा। सरकार ने ोश्र साविानश्र के चलए मगसलमानों कश्र
नमाी के पााँि समय छोड़कर शेर् समय पर चहन्दगओां को मन्स्ीद के सामने नपनश्र चदण्डश्र णीाते हग ए
ीाने का गदे श चदया। चदनाांक 18 नवम्णर को राचत्र के एक णीे तक तन्ा दूसरे चदन प्रातःकाल से हश्र
राीा लक्ष्मणराव ोोंसले, डॉ. मगांी,े डॉ. हे डगेवार तन्ा उदाराम पहलवान सणने मोटर से सारे नगर में
घूम-घूमकर लोगों को यह णता चदया न्ा चक नमाी के पााँि वि छोड़कर शेर् समय चहन्दू चदण्डश्र णीाते
हग ए यात्रा ले ीायें। इस दौड़िूप का यह पचरणाम हग ग चक उस चदन कश्र चदन्ण्डयों में उत्साह और
ननगशासन दोनो हश्र ोरपूर चदखायश्र चदये। चकन्तग चहन्दगओां के सांयम और ननगशासन पर हश्र तो शान्न्त
चनोभर नहीं न्श्र। इतने चनयम से िलते हग ए ोश्र गणेश पेु में साय पााँि णीे के उपरान्त लौटतश्र हग ई एक
चदण्डश्र पर मगसलमानों ने ईांट, पत्न्र, ीूते गचद फेंककर मारे तन्ा कगछ मात्रा में लाुश्र, तलवार, छगरश्र
गचद का ोश्र उपयोग करके हमला णोल चदया। इस स्न्ान पर दो णार नच्छश्र चोड़न्त हग ई। नगर में नन्य
स्न्ानों पर ोश्र छगटपगट हमले तन्ा कहीं-कहीं मगुोेड़ ोश्र हो गयश्र। सारे नगर का वातावरण कखि गया।
मगसलमान टोचलयााँ णनाकर ‘नल्ला हो नकणर’ ‘दश्रन दश्रन’ कश्र गीभना करते हग ए इिर-उिर घूमने लगे।
दूसरे चदन कोष्टश्रपगरा, हां सापगरश्र, तन्ा इतवारश्र मागभ में ोश्र झड़प हो गयश्र।

इस पचरन्स्न्चत का गकलन करने तन्ा उसे काणू में लाने के चलए ीो प्रयत्न हग ए, उनमें डॉक्टर हे डगेवार
नग्रसर न्े। ‘नल्ला हो नकणर’ कश्र घोर्णा के पश्रछे मगसलमानों कश्र चहन्दूचवरोिश्र मनोवृचत्त को वे ोलश्र
ोााँचत समझ िगके न्े। वे नपने चमत्रों से कहते न्े चक ‘नल्ला हो नकणर’ कश्र घोर्णा में चछपश्र मगसलमानों
कश्र वृचत्त को प्रोत्साहन दे कर हम नपने राष्ट्र कश्र कब्र स्वयां हश्र खोद रहे हैं । चहन्दू मोहल्लों में वे प्रमगख
लोगों से चमले तन्ा रात-ोर णराणर पहरे कश्र व्यवस्न्ा कश्र। स्वतः ीागकर इस पहरे का चनरश्रक्षण करते
हग ए वे नगर-ोर घूमते रहे ।

नागपगर में चहन्दगओां में इस समय एक नया ीोश उमड़ पड़ा न्ा। कार्ततकश्र त्रयोदशश्र को चनकलनेवालश्र
ीागोणा कश्र यात्रा में इसका प्रमाण चमल गया। लोग रोलश्र-चसन्दूर के टश्रके लगाकर तन्ा हान् में मोटश्र-

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मोटश्र लाचुयााँ लेकर यात्रा में गये न्े। ‘महाराष्ट्र’ ने उस दृश्य का वणभन करते हग ए चलखा न्ा
‘‘दे खनेवालों को ऐसा लगता न्ा मानों सम्पूणभ इतवारश्र में लाचुयों का एक ीांगल हश्र पैदा हो गया है ।’’
इसके दो चदन णाद चत्रपगरश्रपूर्तणमा न्श्र। उस चदन काकड गरतश्र कश्र समाचप्त होतश्र न्श्र। इस समाचप्त के
सान् हश्र ननेक चदनों से चीसकश्र णाट दे ख रहे न्े उस गणेश-चवसीभन के कायभक्रम को ोश्र पूरा कर चलया
ीाये, इस प्रकार का चनिय हग ग तन्ा इस चदशा में चहन्दू सोा कश्र ओर से डॉक्टरीश्र के नेतृत्व में शहर-
ोर में तूफानश्र प्रिार प्रारम्ो हो गया।

पूर्तणमा को दोपहर के तश्रन णीते हश्र ीगलूस चनकला। इस समय ोश्र लाचुयों का समगद्र उमड़ पड़ा न्ा।
इस चदन कश्र नपूवभ यात्रा का वणभन इस प्रकार चमलता है चक ‘‘शहर का कोई ोश्र छोटा-णड़ा पगरुर् गी
घर में नहीं रहा।’’ उस चदन का ीगलूस गणपचत कश्र ीय-ीयकार के सान् पूरा हग ग। इस यात्रा से
मगसलमान चफर चिढ गये और इसचलए नगले तश्रन-िार चदन छगटपगट हमले तन्ा पन्राव गचद कश्र
घटनाएाँ होतश्र रहीं। रात का पहरा तो िालू हश्र न्ा। चफर ोश्र एक चदन हनगमानीश्र कश्र मूर्तत टूटश्र हग ई चमलश्र
तन्ा नागेश्वर मन्न्दर और ीैन मन्न्दर में गाय का कटा हग ग पैर चमला। इस घटना से िारों ओर लोगों
में चवक्षोो कश्र लहर दौड़ गयश्र। हड़ताल और चनर्ेि-सोा से सन्तगष्ट न रहते हग ए चहन्दगओां ने चनिय चकया
चक ीण तक मगसलमानों के ये गक्रामक नत्यािार णन्द नहीं होते तण तक उनका णचहष्ट्कार चकया
ीाये। इस चनिय का घर-घर प्रिार चकया गया। ीनता के मन में यह चनिय नटल होकर णैु गया।

नागपगर में इस तनाव के वातावरण में कोश्र-कोश्र णाीेवाले मन्स्ीद के सामने णाीा णीाने से कतराने
लगते न्े। यह वास्तव में उनका दोर् नहीं न्ा णन्ल्क ीो दगणभल सांस्कार सतत मन पर पड़े न्े उनके
कारण हश्र यह ोय पैदा होता न्ा। उस समय उनके मन से इस ोय को नष्ट करने के चलए डॉक्टरीश्र
तन्ा उनके सहकारश्र स्वयां मन्स्ीद के सामने खड़े रहते न्े तन्ा णाीेवाले ज्यों हश्र घणड़ाने लगते त्यों हश्र
ये लोग स्वयां गले में ोल डालकर उस णीाने लगते न्े। इसके कारण लोगणाग डॉक्टरीश्र को चववाह
एवां यज्ञोपवश्रत में ोश्र नत्यन्त गग्रह के सान् उपन्स्न्त रहने का चनमांत्रण दे ते न्े। उनकश्र यह िारणा हो
गयश्र न्श्र चक चणना डॉक्टरीश्र के उनका मांगलकायभ चनर्तवघ्न समाप्त नहीं हो सकता। इस समय डॉक्टरीश्र
सोिते रहते न्े चक नागपगर में मगसलमानों कश्र सांख्या चहन्दगओां कश्र केवल एक-सप्तमाांश है । चफर ोश्र वे
उद्धत होकर चहन्दगओां पर गक्रमण करें तन्ा चहन्दू डर के मारे नपनश्र रक्षा करने के चलए पहरा लगाते
रहें , यह चकतनश्र शोिनश्रय नवस्न्ा है । वास्तव में तो णहग सांख्यक चहन्दगओां के नन्स्तत्व तन्ा सौीन्य के
कारण हश्र मगसलमानों में ोश्रचत नन्वा प्रेम उत्पन्न होना िाचहए। परन्तग ऐसा न होते हग ए ीैसे नश्रिे का
पानश्र ऊपर कश्र ओर णहने लगे इस प्रकार उलटे उनके नत्यािार हमारे ऊपर होते है । वे हश्र द्वे र् नन्वा
क्रोि से हमारे ऊपर हान् उुाते हैं । ऐसा क्यों होना िाचहए ? ये प्रश्न उनके मन में उुते रहते न्े तन्ा
इस चवपरश्रतावस्न्ा के मूल में ीाकर वे उसका चवश्लेर्ण करने का प्रयत्न करते न्े।

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उपयगभि पचरन्स्न्चत कश्र लोगों के मन में चवचोन्न प्रचतचक्रयाएाँ होतश्र है । कोई तो यह सोिता है चक दूसरा
पक्ष णलवान् है तन्ा हम वैसे णलवान् नहीं हो सकते। नतः गत्मचवश्वासहश्रनता के कारण वह या तो
चनराश होकर ोगवान् के ोरोसे णैु ीाता है नन्वा ननगनय-चवनय कश्र नश्रचत को स्वश्रकार कर
गत्मरक्षण का प्रयत्न करता है । कोई-कोई उस सांकट कश्र तात्काचलक उपाय-योीना कर समािान
मान लेता है । उसकश्र दृचष्ट सांकटों के स्न्ायश्र और मूल कारणों पर नहीं ीातश्र और न वह उनके
चनराकरण का कोई स्न्ायश्र मागभ हश्र ू ाँता है । इन सांकटों का दोर् दूसरों कश्र नसचहष्ट्णग तन्ा तामसश्र
वृचत्त के मान्े मढकर उनको सौीन्य एवां सचहष्ट्णगता का शान्ब्दक उपदे श दे ने कश्र कगछ लोगों कश्र वृचत्त
होतश्र है तन्ा कगछ लोग नपना दोर् न दे खकर गक्रमकों को कोसते रहने में हश्र नपनश्र इचतकतभव्यता
समझते हैं । इनके नचतचरि एक और ोश्र नहां कारश्र एवां हुिमी वगभ के लोग चमलते हैं । वे नपने
सौीन्य का दूि शतु पश्र सााँप को चपलाकर उसे चवर्हश्रन तन्ा नकहसक णनाने का प्रयत्न करते हैं तन्ा
उस सााँप कश्र लपलपातश्र चीह्वा तन्ा फगांकार को सामने दे खते हग ए ोश्र नपने प्रयत्नों कश्र चदशा णदलने कश्र
गवश्यकता नहीं समझते। िन्य हैं उनका िैयभ ! चकन्तग डॉक्टरीश्र नपनश्र उत्कट राष्ट्रोचि तन्ा
चववेकशश्रलता के कारण इनमें से चकसश्र ोश्र िोंर में नहीं पड़े। चहन्दगओां के नपमान तन्ा चणना कारण
उनके ऊपर होनेवाले गक्रमण पर उनको चिढ गतश्र न्श्र। चकन्तग उनकश्र चविारपद्धचत स्वतांत्र न्श्र। वे
प्रचतचक्रयात्मक प से नहीं सोिते न्े। उन्हें स्पष्ट चदखता न्ा चक मगट्ठश्र-ोर लोग नसांख्य चहन्दगओां पर
कूर गघात करते हैं । यह गक्रमणकाचरयों कश्र शूरता का नहीं णन्ल्क चहन्दू मात्र कश्र चवसांघचटत एवां
स्वाचोमानशून्य न्स्न्चत का स्वाोाचवक पचरणाम है । इसके चलए दूसरों से द्वे र् न करते हग ए, उनका नाम
ले-लेकर कोसते न णैुते हग ए तन्ा सौीन्य से दगष्ट के हृदय-पचरवतभन करने का नव्यवहारश्र मागभ न
नपनाते हग ए नफने समाी के चीन दोर्ों के कारण दूसरों को गक्रमण करने का प्रोत्साहन चमलता है
उन्हें हश्र प्रयत्नपूवभक तन्ा तेीश्र से दूर कर तारुण्य, स्वाचोमान तन्ा पराक्रम से यगि समाीपगरुर् ीाग्रत्
स्व प में खड़ा करना िाचहए यहश्र मागभ उन्हें चदखायश्र दे ता न्ा।

एक नन्य चवर्य को लेकर ोश्र उनके मन में उन्ल-पगन्ल हो रहश्र न्श्र। चहन्दू-मगन्स्लम एकता का नारा
नवश्य लगाया ीा रहा न्ा चकन्तग न्स्न्चत ऐसश्र न्श्र चक एकता चनकट गने के स्न्ान पर और दूर हश्र
चखसकतश्र ीातश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र के मन में यह प्रश्न स्वाोाचवक हश्र उुा चक गी न चदखनेवालश्र एकता
क्या इचतहास में कोश्र चवद्यमान न्श्र ? ोूतकाल तो यहश्र णताता है चक ुे ु दाचहर के समय से चहन्दू
स्वराज्य के नन्त तक कोश्र पृर्थवश्रराी ने तो कोश्र महाराणा प्रताप ने, कोश्र हों-णगों ने तो कोश्र
कृष्ट्णदे व राय ने, कोश्र गगरु गोचवन्द ने तो कोश्र गगरुणन्दा ने, कोश्र छत्रपचत चशवाीश्र ने तो कोश्र सन्ताीश्र
ने, कोश्र णाीश्रराव ने तो कोश्र महादीश्र ने मगसलमानों के तत्कालश्रन गक्रमण को पराया मानकर उसे
नष्ट करने तन्ा नपनश्र ोारतश्रय सांस्कृचत का चवीयध्वी नटक के पार फहराने का पराक्रम चकया हैं ।
ऐसश्र न्स्न्चत में ोारत के मन्न्दरों, ोारत के ीश्रवनादशो तन्ा उसकश्र परम्परा और नन्स्मता को नष्ट कर

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उसे चवदे शश्र सांस्कृचत कश्र चदक्षा दे नेवाले नसांस्कृत, नसचहष्ट्णग तन्ा नमानवश्रय वृचत्त से र्ड्यन्त्र
करनेवाले लोगों को हम गी हश्र क्यों नपना कहने के चलए व्याकगल हैं ? क्या उनके मन में चहन्दू
समाी तन्ा उसकश्र नर को नारायण णनानेवालश्र दै वश्र सांस्कृचत के सम्णन्ि में गस्न्ा पैदा हो गयश्र है ?
क्यो उन्होंने ‘चीयो और ीश्रने दो’ के चवश्व ोूर्णाहभ , ोारतश्रय सांस्कृचत के सचहष्ट्णग के गिारोूत तत्व
को स्वश्रकार कर चलया है ? क्या गी ोारतमाता के ीय-ीयकार में ‘एक स्वर मेरा चमला लो’ यह
मनश्रर्ा उनके नन्दर ीाग्रत् हो गई है ? इनमें से यचद कोई ोश्र ननगकूल पचरवतभन नहीं हग ग है तो वे
उतने हश्र गक्रमणकारश्र हैं चीतने नांग्री
े । यचद हमें दोनों गक्रमणों को दूर हटाना है तो ऐसश्र पचरन्स्न्चत
चनमाण करनश्र पड़ेगश्र चक चहन्दू समाी कश्र पगरातन चकन्तग चनत्यनूतन ीश्रवन-परम्परा कश्र पावन गांगा का
प्रवाह नप्रचतहत प से णहता रहे । डॉक्टरीश्र को यह ोश्र चदखने लगा चक ‘चहन्दू-मगन्स्लम ोाई-ोाई’
कश्र गत्मघातकश्र तन्ा एकाांगश्र घोर्णाओां के मूल में चहन्दू समाी कश्र नपने सहश्र इचतहास कश्र चवस्मृचत
तन्ा ोारत के चशचक्षत समगदाय में नग्रेंीो को यह कगप्रिार न्ा चक इस दे श में ीो-ीो रहते हैं वे सण
इसके स्वामश्र हैं । इस ननगोूचत में से हश्र चहन्दू सांघटन के महामांत्र का उन्हें साक्षात्कार हग ग।

सम्पूणभ चविार-मन्न्न से डॉक्टरीश्र इस चनष्ट्कर्भ पर पहग ाँ िे गये न्े चक चहन्दू राष्ट्र का गग्रहपूवभक
प्रचतपादन चकये चणना ोारत कश्र राष्ट्रश्रयता को चवकृत करने के प्रयत्नों से नहीं णिाया ीा सकेगा। इसश्र
समय णै. सावरकर ने ‘चहन्दगत्व’ कश्र राष्ट्रवादश्र कल्पना को नपनश्र ओीस्वश्र एवां प्रचतोाशालश्र लेखनश्र
से लेखणद्ध करके कारागृह के णाहर ोश्र चकसश्र-न-चकसश्र प्रकार ोेीने कश्र व्यवस्न्ा कश्र। योगायोग यह
हग ग चक ‘चहन्दूत्व’ सणसे प्रन्म डॉक्टरीश्र के घचनष्ठ, चमत्र ीश्र चवश्वनान् राव केळकर के हान्ों में हश्र
पड़ा। यह ननगमान लगाया ीा सकता है चक पाण्डगचलचप को डॉक्टरीश्र ने नवश्य पढा होगा। नपने
मन कश्र चहन्दगत्व कश्र कल्पना और उस ग्रन्न् में नत्यन्त तकभशगद्ध, चनियात्मक तन्ा गग्रहपूवभक चहन्दगत्व
का प्रचतपादन दे खकर उनको नत्यन्त गनन्द हग ग। उन्हें यह ग्रन्न् णहग त पसन्द गया। उन्होंने उसका
सवभत्र प्रिार प्रारम्ो कर चदया। सोये हग ए चहन्दू समाी को ीगाने के चलए मगसलमानों के गक्रमणों ने
‘खतरे कश्र घण्टश्र’ का काम चकया चकन्तग उससे ोश्र गगे णढकर चहन्दगत्व के सगप्त मानस को झकझोरकर
उुाने का सामर्थयभ सावरकरीश्र के यगगप्रवतभक ग्रन्न् ‘चहन्दगत्व’ में न्ा।

स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर उस समय ीेल में न्े। 1923 में णम्णई कश्र चविान सोा में सरदार वल्लोोाई
पटे ल, ीश्रमतश्र सरोीनश्र नायडू, ीश्र ीमनादास मेहता गचद ने उनकश्र मगचि कश्र मााँग रखश्र न्श्र। नागपगर
में ोश्र सावरकरीश्र के प्रचत ीद्धा रखनेवालों का णहग त णड़ा वगभ न्ा। उन्होंने ोश्र इस हे तग यहााँ प्रयत्न चकये
न्े। चदनाांक 14 निूणर को नागपगर में तात्याराव सावरकर कश्र मगचि कश्र मााँग के चलए काांग्रेस कश्र ओर
से ीो सोा हग ई उसमें डॉक्टरीश्र का नत्यन्त हश्र ीोशश्रला ोार्ण हग ग। उसमें उन्होंने कहा

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‘‘........िौदह वर्भ के णाद सरकार ने यचद उन्हें छोड़ा तो इसमें कौनसश्र मेहरणानश्र होगश्र ? वह तो
वाचीव हश्र है । न्याय का खून करके उन्हें सीा दश्र गयश्र। सरकार यचद इस कलांक को िोना िाहतश्र है
तो वह उन्हें तगरन्त मगि कर दे । चकन्तग सरकार कश्र वैसश्र इच्छा चदखतश्र नहीं। सावरकरीश्र को एकपक्षश्रय
सणूत के गिार पर दण्ड चदया गया है । सरकार साफ-साफ द्वे र्ोाव चदखा रहश्र है । उन्हें यचद नण ोश्र
नहीं छोड़ा गया तो ोारतश्रय राष्ट्र के सम्णन्ि में उनके मन में कौन से दगष्ट ग्रह हैं इसका एक और प्रमाण
चमल ीायेगा।’’

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12. सांघ का सांकल्प
डॉक्टरीश्र कश्र ‘नागपगर नेशनल यूचनयन’ कश्र यह चवशेर्ता न्श्र चक वह ‘पूणभ स्वतांत्रता’ का प्रचतपादन
करतश्र न्श्र। उन चदनों िाहें तो नश्रचत के कारण और िाहे मन कश्र वृचत्त के कारण दे श के ननेक नेता
‘साम्राज्यान्तगभत स्वराज्य’ से गगे णढकर सोिने को ोश्र तैयार नहीं न्े। सवोदयश्र नेता गिायभ दादा
िमभचिकारश्र णताते हैं चक उन चदनों गणेशोत्सव नन्वा नन्य चकसश्र कायभक्रम को णगलाते समय
डॉक्टरीश्र विा से स्मरणपूवभक गग्रह करते न्े चक पूणभ स्वतन्त्रता के ध्येय का हश्र प्रचतपादन चकया
ीाये। गन्दोलन के णाद कश्र चवफलता तन्ा गड़णड़ के काल में इस प्रकार के चवशगद्ध स्वातांत्र्य कश्र
कल्पना का प्रिार करने कश्र चवशेर् गवश्यकता न्श्र। इसश्र हे तग को ध्यान में रखकर 1923 के मध्य में
डॉ. हे डगेवार, ीश्र चवश्वनान्राव केळकर, डॉ. खरे , ीश्र वासगदेव फडणश्रस, ीश्र गोपाळराव ओगले, ीश्र
णळवन्तराव मण्डलेकर गचद व्यचियों ने नागपगर से ‘स्वातांत्र्य’ नाम का एक दै चनक पत्र चनकालने का
चनिय चकया तन्ा एक-दो महश्रना दौड़िूप करके सहकारश्र तत्त्व के गिार पर िलनेवाले ‘स्वातांत्र्य
प्रकाशन मण्डल’ कश्र स्न्ापना ोश्र कर दश्र। इस मण्डल के चलए डॉ. हे डगेवार तन्ा डॉ. खरे ने णरार का
दौरा करके िन ोश्र एकचत्रत चकया न्ा। उन चदनों प्रान्त कश्र शैक्षचणक दृचष्ट से ीो चपछड़श्र हग ई न्स्न्चत न्श्र
उसमें एक दै चनक चनकालने का चविार नत्यन्त साहस का हश्र काम न्ा। कारण न्ोड़े से वािनवगभ में
पहले हश्र ‘प्रीापक्ष’(नकोला), ‘उदय’(नमरावतश्र), ‘लोकमत’(यवतमाळ), ‘तरुण ोारत’(विा),
‘मारवाड़श्र प्रणवश्रर’ तन्ा ‘महाराष्ट्र’(नागगपर), इतने साप्ताचहक स्न्ान-स्न्ान पर नपनश्र ीड़ ीमाकर
णैुे न्े। चकन्तग तरुणाई का ीोश कगछ ऐसा होता है चक वह पचरन्स्न्चत कश्र चवपरश्रतता को दे खकर ोश्र
उस पर हावश्र होने कश्र हश्र गकाांक्षा रखता है । नागपगर से ‘स्वातांत्र्य’ के प्रकाशन का प्रयत्न इसश्र उत्साह
का द्योतक न्ा। चिटणश्रस पाकभ के पास णेचनचगचर महाराी के णाड़े में ‘स्वातांत्र्य’’ दै चनक का कायालय
खोला गया न्ा 1924 के प्रारम्ो में ीश्र चवश्वनान् केळकर के सम्पादकत्व में पत्र का प्रकाशन प्रारम्ो
हो गया। डॉक्टर हे डगेवार प्रकाशन मण्डल के प्रवतभकों में से न्े तन्ा प्रारम्ो से हश्र ‘स्वातांत्र्य’ के मागभ
में गनेवालश्र सोश्र णािाओां को दूर करनें में वे प्रमगखता से ोाग लेते न्े। नतः उन्हें एक प्रकार से
उनका सांिालक कहना ुश्रक होगा। उन चदनों डॉक्टरीश्र ोोीन के चलए घर गते न्े तन्ा सोा-
समारोहों के नचतचरि ीो ोश्र समय णिता न्ा वह ‘स्वातांत्र्य’ कायालय में हश्र व्यतश्रत होता न्ा। लेख
कम पड़ गये तो वे स्वयां हान् में कलम लेकर चलखते न्े तन्ा सम्पादक द्वारा चलखे हग ए लेखों को
दे खकर उनमें कम-नचिक करने का सगझाव ोश्र दे ते न्े। यह दै चनक ीैसे-तैसे एक वर्भ िला। परन्तग
इसश्र नवचि में दो सम्पादक णदले। कगछ चदनों ीश्र चवश्वनान्राव केळकर कश्र सहायता के चलए णम्णई
के चसद्धहस्त लेखक ीश्र नच्यगतराव कोल्हटकर को ोश्र लाया गया। उनके लेख सरस, सरल तन्ा
िटपटे रहते न्े, परन्तग नागपगर में दै चनक के चलए नपेक्षा के ननगसार क्षेत्र न होने के कारण वे णश्रि में
हश्र िले गये। इसके णाद ीश्र गोपाळराव ओगले को सम्पाद्क णनने का गग्रह हग ग तन्ा उन्होंने कगछ

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चदनों काम सम्हाला। इस पत्र में ‘स्वातांत्र्यवादश्र’ सामग्रश्र काफश्र गतश्र होगश्र। दगःख का चवर्य है चक णहग त
कगछ खोी करने के णाद ोश्र नागपगर में इस पत्र का केवल एक नांक चमल सका है , वह ोश्र मराुश्र के
चवख्यात डॉ. शां. दा. पेण्डसे के सांग्रहश्र स्वोाव के कारण। इस नांक में ‘णै. सावरकर नध्यक्ष होने
िाचहए’ इस शश्रर्भक से उनका एक लेख प्रकाचशत हग ग न्ा तन्ा उन्होंने वह नांक णड़े ीतन से सांग्रह
करके रखा न्ा। इस चदन नांक से हश्र उस दै चनक के स्व प कश्र कगछ कल्पना कश्र ीा सकेगश्र।

‘स्वातांत्र्य’ दै चनक सोमवार छोड़कर शेर् सोश्र चदन चनकलता न्ा तन्ा एक नांक का मूल्य दो पैसे न्ा।
वार्तर्क िन्दा साढे णारह रुपया रहता न्ा। दै चनक के शश्रर्भोाग में ‘मध्यप्रान्त का प्रमगख तन्ा एकमेव
दै चनक’ यह चलखा रहता न्ा। पहले मगखपृष्ठ पर ‘चहन्दगत्व’ का चवज्ञापन चमलता है । यह चदनाांक
6.11.1924 का नांक प्रन्म)तन्ा दगोाग्य से नन्न्तम ोश्र) वर्भ का दो सौ नड़तश्रसवााँ नांक न्ा। इस वर्भ
स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर को कारागृह से मगि होकर कगछ चदनों के चलए त्र्यम्णकेश्वर गने कश्र छगट्टश्र चमलश्र
न्श्र। नतः उस वर्भ नागपगर में होनेवाले साचहत्य-सम्मेलन का नध्यक्षस्न्ान ग्रहण करने कश्र उनसे
प्रान्भना करनश्र िाचहए इस प्रकार का चविार डॉ. हे डगेवार, वासगदेवराव फडणश्रस तन्ा डॉ. शां. दा. पेण्डसे
ने रखा न्ा। ‘‘स्वातांत्र्य’’ दै चनक में ोश्र इस मााँग के समन्भन में लेख गये न्े। चकन्तग गोपाळराव ओगले
इन लेखों से सहमत नहीं न्े। नतः उन्होंने सम्पादकपद छोड़ने कश्र इच्छा व्यि कश्र। इसश्र समय ‘स्वातांत्र्य
प्रकाशन मण्डल’ कश्र गर्तन्क न्स्न्चत ोश्र णहग त चणगड़ गयश्र। नतः प्रत्येक चदन डॉक्टरीश्र कश्र चिन्ता
को णढानेवाला हश्र होता न्ा।

‘स्वातांत्र्य’ दै चनक के प्रकाशन का णखेड़ा डॉक्टरीश्र ने तत्त्वज्ञान के प्रिार कश्र उत्कट लालसा से हश्र
मोल चलया न्ा। डॉक्टरीश्र इस पत्र के सम्णन्ि में ननेक काम करते न्े चकन्तग उन्होंने वेतन के नाम पर
एक पैसा ोश्र नहीं चलया। वेतन लेकर ोश्र लोग चकस प्रकार कामिोरश्र करते हैं यह गी सण ीानते
हैं । परन्तग वेतन न लेकर ीो ोश्र काम ग पड़े उसे चनरलस ोाव से एवां सेवा का नहां कार न रखते हग ए
करने का डॉक्टरीश्र का स्वोाव न्ा। वे स्वयां वहााँ ीगटे रहते न्े। चकन्तग दूसरे ने काम में टालमटोल कश्र
तो कोश्र क्रोि नहीं करते न्े। इस समय का एक प्रसांग उल्लेखनश्रय है ।

‘स्वातांत्र्य’ दै चनक में एक उपसम्पादक न्े। एक चदन उन्होंने णश्रमारश्र का पत्र डॉक्टरीश्र के पास ोेीकर
छग ट्टश्र ले लश्र। काम पर तो नहीं गये परन्तग फडणवश्रस के णाड़े में सदा कश्र ोााँचत ताश खेलने िले गये।
ताश का शौक कगछ ऐसा हश्र नीण होता है । डॉक्टरीश्र ने चिट्ठश्र पढश्र तन्ा वे ताड़ गये चक वह झूुश्र है ।
उन्हें उनके खेलने का नड्डा चवचदत न्ा। नतः कायालय का कगछ काम चनपटाकर वे फडणवश्रस के णाड़े
में गये तन्ा नपने चनत्य के चनयम के ननगसार झूले पर णैुकर उनके सान् इिर-उिर कश्र गप्पें लगाकर

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िले गये। पास हश्र तरुणों के खेल का शोर हो रहा न्ा और उनमें ‘णश्रमार’ उपसम्पादक ोश्र न्े।
डॉक्टरीश्र के वहााँ गते हश्र वे एकदम शरचमन्दा हो गये। चकन्तग डॉक्टरीश्र ने उन्हें एक ोश्र शब्द नहीं
कहा। सयाने को शब्द कश्र मार लगतश्र हैं परन्तग चप्रयीनों को डॉक्टरीश्र के इस मौन का हश्र नचिक ोय
लगता न्ा। यचद चकसश्र ने काम से ीश्र िगराया तन्ा उसके चलए णहाना णनाया तो डॉक्टरीश्र इतना हश्र
करते चक उसे इस णात का पता लग ीाये चक उसकश्र िाल ध्यान में ग गयश्र हैं । परन्तग उस पर क्रोि
कर उसे दगःख पहग ाँ िाने कश्र नपेक्षा नपनश्र सौीन्यपूणभ सूिकता से उसे सगिरने का नवसर दे ना हश्र वे
नचिक उपयगि समझते न्े।

1924 के नन्त में यह स्पष्ट हो गया न्ा चक ‘स्वातांत्र्य’ दै चनक णहग त चदनों नहीं िल सकेगा। उस वर्भ
को गय-व्यय का चहसाण लगाने पर 10794 रु. का घाटा चनकला। नतः यहश्र चनचित हग ग चक इस
मामले को समेटा ीाये। उस समय कोई ोश्र सम्पादक णनकर नपने चसर पर पत्र णन्द करने का नपयश
लेने को तैयार नहीं न्ा। सफलता का चसरोपाव लेने को तो सोश्र तैयार होते हैं परन्तग नसफलता का
हलाहल पश्रने कश्र कोई तैयारश्र नहीं रखता। इस समय डॉक्टरीश्र गगे गये तन्ा उन्होंने सम्पादक
णनकर पत्र कश्र ‘इचत ीश्र’ चलखश्र। ‘नपयश से सम्पादन’ का िैयभ उन्हें नपनश्र चनष्ट्काम एवां चनःस्वान्भ
सेवावृचत्त के कारण हश्र चमला न्ा। ‘स्वातांत्र्य’ 1925 के प्रारम्ो में हश्र णन्द हो गया न्ा। चकन्तग उसके
पश्रछे एक मानहाचन के मगकदमे का रगड़ा चसतम्णर तक लगा रहा। इस नसफलता का कसहावलोकन
करते हग ए डॉ. ना. ोा. खरे ने ‘तरुण ोारत’ के एक लेख में चलखा न्ा ‘‘........पैसे के नोाव में, तन्ा
लोगों में नोश्र दै चनक पत्र पढने कश्र पयाप्त नचोरुचि उत्पन्न नहीं हग ई, इसचलए यह प्रयोग नसफल
हग ग।’’ इस वर्भ के प्रारम्ो कश्र एक और घटना उल्लेखनश्रय है । क्रान्न्तवश्रर ीश्र गणेशपन्त उपाख्य
णाणाराव सावरकर इस वर्भ नागपगर गकर रहे न्े। वे णश्रमार न्े तन्ा चवीाम के चलए नपने चमत्र ीश्र
चवश्वनान्राव केळकर के यहााँ गये न्े। डॉक्टरीश्र का ोश्र उनके यहााँ चनत्य का गना-ीाना होने के
कारण दोनों का इस समय घचनष्ठ सम्णन्ि ग गया। णाणाराव सावरकर, चवश्वनान्राव केळकर तन्ा
डॉक्टरीश्र तश्रनों कश्र मनोरिना कगछ मामलों में णहग त चमलतश्र-ीगलतश्र न्श्र। तश्रनों के मन में सशस्त्र क्रान्न्त
पर चनष्ठा न्श्र तन्ा चहन्दगत्व का प्रेम ोश्र नत्यन्त ज्वलन्त प में चवद्यमान न्ा। तश्रनों कश्र एक और
चवशेर्ता न्श्र चक वे हान् में चलये हग ए काम में नपने को ोूलकर पूरश्र तरह लश्रन हो ीाते न्े। ीश्र
चवश्वनान्राव केळकर कश्र मृत्यग के णाद उनकश्र दै नन्न्दनश्र में उनके ीश्रवन के ध्येय के सम्णन्ि में िार
पांचियााँ चलखश्र हग ई चमलश्र हैं । वे ये है ः-

नको स्थान मज बहु मानाचें

कण्ठािरचें, शीर्षािरचें ,

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कनकमण्याचें चकाकण्यांचे,

तु झया पदींचा घुं गुरिाळा दे वि मला कर ना ।।

(कण्ठभरण वशरोभू र्षण का मुझे नहीं िर दे ना ।

अपने पै रों का घुुँ घरू ही दे वि ! मु झे कर दे ना ।।)

ीश्र चवश्वनान्राव केळकर ने यह ध्येयवाक्य नपनश्र दै नन्न्दनश्र में नपने चलए चलखा हो तो ोश्र तश्रनों के
व्यवहार में यहश्र घगाँघरुओां कश्र मिगर झांकार व्याप्त न्श्र, इसकश्र साक्षश्र उनके सहवास में गया हग ग कोई
ोश्र व्यचि सही प से दे सकेगा। इस त्रयश्र के एकत्र होने पर नत्यन्त स्वाोाचवक प से तत्कालश्रन
पचरन्स्न्चत का चविार व चवश्लेर्ण होता न्ा तन्ा एक दूसरे के ननगोव सगनने के णाद यहश्र एक चनष्ट्कर्भ
चनकला चक चहन्दू समाी को सगसांघचटत करना िाचहए। चनचित हश्र डॉक्टरीश्र का नपना स्वतः का
चनिय इस प्रकार चदन-प्रचतचदन दृढ होता ीाता न्ा।

इन चदनों नागपगर में छोटे -छोटे ‘चवद्यान्ी-मण्डल’ णने हग ए न्े तन्ा उनके सान् डॉक्टरीश्र का सम्णन्ि ोश्र
न्ा। इन मण्डलों के कायभक्रमों में प्रिचलत राीनश्रचत पर ििा, हस्तचलचखत माचसकों का प्रकाशन,
ीब्त कश्र गयश्र पगस्तकों का वािन तन्ा उत्सव गचद का समावेश होता न्ा। ीश्र णाणाराव सावरकर के
पास सोाओां के लायक णड़श्र विृत्वकला तो नहीं न्श्र चकन्तग णैुकों में णातिश्रत के द्वारा तरुणों को
क्रान्न्तप्रवण णनाने में उनकश्र कगशलता दे खने हश्र लायक न्श्र। वे ीहााँ-ीहााँ ीाते न्े वहीं नपने िारों
ओर तरुणों का गगट इकट्ठा कर लेते न्े और उसमें से हश्र वे ‘तरुण चहन्दू सोा’ कश्र स्न्ापना कर दे ते न्े।
नागपगर में उनके चनवास के समय ोश्र उनके पास ननेक तरुण गये। उनके सम्मगख वे शगचद्ध, सांघटन,
गत्मसांरक्षण गचद कश्र दृचष्ट से चविार रखते न्े। चकन्तग चविारों से गगे णढकर तरुणों का प्रत्यक्ष
सांघटन करने का दम उनमें नहीं रहा न्ा। नन्दमान में कोल्हू पेरने, नाचरयल कश्र ीड़े कूटने तन्ा क्षय
कश्र णश्रमारश्र में उन्होंने इतनश्र यातनाएाँ सहश्र न्ीं चक उनका सम्पूणभ शरश्रर ीीभर हो गया न्ा। हााँ, तरुणों
को चहन्दगत्व कश्र दश्रक्षा दे ने कश्र दृचष्ट से उनका यह सहवास चनस्सन्दे ह णड़ा हश्र उपयोगश्र चसद्ध हग ग।

‘स्वातांत्र्य’ दै चनक के झांझटों से डॉक्टरीश्र ीैसे-ीैसे मगि होने लगे वैसे-वैसे तरुणों के सान् सम्पकभ
णढाकर उनका एक सांघटन णनाने का उनका चविार णल पकड़ने लगा। उन्होंने कगछ लड़कों को तैरने
कश्र चशक्षा दे ने के चलए इकट्ठा चकया तन्ा इस चनचमत्त से सम्णन्ि में गये हग ए तरुणों में वे खूण खगलकर
णातिश्रत करते न्े। कोई ोश्र तेी चवद्यान्ी चदखा चक वे उससे कगएाँ पर तैरना सश्रखने के चलए गने का

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गग्रह करते। यह कायभक्रम डॉक्टरीश्र के एक चमत्र के कगएाँ पर होता न्ा। एक णार डॉक्टरीश्र कगछ
लोगों को तैरना चसखा रहे न्े चक एक णारह-तेरह वर्भ का णालक कगएाँ के पास से ीा रहा न्ा। डॉक्टरीश्र
ने चवनोद में उसे रोककर पूछा चक ‘‘तू ोश्र छलााँग मारता है क्या?’’ उस णालक में इतनश्र चनोीकता न्श्र
चक तैरना न गते हग ए ोश्र उसने ‘‘हााँ’’ कर दश्र तन्ा कपड़े उतारकर तगरन्त डॉक्टरीश्र के पास कमर में
डोरश्र णााँिने के चलए खड़ा हो गया। डोरश्र णाँिते हश्र उसने एकदम कगएाँ में छलााँग लगा दश्र। इस णालक
का साहस दे खकर डॉक्टरीश्र को णड़ा हर्भ हग ग। उन्होंने उससे नच्छश्र तरह पचरिय कर चलया। यह
णालक गोपाळराव येरकगण्टवार न्ा चीसने गगे िलकर सांघ के प्रिार में णहग त कगछ योगदान चदया।
डॉक्टरीश्र ने सही हश्र उसको नपने चनकट कर चलया। इश प्रसांग का वणभन करते हग ए ीश्र येरकगण्टवार
कहते हैं चक ‘‘कगएाँ के पास चमले उस ननीान श्यामवणभ व्यचि कश्र िमकतश्र हग ई गाँखों में मैंने ीो
तेीन्स्वता और गकर्भकता दे खश्र उसकश्र छाप मेरे मन पर नचमट प से पड़ गयश्र।’’

नण णालकों के मण्डल में व्याख्यान दे ने के चलए डॉक्टरीश्र प्रयत्नपूवभक ीाने लगे। उनके हस्तचलचखत
माचसक पर डॉक्टरीश्र का स्फूर्ततदायक नचोप्राय ोश्र गने लगा। चवद्यान्ी-मण्डल के कगछ चकशोर
गकर डॉक्टरीश्र से उनके मण्डल का नध्यक्ष णनने का ोश्र गग्रह करने लगे। चकन्तग तण तक
डॉक्टरीश्र का हान् समािार-पत्र के झांझटों से पूरश्र तरह मगि नहीं हग ग न्ा तन्ा उनके घर कश्र मरम्मत
ोश्र िल रहश्र न्श्र। नतः डॉक्टरीश्र ने उन्हें ‘‘ना’’ तो नहीं कहा पर ‘‘न्ोड़े चदनों में दे खग
ूाँ ा’’ यह कहकर
मामला गगे सरका चदया। वास्तव में प्रचतष्ठाप्राप्त व्यचि णरों में चहल-चमलकर रहे और वह ोश्र मन
से, यह णात तण और गी ोश्र दगलभो हश्र है । ीण डॉक्टरीश्र ने णालकों से यह कहा चक ‘‘न्ोड़े चदनों में
ूाँ ा’’ तो उनके मन में यह चविार कोश्र नहीं गया चक डॉक्टरीश्र ने णात टाल दश्र। उनके शब्दों के
दे खग
मूल में उनके मन का सांघटन के चवर्य में रात-चदन होनेवाला चिन्तन तन्ा चवश्वास रहता न्ा और
इसश्रचलए इस प्रकार के उत्तर से डॉक्टरीश्र के पास तरुणों के गने-ीाने में कोई णािा उत्पन्न नहीं हग ई।
प्रा. पा. कृ. सावळापूरकर ोश्र इन तरुणों में से एक न्े। वे चलखते हैं चक ‘‘नागपगर में तरुणों के सण
कायभक्रमों कश्र ओर डॉक्टर हे डगेवार का ध्यान णराणर रहता न्ा तन्ा उस समय प्रत्येक तरुण उनकश्र
ओर सही हश्र मागभदशभन के चलए दे खता न्ा। क्रान्न्तकारश्र दल से उनका सम्णन्ि तन्ा उसकश्र कन्ाएाँ
तरुणों को णड़श्र रोमाांिकारश्र लगतश्र न्ीं। 1923 नन्वा 1924 में ‘राष्ट्रप्रेम ििा मण्डल’ में हम लोगों
ने डॉक्टर हे डगेवार को णगलाया न्ा। उस समय शगद्ध राष्ट्रवाद कैसा होता है इस चवर्य का उन्होंने
मार्तमक चवश्लेर्ण चकया न्ा।’’

चदण्डश्र-सत्याग्रह के समय मगसलमानों के दां गे का छोटा-सा प 1924 में ोश्र प्रकट हग ग। 12, 13
ीगलाई को ईद और गर्ाढश्र एकादशश्र एक सान् ग गयश्र। उस समय मगसलमानों कश्र गक्रमणकारश्र
प्रवृचत्त पगनः चसर उुाने लगश्र। चकन्तग इस वर्भ चहन्दू सीग न्े नतः उनकश्र दाल गलना सरल नहीं न्ा।
फलतः 30-35 मगसलमानों को पट्टश्र णााँिकर नस्पताल में पड़े रहना पड़ा। इस समय डॉ. मगांीे तन्ा डॉ.

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हे डगेवार ने सतकभता णरतकर मगसलमान मोहल्लों में से चहन्दगओां को पहले हश्र हटाकर राीवाड़े में रख
चदया न्ा। इस नवसर पर ोश्र णहग त चदनों तक चहन्दू मोहल्लों में रात को पहरा रहता न्ा। सान् हश्र
मगसलमानों के व्यापार का णचहष्ट्कार करने कश्र णात चफर से शग हो गयश्र। नण मगसलमानों के गगे
नािते रहने में लोगों का कोई रस नहीं णिा न्ा, क्योंचक यह सणका कटग ननगोव न्ा चक हमने नच्छा
व्यवहार चकया तो ोश्र उसकश्र प्रचतध्वचन मगसलमानों कश्र ओर से सौीन्यपूणभ नहीं होतश्र। उस समय
मगसलमान खटश्रकों के स्न्ान पर चहन्दू खटश्रक नहीं चमले तो डॉ. मगी
ां े ने स्वयां खटश्रक णनने कश्र घोर्णा
कश्र। इससे णचहष्ट्कार-गन्दोलन कश्र तश्रव्रता का ननगमान लगाया ीा सकता हैं । उस समय
सदण्डता)लाुश्र लेकर िलने) का ोश्र ीोरों से प्रिार हो गया न्ा। डॉ. मगांीे तो तरुणों से कहते न्े चक
‘‘यचद एकाि लाुश्रवाला गगण्डा नपने दरवाीे पर गया तो उससे नपनश्र स्त्रश्र कश्र रक्षा करने का
सामर्थयभ तरुणों में होना िाचहए। लाुश्र िलाने कश्र चशक्षा लेकर ‘शुां प्रचत शायक्ां ि लायक्ां ि’ का प्रयोग
ब्याी सचहत पूरा करने कश्र दक्षता गनश्र िाचहए।’’ गश्त कश्र दे खोाल करते हग ए डॉक्टरीश्र क्षेत्र में
घूमते हग ए पहरा दे ने वालों का पचरिय तन्ा परख ोश्र करते ीाते न्े। स्पष्ट हश्र वे नपने गगे के कायभक्रम
कश्र दृचष्ट से इस प्रकार तरुणों को ीगटाने कश्र ोूचमका णााँि रहे न्े।

नागपगर के सान्-सान् दे श के नन्य ोागों में ोश्र चहन्दू-मगन्स्लम एकता के णगल-णगले फूटते ीा रहे न्े तन्ा
सवभत्र चहन्दू नेताओां के चलए पचरन्स्न्चत का पगनर्तविार करना गवश्यक हो गया न्ा। नमेुश्र, सम्ोल,
गगलणगा, कोहटा गचद स्न्ानों पर मगसलमानों ने नपने नत्यािार से मानवता तन्ा शान्न्त के चिन्ड़े -
चिन्ड़े उिेड़ कर रख चदये। चदनाांक 9, 10 चसतम्णर को कोहाट के दां गे में एक सौ पिपन लोग मारे
गये तन्ा लगोग नौ लाख रुपये कश्र सम्पचत्त नष्ट हग ई। मगसलमानों ने ीश्र खोलकर चहन्दगओां के घरों
और दगकानों को लूटा। ीश्रमतश्र सरोीनश्र नायडू ने महात्माीश्र को चलखा न्ा चक ‘‘शान्न्त के ोार्ण तन्ा
प्रविन नण णहग त हो गये।’’ इन दां गो के कारण महात्माीश्र ोश्र णहग त हश्र व्यग्र एवां व्यचन्त हग ए। उन्होंने
चदल्लश्र में मौलाना मोहम्मद नलश्र के हश्र घर में डॉ. नांसारश्र तन्ा ीश्र नब्दगल रहमान कश्र दे खरे ख में इोंश्रस
चदन का उपवास करने कश्र घोर्णा कर दश्र। उपवास िालू रहते हग ए महात्माीश्र ने कहा न्ा चक ‘‘मेरश्र
इच्छा है चक गवश्यकता पड़श्र तो नपने रि से ोश्र दोनों के णश्रि कश्र खाई पाट दूाँ।’’ इस उपवास के
कारण शान्न्त पचरर्दों कश्र स्न्ापना हग ई तन्ा चफर से एक णार प्रेम का प्रदशभन करते हग ए मगसलमानों ने
एकता कश्र घोर्णाएाँ कीं। इन पचरर्दों का पचरणाम क्या चनकला इस सम्णन्ि में डॉ. गम्णेडकर चलखते
हैं ‘‘एकता-पचरर्दों में केवल लगोावने प्रस्ताव होते ते तन्ा उनकश्र घोर्णा होते हश्र व्यवहार में उनका
उल्लांघन चकया ीाता न्ा।’’

चकन्तग इस वातावरण में ोश्र गाांिश्रीश्र ने नपने नकहसा के उपदे श में यत्त्कचित् ोश्र नन्तर नहीं चकया।
उन्हें नमानगर्ता का नांगा नाि चदखता न्ा चफर ोश्र वे चहन्दगओां से यहश्र कहते न्े चक ‘‘मेरश्र कौन सगनता

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है ? लेचकन इस समय मेरा चहन्दगओां से यहश्र कहना है चक तगम िाहे मर ीाओ पर मारो नहीं।’’ डॉक्टरीश्र
के मागभदशभन में चनकलनेवाले दै चनक ‘स्वातांत्र्य’ के यचद नांक चमल ीाते तो कदाचित् उनके इस काल
के चविारों का पता उन्हीं के शब्दों में लग ीाता, परन्तग यह सम्ोव न होने पर ोश्र इतना ननगमान तो
लगया ीा सकता है चक इन घटनाओां से वे नवश्य हश्र नत्यन्त व्यचन्त एवां चिन्न्तत हग ए होंगे। उस
मारपश्रट के काल में नपने को ‘चहन्दश्र’ मानकर नपना गौरव चदखानेवाले ोश्र ‘चहन्दगत्व’ का चविार
करने लगे न्े। स्वामश्र ीद्धानन्द ने तो मोपला-चवद्रोह के णाद से हश्र शगचद्ध और सांघटन कश्र रट प्रारम्ो
कर दश्र न्श्र। उन्होंने ‘कायदा-ोांग ीााँि सचमचत’ के समक्ष यह स्पष्ट कर चदया न्ा चक ‘‘एक-एक प्रान्त
में दोनों ीाचतयााँ एक दूसरे के चवर्य में सांशयग्रस्त हो गयश्र हैं , यह मगझे स्वयां चदख रहा है । इसका एक
कारण यह है चक मगसलमान चीतने सगसांघचटत हैं उतना चहन्दू समाी नहीं है । वह नण ोश्र चवीांखचलत
हैं । इसका एक हश्र उपाय है चक चहन्दू नेताओां को नपना समाी सांगचुत करना िाचहए। ’’ 1924 में
चहन्दू महासोा के णेळगााँव नचिवेशन में पां. मदनमोहन मालवश्रय ने ोश्र यह णात कहश्र न्श्र। उन्होंने कहा
न्ा चक ‘‘चहन्दगओां में ोश्ररुता तन्ा दगणभलता न होतश्र तो चहन्दू-मगसलमानों के णहग त से दां गे टल गये होते।
इन दां गों से राष्ट्र के चलए चवघातक पचरन्स्न्चत उत्पन्न हो ीाने के कारण उनके चलए णहग त कगछ नांशो में
चीम्मेदार चहन्दगओां कश्र दगणभलता को दूर करना गवश्यक हैं ।’’ इस नचिवेशन से लौटते हग ए पूना कश्र
सावभीचनक सोा में स्वामश्र ीद्धानन्द द्वारा प्रकट चविार मननश्रय हैं तन्ा उस काल के चहन्दू नेताओां कश्र
मनःन्स्न्चत पर नच्छा प्रकाश डालनेवाले हैं । उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘कसहगढ सरश्रखे कचुन स्न्ान पर
चीस महाराष्ट्र ने ोगवाझण्डा लहराया वह महाराष्ट्र नत्यन्त चनोभय न्ा। गी हम नपना ोगवा
झण्डा छोड़कर चकसश्र ोश्र झण्डे के नश्रिे इकट्ठा होने लगे हैं । यह ोूल दूर करके पगनः नपने सहश्र स्व प
को पहिाचनए तन्ा सरे वैचदक िमभ तन्ा गयभ सांस्कृचत कश्र रक्षा कश्रचीए।’’

दे शणन्िग चित्तरां ीनदास ने तो छः महश्रने केवल मगसलमानों का इचतहास तन्ा मगसलमान-कानून का


नध्ययन और मनन करने में लगाये तन्ा नपने चिन्तन का चनष्ट्कर्भ उन्होंने लाला लाीपतराय को इन
शब्दों में णताया ‘‘मगझे ऐसा लगता है चक चहन्दू-मगन्स्लम एकता न तो सम्ोव है और न व्यवहायभ हश्र।’’
दे शणन्िग के समान लाला लाीपतराय को ोश्र काांग्रस
े के पााँि वर्भ के चहन्दू-मगन्स्लम एकता के प्रयत्नों
का नन्भ कगछ-कगछ स्पष्ट होने लगा न्ा। मौलाना हसरत मोहानश्र के इस प्रस्ताव कश्र चक ‘‘चहन्दू और
मगसलमानों के दो स्वतांत्र राज्य चनमाण होने िाचहए’’ टश्रका करते हग ए उन्होंने कहा न्ा ‘‘.......पहले नहीं
े चहन्दू-मगसलमान का सांयगि सांघटन रहश्र है , पर इसने चहन्दगओां कश्र
तो चपछले पााँि वर्ों में तो काांग्रस
नपेक्षा मगसलमानों का हश्र नचिक ोला चकया है ।’’ इसश्र समय हसरत मोहानश्र ने ‘पचिमोत्तर
सश्रमाप्रान्त, चसन्ि तन्ा पांीाण को चमलाकर स्वतांत्र मगन्स्लम राज्य’ कश्र मााँग शग कर दश्र न्श्र। महात्माीश्र
का ोश्र इसश्र काल में यहश्र ननगोव हग ग चक ‘‘सवभमान्य मगसलमान गगण्डा है तन्ा चहन्दू कायर है ।’’

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पन्ण्डत ीवाहरलाल नेह को ोश्र इनसे चोन्न ननगोव नहीं हो सकता न्ा। उन्होंने नपने ‘गत्मिचरत्र’
में उस काल का वणभन करते हग ए चलखा है चक ‘‘......... ननेक काांग्रस
े ीन राष्ट्रश्रयता का णगरका पहने
हग ए सम्प्रदायवादश्र हश्र न्े।’’ इसके नचतचरि उसश्र पगस्तक में उन्होंने चहन्दगओां को ‘णाणूचगरश्र में राँ गे हग ए
तन्ा चनद्राशश्रल’ णताया है । प्रचसद्ध क्रान्न्तकारश्र लाला हरदयाल ने 1925 के प्रारम्ो में लाहौर से
प्रकाचशत ‘प्रताप’ में नपने ोाव व्यि करते हग ए ‘चहन्दू राष्ट्र’ के उज्जवल ोचवष्ट्य के चलए शगचद्ध,
सांघटन, चहन्दू राज्य कश्र स्न्ापना तन्ा नफगाचनस्तान का ोारत में चवलश्रनश्रकरण –इन िार णातों को
गवश्यक णताते हग ए कहा ‘‘ीण तक चहन्दू राष्ट्र इन िारों णातों को चसद्ध नहीं करता तण तक चहन्दू
ीाचत कश्र सगरक्षा होना सम्ोव नहीं है ।’’ डॉ. मगांीे तो उन चदनों स्पष्ट कहते न्े चक ‘‘गले में तगलसश्र कश्र
माला पहनकर राीनश्रचत नहीं हो सकतश्र।’’ ीनवरश्र 1925 में पूना कश्र एक सोा में नपनश्र नश्रचत स्पष्ट
करते हग ए उन्होंने कहा न्ा ‘‘नागपगर कश्र डेढ लाख कश्र गणादश्र में केवल णश्रस हीार मगसलमान होने के
णाद ोश्र हमें हश्र नपनश्र िन-सम्पचत्त तन्ा ीान का खतरा लगा रहता है । पर मगसलमानों को कोश्र यह
ोय नहीं लगता चक एक लाख तश्रस हीार लोगों का मन दगखाया तो हमारा क्या होगा।........नतः
इसके गगे कोई ोश्र प्रश्न उपन्स्न्त हो प्रन्म ‘चहन्दू’ के नाते हश्र उसका चविार करना िाचहए। काांग्रेस
में ‘चहन्दश्र’ तन्ा णाहर चहन्दू यह वृचत्त रखे चसवाय कोई िारा नहीं है । मगसलमानों ने हश्र हमें यह चसखाया
है ।’’ इसश्र वर्भ सातारा में हग ई महाराष्ट्र प्रान्तश्रय पचरर्द् में णै. रामराव दे शमगख ने तो सणके ऊपर णाीश्र
मारते हग ए नपना मनोगत व्यि चकया न्ा। उन्होंने कहा न्ा ‘चहन्दश्र राष्ट्रश्रयत्व’ को यचद चफर से चीन्दा
करना है तो चहन्दगओां को ोश्र मगसलमानों के समान सांघचटत तन्ा णलशालश्र णनाना होगा। िार वर्ों तक
नणश्रणन्िग महात्माीश्र के सान् चवदूर्क ीैसे िोंर काटते रहे पर चणिारों को नोश्र तक राष्ट्रश्रयता कश्र
ीानकारश्र नहीं हो पायश्र। मूल में राष्ट्रश्रयता नहीं न्श्र तन्ा महात्माीश्र के सहवास में ोश्र राष्ट्रश्रयता नहीं
न्श्र, नतः नलश्रणन्िगओां में वह गये तो कहााँ से ?’’

1925 में दे श के नेताओां कश्र मनःन्स्न्चत क्या न्श्र इसका नन्दाीा लगाने के चलए केवाल णानगश्र के
प में ऊपर कगछ उद्धरण चदये गये हैं । चकन्तग एक िावल से ीैसे चखिड़श्र का पता लगाया ीा सकता
है वैसे हश्र चवज्ञ पाुक उस काल कश्र न्स्न्चत कश्र कल्पना कर सकेंगे। चहन्दू-मगन्स्लम एकता के चलए
चकये गये तप का फल सोश्र चविारवान व्यचियों को स्पष्ट चदखने लगा न्ा तन्ा नपनश्र-नपनश्र समझ
के ननगसार उन्होंने नपने मन का ोाव प्रकट ोश्र चकया न्ा। गी तो काांग्रेस में चहन्दू का नामोरारण
ोश्र घोर साम्प्रदाचयकता समझा ीाता है । परन्तग 1925 कश्र ीनवरश्र में मध्यप्रेदश काांग्रेस सचमचत कश्र
ओर से स्वामश्र सत्यदे व का दौरा हग ग न्ा तन्ा उसमें नागपगर, ोण्डारा, विा, गोंचदया गचद ननेक
स्न्ानों पर उन्होंने चहन्दू-सांघटन के चवर्य पर हश्र ोार्ण चदये न्े। इस सम्पूणभ दौरे में डॉक्टर हे डगेवार
तन्ा ीश्र वामनराव घोरपडे उनके सान् न्े तन्ा कई सोाओां में तो डॉक्टरीश्र नध्यक्ष होते न्े , यह उस

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समय के समािारपत्रों से ज्ञात होता है । यह कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक डॉक्टरीश्र उस समय
काांग्रेस के हश्र कायभकता न्े।

इस समय उनके प्रिार कश्र चदशा का ननगमान विा कश्र एक सोा में, ीो डॉक्टरीश्र कश्र नध्यक्षता में
हग ई न्श्र, स्वामश्र सत्यदे व पचरव्राीक द्वारा प्रकट चनम्नचलचखत चविारों से लगाया ीा सकता है । उन्होंने
कहा न्ा चक ‘‘यह कल्पना नशगद्ध है चक चहन्दू-सांघटन मगसलमानों के चवरुद्ध है । महात्माीश्र का यह
चविार ोश्र गलत है चक चहन्दू-सांघटन णदमाश लोगों को ुोक-पश्रट करने के चलए है ।..........चहन्दगस्न्ान
हमारा प्राण है , वहश्र हमारा ीश्रवन-सवभस्व है , चहन्दगओां कश्र यह चनष्ठा है चकन्तग मगसलमानों में यह ोाव
नहीं है । इस चनष्ठा के चवर्य में ीण उनको समझाने के प्रयत्न होते हैं तो वे समझने लगते हैं चक चहन्दू
उनसे ोयोश्रत हैं । उनका यह भ्रम दूर करने के चलए चहन्दगओां का सांघटन नवश्य करना िाचहए।’’

इस दौरे पर ीाने के पहले डॉक्टरीश्र ने ीश्र ोाऊीश्र कावरे , ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र, ीश्र चवश्वनान्राव
केळकर गचद चनकटवती चमत्रों तन्ा मध्यप्रान्त के राीनश्रचतक कायभकताओां कश्र कई णार णैुकें कीं।
उनमें सांघटन चकस पद्धचत से तन्ा कौनसा खड़ा करना िाचहए इस चवर्य पर सणके चविार ीानने का
प्रयत्न चकया तन्ा नपनश्र कल्पना ोश्र सणके चविारान्भ रखश्र। इस प्रचतपादन में उन्होंने यहश्र ोाव व्यि
चकया न्ा चक चहन्दू-मगसलमानों कश्र एकता कश्र कल्पना भ्रम मात्र है तन्ा चहन्दू समाी में तरुण पश्रढश्र को
हान् में लेकर उसके ऊपर सांस्कार डालने िाचहए। उन्होंने यह ोश्र णताया चक चहन्दगस्न्ान के चहतों के
सान् चीसके सारे चहत-सम्णन्ि चनगचडत हैं , ीो इस दे श को ोारतमाता कहकर नचत पचवत्र दृचष्ट से
दे खता है तन्ा चीसका इस दे श के णाहर कोई नन्य गिार नहीं है , ऐसा एक महान्, िमभ और सांस्कृचत
से एक सूत्र में गगन्
ाँ ा हग ग चहन्दू समाी हश्र यहााँ का राष्ट्रश्रय समाी है । यहश्र राष्ट्रकायभ है । इस प्रकार का
राष्ट्रश्रय सांघटन दलश्रय राीनश्रचत से पूणभतः नचलप्त रहना िाचहए तन्ा चकसश्र ोश्र राीनश्रचतक दल के
व्यचि को नपने मत रखते हग ए ोश्र इस सांघटन में काम कर सकना िाचहए। यह न्श्र सांक्षेप में उस समय
कश्र उनकश्र चविारसरणश्र।

चीन छोटे -णड़े कायभकताओां से डॉक्टरीश्र ने उस समय चविार-चवचनमय चकया उन्हें ये चविार उन चदनों
काांग्रेस में प्रिचलत ‘पचरवतभनवादश्र’ तन्ा ‘नपचरवतभनवादश्र’ दोनों हश्र ोूचमकाओां से नलग तन्ा कगछ
नये-से लगे। इस सम्णन्ि में ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र चलखते हैं ‘‘ये एकत्र कायभकता चकसश्र-न-चकसश्र
राीनश्रचतक दल के न्े। उनमें से कगछ के ऊपर महात्माीश्र के गन्दोलन का, तो कगछ पर स्वराज्य पक्ष
कश्र चविारसरणश्र का प्रोाव पड़ िगका न्ा। नतः डॉक्टरीश्र इस ोानमतश्र के कगनणे को नन्त तक
ीोड़कर नहीं रख सके। 1925 के प्रारम्ो में उन्होंने सणका मोह छोड़ चदया तन्ा नपनश्र चविारसरणश्र
से सहमत लोगों के णल पर हश्र चहन्दू राष्ट्र के पगनरुद्धार के कायभ को प्रारम्ो करने का मन-हश्र-मन
चनिय कर चलया।’’

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चहन्दू राष्ट्र के सांघटन का इस प्रकार चविार चनचित होने पर डॉक्टर हे डगेवार ने णै. सावरकर से ोेंट
करने का चनिय चकया। णै. सावरकर उस समय रत्नाचगचर में स्न्ानणद्ध न्े। डॉक्टरीश्र ीश्र चवश्वनान्राव
केळकर तन्ा डॉ. सावरकर के सान् वहााँ गये। उन चदनों रत्नाचगचर में प्लेग फैल गया न्ा नतः णै.
सावरकर रत्नाचगचर छोड़कर पास हश्र चशरगााँव में ीश्र चवष्ट्णगपन्त दामले के यहााँ न्े। डॉक्टरीश्र वहााँ दो
चदन रहे तन्ा उस नवचि में तात्याराव के सम्मगख नपनश्र सांघटन-सम्णन्िश्र कल्पना रखश्र और उस पर
उनका नचोप्राय ोश्र ीान चलया।

चदण्डश्र-सत्याग्रह के समय से हश्र उनका नागपगर के ननेक नखाड़ों के उस्तादों से सम्पकभ ग गया न्ा
तन्ा उन्होंने णाद में ोश्र उनसे चमलते-ीगलते रहकर ये सम्णन्ि और ोश्र नच्छे णना चलये न्े। सांघ के
कायभ को प्रत्यक्ष प्रारम्ो करते समय ीो कायभक्रम डॉक्टरीश्र के मन्स्तष्ट्क में घूम रहे न्े उनमें नखाड़ों
में व्यायाम का ोश्र नन्तोाव न्ा तन्ा उस दृचष्ट से उस्तादों से ये सम्णन्ि णड़े काम के न्े। इसश्र प्रकार
उन्होंने नागपगर के सोश्र गणेशोत्सवों के सांिालकों को ‘गगणोत्कर्भ मण्डल’ कश्र ओर से ीश्र ोाऊसाहण
टालाटगले के दगमचां ीले पर णगलाया तन्ा इस णात के चलए प्रयत्न चकया चक इन उत्सवों में एकसूत्रता और
चवशालता लायश्र ीाये। उस समय वे ‘राष्ट्रश्रय उत्सव मण्डल’ के मांत्रश्र ोश्र न्े।

यह तो हम ऊपर दे ख िगके हैं चक उस समय चहन्दू-सांघटन कश्र गवश्यकता सोश्र चविारवान् व्यचियों
को चकतनश्र उत्कटता से प्रतश्रत हो रहश्र न्श्र। चकन्तग इस पर ोश्र दृचष्टक्षेप करना यगचियगग्म होगा चक इस
प्रतश्रचत के गिार पर चकतने लोग प्रत्यक्ष सांघटन करने के चलए गगे गये तन्ा उनके कायभ का क्या
स्व प न्ा। सोश्र लोगों के मन में चहन्दू-सांघटन कश्र गवश्यकता का ननगोव एक-सश्र तश्रव्रता से होना
तो सम्ोव नहीं न्ा। एकाि पाचश्वक नत्यािार के कारण चीनका क्रोि उमड़ ीाता है तन्ा उतने समय
के चलए उनका स्वाोाचवक ीाग्रत् हो ीाता है ऐसे लोगों का एक वगभ न्ा। दूसरा ऐसा ोश्र वगभ न्ा चीसे
ये दां गे नस्न्ायश्र एवां समयचवशेर् कश्र प्रचतचक्रया के प में लगते हैं । उसे चवश्वास रहता है चक यचद
चहन्दू-मगन्स्लम एकता का ीोर से प्रिार चकया ीाये तो उससे मगसलमानों कश्र मनोवृचत्त में पचरवतभन
लाया ीाकर दां गों को समाप्त चकया ीा सकता है । उनकश्र नपनश्र प्रिारपद्धचत पर णड़श्र ीद्धा रहतश्र है ।
तश्रसरा वगभ वह न्ा चीसे नपने चहन्दूपन का ज्ञान तो हग ग न्ा परन्तग ‘‘इतने चदन तक चीस ‘चहन्दश्रपन’
कश्र डींग हााँकते रहे उसका क्या होगा ?’’ यहश्र प्रश्न उनके सम्मगख खड़ा हो ीाता तन्ा उनकश्र ीणान
को ताला लग ीाता। िौन्ा वगभ ऐसा न्ा ीो चक प्रामाचणकता में इनसे कगछ गगे न्ा। वह नपना
‘चहन्दश्रपन’ न छोड़ते हग ए तन्ा महात्माीश्र कश्र नपने ऊपर नवकृपा न हो उस मयादा का ध्यान रखकर
चहन्दू-सांगटन के सम्णन्ि में णोलने का िैयभ चदखाता न्ा। ‘चहन्दश्र’ राष्ट्रश्रयत्व कश्र मोचहनश्र से इन सणका
िैतन्य लगप्त हो गया न्ा तन्ा उस कल्पना को न छोड़ते हग ए चीतना शक्य हो उतने प्रमाण में उनका
चहन्दगत्व प्रकट होता न्ा। महात्माीश्र तन्ा ीवाहरलालीश्र ीैसे कट्टर चहन्दश्रराष्ट्रवाचदयों के सामने तो
चहन्दगओां के सम्णन्ि में सहानगोूचतपूवभक णोलना साम्प्रदाचयकता तन्ा पृन्िा का हश्र द्योतक न्ा। उनकश्र

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दृचष्ट से तो चहन्दू-मगन्स्लम एकता के चलए चहन्दगओां ने चीतना ोश्र त्याग चकया होगा उतना न्ोड़ा हश्र न्ा।
उनकश्र यह दृढ िारणा न्श्र चक चहन्दू-मगसलमान मूलतः एक न्े, केवल नांग्रेीों ने उनके णश्रि दगई पैदा
कश्र। इस समय डॉक्टर हे डगेवार चहन्दू सांघटन कश्र गवश्यकता चनोभयता से प्रचतपाचदत करने लगे न्े
तन्ा दे श में उनके मत से मेल रखनेवाले कगछ नेता चवद्यमान ोश्र न्े। ‘‘चहन्दगस्न्ान में रहनेवाले सण
लोगों का यह राष्ट्र है ’’ इस कल्पना पर से उनका चवश्वास पूणभतः उु गया न्ा तन्ा ‘‘चहन्दगत्व हश्र
राष्ट्रश्रयत्व है ’’ यहश्र णात उनका मन उन्हें ुोक-ुोककर णता रहा न्ा।

इन चवचवि लोगों में से ीो ‘‘चहन्दगत्व हश्र राष्ट्रश्रयत्व है ’’ इस मत को माननेवाले न्े वे शान्ब्दक घोर्णा
से गगे कगछ नहीं कर सकते न्े। ोार्ण और लेख तन्ा प्रस्ताव, यहीं तक उनकश्र दौड़ न्श्र। ‘सांघटन’
करना नन्ात् क्या करना यह उनकश्र समझ में नहीं गता न्ा। उन्हें कोई मागभ नहीं सूझता न्ा, इसचलए
वे ‘‘इस प्रकार का समाी हो’’ ऐसश्र कल्पनाएाँ हश्र व्यि कर सकते न्े। पैंतश्रस कोचट का समाी चीस
ओर से ीा रहा न्ा उसके चवरुद्ध प्रवाह में तैरने के समान चहन्दू-सांघटन का कायभ न्ा। चकन्तग ऐसा
पराक्रम करने के चलए चीस िैयभ, चनष्ठा, कतृभत्व तन्ा कौशल्य कश्र गवश्यकता न्श्र वह दगदैव से कगछ
लोगो के पास नहीं न्ा और चीनके पास इन गगणों का समवाय न्ा ोश्र, उनको ोश्र सांघटन के न्स्न्र,
चविायक तन्ा चिरन्तन स्व प का दशभन न होकर उसके स्न्ान पर मगसलमानों के द्वे र् के कारण केवल
एक प्रचतचक्रयात्मक स्व प के सांघटन कश्र हश्र गवश्यकता समझ में गतश्र न्श्र।

ऐसश्र पचरन्स्न्चत में ननेक लोगों ने चहन्दू समाी पर वतभमान तन्ा गगे गनेवाले सांकटों कश्र िेतावनश्र
दश्र होगश्र। चकन्तग टूटते हग ए पहाड़ को रोकने का सामर्थयभ उत्पन्न करने का कायभ दगोाग्य से चकसश्र ने नहीं
चकया। फलतः 1925 में चहन्दू-सांघटन कश्र व्यापक ननगोूचत होने के णाद ोश्र उसका प्रत्यक्ष उुता हग ग
स्व प कहीं दे खने को नहीं चमला। इतना हश्र नहीं णन्ल्क ीण डॉक्टरीश्र ने कायभ प्रारम्ो चकया तो उसे
‘साम्प्रदाचयक’, ‘छोकड़ों का’, ‘त्रेतायगगश्रन’ गचद नाम दे कर चवचोन्न प्रकार से उसकश्र गचत रोकने का
दगोाग्यपूणभ प्रयत्न ोश्र ऐसे ननेक महापगरुर्ों द्वारा चकया गया।

लोकसांग्रह के उद्देश्य से चकये हग ए डॉक्टरीश्र के सांकल्प के पश्रछे इतनश्र लगन तन्ा ध्येय एवां मागभ पर
इतना नचविल चवश्वास न्ा चक समाी कश्र चवपरश्रत मनःन्स्न्चत दे खकर उन्हें उसके ऊपर दया हश्र
गयश्र, क्रोि नहीं गया। उन्होंने पााँि-सात वर्भ कश्र घटनाओां का चवश्लेर्ण इचतहास कश्र पृष्ठोूचम में
चकया तन्ा चहन्दू मगसलमानों के सांघर्भ के पश्रछे कश्र कारण-मश्रमाांसा को खोीकर उसका समूलोराटन
करने का सांकल्प चकया। उन्हें यह स्पष्ट हो गया न्ा चक चहन्दगस्न्ान को दे श कश्र सांज्ञा दे ने के चलए चीस
समाी ने ोगश्ररन्-प्रयत्न चकये उन चहन्दगओां का हश्र यह दे श है । इस समाी का ह्वास मगसलमानों नन्वा
नांग्री
े ों के कारण नहीं हग ग नचपतग राष्ट्रश्रय ोावना के चशचन्ल हो ीाने पर व्यचि एवां समचष्ट के सहश्र
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सम्णन्ि चणगड़ गये तन्ा इस प्रकार नसांघचटत नवस्न्ा के कारण हश्र एक समय चदन्ग्वीय का डांका
दसों चदशाओां में णीानेवाला चहन्दू समाी सैकड़ों वर्ों से चवदे चशयों कश्र पाचश्वक सत्ता के नश्रिे पददचलत
है । नपने समाी में मनगष्ट्य-णल, िन-णल तन्ा शस्त्र-णल सण कगछ न्ा परन्तग ‘‘मैं राष्ट्र का घटक हू ाँ
तन्ा उसके चलए मेरा ीश्रवन लगना िाचहए’’ यह कतभव्य कश्र ोावना व्यचि के हृदय से नष्ट होने के
कारण सारश्र शचि होते हग ए ोश्र समाी पराोूत हो गया। इसके चलए समाी कश्र नस-नस में राष्ट्रश्रय कश्र
उत्कट ोावना ोरकर, उस ोावना से सम्पूणभ समाी ननगशाचसत एवां सांीश्रचवत कर, उसे चदन्ग्वीयश्र
राष्ट्र के प में खड़ा चकया ीाये, यह महन्मांगल सांकल्प डॉक्टरीश्र ने चकया। इसश्र सांकल्प का मूतभ
स्व प है ‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ’।

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13. सांघ का शगोारम्ो
डॉक्टरीश्र के मन में सांघ कश्र कल्पना चनचित हो िगकश्र न्श्र। नण उसे चविार ीगत् से व्यवहार-ीगत् मे
लाना न्ा। उसका सूत्रपात उन्होंने चवीयादशमश्र के शगो मगहूतभ पर करने का तय चकया। तदनगसार
1925 के दशहरे के चदन नपने घर में पन्द्रह-णश्रस लोगों को इकट्ठा करके उन्होंने सणसे कहा चक ‘‘हम
लोग गी से सांघ शग कर रहे है ।’’ प्रारम्ो कश्र इस णैुक में ीश्र ोाऊीश्र कावरे , ीश्र नण्णा सोहोनश्र,
ीश्र चवश्वनान्राव केळकर, ीश्र णाळाीश्र हग द्दार, ीश्र णापूराव ोेदश्र गचद सज्जन उपन्स्न्त न्े। सांघ के
ीश्रगणेश कश्र घोर्णा करने के उपरान्त डॉक्टरीश्र ने सणके सामने प्रश्न रखा चक ‘‘सांघ में प्रत्यक्ष क्या
कायभक्रम चकये ीायें चीससे चक हम कह सकें चक सांघ शग हो गया’’ तन्ा इस सम्णन्ि में उनके चविार
सगने। णैुक के नन्त में डॉक्टरीश्र ने नत्यन्त प्रोावश्र ांग से यह स्पष्टश्रकरण चकया चक सांघ शग करने
के नन्भ हैं चक हम शारश्रचरक, सैचनक तन्ा राीकश्रय, तश्रनों प्रकार कश्र चशक्षा लें तन्ा दूसरों को दे ना
प्रारम्ो करें ।

सामान्यतः ीण कोई नयश्र सांस्न्ा णनतश्र है तो पहले हश्र चदन उसका नाम, रसश्रद, णहश्र, चनचि, सांचविान,
कायालय गचद का चविार एवां गयोीन तन्ा नखणारों में उसका णड़े ुाट के सान् गाीा-णाीा चकया
ीाता है । चकन्तग सांघ के गरम्ो में इन सण णातों का नोाव हश्र न्ा। उस चवीयादशमश्र के चदन तो सांघ
कश्र दृचष्ट से दो हश्र णातें णश्री प से चनचित हग ई न्ीं। पहलश्र, चहन्दू राष्ट्र के पगनरुत्न्ान कश्र डॉक्टरीश्र के
मन कश्र महत्त्वाकाांक्षा, तन्ा दूसरश्र, उसको साकार करने के चलए समर्तपत चकया हग ग डॉक्टरीश्र का
िाचरत्र्यपूण,भ ध्येयचनष्ठ तन्ा सेवामय ीश्रवन।

चहन्दू राष्ट्र को सांघचटत करने का प्रारम्ो डॉक्टरीश्र ने नपनश्र चवीचयष्ट्णग मनोोावना के ननग प
‘सश्रमोल्लांघन’ के शगो मगहूतभ पर चकया। व्यचिगत ीश्रवन से समचष्ट-ीश्रवन कश्र ओर, दासता से स्वातांत्र्य
कश्र ओर, चनद्रा से ीाग्रचत कश्र ओर, दै न्य से स्वगभतगल्य सगख कश्र ओर, तन्ा दगणभलता से चदन्ग्वीय
सामर्थयभ कश्र ओर सम्पूणभ चहन्दू समाी को ले ीाने वाला सश्रमोल्लांघन डॉक्टरीश्र ने उसश्र चदन प्रारम्ो
चकया। प्रोग रामिन्द्रीश्र ने िौदह लोकों के ऊपर राज्य करनेवाले तन्ा दे वताओां को ोश्र दास णनानेवाले
रावण को इसश्र चदन रामणाण का प्रताप चदखाया न्ा, तन्ा चवराट कश्र गौओां को ोगाकर ले ीानेवाले
कौरवों को पराोूत करने के चलए कारणश्रोूत गाण्डश्रव का टांकार ोश्र नीगन
भ ने इसश्र चदन सगनाया न्ा।
दगष्टों को ोयकन्म्पत करनेवाले णलवान् चहन्दू राष्ट्र को ीाग्रत् करने के चलए इस प्रकार चवीय का
स्मरण करा दे नेवालश्र चवीयादशमश्र के नचतचरि और कौनसा मगहूतभ सयगचिक हो सकता न्ा ?

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डॉक्टरीश्र के सम्पकभ में ीो तरुण एवां णाल गये न्े उनका चीस णहश्र में नाम चलखा गया न्ा उसमें
उनका नाम, गयग, चशक्षा तन्ा चकस व्यायामशाला में ीाते हैं , यह सण ीानकारश्र चलखश्र हग ई चमलतश्र
है । प्रारम्ो में सांघ के गी के समान प्रचतचदन के कायभक्रम नहीं न्े। सांघ के सदस्य से इतनश्र हश्र नपेक्षा
न्श्र चक वह चकसश्र ोश्र व्यायामशाला में ीाकर पयाप्त व्यायाम करे । रचववार को प्रातः पााँि णीे सणको
इतवार दरवाीा प्रान्चमक शाला के मैदान में एकचत्रत चकया ीाता न्ा। इस एकत्रश्रकरण के नवसर पर
कगछ चदनों पिात् ीश्र मातभण्डराव ीोग कश्र दे खरे ख में सैचनक चशक्षण ोश्र प्रारम्ो कर चदया गया न्ा।
प्रारम्ो में कगछ महश्रनों रचववार तन्ा गगरुवार को राीकश्रय वगभ चणला नागा होते न्े। इन राीकश्रय वगों
का उद्देश्य सांघ के सोासदों )उस समय यहश्र शब्द ढ न्ा) को दे श कश्र वतभमान पचरन्स्न्चत तन्ा नपने
कतभव्य का ज्ञान दे ना तन्ा सांघटन मीणूत करने के चलए कैसे प्रयत्न चकये ीायें, इस चवर्य में मागभदशभन
करना न्ा। ये वगभ ‘ननान् चवद्यान्ी गृह’ में एवां ीश्र णडकस, ीश्र टालाटगले, ीश्र मातभण्डराव ीोग तन्ा
डॉक्टरीश्र के घर पर नदल-णदलकर होते न्े। उनमें डॉक्टरीश्र के ोार्ण तो होते हश्र न्े पर उनके सान्
तरुणों में से ीश्र णाळाीश्र हग द्दार, ीश्र दादा परमान्भ, ीश्र ोैयाीश्र दाणश्र गचद को ोश्र णोलने के चलए
प्रोत्साहन चदया ीाता न्ा। ीश्र चवश्वनान्राव केळकर के ोार्ण ोश्र इन वगों में होते न्े। इन राीकश्रय
वगों के समान कगछ उत्सवों के चनचमत्त ोश्र ोार्ण होते न्े। ये राीकश्रय वगभ हश्र गगे िलकर ‘णौचद्धक
वगभ’ नाम सन् 1927 के णाद प्रिचलत हग ग चदखता है ।

सांघ के तरुण तन्ा णाल प्रमगख प से ीश्र नण्णा खोत कश्र ‘नागपगर व्यायामशाला’ में ीाते न्े। इसका
कारण यह हो सकता है चक प्रन्म तो वहााँ व्यायामशाला कश्र दृचष्ट से सािन-सामग्रश्र उत्तम न्श्र तन्ा दूसरे
डॉक्टरीश्र एवां एवां नण्णा खोत के णश्रि णड़श्र घचनष्ठता न्श्र। डॉक्टरीश्र के सांघटन के सदस्य उस
व्यायामशाला में दण्ड, णैुक, मलखम्ो, एकदण्डश्र)Single-bar), दगदण्डश्र)Double-bar) गचद
के कायभक्रम करते न्े। उस समय डॉक्टरीश्र स्वयां दे खरे ख के चलए उपन्स्न्त रहते न्े। 1925 के पहले
व्यायाशालाओां में स्कूलश्र चवद्यान्ी तन्ा व्यवसायश्र लोग हश्र ीाते न्े। सरकार कश्र वक्र दृचष्ट के ोय से
कॉलेी के तरुण चवद्यान्ी वहााँ चदखायश्र नहीं दे ते न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र के प्रयत्नों से ऐसे तरुणों कश्र सांख्या
णढने लगश्र तन्ा कगछ चदनों में उस व्यायामशाला के चशक्षक ीश्र दत्तोपन्त मारुलकर तन्ा ीश्र नण्णा
सोहोनश्र को इतने लोगों कश्र ओर ध्यान दे ना कचुन होने लगा।

व्यायाम के नचतचरि ोश्र ननेक णातें डॉक्टरीश्र के सम्मगख न्ीं। इसचलए सांघ में गनेवाले तरुणों को
स्वतांत्र प से चशक्षा दे ने का चविार शग हग ग। इसश्र समय राीा लक्ष्मणराव ोोंसले ने नपने पगत्र के
यज्ञोपवश्रत सांस्कार के उपलक्ष्य में ीो दान चदया उससे ीश्र दत्तोपन्त मारुलकर ने नण्णा खोत कश्र
व्यायामशाला से नलग ‘महाराष्ट्र व्यायामशाला’ तन्ा ‘प्रताप नखाड़ा’ स्वतांत्र प से प्रारम्ो चकया।
इन नवश्रन व्यायामशालाओां को िन्दा दे नेवालों में डॉक्टरीश्र का नाम सणसे ऊपर चलखा हग ग चमलता
है । इस समय नखाड़े और सांघ, इस प्रकार दो स्व प सांघटन के चदखते हैं । नण इन नये नखाड़ो में

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सांघ के घटक ीाने लगे। परन्तग न्ोड़े हश्र चदनों में ‘महाराष्ट्र व्यायामशाला’ तन्ा ‘नागपगर व्यायामशाला’
के णश्रि प्रचतद्वन्न्द्वता तन्ा कखिाव शग हो गया। ऐसा लगा चक चक उनके णश्रि के झगड़े में सांघ व्यन्भ
हश्र फाँस ीायेगा। तण डॉक्टरीश्र ने सांघ को नलग ले ीाने का चनिय चकया। तदनगसार ‘इतवार दरवाीा
प्रान्चमक शाला’ के मैदान में ीश्र नण्णा सोहानश्र ने स्वतांत्र प से सांघ के लाुश्र के कायभक्रम शग कर
चदये। प्रारम्ो में व्यायामशाला तन्ा सांघ के नलग-नलग कायभक्रम होते न्े तन्ा नन्त में प्रान्भना के
चलए सण इकट्ठे ग ीाते न्े।

सांघ का णाह्य प नखाड़े ीैसा हश्र न्ा। 1926 कश्र नप्रैल में रामनवमश्र के मेले के नवसर पर सोश्र
सांघ के सदस्यों को रामटेक ले ीाने का चविार डॉक्टरीश्र के मन में गया। रामटे क में यात्रा के समय
ोारश्र ोश्रड़ रहतश्र न्श्र तन्ा ननेक याचत्रयों को नव्यवस्न्ा के कारण िोंा-मगोंश्र का कष्ट तो सहना हश्र
पड़ता न्ा उन्हें दशभन ोश्र ुश्रक तरह से नहीं चमल पाते न्े। डॉक्टरीश्र ने सोिा चक यह नव्यवस्न्ा सांघ
के ननगशाचसत तरुणों के णल पर न्ोड़श्र-णहग त दूर कश्र ीा सकश्र तो सांघटन के णल तन्ा उसकश्र ीेष्ठता
कश्र एक छाप लोगों के मन पर लग ीायेगश्र। सान् हश्र इस चनचमत्त से सांघ के सदस्यों का गत्मचवश्वास
तन्ा सांघचनष्ठा ोश्र कगछ नांशों में णढ ीायेगश्र। इस चद्वचवि हे तग से वे सोश्र सदस्यों को रामटे क ले ीाने
के चलए प्रयत्नशश्रल हग ए। ‘ननान् चवद्यान्ी गृह’ के चवद्यान्ी प्रचतवर्भ रामटे क ीाते न्े। वे ीाते समय
नपने सान् ‘ोगवाध्वी’ ले ीाते न्े। उसश्र समय यचद नपने लोगों को ोश्र वहााँ ले ीाना है तो उनका
नलग नाम तन्ा नलग वेश रहना िाचहए चीससे उनका पृन्क् प्रोाव व पचरणाम लोगों को चदख सके,
यह चविार उस समय डॉक्टरीश्र के मन में गया। उन्होंने सांघ का नाम चनचित करने के चवर्य में नपने
सहकाचरयों के सान् णातिश्रत प्रारम्ो कश्र तन्ा चदनाांक 17 नप्रैल को नपने घर इस उद्देश्य से णैुक
णगलायश्र। इस णैुक में सांघ के नाम के सम्णन्ि में णगहत-से सगझाव गये तन्ा प्रत्येक ने नपने सगझाव
के समन्भन में यगचियााँ ोश्र दीं। उस काल के नागपगर के कायभवाह ने ीो वृत्त चलखा हैं उसमें वे कहते हैं
‘‘सोा में छब्णश्रस सदस्य उपन्स्न्त न्े। इस सोा में सांघ के चलए ननेक नाम सगझाये गये। उन पर वाद-
चववाद होकर तश्रन मत के चनचमत्त सोा के सम्मगख रखे गये।’’ ये तश्रन नाम न्े )1) राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक
सांघ, (2) ीचरपटका मण्डल, (3) ोारतोद्धारक मण्डल। इनमें ‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ’ नाम स्वश्रकृत
हग ग।

प्रा. पाां. कृ. सावळापूरकर ोश्र इस णैुक में उपन्स्न्त न्े। वे चलखते हैं ‘‘...........डॉक्टरीश्र ने सांघ का
नाम पहले हश्र नपने मन में चनचित कर रखा न्ा। तन्ाचप हम ोश्र कगछ नपने मन से कर सकते हैं यह
गत्मचवश्वास तरुणों के मन में ीगाने के चलए डॉक्टरीश्र ने ोावश्र स्वयांसेवकों को नाम सगझाने के चलए
कहा। कॉलेी में उसश्र वर्भ प्रवेश करनेवाले एक चवद्यान्ी ने )गी वे चडन्स्रक्ट ीी हैं ) ‘ीचरपटका
मण्डल’ नाम सगझाया न्ा उस पर णड़े उत्साह से ोार्ण चकया। नन्यों ने ोश्र समय पर ीो सूझ गया सो

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नाम णताया। यह सण होने के णाद ‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ’ नाम हश्र क्यों ुश्रक है , इस पर ोार्ण करने
कश्र डॉक्टरीश्र ने मगझे गज्ञा दश्र। मैं लगोग गिा घण्टा णोला, और नच्छा णोला। मेरे ोार्ण पर
डॉक्टरीश्र खूण खगश हग ए तन्ा उन्होंने सणके सामने मगझे शाणाशश्र दश्र। डॉक्टरीश्र के चविार सगनकर मेरे
ऊपर ीो सांस्कार हग ए उनके कारण हश्र मैं वह ोार्ण कर सका यह तो स्पष्ट हश्र है , नन्ात् यह ीेय
उनका हश्र है ।’’

‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ’ नाम नत्यन्त चविारपूवभक चनचित चकया गया न्ा। ‘चहन्दगस्न्ान इसमें
रहनेवाले सण लोगों का राष्ट्र है ’ यह गलतफहमश्र उस समय चहन्दू नेताओां के मन में इतनश्र गहरश्र णैुश्र
न्श्र चक उन्हें चहन्दू-सांघटन का काम राष्ट्रश्रय लगना सम्ोव हश्र नहीं न्ा। नतः डॉक्टरीश्र ने यह शब्द
गलत एवां गलत स्न्ान पर प्रयगि चकया है , यह पराये शतु तन्ा स्वकश्रय चमत्र दोनों हश्र णोलने लगे।
राष्ट्रश्रयत्व कश्र चवकृत कल्पना लेकर िलनेवाले लोगों ने सांघ के ‘राष्ट्रश्रय’ चवश्लेर्ण का चवरोि चकया
होगा चकन्तग डॉक्टरीश्र का यह दृढ चविार न्ा चक चहन्दगस्न्ान में चहन्दू समाी कश्र हर णात, हर सांस्न्ा
तन्ा गन्दोलन राष्ट्रश्रय है तन्ा वहश्र सहश्र नन्ों में पूरश्र-पूरश्र राष्ट्रश्रय हो सकतश्र है । परस्पर-चवरोिश्र
परम्परा, सांस्कृचत तन्ा ोावना वाले लोगों कश्र खींितान कर णााँिश्र हग ई गुरश्र राष्ट्र नहीं होतश्र, णन्ल्क
िमभ, सांस्कृचत, दे श, ोार्ा तन्ा इचतहास के सािम्यभ से ‘हम सण एक हैं ’ यह ज्ञान तन्ा ‘‘एक रहें ग’े
इसका चनिय होकर ीो नपूवभ गत्मश्रयता तन्ा तन्मयता हृदय से उत्पन्न होतश्र है वहश्र राष्ट्र का नचिष्ठान
है , इस सत्य को वे नच्छश्र तरह से ीानते न्े। परायो ने चहन्दगओां के गत्मचवश्वास पर गघात करने के
चलए सांघ को साम्प्रदाचयक, राष्ट्र चवरोिश्र तन्ा सांकगचित कह तो इसमें गियभ करने लायक कोई णात
नहीं। कारण, चहन्दू समाी के स्वत्व-ीागरण का नन्भ है उनका मरण। इसचलए चहन्दू समाी के मन
में गत्मश्रयता कश्र नन्ात् राष्ट्रश्रयता कश्र ीाग्रचत न होने पाये इस उद्देश्य को सम्मगख रख ‘चहन्दगस्न्ान
यहााँ रहनेवाले सणका है ’ इस प्रकार का स्वान्ी प्रिार उन्होंने ीोर से शग कर रखा न्ा। यह प्रिार
इतना सफल हग ग न्ा चक गाँखों दे खते चहन्दू समाी कश्र परकश्रयों द्वारा योीनाणद्ध प से िारों ओर
से मारपश्रट होते हग ए ोश्र उसका प्रचतकार करने के चलए सांघचटत होना सांकगचित लगने लगा न्ा तन्ा
उलटे गक्रमणकाचरयों का गकलगन करने कश्र गत्मघातकश्र वृचत्त दगदैव से ीेयस्कर और सहश्र समझश्र
ीाने लगश्र। डॉक्टरीश्र को समाी का यह दयनश्रय दृश्य स्पष्ट चदखता न्ा। नतः लोगों कश्र तात्काचलक
चनन्दा-स्तगचत कश्र चिन्ता न करते हग ए ीो सत्य न्ा, इचतहास-सम्मत न्ा, राष्ट्र के चलए चहतकर न्ा, परन्तग
करने में कचुन न्ा, वहश्र सांघकायभ उन्होंने चनोभयता से प्रारम्ो चकया। छोटे णरे को घगट्टश्र चपलाते समय
वह हान्-पैर पश्रटकर खूण ीोरों से रोता है । गत्मचवस्मृत चहन्दू समाी कश्र उस समय कश्र न्स्न्चत ोश्र
इसश्र प्रकार कश्र न्श्र। चकन्तग णरे के गक्रोश करने पर ोश्र मााँ चीस प्रेम और गग्रह के सान् णरे को

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घगट्टश्र चपलातश्र है वहश्र लगन और गग्रहश्र वृचत्त ‘चहन्दगत्व हश्र राष्ट्रश्रयत्व है ’ यह गरोग्यप्रद एवां चहतकर
और्चि चहन्दू समाी के गले उतारने वाले डॉक्टरीश्र के हृदय में ओतप्रोत न्श्र।

राष्ट्रश्रयत्व कश्र यह चदशा दे ने के चलए डॉक्टरीश्र ने सांघ कश्र स्न्ापना कश्र न्श्र। उस समय कश्र न्स्न्चत उन्हें
कैसश्र लगतश्र न्श्र यह दे खने लायक है । नपनश्र स्मरचणका में वे चलखते हैं ‘‘..........महात्मा गाांिश्र के
नसहयोग-गन्दोलन के समय का राष्ट्र को िढा हग ग ीोश ुण्डा हो गया न्ा तन्ा उस गन्दोलन के
कारण राष्ट्र में उत्पन्न होनेवाले दोर् चसर ऊपर चनकालकर घूमने लगे न्े। राष्ट्रश्रय गन्दोलन का ीोर
कम होकर गपस में द्वे र् और मत्सर स्पष्ट दृचष्टगोिर होते न्े। व्यचि-व्यचि के णश्रि झगड़े पराकाष्ठा
को पहग ाँ िते चदखायश्र दे ते न्े। ीाचत-ीाचत के णश्रि झगड़े शग न्े, ब्राह्मणेतरवाद ताण्डव नृत्य कर रहा
न्ा। चकसश्र ोश्र सांस्न्ा में एकसूत्रता नहीं चदखतश्र न्श्र। नसहयोग-गन्दोलन में दूि पश्रकर पगष्ट हग ए
यवन पश्र सपभ नफनश्र चवर्ोरश्र फगाँफकारश्र सवभत्र छोड़कर राष्ट्र में कलह उत्पन्न कर रहे न्े।’’ इस सम्पूणभ
ननावस्न्ा के णाह्य प चवचवि चदखे तो ोश्र उनका मूल कारण चहन्दगओां कश्र गत्मचवस्मृचत एवां
नसांघचटतता है , यह निूक चनदान डॉक्टरीश्र ने कर चलया न्ा तन्ा इन णाह्य लक्षणों का चविार न
करते हग ए मूल रोग को हश्र समाप्त करने कश्र दृचष्ट से सांघटन कश्र चिचकत्सा शग कश्र न्श्र। उन्हें चवश्वास न्ा
चक मूल रोग को यचद ीड़ सचहत खोदकर चनकाल चदया गया तो उसके णाह्य लक्षण नपने गप क्रमशः
नष्ट हो ीायेंग।े कहा ीा सकता है चक चदल्लश्र के मगगल तख्त के मूल पर हश्र कगुाराघात करनेवाले
णाीश्रराव कश्र दृचष्ट हश्र डॉक्टरीश्र के इन प्रयत्नों के पश्रछे न्श्र।

सांस्न्ा का नामकरण हो ीाने के उपरान्त सोश्र घटकों को चवचशष्ट वेश णनवाने का डॉक्टरीश्र ने गग्रह
चकया तन्ा नचिकाांश लोग रामनवमश्र के मेले पर रामटे क में उसश्र वेश में उपन्स्न्त रहे । प्रारम्ो में सांघ
ने उसश्र वेश को स्वश्रकार चकया ीो चक काांग्रेस नचिवेशन के समय डॉ. पराांीपे तन्ा डॉ. हे डगेवार के
नेतृत्व में णनाये गये ‘ोारत सेवक समाी’ के स्वयांसेवकों का न्ा। उसमें खाकश्र चनकर, खाकश्र कमश्री
तन्ा दो णटनों कश्र खाकश्र टोपश्र का नन्तोाव होता न्ा। खाकश्र चनकर कश्र लम्णाई उस समय घगटने तक
होतश्र न्श्र। चदनाांक 19 नप्रैल को राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ, ननान् चवद्यान्ी गृह तन्ा णीरां ग सांघ कश्र
एक सांयगि णैुक हग ई तन्ा उसमें रामटे क ीाने कश्र योीना णनायश्र गयश्र।

रामटे क के उस मेले में रामनवमश्र के एक चदन पहले हश्र सण स्वयांसेवक वहााँ पहग ाँ ि गये। प्रातःकाल
गु णीे व्यवस्न्ा के चलए टेकरश्र पर ीाते हग ए वे समन्भ रामदास के ‘मनािे श्लोक’ गाते तन्ा सांिलन
करते हग ए गये। यह सण लोगों के चलए एक नयश्र िश्री न्श्र, इसचलए चदन-ोर वहााँ कश्र ीनता में सांघ के
स्वयांसेवक तन्ा उनके कायभक्रम ििा के चवर्य णन गये। हीारों दशभनार्तन्यों को ोश्रड़ उमड़ने पर
पगचलस वाले उनकश्र कोई व्यवस्न्ा नहीं कर पाते न्े। कारण, उनकश्र सांख्या और कतभव्यचनष्ठा दोनों हश्र
कम पड़ते न्े। सांघ के स्वयांसेवकों तन्ा उनके सहकाचरयों ने प्रवेश द्वार के पास खड़े रहकर लोगों को

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प्रान्भनापूवभक लाइन में खड़ा कर चदया तन्ा णारश्र-णारश्र से दशभनों के चलए ीाने कश्र व्यवस्न्ा कर दश्र।
उन्होंने स्न्ान-स्न्ान पर पानश्र ोरकर याचत्रयों के चलए प्याऊ कश्र ोश्र व्यवस्न्ा कश्र। इस समय एक और
णात ध्यान में गयश्र चक ोावगक चहन्दगओां के नज्ञान का लाो उुाने के दृचष्ट से मगसलमान फकश्रर
नगारखाने तक छोटश्र-छोटश्र कणरें णनाकर पश्ररों के नाम पर ोोले-ोाले याचत्रयों से पैसा ऐांुते रहते न्े।
ोोले-ोाले लोगों को इन झूुे पश्ररों के गक्रमण का कगछ ोश्र ज्ञान नहीं न्ा तन्ा चीनको वह खटकता
न्ा उन्हें उसको रोकने का साहस नहीं होता न्ा। डॉक्टरीश्र ने नपने सहकारश्र तन्ा रामटे क के नपने
चमत्रों कश्र सहायता से इन पश्ररों का उराटन कर चदया। डॉक्टरीश्र िार्तमक न्े, कट्टर चहन्दू न्े तन्ा
सचहष्ट्णगता ोश्र उनके स्वोाव में न्श्र। परन्तग पश्ररों को नाम पर चहन्दगओां पर गक्रमण करनेवाले
मगसलमानों कश्र इर प्रकार गरश्रणों को लूटने कश्र िाल वे सहन नहीं कर सकते न्े। मगसलमानों के समान
हश्र, ोश्रड़ में से दशभन कराने के सहारे पैसा कमानेवाले पण्डों को ोश्र डॉक्टरीश्र द्वारा लाइन में खड़ा
करके णारश्र-णारश्र से दशभनों कश्र व्यवस्न्ा करने के कारण नगकसान हो गया। ोगवान् से नण चसफाचरश
करने कश्र गगी
ां ाइश नहीं णिश्र तन्ा इस प्रकार कगछ हान् गरम करने का ीो मौका चमल ीाता न्ा वह ोश्र
ीाता रहा। नतः वे ोश्र डॉक्टरीश्र से मन-हश्र-मन नाराी न्े। चकन्तग िमभक्षेत्र में निमभ को चमटाने में
लणार और ुगों को क्या लगेगा इसकश्र उन्होंने कोश्र चिन्ता नहीं कश्र। पौशाला के प में लोगों को
पानश्र चपलाकर उनकश्र पश्रु पर चफरनेवाला डॉक्टरीश्र का ममता-ोरा हान् पशगता तन्ा नश्रिता को दे खते
हश्र वरमुमगचष्ट णन ीाता न्ा। उनका यहश्र स्वोाव न्ा। प्रातः गु से सायां पााँि णीे तक स्वयांसेवकों ने
वहााँ काम चकया। चफर राचत्र को ोोीन के उपरान्त चवीाम चकया। सांघ के प्रारम्ो से हश्र हान् में चलया
गया वह कायभक्रम णहग त वर्ो तक िलता रहा तन्ा नचिकाचिक सांख्या में स्वयांसेवक वहााँ ीाते रहे ।

रामटे क का कायभक्रम समाप्त होने के णाद सांघ में ीश्र सोहोनश्र के नेतृत्व में लाुश्र-चशक्षण का कायभ पहले
के समान हश्र गरम्ो हो गया। इस गकर्भण के कारण नये-नये तरुण सांघ में गने लगे। ीश्र ननन्त
गणेश उपाख्य नण्णा सोहोनश्र का कद ऊाँिा तन्ा वणभ गौर न्ा। उनके शरश्रर में णल और फगती दोनों
हश्र न्े। वे लाुश्र, तलवार, ोाला तन्ा छग रश्र िलाने में णड़े चनपगण न्े। उनकश्र कगशलता मन को सही
गकृष्ट करनेवालश्र न्श्र। सांख्या के इस प्रकार णढने पर डॉक्टरीश्र ने नये -नये घटकों को ोश्र िश्ररे-िश्ररे
सांघ कश्र चविारिारा से नवगत कराना प्रारम्ो चकया। िाहे चीस तरुण को एकदम सांघ में प्रवेश नहीं
चमलता न्ा। यचद कोई तरुण सांघ में प्रवेश लेना िाहता न्ा तो सांघ को दो पगराने स्वयांसेवको यह
प्रमाचणत करना पड़ता न्ा चक उनका उससे नच्छा सम्णन्ि है । तण डॉक्टरीश्र दो-तश्रन णार उसको
णगलाकर उससे णातिश्रत करते न्े। यह णातिश्रत णड़े सही ोाव से तन्ा गीादश्र के सान् होतश्र न्श्र।
परन्तग डॉक्टरीश्र का ध्यान गनेवाले स्वांयसेवक के स्वोाव, वृचत्त तन्ा गगणों के परखने कश्र ओर रहता
न्ा। वे नाम, गााँव, उम्र, चशक्षा, पालक, चमत्र, सायांकाल के कायभक्रम गचद णातों कश्र पूछताछ करते
न्े। णहग त-से गनेवाले तरुणों के घरवालों में ननेक डॉक्टरीश्र के पचरचित हश्र चनकल गते न्े। इस
प्रकार कश्र प्रान्चमक पृच्छा के णाद डॉक्टरीश्र उससे चोन्न-चोन्न प्रकार के प्रश्न पूछते न्े। वे इन प्रश्नों के

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द्वारा दे खते न्े चक व्यचि कश्र गहराई तन्ा समझदारश्र चकतनश्र है । ‘‘यहााँ से वापस ीाते समय यचद
पगचलसवाले ने पूछा चक ‘तू डॉक्टर हे डगेवार के के यहााँ गया न्ा तन्ा वहााँ क्या णातिश्रत हग ई’ तो क्या
उत्तर दे गा’’, ‘‘सांघ में क्यों गना िाहते हो’’, ‘‘कल सांघ में मतोेद हो गया तो क्या करोगे’’ गचद
ननेक प्रश्न रहते न्े। इनके वह क्या उत्तर दे ता है इसका चविार कर उसे दो-िार चदन के णाद चफर गने
को कहकर चणदा करते न्े। इस ोेंट में गनेवाले के मनोोाव को समझने के सान्-सान् नपने प्रश्नों
के द्वारा उसके मन में समाी कश्र न्स्न्चत तन्ा उसके प्रचत नपने कतभव्य के सम्णन्ि में चविारों को
िालना चमल ीाये, यह ोश्र उनका प्रयत्न रहता न्ा। ‘‘लाुश्र सश्रखने कश्र इच्छा क्यों हो रहश्र है ’’, ‘‘नकेले
लाुश्र सश्रखने से क्या होगा’’, ‘‘तगम नपने सान् और चकतने तरुण ला सकते हो’’ गचद प्रश्न न्े ीो
व्यचि के चविारों को शान्त नहीं णैुने दे सकते न्े। यचद कोई समझदार तरुण चमल गया तो चफर उनके
प्रश्न ीरा दूसरे ांग के रहते न्े। उससे वे पूछते ‘‘स्वराज्य के नन्भ क्या हैं , स्वराज्य िाचहए यह कहनेवाले
चकतने और उसके चलए प्रयत्न करनेवाले चकतने ?’’ यह चहसाण पूछकर वे उसके ध्यान में ला दे ते न्े
नाँगगचलयों पर चगनने लायक व्यचि ोश्र स्वराज्य के णारे में प्रयत्न नहीं करते हैं । डॉक्टरीश्र का व्यचित्व
कगछ ऐसा न्ा चक एक णार उनसे ीो चमल गया चफर उसके पैर नपने गप उनके घर कश्र ओर हश्र णढ
ीाते न्े। उनके शब्द ओु से नहीं, हृदय से चनकलते न्े। फूल कश्र सगगन्न्ि ीैसे महक ीातश्र है वैसश्र हश्र
डॉक्टरीश्र के त्यागपूणभ एवां ध्येयचनष्ठ ीश्रवन का स्वर उनकश्र कृचत और उचि से स्वोावतः हश्र प्रकट
होता न्ा। उनका प्रेम ऊपर-ऊपर का तन्ा औपिाचरक नहीं न्ा णन्ल्क उनकश्र उत्कट एवां ननन्य
दे शोचि का रां ग उनसे चमलने गनेवाले पर िढे चणना नहीं रहता न्ा। उनसे चमलकर वापस ीानेवाले
को वे ीश्रने तक पहग ाँ िाने गते न्े तन्ा उसके कन्िे पर हान् रखकर नपने प्रसन्न हास्य कश्र उसके ऊपर
गनन्दमयश्र वर्ा करते हग ए पूछते न्े चक ‘‘चफर कण गओगे ?’’ इस प्रश्न से घर कश्र ओर मगड़े हग ए पैर
ोश्र कगछ दे र रुक गये हैं यहश्र ननगोव होता न्ा।

नये-नये स्वयांसेवकों कश्र ोती के कारण ‘इतवार दरवाीा प्रान्चमक शाला’ का गाँगन छोटा पड़ने
लगा नतः नये स्न्ान कश्र खोी प्रारम्ो हग ई। डॉ. खानखोीे, ीश्र ोाऊीश्र कावरे तन्ा डॉक्टरीश्र ने
1908-9 से लगाकर चीस मोचहते के णाड़े का नपने क्रान्न्तकारश्र गगप्त कामों के चलए उपयोग चकया न्ा
उस ओर उनकश्र दृचष्ट गयश्र। चकन्तग 1908 कश्र तगलना में 1926 में णाड़े में णहग त टूट-फूट हो िगकश्र न्श्र।
डॉ. खानखोीे ने 1908 में णाड़े का वणभन इन शब्दों में चकया है ‘‘यह एक छोटा सा चकला हश्र न्ा। उस
समय वृद्ध साळू णाई नकेलश्र सरदारश्र ुाट-णाट के सान् उसमें रहतश्र न्ीं। उनमें पगराने मराुों का
दे शाचोमान णहग त मात्रा में ीाग्रत् न्ा। णाड़े के चवशाल पत्न्रवाले दरवाीे पर एक चसपाहश्र रात-चदन
पहरा दे ता रहता न्ा। चणना ननगमचत के कोई नन्दर नहीं ीा सकता न्ा। णाड़ा दगमांचीला न्ा तन्ा नन्दर
णड़े-णड़े दालान न्े।’’ पर 1926 में इस णाड़े कश्र कगछ दश्रवारें तन्ा नींव हश्र णिश्र न्श्र। इिर-उिर चगरश्र
हग ई चदवारों के ेर के नश्रिे उसका प्रािश्रन वैोव िूल में चमल कराह रहा न्ा। साळू णाई के णाद णाड़े का

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कोई वाचरस नहीं णिा, नतः उसकश्र दगदभशा होना स्वाोाचवक हश्र न्ा। इस खण्डहर का उपयोग डॉ.
पराांीपे तन्ा डॉ. हे डगेवार ने 1920 में काांग्रेस-नचिवेशन के समय ोश्र चकया न्ा। चकन्तग उस समय
ीैसे-तैसे ीो ोाग काम में ग सका न्ा वह ोश्र नण ह गया न्ा। चफर ोश्र उस स्न्ान कश्र साफ-सफाई
कराने तन्ा वहााँ सांघस्न्ान णनाने का चविार हग ग। उस समय ीश्र ोाऊीश्र कावरे ने नपने मीाचकया
स्वोाव के ननगसार कगह चक ‘‘ीश्रमन्त साळू णाई के णाद णाड़ा ोूतों को चमला न्ा तन्ा उनसे गीकल
मगझे उत्तराचिकार में चमला है । नतः गप ीैसा िाहें वैसा उसका उपयोग कश्रचीए।’’

सांघस्न्ान के चलए ीगह चनचित करने के उपरान्त गीकल खड़े पत्न्रवाले दरवाीे के पूवभ कश्र ओर
कगछ ोाग साफ चकया गया। यह काम सांघ लगने के पूवभ तन्ा छगट्टश्र के चदन नन्य समय ोश्र होता न्ा।
कगदाल, फावड़ा तन्ा तसला लेकर डॉक्टरीश्र स्वयां नन्य तरुण स्वयांसेवकों के सान् चगरश्र पड़श्र ोश्रतों
के मलणे को साफ करने में ीगटते न्े। ऊाँट पर णैुकर ोेड़ िराने कश्र पद्धचत का उन्होंने णाहर ोलश्र
ोााँचत ननगोव चकया न्ा तन्ा उन्हें उससे णड़श्र घृणा तन्ा नरुचि हो गयश्र न्श्र। उनकश्र तो िारणा न्श्र चक
नपने को णड़ा समझकर दूसरों को गदे श मात्र न दे ते हग ए नेता को ोश्र सणके सान् चमलकर काम
करना िाचहए। खरे नेतृत्व का तन्ा खरे स्वयांसेवक का यह प्रन्म पाु डॉक्टरीश्र ने मोचहते णाड़े कश्र
िूल में नपने ीमसश्रकरों के द्वारा चदया न्ा। सांघ के ये प्रन्म ‘घूल-नक्षर’ न्े ीो गी ोश्र स्वयांसेवकों
को प्रेरणा दे ते हैं , तन्ा ीो समाी में यन्ान्भ प से ‘नक्षर’ होकर रहें ग।े

सांघ में चनयचमत प से लाुश्र कश्र चशक्षा चदनाांक 28 मई 1926 से गरम्ो हग ई। उसके चलए िश्ररे-िश्ररे
नयश्र गज्ञाएाँ णनाने कश्र गवश्यकता हग ई। ीश्र नण्णा सोहोनश्र ने यह काम णड़श्र सफलता के सान् कर
चदखाया। नांग्रेीश्र कश्र गज्ञाएाँ सामान्यतः प्रिचलत होते हग ए ोश्र उन्हें स्वश्रकार न करते हग ए गग्रहपूवभक
स्वोार्ा में गज्ञाएाँ णनायश्र गयीं। इनके णनाने में मराुश्र, चहन्दश्र तन्ा सांस्कृत सोश्र ोार्ाओां का गिार
चलया गया न्ा। चीस समय घर और णाहर िारों ओर नांग्रेीश्र का हश्र णोलणाला न्ा तन्ा उस ोार्ा का
उपयोग करने में कगछ चवशेर् गौरव का ननगोव होता न्ा उस समय स्वोार्ाओां में गज्ञाएाँ चनमाण
करने का गग्रह एवां प्रयत्न कगछ लोगों को नचतरे कश्र लगा हो तो कोई गियभ नहीं। डॉक्टरीश्र का
स्वोाव व्यवहार कश्र मयादाओां को लाघाँकर कोश्र शेखचिल्लश्र के समान ‘नचत’ या कल्पना-ीगत् में
चविरने का नहीं न्ा। नतः शाखा के कायभक्रम में ‘साविान’, ‘दक्ष’, ‘गराम’ गचद गज्ञाओां का
प्रयोग करते हग ए ोश्र सैचनक चशक्षण के चलए गपद्धमभ के नाते उन्हें नांग्री
े श्र गज्ञाओां का प्रयोग करने
में ोश्र कोई चझझक नहीं हग ई। हवा दे खकर नौका के पाल को उस चदशा में मोड़ने का कौशल्य उनके
पास न्ा, चकन्तग गन्तव्य का चनिारण हवा के रुख के गिार पर नहीं चकया ीा सकता यह ोश्र वे ोलश्र-
ोााँचत ीानते न्े।

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इन शारश्रचरक कायभक्रमों के नन्त में प्रान्भना शग कश्र गयश्र। उसमें एक मराुश्र तन्ा एक चहन्दश्र का पद
न्ा। मराुश्र-पद कहााँ से चलया गया इसका पता नहीं िलता, परन्तग णताते हैं चक उन चदनों प्रान्चमक
पाुशालाओां में वह प्रान्भना के प में गाया ीाता न्ा। चहन्दश्र प्रान्भना ‘गयभ समाी’ में प्रिचलत प्रान्भना
कगछ पान्तर करके हश्र गयश्र न्श्र। यह प्रान्भना चनम्नचलचखत न्श्रः-

नमो मातृभूमी वजथे जन्मलो मी

नमो वहन्दुभूमी वजथे िाढ़लो मी।

नमो धमणभूमी वजये च्याच कामीं

पडो दे ह माझा सदा ती नमी मी।।

हे गुरो श्री रामदूता शील हमको दीवजए

शीघ्र सारे सद्गुणों से पू णण वहन्दू कीवजए।

लीवजए हमको शरण में रामपन्थी हम बनें

ब्रह्मचारी धमणरक्षक िीरव्रतधारी बनें ।।

मोचहते णाड़े पर ीश्र नण्णा सोहोनश्र तन्ा उनके द्वारा कगछ िगने हग ए प्रचशचक्षत तरुणों के द्वारा स्वयांसेवकों
के चोन्न-चोन्न पन्क णनाकर लाुश्र गचद कश्र चशक्षा प्रारम्ो कश्र गयश्र। लाुश्र-ोाला गचद के हान् िलाते
हग ए दोनों पैरों पर दणकर खड़े रहने का पैंतरा नन्य नखाड़ों तन्ा व्यायामशालाओां से चोन्न एवां सांघ कश्र
शारश्रचरक चशक्षा कश्र चवशेर्ता न्श्र। चकन्तग उससे ोश्र णढकर नण्णा सोहोनश्र द्वारा गचवष्ट्कृत एवां सांघ में
प्रिचलत ‘यगद्धयोग’ नपनश्र गक्रामकता, गवेश, सांरक्षणक्षमता गचद कश्र दृचष्ट से नत्यन्त महत्वपूणभ
न्ा। ‘यगद्धयोग’ कश्र पद्धचत नन्य कहीं प्रिचलत नहीं न्श्र।

लाुश्र कश्र यह चवशेर् चशक्षा ीश्र नण्णा सोहोनश्र को प्रचसद्ध क्रान्न्तकारक स्व. दामोदर णळवन्त उपाख्य
चोड़े ोटीश्र से चमलश्र न्श्र। चोड़े ोटीश्र ने हश्र सेनापचत णापट को क्रान्न्त कश्र चदक्षा दश्र न्श्र तन्ा वे हश्र
प्रयत्नपूवभक डॉ. मगी
ां े को राीनश्रचत के नखाड़े में लाने के चलए उत्तरदायश्र न्े। चणना णोले शान्त रश्रचत से
तन्ा लगन के सान् दे शोचि का प्रसार करनेवालों में उनकश्र गणना प्रमगख प से करनश्र होगश्र। इस
प्रकार के महान् व्यचि से चमला हग ग लाुश्र-ोाला गचद गयगिों का चशक्षणक्रम तन्ा पैंतरा सांघ में
प्रिचलत हग ग तन्ा गगे क्रम से प्रगचत ोश्र करता गया।

उस समय के सांघ के कायभवाह ीश्र रघगनान्राव णाण्डे के द्वारा एक पगन्स्तका में चलखश्र गयश्र चटप्पचणयााँ
डॉक्टरीश्र के उन चदनों के प्रयत्नों पर नच्छा प्रकाश डालतश्र हैं । उनसे यह पता िलता है चक चदनाांक
21 ीून 1926 को ननान् चवद्यान्ी गृह में एक णैुक हग ई न्श्र। उस णैुक में प्रत्येक स्वयांसेवक को

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णताया गया चक वह एक कागी पर नपना ध्येय, सांघ का ध्येय तन्ा वह सांघ का िालक हो गया तो
सांघ कश्र कायभपद्धचत और रिना कैसश्र रखेगा इन सणके सम्णन्ि में नपने चविार चलखे। यह ोश्र चनचित
हग ग चक वह कागी डॉक्टरीश्र के पास चदनाांक 28 ीून तक पहग ाँ िा दे ना िाचहए। स्पष्ट है चक दूसरों को
चविार के चलए प्रवृत्त करने कश्र यह डॉक्टरीश्र कश्र योीना न्श्र। केवल डॉक्टरीश्र णोलते रहें तन्ा तरुण
स्वयांसेवक िगपिाप सगनकर ‘ीो णताया वह करनेवाले तन्ा ीो चदया वह खानेवाले’ दास कश्र प्रवृचत्त
से उनके ननगयायश्र कहलाकर व्यवहार करें , यह णात डॉक्टरीश्र को पसन्द नहीं न्श्र। डॉक्टरीश्र का दृढ
चवश्वास न्ा चक यचद स्वयांसेवकों के चविार को प्रेरणा दश्र तो वे चवशगद्ध चहन्दू समाी कश्र ओर, तन्ा उस
सांकल्प कश्र पूर्तत के चलए नपना ीश्रवन समपभण करने कश्र ओर स्वयां कखिते िले ीायेंग।े उनको यह
कोश्र ोश्र गशांका नहीं होतश्र न्श्र चक यचद स्वयांसेवकों को िारों ओर कश्र पचरन्स्न्चत कश्र कल्पना हग ई तो
चहन्दू राष्ट्र के प्रचत उनका चवश्वास डगमगा ीायेगा। प्रत्यगत उन्हें तो यहश्र लगता न्श्र चक दे श कश्र यन्ान्भ
न्स्न्चत का ज्ञान तरुण मन को हग ग तो उसे यह समझ में ग ीायेगा चक सांघटन के नचतचरि इस
पचरन्स्न्चत को णदलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है , तन्ा उसमें से हश्र स्वयां प्रयत्न करने कश्र प्रेरणा उत्पन्न
होगश्र। डॉक्टरीश्र को इस प्रकार के चविारवान् तन्ा स्वयांस्फूर्ततवाले कायभकता चनमाण करने न्े और
इस हे तग उन्होंने स्वयांसेवकों से सांघ के चवर्य में उपयगभि चविार चलखने को कहा न्ा।

इन चदनों प्रत्येक मास के प्रन्म रचववार को णैुक होतश्र न्श्र चीसमें चपछले मास का प्रचतवेदन सणके
सम्मगख रखा ीाता न्ा। उसश्र समय नगले महश्रने-ोर के कायभक्रम ोश्र चनचित होते न्े। उन चदनों यह
चनयम न्ा चक प्रत्येक स्वयांसेवक महश्रने में कम-से-कम एक-दो णार डॉक्टरीश्र से नवश्य हश्र चमले।
इस समय डॉक्टरीश्र तन्ा नन्य नचिकारश्र गग्रहपूवभक इस णात कश्र पूछताछ करते न्े चक स्वयांसेवक
व्यायामशाला में ीाता है या नहीं।

डॉक्टरीश्र ने रक्षाणन्िन का उत्सव ोश्र सांघ में मनाया। इस उत्सव पर सािारणतया णहन के द्वारा ोाई
को तन्ा ब्राह्मणों के द्वारा शेर् समाी को राखश्र णााँिने कश्र पद्धचत प्रिचलत न्श्र। उसके पश्रछे णहन और
ब्राह्मणों कश्र रक्षा करने का नचोविन नचोप्रेत है । डॉक्टरीश्र ने इसे राष्ट्र कश्र तन्ा णन्िगत्व के गिार
पर परस्पर कश्र रक्षा करने का चनिय प्रकट करनेवाले त्योहार का प दे कर राष्ट्रश्रयता कश्र सांस्कार-
चनर्तमत का महत्वपूणभ सािन णनाया। पहला रक्षाणन्िन-उत्सव तगलसश्र णाग में चदन के दो णीे णैुक
के प में मनाया गया।

मन्स्ीद के सामने णाीा णीाते हग ए चनकलने के नचिकार को नणाचित रखने कश्र दृचष्ट से सांघ के
प्रारन्म्ोक चदनों में स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र कश्र प्रेरणा से इस प्रकार के ीगलूसों में ोाग लेते न्े। 1925
के प्रारम्ो में नागपगर में चहन्दू-मगसलमानों के झगड़ों का फैसला करने के चलए पां. मोतश्रलाल नेह , डॉ.
महमूद तन्ा मौलान नणगलकलाम गीाद कश्र एक ीााँि-सचमचत णैुश्र न्श्र। उस सचमचत ने चनणभय चदया
न्ा चक ोोंसले घराने कश्र तन्ा ीागोणा कश्र कोई ोश्र शोोायात्रा मन्स्ीद के सामने से कोश्र ोश्र णाीा
150
णीाते हग ए चनकल सकतश्र है तन्ा नन्य शोोायात्राएाँ शहर कश्र पााँि प्रमगख मन्स्ीद के सामने दोपहर
तन्ा सायांकाल कश्र नमाी के समय गिा-गिा घण्टा छोड़कर नन्य समय णाीे के सान् चनकल
सकतश्र है । चकन्तग यह चनणभय कागी पर हश्र रह गया न्ा। मगसलमानों कश्र हुिमी तन्ा चहन्दगओां कश्र
ोश्ररुता हो इसके चलए कारण न्श्र। इस न्स्न्चत को दे खकर डॉक्टरीश्र का चविार न्ा चक मगसलमानों ने
ीैसे हश्र ‘‘णाीा णन्द करो’’ कहा वैसे हश्र उससे ोश्र कड़कतश्र गवाी के सान् ‘‘णाीा णीाओ’’
कहनेवाले साहसश्र चहन्दू हर शोोायात्रा के सान् होने िाचहए। ीैसश्र चक नपेक्षा न्श्र स्वयांसेवकों के इन
शोोायात्राओां में ोाग लेने के कारण वे चनर्तवध्न प से चनकलने लगीं। कगछ चदनों के णाद तो सांघ ीैसे-
ीैसे णढने लगा वैसे-वैसे मगसलमानों का हु कम होकर उनमें ोश्र समझदारश्र चदखने लगश्र। ‘‘ोय चणन
होय न प्रश्रचत’’ यह उचि गोस्वामश्र तगलसश्रदासीश्र के मानव-स्वोाव के गहरे नध्ययन का हश्र पचरपाक
है । वैसे इस काल में तन्ा उसके णाद दो-तश्रन वर्भ तक नागपगर में चहन्दू-मगसलमानों के गपसश्र सम्णन्ि
कखिे हग ए हश्र न्े। उन चदनों हचरताचलका के नवसर पर मगसलमानों के द्वारा मचहलाओां को छे ड़ने का
प्रयत्न होने के कारण तगलसश्रणाग, शगक्रवार तालाण तन्ा उस ओर ीानेवाले मागों में सोश्र प्रमगख स्न्ानों
पर सांघ के स्वयांसेवक योीनापूवभक खड़े रहते न्े। यह ीाग कता पचरणामकारक हग ई तन्ा माताएाँ
चणना चकसश्र कचुनाई से उस पवभ को मन सकीं। चनस्सन्दे ह उन्होंने डॉक्टरीश्र तन्ा सांघ के स्वयांसेवकों
को नत्यन्त सन्तोर्पूवभक गशश्रवाद चदया होगा। डॉक्टरीश्र नपनश्र णैुक में इस चवर्य में यहश्र कहते
न्े चक ‘‘गी योीना से स्न्ान-स्न्ान पर स्वयांसेवक खड़े करने पड़ते हैं । यह तो लज्जाीनक न्स्न्चत
है । यह णदलकर यचद सम्पूणभ समाी सीगता से िौणश्रसों घण्टे नपना व्यवहार करने लगे तो मचहलाओां
कश्र ओर टे ढश्र नीर से दे खने कश्र चहम्मत चकसश्र को ोश्र नहीं हो सकेगश्र। हमें ऐसश्र हश्र न्स्न्चत चनमाण
करनश्र िाचहए।’’

सांघ का पहला वार्तर्कोत्सव डॉक्टरीश्र के घर में हश्र मनाया गया। उस समय सांघ के स्वयांसेवकों के
सान्-सान् ननान् चवद्यान्ी गृह के चवद्यान्ी ोश्र उपन्स्न्त न्े। ीश्र णापूराव गम्णडेकर का नध्यक्षश्रय
ोार्ण हग ग। नन्त में ीो गश्रत गाय गया उसकश्र पांचियााँ गी ोश्र कगछ स्वयांसेवकों को याद हैं । वे इस
प्रकार है ः-

परमपािना भगव्या झे ण्या, काय दशा ति ही ।

वजथें जन्मला, वजथें तळपला, वतथें ठाुँ ि नाहीं ।।

सु ना रायगढ़, सु ने पु ण्यपु र, सु ना महाराष्ट्र ।

उदासिाणें तु भ्या विणें रे ! स्मशान सिणत्र ।।

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(परमपू त हे हे भगिाध्िज ! हु ई दशा क्या और ।

जन्मा जहाुँ , जहाुँ पर चमका, िहीं न तेरा ठौर ।।

सूना हु आ रायगढ़, पू ना और महाराष्ट्र।

तु झ वबन है सिणत्र उदासी, श्मशान सिणत्र ।।)

यह उत्सव साांय िार णीे सम्पन्न कर सोश्र स्वयांसेवक राीाणाक्षा के प्रचसद्ध हनगमान-मन्न्दर में
सश्रमोल्लांघन के चनचमत्त गये। उस समय दशहरा पर सांघ कश्र नलग शोोायात्रा नहीं चनकलश्र न्श्र क्योंचक
उसके चलए गवश्यक सांख्याणल तन्ा ननगशासन दोनों हश्र कम न्े। पहले वार्तर्कोत्सव कश्र
उल्लेखननश्रय घटना डॉक्टरीश्र द्वारा स्वयांसेवकों के चलए एक ग्रन्न्ालय कश्र स्न्ापना है ।

खेलने के चलए मोचहते णाड़े कश्र काफश्र ीगह साफ कर लश्र गयश्र न्श्र। उस स्न्ान के तलघर में णैुकों के
चनचमत्त तन्ा नन्य समय ोश्र स्वयांसेवकों का गना-ीाना िलता रहता न्ा। नण सांिलन के चलए
पयाप्त स्न्ान हो ीाने के कारण डॉक्टरीश्र ने ीश्र मातभण्डराव ीोग को प्रत्येक रचववार को प्रातःकाल
सैचनक चशक्षण दे ने कश्र सूिना दश्र। यह चदसम्णर 1926 कश्र घटना है । ीश्र मातभण्डराव ीोग उस समय
काांग्रेस दल के ोश्र प्रमगख न्े। चफर ोश्र यह कहने में नचतशयोचि नहीं होगश्र चक डॉक्टरीश्र के सौीन्य
के कारण लोग नपनश्र टोपश्र का रांग ोूल ीाते न्े। डॉक्टर हे डगेवार तन्ा ीश्र मातभण्डराव ीोग के घर
नयश्र शगक्रवारश्र में पास-पास हश्र न्े। ीश्र ीोग 1920 में सेना से लौटकर गये न्े। डॉक्टरीश्र से उनका
पचरिय होने के णाद शनैः-शनैः वह घचनष्ठ होता गया। यहााँ तक चक नन्त में डॉक्टरीश्र ने उन्हें पूरश्र
तरह से गत्मसात् कर चलया। सन् 1949 में ीश्र मातभण्डराव द्वारा प.पू.गगरुीश्र को चलखे गये पत्र का
एक वाक्य उल्लेखनश्रय है । वे कहते हैं चक ‘‘मैं गपका हश्र हू ाँ । मेरा ीश्रवन सांघ ने हश्र उत्क्रान्न्तमय णनाया
है । परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र ने मगझे प्रेमपूवभक नपने कायभ में स्न्ान चदया न्ा।’’ डॉक्टरीश्र का प्रेम इतना
प्रोावश्र न्ा।

मोचहते सांघस्न्ान पर सांिलन का कायभक्रम प्रारम्ो होने के णाद डॉक्टरीश्र ने गणवेश का गग्रह ोश्र
शग कर चदया। कोश्र-कोश्र रास्ते से ोश्र सांिलन करते हग ए स्वयांसेवकों को ले ीाते न्े। पहले सांिलन
में गणवेशिारश्र तश्रस स्वयांसेवकों को ननगशासनणद्ध तरश्रके से सश्रटश्र कश्र गवाी पर िलते दे खकर
लोगों को णड़ा गियभ हग ग तन्ा कगछ णाल और चकशोर तो इन स्वयांसेवकों के पश्रछे इकट्ठे होकर उन्हीं
के समान पैर चमलाकर िलने का ननगकरण करते हग ए तेलगांखड
े श्र तक गये। इस प्रन्म सांिलन का
पचरणाम शाखा कश्र सांख्यगवृचद्ध में हग ग तो कोई गियभ कश्र घटना नहीं। कारण, नागचरक ीश्रवन में
ननगशाचसत तरुणों को यह दृश्य नचोनव हश्र न्ा। सैचनक चशक्षण में डॉक्टरीश्र को णड़श्र रुचि न्श्र तन्ा
परतांत्र राष्ट्र में इस प्रकार कश्र चशक्षा का प्रारम्ो करने कश्र ननगकूलता चमल सकना उनके चलए गनन्द

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और उत्साह का चवर्य न्ा। स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर ने 1905-6 कश्र पचरन्स्न्चत का वणभन करते हग ए
चलखा है चक ‘‘नचोनव ोारत’’ प्रारम्ो करते समय.......दस स्वातांत्र्य-सैचनकों कश्र एक टगकड़श्र का ोश्र
खगले प में सांिलन करना सम्ोव नहीं न्ा।’’ चकन्तग नण दे शोिों के णश्रस वर्भ के प्रयत्नों से ननेक
लोगों के चलए इस प्रकार सांिलन करने का नवसर प्राप्त हो गया न्ा। यह राष्ट्र कश्र दृचष्ट से महत्त्व कश्र
णात न्श्र। डॉक्टरीश्र को इसका गनन्द होता न्ा और वह गनन्द उनकश्र णैुकों में प्रकट ोश्र होता न्ा।

ग्वाचलयर के एक सैचनक नचिकारश्र ीश्र उपासनश्र ीण छग चट्टयों में नागपगर गते तो डॉक्टरीश्र सैचनक
चशक्षण में स्वयांसेवकों को चनपगण णनाने कश्र दृचष्ट से कगछ स्वयांसेवकों को उनके पास चशक्षा लेने के
चलए ोेीते। ीश्र उपासनश्र ने चदयासलाई कश्र तश्रचलयों के सहारे नपने कमरे में हश्र ीश्र कृष्ट्णराव लाम्णे
गचद तरुणों को चवचवि पन्क-रिनाओां तन्ा व्यूह-रिना का चशक्षण चदया। प्रारम्ो में इतने चशक्षण
का ोश्र शाखा के चलए णहग त उपयोगश्र हग ग। इस प्रकार कण-कण में सांघटन का चनमाण हो रहा न्ा।

सैचनक चशक्षा में व्यचि को रस गया चक वह स्वतः घोर् का स्वप्न दे खने लगता है । सांघ के स्वयांसेवकों
को ोश्र लगा कश्र नपने पास कम-से-कम एक चणगगल तो होना िाचहए और इस हे तग चवद्यान्ी स्वयांसेवकों
ने पैसा-पैसा णिाकर इकट्ठा करना शग चकया। उन चदनों नागपगर में ीश्रमन्त णगटश्र के यहााँ गोकगलाष्टमश्रके
नवसर पर उनके णडी-न्स्न्त चनवास पर सात चदन का मगिद्वार ब्राह्मण-ोोीन होता न्ा। उसमें महाल
से सांघ के कगछ तरुण स्वयांसेवकों ने ीाने कश्र तैयारश्र कश्र। इस काम में िार मश्रल पैर पटकते ीाना-
गना तन्ा लगोग तश्रन घण्टे समय खिभ करना पड़ता न्ा। परन्तग यह सण कगछ सहन करने को वे
सानन्द तैयार न्े क्योंचक उनके सामने लोो न्ा चक वहााँ चमलश्र दचक्षणा के पैसों से सांघ कश्र चनचि में वृचद्ध
हो सकेगश्र और एक चणगगल खरश्रदा ीा सकेगा। इस कायभक्रम में ोाग लेनेवालों में ीश्र णाणासाहण
गपटे, ीश्र दादाराव परमान्भ, ीश्र णाळासाहव दे वरस, ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर गचद सोश्र लोग न्े। सांघ
तन्ा सांघ-सांस्न्ापक दोनों को छुश्र में दचरद्रता हश्र पल्ले पड़श्र न्श्र। ीो ोश्र हो, सांघ का पहला चणगगल खरश्रद
चलया गया तन्ा ीण प्रन्म णार उसको स्वयांसेवकों ने णीाया तो उनके गनन्द कश्र सश्रमा नहीं रहश्र।
ाँ नेवाला स्वर सांघ के स्वयांसेवकों के त्याग, लगन और नध्यवसाय तन्ा सांघकायभ
उसका िारों ओर गूी
कश्र प्रगचत कश्र घोर्णा करता हग ग मानो राष्ट्र के पगरुर्ान्भ को झकझोर कर ीगा रहा न्ा।

डॉक्टरीश्र को चहन्दू समाी में ‘वश्ररव्रतिारश्र’ तरुण खड़े करने कश्र गवश्यकता प्रतश्रत होतश्र न्श्र। नतः
सैचनक सांिलन के सान् स्न्ान-स्न्ान पर शाखाओां में छोटा-सा घगड़सवार-दल णनाने कश्र ोश्र योीना
हग ई। यह चवर्य चनकलते हश्र उनके सामने कलकत्ते में िौरां गश्र पर ‘औटरम’ का नश्वा ढ पगतला ग
खड़ा होता न्ा तन्ा वे उस पगतले के वश्ररोचित गवेश कश्र णड़श्र प्रांशसा करते न्े। चकसश्र शाखा के पास
गगरुदचक्षणा के पैसे पड़े रहना उन्हें नच्छा नहीं लगता न्ा। उनका णराणर कहना न्ा चक उन पैसों का
उपयोग गवश्यक गगणों के चवकास तन्ा कायभ कश्र वृचद्ध के चलए करना िाचहए। ीहााँ ोश्र पैसा णिने

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कश्र उन्हें सूिना चमलतश्र वहीं वे घोड़ा खरश्रदने को कहते तन्ा उनकश्र इच्छानगसार कहीं घोड़ा खरश्रदने
का समािार चमला तो उन्हें नतश्रव हर्भ होता न्ा।

एक णार रामटेक से मोटर द्वारा गते हग ए कामुश्र के पास मैदान में नश्वा ढ सैचनकों के पन्क कवायद
करते हग ए चदखे। यह दृश्य दे खकर डॉक्टरीश्र ने नपने पास णैुे हग ए ीश्र चवट्ठलराव पतकश्र को , नन्य
याचत्रयों का ध्यान उिर न घगमाते हग ए, पााँव का हल्का िोंा दे कर वह दृश्य चदखाया तन्ा सांघ में ोश्र एक
ऐसा दृश्य चदखना िाचहए यह इच्छा प्रदर्तशत कश्र।

डॉक्टरीश्र कश्र घर कश्र न्स्न्चत उस समय नच्छश्र नहीं न्श्र। नपने णड़े ोाई कश्र पगरोचहताई के णल पर हश्र
ज्यों-त्यों करके पचरवार का चनवाह हो रहा न्ा। डॉक्टरीश्र ने घर के नश्रिे पूवभ कश्र ओर का ोाग चकराये
से दे कर गय-व्यय सन्तगचलत करने का कगछ प्रयत्न चकया। चकन्तग डॉक्टरीश्र के यहााँ प्रातःकाल से
लेकर राचत्र ग्यारह-णारह णीे तक लोगों का नखण्ड गना-ीाना तन्ा उसमें ननेकों का िाय के द्वारा
गचतर्थय िलता रहता न्ा, चफर ोला हान् कश्र तांगश्र कैसे दूर हो सकतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र के चमत्रों को
उनकश्र यह नन्ाोाव से उत्पन्न कचुनाई चदखायश्र पड़ रहश्र न्श्र चकन्तग डॉक्टरीश्र कश्र नयािकता इतनश्र
कुोर न्श्र चक चकसश्र कश्र चहम्मत नहीं पड़तश्र न्श्र चक कोई उनसे सहायता करने कश्र णात ोश्र करे ।
डॉक्टरीश्र का ोाव न्ा चक नपने चलए दूसरों को कष्ट न उुाना पड़े तन्ा ीो दगःख नपने ोाग में है उसे
स्वयां हश्र िगपिाप सहन करते हैं । यहााँ तक चक उस दगःख कश्र चससकारश्र से ोश्र कहीं गस-पास के लोगों
का ीश्र छोटा न हो ीाये, इस णात का ोश्र वे णराणर ध्यान रखते न्े।

समाी के चलए डॉक्टरीश्र चकतने चनःस्वान्भ ोाव से काम करते हैं , यह राीा लक्ष्मणराव ोोंसले प्रत्यक्ष
दे ख रहे न्े। डॉक्टरीश्र का सम्पणभ समय सामाचीक कायों में व्यतश्रत होने के कारण उनका वैयचिक
ीश्रवन गर्तन्क दृचष्ट से कष्टमय है , यह ोश्र उन्हें पता लग गया न्ा। चकन्तग चमत्र के नाते उनकश्र गर्तन्क
सहायता करने का प्रस्ताव उनके सम्मगख रखने में राीा लक्ष्मणराव ोोंसले को ोश्र सांकोि होता न्ा।
उन्होंने नपने व्यवस्न्ापक ीश्र वासगदेव शास्त्रश्र सांगमकर के द्वारा कई णार डॉक्टरीश्र के कान में यह
णात डलवायश्र चक राीा साहण का चविार गपको कगछ ीमश्रन दे ने का है । पर ीण ोश्र यह चवर्य
चनकलता, डॉक्टरीश्र सगनश्र-ननसगनश्र करके झट से चवर्य णदल दे त।े एक णार सांगमकर ने नत्यन्त
गग्रह चकया। इस पर वे ीरा गरम हो गये और णोले ‘‘यह चवर्य चफर चनकालोगे तो गपके पास
गी से गना हश्र णन्द। मेरश्र सम्पचत्त तो सांघ हश्र है ।’’ इस घटना के णाद सांगमकर ने वह चवर्य छोड़
चदया तन्ा राीा लक्ष्मणराव को ोश्र यह णात णता दश्र।

चसन्दश्र के ीश्रमन्त नानासाहण टालाटगले डॉक्टरीश्र के क्रान्न्तकाल से नत्यन्त घचनष्ठ चमत्र एवां ननगयायश्र
न्े। उनकश्र डॉक्टरीश्र पर नसश्रम ीद्धा न्श्र। 19822-23 से तो उन्होंने चनयम हश्र णना रखा न्ा चक वर्भ
में एक-दो णार डॉक्टरीश्र चवीाम के चलए उनके यहााँ गयें। एकाि णार डॉक्टरीश्र चसन्दश्र ीाने के चलए

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गीकल करने लगे चक टालाटगले नागपगर में उनके यहााँ िरना दे कर हश्र णैु ीाते न्े। डॉक्टरीश्र के
चवीाम के चलए ीाने पर विा से गप्पाीश्र ीोशश्र ोश्र वहााँ ग ीाते न्े। 1926 में एक णार तश्रनों णैुे
न्े चक नानासाहण तन्ा गप्पाीश्र ने णात-हश्र-णात में चवर्य चनकाला और णोले ‘‘सतत सावभीचनक
कामों में लगे रहने के कारण गपको घर कश्र ओर ध्यान दे ने का नवकाश नहीं चमलता और इसके
कारण गर्तन्क चिन्ता गपके पश्रछे सदै व छाया कश्र ोााँचत लगश्र रहतश्र है । इसमें से कोई रास्ता चनकलना
िाचहए।’’ पर डॉक्टरीश्र ने सगनश्र-ननसगनश्र कर दश्र। चफर ोश्र दोनों ने णात खतम नहीं कश्र। इस पर
डॉक्टरीश्र णोले ‘‘मगझे गवश्यकता होगश्र तो मैं मााँग लूाँगा। चीसके पैसे और वस्तग लेने पर उपकार
हग ग है ऐसा नहीं लगता तन्ा दणाव ोश्र नहीं गता, उसकश्र वस्तग और पैसा मैं स्वश्रकार करता हू ाँ । परन्तग
नोश्र तो कोई गवश्यकता नहीं।’’ चमत्रों को तोड़ना नहीं तन्ा नयािकता को छोड़ना नहीं’ इस नश्रचत
का ननगसरण करते हग ए हश्र डॉक्टरीश्र ने यह उत्तर चदया न्ा।

डॉक्टरीश्र के उपयगभि कन्न का गिार लेकर ीश्र नानासाहण टालाटगले, गवी के ीश्र नारायणराव
दे शपाण्डे तन्ा ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ने डॉक्टरीश्र कश्र ोाोश्रीश्र के पास िगपिाप प्रचत महश्रने पिास रुपये
दे ना शग कर चदया। इसके कारण घर में कगछ सगिरा हग ग रां ग- ांग दे खकर डॉक्टरीश्र के मन में सांशय
ग गया। उन्होंने ितगराई के सान् ोाोश्रीश्र से वास्तचवकता का पता लगा चलया और तश्रनों कश्र दगणारा
ोेंट होने पर उनसे कहा ‘‘गप लोगों ने मेरे कन्न का खूण नन्भ लगा चलया। मगझे ीण सि में ी रत
होगश्र मैं चनःसांकोि ोाव से मााँग लूाँगा। गगे ऐसा मत कचरए।’’ चमत्रों का यह दावाँ ोश्र दो-तश्रन महश्रने
में खालश्र गया। डॉक्टरीश्र ने यद्यचप यह णताया न्ा चक गवश्यकता नहीं है चकन्तग उनकश्र न्स्न्चत को
ीो चनकट से दे खते न्े चक वे मन में णेिन
ै हग ए चणना नहीं रह सकते न्े। कोश्र उनके पास कपड़ों के
चलए पैसा नहीं न्ा तो कोश्र महाँ गाई के कारण दाल-ोात पर हश्र निपेट रह ीाना पड़ता न्ा। इस न्स्न्चत
में ोश्र वे नपने यहााँ गये हग ए मेहमानों को गग्रहपूवभक नपने सान् ोोीन के चलए णैुा लेते न्े तन्ा
णासश्र ोाकरश्र एवां चमिभ-तेल कश्र िटनश्र का स्वाद उनके चमत्रों को ोश्र चमल ीाता न्ा। डॉक्टरीश्र कोश्र
यह ख्याल नहीं करते न्े चक उनकश्र पत्तल में क्या परोसा ीा रहा है । ोोीन करते समय वे चमत्रों के
सान् दे श तन्ा सांघ के चवर्य में णातिश्रत में इतने रम ीाते न्े तन्ा दूसरों को ोश्र हास्य-चवनोद में इतना
णेसगि कर दे ते न्े चक ‘हााँ-हू ाँ ’ करते हग ए चमत्रों का ध्यान ोश्र डॉक्टरीश्र के दाचरद्र्य कश्र ओर नहीं ीा पाता
न्ा।

इन्हीं चदनों डॉक्टरीश्र के कगछ चमत्रों ने ‘गइचडयल डेमोक्रेचटक इांश्योरे न्स कम्पनश्र’ शग कश्र तन्ा उसके
वैद्यकश्रय चवोाग के प्रमगख के नाते डॉक्टरीश्र कश्र चनयगचि कर दश्र। न्यायमूर्तत ोवानश्रशांकर चनयोगश्र, डॉ.
पराांीपे, ीश्र गोपाळराव दे व तन्ा ीश्र नानासाहण तेलांग गचद सज्जनों के मन में डॉक्टरीश्र के चलए ीो
प्रेम न्ा वहश्र इस योीना के द्वारा प्रकट हग ग न्ा। इस चनयगचि के कारण डॉक्टरीश्र को वर्भ में िार-पााँि

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सौ रुपये चमल ीाते न्े। 1926 से 1935-36 तक यह क्रम िलता रहा। इसके कारण डॉक्टरीश्र कश्र
हान् कश्र तांगश्र कगछ कम हो गयश्र। इस णश्रमा-सांस्न्ा के महत्त्व के स्न्ान पर रहनेवाले ीश्र रा.ी. गोखले
इस चवर्य में चलखते हैं चक ‘‘डॉक्टरीश्र को उसका चकतना उपयोग हग ग यह वे हश्र ीानते हैं । पर उनके
नाम का सांस्न्ा के िालकों को उपयोग होना णहग त-कगछ सम्ोव न्ा।’’

सांघकायभ के चवस्तार के प्रयत्नों के न्ोड़े हश्र चदनों णाद विा चीले में गवी नामक स्न्ान पर सवाद्य
शोोायात्रा के प्रश्न पर चहन्दू-मगसलमानों में नच्छश्र झड़प हो गयश्र। इस झगड़े में चहन्दगओां का वतभन इतना
प्रोावश्र रहा चक मगसलमानों का सण नशा उत्तर गया। इस दां गे के पहले हश्र ीण वहााँ के वातावरण में
तनाव गता ीा रहा न्ा तो डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार ने वहााँ गकर एक ओर तो समझौते कश्र
णातिश्रत िलायश्र तन्ा दूसरश्र ओर चहन्दगओां को सीग एवां साविान रखने कश्र व्यवस्न्ा कश्र। चहन्दगओां
को स्वसांरक्षणक्षम णनाने के उद्देश्य से डॉक्टरीश्र ने नफने सहकारश्र ीश्र नण्णा सोहोनश्र को ोश्र कगछ
चदनों के चलए लाुश्र िलाना चसखाने के चलए वहााँ ोेीा न्ा। स्पष्टतः उनके प्रचशक्षण का हश्र प्रत्यक्ष प्रताप
उस झगड़े में दे खने को चमला।

गवी के इस प्रकरण के सम्णन्ि में नागपगर के डॉ. ना. ोा. खरे चलखते हैं चक ‘‘1926 में मगसलमानों
कश्र साम्प्रदाचयकता के कारण चब्रचटश सरकार ने गवी के दशहरा-उत्सव पर प्रचतणन्ि लगा चदया।
नतः यह उत्सव चवीयादशमश्र के एक महश्रने णाद मनाया गया। इस उत्सव के चलए गवी के लोगों ने
नागपगर के नेताओां को चनमांचत्रत चकया। उसमें हम िार लोग, डॉ. मगांी,े णै. गोचवन्दराव दे शमगख, डॉ.
हे डगेवार और मैं, मोटर से गये। गवी कश्र सोा में हम िारों ने ोार्ण चदये। उसमें डॉक्टर हे डगेवार
और मेरे ोार्ण मगाँहतोड़ हग ए। सोा समाप्त कर हम िारों लोग नागपगर लौटे हश्र न्े चक गवी में दां गा तन्ा
तश्रन-िार मगसलमानों कश्र मृत्यग का समािार चमला। विा चीले के चडपगटश्र कचमश्नर तन्ा मगसलमान डश्र.
एस. पश्र. ने मेरे तन्ा डॉक्टर हे डगेवार के ऊपर मगकदमा िलाने कश्र चसफाचरश कश्र। परन्तग उस समय
के नागपगर चवोाग के कचमश्नर स्टण्डन साहण ने उसे मान्य नहीं चकया।’’

इस घटना के णाद िौदह चहन्दू नेता चगरफ्तार चकय गये। उनमें नचिकाांश डॉक्टरीश्र के पचरचित न्े।
उनमें से प्रमगख डॉ. स. नश्र. मोहरश्रर तो डॉक्टरीश्र के कलकत्ता से हश्र नत्यन्त घचनष्ठ चमत्र न्े। नतः
मगकदमा िलने पर डॉक्टरीश्र को णराणर विा तन्ा गवी के िोंर लगाने पड़ते न्े। उस समय गवी
के मगकदमें के चलए िन एकत्र करने में ोश्र उन्होंने गगे णढकर काम चकया तन्ा विा में मगकदमें कश्र
पैरवश्र करने के चलए णै. णचिस्टा के गने पर वे स्वयां डे महश्रने तक वहााँ ीाकर रहे न्े। उन चदनों
उनका चनवास ीश्र वश्र. णश्र. दे शपाण्डे के यहााँ न्ा। उनका उल्लेख डॉक्टरीश्र ‘चवनचत चवशेर्’ कहकर
मीाक से करते न्े। णै. णचिस्टा, ीश्र दादासाहण करन्दश्रकर तन्ा इलाहाणाद के ीश्र नल्स्टर गचद नामश्र
वकश्रलों के णहग त-कगछ प्रयत्न करने पर ोश्र डॉ. मोहरश्रर छू ट नहीं पाये णन्ल्क उन्हें 13 चदसम्णर 1926

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को ीन्म-कैद कश्र सीा सगना दश्र गयश्र। इस मगकदमें में ीो नन्य लोग छूटकर गये उनकश्र गवी में
णहग त प्रिण्ड शोोायात्रा चनकालश्र ीाये इसकश्र डॉक्टरीश्र ने सूिना कश्र न्श्र और वैसा हग ग ोश्र। इसके
कगछ चदनों णाद हश्र डॉक्टरीश्र तन्ा डॉ. नारायणराव सावरकर गवी गये और वहााँ ीेल में णन्दश्र नेताओां
के पचरवारवालों से चमलकर उनका ाढस णाँिाया। इसश्र प्रकार ीो छूटकर गये न्े उनका नचोनन्दन
करना ोश्र वे नहीं ोूले।

डॉ. मोहरश्रर कश्र सीा से डॉक्टरीश्र को णहग त-दगःख हग ग। 1934 में डॉ. मोहरश्रर के ीेल से छूटने तक
वे णराणर उनसे ीाकर ीेल में ोेंट करते रहे ।

इस मगकदमे के चनचमत्त डॉक्टरीश्र को णार-णार विा ीाना पड़ा। इसश्र णश्रि उन्होंने ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र
को सांघ कश्र ीानकारश्र दे कर वहााँ शाखा शग करने के चलए कहा। काांग्रेस के काम के चनचमत्त ीण एक
णार गप्पाीश्र नागपगर गये न्े तो सदा कश्र ोााँचत डॉक्टरीश्र के घर पर हश्र ुहरे न्े। उस समय एक कमरे
में णैुक के प में िलनेवाला सांघ डॉक्टरीश्र ने गप्पाीश्र को चदखाय न्ा। वहााँ ध्वी तन्ा मारुचत कश्र
प्रचतमा न्श्र, तन्ा उन्हें स्मरण गता है चक डॉक्टरीश्र का उस चदन सांघ के चवर्य में ोार्ण ोश्र हग ग न्ा।
नन्त में प्रान्भना ोश्र हग ई। इस घटना के णाद 18 फरवरश्र 1927 को ीण डॉक्टरीश्र विा गये तण वहााँ
ोश्र सांघ कश्र शाखा शग हो गयश्र। नागपगर के णाहर सांघ सणसे पहले विा पहग ाँ िा। चीसका केन्द्र नागपगर
में न्ा ऐसे सांघ-वृक्ष कश्र यह पहलश्र शाखा न्श्र। तणसे सम्ोवतः सांघ का कायभक्रम शाखा के कायभक्रम
के प में णोलिाल में ग गया।

सांघ कश्र कल्पना से लेकर सांघशाखा के प में उस कल्पना को मूतभ स्व प दे ने तक सण काम
डॉक्टरीश्र ने हश्र चकया। परन्तग उनका स्वोाव ऐसा न्ा चक उसमें कहीं ोश्र ‘मैं’ –पन का ोाव नहीं
चदखायश्र दे ता न्ा। ‘हम लोग सांघ शग कर रहे हैं ’ नन्वा ‘हम लोगों के द्वारा शग चकया गया सांघ’
गचद वाक्य-प्रयोग के द्वारा वे सदै व सणका नन्तोाव करके हश्र कायभ का उल्लेख करते न्े। चकन्तग कायभ
कश्र दृचष्ट से कोई-न-कोई चविान तन्ा नचिकारीेणश्र चनमाण करना नपचरहायभ गवश्यकता होतश्र है ।
नतः 19 चदसम्णर 1926 कश्र णैुक में इसका चविार हग ग तन्ा डॉक्टरीश्र को औपिाचरक प से
प्रमगख िगना गया। उस सयय कश्र प्रचतवेदन-पगन्स्तका में चलखा है चक ‘‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ को
चनयमपूवभक, सगिारु प से तन्ा ननगशासनपूणभ ांग से िलाने के चलए एक हश्र सत्तािारश्र व्यचि का
होना णहग त गवश्यक है । ऐसा होने से सांघटन में होनेवाले घोटाले कम होते हैं । नतः गी सोा के
मत से एक सत्तािारश्र व्यचि चनयगि करना ी रश्र है और वह सत्तािारश्र मनगष्ट्य गी हम सवानगमचत
से डॉक्टर हे डगेवार को चनयगि करते हैं ।’’

इस प्रकार डेढ वर्भ कश्र खटपट के णाद नागपगर तन्ा विा में सांघ िला और चहन्दगस्न्ान के सैकड़ो वर्ों
के इचतहास में चीस समचष्ट-ीश्रवन का नोाव णगरश्र तरह खटक रहा न्ा उसे दूर करनेवाला तांत्र चसद्ध हो

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गया। मोचहते णाड़े के ध्वांसावशेर् के णश्रि राष्ट्र के पगनर्तनमाण के प्रयत्न प्रारम्ो हो गये। चवध्वांस में ोश्र
सृीन का सामर्थयभ रखनेवाले राष्ट्र का िैतन्य ीाग उुा न्ा। णाड़े के पास रास्ता िलनेवालों को नण
रोी सायांकाल यज्ञ कश्र ीाज्वल्यमान नचग्नचशखाओां का स्मरण करा दे नेवाला परमपचवत्र ोगवाध्वी
फहराता हग ग चदखता तन्ा ‘नमो िमभोूमश्र चीये च्याय कामीं। पडो दे ह माझा सदा तश्र नमश्र मश्र’ यह
प्रान्भना का गम्ोश्रर स्वर कानों में गूी
ाँ ने लगता।

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14. नागपगर का दां गा
मोचहते णाड़े में लगनेवाले सांघ का 1927 के प्रारम्ो में स्व प चवस्तृत होने लगा। नण उसमें गयग के
ननगसार चशशग, णाल, तरुण तन्ा प्रौढ स्वयांसेवकों के नलग-नलग पन्क णनाकर उन्हें लव, चिलया,
कगश, िुव, प्रह्रलाद, नचोमन्यग, ोश्रम तन्ा ोश्रष्ट्म ये नाम उत्तरोत्तर विभमान क्रम में चदये गये। ‘ोश्रष्ट्म’
पन्क में सांघ से सम्णन्न्ित प्रौढ, ‘ोश्रम’ में णड़े तरुण, ‘कगश’ तन्ा ‘प्रह्रलाद’ में तरुण, चकशोर तन्ा
णाल और ‘लव’ और ‘चिलया’ पन्क में दस वर्भ से नश्रिे के चशशगओां का वगीकरण चकया गया न्ा।
नण सांघस्न्ान के कायभक्रमों को चनचित स्व प ग गया न्ा तन्ा तरुणों के कायभक्रम में सांरक्षणक्षमता
उत्पन्न करने कश्र दृचष्ट से यगद्धयोग तन्ा द्वन्द्व पर चवशेर् णल चदया ीाता न्ा। सत्तर-नस्सश्र तरुणों के एक
सान् लाुश्र के कायभक्रम से वातावरण इतना उत्साहपूणभ चदखायश्र दे ता न्ा चक खड़े हग ए व्यचि के हृदय
में वश्ररोाव का सांिार हग ए चणना नहीं रहता। ीश्र सोहोनश्र का यह कहना न्ा चक ‘प्रहार’ में इतना गवेश
और वेग रहना िाचहए चक सामने खड़ा शतु मार लगते हश्र तगरन्त घायल होकर नश्रिे चगर पड़े। उनके
स्वयां के प्रहार में यह सामर्थयभ चदखता ोश्र न्ा।

परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के यहााँ गनेवाले स्वयांसेवकों से उनका कमरा सदै व ोरा रहता न्ा। उन चदनों
नये-नये चमत्रों को डॉक्टरीश्र के यहााँ लाकर उन्हें सांघ में ोती कराने कश्र णाल और तरुणों के णश्रि एक
प्रचतस्पिा-सश्र लगश्र रहतश्र न्श्र। घर और चवद्यालय िारों ओर चवद्यान्ी वगभ में सांघ का हश्र चविार िलता
रहता न्ा। डॉक्टरीश्र के यहााँ णैुक में चहन्दू-सांगटन कश्र गवश्यकता, ोगवाध्वी का महत्त्व,
स्वतांत्रता, नन्य समाीों के गक्रमण और उनकश्र कारण-मश्रमाांसा, दै चनक एकत्र होने तन्ा कायभक्रमों
का महत्त्व, ननगशासन गचद ननेक चवर्यों कश्र ििा होतश्र न्श्र। ीानकार स्वयांसेवकों को चहन्दू-सांघटन
कश्र दृचष्ट से उपयगि पगस्तकें ोश्र पढने को दश्र ीातश्र न्ीं। इन पगस्तकों में सरकार द्वारा ीब्त पगस्तकें ोश्र
साविानश्र से पढने को चमलतश्र न्ीं। ‘चहन्दगत्व’ तन्ा ‘खतरे कश्र घण्टश्र’ इन दोनों पगस्तकों का प्रिार तो
स्वयांसेवकों के प्रयत्न से सवभमान्य ीनता में ोश्र होने लगा न्ा।

चहन्दू-मगसलमानों के वास्तचवक सम्णन्ि सम्पूणभ दे श में स्पष्ट होने लगे न्े। मोपला-चवद्रोह से चशक्षा
लेकर चीन स्वामश्र ीद्धानन्द ने चहन्दू-सांगुन का मांत्र ीन-ीन में फूाँका उनकश्र चदसम्णर 23 को नमानगर्
हत्या कर दश्र गयश्र। चहन्दू होकर ोश्र ‘चहन्दश्र’ कहलानेवाले नेता स्तब्ि रह गये। पर मगसलमानों ने हत्यारे
नब्दगल रशश्रद को ‘गाीश्र’ कहना शग कर चदया। उसके चित्र समािारपत्रों में छापकर चदल्लश्र के खगले
णाीारों में चिपकाये तन्ा णेिे गये। नसचहष्ट्णगता का पाु चीन्होंने मााँ के दूि के सान् चपया हो उस
मगसलमान समाी के चलए यह सण स्वाोाचवक हश्र न्ा। नांग्री
े श्र लेखक णनाड शा ने मगसलमानों कश्र
वृचत्त का वणभन करते हग ए एक स्न्ान पर चलखा है चक ‘‘सचहष्ट्णगता का मूखप
भ न मगसलमानों में नहीं है ।

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या तो गप उसके नल्ला को मान लो, नहीं तो वह गपका गला काटे गा और इसके चलए गपको
दोखी में ीाना पड़ेगा तन्ा उसे णचहश्त चमलेगा।’’ यह है इस्लाम का न्याय !

चहन्दगस्न्ान में मगसलमानों के स्न्ान-स्न्ान पर गक्रमण होने पर चहन्दू-मगन्स्लम एकता का राग


नलापनेवाले नेता णड़े िोंर में पड़ गये। इन घटनाओां के पहले महात्मा गाांिश्र ने ोश्र नपनश्र राीनश्रचतक
पद्धचत से यह स्वश्रकार कर चलया न्ा चक सामोपिार तन्ा हृदय-पचरवतभन का मागभ चवफल हो गया है ।
‘यांग इन्ण्डया’ में चलखे गये ‘मैं सम्राट हग ग तो’ लेख में उनकश्र नगचतकता प्रकट होतश्र है । उसमें वे
चलखते हैं ‘‘चहन्दू-मगसलमानों कश्र एकता चनमाण करने के चलए मैं ऐसा क ग
ाँ ा चक दोनों ीाचतयों के
वीनदार नेताओां को णगलाऊाँगा, उनके पास के सण शस्त्रास्त्र छश्रनकर उनको एक कोुरश्र में णन्द कर
दूाँगा तन्ा उनसे कहू ाँ गा चक ‘गप लोग नपने झगड़े समझौते से कैसे चमटाओगे यह तय कर लो, तोश्र
मैं तगमको छोडूाँगा, नहीं तो नहीं छोडूाँगा।’ इस यगचि से चहन्दू-मगसलानों में एकता प्रस्न्ाचपत हो ीायेगश्र।’’
नन्ात् चहन्दू-मगसलमानों के नेताओां को चणना नन्न-पानश्र के कोुरश्र में णन्द कर उन पर दणाव लाकर
उन्हें सश्रख दे ने कश्र नन्वा मरने दे ने कश्र कल्पना ‘सम्राट्’ गाांिश्रीश्र के सामने गयश्र न्श्र। न्स्न्चत इतनश्र
चणगड़ गयश्र न्श्र चक कट्टर ‘नकहसक’ को ोश्र ऐसे ‘कहसक’ चविार सूझते न्े।

उस समय यचद कोई णोलने के प्रवाह में ‘‘फलााँ स्न्ान पर चहन्दू-मगसलमान का दां गा हग ग’’ यह वाक्य
प्रयोग करता तो डॉक्टरीश्र उसे तगरन्त रोककर कहते ‘‘ ‘मगसलमानों का दां गा’ यह योग्य शब्द उपयोग
में लाओ। कारण ीो चहन्दू गी नपनश्र रक्षा ोश्र नहीं कर सकते वे चणिारे दां गा कहााँ से करें ग।े गी
तो केवल मगसलमान चहन्दगओां को मार रहे हैं । यह साफ-साफ चदखते हग ए ोश्र इसे ‘चहन्दू-मगसलमान’
दां गा कैसे कहा ीा सकेगा ?’’

