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6fda1-Society Hindi 234526 PDF
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भारतीय समाज ai
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साांप्रदाययकता
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6. यिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न____________________________________________ 9
7. यिगत िषों में सांघ लोक सेिा ाअयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 12
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भारत यियभन्न ाअस्थाओं और धमों की भूयम है। ये यियभन्न धमव एिां ाअस्था प्रायाः लोगों के मध्य हहसा
और घृणा का कारण बनते हैं। धार्ममक हहसा के समथवक, धमव को नैयतक ाअदेश के रूप में नहीं मानते
बयकक ाआसका ाईपयोग ाऄपनी राजनीयतक महत्िाकाांक्षाओं की पूर्मत हेतु एक साधन या ाईपकरण के रूप में
करते हैं। परस्पर धार्ममक घृणा पर ाअधाररत होने के कारण साांप्रदाययकता िस्तुताः हहसा का कारण
बनती है। धार्ममक घृणा के प्रसार की गयतयियधयों के ाअधार पर साांप्रदाययक सांगठन और धार्ममक सांगठन
के मध्य यिभेद ककया जा सकता है।
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साम्प्प्रदाययकता को पररभायषत कर सकते हैं।
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(Elements of Communalism)
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साांप्रदाययकता या साांप्रदाययक यिचारधारा में तीन मूल तत्ि या ाऄिस्थाएां होती हैं- जो परस्पर एक-
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1. मन्द (Mild): यह माना जाता है कक जो लोग एक ही धमव का पालन करते हैं, ाईनके धमवयनरपेक्ष
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यहत ाऄथावत् राजनीयतक, सामायजक और साांस्कृ यतक यहत समान होते हैं।
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2. मध्यम (Moderate): भारत जैसे बहु-धार्ममक समाज में, एक धमव के ाऄनुयायययों के धमवयनरपेक्ष
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(Features of Communalism)
यह धार्ममक रूकढ़िाकदता और ाऄसयहष्णुता पर ाअधाररत बहुाअयामी प्रकिया है।
यह ाऄन्य धमों के प्रयत ाऄत्ययधक घृणा का भी प्रचार करती है।
यह ाऄन्य धमों और ाईसके मूकयों को समाप्त करने के यिचार को प्रेररत करती है।
यह ाऄन्य लोगों के यिरुद्ध हहसा के ाईपयोग सयहत ाऄन्य ाऄयतिादी युयियााँ ाऄपनाती है।
ाआसका दृयिकोण यियशि होता है, एक साांप्रदाययक व्ययि ाऄपने धमव को ाऄन्य धमों से श्रेष्ठ मानता
है।
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यह भी प्रस्तुत ककया कक मध्यकाल में हहदुओं का शोषण ककया गया और ाईन्हें प्रतायड़त ककया गया।
कु छ प्रभािशाली भारतीयों ने भी ाआस प्रस्तुयतकरण का समथवन ककया। l.c
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सामायजक कारक: गोमाांस सेिन, हहदी/ाईदूव भाषा सांबांधी बाध्यता, धार्ममक समूहों द्वारा धमाांतरण
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के प्रयास ाआत्याकद ने यहन्दू और मुयस्लमों के मध्य की दूररयों को और ाऄयधक बढ़ा कदया है।
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भारतीय राष्ट्रीय ाअांदोलन के दौरान व्ययि, दल या ाअांदोलन में साांप्रदाययक यिचारधारा का यिकास
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o ाऄांग्रेजों ने ाऄपने प्रशासयनक यनणवयों और नीयतयों, जैस-े बांगाल यिभाजन, माले-हमटो सुधार
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(1909), साांप्रदाययक पांचाट (1932) ाअकद के माध्यम से साांप्रदाययक यिभाजन को गयत
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प्रदान की।
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o 1937 के पश्चात् भारत में भय, मनोयिकृ यत और तकव हीनता की राजनीयत के ाअधार पर
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ाऄत्ययधक साांप्रदाययकता देखी गाइ। ाआस चरण के दौरान यह स्िीकार कर यलया गया कक
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o भारत के शहरी यनम्न-मध्यम िगव समूहों तथा ाअिामक एिां गरमपांथी साांप्रदाययक राजनीयत
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(Consequences of Communalism):
साांप्रदाययक हत्याओं और ाऄशाांयत का चरम स्िरुप कलकिा हत्याकाण्ड (1946) के रूप में ाऄयभव्यि
हुाअ, यजसमें 5 कदन की ाऄियध में ही हजारों लोगों की मृत्यु हो गाइ। ाआस दौरान बांगाल के नोाअखली में
हहदुओं और यबहार में मुयस्लमों का सामूयहक नरसांहार, भारत के यियभन्न भागों में यिभाजन के कारण
दांगे और एक हहदू कट्टरपांथी द्वारा गाांधीजी की हत्या ाअकद प्रमुख घटनाएाँ घरटत हुईं। साांप्रदाययकता के
पररणामस्िरुप भारत यिभाजन और पाककस्तान का यनमावण हुाअ।
ाईपयनिेशिाद, भारत में साांप्रदाययकता के ाईभरने के प्रमुख कारक के रूप में माना जाता है। हालाांकक,
औपयनिेयशक शासन को खत्म करना साांप्रदाययकता से लड़ने के यलए के िल एक ाअिश्यक शतव सायबत
हुाइ, पयावप्त नहीं। क्योंकक स्ितांत्रता के बाद भी, साांप्रदाययकता बनी रही और हमारे देश के धमवयनरपेक्ष
ताने-बाने के यलए सबसे बड़ा खतरा रही है।
स्िातांत्रयोिर काल में साांप्रदाययकता की सातत्यता के कारण
ाऄथवव्यिस्था का धीमा यिकास
ाऄनुयचत साांस्कृ यतक सांश्लष े ण
ाऄनुमायनत या सापेयक्षक िांचन
यिकास में क्षेत्रीय या सामायजक ाऄसांतुलन
लोकताांयत्रक युग में राजनीयतक लामबांदी ने साम्प्प्रदाययक चेतना के एकीकरण को प्रेररत ककया है।
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यसख यिरोधी दांगे (1984): तत्कालीन प्रधानमांत्री श्रीमती ाआां कदरा गाांधी की हत्या के पश्चात् बड़े
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कश्मीरी हहदू पांयडतों का मुद्दा (1989): कश्मीर घाटी में ाआस्लायमक कट्टरतािाद और ाअतांकिाद के
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फै लने से 1989-90 के दौरान कश्मीरी पांयडतों की सामूयहक हत्या और िृहद स्तर पर पलायन
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हुाअ। ाआस क्षेत्र में साांप्रदाययक हहसा का खतरा बना रहता है।
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बाबरी मयस्जद घटना (1992): कदसांबर 1992 में हहदू कारसेिकों की यिशाल भीड़ ने ाईिरप्रदेश
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के ाऄयोध्या में 16िीं शताब्दी में यनर्ममत बाबरी मयस्जद को ध्िस्त कर कदया और यह दािा ककया
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कक यह स्थल राम जन्म भूयम (राम का जन्म स्थल) है। ाआसके कारण हहदुओं और मुयस्लमों के मध्य
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काइ महीनों तक ाऄांतर-साांप्रदाययक दांगे हुए, यजसके पररणामस्िरूप सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुाइ।
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गोधरा दांगे (2002): फरिरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के चार यडब्बों में ाअग लगा दी गाइ।
यायत्रयों में ाऄयधकाांशत: हहदू तीथवयात्री थे जो ध्िस्त बाबरी मयस्जद स्थल पर ाअयोयजत एक
धार्ममक समारोह में सयम्प्मयलत होने के पश्चात् ाऄयोध्या से लौट रहे थे। ाआस हमले के पश्चात् काइ
हहदू समूहों ने गुजरात में राज्यव्यापी बांद की घोषणा की और मुयस्लम बयस्तयों पर िू रता से हमला
करना प्रारां भ कर कदया। ऐसी घटनाएाँ गोधरा काांड के पश्चात् काइ महीनों तक जारी रहीं, यजसके
पररणामस्िरूप हजारों सांख्या में मुयस्लमों की मृत्यु हुाइ और ाईनका व्यापक स्तर पर यिस्थापन
हुाअ।
ाऄसम हहसा (2012): ाअजीयिका, भूयम और राजनीयतक शयि के यलए बढ़ती प्रयतस्पधाव के कारण
बोडो और बांगाली भाषी मुयस्लमों के मध्य लगातार सांघषव होते रहते थे। 2012 में ाऄज्ञात लोगों
द्वारा जॉयपुर में चार बोडो युिाओं की हत्या के पररणामस्िरूप, कोकराझार में एक व्यापक दांगा
भड़क गया। ाआसके पश्चात् स्थानीय मुयस्लमों पर ककए गए प्रयतशोधपूणव हमलों में दो लोगों की मृत्यु
हो गाइ और काइ लोग घायल हो गए। ाआस दांगें में लगभग 80 लोगों की मृत्यु हुाइ, यजनमें से
समुदायों के बीच सांघषव हुाअ। ाआसमें कम से कम 62 लोगों की मृत्यु हुाइ और 93 लोग घायल हुए।
ाआसके साथ ही 50,000 से ाऄयधक लोग यिस्थायपत हुए। यिगत 20 िषों में पहली बार राज्य में
सैन्य बल को तैनात ककया गया। साथ ही ाआन दांगों को "हाल के ाआयतहास में ाईिर प्रदेश में हुाइ सबसे
हाल ही में भारत में साांप्रदाययकता की ाऄयभव्ययि यियिध रूपों में हुाइ है, यजसमें शायमल हैं-
हकदया प्रकरण: ाऄयखला नाम की एक 24 िषीय यहन्दू मयहला ने ाआस्लाम धमव स्िीकार कर नया
नाम हकदया रख यलया था। हकदया ‘लि यजहाद’ यििाद के कें द्र में थी। हालाांकक ाऄयखला (हकदया)
ने कहा कक ाईसने स्िेच्छा से ाआस्लाम धमव ग्रहण ककया है तथा ाऄपनी ाआच्छा से यििाह ककया है।
परन्तु ाईसके यपता ने बांदी प्रत्यक्षीकरण यायचका दायर करते हुए यह दािा ककया कक ाईसका बलात्
धमाांतरण करिाया गया है और ाईसे ISIS का सदस्य बनाने हेतु लयक्षत ककया गया है। के रल ाईच्च
न्यायालय ने ाईसके यििाह को ाऄिैध घोयषत कर कदया और हकदया को ाईसके माता-यपता के घर
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िापस भेजे जाने का यनणवय कदया। न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कक, “िह एक कमजोर और
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सुभेद्य लड़की है यजसका सरलता से शोषण ककया जा सकता है।” यद्ययप ाईच्चतम न्यायालय ने ाईसके
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धमव का चयन करने तथा ाऄबाध सांचरण की स्ितांत्रता को सांरक्षण प्रदान ककया और ाईसे ाऄपनी
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गोमाांस सेिन एिां पररणामस्िरूप होने िाली मृत्यु: गोमाांस सेिन एिां पररिहन का मुद्दा भारत में
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एक यििादास्पद मुद्दा बन चुका है तथा यह देश के यियभन्न भागों में साांप्रदाययक हहसा भड़कने का
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कारण बना है। ाआां यडयास्पेंड कां टेंट एनायलयसस के ाऄनुसार लगभग ाअठ िषों (2010-17) में
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गौहत्या के कारण घरटत 51% हहसात्मक घटनाओं में मुयस्लम िगव को लयक्षत ककया गया था तथा
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घर िापसी कायविम: यह गैर-यहन्दुओं के यहन्दू धमव में धमाांतरण को सुगम बनाने हेतु राष्ट्रीय स्ियां
सेिक सांघ तथा यिश्व यहन्दू पररषद् जैसे भारतीय यहन्दू सांगठनों द्वारा सांचायलत धमव पररितवन
गयतयियधयों की एक श्रृांखला है। हालाांकक ाआन ाअयोजक समूहों द्वारा यह दािा ककया जाता है कक
लोग स्िेच्छा से यहन्दू धमव को स्िीकार करने हेतु ाअगे ाअए हैं, परन्तु कु छ लोगों ने ाअरोप लगाया
है कक ाईन्हें ऐसा करने के यलए बाध्य ककया गया है।
युिाओं के मध्य धार्ममक कट्टरिाद: यह भारतीय युिा िगव में यिद्यमान मुख्य चुनौयतयों में से एक है।
कश्मीरी युिाओं के मध्य कट्टरपांथी यिचारधारा के प्रसार का ख़तरा व्याप्त है। यह पहले से यिद्यमान
ाऄलगाििादी प्रिृयियों को बढ़ािा दे सकता है। ाआसके ाऄयतररि ISIS जैसे ाअतांकिादी समूहों की
कट्टरपांथी प्रिृयियों ने युिाओं को ाऄपना यशकार बनाया है यजसके पररणामस्िरूप ाऄनेक भारतीय
कट्टरपांथी युिाओं ने ऐसे समूहों की सदस्यता ग्रहण की है। गृह मांत्रालय के ाऄनुमान के ाऄनुसार 75
भारतीय ISIS में शायमल हो चुके हैं। ाआस ाअतांकिादी सांगठन की यिशेष रूप से सोशल मीयडया के
माध्यम से भारत में पहुाँच में िृयद्ध हो रही है।
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भीड़ जयनत साांप्रदाययक दांगो को यनयांयत्रत ककया जाना चायहए तथा यनिारक ाईपाय के रूप में
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ाईनके यिरुद्ध सख्त कारव िााइ की जानी चायहए।
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सांसद द्वारा साांप्रदाययक हहसा के यिरुद्ध कठोर कानूनों का यनमावण ककया जाना चायहए। कानूनों में
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व्याप्त कयमयों के कारण साांप्रदाययक हहसा को ाईकसाने में प्रत्यक्ष रूप से सां यलप्त राजनेता एिां
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CBI या ककसी यिशेष जााँच ाआकााइ द्वारा साम्प्प्रदाययक दांगो से सांबांयधत यिषयों की एक यनधावररत
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समय-सीमा के भीतर जाांच की जानी चायहए। ाआसके ाऄयतररि, पीयड़त को त्िररत न्याय प्रदान
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करने हेतु यिशेष न्यायालयों में ऐसे मामलों की सुनिााइ की जानी चायहए।
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पुयलस तथा कानून एिां व्यिस्था बनाए रखने िाले ाऄन्य यनकायों को ाईिरदायी बनाया जाना
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चायहए क्योंकक कु छ ाऄिसरों पर पुयलस द्वारा राजनेताओं के दबाि में कायव करने की प्रिृयत भी
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देखी गयी है तथा पुयलस साम्प्प्रदाययक हहसा एिां ाआसकी ाऄनुिती कायविायहयों ाऄथावत् प्राथयमकी
(FIRs) दजव करने, ाऄयभयुि को यगरफ्तार करने, ाअरोप पत्र दायखल करने ाअकद के दौरान भी
यनयष्िय बनी रहती है। ाआस प्रकार त्िररत कायविाही हेतु ाआन्हें ाईिरदायी बनाने के यलए यियधक
सुधारों को ाऄयनिायव रूप से लागू ककया जाना चायहए।
चूांकक धार्ममक पृथक्करण, साम्प्प्रदाययक पहचान को सुदढ़ृ बनाता है तथा ाऄन्य धार्ममक समूहों के प्रयत
नकारात्मक रूकढ़यों को बल प्रदान करता है, ाऄताः बहुलिादी बयस्तयों (जहााँ यियभन्न समुदायों के
सदस्य एक साथ रहते हैं) के समक्ष यिद्यमान ाऄिरोधों का यनराकरण कर ाईन्हें प्रोत्सायहत ककया
जाना चायहए, जैस-े मुयस्लम, दयलत, पूिोिर के नागररक ाआत्याकद को ाईनकी पहचान के कारण
ाअिास से िांयचत कर देने जैसी ाऄसयहष्णुता की घटनाओं के मामलों में कारव िााइ करना। भारतीय
मुयस्लम समुदाय की यस्थयत पर सच्चर सयमयत की ररपोटव में ाऄसयहष्णुता तथा बयहष्करण की
यशकायतों से यनपटने हेतु एक समान ाऄिसर ाअयोग के गठन की ाऄनुशस
ां ा की गाइ।
है। ाईकलेखनीय है कक यह िगीकरण ाआयतहास को प्रभािी रूप से िमशाः यहन्दू युग, मुयस्लम युग
तथा ाइसााइ युग में यिभायजत करता है। यह ाआस मत का समथवन करता है कक भारत एक यहन्दू देश
था, यजस पर मुसलमानों एिां ाइसााइयों द्वारा ‘ाअिमण’ ककया गया।
ाऄकपसांख्यकों हेतु रोजगार के ाऄिसरों में िृयद्ध करने से साांप्रदाययक मतभेदों में कमी ाअ सकती
है। ाआस प्रकार यियभन्न कायविमों एिां पहलों के माध्यम से ाऄकपसांख्यक िगव के सदस्यों के
कौशल यिकास पर ध्यान के यन्द्रत ककया जाना चायहए।
धार्ममक प्रमुख धमव, यिश्वास ाअकद के यियिधतापूणव यिचारों के प्रसार में महत्िपूणव भूयमका
यनभा सकते हैं, यजससे यियभन्न समुदायों के मध्य शाांयत स्थायपत करने में सहायता प्राप्त हो
सकती है।
सरकार को बहुसांख्यक समूह को तुि करने हेतु ाऄकपसांख्यक प्रथाओं पर प्रयतबन्ध नहीं लगाना
चायहए। ाईदाहरण के यलए राज्य को शाकाहार हेतु िरीयता प्रदर्मशत नहीं करनी चायहए।
समान नागररक सांयहता का यनमावण एिां कायावन्ियन सभी धार्ममक समुदायों की सिवसम्प्मयत से
ककया जाना चायहए यजससे पसवनल लॉ (personal laws) में एकरूपता स्थायपत हो सके ।
धार्ममक सामांजस्य तथा शाांयत को बढ़ािा देने हेतु मीयडया, कफकमों और ाऄन्य प्रभािशाली
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कारकों का ाईपयोग ककया जाना चायहए।
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गए प्रश्न
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कीयजए।
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दृयिकोणाः
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बीच काफी प्रयतयष्ठत माना जाता था। ाआसके ाऄलािा, 1857 के बाद यिरटशों के मुयस्लम l.c
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तथाकयथत पहला साम्प्प्रदाययक यििाद मोपला यिद्रोह भी साम्प्प्रदाययक यििाद की जगह भू-
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स्िायमयों के यिरूद्ध सिवहारा द्वारा कृ त एक हड़ताल थी। ऐसा ाआसयलए हुाअ था क्योंकक भू-
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शायमल है) के स्थान पर : (1) ाऄथवव्यिस्था के धीमे यिकास, (2) हहदू और मुयस्लम ाऄयभजात
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िगव के बीच प्रयतस्पधाव (3) सामांती जमींदारों की तुलना में कमजोर व्यापाररक मध्यिगव, (4)
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बाांटो और राज करो की यिरटश नीयत ने स्ितांत्रता पूिव काल में साम्प्प्रदाययकता के यिकास को
प्रोत्सायहत ककया।
स्ितांत्रता के बाद भी मुसलमानों के यलए िस्तुयस्थयत ज्यादा नहीं बदली, जोकक सच्चर सयमयत
की ररपोटव के यनष्कषों से ाऄच्छी तरह सायबत होती है। ाआस ररपोटव के ाऄनुसार:
o मुसलमानों के मध्य साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है और यह ाऄांतर शहरी
क्षेत्रों और मयहलाओं में ज्यादा है।
o ककसी ाऄन्य सामायजक-धार्ममक समुदाय की तुलना में मुसलमानों के यलए कायवरत
जनसांख्या ाऄनुपात कम है और यह ग्रामीण ाआलाकों में भी और भी कम है।
o ाआसके ाऄलािा, शहरी सांघषव और हहसा के कारण व्यिधान और क्षयत के ाऄयधक जोयखम
के कारण मुयस्लम श्रयमक स्ि-रोजगार- छोटे व्यापारों, ाईद्यमों ाअकद में कें कद्रत हैं।
o मुयस्लमों की बैंक ाऊण तक पहुाँच शोचनीय है। ाऄन्य सामायजक-धार्ममक समूहों की तुलना
में ाऊण का औसत ाअकार सांकुयचत और ाऄत्यकप है।
2. ाअांतररक सुरक्षा के महत्िपूणव खतरे के रूप में साम्प्प्रदाययकता के लगातार बने रहने की जड़ें,
पहचानिादी राजनीयत, यिकास के ाऄभाि और ाआस तरह के खतरों को सांभालने में राज्य की
क्षमता में प्रणालीगत कमी ाआत्याकद के घातक यमश्रण में यनयहत हैं। रट्पणी कीयजए।
दृयिकोण :
ाईिर की शुरुाअत साम्प्प्रदाययकता के द्वारा ाईत्पन्न होने िाली समस्याओं के सांयक्षप्त पररचय के
साथ की जा सकती है। यिद्यार्मथयों को स्पि करना चायहए कक ककस प्रकार सम्प्प्रदायिाद की
जड मुख्यताः तीन बुरााआयों- पहचान पर ाअधाररत राजनीयत, यिकास का ाऄभाि और प्रणाली
सांबांधी कमी-में यनयहत है। ाईन यिद्यार्मथयों को ाऄांक कदए जाने चायहए जो ाआस बात की पहचान
कर पाने में सफल होते हैं कक ाआन तीन बुरााआयों में, पहचानिादी राजनीयत सम्प्प्रदायिाद की
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जड़ में है। ाआसके यबना, ाऄन्य दो कारक सम्प्प्रदायिाद को बढ़ािा नहीं दे सकते। नक्सल-पांथ l.c
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और ऐसे ाऄन्य दूसरों मुद्दों की तरफ भटकने के यलए कोाइ ाऄांक नहीं कदए जाने चायहए।
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ाईिर :
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बृहत रूप में देखें तो सम्प्प्रदायिाद का ाऄथव है बृहिर समाज या सम्प्पूणव राष्ट्र के स्थान पर ाऄपने
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साांप्रदाययक समूह, चाहे िह धार्ममक, भाषा सम्प्बन्धी या नस्ल-गत क्यों न हो, के प्रयत ाऄांध
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ाअस्था रखना। ाऄपने ाऄयतिादी रूप में, एक साांप्रदाययक व्ययि को दूसरे समुदायों के द्वारा
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ाऄपने समुदाय के यहतों में बाधा पहुाँचती कदखााइ देती है। ाआसी कारण, िह शत्रुित समझे जाने
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िाले समूहों के प्रयत घृणा की भािना ाऄयभव्यि करता है, जो ाऄांतताः दूसरे समुदायों पर हहसक
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सांप्रदायिाद हमारे देश के समक्ष एक ाअतांररक सुरक्षा सांबांधी खतरा है। यह सामायजक सौहाद्रव
को खत्म करता है, सामायजक तनाि, ाअपसी ाऄयिश्वास ाईत्पन्न करता है, ाऄन्य सामायजक
समूहों को हमसे दूर ले जाता है तथा भारतीय यहतों के यिरुद्ध खड़ी ताकतों के द्वारा और
ाऄयधक हहसा तथा ाऄसांतोष को बढ़ािा देने के ाईद्देश्य से ाईपजााउ जमीन तैयार करता है।
सम्प्प्रदायिाद के यनम्नयलयखत मूल कारण हैं -
प्रणालीगत समस्याएां
यििाद के समाधान हेतु बनाए गए तांत्र ाऄप्रभािी हैं।
एकयत्रत की गयी खुकफया जानकाररयााँ सटीक, सही समय पर तथा कारिााइ योग्य नहीं
होतीं,
खराब कार्ममक नीयतयााँ, जैसे ाऄयधकाररयों का त्रुरटपूणव चयन और ाईनकी ाऄकप कायावियध
के कारण स्थानीय पररयस्थयतयों पर ाईनकी पकड़ ाऄपयावप्त होती है।
प्रशासन व्यिस्था और पुयलस ाईन सांकेतों का पूिावनम
ु ान कर पाने तथा ाईन्हें पढ़ पाने में
नाकाम रहती हैं यजनके कारण पूिव में हहसा भड़की थी।
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ाआसयलए प्रणालीगत त्रुरटयों और यिकास की कमी पर ध्यान देते समय हमें राजनीयतक
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ाऄांतप्रविाहों पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। ाआस पररप्रेक्ष्य में, राष्ट्रीय एकता पररषद
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गए प्रश्न
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1. स्ितांत्र भारत में धार्ममकता ककस प्रकार साम्प्प्रदाययकता में रूपाांतररत हो गयी, ाआसका एक
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ाईदहारण प्रस्तुत करते हुए धार्ममकता एिां साम्प्प्रदाययकता के मध्य यिभेदन कीयजये।
भारतीय समाज ai
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7.3. कृ वष पर वैश्वीकरण का प्रभाव ________________________________________________________________ 13
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10. ववगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16
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11. ववगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न ________________________________________ 25
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वैश्वीकरण - “ भौगोवलक पुनर्थवन्यास की एक प्रक्रिया वजसके पररणामस्वरूप सामावजक पररवेश को
ऄब प्रादेवशक स्थलों, प्रादेवशक दूररयों और प्रादेवशक सीमाओं के संदभा में पररसीवमत नहीं क्रकया जा
सकता।"
1. पररचय (Introduction)
वैश्वीकरण, वववभन्न ऄथाव्यवस्थाओं एवं समाजों के मध्य पारस्पररक वनभारता, ऄंतरसंबद्धता और
एकीकरण में ऐसे स्तर तक वृवद्ध करने की प्रक्रिया है क्रक ववश्व के क्रकसी एक वहस्से में घरटत कोइ घटना
ववश्व के ऄन्य वहस्सों के व्यवियों को प्रभाववत करने लगे।
वैश्वीकरण का प्रभाव ऄत्यवधक व्यापक होता है। यह प्रत्येक व्यवि को वभन्न-वभन्न प्रकार से प्रभाववत
करता है। जहााँ कु छ व्यवियों के वलए यह नए ऄवसर प्रदान करने में सहायक हो सकता है वहीं कु छ
ऄन्य के वलए यह अजीववका की हावन का कारण बन सकता है। यथा, बाज़ार में चीन और कोररया के
रे शम के धागों के प्रवेश के कारण वबहार की रे शम कातने वाली एवं धागा बनाने वाली ऄनेक मवहलाओं
का धंधा चौपट हो गया। बुनकरों एवं ईपभोिाओं द्वारा आन धागों के कम मूल्य व ऄवधक चमक के
कारण आन्हें वरीयता दी गयी। आसी प्रकार भारतीय समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने के बड़े जहाजों के
प्रवेश के कारण भी व्यापक ववस्थापन देखने को वमला। आन जहाजों की ईपवस्थवत के कारण भारत में
मछली पकड़ने वाले परम्परागत छोटे जहाजों के वलए ईपलब्ध मछवलयों की मात्रा सीवमत हो गयी।
आससे मछवलयााँ छांटने, सुखाने, बेचने और जाल बुनने वाली मवहलाओं की अजीववका नकारात्मक रूप
से प्रभाववत हुइ है। आसी प्रकार सूडान से सस्ते गोंद के अयात के कारण 'जुवलफे रा' (बावल वृक्ष) से गोंद
एकवत्रत करने वाली गुजरात की मवहलाओं को ऄपना रोजगार खोना पड़ा। साथ ही ववकवसत देशों से
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रद्दी कागज़ के अयात के कारण भारत के लगभग सभी शहरों में कू ड़ा बीनने वालों को ऄपना रोजगार l.c
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खोना पड़ा है।
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आस प्रकार यह स्पष्ट है क्रक वैश्वीकरण का सामावजक महत्व ऄत्यवधक व्यापक है, परन्तु समाज के
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वववभन्न वगों पर आसका प्रभाव बहुत ही वभन्न-वभन्न होता है। आसवलए, वैश्वीकरण के प्रभावों से संबवं धत
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दृवष्टकोणों में स्पष्ट ववभाजन ववद्यमान हैं। कु छ ववद्वानों का मानना है क्रक एक बेहतर ववश्व के वनमााण
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हेतु यह एक अवश्यक प्रक्रिया है; जबक्रक कु छ ऄन्य ववद्वान वैश्वीकरण के वववभन्न वगों पर पड़ने वाले
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वभन्न-वभन्न प्रभावों को भयावह मानते हैं। वे तका देते हैं क्रक आससे ववशेषावधकार प्राप्त वगा के कु छ व्यवि
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लाभ प्राप्त कर सकते हैं जबक्रक पहले से ही ऄपवर्थजत एक बड़े वगा की वस्थवत और ऄवधक दयनीय हो
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सकती है। आसके ऄवतररि कु छ ववद्वान यह तका भी देते हैं क्रक वैश्वीकरण कोइ नइ ऄवधारणा नहीं है।
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है।
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संस्कृ वत का सजातीयकरण (Homogenization of Culture)
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पाररवाररक संरचना: वैश्वीकरण से संयुि पररवार प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत हुए हैं तथा एकल
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पररवारों में वृवद्ध हुइ है। यह वतामान समय में वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट रूप से पररलवक्षत
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होता है। पाररवाररक स्वरूपों में ववववधता के स्थान पर ऄब एकल पररवार की प्रवृवि में वृवद्ध का
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भोजन: पूरे देश में मैकडॉनल््स, KFC जैसे रे स्टोरें ट खुलने के कारण भोजन के सजातीयकरण के
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साथ-साथ आसका ववववधीकरण भी हुअ है। पुराने रे स्टोरें ट ऄब मैकडॉनल््स द्वारा प्रवतस्थावपत कर
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क्रदए गए हैं। फास्ट फू ड और चीनी व्यंजनों ने जूस की दुकानों और पराठों का स्थान ले वलया है।
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पहले की तुलना में ऄब धन ईधार लेना ऄवधक स्वीकाया हो गया है। वविीय संस्थानों तक पहुंच
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वैवश्वक बाजार में वचकनकारी और बंधनी जैसे स्थानीय हस्तवशल्प ईत्पादों की बढ़ती मांग।
वैवश्वक पयाटन में वृवद्ध के कारण स्थानीय लोग ऄपनी ववववधता को संरवक्षत करने और ऄपनी l.c
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आन सभी के पररणामस्वरूप भारतीय संस्कृ वत में व्यापक पररवतान हुए हैं। हालांक्रक आनमें से ऄवधकांश
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पररवतान क्रफलहाल शहरी क्षेत्रों तक ही सीवमत हैं, क्रकन्तु ऄब ग्रामीण क्षेत्रों में भी आनमें तेजी से वृवद्ध हो
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रही है। हम देख सकते हैं क्रक पविमी संस्कृ वत द्वारा भारतीय संस्कृ वत को प्रभाववत क्रकया जा रहा है,
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क्रकन्तु वह आसे प्रवतस्थावपत नहीं कर रही है। वस्तुतः दोनों संस्कृ वतयों के वमश्रण की प्रवृवि देखी जा
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सकती है।
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यह ध्यान क्रदया जाना चावहए क्रक संस्कृ वत को एक ऐसी ऄपररवतानीय स्थायी व्यवस्था के रूप में नहीं
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देखा जा सकता है जो सामावजक पररवतान का सामना करते हुए नष्ट हो जाये या ऄपररवर्थतत रहे।
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वतामान में भी ऄवधक सम्भावना यही है क्रक वैश्वीकरण न के वल नइ स्थानीय ऄवपतु वैवश्वक परं पराओं
के वनमााण को भी प्रोत्सावहत करे गा।
(Positives of globalization)
वैश्वीकरण के कारण व्यापक संचार लाआनें खुली हैं तथा वववभन्न कं पवनयों के साथ-साथ वववभन्न
ववश्वव्यापी संगठनों का भी भारत में प्रवेश हुअ है। ये सभी कायाबल का एक बड़ा वहस्सा बन रहीं
मवहलाओं के वलए और ऄवधक ऄवसर प्रदान कर रहे हैं।
मवहलाओं के वलए बढ़ती नइ नौकररयां ईनको ईच्च वेतन के ऄवसर ईपलब्ध कराती हैं। ऄच्छा
वेतन ईनके अत्मववश्वास में वृवद्ध करने के साथ ही ईन्हें स्वतंत्रता प्रदान करता है।
नगरीकरण की दर में वृवद्ध हुइ है। शहरी क्षेत्रों में मवहलाएं ऄवधक स्वतंत्र और अत्मवनभार हो गइ
हैं।
वनचले मध्यम वगा के पाररवाररक संबंधों के तरीके में बदलाव अया है। परं परागत रूप से मवहला
घर पर घरे लू अवश्यकताओं और बच्चों की देखभाल करती रही है। ऄब ऄवधकांश मवहलाएं
अजीववका के वलए ऄपने घरों से बाहर वनकल रही हैं। ईदाहरण के वलए: भारत में स्व-वनयोवजत
मवहला संघ (SEWA) कठोर पररश्रम एवं काया के ऄवसरों को स्वीकार करने की आच्छु क
मवहलाओं का एक संघ है।
वैश्वीकरण के कारण भारत में नारीवादी अंदोलन का ववस्तार हुअ है। आसने मवहलाओं को ईनके
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ववचारों के संबंध में ऄवधक मुखर बना क्रदया है।
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वैश्वीकरण के कारण मवहला वशक्षा में वृवद्ध हुइ है। साथ ही स्वास््य देखभाल सुववधाओं में सुधार
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हुअ है, वजससे मातृ मृत्यु दर और वशशु मृत्यु दर में कमी अइ है।
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ववश्व भर के वववभन्न गैर-लाभकारी संगठन भारत में भी स्थावपत हुए हैं। आन संगठनों द्वारा
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मवहलाओं को ईनकी ईन्नवत के वलए अवश्यक साक्षरता और व्यावसावयक दक्षता जैसे कौशल
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आससे मवहलाओं की स्वतंत्रता में (ववशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) वृवद्ध हुइ है। यह स्वतंत्रता ऄंतर
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जातीय वववाह, ससगल मदर, वलव आन ररलेशनवशप के दृष्टांतों के माध्यम से ऄवभव्यि हुइ है।
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वैश्वीकरण ने ग्रामीण क्षेत्र में मवहलाओं को मीवडया तथा कइ ऄन्य हस्तक्षेप कायािमों, जैस-े ग़ैर-
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लाभकारी संगठनों द्वारा मवहलाओं के अत्मववश्वास में वृवद्ध और ईन्हें ईनके ऄवधकारों के वलए
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संघषा करने हेतु प्रेररत करने अक्रद, के माध्यम से प्रभाववत क्रकया है।
मवहलाओं के दृवष्टकोण में पररवतान- शहरी क्षेत्रों में पविमी वस्त्रों की ऄवधक स्वीकृ वत, डेटटग का
सामान्य प्रवृवि के रूप में प्रचलन, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गभावनरोधक का बढ़ता ईपयोग अक्रद
आसके ईदाहरण हैं।
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अर्थथक वैश्वीकरण नगरीय वनधानता में वृवद्ध का कारण बना है ,क्योंक्रक लोग ऄवसरों की तलाश में
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ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में प्रवास करते हैं। नगरीय प्रवावसयों का एक बड़ा भाग युवाओं का है। युवा
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शहरों में ऄवसरों की खोज करने के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के परं परागत पाररवाररक मानदंडों और
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क्रकन्तु युवा नगरीय के न्द्रों में बेरोजगारी के ईच्च स्तर का सामना करते हैं। युवा प्रवावसयों का शहरों की
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ओर अकषाण एवं प्रवतकषाण तनावग्रस्त स्थानीय ऄथाव्यवस्था की वस्थवत द्वारा वनधााररत होता है।
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महत्वपूणा ऄवसंरचना की ऄनुपवस्थवत में ऄनेक युवा ऄल्प संसाधनों के कु प्रबंधन एवं भ्रष्टाचार तथा
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कभी-कभी प्राकृ वतक अपदाओं (जो ऄत्यावधक अबाद क्षेत्रों को वनजान बना देती हैं) से पीवड़त है।
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धार्थमक, नागररक तथा नृजातीय संघषा भी शहरों में ववद्यमान अर्थथक समृवद्ध (जो संघषों में प्राय:
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भारत को प्रभाववत करने वाले गवतशील, वैवश्वक और अर्थथक बलों के ऄवतररि वैश्वीकरण ने भारत की
समृद्ध संस्कृ वत में पररवतान क्रकया है। युवा स्वयं को वैवश्वक क्रकशोरों के रूप में देखते हैं। ईन्होंने वजस
समुदाय में जन्म वलया था ईसके स्थान पर वे ऄवधक बड़े समुदाय से संबंध रखते हैं। युवा पीढ़ी पविमी
लोकवप्रय संस्कृ वत को स्वीकार कर रही है तथा आसे ऄपनी भारतीय पहचान में समाववष्ट कर रही है।
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वैश्वीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन ऄच्छे और बुरे दोनों एक वमश्रण है। अर्थथक वैश्वीकरण ने वशक्षा और
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नौकररयों के ऄवसरों में सुधार क्रकया है तथा ऄत्यवधक रोजगार ऄवसरों को प्रदान क्रकया हैं। लेक्रकन
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आसने वनधान को और ऄवधक वनधान बना क्रदया है। ककतु महत्वपूणा त्य यह है क्रक वैश्वीकरण की ईपेक्षा
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नही की जा सकती है। युवा वगा अधुवनक, प्रगवतशील तथा आसके एक भाग बनने के ऄवसर का लाभ
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परं परागत रूप से, भारतीय समाज की मूल आकाइ व्यवि नहीं बवल्क संयुि पररवार रहा है। स्वतंत्रता
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प्रावप्त के पिात् से, भारतीय सामावजक जीवन का प्रत्येक पहलू व्यापक पररवतान के दौर से गुज़रा है
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और यह वसलवसला वनरं तर जारी है। वैश्वीकरण के कारण पाररवाररक संस्था का महत्व तीव्र गवत से
कम होता जा रहा है एवं व्यविवाद तीव्रता से बढ़ रहा है।
पररवार की संरचना (Structure of the family)
नए रोजगार और शैवक्षक ऄवसरों की तलाश में युवा पीढ़ी की बढ़ती गवतशीलता ने पाररवाररक
संबंधों को कमजोर बना क्रदया है। पाररवाररक बंधन और संबंध भौवतक दूरी के कारण वशवथल हो
गये हैं, क्योंक्रक पहले की भांवत पररवार के सदस्यों के वलए साथ रहना ऄव्यावहाररक हो गया है।
पररवार के नए स्वरूप ईभर रहे हैं: ईदाहरण के वलए एकल ऄवभभावक पररवार, वलव आन
ररलेशनवशप, मवहला मुवखया वाले पररवार, ड्यूल-कररयर पररवार (ऐसा पररवार वजसमें पवत
और पत्नी दोनों कामकाजी हैं) आत्याक्रद।
पररवार के प्रकाया (Functions of the family)
भौवतक दूरी के कारण पाररवाररक बंधन और संबंध कमजोर हो रहे है ,क्योंक्रक यह पररवार के
सदस्यों के वलए पहले की तुलना में एक साथ अने को ऄव्यावहाररक बनाता है। आसने बच्चों, बीमार
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वहतों के बवलदान में ववश्वास नहीं करते हैं।
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o यद्यवप प्रौद्योवगकी की पहुाँच के कारण दूरस्थ ररश्तेदारों के साथ संपकों में सुधार हुअ है।
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परं परागत जावत व्यवस्था शुद्धता और ऄशुद्धता के वसद्धांतों पर अधाररत है। आसमें वनम्नवलवखत
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ववशेषताएं थीं:
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पदसोपान ।
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संपकों//संबंधों का पृथक्करण।
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वैश्वीकरण के कारण, परं परागत जावत व्यवस्था में वनम्नवलवखत तरीकों से पररवतान अए हैं:
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वैश्वीकरण के कारण, अर्थथक ऄवसरों, वशक्षा और ईदार ववचारों का ववस्तार हुअ है, वजसके
पररणामस्वरूप जावत व्यवस्था कमजोर हुइ है।
ऄंतर-जातीय वववाह ऄत्यवधक प्रचवलत हो रहे हैं और धीरे -धीरे आसे स्वीकृ त क्रकया जा रहा हैं।
औद्योवगकीकरण के कारण श्रम का पारं पररक ववभाजन ववखंवडत हो रहा है; आसे वैश्वीकरण द्वारा
बढ़ावा क्रदया गया।
अधुवनक संचार सुववधाओं के बढ़ते ईपयोग, वववभन्न जावतयों के लोगों के मध्य बढ़ते समन्वय के
कारण जावतवाद की भावना में कमी अइ है।
वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप शहरीकरण में वृवद्ध हो रही है, वजसने जीवन के धमावनरपेक्ष स्वरूप
को सुववधाजनक बनाया है और आसी कारण जावत व्यवस्था के "संपकों के पृथक्करण" के पक्ष को
प्रभाववत क्रकया है।
हालांक्रक, आन पररवतानों के बावजूद, जावत व्यवस्था ने ऄत्यवधक प्रवतरोध प्रदर्थशत क्रकया है और
यह ऄभी भी भारतीय समाज की एक महत्वपूणा ववशेषता के रूप में ववद्यमान है।
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सावाजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में वववनवेश के वनणाय के पररणामस्वरूप दक्षता और योग्यता में
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वृवद्ध हुइ है।
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भारत में पयाटन में वृवद्ध एवं पयाटन स्थलों के ववकास के पररणामस्वरूप ववदेशी भंडार में वृवद्ध हुइ
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है।
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नगरीकरण और औद्योगीकरण में वृवद्ध हुइ है, वजसके पररणामस्वरूप नगरीय कें द्रों के ऄवनयोवजत
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ववकास को बढ़ावा वमला है, साथ ही मवलन बवस्तयों के ववकास में भी वृवद्ध हुइ है।
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अइटी, दूरसंचार और ववमानन जैसे क्षेत्रों का ऄत्यवधक ववस्तार हुअ है। दूरसंचार क्षेत्र में एक
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ईल्लेखनीय िांवत घरटत हुइ है। सुधार से पूवा के काल में, यह पूणत
ा ः कें द्र सरकार के वनयंत्रण में था
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और प्रवतस्पधाा की कमी के कारण ‘कॉल चाजेज़’ भी बहुत ऄवधक थे। आसके ऄलावा, ववि की कमी
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के कारण, सरकार कभी भी टेलीफोन की मांग को पूरा नहीं कर सकती थी। वस्तुतः, एक टेलीफोन
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कनेक्शन की मांग करने वाले व्यवि को टेलीफोन कनेक्शन प्राप्त करने से पहले वषों तक प्रतीक्षा
करनी पड़ती थी।
वैश्वीकरण का सबसे बड़ा योगदान भारतीयों की रूवच के ऄनुरूप वववभन्न ववशेषताओं वाले
ईत्पादों का ववकास और ईनकी गुणविा सुवनवित करना रहा है। वतामान में, क्रकसी वस्तु के चयन
हेतु ववस्तृत ववकल्प ईपलब्ध हैं वजसके फलस्वरूप ऄवधक प्रवतस्पधाा के कारण ईत्पादों की गुणविा
बेहतर हो गइ है।
राष्ट्रों और ईनके बाजारों की अर्थथक क्षमता के अधार पर शेयर बाजार और ऄंतरराष्ट्रीय ऊण के
माध्यम से वैवश्वक पूज
ं ी संसाधनों तक पहुंच।
वैश्वीकरण के कारण स्वास््य प्रौद्योवगकी (औषवधयों, वैक्सीन और वचक्रकत्सा ईपकरणों एवं
तकनीकी जानकाररयों) तक पहुंच में वृवद्ध हुइ है। वजसके फलस्वरूप स्वास््य देखभाल प्रणाली में
सुधार हुअ है। हालााँक्रक वैश्वीकरण ने आबोला जैसी संिामक बीमाररयों के प्रसार का बड़ा खतरा
भी ईत्पन्न क्रकया है।
वैश्वीकरण ने भारत में वशक्षा क्षेत्रक को भी प्रभाववत क्रकया है। वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप
ववज्ञान अधाररत वैवश्वक ज्ञान के बेहतर अर्थथक प्रवतफल के कारण ईच्च वशक्षा की मांग में भी वृवद्ध
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वैश्वीकरण ने कइ प्रवतवित कं पवनयों (एम्बेसडर कार ऄथवा क्रफएट कार अक्रद का वनमााण करने
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वाले ईद्यम) को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत क्रकया है, ये कं पवनयााँ स्थावपत वैवश्वक कं पवनयों से
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सीमा शुल्क में ऄत्यवधक एवं तीव्र कटौती ने भारतीय ईद्योगों के दायरे में वस्थत घरे लू बाजार के
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एक बड़े भाग को छीनकर ईसे स्थावपत वैवश्वक अयातकों को हस्तांतररत कर क्रदया है।
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वैवश्वक प्रवतस्पधाा के समक्ष ऄपने ऄवस्तत्व के वलए संघषा करने हेतु भारतीय ईद्योगों ने वैवश्वक
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प्रौद्योवगक्रकयों और स्वचावलत मशीनरी को ऄपनाकर स्वयं को श्रम गहन व्यवस्था से पूज ं ी गहन
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व्यवस्था की ओर ववस्थावपत क्रकया है। आसके पररणामस्वरूप भारत में बेरोजगारी दर में ईच्च वृवद्ध
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हुइ है। वतामान में, यह भारत सरकार के वलए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुइ है।
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वस्तुओं एवं सेवाओं के ईपभोिावाद में अियाजनक रूप से वृवद्ध हुइ है।
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वस्तुतः वैश्वीकरण को सवोतम रूप से एक दोधारी तलवार के रूप में पररभावषत क्रकया जा सकता है।
आसके प्रभावस्वरूप भारतीय ईपभोिा सभी ईच्च गुणविा युि वैवश्वक ब्ांड प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं।
आसके ऄवतररि आसने भारत सरकार को ववश्व बैंक से ऊण प्राप्त करने में सक्षम बनाकर आसकी ववदेशी
मुद्रा संबंधी समस्या से भी वनपटने (हालांक्रक ऄस्थायी रूप से) में सहायता की है। हालांक्रक अलोचकों ने
भारतीय ऄथाव्यवस्था पर सरकारी वनयंत्रण में अइ ऄत्यवधक कमी तथा घरे लू ईद्योग को हुए नुकसान
को वैश्वीकरण की ऄसफलताओं के रूप में ईवल्लवखत क्रकया है।
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ईत्पादकता में तीव्र सुधार के संकेत प्राप्त हुए।
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श्रवमकों की ऄंतरााष्ट्रीय गवतशीलता: ऄंतरााष्ट्रीय सीमाओं से परे सम्पूणा ववश्व में श्रवमकों का प्रवास,
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o स्वतंत्रता प्रावप्त के पिात् से, भारत से प्रवास की दो प्रकार की प्रवृवि रही है। जहााँ तकनीकी
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है वहीं ऄकु शल एवं ऄद्धा कु शल श्रवमकों का मध्य-पूवा के तेल वनयाातक देशों की ओर प्रवाह
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o हालांक्रक, 1990 के दशक के दौरान, मध्य पूवा में ऄकु शल और ऄद्धा कु शल श्रवमकों के स्थान
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अवश्यकता के साथ श्रम मांग प्रवतरूप में एक स्पष्ट बदलाव देखा गया है।
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o आसके ऄवतररि भारत से अइ.टी. एवं सॉफ्टवेयर सेवाओं के वनयाात में भारी वृवद्ध हुइ है।
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o आन सभी ने भारतीय श्रम हेतु रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध की है, ववशेषत: तब जब देश में
ऄंग्रेजी भाषी लोगों का एक बड़ा समूह ववद्यमान है।
o आस प्रक्रिया में, भारतीय डायस्पोरा (जोक्रक ववश्व में सबसे बड़ा है) के वनरं तर ववप्रेषण ने देश
के भुगतान संतुलन में वस्थरता प्रदान की है।
मवहला श्रम: ईदारीकरण के पिात कायाबल में मवहलाओं के ऄनुपात में ईल्लेखनीय वृवद्ध हुइ है।
बाल श्रम: ऄवांछनीय होने के बावजूद सामावजक-अर्थथक वववशता के कारण बाल श्रम मुख्यतः
ग्रामीण एवं कृ वष गवतवववधयों में ऄभी भी ववद्यमान है। परन्तु कायाबल में 5 से 14 वषा की अयु के
बच्चों की भागीदारी में वगरावट अइ है। आस सन्दभा में प्रवतस्थापन प्रभाव (substitution effect)
को देखा जा सकता है, जो वयस्क मवहलाओं की वनयोजनीयता (employability) के पक्ष में
दृवष्टगोचर होता है।
औद्योवगक संबध
ं : दबाव और टकराव के स्थान पर परामशा, सहयोग तथा सवासम्मवत का प्रयोग
बढ़ रहा है। यह श्रम क्रदवसों की हावन में अयी कमी के रूप में सामने अया है।
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परन्तु वैश्वीकरण ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में कायारत वैतवनक श्रवमकों एवं स्व-वनयोवजत
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पेशेवरों के वलए भी िमशः नइ नौकररयों एवं नए बाजारों के रूप में नए ऄवसरों का सृजन कर
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सकता है।
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ग्लोबल कमोवडटी चेन के माध्यम से अईटसोर्ससग या सब-कं रैसक्टग करने वाले कइ प्रमुख ईद्योगों
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की ईत्पादन तथा ववतरण प्रणाली का पूणत ा : पुनगाठन क्रकया गया है। आसका पररणाम यह है क्रक
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ऄवधकावधक श्रवमकों को बहुत कम वेतन का भुगतान क्रकया जा रहा है तथा ईनमें से ऄवधकांश को
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हालांक्रक, समाज के सबसे कमजोर वगों को आन ऄवसरों की प्रावप्त के वलए सक्षम बनाने हेतु गैर -
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सरकारी, ऄनुसंधान संबंधी, सरकारी, वनजी क्षेत्र और ऄंतरााष्ट्रीय ववकास संगठनों में संलग्न संवेदनशील
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प्रवतवनवधयों तथा ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में कायारत लोगों के मूलभूत संगठनों के मध्य सहयोगात्मक
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कृ वष क्षेत्र के ईदारीकरण तथा मुि और वनष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु भारत ने ववश्व व्यापार
संगठन (WTO) के एक सदस्य राष्ट्र के रूप में 1 जनवरी 1995 को ईरुग्वे दौर के समझौते पर हस्ताक्षर
क्रकया। WTO के तत्वाधान में हस्ताक्षररत ‘एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर’, कृ वष व्यापार में ऄनुवचत प्रथाओं
को रोकने और कृ वष क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को अरम्भ करने के वलए प्रथम बहुपक्षीय समझौता था।
भारतीय कृ वष की औसत वार्थषक वृवद्ध दर मंद रही है। ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण से पूवा 1980-1990
के दशक में यह वृवद्ध दर 3.1% थी। क्रकन्तु ईस समय से जनसंख्या की वार्थषक वृवद्ध दर के सापेक्ष कृ वष
की वार्थषक वृवद्ध दर में लगातार वगरावट अइ है। वृवद्ध दर में आस वगरावट के वलए कइ कारक
ईिरदायी थे जैसे - साख की कमी, ऄपयााप्त ससचाइ व्यवस्था और ऊणग्रस्तता, ऄप्रचवलत प्रौद्योवगकी
का वनरं तर ईपयोग, अगतों का ऄनुवचत ईपयोग और सावाजवनक वनवेश में वगरावट अक्रद।
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बीज की कीमतों में वृवद्ध हुइ है। बीज के पेटेंट ऄवधकारों से संबंवधत वववभन्न वववाद भी ववद्यमान l.c
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हैं। ऄत्यवधक ऊण ग्रस्तता के कारण कनााटक, पंजाब और हररयाणा के क्रकसानों द्वारा बड़े पैमाने
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पर की गइ अत्महत्या, अगतों की बढ़ती लागत और लाभ पर वनम्न मार्थजन को प्रदर्थशत करती है।
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कृ वष वस्तुओं के व्यापार में वृवद्ध के कारण आनकी कीमतों में ईतार-चढ़ाव हुअ है।
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8. वै श्वीकरण और पयाा व रण
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वैश्वीकरण के प्रणेताओं ने ऄपने द्वारा सृवजत व्यवस्था के समक्ष ईत्पन्न सामावजक, जैववक और भौवतक
ऄवरोधों की ऄवहेलना की है। वैश्वीकरण के अलोचकों ने आस बात पर बल क्रदया है क्रक वैवश्वक मुि
व्यापार ईन सामावजक और अर्थथक पररवस्थवतयों को बढ़ावा देता है जो संभवतः ईसके स्वयं के
ऄवस्तत्व को कमजोर कर सकती हैं। जैववक और भौवतक सीमाकारी कारकों के बारे में भी यही कहा जा
सकता है - ववशेषकर, ऄल्पाववध में क्रकफ़ायती उजाा की घटती अपूर्थत के बारे में।
पयाावरण पर वैश्वीकरण के प्रभावों के ऄंतगात कृ वष में अनुवांवशक ववववधता की कमी (फसल की
क्रकस्मों और पशु नस्लों की हावन), जंगली प्रजावतयों का नष्ट होना, ववदेशज प्रजावतयों (exotic
species) का प्रसार, वायु, जल और मृदा प्रदूषण, त्वररत जलवायु पररवतान, संसाधनों का क्षय तथा
सामावजक एवं अध्यावत्मक व्यवधान शावमल हैं। परन्तु पयाावरण पर यह प्रभाव के वल ईपयुाि कारकों
तक ही सीवमत नहीं है।
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वैश्वीकरण से पाररवस्थवतक तंत्र एवं समाज की सुभेद्यता में वृवद्ध होती है तथा पाररवस्थवतक तंत्र
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की प्रत्यास्थता में कमी अती है। वजसके फलस्वरूप ऄत्यवधक वनधान समुदायों की अजीववका खतरे
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पयाावरण भी वैश्वीकरण की गवत, क्रदशा और गुणविा को प्रभाववत करता है। जैसे: पयाावरणीय
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संसाधन, अर्थथक वैश्वीकरण को बढ़ावा देते हैं। आसी प्रकार, वैवश्वक पयाावरणीय चुनौवतयों के प्रवत
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सामावजक एवं नीवतगत ऄनुक्रियाएं ईन पररवस्थवतयों को सीवमत और प्रभाववत करती हैं वजनके
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10. ववगत वषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)
1. वैश्वीकरण ने क्रकस प्रकार भारतीय संस्कृ वत को प्रभाववत क्रकया है? क्या आसे हमारे स्वदेशी
वशल्प एवं ज्ञान प्रणाली के समक्ष चुनौती ईत्पन्न कर दी है?