चपछले तश्रन-िार वर्ों कश्र घटना से नागपगर का वातावरण ोश्र इस प्रकार दूचर्त हो गया न्ा। 1924 से
नागपगर में मगसलमानों का गर्तन्क णचहष्ट्कार होने के कारण उनका पारा और ोश्र िढ गया न्ा। उनके
दगराग्रह कश्र चिन्ता न करते हग ए सतरां ीश्रपगरा, हां सापगरश्र तन्ा ीगम्मा मन्स्ीदों के सामने चहन्दगओां कश्र
शोोायात्राएाँ णाीे-गाीे के सान् चनकलतश्र रहतश्र न्ीं। यह णात उनके मन को रह-रहकर किोट रहश्र
न्श्र। नतः उन्होंने चहन्दगओां को नाना प्रकार से सताने का प्रयत्न शग कर चदया। नकेला-दगकेला चहन्दू
चमल गया तो उसे पकड़कर पश्रटते न्े तन्ा चहन्दू मोहल्लों में से लड़चकयों को ोगाकर ले ीाते न्े। इस
प्रकार कश्र घटनाएाँ चदन-प्रचतचदन णढतश्र गयीं। चकन्तग नण ये ज्यादचतयााँ पिायश्र नहीं ीा सकतश्र न्ीं।
डॉक्टर हे डगेवार, गोचवन्दराव िोळकर, रामिन्द्र कोष्टश्र, ोाऊीश्र कावरे , नण्णा सोहोनश्र, णाळाीश्र
सगखदे व तन्ा कृष्ट्णाीश्र ीोशश्र, सातों ऊाँि-े पूरे ोश्रमकाय सप्तर्तर् हान् में डण्डा लेकर मगसलमानश्र मोहल्लों
में घूमने लगे। पट्ठे दार खादश्र कश्र ऊाँिश्र कालश्र टोपश्र, सफेद कमश्री, खाकश्र कोट, काछा लगाये हग ए िोतश्र,
और हान् में सोटा, इर वेश में ीण ये सातों लोग घूमते तो गगण्डों का चदल कााँपने लगता। एकाि णार
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तो केवल उनके ीाने मात्र से ोालदारपगरा के मगसलमानों ने ोगायश्र हग ई एक चहन्दू लकड़श्र को वापस
कर चदया। स्वयांसेवक ोश्र गगट णनाकर इिर-उिर घूमते तन्ा ीहााँ ोश्र गगण्डई दे खते वहााँ ीैसे-को-तैसा
व्यवहार करते। डॉक्टरीश्र के घर पर तो कई चदनों तक पन्राव होता रहा तन्ा कोश्र-कोश्र ीलते हग ए
पतश्रले ोश्र उनके घर के छप्पर पर पड़ने लगे। स्वाोाचवक हश्र स्वयांसेवकों ने डण्डे तन्ा सश्रटश्र लेकर
डॉक्टरीश्र के घर के िारों ओर पहरा लगाना शग कर चदया।

ऐसश्र गड़णड़ कश्र न्स्न्चत में ोश्र डॉक्टरीश्र ने हग तात्मा स्वामश्र ीद्धानन्द कश्र स्मृचत में णम्णई से प्रकाचशत
साप्ताचहक ‘ीद्धानन्द’ के चलए सैकड़ों रुपये कश्र चनचि ीमा करके ोेीश्र तन्ा वह ोश्र व्यवस्न्ा कश्र चक
चहन्दू-सांघटन तन्ा चहन्दगओां का पौरुर् पर चवश्वास दृढ करनेवाले नांकों का नचिकाचिक प्रिार हो।
इन्हीं चदनों स्वामश्रीश्र के नाम पर ‘ीद्धानन्द ननान्ालय’ कश्र स्न्ापना में ोश्र उनका हान् न्ा तन्ा उनकश्र
दै चनकश्र से पता िलता हैं चक वे उसकश्र प्रारन्म्ोक काल कश्र णैुकों में ोश्र ीाते न्े।

सांघ के प्रारम्ो में ीो कगछ खिभ लगता न्ा वह डॉक्टरीश्र तन्ा उनके तत्कालश्रन काांग्रेसश्र चमत्रों एवां सांघ
के सहकाचरयों के िन्दे के सहारे हश्र िलता न्ा। चवचोन्न कारणों से डॉक्टरीश्र को चनचि ीमा करने के
चलए लोगों के पास ीाना पड़ता न्ा। उनकश्र चनःस्वान्भ वृचत्त, सौीन्य, चनमभल िाचरत्र्य, हृदय कश्र लगन
गचद को दे खकर कोई उन्हें कोश्र रश्रते हान् नहीं लौटता न्ा। िन एवां शचि से ीो प्रोाव गत्मश्रयों पर
होता है उससे ोश्र चनस्सन्दे ह नचिक प्रोाव चवशगद्ध िाचरत्र्य का होता है ।

नण्णा सोहोनश्र कश्र वृचत्त कगछ ऐसश्र न्श्र चक सांघर्भ का नाम लेते हश्र उनका मन णााँसों उछलने लगता न्ा।
उन्हें सांघ में छोटे णालकों का गना पसन्द नहीं न्ा। ीो सदै व णााँहें ऊपर िढाकर तैयार रहें , ऐसे तरुणों
कश्र ओर हश्र उनका चवशेर् लक्ष्य न्ा। ‘‘चशशगओां कश्र चिल्ल-पों शाखा में चकसचलए ? ये णरे शाखा में
गकर ोारश्र गड़णड़ करते हैं नतः इन्हें णन्द कर दे ना िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र के पश्रछे उनकश्र यह
चकिचकि सदै व लगश्र रहतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र ‘‘गगे दे खग
ें ’े ’ कहकर सदै व णात टाल दे ते। क्योंचक
उनके सामने चीस चहन्दू राष्ट्र कश्र कल्पना न्श्र उसे साकार करने के चलए सांस्कारक्षम नयश्र पश्रढश्र हश्र
नचिक उपयोगश्र चसद्ध होनेवालश्र न्श्र, यह उनका दृढ चवश्वास न्ा। नतः नागपगर-शाखा में चकशोरों के
‘कगश’ पन्क तन्ा उसके नश्रिे के पन्कों के सम्णन्ि में नचिक चिन्ता कश्र ीातश्र न्श्र। ‘चवचकर’ कश्र
गज्ञा चमलने पर शाखा समाप्त होने के णाद एक के णाद एक गट डॉक्टरीश्र से चमलने गता न्ा तन्ा
उस समय गट में से कौन स्वयांसेवक नहीं गया इसकश्र वे पूछताछ करते न्े। पर इतना करके हश्र वे
नहीं रुक ीाते न्े नचपतग न गनेवाले स्वयांसेवक के यहााँ स्वयां ीाकर नन्वा चकसश्र को उसके यहााँ
ोेीकर कारण का पता लगाते न्े तन्ा दूसरे चदन वह शाखा लगने के पूवभ गकर सांघस्न्ान पर पानश्र
का चछड़काव करते तन्ा स्वांयसेवकों के खेल में स्वयां ोश्र नत्यन्त उत्साह से सान् सन्म्मचलत होकर
उनके सान् एकरस हो ीाते न्े। वे ीानते न्े चक समाी के सम्मगख उपन्स्न्त ननेक ोश्रर्ण प्रश्नों को

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यचद सदा के चलए चमटाना है तो उसके चलए प्रयत्नों के सान्-सान् कई पश्रचढयों तक राष्ट्रश्रयत्व कश्र दश्रक्षा
लेकर दे शचहत के चलए ीश्रवन-ोर नखण्ड प से ीाग्रत् रहनेवाले नागचरक सम्पूणभ दे श में ोारश्र सांख्या
में खड़े करने पड़ेंगे तन्ा इस परम्परा के प्रवाह को सतत णनाये रखने कश्र व्यवस्न्ा करनश्र पड़ेगश्र।
नण्णा सोहोनश्र कश्र गाँखों के सामने तो प्रमगख प से नागपगर के मगसलमानों के र्ड्यांत्र को चछन्न-
चवचछन्न करने का हश्र चविार न्ा। उनके इस प्रकार के चविार में कोई णगराई नहीं न्श्र, चकन्तग उनमें
भ ा न्श्र। सोहोनश्र के चविारों में पचरन्स्न्चत कश्र प्रचतचक्रया न्श्र, परन्तग डॉक्टरीश्र के चविारों
चनस्सन्दे ह नपूणत
में प्रचतचक्रया के सान् हश्र समाी कश्र यह दगरवस्न्ा चफर कोश्र उत्पन्न न हो इसके चलए समाी कश्र
मनोरिना को परम्परा से राष्ट्रानगवती णनाने का चविायक दृचष्टकोण ोश्र न्ा। डॉक्टरीश्र केवल कल
और गी का चविार ने करते हग ए समाी के शाश्वत स्न्ैयभ के चलए ोचवष्ट्य में दूर तक दे खते न्े तन्ा
उसके चलए तरुणों के सान् णाल और चशशगओां पर सांस्कार डालने कश्र ोश्र उन्होंने तैयारश्र कश्र न्श्र।

नागपगर में वातावरण गरम होते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र ने कगछ तरुणों का गर्तमयों में एक प्रचशक्षण-वगभ
लगाया। वे उन्हें इस योग्य णना दे ना िाहते न्े चक कहीं ोश्र ीाकर स्वतः के णल पर सांघ का कायभ कर
सकें। सान् हश्र इस प्रचशक्षण का यह ोश्र उद्देश्य न्ा चक उसमें ोाग लेनेवाले लोग शाखाओां में योग्य
नचिकारश्र के नाते काम कर सकें। इस वगभ के चलए ‘नचिकारश्र चशक्षण वगभ’(‘गचफससभ रेकनग कैप्प’)
नाम ननेक वर्ो तक ढ रहा। इस वगभ के कायभक्रम मोचहते णाड़े के मैदान पर प्रातः पााँि णीे से नौ
णीे तक िलते न्े। वगभ को सफल णनाने में ीश्र नण्णा सोहानश्र तन्ा ीश्र मातभण्डराव ीोग ने णहग त
नचिक पचरीम चकये। प्रन्म वगभ में केवल सत्रह िगने हग ए स्वयांसेवकों को प्रवेश चदया गया न्ा।
सांघस्न्ान पर तहखाने में दोपहर साढे णारह णीे से सायां पााँि णीे तक णातिश्रत, ििा, चटप्पचणयााँ
गचद चवचवि कायभक्रम होते न्े। इन कायभक्रमों में डॉक्टरीश्र स्वयां उपन्स्न्त रहकर स्वयांसेवकों के
सम्मगख ननेक चवर्यों कश्र ऊहापोह करते न्े। सप्ताह में तश्रन चदन णौचद्धकवगभ होते न्े चीसके चलए सण
डॉक्टरीश्र के घर एकत्र होते न्े। तैरना ोश्र वगभ के कायभक्रमों में सन्म्मचलत न्ा तन्ा उसके चलए डॉक्टर
ीश्र चिटणश्रसपगरा के एक कगएाँ पर प्रचशक्षार्तन्यों को ले ीाते न्े। पहले कगछ वर्भ वगों में यह चशक्षणक्रम
िलता न्ा।

वगभ के चदनों में हश्र डॉक्टरीश्र के घर पर पन्राव का प्रमाण नचिक णढ गया तन्ा णश्रि-णश्रि में डॉक्टरीश्र
तन्ा कई नन्य चहन्दू नेताओां के पास गगमनाम पत्र गने लगे चीनमें िमकश्र दश्र गयश्र न्श्र ‘‘साविान
रचहए, हम लोग गपका खून करने वाले हैं ।’’ डॉक्टरीश्र इन पत्रों को पढकर खूण हाँ सते और पास में
णैुे हग ए स्वयांसेवकों से कहते चक ‘‘यचद इनमें इतनश्र चहम्मत होतश्र तो ये णोलते नहीं चकन्तग कर चदखाते।’’
उनके चमत्र उनसे गग्रह के सान् कहते है चक ‘‘गीकल गप नपने सान् ीरा हट्टे -कट्टे रक्षक लेकर
हश्र रात-चणरात घूमने ीाइए।’’ एक णार ‘महाराष्ट्र’ के सम्पादक ीश्र गोपाळराव ओगले ने उन्हें यह
सलाह दश्र तो वे णोले ‘‘गीकल तो रक्षक के सान् हश्र घूमता हू ाँ ।’’ ‘‘कहााँ है गपका रक्षक’’

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गोपाळराव ने उनसे प्रश्न चकया। डॉक्टरीश्र ने नपने सान् के चकशोर स्वयांसेवक कश्र ओर इशारा चकया
और णोले ‘‘यह क्या है ?’’ यह कहते हग ए वे णड़श्र ीोर से हाँ सने लगे। ीश्र गोपाळराव के सामने ोश्र
हाँ सने से चसवाय कोई िारा नहीं न्ा। उनकश्र िेतावनश्र उस हाँ सश्र में हश्र चवलश्रन हो गयश्र। डॉक्टरीश्र को
चमले िमकश्र-ोरे पत्रों में से एक पत्र 15 मई के ‘महाराष्ट्र’ में नब्दगल करश्रम के हस्ताक्षर से प्रकाचशत
हग ग है । उसकश्र ोार्ा से स्पष्ट पता िलता है चक वह चकसश्र चसरचफरे गगण्डे कश्र करतूत न्श्र। उसमें चलखा
न्ा ‘‘गप नागपगर के मगसलमनों का णड़ा दोस्त हो )‘दोस्त’ शब्द व्यांगात्मक न्ा)। गपने रामटे क में
मगसलमानों से शरारत कश्र है । वो गपका करना मौत नीदश्रक लाने का तरश्रका है । चखयाल रखना,
एक णरस के नन्दर, णेटा ! तगम मगरगश्र सरश्रखे काटे ीावेंगे और तगम्हारश्र हड्डश्र मगसलमान णााँट के िगसेंग।े ’’

डॉक्टरीश्र को स्पष्ट चदखने लगा न्ा चक िालू पचरन्स्न्चत का पयभवसान सांघर्भ में होगा। नतः उन्होंने
मगसलमानों के मोहल्लों में गक्रमण कश्र तैयारश्र करने के चलए िलनेवालश्र गगप्त कायभवाचहयों कश्र टोह लेने
कश्र व्यवस्न्ा कर रख न्श्र। ीून-ीगलाई से हश्र चहन्दू णन्स्तयों में मगसलमानों कश्र टोचलयााँ कगछ दे खोाल
करतश्र हग ई घूमतश्र नीर गतश्र न्ीं तन्ा मन्स्ीद में णार-णार होनेवालश्र णैुकों के समािार ोश्र गगे
गनेवाले सांकट कश्र सूिना दे रहे न्े। उस समय महाराष्ट्र में सवभत्र ब्राह्मण-नब्राह्मण के णश्रि णड़श्र
कटगता चनर्तमत हो गयश्र न्श्र। इससे मगसलमानों को गशा लगतश्र न्श्र चक इस कटगता का लाो लेकर
चहन्दू-सांघटन कश्र तैयारश्र करनेवाले तन्ा मगसलमानों का गर्तन्क णचहष्ट्कार करनेवाले सफेदपोश लोगों
को नच्छा सणक चसखाया ीा सकेगा क्योंचक कम-से-कम उस समय तो नब्राह्मणवादश्र और
मगसलमान दोनों हश्र सफेदपोश वगभ के चवरोि में खड़े न्े। यद्यचप नागपगर में ोश्र इन चविारों को छूत पहग ाँ ि
िगकश्र न्श्र चफर ोश्र उनकश्र तश्रव्रता को शान्त करनेवालश्र एक शचि ोश्र यहााँ उचदत हो िगकश्र न्श्र। नागपगर
के ोोंसले घराने में ीश्रमन्त रघगीश्रराव तन्ा उनके छोटे ोाई ीश्रमन्त राीा लक्ष्मणराव ोोंसले दोनों हश्र
मन एवां कृचत से वादातश्रत ोूचमका लेकर सम्पूणभ चहन्दू समाी के प्रचत एकत्व और ममत्व कश्र ोावना
से चदन-प्रचतचदन का व्यवहार करते न्े। उसश्र प्रकार डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार गचद ने नपने प्रयत्न से
समाी के सोश्र वगों के व्यचियों एवां नेताओां को नपने प्रेम कश्र पचरचि में समाचवष्ट कर रखा न्ा। चकन्तग
लगता है चक मगसलमानों को इसकश्र कल्पना ुश्रक प्रकार से नहीं न्श्र। वे तो यह स्वप्न दे ख रहे न्े चक
यचद हमने सफेदपोश वगभ पर गघात चकया तो कोष्टश्रपगरा के लोग गनन्दाचतरे क से नाि उुें गे तन्ा
मौका पड़ने पर हमारश्र सहायता ोश्र करें ग।े उन्होंने यचद ये मनमोदक न णााँिे होते तो मगट्ठश्र-ोर मगसलमानों
कश्र नागपगर-ीैसश्र एक प्रान्त कश्र राीिानश्र में चदन-दहाड़े िमािौकड़श्र मिाने कश्र व्यूह-रिना नपनश्र मौत
को स्वयां चनमांत्रण दे ने के समान मूखत
भ ा होतश्र। चकन्तग समय रहते उनके र्ड्यांत्र का सगराग चमल िगका
न्ा।

ईद के चदन डॉ. मगांीे को पत्र गया चक ‘‘तगम्हारा खून करनेवाले हैं ।’’ उस चदन डॉक्टरीश्र तन्ा कगछ
स्वयांसेवक रक्षा करने कश्र दृचष्ट से डॉ. मगांीे के घर हश्र राचत्र को सोये। डॉ. मगांीे ने ोश्र नपने चसरहाने दो

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ोरश्र हग ई णन्दूकें तन्ा चपस्तौल रख छोड़श्र न्श्र। रात के समय मगसलमान गगण्डों कश्र एक टोलश्र उनके घर
के पास से चनकलश्र। स्वयांसेवकों ने उनकश्र खूण खणर लश्र। इस घटना से वातावरण और ोश्र तांग हो
गया तन्ा महाल ोाग में मगसलमान गगण्डे वहााँ के चनवाचसयों को ‘कढश्रिट ! लेपसट !’ कहकर चिढाते
हग ए घूमने लगे। मगसलमान मोहल्लों से स्त्रश्र-णरों को ीगलाई में हश्र णाहर ोेीना प्रारम्ो हो गया न्ा।
1924 में होनेवालश्र गड़णड़ तन्ा उससे उत्पन्न ोगदड़ को वे ोूले नहीं न्े। मगसलमान मोहल्लों में राचत्र
को लाुश्र के चशक्षा-वगभ ोश्र िलने लगे।

स्टे शन पर तन्ा नन्यत्र स्वयांसेवकों का घूमना-चफरना नचिक सतकभता से प्रारम्ो हो गया। इन चदनों
स्वयांसेवकों तन्ा नागपगर के चवचोन्न ोागों के कायभकता डॉक्टरीश्र के पास चमलने गते तन्ा उन्हें ज्ञात
समािार णता ीाते। इस समय नत्यन्त सूिकता से डॉक्टरीश्र सणके ध्यान में यह णात ला दे ते न्े चक
चहन्दू समाी के चकसश्र ोश्र ोाग पर गक्रमण हो तो सोश्र को दौड़कर सहायता करनश्र िाचहए। कोष्टश्रपगरा
से यचद कोई चमलने के चलए गता तो उससे पूछते चक ‘‘महाल ोाग पर गक्रमण हो गया तो तगम क्या
करोगे’’ तन्ा महाल के लोगों से प्रश्न करते चक ‘‘कोष्टश्रपगरा में गड़णड़श्र हग ई तो वहााँ ीाओगे चक नहीं ?’’
इन चदनों नण्णा सोहोनश्र में तो चवशेर् ीोश चदखता न्ा। उन्होंने लाुश्र के सान्-सान् कगछ लोगों को
िनगर्तवद्या कश्र ोश्र चशक्षा दे ना प्रारम्ो कर चदया न्ा। सोहोनश्र शस्त्र णनाने में ोश्र कगशल न्े। उनका घर
णाघनख, छगचरका, ोाला, तलवार गचद का एक छोटा-सा उत्पादन केन्द्र हश्र णन गया न्ा। उन चदनों
ननेक पचरचितों को उन्होंने सदण्ड तन्ा सशस्त्र णनाया न्ा। ीश्र सोहोनश्र ने डॉक्टरीश्र के ीन्मचदवस
पर उन्हें एक छग चरका ोेंट कश्र न्श्र।

डॉक्टरीश्र नपनश्र णैुक में यह णार-णार णताते न्े चक ‘‘णताया हग ग काम करना िाचहए पर उसका
ोल पश्रटने कश्र गवश्कता नहीं’’ तन्ा ‘‘यह कोश्र नहीं सोिना िाचहए चक यचद नकेले ने काम से ीश्र
िगराया तो कौनसा णड़ा चणगड़नेवाला है । यह काम कश्र सहश्र पद्धचत नहीं है ।’’ नपनश्र णात को पगष्ट करने
के चलए वे एक घटना का उदाहरण दे ते न्े। राीा लक्ष्मणराव ोोंसले के यहााँ एक समारोह में पानदान
का िूना समाप्त हो गया। उसश्र समय िूना लाने का गदे श हग ग। एक के णाद एक ‘‘िूना लाओ’’,
‘‘िूना लाओ’’ ीोर-ीोर से दूसरों से कहने लगे परन्तग िूना नहीं गया। डॉक्टरीश्र घर से पचरचित न्े।
नतः वे नन्दर ीाकर िूना ले गये। पर उसके णाद ोश्र काफश्र दे र तक ‘‘िूना लाओ’’ का हग कगम
एक नौकर से दूसरे नौकर पर िल रहा न्ा। इसश्र प्रकार वे एक दूसरश्र कन्ा णताते न्े। एक णार चकसश्र
राीा ने प्रातः सूयोदय के पहले मन्न्दर के कगण्ड में एक लोटा दूि डालने का गदे श नपनश्र सण ीनता
को चदया। प्रातः नांिेरे में राीाज्ञा का पालन करने के चलए चनकलनेवाला प्रत्येक व्यचि सोिने लगा
चक ‘‘सण तो दूि डालेंग।े यचद मैंने नकेला एक लोट पानश्र डाल चदया तो क्या चणगड़ता है ।’’ प्रत्येक
ने ऐसा सोिकर एक-एक लोटा पानश्र डाला चदया। सूयोदय के णाद तो कगण्ड में पानश्र-हश्र-पानश्र न्ा। दूि

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का कहीं नाम-चनशान ोश्र नहीं न्ा। इस प्रकार वे स्वयांसेवक के मन पर यह नांचकत करते न्े चक एक
व्यचि के ुश्रक काम न करने का क्या पचरणाम होता है ।

सांघ के प्रारम्ो में तन्ा 1927 के सांघर्भ के पूवभ डॉक्टरीश्र ने णैुकों तन्ा सोाओां में यह ननेक णार
णताया न्ा चक ‘मैं नकेला हू ाँ ’ कश्र ोावना चकतनश्र गत्मघातकश्र तन्ा हास्यास्पद है । उन चदनों लोग
इिर-उिर णोलते रहते न्े चक ‘‘चहन्दू तो मृत्यगमागभ का ननगसरण करनेवालश्र ीाचत है , सांस्कृत मृत ोार्ा
है , गी कश्र पचरन्स्न्चत में इस समाी का चसर उुाना नसम्ोव है , नतः ोाग्य में ीो चलखा होगा वहश्र
होगा’’ गचद गचद। इन णातों को सगनकर डॉक्टरीश्र नत्यन्त व्यग्र हो ीाते न्े। चकन्तग उन्होंने कोश्र
लोगों कश्र हााँ में हााँ नहीं चमलायश्र। उनका मन कहता न्ा चक चहन्दू के मन कश्र यह िारणा चक ‘मैं नकेला
हू ाँ ’ उसकश्र ोश्ररुता का कारण है । यचद सामूचहक ीश्रवन के व्यवहार से इस पृन्िा के ोाव को दूर कर
चदया तो चहन्दू समाी का खरा पगरुर्ान्ी एवां पराक्रमश्र स्व प नपने गप चवश्व के सम्मगख प्रकट होने
लगेगा। इसश्र चवश्वास के गिार पर वे चहन्दू के मन पर ीोंक के समान दृढ चिमटकर णैुश्र हग ई ‘मैं
नकेला हू ाँ ’ कश्र ोावना को उपहास के तड़ाके मार-मारकर दूर हटाने में कोश्र गगा-पश्रछा नहीं सोिते
न्े। इस सम्णन्ि में चनम्न दो घटनाओां का वे ननेक णार उल्लेख करते न्े।

पहलश्र घटना एक सोा कश्र है चीसमें एक मे क ने उछलकर चकस प्रकार नध्यक्ष, विा, ीोता सणके
होश-हवास गगम कर चदये तन्ा चीसके कारण सम्पूणभ सोा एकदम उखड़ गयश्र। उसका वणभन उस
काल के ‘महाराष्ट्र’ में चनम्नचलचखत शब्दों में चदया गया न्ा ‘‘...........एकाएक कगछ लोग सोा के णश्रि
में हश्र खड़े हो गये। दे खते-दे खते िौन्ाई सेचकण्ड के नन्दर पाकभ में वाकर रोड कश्र ओर के सोश्र लोग,
मानो चकसश्र चणीलश्र के िोंे से, एकदम खड़े हो गये तन्ा, पश्रछे व्याघ्र दौड़ रहा हो, इस प्रकार ोयाक्रान्त
हो ीान णिाकर ोागने लगे। उस ओर ोश्र लोगों कश्र ोश्रड़ न्श्र हश्र। लोगों कश्र यह लहर एकदम ोागतश्र
गने के कारण इसके नश्रिे हम कहीं न चपस ीायें इस ोय से वे ोश्र खड़े हो गये, तन्ा ‘ये क्यों दौड़ रहे
हैं ’ इसका कारण चकसश्र को ोश्र पता न होते हग ए केवल ोय से तश्रसरश्र ओर के लोग ोश्र खड़े हो गये।
उनमें से कगछ लोग ोागनेवालों के पैर के नश्रिे णगरश्र तरह रगड़े गये तन्ा ोागनेवाले कई लोग णैुे हग ए
लोगों के शरश्रर पर चगरकर स्वयां घायल हो गये तन्ा चीनके शरश्रर पर चगरे उन्हें ोश्र छोटश्र-छोटश्र िोट
लग गयश्र। साराांश यह है चक ऊपर वणभन करने में चीतना समय लगा उसके शताांश में, एक चनचमर् में
हश्र, सारश्र-कश्र-सारश्र सोा व्यांकटे श चन्येटर कश्र दश्रवाल कश्र ओर दौड़ पड़श्र। इतने में सोा में चकटसन
लाइट के दश्रपक ोश्रड़ के िोंे से िड़ािड़ नश्रिे चगर पड़े तन्ा णगझ गये। नध्यक्ष कश्र मेी पर केवल एक
चदया चटमचटमा रहा न्ा। दौड़तश्र हग ई ोश्रड़ चन्येटर कश्र दश्रवाल से ीा टकरायश्र। गगे ोागने को ीगह
नहीं, यह दे खकर कगछ लोग दश्रवाल पर तन्ा कुघरे पर कूदकर दूसरश्र ओर चगर पड़े। उनमें चकतनों
को गहरश्र िोट लगश्र। चकतने हश्र पगरुर् तन्ा णरे चगरकर ीख्मश्र हो गये। चकतने हश्र दण गये। ‘चगरे

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ननेकों, दणे ननेकों, णहग तों के छू टे हचन्यार’ ऐसश्र न्स्न्चत हो गयश्र। नकस्मात् हश्र गगे-पश्रछे न दे खते
हग ए लोग ोाग पड़े। इस कारण चकतनों हश्र कश्र छचे़डयााँ खो गयीं, णहग तों के ीूते गये, चकसश्र कश्र टोपश्र
उड़ गयश्र तो चकसश्र का दगपट्टा खो गया तन्ा चकसश्र कश्र िोतश्र छूट गयश्र। इतने हीार लोगों के मगाँह पर
क्षण-ोर तो हवाइयााँ उड़ने लगीं।......... ीााँि के णाद वास्तचवकता यह चनकलश्र चक सोा के मध्य
ोाग में णैुे एक मनगष्ट्य के पैर के नश्रिे कगछ मे क ीैसा लगा। नतः वह उुा तन्ा नश्रिे झगककर दे खने
लगा। उस समय गस-पास दस-पााँि और लोग ोश्र खड़े हो गये। उनमें से एक ीन ‘सााँप, सााँप’
कहकर चिल्लाने लगा। यह सगनते हश्र पास-पड़ोस के सण लोग उुकर ोागने लगे। उन्हें ोागता दे खकर
णाकश्र के लोग ोश्र ोय का कारण न समझते हग ए ोागने लगे। चनन्यानणे प्रचतशत लोग ‘हम क्यों ोाग
रहे हैं ’ यह न ीानते हग ए हश्र ोाग रहे न्े।’’

इस सोा के चदन डॉक्टरीश्र चकसश्र काम से नागपगर से णाहर गये न्े। ‘महाराष्ट्र’ पत्र में उसका वणभन
पढने के णाद वे सोा के सांिालकों से चमले और पूछा ‘‘ीोताओां कश्र णात तो छोचड़ए, पर गप लोगों
ने गगे गकर सणको सम्हाला क्यों नहीं ?’’ उत्तर चमला ‘‘मैं नकेला क्या करता ?’’ प्रत्येक मगाँह से
यहश्र राग सगनायश्र दे ता न्ा ‘‘मैं नकेला क्या करता ?’’

मोचहते णाड़े के पास काळश्रकर गलश्र कश्र ोश्र वे एक घटना सगनाते न्े। छः-सात चहन्दगओां को सामने से
गनेवाले दो मगसलमानों ने ीोर से कहा ‘‘ुहरो, साले को पश्रटो।’’ यह सगनते हश्र सणके सण चसर पर
पााँव रखकर ोागे। उनमें से एक ोगोड़ा रास्ते में डॉक्टरीश्र को चमल गया। उसे रोककर पूछा गया
‘‘क्यों ोाग रहा है ?’’ उसने हााँफते हग ए उत्तर चदया ‘‘दो मगसलमान मारने को ग गये। नकेला न्ा।
क्या करता ? ोागकर ीान णिायश्र।’’ यहश्र वह दूसरश्र घटना न्श्र।

इन घटनाओां को णताते समय डॉक्टरीश्र का णल इसश्र पर न्ा चक लोगों के मन में से नकेलेपन के हश्रन
ोाव को चनकाला ीाये। यह गत्मचवश्वासहश्रनता दूर करनश्र है तो चहन्दगओां के मन में ‘मैं’ के स्न्ान पर
‘हम पैंतश्रस करोड़’ का राष्ट्रश्रय नन्स्मता का ोाव उत्पन्न करना िाचहए। वे चवश्वासपूवभक प्रचतपादन
करते न्े चक यह ोश्ररुता और पलायन-िापल्य नष्ट करना है तो सणको प्रचतचदन एकत्र गकर ‘मैं
नकेला नहीं, नचपतग हम ननेक हैं ’ का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करना िाचहए। चहन्दगओां के टूटे िैयभ तन्ा
नवसान को पगनः ीाग्रत् करने कश्र चदशा में हश्र उनके सम्पूणभ उद्योग केन्न्द्रत न्े।

ऐसा लगता न्ा चक नपनश्र चनोभयता तन्ा कतभव्य के ज्ञान के कारण कसहगढ कश्र ोगदड़ में गियभीनक
न्स्न्त्यन्तर लानेवालश्र सूयाीश्र मालगसरे कश्र नश्रचत का हश्र डॉक्टर ननगसरण कर रहे न्े। ‘‘नण पराोव
नहीं, पराक्रम’’ यहश्र छाप नपनश्र णोलिाल से वे नपने सम्णन्ि में गनेवाले प्रत्येक व्यचि के मन पर

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डालते न्े। णाह्य पचरन्स्न्चत कश्र उष्ट्णता के कारण चविार करने को णाध्य ीनों के मन में डॉक्टरीश्र कश्र
णात घर करतश्र ीा रहश्र न्श्र तन्ा समाी में तरुण लोग नण चवचीगश्रर्ग वृचत्त से सोिने लगे न्े।

डॉक्टरीश्र ीहााँ एक ओर नपने समाी को ीाग्रत् एवां सगसज्ज करने का प्रयत्न कर रहे न्े वहााँ दूसरश्र
ओर मगसलमानों के द्वारा नपने मोहल्लों में गक्रमण का व्यूह चकस प्रकार रिा ीा रहा है इसकश्र ोश्र
खोी-खणर रखते न्े। इसश्र कारण गणेशोत्सव में महालक्ष्मश्र तन्ा गौरश्र के प्रसाद के चदन महाल क्षेत्र में
दां गा करने कश्र मगसलमानों कश्र योीना का उन्हें पहले हश्र पता लग गया न्ा। नतः झगड़े के सम्ोाव्य
क्षेत्र में स्न्ान-स्न्ान पर उन्होंने लाचुयााँ इकट्ठश्र करके रखवा दीं चीससे मौका पड़ते हश्र वे हान् लग
सकें। सान् हश्र नसगरचक्षत चदखनेवाले क्षेत्रों में डॉक्टरीश्र ने स्वयां ीाकर लोगों को सिेत रहने कश्र सूिना
दश्र। पटविभन हाई स्कूल के णगल में वसचतगृह के चवद्यार्तन्यों को ऐसा लगा चक उनका चनवास गगण्डों
के गक्रमण का लक्ष्य हो सकता है । नतः उन्होंने मगख्याध्यापक महोदय से रक्षा कश्र व्यवस्न्ा करने
को कहा। उन्होंने चवद्यार्तन्यों को णताया चक ‘‘यह सरकारश्र चवद्यालय है नतः गगण्डे कोई तकलश्रफ नहीं
दें ग।े ’’ डॉक्टरीश्र को स्वयांसेवकों के द्वारा इस णात का पता िला। इस पर उन्होंने वहााँ के चवद्यार्तन्यों
से कहा ‘‘गक्रमण के ीोश में इस णात का पता िला। इस पर उन्होंने वहााँ के चवद्यार्तन्यों से कहा
‘‘गक्रमण के ीोश में इस उत्तर से गगण्डों का कोई समािान नहीं होगा। गप सणको सदण्ड तन्ा
साविान रहना िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र कश्र यह सूिना नत्यन्त उपयोगश्र चसद्ध हग ई क्योंचक गगे ीण गगण्डों
ने वचसतगृह पर हमला चकया तो वहााँ के छात्र उनका ीमकर तन्ा सफलतापूवभक मगकाणला कर सके।

नगस्त मास के नन्त में मगसलमान मोहल्लों में चदनाांक 4 चसतम्णर को चनकलनेवाले एक ीगलूस के
हस्तपत्रक णााँटे गये। यह ीगलूस चकसश्र पगण्यचतचन् का णहाना लेकर चनकाला ीानेवाला न्ा। हस्तपत्रक
के ऊपर ‘फातेहा रव्वानश्र’ (पगण्यचतचन्), यह शश्रर्भक चदया न्ा। उस हस्तपत्रक में चलखा हग ग न्ा
‘‘...........मगसलमान ोाईयों को इचत्तला दश्र ीातश्र है चक तश्रन साल पहले सय्यद मश्रर साहण कश्र मृत्यग
हग ई। उनकश्र पगण्यचतचन् के चनचमत्त चदनाांक 4.9.27 को चदन के दो णीे एक ीगलूस हां सापगरश्र कचब्रस्तान
कश्र ओर ीाने के चलए नवाण मोहल्ले से महाल, वाकर रोड तन्ा गााँीा खेत के रास्ते से ीायेगा। नतः
सण इस्लामश्र णन्िगओां से प्रान्भना है चक उपयगभि तारश्रख को ीगलूस चनकलने के पहले हश्र णारह णीे
नवाणपगरा कश्र मन्स्ीद में इकट्ठा होकर ीगलूस में शाचमल हों। इससे ीगलूस में ीोश और गमी गयेगश्र
तन्ा गप सण सवाण के हकदार होंगे।’’ नश्रिे चकसश्र हग सैन शरश्रफ के हस्ताक्षर न्े।

इस ‘पगण्यप्रद’ यात्रा के चलए महालक्ष्मश्र के चदन दोपहर दो णीे का समय चनचित करने के पश्रछे
मगसलमानों कश्र िाल न्श्र। नागपगर-णरार ोाग में महालक्ष्मश्र का उत्सव णड़े वैोव तन्ा साी-णाी के
सान् मनाया ीाता है । उस चदन णड़श्र सीावट कश्र ीातश्र है । लोग दोनों दे वश्र-प्रचतमाओां का रे शमश्र तन्ा
ीरश्र के कश्रमतश्र वस्त्रों से ीृांगार करते हैं तन्ा घर के हश्ररे, मोतश्र, सोने गचद के मूल्यवान् गहनों से उन्हें

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नलांकृत कर घर-घर पूीा कश्र ीातश्र है । नैवेद्य के चलए इतने प्रकार कश्र िश्रीें पकायश्र ीातश्र हैं चक
‘िौंसु व्यांीन छत्तश्रस ोोग’ कश्र उचि नक्षरशः िचरतान्भ होतश्र है । दोपहर दो णीे से साांयकाल तक
दे वश्र गरोगतश्र हैं । मगसलमानों के नेताओां ने यह योीना णनायश्र न्श्र चक दोपहर को ोोीन कश्र दौड़िूप
में यचद चहन्दू मोहल्लों पर हमला णोल चदया तो सोश्र ोोीन-ोट्टों में ोगदड़ मि ीायेगश्र तन्ा उस न्स्न्चत
का लाो उुाते हग ए महालक्ष्मश्र को तोड़-फोड़कर उसके नलांकार लूटने का नक्षरशः स्वणभ-नवसर
हान् लग ीायेगा। इसश्र प्रकार के मनमोदक खाते हग ए चदन के णारह णीे नवाणपगरा कश्र मन्स्ीद के पास
नागपगर तन्ा गसपास के गााँवों से मगसलमानों का इकट्ठा होना शग हो गया।

इस समय डॉक्टरीश्र नागपगर में नहीं न्े। दो-तश्रन रोी से वे प्रचतवर्भ के ननगसार गणेशोत्सव में ोार्ण
दे ने के चलए िााँदा, विा गचद स्न्ानों के दौरे पर गये न्े। चकन्तग ीाने से पहले वे , झगड़ा हो गया तो
ध्यान में क्या रखना िाचहए इस सम्णन्ि कश्र सोश्र सूिनाएाँ दे गये न्े। समन्भ रामदास ने ‘दासणोि’ में
िाणाक्षता के ीो लक्षण चदये हैं वे सण डॉक्टरीश्र के चनत्य के व्यवहार में चदखायश्र दे ते न्े। वे यह सूत्र
नच्छश्र तरह से ीानते न्े चक दां गख
े ोर व्यचियों के सान् ीैसे-को-तैसा व्यवहार करने के चलए कगछ ोश्र
पता न होने का ऊपर से स्वााँग करना हश्र पड़ता है । उन्होंने मगसलमानों कश्र तैयारश्र तो हे र लश्र न्श्र चकन्तग
चहन्दगओां कश्र सीगता का पता नहीं िलने चदया न्ा। मगसलमानों के द्वारा दां गे कश्र चतचन् चनचित हो ीाने
के णाद ोश्र डॉक्टरीश्र के नागपगर से िले ीाने का उनकश्र ओर टे ढश्र नीर दे खने वाले मगसलमानों ने
नन्भ लगाया चक चहन्दू उनके र्ड्यांत्र के चवर्य में नांिेरे में हश्र हैं । ऐसा लगता है चक उनको इस प्रकार
णेखणर रखने के चलए हश्र डॉक्टरीश्र ने यह िाल िलश्र न्श्र। वे दौरे पर िले गये।

डॉक्टरीश्र कश्र सूिना के ननगसार ीश्र नण्णा सोहोनश्र के नेतृत्व में स्वयांसेवक मोचहते णाड़े कश्र टूटश्र
दश्रवाल कश्र गड़ में णारह णीे दोपहर से हश्र इकट्ठा होने लगे। नण्णाीश्र ने उनको ुश्रक प्रकार से णााँट
चदया तन्ा डॉ. मगी
ां े के घर से महाल तक सोश्र गलश्र-कूिों में उन्हें साविानश्र के सान् चछपकर णैुने कश्र
सूिना दश्र। कगल सोलह टगकचड़यााँ णनायश्र गयश्र न्ीं। सण चमलाकर सौ-सवासौ तरुण होंगे।

ीैसा चक चनचित हग ग न्ा रचववार, चदनाांक 4 चसतम्णर को दोपहर के दो णीे मगसलमानों का ीगलूस
चनकला। ‘नल्ला हो नकणर’ तन्ा ‘दश्रन दश्रन’ के नारे गला फाड़-फाड़कर लगाये ीा रहे न्े। नांग्री
े ों
के राज्य में एक प्रान्त कश्र राीिानश्र में इस ीगलूस में सहस्रावचि मगसलमान लाुश्र, तलवार, ोाला,
छग चरका गचद शस्त्रास्त्र से सज्ज नत्यन्त उन्मत्त ीैसा णताव करते हग ए ीा रहे न्े। चफर ोश्र पगचलस ने
उनकश्र ओर नांगगलश्र ोश्र नहीं उुायश्र। चहन्दू-मगसलमानों के सांघर्भ में राष्ट्रश्रय वृचत्त कश्र स्वाोाचवक रश्रचत
से नचोव्यचि करनेवाले चहन्दू समाी को यचद कगिला गया तो वह नांग्री
े ों के चलए चहतावह हश्र होगा
यह समझकर सरकार ने स्न्ान-स्न्ान पर मगसलमानों कश्र गक्रामक कायभवाचहयों कश्र ओर गाँखें मींि
लेने कश्र चनचत नपना रखश्र न्श्र। वैसे ोश्र ोारत पर गक्रामक के नाते दोनों एक हश्र तराीू के णटखरे न्े
और इस णात को दोनों हश्र ीानते न्े। नपने को नांग्रेीों के पूवभ के ‘सम्राट्’ कहकर मगसलमान नपनश्र

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छातश्र फगलाते न्े, तो दूसरश्र ओर, गी के सम्राट् नांग्री
े नपनश्र ऐांु चदखाते रहते न्े। सर ीॉन स्रेिश्र ने
मगसलमानों के सम्णन्ि में गत्मश्रयता व्यि करते हग ए चलखा न्ा ‘‘उनके चहत-सम्णन्ि हम लोगों से
णहग त चमलते हैं ’’ (“Whose political interests are indentical with ours”) । ‘‘मगसलमान
े ों कश्र िहे तश्र पत्नश्र हैं तन्ा चहन्दू ननिाहश्र’’ यह सर णामफश्रल्ड फगल्लर कश्र उचि तो प्रचसद्ध हश्र है ।
नांग्री

शासन कश्र इस दगनीचत के कारण यह सशस्त्र ीगलूस डॉ. मगांीे घर से तो नचिकाचिक उच्छृांखल तन्ा
गक्रामक होता हग ग गगे िलने लगा। नांग्रेी नचिकारश्र मन-हश्र-मन मीा लेते हग ए दशभक णने हग ए
न्े। वह नत्यन्त डरावना दृश्य न्ा। काळश्रकर गलश्र, वाईकर गलश्र, केळश्रणाग, चसटश्र हाई स्कूल का
प्रवेशद्वार, डॉ. हरदास का नस्पताल गचद सोश्र क्षेत्रों में घरों में णैुे हग ए चहन्दू ‘दश्रन-दश्रन’ के गगनोेदश्र
स्वर को सगनकर डर के मारे कााँप रहे न्े। उनका चदल िक्-िक् कर िड़क रहा न्ा। ीैसे-ीैसे ीगलूस
चनकट गता ीाता न्ा वैसे-वैसे लगता न्ा चक मानो नण हृदय कश्र िड़कन ोश्र णन्द हो ीायेगश्र। परन्तग
दूसरश्र ओर इन्हीं गचलयों में चछपे स्वयांसेवक ोश्र चनोभयता से ीगलूस कश्र णाट दे ख रहे न्े। गत्मसांरक्षण
का उनका चनिय दृढ न्ा। नपने पराक्रम और पगरुर्ान्भ पर उन्हें ोरोसा न्ा। गवेश के कारण उनके
णाहग ओां में स्फगरण हो रहा न्ा। न्ोड़श्र हश्र दे र में सड़क से ीानेवाला ीगलूस वाईकर कश्र गलश्र में गालश्र-
गलौि तन्ा मार-पश्रट करता हग ग घगस पड़ा। चकन्तग गलश्र में एक ओर िगपके से खड़े हग ए स्वयांसेवकों
ने उस साँकरश्र गलश्र में घगसे हग ए गगण्डों के ऊपर नपने प्रहार के हान् चदखाने शग कर चदये। णस,
मगसलमान गततायश्र लहग -लगहान होकर उलटे पााँव ोागने लगे। ‘दश्रन-दश्रन’ करते तन्ा नपने होश-
हवास खोकर कगछ गगण्डों ने ीगलूस को छोड़कर महाल-ोाग कश्र दूसरश्र गचलयों में घगसने का प्रयत्न चकया
पर वहााँ ोश्र वहश्र रिाचोर्ेक होते हश्र ीगलूस चणल्कगल चततर-चणतर हो गया तन्ा मगसलमान नकेले-
दगकेले चहन्दू को मारते-पश्रटते चिटणश्रस पाकभ कश्र तरफ ोागने लगे। उस समय उनकश्र णौखलाहट तन्ा
गालश्र-गलौि से यह साफ चदखता न्ा चक पहलश्र हश्र झड़प में उनकश्र नपेक्षा ोांग हो गयश्र न्श्र। इतना णड़ा
ीगलूस न्ोड़े से तरुणों ने हश्र चछन्न-चवन्च्छन्न कर चदया यह वाता चणीलश्र कश्र तरह सारे क्षेत्र में घर-घर में
फैल गयश्र। सगनते हश्र णाकश्र लोग ोश्र ोोीन-चमष्ठान छोड़कर रे शमश्र िोतश्र णााँिे हश्र लाचुयााँ लेकर चनकल
गये तन्ा ीगलूस पर टूट पड़े। चिटणश्रस पाकभ के पास चहन्दगओां कश्र यह ‘चनखरश्र’ मार मगसलमानों पर
पड़ते दे खकर नसांख्य लोग पगचलस कश्र परवाह न करते हग ए णहग त वर्ों में गनेवाले पवभ के समान वह
दृश्य दे खने के चलए वहााँ इकट्ठा हो गये।

नन्त में नांिेरे का गीय लेकर नपने काले मगह


ाँ चछपाने के चलए ोालदारपगरा कश्र ओर ोागने के
चसवाय मगसलमानों के सम्मगख और कोई िारा नहीं णिा। चहन्दगओां कश्र दे वश्र पर िढे हग ए गहने-ीवाहरात
को लूटने और मूर्ततोांीन का पगण्य लूटने कश्र लालसा से गये हग ए गगण्डों को दे वश्र का यह प्रसाद चमला।
कोमल कमल कश्र पाँखचग ड़यों पर हलके-हलके पड़नेवाले पग-िाप में गी दशप्रहरणिाचरणश्र
मचहर्ासगर-मर्तदनश्र के णल कश्र िमक चदखायश्र दे ने लगश्र न्श्र। महालक्ष्मश्र को सगवणभमगद्राओां कश्र

169
खनखनाहट चप्रय होतश्र है परन्तग गी उसे शस्त्रों कश्र झनझनाहट सगनने का िाव लगा न्ा। रचववार राचत्र
को सारे शहर में झड़पे )टोंर) होतश्र रहीं। चकन्तग उनमें चहन्दगओां का हश्र पलड़ा ोारश्र न्ा। रात-ोर लोगों
ने स्वयांप्रेरणा से नपने-नपने क्षेत्र में पहरा लगाया।

इसके णाद तश्रन चदन सोमवार, मांगलवार तन्ा णगिवार मारिाड़ में हश्र णश्रते। सोमवार को मगसलमानों ने
चहन्दगओां कश्र एक नन्ी पर हमला चकया। इसका णदला लेने के चलए ीैसे हश्र चहन्दू इकट्ठा होने लगे चक
उन पर लाुश्र, तलवार, ोाले गचद हचन्यारों से लैस मगसलमानों ने चफर गक्रमण णोल चदया। इसश्र
समय एक मगसलमान ने नपने घर में से गोचलयााँ ोश्र दागना शग कर चदया इससे नौ चहन्दू घायल हो
गये। उनमें एक स्वयांसेवक ीश्र िगन्ण्डराी लेहगााँवकर मारा ोश्र गया। इस घटना से चहन्दू एकदम क्षग ब्ि
हो गये तन्ा उन्होंने मगसलमानों के कगछ घरों तन्ा एक मन्स्ीद को गग लगा दश्र। यह काम दूर से हश्र
कगछ िनगिारश्र व्यचियों ने पता लगने ने दे ते हग ए नचग्नणाण छोड़कर चकया न्ा। सोमवार सायांकाल सेना
णगला लश्र गयश्र। गोरे चसपाहश्र िारों ओर गश्त लगाने लगे तन्ा ‘मशश्रनगनों’ के मोिे लगा चदये गये।
तश्रन-िार चदनों तक ीाचत, पन्न्, उद्योग, िन्िा गचद का कृचत्रम ोेद ोूलकर चहन्दगओां ने ीो एकता
और ीाग कता चदखायश्र उसके कारण मगसलमानों के पैर उखड़ गये तन्ा वे सरकारश्र सेना कश्र
छत्रछाया में नपने णाल-णरों को गोंड राीा के चकले में ले गये। सैकड़ो गगण्डे नस्पताल में पड़े नपने
पाप का फल ोोग रहे न्े। लगोग दस-पन्द्रह लोग इस लोक को छोड़कर सदा के चलए चहीरत कर
गये। चहन्दगओां में ोश्र िार-पााँि व्यचि वश्ररगचत को, प्राप्त हग ए। इस सांघर्भ में नागपगर के ीश्रवन पर चहन्दगओां
का चसोंा ीम गया।

नागपगर में दां गे का समािार डॉक्टरीश्र को िााँदा में चमला। वे तगरन्त नागपगर के चलए िल चदये। ीश्र
णाळकृष्ट्ण वाघ ोश्र उनके सान् न्े। डॉक्टरीश्र रास्ते में विा कगछ दे र के चलए ुहरे । वहााँ उन्हें नागपगर
से गया एक पत्र चमला। उसमें चलखा न्ा ‘‘सरकार तन्ा मगसलमान दोनो हश्र डॉक्टरीश्र के गने कश्र
णाट दे ख रहे हैं । नतः उन्हें विा में हश्र ुहर ीाना िाचहए।’’ ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ने ोश्र नागपगर कश्र
गम्ोश्रर न्स्न्चत दे खकर उनको न ीाने कश्र सलाह दश्र। उन्होंने णहग त कगछ गग्रह चकया परन्तग डॉक्टरीश्र
ने एक नहीं सगनश्र। दां गे के तश्रसरे चदन दोपहर को वे नागपगर पहग ाँ ि गये। स्टे शन पर सन्नाटा छाया हग ग
न्ा। नगर में ीाने को तााँगागाड़श्र चकसश्र ोश्र वाहन का चमलना सम्ोव नहीं न्ा। पगचलस के चसपाहश्र ने
डॉक्टरीश्र को णताया चक ‘‘शहर ीाने में खतरा है ।’’ पर डॉक्टरीश्र उसकश्र तरफ मगस्कराकर पैदल हश्र
घर कश्र ओर िल पड़े। यह डॉक्टरीश्र का साहस हश्र न्ा क्योंचक लगके-चछपे छगरे णाीश्र और मारा-मारश्र
कश्र घटनाएाँ नोश्र ोश्र िल रहश्र न्ीं।

डॉक्टरीश्र घर पहग ाँ िे तो उन्हें घर के ऊपर फूटश्र खपरै ल तन्ा गाँगन में खपड़ो का ेर चदखायश्र चदया।
उससे उन्होंने नन्दाी लगा चलया चक उनके पश्रछे घर पर ोारश्र ेलेणाीश्र हग ई है । घर में चकसश्र को िोट

170
नहीं गयश्र, इसका पता लगाकर वे नस्पताल गये तन्ा वहााँ दां गे में घायल लोगों तन्ा स्वयांसेवकों से
प्रेमपूवभक चमले। उसश्र प्रकार ीो व्यचि समाी कश्र रक्षा करने के प्रयत्न में स्वगभवासश्र हग ए उनके घर
ीाकर उनके पराक्रम के चलए िन्यता तन्ा पचरवारवालों के सान् सांवेदना प्रकट कश्र। इस प्रकार ोेंट
के नवसर पर उनके िैयभ तन्ा गन्तचरक प्रेम कश्र छाप लोगों के मन पर पड़े चणना नहीं रहतश्र। कई
लोग दां गे के नचोयोग में चगरफ्तार चकये गये न्े। उनके घर ीाकर ोश्र डॉक्टरीश्र ने गश्वासन चदया
चक ‘‘गप चिन्ता न चकचीए, उनकश्र मगचि के चलए सण प्रकार से प्रयत्न चकये ीायेंग।े ’’ घर में गगरुीनों
का ीैसे सणको गसरा रहता है उसश्र प्रकार नागपगर के सोश्र ीनों को डॉक्टरीश्र का सहारा मालूम
होता न्ा।

नण प्रत्येक िौराहे पर सैचनकों कश्र िमिमातश्र सांगश्रनें चदख रहश्र न्ीं। यचद सेना न गयश्र होतश्र तो चहन्दगओां
के प्रचतकार के कारण गचलतिैयभ मगसलमानों कश्र हालत तो णद से णदतर हो गयश्र होतश्र। चहन्दगओां कश्र
दगकानों से चकसश्र ोश्र िश्री का चमलना उनके चलए नशक्य हो गया न्ा। ‘पहल करके नपने हान् से हश्र
नपनश्र नाक काटकर नपशकगन कर चलया’ पिात्ताप के ऐसे ोाव उनके िेहरे पर स्पष्ट चदखने लगे न्े।
डॉ. मगांीे तन्ा राीा लक्ष्मणराव ोोंसले के नेतृत्व में नागपगर चहन्दू सोा कश्र ओर से गपद्ग्रस्त व्यचियों
कश्र सहायता के चलए एक सचमचत चनयगि कश्र गयश्र। उसमें डॉक्टरीश्र ोश्र न्े। इस सचमचत ने मगकदमों के
चलए सणूत तन्ा िन इकट्ठा चकया। चहन्दगओां कश्र ओर से मगकदमों कश्र पैरवश्र करने के चलए कई वकश्रल
ोश्र इसश्र सचमचत कश्र ओर से खड़े चकये गये।

नागपगर का वातावरण इतना सहकायभपूण,भ िैतन्ययगि तन्ा गचतमान् हो गया न्ा चक उस समय चहन्दगओां
के गत्मगौरव को प्रकट करते हग ए ‘महाराष्ट्र’ ने चदनाांक 11 चसतम्णर के नपने नग्रलेख में चलखा न्ा
‘‘..........यह सत्य है चक मगसलमानों द्वारा एक णार खगराफात करने पर तन्ा िावा णोल दे ने पर चहन्दगओां
ने गिे घण्टे के ोश्रतर हश्र मोहल्ले-मोहल्ले में पास-पड़ोस के लोगों को ीमा कर मगसलमानों के गक्रमण
का सामना करने कश्र तगरन्त तैयारश्र कर लश्र। इसके कारण कोष्टश्रपगरा के लुणाी कश्र मदद से हश्रन महाल
के सफेदपोश समाी को नकेला हश्र पकड़कर ुश्रक करने कश्र िमान्ि मगसलमान गगण्डों कश्र योीना
पूणभतः नसफल हो गयश्र। नण नागपगर का समस्त चहन्दू समाी स्वसांरक्षणक्षम हो गया है । वह नण
गगे मगसलमानों कश्र गगण्डागदी से घणड़ाकर ोागेगा नहीं। वह नण ीहााँ-का-तहााँ डटा रहकर
मगसलमानों के न्प्पड़ को न्प्पड़ तन्ा मगोंे को मगोंा दे गा।’’

इस सम्पादकश्रय में प्रकट होनेवालश्र चहन्दू समाी कश्र गत्मानगोूचत मगख्यता राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के
मगट्ठश्र-ोर स्वयांसेवकों के पराक्रम का हश्र पचरणाम न्श्र। चहन्दू ीाचत मगदा न होकर सतेी, पराक्रमश्र तन्ा
ीश्रचवत है , यह सांीश्रवक प्रेरणा नागपगर तन्ा मध्यप्रान्त में स्वयांसेवकों के शौयभ एवां िैयभ से प्राप्त हो गयश्र
न्श्र। सांघ के स्वयांसेवकों द्वारा कतभव्यचनष्ठा से चकये गये प्रयत्न उस प्रान्त में णढतश्र हग ई मगन्स्लम

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गक्रामकता कश्र िार को कगन्द करनेवाले चसद्ध हग ई। इस सम्णन्ि में ीश्र दादाराव परमान्भ चलखते हैं चक
‘‘ये प्रहार इतने शगोदशभन चसद्ध हग ए चक 1927 के णाद चफर कोश्र नागपगर में दां गे का नाम ोश्र नहीं
चनकला।’’

स्वाोाचवक हश्र राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ तन्ा उसके सांस्न्ापक डॉक्टर हे डगेवार का नाम नागपगर तन्ा
प्रान्त के कोने-कोने में पहग ाँ ि गया। तरुणों के पैर नण मोचहते सांघस्न्ान कश्र ओर हश्र णढने लगे।
स्वयांसेवकों कश्र सांख्या लगोग एक हीार तक हो गयश्र। नागपगर के चहन्दू समाी के सोश्र वगों में सांघ
एक नचोमान एवां गौरव कश्र वस्तग णन गया। दश्रपक के िारों ओर पतांगे नपने गप माँडराने लगते हैं ।
पराक्रम ोश्र इसश्र प्रकार गकर्भक होता है । इस घटना के णाद डॉक्टरीश्र का लोगों के मन में एक स्वतांत्र
एवां चवशेर् गदर का स्न्ान णन गया न्ा तन्ा लोग चववाह, यज्ञोपवश्रत गचद घर के मांगल कायों में ोश्र
उन्हें गग्रहपूवभक चनमांचत्रत करते। ऐसे नवसरों पर डॉक्टरीश्र पााँि-सात स्वयांसेवकों के सान् ीाते न्े।
चणदा करते समय यीमान डॉक्टरीश्र के गले में पगष्ट्पहार डालकर उनको नाचरयल तन्ा रुपये कश्र ोेंट
णड़श्र ीद्धापूवभक दे ता न्ा। उन चदनों नखाड़ों के प्रमगखों का इस पद्धचत से सम्मान चकया ीाता न्ा।
सािारण लोग सांघ को ोश्र डॉ. हे डगेवार का एक ननगशासनपूणभ नखाड़ा मानकर उनका इस प्रकार
सत्कार करते न्े। णाहर केवल णालकों का चदखनेवाला दो वर्भ का सांघ लोगों को नखाड़ा हश्र समझ
में गया तो उसमें गियभ का कोई कारण नहीं।

वटवृक्ष प्रारम्ो में पास कश्र झाड़श्र से ोश्र छोटा रहता है और इसचलए यचद नज्ञ ीन झाड़श्र कश्र तगलना में
वटवृक्ष कश्र नवमानना करने लगें तो कोई ननोखा नहीं होगा। एक नखाड़े के प्रमगख के समान हार
और नाचरयल ोेंट में लेते हग ए ोश्र, घड़श्र-ोर को सांघ और नखाड़े िाहे समान लगने लगें चकन्तग
डॉक्टरीश्र के हृदय में यह दृढ चवश्वास न्ा चक न्ोड़े हश्र चदनों में सांघ ोारत कश्र सश्रमाओां में ितगर्तदक,
व्याप्त होकर वटवृक्ष के समान सम्पूणभ समाी को नपनश्र छाया के तले वैसे हश्र सगख और सम्मान के
सान् ीश्रवन व्यतश्रत करने को गश्वस्त कर दे गा ीैसा चक उसने नपने दो वर्ों के ीश्रवन में हश्र नागपगर
चहन्दू समाी को चकया न्ा। चफर लोगों ने नपने कायभ को नखाड़ा समझकर कायभ कश्र नवमानना कश्र
इससे चखन्न ने होते हग ए उनकश्र सतावना को प्रेम से स्वश्रकार कर उनके हश्र समन्भन से सांघ का चवस्तार
कर उसमें से उनकश्र गलतफहमश्र को दूर करने का सामर्थयभ एवां प्रोाव चनमाण करने कश्र दृचष्ट सदै व
डॉक्टरीश्र के व्यवहार में रहतश्र न्श्र।

चववेक के सान् चवीय व्यचि एवां समाी के चलए हृचष्ट-पगचष्टकर होतश्र है । चकन्तग वहश्र चवीय यचद चववेक
के स्न्ान पर चवकारािश्रन हो ीाये तो वह पराोव कश्र प्रन्म सश्रढश्र चसद्ध हग ए चणना नहीं रहतश्र। डॉक्टीश्र
ने यह समझ चलया न्ा चक एक णार स्वयांसेवकों में ‘हमने पराक्रम चकया’ यह ोावना उत्पन्न हो गयश्र

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तो ‘चीतां मया’ कश्र वृचत्त से गकाश ोश्र कुगना लगने लगेगा तन्ा इस नहां कार के कारण चीस
सेवाोाव एवां समचष्ट-ीश्रवन कश्र चनर्तमचत के चलए सांघ कश्र स्न्ापना हग ई है उस हे तग पर हश्र पानश्र चफर
ीायेगा। नतः नागपगर का वायगमण्डल ीैसे हश्र स्वच्छ होने लगा उन्होंने िश्ररे-िश्ररे स्वयांसेवकों के मन
कश्र टोह लेने प्रारम्ो कर चदया। उन्होंने उनके मन पर यह चवशगद्ध ोाव नांचकत करने का प्रयत्न चकया
चक समाी के घटक होने के कारण यचद हमने उस पर गनेवाले गक्रमण को गगे णढकर नपने
ऊपर झेल चलया तन्ा रक्षा के चलए गक्रमणकाचरयों पर प्रत्याघात चकया तो हमने नपने कतभव्य मात्र
का हश्र पालन चकया है । मााँ के द्वारा णालक कश्र चिन्ता नन्वा सन्तान के द्वारा माता-चपता चक सेवा
चीतनश्र स्वाोाचवक है उतना हश्र स्वाोाचवक हमें नपना समाी के प्रचत कतभव्य लगना िाचहए। उसका
वृन्ाचोमान मन में नहीं उत्पन्न होना िाचहए। णन्ल्क नपने पराक्रम कश्र शेखश्र न मारते हग ए नन्वा
स्वयांसेवकों द्वारा सहन चकये हग ए दगःख के चलए रोते न णैुते हग ए हमें नपने समाी कश्र नन्ात् ीनता-
ीनादभ न कश्र नल्प-स्वल्प सेवा करने का सौोाग्य प्राप्त हग ग इसका गनन्द मानकर कतभव्यपालन का
सन्तोर् मात्र मन में रखना िाचहए। उन चदनों महात्माीश्र ीैसे महापगरुर् के मन में यह गलतफहमश्र णनश्र
हग ई न्श्र चक चहन्दू-सांघटन ‘मगसलमानों को पश्रटने’ के चलए हश्र होता है , चफर उनके ोिों का तो कहना
हश्र क्या ? वे तो िार कदम गगे णढकर णोलते न्े। चकन्तग चहन्दू-सांघटन का समन्भन करनेवालों में ोश्र
यह प्रचतचक्रयात्मक चविार रखा ीाता न्ा चक मगसलमानों का पराोव करने के चलए हश्र सांघटन िाचहए।
इसके कारण हश्र चहन्दू-मगन्स्लम एकता कश्र माला ीपनेवाले गाांिश्रीश्र कश्र भ्रममूलक िारणा दृढ होतश्र
गयश्र। डॉक्टरीश्र ने इस प्रचतपादन को कोश्र नांगश्रकार नहीं चकया। उन्होंने तो दां गों के पहले और णाद
में एक हश्र चविार सदै व रखा और वह न्ा ‘‘गपस के सारे कृचत्रम, ऊपरश्र ोेद चमटाकर सम्पूणभ चहन्दू
समाी एकत्व और प्रेम कश्र ोावना से तन्ा ‘चहन्दू ीाचत कश्र गांगा के हम सण चणन्दग हैं ’ इस ननगोव से
खड़ा हो गया तो दगचनया में कोई ोश्र शचि चहन्दू कश्र ओर टे ढश्र नीर से नहीं दे ख सकेगश्र।’’ चविायकता
हश्र डॉक्टरीश्र के प्रचतपादन कश्र चवशेर्ता न्श्र।

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15. सांघ कश्र रिना
सांघ के स्वयांसेवकों कश्र सांख्या तन्ा समाी पर उसका दणदणा णढता ीा रहा न्ा। चकन्तग परमपूीनश्रय
डॉक्टरीश्र कगछ चिन्न्तत न्े। उनका ननगोव न्ा चक लोग ोावना के गवेश में चकसश्र कायभ को णड़े
उत्साह से हान् में लेते हैं तन्ा िार चदनों में काम कश्र नवश्रनता समाप्त होते हश्र उससे हान् खश्रिक
ां र नपने
व्यचिगत काम-िन्िों में लग ीाते हैं । नतः डॉक्टरीश्र णराणर इस णात का प्रयत्न करते रहते चक सांघ
में गनेवाले स्वयांसेवकों के मन में नखण्ड स्फूर्तत का स्रोत प्रवाचहत करनेवालश्र चहन्दू राष्ट्र कश्र
चविारिारा न्स्न्र एवां दृढ हो ीाये तन्ा उनके मन चहन्दू राष्ट्र के प्रचत उत्कट ोचिोाव से पूणभतः व्याप्त
हो ीायें। इस उद्देश्य से णैुकें, णौचद्धक-वगभ तन्ा व्यचिगत णातिश्रत कश्र सगसूत्र योीना णनायश्र गयश्र।
सांघस्न्ान पर नत्यन्त उत्साह के सान् काम करनेवाले कगछ स्वयांसेवक क्रान्न्तकाचरयों के सम्पकभ में
ोश्र ग गये न्े। सांघस्न्ान के कायभक्रम के णाद ‘कगश’ पन्क के कगछ तरुण गगप्त प से नपनश्र णैुक
करते तन्ा वे कगछ ऐसश्र योीना कश्र कल्पना कर रहे न्े चीससे चक लोगों में ‘िाक’ णैु ीाये। णश्रस-
इोंश्रस वर्भ के तरुण कायभकता श्यामराव गाडगे उस पन्क के चशक्षक न्े। उनके मन का रुझान
क्रान्न्तकायभ कश्र ओर होने के कारण वे नपने पन्क के चकशोर स्वयांसेवकों को ोश्र इस ओर खींिने
तन्ा क्रान्न्त कश्र दश्रक्षा दे ने का प्रयत्न करने लगे न्े। इसके नचतचरि ीब्त साचहत्य पढने का िस्का ोश्र
तरुणों को लग गया न्ा। नतः पाल में हवा ोरने के कारण वेग से दौड़नेवालश्र नाव के समान तरुण
हृदय ोश्र क्रान्न्त के रां गश्रन स्वप्न णड़श्र तेीश्र से दे खने लगे न्े।

सावभीचनक कायों में व्यस्त रहने के कारण डॉक्टरीश्र को स्वयांसेवकों से चमलने-ीगलने के चलए चीतनश्र
फगरसत िाचहए उतनश्र नहीं चमल पातश्र न्श्र। नतः शाखा पर गनेवाले कगछ स्वयांसेवक तन्ा णाहर के
लोग ोश्र सांघ को नण्णा सोहोनश्र का सांघ, मातभण्डराव ीोग का सांघ नन्वा महासोा का पन्क गचद
समझकर णोलते हग ए सगने ीाते न्े। चकन्तग 1927 के णाद डॉक्टरीश्र ने नन्य कायों के नपना हान् काफश्र
खींि चलया तन्ा स्वयांसेवकों के णश्रि नचिक उुने-णैुने लगे। नतः स्वयांसेवकों में यह ोाव शश्रघ्र
हश्र ग गया चक सांघ चकसश्र व्यचिचवशेर् का न होकर सम्पूणभ चहन्दू समाी का है । िश्ररे-िश्ररे उन्हें यह ोश्र
समझ में गने लगा चक लाुश्र तन्ा सैचनक चशक्षण, चीनमें वे नत्यन्त मनोयोग से ोाग लेते न्े, साध्य
न होकर समाी को एकत्र करने तन्ा उसके नन्तःकरण में नपने स्वत्व और पगरुर्ान्भ का गचवष्ट्कार
करने के चलए काम में लाये गये पचरन्स्न्चत-सापेक्ष सािन मात्र हैं ।

डॉक्टरीश्र का स्वयांसेवकों के सान् ीैस-ीैसे सम्पकभ और सम्णन्ि णढता गया वैसे-वैसे उनके मन में
सांघ कश्र कल्पना स्पष्ट होने लगश्र। सांघ के दो कायभकता ीश्र णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र णवे , करां ीकर
के णाड़े में रहते न्े। डॉक्टरीश्र उनके यहााँ ीाते न्े तन्ा वहााँ गनेवाले स्वयांसेवकों के सान् खगलकर

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णातिश्रत करते न्े। णातों हश्र णातों में समय चनकल ीाता और कई णार तो गपटे ीश्र तन्ा णवे के गग्रह
पर डॉक्टरीश्र को ोोीन ोश्र उन्हीं के सान् करना पड़ता। गपटेीश्र तन्ा णवे स्वयां ोोीन णनाते न्े।
उनकश्र रोचटयााँ काफश्र मोटश्र रहतश्र न्ीं। नतः डॉक्टरीश्र उन्हें ‘रोट’ कहकर पगकारते न्े। ोोीन करते
समय इन रोचटयों को ‘टॉचनक’ कहकर णड़े स्वाद से खाते तन्ा हाँ सते-णोलते ोोीन ोश्र एक नत्यन्त
मिगर कायभक्रम हो ीाता।

इस वर्भ ‘ीनरल’ ीश्र मांिरशा गवारश्र ने शस्त्र-चनणभन्ि दूर करने कश्र मााँग लेकर नागपगर में एक
गन्दोलन शग चकया न्ा। इसके नन्तगभत हचन्यार-णन्दश्र के कानून कश्र नवहे लना कर हान् में नांगश्र
तलवार लेकर ीगलूस चनकाले ीाते न्े। पगचलस उन्हें चगरफ्तार करतश्र तन्ा मगकदमे िलातश्र। मगकदमों
में गन्दोलनकारश्र कहते न्े चक ‘‘हमने णांगाल के राीणन्न्दयों कश्र मगचि के चलए ये शस्त्र नपने पास
रखे हैं ।’’ इस गन्दोलन का केन्द्र इतवारश्र स्टेशन के दूसरश्र ओर ‘गादा कैम्प’ नाम से पचरचित ोाग
में एक झोपड़श्र में न्ा। डॉक्टरीश्र कोश्र-कोश्र कगछ स्वयांसेवकों के सान् रात के समय इस कैम्प में ीाते
न्े तन्ा कगछ दे र गवारश्रीश्र से णातिश्रत करके लौट गते न्े। डॉक्टरीश्र कश्र िारणा न्श्र चक पददचलत
राष्ट्र को कोश्र-न-कोश्र नपने उत्न्ान के चलए सशस्त्र क्रान्न्त का मागभ नपनाना पड़ सकता है । इसचलए
उन्हें लगता न्ा चक यद्यचप इस गन्दोलन से प्रत्यक्ष हचन्यार-णन्दश्र समाप्त न हग ई तो ोश्र हम लोगों के
मन में कम-से-कम शस्त्रों का चविार तो शग हो ीायेगा। यह ीनीाग्रचत ोश्र कम महत्त्व कश्र नहीं न्श्र।
नतः गवारश्रीश्र के गन्दोलन को उनका तान्त्त्वक समन्भन प्राप्त न्ा। महात्माीश्र ने गवारश्रीश्र को
चलखा न्ा ‘‘मैं दश्रपस्तम्ो हू ाँ । मेरे पास गओ’’ (“I am the light house. Come to me”) ।
उनका मत न्ा चक यह गन्दोलन पन्भ्रष्ट नौका के समान कहसा के चशलाखण्ड से टकराकर नष्ट हो
ीायेगा। चकन्तग डॉक्टरीश्र ने उसके मयाचदत महत्त्व को समझते हग ए उसकश्र यन्ासम्ोव सहायता कश्र।

गन्दोलन के नेताओां ने सोाओां में लोगों से तलवारों कश्र मााँग कश्र तन्ा उसके ननगसार लोगों ने
ोोंसले-काल कश्र रखश्र हग ई तलवारें उन्हें लाकर ोश्र दीं। गन्दोलनकता उनको हान् में लेकर ीगलूस
चनकालनेवाले न्े। स्पष्ट न्ा चक शासन उनको चगरफ्तार करने के सान् हश्र इन तलवारों को ोश्र ीब्त
कर लेता। डॉक्टरीश्र को यह पसन्द नहीं गया चक इस प्रकार नपने हान्ों से ऐसश्र नच्छश्र तलवारें
सरकार को सौंप दश्र ीायें। डॉक्टरीश्र ीश्र गवारश्र तन्ा महात्मा ोगवानदश्रन से चमले और कहा चक
‘‘परतांत्र दे श को न मालूम कण और चकस प्रकार से नपनश्र स्वतांत्रता के चलए सांघर्भ का सगयोग प्राप्त हो
सकता है । नपने हान् के हचन्यार ोश्र इस प्रकार गाँवा णैुना तो णड़श्र ोूल होगश्र।’’ तगरन्त गवारश्रीश्र ने
पूछा ‘‘चफर करें क्या ?’’ डॉक्टरीश्र ने उनको इस सम्णन्ि में योीना णतायश्र। सरश्र तलवारों के स्न्ान
पर टश्रन कश्र तलवारें णनवाकर उन पर िार िढवा दश्र ीाये तन्ा सत्याग्रह में उनका प्रयोग चकया ीाये।
कल्पना सणको पसन्द ग गयश्र। इसके णाद गन्दोलन समाप्त होने तक इसश्र प्रकार कश्र तलवारों का
प्रयोग चकया गया। डॉक्टरीश्र कश्र इस यगचि के पहले करश्रण-करश्रण एक हीार सरश्र तलवारें सरकार

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के हान्ों में पड़ िगकश्र न्ीं। पर णाकश्र शस्त्रों को डॉक्टरीश्र ने णिा चलया। नांग्रेीों के चवरुद्ध कोई ोश्र
तन्ा चकसश्र ोश्र प्रकार से खड़ा हो चक डॉक्टरीश्र उसकश्र, ीहााँ तक हो सकता न्ा, नवश्य सहायता
करते न्े। प्रत्येक प्रश्न का वे नचत दूरदृचष्ट से चविार करते न्े।

नागपगर के दां गों में चहन्दगओां कश्र सफलता दे श के नेताओां को एक णड़श्र निरी ोरश्र घटना प्रतश्रत होतश्र
न्श्र क्योंचक उन चदनों ोूलकर ोश्र कहीं ऐसा ननगोव नहीं चमलता न्ा चक मगसलमानों के योीनाणद्ध
गक्रमण के मगकाणले में चहन्दू चटक पाये हों। उल्टे , मगसलमानों का गक्रमण नन्ात् चहन्दगओां का
चवनाश, यहश्र समश्रकरण णन गया न्ा। उस वर्भ चहन्दू महासोा का नचिवेशन डॉ. णा. चश. मगी
ां े कश्र
नध्यक्षता में कणावतश्र )नहमदाणाद) में होने वाला न्ा। डॉ. मगांीे तन्ा कणावतश्र कश्र स्वागत-सचमचत
का यह गग्रह न्ा चक डॉक्टर हे डगेवार नचिवेशन में नवश्य गयें तन्ा नपने प्रोावश्र सांघटन कश्र
ीानकारश्र प्रान्त-प्रान्त के एकत्र कायभकताओां को दे दें । कगछ कारणों से डॉक्टरीश्र का स्वतः वहााँ ीाना
सम्ोव नहीं हग ग इसचलए उन्होंने ीश्र णाळाीश्र हग द्दार गचद सात सांघ-कायभकताओां को वहााँ ोेीा। वे
नपने सान् कोट, साफा, पेटश्र लााँगणूट गचद गणवेश ले गये न्े।

नचिवेशन में प्रान्त-प्रान्त कश्र पचरस्न्चत का चववेिन चकया गया। उसमें हर स्न्ान पर यहश्र चनराशाीनक
स्वर सगनायश्र दे ता न्ा चक ‘‘हम मगसलमानों के सामने खड़े नहीं रह सकते।’’ ननेकों ने यह सगझाव ोश्र
चदया न्ा चक इस न्स्न्चत का सामना करने के चलए सांघटन णनाना िाचहए। ीण मध्यप्रान्त के प्रचतचनचि
के णोलने कश्र णारश्र गयश्र तो डॉ. मगी
ां े कश्र सूिना के ननगसार सांघ के तरुण कायभकता ीश्र णाळाीश्र हग द्दार
खड़े हग ए। उनकश्र गणवेश में ऊाँिश्र-पूरश्र ोव्य मूर्तत दे खकर सांघटन के द्वारा हग ई ीाग्रचत का ननगमान सण
लोग कर सके होंगे। कारण, उनके सश्रिे-सादे खड़े रहने में ोश्र एक गत्मचवश्वास तन्ा शान न्श्र और
उनके ोार्ण में राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र चवीयाकाांक्षा कश्र ओीन्स्वता ओत-प्रोत न्ई। ीश्र हग द्दार ने
कहा न्ा चक ‘‘मैं उस प्रान्त से गया हू ाँ ीहााँ के चहन्दगओां ने मगसलमानों कश्र उद्दण्डता को पांगग णना चदया
है । नपने समाी कश्र नत्यन्त दयनश्रय दशा को दूर करने का यह ीादू डॉक्टर केशवराव णचळराम
हे डगेवार के नेतृत्व में खड़े सांघटन के द्वारा हग ग है ।’’ 1927 के इस नचिवेशन में सांघ का नाम चवचोन्न
प्रान्तों के नेताओां के कानों पर पड़ा तन्ा चहन्दगओां को हतप्रो करनेवालश्र पचरन्स्न्चत पर ोश्र कोई प्रोावश्र
उपाय-योीना हो सकतश्र है , इसका चविार उनके मन में उत्पन्न होने लगा।

इस वर्भ मध्यप्रान्त में सांघ का कायभ प्रगचत करने लगा। गणेशोत्सव तन्ा चवचवि गन्दोलनों के कारण
डॉक्टरीश्र का स्न्ान-स्न्ान के व्यचियों से सम्णन्ि ग गया न्ा उनके स्वोावानगसार यह सम्णन्ि
नत्यन्त चनकट का तन्ा प्रेमपूणभ न्ा। िारों ओर फैले हग ए इन चमत्रों का लाो लेकर उन्होंने सांघ का
काम गााँव-गााँव पहग ाँ िाना प्रारम्ो चकया। गीकल वे दौरे में नपने सान् ोगवाध्वी, हनगमान ीश्र का
चित्र तन्ा प्रचतज्ञा के लेख रखते न्े। उन चदनों शखा शग करने कश्र पद्धचत यहश्र न्श्र चक नगर के कगछ

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पचरचित प्रचतचष्ठत व्यचियों को इकट्ठा कर उनके सामने चहन्दू समाी कश्र पचरन्स्न्चत तन्ा उनको सगिारने
का एकमेव प्रोावश्र उपाय सांघटन हश्र है , यह चववेिन चकया ीाता न्ा। उनसे यह ोश्र गग्रह के सान्
कहा ीाता न्ा चक वे यचद इस सांघटन के काम को प्रत्यक्ष करना िाहते हैं तो उन्हें नागपगर के समान
वहााँ ोश्र ोगवाध्वी लगाकर उसकश्र छत्रछाया में चहन्दगओां को प्रचतचदन एकत्र करना िाचहए तन्ा चवचवि
कायभक्रमों के द्वारा उनमें ननगशासन और णल चनमाण कर सांरक्षण क्षमता णढानश्र िाचहए। इसके पूवभ
हश्र नागपगर में सांघटन का णढा हग ग प्रोाव लोगों को ज्ञात होने के कारण डॉक्टरीश्र के यह ननगोवपूणभ
चविार उनके मन को गकृष्ट करते न्े। उनका प्रचतपादन नत्यन्त हश्र सगणोि रहता न्ा। सान् हश्र लोगों
के चनराशाीनक, पराोूत एवां स्वान्ान्ि ीश्रवन को दे खकर उनके हृदय में होनेवालश्र व्यग्रता उनके
एक-एक शब्द से प्रकट होतश्र न्श्र। ननेक णार नांग्री
े ों तन्ा नन्य गक्रमणकाचरयों का उल्लेख करते
समय उनके ोार्णों में ीो ोावावेश रहता न्ा वा ोगवान् कृष्ट्ण के काचलया मदभ न नृत्य के गवेश के
समान चदखता न्ा। उनका स्वर गम्ोश्रर तन्ा चनियपूणभ न्ा। चकन्तग समाी कश्र चवकलाांगता का उल्लेख
करते समय उनका कण्ु ोर ीाता न्ा तन्ा कोश्र-कोश्र उनकश्र तन्ा ीोताओां कश्र गाँखों में गाँसू ग
ीाते न्े। उनको दे खकर ऐसा हश्र लगता न्ा मानो चहन्दू समाी के प्रचत उनका प्रेम साकार हो गया है ।
इन णैुकों के नन्त में वे उपन्स्न्त ीनों से सांघ कश्र प्रचतज्ञा लेने कश्र प्रान्भना कर नपनश्र ीेण से ोगवा
ध्वी चनकालकर प्रचतज्ञा दे ने कश्र व्यवस्न्ा करते। उनकश्र णात मानते हग ए ननेक लोग प्रचतज्ञा लेते।
कगछ चदनों डॉक्टरीश्र द्वारा शग चकये सांघ का स्व प इस प्रकार कश्र णैुकों का हश्र रहता न्ा। कगछ चदनों
णाद उसको हश्र सांघ कश्र चदन-प्रचतचदन िलनेवालश्र शाखा का स्व प दे चदया ीाता न्ा।

दां गे के णाद नागपगर में हश्र िन्तोलश्र ोाग में एक दूसरश्र शाखा शग कश्र गयश्र। इसश्र समय गीन्म सेवाव्रत
तन्ा वश्ररव्रत का स्मरण चदलानेवाला प्रचतज्ञा का सांस्कार सांघ में गरम्ो हग ग। स्वयांसेवक इस प्रचतज्ञा
में सवभशचिमान् परमेश्वर तन्ा नपने महान् पूवभीों का स्मरण कर चहन्दू राष्ट्र कश्र चनर्तमचत तन्ा
नचोवृचद्ध के चलए तन-मन-िनपूवभक गीन्म और प्रामाचणकता से प्रयत्नरत रहने का चनिय प्रकट
करता न्ा। ऐस णताते हैं चक प्रचतज्ञा का यह स्व प डॉक्टरीश्र के क्रान्न्तकारश्र दल कश्र प्रचतज्ञा से णहग त
चमलता-ीगलता न्ा। सांघ में प्रचतज्ञा का पहला कायभक्रम 1928 के मािभ मास में नागपगर से तश्रन-िार
मश्रल दूर ‘स्टाकी पॉइण्ट’ पर हग ग।

यह पहाड़श्र नागपगर-नमरावतश्र रास्ते से लगश्र हग ई घने वृक्षों से पूणभ है । यहााँ डॉक्टरीश्र चनन्यानवे िगने हग ए
स्वयांसेवकों को ले गये न्े तन्ा पहाड़श्र के पूवभ कश्र ओर ाल पर कगएाँ के पास पचवत्र ोगवाध्वी
लहराकर उसके सामने यह प्रचतज्ञा का गम्ोश्रर कायभक्रम पूरा हग ग। चदन-ोर स्वयांसेवक वहीं रहे तन्ा
शाम को लौटे । प्रचतज्ञा कश्र चवचि यह न्श्र चक डॉक्टरीश्र प्रचतज्ञा णोलते न्े और एक-एक स्वयांसेवक
ध्वी के सामने खड़ा होकर उस प्रचतज्ञा का शान्न्त एवां चविारपूणभ उरारण करता न्ा। उन चनन्यानवे
कृतचनियश्र स्वयांसेवकों में से गी ोश्र ननेक णढते हग ए गत्मचवश्वास के सान् काम करते हग ए चदखायश्र
दे ते हैं । उस सांस्कार कश्र सफलता का यहश्र मापदण्ड मानना िाचहए। उस समय प्रचतज्ञा लेनेवाले एक
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कायभकता ने यह कहा चक ‘‘पहले चदन प्रचतचज्ञत तरुणों के नाम गी ोश्र यचद वहााँ के वृक्ष टूटे नहीं हों
तो उन पर नांचकत चमलेंग।े ’’ वे नशाश्वत नाम गी चकसश्र को चलखे हग ए चमलें या न चमलें पर इसमें
लव मात्र ोश्र शांका नहीं चक उस समय का चहन्दू तरुणों के मन पर डॉक्टरीश्र द्वारा नांचकत ध्येयवाद
चहन्दगस्न्ान में शाश्वत, वर्तद्धष्ट्णग तन्ा ीचयष्ट्णग चसद्ध होगा। नपना सार-सवभस्व राष्ट्रमाता के िरणों पर
नर्तपत करने वाले कमभयोगश्र के पगण्य प्रताप तन्ा गत्मसामर्थयभ से प्रोाचवत होने के कारण मनग के
मत्स्य के समान णढते-णढते चहन्दू राष्ट्र को महाप्रलय से णिाने का सामर्थयभ प्राप्त करने के चलए हश्र चहन्दू
राष्ट्र के पगनरुत्न्ान के उस महामांत्र का उरारण चकया गया न्ा।

इसश्र समय डॉक्टरीश्र के चलए एक नत्यन्त दगःखद घटना घटश्र। चीनके कारण उनका मन, प्राण सण
कगछ एक हो गया न्ा, वे ीश्र ोाऊीश्र कावरे यह लोक छोड़कर िले गये। क्रान्न्तकायभ मन्द पड़ ीाने
के णाद ोाऊीश्र नागपगर और सेलूघोराड इन दोनों स्न्ानों पर गते-ीाते रहते न्े तन्ा वैद्यक और खेतश्र
के द्वारा नपनश्र ीश्रचवका िलाते न्े। डॉक्टरीश्र के हर काम में वे उनके सान्श्र न्े। सांघ कश्र शाखा शग
करने के चलए ोश्र कहगणश्र गचद कई स्न्ानों पर वे डॉक्टरीश्र के सान् लगे न्े। उनके मन में यह कल्पना
ीड़ ीमाकर णैुश्र न्श्र चक क्रान्न्त के चलए गगे ननगकूल समय गयेगा तण तक ‘यहश्र गश नटक्यो
रह्यो, नचल गगलाण के मूल’ के ननगसार शान्न्त के सान् समय व्यतश्रत करना िाचहए। इसचलए उन्होंने
1920 के पहले ीमा चकये हग ए शस्त्र और िन को स्न्ान-स्न्ान पर चछपाकर सगरचक्षत रखने कश्र व्यवस्न्ा
कर दश्र न्श्र। णश्रि-णश्रि में उनके क्रान्न्तकारश्र सहयोगश्र उनसे प्रश्न करते न्े ‘‘नण गगे क्या ?’’ मृत्यग
के पूवभ नागपगर से ीाते समय ीश्र नानाीश्र पगराचणक द्वारा यह पूछे ीाने पर उन्होंने कहा न्ा ‘‘एक महश्रने
ोर के चलए गााँव होकर गता हू ाँ , चफर पचरन्स्न्चत का चविार करें ग।े ’’ ोाऊीश्र गााँव गये। उस समय
उनका शरश्रर ज्वर से तप रहा न्ा। चफर ोश्र कतभव्य के नाते से एक रोगश्र को दे खने के चलए पैदल हश्र
िले गये। शरश्रर इस नत्यािार को सहन नहीं कर पाया। णश्रमारश्र और णढ गयश्र तन्ा कमीोरश्र ोश्र
नचिक लगने लगश्र। उल्टे उनका णोल णन्द हो गया। डॉक्टरीश्र को नागपगर में ीैसे हश्र यह समािार
चमला वैसे हश्र वे तन्ा कावरे ीश्र के ोाई के पचरवार के सण लोग वहााँ गये। ीाते -ीाते डॉक्टरीश्र ने
विा से डॉ. दे शमगख को ोश्र नपने सान् ले चलया। तश्रन चदन तक ीो कगछ हो सकता न्ा वह इलाी
चकया गया पर चकसश्र का वश नहीं िला। क्रान्न्त के स्वप्न दे खते-दे खते ोाऊीश्र डॉक्टरीश्र कश्र गोद में
सदा के चलए सो गये। चीनके चलये डॉक्टरीश्र सण कगछ कर सकते न्े उन्हें उनके दे खते-दे खते यमदूत
ले गये। घोराड कश्र नदश्र के चकनारे ोाऊीश्र का नन्न्तम सांस्कार हग ग। उस समय नदश्र के पास एक
टश्रले पर णैुे हग ए डॉक्टरीश्र एक छोटे णरे के समान फूट-फूटकर रो रहे न्े। यह करुण दृश्य गी ोश्र
ननेक लोगों के मनःपटल पर नांचकत है ।

वहााँ से लौटकर गने के णाद णहग त चदनों तक डॉक्टरीश्र ोाऊीश्र का स्मरण करते हश्र शोकाकगल हो
ीाते न्े। सांघ के 1928 के पहले सैचनक चशचवर का एक प्रसांग उल्लेखनश्रय है । राष्ट्रकायभ के चलए सैचनक

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चशक्षण लेकर दे शोचि से पचरपूणभ तरुणों के पन्क सांिलन कर रहे न्े और गणवेशिारश्र डॉक्टरीश्र
चशचवर का चनरश्रक्षण करने के चलए गये हग ए नागचरकों को वह दृश्य नत्यन्त िाव के सान् चदखा रहे
न्े। इतने में हश्र ोाऊीश्र का एक ननगयायश्र वहााँ ग गया। उसे दे खते हश्र डॉक्टरीश्र के मन में ोाऊीश्र
कश्र याद ग गयश्र। वे उसे एक ओर ले गये और यह कहते हग ए चक ‘‘ोाऊीश्र यह दृश्य दे खने के चलए
गी नहीं हैं ’’ रोने लगे। इतना न्ा डॉक्टरीश्र का उत्कट चमत्रप्रेम !

नण सांघ के प्रिार के चलए डॉक्टरीश्र को णार-णार दौरे पर ीाना पड़ता न्ा। सन्दे श ोेीने के चलए ोश्र
पत्रों के स्न्ान पर मनगष्ट्यों को हश्र गना-ीाना पड़ रहा न्ा। सांघ प्रारम्ो होने के तश्रन-िार वर्भ तक
डॉक्टरीश्र ने डाक से पत्र व्यवहार णहग त हश्र कम चकया। कहीं सन्दे श ोेीना हो तो हान् से चिट्ठश्र दे कर,
नन्वा णहग त महत्त्व का चवर्य हग ग तो ीणानश्र सन्दे श ोेीने कश्र पद्धचत न्श्र। उनका यह दृढ चविार
न्ा चक सांघकायभ कश्र नींव पोंश्र होने तक सरकार कश्र वक्र दृचष्ट इिर न ीाये इसचलए कागीश्र घोड़े नहीं
दौड़ाने िाचहए। उन चदनों प्रारम्ो होने वालश्र सोश्र सांस्न्ाओां कश्र प्रवृचत्त णराणर नपनश्र डगग्गश्र पश्रटते रहने
कश्र न्श्र। पर डॉक्टरीश्र ने सांघ कश्र दृचष्ट से प्रचसचद्ध-पराड;मगखता हश्र स्वश्रकार कश्र न्श्र। दे श कश्र तत्कालश्रन
पचरन्स्न्चत में गवश्यक पचरवतभन करने और राष्ट्र कश्र उज्जवल परम्परा को चिरन्तनता का वरदान
नपनश्र तपिया के णल पर चदला दे ने के चलए हश्र सांस्न्ाओां कश्र स्न्ापना होतश्र है । चकन्तग गत्मचवस्मृचत
के कारण निोगचत को प्राप्त राष्ट्र में सांस्न्ाएाँ गलश्र-गलश्र में चदखायश्र दे ने लगतश्र हैं । वहााँ चकसश्र ुोस
काम को करने के स्न्ान पर दो-िार महत्त्वकाांक्षश्र लोगों कश्र लोकेर्णा कश्र तृचप्त हश्र सांस्न्ाओां का
वास्तचवक उद्देश्य रह ीाता है और इसश्रचलए ‘णाचलश्त ोर चमयााँ, हान् ोर दाढश्र’ इस कहावत को
िचरतान्भ करते हग ए प्रिार और प्रदशभन के हास्यास्पद प्रयत्न हश्र चदखायश्र दे ते हैं । कचववर रवश्रन्द्रनान्
ुाकगर ने ोारतवाचसयों कश्र इस प्रवृचत्त के चवर्य में एक पत्र में कहा न्ा चक ‘‘प्रत्यक्ष में कगछ सफलता
प्राप्त करने तक हम नज्ञात रहें , यह मेरा कन्न है ।........उस समय तक हम पश्रछे रहकर केवल नपना
काम करते रहें । चकन्तग नपने दे शणन्िगओां कश्र प्रवृचत्त चणलकगल उलटश्र हश्र चदखतश्र है । वे नपनश्र
नत्यावश्यक और सािारण-सािारण सश्र णातों कश्र पूर्तत, ीो चक परदे के पश्रछे रहकर हश्र हो सकतश्र है ,
कश्र ओर कोई ध्यान नहीं दे त।े उनका सारा ध्यान णाहर के चदखाऊ एवां घृचणत प्रदशभनों पर केन्न्द्रत हो
गया है ।’’ डॉक्टरीश्र के कायभ का उसम राष्ट्रोत्न्ान कश्र लालसा में न्ा इसचलए प्रचसचद्ध नन्वा व्यचिगत
प्रचतष्ठा के स्न्ान पर राष्ट्रश्रय सांघटन का ुोस स्व प चनमाण करने कश्र दृचष्ट से हश्र उन्होंने सम्पूणभ तांत्र
का चविार चकया।

‘व्यचि-चनष्ठा के स्न्ान पर चवशगद्ध तत्त्व-चनष्ठा’ हश्र ीनमन में ीाग्रत् करने के चवशेर् उद्देश्य से इस तांत्र
कश्र रिना कश्र गयश्र न्श्र। इसमें सणसे उल्लेखनश्रय णात यह है चक सांघटन के गग त्व के स्न्ान पर स्वतः
कश्र नन्वा चकसश्र व्यचिचवशेर् कश्र प्रचतष्ठापना न करते हग ए डॉक्टरीश्र ने परम पचवत्र ोगवाध्वी को हश्र
उस चदव्य कसहासन पर चवराचीत चकया न्ा। इसके चलए हश्र यह पद्धचत चणलकगल प्रारम्ो से डालश्र गयश्र

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न्श्र चक चीस सांघस्न्ान पर स्वयांसेवक रोी एकत्र होते हैं वहााँ प्रारम्ो में ध्वी फहराकर उसे ननगशासन
और गदर से प्रणाम कर उसकश्र छत्रछाया और साचन्नध्य में हश्र सण कायभक्रम चकये ीायें।

स्वयांसेवकों में तत्त्व-चनष्ठा दृढ करने के प्रयत्नों के सान्-सान् हश्र डॉक्टरीश्र के सामने यह ोश्र प्रश्न न्ा
चक चदन-प्रचतचदन णढानेवाले सांघटन के चलए गवश्यक िन कैसे ीमा चकया ीाये। सौोाग्य से उनके
चमलनसार तन्ा लोकसांग्राहक स्वोाव के कारण मााँगने पर चमत्रों के द्वारा तगरन्त पैसे चमल ीाते न्े एवां
तात्काचलक गवश्यकता पूणभ हो ीातश्र न्श्र। चकन्तग उन्हें यह णराणर लगता न्ा चक इस प्रकार कश्र
कामिलाऊ पद्धचत से राष्ट्रव्यापश्र सांघटन कश्र व्यवस्न्ा नहीं हो सकतश्र और न यह उसके चलए योग्य
हश्र है । उसके चलए तो कोई ऐसश्र चटकाऊ योीना करनश्र िाचहए चीससे चणना प्रयास के वृकद्धगत प्रमाण
में िन सांघुन कश्र चनचि में गता रहे । सांघुन के चलए लोगों के पास पैसा मााँगने में नपने मन को
सांकोि और छोटापना ोश्र लगता है तन्ा सहायता दे नेवालों के मन में यह ोाव ोश्र ग सकता है चक
हम लोग डॉक्टरीश्र नन्वा सांघ पर णड़ा उपकार कर रहे हैं । वृक्ष पर पके हग ए फल चीतनश्र सरलता से
मातृोूचम कश्र गोद में चगर पड़ते हैं नन्वा ीावण के माह में पाचरीात के वृक्ष को न्ोड़ा-सा चहलाते हश्र
सगकोमल एवां सगगन्न्ित फूलों कश्र चीतने सरल ांग से वर्ा हो ीातश्र है वैसे हश्र चकसश्र ोश्र सांस्न्ा को
लोगों के मन कश्र गत्मश्रयता के कारण द्रव्य चमला तोश्र वह सांस्न्ा और दाता दोनों कश्र दृचष्ट से
सन्तोर्कारक एवां चहतकर होता है । डॉक्टरीश्र ने यह दे ख चलया न्ा चक गत्मश्रयता और ोचि से हश्र
णात सम्ोव हो सकेगश्र। फलतः दे नेवालों के मन में प्रसन्नता और सन्तोर् उत्पन्न करनेवालश्र, कायभ के
प्रचत उनकश्र गत्मश्रयता को व्यि करनेवालश्र और सांघ कश्र चनचि को ोश्र पगष्ट करनेवालश्र गग दचक्षणा
कश्र पद्धचत उन्होंने शग कश्र। लात न मारनेवालश्र दगिा तन्ा कन-ोर खाकर मन-ोर दूि दे नेवालश्र
गाय चमलना चीतना दगलभो एवां कचुन है वैसा हा कचुन यह काम न्ा। पर चनरपेक्ष और ननन्य ोचि
कन-ोर ोश्र न खाते हग ए मन-ोर दूि दे नेवालश्र कामिेनग होतश्र है । इस तत्त्व का साक्षात्कार डॉक्टरीश्र
कर िगके न्े तन्ा इस उत्कट एवां ननन्य ोचिोाव कश्र रखवालश्र का कायभ हश्र वे सांघ के द्वारा नखण्ड
प से कर रहे न्े। इसश्र कारण यािना न करते हग ए ोश्र दे शव्यापश्र सांघटन के चलए गवश्यक िन
राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ को नव्याहत प से चमलता रहा। चीस प्रकार उन्होंने ोगवाध्वी को सणके
सामने रखकर चहन्दगओां कश्र प्रवृचत्त एवां चनवृचत्त, त्याग एवां ोोग, नभ्यगदय एवां चनःीेयस सणका
पारस्पचरक सम्णन्ि ीोड़नेवालश्र परम्परा का स्मरण कराया उसश्र प्रकार उन्होंने तरुणों के मन पर यह
सांस्कार ोश्र डाला चक हम इस ध्वी के िागे के समान राष्ट्र के नांगोूत नवयव, उसके उत्कर्भ में हश्र
नपने कतभव्य को ‘इदन्न मम’ कहकर उसके िरणों में नपभण करने में हश्र ीश्रवन कश्र सान्भकता समझें।

नपने िमभ कश्र प्रन्ा के ननगसार गर्ाढ पूर्तणमा को व्यासपूीन नन्वा गगरुपूीन होता है । स्वयांसेवकों
में नपने गगरु के प्रचत ोचिोाव और समपभणवृचत्त के सांस्कार डालने के उद्देश्य से डॉक्टरीश्र ने सांघ में
ोश्र इस उत्सव को मनाना प्रारम्ो चकया। इस चदन सण स्वयांसेवक नपनश्र-नपनश्र ीद्धा और सामर्थयभ

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के ननगसार परमपचवत्र ोगवाध्वी के सम्मगख दचक्षणा नपभण कर उसका पूीन करें यह पद्धचत 1928
से शग कश्र गयश्र। उस समय तक तन्ा उसके णाद ोश्र कगछ वर्ों सांघ कश्र गर्तन्क गवश्यकताओां कश्र
पूर्तत िन्दे से हश्र होतश्र न्श्र। परन्तग इस नयश्र पद्धचत से चनिभन एवां िनश्र दोनों को हश्र चणना कगछ कहे नपनश्र-
नपनश्र न्स्न्चत के ननगसार नचिकाचिक नपभण करने कश्र सगचविा चमल गयश्र। िन्दे के सान् लगश्र हग ई
नचिकार कल्पना से नपने मन को चवकारमगि रखते हग ए नर्तपत, चकसश्र ोश्र कायभ के चलए गवश्यक
िन सांघ के हान् में गने लगा। दचक्षणा दे ते हग ए चकसश्र पर ोार न पड़े तन्ा चदये हग ए िन के पश्रछे उपकार
कश्र ोावना न चिपक ीाये, इन दोनों चविारों से सांघुन में स्वश्रकृत गगरुपूीन कश्र पद्धचत का प्रिलन
इस णात का नत्यन्त ननूुेपन का उदाहरण है चक डॉक्टरीश्र ने सांघ कश्र कायभपद्धचत का चवकास करते
समय राष्ट्र कश्र परम्परा, नपनश्र सांस्कृचत का ोाव, मानव कश्र प्रकृचत, उसकश्र उन्नयनक्षमता तन्ा सांघटन
कश्र गवश्यकताओां का चकतना गम्ोश्ररता और सूक्ष्मता के सान् चविार कर उसमें से नत्यन्त हश्र
व्यावहाचरक तन्ा गदशोन्मगखश्र पद्धचत का गचवष्ट्कार चकया।

डॉक्टरीश्र ने पहले चदन स्वयांसेवकों को सूिना दश्र चक ‘‘कल गगरुपूीन का उत्सव होगा। नतः गप
नपनश्र ीद्धा के ननगसार फूल और दचक्षणा ले गयें।’’ सूिना के णाद स्वयांसेवक नपनश्र-नपनश्र णगचद्ध
के ननगसार नटकल लगाने लगे। कोई णोला ‘‘कल हम लोगों को गगरु के नाते डॉक्टरीश्र कश्र पूीा
करने का नवसर चमलेगा।’’ चकसश्र ने कहा चक ‘‘पूीन नण्णा सोहोनश्र का होगा।’’ दूसरे चदन
ध्वीोत्तोलन के णाद उसका पूीन करने के चलए सूिना दे ते हग ए डॉक्टरीश्र ने ीो चविार रखे उससे
सण लोगों का भ्रम चनवारण होते दे र नहीं लगश्र। डॉक्टरीश्र ने नपने ोार्ण में कहा ‘‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक
सांघ चकसश्र ोश्र व्यचि को गगरु न मानकर परम पचवत्र ोगवा ध्वी को हश्र गगरु मानता है । व्यचि चकतना
ोश्र महान् हो चफर ोश्र उसमें नपूणभता रह सकतश्र है । इसके नचतचरि यह नहीं कहा ीा सकता चक
व्यचि सदै व हश्र नचडग रहे गा। तत्त्व सदा नटल रहता है । उस तत्त्व का प्रतश्रक ोगवा ध्वी ोश्र नटल
है । इस ध्वी को दे खते हश्र राष्ट्र का सम्पूणभ इचतहास, सांस्कृचत और परम्परा हमारश्र गाँखो के सामने
ग ीातश्र है । चीस ध्वी को दे खकर मन में स्फूर्तत का सांिार होता है वह नपना ोगवा ध्वी हश्र नपने
तत्त्व के प्रतश्रक के नाते हमारे गगरु-स्न्ान पर है । सांघ इचसलए चकसश्र ोश्र व्यचि को गगरु-स्न्ान पर रखना
नहीं िाहता।’’ ोार्ण के उपरान्त सवभप्रन्म डॉक्टरीश्र ने स्वयां गगरु पूीन चकया। तदनन्तर समवेत
स्वयांसेवकों ने एक-एक करके पूीा कश्र। पहले गगरुपूीन के नवसर पर िौरासश्र रुपये तन्ा कगछ गने
दचक्षणा हग ई। चवशेर् उल्लेखनश्रय णात यह है चक एक स्वयांसेवक ने केवल गिा पैसा नर्तपत चकया न्ा।
गांगोत्रश्र में गांगा कश्र छोटश्र िारा के समान गगरुदचक्षणा का यह स्व प ोश्र िश्ररे-िश्ररे णढता गया तन्ा
सांघटन कश्र ोौचतक गवश्यकताओां कश्र पूर्तत का हश्र नहीं नचपतग उसके तान्त्त्वक नचिष्ठान को सगदढ

करने का पगण्यप्रद एवां समन्भ सािन चसद्ध हग ग है ।

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सांघ का प्रारम्ो चवीयादशमश्र के मगहूतभ पर हग ग न्ा। प्रत्येक दशहरे को नपने ीन्मचदन के नवसर पर
उसने गत वर्भ कश्र सश्रमा का उल्लघांन करके चदखाय न्ा। इस वर्भ चदनाांक 23 निूणर को दशहरा न्ा।
डॉक्टरीश्र ने उस चदन नागपगर में सैचनक पद्धचत से पन्-सांिलन का चविार चकया तन्ा घोर्-चवोाग को
खड़ा करने कश्र व्यवस्न्ा कश्र। लगोग पााँि-छः सौ स्वयांसेवक सांिलन कश्र दृचष्ट से तैयारश्र कर रहे न्े।
इसश्र समय ीश्र चवट्ठलोाई पटे ल का नागपगर गगमन हग ग। डॉक्टरीश्र के चनमांत्रण पर वे मोचहते
सांघस्न्ान पर ोश्र गये। स्वयांसेवकों का ननगशासनणद्ध सांिलन दे खकर उन्हें नत्यन्त गनन्द हग ग।
ां े ने कहा ‘‘सांघ का कायभ उस
सांिलन के उपरान्त चवट्ठलोाई को सांघ का पचरिय कराते हग ए डॉ. मगी
पचरन्स्न्चत का चनमाण करना है चीसमें ये यगवक ‘चहन्दगस्न्ान चकसका है ’ पूछे ीाने पर ‘हम चहन्दगओां
का’ इस प्रकार का चनोीक उत्तर दे सकें।’’ इसके णाद ीश्र चवट्ठलोाई ने णहग त हश्र न्ोड़े एवां िगने हग ए
शब्दों में स्वयांसेवकों का मागभदशभन चकया। वे णोले ‘‘यह कायभ मेरे चलए नवश्रन है , पर इससे मेरे चविारों
को िालना चमलश्र है । राष्ट्रश्रय ीश्रवन में इस कायभ के स्न्ान के चवर्य में मैं कोई मत दे ने में समन्भ नहीं
हू ाँ । परन्तग इतना कहू ाँ गा चक ीगत् में ईश्वर को छोड़कर चकसश्र से डरो मत तन्ा नपने कायभ पर नचविल
चनष्ठा रखकर ीोर से कायभ-वृचद्ध करो।’’

दशहरे पर पन्-सांिलन उस वर्भ के उत्सव कश्र चवशेर्ता न्श्र। उस समय कगछ सांघप्रेमश्र नागचरक ोश्र
सादे वेश में सांिलन के सान् िल रहे न्े। उस दृश्य को दे खकर ‘महाराष्ट्र’ ने चलखा न्ा ‘‘चपछलश्र
चवीयादशमश्र को राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के तश्रन वर्भ पूरे हग ए। यह कहने में हीभ नहीं चक इतने समय
में सांघ के द्वारा चकया हग ग चहन्दू तरुणों का सांघटन काफश्र ुोस हग ग।’’

सांघ-स्न्ापना के णाद इन दो-तश्रन वर्ों में डॉक्टरीश्र ने नागपगर और विा चीलों के स्न्ान-स्न्ान पर
पहले से चछपाये हग ए शस्त्रास्त्रों को नागपगर में इकट्ठा चकया। यह करते हग ए उन्होंने ीैसे यह सतकभता
रखश्र चक सरकार को इस णात का पता न िले, वैसे हश्र उन्होंने इसका ोश्र ध्यान रखा चक वे सांघ के
चकसश्र स्वयांसेवक के हान् में न पड़ ीाये। डॉक्टरीश्र यह ीानते न्े चक यचद नांग्रेी ीैसे चवदे शश्र शासकों
कश्र गाँखों दे खते चहन्दू राष्ट्र का सचदयों ने न होनेवाला नोेद्य सांगटन खड़ा करना है तो कगछ पर्थय
नवश्य पालन करना पड़ेगा। फलतः उन्होंने यह दक्षतापूणभ व्यवहार चकया न्ा। उनका शस्त्रों से कतई
चवरोि नहीं न्ा, चकन्तग वे यह ोश्र दे ख िगके न्े चक नपने दे श के लोगों का नन्तःकरण ज्वलन्त राष्ट्रोचि
से ोरकर उनके परस्पर के सम्णन्ि स्नेहमय तन्ा ीश्रवन ननगशासनपूणभ हग ए चणना शस्त्रास्त्र चकसश्र काम
के नहीं। इसचलए उस काल कश्र चवचशष्ट पचरन्स्न्चत को ध्यान में रखकर उन्होंने स्वयांसेवकों को नपना
सम्पूणभ लक्ष्य लोकसांग्रह पर केन्न्द्रत करने के चलए तैयार चकया। इस सम्णन्ि में उनके चविार ध्यान में
लानेवालश्र 1928 कश्र एक घटना उल्लेखनश्रय है ।

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सांघ के दशहरा-महोत्सव पर शस्त्रपूीन चकया ीाता है । उसमें सदा लोहे कश्र तलवारों का पूीन होता
है । एक णार कगछ पांीाणश्र व्यापारश्र णचढया िारदार फौलादश्र तलवार और छगचरयााँ णेिने के चलए विा
गये। यह दे खकर वहााँ के कायभवाह ीश्र णगराांडे के मन में इच्छा हग ई चक ‘‘शस्त्रपूीन के चलए कम-से-
कम एक तलवार तो खरश्र होनश्र िाचहए।’’ नतः कश्रमत वगैरह का पता लगाकर उसे खरश्रदने कश्र
ननगमचत लेने के चलए वे वहााँ के सांघिालकीश्र के पास गये। सांयोग से डॉक्टरीश्र ोश्र उस चदन वहीं न्े।
स्वाोाचवक हश्र उनके सम्मगख यह चवर्य चनकला। ‘‘नपना समाी उत्तम रश्रचत से शस्त्रसज्ज होने के
णाद ोश्र परतांत्र क्यों हो गया ?’’ यह प्रश्न उन्होंने पूछा तन्ा चववेिन करते हग ए णोले ‘‘सण पचरन्स्न्चत
का ऊहापोह करने के णाद गी यचद चकसश्र एक वस्तग कश्र गवश्यकता है तो वह है प्रत्येक चहन्दू का
नन्तःकरण राष्ट्रचनष्ठ णनाने कश्र। ऐसे नन्तःकरण सम्पूणभ दे श में चनमाण होने के ऊपरान्त उनके हान्
में सािन तो स्वतः िलते गयेंगे और वे दे श को स्वतांत्र कर सकेंगे। चीस प्रकार पाण्डवों ने चवचशष्ट
पचरन्स्न्चत का चविार करते हग ए नपने गयगि शमश्रवृक्ष पर रख चदये न्े उसश्र प्रकार हम ोश्र गीकल
शस्त्रों का चविार न करते हग ए नपने सांघटन को दे शव्यापश्र, एकसूत्रश्र तन्ा ननगशासनपूणभ णनाने कश्र हश्र
चिन्ता करें ।’’

इस वर्भ कश्र कगछ और घटनाएाँ उल्लेखनश्रय हैं । 1928 के निूणर में नागपगर में लोकमान्य चतलक के
पगतले का ननावरण हग ग। डॉ. नांसारश्र के द्वारा यह ननावरण करवाकर उस सचमचत के कगछ लोगों ने
चहन्दू-राष्ट्रवादश्र वगभ को चिढाने का प्रयत्न चकया। उस समय नागपगर में डॉ. मगांीे तन्ा णैचरस्टर मो ोाऊ
नभ्यांकर के दो दल णन गये न्े तन्ा वे गपस में खूण झगड़ते न्े। उसकश्र कगछ गाँि डॉक्टरीश्र को
ोश्र लगना स्वाोाचवक न्ा। सवभसामान्य लोग डॉक्टरीश्र को डॉ. मगी
ां े के गगट का मानते न्े। नतः डॉ.
मगांी,े डॉ. हे डगेवार तन्ा ीश्र ोवानश्रशांकर चनयोगश्र को इस ननावरण-समारोह का चनमांत्रण ोश्र नहीं ोेीा
गया। फलतः वे उस समय ननगपन्स्न्त रहे । डॉक्टरीश्र को तो इसका णड़ा गनन्द न्ा चक चकसश्र के
हान्ों क्यों न हो लोकमान्य चतलक का पगतला तो प्रचतचष्ठत हग ग। लोकमान्य उनके ीश्रवन को प्रेरणा
दे नेवाले एक राष्ट्र-पग र् न्े। उद्घाटन के समय िाहे उनकश्र उपेक्षा कश्र गयश्र हो चकन्तग नपना कतभव्य
समझकर उन्होंने चदनाांक 27 निूणर को सांिलन करते हग ए सण स्वयांसेवकों के सान् पगतले कश्र
मानवन्दना कश्र। उस कायभक्रम में डॉक्टरीश्र गणवेश में उपन्स्न्त न्े तन्ा उन्होंने लोकमान्य का गगण-
गौरव णखानते हग ए ोार्ण ोश्र चदया। समािारपत्रों के वृत्त से पता िलता है चक उस मानवन्दना के
कायभक्रम में स्वयांसेवकों का ननगशासन दे खकर उस समय के पगचलसदल के प्रमगख सरदार हरणांसकसह
ोश्र प्रशांसा चकये चणना न रह सके।

निूणर में डॉक्टरीश्र मराुश्र-ज्ञानकोर्कार डॉ. केतकर को ोश्र सांघ चदखाने के चलये लाये। समाी में
मान्यताप्राप्त तन्ा चकसश्र ोश्र क्षेत्र में चवशेर् काम करने वाले चकसश्र ोश्र व्यचि का डॉक्टरीश्र से पचरिय
होने पर वे उसके सान् सांघ के सम्णन्ि में नवश्य ििा करते न्े तन्ा उसे सांघस्न्ान के कायभक्रम चदखाने

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के चलए ोश्र लाते न्े। इस प्रकार वे सांघ का पचरिय प्रत्येक चवशेर् व्यचि से कराने का कोई नवसर
हान् से नहीं ीाने दे ते न्े। उस व्यचि के दल, मतवाद, प्रान्त, ीाचत गचद का चविार डॉक्टरीश्र के
चलए गौण न्ा। सामान्यतः तो यह प्रवृचत्त चदखतश्र है चक लोग नपनश्र स्वतः कश्र कल्पना से दूसरे के सान्
मतोेदों को णड़ा णनाकर उसके सान् ोय से नन्वा मत्सर से सम्णन्ि न लाते हग ए दूर-दूर हश्र रहते हैं ।
डॉक्टरीश्र का स्वोाव इस चवर्य में चणल्कगल उलटा न्ा। वे चहन्दू समाी के चकसश्र ोश्र व्यचि को चकसश्र
ोश्र कारण से सांघ का पचरिय कराने के चलए नपात्र नहीं मानते न्े। चकसश्र के सान् मतोेद हग ए तो ोश्र
उसको नलग-नलग रखने से तो वे मतोेद कोश्र दूर नहीं हो सकते। नतः वे उसके चविार सगनने
तन्ा नपने चविार उसके कानों में डालने का कोई ोश्र नवसर नहीं िूकते न्े। इसके चलए दो णातों कश्र
गवश्यकता होतश्र है । एक तो, नपना मत पूणभतः तकभशगद्ध पद्धचत से नच्छश्र तरह दूसरे को समझा
सकने का गत्मचवश्वास होना िाचहए, तन्ा दूसरे , उसके द्वारा नपने तकभ में णताये गये दोर् नन्वा
कमश्र को शान्न्त के सान् सगनने का िैयभ एवां सचहष्ट्णगता ोश्र िाचहए। चहन्दू राष्ट्र के ऊपर डॉक्टरीश्र कश्र
चनष्ठा नसामान्य कोचट कश्र न्श्र तन्ा दूसरे का कन्न शान्न्तपूवभक सगनकर, उसका मान, रखते हग ए, उसे
नपनश्र कल्पना पटा दे ने में तो वे णहग त हश्र कगशल न्े। इसश्रचलए तो िाहे ीश्र पटे ल गयें या डॉ. केतकर
गयें, डॉक्टरीश्र उनका सहर्भ स्वागत करते न्े।

गोरक्षण तन्ा गोसांविभन से डॉक्टरीश्र को णहग त प्रेम न्ा। इसश्रचलए ीश्र गोपाळराव चोड़े कश्र ‘गोरक्षण
सोा’ कश्र उन्होंने ीन्म से हश्र, ीो कगछ णन पड़ा, सहायता कश्र। नागपगर के चपछले दां गे ने यद्यचप
मगसलमानों का चमीाी काफश्र ुण्डा कर चदया न्ा चफर ोश्र वे पगनः उपद्रव करनेवाले हैं इस प्रकार कश्र
खणरें णश्रि-णश्रि में उड़तश्र रहतश्र न्ीं। इस वातावरण में गौ कश्र शोोायात्रा चनकालश्र तो पगनः गड़णड़ शग
हो ीायेगश्र, यह मन में गशांका होने के कारण ीश्र िौंडे महाराी डॉक्टरीश्र से चमले। इस सम्णन्ि में वे
चलखते हैं ‘‘चहन्दगत्व से पचरपूणभ डॉक्टरीश्र कश्र मूर्तत चदखते हश्र मैंने ‘चनर्तवध्न कगरु मे दे व’ कहते हग ए उनसे
सण वृत्तान्त चनवेदन चकया। ‘चहन्दगस्न्ान में गोमाता के कायभ में चवध्न कैसे हो सकता है ?’ यह कहते
हग ए सरसांघिालकीश्र ने नपने एक कायभकता को णगलाया। उसे ीो कगछ सूिना दे नश्र न्श्र वह नपनश्र
पद्धचत से उन्होंने दश्र। ‘मैं शोोायात्रा के समय वहााँ गता हू ाँ कोई चिन्ता मत कश्रचीए’ यह कहकर
उन्होंने हमें चवदा चकया। डॉ. मगी
ां े और मैं नपने-नपने स्न्ान पर िले गये। घण्टे -गि घण्टे के हश्र
ोश्रतर ीश्र राममन्न्दर के सामने डॉक्टर हे डगेवार कश्र रामसेना हीारों कश्र सांख्या में ीमश्र हग ई दे खकर
मगझे तो एक िमत्कार ीैसा हश्र लगा।’’ इसके पिात् कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक शोोायात्रा चणना
चकसश्र चवध्न-णािा के चनकल गयश्र।

सांघ णढता ीाता न्ा तन्ा उस समय के पत्रों से पता िलता है चक नागपगर ोाग में 1928 के नन्त में
सांघ कश्र कगल नुारह शाखाएाँ िल रहश्र न्श्र। नण ननेक स्वयांसेवक मैचरक कश्र परश्रक्षा पार कर िगके
न्े। डॉक्टरीश्र ने उनको सांघकायभ कश्र दृचष्ट से महाचवद्यालयश्रन चशक्षा ग्रहण करने कश्र सलाह दश्र। उनका

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इस णात पर चवशेर् णल न्ा चक सांघ का कायभकता कम-से-कम स्नातक हो। इसश्र गग्रह के कारण सांघ
के कई कायभकता कॉलेी में दाचखल हग ए और उन्होंने वहााँ कश्र पढाई ोश्र पूरश्र कश्र। एक पगरोचहत के पगत्र
को ोश्र उन्होंने एम. ए. तक पढने को तैयार चकया। वे उससे णारणार कहते न्े चक ‘‘एम. ए. तक पढने
के णाद चफर मीी हो तो सत्यनारायण कश्र कन्ा णााँिना। पर पढो नवश्य।’’ नोश्र तक नौकरश्र कश्र दृचष्ट
से हश्र यगवक चशक्षा का चविार करते न्े। डॉक्टरीश्र ने सांघकायभ कश्र वृद्धश्र के चलए चशक्षा ग्रहण करने कश्र
नयश्र दृचष्ट प्रदान कश्र। चहन्दू समाी को दुत गचत से सगसांघचटत तन्ा णलवान् करने के चलए स्नातक होकर
समाी कश्र दृचष्ट से प्रचतष्ठा प्राप्त कर लेनश्र िाचहए तन्ा उसके गिार पर समाी के सोश्र वगों में सांघ का
चविार एवां कायभ पहग ाँ िाने कश्र उत्तम कायभकता के नाते नपनश्र पात्रता णढानश्र िाचहए, ऐसा उनका चविार
न्ा। इस प्रकार के स्वयांसेवकों में से चीनको दूसरे प्रान्तों में ीाकर नपनश्र गगे कश्र चशक्षा लेने कश्र
गर्तन्क दृचष्ट से सगचविा न्श्र, उनको डॉक्टरीश्र ने नागपगर के णाहर ोश्र ोेीा। ीश्र ोैयाीश्र दाणश्र, ीश्र
णाणूराव तेलांग तन्ा ीश्र तात्या तेलांग गचद कायभकता इसश्र नश्रचत के ननगसार काशश्र चवश्वचवद्यालय में
पढने के चलए गये। प्रान्त के णाहर सांघ का यहश्र प्रन्म पग न्ा।

डॉक्टरीश्र तन्ा उनके सहकारश्र नत्यन्त उत्साह एवां प्रसन्न्ता से सांघकायभ के चलए नचवरत प्रयत्न कर रहे
न्े। चकसश्र को ोश्र कल्पना नहीं न्श्र चक उन चदनों उनके मन में णड़श्र खलणलश्र मि रहश्र न्श्र। प्रत्येक
चवर्य में नत्यन्त साविानश्र णरतने तन्ा सांयम का उनका स्वोाव न होता तो 1928 में सांघ कश्र
णाल्यावस्न्ा में हश्र डॉक्टर ीश्र पर तन्ा सांघटन पर गये हग ए प्राणसांकट से मागभ चनकालना नसम्ोव
होता। वह घटना नत्यन्त रोमाांिकारश्र है ।

क्रान्न्तकायभ में सांगृहश्रत शस्त्रों का वारा-न्यारा करने का काम 1921 से हश्र नत्यन्त िगपके-िगपके चकसश्र
को पता ोश्र न लगने दे ते हग ए 1926-27 तक णराणर िल रहा न्ा। इस सांकटपूणभ काम में डॉक्टरीश्र के
ननगयायश्र ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे कश्र करामात का उल्लेख पश्रछे हो िगका है । पांीाण में नपना काम समाप्त
होने के णाद गांगाप्रसाद नमभदा के तश्रर पर नपने एक ोाई के सान्, ीो सािग हो गया न्ा, स्वयां ोश्र सािग
के वेश में रहने लगा। 1927 में समािार चमला चक वह वहााँ रहते हग ए हग शांगाणाद के पास णश्रमार हो
गया है । नतः इलाी के चलए लोग उसे विा ले गये। उस समय उसका छोटा ोाई गनन्दश्रप्रसाद
विा में गोरक्षण सांस्न्ा में नौकरश्र करता न्ा और स्टे शन के पचिम में दो-तश्रन फलांग पर रहता न्ा।
सरकार कश्र गाँखों में खटकनेवाले यह सज्जन नगर से दूर रहश्र रहें तो नच्छा है यह सोिकर गांगाप्रसाद
कश्र व्यवस्न्ा ोश्र ोाई के पास हश्र कर दश्र गयश्र। इस समय ोश्र वह सांन्यासश्र के हश्र वेश में न्ा। ऊपर से
सािग का गेरुग रां ग रहते हग ए ोश्र नन्दर क्रान्न्त कश्र ज्वाला ििक रहश्र न्श्र। णहग त-कगछ सतकभता णरतने
के णाद ोश्र कोश्र णात खगल गयश्र तो शतु का काम तमाम करके स्वयां रफगिोंर हो ीायें इस उद्देश्य से
सण शस्त्रों को इिर-उिर करने के णाद ोश्र गांगाप्रसाद ने नपनश्र गेरुग कफनश्र में चपस्तौल, कारतूस
तन्ा चणछगवा चछपा रखा न्ा।

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नज्ञातवास में रोगग्रस्त होकर पड़े हग ए गांगाप्रसाद के पास उसका एक चमत्र णश्रि-णश्रि में हालिाल
पूछने तन्ा सेवा-शगशूर्ा के चलए गता रहता न्ा। उसे इस चपस्तौल का पता लग गया। उसने उत्सगकता
से कोश्र-कोश्र उस चपस्तौल को हान् में लेकर ोश्र दे खा न्ा। चमत्र होते हग ए ोश्र गांगाप्रसाद के चलए यह
ुश्रक नहीं न्ा चक नज्ञात नवस्न्ा में वह उसे पेट में इतना घगस ीाने दे ।

एक चदन यह खणर फैल गयश्र चक कहगणघाट स्टे शन के पास कगछ नज्ञात व्यचियों को लूट चलया गया
है तन्ा लगटेरों ने चपस्तौल का ोश्र उपयोग चकया है । यह णात सगनते हश्र गांगाप्रसाद को गशांका हग ई तन्ा
उसने नपनश्र कफनश्र टटोलकर दे खश्र, पर वहााँ चपस्तौल और कारतूस नहीं न्े। वह एकदम घणड़ा गया।
वह तगरन्त उसश्र हालत में नपने चमत्र के यहााँ गया तन्ा चपस्तौल और कारतूस लेकर उलटे कदम वापस
गया। चपस्तौल हान् में गने पर गांगाप्रसाद के ीश्र में ीश्र गया तन्ा चफर उसने नत्यन्त उग्र प
िारण कर नपने चमत्र को िमकश्र दे ते हग ए कहा ‘‘याद रखना, चपस्तौल के णारे में कहीं ोश्र ीणान खोलश्र
तो चफर समझ लो मगझसे पाला पड़ा है ।’’ इसके णाद मन को कगछ िैन पड़ते हश्र वह ोाई के घर वापस
ग गया। चनस्सन्दे ह एक णड़ा ननन्भ टल गया।

कहगणघाट कश्र घटना में ीो गोचलयााँ चमलीं उनसे सरकार को चपस्तौल कैसश्र है यह पता िल गया न्ा।
सरकार के सोश्र चवोागों में डॉक्टरीश्र के चहतचिन्तक तन्ा नपने गदमश्र न्े। उनसे पता लग गया चक
इस सम्णन्ि में चकन-चकन पर कड़श्र नीर रखने कश्र गज्ञा दश्र गयश्र है । उन व्यचियों में डॉक्टरीश्र का
नाम सवभप्रन्म न्ा। गांगाप्रसाद विा में न्ा। डॉक्टरीश्र उसके क्रान्न्तप्रवण स्वोाव से पूरश्र तरह पचरचित
न्े। कहगणघाट कश्र घटना कश्र खणर लगते हश्र उनके सम्मगख गांगाप्रसाद कश्र मूर्तत खड़श्र हो गयश्र। डॉक्टरीश्र
को लगा चक नपने तन्ा नपने स्न्ान-स्न्ान के सहकाचरयों के ऊपर गगप्तिरों कश्र नीर होने के णाद इस
काण्ड कश्र छान-णश्रन करते-करते यचद कहीं गांगाप्रसाद के पास हचन्यार चमल गये तो इतने चदनों से
नांिेरे में रखे हग ए शस्त्रों का तन्ा क्रान्न्तकाचरयों का सण ोेद खगल ीायेगा। डॉक्टरीश्र को यह ोश्र
चवश्वास न्ा चक नन्य ननगयाचययों ने नपने घर में ‘सांशयास्पद वस्तग’ नन्वा कागी-पत्र रहने नहीं चदये
होंगे। परन्तग गांगाप्रसाद का साहसश्र तन्ा हुश्र स्वोाव और ीान पर खेलने कश्र तैयारश्र से पचरचित होने
के कारण उनको यह लगा चक उसने पूरश्र साविानश्र चनचित हश्र नहीं णरतश्र होगश्र। खूण सोि-चविार के
णाद एक चदन डॉक्टरीश्र नागपगर से, चणना चकसश्र को कगछ ोश्र णताये, नकेले हश्र चनकल पड़े तन्ा तश्रसरे
चदन राचत्र के साढे गु णीे के लगोग गप्पाीश्र ीोशश्र के घर निानक पहग ाँ ि गये। गगप्तिर उनके घर
के सामने हश्र िोंर काट रहा न्ा। उसने डॉक्टर हे डगेवार को गते हग ए दे ख चलया। डॉक्टरीश्र प्रान्त में
इतने नचिक पचरचित न्े चक उनका चछपना सम्ोव नहीं न्ा।

डॉक्टरीश्र ने शान्न्तपूवभक विा के हालिाल तन्ा गांगाप्रसाद के ुौर-चुकाने कश्र ीानकारश्र लश्र। सण
पचरन्स्न्चत समझ लेने के णाद उन्हें गांगाप्रसाद के सम्णन्ि में नपने कश्र शांका और ोश्र पगष्ट लगश्र। नतः
गप्पाीश्र से वे णोले ‘‘नच्छा नण समय न गाँवाते हग ए उससे चमल गयें।’’ डॉक्टरीश्र कश्र गतगरता

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और घर के िारों ओर घूमनेवाले गगप्तिर दोनों के णश्रि गप्पाीश्र नसमांीस में पड़ गये। उन्होंने कहा
‘‘नपने ऊपर नीर है । नतः नोश्र ील्दश्र चकसचलए ?’’ परन्तग गप्पाीश्र का वाक्य पूरा होने के पहले
हश्र वे णोले ‘‘तलाशश्र में यचद उसके पास कगछ चमल गया तो ?’’ ऐसा कहकर डॉक्टरीश्र उुे तन्ा
‘‘िलो’’ कहकर चनकल पड़े।

राचत्र के घोर नन्िकार में वे दोनों विा स्टे शन के पार गांगाप्रसाद के चनवास के पास पहग ाँ ि।े वे ीानते
न्े चक उनके पश्रछे कोई-न-कोई चनगाह रखता हग ग गयेगा। परन्तग राष्ट्रव्यापश्र सांघटन के चहत कश्र दृचष्ट
से वे यह नहीं होने दे सकते न्े चक वे या उनके कोई सहकारश्र इस काण्ड के सान् घसश्रटे ीायें। चीस
सांघटन के चलए उन्होंने नपना ीश्रवन दे ने का चनिय पचवत्र ध्वी के सम्मगख प्रकट चकया न्ा उसश्र
सांघटन पर सरकार का गघात होने कश्र शक्यता चदखने पर डॉक्टरीश्र ने ीानणूझकर तन्ा सोि-
समझकर यह पग उुाया।

गांगाप्रसाद के चनवास के णश्रस-परश्रस कदम पर एक नश्रम का वृक्ष न्ा। उसके ओटे पर डॉक्टरीश्र णैु
गये तन्ा गप्पाीश्र को उन्होंने गांगाप्रसाद को पास के सोश्र हचन्यारों के सान् चलवा लाने के चलए नन्दर
ोेीा। ऐसश्र नांिेरश्र रात में गप्पाीश्र को सामने दे खकर गांगाप्रसाद को कल्पना हो गयश्र चक वे क्यों गये
होंगे। गप्पाीश्र ने उसे डॉक्टरीश्र का सन्दे श चदया। वह चपस्तौल लेकर तगरन्त णाहर गया तन्ा
डॉक्टरीश्र के हान् में न्मा दश्र। उनके हान् में ीैसे हश्र चपस्तौल गयश्र चक एक नज्ञात व्यचि ने उनकश्र
कलाई कसकर पकड़ लश्र तन्ा ‘‘कैसा मौके पर पकड़ा’’ कहकर गनन्द प्रकट करने लगा। उसके
शब्द कानों में पड़ते-पड़ते डॉक्टरीश्र ने फगती के सान् झटके से नपना हान् छगड़ाया तन्ा चपस्तौल
गप्पाीश्र के हान् में दे दश्र। चफर ीोर से गगप्तिर के दोनों हान् पकड़कर लात-घूाँसे गचद से उसकश्र खूण
मरम्मत करना शग कर चदया। गगप्तिर चणिारा हा-हा खाने लगा। ‘‘मगझे छोड़ दो, पैर पड़ता हू ाँ , मैं
इसकश्र खणर चकसश्र को नहीं दूाँगा।’’ यह कहने पर डॉक्टरीश्र नपने दोनों खगले हान् उसको चदखाकर
णोले ‘‘दे ख, दे ख, मेरे पास कगछ है क्या ?’’ इस प्रकार हान् चदखाकर डॉक्टरीश्र उसे वहीं छोड़कर
चनकल गये।

यह मारपश्रट शग होते हश्र गांगाप्रसाद नपना सोटा-लोटा लेकर चसन्दश्र कश्र ओर िला गया तन्ा गप्पाीश्र
ोश्र नांिेरे में कहीं चणला गये। चणिारा गगप्तिर कराहता-लाँगड़ाता िौकश्र पर पहग ाँ िा। पर उसके पहले हश्र
डॉक्टरीश्र मनोहरपन्त दे शपाण्डे के घर पहग ाँ िकर दरवाीा खटखटा रहे न्े। राचत्र के णारह णी गये न्े।
ोाऊ साहण ने दरवाीा खोलते हश्र पूछा ‘‘गप गी यहााँ कैसे ?’’ डॉक्टरीश्र ने सदै व कश्र ोााँचत शान्त
रश्रचत से ऊत्तर चदया ‘‘गनन्दश्रप्रसाद णश्रमार न्ा, उसे दे खने के चलए गया न्ा।’’

नश्रम के नश्रिे कश्र घटना के णाद डॉक्टरीश्र ीानणूझकर गप्पाीश्र के यहााँ नहीं गये। क्योंचक यचद गगप्तिर
ने उस नांिेरे में ोश्र गप्पाीश्र को पहिान चलया हो तो उनके घर में ीाने पर उनका ोश्र पता लग

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ीायेगा। नतः कगछ दे र मनोहरपन्त के यहााँ रुककर डॉक्टरीश्र तड़के हश्र गाड़श्र से नागपगर िले गये।
वहााँ सणेरे से हश्र सदा कश्र ोााँचत सणके सान् व्यवहार करने लगे। सांघटन के ऊपर एक णड़श्र गपचत्त
टल गयश्र इसका गनन्द ोश्र वे उस समय चकसश्र के पास व्यि नहीं कर सकते न्े। मार खाये हग ए गगप्तिर
ने घटना कश्र सूिना िौकश्र में दश्र। पर ‘‘हान् से चशकार चनकल गया’’ यह पछतावा करने के नचतचरि
और कगछ णिा नहीं।

इस घटना के णाद चपस्तौलों का सन्दे ह होने के कारण सरकार का व्यवहार सांघ कश्र ओर नचिकाचिक
सशांक होने लगा। गगप्तिर तन्ा पगचलस के लोग उनके गगे-पश्रछे िोंर काटते रहते। उनके कारण
इतनश्र मगसश्रणत हो गयश्र चक लोग डॉक्टरीश्र तन्ा गप्पाीश्र के घर ीाने में ोश्र डरने लगे। यह लगने
लगा चक सश्रिा-सादा मगकदमा िल ीाये तो सहन चकया ीा सकता है पर रोी कश्र यह गलफााँसश्र नहीं
िाचहए। उस समय ीश्र ताम्णे मध्य प्रान्त के प्रान्ताचिपचत न्े। कगछ लोगों ने स्वयां होकर उनसे पूछा चक
‘‘इस प्रकार के प्रचतचष्ठत लोगों के पश्रछे पहरा क्यों लगा रखा है ?’’ विा के चीलाचिकारश्र से ोश्र कगछ
लोग चमले। उस समय गप्पाीश्र ीोशश्र मध्यप्रान्त काांग्रेस के मांत्रश्र तन्ा न. ोा. काांग्रस
े कायभकाचरणश्र
के सदस्य न्े। विा कश्र ननेक सावभीचनक सांस्न्ाओां से ोश्र पदाचिकारश्र के नाते उनका घचनष्ठ सम्णन्ि
न्ा। नतः लोगों को पगचलस का यह पश्रछे पड़ना नसह्य लगने पर उनके चलए यह स्वाोाचवक न्ा चक वे
नचिकाचरयों से ीाकर पूछताछ करते। ीश्र गोचवन्दराव िरडे वकश्रल ने तो चीलाचिकारश्र के पास ीाकर
ीरा तश्रखे स्वर में पूछा ‘‘यह क्या तमाशा णना रखा है ? ोले गदचमयों के पश्रछे पगचलस का यह पगछल्ला
क्यों है ?’’ इस पर चीलाचिकारश्र ने ोश्र फणतश्र कसश्र और कहा ‘‘ोले लोग डाका डालने लगें तो क्या
चकयश्र ीाये ?’’ क्षण मात्र में ीश्र िरडे गरी पड़े ‘‘व्यन्भ कश्र णातें क्यों करते हैं ? यचद सि में यह णात
है तो उन्हें सश्रिे पकचड़ए और मगकदमा िलाइए। कम-से-कम उनसे चमलकर पूचछए तो।’’

इसके णाद चीलाचिकारश्र ने गप्पाीश्र से ोेंट कश्र। चकन्तग णातिश्रत के नन्त में नचिकारश्र ने गरोप
चकया चक ‘‘सण घातक हचन्यार गपके पास हैं और उसकश्र सूिना ोश्र हमें चमल िगकश्र है ।’’ इस पर
गप्पाीश्र ने मााँग कश्र ‘‘केवल सूिना से क्या होता है ? तलाशश्र लश्रचीए और मगकदमा िलाइए।’’
‘‘यहीं तो णात नड़तश्र है । ोोले लोगों के पास सामान चमल सकता है , पर गपके पास नहीं’’ चणिारे
नचिकारश्र ने नगचतक ोाव से कहा। इस पर गप्पाीश्र णोले ‘‘यचद यह सहश्र है तो पहरा रखकर क्या
हमारे पास से सामान चमल सकेगा ? नतः इस तमाशे को णन्द कश्रचीए।’’

न्ोड़े चदनों णाद गगप्तिरों कश्र यह झांझट कम हो गयश्र। कहगणघाट-काण्ड कश्र ीााँि होकर मगकदमा ोश्र
िल िगका न्ा तन्ा नचोयगिों को सीा ोश्र हो गयश्र न्श्र। नतः वातावरण कगछ साफ होने लगा न्ा।

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16. सरसांघिालक
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र का स्वोाव न्ा चक यचद वे चकसश्र स्वयांसेवक में कोई गगण दे खते तो उसको
प्रोत्साहन दे त।े इसश्र स्वोाव के ननगसार उन्होंने ीश्र सावळापूरकर को, ीो उस समय चवद्यान्ी न्े,
‘ोगवा ध्वी हश्र राष्ट्रश्रय ध्वी है ’ इस चवर्य पर लेक चलखने को कहा। लेख चलख ीाने के णाद उन्होंने
उसे स्वयां दे खा तन्ा कगछ नशगचद्धयों को ुश्रक कर चदया और कगछ वाक्य चनकाल चदये। ुश्रक हो ीाने
के णाद उसको ‘ीद्धानन्द’ साप्ताचहक में प्रकाशनान्भ ोेीा। इसश्र प्रकार राष्ट्रश्रय वाड;मय का प्रकाशन
करने के चलए नागपगर में 1928 में ‘नचोनव ग्रन्न्माला’ शग कश्र गयश्र। प्रारम्ो होते समय डॉक्टरीश्र
ने दस रुपये िन्दा दे कर उसे नपना गशीवाद चदया न्ा।

सांघ में णाल और चशशगओां के प्रवेश कश्र नश्रचत से डॉक्टरीश्र के सहयोगश्र ीश्र नण्णा सोहोनश्र सहमत नहीं
न्े। उन्होंने यह ोश्र गग्रह चकया चक सांघ के सान्-सान् एक नखाड़ा ोश्र िलाया ीाये। डॉक्टरीश्र का
यह कहना न्ा चक गी समाी में पहले हश्र से णहग त-से नखाड़े हैं नतः उनमें एक और णढा दे ने के
स्न्ान पर स्वयांसेवक पगराने िलनेवाले नखाड़ों में हश्र ीायें, वहााँ के वातावरण को िैतन्ययगि णनायें
तन्ा वहााँ नये-नये चमत्र णनाकर सांघ में नवश्रन तरुणों को प्रवेश करायें। इसके नचतचरि सांघ का व्याप
दे श-ोर में करना है । नतः उसके कायभक्रमों में उन्हीं िश्रीों का नन्तोाव होना िाचहए ीो सण स्न्ानों
पर सही खड़श्र कश्र ीा सकें। नखाड़ा इस दृचष्ट से उपयगि नहीं होगा। चकन्तग इन छोटे -मोटे मतोेदों के
कारण नण्णा सोहोनश्र 1929 के गस-पास सांघ के प्रत्यक्ष कायभ से दूर हो गये। पर यहााँ दो णातों का
उल्लेख गवश्यक है । सोहोनश्र सांघकायभ से चवरि होने के णाद ोश्र डॉक्टरीश्र से ननगरि णने रहे । उनकश्र
चमत्रता में कोश्र नन्तर नहीं गया। वे एक-दूसरे के यहााँ ीाते न्े तन्ा मन खोलकर णातें करते न्े।
दूसरश्र णात कायभकताओां कश्र दृचष्ट से उल्लेखनश्रय है । सामान्यतः दे खा ीाता है चक सांस्न्ा में मतोेद हो
गया तो उसमें से एक गगट फूटकर णाहर चनकल ीाता है और चफर मूल सांस्न्ा के सान् डटकर स्पिा
हश्र नहीं तो उसका प्राणपण से चवरोि करने लगता है । परन्तग सोहोनश्र ने इस वाममागभ को कोश्र नांगश्रकार
नहीं चकया। उलटे णगढापे में निांग से पश्रचड़त होने पर ोश्र डॉक्टरीश्र के चवर्य में उनके मन के उत्कट
प्रेम का मैंने स्वयां ननगोव चकया है । नपनश्र यगवावस्न्ा कश्र एक पगरानश्र दै चनकश्र चनकालकर उसमें गमने-
सामने दो पन्नों पर ननगक्रम से डॉक्टरीश्र तन्ा सोहोनश्र, दोनों कश्र चलखश्र हग ई ीन्म-कगण्डचलयााँ उन्होंने
चदखायीं। उस समय ‘‘यह दे खो केशव कश्र कगण्डलश्र’’ पक्षाघात के कारण लड़खड़ातश्र चीह्वा से णोलते
हग ए डॉक्टरीश्र का स्मरण करके उनकश्र गाँखे डणडणा गयीं।

प्रत्येक व्यचि के ीश्रवन के सामान्यतः सावभीचनक और चनीश्र, ये दो नांग होते हैं । पर डॉक्टरीश्र के
ीश्रवन में यह नन्तर चदखाना दगष्ट्कर कायभ न्ा। उनके घर में होनेवालश्र णैुकें, चमलना-ीगलना और

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णातिश्रत को चनीश्र नहीं कहा ीा सकता। उनका ीश्रवन समाी ीैसा हश्र व्यापक हो ीाने के कारण वे
घर में रहें या णाहर, सदै व दे श का हश्र ध्यान लगा रहता न्ा। सावनेर के उनके चमत्र ीश्र नानासाहण
गम्णोकर ीैसे व्यचियों ने यचद हु पकड़ लश्र तो वे नाटक नन्वा चित्रपट ोश्र दे खने ीाते न्े। परन्तग
इसमें चमत्रों का मन रखना हश्र उनका प्रमगख हे तग रहता न्ा। एक णार गम्णोकरीश्र के णहग त गग्रह करने
पर वे णोले ‘‘मगझे इन णातों से रुचि नहीं है ऐसा तगम्हें लगता है क्या ? यह तो सहश्र है चक इससे मन को
तचनक राहत चमल ीातश्र है , पर एक तो काम के कारण समय नहीं चमलता और दूसरे सन्ध्या का समय
इस प्रकार कश्र णातों में लगाने लायक नहीं है । वह णहग त कश्रमतश्र है ।’’

पर इस णहग मूल्य समय को ोश्र ीण लोगों के गग्रह के कारण चकसश्र गायन-वादन गचद के कायभक्रम
में लगाना पड़ता तण ोश्र वे नपने नन्स्तत्व मात्र से वहााँ के होनहार यगवकों को सांघानगकूल चकये चणना
नहीं रहते न्े। 1929 के ीनवरश्र मास में नागपगर के ‘नचोनव सांगश्रत चवद्यालय’, ‘ोारत गायन समाी’
तन्ा ‘ितगर सांगश्रत चवद्यालय’ इन तश्रनों सांस्न्ाओां के चवद्यार्तन्यों के गायन का कायभक्रम ‘व्यांकटे श
चित्रपट-गृह’ में हग ग। उस कायभक्रम में डॉक्टरीश्र गये न्े। उस समय गायन के सम्णन्ि में उन्होंने ीो
नचोप्राय चलखा न्ा उसमें वे कहते हैं ‘‘.............इन तश्रन सांस्न्ाओां के णालकों के गाने वहााँ हग ए।
चवशेर्ज्ञ लोग सांगश्रतशास्त्र कश्र दृचष्ट से नपना मत दे सकेंगे। चकन्तग मेरे ीैसे शास्त्र न ीाननेवाले व्यचि
के मन पर ीश्र प्रोाकर एवां यादव ीोशश्र के गाने का चवशेर् पचरणाम हग ग। ीश्र शांकरराव के पास
चशक्षण का ीो चवशेर् कौशल्य है उसका हश्र यह पचरणाम है । सान् हश्र राष्ट्रश्रय चविार गद्य में सगनने के
स्न्ान पर पद्य में लोगों को णहग त रुिते हैं और उनका लोगों के नन्तःकरण पर पचरणाम ोश्र नच्छा
होता है नतः राष्ट्रश्रय दृचष्ट से इन सांस्न्ाओां कश्र गवश्यकता है । मगझे गशा है चक सांस्न्ा के
सांिालकगण गायन के इस पक्ष कश्र ओर ोश्र ध्यान दें ग।े ’’

इस नचोप्राय में उन्होंने, राष्ट्रश्रय चविारों के प्रिार के चलए सांगश्रत का उपयोग करने कश्र ओर ध्यान
चदया ीाये, यह मागभदशभन तो चकया हश्र, परन्तग दो यगवक गायकों कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा करके उन्हें
राष्ट्रश्रय चविारों कश्र ओर गकृष्ट करना ोश्र प्रारम्ो कर चदया। इस प्रसांग पर उन दो गायकों में से ीश्र
यादवराव ीोशश्र का डॉक्टर ीो से चवशेर् पचरिय हो गया तन्ा उस पचरिय का पयभवसान यह हग ग
चक सांघ हश्र ीश्र यादवराव ीोशश्र का ीश्रवन-सांगश्रत णन गया। उन्होंने डॉक्टरीश्र के स्वर में हश्र सदै व के
चलए नपना स्वर ोश्र चमला चदया। यादवराव सरश्रखों का कण्ु डॉक्टरीश्र को मश्रुा लगा तो ोश्र समय
ने यहश्र चसद्ध चकया है चक इस प्रकार के नसांख्य गगणश्र कलाकारों को मगग्ि करने का सामर्थयभ डॉक्टरीश्र
के प्रेमपूणभ व्यवहार तन्ा नकृचत्रम स्नेह में न्ा।

इस समय डॉक्टरीश्र मध्यप्रान्त-काांग्रेस कश्र कायभकाचरणश्र के सदस्य होने के कारण 1928 के नन्त में
होनेवाले कलकत्ता-नचिवेशन में ोश्र उपन्स्न्त रहे न्े। उसश्र समय नेताीश्र सगोार्िन्द्र णोस से उनकश्र

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ोेंट हग ई न्श्र तन्ा दे श कश्र पचरन्स्न्चत के सम्णन्ि में काफश्र चविार-चवचनमय ोश्र हग ग न्ा। इस ोेंट का
उल्लेख करते हग ए डॉक्टरीश्र यह कहते हग ए दगःख व्यि करते न्े चक चहन्दू-मगसलमान एकता कश्र णात को
चनरन्भक मानते हग ए ोश्र सगोार्िन्द्र णोस ीैसे कतृभत्ववान् और त्यागश्र दे शोि ोश्र उसके ोाँवर से णाहर
नहीं चनकल सकते। इस ोेंट के समय प्रचसद्ध क्रान्न्तकारश्र णाणाराव सावरकर ोश्र उनके सान् न्े। इस
ोेंट से दोनों का चनकट से पचरिय हो गया तन्ा दोनों को नपने चविारों का सािम्यभ नचिक ध्यान में
ग गया। इस समय का स्नेह का नाता नन्त तक नटूट रहा।

काांग्रेस-नचिवेशन से वापस गने पर डॉक्टरीश्र ने नपनश्र णहश्र में वहााँ पर स्वयांसेवकों के ननगशासन
तन्ा सम्पूणभ व्यवस्न्ा के चवर्य में नपना नचोमत चलखकर रखा न्ा। उसमें वे चलखते हैं चक
‘‘...........इस णार कलकत्ता-काांग्रस
े में स्वयांसेवकों कश्र सांख्या तश्रन हीार से ऊपर न्श्र। स्वयांसेवक-
चवोाग पर पैसांु हीार रुपया खिभ हग ग। परन्तग स्वयांसेवकों में ीैसा िाचहए वैसा ननगशासन नहीं न्ा।
काांग्रेस के मण्डप में चवशेर् ोश्रड़ न होते हग ए ोश्र वे ुश्रक काम नहीं कर सकते न्े। नतः एक समय तो
सोश्र स्वयांसेवकों को मण्डप से हटाना पड़ा।’’ डॉक्टरीश्र का यह चनरश्रक्षण केवल इस दृचष्ट से न्ा चक
नपने हान् में चलए सांघटन में ये दोर् नहीं रहने िाचहए। केवल दूसरे के दोर् चदखाकर व्यन्भ कश्र प्रचतष्ठा
और शान चदखाने का काम उन्होंने कोश्र ोूलकर ोश्र नहीं चकया। उनकश्र दृचष्ट तो िारों ओर चनरश्रक्षण
कर यहश्र खोीतश्र रहतश्र न्श्र चक समाी कश्र प्रवृचत्त को योग्य गकार व प्रकार दे ने के चलए कौनसे
सांस्कार तन्ा चवचि-चनर्ेि का पालन गवश्यक है ।

कलकत्ते से लौटते हग ए चदनाांक 6 ीनवरश्र को वे खड़गपगर रुके। नपने चमत्रों कश्र सहायता से वहााँ के
प्रचतचष्ठत सज्जनों कश्र णैुक लेकर सांघ कश्र चविारसरणश्र उनके सम्मगख रखश्र। उस समय वहााँ ‘चहन्दश्र
नवयगवक राष्ट्रश्रय सांघ’ के नाम से िलनेवालश्र एक सांस्न्ा के तरुणों से ोश्र चविार-चवचनमय चकया न्ा।
उसके णारे में वे चलखते हैं चक ‘‘............तश्रस-िालश्रस सोासद् उपन्स्न्त न्े।...........सम्पूणभ
पचरन्स्न्चत समझा कर णतायश्र। ‘नवयगवक सांघ’ कश्र न्स्न्चत सन्तोर्ीनक )समािानकारक) नहीं है ।’’

इस वर्भ सांघ का कायभ िारों ओर फैलने लगा न्ा। णढते हग ए सांघटन के ननग प सािनों को ीगटाना
डॉक्टरीश्र ने प्रारम्ो कर चदया। शाखा पर स्वयांसेवकों कश्र सांख्या ोरपूर रहतश्र तन्ा सांिलन के
कायभक्रम ोश्र णड़े ननगशासन के सान् होते। चकन्तग ीैसे चणना पाश्वभोूचम के चित्र उोरता नहीं है , उसश्र
प्रकार घोर् के चणना सांिलन कश्र न्स्न्चत होतश्र है । टगटपूचाँ ीया गर्तन्क न्स्न्चत में इस नोाव को स्वयां
स्फूर्तत से दूर करने का प्रयत्न करते हग ए स्वयांसेवकों को दो वर्भ हो गये न्े। चफर ोश्र सन्तोर्ीनक
उपकरण इकट्ठे नहीं हो पाये। ननेक नवसरों पर तो सेनापचत को हश्र ‘चणगगल’ फूाँकना पड़ता न्ा। इस
वर्भ डॉक्टरीश्र ने पैसा ीमा करके घोर्-सामग्रश्र खरश्रद लश्र तन्ा घोर्-पन्क के स्वयांसेवकों का िगनाव
करके उनको एक ोारतश्रय ईसाई घोर्वादन-पटग के पास चशक्षण के चलए ोेीने लगे। इस चशक्षक कश्र
व्यवस्न्ा ीश्र चवचवयन णोस तन्ा डॉक्टरीश्र के एक चमत्र णै. गोचवन्दराव दे शमगख के प्रयत्नों से हग ई न्श्र।
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राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के तरुणों में यद्यचप चहन्दू राष्ट्र के प्रचत कट्टरता न्श्र चफर ोश्र उन्हें दूसरे समाीों
का द्वे र् नहीं चसखाया ीाता न्ा। दूसरों से राष्ट्रोपयोगश्र सािन और ज्ञान, तांत्र एवां यांत्र गत्मसात् कर
चवश्व में राष्ट्र-राष्ट्र के णश्रि िल रहश्र प्रचतयोचगता में नग्रगण्य होने कश्र गकाांक्षा उनके मन में न्श्र।
ीश्रवनोपयोगश्र ज्ञान तन्ा सािनों को स्वश्रकार करते समय िूत-निूत और नपने-पराये का ोेद नहीं
चकया ीा सकता, यह प्रगचतशश्रल तत्वज्ञान डॉक्टरीश्र के व्यहारसूत्र में न्ा। इसश्रचलए ईसाई चशक्षक
तन्ा पािात्य स्वरक्रम दोनों को हश्र डॉक्टरीश्र ने स्वश्रकार चकया। चकन्तग एक णार उस चवद्या को सश्रखकर
उसका चवकास कर उसे ोारतश्रय स्व प दे ने का काम ोश्र सांघ कश्र स्वाचोमानपूणभ प्रवृचत्त में से हग ग
है । सांिलन के समय ुे का दे ने के चलए चवचोन्न िालें नन्वा रिनाएाँ)Marches), प्रारम्ो में नांग्रेीश्र
से लश्र गयश्र होंगश्र चकन्तग नण ोारतश्रय रागों के गिार पर उतनश्र हश्र गकर्भक रिनाएाँ स्वयांसेवकों ने
चनमाण कर लश्र है । गवश्यक हो तो सांसार में चकसश्र का ोश्र गिार लेना िाचहए चकन्तग उतना हश्र
चीतना चक णरा पैरों में िलने कश्र शचि गने तक गाड़श्र का सहारा लेता है । सांघ ने नपने व्यवहार से
यहश्र मयादा प्रचतष्ठाचपत कश्र है ।

डॉक्टरीश्र के कलकत्ता से वापस लौटने के कगछ हश्र चदनों णाद लाहौर में नांग्रेी नचिकारश्र सॉण्डसभ का
वि करके ीश्र राीगगरु ोूचमगत नवस्न्ा में नागपगर गये। डॉक्टरीश्र से उनकश्र पगरानश्र ीान-पहिान
न्श्र। एक-दो वर्भ पहले ीण राीगगरु ोोंसले वेदशाला में वेदाध्ययन कर रहे न्े तण वे मोचहते सांघशाखा
पर ोश्र गये न्े और इसचलए डॉक्टरीश्र से उनका पचरिय हो गया न्ा। इतना हश्र नहीं, गवी के ीश्र
नारायणराव दे शपाण्डे तन्ा नागपगर के ीश्र व्यांकट नारायण सगखदे व को स्मरण है चक ीश्र ोाऊीश्र कावरे
के ीश्रवनकाल में एक णार ोगतकसह ोश्र नागपगर गये न्े और उनसे तन्ा डॉक्टरीश्र से चमलकर गये
न्े। डॉक्टरीश्र से यह ोेंट विा के ीश्र गांगाप्रसाद पाण्डे के पचरिय के कारण हग ई न्श्र।

नागपगर गने के पहले ीश्र राीगगरु कलकत्ता में हश्र काांग्रेस-नचिवेशन के समय ीश्र णाणाराव सावरकर
तन्ा डॉक्टरीश्र से चमले होंगे। 1929 के प्रारम्ो में नागपगर गने पर उनकश्र व्यवस्न्ा करने में डॉक्टरीश्र
का प्रमगख हान् न्ा। उन्होंने राीगगरु को सूिना दश्र न्श्र चक वे पूना कश्र ओर न ीायें तन्ा उमरे ड के ीश्र
ोैय्याीश्र दाणश्र के एक खेत पर उनकश्र ोूचमगत नवस्न्ा में सगरचक्षत रहने कश्र व्यवस्न्ा कश्र न्श्र। चकन्तग
यह योीना होते हग ए ोश्र राीगगरु डॉक्टरीश्र कश्र नवहे लना करके नागपगर छोड़कर िले गये तन्ा पू ना
ीाने पर न्ोड़े हश्र चदनों में पकड़े गये।

डॉक्टरीश्र का यह चनचित मत न्ा चक राष्ट्र के प्रश्न नकेले -दगकेले के पराक्रम से हल नहीं हो सकते।
उसके चलए तो राष्ट्र में तरुणों का ोारश्र सांख्या में सांघटन खड़ा करना पड़ेगा। परन्तग यचद कोई दे शोि
नपने मागभ से न ीाते हग ए नन्य चकसश्र मागभ से िला तो उसे चीतना हो सके उतनश्र सहायता करने कश्र
उनकश्र तैयारश्र सदै व रहतश्र न्श्र।

192
इर वर्भ चदनाांक 20 नप्रैल को नकोला में ‘नचखल महाराष्ट्र तरुण चहन्दू पचरर्द्’ का नचिवेशन हग ग।
डॉक्टरीश्र स्वतः इस पचरर्द् में गये तन्ा उन्होंने वहााँ एकत्र व्यचियों एवां नकोला के कगछ सज्जनों से
सांघ के सम्णन्ि में वातालाप चकया न्ा। इनमें ीश्र मसूरकर महाराी, लोकमान्य णापूीश्र नणे, स्वामश्र
चशवानन्द, डॉ. चशवाीश्रराव पटविभन, ीश्र पााँिलेगााँवकर महाराी, ीश्र चब्रीलाल चणयाणश्र गचद नेताओां
का उल्लेख चवशेर् प से करना होगा। सांघ कश्र शाखाओां कश्र सांख्या नण तश्रस-पैंतश्रस से ऊपर हो गयश्र
न्श्र तन्ा शाखाओां में ननगशासन, तत्त्वज्ञान का गकलन तन्ा कायभक्षमता उत्पन्न करने के चलए
डॉक्टरीश्र का प्रवास णराणर िलता रहता न्ा। इन शाखाओां कश्र ओर लक्ष्य दे ते हग ए णाहर ोश्र पचरर्दों
गचद के द्वारा नये लोगों से पचरिय करने तन्ा उन्हें सांघ का पचरिय कराने के चकसश्र ोश्र नवसर का
वे लाो चलये चणना नहीं रहते न्े।

शाखाओां कश्र सांख्या णढ रहश्र न्श्र तन्ा उनके सान् तरुण कायभकताओां का उत्साह ोश्र णढता ीाता न्ा।
इस उत्साह के कारण उन्होंने डॉक्टरीश्र से यह कहना शग चकया चक छत्रपचत चशवाीश्र महाराी के
रायगढ में कसहासना ढ होने के चदवस पर ज्येष्ठ शगक्ल त्रयोदशश्र को सोश्र स्वयांसेवकों का एक णड़ा
सम्मेलन नागपगर में चकया ीाये। इस प्रकार के एकत्रश्रकरण से स्वयांसेवकों का गत्मचवश्वास तन्ा
उत्साह णढे गा। चकन्तग डॉक्टरीश्र का मत न्ा चक ीण सांघ के कायभ को कगछ स्व प प्राप्त होता ीा रहा
है उस समय इस प्रकार का सम्मेलन करके व्यन्भ हश्र चवदे शश्र सरकार तन्ा समाी में सांघ-चवरोचियों का
चवरोि णढाने में कोई लाो नहीं। चकन्तग वे ीानते न्े चक तरुणों को प्रारम्ो में हश्र ‘‘ना’’ कर चदया तो
उनका मन खट्टा हो ीायेगा। ीो काम वे नहीं करना िाहते न्े उसके सम्णन्ि में ोश्र खटाक से ‘‘ना’’
करने के स्न्ान पर वे उसे कगशलतापूवभक टाल दे ते न्े। नतः नपने सहकाचरयों के प्रस्ताव को न
ुगकराते हग ए उन्होंने प्रान्त के सोश्र सांघिालकों को इस सम्मेलन के सम्णन्ि में नपना नचोमत ोेीने
के चलए पत्र चलखे। उन्हें चवश्वास न्ा चक प्रान्त से ीो उत्तर गयेंगे उनके गिार पर नपने गप तरुण
कायभकताओां को लगने लगेगा चक सम्मेलन का चविार त्याग दे ना िाचहए।

यन्ावश डॉक्टरीश्र के सहकाचरयों ने ीो उत्तर चदये उनमें नचिकाांश का मत यहश्र न्ा चक इस प्रकार कश्र
पचरर्द् नहीं करनश्र िाचहए। नकोला के ‘प्रीापक्ष’ के सम्पादक ीश्र गोपाल कृष्ट्ण उपाख्य णाणा चितळे
ने चलखा न्ा ‘‘........प्रस्ताचवत सम्मेलन नहीं करना िाचहए। उसे नदृश्यहश्र रचखये। उलटे , सांघ कश्र
वृचद्ध चीतनश्र हो सके उतनश्र कश्र ीाये। सांघ के कोने-कोने कश्र ीानकारश्र नोश्र सरकार को नहीं होगश्र।
ीो गाँखों से नहीं चदखा होगा उसे दे खने और समझने कश्र सम्ोावना सम्मेलन करने से णढ ीायेगश्र।
नतः सम्मेलन का चविार त्याग दश्रचीए।’’ डॉक्टरीश्र के प्रमगख सहकारश्र ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ने विा
से चलखा न्ा ‘‘...........ीो समाी में तन्ा णाहर शतु हैं उनके नन्तःकरण ईष्ट्या से ोर ीायेंगे और
नपना उत्कर्भ न हो, नपकर्भ हो इसके चलए वे कमर कसकर कोचशश करने लगेंगे तन्ा सम्मेलन से
लाो होने के णीाय नगकसान हश्र होगा।’’

193
पत्र में व्यि गशांका सहश्र न्श्र। सरकार ने सांघकायभ को िारों ओर णढता दे खकर उसकश्र गचतचवचि का
सूक्ष्मता से चनरश्रक्षण करने कश्र नश्रचत नपनाकर स्न्ान-स्न्ान पर शाखाओां में ीानेवाले स्वयांसेवकों तन्ा
कायभकताओां के चवर्य में गगप्तिरों के द्वारा ीानकारश्र प्राप्त करने कश्र कोचशश प्रारम्ो कर दश्र न्श्र। चकन्तग
वास्तचवक दगःख इसका नहीं न्ा। यह तो कोई गियभ का चवर्य नहीं न्ा चक इस प्रकार के तरुणों का
सांघटन चवदे शश्र सरकार कश्र गाँखों में खलने लगे। परन्तग खेद का चवर्य यह न्ा चक राष्ट्रसेवा के चलए
कमर कसनेवाले नपने हश्र दे श के लोग ोश्र सरकार ीैसश्र हश्र कगन्त्सत और द्वे र्पूणभ ोावना से सांघ को
चमट्टश्र में चमलाने का सांकल्प करें। उस समय के पत्रव्यवहार से पता िलता है चक काांग्रेस तन्ा
चहन्दगस्न्ानश्र सेवादल के कायभकताओां ने कई स्न्ानों पर सांघ कश्र ओर यहश्र रुख नपना रखा न्ा।
साकोलश्र से ीश्र रामोाऊ फाटक नपने चदनाांक 26 निूणर के पत्र में चलखते हैं ‘‘............राष्ट्रश्रय
स्वयांसेवक सांघ को शह दे ने के चलए प्रान्तश्रय काांग्रेस कमेटश्र का चविार सेवादल चनमाण करने का
चदखता है । नतः प्रान्त कश्र सश्रमाओां के णाहर दूसरे प्रान्तों में ोश्र शाखाएाँ खोलने का चविार नवश्य
कश्रचीए। इतना हश्र नहीं णड़े-णड़े नगरों में शाखाएाँ खोलकर चफर उन्हें ीृांखलाणद्ध करने का प्रयास
चकया ीाये।’’ दूसरे एक कायभकता ने चलखा न्ा ‘‘.......यहााँ दशहरा के शगो मगहूतभ पर चहन्दगस्न्ानश्र
सेवादल कश्र शाखा शग हो गयश्र तन्ा उस शाखा के नचिकाचरयों ने एक महश्रने के नन्दर रा. स्व. सांघ
का नामोचनशान चमटा डालने कश्र प्रचतज्ञा कश्र है ।’’

डॉक्टरीश्र यह दे खकर णड़े व्यचन्त हग ए चक गसपास के वातावरण में काांग्रेस के नन्तगभत नपने हश्र
लोग सांघ का चवरोि करने लगे। ीण तक हम परकश्रय सत्ता को नपने दे श से चनकाल णाहर नहीं
करते, कम-से-कम तण तक तो, उनका मत न्ा चक, राष्ट्रश्रय शचियों को चमलकर िलना िाचहए। पर
स्वयां प्रामाचणकता से प्रयत्न करने के चलए तैयार होने पर ोश्र यचद कोई उन प्रयत्नों कश्र नच्छाई और
चवशगद्धता का ख्याल न करते हग ए चवरोि करता है तो उनकश्र ोश्र यह णात न्श्र चक उस चवरोि कश्र तचनक
ोश्र चिन्ता न करते हग ए शान्न्त के सान् उसे पिाकर नपना काम नचिकाचिक दृढता से करते ीायें।
ीश्र दाद परमान्भ तन्ा ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर को चदनाांक 24 निूणर को चलखे गये नपने पत्र में वे कहते
हैं चक ‘‘..........गप दोनों ने हश्र नपने पत्र में एक महत्त्व कश्र णात मगझे णतायश्र, यह णहग त हश्र नच्छा
चकया। मगझे इसकश्र कल्पना न्श्र हश्र। हमें इस पचरन्स्न्चत को पार करना हश्र होगा। परमेश्वर सण लोगों
को सद्बगचद्ध दे , यहश्र हमारश्र उससे प्रान्भना है । नपनश्र सदसचद्ववेक-णगचद्ध से तन्ा ोगवान् का स्मरण कर
हमारे काम करने पर यचद चकसश्र को चवर्ाद हो या वह चवरोि करने कश्र सोिे तो चफर हमारे पास रास्ता
हश्र क्या है ? यह राीकारण है । नतः इस प्रकार कश्र णातों से डरकर चकतने चदन िल सकेंगे ?’’