दृवष्टकोणः
पहले भाग में संस्कृ वत क्या है, आसे संवक्षप्त में समझाआए। एक छोटी सी पररभाषा जैसे- “जीने
का तरीका” पयााप्त हो सकती है। आसके बाद यह समझायें क्रक यह वैश्वीकरण के कारण
प्रांरवभक तौर पर, तीन तरीकों से प्रभाववत हुइ है- संस्कृ वत का कु छ वहस्से पूणातयः नष्ट हो
गये, कु छ नये तत्व जैसे नये त्यौहार अक्रद आसके भाग बन गये तथा कु छ ववद्यमान (मौजूद)
तत्व संमृद्ध हो गये।
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दूसरा भाग बौवद्धक सम्पदा की चोरी, जैव चोरी (बायो पायरे सी) तथा स्थानीय कलाओं के l.c
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शोषण (बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों द्वारा सस्ते में खरीदकर मंहगा बेचना) के बारे में होगा।
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ऄंत में आस समस्या का सामना करने के वलए कु छ ईपाय जैसे पांरपररक ज्ञान की वडवजटल
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ईिर:
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वैश्वीकरण के संदभा में हुए सुधारों के सांस्कृ वतक अयामों पर वववभन्न मत हैं। वैश्वीकरण के
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युग में भारतीय संदभा में हुए सांस्कृ वतक पररवतानों के तीन ववरोधी ववचारों को वचवन्हत क्रकया
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गया है।
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समांगीकरण: आसका ऄथा वैवश्वक स्तर पर परस्पर वनभारता और परस्पर सम्बद्धता को बढ़ाने
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के संदभा में है वजससे बढ़ते सांस्कृ वतक मापदंडो और समरूपता में वृवद्ध होगी, ईदाहरण के
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वलए वैवश्वक मूल्यों (बाजार प्रवतस्पधाा, मानवावधकार, कमोवडक्रफके शन) की एकरूपता में
वृवद्ध; कोकोलाआजेशन (कोका कोला का ऄत्यवधक प्रचलन), वॉलमार्टटज़ेशन (वालमाटा का
ऄत्यवधक ववस्तार), कॉरपोरे ट संस्कृ वत, फास्ट फू ड चेन, इ-मनी आत्याक्रद की ऄवधारणा का
प्रसार होना।
सांस्कृ वतक संघषा: बाजार-कें क्रद्रत वैश्वीकरण स्थानीय और क्षेत्रीय संस्कृ वतयों में ऄपनी जड़ें
मजबूत कर रहा है, वजसे वववभन्न लोगों द्वारा खतरें के रूप में देखा जाता है। पररणामस्वरूप,
वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव से बचाव के वलए पहचानों की दृढ़ता में वृवद्ध हुइ है, ईदाहरण के
वलए: बड़ों के द्वारा पविमी संस्कृ वत से प्रभाववत वलव-आन संबंधों या स्नेह के सावाजवनक
प्रदशान के ववरुद्ध दृढ़ता जैसी प्रवतक्रियायें।
ग्लोकलाआजेशन: यह ऄंतर-स्थावनक संस्कृ वत के वमश्रण पर बल देता है, सांस्कृ वतक
ववषमांगता और संकरण को ऄवभव्यि करता है जैसे: मैकडोनलाइजेशन (मैकडॉनल््स द्वारा
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सरकार का यह किाव्य है क्रक वह ऐसी नीवत बनाए, जो ऄपने नागररकों के वलए वैश्वीकरण के l.c
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2. तीव्र वैश्वीकरण ने भारतीय युवा पीढ़ी को रूपांतररत कर क्रदया है। रटप्पणी कीवजए।
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दृवष्टकोणः
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ईिर, वैश्वीकरण का युवाओं के उपर प्रभाव पर के वन्द्रत होना चावहए न क्रक वैश्वीकरण के
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वववरण देते समय सभी पहलुओं को शावमल क्रकया जाना चावहए, जैसे क्रक सांस्कृ वतक,
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(नोट : आस मुद्दे के प्रमुख वबन्दुओं पर चचाा करने के वलए ईिर को ववस्तृत रूप में वलखा गया
है)
भारत की कु ल अबादी में युवाओं की बहुलता है। आसवलए वैश्वीकरण के प्रवत भारत की
प्रवतक्रिया का महत्वपूणा कारण युवाओं की बढ़ती जनसंख्या है। भारतीय युवा वैश्वीकरण
के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही धारणाओं के वलए एक उजाा स्रोत के रूप में
काया करता है। वे वैश्वीकरण को आस प्रकार गले लगा रहे हैं, वजसकी वपछली पीढ़ी ने
कल्पना भी नहीं की थी।
वविीय वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप शहरी गरीबी बढ़ रही है। शहरों में स्थानांतररत
लोगों में युवाओं की ऄवधकता है। युवा, पररवार की परम्परागत धारणाओं तथा ग्रामीण
क्षेत्रों से शहरां की ओर स्थानांतररत हो रहे हैं, वजसके पररणामस्वरुप शहरी गरीबी बढ़
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गवतशील वैवश्वक अर्थथक ताकतों के प्रभाव के साथ-साथ वैश्वीकरण ने भारत की धनी
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सांस्कृ वतक परम्परा में भी बदलाव ला क्रदया है। युवा ऄपने अपको वैवश्वक युवाओं के रूप
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में देखता है एवं ऄपने अपको ऄपने जन्म समुदाय से ऄवधक वैवश्वक समुदाय का भाग
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मानता है। प्रचवलत पािात्य संस्कृ वत को ऄपनाते हुए भारतीय समाज में भी ईसका
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तैयार हो रहा है, जो क्रक भारतीय युवाओं में स्पष्ट रूप से दृश्यमान हो रहा है।
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ईपभोिावाद ने सांस्कृ वतक ववश्वास और ररवाजों में बदलाव ला क्रदया है। पारम्पररक
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भारतीय वस्त्र और पररधान युवाओं में कम लोकवप्रय है तथा ईनका झुकाव पािात्य
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रीवत-ररवाजों की ओर हो रहा है। नवीनतम कारें , टेलीववजन, वबजली यंत्र, वस्त्रों अक्रद
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का चलन काफी बढ़ चुका है। गरीब युवक आन प्रचारों से अकर्थषत होता है और आन्हें प्राप्त
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न कर पाने की वस्थवत में कुं रठत हो जाता है। आस कुं ठा के पररणामस्वरुप युवाओं में
अपरावधक प्रवृवि बढ़ रही है।
वैश्वीकरण के प्रभाव से पाररवाररक संस्थाएाँ भी ऄछू ती नहीं रही, आसके प्रभाव से
एकाकी या एकल पररवार का चलन बढ़ा है। युवा ऄब ऄपने दादा-दादी के ईतने करीबी
नहीं रहे वजतनी की हमारी वपछली पीढ़ी थी। आसके पररणामस्वरुप वह आनके साथ कम
समय वबताते हैं वजससे वे वंशानुगत सामावजक और पाररवाररक ज्ञान से वंवचत हो रहे
हैं।
ऄवधकांश धार्थमक क्रिया-कलाप भी युवाओं के बीच महत्वहीन हो रहे हैं। वे धमा में
बदलावों को देखना पसंद करते हैं। पारम्पररक ववचारों को ऄपनाने के बजाय वे ईन्हें
ऄस्वीकार कर रहे हैं, क्योंक्रक ईन्हें आसमें कोइ मूल्य नजर नहीं अता ।
आस प्रकार हम कह सकते हैं क्रक वैश्वीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन ऄच्छे और बुरे प्रभाव
का वमश्रण है। अर्थथक वैश्वीकरण ने वशक्षा और रोजगार के ऄवसरों को काफी बढ़ाया है
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सामावजक ‘सुववधाओं’ जैसे क्रक श्रम बाजार तथा ऄन्य अय के स्त्रोतो, वशक्षा एवं स्वास््य सेवा
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नीवत-वनमााण प्रणाली का वैश्वीकरण हुअ है। ऄंतरााष्ट्रीय संगठनों तथा बहुराष्ट्रीय वनगमों के
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दबाव में राष्ट्रीय सरकारों को ऄपनी ऄथाव्यवस्थाओं को पुनगारठत करना पड़ा है, जो मुि
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व्यापार और सामावजक क्षेत्र के ऄल्प व्यय पर ऄवधक बल देने की मांग करते हैं। सरकारों को
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वशक्षा, स्वास््य सेवा, स्वच्छता, पररवहन आत्याक्रद जैसे सामावजक क्षेत्रों पर व्यय में कटौती
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करनी पड़ी है। ऄत: सामावजक ऄसमानताएं ववशेष रूप से ववकासशील ऄथाव्यवस्थाओं में
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तीव्र वृवद्ध हो रही हैं, क्योंक्रक सामावजक न्याय सुवनवित करने में सरकार की भूवमका में कमी
अइ है।
दूसरी तरफ वैश्वीकरण और आसकी ईदारीकरण एवं वनजीकरण की अनुषंवगक प्रक्रियाओं के
पररणामस्वरूप कु छ ही लोगों के पास धन का सके न्द्रण हो रहा है, क्योंक्रक अर्थथक
ऄसमानता ववकवसत तथा ववकासशील दोनों ववश्वों में ववस्ताररत है।
साथ ही, यह वर्थद्धत अर्थथक ऄसमानता सलग, अयु, वगा तथा नृजावतयता पर अधाररत
सामावजक ऄसमानताओं के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबंवधत है। आस पररघटना के
वनम्नवलवखत ईदाहरण हैं:
o श्रम बल का मवहलाकरण ऄथाात् वनम्न-वेतन नौकररयों, वस्त्र, शू-मेककग (shoe-
making), ऄद्धाचालक ऄसेम्बसलग जैसी नौकररयों तथा अवत्य क्षेत्र जैसी श्रम-कें क्रद्रत
या सेवा-गहन नौकररयों में मवहलाओं का सके न्द्रण।
4. एक वगाववहीन समाज देने के बदले वैश्वीकरण ने वस्तुतः वववशष्ट वगा ववभाजन पैदा क्रकया है
एवं भारत में जावतगत पद्धवत को मजबूत क्रकया है। अलोचनात्मक ववश्लेषण करें ।
दृवष्टकोणः वनम्न ईप-प्रश्नों का ईिर देने की अवश्यकता हैः
वैश्वीकरण क्या है?
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अर्थथक ईदारीकरण की एक सैद्धांवतक पररयोजना के रूप में देखते हैं जो रायय और व्यवियों l.c
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वैश्वीकरण लोगों के बीच सामावजक और अर्थथक ऄसमानता घटाता है, और गरीबी व भूख
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की समस्यायों को समाप्त करता है। यद्यवप आसके ववपरीत प्रभाव भी हुए हैं वजन्हें वनम्न रूप से
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जैसा क्रक भारत के वगनी सूचकांक द्वारा मापा गया है क्रक, वैश्वीकरण ने बढ़ती हुइ अय
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ऄसमानताओं की ओर ऄग्रसर क्रकया है। आसने भारत में वगा संस्कृ वत को दृढ़ करने में
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भारत में जावत प्रथा, वगा संस्कृ वत के साथ वनवित समानताएं रखती है। आसवलए ईच्च वगा
या पूज
ाँ ीपवत क्रकसान पंजाब, हररयाणा और पविमी ईिर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पहले के
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यह प्रश्न, वैश्वीकरण की ववववध ऄनुक्रियाओं ऄथवा पररणामों की समझ के साथ-साथ
सांस्कृ वतक समरूपता/मानकीकरण से लेकर संकरण/ वैश्वीकरण तक का वववरण प्रस्तुत करने l.c
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वैश्वीकरण की प्रक्रिया की चचाा करते हुए ईिर की भूवमका प्रस्तुत करें और यह समझाएं
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क्रक कै से यह सांस्कृ वतक एकरूपता या समरूपता के प्रसार में सहायता करता है।
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पररणाम/ऄनुक्रियायें सामने अये हैं, ऄथाात (i) समरूपता (ii) वैश्वीकरण (iii) भारतीय
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ऄंत में संक्षेप में चचाा करें क्रक कै से वैश्वीकरण ने भारत की संस्कृ वत को नकारात्मक रूप से
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प्रभाववत क्रकया है (क्योंक्रक प्रश्न अलोचनात्मक व्याख्या की मांग करता है) और तत्पिात्
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पयाटन भी पयाटकों की मांग पर ववववधता बनाये रखने के साथ, संस्कृ वतक पुनजाागरण और
समरूपता को प्रोत्साहन दे रहा है। भारतीय अध्यावत्मक और सांस्कृ वतक शवि जैसे योग, l.c
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गया है। ईदाहरण के वलए श्री श्री रववशंकर, रामदेव ऄब “वैवश्वक-गुरु” हो गये हैं और
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अध्यावत्मक ववचारों, प्राकृ वतक वचक्रकत्सा, योग आत्याक्रद के प्रसार में सहायता कर रहे हैं,
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वजनकी लोकवप्रयता बढ़ती ही जा रही है और ववश्व भर से लोग आन्हें ऄपना रहे हैं।
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परन्तु, वैश्वीकरण के पररणाम स्वरूप, भारतीय समाज और संस्कृ वत में ईग्र पररवतान अ रहे
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हैं, वजनके कारण हैं– समकालीन पररवतान, जैसे संयुि पररवारों से एकल पररवार। ऄब एकल
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पररवारों का चलन अम हो गया है, युवा वगा ऄत्यवधक संख्या में पविमी सभ्यता में रं गता
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जा रहा है और ईनकी सोच में ऄब ईपभोिावाद हावी हो रहा है। पररवार के बड़े सदस्यों में
मूल्य अधाररत टकराव ऄब ईन्हें जेनरे शन गैप की ओर ले जा रहा है। कइ कारणों से वववाह
टू ट रहे हैं, जैसे अधुवनक जीवनशैली, व्यवसाय संबंधी अंकक्षाएं और ऄवास्तववक ऄपेक्षाएं।
संचार माध्यम, टेलीवजन चैनल या मास मीवडया, आं टरनेट, FTV-MTV संस्कृ वत आत्याक्रद पर
प्रायः यह अरोप लगता रहा है क्रक वे भारतीय समाज, ववशेषकर युवा वगा को सांस्कृ वतक
ववकृ वत की ओर ले जा रहे हैं।
आस प्रकार, भारतीय संस्कृ वत पर वैश्वीकरण के नकारात्मक पररणाम होने पर भी हम यह कह
सकते हैं क्रक संस्कृ वत को एक वस्थर या स्थायी संस्था के रूप में नहीं देखा जा सकता है ऄन्यथा
यह लड़खड़ा कर वगर जाएगी या सामावजक पररवतानों में दौर में भी स्थावर बनी रहेगी।
वतामान में भी वजसकी ऄवधक सम्भावना है, वह यह क्रक वैश्वीकरण से न के वल नइ परम्पराओं
का वनमााण होगा ऄवपतु वैवश्वक परम्पराओं का भी वनमााण होगा।
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प्रकार के टेलीववजन चैनलों की संख्या में चर-घातांकी वृवद्ध की है।
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भारतीय वसनेमा संस्कृ वत, वशक्षा, मनोरं जन और प्रचार का एक शविशाली वाहक बन
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गया है।
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प्रसारण मीवडया की चुनौवतयों में पत्रकाररता और खोजी ररपोर्टटग की बहुतायत, सांस्कृ वतक
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वडवजटल मीवडया आं टरनेट और मोबाआल मास मीवडया - भारत में आं टरनेट तेजी से मास
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मीवडया का कें द्र बनता जा रहा है। आं टरनेट ने फे सबुक, वट्वटर, आन्स्टाग्राम, जैसी सोशल
वेबसाआटों के माध्यम से सोशल स्पेस पर कब्जा करके सामावजक संपका के पारं पररक
तरीकों को प्रभाववत क्रकया है, और साथ ही साथ साआबर ऄपराध और धोखाधड़ी अक्रद
खतरों को भी बढ़ा क्रदया है।
वसनेमा का समाज पर प्रभाव या समाज पर वसनेमा का प्रभाव
वनस्संदह
े वसनेमा समाज को स्वयं पर प्रवतसबवबत करता है। क्षेत्र और समय के साथ वसनेमा के
ववषय पररवर्थतत होते हैं। ईदाहरण के वलए, अजादी के बाद भारतीय क्रफल्में लोकतंत्र की
शैशवावस्था के बढ़ते ददा को प्रदर्थशत करती थीं जबक्रक 1970-80 के दशक में तंत्र के ववरुद्ध
अम अदमी के संघषा को क्रदखाती थीं।
दूसरी तरफ वसनेमा संस्कृ वत के ववस्तार द्वारा और ऄवशक्षा, भ्रष्टाचार, सलग ऄसमानता,
पयाावरण क्षरण, सांप्रदावयकता अक्रद संवेदनशील और वववादास्पद ववषयों के बारे में
जागरूकता पैदा करके समाज को प्रभाववत भी करती हैं। हालांक्रक कभी कभी आससे ऄपराध,
7. यद्यवप वैश्वीकरण के कारण मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध हुइ है, लेक्रकन
आसने मवहला कर्थमयों के वलए चुनौवतयों की एक नयी श्रेणी भी ईत्पन्न की हैं। ईदाहरणों
सवहत चचाा कीवजए।
दृवष्टकोण:
वैश्वीकरण की पररभाषा और समग्र रुप से भारतीय समाज पर आसके प्रभाव का संक्षेप में
वणान कीवजए।
मुख्य भाग में, वैश्वीकरण के बाद मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों की वस्थवत और
ववकास की चचाा कीवजए।
प्रासंवगक ईदाहरणों के साथ बदलते अर्थथक पररदृश्य में मवहला कर्थमयों के समक्ष अने वाली
चुनौवतयों के वववभन्न रूपों पर प्रकाश डावलए।
आन चुनौवतयों को दूर करने के वलए कु छ ईपाय सुझाएं, ताक्रक अने वाले भववष्य में
वैश्वीकरण द्वारा प्रदान क्रकए गए लाभों का लाभ ईठाने के वलए मवहलाओं को सक्षम बनाया
जा सके ।
ईिर:
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है वजसमें लोग और देश, व्यापार, श्रम, सूचना-प्रौद्योवगकी,
यात्रा, सांस्कृ वतक अदान-प्रदान और संचार माध्यमों द्वारा अर्थथक और सांस्कृ वतक रूप से
एकीकृ त हो रहे हैं। भारतीय समाज के ऄन्य वगों के ऄलावा, वैश्वीकरण की लहर ने मवहलाओं
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के अर्थथक और सामावजक जीवन को गहराइ से प्रभाववत क्रकया है। आसने मवहला कर्थमयों के
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वलए ऄवसर के कइ द्वार खोल क्रदए हैं-
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खोल क्रदए हैं, वजसने ईन्हें ऄपेक्षाकृ त ऄवधक वस्थर और अर्थथक रुप से स्वतंत्र बना क्रदया
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है।
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ऄनौपचाररक क्षेत्र- सुदढ़ृ व्यापार और वनयाात प्रवाह के कारण मुख्य अर्थथक गवतवववधयों
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में मवहलाओं के समावेशन में महत्वपूणा ढंग से वृवद्ध हुइ है। कच्छिाफ्ट (kutchcraft)
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110 से ऄवधक मवहला वशल्पकारों का संगठन है, वजसने 6000 नौकरी के ऄवसर पैदा
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क्रकए हैं, क्योंक्रक भारत ने वैश्वीकरण के रास्ते पर चलना प्रारं भ कर क्रदया है।
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क्षमता, पररवार और ववि के सामंजस्य को स्थावपत क्रकया है। आसने सलगों के बीच
समानता को प्रोत्सावहत क्रकया है और सलग रुक्रढ़वाक्रदता को चुनौती दी है।
वैश्वीकरण का एक ऄन्य स्याह पक्ष भी है और साथ ही आसके कारण वनम्नवलवखत चुनौवतयों
को भी देखा गया है-
o पाररश्रवमक में ऄंतर और ऄथाव्यवस्था के ऄनौपचाररक क्षेत्र में कै ररयर के अगे बढ़ने की
कम गवतशीलता अक्रद के रूप में व्याप्त सलग ऄसमानता। पुरुषों की तुलना में मवहलाओं
में बेरोजगारी, न्यून बेरोजगारी और ऄस्थायी काम ऄवधक है।
o स्वास््य खतरे - चूंक्रक काम की ईपलब्धता ववशेष रूप से और ऄसंगरठत क्षेत्र में कम है,
आसवलए मवहलाओं को 12 घंटे तक काम करने के वलए मजबूर क्रकया जाता है, वजससे
ईनमें श्वसन समस्याएं, पैवल्वक सूजन, अक्रद बीमाररयां ईत्पन्न होती हैं।
o वपतृसिात्मक रवैया और सांस्कृ वतक मानदंड- वैश्वीकरण द्वारा ऄन्य चुनौवतयां प्रायः
सहसा, यौन-ऄपराध, घरे लू और कायास्थल ईत्पीड़न अक्रद के रूप में प्रकट हुइ हैं।
को 10% तक बढ़ा क्रदया जाए। लंबे समय में जोवखमों को कम करने के वलए मवहलाओं के
कौशल, नवाचारों, नीवतयों, बीमा ईत्पादों को ववकवसत करके वैश्वीकरण के नकारात्मक
प्रभावों को कम करना अवश्यक है, ताक्रक ईनके अर्थथक और सामावजक सशविकरण के वलए
एक स्थायी वातावरण तैयार क्रकया जा सके ।
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11. ववगत वषों में सं घ लोक से वा अयोग (UPSC) द्वारा पू छे
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गए प्रश्न
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3. क्रकस सीमा तक वैश्वीकरण ने भारत की सांस्कृ वतक ववववधता के मूल संरचना को प्रभाववत
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भारतीय समाज
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प्रवास
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8. प्रवास े ेारण_____________________________________________________________________________ 10
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9.3 सामावजे रर मनोवैज्ञावने पररणाम ___________________________________________________________ 14
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13. ववगत वषों में Vision IAS GS मेंस टस्ट सीरीज में पूछ गए प्रश्न _________________________________________ 22
14. ववगत वषों में संघ लोे सवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछ गए प्रश्न _________________________________________ 29
1. प्रवास े ऄ्ययन े अव्येता रर आसेा मह्व?
(What is the need to study Migration? What is its significance?)
जनसंख्या पररवतथन े तीन घटे मृ्यु, प्रजनन एवं प्रवास हैं। मृ्यु रर प्रजनन े ववपरीत प्रवास एे
जैववे ेारे (जो एे जैववे रूपरखा े ऄंतगथत ेायथ ेरत हैं) नहीं है, हालांके यह सामावजे,
सांस्ेृ वते रर अर्थथे ेारेों स प्रभाववत होता है। प्रवास संबंवधत व्यवियों े आच्छाओं स प्रभाववत
होता है। सामान्यतः प्र्ये प्रवासी गवतवववध जान-बूझेर सम्पन्न े जाती है तथा ऄपवाद स्वरूप
ऐस ेु छ ही मामल होत हैं वजनमें ऐसा नहीं होता। आस प्रेार प्रवास, पररवश में अर्थथे, सामावजे
तथा जनांकेे य बलों े प्रवत मनुष्य े ऄनुकिया है।
जनांकेे य ऄ्ययनों में प्रवास े ऄ्ययन ेा एे मह्वपूणथ स्थान है, क्योंके मृ्यु एवं प्रजनन े
साथ-साथ यह भी जनसंख्या े अेार रर वृवि दर तथा साथ ही ईसे संरचना एवं ववशषताओं ेो
वनधाथररत ेरता है। प्रवास केसी भी दश े जनसंख्या े ववतरण में मह्वपूणथ भूवमेा वनभाता है तथा
केसी भी क्षत्र में श्रम बल े वृवि ेो वनधाथररत ेरता है। भारत म्य एवं पविमी एवशया रर साथ
ही दवक्षण-पूवी एवशया स होन वाल प्रवास ेा साक्षी रहा है। वास्तव में भारत ेा आवतहास यहााँ अन
वाल प्रवावसयों े वववभन्न समूहों ेा आवतहास रहा है। दश े वववभन्न भागों में एे े बाद एे ऄने
प्रवासी समूह अए रर बस गए। आसी प्रेार बहतर ऄवसरों े तलाश में भारत स भी बड़ी संख्या में
लोगों न वववभन्न दशों ववशषत: म्य-पूव,थ पविमी यूरोप, ऄमररेा, ऑस्रवलया तथा पूवी एवं दवक्षण-
पूवी एवशया े ओर प्रवास केया। आस प्रेार प्रवास समाज में सामावजे पररवतथन ेा एे मह्वपूणथ
लक्षण है।
2. प्रवास ेा ऄथथ
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(What is Migration?) l.c
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सामान्य ऄथथ में, ‘प्रवास’ शब्द लोगों े एे स्थान स दूसर स्थान पर प्रस्थान ेरन ेो संदर्थभत ेरता
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है। जनांकेे य शब्देोश े ऄनुसार, “प्रवास एे भौगोवले आेाइ स दूसरी भौगोवले आेाइ े म्य
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भौगोवले या स्थावने गवतशीलता ेा एे प्रेार है। सामान्य तौर पर आसमें एे पयाथ्त लंबी
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समयाववध े वलए ईद्गम या प्रस्थान स्थल स गन्तव्य ऄथवा अगमन स्थल े रूप में वनवास स्थल ेा
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सामावजे ऄथथ में प्रवास केसी व्यवि या समूह े एे समाज स दूसर समाज में भौवते संिमण ेो
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संदर्थभत ेरता है। सामान्य तौर पर आस संिमण में एे सामावजे पररवश ेो ्याग ेर दूसर तथा
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आसे साथ ही समय अधाररत वगीेरण े तहत प्रवास ेो दीघाथववधे (लॉंग रें ज माआग्रशन) रर
ऄल्पाववधे प्रवास या ऊतु प्रवास (शॉटथ रें ज या सीजनल माआग्रशन) े रूप में वगीेृ त केया गया है।
जब लम्ब समय े वलए प्रवास केया जाता है तो ईस दीघाथववधे प्रवास ेहा जाता है। हालााँके, यकद
जनसंख्या ेा केसी एे क्षत्र स दूसर क्षत्र में स्थायी स्थानान्तरण होता है तो वह स्थायी प्रवास
ेहलाता है। वहीं जब लोग ेु छ या ेइ महीनों े वलए ऄपन ऄस्थायी ेायथ या वनवास स्थल ेो
पररवर्थतत ेरत हैं तो आस अववधे या मौसमी प्रवास ेहा जाता है। ईदाहरण े वलए, ेृ वष े चरम
om
मौसम े दौरान ऄ्यवधे श्रम े अव्येता होती है तथा पड़ोसी क्षत्रों स लोग ेाम े वलए अत l.c
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हैं। मवहलाओं े ऄपन प्रथम वशशु े जन्म हतु ऄपन माता-वपता े पास वापस अन े प्रथा भी
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आने ऄवतररि प्रवास े ऄन्य मह्वपूणथ प्रेार हैं- स्वैवच्छे रर ऄनैवच्छे ऄथवा बलात् प्रवतभा
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केसी दश में प्रवास संबंधी सूचनाओं ेो प्रा्त ेरन े तीन मह्वपूणथ स्रोत होत हैं- राष्ट्रीय जनगणना
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(national census), जनसंख्या रवजस्टर (population registers) तथा प्रवतदशथ सवेक्षण (sample
surveys)। भारत में अंतररे प्रवास पर अंेड़ों े सवाथवधे मह्वपूणथ स्रोत राष्ट्रीय जनगणना तथा
प्रवतदशथ सवेक्षण हैं।
भारत में अयोवजत े जान वाली जनगणना े ऄंतगथत दश में होन वाल प्रवास े सम्बन्ध में सूचनाएं
शावमल होती हैं। वस्तुतः भारत े प्रथम जनगणना (1881) े प्रारम्भ स ही भारत में प्रवास ेा
ऄवभलखन केया जाता रहा है। आन अाँेड़ों ेा संग्रह जन्म स्थान े अधार पर केया गया था।
जनगणना पिवत में प्रथम प्रमुख संशोधन 1961 े जनगणना में केया गया। तब आसमें दो ऄवतररि
घटेों ऄथाथत् जन्म स्थान (गााँव या शहर) तथा वनवास े ऄववध (यकद जन्म ऄन्यत्र ेहीं हुअ हो) ेो
शावमल केया गया था। त्पिात् वषथ 1971 में ‘वपछल वनवास स्थान’ तथा ‘गणना े स्थान पर रहन
े ऄववध’ जैसी ऄवतररि सूचनाओं ेो भी समावहत केया गया। प्रवास े ेारणों स संबंवधत सूचना
ेो 1981 े जनगणना में सवम्मवलत केया गया तथा ऄनुवती जनगणनाओं में आस संशोवधत केया
गया।
om
संबंवधत ेु छ तथ्य आस खंड में प्रस्तुत केए गए हैं। ऄपन मूल स्थान एवं गंतव्य े अधार पर अंतररे
प्रवासन े वनम्नवलवखत चार प्रेार हो सेत हैं: l.c
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भारत में, वषथ 2001 े दौरान, वनवास े वपछल स्थान े अधार प्रगवणत 31.5 ेरोड़ प्रवावसयों में स
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9.8 ेरोड़ लोगों न ववगत दस वषों में ऄपना वनवास स्थान बदल कदया था। आनमें स 8.1 ेरोड़
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ऄंतःराज्यीय प्रवासी थ। आनमें मवहला प्रवावसयों े संख्या ऄवधे थी तथा आनमें स ऄवधेांश वववाह
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संबंधी प्रवासी थीं। ऄंतःराज्यीय रर ऄंतर-राज्यीय प्रवासन े वववभन्न श्रवणयों में पुरुष रर मवहला
प्रवावसयों ेा ववतरण वनम्नांकेत वचत्र 1(a) रर 1(b) में प्रस्तुत केया गया है। यह पूणथतः स्पष्ट है के
दोनों प्रेार े प्रवासों में लघु दूरी े ग्रामीण स ग्रामीण प्रवास में मवहलाओं े संख्या ऄवधे है। आसे
ववपरीत, अर्थथे ेारणों स ऄंतर-राज्यीय प्रवास े ग्रामीण स शहरी श्रणी में पुरुषों ेा वचथस्व है।
लाख) स अए हैं। आनमें वतब्बत, श्रीलंेा, बांग्लादश, पाकेस्तान, ऄफगावनस्तान, इरान रर म्यांमार स
अए 1.6 लाख शरणाथी भी शावमल हैं। जहां ते भारत स ई्प्रवास ेा संबंध है, यह ऄनुमान लगाया
गया है के भारतीय डायस्पोरा े लगभग 2 ेरोड़ लोग 110 दशों में फै ल हैं।
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प्रवृ वियों े तु ल ना
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45.36 ेरोड़ लोग, ऄथाथत् 37 प्रवतशत जनसंख्या या भारत े प्र्ये तीन नागररेों में स एे,
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2001 रर 2011 े म्य, भारत में प्रवावसयों े ेु ल संख्या 2001 े 31.45 ेरोड़ स 44.35
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प्रवतशत बढ़ गयी। आसी ऄववध े दौरान भारत े जनसंख्या 17.64 प्रवतशत बढ़ी।
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प्रवतशत मवहलाएं आसी ेारण प्रवावसत हुईं। वहीं पुरुषों े वलए ‘ेायथ रर रोजगार' प्रवासन ेा
मुख्य ेारण था, वजसेा ईल्लख 14 ेरोड़ पुरुष प्रवावसयों में स तीन ेरोड़ पुरुष प्रवावसयों द्वारा
केया गया।
आसे ऄवतररि अाँेड़ यह प्रदर्थशत ेरत हैं के प्रवावसयों में स ऄवधेांश (64 प्रवतशत) 10 वषथ
पूवथ प्रवावसत हुए थ, जो 2001 में आस प्रेार े प्रवावसयों (54 प्रवतशत) स ऄवधे था।
ेु ल 2.3 वमवलयन ऄंतप्रथवावसयों े साथ सूची में प्रथम स्थान पर है, त्पिात् कदल्ली, गुजरात रर
हररयाणा ेा स्थान है। दूसरी तरफ, ईिर प्रदश (-2.6 वमवलयन) रर वबहार (-1.7 वमवलयन) ऐस
राज्य थ, वजनमें राज्य स बाहर प्रवास ेरन वालों (नट अईट माआग्रेंट्स) े जनसंख्या सवाथवधे थी।
नगरीय संेुलों (UA) में सवाथवधे संख्या में प्रवावसयों ेा अगमन ग्रटर मुब
ं इ में हुअ। आसमें सबस बड़ा
ऄंश ऄन्तः राज्यीय प्रवासन ेा था। य वभन्नता ऄवधेांशतः ईस राज्य े अेार े ेारण होती है,
वजसमें ऐस नगरीय संेुल वस्थत हैं।
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जनगणना 2011 े ऄनुसार:
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भारत में प्रवासन प्रवतरूप (पैटनथ) दश में अर्थथे ववभाजन ेो ईिरोिर ऄवधे प्रवतबबवबत ेर रहा है।
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ववगत दशे में दवक्षणी राज्यों े ओर प्रवासन में वृवि हुइ है क्योंके आस ऄववध में आन राज्यों े
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तवमलनाडु े प्रवासी अबादी 2001 े 1.58 ेरोड़ स 98% बढ़ेर 2011 में 3.13 ेरोड़ हो
गइ।
ेरल े प्रवासी अबादी में 77 प्रवतशत े वृवि हुइ है।
ेनाथटे न भी ऄपनी प्रवासी अबादी में 50 प्रवतशत े वृवि दजथ े है।
दवक्षणी राज्यों में ेवल अंध्र प्रदश न प्रवासी अबादी में राष्ट्रीय रसत (44%) स ेम वृवि दजथ
े है। यहााँ प्रवासी अबादी में वृवि 40% रही।
प्रवासी अबादी में ईच्च वृवि दजथ ेरन वाल ऄन्य राज्य ेवल मघालय रर मवणपुर हैं। यहां प्रवावसयों
े संख्या में िमशः 108 प्रवतशत रर 97 प्रवतशत े वृवि हुइ है।
स वनम्न ेौशल वाल रोजगारों में) ेा सामना ेरना पड़ता है, जो प्रवासन ेो बढ़ावा दता है।
2003 स 2013 ते भारतीय ऄथथव्यवस्था े ईच्च संवृवि ऄववध े दौरान ऄंतराथज्यीय श्रम
प्रवासन े प्रवाह में वृवि हुइ तथा ववशषेर ेम ववेवसत ईिरी रर पूवी वहस्सों में लाखों
लोगों े वलए ेायथ े ऄवसर ई्पन्न हुए।
आसे पररणामस्वरूप अंतररे श्रम प्रवासन में वृवि न ऄनुमानतः 1.5 लाख ेरोड़ रुपय वार्थषे
स ऄवधे े घरलू ववप्रषण बाजार ेो बढ़ावा कदया। आसन भारत में ेु ल पररवारों े दसवें भाग
ेो लाभ प्रदान केया रर ववप्रषण-प्रा्त ेरन वाल पररवारों े ईपभोग े लगभग 30 प्रवतशत
ेा वविपोषण केया।
ववगत ेु छ वषों में मंदी े ेारण आस ऄथथव्यवस्था में ऄ्यवधे क्षवत हुइ है।
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(Can We Now Derive any Characteristics of the Migrants in India?)