चवरोि होने के णाद ोश्र चवरोि करनेवालों के सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र के मन में गत्मश्रयता तन्ा प्रेम कश्र
ोावना में कोई कमश्र नहीं गतश्र न्श्र। वे इस वस्तगन्स्न्चत कश्र ओर गाँखें नहीं मूाँद सकते न्े चक गचखर
दााँत ोश्र नपने हश्र हैं और होु ोश्र नपने। उस वर्भ के गगरुपूीा उत्सव के णाद ‘महाराष्ट्र’ के एक हश्र

194
नांक में डॉक्टरीश्र तन्ा चहन्दगस्न्ानश्र सेवादल के प्रमगख डॉ. ना. सग. हडीकर के ोार्ण छपने का सांयोग
गया। उन ोार्णों को पढने के णाद डॉक्टरीश्र कश्र सांयमश्र तन्ा समाीव्यापश्र गत्मश्रयता कश्र नच्छश्र
कल्पना हो ीातश्र है । उस समय सांघ का कायभ इिर-उिर फैलता ीा रहा न्ा तन्ा काांग्रस
े के सम्णन्ि
में लोग उदासश्रन होते ीा रहे न्े। ऐसश्र पचरन्स्न्चत में डॉ. हडीकर नागपगर गये तन्ा वहााँ कश्र एक सोा
कश्र चणलकगल हश्र पतलश्र हालत दे खकर णोले ‘‘...........नागपगर में डॉ. मगांी,े ीश्र नभ्यांकर ीैसे सामान्य
एवां प्रमगख नेताओां के रहते हग ए और ीश्र गवारश्र कश्र चरचिकन गमी के शूरवश्रर चसपाचहयों के ीश्रचवत
होते हग ए ोश्र राष्ट्रश्रयत्व के प्रतश्रक ीश्रवमान राष्ट्रश्रय ध्वी कश्र वन्दना का कायभक्रम ोश्र इस प्रान्त में न हो
........... यह णड़े शमभ कश्र णात है । हम सगनते हैं चक नागपगर में तरुणों का काम है । चकन्तग उस कायभ में
राीकरण चकतना है हमें पता नहीं। ीण चवदे शश्र सत्ता कश्र ीौंक हमारा णराणर रिशोर्ण कर रहश्र हो
उस समय यचद वहााँ के तरुण यह कहते होंगे चक हमारा काम सामाचीक है राीचनचतक नहीं, तो उनका
कायभ हग ग न हग ग णराणर हश्र है ।’’

यह चवद्वान् पाुकों को णताने कश्र गवश्यकता नहीं चक डॉ. हडीकर के विव्य का सांकेत राष्ट्रश्रय
स्वयांसेवक सांघ कश्र हश्र ओर न्ा। परन्तग चहन्दू राष्ट्र के पगनरुत्न्ान कश्र स्पष्ट शब्दों में घोर्णा का पग
णढाने वाले रा.स्व.सांघ ने राष्ट्रश्रय ोगवा ध्वी को स्न्ान-स्न्ान पर सम्मानपूवभक फहराने तन्ा उसका
ोचिोाव से पूीन करने कश्र पद्धचत रुढ कश्र न्श्र। दगोाग्य से यहश्र णात ननेक लोगों के चदल को ीला
रहश्र न्श्र। नागपगर के गगरुपूीन-उत्सव के नवसर पर डॉक्टरीश्र द्वारा व्यि चविार इस पृष्ठोूचम में और
ोश्र नचिक महत्त्व के चदखते हैं । उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘पन्ण्डत मदनमोहन मालवश्रय ीण सांघस्न्ान पर
गये तो उन्होंने यह उसार चनकाले न्े चक ‘नन्य सांस्न्ाओां के पास णड़श्र-णड़श्र इमारतें और णहग त-सा
कोर् रहता है । पर तगम्हारे सांघ में मनगष्ट्य-णल नच्छा है यह दे खकर मगझे गनन्द होता है ।’ हमारे पास
यह मनगष्ट्य-णल रहा तो ोश्र स्वयां के स्न्ान के चणना नण गगे इसके णढते ीानेवाले स्व प को चटकाना
और गगे णढाना सम्ोव नहीं है । सांघ के कायभ को तेीश्र के सान् िलाने और प्रोावश्र णनाने के चलए
णाह्य सािनों कश्र नण णहग त गवश्यकता है । गत वर्भ दशहरे पर सश्रमोल्लांघन के पन्सांिलन में पााँि सौ
स्वांयसेवक खाकश्र गणवेश में सैचनक पद्धचत से गये न्े। वह दृश्य णहग त पचरणामकारक न्ा ऐसे उसार
णहग तों से सगनने को चमले। इस वर्भ ोश्र उसश्र प्रकार का चकन्तग उससे ोश्र णहग त णड़ा पन्सांिलन का
कायभक्रम गगामश्र चवीयादशमश्र के नवसर पर करने का चविार है । उस समय नागपगर कश्र सोश्र
व्यायामशालाओां से सांघ कश्र प्रान्भना है चक वे हमारे सान् सहयोग करें तन्ा खाकश्र गणवेश में उस
शोोायात्रा में सन्म्मचलत हों। हमारा कायभ णहग त व्यापक है । नण हम इसे िार दश्रवारों के ोश्रतर नहीं
रखना िाहते। सनातन चहन्दू सांस्कृचत कश्र रक्षा का यह कायभ है । नतः चकसश्र ोश्र सांस्न्ा से सहकायभ
करने के चलए हमारा हान् सदै व गगे णढा हग ग है । सणके प्रेमपूवभक चमलकर सहारा लगाने पर हश्र यह
काम नचिक पचरणामकारक तन्ा यशोवद्धभ क होगा।’’ इस ोार्ण में नपने हश्र लोगों के द्वारा
गलतफहमश्र नन्वा पक्षान्िता के कारण चकये हग ए चवरोि का कहीं उल्लेख ोश्र नहीं है । प्रत्यगत चकसश्र ोश्र
195
सांस्न्ा के सान् सहकायभ करने के चलए हमारा हान् सदा गगे हश्र रहा है इस प्रकार का चनस्सन्न्दग्ि
शब्दों में चकया गया प्रस्ताव डॉक्टरीश्र और सांघ के दृचष्टकोण को पूरश्र तरह व्यि करता है । डॉक्टरीश्र
चवरोि को समझते न्े। परन्तग वे यह ोश्र ीानते न्े चक यह चवरोि कगछ लोगों का है , सारे समाी का
नहीं. नतः ीैसे-को-तैसा कश्र ोार्ा और वृचत्त उन्होंने कोश्र स्वश्रकार नहीं कश्र। उनका पूणभ चवश्वास न्ा
चक गी का चवरोिश्र कल का सहकारश्र होगा और गी कश्र उसकश्र गाचलयााँ कल स्तगचतवन्दना में
णदल ीायेंगश्र। यह गत्मचवश्वास हश्र डॉक्टरीश्र के सांयम का गिार न्ा।

डॉक्टरीश्र के उपयगभि ोार्ण में पन्ण्डत मदनमोहन मालवश्रय के सांघस्न्ान पर गगमन का उल्लेख है ।
वह ोेंट कण हग ई इसका चनचित पता नहीं लग पाया पर मालवश्रय के सान् सांघस्न्ान पर परमपूीनश्रय
डॉक्टरीश्र का ीो सांवाद हग ग उसको प्रत्यक्ष सगननेवाले कायभकता सगदैव से चवद्यमान हैं । मालवश्रयीश्र
मोचहते-णाड़ा शाखा पर चीस समय गये उस समय यद्यचप णाड़े का कगछ ोाग खेलने लायक और
साफ-सगन्रा न्ा चफर ोश्र उसके नचतचरि णगल में णाड़े के ध्वांसावशेर् चणखरे हग ए न्े। मालवश्रयीश्र के
ध्यान में ग गया चक ऐसश्र पगरानश्र टूटश्र-फूटश्र ीगह पर सांघ िलाना पड़ता है इसचलए सांघ कश्र गर्तन्क
न्स्न्चत नच्छश्र नहीं होगश्र। डॉक्टरीश्र कश्र ओर मगड़कर वे णोले ‘‘लोग मगझे शाहश्र चोखारश्र कहते हैं ।
गपकश्र सम्मचत हो तो सांघ के चलए मैं िार लोगों के पास से कगछ कोर् इकट्ठा कर दूाँगा।’’ इस पर
डॉक्टरीश्र ने तगरन्त उत्तर चदया ‘‘पन्ण्डतीश्र मगझे पैसे कश्र णड़श्र चिन्ता नहीं है , मगझे तो गप ीैसों के
गशश्रवाद कश्र गवश्यकता है ।’’ चनस्सन्दे ह यह उत्तर पन्ण्डतीश्र के चलए ननपेचक्षत न्ा क्योंचक दूसरश्र
सांस्न्ाओां में पैसे के चलए होने वालश्र खटपट का उन्हें नच्छश्र तरह से पचरिय न्ा। नतः डॉक्टरीश्र से
प्रसन्न होकर णोले ‘‘नन्य स्न्ानों पर पहले पैसा और णाद में मनगष्ट्य-णल कश्र ओर ध्यान चदया ीाता है ,
पर गपकश्र रश्रचत न्यारश्र है । गपकश्र चवशेर्ता का मैं ीहााँ-ीहााँ ीाऊाँगा उल्लेख चकये चणना नहीं रहू ाँ गा।’’

सांघ कश्र शाखाएाँ स्वयांसेवकों से फूलने लगश्र न्ीं इस चवर्य में डॉक्टरीश्र कश्र प्रसन्नता उस काल के
उनके पत्रों में प्रकट होना स्वाोाचवक न्ा। ब्रह्मपगरश्र के सांघिालकीश्र को चदनाांक 22 के पत्र में वे कहते
हैं चक ‘‘राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ चदन-प्रचतचदन िन्द्रकला के समान प्रान्त-ोर में णढ रहा है । गी
नपनश्र छत्तश्रस शाखाएाँ हो गयश्र हैं । हमें सांघ पश्र राष्ट्र के प्रत्येक नांगोपाांग में नविैतन्य उतपन्न कर
शश्रघ्र हश्र सम्पूणभ प्रान्त को नपनश्र चविारसरणश्र के प्रोाव में लाना है ।’’ चदनाांक 7 नगस्त के दूसरे पत्र
में नपने गनन्द को शब्द प दे ते समय उन्होंने चलखा न्ा ‘‘........... मन में गता है चक छोटे णालकों
को िन्यवाद दे ना िाचहए क्योंचक उनके कारण हश्र गी सांघ को शोोा प्राप्त हग ई है ।’’ नयश्र पश्रढश्र को
हान् में लेकर ‘चहन्दश्र’ राष्ट्रवाद के प्रवाह को चहन्दू राष्ट्र कश्र चदशा में णदलने कश्र डॉक्टरीश्र ने िन्यता
व्यि कश्र न्श्र। इसश्र प्रकार ‘सांघ पश्र राष्ट्र’ यह शब्दयोीना ोश्र नपने सहकाचरयों को यह णतलाने के
चलए न्श्र चक सांघ के प में चहन्दू राष्ट्र हश्र स्व प लेता ीा रहा है ।

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इस प्रकार कश्र दौड़िूप के ीश्रवन के णश्रि 1927 के णाद डॉक्टरीश्र के कगटगम्ण में एक वृचद्ध हो गयश्र न्श्र।
उनके िािाीश्र ीश्र गणाीश्र हे डगेवार रामपायलश्र का नपना घरणार समेटकर डॉक्टरीश्र के गग्रह से
उनके हश्र यहााँ सपचरवार रहने के चलए ग गये न्े। वैसे चरश्ते में उनका सम्णन्ि कगछ दूर का हश्र न्ा
चकन्तग डॉक्टरीश्र के चवद्यान्ी ीश्रवन कश्र नचनचितता तन्ा कचुनाई के काल में गणाीश्र ने उन्हें िश्ररी
और उत्साह णाँिाने में ीो गत्मश्रयता चदखायश्र तन्ा सहायता कश्र उसे नमूल्य हश्र कहना पड़ेगा। इसके
कारण नाते हश्र यह दूरश्र समाप्त होकर नत्यन्त चनकट के सम्णन्ि चनमाण हो गये न्े। वैसे ोश्र परस्पर के
ोाव के गिार पर हश्र दो सम्णन्न्ियों में गपस का व्यवहार रहता है । नच्छे ोाव न रहे तो सगे ोाई
ोश्र एक दूसरे कश्र ज्ञान के गाहक णन ीाते हैं और, चनमभल एवां उदात्त ोाव होने पर चीनसे ढ नन्भ में
कोई सम्णन्ि नहीं ऐसे व्यचियों के सान् इतनश्र घचनष्ठता हो ीातश्र है चक ‘दो तन, एक मन’ यह वणभन
उनके चलए नक्षरशः लागू होता है । यचद कोई णातिश्रत में ोश्र गणाीश्र का ‘नाते में िािा’ कहकर
करता तो डॉक्टरीश्र को नच्छा नहीं लगता न्ा। इस ोाव के कारण हश्र हे डगेवारों के यह दो प्रवाह
एकत्र ग गये न्े।

1929 में डॉक्टरीश्र कश्र िािश्र सौ. गांगूणाई के नत्यन्त णश्रमार पड़ने पर वे उनको इलाी के चलए इन्दौर
ले गये न्े। गणाीश्र तन्ा उनकश्र पगत्रश्र सौ. ोश्रमाणाई ोश्र उनके सान् गयश्र न्ीं। इस समय पूरे महश्रना-ोर
इन्दौर ीैसे नये स्न्ान पर रहते हग ए उन्होंने सांघ कश्र शाखा खोलने के प्रयत्न चकये होंगे, यह कहने कश्र
गवश्यकता नहीं। इन्दौर रहते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र ने सोश्र शाखाओां के सान् पत्र व्यवहार के द्वारा
सम्णन्ि णनाये रखा न्ा। एक पत्र में उन्होंने ‘ोयसूिक घण्टा’ तन्ा ‘गई ओपनर’ दोनों पगस्तकों कश्र
परश्रस प्रचतयााँ माँगायश्र न्ीं तन्ा पााँि ोगवे ध्वी ोश्र डाक से ोेीने के चलए चलखा न्ा। यह उस क्षेत्र में
सांघकायभ का चशलान्यास करने कश्र चसद्धता न्श्र। चसयासतश्र वायगमण्डल को ध्यान में रखकर उन्होंने
ननेक लोगों से पचरिय कर चलया तन्ा इसश्र नवचि में इन्दौर और दे वास, दोनों स्न्ानों पर सांघ का
काम प्रारम्ो कर चदया। वहााँ महश्रना-सवामहश्रना के उपिार के णाद ोश्र सौ. गांगूणाई के स्वास्र्थय में कोई
सगिार नहीं हो सका। नतः चसतम्णर के मध्य में उन्हें नागपगर वापस ले गना पड़ा। गगे ीण डॉक्टरीश्र
सत्याग्रह के चसलचसले में ीेल गये तण सौ. गांगूणाई कश्र मृत्यग हो गयश्र।

गी कश्र चवचशष्ट चवर्म पचरन्स्न्चत में स्वयांसेवकों का सम्मेलन चहतकर नहीं होगा यह णात सहकाचरयों
के ध्यान में गते हश्र वह कायभक्रम सही प से स्न्चगत कर चदया गया। चकन्तग उसके स्न्ान पर कगछ
िगने हग ए कायभकताओां कश्र णैुक का चनिय करके 19 निूणर को डॉक्टरीश्र ने एक पचरपत्र सण ओर
ोेीा। उसमें णैुक का हे तग स्पष्ट करते हग ए चलखते हैं चक ‘‘......... चनकट ोचवष्ट्य में होनेवाले ननेक
राीनश्रचतक एवां सामाचीक गन्दोलनों के तूफान में सांघ कश्र नौका कैसे सगरचक्षत िलतश्र रहे ? सांघ कश्र
चनचत क्या रखश्र ीाये ? सांघ कश्र तेीश्र के सान् वृचद्ध करने के चलए 9 और 10 नवम्णर को सोश्र
सांघिालकों कश्र सोा नागपगर में करने का चनिय हग ग है । इस सोा में गप नपने सान् ऐसे एक-दो

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प्रमगख व्यचियों को लेकर चीनका, सांघ के सान् गत्मश्रयता होने के कारण, चविार-चवचनमय में उपयोग
होगा, नवश्य गयें।’’ इस पत्रक से स्पष्ट होता है चक डॉक्टरीश्र को ोारतश्रय राीनश्रचत में सम्ोाव्य
गन्दोलनों का ननगमान हो गया न्ा। यह ोश्र चदखता है चक वे कायभकताओां के मन कश्र ऐसश्र रिना कर
दे ना िाहते न्े चीससे गन्दोलन प्रारम्ो होने पर ोश्र सांघ का राष्ट्रचनमाण का कायभ सतत िलता रहे
तन्ा उसकश्र गचत चकसश्र ोश्र प्रकार से कगन्ण्ुत न हो।

योीनानगसार चदनाांक 9, 10 नवम्णर को नागपगर में डोके महाराी के मु में सांघिालकों तन्ा
कायभकताओां कश्र णैुक हग ई। उसमें सणने खगले चदल से ििा करके दे श कश्र तत्कालश्रन पचरन्स्न्चत और
लोगों कश्र मनःन्स्न्चत का चविार करते हग ए ननगशासन कश्र दृचष्ट से सांघटन का स्व प एकिालकानगवती
रखने का चनिय चकया। इस ििा में ोाग लेनेवालों में चनम्नचलचखत व्यचि उल्लेखनश्रय हैं - सवभीश्र
चवश्वनान्राव केळकर, णाळाीश्र हग द्दार, गप्पाीश्र ीोशश्र, कृष्ट्णराव मोहरश्रर, तात्यीश्र काळश्रकर,
णापूराव मगुाळ, णाणासाहण कोलते, िााँदा के दे वईकर तन्ा मातभण्डराव ीोग।

णैुक के दूसरे चदन सायांकाल मोचहते सांघस्न्ान पर नागपगर के सोश्र स्वयांसेवकों तन्ा णैुक के चनचमत्त
गये हग ए कायभकताओां का एकत्र कायभक्रम हग ग। उस समय उस सांघस्न्ान के पश्रछे गी ोश्र उत्तम
न्स्न्चत में चवद्यमान ोव्य पत्न्र के द्वार कश्र ओर पश्रु करके सांघिालक तन्ा कायभकता खड़े न्े और
डॉक्टर ीश्र सांघ स्न्ान पर ध्वी के पास खड़े वह दृश्य दे ख रहे न्े। इतने में णैुक में चलये गये चनणभय
को प्रकट करने कश्र इच्छा से ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ने सणको पूवभ से सूिना दे कर ीोरदार स्वर में गज्ञा
दश्र ‘‘सरसांघिालक-प्रणाम-1, 2, 3 !’’ सोश्र समवेत स्वयांसेवकों ने सरसांघिालक डॉक्टर केशवराव
हे डगेवार को प्रणाम चकया। इसके उपरान्त एकिालकानगवर्ततत्व कश्र कल्पना को चवशद करनेवाला
ीश्र चवश्वनान्राव केळकर का ओीस्वश्र ोार्ण हग ग।

परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र को यह णात पसन्द नहीं गयश्र। कायभक्रम समाप्त होने पर उन्होंने कहा
‘‘गप्पाीश्र, गी गपने पहले से चनचित न हग ग काम चकया, वह मगझे पसन्द नहीं। कारण, मेरश्र
नपेक्षा णड़े और गदरणश्रय नपने सहयोचगयों सें मैं प्रणाम लूाँ , यह ुश्रक नहीं।’’ इस पर गप्पाीश्र ने
नपनश्र णात का समन्भन करते हग ए कहा ‘‘कायभ कश्र सगचविा के चलए गपको नप्रसन्न करनेवालश्र यह
णात हम सण लोगों ने स्वयांस्फूर्तत से कहश्र है ।’’ सांघिालकों कश्र इसश्र णैुक में सरसांघिालकीश्र के
सहायक के प में सरकायभवाह तन्ा सरसेनापचत दो नचिकारश्र ोश्र चनचित चकये गये। तदनगसार ीश्र
णाळाीश्र हग द्दार सरकायभवाह और ीश्र मातभण्डराव ीोग सरसेनापचत चनयगि हग ए। इसके सान् नन्य
नचिकार ीेचणयााँ ोश्र चनचित कश्र गयीं।

इस समय यह चनचित हो गया चक राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ एक िालक कश्र गज्ञा से िलेगा। चविान
के इस एकमगखश्र एवां एकतांत्रश्रय स्व प को दे खकर सांघ के णाहर के कगछ लोग उसकश्र तगलना मगसोचलनश्र

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के फाचसस्ट दल से करने लगे। चीनको डॉक्टर हे डगेवार के सहवास में रहकर उनके उदात्त, सचहष्ट्णग,
सांग्राहक एवां सेवामय ीश्रवन कश्र शश्रतल छाया का सौोाग्य चमला है उन्हें इस कल्पना कश्र चनरािरता
एवां चवकृतता णताने कश्र गवश्यकता नहीं। डॉक्टरीश्र का नन्तःकरण इतना दे शोचिपूण,भ प्रामाचणक
तन्ा चनरहां कारश्र न्ा चक चकसश्र ोश्र रिना के दोर् उनके काम में चटक नहीं सकते न्े। उनकश्र वृचत्त में
लोकतांत्र का चविार चवचनमय और एकतांत्र का ननगशासन, दोनों का पूरश्र तरह समावेश होता न्ा।
सरसांघिालक-पद के पश्रछे चकसश्र कगटगम्ण के कता कश्र ोूचमका हश्र व्यि होतश्र है । इस ोूचमका में सण
प्रकार के कष्ट सहन करके ोश्र पचरवार के पालन-पोर्ण का दाचयत्व हश्र प्रमगख ोाव है । गोस्वामश्र
तगलसश्रदासीश्र ने इस प्रकार के मगचखया का वणभन करते हग ए कहा है ः

‘‘मु वखया मु ख सों चावहए, खान पान कहुँ एक।

पालै पोसै सकल अंग, तु लसी सवहत वििेक।।’’

चववेकपूवभक पालन-पोर्ण के सान् हश्र सणको सगयोग्य मागभ से िलाने के चलए कोश्र मााँ कश्र ममता से
पश्रु पर हान् फेरकर समझदारश्र कश्र िार णातें णताने का कौशल्य और उससे काम न िला तो कान
पकड़कर िमकाने कश्र पात्रता ोश्र कता के नन्दर होनश्र िाचहए। डॉक्टरीश्र के सम्णन्ि में गनेवाला
प्रत्येक व्यचि यह स्वश्रकार करे गा चक इस प्रकार के सण कतभव्यों का चनवाह करने योग्य मनःन्स्न्चत
और कतभव्य का सगयोग्य सांयोग सांघसांस्न्ापक डॉक्टर हे डगेवारीश्र के पास हग ग न्ा।

डॉक्टरीश्र कश्र मनःन्स्न्चत को व्यि करनेवाले उनके हश्र हान् के चलखे हग ए शब्द सगदैव से गी उपलब्ि
हैं । यह चटप्पचणयााँ कालक्रम से 1933 चसतम्णर कश्र हैं तो ोश्र चवर्यानगर्ांग से उन्हें यहीं उद्धृत करना
ुश्रक होगा। वे चलखते हैं –

“इस सांघ का ीन्मदाता नन्वा स्न्ापनाकता मैं न होकर गप सण हैं , इसका मगझे पूरश्र तरह ज्ञान है ।

गपके द्वारा उत्पन्न सांघ का, गपकश्र इच्छा एवां ज्ञान से, मैं िात्रश्र का काम कर रहा हू ाँ ।

इसके गगे ोश्र इच्छा और गज्ञा होगश्र तण तक यह काम मैं करता रहू ाँ गा तन्ा यह काम करते हग ए
चकतने ोश्र सांकट गयें और मानापमान सहन करने कश्र णारश्र गयश्र तो मैं नपना पााँव पश्रछे नहीं
हटाऊाँगा।

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परन्तग मेरे इस काम के चलए नयोग्य होने के कारण मगझसे सांघ का नगकसान होता है ऐसा यचद गपको
लगे तो दूसरा योग्य मनगष्ट्य इस स्न्ान के चलए ाँढ
ू चनकाचलए।

गपकश्र गज्ञा से चीतने गनन्द के सान् मैंने यह पद स्वश्रकार चकया है उतने हश्र गनन्द से गपके
द्वारा चनयोचीत व्यचि के हान् में सण नचिकारसूत्र दे कर उसश्र क्षण से उसके गज्ञापालक स्वयांसेवक
के नाते िलूाँगा।

कारण, मेरे चलए नपने व्यचित्व का मूल्य नहीं, सांघकायभ का मूल्य है और सांघ के चहत के चलए कोई
ोश्र णात करने में मगझे चकसश्र ोश्र प्रकार का नपमान कोश्र नहीं प्रतश्रत होगा।

सांघिालक कश्र गज्ञा का चकसश्र ोश्र पचरन्स्न्चत में स्वयांसेवक के द्वारा चणना ननग-नि चकये पालन होगा
गवश्यक है । तन्ा ‘नाक से ोारश्र नन्’ यह न्स्न्चत सांघ में कोश्र न उत्पन्न होने दे ने में हश्र सांघ कायभ का
रहस्य है ।

नतः स्वतः वह गज्ञापालन कर दूसरे स्वयांसेवक से उसको पालन करवाना, यह प्रत्येक स्वयांसेवक
का कतभव्य है ।’’

कतभव्य मानकर ोरत के समान सण कायभ कश्र िगरश्र वहन करने कश्र मन कश्र चसद्धता और उसके सान्
नेतृत्व के रत्नीचड़त कसहासन को नपना न मानकर उस पर चहन्दू-राष्ट्रपगरुर् कश्र पादगकाएाँ स्न्ाचपत करने
का वैराग्य और सेवाोाव डॉक्टरीश्र के प में मूर्ततमन्त हग ग न्ा। इस प्रकार का कतभव्यकुोर एवां
कायैकशरण व्यचित्व इस णैुक में सरसांघिालक-पद पर ग ढ हग ग न्ा। समय ने णताया है चक
इस रिना में हश्र सांघ के ननगशासनपूणभ चवकास का रहस्य चछपा हग ग है । णैुक समाप्त कर कायभकताओां
के नपने-नपने स्न्ान पर वापस ीाने के न्ोड़े चदनों णाद हश्र परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र ने काांग्रेस का
नचोनन्दन करने के चलए सण सांघशाखाओां को चदनाांक 26 ीनवरश्र 1930 को सोाएाँ करने का गदे श
चदया। इन चदनों भ्रमवश काांग्रेस और चहन्दगस्न्ानश्र सेवादल सांघ का चवरोि करने लगे न्े। पर डॉक्टरीश्र
ीानते न्े चक गलतश्र से गलतश्र ुश्रक नहीं होतश्र और इसचलए दूसरे के तुचटपूणभ व्यवहार कश्र वैसश्र हश्र
प्रचतचक्रया नपनश्र ओर से चदखाना उन्हें नचोप्रेत नहीं न्ा। काांग्रेस में उन्हें दोर् तन्ा कचमयााँ नवश्य
चदखतश्र न्ीं चकन्तग उसके कारण काांग्रेस कश्र एकदम सोश्र णातें णगरश्र और त्याज्य हैं ऐसा उन्होंने कोश्र
नहीं माना। चवशेर्कर नांग्री
े ों से दो-दो हान् करने के चलए ोश्र खड़ा रहे वे उसकश्र सण प्रकार से सहायता
करने से कोश्र पश्रछे नहीं हटते न्े। काांग्रेस और सांघ कश्र ोूचमकाओां में ोेद और साम्य डॉक्टरीश्र को
ज्ञात न्ा। मतोेद होते हग ए ोई चीन णातों में समानता न्श्र उनमें सहयोग करने कश्र तत्परता उन्होंने सदै व
चदखायश्र। इन चदनों सांस्न्ाओां के सम्णन्ि में वे नपनश्र गलोक-पगन्स्तका में चलखते हैं -

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‘‘.......चहन्दू सांस्कृचत चहन्दगस्न्ान का प्राण है । नतः चहन्दगस्न्ान कश्र रक्षा करना हो तो चहन्दू सांस्कृचत का
रक्षण प्रन्म कतभव्य हो ीाता है । यचद चहन्दगस्न्ान कश्र चहन्दू सांस्कृचत नष्ट हो ीाये, चहन्दू समाी का
नामचनशान ोश्र दे श में न रहे तो चफर णिे हग ए ोूचम के टगकड़े को चहन्दगस्न्ान नन्वा चहन्दू राष्ट्र नाम ोश्र
शोोा नहीं दे गा। कारण, राष्ट्र केवल ीमश्रन का टगकड़ा नहीं। .......यह णात सत्य होते हग ए ोश्र चहन्दू
िमभ और चहन्दू सांस्कृचत कश्र रक्षा कश्र ओर प्रचतचदन चविर्तमयों के चहन्दू समाी पर चवध्वांसक गक्रमणों
कश्र ओर काांग्रेस का दगोाग्य से पूणभतः दगलभक्ष्य होने के कारण यह नत्यन्त गवश्यक काम करने के
चलए राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र गवश्यकता है । चफर ोश्र सांघ का काांग्रेस से चणलकगल चवरोि नहीं।
नपनश्र राष्ट्रश्रय सांस्कृचत के मागभ में णािा न पहग ाँ िाने वाले स्वातांत्र्य-प्राचप्त के कायभक्रम में सांघ काांग्रेस के
सान् सहयोग करे गा और गी तक करता गया है ।’’ इसश्र उदात्त ोूचमका से डॉक्टरीश्र ने सण
शाखाओां को एक पचरपत्रक ोेीा। उसमें लाहौर काांग्रेस नचिवेशन में पन्ण्डत ीवाहरलाल नेह के
प्रयत्न से स्वश्रकृत पूणभ स्वतांत्रता के प्रस्ताव का स्वागत चकया गया न्ा। सांघ के सम्पूणभ स्वातांत्र्य के ध्येय
और सहयोग कश्र नश्रचत पर प्रकाश डालनेवाला यह पचरपत्रक ऐचतहाचसक महत्त्व का है । उसमें चलखा
न्ा कश्र ‘‘इस वर्भ काांग्रेस का ध्येय पूणभ स्वतांत्रता चनचित हो ीाने के कारण काांग्रेस वचकिंग कमेटश्र ने
घोर्णा कश्र है चक रचववार 26 ीनवरश्र 1930 चहन्दगस्न्ान-ोर में ‘स्वतांत्रता चदवस’ के प में मनाया
ीाये। नचखल ोारतश्रय राष्ट्रश्रय सोा ने नपना स्वतांत्रता का ध्येय स्वश्रकार चकया है यह दे खकर नपने
को नत्यानन्द होना स्वाोाचवक है । वह ध्येय नपने सामने रखनेवालश्र चकसश्र ोश्र सांस्न्ा के सान् सहयोग
करना नपना कतभव्य है .......नतः राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र सण शाखाएाँ रचववार, चदनाांक 26
ीनवरश्र 1930 को सायांकाल ुश्रक छः णीे नपने सांघस्न्ान पर शाखा के सोश्र स्वयांसेवकों कश्र सोा
करके राष्ट्रश्रय ध्वी नन्ात् ोगवा झण्डे का वन्दन करें । व्याख्यान के प में स्वतांत्रता कश्र कल्पना
तन्ा प्रत्येक को यहश्र ध्येय नपने सामने क्यों रखना िाचहए यह चवशद करके णतायें और काांग्रेस के
द्वारा स्वतांत्रता के ध्येय का पगरस्कार करने के चलए नचोनन्दन का समारोह पूरा करें ।’’

इस गदे श के ननगसार सण शाखाओां में ‘स्वतांत्रता चदवस’ मनाया गया न्ा। पोवाडे, शोोायात्रा,
व्याख्यान, ‘ीद्धानन्द’ साप्ताचहक में से स्वतांत्रता-चवर्यक लेखों का वािन और वन्दे मातरम् का उसोर्
गचद के चवचवि कायभक्रम इस नवसर पर हग ए न्े।

दे श में नांग्रेीों के चवरुद्ध गन्दोलन के चिह्न चदखने लगे न्े। इस होने वाले गन्दोलन में सांघ कश्र क्या
चनचित नश्रचत रहे गश्र इसकश्र कल्पना न होने के कारण पगचलस कश्र ओर से स्न्ान-स्न्ान के स्वयांसेवकों
को सताया ीाने लगा न्ा। तगम्हारा प्रमगख कौन है ? उद्देश्य क्या हैं ? सांघ के पैसे चकसके पास रहते हैं
? इस प्रकार के ननेक प्रश्नों को शाखा के छोटे -छोटे स्वयांसेवकों से पूछकर उन्हें सताने कश्र घटनाएाँ
सगनने को चमलीं। इन णातों का ुश्रक प्रकार से सामना करने के चलए डॉक्टर ीश्र ने स्वयांसेवकों कश्र पश्रु
पर नगर का व्यवहारदक्ष, वीनदार तन्ा प्रौढ व्यचि सांघिालक के नाते चनयगि करने कश्र ओर ध्यान
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चदया और यह व्यवस्न्ा कश्र चक शाखा कश्र दृचष्ट से होनेवाले गर्तन्क गय-व्यय का चहसाण ोश्र यह प्रौढ
व्यचि हश्र रखे। डॉक्टरीश्र ने नपने व्यवहार से यह चसखा चदया न्ा चक सावभीचनक कायभ के चलए ीमा
चकये हग ए पैसे का उपयोग नत्यन्त योग्य कारण के चलए और चमतन्व्यता से होना िाचहए। दक्षता से
काम में लाया पैसा सांघटन के चलए उपकारक होता है परन्तग यचद उसका उपयोग लापरवाहश्र से चकया
गया तो उस पैसे से हश्र सांघटन कश्र प्रचतष्ठा ोश्र िूल में चमल सकतश्र है । इसचलए उनका इस णात पर णड़ा
णल न्ा चक पाई-पाई का गय-व्यय समगचित प से और समय पर हश्र चलखा ीाये। इस काम में उनको
नपने िािाीश्र ीश्र गणाीश्र हे डगेवार से णहग त सहायता चमलश्र। उनके स्वोाव में नत्यन्त दक्षता एवां
चनयम चनष्ठा होने के कारण कायालय तन्ा गय-व्यय कश्र वे णहग त नच्छश्र व्यवस्न्ा रखते न्े। डॉक्टरीश्र
ने चदनाांक 5 फरवरश्र 1930 को इस सम्णन्ि में ीो चटप्पणश्र चलखश्र है वह उनकश्र गय-व्यय के चवर्य में
िारणा पर नच्छा प्रकाश डालतश्र है । वे चलखते हैं चक ‘‘सांघ कश्र स्न्ापना से ीनवरश्र 1930 तक और
तण से गी तक का सण चहसाण, इस प्रकार ीााँिकर ुश्रक-ुश्रक तैयार करना चक कोई ोश्र गलोिक
उसमें दोर् न चनकाल सके। कारण इसके गगे इस व्यवन्स्न्तता कश्र नत्यन्त गवश्यकता है ।’’ पैसे
के सम्णन्ि में उनकश्र प्रामाचणकता कश्र कगछ लोगों ने परश्रक्षा करके ोश्र दे खश्र न्श्र। एक णार ीण डॉक्टरीश्र
‘गल इन्ण्डया चरपोटभ र’ के सम्पादक राव साहण दातार के पास चनचि सांग्रह के उद्देश्य से गये तो उन्होंने
गय-व्यय कश्र णहश्र दे खने कश्र इच्छा प्रकट कश्र। तदनगसार डॉक्टरीश्र ने णचहयााँ उनेक पास चोीवा दीं।
उससे सांघस्न्ान पर पाये हग ए एक पैसे को गय-खाते में ीमा दे खकर नचत सूक्ष्मता से णहश्र का चनरश्रक्षण
करने वाले दातारीश्र को ोश्र णड़ा सन्तोर् हग ग और उन्होंने मगिहस्त से िन्दा चदया। गर्तन्क व्यवहार
कश्र ओर इतनश्र दक्षता रखनश्र िाचहए, यह डॉक्टरीश्र का सणसे कहना न्ा।

सांघटन के तांत्र कश्र ननेक छोटश्र-मोटश्र णातें िश्ररे-िश्ररे ननगोव से हश्र चनचित हग ई हैं । सांघ का घोर्)णैण्ड)
वादन-कला में इतना दक्ष हो गया न्ा चक वह लोगों का ध्यान सही गकृष्ट कर लेता न्ा। फलतः सांघ
के प्रचत प्रेम रखनेवाले लोग नपने यहााँ के उत्सव तन्ा नन्य समारोहों के चनचमत्त डॉक्टरीश्र से घोर्
कश्र मााँग करने लगे। नपने लोगों को ‘‘ना’’ कहना मगन्श्कल और ‘‘हााँ’’ कहना ोश्र सम्ोन नहीं,
डॉक्टरीश्र चवर्म न्स्न्चत में फाँस गये। कगछ सहकाचरयों का कहना न्ा चक पैसे चमलें तो घोर् दे ने में क्या
हीभ है परन्तग केवल पैसे के पश्रछे लगकर घोर् णीानेवाले स्वयांसेवक कश्र मनोवृचत्त में हश्रन ोाव लाना
डॉक्टरीश्र को पसन्द नहीं न्ा। उनकश्र तो यहश्र इच्छा न्श्र चक सांघ का घोर् स्वतांत्रता और वैोव कश्र ओर
प्रयाण करनेवाले तरुणों का सान् दे ने के चलए हश्र गरीते रहना िाचहए। नतः एक चमत्र ने घरे लू समारोह
के चलए घोर् दे ने का ीण णहग त गग्रह चकया तो डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘तगम्हारा लड़का दे श के चलए
चदन्ग्वीय करके गया होता तो उसके स्वागत के चलए मैं सांघ का घोर् स्वयां लेकर ीाता तन्ा दे श
का गौरव णढाने वाले उस सगपगत्र के गगमन का गनन्द दशों चदशाओां में गगी
ाँ ा दे ता। पर उसके चववाह
के चलए तगम िाहे चीतने पैसे दे ने को कहो तो ोश्र यह घोर् नहीं चदया ीा सकेगा। चफर एक को दे ने के
णाद ननेक लोग गग्रह करने लगेंगे और एक हश्र समय यचद ननेकों ने मााँगा तो एक को छोड़कर
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सणको नाहीं करके नप्रसन्न करना पड़ेगा।’’ पैसे कश्र दृचष्ट से चकया हग ग चविार सांग्रह में णािक होगा
यह दे खकर डॉक्टरीश्र ने चनचित चकया चक सांघ का घोर् केवल राष्ट्रश्रय कायभ के चलए हश्र णीाया
ीायेगा।

पैसा कहीं से चमले तो लेना िाचहए यह नश्रचत सावभीचनक सांस्न्ाओां के सांिालकों को चनरुपाय प से
स्वश्रकार करनश्र पड़तश्र है क्योंचक नचिकाांशतः उनके कोई चनचित और सम्पन्न सािन-स्रोत तो होते नहीं
तन्ा कायभ कश्र गवश्यकताएाँ गय से िार कदम गगे हश्र रहतश्र हैं । पर इतना ध्यान तो रखना हश्र
िाचहए चक कहीं से ोश्र पैसा लेते समय नांगश्रकृत कायभ कश्र पचवत्रता में चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र न्यूनता न
गने पाये। परन्तग कोश्र-कोश्र पैसे कश्र नचनवायभता कायभ कश्र नपेक्षा ोश्र नचिक लगने लगतश्र है तन्ा
सामान्य लोग तो उसे सण णातों को खोलनेवालश्र एकमेव कगांीश्र मानकर उसका खूण गगणगान करते
हैं । 1930 के पहले सांघ कश्र णाल्यावस्न्ा में पैसे कश्र तांगश्र होने पर नागपगर के ‘महाल नमेच्यूनर क्लण’
और णडी कश्र सहकारश्र सांस्न्ा ने यह सगझाव रखा चक उनके नाटकों के चटचकट यचद सांघ के स्वयांसेवक
णेिें तो वे खेलों से होनेवालश्र गय का एक चहस्सा सांघ को दे दें ग।े कायभकताओां ने ीण यह कल्पना
णैुक में रखश्र तो डॉक्टरीश्र उससे सहमत न हग ए और दो-तश्रन चदन णाद स्पष्ट शब्दों में उसे नमान्य कर
चदया।

इस घटना के न्ोड़े चदन णाद हश्र नागपगर में ‘ताराणाई सकभस’ गया। उसके सांिालकों ने ीश्र मातभण्डराव
ीोग के गग्रह पर एक खेल के पााँि-छः सौ रुपये सांघ को दे चदये। उसे स्वश्रकाकर करते हश्र कगछ
लोगों ने डॉक्टरीश्र से प्रश्न चकया चक ‘‘गपने यह पैसे कैसे ले चलये ?’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने ीो उत्तर
चदया वह माननश्रय है । उन्होंने कहा चक ‘‘सकभस और नाटक में नन्तर है । इसके नलावा ये पैसे लेने
पर ोश्र इस प्रकार के पैसों के ोरोसे सांघ का काम िले यह कल्पना मगझे नसह्य लगतश्र है । सांघ का
कायभ तो स्वयांसेवकों तन्ा सांघ-चहतैर्श्र लोगों द्वारा सहर्भ नपभण कश्र गयश्र दचक्षणा पर हश्र चनोभर रहना
िाचहए।’’

गन्दोलन कश्र सम्ोावना णढते समय डॉक्टरीश्र को पैसे कश्र तांगश्र नचिक ननगोव में गने लगश्र। यह
चदखता है चक सांघकायभ के णढते व्यय को साँोालने के चलए स्वयांसेवक तन्ा सांघ-चहतैचर्यों के पास से
1930 कश्र फरवरश्र में उन्होंने चनचि सांग्रह चकया न्ा। चहतचिन्तकों के चलए चनकाले गये चनवेदन-पत्रक
में उन्होंने चलखा न्ा चक ‘‘..........गी तक हम लोगों ने चणना पैसे के काम चकया यह हमें हश्र पता है ।
परन्तग उसके गगे सांघ को चणना पैसे के काम करना कचुन होगा, यह नत्यन्त नम्रतापूवभक गपको
णताना िाहता हू ाँ । इसके चलए उदार हृदय लोगों से नांशदान लेकर एक णड़श्र चनचि सांग्रह करने का
चविार है । परन्तग नोश्र हम माचसक िन्दा मााँगने के चलए गपके पास उपन्स्न्त हैं तन्ा गपसे नत्यन्त

203
चवनम्र चनवेदन है चक नपनश्र गय में से एक चदन कश्र गय हमें माचसक िन्दे के प में दे कर उपकृत
करें । हमारश्र यद्यचप प्रान्भना यह है चफर ोश्र गप सहर्भ ीो दें गे उसे हम गनन्द से स्वश्रकार करें ग।े ’’

स्वयांसेवकों के पास से ोश्र उस वर्भ पैसे ीमा करने पड़े। उनके पास से गयग और सम्पचत्त के प्रमाण
से क्या नपेक्षा है इसके चनयम डॉक्टरीश्र ने चीस कागी पर चलखे न्े उसके नन्त में दो सूिनाएाँ ोश्र
चलखश्र हग ई चमलतश्र हैं । इन सूिनाओां से एक णात चणल्कगल स्पष्ट हो ीातश्र है चक यद्यचप िन्दे कश्र
नचनवायभता नहीं न्श्र पर ीद्धा और गत्मश्रयता से चकसश्र ने चकतना ोश्र िन चदया वह नपयाप्त हश्र होगा
इतनश्र गवश्यकता उस समय ननगोव में ग रहश्र न्श्र। वे चलखते हैं चक ‘‘........ऊपर चलखे हग ए चकसश्र
ोश्र चहसाण से िन्दा दे ना सम्ोव न हो तो स्वयांसेवक के िालक को णताने पर उससे चणल्कगल िन्दा
नहीं चलया ीायेगा। सांघ का स्वयांसेवक होने के चलए िन्दा दे ना गवश्यक नहीं।’’ इसके नश्रिे चवशेर्
सूिना यह है चक ‘‘ऊपर चदये हग ए िन्दे कश्र दरें कम-से-कम हैं । उन्हीं दरों पर चिपटे रहने कश्र
गवश्यकता नहीं। इतना हश्र नहीं इस महान् कायभ के चलए ज्यादा-से-ज्यादा साम्पचत्तक त्याग करने के
चलए चसद्ध होकर चीतना नचिक िन्दा चदया ीा सके उतना दे ना गवश्यक है ।’’ यह चनचि सांग्रह करते
हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र ने णराणर ध्यान रखा चक चमलने वाले पैसे के सान्-सान् दे नेवाले के मन कश्र प्रसन्नता
ोश्र णनश्र रहे । उनका लोकसांग्राहक स्वोाव उन्हें नन्यन्ा गिरण करने नहीं दे सकता न्ा।

कहगणघाट के चपस्तौल-काण्ड के णाद सांघकायभ कश्र ओर सरकार कश्र सांशय दृचष्ट स्पष्ट प्रतश्रत होने लगश्र
न्श्र और नण तो सरकार-चवरोिश्र गन्दोलन ोश्र शग होनेवाला न्ा। सरकार का ननगमान न्ा चक
डॉक्टरीश्र सांघ िलाते हों तो ोश्र उनके पूवभ इचतहास कश्र ओर ध्यान चदया तो गन्दोलन शग होते हश्र वे
उसमें कूद पड़ेंगे नतः उनकश्र नश्रचत के णारे में पता लगाने का प्रयास सरकार कश्र ओर से होने लगा।
सरकार कश्र इस हलिल का पता डॉक्टरीश्र को ोश्र लग गया न्ा। उन्हें लगता न्ा चक गन्दोलन शग
होते हश्र सरकार कगछ-न-कगछ िाल चनकालकर उन्हें ीेल में डाल दे गश्र और तण उनके घर में सांघ कश्र
णैुकें िलाना तन्ा कायालय रखना सम्ोव नहीं होगा। उस समय कोई गड़णड़ न हो इसचलए उन्होंने
मोचहते णाड़े के पास वॉकर रोड से लगे हग ए दशोत्तर के णाड़े में कायालय के चलए एक नलग ीगह
चकराये पर ले लश्र। ोाड़े के माचसक णश्रस रुपये ीमा करने कश्र ोश्र उन्होंने व्यवस्न्ा कर दश्र। णाहर से
यह चदखाने के चलए चक वह चवद्यार्तन्यों के रहने का स्न्ान है उन्होंने दो छात्रों, ीश्र तगम्णडे और ीश्र वाटवे,
को वहााँ रख चदया।

1930 के प्रारम्ो से हश्र महात्मा गाांिश्रीश्र ने ‘यांग इन्ण्डया’ पत्र के द्वारा सत्याग्रह का प्रिार िूम-िड़ाके
से शग कर चदया न्ा। उसमें यह नश्रचत घोचर्त कश्र गयश्र न्श्र चक ‘‘सत्याग्रह का गन्दोलन शग होने पर
दे श के एकाि ोाग में नत्यािार हग ए तो ोश्र गन्दोलन णन्द नहीं होगा।’’ इससे सरकार और ोश्र

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नचिक हड़णड़ा गयश्र। गाांिश्रीश्र का वायसराय से पत्र व्यवहार ोश्र शग न्ा। उनकश्र मााँगें पूरश्र नहीं
होनेवालश्र हैं ऐसा लगते हश्र उन्होंने चदनाांक 12 मािभ को साणरमतश्र-गीम से उनासश्र सत्याग्रचहयों के
सान् नमक का कानून तोड़ने के चलए समगद्र के चकनारे दाण्डश्र के चलए प्रस्न्ान करने कश्र घोर्णा कर
दश्र। दो-सौ मश्रल का पैदल प्रवास और प्रिार करते हग ए ‘दाण्डश्र-यात्रा’ 5 नप्रैल को पूरश्र हग ई तन्ा 6
नप्रैल प्रातःकाल महात्माीश्र ने समगद्र में स्नान कर नमक इकट्ठा करते हग ए सत्याग्रह का चणगगल णीा
चदया। इसके णाद दे श में सण ीगह पकड़-िकड़ शग हो गयश्र तन्ा सरकार का दमनिक्र िल
चनकला। चकन्तग लक्षावचि ीनता स्वाचोमान से इस िगनौतश्र को स्वश्रकार करके खड़श्र हो गयश्र और
‘‘नहीं रखनश्र, नहीं रखनश्र, सरकार ीाचलम नहीं रखनश्र’’ के नारों से सम्पूणभ वातावरण गूी
ाँ उुा।

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17. ीांगल-सत्याग्रह
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र को इस णात का गनन्द न्ा चक नांग्री
े ों के चवरुद्ध दे श में गन्दोलन शग हो
गया। उनके चलखने-णोलने में यह गनन्द प्रकट ोश्र होता न्ा। चकन्तग दूसरश्र ओर उनके मन में यह
गशांका ोश्र होतश्र न्श्र चक गन्दोलन के प्रवाह में कहीं उनके द्वारा हान् में चलये चिरन्तन राष्ट्रोत्न्ान के
कायभ कश्र उपेक्षा न हो ीाये, क्योंचक उसका चवस्तार और णल नोश्र कम न्ा। सामान्यतः ोावना के
गवेश में काम करनेवाले व्यचि केवल क्षणीश्रवश्र वतभमान का हश्र चविार करते हैं चकन्तग चीन्होंने
दूरदृचष्ट से पााँि-पिास वर्ों का हश्र नहीं नचपतग ोचवष्ट्य में सैकड़ों वर्ों का इचतहास नपनश्र कल्पना के
ननगसार वैोवसम्पन्न, स्वाचोमानपूणभ और गनन्दमय करने के चनिय से पग उुाया हो उन्हें कायभ के
चनत्य और नैचमचत्तक स्व प का चववेक करना हश्र पड़ता है । डॉक्टरीश्र ने नपने सम्पूणभ ीश्रवन कश्र
गचतचवचियों का चनिारण इस चववेक के गिार पर हश्र चकया न्ा।

गन्दोलन शग होते हश्र उनके सहकाचरयों कश्र ओर से सत्याग्रह के प्रचत सांघ कश्र नश्रचत के चवर्य में प्रश्न
पूछे ीाने लगे। नतएव डॉक्टरीश्र ने एक पत्रक चनकाल कर सणको णताया चक ‘‘........सांघ ने िालू
गन्दोलन में ोाग लेने का चनणभय नोश्र नहीं चकया है । व्यचिशः चीस चकसश्र को ोाग लेना हो उसे
नपने सांघिालक कश्र ननगमचत से ोाग लेने में कोई प्रचतवाद नहीं है । सांघ के कायभ के चलए ीो रश्रचत
पोर्क हो ऐसश्र रश्रचत से हश्र वह कायभ करें ।’’

गन्दोलन के वातावरण में ोश्र प्रचतवर्भ कश्र ोााँचत इस वर्भ ोश्र नचिकारश्र चशक्षण वगभ णढश्र हग ई सांख्या के
सान् प्रारम्ो हग ग। डॉक्टरीश्र के चवशेर् सहवास में रहनेवाले णहग त-से यगवक कायभकता सांघ का सम्पूणभ
क्रचमक चशक्षण पूणभ करके नण नपने हश्र णल पर कहीं ोश्र सांघ का कायभ िला सकने में चनष्ट्णात हो
गये न्े। इसश्र वगभ के समय डॉक्टरीश्र ने एक शगशूर्ा-पन्क प्रारम्ो करने कश्र योीना णनायश्र तन्ा उसे
चक्रयात्मक स्व प दे ने के चलए पग ोश्र उुाये। उस समय के कागी-पत्रों से यह पता लगता है चक डॉ.
पराांीपे कश्र कल्पना के ननगसार नागपगर, चणलासपगर, ोण्डारा, िााँदा, विा, कहगणश्र, सेलू, गाँीश्र,
नलश्रपगर, नािणगााँव, सालोडफकश्रर, गवी, खापा व िनोडश्र नामक स्न्नों पर स्वयांसेवकों के
प्रन्मोपिार के पन्क णनाने कश्र योीना चनचित हग ई न्श्र। इन स्न्ानों में वह योीना कहााँ-कहााँ कायान्न्वत
हो सकश्र यह कहना गी कचुन है चकन्तग यह चनचित प से ज्ञात है चक नागपगर में सौ तरुणों के एक
ननगशासनणद्ध पन्क को चशक्षा दे कर खड़ा करने में सफलता चमलश्र न्श्र।

उन चदनों डॉक्टरीश्र का यह चवशेर् गग्रह न्ा चक राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के प्रत्येक पन्-सांिलन और
णड़े-णड़े कायभक्रमों में उसका नपना हश्र शगशर्
ू ा-पन्क होना िाचहए। उनका कहना न्ा चक चकसश्र ोश्र
चनयोचीत एवां ननगशासनणद्ध कायभक्रम के णश्रि यचद कोई मूर्तछत होकर चगर ीाये नन्वा चकसश्र का

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प्रन्मोपिार करना पड़े तो उस समय चवर्य से ननचोज्ञ नन्वा नौचसचखये लोगों कश्र घणड़ाहट और
दौड़िूप सण ननगशासन को चणगाड़ दे तश्र है । इसचलए ऐन मौके पर लोगों कश्र णौखलाहट के स्न्ान पर
चशचक्षत पन्क के द्वारा शान्न्तपूवभक योग्य उपिार कश्र चसद्धता उन्हें गवश्यक प्रतश्रत होतश्र न्श्र। इस
सम्णन्ि में एक घटना का वे ननेक णार उल्लेख करते न्े। चदल्लश्र में वायसराय लॉडभ हाचडिंग के ऊपर णम
फेंके ीाने पर ीगलूस में वहीं-कश्र-वहीं उनकश्र मरहमपट्टश्र कर दश्र गयश्र न्श्र। वे िाहते न्े चक सांघ में ोश्र
इसश्र प्रकार कश्र गदशभ व्यवस्न्ा हो। इसश्र इच्छा से यह पन्क णनाये गये न्े। इसश्र समय ीश्र णोस ने सांघ
को कगछ ‘वाटर णैग्स’ चदये चीसके कारण पन्क के उपकरणों में एक कमश्र ननायास हश्र दूर हो गयश्र।

नचिकारश्र चशक्षा वगभ समाप्त होने पर कगछ लोगो ने डॉक्टरीश्र से सत्याग्रह में व्यचिशः ीाने कश्र ननगमचत
मााँगश्र। डॉक्टरीश्र कश्र नश्रचत गन्दोलन में ोाग लेने के चलए उत्सगक व्यचि को मना करने कश्र नहीं न्श्र
पर यह ोश्र गवश्यक न्ा चक सांघ के कायभ कश्र दृचष्ट से कगछ तरुण कायभकता ीेल के णाहर हश्र रहे ।
नतः उनमें से यचद कोई डॉक्टरीश्र से ननगमचत लेने के चलए गता तो वे उससे पूछते ‘‘चकतने चदन कश्र
तैयारश्र करके घर से चनकले हो ?’’ ‘‘छः महश्रने कश्र’’, सािारणतः इसश्र प्रकार का उत्तर गता न्ा। इस
पर डॉक्टरीश्र कहते ‘‘छः महश्रने के स्न्ान पर दो वर्भ कश्र सीा हो गयश्र तो ?’’ इस प्रश्न का उत्तर चमलता
चक ‘‘ोोगूग
ाँ ा।’’ चकसश्र ने इतनश्र चसद्धता चदखायश्र चक डॉक्टरीश्र उनसे कहते ‘‘समझ लो तगम्हें सीा हो
गयश्र। यह समय सांघकायभ के चलए क्यों नहीं दे ते ?’’ इस प्रश्न का गशय समझकर ननेक समझदार
तरुणों ने वैसा हश्र चकया। चकन्तग उनकश्र सांख्या चगनतश्र कश्र हश्र न्श्र। शेर् सैकड़ों तरुणों को डॉक्टरीश्र ने
सत्याग्रह में ीाने कश्र ननगमचत दश्र न्श्र। पर यह ननगमचत दे ते हग ए उन्हें यह दे खकर दगःख होता न्ा चक
तरुणों में नपने कायभ तन्ा ध्येय के प्रचत उत्कटता के स्न्ान पर ‘हमने ोश्र कगछ चकया है ’ इसका चदखावा
करने का हश्र ोाव प्रणल न्ा। ऐसे तरुणों से उपचरचलचखत प्रश्न पूछने के णाद डॉक्टरीश्र यहश्र सलाह दे ते
चक वे केवल ोावावेश में गन्दोलन में न कूदकर चविारपूवभक हश्र उसमें सन्म्मचलत हों।

सांघ का शगशूर्ा-पन्क गन्दोलन के समय चनकलनेवालश्र छोटश्र-णड़श्र सोश्र शोोायात्राओां के सान्-


सान् रहता न्ा। ननेक स्वयांसेवकों ने ोश्र सत्याग्रह में व्यचिशः ोाग लेना प्रारम्ो कर चदया न्ा।
डॉक्टरीश्र ने सोिा चक इस समय सारे समाी का मन्न्न होकर दे शोचिपूणभ खरे कायभकता कारागृह
में ननायास हश्र एकत्र ग ीायेंग।े यचद इस प्रकार होनहार तन्ा दे शोचिपूणभ कश्र ोावना से ोरे हग ए
तरुण कायभकताओां के सहवास में रहने का सगयोग चमल ीाये तो सांघ कश्र दृचष्ट से गााँव-गााँव में एक-एक
व्यचि को ाँढ
ू ते चफरने कश्र नपेक्षा नचिक लाोप्रद होगा। वैसे ोश्र ीण नांग्री
े ों के चवरुद्ध िारों ओर
नसन्तोर् कश्र नचग्न िेत रहश्र हो उस समय इस पावन यज्ञ में नपनश्र ोश्र कगछ सचमिाएाँ डालने का चविार
डॉक्टरीश्र ीैसे नचोीात दे शोि के मन में न उुना एक निरी-ोरश्र घटना हश्र होतश्र। सांघ के चदन-
प्रचतचदन के कायभ के नणाि िलते रहने कश्र योीना करने के उपरान्त वे दे शोद्धार के चलए होनेवाले
प्रत्येक कायभ में सदै व नपना योगदान दे ते न्े। उदाहरण के चलए, ीण गळन्दश्र कश्र पालकश्र पण् रपगर

207
ीाये तो, काम में व्यस्त रहने के कारण प्रारम्ो से नन्त तक उसके सान् रहना सम्ोव न होने पर, यचद
कोई व्यचि चदण्डश्र पताकाओां के सान् नपने नगर के एक दरवाीे से दूसरे दरवाीे तक हश्र उसके सान्
ीाकर योगदान करे , उसश्र प्रकार का डॉक्टरीश्र का व्यवहार न्ा।

कहगणघाट स्टे शन के लूट-काण्ड का चनणभय हो ीाने के णाद सांघ के नचिकाचरयों के पश्रछे गगप्तिरों का
चसलचसला चपछले डेढ-दो वर्ों में कगछ कम हो गया न्ा। चफर ोश्र कगछ सरकारश्र नचिकारश्र सांघ कश्र
ओर साशांक दृचष्ट से दे खते हैं इसका ननगोव णश्रि-णश्रि में गता रहता न्ा। ऐसश्र न्स्न्चत में गप्पाीश्र
के मन में चविार गया चक न्ोड़े चदनों नचिकाचरयों कश्र गाँखों के सामने न रहें तो इस घटना के कारण
व्यन्भ हश्र दूचर्त वायगमण्डल नपने-गप कगछ साफ हो ीायेगा। नतः उन्होंने डॉक्टरीश्र से मािभ में हश्र
दो-एक णार कहा चक ‘‘मगझे लगता है चक मगझे सत्याग्रह में ोाग लेना िाचहए।’’ ‘‘वगभ पूरा हो ीाने के
णाद चविार करें ग’े ’ यह उत्तर दे कर उस समय डॉक्टरीश्र ने णात टाल दश्र। वगभ के समय ोश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र ने यह चवर्य चफर से छे ड़ा। उस समय गप्पाीश्र का स्वास्र्थय तन्ा सांघ का णढता हग ग काम- ये
दो कारण णताकर डॉक्टरीश्र ने नपनश्र नसम्मचत प्रकट कश्र। नण वगभ समाप्त होने के णाद चफर से एक
णार टोहने कश्र दृचष्ट से गप्पाीश्र ने डॉक्टरीश्र को पत्र चलखा। उस पत्र का उत्तर चमला ‘‘गपके सान्
मैं ोश्र सत्याग्रह में ग रहा हू ाँ ।’’ इस उत्तर से गप्पाीश्र को लगा चक शायद डॉक्टरीश्र कगछ खश्री गये
हैं चीससे सश्रिश्र ‘‘ना’’ न करते हग ए उन्होंने स्वयां नपने िलने कश्र तैयारश्र ोश्र णतायश्र है । नतः वे
डॉक्टरीश्र से चमलने के चलए नागपगर गये। वहााँ डॉक्टरीश्र के मन के चविार का गप्पाीश्र को पता
िला।

सत्याग्रह शग हग ए तश्रन महश्रने हो गये न्े। समगद्र से पााँि-छः सौ मश्रल दूर मध्यप्रान्त के लोगों को नमक-
कानून तोड़ने के चलए इतनश्र दूर ीाना चदन-प्रचतचदन कचुन प्रतश्रत होने लगा न्ा। सत्याग्रह का उद्देश्य
तो इतना हश्र न्ा चक चकसश्र-न-चकसश्र प्रकार से सामगदाचयक प से यह प्रकट कर चदया ीाये चक हम
नांग्री
े ों का कानून नहीं मानते। नतः यह चविार णल पकड़ने लगा चक मध्यप्रान्त के चलए ीांगल-
कानून तोड़कर सत्याग्रह करने कश्र पद्धचत नचिक उपयगि रहे गश्र। वैसे ोश्र सन् 1917 से हश्र िराऊ
ीांगलों को सगरचक्षत वन घोचर्त कर वन-चवोाग के सगपगदभ कर दे ने के कारण लोगों में ोारश्र नसन्तोर्
न्ा तन्ा उसको व्यि करने के चलए लोकमान्य चतलक के प्रमगख सहयोगश्र एवां ननगयायश्र ीश्र मािवराव
नणे ने उसश्र समय से गन्दोलन प्रारम्ो कर रखा न्ा। उन्होंने शासन को ननेक गवेदन एवां
स्मृचतपत्रक इस चवर्य पर प्रस्तगत चकये न्े। उनका कहना न्ा चक ‘‘ीांगलों के सांरक्षण एवां व्यवस्न्ा
सम्णन्िश्र सरकारश्र नश्रचत का गिार कोर्वृचद्ध न होकर मगख्यतः चकसानों कश्र सगचविा और गवश्यकता
का चविार हश्र होना िाचहए। चकसानों के गाय-णैलों को पेट-ोर िारा चमलना िाचहए तन्ा उनको
गवश्यक घास, फूस, लकड़श्र गचद उन्हें चरयायतश्र दर पर चमलनश्र िाचहए। इतना होने के णाद ीो णिे

208
वह उपी सरकार को नपने चलए लेनश्र िाचहए।’’ चकन्तग इन प्रान्भनाओां कश्र ओर सरकार कान में उाँगलश्र
डालकर णैुश्र रहश्र। पचरणाम कश्र दृचष्ट से सम्पूणभ प्रयत्न नरण्यरोदन हश्र चसद्ध हग ए।

सन् 1917 में हान् में चलये इस प्रश्न को इस चनचमत्त और ोश्र तेीश्र दे ने कश्र दृचष्ट से ीश्र मािवराव नणे ने
ीांगल-सत्याग्रह कश्र तैयारश्र कर लश्र। डॉक्टरीश्र तन्ा गप्पाीश्र ीोशश्र ने ोश्र इसश्र समय गन्दोलन में
कूदने का चनणभय चलया न्ा। चतलकपक्षश्रय होने के कारण वैिाचरक दृचष्ट से ोश्र तश्रनों का घचनष्ठ सम्णन्ि
न्ा। वैसे ोश्र नपने हश्र प्रान्त में सत्याग्रह करना ननेक कारणों से लाोप्रद न्ा। नतः उन्होंने समगद्र के
तश्रर पर ीाकर नमक-कानून ोांग करने के स्न्ान पर ीांगल-सत्याग्रह में हश्र ोाग लेना तय चकया। इस
चनणभय के पश्रछे दो प्रमगख कारण न्े। लोकमान्य नणे ने चवद्यान्ी दशा में डॉक्टरीश्र कश्र सण प्रकार से
सहायता कश्र न्श्र। नण उनके नेतृत्व में सत्याग्रह-सांग्राम में ोाग लेने का नवसर चमल रहा न्ा यह उनके
चलए चवशेर् सन्तोर् का चवर्य न्ा। इसके नचतचरि चवदोभ में नोश्र तक सांघ का कायभ नहीं पहग ाँ िा न्ा।
उन्हें लगा चक कारागृह में गनेवाले लोगों के सहारे वहााँ रहकर वे सांघ के चवस्तार कश्र ोूचमका ोश्र णना
सकेंगे।

सत्याग्रह में ोाग लेने का चनणभय हो ीाने पर डॉक्टरीश्र ने नपनश्र ननगपन्स्न्चत में सांघकायभ के समगचित
सांिालन कश्र योीना णनायश्र तन्ा उसे नपने सोश्र सहकाचरयों के सम्मगख रखा। नागपगर के कायभ का
ोार ीश्र. णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र. णापूराव ोेदश्र के ऊपर सौंपा गया तन्ा डॉ. पराांीपे को
सरसांघिालक चनयगि चकया गया। 12 ीगलाई 1930 को गगरुदचक्षणा-महोत्सव पर नपने ोार्ण में
उन्होंने उि योीना कश्र सावभीचनक प से घोर्णा कश्र तन्ा सत्याग्रह में ोाग लेने कश्र नपनश्र ोूचमका
को ोश्र स्पष्ट चकया।

इस उत्सव के नध्यक्ष डॉ. ल. वा. पराांीपे ने नपने ोार्ण में, यह णताते हग ए चक डॉक्टर हे डगेवार
नपने कगछ सहयोचगयों के सान् सत्याग्रह में ोाग लेनेवाले हैं , कहा ‘‘चीनको ोाग लेना हो वे सहर्भ लें
पर शेर् को इस तरुण-सांघटन के कायभ में हान् णाँटाना िाचहए। इसमें शांका नहीं चक वतभमान गन्दोलन
राष्ट्र को गगे ले ीानेवाला है , पर वह स्वतांत्रता के मागभ पर पहलश्र सश्रढश्र मात्र है । राष्ट्र कश्र स्वतांत्रता
के चलए नपनश्र सम्पूणभ गयग लगा दे नेवाले मनगष्ट्य सांघचटत करना हश्र वास्तचवक कायभ है ।’’

उत्सव के नन्त में गोार मानते हग ए, डॉक्टरीश्र ने नपनश्र ोूचमका स्पष्ट कश्र। वे णोले ‘‘गोार मानकर
णैुने के णाद से मैं सांघ का िालक नहीं रहू ाँ गा। डॉ. पराांीपे ने सांघ का िालकत्व नपने ऊपर लेने कश्र
स्वश्रकृचत दश्र है । इसके चलए सांघ कश्र ओर से मैं उनका हार्तदक गोार मानता हू ाँ । हम लोग ीो इस
गन्दोलन में ोाग ले रहे हैं , सण नपनश्र व्यचिगत चीम्मेदारश्र पर ऐसा कर रहे हैं । सांघ कश्र चविारिारा
और कायभपद्धचत में चकसश्र ोश्र प्रकार का पचरवतभन नहीं हग ग है नन्वा हमारश्र उन पर से ीद्धा ोश्र नहीं
चडगश्र है । दे श में चीतने गन्दोलन िलें उनका नन्तणाह्य ज्ञान प्राप्त करना तन्ा उनका उपयोग नपने

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कायभ के चलए कर लेना दे श कश्र स्वतांत्रता के चलए प्रयत्नशश्रल चकसश्र ोश्र सांस्न्ा का कतभव्य है । सांघ के
ीो लोग गी तक इस सांग्राम में कूदे हैं और ीो गी हम लोग ीा रहे हैं , सण इसश्र हे तग से नग्रसर
हग ए हैं ।

‘‘ीेल ीाना गी दे शोचि का लक्षण णन गया है । पर ीो मनगष्ट्य दो वर्भ ीेल में रहने के चलए तैयार
है उसे हश्र यचद कहा ीाये चक घरणार से दो वर्भ कश्र छग ट्टश्र लेकर दे श में स्वातांत्र्योन्मगख सांघटन का काम
करो तो कोई ोश्र तैयार नहीं होता। ऐसा क्यों होना िाचहए ? ऐसा लगता है चक लोग यह णात समझने
के चलए तैयार नहीं चक दे श कश्र स्वतांत्रता साल-छः महश्रने काम करने से नहीं णन्ल्क वर्ानगवर्भ सतत
सांघटन करने से हश्र चमलेगश्र। इस मौसमश्र दे शोचि को छोड़े चणना तन्ा, यद्यचप दे श के चलए मरने कश्र
चसद्धता तो िाचहए हश्र पर उससे ोश्र नचिक, दे श कश्र स्वतांत्रता के चलए सांघटन का कायभ करते हग ए हश्र
ीश्रने का चनिय चकये चणना, दे श का ोाग्य नहीं पलटे गा। यह वृचत्त यगवकों में उतपन्न करना तन्ा उनका
सांघटन करना यहश्र सांघ का ध्येय हैं ।’’

इस ोार्ण के णाद सांघ के सरसेनापचत ीश्र मातभण्डराव ीोग ने डॉक्टीश्र तन्ा उनके सान् ीानेवाले
नन्य कायभकताओां को पगष्ट्पहार नपभण चकये।

इस प्रकार से व्यवस्न्ा होने के णाद चदनाांक 14 ीगलाई को सायांकाल डॉक्टरीश्र कश्र टगकड़श्र नागपगर से
रवाना हो गयश्र। उस समय स्टे शन पर उनको चवदा करने के चलए दो-तश्रन सौ व्यचि उपन्स्न्त न्े। उनमें
सरसांघिालक डॉ. पराांीपे, ीश्र वळे तन्ा णै. गोचवन्दराव दे शमगख गचद डॉक्टरीश्र के स्नेहश्र प्रमगख
प से चवद्यमान न्े। ननेक लोगों ने हार पहनाकर डॉक्टरीश्र से दो शब्द कहने कश्र प्रान्भना कश्र।
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘वतभमान गन्दोलन हश्र स्वतांत्रता कश्र नन्न्तम लड़ाई है तन्ा उससे गीादश्र चमल
ीायेगश्र इस भ्रम में मत रचहये। इसके गगे नसलश्र लड़ाई लड़ना है तन्ा उसमें सवभस्व कश्र णाीश्र
लगाकर कूदने कश्र तैयारश्र करो। हम लोगों ने तन्ा नन्यों ने इस लड़ाई में ोाग चलया , उसका कारण
यहश्र है चक हमें ोरोसा है चक यह नपना कदम स्वतांत्रता के मागभ पर गगे ले ीायेगा।’’ उस चदन गाड़श्र
से वे विा गये।

दूसरे चदन 15 ीगलाई को प्रातः डॉक्टरीश्र तन्ा उनके सहकाचरयों का ीश्रराम मन्न्दर में सत्कार हग ग
तन्ा स्न्ानक )स्टेशन) तक शोोायात्रा चनकलश्र। रास्ते में ननेक स्न्ानों पर पगष्ट्पमालाएाँ पहनायश्र गयीं
तन्ा गरतश्र हग ई। डॉक्टरीश्र ीण गाड़श्र में िढे तो उनको प्रेमपूणभ चणदाई दे ने के चलए उनके चमत्र गवी
के ीश्र नारायणराव दे शपाण्डे तन्ा ीश्र त्र्यम्णकराव दे शपाण्डे उपन्स्न्त न्े। डॉक्टरीश्र के ‘‘िचलए’’
कहते हश्र वे वैसे हश्र उनके सान् िल चदये। इस प्रकार निानक ीेल िले ीाने पर गगे घरणार कश्र
क्या व्यवस्न्ा होगश्र इसकश्र तचनक ोश्र चिन्ता ने करते हग ए नेता के शब्द पर चणना चकसश्र चहिचकिाहट
के गज्ञापालन करने में हश्र िन्यता तन्ा सान्भकता माननेवाले चमत्र एवां ननगयायश्र डॉक्टरीश्र ने चनमाण

210
चकये यह उनके िचरत्र कश्र चवशेर्ता न्श्र। विा के णाद पगलगााँव, िामणगााँव गचद स्न्ानों पर स्वागत
होते हग ए सत्याग्रचहयों कश्र यह मण्डलश्र पगसद पहग ाँ िश्र। इस समय डॉक्टरीश्र के सान् ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र,
‘महाराष्ट्र’ के वतभमान सम्पादक ीश्र णाळासाहण वळे , ीश्र दादाराव परमान्भ, ीश्र चवट्ठराव दे व, ीश्र
णेखण्डे, ीश्र घरोटे , ीश्र ोय्याीश्र कगम्णलवार, गवी के ीश्र नम्णाडे, ीश्र नारायणराव दे शपाण्डे, सालोड
के ीश्र त्र्यम्णकराव दे शपाण्डे, िााँदा के ीश्र पालेवार न्े। सत्याग्रह-चशचवर में ोोीन करते समय साग
में नचिक चमिें होने के कारण कगछ लोग ीण ‘सश्र-सश्र’ करने लगे तो डॉक्टरीश्र हाँ सते हग ए णोले ‘‘यहााँ
ीण नच्छश्र तरह ोोीन नहीं कर पा रहे हो तो ीेल में क्या होगा ?’’

सत्याग्रह के चलए पगसद गने पर वहााँ के केन्द्र-सांिालक का मत हग ग चक उस टगकड़श्र में सण लोग इस


स्तर के न्े चक वे नलग-नलग कई ीत्न्ों का नेतृत्व कर सकते न्े। नतः इस ीत्न्े को स्वतांत्र प
से सत्याग्रह नहीं करना िाचहए। परन्तग डॉक्टरीश्र के सान् कानून तोड़ने में चवशेर् सन्तोर् प्रतश्रत होने
के कारण सणने यहश्र कहा चक नलग ीत्न्े का नेतृत्व करने के स्न्ान पर वे डॉक्टरीश्र के ीत्न्े में
ननगयायश्र होना नचिक पसन्द करें ग।े नतः चनचित हग ग चक यह टगकड़श्र चदनाांक 21 ीगलाई को
यवतमाळ में सत्याग्रह करे । पगसद का सत्याग्रह लोकनायक नणे के द्वारा प्रारम्ो हो िगका न्ा।
गवश्यक न्ा चक यवतमाळ के सत्याग्रह का ीश्रगणेश ोश्र चकसश्र चवख्यात नेता के द्वारा हो। नतः
सत्याग्रह के सांिालकों को यहश्र उचित प्रतश्रत हग ग चक डॉक्टरीश्र ीैसश्र व्यचि पगसद में सामान्य प से
सत्याग्रह करने के स्न्ान पर यवतमाळ में उसका णश्रीारोपण करें । सत्याग्रह के चलए चनचित चतचन् में
नोश्र पााँि-छः चदन शेर् न्े। इस नवचि में सत्याग्रह-गीम में पड़े रहना डॉक्टरीश्र को पसन्द नहीं न्ा।
नतः वे नपने सोश्र साचन्यों को लेकर दारव्हा पगसद क्षेत्र में प्रिार के चलए चनकल गये। इस समय वे
लोकनायक णापूीश्र नणे से ोश्र ीेल में चमले तन्ा नपने सत्याग्रह का चविार उनके सामने रखा। उस
समय कश्र स्मृचत णताते हग ए लोकनायक नणे ने लेखक से कहा न्ा चक ‘‘गवश्यकता पड़ने पर दगष्टों
का चसर ोश्र फोड़ सकने कश्र क्षमता रखनेवाले हृष्ट-पगष्ट तरुणों को डॉक्टर हे डगेवार कश्र टगकड़श्र में दे खकर
मगझे णड़ा गनन्द हग ग।’’

पगसद कश्र एक घटना उल्लेखनश्रय है । वहााँ गने के णाद दूसरे चदन प्रातःकाल ीण डॉक्टरीश्र नदश्र से
शौिाचद से चनवृत्त होकर वापस लौट रहे न्े उन्हें दो मगसलमान लड़के एक नच्छश्र हट्टश्र-कट्टश्र ीवान
गाय को पकड़े हग ए चमले। उत्सगकतावश डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘गाय कहााँ ले ीा रहे हो ?’’ यह पूछते हश्र
उत्तर चमला ‘‘ले नहीं ीा रहे , न्ोड़श्र दे र में इसकश्र कगणानश्र करें ग।े ’’ सगणह-हश्र-सगणह चहन्दू णस्तश्र में खगले
रास्ते पर गाय कश्र इस प्रकार हत्या कश्र णात सगनकर डॉक्टरीश्र को क्रोि ग गया। उन्होंने उन लड़कों
से गाय कश्र कश्रमत पूछश्र। उन्होंने णताया ‘‘णारह रुपये में इसको खरश्रदा न्ा, पर हमारा कसाई का िन्िा
ें े नहीं।’’ इतने में णूढा कसाई ोश्र वहााँ ग गया। ‘‘इतने खगले में गौ क्यों काटते हो
है इसचलए हम णेिग

211
?’’ डॉक्टरीश्र के यह प्रश्न करने पर उसने णड़े उदासश्रन ोाव से कहा ‘‘वर्ों से हम यहीं गाय काटते
तन्ा मााँस णेिते ग रहें हैं ।’’ डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘मााँस के चकतने रुपये चमलेंग’े ’ और कहने लगे
‘‘उतने पैसे मैं दे ता हू ाँ पर इसको मारो मत।’’ तण तक कगछ और मगसलमान वहााँ ग गये न्े। उसके
यह णताने पर चक मााँस के परश्रस-तश्रस रुपये गयेंग,े डॉक्टरीश्र ने उतने रुपये दे ना स्वश्रकार कर चलया।
पर कसाई गाय दे ना नहीं िाहता न्ा, ‘‘मगझे पैसों का क्या करना है । मैं तो गपके सामने हश्र इसकश्र
नोश्र कगणानश्र करता हू ाँ ।’’ उसकश्र गवभोरश्र णात सगनते हश्र डॉक्टरीश्र ने गाय कश्र रस्सश्र नपने हान् में ले
लश्र और उग्र तन्ा गम्ोश्रर स्वर में णोले ‘‘मेरे प्राण रहते तगम इस गाय का णाल ोश्र णााँका नहीं कर
सकोगे।’’ उनका यह प दे खकर कगछ मगसलमान गााँव में ीाकर वहााँ के प्रचतचष्ठत व्यचियों को णगला
लाये। उन्होनें डॉक्टरीश्र को खूण समझाने कश्र कोचशश कश्र। उन सणका एक हश्र कहना न्ा चक ‘‘यहााँ
तो गाय मारने कश्र प्रन्ा है नतः गाय कश्र रक्षा का हु छोड़ दश्रचीए।’’ ननेक वर्ों के कगसांस्कार के
कारण कगन्ण्ुत, स्वाचोमानशून्य तन्ा चनःस्वत्व मनोवृचत्त के व्यचियों को नेता णना हग ग दे खकर
डॉक्टरीश्र का नन्तःकरण नत्यन्त व्यचन्त हग ग। इतने में एक सज्जन ने गगे गकर डॉक्टरीश्र से
प्रश्न चकया ‘‘गप ीांगल-सत्याग्रह के चलए गये हैं , चफर इस फालतू णातों कश्र ओर क्यों ध्यान दे ते हो
?’’ इस पर डॉक्टरीश्र ीरा गरम होकर णोले ‘‘चहन्दगओां के चलए पूज्य गाय कश्र रक्षा फालतू णात है क्या
? ीांगल-सत्याग्रह चकया या गाय के चलए सत्याग्रह चकया, मेरे चलए दोनों हश्र समान हैं ।’’

इतने में पगचलस-नचिकारश्र ोश्र वहााँ ग गये तन्ा डॉक्टरीश्र से प्रान्भना करने लगे चक ‘‘झगड़ा हो ीायेगा,
नतः यह सण मत करो।’’ उस पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘परश्रस-तश्रस रुपये दे ते हग ए ोश्र इस व्यचि का
हमारश्र गाँखों दे खते गाय काटने का हु क्यों हैं ? नतः एक णार चफर साफ-साफ कहता हू ाँ चक मेरे
और मेरे ीत्न्े के लोगों के ीश्रचवत रहते गाय नहीं कट सकतश्र।’’ णात को यहााँ तक णढा हग ग दे खकर
नचिकारश्र कहने लगे ‘‘कोई ोश्र हार नहीं मानेगा तो झगड़ा हो ीायेगा। इसचलए मैं दोनों को हश्र चगरफ्तार
करता हू ाँ ।’’ इस िमकश्र का डॉक्टरीश्र को तो कोई डर नहीं न्ा। वे तो प्राण का मोह छोड़कर खड़े न्े।
उनको पकड़ने का, ोय चदखाने का नन्भ वश्रर को ‘हौग’ णताने ीैसश्र हास्यास्पद णात न्श्र। चकन्तग इस
िमकश्र से मगसलमानों में नरमश्र ग गयश्र। डॉक्टरीश्र ने वह गाय तश्रस रुपये में लेकर वहााँ कश्र गोरक्षण-
सांस्न्ा को ोेंट कर दश्र।

सगणह कश्र इस घटना ने नगर में चीसके मगाँह पर दे खो डॉक्टरीश्र के हश्र नाम कश्र ििा न्श्र। इसका पचरणाम
यह हग ग चक शाम कश्र सावभीचनक सोा में नगर कश्र सारश्र ीनता उमड़ पड़श्र। उस सोा के नध्यक्ष
कानडे शास्त्रश्र ने डॉक्टरीश्र कश्र दे शोचि कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा कश्र और उनका एक क्रान्न्तकारश्र के
नाते पचरिय कराया। ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र तन्ा ीश्र दादाराव परमान्भ के इस सोा में ोार्ण हग ए।
तत्पिात् डॉक्टरीश्र णोलने को खड़े हग ए। उस चदन उनके ोार्ण से ऐसा लगता न्ा मानो ििकते हग ए

212
शोले णरस रहे हों। उसमें से एक चविार गी ोश्र कई ीनों को याद है । उन्होंने कहा
न्ा..........‘‘स्वतांत्रता के चलए नांग्रेीों के णूट को पॉचलश करने से लेकर उनके णूट को पैर से
चनकालकर उससे उनके हश्र चसर को लहू लगहान करते हग ए मरम्मत करने तक के सण मागभ मेरे स्वतांत्रता-
प्राचप्त के सािन हो सकते हैं । चकसश्र ोश्र मागभ के चलए मेरे मन में चतरस्कार का ोाव नहीं है । मैं तो इतना
े ों को चनकालकर दे श स्वतांत्र करना है ।’’
हश्र ीानता हू ाँ चक नांग्री

पगसद से सण लोग यवतमाळ गये। वहााँ कगछ लोगों ने यह हु पकड़ चलया चक उन्हें सांघ का गणवेश
पहनकर हश्र सत्याग्रह करना िाचहए। इस पर खूण ििा ोश्र हग ई, वाद-चववाद हग ग तन्ा दो-एक ने तो
घर से गणवेश माँगाने के चलए तार ोेीने कश्र तैयारश्र ोश्र चदखायश्र। तार चलखने तक डॉक्टरीश्र कगछ ने
णोलते हग ए सणका वाद-चववाद ध्यानपूवभक सगनते रहे । पर तार चलखा दे खकर डॉक्टरीश्र िगप नहीं रह
सके। उन्होंने कहा ‘‘मगझे तो लगा न्ा चक गप लोग सांघ कश्र दृचष्ट से चविार करें ग।े हम लोगों ने गणवेश
पहनकर सत्याग्रह चकया तो उसका नन्भ क्या होगा ? हम लोग इस गन्दोलन में ोाग ले रहे हैं चकन्तग
उसके सान्-सान् दे श कश्र सम्पूणभ पचरन्स्न्चत पर नत्यन्त पचरणामकारक चसद्ध होनेवाले सांघ का
मूलगामश्र तन्ा नग्रगण्य कायभ नखण्ड िलता रहे इसकश्र हमें चिन्ता करनश्र िाचहए।’’ हु करनेवालों
ने गणवेश का चविार छोड़ चदया।

योीनानगसार चदनाांक 21 ीगलाई को प्रातः साढे छः णीे यवतमाळ में रणकसगे के चननाद के सान्
सत्याग्रह-चशचवर से कानून तोड़नेवाले ीत्न्े कश्र शोोायात्रा णड़े ुाट-णाट से चनकलश्र। नगर-ोवन के
मैदान में शोोायात्रा )ीगलूस) के पहग ाँ िने के णाद वहााँ ध्वीवन्दन हग ग तन्ा सगरचक्षत वन में से घास
काटने के चलए सणको हाँ चसये चदये गये। ीत्न्े के प्रमगख होने के कारण डॉक्टरीश्र को िााँदश्र का
िमिमाता हग ग हाँ चसया चमला। वह शोोायात्रा गगे रुईमण्डश्र तक गयश्र। उसमें तश्रन-िार हीार लोग
सन्म्मचलत न्े। वहााँ शोोायात्रा समाप्त हो गयश्र तन्ा गगे पैदल, साइचकल, णैलगाड़श्र, मोटर गचद से
ीांगल में चनचित स्न्ान पर सण ीा पहग ाँ ि।े सत्याग्रह का यह स्न्ान यवतमाळ से छः मश्रल दूर लोहारा
ीांगल में िामण गााँव-मागभ पर रास्ते के पास हश्र न्ा। वहााँ सत्याग्रह दे खने के चलए लगोग दस हीार
लोग ीमा हग ए न्े। उन चदनों सत्याग्रह के स्न्ान, समय और चदनाांक कश्र पूवभसूिना शासनाचिकाचरयों
को दे ने कश्र पद्धचत होने के कारण वहााँ वन-चवोाग के नचिकारश्र तन्ा पगचलसदल के लोग पहले से हश्र
मौीूद न्े।

ुश्रक नौ णीे डॉक्टरीश्र नपने ीत्न्े के सान् पहग ाँ ि।े समवेत ीनता ने स्वयांस्फूर्तत से उनका ीयीयकार
चकया। इतने में हश्र वन-नचिकारश्र ने यह पूछते हग ए चक ‘‘गप लोग हाँ चसये लेकर यहााँ गये हैं , गपके
पास ननगमचतपत्र है क्या,’’ उनको रोका। उसकश्र नवहे लना करते हग ए सणने हाँ चसये से घास काटना
प्रारम्ो कर चदया। न्ोड़श्र दे र में पगचलसदल का नचिकारश्र गगे गया तन्ा उसने सणको चगरफ्तार करने

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कश्र घोर्णा कश्र। तण डॉक्टरीश्र ने उपन्स्न्त ीनता को सम्णोचित करते हग ए कहा ‘‘हम लोगों को ोरोसा
है चक हम लोगों के णन्दश्र णनने के णाद ोश्र गप लोग इस गन्दोलन को नच्छश्र तरह गगे िलायेंग।े ’’
इसके णाद सणको मोटर में णैुाकर पगचलस-िौकश्र पर ले ीाया गया।

उसश्र चदन इन सत्याग्रचहयों का यवतमाळ-कारागृह में ीश्र ो िा कश्र नदालत में मगकदमा पेश हग ग
तन्ा तगरत-फगरत सणको सीा दे दश्र गयश्र। डॉ. हे डगेवार को िारा 117 के नन्तगभत छः महश्रने का सीम
कारावास तन्ा िारा 379 के नन्तगभत तश्रन महश्रने का सीम कारावास ननगक्रम से ोोगने कश्र सीा दश्र
गयश्र। शेर् ग्यारह ीनों को िार-िार महश्रने के सीम कारावास का दण्ड चमला। हवालात में रहते
समय ीश्र िोंगडे सण-इनस्पेक्टर ने चमत्र के नाते सणको नच्छा ीलपान कराया तन्ा यवतमाळ के
चसचवल सीभन ीश्र सम्मनवार ने ीेल चोीवाने के पहले सणको चमष्ठान-ोोीन करवाया। डॉक्टरीश्र
के चमत्रों का ीाल इस प्रकार प्रान्त-ोर में सोश्र वगों में फैला हग ग न्ा। ोोीन पर णैुते-णैुते डॉक्टरीश्र
ने मीाक में कहा ‘‘शगरुगत तो नच्छश्र हग ई।’’

सायांकाल उन सणको रे ल से नकोला-कारागृह के चलए रवाना चकया गया। उस समय रास्ते में प्रायः
सोश्र स्टे शनों पर सत्याग्रचहयों ने दशभन के चलए ोश्रड़ ीमा न्श्र तन्ा हर ीगह डॉक्टरीश्र को दस-पााँि
चमनट ोार्ण ोश्र करना पड़ता न्ा। यवतमाळ-मूर्ततीापगर रे ल-लाइन पर दारव्हा एक णड़ा स्टे शन है ।
वहााँ लोगों ने प्लेटफॉमभ पर हश्र एक मांि णनाकर सत्कार कश्र ोारश्र व्यवस्न्ा कश्र न्श्र। सािारणतः सात सौ
से गु सौ तक लोगों का समगदाय वहााँ इकट्ठा होगा। गाड़श्र गते हश्र डॉक्टरीश्र कश्र ीयीयकार से
वातावरण गूी
ाँ उुा। दारव्हा तक डॉक्टरीश्र चडब्णे में खड़े -खड़े हश्र लोगों का सत्कार स्वश्रकार करते
न्े। पर दारव्हा में ीश्र डाऊ वकश्रल तन्ा नन्य प्रचतचष्ठत सज्जनों के गग्रह के कारण उन्हें मांि तक ीाना
पड़ा। वहााँ गाड़श्र नचिक दे र रुकतश्र न्श्र नतः डॉक्टरीश्र का पन्द्रह-णश्रस चमनट का ोार्ण ोश्र हग ग।
गाड़श्र के चडब्णे में वापस गने पर लोगों ने फल तन्ा चमुाई कश्र टोकचरयााँ डॉक्टरीश्र के चडब्णे में लाकर
रख दीं तन्ा गाड़श्र छूटने पर सणने ‘वन्दे मातरम्’ के ीयघोर् से िारों ओर के वायगमण्डल को गगी
ाँ ा
चदया।

स्टे शन छोड़कर गाड़श्र गगे चनकल गयश्र न्श्र तन्ा ीयीयकार कश्र ध्वचन िश्ररे-िश्ररे िश्रमश्र होतश्र ीा रहश्र
न्श्र। इतने में पगचलस के नचिकारश्र ने वृ द्ध रामकसह को गज्ञा दश्र ‘‘रामकसह, हन्कचड़यााँ चनकालो।’’
डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘हन्कचड़यााँ चकसचलए ?’’

‘‘मैं क्या क ?ाँ मगझे डश्र. एस. पश्र. का फोन गया है । मैं तो नौकर ुहरा, ीैसा हग कगम होगा णीाना
पड़ेगा’’, नचिकारश्र ने उत्तर चदया।

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‘‘डश्र. एस. पश्र. कश्र ऐसश्र इच्छा होतश्र तो सत्याग्रह के णाद नण तक हन्कचड़यााँ डाल दश्र गयश्र होतीं। पर
गपने तो दे खा हश्र है चक उसने नोश्र तक ऐसा नहीं चकया।’’ डॉक्टरीश्र ने उसके तकभ का प्रचतवाद
करते हग ए कहा।

‘‘पर नण उसकश्र यहश्र गज्ञा है ।’’ नचिकारश्र शान्तोाव से णोला।

यह उत्तर सगनते हश्र डॉक्टरीश्र ताड़ गये चक वह साफ झूु णोल रहा है । नतः वे शान्न्त के सान् कहने
लगे ‘‘यह कोई मेरा ीेल ीाने का पहला मौका नहीं है । चफर हम लोगों ने स्वतः सत्याग्रह चकया है ।
इसचलए हम ोाग ीानेवालों में से ोश्र नहीं। इसचलए हन्कड़श्र डालने के फन्दे में मत पड़ो।’’ पर पगचलस-
नचिकारश्र कगछ ोश्र सगनने को तैयार नहीं न्ा। वह गरीते हग ए णोला ‘‘रामकसह, हन्कड़श्र क्यों नहीं
चनकालते ?’’ इस पर डॉक्टरीश्र गरम होकर णोले ‘‘चदखता है गपको चवनम्रता समझ में नहीं गतश्र।
गपका नगर हन्कड़श्र पहनाने का चनिय है तो मगझे ोश्र मेरा चनिय चदखाना पड़ेगा।’’

‘‘नन्ात् गप मगझे हन्कड़श्र नहीं डालने दें गे ?’’ ताव से िढतश्र हग ई गवाी में वह तरुण नचिकारश्र
णोला।

उसकश्र इस तावोरश्र वाणश्र ने णा द में चिनगारश्र का काम चकया।

डॉक्टरीश्र एकदम ोड़कते हग ए कहने लगे ‘‘डाल, कैसश्र हन्कड़श्र डालता है ? तू हमें समझता क्या है
? ज्यादा तैश चदखायेगा तो तेरश्र गुड़श्र णााँिकर चडब्णे से णाहर फेंक दूाँगा। और क्या होगा सीा नचिक
णढ ीायेगश्र। पर हम यह न्ोड़े हश्र सोिकर िले न्े चक नौ महश्रने कश्र हश्र सीा होगश्र।’’

डॉक्टरीश्र का गग उगलता हग ग ज्वालामगखश्र दे खकर सण पगचलसवाले हकणका गये। तण गप्पाीश्र


ने नचिकारश्र को समझाते हग ए कहा ‘‘गप इस प्रान्त में नये गये चदखते हैं । सण यह झूु है चक डश्र.
एस. पश्र. ने गज्ञा कश्र है । स्न्ान-स्न्ान पर होनेवाले सत्कार से गप चिढ गये हो। पर इस फन्दे में मत
पड़ो। डश्र. एस. पश्र. मगसलमान है इसचलए उसे खगश कर सकोगे यह सोिना णेकार है । हन्कड़श्र डालकर
दे चखए वहश्र डश्र. एस. पश्र. गपके कान खींिेगा। तण गपको पता िलेगा चक डॉक्टरीश्र के और उसके
सम्णन्ि कैसे है ? हम क्या ोाग ीानेवाले हैं ?’’

गप्पाीश्र के स्वर में स्वर चमलाकर सान् के चसपाचहयों ने ोश्र हन्कचड़यााँ न डालने कश्र हश्र सलाह दश्र।
नण नचिकारश्र का पारा काफश्र नश्रिे उतर गया न्ा। वह णोला ‘‘मैं गरश्रण मनगष्ट्य हू ाँ । चवचोन्न स्टे शनों
पर गप उतरते हैं । उस समय यचद गपमें से कोई ोाग गया तो मेरे गले में तो फााँसश्र लग ीायेगश्र।
नन्यन्ा गप ीैसों को हन्कड़श्र पहनाने का मगझे कौनसा िाव है ?’’

215
इस पर गप्पाीश्र णोले ‘‘ोागना हश्र होता तो दारव्हा तक नहीं ोाग सकते न्े ? गप चिन्ता मत कचरए।
हम लोगों को व्यवन्स्न्त प से ीेलखाने पहग ाँ िाने का ीेय गपको चमलेगा, चनचिन्त रचहए।’’ नण
चडब्णे कश्र खलणलश्र शान्त हो गयश्र न्श्र।

वातावरण में सरसता लाने के चलए डॉक्टरीश्र ीश्र खोलकर हाँ सते हग ए णोले ‘‘हो गया गपको चवश्वास
? समझाने का ीेय व्यन्भ हश्र गप्पाीश्र को चमलनेवाला न्ा इसचलए मेरश्र णात पटश्र नहीं।’’ डॉक्टरीश्र के
इस उसार से प्रसन्नता कश्र हाँ सश्र सणके ओुों पर चखल गयश्र। उिर डॉक्टरीश्र ने चमुाई कश्र टोकरश्र गगे
करते हग ए सणको पास णगलाया तन्ा पगचलस समेत सणको गग्रह के सान् खाने को चदया। एक क्षण पूवभ
ज्वालामगखश्र के समान सन्तप्त डॉक्टरीश्र को नण िन्न्द्रका कश्र शश्रतलता के समान शान्त एवां प्रसन्नमगख
दे खकर उस नचिकारश्र को णड़ा हश्र गियभ हग ग।राचत्र दस णीे गाड़श्र मूर्ततीापगर पहग ाँ िश्र। वहााँ से गाड़श्र
णदलकर वह टगकड़श्र णारह णीे रात को नकोला ीा पहग ाँ िश्र। स्टे शन पर हश्र सरकारश्र मोटर खड़श्र न्श्र।
उससे रात में हश्र सणको कारागृह में पहग ाँ िा चदया गया। उस रात सणको एक हश्र कोुरश्र में रखा गया।
डॉक्टरीश्र का दूसरा कारावास शग हो गया।

216
18. दूसरा कारावास
परमपूीनश्रय डॉक्टर हे डगेवार ने चीस चदन सत्याग्रह चकयश्र उससे दूसरे हश्र चदन मांगलवार चदनाांक 22
ीगलाई को नागपगर के सोश्र स्वयांसेवकों को समािार णताने के चलए सांघस्न्ान पर एकचत्रत चकया गया।
उस कायभक्रम में सरसांघिालक डॉ. ल. वा. पराांीपे, ीश्र नानासाहण टालाटगले, ीश्र काळश्रकर, णैचरस्टर
दे शमगख गचद प्रचतचष्ठत सज्जन ोश्र उपन्स्न्त न्े। उस समय एक स्वयांसेवक ने सत्याग्रह का सम्पूणभ
वृत्तान्त पढकर सगनाया। इसके णाद डॉ. पराांीपे ने डॉक्टरीश्र द्वारा काटश्र गयश्र घास सणको चदखाकर
ध्वी के समश्रप नर्तपत कश्र। नन्त में डॉ. मगांीे णोले चक ‘‘इस सत्याग्रह-सांग्राम में ीो साहस नपने सांघ
के डॉक्टर हे डगेवार गचद ने चदखाया है वहश्र साहस चहन्दू समाी और चहन्दू राष्ट्र कश्र रक्षा के चलए
गगे होनेवाले सोश्र सांघर्ों में हश्र लोगों को चदखाना िाचहए।’’

नकोला-ीेल में पहग ाँ िने पर डॉक्टरीश्र के ीत्न्े के णन्न्दयों का सरकारश्र चनयम के ननगसार ‘ण’ और
‘क’ वगों में चवोाीन चकया गया। यह वगीकरण ीेल के वचरष्ठ नचिकारश्र ीश्र फोडभ के सामने सणको
खड़ा करके चकया गया न्ा। चकन्तग उस समय फोडभ ने डॉक्टरीश्र को नपने णगल में कगसी पर णैुा
चलया न्ा। दोनों का 1921 के नसहयोग-गन्दोलनकाल से हश्र, ीण डॉक्टरीश्र नागपगर-ीेल में न्े तन्ा
ीश्र फोडभ वहााँ के नचिकारश्र न्े, पचरिय हो गया न्ा। नण सांयोग से दोनों कश्र पगनः यहााँ ोेंट हो गयश्र।
इसका दोनों को हश्र गनन्द न्ा। ीश्र फोडभ गयरलैण्ड के नागचरक न्े तन्ा उनके नच्छे व्यवहार से यह
स्पष्ट प्रकट होता न्ा चक उनके मन में ोारत के स्वतांत्रता-सांग्राम के चलए सहानगोूचत न्श्र।

डॉक्टरीश्र कश्र टगकड़श्र के िार चवोाग चकये गये। डॉक्टरीश्र को ‘ण’ ीेणश्र चमलश्र न्श्र, शेर् ‘क’ ीेणश्र के
लोगों को तश्रन गगटों में णााँटकर नलग-नलग णैरकों में ोेी चदया गया। दूसरश्र णैरक में णाळासाहण
वळे , वेखण्डे, गप्पाीश्र ीोशश्र और त्र्यम्णकराव दे शपाण्डे न्े। पााँिवश्र णैरक में दादा परमान्भ,
चवट्ठलराव दे व, नारायणराव दे शपाण्डे और नम्णाडे न्े। छुश्र णैरक में ोैयाीश्र कगम्ोलवार, मारुतराव
पालेवार और घरोटे न्े। इस वगीकरण में यद्यचप सरकारश्र चनयम के ननगसार कगछ लोगों को ‘क’ ीेणश्र
में ोेीना पड़ा न्ा पर ीश्र फोडभ को वह नच्छा नहीं लगा। इसचलए उन्होंने चडपगटश्र कचमश्नर के पास उनमें
से गु लोगों को ‘ण’ ीेणश्र दे ने कश्र चसफाचरश ोेीश्र। पर वहााँ से उन्हें सश्रिे ‘ण’ ीेणश्र में ोेीने कश्र
गज्ञा दे ने के स्न्ान पर यह उत्तर गया चक सम्णन्न्ित लोग यचद चलखकर वैसश्र प्रान्भना करें तो उस पर
चविार चकया ीा सकता है । इस प्रचक्रया से कगछ और लोगों को ‘ण’ ीेणश्र चमल गयश्र।

नकोला-कारागृह में ‘हे ला गोडाउन’ नाम से चवख्यात इमारत में ‘ण’ ीेणश्र के सत्याग्रचहयों को रखा
गया न्ा। उसका उद्घाटन डॉक्टरीश्र ने हश्र चकया। सौ फगट लम्णे और तश्रस फगट िौड़े उस चवशाल कमरे

217
में पहला सप्ताह उन्हें चणलकगल नकेले काटना पड़ा। उसके णाद यवतमाळ के ीश्र स. ह. णल्लाळ को
वहााँ ोेी चदया गया। सात चदन के एकान्त के णाद सान्श्र चमल ीाने पर दोनों को णड़ा गनन्द हग ग।
सात चदन में डॉक्टरीश्र को गी णोलने का नवसर चमला न्ा। इसके णाद िश्ररे-िश्ररे नमरावतश्र चीले
के नचतचरि शेर् नन्य चीलों के सत्याग्रचहयों को ोश्र नकोला-ीेल ोेीा ीाने लगा। ीांगल-सत्याग्रह
में सणसे पहले ोाग लेने के कारण डॉक्टरीश्र को इन सोश्र नये णन्न्दयों के स्वागत का नवसर चमला।
चदनाांक 18 नगस्त को मेहकर के ीश्र राीेश्वरराव दे शमगख तन्ा ीश्र दादासाहण सोमण ‘ण’ वगभ में
प्रचवष्ट हग ए। एक णार रे लगाड़श्र में यात्रा करते समय इन दोनों से डॉक्टरीश्र का पचरिय हो गया न्ा। उन्हें
इस समय इस णात का नत्यन्त हर्भ न्ा चक नकोला कारागृह में परमपूीनश्रय सरसांघिालकीश्र के
सहवास का सगयोग चमलेगा। इस ोेंट का वणभन करते हग ए ीश्र दे शमगख चलखते हैं चक ‘‘...........ीावण
के कृष्ट्णपक्ष का सोमवार न्ा। उस चदन मेरे ीश्रवन का नत्यन्त महत्त्व का क्षण गया। ीाते हश्र सामने
मेरे परमपूज्य सरसांघिालक डॉक्टर केशवराव हे डगेवार णैुे चदखे। एकदम ‘दक्ष’ में गकर प्रणाम
चकया। डॉ. ुोसर वहााँ उपन्स्न्त न्े। उन्होंने मेरा और ीश्र दादासाहण सोमण का पचरिय डॉक्टरीश्र से
कराया। पहले का पचरिय याद कर उन्हें नत्यन्त गनन्द हग ग। उन्होंने एकदम कसकर हमारा
गकलगन चकया और मेहकर कश्र सांघशाखा का हाल एवां कगशल-क्षेम पूछा।............सांघ के ीन्मदाता
के िरणों में ननेक चदन णैुकर सश्रखने को चमलेगा इस कल्पना से मगझे णड़ा गनन्द हग ग तन्ा नपने
पचरीन, वृद्ध माता-चपता और छोटे -छोटे णालकों को छोड़कर ीेल गने का दगःख चणलकगल ोूल गया।
उस गनन्द का वणभन नहीं चकया ीा सकता।’’

‘ण’ ीेणश्र के सत्याग्रचहयों कश्र सांख्या णढते-णढते पैंतश्रस तक हो गयश्र न्श्र। मेहकर के ीश्र दे शमगख ने
णताया चक ‘‘उनकश्र चवचोन्न प्रवृचत्तयों, रुचियों और राीनश्रचतक मतों के कारण ीो एक सन्म्मी
वातावरण चनमाण हो गया न्ा उसे दे खकर एक चिचड़याघर कश्र याद ग ीातश्र न्श्र।’’ चकसश्र को िाय
कश्र ी रत न्श्र तो उसका नाम लेने से हश्र चकसश्र का चसर ोन्ना उुता न्ा। चकसश्र को पावरोटश्र नच्छश्र
लगतश्र न्श्र तो कोई ‘‘नब्रह्यण्यम्’’ कहकर उससे कोसों दूर रहता न्ा। ोोीन के ोश्र ननेक प्रकार न्े।
कगछ लोग नपने हान् से हश्र ोोीन णनाते न्े। वे दूसरों का भ्रष्टािरण नहीं सह सकते न्े। नन्य कगछ
पचरन्स्न्चत के ननगसार दे शकाल का चविार करके सणके सान् णैुकर खा-पश्र लेते। ऐसे ोश्र न्े चीनके
खाने-पश्रने में पूणभ स्वच्छन्दता न्श्र। चमरि, तेल, लहसगन, प्याी गचद के खानेवालों और न खानेवालों
के ोश्र ोेद न्े। ‘ण’ ीेणश्र के चलए नलग रसोईघर न्ा और उसमें ‘क’ ीेणश्र के णन्दश्र काम करने के
चलए गते न्े। कगछ लोगों ने ‘क’ ीेणश्र के लोगों के सान् सहानगोूचत चदखाने के चलए उनका ोोीन
स्वयां लेकर नपने ‘ण’ ीेणश्र के पदान्भ उनको दे ना शग कर चदया। ीश्र स. ह. णल्लाळ ने ‘क’ वगभ का
वणभन करते हग ए कहा न्ा चक ‘‘सश्र वगे क्लेश णाहग ल्यां खाद्यां िाचप पशगचितम्’’ (क्लेश-ोरा ‘सश्र’ वगभ है ,
ोोीन है पशग-योग्य)। कगछ लोगों को ये कष्ट खलने लगे। चीनको सीम कारावास न्ा उन्हें िरखा

218
िलाना पड़ता न्ा। पर सादश्र कैदवाले केवल नपनश्र ीणान कश्र तकलश्र िलाते रहते न्े। ोोीन और
स्नान के समय दोनों प्रकार के णन्दश्र एकत्र गते न्े। कगछ लोग इतने चवनोदश्र न्े चक कदम-कदम पर
उन्हें मीाक सूझता न्ा, तो कगछ इतना चिढते न्े चक उन्हें मोहरभ मश्र हश्र कहना पड़ेगा। गकोट के ीश्र
दाीश्रसाहण वेदरकर के िारों ओर, उनके चखलाड़श्र और चवनोदश्र स्वोाव के कारण, चदन-ोर कोई-न-
कोई िोंर काटता हश्र रहता न्ा और सदै व वहााँ हाँ सश्र के फव्वारे छूटते रहते न्े। ीश्र स. ह. णल्लाळ ने
नपने कारागृह के साचन्यों का वणभन करते हग ए ीो चलखा है उससे उनके स्वोाव कश्र कल्पना कश्र ीा
सकतश्र है । वे चलखते हैं चक

‘‘आकोटिासी नटनाटकी च गोविवियुः श्रेि उदारधीश्च।

आनन्दमग्नुः स सु खी करोवत िाग्िैजयन्ता वियदावजपन्तुः।।’’

(‘‘आकोटिासी नटनाटकी हैं गोिीमना श्रेि उदारधी हैं ।

आनन्द में मग्न सु खी बनाते िाणीपताका-विय दावजपन्त’’)।।

इस प्रकार चोन्न-चोन्न प्रकृचत के कायभकता पन्द्रह-णश्रस चदन तक एक के णाद एक गते रहे । डॉक्टरीश्र
उन सणका पचरिय कर लेते न्े। ‘ण’ ीेणश्र में नण काफश्र लोग हो गये न्े। इसचलए डॉक्टरीश्र को कगछ
व्यवस्न्ा का ांग लगाने कश्र गवश्यकता प्रतश्रत हग ई। सणकश्र सम्मचत से नकोला के डॉ. ुोसर सेनापचत
चनयगि हग ए तन्ा चनचित हग ग चक सणको उनके ननगशासन में िलना होगा। सायांकाल लोगों को पैर
फरै रे करने के चलए णाहर मैदान में ीाने कश्र ननगमचत न्श्र। इस समय चकसश्र को यह ननगोव न होने दे ते
हग ए चक नपने ऊपर कगछ लादा ीा रहा है डॉक्टरीश्र ने सांिलन का कायभक्रम शग कर चदया। हम नेता
होकर चकसश्र दूसरे के कहने में क्यों िलें इस प्रकार नपना नलग हश्र कदम डालने कश्र प्रवृचत्त ोश्र
परस्पर के सहयोग से न्ोड़े हश्र चदनों में ीातश्र रहश्र।

‘ण’ ीेणश्र के सण लोग एक सान् रहते न्े पर उनके तश्रन-िार गगट णने हग ए न्े। उनमें एक वगभ सांघ के
स्वयांसेवकों का, दूसरा सांघ के प्रचत सहानगोूचत रखनेवालों का, तश्रसरा उदासश्रन लोगों का और िौन्ा
सांघ कश्र चविारसरणश्र को कहसक, साम्प्रदाचयक और सांकगचित तक कहनेवालों का न्ा। डॉक्टरीश्र ने
इन सण वगों और उनकश्र चवचवि मनोरिना को नच्छश्र तरह से परख चलया न्ा। उनकश्र सणके सान्
खूण खगले नन्तःकरण से णातिश्रत होतश्र न्श्र। चवद्यान्ी-काल से हश्र राष्ट्रकायभ को ीश्रवन-कायभ माननेवाले
डॉक्टरीश्र का व्यवन्स्न्त, ननगशासनपूण,भ गम्ोश्रर चकन्तग प्रसन्नचित्त णताव वहााँ के सोश्र लोगों के मन

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में उनके चलए सही गदर चनमाण करनेवाला न्ा। नपना काम स्वयां हश्र करने का डॉक्टरीश्र चवशेर्
ध्यान रखते न्े। चकसश्र दूसरे से वे कोश्र सेवा नहीं लेते न्े। कपड़े िोने के णाद उन्हें सगखाने से लेकर
नपने तचकये के नश्रिे नच्छे तरश्रके से तहाकर रखने तक उनकश्र सण णातें इतनश्र चवशेर् और गकर्भक
न्ीं चक उनकश्र व्यवन्स्न्तता को दे खकर कगछ लोगों ने ननगकरण करना शग कर चदया न्ा। चनस्सन्दे ह
दे शोचि और त्याग में डॉक्टरीश्र सणमें नग्रगण्य न्े। पर उनके व्यवहार में नहां कार का ोाव लेशमात्र
ोश्र नहीं चदखायश्र दे ता न्ा। उलटे नपने पगरुर्ान्भ का नपने हश्र मगख से सरस वणभन करनेवाले लोगों कश्र
णात वे शान्न्तपूवभक सगन लेते न्े।

डॉक्टरीश्र के ीत्न्े के कगछ लोगों द्वारा ‘ण’ ीेणश्र कश्र मााँग चकये ीाने पर उन्हें वह चमल गयश्र न्श्र पर
पन्द्रह चदन तक ीश्र फोडभ के णराणर गग्रह करने पर ोश्र ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ने इस चवर्य में कोई मााँग
नहीं कश्र। उस समय वे काांग्रेस के प्रान्तश्रय मांत्रश्र न्े और दल कश्र नश्रचत न्श्र चक शासन से चकसश्र ोश्र प्रकार
कश्र सगचविाएाँ न मााँगश्र ीायें। उनके सामने यह िमभसांकट खड़ा हो गया चक मााँग कश्र ीाये तो नपने तत्त्व
और नश्रचत का उल्लघांन होता है और न करें तो ीश्र फोडभ ीैसे व्यचि के गग्रह कश्र नवहे लना करनश्र
पड़तश्र है । उन चदनों ीण ीश्र फोडभ गप्पाीश्र से प्रश्न करते चक ‘‘कैसे हाल हैं ’’ तो गप्पाीश्र का उत्तर
चनचित न्ा चक ‘‘ ‘क’ ीेणश्र में सण चुक है ।’’ पर इस उत्तर से ीश्र फोडभ को नच्छा नहीं लगता न्ा।

एक चदन ीश्र फोडभ ने गप्पाीश्र को रोककर पूछा ‘‘गप ीेल में नेता णनकर गये हैं या ननगयायश्र ?’’

गप्पाीश्र ने उत्तर चदया ‘‘ननगयायश्र।’’

‘‘चफर डॉक्टर ीो कहें गे वह करें गे न ?’’

‘‘हााँ। पर वे मगझे नमगक करो यह कोश्र नहीं कहें ग।े ’’

‘‘वह हम दे ख लेंग।े ’’

इस सांवाद के णाद एख चदन ीश्र फोडभ ने गप्पाीश्र को डॉक्टरीश्र से चमलने के चलए ोेी चदया। गप्पाीश्र
के नपने णैरक में गते हश्र डॉक्टरीश्र ने ‘क’ ीेणश्र का सण समािार ीानकर पूछा ‘‘गप क्यों गये
?’’

‘‘फोडभ मगझसे णराणर गग्रह कर रहा है चक मैं ‘ण’ ीेणश्र के चलए गवेदनपत्र ोेी दूाँ। इस चवर्य में
गपका मत ीानने के चलए मगझे उसने यहााँ ोेीा है ।’’

‘‘पर गप काांग्रस
े के मांत्रश्र हैं नतः इस सम्णन्ि में ीो कगछ ोश्र तय करना हो वह गप हश्र करें । मैं क्या
कह सकता हू ाँ । गप गाांिश्रवादश्र तो हैं नहीं, इसचलए गवेदन करने में कगछ चणगड़ेगा नहीं। पर चीस

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गन्दोलन में गप यहााँ गये हैं उसकश्र प्रचतष्ठा कश्र रक्षा ोश्र गपको करनश्र िाचहए। गप तो प्रान्तश्रय
काांग्रेस के मांत्रश्र हैं , नतः गप चनचित करें तन्ा ीो तय करें गे वहश्र मैंने णताया है यह फोडभ से मैं कह
दूाँगा। गप तो सण ीानते हश्र हैं ।’’

चीस गन्दोलन में ोाग चलया ीाये उसके चवचि-चनर्ेि और सूिनाओां का पालन करने पर डॉक्टरीश्र
का णल न्ा। डॉक्टरीश्र ीानते न्े चक ननगशासन में च लाई का पचरणाम गन्दोलन कश्र गड़णड़ में होता
है । इसचलए उन्होंने गप्पाीश्र का मागभदशभक होने कश्र ोूचमका नहीं लश्र। इस ोेंट के उपरान्त गप्पाीश्र
ने ‘ण’ ीेणश्र कश्र मााँग करने से इन्कार कर चदया। फोडभ के णहग त-कगछ गग्रह करने पर ोश्र उसे सफलता
न चमलश्र। इस पर गप्पाीश्र से नाराी होकर पन्द्रह-णश्रस चदन तक उन्हें कचुन काम दे कर और पूरा न
होने पर सीा ुोकते हग ए उसने गप्पाीश्र को झगकाने का प्रयत्न चकया। नन्त में गप्पाीश्र का स्वास्र्थय
चगर ीाने के कारण कमीोरश्र से एक चदन वे मूर्तछत होकर चगर पड़े। चफर ोश्र वे लेशमात्र ोश्र नहीं
डगमगाये। उनकश्र इस कट्टरता को दे खकर फोडभ का मन ोश्र द्रचवत हो गया तन्ा एक चदन उसने स्वयां
हश्र गप्पाीश्र को ‘ण’ ीेणश्र में ोेी चदया। गप्पाीश्र कश्र इस सत्त्वपरश्रक्षा कश्र णात ीण ‘ण’ ीेणश्र के
लोगों को सगनने को चमलश्र तो नपने सहकारश्र कश्र सहनशचि और चनग्रह को दे खकर डॉक्टरीश्र को
नत्यन्त गनन्द हग ग।

ीेल कश्र ‘क’ ीेणश्र सफेदपोश लोगों को ीरा कष्टप्रद हश्र होतश्र है । घचटया चकस्म का िावल, चगनतश्र कश्र
रोचटयााँ, लोहे का णतभन तन्ा नन्य इसश्र प्रकार कश्र िश्रीें वहााँ रहतश्र हैं । इनके चवर्य में उस समय
सावभीचनक सोाओां तन्ा समािारपत्रों में काफश्र शोर ोश्र मिा न्ा। नागपगर के ‘तरुण ोारत’ के वतभमान
सम्पादक ीश्र ग. त्र्यां. माडखोलकर ने तो एक लेख में ‘ण’ ीेणश्र कश्र व्यवस्न्ा को ोश्र नत्यन्त कष्टदायक
णताते हग ए नपना ननगोव प्रकाचशत चकया न्ा। उसमें चलखा न्ा ‘‘........गाांिश्रीश्र का गदे श है चक
ीेल में वहााँ के चनयम और ननगशासन का पालन करना िाचहए। यह गदे श चकतना ोश्र योग्य तन्ा
व्यावहाचरक क्यों न हो पर ीेल कश्र सम्पूणभ नवस्न्ा इतनश्र क्षोोीनक है चक चीसकश्र मानवता के गौरव
तन्ा स्वाचोमान कश्र ोावना नष्ट नहीं हग ई उसके मन में तो प्रचतकार का ोाव उदय हग ए चणना नहीं रह
सकता।’’

डॉक्टरीश्र के ीत्न्े के दादाराव परमान्भ ‘क’ वगभ में न्े। उन्हें ‘क्षय’ रोग हो गया तन्ा चदन-प्रचतचदन
उनका स्वास्र्थय चगरता हश्र गया। कारागृह-नचिकारश्र ीश्र फोडभ और ीश्र पाण्डे के सान् डॉक्टरीश्र का
इतना चनकट का पचरिय हो गया न्ा चक वे चदन में काम-से-कम दो-एक णार तो उनसे चमलने तन्ा
उनक हास्य-चवनोद का गनन्द लूटने के चलए नवश्य हश्र ग ीाते न्े। इस पचरिय के कारण वे
दादाराव को ‘क’ से ‘ण’ ीेणश्र में लाये तन्ा ‘न’ ीेणश्र के डॉ. टें ोे के मागभदशभन में चिचकत्सा प्रारम्ो
हो गयश्र। नपनश्र कोुरश्र में एक णश्रमार व्यचि के गने तन्ा रात-चदन उसकश्र खों-खों के कारण कई

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लोग नप्रसन्न न्े, परन्तग डॉक्टरीश्र को स्वयां दादाराव कश्र सेवा-शगशर्
ू ा करते दे खकर कोई ोश्र कगछ णोल
नहीं पाता न्ा। दादा हुश्र और चिड़चिड़े स्वोाव के न्े। वे कगपर्थय कर ीाते ते और इसचलए डॉक्टरीश्र
को रात-रात ोर ीागना पड़ता न्ा। ीश्र दाीश्रसाहण णेदरकर कोश्र-कोश्र दादा से ोश्र हाँ सश्र-मीाक कर
णैुते। पर दादा एक तो पहले हश्र चिड़चिड़े और चफर कमीोरश्र के कारण तो ऐसे मौके पर यह हाल हो
ीाता मानो िूने पर पानश्र डाल चदया गया हो। वे एकदम ोड़क उुते न्े। ऐसे समय डॉक्टरीश्र णेदरकर
को णरीकर तन्ा दादाीश्र को समझा-णगझाकर शान्त करते न्े। दादा परमान्भ के स्वस्न् होने तक
डॉक्टरीश्र ने उनकश्र चकतनश्र दे खोाल कश्र इसका वणभन ीश्र राीेश्वरराव तन्ा ोाऊराव दे शमगख इन
शब्दों में करते हैं ‘‘.........यचद डॉक्टर केशवरावीश्र ने चिन्ता न कश्र होतश्र तो दादा का क्या हो ीाता
कह नहीं सकते। डॉक्टरीश्र ने उन्हें मृत्यग कश्र दाढ में से खींिकर णाहर चनकाल चलया।’’ कारागृह में
णरार के एक प्रचसद्ध काांग्रेसश्र नेता तन्ा गगे सांघ के कायभकता ीश्र दादासाहण सोमण ने तो डॉक्टरीश्र
से कहा न्ा चक ‘‘डॉक्टरीश्र, हम तो सांसारश्र लोग हैं । चकन्तग हमको ोश्र लीानेवालश्र ीो सेवा गप कर
रहे हैं उससे दादा गपके मानस-पगत्र हश्र मालूम दे ते हैं ।’’ एक णार चीसको नपना कहा उसके चलए
डॉक्टरीश्र न ऊणते हग ए चकतना नचवीान्त पचरीम करते हैं तन्ा यह करते हग ए चकसश्र के ऊपर उपकार
का चविार ोश्र नपने मन में नहीं लाते, लोगों को यह णड़श्र निरी-ोरश्र णात मालूम दे तश्र न्श्र। प्रारम्ो
में तो सणको यहश्र लगता न्ा चक डॉक्टरीश्र ोश्र हम ीैसे हश्र सामान्य व्यचि हैं । परन्तग कगछ महश्रनों के
णाद ीैसे-ीैसे डॉक्टरीश्र के प्रेमपूणभ नन्तःकरण तन्ा उज्जवल िाचरत्र्य का ननगोव गने लगा सणका
नहां कार ीाता रहा। ‘दूर के ोल सगहावने’ तन्ा ‘ऊाँिश्र दगकान फश्रके पकवान’ कश्र कहावतों कश्र ोााँचत
णहग िा यह दे खने में गता है चक दूर से चकसश्र नेता कश्र णड़श्र ख्याचत सगनने के णाद उसके पास ीाने पर
कोरापन तन्ा िोखा हश्र नीर गता है । गकाश में पूनों कश्र िााँदनश्र रात में नगर कोई िन्द्रमा कश्र शोोा
को चनखरने के चलए दूरणश्रन लगाकर उसे चनकट लाना िाहे तो सगन्दर शशाांक में काले-काले पहाड़ों
के दाग दे खकर उसके मन में साचन हो ीायेगश्र। िन्द्रमा का सण सौन्दयभ नष्ट हो ीायेगा। उसे रह-रहकर
यहश्र पछतावा होगा चक यचद दूरणश्रन से िन्द्रमा को न दे खकर कोरश्र गाँखों से हश्र उसकश्र सौन्दयभ -सगिा
का पान करता रहता तो नच्छा होता। स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर ने नपनश्र एक कचवता में इस ोाव को
णड़े सगन्दर शब्दों में व्यि चकया है । वे कहते हैं –

‘‘आल्हादक वकवत चन्रवबम्ब हें नन्दसु धा झरतें।

फुटो भभग तें वभकार त्या जें मसणासम करतें।।

त्याचें वरझिो रूप जनां कीं, आल्हादक कोळें।

फुटोत ते त्या विदुप कवरते दुर्दबणीचे डोळे।।’’


222
(‘‘आह्लादक शवश-वबम्ब है , अरे सु धा की धार।

दूरबीन करती उसे , लखो विरूप अपार।।

फूट जाये िह काुँ च जो, सु न्दर सार अनू प।

शवश को भी दे ता अरे , यों श्मशान का रूप।।’’)

इसश्र प्रकार कगछ लोगों के पास ीाने पर नपने मन-मन्न्दर में नांचकत उनका ोव्य चित्र नत्यन्त हश्र
णेरांग और कग प चदखने लगता है । पर डॉक्टरीश्र के सम्णन्ि में यह णात चणल्कगल उलटश्र न्श्र। ीैसे -
ीैसे उनके चनकट ीाते, िगम्णक कश्र ोााँचत वे मन को गकृष्ट करते ीाते न्े तन्ा उनके पास ीाने पर
उनके सााँवले स्व प के पश्रछे नटल ध्येयचनष्ठा, उज्जवल तन्ा स्वतांत्रता कश्र मांगलाकाांक्षा का दशभन कर
नत्यन्त गनन्द का ननगोव होता न्ा।

डॉक्टरीश्र के व्यचित्व से कारागृह के प्रमगख ीश्र पाण्डे णहग त हश्र प्रोाचवत न्े। कगछ हश्र चदनों में डॉक्टरीश्र
ने ीश्र पाण्डे से इतना घचनष्ठ पचरिय कर चलया चक वे उनके पास गकर नपनश्र घर-गृहस्न्श्र कश्र णातें
ोश्र करते रहते। ीश्र पाण्डे नपनश्र पगत्रश्र के चववाह के सम्णन्ि में णड़े चिन्न्तत न्े। डॉक्टरीश्र ने उनकश्र
चिन्ता ोााँप लश्र तन्ा लड़कश्र कश्र कगण्डलश्र दे खकर दो-एक योग्य वर ोश्र ीश्र पाण्डे को सगझाये। इतना
हश्र नहीं, नपने कगछ चमत्रों के पास उन्होंने लड़कश्र कश्र कगण्डलश्र ोश्र दे खने के चलए ोे ीश्र। ीण तक
डॉक्टरीश्र कारागृह में रहे , नागपगर से कोश्र डॉ. पराांीपे तो कोश्र ीश्र ोाऊराव कगलकणी उनसे चमलने
तन्ा सांघशाखाओां का प्रचतवेदन दे ने के चलए गते न्े। ोाऊराव उसश्र समय स्नातक हग ए न्े। डॉक्टरीश्र
ने उनका नाम ीश्र पाण्डे को सगझाया। फल यह हग ग चक नण ोाऊराव डॉक्टरीश्र से फगरसत के सान्
काफश्र दे र तक णातिश्रत करते रहते न्े तन्ा लौटते समय पाण्डेीश्र के घर गचतर्थय ोश्र ग्रहण करते।
यह स्पष्ट कर दे ना िाचहए चक गराम से ोेंट हो सके इस हे तग से हश्र डॉक्टरीश्र ने यगचि के प में ीश्र
ोाऊराव का नाम सगझाया न्ा। उनकश्र यगचि सफल ोश्र हग ई। चकन्तग कारागृह से मगि होने के णाद
डॉक्टरीश्र ीश्र पाण्डे कश्र पगत्रश्र के चलए वर ाँढ
ू ने के चलए स्मरणपूवभक प्रयत्न करते रहे ।

नांग्री
े सरकार को शतु मानकर सत्याग्रह करने के णाद डॉक्टरीश्र को यह मान्य नहीं न्ा चक कारागृह
में सगचविाओां कश्र मााँग कश्र ीाये। वे कहते न्े चक ‘‘इस प्रकार मााँगश्र हग ई सगख-सगचविाओां से नपनश्र
ोावना कगन्ण्ुत एवां चनष्ट्प्रो होतश्र है ।’’ कोश्र-कोश्र कारागृह के नचिकारश्र पूछते न्े ‘‘कोई चशकायत
है क्या ?’’ इस पर डॉक्टरीश्र का ‘‘कगछ नहीं’’ यहश्र चनचित उत्तर रहता न्ा। ‘ण’ ीेणश्र के कगछ णन्न्दयों
ने नचिकाचरयों से यह चशकायत कश्र न्श्र चक उन्हें चमलनेवाले घश्र में चमलावट रहतश्र है । चकन्तग कोई लाो
नहीं हग ग। डॉक्टरीश्र का कारागृह के नचिकाचरयों से चनकट का सम्णन्ि होने के कारण सणने सोिा

223
चक यचद डॉक्टरीश्र चशकायत करें तो उसका पचरणाम होगा। इस हे तग उनसे गग्रह ोश्र चकया गया पर
डॉक्टरीश्र हाँ सकर णात टाल दे त।े ीण एक चदन णहग त गग्रह हग ग तो वे णोले ‘‘मेरा ीेल गने का
दूसरा नवसर है । प्रचतपक्षश्र से प्रान्भना करना और उसका दया करके हमें कगछ दे ना मगझे नच्छा नहीं
लगता। नचिकाचरयों के मेरे सम्णन्ि नच्छे हैं इसचलए वे मेरश्र णात सगनेंगे ोश्र। पर दगःख है चक यह नहीं
कर सकूाँगा।’’

इस पर नन्य लोगों ने एक यगचि चनकालश्र। उन्होंने सोिा चक हम चशकायत करें और कहें चक ‘‘हमारे
कहने में चकतना सत्य है यह गप िाहें तो डॉक्टर हे डगेवार से पूछ लें। तण तो गपको चवश्वास हो
ीायेगा।’’ दूसरे चदन यहश्र चकया गया और उसमें सफलता ोश्र चमलश्र। फलतः ‘ण’ वगभ को शगद्ध घश्र
चमलने लगा। पर घश्र के चलए कश्र गयश्र इस खटपट के प्रचत डॉक्टरीश्र के मन में सदै व नरुचि रहश्र।

कारागृह में डॉक्टरीश्र ने ‘गढवाल चदवस’ के चनचमत्त ननशन ोश्र चकया न्ा। उसश्र प्रकार ‘क’ ीेणश्र के
लोगों ने ीण लोहे के णरतन तन्ा खराण नन्न के चवरुद्ध ोूख-हड़ताल कश्र तण ‘ण’ ीेणश्र के लोगों ने
उनके सान् सहानगोूचत प्रदर्तशत करने के चलए एक चदन का उपवास रखा न्ा। चकन्तग कगछ राीणन्न्दयों
द्वारा णश्रि में हश्र क्षमा मााँगने के कारण ‘क’ ीेणश्र का नन्न-सत्याग्रह चवफल हो गया। डॉक्टरीश्र को
वृचत्त कश्र यह दगणभलता णड़श्र दगःखकारक लगश्र। वे कहते न्े चक उत्तम सांस्कार चकये चणना यह वृचत्त णदलश्र
नहीं ीा सकतश्र।

सणका ुश्रक प्रकार से पचरिय होकर उनके स्वोाव कश्र परख होने तक डॉक्टरीश्र ने कारागृह में सांघ
का चवर्य नहीं छे ड़ा। पर इसके णाद वे िश्ररे-िश्ररे चोन्न-चोन्न नेताओां से सांघ के तत्त्वज्ञान के चवर्य में
णोलने लगे। गप्पाीश्र ने तो ‘क’ ीेणश्र में रहते समय हश्र सांघ कश्र ििा शग कर दश्र न्श्र तन्ा चनत्य
प्रान्भना ोश्र होने लगश्र न्श्र। नण खालश्र समय में तन्ा राचत्र को लोग डॉक्टर तन्ा गप्पाीश्र के पास
चविार-चवचनमय करते हग ए चदखने लगे न्े। डॉक्टरीश्र ने उनके सम्मगख दे श कश्र पचरन्स्न्चत के चनदान
और चिचकत्सा के सम्णन्ि में नत्यन्त सगसूत्र चविार रखे। ‘‘सांघ का नाम राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ क्यों
रखा ? राष्ट्र और दे श में क्या नन्तर होता है ? गगलाम राष्ट्र में स्वतांत्रता का सांघर्भ हश्र राीनश्रचत है ,
स्वतांत्रता प्राप्त करने के चलए णल िाचहए, उसके चलए व्यचिगत, कौटगन्म्णक तन्ा सामाचीक
कल्पनाओां को राष्ट्र-मगचि कश्र एकमेव कल्पना में लय करना पड़ता है , णल के चणना सांरक्षण नहीं हो
सकता, णल केवल सांघटन में है चकन्तग यह सांघटन नन्तगभत चवघटन से नचलप्त तन्ा णाह्य गक्रमणों
से टोंर लेने में समन्भ िाचहए’’, गचद ननेक चवर्यों का प्रचतपादन वे नपने ननगोव के गिार पर
करते न्े। उनके एक-एक शब्द से प्रकट होनेवालश्र चहन्दू राष्ट्र के ोचवष्ट्य कश्र चिन्ता सगननेवालों के
चविारों को िालना दे तश्र न्श्र तन्ा िश्ररे-िश्ररे उनके मन पर इस णात कश्र पोंश्र छाप णैुतश्र ीातश्र न्श्र चक
सण पचरन्स्न्चत में से राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ का कायभ और चवकास हश्र चहन्दगओां का एकमेव गिार

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है । कोश्र-कोश्र फगरसत के सान् िश्ररे-िश्ररे प्रश्नोत्तर ोश्र होते रहते न्े और इसमें डॉक्टरीश्र कश्र रात-कश्र-
रात ीागते हश्र णश्रत ीातश्र। पर उन्हें उसकश्र चिन्ता न न्श्र। नपने तत्त्वज्ञान का चवदोभ के समझदार
लोगों के मन पर णढता हग ग प्रोाव दे खकर उन्हें नींद का ोान नहीं रहता न्ा। वे सदै व हश्र स्वयां को
प्रमगख स्न्ान दे कर कायभ का चविार करने के स्न्ान पर कायभ को प्रमगखता दे कर नपना चविार करते न्े
और इसचलए चकतने ोश्र कष्ट क्यों न हों उनके मगख पर सदै व प्रसन्नता हश्र चदखतश्र न्श्र।

इस चविार-मन्न्न में से सांघशाखा का नवनश्रत चनकलना स्वाोाचवक हश्र न्ा। डॉक्टरीश्र चकसश्र को यह
चवस्मरण नहीं होने दे ते न्े चक सांघ केवल शब्दों का खेल न होकर एक गिरणश्रय ीश्रवनपद्धचत है तन्ा
उस पद्धचत कश्र गदत मन और तन को लगाने के चलए सांघ के चदन-प्रचतचदन के कायभक्रम नत्यन्त
प्रोावश्र सािन हैं । कगछ लोगों के मन में सांघ के कायभक्रमों कश्र नचोलार्ा ीगने के णाद डॉक्टरीश्र ने
रोी प्रातःकाल सांघ कश्र पद्धचत से खड़ा करके प्रान्भना करना शग कर चदया। प्रान्भना का यह क्रम
चवीयादशमश्र के चदन हश्र प्रारम्ो चकया गया न्ा।

ीेल में डॉक्टरीश्र कोश्र-कोश्र लोकमान्य चतलक का ‘गश्रतारहस्य’ पढते न्े तन्ा राचत्र में कोश्र-कोश्र
नपने साचन्यों को खगले गकाश में तारों और नक्षत्रों का ज्ञान कराते रहते न्े। चवचोन्न ग्रहों और नक्षत्रों
गचद कश्र दूरश्र गचद णातें वे णड़े हश्र गकर्भक ांग से णताते न्े। इस सम्णन्ि में डॉ. ुोसर चलखते हैं
‘‘डॉक्टरीश्र ऐसश्र मीेदार णातें णताते न्े चक प्रारम्ो में हममें से णहग त से नरचसक लोगों को णाद में
नक्षत्रों के णारें में नचिकाचिक ीानने का व्यसन हश्र लग गया। नांिेरश्र रात में हमारा यह कायभक्रम
चनचित न्ा। इसके पूवभ तो चकसश्र को यह पता ोश्र नहीं न्ा चक गकाश में सूयभ-िन्द्र के नचतचरि और
ोश्र कगछ है ।’’ रात-चणरात ननीान प्रदे श में प्रवास का प्रसांग गने पर खगोलशास्त्र का ज्ञान चदशा
तन्ा समय दोनों को ीानने के चलए णड़ा उपयोगश्र होता है । इसश्र हे तग से डॉक्टरीश्र ने नपने क्रान्न्तकारश्र
ीश्रवन में यह नध्ययन चकया न्ा।

एक तो डॉक्टरीश्र स्वयां हश्र णड़े चवनोदश्र न्े और चफर ीश्र णेदरकर का सहवास चमल गया। फलतः
गपस में काफश्र हाँ सश्र-मीाक िलता रहता न्ा। एक नत्यन्त मीे कश्र घटना ननेकों को नोश्र तक
याद है । ीश्र ीगन्नान् शास्त्रश्र नचग्नहोत्रश्र को हान् दे खने का णहग त शौक न्ा। मनगष्ट्य में नज्ञेय तन्ा ोचवष्ट्य
को ीानने कश्र स्वाोाचवक इच्छा होतश्र है । नतः लोगणाग नपने ोाग्य कश्र रे खाओां को पढवाने के चलए
नचग्नहोत्रश्रीश्र के पश्रछे हान् लेकर पड़े रहते न्े। पर डॉक्टरीश्र को इस चवर्य में चवशेर् गकर्भण नहीं
न्ा। ‘‘रे खा चततगकश्र पगसलश्र ीाते। हें तो सदै व प्रत्यया येतें’’ (‘‘रे खाक्रम ोश्र चमट ीाता है , ननगोव में
यह हश्र गता है ’’) समन्भ का यह प्रयत्नवाद उनके रोम-रोम में समाया हग ग न्ा। नतः ोचवष्ट्य ीानने
में उन्हें कोई स्वारस्य नहीं चदखता न्ा। नचग्नहोत्रश्रीश्र कश्र िारणा न्श्र चक ीैसे णाहर णहग त-से डॉक्टर हैं
वैसे हश्र ये डॉक्टर हे डगेवार ोश्र होंगे। नतः उनको गियभ होता न्ा चक वे हान् क्यों नहीं चदखाते। एक
णार ीश्र णेदरकर ने डॉक्टरीश्र के सान् योीना णनाकर ज्योचतर्श्र महाराी को हश्र नवग्रहों के िोंर में

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फाँसाने कश्र िाल िलश्र। नचग्नहोत्रश्र सगन सकें यह ध्यान में रखकर वे णश्रि-णश्रि में डॉक्टरीश्र से पूछते
‘‘घर से पत्र गया है , णाल-णरों का क्या हाल है ? गपका ीगन्नान् चकस कक्षा में पढता है ?’’
डॉक्टरीश्र पूवभयोीना के ननगसार गम्ोश्रर होकर उत्तर दे ते न्े और वह ोश्र इस प्रकार चक शास्त्रश्रीश्र के
कानों में पड़ ीाये। इस प्रकार एक ओर कश्र सण तैयारश्र करके दूसरश्र ओर से ीश्र णेदरकर ने डॉक्टरीश्र
से गग्रह शग चकया ‘‘डॉक्टरीश्र एक णार गप हान् चदखाइए।’’ काफश्र गग्रह होने के णाद डॉक्टरीश्र
ने ोश्र नपना हान् ज्योचतर्श्रीश्र के सामने कर चदया। नचग्नहोत्रश्रीश्र गौर से डॉक्टरीश्र के हान् कश्र रे खाएाँ
दे ख रहे न्े। डॉक्टरीश्र और णेदरकर गम्ोश्रर णनने कश्र कोचशश करते हग ए नपनश्र हाँ सश्र को दणाये णैुे
न्े। रे खाओां का नध्ययन कर िगकने के णाद शास्त्रश्रीश्र णोले ‘‘गपकश्र यह दूसरश्र पत्नश्र है न ? गपके
िार णरे होने िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र को हान् चदखाता दे खकर णहग त-से लोग िारों ओर गकर इकट्ठा
हो गये न्े। सण-के-सण यह ज्योचतर् सगनकर ुहाका मारकर हाँ सने लगे। डॉक्टरीश्र ने हान् खींि चलया
और णोले ‘‘णस हो गया, चफर कोश्र सोिकर णताना।’’ णेदरकर णहग त चदनों तक इस घटना कश्र ििा
करते तन्ा लोग हाँ सते-हाँ सते लोटपोट हो ीाते न्े। पर डॉक्टरीश्र इसके णाद इस हाँ सश्र में कोश्र सन्म्मचलत
नहीं हग ए। वे चकसश्र ोश्र णात को मयादा के णाहर नहीं ीाने दे ते न्े।

इसश्र समय णगल ाणा चीले में लोणार नामक तश्रन्भस्न्ान पर मगसलमानों ने दां गा कर चदया। इसमें काफश्र
मारपश्रट हग ई तन्ा णाद में मगसलमानों को सीा ोश्र हग ई। इन्हीं चदनों चहन्दगओां में ब्राह्मण-नब्राह्मणवाद ीोर
पकड़ गया। इस वाद का सहारा लेकर दो नांग्री
े नचिकारश्र ीश्र क्रोमश्र तन्ा ीश्र ब्रॉम्ले ने मगसलमानों तन्ा
नब्राह्मणों को ोड़काया चक ‘‘सेुीश्र तन्ा ोटीश्र दोनों हश्र गपके नसलश्र शतु हैं ।’’ इस प्रिार का
यह पचरणाम हग ग चक स्न्ान-स्न्ान पर लूटमार तन्ा गगीनश्र कश्र घटनाएाँ हग ईां। एक सप्ताह-ोर पन्द्रह-
णश्रस मश्रल तक के क्षेत्र में नांग्रेीों कश्र छत्रछाया में खेत, खचलहान, घर, दगकान सणकश्र लूटपाट होतश्र
रहश्र, घर ीलाये गये तन्ा मचहलाओां के शश्रलोांग कश्र ोश्र घटनाएाँ घटीं। इस समय मेहकर के सांघ-
कायभकता ीश्र रामािार नवस्न्श्र ने लोगों को िैयभ णाँिाया तन्ा नांग्रेी नचिकाचरयों के र्ड्यांत्र का
ोण्डाफोड़ करते हग ए ुे ु वाइसराय तक तार ोेी।े इस घटना का समािार चमलने पर डॉक्टरीश्र कगछ
चदनों णड़े व्यग्र रहे । वे णताते न्े चक यचद हमने नपने समाी को समय रहते सांघचटत नहीं चकया तो
ोचवष्ट्य में नांग्री
े ों और मगसलमानों का गुणन्िन होकर चहन्दगओां कश्र कैसश्र गचत णनायश्र ीायेगश्र इसका
यह छोटा-सा नमूना मात्र है । यचद चहन्दू समाी को इतना णलवान् तन्ा समन्भ णनाना है चक वह नपने
स्वाचोमान के कारण दूसरों के नपप्रिार का चशकार न होते हग ए घोर गपचत्त में ोश्र िैयभ के सान् खड़ा
रहकर गत्मसांरक्षण तन्ा गक्रामक शचि का चनदभ लन कर सके तो सांघ के रास्ते में ननगशासनणद्ध
सांघचटत शचि कश्र चनर्तमचत के नचतचरि कोई दूसरा तरणोपाय नहीं है , यहश्र चविार वे णड़े गग्रह के
सान् लोगों के मन में दृढता से णैुाते रहते न्े। ोचवष्ट्य में चहन्दू समाी का सम्ोाव्य दयनश्रय चित्र खींिते
समय उनके हृदय कश्र वेदना गसपास के लोगों कश्र दृचष्ट से चछप नहीं सकतश्र न्श्र तन्ा उस दगरवस्न्ा को

226
रोकने का सांघ हश्र एकमेव रामणाण-उपाय है यह णताते हग ए उनका गत्मचवश्वास ोश्र झलकता न्ा।
यह गत्मचवश्वास इतना प्रोावश्र न्ा चक दूसरों के नन्दर ोश्र कायभ कश्र प्रेरणा ीगाये चणना नहीं रह सकता
न्ा।

इिर डॉक्टरीश्र कारागृह में सांघ कश्र दृचष्ट से प्रयत्नशश्रल न्े तो णाहर ोश्र उनके ननगयायश्र कायभवृचद्ध के
चलए पराकाष्ठा के प्रयत्न कर रहे न्े। डॉक्टरीश्र के णाद सरसेनापचत ीश्र मातभण्डराव ीोग ोश्र सत्याग्रह
में कूद पड़े। नागपगर चीला सांघिालक ीश्र गप्पाीश्र हळदे को तो सत्याग्रह का चडक्टेटर हश्र चनयगि
चकया गया न्ा तन्ा वे ोश्र न्ोड़े चदनों में ीेल िले गये। तळे गााँव के सत्याग्रह में ोाग लेने के चलए ीश्र
रामोाऊ वखरे तन्ा ीश्र चवट्ठलराव गाडगे ोश्र नागपगर से िले गये। उन्हें चणदाई दे ने के चलए नागपगर-
शाखा पर कायभक्रम हग ग न्ा। चिमूर के ीांगल सत्याग्रह में वहााँ के दस-पन्द्रह स्वयांसेवक पकड़े गये
और इसचलए कगछ चदनों शाखा का ुश्रक िलना ोश्र कचुन हो गया न्ा। नागपगर में सांघ-स्वयांसेवकों के
शगशूर्ा पन्क के काम कश्र ोश्र ीनता द्वारा काफश्र प्रशांसा हो रहश्र न्श्र। सांघ के गणवेश में खाकश्र कमश्री
के स्न्ान पर सफेद कमश्री पहनकर तन्ा णााँह पर ोारतश्रय सांस्कृचत के चदग्दशभक स्वन्स्तक चिह्न को
लगाकर सौ स्वयांसेवकों का यह पन्क प्रत्येक शोोायात्रा के सान् तन्ा प्रमगख कायभक्रमों के समय
उपन्स्न्त रहता न्ा। लाुश्र कश्र मार से घायल व्यचियों कश्र मरहमपट्टश्र करने तन्ा मूछा खाकर चगरनेवालों
को सिेत कर घर पर पहग ाँ िाने का काम यह पन्क करता न्ा। चदनाांक 9 चसतम्णर को कगछ सत्याग्रचहयों
को णेंत कश्र नमानगचर्क सीा दश्र गयश्र। णेंत लगने पर खाल उिेड़कर माांस में घगस ीाता तन्ा रि णहने
लगता। परन्तग सत्याग्रहश्र इस यातना को हाँ सते-हाँ सते सहन कर गये। स्वयांसेवकों ने उनके गले में
पगष्ट्पमालाएाँ पहनाकर उनकश्र शोोायात्रा चनकलश्र। उनकश्र चिचकत्सा कश्र व्यवस्न्ा सरसांघिालक डॉ.
पराांीपे ने स्वयां नपने दवाखाना में कश्र। चदनाांक 8 नगस्त को ‘गढवाल चदवस’ पर सरकार ने िारा
144 लगा दश्र न्श्र। पर उस चदन ोश्र ीगलूस चनकला। शगशूर्ा-पन्क को उस चदन चदन के एक णीे से
राचत्र एक णीे तक णराणर काम करना पड़ा।

गन्दोलन में यह सहयोग दे ते हग ए ोश्र स्वयांसेवकों का दै चनक शाखा कश्र ओर दगलभक्ष्य नहीं हग ग न्ा।
णार-णार यह नफवाह उड़तश्र न्श्र चक सांघ-कायालय कश्र तलाशश्र होगश्र। इसचलए सण कागी-पत्र वहााँ
से हटा चदये गये न्े। पर स्वयांसेवकों का गना-ीाना णराणर िलता रहता न्ा। उस काल कश्र नवस्न्ा
के ननगसार कायालय में िरखा और तकलश्र ोश्र िलतश्र रहतश्र न्श्र तन्ा सूत कातते हग ए स्वयांसेवक सांघ-
कायभ के चवर्य में ििा करते रहते न्े। सोश्र स्वयांसेवकों के मन में यह गकाांक्षा न्श्र चक डॉक्टरीश्र के
ीेल से लौटने के णाद हम उन्हें सांघकायभ को केवल चटका हग ग हश्र नहीं नचपतग णढाकर ोश्र चदखा सकें।
इस लक्ष्य कश्र प्राचप्त के चलए वे खूण प्रयत्नशश्रल न्े। फलतः शाखाएाँ णढने ोश्र लगश्र न्ीं। णश्रि-णश्रि में
डॉ. पराांीपे नकोला ीाकर डॉक्टरीश्र के पास यह समािार पहग ाँ िाते रहते न्े। उस वर्भ रक्षाणन्िन के
चदन डॉ. पराांीपे ने कारागृह में डॉक्टरीश्र से ोेंट कर स्वयां उनको राखश्र णााँिश्र तन्ा नन्य स्वयांसेवकों

227
को णााँिने के चलए राचखयााँ उन्हें दीं। प्रान्त कश्र दूसरश्र शाखाओां के सान् ोश्र पत्रव्यवहार तन्ा स्वयां
ीाकर सम्णन्ि णनाये रखने का प्रयत्न कायभकता णराणर करते रहते न्े।

ीण शासन के सान् सत्याग्रह-सांग्राम िल रहा न्ा उसश्र समय डॉ. मगांीे ने गोलमेी पचरर्द् का चनमांत्रण
स्वश्रकार कर इांसण्ै ड ीाना तय चकया। नसहकारवादश्र लोगों को यह णात नहीं रुचि। उन्होंने डॉ. मगांीे
पर घोर टश्रका-चटप्पणश्र कश्र पर डॉ. मगांीे के पास इस प्रकार कश्र टश्रकाओां को पिा ीाने कश्र सहनशश्रलता
न्श्र। इस पर कगछ लोगों ने चविार चकया चक काांग्रेस कश्र परवाह ने करनेवाले डॉ. मगी
ां े को एक गेंडा के
प में चिचत्रत कर चनकाला ीाये। उन्होंने यह चकया ोश्र। परन्तग ीूलूस के िलते-िलते हश्र कगछ लोगों
ने निानक छापा मार चकसश्र के समझ में गने के पूवभ हश्र चित्र गायण कर उसे फाड़ डाला। राीनश्रचत
में मतोेद हो सकते हैं परन्तग उनका प्रदशभन इस प्रकार नपमानीनक पद्धचत से करने कश्र क्षगद्र प्रवृचत्त
कोश्र नच्छश्र नहीं कहश्र ीा सकतश्र। डॉक्टरीश्र का मत तो यह न्ा चक मतोेद होते हग ए ोश्र परस्पर कश्र
दे शोचि तन्ा चवशगद्ध हे तग का गदर करते हग ए सण लोग नपनश्र-नपनश्र पद्धचत से प्रयत्न करें । नतः
ीण इस व्यांगचित्र कश्र घटना का समािार डॉक्टरीश्र को कारागृह में चमला तो उन्हें इस णात का सन्तोर्
हश्र हग ग चक लोगों ने स्वयांस्फूर्तत से इस गलत णात को रोका।

‘सामांीस्य’ डॉक्टरीश्र कश्र चशक्षा का एक महत्त्वपूणभ नांग न्ा। एक णार यह वाद िल रहा न्ा चक
गाांिश्रीश्र ीेष्ठ या स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर। डॉक्टरीश्र ोश्र सांयोग से वहााँ पहग ाँ ि गये। दोनो हश्र पक्षों ने
नपनश्र-नपनश्र णात डॉक्टरीश्र के पास चनणभय के चलए रखश्र। उस समय उन्होंने ीो ोूचमका लश्र वह
उनके स्वोाव के गिारोूत पहलू का पचरिय दे तश्र है । उन्होंने कहा ‘‘यह वाद ऐसा हश्र है ीैसे गगलाण
ीेष्ठ या मोगरा ीेष्ठ। ीैसे मोगरा गगलाण के समान नहीं, वैसे हश्र गगलाण मोगरे के समान नहीं। यह सत्य
होने पर ोश्र सौन्दयभ, कोमलता और सगगन्न्ि तश्रनों दृचष्टयों से दोनों में कौन ीेष्ठ, इस पर मतोेद हो
सकता है । ऐसे नवसर पर दूसरे फूल को मसल डालने के स्न्ान पर नपनश्र-नपनश्र नचोरुचि के
ननगसार नपने फूल का गनन्द लेना िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र के इन चविारों का हश्र पचरणाम न्ा चक
स्वयांसेवकों में कोश्र दूसरों के चवर्य में द्वे र् और मत्सर का ोाव चनमाण नहीं हो पाया। इसश्र गिार
पर काांग्रेस से मतोेद होने पर ोश्र स्वयांसेवकों ने 1930 के गन्दोलन के समय काांग्रेस के सान् सहयोग
चकया न्ा।

चीन चदनों डॉक्टरीश्र कारागृह में न्े कगछ सांघ के चवरोचियों ने मोचहते णाड़े के स्न्ान को घर णनाने के
चलए खरश्रदने के नाम पर वहााँ के कायभक्रमों को णन्द करने का प्रयत्न चकया। उस समय राीा लक्ष्मणराव
ोोंसले स्वयां गगे गये तन्ा णोले ‘‘णेलणाग, तगलसश्रणाग, हान्श्रखाना गचद स्न्ानों में चीसका िाहो
उसका उपयोग करो।’’ उनकश्र इच्छा के ननगसार हान्श्रखाने में सांघ कश्र शाखा लगने लगश्र। डॉक्टरीश्र
से राीा लक्ष्मणराव ोोंसले का णड़ा प्रेम न्ा। इस गत्मश्रयता के कारण सांघ के कायभ में ोश्र सहयोग
दे ने में उन्हें णहग त गनन्द होता न्ा। इसश्र कारण इस वर्भ के दशहरा-उत्सव के नध्यक्ष-स्न्ान से उन्होंने

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सोश्र स्वयांसेवकों को यह कहते हग ए उत्साचहत चकया चक ‘‘डॉक्टर हे डगेवार द्वारा गरम्ो चकये इस
पचवत्र कायभ को पचरीमपूवभक गगे णढाइए।’’ नपने हश्र लोग इस कायभ में कैसे णािा डालते हैं इसका
वणभन करते हग ए उन्होंने कहा ‘‘सांघ के चवरोचियों ने इसे चगराने के निम प्रयत्न न चकये होते तो गी
गप दे ख रहे हैं उससे कहीं नचिक प्रगचत हग ई होतश्र। गी ोश्र उस प्रकार के प्रयत्न हो रहे हैं ।’’ इस
दशहरे के उत्सव पर गााँव-गााँव में सांघ कश्र शाखाओां पर ‘रे मन ! तगझे सगख का नचिकार नहीं’ शश्रर्भक
चनणन्ि पढा गया न्ा। इस ोावनोद्दश्रपक तन्ा प्रेरणादायक चनणन्ि में इस चविार का प्रचतपादन चकया
गया न्ा ‘‘दे श कश्र परतांत्रता नष्ट होकर ीण तक सारा समाी णलशालश्र और गत्मचनोभर नहीं होता
तण तक रे मन ! तगझे व्यचिगत सगख कश्र नचोलार्ा करने का नचिकार नहीं है ।’’ चवीयादशमश्र के
पन्-सांिलन में इस वर्भ नागपगर-कारागृह तन्ा नरकेसरश्र नभ्यांकर के चनवासस्न्ान के सामने ीाते
समय स्वयांसेवकों ने मानवन्दना कश्र न्श्र।

नकोला-ीेल में नण सांघ के चविारों का एक प्रोावश्र गगट हो गया न्ा। ीेल से छूटने के णाद काम कैसे
चकया ीायेगा इस सम्णन्ि में ोश्र ििा प्रारम्ो हो गयश्र न्श्र। कारामगि होकर ीानेवाले कायभकताओां को
डॉ. ुोसर के नेतृत्व में सण लोग प्रणाम करते और इस प्रकार उन्हें चणदाई दे ते। णगल ाणा, नकोला
तन्ा यवतमाळ के कायभकता डॉक्टरीश्र को चनमांत्रण दे ने गये चक ‘‘ीेल से छगटने के णाद हमारे यहााँ
गइए। हम सांघ शग करें ग।े ’’ डॉक्टरीश्र से चणदा लेते समय सणके चदल ोर गते न्े तन्ा कगछ लोगों
कश्र गाँखों में तो नक्षरशः गाँसू ग ीाते न्े।

एक-एक सान्श्र छूटता ीा रहा न्ा। ोरश्र हग ई णैरक सूनश्र होतश्र ीा रहश्र न्श्र। मनगष्ट्यों से ोरा गनन्द का
वातावरण ोश्र णदल रहा न्ा। इसश्र समय डॉक्टरीश्र कश्र मनोव्यन्ा को णढानेवाला एक और समािार
उन्हें चमला। नागपगर के एक िनाढ्य सज्जन तन्ा डॉक्टरीश्र के चमत्र ीश्र डश्र. लक्ष्मश्रनारायण के चनिन का
दगःखद समािार कारागृह में पहग ाँ िा। चमत्र के उु ीाने के सान् हश्र सांघ को ोारश्र िोंा लगा। सत्याग्रह
के पूवभ इस उदारमना ने सांघकायभ के चलए एक लाख रुपये दे ने कश्र इच्छा व्यि कश्र न्श्र। पर इस
गकन्स्मक चनिन से वह इच्छा साकार नहीं हो सकश्र।

गोलमेी-पचरर्द् के समािार ोश्र चिन्ताीनक न्े। मगसलमानों ने वहााँ नपना नसलश्र स्व प प्रकट
करते हग ए नपनश्र पृन्िावादश्र मनोवृचत्त का पचरिय चदया। डॉक्टरीश्र को यह दे खकर मार्तमक वेदना हग ई
चक तैंतश्रस करोड़ का चहन्दू समाी होते हग ए ोश्र चहन्दगस्न्ान के टगकड़े करनेवालश्र पाचकस्तानश्र योीना
गाँखों दे खते-दे खते सामने ग गयश्र। पर यह चहन्दू समाी सण कगछ दे खते हग ए ोश्र नगचतक हो उसे
ननदे खा कर गहरश्र नींद में हश्र मस्त न्ा। यह ोयानक वास्तचवकता नपनश्र गम्ोश्रर सम्ोावनाओां के
सान् उनकश्र गाँखों के सामने नाितश्र रहतश्र। चहन्दू समाी कश्र गाँखे िाहे न खगलें पर डॉक्टरीश्र कश्र
गाँखों में नींद नहीं न्श्र। एक वरमुाघात और हग ग। ीश्र णाळाीश्र हग द्दार 1931 कश्र ीनवरश्र में ‘णालाघाट

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राीनश्रचतक डकैतश्र काण्ड’ में चगरफ्तार हग ए। ीश्र हग द्दार डॉक्टरीश्र के नत्यन्त चवश्वस्त एवां चप्रय
कायभकता न्े। वे सांघ के सरकायभवाह ोश्र न्े। उनके ऊपर इस प्रकार के नचोयोग का नन्भ न्ा चक
नांग्री
े ों कश्र नीर में िगोनेवाले रा. स्व. सांघ पर ोश्र राहग कश्र दशा ग सकतश्र न्श्र। चपछले सैकड़ों वर्ों
में नखण्ड-यगद्धरत तन्ा परकश्रयों के गक्रमण और नपने समाी कश्र गत्मचवस्मृचत के कारण चीस
राष्ट्रश्रय ोावना के पचरतोर् का नवकाश हश्र नहीं चमला न्ा, वह कायभ नण चवपरश्रत पचरन्स्न्चत में ोश्र
नत्यन्त साविानश्र के सान् करना प्रारम्ो करने के पााँि वर्भ के नन्दर हश्र इस प्रकार कश्र गपचत्त कश्र
सम्ोावना डॉक्टरीश्र के चलए चकतनश्र कष्टप्रद होगश्र इसकश्र कल्पना करना चवश्वाचमत्र द्वारा राम-लक्ष्मण
को मााँगने का प्रस्ताव सगनकर व्यग्र और व्यचन्त दशरन् के चलए सम्ोव है । नपना सम्पूणभ ीश्रवन
लगाकर डॉक्टरीश्र सांघ के पौिे को सींि रहे न्े। वे इस ध्येयदे वता के गरतश्र के चलए हश्र नपने
पांिप्राणों को चनत्य प्रदश्रप्त रखते न्े। चीसके ीश्रवन में इतना समपभण-ोाव होगा वहश्र सम्ोवतः इस दगःख
को समझ सकेगा। और नण तो कारागृह में ऐसा कोई सान्श्र ोश्र नहीं णिा न्ा चीसके सामने वे चदल
खोलकर रो सकें, नपने मन कश्र णात कहकर कगछ णोझ हलका कर सकें। चिन्ता चिता से णढकर है ।
डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय एकदम चगर गया।

इसश्र चिन्ताकगल मनःन्स्न्चत में सीा कश्र नवचि पूरश्र होने के पहले हश्र चदनाांक 14 फरवरश्र 1931 को
उनकश्र मगचि का गदे श ग गया। नकोला और विा में कगछ दे र रुककर वहााँ के स्वागत-सत्कार के
समारोहों में ोाग लेते हग ए वे चदनाांक 17 फरवरश्र को सायांकाल साढे पााँि णीे नागपगर स्टेशन पर पहग ाँ ि।े
स्वागत के चलए नपार ीनसमूह ीमा न्ा। ‘‘डॉक्टर हे डगेवार कश्र ीय’’ से सारा नागपगर गूी
ाँ उुा।
ननेक सांस्न्ाओां ने मालाएाँ नपभण कीं। गाीे-णाीे के सान् शोोायात्रा चनकलश्र। शोोायात्रा नागपगर के
प्रमगख रास्तों पर िोंर लगातश्र हग ई हान्श्रखाने के मैदान पर गयश्र। डॉ. पराांीपे ने डॉक्टरीश्र के स्वागत
में छोटा-सा ोार्ण चकया और वहीं सरसांघिालक-पद के सम्पूणभ सूत्र सम्हालने कश्र प्रान्भना कश्र।
डॉक्टरीश्र के िारों ओर मण्डल णनाकर खड़े हग ए स्वयांसेवकों के मगख पर गनन्द छाया हग ग न्ा।
डॉक्टरीश्र ने सणसे कगशल-क्षेम पूछा तन्ा नपने घर न ीाते हग ए णश्रमार स्वयांसेवकों के घर उनको
दे खने के चलए चनकल पड़े।

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19. चवदोभ में प्रवेश
नकोला-कारागृह से डॉक्टर हे डगेवार चदनाांक 14 फरवरश्र 1931 को मगि हग ए। नागपगर गने के णाद
उन्होंने नपनश्र ननगपन्स्न्चत में हग ए सांघकायभ का सूक्ष्म रश्रचत से नवलोकन चकया। प्रमगख नेताओां के
कारावास में होते हग ए ोश्र सांघकायभ में चकसश्र प्रकार कश्र न्यूनता न होने दे ने का स्वयांसेवकों का चनिय
न्ा। कायभ कश्र वृचद्ध ने प्रमाचणत कर चदया चक वे नपने चनिय पर नचडग रहे । यद्दचप दे खने में तो
डॉक्टरीश्र के िारों ओर इकट्ठे वे स्वयांसेवक स्कूलश्र लड़कों और णाल-गोपालों कश्र हश्र कोटश्र में गते
न्े चकन्तग सांघकायभ के व्याप को सम्हालने और णढाने के चीस सामर्थयभ और लगन का उन्होंने पचरिय
चदया न्ा वह नच्छे -नच्छों को लीानेवाला न्ा। ध्येयचनष्ठा और सत्सांस्कारों से नककिन-सा
चदखनेवाला मानव ोश्र चकतना समन्भ और कतृभत्ववान् हो ीाता है , इसका प्रमाण चमल गया न्ा। सांघ
के कायभक्रमों कश्र सांस्कारक्षमता एक-एक स्वयांसेवक के प में साकार हो रहश्र न्श्र।

नागपगर में सम्पूणभ न्स्न्चत कश्र ीानकारश्र करते हग ए िार-छः चदन रहकर डॉक्टरीश्र णम्णई गये। उनके
मन मे यह चविार िोंर काट रहा न्ा चक णम्णई में नपने चमत्रों के सान् सांघ के सम्णन्ि में वातालाप
करके महाराष्ट्र के क्षेत्र में ोश्र सांघकायभ का णश्रीारोपण चकया ीाये। चवलायत में हग ई गोलमेी-पचरर्द्
में उुे चहन्दू-चवरोिश्र स्वर का समािार उन्हें चमल िगका न्ा। ोचवष्ट्य में चहन्दगओां के ऊपर गनेवाले
सांकटों कश्र चवोश्रचर्का उनको स्पष्ट चदख रहश्र न्श्र। सांकट सम्मगख न्े पर उनको टालने का निूक मागभ
ोश्र उनको ज्ञात न्ा। गवश्यकता न्श्र चक उस मागभ पर तेीश्र के सान् कदम णढाये ीायें।

णम्णई में डॉक्टरीश्र ीश्र णाणाराव सावरकर तन्ा डॉ. नारायणराव सावरकर से चमले। उनके सान्
सांघकायभ के महाराष्ट्र में चवस्तार के चवर्य में ििा ोश्र हग ई। इस समय चवट्ठलोाई पटेल से ोश्र उड़ते -
उड़ते ोेंट करने का सांयोग ग गया। चवट्ठोाई का स्वास्र्थय चणगड़ ीाने के कारण सरकार उन्हें चवयना
ोेीने के चलए णम्णई लायश्र न्श्र। सरकार ने यह काम णहग त हश्र गगप्त रश्रचत से चकया न्ा। कहते हैं चक वे
पहिाने न ीा सकें इस दृचष्ट से उनकश्र दाढश्र ोश्र मगड़
ाँ वा दश्र न्श्र। णम्णई में उन्हें सेु गोकगलदास तेीपाल
चिचकत्सालय में रखा गया न्ा। उन चदनों डॉक्टर हे डगेवार के ोानीे डॉ. ोास्करराव कृष्ट्णराव कविगरे
चिचकत्सालय में हाउस सीभन के नाते काम करते न्े। वे चवट्ठलोाई को दे खते हश्र पहिान गये।
चवट्ठलोाई ने ीश्र कविगरे से कहा ‘‘मगझे पहिान गये हो यह न णताते हग ए, मैं चीन्हें णताऊाँ उन व्यचियों
से चमलने कश्र व्यवस्न्ा कर दो।’’ डॉ. कविगरे से डॉक्टरीश्र को ोश्र चवट्ठलोाई कश्र णश्रमारश्र का समािार
चमला। सांघ के मौचलक कायभ के सम्णन्ि में प्रेम रखनेवाले नेताओां में चवट्ठलोाई पटे ल ोश्र न्े तन्ा कगछ
वर्भ पहले वे नागपगर सांघस्न्ान पर गकर सांघ को नपना गशीवाद ोश्र दे गये न्े। नतः डॉक्टरीश्र
णाणाराव सावरकर के सान् डॉ. कविगरे कश्र सहायता से चवट्ठलोाई से चमले तन्ा उनके स्वास्र्थय के णारे
में पूछताछ कश्र।

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णम्णई से नागपगर गये न्ोड़े चदन णश्रते चक डॉक्टरीश्र को ीश्र णाणाराव सावरकर का ीश्रक्षेत्र काशश्र गने
के चलए गवश्यक सन्दे श गया। काशश्र में चहन्दू-मगन्स्लम दां गे कश्र गशांका हो गयश्र न्श्र। ीश्र णाणाराव
उन चदनों स्वास्र्थय चणगड़ ीाने के कारण चवीाम के चनचमत्त काशश्र में हश्र ुहरे हग ए न्े। चकन्तग वे कगछ
दौड़िूप नहीं कर सकते न्े। उन्हें लगा चक चहन्दगओां को ीाग्रत् कर उनके सांघटन का यह उपयगि
नवसर है । नतः सांघ-स्न्ापना के उद्देश्य से उन्होंने डॉक्टरीश्र को शश्रघ्र गने का सन्दे श ोेीा। चदनाांक
11 मािभ को डॉक्टरीश्र वहााँ गये। उन्होंने काशश्र के स्न्ानश्रय कायभकताओां का, सांघर्भ उत्पन्न होने पर
मगकाणला करने के सम्णन्ि में, मागभदशभन ोश्र चकया। स्व. णाणराव सावरकर के िचरत्र में यह उल्लेख
चमलता है चक ‘‘दां गे में चहन्दगओां कश्र रक्षा करने कश्र ुोस व्यवस्न्ा डॉक्टरीश्र ने कश्र।’’

डॉक्टरीश्र को काशश्र गने के चलए णाणाराव का णहग त ी रश्र तार चमला न्ा। णाणाराव कश्र ील्दणाीश्र
से वे पचरचित न्े नतः उन्होंने मीाक में यह उत्तर ोेी चदया ‘‘िश्रर िरो, णाट दे खो, प्रान्भना करो तन्ा
गशा रखो’’ (“Wait, watch, pray and hope”)। पर दो-एक चदन में हश्र वे काशश्र पहग ाँ ि गये।
गाड़श्र कश्र पूवभ सूिना दे ने के कारण कगछ लोग स्टेशन पर उनके स्वागत के चलए गये न्े। वे उन्हें ीश्र
ोाऊराव दामले के यहााँ ले गये। णाणाराव वहीं उनकश्र णाट दे ख रहे न्े। डॉक्टरीश्र के तााँगे कश्र गवाी
सगनकर णाणाराव ने ीानणूझकर दरवाीा णन्द कर चलया। ीण डॉक्टरीश्र ने दरवाीा खटखटाया तो वे
नन्दर से णोले “Wait, whatch, pray and hope.” उनके इस स्वागत से हाँ सश्र और प्रसन्नता का
वातावरण िारों ओर छा गया।

चदनाांक 1 नप्रैल तक डॉक्टरीश्र काशश्र में रहे । चहन्दू समाी में ीाग्रचत, सांघटन एवां रक्षा का सामर्थयभ
चनमाण करने के चीस उद्देश्य से उन्हें तार दे कर णगलाया न्ा उस सम्णन्ि में तो ीो कगछ नस्न्ायश्र प
से हो सकता न्ा उन्होंने चकया हश्र, चकन्तग समाी में स्न्ायश्र सांघटन कश्र न्स्न्चत चनमाण करनेवाले राष्ट्रश्रय
स्वयांसेवक सांघ का पचरिय और प्रारम्ो करने कश्र दृचष्ट से ोश्र उन्होंने प्रयत्न चकये। पन्ण्डत मदनमोहन
मालवश्रयीश्र सांघ से पहले हश्र पचरिय प्राप्त कर िगके न्े। डॉक्टरीश्र ने उनसे ोेंट कश्र तन्ा उनकश्र प्रेरणा
और सहायता से चहन्दू चवश्वचवद्यालय में सांघ शाखा कश्र स्न्ापना कश्र। नपने चदनाांक 26 मािभ के पत्र में
वे चलखते हैं ‘‘चहन्दू चवश्वचवद्यालय तन्ा ीश्र काशश्र नगर, दोनो हश्र स्न्ानों पर एक-एक शाखा खगल गयश्र
है । चवश्वचवद्यालय में मैं पााँि-छः णार गया। इस समय तश्रन णार कश्र णैुकों में व्याख्यान तन्ा तश्रन णार
ििा हग ई। चवश्वचवद्यालय कश्र शाखा का काम गगे नच्छश्र तरह से िल सकेगा ऐसश्र गशादायक
न्स्न्चत चदकतश्र है । नगर में ोश्र शाखा का कायभ नच्छश्र प्रकार से िल रहा है और िश्ररे-िश्ररे णड़े लोग ोश्र
सांघ में सन्म्मचलत होते ीा रहे हैं ।’’

काशश्र में चवश्वनान्-मन्न्दर के पास कश्र मन्स्ीद चहन्दगओां के ऊपर गक्रमण तन्ा उनके नपमान का
णराणर स्मरण करातश्र रहतश्र है । डॉक्टरीश्र के हृदय में इसके सम्णन्ि में णराणर टश्रस उुतश्र रहतश्र न्श्र।

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वे चहन्दू समाी कश्र सद्यःन्स्न्चत का वणभन करते हग ए कहते न्े ‘‘काशश्र चवश्वेश्वर के पास मन्स्ीद तन्ा
गांगा के घाट पर मश्रनार क्यों खड़श्र है ? चहन्दू-मन में तो यह प्रश्न हश्र नहीं पैदा होता और न उसकश्र पश्रड़ा
हश्र उसे ननगोव होतश्र है । मत ोूचलये चक सांघ इस नवस्न्ा को णदलना िाहता है ।’’

एक णैुक में सांघ के सम्णन्ि में पयाप्त ििा हो ीाने के णाद उपन्स्न्त प्रौढ सज्जनों से डॉक्टरीश्र ने
प्रचतज्ञा लेने कश्र प्रान्भना कश्र। प्रचतज्ञा का स्व प णताते हग ए उन्होंने कहा चक उसमें यहश्र गशय व्यि
चकया गया है चक ‘‘मैं दे श और िमभ के चलए तन-मन-िनपूवभक गीन्म कायभ क ाँगा।’’ उस समय
एक सज्जन ने सगझाव चदया चक ‘तन-मन-िनपूवभक’ के स्न्ान पर ‘यन्ाशचि’ शचि शब्द का प्रयोग
नचिक समश्रिश्रन होगा। इस पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘शचि के णाहर तो कोई मनगष्ट्य काम नहीं कर
सकता। हााँ, शचि के रहते हग ए ोश्र हान् णिाकर तन्ा ीश्र िगराकर काम करने पर वह दूसरों को यह
समझाने का प्रयत्न कर सकता है चक ‘मैंने यन्ाशचि काम चकया’ इसश्रचलए प्रचतज्ञा में ‘तन-मन-
िनपूवभक’ शब्दावलश्र का योीनापूवभक उल्लेख चकया है ।’’

डॉक्टरीश्र के इस स्पष्ट चविार से उपन्स्न्त ीन नत्याचिक प्रोाचवत हग ए। डॉक्टरीश्र के दो-तश्रन चदन


कश्र णातिश्रत का सणके मन पर यह पचरणाम तो पहले हश्र से न्ा चक वे राष्ट्रकायभ के चलए पूणभ
समपभणोाव यगि व्यचियों कश्र िाह लेकर हश्र प्रयत्नशश्रल न्े। नतः ननेक लोगों को इस प्रकार कश्र
मश्रनमेख चनकालना नच्छा नहीं लगा। एक वकश्रल ने तो गगे गकर कहा ‘‘डॉक्टरीश्र ने प्रचतज्ञा में
पचरवतभन करने का प्रश्न हम लोगों के सम्मगख नहीं रखा है । सांघ कश्र ीैसश्र प्रचतज्ञा है वैसश्र हश्र यचद हमें
मान्य हो तो ग्रहण करने के चलए कहा है । इसके ननगसार मैं प्रन्म प्रचतज्ञा लेने को तैयार हू ाँ ।’’ वकश्रल
साहण के प्रचतज्ञा लेते हश्र नन्य सज्जनों ने ोश्र चणना कोई हश्रला-हग ज्जत चकये प्रचतज्ञा ले लश्र।

णाणाराव सावरकर ननेक वर्ों से चहन्दू समाी को सांघचटत करने के डॉक्टरीश्र के प्रयत्नों को दे ख रहे
न्े। उनके मन पर डॉक्टरीश्र कश्र कायभ के प्रचत लगन, चनःस्वान्भ वृचत्त, प्रखर ोावना तन्ा सांघटन कश्र
नपूवभ कगशलता कश्र गहरश्र छाप पड़ िगकश्र न्श्र। उन्होंने स्वयां ‘तरुण चहन्दू महासोा’ नाम से तरुणों का
सांघटन करने का प्रयत्न चकया न्ा। चकन्तग उन्होंने वहााँ के यगवकों तन्ा सांघ के सगसांस्काचरत तरुणों में
ोारश्र नन्तर पाया। उन्हें रह-रहकर यह ोश्र लग रहा न्ा चक ोारत ीैसे चवशाल दे श में सांघटन खड़ा
करने का सामर्थयभ नण उनके पास नहीं रहा। सान् हश्र सम्पूणभ पचरन्स्न्चत पर काणू पाने लायक कायभ
खड़ा करने के चलए गवश्यक कतभव्य, कौशल्य एवां गचतमयता का दशभन उन्हें डॉक्टरीश्र के गिार
और चविार में होता न्ा। नतः उन्होंने मन-हश्र-मन यह चनिय चकया चक नपनश्र डफलश्र नलग न णीाते
हग ए ‘तरुण चहन्दू महासोा’ को सांघ में हश्र चवलश्रन करके समवेत स्वर से राष्ट्रवन्दना कश्र ीाये। नपने
मन कश्र ोावना को वे डॉक्टरीश्र के सम्मगख रखने के चलए उपयगि नवसर कश्र ताक में न्े और वह इस
णार उन्हें चमल ोश्र गया। एक चदन डॉक्टरीश्र णाणासाहण के णगल में णैुे हग ए णातिश्रत कर रहे न्े चक

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णाणाराव णोले ‘‘डॉक्टर, गी मैं नपनश्र ‘तरुण चहन्दू सोा’ का चवसीभन कर रहा हू ाँ । गप उसे सांघ
में समाचवष्ट कर लश्रचीए। इसके गगे मेरश्र ीो कगछ शचि होगश्र उसे मैं सांघ के चलए हश्र खिभ क ग
ाँ ा।
गपका सांघ चिरांीश्रवश्र तन्ा यशस्वश्र हो यहश्र मेरा गशीवाद है ।’’

नपनश्र सांस्न्ा का नचोमान न करते हग ए उस समान ध्येय के चलए प्रयत्नशश्रल सांस्न्ा में चवलश्रन करने के
उदाहरण दगोाग्य से गी कम दे खने को चमलते हैं । छोटश्र-छोटश्र तन्ा मृतप्राय सांस्न्ाओां का ोश्र उनके
कणभिारों को मोह णना रहता है तन्ा वे समय-कगसमय मागभ में रोड़े णनने का प्रयत्न करतश्र रहतश्र हैं ।
णाणाराव का चनणभय चीतना उनके सांस्न्ाचोचनवेश-चवरचहत उर ध्येयवाद से प्रेचरत न्ा उतना हश्र
डॉक्टरीश्र कश्र लोकसांग्रह वृचत्त तन्ा कायभकगशलता का ोश्र पचरणाम न्ा।

डॉक्टरीश्र लोकव्यवहार कश्र छोटश्र-छोटश्र णातों का ोश्र सदै व णहग त ध्यान रखते न्े। यहश्र उनकश्र
लोकसांग्रह कश्र कगशलता का रहस्य न्ा। काशश्र में हश्र उन्हें नरकेसरश्र णै. मोरोपन्त नभ्यांकर कश्र
कारामगचि का समािार चमला। उन्होंने वर्भप्रचतपदा को उनका नचोनन्दन करते हग ए पत्र चलखा। उसमें
वे चलखते हैं ‘‘.........गी वर्भप्रचतपदा का चदन है । इस मांगलमय चदन को यचद मैं गपके प्रत्यक्ष
दशभन कर पाता तो चकतना गनन्द होता। चवशेर्कर गपके कारावास के कारण गपसे ोेंट हग ए एक
लम्णश्र नवचि णश्रत गयश्र है । ीेल से छू टने के णाद गपके दशभनों कश्र णाट दे ख रहा न्ा चक कगछ
गवश्यक कायभ से मगझे ीश्रक्षेत्र काशश्र गना पड़ा।........गी गपसे दूर होने के कारण यद्यचप मैं
गपके प्रत्यक्ष दशभन नहीं कर पा रहा हू ाँ तो ोश्र नपने मनिक्षग ओां से गपके दशभन करते हग ए इस पत्र के
प में गपसे चमल रहा हू ाँ ।’’ स्पष्ट है चक नपने से मतोेद रखनेवाले तन्ा नागपगर कश्र चववादग्रस्त
राीनश्रचत में नत्यन्त हश्र मगह
ाँ फट व्यचि को ोश्र )ीैसे चक णैचरस्टर नभ्यांकर न्े) डॉक्टरीश्र ने कोश्र दूर
नहीं हटाया। समाी के सांघटन को खींिने के चलए ीगन्नान् के रन् कश्र ोााँचत लाखों हान् लगते हैं ।
इसश्र ननगोूचत के कारण लोगों के दोर्ों को पहिानते हग ए ोश्र उन्हें चनकट लाने कश्र वृचत्त डॉक्टरीश्र ने
नपना रखश्र न्श्र। उनकश्र नपेक्षा के ननगसार ऐसे ननेक व्यचियों कश्र सहायता सांघकायभ को हग ई ोश्र है ।

चदनाांक 23 मािभ सन् 1931 को लाहौर कश्र ीेल में सरदार ोगतकसह, सगखदे व तन्ा राीगगरु को फााँसश्र
दे दश्र गयश्र। डॉक्टरीश्र को ीण यह समािार चमला तो वे नत्यन्त दगःचखत हग ए। ोगतकसह तन्ा राीगगरु
से उनका पचरिय न्ा। इतना हश्र नहीं, राीगगरु के सान् तो नागपगर में उनका णहग त चनकट क सम्णन्ि
ोश्र गया न्ा। वे यह ीानते न्े चक इस प्रकार कश्र गत्महग चत िनान्िकार में द्यगचत के समान चनष्ट्प्राण
राष्ट्र में क्षचणक िैतन्य का सांिार कर उसे झकझोर दे तश्र है , चफर ोश्र, चीस राष्ट्र को स्न्ायश्र ोाव पर
नपनश्र नन्स्मता के रक्षण और नचोव्यचि के चलए खड़ा कर उसमें चिर िैतन्य का गचवोाव करना
हो, वहााँ इस प्रकार के कतृभत्वान्, शूर, चनमोहश्र तन्ा दे शोचिपूणभ यगवकों का फााँसश्र के तख्ते पर नपनश्र
ीान कश्र णाीश्र लगा दे ना उन्हें नत्यन्त हश्र व्यचन्त करनेवाला न्ा। ‘मेरा राँ ग दे णसन्तश्र िोला’ का गश्रत

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गाते हग ए ये तरुण फााँसश्र कश्र डोरश्र पर झूल गये। डॉक्टरीश्र ने इस गघात को इसश्र चनिय के सान् सहन
चकया चक इस प्रकार के णसन्तश्र िोले कश्र गकाांक्षा लेकर िलनेवाले तरुणों कश्र ऐसश्र सगदढ
ृ परम्परा
दे श में स्न्ाचपत कश्र ीाये चक ीो दे श के चलए ीश्रवन व्यतश्रत करते हग ए ‘चीस रां ग में राँ गकर वश्रर चशवा
ने मााँ का णन्िन खोला’ कश्र प्रेरणा ले छत्रपचत के यशस्वश्र ीश्रवन का ननगकरण कर मााँ के णन्िन
खोलकर दे श में णसन्त कश्र णहार ला सकें।

कहगणघाट डकैतश्र में गांगाप्रसाद कश्र चपस्तौल के प्रयोग तन्ा णाळाीश्र हग द्दार कश्र चगरफ्तारश्र तन्ा नचोयोग
कश्र घटनाओां का उल्लेख पश्रछे चकया ीा िगका है । डॉक्टरीश्र इस प्रकार कश्र घटनाओां से काफश्र चिन्न्तत
न्े। यह णराणर गशांका णनश्र हग ई न्श्र चक यचद इस प्रकार कश्र चकसश्र ोश्र घटना के सान् सांघ को घसश्रट
चलया तो चतल का ताड़ णनाकर शासन नपनश्र गाँखों में कााँटे के समान िगोनेवाले इस सांघटन-कायभ
के ऊपर कगुाराघात करने से नहीं िूकेगा। चविवा के इकलौते पगत्र कश्र ोााँचत इस कायभ कश्र रक्षा कश्र
चिन्ता डॉक्टरीश्र के मन में सतत णनश्र हग ई न्श्र। नतः उन्होंने यह चनणभय चकया चक क्रान्न्तकारश्र गन्दोलन
के काल में सांग्रहश्रत शस्त्रों को नष्ट कर चदया ीाये चीससे यह खटका सदा के चलए चमट ीाये। तदनगसार
1931 के गसपास उन्होंने यह कायभ नत्यन्त साविानश्र और सफलता के सान् पूणभ चकया।

ोारत के राष्ट्रश्रय ध्वी के सम्णन्ि में लोगों में णहग त नज्ञान चदखायश्र दे ता न्ा। 1906 से लेकर 1921
तक चवचोन्न व्यचियों और सांघटनों ने नपनश्र कल्पना के ननगसार ननेक ध्वी राष्ट्रश्रय ध्वी के प
में स्वश्रकार चकये न्े। इन्हीं में चतरां गे झण्डे का ोश्र ोारत कश्र राीनश्रचत में गचवोाव हग ग। ये सण प्रयत्न
ोारतश्रय राष्ट्र-ीश्रवन से सम्णन्न्ित नज्ञान और चवस्मरण में से उत्पन्न हग ए न्े। डॉक्टरीश्र कश्र मान्यता
न्श्र चक ोारत नत्यन्त प्रािश्रन काल से एक राष्ट्र के नाते नपना ीश्रवन व्यतश्रत करता ग रहा है और
इसचलए राष्ट्रीश्रवन के सोश्र प्रतश्रक यहााँ सदै व चवद्यमान रहे हैं । फलतः हमारश्र राष्ट्रश्रय गकाांक्षाओां,
ीश्रवन कश्र गध्यान्त्मक दृचष्ट एवां सम्पूणभ इचतहास के गौरव को हमारे सम्मगख ोगवा ध्वी सदै व से
राष्ट्र के मानचिह्न के प में हमारे गदर और ीद्धा का केन्द्र रहा है ।

करािश्र-काांग्रेस में राष्ट्रध्वी का प्रश्न चविार के चलए प्रस्तगत हग ग। नोश्र तक चहन्दू, मगसलमान तन्ा
नन्यों का प्रचतचनचित्व करते हग ए तश्रन रां ग झण्डे में प्रयगि होते ग रहे न्े। चकन्तग चसखों ने नपना नलग
से पश्रला रां ग ीोड़ने का गग्रह चकया। नन्त में राष्ट्रध्वी के सम्णन्ि में चनणभय करने के चलए एक
सचमचत चनयगि कश्र गयश्र। इस सचमचत में सरदार वल्लोोाई पटे ल, पां. ीवाहरलाल नेह , डॉ. पट्टाचो
सश्रतारमैया, डॉ. ना. सग. हडीकर, गिायभ काका कालेलकर, मास्टर ताराकसह तन्ा मौलाना गीाद-
ये सात सदस्य न्े। सचमचत ने राष्ट्रध्वी-सम्णन्िश्र ननेक प्रकार कश्र ीानकारश्र प्राप्त करके सवभसम्मचत
से यह प्रचतवेदन प्रस्तगत चकया चक ‘‘ोारत का राष्ट्रश्रय झण्डा इकरां गा हो, और उसका रां ग केसचरय रहे
तन्ा, उसके दण्ड कश्र ओर नश्रले रां ग में िखे का चित्र रहे ।’’ केसचरया रां ग उन्होंने ोारतश्रय परम्परा के

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गिार पर िगना न्ा। नपने प्रचतवेदन में उन्होंने चलखा न्ा ‘‘हम लोगों का एकमत है चक नपना राष्ट्रश्रय
ध्वी एक हश्र रां ग का होना िाचहए। ोारत के सोश्र लोगों का एक सान् उल्लेख करने के चलए उन्हें
सवाचिक मान्य केसचरया रां ग हश्र हो सकता है । नन्य रां गों नपेक्षा यह रां ग नचिक स्वतांत्र स्व प का
तन्ा ोारत कश्र पूवभपरम्परा के ननगकूल है ।’’ एक रां ग स्वश्रकार करने से पृन्िा का ोाव तन्ा उसको
व्यि करने के चलए प्रत्येक सम्प्रदाय का नपना नलग रां ग मानते और मनवाने का चववाद सदा के
चलए समाप्त हो सकता न्ा। चीस समय यह प्रचतवेदन प्रकाचशत हग ग डॉक्टरीश्र यवतमाळ में न्े।
सचमचत का ऐकमत्य होने के णाद ोश्र उस पर काांग्रेस कायभसचमचत का चनणभय गवश्यक न्ा। डॉक्टरीश्र
तगरन्त लोकमान्य णापूीश्र नणे के पास गये क्योंचक वे कायभसचमचत कश्र णैुक के चलए ीानेवाले न्े।
उन्होंने णापूीश्र से कहा ‘‘मगझे नहीं लगता चक राष्ट्रध्वी केसचरया और ोगवा दो हों। इन दोनों रां गों में
णहग त न्ोड़ा नन्तर है , नतः एक रां ग केसचरया नन्ात् ोगवाध्वी का हश्र गपको समन्भन करना िाचहए।
यद्यचप काफश्र नध्ययन और खोी के उपरान्त सचमचत ने केसचरया सांग का सगझाव चदया है पर गाांिश्रीश्र
के सम्मगक सण मौन हो ीायेंगे। गाांिश्रीश्र ने केसचरया को नमान्य कर चतरां गे को हश्र णनाये रखने का
गग्रह चकया तो ये नेता मगह
ाँ नहीं खोलेंग।े नतः गपको गगे गकर चनोभयतापूवभक नपने पक्ष का
प्रचतपादन करना िाचहए।’’

लोकनायक नणे केसचरया रां ग के पक्षपातश्र नहीं न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र के यह णताने पर चक केसचरया
और ोगवा में चवशेर् नन्तर नहीं है वे मान गये तन्ा उन्होंने कायभसचमचत में इस चवर्य के समन्भन का
गश्वासन दे चदया। पर डॉक्टरीश्र यहीं नहीं रुके। वे चदल्लश्र गये तन्ा लोकनायक नणे के घर पर ीम
गये। नणेीश्र का कन्न है ‘‘वे चदन-ोर चदल्लश्र में इिर-उिर घूमते रहते। नतः चनचित हश्र वे कायभसचमचत
के नन्य सदस्यों से ोश्र इस सम्णन्ि में चमले होंगे।’’

चकन्तग दौड़िूप का कोई पचरणाम नहीं चनकला। नचखल ोारतश्रय काांग्रेस कमेटश्र के णम्णई-नचिवेशन
में ीण ध्वी सचमचत का प्रचतवेदन प्रस्तगत चकया गया तो उसने उसे नमान्य करके चतरां गे को णनाये
रखने का चनणभय चलया। हााँ, ध्वी सचमचत कश्र चसफाचरश के गिार पर इतना नवश्य चकया चक गहरे
लाल रां ग के स्न्ान पर केसचरया रां ग मान चलया तन्ा इस रां ग का क्रम सणसे ऊपर कर चदया। इसके
पूवभ लाल रां ग कश्र पट्टश्र-सणसे नश्रिे रहतश्र न्श्र। सान् हश्र यह ोश्र णताया गया चक तश्रन रां ग चवचोन्न सम्प्रदायों
के द्योतक न होकर गगणों के प्रतश्रक हैं । चकन्तग यह व्याख्या गी तक चकसश्र के गले नहीं उतर पायश्र है ।
इस प्रकार सचमचत के सारे पचरीम पर पानश्र चफर गया तन्ा राष्ट्रध्वी का प्रश्न इचतहास और परम्परा
के गिार पर चनचित न होते हग ए व्यचि कश्र इच्छा और िारणा से तय हग ग।

प्रन्म गोलमेी-पचरर्द् कश्र समाचप्त के णाद डॉ. मगी


ां े नप्रैल के प्रन्म सप्ताह में ोारत लौटे । गोलमेी-
पचरर्द् में नांग्री
े और मगसलमानों के गुणन्िन के पचरणामस्व प चहन्दू-चवरोिश्र तन्ा पृन्िावादश्र
चविार णड़े प्रणल प में प्रकट चकये गये न्े। डॉक्टरीश्र डॉ. मगांीे से पूरे समािार प्रत्यक्ष सगनने के चलए
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णड़े उत्सगक न्े। डॉ. मगांीे कट्टर चहन्दू तन्ा चनोीक वृचत्त के न्े। सान् हश्र घटनाओां का वे गम्ोश्ररता तन्ा
दूरदृचष्ट के सान् चवश्लेर्ण ोश्र कर सकते न्े। चदनाांक 9 नप्रैल को णम्णई कश्र एक सावभीचनक सोा में
गोलमेी-पचरर्द् कश्र पृष्ठोूचम में णोलते हग ए उन्होंने गीभना कश्र न्श्र ‘‘चहन्दगस्न्ान में सोश्र ीाचतयााँ तन्ा
सण िमभ यहााँ के राष्ट्रश्रय नचोघात ‘चहन्दू’ के नन्तगभत हश्र गने िाचहए। चहन्दू चहन्दगस्न्ान, मगन्स्लम
चहन्दगस्न्ान, पारसश्र चहन्दगस्न्ान, इस प्रकार से चहन्दगस्न्ान के टगकड़े मैं कोश्र नहीं होने दूाँगा।’’