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प्रवावसयों रर प्रवास े ेु छ मह्वपूणथ ववशषताएं होती हैं। प्रवावसयों े अयु संबध
ं ी चयना्मेता
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एे मह्वपूणथ ववशषता है। सामान्यतः, युवा वगथ ऄवधे गवतशील होता है। ववशष रूप स ववेासशील
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दशों में प्रवास संबंधी ऄ्ययनों सवहत ऄवधेांश प्रवासन ऄ्ययनों स ज्ञात होता है के ग्रामीण स
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शहरी प्रवावसयों में मुख्य रूप स वयस्े युवाओं े संख्या ऄवधे होती है। यह स्पष्ट है के रोजगार हतु
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प्रवास ऄवधेांशतः वयस्े अयु में होता है। वववाह े पररणामस्वरूप प्रवास ेरन वाली मवहलाओं ेा
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एे बड़ा वहस्सा भी आसी वयस्े अयु में प्रवावसत होता है। भारत में मवहला प्रवास ऄवधेांशतः वववाह
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े बाद े एे पारम्पररे घटना है, क्योंके ऄन्य गांव स दुल्हन लाना (village exogamy) एे बहदू
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परं परा है। ऄतः लोगों में 15 स 35 वषथ े अयु े म्य गवतशीलता े प्रवृवि ऄवधे होती है।
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एे ऄन्य मह्वपूणथ ववशषता यह है के प्रवावसयों द्वारा ईन स्थानों में प्रवास े प्रवृवि होती है जहााँ
ईने संपेथ -सूत्र (contacts) होत हैं रर जहां वपछल प्रवासी नए प्रवावसयों े वलए ेड़ी े रूप में
ेायथ ेरत हैं। आस प्रकिया में एे श्रृंखला ेा वनमाथण होता है तथा आस सामान्यतः श्रृख
ं लाबि प्रवासन
(chain migration) ेहा जाता है। नय प्रवावसयों े नातदारी श्रृंखलाएाँ तथा ईने रर्तदारों रर
वमत्रों े नटवेथ ईन्हें वववभन्न प्रेार स सहायता ेरत हैं। ेु छ मामलों में प्रवावसयों ेा न ेवल एे ही
गंतव्य होता है बवल्े व एे ही व्यवसाय भी ेरत हैं। ईदाहरण े वलए, जयपुर े ेु छ होटलों में
लगभग सभी ेमथचारी ेु माउं े एे ववशष ईप-क्षत्र स संबंवधत हैं। पंजाब रर हररयाणा में ेृ वष
मजदूर मुख्यतः वबहार रर पूवी ईिर प्रदश स हैं।
पुरुषों े ग्रामीण स शहरी रर शहरी स शहरी प्रवासन हतु रोजगार सबस मह्वपूणथ ेारण है। आन
प्रवासन श्रवणयों े ऄंतगथत ेु ल प्रवासन में वशक्षा ेा योगदान ेवल 3 स 8 प्रवतशत े अस-पास है।
मवहलाओं े ेु ल प्रवास में वववाह सवथप्रमुख तथा पररवार े पुरुष सदस्यों े साथ होन वाला प्रवास
वद्वतीय सबस मह्वपूणथ ेारण है। मवहला प्रवास में रोजगार रर वशक्षा ेा योगदान ऄ्यवधे ेम है।
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अेषथे पररवस्थवतयों े प्रलोभन में प्रवास ेर रह हैं। ऄब हम आन ेारेों पर चचाथ ेरें ग:
प्रवतेषथ ेारे (Push Factors) : प्रवतेषथ ेारे स अशय ईन वववभन्न ेारेों स है जो केसी l.c
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व्यवि ेो ईस स्थान ेो छोड़ेर केसी दूसर स्थान पर जान े वलए वववश ेरत हैं ऄथवा दबाव
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डालत हैं। ईदाहरण े वलए, वनधथनता, वनम्न ई्पादेता, बरोजगारी एवं प्राेृ वते संसाधनों े
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क्षय े ेारण ई्पन्न प्रवतेू ल अर्थथे पररवस्थवतयां; स्वास्थ्य, वशक्षा आ्याकद जैसी अधारभूत
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सुववधाओं े ेमी रर प्राेृ वते अपदाएाँ लोगों ेो बहतर अर्थथे ऄवसरों े तलाश में ऄपना
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मूल स्थान छोड़न े वलए वववश ेर सेती हैं। ेामगारों े ेृ वष छोड़न हतु ईिरदायी मुख्य
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प्रवतेषथ ेारे अय ेा वनम्न स्तर है, क्योंके ेृ वष में अय सामान्यतः ऄथथव्यवस्था े ऄन्य क्षत्रेों
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े तुलना में ेम होती है। जनसंख्या में तीव्र वृवि े ेारण ेृ वष योग्य भूवम े प्रवत व्यवि
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ईपलब्धता में ेमी अइ है रर ग्रामीण क्षत्रों में बरोजगारों रर ऄल्प-बरोजगारों े संख्या में
ईल्लखनीय वृवि हुइ है। आसे पररणामस्वरूप ग्रामीण लोग शहरी क्षत्रों े ओर पलायन ेो
बा्य हो रह हैं। ग्रामीण क्षत्रों में अय े वैेवल्पे स्रोतों े ऄनुपलब्धता प्रवास ेा दूसरा
मह्वपूणथ ेारे है। आसे ऄवतररि, संयुि पररवार प्रणाली रर ईिरावधेार े ऐस वनयमों ेा
ऄवस्त्व है जो संपवि े ववभाजन े ऄनुमवत नहीं दत हैं। आने ेारण भी ऄने युवा रोज़गार
े तलाश में शहरों े ओर प्रवास ेर सेत हैं। जोतों ेा ईप-ववभाजन भी प्रवास ेो प्रररत
ेरता है, क्योंके जोतों ेा अेार बहुत छोटा हो जान स पररवार ेा पालन ेरना ेरिन हो
जाता है।
ऄपेषथ ेारे (Pull factors): ऄपेषथ ेारे स अशय ईन ेारेों स है जो केसी क्षत्र े ओर
प्रवावसयों ेो अेर्थषत ेरत हैं, जैस के, बहतर रोजगार े ऄवसर, ेायथ े वनयवमत
ईपलब्धता, ईच्च मजदूरी, ेायथ ेरन हतु बहतर पररवस्थवतयां रर जीवन े बहतर सुववधाएं।
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पुश बैे फै क्टर (Push Back Factors): भारत रर ेु छ ऄन्य ववेासशील दशों में 'पुश बैे
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फै क्टर' प्रवास में मह्वपूणथ भूवमेा वनभात हैं। यहााँ शहरी श्रवमे वगथ पयाथ्त रूप स बड़ा है एवं
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वनवारे (deterrents) ेा ेायथ ेरत हैं। ऄतः आन्हें पुश बैे फै क्टर ेहा जाता है।
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्यातव्य है के यकद शहरी क्षत्रों में रोजगार े नए ऄवसर ई्पन्न होत हैं, तो सवथप्रथम ईन क्षत्रों में
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पहल स वनवास ेरन वाल सीमांत रूप स वनयोवजत व्यवि रोज़गार े वलए ईपलब्ध होत हैं
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पुल बैे फै क्टर (Pull Back Factors): यह हावलया पररदृ्य है। आसे ऄंतगथत रोजगार े
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बहतर ऄवसर (MGNREGA रर ऄन्य योजनाएं, ेृ वष-संबंधी िांवतयााँ) व्यवियों ेो ईने मूल
स्थानों े ओर पुनः अेर्थषत ेर लत हैं।
9. प्रवास े पररणाम
(What are the Consequences of Migration)
प्रवास केसी स्थान पर ऄवसरों े ऄसमान ववतरण े प्रवत प्रवतकिया है। लोग वनम्न ऄवसर तथा वनम्न
सुरक्षा वाल स्थानों स ईच्च ऄवसर एवं बहतर सुरक्षा वाल स्थानों े ओर स्थानांतरण ेरत हैं। आसे
पररणामस्वरूप ईद्गम (जहााँ स प्रवास केया) तथा गंतव्य (जहााँ पर प्रवास केया), दोनों स्थानों हतु ेु छ
लाभ एवं समस्याएाँ ई्पन्न होती हैं। आन्हें अर्थथे, सामावजे, मनोवैज्ञावने, पयाथवरणीय, राजनीवते
तथा जनांकेे य पररणामों े रूप में वर्थणत केया जा सेता है।
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ऄवधे वृवि ेरता है क्योंके दक्ष व्यवियों ेा ऄपक्षाेृ त ऄल्प ववेवसत क्षत्र स ऄवधे ववेवसत क्षत्र
े ओर पलायन होता है। परन्तु यकद ई्प्रवावसत क्षत्रों में वैेवल्पे ऄवसरों े ेमी है तो समुदाय े l.c
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ऄवधे ईद्यमी सदस्यों े पलायन ेो हावन े रूप में नहीं दखा जा सेता है। ऄतः हम ेह सेत हैं के
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जब ते प्रवास ऄवधशष श्रम े रूप में होता है तब ते यह ई्प्रवावसत क्षत्र े वलए लाभदाये होता
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है। केन्तु ई्प्रवावसत क्षत्र े ववेास े े मत पर मानवीय संसाधन ेा पलायन प्रवास े प्रवतेू ल
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व्यवि ईद्गम क्षत्रों स प्रवास ेरत हैं तो ऐसी वस्थवत ई्प्रवावसत क्षत्र े शष जनसंख्या ेो ईने
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जीवन दशाओं में सुधार ेरन हतु सक्षम बनाती है। क्योंके आसस ईस क्षत्र में संसाधनों ेा ईपभोग
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ेरन वाल व्यवियों े संख्या में ेमी े पररणामस्वरूप शष जनसंख्या े वलए संसाधनों े प्रवत
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हुइ। 1990 े दशे स, ेनाडा रर ऑस्रवलया जैस ऄन्य दशों े ओर प्रवास में वृवि हुइ, परन्तु
खाड़ी दशों े तुलना में यह संख्या ऄभी भी ेम है। 2016 में, भारत ेो ऄंतराथष्ट्रीय प्रवावसयों स
ववप्रषण े रूप में 62.7 ऄरब ऄमररे डॉलर े रावश प्रा्त हुइ। 2016 में भारत, चीन े 61 ऄरब
ऄमररे डॉलर े मुेाबल ऄवधे ववप्रषण रावश प्रा्त ेर ववि में सवाथवधे ववप्रषण प्रा्त ेरन
वाला दश बन गया। भारत में ऄंतराथष्ट्रीय ववप्रषण प्रा्त ेरन वाल प्रमुख राज्य ेरल, अंध्र प्रदश,
तवमलनाडु रर पंजाब हैं।
म्य पूवथ े दशों में भारतीय श्रमबल (Indian workforce in Middle east)
खाड़ी दशों में 50 लाख स ऄवधे भारतीय नागररे ेायथरत हैं रर ईनमें स ऄवधेांश वनमाथण
क्षत्र, रद्योवगे क्षत्र, पररवहन, अपूर्थत एवं सवा जैस श्रम ईन्मुख क्षत्रों में ेायथरत ब्लू- ेॉलर
श्रवमे हैं।
भारतीय प्रवावसयों े सवाथवधे संख्या सउदी ऄरब में है रर यह भारत ेो सवाथवधे मात्रा में
ेच्च तल े अपूर्थत ेरन वाला दश भी है।
खाड़ी सहयोग पररषद (GCC) े पांच दशों- संयुि ऄरब ऄमीरात, ेतर, सउदी ऄरब, ेु वैत
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रर ओमान े ऄथथव्यवस्था े तल े े मतों में वगरावट स प्रभाववत होन े बावजूद ेु ल l.c
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ववप्रषण मूल्य (2015) में आन दशों स प्रा्त ववप्रषण ेा योगदान 50% रहा।
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ेच्च तल े े मतों में वगरावट, ववप्रषण रर खाड़ी दशों े यात्रा ेरन वाल लोगों े संख्या
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नौेररयों में ववसंगवत (Job mismatch), श्रम बाजार में भदभाव, बरोजगारी रर वनम्न घरलू अय,
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वनधथनता, ऄवनवित ेायथ दशाएं, व्यवसाय, ईद्योग रर संपवि ेा स्वावम्व प्रवासी जनसंख्या े वलए
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रोजगार संबंधी भदभाव े पररणामस्वरूप केसी वववशष्ट व्यवसायों ते पहुंच रर ईसी व्यवसाय में
वनयोवजत लोगों े म्य वतन में ऄसमानता ई्पन्न हो सेती है।
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(Social and Psychological Consequences)
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ईद्गम रर गंतव्य क्षत्रों पर प्रभाव
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प्रवासी, सामावजे पररवतथन े ऄवभेताथ े रूप में ेायथ ेरत हैं। आने मा्यम स नइ प्रौद्योवगकेयों,
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पररवार वनयोजन, बावलेाओं े वशक्षा आ्याकद स संबंवधत नए ववचारों ेा नगर स ग्रामीण क्षत्रों में
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प्रचार हुअ है। प्रवास ववववध संस्ेृ वतयों े लोगों े म्य ऄंतःवमश्रण े प्रकिया ेो संभव बनाता है।
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आसेा योगदान सेारा्मे रहा है, जैस सामावसे संस्ेृ वत ेा ईद्भव रर संे णथ ववचारों े समाव्त
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नगरीय जीवन सामान्यतः प्रवावसयों में ेवतपय सामावजे पररवतथन लाता है। व प्रवासी जो केसी
ववशष ऄवसर पर ऄपन मूल स्थान पर लौटत हैं या ऄपन मूल स्थान में पररवारों े साथ प्र्यक्ष या
ऄप्र्यक्ष संपेथ में रहत हैं, ईने द्वारा भी ऄपन मूल स्थान पर ेु छ नए ववचारों े प्रषण े संभावना
होती है। वापसी ेरन वाल प्रवावसयों े गवतशीलता में तेनीे पररवतथन दृवष्टगोचर होता है। व धन
े साथ-साथ वववभन्न ई्पादन संबंधी तेनीेों ेा ज्ञान एवं ऄनुभव भी ऄपन साथ लात हैं रर जो
ेृ वष संबंधी गवतवववधयों ेा मशीनीेरण रर व्यावसायीेरण में सहाये हो सेत हैं। ेइ पूवथ सैवने
सवावनवृवि े पिात् ऄपन मूल क्षत्रों में वापस अ जात हैं रर गांवों में आस तरह े तौर तरीेों ेो
बढ़ावा दत हैं। नगरीय रर वववभन्न संस्ेृ वतयों े साथ संपेथ स प्रवावसयों े सोच में भी पररवतथन
होता है रर ईने ऄपन क्षत्रों में ईपभोिावादी संस्ेृ वत सवहत अधुवनेता े प्रवृवि ववेवसत ेरन
में ईन्हें सहायता वमलती है।
केन्तु आसे गंभीर नेारा्मे पररणाम भी हैं जैस ऄनावमेता, जो सामावजे शून्यता रर लोगों े
म्य ऄवसाद े भावना ई्पन्न ेरती है। वनरं तर ऄवसाद े भावना लोगों ेो ऄपराध रर नशीली
दवाओं े दुरुपयोग जैसी ऄसामावजे गवतवववधयों में संलग्न होन े वलए प्रररत ेर सेती है।
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े ईपभोग में वृवि होती है, तो ववि े ‘वनम्न ेाबथन’ स ‘ईच्च ेाबथन’ क्षत्रों े ओर लोगों े संचरण े
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फलस्वरूप ग्रीन हाईस गैस े ई्सजथन में वनरपक्ष वृवि होगी। ईदाहरणाथथ, ववमानन ईद्योग (जो
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ऄ्यवधे ेाबथन-गहन ईद्योग है) में प्रवास े साथ वृवि वनवित है।
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आसे ऄवतररि, प्राेृ वते संसाधनों े ऄवत दोहन े ेारण शहरों ेो भूवमगत जल े ेमी तथा
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सीवज े वनपटान रर िोस ऄपवशष्ट े प्रबंधन े गंभीर समस्या ेा सामना ेरना पड़ रहा है।
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चूंके ववगत दशे में वैविे पयाथवरण पररवतथन े ऄने ईदाहरण दख गए हैं, ऄतः वशक्षाववदों रर
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नीवत वनमाथताओं न मानव प्रवास पर पयाथवरणीय प्रभावों े ऄ्ययन पर ऄवधे ्यान ेवन्द्रत ेर
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कदया है। जलवायु पररवतथनशीलता रर मृदा वनम्नीेरण जैस ेारे सुभद्य जनसंख्या े प्रवास हतु पुश
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फै क्टर (प्रवतेषथ ेारे) े रूप में ेायथ ेर सेत हैं, ववशषेर ग्रामीण ववेासशील ववि में, जहां
अजीववेा प्राेृ वते संसाधनों पर ऄ्यवधे वनभथर है।
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गृहयुि या नागररेों े ववशष वगथ े ववरुि भदभावपूणथ राजनीवत े ेारण प्रवास हतु वववश
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प्रवावसयों ेा शत्रुतापूणथ व्यवहार े भय स दश में वापस लौटना ेरिन होता है। आन प्रवावसयों ेो
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ववशष रूप स ऄवनयवमत पररवस्थवतयों में प्रवास ेरन वाल प्रवासी, गुमनामी में रहत रर ेायथ ेरत
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हैं। य प्रवासी वशेायत ेरन स डरत हैं एवं साथ ही ऄवधेारों रर स्वतंत्रताओं स वंवचत ेर कदए
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जात हैं। आसे साथ ही य भदभाव, शोषण रर ऄवधेार हीनता े प्रवत ऄपक्षाेृ त ऄवधे सुभद्य होत
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हैं।
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प्रवावसयों े मानवावधेारों ेा ईल्लंघन (वजसमें ईन्हें वशक्षा या स्वास्थ्य जैस मूलभूत ऄवधेारों ते
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पहुंच स वंवचत ेरना शावमल है) प्रायः भदभाव मूले ेानूनों एवं परम्पराओं तथा प्रवावसयों े ववरुि
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पूवाथग्रह रर ज़नोफोवबया (ववदशी लोगों े प्रवत घृणा े भावना) स घवनष्ठता स जुड़ होत हैं।
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प्रवावसयों पर राजनीवते प्रभाव ेो वनम्नवलवखत मानदंडों े मा्यम स स्पष्ट रूप स दखा जा सेता है
जैस- नागररेता (नागररेता दर, एेल/बहुल नागररेता, दशीयेरण े दर, नागररेता प्राव्त में
लगन वाला समय, प्रकिया), सामावजे रर नागररे समूहों में भागीदारी, सामावजे गवतवववधयों में
भागीदारी, स्वयंसवा, मतदान में भागीदारी, सवाओं ते पहुंच, समथथन प्रा्त ेरन े क्षमता,
भदभाव, ई्पीड़न, सुरक्षा/वविास े भावना रर सांस्ेृ वते ववववधता अकद।
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आसे साथ ही दीघाथेाल स प्रवास े एे स्थावपत पिवत रही है जो शहर े ेें द्र स नगरीय पररवध
रर ईसस अग नए अवासों े वनमाथण े मा्यम स संचावलत होती है। रल एवं सड़े पररवहन ेा l.c
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ववेास आस प्रो्साहन प्रदान ेरता है। ऄवधेांश दशों में ईपनगरीेरण े यह प्रकिया जारी रहती है,
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हालांके ेु छ शहरों में ेें द्र ेा पुन: नगरीेरण होन लगता है।
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जब नगरीेरण एे ईन्नत स्तर ेो प्रा्त ेर लता है तो एे ववपरीत प्रवृवि दखन ेो वमलती है वजसे
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दूसरी ओर ऄंतराथष्ट्रीय प्रवास ववेवसत दशों े महानगरों में जनसंख्या वृवि में मह्वपूणथ भूवमेा
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वनभाता है केन्तु ऄल्प ववेवसत दशों में जनसंख्या पुनर्थवतरण में ऄल्प योगदान ेरता है।
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अव्ये ईपेरण हैं। ऄवधेांश गंतव्य दशों में, अप्रवासी द्वारा ेरों ेा भुगतान केया जाता है वजसस
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आन्हें ेु छ सावथजवने सवाओं ेो प्रा्त ेरन ेा ऄवधेार भी प्रा्त हो जाता है, फलत: मूल वनवावसयों
े वनवल ेर भार में ेमी अती है। ऐस में वहां े नागररेता प्रा्त ेर लन े पिात् अप्रवावसयों ेो
सामान्यतः मतावधेार प्रा्त हो जाता है वजसे पररणामस्वरूप व घरलू राजनीवत में भी प्र्यक्ष
योगदान ेरन लगत हैं। ईद्गम दशों में, ई्प्रवावसयों े प्रवास े ऄनुरूप राजेोषीय रर राजनीवते
पररवतथन ई्पन्न होत हैं।
ऄिथेुशल श्रवमेों े बढ़त ऄंतःप्रवाह स सामावजे बीमा ेायथिमों े ेारण ई्पन्न ववेृ वतयों में वृवि
हो सेती है, जो संभवतः मूल वनवावसयों पर वनवल ेर भार में वृवि ेरगा रर अप्रवास े
राजनीवते ववरोध ेो भी प्रो्सावहत ेरगा।
अगामी ेु छ वषों में भी ऄंतराथष्ट्रीय प्रवासन े वलए प्रबल ई्प्ररे े भूवमेा वनभा सेती हैं।
व्यापे स्तर पर शरणार्थथयों े प्रवास न ेु छ दशों (वजनमें हाल ही में सीररयाइ संेट स प्रभाववत दश
शावमल हैं) द्वारा ऄनुभव केय गए ववशुि प्रवासन े स्तर ेो भी गंभीर रूप स प्रभाववत केया है।
ऐसा ऄनुमान है के ववशुि प्रवासन, भववष्य में ेइ ईच्च अय वाल दशों में जनसंख्या वृवि े वलए एे
प्रमुख योगदानेताथ होगा। 2015 स 2050 े म्य, ईच्च अय वाल दशों े समूह में ेु ल जन्म, मृ्यु स
लगभग 20 वमवलयन ऄवधे होन ेा ऄनुमान है, जबके प्रवावसयों े ेु ल जनसंख्या में 91 वमवलयन
े वृवि होन ेा ऄनुमान है। आस प्रेार, ईच्च अय वाल दशों में ववशुि प्रवासन े ेारण जनसंख्या में
82 प्रवतशत े वृवि होन ेा ऄनुमान लगाया गया है।
लगभग अधी सदी स एवशया, ऄफ्र ेा रर लैरटन ऄमररेा स यूरोप, ईिरी ऄमररेा रर ओवशवनया
े ओर लोगों े संचरण े वैविे प्रवास प्रवतरूप में प्रमुख भूवमेा रही है, यद्यवप ववेासशील दशों
े म्य होन वाला प्रवास भी मह्वपूणथ है। ेइ वषों स "तृतीय ववि (global south)" े वववभन्न ईच्च
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रर म्यम अय समूह वाल दश भी बड़ी संख्या में प्रवावसयों ेो अेर्थषत ेर रह हैं।
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2015 स 2050 े म्य, संयुि राज्य ऄमररेा, ेनाडा, यूनाआटड केगडम, ऑस्रवलया, जमथनी, रूसी
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संघ रर आटली ेा ववशुि ऄंतराथष्ट्रीय प्रवावसयों (प्रवतवषथ1,00,000 स ऄवधे) वाल प्रमुख गंतव्य दश
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होन ेा ऄनुमान है। भारत, बांग्लादश, चीन, पाकेस्तान रर मवक्सेो जैस दशों स प्रवतवषथ
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ऐस दशों या क्षत्रों में जहां प्रजनन क्षमता पहल स ही प्रवतस्थापन स्तर स ेम है, ेु ल जनसंख्या े तब
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ते ेम रहन े ऄपक्षा है जब ते के मृ्यु दर एवं जन्म दर में ववद्यमान ऄंतराल ेो ववशुि प्रवासन
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द्वारा समा्त न ेर कदया जाय। हालांके, ऄंतराथष्ट्रीय प्रवासन ेा वतथमान स्तर प्रजनन क्षमता े वनम्न
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स्तर े ेारण जनसंख्या में होन वाली प्र्यावशत ेमी े पूणथ प्रवतपूर्थत ेरन में ऄसमथथ रहगा।
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समग्र ववि में शरणार्थथयों े संख्या ऄब ते े सवोच्च स्तर ते पहुंचन े सम्भावना है-
सीररयाइ संेट े साथ ऄफगावनस्तान, म्य ऄफ़्र े गणराज्य, आररररया, लीवबया रर यमन स
होन वाला ववस्थापन भी आसमें सवम्मवलत हो जायगा।
सतत ववेास लक्ष्य (SDG) 2030 े ऄंतगथत गरीबी शमन में योगदान ेरन े प्रवासन े
क्षमता ेो स्वीेृ त केया गया है।
वपछल 20 वषों में संपूणथ ववि में प्रवावसयों में मवहलाओं े संख्या में वृवि हुयी है, क्योंके श्रम
े वैविे मांग घरलू ेायों, सवाओं, अवतथ्य स्ेार रर यौन ेमथ पर ेें कद्रत हो गइ है। आन
संयुि राष्ट्र े ऄनुसार “शरणाथी वह व्यवि है, जो नस्ल, धमथ, राष्ट्रीयता, वववशष्ट सामावजे समूह े
सदस्यता ऄथवा राजनीवते मत े पररणामस्वरूप होन वाल ई्पीड़न े भय े ेारण ऄपनी
राष्ट्रीयता वाल दश स बाहर है तथा आसी भय े ेारण वह ऄपन दश े सुरक्षा ेा लाभ ईिान े
वलए ऄवनच्छु े ऄथवा ऄसमथथ है।” (संयुि राष्ट्र 1984)
आस प्रेार राजनीवते, धार्थमे या नस्लीय प्रेृ वत े बा्येारी ेारेों े ेारण जनसंख्या ेा व्यापे
स्तर पर ऄंतराथष्ट्रीय स्थानांतरण हुअ है। संभवतः आस सदी में लोगों ेा सवाथवधे व्यापे स्तर पर
स्थानांतरण भारतीय ईपमहाद्वीप में हुअ है। वषथ 1947 में विरटश भारत े भारत संघ रर पाकेस्तान
om
में ववभाजन े पररणामस्वरूप शरणार्थथयों ेा एे दश स दूसर दश में वृहद स्तर पर पलायन हुअ था।
ऄनुमान लगाया गया है के 7 वमवलयन व्यवि भारत स पाकेस्तान गए तथा 8 वमवलयन स ऄवधे l.c
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व्यवि पाकेस्तान स भारत अए। 1971 ेा भारत-पाे युि भी पूवी पाकेस्तान (वतथमान बांग्लादश)
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े लोगों ेा बड़ी संख्या में शरणार्थथयों े रूप में भारत े ईिर-पूवी राज्यों में पलायन ेा ेारण
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बना। जो वतथमान में यह आन राज्यों े वलए एे स्थायी समस्या बन गइ है। आसी प्रेार “वबहारी”
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एवशया में ेइ बार आवतहास े सबस बड़ बलात् ऄंतराथष्ट्रीय प्रवास हुए हैं। ईदाहरण े वलए 1975 े
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पिात् 12 वषों में 1.7 वमवलयन स ऄवधे शरणाथी ववयतनाम, ेम्बोवडया एवं लाओस स पलायन
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ेर चुे हैं। 1979 में ऄफगावनस्तान में सोववयत हस्तक्षप े पररणामस्वरूप शरणार्थथयों न पलायन
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केया, तथा 2.7 वमवलयन शरणाथी ऄस्थायी रूप स पाकेस्तान में तथा 1.5 वमवलयन इरान में बस
गए। आन शरणार्थथयों में स ऄवधेांश ऄभी भी पड़ोसी दशों में वशववरों में वनवास ेर रह हैं। श्रीलंेा में
राजनीवते ऄशांवत े ेारण ववशाल संख्या में तवमलों न भारत में प्रवश केया है तथा वतथमान में व
तवमलनाडु में रह रह हैं।
प्राय: यह पाया गया है के वववभन्न दशों े सरेारों द्वारा मानवीय अधार पर शरणार्थथयों ेो अश्रय
प्रदान केया गया है। यद्यवप शरणार्थथयों ेा ऄेस्मात ऄंतवाथह मूल दश पर ऄ्यवधे दबाव ई्पन्न
ेरता है। यह अश्रय प्रदान ेरन वाल दशों में अव्ये वस्तुओं े ऄल्प अपूर्थत, पाररवस्थवते य
ऄसंतुलन तथा स्वास्थ्य संेट ेा ेारण बनता है। शरणार्थथयों े ववशाल संख्या तथा ईने पलायन े
ववववध अर्थथे, राजनीवते एवं सामावजे अयाम, ववशष रूप स गन्तव्य दशों े वलए, ऄने
समस्याओं ेा ेारण बनत हैं। ेभी-ेभी य गंतव्य दशों में राजनीवते जरटलताएाँ ई्पन्न ेरत हैं। व
स्वयं ेो समूहों में संगरित ेर लत हैं तथा ेु छ ररयायतों े वलए सरेार पर दबाव डालत हैं।
ईदाहरण े वलए यूनाआटड केगडम, ेनाडा तथा श्रीलंेा, प्रवास े ेारण राजनीवते रर नस्लीय
संपूणथ ववि में 65.6 वमवलयन लोगों े एे बड़ी अबादी ेो ऄपन घरों ेो छोड़न हतु बा्य
होना पड़ा है। ईनमें स लगभग 22.5 वमवलयन लोग शरणाथी हैं तथा वजसमें अध स ऄवधे 18
वषथ स ेम अयु े हैं।
वैविे स्तर पर शरणार्थथयों े अधी स ऄवधे संख्या तीन दशों यथा- सीररया, ऄफगावनस्तान
तथा दवक्षण सूडान स सम्बंवधत है।
लगभग दो-वतहाइ सीररयाइ लोगों ेो ईने घरों ेो छोड़न हतु बा्य केया गया।
ववेासशील दश ववि े 84 प्रवतशत शरणार्थथयों ेो अश्रय प्रदान ेरत हैं।
लबनान ऄपनी जनसंख्या े सापक्ष में शरणार्थथयों े एे बड़ी संख्या ेा भरण-पोषण ेरता है।
वहां प्र्ये छह व्यवियों में एे शरणाथी है। आसे पिात् जॉडथन (11 व्यवियों में 1 शरणाथी)
तथा टेी (28 व्यवियों में 1 शरणाथी) ेा स्थान है।
टेी में शरणार्थथयों े सवाथवधे संख्या (2.9 वमवलयन) वनवास ेरती है। आसे पिात्
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पाकेस्तान (1.4 वमवलयन) रर लबनान (1 वमवलयन) ेा स्थान है।
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सॉवलडररटी अगेनाइजशन द्वारा ेरवाया गया था, वजसे तुरंत पिात् बमी सना ता्मादॉ
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वतथमान समय में,ऄंतराथष्ट्रीय समुदाय द्वारा म्यांमार े भ्सथना े जा रही है। आसेा ेारण यहााँ
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रोबहग्या मुसलमानों ेा ेवथत ‘नरसंहार' है। संयुि राष्ट्र द्वारा रोबहग्या ेो “ववि में सवाथवधे
ई्पीवड़त ऄल्पसंख्ये समूह” े रूप में मान्यता दी गयी है। यह पविमी म्यांमार में संेेंकद्रत लोगों
ेा एे राज्यववहीन समूह है जो बमी राज्य रर सना े िू र हमलों ेा सामना ेर रहा है।
संयुि राष्ट्र े एे ररपोटथ े ऄनुसार वतथमान में भारत में लगभग 5,500 रोबहग्या शरणाथी
पंजीेृ त केए गए हैं। रोबहग्या समुदाय े पूवज
थ ों ेो विरटश रपवनववशे सरेार द्वारा (जब
ईन्होंन 1824 में बमाथ ेा ऄवधग्रहण ेर वलया था) पविमी म्यांमार में लाया गया था। पूवथ में
पविमी म्यांमार ेो ऄराेान ेहा जाता था, वजसेा वतथमान नाम रखाआन है।
वषथ 1982 में बमी सरेार न एे नागररेता ऄवधवनयम पाररत केया था, वजसे ऄंतगथत
रोबहग्या मुवस्लमों ेो ‘सह’ नागररे े रूप में वगीेृ त केया गया था। ‘सह’ नागररेों हतु
वनधाथररत केए गए वनयमों न रोबहग्याओं ेो केसी भी सरेारी पद ेो धारण ेरन तथा ऄन्य
2015 में अवास रर शहरी गरीबी ईपशमन मंत्रालय द्वारा स्थावपत 'प्रवासन पर ेायथेारी समूह' न
दश में प्रवावसयों े वहतों े रक्षा हतु अव्ये वववधे रर नीवतगत फ्रमवेथ े ऄनुशस ं ा े । आसमें
वनर्कदष्ट केया गया है के प्रवासी जनसंख्या दश े अर्थथे ववेास में मह्वपूणथ योगदान ेरती है रर
ईने संवैधावने ऄवधेारों ेो सुरवक्षत ेरन े अव्येता है।
आसे द्वारा प्रवावसयों े जावत अधाररत गणना े ऄनुशंसा े गयी है, ताके व गंतव्य राज्य में
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संबंवधत लाभ प्रा्त ेर सेें । आसे द्वारा यह भी ऄनुशस l.c
ं ा े गयी है के सावथजवने ववतरण प्रणाली
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(PDS) ेा ऄंतर-राज्यीय संचालन लागू ेर प्रवावसयों ेो गंतव्य राज्य में PDS ेा लाभ प्रा्त ेरन
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दश े क्षत्रावधेार में वस्थत केसी भी भाग में अवागमन रर वनवास े स्वतंत्रता े संवैधावने
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ऄवधेार ेा ईल्लख ेरत हुए, आस समूह न सुझाव कदया है के ेायथ रर रोजगार में केसी भी प्रेार
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े भदभाव ेो रोेन े वलए राज्यों ेो मूल वनवास संबंधी शतथ ेो ऄग्रसकिय रूप स समा्त ेरन हतु
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प्रो्सावहत केया जाना चावहए। साथ ही राज्यों ेो प्रवासी बच्चों े वशक्षा े ऄवधेार ेो बनाए रखन
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े वलए सवथ वशक्षा ऄवभयान (SSA) े ऄंतगथत वार्थषे ेायथ योजनाओं में ईनेो सवम्मवलत ेरन े
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ेायथेारी समूह न सुझाव कदया के ऄनौपचाररे प्रषण स बचन े वलए धनरावश े हस्तांतरण े
लागत ेो ेम ेरे डाेघरों े वृहद नटवेथ ेा प्रभावी ईपयोग केया जाना चावहए। आसन यह
सुझाव भी कदया है के बैंेों ेो नो योर ेस्टमर (KYC) मानदंडों े संबंध में RBI े कदशा-वनदेशों ेा
ऄनुपालन ेर प्रवावसयों ेो बैंे खाता खोलन में सक्षम बनाना चावहए रर ऄनाव्ये दस्तावजों े
मांग नहीं े जानी चावहए।
साथ ही यह सुझाव भी कदया गया है के प्रवावसयों े लाभ हतु बड़ी मात्रा में ऄल्पप्रयुि ‘ें स्रक्शन
वेथ सथ वलफयर सस फण्ड’ (Construction Workers Welfare Cess Fund) ेा ईपयोग केराए
े अवास, वर्केग वीमन हॉस्टल अकद े वलए केया जाना चावहए।
जनगणना 2011 रर राष्ट्रीय नमूना सवेक्षण संगिन (NSSO) े अंेड़ों ेा ईल्लख ेरत हुए समूह न
ेहा है के दश े ेु ल जनसंख्या रर साथ ही ेायथबल ेा लगभग 30% प्रवासी हैं। हाल ही े
अर्थथे सवेक्षण े ऄनुसार दश में वार्थषे प्रवासन 2011 े 3.30 वमवलयन स बढ़ेर 2016 में 9.00
वमवलयन हो गया है।
ववि अर्थथे मंच े ऄनुसार, जनांकेे य बलों, वैिीेरण रर पयाथवरणीय वनम्नीेरण ेा अशय है
के अगामी दशेों में सीमा-पार प्रवास े दबाव में वृवि होगी तथा सीमा-पार े चुनौवतयों े वलए
सीमापारीय समाधान े अव्येता है।
आसवलए, वैविे नीवतगत प्रयासों ेो प्रभाववत दशों े म्य बहतर सहयोग रर वाताथ पर ्यान दना
चावहए। आसमें सभी दशों ेो वमलेर प्रवावसयों े सहायता ेरना, ववप्रषण प्रवाह ेो सुववधाजने
बनाना, श्रवमे ऄवधेारों े सुरक्षा रर प्रवावसयों े वलए एे सुरवक्षत रर भयमुि ेायथ वातावरण
ेो प्रो्साहन प्रदान ेरना सवम्मवलत है।
ऄंतराथष्ट्रीय प्रवावसयों े वलए सुसरं वचत एे ेरण नीवत में वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
प्रथम, ेायथ े तलाश एवं बहतर रोज़गार सवाएाँ प्रदान ेरन हतु प्रवावसयों े ता्ेावले
क्षमता ेा ववेास ेर श्रम बाजारों े क्षमता ेा सुदढृ ीेरण ेरना ताके व प्रवावसयों ेो
रोज़गार प्रदान ेर से।
वद्वतीय, वहनीय वशक्षा, भाषा एवं रोजगार प्रवशक्षण प्रदान ेर वशक्षण रर प्रवशक्षण ते पहुाँच
ेो बढ़ाना।
तृतीय, ववदशी योग्यताओं ेो पहचानन हतु सरल, वहनीय रर पारदशी प्रकियाओं ेो ऄपनाेर
ेौशल पहचान में सुधार ेरना।
ऄंततः, स्टाटथ-ऄप े समक्ष ववद्यमान बाधाओं ेो ेम ेरे रर वववधे परामशथ, ेाईं सबलग एवं
प्रवशक्षण संबंधी सहयोग प्रदान ेर प्रवासी ईद्यवमयों े सहायता ेरना।
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ऄंतराथष्ट्रीय प्रवासन स संबवं धत दूसरा मुद्दा प्रवतभा पलायन (Brain drain) ेा है। प्रवशवक्षत श्रम बल
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ेा दश स बाहर पलायन बचता ेा ववषय है, क्योंके यह स्थानीय मानव पूंजी वनमाथण े गुणविा रर
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मात्रा ेो प्रवतेू ल रूप स प्रभाववत ेरता है। व्यविगत ऄवधेारों े अधारवशला पर वनर्थमत
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लोेतांवत्रे दश े रूप में भारत ऄपन नागररेों ेो दश छोड़न स रोे नहीं सेता है। हालांके,
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सवब्सडी युि वशक्षा, ववशष रूप स तेनीे एवं वचके्सा वशक्षा, े मा्यम स युवाओं में केय गए
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वनवश स लाभ प्राव्त ेो संभव बनान हतु वववभन्न तंत्रों े स्थापना े जा सेती है।
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आस सुवनवित ेरन ेा एे तरीेा यह है के ऑस्रवलया े ‘वडफडथ ट्यूशन प्लान' जैस तंत्र ेो ऄपनाया
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जाए। आस तंत्र े ऄंतगथत, तृतीये स्तर े वशक्षा ेो सरेार द्वारा सवब्सडी प्रदान े जाती है, वजसमें
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छात्रों ेो लागत ेा ेवल ेु छ भाग ही फ स े रूप में भुगतान ेरना पड़ता है। सरेार द्वारा
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प्राथवमेता-प्रा्त क्षत्रों में ेायथरत स्नातेों ेो ऄवतररि धनरावश ेा भुगतान ेरन े अव्येता
नहीं होती है, लकेन जो लोग प्रवास ेरत हैं या गैर-प्राथवमेता प्रा्त क्षत्र में संलग्न होत हैं, ईन्हें
सवब्सडी रावश ेा भुगतान वनधाथररत वषो े भीतर ेरना होता है। यह सुवनवित ेरता है के ईच्च
वशक्षा वहनीय बनी रह रर सरेार द्वारा प्रदान े जा रही वशक्षण सवब्सडी ेा दुरुपयोग भी न हो।
13. ववगत वषों में Vision IAS GS में स ट स्ट सीरीज में पू छ
गए प्रश्न
1. ववेास े ेारण हो रह ववस्थापन सम्बन्धी मुद्दों े वववभन्न पहलुओं पर चचाथ े वजए। आन
मुद्दों े समाधान हतु ईपाय सुझाआए।
दृवष्टेोण:
ववेास जवनत ववस्थापन सम्बंधी मुद्दों े व्यापे रूपरखा प्रस्तुत े वजए।
अग े राह दशाथआए।
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वचरेावले ऄल्पपोषण े प्रवत सुभद्य हो जात हैं।
6. रोगों े संख्या में ऄ्यवधे वृवि तथा मृ्यु: ववस्थापन सामवजे तनाव तथा मानवसे l.c
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अघात ेो प्रररत ेरता है। ऄसुरवक्षत जलापूर्थत तथा ऄव्यववस्थत सीवज प्रणाली ेा
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7. साझी सम्पवि ते पहुंच ेा ह्वास: वनधथन लोगों हतु साझी संपवियों (चारागाह, वन
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2. अन्तररे प्रवसन स न ेवल प्रवासी ही प्रभाववत होता है, परन्तु ईसे ईद्गगम रर गन्तव्य
प्रदश क्षत्र भी प्रभाववत होत हैं। चचाथ ेरें । अंतररे प्रवसन स जुड़ी समस्याओं ेो सुलझान े
ेु छ ईपाय ेा सुझाव दें।
दृवष्टेोण :
प्रवावसयों द्वारा सामना े जान वाली चुनौवतयों रर ेरिनाआयों ेो प्रस्तुत ेरें ।
ईदगम रर गंतव्य प्रदश क्षत्रों पर प्रवासन े प्रभाव पर चचाथ ेरें । आस चुनौती े सामावजे,
अर्थथे रर राजनीवते अयामों ेो प्रेावशत ेरें ।
छात्रों ेो तब ऄंतर-राज्य प्रवास े ेारण ई्पन्न होन वाली समस्याओं ेो हल ेरन हतु
केए जान वाल सुधारों ेा सुझाव दना चावहए।
ईिर:
om
प्रवासन े पररणामस्वरूप प्रवावसयों े साथ ही ईदगम रर गंतव्य प्रदश क्षत्रों पर ववववध
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प्रेार े प्रभाव पड़त है। आन चुनौवतयों रर प्रभावों े चचाथ आस प्रेार हैं:
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प्रवासी :
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प्रवासन रर मवलन बवस्तयां ऄवभन्न रूप स जुड़ी हैं। ऄवधेतर मवलन बवस्तयां
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प्रवावसयों द्वारा अबाद होती हैं। आस प्रेार े मवलन बवस्तयां अधारभूत स्वास्थ्य रर
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मवलन बवस्तयों में रहन वाल प्रवावसयों ेो ेभी-ेभी भूधारण- यानी शहरी भूवम े
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अपरावधे घटनाओं े सूचना वमलती है।
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मूल वनवासी प्रवावसयों ेो नापसंद ेरत हैं क्योंके ईन्हें भय होता है के ईने संस्ेृ वत
ai
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o ऄंतराथज्यीय प्रवासी श्रवमे (वनयोजन तथा सवा शतों ेा वववनयमन) ेानून 1979
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राज्य सरेारों द्वारा आस ऄवधवनयम े खुलेर ईपक्षा े जाती है। वजस प्रेार,
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3. अर्थथे ऄवसरों स संबवं धत बढ़ती स्थावने ऄसमानता न भारत में अंतररे प्रवसन े
स्वरूप रर गवत ेो ईल्लखनीय रूप स प्रभाववत केया है। चचाथ े वजए। साथ ही, ईच्च
अंतररे प्रवसन े ेारण ई्पन्न होन वाली चुनौवतयों एवं आन चुनौवतयों स वनपटन े वलए
ईिाए जान योग्य ेदमों ेा वववरण दीवजए।
दृवष्टेोण:
अंतररे प्रवसन एवं आसे पररणामस्वरूप ई्पन्न होन वाली अर्थथे ऄसमानताओं ेो संक्षप
में व्याख्या े वजए। ऄपन वबन्दुओं ेो सुदढ़ृ ेरन े वलए ेु छ ईदाहरण एवं तथ्य दीवजए।
om
ईसे बाद अंतररे प्रवसन द्वारा ई्पन्न े गयी चुनौवतयों ेो स्पष्ट े वजए।
ऄंत में चुनौवतयों स वनपटन े वलए ेु छ ेदम सुझाआए। l.c
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ईिर:
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अंतररे प्रवसन ेो रोजगार े ऄवसरों, बहतर जीवन वस्थवतयों आ्याकद े खोज में लोगों
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27
ेा एे प्रदश स दूसर प्रदश या एे क्षत्र स दूसर क्षत्र े वलए स्थानांतरण े रूप में
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पररभावषत केया जा सेता है। भारत में जारी प्रवृवि यह प्रदर्थशत ेरती है के अंतररे
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प्रवसन में भूवमेा वनभान वाल ऄने ेारेों में स अर्थथे ऄवसरों में बढ़ती स्थावने
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ऄसमानताओं न भारत में अंतररे प्रवसन े गवत एवं स्वरुप ेो ेाफ हद ते प्रभाववत
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तुलना में ऄवधे ऄंत:-प्रवसन े ेारण सवाथवधे जनसंख्या खोन वाल प्रदशों में अन्ध्र-
प्रदश, वबहार, छिीसगढ़, जम्मू रर े्मीर, झारखंड, ेरल, म्य प्रदश, ओवडशा,
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अइ है।
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शहरी क्षत्रों में ेम लागत े मेान ईपलब्ध ेराना ताके मवलन बवस्तयों ेा ईन्मूलन
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केया जा से।
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रोजगार एवं शहरी क्षत्रों में वनवास ेरन वाल प्रवावसयों े ेल्याण स संबि प्रवसन
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नीवतयों ेा गिन।
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4. पवथतीय क्षत्रों में वनवास ेरन वाल लोगों ेा बड़ पैमान पर मैदानी क्षत्रों े ओर पलायन े
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पररणामस्वरूप ईिराखंड जैस स्थानों में बवस्तयााँ वीरान गांव बनती जा रही हैं। आस
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दृवष्टेोण:
पवथतीय क्षत्रों स हो रह बड़ पैमान पर पलायन े ेारणों रर ईसे वनवहताथों (सामावजे,
अर्थथे, रणनीवते) पर चचाथ े वजए।
आस समस्या स वनपटन े वलए समाधान हतु सुझाव दीवजए।
ईिर:
भारत में पवथतीय राज्य ववववधतापूणथ जैव ववववधता रर संस्ेृ वत ेो अश्रय दत हैं। सकदयों स
य क्षत्र पयाथवरण े साथ सामंजस्यपूणथ सह-ऄवस्त्व े साक्षी रह हैं। हालांके, अजीववेा े
ऄवसरों े तलाश में मैदानों े ओर पवथतीय क्षत्रों े लोगों ेा पलायन एे बड़ी समस्या
बन गइ है। ईदाहरण े वलए वपछल दशे में ईिराखंड े 13 वजलों में स 9 पवथतीय वजल
पलायन े ेारण प्रभाववत हुए हैं। 2011 े जनगणना े ऄनुसार, दो पवथतीय वजलों, पौड़ी
रर ऄल्मोड़ा े अबादी में नेारा्मे वृवि हुइ है।
आस वस्थवत े वलए ईिरदायी वववभन्न ेारणों में सवम्मवलत हैं:
ऄ्यवधे बांध-वनमाथण गवतवववधयों े ेारण जल े ेमी रर चारागाहों ेा क्षरण।
बसचाइ ऄवसंरचना े ेमी े ेारण ेृ वष गैर लाभेारी ईद्यम बन रही है। ईदाहरण
े वलए, हररद्वार रर ईधम बसह नगर े मैदानी वजलों में 95 प्रवतशत स भी ऄवधे
बसवचत भूवम े तुलना में ईिराखंड े 11 पवथतीय वजलों में ेवल 18 प्रवतशत भूवम
बसवचत है।
ऄपयाथ्त /ख़राब ेनवक्टववटी आन दूरस्थ क्षत्रों में वनवास ेरन ेो रर ऄवधे दुष्ेर
बनाती है। योजना अयोग े 2011 े ररपोटथ े ऄनुसार ईिराखंड में 5000 गांव
पवथतीय क्षत्रों े ऄवधेांश केसान वनचल क्षत्रों े ईच्च मात्रा में ई्पादन े साथ
प्रवतस्पधाथ नहीं ेर सेत हैं रर प्राय: लंबी अपूर्थत श्रृंखलाओं े ेारण, वजसस
पररवहन रर ऄन्य लागतें बढ़ जाती हैं, ईन्हें ईने ईपज े मूल्य ेा ेवल एे ऄंश
om
ऄसंतुवलत बलगानुपात
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पवथतीय क्षत्रों में स्वास्थ्य सवाओं जैसी मह्वपूणथ सवाओं े वलए नेारा्मे वनवहताथथ।
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सीमावती क्षत्रों में वनजथनीेरण जैस रणनीवते पहलू, जो ववदशी घुसपैि या माओवादी
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पररसीमन प्रकिया े प्रवृवि ऄपक्षाेृ त ऄवधे राजनीवते वनवाथचन क्षत्र मैदानी क्षत्रों
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में स्थानांतररत ेरन े है जो ईिराखंड जैस पवथतीय राज्यों े प्रारं वभे ईद्द्यों े
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बड़ पैमान पर पलायन स चीड़ पाआन े सुआयों े स्थानीय ईपयोग में भी ेमी अयी है,
ेरन े वलए पयाथ्त ववि पोषण रर तेनीे ज्ञान प्रदान ेरना, मूल्य श्रृंखला े
1. ववगत चार दशेों में भारत े अन्तररे तथा बाह्य श्रम प्रवास े प्रवृवियों में हुए बदलावों
पर चचाथ े वजए।
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भारतीय समाज ai
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4.3.3. प्रवासन (Migration)__________________________________________________________________ 14
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8. जनसंख्या संबध
ं ी मुद्दे__________________________________________________________________________ 35
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10. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 का मूल्यांकन ________________________________________________________ 43
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11. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (NPP) 2000: अगे की राह __________________________________________________ 43
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11.1 भारत में जनसंख्या वृधि को धनयंधत्रत करने हेतु ककए गए ईपाय _________________________________________ 44
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13.धवगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 61
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14. धवगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 68
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एक धशधक्षत, प्रबुि और जागरूक जनसंख्या ककसी लोकतंत्र की सुदढ़ृ ता को बढ़ावा देने हेतु सवााधधक
धविसनीय साधनों में से एक है - नेल्सन मंडल
े ा
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2. जनसां धख्यकी क्या है ? ai
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(What is demography?)
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भाषा से हुइ है तथा यह दो शब्दों, 'डेमोस' ऄथाात् जन (लोग) और 'ग्राफीन' ऄथाात् वणान से
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धमलकर बना है, धजसका तात्पया है- ‘लोगों का वणान’। जनसांधख्यकी के ऄंतगात जनसंख्या से
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संबंधधत धवधभन्न प्रवृधियों और प्रकक्रयाओं का ऄध्ययन ककया जाता है, धजसमें जनसंख्या के अकार
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में पररवतान, जन्म, मृत्यु एवं प्रवसन के प्रधतरूप तथा जनसंख्या की संरचना एवं संघटन (ऄथाात्
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ईसमें धियों, पुरुषों और धवधभन्न अयु वगा के लोगों का क्या ऄनुपात है?) को सधम्मधलत ककया
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जाता है। जनसांधख्यकी के धवधभन्न प्रकार होते हैं जैसे, अकाररक जनसांधख्यकी (formal
demography) धजसमें ऄधधकतर जनसंख्या के अकार ऄथाात् मात्रा का ऄध्ययन ककया जाता है
और सामाधजक जनसांधख्यकी धजसमें जनसंख्या के सामाधजक, अर्थथक या राजनीधतक पक्षों पर
धवचार ककया जाता है।
अकाररक जनसांधख्यकी प्रमुख रूप से जनसंख्या पररवतान के संघटकों के धवश्लेषण और मापन से
संबंध रखती है। आसके ऄंतगात मात्रात्मक धवश्लेषण पर धवशेष रूप से ध्यान के धन्ित ककया जाता है
धजसके धलए ऄत्यंत धवकधसत गधणतीय धवधध का प्रयोग ककया जाता है। यह धवधध जनसंख्या की
वृधि और ईसके गठन में होने वाले पररवतानों का पूवाानुमान लगाने के धलए ईपयुक्त होती है।
दूसरी ओर, जनसंख्या ऄध्ययन या सामाधजक जनसांधख्यकी के ऄंतगात जनसंख्या की संरचनाओं
और पररवतान के व्ापक कारणों और पररणामों का ऄध्ययन ककया जाता है। सामाधजक
जनसांधख्यकीधवदों का मानना है कक सामाधजक प्रकक्रयाएं और संरचनाएं जनसांधख्यकीय प्रकक्रयाओं
को धनयंधत्रत करती हैं। समाजशाधियों के समान वे ईन सामाधजक कारणों का पता लगाने का
प्रयास करते हैं जो जनसंख्या की प्रवृधियों को धनधााररत करते हैं।
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एजेंसी है धजसका काया धवकासात्मक धनयोजन हेतु महत्वपूणा क्षेत्रों में सांधख्यकीय अाँकड़े एकधत्रत
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करना है।
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धनम्नधलधखत तीन प्रश्न जनसंख्या के अाँकड़ों से संबंधधत हमारी लचताओं का समग्र रूप से समाधान कर
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सकते हैं।
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प्रश्न.1 ककसी क्षेत्र में ककतने लोग हैं और वे कहााँ ऄवधस्थत हैं?