चदनाांक 16 नप्रैल को ीण डॉ. मगी


ां े नागपगर गये तो डॉक्टरीश्र तन्ा सांघ के ननेक कायभकता स्टे शन
पर उनके स्वागत के चलए उपन्स्न्त न्े। उसश्र चदन सायांकाल सांघस्न्ान पर डॉ. मगांीे का गोलमेी-पचरर्द्
पर डेढ घण्टे ोार्ण हग ग। इस व्याख्यान के पूवभ डॉक्टरीश्र ने डॉ. मगांीे का स्वागत करते हग ए एक
छोटा-सा ोार्ण चदया। इसमें उन्होंने सरे नेता कश्र कल्पना दश्र है । वह कल्पना उनके ीश्रवन पर ोश्र
पयाप्त प्रकाश डालतश्र है । ‘‘नागपगर में राीनश्रचतक गन्दोलनों में ोाग लेनेवाले चीतने ोश्र नेता हैं उन
सणने डॉ. मगांीे के िरणों में णैुकर चशक्षा लश्र है ।’’ इन शब्दों में डॉ. मगांीे कश्र प्रशांसा करते हग ए उन्होंने
गगे कहा ‘‘..........सस्तश्र लोकचप्रयता के पश्रछे लगकर लोकमत के प्रवाह में णहते ीाना सरल है
चकन्तग सरे नेता का काम तो यह है चक यचद स्वतः कश्र सदसचद्ववेक-णगचद्ध को लोकमत कश्र णात नहीं
ीाँिे तो लोकमत के प्रवाह के चवरुद्ध खड़ा रहकर ोश्र नपना मत छातश्र ुोककर ीनता के सामने रखे।
प्रवाह के सान्-सान् णहना नेता का नहीं ननगयायश्र का लक्षण है । सरा नेता तो वह है ीो नपने मत के
ननगसार पचरन्स्न्चत को णनाकर लोकमत नपनश्र ओर गकृष्ट कर लेता है . नेतृत्व कश्र कसौटश्र
लोकमतानगवर्ततत नहीं लोकचनयांत्रण है । नवसर पड़ने पर लोकमत के चवरुद्ध ीाने में ोश्र न चहिकना
हश्र सत्यचनष्ठा है और यचद इस कसौटश्र पर कसकर दे खा ीाये तो डॉ. मगांीे ीैसा सत्यचनष्ठ व्यचि सम्पूणभ
नागपगर में दूसरा नहीं चमलेगा।’’

डॉक्टरीश्र के काशश्र से लौटने के णाद उनकश्र ीश्र मसूरकर महाराी से चहन्दू सांघटनवादश्र-सांस्न्ाओां के
एकश्रकरण के चवर्य में ििा हग ई। उस समय ीश्र मसूरकर महाराी के णडी चवोाग में प्रविन हो रहे
न्े। मसूरकर महाराी ने चहन्दू समाी में ीाग्रचत तन्ा शगचद्ध-सांघटन के क्षेत्र में उन चदनों णहग त काम
चकया न्ा। डॉ. मगांीे तन्ा डॉक्टरीश्र सायांकाल िार णीे के णाद कोश्र-कोश्र इन प्रविनों में ीाते न्े।
डॉक्टरीश्र द्वारा प्रस्ताचवत चहन्दगत्ववादश्र सांस्न्ाओां के एकत्रश्रकरण से मसूरकर महाराी ने चसद्धान्ततः
सहमत होते हग ए ोश्र उस काल कश्र राीनश्रचतक पचरन्स्न्चत में व्यावहाचरक दृचष्ट से नलग-नलग काम
करना हश्र उपयगि समझा।

ीांगल-सत्याग्रह में ीाने के पूवभ हश्र वॉकर मागभ दशोत्तर के णाड़े में सांघ का कायालय ग गया न्ा तन्ा
वहााँ कगछ स्वयांसेवक रहने लगे न्े। नण डॉक्टरीश्र राचत्र को सोने के चलए ोश्र वहीं गने लगे। स्वोावतः
राचत्र के णारह-एक णीे तक वहााँ गये हग ए स्वयांसेवकों से ििा होतश्र रहतश्र न्श्र। ये णैुकें इतनश्र
मनोरां ीक होतश्र न्श्र चक समय कैसे चनकल ीाता इसका पता ोश्र नहीं लग पाता न्ा। डॉक्टरीश्र िाहते

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न्े चक णैुक में नचिकाचिक स्वयांसेवक गयें। कहते हैं चक एक स्वयांसेवक को कगत्ते पालने का णड़ा
शौक न्ा। एक चदन वह नपने सान् एक छोटा-सा सगन्दर चपल्ला गोद में लेकर णैुक में ग गया। कगत्ते
का चपल्ला सही हश्र सणके खेल और गनन्द का चवर्य णन गया। चकन्तग दूसरे चदन डॉक्टरीश्र ने उसे
कगत्ता लेकर गने से मना कर चदया। उन्होंने दे खा चक ीैसे हश्र कायालय में एक सज्जन घगसे चक कगत्ता
नपने स्वोाव के ननगसार ोूाँका। डॉक्टरीश्र यह कैसे सहन कर सकते न्े चक कायालय में प्रेम के सान्
गनेवाले का इस प्रकार स्वागत हो। उन्होंने उस स्वयांसेवक से कहा ‘‘यह शोक नच्छा नहीं। यचद
गने-ीानेवालों पर कगत्ता ोूाँकने लगा तो लोग यहााँ गना टालने लगेंग।े सांघटन कश्र दृचष्ट से यह
चहतकारक नहीं।’’

कायालय कश्र इमारत पगराने ांग कश्र न्श्र। ीश्रने साँकरे तन्ा डगमगाते रहते न्े। दरवाीे णहग त हश्र नश्रिे न्े
नतः ीो ोश्र गता उसे झगकना हश्र पड़ता न्ा। नम्रता का पाु उसे सही हश्र चमल ीाता। डॉक्टरीश्र वहााँ
गनेवाले स्वयांसेवकों के गगणों के चवकास तन्ा पारस्पचरक व्यवहार को लोकसांग्रहश्र णनाने के चलए
णराणर प्रयत्न करते रहते न्े। व्यचि का स्वोाव-वैचित्र्य हश्र िार लोगों के सान् उसके एकात्म होने में
णािक होता है । वे स्वयांसेवक में ऐसश्र हश्र चकसश्र ोश्र णात का होना ीो उसे दूसरों के सान् न चमलने दे
उसका सणसे णड़ा दोर् मानते न्े। डॉक्टरीश्र इस प्रकार के दोर्ों का पचरमाीभन करने कश्र ओर सदै व
ध्यान रखते न्े। कायालय में सोने के चलए गनेवाला एक स्वयांसेवक एकाहश्र चसपाहश्र के समान नलग-
हश्र-नलग रहता न्ा। वह सोता ोश्र शेर् लोगों से दूर एक कोने में। एक चदन डॉक्टरीश्र ने उसके चणस्तर
के पास उलटश्र तपेलश्र रख दश्र। ीण कमरे में प्रवेश चकया तो सणके णश्रि उससे पूछा ‘‘यह महश्रने से
नलग णैुनेवालश्र णला कहााँ से ग गयश्र ?’’ सणके हाँ सते-हाँ सते पेट में णल पड़ गये तन्ा उस
स्वयांसेवक को ोश्र नपनश्र गलतश्र का पता िल गया।

नकोला-कारागृह से वापस गने के णाद स्न्ान-स्न्ान कश्र शाखाएाँ चवकास करतश्र ीा रहश्र न्ीं तन्ा
डॉक्टरीश्र के उस चदशा में चवशेर् प्रयत्न ोश्र हो रहे न्े। सांघ के चनयोचीत कायभ में चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र
कमश्र न गने दे ते हग ए डॉक्टरीश्र समाी के िारों ओर िलनेवाले नन्य सोश्र कायों कश्र ओर ध्यान
रखते न्े तन्ा वहााँ से सांघ-कायभ के चनचमत्त योग्य और लगन के व्यचियों को ोती करते रहते न्े। 1931
के ीगलाई मास में उन्होंने शगचद्ध-समारोह में ोश्र गगे णढकर ोाग चलया न्ा।

सांघकायभ का चवदोभ में प्रसार करने के उद्देश्य से हश्र डॉक्टरीश्र ने नागगपर छोड़कर यवतमाळ में सत्याग्रह
चकया न्ा। इसश्र दृचष्ट से उन्होंने कारागृह में चवदोभ के ननेक लोगों को सांघ कश्र चविारसरणश्र में दश्रचक्षत
कर उनसे कायभ प्रारम्ो करने के सम्णन्ि में गश्वासन ोश्र प्राप्त कर चलया न्ा। सांघ कश्र चविारसरणश्र
के सान् उसे व्यावहाचरक प दे ने के चलए सत्सांस्कार करनेवाले कायभक्रमों कश्र व्यवस्न्ा करने के चलए
उन्होंने स्न्ान-स्न्ान पर शाखाएाँ खोलने का चनिय चकया। इसश्र णश्रि चदनाांक 8 ओर 9 नगस्त को
नकोला में चहन्दू महासोा के नचिवेशन कश्र घोर्णा हो गयश्र। इस नवसर पर चवदोभ के कायभकता

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वहााँ गनेवाले न्े। नतः डॉक्टरीश्र ने उसका ोश्र लाो उुाने कश्र णात सोिकर वहााँ ीाने का चनणभय
चलया। नकोला में सांघ कश्र शाखा तश्रन-िार वर्भ पहले हश्र स्न्ाचपत हो िगकश्र तश्र। डॉक्टरीश्र ने स्वयां
नकोला ीाकर उसकश्र व्यवस्न्ा कश्र तन्ा उसका स्व प ऐसा णनाया चक उसे दे खकर गनेवाले
चहन्दगत्वचनष्ठ लोगों के मन में स्वतः उत्साह कश्र लहर तन्ा कायभ कश्र प्रेरणा उत्पन्न हो ीाये। नचिवेशन
के नध्यक्ष ीश्र चवीयराघवािायभ कश्र शोोा-यात्रा पर मन्स्ीद से पन्राव चकया गया चकन्तग उस समय
सांघ के स्वयांसेवकों ने ीो िैयभ चदखाया वह सण के चलए गौरव का चवर्य न्ा। चहन्दू मात्र को यहश्र
ननगोव हो रहा न्ा चक उनकश्र लाी स्वयांसेवकों के कारण हश्र रहश्र।

इस समय कश्र एक उल्लेखनश्रय घटना है । घोर्वादन करते हग ए सांघ के स्वयांसेवकों का एक सज्जन


छायाचित्र लेने लगे। डॉक्टरीश्र का मत न्ा चक राष्ट्रसेवा में लश्रन व्यचि में यचद प्रचसचद्ध कश्र कामना
ीग गयश्र तो चफर उसकश्र दृचष्ट सेवा से हट ीातश्र है । नतः वे इस णात का ध्यान रखते न्े चक सांघ के
चकसश्र ोश्र कायभक्रम के छायाचित्र गचद न चलये ीायें। डॉक्टरीश्र ने फोटो लेने के चलए उद्यत सज्जन से
नम्रतापूवभक फोटो ने लेने के चलए कहा चकन्तग वे कगछ ऐसे चीद्दश्र न्े चक उन्होंने डॉक्टरीश्र कश्र णात नहीं
मानश्र। इस पर डॉक्टरीश्र नपना छाता खोलकर कैमरे के सामने पश्रु करके खड़े हो गये और ीण तक
स्वयांसेवकों के सण पन्क नहीं चनकल गये इसश्र प्रकार खड़े रहे । डॉक्टरीश्र ने तू-तू मैं-मैं करने के
स्न्ान पर कगशलता से नपना काम णना चलया। वे महाशय स्वयां चसर पकड़कर णैु गये।

नचिवेशन के समय चवदोभ कश्र ीनता ने सांघ के ुोस कायभ को प्रत्यक्ष दे खा। डॉक्टरीश्र का ोश्र ननेक
नये-नये कायभकताओां से पचरिय हग ग। नचिवेशन समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र ने वणश्र, यवतमाळ,
दारव्हा, उमरखेड, खामगााँव, नकोट, वाशश्रम, पगसद गचद स्न्ानों का प्रवास करके वहााँ शाखाएाँ
प्रारम्ो कर दीं। डॉक्टरीश्र ने नपने चदनाांक 30 चसतम्णर 1931 के पत्र में इन स्न्ानों का वृत्त नागपगर
ोेीते हग ए चलखा न्ा चक ‘‘णड़े-णड़े वकश्रल एवां डॉक्टर सांघ में प्रचवष्ट हो गये हैं ।’’ इस तर्थय को चलखने
का उनका तात्पयभ नागपगर के कायभकताओां को नचिक कायभ कश्र प्रेरणा दे ना हश्र न्ा, क्योंचक उसश्र पत्र में
गगे िलकर उन्होंने चलखा ‘‘........चवदोभ का कायभ सरल नहीं है । पहाड़ तोड़कर सगरांग णनाने और
चफर उसमें से मागभ चनकालने के समान यह कायभ कचुन है । पर यह कायभ परमेश्वरश्रय है तन्ा उसश्र कश्र
कृपा से इसे सफलता चमल रहश्र है । चकन्तग इससे नागपगर-शाखा कश्र चीम्मेदारश्र कई गगना णढ ीातश्र है ।
इस दाचयत्व को नागपगर के सोश्र छोटे -णड़े स्वयांसेवकों को पहिानना िाचहए। मैं पूणभतः गपके हश्र
ोरोसे पर कायभ कर रहा हू ाँ ।’’ डॉक्टरीश्र कश्र यहश्र वृचत्त न्श्र चीसके कारण ननेक नवयगवक कायभ को
सम्हालने के चलए गगे गये। ये शब्द एक सोलह वर्भ के तरुण को चलखे गये न्े। उसके मन पर इस
वाक्य का क्या पचरणाम हग ग होगा उसकश्र कल्पना हश्र कश्र ीा सकतश्र है ।

इसश्र प्रवास में चदनाांक 2 चसतम्णर को वाशश्रम में वे ीश्र णीरां गणलश्र चहन्दू नखाड़े में गये। वहााँ का काम
दे खने के णाद उन्होंने ीो नचोप्राय चलखा वह नत्यन्त हश्र माननश्रय न्ा। उन्होंने चलखा न्ा ‘‘ीो सांिालक

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इस नखाड़े का पगनरुद्धार कर इसे गी कश्र न्स्न्चत में लाये उनका िन्यवाद करना मैं नपना कतभव्य
समझता हू ाँ । चकसश्र ोश्र सत्कायभ को प्रारम्ो करने के णाद उसे सही हश्र नष्ट न होने दे ते हग ए चिर काल
तक सतत िलाते रहने कश्र सान्त्त्वक महत्त्वाकाांक्षा प्रत्येक को नपने मन में रखनश्र िाचहए।’’

गणोशोत्सव के समय पौन महश्रने का चवदोभ में दौरा समाप्त कर डॉक्टरीश्र नागपगर गये तन्ा दशहरे
तक वहीं रहे । इस वर्भ दशहरे के उत्सव पर डॉक्टरीश्र ने सोश्र चहन्दू ीनता के सम्मगख, सांघ ने चहन्दगराष्ट्र-
चनर्तमचत कश्र दृचष्ट से चकतनश्र मांचील पार कश्र है इस चवर्य पर चविार रखा। नांग्रेीों के शासन में सरकारश्र
सेना और पगचलस को छोड़कर कहीं ोश्र स्वतांत्र प से इतने तरुणों को ननगशासनणद्ध एवां एक हश्र
गणवेश में लोगों ने नहीं दे खा न्ा। सांघ के स्वयांसेवकों को दे खकर लोगों के मन में कौतूहल होने लगा।
कगछ व्यचियों ने डॉक्टरीश्र से यह ोश्र कहा ‘‘डॉक्टरीश्र, नण तो गपका णहग त प्रिण्ड सांघटन हो गया
है , नतः कगछ करके चदखाइए।’’ इस प्रकार के कन्न के पश्रछे लोगों कश्र नपेक्षाएाँ चछपश्र हग ई न्ीं। चकन्तग
डॉक्टरीश्र के सम्मगख तो चवराट् चहन्दू राष्ट्र का व्यापक चित्र न्ा। उस दृचष्ट से तो यह सेर में पूनश्र ोश्र नहीं
कतश्र न्श्र। ीो लोग नपने घर या नगर कश्र पचरचि के णाहर दे ख हश्र नहीं पाते न्े उनके चलए यह चनस्सन्दे ह
णहग त णड़ा सांघटन न्ा। चकन्तग उन्हें ोश्र सहश्र दृचष्ट दे ना गवश्यक न्ा। नतः डॉक्टरीश्र ने नपने ोार्ण
में कहा ‘‘गी सांघ कश्र साु शाखाएाँ हो गयश्र हैं । परन्तग यह कायभ णहग त हश्र न्ोड़ा है । यह तो चसन्िग में
चणन्दग के समान है ।’’ उनके मनिक्षग के सम्मगख चहन्दू राष्ट्र का नन्ाह सागर चहलोरें ले रहा न्ा। ीण
तक सांघ का व्याप उतना चवस्तृत नहीं होता तण तक उसकश्र शचि चकतनश्र ोश्र णढश्र हो वह निूरश्र हश्र
रहे गश्र।

चवदोभ के उपरान्त डॉक्टरीश्र ने छत्तश्रसगढ तन्ा मध्यप्रान्त के नन्य चहन्दश्रोार्ा-ोार्श्र क्षेत्रों में सांघ का
चवस्तार करने के चलए प्रवास चकया। चदनाांक 9 चदसम्णर के ‘महाराष्ट्र’ में चनम्नचलचखत समािार चमलता
है । ‘‘रा. स्व. सांघ के सांस्न्ापक डॉक्टर हे डगेवार सांघकायभ के प्रसार के चलए छत्तश्रसगढ चवोाग में गये।
उन्होंने वहााँ तश्रन सप्ताह का दौरा चकया। नण उस चवोाग में सोश्र चीलास्न्ानों पर शाखाएाँ स्न्ाचपत हो
गयश्र हैं । इस चवोाग का कायभ पूणभ करके नण वे चवदोभ गये हैं ।’’

चवदोभ में सांघ का प्रवेश तो हो गया न्ा चकन्तग वहााँ के नन्स्न्र राीनश्रचतक वातावरण के कारण वह
णश्रि-णश्रि में डगमगाता रहता न्ा। न्स्न्रता नोश्र नहीं गयश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र को नपने पहले दौरे में हश्र
कायभ कश्र यह कचुनाई चदख गयश्र न्श्र। नतः वहााँ के कायभकताओां के चनराशा-ोरे पत्र उनके चलए
ननेपचक्षत नहीं न्े। 1932 के प्रारम्ो में हश्र एक कायभकता ने चलखा न्ा ‘‘..........वतभमान गन्दोलनों
का प्रोाव सांघकायभ पर ोश्र पड़ा है , नतः सांघ के सदस्य चनत्य सांघस्न्ान पर उपन्स्न्त होने कश्र चिन्ता
नहीं करते।’’ यवतमाळ से डॉ. टें ोे ने चलखा न्ा ‘‘मेरश्र चगरफ्तारश्र का गदे श तश्रन णार लौट िगका है ।
क्यों ? पता नहीं। नण ीरा ोश्र मगाँह खोला चक दूसरे हश्र चदन कृष्ट्णमन्न्दर में ीाना

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पड़ेगा।..........चफलहाल रा. स्व. सांघ का काम निूरा रह ीायेगा। इस सम्णन्ि में दगःख होता है ।’’ इस
वातावरण में डॉक्टरीश्र पत्रव्यवहार के द्वारा सांघ में नये गये हग ए व्यचियों को चनराश न होते हग ए
पचरन्स्न्चत से मागभ चनकालने के चलए उत्साचहत करते रहते न्े। इसश्र का पचरणाम हग ग चक चवदोभ में
चफर से उत्साह का सांिार हो गया तन्ा गन्दोलन के कारण पचरन्स्न्चत कश्र नन्स्न्रता होते हग ए ोश्र सांघ
का कायभ न्स्न्र हो गया।

डॉक्टरीश्र के नखण्ड पचरीम, कायभ कश्र मानचसक चिन्ता, पैसे कश्र णराणर णनश्र रहनेवालश्र तांगश्र तन्ा
चनत्य नयश्र-नयश्र णािाओां का पचरणाम नण उनके स्वास्र्थय पर चदखने लगा न्ा। चकन्तग उन्होंने शरश्रर को
नपने ध्येयचनष्ठ एवां वरमुकुोर मन का दास णना रखा न्ा। नतः ीण ोश्र कोई उनसे स्वास्र्थय के चवर्य
में पूछता तो वे हाँ सते हग ए उत्तर दे ते ‘‘मगझे क्या होता है ? मेरा स्वास्र्थय ुश्रक है ।’’ वास्तव में तो नकोला-
कारागृह में हश्र उनकश्र तचणयत चणगड़ गयश्र न्श्र। णाहर गने के णाद नपनश्र ननगपन्स्न्चत कश्र कमश्र को
पूरा करने के चलए उन्होंने ीो दौड़िूप कश्र उससे उनके सान् रहनेवाले नच्छे -नच्छे हट्टे -कट्टे तरुणों का
ोश्र दम टूट सकता न्ा। प्रातः से राचत्र एक-एक णीे तक वे काम में ीगटे रहते न्े। रात को यद्यचप वे
चणस्तर पर लेट ीाते न्े चफर ोश्र मन्स्तष्ट्क में चविारों के प्रवाह के कारण नच्छश्र नींद सो नहीं पाते न्े।
ीेण में पैसे न होने के कारण, प्रातः ीो महाल )नागपगर का एक मोहल्ला) से चनकलते तो चदन के एक
णीे तक ननेक लोगों सें चमलते हग ए िन्तोलश्र तक पैदल ीाते तन्ा वहााँ से ोरश्र दगपहरश्र में पसश्रने से
लन्पन् होते घर लौटते। स्नान-ोोीन समाप्त करते हश्र चफर से णैुक, पत्रव्यवहार, शाखा गचद का ीो
रामरगड़ा लगता तो राचत्र के णारह-एक तक णी ीाते। नागपगर कश्र गमी कश्र तगलना ििकतश्र हग ई ोट्टश्र
से हश्र कश्र ीा सकतश्र है । चकन्तग डॉक्टरीश्र कश्र तपस्या कश्र दाहकता के समक्ष वह गमी ोश्र पानश्र-पानश्र
होकर सतत स्वेदचणन्दग के प में प्रकट होतश्र रहतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र के लोगों से सम्णन्ि इतने चनकट न्े
तन्ा उनका स्वोाव इतना मिगर न्ा चक प्रातः घर से चनकलकर चीसके यहााँ ीाते वहीं िाय उपन्स्न्त।
नपने स्वास्र्थय कश्र चिन्ता ने करते हग ए ोश्र वे इसे स्वश्रकार करते ीाते न्े। पता नहीं चदन में चकतने प्याले
िाय उन्हें पश्रनश्र पड़तश्र। यह नहीं चक िाय उन्हें नच्छश्र लगतश्र न्श्र, चकन्तग िाय के पश्रछे कश्र गत्मश्रयता
को वे ुगकरा नहीं सकते न्े। इस गत्मश्रयता को गत्मसात् करके हश्र तो उन्होंने ननेकों को सांघ के
सान् एकात्म णनाया न्ा। डॉक्टरीश्र के ीश्रवन में इतनश्र सहीता एवां गकर्भकता न्श्र चक वे ननीान
में हश्र चणना चकसश्र प्रकार के कष्ट के लोगों को नपने छोटे -से घरोंदे से णाहर चनकालकर चवशाल समाी
में गत्मचवश्वास और लगन से चविरण करना चसखा चदते न्े। ीो उनके सान् गता उसकश्र
कतृभत्वशचि सही हश्र चवकचसत हो ीातश्र न्श्र।

241
20. चववांिना
काशश्र में 1931 में परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के द्वारा सांघकायभ को नच्छश्र गचत चमलश्र। लगोग एक मास
तक उनके वहााँ रहने के कारण कायभ को प्रारम्ो से हश्र नच्छश्र गचत एवां योग्य चदशा प्राप्त हो गयश्र न्श्र।
चवश्वचवद्यालय कश्र शाखा में स्वयांसेवकों ने चवद्यार्तन्यों के नचतचरि कगछ तरुण प्राध्यापकों को ोश्र सांघ
में गकृष्ट करना प्रारम्ो चकया। इन प्राध्यापकों में ीश्र मािराव गोळवलकर उपाख्य ‘गगरुीश्र’ ोश्र एक
न्े। वे सांघ के चनकट गकर कायभ में रुचि लेने लगे न्े। डॉक्टरीश्र को यह समािार स्वयांसेवकों के
पत्रों से चमल गया न्ा। इस प्रकार के तरुण एवां णगचद्धमान् कायभकता वहााँ कश्र शाखा को प्राप्त हो रहे हैं
यह ीानकर उन्हें गनन्द हग ग। उन्होंने नागपगर में ीश्र मािवराव से सम्णन्न्ित स्वयांसेवकों से उनके
चवर्य में और ोश्र पूछताछ कश्र। 1932 के नप्रैल में काशश्र चवश्वचवद्यालय कश्र छगट्टश्र होने के णाद ीण
गगरुीश्र नागपगर गये तो एक चदन सही रास्ते में ीाते हग ए डॉक्टरीश्र ने उनको दे खा। उन्होंने गगरुीश्र को
रोकते हग ए पूछा ‘‘गपका नाम मािवराव गोळवलकर है न ?’’ डॉक्टरीश्र ने मािवराव के सम्णन्ि
में ीो ीानकारश्र प्राप्त कश्र न्श्र उसश्र गिार पर ननगमान लगाते हग ए वे उन्हें पहिान गये न्े। गगरुीश्र के
‘‘हााँ’’ कहने पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘नपनश्र सगचविा के ननगसार एक णार घर गइएगा।’’ तदनगसार
गगरुीश्र डॉक्टरीश्र के घर गये। यहश्र परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र तन्ा गी के सरसांघिालक परमपूीनश्रय
ीश्र गगरुीश्र कश्र पहलश्र ोेंट न्श्र।

नागपगर कश्र गमी प्रारम्ो हो िगकश्र न्श्र। मई महश्रने में प्रारम्ो होनेवाले चशक्षण वगभ कश्र तैयारश्र में डॉक्टरीश्र
लगे हग ए न्े। उसश्र समय णाणाराव सावरकर का पत्र चमला ‘‘मई मास के प्रारम्ो में करािश्र में होनेवाले
‘नचखल ोारतश्रय तरुण चहन्दू पचरर्द्’ में गप नवश्य गइए।’’ स्न्ान-स्न्ान से गये सैकड़ों तरुणों
को चमलने का सगनवसर डॉक्टरीश्र खोना नहीं िाहते न्े। परन्तग उसश्र समय नागपगर में सांघ का चशक्षा
वगभ होनेवाला न्ा। उसे सफल णनाने के चलए डॉक्टरीश्र का नागपगर में रहना गवश्यक न्ा। सान् हश्र
करािश्र गने-ीाने के चलए खिभ का ोश्र प्रश्न न्ा। वह कहााँ से होगा ? नतः डॉक्टरीश्र ने नपनश्र कचुनाई
णाणाराव को साफ-साफ चलख दश्र। इस चवर्य पर उन दोनों में ीो पत्रव्यवहार हग ग वह दोनों दे शोिों
के पारस्पचरक सम्णन्िों तन्ा उनके कतभव्य-कुोर ीश्रवन पर नच्छा प्रकाश डालता है । डॉक्टरीश्र के
समान णाणाराव सावरकर के पास ोश्र करािश्र ीाने के चलए पैसे नहीं न्े। चकन्तग उनकश्र कचुनाई को
समझकर ोाई परमानन्दीश्र ने गने-ीाने का व्यय वहन करने का उन्हें गश्वासन दे चदया न्ा। इस
गिार पर णाणाराव ने डॉक्टरीश्र को चलखा ‘‘..........उस चमलनेवाले व्यय में से हम लोग गिा-
गिा णााँटकर नपना ोार कगछ हलका कर सकेंगे।’’ इतना न्ा दोनों के णश्रि स्नेह।

242
डॉक्टरीश्र ने सगझाया चक ‘‘गप हश्र उस पचरर्द् में गनेवाले तरुणों से सांघ के सम्णन्ि में णातिश्रत कर
लश्रचीएगा।’’ इस पर णाणाराव ने चलखा ‘‘...........मैने यद्यचप सांघ का कायभ स्वश्रकार चकया है चफर ोश्र
मेरा मन कहता है चक मैं पूणभ प से प्रिारक्षम नहीं हग ग हू ाँ । कदाचित् मैं निार कश्र फााँक नवश्य हू ाँ
परन्तग नोश्र िगरा नहीं हू ाँ । गप चसद्ध हो गये हैं । गप हश्र इस समय गइए। उनका )ोाईीश्र का) ोश्र
गपके णारे में पत्र गया है तन्ा पूछा है चक ‘वे )डॉक्टर हे डगेवार) ग रहे हैं चक नहीं ?’ उनका चलखना
है चक गपको नवश्य लेकर गऊाँ।’’ चदनाांक 20 नप्रैल के पत्र में ोश्र वे इसश्र प्रकार चलखते हैं चक
‘‘.........मैं सांघ में पूरश्र तरह चमल तो गया हू ाँ पर उसके उद्देश्य को रखने कश्र पद्धचत, चवचवि शांकाओां
के चनचित उत्तर, कायभपद्धचत कश्र पूणभ ीानकारश्र गचद णातों के स्पष्ट चित्र नोश्र मेरे मन पर नांचकत
नहीं हग ए हैं ।...........नतः इस पचरर्द् में गप हश्र गयें चीससे नाना शांका-प्रचतशांकाओां के उत्तर, चवर्य
का प्रचतपादन, पद्धचतवणभन, कायभसरणश्र गचद का गपके हश्र द्वारा गमूलाग्र चववेिन होने के कारण
मगझे ोश्र उनका पूणभ प से गकलन सम्ोव हो सकेगा।’’

नन्त में करािश्र ीाने का चविार चनचित हो गया। चदनाांक 2 मई को डॉक्टरीश्र नागपगर से णम्णई तन्ा
वहााँ से णाणाराव सावरकर के सान् 3 तारश्रख कश्र राचत्र को करािश्र के चलए िले। करािश्र से चदनाांक 6
मई को नपने िािाीश्र ीश्र गणाीश्र हे डगेवार को चलखे गये पत्र में डॉक्टरीश्र ने यात्रा के कगछ चवचशष्ट
िगने हग ए ननगोव चलखे हैं । वे उनके सूक्ष्म चनरश्रक्षण के पचरिायक हैं । नतः उनका यहााँ दे ना उपयगि
होगा। णम्णई में राचत्र कश्र गाड़श्र में स्न्ान लेने के चलए दौड़िूप करते समय ीो ननगोव गया उसके
णारे में वे चलखते हैं ‘‘मगसलमानों कश्र गगण्डागदी, नवसर गया तो पहले िमकश्र चफर मगाँहीोरश्र, इसके
णाद ननगनय तन्ा नन्त में शरणागचत, ये सण ांग दे खने को चमले।’’ उनका यह चनरश्रक्षण चकतना सूक्ष्म
न्ा इसका ननगोव एक मगसलमान के व्यचितशः णताव से लेकर उनके सामूचहक व्यवहार तक सण
ओर चमलता है । चकन्तग दगोाग्य से चीस यगग में मगसलमानों कश्र िमकश्र और मगाँहीोरश्र से हश्र घणड़ाकर
गत्मचवश्वासहश्रनता से गचलतगात्र चहन्दू समाी के नकहसा के उत्कृष्ट तत्त्वज्ञान के परदे में स्वयां हश्र
शरण ीाने के लज्जास्पद उदाहरण चमलते हों, वहााँ डॉक्टरीश्र द्वारा ननगोूत मगसलमानों के ‘ननगनय-
चवनय’ तन्ा ‘शरणागचत’ कश्र नपेक्षा कैसे कश्र ीा सकतश्र है ? उनकश्र िमकश्र और मगाँहीोरश्र को सही
ोाव से पिाकर यचद उनके सामने डटकर खड़े रहें तो चफर उनकश्र वृचत्त में डॉक्टरीश्र के कन्नानगसार
चनचित हश्र पचरवतभन चदखेगा।

कणावतश्र स्टेशन का ोश्र एक ननगोव उन्होंने नपने पत्र में चलखा है ‘‘.........इस स्न्ान पर ोश्र
मगसलमानों कश्र दणांग तन्ा चहन्दगओां कश्र श्रलश्र- ालश्र मनोवृचत्त का नच्छा ननगोव चमला।
नपवादस्व प एक गगीरातश्र मचहला कश्र चनोीकता तन्ा तेीस्वश्र वृचत्त दे खकर गनन्द हग ग। कन्तग
उसके पचत के पास वह वृचत्त चणल्कगल हश्र दे खने को नहीं चमलश्र।’’ यह सण दे खते हग ए उनके सामने

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गगीरात, महाराष्ट्र नन्वा चसन्ि का नलग-नलग चविार नहीं न्ा। वे सम्पूणभ चहन्दू समाी को
एकात्मोाव से दे खते न्े तन्ा इस चवशाल हृदयता एवां ममता के कारण हश्र चवचोन्न दृश्यों से उन्हें व्यन्ा
नन्वा गनन्द कश्र ननगोूचत होतश्र न्श्र। है दराणाद )चसन्ि) स्टे शन कश्र यात्रा के वणभन में वे चलखते हैं
‘‘है दराणाद पर स्टे शन गाड़श्र में िढते हश्र हमें यह लगने लगा मानो हम चकसश्र मगसलमान दे श में ग गये
हैं । है दराणाद से करािश्र पहग ाँ िने तक हमारे चडब्णे में हमें कोई चहन्दू दे खने को ोश्र नहीं चमला। चडब्णे में
सण मगसलमान हश्र न्े। नन्दर उनका खाने-पश्रने का गचलच्छपन और णाहर रे त के टश्रले, इस पचरन्स्न्चत
में हम करािश्र पहग ाँ ि।े ’’

करािश्र में डॉक्टरीश्र छः चदन रहे । इस नवचि में उन्होंने पांीाण तन्ा चसन्ि से गये हग ए ननेक तरुण
कायभकताओां का पचरिय करके उनके सम्मगख राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के उदयोन्मगख सांघटन कश्र
कल्पना रखश्र। इन प्रान्तों के कायभकताओां को मगसलमानों के सतत गघातों से पश्रचड़त होने के कारण
सांघटन कश्र गवश्यकता णराणर प्रतश्रत होतश्र न्श्र। चकन्तग उन्हें यह समझ में नहीं गता न्ा चक सांघटन
चकया कैसे ीाये। प्रस्ताव, ोार्ण तन्ा पचरर्द् के नचतचरि उन्हें चकसश्र पद्धचत का णोि नहीं न्ा।
डॉक्टरीश्र ने णड़श्र योग्यता के सान् उनको ोश्र सांघटनतांत्र समझाया। डॉक्टरीश्र के गशय को समझने
के उपरान्त पचरर्द् ने यह सचदच्छा व्यि कश्र चक सांघ के कायभ का चवस्तार सम्पूणभ दे श में होना िाचहए।
चकन्तग डॉक्टरीश्र का इस प्रकार के सतावमूलक प्रस्ताव से तो सन्तोर् नहीं हो सकता न्ा। उन्होंने
करािश्र के कगछ कायभकताओां को हान् में लेकर प्रत्यक्ष शाखा प्रारम्ो कर दश्र। ीश्र डश्र. डश्र. िौिरश्र को
सांघिालक चनयगि करने का ोश्र उल्लेख चमलता है । गणाीश्र को पत्र में डॉक्टरीश्र ने यह ोश्र चलखा न्ा
चक ‘‘प्रािायभ रामसहाय सरश्रखे व्यचि सांघ में प्रचवष्ट हो गये हैं ।’’

डॉक्टरीश्र को करािश्र नगर णहग त नच्छा लगा। उन्होंने इस चवर्य में चलखा न्ा ‘‘..........चीन लोगों
ने णम्णई और कलकत्ता के नगर दे खे हैं उन्हें करािश्र दे खकर गियभ तो नहीं होगा, चफर ोश्र यह कहना
पड़ेगा चक नगर उन दोनों शहरों से नच्छा है । यहााँ का सौन्दयभ, टश्रपटाप, स्वच्छता, डामर कश्र िौड़श्र
और साफ सड़के, चणीलश्र के प्रकाश कश्र चवशेर् व्यवस्न्ा, स्न्ान-स्न्ान पर चवद्यमान णगश्रिों और
पाकों के कारण नगर का खगलापन, इन सणके कारण करािश्र दूसरे शहरों से णढ-िढकर है ।.........मगझे
लगता है गी तक दे खे हग ए नगरों में करािश्र को पहला क्रमाांक दे ना िाचहए।’’ चकन्तग गी इस
सवोत्कृष्ट नगर कश्र चकतनश्र दगदभशा हो गयश्र है ! उसे दे खकर चकसश्र ोश्र स्वाचोमानश्र एवां सहृदय व्यचि
का हृदय टूक-टूक हो ीायेगा।

करािश्र से वापस गते हश्र डॉक्टरीश्र सांघ-चशक्षावगभ में लश्रन हो गये। वगभ कश्र समाचप्त के पिात् कश्र एक
घटना का उल्लेख उपयोगश्र होगा। डॉक्टरीश्र का कहना न्ा चक सांघ का स्वयांसेवक कहीं ोश्र ीाये उसे
नपने सान् सांघ का वातावरण ले ीाना िाचहए। ीहााँ वह गया है वहााँ यचद शाखा है तो स्वयांसेवक को

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चनयचमत प से शाखा में ीाना िाचहए, और यचद शाखा नहीं है तो उसे वहााँ खोलने का प्रयत्न करना
िाचहए। डॉक्टरीश्र कश्र इस प्रेरणा के कारण हश्र छोटे -छोटे स्कूल में पढनेवाले स्वयांसेवकों के द्वारा सांघ
का णहग त-सा चवस्तार हग ग। नागपगर का एक स्वयांसेवक मािव मगळे इस वर्भ मैचरक कश्र परश्रक्षा दे कर
कोंकण में चिपळू ण ोाग में रहने के चलए ीानेवाला न्ा। डॉक्टरीश्र ने उसे णगलाया तन्ा कोंकण में
काम प्रारम्ो करने कश्र दृचष्ट से उसके सान् चविारचवमशभ चकया। इतना हश्र नहीं, नागपगर कश्र घोर्-शाखा
कश्र ओर से ीण ीश्र मािवराव मगळे को चणदाई दश्र गयश्र तो उस कायभक्रम में वे स्वयां उपन्स्न्त रहे ।
स्टे शन पर ोश्र वे उन्हें पहग ाँ िाने के चलए गये। उनके इस व्यवहार ने चनचित कर चदया चक के वल एक
स्वयांसेवक नागपगर से घर रहने के चलए नहीं ीा रहा न्ा नचपतग सांघ का प्रिारक कोंकण क्षेत्र को
सांघटन-मांत्र कश्र दश्रक्षा दे ने के चलए ीा रहा न्ा। न्ोड़े हश्र चदनों में सम्पूणभ ोाग में सांघ का ीाल फैल
गया।

इस समय ीश्र कृष्ट्णराव लाांणे डॉक्टरीश्र कश्र योीना के ननगसार चदल्लश्र गये। प्रकट उद्देश्य तो वहााँ एक
‘मराुा हाईस्कूल’ प्रारम्ो करने का न्ा चकन्तग मूल में कायभचवस्तार कश्र हश्र योीना न्श्र। पर ीश्र लाांणे
स्नातक-परश्रक्षा में नसफल हो गये। नतः वे उदास होकर नागपगर लौट गये तन्ा डॉक्टरीश्र से चणना
चमले हश्र नपने घर उमरे ड िले गये। ीण डॉक्टरीश्र को उनसे चमलने का योग गया तो उन्होंने पूछा
‘‘तगम चदल्लश्र से वापस क्यों ग गये ? पैसे नहीं न्े तो मैं दे ता। मैंने तो चदल्लश्र में शाखा खोलने के चलए
ोाई परमानन्दीश्र गचद नेताओां के सान् पत्रव्यवहार से ििा श कश्र। तगम्हारे वापस गने से सण
णेकार हो गया।’’ चणना णताये लौटकर गना डॉक्टरीश्र कश्र दृचष्ट से नयोग्य न्ा, इस ोाव को व्यि
करने के चलए कहते हैं चक ीश्र लाांणे के ऊपर पााँि रुपया ीगमाना ोश्र चकया गया न्ा।

डॉक्टरीश्र को नण प्रवास के चनचमत्त काफश्र चदनों घर से णाहर रहना पड़ता न्ा। उनकश्र ननगपन्स्न्चत में
गसपास के नचहन्दू लोग चफर से चसर उुाने लगे तन्ा णश्रि-णश्रि में उनके घर पर पन्राव करते रहते।
डॉक्टरीश्र यह ीानेते न्े चक पत्न्र फेंकने वाले कौन लोग हैं परन्तग उन्हें उनकश्र कगब्णत का ोश्र पता न्ा।
वे चनचिन्त न्े चक िार चदनों में यह शरारत नपने गप णन्द हो ीायेगश्र। पर यह समािार नागपगर तन्ा
प्रान्त में फैल गया। लोगों को स्वाोाचवक हश्र कगछ चिन्ता और उत्सगकता हग ई। उन्होंने डॉक्टरीश्र के
पास ुश्रक-ुश्रक समािार ीानने के चलए पत्र चलखे। उत्तर में डॉक्टरीश्र ने चलखा ‘‘.........घर पर पत्न्र
गते न्े वे चीस समाी कश्र ओर से सम्ोव है वहीं से ग रहे न्े। उसमें चहन्दू समाी के चकसश्र ोश्र
व्यचि नन्वा ीाचत का हान् नहीं। ीण वर्ा ीोरों से होतश्र है तो पत्न्र कम हो ीाते हैं चकन्तग वर्ा णन्द
होते हश्र पन्राव ीोरों से होने लगता है । पन्राव से यह स्पष्ट है चक पत्न्र फेंकने वाले समाी में सामने
गने कश्र मदानगश्र नहीं णिश्र। इस सम्णन्ि में गप कोई ोश्र चिन्ता न करें ।’’ डॉक्टरीश्र के ननेक
गत्मश्रयों ने उनके मना करने पर ोश्र इस नवसर पर पहरा लगाना प्रारम्ो कर चदया न्ा। फलतः पत्न्र

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फेंकनेवालों को नपने मगाँह चछपाने पड़े। 1932 कश्र ीून में यह पन्राव सात-गु चदन के णाद णन्द हो
गया।

इसश्र समय डॉक्टरीश्र तन्ा रा. स्व. सांघ पर एक वरमुाघात हग ग। राीा लक्ष्मणराव ोोंसले का पूना में
एकाएक चनिन हो गया। सांघ का एक गिार स्तम्ो, चहन्दगत्व का कट्टर नचोमानश्र तन्ा डॉक्टरीश्र का
एक घचनष्ठ चमत्र उु गया। चदनाांक 9 ीून को ीण यह दगःखद वाता चमलश्र तण सांघ-चशक्षावगभ के समारोप
कायभक्रम के चनचमत्त स्वयांसेवक तन्ा सैकड़ों नागचरक एकत्र न्े। डॉक्टरीश्र ने तगरन्त कायभक्रम स्न्चगत
करते हग ए वहीं शोक-प्रस्ताव पाचरत चकया। इस प्रस्ताव में डॉक्टरीश्र कश्र ोावनाएाँ प्रचतचणन्म्णत न्ीं।
प्रस्ताव में चलखा न्ा ‘‘ीश्रमन्त राीा लक्ष्मणराव ोोंसले कश्र मृत्यग का हृदय-चवदारक समािार सगनकर
सांघ को नन्तःकरणपूवभक वरमुाघात के दगःख का ननगोव हो रहा है । रा. स्व. सांघ राीा साहण कश्र
छत्रछाया में हश्र पैदा हग ग और पनपा। गी का उसका स्व प उनके हश्र प्रेमपूणभ प्रोत्साहन का पचरणाम
है । चहन्दू िमभ तन्ा चहन्दू सांस्कृचत पर उनके हार्तदक एवां चनस्सश्रम प्रेम के कारण वे सम्पूणभ चहन्दू समाी
के चलए गौरव न्े।’’ डॉक्टरीश्र ने उस समय के पत्रों में राीा लक्ष्मणराव ोोंसले कश्र मृत्यग के चवर्य में
चलखा न्ा ‘‘उनकश्र मृत्यग से नपनश्र चकतनश्र ोारश्र क्षचत हग ई है उसका वणभन नहीं चकया ीा सकता।’’

गघातों को िैयभ के सान् सहन करते हग ए, नचविल ध्येयचनष्ठा के सहारे डॉक्टरीश्र का पग सांघ के पन्
पर णढता हश्र ीाता न्ा। मध्य प्रदे श में ननेक स्न्ानों पर शाखाएाँ खगल िगकश्र न्ीं। नण डॉक्टरीश्र ने
महाराष्ट्र कश्र ओर नपना कदम णढाया। 1932 में णाणाराव सावरकर के सात उन्होंने णम्णई, पूना,
सातारा, साांगलश्र, कोल्हापगर, ीमचखण्डश्र तन्ा कह्राड का दौरा चकया। इस नवसर पर णाणाराव के
व्यापक पचरिय का णहग त लाो हग ग। डॉक्टरीश्र कश्र ननगोवपूत प्रोावश्र वाणश्र तन्ा णाणाराव का
णैुकों में सही रश्रचत से चविारों को समझाने का कौशल्य, दोनों का ऐसा मेल णैुा चक महाराष्ट्र में
कायभ का ीश्रगणेश नत्यन्त उत्साह के सान् हग ग।

चदनाांक 6 नगस्त 1932 को डॉक्टरीश्र ने सांघ के सरसेनापचत मातभण्डराव ीोग के सान् दौरा चकया।
नागपगर से खामगााँव तक स्टे शन-स्टे शन पर कायभकता डॉक्टरीश्र से चमले। िामणगााँव के स्वयांसेवकों
ने तो प्लेटफॉमभ पर हश्र गणवेश में गकर सैचनक पद्धचत से मानवन्दना कश्र।

नकोला में वहााँ के कायभकताओां ने एक ननान् स्त्रश्र को णम्णई के ‘ीद्धानन्द ननान् मचहलाीम’ में
पहग ाँ िाने के चलए गाड़श्र में णैुा चदया न्ा। णम्णई पहग ाँ िने पर डॉक्टरीश्र ने उसे गीम में पहग ाँ िाने कश्र
व्यवस्न्ा कश्र। इस प्रकार के ननेक कायभ वे गये हान् सही रश्रचत से करते रहते न्े। इतना हश्र नहीं ,
ीण वे दौरे पर ीाते तो ननेक चमत्र उनको चोन्न-चोन्न प्रकार के काम णता दे ते न्े। उन्हें पूरा करने में
ोश्र उन्होंने कोश्र गनाकानश्र नहीं कश्र। इसश्र दौरे में उन्होंने एक स्वयांसेवक कश्र घश्र कश्र णरनश्र ोश्र णम्णई
पहग ाँ िायश्र न्श्र। इसका ोश्र उल्लेख उनके पत्रों में चमलता है । सत्य तो यह है चक लोकसांग्रह एक कुोर

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तपिया है । िौणश्रसों घण्टे का चनरलस, चनरपेक्ष तन्ा सही सेवाोाव हश्र लोकसांग्रह के प में
प्रचतफचलत होता है ।

पूना, सातारा, साांगलश्र गचद स्न्ानों पर तरुणों कश्र णैुके, प्रौढों कश्र सोा, प्रचतज्ञा-चवचि, शाखा-स्न्ान,
चवचोन्न नेताओां से ोेंट गचद चवचवि प्रकार के कायभक्रम से सैकड़ों लोगों तक रा. स्व. सांघ कश्र
चविारिारा पहग ाँ ि गयश्र। पूना में साचहत्य सम्राट ीश्र तात्यासाहण केळकर के यहााँ प्रौढ सज्जनों कश्र णैुक
हग ई। उस णैुक के सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र चलखते हैं ‘‘णाल कश्र खाल चनकालने के चलए चवख्यात पूना
नगर के चवद्वानों को ोश्र प्रश्नोत्तर के उपरान्त सांघ कश्र कल्पना पसन्द गयश्र।’’ इस तूफानश्र प्रिार से
महाराष्ट्र में प्रमगख-प्रमगख स्न्ानों पर सांघ के प्रचतचज्ञत स्वयांसेवक तो णन गये चकन्तग प्रचतचदन का
शाखाओां के प में िलनेवाला कायभक्रम प्रारम्ो नहीं हो पाया। वह तो गगे एक-दो वर्भ णाद मध्य
प्रेदश से योीनापूवभक पढने के चलए ोेीे गये चवद्यान्ी तन्ा प्रिारकों द्वारा हश्र हग ग।

इस प्रवास में सम्णन्ि में गये हग ए सज्जनों को डॉक्टरीश्र ने नागपगर में सांघ का दशहरा-उत्सव दे खने के
चलए गमांचत्रत चकया। इस प्रकार के चनमांत्रण के पश्रछे उनका दगहरा उद्देश्य रहता न्ा। नागपगर के दृश्य
को दे खकर सांघ कश्र कल्पना लोगों में साकार हो सकतश्र न्श्र। सान् हश्र णाहर के व्यचियों के गने के
कारण नागपगर के स्वयांसेवकों में ोश्र उत्सव को नचिकाचिक ोव्य णनाने कश्र सही गकाांक्षा ीाग्रत
ृ होना िाचहए, डॉक्टरीश्र का इस ओर सदा
हो ीातश्र न्श्र। कायभ चवस्तार के सात केन्द्र को नचिक सगदढ
ध्यान रहता न्ा। चदनाांक 1 चसतम्णर को नागपगर के सोश्र स्वयांसेवक के नाम ोेीे गये पत्र में वे चलखते
हैं ‘‘नपना नागपगर का दशहरा उत्सव राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र ीश्रवनशचि का मापदण्ड है । इससे
हश्र लोग हमारश्र शचि का ननगमान लगाते हैं । उत्सव का दृश्य दे खकर हमारे कायभ से प्रेम करनेवाले
व्यचियों के मन में गनन्द कश्र लहरें उुें गश्र। लोगों के ये गनन्दपूणभ नन्तःकरण हश्र सांघ के दृढ स्तम्ो
हैं , हमें सदै व इसका स्मरण रखना िाचहए। इस उत्सव को दे खने के चलए इस वर्भ केवल नपने प्रान्त
से हश्र नहीं, नन्य प्रान्तों से ोश्र णड़े-णड़े महानगोाव नागपगर ग रहे हैं । नपने ध्येय के ननगसार यचद हम
िाहते हैं चक चहन्दगस्न्ान के दूसरे प्रान्तों में ोश्र सांघ कश्र शाखाओां का चवस्तार हो तो इन नचतचन्यों के
मन में उत्सव दे खकर कायभ कश्र स्फूर्तत उत्पन्न होनश्र िाचहए।’’

दौरे से लौटते हग ए वे गु चदन णम्णई रहे तन्ा वहााँ सांघ कायभ का प्रारम्ो करके चदनाांक 14 चसतम्णर
को नागपगर पहग ाँ ि।े मागभ में वे नकोला और विा ोश्र रुके। इस सवा महश्रने के दौरे में हश्र डॉक्टरीश्र ने
पूना में ीश्र ोाऊराव दे शमगख तन्ा साांगलश्र में ीश्र का. ोा. चलमये कश्र सांघिालक के नाते चनयगचि कश्र।

गाांिश्र-इरचवन समझौते को हग ए यद्यचप एक वर्भ हो गया न्ा चफर ोश्र दे श के राीनश्रचतक वातावरण में
नन्स्न्रता तन्ा स्फोटकता णनश्र हग ई न्श्र। इसचलए ऐसे स्न्ान ीहााँ कगछ तरुण इकट्ठे हों, सरकार कश्र
चवशेर् कृपा के पात्र समझे ीाते न्े। गेहूाँ के सान् घगन ोश्र चपस ीातश्र है । इस न्याय से चीनका प्रत्यक्ष

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राीनश्रचत से कोई सम्णन्ि नहीं न्ा ऐसश्र सांस्न्ाओां के पश्रछे ोश्र सरकार कश्र नीर लगश्र रहतश्र न्श्र। चफर
सांघ के सांस्न्ापक और सैकड़ों कायभकता तो गन्दोलन में ोाग ले िगके न्े तन्ा सम्पूणभ प्रेदश में
योीनापूवभक सांघ का ीाल पूरा ीा रहा न्ा। नतः उस ओर सरकार कश्र वक्रदृचष्ट न होतश्र तो गियभ
होता। डॉक्टरीश्र का महाराष्ट्र का दौरा समाप्त होने के णाद णम्णई कश्र सरकार ने मध्य प्रान्त कश्र सरकार
से पूछा न्ा ‘‘यह नई कौनसश्र णला गपके यहााँ से हमारे प्रान्त में ग रहश्र है ।’’ मध्यप्रान्त और णम्णई
में गगप्तिरों को सांघ कायभ पर चवशेर् दृचष्ट रखने कश्र सूिना चमलनश्र स्वाोाचवक हश्र न्श्र। शासन कश्र इस
नश्रचत का चविार करते हग ए डॉक्टरीश्र ने नागपगर में मोचहतेणाड़ा, णडी, िरमेु तन्ा केन्द्र कश्र शाखाओां
को णढाकर ऐसे ननेक कायभकता चनमाण चकये ीो स्न्ान-स्न्ान पर शाखाएाँ लगा सकें।

सांघ के ऊपर सरकार कश्र ओर से गपचत्त कश्र ीैसे-ीैसे सम्ोावना णढने लगश्र वैसे-वैसे स्वयांसेवक न
घणड़ाते हग ए उसका सामना करने के चलए नचिकाचिक उत्साह से णलसांविभन में ीगट पड़े। फलतः वह
सांघ के चलए इष्टापचत्त हश्र चसद्ध हग ई। डॉक्टरीश्र ने नपने एक ोार्ण में इस काल कश्र पचरन्स्न्चत का
चवश्लेर्ण करते हग ए कहा न्ा ‘‘..........1930 के सचवनय नवज्ञा गन्दोलन कश्र 1932 में दूसरश्र चकश्त
न्श्र। उस समय सरकार को ोय न्ा चक प्रत्येक सांघचटत सांस्न्ा गन्दोलन में सहायता करे गश्र। नतः
उसने इन सांस्न्ाओां को गैरकानूनश्र घोचर्त करने का चनिय कर चलया न्ा।..........नागपगर में रा. स्व.
सांघ हश्र एक णलवान् सांस्न्ा होने के कारण सरकार द्वारा उस पर प्रचतणन्ि लगाने के चवश्ववस्त कहे
ीानेवाले समािार चमलने लगे। मगझे कौंचसल के नच्छे -नच्छे सोासदों ने णताया चक वे यह समािार
सरकार के नन्तःस्न् सूत्रों से लाये हैं । चकन्तग मगझे पूरा चवश्वास न्ा चक मध्यप्रान्त सरकार इतनश्र मूखभ
नहीं है चक वह रा. स्व. सांघ ीैसे सांघटन पर प्रचतणन्ि लगायेगश्र। क्योंचक सांघ में नत्यन्त शान्न्त एवां
ननगशासन के सान् चशक्षा दश्र ीातश्र है , उसे णन्द करके सरकार व्यन्भ कश्र णला नपने चसर क्यों मोल
लेगश्र ? मैं उन चदनों सदै व यह कहता न्ा चक ‘सरकार सांघ णन्द नहीं कर सकतश्र, क्योंचक यह तो नपने
पैरों पर कगल्हाड़श्र मारना हश्र होगा। चीस चदन सरकार सांघ को गैरकानूनश्र णताकर णन्द करे गश्र उसश्र चदन
नागपगर में दो सौ शाखाएाँ हो ीायेंगश्र। सांघ में चीतने स्वयांसेवक हैं उतनश्र हश्र शाखाएाँ सांघ णन्द करने के
णाद चनमाण होंगश्र।’ मैंने यह सण सोश्र स्वयांसेवकों के ोरोसे उनके कतृभत्व पर चवश्वास रखकर कहा
न्ा।

‘‘मान लश्रचीए कल चहन्दगस्न्ान सरकार कश्र इच्छा सांघ को णन्द करने कश्र हो गयश्र। पर सांघ कैसे णन्द
होगा ?..........दृश्य शाखाएाँ णन्द हो ीायेंगश्र, चकन्तग नदृश्य शाखाएाँ कई गगना णढ ीायेंगश्र। लोगों को
णाहर चदखनेवाला दृश्य सरकार णन्द कर सकेगश्र पर ोावनामय नन्तःकरण को चदखनेवाले दृश्य को
वह कैसे गांखों से ओझल कर सकेगश्र। तात्पयभ यह है चक सरकार ीानणूझकर सांघटन पर गघात
नहीं कर सकतश्र। यचद चकया तो मैं णता िगका हू ाँ चक प्रत्येक स्वयांसेवक के चहसाण से शाखाएाँ चनर्तमत
हो ीायेंगश्र। यचद सरकार द्वारा सांघ पर प्रचतणन्ि लगाने के णाद िाहे चीतनश्र शाखाएाँ खगल सकतश्र हैं तो

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वह प्रयत्न हम नोश्र वैसे हश्र क्यों न करें । यह चविार उस समय गया तन्ा शाखाओां का चवस्तार करने
का चनणभय चलया गया। हर मोहल्ले में खगला स्न्ान दे खकर वहााँ शाखा शग कश्र गयश्र। इस प्रकार गी
गप नगापगर में सोलह शाखाएाँ दे ख रहे हैं ।’’

इस कायभचवस्तार के चलए डॉक्टरीश्र ने नपने सहकाचरयों के सान् सम्पूणभ नागपगर का कोना-कोना छान
डाला न्ा। उन्होंने नपने सोश्र कायभकताओां के मन पर यह ीमा चदया न्ा चक सांघ के कायभ का प्रसार
चकसश्र ोश्र णाह्य पचरन्स्न्चत पर चनोभर न रहकर स्वयांसेवकों के गत्मचवश्वासपूणभ प्रयत्नों पर हश्र
नवलन्म्णत है । वे सैदव स्वयांसेवकों को णताते न्े चक सांघकायभ पचरन्स्न्चत-चनरपेक्ष है । यचद ननगकूल
वायग के कारण नौका के सोश्र पाल ताने ीा सकते तो उत्तम है चकन्तग यचद हवा उलटश्र हो तन्ा नदश्र का
प्रवाह ोश्र प्रचतकूल हो तो ोश्र नपने हान् में णल्लश्र लेकर नौका को चनयोचीत स्न्ान पर उसश्र गचत से खेने
कश्र तैयारश्र और सामर्थयभ नपने मन और णाहग ओां में होनश्र िाचहए। पचरन्स्न्चत कश्र चवपरश्रतता का रोना
रोते हग ए कपाल पर हान् रखकर णैुना सांघ के स्वयांसेवकों को शोोा नहीं दे सकता। सांघ को
पचरन्स्न्चत-चनरपेक्ष णताने के पश्रछे उनका यहश्र ोाव न्ा और इसश्र का सांस्कार वे सदै व नपने व्यवहार
से दूसरों के ऊपर डालते रहते न्े। डॉक्टरीश्र ने नपनश्र दै नन्न्दनश्र में 29 ीनवरश्र 1934 को ीो सूचि
चलखश्र है वह उनकश्र प्रयत्नवादश्र प्रवृचत्त को पूरश्र तरह व्यि करतश्र है । वह सूचि है ‘‘नालायक हश्र काल
को दोर् दे ता है ।’’

सांघ के णढते हग ए कायभ का पचरिय चवीयादशमश्र-उत्सव पर ोलश्र ोााँचत चमल ीायेगा यह चविार कर
डॉक्टरीश्र ने इस वर्भ काशश्र-शाखा से ीश्र ससोपाल तन्ा ीश्र मािवराव गोळवलकर को उत्सव दे खने
के चलए णगलाया। नपेक्षा के ननगसार 1932 का दशहरा-उत्सव णहग त णड़े पैमाने पर हग ग। णारह सौ
गणवेशिारश्र स्वयांसेवक सांिलन में सन्म्मचलत हग ए न्े। उनका ननगशासन तन्ा उनकश्र दक्षता दे खकर
नागपगर के प्रत्येक नागचरक के मगहाँ से ‘वाह-वाह’ हश्र चनकलतश्र न्श्र। उत्सव के नवसर पर डॉक्टरीश्र
ने ीश्र ससोपाल तन्ा प्रा. ीश्र मािवराव गोळवलकर का काशश्र-शाखा के उत्साहश्र कायभकता के नाते
पचरिय कराया तन्ा उन्हें पगष्ट्पहार समर्तपत चकये।

ोार्ण के पूवभ डॉक्टरीश्र ने णताया चक णनारस, इन्दौर, करािश्र, पूना, णम्णई, सातारा, कोल्हापगर गचद
सोश्र स्न्ानों में सांघ के कायभ का नत्यन्त उत्साह के सान् स्वागत हग ग है तन्ा नन्य स्न्ानों से ोश्र कायभ
प्रारम्ो करने के चलए चनमांत्रण ग रहे हैं । इसके उपरान्त उन्होंने न्ोड़े शब्दों में सांघ का उद्देश्य लोगों
के सम्मगख रखा नपने ोार्ण में उन्होंने कहा न्ा ‘‘......सांघ का ध्येय िमभ, समाी तन्ा सांस्कृचत का
सांरक्षण है । कगछ लोगों को स्विमभ के सांरक्षण में परिमभ का चवद्वे र् चदखता है । चकन्तग नपने िमभ के
रक्षण में दूसरे के िमभ का चवरोि कैसे हो सकता है यह मेरश्र समझ में नहीं गता। सांघ कश्र कायभपद्धचत
में पन्न्ापन्न् तन्ा ीाचतयों के ोेद गचद कश्र गगी
ां ाइश नहीं है । सांघ तो सम्पूणभ चहन्दू समाी का एकत्व
ोाव से चविार करता है । सांघ में सोश्र ीाचतयों के चहन्दगओां के एक हश्र ध्वी कश्र छत्रछाया में काम करने

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के कारण, नस्पृश्यता कोश्र कश्र नष्ट हो गयश्र है । स्पृश्य-नस्पृश्य इनमें से चकसश्र का ोश्र हम पक्ष नहीं
लेते। नागपगर प्रान्त के णाहर सांघ के प्रिारकायभ में काांग्रेस और चहन्दू-सांघटन में ोश्र ोेद नहीं चदखता।
इतना हश्र नहीं, ननेक स्न्ानों पर काांग्रेसोिों ने हश्र इस कायभ कश्र सहायता कश्र है । पर नागपगर में यह
नहीं होता। मगझे लगता है चक इसका कारण तान्त्त्वक ने होकर व्यचिगत है चकन्तग मेरा उनसे नत्यन्त
चवनम्र चनवेदन है चक कश्र कम-से-कम नण तो हमारश्र ोूचमका को साफ-साफ समझकर इस राष्ट्रकायभ
को सफल करने में सहयोग करें । सांघ कश्र स्न्ापना चहन्दू ीाचत को घातक हमलों से रक्षा के चलए तैयार
रखने के चलए हश्र हग ई है ।’’

इस ोार्ण में डॉक्टरीश्र ने काांग्रेसीनों के सांघ के प्रचत व्यवहार में परायेपन कश्र ओर सांकेत चकया तन्ा
फूट के णश्रीों को नांकगचरत होने के पहले हश्र नष्ट करने के हे तग चवनम्र प्रान्भना ोश्र कश्र। चकन्तग दगोाग्य से
राष्ट्रश्रयत्व कश्र नशास्त्रश्रय एवां नयन्ान्भ कल्पना तन्ा पक्षाचोचनवेस के कारण ननेक काांग्रेसीनों ने
कााँस को ीड़मूल से उखाड़ने के स्न्ान पर उसको खाद-पानश्र दे कर णढाया हश्र तन्ा इस कारण चहन्दगओां
का नोेद्य सांघटन खड़ा करने के काम में ननन्त चवध्न ोश्र खड़े हग ए।

डॉक्टरीश्र ने योीना णनायश्र न्श्र चक ीश्र ससोपालीश्र तन्ा ीश्र गोळवलकरीश्र नागपगर के णाद उमरे ड,
ोण्डारा गचद स्न्ानों कश्र शाखाओां को ोश्र दे खें चीससे चक उन्हें सांघ कश्र कायभपद्धचत नच्छश्र तरह
नवगत हो ीाये। वे स्वयां उनके सान् इन स्न्ानों पर ीाना िाहते न्े। चकन्तग स्वास्र्थय चणगड़ ीाने के
कारण वे नपनश्र इच्छा पूरश्र नहीं कर पाये।

यह तो सत्य हैं चक शरश्रर ध्येयचनष्ठ एवां तपस्वश्र व्यचि के मन का दास होता है । परन्तग दे ह के ीम और
कष्टों कश्र ोश्र कोई मयादा है । न्कश्र-मााँदश्र एवां कमीोर गाय ग्वाले के डण्डे के ोय के कारण कगछ दूर
तो िलतश्र है परन्तग चफर एक ऐसश्र नवस्न्ा ग ीातश्र है चक डण्डे खाने के णाद ोश्र उसमें उुने कश्र तन्ा
िलने कश्र शचि नहीं रहतश्र। ऐसश्र नवस्न्ा में ोश्र ग्वाले द्वारा डण्डे णरसने का करुण दृश्य कोश्र-कोश्र
दे खने को चमल पाता है । डॉक्टरीश्र के शरश्रर कश्र ोश्र नण इसश्र प्रकार कश्र न्स्न्चत हो गयश्र न्श्र। उनका
मन चहन्दगओां के णलशालश्र एवां ऐश्वयभसम्पन्न ीश्रवन के चलए छटपटा रहा न्ा और इसचलए एक क्षण का
ोश्र चवीाम न लेते हग ए तन्ा गपचत्तयों में ोश्र न रुकते हग ए वे नपने हृदय कश्र ध्येयचनष्ठा कश्र ज्योचत से
ननेक हृदयों के दश्रप ीलाने में पराकाष्ठा के प्रयत्न कर रहे न्े। मछगए के ीाल में फाँसश्र मछलश्र, णहे चलये
के हान् गया पक्षश्र तन्ा ोाँवर में फाँसा व्यचि णाहर चनकलने के चलए चीस प्रकार छटपटाता है उससे
ोश्र नचिक हृदय कश्र तड़प डॉक्टरीश्र के ीश्रवन में चदखायश्र दे तश्र न्श्र। उनके मन में चहन्दू समाी को
छोड़कर और चकसश्र को स्न्ान हश्र नहीं न्ा। मन्न्दर के नन्दादश्रप के समान उनके हृदय में ध्येय का
नखण्डदश्रप प्रत्येक पचरन्स्न्चत में उत्साह का प्रकाश िारों ओर चणखेरते हग ए चनराशान्िकार को चवनष्ट
करने के चलए सतत प्रज्जवचलत रहता न्ा।

250
उनका मन तो कायभवृचद्ध के चलए चवचीगश्रर्ग एवां पगरुर्ान्ी ोाव लेकर िल रहा न्ा चकन्तग शरश्रर ने सान्
दे ने से लगोग इनकार कर चदया। नागपगर का दशहरा-उत्सव तो उन्होंने, शरश्रर में तश्रव्र ज्वर रहते हग ए
तन्ा चकसश्र को उसका ननगमान ोश्र न लगने दे ते हग ए, पगरा कर चलया। ोण्डारा के एक कायभकता को,
वहााँ गने कश्र इच्छा होने पर ोश्र नपनश्र नसमन्भता व्यि करते हग ए वे चलखते हैं ‘‘ीोर का णगखार
गकर मैंने नोश्र चणस्तर नहीं पकड़ा, यहश्र सम्ोवतया मेरा दोर् है । मेरश्र न्स्न्चत ऐसश्र हो गयश्र है । इस
नवस्न्ा में यद्यचप मैं णनारस में मेहमानों के सान् उमरे ड और ोण्डारा नहीं गया चफर ोश्र मगझे रामटे क
ीाना हश्र पड़ा और उसका स्वास्र्थय पर नचनष्ट पचरणाम हग ग। ऐसा लगता है चक मगझे मोटर का प्रवाह
सहन नहीं हो पाया।’’ न्स्न्चत इतनश्र चणगड़ने के णाद ोश्र नागपगर में उनकश्र दौड़िूप िलतश्र हश्र रहतश्र न्श्र
पर डॉक्टरीश्र का चगरता हग ग स्वास्र्थय शश्रघ्र हश्र उनके सहकाचरयों के ध्यान में ग गया तन्ा डॉ. हरदास
कश्र चिचकत्सा प्रारम्ो कर दश्र गयश्र। डॉ. हरदास के कहने पर उन्हें गणहवा णदलने के चलए डॉ. हरदास
के हश्र िनतोलश्र-न्स्न्त णांगले पर ले ीाया गया।

नवम्णर के प्रारम्ो में डॉक्टरीश्र को िनतोलश्र ले गये तन्ा स्वयांसेवक ने इस णात का ध्यान रखा चक
उन्हें नचिक से नचिक चवीाम चमल सके। डॉक्टरीश्र के नपने घर के पास से गन्दा नाला णहता न्ा
तन्ा शश्रतज्वर कश्र ओर दगलभक्ष्य करने के कारण उनके फेफड़ों में सूीन पगरानश्र हो गयश्र न्श्र। नतः ननेक
उपिार करने के णाद ोश्र उनकश्र खााँसश्र कम नहीं होतश्र न्श्र। पर िनतोलश्र ोाग के खगले एवां स्वच्छ
वातावरण में डॉक्टरीश्र के स्वास्र्थय में कगछ सगिार चदखने लगा। णश्रमारश्र में न्ोड़ा-सा हश्र नन्तर गने
पर वहााँ स्वयांसेवकों का गना-ीाना शग हो गया तन्ा घर के समान हश्र णैुक और ििा का क्रम
िलने लगा। चणस्तर पर णैुे-णैुे पत्रव्यवहार तो िालू हश्र न्ा। डॉक्टरीश्र डॉ. हरदास के यहााँ दो महश्रने
रहे । इस नवचि में नत्यन्त गत्मश्रयता के सान् डॉ. हरदास ने उनकश्र सण व्यवस्न्ा कश्र न्श्र। वातालाप
के प्रवाह में कोश्र-कोश्र डॉक्टरीश्र को दवा लेने में ोश्र दे र-नणेर हो ीातश्र न्श्र तन्ा राचत्र का ीागरण तो
होता हश्र न्ा। डॉ. हरदास गग्रहपूवभक कहते चक ‘‘यह णात ुश्रक नहीं है , गपको पूणभ चवीाम करना
िाचहए।’’ इस पर डॉक्टरीश्र खूण हाँ सते। हरदास करते ोश्र तो क्या ? उन्होंने इस चवर्य में कहा न्ा चक
‘‘कगछ लोग िैन और चवलास के कारण नचनयचमतता करते हैं , चकन्तग डॉक्टरीश्र कश्र नचनयचमतता
कायभव्यस्तता के कारण न्श्र, यह मैं ीानता न्ा।’’

इस तन्ाकचन्त चवीाम में ोश्र पैसे कश्र समस्या उन्हें चिन्तामगि नहीं होने दे तश्र न्श्र। इस हे तग उन्होंने डॉ.
हरदास के घर पर हश्र डॉ. पराांीपे, ‘महाराष्ट्र’ के सम्पादक ीश्र ओगले, डॉ. िोळकर, ीश्र चवश्वनान्राव
केळकर, एडवोकेट णोणडे, ए. मण्डलेकर गचद कश्र णैुक लश्र न्श्र। उस समय चनकाले हग ए पत्रक में
उन्होंने चलखा न्ा चक ‘‘सांघ का पिास हीार रुपये कश्र गवश्यकता है ।’’ यह मााँग उन्होंने सांघस्न्ान,
कायालय, नखाड़ा तन्ा नन्य प्रवास-व्यय के चलए कश्र न्श्र। उस पत्र के प्रारम्ो में वे चलखते है ः

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‘‘गी के सांघ के कायभ तन्ा उसकश्र ोावश्र परे खा तन्ा व्याचप्त के प्रिण्ड स्व प को ध्यान में रखते
हग ए सांघ के साम्पचत्तक गिार को गी हश्र सगदढ
ृ करना ी रश्र है । चहन्दगस्न्ान-ोर नपना ीाल
फैलाकर सम्पूणभ दे श को सगसांघचटत करने कश्र गकाांक्षा लेकर सांघ िला है ।’’ इस णैुक के पहले
चदनाांक 13 को सांघप्रेमश्र सज्जनों से पैसे कश्र मााँग करते हग ए एक पचरपत्रक डॉक्टरीश्र ने ोेीा न्ा। उसमें
ोश्र यह ोाव व्यि चकया गया न्ा। डॉक्टरीश्र चलखते हैं ‘‘..........गी तक चकसश्र से पैसा न मााँगते
हग ए सांघ द्वारा कश्र हग ई सेवा गपके सामने है । पर गपको नम्रतापूवभक णताना िाहते हैं चक नण सांघ
का व्याप इतना णढ गया है चक उसका कायभ लोगों से चणना पैसे मााँगे करते रहना सम्ोव नहीं
होगा।..........इसके गगे िनश्र-मानश्र व्यचियों द्वारा हमारश्र पैसे कश्र नड़िन दूर हग ए चणना हम
स्वतांत्रापूवभक नपना कायभ दूर तक नहीं फैला सकेंगे।’’

योीना के ननगसार चदनाांक 17 को णैुक हग ई। उस णैुक में सांघ को चकतने पैसे कश्र गवश्यकता है
इस सम्णन्द में णोलते हग ए दे वश्र के मन्न्दर के पास एक स्न्ान खरश्रदने का चविार व्यि चकया गया न्ा।
इस पर यह ििा शग हो गयश्र चक सांघ को इस प्रकार ीमश्रन लेनश्र िाचहए या नहीं। यह शांका प्रणल
प में प्रकट कश्र गयश्र चक सांघ ने यह ीगह लश्र तो कल सरकार उसे ीब्त कर सकतश्र है । डॉक्टरीश्र
को यह णात कतई पसन्द नहीं गयश्र। वे कगछ कुद्ध होकर णोले ‘‘प्रत्यक्ष नपना सम्पूणभ दे श दूसरों के
कब्ीे में िला गया, उसका कोई दगःख नहीं है और इस ीमश्रन के चलए लगनेवाले दस-पााँि हीार रुपये
कश्र इतनश्र ोारश्र चिन्ता पड़श्र है ।’’

कायभ कश्र वृचद्ध के चलए पचरन्स्न्चत ननगकूल न्श्र चकन्तग एक ओर पैसे कश्र तांगश्र तो दूसरश्र ओर शरश्रर सान्
नहीं दे रहा न्ा। इसश्र समय मध्य प्रान्त सरकार ने उनकश्र चिन्ता और ोश्र णढा दश्र। उसने चदनाांक 15
चदसम्णर को मगख्य सचिव ीश्र ई. गॉडभन कश्र ओर से एक पचरपत्रक चनकालकर सरकारश्र कमभिाचरयों
को राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के राीनश्रचतक एवां साम्प्रदाचयक होने के कारण, उसमें ोाग लेने पर
प्रचतणन्ि लगा चदया। उस पत्रक में चलखा न्ा ‘‘सरकारश्र कमभिाचरयों कश्र राीनश्रचतक गन्दोलनों के
प्रचत ोूचमका का चववरण सरकारश्र कमभिाचरयों के गिार-चनयम के 21वें चनयम में चकया गया है ।
तदनगसार उन्हें इस प्रकार के सोश्र कामों से नलग रहना िाचहए। सरकार का सगचनचित मत है चक
राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ नाम के सांघटन के स्पष्टतः साम्प्रदाचयक स्व प तन्ा राीनश्रचतक गन्दोलनों
में उसके नचिकाचिक ोाग लेने के कारण सरकारश्र कमभिाचरयों का उस सांघटन के सान् सम्णन्ि
उनके चनष्ट्पक्ष कतभव्यपालन के सान् नसांगत है या हो सकता है ।

‘‘नतः शासन ने चनचित चकया है चक चकसश्र ोश्र सरकारश्र कमभिारश्र को रा. स्व. सांघ का सदस्य णनने
नन्वा उसके कायभक्रमों में ोाग लेने कश्र ननगमचत नहीं रहे गश्र।’’

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सांघ कश्र प्रगचत को नवरुद्ध करने के हे तग से हश्र यह पचरपत्रक चनकाला गया न्ा। वैसे सांघ में सरकारश्र
नौकरों कश्र सांख्या चवशेर् नहीं न्श्र चकन्तग चीस मध्यमवगभ से सांग के णाल और तरुणों कश्र ोती होतश्र
न्श्र, उनमें से ननेक कगटगम्णों के प्रमगख व्यचि सरकारश्र नौकरश्र में न्े। पालक-वगभ पर इस गतांक का
पचरणाम होना स्वाोाचवक न्ा तन्ा सरकार का ननगमान न्ा चक इससे सांघ कश्र णाढ रुक ीायेगश्र।
तत्कालश्रन चहन्दू समाी कश्र ोश्ररुता को पहिानने वालश्र सरकार का इस प्रकार का ननगमान लगाना
गलत नहीं न्ा। णाल-चशवाीश्र के चवद्रोह को रोकने के चलए चीस प्रकार णश्रीापगर के शाह ने शाहीश्र
को कैद में डालने चक िाल िलश्र न्श्र उसश्र नश्रचत का नांग्री
े श्र शासन में यह गचवष्ट्कार न्ा। चकन्तग
सौोाग्य से चीस नश्रचतमत्ता तन्ा िातगयभ से छत्रपचत चशवाीश्र ने नपने चपताीश्र को कारामगि करवाया
उसकश्र परम्परा नोश्र ोारत में समाप्त नहीं हग ई न्श्र। डॉक्टरीश्र ने न केवल चशवाीश्र महाराी को
राष्ट्रपगरुर् के रुप में स्वश्रकार कर उनके गगणों को नांगश्रकृत चकया न्ा नचपतग वे स्वयां ोश्र उसश्र उर
ध्येयवाद से प्रेचरत होकर यश कश्र ओर समाी को ले ीानेवाले महापगरुर्ों कश्र माचलका के एक मचण
न्े। मध्यप्रान्त सरकार को न केवल नपना पचरपत्रक हश्र वापस लेना पड़ा नचपतग इस नचववेकपूणभ
कृत्य के चलए पिात्ताप ोश्र करना पड़ा। शासन का दााँव इतनश्र कगशलता से डॉक्टरीश्र ने उलट चदया
न्ा।

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21. सरकार का पराोव
सांघ में सरकारश्र कमभिाचरयों के ोाग लेने पर प्रचतणन्ि लगा चदया गया। परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र ने इस
गदे श को रद्द करवाने कश्र दृचष्ट से नश्रचत से हश्र काम चलया। सांघ के उत्सवों के चनचमत्त ऐसे व्यचि छााँट-
छााँटकर नध्यक्ष णनाये ीाने लगे चीन्हें राज्यमान्यता प्राप्त न्श्र। उनके द्वारा हश्र घोर्णा होने लगश्र चक
सांघ न तो साम्प्रदाचयक है और न राीनश्रचतक, नन्ात् नपना हश्र मगाँह नपने चवरुद्ध णोलने लगा।

मध्यप्रान्त के ोूतपूवभ गृहमांत्रश्र सर मोरोपन्त ीोशश्र ने 1933 में सांक्रान्न्त उत्सव कश्र नध्यक्षता करते हग ए
सांघ कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा कश्र। शासन के पचरपत्रक तन्ा इस प्रकार के व्यचियों कश्र परस्पर-चवरोिश्र
णातों के कारण सरकार का सांघ के चवरुद्ध उुाया गया पग मीाक का चवर्य हश्र णन गया।

शासन ने िाहे ीो कहा तन्ा उसके दााँव को चनरस्त करने के चलए ीो ोश्र नश्रचत नपनायश्र हो चकन्तग
डॉक्टरीश्र ने सांघ कश्र दृढ ोूचमका में चकसश्र प्रकार का पचरवतभन नहीं चकया। उन्होंने इस नवसर पर
नत्यन्त चनोीकता से तन्ा स्पष्टता के सान् नपने दृचष्टकोण का प्रचतपादन करते हग ए सरकार कश्र ोश्र
खूण खणर लश्र। उनके ोार्ण में यगचिवाद के सान् गत्मचवश्वास कश्र ोश्र दृढ छाप चदखायश्र दे तश्र न्श्र।
ोार्ण के प्रारम्ो में उन्होंने सांघ कश्र सौ शाखाओां तन्ा दस हीार स्वयांसेवकों का उल्लेख करते हग ए
णताया चक ‘‘सांघ राीनश्रचतक से नचलप्त है तन्ा चकसश्र का द्वे र् न करते हग ए चहन्दू समाी को सगसांघचटत
एवां णलशालश्र णनाने के चलए हश्र प्रयत्नशश्रल है ।’’ इसके उपरान्त पचरपत्रक के चवर्य में गियभ व्यि
करते हग ए उन्होंने कहा ‘‘इसे)पचरपत्रक को) पढकर तन्ा सगनकर नत्यन्त गियभ हग ग। एकाएक तो
चवश्वास नहीं हग ग चक मध्यप्रान्त कश्र सरकार इतना नचववेकपूणभ कायभ कर सकेगश्र। चकन्तग सरकार
यचद नपनश्र िारणाओां को सत्य समझतश्र है तो हमारा उसे गह्वान है चक वह चसद्ध करके चदखाये चक
सांघ ने गी तक के प्रिचलत राीनश्रचतक गन्दोलनों में चकन-चकन में ोाग चलया है तन्ा चहन्दगस्न्ान
में चकस नचहन्दू समाी के ऊपर गक्रमण करने का कहााँ-कहााँ प्रयत्न चकया है । यचद ‘यूरोचपयन
एसोचसएशन’, ‘यूरोचपयन िेम्णर गफ कामसभ’ ीैसश्र सांस्न्ाएाँ ‘कम्यूनल’ नहीं हैं तन्ा उनमें िाहे ीो
सरकारश्र नचिकारश्र ोाग ले सकता है तो चफर चहन्दू समाी को सांघचटत करने के उद्देश्य से स्न्ाचपत
यह सांस्न्ा कैसे कम्यूनल हो सकतश्र है तन्ा उसमें सरकारश्र कमभिारश्र क्यों ोाग न लें ? एक समाी
द्वारा दूसरे समाी के चवरुद्ध चकये गये कायभ को साम्प्रदाचयक कहा ीा सकता है चकन्तग चकसश्र का द्वे र्
नन्वा चतरस्कार ने करते हग ए केवल नपने समाी के कल्याण के चलए िलाये गये कायभ को
‘साम्प्रदाचयक’ कहकर दणाना चनःसन्दे ह गियभीनक है । सरकार को यह कायभ खटकता है इसचलए
यचद वह इस दणाना िाहतश्र हो तो हम उसे चवनम्रता के सान् णताना िाहते हैं चक हमारा कायभ दणाया

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नहीं ीा सकता। हम लोग ोगवान् का स्मरण कर नपने कायभ में ीगटे हैं तन्ा हमारे मागभ में चकतने ोश्र
सांकट क्यों न गयें उनका सामना करते हग ए नपने कायभ में उत्तरोत्तर वृचद्ध चकये चणना नहीं रुकेंगे।’’

पूना के ‘केसरश्र’ ने तन्ा नागपगर के समािारपत्रों ने ोश्र डॉक्टरीश्र के दृचष्टकोण का समन्भन करते हग ए
चविार व्यि चकये। नांग्रेीश्र ‘चहतवाद’ ने तो प्रश्न चकया चक ‘‘ब्राह्मणेतर सांस्न्ा साम्प्रदाचयक है या नहीं
? यचद है तो क्या सरकार को यह स्वश्रकार है चक कोई मांत्रश्र उसकश्र नध्यक्षता करे तन्ा दूसरश्र ीाचतयों
के चवरुद्ध चवर्वमन करे ?’’ चकन्तग तरह-तरह कश्र िालणाचीयों से चहन्दू समाी को नसांघचटत, दगणभल
तन्ा चनद्रामग्न रखने से हश्र नांग्रेीों का नन्यायश्र शासन ोारत में कगछ चदनों न्स्न्र रह सकता न्ा। नतः
शासन ने इस प्रकार कश्र तश्रखश्र टश्रका कश्र ओर ोश्र योीनानगसार कोई ध्यान नहीं चदया। शासन को
चहन्दूचहत-चवरोिश्र कायों से कोई गपचत्त नहीं न्श्र णन्ल्क वे तो उसे रुिते न्े। चनम्नाांचकत घटना शासन
कश्र इस मनोवृचत्त का एक सूिक उदाहरण है । उस वर्भ ोारत-शासन कश्र कायभकाचरणश्र के एक सदस्य
सर फीले हग सैन ने उत्तर चहन्दगस्न्ान के मगसलमानों में एक सनसनश्रखी
े पत्रक णहग त णड़े पैमाने पर गगप्त
प से प्रसाचरत चकया न्ा। उस पत्रक में चलखा न्ा ‘‘साविान रहो। चहन्दू-मगन्स्लम एकता के ीाल में
मत फाँसो। चोखमांगे चहन्दगओां से मेल करने में नपने को क्या फायदा है ? हमें तो नांग्रेीों से चमलकर
नपना लाो करना िाचहए।’’ इस प्रकार के दगष्टापूणभ एवां कगन्त्सत मनोोाव को व्यि करनेवाले पत्रक
का ोण्डाफोड़ पांीाण के एक समािारपत्र ने चकया तन्ा उस पर नसेम्णलश्र में प्रश्न ोश्र पूछे गये। चकन्तग
फीले हग सैन चीसके इशारे पर नािकर यह सण खेल खेल रहे न्े वह नांग्रेीों के नचतचरि कोई नन्य
नहीं न्ा। नतः उस पत्रक पर वे गपचत्त क्यों और कैसे उुाते ?

सांक्रान्न्त के दो महश्रने णाद हश्र वर्भप्रचतपदा का उत्सव गया। उसकश्र नध्यक्षता के चलए डॉक्टरीश्र ने
मध्यप्रान्त के ोूतपूवभ राज्यपाल मा. ीश्र. ण. ताम्णे को गमांचत्रत चकया। सान् हश्र डॉक्टरीश्र नपने
पत्रव्यवहार तन्ा नन्य कायभक्रमों के द्वारा इस णात का णराणर प्रयत्न करते रहे चक पचरपत्रक का
शाखाओां पर चकसश्र ोश्र प्रकार का नचनष्ट पचरणाम न हो। इस समय के पत्रों से पता िलता है चक उनका
स्वास्र्थय ुश्रक नहीं न्ा। चदनाांक 25 मािभ के एक पत्र में वे चलखते हैं चक ‘‘.......न्ोड़श्र-सश्र मेहनत से हश्र
न्कान गने तन्ा सााँस फूलने कश्र चशकायत नोश्र तक णनश्र हग ई है ।’’ चफर ोश्र उनका वर्भप्रचतपदा का
ोार्ण नत्यन्त हश्र गवेशपूणभ न्ा, उनके स्वास्र्थय का पचरणाम मन पर नहीं चदखता न्ा। ‘‘चहन्दू िमभ
तन्ा सांस्कृचत कश्र रक्षा के चलए चकया गया प्रयत्न चहन्दगस्न्ान में कोश्र साम्प्रदाचयक नहीं हो सकता’’, यह
णताते हग ए डॉक्टरीश्र ने सण ीनों का गह्वान चकया चक ‘‘गपका राीनश्रचतक तन्ा सामाचीक चविार
ीो िाहे हो, नपने व्यचिगत मतों को नपने पास रखते हग ए चहन्दू सांघटन के हे तग गप हमारे सान्
सहयोग करें ।’’ नध्यक्षपद से ीश्र ताम्णे ने ोश्र सांघकायभ कश्र मगिकण्ु से स्तगचत करते हग ए शासन के
पचरपत्रक के सम्णन्ि में नपना मनोोाव इन शब्दों में व्यि चकया ‘‘यद्यचप सरकार ने सांघ के चवरुद्ध

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गदे श चनकाला है चफर ोश्र चीसकश्र इच्छा चहन्दू ीाचत कश्र सेवा करने कश्र हो उस सांघ में ोाग लेने के
नचतचरि और कोई मागभ नहीं है क्योंचक यह सांस्न्ा पूणभतः चहन्दू वृचत्त कश्र है तन्ा प्रिचलत राीनश्रचत से
नचलप्त है ।’’

प्रत्यक्ष कायभ में वृचद्ध के द्वारा डॉक्टरीश्र ने सरकारश्र पत्रक के नचहतकर पचरणामों का सफलतापूवभक
सामना चकया। उनकश्र दौड़िूप इतनश्र णढ गयश्र चक चदन के िौणश्रस घण्टे ोश्र कम पड़ने लगे। डॉक्टरीश्र
ने नागपगर के कायभ कश्र न्स्न्चत का वणभन करते हग ए चलखा न्ा चक ‘‘यहााँ का काम इतना णढ गया है चक
णाहर ीाना नसम्ोवप्राय हो गया है ।’’ कायभवृचद्ध के पचरणामस्व प इस वर्भ का नचिकारश्र चशक्षण
वगभ नागपगर तन्ा मेहकर, दो स्न्ानों पर लगाना पड़ा। कायभ कश्र इस वृचद्ध के चलए डॉक्टरीश्र ने नपने
सहकाचरयों को प्रेरणा एवां प्रोत्साहन दे ने के चलए चकस प्रकार से चवचवि मागों का नवलम्णन चकया
इसकश्र कल्पना उनके पत्रव्यवहार से होने पर उनकश्र नसािारण सांघटन-कगशलता का ननगमान लगाया
ीा सकता है । कोश्र पश्रु ुोंककर तो कोश्र कायभ के प्रचत प्रमाद के चलए नत्यन्त कड़े ननगशासनपूणभ
शब्दों का व्यवहार करके, कोश्र नत्यन्त गत्मश्रयता के सान् हृदय का ोाव उड़ेलते हग ए तो कोश्र
नपेक्षाोांग के कारण उलाहना दे ते हग ए वे चवचोन्न पचरन्स्न्चत और व्यचि के ननगसार नपने कायभ के
प्रचत उत्कटता को ननेक पों में प्रकट करते हग ए चदखते हैं । पत्र में डॉक्टरीश्र का कोई ोश्र स्व प क्यों
न प्रकट हो, उसका पचरणाम सदै व ननगकूल हश्र होता न्ा। इस दृचष्ट से उनका चदनाांक 12 नगस्त 1933
का एक पत्र उल्लेखनश्रय है । इसमें सांघटन का केन्द्र होने के कारण नागपगर के कायभ को नत्यन्त णलवान्
होना िाचहए इस णात पर णल दे ते हग ए वे चलखते हैं ‘‘.....ोवन चीतना णड़ा और ोव्य चनमाण करना
हो उसश्र चहसाण से नश्रव ोश्र चवस्तृत, मीणूत और ुोस िाचहए। गी सांघ कश्र एक सौ पिश्रस शाखाएाँ
तन्ा णारह हीार स्वयांसेवक हैं । नागपगर चीला नसांघचटत रहा तो इतनश्र णड़श्र इमारत को चगरते हग ए दे र
नहीं लगेगश्र, मन में इस गशांका से ीो दगःख होता है उसका वणभन पत्र में करना सम्ोव नहीं है ।

‘‘सांक्षेप में मैं यह कह सकता हू ाँ चक मैंने नपनश्र सम्पूणभ शचि लगाकर सांघ का ोवन खड़ा करने का
प्रयत्न चकया है । परन्तग एक व्यचि चकतना ोश्र काम करे तो ोश्र राष्ट्र का कायभ होने के कारण वह उसके
हान् से पूरा नहीं हो सकता। नतः गपसे मेरश्र नन्तःकरणपूवभक प्रान्भना है चक गपके सहयोग के चणना
यह कायभ मगझसे नहीं हो सकेगा।

‘‘........मेरा यह कहना कतई नहीं है चक काम करने में णािाएाँ नहीं हैं चकन्तग मगझे यह नहीं लगता चक
एक णार मनगष्ट्य ने चनिय चकया तो वह णािाओां का सामना नहीं कर सकता। नतः मेरा गपसे स्पष्ट
चनवेदन है चक समस्त उपन्स्न्त कचुनाइयों का मगकाणला करते हग ए, नपने व्यचिगत कामों को ीरा
एक ओर रखकर, इस वर्भ )उमरे ड) तहसश्रल में ुोस और मीणूत गिार पर शाखाएाँ स्न्ाचपत
कश्रचीए।

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‘‘यचद यह कायभ गपसे नहीं हो सकता तो मेरश्र गपसे यहश्र नन्न्तम प्रान्भना है चक गप मगझे सांघकायभ
छोड़कर चवीाम लेने कश्र ननगमचत प्रदान करें ।.....’’

नागपगर-ोाग में तो सरकार कश्र वक्रदृचष्ट नप्रोावश्र चसद्ध हग ई। चकन्तग णम्णई ोाग में सांघकायभ नोश्र इतने
प्रकर्भ पर नहीं गया न्ा। वहााँ सांघकायभ में रमे और माँीे हग ए कायभकताओां का नोाव तो न्ा हश्र, शासन
के दमन का स्व प ोश्र नचिक उग्र न्ा। कह्राड के सांघिालक ीश्र गणपतराव गळतेकर वकश्रल के
एक पत्र से महाराष्ट्र कश्र तत्कालश्रन पचरन्स्न्चत का ननगमान लगाया ीा सकता है । वे चलखते हैं
‘‘......इस ओर शाखा का काम हाल में व्यवन्स्न्त प से िलेगा, ऐसा नहीं लगता। राीनश्रचत से
सम्णन्ि न रहा तो ोश्र इस क्षेत्र का वातावरण इतना गन्दा हो गया है चक सरकार को प्रत्येक सामाचीक
कायभ गपचत्तीनक प्रतश्रत होता है । यहााँ कश्र नश्रचत तो श्मशान-शान्न्त णनाये रखने कश्र हश्र है । सािारण
व्यायामशालाओां को ोश्र गैरकानूनश्र घोचर्त कर चदया है ।’’ चफर ोश्र यह स्मरण रखना होगा चक इस
प्रकार के चवरोि और दणाव के वातावरण में ोश्र महाराष्ट्र का काम िाहे मन्द पड़ गया हो चकन्तग णन्द
नहीं हग ग।

सरकारश्र कमभिाचरयों पर सांघ में ोाग लेने पर प्रचतणन्ि लगाने कश्र गज्ञा के एक वर्भ के ोश्रतर हश्र
स्न्ानश्रय स्वराज्य-सांस्न्ाओां कश्र ओर से ोश्र नपने कमभिाचरयों पर इस चवर्य में प्रचतणन्ि लगा चदया
गया। इस गदे श में चलखा न्ा चक ‘‘सरकार को ज्ञात हग ग है चक चीला कौंचसल के स्कूलों के कचतपय
नध्यापक राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के सदस्य णन गये हैं । इस सांघटन के साम्प्रदाचयक स्व प के कारण
सरकारश्र नौकरों पर उसके सदस्य णनने नन्वा उसके कायभक्रमों में ोाग लेने कश्र रोक लगा दश्र गयश्र
है । मध्यप्रदे श शासन )स्न्ानश्रय स्वराज्य-मांत्रालय) का मत है चक स्न्ानश्रय चनकायों के कमभिाचरयों का
ोश्र इस सांघटन के सान् चकसश्र ोश्र प्रकार का सम्णन्ि रखना नवाांछनश्रय है । वे समाी के सोश्र वगों का
प्रचतचनचित्व करनेवालश्र सांस्न्ाओां द्वारा चनयगि कमभिारश्र हैं । सामान्य मतदाता के गिार पर शासन से
स्न्ानश्रय सांस्न्ाओां को करािान का नचिकार प्राप्त है । इस पचरन्स्न्चत में स्न्ानश्रय चनकायों के चलए
ननगचित होगा चक वे नपने कमभिाचरयों को चकसश्र ोश्र साम्प्रदाचयक सांघटन में ोाग लेने न दें । मेरा
चनवेदन है चक गप नपने चवोाग कश्र स्न्ानश्रय सांस्न्ाओां को यह दृचष्टकोण ोलश्र ोााँचत समझा दें तन्ा
उन्हें नपने कमभिाचरयों को इस चवर्य में स्पष्ट गदे श दे ने के चलए प्रेचरत करें ।’’

चदसम्णर 1933 में यह पचरपत्रक ीारश्र चकया गया। लोकमतानगयायश्र सांस्न्ाओां को यह कदाचप रुचिकर
नहीं हो सकता न्ा। नतः स्न्ान-स्न्ान पर ीन प्रचतचनचियों में खलणलश्र मि गयश्र। इन सांस्न्ाओां के
सोश्र सदस्य तो सांघ कश्र चविारिारा के नहीं न्े। प्रत्यगत यह कहना गलत नहीं होगा चक उनमें नचिकाांश
सांघ के नचतचरि नन्य सांस्न्ाओां के प्रचत चनष्ठा और चनकटता रखनेवाले हश्र न्े। चकन्तग सण लोग इस
णात से क्षग ब्ि न्े चक नपने हान् में सौंपे गये इस छोटे -से काम में ोश्र चवदे शश्र शासन इस प्रकार से टााँग
नड़ाये। डॉक्टरीश्र ने इस नसन्तोर् का योीनापूवभक उपयोग कर स्न्ान-स्न्ान पर शासन के गदे श

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का डटकर चवरोि व्यि करवाने का प्रयत्न चकया। इस हे तग वे ननेक व्यचियों से चमले तन्ा उन्हें सांघ
कश्र चवशगद्ध राष्ट्रश्रय ोूचमका समझाकर शासन के गक्षेपों का चनराकरण चकया। स्न्ान-स्न्ान के
कायभकताओां ने ोश्र यह चमलने-ीगलने का काम चकया।

चदसम्णर के नन्न्तम सप्ताह में नागपगर में ‘नचखल महाराष्ट्र साचहत्य सम्मेलन’ का नचिवेशन हग ग।
उन्हीं चदनों सांघ का चशचवर ोश्र िल रहा न्ा। डॉक्टरीश्र ने इस नवसर का लाो उुाकर महाराष्ट्र के
सैकड़ों चवद्वानों को सांघ का कायभ प्रत्यक्ष चदखाने कश्र व्यवस्न्ा कश्र। सहस्रावचि तरुणों का सैचनक
गणवेश में ननगशासनपूणभ सांिलन तन्ा नपने हान्ों खड़े चकये गये तम्णगओां का वह चशचवर चकसश्र ोश्र
दे शोि को गकृष्ट एवां गनन्न्दत कर सकता न्ा।

लोकमान्य चतलक के एक समय के सहकारश्र तन्ा ‘नवा काळ’ के सम्पादक ीश्र कृष्ट्णाीश्रपन्त उपाख्य
काकासाहण खाचडलकर सम्मेलन के नध्यक्ष न्े। सवभीश्र दत्तोपन्त पोतदार, वा. म. ीोशश्र, य. रा.
दे शपाण्डे, णाणूराव गोखले, घगचलया के शांकरराव दे व, सरदार चकणे, शाहश्रर खाचडलकर गचद सज्जनों
के सान् वे चशचवर दे खने के चलए गये। स्वयांसेवकों के ननगशाचसत ीश्रवन का सोश्र दशभकों के मन
पर ीो प्रोाव हग ग वह ीश्र काकासाहण खाचडलकर के ोार्ण में ोचल ोााँचत व्यि हग ग। सांिलन
दे खकर तो वे एकदम णोल उुे चक ‘‘इस प्रसांग का वणभन कचुन है । प्रत्यक्ष काम करना हश्र इसका
सरा वणभन है ।’’ स्वयांसेवकों के समक्ष ोार्ण में डॉक्टरीश्र कश्र सांघटन-कगशलता कश्र प्रशांसा करते
हग ए उन्होंने कहा ‘‘...........हम साचहन्त्यक लोग तो वाग्वश्रर हैं । पर यहााँ तो शचि कश्र प्रत्यक्ष उपासना
हो रहश्र है । यह शचि का दृश्य स्व प है । सहस्रों व्याख्यान दे खकर तन्ा लेख चलखकर हम ीो काम
चसद्ध नहीं कर सकते, ीो ोाव लोगों के मन पर नांचकत नहीं कर सकते वह सांघ के इस दृश्य मात्र से
सम्ोव है । प्रत्यक्ष दृश्य स्व प से हश्र महान् तत्त्वों का णोि हो सकता है , सांघ इसका नत्यन्त प्रोावश्र
उदाहरण है ।.........’’

ीश्र काकासाहण खाचडलकर ीैसे साचहन्त्यक को डॉक्टरीश्र ने इस ीश्रचवत साचहत्य का दशभन करवाया।
उनके मन ने यहश्र गवाहश्र दश्र चक इस साचहत्य से हश्र चहन्दगस्न्ान में चहन्दू राष्ट्र के ‘नये काल’ का चनमाण
होगा। चीसके समक्ष हीारों लेख और व्याख्यान पांगग न्े, तरुणों के सांघटन के ऐसे प्रोावश्र दृश्य सम्पूणभ
ोारतवर्भ में चनमाण करने में डॉक्टरीश्र लश्रन न्े। यहश्र कहना यगचियगि होगा चक साचहन्त्यक णनने के
स्न्ान पर वे साचहत्य के स्फूर्ततकेन्द्र चनमाण करना िाहते न्े।

इस वर्भ डॉक्टरीश्र ने मा. ीश्र. ण. ताम्णे को नलश्रपगर में विा चीला के चशचवर का पगनः नध्यक्ष णनाया
तन्ा उनके मगख से सांघ के राीनश्रचतक तन्ा साम्प्रदाचयक न होने कश्र घोर्णा करवाते हग ए उस चवर्य में
शासन कश्र भ्रममूलक िारणा कश्र ोत्सभना करवायश्र। मगसलमानों द्वारा पाचकस्तान णनाने के उद्देश्य से
प्रारम्ो चकये गये दगष्ट प्रिार के स्म्णन्ि में डॉक्टरीश्र ने इस चशचवर के ोार्ण में सवभप्रन्म सावभीचनक

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प से उल्लेख चकया। उनके ोार्ण से यह स्पष्ट प्रतश्रत होता है चक चहन्दगराष्ट्र चवरोिश्र र्ड्यांत्रों कश्र प्रगचत
तन्ा उनको चवफल करने के चलए चहन्दू-ीाग्रचत के कायभ कश्र गचत के नन्तर को दे खकर वे नत्यन्त हश्र
व्यचन्त न्े। ननेकों को तो सांकट चदखते हश्र नहीं, परन्तग चीन्हें उनका गोास चमल गया हो वे ोश्र यचद
सांकटों को रोकने के चलए समय रहते गवश्यक तैयारश्र नहीं कर पाये तो सांकटों का ज्ञान होना न होना
णराणर हश्र है । ऐसा न हो इस उद्देश्य से डॉक्टरीश्र प्राणप्रण से सिेष्ट न्े। नतः स्वाोाचवक हश्र उनके
ोार्ण में उनके हृदय कश्र व्याकगलता प्रकट हो ीातश्र न्श्र। नलश्रपगर के ोार्ण में उन्होंने कहा न्ा ‘‘पहले
का गान्िार दे श गी नफगाचनस्तान हो गया है , उसश्र प्रकार गी का चहन्दगस्न्ान गगे हमें कहीं
इस्लाचमस्तान के प में न दे खना पड़े इस प्रकार कश्र गशांका णराणर लगश्र रहतश्र है । ‘िमभ और सांस्कृचत
को णेिकर स्वराज्य लो’ यह ोार्ा यचद कल णोलश्र ीाने लगश्र तो गप सोचिए चक इस प्रकार के
सांस्कृचत चवचहन स्वराज्य का क्या उपयोग है ? यह चनचित प से नहीं कहा ीा सकता चक इस प्रकार
का प्रसांग उपन्स्न्त नहीं होगा। चपछलश्र गोलमेी पचरर्द् में उत्तर चहन्दगस्न्ान को ‘पाचकस्तान’ णनाने
का सगझाव चदया गया न्ा। हवा चकस ओर णह रहश्र है इसका गप नन्दाीा लगा सकते हैं । गी चहन्दू
समाी में यचद चकसश्र णात का सणसे नचिक नोाव है तो वह परस्पर सहायता करने के ोाव का है ।
रा. स्व. सांघ इसश्र नोाव को दूर करना िाहता है ।’’

डॉक्टरीश्र के नचोन्न चमत्र ीश्रमन्त राीा लक्ष्मणराव ोोंसले के चनिन के उपरान्त सरकार के नप्रत्यक्ष
दणाव के कारण हान्श्रखाने कश्र सांघ शाखा को वहााँ से हटाना पड़ा। राीा लक्ष्मणराव के ीश्रवनकाल
में ोश्र उन पर णराणर इस णात के चलए दणाव गता रहता न्ा चक वे सांघ का समन्भन न करें । ‘‘सांघ कश्र
राीनश्रचत का झांझट क्यों मोल लेते हो ?’’ इस प्रकार के प्रश्न उनके सम्मगख उपन्स्न्त कर णश्रि-णश्रि
में उन्हें डराने का ोश्र प्रयत्न होता न्ा। चकन्तग वे सदै व यहश्र स्पष्ट तन्ा दो टूक उत्तर दे ते न्े चक ‘‘यह िमभ
का काम है और ीहााँ िमभ है वहााँ मैं नवश्य रहू ाँ गा।’’ इस दृढता के सम्मगख सरकार कश्र दाल नहीं गल
सकतश्र न्श्र चकन्तग राीा लक्ष्मणराव कश्र मृत्यग के णाद हान्श्रखाने को नचिकार में लेने तन्ा वहााँ से सांघ
को चनकालने का नवसर ाँढ
ू ा गया। फलतः शाखा तगलसश्रणाग में लगने लगश्र। वह स्न्ान ोश्र ोोंसले-
घराने का न्ा। इसचलए डॉक्टरीश्र ने नाग नदश्र के पार रे शमणाग में लगोग सवा दो एकड़ स्न्ान एक
चकसान से सात सौ रुपये में खरश्रद चलया। 1933 के नन्त से सांघ के ननेक कायभक्रम इस नये खगले
एवां चवस्तृत मैदान पर होने लगे।

चदसम्णर मास में हश्र डॉक्टरीश्र के एक क्रान्न्तकारश्र सहयोगश्र ीश्र रामलाल वाीपेयश्र सत्रह वर्ों के णाद
चवदे श से नपने चमत्रों से चमलने के चलए गये। नागपगर में दोनों कश्र ननेक णार ोेंट हग ई तन्ा दे श कश्र
सम्पूणभ पचरन्स्न्चत के सम्णन्ि में ोश्र काफश्र चदल खोलकर ििा हग ई। डॉक्टरीश्र ने नपने चमत्र को राष्ट्रश्रय
स्वयांसेवक सांघ के शारश्रचरक व सैचनक चशक्षण, प्रान्भना, णौचद्धकवगभ गचद सोश्र कायभक्रम चदखाये।
चवश्व कश्र राीनश्रचतक खींिातानश्र में ऐसे ोश्र नवसर ग ीाते हैं ीण चक परतांत्र दे श ननगशाचसत एवां
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गज्ञापालक शचि का उपयोग कर चवद्रोह कर सकता है । चकन्तग इस चवद्रोह के सामर्थयभ कश्र चसद्धता
यचद पूवभयोीनानगसार नहीं रहश्र तो गग लगने पर कगगाँ खोदने के समान मौके पर चकये हग ए प्रयत्न
चवफल होते हैं । इचतहास के इस ननगोव से चशक्षा लेकर डॉक्टरीश्र द्वारा नत्यन्त साविानश्र तन्ा ितगराई
से चकये गये प्रयत्नों को दे खकर उनेक चमत्र ीश्र वाीपेयश्र के मन को णहग त सन्तोर् हग ग।

राीनश्रचतक गन्दोलनों का नन्स्न्र वातावरण नण ीरा णदल रहा न्ा तन्ा नेताओां को नपने दल कश्र
गन्न्तरक न्स्न्चत के नवलोकन का नवसर तन्ा नवकाश प्राप्त हग ग न्ा। उस समय मध्यप्रान्त में
यह चदखा चक काांग्रेस के ननेक प्रमगख कायभकता स्न्ान-स्न्ान पर सांघ के काम में नत्यन्त ीश्र लगाकर
ीगटे हग ए न्े। यह णात काांग्रेस के नेताओां को नच्छश्र नहीं लगश्र। महात्माीश्र के केन्द्र विा में ीश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र प्रान्तश्रय काांग्रेस के मांत्रश्र न्े। चकन्तग चपछले दो-िार वर्ों से वे सांघ के काम में लग गये न्े तन्ा
उनके कतृभत्व के कारण सम्पूणभ चीले का रां ग हश्र णदलता ीा रहा न्ा। नतः कगछ लोगों ने यह प्रयत्न
प्रारम्ो चकया चक सांघ का णढता हग ग कायभ काांग्रेस के चलए पूरक हो ीाये, नन्वा यह सम्ोव न हो
तो कम-से-कम उसके मागभ में चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र नड़िन पैदा न करे ।

विा के सेु ीमनालालीश्र णीाी ने डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार के पास सांघ, महासोा तन्ा काांग्रस

के ध्येय और नश्रचत का पारस्पचरक सम्णन्ि ीानने के उद्देश्य से एक प्रश्नावलश्र ोेीश्र। उसमें नस्पृश्यता-
चनवारण, खादश्र, काांग्रेस का कायभक्रम, महासोा तन्ा सांघ का सम्णन्ि गचद चवर्यों पर प्रश्न न्े। दादा
िमाचिकारश्र को यह ोश्र स्मरण होता हैं चक इसश्र समय ीश्र ीमनालालीश्र णीाी ने णै. मोरोपन्त
नभ्यांकर को सांघ और महासोा के सम्णन्िों कश्र ीााँि करने के चलए पत्र चलखा न्ा। डॉक्टरीश्र ने ीश्र
ीमनालाल णीाी को उत्तर चदया चक ‘‘गपके पत्र का चलचखत उत्तर ोेीना कचुन है । नतः गप
सगचविानगसार कोश्र चमलने ग ीाइए नन्वा गज्ञा हो तो विा गकर चमलूाँ।’’ सांघ के चवर्य में लोगों
के मन में कौन-कौन से प्रश्न उत्पन्न होते हैं , तन्ा उस सम्णन्ि में नपना चनचित चविार क्या है यह णताने
के चलए डॉक्टरीश्र ने नपने यहााँ गनेवाले स्वयांसेवकों से इस प्रश्नावलश्र कश्र प्रचतचलचप करके उनका
उत्तर चलखने के चलए कहा। डॉक्टरीश्र का सदै व यहश्र कहना न्ा चक स्वयांसेवक कोश्र तान्त्त्वक वाद-
चववाद में, चीसका कोश्र नन्त नहीं होता, न पड़ें। चकन्तग उनकश्र यह नपेक्षा नवश्य न्श्र चक स्वयांसेवकों
के पास नपनश्र चवशगद्ध ोूचमका का इतना ज्ञान नवश्य हो चक वे दूसरों के णगचद्धोेद करनेवाले प्रश्नों के
सामने हतप्रो न हो ीायें। इसश्र चविार से इस प्रश्नों का उत्तर उन्होंने स्वयांसेवकों से मााँगा न्ा।

डॉक्टरीश्र के पत्र के णाद णगिवार चदनाांक 31 ीनवरश्र 1934 को प्रातःकाल सेु ीमनालालीश्र ने
नागपगर गकर डॉ. मगांीे तन्ा डॉ. हे डगेवार से नलग-नलग ोेंट कश्र। सेुीश्र के सान्-सान् उस समय
ीश्र गणपतराव चटकेकर तन्ा कगमारश्र ताराणेन ोश्र न्ीं। इस ोेंट में डॉक्टरीश्र ने स्पष्ट चकया चक सांघ
राीनश्रचत से नचलप्त है तन्ा चकसश्र ोश्र सांस्न्ा के चवरोि में नहीं है । उसका खादश्र से चवरोि नहीं है तन्ा
नस्पृश्यता को तो मूलतः नमान्य करता है । खादश्र के चवर्य में स्पष्टश्रकरण करते हग ए उन्होंने कहा न्ा

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चक ‘‘चीनकश्र खादश्र पर पूणभ ीद्धा है तन्ा ीो खादश्र छोड़कर कोई दूसरा वस्त्र छूते ोश्र नहीं उन्हें गणवेश
में खाकश्र खादश्र का व्यवहार करने कश्र पूणभ स्वतांत्रता है । खादश्र से स्वराज्य चमल सकेगा नन्वा वह
नन्भशास्त्र कश्र दृचष्ट से णाीार में चटक सकेगश्र, यह हमें नहीं लगता। सान् हश्र दे शश्र चमलों के कपड़े का
णचहष्ट्कार करना घातक है , क्योंचक इससे चवदे शश्र वस्त्र तन्ा स्वदे शश्र चमलों के वस्त्र को एक हश्र तराीू
से तौला ीाता है । वास्तव में तो चमल का कपड़ा पन्द्रह गने स्वदे शश्र हश्र होता है । सांघ स्वदे शश्र का
पगरस्कता होने के कारण चवदे शश्र कपड़े का खाकश्र गणवेर् उसे मान्य नहीं है ।’’

इस ोेंट में सांघ कश्र ोूचमका स्पष्ट करने के चलए डॉक्टरीश्र ने सांघ का चलचखत चविान पढकर सगनाया
न्ा और इसचलए ननेक प्रश्न नपने गप समाप्त हो गये न्े। चकन्तग सेुीश्र के डेढ घण्टे के सम्ोार्ण में
यह णात चफर-चफरकर गतश्र न्श्र चक ‘‘सांघ काांग्रेस का चवरोि करता है ।’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने ििा
समाप्त होने के पूवभ, काांग्रेस कायभकताओां ने चकस प्रकार सांघ के चवरुद्ध नपप्रिार करके लोगों के मन
कलगचर्त चकये, इसके एक के णाद एक सािार उदाहरण रखना प्रारम्ो चकया। इसश्र चसलचसले में उन्होंने
प्रश्न चकया ‘‘गपने सगना हश्र होगा चक दो-तश्रन चदन पूवभ हश्र गपके यहााँ मश्रराणेन या ताराणेन ने सांघ के
चवर्य में कगछ ोश्र कल्पना न होते हग ए ोश्र मनमानश्र णातें कहीं हैं ।’’ यह दे खकर ीमनालालीश्र होंे-
णोंे रह गये चक डॉक्टरीश्र को यह णात कैसे तगरन्त मालूम हो गयश्र। उन्होंने तगरन्त कग. ताराणेन का
पचरिय करा चदया। इस पर डॉक्टरीश्र ने उन्हें नमस्कार चकया। इस ोेंट के णाद चदनाांक 1 फरवरश्र
1934 को नपने पत्र में वे चलखते हैं ‘‘मैंने सेुीश्र को सांघ का चविान पूरश्र तरह पढकर सगना चदया।
इससे उनके प्रश्न काफश्र कम हो गये। केवल इतनश्र हश्र णात णि गयश्र है चक सांघ काांग्रेस का चवरोि
करता है । चकन्तग मैंने सप्रमाण उनके सामने यह रखा चक सांघ काांग्रेस का द्वे र् नहीं करता णन्ल्क काांग्रेस
के हश्र णड़े-णड़े लोग सांघ से द्वे र् करते हैं , तन्ा गगे ऐसा न हो इस चवर्य में ध्यान रखने को कहा।’’

डॉ. मगांीे ने सेुीश्र को स्पष्ट णता चदया न्ा चक सांघ और महासोा दो स्वतांत्र सांस्न्ाएाँ हैं । सान् हश्र उन्होंने
णताया चक सांघ काांग्रेस का चवरोि करता है यह गपका कोरा भ्रम है तन्ा उन्हें सलाह दश्र चक काांग्रस

को चवशाल दृचष्टकोण नपनाकर िलना िाचहए। एक पत्र से यह ोश्र पता िलता है चक इस ोेंट के णाद
डॉक्टरीश्र ने ीश्र णीाी को उनके प्रश्नों के उत्तर चलखकर ीश्र गप्पीश्र ीोशश्र के द्वारा चोीवा ोश्र चदये
न्े। परन्तग उसकश्र कोई प्रचत गी उपलब्ि नहीं है ।

इस वर्भ डॉक्टरीश्र ने महाराष्ट्र में प्रिार करने के चलए साांगलश्र में ीश्र गोपाळराव येरकगण्टवार, पूना में
ीश्र दादाराव परमान्भ तन्ा खानदे श में ीश्र णाणासाहण गपटे को ोेीा। नोश्र तक केवल सांघ का हश्र
कायभ करनेवाला प्रिारक-वगभ चनर्तमत नहीं हग ग न्ा। यह उसका प्रारम्ो न्ा। ीश्र परमान्भ ने नपने
ोावनामय एवां ओीस्वश्र विृत्व से पूना में नच्छा प्रोाव प्रस्न्ाचपत चकया तन्ा ीश्र णाणासाहण गपटे
के चविारशश्रल प्रिार के कारण खानदे श में सांघकायभ प्रगचत करने लगा। डॉक्टरीश्र ने यह दे ख चलया

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न्ा चक चहन्दगस्न्ान ीैसे पददचलत दे श का पगनरुद्धार केवल खालश्र समय में समाीकायभ करनेवालों के
कतृभत्व के ोरोसे नहीं हो सकता। इसश्र दृचष्ट से डॉक्टरीश्र नपने िारों ओर एकत्र तरुणों के मन पर
सदै व यह चदव्य सांस्कार डालते रहते न्े चक समाी के चलए ईश्वरप्रदत्त गगणों एवां सामर्थयभ का सांविभ न
कर उनके गिार पर राष्ट्रोद्धारान्भ गत्मसमपभण में हश्र ीश्रवन कश्र सान्भकता है । इन्हीं सांस्कारों के णल
पर ऐसे तरुण गगे गने लगे न्े ीो नपनश्र सम्पूणभ शचि और ीश्रवन लगाकर सांघकायभ करने में हश्र
गनन्द मानते न्े।

यह सण करते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र का ध्यान सरकारश्र पचरपत्रक के चवरुद्ध ीनमत ीाग्रत् करने कश्र ओर
लगा हग ग न्ा। 1934 कश्र मािभ में मध्यप्रान्त कौंचसल का नचिवेशन होनेवाला न्ा। उसके पूवभ हश्र
कौंचसल के चवचोन्न सोासदों से चमलकर डॉक्टरीश्र ने उन्हें इसके चलए तैयार चकया चक सांघ के प्रचत
शासन कश्र नश्रचत का डटकर चवरोि करें । सान् हश्र शासन कश्र योीना को चनष्ट्फल करने के चलए उन्होंने
ननेक वकश्रलों से कानूनश्र परामशभ ोश्र चकया। इन सण प्रयत्नों कश्र सफलता के लक्षण िश्ररे-िश्ररे चदखने
लगे न्े। मािभ मास के पूवभ हश्र नकोला कश्र चडन्स्रक्ट कौंचसल तन्ा विा, उमरे ड, सावनेर, काटोल,
ोण्डारा गचद स्न्ानों कश्र नगरपाचलकाओां ने शासन कश्र नश्रचत का चनर्ेि तन्ा सांघ के चवरुद्ध
नन्यायमूलक पचरपत्रक को वापस लेने कश्र मााँग करनेवाला प्रस्ताव स्वश्रकृत चकया।

चदसम्णर 1932 में सरकारश्र प्रचतणन्ि-सम्णन्िश्र पचरपत्रक प्रसाचरत हग ग न्ा। समािारपत्रों तन्ा
ीनसोाओां के द्वारा इसके कड़े चवरोि एवां गलोिना का इतना पचरणाम तो शासन पर हग ग चक
1933 में उस पचरपत्रक को पगनः प्रिाचरत करते समय सांघ के ऊपर से राीनश्रचतक गन्दोलन का
गक्षेप हटाकर केवल साम्प्रदाचयकता का गरोप रखा गया। इस सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र एक पत्र में
चलखते हैं चक ‘‘..........शासन को राीनश्रचतक गन्दोलन का नपना चविान वापस लेना पड़ा है तन्ा
नण सांघ ‘कम्यूनल’ है , इतना हश्र उनका णिकाना कन्न रहा है । सांघ न तो उनके मन को ोाता है
और न उस पर दोर्ारोपण हश्र चकया ीा सकता है । चवचित्र न्स्न्चत गी नपने नचहतचिन्तकों कश्र हो
गयश्र है ।’’

डॉक्टरीश्र ने इस णात कश्र व्यवस्न्ा कर लश्र न्श्र चक मध्यप्रान्त चविानसोा के नचिवेशन में सरकार के
समक्ष उसके सांघ-चवरोिश्र पचरपत्रक के कारण सन्तप्त ीनमत का प्रकटश्रकरण हो ीाये। तदनगसार
चदनाांक 3 मािभ 1934 को चविान सोा में गरमागरम सवाल-ीवाण हग ए। चकसश्र ोोले-ोाले व्यचि को
ीण कगछ शरारतश्र लोग िारों ओर से घेरकर सताना शग कर दें तो उसकश्र ीैसश्र दयनश्रय न्स्न्चत हो
ीातश्र है वैसश्र हश्र नवस्न्ा सरकार के गृहमांत्रश्र ीश्र राव कश्र हो गयश्र न्श्र। ‘‘साम्प्रदाचयक सांस्न्ा कश्र व्याख्या
क्या ?’’ ‘‘क्या कोई मगसलमान सांस्न्ा साम्प्रदाचयक है ?’’ ‘‘यह पचरपत्रक चकस चवोाग कश्र ओर से
प्रसाचरत हग ग है ?’’ गचद ननेक प्रश्न तड़ातड़ पूछे ीाने लगे। प्रश्नों कश्र इस णौछार के णश्रि चसहोरा के

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ीश्र काशश्रप्रसाद पाण्डे ने पूछा ‘‘क्या यह सत्य है चक मध्यप्रान्त के एक ोूतपूवभ मांत्रश्र रा. स्व. सांघ के
नध्यक्ष हग ए न्े ?’’

‘‘मगझे तो इसका पता नोश्र िल रहा है ,’’ गृहमांत्रश्र ीश्र राव ने कहा।

‘‘क्या सरकार के पास सश्र. गई. डश्र. ने चरपोटभ नहीं ोेीश्र ?’’

‘‘सश्र. गई. डश्र. कश्र चरपोटभ तो गयश्र होगश्र। परन्तग मगझे यह णात तो चवचित्र हश्र लगतश्र है चक मध्यप्रान्त
सरकार के कोई ोूतपूवभ मांत्रश्र, उनके कायालय में हश्र सांघ पर सरकारश्र णचहष्ट्कार होते हग ए ोश्र, उस
सांस्न्ा का नध्यक्ष-स्न्ान ग्रहण करें।’’

‘‘शासन ने सांघ का णचहष्ट्कार कण से चकया ?’’

‘‘इस प्रश्न कश्र मगझे पूवभसूिना िाचहए।’’ ‘णचहष्ट्कार’ शब्द का गप नक्षरशः नन्भ मत कश्रचीए। मैंने
इस शब्द का व्यापक नन्भ में प्रयोग चकया है ।’’

ीश्र राव ीण इस प्रकार शान्ब्दक सकभस कर रहे न्े तो ीश्र णाणासाहण खापडे ने पूछा ‘‘सांघ कश्र कौनसश्र
नश्रचत नन्वा कायभक्रम शासन को गपचत्तीनक प्रतश्रत होता है ?’’ इस प्रश्न पर ीो सांवाद हग ग वह
उस नवसर के वातावरण कश्र पयाप्त कल्पना दे सकता है ।

‘‘सांघ के सूत्रिारों के ोार्णों से ऐसा चदखता है चक उन्होंने नपने सम्मगख ीमभनश्र में चहटलरशाहश्र नन्वा
नाीश्रवाद के ध्येय और कायभपद्धचत को गदशभ के प में स्वश्रकार चकया है ।’’

‘‘सांघ के सांिालक कौन हैं ?’’

‘‘एक तो डॉक्टर हे डगेवार हैं , और दूसरे में समझता हू ाँ डॉ. मगांीे होंगे।’’

‘‘नच्छा। सांघ के कायभ में कौनसा ोाग गपको गक्षेपाहभ प्रतश्रत हग ग ?’’

‘‘सांघ के िालक चहटलर व नाीश्रवाद का ननगकरण करना िाहते हैं , यह उनके ोार्णों से चदखता है
न ?’’

‘‘यह गरोप गप उनके ोार्णों से चसद्ध कर सकते हैं क्या ?’’

‘‘डॉक्टर हे डगेवार के नागपगर के एक ोार्ण के उद्धरण के गिार पर हश्र मैंने यह कहा है ।’’

‘‘वह उद्धरण ीरा पढकर तो सगनाइए।’’

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इस मााँग पर ीश्र राव गड़णड़ा गये। इस पर नध्यक्ष महोदय ने कहा ‘‘इस चवर्य पर चवस्तृत ििा गगे
हो सकेगश्र।’’ इस प्रकार प्रश्न को गगे टालकर सरकार कश्र लाी णिाने का नसफल प्रयत्न चकया
गया।

इतने में हश्र एक और प्रश्न हग ग ‘‘यह सांघ स्न्ाचपत कण हग ग ?’’

ीश्र राव ‘‘1918 में।’’

‘‘चफर सरकार को सांघ का णचहष्ट्कार करने में इतन वर्भ क्यों लगे ?’’

‘‘क्योंचक उसका काम गक्षेपाहभ है यह शासन के ध्यान में नोश्र गया।’’

‘‘क्या सरकार स्न्ानश्रय स्वराज्य-सांस्न्ाओां पर इस पचरपत्रक के पालन के चलए दणाव डालेगश्र ?’’

‘‘हमने पचरपत्रक के द्वारा स्न्ानश्रय स्वराज्य-सांस्न्ाओां को सलाह दश्र है । वह गज्ञा नहीं है ।’’

प्रश्नोत्तर से यह चनकलवा चलया गया चक पचरपत्रक परामशभ मात्र है गज्ञा नहीं। यह ोश्र स्पष्ट हो गया चक
सरकार को सांघ कश्र उत्पचत्त, सांिालक गचद के सम्णन्ि में ुश्रक-ुश्रक ीानकारश्र नहीं न्श्र तन्ा
नाीश्रवाद-सम्णन्िश्र डॉक्टर हे डगेवार के ोार्ण का सरासर झूुा उल्लेख करके गृहमांत्रश्र ने नपनश्र हाँ सश्र
करवाने के नचतचरि कगछ ोश्र नहीं चकया। डॉ. राव के समान गी ोश्र सत्य और नकहसा का नाम
लेनेवाले ननेक काांग्रेसश्र नेत डॉ. गोणल्स के पदचिह्नों पर िलकर ‘डॉक्टर हे डगेवार ीमभनश्र गये न्े’
यह कगप्रिार करने से नहीं िूकते।

इस प्रश्नोत्तर के समय डॉक्टरीश्र प्रेक्षकदश्रघा में णैुे हग ए ोवन में णश्रि-णश्रि में छगटनेवाले हाँ सश्र के फव्वारों
का गनन्द लूट रहे न्े। सोा का काम समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र ने उन सोश्र सदस्यों का नचोनन्दन
चकया। चीन्होंने शासन कश्र शरारत ोरश्र नश्रचत का पदाफाश चकया न्ा।

चदनाांक 7 मािभ को डॉक्टर हे डगेवार के एक समय के चशक्षक ोण्डारा के ीश्र णाणा साहण कोलते ने
सरकारश्र पचरपत्रक के चवरोि में एक कटौतश्र-प्रस्ताव )कटमोशन) प्रस्तगत चकया। उन्होंने नपने ोार्ण
में, यह णताते हग ए चक गृहमांत्रश्र साम्प्रदाचयकता कश्र व्याख्या नहश्र कर सके, कहा ‘‘समाी कश्र सगन्स्न्चत,
तरुणों का शारश्रचरक चवकास तन्ा ननगशासन इन तश्रन उद्देश्यों कश्र पूर्तत के चलए राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक
सांघ कायभ कर रहा है । चहन्दगस्न्ान में ीण सण ीाचतयााँ इस प्रकार नपनश्र उन्नचत के चलए सिेष्ट हो तण
चहन्दगओां के प्रयत्नों पर शासन क्यों गघात करता है ? यह तो प्रत्येक समाी का ीन्मचसद्ध नचिकार
है । सरकारश्र नौकरों कश्र इस प्रकार कश्र गचतचवचि तन्ा उनकश्र स्वतांत्रता पर प्रचतणन्ि लगाकर गप उन्हें
चणल्कगल दास णनाकर रखना िाहते हैं ।’’

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इस कटौतश्र-प्रस्ताव के समन्भन में ननेक गवेशपूणभ ोार्ण हग ए। उनमें एडवोकेट ीश्र तग. ी. उपाख्य
नानासाहण केदार, सौ. रमाणाई ताम्णे, णाणासाहण खापडे, उम्मेदकसह ुाकगर, मांगळमूर्तत, सश्र. णश्र.
पारख, रहमान तन्ा फगले के ोार्ण उल्लेखनश्रय हैं । ये सोश्र ोार्ण उपयोगश्र एवां रोिक होने पर ोश्र
चवस्तार ोय से उनका कगछ ोाग हश्र यहााँ चदया ीा सकता है । इससे यह स्पष्ट हो ीायेगा चक सरकार
का चवरोि करने चक चलए डॉक्टरीश्र ने चकस प्रकार से परस्पर-चवरोिश्र चविार के व्यचियों को ोश्र नपने
पक्ष में खड़ा चकया न्ा। सान् हश्र यह ोश्र चदखेगा चक सांघ के ननेक समन्भकों को ोश्र सांघ का स्पष्ट ज्ञान
नहीं न्ा परन्तग वे डॉक्टरीश्र के प्रेम के कारण शासन का चवरोि करने को उद्यत हो गये न्े।

ीश्र कोलते के ोार्ण के पिात् मध्यप्रान्त के मगख्य सचिव ीश्र रफ्टन ने शासन का दृचष्टकोण स्पष्ट करते
हग ए कहा चक ‘‘सांघ का ध्येय ‘चहन्दगओां के चलए चहन्दगस्न्ान’ नत्यन्त हश्र सांकगचित तन्ा साम्प्रदाचयक
है ।’’ इसका उत्तर दे ते हग ए ीश्र नानासाहण केदार ने कहा ‘‘चहन्दू िमभ सवाचिक सचहष्ट्णग है । यचद कोई
चहन्दू यह कहे चक चहन्दगस्न्ान केवल चहन्दगओां के चलए है तो वह चनिय हश्र टाकलश्र लाइन के पास ोेीने
लायक है ।’’ टाकलश्र लाइन के पास नागपगर का पागलखाना है तन्ा उसश्र नन्भ में ीश्र केदार ने इसका
उल्लेख चकया न्ा नन्ात् ीश्र केदार कश्र दृचष्ट में ‘चहन्दगओां का चहन्दगस्न्ान’ केवल पागल का प्रलाप हश्र न्ा।

ीश्र केदार का यह चविार तत्कालश्रन सवभसामान्य पढे -चलखे व्यचियों के ननग प हश्र न्ा। चहन्दगस्न्ान में
रहनेवाले चहन्दू, मगसलमान ईसाई, ऐांसो-इन्ण्डयन गचद सणका चहन्दगस्न्ान है यह राष्ट्रघातकश्र तन्ा
े ों ने लोगों के गले इतनश्र उतार दश्र न्श्र चक उन्हें ‘चहन्दगओां का चहन्दगस्न्ान’ चगरा
चवकृत कल्पना नांग्री
पागलपन हश्र प्रतश्रत होता न्ा। ीश्र केदार ने नपने कन्न से सांघ कश्र स्तगचत करने के स्न्ान पर उसकश्र
चनन्दा हश्र कश्र न्श्र इसका ननगोव उस सोागृह में डॉक्टरीश्र तन्ा सांघ के तत्त्वज्ञान से सगपचरचित दो-
िार व्यचियों को छोड़कर नन्य कोई नहीं कर पाया न्ा। इससे उस समय के समाी कश्र गत्मचवस्मृचत
का सही ननगमान लगाया ीा सकता है । ीश्र केदार के कन्न पर नन्य ीनों के सान् प्रेक्षकदश्रघा में
णैुे डॉक्टरीश्र ोश्र हाँ से होंगे। परन्तग दोनों हाँ चसयों में चकतना नन्तर है ।

ीश्र रहमान ने सांघ का समन्भन करते हग ए नपने ोार्ण में यह सलाह दश्र न्श्र चक ‘‘राीनश्रचतक सांघटनों
कश्र ओर लक्ष्य दे नेवालों को यह ध्यान रखना िाचहए चक उनका सांघटन गक्रमक एवां सैचनक वृचत्त का
न णन ीाये।’’ ीश्र फगले ने प्रश्न चकया चक ‘‘प्रान्त के ब्राह्मणेतर तन्ा मगसलमानों के कायों पर वह
पचरपत्रक क्यों लागू नहीं होता ?’’ उन्होंने यह ोश्र मााँग कश्र चक ‘‘नसांघचटत चहन्दगओां को सांघचटत होने
का नवसर चमलना िाचहए।’’ णाणासाहण खापडे ने मात्र यह स्पष्ट एवां ोलश्र ोााँचत प्रचतपाचदत चकया न्ा
चक ‘चहन्दगओां का चहन्दगस्न्ान’ सम्णन्िश्र सांघ कश्र चविारिारा चकस प्रकार तकभशगद्ध एवां उपयगि है । डॉक्टर
हे डगेवार के सांघ का चहटलर के नाीश्र सांघटन के सान् सरकार ने ीो णादरायण-सम्णन्ि )खींितान
कर सम्णन्ि) प्रस्न्ाचपत चकया न्ा उसकश्र चखल्लश्र उड़ाते हग ए उन्होंने कहा ‘‘डॉक्टर हे डगेवार का एक

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स्वयांसेवक सांघ है तन्ा हर चहटलर का ोश्र एक स्वयांसेवक दल है । नतः डॉक्टर हे डगेवार हर चहटलर
हैं । यह चवचित्र एवां नशगद्ध तकभ है । मैं कटग शब्द प्रयोग नहीं करना िाहता। पर डॉक्टर हे डगेवार का
एक स्वयांसेवक सांघ है वैसे हश्र चखलाफतवाचदयों का ोश्र स्वयांसेवक दल है । चफर चखलाफतवाचदयों को
हे डगेवार नन्वा चहटलर क्यों नहीं कहा ीाये ?’’

नागपगर के ‘महाराष्ट्र’ ने तो समािार छापा उसके ननगसार खापडे ने सरकार का और ोश्र कटग उपहास
चकया ऐसा ीान पड़ता है । शासन के तकभ को चनरािार चसद्ध करने के चलए ीश्र खापडे ने कहा न्ा
‘‘.........मेरश्र कचुनाई यह है चक मैं नपने तकभशास्त्र के ज्ञान को ोूला नहीं हू ाँ , पर ीरा सरकार के
तकभशास्त्र का ोश्र मगलाचहीा फरमाइए। यचद कोई मनगष्ट्य कहने लगे चक तेरे चपता कश्र लम्णश्र मूाँछें न्श्र
और मेरश्र ोश्र लम्णश्र मूाँछें हैं नतः मैं तेरा..........।’’

चदनाांक 7, 8 तन्ा 9 को तश्रन चदन तक इस चवर्य पर चववाद होता रहा तन्ा नन्त में ीश्र कोलते का
कटौतश्र-प्रस्ताव स्वश्रकृत हग ग। सरकार कश्र करारश्र हार हग ई। सरकार के पचरपत्रक का सांघ के चदन-
प्रचतचदन के कायभ पर तो कोई पचरणाम पहले हश्र नहीं हग ग न्ा पर शासन कश्र वक्रदृचष्ट के ख्याल से
सवभसामान्य व्यचि में ीो न्ोड़ा-सा ोय एवां चहिक उत्पन्न हो गयश्र न्श्र उसके चलए शासन के इस प्रकार
पराोव होने के णाद नण कहीं स्न्ान नहीं णिा। इस घटना के उपरान्त राव-मांचत्रमण्डल का पतन हो
गया। इसका ोश्र सांघ कश्र दृचष्ट से ननगकूल हश्र पचरणाम हग ग।

इस ोााँचत मध्यप्रान्त में तो सांघ के ऊपर गया सांकट टल गया। चकन्तग डॉक्टरीश्र के एक पत्र में यह
चिन्ता नवश्य होतश्र है चक सम्पूणभ दे श में सरकारश्र नौकरों पर ीो प्रचतणन्ि लगा है उसका प्रचतकार
नहीं चकया ीा सकता। इसमें उस काल कश्र उन्हें चदखनेवालश्र पचरन्स्न्चत कश्र गम्ोश्ररता का चित्रण
चमलता है । उन्होंने चलखा न्ा ‘‘...........कौंचसल के चपछले नचिवेशन में चववाद के समय शासन सांघ
पर साम्प्रदाचयकता का गरोप चसद्ध नहीं कर सका तन्ा पहले से सक्यगभलर के चवरुद्ध ीो कटौतश्र-
प्रस्ताव रखा गया न्ा उसमें सरकार कश्र हार होने के कारण सक्यगभलर कश्र कमर पूरश्र तरह टूट गयश्र है ।
इस पचरन्स्न्चत में चकसश्र को ोश्र नपने णरे सांघ में ोेीने में ोय का कारण नहीं। इस पर ोश्र लोगों ने
डर माना तो हम और गप क्या कर सकते हैं ?

‘‘मध्यप्रान्त सरकार ने यचद कगछ गड़णड़श्र कश्र तो कौंचसल में उसकश्र खणर लेने कश्र न्ोड़श्र-णहग त व्यवस्न्ा
हम कर सकते हैं । चकन्तग चहन्दगस्न्ान सरकार ने सरकारश्र नौकरों के चलए चनयम णनाये हैं , उनमें पचरवतभन
कैसे होगा ? चदल्लश्र तक नपनश्र पहग ाँ ि कैसे होगश्र ? सम्पूणभ ोारत के णड़े-णड़े नेताओां का ध्यान इस ओर
गकृष्ट होकर उनके द्वारा इस णात का चवरोि होना िाचहए, चकन्तग उनका ध्यान तो गपसश्र लड़ाई में
लगा हग ग है । सरकारश्र नौकर एकत्र होकर इस चनयम का चनर्ेि कर सकते हैं चकन्तग उन्हें तो चकसश्र
णात से सरोकार नहीं चदखता। नपना चणत्ता-ोरपेट ोर ीाये तो उन्हें सांसार में चकसश्र कश्र परवाह नहीं

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है । खाने को दो ग्राम नन्न चमल गया चक सण कगछ चमल गया, यह है उनकश्र वृचत्त। गी हम इतना हश्र
करें चक लोगों को नपनश्र ओर से यह साफ-साफ णता दें चक सांघ का तन्ा चहन्दगस्न्ान सरकार के चनयमों
का चकसश्र प्रकार का ोश्र सम्णन्ि नहीं है ।’’

इस पचरन्स्न्चत में स्वयांसेवकों को नचिक उत्साचहत करने के चलए डॉक्टरीश्र ने काफश्र पत्रव्यवहार
चकया न्ा। सान् हश्र स्न्ान-स्न्ान पर के ोार्णों में ोश्र सरकार पर प्रहार करने में कोई-कसर नहीं रख
छोड़श्र। नागपगर में वर्भप्रचतपदा के उत्सव पर उनका ोार्ण इस दृचष्ट से उल्लेखनश्रय है । उसमें उन्होंने कहा
न्ा ‘‘.......ीश्र कोलते ने ीण कटौतश्र-प्रस्ताव रखा तो गृहमांत्रश्र ने उत्तर में ोार्ण करते हग ए 1932 के
पचरपत्रक के समन्भन में डॉ. मगांीे तन्ा सर मोरोपन्त ीोशश्र के 1933 के ोार्ण पढकर सगनाये, मानो
ोूतपूवभ गृहमांत्रश्र को यह ोश्र नहीं समझ में गता चक गपचत्तीनक क्या है और क्या नहीं। वह केवल
वतभमान गृहमांत्रश्र को हश्र समझ में गता है । ऐसा लगता है चक सरकार को 1932 में हश्र नन्तज्ञान से
पता िल गया न्ा चक एक वर्भ णाद डॉ. मगांीे और सर मोरोपन्त ीोशश्र क्या ोार्ण करनेवाले हैं । इसश्र
प्रकार सांघ के 1925 में स्न्ाचपत होने पर ोश्र उसका 1918 में हश्र सरकार के कागीों में उल्लेख है । उस
समय नागपगर में चहन्दू-मगसलमानों के णश्रि कखिाव उत्पन्न हो गया न्ा, सरकार का यह ोश्र कहना है ।
1918 में सांघ नन्स्तत्व में नहीं न्ा। उस वर्भ नागपगर में चहन्दू-मगसलमानों में तनाव ोश्र नहीं न्ा। इन
ऊटपटााँग णातों से यहश्र लगता है चक मध्यप्रान्त सरकार कश्र नकल का चदवाला हश्र चनकल गया है ।
कहा गया है चक सरकार का इरादा सांघ के कायभ में नड़िन डालने का नहीं है । इससे शासन के मगख
से प्रकट हो गया है चक सांघकायभ गैरकानूनश्र नहीं है । चफर शासन नपना पचरपत्रक वापस क्यों नहीं लेता
?’’

इस प्रश्न पर उुे तूफान में यद्यचप मांचत्रमण्डल ोांग हो गया चकन्तग शासन ने नपनश्र झूुश्र प्रचतष्ठा के नाप
पर पचरपत्रक वापस नहीं चलया। पर इस घटना के णाद उस पचरपत्रक कश्र व्यवहार में ऐसश्र हश्र न्स्न्चत हो
गयश्र ीैसे चदन में गकाश में िन्द्रमा का नन्स्तत्व होते हग ए ोश्र वह चनष्ट्प्रो रहता है ।

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22. गाांिश्रीश्र से ोेंट
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र एक प्रकार से शताविानश्र न्े। उनकश्र दृचष्ट िारों ओर रहतश्र न्श्र तन्ा उसमें नपने
कतभव्य का चवचनिय करके वेग के सान् ीगट ीाते न्े। 1924 में गवी के दां गे के कारण उनके एक
कलकत्ता से हश्र नत्यन्त घचनष्ठ चमत्र डॉ. स. नश्र. मोहरश्रर नागपगर ीेल में गीन्म कारावास कश्र सीा
ोगगत रहे न्े। सण प्रकार से व्यस्त ीश्रवन में से डॉ. मोहरश्रर से चनयचमत प से चमलने के समय चनकाल
लेते न्े। उनके नन्य पाचरवाचरक ीनों एवां चमत्रों को ोश्र चमलाप कश्र व्यवस्न्ा वे समय-समय पर करते
रहते न्े। चीसे एक णार उन्होंने ‘नपना’ कहा चक चफर उसके प्रचत नपने कतभव्य में चकसश्र ोश्र प्रकार
का व्यविान नहीं गने दे ते न्े। इसश्र कतभव्यदक्षता से चदनाांक 28 फरवरश्र को ीण डॉ. मोहरश्रर कारागार
से मगि हग ए तो ीेल के फाटक के णाहर उनका पैर पड़ते हश्र डॉक्टरीश्र ने उन्हें पगष्ट्पमालाओां से लादकर
प्रगाढ गकलगन में ीकड़ चलया। उन्हें वे प्रेमपूवभक घर ले गये तन्ा दूसरे चदन नागपगर के ननेक
प्रचतचष्ठत सज्जनों को गमांचत्रत कर उनका यन्ायोग्य सत्कार चकया। चवचोन्न शाखाओां पर ोश्र डॉ.
मोहरश्रर का सत्कार चकया गया। नागपगर के वर्भप्रचतपदा उत्सव पर ोश्र उनका डॉक्टरीश्र ने नचोनन्दन
चकया तन्ा नपने ोार्ण में शासन कश्र, उन्हें समय पर कारामगि न करने के चलए, ोत्सभना कश्र। उन्होंने
कहा न्ा ‘‘.........डॉ. मोहरश्रर कगल सवा गु वर्भ कश्र सीा ोोगने के पिात् नोश्र छूटकर गये हैं ।
ीेल के चनयमों के ननगसार उनकश्र मगचि इसके पूवभ होनश्र िाचहए न्श्र, परन्तग गीकल मध्यप्रान्त कश्र
सरकार का िक्र चकस वक्र गचत से घूमता है , यह तो सणको पता हश्र हैं ।’’

राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र दृचष्ट से एक महत्त्व के व्यचि इन चदनों डॉक्टरीश्र के सहवास में ग रहे
न्े, और वे न्े वतभमान सरसांघिालक ीश्र मािवराव गोळवलकर। ीून 1933 में वे काशश्र
चवश्वचवद्यालय में प्राध्यापक पद से नवकाश ग्रहण करके नागपगर में रहने लगे न्े। यहााँ वे नपने मामा
ीश्र णालकृष्ट्णपन्त रायकर के यहााँ रहते न्े। उस समय उनके माता-चपता रामटेक में न्े।

डॉक्टरीश्र कश्र प्रेरणा से चशक्षाप्राचप्त के हे तग काशश्र चवश्वचवद्यालय मे गये हग ए ीश्र ोैयाीश्र दाणश्र, णाणूराव
तेलांग तन्ा तात्यराव तेलांग गचद प्रमगख कायभकताओां के प्रयत्न से ीश्र गोळवलकर का सांघ के सान्
सम्णन्ि तो काशश्र में हश्र ग गया न्ा तन्ा वह िश्ररे-िश्ररे दृढ ोश्र होता गया। प्रा. गोळवलकर चकसश्र ोश्र
चवर्य को नत्यन्त सरलता के सान् पढाने में णड़े कगशल न्े। सान् हश्र पैसे का मोह उन्हें छू ोश्र नहीं गया
न्ा। फलतः ननेक चवद्यार्तन्यों को उनका सहारा न्ा। उनका चमलनसार स्वोाव ोश्र लोगों को सही
गकृष्ट कर लेता न्ा। नपने गगणों एवां स्वोाव के कारण से चवश्वचवद्यालय में ‘गगरुीश्र’ के नाम से
चवख्यात न्े। उनकश्र कगशाग्र णगचद्ध, चनरलस, वृचत्त, सेवाोाव तन्ा िगस्तश्र कश्र छाप उनसे प्रत्येक
चमलनेवाले के मन पर पड़े चणना नहीं रहतश्र न्श्र। वे चीस चवर्य को हान् में लेते उसकश्र गहराई तक

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ीाते न्े और इसचलए काशश्र में उन्होंने सांघ के ममभ को ीानकर उसके कायभ कश्र ओर चवशेर् ध्यान दे ना
प्रारम्ो कर चदया न्ा। पश्रछे वणभन ग िगका है चक इन चदनों हश्र डॉक्टरीश्र ने उन्हें चकस प्रकार नागपगर
णगलवाया तन्ा नागपगर, ोण्डारा, उमरे ड, रामटे क गचद शाखाएाँ चदखाकर सांघ कश्र स्पष्ट कल्पना दे ने
का प्रयत्न चकया।

इस प्रकार सगयोग्य एवां सगचशचक्षत परश्रस-छब्णश्रस वर्भ का तरुण कायभकता नागपगर में रहने के चलए
गया, यह डॉक्टरीश्र के चलए गनन्द का चवर्य न्ा। चशक्षा प्राप्त व्यचि समाी में सही हश्र प्रचतष्ठा प्राप्त
करता है । चफर उन चदनों स्नातकों को तो समाी चवशेर् मान दे ता न्ा। यचद इस प्रकार के तरुण नपने
गिार-चविार के द्वारा सांघ को नपने ीश्रवन में प्रकट करने लगे तो, डॉक्टरीश्र को गशा न्श्र चक,
समाी ोश्र तेीश्र के सान् इस कायभ कश्र ओर गकृष्ट होने लगेगा। नतः ीश्र मािवराव कश्र ओर वे एक
चवशेर् गशा-ोरश्र दृचष्ट से दे खते न्े। नागपगर गने के णाद ीश्र गगरुीश्र ने नपने माता-चपता तन्ा चमत्रीनों
के गग्रह के कारण एल. एल. णश्र. कश्र पढाई प्रारम्ो कर दश्र न्श्र। सान् वे सांघ का ोश्र काम करते रहते
न्े। सांघकायभ के चनचमत्त से डॉक्टरीश्र के घर उनका गना-ीाना रहता न्ा तन्ा णश्रि-णश्रि में सांघ के
तत्त्वज्ञान के चवर्य में परस्पर ििा ोश्र होतश्र न्श्र। ीून 1934 में डॉक्टरीश्र ने नकोला के चीला-
सांघिालक ीश्र णाणासाहण चितळे तन्ा ीश्र गगरुीश्र को णम्णई में सांघ के प्रिारान्भ ोेीा। उन्होंने वहााँ
लगोग एक महश्रने तक रहकर सांघ का कायभ प्रारम्ो कर चदया। कायभ गगे ोश्र ुश्रक रश्रचत से िले
इसके चलए उन दोनों के वापस गने के पूवभ हश्र डॉक्टरीश्र ने ीश्र गोपाळराव येरकगण्टवार को प्रिारक
के नाते चनयगि चकया। नकोला के चशक्षण वगभ तन्ा णम्णई में ीश्र गगरुीश्र को सांघ के कायभ तन्ा समाी
कश्र न्स्न्चत का चनकट से पचरिय प्राप्त हग ग। तत्पिात् उन्हें नागपगर कश्र मगख्य शाखा का काम सौंपा
गया।

डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय नण उनका सान् नहीं दे रहा न्ा। डॉक्टरों ने चवीाम कश्र सलाह दश्र। सहयोचगयों
ने ोश्र गग्रह चकया, परन्तग डॉक्टरीश्र णराणर सगनश्र ननसगनश्र करते गये। पर नन्त में न्स्न्चत नचिक
चणगड़ने पर चनरुपाय होकर उन्हें नपने सहयोचगयों कश्र योीना के ननगसार नागपगर नगर के नम्णाझरश्र
मागभ पर ीश्रकृष्ट्णराव पाण्डगरांग वैद्य के णांगले पर चवीाम के चलए ीाना पड़ा। यहााँ कश्र ीलवायग खगलश्र
तन्ा व्यवस्न्ा नच्छश्र न्श्र। चफर ोश्र उनके स्वास्र्थय में णराणर उतार-िढाव िलता रहता न्ा। कारण,
चवीाम का तो केवल नाम न्ा। दौरे कश्र दौड़िूप िाहे न हो, तन्ा चनयमानगसार और्िोपिार ोश्र िलता
न्ा, पर उनके मन को िैन कहााँ न्ा। स्न्ान-स्न्ान से गये पत्रों को पढकर उत्तर दे ना तन्ा नागपगर के
स्वयांसेवकों से कायभ के चवर्य में वातालाप तो णराणर िलता हश्र रहता न्ा। लगोग दो-तश्रन मास वे
ीश्र वैद्य के णांगले पर रहे । इन चदनों ननेक कायभकता वहााँ गते न्े, इसे दे खकर णहग त से लोगों को
गियभ होता न्ा। केवल डॉक्टरीश्र से चमलने और उनके मगख से िार शब्द सगनने के चलए स्वयांसेवक

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इतनश्र दूर पैदल गयें, यह लोगों के चलए नोूतपूवभ ननगोव हश्र न्ा। परन्तग डॉक्टरीश्र के सहवास में
इतना गकर्भण न्ा चक ीो उस सौोाग्य से वांचित रहा हो वह उसकश्र कल्पना नहीं कर सकता।

वहााँ कश्र णातिश्रत का प्रवाह चकस प्रकार िलता रहता न्ा इसका ननगमान चनम्नचलचखत घटना से लगाया
ीा सकता है । एक चदन राचत्र को काफश्र दे र से नागपगर के णाहर का एक स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र से चमलने
के चलए गया। उसने णाहर से हश्र पूछा ‘‘डॉक्टरीश्र हैं क्या ?’’ दरवाीे पर णैुे हग ए मनगष्ट्य को लगा चक
कोई व्यचि चकसश्र रोगश्र को चदखाने के चलए डॉक्टरीश्र को णगलाने गया है । नतः उसने उत्तर चदया
‘‘यहााँ एक डॉक्टर हैं पर वे लोगों को दवाएाँ नहीं दे ते, णातें णताते हैं ।’’ चकतना खरा न्ा वह वणभन !

चवीाम कश्र इस नवस्न्ा में ोश्र उनके मन में कायभ के चवस्तार कश्र चिन्ता िलतश्र रहतश्र न्श्र। चदनाांक 15
नगस्त के नपने एक पत्र में वे चलखते हैं ‘‘........सांघ का काम िश्ररे-िश्ररे करने का नहीं है । चीतनश्र
ील्दश्र हो सके उतनश्र ील्दश्र सम्पूणभ महाराष्ट्र को सांघचटत कर, उसे नन्य प्रान्तों के समक्ष नमूने के तौर
पर रखकर समस्त ोारत दस-पन्द्रह वर्भ में सांघचटत करना है ।’’ डॉक्टरीश्र के मन कश्र यह नचोलार्ा
न्श्र, पर उसश्र समय सांघकायभ के मागभ में णािाओां के पवभत खड़ा करने में ोश्र कगछ व्यचि चनमग्न न्े।
सांघकायभ के चवस्तार के सान् ‘चहन्दगओां का चहन्दगस्न्ान’ इस चसद्धान्त कश्र ओर ीनमत नचिकाचिक
गकृष्ट होता ीाता न्ा। इतना हश्र नहीं, काांग्रेस के ननेक कायभकता ोश्र इस सम्मोहन-मांत्र के वशश्रोूत
हो गये न्े। यह दे खकर काांग्रेस के शश्रर्भस्न् नेता यचद चिन्न्तत हग ए तो कोई गियभ नहीं। उन्होंने 1934
कश्र ीून में काांग्रेस के सदस्यों पर महासोा, लश्रग तन्ा राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ में ोाग लेने पर प्रचतणन्ि
े को तो ीन्म के सान् हश्र ‘चहन्दश्र राष्ट्रवाद’ कश्र चशक्षा चमलश्र न्श्र। उसके कगप्रोाव के
लगा चदया। काांग्रस
कारण काांग्रेस के नेता राष्ट्रश्रयता कश्र ीड़ों पर कगुाराघात कर गत्मघात करने में हश्र िन्यता मानने
लगे न्े। ‘चहन्दू’ शब्द के उरारण मात्र से उनका मान्ा ुनकने लगता न्ा। चहन्दगत्व को ‘कूपमण्डूकत्व’
समझकर वे उसे हे य मानने लगे न्े। इसश्र कारण तो वे गी तक ोचवष्ट्य के मागभ को प्रशस्त और
प्रकाचशत करनेवाले उज्जवल इचतहास कश्र ओर पश्रु करके खड़े हो ीाते हैं तन्ा यगगचनमाता चशवाीश्र
ीैसे राष्ट्रपगरुर् को ोश्र भ्रमवशात् ‘पन्भ्रष्ट’ कहकर स्वयां को गौरवशालश्र मानते हैं । वे ोानमतश्र का
कगनणा ीोड़कर नया राष्ट्र णनाने का स्वप्न दे खते हैं और इस उद्देश्य कश्र पूर्तत में राष्ट्र चवरोचियों के
तगष्टश्रकरण के चलए ‘कोरे िेक’ के नाम पर दे ह कश्र लांगोटश्र ोश्र नपभण करने में उन्हें कोश्र कोई लज्जा
नहीं लगश्र। ीो णोओगे वहश्र काटना पड़ेगा। नांग्रेीों ने चवकृत राष्ट्रश्रयता का ीो णश्री णोया न्ा वहश्र इन
गत्मघातकश्र नश्रचतयों के प में ननेक शाखोपशाखाओां के सान् फलने लगा।

काांग्रेस के इस प्रचतणन्ि का डॉक्टरीश्र को कोई गियभ नहीं लगा। नन्दर-हश्र-नन्दर कगछ इस प्रकार
से िल रहा है इसका उन्हें पहले हश्र ननगमान लग िगका न्ा। चकन्तग यह णताना गवश्यक होगा चक
काांग्रेस ने नपने सदस्यों पर सांघ में ोाग लेने पर प्रचतणन्ि लगा चदया है इसचलए हम ोश्र चिढकर उसश्र

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प्रकार कश्र रोक नपने घटकों पर लगायें यह चविार तक डॉक्टरीश्र के मन में नहीं गया। डॉक्टरीश्र
यह ीानते न्े चक परतांत्रता के कारण ननेक ीन परानगकरण में प्रवृत्त हो उसश्र में िन्यता ननगोव कर
रहे न्े। इस प्रकार गत्मचवस्मृचत में गत्मघात करनेवालों को दे खकर डॉक्टरीश्र को नपचरचमत दगःख
होता न्ा। चकन्तग उन्हें िाहे ीैसश्र खरश्र-खोटश्र सगनाने तन्ा सांघटन कश्र ोार्ा णोलकर ोश्र उन्हें एक ओर
हटाने का चवघटनकारश्र व्यवहार उन्होंने कोश्र नहीं चकया। वे तो यहश्र मानकर िलते न्े चक चीस चहन्दू
राष्ट्र कश्र कल्पना लेकर वे िले हैं उसके सोश्र चहन्दू नांगोूत घटक हैं । नतः गी यद्यचप कोई चहन्दू
नन्यन्ा व्यवहार ोले हश्र करे पर कल वह नवश्य हश्र सांघटन कश्र पावन गांगा में नवगाहन कर पगनश्रत
होगा। उसे नपने सांघटन में समाचवष्ट करने के चलए प्रयत्नशश्रल रहना नपना कतभव्य है । इस कतभव्यणोि
के कारण उनके ीश्रवन में सदै व सम्पूणभ चहन्दू समाी के प्रचत चनवैरोाव हश्र प्रकट होता न्ा।

इस वर्भ निूणर मास में सन्त पािलेगावाँकरीश्र महाराी ने नपने ‘मगिेश्वर दल’ को ोश्र सांघ में
समाचवष्ट करने का चनणभय चकया। सांगमनेर में रन्यात्रा के समय मगसलमानों के गक्रमण के कारण
1923-24 में ोारश्र दां गा हग ग न्ा। इस पचरन्स्न्चत में चहन्दगओां को सांघचटत करने के उद्देश्य से इस दल
कश्र स्न्ापना हग ई न्श्र तन्ा इस समय तक यवतमाळ, खामगााँव, णाशश्रम, ीगन्नर, चसन्नर तन्ा नगर गचद
ोागों में उसकश्र लगोग परश्रस-तश्रस शाखाएाँ हो गयश्र न्ीं। मगसलमानों कश्र ओर से दां गों का वह यगग
न्ा। इस समय चहन्दगओां को सिेत एवां सांघचटत करने का कायभ चीन्होंने हान् में चलया उनमें सांत
पािलेगााँवकरीश्र महाराी कश्र प्रमगख प से गणना करनश्र होगश्र। वे महाराष्ट्र में णराणर प्रवास करते
रहते न्े। उनका ‘नरकसह सांिारे श्वर’ नाम उन चदनों पूणभ प से सान्भक हश्र न्ा। वे नत्यन्त हश्र ओीस्वश्र
एवां प्रखर विा न्े तन्ा गग पर िलने एवां सााँप से कटवाने के उनके िमत्कार सामान्य ीनात को
उनकश्र ओर सही गकृष्ट कर लेते न्े।

1931 में ीश्र णाणाराव सावरकर द्वारा ‘तरुण चहन्दू सोा’ के सांघ में चवलश्रनश्रकरण का पहले उल्लेख हो
िगका है । उनकश्र यहश्र इच्छा न्श्र चक चहन्दगओां के सांघटन के सोश्र प्रयत्न एक सूत्र में िले। इसश्र गिार
पर ीश्र णाणाराव सावरकर तन्ा ीश्र णाणासाहण चितळे ने ीश्र पािलेगााँवकर महाराी से वातालाप
चकया और उसके पचरणामस्व प यह एकश्रकरण का कायभ सम्पन्न हो सका। यह वाता यद्यचप मई 1934
में हश्र पूरश्र हो गयश्र न्श्र चकन्तग व्यावहाचरक प से चवलश्रचनकरण का कायभ निूणर-नवम्णर में हश्र हग ग।

कगछ क्षेत्रों में सांघ का नच्छा प्रोाव हो गया न्ा। डॉ. ना. सग. हडीकर काांग्रेस कश्र ओर से स्वयांसेवक
दल चनमाण करने का प्रयत्न कर रहे न्े। 1923 में काकश्रनाडा-काांग्रेस के नवसर पर उन्होंने ‘चहन्दगस्तानश्र
सेवा दल’ णनाया न्ा। उन्हें ीैसे-ीैसे सांघ कश्र प्रगचत और प्रोाव का समािार चमला वैसे-वैसे उनके
मन में सांघकायभ के ममभ तन्ा उसकश्र वृचद्ध का रहस्य ीानने कश्र उत्सगकता हग ई। नतः चदनाांक 10
चदसम्णर को उन्होंने डॉक्टरीश्र को इस नचोप्राय का पत्र चलखा। उस पत्र कश्र प्रचतचलचप तो उपलब्ि
नहीं है चकन्तग डॉक्टरीश्र ने ीो उत्तर ोेीा उससे डॉ. हडीकर के पत्र के गशय का ननगमान लगाया ीा

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सकता है । डॉक्टरीश्र चलखते हैं ‘‘......... गपका चदनाांक 10-12-34 का पत्र नोश्र मगझे चमला। पत्र
पढकर नत्यन्त गनन्द हग ग। गप स्वयां गकर राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ का चनकट से नध्ययन
करना िाहते हैं यह हमारे चलए नत्यन्त हर्भ और सन्तोर् का चवर्य है । नकोला-पचरर्द् के पिात् मैं
नागपगर में नहीं रहू ाँ गा, नतः गप पचरर्द् के पूवभ हश्र सांघकायभ को दे खने और समझने कश्र दृचष्ट से नागपगर
गयें तो उपयगि रहे गा। यह गवश्यक ोश्र है । दै वयोग से इसश्र नवसर पर सांघ के चीला-शश्रतचशचवर
होते हैं , नतः ननायास हश्र गपको इन चशचवरों को दे खने का ोश्र नवसर चमल ीायेगा।’’

डॉक्टरीश्र ने डॉ. हडीकर को गग्रहपूवभक नकोला-नचिवेशन के पूवभ हश्र णगलाया न्ा। चकन्तग उस समय
उन्हें फेफड़े का चवकार हो ीाने के कारण वे ग नहीं सके। चदनाांक 18 ीनवरश्र 1935 के नपने पत्र
में वे चलखते हैं ‘‘मैं नागपगर नहीं ग सका क्योंचक मैं फेफड़े के चवकार से पश्रचड़त हू ाँ । चकन्तग यन्ासम्ोव
मैं शश्रघ्र हश्र नागपगर गऊाँगा।’’ पत्र के नन्त में उन्होंने यह ोश्र पूछा न्ा चक ‘‘नागपगर में रहने के चलए
गनेवाले तरुण ीश्र पै को गप सांघ का चशक्षण दें गे न ?’’ स्वास्र्थय चणगड़ने के कारण डॉ. हडीकर
नागपगर तो नहीं ीा सके पर उन्होंने णम्णई में वहााँ के प्रिारक ीश्र गोपाळराव येरकगण्टवार के सान् दो
चदन रहकर सांघकायभ को चनकट से दे खने का प्रयत्न नवश्य चकया।

डॉक्टरीश्र द्वारा नपने पत्र में उल्लेचखत चशचवर णड़े चदन कश्र छगचट्टयों में होते न्े तन्ा नोश्र ोश्र णहग त कर
वहश्र पद्धचत प्रिचलत है । 1934 में विा का शश्रतचशचवर गाांिश्रीश्र के गगमन के कारण काफश्र ििा का
चवर्य रहा। यह चशचवर विा से शेगाांव )गीकल सेवाग्राम नाम से चवख्यात) के मागभ पर दाचहनश्र ओर
सेु ीमनालाल णीाी कश्र एक खालश्र ीगह पर खगले मैदान में लगाया गया न्ा। सैचनक पद्धचत से
रचित सांघ का यह स्न्ान एक प्रकार से सामूचहक ीम एवां ननगशासन का एख नमूना तन्ा चवकास-
केन्द्र हश्र न्ा। सांघ के इन चशचवरों में ननेक स्न्ानों से स्वयांसेवक नपने व्यय से गणवेश इत्याचद णनाकर
तन्ा नपना चणस्तर गचद समान लेकर एकत्र होते हैं तन्ा तश्रन-िार चदन तक सान् रह नत्यन्त उत्साह
तन्ा दक्षतापूवभक सैचनक पद्धचत से सांिलन गचद के कायभक्रम करते हैं । चशचवर का सम्पूणभ व्यय
स्वयांसेवकों द्वारा चदए शगल्क नन्वा िान्य से हश्र पूरा होता हैं । ये चशचवर स्वयांपूणभ होते हैं । 1934 के
विा के चशचवर में एक हीार पााँि सौ स्वयांसेवकों ने ोाग चलया न्ा। चशचवर कश्र व्यवस्न्ा तन्ा तम्णू
गचद को गाड़ने के चलए पन्द्रह-णश्रस चदन पूवभ से हश्र स्वयांसेवकों का उस स्न्ान पर गना-ीाना प्रारम्ो
हो गया न्ा।

इस स्न्ान के पास हश्र महात्माीश्र का उस काल का सत्याग्रह-गीम न्ा। वे उसश्र में एक दगमचां ीले
णांगले में रहते न्े। चनत्य प्रातः घूमने के चलए ीाते समय उन्हें चशचवर कश्र व्यवस्न्ा में सांलग्न स्वयांसेवक
दे खने को चमलते। उनके मन में सही हश्र उत्सगकता हग ई चक यहााँ कौनसश्र पचरर्द् या सम्मेलन होनेवाला
है । चदनाांक 22 चदसम्णर को चशचवर का उद्घाटन हग ग। उस समय पद्धचत के ननगसार नगर के प्रमगख

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एवां प्रचतचष्ठत सज्जनों को गमांचत्रत चकया न्ा। कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक उनमें महात्माीश्र तन्ा
सत्याग्रह-गीमवासश्र नन्य सज्जन ोश्र सन्म्मचलत न्े।

चशचवर में गणवेशिारश्र स्वयांसेवकों के कायभक्रम प्रारम्ो हो गये। घोर् कश्र ोश्र गीभना होने लगश्र।
महात्माीश्र नपने णांगले पर से इन सण कायभक्रमों को सही हश्र दे ख सकते न्े। उनसे वे नत्यन्त प्रोाचवत
हग ए तन्ा उन्होंने महादे वोाई दे साई के पास चशचवर दे खने के चलए ीाने कश्र इच्छा व्यि कश्र। इस पर
महादे वोाई दे साई ने विा चीला के सांघिालक ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र को पत्र चलखा चक ‘‘गपका चशचवर
गीम के सामने हश्र होने के कारण स्वाोाचवक हश्र महात्माीश्र का ध्यान उिर गया है । उसे दे खने कश्र
उनकश्र इच्छा है । नतः कृपा कर सूचित करें चक गपको कौनसा समय सगचविाीनक होगा। वे नत्यन्त
कायभव्यस्त हैं चफर ोश्र वे समय चनकालेंग।े यचद गप गकर समय चनचित कर सकें तो और ोश्र उत्तम
होगा।’’ इस पत्र के चमलते हश्र गप्पाीश्र गीम में गये तन्ा महात्माीश्र से कहा ‘‘गप नपनश्र सगचविा
के ननगसार समय णता दश्रचीए। हम उसश्र समय गपका स्वागत करें ग।े ’’ महात्माीश्र का उस चदन मौन
न्ा नतः उन्होंने चलखकर णताया चक ‘‘मैं कल चदनाांक 25 को प्रातः छ णीे चशचवर में ग सकूाँगा।
वहााँ डेढ घण्टा व्यतश्रत कर सकूाँगा।’’ गप्पाीश्र ने समय कश्र स्वश्रकृचत दे कर चणदा लश्र। दूसरे चदन प्रातः
ुश्रक छः णीे महात्माीश्र चशचवर में गये। उस समय सोश्र स्वयांसेवकों ने ननगशासनपूवभक उनकश्र
मानवन्दना कश्र। उनके सान् ीश्र महादे व ोाई दे साई, मश्रराणेन तन्ा गीम के नन्य व्यचि ोश्र न्े। उस
ोव्य दृश्य को दे खर महात्माीश्र ने गप्पाीश्र के कन्िे पर हान् रखकर कहा ‘‘मैं सिमगि प्रसन्न हो गया
हू ाँ । सम्पूणभ दे श में इतना प्रोावश्र दृश्य मैंने नोश्र तक नहीं दे खा।’’ इसके णाद उन्होंने पाकशाला का
चनरश्रक्षण चकया। उन्हें यह ीानकर गियभ हग ग चक पन्द्रह सौ स्वयांसेवकों का ोोीन एक घण्टे में
चणना चकसश्र गड़णड़ के पूरा हो ीाता है , एक रुपये तन्ा न्ोड़े-से ननाी में नौ समय ोोीन चदया ीाता
है तन्ा घाटा हग ग तो स्वयांसवेक हश्र उसे पूरा कर दे ते हैं ।

इसके उपरान्त उन्होंने रुग्णालय तन्ा स्वांयसेवकों के चनवास ोश्र दे ख।े रुग्णालय में रोचगयों का
हालिाल पूछते हग ए उन्हें यह ोश्र पता िला चक सांघ में गााँव के चकसान तन्ा मीदूर वगभ के स्वयांसेवक
ोश्र हैं । ब्राह्मण, महार, मराुा गचद सोश्र ीाचतयों के स्वयांसेवक एक सान् घगल-चमलकर रहते हैं तन्ा
एक हश्र पांचि में ोोीन करते हैं , यह ीानकर उन्होंने तर्थय हश्र ीााँि-पड़ताल करने के उद्देश्य से कगछ
स्वयांसेवकों से प्रश्न ोश्र चकये। स्वयांसेवकों के उत्तरों में उन्हें यहश्र चमला चक ‘‘ब्राह्मण, मराुा, दीी
गचद ोेद हम सांघ में नहीं मानते। नपने पड़ोस में चकस ीाचत का स्वयांसेवक है इसका हमें पता ोश्र
नहीं तन्ा यह ीानने कश्र हमारश्र इच्छा ोश्र नहीं होतश्र। हम सण चहन्दू हैं और इसचलए ोाई हैं ।
पचरणामस्व प व्यवहार में ऊाँि-नश्रि मानने कश्र कल्पना हश्र हमें नहीं समझ में गतश्र।’’

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इस पर महात्माीश्र ने गप्पाीश्र से प्रश्न चकया ‘‘गपने ीाचतोेद कश्र ोावना कैसे चमटा दश्र ? इसके चलए
हम लोग तन्ा नन्य कई सांस्न्ाएाँ तो ीश्र-ीान से प्रयत्न कर रहे हैं परन्तग लोग ोेदोाव ोूलते नहीं। गप
तो ीानते हश्र हैं चक नस्पृश्यता नष्ट करना चकतना कचुन है । यह होते हग ए ोश्र गपने सांघ में इस कचुन
कायभ को कैसे चसद्ध कर चलया ?’’

इस पर गप्पाीश्र का उत्तर न्ा ‘‘सण चहन्दगओां में ोाई-ोाई का सम्णन्ि है यह ोाव ीाग्रत् करने से सण
ोेदोाव नष्ट हो ीाते हैं । भ्रातृोाव शब्दों में नहीं, गिरण में गने पर हश्र यह ीादू होता है । इसका
सम्पूणभ ीेय डॉक्टर हे डगेवार को है ।’’ इसश्र समय घोर्वादन हग ग तन्ा सोश्र स्वयांसेवक सश्रिे ‘दक्ष’
में खड़े हो गये और ध्वीोत्तोलन हग ग। ध्वीारोहण होने पर गप्पाीश्र के सान् महात्माीश्र ने ोश्र सांघ
कश्र पद्धचत से ोगवा ध्वी को प्रणाम चकया।

ध्वीप्रणाम के णाद महात्माीश्र चशचवर के नन्तगभत सांघ-वस्तग ोण्डार में गये। वहााँ एक ओर सूचियों,
छायाचित्रों, घोर्वाद्यों, गयगिों गचद कश्र एक छोटश्र-सश्र प्रदर्तशनश्र लगायश्र गयश्र न्श्र। उसके णश्रिों-णश्रि
सणकश्र चनगाह नपनश्र ओर गकृष्ट करनेवाला एक चित्र सीाकर लगाया हग ग न्ा। महात्माीश्र ने उसे
गौर से दे खकर पूछा ‘‘यह चकसका चित्र है ?’’