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प्रश्न.3 लोगों की अयु, ललग संघटन, साक्षरता स्तर, व्ावसाधयक संरचना और स्वास््य धस्थधतयों अकद
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से संबंधधत जानकारी।
अआये ईपयुाक्त प्रश्नों पर एक एक करके धवचार करते हैं।
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2015 में, धवि की कु ल जनसंख्या के ऄंतगात 50.4 प्रधतशत पुरुष और 49.6 प्रधतशत मधहलाएं थीं।
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वैधिक जनसंख्या की औसत अयु 29.6 वषा है। औसत अयु वह अयु होती है धजसकी तुलना में अधी
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जनसंख्या की अयु ऄधधक और अधी की अयु कम होती है। वैधिक जनसंख्या का लगभग एक-चौथाइ
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(26 प्रधतशत) भाग 15 वषा से कम अयु वगा में है; 62 प्रधतशत जनसंख्या 15-59 वषा अयु वगा में है
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घनत्व के अधार पर
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भारतीय जनसंख्या का
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धवतरण:
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जनसंख्या घनत्व को
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व्धक्तयों की संख्या के
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जल की ईपलब्धता: जल जीवन का सवााधधक महत्वपूणा कारक है। ऄतः लोग ईन क्षेत्रों में धनवास
को प्राथधमकता देते हैं, जहां मीठा एवं स्वच्छ जल सरलता से ईपलब्ध होता है। जल का ईपयोग
पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, ईद्योगों तथा नौसंचालन हेतु ककया
जाता है। यही कारण है कक नदी घारटयां धवि के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्रों में सधम्मधलत हैं। आसमें
कोइ अश्चया नहीं है कक लसधु और मेसोपोटाधमया जैसी सभ्यताएं नकदयों के ककनारे ही धवकधसत
हुइ थीं, क्योंकक नकदयां आन क्षेत्रों में बधस्तयों के धलए जल की पयााप्त एवं धनधश्चत मात्रा सुधनधश्चत
करती थीं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में जल की ऄपयााप्तता के कारण जनसंख्या घनत्व कम होता है।
मरुस्थलीय क्षेत्रों में के वल मरु ईद्यान (oasis) ही सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं और यहां भी जल
की ईपलब्धता जनसंख्या को सीधमत करती है।
भू-अकृ धत (ईच्चावच): लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसना पसंद करते हैं। आसका कारण
यह है कक ऐसे क्षेत्र फसल ईत्पादन, सड़क धनमााण और ईद्योगों के धलए ऄनुकूल होते हैं। पवातीय
और पहाड़ी क्षेत्र पररवहन-तंत्र के धवकास में ऄवरोधक होते हैं, आसधलए ये क्षेत्र कृ धष एवं
औद्योधगक धवकास के धलए ऄनुकूल नहीं होते हैं। ऄतः आन क्षेत्रों में ऄल्प जनसंख्या पाइ जाती है।
गंगा का मैदान धवि के सवााधधक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकक धहमालय के
पवातीय क्षेत्र धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। 4000 मीटर से ऄधधक की उाँचाइ पर वायुमंडल की
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धवरलता के कारण सााँस लेना करठन और िम करना थका देने वाला होता है। आसधलए के वल ईन
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ईच्च पठारी क्षेत्रों में जहां कृ धष और संचार कक्रया ऄपेक्षाकृ त सरल होती है, मानवीय बधस्तयां पायी
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जाती हैं ऄन्यथा ऄन्य सभी पठारी क्षेत्रों में मानवीय बधस्तयां घारटयों में ही संकेंकित होती हैं।
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जलवायु: ऄधत ईष्ण और शीत मरुस्थलों की चरम जलवायवीय दशाएाँ मानवीय ऄधधवासों के
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धलए कष्टकारी होती हैं। सुखद जलवायु वाले क्षेत्र जहां पर ऄधधक मौसमी पररवतान नहीं होते हैं,
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लोगों को ऄधधक अकर्थषत करते हैं। आसी प्रकार ऄत्यधधक वषाा ऄथवा चरम एवं कठोर जलवायु
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मृदाएं: कृ धष और आससे संबंधधत गधतधवधधयों के धलए ईपजाउ मृदाएं महत्वपूणा होती हैं। ऄतः
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ईपजाउ दोमट मृदा युक्त क्षेत्रों में ऄधधक लोग धनवास करते हैं क्योंकक ये मृदाएं गहन कृ धष के धलए
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खधनज: खधनज धनक्षेपों से युक्त क्षेत्र ईद्योगों को बढ़ावा देते हैं तथा खनन और औद्योधगक
गधतधवधधयां रोजगार का सृजन करती हैं। ऄतः कु शल एवं ऄिा कु शल िधमक आन क्षेत्रों की ओर
पलायन करते हैं और ऐसे क्षेत्रों को सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र बना देते हैं।
नगरीकरण: नगर रोजगार के बेहतर ऄवसर, शैक्षधणक एवं धचककत्सा सुधवधाएं तथा पररवहन एवं
संचार के बेहतर साधन प्रदान करते हैं। बेहतर जन सुधवधाएं और नगरीय जीवन के प्रधत अकषाण
लोगों को नगरों की ओर अकर्थषत करता है। आसके पररणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों
की ओर प्रवास होता है और नगरों के अकार में वृधि होती है। धवि के महानगर प्रत्येक वषा बड़ी
संख्या में प्रवाधसयों को अकर्थषत कर रहे हैं।
औद्योगीकरण: औद्योधगक क्षेत्र, रोजगार के ऄवसर प्रदान करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को
अकर्थषत करते हैं। आसमें के वल कारखानों के िधमक ही नहीं बधल्क ट्ांसपोटा संचालक, दुकानदार,
बैंक कमाचारी, डॉक्टर, ऄध्यापक तथा ऄन्य सेवा प्रदाता भी सधम्मधलत होते हैं।
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जनसंख्या की वृधि दर (Growth Rate of Population): आससे अशय प्रधतशत के रूप में व्क्त
जनसंख्या पररवतान से है। l.c
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प्रजननता, जनसंख्या वृधि का महत्वपूणा धनधाारक है। आस खंड में, ईच्च प्रजननता के मापक, स्तर एवं
प्रवृधियों तथा धनधहताथों पर चचाा की जाएगी।
प्रजननता का मापन (Measurement of Fertility)
सवाप्रथम, संतानोत्पादकता (fecundity) एवं प्रजननता (Fertility) के मध्य ऄंतर करना अवश्यक
है। संतानोत्पादकता से अशय संतानोत्पधि हेतु शारीररक क्षमता से है जबकक प्रजननता ककसी
व्धक्त या एक समूह के वास्तधवक प्रजनन धनष्पादन से संबंधधत है। आसके साथ ही संतानोत्पादकता
की कोइ प्रत्यक्ष माप ईपलब्ध नहीं हैं जबकक प्रजननता का ऄध्ययन जन्म संबंधी सांधख्यकीय
अाँकड़ों से ककया जा सकता है। ऄशोधधत जन्म दर (Crude Birth Rate) प्रजननता की एक
महत्वपूणा माप है धजसमें के वल जीधवत जन्मों ऄथाात् जीधवत जन्मे बच्चों की गणना की जाती है।
ऄशोधधत जन्म दर की गणना ककसी धनर्ददष्ट क्षेत्र में एक कै लेंडर वषा के दौरान जन्मे जीधवत बच्चों
की संख्या को ईस वषा के मध्य की कु ल जनसंख्या से धवभाधजत कर की जाती है। ऄशोधधत जन्म
दर को सामान्यतः प्रधत 1000 जनसंख्या पर ऄधभव्क्त ककया जाता है।
ऄशोधधत जन्म दर जनसंख्या वृधि दर में प्रजननता के योगदान को प्रत्यक्ष रूप से आं धगत करती है।
आसकी भी कु छ सीमाएं हैं, क्योंकक हर (denominator) के रुप में कु ल जनसंख्या को धलया जाता
है धजसके ऄंतगात पुरुषों, बहुत कम अयु की बाधलकाओं और ऄधत वृि मधहलाओं (जैधवक रूप से
रूप से प्रजनन के धलए ऄक्षम) को भी शाधमल कर धलया जाता है।
आन सीमाओं को दूर करने के धलए सामान्य प्रजनन दर, अयु-धवधशष्ट प्रजनन दर आत्याकद जैसे ऄन्य
ऄधधक पररष्कृ त प्रजननता मापकों का प्रयोग ककया जाता है।
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o सामान्य प्रजनन दर (General Fertility Rate): यह ककसी दी गइ ऄवधध में 15-49 अयु वगा
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(गभाधारण योग्य अयु समूह) की प्रधत 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए जीधवत बच्चों की
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संख्या है।
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ऄवधध के दौरान ककसी धवधशष्ट प्रजनन योग्य अयु-समूह की 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए
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o सकल प्रजनन दर (Total Fertility Rate: TFR): प्रजनन दर से तात्पया है ऐसे जीधवत जन्म लेने
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वाले बच्चों की कु ल संख्या है धजन्हें कोइ एक िी जन्म देती यकद वह प्रजनन अयु वगा की पूरी
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ऄवधध के दौरान जीधवत रहती और आस अयु वगा के प्रत्येक खंड में औसतन ईतने ही बच्चों को जन्म
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देती धजतने ईस क्षेत्र में अयु धवधशष्ट प्रजनन दरों के ऄनुसार होने चाधहए। दूसरे शब्दों में, सकल
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प्रजनन दर धियों के एक धवशेष वगा द्वारा ईनकी प्रजनन अयु की ऄवधध के ऄंत तक पैदा ककए गए
बच्चों की औसत संख्या के बराबर होती है।
ईच्च प्रजननता के धनधाारक (Determinants of High Fertility)
भारतीय मधहलाओं में ईच्च प्रजननता हेतु धनम्नधलधखत कारक ईिरदायी हैं:
धार्थमक धवचारधाराएाँ
धववाह संस्था का सावाभौमीकरण
शीघ्र धववाह एवं शीघ्र गभाधारण
भारतीय संस्कृ धत में पुत्रों को वरीयता देने की प्रथा का गहराइ से व्ाप्त होना।
मधहलाओं में प्रजनन के संबंध में अत्मधनणायन के ऄधधकार का न होना।
ईच्च धशशु एवं बाल मृत्यु दर - (स्वास््य का धनम्न स्तर, धनम्न पोषण स्तर तथा धनधानता) भी
पररवार के अकार को बढ़ाने में योगदान करती है।
भारतीय समाज में बच्चों का अर्थथक, सामाधजक, सांस्कृ धतक के साथ-साथ धार्थमक महत्व होना।
गभाधारण को धनयधन्त्रत करने के तरीकों को न ऄपनाया जाना।
भी धवद्यमान हैं जो ककसी दंपधि के प्रजनन व्वहार को धवधनयधमत करते हैं। स्तनपान भारतीय
ईपमहाद्वीप में सवात्र प्रचधलत है और आसका गभााधान पर एक ऄवरोधक प्रभाव होता है। आसके साथ ही
प्रसवोिर ऄवधध के दौरान कु छ वजानाओं को भी व्वहार में लाया जाता है एवं दंपधि से यौन
गधतधवधधयों से दूर रहने की ऄपेक्षा की जाती है। ऄपने प्रथम धशशु के प्रसव के समय मधहला के ऄपने
पैतक
ृ घर जाने की प्रथा भी देश के कु छ भागों में सामान्य रूप से प्रचधलत है। आस प्रथा के कारण भी
धशशु जन्म के ईपरांत दंपधि यौन गधतधवधधयों से दूर रहते हैं धजसके पररणामस्वरूप ऄगले गभाधारण
की प्रकक्रया भी स्थधगत हो जाती है। महीने के कु छ धवधशष्ट कदनों के धलए यौन गधतधवधधयां भी
प्रधतबंधधत होती हैं। आसके ऄधतररक्त यह भी सवाधवकदत है कक यकद कोइ मधहला दादी बनने के बाद भी
गभाधारण करे तो ईसे ईपहास का पात्र बनना पड़ता है।
ईच्च प्रजननता, देश की जनसंख्या समस्या में महत्वपूणा योगदान करने के ऄधतररक्त पररवार के साथ-
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होती हैं। आस प्रकार वे अत्म-ऄधभव्धक्त और अत्म-धवकास से संबंधधत ऄवसरों से वंधचत कर दी
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जाती हैं। आससे ईनमें धनराशा का भाव ईत्पन्न हो सकता है। ऄत्यधधक संतानोत्पधि ईनके स्वास््य
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तथा ईनके बच्चों के स्वास््य को प्रभाधवत करती है। आसके ऄधतररक्त ऄधधक बच्चों की देखभाल ऐसी
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मधहलाओं के दुबल
ा शारीररक एवं भावनात्मक साम्या पर और ऄधधक दबाव डालती है।
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एक बड़े पररवार का पालन-पोषण पररवार के पालनकताा पर ऄत्यधधक दबाव डालता है। पररवार
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के एक धनवााह स्तर को बनाए रखने के धलए धनरं तर संघषा करना करठन हो जाता है। ऐसे में वह
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जीवन की प्रधतकदन की समस्याओं से बचने के धलए मद्यपान अरम्भ कर सकता है, धजससे पररवार
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ऐसे में वे बच्चे जो प्रायः ऄवांधछत, ऄधप्रय और ईपेधक्षत होते हैं, ईन्हें जीवन धनवााह के धलए ऄके ला
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छोड़ कदया जाता है। बड़े अकार के पररवारों के बच्चे पररवार के कमज़ोर धविीय संसाधनों की पूर्थत
हेतु प्राय: ऄल्प अयु में ही काया करना अरम्भ कर देते हैं। यहााँ तक कक वे अपराधधक गधतधवधधयों
में धलप्त हो जाते हैं और आस प्रकार वे धवद्यालय जाने एवं धशक्षा प्राप्त करने के ऄवसरों से वंधचत हो
जाते हैं।
आन पररधस्थधतयों में बाधलकाएं सवााधधक पीधड़त होती हैं। ईन्हें प्रायः धवद्यालय नहीं भेजा जाता या
कम ईम्र में ही धवद्यालय जाना बंद करवा कदया जाता है ताकक वे घरे लू कायों में ऄपनी माता की
सहायता कर सकें तथा माता के घर से बाहर काया करने जाने पर ऄपने छोटे भाइ-बहनों की
देखभाल कर सकें । तत्पश्चात् शीघ्र धववाह ईन्हें संतानोत्पधि के धलए धववश करता है और यह
दुष्चक्र धनरं तर जारी रहता है। एक बड़े पररवार में बच्चे (लड़का और लड़की दोनों) ऄपने बचपन
का अनंद लेने से वंधचत हो जाते हैं तथा ऄल्पायु में ईन्हें वयस्कों की भूधमका का धनवाहन करना
पड़ता है।
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कदल्ली 1.8 1.8 1.7
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धहमाचल प्रदेश
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जम्मू कश्मीर
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मृत्यु दर का मापन
मृत्यु दर के धवधभन्न मापकों में से, तीन अधारभूत मापकों यथा: ऄशोधधत मृत्यु दर, जन्म के समय
जीवन प्रत्याशा तथा धशशु मृत्यु दर का वणान करना पयााप्त होगा।
ऄशोधधत मृत्यु दर (Crude Death Rate): यह ककसी एक धवधशष्ट कै लेंडर वषा में ककसी क्षेत्र की
ऄनुमाधनत जनसंख्या के अधार पर प्रधत 1000 व्धक्तयों पर होने वाली पंजीकृ त मृत्युओं की
संख्या होती है।
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (Expectation of Life at Birth): जन्म के समय औसत जीवन
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प्रत्याशा मृत्यु दर के स्तर की एक बेहतर मापक है क्योंकक यह जनसंख्या की अयु संरचना से
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प्रभाधवत नहीं होती है। “जीवन की औसत प्रत्याशा” या ‘जीवन प्रत्याशा’ नवजात धशशुओं के
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जीधवत रहने के संभाधवत वषों की औसत संख्या होती है (जबकक आस ऄवधध के दौरान देश में
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प्रचधलत अयु-धवधशष्ट मृत्यु दरों के ऄनुरूप मृत्यु का जोधखम भी मौजूद रहता है)। यह मापक
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वषा 1950 में जन्म से समय जीवन प्रत्याशा 37 वषा थी जबकक वतामान में जीवन प्रत्याशा बढ़कर
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लगभग दो गुनी (68 वषा) हो गइ है, धजसके 2050 तक 76 वषा होने की संभावना व्क्त की गइ है।
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आसके पररणामस्वरूप भारत की जनसंख्या वतामान की 1.3 धबधलयन से बढ़कर 2050 तक लगभग 1.7
धबधलयन हो जाएगी, धजसमें वयोवृिों की संख्या लगभग 340 धमधलयन होगी। सेवाधनवृधि से पूवा की
ऄवस्था (ऄथाात् 45 वषा से ऄधधक अयु की जनसंख्या) की जनसंख्या को शाधमल करने पर आस ऄनुपात
में 30% से ऄधधक की वृधि हो जाएगी ऄथाात् वृिों की संख्या लगभग 600 धमधलयन हो जाएगी। आस
प्रकार 2011 और 2050 के मध्य 75 वषा या ईससे ऄधधक अयु वगा के वयोवृि व्धक्तयों की संख्या में
340% की वृधि होने की संभावना है।
धशशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate): जनसांधख्यकी में ईन सभी बच्चों को धशशु के रूप में
पररभाधषत ककया गया है जो ऄपने जीवनकाल के प्रथम वषा में हैं ऄथाात् धजनकी अयु एक वषा से
कम है। भारत जैसे देशों में जहााँ स्वास््य धस्थधतयां धनम्नस्तरीय हैं, कु ल मृत्युओं में धशशु मृत्यु का
योगदान ऄत्यधधक है। आसीधलए प्राय: धशशु मृत्यु दर का ईपयोग ककसी देश की सामाधजक-अर्थथक
धस्थधत तथा जीवन की गुणविा के धनधाारण के एक संकेतक के रूप में ककया जाता है।
मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate): मातृ मृत्यु ऄनुपात का ऄधभप्राय प्रत्येक गभाावस्था
के साथ संबि जोधखम ऄथाात् प्रसूधत संबंधी जोधखम (obstetric risk) से है। मातृ मृत्यु वह होती
है धजसमें एक मधहला की गभाावस्था के दौरान या गभाावस्था की समाधप्त के 42 कदनों के भीतर
मृत्यु हो जाती है (आसकी गणना गभाावस्था की ऄवधध एवं स्थल को ध्यान में रखे धबना की जाती
है)। आसके ऄंतगात गभाावस्था या ईसके प्रबंधन से संबंधधत ककसी भी कारण से हुइ मृत्यु को
सधम्मधलत ककया जाता है तथा दुघाटना या अकधस्मक कारणों से हुइ मृत्यु को सधम्मधलत नहीं
ककया जाता है। आसे प्रधत 1,00,000 जीधवत धशशु जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्युओं की संख्या के
रूप में मापा जाता है।
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भारत में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality rate in India)
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प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली की 2011-13 की ररपोटा के ऄनुसार, देश में मातृ मृत्यु दर (MMR) 167 प्रधत
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सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य (Millennium Development Goal: MDG) 5 के ऄंतगात, 1990 से 2015
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के मध्य मातृ मृत्यु दर (MMR) को तीन चौथाइ कम करने का लक्ष्य रखा गया था। आसके पररणामस्वरूप
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जन्म और मृत्यु के ऄधतररक्त एक ऄन्य कारक भी है धजसके कारण जनसंख्या के अकार में पररवतान
होता है। जब लोग एक ईद्गम स्थान से ऄन्यत्र धस्थत गंतव् स्थान की ओर प्रवास करते हैं तो ईद्गम
स्थान की जनसंख्या में कमी होती है और गंतव् स्थान की जनसंख्या में वृधि हो जाती है।
प्रवासन को संसाधनों और जनसंख्या के मध्य बेहतर संतल ु न प्राप्त करने के एक स्वाभाधवक प्रयास के
रूप में देखा जा सकता है। प्रवासन स्थायी, ऄस्थायी या मौसमी हो सकता है। प्रवासन ग्रामीण से
ग्रामीण क्षेत्रों, ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों, नगरीय से नगरीय क्षेत्रों तथा नगरीय से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर
हो सकता है।
अप्रवासन (Immigration): ककसी नए स्थान में अने वाले प्रवाधसयों को ‘अप्रवासी’ कहा जाता है।
ईत्प्रवास (Emigration): ककसी स्थान से बाहर पलायन करने वाले प्रवाधसयों को ‘ईत्प्रवासी’ कहा
जाता है।
लोग बेहतर अर्थथक और सामाधजक जीवन के ईद्देश्य से प्रवास करते हैं। प्रवासन को प्रभाधवत करने
वाले कारकों को दो भागों में धवभाधजत ककया जाता है।
जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि (Natural Growth of Population): जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि से
अशय ककसी क्षेत्र धवशेष में दो समय ऄंतरालों के मध्य जन्म और मृत्यु के ऄंतर के कारण जनसंख्या में
होने वाली वृधि से है।
प्राकृ धतक वृधि = जन्म - मृत्यु
जनसंख्या की वास्तधवक वृधि = जन्म - मृत्यु + अप्रवास - ईत्प्रवास
जनसंख्या की धनात्मक वृधि (Positive Growth of Population): यह तब होती है जब दो समय
लबदुओं के मध्य जन्म दर, मृत्यु दर से ऄधधक हो या जब लोग स्थायी रूप से ऄन्य देशों से एक क्षेत्र में
प्रवास करते हैं।
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जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि (Negative Growth of Population): यकद दो समय लबदुओं के मध्य l.c
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जनसंख्या कम हो जाए तो ईसे जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि कहते हैं। यह तब होता है जब जन्म दर,
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सर्थबया तथा यूक्रेन सधहत ऄधधकांश देशों में 2050 तक जनसंख्या में 15 प्रधतशत तक कमी होने
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की संभावना व्क्त की गयी है। सभी यूरोपीय देशों में प्रजनन दर दीघाावधध में जनसंख्या के पूणा
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प्रधतस्थापन हेतु अवश्यक स्तर से कम (औसतन, 2.1 बच्चे प्रधत मधहला) है तथा ऄधधकांश मामलों
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2010-2015 में 1.6 बच्चे प्रधत मधहला से बढ़कर 2045-2050 में 1.8 बच्चे प्रधत मधहला तक होने
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की संभावना है, परन्तु यह वृधि जनसंख्या के अकार के संभाधवत संकुचन को रोकने हेतु पयााप्त
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नहीं होगी।
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वैधिक जनसंख्या में ऄधधकांश वृधि के धलए कु छ देशों को ईिरदायी ठहराया जा सकता है:
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वतामान से लेकर 2050 तक होने वाली कु ल वृधि के ऄधधकांश भाग हेतु या तो ईच्च प्रजनन दर
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वाले देशों (मुख्यतः ऄफ्रीकी देश) ऄथवा ऄधधक जनसंख्या वाले देशों के ईिरदायी होने का
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ऄनुमान है। 2015-2050 की ऄवधध के दौरान धवि की अधी जनसंख्या वृधि के धनम्नधलधखत नौ
देशों में कें कित होने का ऄनुमान है: भारत, नाआजीररया, पाककस्तान, डेमोक्रेरटक ररपधब्लक ऑफ़
कांगो, आधथयोधपया, यूनाआटेड ररपधब्लक ऑफ़ तंज़ाधनया, संयुक्त राज्य ऄमेररका, आं डोनेधशया तथा
युगांडा (कु ल वैधिक जनसंख्या वृधि में आनके योगदान के अकार के अधार पर क्रमबि)।
धवि भर में दीघाायत
ु ा में वृधि; प्रमुख चुनौधतयों के धवरुि प्रगधत: हाल के वषों में, जीवन प्रत्याशा
में महत्वपूणा वृधि हुइ है। वैधिक स्तर पर, 2000-2005 तथा 2010-2015 के मध्य जन्म के
समय जीवन प्रत्याशा में 3 वषा (67 से 70 वषा) की वृधि हुइ है। आस ऄवधध के दौरान सभी प्रमुख
क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा में वृधि हुइ है, परन्तु ऄफ्रीका में सवााधधक वृधि दजा की गइ। 2000 के
दशक में ऄफ्रीका में जीवन प्रत्याशा में 6 वषा की वृधि हुइ, जबकक आससे पूवा के दशक में के वल 2
वषों की ही वृधि हुइ थी।
पांच वषा से कम अयु वगा में मृत्यु दर (Under-five mortality) का अशय धशशु के जन्म से पांचवें
जन्मकदन के मध्य मृत्यु की संभावना से है। यह दर बच्चों के धवकास एवं कल्याण की एक महत्वपूणा
देशों (प्रधत 1000 पर 125 से घटकर 86) में सवााधधक कमी देखी गइ। पांच वषा से कम अयु वगा
में मृत्यु दर की कमी को सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य- 4 में सधम्मधलत ककए जाने से आसकी ओर वैधिक
ध्यान अकृ ष्ट हुअ है।
जनसांधख्यकीय लाभांश के धलए ऄवसर: धवि के कइ भागों की जनसंख्या ऄभी भी युवा है। वषा
2015 में ऄफ्रीका महाद्वीप में 15 वषा से कम अयु के बच्चों की जनसंख्या कु ल जनसंख्या का 41
प्रधतशत तथा 15 से 24 वषा के युवाओं की संख्या कु ल जनसंख्या का 19 प्रधतशत थी। वहीं लैरटन
ऄमेररका एवं कै रे धबयाइ देशों तथा एधशया में प्रजनन दर में ऄत्यधधक धगरावट दजा की गइ है।
आनकी कु ल जनसंख्या में बच्चों (क्रमशः 26 और 24) और युवाओं (क्रमशः 17 और 16 प्रधतशत) की
जनसंख्या का प्रधतशत ऄत्यंत कम है। समग्र रूप से, 2015 तक आन तीनों क्षेत्रों की जनसंख्या में
बच्चों एवं युवाओं की संख्या क्रमशः 1.7 धबधलयन और 1.1 धबधलयन थी।
आन क्षेत्रों के कइ देशों की जनसंख्या में बच्चों के ऄनुपात में धनकट भधवष्य में और ऄधधक धगरावट का
ऄनुमान है, जबकक युवा कायाशील जनसंख्या के अकार एवं ऄनुपात में वृधि होने की संभावना है।
अधित जनसंख्या की तुलना में कायाशील जनसंख्या के ईच्च ऄनुपात वाले देशों के "जनसांधख्यकीय
लाभांश" से लाभाधन्वत होने की ऄधधक संभावना है। हालांकक जनसांधख्यकीय लाभांश की प्राधप्त ईधचत
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िम बाजार और ऄन्य नीधतगत पहलों के माध्यम से कायाशील जनसंख्या की ईत्पादक क्षमता का ईधचत l.c
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दोहन कर तथा बच्चों एवं युवा मानव संसाधन में धनवेश में वृधि करके ही की जा सकती है।
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वैधिक स्तर पर 60 वषा या आससे ऄधधक अयु की जनसंख्या में तीव्रता से वृधि हो रही है: वह
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पररघटना, धजसके ऄंतगात प्रजनन दर में कमी एवं जीवन प्रत्याशा में वृधि होती है और
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पररणामस्वरूप एक धनधश्चत अयु से ऄधधक की जनसंख्या के ऄनुपात में वृधि होती है; पॉपुलश
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एलजग (जनसंख्या में वृिों की बढ़ती संख्या) के रूप में जानी जाती है। वतामान में यह वैधिक स्तर
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पर घरटत हो रही है। वस्तुतः वषा 2050 तक ऄफ्रीका के ऄधतररक्त, धवि के सभी प्रमुख क्षेत्रों में
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होगी।
ऐसा माना जाता है कक धवधभन्न देशों में पापुलेशन एलजग का िधमकों एवं सेवाधनवृत िधमकों के
ऄनुपात पर गहरा प्रभाव पड़ता है, धजसे संभाधवत पराधितता ऄनुपात (Potential Support Ratio:
PSR) के रूप में मापा जाता है। आसके ऄंतगात 20 से 64 वषा की अयु के लोगों की संख्या को 65 वषा
या ईससे ऄधधक अयु के लोगों की संख्या से धवभाधजत ककया जाता है। वतामान में, ऄफ्रीकी देशों में
प्रत्येक 65 वषा या ईससे ऄधधक अयु के व्धक्त पर 20 से 64 वषा के औसतन 12.9 व्धक्त मौजूद हैं,
जबकक एधशयाइ देशों में PSR 8.0 तथा यूरोप एवं ईिरी ऄमेररका में यह 4 या ईससे भी कम है।