‘‘ये हश्र पूीनश्रय डॉक्टर केशवराव हे डगेवार हैं ,’’ गप्पाीश्र ने उत्तर चदया।

‘‘नस्पृश्यता नष्ट करने के सम्णन्ि में चीतना गपने उल्लेख चकया वे डॉक्टर हे डगेवार ये हश्र हैं ? इनका
सांघ से क्या सम्णन्ि है ?’’ महात्माीश्र ने पूछा।

‘‘वे सांघ के प्रमगख हैं । उन्हें हम सरसांघिालक कहते हैं । उनके नेतृत्व में सांघ का कायभ िल रहा है ।
उन्होंने हश्र सांघ प्रारम्ो चकया न्ा,’’ गप्पाीश्र ने कहा।

‘‘क्या डॉक्टर हे डगेवारीश्र से ोेंट हो सकेगश्र ? यचद यह ोेंट हो सकश्र तो उनके द्वारा हश्र सांघ-सम्णन्िश्र
ीानकारश्र प्राप्त करने का चविार है ,’’ महात्माीश्र णोले।

‘‘कल डॉक्टर हे डगेवार इस चशचवर में गनेवाले हैं । गपकश्र इच्छा हो तो वे गपके दशभन करें ग,े ’’
गप्पाीश्र ने णताया।

इस प्रकार वातालाप के णाद महात्माीश्र नपने गीम को लौट गये। ीाते-ीाते वह यह मत व्यि
करना नहीं ोूले चक ‘‘यह कायभ केवल चहन्दगओां तक सश्रचमत है , इसमें सणको छूट होतश्र तो नचिक
नच्छा होता।’’ इस पर कगछ ििा हग ई तन्ा उन्होंने यह मान्य चकया चक ‘‘दूसरों का द्वे र् न करते हग ए
केवल चहन्दगओां का सांगटन करना राष्ट्र-चवघातक नहीं।’’

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दूसरे चदन प्रातः डॉक्टरीश्र विा गये। उस समय विा स्टे शन पर हश्र सैचनक पद्धचत से उनका नचोवादन
चकया गया तन्ा तदनन्तर सोश्र स्वयांसेवक सांिलन करते हग ए चशचवर में गये। डॉक्टरीश्र के चशचवर
में गते हश्र स्वामश्र गनन्दीश्र ने गकर महात्माीश्र से चमलने के चलए डॉक्टरीश्र को चनमांचत्रत चकया
तन्ा राचत्र को साढे गु णीे का समय चनचित चकया। उसश्र चदन सायांकाल पूना के िमभवश्रर ीश्र
नण्णासाहण ोोपटकर कश्र नध्यक्षता में चशचवर का समारोप-कायभक्रम नत्यन्त ीोरदार प से सम्पन्न
हग ग। इसके णाद डॉक्टरीश्र, गप्पाीश्र तन्ा ोोपटकरीश्र तश्रनों महात्माीश्र से चमलने के चलए गीम
में गये। महात्माीश्र दगमांचीले पर नपनश्र णैुक में न्े। ीश्र महादे व दे साई ने द्वार पर हश्र सणका स्वागत
चकया तन्ा उन्हें ऊपर ले गये। महात्माीश्र ोश्र गगे गकर सणको नन्दर ले गये तन्ा नपने णगल में
हश्र गद्दे पर णैुा चलया। लगोग एक घण्टा महात्माीश्र तन्ा डॉक्टरीश्र के णश्रि ििा हग ई। ीश्र
नण्णासाहण ोोपटकर ने ोश्र ििा में कोश्र-कोश्र न्ोड़ा-सा ोाग चलया। इस सम्ोार्ण का कगछ प्रमगख
एवां महत्त्वपूणभ ोाग इस प्रकार न्ा।

महात्माीश्रः गपको पता िल गया होगा चक कल मैं चशचवर में गया न्ा।

डॉक्टरीश्रः ीश्र हााँ, गप चशचवर में गये यह स्वयांसेवकों का महताग्य हश्र है । मैं उस समय उपन्स्न्त
नहीं न्ा, इसका दगःख है । लगता है गपने एकाएक चशचवर में गने का चनणभय चलया। मगझे यचद पहले
से पता होता तो उस समय गने का नवश्य प्रयत्न चकया।

महात्माीश्रः एक दृचष्ट से नच्छा हश्र हग ग चक गप नहीं न्े। गपकश्र ननगपन्स्न्चत के कारण हश्र गपके
चवर्य में मगझे सरश्र ीानकारश्र चमल सकश्र। डॉक्टर, गपके चशचवर में सांख्या, ननगशासन, स्वयांसेवकों
कश्र वृचत्त, स्वच्छता गचद ननेक णातो को दे खकर णहग त सन्तोर् हग ग। गपका णैण्ड तो मगझे सणसे
नचिक पसन्द गया।

इस प्रकार प्रास्ताचवक सम्ोार्ण के णाद महात्माीश्र ने ‘‘सांघ दो-तश्रन गने में ोोीन कैसे दे सकता
है , हमें क्यों नचिक खिभ गता है ? क्या कोश्र स्वयांसेवकों को पश्रु पर सामान लादकर णश्रस मश्रल
तक सांिलन करवाया है ’’ गचद प्रश्न पूछे। ीश्र नण्णासाहण ोोपटकर का महात्माीश्र से चनकट का
पचरिय एवां सम्णन्ि होने के कारण डॉक्टरीश्र द्वारा प्रन्म प्रश्न का उत्तर दे ने के पूवभ हश्र उन्होंने कहा
‘‘गपको नचिक खिभ गता है उसका कारण गप सण लोगों का व्यवहार है । नाम तो रखते हैं
‘पणभकगटश्र’ पर नन्दर रहता है राीशाहश्र ुाु। मैं नोश्र सांघ में सणके सान् दाल रोटश्र खाकर गया हू ाँ ।
गपके समान वहााँ चवोेद नहीं है । सांघ के ननगसार िलोगे तो गपको ोश्र दो-तश्रन गने हश्र खिभ
गयेगा। उसमें डॉक्टर हे डगेवार क्या करें ग।े गपको तो ुाु िाचहए और खिभ ोश्र कम िाचहए। ये
दोनों णातें एक सान् कैसे हो सकेंगश्र ?’’ नण्णासाहण कश्र ये फणचतयााँ सण लोगों के मगि हास्य में
चवलश्रन हो गयीं।

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इसके उपरान्त महात्माीश्र ने सांघ का चविान, समािारपत्रों में प्रिार गचद चवर्यों पर ीानकारश्र के
चलए प्रश्न पूछे। इसश्र समय मश्रराणेन ने गाांिश्रीश्र को घड़श्र चदखाकर णताया चक नौ णी गये हैं । इस पर
डॉक्टरीश्र ने यह कहते हग ए चक ‘‘नण गपके सोने का समय हो गया है ’’ उनसे चणदा मााँगश्र। पर
महात्माीश्र ने कहा ‘‘नहीं, नहीं, नोश्र गप और णैु सकते हैं । कम-से-कम गिा घण्टा तो मैं सरलता
से और ीाग सकता हू ाँ ।’’ नतः ििा ीारश्र रहश्र।

महात्माीश्रः डॉक्टर ! गपका सांघटन नच्छा है । मगझे पता िला है चक गप णहग त चदनों तक काांग्रेस में
काम करते न्े। चफर काांग्रेसश्र ीैसश्र लोकचप्रय सांस्न्ा के नन्दर हश्र इस प्रकार का स्वयांसेवक-सांघटन
क्यों नहीं िलाया ? चणना कारण हश्र नलग सांगटन क्यों णनाया ?

डॉक्टरीश्रः मैंने पहले काांग्रेस में हश्र यह कायभ प्रारम्ो चकया न्ा। 1920 कश्र नागपगर काांग्रेस में मैं
स्वयांसेवक-चवोाग का कायभवाह न्ा तन्ा मेरे चमत्र डॉ. पराांीपे नध्यक्ष न्े। इसके णाद हम दोनों ने इस
णात के चलए प्रयत्न चकया चक काांग्रस
े में ऐसा सांगटन हो। चकन्तग सफलता नहीं चमलश्र। नतः यह स्वतांत्र
प्रयत्न चकया है ।

े में गपके प्रयत्न क्यों सफल नहीं हग ए ? क्या पयाप्त गर्तन्क सहायता नहीं चमलश्र ?
महात्माीश्रः काांग्रस

डॉक्टरीश्रः नहीं, नहीं, पैसे कश्र कोई कचुनाई नहीं न्श्र। पैसे से ननेक णातें सगकर हो सकतश्र हैं चकन्तग
पैसे के ोरोसे हश्र सांसार में कोई णात सफल नहीं हो सकतश्र। यहााँ तो प्रश्न पैसे का नहीं, नन्तःकरण
का है ।

महात्माीश्रः क्या गपका यह कहना है चक उदात्त नन्तःकरण के व्यचि काांग्रेस में नहीं न्े नन्वा नहीं
हैं ?

डॉक्टरीश्रः मेरे कहने का यह नचोप्राय नहीं है । काांग्रेस में ननेक नच्छे व्यचि हैं । चकन्तग प्रश्न तो
मनोवृचत्त का है । काांग्रेस कश्र मनोरिना एक राीनश्रचतक कायभ को सफल करने कश्र दृचष्ट से हग ई है ।
काांग्रेस के कायभक्रम इस णात को ध्यान में रखकर हश्र णनाये ीाते हैं तन्ा उस कायभक्रमों कश्र पूर्तत के
चलए उस स्वयांसेवकों कश्र गवश्यकता होतश्र है । स्वयांप्रेरणा से कायभ करनेवालों के णलशालश्र सांघटन
से सोश्र समस्याएाँ हल हो सकेंगश्र इस पर काांग्रेस का चवश्वास नहीं है । काांग्रेस के लोगों कश्र िारणा तो
स्वयांसेवक के सम्णन्ि में सोा-पचरर्दों में चणना पैसे के मेी-कगसी उुाने वाले मीदूर कश्र है । इस
िारणा से राष्ट्र कश्र सवााँगश्रत उन्नचत करनेवाले स्वयांस्फूतभ कायभकता कैसे उत्पन्न हो सकेंगे ? इसचलए
काांग्रेस में कायभ नहीं हो सका।

महात्माीश्रः चफर स्वयांसेवक के चवर्य में गपकश्र क्या कल्पना है ?

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डॉक्टरीश्रः दे श कश्र सवांगश्रण उन्नचत के चलए गत्मश्रयता से नपना सार-सवभस्व नपभण करने के चलए
चसद्ध नेता को हम स्वयांसेवक समझते हैं तन्ा सांघ का लक्ष्य इस प्रकार के स्वयांसेवकों के चनमाण का
है । इस सांघटन में स्वयांसेवक और नेता यह ोेद नहीं हैं । हम सोश्र स्वयांसेवक हैं यह ीानकर हश्र हम
एक दूसरे को समान समझते हैं तन्ा सणसे समान प से प्रेम करते हैं । हम चकसश्र प्रकार के ोेद को
प्रीय नहीं दे ते। इतने न्ोड़े समय में िन तन्ा नन्य सािनों का गिार न होते हग ए ोश्र सांघ -कायभ कश्र
इतनश्र वृचद्ध का यहश्र रहस्य है ।

महात्माीश्रः णहग त नच्छा। गपके कायभ कश्र सफलता में चनचित हश्र दे श का चहत सचन्नचहत है । सगनता हू ाँ
चक गपके सांघटन का विा चीले में नच्छा प्रोाव है । मगझे लगता है चक यह प्रमगखता से सेु ीमनालाल
णीाी कश्र सहायता से हश्र हग ग होगा।

डॉक्टरीश्रः हम चकसश्र से गर्तन्क सहायता नहीं लेते।

महात्माीश्रः चफर इतने णड़े सांघटन का खिभ कैसे िलता है ?

डॉक्टरीश्रः नपनश्र ीेण से नचिकाचिक पैसे गगरुदचक्षणा- प में नपभण कर स्वयांसेवक हश्र यह ोार वहन
करते हैं ।

महात्माीश्रः चनचित हश्र चवलक्षण है ! क्या गप चकसश्र से िन नहीं लेंगे ?

डॉक्टरीश्रः ीण समाी को नपने चवकास के चलए यह कायभ गवश्यक प्रतश्रत होगा तण हम नवश्य
गर्तन्क सहायता स्वश्रकार करें ग।े यह न्स्न्चत होने पर हमारे न मााँगते हग ए ोश्र लोग पैसे का ेर सांघ के
सामने लगा दें ग।े इस प्रकार कश्र गर्तन्क सहायता लेने में हमें कोई नड़िन नहीं। परन्तग सांघ कश्र पद्धचत
हमने स्वावलम्णश्र हश्र रखश्र है ।

महात्माीश्रः गपको इस कायभ के चलए नपना सम्पूणभ समय खिभ करना पड़ता होगा। चफर गप नपना
डॉक्टरीश्र का िन्िा कैसे करते हैं ?

डॉक्टरीश्रः मैं व्यवसाय नहीं करता।

महात्माीश्रः चफर गपके कगटगम्ण का चनवाह कैसे होता है ?

डॉक्टरीश्रः मैंने चववाह नहीं चकया।

यह उत्तर सगनकर महात्माीश्र कगछ स्तन्म्ोत हो गये। उसश्र प्रवाह में वे णोले ‘‘नच्छा गपने चववाह नहीं
चकया ? णहग त णचढया। इसश्र कारण इतनश्र न्ोड़श्र नवचि में गपको इतनश्र सफलता चमलश्र है ।’’ इस पर
डॉक्टरीश्र यह कहते हग ए चक ‘‘मैंने गपका णहग त समय चलया। गपका गशश्रवाद रहा तो सण

277
मनमाचफक होगा। नण गज्ञा दश्रचीए,’’ िलने के चलए उुे । महात्माीश्र उन्हें द्वार तक पहग ाँ िाने गये
तन्ा चणदा करते हग ए णोले ‘‘डॉक्टरीश्र, नपने िचरत्र तन्ा कायभ पर नटल चनष्ठा के णल पर गप
नांगश्रकृत कायभ में चनचित सफल होंगे।’’

डॉक्टरीश्र ने महात्माीश्र को नमस्कार चकया और िल चदये।

278
23. दौड़िूप के दो वर्भ
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के प्रयत्न फलश्रोूत होकर राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ प्रगचत-पन् पर प्रशस्त होता
ीा रहा न्ा। सांघकायभ को नपना हश्र काम समझकर प्रयत्न करने कश्र ोावना स्वयांसेवकों के ीश्रवन में
दृचष्टगत होने लगश्र न्श्र। 1935 के प्रारम्ो में हश्र महाराष्ट्र और मध्यप्रान्त के चवचोन्न स्न्ानों से नयश्र-नयश्र
शाखाएाँ खगलने के समािार केन्द्र को णराणर प्राप्त होते रहते न्े। कायभ का िैतन्य सवभत्र प्रस्फगचटत होता
हग ग चदखता न्ा। कायभचवस्तार के सान् उसके दृढश्रकरण कश्र ओर ोश्र डॉक्टरीश्र का णराणर लक्ष्य न्ा।
नतः स्न्ान-स्न्ान पर दौरा करने तन्ा नये-नये व्यचियों को शोि कर उन पर कायभ कश्र चीम्मेदारश्र
डालने और उनके द्वारा उसका सफलतापूवभक चनवाह करवाने का ोार उनके ऊपर ग गया। स्वतः
कश्र तचनक ोश्र चिन्ता न करते हग ए नत्यन्त चनरलस ोाव से वे नपने इस कतभव्य कश्र पूर्तत में ीगट गये
न्े इसका ननगमान इस काल के उनके पत्रव्यवहार से सही हश्र लगाया ीा सकता है ।

फरवरश्र मास में वे चवदोभ में ननेक शाखाओां के चनरश्रक्षण के हे तग गये। दौरे से वापस गने पर वे नपने
पत्र में चलखते हैं चक ‘‘.......ऐसा चदखता है चक चवदोभ का दौरा स्वास्र्थय के चलए ननगकूल नहीं रहा।
वहााँ से वापस गने के णाद प्रचतचदन हलका णगखार रहने लगा है तन्ा दगणभलता णहग त णढ गयश्र है । पर
खााँसश्र कतई नहीं है । चफर ोश्र फेफड़ों में काफश्र कमीोरश्र मालूम दे तश्र है । नतः तश्रव्र इच्छा होने के णाद
ोश्र नगचतक होकर कानपगर का दौरा स्न्चगत करना पड़ रहा है ।’’ चकन्तग इस नवस्न्ा में ोश्र नागपगर में
उनका घगमना-चफरना णराणर कायम न्ा। सोाओां में ‘साम्प्रदाचयक चनणभय’(Communal Award)
के चवरुद्ध ोार्ण, लगातार पत्रव्यवहार तन्ा लोकमान्य चतलक के स्नेहश्र ीश्र दादासाहण करन्दश्रकर के
नागपगर गगमन पर उन्हें चवचोन्न शाखाओां को चदखाने गचद के कायभक्रम वे णराणर करते रहे । इतना
हश्र नहीं, उि पत्र के चलखने के एक मास णाद वे महाराष्ट्र कश्र कगछ शाखाओां के दौरे पर गये तन्ा वहााँ
के व्यस्त एवां कष्टपूणभ कायभक्रमों का ोश्र चनवाह चकया।

नागपगर के सान् इस वर्भ पूना में ोश्र नचिकारश्र चशक्षण वगभ प्रारम्ो हग ग। उसके चनचमत्त डॉक्टरीश्र
चदनाांक 16 नप्रैल को नागपगर से गये तन्ा लगोग एक महश्रना महाराष्ट्र में रहकर वापस लौटे । इसमें
गु-दस चदन तो वे वगभ में रहे तन्ा शेर् समय में उन्होंने नाचसक, ुाणें, णम्णई, साांगलश्र गचद शाखा-
स्न्ानों का भ्रमण चकया। इस नवसर पर वे कोंकण का दौरा ोश्र करनेवाले न्े चकन्तग स्वास्र्थय ने सान्
नहीं चदया नतः नचनच्छापूवभक वापस लौटना पड़ा।

इस प्रवास का डॉक्टरीश्र द्वारा चकया गया वणभन, उनके सहनशश्रल स्वोाव तन्ा सही लेखन-कगशलता
पर पयाप्त प्रकाश डालता है । वे चलखते हैं चक ‘‘...........हम साांगलश्र के चलए चनकले। रे लगाड़श्र में राचत्र

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को सोने के चलए काफश्र ीगह चमल गयश्र न्श्र। चकन्तग यह स्न्ान रोकने कश्र कोचशश में मेरश्र कमर में
एकाएक िमक ग गयश्र। गाड़श्र में रात-ोर सोते हग ए प्रवास करने के णाद ोश्र उस िमक में कोई कमश्र
नहीं गयश्र। प्रातः साांगलश्र स्टे शन पर सांघ कश्र ओर से स्वागत के कायभक्रम कश्र योीना कश्र गयश्र न्श्र।
चकन्तग मेरे चलए उुकर णैुना नन्वा खड़ा होना ोश्र नशक्य न्ा। इस पचरन्स्न्चत में प्रातः छः णीे
साांगलश्र स्टे शन पर गाड़श्र ग पहग ाँ िश्र। चीस साांगलश्र सांघशाखा कश्र कश्रर्तत गी तक गपको सगनने को
चमलतश्र न्श्र वहश्र यह शाखा न्श्र। स्टे शन पर गणवेश में सगसज्ज स्वयांसेवक प्लेटफॉमभ पर पांचियों में खड़े
न्े। नगर ननेक प्रचतचष्ठत व्यचि ोश्र वहााँ गये न्े। मैंने कमर कश्र पश्रड़ा को चकसश्र-न-चकसश्र प्रकार सहन
कर, लोगों को पता न लगे इस प्रकार के ोाव से, स्टे शन पर उतरकर पगष्ट्पमालाएाँ गचद स्वागत को
स्वश्रकार चकया। स्टे शन से ीाते हश्र सांघस्न्ान पर परेड का कायभक्रम रखा न्ा। ीैसे-तैसे उस कायभक्रम
को ोश्र पूवभचनयोचीत पद्धचत से पूरा चकया। परन्तग इस पचरीम से कमर का ददभ णहग त णढ गया न्ा।
दोपहर के णाद उुना-णैुना ोश्र कतई नसम्ोव हो गया तन्ा सायांकाल का कायभक्रम रद्द करना
पड़ा।..........

‘‘कमर के ददभ के कारण यद्यचप मैं चणस्तर पर हश्र लेटा रहता हू ाँ चफर ोश्र शरश्रर में ज्वर गचद कग छ न
होने के कारण यहााँ के सांघिालक ीश्र काशश्रनान्राव चलमये के घर तक स्वयांसेवकों तन्ा नगर के
प्रचतचष्ठत ीनों का चमलने के चलए गना-ीाना णराणर िलता रहता है । लगता है चक णश्रमारश्र
साांगलश्रवालों के चलए लाोदायक हश्र हग ई है । इसके कारण मैं साांगलश्र में पााँि-सात चदन तक रुक सका।
साांगलश्रवाचसयों को इसका गनन्द होने के कारण मेरश्र णश्रमारश्र को उन्होंने ‘णोलतश्र णश्रमारश्र’ नाम चदया
है ।’’

इस णश्रमारश्र कश्र नवस्न्ा में उन्होंने साांगलश्र के कॉलेी के चद्वतश्रय वर्भ के चवद्यान्ी स्वयांसेवकों कश्र एक
णैुक लश्र न्श्र। उसमे उन्होंने यह चविार रखा न्ा चक स्वयांसेवक के ीश्रवन में यचद कोई हर्भ का प्रसांग
उपन्स्न्त हो तो उसका पचरणाम सांघकायभ कश्र वृचद्ध में होना िाचहए। इसके णाद उन्होंने स्वयांसेवकों से
पूछा ‘‘परश्रक्षा उत्तश्रणभ होने के णाद गप सांघ को क्या-क्या दें गे ?’’ इस प्रश्न के उत्तर में प्रत्येक ने कगछ
रुपयों का गाँकड़ा णताकर सांघ को दे ने का विन चदया। इस पर डॉक्टरीश्र हाँ सते हग ए णोले ‘‘गनन्द
होने पर सांघ को क्या-क्या दें गे इसका ीो गश्वासन चदया है उसे ध्यान में रचखये। पर ननगत्तश्रणभ होने
पर दण्ड दे ना पड़ेगा यह ोश्र मत ोूचलए।’’ उनकश्र यह प्रोावकारश्र वाणश्र ोश्र ननेक ीनों के मानस में
गूी
ां तश्र हग ई चदखतश्र है ।

कमर में िमक गने के कारण साांगलश्र में प्रारम्ो में चनचित ोार्ण नहीं हो सका। परन्तग वहााँ से िलने
के पहले चदनाांक 2 मई को यह कायभक्रम हग ग। इस ोार्ण में डॉक्टरीश्र ने सांघ कश्र पौने दो सौ शाखाओां
के िलने का वृत्तान्त णताया न्ा। चहन्दू समाी कश्र नसांघचटत न्स्न्चत के घातक पचरणामों तन्ा

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राीनश्रचतक वातावरण में व्याप्त ‘सत्य और नकहसा’ के तत्त्वों का सहश्र रक्षण कैसे हो सकता है इसका
ोश्र चववेिन उन्होंने नपने इस ोार्ण में नत्यन्त ीोरदार शब्दों में चकया न्ा। उन्होंने कहा न्ा चक
‘‘........गत्मसांरक्षण प्रत्येक को करना िाचहए। दूसरे कश्र कहसा न करना तो उत्तम है हश्र, परन्तग उसके
चलए गत्मनाश कर लेना योग्य नहीं। इस तत्त्व से चहन्दू समाी कश्र ोारश्र हाचन होगश्र। हमें इसे टालना
िाचहए। चहन्दगस्न्ान में पहले सोश्र चहन्दू न्े चकन्तग गी केवल परश्रस करोड़ चहन्दू रह गये हैं तन्ा शेर्
दस करोड़ परमतावलम्णश्र हो गये हैं । इन लोगों के रि कश्र परश्रक्षा कश्र तो इनमें से नचिकाांश नपने को
चहन्दू हश्र चमलेंग।े इससे हम कल्पना कर सकते हैं चक नपने समाी का ह्वास चकस प्रकार हग ग है ।
नपने समाी कश्र ओर ननास्न्ा से न दे खकर हमें णलसांविभन करना िाचहए चीससे हम सम्पूणभ ीग
के चलए ोारश्र हो ीायें। एक णार नपने हान्ों में शचि गयश्र चक नन्तःकरण एवां गिरण में ‘सत्य
और नकहसा’ के तत्त्वों कश्र छाप णैुाते चकतनश्र दे र लगेगश्र ?’’

डॉक्टरीश्र सदै व णताते रहते न्े चक णलहश्रन एवां नसांघचटत रहकर केवल ‘सत्य और नकहसा’ के
तत्त्वों का उद्घोर् करते रहे तो गत्मनाश चनचित है । चकन्तग गी यह सखेद मानना पड़ेगा चक लोगों
ने उन चदनों के इन उदात्त तत्वों के शान्ब्दक शोर में डॉक्टरीश्र के शब्दों कश्र ओर पयाप्त ध्यान नहीं
चदया। राचत्र के गहन नन्िकार में पहरा दे नेवाला नपना गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता है तन्ा सोनेवालों
के द्वार ीोर से खटखटाकर उन्हें सिेत करने एवां ीगाने का प्रयत्न करता है । इतने पर ोश्र यचद
कगम्ोकणी चनद्रा में मग्न ीनता कश्र नींद न खगले तन्ा िोर घर में सेंि लगाकर लूटमार करके िलते णनें
तो दोर् चकसका ?

साांगलश्र में हग ए इसश्र कायभक्रम के नवसर पर डॉक्टरीश्र का सांघ के गणवेश में छायाचित्र चलया गया।
इसके चलए ीश्र काशश्रनान्पन्त को णहग त हु करना पड़ा तन्ा डॉक्टरीश्र इस गश्वासन पर हश्र फोटो
कखिवाने को तैयार हग ए न्े चक उस फोटो के चनगेचटव फाड़ चदये ीायेंगे तन्ा चित्रों का प्रिार नहीं चकया
ीायेगा। इस पचरन्स्न्चत में हश्र डॉक्टरीश्र का गणवेश में एकमेव चित्र उपलब्ि हो सका।

महाराष्ट्र से लौटते हग ए डॉक्टरीश्र ने िाांदरू में ीश्र म्हसूरकर महाराी के दशभन चकये। यह कहने कश्र
गवश्यकता नहीं है चक चहन्दू समाी में णल और गत्मचवश्वास के उद्दाम प्रकटश्रकरण कश्र उत्कट
इच्छा लेकर िलनेवाले इन दो महापगरुर्ों कश्र ोेंट में तत्कालश्रन दे श कश्र चिन्ताीनक पचरन्स्न्चत के
सम्णन्ि में चविार-चवचनमय हग ग होगा। चहन्दगत्व के ीागरण का ध्येय लेकर ीो-ीो व्यचि नन्वा
सांघटन प्रयत्नशश्रल हैं उनमें सदै व परस्पर सहयोग कश्र ोावना णनश्र रहे तन्ा सण प्रवाह चमलकर गगे
एक प होकर िलें, इसश्र चविार और उद्देश्य से डॉक्टरीश्र सदै व ननेक व्यचियों से चमलते रहते न्े।
िाांदरू के णाद डॉक्टरीश्र नकोला के चशक्षावगभ में गये। इस वगभ का ोार ीश्र गगरुीश्र के ऊपर सौंपा गया
न्ा। वगभ में प्रोावश्र सांस्कार उत्पन्न करने कश्र दृचष्ट से नत्यन्त तेीस्वश्र वातावरण का उनके द्वारा चनमाण
दे खकर डॉक्टरीश्र को हार्तदक गनन्द हग ग। वगभ के प्रारम्ो में हश्र ीश्र गगरुीश्र का एल. एल. णश्र. कश्र

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पहलश्र परश्रक्षा का पचरणाम घोचर्त हो िगका न्ा। वे प्रन्म ीेणश्र में उत्तश्रणभ हो गये न्े। ीश्र गगरुीश्र के
कतृभत्व को दे खकर यचद डॉक्टरीश्र कश्र उनकश्र ओर से गशाओां में वृचद्ध हग ई तो कोई गियभ का चवर्य
नहीं। नागपगर के काम के चलए एक कगशाग्रणगचद्ध एवां चनरलस कायभकता प्राप्त होगा यह उनकश्र नपेक्षा
न्श्र। चकन्तग एक णात का खटका उनके मन में सदै व णना रहता न्ा और वह न्ा ीश्र गगरुीश्र कश्र वैराग्य-
वृचत्त के चवर्य में।

ीश्र गगरुीश्र के नागपगर गने के णाद उनका ीश्र रामकृष्ट्ण गीम में णराणर गना-ीाना चकसश्र से चछपा
नहीं न्ा। डॉक्टरीश्र को यह ोश्र पता लग गया न्ा चक वे गध्यान्त्मक ग्रन्न्ों के पुन तन्ा ध्यान-िारणा
गचद में लश्रन रहते न्े। ऐसश्र न्स्न्चत में डॉक्टरीश्र को सदै व हश्र शांका लगश्र रहतश्र न्श्र चक ऐसा व्यचि
कहीं एक चदन ‘‘सगहृदा मी सदन कशाला। सामावगां शके का मीला, तें कदा। णघ पाखें वर गकाश।
चहरवळ हश्र शय्या खास, मी नसे।’’(‘‘घर मगझको कण णााँि सका, गर कश्र क्या ोैया। ऊपर है
गकाश, हरश्र दूवा कश्र शैया।’’) कहता हग ग चवरागश्र णनकर न िला ीाये। उन्हें वैराग्य से चवरचि नहीं
न्श्र। डॉक्टरीश्र का स्वतः का ीश्रवन िलता-चफरता मूर्ततमान् वैराग्य का हश्र ीश्रवन न्ा। चकन्तग समाी
से दूर ोागकर केवल गत्मसगख में लश्रन वैराग्य का स्व प डॉक्टरीश्र को नहीं रुिता न्ा। वे तो ऐसा
वैराग्य िाहते न्े चीससे दे शकाल कश्र पचरन्स्न्चत का चविार कर समाी में रहते हग ए ोश्र कमलपत्र पर
ीलचणन्दग के समान चनरासि कमभयोगश्र का ीश्रवन चणताया ीा सके। कमर पर हान् रखकर खड़े चवट्ठल
को ीश्र समन्भ के समान प्रणाम करते हग ए उन्होंने नवश्य हश्र पूछा होगा चकः

‘‘ये थे उभा कां श्रीरामा

मनमोहन मेघश्यामा ?।

धनु ष्ट्यबाण काय केले ?

कर कटािरी ठे विले ? ।।’’

(‘‘यहाुँ पर क्यों खडे हो राम मेघश्याम मनमोहन ?

सर-शर धन्धा कहाुँ है , क्यों कमर पर हाथ हैं इस क्षण ?’’)

282
कतभव्याकतभव्य का चनणभय इस प्रकार दे शकाल कश्र पचरन्स्न्चत का चविार करके हश्र करना पड़ता है ।
इसश्र कारण तो लोकमान्य चतलक ने एक णार ये कुोर शब्द कहे न्े चक ‘‘नपने हीारों दे श-णालकों
के चवपन्नावस्न्ा में होते हग ए ोश्र ीो नाक पकड़कर घर में णैुे हग ए हैं वे ोंगश्र हैं ।’’ इसश्र दृचष्ट से डॉक्टरीश्र
िाहते न्े चक ीश्र गगरुीश्र कश्र वृचत्त वनाचोमगख न होकर ीनाचोमगख हो।

डॉक्टरीश्र के नकोला से नागपगर गने के णाद चदनाांक 24 मई को मध्यप्रान्त के सचिवालय के णहग त-


से कागी-पत्र नचग्नकाण्ड में ोस्म होकर राख हो गये। इस घटना से डॉक्टरीश्र णहग त प्रसन्न न्े क्योंचक
इसके कारण चवद्यान्ी-काल से लेकर उनके क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन तक कश्र उनके चवर्य में सरकारश्र
चटप्पचणयााँ एवां सूिनाएाँ गनायास हश्र नष्ट हो गयश्र न्ीं। इस चवर्य में उन्होंने नपने चमत्रों से कहा न्ा
‘‘नच्छा हग ग वे सण कागी-पत्र ील गये। नण मेरश्र स्लेट कोरश्र है ।’’

इन चदनों उत्तर चहन्दगस्न्ान में ीानकार लोगों को ोचवष्ट्य कश्र ोश्रर्णता को गशांका होने लगश्र न्श्र तन्ा
उन्हें यह ोश्र लगने लगा न्ा चक इस ोचवतव्य को टालने का एक हश्र सम्ोव उपाय है और वह है
डॉक्टरीश्र के कायभ को चवस्तृत एवां तेीस्वश्र णनाना। लोगों को यह समझ में ग रहा न्ा चक चहन्दू समाी
पर कहीं ोश्र गक्रमण होने के णाद उसकश्र चनन्दा का ीोरदार प्रस्ताव स्वश्रकार कर तन्ा ोावावेश के
सान् नत्यन्त गरम ोार्ण दे ने के नचतचरि सोा और पचरर्दों से चकसश्र ुोस पचरणाम कश्र प्राचप्त नहीं
होने कश्र। उनके सामने यह चवकट प्रश्न उपन्स्न्त न्ा चक मगसलमानों और ईसाइयों कश्र चदन-प्रचतचदन
णढनेवालश्र गक्रमकता का प्रचतकार इन कोरे शब्दों से कैसे हो सकेगा ? इस न्स्न्चत के कारण हश्र
कलकत्ता के णाणू पद्मराी ीैन ने णार-णार पत्र चलखकर डॉक्टरीश्र से पांीाण तन्ा उत्तर प्रदे श का दौरा
करने का गग्रह चकया न्ा। लाहौर से ोाई परमानन्दीश्र के ीामाता ीश्र िमभवश्ररीश्र के पत्रों से ोश्र समाी
कश्र इस चवर्म न्स्न्चत तन्ा सांघटन कश्र उत्कट गवश्यकता का सांकेत चमलता है । चदनाांक 3 निूणर
1935 के नपने पत्र में वे चलखते हैं चक ‘‘चहन्दगओां कश्र न्स्न्चत नत्यन्त नाीगक है । सामगदाचयक
गत्मसांरक्षण कश्र कला नवगत करने के उद्देश्य से मैं गपके सान् रहना िाहता हू ाँ । नन्य एक सज्जन
ोश्र मेरे सान् गयेंग।े ’’

इस पत्र के तगरन्त णाद हश्र ोाई परमानन्दीश्र के गदे श पर ीश्र इन्द्रप्रकाश ने डॉक्टरीश्र को ीनवरश्र
1936 में होनेवालश्र नचखल ोारतश्रय चहन्दू यगवक पचरर्द् में ोाग लेने का गग्रहपूवभक चनमांत्रण ोेीा।
इसमें नन्त में वे चनवेदन करते हैं चक ‘‘गप सांघटन करने के चलए हमारे खिभ पर कम-से-कम एक
वर्भ के चलए तो पांीाण में नवश्य रहें ।’’ इस प्रकार के पत्र उन चदनों णराणर ग रहे न्े। नतः डॉक्टरीश्र
ने ऐसे स्वयांसेवकों का छााँटना प्रारम्ो कर चदया ीो पढाई के चनचमत्त नागपगर से णाहर चनचित स्न्ानों
पर ीा सकें। चकन्तग दूसरे प्रान्तों में ीानेवाले स्वयांसेवकों को वहााँ कश्र ोार्ा गनश्र िाचहए तन्ा ननीाने
वातावरण में ोश्र दृढता से लगकर काम कर सकना गना िाचहए। इस दृचष्ट से उन्होंने स्न्ान-स्न्ान पर

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स्वयांसेवकों को तेलगगू, चहन्दश्र, णाँगला गचद ोार्ाएाँ सश्रखने का गग्रह चकया। सगदैव से मराुश्र और
चहन्दश्र ोार्ाोार्श्र क्षेत्रों कश्र सश्रमा पर होने के कारण नागपगर में तो दोनों ोार्ाओां का समान प से
व्यवहार होता न्ा। नतः मराुश्र णोलनेवाला स्वयांसेवक न्ोड़े-से प्रयत्न के णाद हश्र टूटश्र-फूटश्र चहन्दश्र में
नपने ोावों को सही व्यि कर सकता न्ा। चकन्तग नन्य प्रान्तों में ीाने का गत्मचवश्वास णढाने के
उद्देश्य से डॉक्टरीश्र ने कगछ लोगों को चहन्दश्र का नचिक नभ्यास करने के चलए योीनानगसार प्रोत्साहन
चदया। इस हे तग वे स्यवां ोश्र कोश्र-कोश्र नागपगर में शाखाओां पर चहन्दश्र में नपने चविार प्रकट करने लगे
तन्ा णश्रि-णश्रि में कगछ स्वयांसेवकों को उन्होंने महाकौशल में चवस्तारक के नाते ोेीने कश्र ोश्र योीना
णनायश्र। यचद कोई स्वयांसेवक यह कहना चक मगझे तो मराुश्र ोाग में हश्र ोेचीए तो वे उसे णताते चक
‘‘ोार्ा नहीं गतश्र तो डरने से कैसे काम िलेगा ? उस क्षेत्र में ीाओ तो ोार्ा नपने गप ग ीायेगश्र।
पानश्र में उतरे चणना क्या तैरना सश्रख सकते हो ?’’ इस यगचिवाद के पिात् कोई क्या णोल सकता न्ा
?

इन नवश्रन उपक्रम के कारण समय-समय पर नच्छे चवनोद के प्रसांग उपन्स्न्त हो ीाते न्े। मराुश्र के
शब्दों के ुश्रक चहन्दश्र पयायवािश्र न मालूम होते हग ए ोश्र विा नटकल से तगोंा लगाते हग ए ीो
वाक्यरिना करता वह ऐसश्र मीेदार णन ीातश्र चक िारों ओर हाँ सश्र चणखर पड़तश्र। ‘‘छाछ में नदरक
डाला है ’’ (ताांकात गलें घातलें) का ननगवाद ीण वगभ में एक कायभकता ने ‘‘तोंा में नल्ला डाला’’
यह चकया तो यह वाक्य णहग त चदनों तक मनोचवनोद का चवर्य णना रहा। चकन्तग चवचोन्न ोार्ाओां को
सश्रखने के डॉक्टरीश्र के गग्रह और प्रोत्साहन के कारण हश्र ऐसे कायभकता चनकल सके ीो चकसश्र ोश्र
प्रान्त में ीाकर सफलता और गत्मचवश्वास के सान् कायभ कर सकें। 1935 में ीश्र दादाराव परमान्भ,
ीश्र णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र येरकगण्टवार के समान हश्र कगछ नये कायभकताओां को उन्होंने खानदे श
तन्ा महाकोशल ोाग में प्रिार के चलए ोेीा। दूर-दूर के प्रदे शों में स्वयांसेवक को प्रिार के चलए ोेीने
कश्र योीना कश्र यह पहलश्र सश्रढश्र न्श्र।

सांघ का चवस्तार णढ रहा न्ा। सान् हश्र उसे सम्हाल सकने योग्य चनष्ठा और ननगशासन ोश्र चदन-प्रचतचदन
के कायभक्रमों के द्वारा दृढ हो रहे न्े। सािारणतः सांस्न्ाओां में चलचखत चविान से हश्र कायभ प्रारम्ो होता
है । चकन्तग डॉक्टरीश्र ने सांघ में चलचखत चनयम और चविान पर णल दे ने कश्र नपेक्षा व्यवहार में उसका
चनचित स्व प चनमाण करने का प्रयत्न चकया नन्ात् सांघ के पदाचिकारश्र, उसका दाचयत्व, दै चनक शाखा
पर स्वयांसेवकों के चलए गिारपद्धचत गचद सण णातों को िश्ररे-िश्ररे चनचित करके डॉक्टरीश्र ने उन्हें
िारों ओर समान प से प्रसृत चकया। सांघ के चवचि-चनयमों का प्रसार कागी-कलम का उपयोग न
करते हग ए ोश्र सवभत्र नत्यन्त व्यवन्स्न्त रश्रचत से हग ग। यह णात उस समय और गी ोश्र गियभ में
डालनेवालश्र है । यह कायभ सातत्य के सान् िलता रहे इसके हे तग डॉक्टरीश्र ने ग्रश्रष्ट्मावकाश में नचिकारश्र
चशक्षण वगों कश्र योीना कश्र न्श्र। सणसे पहले सांघ के कचतपय चनयमों का चनिारण 1927 में डॉक्टरीश्र

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द्वारा नपने कगछ सहयोचगयों के परामशभ के णाद हग ग न्ा। निूणर 1935 में तण तक के ननगोव के
गिार पर उनमें कगछ सांशोिन चकया गया। उनके एक पत्र से पता िलता है चक उन्होंने ीश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र, ीश्र दादासाहण दे व तन्ा ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर को शारश्रचरक चशक्षणपद्धचत तन्ा गिारपद्धचत
कश्र पगनरभ िना करने के चलए चसन्दश्र में ीश्र नानासाहण टालटगले के चनवासस्न्ान पर णगलाया न्ा। इस
समय सात-गु चदन वे वहााँ रहे । डॉक्टरीश्र को सतत भ्रमण से कगछ चवीाम ोश्र चमल गया। ीश्र
टालाटगले ने यह ोश्र व्यवस्न्ा कश्र चक उनकश्र पश्रु के ददभ के स्न्ान पर माचलश कश्र ीा सके।

इस वर्भ सांघ के एक चहतैर्श्र सातारा के प्रचसद्ध चवचिज्ञ ीश्र दादासाहण करन्दश्रकर का नागपगर में दे हान्त
हो गया। नागपगर में उनके चनवासकाल में डॉक्टरीश्र ने उन्हें सांघ कश्र शाखाएाँ चदखायश्र न्ीं। स्वयांसेवकों
के कायभ से वे इतने प्रोाचवत हग ए चक उन्होंने एक सौ रुपये कश्र ‘ ाल’ सांघ को दे ने का सांकल्प चकया।
उनकश्र मृत्यग के उपरान्त उनके सगपगत्र णै. चवट्ठलराव करन्दश्रकर ने निूणर 1935 में ‘ ाल’ के चलए सौ
रुपये डॉक्टरीश्र के पास ोेी चदये। स्व. करन्दश्रकर कश्र यह इच्छा न्श्र चक िनगर्तवद्या में प्रवश्रणता-प्राप्त
स्वयांसेवक को वह ाल दश्र ीाये। डॉक्टरीश्र इस णात का सदै व ध्यान रखते न्े चक ीो िन चीस हे तग
से चदया ीाये नन्वा सांग्रहश्रत हो उसका उसश्र कायभ में चवचनयोग होना िाचहए। एक कारण णताकर िन
लेना और चफर उसका चकसश्र दूसरे कायभ में उपयोग उनको पसन्द नहीं न्ा। वे इस चवर्य में चलखते हैं
‘‘सांघ में िनगर्तवद्या का चशक्षण नहीं है । हमने इसकश्र चशक्षा का चवोाग खोलने का ोश्र चविार चकया।
चकन्तग पहले हश्र सांघ में कायभक्रम कश्र खींितान िल रहश्र है । उनमें इस नवश्रन चवोाग का समावेश
सम्ोव नहीं। इस न्स्न्चत में गपके ोेीे हग ए रुपये गपके णताये हग ए उद्देश्य से खिभ करना सम्ोव न
होने के कारण हमारे पास नमानत के प में ीमा हैं । गप ीैसा णतायेंगे उसके ननगसार उनकश्र
व्यवस्न्ा होगश्र।’’ इस िन से गगे िलकर सातारा शाखा के कायालय का स्न्ान खरश्रदा गया। िारों
ओर ीण पैसे का गोलमाल सािारण व्यवहार णन गया हो तण गर्तन्क दृचष्ट से यह प्रामाचणकता
नसािारण हश्र न्श्र।

इस वर्भ कश्र उल्लेखनश्रय घटनाओां में ीश्र गणाीश्र हे डगेवार का खानदे श में प्रवास ोश्र है । रामपायलश्र से
नागपगर में डॉक्टरीश्र के यहााँ गकर रहने के उपरान्त वे सांघकायभ कश्र ओर ध्यान दे ने लगे न्े तन्ा णश्रि-
णश्रि में णाहर प्रिार के चलए दौरा ोश्र करते न्े। इस समय उनकश्र गयग सत्तर वर्भ के लगोग न्श्र चकन्तग
चफर ोश्र वे मन और शरश्रर दोनों से हश्र यगवकों के समान उत्साहश्र तन्ा मीणूत न्े। कतभव्यचनष्ठा उनके
नांग-नांग में ोरश्र हग ई न्श्र। वे ोगसावळ, िगचलया, परोळा, एरण्डोल, िरणगााँव, यावल, कपगळनेर,
रनाळें , नन्दूरणार, दौड़ईिें, चशरपगर, तन्ा शहादें गचद स्न्ानों पर गये तन्ा वहााँ सांघशाखाओां कश्र दृचष्ट
से लोगों से ििा कश्र।

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वृद्ध गणाीश्र के सान् दौरे पर चकसश्र तरुण कायभकता को ोेीना गवश्यक न्ा। इस दृचष्ट से एक चदन
डॉक्टरीश्र ने निानक ीश्र कृष्ट्णराव वडेकर के पास ीाकर उनसे पूछा ‘‘गणाीश्र दौरे पर ीा रहे हैं ,
क्या तगम दो महश्रने के चलए उनके सान् ीा सकोगे ?’’ ीश्र कृष्ट्णराव ने ‘‘हााँ’’ ोर दश्र। वास्तव में वे
नागपगर के एक चवद्यालय में नध्यापक न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र के शब्द का इतना मूल्य न्ा चक वे नौकरश्र
कश्र चिन्ता नहीं कर सके। डॉक्टरीश्र ोश्र वहीं शब्द चनकालते न्े ीहााँ वे ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक वह
खालश्र नहीं ीायेगा। सान् हश्र चीसने समपभणोाव से उनकश्र णात चशरोिायभ कश्र उसकश्र सण प्रकार कश्र
चिन्ता करने में ोश्र वे चकसश्र प्रकार कश्र कोर-कसर नहीं रखते न्े। दो महश्रने के चलए णाहर ीाने के णाद
ीश्र वडेकर ननेक वर्भ सांघकायभ हश्र करते रहे । चकन्तग ीण डॉक्टरीश्र को यह पता लगा चक उन्हें नपनश्र
पढाई कश्र नपूणत
भ ा का ननगोव होता है तो गगे पढने के चलए उन्होंने प्रोत्साहन हश्र नहीं चदया नचपतग
सहायता कश्र ोश्र व्यवस्न्ा कश्र। फलस्व प गी वे एक चशक्षक से णढकर चवचिज्ञ णन गये हैं ।

चदसम्णर 1935 में पूना में महासोा पां. मदनमोहन मालवश्रय कश्र नध्यक्षता में चहन्दू महासोा का
नचिवेशन होनेवाला न्ा। चीस नवसर पर दे श का चविार करनेवाले सज्जन एकत्र हों उसे डॉक्टरीश्र
एकत्र व्यचियों को सांघकायभ का पचरिय कराने के चलए उपयगि पवभ हश्र मानते न्े। इस समय ोश्र पूना
कश्र सांघ-शाखा ने गगन्तगक व्यचियों को नत्यन्त उत्कृष्ट प्रात्यचक्षक चदखाने कश्र तैयारश्र कश्र न्श्र। वहााँ
के नचिकाचरयों का यह गग्रह न्ा चक प्रात्यचक्षक कायभक्रम के नवसर पर डॉक्टरीश्र ोश्र वहााँ उपन्स्न्त
रहें । णश्रमारश्र तन्ा पैर में हग ए एक घाव के कारण चहलना-डगलना सम्ोव न होने के कारण डॉक्टरीश्र ने
पहले तो गने में नपनश्र चववशता प्रकट कश्र न्श्र चकन्तग नन्त में उस नवस्न्ा में ोश्र वे चदनाांक 28
चदसम्णर को पूना पहग ाँ ि गये।

महासोा के नचिवेशन के चलए गये प्रचतचनचियों को प्रोाचवत करने कश्र दृचष्ट से चदनाांक 30 चदसम्णर
को पााँि सौ गणवेशिारश्र स्वयांसेवक ने सैचनक सांिलन तन्ा मानवन्दना का कायभक्रम चकया। इसके
उपरान्त सांघ कश्र ोूचमका पर प्रकाश डालते हग ए डॉ. मगांीे तन्ा णाणू पद्मराी ीैन के ोार्ण हग ए। स्वास्र्थय
चगरा हग ग होने के कारण डॉक्टरीश्र नहीं णोले। हााँ, समारम्ो के नन्त में उन्होंने सणका गोार नवश्य
माना। कायभक्रम का गये हग ए सज्जनों पर नच्छा प्रोाव तन्ा पचरणाम हग ग। इस सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र
चलखते हैं चक ‘‘............यह कायभक्रम पूणभतः पचरणामकारश्र हग ग। सण लोग मगिकण्ु से सांघ कश्र
प्रशांसा करने लगे हैं । णाणू पद्मराी ीैन ने तो ीहााँ-तहााँ सांघ का स्तगचतगान हश्र प्रारम्ो कर चदया है ।
स्न्ान-स्न्ान से सांघशाखा प्रारम्ो करने कश्र मााँग ग रहश्र है । इस णढते हग ए काम के चलए गवश्यक
मनगष्ट्य-णल कश्र पूर्तत करने का दाचयत्व नागपगर पर हश्र है ......।’’

नचिवेशन के णाद ोोर, णम्णई तन्ा नकोला होते हग ए 1936 के प्रारम्ो में डॉक्टरीश्र नागपगर लौटे।
प्रवास में काफश्र िलने-चफरने के कारण पैर पर ीोर पड़ने से घाव नच्छा होने के स्न्ान पर और ोश्र

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णढता गया। सान् हश्र प्रवास में स्न्ान-स्न्ान पर नलग-नलग दवाएाँ लगायश्र गयश्र न्ीं चीससे वह और
ोश्र पश्रड़ा दे ने लगा। इस सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र ने नपना कष्ट इन शब्दों में व्यि चकया है ‘‘िलने कश्र
मेहनत तन्ा डॉक्टरों कश्र नलग-नलग प्रकार से ड्रेकसग के कारण ीख्म नच्छा होने में काफश्र समय
ले रहा है ।’’ पैर कश्र यह पश्रड़ा लगोग दो महश्रने तक रहश्र।

इन चदनों पैसे कश्र पगनः कचुनाई होने लगश्र। नतः डॉक्टरीश्र को णाहर ीाने के कायभक्रम स्न्चगत करते
हग ए िन एकत्र करने के चलए पैर में पश्रड़ा होने पर ोश्र प्रयत्न करना पड़ा। कगछ चमत्रों के पत्र-पर-पत्र ग
रहे न्े चक ‘‘चवीाम के चलए कगछ चदनों को हमारे यहााँ गइए।’’ डॉक्टरीश्र ने इन पत्रों का कोई उत्तर
नहीं चदया। इस पर नकोला से ीश्र णाणा चितळे ने तचनक कुद्ध होते हग ए चलखा चक ‘‘न तो हमारे चकसश्र
पत्र का गप उत्तर दे ते हैं और न चवीाम के चलए नकोला गते हैं ।’’ नतः नन्त में चनरुपाय होकर
डॉक्टरीश्र को नपनश्र न्स्न्चत स्पष्ट प से णतानश्र पड़श्र। उन्होंने चलखा ‘‘पैसे इकट्ठा करके सांघ को चदये
चणना मैं नागपगर छोड़ नहीं सकता तन्ा णाहर चवीाम के चलए न ीाने से मेरा स्वास्र्थय चणगड़ता ीा रहा
है । इस चवर्म न्स्न्चत में क्या चकया ीाये समझ में नहीं गता।’’ पर यह तो स्पष्ट हश्र है चक नपने चगरते
हग ए स्वास्र्थय कश्र चिन्ता न करके उन्होंने सांघकायान्भ िनसांग्रह को हश्र प्रिानता दश्र न्श्र।

पूना के नस्पृश्यता-चनवारक मण्डल कश्र ओर से सौ ोार्णों कश्र योीना णनायश्र गयश्र न्श्र। इसके
नन्तगभत उन्होंने डॉक्टरीश्र को ोश्र चलखा चक गप चकतने ोार्ण तन्ा चकस क्षेत्र में दें ग।े चकन्तग लगता
है चक णश्रमारश्र के कारण डॉक्टरीश्र को नकारात्मक उत्तर ोेीना पड़ा होगा। यह ोश्र हो सकता है चक
सांघ के प्रयत्नों से नपने गप चहन्दगओां के णश्रि के कृचत्रम ोेद दूर होते हग ए दे खकर नलग से उसके चलए
कगछ कायभक्रम करने कश्र गवश्यकता नहीं प्रतश्रत हई हो।

इस समय कगछ लोगों ने डॉक्टरीश्र के सम्मगख यह ोश्र सगझाव रखा चक सांघ के ध्वी का गकार
णदलकर उसमें कगछ नचोनवता लानश्र िाचहए। डॉक्टरीश्र ने इस सगझाव का ीो उत्तर चदया उससे प्रकट
होता है चक ध्वी के सम्णन्ि में उनके मन में चकतनश्र चनचित और स्पष्ट कल्पना न्श्र। वे चलखते हैं चक
‘‘ोगवा ध्वी का इचतहास तश्रन सौ वर्भ का न होकर णहग त पगराना है । कम-से-कम गद्य शांकरािायभ ने
तो नपनश्र चदन्ग्वीय इसश्र ध्वी कश्र छत्रछाया में कश्र न्श्र। इस चवर्य में चकसश्र को शांका होने का कारण
नहीं है । उससे ोश्र चकतने पहले तक इस ध्वी का इचतहास ीा सकता है इसका चविार सांशोिकों को
नवश्य करना िाचहए। चहन्दू राष्ट्र नचत पगराना राष्ट्र है । नतः उसका ध्वी ोगवा ध्वी ोश्र उतना हश्र
पगरातन है । चहन्दू राष्ट्र कश्र उत्पचत नयश्र न होने के कारण उसे नये ध्वी कश्र गवश्यकता नहीं है । चनदान,
राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ तो पगरातन ीचयष्ट्णग ोगवा ध्वी को त्यागकर कोई नचोनव ध्वी नपने
सम्मगख नहीं रखेगा।’’

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सांघकायभ का णाह्य स्व प, गणवेश, सांिलन तन्ा ननगशासन गचद सैचनक स्तर का होने के कारण
ननेक सगचवज्ञ लोगों के मन में यह गशावाद एवां चवश्वास ीाग्रत होता न्ा चक एक-न-एक चदन यह
शचि दे श पर फहरानेवाले परकश्रय ध्वी को हटाकर उसके स्न्ान पर ोारत के स्वत्व एवां स्वतांत्रता
का उद्घोर् करनेवाले ध्वी को उत्तोचलत करे गश्र। इस ोाव के कारण सांघ को प्रोत्साहन दे नेवाले ननेक
ीनों का वलय उसके िारों ओर चनमाण होता ीा रहा न्ा। मई 1936 में वैशाख शगक्ल पांिमश्र को
ीगसगरु गद्य शांकरािायभ कश्र ीयन्तश्र के नवसर पर नाचसक के ीश्र शांकरािायभ चवद्याांशकर ोारतश्र
स्वामश्र उपाख्य डॉ. कगतभकोचट ने डॉक्टरीश्र को ‘राष्ट्र सेनापचत’ कश्र पदवश्र से चवोूचर्त चकया। यह
समािार पत्रों में प्रकाचशत होते हश्र डॉक्टरीश्र के कगछ चमत्रों तन्ा ननगयाचययों ने उनके पते पर नाम के
सान् ‘राष्ट्र सेनापचत’ पदवश्र ीोड़कर उनका नचोनन्दन करते हग ए पत्र चलखे। चकन्तग डॉक्टरीश्र को यह
सण नच्छा नहीं लगा। वे तो चहन्दू राष्ट्र के पगनरुद्धार के कायभ कश्र सफलता िाहते न्े तन्ा उसके चलए
सतत कायभ में चनमग्न रहने में हश्र उनको समािान न्ा। उनका गनन्द तो लक्षावचि सहकारश्र चनमाण
करने में हश्र न्ा। चहन्दू समाी पर णराणर गघात होते रहें तन्ा उनको दूर करने का प्रोावश्र सामर्थयभ
पास न होते हग ए ोश्र नाम के पश्रछे ‘राष्ट्र सेनापचत’ शब्द लगाना उन्हें चवसांगत तन्ा चवडम्णनकारश्र प्रतश्रत
होता न्ा। वे प्रदशभन कश्र नपेक्षा ुोस कायभ करने और उसकश्र तल्लश्रनता में चवश्वास करते न्े। नतः
उन्होंने एक पत्र में साफ-साफ चलख चदया चक ‘‘ीश्रमत् शांकरािायभीश्र कश्र दश्र हग ई पदवश्र हम लोगों के
चलए व्यवहारोपयोगश्र नहीं है । यह णात ध्यान में रखकर सूिना दें चक हममें से कोई और कोश्र इस
पदवश्र का उपयोग न करे । समािारपत्रों में ोश्र इस पदवश्र का चीतना कम प्रिार हो उतना हश्र नच्छा
है ।’’

पूना के नचिकारश्र चशक्षण वगभ के चलए डॉक्टरीश्र 1936 कश्र नप्रैल के दूसरे सप्ताह में नागपगर से िले।
इसके पूवभ उन्होंने ीश्र कृष्ट्णराव वडेकर को िगळें ीळगााँव चवोाग में सांघकायभ के हे तग ोेीा। उस समय
उन्हें चदनाांक 24 मािभ को ‘सांघ स्न्ापना चवचि’ शश्रर्भक के नन्तगभत एक महत्त्वपूणभ सूिनात्मक पचरपत्र
चलखकर चदया। पत्रक छोटा होने पर ोश्र स्वयांसेवक के चवर्य में उनकश्र कल्पना और नपेक्षा पर नच्छा
प्रकाश डालता है । उसके िार-पााँि महत्त्वपूणभ पचरच्छे दों का यहााँ उल्लेख उपयोगश्र होगा। वे चलखते है
‘‘.......(9) चशवाीश्र का प्रत्येक नचिकारश्र ीैसे रणकगशल न्ा वैसे हश्र सांघ का प्रत्येक नचिकारश्र सांघ
कश्र सम्पूणभ चशक्षा का तज्ञ होना िाचहए। )10) चहन्दू-चहत से नचवरोिश्र चकसश्र ोश्र सावभीचनक कायभ में,
िालक कश्र ननगज्ञा प्राप्त होने पर, कोई ोश्र स्वयांसेवक नपनश्र चीम्मेदारश्र पर ोाग ले सकता है । )12)
राष्ट्रश्रय वृचत्त से स्वदे शश्र-व्रत का पालन करना िाचहए। )13) गिारशून्यता तन्ा कमभकाण्ड दोनों के
नचतरेक को छोड़कर सामगदाचयक णल-सम्पादन का स्वणभमध्य सांघ के कायभक्रमों से चसद्ध करना
िाचहए। क्षण मात्र के चलए उत्साहविभक तन्ा तात्काचलक वश्ररता प्रकट करनेवाले कायभक्रम से सांघ
नचलप्त रहे क्योंचक उनसे सांघटन कश्र मीणूतश्र को िोंा लग सकता है ।’’

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पूना के नचिकारश्र चशक्षण वगभ में कगछ चदन रहकर डॉक्टरीश्र नागपगर लौट गये। लौटते समय गाड़श्र
में ोश्रड़ होने के कारण उन्हें णहग त दे र तक खड़े -खड़े हश्र यात्रा करनश्र पड़श्र। चकन्तग नन्ाोाव से उत्पन्न
इस प्रकार के कष्टों को वे सदै व हाँ सते-हाँ सते सहन करते न्े तन्ा चकसश्र को यह ननगोव ोश्र नहीं होने
दे ते न्े चक वे कष्ट में हैं । पैसे णिाने कश्र दृचष्ट से वे उन चदनों णश्रि-णश्रि में ीारश्र चकये ीानेवाले ‘ीोन
चटचकट’ खरश्रदकर न्ोड़े हश्र चदनों में नचिक-से-नचिक स्न्ानों पर ीाकर शाखा-कायभ का चनरश्रक्षण
करते न्े। नन्ात् यह कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक इस दौड़िूप में उन्हें नचतशय कष्ट होता न्ा। पूना
के वगभ में उनके चनवास के समय हश्र ‘सोन्यामारुचत’ के मन्न्दर के प्रश्न पर मगसलमानों के द्वारा झगड़ा
खड़ा करने का प्रयत्न हो रहा न्ा। उनकश्र चशकायत न्श्र चक पास कश्र मसचीद में नमाी पढते समय
मन्न्दर कश्र घण्टश्र से खलल पड़ता है । इस चवर्य को लेकर मगसलमानों ने दां गा करने कश्र ोश्र कगिेष्टा
कश्र। चकन्तग उनका नन्दाी ुश्रक नहीं चनकला। चहन्दू इस नवसर पर ोारश्र पड़े। डॉक्टरीश्र ने इस
नवसर पर चहन्दू सांघटन के चवर्य में सही णोलते हग ए यह गकाांक्षा व्यि कश्र न्श्र चक ‘‘हमें ऐसश्र
न्स्न्चत चनमाण करनश्र िाचहए चक कोई ोश्र चहन्दू समाी के चवरुद्ध नन्याय का पग उुाने का दगस्साहस
न कर सके। घण्टश्र णीाने ीैसे छोटे -से प्रश्न पर गी ोश्र यहााँ मगसलमान गक्रमण करने कश्र िृष्टता
कर सकते हैं इससे यह स्पष्ट है चक नोश्र ोश्र नपना णल णहग त हश्र नल्प है ।’’

इन्हीं चदनों लोणावळा के एक सज्जन डॉक्टरीश्र से चमलने के चलए गये न्े। दां गों के सम्णन्ि में ििा
करते हग ए उन्होंने कहा ‘‘मगसलमान दे शद्रोहश्र हैं , नतः उन्हें इसकश्र सीा चमलनश्र हश्र िाचहए।’’ इस पर
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘मगसलमानों को दे शद्रोहश्र कहना चणल्कगल गलत है ।’’ डॉक्टरीश्र कश्र यह उचि
सगनकर वहााँ णैुे हग ए सोश्र व्यचि उनकश्र ओर दे खते रह गये। उनकश्र समझ में इसका नन्भ नहीं गया।
नतः डॉक्टरीश्र ने स्पष्टश्रकरण करते हग ए कहा ‘‘मगसलमानों को दे शद्रोहश्र कहने में यह ोाव चछपा हग ग
है चक यह दे श उनका है । उनकश्र कृचत ीण दे श के चलए चवघातक है तो उन्हें दे श के शतु कहना हश्र
नचिक उपयगि होगा।’’ दे शद्रोहश्र तन्ा दे श के शतु, इन दो शब्दों का नन्तर ऊपर से समझ में नहीं
गयेगा चकन्तग चपछले एक हीार वर्भ के इचतहास से यह स्पष्ट है चक ोारत कश्र सनातन चहन्दू परम्परा
को नष्ट कर णलपूवभक यहााँ पर चवदे शश्र परम्परा लादनेवाले मगसलमान इस दे श के स्वामश्र नहीं णन्ल्क
गक्रमणकारश्र हैं । नतएव उन्हें शतु हश्र कहना होगा। ीयिन्द, सूयाीश्र चपसाळ तन्ा णाळाीश्रपन्त नातू
घर के हश्र न्े चकन्तग उन्होंने स्वीनद्रोह करके दे श को गड्ढे में डालने का प्रयत्न चकया, नतः उन्हें दे शद्रोहश्र
कहना होगा। चकन्तग ीो स्पष्टतः नपने को णाहर का मानकर यहााँ नपना विभस्व स्न्ाचपत करने का
प्रयत्न कर रहा हो उसके चलए तो शतु के नचतचरि नन्य चकसश्र शब्द का प्रयोग चकया नहीं ीा सकता।
चकन्तग डॉक्टरीश्र ने इस नवसर पर यह ोश्र स्पष्ट णताया चक यचद ये लोग परायों से नपना सम्णन्ि
तोड़कर तन्ा नपनश्र गक्रामक वृचत्त का पचरत्याग करके यहााँ के राष्ट्रीश्रवन के सान् एकात्म होकर
व्यवहार करने लगें तो उनके यहााँ णने रहने में ककचित् ोश्र गपचत्त नहीं हो सकतश्र। पर ीण तक इस

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पचरवतभन के कोई चिह्न चदखायश्र नहीं दे ते तण तक उन्हें ‘दे शद्रोहश्र’ कहना ोश्र डॉक्टरीश्र को उपयगभि
कारणों से खटकता न्ा।

राष्ट्रश्रयता के सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र का दृचष्टकोण सांघ कश्र स्न्ापना के पूवभ हश्र चनचित हो िगका न्ा।
राीनश्रचत में मगसलमानों के नपनश्र चखिड़श्र नलग पकाने के प्रयत्नों कश्र ओर वे नत्यन्त सतकभ दृचष्ट से
दे खते न्े तन्ा उससे उनका चविार नचिकाचिक पगष्ट होता ीाता न्ा। मगसलमान नेताओां द्वारा स्पष्ट प
से पाचकस्तान कश्र मााँग तन्ा उस सम्णन्ि में चदये गये विव्यों का वे समय-समय पर नपनश्र णैुकों में
उल्लेख करते रहते न्े। ीगलाई 1935 में ‘पाचकस्तान नेशनल मूवमेण्ट’ के नध्यक्ष ीश्र सश्र. रहमतनलश्र
द्वारा केन्म्ब्री में पाचकस्तान कश्र मााँग करते हग ए चनकाला गया पत्रक, तन्ा मगसलमान समाी द्वारा
चहन्दगओां को चनगल ीाने के ीो र्ड्यांत्र णन रहे न्े उनके गगप्त पचरपत्र ोश्र उनके पास न्े। वे इनका उल्लेख
कर लोगों को गसन्न सांकट से सदै व सिेत करते रहते न्े।

इन्हीं चदनों चमरी के ीश्र दामोदरपन्त ोट ने डॉक्टरीश्र के पास पत्र ोेीकर उनके ीश्रवन-सम्णन्ि में
कगछ ीानकारश्र तन्ा महत्त्वपूणभ प्रसांगों के छायाचित्र मााँग।े कायभव्यस्तता के कारण डॉक्टरीश्र इस पत्र
का कोई उत्तर नहीं दे पाये। नतः चफर से याद चदलाने के चलए ीश्र ोट ने पत्र ोेीा। चकन्तग नपना
ीश्रवनिचरत्र छपे यह णात डॉक्टरीश्र के स्वोाव से मेल नहीं खा सकतश्र न्श्र। उनका मत तो न्ा चक
केवल कायभ का प्रिार होना िाचहए और वह ोश्र उसकश्र वृकद्धगत शचि के द्वारा। डॉक्टरीश्र ने पत्र का
नकारात्मक उत्तर ोेी चदया। इस उत्तर से डॉक्टरीश्र कश्र प्रचसचद्ध पराड;मगखता तो प्रकट होतश्र है पर
चकसश्र को मना करते हग ए ोश्र उसका मन न दगःखे इस चवर्य में उनकश्र शालश्रनता तन्ा कगशलता का ोश्र
पचरिय चमलता है । वे चलखते हैं ‘‘........गपके मन में मेरे चलए तन्ा राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के चलए
ीो नत्यगत्कट प्रेम और गदर है उसके चलए मैं गपका हृदय से गोारश्र हू ाँ । गपकश्र इच्छा मेरा िचरत्र
छापने कश्र है । पर मगझे नहीं लगता चक मैं इतना णड़ा हू ाँ नन्वा मेरे ीश्रवन में ऐसश्र कोई महत्त्वपूणभ
घटनाएाँ हैं चीनको छापा ीाये। उसश्र प्रकार मेरे नन्वा सांघ के फोटो ोश्र ीो गप िाहते हैं उपलब्ि
नहीं हैं । सांक्षेप में यहश्र कह सकता हू ाँ चक चलखने लायक ीश्रवनिचरत्रों कश्र माचलका में मेरा िचरत्र तचनक
ोश्र नहीं णैु सकता।’’ यह पत्र 12 ीगलाई को चलखा गया न्ा।

1936 के निूणर मास में डॉक्टरीश्र को एक चदन नकस्मात् यह समािार चमला चक ‘‘ीश्र गगरुीश्र
एकाएक घर से कहीं िले गये हैं ।’’ डॉक्टरीश्र के चलए यह वाता ननपेचक्षत तो नहीं न्श्र पर इसे सगनकर
उन्हें नत्यन्त दगःख हग ग। डॉक्टरीश्र कश्र तो यहश्र िाह न्श्र कश्र दे श कश्र इस गम्ोश्रर एवां ोयावह पचरन्स्न्चत
में कतृभत्वान् तन्ा पढे -चलखे तरुण नपने सवभस्व को ोश्र चनछावर करके गकाश को ोश्र झगकाने का
गत्मचवश्वास रखकर प्राणपण से दे श के चलए प्रयत्न करने को कायभक्षेत्र में नवतश्रणभ हों। परन्तग इसके
चवपरश्रत ीण एक योग्य एवां कतृभत्वशालश्र तरुण वकश्रल नपनश्र शचि लगाकर सांघटन कश्र कसर को

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पूरा करने के स्न्ान पर घर छोड़कर नज्ञात स्न्ान को िला ीाये तो डॉक्टरीश्र को चकतना दगःख हग ग
होगा इसकश्र सही कल्पना कश्र ीा सकतश्र है ।

ीश्र गगरुीश्र ने ीैसे-तैसे डेढ वर्भ वकालत कश्र न्श्र। व्यवसाय में उनके सहयोगश्र ीश्र दत्तोपन्त दे शपाण्डे
ोश्र सांघ के नच्छे कायभकता तन्ा डॉक्टरीश्र के नत्यन्त स्नेहश्र न्े। उनसे डॉक्टरीश्र को इतना पता िल
गया न्ा चक गगरुीश्र चकसश्र गीम में गये हैं ।)इस समय गगरुीश्र सारगाछश्र, णांगाल में ीश्र स्वामश्र
नखण्डानन्दीश्र के गीम में न्े।) डॉक्टरीश्र ीण कोश्र ीश्र दे शपाण्डे से चमलते तो पहला प्रश्न यहश्र
पूछते चक ‘‘कचहए, गपके चमत्र कण वापस गनेवाले हैं ?’’ णैुकों में ीण ीश्र गगरुीश्र का चवर्य
चनकलता तो डॉक्टरीश्र उनके ससगणों कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा करने लगते।

गगरुीश्र के इस प्रकार नज्ञात हो ीाने पर उनके पूज्य-चपता रामटेक में नत्यन्त गतगरता से उनके वापस
गने कश्र राह दे खते रहते। इसश्र प्रकार डॉक्टरीश्र तन्ा गगरुीश्र के नन्य चमत्रवगभ ोश्र नत्यन्त चिन्न्तत
न्े। पर दूसरश्र ओर गगरुीश्र चनचिन्त ोाव से ीश्र रामकृष्ट्ण परमहां स एवां ीश्र चववेकानन्दीश्र के कृ पापात्र
स्वामश्र नखण्डानन्दीश्र कश्र सेवा में ऐसे चनमग्न न्े मानो उनके ननन्त ीन्मों के पगण्यों का फल उचदत हो
गया हो। ‘‘गनन्द गनन्दाशीं घोटश्र। णोलताां परे चस पडे चमुश्र’’ (‘‘गनन्द गनन्द महान् छाया, ीो
णोचलए चमष्ठ वहश्र सगहाया’’) इस प्रकार चीस समाचिसगख का वणभन चकया गया है उस सगख में स्वामश्र
नखण्डानन्दीश्र नचोोूत रहते न्े। इस प्रकार के नचिकारश्र पगरुर् के सहवास में रहने का सौोाग्य
नत्यन्त दगलभो न्ा। वह महताग्य ीश्र गगरुीश्र को प्राप्त हग ग। वे चीस चनरलस ोाव से ीश्र
नखण्डानन्दीश्र कश्र सेवा करते उससे उनका गनन्द चद्वगगचणत हो उुता। सेवा में नतगत सामर्थयभ होता
है । वह सेवक के मन में से नहां कार को समूल नष्ट करसेव्य को कृपा का महासागर णना दे तश्र है । सेव
का यह सामर्थयभ सारगाछश्र गीम में ोश्र प्रकट हो रहा न्ा।

पांीाण प्रान्त से मााँग होने पर डॉक्टरीश्र ने इस वर्भ ीश्र ीनादभ न कििाळकर, ीश्र राीाोाऊ पातगरकर,
ीश्र नारायणराव पगराचणक गचद कायभकताओां को वहााँ ोेीा। नपनश्र पढाई करते हग ए इन कायभकताओां
ने लाहौर-ोाग में सांघ के कायभ का ीाल पूरना प्रारम्ो कर चदया। ीश्र णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र
दादाराव परमान्भ को ीहााँ कहीं गवश्यकता होतश्र न्श्र वहााँ ोेीा ीाता न्ा। नतः कोश्र महाराष्ट्र में तो
कोश्र पांीाण में, तन्ा कोश्र उत्तर प्रदे श और कोश्र महाकौशल में वे णराणर सांिार करते रहते न्े।
डॉक्टरीश्र नपने पत्रव्यवहार से इन सोश्र कायभकताओां का मागभदशभन एवां उत्साहवृचद्ध करते रहते न्े।
कायभकताओां के व्यवहार के सम्णन्ि में स्न्ान-स्न्ान पर उन्होंने ीो सूत्र प में चलखा है उस सणका
यचद सांग्रह चकया ीाये तो सांघटन-शास्त्र कश्र नपूवभ गिार-सांचहता णन सकतश्र है । पांीाण में गये हग ए
एक कायभकता को उन्होंने चलखा न्ा चक ‘‘..........दूसरे प्रान्तों में सांघ का कायभ करना है । नतः सम्पूणभ
पचरन्स्न्चत का चनरश्रक्षण कर मनगष्ट्यों को परखकर ितगराई से एवां िश्ररे-िश्ररे पग गगे डालना िाचहए।

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काम कश्र ील्दश्रणाीश्र में नपने हान् से कोई गलतश्र नहीं होनश्र िाचहए।’’ इस प्रकार के ननगोवपूणभ विन
उनके पत्रों में स्न्ान-स्न्ान पर चमलते हैं ।

इसश्र वर्भ डॉ. मगांीे ने एक सैचनक चवद्यालय कश्र स्न्ापना के चलए प्रयत्न प्रारम्ो चकये। तरुणों को सैचनक
चशक्षा दे ने कश्र योीना उनके मन में णहग त वर्ों से न्श्र। उनके इस चविार के कारण हश्र सरदार चवट्ठलोाई
पटे ल तो उन्हें चवनोद में ‘कनभल मगी
ां ’े नन्वा ‘ीनरल मगांी’े कहकर हश्र पगकारते न्े। उस समय यह स्पष्ट
हो गया न्ा चक नांग्रेीों के ीाने के णाद चहन्दू-मगसलमानों के णश्रि सांघर्भ नवश्यम्ोावश्र है । यह पचरन्स्न्चत
उत्पन्न होने पर चहन्दगओां में ऐसे तरुण सैचनक नवश्य चनकलने िाचहए ीो मगोंे का मगोंे से तन्ा गोलश्र
का गोलश्र से ीवाण दे सकें। इसश्र ोावना से इस चवद्यालय कश्र कल्पना कश्र गयश्र न्श्र। डॉ. मगांीे ने
डॉक्टरीश्र को नत्यन्त गग्रह के सान् चवद्यालय कश्र सांिालन-सचमचत में रखा क्योंचक डॉ. मगांीे यह
ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक वे प्रचतकूल पचरन्स्न्चत में से ोश्र मागभ चनकालने में नत्यन्त कगशल हैं । सांघ का
कायभ उनके इस गगण का ीश्रता-ीागता प्रमाण न्ा। 1936 में सांिालन-सचमचत कश्र णम्णई में ीो णैुक
हग ई उसमें डॉक्टरीश्र उपन्स्न्त न्े। इस णैुक से लौटते हग ए वे ुाणें, पूना गचद शाखाओां पर ोश्र गये।
इस समय उनका गला णैुा हग ग न्ा चफर ोश्र पूना में हसणनश्रस कश्र णखळश्र में उनका ोार्ण हग ग।
तरुणों का उद्बोिन करते हग ए उन्होंने इस ोार्ण में कहा ‘‘..........नपने पूवभीों के प्रचत मन में सदै व
नचोमान का ोाव रखना िाचहए। परन्तग नपने घर के व्यवहार में यचद हम चपताीश्र और णाणाीश्र का
गदर नहीं करते तो पूवभीों के सम्मान कश्र रक्षा कैसे कर सकेंगे।’’ डॉक्टरीश्र का तत्त्व-प्रचतपादन
सदै व हश्र रोीमरा के व्यवहार से सांलग्न रहता न्ा।

पूना से िलकर नगर, ीगन्नर, नाचसक, ोगसावळ, नकोला, मूर्ततीापगर, विा गचद शाखाओां का
चनरश्रक्षण करते हग ए डॉक्टरीश्र चदनाांक 2 चसतम्णर 1936 को नागपगर वापस पहग ाँ ि।े नवम्णर के मध्य
तक वे वहााँ रहे । इस नवचि में उन्होंने सांघ के तत्त्वज्ञान एवां व्यवहार को चवशद करनेवाले लगातार
दस ोार्ण वहााँ के नचिकारश्र वगभ के सम्मगख चदये। डॉक्टरीश्र के इन ोार्णों के णश्रि में दूसरे चकसश्र
नगर के एक वकश्रल साहण नागपगर गये। वे न्ोड़े चदन पहले हश्र सांघ में प्रचवष्ट हग ए न्े। उन्हें पता िला
चक ोार्ण के समय डॉक्टरीश्र कश्र ोेंट हो सकेगश्र। एक चदन चीस समय डॉक्टरीश्र का व्याख्यान िल
रहा न्ा वे चमलने के चलए ग गये। नागपगर के नचिकारश्र वगभ कश्र कायभ करते समय कहााँ-कहााँ गलचतयााँ
होतश्र हैं इसका चववेिन डॉक्टरीश्र उस समय कर रहे न्े चकन्तग दूर से एक नये सज्जन को गता दे खकर
डॉक्टरीश्र ने चविार चकया चक नागपगर के कायभकताओां कश्र गलोिना उनके सम्मगख उचित नहीं रहे गश्र।
नतः उन्होंने एकाएक नपने चवर्य का प्रवाह णदलकर नत्यन्त हश्र सरल तन्ा नये व्यचि को समझ
में गने लायक शब्दों में सांघ का तत्त्वज्ञान रखना प्रारम्ो कर चदया। समझदार स्वयांसेवकों के ीैसे
हश्र यह णात ध्यान में गयश्र वे डॉक्टरीश्र कश्र ीाग कता पर गियभ करने लगे।

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सांघ कश्र शाखाओां पर चदये गये प्रोावश्र चहन्दगत्व के सांस्कारों कश्र प्रचतध्वचन नण िश्ररे-िश्ररे घर-घर में होने
लगश्र न्श्र। चहन्दू मचहलाओां पर मगसलमानों के होनेवाले नत्यािारों के क्षोोदायक समािार ननेक णार
सगनने को चमलते न्े। सांघकायभ को ीाने एवां दे खे हग ए मचहलावगभ में यह ोाव ीाग्रत होने लगा चक सांघ
के प में चहन्दू तरुणों को ीाग्रत् करने मात्र से काम नहीं िलेगा नचपतग न्स्त्रयों को ोश्र स्वयां सांरक्षणक्षम
णनना िाचहए। ीहााँ तक तक सांघ का सम्णन्ि न्ा डॉक्टरीश्र ने नपने समाी कश्र परम्परा, मनोरिना
तन्ा तत्कालश्रन न्स्न्चत का चविार कर उसका कायभक्षेत्र पगरुर्ों तक हश्र चनचित चकया न्ा। 1936 में
एक स्वयांसेवक कश्र माताीश्र ीश्रमतश्र लक्ष्मश्रणाई केळकर डॉक्टरीश्र से विा में चमलीं तन्ा उन्होंने
मचहलाओां को ोश्र स्वसांरक्षणक्षम णनाने के चलए चशचक्षत करने कश्र गवश्यकता उनके सम्मगख रखश्र।
यह ोेंट ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र के घर पर हग ई न्श्र। इस चवर्य में ीश्रमतश्र केळकर कहतश्र हैं चक
‘‘.......उन्होंने)डॉक्टरीश्र ने) मगझसे चमलने का कारण पूछा। मैंने कहा ‘गप तरुणों को ीो चशक्षा दे ते
हैं तन्ा ध्येयवाद चसखाते हैं वह न्स्त्रयों को क्यों नहीं चसखाते ?’ इस पर वे णोले ‘नोश्र तो हमने पगरुर्ों
के चलए हश्र यह कायभक्रम रखा है ।’ यह सगनकर मैंने कहा ‘गपका चशक्षण मगझे चसखाने कश्र ननगमचत
गप मेरे पगत्र के दे दश्रचीए। यचद वह मगझे चसखा दे गा तो मैं गााँव कश्र नन्य मचहलाओां को चशचक्षत कर
दूाँगश्र।’ डॉक्टरीश्र ने यह ोश्र मान्य नहीं चकया। इस पर ीश्रमतश्र लक्ष्मश्रणाई ने कहा ‘‘न्स्त्रयााँ कगटगम्ण के
समान राष्ट्र कश्र घटक हैं । गपके सांघटन का चविार घर में माताओां तक पहग ाँ ि गया तो उससे सांघ का
ोश्र ोला होगा।’’ इस प्रकार चफर वैसे कायभ करने कश्र इच्छा चदखाने पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘काम कश्र
सम्पूणभ चीम्मेदारश्र गप यचद नपने ऊपर लेने को तैयार हैं तो गप्पाीश्र ीोशश्र गपकश्र यन्ासम्ोव
सहायता करें ग।े ’’

इसके उपरान्त दो महश्रने में वे डॉक्टरीश्र से तश्रन-िार णार चमलीं तन्ा कायभ कश्र सम्पूणभ परे खा चनचित
कश्र। इस सम्णन्ि में वे चलखतश्र हैं ‘‘उन्होंने यह इच्छा प्रकट कश्र चक सांस्न्ा का नाम सांघ से चोन्न चकन्तग
समानान्ी होना िाचहए। उन्होंने यह ोश्र णताया चक रे ल कश्र पटचरयों के समान ये दोनों सांघटन समानान्तर
िलते हग ए ोश्र एक-दूसरे से पृन्क् रहने िाचहए। न्स्त्रयों के काम में गनेवालश्र चवचोन्न प्रकार कश्र
कचुनाइयों कश्र कल्पना ोश्र उन्होंने रखश्र। हर णैुक में वे इस णात कश्र ीााँि करते न्े चक मैं नपने
चविारों में चकतनश्र पोंश्र हू ाँ । मेरा चनिय दृढ होने के कारण मैं यहश्र कहतश्र न्श्र चक ‘गपका गशश्रवाद
तन्ा ईश्वर कश्र कृपा होने के उपरान्त मगझे नहीं लगता चक मेरे प्रयत्न नसफल होंगे।’ मगझे लगता है चक
मैं इस परश्रक्षा में उत्तश्रणभ हो गयश्र क्योंचक डॉक्टरीश्र ने यन्ाशक्य सहायता करना स्वश्रकार कर चलया।
चदनाांक 25 निूणर 1936 को चवीयादशमश्र के शगो मगहूतभ पर ‘राष्ट्रसेचवका सचमचत’ का ीन्म हग ग।’’

नवम्णर के प्रारम्ो में डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय चणगड़ गया। चफर ोश्र यह सोिकर चक एक णार चनचित
चकये हग ए कायभक्रम यचद पूरे न चकये गये तो ननेक लोगों को नपेक्षा ोांग होने के कारण कष्ट होगा , वे

293
13 नवम्णर से 23 नवम्णर तक काटोल तालगका के दौरे पर गये। इस समय उनके शरश्रर में ज्वर न्ा
तन्ा णश्रि-णश्रि में खााँसश्र ोश्र उखड़ गतश्र न्श्र। ऐसश्र नवस्न्ा में ोश्र चकसश्र प्रकार कश्र कगसमगसाहट न
करते हग ए उन्होंने गनन्दपूवभक सोश्र कायभक्रमों का चनवाह चकया।

डॉक्टरीश्र को लोकसांग्रह के चलए चकतना मूल्य दे ना पड़ा इसे णतानेवालश्र इस दौरे कश्र एक घटना
उल्लेखनश्रय है । मगिापगर के एक तरुण स्वयांसेवक ने डॉक्टरीश्र को ोोीन के चलए गमांचत्रत चकया।
डॉक्टरीश्र कण-कण गते हैं , यह सोिकर उसने ीश्रखण्ड और पूचरयााँ णनवायीं। पत्तल पर ीश्रखण्ड-
पूरश्र परोसश्र हग ई दे खकर उस तालगका के सांघिालक ीश्र ोाऊसाहण घाटे ने कुद्ध होकर उस स्वयांसेवक
से पूछा ‘‘डॉक्टरीश्र को तकलश्रफ होते हग ए ोश्र यह कगपर्थयकर ीश्रखण्ड क्यों णनवाया ?’’ यह सगनकर
स्वयांसेवक घणड़ा गया। इस पर डॉक्टरीश्र हाँ सते हग ए णोले ‘‘नहीं, मगझे इससे कोई तकलश्रफ नहीं
होगश्र।’’ एक तरुण कायभकता का मन रखने के चलए डॉक्टरीश्र ने सदा कश्र ोााँचत वहााँ ोोीन चकया
तन्ा गगे होनेवाले कष्ट को ोश्र प्रवास-ोर चणना णताये सहन चकया। दौरे से वापस गते हश्र दो चदन
णाद वे चवदोभ ोाग के प्रवास के चलए चनकल पड़े। णश्रि के दो चदनों में चलखे गये पत्र में उन्होंने ीश्र
गप्पाीश्र ीोशश्र को चलखा न्ा ‘‘रोी णगखार गता है , चसर में ददभ होता है तन्ा कमीोरश्र णहग त मालूम
होतश्र है ।’’ लोकसांग्रह कोई कोरश्र गप्पें नहीं हैं । क्षण-क्षण तन्ा कण-कण नपना ीश्रवन गलाकर
लोकसांग्रह करना होता है और उसमें से हश्र राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ ीैसा चवकासशश्रल सांघटन खड़ा
हो सकता है ।

काटोल के णाद चवदोभ में तेरह चदवस के प्रवास में वे इोंश्रस स्न्ानों पर गये। सैकड़ों व्यचियों के
सम्मगख उन्होंने सांघ का चविार रखा। यह दौरा मोटर से हग ग। डॉक्टरीश्र के सान्-सान् ीश्र गोपाळराव
चितळे , ीश्र तात्यासाहण सोहोनश्र, ीावणे मास्टर तन्ा दादाराव परमान्भ ोश्र उसश्र मोटर में िलते न्े। यह
दौरा चकतना तूफानश्र न्ा तन्ा कायभक्रम में चकतनश्र दौड़िूप रहतश्र न्श्र इसका वणभन करते हग ए ीश्र
तात्यासाहण सोहोनश्र कहते हैं चक ‘‘शाम को शाखा तन्ा राचत्र को णैुक का कायभक्रम रहता न्ा।
कायभकताओां कश्र यह णैुक राचत्र को णारह णीे तक िलतश्र न्श्र उसके णाद ननौपिाचरक णातिश्रत
शग हो ीातश्र न्श्र ीो तश्रन-तश्रन णीे तक िलतश्र रहतश्र। डॉक्टरीश्र कश्र णैुक में सहीता रहतश्र न्श्र।
प्रवास में मोटर में णैुे-णैुे ीो झपकश्र लग ीातश्र न्श्र वहीं डॉक्टरीश्र कश्र नींद न्श्र। शेर् चदन-ोर चवचोन्न
लोगों से चमलकर उनसे सांघ के चवर्य में णातिश्रत करने में हश्र णश्रतता न्ा।’’ इस दौरे में डॉक्टरीश्र ने
प्रत्येक चीले में चीला सांघिालक के नाते कायभकताओां में से कगछ कश्र चनयगचि कर दश्र। सम्पूणभ चवदोभ
प्रान्त के सांघिालक के नाते नकोला के प्रचसद्ध वकश्रल ीश्र णापूसाहण सोहोनश्र को ोश्र इसश्र नवसर
पर मनोनश्रत चकया।

294
चदसम्णर 1936 में डॉक्टरीश्र नागपगर तन्ा िााँदा के चशचवरों में गये। दोनों हश्र स्न्ानों के ोार्णों में
उन्होंने यह णताते हग ए चक सांघ का कायभ महाराष्ट्र से लेकर ुे ु करािश्र और लाहौर तक फैलता ीा
रहा है , गनन्द व्यि चकया न्ा। नकहसा का िारों ओर प्रिार होने के कारण पहले से हश्र दगणभल तन्ा
िैयभहश्रन चहन्दू समाी कश्र क्या न्स्न्चत होगश्र इस चवर्य में उन्होंने चिन्ता ोश्र प्रकट कश्र न्श्र। नागपगर के
ोार्ण में उन्होंने कहा न्ा ‘‘........‘नकहसा परमो िमभः’ का तत्त्व चहन्दू समाी में पूरश्र तरह रमा हग ग
होने के कारण सोश्र समाीों को इसकश्र चशक्षा दे ने कश्र चीम्मेदारश्र चहन्दगओां पर है । परन्तग यचद हमारश्र यह
इच्छा है चक दूसरे हमारा सदगपदे श सगनें तो हमारे पास सामर्थयभ िाचहए। चहन्दू समाी गी दगणभल है ।
कहसक प्रवृचत्त के लोग दगणभल समाी कश्र कोई परवाह नहीं करते। यचद नकहसा कश्र घगट्टश्र हम कहसक
समाी को चपलाना िाहते हैं तो हमें इतना शचिशालश्र णनना िाचहए चक हमारा उपदे श पचरणामकारक
हो सके। चहन्दगस्न्ान में नकहसा का साम्राज्य प्रचतष्ठाचपत करने के चलए गवश्यक है चक चहन्दू समाी
कश्र दगणभलता दूर कर उसे णलशालश्र णनाया ीाये। परन्तग यह काम चणना सांघटन के नहीं हो सकता।
नतः चहन्दू समाी को सांघचटत कर णलवान् णनाना प्रत्येक चहन्दू का कतभव्य है । सांघ केवल यहश्र करना
िाहता है ।’’

िााँदा के ोार्ण में डॉक्टरीश्र ने राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के िमभरक्षण के उद्देश्य पर प्रकाश डाला न्ा।
सांघ के सैचनक स्व प को दे खकर ीैसे नकहसा के पगीारश्र इसे कहसक समझते हैं , वैसे हश्र कगछ
कमभकाण्डश्र सज्जन सांघ में सन्ध्या नहीं चसखाते, चतलक गचद नहीं लगाते तन्ा सण एक सान् णैुकर
ोोीन करते हैं इसचलए ‘‘सांघ कश्र िमभ कश्र रक्षा करने कश्र ोार्ा झूुश्र है ’’ इस प्रकार का गरोप ोश्र
लगाते न्े। सांघ के स्वयांसेवक नपने को चीस नन्भ में िमभरक्षक कहते हैं वह स्पष्ट करना गवश्यक
न्ा। नतः िााँदा के ोार्ण में डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘हम चहन्दगिमभचनष्ठ हैं इसका हमें णहग त नचोमान है ।
चकन्तग हम यह नहीं समझते चक िमभरक्षण और िमभ पालन में नन्तर है । स्नान, सन्ध्या गचद वैयचिक
िार्तमक गिारों का शास्त्रोि चवचि से करना िमभरक्षण नहीं है । चीन्हें िमभ कश्र रक्षा करनश्र है उनके
पास िमभ चवचि से करना िमभरक्षण नहीं है । चीन्हें िमभ कश्र रक्षा करनश्र है उनके पास िमभ पर गक्रमण
करनेवालों का प्रचतकार करने कश्र शचि िाचहए। हमारश्र दयनश्रय न्स्न्चत के चलए हम हश्र उत्तरदायश्र हैं ।
यचद गी चहन्दगस्न्ान में िमभभ्रष्टता फैलश्र है तो उसके चलए हमारे पूवभी चीम्मेदार हैं । क्या उन्हें परायों
का गक्रमण नहीं चदखता न्ा ? परकश्रयों में गक्रमण कश्र पाशवश्र वृचत्त णढ रहश्र है , इसे ीान लो।
चहन्दगस्न्ान में चहन्दू समाी स्वतांत्र रह सकता है , वह सम्मान से ीश्र सकता है , सश्रना तानकर तन्ा चसर
ऊाँिा करके िल सकता है , यह सांघ का चवश्वास है । इसके चलए गवश्यक ननगशासन, शश्रल और
सांघटन कश्र चशक्षा गी परश्रस हीार से ऊपर तरुण ले रहे हैं । सांघ का णश्री गााँव-गााँव तन्ा प्रान्त-
प्रान्त में पहग ाँ ि गया है । समाी में शचि, गत्मचवश्वास और स्वाचोमान उत्पन्न हो गया तो परश्रस करोड़
सांघचटत लोगों को नपने दे श में सम्मानपूवभक ीश्रवन व्यतश्रत करना नसम्ोव नहीं है । यह दे श

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चहन्दगस्न्ान नाम से चवख्यात है । चहन्दगत्व हश्र यहााँ के राष्ट्र का प्राण है । नतः इस दे श, िमभ और सांस्कृचत
कश्र सणसे नचिक चीम्मेदारश्र चहन्दगओां को हश्र चनवाह करनश्र िाचहए। सांघ कश्र यहश्र एक इच्छा है ।’’

डॉक्टरीश्र ने यह गग्रहपूवभक प्रचतपादन चकया न्ा चक प्रत्येक व्यचि नपने चविारों के ननगसार गिार-
िमभ का नवश्य पालन करे चकन्तग िमभरसांरक्षण के चलए तो सम्पूणभ समाी कश्र िारणा करनेवाले
वश्ररव्रतिाचरयों कश्र हश्र गवश्यकता है ।

296
24. कगछ खट्टा : कगछ मश्रुा
नागपगर का शश्रत-चशचवर समाप्त कर परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र 1 ीनवरश्र 1937 को पूना गये तन्ा वहााँ
चशचवर में दो चदन रहे । महाराष्ट्र में यह प्रन्म चशचवर होने के कारण एक तो पहले हश्र णहग त उत्साह का
वातावरण न्ा चफर डॉक्टरीश्र के गगमन से तो उसमें और ोश्र वृचद्ध हो गयश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र चशचवर के
कायभक्रमों में गणवेश में उपन्स्न्त रहकर प्रत्येक िश्री का नत्यन्त सूक्ष्मता से चनरश्रक्षण करते न्े। एक
चदन राचत्र के समय शांका-समािान का कायभक्रम हग ग। डॉक्टरीश्र ने नत्यन्त सगणोि एवां हृदयग्राह्य
शब्दों में स्वयांसेवकों कश्र शांकाओां का चनरसन चकया। इस प्रश्नोत्तर के समय उनके द्वारा णताया हग ग
स्वानगोव स्वयांसेवकों के चविारों को तेीश्र से प्रेरणा दे नेवाला न्ा। घटना इस प्रकार कश्र न्श्र चक वे एक
णार डॉ. मगी
ां े के सान् औरां गाणाद कश्र शगक्लयीगवेदश्रय कण्वशाखा कश्र ब्राह्मण-पचरर्द् में गये न्े। वहााँ
डॉ. मगांीे कश्र शोोायात्रा णड़श्र शान से चनकलश्र। डॉक्टरीश्र ोश्र डॉ. मगी
ां े कश्र मोटर के पश्रछे एक मोटर में
णैुे हग ए न्े। िश्ररे-िश्ररे िलनेवाला ीगलूस रास्ते में लोगों का सत्कार ग्रहण करने के हे तग णश्रि-णश्रि में
रुकता ीाता न्ा। एक स्न्ान पर चकसश्र सज्जन ने नपनश्र णगल में खड़े हग ए एक मगसलमान व्यचि से डॉ.
मगांीे का पचरिय ीानने कश्र इच्छा से पूछा चक ‘‘मोटर में णैुे हग ए नेता कौन हैं ? इस पर उस मगसलमान
ने चतरस्कारपूणभ ोाव से उत्तर चदया ‘‘वे तो खटमल के णाणा हैं ।’’

यह घटना णताकर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘हमारे समाी के एक प्रमगख नेता के सम्णन्ि में नन्य समाी
का एक सािारण-सा व्यचि यचद इस प्रकार कश्र णकवास कर सकता है तो उसका यहश्र नन्भ है चक
हमारा समाी गी इतना दगणभल हो गया है चक उन्हें लगता है चक इसे खटमल के समान कगिल चदया
ीा सकता है । नतः हमें नपने समाी को नपने दे श चहन्दगस्न्ान में प्रचतष्ठा प्राप्त कराने के हे तग सांघचटत
होकर प्रयत्न करना िाचहए।’’

पूना के चशचवर के उपरान्त डॉक्टरीश्र पण् रपगर तन्ा शोलापगर होते हग ए साांगलश्र गये। वहााँ से महाराष्ट्र
के प्रान्तसांघिालक ीश्र काशश्रनान्पन्त चलमये को सान् लेकर चमरी, ीयकसहपगर, हचरपगर, कोल्हापगर,
कागल, चनपाणश्र, चिकोडश्र, सौंदलगें, चिपळू ण, गगहागर, दाोोळ, माखन, कह्राड, सातारा गचद
छब्णश्रस स्न्ानों पर ीाकर वहााँ कश्र शाखाओां का चनरश्रक्षण चकया। प्रत्येक स्न्ान का वृत्त दे ना तो
स्न्ानाोाव से सम्ोव नहीं होगा चकन्तग कगछ चवशेर् प्रसांगों का उल्लेख नवश्य करना होगा।

चीस समय डॉक्टरीश्र कोल्हापगर गये उन चदनों वहााँ का सांघकायभ ‘राीाराम स्वयांसेवक सांघ’ के नाम
से िलता न्ा, क्योंचक सरकारश्र दणाव के कारण वहााँ चक चरयासत के नचिकाचरयों ने राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक
सांघ पर प्रचतणन्ि लगा चदया न्ा। वहााँ के प्रचसद्ध नम्णाणाई के मन्न्दर के गाँगन में डॉक्टरीश्र के ोार्ण
कश्र योीना कश्र गयश्र न्श्र। सोा में ीनता गकर णैु गयश्र चकन्तग नध्यक्ष महोदय शासन के ोय के

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कारण नहीं गये। इस पर डॉक्टरीश्र ने छत्रपचत चशवाीश्र महाराी के चित्र को नध्यक्ष कश्र कगसी पर
गसश्रन करने को कहा तन्ा उनकश्र नध्यक्षता में हश्र नपना ोार्ण प्रारम्ो चकया। दो-तश्रन हीार कश्र
ीोतृमण्डलश्र को सम्णोचित करते हग ए डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘कोल्हापगर ीैसे नगर में मेरे ोार्ण के चलए
प्रत्यक्ष छत्रपचत होने पर नन्य चकसश्र नध्यक्ष कश्र क्या गवश्यकता है ? मगझे चशवाीश्र महाराी नध्यक्ष
के नाते प्राप्त हग ए, यह मेरा चकतना नहोोाग्य है ।’’

इसश्र दौरे में महाराष्ट्र के प्रचसद्ध चित्रपट-चदग्दशभक तन्ा लेखक ीश्र ोालीश्र पें ारकर ने डॉक्टरीश्र से
ोेंट कश्र। इस ोेंट का पचरणाम चनकला चक वे राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के स्वयांसेवक णन गये। गगे
िलकर 1940 में पूना कश्र एक सावभीचनक सोा में ोार्ण दे ते हग ए उन्होंने डॉक्टरीश्र के सान् कश्र इस
ोेंट का कगछ िगने हग ए शब्दों में वणभन करते हग ए कहा न्ा ‘‘नागपगर के कोई डॉक्टर हे डगेवार गये हग ए
हैं यह सगनकर उनसे सही चमलने के चलए मैं ीश्र दाोोलकर एडवोकेट के यहााँ गया चकन्तग गि-पौन
घण्टे में हश्र ीण चमलकर णाहर चनकला तो उनका सदै व के चलए ननगयायश्र णन िगका न्ा।’’ सााँवले तन्ा
िेहरे पर माता के दागवाले डॉक्टर हे डगेवार कश्र णैुक कश्र सािारण णातिश्रत में ोश्र यह चकतना
चवलक्षण ीादू न्ा !

इस नवसर पर कोल्हापगर के डॉक्टरों ने नपनश्र सचमचत में डॉक्टरीश्र का सत्कार कायभक्रम गयोचीत
चकया। इस समय डॉक्टरीश्र द्वारा सांघ कश्र कल्पना न्ोड़े शब्दों में रखे ीाने के उपरान्त कगछ दे र तक
खगलश्र ििा ोश्र हग ई। इस ििा में एक डॉक्टर महोदय ने एक चनराचीत चहन्दू मचहला कश्र करुण कहानश्र
णताकर पूछा ‘‘सांघ उसके चलए क्या कर सकता है ?’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने उत्तर चदया चक ‘‘नोश्र
सांघ तो कगछ नहीं कर सकता। हााँ, गप यचद यह काम नपने ऊपर लेने को तैयार हों तो मैं व्यचिशः
सहायता करने को उद्यत हू ाँ ।’’ ‘‘चफर गपका सांघ क्या करे गा ?’’ यह कहते हग ए उन सज्जन ने नपना
नसन्तोर् व्यि चकया। यह सगनकर डॉक्टरीश्र ने मगस्कराते हग ए कहा ‘‘गप ोश्र खूण कह रहे हैं । मान
लश्रचीए चकसश्र घर में गग लगने पर कगछ व्यचि घर के गदचमयों को णिाने कश्र कोचशश कर रहे हैं
उस समय यचद कोई कहने लगे चक ‘णरामदे कश्र णल्लश्र में ोश्र गग लगश्र हैं , यचद गप उसे नहीं णिा
सकते तो गपके प्रयत्नों का क्या उपयोग।’ तो उसका यह कहना ुश्रक होगा क्या ? गी दे श कश्र ऐसश्र
हश्र न्स्न्चत है । सांघ ने समाी-ीागरण का कायभ नपने हान् में चलया है । चीन्हें दूसरे ोाग ीलते हग ए चदख
रहे हैं तन्ा उनके सम्णन्ि में उनके मन में वेदना है तो वे नवश्य काम करें चकन्तग सांघचटत समाी
चनमाण होने तक सांघ हश्र सण कगछ करे गा ऐसश्र नपेक्षा चकसश्र को नहीं रखनश्र िाचहए। हम वह न्स्न्चत
चनमाण करने के चलए प्रयत्नशश्रल हैं चक चीसके णाद ‘सांघ क्या करे गा’ यह प्रश्न पूछने कश्र गवश्यकता
हश्र न रह ीाये।’’ यह उत्तर सणके चलए समािानकारक न्ा। कायभक्रम कश्र समाचप्त पर डॉक्टरीश्र ने उस
मण्डल के कायभ के चलए िन्दा ोश्र चदया।

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इस दौरे में वे सातारा ोश्र गये। उस समय कश्र एक घटना का यहााँ उल्लेख करना उपयगि रहे गा। डॉक्टरीश्र
सातारा ग रहे हैं इसका पता लगने पर चपछलश्र पश्रढश्र के एक क्रान्न्तकारश्र ीश्र दामोदर णळवन्त चोडे
स्टे शन के प्लेटफॉमभ पर डॉक्टरीश्र के गगमन के पूवभ कश्र एक ओर गकर णाट दे खते हग ए खड़े हो गये।
ीण डॉक्टरीश्र वहााँ गये तो उनकश्र एकदम उन पर चनगाह पड़ गयश्र। उन्होंने चोडे ोटीश्र को पहिान
चलया तन्ा ध्वीप्रणाम होते हश्र वे उनके पास गये तन्ा सम्पूणभ ीनसमगदाय के समक्ष उन्हें साष्टाांग
प्रमाण चकया। चोडेीश्र एकदम गद्-गद हो गये। डॉक्टरीश्र कश्र गत्मश्रयता इतनश्र उत्कृष्ट न्श्र।

नन्य दौरों के समान इस नवसर पर ोश्र दौड़िूप के कारण चवीाम का कहीं नाम ोश्र नहीं न्ा। एक पत्र
में इस सम्णन्ि में वे चलखते हैं चक ‘‘णहग त-से चोन्न-चोन्न प्रकार के लोग णश्रि-णश्रि में चमलने गते और
लौट ीाते। दौरा णहग त-हश्र तूफानश्र न्ा। प्रचतचदन दोपहर दो णीे ोोीन तन्ा राचत्र को दो णीे तक
ीागरण। इस कायभक्रम में कहीं ोश्र खण्ड नहीं पड़ा। चकन्तग सम्पूणभ दौरे में वातावरण नत्यन्त हश्र
उत्साहपूणभ न्ा। प्रत्येक शाखा में, चवशेर्कर तरुण वगभ में, सांघकायभ के चलए गत्यन्न्तक चनष्ठा एवां
लगन चदखायश्र दे तश्र न्श्र तन्ा सोश्र ओर एक नविैतन्य फैला हग ग न्ा।’’

महाराष्ट्र के लोगों का गग्रह न्ा चक वे और कगछ शाखाओां का दौरा करें चकन्तग डॉक्टरीश्र के स्वगीय
माताीश्र तन्ा चपताीश्र का वार्तर्क ीाद्ध-चदन चनकट ग गया। उनका चनयम न्ा चक वे इस ीाद्ध-चदन
पर नागपगर में नवश्य उपन्स्न्त रहते न्े। नतः ीनवरश्र के नन्त में वे नागपगर वापस ग गये।

ां े कश्र ‘चद सेन्रल चमचलटरश्र एीूकेशन सोसायटश्र’


इस वर्भ वे सौ रुपये शगल्क दे कर 22 फरवरश्र को डॉ. मगी
के चवचिवत् सदस्य ोश्र हो गये तन्ा इस सांस्न्ा कश्र प्रणन्ि-सचमचत कश्र णैुक में ोाग लेने के चलए चदनाांक
21 एवां 22 मािभ 1937 को नाचसक गये। उस समय उन्होंने सांघशाखा का ोश्र चनरश्रक्षण चकया। इस
नवसर का एक महत्त्वपूणभ प्रसांग इस प्रकार है ः-

एक चदन शाखा का कायभक्रम समाप्त करके ीण डॉक्टरीश्र ीश्र राीाोाऊ साुे वकश्रल के घर कश्र ओर
ीा रहे तो उनकश्र दृचष्ट ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम के एक णोडभ पर पड़श्र। नाचसक में यह एक नयश्र णस्तश्र णन
रहश्र न्श्र तन्ा वहााँ के कगछ उत्साहश्र लोगों ने उसे ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम चदया न्ा। चकन्तग डॉक्टरीश्र को
यह णात खटक गयश्र। उन्होंने राीाोाऊ से इस चवर्य पर ििा करते हग ए कहा ‘‘नपने दे श में चकसश्र
ोश्र णस्तश्र को ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम दे ना योग्य नहीं है । मैं चपछलश्र ीण णम्णई गया न्ा तो वहााँ ोश्र दादर
में ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम दे खा न्ा। उस सम्णन्ि में मैंने ीश्र णाणाराव सावरकर तन्ा डॉ. सावरकर से
कहा चक णम्णई में ‘पारसश्र कॉलोनश्र’ होना तो ुश्रक है परन्तग नपने हश्र दे श में ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम
रखकर तो हम यहश्र चसद्ध करें गे चक मानो हम परदे शश्र हैं । यचद हम इांसण्ै ड या चकसश्र नन्य दे श में ीायें
और वहााँ नपनश्र णस्तश्र णसायें तो उसे ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ नाम दे ना सगयचिक होगा। डॉक्टरीश्र का यह

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मूलग्राहश्र चविार लोगों को समझ में ग गया तन्ा ‘चहन्दू कॉलोनश्र’ का णोडभ हटा चदया गया। गी
नाचसक कश्र वह णस्तश्र ‘गोळे कॉलोनश्र’ के नाम से चवख्यात है ।

ोोंसला सैचनक चवद्यालय के चलए गांगापगर-मागभ पर एक नया स्न्ान खरश्रदा गया न्ा। डॉ. मगांी,े ीश्र प्रताप
सेु तन्ा डॉक्टरीश्र तश्रनों ने चदनाांक 21 मािभ को इस स्न्ान का चनरश्रक्षण चकया। कायभकाचरणश्र कश्र इस
णैुक में शगल्क एवां पायक्क्रम चनचित चकया गया। डॉक्टरीश्र का इसमें चवशेर् योगदान न्ा। नाचसक
से लौटते हग ए डॉक्टरीश्र िगळें, नमळनेर, ीळगााँव गचद स्न्ानों के भ्रमण के चलए गये। तदगपरान्त
चवदोभ के पौढ कायभकताओां के सम्मेलन में ोाग लेने के चलए नकोला गये।

नाचसक गने के पूवभ हश्र उन्हें पत्रों से एक गनन्द और दगःख से ोरश्र घटना का समािार चमला न्ा।
चदसम्णर 1926 में काांग्रेस के फैीपगर-नचिवेशन में पां. ीवाहरलाल नेह ीण ध्वीारोहण कर रहे न्े
तो णश्रि में हश्र झण्डे कश्र डोरश्र चगरी से उतर गयश्र। फलतः झण्डा णश्रि में लटका रह गया। ननेक
व्यचियों ने नस्सश्र फगट ऊाँिे ध्वीदण्ड पर िढने का प्रयत्न चकया परन्तग कगछ फगट ऊाँिे ीाकर चहम्मत
तोड़कर उतर गये। वहााँ चशरपगर शाखा का चकसनकसह परदे शश्र नाम का स्वयांसेवक ोश्र उपन्स्न्त न्ा।
यह दे खकर वह गगे गया तन्ा दे खते-दे खते सरभ -सरभ ध्वीदण्ड पर िढता िला गया। उसको िढता
दे खकर सोश्र दशभकों का चदल चहलोंरे लेने लगा। उसने ऊपर ीाकर झण्डे कश्र डोरश्र ुश्रक कर दश्र। इस
प्रकार नचिवेशन के प्रारम्ो में हश्र ीो ‘प्रन्मग्रासे मचक्षकापातः’ होनेवाला न्ा उसे टाल चदया। सण
लोग उसकश्र वाह-वाह करने लगे। नश्रिे उतरने पर वहााँ खड़े हग ए नेताओां ने उसे कन्िों पर ले चलया
तन्ा ीनता ने नक्षरशः उस पर रुपये चनछावर चकये।

इस घटना के उपरान्त यह चनचित हग ग चक उसका खगले नचिवेशन में नचोनन्दन चकया ीाये। चकन्तग
उसश्र णश्रि यह पता िला चक वह सांघ का स्वयांसेवक है । फलतः नचोनन्दन का कायभक्रम रद्द कर चदया
गया। डॉक्टरीश्र को ीण यह समािार चमला तो नाचसक के दौरे के णाद िगळें शाखा पर उन्होंने
चकसनकसह को णगलवाया तन्ा वहााँ दे वपगरा शाखा पर उसका नचोनन्दन करते हग ए उसे एक िााँदश्र का
प्याला ोेंट चकया। उस समय उन्होंने चकसनकसह को गग्रहपूवभक नपनश्र णगल में कगसी पर णैुाया
न्ा। डॉक्टरीश्र ने उस समय ीो चविार प्रकट चकया वह नत्यन्त हश्र मननश्रय है । उसका गशय न्ा चक
‘‘दे श का काम कहश्र ोश्र नड़ता हो तो दल का चविार न करते हग ए गगे गकर उसमें हान् लगाना
िाचहए।’’ चकसनकसह ने इसश्र प्रवृचत्त का पचरिय चदया न्ा, नतः उन्होंने उसकश्र पश्रु न्पन्पायश्र। एक
ओर तो सांघ का नाम सगनते हश्र मान्े पर णल पड़नेवालश्र नसचहष्ट्णगता न्श्र तो दूसरश्र ओर न्श्र डॉक्टरीश्र
कश्र सहश्र दे शोचि से उत्पन्न ‘वयां पांिाचिकां शतम्’ कश्र उदात्त ोावना।

नकोला में पौढ कायभकताओां के सम्मेलन में चदनाांक 28 मािभ को उन्होंने सांघ-स्न्ापना का सचवस्तार
इचतहास रखा। यह ोार्ण नत्यन्त हश्र प्रेरणादायक न्ा। ोार्ण के नन्त में डॉक्टरीश्र ने कहा न्ा

300
‘‘.........यचद नपने चहन्दगस्न्ान के कल्याण के चलए कोई ोश्र कल्पना इस सांघटन के सम्मगख गये तो
उसे व्यवहार में पचरणत करने के चलए हमें यह न लगे चक नपना सांघटन कम है नन्वा दगणभल है नतः
वह कगछ नहीं कर सकता। यह कहने का नवसर न गये इस प्रकार कश्र पचवत्र, उज्जवल तन्ा तेीस्वश्र
ोावना हृदय में लेकर, यह सांघटन नचिकाचिक प्रोावश्र कैसे होगा इसश्र ओर हमको ध्यान दे ना िाचहए।
लौचकक ीगत् में चहन्दू राष्ट्र को स्वाचोमान से एवां मस्तक ऊाँिा करके ीश्रने के चलए ीो कगछ करना
गवश्यक होगा वह सण करने का हमारे सांघटन का चनिय है । यह कायभ चकतना णड़ा है एवां इसके
चलए चकतना पचरीम करना पड़ेगा, यह मगझे णताने कश्र गवश्यकता नहीं। मेरा गत्मचवश्वास है चक
सगज्ञ, चविारवान् तन्ा णगचद्धमान् चहन्दू तरुण इस कायभ को करने के चलए नग्रसर होंगे।’’

चपछले प्रकरण में यह णताया ीा िगका है चक ीश्र गगरुीश्र सारगाछश्र के गीम में स्वामश्र ीश्र
नखण्डानन्दीश्र कश्र सेवा में चनमग्न न्े। ीश्र गगरुीश्र कश्र सािना एक महापगरुर् के साचन्नध्य में िल रहश्र
न्श्र। चकन्तग स्वामश्रीश्र का स्वास्न्य मिगमेह एवां हृदयचवकार के कारण णराणर चगरता गया। इस समय
ीश्र गगरुीश्र ने उनकश्र इतनश्र लगन से तन्ा नन्क सेवा कश्र चक कोश्र-कोश्र चदन-ोर में उन्हें ोोीन करने
का ोश्र नवसर नहीं चमल पाता न्ा। ोूख-प्यास ोगलाकर कश्र हग ई यह सेवा स्वामश्रीश्र कश्र कृपा से सफल
हग ए चणना नहीं रह सकश्र। एक चदन सारगाछश्र गीम कश्र ‘चवनोद कगटश्र’ में उन्होंने ीश्र गगरुीश्र को दश्रक्षा
दश्र। एक चदये से दूसरा चदया ीलाकर नपने चनरासि कमभयोगश्र ीश्रवन का उन्होंने सांक्रमण चकया।
लगता है चक नपने इस ीश्रवनकायभ के चलए हश्र उनके प्राण नटके हग ए न्े। इसके णाद उनका रोग
एकदम णहग त णढ गया। सारगाछश्र से उन्हें कलकत्ता लाया गया। गगरुीश्र णराणर उनके सान् हश्र न्े।
कलकत्ता में णेलूर मु में सण प्रकार से नद्यतन पद्धचत से चिचकत्सा और उपिार कश्र व्यवस्न्ा कश्र
गयश्र। पर सण प्रयत्न चनष्ट्फल ुहरे । चदनाांक 7 फरवरश्र 1937 को दोपहर के समय स्वामश्र
नखण्डानन्दीश्र चिरसमाचि में लश्रन हो गये।

ीश्र गगरुीश्र के चलए यह नत्यन्त हश्र दगःख ोरश्र घटना न्श्र। उनकश्र मनः न्स्न्चत नत्यन्त उदास हो गयश्र।
वे लगोग एक पखवाड़ा णेलूर मु में रुके। वहााँ कई सन्तों से चमले। चफर मािभ 1937 में नागपगर
वापस ग गये। उनका नज्ञातवास चीतना गकन्स्मक न्ा उतना हश्र गकन्स्मक न्ा उनका
पगनरागमन। नपने इकलौते णेटे के वापस घर गने का चीतना गनन्द उनके माता-चपता को हग ग
उससे कई गगना नचिक गनन्द डॉक्टरीश्र को हग ग। गगरुीश्र के सारगाछश्र-गीम ीाने के पूवभ हश्र उनके
माता-चपता को पता िल गया न्ा चक वे घर-गृहस्न्श्र के पिड़े में पड़नेवाले नहीं हैं । डॉक्टरीश्र को ोश्र
इसका पता न्ा। गीम में वापस गने के णाद तो गगरुीश्र कश्र मनःन्स्न्चत गृहस्न् ीश्रवन के चलए
चणल्कगल हश्र ननगकूल नहीं न्श्र। व्यचिगत ीश्रवन से वे नण चवरि हो िगके न्े। चीस व्यचि के पास
कतभव्य, णगचद्धमत्ता तन्ा चवरिोाव है वहश्र व्यचि राष्ट्र का ीश्रवन िला सकता है , यह णात डॉक्टरीश्र
ीानते न्े। इसश्रचलए ीश्र गगरुीश्र के वापस गने पर उन्हें चवशेर् गनन्द हग ग।

301
नण सांघ का काम चवचोन्न प्रान्तों में फैलता ीा रहा न्ा। डॉक्टरीश्र पर काम का इतना ोार णढ गया
चक चदन के िौणश्रस घण्टे ोश्र कम पड़ते न्े। इतना होते हग ए ोश्र उनके मन का उल्लास तन्ा िेहरे का
हाँ समगख ोाव कोश्र कम नहीं हग ग। नप्रैल 1937 में नागपगर से पूना चशक्षण-वगभ के चलए ीाते हग ए एक
नत्यन्त मीेदार घटना घटश्र। ीण कोश्र डॉक्टरीश्र प्रवास पर ीाते न्े तो रास्ते के सोश्र स्न्ानों पर
सूिना ोेी दे ते न्े चीससे स्टे शन पर ोेंट हो ीाये। इस समय ोश्र चसन्दश्र, विा, नकोला गचद स्न्ानों
को सूिना ोेी दश्र गयश्र न्श्र। इस प्रवास में ीश्रकृष्ट्ण पगराचणक ोश्र डॉक्टरीश्र के सान् न्े। ीैसे हश्र गाड़श्र
चसन्दश्र स्टे शन पर गयश्र, नपेक्षा के ननगसार विा तालगका के सांघिालक ीश्र नानासाहण टालाटगले तन्ा
कगछ स्वयांसेवक इिर-उिर डॉक्टरीश्र को खोीने लगे। डॉक्टरीश्र तन्ा ीश्र पगराचणक दोनों हश्र गाड़श्र
खड़श्र होते हश्र चडब्णे के सामने प्लेटफामभ पर उतरकर खड़े हो गये न्े परन्तग चकसश्र चक चनगाह उिर नहीं
पड़श्र। वे सण डॉक्टरीश्र को चडब्णों में णड़श्र व्यग्रता से ाँढ
ू रहे न्े। डॉक्टरीश्र को कहीं न पाकर सोश्र
लोग प्लेटफॉमभ पर एक ओर उदास होकर खड़े हो गये। इतने में गाड़श्र ने सश्रटश्र दश्र तन्ा डॉक्टरीश्र प्लेटफॉमभ
से चडब्णे में िढकर दरवाीे पर खड़े हो गये। ीैसे हश्र गाड़श्र खड़े हग ए कायभकताओां के सामने से गयश्र चक
उन्होंने नानासाहण को ऊाँिे स्वर से नमस्कार चकया। एकाएक सण डॉक्टरीश्र कश्र ओर दे खने लगे।
ू न पा सकने पर होनेवाला दगःख, ीैसे हश्र उन्हे दे खा, हाँ सश्र में
डॉक्टरीश्र के गाड़श्र में होते हग ए ोश्र ाँढ
पचरणत हो गया। डॉक्टरीश्र खादश्र का कगता और पीामा पहने तन्ा टे ढश्र सफेद टोपश्र लगाये दरवाीे पर
खड़े न्े। ीश्र पगराचणक ोश्र इसश्र वेर् में न्े। उन्हें दे खकर लोग चणना हाँ से नहीं रह पाये। डॉक्टरीश्र को
ाँढ
ग ने में यहश्र हाल नन्य स्टे शनों पर ोश्र हग ग। गाड़श्र छू टते-छूटते डॉक्टरीश्र का नमस्कार और सणकश्र
मनिाहश्र हाँ सश्र, यहश्र न्ा उस प्रवास का क्रम। हाँ सश्र-मीाक डॉक्टरीश्र के स्वोाव में चणल्कगल घगलचमल
गया न्ा।

चकसश्र कायभ के चनचमत्त चदनाांक 21 नप्रैल को डॉक्टरीश्र णम्णई गये। चकन्तग उस समय वहााँ ‘इन्फगएांीा’
फैला हग ग न्ा। डॉक्टरीश्र को ोश्र णगखार ग गया। इतना हश्र नहीं, णम्णई के सांघिालक ीश्र दादासाहण
नाईक के घर के, ीहााँ डॉक्टरीश्र ुहरे हग ए न्े, ननेक सदस्य णगखार में पड़े हग ए न्े। डॉक्टरीश्र से चमलने
के चलए ीश्र काशश्रनान्पन्त वहााँ गये तो वे ोश्र खाट पर पड़ गये। इस प्रकार एक सप्ताह ऐसे हश्र चनकल
गया। इस चवर्य में डॉक्टरीश्र चलखते हैं चक ‘‘णम्णई का यह सप्ताह उपयोगश्र नहीं हग ग। यह तो
‘इन्फगएांीा वश्रक’ हश्र चसद्ध हग ग। चीस कामों से णम्णई गया न्ा वे सण रह गये।’’ णगखार छूटने के णाद
दो चदन तक उन्हें केवल पेय हश्र चदया गया। इसके णाद ‘होमलश्र क्लण’ से दो-तश्रन चदन तक ोोीन
माँगाया गया। एक चदन ोोीन के चडब्णे में नमक न लाने के कारण ीश्र दादासाहण नाईक ोोीन
लानेवाले स्वयांसेवक पर कुद्ध हो गये। इस पर डॉक्टरीश्र ने दादाीश्र को शान्त करते हग ए कहा ‘‘नमक
के चणना कोई ोोीन रुकता न्ोड़े हश्र है । ध्यान रचखये, कगछ लोग खाने के चलए ीश्रते हैं तो कगछ लोग
ीश्रने के चलए खाते हैं । हमें ोश्र ीश्रने के चलए खाना िाचहए।’’ णगखार उतरने के णाद डॉक्टरीश्र ने ‘होमलश्र

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क्लण’ के माचलक से ोश्र पचरिय कर चलया। वे सज्जन गोग के चनवासश्र न्े। उनकश्र िारणा न्श्र चक गी
नहीं तो कल यह पचरिय नवश्य उपयोगश्र चसद्ध होगा।

णम्णई के णाद डॉक्टरीश्र पूना गये। उनके णाद हश्र ीश्र णाणाराव सावरकर ोश्र वहााँ गये तन्ा
उपाहारगृह में ुहरे । उस समय उनके पैर में पश्रड़ा न्श्र तन्ा मूत्रचवकार ोश्र णढ गया न्ा। डॉक्टरीश्र को
ीैसे हश्र पता िला चक णाणाराव पूना गये हैं , वे उन्हें गग्रपूवभक ‘प्रचशक्षण वगभ’ के वसचतगृह में ले
गये। दूसरे को नपने कारण क्यों कष्ट चदया ीाये, इस सांकोि के कारण णाणाराव वगभ में नहीं ग रहे
न्े। परन्तग डॉक्टरीश्र यह कैसे दे ख सकते न्े चक नपने चमत्र एक ओर दगःख में कहराते रहें और वे
उनकश्र कोई चिन्ता नहीं करें । वे णाणाराव को ‘ोावे चवद्यालय’ में लाये तन्ा एक कमरे में उनकश्र
व्यवस्न्ा कश्र। ीण तक वे वहााँ रहे स्वयां उनकश्र दे खोाल करते रहे । यह न्ा उनका स्नेह।

डॉक्टरीश्र ीण पूना गये तो वहााँ सोन्यामारुचत मन्न्दर का घण्टा णीाने पर गपचत्त के प्रश्न पर ीनमत
नत्यन्त चवक्षग ब्ि न्ा। सरकार ने चदनााँक 24 नप्रैल से 14 मई तक यह प्रचतणन्ि लगा चदया न्ा चक
सोन्यामारुचत मन्न्दर के पचिम, दचक्षण तन्ा उत्तर में नब्णे फगट तक रास्ते पर नन्वा चकसश्र सावभीचनक
स्न्ान पर तन्ा लक्ष्मश्रपन् पर ताम्णोलश्र मन्स्ीद तक कहश्र ोश्र णाीा नहीं णीाया ीाये। इसका कारण
यह चदया गया न्ा चक सोन्यामारुचत के छोटे -से घण्टे से मगसलमानों के नमाी में णािा पहग ाँ ितश्र है । स्पष्ट
है चक यह कारण नत्यन्त हश्र हास्यास्पद न्ा। चपछले वर्भ के समान मगसलमान इस वर्भ ोश्र झगड़ा न
करें इसके चलए वास्तव में तो उनके ऊपर प्रचतणन्ि लगाना िाचहए न्ा। चकन्तग उलटे चहन्दगओां पर रोक
लगाकर शासन ने नपनश्र नन्यायमूलक, पक्षपातपूणभ नश्रचत का हश्र पचरिय चदया। साचहत्य-सम्राट ीश्र
न. चि. केळकर ने यह स्पष्ट मत व्यि चकया न्ा चक ‘‘यह गज्ञा मूखत
भ ापूणभ एवां नपमानीनक है ।’’

इस प्रकार कश्र दमनकारश्र एवां नन्यायपूणभ गज्ञा को ुगकराते हग ए चदनाांक 25 नप्रैल को हनगमान-ीयन्तश्र
के शगो नवसर पर मन्न्दर का घण्टा णीाकर सत्याग्रह प्रारम्ो कर चदया गया। चदनाांक 23 तक लगोग
एक हीार व्यचियों ने सत्याग्रह करके इस गज्ञा को प्रोावहश्रन कर चदया। इस सत्याग्रह में छोटे -णड़े
सोश्र ने ोाग चलया। स्वयां ीश्र तात्यासाहण केळकर ने सत्याग्रह करते समय चवतचरत पत्रक में इस
छोटे -से घण्टे को सम्णोचित करते हग ए चलखा न्ा चकः-

‘‘बये वचमु कले घण्टे काढी मंजुळ अपु ला ध्िनी।

तु झ्या गुणें जाणार, जाउ तवर हु कुमशावह उलथु नी।’’

(‘‘रे छोटे से घण्टे , तु मने ऐसी ध्िनी की।

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नींि वहल उठी नौकरशाही के शासन की।।’’)

इस सत्याग्रह के कारण पूना के वातावरण में काफश्र उत्तेीना न्श्र। उस समय वहााँ सांघ का चशक्षण-वगभ
िल रहा न्ा। महाराष्ट्र के सैकड़ों तरुण वहााँ एकत्र न्े। डॉक्टरीश्र का सम्पूणभ ध्यान उसश्र में लगा हग ग
न्ा। डॉक्टरीश्र ने चकसश्र को यह गदे श नहीं चदया चक ‘‘तू इस सत्याग्रह में ोाग ले’’, क्योंचक उन्हें यह
चवश्वास न्ा चक सांघ का समझदार तन्ा सांस्कारप्राप्त स्वयांसेवक सांघकायभ से फगरसत रहने पर स्वयांप्रेरणा
से इस प्रकार के नन्याय का प्रचतकार करने के चलए गगे गये चणना नहीं रह सकता। इस प्रकार
चीनको फगरसत चमल सकश्र ऐसे ननेक स्वयांसेवक उस सत्याग्रह में सन्म्मचलत हग ए। डॉक्टरीश्र को
इसका पता ोश्र न्ा। चफर ोश्र ीण कोश्र कोई उनसे गकर पूछता चक इस सत्याग्रह में ‘‘सांघ क्या
करे गा’’ तो नत्यन्त शान्न्त के सान् यहश्र उत्तर दे ते चक ‘‘यह सत्याग्रह सोश्र नागचरकों का है तन्ा
स्वयांसेवक ोश्र नागचरक होने के कारण सैकड़ो लोगों ने नागचरक के नाते इसमें ोाग चलया हश्र है ।’’
इस उत्तर के कई लोगों का समािान नहीं हग ग। उनका गग्रह न्ा चक सांघ कश्र ओर से स्पष्ट शब्दों में
घोर्णा करके सांघ के नाते सत्याग्रह में ोाग लेना िाचहए। डॉक्टरीश्र यह िाहते न्े चक सांघ के नन्स्तत्व
मात्र से समाी में ननेक गवश्यक णातें घचटत हों, चकन्तग उनका ीेय एवां कतृभत्व सांघ को प्राप्त हो
इससे उनका चवरोि न्ा। कारण इस नचोलार्ा में से हश्र हम समाी से नलग कगछ चवशेर् हैं यह ोाव
उत्पन्न होकर एक सम्प्रदाय कश्र वृचत्त पैदा होतश्र है । एक णार डॉक्टरीश्र के नत्यन्त चनकट के कगछ
व्यचियों ने इस णात का गग्रह चकया तो वे दश्रवार पर लगे हग ए वनपशग के सींगों कश्र ओर इशारा करके
कहने लगे ‘‘सत्याग्रह करते हग ए स्वयांसेवक पहिाना ीा सके इसचलए प्रत्येक को ये सींग लगाये दे ता
हू ाँ ।’’

पूना-वगभ में नपना काम समाप्त होने के णाद डॉक्टरीश्र ने ोश्र स्वतः सत्याग्रह में ोाग लेने का चविार
प्रकट चकया न्ा। डॉक्टरीश्र का यह तो चनचित चविार न्ा चक सत्याग्रह ीैसश्र णातें चहन्दू समाी के
रोगग्रस्त शरश्रर के मूलग्राहश्र उपिार न होकर ऊपर कश्र मलहम-पट्टश्र मात्र हश्र न्ीं। समाी कश्र सम्पूणभ
समस्याओां का समािान तो ीाग्रत्, स्वाचोमानश्र तन्ा ननगशाचसत ीश्रवन को नांगश्रकृत कर िलने वालश्र
कोचटशः ीनों कश्र सामूचहक सांघचटत शचि से हश्र हो सकता है । इस सामूचहक शचि का चनमाण करने
के चलए उन्होंने सवभस्व कश्र णाीश्र लगाकर सांघ का कायभ खड़ा चकया न्ा। पर डॉक्टरीश्र यह ोश्र ीानते
न्े चक ीण तक यह कायभ पूरा नहीं होता तण तक रिचवकार के कारण समाी-शरश्रर में समय-समय
पर फोड़े चनकलते हश्र रहें गे तन्ा तात्काचलक उपाय के प में व्यावहाचरक दृचष्ट से मलहम-पट्टश्र ोश्र
करनश्र पड़ेगश्र। इसश्र गिार पर सत्याग्रह कश्र उपयगिता का चविार कर उन्होंने 13 मई को िार णीे
सत्याग्रह चकया। उनके सान् ीश्र नण्णासाहण चलमये, ीश्र महादे व शास्त्रश्र चदवेकर तन्ा यवतमाळ के

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‘राष्ट्रश्रय चवद्यालय’ में उनके चशक्षक एवां प्रचसद्ध इचतहास-सांशोिक ीश्र दत्तोपन्त गपटे गचद सज्जन
ोश्र उस चदन कश्र सत्याग्रहश्र टगकड़श्र में सन्म्मचलत न्े।

सत्याग्रह के णाद पगचलस ने सणको चगरफ्तार कर चलया चकन्तग पूछताछ करके गिे-घण्टे के णाद
िालान करके मगि कर चदया। दूसरे चदन उन पर मगकदमा िलाया गया। डॉक्टरीश्र कश्र ओर से ीश्र न.
गो. नभ्यांकर वकश्रल न्े। उन्होंने न्यायालय में कहा चक ‘‘परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र हमारे िमभगगरु हैं ।
उनको यहााँ गने के चलए चववश करना उनके सम्मान के ननगकूल नहीं है । नतः मगझे हश्र उनकश्र ओर
से उनका पक्ष रखने कश्र ननगमचत दश्र ीाये।’’ न्यायालय कश्र ओर से उन्हें ननगमचत दे दश्र गयश्र।

चदनाांक 17 मई को मगकदमें को फैसला हग ग। डॉक्टरीश्र को पिश्रस रुपये ीगरमाने कश्र सीा दश्र गयश्र।
इस समय डॉक्टरीश्र ने ीो एक छोटा-सा चलचखत विव्य चदया न्ा वह ोश्र महत्त्वपूणभ न्ा। उन्होंने कहा
चक ‘‘ीश्र सोन्यामारुचत के मन्न्दर के सम्णन्ि में पूना के चडन्स्रक्ट मचीस्रेट द्वारा चदये गये वाद्य-
प्रचतणन्िक गदे श का मैंने गम्ोश्ररतापूवभक चविार चकया। मगझे ऐसा लगता है चक इस न्स्न्चत में मन्न्दर
में ीाकर घण्टा णीाना मेरा कतभव्य है । इस गदे श से मेरे राष्ट्र का ीो नपमान हग ग है उसका चवरोि
करने का गी कश्र पचरन्स्न्चत में यहश्र एक मागभ सम्ोव होने के कारण मैं यह काम कर रहा हू ाँ । ’’
डॉक्टरीश्र यह ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक शचिशालश्र राष्ट्र के सम्मगख नपमान का प्रचतकार करने के
नन्य मागभ ोश्र होते हैं , नतः गी कश्र पचरन्स्न्चत में एक नरम उपाय स्वश्रकार करना पड़ रहा है । इसका
दगःख एवां मन कश्र ुे स उनके विव्य से प्रकट होतश्र है ।

नण सांघ के कायभकताओां को स्न्ान-स्न्ान पर प्रिगर समन्भन नन्वा प्रणल चवरोि, दोनों का हश्र ननगोव
गने लगा न्ा। एक ओर वणश्र, यवतमाळ गचद क्षेत्रों में काांग्रेसीनों द्वारा सांघ के स्वयांसेवकों कश्र
मारपश्रट के समािार ग रहे न्े तो दूसरश्र ओर स्न्ान-स्न्ान से सांघशाखा प्रारम्ो करने के चलए प्रिारकों
कश्र मााँग के पत्र ोश्र नागपगर पहग ाँ ि रहे न्े। कहीं-कहीं तो लोगों ने स्वयांप्रेरणा से सांघ कश्र शाखा शग कर
दश्र न्श्र। इस प्रकार कश्र एक शाखा का छायाचित्र 1937 में ‘केसरश्र’ में छपा ोश्र न्ा। मीे कश्र णात तो
यह है चक सांघ में स्त्रश्र-सोासदों के नन्स्तत्व का ोश्र वहााँ उल्लेख चकया गया न्ा। सांघ-सम्णन्िश्र पूरा ज्ञान
न होने के कारण केवल उत्साह में, तन्ा हमारे गााँव में ोश्र सांघ कश्र शाखा होनश्र िाचहए इस ोावना से,
खोलश्र गयश्र शाखाओां में इस प्रकार कश्र णातें चदखने लगीं तो क्या गियभ ? इतना हश्र कहा ीा सकता
है चक सांघ के कायभकताओां के प्रयत्न से ऐसा वातावरण नवश्य पैदा हो गया न्ा चक प्रत्येक को सांघ कश्र
शाखा कश्र िाह होने लगश्र न्श्र।

स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर, ीो चक रत्नाचगचर चीले में स्न्ानणद्ध न्े, 1937 में मगि हग ए। ीून-ीगलाई में
महाराष्ट्र-ोर उनके स्वागत-सत्कार के कायभक्रम चकये गये। िारों ओर इस प्रकार के कायभक्रमों कश्र
िूम न्श्र। स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर चहन्दगत्वचनष्ठ न्े। उनकश्र मगचि चनस्सन्दे ह डॉक्टरीश्र द्वारा चहन्दू राष्ट्र के

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पगनरुद्धार के ीो प्रयत्न चकये ीा रहे न्े उनके चलए सहायक होनेवालश्र न्श्र। नतः डॉक्टरीश्र के चलए
उनकश्र मगचि नत्यन्त हश्र गनन्द का चवर्य न्श्र। डॉक्टरीश्र िारणा न्श्र चक सावरकरीश्र एक व्यचि नहीं
नचपतग एक उद्दश्रपक शचि हैं । पूना में सावरकरीश्र के सत्कार के समय चलखे गये एक पत्र में डॉक्टरीश्र
ने नपने मनोोाव इस प्रकार व्यि चकये हैं ‘‘..........इसमें शांका नहीं चक गप सिमगि णड़े
ोाग्यशालश्र हैं चक णै. सावरकर ीैसे नतगल स्वान्भत्यागश्र एवां चनस्सश्रम दे शोि का गपको सहवास
चमला तन्ा उनकश्र नमूल्य वाक्यसगिा का गप रसास्वादन कर सकें। हम ोश्र उस शगो चदन कश्र
उत्सगकता से णाट ीोह रहे हैं ......।’’

इस वर्भ डॉक्टरीश्र ने उत्तर चहन्दगस्न्ान में दस कायभकता पढाई के चलए नन्वा प्रिारक के नाते ोेी।े
उनके प्रयत्न से पांीाण, चदल्लश्र, उत्तरप्रदे श तन्ा मध्योारत में सांघ का ीाल फैलने लगा। ीश्र दादाराव
परमान्भ तन्ा ीश्र णाणासाहण गपटे इन कायभकताओां के कायभ कश्र दे खरे ख करने तन्ा प्रोत्साहन दे ने के
चलए णराणर दौरा करते रहते न्े। स्वयां डॉक्टरीश्र ोश्र कगछ चदनों के चलए चदल्लश्र तन्ा णनारस गये तन्ा
उन्होंने वहााँ कगछ चदनों रहकर कायभ को गचत प्रदान कश्र। चदल्लश्र में नपने चनवास के समय उन्होंने पांीाण
के कायभ कश्र दृचष्ट से ोश्र चवशेर् प से प्रयत्न चकये। इसश्र समय सेु ीगगलचकशोर चणरला से ोेंट करके
उन्हें एक उत्सव के नध्यक्ष के नाते चनमांचत्रत चकया गया। सांघ कश्र तकभशगद्धश्र चविारसरणश्र तन्ा कायभ
का चवस्तार सगनकर ीगगलचकशोरीश्र ने पााँि सौ रुपये दान दे ने का प्रस्ताव चकया। उस समय डॉक्टरीश्र
ने कहा ‘‘सांघ को गपका दान नहीं, गप हश्र िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र का ोाव समझकर चणरलाीश्र ने
उत्तर चदया ‘‘यह समपभण है , दान नहीं।’’ यह सगनकर डॉक्टरीश्र ने उस िन को स्वश्रकार कर चलया।

चदल्लश्र के णाद डॉक्टरीश्र काशश्र गये। वहााँ वे लगोग पौन महश्रना रहे । 1937 में काशश्र के सांघकायभ में
नच्छश्र प्रगचत हग ई न्श्र। यह दे खकर कगछ समाीवादश्र कहलानेवाले चवद्यार्तन्यों ने चवश्वचवद्यालय में सांघ
के चवरुद्ध काफश्र नपप्रिार चकया। उन्होंने सांघ पर साम्प्रदाचयकता तन्ा चहटलर के नाीश्र दल के समान
नचिनायकवादश्र होने का गरोप लगाया। इस प्रकार का कगप्रिार ीण ीोरों से िल रहा न्ा उसश्र णश्रि
उन्हें सांघ के सांस्न्ापक के काशश्र गने का समािार चमला। मानो उन्हें मगाँह-मााँगश्र मगराद चमल गयश्र
क्योंचक इस चनचमत्त को लेकर वे और ोश्र चवरोि का तूफान खड़ा करना िाहते न्े। उन्होंने यह ोश्र
योीना णनायश्र चक सांघ के नेता के गगमन के पूवभ हश्र सांघ के चवरुद्ध प्रिार करके चवद्यार्तन्यों में उसे
इतना घृणास्पद णना चदया ीाये चक कोई सांघसांस्न्ापक कश्र ओर झााँककर ोश्र न दे ख।े इस नश्रचत के
ननगसार समाीवादश्र चवद्यार्तन्यों कश्र ओर से एक पत्रक चवतचरत चकया गया। उसमें कहा गया न्ा चक
सांघ पूी
ाँ श्रपचतयों के चहतों का सांरक्षण करने के चलए णनाया गया है तन्ा उनके हश्र पैसों पर िलता है ।
स्वयांसेवकों को चिढाने के चलए डॉक्टरीश्र के चलए ‘सांघ के पैगम्णर’ शब्द का ोश्र प्रयोग चकया गया
न्ा।

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डॉक्टरीश्र के काशश्र गगमन पर इस पत्रक कश्र एक प्रचत उनके हान् में ोश्र दश्र गयश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र ने
स्वयांसेवकों कश्र यहश्र णताया चक इस प्रकार के पत्रकों के प्रचत दगलभक्ष्य करना िाचहए। उनके तश्रन सप्ताह
के चनवास में व्याख्यानों और ििाओां में कहीं ोूलकर ोश्र इस पत्रक का नाम नहीं गया। यह णात
चवरोिकों को नत्यन्त चनराशाप्रद चसद्ध हग ई। डॉक्टरीश्र के व्यवहार कश्र कगशलता तन्ा चवर्य-प्रचतपादन
कश्र सगसांगचत एवां तकभशगद्धता से पत्रक द्वारा उड़ाया सण गदभ गगणार न मालूम कण शान्त हो गया। पत्रक
सांघ कश्र दृचष्ट से नपकारक के स्न्ान पर उपकारक हश्र चसद्ध हग ग। इस चवर्य में डॉक्टरीश्र चलखते हैं
चक ‘‘......सांघ का तत्त्वज्ञान तन्ा चविारसरणश्र सगनने के णाद लोगों को यहश्र लगा चक पत्रक
चनकालनेवालों ने ोारश्र मूखत
भ ा कश्र। चीन लोगों का ध्यान सािारणतया सांघ कश्र ओर नहीं ीाता वे ोश्र
पत्रक के कारण सांघ के सम्णन्ि में उत्सगकता लेकर नपने गप सांघ कश्र ओर गकृष्ट होने
लगे।.........इस पत्रक से हाचन होने के स्न्ान पर हमारा लाो हश्र हग ग।’’

इस घटना के उपरान्त डॉक्टरीश्र के नगले महश्रने के पत्रों में सांघ तन्ा उसके गलोिकों के चवर्य में
नश्रचत-सम्णन्िश्र चविार चमलते हैं । उन्होंने इस प्रकार का एक पत्र पूना के सांघिालक ीश्र चवनायकराव
गपटे को तन्ा दूसरा महाराष्ट्र के प्रान्त सांघिालक ीश्र का. ोा. चलमये को चलखा न्ा। सांघ कश्र
चविारिारा पर गिाचरत एक मराुश्र साप्ताचहक प्रकाचशत करने का चविार उन चदनों पूना में िल रहा
न्ा। पत्र के प्रकाशन कश्र ननगमचत दे ते हग ए डॉक्टरीश्र ने चलखा न्ा ‘‘...........इसमें कतई शांका नहीं चक
इस पत्र के द्वारा सदै व नपनश्र हश्र चविारसरणश्र का प्रचतपादन होगा। चकन्तग सांघ पर चवचोन्न लोगों द्वारा
चकये ीानेवाले गरोप तन्ा उनके उत्तर-प्रत्यगत्तर के झगड़े में गप चणलकगल न पड़ें। गीकल गपके
यहााँ के पत्रों में सांघ पर ननेक प्रकार के झूुे गरोप पढने को चमलते हैं । ये गरोप िाहे समािारपत्रों
में हों नन्वा सावभीचनक सोाओां में, हमें उनका उत्तर न दे ते हग ए उनकश्र ओर पूणत
भ ः दगलभक्ष करना
िाचहए।’’

डॉक्टरीश्र के सांघटन-शास्त्र का यह नत्यन्त ननगोवपूत चसद्धान्त न्ा चक हम लोग हान्श्र के समान


शान्त रश्रचत से नपने मागभ पर िलते ीायें तन्ा पश्रछे ोोंकनेवालों को गराम से ोोंकने दें । गलोिकों
कश्र ओर ध्यान न दे ने से नपना ीम और समय तो णिता हश्र है , पर इस प्रकार के कोलाहल से न
डगमगाते हग ए गगे णढते ीानेवाले हमारे गत्मचवश्वास तन्ा िैयभ का ीैसे-ीैसे गलोिकों को
ननगोव गता ीाता है वैसे-वैसे हश्र वे हतप्रो होकर णैुते ीाते हैं । डॉक्टरीश्र गलोिकों का कन्न
सगनते और पढते तो नवश्य न्े तन्ा स्वयांसेवक उनका ुश्रक उत्तर दे सकें इसके चलए उनका णौचद्धक
स्तर ऊाँिा उुाने का प्रयत्न ोश्र करते न्े, चकन्तग उनका यह चनचित मत न्ा चक निूक उत्तर दे ने कश्र तन्ा
चवरोिश्र का मगाँह णन्द करने कश्र क्षमता होने पर ोश्र सावभीचनक वाद-चववाद के िोंर में पड़ने से कोई
लाो नहीं होता। चीन्हें इस सांघर्भमय तन्ा नचोचनवेशपूणभ समाी में कगछ प्रत्यक्ष चनमाण करना है उन्हें
‘‘तगटे वाद सांवाद तो हश्रतकारश्र’’(‘‘चमटे वाद, सांवाद उत्तम वहश्र है ’’), समन्भ कश्र इस उचि को तो ध्यान

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में रखना हश्र िाचहए चकन्तग िारों ओर का यह ननगोव ोश्र नहीं ोूलना िाचहए चक नपनश्र ोूल को
मानकर वाद को समाप्त करनेवाले चणरले हश्र चमलते हैं । गी तो यहश्र ननगोव गता है चक ‘‘वादश्र तो
न वळे , न वादचह खळे , होतश्र खगळे गांिळे ’’(‘‘वादश्र नकह मानत कणहग ाँ , वाद नन्त नकह होय। वाद
करत वादश्र सोश्र पागल नन्िे होयाँ।।’’)। डॉक्टरीश्र ने इसश्र ननगोव को ध्यान में रखकर वाद-चववाद
में न पड़ने कश्र नश्रचत का हश्र दक्षतापूवभक पालन चकया न्ा। नतएव 1937 में ीण महाराष्ट्र में सांघ के
चवरोचियों ने नपनश्र लेखनश्र से ीश्र-ोर कश्रिड़ उछालश्र तण डॉक्टरीश्र ने ीश्र का. ोा. चलमये को यहश्र
णताया चक ‘‘..........गपके यहााँ के समािारपत्रों में सांघ के चवरुद्ध उुा हग ग तूफान हम सणके चलए
खूण चवनोद का चवर्य णन गया है । हमारे मन पर इन णातों का कोई पचरणाम नहीं होता। गप इस
चवर्य में चनश्शांक रहें । चकन्तग गप इस णात कश्र चिन्ता नवश्य करें चक इस प्रकार के नपप्रिार से
गपके यहााँ के कायभ को चकसश्र प्रकार का िोंा न लगने पावे। इस प्रकार कश्र णातों से नपने कायभ कश्र
चनचित वृचद्ध होगश्र, इसमें कतई शांका नहीं है ।’’

काशश्र में चवश्वचवद्यालय-शाखा पर ीाने के पूवभ डॉक्टरीश्र महामना पन्ण्डत मदनमोहन मालवश्रय के
दशभनान्भ उनके चनवासस्न्ान पर गये। वास्तव में तो यह समय मालवश्रयीश्र के चमलने का नहीं न्ा। वे
नन्दर एक कमरे में माचलश करवा रहे न्े चकन्तग नौकर से डॉक्टरीश्र के गगमन का समािार चमलते
हश्र मालवश्रयीश्र ने उन्हें नन्दर णगलवा चलया। डॉक्टरीश्र ीैसे हश्र नन्दर गये मालवश्रयीश्र ने उसश्र प्रकार
उुकर उनका णड़े प्रेम से स्वागत चकया तन्ा नपने पास णैुा चलया। उनके णश्रि काफश्र दे र तक चदल
खोलकर णातें होतश्र रहीं। डॉक्टरीश्र द्वारा चहन्दू राष्ट्र के उद्धार के चलए प्रारम्ो नसामान्य प्रयत्नों के
कारण णड़े-णड़े लोगों के मन में उनके चलए नचतशय गदर का ोाव पैदा हो गया न्ा। मालवश्रयीश्र
का व्यवहार इसश्र तर्थय का द्योतक न्ा।

णनारस से िलकर प्रयाग, हग शांगाणाद, णैतूल गचद शाखाओां को दे खते हग ए डॉक्टरीश्र दशहरा के पूवभ
नागपगर लौट गये। नागपगर के दशहरा-उत्सव पर सांिलन के कायभक्रम से सम्पूणभ नगर गूी
ाँ उुता
न्ा। सांिलन करते हग ए स्वयांसेवकों के पदताल के सान् सहस्रावचि नागचरकों के हृदय में ोश्र ोावनाओां
कश्र उत्ताल तरां गें चहलोर लेतश्र न्ीं। सांिलन का सान् दे ने के चलए सांघ के वादन-पन्क कश्र शांखध्वचन
का वणभन कते हग ए साप्ताचहक ‘साविान’ ने चलखा न्ा चक ‘‘तटस्न्ों के हृदय में कगतूहल, चमत्रों के हृदय
में नचोमान तन्ा शतु के हृदय में ोय उत्पन्न करनेवालश्र वह ध्वचन है । वह गशा का गवाहन है ,
पराक्रम कश्र हग ां कार है , चवचीगश्रर्ग वृचत्त का नाद है । उज्जवल ोचवष्ट्य के पड़नेवाले पगों कश्र वह गहट है
तन्ा उज्जवलतर परम्परा का नमूल्य गशीविन है ।’’

ाँ ने लगश्र न्श्र, पर
डॉक्टरीश्र के नखण्ड कमभयोग के कारण यह ध्वचन ोारत में ननेक स्न्ानों पर गूी
उनके णगल में हश्र रहनेवाले तन्ा उनसे ोलश्र ोााँचत पचरचित कााँग्रेस के कायभकताओां के कणभकगहरों में

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यह गवाी नहीं पहग ाँ िश्र यह णात गियभ कारक होते हग ए ोश्र दगदैव से सत्य न्श्र। कारण , 10 नवम्णर
1937 को मध्यप्रान्त काांग्रेस कश्र ओर से डॉक्टरीश्र को एक पत्र चमला न्ा चक राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ
े कश्र नश्रचत चनचित करनश्र है इसचलए ‘‘सांघ के उद्देश्य, कायभक्रम तन्ा नश्रचत के सम्णन्ि
के चवर्य में काांग्रस
में नचिकृत ीानकारश्र ोेी दश्र ीाये।’’ सत्य तो यह है चक सांघ के प्रारम्ो के पहले हश्र ननेक काांग्रेसीनों
का डॉक्टरीश्र से घचनष्ठ सम्णन्ि न्ा। नतः सांघ के सम्णन्ि में इस प्रकार औपिाचरक प से पूछताछ
करने कश्र गवश्यकता पड़े, उनका इतना नज्ञात सम्ोव नहीं न्ा। नतः डॉक्टरीश्र ने काांग्रेस के मांत्रश्र
को सूचित चकया चक ‘‘.............गपने हम लोगों के चवर्य में ीानकारश्र मााँगश्र है यह दे खकर गियभ
हग ग। वास्तव में तो सांघ को स्न्ाचपत हग ए गी णारह वर्भ हो गये हैं । इस णश्रि चोन्न-चोन्न उत्सवों पर
प्रचतवर्भ सांघ के मगख्य-मगख्य नचिकाचरयों ने सांघ के सम्णन्ि में नचिकृत चविार ीनता के सम्मगख रखे
हैं । हमें नहीं लगता चक इसके नचतचरि गपको और कगछ णताने लायक णिा है । कष्ट के चलए क्षमा
करें ।’’

इस पत्र के णाद डॉक्टरीश्र तो काटोल तन्ा नकोला चवोाग में दौरे पर िले गये। इस णश्रि काांग्रेस के
मांत्रश्र ने तश्रन पत्र ोेी।े उनमें चलखा न्ा चक डॉक्टरीश्र का उत्तर नसमािानकारक तन्ा टालमटोल
करनेवाला न्ा। सान् हश्र उन्होंने एक लम्णश्र प्रश्नावलश्र ोश्र डॉक्टरीश्र के पास ोेीश्र न्श्र। प्रवास से लौटने
पर डॉक्टरीश्र को यह सण सामग्रश्र चमलश्र। पत्र पढकर डॉक्टरीश्र काांग्रेस-नचिकाचरयों का रां ग ोााँप गये।
ीानणूझकर ननीान णनने का ोंग कर खोंिट प्रश्न पूछनेवाले काांग्रेस के मांत्रश्र को उन्होंने उसकश्र
ोार्ा में उत्तर दे ने का चनिय चकया। उन्होंने प्रान्त के कगछ िगने हग ए नचिकाचरयों को ये पत्र चदखाकर
उनसे नश्रचत-चवर्यक परामशभ ोश्र चकया। चदनााँक 1 चदसम्णर को पूणभ चविार-चवमशभ के उपरान्त उन्होंने
उत्तर ोेीा। यह पत्र उनके स्वागत के ननेक पहलगओां पर प्रकाश डालता है । इसमें ीहााँ प्रश्नकता कश्र
नच्छश्र खणर लेनेवालश्र िगटचकयााँ हैं तो वहााँ सतावना ोश्र पयाप्त है । उनकश्र लेखनश्र के तश्रखप
े न तन्ा
स्पष्टवाचदता का तो यह पत्र एक नमूना हश्र है ।

वे चलखते हैं ‘‘गपके कृपापत्र चमले। काटोल तालगका के दौरे से लौटते हश्र मैं तगरन्त नकोला के
नचिवेशन के चलए िला गया। नतः उत्तर में चवलम्ण हग ग इसके चलए क्षमा-यािना है ।

‘‘हमारे द्वारा प्रेचर्त उत्तरों को गपने ‘णात उड़ानेवाले उत्तर’ का प्रमाणपत्र चदया है । गपने हम लोगों
के चवर्य में चलखते हग ए इससे नच्छश्र ोार्ा का प्रयोग चकया होता तो ुश्रक होता। हमें दगःख है चक हम
लोग गपकश्र ीैसश्र ोार्ा का व्यवहार नहीं कर सकते। हमें एक परश्रक्षान्ी चवद्यान्ी समझकर ोेीश्र
प्रश्न-पचत्रका प्राप्त हग ई। पर नण हमारश्र उम्र परश्रक्षा दे ने योग्य नहीं रहश्र नतः गपकश्र इच्छा को स्वश्रकार
करना सम्ोव नहीं। इस चवर्य में हमें हार्तदक खेद है । वस्तगतः गप इसश्र प्रान्त तन्ा इसश्र नगर के
चनवासश्र हैं । इतना हश्र नहीं, हमारश्र िारणा है चक गप नगर में होनेवाले सोश्र कायों कश्र ओर नत्यन्त

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सूक्ष्म दृचष्ट से तन्ा िौकस णगचद्ध से दे खते रहते हैं । इतना होते हग ए ोश्र इस शहर में इतने दश्रघक
भ ाल से
िूमिाम से ीनता के सम्मगख िलनेवाले काम कश्र गपको ीानकारश्र न हो, यह सिमगि एक गूढ
पहे लश्र है । ीनता के नाम पर मढते हग ए गपने यह गरोप चकया है चक ‘सांघ काांग्रेस-चवरोि है ’। हम
लोग गपके साहस कश्र प्रशांसा करते हैं तन्ा गपको णताना िाहते हैं चक सांघ काांग्रेस का न तो कोश्र
चवरोिश्र न्ा और न है । हमें यह ोश्र मालूम है चक काांग्रेस के कायभकता तन्ा काांग्रेस के मगखपत्र
कहलानेवाले कगछ समािारपत्र साफ-साफ सांघ को गाचलयााँ दे कर सांघ का चवरोि करते हैं तन्ा यह
कहते हैं चक लोग सांघ में न ीायें तन्ा सांरक्षक वगभ नपने णरों को सांघ में न ोेी।े चकन्तग यह ोश्र
गपको नम्रतापूवभक णताना िाहते हैं चक इन लोगों द्वारा उत्पन्न कश्रिड़ में हम कोश्र नहीं पड़े। हम यह
नहीं मानते चक उपयगभि कायभकता तन्ा समािारपत्र काांग्रेस हैं , और इसचलए यद्यचप उन्होंने हमारा इस
प्रकार से चवरोि करना शग चकया हो तो ोश्र हमें यह नहीं लगा चक काांग्रेस हमारा चवरोि करतश्र है ।
काांग्रेस ने हमारा तन्ा हमने काांग्रेस का चवरोि चकया होता तो गी ननेक स्न्ानों पर काांग्रेस के प्रमगख
कायभकता सांघ में तन्ा सांघ के प्रमगख कायभकता काांग्रेस में काम करते हग ए नहीं चदखते। साराांश, हमारा
मत यह है चक सावभीचनक काम करनेवालों को परस्पर द्वे र् एवां चवरोि न करते हग ए नपने -नपने क्षेत्र
में सान्त्त्वक नन्तःकरण से काम करने में हश्र गनन्द मानना िाचहए। समझदार को नचिक क्या चलखा
ीाये ?’’

सांघटन के चवशाल कायभ में ऐसे कटग प्रसांग ोश्र गते रहते हैं परन्तग डॉक्टरीश्र के मन का सन्तगलन चकसश्र
ोश्र नवसर पर चगरने नहीं पाया। चकसश्र चवरोिश्र ने णात का णतांगड़ णनाया ोश्र तो वे समेटकर शान्त
करने का हश्र प्रयत्न करते न्े। चकसश्र ोश्र प्रसांग से उनके मन में स्न्ायश्र राग-द्वे र् उत्पन्न नहीं होता न्ा।

चदसम्णर 1937 में स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर का चवदोभ प्रान्त का दौरा हग ग। इस दौरे में नागपगर, िााँदा,
विा, ोण्डारा, नकोला, उमरे ड गचद स्न्ानों पर डॉक्टरीश्र स्वयां उनके सान् रहे । चदनाांक 12 चदसम्णर
को नागपगर शाखा में सावरकरीश्र का ीोरदार स्वागत चकया गया। नन्य स्न्ानों पर ोश्र उन्हें शाखाएाँ
चदखाने कश्र व्यवस्न्ा कश्र गयश्र न्श्र। सांघ के प में चहन्दू समाी के िैतन्य को ीाग्रत् दे खकर णै. सावरकर
ने डॉक्टरीश्र कश्र मगिकण्ु से प्रशांसा करते हग ए सांघ कश्र वृचद्ध कश्र कामना कश्र।

चदसम्णर के नन्न्तम सप्ताह में डॉक्टरीश्र काटोल, नागपगर, विा, िााँदा तन्ा यवतमाळ के शश्रतकालश्रन
चशचवरों में गये। नागपगर के चशचवर का उद्-घाटन औांि-नरे श के द्वारा हग ग न्ा। एक हीार णाल
स्वयांसेवकों के नत्यन्त ननगशासनपूणभ कायभक्रम को दे खकर महाराीा इतने प्रसन्न हग ए चक उन्होंने नपने
सान् के छायाचित्रकार को उनका चित्रपट खींिने को कहा। कगछ क्षण का चित्रण पूणभ होते हश्र डॉक्टरीश्र
कश्र दृचष्ट उिर गयश्र तन्ा सांघ के चनयमों के चवपरश्रत होने के कारण उन्होंने उसे वहीं रुकवा चदया। इस

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कगछ क्षणों के चित्रण में डॉक्टरीश्र ध्वीारोहण करते हग ए चदखते हैं । यह एक गनन्दप्रद सांयोग हश्र न्ा
चक ोारत-ोर में पचवत्र ोगवा ध्वी को फहराने कश्र डॉक्टरीश्र कश्र मांगलमयश्र गकाांक्षा ोावश्र पश्रढश्र के
चलए इन कगछ क्षणों में चिचत्रत हो गयश्र।

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25. चहन्दू यगवक पचरर्द्
स्वातांत्र्यवश्रर णै. तात्याराव सावरकर का चवदोभ का दौरा िारों ओर णहग त िूमिाम से हग ग। इससे रा.
स्व. सांघ द्वारा नांगश्रकृत चहन्दू राष्ट्र कश्र नखण्ड सािना को ोश्र णहग त णल चमला। दौरे के पचरणाम के
सम्णन्ि में चलखते हग ए परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र कहते हैं चक ‘‘उनके इस दौरे से प्रान्त में वैसश्र हश्र नवस्न्ा
उत्पन्न हो गयश्र है ीैसश्र समगद्रमन्न्न के समय पैदा हग ई होगश्र। िारों ओर लोगों में नविैतन्य का सांिार
हो गया है ।’’ एक ओर यह उत्साहपूणभ वातावरण न्ा तो दूसरश्र ओर पाचकस्तान कश्र राष्ट्रचवघातक
कल्पना कश्र गाँिश्र के चित्र ोश्र चक्षचती पर स्पष्ट चदखने लगे न्े। तत्कालश्रन न्स्न्चत नच्छे -नच्छे
काांग्रेसीनों को ोश्र पगनर्तविार के चलए प्रेचरत कर सांघ के कायभ कश्र सत्यता को गाँकने कश्र िगनौतश्र दे
रहश्र न्श्र। िारों ओर ‘चहन्दश्र-राष्ट्र’ कश्र घोर्णाएाँ होतश्र न्ीं, चकन्तग यह ोश्र चदखने लगा न्ा चक ये नारे
लगानेवाले वाग्वश्रर सम्पूणभ पचरन्स्न्चत पर काणू पाकर ‘पाचकस्तान’ कश्र कल्पना का सामना नहीं कर
सकेंगे। घटनािक्र का यहश्र सांकेत न्ा। चदनाांक 1 ीनवरश्र 1938 को काटोल में नागपगर के चीला-
चशचवर का समारोप करते हग ए लोकनायक ीश्र णापूीश्र नणे ने ीो उसार व्यि चकये वे काांग्रेस के
चविारवान् कायभकताओां में सांघ के सम्णन्ि में क्या ोाव न्े उनको प्रकट करते न्े। उन्होंने कहा न्ा चक
‘‘प्रोावश्र गन्दोलनों कश्र सचरता एक ओर से उदासश्रनता के प्रस्तरखण्डों को तोड़तश्र तन्ा दूसरश्र ओर
से चवरोि कश्र चमट्टश्र को काटतश्र हग ई गगे णहतश्र ीातश्र है । इसके गगे सणको सांघ के सान् सहयोग से
हश्र काम करना िाचहए।’’ गगे िलकर उन्होंने कहा ‘‘यह सांघटन राष्ट्र का कवि है । डॉक्टर हे डगेवार
ने चहन्दू राष्ट्र को इस प्रकार का कवि प्राप्त करा दे ने का कायभ हान् में चलया इसके चलए मैं उनको
िन्यवाद दे ता हू ाँ । मेरश्र इच्छा है चक यह सांघटन राष्ट्र के कोने-कोने में फैल ीाये।’’

इस समय स्वाोाचवक हश्र डॉक्टरीश्र का सम्पूणभ ध्यान नये-नये कायभकताओां का चनमाण कर नवश्रन
क्षेत्रों में कायभचवस्तार कश्र ओर लगा हग ग न्ा। सान् हश्र चकसश्र-न-चकसश्र चनचमत्त दूसरे प्रान्त के प्रोावश्र
एवां प्रचतचष्ठत सज्जनों को नागपगर लाकर वहााँ के ननगशासनपूणभ एवां उत्साहविभक कायभ का प्रत्यक्ष एवां
पचरणामकारश्र स्व प चदखाने का ोश्र वे प्रयत्न करते रहते न्े। वर्भ के प्रारम्ो में हश्र पांीाण से ीश्र
िमभवश्ररीश्र नागपगर गये। उस समय डॉक्टरीश्र के सहवास से वह चकतने उत्साचहत हग ए न्े इसका वणभन
करते हग ए वे चलखते हैं ‘‘मगझे नत्यचिक प्रसन्नता है चक मैं नागपगर गया। यचद मगझे गी मृत्यग प्राप्त हो
तो सन्तगष्ट मन से उसका स्वागत क ाँगा। इसका ीेय गपको हश्र है ।’’

डॉक्टरीश्र इस समय नपने पत्रों के द्वारा सदै व हश्र कायभकताओां को ‘गगे णढो’ के चलए हश्र गह्वान
करते रहते न्े। चदल्लश्र गये हग ए कायभकताओां को वे चलखते हैं ‘‘सिमगि परमेश्वर ने तगम्हें नत्यन्त उत्तम
क्षेत्र चदन्ग्वीय के चलए चदया है तन्ा सणका चवश्वास है चक तगम नपने पराक्रम से वहााँ चनचित हश्र चवीयश्र

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होओगे।’’ नगर के ीश्र णाणूराव मोरे को उन्होंने चलखा न्ा ‘‘नण नपने सांकट के चदन समाप्त होकर
ननगकूल चदन ग रहे हैं यह मानने में कोई गपचत्त नहीं है । परन्तग यह सण गप तन्ा गपके सहयोचगयों
के नध्यवसाय तन्ा लगन का हश्र फल है ।’’

चदनाांक 16 ीनवरश्र को डॉक्टरीश्र ोोंसले सैचनक चवद्यालय के कायभ से नाचसक गये। ऐसा पता लगता
है चक इस यात्रा में वे डॉ. मगांीे के पत्र के ननगसार चवद्यालय के चवद्यार्तन्यों के चलए नपने सान् नागपगर
से सौ लाचुयााँ ले गये न्े। इतनश्र छोटश्र-छोटश्र णातों कश्र ोश्र वे चिन्ता करते न्े तन्ा उन्हें स्वयां पूरा करने
में कोश्र सांकोि नहीं होता न्ा। नाचसक से लौटते समय िगळें, ोगसावळ, नकोला गचद शाखाओां को
दे खते हग ए वे चदनाांक 21 ीनवरश्र को नागपगर गये। चदनाांक 12 फरवरश्र को नागपगर में प्रमगख
नचिकाचरयों कश्र णैुक णगलाकर वहााँ के प्रचसद्ध वकश्रल ीश्र रामिन्द्र नारायण उपाख्य णाणासाहण पाध्ये
कश्र प्रान्तसांघिालक के नाते चनयगचि कश्र। इसके पााँि चदन के णाद हश्र नागपगर, चवदोभ तन्ा महाराष्ट्र के
प्रान्त सांघिालकों कश्र णैुक में डॉक्टरीश्र ने कायभवृचद्ध कश्र दृचष्ट से चविार चकया। इन तश्रनों प्रान्तों में
कायभ कश्र व्यवस्न्ा कश्र दृचष्ट से नच्छे कायभकता चनमाण करने में डॉक्टरीश्र को काफश्र सफलता चमल
गयश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र यह ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक यचद कायभ का चवस्तार ुोस प में करना है तो काम
के सान्-सान् एक ननगशासनसूत्र ोश्र चनमाण करना पड़ेगा। उन्होंने काम का सम्पूणभ ीाल इसश्र गिार
पर फैलाया न्ा। मािभ के प्रारम्ो में वे महाकोशल प्रान्त का ोश्र दौरा कर गये। इस दौरे में चसवनश्र,
नरकसहपगर, सागर, दमोह गचद शाखा-स्न्ानों पर गये। डॉक्टरीश्र के िािा ीश्र गणाीश्र हे डगेवार ोश्र
खानदे श का दौरा समाप्त कर इसश्र समय नागपगर लौटकर गये। इस समय िारों ओर से प्रगचत के हश्र
समािार ग रहे न्े। चवशेर्कर पांीाण में णड़श्र तेीश्र के सान् रावलचपण्डश्र, मण्डश्र णहाउद्दश्रन,
चसयालकोट, लाहौर, ीालन्िर, नमृतसर, सगनाम, चहसार गचद स्न्ानों पर सांघ कश्र शाखाएाँ खगल गयश्र
न्ीं तन्ा उसकश्र ओर नचिकाचिक सांख्या में चहन्दू तरुण गकृष्ट हो रहे न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र इस प्रगचत
से सन्तोर् न मानते हग ए सम्पूणभ दे श को सांघमय णनाने कश्र कामना लेकर सिेष्ट न्े। इतना णड़ा काम
सामने होते हग ए ोश्र नागपगर में ‘चहन्दू िगचनया’ नहीं चमलते यह णात उनको खटकतश्र न्श्र तन्ा इस कमश्र
को पूरा करने के चलए ोश्र वे प्रयत्नशश्रल न्े। सान् हश्र सांघप्रेमश्र सज्जनों के यहााँ चववाह और ीनेऊ के
उत्सवों में ोाग लेने के चलए ोश्र वे कैसे-न-कैसे समय चनकाल लेते न्े।

सािना, नखण्ड सािना हश्र डॉक्टरीश्र का ीश्रवन न्ा। चवश्व में चहन्दू समाी को नीेय णनाने कश्र
नचोलार्ा हश्र उनके प में दे ह िारण कर तपस्या कर रहश्र न्श्र। पचरन्स्न्चतयों के पवभतों को ोश्र
झगकानेवाला पौरुर् एवां पराक्रम उनके ीश्रवन के प्रत्येक व्यवहार से प्रकट होता न्ा। लोगों ने तरुणाई
कश्र गकाांक्षा, नध्यवसाय और गत्मचवश्वास के गकर्भण चित्र कल्पना से मनःपटल पर नन्वा
लेखनश्र से कागी पर नांचकत चकये होंगे, परन्तग उन चित्रों को ीश्रते-ीागते हाड़-मााँस के मानवों के प
में पचरणत करने का प्रयत्न चकसने चकया है ? डॉक्टरीश्र ने नपने प्रयत्नों कश्र पराकाष्ठा करके नसम्ोव
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को सम्ोव कर चदया न्ा तन्ा इस प्रकार के तरुणों का दशभन सांघ कश्र शाखाओां में स्न्ान-स्न्ान पर होने
लगा न्ा। डॉक्टरीश्र कश्र सांघटन-कगशलता कश्र चकसश्र ने खगले शब्दों प्रशांसा कश्र तो चकसश्र ने मन-हश्र-मन
उनके काम को सराहा पर इसमें शांका नहीं चक 1938 के गसपास सांघकायभ कश्र प्रगचत शतु-चमत्र
सणको गियभिचकत करनेवालश्र न्श्र। सांघटन को मूतभ स्व प दे ने कश्र डॉक्टरीश्र कश्र गकाांक्षा और
कगशलता ने चवशेर्कर महाराष्ट्र के सोश्र तरुणवगभ को उनकश्र ओर गकृष्ट चकया न्ा। नतः ीण मई
1938 में पूना में ‘नचखल महाराष्ट्र चहन्दू यगवक पचरर्द्’ का गयोीन करने का चविार हग ग तो उनके
नध्यक्षपद के चलए सणकश्र दृचष्ट डॉक्टरीश्र कश्र ओर हश्र गयश्र।

ोोंसला चमचलटरश्र स्कूल के उद्घाटन के चलए डॉक्टरीश्र चदनाांक 25 मािभ को नाचसक गये। उस समय
कश्र एक छोटश्र-सश्र घटना उल्लेखनश्रय है । चीस गाड़श्र से डॉक्टरीश्र ीानेवाले न्े उसके चलए ीण वे स्टे शन
पर गये तो दे खा चक गाड़श्र में इतनश्र ोश्रड़ न्श्र चक नक्षरशः कहीं चतल िरने कश्र गगी
ां ाइश नहीं न्श्र। चणदा
दे ने के चलए गये हग ए कायभकताओां ने नत्यन्त गग्रहपूवभक प्रस्ताव चकया चक तश्रसरे दीें में यात्रा करना
ीण सम्ोव नहीं है तो दूसरे या पहले दीे से यात्रा करनश्र िाचहए चकन्तग डॉक्टरीश्र ने साफ इन्कार कर
चदया तन्ा उस गाड़श्र के स्न्ान पर वे नगलश्र गाड़श्र से नाचसक गये। उन चदनों गर्तन्क दृचष्ट से सांघ कश्र
हालत णहग त हश्र नाीगक न्श्र नतः डॉक्टरीश्र प्रत्येक कायभकता से चमतव्यचयता का गग्रह करते न्े।
चकन्तग ीो चनयम वे दूसरों के चलए णनाते उसके स्वयां नपवाद णनना उन्हें मान्य नहीं न्ा। नन्य लोग
िाहे व्यवहार के इस सश्रिे-से-सूत्र कश्र सदै व हश्र तन्ा सही हश्र नवहे लना करते हों चकन्तग डॉक्टरीश्र ने
ीश्रवन-ोर उसका सतकभता से पालन चकया। ‘‘इतराां साांगे ब्रह्मज्ञान, पण गपण कोरडा पार्ाण’’
(‘‘नन्यों को दें ब्रह्मज्ञान, गप रहें कोरे पार्ाण’’), ‘दश्रगरे नसश्रहत, खगद चमयााँ फीश्रहत’ यह दगोाग्यपूणभ
णात सांघ कायभकताओां के ीश्रवन में न चदखे इसके चलए डॉक्टरीश्र ने नपना सम्पूणभ व्यवहार णहग त हश्र
साविानश्र से िलाया न्ा। कोश्र-कोश्र उन्हें तश्रन-तश्रन घण्टे खड़े-खड़े रे ल में यात्रा करनश्र पड़तश्र न्श्र।
चकन्तग सण कष्ट सहन कर उन्होंने नपने सान् रात-चदन रहनेवाले कायभकताओां को यह ोलश्रोााँचत ीाँिा
चदया न्ा चक सावभीचनक िन का उपयोग चकतना साँोालकर करना िाचहए।

नाचसक से डॉक्टरीश्र चदनाांक 2 नप्रैल को नागपगर लौट गये। इस णश्रि ीश्र ल. ण. ोोपटकर का उनके
नाम पत्र ग गया न्ा चक ‘चहन्दू यगवक पचरर्द्’ के नध्यक्ष स्न्ान पर उनका चनवािन हो गया है । यह
पत्र चदनाांक 28 मािभ को चलखा गया न्ा। उसके णाद हश्र स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर ने तार ोेीा चक
‘‘नध्यक्षस्न्ान नवश्य स्वश्रकार कश्रचीए।’’ महाराष्ट्र के सैकड़ों तरुणों से चमलने का सगयोग तन्ा णै.
सावरकर का गग्रह गचद सण णातों का चविार कर डॉक्टरीश्र ने नध्यक्ष णनने कश्र सम्मचत दे दश्र।
नप्रैल के प्रारम्ो में वे णम्णई तन्ा उपनगर कश्र शाखाओां का चनरश्रक्षण करके वापस नागपगर गये।
वहााँ नचिकारश्र चशक्षण वगभ कश्र प्रारन्म्ोक व्यवस्न्ा दे खकर नप्रैल के नन्त में ‘चहन्दू यगवक पचरर्द्’
के चलए पूना रवाना हो गये। ीाते हग ए मागभ में तळे गााँव तन्ा लोणावला कश्र शाखाओां पर ोश्र गये।

314
इस समय लोणावळा कश्र एक घटना स्मरणश्रय है । राचत्र में डॉक्टरीश्र कश्र णैुक में ननेक प्रचतचष्ठत
सज्जन उपन्स्न्त न्े। उनमें से कगछ लोग केवल डॉक्टरीश्र से वाद-चववाद करने कश्र मांशा से हश्र वहााँ
गये न्े। यह उनकश्र णातिश्रत के रुख से पहले से हश्र चदखने लगा न्ा। नतः ीैसे हश्र प्रश्नोत्तर प्रारम्ो
हग ए चक वे सज्जन एक-एक शब्द को पकड़कर प्रश्न-पर-प्रश्न पूछने लगे। शब्दों के श्लेर् नन्भ का गिार
लेकर नसांगत प्रश्न ोश्र चकये गये तन्ा णश्रि-णश्रि में ओछे शब्दों का व्यवहार करने से ोश्र वे नहीं िूके।
यह सण दे खकर वहााँ के नये स्वयांसेवकों के मन में गशांका होने लगश्र चक कहीं णैुक का रां ग हश्र न
चणगड़ ीाये। कगछ लोगों को इन प्रश्नकताओां पर क्रोि ोश्र गया। परन्तग डॉक्टरीश्र प्रत्येक प्रश्न का
नत्यन्त शान्न्तपूवभक उत्तर दे ते रहे । उनके मन का सन्तगलन ऐसा नहीं न्ा चक वह इस प्रकार कगछ लोगों
कश्र णढ-िढकर तन्ा ऐसश्र-वैसश्र णातों से हश्र डगमगा ीाये। उनका उत्तर िगने हग ए शब्दों में होता तन्ा
उसके पश्रछे उत्कट गत्मचवश्वास का ोाव प्रखरता से चदखता न्ा। घण्टा-डेढघण्टा यहश्र ििा लगतश्र
रहश्र। नन्त में प्रश्न समाप्त हो गये। णैुक कगछ कखिाव के वातावरण में समाप्त हग ई। मोटर में णैुने के
चलए सणके सान् डॉक्टरीश्र णाहर सड़क पर गये। उस समय नत्यन्त प्रसन्न मगद्रा में हाँ सते हग ए णोले
‘‘ओहो, लोणावळा कश्र हवा तो णहग त ुण्डश्र है ।’’ इस वाक्य का चछपा हग ग नन्भ लोगों को समझते
दे र नहीं लगश्र तन्ा वे सण चखलचखलाकर हाँ स पड़े। सम्पूणभ वातावरण एकदम णदल गया।
नन्यमनस्कता तन्ा मन का ोारश्रपन न मालूम कहााँ ोाग गया और सण लोग ीो कगछ घटा उसका
गनन्द लेने लगे।

‘चहन्दू यगवक पचरर्द्’ के चलए चदनाांक 30 नप्रैल को प्रातःकाल डॉक्टरीश्र पूना पहग ाँ ि।े उस समय स्टे शन
पर उनका ोव्य स्वागत चकया गया। सैकड़ों तरुणों के सान्-सान् हश्र ीश्र गणपतराव नलावडे, ‘केसरश्र’
के सम्पादक ीश्र ी.स. करन्दश्रकर, ीश्र ल. ण. ोोपटकर, गिायभ प्र. के. नत्रे, ीश्र रामोाऊ राीवाडे
गचद प्रमगख व्यचि ोश्र स्वागत के चलए उपन्स्न्त न्े। डॉक्टरीश्र कश्र गाड़श्र प्लेटफॉमभ पर गते हश्र चहन्दू
िमभ कश्र तन्ा डॉक्टरीश्र कश्र ीय-ीयकार से स्टे शन गूी
ाँ उुा। गाड़श्र से उतरते हश्र उन्हें फूलमालाओां
से लाद चदया गया। स्न्ानक पर न्ोड़श्र दे र रुकने के णाद उन्हें लोग गिायभ नत्रे के चनवासस्न्ान पर ले
गये। गिायभ नत्रे ने इस न्ोड़श्र-सश्र नवचि में डॉक्टरीश्र के व्यचित्व का ीो साक्षात्कार चकया उसका
वणभन उन्होंने चनम्न शब्दों में चकया है । ‘‘चहन्दू यगवक पचरर्द् के नध्यक्ष के नाते डॉक्टरीश्र पूना गये
न्े। पचरर्द् के प्रणन्िकों ने कायभक्रम के पहले घण्टे -डेढघण्टे के चलए मेरे स्न्ान पर उनके चवीाम कश्र
योीना कश्र न्श्र। एक प्रखर राष्ट्रश्रय वृचत्त के कट्टर दे शोि के नाते मैंने उनका नाम सगना न्ा। उस समय
सांघ कश्र चवशेर् ख्याचत नहीं हग ई न्श्र। चकन्तग डॉक्टरीश्र ीैसे महान् व्यचि हमारे यहााँ ग रहे हैं इसचलए
मन में स्वाोाचवक हश्र एक णेिन
ै श्र उत्पन्न हो गयश्र न्श्र। ननेक णार यहश्र ननगोव गया है चक गनेवाले
‘णड़े नेता’ मन कश्र इस णेिन
ै श्र को और ोश्र णढा दे ते हैं ।

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‘‘प्रातःकाल डॉक्टरीश्र हमारे यहााँ गये। उनका व्यचित्व नत्यन्त ोव्य, गम्ोश्रर तन्ा शान्त न्ा परन्तग
उनके घर में गते हश्र हमें यह लगने लगा चक मानो कोई पचरवार का णगीगगभ हश्र हमारे यहााँ गया हो।
उनके णोलने-िालने, उुने-णैुने में चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र नस्वाोाचवकता नन्वा चदखावा नहीं न्ा।
उनके णोलने कश्र पद्धचत नत्यन्त सौम्य, चकन्तग गत्मचवश्वास एवां चनिय से पूणभ न्श्र। उनमें चकसश्र ोश्र
प्रकार के दां ो नन्वा प्रदशभन का ोाव नहीं न्ा। उनके सही एवां सरल ोाव से णातिश्रत प्रारम्ो करते
हश्र वातावरण कश्र औपिाचरकता एकदम दूर होकर िारों ओर प्रसन्नता छा गयश्र।’’

िायपान के कायभक्रम के उपरान्त प्रातः गु णीे समन्भ-मन्न्दर से डॉक्टरीश्र कश्र शोोायात्रा नत्यन्त
िूमिाम से चनकलश्र। व्यचि का स्वोाव उसके चनत्य के व्यवहार से प्रकट हो ीाता है । डॉक्टरीश्र कश्र
शालश्रनता ोश्र इस समय रन्ा ढ होते हग ए चछप नहीं सकश्र। स्वागताध्यक्ष तन्ा डॉक्टरीश्र ीैसे हश्र रन्
के पास पहग ाँ िे चक वे एक ओर सरक गये तन्ा पहले क्षात्रीगसगरु को गग्रहपूवभक रन् में णैुाकर चफर
स्वयां णैुे। स्वागताध्यक्ष का ोश्र स्वागत करना डॉक्टरीश्र के हश्र व्यवहार कश्र चवशेर्ता न्श्र।

ीगलूस में दस-णारह हीार कश्र ोश्रड़ न्श्र। णश्रि-णश्रि में वादकवृन्दों के गु-दस पन्क नपनश्र स्वरलहरश्र
से वायगमण्डल को गपूचरत कर रहे न्े। ीगलूस के गगे ध्वी लहरा रहा न्ा तन्ा उसके पश्रछे दगन्दगचो
णी रहश्र न्श्र। तदनन्तर योगिाप का पन्क न्ा। पौन मश्रल लम्णश्र इस शोोायात्र के मध्य में एक सीाये
हग ए रन् में दायीं ओर डॉक्टरीश्र, णश्रि में क्षात्रीगसगरु तन्ा णायीं ओर ीश्र ोोपटकर चवराीमान न्े। इस
सम्णन्ि में ‘केसरश्र’ ने चलखा न्ा चक ‘‘रन् में दो णचढया घोड़े ीगते हग ए न्े तन्ा दोनों ओर स्वयांसेवक
शान के सान् िाँवर ाल रहे न्े। मागभ के दोनों तरफ के ोवन तन्ा नट्टाचलकाएाँ दशभ कों से खिाखि
ोरश्र न्ीं। ‘स्वराज्य कश्र ोूख सगराज्य से नहीं णगझतश्र’ ‘चीन्ना कश्र मााँगें रद्द करो’ गचद नारों से गकाश
गूी
ाँ रहा न्ा। स्न्ान-स्न्ान पर पगष्ट्पमालाओां और गरतश्र के णश्रि िश्ररे-िश्ररे यह शोोायात्रा गगे णढतश्र
ीातश्र न्श्र।’’

ीगलूस कश्र इस ोश्रड़-ोाड़ में ोश्र डॉक्टरीश्र ने दे खा चक उनके पश्रछे-पश्रछे एक लाँगड़ा तरुण एक हान् से
लाुश्र का सहारा लेकर णड़े उत्साह के सान् उिकते तन्ा नारे लगाते हग ए िल रहा है । ीैसे हश्र एक
िौराहे पर स्वागत के चलए ीगलूस रुका डॉक्टरीश्र ने उसे पास णगलाया तन्ा प्रेम के सान् गोदश्र में लेकर
रन् में णैुा चलया। सि तो यह है चक डॉक्टरीश्र का ध्यान फूलों कश्र ओर नहीं न्ा। औपिाचरक प से
वे उन्हें स्वश्रकार नवश्य कर रहे न्े चकन्तग उनके मन और मन्स्तष्ट्क में तो यहश्र चविार िल रहे न्े चक
फूलमालाएाँ पहनानेवाले हान् चहन्दू राष्ट्र कश्र रक्षा के चलए कैसे सशि होंगे तन्ा उनका स्वागत
करनेवाला हृदय दे शोचि कश्र ोावना से कैसे पूणभ होगा। यचद फूल और हारों के णश्रि में नपने को
ोूल ीाते तो एक लूले-लाँगड़े को रन् में णैुाने का उन्हें ोान हश्र नहीं रहता।

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उनका मन समाीचहत के रां ग में रां गा हग ग न्ा। केवल एक लूले के कष्ट को दे खकर उनकश्र ओर हश्र
उनका ममता-ोरा हान् नहीं णढा न्ा नचपतग उनका मन तो दगणभल और परावलम्णश्र चहन्दू समाी कश्र
न्स्न्चत को दे खकर व्यचन्त न्ा तन्ा उसकश्र इस दगरवस्न्ा को दूर कर उसे णलशालश्र, स्वावलम्णश्र तन्ा
चवीयश्र णनाने के चलए उन्होंने नपने हान् गगे णढाये न्े। डॉक्टरीश्र के गले में पहनश्र हग ई मोहक एवां
सगगन्न्ित पगष्ट्पमालाओां कश्र शश्रतलता के नश्रिे परतांत्रता को दग्ि करनेवालश्र गकाांक्षा का ज्वालामगखश्र
ििक रहा न्ा। उन्हें पगष्ट्पहार नहीं, ोचिोाव से मातृोूचम के िरणों पर ीश्रवन नपभण करनेवाले यगवकों
का उपहार िाचहए न्ा। उन्हें नपने िारों ओर चटमचटमाते हग ए दश्रपों कश्र गरतश्र कश्र कामना नहीं न्श्र ,
नचपतग मातृोूचम के यशःगौरव को प्रज्जवचलत करनेवाले नपने प्राणों कश्र णातश्र ीलाकर ोश्रर्ण
पचरन्स्न्चत के झांझावातों में ोश्र िैयभ और तरुणाई का घृत डालकर प्रदश्रप्त करनेवाले दे शोिों कश्र िाह
न्श्र।

पूना नगर के प्रमगख मागों से यह शोोायात्रा गयश्र। नसांख्य नागचरकों ने डॉक्टरीश्र को पगष्ट्पहार पहनाये
तन्ा स्न्ान-स्न्ान पर पगष्ट्पवृचष्ट हग ई। चीस सोन्यामारुचत के मन्न्दर में डॉक्टरीश्र ने एक वर्भ पूवभ सत्याग्रह
चकया न्ा उसके पास शोोायात्रा गते हश्र वे नपने रन् से उतरे तन्ा हनगमानीश्र के िरणों में पगष्ट्पमाला
नपभण करते हग ए उनके दशभन चकये। मण्डश्र के सामने से ीगलूस गगीरने पर उन्होंने रन् से उतरकर
लोकमान्य चतलक कश्र प्रस्तरमूर्तत को ोश्र हार नपभण चकया। पूना नगरपाचलका के पास नगराध्यक्ष ने
सम्पूणभ शहर कश्र ओर से डॉक्टरीश्र का स्वागत चकया। तश्रन घण्टे तक ीगलूस िलता रहा। लगोग
ग्यारह णीे शोोायात्रा ‘लोकमान्य चतलक स्मारक मन्न्दर’ के प्राांगण में पहग ाँ िश्र। ध्वीारोहण तन्ा
ध्वीवन्दन के पिात उस समय का कायभक्रम समाप्त हग ग।

दोपहर तश्रन णीे चतलक-स्मारक मन्न्दर के प्राांगण में चनर्तमत प्रशस्त मण्डप में पचरर्द् प्रारम्ो हग ई।
लगोग छः सौ प्रचतचनचि तन्ा सात-गु हीार ीोता उपन्स्न्त न्े। मन्न्दर के िौंतरे पर हश्र ऊाँिा तन्ा
सगडौल व्यासपश्रु णनाया गया न्ा। उस पर स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर, सेनापचत णापट, डॉ. मगांी,े तपस्वश्र
णाणासाहण पराांीपे, णाणाराव सावरकर गचद प्रमगख नेतागण णैुे न्े। डॉक्टरीश्र से नध्यक्ष स्न्ान पर
चवराीने का चनवेदन करते हग ए ीो ोार्ण हग ए उनमें दो-एक णातें उल्लेखनश्रय हैं । एक विा ने कहा न्ा
चक ‘‘गी के नध्यक्ष महोदय ‘णोलशास्त्र’ से ननचोज्ञ हैं , उन्हें तो केवल ‘कृचतशास्त्र’ ज्ञात है ।’’
दूसरे डॉक्टरीश्र का नत्यन्त हश्र समश्रिश्रन वणभन करते हग ए कहा ‘‘गइसणगभ के समान डॉक्टर हे डगेवार
का गुवााँ चहस्सा हश्र ऊप चदखता है , सात ोाग तो नन्दर हश्र चछपे हग ए हैं ।’’

पचरर्द् के समक्ष ीो ोार्ण हग ग वह सदै व कश्र ोााँचत सरल और सगणोि न्ा। उन्होंने नपने ीश्रवन के
ननगोवों का मन्न्न कर ‘गत्मसमपभण’ का ीो नवनश्रत चनकाला न्ा वहश्र इस ोार्ण के प में
डॉक्टरीश्र ने तरुणों के सामने रखा। ोार्ण के प्रारम्ो में उन्होंने कहा चक ‘‘स्टे शन पर पैर रखते हश्र

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यहााँ के लोगों ने मेरा ीो ोारश्र स्वागत एवां सत्कार करना शग चकया है , उससे मगझे कगछ नटपटा-सा
लग रहा है ।’’ इसके उपरान्त चहन्दू राष्ट्र के पतन कश्र कारण-मश्रमाांसा करते हग ए उन्होंने णताया चक इस
न्स्न्चत का चनवारण करने के हे तग उपाय-योीना का चविार करना हश्र इस पचरर्द् के गयोीन का
नचोप्राय हो सकता है । गगे उन्होंने कहा ‘‘यह प्रत्येक को चवचदत है चक नांग्री
े ों ने हमारा राज्य
हस्तगत कर चलया है । हमारे पास से मगसलमानों द्वारा छश्रने गये राज्य को हम चफर से प्राप्त कर सके।
चकन्तग उस समय हमारे मन में ीो ोावना काम कर रहश्र न्श्र वह गगे नहीं रहश्र। नतः हम चफर परतांत्र
हो गये। यह ोावना नन्वा तत्त्व हश्र राष्ट्रश्रयता एवां समचष्टोाव है ।

‘‘मैं समाी के चलए हू ाँ ’ इस ोावना को ोगलाकर ‘समाी मेरे चलए है ’ इस चविार के हम चशकार हो
गये। यह ोाव हमारे मन में इतना गहरा ीमकर णैुा है चक ीो मनगष्ट्य नपने स्वयां के मोक्ष के चलए
प्रयत्न करता है , ीप-तप करता है , ीो कोश्र चकसश्र से लड़ता नहीं, चकसश्र के लेने-दे ने में नहीं, नपने
घर और नौकरश्र को हश्र सण कगछ समझने कश्र सांकगचित ोावना से सण व्यवहार करता है , उसश्र चक हम
लोग ोश्र-ोर प्रशांसा करते हैं । इस स्तगचतपाु को हमारे णाल-णरे सगनते हैं तन्ा ऐसे स्वान्ीं व्यचि को
हश्र गदशभ समझकर तदनग प गिरण का प्रयत्न करते हैं । ीण तक हमारश्र यह चविारसरणश्र है तण
तक चहन्दू राष्ट्र नष्ट हश्र होता ीायेगा। गी तरुण पश्रढश्र के मन में यह ोाव हश्र नहीं गता चक समाी
चीयेगा तो मैं ोश्र चीऊाँगा। हम कगटगम्णचनष्ठा के रोग से ग्रस्त हैं । चीनके नन्तःकरण में व्यचिगत स्वान्भ
को ककचिन्मात्र स्न्ान नहीं है , ऐसे खरे दे शोि चकतने चमलेंगे ? णहग त हश्र न्ोड़े। चहन्दू राष्ट्र का चविार
करते समय व्यचि का चविार मन से चनकाल डाचलए। ीो ‘मैं और राष्ट्र एक हश्र हैं ’ यह ोाव लेकर
राष्ट्र एवां समाी के सान् तन्मय होता है वहश्र सरा राष्ट्रसेवक है । कगछ लोग णड़े नचोमान से कहते हैं
चक ‘राष्ट्र के चलए मैंने इतना त्याग चकया’, परन्तग यह कहते हग ए उनके ध्यान में यह नहीं गता चक इस
प्रकार वे यह चदखा दे ते हैं चक वे राष्ट्र से नलग हैं तन्ा राष्ट्र से उनका कोई सम्णन्ि नहीं है । यचद
उदाहरण दे ना है तो क्या यह कहना कचुन होगा चक चपता ने नपने णेटे के यज्ञोपवश्रत में ीो खिभ चकया
वह उसका णड़ा ोारश्र त्याग हग ग ? ‘मैंने नपने णेटे के चलए इतना त्याग चकया’ यह कहना कहााँ तक
यगचिसांगत होगा ? कगटगम्ण के चलए चकया हग ग खिभ ीैसे स्वान्भत्याग नहीं होता वैसे हश्र राष्ट्र पश्र कगटगम्ण
कश्र सेवा में चकया हग ग व्यय ोश्र स्वान्भत्याग नहीं है । राष्ट्र के चलए खिभ करना, कष्ट सहना यह तो
उसके प्रत्येक घटक का पचवत्र कतभव्य है । उसमें स्वान्भ-त्याग काहे का ?’’

गगे िलकर चहन्दगस्न्ान चहन्दू राष्ट्र हश्र क्यों रहना िाचहए इसका चववेिन करते हग ए उन्होंने कहा ‘‘हमारे
दे श का नाम ‘चहन्दगस्न्ान’ है , ‘चहन्दश्र-स्न्ान’ नहीं। यह प्रयत्न करना होगा चक चहन्दगस्न्ान का ‘चहन्दश्र-
स्न्ान’, इस्लाचमस्तान न हो ीाये। चहन्दगस्न्ान चहन्दगओां का है , तन्ा गगे ोश्र वैसा हश्र रहना िाचहए। यह
दे श िमभशाला तो नहीं है चक कोई ोश्र गये और चणस्तर चणछाकर गसन ीमा ले। चीनका इचतहास,

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परम्परा, समाी, िमभ, सांस्कृचत, चविारसरणश्र तन्ा चहतसम्णन्ि एक होते हैं वे हश्र राष्ट्र कहलाते हैं ।
इसके चवपरश्रत चकसश्र पचरन्स्न्चतवश एकत्र गये लोग राष्ट्र नहीं णन सकते। यह स्वयांचसद्ध होने के
णाद ोश्र हमारे तरुणों को गी उलटश्र चशक्षा दश्र ीातश्र है चक ीो लोग चहन्दगस्न्ान का चवनाश करने के
चलए नन्वा उसकश्र चमत्रता सम्पादन करने के चलए यहााँ गये उन सणको राष्ट्र का घटक समझा ीाये।
ीो एक दूसरे का नामोचनशान चमटाने के चलए लड़े और मरे उनके णश्रि चमत्रता सम्ोव नहीं। िूहे और
चणल्लश्र कश्र चमत्रता नसम्ोव है । यह चमत्रता तो तोश्र हो सकेगश्र ीण िूहा चणल्लश्र के पेट में िला ीाये।’’

राष्ट्रत्व कश्र यह कल्पना चवशद करके डॉक्टरीश्र ने तरुणों को परामशभ चदया चक चकसश्र ोश्र व्यचि का
ोय नन्वा मगलाचहीा न करते हग ए ीो तत्त्व णगचद्ध कश्र कसौटश्र पर खरा उतरे उसे हश्र स्वश्रकार करना
िाचहए। उन्होंने कहा ‘‘इस सम्णन्ि में चकतने ोश्र णड़े नेता ने यचद कगछ कहा तो उसे पहले गप नपनश्र
णगचद्ध कश्र कसौटश्र पर कसकर दे ख लश्रचीए। णड़े नेता के विन हैं नतः नन्िीद्धा से स्वश्रकार मत
कश्रचीए। लोकमान्य चतलक ने दे श में एक चवचशष्ट चविारिारा प्रस्तगत कश्र न्श्र। उनके चविार लोगों को
ीाँिे इसचलए उन्हें ननेक ननगयायश्र प्राप्त हग ए। पर गगे क्या हग ग ? 31 ीगलाई कश्र राचत्र को लोकमान्य
चतलक का चनिन होते हश्र पहलश्र नगस्त को सम्पूणभ रां ग एकदम णदल गया। पगरानश्र चविारिारा के
स्न्ान पर नयश्र चविारिारा गयश्र। उसको णगचद्ध कश्र कसौटश्र पर कसे चणना हम लोग ोेड़ों के समान
पश्रछे िलने लगे। इस प्रकार यचद प्रत्येक नेता कश्र इच्छा के सान्-सान् हम लोग ोटकते चफरे तो हमें
स्वतांत्रता कैसे और कण चमल सकेगश्र ?’’

णगचद्धवादश्र णनने का उपदे श दे ने के पिात् डॉक्टरीश्र ने नपने ोार्ण में इस णात पर प्रकाश डाला चक
कगछ नेतागण समाी को चकस प्रकार छल रहे हैं । उन्होंने कहा ‘‘मैंने नपने चविार ननेक णड़े-णड़े
लोगों के सामने रखे। उन्हें वे ीाँिे ोश्र। पर वे णोले ‘क्या करें, डॉक्टरीश्र ! गपकश्र णात तो हमें ीाँितश्र
है , पर गीकण हम दूसरश्र सांस्न्ा के सदस्य होने के कारण गपकश्र णात को खगले तौर पर नहीं मान
सकते। चफर ोश्र नन्दर से हम गपकश्र सहायता करें ग।े ’ इन उत्तरों से नेता नपनश्र और दूसरों कश्र
प्रवांिना हश्र करते हैं । गप इस प्रकार का फरे ण मत कश्रचीए। हममें से प्रत्येक को चहन्दू समाी का चहत
सािने में सरा गनन्द गना िाचहए। हमें चकसश्र से ईष्ट्या-द्वे र् नहीं। न चकसश्र से लड़ाई करनश्र है और
न चकसश्र को नल्टश्रमेटम दे ना है । हमें तो णस नपना समाी सांघचटत एवां नीेय णनाना है ।’’

ोार्ण के नन्त में उन्होंने यह ोश्र चनणभय चदया चक ‘‘यह पचरर्द् प्रान्तश्रय नहीं है नचपतग पूणभ राष्ट्रश्रय है
तन्ा गगे ोश्र वैसश्र हश्र रहे गश्र।’’

पचरर्द् के दूसरे चदन के नचिवेशन में नुारह प्रस्ताव स्वश्रकृत हग ए। उनमें पूणभ स्वतांत्रता, सैचनक चशक्षा
का प्रसार, ीाचतवाद के चवरोि गचद के प्रस्ताव प्रमगख न्े। पचरर्द् के सम्मगख ोार्ण करते हग ए

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स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर ने कहा न्ा ‘‘सांघ ोावश्र चहन्दू राष्ट्र कश्र गशा तन्ा ोावश्र पश्रढश्र चनमाण करने का
एकमेव स्न्ान है ।’’

दो चदन तक पचरर्द् कश्र कायभवाहश्र णड़श्र िूमिाम तन्ा उत्साह के सान् हग ई। पचरर्द्का समारोप करते
हग ए डॉक्टरीश्र ने ीो ोार्ण चदया वह तो नचवस्मरणश्रय हश्र न्ा। उसमें उन्होंने प्रस्तावों के ननगसार
गिरण पर णल दे ते हग ए स्वतांत्रता कश्र कल्पना चवशद कश्र न्श्र। उन्होंने कहा चक ‘‘स्वतांत्रता के चणना
कोई राष्ट्र ीश्रचवत नहीं रह सकता। ीण तक हमारा राष्ट्र परतांत्र है तण तक हम सण मनगष्ट्य मगदे के
समान हैं । पर स्वतांत्रता ऐसश्र वस्तग है चक वह चीतनश्र मश्रुश्र है उतनश्र हश्र महाँ गश्र ोश्र है । उसे प्राप्त करने को
हमें ोारश्र मूल्य िगकाना पड़ेगा। यह कश्रमत िगकाने का सामर्थयभ ीण गपके पास होगा तोश्र गपको
स्वतांत्रता कश्र मााँग करने का नचिकार ोश्र चमलेगा।.......... उसके चलए हम सणको नपने स्वतः कश्र ,
नपने िन कश्र, शचि कश्र और पगरुर्ान्भ कश्र गहग चत दे नश्र होगश्र। स्वतांत्रता केवल पैसे से नहीं चमलतश्र।
उसे प्राप्त करने का एकमेव मागभ है सांघटन और सामर्थयभ। सांघटन करने का, सामर्थयभ-सम्पादन का, ीो
रास्ता गपको नच्छा लगे, िलें। पर एक णार मागभ स्वश्रकार करने पर, एक णार पग गगे णढाने पर
पश्रछे मगड़ने का चविार तक मन में मत लाइए। णराणर गगे हश्र पग णढाते ीाइए। गपके नन्दर पयाप्त
सामर्थयभ पैदा हो गया चक सण प्रश्न सही प से हल हो ीायेंग।े ’’ ोार्ण के नन्त में डॉक्टरीश्र ने सण
तरुणों को ीश्रवन में छत्रपचत चशवाीश्र महाराी का गदशभ रखने का ननगरोि चकया।

नत्यन्त उत्साह के सान् पचरर्द् समाप्त हग ई। तगरन्त डॉक्टरीश्र पूना के नचिकारश्र चशक्षण वगभ में तल्लश्रन
हो गये। पचरर्द् के उपरान्त ‘केसरश्र’ कश्र ओर से गायकवाड़ णाड़े में स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर, क्षात्रीगसगरु
तन्ा डॉक्टरीश्र का सत्कार चकया गया न्ा। उस समय का तश्रनों का एक सन्म्मचलत छायाचित्र ोश्र
चमलता है । सत्कार के समय क्षात्रीगसगरु ने कहा न्ा ‘‘गपने मेरा ीो सम्मान चकया उसका मैं पात्र
नहीं हू ाँ क्योंचक मैं केवल णोल सकता हू ाँ , परन्तग दे शोि सावरकर तन्ा डॉक्टर हे डगेवार तो प्रत्यक्ष
कमभरत हैं ।’’

पचरर्द् के चवर्य में चलखते हग ए ‘केसरश्र’ ने चदनाांक 3 मई के नांक में चलखा न्ा चक ‘‘पचरर्द् के नध्यक्ष
डॉक्टर हे डगेवार कश्र गणना यगवकों कश्र नपेक्षा प्रौढ व्यचियों में करनश्र होगश्र। चफर ोश्र उनकश्र योीना
नध्यक्ष के नाते हग ई इसका नन्भ यहश्र है चक पचरर्द्, गयग से नहीं मन से तरुणों कश्र न्श्र। डॉक्टर हे डगेवार
ने नपने कतृभत्व से महाराष्ट्र में एक णड़श्र शचि चनमाण कश्र है । वे महाराष्ट्र के सरे नन्ों में सेनापचत
हैं ।’’

पचरर्द् गचद के कायभक्रम से उत्साह तो चनमाण होता है चकन्तग उस उत्साह को स्न्ायश्र प दे ने के प्रयास
सािारणतः नहीं होते। परन्तग सगदैव से डॉक्टरीश्र ीैसे कगशल नेता कश्र दक्षता के कारण ‘चहन्दू यगवक

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पचरर्द्’ से उत्पन्न उत्साह को सांघ के प में स्न्ाचयत्व प्रदान करने का प्रयत्न हग ग। फलतः नचिकारश्र
चशक्षणवगभ के उपरान्त वर्भ-ोर में महाराष्ट्र में िारों ओर सांघकायभ कश्र णड़श्र तेीश्र से प्रगचत हग ई। केवल
व्यचिगत प्रचतष्ठा के चलए नध्यक्षस्न्ान ग्रहण करने कश्र कल्पना डॉक्टरीश्र के मन में स्वप्न में ोश्र नहीं
ग सकतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र तो उसश्र काम में ोाग लेते न्े चीससे सांघ के स्न्ायश्र, मूलगामश्र, रिानात्मक
तन्ा सवाग्रगण्य कायभ को प्रत्यक्ष लाो हो सके। पचरर्द् के द्वारा डॉक्टरीश्र ने यह उद्देश्य ोलश्र ोााँचत
चसद्ध चकया न्ा। सांघ, सांघ के प्रमगख तन्ा उसके द्वारा उत्पन्न वृचत्त कश्र ओर पचरर्द् में गये सोश्र लोगों
के मन में डॉक्टरीश्र के व्यचित्व के कारण गदर का ोाव उत्पन्न हग ग तन्ा ीनमत का यह ोाव
गगे िलकर स्न्ान-स्न्ान पर सांघकायभ के चलए सहायक चसद्ध हग ग। पचरर्द् कश्र सफलता प्रदे श में
सांघकायभ कश्र न्स्न्रता तन्ा उसकश्र ोावश्र प्रगचत का सांकेत न्श्र।

पूना के ‘चहन्दू यगवक पचरर्द्’ के उपरान्त नागपगर लौटने के पूवभ डॉक्टरीश्र सातारा चीले में औांि गये।
वहााँ के नरे श ीश्र णाळासाहाण पन्तप्रचतचनचि ने नागपगर कश्र शाखा दे खने के णाद से हश्र डॉक्टरीश्र से
औांि गने तन्ा वहााँ सांघ का णश्रीारोपण करने का ननेक णार गग्रह चकया न्ा। उनके गमांत्रण को
स्वश्रकार कर डॉक्टरीश्र इस समय वहााँ गये। वहााँ राीवाड़े में वे दो-तश्रन चदन ुहरे । एक चदन राीवाड़े
से सटे हग ए एक दे वश्र के मन्न्दर में डॉक्टरीश्र तन्ा महाराी दोनों हश्र दशभनों के चलए गये। महाराी कश्र
प्रचतोावान् तूचलका से सम्पूणभ मन्न्दर चिचत्रत है । दे वश्र के दशभनों के उपरान्त वे दोनों हश्र एक-एक चित्र
के सामने रुकते हग ए उन पौराचणक एवां ऐचतहाचसक रे खाकृचतयों का नवलोकन कर रहे न्े। कगछ चित्रों
को दे खकर डॉक्टरीश्र को नचतशय गनन्द हग ग तन्ा वह उन्होंने णश्रि-णश्रि में व्यि ोश्र चकया।

दे खते-दे खते वे एक चित्र के सम्मगख गकर रुकते गये। उस चित्र में राीमाता चीीाणाई के दोहद का
चित्रण न्ा। प्रत्यक्ष ोगवान् शांकर उनके गोभ से नवतार लेनेवाले हैं यह कल्पना नांचकत कश्र गयश्र न्श्र।
यह चित्र दे खकर डॉक्टरीश्र महाराी कश्र ओर मगड़े और णोले ‘‘महाराी, इस नवतार कश्र कल्पना ने
हमारे समाी का सत्यानाश कर चदया है । नपने नसामान्य प्रयत्न तन्ा नतगल पराक्रम से समाी में
नविैतन्य उत्पन्न करनेवाले छत्रपचत चशवाीश्र महाराी के ऊपर यह दे वत्व कश्र मगहर क्यों लगाते हैं ?

यह सगनकर कगछ दे र तक महाराी चवन्स्मत-से दे खते रह गये। चफर वे णोले ‘‘डॉक्टरीश्र, गप ीो कहते
हैं सहश्र है ।’’

महान् पगरुर्ों कश्र ओर दे खने का डॉक्टरीश्र का यह दृचष्टकोण न्ा। कहीं ोश्र हो, वे साहसपूणभ स्पष्टता से
नपना मत व्यि करते न्े।

321
26. कायभचवस्तार
सारगाछश्र गीम से शोकाकगल ीश्र गगरुीश्र नागगपर लौट गये। यहााँ परम पूीनश्रय डॉक्टरीश्र से शनैः-
शनैः उनका सम्णन्ि नचिक गने लगा। डॉक्टरीश्र के प्रेमपूणभ एवां गकर्भक व्यचित्व के प्रोाव से
ीश्र गगरुीश्र सांघ के चदन-प्रचतचदन के कायभ कश्र ओर नचिकाचिक ध्यान दे ने लगे। चकन्तग इन चदनों वे
णराणर नागपगर में नहीं रहते न्े। णश्रि-णश्रि में रामटे क तन्ा नपने मामाीश्र या चमत्रों के यहााँ िले ीाते
न्े। पर कहीं ोश्र रहें , उनका शाखा से चनकट सम्णन्ि गता ीा रहा न्ा। ीश्र गगरुीश्र के माताीश्र एवां
चपताीश्र को नण यह स्पष्ट हो गया न्ा चक वे घर-गृहस्न्श्र के ीांीाल में नहीं पड़ेंग।े इस णात से उनके
ीश्रवन में ोश्र एक उदासश्रनता कश्र छाया फैल गयश्र न्श्र। पर ीश्र गगरुीश्र का ीैसे-ीैसे डॉक्टरीश्र से सम्णन्ि
घचनष्ठ होता गया और वे सांघकायभ के चनचमत्त कोश्र स्वतांत्र प से तो कोश्र डॉक्टरीश्र के सान् प्रवास
पर ीाने लगे तन्ा उनके कतृभत्व का एक-एक पहलू प्रकट होने लगा, वैसे-वैसे हश्र उनके माता-चपत के
मन से उदासश्रनता का ोाव ोश्र दूर होता गया। गगे िलकर तो ीश्र गगरुीश्र का पूणभतः सांघार्तपत ीश्रवन
दोनों के गनन्द एवां प्रशांसा का हश्र चवर्य णन गया।

पूना कश्र ‘चहन्दू यगवक पचरर्द्’ के चलए ीाने के पूवभ मई 1938 में हश्र डॉक्टरीश्र ने नागपगर के नचिकारश्र
चशक्षण वगभ का दाचयत्व ीश्र गगरुीश्र के ऊपर सौंप चदया न्ा। वगभ के चलए गये हग ए सैकड़ों स्वयांसेवकों
कश्र मनोोावनाएाँ सांघमय णनें इसके चलए िौणश्रसों घण्टे के कायभक्रमों में ननगशासन एवां िैतन्य
गवश्यक होता है । इसके चलए वगभ के सवाचिकारश्र को नचवीान्त पचरीम करना पड़ता है तन्ा उसके
सान्-सान् चनयोचीत सोश्र कायभक्रमों को सांस्कारक्षम एवां प्रोावश्र णनाने के हे तग कायभकताओां का ोश्र
उत्साह णनाये रखना होता है । यह कगशलता और कष्ट से साध्य काम गगरुीश्र द्वारा सही सम्पाचदत होते
दे खकर डॉक्टरीश्र को णहग त हश्र सन्तोर् हग ग।

नचिकारश्र चशक्षण वगभ में डॉक्टरीश्र कश्र उपन्स्न्चत मात्र, शश्रत में नचग्न के समान, उत्साहवद्धभ क होतश्र
न्श्र। डॉक्टरीश्र के नागपगर गने तक वहााँ के वगभ कश्र सम्पूणभ दे खरेख ीश्र गगरुीश्र हश्र कर रहे न्े। चकन्तग
उन्हें डॉक्टरीश्र कश्र ननगपन्स्न्चत णराणर खटकतश्र न्श्र। नकोला के ीश्र णापूीश्र सोहोनश्र को चलखे गये
चदनाांक 1 मई के पत्र में उन्होंने मन का यह ोाव व्यि करते हग ए चलखा न्ा चक ‘‘......... सरसांघिालक
डॉक्टर हे डगेवार पूना गये हैं । उनके सदै व हश्र सगलो एवां स्फूर्ततप्रद सहवास का नोाव णहग त हश्र खलता
है ।’’ ीश्र गगरुीश्र को डॉक्टरीश्र कश्र कमश्र ननगोव हो रहश्र न्श्र चकन्तग उनके द्वारा नागपगर-वगभ का कायभ
नत्यन्त योग्यता के सान् िलता दे खकर डॉक्टरीश्र को यह नवश्य प्रतश्रत होता न्ा चक ीश्र गगरुीश्र
गगे-पश्रछे िलकर उनके नोाव कश्र चनस्सन्दे ह पूर्तत कर सकेंगे।

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पूना के नचिकारश्र चशक्षण वगभ में कगछ चदन रहकर डॉक्टरीश्र नागपगर गये। उनके पूना ीाने के न्ोड़े
े के तत्कालश्रन नध्यक्ष ीश्र सगोार् िन्द्र णसग पूना गये। सगोार्णाणू काांग्रेस में न्े,
हश्र चदन णाद काांग्रस
चफर ोश्र डॉक्टरीश्र तन्ा राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के कायभ के प्रचत उनके मन में गदर न्ा। सांघ का
ननगशासन, तरुणों कश्र सांख्या, डॉक्टरीश्र ीैसे क्रान्न्तकारश्र दे शोि का नेतृत्व उनकश्र दृचष्ट से सांघ कश्र
चवशेर्ताएाँ न्ीं। पूना गने पर वहााँ के सांघिालकीश्र ने सगोार्णाणू को वगभ दे खने के चलए चनमांचत्रत
चकया। उन्होंने चनमांत्रण गनन्दपूवभक स्वश्रकार कर चलया, चकन्तग वे वगभ में ग नहीं सके। इस चवर्य
में पूना के सांघिालक डॉक्टरीश्र को नपने पत्र में चलखते हैं ‘‘......परन्तग महाराष्ट्र काांग्रेस कमेटश्र के
सांघ-द्वे र्श्र नेताओां ने उनसे साफ-साफ कह चदया चक गप सांघ के नचतचरि िाहे ीहााँ ीाइए पर सांघ
में मत ीाइए। नतः वे नहीं ग सके।’’ डॉक्टरीश्र को यह पत्र पढकर दगःख हग ग, परन्तग गियभ नहीं।
कारण, उन्हें पता न्ा चक चपछले दो-तश्रन वर्ों में काांग्रेस के लोग सांघ के णारें में चकस प्रकार कश्र
नसचहष्ट्णगता लेकर िल रहे न्े।

इस वर्भ ीगलाई-नगस्त के महश्रनों में गगीरात, चणहार तन्ा कनाटक प्रदे श में सांघकायभ कश्र प्रगचत के
समािार प्राप्त हग ए। ीश्र पद्मराी ीैन ने तो सांघ-प्रिार कश्र िगन हश्र पकड़ लश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र ने चवदोभ के
कायभकताओां से ोश्र पड़ोस के गन्ध्र प्रान्त में प्रवेश करने का गग्रह चकया। इन चदनों नकोला से एक
पत्र में डॉक्टरीश्र को सूिना दश्र गयश्र चक इस वर्भ के गणेशोत्सव में यगवकों के व्याख्यान कराना चनचित
चकया गया है । इस पत्र का ीो उत्तर डॉक्टरीश्र ने चदया उससे पता िलता है चक सांघकायभ कश्र छोटश्र-से-
छोटश्र णात कश्र ओर उनका चकतना ध्यान रहता न्ा। वे चलखते हैं ‘‘गपने चीन व्याख्याताओां कश्र
योीना कश्र है वे वहग त तरुण हैं । सावभीचनक क्षेत्र में ोार्ण दे ने कश्र िाट नोश्र से लग ीाना उनके चलए
चुक नहीं होगा। यह हो गया तो उनकश्र मनोवृचत्त में नपनश्र दृचष्ट से नवाांछनश्रय पचरवतभन हो सकता है ।
नतः इस काम में प्रौढ, ननगोवश्र तन्ा पगराने लोगों का उपयोग करना हश्र कायभ कश्र दृचष्ट से योग्य एवां
फलदायश्र है ।’’ णेमौके नचिक सार-सराहना से सामूचहक ीश्रवन के चलए सगसांगत स्वोाव णनाये रखना
कचुन होता है । डॉक्टरीश्र ने इसश्र ओर सांकेत चकया न्ा।

प्रचतवर्ानगसार इस वर्भ ोश्र गमी कश्र छग चट्टयों में नागपगर तन्ा पूना में तो नचिकारश्र चशक्षण चशचवर हग ए हश्र,
चकन्तग पांीाण तन्ा उत्तर प्रदे श में णढते हग ए काम का चविार कर लाहौर में ोश्र एक वगभ गयोचीत चकया
गया। इस वगभ में दे वतास्व प ोाई परमानन्द ने ोार्ण करते हग ए मगिकण्ु से डॉक्टरीश्र के त्यागपूणभ
ीश्रवन कश्र प्रशांसा कश्र न्श्र। उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘माननश्रय डॉक्टर हे डगेवारीश्र चपछले कई वर्ों से घर
कश्र कोई चिन्ता न करके सांघमय णने हग ए हैं । वे िन्दा नहीं मााँगते। उन्हें कोई ीानता ोश्र नहीं और न
यहश्र णातें लोग ीानते हैं चक सश्र. पश्र.)मध्यप्रान्त) में सांघ के पैंतश्रस हीार स्वयांसेवक हैं ।............कोई
सांस्न्ा णातों से नहीं िल सकतश्र और न हश्र प्रस्ताव पास करने से। ीण कोई पगरुर् सांघटन करने के

323
चलए नपना ीश्रवन लगा दे ता है और नपने ीैसे काफश्र लोग पैदा कर लेता है तण वह सांस्न्ा िल
सकतश्र है ।’’

लाहौर का यह वगभ नगस्त में हग ग न्ा। इस समय वहााँ शग कश्र हग ई शाखाओां के स्वयांसेवकों ने
डॉक्टरीश्र का नाम-ोर सगन रखा न्ा। इसश्रचलए ोाई परमानन्दीश्र ने नपने ोार्णों में यह उल्लेख चकया
चक ‘‘उन्हें कोई ीानता ोश्र नहीं।’’ पांीाण में सांघ कश्र शाखाएाँ शग करनेवाले कायभकता चीनकश्र प्रेरणा
से गये, वे प्रत्यक्ष पांीाण में गये तन्ा उनके मगख से हश्र सांघ कश्र चविारिारा सगनने को चमले, यह उत्कट
इच्छा वहााँ से गनेवाले पत्रों में प्रकट होतश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र कश्र ोश्र यह इच्छा होना स्वाोाचवक हश्र न्ा
चक पांीाण ीैसे उत्साहपूणभ एवां चहन्दगत्वोाव-प्रिान प्रदे श के काम को प्रत्यक्ष ीाकर दे खा ीाये तन्ा
कायभकताओां से ोश्र ोेंट करके उनका उत्साह णढाया ीाये। नतः डॉक्टरीश्र ने लाहौर के वगभ में ीाने
का कायभक्रम चनचित कर चदनाांक 15 नगस्त को नागपगर से ीाना तय चकया। इस समय उनके सान्
ीश्र णाणासाहण गपटे एवां ीश्र गगरुीश्र ोश्र गये न्े।

प्रारम्ो में वे गोंचदया होते हग ए काशश्र गये। मागभ में गोंचदया, ीणलपगर, मगगल सराय गचद स्न्ानों पर
स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र से ोेंट करने के चलए स्टे शन पर गये न्े। काशश्र के स्वयांसेवकों में तो इतना
उत्साह न्ा चक वे रात के साढे नौ णीे मगगलसराय स्वागत करने के चलए गये। इनमें काशश्र
चवश्वचवद्यालय के डॉ. फूलदे व सहाय वमा, ीश्र कगलकणी गचद प्राध्यापक ोश्र सन्म्मचलत न्े। चदनाांक
17 नगस्त से 20 नगस्त तक तश्रन चदन डॉक्टरीश्र काशश्र रहे । इस समय काशश्र कश्र नगर शाखा में
डॉक्टरीश्र ने स्वयां ोार्ण न करते हग ए ीश्र गगरुीश्र से णोलने को कहा। चवश्वचवद्यालय के चवद्यार्तन्यों कश्र
णैुक में प्रश्नोत्तर के प में शांका-समािान का कायभक्रम हग ग। णैुक में ििा चहन्दश्र में हग ई न्श्र नतः
मद्रास कश्र ओर के कगछ चवद्यान्ी मन में चीज्ञासा रहने के उपरान्त ोश्र ोाग नहीं ले पाये। उनके मन कश्र
इच्छा दे खकर डॉक्टरीश्र ने दूसरश्र णैुक का गयोीन चकया। इसमें ीश्र गगरुीश्र ने नांग्रेीश्र में उनकश्र
चीज्ञासा का ोलश्र ोााँचत समािान चकया। डॉक्टरीश्र कश्र णैुक लगोग तश्रन घण्टे तक िलतश्र रहश्र।
णैुक का वातावरण इतना गनन्दमय हो गया न्ा चक स्वयांसेवकों को यह पता नहीं िला चक इतना
समय कैसे णश्रत गया। डॉक्टरीश्र के काशश्र में चनवास के समय स्वयांसेवकों का उनके पास गना-
ीाना णराणर िलता रहा। मन खोलकर ििा करने और सांघटन का तांत्र समझने का यह सगनवसर
चमला न्ा। स्वयांसेवकों ने इसका ोरपूर लाो उुाया।

इन तश्रन चदनों में हश्र गोकगलाष्टमश्र का उत्सव गया। इस चनचमत्त सांस्कृत महाचवद्यालय के छात्रालय में
मनाये गये ीश्रकृष्ट्णोत्सव में ीश्र णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र गगरुीश्र दोनों के ोार्ण हग ए। इस सम्णन्ि में
नागपगर लौटने के णाद केन्द्र शाखा में णोलते हग ए ीश्र गगरुीश्र ने णतलाया न्ा चक ‘‘...........ननपेचक्षत
प से मगझे णोलना पड़ा। वहााँ के मगख्याध्यापक मेरश्र ीटा और दाढश्र दे खकर नत्यन्त प्रसन्न हो गये
और उन्हें लगा चक मगझे िमभ के चवर्य में पयाप्त ज्ञान होगा। मैं लगोग पन्द्रह चमनट णोला। मेरे ोार्ण

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का ोाव न्ा चक ‘हम सण ब्राह्मण नहीं, िाण्डाल हैं ।’ कारण, नपने िमभशास्त्रों का कन्न है चक तश्रन
चदन म्लेच्छों के घर में रहने से मनगष्ट्य िाण्डाल हो ीाता है । नतः वतभमान पचरन्स्न्चत में हम सणको
क्षचत्रय िमभ का हश्र पालन करना िाचहए।’’ प्रवास में ीश्र गगरुीश्र के ोार्णों को डॉक्टरीश्र णड़े ध्यानपूवभक
सगनते न्े। उनका गत्मचवश्वास दे खर डॉक्टरीश्र को णहग त प्रसन्नता होतश्र न्श्र। परन्तग तरुण स्वोाव के
कारण उनके शब्दों का तश्रखापन और गमी ोश्र डॉक्टरीश्र कश्र दृचष्ट से चछप नहीं सकश्र।

काशश्र से चदल्लश्र होते हग ए डॉक्टरीश्र लाहौर गये। रास्ते में प्रयाग, कानपगर गचद स्टे शनों पर स्वयांसेवकों
से ोेंट हग ई। चदल्लश्र में केवल एक चदन रुके। वहााँ शाखा पर स्वयांसेवकों के चलए ोार्ण हग ग। राचत्र को
लाहौर के चलए िल चदये। चदनाांक 22 नगस्त को प्रातः सण लोग लाहौर पहग ाँ ि।े नचिकारश्र चशक्षण
वगभ में चदनाांक 23 नगस्त को डॉक्टरीश्र का पहला ोार्ण हग ग। दूसरे चदन ीश्र गगरुीश्र का ोार्ण
हग ग। िौन्े डॉक्टरीश्र का चफर से ोार्ण होनेवाला न्ा चकन्तग वे एकाएक णश्रमार हो गये। नतः उस
चदन ोश्र ीश्र गगरुीश्र ने हश्र ोार्ण चदया। चदनाांक 27 नगस्त को डॉक्टरीश्र का सैचनक पद्धचत से
नचोवादन चकया गया। इस नवसर पर प्रात्यचक्षक कायभक्रमों को दे खकर राीा नरे न्द्रनान् नत्यन्त
प्रसन्न हग ए। उन्होंने नपने ोार्ण में णताया चक ‘‘सांघकायभ शश्रघ्र हश्र प्रान्त-ोर में फैलना िाचहए।’’ उन्होंने
यह ोश्र मााँग कश्र चक चहन्दगस्न्ान सरकार ने ोारतश्रय ीनता में ीो ‘चमचलटरश्र’ ‘नॉन-चमचलटरश्र’ राइब्ी
का ोेद णना रखा है वह पूणभतः नज्ञानमूलक है । यह णात हमें नपने व्यवहार से सरकार को नच्छश्र
तरह णता दे नश्र िाचहए। डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय ुश्रक न होने के कारण वे केवल गिा घण्टा णोले।
चकन्तग उनका यह छोटा-सा ोार्ण नत्यन्त ओीस्वश्र एवां तकभपूणभ न्ा। ीश्र गगरुीश्र नपने पत्र में चलखते
हैं ‘‘सांघ का इतना तकभशगद्ध एवां सूत्रणद्ध, सवांगश्रण चववेिन कदाचित् हश्र सगनने को चमलता है । न्ोड़ा
और समय िाचहए न्ा। ोार्ण इतना मिगर एवां गकर्भक न्ा चक यहश्र इच्छा होतश्र न्श्र चक और गि-
पौन घण्टा तक वह िलता रहे ।’’ दगोाग्य से इस ोार्ण का प्रचतलेख 1947 कश्र दे श-चवोाीन के
समय कश्र तहस-नहस कश्र घटनाओां में चवनष्ट हो गया।

इस कायभक्रम से लौटने पर डॉक्टरीश्र कश्र कमर में िमक ग गयश्र चीससे उन्हें णहग त पश्रड़ा होने लगश्र।
चकन्तग इस न्स्न्चत में ोश्र, ददभ को सहन करते हग ए, वे डॉ. गोकगलिन्द नारां ग के घर चमलने के चलए गये
तन्ा उन्हें नागपगर के चवीयादशमश्र-उत्सव के नध्यक्षपद के चलए चनमांत्रण चदया। डॉ. नारां ग ने उनका
प्रस्ताव सहर्भ स्वश्रकृत चकया। चदनाांक 29 नगस्त को डॉक्टरीश्र राीा नरे न्द्रनान् के यहााँ ोश्र चमलने
गये।

चदनाांक 28 नगस्त को लाहौर के ‘महाराष्ट्र मण्डल’ में गणेशोत्सव पर डॉक्टरीश्र का ोार्ण गयोचीत
चकया गया न्ा। चकन्तग कमर कश्र पश्रड़ा उस चदन इतनश्र णढ गयश्र चक उन्हें नपने स्न्ान पर ीश्र गगरुीश्र को
हश्र ोार्ण के चलए ोेीना पड़ा। ीश्र गगरुीश्र ने वहााँ ‘व्यचि और समाी का परस्पर सम्णन्ि’ इस चवर्य

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पर ोार्ण चदया। कायभक्रम के उपरान्त ‘महाराष्ट्र मण्डल’ के कायभवाह डॉक्टरीश्र से चमले तन्ा
णतलाया चक गपके द्वारा ोेीे गये विा का ोार्ण नत्यन्त सगन्दर एवां ओीस्वश्र हग ग। इस पर
डॉक्टरीश्र ने हाँ सते हग ए पूछा ‘‘उन्होंने ोार्ण में क्या कहा ?’’ यह प्रश्न सगनकर वे सज्जन णड़श्र परे शानश्र
में पड़ गये और चफर न्ोड़ा-सा साहस कर णोले ‘‘डॉक्टरीश्र, यह मत पूचछये चक क्या कहा, चकन्तग यह
सहश्र है चक वे णहग त हश्र णचढया णोले।’’ यह उत्तर ननेक चदनों तक डॉक्टरीश्र के चवनोद का चवर्य णना
रहा। वे स्वयांसेवकों को सदै व णताते न्े चक ोार्ण केवल गनन्द के चलए नहीं होता। उसे ध्यानपूवभक
सगनकर णाद में उसका मनन करना िाचहए। इस णात को पगष्ट करने के चलए वे उपयगभि उदाहरण दे ते
और सण एकत्र मण्डलश्र चदल खोलकर हाँ सतश्र।

चदनाांक 29 नगस्त कश्र राचत्र को डॉक्टरीश्र लाहौर से चणदा हग ए। इस समय एक स्वयांसेवक ने डॉक्टरीश्र
का गौरवगान करते हग ए एक कचवता कहश्र। चदनाांक 30 नगस्त को प्रातः वे चदल्लश्र पहग ाँ ि।े इस प्रवास में
उनका ददभ णहग त नचिक णढ गया न्ा। चदल्लश्र से उन्हें गगीरात और महाराष्ट्र ीाना न्ा। गगीरात में सांघ
का कायभ प्रारम्ो हग ए लगोग डेढ वर्भ हग ए न्े चकन्तग नोश्र तक वे वहााँ ीा नहीं पाये न्े। नतः वहााँ के
कायभकताओां ने यह गग्रह चकया न्ा चक लाहौर के णाद वे णड़ौदा और कणावतश्र के गणेशोत्सव के
कायभक्रम के चनचमत्त गयें। डॉक्टरीश्र ने उनका कायभक्रम स्वश्रकार ोश्र चकया न्ा। चकन्तग नण स्वास्र्थय
चणगड़ने के कारण उनका ीाना नसम्ोव न्ा। फलतः गगीरात में, नपनश्र नसमन्भता के चलए तार से
क्षमा मााँगते हग ए उन्होंने वहााँ के कायभक्रम के चलए ीश्र गगरुीश्र को ोेीा। णम्णई, पूना साांगलश्र इत्याचद
महाराष्ट्र कश्र शाखाओां का कायभक्रम ोश्र स्न्चगत करना पड़ा। चदनाांक 31 नगस्त को चदल्लश्र से चलखे
गये पत्र में ोश्र ीश्र गगरुीश्र कहते हैं ‘‘..........पूवभचनचित कायभक्रम स्न्चगत करने पड़ रहे हैं इसका
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र को नत्यन्त दगःख है पर ‘ईश्वरे च्छा णलश्रयसश्र’। यहााँ गने के णाद से हश्र माचलश,
सेंक तन्ा दवाई णराणर िल रहश्र है । नतः नण कगछ गराम मालूम दे ता है । चकन्तग नोश्र ोश्र स्वास्र्थय
ऐसा नहीं सगिरा चक तय चकये हग ए दौरे कश्र दौड़िूप सहन कश्र ीा सके, और न ऐसा लगता है चक दो-
एक चदन में वह इस लायक हो ीायेगा।’’ रचववार चदनाांक 4 चसतम्णर को डॉक्टरीश्र णश्रमारश्र कश्र हालत
में हश्र नागपगर वापस पहग ाँ ि।े तदगपरान्त णहग त चदनों तक उन्हें चणस्तर पर हश्र पड़े रहना पड़ा।

चदनाांक 6 चसतम्णर को ीश्र गगरुीश्र ने नागपगर-शाखा में लाहौर-यात्रा का वणभन चकया। यह वणभन करते
हग ए ीश्र गगरुीश्र ने नपनश्र यात्रा के ननगोव तन्ा डॉक्टरीश्र के प्रचत उत्कट ोचिोावना के सान् ीो
गत्मपचरक्षण चकया उसके चनष्ट्कर्भ खगले चदल से सणके सामने रखे। उन्होंने कहा चक ‘‘इस सम्पूणभ
प्रवास में मेरे मन में एक णात पोंश्र णैु गयश्र है चक लोकसांग्रह के चलए मन के सन्तगलन कश्र नत्यन्त
गवश्यकता है । दूसरे का मन पहिानकर एक हश्र वाक्य में सांक्षेप में उसे नपना तत्त्व पटा दे ने तन्ा
चोन्न-चोन्न व्यचियों का चवरोि समाप्त कर उन्हें एक सूत्र में गून्
ाँ ने कश्र कला डॉक्टरीश्र को ोलश्र ोााँचत

326
गतश्र है । णाकश्र हम लोगों में वह नहीं चदखतश्र। इस हे तग हम सणको नपने परमपूीनश्रय सरसांघिालक
का गदशभ सदै व नपने सम्मगख रखना िाचहए।’’

डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय चगर गया न्ा। चकन्तग उनके दे ह के मोटापे तन्ा प्रत्येक पचरन्स्न्चतयों में हाँ समगख
स्वोाव के कारण उनके सान् रहनेवालों को ोश्र उनकश्र रुग्णावस्न्ा का पता नहीं िल पाता न्ा।
चीनको पता न्ा उनकश्र यह चहम्मत नहीं होतश्र न्श्र चक वे डॉक्टरीश्र से गराम करने के चलए गग्रह
करें । नस्वस्न् होते हग ए ोश्र सांघकायभ के चलए डॉक्टरीश्र चीतना पचरीम करते न्े वह इतना नचिक न्ा
चक उसे दे खकर दूसरों को लज्जा प्रतश्रत हो। कगछ लोगों ने डॉक्टरीश्र के सान् नपने पगराने और स्नेहपूणभ
सम्णन्ि होने के कारण उनके सामने कगछ चदनों के चलए चवीाम लेने का सगझाव रखने का साहस
चदखाया ोश्र, चकन्तग डॉक्टरीश्र मगस्कराकर णात टाल गये।

सांघ का कायभ णढ रहा न्ा। उसके सान् हश्र सांघ के प्रशांसको और चवरोिकों कश्र ोश्र सांख्या णढतश्र ीा
रहश्र न्श्र। स्तगचत और चनन्दा, ननगकूलता और प्रचतकूलता सोश्र प्रकार के समािार चनत्य केन्द्र में प्राप्त
होते रहते न्े। निूणर 1938 में समािार चमला चक कोल्हापगर के महाराीा ने प्रसन्न होकर वहााँ के
‘राीाराम स्वयांसेवक सांघ’ को पााँि सौ रुपये दान चदये। इसके कगछ चदन पूवभ हश्र यह खणर ोश्र पढने
को चमलश्र चक नाचसक के चीलाचिकारश्र ने सोश्र सरकारश्र कमभिाचरयों को यह गदे श चदया न्ा चक वे
सांघ के कायभक्रमों में ोाग न लें और न उत्सवों में नध्यक्ष के नाते ीायें। डॉक्टरीश्र न्स्न्तप्रज्ञ होकर
सहीोाव से सोश्र न्स्न्चत में सांघकायभ कश्र वृचद्ध के हश्र चविार और उसकश्र उपाय-योीना में तल्लश्रन रहते
न्े। इस चवर्य में वे चलखते हैं ‘‘........एक ओर ीण सांघकायभ पर इस प्रकार प्रशांसा के पगष्ट्प णरसाये
ीा रहे हैं तो दूसरश्र ओर उसश्र कायभ का चवरोि हो रहा है । पर इसमें गियभ कश्र कोई णात नहीं। गी
तक यहश्र ननगोव है चक चकसश्र ोश्र सत्कायभ में ये सण णातें होतश्र हश्र हैं । चकन्तग यह सन्तोर् का चवर्य है
चक इस समय ीनता को यह ोश्र चदखता ीा रहा है चक स्वयांसेवकों कश्र चनष्ठा के णल पर सांघकायभ चकसश्र
ोश्र चवरोि कश्र चिन्ता न करते हग ए चनरन्तर उत्तरोत्तर प्रगचत कर रहा है ।’’

इस सन्तोर् के कारण हश्र वे नपनश्र णश्रमारश्र को ोूलकर ोश्र कायभव्यस्त न्े। उनके ददभ का समािार ीण
इिर-उिर पहग ाँ िा तो लोगों ने ीानकारश्र के चलए एवां चिन्ता व्यि करते हग ए पत्र चलखे। इस सम्णन्ि में
डॉक्टरीश्र ने णम्णई के ीश्र दादा नाईक को ीो उत्तर चदया है वह उनकश्र उस समय कश्र मनःन्स्न्चत को
पूणभतः प्रकट करता है । वे चलखते हैं ‘‘नोश्र तक गवश्यक चवीाम चकया होता चकन्तग सांघकायभ में पड़े
हग ए व्यचि को गराम चमलना कचुन हश्र है । मेरे स्वास्र्थय के सम्णन्ि में चिन्ता करने लायक कगछ ोश्र
नहीं है , यह समझकर चनचिन्त रहें ।’’ इस प्रकार का िलता-चफरता कमभयोग हश्र सांघ कश्र सम्पूणभ चिन्ता
कर रहा न्ा।

327
इन्हीं चदनों है दराणाद)दचक्षण) में सत्याग्रह प्रारम्ो हो गया। चनीाम कश्र चहन्दू-चवरोिश्र एवां नत्यािारपूणभ
नश्रचतयों के कारण उसके राज्य में चहन्दगओां का स्वाचोमान एवां शान्न्तपूवभक ीश्रवन दूोर हो गया न्ा।
नतः ‘ोागानगर चनःशस्त्र प्रचतकार मण्डल’ कश्र स्न्ापना कश्र गयश्र तन्ा निूणर 1938 में चनीाम कश्र
इन नश्रचतयों के चवरुद्ध सत्याग्रह-सांग्राम का चणगगल णीा चदया गया। इन गन्दोलनों में स्वातांत्र्यवश्रर
सावरकर के नेतृत्व में चहन्दू महासोा तन्ा गयभसमाी दोनों हश्र कूद पड़े न्े। चनीाम का राज्य चवदोभ
एवां महाराष्ट्र दोनों हश्र क्षेत्रों से सटा हग ग न्ा तन्ा महाराष्ट्रवाचसयों के मन में तो चनीाम के चवरुद्ध चिढ
पेशवाओां के काल से हश्र िलश्र ग रहश्र न्श्र। फलतः इस सत्याग्रह के चलए यहााँ के तरुणों में चवशेर्
उत्साह एवां रुचि न्श्र। चफर चपछले पााँि-सात वर्ों में इस सम्पूणभ क्षेत्र में सांघकायभ का काफश्र प्रसार हग ग
न्ा। सांघ ने तरुणों के मन में चहन्दू समाी के प्रचत लगन एवां कतभव्यचनष्ठा का ोाव ीाग्रत चकया न्ा।
स्वाोाचवक है चक यह ोाव इस प्रकार के गन्दोलनों के चलए पोर्क ुहरा।

गन्दोलन प्रारम्ो होने के उपरान्त चीस-चीस स्वयांसेवक एवां कायभकता ने स्वयांप्रेरणा से उसमें ोाग
लेने कश्र ननगमचत िाहश्र डॉक्टरीश्र ने सहर्भ प्रदान कश्र। चकन्तग चीनके ऊपर चकसश्र क्षेत्रचवशेर् में सांघकायभ
का पूणभ ोार न्ा उनको ध्यानपूवभक उन्होंने णाहर रहने के चलए कहा। महाराष्ट्र प्रान्त के सांघिालक के
पत्र का उत्तर दे ते हग ए उन्होंने एक वाक्य में इस सम्णन्ि कश्र नश्रचत व्यि कश्र न्श्र। वह न्श्र चक ‘‘सत्याग्रह
में ीो लोग ोाग लेना िाहते हैं वे व्यचिगत प से ले सकते हैं ।’’ सांघ के प्रारम्ो से हश्र डॉक्टरीश्र ने
प्रत्येक राीकश्रय गन्दोलन के सम्णन्ि में यहश्र सगसांगत नश्रचत णरतश्र न्श्र चक सांघ के स्वयांसेवक ीैसे
सांघ के घटक हैं वैसे हश्र वे चहन्दू समाी के ोश्र एक ीाग क एवां कतभव्यशश्रल नागचरक हैं । नतः उन्हें
इस नाते हश्र राीनश्रचतक गन्दोलनों में व्यचिशः ोाग लेना िाचहए। 1930-31 के ीांगल सत्याग्रह में
सन्म्मचलत होने के पूवभ इसश्र नश्रचत के ननगसार डॉक्टरीश्र ने सरसांघिालक पद का ोार डॉ. पराांीपे के
सगपगदभ चकया न्ा, तन्ा नपने सहयोचगयों से ोश्र उसश्र नश्रचत का पालन करवाया न्ा। एक ओर राीनश्रचतक
गन्दोलनों का तात्काचलक, नैचमत्तक एवां सांघर्भमय स्व प न्ा तो दूसरश्र ओर सांघ का चनत्य, नखण्ड
एवां रिानात्मक कायभ। दोनों कश्र चोन्नता ोलश्र ोााँचत ध्यान में लेकर गन्दोलनों कश्र सफलता के सान्-
सान् सांघ का चिरन्तन कायभ ोश्र नणाि प से िलता रहे इस उद्देश्य से हश्र डॉक्टरीश्र ने दूरदर्तशता एवां
चविारपूवभक इस नश्रचत का चनिारण चकया न्ा। तात्काचलक गवेश के कारण कगछ लोगों कश्र नप्रसन्नता
सहन करके ोश्र डॉक्टरीश्र ने इस नश्रचत का पूणभतः पालन चकया।

यद्यचप स्वयांसेवकों को सांघ के नाते गन्दोलन में ोाग लेने कश्र ननगमचत नहीं न्श्र चफर ोश्र डॉक्टरीश्र
को पूणभ चवश्वास न्ा चक नागचरक के नाते स्वयांसेवक उसमें काफश्र ोाग लेंग।े 1938 में डॉक्टरीश्र ने
गन्दोलन के एक प्रमगख सूत्रिार ीश्र गीाननराव केतकर को एक पत्र गन्दोलन कश्र ओर ध्यान दे ने
के चवर्य में चलखा न्ा। उस पत्र में वे चलखते हैं चक ‘‘......उपयगभि कायभ)सत्याग्रह) के सम्णन्ि में ीो
कगछ कर सकता हू ाँ कर रहा हू ाँ । सत्याग्रह कश्र ओर चकसश्र ोश्र प्रकार का दगलभक्ष्य नहीं हो सकता।’’ इन्हीं

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चदनों डॉक्टरीश्र से, ीण वे पूना गये न्े, ीश्र शां. रा. उपाख्य मामा दाते तन्ा सातारा के ीश्र ोाऊराव
मोडक ने ोेंट कश्र न्श्र। उस ोेंट के सम्णन्ि में ीश्र मामा दाते चलखते हैं चक ‘‘...........हमारे कन्न का
गशय समझकर उन्होंने चवश्वासपूवभक कहा ‘पााँि सौ लोग सत्याग्रह में ोेीने हैं , इतना हश्र न ? इसकश्र
चिन्ता गप न करें । शेर् णातें गप दे ख लश्रचीए।’ चीस गत्मचवश्वास के सान् उन्होंने यह कहा और
ीो सांवेदना व्यि कश्र उसका स्मरण मगझे गी तक है ।’’

पााँि सौ हश्र नहीं, उससे चतगगनश्र-िौगगनश्र सांख्या में स्वयांसेवकों ने सत्याग्रह में ोाग चलया न्ा। परन्तग
उनमें से चकसश्र को ोश्र डॉक्टरीश्र नन्वा चकसश्र सांघ के नचिकारश्र ने ‘‘तू ीा’’ यह गदे श नहीं चदया
न्ा। चीनको नपने हृदय में ज्वलन्त चहन्दगत्व कश्र ज्योचत से गदे श चमला वे गये। चकन्तग हम यह नहीं
ोूल सकते चक इस ज्योचत का प्रदश्रपन सांघ के सांस्कारों का हश्र पचरणाम न्ा। डॉक्टरीश्र का ििेरा ोाई
ीश्र वामन हे डगेवार ोश्र एक चदन सत्याग्रह में िला गया। वह उस समय स्कूल का एक नटखट चवद्यान्ी
मात्र न्ा। कगछ चदनों णाद उसने चनीाम के कारागृह से डॉक्टरीश्र को ोेीे पत्र में चलखा ‘‘ननगमचत न
लेते हग ए मैंने सत्याग्रह में ोाग चलया नतः क्षमा करें ।’’ उसके उत्तर में डॉक्टरीश्र ने चलखा ‘मैं तगम्हारे
स्न्ान पर होता तो वहश्र करता ीो तगमने चकया। नतः सांकोि न करते हग ए सीा पूरश्र होने के णाद घर
िले ीाओ।’’ ीश्र ोैय्याीश्र दाणश्र ने, ीो गगे िलकर सांघ के सरकायभवाह हग ए, सत्याग्रह में ीाने का
चविार चनचित करके डॉक्टरीश्र को सूिना दश्र। नागपगर में उनकश्र चणदाई के कायभक्रम में डॉक्टरीश्र स्वयां
उपन्स्न्त न्े तन्ा ीण ोैयाीश्र ने नन्त में उन्हें प्रणाम चकया तो वे णोले ‘‘तगम्हें पूछना िाचहए न्ा चक
‘क्या ीाऊाँ ? ’ नण स्वयांप्रेरणा से ीा रहे हो, नवश्य ीाओ। मेरा तगम्हें गशश्रवाद है ।’’ नत्यन्त
स्नेहपूवभक ननगशासन का ज्ञान कराते हग ए ोश्र उन्होंने कोश्र ोूलकर ोश्र चकसश्र के उत्साह पर पानश्र नहीं
डाला। उनकश्र चकसश्र ोश्र णात में नचत नहीं होतश्र न्श्र। उनके ोाव सदै व लोकसांग्रह कश्र मयादा में हश्र
प्रकट होते न्े।

डॉक्टरीश्र कश्र सत्याग्रह-सम्णन्िश्र यह नश्रचत कचतपय सांघ के णाहर के चहन्दगत्ववादश्र कहलानेवाले सज्जनों
को पसन्द नहीं गयश्र। नतः उन्होंने डॉक्टरीश्र एवां सांघ कश्र टश्रका करनेवाले एवां कगन्त्सत लेख इिर-
उिर चलखे। चकन्तग उससे डॉक्टरीश्र कश्र शान्न्त में लेशमात्र ोश्र नन्तर नहीं गया।

गन्दोलन के इस वातावरण में ोश्र डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय ीैसे-का-तैसा न्ा। उस काल के एक पत्र में
वे चलखते हैं चक ‘‘कमर के ददभ ने पश्रु के पगराने ददभ से दोस्तश्र कर लश्र है ।’’ नागपगर के चवीयादशमश्र-
महोत्सव के चलए पांीाण से डॉ. गोकगलिन्द नारांग नध्यक्ष के नाते ग रहे न्े। नतः डॉक्टरीश्र ने
कायभक्रम के चलए णहग त पचरीम चकया। चकसश्र ोश्र कायभक्रम को सफल करने के चलए नपने गपको
चकतना ोगलाना पड़ता है इसका उदाहरण डॉक्टरीश्र के उस काल के प्रयत्न न्े। वे सम्पूणभ शचि लगाकर
उत्सव कश्र तैयारश्र में ीगटे न्े। दशहरे के चदन नागपगर में तश्रन हीार गणवेशिारश्र स्वयांसेवकों ने सांिलन

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के कायभक्रम में ोाग चलया। उसमें डॉक्टरीश्र स्वयां ोश्र सन्म्मचलत न्े। डॉ. नारां ग कश्र व्यवस्न्ा कश्र छोटश्र-
छोटश्र णातों कश्र ओर ोश्र डॉक्टरीश्र का पूरा ध्यान न्ा। उन्हें यहश्र लगता न्ा चक सांघकायभ कश्र यह महत्ता
एवां नत्यचिक गवश्यकता चकस प्रकार समाी के ध्यान में लायश्र ीाये। नन्य सोश्र सहयोगश्र प्रयत्न
कर रहे न्े चकन्तग उन्हें चनःसन्दे ह यह लगता न्ा चक इन प्रयत्नों से काल पर चवीय पाना तो दूर वे उसका
सान् ोश्र नहीं दे सकेंगे। उनके मन कश्र यह उचद्वग्नता कोश्र-कोश्र शब्द प ोश्र हो उुतश्र न्श्र। दशहरा-
उत्सव के सम्णन्ि में पूना के सांघिालक को चलखे गये पत्र में वे कहते हैं ‘‘दशहरा महोत्सव में ोाग
लेने लायक मेरा स्वास्र्थय ुश्रक नहीं न्ा। चफर ोश्र मैंने तश्रन चदन तक नपने गपको णश्रमार न समझते
हग ए सािारण मनगष्ट्य के समान उत्साह के सान् पूणभ प से ोाग चलया। सश्रमोल्लघांन कश्र शोोायात्रा में
मैं गणवेश में न्ा। यह सण पचरीम गवश्यक होने के कारण मैंने चकया पर इसका पचरणाम स्वास्र्थय
पर हग ए चणना रहा नहीं।’’

इन चदनों डॉक्टरीश्र के कगटगम्ण में गरश्रणश्र के सान्-सान् और ोश्र एक चिन्ता का कारण उपन्स्न्त हो
गया। उनका ोानीा ीश्र चदनकर सदाचशव पट्टलवार ननेक वर्ों से महाचवद्यालय कश्र चशक्षा के चलए
उनके घर पर हश्र रहता न्ा। वह एकदम पागल हो गया चीससे घर में णहग त उपद्रव होने लगा। डॉक्टरीश्र
तो गशा कर रहे न्े चक वह वर्भ-ोर में स्नातक होकर नपने िन्िे से लग ीायेगा तन्ा उसे नपने पैरों
पर खड़ा करने का उनका कतभव्य पूरा हो ीायेगा। चकन्तग इस घटना ने उनकश्र गशाओां पर तगर्ारपात
कर चदया। डॉक्टरीश्र का घर रात-चदन सांघ-कायभकताओां से ोरा रहता न्ा। उस समय उनका ोानीा
पागलपना में ीो कगछ कर णैुता वह नत्यन्त कष्टदायक होता न्ा। णश्रमारश्र के कारण चदन-प्रचतचदन
णढनेवालश्र उनकश्र कमीोरश्र पर इस मनोव्यन्ा का और ोश्र पचरमाम हग ग तन्ा उनके समान सांयमश्र एवां
सहनशश्रल व्यचि के व्यवहार में ोश्र कोश्र-कोश्र चिड़चिड़ापन चदखने लगा।

1938 के चदसम्णर में ोागानगर-सत्याग्रह के कगछ सांिालकों ने ीो पत्र चनकाले उसमें यह उल्लेख चकया
चक ‘‘सांघ ने ोागानगर-गन्दोलन में सांघ के नाते हश्र ोाग चलया है ।’’ यह णात नसत्य एवां भ्रमोत्पादक
न्श्र। इन सज्जनों का प्रयत्न सांघ कश्र राीनश्रचत में घसश्रटने का न्ा। नतः डॉक्टरीश्र ने उनको एक पत्र
चलखकर स्पष्ट चकया चक ‘‘रा. स्व. सांघ के चवर्य में लोगों में गलतफहमश्र पैदा करनेवालश्र वाता का
गपके पत्रकों में गना गपके कायभ कश्र दृचष्ट से कोश्र ोश्र चहतावह नहीं है । नतः नपने प्रकाशन-
चवोाग को तगरन्त कड़श्र सूिना दें चक इसके गगे रा. स्व. सांघ का उल्लेख गपके पत्रकों में न ीाये।’’

चदसम्णर के नन्न्तम सप्ताह कश्र एक घटना उल्लेखनश्रय है । डॉक्टरीश्र के एक काल के नत्यन्त स्नेहपात्र
ीश्र णाळाीश्र हग द्दार स्पेन के गृहयगद्ध से मगि होकर ननेक वर्ों के उपरान्त नागपगर गये न्े। ीनरल
फ्रैंको के चवरुद्ध लड़नेवालश्र सेनाओां के चलए स्वयांसेवक णनकर वे इांसण्ै ड से स्पेन गये न्े और वहााँ
लड़ते हग ए फ्रैंको के णन्दश्र प में कारागृह में ोश्र रहे । इांसण्ै ड वे पत्रकाचरता कश्र चशक्षा के चलए गये न्े।
डॉक्टरीश्र ने उनको वहााँ ोेीने एवां वहााँ सण प्रकार से उनकश्र व्यवस्न्ा करने के चलए प्रयास चकये न्े।

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एक समय सांघ में उत्साह के सान् काम करनेवाला णगचद्धमान् एवां तरुण कायभकता िार स्वतांत्र दे शों के
ीश्रवन का चनरश्रक्षण करके लौट रहा है यह डॉक्टरीश्र के चलए णड़श्र गशाप्रद घटना न्श्र। ीश्र हग द्दार के
पास व्यचित्व और विृत्व दोनों हश्र न्े। नतः एक योग्य कायभकताके वापस गने पर स्वाोाचवक हश्र
न्ा चक डॉक्टरीश्र को गनन्द हो। चदनाांक 24 चदसम्णर को ीण वे नागपगर गये तो डॉक्टरीश्र ने स्वयां
स्टे शन पर उनका स्वागत चकया। तत्पिात् ननेक णार उनसे ोेंट हग ई। चकन्तग डॉक्टरीश्र को पता िला
चक चवदे श ीाने के णाद उनकश्र चविारिारा णदल गयश्र। चकन्तग चफर ोश्र डॉक्टरीश्र के व्यवहार में
लेशमात्र ोश्र नन्तर नहीं गया। ीण ीश्र हग द्दार से डॉक्टरीश्र के चवर्य में ििा हग ई तो नत्यन्त ोरे हग ए
चदल से उन्होंने कहा ‘‘सरश्र चमत्रता डॉक्टरीश्र के यश का रहस्य न्ा। वे चकसश्र ोश्र स्तर के तन्ा गयग
के व्यचि के सान् समरस हो ीाते न्े। सदै व मैत्रश्र को चनोाना डॉक्टरीश्र के स्वोाव कश्र नपूवभता न्श्र।
डॉक्टरीश्र ऐसे न्े चक उनके सान् वैिाचरक मतोेद होते हग ए ोश्र मेरे मन में यह कोश्र नहीं गया चक
ोावनाओां का सम्णन्ि ोश्र तोड़ चदया ीाये।’’

डॉक्टरीश्र ने ीश्र हग द्दार को 1938 के नागपगर चीले के शश्रत-चशचवर में स्वयांसेवकों के सम्मगख नपनश्र
चवदे श-यात्रा के ननगोव णताने के चलए गमांचत्रत चकया। उन्होंने वहााँ के चकसानो और मीदूरों के
सांघटन एवां ीनीाग्रचत के चवर्यों में ननेक णातें णतायीं। इस सम्णन्ि में णाद में ििा करते हग ए
डॉक्टरीश्र ने कहा चक ‘‘चकसान और मीदूरों कश्र उन्नचत का चविार तो योग्य है । चकन्तग नमश्रर और
मीदूर के पारस्पचरक सांघर्भ कश्र ोार्ा हमें नहीं िाचहए।’’

दे शव्यापश्र सांघटन खड़ा करने का सांकल्प करते हग ए दे श-काल कश्र पचरन्स्न्चत एवां समाी कश्र मनोरिना
का चविार कर डॉक्टरीश्र ने कगछ मयादाएाँ पालन करने का मन-हश्र-मन चनिय चकया न्ा, ऐसा इस
काल के कगछ पत्रों से स्पष्ट चदखता है । परतांत्र दे श में तन्ा तन-मन-िन से दगणभल णने हग ए समाी में
प्रिण्ड कायभ खड़ा करने के चलए नेतृत्व में पानश्र कश्र तरह पैसा णहाने कश्र पात्रता होनश्र िाचहए। परन्तग
डॉक्टरीश्र को तो दोनों समय ोरपेट ोोीन कश्र ोश्र समस्या न्श्र, हान् खोलकर पैसा खिभ करने कश्र तो
णात हश्र नहीं कश्र ीा सकतश्र न्श्र। सांघ के कगछ चहतचिन्तकों को यह तांगश्र णड़श्र खलतश्र न्श्र। इसचलए कगछ
लोगों के मन में गया चक पैसा कमाने के चलए एक लॉटरश्र शग कश्र ीाये। इस योीना में डॉक्टरीश्र
के चमत्र ीश्र णाणाराव सावरकर का ोश्र सहयोग न्ा। डॉक्टरीश्र के पास इस प्रकार कश्र लॉटरश्र के पत्रक
पर हस्ताक्षर करने के चलए पत्र गया। उसके उत्तर में वे चलखते हैं चक ‘‘........पूज्य णाणाराव
)सावरकर) का पत्र चमला, यह उन्हें सूचित करें । पूणभ चविार करने के णाद मेरा मत पूवानगसार चनचित
है । लॉटरश्र के पत्रक पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता।’’ ोोले-ोोले समाी में पहले हश्र प्रयत्नों कश्र
नचोलार्ा क्षश्रण होतश्र है । यचद उसमें कष्ट न करते हग ए लॉटरश्र और ीगए के द्वारा िन कमाने का लोो
ीगा चदया तो चफर समाी के मन से प्रयत्नवाद और पगरुर्ान्भ कश्र ोावना का लोप होकर वह नचिक
पांगग एवां पराीयश्र णन ीाता है । लॉटरश्र से सांस्न्ा को पैसा तो चमल ीायेगा चकन्तग चीन लोगों के चलए

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सांस्न्ा खड़श्र है वे दगणभल हो ीायेंग।े नतः लोगों के हृदय कश्र चवशगद्ध दे शोचि एवां समाी के चवर्य कश्र
सरश्र गत्मश्रयता के कारण ीो पैसा चमलेगा वह तगलना में कम रहा तो ोश्र पचरणाम में समाी तन्ा
सांघटन के चलए नचिक लाोदायक चसद्ध होगा। डॉक्टरीश्र यह णात ोलश्र-ोााँचत ीानते न्े और इसचलए
उन्होंने गपद्धमभ के प में ोश्र समाी के गले में ीगगड़श्र वृचत्त कश्र नयश्र गलफााँस लगाने से साफ ‘‘ना’’
कर दश्र। पैसे का मोह इतना नन्िा होता है चक उस समय कश्र कगछ राीनश्रचतक सांस्न्ाओां ने नपने एकत्र
चकये हग ए पैसों को स्वयां खिभ न करते हग ए नांग्री
े सरकार के णाण््स में ीमा कर रखा न्ा। इससे
नचिक दै व-दगर्तवलास कौनसा हो सकता है ?

इसश्र प्रकार नवम्णर के नन्त में महाराष्ट्र के एक व्याख्यानकार गिायभ ीश्रराम गोसााँवश्र का एक पत्र
गया। वे िाहते न्े चक सांघ में उनके द्वारा चदये गये ोार्णों का सांग्रह सांघ के नाम से छापा ीाये तन्ा
डॉक्टरीश्र उसकश्र प्रस्तावना चलखें। इस पत्र के उत्तर में वे चलखते हैं ‘‘गी तक चनचित नश्रचत के
ननगसार गपकश्र पगस्तक को सांघ का नाम दे ना सम्ोव नहीं होगा। इसश्र प्रकार गी तक मैं चीस नश्रचत
के ननगसार िल रहा हू ाँ उसके नन्तगभत पगस्तक कश्र प्रस्तावना चलखने का कायभ ोश्र मैं स्वश्रकार नहीं कर
सकता।’’

डॉक्टरीश्र ने चवचोन्न कायभकताओां को चलखे गये पत्रों के नचतचरि नन्य कगछ ोश्र स्वतांत्र प से नहीं
चलखा है । यह नहीं है चक ‘स्वातांत्र्य’ दै चनक का सांिालन और सम्पादन करनेवाले डॉक्टरीश्र लेखन
का न्ोड़ा-णहग त महत्त्व ीानते नहीं न्े। परन्तग लोगों के मनःपटल पर चलखने कश्र कला हस्तगत करके
सहस्रावचि तरुणों को सही ध्येयचनष्ठ णनाया ीा सकता है , यह गत्मचवश्वास नपने हृदय में लेकर
उन्होंने लेखनश्र का णहग त कम उपयोग चकया। इस सम्णन्ि में वे कोश्र-कोश्र कहते न्े चक ‘‘सफेद को
काला न करते हग ए मेरश्र इच्छा तो चहन्दगओां का नोेद्य एवां नीेय सांघटन चनमाण करने कश्र है ।’’ प्रत्यक्ष
ीश्रवन एवां िचरत्र कश्र छाप व्यवहार से हश्र तरुण मनों पर डालकर उसश्र में से ननगशासनपूणभ लोकसांग्रह
चकया ीा सकता है । डॉक्टरीश्र का यह चनदान एवां गत्मचवश्वास चकतना यन्ान्भ न्ा इसका पचरिय
गी सणको चमल गया है और ोचवष्ट्य में सांघकायभ कश्र सफलता चनस्सन्दे ह इस गत्मचवश्वास पर हश्र
चनोभर है । यह तो सण िाहते हैं चक दे श के सम्मगख उपन्स्न्त नसांख्य गपचत्तयों पर चवीय पानेवाले
चनष्ठावान् एवां पराक्रमश्र तरुणों का प्रिण्ड सामर्थयभ उत्पन्न हो। परन्तग यह मानना हश्र पड़ेगा चक इस इच्छा
को पूरश्र करने का समार्थयभ डॉक्टरीश्र कश्र प्रचतोा से उत्पन्न कायभपद्धचत में हश्र है । डॉक्टरीश्र द्वारा चकये
गये सांघटन के दशभन से सांघ कश्र णाल्यावस्न्ा में हश्र नच्छे -नच्छे लोगों के मन में कैसश्र सरस कल्पनाएाँ
उुतश्र न्ीं यह दे खने हश्र लायक है । उस काल के महासोा के नचिवेशन में डॉक्टरीश्र एवां सांघ का
उल्लेख करते हग ए डॉ. मगांीे ने कहा न्ा चक ‘‘डॉक्टर हे डगेवार के रा. स्व. सांघ का कायभ नत्यन्त महत्त्व
का है । उन्होंने नागपगर में ऐसे नमूनेदार सांघटन का चनमाण चकया है चक उनकश्र एक गवाी पर केवल
एक घण्टे में तश्रन हीार यगवक दौड़ते ग सकते हैं । ........... डॉक्टरीश्र द्वारा तैयार इस यगवक-सांघ कश्र

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ओर दे खकर मेरे मन में उत्साह और गशा का सांिार होता है ।’’ 1938 के चदसम्णर में नागपगर के
स्वयांसेवक-चशचवर का उद्घाटन करने के चलए स्वातांत्र्यवश्रर णै. सावरकर गये न्े। वहााँ का दृश्य
दे खकर उन्होंने यह उसार चनकाले न्े ‘‘इस प्रकार के एकात्म राष्ट्रश्रय तरुणों के हान्ों में शस्त्र होने
गवश्यक हैं । मेरा चवश्वास है चक सांघकायभ शश्रघ्र गचत से णढे गा और दो वर्भ के ोश्रतर वह इतना
सामर्थयभशालश्र हो ीायेगा चक उसके णल पर नागपगर ीमभनश्र को ोश्र हटा सकेगा, चहला सकेगा।’’

पर यह दृश्य चकस प्रकार चनर्तमत हो सका न्ा ? इसका उत्तर डॉक्टरीश्र के उसश्र चदसम्णर मास के एक
पत्र में सही चमलता है । वे चलखते हैं ‘‘पूना में होनेवालश्र सांघ के चीला-नचिकाचरयों कश्र णैुक में, मेरा
स्वास्र्थय प्रवासयोग्य न होते हग ए ोश्र, मैं गऊाँगा यह चनचित चकया है ।’’ इस कुोर चनिय के णल पर
हश्र सांघकायभ णढ रहा न्ा।

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27. दृढश्रकरण
चवश्व-राीनश्रचत में तेीश्र से पचरवतभन हो रहा न्ा। परतांत्र राष्ट्रों को नपनश्र स्वतांत्रता के चलए सांग्राम का
उपयगि नवसर चनकट गता हग ग नीर ग रहा न्ा। वह साफ चदखने लगा न्ा चक णलशालश्र ीमभनश्र
कश्र गक्रामक नश्रचत एवां उसको रोकने के चलए इांसण्ै ड के सन्तगष्टश्रकरण के प्रयत्नों में से चवश्वसांघर्भ
नवश्य चनमाण होगा। परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के तो सोश्र प्रयत्न ‘इसश्र दे ह और इन्हीं गाँखों से’ स्वतांत्र
चहन्दू राष्ट्र का वैोवपूणभ दृश्य दे खने कश्र नत्यगर एवां पचवत्र महत्त्वाकाांक्षा लेकर िल रहे न्े। न्स्न्चत के
पारखश्र होने के कारण उन्हें गनेवाला समय गशा का सन्दे शवाहक लगा तो कोई गियभ नहीं। चकन्तग
ऐसा लगता है चक 1939 के प्रारम्ो से हश्र उन्हें यह व्यन्ा पश्रड़ा दे रहश्र न्श्र चक एक ओर तो नवसर का
लाो उुाने लायक शचि नोश्र दे श में नहीं और दूसरश्र ओर स्वयां के दगणभल शरश्रर में ोश्र गवश्यक
दौड़िूप और प्रयत्न करने कश्र क्षमता नहीं णिश्र। पचरन्स्न्चत कश्र ननगकूलता तन्ा योग्य नवसर पर
गत्मचवश्वास के सान् उु सकने कश्र पात्रता का सांयोग हश्र स्वणभसन्न्ि होतश्र है । इनमें से प्रन्म तो
सामने नीर ग रहश्र न्श्र चकन्तग दूसरश्र के सम्णन्ि में कोई चनचित नहीं न्श्र। चवदोभ, मध्यप्रान्त, महाराष्ट्र
एवां पांीाण प्रान्तों में शाखाएाँ कगछ ीम गयश्र न्ीं, चकन्तग दूसरे प्रान्तों में कहीं तो नाम मात्र को काम न्ा
और नन्यत्र वह ोश्र नहीं। नपने कायभ कश्र इस नसहाय न्स्न्चत से डॉक्टरीश्र नत्यन्त व्यचन्त न्े। चकन्तग
उनकश्र रग-रग में कतभव्यचनष्ठा एवां कमभयोग व्याप्त न्े। नतः चगरे हग ए स्वास्र्थय कश्र नवस्न्ा में ोश्र उनके
प्रयत्नों में च लाई नन्वा ीश्रवन में उदासश्रनता नहीं चदखश्र। वे सतत सिेष्ट न्े।

सांघ के प्रारम्ो से हश्र चदन-प्रचतचदन के कायभक्रमों में प्रयगि गज्ञाएाँ एवां कहश्र ीानेवालश्र प्रान्भना ीश्र नण्णा
सोहोनश्र ने चकस प्रकार तैयार कश्र इसका उल्लेख पश्रछे चकया ीा िगका है । चीस समय सांघ का कायभ
केवल नागपगर एवां गसपास के प्रान्तों तक सश्रचमत न्ा तण सांस्कृत एवां मराुश्र कश्र चमचीत गज्ञाओां
तन्ा चहन्दश्र-मराुश्र कश्र प्रान्भना से काम िल सकता न्ा चकन्तग नण सांघ कश्र शाखाएाँ पांीाण, उत्तर-प्रेदश,
चणहार, गगीरात, कनाटक गचद प्रान्तों में खगलतश्र ीा रहश्र न्ीं। नतः प्रान्भना और गज्ञाओां के प्राकृत
स्व प में पचरवतभन गवश्यक हो गया न्ा। डॉक्टरीश्र कश्र इच्छा न्श्र चक प्रान्भना कश्र रिना इस प्रकार
हो चक उसके द्वारा स्वयांसेवकों के मन पर उसकश्र ध्येयचनष्ठा कश्र दृढ छाप लग सके। इन सोश्र णातों का
चविार करने के चलए डॉक्टरीश्र ने फरवरश्र 1929 में नपने चमत्र ीश्र नानासाहण टालाटगले के ग्राम चसन्दश्र
में प्रमगख कायभकताओां कश्र एक णैुक णगलायश्र।

चसन्दश्र में णैुक कश्र व्यवस्न्ा स्टेशन के पास हश्र ीश्र णणनराव पन्ण्डत के णाँगले पर कश्र गयश्र। इस णैुक
में डॉक्टरीश्र के नचतचरि ीश्र गगरुीश्र, ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र, ीश्र णाळासाहण दे वरस, ीश्र तात्याराव तेलांग,
ीश्र चवट्ठलराव पतकश्र, ीश्र णाणाीश्र सालोडकर, ीश्र नानासाहण टालाटगले तन्ा ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर
उपन्स्न्त न्े। ीश्र णणनराव पन्ण्डत कश्र ओर सम्पूणभ व्यवस्न्ा का ोार न्ा।

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इस णैुक में सांघ का चविान, गज्ञा, प्रान्भना, कायभपद्धचत तन्ा प्रचतज्ञा सोश्र चवर्यों पर चवशद ििा हग ई
तन्ा वृचद्धगत सांघटन कश्र दृचष्ट से कौन-कौन से पचरवतभन गवश्यक हैं इसका चविार हग ग। चविार-
चवमशभ के उपरान्त यह चनिय हग ग चक सांघ कश्र गज्ञाएाँ एवां प्रान्भना दे ववाणश्र सांस्कृत में रखश्र ीायें।
सांस्कृत सणको समान प से मान्य हश्र नहीं, सणकश्र ीद्धा और स्फूर्तत का स्रोत ोश्र है । प्रान्भना के चलए
गिारोूत कगछ चविार ोश्र डॉक्टरीश्र ने सणके सामने रखे। उनको लेकर ीश्र नानासाहण टालाटगले ने
गद्य में प्रान्भना चलखश्र। उसकश्र हश्र णाद में पद्य प में रिना कश्र गयश्र। णदलश्र हग ई न्स्न्चत के ननगसार सांघ
कश्र कायभपद्धचत एवां गिारपद्धचत में ोश्र कचतपय सांशोिन चकये गये।

णैुक प्रचतचदन प्रातः गु णीे से ग्यारह णीे तक, मध्याह्न तश्रन णीे से छः णीे तक तन्ा राचत्र नौ णीे
से ग्यारह णीे तक सािारणतः गु घण्टे िलतश्र न्श्र। दस चदन तक यह क्रम िलता रहा। ननेक
चवर्यों पर काफश्र गरमागरम ििा हग ई और कोश्र-कोश्र तो स्वोाव के ननगसार उसमें ोाग लेने वाले
ोश्र गरम हो ीाते न्े। चकन्तग एक णार डॉक्टरीश्र ने सणके चविारों को ध्यान में लेकर चनष्ट्पक्ष ोाव से
शान्न्तपूवभक चवर्य का समारोप कर चदया चक सम्पूणभ चववाद समाप्त होकर नगले चवर्य पर ििा
प्रारम्ो हो ीातश्र न्श्र। इस ििा में चकसश्र ोश्र चवर्य के दोनों पक्षों को समझकर उसकश्र सूक्ष्मता को
पहिानते हग ए प्रचतपादन करने कश्र ीश्र गगरुीश्र कश्र कगशलता सही हश्र सणके ध्यान में गनेवालश्र न्श्र।
लाहौर के प्रवास में ीश्र गगरुीश्र ने डॉक्टरीश्र में चीस सन्तगचलत वृचत्त का दशभन चकया न्ा, नण वह उनके
व्यवहार में ोश्र चदखने लगश्र न्श्र। ोचिोाव से चीस णात का चविार चकया ीाये वह मनगष्ट्य के व्यवहार
और वृचत्त में नपने गप पचरलचक्षत होने लगतश्र है । ीश्र गगरुीश्र नत्यन्त गत्मचवश्वास एवां नचोचनवेश
के सान् चवर्य का प्रचतपादन करते न्े। परन्तग एक णार डॉक्टरीश्र ने नपना नचोमत दे चदया एवां नन्य
चवर्य का प्रारम्ो हो गया चक चपछलश्र ििा का तश्रखापन पानश्र कश्र रे खाओां के समान चवलश्रन होकर
मनःन्स्न्चत शान्त एवां प्रसन्न हो ीातश्र न्श्र। सामान्यतः तो वाद-चववाद में ीश्र ल. रा. पाांगारकर का
चनम्नचलचखत वणभन हश्र खरा उतरता है ः-

‘‘िादें वचत्त जळे, समत्ि वितळे, सन्तोर्ष सारा पळे।

दीघण स्नेह गळे, अहं कृवत बळे, पु ण्यार्दध तीवह ढळे।

शान्न्त क्षान्न्त चळे , सु बुविवह मळे , सं क्षोभ िादानळें।

िादी तो न िळे, न िादवह खळे, होती खु ळे आंधळे।।’’

(‘‘वचत्त जले, समता चले, ढले सकल सन्तोर्ष

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स्ने ह गले, अहवमवत बढ़े , ढहे पु ण्य का कोर्ष।

शान्न्त क्षान्न्त धी हट चले, बढ़े क्षोभ का जोर

िाद बु रा है , िाद में अन्धकार चहु ुँ ओर।’’)

होलश्र समाप्त होने पर ोश्र ीैसे कणश्रर गूी


ाँ ते रहते हैं नन्वा मोटर के चनकल ीाने पर हवा में िूल छा
ीातश्र है वैसश्र हश्र वाद-चववाद करने के णाद वादश्र कश्र मनःन्स्न्चत हो ीातश्र है । इस चवर्य में ीश्र गगरुीश्र
में नसामान्यता दे खकर डॉक्टरीश्र को प्रसन्नता होतश्र न्श्र तन्ा वे मन के इस ोाव को नन्य लोगों के
सामने प्रकट ोश्र करते न्े। इस णैुक में डॉक्टरीश्र ने नपने दाचहने हान् समझे ीानेवाले ीश्र गप्पाीश्र
ीोशश्र से यह सूिक प्रश्न ोश्र पूछा न्ा चक ‘‘मेरे स्न्ान पर गगरुीश्र को सरसांघिालक कर चदया ीाये तो
कैसा रहे गा?’’ णैुक के समय डॉक्टरीश्र के दो छायाचित्र ोश्र चमलते हैं ।

णैुक के वापस ीाने के णाद ीश्र गगरुीश्र एवां ीश्र चवट्ठलराव पतकश्र को सांघकायभ के चमचमत्त कलकत्ता
ोेीा गया। इन चदनों डॉक्टरीश्र और ीश्र गगरुीश्र कश्र मनःन्स्न्चत का चनरश्रक्षण उद्बोिक रहे गा। डॉक्टरीश्र
को नण नपने ीश्रवन का दूसरा चकनारा चनकट चदखने लगा न्ा। नपने पश्रछे उनकश्र कल्पना के ननगसार
इस दे शव्यापश्र सांघटन कश्र िगरश्र को ुश्रक प्रकार से वहन कर सकनेवाला कायभकता चनमाण करने कश्र
गतगरता उनको चवकल कर रहश्र न्श्र। वे ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक यचद योग्य एवां दाचयत्व का चनवाह
कर सकनेवाला ननगयायश्र न चमला तो णड़े-णड़े कायभ ोश्र ीन्मदाता के ीश्रवन के सान् हश्र समाप्त हो
ीाते हैं । डॉक्टरीश्र ने नपनश्र प्रचतोा से दै चनक शाखा के प में ऐसे सांस्कारकेन्द्र खोले न्े चीनसे
चटकाऊ सांस्कार ग्रहण कर चहन्दगत्व को प्राण से ोश्र चप्रय माननेवालश्र पश्रढश्र के णाद पश्रढश्र उत्पन्न हो सके।
इन सोश्र केन्द्रों को चकसश्र ोश्र पचरन्स्न्चत के झांझावात से चनकालकर मागभदशभन करने एवां सदै व कायभक्षम
एवां प्रगचतशश्रल रखने योग्य नेतृत्व उन्हें ीश्र गगरुीश्र के व्यचित्व में चदखने लगा न्ा। ‘‘मेरे पश्रछे क्या
होगा ?’’ यह प्रश्न प्रत्येक रिनात्मक कायभकता के सामने शरश्रर न्कने पर स्वाोाचवक प से खड़ा
रहता है । ननेक णार खोीणश्रन के उपरान्त यचद ऐसा व्यचि चमल ोश्र गया तो उसका योग्य चवकास
करने और उसको ालने के चलए गवश्यक सामर्थयभ, योग्यता और कगशलता वचित् हश्र चदखतश्र है ।
चकन्तग डॉक्टरीश्र के मन में ऐसश्र कोई चिन्ता नहीं न्श्र। कारण, उन्होंने नपने िारों ओर चहन्दू राष्ट्र के
चलए ीश्रवन-सवभस्व कश्र णाीश्र लगाने में हश्र ीश्रवन कश्र सान्भकता माननेवाले कायभकता चनमाण चकये न्े।
नतः ‘‘मेरे पश्रछे क्या होगा’’ यह कहने का या चविार करने का नवसर उनको कोश्र नहीं चमला। उन्हें
चवश्वास न्ा चक उनके द्वारा छोटे से णड़े चकये हग ए तरुण ोचवष्ट्य में ोश्र स्वयांप्रेरणा से पारस्पचरक सहयोग
और सताव के सान् कायभ को गगे हश्र णढाते ीायेंग।े डॉक्टरीश्र नपना उत्तराचिकारश्र खोी नवश्य
रहे न्े चकन्तग उनके मन में ोचवष्ट्य के सम्णन्ि में कोई गशांका नहीं न्श्र। राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ को
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नणाचित प में िलाने योग्य चनःस्वान्भ एवां चनलेप चनष्ठा उन्होंने ननेक तरुणों में चनमाण कश्र न्श्र तन्ा
उनका चवश्वास न्ा चक वहश्र चनष्ठा सांघटन के चलए प्रेरक एवां नन्ततोगत्वा समाी कश्र उद्धारक चसद्ध
होगश्र। ध्येयचनष्ठा कश्र परम्परा का चनमाण हश्र डॉक्टरीश्र कश्र चसचद्ध न्श्र।

इसश्र काल में तड़क-ोड़क से परे चकन्तग सही एवां शनैः-शनैः व्यचि कश्र वृचत्त में पचरवतभन करनेवाले
डॉक्टरीश्र के नसामान्य व्यचित्व का प्रोाव ीश्र गगरुीश्र के हृदय पर नांचकत होने लगा न्ा। उनकश्र वृचत्त
में पचरवतभन चकस प्रकार हो रहा न्ा उसका वणभन ीश्र गगरुीश्र के शब्दों में हश्र दे ना योग्य होगा। 6 चदसम्णर
1942 को पूना में प्रान्तश्रय णैुक का समारोप करते हग ए उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘मैं तो एक मनमौीश्र एवां
उड़ानटप्पू व्यचि न्ा। पाुशाला में कोश्र ांग से णताव नहीं चकया। सोश्र नध्यापकों को मगझसे
चशकायत न्श्र। पर पढने में ुश्रक न्ा। परश्रक्षा के पूवभ न्ोड़श्र-सश्र पढाई से हश्र नच्छश्र तरह से उत्तश्रणभ हो
ीाता न्ा। कॉलेी में ोश्र यह ांग िलता रहा। चफर मेरे ऊपर सांस्कार कैसे हग ए ? कगछ ोश्र नहीं कह
सकता। या तो परमेश्वर को पता है नन्वा सांस्कार करनेवाले को। एक णार ोूल से डॉक्टरीश्र का
ोार्ण सगन चलया। नपनश्र णगचद्ध पर णड़ा नचोमान करनेवाले मगझे उसमें कोई तकभ नहीं चदखा,
ऐचतहाचसक प्रमाण नहीं चमले। उसमें तत्त्वज्ञान नहीं न्ा, णड़े-णड़े प्रमेय नहीं न्े। डॉक्टरीश्र ने क्या कहा
? ‘स्वयांसेवक णन्िगओ ! काम करो, चनष्ठा से काम करो, प्रेम से काम करो।’ मैंने कहा ‘यह तो कोरश्र
राम-रटन है । इसमें चवशेर् क्या है ? चणल्कगल चनरन्भक !’ उसका कोई मूल्य प्रतश्रत नहीं हग ग। उस
समय मैं चवद्वान् न्ा। पर नण सण ोूल गया हू ाँ । नण तो चणल्कगल पोंा, चकतना ोश्र पानश्र गया तो नसर
न होने दे नेवाला नमभदा कश्र णचटया हू ाँ । उस ोार्ण में मगझे चवद्वत्ता नहीं चदखश्र। उसके नन्दर का रस कोरे
हृदय को कैसे समझ में गयेगा ? पर यह सत्य है चक उनका वह ोार्ण नन्दर चरसता गया। मेरे िारों
ओर चवद्वत्ता का णड़ा गवरण न्ा। उस पत्न्र में से ोश्र वह चरसा। सहसा चकसश्र से मात न खाने कश्र
मेरश्र ख्याचत न्श्र। णश्रस-पिश्रस हीार पगस्तके पढ रखश्र न्ीं। मेरश्र नगाि चवद्वता एवां चवस्तृत वािन ! मैं
चवद्वान् रहा होऊाँगा, पर डॉक्टरीश्र के ोार्ण में हृदय कश्र तड़प न्श्र और वह मेरे नन्तःकरण में कैसे
चरसश्र ? तत्त्व के सम्णन्ि में चविार न करते हग ए णश्रि-णश्रि में ीो चमलना हग ग, उनका ीो सहवास
चमला, उसश्र में पचरवतभन हो गया तन्ा ीश्रवन को चनचित चदशा चमल गयश्र।

‘‘डॉक्टरीश्र ने मेरे नचोमान को झकझोर चदया। मैं उनके सामने कैसे झगक गया ? णश्र.ए. में नांग्रेीश्र
एवां राीनश्रचतशास्त्र तन्ा एकदम णश्र.एस.सश्र में प्राचणशास्त्र पढानेवाला तन्ा ननेक उुापटक एवां
शरारत करनेवाला न्ा मैं। पर चकसश्र का ोश्र उपयोग नहीं हग ग। प्रारम्ो का मेरा चविार क्यो िला
गया? कहााँ िला गया ? इसका वणभन करना कचुन है । यहश्र कह सकता हू ाँ चक मन में सांघ का प्रवेश
हो गया। ज्ञानेश्वर का कन्न नसत्य नहीं है चक ‘हें ननगोवािेंचि योगें। नोहे ‘णोलाचिया।’ (‘यह
ननगोव का योग, न यह कहने कश्र वाता।’)

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‘‘इस णात का नोश्र ोश्र मगझे गियभ होता है । पर सणसे चवचित्र तो यह है चक इस शरणागचत का मगझे
दगःख नहीं है , क्रोि नहीं है । नचोमानश्र मनगष्ट्य को झगकाने का प्रयत्न करो तो वह चकतना गरम हो उुता
है । पर इस घाटे का मगझे तो उलटा गनन्द मालूम होता है । इसका एक हश्र कारण है चक चीनसे सम्णन्ि
गया उनका मन णहग त हश्र चवशाल न्ा। उस चवशालता के कारण हश्र यह सही घट सका। प्याले में घर
नहीं डूणता पर महासागर में कौनसश्र िश्री नहीं समा सकतश्र। उस नन्तःकरण कश्र चवशालता में शतु-
चमत्र सणके चलए स्न्ान न्ा।.......इस गगण के कारण प्रत्येक व्यचि उसमें समा ीाता न्ा। उनकश्र प्रत्येक
णात में सांघ ोरा हग ग न्ा। इस प्रकार मन कश्र नत्यगत्कट नवस्न्ावाले उस ज्ञानसम्पन्न का मौन ोश्र
व्याख्यान न्ा। ऐसा लगता न्ा चक मानो हवा में नन्तःकरण पर उसका चनमाण करनेवाले ुोके लगते
न्े।’’

इस मनःन्स्न्चत में ीश्र गगरुीश्र प्रिार के चलए कलकत्ता गये तन्ा वहााँ चदनाांक 22 मािभ को वर्भप्रचतपदा
के शगो मगहूतभ पर शाखा प्रारम्ो कर दश्र। 1938 के नन्त में ीश्र गगरुीश्र ने ‘We or Our Natioan-
hood Defined” नाम से नांग्री
े श्र में एक छोटा-सा चनणन्ि रामटे क में नपने कगछ चदन के चनवासकाल
में चलखा न्ा। डॉक्टरीश्र के कहने पर लोकमान्य णापूीश्र नणे ने इसकश्र एक लम्णश्र प्रस्तावना चलख
दश्र। इस चनणन्ि में उन्होंने नत्यन्त गत्मचवश्वास के सान् इस णात का चववेिन चकया है चक सांघ चीस
चहन्दू राष्ट्र के पगनरुद्धार के चलए णद्धपचरकार है , उसकश्र कल्पना चकस प्रकार शास्त्रशगद्ध एवां तकभसांगत
है । ीश्र गगरुीश्र ीण कलकत्ता में न्े तण नागपगर में वर्भप्रचतपदा के नवसर पर इस चनणन्ि को पगस्तक प
में प्रकाचशत चकया गया। ीश्र गगरुीश्र को चीस ीश्र रामकृष्ट्ण परमहां स कश्र परम्परा में ोारतश्रय सांस्कृचत
कश्र चदव्यता का साक्षात्कार हग ग उसमें ीश्र कालश्र माता एवां ीगन्माता हश्र उपास्य दे वता मानश्र ीातश्र हैं ।
ीश्र गगरुीश्र को नपने उपास्य के दशभन मृण्मय मूर्तत के प में न होकर ‘चहन्दू राष्ट्र’ के प में हश्र होने
लगे न्े। पगस्तक कश्र प्रस्तावना में वे चलखते हैं चक “ I offer this work ot the public as an
humble offering at the holly feet of the Divine Mother, the Hindu Naiton…….”
नर कश्र सेवा में हश्र नारायण कश्र सेवा है , इस उदात्त ोावना से हश्र नण ीश्र गगरुीश्र डॉक्टरीश्र के नेतृत्व
में िल रहे न्े। डॉक्टरीश्र के चलए यह णड़े सन्तोर् कश्र णात न्श्र चक सांघकायभ के चवचोन्न प्रान्तों में चवस्तार
होने पर तान्त्त्वक ोूचमका को वहााँ के चशचक्षत समगदाय को ोलश्र-ोााँचत समझाने में इस पगन्स्तका ने
णड़श्र सगगमता चनमाण कर दश्र न्श्र।

इन चदनों में ोश्र डॉक्टरीश्र के छोटे -मोटे दौरे िलते रहते न्े। िारों ओर से कायभवृचद्ध के समािार चनरन्तर
चमल रहे न्े। ीश्र ोाऊराव दे वरस ने उत्तर प्रदे श में चशक्षा के चलए ीाकर सांघशाखाओां का ीाल पूरना
प्रारम्ो कर चदया न्ा। चदनाांक 28 नप्रैल के पत्र में वे चलखते हैं ‘‘.........सम्पूणभ सांयगि प्रान्त में इस
समय सांघ के चलए ननगकूल न्स्न्चत है ।’’ स्न्ान-स्न्ान से डॉक्टरीश्र के पास सांघ शग करने के चलए
चनयम तन् सूिना-पत्रक ोेीने कश्र मााँग गतश्र रहतश्र न्श्र। करािश्र में ोश्र ीश्र णापूराव चोशश्रकर ने वहााँ

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एक चवद्यालय में नौकरश्र करते-करते सांघकायभ को नच्छा स्व प प्राप्त करा चदया न्ा। पांीाण में तो
उत्साह का कोई पारावार नहीं न्ा। रावलचपण्डश्र, चसयालकोट गचद स्न्ानों से, नागपगर से ोेीे गये
कायभकताओां कश्र प्रशांसा करते हग ए तन्ा उन्हें और गगे वहीं रखने का गग्रह करते हग ए ननेक पत्र
डॉक्टरीश्र को प्राप्त हग ए। णश्रि-णश्रि में ीश्रमान् प्रताप सेु कश्र ओर से सांघ का उत्साहपूणभ दृश्य दे खकर
डॉक्टरीश्र के पास दान ोश्र गता रहता न्ा। चणहार में ोश्र इन चदनों कगछ कायभकता पहग ाँ ि िगके न्े।

इसश्र उत्साहपूणभ वातावरण में मई मास में प्रचतवर्भ के ननगसार नागपगर में नचिकारश्र चशक्षण वगभ प्रारम्ो
हग ग। इस वर्भ ोश्र डॉक्टरीश्र ने सवाचिकारश्र के नाते ीश्र गगरुीश्र कश्र हश्र चनयगचि कश्र न्श्र। नागपगर का वगभ
प्रारम्ो होने के पहले हश्र चदनाांक 22 नप्रैल को डॉक्टरीश्र पूना के वगभ के चलए गये न्े। रास्ते में वे िगळे,
िाळश्रस गााँव, कल्याण, ुाणें, णम्णई गचद शाखाओां का चनरश्रक्षण करते गये। पूना से चदनाांक 30
नप्रैल को उन्होंने ीश्र गगरुीश्र को एक पत्र चलखा। लोगों का उत्साह णढाने कश्र उनकश्र पद्धचत चकतनश्र
सरल न्श्र यह उस पत्र में दे खने हश्र योग्य है । वे चलखते हैं चक ‘‘गप नपने सहयोचगयों के सान् वगभ को
सफल करने के चलए नचवीान्त पचरीम कर रहे हैं इसकश्र मगझे कल्पना है । इस समय मैं गपसे दूर
हग ग तो ोश्र शश्रघ्र हश्र गपके णश्रि में पहग ाँ िूग
ाँ ा तन्ा मन से तो गी ोश्र मैं गपके मध्य में हश्र चविरता
रहता हू ाँ ।’’

डॉक्टरीश्र के 1939 के मई में पूना के वास्तव्य कश्र एक घटना उल्लेखनश्रय है । व्यचि का हृदय दे शोचि
से ओतप्रोत हो गया तो उसका व्यवहार कैसा होता है इसकश्र कल्पना डॉक्टरीश्र के सहवास में रहनेवाले
सहृदय व्यचि को तगरन्त ग सकतश्र न्श्र। वे नपने शरश्रर को प्रोावश्र मन के हान्ों सौंपकर चकस प्रकार
काम करते न्े इसका ज्ञान होते हश्र व्यचि के मन में व्यग्रता उत्पन्न हग ए चणना नहीं रह सकतश्र न्श्र। एक
चदन डॉक्टरीश्र नपने कमरे में नकेले हश्र शान्त णैुे न्े। यह दे खकर ीश्र ोाऊराव दे शमगख वकश्रल
नन्दर गये। इिर-उिर कश्र न्ोड़श्र-णहग त णातें होने के णाद ीश्र ोाऊराव ने िश्ररे से चवर्य चनकाला।
उन्होंने कह ‘‘डॉक्टरीश्र, गप नण णहग त कमीोर होते ीा रहे हैं । नतः गपका कष्ट कम करने के
चलए हम क्या करें ?’’ इस प्रश्न पर डॉक्टरीश्र केवल हाँ सकर रह गये। पर ीण दो-तश्रन णार चफर-
चफरकर यहश्र प्रश्न पूछा गया तो डॉक्टरीश्र ने चनियात्मक स्वर में उत्तर चदया ‘‘गपने यह प्रश्न पूछा
इसकश्र मगझे खगशश्र है । पर मैं इस प्रश्न कश्र ओर ध्यान नहीं दे ना िाहता।’’

न्ोड़श्र दे र रुककर उन्होंने प्रश्न चकया ‘‘गप मेरे चलए क्या करना िाहते हैं ।’’

‘‘हम गपको दोपहर में दो-तश्रन घण्टे चवीाम दे ना िाहते हैं ।’’

‘‘पर यह कैसे हो सकेगा ?’’

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‘‘दरवाीे पर एक स्वयांसेवक णैुा दें ग।े वह गपसे चमलने के चलए गनेवालों को, गप सो रहे हैं यह
णताकर, णाहर से हश्र लौटा दे गा।’’

इस पर यह चवर्य यहीं रुक गया। रात को ोाऊराव ीश्र णाणाराव सावरकर के सान् योीना णनाकर
चफर गकर णैुे। उस समय डॉक्टरीश्र ने ोाऊराव से पूछा ‘‘मगझसे पूछा गया प्रश्न गप णाणाराव से
पूछेंगे क्या ?’’

इसका ोाव ताड़कर णाणाराव ने कहा ‘‘डॉक्टरीश्र, गप मेरश्र ओर इशारा करके ोाचगए मत।’’

इस पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘ोाऊराव ने प्रश्न पूछा यह तो मैं समझ सकता हू ाँ पर णाणा ोश्र चवीाम का
चवर्य चनकालें यह णात मेरश्र समझ में नहीं गतश्र। पहले मैं प्रश्न पूछता हू ाँ , उत्तर दश्रचीए। गपको घगटने
कश्र पश्रड़ा के कारण डॉक्टर ने काशश्र में तश्रस-िालश्रस चदन गराम करने को कहा न्ा, पर गपने चवीाम
चकया क्या ? उस समय काम के कारण गप वहााँ से िल चदये न्े न ? चफर क्यों ? वहश्र हाल मेरा है ।’’

णाणाराव को इस प्रकार चनरुत्तर कर डॉक्टरीश्र गगे ोावपूवभक णोले ‘‘गपकश्र इच्छा मेरश्र समझ में
गतश्र है । पर ‘मगझमें शचि नहीं है , मेरे पास समय नहीं है ’ यह कहकर मैं चकसश्र से णात न क ाँ यह मैं
नहीं कर सकता। कारण, चवीाम लेकर ोश्र इष्ट पचरणाम नहीं होगा तन्ा मानचसक दृचष्ट से मेरे चलए
गराम करना सम्ोव नहीं है । चीतना हो सकता है उतना ध्यान तो मैं रखता हश्र हू ाँ ।’’ णस, प्रश्न यहीं
समाप्त हो गया।

पूना में डॉक्टरीश्र को नकोला के एक कायभकता ीश्र हचरहरराव पगराड उपाध्ये का एक नन्य कायभकता
को गया हग ग पत्र पढने को चमला। उससे पता िला चक हचरहरराव का 7 मई को चववाह होनेवाला
है । चववाह कश्र ोागदौड़ में डॉक्टरीश्र को चनमांत्रण नहीं ोेीा गया न्ा। चकन्तग डॉक्टरीश्र 7 मई को हश्र
पूना से नागपगर पहग ाँ िनेवाले न्े। नतः उन्होंने चनिय चकया चक मागभ में नकोला उतरकर इतने चनकट
के स्वयांसेवक के चववाह में नवश्य सन्म्मचलत हग ग ीाये। ीहााँ गत्मश्रयता होतश्र है वहााँ औपिाचरकता
के चलए स्न्ान नहीं रह ीाता। डॉक्टरीश्र ने ीश्र हचरहरराव को चलखा चक ‘‘तगम्हारा चववाह है इसकश्र
सूिना मगझे क्यों नहीं दश्र ? मैं 7 तारश्रख को प्रातः पहग ाँ ि रहा हू ाँ ।’’ चनियानगसार वे 7 मई को प्रातःकाल
कश्र गाड़श्र से नकोला पहग ाँ िे तन्ा चववाह के समारोह पर उपन्स्न्त रहकर सायां नागपगर पहग ाँ ि गये।
डॉक्टरीश्र का यहश्र नकृचत्रम प्रेम है चीसके कारण उनकश्र याद करते हश्र गी ोश्र ननेक लोगों कश्र
गाँखों में गाँसू ग ीाते हैं । इसश्र समय मागभ में न्ोड़श्र दे र के चलए विा में रुककर ीश्र राीाोाऊ दे शमगख
गचद तश्रन स्वयांसेवकों के चववाह में ोश्र वे मांगलाक्षत डालने का समय चनकाल सके न्े।

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इन चदनों एक पत्र में वे चलखते हैं ‘‘मेरश्र तचणयत गीकल इतनश्र नाीगक हो गयश्र है चक घड़श्र-ोर में णड़े
ीोर का चडप्रेशन ग ीाता है तन्ा कोई ोश्र काम करना नन्वा णोलना नसम्ोव हो ीाता है ।’’ इतनश्र
नस्वस्न्ता में ोश्र उनके काम कश्र गचत कोई कम नहीं हग ई न्श्र। नपने मन और शरश्रर पर काणू रखने
का उनका सामर्थयभ सिमगि हश्र नलौचकक न्ा। पूना से वापस गते हश्र वे नपने एक सम्णन्िश्र के चववाह
के चनचमत्त चणलासपगर गये। सायांकाल चववाह, ोोीन एवां णारात कश्र दौड़िूप के सोश्र कायभक्रमों में
उन्होंने ोाग चलया। चकन्तग उस समय उन्हें ज्वर हो गया और णढते-णढते 104॰ तक पहग ाँ ि गया।
चणलासपगर से राचत्र को हश्र नागपगर लौटने का उनका कायभक्रम णना हग ग न्ा। चकन्तग णगखार के कारण
उनका सारा शरश्रर ील रहा न्ा। नतः उनके सम्णन्िश्र ने गग्रह चकया चक ‘‘ज्वर उतरने के णाद नागपगर
िले ीाइएगा। तण तक यहीं गराम कश्रचीए।’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने णताया चक ‘‘कल ीश्र
चवश्वनान्राव केळकर एक ीत्न्ा लेकर ोागानगर सत्याग्रह के चलए ीा रहे हैं । उन्हें चणदाई दे ने के
चलए मगझे नागपगर पहग ाँ िना हश्र िाचहए।’’ डॉक्टरीश्र के इस सांकट में से रास्ता सगझाते हग ए दगचनयादारश्र में
ितगर एक व्यचि ने कहा ‘‘चणदाई के चलए गप गी हश्र ीश्र चवश्वनान्राव का नचोनन्दन करते हग ए
तार कर दश्रचीए। णस, चणदाई ोश्र हो ीायेगश्र और गपको यहााँ चणीाम करने का नवसर ोश्र चमल
ीायेगा।’’ यह सगनकर डॉक्टरीश्र ने दृढतापूवभक कहा ‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता। मगझे ीाना हश्र िाचहए।
गराम करने के चलए ोगवान् ने दूसरे लोगों कश्र सृचष्ट कश्र है ।’’ ोरे णगखार में वे चणलासपगर से नागपगर
के चलए िल चदये तन्ा दूसरे चदन चणदाई के कायभक्रम में सन्म्मचलत हग ए।

नागपगर गकर डॉक्टरीश्र नचिकारश्र चशक्षण वगभ में चनमग्न हो गये। इस वर्भ उत्तर ोारत के कई प्रान्तों
से प्रन्म णार स्वयांसेवक वगभ में ोाग लेने के चलए गये न्े। डॉक्टरीश्र ने उनके रहने-सहने कश्र सम्पूणभ
व्यवस्न्ा कश्र ओर स्वयां चवशेर् प से ध्यान चदया। दाल-ोात, रोटश्र-शाक, यहश्र िश्री सामान्यतः दे श-
ोर के ोोीन में प्रमगखतया िलतश्र है , चकन्तग उनके णनाने कश्र पद्धचत में चवचोन्न क्षेत्रों में न्ोड़ा-णहग त
नन्तर ग ीाता है । इस नन्तर को ध्यान में रखकर डॉक्टरीश्र ने चवचोन्न नचोरुचियों के ननगसार दो-
तश्रन प्रकार कश्र रसोई णनाने कश्र योीना कश्र न्श्र।

वगभ में णांगाल से एक स्वयांसेवक ीश्र शचशोूर्ण णरुग गये न्े। डॉक्टरीश्र को पता िला चक वे
राष्ट्रश्रय गश्रत नत्यन्त ोावपूणभ रश्रचत से गाते हैं । नतः एक चदन खालश्र समय में उन्होंने उन्हें नपने कमरे
में णगलवाया तन्ा गश्रत गाने को कहा। ‘गमार ीन्मोूचम’ यह णांगालश्र गश्रत सगनते हग ए वे इतने ोावचवोोर
हो उुे चक गश्रत कश्र नन्न्तम पांचियााँ सगनते समय उनकश्र गाँखो से नचवरल नशुिारा णह उुश्र। वे
िाहते न्े चक दे शोचिपूणभ कचवताएाँ रिश्र और गायश्र ीायें। ीण ोश्र उन्हें कोई इस ओर प्रयत्न करनेवाला
व्यचि चमलता तो उसे प्रोत्साचहत करते। इसश्र वर्भ लन्दन में पढने के चलए गये ीश्र ‘चकरण’ कचव ने
उन्हें वहााँ एक कचवता ोेीश्र। उसके णारे में वे चलखते हैं ‘‘गपके पत्र कश्र कचवता पढकर सणको णड़श्र

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पसन्द गयश्र। मेरा गपको यहश्र परामशभ है चक गप नचखल चहन्दू राष्ट्र को लक्ष्य करते हग ए नवश्य
कचवता चलखते ीायें।’’

चपछले पचरच्छे द में उल्लेख ग िगका है चक कगछ लोग इस णात से नप्रसन्न न्े चक सांघ ने ोागानगर-
सत्याग्रह में सांघ के नाते नहीं चलया। उन्होंने नपना नसन्तोर् गपस कश्र णातिश्रत तक हश्र सश्रचमत न
रखकर समािारपत्रों के द्वारा सावभीचनक प से एवां नत्यन्त तश्रव्रता के सान् प्रकट करना शग कर
चदया। णम्णई के मराुश्र पत्र ‘वन्दे मातरम्’ ने लगातार णारह लेख चलखकर सांघ और सांघ के सांस्न्ापक
डॉक्टर हे डगेवार कश्र णहग त हश्र कड़श्र टश्रका कश्र। चकन्तग महाराष्ट्र और चवदोभ क्षेत्र से सत्याग्रह में ोाग
लेनेवालों में स्वयांसेवकों कश्र सांख्या इतनश्र नचिक न्श्र चक चकसश्र ोश्र गाँखवाले व्यचि से वह चछप नहीं
सकतश्र न्श्र। नतः कगछ व्यचियों को ‘वन्दे मातरम्’ के लेख रुिे नहीं। उन्होंने नपनश्र ओर से हश्र
टश्रकाकार कश्र नच्छश्र तरह से खणर लश्र।

चदनाांक 27 मई के नांक में नागपगर का ‘साविान’ चलखता है चक ‘‘यचद ीश्र गो. गो. नचिकारश्र ने चनत्य
कायभ और नैचमचत्तक कायभ के णश्रि चववेक चकया होता तो उन्होंने सांघ के चवरुद्ध णारह चवर्ैलश्र फगांकार
न मारश्र होतीं। ोागानगर-सत्याग्रह के उमड़ते हग ए उत्साह के णिपने गवेश में ीश्र नचिकारश्र शायद
यह ोूल गये हैं चक नोश्र राष्ट्र कश्र स्वतांत्रता का कायभ शेर् पड़ा है । चीस समय राष्ट्र कश्र मगचि के चलए
नन्न्तम दााँव लगाना होता है उसकश्र पूणभ तैयारश्र के चलए राष्ट्र-चवमोिन के चनत्य कायभ हैं तन्ा
ोागानगर-सत्याग्रह ीैसे गन्दोलन उसके नैचमचत्तक कायभ हैं । परतांत्र चोन्न-चोन्न कायभ करनेवालश्र
सांस्न्ाएाँ पृन्क् होतश्र हैं – रखनश्र होतश्र हैं - तन्ा यद्यचप ये दोनों कायभ समानान्तर होते रहें – रखने पड़े
– तो ोश्र चनत्य कायभ में सांलग्न सांस्न्ा, नैचमचत्तक कायभ के चलए ऐसा कोई पग नहीं उुा सकतश्र चीससे
वह नपनश्र शचि, सवभस्व और वैचशष्ट्ट्य को ोगलाकर चनत्य कायभ में खण्ड उत्पन्न कर दे ।’’

दे शोि ीश्र णाणाराव सावरकर ने एक लेख चलखकर सांघ कश्र ोूचमका का समन्भन चकया न्ा। उसमें
उन्होंने चलखा न्ा चक ‘‘........सांघ कश्र चशक्षा से चीन लोगों के मन में चहन्दगत्व का प्रेम एवां नचोमान
चनमाण हग ग है उन्होंने कोश्र चहन्दगत्व के चवर्य में चकसश्र ोश्र कतभव्य-कमभ से नपना ीश्र नहीं िगराया।
उन्होंने नपने कतभव्य का योग्य रश्रचत से चनवाह चकया है ।’’

इतने पर ोश्र ‘वन्दे मातरम्’ ने 7 ीून को डॉक्टरीश्र पर नहां कारश्र होने का गरोप करते हग ए एक नत्यन्त
कगत्सापूणभ लेख चलखा। उसमें कहा गया न्ा चक ‘‘......डॉक्टर हे डगेवार को हम चवनम्रतापूवभक चनवेदन
करते हैं चक नहां कार का चवर् सपभ के चवर् से ोश्र ोयांकर होता है । इसश्र नहां कार के कारण गाांिश्र के
चवनाश का ताीा इचतहास गाँखों से ओझल मत कश्रचीए। चनस्सन्दे ह रा. स्व. सांघ कश्र स्न्ापना और
चवकास से गपने चहन्दू समाी पर उपकार चकया है । पर राहगश्ररों के चलए णााँिे तालाण में यचद दाता
स्वयां हश्र कूर ीलिर छोड़ दे तो उसे क्या कहा ीाये ? गप ऐसा हश्र कर रहे हैं और, ीानणूझकर कर

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रहे हैं । नतः कृपा करके णाी गइए। यचद गपने ऐसश्र चकया तो कम-से-कम नाम मात्र को तो चहन्दू
समाी का ोावश्र इचतहासकार गपका उल्लेख कर सकेगा।’’

कगछ लोगों ने डॉक्टरीश्र को यह लेख पढकर सगनाया। उस समय वे हाँ सते हग ए णोले ‘‘मेरश्र ोश्र यहश्र इच्छा
है । मेरा नाम इचतहास में नहीं गया तो ोश्र काम िलेगा, पर सांघ पर इस प्रकार के प्रहार करनेवालों
का नवश्य ोरपूर नामोल्लेख होना िाचहए।’’ िारों ओर इस प्रकार िूल उछालश्र ीा रहश्र न्श्र चकन्तग
डॉक्टरीश्र ने कोश्र उसका उत्तर दे ने का प्रयत्न नहीं चकया। वे तो यहश्र मानते न्े चक चनरन्तर णढनेवाला
प्रत्यक्ष कायभ हश्र चणना कारण गघात करनेवालों का सहश्र उत्तर होता है । गघात करनेवाले स्वकश्रय
को चनरुत्तर करने नन्वा उसका उपहास करने से वह और ोश्र चिढकर सदा के चलए दूर हो ीाता है ।
डॉक्टरीश्र के सांयमपूणभ व्यवहार से यह न्स्न्चत टल ीातश्र न्श्र। उदाहरण ाँढ
ू ने के चलए दूर ीाने कश्र
गवश्यकता नहीं। ‘वन्दे मातरम्’ के चीन सम्पादक महोदय कश्र दृचष्ट में ोावश्र इचतहासकार के चलए
डॉक्टरीश्र का नामोल्लेख ोश्र नसह्य न्ा, उन्होंने हश्र डॉक्टरीश्र कश्र मृत्यग के उपरान्त उनका गगणानगवाद
करते हग ए लेखों का सांकलन करके पगस्तक प में प्रकाचशत कर मराुश्र पाुकों के चलए सगलो चकया।
यह नहीं चक डॉक्टरीश्र चकसश्र टश्रकाकार कश्र कटग गलोिना नहीं कर सकते न्े, परन्तग वे ‘नपने दााँत
और नपने हश्र ओांु’ के चसद्धान्तानगसार चववेकपूवभक मौन हश्र रहते न्े तन्ा पचरणाम में उनकश्र शचि
चहतावह हश्र चसद्ध होतश्र न्श्र।

णाहर लेखों के द्वारा िाहे कटगता चनमाण करने का प्रयत्न हग ग हो, चकन्तग कारागृह के नन्दर सांघ के
स्वयांसेवकों ने शाखा प्रारम्ो करके नन्य सत्याग्रह-णन्न्दयों को ोश्र दश्रचक्षत करने का प्रयत्न प्रारम्ो कर
चदया न्ा और उन्हें णहग त सफलता ोश्र चमलश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र को णश्रि-णश्रि में ीो पत्र चमलते उनसे इस
चवर्य के समािार प्राप्त होते रहते न्े। सांघ का स्वयांसेवक कहीं ोश्र रहे वह साहस और कौशल्य के
सान् नपने ध्येय के चलए काम करता रहता है , यह नचिकाचिक ननगोव में ग रहा न्ा। डॉक्टरीश्र
के चलए यह गनन्द और सन्तोर् का चवर्य न्ा।

नागपगर का नचिकारश्र चशक्षण वमभ समाप्त होने के कगछ चदनों णाद डॉक्टरीश्र ‘ोगवा झेंडा’ नामक
चित्रपट के उद्घाटन के चलए पूना गये। ीश्र गगरुीश्र छाया के समान इस समय ोश्र उनके सान् न्े। यह
चित्रपट ीश्र समन्भ रामदास स्वामश्र के ीश्रवन-कायभ पर गिाचरत न्ा तन्ा उसमें सांघटन का तत्त्व
नत्यन्त कगशलतापूवभक प्रदर्तशत चकया गया न्ा। कन्ानक में चदखाया गया न्ा चक िन्द्रगढ चकले के
नचिपचत के नश्रिे रहनेवाले ग्रामवाचसयों को ीश्र समन्भ ने चकस प्रकार मदान्ि मगसलमान नचिकाचरयों
के हान् से मगचि के चलए एकता और सांघटन का मांत्र चदया न्ा तन्ा चकस प्रकार उससे ीश्र छत्रपचत
चशवाीश्र महाराी का कायभ सगनकर हो गया न्ा। ‘सांघटन’ और ‘ोगवा ध्वी’ शब्द गये चक कम-से-

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कम महाराष्ट्र में तो तगरन्त डॉक्टरीश्र का नाम लोगों के सामने ग ीाता न्ा। नतः नत्यन्त गग्रह के
सान् डॉक्टरीश्र को इस चित्रपट का उद्-घाटन करने के चलए गमांचत्रत चकया गया।

पूना के ‘चमनवा चित्रपट गृह’ में 17 ीून को दोपहर में उद्-घाटन-समारोह हग ग। उस समय चित्रपट-
चनमाता ीश्र दादासाहण तोरणे तन्ा चदग्दशभक, कन्ा लेखक गचद नन्य सज्जन ोश्र उपन्स्न्त न्े।
चदग्दशभक ने प्रारम्ो में डॉक्टरीश्र का पचरिय नत्यन्त हश्र नपे-तगले शब्दों में इस प्रकार चदया न्ा ‘‘तश्रन
सौ वर्भ पूवभ ीश्र रामदास स्वामश्र ने ीो पाु पढाया वहश्र पाु पढाने का काम गी डॉक्टर हे डगेवार
णृहन्महाराष्ट्र में हश्र नहीं, नचखल चहन्दगस्न्ान में कर रहे हैं । डॉक्टरीश्र यहश्र प्रयत्न कर रहे हैं चक ोगवा
झण्डा राष्ट्रश्रय ध्वी के प में पगनः कैसे मान्यता प्राप्त करे । यह वास्तव में हमारा महताग्य है चक वे
हमें गी उद्-घाटन के चलए उपलब्ि हग ए।’’

इसके उपरान्त डॉक्टरीश्र का ोार्ण हग ग। यह णताते हग ए चक ोगवा ध्वी के मोह के कारण हश्र यह
चनमांत्रण स्वश्रकार चकया, डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘यचद हमने नपने प्रािश्रन इचतहास का चनरश्रक्षण चकया तो
चहन्दू राष्ट्र का एकमेव ध्वी ोगवा हश्र चमलेगा। गी तक चहन्दगस्न्ान में ननेक क्रान्न्तयााँ हग ई हैं । इन
क्रान्न्तयों के प्रवतभकों ने इसश्र ध्वी कश्र छत्रछाया में नपना कायभ पूरा चकया है । ीश्र शांकरािायभ एवां
स्वामश्र चवद्यारण्य का ध्वी ोगवा हश्र न्ा। इतना हश्र नहीं रामायण-काल में ोगवा हश्र हमारा एकमेव
ध्वी मान्य हग ग है ।........... चित्रपट चनमाण होते हैं तन्ा उनमें सामाचीक चित्रपट ोश्र णहग त-से होते हैं
चकन्तग राष्ट्रोद्धार-प्रवतभक णोलपट णहग त न्ोड़े चदखते हैं । प्रस्तगत णोलपट के मूल में यह महान् ोावना है
नतः चीन व्यचियों ने इसे तैयार चकया है उनका मैं गोार मानता हू ाँ ।’’

इस समारोह के चदन सायांकाल णोलपट के चनमाता ीश्र दादासाहण तोरणे डॉक्टरीश्र से ोेंट करने के
चलए ीश्र ोाऊसाहण नभ्यांकर के घर गये। उनके गने का चवशेर् नचोप्राय यह न्ा चक डॉक्टरीश्र
ोगवा ध्वी का गौरव करनेवाला ोार्ण दें तन्ा उसका ध्वचनमगद्रण करने कश्र उन्हें ननगमचत दश्र ीाये।
डॉक्टरीश्र के प्रचसचद्ध-पराड;मगख स्वोाव को यह मान्य नहीं न्ा चक चित्रपट के सान्-सान् उनका ोार्ण
ोश्र िारों ओर प्रसाचरत हो। नतः णड़श्र कगशलता और सफाई के सान् उन्होंने वह प्रसांग टाल चदया।
ननेक णार ीश्र तोरणे ने नपना चवर्य चनकाला पर डॉक्टरीश्र णड़श्र ितगराई के सान् चित्रपट का कोई-
न-कोई प्रसांग चनकालकर णात को णिा ीाते न्े। कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक इस दााँव-पेंि में
चकसको हारना पड़ा। दूसरे चदन वे ‘सरस्वतश्र चसनेटोन’ में गये। उस समय का एक सगन्दर चित्र उपलब्ि
है चीसमें डॉक्टरीश्र और गगरुीश्र पास-पास णैुे हग ए हैं । उस समय उन्होंने णोलपट के सम्णन्ि में ीो
नचोप्राय चलखकर चदया उसमें वे कहते हैं चक ‘‘.......केवल प्रेमकन्ाओां से व्याप्त नाट्य-चित्रपट ीगत्
में इस प्रकार के स्फूर्ततदायक इचतहास के प्रसांग गाँखों के सम्मगख रखकर प्रत्येक मागभ से ीनता को

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खरश्र राष्ट्रसेवा के चलए उद्यगि करने का तन्ा राष्ट्र का सम्पूणभ लक्ष्य पगनरचप नपने उज्जवल ध्वी कश्र
ओर गकृष्ट करने का यह उपक्रम नत्यन्त स्तगत्य तन्ा इस व्यवसाय में सणके चलए ननगकरणश्रय है ।’’

पूना में नपने इस चनवासकाल में सांघ-कायभकताओां कश्र णैुक में डॉक्टरीश्र ने ीश्र गगरुीश्र कश्र चहन्दश्र
ोार्ा कश्र प्रवश्रणता कश्र प्रशांसा कश्र तन्ा उनसे चहन्दश्र में दो कन्ाएाँ कहने के चलए कहा। उस दौरे में
डॉक्टरीश्र कश्र उपन्स्न्चत में ‘चतलक स्मारक मन्न्दर’ में ीश्र गगरुीश्र का ोार्ण ोश्र हग ग। इस ोार्ण में
सरसांघिालक पद के सम्णन्ि में तन्ा पयाय से डॉक्टरीश्र के नसामान्य व्यचित्व के चवर्य में नपने
हृदय के ोचिोाव उन्होंने णड़श्र उत्कटता के सान् प्रकट चकये न्े। इसके उपरान्त केवल दस-पन्द्रह
चमचनट हश्र डॉक्टरीश्र का ोार्ण हग ग। उसमें इस गशय के नत्यन्त गत्मचवश्वासपूणभ उसार उनके
मगख से प्रकट हग ए न्े चक ‘‘इसके गगे सांघ का चवनाश णाहर कश्र कोई शचि नहीं कर सकतश्र। यचद
चकसश्र ने सांघ पर गघात चकया तो उसे वहश्र ननगोव गयेगा ीो फौलाद के कचुन गोले पर प्रहार
करनेवाले हान्ों को गता है ।’’

इस काल में चवश्व कश्र पचरन्स्न्चत एवां गन्न्तरक राीनश्रचतक पचरवतभनों कश्र ओर डॉक्टरीश्र का पूरा
ध्यान न्ा। यह स्पष्ट चदखने लगा न्ा चक परतांत्र राष्ट्र के चलए सांघर्भ करने के चलए नत्यन्त ननगकूल
पचरन्स्न्चत चनकट ग रहश्र है । ीमभनश्र नचिकाचिक गक्रामक होता ीा रहा न्ा। दे श में ीश्र सगोार्िन्द्र
णोस ीैसे क्रान्न्तकारश्र नेता को काांग्रेस से णाहर चनकलकर नपना नलग दल णनाना पड़ा न्ा। िारों
ओर ोावश्र चवक्षोो के चिह्न चदखने लगे न्े। डॉक्टरीश्र को इस समय एक हश्र िगन न्श्र चक ोारत के कोने-
कोने में सांघशाखाओां का चवस्तार होकर एक प्रिण्ड शचि शश्रघ्र-से-शश्रघ्र खड़श्र हो। सान् हश्र वे यह ोश्र
परश्रक्षा करते रहते चक स्न्ान-स्न्ान पर स्वयांसेवक प्रत्येक न्स्न्चत का सामना करने के चलए सतकभ एवां
सदाचसद्ध हैं या नहीं। क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन का प्रत्यक्ष ननगोव होने के कारण वे ोलश्र ोााँचत ीानते न्े
चक स्वयांसेवकों में इन गगणों के चणना चकसश्र ोश्र ननगकूल न्स्न्चत का लाो नहीं उुाया ीा सकता। इन
चदनों वे ीहााँ ीाते वहााँ के सांघिालक को घण्टे -दो घण्टे के नन्दर हश्र चनचित स्न्ान पर सोश्र स्वयांसेवकों
को पूणभ गणवेश में एकत्र करने कश्र गज्ञा दे त।े इस प्रकार वे परश्रक्षा लेते न्े चक चनत्य शाखा में गनेवाले
स्वयांसेवकों में से चकतने इस प्रकार गदे श होने पर उपन्स्न्त हो सकते हैं । मांगलवार 20 ीून 1939
को प्रातः गु णीे पूना शहर के सोश्र स्वयांसेवकों का इस प्रकार का एकत्रश्रकरण चकया गया न्ा।
उसमें न्ोड़श्र हश्र दे र में ीश्र चशवाीश्र मन्न्दर के मैदान में नगर के नौ सौ स्वयांसेवक उपन्स्न्त हग ए न्े।

इस कायभक्रम के एक चदन पूवभ हश्र डॉक्टरीश्र ने पूना नगर के कायभकताओां कश्र णैुक में सही हश्र प्रश्न
चकया न्ा चक ‘‘चकसश्र काम के चलए तगरन्त सूिना दे कर स्वयांसेवकों को णगलाया तो सणको इकट्ठा होने
में चकतनश्र दे र लगेगश्र ?’’

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इस प्रश्न के उत्तर में चकसश्र ने िार घण्टे तो चकसश्र ने छः घण्टे का समय गवश्यक णताया। यह सगनकर
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘घर में लगश्र गग को णगझाने के चलए स्वयांसेवकों को णगलाने पर यचद उन्हें एकत्र
करने में िार या छः घण्टे लगें तो क्या लाो है ?’’ रात को तो चवर्य यहीं समाप्त हो गया।

दूसरे चदन प्रातः छः णीे डॉक्टरीश्र ने पूना के सांघिालक ीश्र चवनायकराव गपटे को णगलाकर गज्ञा
दश्र चक ‘‘दो घण्टे में पूना के सोश्र स्वयांसेवकों को ीश्र चशवाीश्र मन्न्दर सांघस्न्ान पर एकत्र कश्रचीए।’’
यह गदे श णड़श्र तेीश्र के सान् कायभवाह, चशक्षक, गटनायक के पास क्रमशः पहग ाँ िता हग ग
स्वयांसेववकों को चमला और ुश्रक गु णीे नौ सौ स्वयांसेवक पूणभ गणवेश में उपन्स्न्त हो गये।

इस प्रकार के एकत्रश्रकरण के पश्रछे का नचोप्राय स्पष्ट करते हग ए डॉक्टरीश्र ने वहााँ छोटा-सा ोार्ण
चदया। उसमें उन्होंने 1931 में नपने नकोला के कारागृह ीश्रवन का एक ननगोव णताया। उन्होंने
कहा ‘‘ीेल कश्र घटना है । दोपहर के ोोीन का समय न्ा। उसश्र समय एकदम ‘डेंीर कॉल’ हो गया
नन्ात् सांकट कश्र घण्टश्र णी गयश्र। सगनते हश्र वहााँ के गरक्षक, पहरे दार तन्ा नन्य सोश्र कमभिारश्र
नपनश्र-नपनश्र णन्दूकें और डण्डे लेकर दौड़ते हग ए सामने के मैदान में गये। कोई ोोीन छोड़कर
गया तो कोई खालश्र चनकर हश्र पहनकर तन्ा कोई नहाता-नहाता णश्रि में हश्र गश्रले शरश्रर से ोागता
हग ग िला गया। सण-के-सण क्षण-ोर का ोश्र चवलम्ण न करते हग ए, हान् का सण काम छोड़कर वहााँ
उपन्स्न्त हग ए न्े। यह दृश्य दे खकर मेरे मन में चविार गया चक नांग्री
े सरकार के पास इस प्रकार
गवाी लगाते हश्र नपना काम छोड़कर गनेवाले लोग हैं इसश्रचलए वह नपने दे श से पााँि हीार मश्रल
दूर इतने णड़े दे श पर शासन कर रहश्र है । इन नौकरों को तो वेतन चमलता है चकन्तग चकसश्र प्रकार कश्र
नपेक्षा ने करते हग ए केवल दे शोचि से प्रेचरत होकर नपने सोश्र व्यचिगत कामों को एक ओर हटाकर
सांघ कश्र हााँक पर उत्तर दे ने को सदै व चसद्ध रहे चणना नपने दे श के णगरे चदन समाप्त नहीं हो सकते।’’

इस प्रकार के मौचलक चविारों से डॉक्टरीश्र तरुण पश्रढश्र का मन सांीश्रचवत कर चहन्दू समाी को उसके
कतभव्य का ज्ञान कराते न्े। चकतना निूक न्ा उनका मागभदशभन !

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28. ीश्रवन-मरण के णश्रि
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय णराणर चणगड़ता ीाता न्ा। नतः नागपगर-सांघिालक ीश्र
णाणासाहण घटाटे ने गग्रह चकया चक पूना से लौटते हग ए वे कगछ चदनों दे वळालश्र में रुकें। इस प्रस्ताव
का नन्य सोश्र कायभकताओां ने ोश्र समन्भन चकया। फलतः एक णार गु-दस चदन वहााँ ुहरना
डॉक्टरीश्र ने स्वश्रकार कर चलया।

ीश्र घटाटे ने नाचसक से गु-नौ मश्रल दूर दे वळालश्र में एक णाँगला चकराये पर चलया न्ा तन्ा नागपगर
कश्र ििकतश्र हग ई गमी से णिने के चलए वहााँ सकगटगम्ण गकर चटके न्े। दे वळालश्र का णाँगला एकान्त में
न्ा तन्ा गरोग्य कश्र दृचष्ट से ील-वायग ननगकूल न्ा। िोंडश्र-मागभ के चणल्कगल पचिम के छोर पर दचक्षण
कश्र ओर मगख करके यह णाँगला न्स्न्त न्ा। सामने खगला मैदान न्ा। घोर गमी में ोश्र प्रिगरता से फूले हग ए
गगलमोहर ने िारों ओर लालश्र चणखेर रखश्र न्श्र। गाँगन में फव्वारे के णगल में नश्रम का वृक्ष ोश्र खड़ा न्ा
ीो नपने सफेद फूलों कश्र मोहक सगगन्ि से सम्पूणभ वातावरण को व्याप्त चकये हग ए न्ा।

नाचसक और दे वळालश्र में सदा हश्र ुण्डश्र हवा णहतश्र रहतश्र है । चफर इस समय तो वर्ा ोश्र प्रारम्ो हो
गयश्र न्श्र। नतः वातावरण में गमी का चिह्न ोश्र नहीं णिा न्ा। डॉक्टरीश्र के सान् ीश्र गगरुीश्र और ीश्र
तात्या तेलांग ोश्र वहााँ गये न्े। व्यवस्न्ा सण प्रकार से उत्तम न्श्र यह कहने कश्र गवश्यकता नहीं।
डॉक्टरीश्र को ीो दवाएाँ िाचहए न्ीं दो-तश्रन चदन में नागपगर से ग गयश्र न्ीं। णाँगला इतनश्र दूर होने के
णाद ोश्र नाचसक और दे वळालश्र के स्वयांसेवक वहााँ ीाते तन्ा डॉक्टरीश्र उनके सान् णाँगले के सामने
णरामदे में णैुकर णातें करते रहते। स्वास्र्थय में कगछ सगिार चदखने लगा न्ा। नतः चदनाांक 23 ीून को
डॉक्टरीश्र नाचसक शाखा में ोश्र गये। इस नवसर पर उन्होंने नाचसक का सगरक्षा-मगद्रणालय ोश्र दे खा
ीहााँ सरकारश्र नोट छापे ीाते हैं ।

दे वळालश्र से ोश्र डॉक्टरीश्र का पत्रव्यवहार णराणर िलता रहता न्ा। नागपगर से कगछ नये कायभकता
सांघकायभ के प्रिार के चलए णाहर ीानेवाले न्े। डॉक्टरीश्र ने दे वळालश्र से हश्र सूिना दश्र चक उनकश्र ीश्र
णाणासाहण गपटे तन्ा ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र योग्य स्न्ानों पर चनयगचि करें । इस चदनों नचिकाांश पत्र वे
ीश्र गगरुीश्र से हश्र चलखवाते न्े। डॉक्टरीश्र के स्वास्र्थय में चीतना सगिार हो रहा न्ा उससे ोश्र नचिक
नच्छश्र तचणयत वे सणको णताते। वे नागपगर पहग ाँ िने कश्र ील्दश्र में न्े। दे वळालश्र में णैुकर िारों ओर
के कायभ कश्र दे खोाल नहीं चक ीा सकतश्र न्श्र, नतः उनका चगरा हग ग स्वास्र्थय सहयोचगयों कश्र दृचष्ट से
उनकश्र नागपगर-यात्रा को स्न्चगत करने का कारण न णन सके, इसचलए वे उनके मन में यह िारणा
उत्पन्न करने का प्रयास करते रहते चक नण तचणयत ुश्रक हो गयश्र है । इतना हश्र नहीं, उन्होंने ीगलाई के

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प्रन्म सप्ताह में दे वळालश्र से िलकर िाळश्रसगााँव, ोगसावळ, नकोला, मूर्ततीापगर, विा गचद स्न्ानों
पर होते हग ए चदनाांक 10 ीगलाई को नागगपर पहग ाँ िने का कायभक्रम चनचित कर पत्र ोश्र चलख चदये।

नागपगर के चलए िलने के पहले नाचसक के कायभकताओां के गग्रह के ननगसार वहााँ ोश्र ीाना
गवश्यक न्ा। इस हे तग उनकश्र सूिनानगसार ीश्र गगरुीश्र 1 ीगलाई को नाचसक गये। दूसरे चदन प्रोात-
शाखाओां का कायभक्रम समाप्त होने के णाद वहााँ के नचिकाचरयों को दो घण्टे णाद हश्र गवश्यक
एकत्रश्रकरण कश्र सूिना दश्र गयश्र। पूना के ननगसार हश्र नाचसक के स्वयांसेवक नौ णीे प्रातः ‘चशवाीश्र
उद्यान’ में इकट्ठा हग ए। उस समय डॉक्टरीश्र ोश्र दे वळालश्र से वहााँ पहग ाँ ि गये । उन्होंने इस प्रकार के
कायभक्रम कश्र चवशेर्ता एवां गवश्यकता को चवशद करते हग ए ोार्ण ोश्र चदया।

उस चदन दोपहर को ीश्र केशव ीगन्नान् उपाख्य काकाराव गकूत वकश्रल के यहााँ डॉक्टरीश्र का ोोीन
के चलए चनमांत्रण न्ा। दस-पन्द्रह लोगों कश्र पांगत णैु गयश्र। नमरस णना न्ा। सण लोग णड़श्र रुचि के
सान् इिर-उिर कश्र गप्पें लगाते हग ए ोोीन कर रहे न्े। पर पांचि के एक कोने पर णैुे डॉक्टरीश्र ीान्त
होने के कारण णश्रि-णश्रि में ोश्रत से हान् टे ककर उसके सहारे णैुे न्े। सान् हश्र सदै व कश्र ोााँचत वे
णातिश्रत में ोश्र चवशेर् ोाग नहीं ले रहे न्े। वास्तव में उन्हें णड़े ीोर का णग खार न्ा। उनका सारा शरश्रर
ताप से ील रहा न्ा। चकन्तग नपने कारण दूसरों का गनन्द चकरचकरा न हो ीाये इसचलए वे शरश्रर पर
काणू चकये हग ए ोोीन के पट्टे पर णैुे न्े। परन्तग इतना करने पर ोश्र उनकश्र मौन और मन्द गचत लोगों
के ध्यान में ग गयश्र। ोोीन होते हश्र डॉ. गोचवन्दराव दामले ने उनके शरश्रर पर ीैसे हश्र हान् रखा तो
वह एकदम तप रहा न्ा। तापमापक से दे खने पर पता िला चक उन्हें 103॰ ज्वर न्ा। तगरन्त वहीं नन्दर
के कमरे में चणस्तर करके उन्हें गग्रहपूवभक चलटाया गया तन्ा डॉ. दामले ने और्िोपिार कश्र व्यवस्न्ा
कश्र। नपने लोकसांग्रहश्र स्वोाव के कारण डॉक्टरीश्र को चकतने कष्ट झेलने पड़ते न्े इसका पता उन्हीं
को न्ा।

शाम को उन्हें दे वळालश्र के णाँगले पर ले गये। उनका ज्वर और नशिता णढतश्र हश्र गयश्र। इसश्र णगखार
में डॉक्टरीश्र को ‘डणल न्यूमोचनया’ हो गया। उनको दे खने एवां चिचकत्सा के चलए नाचसक से डॉ.
गोचवन्दराव दामले तन्ा डॉ. पाण्डगरांगराव िोोे चदन में दो णार दे वळालश्र गते न्े। उनके णताये ननगसार
और्चि एवां ननगपान ुश्रक-ुश्रक चदया ीा सके इस ओर ीश्र गगरुीश्र एवां ीश्र तेलांग दोनों हश्र ध्यान रखते
न्े। उनकश्र सहायता के चलए नाचसक के स्वयांसेवक ोश्र गते न्े। वर्ा के कारण रास्ते कश्रिड़ से ोर
गये न्े। चफर ोश्र स्वयांसेवक कश्रिड़, पानश्र और कााँटे चकसश्र कश्र ोश्र परवाह न करते हग ए प्रचतचदन
साइचकल से गते न्े। इतनश्र चिन्ता और दे खोाल करते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र कश्र तकलश्रफ णढतश्र हश्र
गयश्र। एक चदन तो हालत ऐसश्र चणगड़ गयश्र चक सण लोग घणड़ा गये। णगखार णहग त णढ गया न्ा तन्ा
डॉक्टरीश्र णेहोश हो गये न्े। नाचसक के डॉक्टरों ने ीश्र गगरुीश्र को णगलाकर कहा चक ‘‘इनके सम्णन्िश्र
कौन हैं ?’’ उन्हें इस चणगड़श्र हालत कश्र सूिना दे दश्र ीाये तो नच्छा होगा।’’ गगरुीश्र ने यह सोिकर

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चक यचद नागपगर समािार ोेीा गया तो िारों ओर ोागदौड़ शग हो ीायेगश्र, कहा चक ‘‘हम हश्र इनके
सम्णन्िश्र हैं ।’’ डॉक्टरीश्र कश्र शगशूर्ा में उन्होंने कोई कसर नहीं रहने दश्र। रात-चदन गुों पहर वे उनकश्र
खाट के पास हश्र णैुे रहते तन्ा नन्य स्वयांसेवकों के सान् ीो काम होते उन्हें करते। पानश्र गरम करना,
दवा दे ना, पश्रु सेंकना, णगखार दे खना, कपड़े णदलना गचद सोश्र प्रकार कश्र शगशूर्ा में ीगटे रहते। कोश्र
एक-दो घण्टे कश्र नींद चमल गयश्र तो चमल गयश्र नन्यन्ा उसका ोश्र कहीं नाम नहीं न्ा। ीश्र गगरुीश्र कश्र
शगशूर्ा के सम्णन्ि में णोलते हग ए नाचसक के एक वयोवृद्ध वकश्रल ने कहा न्ा चक ‘‘डॉक्टरीश्र के सोश्र
काम गगरुीश्र एक पाुशाला के चवद्यान्ी के समान तत्परता से करते न्े।’’

इस णश्रमारश्र में दो-तश्रन चदन णड़श्र चिन्ता में गये। चकन्तग इस णश्रि डॉक्टरीश्र के नन्तरां ग का दशभन ीश्र
गगरुीश्र को हो गया। वात के प्रकोप में डॉक्टरीश्र के मगाँह से णश्रि-णश्रि में ीो शब्द चनकलते उनके द्वारा
उनके मन में सांघकायभ कश्र गतगरता हश्र प्रकट होतश्र न्श्र। ‘‘िलो, मगझे समय पर हश्र पहग ाँ िना िाचहए।
नगर से कोई पत्र क्यों नहीं गया ?’’ गचद वाक्य णश्रि-णश्रि में सगनायश्र दे ते न्े। णेिन
ै श्र के कारण वे
इस णगल से उस णगल णराणर करवटें णदलते रहते। इस समय ीश्र गगरुीश्र उनका ओढना सम्हालते।
डॉक्टरीश्र ने नपनश्र ोर-ीवानश्र में प्रन्म महायगद्ध के काल में नपना ीश्रवन क्रान्न्तकारश्र योीनाओां को
सफल करने के चलए नत्यन्त गगप्त गचतचवचियों में लगाया न्ा। ये सांकन्ल्पत योीनाएाँ नहीं हो सकीं
परन्तग उनकश्र स्मृचत नन्तमभनके चकसश्र कोने में दणश्र पड़श्र न्श्र। डॉक्टरीश्र द्वारा प्रारब्ि सांघटन ोश्र कगछ
साध्य न हग ई णातों को पूणभ करने के चलए हश्र न्ा। यह गियभ कश्र एवां नसामान्य णात हश्र न्श्र चक प्रणल
वात के प्रकोप में ोश्र उनके नपने नन्तमभन पर डाला हग ग सांयम का पदा हट नहीं पाया , नन्यन्ा यह
नसम्ोव नहीं न्ा चक णड़े ीतन से दणाकर रखश्र हग ई मन कश्र ोावनाएाँ ोश्र ऐसश्र नवस्न्ा में वाणश्र के
सांयम का णााँि टूट ीाने पर प्रकट हो ीातीं। डॉक्टरीश्र कश्र नपनश्र नन्तिेतना पर कश्र पकड़ इतनश्र
गहरश्र न्श्र चक इस णेहोशश्र और प्रलाप कश्र नवस्न्ा में ोश्र वह टस-से-मस नहीं हो सकश्र। इसश्र प्रकार
कगछ लोग ऐसे होते हैं चक ीो नपने ीश्रवन के व्यवहार में केवल नश्रचत के तौर पर ऊपर-ऊपर नच्छापन
और नेकिलनश्र चदखाते हैं । ऊपर मश्रुे और नन्दर कड़वे, यह ननेक लोगों के स्वोाव का गगण होता
है । चकन्तग डॉक्टरीश्र इस लौचकक व्यवहार के चलए नपवाद हश्र न्े। नतः वाताचिक्य में ीो टूटे-फूटे
वाक्य उनके मगह
ाँ से चनकलते उनमें चकसश्र ोश्र व्यचि के प्रचत ननगदारता नन्वा ईष्ट्या का ोाव नाममात्र
को ोश्र नहीं चदखता। डॉक्टरीश्र के मन कश्र दृढता और चवशगद्धता का इस समय ीश्र गगरुीश्र को ऐसा
प्रत्यय गया चक वे उनके हश्र होकर रह गये। दे वळालश्र के इस पन्द्रह-सोलह चदनों के ननगोव के
सम्णन्ि में गगे एक नवसर पर णोलते हग ए ीश्र गगरुीश्र ने कहा चक ‘‘........मनगष्ट्यों को परखने कश्र मेरश्र
वृचत्त णड़श्र सूक्ष्म है । चणल्कगल प्रारम्ो में डॉक्टरीश्र के णारे में एक चनरालश्र पद्धचत से काम करनेवाले
नेता के चसवाय और कोई ोावना मेरे मन में नहीं न्ा। परन्तग पन्द्रह-सोलह चदवस के इस सतत सहवास

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के चमलते हश्र मगझे स्पष्ट चदखने लगा चक सािारण मनगष्ट्यों कश्र तरह व्यवहार करनेवाले इस पगरुर् में
नवश्य कोई नसामान्यता है ।’’

डॉक्टरीश्र कश्र ‘डणल न्यूमोचनया’ से पश्रचड़त नवस्न्ा में हश्र ीश्र णाळाीश्र हग द्दार दे शोि सगोार्िन्द्र णोस
कश्र ओर से डॉक्टरीश्र से चमलने का समय चनचित करने के चलए दे वळालश्र गये। उनके सान् ीश्र णोस
ने णम्णई के डॉ. वसन्तराव रामराव सांझचगरश्र को ोश्र ोेीा न्ा। वे दोनों ीण चमलने के चलए गये तो
डॉक्टरीश्र कश्र हालत णहग त हश्र खराण न्श्र। चफर ोश्र उन्होंने दोनों का कन्न ध्यानपूवभक सगना। उनके
कहने का यहश्र गशय न्ा चक सगोार्िन्द्र णोस यगद्ध कश्र पचरन्स्न्चत का लाो उुाकर नांग्री
े ों के चवरुद्ध
चवद्रोह करना िाहते हैं ।

यह सगनने पर डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘यह तो सहश्र है चक समय ननगकूल होता ीा रहा है चकन्तग क्रान्न्त के
चलए गपकश्र तैयारश्र चकतनश्र है ? प्रारम्ो में कम-से-कम 50 प्रचतशत तो चसद्धता िाचहए। इस दृचष्ट से
सगोार्णाणू के पास नोश्र चकतने व्यचि हैं ? नपनश्र तैयारश्र के चणना स्वतांत्रता के चलए केवल परायों पर
ोरोसा करके काम नहीं होगा।’’

साफ न्ा चक उस समय डॉक्टरीश्र कश्र न्स्न्चत चविार-चवचनमय के लायक नहीं न्श्र। नतः केवल गिा
घण्टे में हश्र ीश्र हग द्दार एवां डॉ. सांझचगरश्र चणदा लेकर िलने लगे। उस समय डॉक्टरीश्र ने यह कहते हग ए
चक ‘‘चफर कोश्र शान्न्त के सान् चविार करने के चलए गप नागपगर गइए’’ डॉ. सांझचगरश्र को
गग्रहपूवभक चनमांत्रण चदया।

यह घटना 8 या 9 ीगलाई कश्र होनश्र िाचहए क्योंचक उस समय सगोार्णाणू का णम्णई में चनवास न्ा।
काांग्रेस से णाहर चनकलने के णाद वे ‘नग्रगामश्र दल’ (Forward Block) का चनमाण कर नांग्रेीों से
लड़ने कश्र तैयारश्र कर रहे न्े। स्वाोाचवक है चक इस समय उनकश्र दृचष्ट डॉक्टरीश्र द्वारा चनर्तमत ध्येयचनष्ठ
एवां ननगशासनपूणभ तरुण-सांघटन कश्र ओर गयश्र। वैसे ोश्र इन दोनों हश्र दे शोिों कश्र मूल प्रकृचत
क्रान्न्तवादश्र न्श्र और इसचलए दोनों का मेल णैुाने का प्रयत्न हो तो कोई गियभ नहीं। चकन्तग इन दोनों
कश्र ोेंट, मन में इच्छा होते हग ए ोश्र, उस समय तन्ा गगे ोश्र हो न सकश्र, इसे चनयत का चविान हश्र
मानना पड़ेगा।

ीश्र णालाीश्र हग द्दार एवां डॉ. सांझचगरश्र ने नाचसक से वापस लौटने के िार चदन णाद हश्र डॉक्टीश्र को एक
पत्र चलखा। वह सगदैव से उपलब्ि है । यह पत्र चदनाांक 12 ीगलाई को चलखा गया न्ा तन्ा नागपगर चदनाांक
18 ीगलाई को पहग ाँ िा। उसमें वे चलखते हैं चक ‘‘हम चीस काम के चलए गपसे चमलने गये न्े उसके
पश्रछे कश्र उत्कटता गप सही समझ सकते हैं । गपने नागपगर गने का ीो हमें गग्रहपूवभक चनमांत्रण
चदया उसके चलए हम गोारश्र हैं । चकन्तग कगछ ननेपचक्षत नड़िनों के कारण कम-से-कम नोश्र तो

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नागपगर गने का चविार स्न्चगत करना पड़ रहा है । नतः क्या गप चदनाांक 20 ीगलाई को णम्णई ग
सकेंगे ? हमारश्र प्रणल इच्छा है चक हमें गप यहााँ चमलें। चवश्वास है चक गप हमें चनराश नहीं करें ग।े
सम्णन्न्ित व्यचि 20 तारश्रख कश्र राचत्र को यहााँ से ीायेंग।े केवल एक चदन के चलए हश्र गइए। चनचित
हश्र हम सणके चहत कश्र दृचष्ट से कोई योीना णना सकेंगे।’’ यह करने कश्र गवश्यकता नहीं चक ये
सम्णन्न्ित व्यचि सगोार्िन्द्र णोस हश्र न्े।

डॉक्टरीश्र का णगखार िश्ररे-िश्ररे कम हो रहा न्ा। चफर ोश्र कमीोरश्र णहग त नचिक न्श्र। डॉक्टरीश्र कश्र
इतनश्र नचिक चिन्ताीनक नवस्न्ा होने के उपरान्त ोश्र ीश्र गगरुीश्र ने ीो पत्र नागपगर ोेीे उनमें न्स्न्चत
कश्र गम्ोश्ररता का कोई उल्लेख नहीं चमलता। कारण, उन्हें चवश्वास न्ा चक नाचसक के नत्यन्त घचनष्ठ
डॉक्टरों कश्र ीश्र-ीान से कश्र ीानेवालश्र योग्य चिचकत्सा, सहश्र चनदान एवां कगशल उपिार के णाद
डॉक्टरीश्र चनचित हश्र स्वास्र्थय लाो करें ग।े उनका यह चवश्वास यन्ान्भ ोश्र उतरा। णगखार कम होने पर
चदनाांक 12 ीगलाई को डॉक्टरीश्र को नाचसक ले ीाया गया। इस स्न्ान-पचरवतभन का प्रमगख कारण यह
न्ा चक डॉ. दामले तन्ा डॉ. िोोे को रोी गु-नौ मश्रल दूर गना पड़ता न्ा। उनका यह कष्ट णिाना
न्ा। सान् हश्र नाचसक के स्वयांसेवकों को ोश्र नण डॉक्टरीश्र कश्र सेवाशगशूर्ा कश्र ओर ध्यान दे सकना
नचिक सगलो हो गया।

णम्णई-गगरा मागभ पर ‘ीय चवला’ नामक णाँगले के नश्रिे कश्र मांचील के तश्रन कमरे डॉक्टरीश्र के रहने
के वास्ते चलये गये। णगखार उतरने के णाद स्वास्र्थय िश्ररे-िश्ररे सगिरने लगा। सेवा-सगशूर्ा के चलए
स्वयांसेवकों कश्र चनयगचि कश्र गयश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र कश्र पश्रु में ददभ रहता न्ा। एक स्वयांसेवक उसे सेंकने
के चलए रोी प्रातः नौ णीे तन्ा सायां साढे िार णिे गता न्ा। चकन्तग समय-चनष्ठा उसके स्वोाव में
नहीं न्श्र। चफर ोश्र चवलम्ण से गने के णाद ोश्र वह घड़श्र कश्र ओर दे खता और कहता ‘‘कोई प्रश्न नहीं,
नौ नन्ात् नौ’’। उसका यह चनराला ांग दे खकर डॉक्टरीश्र ने उसकश्र णात पकड़ लश्र। गगे ीण वह
दे र करके गता तो डॉक्टरीश्र स्वयां उसका ‘‘नौ याने नौ’’ कहकर हाँ सते हग ए स्वागत करते। उनका
यह गग्रह न्ा चक प्रत्येक छोटश्र णात ोश्र नत्यन्त व्यवन्स्न्त प से ुश्रक-ुश्रक होनश्र िाचहए। एक णार
उनका माल एक स्वयांसेवक ने ुश्रक प्रकार से साफ नहीं चकया तो णश्रमारश्र कश्र हालत में ोश्र उन्होंने
नरगनश्र से माल उतारकर स्नानघर में ीाकर स्वयां उसे िोया और सूखने को फैला चदया।

िश्ररे-िश्ररे डॉक्टरीश्र के कमरे में स्वयांसेवकों का गना-ीाना शग हो गया। न्ोड़े हश्र चदनों में उनके
चनवासस्न्ान के चदये राचत्र के णारह णीे तक ीलते हग ए चदखने लगे। पर उनकश्र चिचकत्सा करनेवाले
डॉक्टरो को इस णात का पता लगते हश्र उन्होंने ीश्र गगरुीश्र से कहा ‘‘इतना ीागरण ुश्रक नहीं है । गप
उन्हें ील्दश्र सोने दश्रचीए।’’ इस पर गगरुीश्र ने उत्तर चदया ‘‘यह काम मगझसे नहीं हो सकेगा। गप हश्र
गकर यचद डॉक्टरीश्र से कहें तो ुश्रक होगा।’’ नतः राचत्र का ोोीन समाप्त कर ये दोनों डॉक्टर

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डॉक्टरीश्र को नचिक न ीागने के चलए कहने के चलए गये। उस समय डॉक्टरीश्र के कमरे में णहग त-
से स्वयांसेवक णैुे न्े तन्ा णातिश्रत का ऐसा रां ग ीमा चक डॉक्टरीश्र को ीागने से मना करने के चलए
गनेवाले डॉक्टर ोश्र उसश्र में राँ ग गये। ीण णारह का घण्टा णीा तण कहीं उन्हें ध्यान गया चक हम
क्या करने गये न्े और यह क्या हो गया। तदगपरान्त ीण घण्टे -गि घण्टे णाद सोश्र स्वयांसेवक घर
ीाने के चलए उुे तो गगरुीश्र ने उन डॉक्टरों से पूछा ‘‘कचहए डॉक्टर, णैुक कैसश्र रहश्र ?’’ इस प्रश्न के
पश्रछे का व्यांग समझकर वे नपनश्र गदभ न झगकाकर मौन रह गये।

नागपगर से परावर्ततत होकर डॉक्टरीश्र के पत्र नाचसक गते न्े। उन पत्रों में उनके स्वास्र्थय के सम्णन्ि
में चिन्ता व्यि करने के सान् हश्र कायभवृचद्ध के ोश्र समािार रहते। नरसोणा कश्र णाड़श्र के एक स्वयांसेवक
ने चलखा न्ा चक ‘‘गपके प्राण उदयोन्मगख चहन्दू राष्ट्र का नविैतन्य हैं । नतः गप नचिक चिन्ता
करें ।’’ ीश्र गगरुीश्र को पांीाण के दौरे पर ोेीने तन्ा सांघ प्रारम्ण करने के चलए नचिक कायभकताओां
कश्र मााँग करनेवाले पत्र ोश्र न्े। सूरत और मद्रास में कायभ के प्रारम्ो का गनन्ददायक समािार ोश्र
डॉक्टरीश्र को नाचसक में हश्र चमला न्ा। इांसण्ै ड में चशक्षा के चलए गये स्वयांसेवकों कश्र गगरुदचक्षणा के
सम्णन्ि में हग ग पत्रव्यवहार ोश्र डॉक्टरीश्र को सूचित चकया गया न्ा। ीणलपगर के एक पत्र में यह ोश्र
डॉक्टरीश्र से प्रान्भना कश्र गयश्र न्श्र चक वहााँ से चनकलनेवाले चहन्दगत्ववादश्र एक नये माचसक को सांघ में
स्न्ान चदया ीाये तन्ा उसके चलए योग्य नाम ोश्र सगझाया ीाये।

नण ऐसश्र न्स्न्चत हो गयश्र न्श्र चक चहन्दगत्व एवां चहन्दगराष्ट्र-सम्णन्िश्र प्रत्येक कायभ एवां गन्दोलन को
डॉक्टरीश्र नपना गिार प्रतश्रत होते न्े। चहन्दगस्न्ान कश्र सेना के नचिकाचरयों ने ोारतश्रयों कश्र ोती के
चलए चनयगि सचमचत में ोश्र डॉक्टरीश्र को साक्षश्र दे ने के चलए कनमचत्रत चकया न्ा तन्ा उन्होंने पूछा न्ा चक
वे चदनाांक 3 ीगलाई से 21 ीगलाई के णश्रि कण चशमला ग सकेंगे। कगछ स्न्ानों के स्न्ानश्रय दल सांघ
में चवलश्रन होने के ोश्र समािार चमल रहे न्े। सान् हश्र कगछ दे शश्र चरयासतों में वहााँ कश्र पचरन्स्न्चत में नलग
नाम से सांघकायभ को प्रारम्ो करने कश्र सूिना ोश्र पत्रों से चमलतश्र है । ग्वाचलयार में सांघ का कायभ पहले-
पहल ‘राणोीश्र स्वयांसेवक सांघ’ नाम से शग हग ग। कलकत्ते में सांघ कश्र शाखा खगल हश्र गयश्र न्श्र। वहााँ
से डॉ. सन्तोर् कगमार मगखीी ने डॉक्टरीश्र को चलखा चक ‘‘हम प्रगचत करते ीा रहे हैं तन्ा णांगाल में
रा. स्व. सांघ का ोचवष्ट्य उज्जवल चदखता है ।’’

इन चनरन्तर गनेवाले पत्रों का उत्तर ीश्र गगरुीश्र डॉक्टरीश्र से चविार करके दे ते, तन्ा महत्त्व के पत्रों
को डाकखाने में डालने के चलए वे स्वयां राचत्र को सणके सो ीाने के णाद ीाते। कोश्र-कोश्र गगरुीश्र
डॉक्टरीश्र कश्र पसन्द कश्र कोई िश्री ोश्र गचतन्ेय को सगझाते न्े। ीश्रवन का मागभ चनचित हो ीाने के
कारण ीश्र गगरुीश्र में नण मन कश्र न्स्न्रता, व्यवहार कश्र तत्परता तन्ा वृचत्त में उत्साह सोश्र एकत्र चदखने
लगे न्े। ीश्र गगरुीश्र के नन्तःकरण में नण सांघ और डॉक्टरीश्र चवराी गये न्े। उनके नण एक हश्र
उपास्य णन गये न्े और वे न्े डॉक्टर हे डगेवार।
352
ीगलाई के नन्त में यद्यचप डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय सगिर गया न्ा चफर ोश्र यह चनचित हग ग चक एक णार
णम्णई के चवशेर्ज्ञ डॉक्टरों से परश्रक्षा करवा लश्र ीाये। नतः चदनाांक 1 नगस्त को उन्हें णम्णई ले ीाया
गया। वहााँ डॉ. चगल्डर, डॉ. गुल्ये गचद तज्ञ डॉक्टरों ने उनके स्वास्र्थय का परश्रक्षण चकया चकन्तग वे
कोई चवशेर् चनदान नहीं कर पाये। चदनाांक 22 नगस्त के पत्र में डॉक्टरीश्र चलखते हैं चक ‘‘मेरे स्वास्र्थय
के सम्णन्ि में नागपगर के लोगों का ीो कहना न्ा करश्रण-करश्रण वहश्र णम्णई के डॉक्टरों का मत है ।
एक्सरे इलेक्रो-कार्तडयोग्राफ चलया गया। पर उनमें कोई दोर् नहीं चमला।’’ इस परश्रक्षा के णाद
डॉक्टरीश्र चदनाांक 5 नगस्त को नाचसक गये तन्ा वहााँ से 6 नगस्त को सणसे चणदा लेकर नागपगर के
चलए िले। डॉक्टरीश्र इतने ोश्रर्ण रोगसांकट से मगि हग ए, इसचलए डॉ. गोचवन्दराव ने प्रसन्न होकर
डॉक्टरीश्र के नाचसक से ीाने के पहले स्वयांस्फूर्तत से पेड़े णााँटे। उस समय उन्होंने कहा ‘‘चहन्दगस्न्ान
के हश्ररे का ीोखम हमारे ऊपर न्ा, उसे हम लौटा रहे हैं । ोलश्र ोााँचत सम्हालकर रचखए।’’

डॉक्टरीश्र नाचसक से िलकर चदनाांक 7 नगस्त को नागपगर ग पहग ाँ ि।े रास्ते में हश्र उन्हें हृदय को
व्यचन्त करनेवालश्र वाता सगनने का चमलश्र। नागपगर पहग ाँ िने के णाद चलखे गये पत्र में ीश्र गगरुीश्र इस
चवर्य में चलखते हैं चक ‘‘हम नागपगर सानन्द पहग ाँ ि गये। प्रवास में न्ोड़श्र-णहग त न्कान तो गयश्र चकन्तग
स्वास्र्थय पर कोई पचरणाम नहीं हग ग। चदनाांक 3-8-39 को ीश्र नानासाहण टालाटगले का स्वगभवास हो
गया। यह हृदयद्रावक समािार हमें ोगसावळ स्टे शन पर ज्ञात हग ग। यह वृत्त सगनकर ोारश्र िोंा णैुा।
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र को चकतना दगःख हग ग और हो रहा है यह वणभन करना सम्ोव नहीं है ।’’

नागपगर में गने के न्ोड़े चदनों णाद हश्र डॉक्टरीश्र ने नाचसक के ीश्र राीाोाऊ सायक्े को पत्र चलखा।
उसमें वे कहते हैं चक ‘‘मेरा और गप सणका ीो दश्रघक
भ ालश्रन सहवास रहा इस कारण मगझे नाचसक
के सम्णन्ि में क्या लगता है वह शब्दों में चलखकर णताना सम्ोव नहीं। मन कश्र ोावनाएाँ मन से हश्र
समझश्र ीा सकतश्र हैं ।’’ इसश्र प्रकार के ोाव ीश्र गगरुीश्र के पत्र में व्यि हग ए न्े। वे चलखते हैं चक ‘‘डॉ.
दामले एवां डॉ. िोोे ने डॉक्टरीश्र के स्वास्र्थय कश्र ीो चिन्ता कश्र, उससे उऋण होना नशक्य है ।’’

नाचसक से लौटने के एक सप्ताह णाद हश्र चदनाांक 13 नगस्त को गगरुपूर्तणमा का उत्सव मनाया गया।
उस समय डॉक्टरीश्र ने ीश्र णाणासाहण घटाटे को नागपगर के सांघिालक तन्ा ीश्र गगरुीश्र को
सरकायभवाह चनयगि करने कश्र घोर्णा कश्र। उन्हें नपने स्वास्र्थय का रां ग ांग समझ में ग गया न्ा। नतः
यहश्र कहना होगा चक नचखल ोारतश्रय सांघटन का नपना ोार ीश्र गगरुीश्र के कन्िों पर क्रमशः डालने
का पग उन्होंने इस चनयगचि के द्वारा उुाया न्ा। दूरदर्तशता डॉक्टरीश्र कश्र चवशेर्ता हश्र न्श्र।

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इस वर्भ योीना णनायश्र गयश्र न्श्र चक नागपगर के गगरुपूीन-महोत्सव का समािार चवचोन्न प्रान्तों के प्रमगख
पत्रों में प्रकाचशत हो। तदनगसार चीन पत्रों ने यह समािार प्रकाचशत चकया है उनमें उल्लेखनश्रय हैं
‘चरब्यून’(लाहौर), ‘चहन्दू गउटलगक’(चदल्लश्र), ‘लश्रडर’(प्रयाग), ‘नमृतणाीार पचत्रका’ एवां
‘लोकमान्य’(कलकत्ता), ‘सण्डे टाइम्स’(मद्रास), ‘केसरश्र’, ‘चत्रकाल’, तन्ा ‘नागचरक’(महाराष्ट्र)।
डॉक्टरीश्र के चविारानगसार हश्र यह योीना कश्र गयश्र न्श्र। प्रकाशन एवां प्रचसचद्ध के सम्णन्ि में उनका
दृचष्टकोण प्रारम्ो से हश्र चनचित न्ा। लोगों कश्र मनोवृचत्त पर पचरणाम करने के चलए समािारपत्रों का
न्ोड़ा-णहग त उपयोग नवश्य है चकन्तग एक चटकाऊ एवां ननगशासनपूणभ सांघटन चनमाण करने में उनका
कोई उपयोग एवां महत्त्व नहीं है । इसके चलए तो उन्हें स्वयांसेवकों को चनत्य एकत्र कर खेलकूद, लाुश्र-
काुश्र, सांिलन, गश्रत, णौचद्धक और प्रान्भना द्वारा सांस्कार करनेवाले कायभक्रम हश्र प्रोावश्र प्रतश्रत हग ए।
ीो कगछ हग ग उसे तगरन्त छापने कश्र ओर लोगों का झगकाव होने के कारण, हमने मना चकया तो ोश्र वे
कगछ-न-कगछ छापेंग,े यह समझकर डॉक्टरीश्र ने चनिय चकया चक मनमाना तन्ा नवास्तव एवां चवकृत
समािार छपने से तो यहश्र उचित रहे गा चक सांघ कश्र ओर से ‘नचिकृत’ समािार गवश्यकतानगसार
ोेीने कश्र व्यवस्न्ा कश्र ीाये। 1939 में णहग त-से प्रान्तों में सांघकायभ का चवस्तार होने के कारण यह
स्वाोाचवक न्ा चक इस वर्भ के गगरुपूीा उत्सव का वृत्त वहााँ के समािारपत्रों में प्रकाचशत हो। उनके
व्यवहार में दगराग्रह एवां हुिमी नहीं न्श्र, नचपतग उसमें पचरन्स्न्चत का योग्य ननगमान लगाकर उसके
ननगसार प्रमाणणद्ध एवां चहतकारश्र लिश्रलापन न्ा।

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29. राीचगचर में चिचकत्सा
नाचसक से लौटने के णाद परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के चलए प्रवास करना नत्यन्त कचुन हो गया न्ा।
कारण, स्वास्र्थय णहग त नाीगक हो गया न्ा। स्न्ान-स्न्ान से ीलवायग-पचरवतभन एवां चवीाम के चलए
गने के चनमांत्रण ग रहे न्े चकन्तग यह स्पष्ट चदख रहा न्ा चक काल गराम करने लायक नहीं न्ा। उन्हें
यह ोासने लगा न्ा चक नण वे न्ोड़े हश्र चदन के मेहमान हैं । नतः उनके सम्पूणभ णताव से णिश्र-खगिश्र
सम्पूणभ शचि को ध्येयपूर्तत के चलए लगा दे ने का मनोचनिय हश्र प्रकट होता न्ा। ीश्र णाणासाहण घटाटे
को नागपगर सांघिालक नया हश्र चनयगि चकया गया न्ा। उन्हें सांघकायभ का चनकट से पचरिय कराने कश्र
दृचष्ट से चनत्य चकसश्र-न-चकसश्र शाखा पर नपने सान् ले िलने का कायभक्रम णनाया गया। पत्रव्यवहार
एवां चमलना-ीगलना कगछ प्रमाण में िलता हश्र न्ा चफर ोश्र उसका नचिकाांश ोार नण ीश्र गगरुीश्र ने
उत्साहपूवभक स्वश्रकार चकया न्ा।

नाचसक में णश्रमारश्र के पूवभ डॉक्टरीश्र के मन में यह शांका रह-रहकर उुतश्र न्श्र चक गगरुीश्र नोश्र तो णड़श्र
उमांग के सान् सांघ के काम में ीगटे हैं पर न मालूम चकस चदन उनके नन्दर कश्र वैराग्यवृचत्त प्रणल हो
उुे और वे कायभ से दूर हट ीायें। उनके मन कश्र यह िगकिगकश्र कोश्र-कोश्र प्रकट हो ीातश्र न्श्र। पर
1939 में उन्हें यह नचिकाचिक चवश्वास होने लगा न्ा चक गगरुीश्र का ीश्रवन नण सांघमय एवां कमभयोगश्र
हश्र रहे गा। इसश्र चवश्वास के गिार पर उन्होंने ीश्र गगरुीश्र को सरकायभवाह चनयगि चकया न्ा।

ीश्र गगरुीश्र को ोश्र डॉक्टरीश्र के प में चविरण करनेवाले चहन्दगराष्ट्रपग र् कश्र गकाांक्षा का दशभन हो
गया न्ा और उन्होंने मन-हश्र-मन नपने सम्पूणभ तन-मन िन को इस गकाांक्षा कश्र पूर्तत के चलए समपभण
करने का चनिय कर चलया न्ा। डॉक्टरीश्र को नण नपना शरश्रर मातृोूचम कश्र सेवा के चलए शचिहश्रन
एवां नसमन्भ प्रतश्रत होने लगा न्ा। ऐसे समय यहश्र कहना यगचियगि होगा चक डॉक्टरीश्र के मन से
एक प होकर ीश्र गगरुीश्र ने नपना तरुण शरश्रर उनके िरणों पर िढा चदया। इस प्रकार कश्र नसामान्य,
चवशगद्ध एवां नव्यचोिारश्र चनष्ठा लेकर ीश्र गगरुीश्र ने चोन्न-चोन्न प्रान्तों में प्रवास कर वहााँ के सांघकायभ में
नचिक वेग एवां उत्साह चनमाण करने का प्रयत्न प्रारम्ो कर चदया। नगस्त 1939 में नचिकारश्र चशक्षण
वगभ के चलए वे पांीाण गये तन्ा स्न्ान-स्न्ान कश्र शाखाओां का चनरश्रक्षण चकया। लाहौर से चदनाांक 25
नगस्त को चलखे गये पत्र में उन्होंने वहााँ कश्र कट्टर मगन्स्लम मदान्ि प्रवृचत्त में से उत्पन्न गन्दोलन कश्र
ीानकारश्र डॉक्टरीश्र को चलखश्र न्श्र। ‘खाकसार’ सांस्न्ा कश्र ीानकारश्र दे ते हग ए वे चलखते हैं ‘खाकसारों
के कारण घणड़ाहट पैदा होकर िड़ािड़ दलों कश्र उत्पचत हो रहश्र है ।’’ चहन्दू समाी के चवरुद्ध खड़े हग ए
खाकसार सांघटन के कारण वहााँ समाी में ननेक दलों का िाहे ीन्म हो गया हो चकन्तग डॉक्टरीश्र का
मत न्ा चक उन सण दलों में से एकमेव दे शव्यापश्र राष्ट्रश्रय सांघटन हश्र साकार होना िाचहए। उन्होंने
नपना यह नचोप्राय उस समय प्रकट ोश्र चकया न्ा।
355
कलकत्ता के काम कश्र योग्य व्यवस्न्ा करने एवां गचत दे ने के हे तग डॉक्टरीश्र ने इस वर्भ के मध्य में ीश्र
चवट्ठलराव पतकश्र कश्र वहााँ प्रिारक के नाते चनयगचि कश्र। ीश्र पतकश्र को कलकत्ता ीाने के पूवभ उन्होंने
साविान चकया न्ा चक चवदे शश्र नांग्री
े श्र शासन एक तो तरुणों के प्रत्येक सांघटन कश्र ओर से सशांक
रहता है चफर णांगाल में गगप्त क्रान्न्तकारश्र गचतचवचियों का चवशेर् ीोर होने के कारण वहााँ तो उसकश्र दृचष्ट
और ोश्र कड़श्र रहे गश्र। नतः नपने सम्णन्ि में गनेवाले प्रत्येक व्यचि के िौणश्रसों घण्टों का हालिाल
णड़श्र सूक्ष्मता से ीानकर उसके सान् योग्य व्यवहार करना िाचहए। यह णताकर उन्होंने कहा ‘‘प्रत्येक
पत्न्र के नश्रिे चणच्छू है यह समझकर व्यवहार चकया तो सांघ के स्न्ायश्र कायभ को नन्य गगप्त गन्दोलनों
े श्र।’’
के सम्पकभ से णािा नहीं पहग ाँ िग

डॉक्टरीश्र कायभ कश्र चकतनश्र गवश्यकता समझते न्े यह उनके एक-एक शब्द से व्यि होता है । ीश्र
गगरुीश्र को लाहौर ोेीे गये पत्र में वे चलखते हैं ‘‘........यन्ासम्ोव न्ोड़े समय में नचिक-से-नचिक
काम पूरा कर कलकत्ता ीाइए। इस दृचष्ट से पांीाण, णनारस, चदल्लश्र, चणहार गचद सण स्न्ानों पर चकतना
समय दे ना िाचहए इसका योग्य चविार करके कायभक्रम चनचित कश्रचीए और यहााँ सूचित कर दश्रचीए।’’
1939 के नगस्त में सांघकायभ में सवभत्र ज्वार ग रहा न्ा। ननेक प्रमगख नगरों कश्र गगरुदचक्षणा के गाँकड़े
हीार के पेटे में पहग ाँ ि गये न्े तन्ा िारों ओर शाखाओां के सामान्य वातावरण में ोश्र प्रोावश्र होने के
लक्षण चदख रहे न्े। डॉक्टरीश्र के चदनाांक 31 नगस्त के एक पत्र में यह प्रगचत स्पष्ट प से प्रचतध्वचनत
होतश्र है । ीश्र दादाराव परमान्भ को वे चलखते हैं ‘‘पांीाण, सांयगिप्रान्त, चणहार, णांगाल एवां करािश्र से
उत्साहविभक समािार ग रहे हैं । लाहौर में ओ. टश्र. सश्र. में तश्रस स्न्ानों से डेढ सौ से नचिक स्वयांसेवक
ाँ ा दे ने का चनिय है । ‘गयभन लश्रग’
गये हैं तन्ा इस वर्भ पांीाण में सांघ का वातावरण िारों ओर गगी
कश्र णैुक नागपगर में होने के कारण ननायास हश्र पांीाण एवां सांयगि प्रान्त के ननेक नचखल ोारतश्रय
नेताओां से ोेंट करने का योग ग गया। उन्होंने ोश्र नपने यहााँ सांघकायभ को णढाना स्वश्रकार चकया है ।
उनके मन पर राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ का नच्छा पचरणाम हग ग चदखता है । गपको चवचदत हश्र है चक
चणहार में यहााँ से िार कायभकता गये हैं । उन्होंने वहााँ नचवतरत ीमपूवभक कायभ प्रारम्ो चकया है । ीश्र
मािवरावीश्र गोळवलकर शश्रघ्र हश्र वहााँ गनेवाले हैं । गपके ऊपर डालश्र हग ई मद्रास प्रान्त कश्र
चीम्मेदारश्र गप सफलतापूवभक चनवाह करें गे इसका मगझे पूणभ चवश्वास है ।’’

चदनाांक 1 चसतम्णर को ीमभनश्र ने पोलैण्ड पर िढाई कर दश्र तन्ा चद्वतश्रय महायगद्ध कश्र ज्वाला ोड़क
उुश्र। इस यगद्ध में इांसण्ै ड ोश्र कूद पड़ा। शतु का सांकटकाल परतांत्र राष्ट्र के चलए नपना उद्धार करने
का स्वणभ-नवसर होता है । इस न्याय से चहन्दगस्न्ान में ोश्र दे शोिों कश्र गकाांक्षाएाँ एकदम णलवतश्र हो
गयीं तन्ा सम्पूणभ पचरन्स्न्चत एवां उसमें चवद्रोह करने कश्र नपनश्र सामर्थयभ का ननगमान कर ोावश्र पगों
का चविार चकया ीाने लगा। प्रन्म महायगद्ध में काले पानश्र कश्र कालकोुरश्र में सीा ोोगनेवाले
स्वातांत्र्यवश्रर सावरकर इस समय चहन्दू महासोा के नध्यक्ष न्े। उन्होंने यगद्धीचनत पचरन्स्न्चत का चविार

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करने के चलए सोा कश्र कायभकाचरणश्र कश्र गवश्यक णैुक चदनाांक 10 चसतम्णर को णम्णई में णगलायश्र।
डॉक्टरीश्र चहन्दू महासोा कश्र कायभकाचरणश्र के सदस्य नहीं न्े। सांघकायभ के णढते हग ए चवस्तार तन्ा
नपने चगरते हग ए स्वास्र्थय कश्र न्स्न्चत में उनके चलए सम्ोव हश्र नहीं न्ा चक वे और चकसश्र ओर ध्यान दें ।
चकन्तग णै. सावरकर ने उन्हें चवशेर् पत्र चलखकर गमांचत्रत चकया। ‘‘........गप प्रचतचष्ठत नचतचन् के
प में गकर मागभदशभन कश्रचीए’’, णै. सावरकर ने चनमांत्रण में चलखा न्ा। चकन्तग डॉक्टरीश्र ीा नहीं
सके।

णम्णई कश्र इस णैुक में चहन्दू महासोा कश्र कायभकाचरणश्र ने ‘चहन्दू चमलश्रचशया’ नाम से एक स्वयांसेवक-
दल चनमाण करने का चनिय चकया तन्ा यह गग्रह हग ग चक डॉक्टरीश्र इस दल का कायभ सम्हालें।
इस दल कश्र योीना णनाने के चलए पूना में चदनाांक 8 निूणर को रावणहादगर ोास्करराव ीािव, डॉ.
णाणासाहण गम्णेडकर, सर गोचवन्दराव प्रिान, ीश्र नण्णासाहण ोोपटकर गचद नेताओां कश्र णैुक
रखश्र गयश्र। डॉ. मगी
ां े ने एक के णाद एक पत्र चलखकर डॉक्टरीश्र से नवश्य गने का गग्रह चकया।
इस पर डॉक्टरीश्र ने इस चवर्य में नपनश्र नसमन्भता व्यि करते हग ए चदनाांक 30 चसतम्णर को डॉ. मगी
ां े
को पत्र ोेीा। उसमें वे चलखते हैं ‘‘.............मेरा स्वास्र्थय प्रवास करने योग्य न होने के कारण
गपकश्र गज्ञा के ननगसार चदनाांक 8 निूणर को मैं पूना नहीं ग सकूाँगा। यचद गप यह कहें चक
णैुक नागपगर में हश्र कर लश्र ीाये तो उसश्र चदन रा. स्व. सांघ के नागपगर चीले के कायभकताओां कश्र णैुक
होने वालश्र है । मेरश्र तचणयत गीकल चणल्कगल ुश्रक नहीं रहतश्र। इसचलए चकसश्र ोश्र महत्त्व के कायभ
को नपने ऊपर नहीं ले सकता। नतः ‘चहन्दू चमलश्रचशया’ के सम्णन्ि में गप मेरा नाम कहीं ोश्र न
डालें। नाम न होते हग ए ोश्र इस चवर्य में मगझसे ीो सहायता सम्ोव होगश्र, यह नवश्य क ाँगा।’’

डॉक्टरीश्र द्वारा इतने स्पष्ट शब्दों में नपनश्र नसमन्भता सूचित करने के उपरान्त ोश्र डॉ. मगांीे का गग्रह
णना हश्र रहा। एक पत्र में वे चलखते हैं चक ‘‘...........सि तो यह है चक इस काम को करने लायक कोई
दूसरा व्यचि महाराष्ट्र में नहीं है ।’’ नपने दूसरे पत्र में डॉक्टरीश्र को चलखते हैं चक उनके प्रस्ताव का
समन्भन णड़ौदा के ीनरल नानासाहण चशन्दे ने ोश्र चकया है । नपने प्राणों से ोश्र णढकर ीतन करके
णढाये गये सांघकायभ को णढाने कश्र शचि नण शरश्रर में णिश्र नहीं इस चनरन्तर चिन्ता के कारण डॉक्टरीश्र
नस्वस्न् रहते न्े। वे इस प्रकार के गग्रह से और ोश्र णेिन
ै हो ीाते तन्ा चनरुपाय होकर णार-णार
सूचित करते चक ‘‘चकसश्र ोश्र महत्त्वपूणभ कायभ को नपने ऊपर लेना नण मेरे चलए सम्ोव नहीं है ।’’
पर इतना सूचित करने के णाद ोश्र ‘चहन्दू चमलश्रचशया’ कश्र महाराष्ट्र-सचमचत में उनका नाम रख चलया
गया तन्ा चदनाांक 12 निूणर के पत्र में ीश्र शां. रा. दाते ने उन्हें इस चनणभय कश्र सूिना ोेी दश्र।

डॉक्टरीश्र के चलए यह कोई गनन्द नन्वा सन्तोर् का चवर्य नहीं न्ा चक उनको छोड़कर नन्य कोई
इस प्रकार का नया दल चनमाण नहीं कर सकता। नेतृत्व कश्र यह नपचरहायभता तो वास्तव में उनके

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चलए चिन्ता का हश्र कारण न्श्र। वे तो यहश्र िाहते न्े चक राष्ट्र कश्र चवचवि समस्याओ को हल करने के
चलए ननेक कतृत्भ ववान् पगरुर्ों कश्र माचलका-कश्र-माचलका रहनश्र िाचहए। सान् हश्र उनका तो चवश्वास
न्ा चक सांघ के चविायक तन्ा स्न्ायश्र कायभ का पयाप्त प्रमाण में चवस्तार होने पर सांघटन में दे श कश्र
समस्याओां का समािान करने कश्र पात्रता और क्षमता सही चनमाण हो ीायेगश्र और इसचलए नपनश्र
शचि को णााँटकर नन्यत्र लगाना उन्हें उचित नहीं लगता न्ा। नेताओां में कगछ ऐसे ोश्र होते हैं ीो केवल
प्रचतष्ठा के चलए चकसश्र सांस्न्ा या सांघटन कश्र सांिालन-सचमचत में नपना नाम रखकर सन्तगष्ट हो ीाते हैं
तन्ा उसके चवकास या चवस्तार के चलए वे न तो कोई चिन्ता करते हैं और न हान्-पैर हश्र चहलाते हैं ।
चकन्तग डॉक्टरीश्र के स्वोाव में तो इस प्रकार कश्र णातों के चलए घृणा हश्र न्श्र। वे चदखावे नन्वा नाटक
में चवश्वास नहीं करते न्े। उनके व्यवहार में तो यह प्रामाचणकता न्श्र चक चीस कायभ का दाचयत्व एक
णार नपने ऊपर चलया, चफर उसको पूणभ करने के चलए नपनश्र सम्पूणभ शचि और सािन के सान् ीगट
ीाना िाचहए। इसश्रचलए उन्होंने डॉ. मगांीे के प्रचत गदर होते हग ए ोश्र नत्यन्त सौीन्यता के सान् उनके
गग्रह को नमान्य कर चदया न्ा।

डॉक्टरीश्र ने तरुणों में चकस प्रकार कश्र चनष्ठा उत्पन्न कश्र न्श्र इसकश्र कल्पना चसतम्णर 1939 कश्र एक
घटना से स्पष्ट ग ीातश्र है । रायपगर-शाखा के एक तरुण कायभकता ीश्र नारायण चकरवई ज्वर से णश्रमार
हो गये। उन्हें ऐसा लगा चक नण णि नहीं सकेंगे। नतः एक कागी पर उन्होंने यह वाक्य चलखकर
रख चदया चक ‘‘डॉक्टरीश्र को णताइए चक मैं सांघ के चलए, चहन्दगत्व के चलए नपने प्राणों कश्र णचल न दे ते
हग ए णगखार कश्र णचल हो गया।’’ दे श के चलए णचलदान नहीं कर सके इसचलए नत्यन्त व्यचन्त मन से
उन्होंने नपने प्राण त्यागे। उनकश्र मृत्यग के उपरान्त डॉक्टरीश्र को वह पत्र चमला।

मािभ 1939 में ीश्र गगरुीश्र और ीश्र चवट्ठलराव पतकश्र ने कलकत्ते में कायभ कश्र नींव डाल दश्र न्श्र। इसको
और ोश्र गचत दे ने के चलए चदनाांक 15 नवम्णर को ीश्र णाळासाहण दे वरस को वहााँ ोेीा गया। प्रारम्ो
के इन चदनों में डॉक्टरीश्र के सान् घचनष्ठता के कारण सांघकायभ कश्र सहायता करने के चलए ीो लोग
गगे गये, उनमें वयोवृद्ध ीश्र पगचलनचणहारश्र ोश्र न्े। कगछ चदनों तो उनकश्र ‘वांगश्रय चहन्दू व्यायाम सचमचत,
के नखाड़े में हश्र सांघ कश्र शाखा लगतश्र रहश्र। यह कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक इस प्रेम के पश्रछे
‘ननगशश्रलन सचमचत’ कश्र पगरानश्र दश्रक्षा हश्र काम कर रहश्र न्श्र। ीश्र दे वरस के कलकत्ता ीाने के न्ोड़े चदन
णाद हश्र डॉक्टरीश्र ीश्र गगरुीश्र एवां ीश्र नानासाहण तेलांग के सान् पूना कश्र प्रान्तश्रय णैुक में गये तन्ा वहााँ
से कलकत्ता गये। इस समय 25 नम्हस्टभ स्रश्रट पर कायालय में हश्र स्वयांसेवकों के सम्मगख डॉक्टरीश्र
का ोार्ण हग ग। चकन्तग स्वास्र्थय खराण होने के कारण वे दो-तश्रन चमचनट से नचिक नहीं णोल पाये
तन्ा उन्होंने ीश्र गगरुीश्र को ोार्ण दे ने के चलए कहा। इस समय का ीश्र गगरुीश्र का नांग्रेीश्र ोार्ण गी
ोश्र ननेकों को स्मरण है ।

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कलकत्ता ीाते समय नागपगर के सांघिालक ीश्र णाणासाहण घटाटे ोश्र सकगटगम्ण सान् में न्े। उस समय
ीश्र घटाटेीश्र ने डॉक्टरीश्र से दूसरे दीभ में यात्रा करने के चलए णड़ा गग्रह चकया। चकन्तग उन्होंने स्वश्रकार
नहीं चकया। वे णोले चक ‘‘इतना काम कहााँ णढा है ? नोश्र कोई नचिक प्रवास नहीं करना पड़ता।’’
फल यह हग ग चक डॉक्टरीश्र के सान् यात्रा का सगयोग प्राप्त करने के हे तग घटाटेीश्र ने हश्र सणके सान्
तश्रसरे दीे में यात्रा कश्र। डॉक्टरीश्र को नण ीश्रवन का दूसरा छोर चदखने लगा न्ा, नतः नपने णाद
सांघटन के प्रमगख कायभकता कैसे व्यवहार करें , गचद णातों का ऊहापोह वे नपने पास गनेवाले िगने
हग ए कायभकताओां के सान् णड़श्र कल्पकता के सान् करते रहते। कोश्र णैुक में वे सही प्रश्न पूछ णैुते
चक ‘‘ीश्र हनगमान और ोरत में चकनकश्र ोचि गदशभ लगतश्र है ?’’ कोई हनगमान कश्र ोचि को गदशभ
णताता तो वे कहते ‘‘वे तो प्रोग रामिन्द्र के दूसरे प को मानने के चलए तैयार न न्े। उनको नपने
सामने रखकर गप ोश्र कल कदाचित् यहश्र कहें गे चक ‘हम दूसरे सरसांघिालक को नहीं पहिानते’।’’
इस वाक्य का गशय कायभकताओां को समझना कचुन नहीं न्ा। इसश्र प्रकार चहन्दगस्न्ान में चवचोन्न
लोगों द्वारा राष्ट्रोत्न्ान के चलए प्रारम्ो चकये हग ए कायभ उनके णाद चकतने प्रमाण में िले और नहीं िल
पाये तो क्यों, इन प्रश्नों कश्र कारण-मश्रमाांसा करके वे नपने सांघटन के सातत्य एवां नखण्ड परम्परा के
चलए चकस प्रकार कश्र चनष्ठा एवां ननगशासन पैदा करना िाचहए यह स्पष्ट कर दे ते न्े। 1939 के नन्त में
तो नागपगर के तरुण कायभकताओां में से दो-तश्रन को रोी नपने घर ोोीन के चलए णगलाकर उनके सान्
सांघ कश्र ोावश्र प्रगचत के सम्णन्ि में खगलकर ििा करते न्े। इस णातिश्रत में ीश्र गगरुीश्र, डॉ. पराांीपे,
ीश्र णाणासाहण गपटे , ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र गचद के व्यवहार, णोलिाल गचद कश्र ििा करके वे
सही पूछ णैुते ‘‘यचद मैं िार-पााँि महश्रने णश्रमार हो गया तो मेरा काम इतनें से चकसको णताया ीाये
?’’ इस प्रश्न का ोाव कगछ कायभकताओां के ध्यान में ग ीाता न्ा तन्ा उन्हें यह ीानकर दगःख होता
न्ा चक डॉक्टरीश्र इतने नस्वस्न् हो गये हैं चक वे नण नन्त का चविार करने लगे हैं ।

यगद्ध कश्र ज्वालाएाँ दूर-दूर फैलतश्र ीा रहश्र न्ीं। नांग्री


े ों के सान्-सान् ोारत ोश्र यगद्ध में घसश्रटा ीा िगका
न्ा। णाहर के यगद्ध कश्र तैयारश्र के सान् नन्दर के चकसश्र ोश्र उुाव को दणाने कश्र चसद्धता ोश्र शासन कश्र
नश्रचत का नपचरहायभ नांग णन गयश्र न्श्र। राष्ट्रश्रयता स्वयांसेवक सांघ कश्र ओर एक तो पहले हश्र सरकार
कश्र वक्रदृचष्ट न्श्र, चफर यगद्धकाल में तो वह और ोश्र कड़श्र हो गयश्र। सोश्र प्रान्तों में गणवेशिारश्र
स्वयांसेवकों के ननगशासनणद्ध कायभक्रम सरकार कश्र गाँखों में खटकने लगे। सािारणतः डॉक्टरीश्र
के पत्रों को तो सरकार सदा णश्रि में रोककर और ीााँिकर हश्र गगे ीाने दे तश्र न्श्र। उन चदनों गणवेश
में प्रयगि काले लम्णे णूटों को नागपगर में एक सान् णनवाकर सस्ते दामों में सोश्र प्रान्तों को ोेीने कश्र
व्यवस्न्ा कश्र गयश्र न्श्र। नतः डॉक्टरीश्र को प्राप्त होनेवाले पत्रों में स्न्ान-स्न्ान के स्वयांसेवकों के पैर
का नाप ोश्र रहता न्ा। ीण डॉक्टरीश्र से एक सज्जन ने कहा चक सरकार का गगप्तिर चवोाग रास्ते में हश्र
पत्रों को खोल लेता है नतः नचिक सतकभता णरतनश्र िाचहए तो डॉक्टरीश्र ने यह णताते हग ए चक

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स्वयांसेवकों को लेखन में सांयम रखने के चवर्य में पयाप्त ध्यान है गगे कहा ‘‘मेरे पत्र खोलने पर
सरकार को क्या चमलेगा ? णहग त हग ग तो ‘ीूत’े चमलेंग।े ’’

कोश्र-कोश्र स्वयांसेवक यह गग्रह करते न्े चक सांघ के चलए एक णड़ा कायालय िाचहए। उस समय
सांघटन के चलए यह गवश्यक ोश्र न्ा। चकन्तग डॉक्टरीश्र को कल्पना न्श्र चक नांग्रेी सरकार यगद्धरत
होते हग ए सांघ ीैसश्र सांस्न्ा पर कोश्र ोश्र गपचत्त ला सकतश्र है । नतः ीो राीसत्ता के िांगगल से णि सके
तन्ा परकश्रय सत्ता का, यगद्ध के कारण ीीभर होने पर, चनमूभलन एवां समूल उराटन करने योग्य प्रोावश्र
एवां उग्र सांघटन का स्व प चनमाण कर सके ऐसश्र शचि पर हश्र णल दे ना िाचहए, यह णताने के चलए वे
कहते न्े चक ‘‘काम णढाओ। नन्यन्ा चवशाल कायालय णना दोगे और उसमें नांग्री
े ुाु के सान्
नपनश्र किहरश्र लगाकर णैुेंग।े ’’

ीैसश्र कश्र डॉक्टरीश्र कश्र कल्पना न्श्र, सांघ के सम्णन्ि में सरकारश्र कमभिाचरयों में ोय का वातावरण
चनमाण करने के हे तग शासन कश्र ओर से इोंे-दगोंे प्रयत्न प्रारम्ो हो गये। इसका पता नवम्णर मास में
लगा ीण चक णम्णई कश्र प्रान्तश्रय सरकार ने सण ओर पचरपत्रक ोेीकर माध्यचमक चवद्यालयों के
नध्यापकों में कौन-कौन सांघ में ोाग लेते हैं इसकश्र ीााँि करने कश्र मााँग कश्र। यह चदखने लगा न्ा चक
सांघ को नवरुद्ध करने के चलए शासन इसके गगे ोश्र और पग उुायेगा। सांघ से सम्णन्न्ित सरकारश्र
कमभिाचरयों पर गपचत्त ग सकतश्र है इस गशांका से कगछ लोग डॉक्टरीश्र से चमले, चकन्तग डॉक्टरीश्र
यह ोलश्र ोााँचत ीानते न्े चक स्वतांत्रता प्राप्त होने तक ननेक गपचत्तयों का सामना करते-करते हश्र
िैयभपूवभक गगे णढना पड़ता है । इसचलए वे उन्हें यहश्र कहते ‘‘राष्ट्र कश्र दृचष्ट से नपनश्र िोतश्र चछन ीाने
के णाद, णिा हग ग ीनेऊ ोश्र न चछन ीाये इसकश्र चिन्ता क्यों करते हो ? ीो पचरन्स्न्चत उत्पन्न हो
उसका मगकाणला करते हग ए हश्र उसमें से मागभ चनकालना िाचहए।’’

डॉक्टरीश्र के पास इन चदनों णम्णई, हग णलश्र, करािश्र, सूरत तन्ा उत्तर चहन्दगस्न्ान के कगछ स्न्ानों से पत्र
गये चक ‘‘सांघ कश्र मराुश्र प्रचतज्ञा एवां प्रान्भना पर गपचत्त होतश्र है , नतः उनमें शश्रघ्र हश्र पचरवतभन
कश्रचीए।’’ वास्तव में तो चसन्दश्र कश्र णैुक में इन सण णातों का चविार हो गया न्ा तन्ा गज्ञाएाँ एवां
प्रान्भना सांस्कृत में णनवाने का प्रयत्न ोश्र हो रहा न्ा। प्रान्भना का गशय गद्य में चलखकर कई पन्ण्डतों
के पास सांस्कृत पद्य में रिना के चलए ोेीा ोश्र गया न्ा। कगछ स्न्ानों से पद्यरचित प्रान्भना प्राप्त ोश्र हग ई
न्श्र। चकन्तग इन चवचोन्न रिनाओां में से उत्तम एवां निूक शब्दयोीनावालश्र एवां ुश्रक-ुश्रक ोाव व्यि
करनेवालश्र प्रान्भना िगनते-िगनते 1940 का मािभ-नप्रैल ग गया। तण तक इस प्रकार कश्र कगरकगर िालू
हश्र न्श्र। यह ोाव कगछ समािारपत्रों में ोश्र प्रकट हग ग। सांयगिप्रान्त से तो एक ‘सांघप्रेमश्र’ ने ‘महाराष्ट्र’
में एक खगला पत्र चलखकर णताया चक ‘‘...........ोार्ा न समझने के कारण ुश्रक उरारण नहीं हो
सकता, नतः नपेचक्षत शान्न्त, न्स्न्रता एवां गांोश्ररता नष्ट हो ीातश्र है । इसके नचतचरि सांघ कश्र प्रान्भना

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मराुश्र में होने के कारण सांघ में गये हग ए नये लोग उसे महाराष्ट्रश्रयों का समझकर उदासश्रन हो ीाते
हैं ।...........’’ उन पत्रों से डॉक्टरीश्र के ध्यान में सवभत्र ननगोव में गनेवालश्र कचुनाई तो समझ में
गतश्र न्श्र चकन्तग दूसरश्र ोार्ा के सम्णन्ि में इतनश्र नसचहष्ट्णगता उनकश्र दृचष्ट में समाी कश्र गत्मचवस्मृचत
एवां स्वाचोमानशून्यता का लक्षण प्रतश्रत होतश्र न्श्र। स्पष्ट न्ा चक इस पचरन्स्न्चत को णदलकर दे श कश्र
चवचोन्न ोार्ाएाँ परस्पर ोचगनश्र के नाते सम्मानपूवभक रह सकें यह न्स्न्चत चनमाण करने के चलए णहग त
प्रणल सांस्कार लाने कश्र गवश्यकता न्श्र।

यगद्ध कश्र न्स्न्चत का लाो उुाकर दे शव्यापश्र उुाव हो सके इस हे तग कगछ लोगों कश्र गचतचवचियााँ प्रारम्ो
हो गयश्र न्ीं। कलकत्ते में नपने चवद्यान्ी ीश्रवन में ीश्र पगचलनचणहारश्र दास कश्र चीस ‘ननगशश्रलन सचमचत’
में डॉक्टर ने प्रवेश चकया न्ा उसके एक त्यागश्र एवां नग्रगण्य क्रान्न्तकारश्र कायभकता ीश्र त्रैलोक्यनान्
िक्रवती ोश्र इन्हीं प्रयत्नों में ीगट गये। ीश्र सगोार्िन्द्र णोस से चविार-चवचनमय करके 1940 के प्रारम्ो
में हश्र वे पगराने क्रान्न्तकाचरयों को इस सम्ोाव्य चवद्रोह के सम्णन्ि में ीाग क एवां चसद्ध करने के उद्देश्य
से प्रवास पर चनकले। ीश्र नकणरशाह, लाहौर के ीश्र इन्द्रिन्द्र नारांग एवां णाणा ुकसह, नमृतसर के
िौिरश्र णगग्गामल, हमश्ररपगर चीले में राु के पन्ण्डत परमानन्द गचद पगराने एवां ननगोवश्र क्रान्न्तकाचरयों
से चमलते हग ए वे नागपगर गये तन्ा नपने पगराने सहकारश्र डॉक्टर हे डगेवार से ोश्र चमले। ीण डॉक्टरीश्र
कलकत्ते में पढते न्े तो ीश्र त्रैलोक्यनान् िक्रवती ने नपने ोूचमगत ीश्रवन में दो-एक णार डॉक्टरीश्र
के चनवासस्न्ान पर ोश्र गीय चलया न्ा। उसके उपरान्त पिश्रस-छब्णश्रस वर्भ णाद नण यह ोेंट हो रहश्र
न्श्र। एक चदन निानक ीश्र त्रैलोक्यनान् डॉक्टरीश्र के घर उनके सामने गकर खड़े हो गये। उस समय
डॉक्टरीश्र उनको पहिान नहीं पाये। तण िक्रवती ने पूछा ‘‘कलश्रिरणदा का नाम याद गता है क्या
?’’ इस प्रश्न का उत्तर डॉक्टरीश्र ने नपने प्रगाढ गकलगन से हश्र चदया।

उनकश्र ोेंट में दे श कश्र पचरन्स्न्चत के सम्णन्ि में चविार हग ग। ीश्र िक्रवती ने नत्यन्त गग्रह के सान्
णताया चक ोावश्र क्रान्न्त के गन्दोलन में डॉक्टरीश्र को नपने सम्पूणभ सांघटन के सान् कूद पड़ना
िाचहए। डॉक्टरीश्र यह ोलश्र ोााँचत एवां सहश्र-सहश्र ीानते न्े चक सांघ का उस काल का सामर्थयभ नपयाप्त
न्ा। नतः डॉक्टरीश्र के चलये कचुन न्ा चक वे चवश्वासपूवभक ‘‘हााँ’’ कह दे ते। चफर सांघटन में णाल एवां
चशशगओां कश्र सांख्या नचिक होने के कारण उन्होंने क्रान्न्त में प्रोावश्र सहयोग कश्र क्षमता के सम्णन्ि में
नपनश्र गशांका ीश्र िक्रवती के सम्मगख व्यि कश्र। िलते-िलते ीश्र त्रैलोक्यनान् यह कह गये चक
‘‘कम-से-कम नपने कगछ िगने हग ए सहयोचगयों को तो क्रान्न्त के चलए तैयार रचखए। एक णार गपने
उनके सान् क्रान्न्त का चणगगल णीा चदया चक शेर् नसांख्य ननगयायश्र नपने गप उसमे सन्म्मचलत हो
ीायेंग।े ’’ डॉक्टरीश्र के सामने सम्पूणभ न्स्न्चत साफ न्श्र। नवसर गने पर ोश्र उसका लाो उुाने के
लायक न तो ननगशाचसत एवां व्यापक सांघटन न्ा और न ीनता में हश्र पयाप्त ीाग्रचत न्श्र। यह नोाव

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उन्हें णहग त नचिक व्यचन्त करता रहता न्ा। नपना सम्पूणभ शरश्रर रोगीीभर होने के कारण इच्छानगसार
प्रयत्न करने कश्र क्षमता नहीं णिश्र इस चविार से तो मनोव्यन्ा ननेकगगणश्र होकर उनको पश्रचड़त करतश्र।

डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय चदन-प्रचतचदन चगरता हग ग दे खकर सोश्र लोग उनसे चवीाम करने के चलए कहीं
ीाने का णारम्णार गग्रह कर रहे न्े। चकन्तग वे सदै व ‘‘दे खा ीायेगा’’ कहकर टाल दे ते न्े। इन्हीं चदनों
‘महाराष्ट्र’ के सम्पादक तन्ा डॉक्टरीश्र के पगराने चमत्र ीश्र गोपाळराव ओगले पक्षाघात से णश्रमार हो
गये। डॉ. राीेन्द्रप्रसाद ने उन्हें चिचकत्सा के चलए चणहार में राीचगचर ीाने कश्र सलाह दश्र। तदानगसार ीश्र
ओगले वहााँ गये। पौन महश्रने तक राीचगचर के गरम पानश्र के झरने में प्रातः सायां स्नान एवां खाने-पश्रने
के चलए ोश्र उसश्र पानश्र का उपयोग करने के कारण स्वास्र्थय में णहग त सगिार प्रतश्रत हग ग। उनकश्र
पािनचक्रया चुक हो गयश्र एवां निोंग वायग कश्र तश्रव्रता में ोश्र कमश्र ग गयश्र।

राीचगचर से यह ननगोव लेकर लौटने के णाद ीश्र गोपाळराव ने डॉक्टरीश्र से ोश्र वहााँ ीाने का गग्रह
चकया। ‘‘हााँ-ना’’ करते-करते नन्त में डॉक्टरीश्र ने वहााँ ीाना स्वश्रकार कर चलया। इस समय तक
ीनवरश्र का गिा महश्रना समाप्त हो िगका न्ा। यह चनचित होने के णाद चणहार प्रान्त में सांघ के प्रिार
के चलए गये ीश्र णापूराव चदवाकर तन्ा ीश्र नरहरपन्त पारखश्र से पत्रव्यवहार शग हग ग। डॉक्टरीश्र ने
यह ोश्र इच्छा व्यि कश्र चक उनके सान् ीश्र गगरुीश्र एवां ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र ोश्र राीचगचर िलें। फलतः
नपनश्र सण तैयारश्र करके गप्पाीश्र चदनाांक 30 ीनवरश्र को नागपगर ग गये। चकन्तग कायभ कश्र वृचद्ध के
कारण ीश्र गगरुीश्र के चलए समय चनकालना सम्ोव नहीं हग ग।

णगिवार चदनाांक 31 ीनवरश्र को ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र, ीश्र णाणा इन्दूरकर, ीश्र तात्या तेलांग तन्ा ीश्र
णाणाीश्र कल्याणश्र के सान् डॉक्टरीश्र नागपगर से राीचगचर के चलए रवाना हो गये। दूसरे चदन राचत्र को
वे गया पहग ाँ ि।े मागभ में ोण्डारा, गोंचदया, ीणलपगर, इलाहणाद, मगगलसराय, गचद स्न्ानों के
स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र के दशभन के चलए स्टे शन पर गये न्े। नागपगर से िलते समय पान्ेय के प में
काफश्र खाने-पश्रने का सामान णााँि चदया न्ा। चकन्तग हर स्टे शन पर चमलने गनेवाले स्वयांसेवकों को
नत्यन्त प्रेम से लड्डू-चिड़वा गचद णााँटकर डॉक्टरीश्र ने गया पहग ाँ िते-पहग ाँ िते सण ोार हलका कर
चदया। गया में उनका चनवास कगमार कृष्ट्णवल्लोप्रसाद नारायण कसह उपाख्य णणगगीश्र के घर पर न्ा।
चदनाांक 2 फरवरश्र को वहााँ कश्र शाखा पर डॉक्टरीश्र का ोार्ण हग ग। तदगपरान्त वे सणके सान् पटना
गये। वहााँ तश्रन चदन ुहरे । इनमें से एक चदन सांघस्न्ान पर उन्हें ‘मानवन्दना’ दे ने का कायभक्रम ोश्र
हग ग। शाखा पर ोार्ण तन्ा एक नयश्र शाखा के उद्-घाटन के ोश्र कायभक्रम हग ए। ‘मानवन्दना’ के
कायभक्रम के चदन निानक वर्ा होने के कारण डॉक्टरीश्र तन्ा सोश्र स्वयांसेवक ोश्रग गये। चकन्तग इस
न्स्न्चत में ोश्र नपने स्वास्र्थय कश्र तचनक चिन्ता न करते हग ए डॉक्टरीश्र ने नन्त तक सोश्र कायभक्रमों का
सही ोाव से चनवाह चकया। चदनाांक 6 को सायांकाल गया के सांघिालक ीश्र णणगगीश्र कश्र मोटर में

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सण लोग राीचगचर गये। इसके पूवभ वे णगद्धगया, चवष्ट्णगपद, गयागदािर, गायत्रश्र, शांकरािायभ, फल्गग
गचद िार्तमक एवां सास्कृांचतक महत्त्व के स्न्ानों पर ोश्र गये।

पटना में ीश्र कृष्ट्णदे वप्रसादीश्र के सान् णातिश्रत के सही प्रवाह में ‘राष्ट्रश्रय कौन’ चवर्य पर डॉक्टरीश्र
ने नत्यन्त हश्र मौचलक चविार रखा। उन्होंने कहा ‘‘राष्ट्रश्रय और नराष्ट्रश्रय का चनणभय, चकसश्र कश्र वृचत्त
ोचिमय है या ोोगवादश्र यहश्र दे खकर करना िाचहए। कचव इकणाल चहन्दगस्न्ान का वणभन करते हग ए
‘हम णगलणगलें हैं उसकश्र, वह गगचलस्तााँ हमारा’ यहश्र कहता है । इस दे श को ‘ोारतमाता’ माननेवाले सरे
दे शोि नन्ात् चहन्दू के मगख से कोश्र ऐशश्र ोार्ा नहीं चनकल सकतश्र।’’ न्ोड़श्र दे र णाद डॉक्टरीश्र ने
गगे कहा ‘‘पर इनको दोर् दे ने मात्र से काम नहीं िलेगा चक ये ोोगवादश्र नराष्ट्रश्रय लोग दे श के चहत
कश्र ओर ध्यान नहीं दे ते। घर कश्र टूटश्र-फूटश्र दश्रवार कश्र मेहमान चिन्ता नहीं करता नतः उसकश्र चनन्दा
करने से क्या लाो क्योंचक वह तो ीानणूझकर ोोग करने के चलए हश्र गया है ? घर कश्र ओर ध्यान
दे ने का कतभव्य तो घर के स्वामश्र का हश्र है । नतः सांघ यहश्र कहता है चक चहन्दगओां को सांघचटत होकर
नपना कतभव्य पूणभ करना िाचहए।’’ इसश्र नवसर पर एक णार यह णताते हग ए चक सांघ में राष्ट्रश्रय दृचष्ट
से चहन्दगओां के नन्तःकरणों कश्र रिना होतश्र है , उन्होंने कहा न्ा चक “In our country there are
so many colleges of arts, but there are no colleges of hearts.” (‘‘नपने दे श में कला
के प्रचशक्षण के तो कई महाचवद्यालय हैं परन्तग हृदय के प्रचशक्षण के कोई महाचवद्यालय नहीं हैं ’’)। मेरश्र
गकाांक्षा है चक सांघ College of hearts (हृदयों के प्रचशक्षण का महाचवद्यालय) हो।’’ वे ननेक
णार यह चविार व्यि करते न्े चक सांघ राष्ट्रश्रय वृचत्त चनमाण करनेवाला एक महाचवद्यालय है ।

राीचगचर पटना से पैंसु मश्रल पर है । मोटर एवां रे ल दोनों से हश्र दूरश्र समान है । राीचगचर का इचतहास
ीरासन्ि के काल का पगराना है । नण तो यह छोटा-सा तश्रन हीार कश्र गणादश्र का कस्णा रह गया है
चकन्तग नीातशतु के समय में यह नत्यन्त वैोवपूणभ न्ा। उसके ध्वांसावशेर् नण ोश्र राीचगचर के
दचक्षण में फैले हग ए चदखते हैं । इनके दचक्षण में चवपगलािल, वैोारचगचर, रत्नािल, उदयचगचर एवां सोनचगचर
इन पााँि पवभतों कश्र वतगभलाकृचत पांचियााँ चवद्यमान हैं । ीरासन्ि कश्र राीिानश्र इस पवभतश्रय क्षेत्र में हश्र
नवन्स्न्त न्श्र। ोगवान् णगद्ध ने ोश्र कगछ काल यहााँ तपस्या कश्र न्श्र। वह स्न्ान गी ‘गृध्रकूट’ नाम से
चवख्यात है ।

डॉक्टरीश्र के चनवास के चलए राीचगचर में ीश्र रामलाल ीैन का मकान चकराये पर चलया गया न्ा। घर
में िार नच्छे कमरे तन्ा एक 25’X12’ कश्र प्रशस्त णैुक न्श्र। घर कश्र छत ोश्र िौड़श्र और खगलश्र हग ई
न्श्र। यहााँ गने के णाद प्रचतचदन प्रातः साढे िार णीे उुकर डॉक्टरीश्र तन्ा गप्पाीश्र दोनों हश्र टमटम
से गरम पानश्र के झरने में स्नान करने के चलए ीाते। नन्य स्वयांसेवक उनके पश्रछे-पश्रछे पैदल हश्र िलते

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न्े। स्नान का स्न्ान डॉक्टरीश्र के चनवास से लगोग एक मश्रल दूर न्ा। चकन्तग कोश्र-कोश्र टमटम कश्र
यात्रा ोश्र डॉक्टरीश्र को कष्टकारक होतश्र न्श्र।

वैोारचगचर कश्र तलहटश्र से तश्रस-पैंतश्रस फश्रट कश्र ऊाँिाई पर िढते हश्र गरम पानश्र के ये सात झरने चमलते
हैं । सात-गु फगट के नन्तर से कसहमगख णने हग ए हैं चीनमें से सदै व नखण्ड प से पानश्र चगरता रहता
है । दो झरने उत्तर कश्र ओर तन्ा शेर् पााँिों पूवभ कश्र ओर कुहरे से णाहर चनकले हग ए हैं । सप्तर्तर्कगण्ड
का यह ोाग सािारण तौर पर िालश्रस कदम लम्णा तन्ा सात कदम िौड़ा है । इसके पूवभोाग में सोलह
सश्रचढया नश्रिे उतरने के णाद पन्द्रह वगभ फगट िौड़ा तन्ा िार-पााँि फगट गहरा एक सगन्दर कगण्ड चमलता
है वहााँ ऊपर से िार नहीं चगरतश्र क्योंचक झरने का स्रोत नश्रिे से फव्वारे के समान ऊपर गता है ।

इन झरनों एवां कगण्ड का पानश्र शरश्रर को णहग त सगहाता है तन्ा उसमें गन्िक कश्र नन्वा नन्य चकसश्र
प्रकार कश्र गन्ि न होने के कारण पश्रने में ोश्र णगरा नहीं लगता। चवशेर्तया ीाड़े के चदनों में इन झरनों
में स्नान णहग त लाोप्रद होता है । पानश्र को पहले-पहले स्पशभ करने पर शरश्रर को न्ोड़ा-सा गरम-गरम
लगता है चकन्तग न्ोड़श्र हश्र दे र में इतना गनन्द गता हैं चक वहााँ से हटने कश्र इच्छा नहीं होतश्र। इस पानश्र
में गमवात, सन्न्िवात तन्ा नन्य पश्रड़ाओां तन्ा पािनशचि णढाने का गगण होने के कारण प्रातः से
लेकर राचत्र तक स्नान के चलए इन रोगों से पश्रचड़त व्यचियों कश्र ोश्रड़ लगश्र रहतश्र है ।

उन झरनों में तश्रसरा झरना णड़ा है और उसके नश्रिे णैुकर स्नान करने का स्न्ान खगला और नच्छा
है । इसचलए प्रत्येक कश्र चनगाह उसकश्र ओर लगश्र रहतश्र है । डॉक्टरीश्र को यह नच्छा नहीं लगा चक खगद
वहााँ णैुे-णैुे स्नान करते रहें और दूसरे उनकश्र ओर ताकते हग ए णाट दे खते रहें । फलतः चनःसांकोि ोाव
से स्नान चकया ीा सके इस हे तग वे णहग त हश्र तड़के मगगे के णााँग दे ने के पहले हश्र वहााँ पहग ाँ िने का प्रयत्न
करते। वे गरम पानश्र के झरने के नश्रिे णैुकर नपनश्र ददभ करनेवालश्र पश्रु का नच्छश्र तरह सेंक करते।
पानश्र कश्र तेी िार के नश्रिे दस-पन्द्रह चमचनट णैुने पर पश्रु कश्र नपने गप माचलश हो ीातश्र न्श्र तन्ा
सारे शरश्रर में खून का दौरा तेी होने के कारण ताीगश्र मालूम दे ने लगतश्र। कोश्र-कोश्र पहग ाँ िने में दे र
हो ीातश्र। पर कगछ चदनों के पचरिय से वहााँ चनत्य के गनेवालों पर डॉक्टरीश्र का ीो प्रोाव पड़ गया
न्ा उसके कारण वे स्वयां हश्र उनके चलए ीगह खालश्र कर दे ते तन्ा उन्हें गराम के सान् स्नान करने
दे ते। चणहार के एक ीमींदार साहण नपने िौकश्रदारों के पहरे में स्नान करते न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र के
गगमन का पता लगते हश्र वे एक ओर हट ीाते तन्ा उनसे स्नान करने का गग्रह करते। केवल स्नान
करते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र ने नपने सौीन्य से लोगों को इतना प्रोाचवत कर चदया न्ा चक कई व्यचियों
ने तो डॉक्टरीश्र को नपने चनवासस्न्ान पर गने के चलए गमांचत्रत चकया तन्ा इसमें नपना नहोोाग्य
समझा।

यन्ेच्छ स्नान होने के उपरान्त ब्रह्मकगण्ड के उत्तर में चवद्यमान ीश्र लक्ष्मश्रनारायणीश्र के मन्न्दर में ीश्र
गप्पाीश्र ीोशश्र चवष्ट्णगसहस्रनाम का पाु करते। डॉक्टरीश्र णगल में णैुे शान्न्तपूवभक सगनते रहते।

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कगण्ड से लौटते-लौटते सात-गु णी ीाते तन्ा उसके उपरान्त न्ोड़ा चवीाम करके ोोीन होता।
प्रारम्ो में कगछ चदनों तो डॉक्टरीश्र के सान् गये हग ए स्वयांसेवक हश्र रसोई पकाते न्े। चकन्तग णाद में एक
रसोइया चमल गया। दोपहर को ोोीन के णाद सािारणतः तश्रन णीे तक चवीाम करते और उसके
णाद िाय लेकर राचत्रपयभन्त णातिश्रत एवां पत्रलेखन गचद िलता।

राीचगचर में चवीाम के समय डॉक्टरीश्र लेटे-लेटे नपने पूवभ ीश्रवन कश्र ननेक घटनाओां का वणभन
सगनाते रहते। कोश्र-कोश्र ‘दासणोि’ कश्र एकाि ओवश्र लेकर उसके व्यवहाचरक नन्भ का चववेिन
करते। उनका नचोमत न्ा चक लाखों लोगों का सगसम्णद्ध प से सांग्रह करनेवालों के चलए ीश्र समन्भ
रामदास द्वारा ग्रचन्त सांघटन के सूत्र व्यवहार में नत्यचिक उपयोगश्र चसद्ध हो सकते हैं । एक णार
वातालाप के णश्रि उनसे प्रश्न पूछा गया चक ‘‘क्रान्न्तकारश्र गन्दोलन में गपने ननेक उुक-पटक कीं,
परन्तग यह कैसे हग ग चक उनमें से कोई ोश्र णात कोश्र नहीं फूटश्र तन्ा गप सरकार के ीाल में नहीं फाँस
पाये ?’’ इस पर उन्होंने नाम णदलने, वेर् णदलने गचद के सान् नन्य सतकभता णरतनेवालश्र णातों कश्र
ोश्र कल्पना दश्र। उन्होंने कहा ‘‘मैंने इस चवर्य में कोश्र कोई पत्र नहीं चलखा। कोई काम गया तो या
तो खगद चमलने ीाता नन्वा चकसश्र व्यचि के द्वारा सन्दे श ोेीता। सम्णन्न्ित लोगों के पते ोश्र मैंने
कहीं चलखकर नहीं रखे। वे पते मगझे वैसे हश्र याद न्े।’’ यह कहकर वे कगछ दे र रुके और उन्होंने पांीाण,
उत्तरप्रदे श, णांगाल गचद के पिश्रस-तश्रस लोगों के पते िड़ािड़ सगना चदये।

कोश्र-कोश्र डॉक्टरीश्र नीातशतु के चकले कश्र ओर घूमने ीाते न्े। एक णार वे उस स्न्ान पर गये ीो
ीरासन्ि कश्र राीिानश्र के नाम से चवख्यात है । वहााँ उन्हें यह दे खकर णड़ा दगःख हग ग चक पगराने नखाड़े
के स्न्ान पर चकसश्र मगसलमान पश्रर कश्र कब्र णनाकर उसे नपने नचिकार में करने का प्रयत्न मगसलमानों
ने चकया न्ा। ‘‘चहन्दू समाी के सोनेवाले स्वोाव के कारण ये गक्रमण शनैः-शनैः होते रहते हैं और
शश्रघ्र हश्र रोकना िाचहए’’, यह चविार उनकश्र णातिश्रत में प्रकट होता रहता न्ा। उनके वहााँ चनवासकाल
में हश्र कचतपय मगसलमानों ने गगण्डागदी और ीोर-ीणदभ स्तश्र से कगछ वैचदक एवां णौद्ध दोनों हश्र पन्न्ों के
चलए पचवत्र एवां पूज्य स्न्ानों पर नपना विभस्व प्रस्न्ाचपत करने का प्रयत्न चकया न्ा। डॉक्टरीश्र को यह
ीानकर और ोश्र गशियभ हग ग चक मगसलमानों के इस र्डयांत्र को चवफल करने एवां उनका प्रचतरोि
का काम चहन्दू समाी ने नहीं चकया नचपतग एक ीापानश्र णौद्ध चोक्षग को उसमे नग्रसर होना पड़ा। इन
णातों को सगनकर उनके मन में यहश्र चिन्ता होतश्र न्श्र चक इस प्रकार के चदन-दहाड़े नपनश्र गाँखों के
सामने होनेवाले नत्यािार और गघातों को सदै व के चलए समाप्त करने का चविार समाी में कण
पैदा होगा ?

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कगछ चदनों सायांकाल ोश्र वे झरने पर स्नान के चलए ीाते न्े। वहााँ से लौटने के णाद दगग्िपान करते।
उनकश्र और्चियों में ओवलटश्रन एवां हार्तलक्स ोश्र पिने में सरल होने के कारण णतायश्र गयश्र न्ीं परन्तग
ीहााँ तक हो सके उन्होंने चवदे शश्र वस्तगओां को टाला तन्ा कगछ चदनों वे णकरश्र का दूि पश्रकर रहे ।

डॉक्टरीश्र के मन में यह चविार णराणर िलता रहता न्ा चक तत्कालश्रन पचरन्स्न्चत में सांघ का कायभ
चकतना णढ ीाये चक स्वतांत्रता के चलए प्रत्यक्ष सचक्रय प्रयत्न चकये ीा सकें। नशिता एवां चविारों कश्र
तश्रव्रता के कारण उन्हें कोश्र गहरश्र नींद नहीं गतश्र न्श्र। एक चदन दोपहर को ोोीन के णाद सोते-सोते
हश्र वे णड़णड़ा उुे । ‘‘यह दे खो 1940 ोश्र ीा रहा है । हम नोश्र कगछ नहीं कर पाये। गी हम परतांत्र
हैं पर स्वतांत्र होकर हश्र रहें ग,े ’’ इस गशय के छग टपगट वाक्य उनके मगाँह से चनकले। इसश्र समय णगल
में लेटे हग ए ीश्र गप्पाीश्र ने ‘‘डॉक्टरीश्र, लगता है चक गपको कोई स्वप्न चदखा; गप ीाग गये क्या’’
कहकर डॉक्टरीश्र को सिेत चकया। ीो मन में डोलता है , वहश्र स्वप्न में चदखता है । चनस्सन्दे ह उनके
मन कश्र स्वतांत्रता-प्राचप्त के चलए गकगलता हश्र उनके इन शब्दों में प्रकट हग ई न्श्र।

डॉक्टरीश्र के पास राीचगचर में िारों ओर से पत्र गते रहते न्े। उस छोटे -से कस्णे में प्रचतचदन उनके
पास इतने पत्र गते दे खकर डाकखाने णाणू के मन में चीज्ञासा हग ई चक ‘‘ये हे डगेवार कौन हैं चीनकश्र
डाक इतनश्र नचिक रहतश्र है ?’’ इिर-उिर कगछ ििा हग ई और चफर कगछ लोग डॉक्टरीश्र से चमलने
पहग ाँ ि।े डॉक्टरीश्र से पचरिय कर उन्हें णड़ा गनन्द हग ग तन्ा उन्होंने कहा ‘‘डॉक्टरीश्र, गपको चीस
चकसश्र णात कश्र गवश्यकता या नड़िन हो हमें गदे श दश्रचीए, पूरा करें ग।े ’’ इनमें से एक सज्जन ीश्र
हां सदे व मगचन न्े। वे णड़श्र सांगत के महन्त न्े। गयग में तरुण चकन्तग नत्यन्त णगचद्धमान् एवां वेदान्त के
ज्ञाता न्े। डॉक्टरीश्र का उनसे वहााँ काफश्र सम्णन्ि गया। कगण्ड पर पूीा-पाु करानेवाले पण्डों से ोश्र
पचरिय हग ए चणना नहीं रह पाया। डॉक्टरीश्र के मन में यह ोाव णराणर न्ा चक इस पचरिय में से गगे
िलकर शाखा कश्र स्न्ापना होनश्र िाचहए। नगरवासश्र ीो लोग उनसे चमलने गते उनके सान् िश्ररे-िश्ररे
डॉक्टरीश्र ने सांघ के सम्णन्ि में ििा शग कर दश्र। रात को ोोीन करने के उपरान्त रसोइये के सान्
ोश्र वे समाी कश्र नवस्न्ा एवां एकता कश्र गवश्यकता के चवर्य में नत्यन्त सरल ोार्ा में णातें करते
रहते।

णसन्तपांिमश्र पर नगर कश्र पाुशाला में उत्सव मनाने कश्र तैयारश्र प्रारम्ो हो गयश्र। कगछ चवद्यान्ी िन्दा
मााँगते हग ए डॉक्टरीश्र के पास ोश्र गये। उस समय डॉक्टरीश्र कगण्ड से स्नान करके लौट हश्र रहे न्े तन्ा
न्ोड़श्र-सश्र न्कान मालूम होने के कारण गराम करने के चलए तचकये के सहारे लेटे हग ए न्े। चवद्यार्तन्यों
के झगण्ड को णाहर सड़क पर दे खते हश्र ीश्र तेलांग ने वहााँ ीाकर ‘‘घर के माचलक नोश्र सोये हग ए हैं ,
चफर कोश्र गइए’’ यह कहकर उन्हें णाहर-से-णाहर हश्र चणदा कर चदया। डॉक्टरीश्र कश्र पााँि सात चमचनट
णाद हश्र गाँख खगल गयश्र। उन्होंने कहा ‘‘कोई गया न्ा क्या ?’’ ीश्र तेलांग ने चवद्यार्तन्यों के गने तन्ा

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उन्हें वापस ोेीने का वृत्तान्त सगनाया। यह सगनकर डॉक्टरीश्र ीरा कुद्ध हग ए। उन्होंने कहा ‘‘हम
ननीाने स्न्ान पर हैं , ीहााँ चकसश्र चनचमत्त से स्वयां गनेवाले चवद्यार्तन्यों का पचरिय करने के स्न्ान पर
उनको वापस लौटाना ुश्रक नहीं है । ीाओ, नोश्र वे पास हश्र होंगे। उन्हें णगला लाओ।’’

शश्रघ्र हश्र वे चवद्यान्ी डॉक्टरीश्र कश्र णैुक में ग गये। डॉक्टरीश्र ने उन्हें प्रेमपूवभक णैुाया तन्ा उनमें से
एक-एक से नच्छश्र तरह पचरिय चकया। चवद्यान्ी सायांकाल क्या करते हैं , कौनसे खेल खेलते हैं ,
चवद्यार्तन्यों में लोकचप्रय चशक्षक कौन-कौन हैं , गचद ीानकारश्र उन्होंने पचरिय करते-करते सही प्राप्त
कर लश्र। िलते समय उन्हें एक रुपया िन्दा में चदया। इस पचरिय का णहग त लाो हग ग क्योंचक उसश्र
के गिार पर गगे सांघ कश्र शाखा स्न्ाचपत हो सकश्र।

राीचगचर से ीश्र गगरुीश्र के पते पर णश्रि-णश्रि में पत्र गते रहते न्े। उनसे यहश्र पता िलता न्ा चक
स्वास्र्थय में कोई चवशेर् सगिार नहीं हग ग। चदनाांक 17 फरवरश्र के पत्र में वे चलखते हैं चक ‘‘........सणके
स्वास्र्थय पर नच्छा पचरणाम चदखायश्र दे ता है । नपने स्वास्र्थय के सम्णन्ि में गी कगछ नहीं कहा ीा
सकता। सम्पूणभ व्यवस्न्ा नच्छश्र है .......।’’ डॉक्टरीश्र के सान् गये ीश्र णाणा इन्दूरकर चदनाांक 23
फरवरश्र के पत्र में चलखते हैं चक ‘‘.........डॉक्टरीश्र के स्वास्र्थय पर यहााँ कश्र ीलवायग का नोश्र ोश्र स्पष्ट
चदखनेवाला कोई पचरणाम नहीं हग ग। यहााँ के स्न्ानश्रय लोगों का यह ख्याल है चक वैसा पचरणाम चदखने
के चलए नोश्र कई सप्ताह लगेंग।े ’’

राीचगचर में गये हग ए नोश्र एक महश्रना ोश्र नहीं हग ग न्ा चक डॉक्टरीश्र कश्र चिन्ता में वृचद्ध करनेवाला
एक समािार चमला। पांीाण सरकार द्वारा प्रान्त में सैचनक पद्धचत से िलनेवाले सोश्र कामों पर प्रचतणन्ि
लगाने के कारण सांघकायभ के मागभ में कगछ णािाएाँ उत्पन्न हो गयश्र न्ीं। इस गज्ञा में कहा गया न्ा चक
‘‘ोारत सगरक्षा चनयम के चनयम 58 के उपचनयम )1) के द्वारा प्रदत्त शचियों के नन्तगभत पांीाण के
राज्यपाल यह चनदे श दे ते हैं चक पांीाण कश्र सश्रमाओां में कोई ोश्र व्यचि हान् में शस्त्र लेकर नन्वा शस्त्र
के समान उपयोग चकये ीा सकनेवाले उपकरण लेकर चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र सैचनक पद्धचत कश्र कवायद,
व्यायाम या नन्य चक्रया में ोाग नहीं लेगा।’’

ऐसा लगता न्ा चक सरकार द्वारा नपवाद मानश्र गयश्र णालिर-सांस्न्ा के नचतचरि सोश्र स्वयांसेवक-
दलों पर इस गज्ञा का णहग त प्रचतकूल पचरणाम होगा। डॉक्टरीश्र को यह ोलश्र ोााँचत पता न्ा चक यगद्ध
के ोार से दणश्र हग ई चवदे शश्र सरकार इस प्रकार कश्र दमननश्रचत का नवलम्णन कर सकतश्र है । उसका
चहन्दू समाी के सांघटन पर चकसश्र ोश्र प्रकार का पचरणाम न हो इस दृचष्ट से उन्होंने सोश्र कायभकताओां
को यह णता रखा न्ा चक चकसश्र ोश्र पचरन्स्न्चत कश्र चिन्ता न करते हग ए कम-से-कम एक स्न्ान पर
प्रचतचदन इकट्ठा होने के कायभक्रम पर णल चदया ीाये। चदनाांक 5 मािभ को ोेीे गये नपने पत्र में वे
पांीाण प्रान्त के प्रिारक को चलखते हैं ‘‘नोश्र तो मेरा यहश्र सगझाव है चक गप चवचोन्न खेल और प्रान्भना

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के कायभक्रम िलाते रहें । नाम गचद णदलने कश्र कोई गवश्यकता मगझे नहीं प्रतश्रत होतश्र। कारण,
नपने नाम का कहीं ोश्र और चकसश्र प्रकार का ोश्र सम्णन्ि नहीं गया है ।’’ ननगकूलता में हश्र काम
करने कश्र दगणभल वृचत्त डॉक्टरीश्र ने कायभकताओां में चनमाण नहीं कश्र न्श्र। उन्हें तो ोश्रर्ण पचरन्स्न्चतयों
को रौंदकर गगे पग ण ाने का हश्र पाु चमला न्ा। नतः इस प्रकार के सरकारश्र प्रचतणन्ि के उपरान्त
ोश्र पांीाण में सांघकायभ का चवस्तार नहीं रुका। यह स्वयांसेवकों कश्र दृढ चनष्ठा, लगन और कगशलता का
हश्र पचरणाम न्ा।

डॉक्टरीश्र ीण राीचगचर के चलए िले तो यहश्र चविार हग ग न्ा चक वे वहााँ एक मास रहकर चवीाम करें
तन्ा मािभके प्रारम्ो में नागपगर के सांघिालक ीश्र णाणासाहण घटाटे के पगत्रों के यज्ञोपवश्रत -सांस्कार के
समय नागपगर ग ीायें। तदनगसार चदनाांक 3 मािभ को डॉक्टरीश्र ने चणहार प्रान्त के सोश्र कायभकताओां
कश्र णैुक नपने चनवासस्न्ान पर कश्र। उसश्र चदन इन कायभकताओ कश्र उपन्स्न्चत में हश्र राीचगचर में
शाखा कश्र चवचिवत् स्न्ापना हग ई। प्रान्तश्रय णैुक में डॉक्टरीश्र ने नागपगर लौटने का चविार रखा। उनके
इस प्रस्ताव से सोश्र सांघिालकों ने नसहमचत प्रकट कश्र। इस चवर्य में चदनाांक 6 मािभ के पत्र में
डॉक्टरीश्र ीश्र घटाटे को चलखते हैं चक ‘‘...........सोश्र सांघिालकों को यह मत हग ग चक मािभ के
महश्रने में यहााँ ीाड़ा कम होने पर हवा नच्छश्र हो ीातश्र है । यह महश्रना हमारे स्वास्र्थय के चलए लाोप्रद
होगा। नतः इतनश्र दूर गने पर इस प्रकार ील्दश्र हश्र राीचगचर से न ीाते हग ए और एक महश्रना यहााँ
ुहरकर यहााँ के प्राकृचतक उपिार का लाो एवां ननगोव लेना िाचहए। मैने उन्हें चवचोन्न प्रकार से
नागपगर ीाने का महत्त्व समझाने का प्रयत्न चकया। चकन्तग इस चवर्य में उन सणने हु करके मगझे
राीचगचर से न ीाने दे ने का हश्र चनिय चकया तन्ा नपने इस चनिय को व्यवहार में लाने के चलए उनमें
से कगछ लोग दो चदन तक यहााँ ुहरे ोश्र रहे ।............इस पचरन्स्न्चत में गपके यहााँ इस मांगलोत्सव पर
प्रत्यक्ष उपन्स्न्चत सम्ोव न होने के कारण, मन नागपगर में और शरश्रर राीचगचर में ऐसश्र चवचित्र नवस्न्ा
हो गयश्र है । कृपया इस चवर्य में गप हमें क्षमा करें ।’’

डॉक्टरीश्र द्वारा यह सूचित करने के उपरान्त ोश्र उनको णगलाने के चलए पत्र-पर-पत्र तन्ा तार-पर-तार
गने लगे। नतः चदनाांक 9 मािभ को वे तन्ा ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र नागपगर के चलए िले। उनको लेने के
चलए ीश्र गगरुीश्र मोटर लेकर ीणलपगर गये तन्ा वहााँ से प्रातःकाल िार-साढे िार णीे डॉक्टरीश्र को
लेकर नागपगर पहग ाँ ि।े चदनााँक 16 मािभ तक यज्ञोपवश्रत-सांस्कार के कारण वे नागपगर में रहे । इस णश्रि
कायभक्रम के चनचमत्त मध्यप्रान्त के चवचोन्न स्न्ानों से गये कायभकताओां के सान् उन्होंने सांघकायभ कश्र
वृचद्ध कश्र दृचष्ट से चविार-चवचनमय चकया। यगद्ध-पचरन्स्न्चत एवां सरकार कश्र वक्रदृचष्ट होते हग ए ोश्र कायभ
सण ओर णढ रहा न्ा, चकन्तग उसके कारण डॉक्टरीश्र के मन को समािान नहीं न्ा। चीस चहन्दू समाी
में सांघटन के नाम पर शून्य हश्र न्ा वहााँ हीारों कश्र सांख्या में स्वयांसेवकों का खड़े हो ीाना चनस्सन्दे ह
नचोमानास्पद तन्ा गशादायक न्ा। चकन्तग चीस पचरन्स्न्चत के ऊपर काणू पाना न्ा उसकश्र ोश्रर्णता

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कश्र तगलना में यह कायभ ‘दचरया में खसखस’ के समान हश्र न्ा। डॉक्टरीश्र कश्र चिन्ता के मूल में यहश्र
ोावना एवां ज्ञान न्ा। इन छः-सात चदनों में हश्र कगछ स्वयांसेवकों से डॉक्टरीश्र ने यह सूिक प्रश्न पूछा
न्ा चक ‘‘स्वतांत्रताप्राचप्त के चलए दे श में चकतने स्वयांसेवक खड़े करने िाचहए।’’

मन कश्र इस प्रकार कश्र णेिन


ै श्र में हश्र डॉक्टरीश्र चदनाांक 18 को पगनः राीचगचर लौटे । रास्ते में णहग त ोश्रड़
के कारण डॉक्टरीश्र कश्र यात्रा णड़श्र कष्टकर रहश्र। राीचगचर पहग ाँ िने के दो-एक चदन णाद हश्र स्नान का
क्रम चफर से शग हो गया। सांघटन के चकतना णढ ीाने पर उचद्दष्ट पूणभ हो सकेगा उस चवर्य में उनका
चहसाण चनचित हो गया न्ा। नपने कगछ सहकाचरयों को यह चवचदत करने के चलए उन्होंने नागपगर पत्र
ोश्र चलखे। एक पत्र में वे चलखते हैं ‘‘नपने सांघ को प्रोावश्र णनाने के चलए गपके सम्मगख एक हश्र
चविार रखता हू ाँ चक तश्रन वर्ों में )1940 से 42) नपने प्रान्त में गणवेशिारश्र तरुण स्वयांसेवकों कश्र
सांख्या ीनसांख्या के चहसाण से ग्रामों में एक प्रचतशत तन्ा नगरों में तश्रन प्रचतशत हो ीानश्र िाचहए।

‘‘यह सण कैसे हो सकेगा इसका पूणभ चविार कर गप सणने उत्साह और लगन के सान् यह कायभ
हान् में चलया तो मगझे चवश्वास है चक तश्रन वर्भ में ‘हााँ-हााँ’ करते हग ए यह काम पूरा हो ीायेगा। परमेश्वर
से मेरश्र यहश्र प्रान्भना है चक वह गपको नांगश्रकृत कायभ में सफलता प्रदान करें ।’’

डॉक्टरीश्र कश्र इस सूिना के ननगसार सोश्र शाखाओां में सांख्या के ये लक्ष्य पूणभ करने का चविार एवां
प्रयत्न प्रारम्ो हो गये। नये-नये कायभकता काम के चलए णाहर चनकलने लगे। इसश्र समय लाहौर में
मगन्स्लम लश्रग का नचिवेशन हग ग। उसके प्रस्तावों तन्ा खाकसारों के णेलिों कश्र झनकार ने उसकश्र
ओर सणका ध्यान गकृष्ट कर चदया। इसश्र नचिवेशन में मगसलमानों का नलग एवां स्वतांत्र राज्य
चनमाण करने का नत्यन्त नसन्न्दग्ि शब्दों में सांकल्प चकया गया। शासन के सैचनक सांिलन पर
प्रचतणन्ि कश्र नवहे लना कर लाहौर में खाकसारों द्वारा गन्दोलन का ोश्र चनणभय चलया गया।
पचरणामस्व प पगचलस और खाकसारों के णश्रि सांघर्भ हग ग चीसमें तश्रस-िालश्रस मारे ोश्र गये। स्न्ान-
स्न्ान पर कफ्यूभ लगा चदया गया। पांीाण कश्र इन घटनाओां कश्र ओर डॉक्टरीश्र का पूरा ध्यान न्ा। उनका
चवश्वास न्ा चक मगसलमानों कश्र गक्रमणकारश्र प्रवृचत्त का सामना करने का सामर्थयभ सांघ के सांस्कारप्राप्त
तरुणों द्वारा नवश्य हश्र प्रकट होगा। उनका यह गत्मचवश्वास चकतना सहश्र न्ा इसका प्रमाण
स्वयांसेवकों ने इस चवर्म पचरन्स्न्चत में ोश्र कायभ को णढाकर चदया। डॉक्टरीश्र को ीण इस कायभवृचद्ध
का समािार चमलता तो उन्हें नत्यन्त हर्भ एवां सन्तोर् होता। इसका चववेिन करते हग ए वे एक पत्र में
ीश्र गगरुीश्र को चलखते हैं चक ‘‘णदलतश्र हग ए पचरन्स्न्चत में नपना कायभ तेीश्र से णढ रहा है इसका स्पष्ट
नन्भ यह है चक नपना काम चकसश्र ोश्र चवशेर् कायभक्रम पर नवलन्म्णत नहीं है , नचपतग नपने ध्येय एवां
कायभपद्धचत में इतनश्र नन्तःशचि है चक वह सण प्रकार कश्र पचरन्स्न्चत में से सफलता हश्र प्राप्त करता

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ीायेगा।’’ इस पत्र में नचोव्यि चवचीगश्रर्ग-वृचत्त सोश्र स्वयांसेवकों के हृदयों में उफान ले रहश्र न्श्र।
डॉक्टरीश्र ने नपने ीश्रवन के नखण्ड यज्ञ से हश्र यह ीादू कर चदया न्ा।

दूसरश्र णार ीण डॉक्टरीश्र राीचगचर गये तण उनके सान् ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र नहीं गये न्े। वे िााँदा में
िार चीलों का प्रान्तश्रय सम्मेलन समाप्त होने के णाद चदनाांक 31 मािभ को वहााँ पहग ाँ ि।े इस समय
डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय कगछ-कगछ सगिरने लगा। रात को उनके पैरों को रुई के पत्तों से सेका ीाता न्ा।
नागपगर से िलते समय डॉक्टरीश्र ने पढने के चलए सान् में गश्रता ले िलने के चलए कहा न्ा तन्ा
गप्पाीश्र को णांगला पढाने के चलए णांगला कश्र कगछ प्रान्चमक पगस्तकें ोश्र ले लश्र न्ीं। चकन्तग इन दोनों
णातों के चलए राीचगचर में चवशेर् समय नहीं चमल सका। स्वास्र्थय में कगछ सगिार होते हश्र डॉक्टरीश्र
नचिक समय वातालाप तन्ा पत्रव्यवहार में लगाने लगे।

डॉक्टरीश्र द्वारा प्रयत्न एवां चववेकपूवभक शान्त णनाया हग ग स्वोाव नण कोश्र-कोश्र नपने नसलश्र एवां
मूल प में ग ीाता। उनके व्यवहार में न्ोड़ा-न्ोड़ा चिड़चिड़ापन चदखने लगा न्ा। परन्तग क्रोि में
दूसरे के सान् तश्रखा णोलने या व्यवहार करने में उसकश्र पचरणचत कोश्र नहीं हग ई। हााँ, उनके गसपास
रहनेवालों से उनके मन कश्र नप्रसन्नता नहीं चछन सकतश्र न्श्र। राीचगचर में एक चदन उन्हें कगछ णगखार हो
गया। नपने चलए चकसश्र दूसरे को कष्ट दे ने कश्र नपेक्षा गवश्यक वस्तग को स्वयां हश्र उुकर लेने का
उनका चनयम न्ा। गप्पाीश्र डॉक्टरीश्र के घचनष्ठ चमत्र न्े। पर उनके स्वोाव में गग्रह एवां णारश्रकश्र
नचिक होने के कारण डॉक्टरीश्र सदै व यह ध्यान रखते चक उनकश्र व्यवस्न्ा में कोश्र कोई कमश्र न रह
ीाये। इतना हश्र नहीं राीचगचर में एक णार गप्पाीश्र के गमवात से पश्रचड़त होने पर स्वयां डॉक्टरीश्र ने
चसराहने णैुकर उनकश्र दे खोाल कश्र। इस समय डॉक्टरीश्र कश्र गाँखों में गद्रभता दे खकर गप्पाीश्र ने
कारण पूछा तो वे णोले ‘‘मैं गपको गग्रह करके यहााँ ले गया, और गपके ोाग्य में यह क्या चमल
गया ?’’

णश्रि-णश्रि में चवचोन्न स्न्ानों के स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र से चमलने गते न्े। एक चदन प्रातःकाल डॉक्टरीश्र
ओवरकोट, हान्ों में दस्ताने, पैरों में मोीे तन्ा चसर पर लम्णश्र टोपश्र पहने णाहर णरामदे में टहल रहे न्े
चक गया से णश्रस-पिश्रस स्वयांसेवक साइचकल से वहााँ गये। चनवास कश्र सश्रचढयों के पास खड़े होकर
डॉक्टरीश्र ने उनसे पूछा ‘‘कहााँ से गये हैं ?’’

‘‘गया से।’’

‘‘क्या काम है ?’’

‘‘डॉक्टर हे डगेवारीश्र से चमलना है ।’’

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‘‘ुश्रक ! वे नन्दर चलखते हग ए णैुे हैं ।’’ यह कहकर डॉक्टरीश्र ने गप्पाीश्र कश्र ओर नांगगलश्र चदखायश्र।
सोश्र ीन नन्दर गये तन्ा गदरपूवभक गप्पाीश्र को नमस्कार चकया।

‘‘मगझे क्यों नमस्कार करते हो ?’’

‘‘गपके दशभनों के चलए गये न्े।’’

‘‘चकसके ?’’

‘‘डॉक्टरीश्र के। णाहर के स्वयांसेवक ने हमें गपके पास ोेीा है ।’’

इस पर गप्पाीश्र चखलचखलाकर हाँ स पड़े और णोले ‘‘णहग त खूण ! वे केवल स्वयांसेवक हश्र नहीं, वे हश्र
डॉक्टर हे डगेवार हैं ।’’ डॉक्टरीश्र का मीाक ध्यान में गते हश्र सण लोग णाहर ग गये तन्ा हाँ सश्र-खगशश्र
के सान् डॉक्टरीश्र से चमले। इस प्रकार का चवनोदश्र स्वोाव उनके ीश्रवन का नचोन्न नांग न्ा।

चदनाांक 17 मािभ को चहन्दू सोा कश्र ओर से ‘रामसेना’ नाम से एक स्वयांसेवक दल नागपगर में प्रारम्ो
हग ग। इस चवर्य में प्रकाचशत पत्र में चलखा न्ा चक ‘‘..........रामसेना महासोा कश्र सेना होगश्र। मण्डल
ां े के द्वारा प्राप्त महासोा कश्र सोश्र गज्ञाएाँ रामसेना को पालन करनश्र होंगश्र.........।’’
के नध्यक्ष डॉ. मगी
इस पत्रक में इस णात का ोश्र स्पष्टश्रकरण न्ा चक पृन्क् दल णनाने कश्र गवश्यकता क्यों पड़श्र। वह न्ा
चक ‘‘चहन्दगओां के सैचनक चशक्षण के द्रोणािायभ पूज्य डॉक्टर हे डगेवार ने नागपगर में पक्षातश्रत सांघटन
प्रारम्ो चकया।’’

चदनाांक 27 मािभ कश्र ‘महाराष्ट्र’ में रामसेना के पदाचिकाचरयों कश्र घोर्णा कश्र गयश्र। उनमें डॉक्टर
हे डगेवार का ोश्र समावेश न्ा। राीचगचर में ीण डॉक्टरीश्र को इसकश्र सूिना चमलश्र तो उन्हें णड़ा गियभ
हग ग तन्ा कगछ गगस्सा ोश्र गया। कारण, सांघ एवां रामसेना इन दो चोन्न-चोन्न क्षेत्रों में काम करनेवाले
सांघटनों में एक हश्र समय पदाचिकारश्र के प में रहना सांघटन कश्र दृचष्ट से नचहतकर न्ा और चफर उनके
स्वास्र्थय कश्र वतभमान नवस्न्ा में तो यह सम्ोव ोश्र नहीं न्ा। इतना हश्र नहीं, उन्होंने णार-णार नपनश्र यह
नसमन्भता स्पष्ट एवां नसन्न्िग्ि शब्दों में ‘रामसेना’ के प्रवतभकों को णार-णार चवचदत कर दश्र न्श्र। चफर
ोश्र उनका नाम घसश्रटने कश्र प्रवृचत्त उन्हें नच्छश्र नहीं लगश्र। नतः चदनाांक 3 नप्रैल के ‘महाराष्ट्र’ में
उन्होंने एक छोटा-सा सम्पादकश्रय स्पष्टश्रकरण प्रचसद्ध करवाया। उसमें कहा गया न्ा चक ‘‘नागपगर नगर
चहन्दू सोा द्वारा चनर्तमत रामसेना को सफल णनाने के चलए ीो नचपल चदनाांक 27 मािभ के ‘महाराष्ट्र’
में छपश्र है , उस सम्णन्ि में रा. स्व. सांघ के िालक डॉक्टर हे डगेवार राीचगचर से सूचित करते हैं , चक
‘उस पत्रक पर मेरा नाम मेरश्र चणना ीानकारश्र तन्ा ननगमचत के छापा गया है ।’’ डॉक्टरीश्र यह ीानते

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न्े चक इस स्पष्टश्रकरण के प्रकाचशत होने पर डॉ. मगी
ां े ीैसे गदरणश्रय व्यचियों को णगरा लगेगा तन्ा इस
कारण वे कगछ चिन्न्तत ोश्र न्े, चकन्तग परतांत्र दे श में राष्ट्रश्रय ीाग्रचत के उद्देश्य से चनर्तमत सांघटन को,
यगद्ध कश्र चवर्म एवां नाीगक पचरन्स्न्चत में सगरचक्षत रखने के चलए, राीनश्रचतक सांस्न्ा से नचलप्त रखना
गवश्यक न्ा। कगछ णगराई सहन करके ोश्र उन्होंने इस कतभव्य का चनवाह चकया। कतभव्य ननेक णार
इसश्र प्रकार कुोर होता है ।

राीचगचर में प्रन्म चनवास काल में कगण्ड पर स्नान के चलए ीाने-गने के हे तग टमटम का उपयोग होता
न्ा। चकन्तग उसमे झटके लगने के कारण डॉक्टरीश्र को णहग त कष्ट होता न्ा। इस णात का पता लगते
हश्र गया के सांघिालक ीश्र णणगगीश्र ने नपनश्र मोटर चदनाांक 1 नप्रैल से वहााँ ोेी दश्र। इससे डॉक्टरीश्र
का ीम काफश्र कम हो गया। मोटर गयश्र उसश्र चदन डॉक्टरीश्र राीचगचर से सात मश्रल दूर नालन्दा के
नवशेर् दे खने गये। चीस स्न्ान पर सहस्रावचि चवद्यार्तन्यों का एक सान् नध्यापन होता न्ा उस पचवत्र
स्न्ान को मगसलमानों ने चकस प्रकार तहस-नहस चकया, यह इचतहास का प्रत्येक चवद्यान्ी ीानता है ।
इस नगरश्र के ध्वांसावशेर् दे खकर डॉक्टरीश्र को दगःख हग ग चक इतने चदनों णाद ोश्र सैकड़ों वर्ों से
िलनेवाले इन गक्रमणों को दूर करने का सामर्थयभ चहन्दू समाी में चनमाण नहीं हग ग। उस उद्धवस्त
चवहार को दे खते हग ए उन्होंने कहा ‘‘इस हृदय चवदश्रणभ करनेवाले दृश्य का नन्वयान्भ णतानेवाला यचद
एकाि ोावनाशश्रल तन्ा स्वाचोमानश्र मागभदशभक रहा तो यहााँ गनेवाले प्रत्येक व्यचि को इचतहास कश्र
ओर दे खने कश्र सहश्र दृचष्ट दश्र ीा सकतश्र है ।’’

चदनाांक 15 नप्रैल तक डॉक्टरीश्र राीचगचर रहे । वहााँ का वर्भप्रचतपदा का उत्सव उनकश्र हश्र उपन्स्न्चत
में मनाया गया। वहााँ णैुे-णैुे ोश्र वे इस णात कश्र णराणर चिन्ता करते रहे चक नागपगर, पूना गचद स्न्ानों
पर होनेवाले नचिकारश्र चशक्षण वगभ कश्र सण व्यवस्न्ा ुश्रक िल रहश्र है या नहीं। चदनाांक 20 नप्रैल को
नागपगर पहग ाँ िते हश्र पूना-वगभ के चलए चशक्षक ोेीने कश्र सूिना पहले हश्र दे रखश्र न्श्र। राीचगचर से 15
नप्रैल को िलकर गया, काशश्र, प्रयाग तन्ा ीणलपगर कश्र शाखाओां का चनरश्रक्षण करते हग ए चदनाांक 20
नप्रैल को नागपगर पहग ाँ ि।े

नागपगर में उनके स्वास्र्थय का परश्रक्षण उनके पगराने चिचकत्सक डॉक्टरों ने चकया तन्ा णताया चक कगछ
सगिार हग ग है । यह सणके चलए गनन्द का चवर्य न्ा। डॉक्टरीश्र ने कायभचवस्तार कश्र ीो मयादाएाँ
चनचित कश्र न्ीं उन्हें प्राप्त करने कश्र लालसा एवां उत्साह सोश्र कायभकताओां के णोलिाल एवां व्यवहार
में प्रकट होता न्ा। ीश्र गगरुीश्र ोश्र नपने पत्रों और ोार्णों में सणको डॉक्टरीश्र द्वारा णताये लक्ष्यों को
पूणभ करने के चलए प्रोत्साचहत करते रहते। कलकत्ता के डॉ. सन्तोर्कगमार मगखीी को वे चलखते हैं चक
‘‘.............हम सणको नपनश्र सम्पूणभ शचि इस चवर्य पर केन्न्द्रत करनश्र िाचहए चीससे यन्ासम्ोव

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न्ोड़े हश्र समय में सांख्या एवां वृचत्त दोनों हश्र दृचष्ट से हम समन्भ हो सकें। हमें चकतना ोश्र कष्ट क्यों न करना
पड़े यह काम पूरा करना हश्र होगा।’’

सूरत के प्रिारक को ोेीे गये पत्र में ीश्र गगरुीश्र चलखते हैं चक‘‘........मगझे पूणभ चवश्वास है चक परमपूज्य
डॉक्टरीश्र नपने काम को पूणभ सफलता प्राप्त करा दें ग।े ’’

सांघ का मागभ निूक, उत्साह नपूवभ, काल ननगकूल तन्ा नेतृत्व नसामान्य न्ा। परन्तग इसश्र समय
चनयचत चकसश्र दूसरश्र कूर कृचत कश्र योीना कर रहश्र न्श्र।

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30. मृत्यग
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र के गदे शानगसार चदनाांक को पूना का नचिकारश्र चशक्षण वगभ 1940 नप्रैल 23
प्रारम्ो हग ग। इस वगभ कश्र चवशेर्ता यह न्श्र चक इसमें हश्र सणसे प्रन्म सांघ कश्र सांस्कृत गज्ञाओां एवां
में नागपगर के एक कोने में प्रारम्ो होनेवाले राष्ट्र 1925 प्रान्भना का प्रयोग हग ग।ाश्रय स्वयांसेवक सांघ
का कायभ नण दे शव्यापश्र हो गया है इसका प्रमाण न्ीं, ये सांस्कृत कश्र गज्ञाएाँ और प्रान्भना चीन्होंने नण
तक प्रिचलत चहन्दश्रमराुश्र कश्र चमलश्रीगलश्र गज्ञाओां और प्रान्भना का स्न्ान चलया न्ा। सांस्कृत को -
ोारत में‘दे ववाणश्र’ का स्न्ान प्राप्त है । उसके प्रचत सोश्र प्रान्तों में समान और गत्मश्रयता का ोाव है ।
उसके सामने सांकगचित प्रान्तश्रयता एवां नसचहष्ट्णगतामूलक ोार्ा ोेद चटक नहीं पाते। ोारत के एक
कोने से लेकर दूसरे कोने तक कोटश्रकोटश्र कण्ुों से चनत्य चनयम एवां ोचिोावपूवभक सांस्कृत कश्र -
प्रान्भना का उरारण चनचित हश्र दे श कश्र एकताा और राष्ट्रश्रयता का उद्घोर् कर-, उन्हें नचोन्नता के
दृढ णन्िन में णााँिनेवाला न्ा। राष्ट्रश्रय उत्न्ान कश्र दृचष्ट से यह नत्यन्त हश्र महत्त्वपूणभ सांस्कार है ।

पूना के वगभ पन्द्रह चदन रहने का कायभक्रम चनचित कर डॉक्टरीश्र चदनाांक नप्रैल को नागपगर से 27
िले। इस समयउनका स्वास्र्थय सामान्यतः दे खने में ुश्रक लगता न्ा। ऐसा नहीं कहा ीा सकता चक
यह उनके सदा प्रसन्न रहनेवाले स्वोाव का हश्र पचरणाम न्ा, क्योंचक नागपगर से पूना ीाते हग ए ीण वे
मागभ में एक चदन के चलए नाचसक रुके तो वहााँ डॉिोोे ने उनके स्वास्र्थय कश्र परश्रक्ष .दामले एवां डॉ .ाा
कश्र। ये करने के कारण डॉक्टरीश्र के में डॉक्टरीश्र कश्र णश्रमारश्र के समय उनकश्र चिचकत्सा 1939
स्वास्र्थय कश्र नवस्न्ा से ोलश्र ोााँचत पचरचित न्े। उनका इस समय यहश्र मत न्ा चक स्वास्र्थय में रुपये में
नप्रैल को डॉक्टरीश्र 29 णारह गने सगिार हो गया है । नाचसक से कल्याण ीाते हग ए चदनाांकपूना
पहग ाँ ि।े मागभ में कल्याण पर प्रान्तचलमये .ोा .सांघिालक ीश्र का-, णम्णईसांघिालक ीश्र दादा नाईक-,
सातारासांघिालक ीश्र ोाऊराव मोडक तन्ा नन्य स्वयांसेवकों ने उनसे ोेंट कश्र। पूना स्टे शन पर तो -
उनके स्वागत के चलए सैकड़ों स्वयांसेवक उपन्स्न्त न्े। डॉक्टरीश्र कश्र उपन्स्न्चत मात्र नपूवभ उत्साह
एवां गनन्द चनमाण करनेवालश्र होतश्र न्श्र। पूना में गने के णाद इसश्र तर्थय का चनत्य ननगोव होने लगा।

वगभ में िलनेवाले सोश्र शारश्रचरक एवां णौचद्धक कायभक्रमों पर डॉक्टरीश्र कश्र चनगाह रहतश्र। महाराष्ट्र के
एक सौ णत्तश्रस स्न्ानों के गु सौ स्वयांसेवकों ने इस वगभ में ोाग चलया न्ा। सांख्या कश्र दृचष्ट से यह
वगभ चपछले सोश्र वगों से णढकर न्ा। प्रचतचदन दोपहर को डॉक्टरीश्र स्वयांसेवकों कश्र चीलानगसार णैुकें
लेते। उसमें कायभ के वतभमान स्व प एवां गगे कश्र योीनाओां के सम्णन्ि में पूछताछ करते तन्ा नन्त
में तरुण स्वयांसेवकों कश्र सांख्या एवां गगरुदचक्षणा कश्र दृचष्ट से नपनश्र नपेक्षा उनके सामने रखते। णैुकों
में डॉक्टरीश्र को यह चदखा चक वगभ में गये हग ए स्वयांसेवकों के मन में सांघ का वातावरण से एकात्म
होने के कारण महाराष्ट्र के कोनेकोने में सांघ का चवस्तार करने कश्र गकाांक्षा एवां गत्मचवश्वास न्ा। -
इस वर्भ स्नातक होनेवाले स्वयांसेवकों से डॉक्टरीश्र ने उनके ोावश्र ीश्रवन कश्र योीना एवां उसमें

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सांघकायभ के स्न्ान के चवर्य में णातिश्रत कश्र। कहने कश्र गवश्यकता नहीं चक प्रिारकायभ के चलए
स्वयांसेवक ीायें, यहश्र इस वातालाप के पश्रछे डॉक्टरीश्र का उद्देश्य न्ा। चदनाांक मई को उन्हों 7ने ीश्र
गगरुीश्र को ीो पत्र चलखा उसमें वे कहते हैं चक ‘‘इस वर्भ के ओ .सश्र .टश्र .ने चपछले सोश्र ओ .सश्र .टश्र .
को मात कर चदया है । सांख्या एवां ोवन दोनो दृचष्ट से इस वर्भ कश्र ोव्यता णहग त णढ गयश्र है । लोगों में
उत्साह णढ गया है तन्ा कायभ के चवर्य में तश्रव्रता ोश्र चवशेर् चदखायाश्र दे तश्र है ।’’

पूना गने के णाद ीण डॉक्टरीश्र कश्र वहााँ के चीलासांघिालक ीश्र ोाऊराव दे शमगख से ोेंट हग ई तो -
डॉक्टरीश्र ने तगरन्त नपने पास से एक पगराना समािारपत्र चनकाला तन्ा उसमें लाल पेंचसल से रे खाांचकत
ोाग उन्हें चदखाया। यह वर्भप्रचतपदा के उत्सव पर ीश्र ोाऊराव द्वाराा चदये गये ोार्ण का एक नांश
न्ा। उसमें उन्होंने एक राीनश्रचतक सांस्न्ा पर छींटा कसा न्ा। डॉक्टरीश्र ने राीचगचर में वह ोार्ण पढा
न्ा तन्ा इस खटकनेवाले नांश के नश्रिे पेंचसल से चिह्न णना चदया न्ा। उसकश्र ओर सांकेत करके
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘इस कन्न कश्र प्रचतचक्रया क्या होतश्र है इसे ध्यान से दे चखये।’’ स्वास्र्थय ुश्रक न होने
पर ोश्र उनकश्र दृचष्ट िारों ओर रहतश्र तन्ा वे प्रत्येक णात का णड़ा सूक्ष्म नवलोकन करते।

डॉक्टरीश्र के शरश्रर में चपछले कगछ वर्ों से णहग त पसश्रना गता न्ा। गमी में तो इसका और ोश्र नचिक
कष्ट होता न्ा। इस वर्भ पश्रु में णायीं ओर णहग त णार पश्रड़ा होतश्र न्श्र तन्ा णायें ोाग कश्र तगलना में दायााँ
ोाग णहग त ुण्डा प्रतश्रत होता न्ा। न्ोड़ेसे हश्र ीम में उन्हें एकदम ोारश्र न्कान ग ीातश्र न्श्र चीसे -
तचनक ोश्र चनकट से दे खनेवाला व्यचि सही समझ सकता न्ा। हवा लगने से नन्वा ुण्डश्र वस्तग पश्रने
पर पश्रु का ददभ एकदम णढ ीाता न्ा।नतः गमी होने के उपरान्त ोश्र वे सदै व कमश्री तन्ा उसके
ऊपर मोटश्र ऊन कश्र णण्डश्र पहने रहते न्े। मटके का ुण्डा पानश्र ोश्र कोश्र नहीं पश्रते न्े। इन चदनों उन्होंने
मोटा ऊन कोट ोश्र पहनना शग कर चदया न्ा। स्वास्र्थय कश्र इस न्स्न्चत में ोश्र पूना में चवचोन्न प्रमगख
व्यचियों के घर ीाकर उनसे चमलने का तन्ा कायभकताओां से काम के चवर्य में राचत्र के एकदो णीे -
तक चविार करते रहने का उनका क्रम सतत िलता रहा। यह वगभ पूना के सगप्रचसद्ध‘नूतन मराुश्र
चवद्यालय’ के ोवन में िल रहा न्ा तन्ा इस प्रासादतगल्य इमारत में चवद्यालय के चपछले द्वार के दाचहने
ओर नश्रिे कश्र मांचील के कमरे में उनका चनवास न्ा। डॉक्टरीश्र को यहााँ दे खा चक ननेक लोगों का
गना ीाना शग हो ीाता न्ा। वे उनके सान् णातिश्रत में लश्रन हो ीाते।-

प्रातःकाल का क्रायभक्रम समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र चवद्यालय के पश्रछे हश्र ीोगेश्वरश्र कश्र गलश्र में रहनेवाले
एक स्वयांसेवक ीश्र नाना घाणेकर के घर स्नान के चलए ीाते। स्नान के पहले ीण वे कपड़े उतारते तो
वे पसश्रने से इतने तरणतर रहते चक उन्हें तगरन्त िोने के चलए डालना पड़ता। कपूर डाला हग ग तेल उन
चदनों वे शरश्रर पर चवशेर्कर पश्रु के दगखनेवाले ोाग पर मलते। माचलश वे स्वयां हश्र करते। यचद कोई
स्वयांसेवक इस काम के चलए गगे गता तो वे कहते चक ‘‘दगखनेवाले ोाग चकतनश्र ीोर से मलना
िाचहए इसका ननगमान तगमको नहीं हो सकेगा। नतः मगझे हश्र माचलश करने दो।’’ वास्तव में तो वे
375
पहले ोश्र णश्रमारश्र में या नन्य नवसरों पर कोश्रकोश्र स्नान के पूवभ तेल कश्र माचलश करते न्े। उन्हें -
माचलश से प्रेम न्ा। शरश्रर का स्वास्र्थय चगर ीाने पर ोश्र उनके व्यवहार का सही एवां चनःसांकोि ोाव
चवद्यमान न्ा। ीश्र नाना घाणेकर कश्र पत्नश्र ने पहले हश्र चदन डॉक्टरीश्र को स्नान के णाद केसर एवां णादाम-
चमचीत दूि लाकर चदया। दूि पश्रते हग ए वे हाँ सते हग ए णोले‘‘णहग त णचढया दूि चदया, पर दूि पश्रने के णाद
ाँ ों को साफ करने-’’
मेरश्र णड़श्रके चलए पानश्र दे ना तो ोूल हश्र गयीं। णड़श्र मूछ

गीकल डॉक्टरीश्र को ोोीन के उपरान्त कगछ दे र तक णोलने में तकलश्रफ होने लगश्र न्श्र। चफर ोश्र
उन्होंने उस नवस्न्ा में ोश्र सांघ कश्र ोूचमका स्पष्ट करनेवाले िार ोार्ण स्वयांसेवकों के सम्मगख चदये।
इन ोार्णों में चविारों कश्र सगसूत्रता, ोावों कश्र सहीता तन्ा वाणश्र कश्र ओीन्स्वता को दे खकर कोई
ननगमान ोश्र नहीं लगा सकता न्ा चक वे कगछ शारश्रचरक कष्ट का ननगोव कर रहे न्े। उनके मण्डन कश्र
पद्धचत पके हग ए फल कश्र ोााँचत मिगर एवां रुचिर न्श्र। उनके शब्दों के पश्रछे िालश्रस वर्भ कश्र नखण्ड
तपिया का णल न्ा। नतः एक सांशय का समूलोच्छे लन करनेवाला होता न्ा। एक शब्द ीोताओां के-

पूना के इन िारों ोार्णों में ननेक उल्लेखनश्रय चविार हैं । राष्ट्रश्रयत्व कश्र ोावना न होने के कारण नपने
समाी को चकस प्रकार पराोूत होना पड़ा इसका उन्होंने वणभन चकया तन्ा णताया चक प्रत्येक व्यचि
के नपने गपको ‘चहन्दगराष्ट्राांगोूत’ मानकर व्यवहार करने से हश्र हम इस निःपतन से चफर ऊपर उु
सकेंगे। उन्होंने कहा ‘‘चहन्दगस्न्ान एक राष्ट्र होने के कारण हममें से प्रत्येक ीन उसका घटक है तन्ा
प्रत्येक घटक राष्ट्र के चलए है । हमें यहश्र समझना िाचहए। चवराट राष्ट्रपगरुर् के सोश्र घटकों को उस -
प कश्र पूणभता के चलए हश्र प्रयत्नशश्रल होना िाचहए। शरश्रर का कोई ोागचवराट स्व , ीैसे नांगगलश्र, सम्पूणभ
शरश्रर से नलग रहकर ीश्रचवत रहने कश्र महत्त्वाकाांक्षा लेकर िले तो वह सम्ोव नहीं। समाीघटक -
कश्र ोश्र यहश्र न्स्न्चत है ।’’ सांघ ने पन्द्रह वर्ों में लोगों कश्र गाँखों में समा सकनेवाला सांघटन खड़ा करने
में ीो सफलता पायश्र उसका ममभ समझाते हग ए उन्होंने कहा ‘‘हमें ीो सफलता चमलश्र है वह स्वयसेवकों
कश्र चनष्ठा और नध्यवसाय के णल पर है , समािारपत्रों के द्वारा यह कायभ नहीं हो सकता न्ा। चकसश्र ोश्र
तत्त्वज्ञान को यचद चसद्ध करना है तन्ा उसकश्र सत्यता लोगों को पढानश्र है तो उसके चलए शचि का
नचिष्ठान िाचहए। ध्यान रचखए चक यचद णल न रहा तो न्याय ोश्र नप्रोावश्र चसद्ध होता है )Justice
without force is impotent)।’’ उन्होंने यह ोश्र नत्यन्त मार्तमकता से णताया चक इस णात चक
सदै व साविानश्र णरतनश्र िाचहए के कहीं सांघटन नन्तःकलह का चशकार न हो ीाये। उन्होंने कहा ‘‘सांघ
णाहर से होनेवाले गक्रमणों से नहीं डरता। परन्तग नन्दर गड़णड़ नहीं होनश्र िाचहए। सांघ का सोश्र
काम प्रेम से होना िाचहए। गी नपने पास कोई शचि नहीं है । हमारे पास तो केवल नै चतक शचि है
और उसश्र के णल पर नपना कायभ कर रहे हैं ।’’

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राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ का णढता हग ग सामर्थयभ दे खकर ननेक लोगों को लगने लगा न्ा चक इससे
कगछ काम करवायें ीायें। महाणळे श्वर से प्राने डॉक्टरीश्र को .ए .ोालिन्द्र पगण्डचलत गडारकर एम .
ओां तन्ा सांघपत्र चलखकर दे श कश्र समस्याके ध्येय एवां नश्रचत के चवर्य में महत्त्वपूणभ ििा करने को
दो चदन के चलए पूना गने कश्र सूिना दश्र न्श्र। तदनगसार वे गये ोश्र। उन्होंने डॉक्टरीश्र के सान् ीो
वाता कश्र तन्ा उसमें ीो चविार रखे वे सांघ कश्र चविारपद्धचत से चवसांगत न्े। ोार्ण के उपरान्त िायपान
के समय चकसश्र कायभकता ने यह णात व्यि कर दश्र। प्रोफेसर साहण को णात लग गयश्र और उन्होंने
दूसरे चदन राचत्र के स्न्ान पर उसश्र चदन ीाने का चनिय करके डॉक्टरीश्र के सम्मगख नपना नचोप्राय
व्यि चकया। वे क्यों ील्दश्र ीा रहे हैं यह समझते डॉक्टरीश्र को दे र नहीं लगश्र तन्ा उन्होंने ीश्र गडारकर
के सान् कगछ ऐसा व्यवहार चकया चक उनका क्रोि एकदम शान्त हो गया और उन्होंने ील्दश्र ीाने का
चविार ोश्र छोड़ चदया। प्रान्त सांघिालकीश्र के पास डॉक्टरीश्र ने उस समय यह चविार व्यि चकया न्ा
चक नपने मतोेद रह सकते हैं चकन्तग उसके कारण नपने उत्तम व्यवहार में चकसश्र ोश्र प्रकार कश्र कमश्र
नहीं गनश्र िाचहए। डॉक्टरीश्र के उस चदन के वताव का वणभन करते हग ए ीश्र काशश्रनान्पन्त चलखते हैं
‘‘चीस प्रकार कोई श्वसगर नपने ीमाई को मनाता है उस प्रकार डॉक्टरीश्र मनौतश्र कर रहे न्े।’’ सांघटन
के चहत एवां नचोवृचद्ध के चलए डॉक्टरीश्र सण प्रकार का शारश्रचरक एवां मानचसक कष्ट सहन करने के
चलए सदै व तैयार रहते न्े।

डॉक्टरीश्र के पूना में चनवास के समय हश्र चदनाांक मई को गया के सांघिालक ीश्र णणगगीश्र ीश्र 5
मई को महाराष्ट्र प्रान्त के कायभकताओां कश्र दो चदन 11 गप्पाीश्र ीोशश्र के सान् वहााँ गये। चदनाांक
वाह ीश्र गकश्र णैुक हग ई। इस णैुक में सरकायभागरुीश्र ोश्र गये न्े। णैुक में महाराष्ट्र के सोश्र चीलों
के कायभकताओां के नचतचरि िारवाड़, णेळगााँव तन्ा चवदोभ के कगछ चीलों के कायभकता ोश्र उपन्स्न्त
न्े। णैुक में सवभप्रन्म प्रत्येक चीले के कायभकताओां ने नपने नपने क्षेत्र के कायभ का वृत्त प्रस्तगत-
चकया। उस समय महाराष्ट्र में ाई सौ शाखाएाँ एवां नुारह हीार कश्र दै चनक उपन्स्न्चत न्श्र। सणके
कन्न से कायभवृचद्ध का गत्मचवश्वास प्रकट होता न्ा।

दोपहर कश्र णैुक िल रहश्र न्श्र चक निानक स्वातांत्र्यवश्रर सावरकरीश्र का गगमन हो गया। डॉक्टरीश्र
के गग्रह पर उन्होंने पााँि चमचनट ोार्ण ोश्र चदया। उसमें उन्होंने कहा ‘‘........गी चहन्दू राष्ट्र कश्र
न्स्न्चत णहग त चणगड़ गयश्र है । इस नवस्न्ा में राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ हश्र एकमेव गशा का स्न्ान है ।
गी ीो सांघ कर रहा है वहश्र महान् राष्ट्रों को करना पड़ता न्ा। चनणभलता से सणलता कश्र ...........
-घटन हश्र है । नतः गप नपने नेता पर पूणभ चवश्वास रचखए। हमने नपने ीश्रवनओर णढने का मागभ सां
ोर दे श के चलए ननेक गन्दोलन चकये पर एक ोश्र पूरश्र तरह सफल नहीं हग ग। इसचलए पगनः एक
णार मैं णल दे कर कहता हू ाँ चक यह एक सांघटन हश्र चहन्दू राष्ट्र का उद्धार कर सकेगा।’’

377
दूसरे चदन कश्र णैुक में ीश्र गगरुीश्र एवां ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र के ोश्र ोार्ण हग ए। ीश्र गगरुीश्र ने कहा
‘‘.......गी नपना कायभ ऐसा नहीं है चक हम सन्तोर् मानकर णैु ीायें। सन्तोर् और िन्यता मानने
कश्र वृचत्त प्रगचत के चलए घातक होतश्र है , नसन्तोर् से हश्र उसका पोर्ण होता है । इसचलए काम में कोश्र
सन्तोर् मानकर मत िचलए।’’ रात को दस णीे के णाद दो घण्टे तक डॉक्टरीश्र का समारोप ोार्ण
हग ग। इस समय ‘नूतन मराुश्र चवद्यालय’ का सोागृह कायभकताओां से खिाखि ोरा हग ग न्ा।
नस्वास्र्थय के कारण डॉक्टरीश्र कगसी पर णैुकर णोले। नपने इस ोार्ण में उन्होंने सांयम चकन्तग
गत्मचवश्वास के सान् सांघटन के व्यवहार एवां कायभपद्धचत का इतना सगन्दर मण्डन चकया न्ा चक उसकश्र
दृढ छाप उपन्स्न्त कायभकताओां पर पड़े चणना न रह सकश्र।

ोार्ण के प्रारम्ो में हश्र उन्होंने प्रचतपाचदत चकया चक हमारा गग्रह लेखन, ोार्ण, प्रकाशन गचद पर
न होकर सणसमाी में कायभकताओां को चकस प्रकार सण णल कायभ करने पर है । इसके उपरान्त-का-
णताव करना िाचहए इसका चववेिन करते हग ए उन्होंने कहा‘‘लोगों के सान् गत्यन्न्तक प्रेम का
व्यवहार करो। काांग्रेस, सोशचलस्ट, चहन्दू सोा गचद सांस्न्ाओां के लोग नपने हश्र हैं । हम उनके सान्
चनष्ट्कपट ोाव से णताव करें । चकसश्र से झूुा व्यवहार मत करो और न चकसश्र को फाँसाओ। काांग्रेस का
कोई ोश्र व्यचि मेरा तचनक ोश्र द्वे र् नहीं कर सकता। द्वे र् का कारण हश्र क्या है ? यचद दल चोन्न रहे तो
ोश्र चमत्र के नाते चदल खोलकर एक स्न्ान पर गने में गपचत्त क्या है ? हमें केवल नपने चविार के
लोगों में हश्र काम नहीं करना है नचपतग चवरोचियों को नपना णनाना है । इसके चलए सांघ के सम्णन्ि में
उनकश्र ोावना शगद्ध होनश्र िाचहए। हमारा ध्वी एवां चविारसरणश्र उन्हें मान्य न हो तो ोश्र हमें उनका द्वे र्
करने कश्र गवश्यकता नहीं। हम उन्हें चवरोि का नवसर न दें ।यचद हम िाहते हैं चक सण काम .......
व्यवन्स्न्त प से हों तो प्रेम के सान् िलें। प्रेम के नचतचरि दूसरा मागभ हश्र नहीं है । प्रेम एवां गदर
णढाते हश्र नपनश्र शचि णढतश्र रहनश्र िाचहए।-णढाते’’

सांघ के प्रारम्ो से हश्र डॉक्टरीश्र ने चशशग एवां णालों पर शगद्ध सांस्कार करने तन्ा उनके चविारों का
पचरतोर्ण करने पर चवशेर् णल चदया न्ा। इस ओर गी सांघटन णढने पर ोश्र दगलभक्ष्य नहीं होना िाचहए
यह णताते हग ए उन्होंने कहा ‘‘चशशगओां का गणप्रमगख त्यागश्र होना िाचहए। चशशगओां को चखलाना सरल
काम नहीं है । उन्हें चखलातेकोश्र नश्ररसपन एवां ऊण गने लगतश्र है । चकन्तग ये -चखलाते कोश्र-
उणानेवाले काम हश्र राष्ट्र के चलए करने पड़ते हैं । गी के नेतागण ये काम नहीं करते। राष्ट्रश्रय सांघटन
का काम नत्यन्त कष्ट और कसाले का है । परन्तग उसमें से ोश्र तेी चनमाण होताहै । नागपगर कश्र शाखा
में ीो पहले चशशग गते न्े वे हश्र उत्साहश्र तरुण कायभकता णनकर काम कर रहे हैं । इसश्र प्रकार गी
के णाल स्वयांसेवक हमारश्र ोावश्र शचि हैं ।’’

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इसके उपरान्त उन्होंने णताया चक ीनसांख्या के गिार पर नगर में तश्रन तन्ा गााँवों में एक प्रचतशत,
इस प्रमाण में हमें नपना काम णढाना िाचहए। उन्होंने यह ोश्र स्पष्ट चकया चक हमारा कायभ केवल
इसचलए नहीं चक चवदे शश्र नांग्री
े नन्वा मगसलमान हमारे ऊपर गक्रमण कर रहे हैं । उन्होंने कहा
‘‘परकश्रय सत्ता हमारे ऊपर गक्रमण कर रहश्र है नतः हमें काम करना िाचहए, इस चविार को एक
ओर रख चदचीए। खाकसार णढ रहे हैं इसचलए हमें ोश्र णढना िाचहए, यह सोिा तो उनके णन्द हो ीाने
पर हमें ोश्र रुक ीाना पड़ेगा। हमारा कायभ प्रचतचक्रयात्मक नहीं है । नत्यािार नन्वा लड़ाई के चलए
हम सांघटन नहीं कर रहे है । सांकट पैदा हो रहे हैं इसचलए सांघटन मत णढाइए, नचपतग सांकट उत्पन्न हश्र
न हों इसके चलए प्रयत्न कश्रचीए।’’

इसश्र प्रकार यह णताकर चक ‘‘स्वयांसेवकवृचद्ध कश्र कला हमें नवगत कर लेनश्र िाचहए तन्ा कोई ोश्र -
णात नभ्यास से चसद्ध हो सकतश्र है ’’, उन्होंने यह स्पष्ट चकया चक सांघटन के घटक कैसे और चकतने
हों। इस चवर्य में उन्होंने कहा ‘‘ीो कट्टर चहन्दू है उसे प्रन्म सान् लेना िाचहए। सौ लोगों में कम-से-
कम एक तो चहन्दगत्वचनष्ठ, ध्येयचनष्ठ, सांघ के कायभ को प्रिान कायभ मानकर उसके चलए नपना ीश्रवन
लगानेवाला स्वयांसेवक िाचहए। वह चणल्कगल पोंा होना िाचहए तन्ा उसे ीश्रवनोर सांघ का कायभ -
हश्र करना िाचहए।’’

केवल नमूने के चलए उद्धृत इन कगछ स्फगट चविारों से उन ोार्णों कश्र सही कल्पना ग सकतश्र है ।
प्रान्तश्रय णैुक के समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र का नागपगर ीाने का कायभक्रम चनचित न्ा। उस समय उनको
ोेंट दे ने के चलए वगभ के स्वयांसेवकों ने न्ैलश्र ीमा करना प्रारम्ो चकया। इसश्र समय पूना के ‘मािव
गटभ स्टूचडयो’ के ीश्र दे विर डॉक्टरीश्र के खींिे हग ए फोटो उन्हें चदखाने के चलए वसचतगृह में लाये। -
डॉक्टरीश्र ने छायाचित्र दे खकर सही हश्र कहा चक‘‘मेरा शरश्रर नन्दर से इतना खोखला हो गया है चक
नण उसके फोटो हश्र नच्छे चनकल सकते हैं ।’’

चदनाांक मई को ीश्र गगरुीश्र नागपगर के चलए गये तन्ा दूसरे चदन ीश्र णणगगीश्र के सान् डॉक्टरीश्र 14
पूना से िलनेवाले न्े। स्वयांसेवकों से चणदा लेने का कायभक्रम‘नूतन मराुश्र चवद्यालय’ के िौक में
चदनाांक कश्र राचत्र को हग ग। उस समय डॉक्टरीश्र को पगष्ट्पहार नपभण कर स्वयांसेवकों 14 कश्र ओर से
न्ैलश्र ोेंट कश्र गयश्र। इस समारोह में कगछ स्वयांसेवकों के ोार्ण ोश्र हग ए। उनमें से एक स्वयांसेवक के
मगख से नौचसचखया होने के कारण ोूल से यह चनकल गया चक ‘‘हम डॉक्टरीश्र को यह नन्न्तम चणदाई
दे रहे हैं ?’’ उसकश्र ोूल उसके ध्यान में ग गयश्र तन्ा वह घणड़ाकर न्ोड़ा सा क-गया। उसका यह
वाक्य सणको खटका चकन्तग डॉक्टरीश्र प्रसन्नता के सान् हाँ सते रहे । इस समारोह में ीो गश्रत गाया गया
उसमें व्यि ोावनाएाँ सोश्र स्वयांसेवकों के मन में वास कर रहश्र न्ीं। वह न्ीं-

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‘‘तु न्म्ह असल्यािरवत अम्हाुँ काय हो उणें ।

तु न्म्ह असल्यािरवत गमे गगन ठें गणें ।।’’

)‘‘तु म वमले तो और क्या इच्छा मु झे है ।

तु म मेल तो गगन भी छोटा मुझे है ।।’)

यही भािना उस अिसर के भार्षणों में िकट हु ई थी।

दूसरे चदन पूना स्टेशन पर डॉक्टरीश्र को चणदाई दे ने के चलए गये स्वयांसेवकों से प्लेटफॉमभ ोर गया न्ा।
डॉक्टरीश्र ने वहााँ पहग ाँ िते हश्र प्रान्तसांघिालकी-ाश्र को स्वयांसेवकों को चनरश्रक्षण के चलए सम्पत् करने
का गदे श चदया। तदनगसार दो पांचियों में सणको नन्तमगभख खड़ा चकया गया तन्ा उनके णश्रि में से
चनरश्रक्षण करते और कगछ लोगों का पचरिय करते हग ए डॉक्टरीश्र चडब्णे के पास गये। चडब्णे के दरवाीे
के पास खड़े हग ए डॉक्टरीश्र कायभकताओां के सान् हास्यचवनोद कर रहे न्े चक इतने में गाड़श्र छूटने कश्र -
घण्टश्र णीश्र। गाड़श्र के िलते हश्र डॉक्टरीश्र ने नपने हान् कश्र छड़ ऊपर उुायश्र तन्ा नमस्कार करते हग ए,
सण स्वयांसेवक सगन सकें इतने ीोर से कहा ‘‘यह लो मैं िला।’’ सैकड़ो स्वयांसेवकों कश्र ोश्रगश्र हग ई
गाँखों के सामने डॉक्टरीश्र कश्र प्रसन्न मूर्तत के सान् सान् दूर हटतश्र ीा रहश्र न्श्र।-

दूसरे चदन ीश्र णणगगीश्र तन्ा डॉक्टरीश्र नागपगर पहग ाँ ि।े उस समय स्टे शन पर नागपगर के नचिकारश्र
चशक्षण वगभ के सवाचिकारश्र के नाते ीश्र गगरुीश्र डॉक्टरीश्र का स्वागत करने के चलए एक नच्छा णड़ा
हार लेकर उपन्स्न्त न्े। डॉक्टरीश्र के चडब्णे से उतरते हश्र ीैसे गगरुीश्र ने ोचिोाव से उनको हार पहनाने
के चलए हान् णढाया चक डॉक्टरीश्र के गाँखों के इशारे से ीश्र गगरुीश्र ने समझ चलया चक वे कह रहे न्े
‘‘मगझे क्या हार पहनाते हो, नये गये हग ए णणगगीश्र को पहनाओ’’ तन्ा वह माला उन्होंने णणगगीश्र
को समपभण कर दश्र। कुोर कमभयोग का गिरण करते हग ए स्वागत, सत्कार, स्तगचत गचद कश्र लालसा
उनके मन से चणल्कगल चवलगप्त हो गयश्र न्श्र। नतः उन्हें यहश्र णात चप्रय लगश्र चीससे सांघ में नयेनये गये -
स हग ए कतृभत्वान् पगरुर् को नपने सौीन्य से गनन्द कश्र ननगोूचत होकर उनको सांघ का ननगयाचयत्वहर्भ
स्वश्रकार करने में िन्यता प्रतश्रत हो।

नागपगर में वे नश्रल चसटश्र चवद्यालय में नचिकारश्र चशक्षण वगभ के नचतचन्यों के चलए चनचित वसचतगृह में
गये। दोपहर के णौचद्धकवगभ में वे उपन्स्न्त रहे । पूना से नागपगर तक के लम्णे प्रवास कश्र न्कान उनके
िेहरे से प्रकट होतश्र न्श्र। नागपगर कश्र दहकतश्र हग ई गमी से उनका कष्ट और ोश्र णढ गया। 116-॰115॰
कश्र नागपगर कश्र गमी में ीण नच्छे ोले स्वस्न् गदमश्र कश्र हालत खराण हो ीातश्र है तण णश्रमारश्र के -
ीीभर एवां नशि हग ए डॉक्टरीश्र कश्र नवस्न्ा का क्या वणभन चकया ीाये? नागपगर कश्र तगलना में पूना

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कश्र गमी शश्रतल हश्र कहश्र ीायेगश्र। इसके कारण सायांकाल हश्र उन्हें णगखार हो गया। चफर ोश्र वे वगभ के
कायभक्रमों में ोाग लेते रहे ।

चवचोन्न प्रान्तों में सांघ का कायभ प्रारम्ो हग ए यद्यचप तश्रनिार वर्भ हो िगके न्े तन्ाचप इस वर्भ के णराणर -
स्वयांसेवक नचिकारश्र चशक्षण वगभ में सांघ कश्र चशक्षा लेने के चलए नोश्र तक नहीं गये न्े। वगभ के
िौदह सौ चशक्षार्तन्यों में से लगोग छः सौ स्वयांसेवक सश्रमाप्रान्त, पांीाण, उत्तर प्रदे श, चणहार, णांगाल,
मद्रास, कनाटक, महाराष्ट्र एवां गगीरात से गये न्े। स्वाोाचवक न्ा चक इस प्रगचत से डॉक्टरीश्र को
गनन्द हग ग। इन चवचोन्न प्रान्तों के कायभकताओां से नगले णश्रसपरश्रस चदनों ोावश्र कायभ कश्र योीना -
के सम्णन्ि में णातिश्रत हो सकेगश्र यहश्र गशा लेकर वे नागपगर गये न्े। चकन्तग चनयचत कश्र कोई दूसरश्र
हश्र योीना न्श्र।

चीस चदन डॉक्टरीश्र नागपगर गये उसश्र चदन राचत्र को वगभ के सोश्र स्वयांसेवकों के चलए सन्त तगकडोीश्र
के ोीन का कायभक्रम रखा गया न्ा। णगखार होते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र इस कायभक्रम में सन्म्मचलत हग ए।
चकन्तग न्ोड़श्र दे र में उनके चलए वहााँ णैुना नसम्ोव हो गया। नतः वे नकेले हश्र उुकर नपने घर िले
गये। उस समय घर के सण लोग ोश्र ोीन के कायभक्रम में गये न्े। ीैसेतैसे वे ऊपर कमरे में- ीाकर
चणस्तर चणछाकर सोए रहे । रात को ीण घर के लोग लौटकर गये तो डॉक्टरीश्र को ॰ णगखार 104
न्ा।

दूसरे चदन और्िोपिार प्रारम्ो हो गया। णगखार तन्ा पश्रु का ददभ कोश्र कम हो ीाता तो कोश्र णहग त
णढ ीाता। डॉहरदास ., डॉ कविगरे गचद डॉक्टर णराणर गकर उनकश्र परश्रक्षा करते रहते। पर .उतार
के कोई चिह्न नीर नहीं गते न्े। प्रत्येक नया चदन डॉक्टरीश्र कश्र कमीोरश्र और णश्रमारश्र तन्ा शेर् ीनों
कश्र चिन्ता में वृचद्ध करनेवाला हश्र होता न्ा। यह ीानकर डॉक्टरीश्र को नत्यन्त वेदना होतश्र न्श्र चक
चहन्दगस्न्ान के इतने तरुण कायभकता एकत्र होने पर ोश्र उनके सान् णातिश्रत करने कश्र शचि नहीं णिश्र।
इस वेदना का उनकश्र णश्रमारश्र पर और ोश्र पचरणाम होता न्ा। डॉक्टरीश्र कश्र णश्रमारश्र का समािार सगनने
पर चवचोन्न प्रान्तों से वगभ में गये हग ए स्वयांसेवक कमकम एक णार दशभन करने कश्र लालसा लेकर -से-
घर ीाने लगे उन्हें नपने कमरें में चकसश्र के गने कश्र ीैसे हश्र उनके गहट चमलतश्र चक वे उुकर णैु
ीाते। णारणार इस प्रकार उुनेलेटने से उनकश्र नशिता और णढने लगश्र। नतः नन्ततोगत्वा यह -
सूिना दश्र गयश्र चक कोई ोश्र स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र के घर उनसे चमलने ने ीाये। चफर ोश्र नागपगर से
कोई स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र के घर चमलने के चलए ग हश्र ी-न-कोई णाहर काााता। इन लोगों को
णाहरणाहर हश्र लौटाने का प्रयत्न चकया ीाता चकन्तग डॉक्टरीश्र को ीैसे हश्र चकसश्र के गने का -के-
ननगमान लगता तो उसे तगरन्त नन्दर ोेीने के चलए कहते।

डॉक्टरीश्र कश्र इस णश्रमारश्र कश्र नवस्न्ा में हश्र णम्णई से डॉश्यामाप्रसाद मगखीी का पत्र गया चक वे .
20 चदनाांकमई को डॉक्टरीश्र से चमलने के चलए नागपगर ग रहे हैं तन्ा एक चदन रुककर चदनाांक 21
381
मई को कलकत्ता ीायेंग।े इस समय णांगाल में ीश्र फीलगल हक का मांचत्रमांडल न्ा तन्ा उनकश्र गगप्त
में चहन्दगओां पर नकन्ल्पत नत्यािार होना प्रारम्ो हो गये न्े प्रेरणा से पूवी णांगाल के नोगखालश्र ोाग।
चहन्दगओां पर मगसलमानों द्वारा चकये गये इन नत्यािारों कश्र ओर नांग्री
े श्र शासन ीानणूझकर गाँखे
मूाँदकर णैुा हग ग न्ा। नांग्रेीों कश्र यह कगचटल िाल न्श्र चक चहन्दगओां को उनके चवरुद्ध उुाव करने का
नवसर न चमल पाये, इसचलए मगन्स्लम लश्रग के द्वारा उनका उत्साह ोांग होता रहे । इस चवकट पचरन्स्न्चत
में से मागभ चनकालने के चलए डॉश्यामाप्रसाद मगखीी प्रयत्न कर रहे न्े तन्ा इसश्र चविार से उन्होंने .
डॉक्टरीश्र से चमलने का कायभक्रम णनाया न्ा।

नागपगर गने पर डॉगभ दे खा तन्ा रात को नौ णीे डॉक्टरीश्र के घर श्यामाप्रसाद मगखीी ने सांघ का व .
पर गये। डॉक्टरीश्र ने गगे णढकर उनका स्वागत चकया। हान् चमलाते समय श्यामाणाणू ने डॉक्टरीश्र
कश्र ओर दे खकर पूछा ‘‘मैंने तो सगना न्ा चक गप नत्यन्त णश्रमार होने के कारण चणस्तर पर हश्र पड़े हग ए
हैं ।’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने हाँ सते हग ए कहा ‘‘गप ीैसा णड़ा डॉक्टर मेरे यहााँ ग रहा है यह सगनते हश्र
मेरश्र णश्रमारश्र डरकर ोाग गयश्र है ।’’ इस समय डॉक्टरीश्र को ॰ णगखार न्ा चफर ोश्र वे इतनश्र शचि 103
एवां उत्साह कहााँ से प्राप्त करते न्े, यह वहश्र ीानें।

डॉक्टरीश्र ने श्यामाणाणू को लाकर णैुाया तन्ा कगशलक्षेम के णाद वाता प्रारम्ो हग ई। इस समय ीश्र
गगरुीश्र, ोण्डारा के ीश्र दादासाहण दे व, ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र तन्ा नागपगर के कगछ प्रमगख कायभकता वहााँ
उपन्स्न्त न्े। औपिाचरक प्रश्नों के णाद डॉश्यामाप्रसाद मगखीी ने णांगाल कश्र हृदयद्रावक घटनाओां .
चिढ एवां सन्ताप टपकता न्ा। उपन्स्न्त सोश्र लोगों एक शब्द से-का वणभन प्रारम्ो चकया। उनके एक
का चित्त उनकश्र णातें सगनकर न्रा उुा। डॉक्टरीश्र उनका कन्न णड़े ध्यान से सगन रहे न्े। ननेक
सन्तापीनक णातें णताकर डॉ मगखीी ने कहा .‘‘नण णांगाल में कोई ‘चहन्दू रक्षा दल’ णनाये चणना
चहन्दगओां के चलए कोई णिाव का रास्ता नहीं णिा।’’ यह कहतेकहते उनका गला ोर गया। इस -
पर डॉक्टरीश्र ने शांकाप्रदर्तशत कश्र चक ‘‘गप ‘चहन्दू रक्षा दल’ णनाने कश्र सोि रहे हैं , परन्तग क्या नांग्रेी
और लश्रगश्र मगसलमान नपनश्र गाँखोंदे खते उनके नन्स्तत्व को िगनौतश्र दे नेवाले इस दल को िलने -
दें ग?’’

यह सगनकर डॉ सोि में पड़ गये और णोले मगखीी .‘‘चफर इसमें से चहन्दगओां के चलए चुक रास्ता कौनसा
है ?’’

इस पर नत्यन्त गम्ोश्रर एवां शान्त स्वर में डॉक्टरीश्र ने नपनश्र ोूचमका चवशद कश्र। उन्होंने णताया चक
‘‘णांगाल या पांीाण में उत्पन्न हग ई तन्ा स्न्ानासे पैदा होनेवालश्र णश्रि में चहन्दगओां कश्र दृचष्ट-स्न्ान पर णश्रि-
चवकट पचरन्स्न्चत का मूल कारण नपने समाी कश्र चवसांघचटत नवस्न्ा है । इस न्स्न्चत को स्न्ायश्र प
से दूर चकये चणना कहींकहीं चहन्दगओां के चवरुद्ध इस प्रकार के उपद्रव होते हश्र रहें ग।े इन पर क्षचणक -न-
382
स्न्ायश्र प से नहीं णदला ीा योीना करने से पचरन्स्न्चत को-प्रचतचक्रयात्मक एवां गांचशक उपाय
ोर में चहन्दगओ-ां सकता। इसके चलए तो दे श के मन में समचष्टोाव चनमाण करना एवां एक राष्ट्रश्रयत्व के
सांस्कार से चहन्दगओां के मनों को प्रोावश्र णनाना गवश्यक है । चहन्दगओां में परस्पर प्रेम तन्ा राष्ट्र कश्र
दृचष्ट से वैोव के चशखर पर ग ढ होने कश्र महत्त्वाकाांक्षा उत्पन्न करना हश्र राष्ट्रोत्न्ान का चविायक
एवां स्न्ायश्र मागभ है तन्ा सांघ उसश्र का ननगसरण कर रहा है ।’’

इस सम्ोार्ण में डॉमगखीी ने यह ोश्र सगझाव रखा चक इसके गगे सांघ को राीनश्रचत में प्रेवश करना .
िाचहए। इस पर डॉक्टरीश्र ने नचवलम्ण उत्तर चदया चक‘‘सांघ प्रिचलत राीनश्रचत में ोाग नहीं लेगा।’’
डॉक्टरीश्र ने श्यामाणाणू के समक्ष यह गशा ोश्र प्रकट कश्र चक यचद णांगाल में न्ोड़े चदन पूवभ हश्र प्रारम्ो
चकये गये सांघकायभ को उन ीैसे व्यचियों का समन्भन और गशश्रवाद चमला तो वह णड़श्र तेीश्र से प्रगचत
करे गा तन्ा चहन्दगओां कश्र रक्षा और सहायता कश्र स्वयमेव व्यवस्न्ा हो ीायेगश्र। डॉक्टरीश्र के
गत्मचवश्वासपूणभ एवां मौचलक चविारों से डॉमगखीी णहग त प्रोाचवत हग ए तन्ा ीण वे उनसे चणदा लेने .
के चलए खड़े हग ए तो दोनों एक दूसरे कश्र ओर इतने गत्मश्रय ोाव से दे ख रहे न्े चक उसका शब्दों में
वणभन करना कचुन है ।

नचिकारश्र चशक्षण वगभ में ोाग लेनेवाले िौदह सौ स्वयांसेवक प्रातः िार णीे से राचत्र के दस णीे तक
चवचोन्न कायभक्रमों में व्यस्त रहते। ीश्र गगरुीश्र का णराणर प्रयत्न रहता चक सोश्र कायभक्रम योीनानगसार
चनचित समय पर एवां सांस्कारक्षम रश्रचत से होते रहें । इस सण दौड़िूप में ोश्र वे समय चनकाल कर
डॉक्टरीश्र के पास गते तन्ा उनकश्र और्चि एवां ननगपान ुश्रकुश्रक िल रहा है या नहीं इसकश्र -
दे खोाल करते। डॉक्टरीश्र कश्र सगशूर्ा के चलए उनके घर के सदस्यों के नचतचरि कगछ स्वयांसेवकों के
गने कश्र ोश्र व्यवस्न्ा न्श्र। ीश्र यादवराव ीोशश्र, ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर, ीश्र ीश्रकृष्ट्ण पगराचणक, ीश्र
णाणासाहण दे शमगख, ीश्र ोाऊराव दे वरस गचद प्रमगख प से शगशर्
ू ा में ीगटे हग ए न्े। पास णैुे हग ए इन
स्वयांसेवकों के सान् डॉक्टरीश्र लेटेनचिक -से-लेटे णात करते रहते। वे उनसे कहते चक उन्हें नचिक-
में कायभ का दाचयत्व सम्हालने के चलए गगे गना एक प्रान्त-महाचवद्यालयश्रन चशक्षा प्राप्त कर एक
िाचहए। एक णार काशश्र वचाश्वचवद्यालय में चशक्षा लेनेवाले एक तरुण स्वयांसेवक ीश्र चवश्वनान्
चलमये ने उनसे कहा ‘‘मेरश्र पढाई का यह नन्न्तम वर्भ है । इसके गगे चपताीश्र कश्र इच्छा पढाई ीारश्र
रखने कश्र नहीं है । नतः यह नहीं लगता हैं चक मैं नगले वर्भ काशश्र ीा सकूाँगा।’’ इस पर डॉक्टरीश्र
ककचित् दगःचखत होकर णोले ‘‘काशश्र में सण लोग पढाई के चलए हश्र ीाते हैं । सांघ के चलए कोई नहीं
ीाता यह मगझे मालूम है । चशक्षा के सान्सान् सांघ कश्र योीना णनायश्र ीातश्र है । पर इसके गगे इस -
िाचहए। णात का ीरा गम्ोश्ररता से चविार करना’’ डॉक्टरीश्र ने नपनश्र णश्रमारश्र में ीो चिन्ता व्यि कश्र
उसका पचरणाम यह हग ग चक ीश्र चलमये प्रिारक के नाते कायभ करने के चलए चनकल गये।

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डॉक्टरीश्र को नागपगर गये एक पखवाड़ा होता ीा रहा न्ा परन्तग उनके रोग में कमश्र के लक्षण नहीं
चदखते न्े। नतः उन्हें रहखटकने लगा चक नण न्ोड़े हश्र चदनों में वगभ कश्र समाचप्त पर सण रहकर यह-
स्वयांसेवक नपनेनपने घर लौट ीायेंगे तन्ा वे उनसे चमल नहीं सकेंगे। उन्होंने वगभ के नचिकाचरयों -
से इस णात कश्र चीद्द पकड़ लश्र चक एक णार मगझे वगभ में ले िलो तन्ा सण स्वयांसेवकों को गाँखे
ीून को साांयकाल के शान्त समय पर णौचद्धकवगभ में 2 रचववार चदनाांक ोरकर दे ख लेने दो। नतः
उनाहें लाया गया। उस चदन ीश्र गगरुीश्र का ‘ीश्र छत्रपचत चशवाीश्र का चमीा राीा ीयकसह को पत्र’
इस चवर्य पर चविारप्रवतभक एवां ओीस्वश्र ोार्ण हग ग। उस ोार्ण में व्यि गत्मचवश्वास तन्ा चहन्दू
राष्ट्र के उद्धार कश्र ज्वलन्त गकाांक्षा डॉक्टरीश्र के चलए उत्साहवद्धभ क न्श्र। वे नचत प्रसन्न मगद्रा में घर
लौटे । ननेक लोगों से उन्होंने प्रशांसा कश्र चक गगरुीश्र का ोार्ण णहग त नच्छा हग ग।

वगभ समाचप्त पर ग रहा न्ा। प्रत्येक व्यचि के मन में यहश्र णात उु रहश्र न्श्र चक यहााँ गने पर ोश्र
डॉक्टरीश्र के चविार सगनने का सौोाग्य नहीं चमल पाया। सांघ कश्र दृचष्ट से तो ‘वगभ’ एक महान् पवभ हश्र
है । ऐसे नवसर पर चणस्तर पकड़ लेने का दगःख डॉक्टरीश्र को णहग त व्यचन्त कर रहा न्ा। चदनाांक 8
त्सकों ीून को ीण वगभ का सावभीचनक समारोप हग ग तो डॉक्टरीश्र ने ीश्र गगरुीश्र से तन्ा नपने चिचक
से वहााँ ीाने कश्र इच्छा गग्रह के सान् प्रकट कश्र। परन्तग उनकश्र ऐसश्र हालत नहीं न्श्र चक उन्हें इतनश्र दूर
खगले मैदान में ले ीाया ीा सके। नतः चनरुपाय होकर डॉक्टरों को उनकश्र इच्छा टालनश्र पड़श्र। डॉक्टरों
के इस नकार से डॉक्टरीश्र णहग त नचिक चवर्ण्ण हो गये। उन्हें लगा चक सण कगछ करने पर ोश्र स्वास्र्थय
तो ुश्रक हो नहीं रहा है चफर व्यन्भ हश्र स्वयांसेवकों कश्र ोेंट से क्यों वांचित रखते हैं ?

समारोप के कायभक्रम से लौटने के णाद डॉक्टरीश्र के मन कश्र तड़फड़ाहट लोगों से चछप न सकश्र।
इसचलए यह चनचित चकया गया चक उनके सन्तोर् के चलए दूसरे चदन प्रातःकाल चनीश्र समारोप के
कायभक्रम में उन्हें लाया ीाये। डॉक्टरीश्र का मन इस चनणभय से चखल उुा क्योंचक सांघकायभ कश्र प्रगचत
के सम्णन्ि में सन्तोर् व्यि करने तन्ा गगे कश्र नपेक्षा व्यि करने के चलए वे णहग त हश्र गकगल न्े।

दूसरे चदन प्रातः उन्हें वगभ में लाया गया। लगोग डेढदो हीार व्यचियों को उनका ोार्ण नच्छश्र तरह -
सगनायश्र दे सके तन्ा उन्हें ोार्ण दे ते हग ए कमकम कष्ट हो इसचलए ध्वचनविभक यांत्र कश्र व्यवस्न्ा -से-
कश्र गयश्र न्श्र तन्ा उनके णैुने कश्र कगसी पर नश्रिे तन्ा दोनों ओर नरम तचकये लगा चदये गये न्े। ुश्रक
को दे खकर उन्होंने स्वयां उुाकर उन्हें नश्रिे रख चदया समय पर डॉक्टरीश्र वहााँ गये। तचकयों, मानो
उन्हें शरश्रर के चलए इतने िोिले पसन्द नहीं न्े। इसके उपरान्त चवचोन्न प्रान्तों के कगछ िगने हग ए
स्वयांसेवकों ने नचिकारश्र चशक्षण वगभ से वे क्या ग्रहण कर पाये तन्ा नपने कायभक्षेत्र में सांघ का कायभ
कैसे करें गे इस सम्णन्ि में चविार रखे। उन सणके चविारों में वृचद्धगत गशावाद हश्र व्यि होता न्ा।
इसके उपरान्त डॉक्टरीश्र ने ोार्ण चकया ीो सदा नचवस्मरणश्रय रहे गा। उन्होंने कहा ‘‘माननश्रय
सवाचिकारश्रीश्र, प्रान्तसांघिालक, नचिकारश्रवगभ तन्ा स्वयांसेवक णन्िगओां मैं यह नहीं ीानता चक मैं !

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गी गपके सम्मगख दो शब्द ोश्र ुश्रक तरह से कह सकूाँगा। गप तो ीानते हश्र हैं चक गत िौणश्रस चदन
से मैं रोगशय्या पर पड़ा हग ग हू ाँ । सांघ कश्र दृचष्ट से यह वर्भ णड़े सौोाग्य का है । गी मेरे सामने मैं चहन्दू
राष्ट्र कश्र छोटश्रता के कारण इतने चदन नागपगर सश्र प्रचतमा दे ख रहा हू ाँ । चकन्तग मेरश्र शारश्रचरक नस्वस्न्-
में रहते हग ए ोश्र गपका पचरिय प्राप्त करलेने कश्र नपनश्र इच्छा को मैं सफलश्रोूत नहीं कर सका। पूना
के ओसश्र में मैं पन्द्रह चदन तक न्ा और वहााँ मैंने हर एक स्वयांसेवक से स्वयां पचरिय कर चलया। .टश्र .
वैसा हश्र कर सकूाँगा। चकन्तग मैं गपकश्र सेवा तचनक सश्र में ोश्र .टश्र .मैं समझता न्ा चक नागपगर के ओ
ोश्र नहीं कर सका। यहश्र कारण है चक गी मैं यहााँ पर गपके दशभन करने गया हू ाँ ।

‘‘मेरश्र और गपका कगछ ोश्र पचरिय न होने पर ोश्र ऐसा कौनसश्र णात है चक चीसके कारण मेरा
नन्तःकरण गपकश्र ओर और गपका मेरश्र ओर दौड़ पड़ता है । राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ कश्र
चविारिारा हश्र ऐसश्र प्रोावशालश्र है चक चीन स्वयांसेवकों का गपस में पचरिय तक नहीं उनमें ोश्र
पहलश्र हश्र नीर में एक दूसरे पर प्रेम उत्पन्न हो ीाता है । णातिश्रत होतेहोते वे एक दूसरे के चमत्र हो -न-
के ीश्र काशश्रनान्ीश्र चलमये ीाते हैं । चपछले चदनों ीण मैं पूना में न्ा तो एक णार मैं और साांगलश्र‘लकड़श्र
पगल’ पर से ीा रहे न्े। उसश्र समय हमारश्र हश्र ओर नौदस वर्भ कश्र नवस्न्ा के दो णालक ग रहे न्े। -
हमारे पास से ीाते समय ककचित् मगस्कराकर वे गगे णढ गये। तण मैंने ीश्र काशश्रनान्राव से कहा‘ये
लड़के सांघ के स्वयांसेवक हैं ।’ मेरश्र इस णात पर ीश्र काशश्रनान्राव ने गियभ प्रकट चकया। चणना चकसश्र
तरह कश्र ीानपहिान के मै-ाांने इन णालकों को नसन्न्दग्ि स्वर में स्वयांसेवक कैसे णतलाया यह
उनके चलए समस्या हो गयश्र। उन्होंने मगझसे पूछा ‘यह गप कैसे कहते हैं चक ये हमारे स्वयांसेवक हैं ?’
कारण, उन दोनों कश्र वेर्ोूर्ा में स्वयांसेवकत्व का चनदशभक कोई ोश्र णाहरश्र चिह्न नहीं न्ा। मैने कहा
‘मैं कहता हू ाँ इसचलए। क्या गपको इस णात कश्र सत्यता गीमानश्र है ?’ न्ोड़श्र दूर गये हग ए उन णालकों
को मैंने वापस णगलाया और पूछा ‘क्यों, हमें पहिानते हो ?’ उन्होंने तगरन्त उत्तर चदया ‘ीश्र हााँ, दो साल
पहले गप चशवाीश्र शाखा में गये न्े। गप हमारे सरसांघिालक-मन्न्दर में लगनेवालश्र णाल-डॉक्टर
हे डगेवारीश्र हैं और गपके सान् ये हैं साांगलश्र के ीश्र काशश्रनान्ीश्र चलमये।’ यह सांघ कश्र तपिया का
फल है , केवल चकसश्र एक व्यचि का यह काम नहीं। नोश्र यहााँ चीन्होंने ोार्ण चदया वे मद्रास के ीश्र
सांीश्रव कामन् यहााँ एक नपचरचित के प में गये और नण िार रोी में हश्र हमारे ोाई णनकर वापस
ीा रहे हैं । इसका ीेय चकसश्र मनगष्ट्य को नहीं, सांघ को है । ोार्ाचोन्नता होते हग ए -चोन्नता तन्ा गिार-
ोश्र पांीाण, णांगाल, मद्रास, णम्णई, चसन्ि गचद प्रान्तों के स्वयांसेवक परस्पर क्यों इतना प्रेम करते हैं
? केवल इसश्रचलए चक वे राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ के घटक हैं । हमारे सांघ का प्रत्येक घटक दूसरे
स्वयांसेवक पर नपने सगे ोाई से ोश्र नचिक प्रेम करता है । सगे ोाई ोश्र कोश्रकोश्र ीायदाद के चलए -
गपस में लड़ते हैं , चकन्तग स्वयांसेवकों में ऐसश्र णात नहीं हो सकतश्र।

385
‘‘मैं गी िौणश्रस चदन से घर में पड़ा हू ाँ । परन्तग मेरा हृदय तो न्ा यहााँ हश्र गप लोगों के पास। मेरा शरश्रर
घर में न्ा चकन्तग मन वगभ में गप लोगों के णश्रि हश्र रहा करता न्ा। कल शाम को कमकम पााँि -से-
चकन्तग डॉक्टर चमचनट केवल प्रान्भना के चलए हश्र सांघस्न्ान पर ीाने के चलए ीश्र णहग त तड़प रहा न्ा।
लोगों के सख्त मना करने पर मगझे िगप णैुना पड़ा।

‘‘गी नपनेनपने स्न्ान को वापस ीा रहे हैं । मैं गपको प्रेम से चणदाई दे ता हू ाँ । यह नवसर यद्यचप -
चणछोह का है , चफर ोश्र दगःख का कदाचप नहीं। चीस कायभको सम्पन्न करने के चनिय से गप यहााँ गये
उसश्र कायभ कश्र पूर्तत के चलए हश्र गप नपने स्न्ान पर वापस ीा रहे हैं । प्रचतज्ञा कर लश्रचीए चक ीण
तक तन में प्राण है सांघ को नहीं ोूलेंग।े कैसे ोश्र मोह से गपको चविचलत नहीं होना िाचहए। नपने
ीश्रवन में ऐसा कहने का नवसर न गने चदचीए चक पााँि साल पहले मैं सांघ का सदस्य न्ा। हम लोग
ीण तक ीश्रचवत हैं तण तक स्वयांसेवक रहें ग।े तनिन से सांघ का कायभ करने के चल-मन-ए नपने दृढ
चनिय को नखन्ण्डत प से ीाग्रत रचखए। रोी सोते समय यह सोचिए चक ‘गी मैंने चकतना काम
चकया ?’ यह ोश्र ध्यान में रचखए चक केवल सांघ का कायभक्रम ुश्रक प से करने या प्रचतचदन चनयचमत
प से सांघस्न्ान पर उपन्स्न्त रहने से सांघकायभ पूरा नहीं हो सकता। हमें तो गसेतग चहमािल फैले हग ए
चवशाल चहन्दू समाी को सांघचटत करना है । सरा महत्त्वपूणभ कायभक्षेत्र केवल स्वयांसेवकों में नहीं।
सांघ के णाहर ीो लोग हैं उनमें ोश्र काम करना है । हमारा कतभव्य हो ीाता है चक उन लोगों को हम
राष्ट्र के उद्धार का सरा मागभ णतायें और यह मागभ है केवल सांघटन का। चहन्दू ीाचत का नन्न्तम
कल्याण इस सांघटन के द्वारा हश्र हो सकता है । दूसरा कोई ोश्र काम राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ नहीं करना
िाहता। यह प्रश्न चक गगे िलकर सांघ क्या करनेवाला है , चनरन्भक है । सांघ इसश्र सांघटनकायभ को कई
गगना तेीश्र से गगे णढायेगा। यो हश्र णढतेणढते एक ऐसा स्वणभचदन नवश्य गयेगा चीस चदन सारा -
ोारतवर्भ सांघमय चदखायश्र दे गा। चफर चहन्दू ीाचत कश्र ओर वक्रदृचष्ट से दे खने का सामर्थयभ सांसार कश्र
मण करने नहीं िले हैं चकसश्र ोश्र शचि में नहश्र हो सकेगा। हम चकसश्र पर गक्र, पर इस णात के चलए
सदै व सिेष्ट रहना होगा चक हम पर ोश्र कोई गक्रमण न कर सके।

‘‘मैं गपको गी कोई नयश्र णात नहीं णता रहा हू ाँ । प्रत्येक स्वयांसेवक को सांघकायभ को हश्र नपने
ीश्रवन का प्रमगख कायभ समझना िाचहए। मैं गी गपको इस दृढ चवश्वास के सान् चणदाई दे रहा हू ाँ चक
गप नण इस मांत्र को नपने हृदय पर नच्छश्र तरह नांचकत कर यहााँ से ीायेंगे चक एकमात्र सांघकायभ
हश्र मेरे ीश्रवन का कायभ है ।’’

ोार्ण के उपरान्त दूरयात्रा सान्भक -दूर से गये हग ए स्वयांसेवकों को लगने लगा चक उनकश्र नागपगर-
चमला न्ा हो गयश्र। वास्तव में तो गी उन्हें यह पान्ेय, ीो उनके सम्पूणभ ीश्रवनपन् पर उनके चलए
पयाप्त चसद्ध हो। डॉक्टरीश्र के मगख से पावन वाणश्र सगनने का सौोाग्य चमलने पर स्वयांसेवक तो नत्यन्त

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प्रमगचदत न्े, चकन्तग ोार्ण के कारण डॉक्टरीश्र इतने न्क गये न्े चक वे तगरन्त सवाचिकारश्रीश्र के कमरे
में ीाकर लेट गये। न्ोड़श्र दे र गराम चमलने के णाद उन्हें लोग घर वापस ले गये। उस चदन नपने -
नपनाे स्न्ान पर वापस ीानेवाले स्वयांसेवकों का उनके घर णराणर गनाीाना लगा रहा। इस -
समय उनका चणछौना णश्रि में कमरे में न्ा तन्ा वहााँ णराणर मन्द प्रकाश कश्र व्यवस्न्ा कर रखश्र गयश्र
यांसेवकों से डॉक्टरीश्र णड़े प्रेम के सान् पूछताछ करने तन्ा उनके न्श्र। चणदा लेने के चलए गनेवाले स्व
यहाााँ के पौढ कायभकताओां तन्ा सांघिालकों को स्मरणपूवभक नमस्कार णताने को कहते। इन चदनों
प्राप्त होनेवाले पत्रों का उत्तर ोेीना उनके चलए नसम्ोव हश्र न्ा, नतः उन्होंने इन ीानेवाले स्वयांसेवकों
के सान् सन्दे श ोेीा चक ‘‘शश्रघ्र हश्र गपको उत्तर ोेीूग
ाँ ा, नाराी न हों।’’ णम्णई के ीश्र णापूराव लेले
के सान् ीश्र णाणाराव सावरकर तन्ा ीश्र दादा नाईक को ोश्र यहश्र सन्दे श ोेीा।

वगभ समाप्त होते हश्र डॉक्टरीश्र को डॉश्यामाप्रसाद मगखीी का पत्र चमला। पत्र में कलकत्ता के पास हश्र .
केन्द्र खोलने के चनणभय कश्र-ीून से छः सप्ताह का एक चशक्षण 18 नाांकचद सूिना दश्र गयश्र न्श्र तन्ा उस
केन्द्र में गनेवाले लगोग सौ लोगों को शारश्रचरक, सैचनक तन्ा चहन्दू राष्ट्र के उत्न्ान कश्र दृचष्ट से
णौचद्धक चशक्षण दे ने के चलए कगछ योग्य एवां चनष्ट्णात चशक्षक ोेीने कश्र मााँग कश्र गयश्र न्श्र। इस पत्र के
ननगसार क्या चकया ीा सकता है इस सम्णन्ि में ीण उनके मन में चविार िोंर काट रहे न्े, उसश्र
समय णांगाल से वगभ में गये हग ए स्वयांसेवक चणदा मााँगने के चलए गये। राचत्र गु णीे का समय न्ा
तन्ा ीश्र गगरुीश्र डॉक्टरीश्र के सम्णन्ि में पूछताछ करके णाहर गये हश्र न्े। इतने लोगों को गते दे खकर
वे ोेंट ील्दश्र हश्र समाप्त करने का सांकेत दे गये न्े। कलकत्ता के सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र को स्वाोाचवक
हश्र नचिक चिन्ता न्श्र। उन्होंने स्वयांसेवकों से प्रश्न चकया ‘‘णाांगला ए वार काी चक रॉकेम हॉणे
?’’(णांगाल में इस णार कैसा होगा ?) न्ोड़श्र दे र वे णांगला में हश्र णोले तन्ा णताया चक ‘‘डॉश्यामाप्रसाद .
ें ,े पर नसलश्र काम प्रिारक ोेीने से नहीं,
मगखीी चलखते हैं चक प्रिारक ोेीो। प्रिारक तो ोेीग
होता, उसके चलए तो गप स्न्ानश्रय लोगों को हश्र सारा काम सम्हालना िाचहए।’’

वगभ समाप्त हो गया और ीश्र गगरुीश्र एवां नन्य प्रमगख कायभकता नण उसके कामकाी से मगि हो गये
न्े। नण स्वाोाचवक हश्र डॉक्टरीश्र के स्वास्र्थय एवां चिचकत्सा कश्र ओर सण नचिक ध्यान दे सकते न्े।
पर डॉक्टरीश्र कश्र न्स्न्चत चदनप्रचतचदन नचिकाचिक चिन्ताीनक होतश्र गयश्र। उनकश्र चिचकत्सा -
करनेवाले, डॉक्टर ोश्र रोग का ुश्रकचनदान नहीं कर पा रहे न्े। नतः यह चविार हग ग चक उनके ुश्रक-
सम्पूणभ शरश्रर कश्र एक णार गिगचनक यांत्रों के सहारे परश्रक्षा कर लश्र ीाये। दूसरश्र ओर स्न्ानस्न्ान से -
चिचकत्सा के चलए वहााँ गने का ोश्र गग्रह होने लगा। लाहौर से िमभवश्ररीश्र ने चलखा चक पांीाण
चष्ट से उपयगि रहे गा। वहााँ के तज्ञ चिचकत्सकों कश्र राय में चहसार ीलवायग एवां चिचकत्सा दोनों हश्र दृ
चीले में चसरसा एवां लाहौर के पास शाहदरा दोनों हश्र नचत उत्तम स्न्ान न्े। उन्होंने दूसरे पत्र में यह ोश्र
पूछा चक पांीाण तक कश्र यात्रा डॉक्टरीश्र सहन कर सकेंगे या नहीं। महाराष्ट्र में ोश्र चमरी एवां कोरडा

387
गने का चनमांत्रण चमला। इिर नागपगर के सांघिालक ीश्र णाणासाहण घटाटे ने चछन्दवाडा िलने का
गग्रह प्रारम्ो कर रखा न्ा।

इस सण गग्रह के पश्रछे डॉक्टरीश्र के चलए ननन्य ीद्धा एवां गत्यन्न्तक प्रेम का णहग त नचिक ोाव
न्ा। परन्तग चनष्ठगर काल कश्र योीना कगछ दूसरश्र हश्र न्श्र। ीलवायग के चलए स्न्ानपचरवतभन के लायक -
ीून 15 नण शरश्रर में शचि हश्र नहीं णिश्र न्श्र। चदनाांकको चवशेर्ज्ञों के मतानगसार डॉक्टरीश्र को मेयो
नस्पताल में ले गये तन्ा वहााँ चवचवि प्रकार कश्र परश्रक्षाएाँ प्रारम्ो हो गयीं। क्षचकरण से उनकश्र छातश्र -
उनकश्र पश्रु कश्र पश्रड़ा का कगछ ोश्र कारण ज्ञात नहीं हो एवां फगफ्फगस का चित्र चलया गया। चकन्तग उससे
सका। नस्पताल के वातावरण में डाॉक्टरीश्र नचिक नस्वस्न् चदखने लगे। वहााँ ीाने के णाद उन्होंने
नपने चमत्र ीश्र नानासाहण तेलांग को णगलाने के चलए मोटर ोेीश्र। उनके पलांग के पास गने पर
डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘गप णश्रमार हैं यह मगझे पता लगा न्ा पर मेरश्र यह हालत होने के कारण मैं गपका
हालिाल ीानने के चलए नहीं ग सका, नच्छा हग ग गप ग गये।’’

उसश्र चदन उनके पास णैुे हग ए ीश्र यादवराव ीोशश्र के सान् उन्होंने चवर्य छे ड़ा चक ‘‘सांघ के वचरष्ठ
नचिकारश्र चदवांगत हग ए तो गप उनका नन्त्य सांस्कार सैचनक पद्धचत से करें गे क्या ?’’ यह नचप्रय
चवर्य चकसश्र ोश्र स्वयांसेवक को नहीं रुि सकता न्ा। नतः यादवरावीश्र ने उस प्रश्न कश्र ओर सगन -
ननसगनश्र करके याद चदलायश्र चक दवा लेने का समय हो गया है । पर डॉक्टरीश्र ने उस ओर ध्यान ने
दे ते हग ए नपना चविार व्यि चकया। उनका गशय न्ा चक‘‘सांघ एक चवशाल कगटगम्ण है । यह कोई
सैचनक सांघटन नहीं। नतः कगटगम्ण के कता के मरने के णाद ीैसे नन्त्य सांस्कार होता है वैसे हश्र सादा
एवां सािारण पद्धचत से होना िाचहए।’’

नस्पताल का वातावरण डॉक्टरीश्र को नच्छा नहीं लग रहा न्ा। नतः मेयो नस्पताल में परश्रक्षा पूणभ
होने के पूवभ से हश्र उन्होंने घर ले िलने कश्र रट लगा रखश्र न्श्र। चदनाांक ीून को परश्रक्षा पूरश्र हो गयश्र। 18
उसश्र चदन, डॉक्टरीश्र को सन्तोर् हो तन्ा उनकश्र शगशूर्ा कश्र ुश्रक व्यवस्न्ा हो सके इस दृचष्ट से, ीश्र
णाणासाहण घटाटे गग्रह कर उन्हें नपने चसचवल लाइन्स के णांगले पर ले गये। णांगले में प्रवेश करते
हश्र दाचहनश्र ओर के िौड़े दालान में उनका पलांग चणछाया गया। वहााँ सण प्रकार कश्र ननगकूलता न्श्र।
नद्ययावत् सािन, सगन्दर वातावरण, खगलश्र हवा तन्ा शगशर्
ू ा करने के चलए ीश्र गगरुीश्र, ीश्र णाणासाहण
घटाटे तन्ा नन्य चप्रय तरुण कायभकता, सोश्र कगछ उपन्स्न्त न्ा। वास्तव में तो डॉक्टरीश्र के मन में
नपने घर पर हश्र िलने कश्र इच्छा न्श्र, चकन्तग उनके घर के पास घगटाघगटा वातावरण-, नपयाप्त स्न्ान,
घर के पश्रछ णहनेवाला गन्दा नाला गचद णातों को ध्यान में रखकर वह चविार छोड़ दे ना पड़ा।

िरमपेु में घटाटे ीश्र के णांगले पर गने के णाद सण कगछ ननगकूल होने पर ोश्र ज्वर, पश्रु के ददभ तन्ा
णेिन
ै श्र में चकसश्र ोश्र प्रकार कमश्र के लक्ष्ण नहीं चदखे। णेिन
ै श्र के कारण वे कमरे में इिरउिर टहलने -

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कोश्र रोग के प्रकोप के कारण -लगते तन्ा नचिक न्क ीाने के णाद चफर पलांग पर पड़े रहते। कोश्र
तश्र हश्र नहीं न्श्र औरवे णाहर णांगले के णगश्रिे में गकर णैु ीाते। रात में नींद लगोग गइसचलए उस
समय ोश्र वे इिरचफरने से वे न्क ीाते हैं इसचलए उनकश्र शगशर्
ू ा -उिर घूमते रहते। इस प्रकार िलने-
करनेवाले स्वयेंसवकों को ननेक णार उनसे कहना पड़ता चक‘‘दरवाीे से णाहर मत ीाइए’’ तन्ा
णाहर ीाने से रोकने में णड़श्र चदोंत पड़तश्र न्श्र। डॉक्टरीश्र इस प्रकार रोका ीाना पसन्द नहीं करते न्े।
एक णार ीश्र गगरुीश्र उनके पास गये तो डॉक्टरीश्र ने हाँ सते हग ए पूछा ‘‘गपने मेरे पास ये ‘नटे ण्डेण्ट’
रखे हैं या मगझे रोकने के चलए पहलवान ?’’

सािारणतः प्रातः दोतश्रन घण्टे डॉक्टरीश्र कश्र तणश्रयत ुश्रक रहतश्र न्श्र तन्ा उनके िेहरे पर ताीगश्र -
यश्र दे तश्र न्श्र। पर फचदखाचार उनका णगखार नागपगर कश्र प्रखर गमी के वातावरण में णढने लगता न्ा
तन्ा उनके मगख पर मचलनता नीर गने लगतश्र। कोश्रकोश्र चविारों कश्र तन्द्रा में उनके मगख से कगछ -
छग टपगट वाक्य चनकल ीाते। इनसे ऐसा पता िलता न्ा चक उनके मन में चविारों का यहश्र तूफान उु
चक रहा न्ा‘‘यगद्ध शग हो गया परन्तग हम समय के पश्रछे रह गये।’’ णश्रमारश्र कश्र नवस्न्ा में ोश्र वे नपनश्र
नपेक्षा दूसरों का हश्र नचिक ख्याल करते न्े।’’ उनका यह स्वोाव हश्र णन गया न्ा तन्ा इस नवस्न्ा
में ोश्र वे उसे नहीं छोड़ पाते न्े। उनकश्र शगशर्
ू ा करने के चलए गनेवाले को प्रातः दोनों समय सायां-
उनके सान् िाय चपलायश्र ीाये, ऐसश्र उनकश्र इच्छा रहतश्र न्श्र। एक चदन राचत्र के ीागरण के कारण
स्वयांसेवक प्रातः दे र तक सोये हग ए न्े। ीश्र गगरुीश्र ोश्र उस समय कहीं णाहर गये न्े। ीश्र यादवराव ीोशश्र
ने ीण डॉक्टरीश्र के सामने िाय लेकर रखश्र तो वे प्रत्येक के चवर्य में पूछने लगे चक ‘‘यह कहााँ है
?’’, ‘‘वह कहााँ है ?’’ इस पर यादवराव ने कहा ‘‘गप िाय लश्रचीए तण तक वे सण ग ीाते हैं ।’’
यह सगनकर डॉक्टरीश्र नाराी होकर चणना िाय चपये हश्र िद्दर ओढकर सो रहे । न्ोड़श्र दे र में ीश्र गगरुीश्र
वहााँ गये तन्ा उन्हें सम्पूणभ घटना का पता िला। उन्होंने तगरन्त सणको णगलाया तन्ा चफर से िाय
णनाने को कहा। ीण सणके सान् णैुकर डॉक्टरीश्र ने िाय पश्र तण उनके मगख पर गनन्द और सन्तोर्
चदखने लगा।

डॉक्टरीश्र कश्र इस णश्रमारश्र कश्र नवस्न्ा में चदनाांक सात णीे के लगोग -ीून को साांयकाल छः 12
ए गये। णहग त वर्ोउनके क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन के एक णांगालश्र चमत्र चमलने के चलाां के णाद गनेवाले
इस चमत्र का उन्होंने चणस्तर पर हश्र णैुाकर प्रेमपूवभक गकलगन चकया। हृदय को न्रन्रानेवालश्र पगरानश्र
घटनाओां का स्मरण करके दोनों को हश्र इस ोेंट से नत्यन्त गनन्द का ननगोव हग ग। चणस्तर पर
लेटेत कश्र। इस वातालपााँि चमनट णातिश्र-लेट डॉक्टरीश्र ने उनके सान् दस-ााप में उन्होंने एक णार
नपने पगराने क्रान्न्तकारश्र चमत्रों को सांघकायभ कश्र महत्ता समझाने के चलए सगचविानगसार णांगाल गने कश्र
इच्छा व्यि कश्र। इसश्र ोेंट में उनके चमत्र ने णताया चक दूसरे चदन प्रातःकाल उनसे चमलने के चलए ीश्र
सगोार्िन्द्र णोस गनेवाले हैं । यह सगनकर डॉक्टरीश्र नत्यन्त प्रसन्न हग ए।

389
इतने णश्रमार होते हग ए ोश्र उन्होंने णम्णई के एक स्वयांसेवक को पत्र चलखकर नपने पास के स्वयांसेवक
से डाक में डलवाया। इस पत्र में उन्होंने णम्णई के स्वयांसेवक के एक गपरे शन कश्र सफलता पर
नपना गनन्द व्यि चकया न्ा। यह ध्यान दे ने योग्य है चक पत्र ीून को चलखा गया न्ा। 19

मेयो नस्पताल में हग ए परश्रक्षण तन्ा नागपगर के नन्य चवशेर्ज्ञ डॉक्टरों ीश्र डेचवड गचद ीााँिपड़ताल -
और 18 के णाद ोश्र रोग का कगछ चनदान नहीं हो पाया। णगखार तो णराणर णढता हश्र ीा रहा न्ा। चदनाांक
उससे गसपास के लोगों ीून को उनकश्र ीो नवस्न्ा रहश्र 19 को गोास हो गया न्ा चक नण यह
णश्रमारश्र चकस कोटश्र तक पहग ाँ िग
े श्र। इसके कारण सोश्र चखन्न एवां चिन्ताकगल न्े। इसश्र नवस्न्ा में चदनाांक
श्यामाप्रसाद मगखीी को ीो पत्र चलखा उसमें उनकश्र मनःन्स्न्चत चछप न .ीून को ीश्र गगरुीश्र ने डॉ 12
सकश्र। वे चलखते हैं ‘‘डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय चदन-प्रचतचदन चणगड़ता ीा रहा है और नण उनकश्र नवस्न्ा
नत्यन्त गम्ोश्रर हो गयश्र है । इस पचरन्स्न्चत में वे चकसश्र ोश्र ोााँचत चकसश्र णात कश्र ओर ध्यान नहीं दे
सकते और हम लोगों के चलए ोश्र इस समय चकसश्र महत्त्वपूणभ चवर्य का चविार सम्ोव नहीं है ।’’

णगिवार चदनाांक न कश्र राचत्र चिन्तापीू 19ाूणभ हश्र णश्रतश्र। रातोर डॉक्टरीश्र कश्र गाँख नहीं लगश्र। इस -
को प्रातः ीश्र 20 कारण उनकश्र कमीोरश्र और दगणभलता णहग त णढ गयश्र न्श्र। इस न्स्न्चत में चदनाांक
सगोार्िन्द्र णोस तन्ा ीश्र रामोाऊ रुईकर कश्र मोटर घटाटे ीश्र के णांगले के सामने गकर खड़श्र हग ई।
हग ग चक उसश्र समय डॉक पर कगछ ऐसा सांयोगाटरीश्र कश्र छोटश्र सश्र झपक लग गयश्र।-

सगोार्णाणू नागपगर में नग्रगामश्र दल के नचिवेशन के चलए चदनाांक को गये न्े। यह मालूम होते 18
हश्र चक डॉक्टरीश्र का स्वास्र्थय ुश्रक नहीं है वे तगरन्त उनसे चमलने के चलए गये। उस समय डॉक्टरीश्र
ीश्र यादवराव ीोशश्र के पास ीश्र ीश्रकृष्ट्ण पगराचणक तन्ा णैुे न्े। सगोार्णाणू ने कमरे में प्रवेश करते हश्र
डॉक्टरीश्र कश्र ओर दे खा तन्ा पास णैुे हग ए स्वयांसेवकों से उनके स्वास्र्थय के चवर्य में पूछा। उन्हें
णताया गया चक ‘‘चपछले दस104-॰103 पन्द्रह चदन से णगखार-॰ से नश्रिे नहीं उतरा है । उन्हें नींद ोश्र
नहीं गतश्र, पर नोश्र कगछ गाँख झपकश्र चदखतश्र हैं ।’’ स्वयांसेवक ने पूछा चक ‘‘गपका कोई महत्त्वपूणभ
काम हो तो गवाी लगाकर ीगाऊाँ ?’’ इस पर ीश्र सगोार्िन्द्र णोस ने कहा ‘‘वास्तव में तो मैं एक
महत्त्पूणभ काम से हश्र गया न्ा। पर इस समय डॉक्टरीश्र कश्र णश्रमारश्र कश्र णात सगनकर केवल उनको
दे खने के चलए िला गया। मैं चफर उनसे चमलने गऊाँगा।’’ इसके णाद उन्होंने न्ोड़श्र दे र डॉक्टरीश्र
के मगख कश्र ओर एकटक दे खा तन्ा गाँखें णन्द करके दोनों हान् ीोड़कर प्रणाम चकया। चफर न्ोड़श्र दे र
णाहर के कमरे में रुककर वे िले गये। उनकश्र मोटर घटाटे ीश्र के णांगले के णाहर गयश्र हश्र होगश्र चक
डॉक्टरीश्र कश्र नींद खगल गयश्र। उस समय वहााँ उपन्स्न्त स्वयांसेवक ने ीश्र सगोार्िन्द्र णोस के गने
कश्र खणर णतायश्र। इस पर डॉक्टरीश्र ने णड़श्र उत्सगकता के सान् पूछा ‘‘उन्होंने क्या कहा ?’’ डॉक्टरीश्र
को णताया गया चक ‘‘वे गपको नोश्र दे खकर गये हैं तन्ा चफर से चमलने के चलए गयेंग।े ’’ इस
प्रकार ीरासश्र दे र- में हश्र यह ोेंट नहीं हो सकश्र यह डॉक्टरीश्र को नच्छा नहीं लगा तन्ा उन्होंने
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सगोार्िन्द्र का नाम लेकर हान् ीोड़कर नमस्कार चकया। चपछले वर्भ नाचसक में णश्रमार होने के कारण
उनकश्र ोेंट नहीं हो सकश्र और नण इस प्रकार गड़णड़ हो गयश्र। ‘दै वां िैवात्र पांिमम्’ यहश्र कहना ुश्रक
होगा।

गगरुवार हरदास .ीून को प्रातः डॉ 20, डॉगोचवन्दलाल शमा ने डॉक्टरीश्र कश्र परश्रक्षा .कविगरे तन्ा डॉ .
कश्र। उनके मत में हालत और नचिक चणगड़ गयश्र न्श्र। रििाप णहग त नचिक णढ ीाने के कारण
पानश्र चनकालने का सग शमा ने तगरन्त मेरुदण्ड से .डॉक्टरों को णहग त चिन्ता हो गयश्र। डॉझाव चदया।
डॉक्टरीश्र को इस उपिार का पता लगते हश्र नपनश्र णश्रमारश्र का रां ग ांग समझ में ग गया तन्ा उन्हें -
चनचित हो गया चक नण वे कगछ घड़श्र के हश्र मेहमान हैं । उन्होंने डॉक्टरों को पास णगलाकर कहा‘‘गपके
कगछ करने से पहले मगझे न्ोड़ा समय िाचहए।’’ इस समय वे गहन चविार में मग्न चदखे। णाहर के कमरे
में डॉक्टर सलाह कर रहे न्े चक यह उपिार तगरन्त करना िाचहए नन्वा कगछ दे र रुका ीाये। इसश्र
समय डॉक्टरीश्र ने ीश्र गगरुीश्र को नपने कमरे में णगलाया तन्ा सणके सामने णोले ‘‘नण लम्णरपांक्िर -
है नन्यन्ा गगे सांघ करने तक का समय ग गया है । मैं णि गया तो ुश्रकका सम्पूणभ कायभ गप
सम्हाचलये।’’ इस प्रकार नन्न्तम व्यवस्न्ा कश्र ोार्ा सगनकर गगरुीश्र नत्यन्त शोकचवनल होकर कहने -
लगे‘‘डॉक्टरीश्र, गप क्या कहते हैं ? गप शश्रघ्र हश्र नच्छे हो ीायेंग।े ’’ इस पर डॉक्टरीश्र कगछ
मगस्कराये और णोले ‘‘यह ुश्रक है , पर मैंने ीो कहा है उसे नवश्य ध्यान में रचखए।’’

तण तक णाहर कमरे में णैुे हग ए डॉक्टरों ने तय चकया चक नोश्र लम्णर पांक्िर न करते हग ए साांयकाल
तक णाट दे खश्र ीाये। डॉक्टरों के ीाने के णाद डॉक्टरीश्र कश्र णेिन
ै श्र क्षणक्षण णढतश्र हश्र ीातश्र न्श्र। -
तो चपछले कई चदन दोपहर इसश्र चिन्ताीनक न्स्न्चत में णश्रत गयश्र। गाँखेंाोाां से झपकश्र हश्र नहीं न्ीं।
नण उनके िेहरे कश्र उग्रता से स्पष्ट चदखता न्ा चक उन्हें नन्दरनन्दर नसह्य वेदना हो रहश्र न्श्र। -हश्र-
णैुक-गसपास के कायभकताओां का मन उदास हो गया न्ा। डॉक्टरीश्र कश्र उुक, कमरे में घूमने तन्ा
उनके इिरण सोश्र कायभकताओांपलट के कार-उिर णेिन
ै श्र में उलट- के मन में िगकिगकश्र लगश्र हग ई न्श्र।

सारा चदन चिन्ता में हश्र णश्रता। तश्रसरा पहर होने पर डॉहरदास ., डॉतत्त्ववादश्र .िोळकर तन्ा डॉ .
पांक्िर -क्षण का चवलम्ण न करते हग ए लम्णर-णांगले पर गये। उन्होंने डॉक्टरीश्र कश्र हालत दे खकर क्षण
हश्र एकदम पानश्र कश्र िार का चनणभय चकया। पांक्िर करते ीो चनकलने लगश्र। सािारणतः इतना नचिक
स्राव नहीं होता। नतः यह दे खकर डॉक्टरों के मन में शांका पैदा हो गयश्र। इस समय डॉक्टरीश्र को
नसह्य पश्रड़ा हो रहश्र न्श्र, पर उसका दगःख दूसरों को प्रतश्रत न हो इसचलए उन्होंने नपने दोनों हान्ों से
मगाँह क चलया न्ा। शारश्रचरक वेदना तो न्श्र हश्र परन्तग इसमें शांका नहीं चक उनको यह मानचसक व्यन्ा
ोश्र नत्यचिक पश्रचड़त कर रहश्र न्श्र चक वे इस ीन्म में पददचलत चहन्दू समाी को सांघटन के णल पर
वैोवशालश्र णनाने कश्र नपनश्र गकाांक्षा को साकार नहीं कर पाये। पानश्र चनकल ीाने पर ोश्र रििाप

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में कमश्र के कोई चिह्न नहीं चदखे। इसचलए राचत्र में डॉहरदास ने उनके शरश्रर से कगछ रि चनकाला। .
तत्त्ववादश्र .चकन्तग पयाप्त रि नहीं चनकल पाया। डॉक्टरीश्र कश्र ऐसश्र हालत दे खकर डॉ, डॉकविगरे .
ोर वहीं रहे ।-गचद सण रात

प्रचतपल हालत चगरतश्र हश्र गयश्र। रात को दो -हर एक णीे के णाद तो णगखार ोश्र णढने लगा तन्ा 11
घण्टे णाद ॰ णढ ीाता। गिश्र रात के णाद उनके िेहरे पर गम्ोश्ररता तन्ा उग्रता चवशेर् चदखने लगश्र। 1
लगता न्ा मानो वे चकन्हीं गहन चविारों में डूणे हग ए हैं । रात को ाई णीे उन्हें मूछा ग गयश्र तन्ा चफर
नन्त तक वे णहग त करके णेहोश हश्र रहे ।‘णहग त करके’ कहने का कारण यहश्र है चक कोश्र कोश्र-णश्रि-
णश्रि में एकाि शब्द उनके मगख से चनकल ीाता। ऐसा ोास होता न्ा चक वे नाक के सामने न्स्न्र दृचष्ट
होते मगख का उग्र गम्ोश्रर ोाव नष्ट होकर उसके स्न्ान -करके चकसश्र िश्री को दे ख रहे हों। प्रातः होते
र उनके मगख पर मन्दशनैः एक प्रकार कश्र शान्तता फैलने लगश्र तन्ा एक णा-पर शनैःन्स्मत कश्र छटा
चछटक गयश्र। क्या यह पास गये काल का सहर्भ स्वागत न्ा ?

शगक्रवार प्रातः शक 1862 ज्येष्ठ णदश्र चद्वतश्रया), चदनाांक ॰ तक पहग ाँ ि 103 ज्वर )को 1940 ीून 21
.डॉ हरदास एवां .गया। गसपास सोश्र के िेहरे चफके पड़ गये। ीश्र णाणासाहण घटाटे ने दौड़कर डॉ
खरे को ण .ोा .नाागलाया। पर उन्होंने नण सण गशा छोड़ दश्र तन्ा णताया चक नन्त समय ग पहग ाँ िा
है । णस, एकदम िारों ओर हाहाकार मि गया। टे चलफोन पर नागपगर के सोश्र प्रमगख सांघ के
नचिकाचरयों, कायभकताओां तन्ा डॉक्टरीश्र के चमत्रों को घटाटे ीश्र के णांगले पर णगलाया गया। इन लोगों
के गने तक डॉक्टरीश्र का ऊध्वभश्वास िलने लगा। सवभत्र मृत्यग कश्र कालश्र छाया फैल गयश्र। प्रत्येक
ीन शोकचवनल नन्तःकरण से नपनश्र गाँखों के गाँसू पोंछते हग ए तन्ा चहिचकयााँ रोकने का प्रयत्न -
श्वास िलते समय करते हग ए डॉक्टरीश्र कश्र मृत्यगशय्या के िारों ओर माँडराने लगा। स्पष्ट न्ा चक ऊध्वभ
डॉक्टरीश्र को नत्यचिक वेदना हो रहश्र न्श्र। वह वेदना गाँखों से दे खश्र नहीं ीातश्र न्श्र। णाहर णैुे हग ए
लोगों को ोश्र ऊध्वभश्वास का ‘घरघर-’ स्वर ीोरों से सगनायश्र दे ता न्ा। सगनसगनकर सोश्र का हृदय णैुा -
स इस प्रकार िलतश्र रलगोग एक घण्टे तक सााँ ! ीाता न्ा। चनदभ य मृत्यग का वह कूर कमभहश्र। चफर
ुश्रक नौ णीकर परश्रस चमनट पर डॉक्टरीश्र का श्वासोच्वास णन्द हो गया तन्ा गदभ न एक ओर लगढक
गयश्र। ‘‘डॉक्टरीश्र गये’’ िारों ओर एकदम रुदन शग हो गया। पर इतने में हश्र चफर से सााँस िलतश्र-
-गये नहीं न्े। न्ोड़श्र सश्र चदखायीं दीं। होु और पलकों कश्र कगछ हलिल हग ई। प्राण नोश्रसश्र िगकिगकश्र
णिश्र न्श्र। पर क्या होता है , केवल दो चमनट णाद हश्र नौ णीकर सत्ताईस चमनट पर डॉक्टरीश्र ने नन्न्तम
सााँस लश्र। ज्येष्ठ णदश्र चद्वतश्रया को नखण्ड पगण्यप्रदता नपभण करते हग ए डॉक्टरीश्र के पांिप्राणों ने लौचकक
दे ह का त्याग चकया।

392
क्षणािभ में मांत्राचग्न प्रज्जवचलत हग ई तन्ा लपलपातश्र हग ई नचग्नचशखाओां ने नपने ‘ोगवे’ गवरण में
परमपूीनश्रय डॉक्टरीश्र कश्र पार्तन्व दे ह को सदा के चलए गत्मसात् कर चलया।

393
31. शवयात्रा
परमपूीनश्रय डॉक्टर हे डगेवार के चनिन का समािार चवद्यगतगचत से सम्पूणभ शहर में फैल गया। एकदम
सारा नगर इस वरमुाघात से स्तब्ि रह गया। हर घर में शोक कश्र छाया फैल गयश्र। िारों ओर से लोग
कामिाम छोड़कर डॉक्टरीश्र के नन्त्य दशभनान्भ घटाटे ीश्र के णांगले कश्र ओर िल चदये। ऐसा लगता
न्ा चक गी सण रास्ते िरमपेु को ीाते न्े। चवचोन्न प्रान्तों के प्रमगख कायभकताओां को तार द्वारा इस
दगःखद समािार कश्र सूिना दश्र गयश्र। ीहााँ-तहााँ हाहाकार मि गया। डॉक्टरीश्र कश्र णश्रमारश्र कश्र कल्पना
तो णहग तों को न्श्र पर यह कोई नहीं सोिता न्ा चक यह णश्रमारश्र उन्हें लेकर हश्र ीायेगश्र। डॉक्टरीश्र कश्र
णश्रमारश्र कश्र सूिना तार द्वारा स्वातांत्र्यवश्रर सावरकरीश्र को ोश्र दश्र गयश्र न्श्र। उन्हें तार चमलते हश्र वे नागपगर
गने के चलए तैयार हग ए चक न्ोड़श्र हश्र दे र में उनके पास डॉक्टरीश्र कश्र मृत्यग का शोक-सन्दे श पहग ाँ ि
गया। वे नत्यन्त दगःखश्र हग ए। उन्होंने तगरन्त तार चदया ‘‘डॉक्टर हे डगेवार गये ! हे डगेवार चिरायग हों।
हे डगेवार गये, सांघ चिरायग हो।’’ वृद्ध डॉ. मगांीे उस समय नाचसक में न्े। उनका तार चमला ‘‘डॉक्टरीश्र
कश्र नकाल एवां ननपेचक्षत मृत्यग से ीणरदस्त िोंा लगा। उनकश्र मृत्यग एक राष्ट्रश्रय गपचत्त है ।’’

नागपगर में ‘महाराष्ट्र’ एवां पूना में ‘काळ’ ने पचरचशष्टाांक चनकालकर इस हृदयोेदक समािार को िारों
ओर प्रसृत चकया। समािार सगनते हश्र नागपगर से दूर रहनेवाले स्वयांसेवकों ने नपने -नपने स्न्ान पर
एकत्र गकर परमपूीनश्रय सरसांघिालकीश्र कश्र स्मृचत को ोचिोावपूणभ ीद्धाांीचल नर्तपत कश्र। सौ-
डेढसौ मश्रल के घेरे में न्स्न्त सैकड़ों गााँवों के स्वयांसेवक एकदम नागपगर कश्र ओर दौड़ पड़े। डॉक्टरीश्र
कश्र पार्तन्क दे ह का दशभन कर लेने कश्र इच्छा-ोर नण उनके हान् में णिश्र न्श्र। प्रत्येक चदशा से गनेवालश्र
रे ल और मोटरगाचड़यााँ खिाखि ोरश्र न्ीं। नकोला, नमरावतश्र, िााँदा, ोण्डारा, विा, कहगणघाट,
गवी, काटोल, उमरे ड, सावनेर गचद ननेक स्न्ानों के स्वयांसेवक नागपगर में इकट्ठे हो गये। नागपगर
के गसपास के स्वयांसेवक मश्रलों साइचकलों से िलकर नागपगर में पहग ाँ ि।े

चदनाांक 21 ीून को दोपहर-ोर डॉक्टरीश्र के नन्त्य दशभन के चलए स्त्रश्र-पगरुर्ों कश्र ोश्रड़ लगश्र रहश्र। हर
एक ीन नपनश्र स्मृचत-मांीूर्ा में से डॉक्टरीश्र के सहवास कश्र सगखद एवां स्फूर्ततप्रद घटनाएाँ चनकालकर
दे ख रहा न्ा तन्ा, इस प्रकार के नलौचकक स्नेह एवां प्रेम से हम सदै व के चलए वांचित हो गये यह सोि-
सोिकर रो रहा न्ा। ननेक स्कूलों में छग ट्टश्र हो गयश्र और णाकश्र में चवद्यार्तन्यों ने छगट्टश्र ले लश्र।

सायांकाल पााँि णीे शवयात्रा चनकालना चनचित हग ग। णांगले के सामने नागचरक एवां स्वयांसेवक इकट्ठा
हो गये। िार णीे के लगोग गकाश में णादल छा गये, तन्ा प्रन्म कगछ णूाँदा-णााँदश्र होकर णाद में ीोर
से मूसलािार वर्ा होने लगश्र। मानो मेघों ने ोश्र नपने नन्तःकरण के दगःख को गाँसू णहाकर हलका
चकया हो। मेगवृचष्ट यहश्र सूिना दे रहश्र न्श्र चक डॉक्टरीश्र नपना सम्पूणभ ‘ीश्रवन’ सही ोाव से राष्ट्रापभण
कर मगि हो गये।

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सायां पााँि के लगोग वर्ा का ीोर कम हो गया। शवयात्रा कश्र तैयारश्र शग हो गयश्र। ननेक सांस्न्ानों
कश्र ओर से शव को पगष्ट्पमालाएाँ नपभण कश्र गयीं तन्ा ुश्रक पााँि णीे शवयात्रा प्रारम्ो हो गयश्र। लगोग
सवा मश्रल लम्णश्र यह यात्रा घरमपेु से िश्ररे-िश्ररे गगे णढश्र। स्न्ान-स्न्ान पर लोग डॉक्टरीश्र के पार्तन्व
दे ह पर पगष्ट्पवृचष्ट कर तन्ा पगष्ट्पहार िढाकर दशभन ले रहे न्े। नगर का कोई वगभ ऐसा नहीं न्ा चीसने
डॉक्टरीश्र के शव को पगष्ट्पहार समर्तपत नहीं चकये हों। डॉक्टरीश्र नीातशतु न्े तन्ा उनका समाी के
चवर्य में ममत्व इतना चवशगद्ध न्ा चक काांग्रेस, चहन्दू महासोा, नग्रगामश्र दल, सोशचलस्ट पक्ष,
मीदूरवगभ, हचरीनणन्िग, पारसश्र, ईसाई और मगसलमान सोश्र उनकश्र शवयात्रा में सन्म्मचलत हग ए।
शवयात्रा के गगे-गगे साइचकल-सवारों के गण न्े तन्ा उनके पश्रछे िार-िार कश्र पांचि में सहस्रों
स्वयांसेवक िल रहे न्े। उनके णाद नसांख्य नागचरक न्े। चफर शव, तन्ा उसके पश्रछे प्रमगख नागचरक
एवां नन्य नेता न्े। सणके नन्त में चफर साइचकल-सवारों के गण न्े। डॉक्टरीश्र के शव के सान् हश्र
उनको प्राणों से ोश्र चप्रय लगनेवाला ोगवाध्वी न्ा। चीन मागों से शवयात्रा गयश्र उनके ओर से रास्ते
तन्ा गसपास के मकानों कश्र छतें, छज्जे, झरोखे गचद सोश्र डॉक्टरीश्र का नन्न्तम दशभन करने के
चलए उत्सगक स्त्रश्र-पगरुर्ों से खिाखि ोरे न्े। चनस्त्राण एवां गत्मचवश्वासहश्रन समाी में डॉक्टरीश्र ने
स्वाचोमान एवां वश्ररता का नविैतन्य फूाँका न्ा। इस सम्णन्ि कश्र कृतज्ञता डणडणायश्र हग ई नसांख्य गाँखों
से गी व्यि हो रहश्र न्श्र। स्न्ान-स्न्ान पर शवयात्रा के छायाचित्र चलये गये लगोग नौ णीे यह
नोूतपूवभ शवयात्रा नागपगर के दचक्षण ोाग में न्स्न्त रे शमणाग सांघस्न्ान पर पहग ाँ िश्र। श्मशानोूचम के
स्न्ान पर इस चनीश्र स्न्ान पर नन्त्य सांस्कार करने कश्र ननगमचत ऐन मौके पर सरकार कश्र ओर से चमल
िगकश्र न्श्र। इसश्र स्न्ान पर सांघ कश्र केन्द्र शाखा िलतश्र है तन्ा प्रचतवर्भ नचिकारश्र चशक्षण वगभ के
कायभक्रम ोश्र इसश्र स्न्ान पर होते हैं । नतः डॉक्टरीश्र इसे ‘तपोोूचम’ कहते न्े। इसश्र पचवत्र ‘तपोोूचम’
पर एक ऊाँिा मण्डप तैयार चकया गया न्ा उसके नश्रिे चिता णनायश्र गयश्र। डॉक्टरीश्र के ज्येष्ठ तात्याीश्र
हे डगेवार के हान्ों शव को यन्ाचवचि चिता पर रखा गया। तदगपरान्त सणने खड़े रहकर चनत्य कश्र
सांघप्रान्भना कहश्र। नन्त में परमपूीनश्रय गद्य सरसांघिालकीश्र कश्र पार्तन्व दे ह को नन्न्तम प्रणाम चदया
गया।

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32. नसामान्य व्यचित्व
सांघ का चवकास कर चहन्दू राष्ट्र को नपने णल और वैोव के सान् पगनः एक णार चवश्व में शश्रर्भस्न्ान
प्राप्त कराने कश्र महत्त्वाकाांक्षा से हश्र डॉक्टर हे डगेवारीश्र ने ोगवान् कश्र दश्र हग ई सम्पूणभ शचियों को
णटोरकर नपने ीश्रवन कश्र रिना और सण प्रयत्न चकये न्े। उस कायभ के हे तग वे णश्रि-णश्रि में णाहर दौरे
पर ीाते न्े पर प्रत्येक प्रवास के पिात् कगछ चदन सांघ के केन्द्र नागपगर में नवश्य रहते। उनके चदन-
प्रचतचदन के व्यवहार में चकसश्र ने काकदृचष्ट से दे खा तो ोश्र स्वान्भोाव का लव मात्र ोश्र ाँढ
ू े नहीं चमलेगा।
चीस प्रकार सांन्यासश्र नपना ीाद्ध करके िलता है उसश्र मनोवृचत्त से प. पू. डॉक्टरीश्र ीश्रवन में व्यवहार
करते न्े। उनके शरश्रर पर सांन्यासश्र के ोगवे वस्त्र नहीं न्े तन्ा उन्होंने समाी के लौचकक व्यवहारों का
ोश्र पचरत्याग नहीं चकया न्ा, चकन्तग इसमें शांका नहीं चक उनका नन्तरां ग दे ह-गेह को ोगलाकर पूणभतः
चहन्दगराष्ट्रमय हो गया न्ा। वे ब्रह्मिारश्र न्े, पर उन्होंने इस चवर्य में ोश्र लोगों के सामने ऐसा प नहीं
रखा मानो वे कोई नलौचकक णात कर रहे हों। उन्होंने प्रारम्ो से हश्र तन्ा चविारपूवभक यहश्र कायभपद्धचत
स्वश्रकर कश्र न्श्र चक समाी में रहते हग ए सामान्य व्यचियों के समान व्यवहार कर उनके ीश्रवन के सान्
समरस होकर उसमें पचरवतभन चकया ीाये। उन्होंने समाी में रहते हग ए नन्य लोगों का यह ननगोव दे ख
चलया न्ा चक णाह्य व्यवहार में चवशेर्ता, वेश तन्ा रहन-सहन में नलौचककता लायश्र तो गर्तन्क एवां
शारश्रचरक दृचष्ट से नत्यचिक दगणभल णने हग ए लोग उनकश्र िेलागश्ररश्र शग कर दे ते हैं तन्ा उनसे यह ोश्र
नहीं चछपा न्ा चक ये ोिगण नपने गगरु के गगणों का ननगकरण करने के स्न्ान पर चदन-प्रचतचदन मन
से नचिकाचिक परावलम्णश्र एवां सत्त्वहश्रन णनते ीाते हैं । डॉक्टरीश्र को तो चहन्दगस्न्ान के ऐचहक ीश्रवन
को ऐश्वयभ एवां सम्पन्नता से गपूणभ करनेवाले णगचद्धमान् एवां कतृभत्वान् तरुण ोारश्र सांख्या में चनमाण
करने न्े और इसचलए चीस सांन्यासश्र वेश के कारण ोोले-ोाले लोग हश्र नचिक प्रमाण में िारों ओर
इकट्ठे होते हैं वह वेश उन्होंने चविारपूवभक टाला न्ा। चनःस्वान्भोाव, चविारों कश्र तकभशगद्धता, स्वोाव
का मािगयभ, िचरत्र कश्र चनष्ट्कलांकता, प्रयत्नों कश्र पराकाष्ठा एवां सातत्य, ये णातें यचद नपने व्यवहार में
प्रकट हग ई तो नपने समाी का नेतृत्त्व करने कश्र पात्रता रखनेवाले तरुण सही हश्र नपने गसपास
खड़े चकये ीा सकेंगे, इस गत्मचवश्वास के कारण हश्र उन्होंने सामान्य ीनों के समान हश्र नपने ीश्रवन
का णाह्य स्व प रखा न्ा। नागपगर कश्र ओर उन चदनों मध्यमवगभ का ीो प्रिचलत वेश न्ा वहश्र वे सदै व
िारण करते न्े।

पैर में ीूते या िप्पल, सादश्र िोतश्र, कमश्री तन्ा कॉलरवाला कोट और नन्दर पगट्ठेवालश्र कगछ ऊाँिश्र
कालश्र टोपश्र, उनके वेश के चनचित उपादान न्े। हान् में णाहर ीाते समय रुपहलश्र मूु कश्र छड़श्र रहतश्र
न्श्र। गोल मूु पर कसह का चित्र तन्ा डॉक्टरीश्र के मन कश्र पराक्रमशश्रल गकाांक्षा को व्यि करनेवाला
सांस्कृत का ध्येयवाक्य ‘स्वयमेव मृगन्े द्रता’ नांचकत रहता न्ा। 1938-39 से उनके शरश्रर पर ऊन के
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वस्त्र चदखने लगे न्े चकन्तग वे णश्रमारश्र के कारण नपचरहायभ होने के पचरणामस्व प हश्र न्े। नन्यन्ा तण
तक वे सफेद मोटे सूतश्र वस्त्रों का हश्र उपयोग करते न्े। कोश्र-कोश्र तो उनके फटे हग ए वस्त्र उनकश्र
चनिभनता कश्र साक्षश्र दे ते न्े। दगपट्टे का उपयोग चवशेर् प्रसांग पर करते न्े तन्ा नन्य के चदनों में गले कश्र
खराणश्र के कारण गलूणन्द ोश्र काम में लाने लगे न्े। वे स्वयां सादा ीश्रवन व्यतश्रत करते न्े तन्ा नन्यों
को ोश्र यहश्र णताते न्े चक ‘‘चवलास के सािन उपलब्ि हैं इसश्रचलए उनका उपयोग करना ुश्रक नहीं है ।
सश्रिश्र-सादश्र वस्तगओां का व्यवहार सदै व उत्तम है तन्ा उसश्र में गनन्द ोश्र गता है ।’’ कपड़ो के चवर्य
में तो वे यहश्र कहा करते न्े चक ‘‘णाह्य वेश में हम दगचनया से गगे न ीायें क्योंचक यह कैसे कहा ीा
सकता है चक हम उस नज्ञात क्षेत्र में नत्यगत्तम चसद्ध होंगे। इसश्र प्रकार णहग त पश्रछे रहकर लोगों कश्र
चनगाह में दचकयानूसश्र नन्वा फूहड़ ोश्र न चदखें। गी के णराणर रहने में ोश्र सगरचक्षतता नहीं है । कारण,
उस नवस्न्ा में हम उनके गगण-दोर् नहीं परख सकेंगे। इसचलए समय से केवल एक कदम पश्रछे रहना
हश्र उत्तम है ।’’

यह उल्लेख पश्रछे ग िगका हैं चक वे ीहााँ ीाते न्े वहााँ उनका णताव सही एवां नत्यन्त गत्मश्रयतापूणभ
रहता न्ा। उनकश्र दृचष्ट में चहन्दगस्न्ान का कोई ोश्र स्न्ान नागपगर कश्र नपेक्षा नपनेपन में दूर का प्रतश्रत
नहीं होता न्ा। कारण, सम्पूणभ चहन्दगस्न्ान हश्र उनका घर हो गया न्ा तन्ा उसमे रहनेवाला समाी उन्हें
चवशाल कगटगम्ण के सदृश लगता न्ा। चफर ोश्र इनमें शांका नहीं चक नागपगर में नपने घर में रहते हग ए
उनका व्यवहार िार नन्य लोगों ीैसा, हे डगेवार-कगटगम्ण के एक सदस्य के नाते हश्र होता न्ा। उन्होंने
नपने ीश्रवन में प्रारम्ो से हश्र ऐसश्र कोई चवलक्षणता नहीं गने दश्र न्श्र चक लोगों को उनके सम्णन्ि में
कगतूहल होने लगे।

नपने घर में दगमचां ीले पर सामनेवाले कमरे में उनकश्र णैुक रहतश्र न्श्र। वहााँ एक दरश्र चणछश्र रहतश्र न्श्र।
दरश्र पर वे एक ोश्र सलवट सहन नहीं करते न्े। कोई चमलकर गया चक कमरे कश्र सण व्यवस्न्ा ुश्रक-
ुाक है या नहीं इसका डॉक्टरीश्र णराणर ध्यान रखते न्े। णैुक के कमरे में लो. चतलक, स्वामश्र
ीद्धानन्द तन्ा डॉक्टरीश्र के चमत्र स्वगीय ोाऊीश्र कावरे के छायाचित्र लगे रहते न्े, तन्ा एक कााँि
कश्र गलमारश्र में छत्रपचत चशवाीश्र महाराी का निभपगतला रखा हग ग न्ा। यह कमरा 1926 में णनवाया
न्ा, चकन्तग उसे मीणूत नहीं कहा ीा सकता न्ा। डॉक्टरीश्र का वीन पौने दो सौ पौण्ड से ऊपर न्ा।
ीण उनका शरश्रर नश्रिे से ऊपर गता तो चणिारा ीश्रना तो कााँप उुता तन्ा उसके सान् सहानगोूचत
चदखातश्र हग ई कमरे कश्र चदवारें ोश्र चहलने लगतीं।

कमरे के एक कोने में डॉक्टरीश्र कश्र एक मोटश्र लाुश्र रखश्र हग ई न्श्र। ोार एवां मोटे पन के चविार से उसे
मूसल कहना हश्र नचिक ुश्रक होगा। लाुश्र को खूण तेण चपलाया गया न्ा इसचलए खूण िमकतश्र न्श्र।
उसके दोनों छोरों पर लोहे कश्र टोपश्र)साम) लगवा रखश्र न्श्र। सश्रिश्र पश्रु करके तन्ा हान् को शरश्रर से

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सटाकर खड़े होकर लाुश्र का पतला चसरा णायें हान् में तन्ा दूसरा ीमश्रन पर चटकाकर णाीू एवां कलाई
न चहलाते हग ए केवल हान् से लाुश्र को ीमश्रन के समानान्तर उुाने कश्र चक्रया णड़श्र कुश्रन न्श्र, चकन्तग
डॉक्टरीश्र उसे लश्रलया कर लेते न्े। उनके पास णाहर से ीण स्वयांसेवक गते तो चकसश्र-चकसश्र तरुण
से वे इस प्रकार लाुश्र उुाने को कहते। यचद वह उनकश्र नपेक्षा के ननगसार लाुश्र उुा दे ता तो
डॉक्टरीश्र उसकश्र पश्रु पर हान् फेरकर शाणाशश्र दे ते तन्ा उसकश्र उन्हें णड़श्र प्रसन्नता होतश्र न्श्र। वे िाहते
न्े चक तरुणों कश्र कलाई लोहदण्ड के समान सणल होनश्र िाचहए। यह ध्यान में लाने के चलए लाुश्र
उुाने के खेल करते रहते न्े। एक णार नाचसक के कगछ स्वयांसेवक नागपगर गये। डॉक्टरीश्र ने उनसे
लाुश्र उुाने के चलए कहा। उनमें से कगछ से यह कायभ नहीं सिा। चकन्तग एक ने सफलतापूवभक लाुश्र
उुा लश्र। तण डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘िाहे चीससे यह काम नहीं हो सकता। ीो शचि और यगचि का मेल
कर सकेगा वहश्र यहााँ सफल होगा।’’

घर छोटा न्ा परन्तग सोश्र वस्तगएाँ चुकाने से तन्ा नत्यन्त सगरुचिपूणभ ांग से रखश्र रहतश्र न्ीं। हर िश्री
नपने स्न्ान पर रहे इस ओर वे णराणर ध्यान रखते न्े। घर के चकसश्र ोश्र काम को करने में उन्हें कोश्र
छोटापन प्रतश्रत नहीं हग ग। रचववार को प्रातःकाल सांघ का साांचिक कायभक्रम समाप्त होने के णाद वे घर
के िौणारे , णरामदे और कोुे को साफ करने में ीगट ीाते। इसश्र प्रकार, स्वास्र्थय ुश्रक रहा तो वे ततन्ा
उनके णड़े ोाई ीश्र सश्रतारामपन्त घर के गाँगन में लकड़श्र फाड़ते न्े। डॉक्टरीश्र के यहााँ गनेवाले
ननेक स्वयांसेवकों को तो स्वयां घर कश्र नपेक्षा डॉक्टरीश्र का घर हश्र नपना प्रतश्रत होता न्ा तन्ा उनके
सान् काम करते हग ए, हम कगछ चवशेर् कर रहे हैं ऐसा चविार ोश्र कोश्र उनके मन्स्तष्ट्क में नहीं गया।
‘त्वमेव माता ि चपता त्वमेव, त्वमेव णन्िगि सखा त्वमेव’ इस प्रकार कश्र चीनकश्र डॉक्टरीश्र के सान्
एक पता हो गयश्र न्श्र वे स्वयांसेवक यचद स्वयां कगल्हाड़श्र लेकर डॉक्टरीश्र के घर पर लकचड़यााँ फाड़ते
हग ए चदखें तो उसमें ननहोनश्र कगछ ोश्र नहीं।

डॉक्टरीश्र का घरे लू ीश्रवन नये-पगराने का सांगम न्ा। उनके ोाई सश्रतारामीश्र पगरोचहताई करते न्े तन्ा
उनकश्र पोशाक चणल्कगल हश्र सादश्र, केवल िोतश्र और दगपट्टा हश्र, न्श्र। उनके रहन-सहन में स्वाोाचवक
हश्र पगरानश्र पश्रढश्र का कुोर कमभकाण्ड न्ा। परन्तग डॉक्टरीश्र के व्यवहार में चहन्दू समाी के प्रत्येक व्यचि
के चलए, चफर वह चकसश्र प्रान्त नन्वा ीाचत का क्यों न हो, चणना चकसश्र ोेदोाव के स्न्ान न्ा। सखरे -
चनखरे , छगगछू त गचद के चनयम सश्रतारामीश्र णड़श्र कुोरता तन्ा णारश्रकश्र से पालन करते न्े। पर
डॉक्टरीश्र के कमरे में इन णातों के चलए कोई स्न्ान नहीं न्ा। ऊपर से दे खने में दोनों का स्वोाव एवां
वृचत्त दो िुवों के समान एक दूसरे से चोन्न न्श्र पर दोनों के णश्रि उत्कट प्रेम होने के कारण वह व्यवहार
में कोई नड़ांगा नहीं डाल पायश्र। कगछ चदनों तो दोनों एक हश्र िश्मे से काम िलाते न्े। दोनों कश्र गवाी
तो इतनश्र चमलतश्र-ीगलतश्र न्श्र चक कोई नया गदमश्र णाहर से णता हश्र नहीं सकता न्ा चक उनमें से कौन
णोल रहा है । दोनों का स्वर गम्ोश्रर एवां ोारश्र न्ा। दोनों ोाइयों के दो नलग-नलग ांग न्े। डॉक्टरीश्र

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कश्र ोाोश्रीश्र, ीश्र सश्रतारामीश्र कश्र पत्नश्र, दोनों कश्र चिन्ता करतीं। उनका काम तार पर कसरत करने के
समान कचुन न्ा परन्तग उन्होंने ीश्रवन-ोर उसे ोलश्र ोााँचत चनोाया। डॉक्टरीश्र के यहााँ रहकर नपनश्र
महाचवद्यालयश्रन चशक्षा पूणभ करनेवाले ीश्र ीश्रकृष्ट्ण पगराचणक चलखते हैं चक ‘‘इस खींिातान में सौ. रमा
ोाोश्र णड़श्र मगसश्रणत में फाँस ीातश्र न्ीं। एक ओर तो दे वर के मन-मगताचणक घर कश्र सण णातें करना
तन्ा दूसरश्र ओर पचत के कमभकाण्ड एवां दै चनक गचह्वक ोश्र चणना चकसश्र कोर-कसर के होते रहें यह
ध्यान रखना, इन दोनों हश्र परस्पर-चवरोिश्र गिार-चविार के सान् घर िलाने में उन्हें णहग त कष्ट उुाने
पड़ते न्े। परन्तग उनके मन कश्र शान्न्त और सन्तगलन कोश्र टूटे नहीं। सणके समय और ांग को
सम्हालकर उस साध्वश्र ने डॉक्टरीश्र को घर कश्र झांझटों से चनचित रखकर एक प्रकार से राष्ट्र कश्र महान्
सेवा कश्र।’’

दोनो ोाइयों के घर के ीश्रवन कश्र छोटश्र-छोटश्र णातें ोश्र उल्लेखनश्रय हैं । डॉक्टरीश्र कश्र णैुक में नलग
णतभन में पश्रने का पानश्र रखा ीाता न्ा। इस णात का ध्यान रखा ीाता न्ा चक वह पानश्र चफर रसोई में न
ीाये। 1935 से डॉक्टरीश्र णारम्णार णश्रमार हो ीाते न्े और इसचलए उनको कपड़े पहनकर हश्र ोोीन
करना पड़ता न्ा। ऐसे नवसरों पर शास्त्रश्रीश्र कोश्र गलतश्र से ोश्र उनकश्र पांचि में ोोीन के चलए नहीं
णैुते न्े। घर में कोश्र-कोश्र दोनों ोाइयों कश्र चोन्न-चोन्न सामाचीक तन्ा िार्तमक चवर्यों पर ििा होतश्र
न्श्र। वे इतनश्र ीोर-ीोर से णोलते न्े चक पड़ोचसयों को तो यहश्र लगता चक झगड़ा हो गया है । डॉक्टरीश्र
कश्र इच्छा रहतश्र न्श्र चक घर में नच्छश्र दगिा गाय रहे और वे कोश्र-कोश्र नपनश्र इच्छा प्रकट ोश्र करते
न्े परन्तग यह इच्छा कोश्र साकार नहीं हो सकश्र। कारण क्या न्ा ? ीश्र सश्रतारामीश्र ने गाय नन्वा णैल
ीैसे मूक पशग को खूट
ाँ े से णााँिकर णन्िन में रखना चनचर्द्ध ुहरा रखा न्ा। डॉक्टरीश्र यह ीानते न्े चक
नपने ोाई के कारण हश्र उनको घरेलू ीश्रवन तन्ा कौटगन्म्णक वातावरण में रहने को चमलता न्ा। नतः
सश्रतारामीश्र कश्र कगछ कल्पनाएाँ उन्हें नापसन्द होते हग ए ोश्र णन्िगप्रेम तन्ा उपयगभि ज्ञान के कारण वे
उनका समादर करते न्े। ोाई के णरों को चखलाना, गवश्यकता ग पड़श्र तो िाय-खाना गचद
णनाना, ोाई कश्र णश्रमारश्र में रात-रात ोर ीागकर शगशूर्ा करना गचद काम मतचोन्नता होते हग ए ोश्र
डॉक्टरीश्र सही ोाव से कर सकते न्े। इसश्र प्रकार डॉक्टरीश्र के गिार-चविार में मतोेद होते हग ए
ोश्र नपने केशव के द्वारा समाी-सांघटन का एक महान् कायभ हो रहा है , इतने एक चविार मात्र से
सश्रतारामीश्र डॉक्टरीश्र कश्र ननेक नरुचिकर णातों कश्र ओर गाँखें मूाँद लेते न्े। शास्त्रश्रीश्र कश्र ीााँघ में
एक णार फोड़ा होने पर उसका गपरे शन करना पड़ा। नन्दर रुई का एक छोटा-सा टगकड़ा रह ीाने
के कारण णहग त कगछ करने पर ोश्र ुश्रक नहीं होता न्ा। डॉक्टरीश्र ने चफर से शस्त्रचक्रया करवाकर उस
रुई के टगकड़े को णाहर चनकलवा चदया। इस समय डॉक्टरीश्र ने इतनश्र शगशूर्ा कश्र चक नपने स्वोाव
के ननगसार नक्षरशः रात-चदन एक कर चदया। उनकश्र सेवा शगशूर्ा का हश्र तो पचरणाम न्ा चक शास्त्रश्रीश्र
उन ोश्रर्ण णश्रमारश्र से मगचि पा सके। नपने सामाचीक कायभ का व्याप सम्हालते हग ए ोश्र डॉक्टरीश्र कश्र

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ओर से शास्त्रश्रीश्र को यह नप्रचतम णन्िगप्रेम चमला न्ा, उसे वे कोश्र ोूल नहीं पाते न्े। इस ोाव से
उनकश्र सचहष्ट्णगता को णनाये रखने में णहग त सहायता कश्र।

डॉक्टरीश्र के िािा ीश्र गणाीश्र गयग में णहग त णड़े तन्ा स्वोाव में हे डगेवार कगलपरम्परा के ननगकूल
नन्ात् क्रोिश्र न्े। नागपगर में डॉक्टरीश्र के सान् रहने के चलए गने पर कग छ चदनों तो वे सांघ के कायभ
तन्ा डॉक्टरीश्र के प्रयत्नों को दूर से हश्र कौतगक एवां तटस्न्ता के ोाव से दे खते रहे पर 1932-33 से
शनैः-शनैः डॉक्टरीश्र के काम का स्व प पहिान कर, उन्होंने उसमें ोाग लेना प्रारम्ो कर चदया।
िािा के नाते डॉक्टरीश्र उनका णहग त सम्मान करते न्े। पर गगे ऐसश्र न्स्न्चत हो गयश्र चक नन्य
स्वयांसेवकों के समान गणाीश्र ोश्र डॉक्टरीश्र का गदर करते न्े। सांघ के गय-व्यय कश्र ओर तो
उन्होंने नपनश्र व्यवहारश्र एवां दक्षतापूणभ दृचष्ट से ध्यान दे ना प्रारम्ो चकया हश्र, इसके सान् स्न्ान-स्न्ान पर
सांघशाखाओां कश्र स्न्ापना करने के हे तग ोश्र वे मास-दो मास के चलए प्रवास पर ीाने लगे।

डॉक्टरीश्र नागपगर में रहे चक ननेक लोगों का उनके यहााँ गना शग हो ीाता। डॉक्टरीश्र गनेवालों
का स्वागत णड़े ध्यान से करते, णाहर से गनेवालों के ुहरने, ोोीन गचद कश्र व्यवस्न्ा के सम्णन्ि
में वे णड़श्र गत्मश्रयता के सान् पूछताछ करते तन्ा उसमें कोई कमश्र होतश्र तो वे उन्हें नपने घर पर हश्र
रख लेते। िाय का नदहन तो उनके घर में लगोग चदन-ोर िूल्हे पर रखा रहता न्ा। ननेक णार ीण
डॉक्टरीश्र एकाएक गये हग ए मेहमानों के स्वागत और णैुाने में चनमग्न होते उस समय उनकश्र ोाोश्र
के सामने, घर में ीो कगछ है उससे सणके िाय-ीलपान कश्र व्यवस्न्ा कैसे कश्र ीाये, यहश्र समस्या पड़
ीातश्र न्श्र। कगटगम्ण कश्र वृचत्त तो पगरोचहताई न्श्र नतः सांिय और चनचिन्तता का तो चविार हश्र नहीं चकया
ीा सकता। दान-दचक्षणा के सहारे ीैसे-तैसे घर कश्र गाड़श्र कखितश्र न्श्र। शास्त्रश्रीश्र तो चनमांत्रण चमलने
के कारण ोोीन करने के चलए यीमानों के यहााँ णाहर िले ीाते न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र के कारण
मेहमानों का तााँता सदै व लगा रहता। डॉक्टरीश्र के ोोीन का समय होने पर उनके मगह
ाँ से यह कोश्र
सगनने को नहीं चमला न्ा चक ‘‘ीरा णैचुए, मैं ोोीन करते गता हू ाँ ,’’ णन्ल्क ीो ोश्र वहााँ उपन्स्न्त
रहता उसे वे ोोीने के चलए नन्दर ले ीाते तन्ा ीो कगछ खा-सूखा होता णड़े प्रेम से नपने सान्
चखलाते। कोश्र-कोश्र ऐन मौके पर मेहमान ग गया और घर में ोोीन न्ोड़ा हश्र णिा हो तो वे ‘‘मेरा
नोश्र ोोीन हग ग है , गइए ोोीन कर लश्रचीए’’ कहकर उसे ोोीन कराते तन्ा स्वयां सामने पट्टे पर
णैुकर णातिश्रत करते रहते। दचरद्रता कश्र व्यन्ा कोश्र उनके िेहरे पर नहीं चदखतश्र न्श्र। इस प्रकार
खालश्र पेट रहने पर ोश्र गगन्तगक सज्जन को चमिभ का निार परोसते हग ए मीाक में पूछते ‘‘इसमें ीरा
तश्रखा कम हश्र चदखता है ।’’ कोश्र-कोश्र तो इस प्रकार निानक गये हग ए मेहमान का गचतर्थय
डॉक्टरीश्र कश्र सत्त्वपरश्रक्षा हश्र चसद्ध होतश्र न्श्र। पर इन नवसरों पर उनके मन के सन्तगलन एवां उदारता
में कोई कमश्र नहीं गयश्र। एक णार राचत्र को नचतचन्यों के गने पर पता िला चक घर में ीलाने कश्र
लकड़श्र समाप्त हो गयश्र है । उस समय उन्होंने नपने घर के दो-एक पट्टे फाड़कर काम िलाया न्ा।

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नचखल ोारतश्रय सांघटन का चनमाण करने में सफलता प्राप्त करनेवाले डॉक्टरीश्र का यह न्ा गृहीश्रवन।
‘‘दाचरद्र्यािश्र नमगिश्र दश्रक्षा, सत्त्वािश्र प्रचतपदीं परश्रक्षा’’ (दाचरद्र्य कश्र हमारश्र दश्रक्षा, प्रचतपद में सत्त्व
कश्र परश्रक्षा), यहश्र न्ा उनके ीश्रवन का चनत्य का ननगोव। डॉक्टरीश्र चकसश्र चवशेर् चदन व्रतोपवास नहीं
करते न्े चकन्तग इस प्रकार का उपवास करने के नवसर उनको ननेक णार चमलते रहते न्े।

डॉक्टरीश्र नपनश्र यगवावस्न्ा में नत्यगग्र दे शोचि कश्र ोावना के कारण िाय नहीं पश्रते न्े। पर सांघ
प्रारम्ो होने के णाद सन् 1927 में िााँदा में एक घटना हो गयश्र चक चीसके कारण उन्होंने िाय लेना
प्रारम्ो कर चदया। वे एक गरश्रण स्वयांसेवक के घर गये न्े। वहााँ ीलपान के चलए उनके सामने िाय
और पोहे पेश चकये गये। डॉक्टरीश्र ने पोहे को तो खा चलया पर िाय छोड़ दश्र। घर में यह पता लगते
हश्र डॉक्टरीश्र िाय नहीं पश्रते, कगछ खलणलश्र मि गयश्र। हालत कगछ ऐसश्र न्श्र चक डॉक्टरीश्र िाय तो
पश्रते नहीं और दे ने के चलए दूि पयाप्त नहीं। घर के लोगों का यह नसमांीस डॉक्टरीश्र कश्र चनगाह में
नहीं चछप सका। वे वहााँ से लौट गये पर उनका मन रह-रहकर झोंपड़श्र कश्र ओर हश्र दौड़ता रहा।
साांयकाल काम समाप्त होने के णाद वे एकदम उुे तन्ा कोट-टोपश्र पहनकर णोले ‘‘िलो उस
स्वयांसेवक के घर िलकर िाय पश्र गयें।’’ वे यह ीानते न्े चक िार लोगों को ीगटाना है तो उनके
समान हश्र व्यवहार करना िाचहए। और इसश्र चविार से िाय पश्रना प्रारम्ो कर चदया। उन्हें कोई िाय
कश्र गदत नहीं न्श्र और न कोई रुचि हश्र। पर उनका यह चविार न्ा चक िाय के णहाने पााँि-दस चमनट
णैुने के कारण णातिश्रत का सही नवसर चमल ीाता न्ा। उनकश्र प्रत्येक रुचि-नरुचि कश्र कसौटश्र
लोकसांग्रह कश्र गवश्यकता और उसके चलए उपादे यता हश्र न्श्र। व्यचिगत नचोरुचि के कारण कोई
िाय पेश करता तो स्वास्र्थय के चलए हाचनकर होते हग ए ोश्र वे सहर्भ ग्रहण करते। एक णार एक सज्जन
से चमलने के चलए डॉक्टरीश्र गये न्े। न्ोड़श्र-सश्र णातिश्रत होने के उपरान्त उन सज्जन ने कहा ‘‘ीरा
णैचुए, नोश्र िाय णनाने के चलए कहता हू ाँ ।’’ इस पर डॉक्टरीश्र के सान् गये हग ए कायभकता ने कगसी से
उुते हग ए कहकर चक ‘‘नहीं, नहीं, गी सणेरे से कई णार िाय हो िगकश्र है ’’ उन्हें रोक चदया नन्ात्
न्ोड़श्र दे र में णातिश्रत समाप्त कर डॉक्टरीश्र को वहााँ से िलना पड़ा। यह णात उन्हें नच्छश्र नहीं लगश्र।
‘‘राखावीं णहग ताांिीं नन्तरे ’’(‘‘णहग तों का मन रखना होगा’’), यह उनके स्वोाव का सूत्र होने के कारण
वे णाहर गने पर उस कायभकता पर कगछ चणगड़े ोश्र। उन्होंने कहा ‘‘िाय का खिभ होता तो उस व्यचि
का होता, तेरा क्या ीाता न्ा ? िाय णनने तक हमें उसके सान् फगरसत से णात करने का और नवसर
चमल ीाता। तगम्हारे नकार ने वह नवसर गाँवा चदया।’’

िाय का िारों ओर प्रिार होने के कारण डॉक्टरीश्र ने िाय पश्रना प्रारम्ो कर चदया न्ा क्योंचक उुते-
णैुते िारों ओर ीाना पड़ता तन्ा चदन में नक्षरतः सैकड़ों व्यचियों से चमलने का प्रसांग गता। यचद
चकसश्र ने िाय दश्र तो उसका मन तोड़कर मना करना उन्हें सांघटन कश्र दृचष्ट से चहतावह नहीं प्रतश्रत होता
न्ा और इसश्रचलए सामने गये हग ए प्याले में से एक घूाँट हश्र क्यों न हो पश्रकर, वे उसके गचतर्थय को
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स्वश्रकार करते न्े। परन्तग इस िाय के कारण उनकश्र ोाोश्र सौ. रमाणाई को णहग त कष्ट होता न्ा। पर
उस माता ने दे वर का ऊपर से िाय का सन्दे श गने पर कोश्र ोश्र िूल्हे पर िाय का पानश्र िढाने में
मगसश्रणत नहीं मानश्र। यहश्र कहना उपयगि होगा चक उनके प में मूक सेवा हश्र डॉक्टरीश्र के घर में वास
करतश्र न्श्र। पर कोश्र-कोश्र ऐसश्र न्स्न्चत हो ीातश्र न्श्र कश्र ऊपर से िाय णनाने का गदे श तो ग ीाता
पर घर में िाय नहीं तो कोश्र िश्रनश्र नहीं। उस समय ऐसे मौके पर चकसश्र स्वयांसेवक को णाीार ोेीकर
दौड़िूप करनश्र पड़तश्र न्श्र। एक णार डॉक्टरीश्र के पास उनके चमत्र ीश्र चवश्वनान्राव केळकर गये।
डॉक्टरीश्र ने उनके चलए िाय णनाने का सन्दे श ोेी चदया पर पााँि चमनट णाद ोश्र िाय न गने पर
डॉक्टरीश्र ीश्र चवश्वनान्राव को न्ोड़ा रुकने के चलए कहकर घर में गये। वहााँ ीाकर दे खते हैं तो पता
िला चक न तो िाय है , न खरश्रदने के चलए पैसे हश्र। डॉक्टरीश्र ने नपने चमत्र को िाय के चलए णैुा
चदया और इिर घर में यह नवस्न्ा ! तगरन्त डॉक्टरीश्र पास कश्र दगकान पर ीाकर िाय लाये। ीैसे-तैसे
उस नवसर का चनवाह चकया। पर ीश्र केळकर के ध्यान में सण णात ग गयश्र। उसके णाद ीण उनकश्र
ीश्र गगरुीश्र से ोेंट हग ई तो उनसे डॉक्टरीश्र के घर कश्र गर्तन्क न्स्न्चत तन्ा स्वास्र्थय के सम्णन्ि में सूक्ष्मता
से पूछताछ कश्र और कहा ‘‘गप उनके घर कश्र कचुनाइयों कश्र ओर ध्यान क्यों नहीं दे ते? मगझे उनका
स्वास्र्थय चगरा हग ग चदखा।’’ डॉक्टरीश्र दचरद्रता का गघात सहन कर सकते न्े चकन्तग नपनश्र
गयाचित-वृचत्त में चकसश्र ोश्र प्रकार का पचरवतभन करने कश्र कल्पना ोश्र उनको नसह्य न्श्र। इसश्र णात
का ोलश्रोााँचत ज्ञान होने के कारण उनके समान हश्र ऐचहक कचुनाइयों कश्र ओर दगलभक्ष्य करनेवाले ीश्र
गगरुीश्र ने उत्तर चदया चक ‘‘एकादशश्र का पेट चशवराचत्र कैसे ोरे गश्र ?’’ इस पर ीश्र चवश्वनान्राव ने यह
इच्छा व्यि कश्र चक ‘‘डॉक्टरीश्र के घर के खिभ के चलए मैं नपनश्र ओर से पत्र-पगष्ट्प के प में प्रचतमास
परश्रस रुपये गपको दे ता ीाऊाँगा।’’ यह सगनकर ीश्र गगरुीश्र ने कहा ‘‘गप उनके चमत्र हैं , नतः यह
पैसे गपने सश्रिे उनके हान् में चदये तो ुश्रक रहे गा।’’ पर डॉक्टरीश्र के स्वोाव से पचरचित होने के
कारण ीश्र चवश्वनान्राव के चलए उनके सामने यह चवर्य चनकालने कश्र कोश्र चहम्मत न हग ई।

1934-35 में, मई मास में होनेवाले नचिकारश्र चशक्षण वगभ में चशक्षार्तन्यों कश्र ओर से डॉक्टरीश्र को
एक ीद्धाचनचि समपभण कश्र ीाने लगश्र न्श्र। इस न्ैलश्र से डॉक्टरीश्र के हान् पााँि-छः सौ रुपये ग ीाते
न्े। चकन्तग इतने पर ोश्र डॉक्टरीश्र के घर तांगश्र कम न हग ई क्योंचक वे इस चनचि से ोारश्र गगरुदचक्षणा देने
लगे तन्ा स्वयांसेवकों कश्र नड़िनों को दूर करने के चलए ोश्र नण उनका हान् पहले से नचिक खगल
गया। सान् हश्र नण प्रवास ोश्र णढ गया न्ा। स्वयांसेवकों कश्र नड़िन तन्ा घर कश्र नड़िन में वे पहलश्र
को वरश्रयता दे ते न्े। एक वर्भ उनके घर के कमरे कश्र दश्रवार चगर गयश्र। उस ोश्रत को णनाना गवश्यक
न्ा। परन्तग वह उसश्र नवस्न्ा में णहग त चदनों तक पड़श्र रहश्र। इसका कारण यहश्र न्ा चक डॉक्टरीश्र के पास
ीैसे हश्र पैसे गते चक वे उन स्वयांसेवकों के ऊपर खिभ कर दे ते ीो कचुनाई में फाँसे होते। फलतः
दश्रवार िगनवाने के चलए पैसे णिते हश्र नहीं न्े। पर डॉक्टरीश्र को उसकश्र चिन्ता हश्र कहााँ न्श्र ? उन्हें तो

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यहश्र लगता न्ा चक सम्पूणभ राष्ट्र कश्र नवस्न्ा गकाश फटने के समान होने के उपरान्त में नपने घर
कश्र नलग से और क्यों चिन्ता करुाँ ?

पौढ स्वयांसेवकों के समान उनके स्नेह कश्र शश्रतल छाया में रहनेवाले णाल और चकशोर स्वयांसेवकों
को ोश्र डॉक्टरीश्र कश्र गरश्रणश्र का ननगमान लगे चणना न रहा। एक णार नागपगर के एक प्रचतचष्ठत सज्जन
उनके पास चमलने के चलए गये। उस समय कगछ णाल स्वयांसेवक ोश्र वहााँ णैुे हग ए न्े। न्ोड़श्र दे र
णातिश्रत करने के णाद ीण वे सज्जन िलने लगे तो डॉक्टरीश्र ने उन्हें गग्रहपूवभक रोका और कम-
से-कम सगपारश्र तो लेकर ीाने कश्र प्रान्भना कश्र। वे पानदान लेने के चलए नश्रिे गये तो क्या दे खते है चक
उसमें सगपारश्र खत्म हो गयश्र है । नपने ोाई कश्र पगरोचहताई में गयश्र हग ई सगपाचरयों में से कहीं एकाि टगकड़ा
चमल ीाये इसचलए उन्होंने एक-एक चडब्णा खड़खड़ाया। तण कहीं सौोाग्य से एक टूटश्र सगपारश्र हान्
लग गयश्र। उसे पानदान में रखकर वे ऊपर गये तन्ा उन सज्जन का गचतर्थय चकया। उनके िले ीाने
पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘दे खो, इनके यहााँ ीाने पर तो वे चकतने ुाु के सान् हम लोगों का स्वागत
करते हैं । वे मेरे यहााँ गये तो उन्हें दे ने के चलए सगपारश्र ोश्र नहीं चनकलश्र।’’

डॉक्टरीश्र के मगख से ये उसार सगनकर णाल स्वयांसेवकों में से कगछ को उनके घर कश्र न्स्न्चत कश्र कल्पना
ग गयश्र। उनका णाल-हृदय यह दगःख दे खकर णड़ा उदास हो गया। न्ोड़े चदनों के णाद ीण डॉक्टरीश्र
का ीन्मचदवस गया तो उन णालकों ने गपस में योीना णनाकर उन्हें कगछ ोेंट दश्र। इसमें एक िोतश्र
का ीोड़ा तो न्ा हश्र परन्तग वे णालक सगपारश्र कश्र एक णड़श्र पगचड़या ोेंट करना नहीं ोूले। णाद में पता
िला चक इस ोेंट के चलए उन णालकों ने गपस में ीो पैसे इकट्ठे चकये तो उनमें से एक ने तो नपना
सोने का नलांकार णेिकर पैसा चदया न्ा।

चहन्दगत्व कश्र प्रतश्रक चशखा डॉक्टरीश्र ने स्वयां रखश्र न्श्र तन्ा उनकश्र नपेक्षा न्श्र चक चहन्दू िोटश्र रखे परन्तग
उसके चलए उन्होंने कोश्र चकसश्र पर दणाव नहीं डाला। हााँ, स्वयांसेवकों के गणवेश का चनरश्रक्षण करते
समय ीैसे स्वच्छता, व्यवस्न्ा गचद णातों के चलए नांक चदये ीाते न्े वैसे हश्र पााँि नांक िोटश्र के चलए
ोश्र रखे न्े।

सांघ कश्र स्न्ापना के पूवभ डॉक्टरीश्र स्नान के णाद चनयमपूवभक सन्ध्या करते न्े। उस समय पहनश्र हग ई
िोतश्र का एक पल्ला शरश्रर पर डाल लेते न्े। गगे दौड़िूप के व्यस्त ीश्रवन में उन्हें सन्ध्या के चलए ोश्र
नवसर चमलना कचुन हो गया न्ा। एक णार उनके चमत्र ीश्र प्रनालपन्त फडणवश्रस ने उनसे पूछा चक
‘‘इतनश्र उमर हो गयश्र पर तगम सन्ध्या, पूीा, नाम-स्मरण गचद कगछ ोश्र नहीं करते’’ तो डॉक्टरीश्र ने
तगरन्त उत्तर चदया चक ‘‘गपका कहना सहश्र है पर कल यमराी के सम्मगख मगझे खड़ा चकया तो वह
मेरा क्या करे गा? कारण, मैने नपने ीन्म में स्वतः के चलए कगछ ोश्र नहीं चकया।’’ स्नान के णाद वे
रोलश्र का टश्रका लगाते न्े तन्ा प्रवास में कहीं चमल गया तो िन्दन ोश्र लगा लेते न्े। कहीं ीाने के चलए

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ीण वे ऊपर से नश्रिे गते तो दे वगृह में दे वता को प्रणाम करके हश्र णाहर ीाते। उनके पूज्य माता-
चपताीश्र का ीाद्धचदन एख हश्र न्ा तन्ा उनकश्र स्मृचत के इस नवसर पर वे चनयमपूवभक घर हश्र रहते न्े।
वे ीावणश्र के सांस्कार में ोश्र सम्मचलत होते न्े। गचश्वन महश्रने में गोवत्सद्वादशश्र को डॉक्टरीश्र के घर
में कगल-परम्परा से एक कायभक्रम होता न्ा।

)गोवत्सद्वादशश्र के इस कायभक्रम के सान् एक महत्त्वपूणभ घटना कश्र स्मृचत ीगड़श्र हग ई चदखतश्र है ।


हे डगेवार-कगल के वल्लोेश मूलपगरुर् न्े। उनसे डॉक्टरीश्र नवीं पश्रढश्र में गते हैं । ीश्र वल्लोेश कश्र उत्कट
ोचि से सम्णन्न्ित चदवस के प में यह चदन उनके कगल में मनाया ीाता है ।

ीश्र वल्लोेश दत्तात्रेय के णड़े ोि न्े। उपीश्रचवका के चलए वे व्यापार करते न्े। सगशश्रल एवां गिारचनष्ठ
होने के कारण लोगों में उनकश्र णहग त प्रचतष्ठा न्श्र। एक णार वे व्यापार के चलए णाहर गये। घर से िलते
समय उन्होंने सांकल्प चकया चक यचद व्यापार में नच्छा लाो रहा तो कगरवपगर कश्र यात्रा के समय वे
प्रातः ब्राह्मण मण्डलश्र को एकत्र कर नचोर्ेक एवां ब्राह्मणों को सहस्र ोोीन करवायेंग।े गगे उनकश्र
नपेक्षानगसार व्यापार में तेीश्र ग गयश्र तन्ा उनको काफश्र लाो हग ग। वे नपने सांकल्प का स्मरण कर
ोरपूर िन लेकर गगरु ीश्रपाद का नाम लेते हग ए यात्रा के चलए िल चदये। रास्ते में कगछ िूतभ लोगों को
उनके पास िन होने का ननगमान लग गया तन्ा वे ोश्र ब्राह्मण का वेश रखकर यात्रा के णहाने ीश्र
वल्लोेश के सान् िल चदये। दो-तश्रन चदन कश्र यात्रा के णाद एक चदन राचत्र को ीण सण लोग कगरवपगर-
माहात्म्य एक दूसरे को सगनाने में चनमग्न न्े तण िोरों ने वल्लोेश पर गक्रमण कर उनका चशरच्छे द कर
चदया और सण द्रव्य लूट चलया। इतने में हश्र एक चत्रशूल एवां खड्गिारश्र ीटामन्ण्डत चदव्य पगरुर् प्रकट
हग ग तन्ा उसने िोरों को समाप्त कर वल्लोेशको ीश्रचवत कर चदया। वह चदन कगरवपगर-यात्रा का नन्ात्
गगरुद्वादशश्र का चदन हश्र न्ा।)

वेदपाु तन्ा तदगपरान्त इष्ट-चमत्रों के सान् ोोीन होता न्ा। पगरोचहतों को छोड़कर नागपगर तन्ा प्रान्त के
कम-से-कम परश्रस-तश्रस चमत्रों को उस चदन डॉक्टरीश्र नवश्य चनमांचत्रत करते न्े। यह चदन णड़श्र
िूमिाम से मनाया ीाता।

डॉक्टरीश्र कृचत से सान्त्त्वक एवां गन्स्तक न्े। ईश्वर के नचिष्ठान पर उनकश्र निल ीद्धा न्श्र। ‘ीश्र’
नन्वा ‘ॐ’ नांचकत चकये चणना कोई पत्र या दै चनकश्र का पृष्ठ उनके द्वारा चलखा हग ग नहीं चमलता।
उनकश्र दृढ ीद्धा न्श्र चक सांघ का कायभ ईश्वरश्रय है तन्ा यह ोाव उनके णोलने एवां पत्रों में ोश्र णार-णार
प्रकट होता न्ा। वे इसश्र िारणा से पत्रव्यवहार करते न्े चक हम सण परमेश्वर के हान् में एक उपकरण
मात्र हैं तन्ा उसके सूत्रिालकत्व में हश्र सण काम नपने से होते हैं । सांघकायभ को ईश्वरश्रय कायभ णताते
समय वे यह ोश्र स्पष्ट करते न्े चक इसका नचोप्राय सज्जनों के सांरक्षण एवां दगीन
भ ों का चनदभ लन
करनेवाले, ीश्रमतगवसश्रता में वर्तणत ईश्वरश्रय कायभ से न्ा। वैसे हश्र ‘दासणोि’ के ममभ को हृसत
करनेवाले डॉक्टरीश्र से ीश्र समन्भ द्वारा व्यि ईश्वरश्रय कायभ का नन्भ ोश्र नज्ञात नहीं रह सकता न्ा।
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ीश्र समन्भ ने पगरुर्ान्भ को हश्र ईश्वरश्रय का स्व प णताया है । सांघकायभ को ईश्वरश्रय कायभ णताते समय
डॉक्टरीश्र के सम्मगख चनचित हश्र समन्भ के ‘‘यत्न तो दे व ीाणावा’’(‘‘यत्न से दे व ीाचनए’’) तन्ा
‘‘निगक यत्न तो दे वो। िगकणें दै त्य ीाचणीे’’(‘‘निूक यत्न हश्र दे व, िूक हश्र दै त्य ीाचनए’’) ये पद रहते
न्े। सांघ कश्र प्रान्भना में ोश्र सवभशचिमान् प्रोग को सम्णोचित कर दो िरणों कश्र योीना में यहश्र गन्स्तकता
प्रकट हग ई है । प्रचतज्ञा में ोश्र परमेश्वर तन्ा पूवभीों का स्मरण कर चहन्दू राष्ट्र के पगनरुद्धार एवां उसको
वैोवसम्पन्न करने के चलए प्रयत्नशश्रल रहने का सांकल्प चकया ीाता है । चनस्सन्दे ह इसमें डॉक्टरीश्र के
नन्तःकरण का ोाव हश्र प्रचतचणन्म्णत होता है ।

ीश्रवन में िार्तमकता होते हग ए ोश्र उन्होंने कोश्र इसका प्रदशभन नहीं चकया। उनके नचत चनकटवती चमत्र
णताते हैं चक वे कोश्र-कोश्र प्रातःकाल उुकर ध्यान मग्न होकर णैु ीाते न्े। पश्रचड़त एवां दगःचखत समाी
के चलए रात-चदन प्रयत्न करते रहने योग्य उनका सािगत्व उज्जवल न्ा तन्ा उनके मन को इतनश्र
उन्नतावस्न्ा प्राप्त हो गयश्र न्श्र चक वह चकसश्र ोश्र न्स्न्चत में नचविल रह सकता न्ा। सन्त एकनान् कश्र
यह वाणश्र ‘‘कडकडश्रत चवीेिे कल्लोळ। तेणें गगनाचस नसे खळणळ। तैसा नाना ऊमी माीश्र चनिळ।
गाम्ोश्रयभ केवळ या नााँव।’’ (‘‘चणीलश्र िाहे चीतनश्र तड़पे, नो में कण खलणलश्र रहश्र। चवचवि ऊर्तमयों
में चनिलता, है सरा गाम्ोश्रयभ यहश्र।।’’) उनके व्यवहार में साकार हग ई चदखतश्र न्श्र। उनका मन सदै व
चववेक के कसहासन पर ग ढ रहता न्ा। इसका प्रत्यय उनके चकसश्र ोश्र क्षण के व्यवहार तन्ा चकसश्र
ोश्र चवर्य के चनणभय से चकया ीा सकता न्ा।’’

एक णार तश्रसरे पहर के समय डॉक्टरीश्र के कगछ चमत्र णैुे न्े। कमरे के णश्रि में एक दश्रप टाँ गा हग ग न्ा
तन्ा उसके िश्रमे प्रकाश में णातिश्रत का रां ग खूण ीग गया न्ा। ीण सोश्र लोग इस प्रकार हास्य-चवनोद
में मग्न न्े उसश्र समय डॉक्टरीश्र का ििेरा ोाई वामन चकसश्र काम के चनचमत्त उस दश्रपक के नश्रिे से
ोागता हग ग चनकला। उसके चसर का िोंा लग ीाने से कााँि कश्र चिमनश्र नश्रिे चगरकर फूट गयश्र तन्ा
तेल लगढक ीाने से दश्रपक ोश्र ोक-ोक करके णगझ गया। इस घटना से सणसे रां ग-में-ोांग होता दे ख
वामन के चपता ीश्र गणाीश्र हे डगेवार ोश्र दश्रपक के समान ोड़क उुे । पर डॉक्टरीश्र ने उन्हें शान्त कर
नश्रिे णैुाया तन्ा मानो कगछ हग ग हश्र नहीं है इस शान्न्त के सान् उन्होंने दूसरश्र चिमनश्र लाकर उस पर
णैुा दश्र। उनका सांयम सोश्र के चलए गियभ का चवर्य न्ा।

डॉक्टरीश्र के क्रान्न्तकारश्र ीश्रवनकाल से नन्ात् 1915-16 से हश्र उनके प्रचत गत्मश्रयता एवां स्नेह
रखनेवाले गगरुीन सम्पूणभ प्रान्त में फैले हग ए न्े। उनमें से ननेक घरों में उनका इतना चनकट का सम्णन्ि
न्ा मानो वे कगटगम्ण के हश्र एक सदस्य हों। ीण वे उन स्न्ानों पर ीाते तो उनका व्यवहार इस घचनष्ठता
के ननग प हश्र गत्मश्रयतापूणभ एवां सांकोिरचहत होता। डॉक्टरीश्र कश्र यगवावस्न्ा में उनके हृष्ट-पगष्ट एवां
ोश्रमकाय शरश्रर, सेवाोाव एवां चवनश्रत स्वोाव से सोश्र गगरुीन नत्यचिक प्रोाचवत न्े। इसका वणभन
करते हग ए सावनेर के वकश्रल ीश्र मामा हरकरे कहते हैं चक ‘‘ये मगझसे चमलने के चलए घर गये चक मेरे
405
चपताीश्र घर में ीलपान कश्र सूिना दे ते हग ए कहते न्े ‘नरे ! यह हनगमान गया है ।’’ डॉक्टरीश्र का
व्यवहार दे खकर चकसश्र ोश्र व्यचि को प्रेमपूवभक प्रयगि ‘हनगमान’ शब्द हश्र उपयगि प्रतश्रत होगा। चववाह-
यज्ञोपवश्रत गचद के समय ोोी में उनकश्र पत्तल पर िालश्रस-पिास ीलेचणयााँ तो सही हश्र परोस दश्र
ीातश्र न्ीं तन्ा वे हाँ सते-हाँ सते उन्हें साफ कर ीाते न्े। 1930 के कारावास के समय तक उनके सोश्र
चमत्रगण इसश्र गहार के न्े और कहीं वे सण-के-सण चकसश्र व्यचि के यहााँ ोोीन करने गये चक एक
णार का गूि
ाँ ा हग ग गटा समाप्त होने के कारण दगणारा गूि
ाँ ना पड़ता तन्ा रोचटयों के सान् साग समाप्त
होने के कारण मगरब्णे या निार का सहारा लेना पड़ता। उसमें ोश्र वे इमरतणान के तले को पूरा-पूरा
साफ चकये चणना न छोड़ते। कगछ घरों में तो डॉक्टरीश्र का इतना सम्णन्ि न्ा चक वे घर कश्र वृद्धा से
चनस्सांकोि ीाकर कह सकते न्े चक ‘‘गी मगझे नाचरयल कश्र गगचझया णनाकर चखलाओ’’ तन्ा पााँि-
सात नाचरयल का ‘पूरण’ तगरन्त समाप्त हो ीाता न्ा। डॉक्टरीश्र को ोाकरश्र के सान् चमिभ और तेल
रुिता न्ा। इतना हश्र नहीं, णड़ाोात, ोीाोात, िकलश्र, न्ालश्रपश्रु, पगड़ा कश्र णड़श्र, मगरमगरे डाला हग ग
चिवड़ा गचद राीस पदान्ों कश्र चगनतश्र उनकश्र रुचि के पदान्ों में चवशेर् न्श्र। 1934 तक यह न्स्न्चत
रहश्र चकन्तग उसके णाद हालत णदल गयश्र। चपछले ननगोव के कारण लोग डॉक्टरीश्र से ोोीन का
गग्रह नवश्य करते न्े पर वह उनके स्वास्र्थय के चलए हाचनकर चसद्ध होता न्ा।

चवदोभ एवां मध्यप्रान्त में घूमते हग ए डॉक्टरीश्र के गहार के सम्णन्ि में ननेक लोगों के मगख से मीेदार
कन्ाएाँ सगनने को चमलतश्र हैं । उनमें प्रत्येक नपने यहााँ डॉक्टरीश्र द्वारा खाये हग ए पदान्भ को हश्र उनकश्र
रुचि का पदान्भ णताता है । इन सण प्रकार के पदान्ों के नाम सगनकर यहश्र चनष्ट्कर्भ चनकाला ीा सकता
है चक डॉक्टरीश्र को सोश्र पदान्भ पसन्द न्े, नन्वा चीसके यहााँ वे ीाते उसे यहश्र सन्तोर् दे ने का प्रयत्न
करते चक उसने उनकश्र मनपसन्द का ोोीन णनाया है ।

इतने गहार के सान् हश्र ननेक लोगों ने डॉक्टरीश्र को पालन्श्र मारकर कगएाँ या नदश्र में घण्टों तैरते दे खा
है । एक णार काशश्र में गांगा का चवशाल घाट होते हग ए ोश्र उन्होंने उसे तैरकर गरपार चकया न्ा। इसश्र
प्रकार खालश्र णतभन के समान फटफटश्र को उुाकर घर से णाहर सड़क पर खड़ा करने वाले ीश्र
गोचवन्दराव िोळकर के सान् वे समय-समय पर ीोर गीमाई करते रहते न्े। उनका शरश्रर ोव्य न्ा,
गहार नच्छा न्ा तन्ा उनकश्र काम चनणटाने कश्र फगती और पचरीम करने कश्र चसद्धता नतगत न्श्र। पर
हमें यह नहीं ोूलना िाचहए चक ीैस गनन्द उन्हें स्वाचदष्ट ोोीन करते समय चमलता वहश्र चनराहार
रहने पर ोश्र उनके िेहरे पर खेलता रहता। दगचनया कश्र दृचष्ट में डॉक्टरीश्र ‘कोश्र चवलासश्र, कोश्र प्रवासश्र’
इस प्रकार चदखे तो ोश्र उनकश्र नचविल दृचष्ट चहन्दू राष्ट्र के उद्धार के चलए लक्षावचि णन्िगओां को एक
सांघटन-सूत्र में गून्
ां ने कश्र ओर हश्र लगश्र हग ई न्श्र और इसचलए वे ननगकूलता नन्वा प्रचतकूलता कश्र दोनों
न्स्न्चतयों में समान प से उत्साहश्र एवां कायभक्षम णहग िा दे ते न्े। स्वास्र्थय ुश्रक रहने तक वे नपनश्र
चमत्रमण्डलश्र के सान् णहग िा हान्पाई करते रहते। तचकये और मसकन्द एक दूसरे पर फेंककर इतनश्र

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िमािौकड़श्र मिाते चक सारश्र णैुक चसर पर उुा लेते न्े। इतना हश्र नहीं, नरम तचकयों से एक दूसरे कश्र
नच्छश्र तरह से खणर नहीं लश्र ीा सकतश्र इसचलए नरहर कश्र दाल ोरकर तचकयों को ोारश्र णनाकर
उनका उपयोग करते न्े। सांघ के स्वयांसेवकों को इस प्रकार मस्तश्र से व्यवहार करते दे ख उन्हें णहग त
गनन्द गता न्ा तन्ा कोश्र-कोश्र वे स्वयां ोश्र इस तारुण्यसगलो िींगािींगश्र में सन्म्मचलत हो ीाते।
हान् लगते हश्र कगम्हला ीायें इस प्रकार के व्यचि उन्हें नहीं िाचहए न्े।

सांघटन के चलए चहन्दू समाी के सवभीन एकत्र गकर एकता और स्नेह के सम्णन्ि णढाये, इस हे तग
डॉक्टरीश्र के प्रयत्न िलते रहे न्े। चकन्तग उन्हें यह चणल्कगल नहीं लगता न्ा चक इस उद्देश्य कश्र चसचद्ध के
चलए समाी से ीाचतयों का समूल उराटन कर चदया ीाये नन्वा कगल-परम्परा से िले गये चवशेर्
सांस्कारों का त्याग चकया ीाये। डॉक्टरीश्र चहन्दू समाी के चकसश्र ोश्र व्यचि के यहााँ सांकोिरचहत होकर
ोोीन करते न्े और इसमें उन्हें लव मात्र ोश्र यह नहीं लगता न्ा चक वे कगछ चवशेर् णात कर रहे हैं ।
नागपगर में यद्यचप उनका डॉ. मगी
ां े के यहााँ काफश्र गना-ीाना रहता न्ा और डॉ. मगी
ां े शाकाहार को
सदै व णड़श्र चतरस्कार कश्र दृचष्ट से दे खते न्े तन्ा राष्ट्र में पराक्रम कश्र ोावना ीगाने के चलए माांसाशन
का प्रचतपादन करते न्े चफर ोश्र डॉक्टरीश्र ने नत्यचिक गत्मश्रयता होत हग ए ोश्र डॉ. मगांीे का इस चवर्य
में कोश्र ननगकरण नहीं चकया। चकसश्र ोश्र व्यचि के उत्तम गगणों का नवश्य ननगकरण करना िाचहए
चकन्तग एकाि नच्छे गगण पर मगग्ि होकर नपना सम्पूणभ चववेक खोकर चवकारवश होना नन्वा गगणों
के सान् उस व्यचि कश्र सोश्र णातों का ननगकरण करना डॉक्टरीश्र को कतई स्वश्रकार नहीं न्ा। उनका
चववेक ीाग क रहता न्ा।

उनकश्र चमत्रता णहग त व्यापक एवां ऊाँिे दरीे कश्र न्श्र। एक णार उनके सम्णन्ि में गया हग ग व्यचि
सहसा दूर नहीं ीा सकता न्ा। यचद नपने स्वोाव के कारण कोई दूर हटा ोश्र तो ीैसे पृर्थवश्र से दूर
ीाने पर ोश्र िन्द्रमा उसके िारों ओर घूमता रहता है वैसे हश्र डॉक्टरीश्र के नसामान्य गगरुत्वाकर्भण
कश्र पचरचि में हश्र वह िोंर काटता रहता। राीनश्रचतक नन्वा सैद्धान्न्तक मतोेद उनके स्नेह-सम्णन्िों
को नहीं तोड़ सकते न्े। उनके पत्रों का प्रारम्ो ‘परम चमत्र’ के सम्णोिन से हश्र होता न्ा। चकन्तग यह
शब्द केवल पद्धचत या चशष्टािार के नाते प्रयगि नहीं होता न्ा नचपतग उसके पश्रछे हृदय का सरा प्रेमपूणभ
ोाव रहता न्ा। ीश्र सन्त एकनान् के ‘ोागवत’ में वणभन के ननगसार इस शब्द में नत्यन्त उदात्त तन्ा
उर कोटश्र के हृदय एवां व्यवहार कश्र पगण्यता समाचवष्ट रहतश्र न्श्र। ‘‘मनें िनें कतभव्यता। ज्यािश्र ननन्य
नवांिकता। त्या नााँव परमचमत्रता। हे खूण तत्त्वता ीाणावश्र’’ (‘‘मन में हो कतभव्यता, और नवांिक
ोाव। परमचमत्रता है यहश्र, ीहााँ न कपट दगराव।’’) यह ओवश्र पूणांश में डॉक्टरीश्र के नकृचत्रम स्नेह के
कारण सान्भक होतश्र हग ई चदखतश्र न्श्र। इस नलौचकक एवां नचोीात प्रेम के कारण हश्र मतोेद होते हग ए
ोश्र वे नागपगर के काांग्रेस-नेता णै. नभ्यांकर के पास से गवश्यकता पड़ने पर एकाएक राचत्र में पााँि सौ
रुपये उिार लाये न्े। उस समय ीण डॉक्टरीश्र ने ऋणणन्िन-पत्र चलख दे ने को कहा तो णै. नभ्यांकर

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के मगख से सही हश्र चनकल पड़ा ‘‘मैं कोई इतना पागल नहीं हो गया हू ाँ चक डॉक्टर हे डगेवार के पास
से कागी चलखाऊाँ।’’ डॉक्टर का प्रेम चकतना उर कोटश्र का न्ा उसका इस घटना से ककचित् ननगमान
लगाया ीा सकता है । डॉक्टरीश्र के सान् 1921 में कारागार में रहनेवाले कमभवश्रर ीश्र पाुक ने तो
कहा न्ा चक ‘‘मतचोन्नता के कारण मैंने डॉक्टरीश्र के सान् उदासश्रनता के सम्णन्ि रखे। परन्तग उन्होंने
स्नेह का सम्णन्ि सदा णनाये रखा। वे मतोेदों को कोश्र इतना तश्रव्र नहीं होने दे ते न्े चक चमत्रता टूट
ीाये।’’ उनकश्र इस चवशेर्ता का वणभन करते समय ‘तरुण ोारत’ के सम्पादक ीश्र ग. त्र्यां.
माडखोलकर ने कहा चक ‘‘प्रीातांत्र के चलए उनकश्र वृचत्त इतनश्र ननगकूल न्श्र चक उनके व्यवहार में
प्रत्यक्ष चवरोिश्र को ोश्र सौीन्य चमलता न्ा।’’ काांग्रेस में काम करनेवाले ननेकानेक लोग राष्ट्रश्रय
स्वयांसेवक सांघ कश्र स्न्ापना के उपरान्त ोश्र डॉक्टरीश्र के सान् व्यवहार में नपना चवरोि ोूल ीाते
न्े। डॉक्टरीश्र के प्रेम के सम्णन्ि में णोलते हग ए काांग्रस
े के प्रमगख कायभकता ीश्र मामा हरकरे वकश्रल ने
कहा चक ‘‘डॉक्टरीश्र के सांघ में प्रचतचज्ञत स्वयांसेवक ीो काम करते हैं वह काम केवल डॉक्टरीश्र पर
प्रेम होने के कारण करने को मेरश्र गी ोश्र तैयारश्र है ।’’ डॉक्टरीश्र के सान् राीनश्रचतक मतोेद
रखनेवालों कश्र ीण यह न्स्न्चत न्श्र तो उनके सान् सोश्र क्षेत्रों में एकरस होनेवाले चमत्रों के ननगोव में
चकतनश्र चमुास होगश्र।

पगरानश्र शगक्रवारश्र में डॉक्टरीश्र के सान् शैशव में गेंद खेलनेवाले तन्ा पाुशाला ीाते हग ए खट्टे णेरों का
स्वाद लेनेवाले उनके एक णाल-चमत्र ीश्र रामोाऊ पाटणकर शास्त्रश्र पूना में रहते हैं । एक णार ननेक
वर्ों के णाद नागपगर ीाने पर स्वाोाचवक गकर्भण के कारण वे डॉक्टरीश्र के यहााँ गये तन्ा गाँगन
से खड़े होकर पूछा चक ‘‘केशव है क्या ?’’ परश्रस-तश्रस वर्भ से डॉक्टरीश्र ने उन्हें नहीं दे खा न्ा। चफर
ोश्र उनकश्र गवाी सगनते हश्र उन्होंने पहिान चलया और ‘‘राम ! तू यहााँ कण गया ?’’ कहते हग ए उन्हें
प्रगाढ गकलगन में कस चलया। एक णार चीसे नपना कहा चक डॉक्टरीश्र के हृदय में उसका सदा के
चलए स्न्ान हो ीाता न्ा। इसश्र प्रकार के कारण वे नपने चमत्रों के णश्रमार पड़ने पर शगशर्
ू ा में रात-चदन
एक कर दे ते न्े। तन्ा नपना घरणार न होते हग ए ोश्र पचरचित एवां चमत्रों के लड़के-लड़चकयों का चववाह
करने कश्र खटपट करते रहते न्े। स्वयांसेवकों के सांरक्षकों को तो यहश्र लगता न्ा चक नपने णरे हमारश्र
नपेक्षा डॉक्टरीश्र कश्र हश्र णात ज्यादा सगनते हैं और इसचलए वे ोश्र डॉक्टरीश्र के पश्रछे हश्र सदा यह राग
नलापते रहते चक ‘‘मेरे लड़के को चववाह करने के चलए नण गप हश्र णता दश्रचीए।’’ प्रचसद्ध
उपन्यासकार एवां पत्रकार ीश्र ग. त्र्यां. माडखोलकर के प्रेमचववाह को साकार करने में डॉक्टरीश्र कश्र
हश्र मध्यस्न्ता कारणश्रोूत हग ई न्श्र। उसका वणभन ीश्र माडखोलकर ने नपनश्र पगस्तक ‘ीश्रवन-साचहत्य’
में णड़े सगन्दर शब्दों में चकया है । वे चलखते हैं चक ‘‘मेरे कीे कश्र नोश्र दो चकस्तें णाकश्र न्ीं। नागपगर में
इस समय मैं इतना नपचरचित न्ा चक मगझ ीैसे णेघरणार तन्ा नज्ञात तरुण को नपनश्र कन्या दे ना
नांिेरे में छलााँग मारने के समान हश्र साहस का काम न्ा। चफर मैने चीस लड़कश्र को दे खा वह तो नपने

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मााँ-णाप कश्र इकलौतश्र णेटश्र न्श्र।’’ पर इतने पर ोश्र डॉक्टरीश्र के प्रयत्न से रास्ता चनकल गया तन्ा
गीाननराव ‘मश्ररा’ के ‘प्रोग’ हो गये।

उनकश्र चमत्रता कश्र ोावना उत्कट न्श्र और उसका प्रत्यय स्न्ान-स्न्ान पर गये चणना नहीं रहता न्ा।
प्रचसद्ध सवोदयवादश्र कायभकता स्व. तात्याीश्र वझलवार का ननगोव इस दृचष्ट में उल्लेखनश्रय है । गमी में
नचिकारश्र चशक्षण वगभ के चदनों में समय णिाने के उद्देश्य से डॉक्टरीश्र तात्याीश्र के यहााँ स्नान के चलए
ीाते न्े। उन दोनों के सम्णन्ि इतने चनकट के न्े चक णातिश्रत में वे एकविन का हश्र प्रयोग करते न्े।
एक चदन डॉक्टरीश्र के सान् गये हग ए स्वयांसेवक ने तात्याीश्र द्वारा डॉक्टरीश्र को ‘केशव’ नाम से
सम्णोिन करते हग ए सगना। ीण डॉक्टरीश्र स्नानघर में िले गये तो उस स्वयांसेवक ने तात्याीश्र से कहा
‘‘यह तो ुश्रक है चक गपकश्र डॉक्टरीश्र से चमत्रता है । पर हमें ऐसा लगता है चक गप डॉक्टरीश्र को
‘केशव’ के स्न्ान पर ‘केशवराव’ कहें तो नच्छा रहे गा।’’ न्ोड़श्र दे र में डॉक्टरीश्र णाहर ग गये तन्ा
हाँ सते हग ए तात्याराव ने उस स्वयांसेवक द्वारा दश्र गयश्र सूिना उनके सामने रखश्र। यह सगनते हश्र डॉक्टरीश्र
गम्ोश्रर हो गये। न्ोड़श्र दे र में स्वयांसेवक कश्र ओर मगड़कर कहने लगे ‘‘मगझे केशव कहकर पगकारनेवाले
नण नागपगर में दो-िार तो रहे हश्र हैं । उन्हें ोश्र गप नीश्र-तीश्र कहने के चलए चववश करें गे ?’’ यह
कहते हग ए डॉक्टरीश्र तन्ा तात्याीश्र कश्र गाँखे डणडणा गयीं।

डॉक्टरीश्र कश्र चमत्रता कश्र उत्कटता व्यि करनेवालश्र और एक घटना सांस्मरणश्रय है । यचद कोई व्यचि
चमत्रता के कारण नपने ऊपर कोई काम सौंपे नन्वा कोई नपेक्षा रखे तो उसकश्र पूर्तत के चलए चकतना
प्रयत्न करना िाचहए इसका उत्तर डॉक्टरीश्र के व्यवहार से चमल सकता न्ा। एक णार विा चीला के
सांघिालक ीश्र गप्पाीश्र ीोशश्र िगनाव में खड़े न्े। मतदान के चदन पर उनकश्र ओर एक मोटर ोेीने
का सन्दे श नागपगर गया। मोटर को प्रातः छः-सात णीे तक विा पहग ाँ िना गवश्यकत न्ा। शाम को
ीण यह सन्दे श चमला तण डॉक्टरीश्र णगखार में पड़े हग ए न्े। चफर ोश्र उन्होंने नपने पास णैुे हग ए
स्वयांसेवक को मोटर ुश्रक करने के चलए टााँगा लाने के चलए कहा। यह सोिकर चक णश्रमारश्र कश्र
नवस्न्ा में डॉक्टरीश्र को णाहर ीाना ुश्रक नहीं रहे गा उस स्वयांसेवक ने कहा चक ‘‘यह काम तो मैं
कर लूाँगा’’ और वह विा से सन्दे श लेकर गनेवाले व्यचि के सान् णाहर िला गया। उसने तश्रन-िार
स्न्ानों से मोटर चकराये पर करने का प्रयत्न चकया परन्तग कोई ोश्र मोटरवाला इतनश्र ील्दश्र विा ीाने के
चलए हामश्र नहीं ोरता न्ा। नन्त में डॉक्टरीश्र के सामने केवल हान् चहलाते हग ए ीाने में सांकोि ननगोव
करते हग ए वह विा से गनेवाले सज्जन के द्वारा मोटर न चमलने का सन्दे श ोेीकर स्वयां कायालय में
ीाकर सो रहा। यह पता लगते हश्र डॉक्टरीश्र ऊन का मफलर एवां शाल ओढकर णाहर चनकले तन्ा
राचत्र के एक णीे ीश्र केशवराव ब्रह्मे का दरवाीा ीा खटखटाया। उन्होंने द्वार खोलकर दे खा तो सामने
डॉक्टरीश्र खड़े न्े। डॉक्टरीश्र को इतना कष्ट दे खकर ीश्र ब्रह्मे कगछ घणड़ा गये और कहा ‘‘डॉक्टरीश्र,
चिन्ता मत कश्रचीए नोश्र तगरन्त मोटर लेकर विा ीाता हू ाँ ।’’

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मोटर चनचित हो ीाने के णाद डॉक्टरीश्र कायालय गये तन्ा दरवाीा खटखटाया और उस स्वयांसेवक
को ीगाया। णगखार से दहकते हग ए डॉक्टरीश्र को राचत्र के तश्रन णीे वहााँ दे खकर स्वयांसेवक ने एकदम
प्रश्न चकया ‘‘गप क्यों गये हैं ? क्या मोटर न चमलने का सन्दे श नहीं पहग ाँ िा ?’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने
कहा ‘‘मोटर न चमलने के कारण तगम्हें चिन्ता न हो केवल इसचलए णताने गया हू ाँ चक ब्रह्मे समय पर
मोटर लेकर ीा रहे हैं ।’’ इसके णाद घर ीाकर डॉक्टरीश्र ने विा के चलए पत्र चलखा तन्ा प्रातःकाल
मोटर ोेीकर हश्र वे चणछौने पर लेटे।

इसश्र उत्कट प्रेम के गिार पर डॉक्टरीश्र न सहस्रावचि लोगों को गत्मसात् चकया न्ा। उनके सहवास
में केवल एक-दो चदन रहने का सौोाग्य पानेवाले कोल्हापगर के एक नांग्री
े श्र स्कूल के सांिालक को
डॉक्टरीश्र कश्र स्न्ायश्र चमत्रता का चकतना सहारा मालूम होता न्ा, यह दे खने लायक है । वे सांिालक
डॉक्टरीश्र को चलखते हैं ‘‘गपकश्र सहायता लौटतश्र डाक से गना गवश्यक है । मैं णाट दे खग
ूाँ ा।
गवश्यक हो तो गप नपने ीश्रवन के ोारश्र त्याग में रात का ोोीन छोड़ने का त्याग और ीोड़
लश्रचीए तन्ा इस सम्णन्ि में गनेवाले खिभ को सहायता के प में प्रान्भना ननगसार लौटतश्र डाक से
ोेचीए।’’ डॉक्टरीश्र के गृहीश्रवन तन्ा गर्तन्क न्स्न्चत का चीनको तचनक ोश्र पता है उन्हें यह पत्र
चवचित्र लगेगा। पर इस चवचित्र व्यवहार के पश्रछे लोगों का यह दृढ चवश्वास चछपा हग ग न्ा चक डॉक्टरीश्र
सांकट के समय नवश्य हश्र सहायक चसद्ध होंगे। नये व्यचि को ोश्र ीण इतना चवश्वास लगता न्ा तो
चिरपचरचितों को उनका चकतना नचिक सहारा रहना िाचहए। यह कहने में तचनक ोश्र नचतशयोचि
नहीं चक ननेक लोगों के चलए तो डॉक्टरीश्र हश्र उनके ीश्रव और प्राण हो गये न्े। डॉक्टरीश्र के चमत्र
चसन्दश्र के ीश्र नानासाहण टालाटगले एक णार णहग त नचिक णश्रमार हो गये तन्ा उन्हें लगा चक नण कोई
गशा नहीं रहश्र। उस समय उन्होंने डॉक्टरीश्र कश्र प्रचतमा को नपने सामने इस प्रकार रखने को कहा
चक वे उसे सही एवां नच्छश्र तरह से दे ख सकें तन्ा उन्होंने नपनश्र गाँखों के प्रेमाशुओां से मन-हश्र-मन
ोचिोाव से डॉक्टरीश्र का नचोर्ेक करके हश्र नपनश्र दे ह का चवसीभन चकया। डॉक्टरीश्र का प्रेम
चनस्सन्दे ह इतना चदव्य न्ा।

डॉक्टरीश्र का स्वोाव णहग त हश्र चवनोदश्र एवां चखलाड़श्र न्ा तन्ा सान् के चमत्रों के णश्रि तो वे कोश्र-कोश्र
शरारतश्र ोश्र हो ीाते न्े। एक णार नागपगर के सगप्रचसद्ध मीदूर-नेता ीश्र रामोाऊ रुईकर ीश्र
सकलातवाला के सत्कार के चलए डॉक्टरीश्र के पास िन्दा मााँगने के चलए गये। रुईकरीश्र कश्र
कौटगन्म्णक न्स्न्चत नच्छश्र न्श्र और इिर डॉक्टरीश्र के यहााँ दचरद्रता का हश्र साम्राज्य न्ा। चकन्तग नन्य
मीदूर नेताओां के समान ीश्र रुईकरीश्र कश्र दृचष्ट में ोश्र डॉक्टरीश्र समाीवादश्र ने होने के कारण पूी
ाँ श्रपचत-
वगभ के हश्र न्े। नतः िन्दा मााँगते हश्र डॉक्टरीश्र ने हाँ सते हग ए उत्तर चदया ‘‘गप मालदार मीदूर हैं और
ाँ श्रपचत, नतः चनचि कहााँ से दूाँ ?’’ दूसरे एक चमत्र कश्र तो डॉक्टरीश्र ने मीाक में हवा
मैं ुहरा गरश्रण पूी
हश्र उड़ा दश्र न्श्र। नागपगर में चवद्यान्ी ीश्रवन से हश्र डॉक्टरीश्र का चीनके सान् चणलकगल घर ीैसा सम्णन्ि

410
न्ा वे प्रनादपन्त फडणवश्रस नपने गाँगन में पलांग पर मसनद के सहारे णैुे हग ए डॉ. मगांीे के पराक्रम
और िैयभ का नत्यन्त रसोरा वणभन करने में तल्लश्रन हो ीाते न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र उनके डरपोक
स्वोाव से ोलश्र ोााँचत पचरचित न्े। एक चदन उनकश्र गप्पों का रां ग खूण ीम गया न्ा तन्ा ीोताओां में
डॉक्टरीश्र ोश्र णड़े िाव से उनकश्र णातें सगन रहे न्े चक इतने में एक पगचलस इन्स्पेक्टर नन्दर गया तन्ा
कड़कतश्र गवाी में पूछा ‘‘यहााँ प्रनादपन्त फडणवश्रस कौन हैं ?’’ प्रश्न सगनते हश्र वश्रररस पलायन कर
गया तन्ा उसके स्न्ान पर करुणा का साम्राज्य छा गया। प्रनादपन्त एकदम घणड़ा गये। उनके िेहरे
का रां ग फटाफट णदलने लगा। यह सण दे खकर उनकश्र एकदम चसट्टश्र गगम हो गयश्र। नन्य सज्जनों को
डॉक्टरीश्र ने पूवभसूिना दे दश्र न्श्र चक एक पगचलस-नचिकारश्र गकर यह मीाक करनेवाले हैं । इसचलए
प्रनादपन्त कश्र णोलश्र णन्द होते हश्र पगचलस-नचिकारश्र के सान् सण लोग एकदम ीोर से हाँ स पड़े और
चफर तो इतनश्र हाँ सश्र हग ई चक सण एकदम लोटपोट हो गये। उिर प्रनादपन्त कश्र णगरश्र हालत न्श्र। उनको
न हाँ सते णनता न्ा और न रोते। ‘यगद्धस्य कन्ा रम्या’ यह तो प्रािश्रन लोकोचि सि है हश्र पर यगचि से
समर कश्र न्स्न्चत का गोास पैदा कर उससे ोश्र नचिक रम्य करुण एवां हास्य का उद्रेक करनेवाला
डॉक्टरीश्र का चवनोदश्र स्वोाव और ोश्र रम्य न्ा।

पगष्ट्प के सान् सगगन्ि तन्ा सूयभ के सान् चकरण के समान हश्र डॉक्टरीश्र कश्र सांगचत में हास्य सदै व चदखायश्र
दे ता न्ा। नपनश्र चवशाल मूाँछों में से ीण वे हाँ सने लगते तो गाँगन में खड़े नश्रम कश्र वृक्ष कश्र गड़ में से
रीककणों कश्र उन्मगि वर्ा करनेवाले िन्द्रमा कश्र प्रसन्नता का स्मरण हो ीाता न्ा। हास्य चनमभल
नन्तःकरण का प्रचतचणम्ण होता है । मन में द्वे र् तन्ा नसूया का कोलाहल होने पर ऊपर-ऊपर से हास्य
का चदखावा ोले हश्र चकया ीा सके पर वह कागी के फूलों के समान चनीीव एवां सगगन्िरचहत होता
है । हास्य का मािगयभ उसके पश्रछे कश्र चवशगद्ध एवां चनष्ट्पाप सान्त्त्वकता का हश्र पचरणाम होता है । डॉक्टरीश्र
के उन्मगि हास्य में यह मािगयभ सदै व ननगोवगम्य न्ा।

डॉक्टरीश्र कश्र णैुक एक महान् सांस्कारकेन्द्र हश्र न्श्र। उनकश्र णैुक में ोाग लेनेवाले व्यचि को नपने
चनीश्र ीश्रवन कश्र सांकगचित एवां नश्ररसता-ोरश्र िारचदवारश्र से णाहर चनकलकर सामाचीक ीश्रवन के
ननन्त गकाश में गकाांक्षा के पांखों पर िढकर एक ऊाँिश्र उड़ान लेने कश्र स्फूर्तत चमलतश्र न्श्र।
डॉक्टरीश्र का नाम लेते हश्र णश्रस-परश्रस तरुणों के णश्रि में णैुे हग ए उनके वातालाप करने का दृश्य
गाँखों के सामने खड़ा हो ीाता है । डॉक्टरीश्र सांघ के सरसांघिालक न्े। नतः यचद सािारण व्यचि
को उनसे चमलना कचुन होता तो कोई गियभ कश्र णात नहीं होतश्र, क्योंचक नेता के चवर्य में सामान्य
िारणा हश्र न्श्र चक उसे गवश्यक काम-ोर के चलए समाी के सामने ीाना िाचहए तन्ा शेर् समय में
उससे स्वत्रांतापूवभक चमल सकना लोगों के चलए दगलभो होना िाचहए। परन्तग डॉक्टरीश्र कश्र रश्रचत चनरालश्र
न्श्र। उनके यहााँ ‘गओ, ीाओां, घर तगम्हारा’ यहश्र ननगोव गता न्ा।

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डॉक्टरीश्र स्वयां काम में चकतने ोश्र चनमग्न रहें तो ोश्र ऐसा कोश्र नहीं हग ग चक उनसे चमलने के चलए
गनेवालों कश्र ओर ुश्रक प्रकार से ध्यान नहीं चदया गया हो और उसको योग्य मागभदशभन एवां प्रोत्साहन
न चमला हो। नमराई कश्र शश्रतल छाया में पौशाला कश्र उदारता का हश्र वहााँ ननगोव होता न्ा। कायभ में
नपेक्षानगसार सफलता न चमलने से नन्वा मागभ में निानक गयश्र णािाओां से हतणगचद्ध एवां उदास
होकर ीानेवाला कायभकता एक णार णैुक में णैुा चक उसे पचरन्स्न्चत से डटकर सांघर्भ करने कश्र प्रेरणा
चमल ीातश्र न्श्र।

डॉक्टरीश्र कश्र णैुक में णातिश्रत करते समय राीनश्रचत से लेकर िमभ के चववेिन तक प्रसांगानगसार
ननेक चवर्य चनकलते न्े तन्ा उस सम्णन्ि में डॉक्टरीश्र सही रश्रचत से तन्ा हाँ सते-खेलते ीो नपने
नपने ननगोव णताते न्े वे णहग मूल्य होते न्े। उनका यह कन्न इतना रसोरा, यन्ान्भ तन्ा गकर्भक
होता न्ा चक पााँि-दस चमनट में हश्र नवागत उस णैुक में रम ीाता। वहााँ गनेवाले लोग ननेक णार
नपने गप को इतना ोूल ीाते चक णाकश्र कोई सगि नहीं रहतश्र। कोश्र मनगष्ट्य के नांहकारश्रपन का
चवर्य चनकलता, तो कोश्र ननगयायश्र कैसा होना िाचहए इस पर ििा होतश्र। कोश्र सरश्र िार्तमकता
कौनसश्र है इसका चववेिन होता, कोश्र मनगष्ट्य के सामर्थयभ का गगणगान डॉक्टरीश्र के मगख से सगनने को
चमलता। उनकश्र णातों में प्रवास-वणभन ोश्र न्े तन्ा समाी में तत्क्षण ननगोव में गनेवालश्र ननेक
गपचत्तयों तन्ा हृदय को व्यचन्त करनेवालश्र दश्रनता का उल्लेख ोश्र रहता। इस णातिश्रत के द्वारा वे
कायभकताओां में गत्मपचरक्षण कर नपनश्र पात्रता एवां स्वोाव को कायानगकूल णनाने कश्र इच्छा उत्पन्न
कर दे ते न्े तन्ा नपना चनचित काम कौनसा है और उसे करना िाचहए इसका ज्ञान ोश्र वे कायभकताओां
को करा दे ते। उनके णोलने में न तो कृचत्रमता को स्न्ान न्ा और न नांहकार का दपभ। उसमें चदखावटश्र
शब्दाडम्णर का सवभन्ा नोाव रहता न्ा। उनके एक-एक शब्द से गाँखे खोलकर िलने वाले कमभयोगश्र
व्यचि के ननगोवों कश्र यन्ान्भता हश्र प्रकट होतश्र न्श्र। वे हाँ सश्र, मीाक और ुट्टा सण कगछ करते न्े पर
उसमें िगोनेवालश्र कगत्सा नहीं न्श्र नचपतग गत्मश्रयता से उत्पन्न कौतगक रहता न्ा। डॉक्टरीश्र के सान्
छाया के समान रहनेवाले ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर कहते हैं चक ‘‘डॉक्टरीश्र कश्र णैुकें स्वयांसेवकों कश्र
दृचष्ट से तो सवभस्व हश्र न्ीं। उनमें णैुकर स्वयांसेवक स्वगभ के वातावरण का ननगोव करते न्े। सांघस्न्ान
के कायभक्रम में नपूणभ रहनेवाला स्वयांसेवक डॉक्टरीश्र कश्र णैुक के उत्साहमय वातावरण में पूणभता
प्राप्त करता न्ा। उनकश्र णैुक के वातावरण का यन्ान्भ वणभन करना नसम्ोव हश्र है ।’’ डॉक्टरीश्र गहन-
से-गहन चवर्य को ोश्र छोटश्र-छोटश्र णातों तन्ा उदाहरणों से सरल णना दे ते न्े। उपयगि दृष्टान्त एवां
पक उनके कन्न को सगगम णनाने के सािन न्े।

स्वयांसेवक को नपने कायभक्षेत्र में चीस वातावरण का ननगोव गता है उससे सम्पूणभ दे श का
वातावरण का ननगमान नहीं लगाना िाचहए इसका एक चदन डॉक्टरीश्र प्रचतपादन कर रहे न्े। इस

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सम्णन्ि में उन्होंने ीो कन्ा णतायश्र वह उनकश्र ोावना को णहग त हश्र प्रोावश्र प से व्यि करतश्र है ।
कन्ा इस प्रकार है ः-

एक राीा न्ा। उसकश्र रोी हीामत णनानेवाले नाई को एक चदन कगछ नचिक प्रसन्न दे खकर राीा ने
पूछा ‘‘क्यों ुाकगर, राज्य कश्र ीनता कश्र गर्तन्क न्स्न्चत कैसश्र है ?’’

नाई ने नपनश्र कमाई में कगछ पैसा णिाकर गु-दस तोले सोना खरश्रद चलया न्ा। नतः उसने उत्तर
चदया ‘‘महाराी, लोग खाते-पश्रते तन्ा सगखश्र हैं । इतना हश्र नहीं, हर एक के पास गु-दस तोले सोना
ोश्र ीमा हैं ।’’ ‘‘णहग त नच्छा’’ कहकर राीा ने सन्तोर् व्यि चकया। पर सराई यह न्श्र चक राज्य में
णश्रि-णश्रि में पड़नेवाले नकालों के कारण लोगों कश्र हालत नच्छश्र नहीं न्श्र। राीा को यह पता न्ा पर
उसे यह समझते ोश्र दे र नहीं लगश्र चक नाई ने नपनश्र हालत दे खकर हश्र सणकश्र हालत का नन्दाीा
लगाया है । राीा ने नाई कश्र गलतश्र उसके ध्यान में लाने के चलए ीरा मीाक करने कश्र सोिश्र। नपने
मांत्रश्र को दूसरे चदन णगलाकर गदे श चदया चक ‘‘राीमहल में गनेवाले नाई के घर गु-दस तोले सोना
है । उसको पता न िलते हग ए कगशल रश्रचत से उसे चनकलवा लश्रचीए।’’ राीाज्ञा के ननगसार एक गगप्तिर
ने नपने हान् कश्र सफाई चदखाते हग ए नाई का सोना साफ कर चदया। सोना खोने के कारण नाई णड़ा
दगःखश्र हग ग।

दो-िार चदन णाद ीण नाई कश्र दाढश्र णनाने गया तो उसका िेहरा णहग त हश्र उतरा हग ग न्ा। राीा को
तो उसकश्र चिन्ता का कारण मालूम न्ा इसचलए वह मन-हश्र-मन हाँ सा इिर-उिर कश्र णातें करते हग ए
नाई ने पूछा ‘‘राज्य में गीकल कैसश्र हालत है ?’’

नाई ने गहरश्र सााँस छोड़ते हग ए उत्तर चदया ‘‘क्या कहू ाँ महाराी, िोरों ने लोगों का चणल्कगल नाक-में-दम
कर रखा है ।’’

इस प्रकार छोटश्र-छोटश्र कन्ाओां से वे स्वयांसेवकों के मन में णड़े-णड़े तत्त्व नांचकत कर दे ते न्े। वे


कहते न्े चक स्वयांसेवकों को नपना कतभव्य पूरा करने में मन लगाकर प्रयत्न करना िाचहए तन्ा यह
करते हग ए स्वयां कश्र प्रचतष्ठा के पश्रछे नहीं लगना िाचहए। इतना हश्र नहीं, नपने स्वोाव के ननगसार
प्रचतष्ठा पश्रछे गयश्र तो ोश्र उसकश्र ओर मगड़कर ोश्र नहीं दे खना िाचहए।

इस प्रकार मनोरांीक तन्ा नन्भपूणभ कन्ाएाँ णताकर स्वयांसेवकों को सही हश्र चविारप्रवण णनाने कश्र
डॉक्टरीश्र कश्र कगशलता नसामान्य न्श्र। णैुक में गनेवाले स्वयांसेवकों के मन पर उनका ोाव तो
ीहााँ-का-तहााँ नसर कर ीाता परन्तग इसके कारण हमारे घाव पर नमक चछड़क गया है यह सन्ताप
कोश्र ननगोव में नहीं गता, प्रत्यगत गत्मचनरश्रक्षण करने कश्र सान्त्त्वक चववेकशश्रलता ीाग्रत् होतश्र
न्श्र। डॉक्टरीश्र का प्रेम और स्नेह इतना नचिक न्ा चक यचद मीाक में चकसश्र स्वयांसेवकों को कोश्र

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कगछ णगरा ोश्र लग गया तो ोश्र वह उनके गगरुत्वाकर्भण कश्र पचरचि से णाहर ीाने का चविार नहीं कर
सकता न्ा। उनकश्र णैुक में सहसा शान्ब्दक चववाद नहीं होता न्ा। दूसरे ने यचद कगछ कुोर वाक्य कह
ोश्र चदया तो डॉक्टरीश्र नत्यन्त सांयम से काम लेते न्े। हााँ, कोश्र-कोश्र वे नवश्य गरम हो ीाते। इस
समय सामने णैुे हग ए व्यचि को यहश्र लगता न्ा चक ‘‘मैंने क्या कह डाला’’ तन्ा वह नक्षरशः कााँप
उुता। एक णार नमरावतश्र का एक तरुण स्वयांसेवक उनकश्र णैुक में गया तन्ा सांघ पर गक्षेप
करते हग ए णोला ‘‘सांसार से सणसे नश्रि एवां पचतत समाी चहन्दू है । उसका क्या सांघटन करते हैं ?’’
चनन्ष्ट्क्रय रहकर केवल णड़णड़ करनेवाले तरुण के वे उसार सगनकर डॉक्टरीश्र एकदम गगस्से में गकर
खड़े हो गये और गरीते हग ए णोले ‘‘समाी यचद निःपचतत होगा तो उसके चलए कगछ ोश्र प्रयत्न न
करते हग ए केवल उस पर इस प्रकार णेहयाई से प्रहार करनेवाले तगम तो उस समाी के सणसे हश्रन घटक
हो !’’ डॉक्टरीश्र का उस समय रुद्रावतार दे खकर उस चणिारे के तो होशहवास हश्र ीाते रहे । पर ऐसश्र
घटनाएाँ कदाचित् हश्र घटतीं तन्ा णाद में णहग त चदनों तक उनके मन में यहश्र लगता रहता चक यह नच्छा
नहीं हग ग।

डॉक्टरीश्र ने नपने कमरे में एक णार दो पांखे लाकर रखे। उनमें एक पर ीश्र छत्रपचत चशवाीश्र महाराी
का चित्र न्ा तन्ा दूसरे पर णालगन्िवभ का स्त्रश्रवेश में चित्र न्ा। उनके पास छत्रपचत चशवाीश्र महाराी
के चित्रवाला पांखा रहना तो स्वाोाचवक न्ा परन्तग दूसरा चित्र डॉक्टरीश्र ने कैसे पसन्द चकया, यह शांका
उन पांखों को दे खनेवाले हरे क के मन में उुतश्र न्श्र। एक णार उनकश्र णैुक में मन कश्र यह शांका प्रकट
हो गयश्र। इस पर डॉक्टरीश्र ने कहा ‘‘प्रवास करते समय ये दोनों पांखे दे खकर पसन्द होने के कारण मैं
ले गया। चकसश्र ने गलतश्र से या िोखे से मेरे गले नहीं मढे हैं । मगझको तन्ा यहााँ गनेवाले को ये पांखे
यह कल्पना सही हश्र दे सकते हैं चक तश्रन सौ पूवभ का समाी चकतना पराक्रमश्र एवां स्वाचोमानश्र न्ा और
गी वह चकसश्र प्रकार स्वत्वहश्रन एवां स्त्रैण णन गया है ।’’ उनकश्र छोटश्र-से-छोटश्र णात में ोश्र यह राष्ट्रश्रय
दृचष्ट रहतश्र न्श्र।

डॉक्टरीश्र को लोगों के प्यार के नाम रखने कश्र गदत न्श्र। क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन में उनके ननगयायश्र
ुाकगर नरहचरकसह राीपूत कोश्र-कोश्र उनके घर गते न्े। उनका शरश्रर ोश्र खूण मोटा-ताीा न्ा और
गहार ोश्र राक्षसश्र। वे ीण डॉक्टरीश्र के यहााँ गते उनके चलए ोोीन में रोचटयों का नच्छा-खासा ेर
लगाना पड़ता। डॉक्टरीश्र उन्हें ‘नगड़णम्ण’ कहकर पगकारते न्े। और वहश्र ोश्र कोश्र-कोश्र मीाक में
नपना नाम णताते समय ुाकगर नरहचरकसह नगड़णम्ण हश्र णताते। एक णार उन्होंने चीला-नचिकाचरयों
को यहश्र नाम णता चदया। ‘नगड़णम्ण’ का ोाव ने समझ सकने के कारण उसका नन्भ पूछा गया तो
ुाकगरीश्र ने हाँ सते हग ए कहा ‘‘ ‘नगड़णम्ण’ यह डॉ. हे डगेवार द्वारा दश्र हग ई टाइचटल है ।’’ नागपगर में
डॉक्टरीश्र कहीं ीाते तो नचिकाांश समय पर ीश्र कृष्ट्णराव मोहरश्रर उनके सान् रहते। डॉक्टरीश्र तो
कृष्ट्णवणभ न्े हश्र पर उनके पश्रछे छाया कश्र ोााँचत रहनेवाले ीश्र कृष्ट्णराव ोश्र नपने नाम को सान्भक करते

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हग ए छाया के समान हश्र काले न्े। उन दोनों कश्र ओर दे खने के णाद सांघ के नचतचरि और कोई चविार
हश्र मन में नहीं ग सकता न्ा। इसचलए ीश्र कृष्ट्णराव के मामा ीश्र गप्पाीश्र चतीारे ीण ोश्र डॉक्टरीश्र
के पास गते तो डॉक्टरीश्र यहश्र कहते ‘‘यह लो, सांघ के मामा ग गये।’’ इसश्र प्रकार चकसश्र को
‘वैशाखनन्दन’, चकसश्र को ‘नीमेरश्र लोटा’ गचद नाम दे कर वे हाँ सश्र करते रहते। कोश्र-कोश्र इन नामों
के पश्रछे ीो चकम्वदन्तश्र रहतश्र उसे ोश्र वे णताते न्े। एक चदन उम्र कश्र तगलना में तचनक मोटे -ताीे
स्वयांसेवक को ‘वैशाख नन्दन’ कहकर पगकारने के णाद उसका नन्भ णताते हग ए णोले ‘‘गिा वर्ा ऋतग
में िरते हग ए ीण पश्रछे दे खता है तो उसे लगता है चक मैंने कगछ ोश्र नहीं खाया, िारों ओर घास-हश्र-घास
खड़श्र है । इस पर सोिकर चणिारा दगणभल होता ीाता है । पर वैशाख के महश्रने में ीण गमी के कारण
कहीं घास का नाम ोश्र नहीं चदखता वह यहश्र सोिकर मोटा हो ीाता चक मैंने सण घास खा लश्र। नन्ात्
ीण उसे घास खूण खाने को चमलतश्र है तण वह दगणलाता है और ीण कगछ ोश्र चमलता नहीं तण मोटाता
है । इसचलए उनका नाम ‘वैशाखनन्दन’ है ।’’

समाी का सांघटन करनेवाले को नपने व्यवहार कश्र छोटश्र-छोटश्र णातों के सम्णन्ि में नत्यचिक दक्षता
रखने का उनका गग्रह रहता न्ा तन्ा उन्होंने स्वयां इस दृचष्ट से उदाहरण उपन्स्न्त चकया न्ा। कृचत
और उचि दोनों में मेल णैुाकर हश्र उन्होंने नपना हर कदम तौलकर रखा। उनके मगख से चनकला हग ग
शब्द कोश्र खालश्र नहीं गया तन्ा कृचत में ोश्र कोश्र सांयम नहीं टूटा। णाीार में शाकोाीश्र णेिनेवाला
मालश्र दो-िार चमिी या चोन्ण्डयााँ नचिक तोलने कश्र उदारता चदखा सकता है परन्तग हश्ररे-मोतश्र
णेिनेवाला ीौहरश्र नपनश्र तराीू का कााँटा इिर-उिर झगकाकर िला तो उसका राम हश्र माचलक है ।
डॉक्टरीश्र कश्र शब्दरिना एवां व्यवहार सराफ के समान दक्षता एवां सूक्ष्मता से हश्र होता न्ा। उनके द्वारा
प्रत्येक शब्द चणल्कगल गढा हग ग एवां मौीूाँ रहता न्ा। सांघ का कायभक्रम चनचित समय पर हश्र हो, यह
मानदण्ड उन्होंने णनाया और उसका पालन ोश्र चकया। पचत्रकाओां में सदै व ‘‘ुश्रक इतने णीे कायभक्रम
होगा’’ चलखने कश्र पद्धचत उन्होंने प्रिचलत कश्र। नागपगर में सांघ के प्रारम्ो के चदनों में नपने एक सहयोगश्र
को उन्होंने उत्सव कश्र चनमांत्रण पचत्रका का प्रा प तैयार करने को कहा। उसने उस काल कश्र पद्धचत
के ननगसार ‘‘हमारे राष्ट्रश्रय स्वयांसेवक सांघ का उत्सव’’ यह वाक्यरिना रखश्र। डॉक्टरीश्र ने ‘हमारे ’
शब्द के स्न्ान पर ‘नपने’ रखने का सगझाव चदया। डॉक्टरीश्र कश्र तो यहश्र गकाांक्षा न्श्र चक सांघ समाी
से नलग न रहे , समाी से एक हो ीाये। यह गकाांक्षा उन्होंने ‘नपना सांघ’ इस शब्दावलश्र से व्यि
कश्र। वे सदै व कहते न्े चक स्वयांसेवकों को चणल्कगल नाप-तौलकर णोलना िाचहए। उनके मगाँह से कोश्र
फालतू शब्द नहीं चनकलने िाचहए। एक णार एक विा ने उन राीपूत कन्याओां के चलए, चीन्होंने िमभ
एवां शश्रल के चलए नपने प्राणों को ीौहर कश्र ििकतश्र ज्वालाओां में होम चदया न्ा, ‘राीपूत रमणश्र’
शब्द का प्रयोग चकया। डॉक्टरीश्र को यह शब्द खटका तन्ा ोार्ण के उपरान्त ीण उनके पास
कायभकता गये तो उन्होंने कहा ‘‘शश्रल कश्र रक्षा के चलए हाँ सते-हाँ सते नपने प्राणों कश्र गहग चत दे नेवालश्र

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राीपूत कन्याओां का उल्लेख ‘राीपूत रमणश्र’ के प मे करना चणल्कगल नयगि है । उनके उज्जवल
िचरत्र के गौरव के ननग प उन्हें ‘राीपूत दे वश्र’ कहना हश्र ुश्रक रहे गा।’’ डॉक्टरीश्र के इस प्रकार
तौलकर िलने के कारण हश्र उनको कोश्र यह कहने का मौका नहीं गया चक ‘‘मैंने यह नहीं कहा न्ा’’
नन्वा ‘‘मेरे कहने का गशय यह नहीं न्ा।’’ नचविारपूवभक णोले गये शब्दों का स्पष्टश्रकरण करने
कश्र उन्हें कोश्र गवश्यकता नहीं पड़श्र।

डॉक्टरीश्र का ोार्ण नत्यन्त सश्रिश्र-सरल ोार्ा में तन्ा सगगम होता न्ग। चकन्तग उसके पश्रछे हृदय
कश्र लगन और ोावोत्कटता रहतश्र न्श्र। नतः उसमें ीनमन कश्र पकड़ करने का सामर्थयभ रहता न्ा।
यगवावस्न्ा में उनके विृत्व में स्तम्ो फोड़कर प्रकट होनेवाले नरकसह का घनगीभन न्ा, पर गगे िल
उनका वाक्प्रवाह मैदान में णहनेवालश्र गांगा के प्रवाह के समान गम्ोश्रर तन्ा शान्त हो गया न्ा। उसमें
ोावनाओां का उद्रेक रहता न्ा चकन्तग चववेक और यन्ान्भ कश्र ोूचमका नहीं छूटतश्र न्श्र। ीो स्वयां से हो
सकेगा वहश्र उनके मगख से प्रकट होता न्ा तन्ा एक-एक शब्द उनकश्र ननगोूचत का गशश्रवाद लेकर हश्र
चनकलता न्ा। डॉक्टरीश्र के व्यस्त ीश्रवन में णहग त-कगछ वािन करने कश्र सगचविा नहीं चमलश्र न्श्र नतः
णड़े-णड़े ग्रन्न्कारों के उद्धरण, सन्दोभ गचद का प्रयोग वे सहसा नहीं करते न्े। उन्होंने वािन चकया
न्ा ीनमन का। उनका नध्ययन न्ा दे शकाल कश्र पचरन्स्न्चत का। इस वािन और नध्ययन के चलए
उन्होंने नपना सम्पूणभ ीश्रवन लगा चदया न्ा तन्ा साहसश्र गोतेखोर कश्र ोााँचत सतह पर उुनेवालश्र
पचरन्स्न्चत कश्र उत्तगांग लहरों के ताण्डव कश्र चिन्ता न करते हग ए इचतहास के नन्तर में प्रवेश कर दे शोद्धार
के चलए लगनेवाले निूक चसद्धान्तों के मौचलक रत्न वे खोी लाये न्े। तगकाराम के नोांगों कश्र
ोावोत्कटता तन्ा गत्मचवश्वास डॉक्टरीश्र के शब्दों से प्रकट होता न्ा। सहीता उनके विृत्व का
प्राण न्श्र। चहन्दू समाी कश्र वतभमान दै न्यावस्न्ा का वणभन करते हग ए उनका गला ोर गता न्ा तन्ा
चहन्दू राष्ट्र कश्र पगनः स्न्ापना करनेवाले छत्रपचत ीश्र चशवाीश्र महाराी के यश का गगणगान करते हग ए
उनका हृदय नचोमान से फूल ीाता। प्रत्यक्ष चक्रयाशश्रलता को िालना दे नेवाला तन्ा चनराशा को दूर
करनेवाला डॉक्टरीश्र का विृत्व उनके ीश्रवन का प्रचतचणम्ण हश्र न्ा। कृचत एवां उचि ीश्रवन के चसोंे
के दो पक्ष होते हैं । डॉक्टरीश्र के ीश्रवन में कृचत और उचि दोनों पक्ष प्रणल एवां प्रोावश्र न्े।

डॉक्टरीश्र ने नपने खालश्र समय में ीो कगछ वािन चकया उसमें से समन्भ रामदास के ‘दासणोि’ तन्ा
लोकमान्य चतलक के ‘गश्रतारहस्य’ का उनके चविारों पर ोारश्र प्रोाव चदखायश्र दे ता न्ा। समािारपत्र
वे ध्यानपूवभक पढते न्े। सांघ के प्रारम्ो के चदनों में वे सोने के पहले एक कॉपश्र में दै चनकश्र ोश्र चलखा
करते न्े। इन लेखों में उनके द्वारा पढे हग ए नन्वा उन्हें सूझे हग ए दोनों प्रकार के उत्तम चविारों का
समावेश है । समन्भ रामदास के ‘दासणोि’ के ोश्र कगछ िगने हग ए पद इस पगन्स्तका में चमलते हैं । उनमें
प्रमगखतया उन्हीं विनों का नन्तोाव है ीो सांघटन के चलए गवश्यक हैं । उनकश्र सांघटन-कगशलता से
यह लगता हैं चक उन्होंने इन उचियों पर काफश्र मनन चकया होगा। ‘‘णोलण्यासारखें िालणें। स्वयें

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क चन णोलणें।’’ ‘‘चक्रयेवश्रण शब्दज्ञान। तेंचि श्वानािें वमन।’’ ‘‘ुायीं ुायीं शोि ध्यावा। मग ग्रामीं
प्रवेश करावा।’’ ‘‘कष्टेंचवण फळ नाहीं। कष्टेंचवण राज्य नाहीं। केल्याचवण होत नाहीं। साध्य ीनीं।’’
‘‘स्वयें गपण कष्टावें। णहग ताांिे सोशश्रि ीावें।’’ (‘‘ीैसा कहे करे ोश्र वैसा, प्रन्म करे तण णोले’’ ;
‘‘करनश्र चणन कन्नश्र करे , श्वान वमन सम ीान’’, ‘‘ीााँि लश्रचीए प्रन्म तण, कचरए ग्राम प्रवेश’’ ;
‘‘कष्ट चणना फल नहीं, कष्ट चणन राज्य नहीं है । चकये चणना कगछ साध्य हग ग ीग में न कहीं है ।’’)- इस
प्रकार कश्र ननेक सूचियााँ वहााँ उपलब्ि हैं । इन विनों को चलखने के पूवभ चदनाांक 4 मािभ 1929 के पृष्ठ
पर डॉक्टरीश्र ने समन्भ के चवर्य में ीो दो वाक्य चलखे हैं वे उन पर पूरश्र तरह घटते हैं । वे चलखते हैं
‘‘ीश्र समन्भ को स्वयां के चलए कगछ ोश्र नहीं िाचहए न्ा। नपनश्र कृचत का नहां कार स्वयां को न चिपक
ीाये इसका ध्यान रखकर उन्होंने सम्पूणभ ीश्रवन स्विमभ-णान्िवों कश्र न्स्न्चत के चिन्तन में एवां
गत्मोन्नचत का मागभ खोीने में हश्र लगा चदया।’’

यद्यचप डॉक्टरीश्र का पगस्तक-वािन न्ोड़ा हश्र न्ा, चकन्तग चीस उद्देश्य कश्र पूर्तत के चलए स्वाध्याय करना
पड़ता है वह इतने मात्र से हश्र चसद्ध हो गया न्ा चक रामदास के कन्न ‘‘उगश्रि कचरतश्र णडणड। पचर
क चन दाखचवणें हें नवघड।’’ का सार डॉक्टरीश्र ने पहिान चलया न्ा और इसचलए पढश्र हग ई णात को
कृचत में पचरणत करने कश्र गकाांक्षा लेकर हश्र वे ीश्रवन-ोर िले। केवल पचुत-पान्ण्डत्य का कोरा
सन्तोर् उन्हें रुचिकर नहीं न्ा। ‘यः चक्रयावान् स पन्ण्डतः’ इस कोचट में वे नग्रगण्य न्े।

सगचनचितता एवां सांयम उनके पत्रलेखन कश्र चवशेर्ताएाँ न्ीं। क्रान्न्तकारश्र ीश्रवन में पग-पग पर ीो
साविानश्र णरतनश्र पड़श्र न्श्र उसके कारण साविानश्र और सतकभता डॉक्टरीश्र के स्वोाव का स्न्ायश्र
ोाव णन गयश्र न्ीं। दे शव्यापश्र सांघटन खड़ा करने के चलए ीो कगछ कहना-सगनना हो वह प्रत्यक्ष चमलकर
हश्र ुश्रक रहता है यह ीानकर हश्र वे व्यवहार करते न्े। स्वयांसेवक को पत्र कैसे चलखना िाचहए यह
णताते हग ए वे कहते हैं चक ‘‘नपने पत्र का स्व प ऐसा होना िाचहए चक यचद चकसश्र ने गलतश्र से ोश्र
िौराहे पर चिपका चदया तो ोश्र उसके कारण हमारे मन में कोई ोय या सांकोि उत्पन्न न हो। ’’ उनके
पत्र इसश्र प्रकार के होते न्े। इसश्र कारण एक णार एक सज्जन ने ीण उन्हें िमकश्र दश्र चक ‘‘मैं नपने णश्रि
के पत्रव्यवहार को प्रकाचशत करता हू ाँ ’’ तो उन्होंने तगरन्त स्वश्रकृचत दे ते हग ए सूचित चकया चक ‘‘मगझे
इसमें तचनक ोश्र गपचत्त नहीं है , मात्र उसके कारण गपकश्र हश्र फीश्रहत होगश्र। नतः चफर से एक णार
नच्छश्र तरह सोिकर चनणभय करें तो ुश्रक रहे गा।’’ ीहााँ िार णतभन हों खटकते हश्र हैं । सांघटन में कोश्र-
कोश्र इस प्रकार के कटग प्रसांग उपन्स्न्त हो ीाते हैं नतः कोश्र-कोश्र डॉक्टरीश्र के पास सन्तापीनक
पत्र ोश्र गते न्े। एक णार इस प्रकार का पत्र चमलते हश्र ोावना के प्रन्म गवेश में उसश्र प्रकार का एक
ीोरदार उत्तर चलखा चकन्तग डॉक्टरीश्र कश्र रश्रचत न्श्र चक महत्त्वपूणभ पत्रों को दो-िार नपने साचन्यों को
चदखाये चणना कोश्र डाक में नहीं डालते न्े और कोश्र तो इस प्रकार के पत्रों पर दो-तश्रन चदन तक चविार

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करने के णाद उनकश्र पोंश्र प्रचत तैयार होतश्र न्श्र। उि नवसर पर उन्होंने स्वयां हश्र इस पत्र को एक ओर
रख चदया तन्ा तश्रन-िार चदन णाद ोावावेश शान्त हो ीाने के णाद उनकश्र लेखनश्र से चणल्कगल नया पत्र
हश्र नांचकत हग ग। कोश्र-कोश्र तो एक शब्द के चलए पत्रलेखन रुक ीाता न्ा तन्ा योग्य शब्द सूझने पर
हश्र गगे णढता न्ा। डॉक्टरीश्र को पत्र में काटपश्रट पसन्द नहीं न्श्र। पत्र के चकसश्र नांश को चलखकर
यचद काट चदया तो उससे मन में सांशय चनमाण होता है तन्ा चविारों कश्र नचनचितता प्रकट होतश्र है ।
नतः सांघटन के चविार से कटे -फटे पत्र कोश्र नहीं ोेी।े यचद कोश्र कगछ काटने का नवसर गया तो
वे उस कागी को नलग रखकर दूसरश्र प्रचत तैयार करते न्े। गनेवाले प्रत्येक पत्र का उत्तर समय से
ीाये इसका वे णहग त ध्यान रखते न्े। पत्र कश्र घड़श्र करते और उस पर पता चलखने में ोश्र उनकश्र सगरुचि
और सगघड़ता का पचरिय चमलता न्ा। स्वतः के चवर्य में डॉक्टरीश्र णहग त हश्र हान् खींिकर काम करते
न्े। चकन्तग नपनश्र इस चमतव्यचयता का प्रदशभन वे हर स्न्ान पर नहीं करते न्े। वे यह उचित समझते न्े
चक दूसरे के हान् में पड़नेवाला कागी नच्छा, मोटा और णचढया होना िाचहए। पत्रव्यवहार के चलए वे
ऐसा हश्र कागी उपयोग में लाते न्े। उनके पत्र के ऊपर तगकाराम का यह विन चलखा रहता न्ा चक
‘‘दया चतिें नााँव। ोूताांिे पाळण। गचणक चनदाळण कांटकाांि।े ’’ (‘‘ोूतों का पालन तन्ा दगष्टों का
सांहार। दाय उसश्र का नाम है यहश्र नश्रचत चनिार।’’)। सांघकायभ के चनरन्तर चवस्तार के सान्-सान् उन्होंने
सहस्त्रों व्यचियों को पत्र चलखे तन्ा उनके द्वारा सांघ कश्र कायभपद्धचत को चवशद करते हग ए स्वयांसेवकों
के मन में प्रत्येक पचरन्स्न्चत में नक्षय ध्येयचनष्ठा ीाग्रत् करने का सफल प्रयत्न चकया। यचद चकसश्र ने
उनके पत्रों का सांकलन चकया तो सांघटनशास्त्र पर एक नत्यन्त उपयोगश्र एवां मौचलक ग्रन्न् तैयार हो
सकता है ।

ीण कोई स्वयांसेवक णाहर चकसश्र ऐसे नगर को ीाता ीहााँ सांघ कश्र शाखा है नन्वा ऐसे स्न्ान से
गया हग ग कोई स्वयांसेवक उनसे चमलकर लौटता तो वे उसके सान् वहााँ के नचिकाचरयों को पत्र
नवश्य दे ते। उनका चनयम न्ा चक उन पत्रों के चलफाफों को कोश्र चिपकाकर णन्द नहीं करते न्े।

डॉक्टरीश्र नागपगर में रहें नन्वा दे श के चकसश्र नन्य स्न्ान पर ीायें, वहााँ के प्रमगख नागचरकों से चमलना
उनके कायभक्रम का गवश्यक नांग रहता न्ा। वे उनसे सांघ कश्र प्रगचत, उसके मागभ में गनेवालश्र
णािाओां गचद का उल्लेख कर इस समाी सांघटन के कायभ के चलए उनका गशीवाद मााँगते न्े। ‘मैं
नच्छा और मेरा काम नच्छा’ इस ोाव से केवल सांघ के गसपास हश्र माँडराने कश्र उनकश्र मनोवृचत्त
नहीं न्श्र। कतृभत्वान् चहन्दू चकसश्र ोश्र दल नन्वा मत का हो, उसे सांघ कश्र पचरचि में गकृष्ट करने के
चलए वे उससे चमलने और उसके मन में सांघ के चलए प्रेम पैदा करने कश्र सदै व िेष्टा करते रहते न्े।
चकन्तग गियभ तो यह है चक ीो सांघ के कट्टर चवरोिश्र न्े तन्ा उसके कायभ में प्रत्यक्ष णािा पहग ाँ िाते न्े,
उनके सान् ोश्र डॉक्टरीश्र सम्णन्ि रखते न्े। ननगोव यहश्र गता न्ा चक डॉक्टरीश्र के सौीन्यपूणभ
व्यवहार, नकृचत्रम प्रेम तन्ा शश्रलसम्पन्न कमभयोगश्र ीश्रवन के पचरणामस्व प उन व्यचियों के चवरोि

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कश्र िार ोश्र कगन्ण्ुत हो ीातश्र न्श्र। इन लोगों ने सांघ के चलए प्रत्यक्ष कायभ न ोश्र चकया तो ोश्र डॉक्टरीश्र
यह ीानते न्े चक उनके मन में सांघ के प्रचत गस्न्ा का ोाव रहा तो समाी में कायभ के चलए ननगकूल
वातावरण उत्पन्न हो सकेगा। इसचलए समाी में चकसश्र ोश्र समय कायभ करने के कारण प्रचतष्ठाप्राप्त
चकन्तग नण कगछ ोश्र कायभ न करनेवाले व्यचियों को चमल गने के णाद डॉक्टरीश्र यहश्र कहते न्े चक
‘‘मैं दे व दशभन करके गया हू ाँ ।’’ मूर्तत नपने स्न्ान से नहीं चहलतश्र चकन्तग उसकश्र कृपा से उचद्दष्ट कश्र
पूर्तत हो ीातश्र है , यहश्र ोाव डॉक्टरीश्र द्वारा ‘दे वदशभन’ शब्द-प्रयोग में चनचहत न्ा। इस दे वदशभन में
नत्यन्त स्वाोाचवकता रहतश्र न्श्र और इसचलए ोि कश्र ोेंट से वे प्रसन्न होते न्े तो कोई गियभ नहीं।
एक चदन ोोर में हश्र डॉक्टरीश्र ीश्र रामोाऊ रुईकर के यहााँ िायपान के चनचमत्त गये तन्ा ‘‘सूयभवांशश्र
महाराी ीाचगए’’ के सम्णोिन से उन्हें णगलाया। डॉक्टरीश्र को गया दे खकर ीश्र रुईकरीश्र न हाँ सते
हग ए स्वागत चकया। णैुने के णाद डॉक्टरीश्र णोले ‘‘यचद टे ढा उत्तर न दें तो एक प्रश्न पूछूाँ ?’’ ीश्र
रामोाऊ के ‘‘हााँ’’ कहने पर डॉक्टरीश्र ने प्रश्न पूछा ‘‘यचद मैंने गपको यह नतगत घटना सगनायश्र चक
कल राचत्र को छत्रपचत चशवाीश्र महाराी समाचि से णाहर ग गये तन्ा उनका राज्य प्रारम्ो हो गया है
तो गपको कैसा लगेगा ?’’ ीश्र रुईकरीश्र ने तगरन्त उत्तर चदया ‘‘कैसा लगेगा यह क्यों पूछते हो ? मैं
ू ा।’’
तो गनन्द से चमुाई णााँटाँ ग

यह नपेचक्षत उत्तर चमलते हश्र डॉक्टरीश्र णोले ‘‘यचद यहश्र णात है तो हमें क्यों उलटे -सगलटे नाम िरते
रहते हो ? वास्तव में तो दोनों कश्र एक हश्र इच्छा है । पर ीो लगता है उसे छातश्र ुोककर कहने कश्र
चहम्मत हममें है गपमें नहीं, इसका यहश्र सश्रिा-सा नन्भ है ।’’

समाी में नपने से मतचोन्नता रखनेवालों के सान् ोश्र ीो इतना घचनष्ठता का व्यवहार करते न्े वे
डॉक्टरीश्र नपने चमलते-ीगलने में नवपचरचितों एवां सांघ से सहमत व्यचियों के मन को चकसश्र प्रकार
ीश्रतते न्े इसका सही ननगमान लगाया ीा सकता है ।

‘दे वदशभन’ के इस कायभक्रम के चलए डॉक्टरीश्र हान् में छड़श्र या छत्रश्र लेकर पैदल हश्र चनकल पड़ते न्े।
उस समय उनके सान् एकाि कायभकता ोश्र रहता न्ा। गगे िलकर स्वास्र्थय णहग त चगर ीाने पर यचद
ीेण में पैसा रहता तो वे तााँगा ोश्र कर लेते न्े। सन् 1937-38 के चदनों में तो उनका स्वास्र्थय इतना
चणगड़ गया चक णगखार, खााँसश्र, पसश्रना तन्ा पश्रु का ददभ , चकसश्र नचतचन् के समान कोश्र-कोश्र गने के
णीाय, घरीमाई के समान शरश्रर में स्न्ायश्र प से गसन ीमा णैुे न्े। चकन्तग उन चदनों ोश्र गमी-सदी
कश्र परवाह न करते हग ए वे णाहर णराणर घूमते रहते। नपने स्वोावानगसार उन्होंने नपनश्र णश्रमारश्र कश्र
तकलश्रफ चकतनश्र ोश्र चछपाने कश्र कोचशश कश्र तो ोश्र नण उसका चछपाना सम्ोव नहीं न्ा। णात के
कारण उनका शरश्रर णहग त स्न्ूल हो गया न्ा तन्ा पसश्रना इतना गता न्ा चक एक-एक घण्टे के णाद
ोश्रगे हग ए कपड़े णदले चणना कोई िारा नहीं न्ा ? णार-णार कपड़ों का पहनना-उतारना सणको चदखता

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न्ा नतः नागपगर के उनके कचतपय चमत्र उन्हें गमी में पैदल िलने का कष्ट णिाने के चलए कोश्र-कोश्र
नपनश्र मोटर उनके पास ोेी दे ते न्े। चकन्तग डॉक्टरीश्र को इसमें ोश्र सांकोि लगता न्ा। नतः डॉक्टरीश्र
के चलए एक मोटर खरश्रदश्र गयश्र। उनके घर के सामने कश्र खगलश्र ीगह में उसके चलए गैरेी णनाया गया।
उनकश्र यह मोटर पगराने ुाु )ओल्ड मॉडेल) तन्ा चनराले णाट कश्र न्श्र। ीण वह रास्ते से िलतश्र तो
राहगश्ररों को हटने के चलए नलग में ोोंपू णीाने कश्र गवश्यकता नहीं पड़तश्र। कारण, उसके दरवाीे,
चखड़चकयों गचद ीोड़ इतने खड़खड़ करते न्े चक दूर से हश्र पता िल ीाता न्ा चक डॉक्टरीश्र कश्र मोटर
ग रहश्र है । ऐसा कोश्र नहीं होता न्ा चक डॉक्टरीश्र घर से नकेले हश्र णाहर ीायें, नतः सािारणतः
उनकश्र मोटर खिाखि ोरश्र रहतश्र न्श्र। कोश्र-कोश्र तो रास्ते में ोश्र चकसश्र व्यचि को सान् णैुाना पड़ता
और चफर एक-दूसरे कश्र गोद में दत्तक के समान णैुे हश्र ीाना पड़ता न्ा। पर णूढश्र हचड्डयों के समान यह
पगरानश्र गाड़श्र ोश्र णराणर िलतश्र रहतश्र। सहसा ऐसा कोश्र नहीं हग ग चक वह चणगड़कर णश्रि रास्ते में हश्र
खड़श्र हो गयश्र हो। मीाक में डॉक्टरीश्र ने इस गाड़श्र का नाम ‘स्टे ट कार’ रख चदया न्ा। ीो ोश्र हो,
1938 के णाद गाड़श्र के कारण डॉक्टरीश्र कश्र तकलश्रफ कगछ कम हो गयश्र।

डॉक्टरीश्र कश्र नागपगर में एक िाक णैुश्र हग ई न्श्र। उनका णिपन से हश्र दे शोचि से ओतप्रोत तन्ा
चनरन्तर चवकचसत ीश्रवन लोगों कश्र गाँखों के सामने न्ा तन्ा उनके िचरत्र कश्र चनष्ट्कलांकता कश्र साक्षश्र
उनसे मतोेद रखनेवाले का ोश्र हृदय दे ता न्ा। डॉक्टरीश्र का इतना रोण न्ा चक यचद चकसश्र सावभीचनक
सोा में उपन्स्न्त रहे तो नागपगर कश्र सोाओां को तोड़नेवाले नच्छे -नच्छे लोग ोश्र मन-हश्र-मन
कगरकगराते हग ए िगप णैु ीाते न्े। नागपगर कश्र काांग्रेस में फूट पड़ने के कारण डॉ. मगी
ां े तन्ा णै. नभ्यांकर
के दो गगट णन गये न्े। उन चदनों डॉक्टरीश्र मगांीे-गगट के समझे ीाते न्े। चफर ोश्र यह उल्लेखनश्रय है चक
गाचलप्रदान में नग्रगण्य समझे ीानेवाले णै. नभ्यांकर के मगख से कोश्र डॉक्टरीश्र के चलए उलटे -सगलटे
शब्द नहीं चनकले। इस स्न्ान पर यह णता दे ना िाचहए चक उन चदनों के मध्यप्रान्त के ननेक सावभीचनक
कायभकताओां के ीश्रवन कश्र करश्र-पोंश्र तन्ा गगह्य घटनाएाँ डॉक्टरीश्र को ज्ञात न्ीं। चकन्तग उनके ीश्रवन
कश्र ऐसश्र एक ोश्र घटना कोई ाँढ
ू कर ोश्र नहीं चनकाल सकता न्ा चीस ओर नांगगलश्र उुायश्र ीा सके।
ुोक कायभ तन्ा उज्जवल िाचरत्र्य में से डॉक्टरीश्र कश्र प्रचतष्ठा और प्रोाव का ीन्म हग ग न्ा और इसश्र
कारण उनके चवर्य में गदर का ोाव चदखायश्र दे ता न्ा।

चकसश्र को एक पाई कश्र ोश्र छू ट न दे नेवाला पाण्डोणा णापट सरश्रखा उपाहार गृह का िालक ोश्र
डॉक्टरीश्र को सामने से ीाते दे खता तो णड़े गग्रह के सान् णगलाकर उन्हें िाय और दूि चपलाता तन्ा
नपने ोाग्य को सराहता चक डॉक्टरीश्र के िरणों से उसका स्न्ान पगनश्रत हो गया। नागपगर में रहने पर
डॉक्टरीश्र नपनश्र चवचोन्न चमत्रमण्डलश्र के णश्रि फगरसत के सान् णैुते तन्ा नपनश्र मनपसन्द सगपारश्र
खाते-खाते चदल खोलकर गप्पें लगाते रहते। वे कहीं ोश्र ीायें, सण लोगों को नपने हश्र प्रतश्रत होते न्े
और इसचलए उनकश्र सणको िाह न्श्र। नखाड़े से झूमते हग ए णाहर गनेवाले पहलवान का हान् ोश्र

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डॉक्टरीश्र को दे खकर ‘राम राम’ करने के चलए उुता न्ा तो तााँगव
े ाला ोश्र उनके सामने गने पर
न्स्मत हास्य के सान् उन्हें नचोवादन करता न्ा। सहस्रों स्वयांसेवकों के पालक तरुणों के मन पर
डॉक्टरीश्र के नप्रचतम प्रोाव को दे खकर उनके प्रचत गदरोाव व्यि चकये णना नहीं रह सकते न्े।
सांघ के स्वयांसेवकों के चवर्य में डॉक्टरीश्र का यह कहना न्ा चक वे एक दूसरे से मागभ में चमलने पर
नमस्कार करने के स्न्ान पर ककचित् मगस्कराकर हश्र परस्पर नचोवादन कर लें। सांघ में पारस्पचरक
व्यवहार में ननौपिाचरकता रहे यहश्र उनके इस कन्न के पश्रछे का ोाव न्ा। डॉक्टरीश्र नक्षरशः नसांख्य
तरुणों के हृदय-कसहासन पर चवराीमान हो गये न्े। चववाह, उपनयन, सत्यनारायण गचद के चनचमत्त
से उन्हें नागपगर के सहस्रों व्यचियों के यहााँ गना-ीाना पड़ता न्ा। नत्यचिक प्रेम एवां स्मरणपूवभक
चनमांत्रण दे नेवाले कश्र ीद्धा कश्र डॉक्टरीश्र ने कोश्र नवहे लना नहीं कश्र। वे नपने व्यस्त-से-व्यस्त
कायभक्रम में से ोश्र समय चनकालकर वहााँ ीाते तन्ा नपने पहले के स्नेह-सम्णन्िों को और ोश्र दृढ
करते। णश्रमार स्वयांसेवकों को नन्वा पचरचितों को दे खने नन्वा चकसश्र कश्र मृत्यग पर शोक-सांवेदना
प्रकट करने के चलए ीाने में वे कोश्र ोश्र नहीं िूकते न्े। कोई सत्याग्रह के चलए ीाये नन्वा चवदे श -
यात्रा को चनकले, परश्रक्षा में उत्तश्रणभ हो या नन्यत्र यश-सम्पादन करे , डॉक्टरीश्र हर नवसर पर उपन्स्न्त
रहकर नचोनन्दन और हार्तदक शगोकामनाएाँ प्रकट कर नफने प्रेम का पचरिय दे ते न्े। समाी के
सामान्य व्यवहार में नपने को हश्र सण कगछ समझकर णताव करनेवाले तन्ा केवल औपिाचरक प
से नन्यों का पचरिय कर लेनेवाले नन्वा सामने पड़ गये तो नमस्कार मात्र करनेवाले ननेक लोग
चमलते हैं । चकन्तग डॉक्टरीश्र के सम्णन्ि में ीो व्यचि गता उसके चवर्य में उनके मन कश्र गत्मश्रयता
गहरश्र और उत्कट होतश्र न्श्र। इस दृचष्ट से नकोला कश्र एक घटना नत्यन्त मननश्रय है । एक णार
डॉक्टरीश्र तन्ा ीश्र णापूराव सोहोनश्र मोटर से शहर में से ीा रहे न्े चक एक सज्जन ने णड़े गदरोाव से
डॉक्टरीश्र को नमस्कार चकया। पर डॉक्टरीश्र का ध्यान उस ओर नहीं न्ा नतः उन्होंने कोई उत्तर नहीं
चदया। िलतश्र मोटर में ीण णापूसाहण से इस चवर्य में उन्हें पता िला तो डॉक्टरीश्र को मन में णड़ा
पछतावा लगा चक नपने दगलभक्ष्य के कारण उस व्यचि के नमस्कार का उत्तर नहीं चदया ीा सका। णाद
में णापूसाहण से उस व्यचि का नाम एवां पता पूछकर डॉक्टरीश्र उसके घर चमलने गये।

लोकसांग्रह डॉक्टरीश्र का स्वोाव णन गया न्ा। इसश्र कारण ये णातें उनके द्वारा सही प से होतश्र न्ीं।
चकसश्र व्यापारश्र कश्र ोााँचत उनके व्यवहार में चदखावे का नांश नहीं न्ा। वे इतने चमलनसार न्े चक ‘How
to Win Friends and Influence People’ ीैसे व्यवहार चसखानेवाले ग्रन्न् उनके ऊपर चनछावर
चकये ीा सकते न्े। उनमें एक नतगत सहीता एवां गकर्भकता न्श्र। चीस चहन्दू समाी में शवयात्रा
छोड़कर और कोश्र िार ीनों के ोश्र मगाँह एक चदशा में नहीं होते न्े उसमें हीारों तरुणों का
चहन्दगराष्ट्रोत्न्ान के चलए दे शव्यापश्र सांघटन डॉक्टरीश्र ने पन्द्रह वर्ों में साकार करके चदखा चदया, यह
उनकश्र नसामान्यता हश्र न्श्र।

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डॉक्टरीश्र ननगशासनचप्रय न्े तन्ा उन्होंने स्वयां नपने से हश्र ननगशासन का प्रारम्ो चकया न्ा। उनका
गग्रह न्ा चक सांघटन में यचद चकसश्र णात कश्र योीना कश्र ीाये तो वह तगरन्त तन्ा ुश्रक-ुश्रक होनश्र
िाचहए। नागपगर के एक कायभक्रम के चलए चनचित समय पर पहग ाँ िने के चलए एक णार उन्हें वहााँ से णश्रस
मश्रल दूर नडेगााँव से गिश्र रात को हश्र पैदल िलना पड़ा। ननगशासन में वे इतने कुोर न्े तन्ा दूसरों
को ोश्र उन्होंने इसश्र प्रकार कश्र गदत लगायश्र। इसश्र सांस्कार के चलए वे सांघस्न्ान पर सैचनक एवां
शारश्रचरक कायभक्रमों को णराणर करने पर णहग त णल दे ते न्े।

वे प्रत्येक स्न्ान पर सगचनचितता, सगव्यवस्न्ा तन्ा सगघड़ता िाहते न्े। एक णार पूना के गणवेशिारश्र
स्वयांसेवकों का चनरश्रक्षण करने के णाद नपने ोार्ण में उन्होंने कहा न्ा चक ‘‘यह सन्तोर् का चवर्य
है चक ननेक स्वयांसेवकों ने गणवेश तैयार कर चलया है । पर नोश्र ोश्र उसमें सैचनक ुाु नहीं चदखायश्र
दे ता। गपका गणवेश ब्राह्मणश्र चदखता है ।’’ लल्लो-िप्पो या श्रलश्र ालश्र णातिश्रत ोश्र उन्हें पसन्द नहीं
न्श्र। कोई इस प्रकार णोलने लगा तो वे ‘‘हो सकता है और नहीं ोश्र सकता’’ कहकर उसका मीाक
णनाते न्े। एक णार नागपगर के चशचवर में राचत्र को दस णीे चनचित समय पर दश्रपचनवाण के उपरान्त
ीण सण सोने िले गये न्े तण सण लोग ुश्रक सोये हैं या नहीं नन्वा चकसश्र को कोई नड़िन तो नहीं
है यह दे खने के चलए डॉक्टरीश्र तन्ा चशचवर के सवाचिकारश्र लालटे न लेकर णाहर चनकले। एक तम्णू
में प्रवेश करते हश्र वहााँ के नचिकारश्र के गगे णढकर डॉक्टरीश्र को प्रणाम करते हश्र उन्होंने पूछा
‘‘गपके तम्णू में चकतने स्वयांसेवक हैं ?’’ ‘‘सत्ताईस-नट्ठाईस होंगे’’ यह सन्न्दग्ि-सा उत्तर उसने
चदया। यह सगनकर डॉक्टरीश्र ने गगस्से में गकर पूछा ‘‘ये क्या गम हैं , ीो सत्ताईस-नट्ठाईस णता रहे
हो ? ुश्रक णताओ सत्ताईस हैं या नट्ठाईस ?’’

सांघ में हश्र नहीं, णाहर ोश्र यचद कोई ननगशासन का उल्लांघन कर नपनश्र ताकत के घमण्ड में मनमानश्र
करता तो डॉक्टरीश्र गपादमस्तक गरम हो उुते तन्ा चफर ‘शुे शायक्ां’ कश्र नश्रचत के ननगसार उसके
सान् व्यवहार करते। एक णार नागपगर के टाउनहाल में डॉ. मगी
ां े कश्र नध्यक्षता में सोा हो रहश्र न्श्र।
उसश्र समय डॉक्टरीश्र कगछ स्वयांसेवकों के सान् शाखा से लौट रहे न्े। सोा में क्या िल रहा है यह
दे खने के चलए वे सही उस ओर चनकल पड़े। वहााँ पहग ाँ िने पर उन्होंने दे खा चक णै. नभ्यांकर तन्ा ीश्र
रामोाऊ रुईकर में इस णात को लेकर झगड़ा हो रहा है चक पहले कौन णोले। नध्यक्ष महोदय ने ीश्र
रुईकर को णोलने कश्र ननगमचत दश्र न्श्र चकन्तग चफर ोश्र नभ्यांकर नपने हु पर डटे हग ए न्े। समझाने -
णगझाने का कोई लाो नहीं होते दे खकर डॉक्टरीश्र ने नध्यक्ष के पास चिट्ठश्र ोेीश्र चक दोनों के णोलने
के पहले मगझे दो चमनट णोलने का मौका चदया ीाये। ननगमचत चमलते हश्र डॉक्टरीश्र व्यासपश्रु पर िढने
लगे। णै. नभ्यांकर ोश्र सान् िढ गये तन्ा दोनों एक दूसरे को नश्रिे उतारने का प्रयत्न करने लगे चकन्तग
श्रु से च ुाई और उीड्ड से सान् उीड्डता कश्र नश्रचत होने के कारण डॉक्टरीश्र को नश्रिे उतारना सरल
नहीं न्ा। दूसरश्र ओर नभ्यांकर कश्र ोश्र नकड़ कोई कम नहीं न्श्र। दोनों शरश्रर से ोश्र हट्टे -कट्टे न्े। इसचलए

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उनकश्र खींितान में व्यासपश्रु कश्र मेी डगमगाने लगश्र। झगड़े को णन्द कराने के चलए डॉक्टरीश्र ने
ीैसे हश्र णै. नभ्यांकर के कगछ साचन्यों को उनको नश्रिे घसश्रटने के चलए गगे गते दे खा वैसे हश्र णै.
नभ्यांकर कश्र कमर को कसकर पकड़ चलया। इतने में हश्र चकसश्र ने णचत्तयााँ णगझा दीं तन्ा िारों ओर
नन्िकार छा गया। सोागृह में ोगदड़ मि गयश्र और सोश्र वहााँ हश्र समाप्त हो गयश्र। मेी पर िढने के
पहले डॉक्टरीश्र ने नपनश्र ोरश्र हग ई तन्ा कड़कड़ातश्र गवाी में णै. नभ्यांकर से कहा न्ा चक ‘‘नच्छा
होगा चक चनयम के ननगसार रुईकर को णोलने दें और यचद नहीं तन्ा ‘चीसकश्र लाुश्र उसकश्र ोैंस’ का
हश्र न्याय िलनेवाला है तो पहले मैं णोलूाँगा।’’

ऐसे नवसरों पर व्यि होनेवाला डॉक्टरीश्र का क्रोि क्षचणक एवां सान्त्त्वक होता न्ा। नतः उसके
कारण कोई स्न्ायश्र गााँु पड़ने कश्र सम्ोावना चणल्कगल नहीं न्श्र। कोश्र-कोश्र उनके चनकट के लोगों ने
ोश्र उनका चवश्वासघात चकया, पर उस समय ोश्र उनके मन कश्र न्स्न्रता और महत्ता में कोई नन्तर नहीं
पड़ा। एक ऐसे चमत्र को 1934 में उन्होंने चलखा न्ा चक ‘‘.......इसकश्र नपेक्षा सामने खड़े होकर तन्ा
नपने उद्देश्य कश्र पूणभ ीानकारश्र दे कर गपने छग रा मेरे हृदय में ोोंक चदया होता तो नचिक नच्छा होता
तन्ा हमारश्र ओर से तचनक ोश्र चवरोि नहीं होता। पूवभ के ननगसार हश्र प्रेम णनाये रखें यहश्र प्रान्भना है ।’’
मन कश्र इस चवशालता का वणभन करते हग ए ीश्र गगरुीश्र कहते हैं ‘‘उनकश्र वाणश्र यगचिचष्ठर के समान
दगयोिन को ोश्र सगयोिन कहने ीैसश्र मिगर एवां उतनश्र हश्र चवश्वसनश्रय न्श्र।’’ यह मिगरता तन्ा डॉक्टरीश्र
के मन और व्यवहार का स्व प दे खकर, समन्भ रामदास ने सत्त्वगगण का ीो वणभन चकया है वह सामने
ग ीाता है -

‘‘सकळ जनासी आजणि। नाहीं विरोधाचा ठाि।

परोपकारी िेंची जीि। तो सत्त्िगुण।।

पराव्याचे दोर्षगुण। दृष्टीस दे खे आपण।

समु राऐसी सांठिण। तो सत्त्िगुण।।’’

(‘‘सब जन से आजणि रहे , न हो विरोधस्थान

परवहत अर्दपत जीि हो, उसे सत्त्िगुण जान।

वनज सम पर के दोर्ष-गुण, दे खे जो मवतमान

शान्त रहे सागर सदृश, उसे सत्त्िगुण जान।।’’)

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इसमें सन्दे ह नहीं चक डॉक्टरीश्र का मन ोश्र समगद्र के सदृश, मानापमान कश्र सोश्र न्स्न्चतयों में समान
रहा करता न्ा।

चहन्दू समाी में चकसश्र के ोश्र दोर् नन्वा नपराि दे खकर डॉक्टरीश्र को क्रोि ग ीाता न्ा पर वह
न्ोड़श्र दे र में हश्र नशान्त हो ीाता। चकन्तग पारतांत्र्य नन्वा चहन्दगओां पर नत्यािार कश्र णातें सगनते हश्र
उनका सांयम का णााँि टूट ीाता न्ा तन्ा क्रोिाचग्न ोड़क उुतश्र। वे इस णात का ध्यान नवश्य रखते
न्े चक ऐसे प्रसांग सही हश्र उपन्स्न्त न हों। नागपगर के ‘साविान’ साप्ताचहक में कसि और पांीाण में
चहन्दगओां पर होनेवाले नत्यािारों का सचवस्तार एवां रोमाांिकारश्र वणभन प्रकाचशत होने लगा न्ा। एक
णार ‘साविान’ के सम्पादक के नपने यहााँ गने पर डॉक्टरीश्र ने उससे कहा ‘‘मगझ ीैसों से तो इन
नत्यािारों का वणभन पढा ोश्र नहीं ीाता। गप चलख कैसे लेते हैं ? क्या गपका नन्तःकरण मर
िगका है ?’’ एक णार पूना के उनके चनवास के समय उनके कमरे में िमभवश्रर सम्ोाीश्र महाराी का
चित्र लगाया गया। उस चित्र में चदखाया गया न्ा चक वेदश्र पर खड़े छत्रपचत सम्ोाीश्र के ऊपर िारों ओर
से ोाले, तप्त साँडासश्र तन्ा तलवार से गक्रमण हो रहे न्े और रि से लन्पन् सम्ोाीश्र नत्यन्त
चनोभयता एवां चनिलता के सान् खड़े न्े। डॉक्टरीश्र कश्र दृचष्ट कमरे में प्रवेश करते हश्र उस चित्र पर पड़श्र
तन्ा उनका िेहरा एकदम तमतमा गया। उन्होंने एक कायभकता को णगलाया और यह कहते हग ए चक
‘‘मगझसे यह नपमान नहीं दे खा ीाता’’ उस चित्र को हटवा चदया। उस समय उनकश्र मगद्रा नत्यचिक
गम्ोश्रर हो गयश्र न्श्र तन्ा चित्र हटाने के णाद ोश्र णहग त दे र तक वे नशान्त रहे । एक णार एक स्वयांसेवक
उनके पास ‘फर’ कश्र टोपश्र पहनकर गया तो उन्होंने कहा ‘‘गी हश्र यह टोपश्र ीला दो। दूसरे को
दे कर उस पर परदे शश्र वस्तग के व्यवहार का पाप मत लादना।’’ चकसश्र ोश्र चविार-चवचनमय के समय
नत्यन्त शान्त रहनेवाले डॉक्टरीश्र यचद कोई चहन्दू समाी और िमभ का नपमान करने लगता तो
एकदम गरम हो ीाते न्े। एक णार एक सज्जन ने कहा चक ‘‘सांघ को रचीस्टडभ करा लश्रचीए तो ऐसा
लगेगा चक सांघ को गर्तन्क सहायता दे नश्र िाचहए।’’ इस पर डॉक्टरीश्र ने पूछा ‘‘इसका नन्भ यहश्र हग ग
े ों पर गपका चवश्वास है , नपनों पर नहीं। यचद हमारे ऊपर चकसश्र को चवश्वास नहीं है
चक पराये नांग्री
तो हम नपनश्र चनरपेक्ष सेवा से वह न्स्न्चत चनमाण करें गे चक पैसे तो क्या, समाी हमें सवभस्व दे गा।’’

रे लगाड़श्र में नांग्रेीों तन्ा एांसो-इन्ण्डयनों के चलए सगरचक्षत स्न्ान रखने कश्र पद्धचत उन्हें नच्छश्र नहीं लगतश्र
न्श्र और इसचलए कोश्र-कोश्र तो उनके सान् दो-दो हान् करके ोश्र वे ऐसा चडब्णों में यात्रा करते न्े। एक
णार गाड़श्र के दूसरे चडब्णों में चतल रखने कश्र ोश्र गगी
ां ाइश न होने पर वे इस प्रकार एक सगरचक्षत चडब्णे में
चखड़कश्र में से िढ गये तन्ा दरवाीा खोलकर नन्य याचत्रयों को ोश्र नन्दर णैुा चदया। इस पर उस
चडब्णे में णैुे हग ए नांग्री
े यात्रश्र चिढ गये तन्ा उन्होंने ीोर-ीोर से चिल्लाना शग कर चदया। चकन्तग
डॉक्टरीश्र कोई सहमनेवाले नहीं न्े। नतः मामला यहााँ तक णढा चक रे लवे नचिकाचरयों को णगलाय

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गया। स्टे शन-मास्टर ने गोरों का पक्ष लेते हग ए नन्दर णैुे हग ए याचत्रयों को डााँट कर कहा ‘‘नश्रिे
उतचरए।’’ उसकश्र यह घगड़कश्र सगनकर नन्दर णैुे हग ए याचत्रयों में उुने कश्र कगछ हलिल शग हो गयश्र।
यह दे खते हश्र डॉक्टरीश्र ने स्टेशन-मास्टर कश्र गवाी से ोश्र नचिक ीोरदार गवाी में गरीते हग ए
कहा ‘‘कहााँ ीाते हो ? णैु ीाओ।’’ यह चनियपूणभ वाणश्र सगनकर सण लोग एकदम नश्रिे णैु गये।
इस घनगम्ोश्रर गवाी से नांग्री
े याचत्रयों को ोश्र णोलतश्र णन्द हो गयश्र तन्ा सण लोग उसश्र चडब्णे में
यात्रा कर सके। यह स्वानगोव सगनाते हग ए कोश्र-कोश्र डॉक्टरीश्र मीाक में कहते न्े चक ‘‘इसे कहते हैं
ीनमत।’’

चवदे शश्र प्रोगत्व के चिह्न उन्हें णहग त खटकते न्े। नतएव उन्होंने ननेक नाम ोश्र णदल डाले। ‘नल्लश्रपगर’
का ‘चशणपगर’, ‘मांगळू रपश्रर’ का ‘मांगळू रनान्’ हो गया। ‘मांगळू रदस्तगश्रर’ नाम ‘मांगळू रदत्त’ नाम से
चवख्यात कर चदया गया तन्ा ‘दावलोि’ स्वयांसेवक का उपनाम णदलकर ‘गौतम’ हो गया। सांघ में
उन्होंने दे शश्र खेलों को स्न्ान चदया तन्ा सांस्कृत कश्र गज्ञाएाँ, प्रान्भना तन्ा सांज्ञाएाँ प्रिचलत कीं। यद्यचप
उन्होंने ोार्ाशगचद्ध का स्वतांत्र गन्दोलन प्रारम्ो नहीं चकया न्ा चकन्तग ऐसे स्वदे शाचोमानश्र स्वयांसेवक
चनमाण करने में उन्होंने नवश्य पहल कश्र न्श्र ीो स्वकश्रय शब्दों का उपयोग करने में हश्र िन्यता मान
कर िलेंग।े उनके रोम-रोम में स्वदे श एवां स्विमभ का नचोमान ओतप्रोत न्ा। इसश्र कारण स्वदे शश्र
‘ओपनश्र’(पॉचलश) उपलब्ि होने तक उन्होंने नपनश्र पट्टश्र का पश्रतलवाला ोाग सदै व ईांट के िूरे से
साफ करके िमकाया। टोपश्र में लगा हग ग िमड़ा उन्हें पसन्द नहीं न्ा। नतः चणना िमड़े कश्र स्वदे सश्र
ऊन कश्र टोपश्र उन्होंने प्रिचलत कश्र। उनकश्र प्रत्येक णात इस प्रकार स्वत्वपूणभ रहतश्र न्श्र तन्ा उनके
सम्णन्ि में गनेवाले प्रत्येक व्यचि पर उसकश्र छाप पड़े चणना नहीं रहतश्र।

नपने समाी का नभ्यगदय करने के चलए नसांख्य व्यचि खड़े करने होंगे इसश्र चविार से उनके सण
व्यवहार होते न्े। उसमें उनकश्र चकसश्र ोश्र व्यचिगत इच्छा नन्वा गकाांक्षा का समावेश नहीं न्ा।
‘त्याग’, ‘गत्मसमपभण’, ‘स्वान्भ का होम-हवन’ गचद शब्दों के प्रयोग में ोश्र मूल में नांहोाव चछपा
हग ग है । डॉक्टरीश्र तो चहन्दू समाी के ीश्रवन से इतने एकात्म हो गये न्े चक उनके पास से मैं -तू का
ोाव पूणभतः चणदा हो गया न्ा। नयश्र पश्रढश्र को हान् में लेकर उन्हें चहन्दू राष्ट्र के उद्धार कश्र गकाांक्षा से
प्रेचरत कर ोावश्र इचतहास चनमाण करने के कतृभत्व को डॉक्टरीश्र ने पैदा चकया। यह करते हग ए कोश्र-
कोश्र लोग पूछते न्े चक ‘‘इन छोकरों के काम से क्या होगा ?’’ पर डॉक्टरीश्र का गत्मचवश्वास नटल
न्ा। उनका मन यहश्र मानता न्ा चक इससे तन्ा केवल इससे हश्र राष्ट्र को िैतन्ययगि चकया ीा सकेगा।
सांघ में स्वयांसेवकों के उमड़ते हग ए उत्साह में उन्हें ोावश्र काल के चदव्य चित्र चदखते न्े तन्ा इस चवश्वास
के कारण हश्र वे शांकाशश्रल व्यचियों को डॉ. मगांीे कश्र ये दो पांचियााँ सगनाते न्े चक

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‘‘जहाुँ बालों का सं ग िहाुँ बाजे मृ दंग।

जहाुँ बु ड्ढों का संघ िहाुँ खचें से तंग।।’’

इस काम में ीैसे वे चनमग्न हो गये न्े वैसे हश्र दूसरे ोश्र रम ीायें यह उनकश्र स्वाोाचवक इच्छा न्श्र। वे
ननेक णार पूछते न्े चक ‘‘तगम्हारे चसर पर सांघ का ोूत सवार हग ग है या नहीं ?’’ इस प्रश्न के पश्रछे
उनका यहश्र ोाव न्ा चक ीैसे चकसश्र ोूत के िोंर में गया मनगष्ट्य नपने गपको ोूलकर, नपनश्र
रुचि-नरुचि का चविार न कर चसर पर पर सवार नतृप्त गत्मा कश्र इच्छाओां को हश्र प्रकट करता हग ग
उसके ननगसार सण व्यवहार करता है , वैसा हश्र सांघ के चवर्य में होता है क्या ?

डॉक्टरीश्र के ीश्रवन के चवचवि पक्षों का वणभन करते हग ए यह नोाव णराणर खटकता है चक शब्दों के
द्वारा उनके व्यचित्व कश्र सम्पूणभ महत्ता को प्रकट नहीं चकया ीा सकता। यहश्र कहना होगा चक ऊपर
से शान्त चकन्तग नन्तर में ीाज्वल्यमान डॉक्टरीश्र का ीश्रवन, कहने के स्न्ान पर, ननगोव कश्र हश्र वस्तग
न्श्र। उनके सहयोचगयों ने नपने प्रयत्नों कश्र गचत चकतनश्र ोश्र णढायश्र तो ोश्र काम पूरा करने का सामर्थयभ,
प्रयत्नों कश्र निूकता एवां साहस में वे डॉक्टरीश्र को िार कदम गगे हश्र पाते न्े। परन्तग डॉक्टरीश्र ने
ऐसश्र ऐकान्न्तक वृचत्त का ोश्र पचरिय कोश्र नहीं चदया चीससे लोगों को यह लगने लगे चक हम उनके
सान् िल नहीं सकते नतः रास्ते में णश्रि से हश्र पश्रछे हट ीायें या कपाल पर हान् रखकर णैु ीायें।
साहस और गचत के सान् गगे ीाने कश्र गवश्यकता ीैसे वे ननगोव करते न्े वैसे हश्र यह ोश्र ीानते
न्े चक नपने सान् दूसरों को ोश्र लेकर िलना है । वे स्वयां सदै व ीाग्रत् रहे तन्ा नपने सान् नसांख्य
दूसरों को ोश्र ीाग्रत् रखा। समाी के चकसश्र ोश्र व्यचि को उन्होंने ननगपयोगश्र नहीं माना तन्ा समाी
के दोर् और नवगगणों को नपना हश्र समझकर रात-चदन उन्हें दूर करने के चलए सिेष्ट रहे । डॉक्टरीश्र
के व्यचित्व कश्र चवशेर्ता यह न्श्र चक उनसे गयग, िन, ज्ञान, शचि तन्ा सामाचीक प्रचतष्ठा में णढे -िढे
व्यचि ोश्र उनका ननगयाचयत्व स्वश्रकार करने में गनन्द तन्ा नक्षरशः ीश्रवन कश्र सान्भकता ननगोव
करते न्े। उनके साचन्नध्य में गनेवाले प्रत्येक व्यचि को लगता न्ा चक डॉक्टरीश्र का सण पर प्रेम है
तन्ा उस पर तो सणसे नचिक है । इस नलौचकक प्रेम के कारण हश्र उनके स्मरण मात्र से हश्र नसांख्य
ीनों का हृदय उमड़ गता है तन्ा गाँखों से डॉक्टरीश्र के चदव्यत्व पर प्रेमाशुओां का नचोर्ेक करते
हग ए उनके मगख से ये गत्मचवश्वासपूणभ शब्द चनकलते हैं चकः-

कण-कण भी यवद अणु में तेज हो तुम्हारा।

चमकायें वतवमर-भरा भू मण्डल सारा।।

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---इचत |---

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