जापान में PSR 2.1 है जो की संपूणा धवि में सबसे कम है (हालांकक सात यूरोपीय देशों में भी PSR 3
से कम है)। आससे धनकट भधवष्य में कइ देशों की स्वास््य देखभाल प्रणाली के साथ-साथ वृिावस्था एवं
सामाधजक सुरक्षा प्रणाधलयों पर राजकोषीय और राजनीधतक दबाव में वृधि होगी।
धवगत एक शताब्दी के दौरान भारत में जनसंख्या वृधि, वार्थषक जन्म दर, मृत्यु दर तथा प्रवास की दर
के कारण हुइ है और आसधलए यह वृधि धवधभन्न प्रवृधियों को दशााती है। वस्तुतः आस ऄवधध के दौरान
जनसंख्या वृधि के चार धवधशष्ट चरणों की पहचान की गइ है:
चरण 1: 1901 से 1921 की ऄवधध को भारत की जनसंख्या की धीमी ऄथवा धस्थर वृधि का चरण
कहा जाता है क्योंकक आस ऄवधध में वृधि दर ऄत्यंत धनम्न थी, यहााँ तक की 1911-1921 के दौरान
ऊणात्मक वृधि दर दजा की गइ थी। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों के ईच्च होने के कारण वृधि दर धनम्न
बनी रही। आसके ऄधतररक्त धनम्नस्तरीय स्वास््य एवं धचककत्सा सेवाएं, लोगों में व्ापक स्तर पर
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धनरक्षरता, भोजन और ऄन्य अधारभूत अवश्यकताओं की ऄकु शल धवतरण प्रणाली आस ऄवधध दौरान
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ईच्च जन्म और मृत्यु दर के धलए मुख्य रूप से ईिरदायी थे।
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चरण 2: 1921-1951 के दशक को जनसंख्या की धनरं तर वृधि की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
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देश-भर में स्वास््य और स्वच्छता में सुधारों के पररणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी हुइ। साथ ही साथ
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बेहतर पररवहन और संचार तंत्र के कारण धवतरण प्रणाली में सुधार हुअ। आस ऄवधध के दौरान
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ऄशोधधत जन्म दर ईच्च बनी रही फलस्वरूप चरण 1 की तुलना में वृधि दर ईच्चतर बनी रही। 1920 के
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दशक की महान अर्थथक मंदी और धद्वतीय धवि युि की पृष्ठभूधम में यह वृधि दर प्रभावशाली थी।
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चरण 3: 1951-1981 के दशकों को भारत में जनसंख्या धवस्फोट की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
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यह धस्थधत देश में मृत्यु दर में तीव्र कमी और जनसंख्या की ईच्च प्रजनन दर के कारण ईत्पन्न हुइ थी।
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जनसंख्या की औसत वार्थषक वृधि दर 2.2 प्रधतशत तक ईच्च बनी रही। स्वतंत्रता प्राधप्त के पश्चात् आसी
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समयावधध के दौरान एक कें िीकृ त धनयोजन प्रकक्रया के माध्यम से धवकासात्मक कायों को अरम्भ ककया
गया। आन प्रयासों के कारण ऄथाव्वस्था में सुधार हुअ धजससे लोगों के जीवन स्तर में व्ापक सुधार
हुअ। आसका पररणाम यह हुअ कक जनसंख्या में ईच्च प्राकृ धतक वृधि तथा ईच्चतर वृधि दर बनी रही।
आसके ऄधतररक्त पड़ोसी देशों से बढ़ते ऄंतरााष्ट्रीय प्रवासन ने भी ईच्च वृधि दर में योगदान कदया।
चरण 4: यद्यधप 1981 से वतामान तक देश की जनसंख्या की वृधि दर ईच्च बनी हुयी है लेककन आस
ईिरोिर धगरावट होना अरं भ हो गयी है। जनसंख्या वृधि की आस धवधशष्टता के धलए ऄशोधधत जन्म
दर की ऄधोमुखी प्रवृधि ईिरदायी है। आसके धलए देश में धववाह करने की अयु में वृधि, जीवन की
गुणविा में सुधार धवशेष रूप से मधहलाओं की धशक्षा अकद प्रमुख ईिरदायी कारक हैं। देश में जनसंख्या
की वृधि दर ऄभी भी ईच्च बनी हुइ है और वल्डा डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार वषा 2025 तक भारत की
जनसंख्या के 1.35 धबधलयन तक पहुाँचने का ऄनुमान है।
ईपयुाक्त धवश्लेषण औसत वृधि दर को दशााता है, ककतु देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वृधि दर में
धवस्तृत धभन्नताएाँ धवद्यमान हैं। धचत्र S4 और S5 का संदभा लेकर आसे स्पष्ट ककया जा सकता है।
जनसांधख्यकीय संक्रमण धसिांत, समाज के एक जनसांधख्यकीय ऄवस्था से दूसरी ऄवस्था में प्रवेश के
दौरान मृत्यु दर, प्रजननता और वृधि दर के बदलते प्रधतरूप का एक सामान्य वणान प्रस्तुत करता है।
यह ऄवधारणा सवाप्रथम बीसवीं शताब्दी के मध्य में ऄमेररकी जनसांधख्यकी धवशेषज्ञ फ्रैंक डब्ल्यू
नेटोस्टीन द्वारा दी गइ थी। परन्तु बाद में कइ ऄन्य जनसांधख्यकी धवशेषज्ञों द्वारा आसकी व्ाख्या एवं
धवस्तार ककया गया।
यह धसिांत प्रस्ताधवत करता है कक जनसंख्या वृधि अर्थथक धवकास के समग्र स्तरों से जुड़ी हुइ है तथा
प्रत्येक समाज धवकास-सम्बन्धी जनसंख्या वृधि के एक धवधशष्ट प्रधतरूप को दशााता है।
पारं पररक जनसांधख्यकीय संक्रमण मॉडल के ऄंतगात चार चरण होते हैं:
चरण 1: पूव-ा संक्रमण ऄवस्था (Pre-transition)
यह चरण ऄल्पधवकधसत और तकनीकी रूप से धपछड़े समाजों में धीमी जनसंख्या वृधि को दशााता है।
आस ऄवस्था में मृत्यु दर और जन्म दर, दोनों ही ऄत्यधधक ईच्च होती हैं तथा दोनों के मध्य ऄंतर कम
होता है। आस प्रकार कु ल वृधि दर कम होती है। ईच्च जन्म दर और ईच्च ऄधस्थर मृत्यु दर आस ऄवस्था की
प्रमुख पहचान होती है।
चरण 2: प्रारं धभक संक्रमण ऄवस्था (Early transition)
संक्रमण के प्रारं धभक चरणों के दौरान, मृत्यु दर में कमी होने लगती है जबकक जन्म दर ईच्च बनी रहती
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है। आससे जनसंख्या में तीव्र गधत से वृधि होने लगती है। यह 'जनसंख्या धवस्फोट' की ऄवस्था होती है
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क्योंकक रोग धनयंत्रण, जन स्वास््य और बेहतर पोषण के ईन्नत साधनों के कारण मृत्यु दर सापेधक्षक
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रूप से तेजी से कम होने लगती है। हालांकक, समाज को आस पररवतान के प्रधत संयोधजत होने में और
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सापेधक्षक रूप से ऄधधक समृधि और बढ़ती जीवन प्रत्याशा की आन नइ पररधस्थधतयों के ऄनुरूप ऄपने
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प्रजनन व्वहार (जो धनधानता और ईच्च मृत्यु दर की ऄवधध के दौरान धवकधसत हुअ था) को पररवर्थतत
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करने में ऄधधक समय लगता है। भारत में भी ऄभी तक जनसांधख्यकीय संक्रमण पूणा नहीं हुअ है क्योंकक
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मृत्यु दर तो कम हुइ है परन्तु जन्म दर में ईस स्तर तक कमी नहीं अयी है (वस्तुतः भारत में एक
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जनसांधख्यकीय धवभाजन धवद्यमान है धजसमें दधक्षणी राज्यों ने जनसांधख्यकीय संक्रमण के ईन्नत स्तर
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आस चरण में, जन्म दर घटकर मृत्यु दर के समान होने लगती है। प्रजनन को प्रभाधवत करने वाले
धवधभन्न कारकों, जैस-े गभाधनरोधक तक पहुाँच, मजदूरी में वृधि, नगरीकरण आत्याकद के कारण जन्म दर
में कमी अती है। आसके पररणामस्वरूप जनसंख्या वृधि दर कम होने लगती है।
चरण 4: संक्रमण-पश्चात् की ऄवस्था (Post-transition)
जन्म दर और मृत्यु दर, दोनों का ऄत्यंत कम होना आस चरण में पहुाँच चुके समाजों की पहचान होती है।
वास्तव में, आस ऄवस्था में जन्म दर प्रधतस्थापन स्तर से भी कम हो सकती है। ऄतः आस ऄवस्था में
जनसंख्या वृधि नगण्य होती है ऄथवा यह ऊणात्मक भी हो सकती है। आससे जनसंख्या में कमी अने की
पररधस्थधतयां भी ईत्पन्न हो सकती हैं (ईदाहरण: जापान और जमानी)।
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लोगों पर अधित होते हैं। जनसांधख्यकीय लाभांश के दौरान जनसांधख्यकीय संक्रमण के कारण अयु l.c
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संरचना में होने वाला पररवतान 'पराधितता ऄनुपात' ऄथाात् ‘जनसंख्या के गैर-कायाशील अयु वगा और
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कायाशील अयु वगा के बीच के ऄनुपात’ को कम कर देता है। आस प्रकार यह धस्थधत संवृधि की संभावना
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प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (2013) के अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 के दौरान अर्थथक रूप से
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सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) या भारत के 'जनसांधख्यकीय लाभांश' का भाग 57.7 से बढ़कर 63.3
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प्रधतशत हो गया है। आसी ऄवधध में बेहतर धशक्षा, स्वास््य सुधवधाओं और जीवन प्रत्याशा में वृधि के
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कारण वृि लोगों (60 वषा से ऄधधक अयु) का प्रधतशत 6.0 से बढ़कर 8.3 प्रधतशत हो गया है।
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2021 तक िम बल की वृधि दर जनसंख्या की वृधि की तुलना में धनरं तर ईच्च बनी रहेगी। आं धडयन
लेबर ररपोटा (टाआम लीज, 2007) के ऄनुसार, 2025 तक 300 धमधलयन युवा िम बल में प्रवेश करें गे
और अगामी तीन वषों में धवि के कु ल कामगारों का 25 प्रधतशत भारतीय होंगे।
यह ऄनुमान लगाया गया है कक 2020 तक भारत की जनसंख्या की औसत अयु धवि में सबसे कम
होगी। यह लगभग 29 वषा होगी जबकक चीन और संयुक्त राज्य ऄमेररका की औसत अयु 37 वषा,
पधश्चम यूरोप की 45 वषा और जापान की 48 वषा होगी। पररणामस्वरूप, ऐसे में जब कक 2020 तक
वैधिक ऄथाव्वस्था में युवा जनसंख्या में 56 धमधलयन की कमी हो सकती है, भारत एकमात्र ऐसा
देश होगा जहां 47 धमधलयन युवाओं की ऄधधशेष संख्या धवद्यमान होगी [धशक्षा, कौशल धवकास और
िम बल पर ररपोटा (2013-14) खंड - III, िम ब्यूरो]
लेककन आस संभावना को वास्तधवक संवृधि में तभी पररवर्थतत ककया जा सकता है, जब कायाशील अयु
वगा में धशक्षा और रोजगार के स्तर में भी तदनुरूप वृधि की जाए। यकद िम बल में शाधमल नए लोग
धशधक्षत नहीं हैं तो ईनकी ईत्पादकता कम रहती है। यकद वे बेरोजगार रहते हैं तो वे अय ऄर्थजत करने
यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन ररसचा के ऄनुसार, धपछले चार दशकों में एधशया और लैरटन ऄमेररका के देश
जनसांधख्यकीय लाभांश से धमलने वाले लाभों के मुख्य प्राप्तकताा रहे हैं। धनम्न जन्म दर और धनम्न मृत्यु दर
के कारण यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य ऄमेररका जैसे धवकधसत देशों में वृि जनसंख्या ऄधधक है।
यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन धडवीज़न द्वारा ककए गए शोध के ऄनुसार, ऄभी तक ऄल्प धवकधसत देशों और
ऄफ्रीका के देशों ने ऄनुकूल जनसांधख्यकीय धस्थधतयों का ऄनुभव नहीं ककया है। धवि बैंक की ग्लोबल
डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार चीन की ‘वन चाआल्ड पॉधलसी’ ने 1960 के दशक के मध्य से प्राप्त हो रहे
जनसांधख्यकीय लाभांश को ईलट कदया है।
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भारत का धवधशष्ट जनसांधख्यकीय लाभांश (India’s distinctive demographic dividend)
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भारत में कायाशील अयु की जनसंख्या के गैर-कायाशील अयु की जनसंख्या से ऄनुपात में वृधि का सवोच्च
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स्तर देर से प्राप्त होगा। यह वृधि ऄन्य देशों की तुलना में धनम्न स्तर पर रहेगी, परन्तु दीघाकाल तक बनी
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रहेगी। जनसांधख्यकीय लाभांश के कारण संवृधि में वृधि का सवोच्च स्तर तेज़ी से धनकट अ रहा है, यह
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संवृधि प्रायद्वीपीय राज्यों में तीव्र गधत से हो रही है जबकक अंतररक राज्यों में धीमी गधत से हो रही है।
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देश के ऄंदर जनसंख्या के अकार, धवतरण और संरचना को आसके प्राकृ धतक संसाधनों और आसके लोगों
द्वारा ईपयोग की जाने वाली ईत्पादन की तकनीक के संदभा में देखा जाना चाधहए। संसाधनों के ईपयोग
की सीमा और ईनके ईपयोग की तकनीक, जनसंख्या के आष्टतम से कम या ज़्यादा होने के स्तर को
प्रधतधबधम्बत करती है। यकद लोगों की संख्या और ईपलब्ध संसाधनों के मध्य संतुलन स्थाधपत हो तो
ईस देश को आष्टतम जनसंख्या वाला माना जाता है। आष्टतम धस्थधतयों को के वल तभी बनाए रखा जा
सकता है जब नये संसाधनों की खोज या रोजगार के नये रूपों का धवकास बढ़ती जनसंख्या के ऄनुरूप
गधत बनाए रखे।
यकद जनसंख्या बहुत ऄधधक हो जाती है तो "ह्रासमान प्रधतफल का धनयम (law of diminishing
returns)” कायारत हो जाता है। आसका तात्पया है कक एक धनधश्चत लबदु तक ककसी क्षेत्र में काया करने
वाले लोगों की संख्या में वृधि से ईत्पादन में ईल्लेखनीय वृधि होती है। आष्टतम जनसंख्या के स्तर पर
पहुंचने के पश्चात् और ऄधधक वृधि होने से ईत्पादन में वृधि हो सकती है लेककन ह्रासमान दर से और
आस प्रकार प्रधत व्धक्त ईत्पादन कम हो जाएगा। एक ही संसाधन अधार पर जैसे-जैसे पहले से ऄधधक
व्धक्त धनभार होते जाएाँग,े प्रत्येक संबंधधत व्धक्त धनधान होता जाएगा (प्रत्येक को प्राप्त होने वाले ऄंश में
पूवा की तुलना में कमी होने के कारण)। दूसरी ओर, यकद क्षेत्र के सभी संसाधनों को धवकधसत करने के
धलए पयााप्त जनसंख्या नहीं हैं, तो ईस क्षेत्र के व्धक्तयों का जीवन स्तर आन संसाधनों के पूणा ईपयोग से
प्राप्त होने वाले जीवन स्तर से नीचे रह सकता है।
ईदाहरण के धलए वतामान तकनीक के संदभा में, मध्य एधशया को क्षमता से कम जनसंख्या युक्त क्षेत्र के
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रूप में माना जा सकता है। ककतु ऄतीत में, मध्य एधशया में ऄधधकतर चरवाहे (pastoralists) धनवास
करते थे जो अधुधनक तकनीकों से ऄनधभज्ञ थे। धजन संसाधनों के दोहन में वे सक्षम थे, वे प्रायः l.c
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ऄत्यधधक दबावग्रस्त थे। आस कारण मध्य एधशयाइ लोगों ने भूधम की खोज में समीपवती क्षेत्रों पर
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अक्रमण ककया और पूवी यूरोप, भारत और ईिरी चीन तक फ़ै ल गये। आस प्रकार, ईस ऄवधध के दौरान
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ऄतः, क्षमता से कम जनसंख्या और क्षमता से ऄधधक जनसंख्या को मुख्य रूप से संबंधधत देश के धवकास
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की ऄवस्था के संदभा में देखा जाना चाधहए। यकद ककसी देश की कृ धष दक्ष हो, ईद्योग, संचार, व्ापार
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एवं वाधणज्य तथा सामाधजक सेवाएं धवकधसत ऄवस्था में हों और देश के संसाधनों का पूणा रूप से
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ईपयोग ककया जाता हो, तो ईस देश को धवकधसत देश के रूप में माना जा सकता है। आसके ऄधतररक्त
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ईस देश में िम ईपलब्धता की कोइ वास्तधवक कमी नहीं होती है, साथ ही बेरोजगारी भी कम होती है।
जनसंख्या का अयु संघटन कु ल जनसंख्या के सापेक्ष धवधभन्न अयु वगा के व्धक्तयों के ऄनुपात को
संदर्थभत करता है। धवकास के स्तर और औसत जीवन प्रत्याशा में पररवतान की प्रधतकक्रया स्वरुप अयु
संघटन भी एक पररवतान से गुजरता है। प्रारं भ में, धनम्न स्तरीय धचककत्सा सुधवधाओं, रोगों के प्रसार
और ऄन्य कारकों के कारण औसत जीवनकाल ऄपेक्षाकृ त कम होता है। आसके ऄधतररक्त, ईच्च धशशु और
मातृ मृत्यु दर भी अयु संघटन पर प्रभाव डालते हैं।
(Dependency Ratio)
पराधितता ऄनुपात (धनभारता ऄनुपात), धनभार वगा (यानी वृिजन और बच्चे, जो काया करने में ऄक्षम
हैं) तथा जनसंख्या के कायाशील वगा (15 से 59 वषा अयु वगा) का ऄनुपात है। पराधितता ऄनुपात 15
वषा से कम या 60 वषा से ऄधधक अयु वगा की जनसंख्या को 15-59 वषा के अयु वगा की जनसंख्या द्वारा
धवभाधजत करके प्राप्त ककया जाता है। आसे सामान्यतः प्रधतशत के रूप में व्क्त ककया जाता है।
पराधितता ऄनुपात में वृधि, ईन देशों के धलए लचता का कारण है धजनकी जनसंख्या में वृिजनों की
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संख्या ऄधधक है क्योंकक एक ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा द्वारा बड़े धनभार वगा का भार वहन करना
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करठन हो जाता है। दूसरी ओर, ऄनुत्पादक वगा के सापेक्ष कायाशील व्धक्तयों के ऄधधक ऄनुपात के
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कारण घटता हुअ पराधितता ऄनुपात अर्थथक धवकास और समृधि का स्रोत हो सकता है। यह कभी-
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कभी 'जनसांधख्यकीय लाभांश' या पररवर्थतत होती अयु संरचना से प्राप्त होने वाले लाभ के रूप में
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जाना जाता है। हालांकक, यह लाभ ऄस्थायी होता है क्योंकक कायाशील अयु की धवशाल जनसंख्या
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एक मानव संसाधन के रूप में देश की जनसंख्या की गुणविा के धलए ललग संघटन ऄत्यंत महत्वपूणा
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संकेतक है। वस्तुतः, प्राथधमक रुप से आसे ललगानुपात के अधार पर समझा जाता है।
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ललगानुपात ककसी धवधशष्ट समयावधध में ककसी क्षेत्र धवशेष में प्रधत 1000 पुरुषों पर धियों की संख्या
को संदर्थभत करता है।
धशशु ललगानुपात ककसी धवधशष्ट समयावधध में ककसी क्षेत्र धवशेष में 0-6 वषा (बच्चे) की अयु वगा का
ललगानुपात होता है।
प्राकृ धतक लाभ बनाम सामाधजक प्रधतकू लताएाँ (Natural Advantage v/s Social
Disadvantage)
मधहलाओं को पुरुषों की ऄपेक्षा ऄधधक जैधवक लाभ प्राप्त होता है क्योंकक ईनकी प्रत्यास्थता
(resiliency) पुरुषों की तुलना में ऄधधक होती है, तथाधप यह लाभ ईनके द्वारा ऄनुभव की जाने वाली
सामाधजक प्रधतकू लताओं एवं भेदभाव के कारण समाप्त हो जाता है।
भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
यह 2011-2015 के दौरान पुरुषों के धलए 67.3 वषा और मधहलाओं के धलए 69.6 वषा थी।
भारत में ललगानुपात सम्बन्धी प्रवृधियााँ: धचत्र S8-S12 का ऄवलोकन कीधजए।
जनगणना 2011 की गणना के दौरान, पहली बार तीन कोड प्रदान ककए गए थे: पुरुष-1, मधहला-2
और ऄन्य-3। प्रगणक को धनदेश कदया गया था कक यकद कोइ व्धक्त स्वयं को कोड 1 या 2 में दजा न
करवाना चाहे तो ललग को ‘ऄन्य’ के रूप में दज़ा करे एवं आसे कोड 3 प्रदान करे । यद्यधप यह ध्यान रखना
महत्वपूणा है कक भारत की जनगणना के ऄंतगात 'ट्ांसजेंडरों' पर धवधशष्ट रूप से कोइ अंकड़े एकत्र नहीं
ककये जाते हैं। आस प्रकार, 'ऄन्य' िेणी में न के वल 'ट्ांसजेंडर' बधल्क ऄपनी ललग सम्बन्धी सूचना को
'ऄन्य' िेणी के ऄंतगात दजा कराने का आच्छु क कोइ भी व्धक्त सधम्मधलत हो सकता है। यह भी संभव है
कक कु छ ट्ांसजेंडर ऄपनी पसंद के अधार पर स्वयं को मधहला या पुरुष के रूप में दज़ा करवाया हो।
जनगणना 2011 के ऄनुसार देश में 'ऄन्य' िेणी की जनसंख्या 4,87,803 है।
जनगणना 2011 से प्रदर्थशत होता है कक देश में 207.8 लाख पररवारों में कदव्ांग व्धक्त हैं। ये पररवार
कु ल पररवारों की संख्या का 8.3 प्रधतशत हैं। 2011 की जनगणना में कदव्ांग व्धक्तयों वाले कु ल
पररवारों की संख्या में 2001 की जनगणना की तुलना में 20.5 लाख की वृधि हइ है।
जनगणना 2011 के ऄनुसार 2.68 करोड़ की कु ल कदव्ांग जनसंख्या में से 1.46 करोड़ (54.5%)
साक्षर और शेष 1.22 करोड़ (45.5%) धनरक्षर हैं। वहीं एक दशक पूवा, कदव्ांग व्धक्तयों की साक्षरता
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का प्रधतशत 49.3% था और शेष 50.7% धनरक्षर थे।
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साक्षरता, धशक्षा का अधार तथा सशधक्तकरण का एक साधन है। धजतनी ऄधधक साक्षर जनसंख्या
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होगी, कै ररयर धवकल्पों के धवषय में ईतनी ही ऄधधक जागरूकता होगी तथा साथ ही ज्ञान अधाररत
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ऄथाव्वस्था में भी ईतनी ऄधधक भागीदारी देखने को धमलेगी। आसके ऄधतररक्त, साक्षरता समुदाय की
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स्वास््य संबंधी जागरूकता में वृधि करती है तथा सांस्कृ धतक और अर्थथक कल्याण के धलए पूणा
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भागीदारी को प्रेररत करती है। स्वतंत्रता के पश्चात् साक्षरता स्तर में काफी सुधार हुअ है और वतामान
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में हमारी जनसंख्या का लगभग दो-धतहाइ धहस्सा साक्षर है। ककतु, साक्षरता दर भारतीय जनसंख्या की
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वृधि दर के साथ सामंजस्य स्थाधपत करने में सक्षम नहीं रही है। आसमें लैंधगक स्तर पर, क्षेत्रीय स्तर पर
तथा सामाधजक समूहों के स्तर पर काफी धभन्नता धवद्यमान है। जैसा कक देखा जा सकता है, मधहला
साक्षरता में पुरुष साक्षरता की तुलना में तीव्रता से वृधि हो रही है। हालााँकक अंधशक रूप से ऐसा
आसधलए भी हुअ है क्योंकक यह वृधि ऄपेक्षाकृ त धनचले स्तरों से अरं भ हुइ थी।
धवधभन्न सामाधजक समूहों के मध्य भी साक्षरता दर धभन्न-धभन्न होती है; ईदाहरण के धलए, ऄनुसधू चत
जाधतयों और ऄनुसूधचत जनजाधतयों जैसे ऐधतहाधसक रूप से वंधचत समुदायों में साक्षरता दर कम है
और आन समूहों में मधहला साक्षरता दर और भी कम है। क्षेत्रीय धभन्नताएं ऄभी भी व्ापक रूप से व्ाप्त
हैं, जैस-े के रल जैसे राज्य पूणा साक्षरता की ओर ऄग्रसर हैं जबकक धबहार जैसे राज्य ऄभी बहुत पीछे हैं।
साक्षरता दर में ऄसमानता धवशेष रूप से महत्वपूणा है क्योंकक वह भावी पीकढ़यों में ऄसमानता को पुन:
ईत्पन्न करने की प्रवृधि रखती है। धनरक्षर माता-धपता को ऄपने बच्चों को बेहतर धशक्षा प्रदान करने हेतु
ऄत्यधधक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आस प्रकार मौजूदा ऄसमानताएं धनरं तर बनी रहती हैं।
धचत्र S13 और S14 देधखए।
यद्यधप जनगणना 2011 के ऄनुसार के वल 74.04 प्रधतशत साक्षरता प्राप्त की गइ है, ककतु मधहला
साक्षरता में ईल्लेखनीय सुधार हुअ है। पुरुष साक्षरता (82.14%) मधहला साक्षरता (65.46%) की
तुलना में ऄभी भी ऄधधक है लेककन मधहला साक्षरता में (11.79 प्रधतशत ऄंक) पुरुष साक्षरता
(6.88 प्रधतशत ऄंक) की तुलना में ऄधधक वृधि हुइ है।
धजला धशक्षा सूचना प्रणाली (District Information System for Education: DISE) के
ऄनुसार, प्राथधमक धवद्यालयों में कु ल नामांकन 2011-12 में 134 धमधलयन से बढ़कर 137
धमधलयन हो गया और बाद में 2013-14 में घटकर 132 धमधलयन हो गया जबकक ईच्च प्राथधमक
नामांकन 51 धमधलयन से बढ़कर 67 धमधलयन हो गया। यह पररवर्थतत होती जनसांधख्यकीय अयु
संरचना के ऄनुरूप है।
भारत ने लगभग सावाभौधमक नामांकन प्राप्त कर धलया है तथा हाडा एवं सॉफ्ट आं फ्रास्ट्क्चर
(धवद्यालय, धशक्षक और ऄकादधमक सहायक स्टाफ) में वृधि हुइ है।
हालााँकक, धशक्षा का समग्र स्तर वैधिक स्तरों से काफी नीचे है। ऄंतरााष्ट्रीय छात्र अकलन कायाक्रम
(Programme for International Student Assessment: PISA) 2009 के पररणामों में 74
प्रधतभाधगयों में से तधमलनाडु और धहमाचल प्रदेश को क्रमशः 72वां और 73वां स्थान प्रदान ककया
गया तथा आनके बाद के वल ककर्थगस्तान का स्थान था। यह हमारी धशक्षा प्रणाली में धवद्यमान ऄंतराल
को प्रकट करता है। PISA, 15 वषा के बच्चों के ज्ञान और कौशल को ईनकी समस्या-समाधान करने
की क्षमताओं का अकलन करने के धलए तैयार ककए गए प्रश्नों के अधार पर मापता है। PISA ने आन
दोनों राज्यों को गधणत और धवज्ञान में OECD (अर्थथक सहयोग और धवकास संगठन) के औसत से
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बहुत कम ऄंकों के साथ धनम्नतम स्थान प्रदान ककया था। भारत ने PISA 2012 में भाग नहीं धलया।
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2005 से ग्रामीण भारत के 5 से 16 वषा के अयु वगा के बच्चों के मध्य सीखने का स्तर धनम्न है।
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लचताजनक त्य यह है कक आस अकलन का अधार फ्लोर लेवल टेस्ट [साधारण 2-ऄंक के हाधसल
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वाले (कै री-फॉरवडा) घटाव और धवभाजन संबंधी कौशल वाले] थे, धजनके धबना कोइ भी धवद्याथी
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धशक्षा नीधत के धलए बेहतर यह होगा कक आसमें आनपुट के स्थान पर पररणामों पर ध्यान कदया जाए
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तथा साथ ही यह गुणविापूणा धशक्षा एवं कौशल धवकास संबंधी अधारभूत संरचना के धनमााण पर
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के धन्ित हो।
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पररवर्थतत होती जनसांधख्यकी और घटती बाल जनसंख्या सधहत धपराधमड के अधार स्तर पर मानव
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पूंजी की ऄपयााप्तता के कारण बुधनयादी कौशल में एक व्ापक बैकलॉग की धस्थधत बनेगी जो भारत
की संवृधि में एक बड़ा ऄवरोध बन सकती है।
ऐसा देखा गया है कक भारत में कामगारों (मुख्य और सीमांत दोनों) का धहस्सा मात्र 39 प्रधतशत है
जबकक 61 प्रधतशत की धवशाल संख्या गैर-कामगारों की है। यह एक ऐसे अर्थथक स्तर को आं धगत करता
है धजसमें एक बड़ा ऄनुपात अधित जनसंख्या का है। साथ ही यह बेरोजगार और ऄल्प बेरोजगार लोगों
की बड़ी संख्या के होने की संभावना की ओर संकेत करता है।
राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में कायाशील जनसंख्या के ऄनुपात में कु छ धभन्नता कदखाइ पड़ती है, जैस-े
जहां गोवा में यह ऄनुपात लगभग 25 प्रधतशत है वहीं धमज़ोरम में 53 प्रधतशत है। कामगारों के
ऄपेक्षाकृ त ऄधधक प्रधतशत वाले राज्यों में धहमाचल प्रदेश, धसकिम, छिीसगढ़, अंध्र प्रदेश, कनााटक,
ऄरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मधणपुर और मेघालय सधम्मधलत हैं। आसके ऄधतररक्त संघ राज्यक्षेत्रों में
दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव में कामगारों की भागीदारी दर ईच्च है।
भारत जैसे देश के सन्दभा में यह सवाधवकदत है कक धनम्न अर्थथक धवकास वाले क्षेत्रों में ईच्च िम
भागीदारी दर पायी जाती है क्योंकक धनवााह ऄथवा लगभग धनवााह की अर्थथक कक्रयाओं के धनष्पादन के
धलए शारीररक िम करने वाले कामगारों की अवश्यकता होती है।
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भारत की जनसंख्या का व्ावसाधयक संघटन (ऄथाात् कृ धष, धवधनमााण, व्ापार, सेवाओं ऄथवा ककसी
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भी प्रकार की व्ावसाधयक कक्रया में संलग्न होने के अधार पर व्धक्तयों का संघटन) धद्वतीयक और
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तृतीयक क्षेत्रकों की तुलना में प्राथधमक क्षेत्रक के कामगारों के एक बड़े ऄनुपात को दशााता है। कु ल
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कायाशील जनसंख्या का लगभग 58.2% भाग कृ षक और कृ धष मजदूर हैं, जबकक के वल 4.2% कामगार
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ही घरे लू ईद्योगों में संलग्न हैं। ऄन्य कामगारों की धहस्सेदारी 37.6% है जो गैर-घरे लू ईद्योगों, व्ापार,
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वाधणज्य, धवधनमााण एवं मरम्मत तथा ऄन्य सेवाओं में कायारत हैं। जहााँ तक देश में पुरुष और मधहला
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जनसंख्या के व्वसाय का प्रश्न है, तो तीनों ही क्षेत्रकों में पुरुष िधमकों की संख्या मधहला िधमकों की
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मधहला िधमकों की संख्या प्राथधमक क्षेत्रक में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है, यद्यधप धवगत कु छ वषों में धद्वतीयक
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और तृतीयक क्षेत्रकों में भी मधहलाओं की भागीदारी में सुधार हुअ है। आस सन्दभा में यह समझना
अवश्यक है कक धवगत कु छ दशकों में भारत में कृ धष क्षेत्रक में कामगारों की धहस्सेदारी में धगरावट दजा
की गयी है (1991 में 66.85% से 2001 में 58.2%)। आसके पररणामस्वरूप, धद्वतीयक और तृतीयक
क्षेत्रक में भागीदारी दर में वृधि हुइ है। यह कामगारों की धनभारता का कृ धष-अधाररत रोजगारों से गैर-
कृ धष अधाररत रोजगारों की ओर स्थानान्तरण प्रदर्थशत करता है। साथ ही यह देश की ऄथाव्वस्था में
क्षेत्रकीय पररवतान (sectoral shift) को भी दशााता है।
देश के धवधभन्न क्षेत्रकों में काया भागीदारी दर की स्थाधनक धभन्नता ऄत्यधधक व्ापक है। ईदाहरणस्वरूप
धहमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों में कृ षकों की धहस्सेदारी बहुत ऄधधक है। दूसरी ओर अंध्र
प्रदेश, छिीसगढ़, ओधडशा, झारखण्ड, पधश्चम बंगाल तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कृ धष कामगारों की
धहस्सेदारी सवााधधक है। कदल्ली, चंडीगढ़ और पुडुचरे ी जैसे ऄत्यधधक नगरीकृ त क्षेत्रों में कामगारों का
बहुत बड़ा भाग ऄन्य सेवाओं में संलग्न है। यह न के वल कृ धष भूधम की सीधमत ईपलब्धता को बधल्क
व्ापक स्तर पर होने वाले नगरीकरण और औद्योधगकीकरण के कारण गैर-कृ धष क्षेत्रकों में और ऄधधक
कामगारों की अवश्यकता को भी आं धगत करता है। (ताधलका T4 और धचत्र S-15 का सन्दभा लीधजए।)
अर्थथक सवेक्षण (2015-16) में ईल्लेख ककया गया है कक 2013 के प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (Sample
registration System: SRS) अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 की ऄवधध के दौरान कु ल
जनसंख्या में अर्थथक रूप से सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) का भाग 57.7 प्रधतशत से बढ़कर 63.3
प्रधतशत हो गया है।
वषा 2014 में जनवरी से जुलाइ के मध्य िम ब्यूरो द्वारा अयोधजत चौथा वार्थषक रोजगार-
बेरोजगारी सवेक्षण दशााता है कक सभी व्धक्तयों के धलए िम बल भागीदारी दर (LFPR) 52.5%
है।
हालााँकक, ग्रामीण क्षेत्रों में LFPR 54.7% है जो शहरी क्षेत्रों के 47.2% की तुलना में ऄधधक है।
मधहलाओं का LFPR ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में ईल्लेखनीय रूप से कम
है।
सवेक्षण के ऄनुसार, बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.7% है जबकक शहरी क्षेत्रों में 5.5% है। िम
ब्यूरो के सवेक्षण के ऄंतगात कु ल बेरोजगारी दर को 4.9% माना गया है। ये अंकड़े राष्ट्ीय प्रधतदशा
सवेक्षण कायाालय (NSSO, 2011-12) के ऄधखल भारतीय बेरोजगारी दरों की तुलना में काफी
ऄधधक है। NSSO के सवेक्षण के ऄंतगात ग्रामीण क्षेत्रों में 2.3 प्रधतशत, शहरी क्षेत्रों में 3.8 प्रधतशत
तथा ऄधखल भारतीय स्तर पर 2.7 प्रधतशत बेरोजगारी दर ऄंककत की गयी थी।
राज्यवार िम भागीदारी दर से संबंधधत अंकड़ों के धलए ताधलका - T8 का संदभा लीधजए।
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6.7 ककशोर (Adolescents)
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भारत में जनसंख्या वृधि का एक महत्वपूणा पहलू ककशोरों की संख्या में वृधि है। वतामान में ककशोर वगा
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ऄथाात् 10-19 वषा के अयु वगा का धहस्सा कु ल जनसंख्या में लगभग 21 प्रधतशत (2011 की जनगणना
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के ऄनुसार) है। ककशोर जनसंख्या को युवा जनसंख्या के रूप में ईच्च क्षमता से युक्त माना जाता है,
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लेककन यकद ईन्हें ईधचत मागादशान और धनदेशन न प्रदान ककया जाए तो ये ऄत्यधधक सुभेद्य भी हो
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सकते हैं। आन ककशोरों के सन्दभा में समाज के समक्ष ऄनेक चुनौधतयां धवद्यमान हैं। आनमें से कु छ आस
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प्रकार हैं- कम ईम्र में ही धववाह हो जाना (बाल धववाह), धनरक्षरता (धवशेषतः मधहला धनरक्षरता),
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पढ़ाइ का बीच में छू ट जाना, पोषक तत्वों की कम मात्रा का सेवन, ककशोर माताओं में ईच्च मातृ मृत्यु
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दर, HIV/AIDS संक्रमण की ईच्च दर, शारीररक एवं मानधसक धनःशक्तता ऄथवा ऄक्षमता, नशीली
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दवाओं तथा शराब का सेवन, ककशोरावस्था में अपराधधक प्रवृधि और ऄपराधों में संधलप्त होना
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सामाधजक संरचना में अए बदलाव से ईत्पन्न तनाव से संबंधधत धवधभन्न चुनौधतयों का सामना कर रहे
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हैं।
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रोजगार संबध
ं ी चुनौधतयााँ (Employability Challenge) - भारत में 15-29 अयु वगा के 30% से
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ऄधधक युवा रोजगार, धशक्षण या प्रधशक्षण ककसी में संलग्न नहीं हैं। यह संख्या OECD देशों के औसत के
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दोगुने से भी ऄधधक है और चीन का लगभग तीन गुना है। युवाओं की यह धस्थधत, पयााप्त गुणविापूणा
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रोज़गार का सृजन न होने तथा युवाओं को धशक्षण एवं प्रधशक्षण प्रणाधलयों में बहुत कम प्रोत्साहन प्राप्त
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मादक पदाथों का सेवन (Drug Abuse) - धवि के कु छ मुख्य ऄफीम कृ धष क्षेत्रों के साथ भारत की
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धनकटता के कारण, भारत को मादक पदाथों की तस्करी संबंधी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा
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है तथा लोगों और धवशेषकर युवाओं द्वारा मादक पदाथों का सेवन लचता का धवषय बना हुअ है। संयुक्त
राष्ट्र के तीनों सम्मेलनों और साका सम्मेलन का हस्ताक्षरकताा देश होने के नाते, भारत ने नारकोरटक्स
ड्रग्स एंड साआकोट्ॉधपक सब्सटैंस एक्ट, 1985 और द धप्रवेंशन ऑफ़ आधलधसट ट्ैकफककग नारकोरटक्स
ड्रग्स एंड साआकोट्ॉधपक सब्सटैंस एक्ट, 1988 पाररत ककए हैं, धजनके माध्यम से देश में मादक पदाथों
की समस्या के धवधभन्न पहलुओं का समाधान ककया जा रहा है।
अत्महत्या की प्रवृधियां (Suicidal Tendencies) - यद्यधप भारत, धवि में अत्महत्या दर के मामले
में 12वें स्थान पर है, तथाधप दुभााग्यवश 15-29 अयु वगा के अत्महत्या करने वाले व्धक्तयों की संख्या
भारत में सवााधधक- प्रधत 100,000 व्धक्तयों पर 35.5 है। यह महत्वपूणा है कक ईच्च साक्षरता दर वाले
राज्यों में अत्महत्या के मामले ऄत्यधधक संख्या में दजा ककए गए हैं। देश में अत्महत्या के कु ल मामलों में
से 53 प्रधतशत से ऄधधक महाराष्ट्र, तधमलनाडु , पधश्चम बंगाल, के रल और कनााटक राज्यों में दजा ककए
गए हैं।
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(National Youth Policy)
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राष्ट्रीय युवा नीधत-2014 का धवज़न “देश के युवाओं को ऄपनी पूणा क्षमताओं को धवकधसत करने के धलए
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सशक्त बनाना तथा ईनके माध्यम से भारत को ऄंतरााष्ट्रीय समुदाय में ईधचत स्थान प्राप्त करने हेतु
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सक्षम बनाना” है। आस लक्ष्य को प्राप्त करने के धलए आस नीधत में पांच सुपररभाधषत ईद्देश्यों और 11
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प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्रों की पहचान की गइ है तथा प्रत्येक प्राथधमकता प्राप्त क्षे त्र के धलए नीधतगत
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हस्तक्षेपों का भी सुझाव कदया गया है। प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्रों के ऄंतगात धशक्षा, रोजगार एवं कौशल
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धवकास, ईद्यमशीलता, स्वास््य और स्वस्थ जीवन शैली, खेल, सामाधजक मूल्यों को बढ़ावा देना,
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राष्ट्रीय युवा नीधत-2014 में प्रस्ताधवत ककया गया है कक सभी धहतधारकों सधहत युवा धवकास एवं
सशधक्तकरण पर के धन्ित दृधष्टकोण के पररणामस्वरूप धशधक्षत एवं स्वस्थ युवा जनसंख्या का धवकास
ककया जा सके गा, जो न के वल अर्थथक रूप से ईत्पादक हो बधल्क राष्ट्रीय धनमााण में योगदान करने वाले
सामाधजक रूप से ईिरदायी नागररक भी हों।
यह नीधत, 15-29 वषा की अयु समूह के सभी युवाओं की अवश्यकताओं की पूर्थत कर समग्र देश को
कवर करे गी। 2011 की जनगणना के ऄनुसार यह अयु समूह कु ल जनसंख्या का 27. 5 प्रधतशत यानी
33 करोड़ हैं। 2003 के पश्चात् धवकास को बढ़ावा देने तथा भधवष्य की नीधतगत अवश्यकताओं को
पूरा करने हेतु यह NYP-2003 नीधत को प्रधतस्थाधपत करे गी।
NYP-2014, 12वीं योजना की प्राथधमकताओं के ऄनुरूप युवाओं के धलए व्ापक नीधतगत हस्तक्षेप
प्रस्ताधवत करती है तथा धविीय प्रभावों वाले ककसी भी धवधशष्ट कायाक्रम/योजना को प्रस्ताधवत नहीं
करती है। आसके ऄंतगात सभी संबंधधत मंत्रालयों/धवभाग से ईनकी योजनाओं/कायाक्रमों अकद के फ्रेमवका
में युवाओं से संबंधधत मुद्दों पर ध्यान कें कित करने हेतु ऄनुरोध ककया जाएगा।
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बनाना
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युवा ईद्यधमयों के धलए
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मूल्यांकन प्रणाली का
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कक्रयान्वयन
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2. भावी चुनौधतयों का सामना स्वास््य एवं स्वस्थ जीवन शैली सेवा प्रदायगी की धस्थधत
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को बेहतर बनाना
करने के धलए सशक्त और स्वस्थ
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स्वास््य, पोषण और
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युवाओं की सहभाधगता युवा धवकास योजनाओं के
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प्रभावी कायाान्वयन की
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युवाओं की सहभाधगता को
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धनमााण करना
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7.1. धवस्तारशील जनसं ख्या (Expanding Population)
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आस धस्थधत में अयु-ललग धपराधमड एक धवस्तृत अधार के साथ धत्रभुजाकार अकृ धत का होता है। यह
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मुख्यतः ऄल्प धवकधसत देशों में पाया जाता है क्योंकक यहााँ ईच्च जन्म दर के कारण धनम्न अयु वगों की
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आसमें अयु-ललग धपराधमड घंटी के अकार का होता है जो शीषा की ओर शुण्डाकार (tapered) होता
जाता है। यह दशााता है कक जन्म दर और मृत्यु दर लगभग समान है धजसके पररणामस्वरूप जनसंख्या
धस्थर हो जाती है।
आस धपराधमड का एक संकीणा अधार और शुंडाकार शीषा होता है जो धनम्न जन्म और मृत्यु दरों को
दशााता है। धवकधसत देशों में जनसंख्या वृधि सामान्यतः शून्य ऄथवा ऊणात्मक होती है।
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ये धपराधमड जन्म दर में क्रधमक धगरावट और जीवन प्रत्याशा में वृधि का प्रभाव दशााते हैं। वृि
जनसंख्या में वृधि के साथ-साथ धपराधमड का शीषा चौड़ा और जन्म दर में कमी (जीधवत जन्मों में कमी)
के साथ-साथ धपराधमड का अधार संकीणा होता जा रहा है। चूाँकक जन्म दर में धगरावट धीमी रही है,
आसधलए 1961 और 1981 के मध्य अधार में ऄधधक पररवतान नहीं हुअ है। कु ल जनसंख्या में मध्य
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ईपयुाक्त धचत्र वषा 2026 में ईिर प्रदेश और के रल के ऄनुमाधनत जनसंख्या धपराधमड को दशााता है।
के रल और ईिर प्रदेश के धपराधमड के सवााधधक चौड़े भागों में धवद्यमान ऄंतर पर ध्यान दीधजए। अयु
संरचना में युवा अयु वगा की ओर झुकाव देखने को धमलता है जो भारत के धलए लाभप्रद माना जा रहा
है। धवगत दशक में पूवी एधशयाइ ऄथाव्वस्थाओं और वतामान में अयरलैंड की भांधत, भारत के
“जनसांधख्यकीय लाभांश” से लाभाधन्वत होने की सम्भावना व्क्त की गइ है। यह लाभांश आस त्य से
स्पष्ट होता है कक कायाशील अयु वगा की वतामान जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है और अधित वृि लोगों
की जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त कम है। ककतु आस लाभांश के सकारात्मक पररणाम स्वतः ही प्राप्त नहीं होंगे ;
ईसके धलए आस लाभांश का ईपयोग ईधचत नीधतयों के माध्यम से सुधनयोधजत तरीके से ककये जाने की
अवश्यकता है।
और वे अधुधनक तकनीकी पिधतयों का ईपयोग भी करते हैं। आन देशों में ब्राजील, कोलंधबया, पेरू,
जायरे , रूस अकद सधम्मधलत हैं। ये देश संसाधन संपन्न देश हैं परन्तु जनसंख्या की कमी के कारण आन
संसाधनों का पूणा रूप से ईपयोग नहीं हो सका है। आनकी समस्याएं प्रायः प्रधतकू ल जलवायु दशाओं के
कारण बढ़ जाती हैं।
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(Problems of Over-population)
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तीव्र जनसंख्या वृधि: धवशेष रूप से पररवार धनयोजन प्रथाओं के ऄभाव में जनसंख्या तीव्र गधत से
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बढ़ती है। आससे ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा पर अधित बच्चों की संख्या में वृधि होती है। यह
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बेरोजगारी: ऄनेक ऄल्पधवकधसत देशों में औद्योधगक क्षेत्र पूणातः धवकधसत नहीं हैं। ऄतः ऄकु शल
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िधमकों के धलए रोजगार के कम ऄवसर ईपलब्ध होने के कारण बेरोजगारी की ईच्च धस्थधत बनी
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रहती है। दूसरी ओर, पयााप्त प्रधशक्षण सुधवधाओं के ऄभाव के कारण कु शल िधमकों का ऄभाव
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होता है। ऄत्यधधक जनसंख्या वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी या ऄल्प रोज़गार भी एक प्रमुख
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समस्या है। ऐसे में लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं जहां प्रायः रोजगार के ऄवसरों को प्राप्त
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करना और भी करठन होता है। आसके ऄधतररक्त, नगर ऄधत भीड़-भाड़ युक्त हो जाते हैं। पररणामतः
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संबंधी समस्याओं, कु पोषण एवं रोगों के प्रसार को बढ़ावा धमलता है। लोगों में ऄज्ञानता और
धविीय संसाधनों की कमी से धस्थधत और ऄधधक गंभीर हो जाती है।
कृ धष संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: कृ धष की परं परागत पिधतयााँ, पुराने एवं ऄपयााप्त ईपकरण,
खेतों में सुधार करने हेतु धविीय संसाधनों की कमी, सीमांत कृ धष क्षेत्रों (जैसे ईच्चभूधमयों) का
ईपयोग न ककये जाने या दुरुपयोग ककये जाने आत्याकद कारणों से कृ धष ईत्पादन आसकी संभाधवत
क्षमता से बहुत धनम्न स्तर पर बना हुअ है। पूंजी की कमी तथा कृ षकों के पारं पररक दृधष्टकोण के
कारण नवाचारों को ऄपनाने की धीमी प्रकक्रया से कृ धष तकनीकों को तार्दकक बनाने और अर्थथक
रूप से बड़े एवं लाभदायक खेतों के धलए भू-स्वाधमत्व में सुधार करने में अने वाली करठनाआयों में
वृधि होती है।
जनसंख्या का ऄसमान धवतरण: ऄल्प-जनसंख्या वाले देशों में औसत जनसंख्या घनत्व कम पाया
जाता है। प्रायः जन्म दर के ऄधधक होने पर भी जनसंख्या में धनम्न गधत से ही वृधि होती है।
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जनसंख्या वृधि का एक महत्वपूणा कारण अप्रवासन है परं तु यह सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों के स्थान
पर कस्बों और नगरों की ओर ऄधधक होता है। साथ ही साथ बेहतर जीवन धनवााह पररधस्थधतयों के l.c
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कारण नगर पहले से ही धवरल रूप से बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों से और लोगों को अकर्थषत करते रहते
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हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और नगरों के मध्य ऄसंतुलन ऄल्प जनसंख्या वाले देशों की एक प्रमुख समस्या है।
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दूरस्थता (Remoteness): धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ऄधधवास में वृधि करना करठन होता है
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क्योंकक लोग शहर की सुधवधाओं से दूर जाने के आच्छु क नहीं होते हैं। बेहद कम जनसंख्या के धलए
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व्ापक स्तर पर संचार, स्वास््य, धशक्षा या ऄन्य सुधवधाएं प्रदान करने हेतु ऄत्यधधक पूज
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करनी पड़ती है ऄतः प्रायः ऐसे क्षेत्रों में सुधवधाओं का ऄभाव होता है। आससे लोगों की ऐसे क्षेत्रों
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(कम सुधवधा युक्त) में बसने की ऄधनच्छा में वृधि होती है।
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संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: ककसी देश की कम जनसंख्या ईसके संसाधनों के पूणा दोहन को करठन
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बनाती है। आन क्षेत्रों में सामान्यतः खधनजों, धवशेष रूप से बहुमूल्य धातुओं और पेट्ोधलयम का
धनष्कषाण ककया जाता है क्योंकक धन की आच्छा ऄन्य प्रकार के लाभों के महत्त्व को कम कर देती है।
कृ धष संसाधनों को धवकधसत करना ऄधधक करठन होता है क्योंकक ईनसे एक बेहतर प्रधतफल
(ररटना) प्राप्त करने से पूव,ा दीघाावधध तक ऄत्यधधक पररिम की अवश्यकता होती है।
मंद औद्योधगक वृधि: यह धस्थधत िम, धवशेष रूप से ऄल्प जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कु शल िम की
कमी के कारण ईत्पन्न होती है; ईदाहरण के धलए दधक्षण ऄमेररकी और ऄफ्रीकी देशों में। ऐसे में
अयाधतत कु शल िम औद्योधगक धवकास की लागत में वृधि करता है। आसके ऄधतररक्त जीवन स्तर
के मानक ईच्च होने के बावजूद कम जनसंख्या पयााप्त स्तर का बाजार ईपलब्ध कराने में सक्षम नहीं
होती है।
जलवायु संबध
ं ी समस्याएं: प्रधतकू ल जलवायु या ईच्चावच दशाएाँ, ऄधधवास को करठन बनाती हैं।
ऐसी दशाएाँ धवकास में बाधा ईत्पन्न करती हैं और आन पर पूणा रूप से धवजय प्राप्त करना संभव नहीं
है।
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ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर जनसंख्या का धनयधमत प्रवास होता है। जनसंख्या में कमी, ग्रामीण
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क्षेत्रों को सेवाएाँ प्रदान करने या व्वसाय करने हेतु ऄपेक्षाकृ त कम लाभप्रद बनाती है। आससे नगरों
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पर दबाव में भी वृधि होती है। आसके कारण ऄनेक समस्याएं ईत्पन्न हो जाती हैं। कारखानों से
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धनकलने वाले धुएं और रासायधनक बधहःस्राव के कारण वायु एवं जल प्रदूषण में वृधि होती है।
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जीवन से ईत्पन्न तनाव के कारण ऄधवकधसत देशों की तुलना में मानधसक रोगों की ऄधधक घटनाएं
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दजा की जाती हैं। आसके ऄधतररक्त नगरीय प्रसार एक ऄन्य समस्या है; कइ देशों में धवस्तृत होते
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नगर प्रायः कृ धष हेतु ईपयुक्त भूधम का ऄधधग्रहण कर लेते हैं, धजसके कारण कृ धषगत अत्मधनभारता
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(sterilization) जैसे स्थायी ईपायों को ऄपनाया है।
ऄन्य सामाधजक-अर्थथक कारक l.c
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o बड़े पररवारों की धवशेष रूप से पुत्र प्राधप्त की आच्छा भी ईच्च जन्म दर में वृधि का कारण
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बनती है। एक ऄनुमान के ऄनुसार पुत्रों को वरीयता कदया जाना एवं ईच्च धशशु मृत्यु दर देश
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धवगत वषों में देश के ललगानुपात में सुधार हुअ है। जनगणना के ऄनुसार, ललगानुपात 2001 के प्रधत
1000 पुरुषों पर 933 मधहलाओं से बढ़कर 2011 में प्रधत 1000 पुरुषों पर 943 मधहलाएाँ हो गया है।
राज्यों/कें ि शाधसत प्रदेशों के ललगानुपात संबंधधत अंकड़ों को ताधलका में प्रदर्थशत ककया गया हैl
2011 की जनगणना के ऄनुसार, बाल ललगानुपात (0-6 वषा) में कमी दजा की गइ। यह 2001 के प्रधत
1000 बालकों पर 927 बाधलकाएाँ से घटकर 2011 में 919 हो गया है।
आस कम होते बाल ललगानुपात और बाधलकाओं की ईपेक्षा का मुख्य कारण पुत्र को वरीयता देना और
आससे संबंधी ऄन्य धविास हैं जैसे- के वल पुत्र ही ऄंधतम संस्कार पूणा कर सकता है; के वल पुरुष द्वारा ही
वंश को अगे बढ़ाया जा सकता है; वही ईिराधधकारी बन सकता है; वृिावस्था में माता-धपता की देख-
भाल के वल पुत्र ही कर सकता है और पुरुष ही ऄपने पररवार का भरण-पोषण कर सकता है, अकद।
ऄत्यधधक दहेज की मांग बाधलका भ्रूण हत्या/धशशु हत्या हेतु ईिरदायी ऄन्य कारण है। छोटे पररवार
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समृि राज्यों में से हैं तथा साथ ही ये न्यूनतम बाल ललगानुपात वाले राज्य भी हैं। ऄतः चयनात्मक
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गभापात की समस्या का कारण के वल गरीबी या ऄज्ञानता ऄथवा संसाधनों का ऄभाव नहीं है।
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ईदाहरण के धलए यकद दहेज जैसी प्रथाओं का ऄथा यह है कक माता-धपता को ऄपनी पुधत्रयों के धववाह के
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धलए ऄधधक दहेज देना पड़ता है, तो ईस पररधस्थधत में समृि माता-धपता आस खचा को वहन करने में
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हालांकक, सबसे समृि क्षेत्रों में न्यूनतम ललगानुपात दजा ककया गया है। यह भी संभव है (हालांकक आस
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मुद्दे पर ऄभी भी शोध ककया जा रहा है) कक अर्थथक रूप से समृि पररवार कम बच्चे पैदा (सामान्यतः वे
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के वल एक या दो बच्चे) करने का धनणाय करें । ऄतः वे ऄपने बच्चे के ललग का चयन भी कर सकते हैं।
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ऄल्ट्ा-साईं ड टेक्नोलॉजी की ईपलब्धता के कारण ऐसा संभव हो जाता है, यद्यधप सरकार द्वारा आस
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प्रकार की गधतधवधधयों पर प्रधतबंध लगाने हेतु और सज़ा के रूप में भारी जुमााना एवं कारावास से
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संबंधधत कठोर कानून पाररत ककए गए हैं। पूवा गभााधान और प्रसव पूवा धनदान तकनीक (ललग चयन का
प्रधतषेध) ऄधधधनयम, 1994, नामक ऄधधधनयम 1996 से लागू है और आसे 2003 में और ऄधधक सुदढ़ृ
बना कदया गया है। हालांकक, ऄंततः बाधलका धशशु के प्रधत पक्षपात जैसी समस्याओं का समाधान
कानूनों और धनयमों के ऄधतररक्त सामाधजक दृधष्टकोण पर भी धनभार करता है।
9. भारत में जनसं ख्या नीधतयााँ
(Population Policies in India)
जनसंख्या गधतकी ककसी राष्ट्र की धवकासात्मक संभावनाओं के साथ-साथ जन सामान्य के स्वास््य एवं
कल्याण को भी प्रभाधवत करती है। यह वास्तधवकता है कक धवकासशील देशों को आस संदभा में धवशेष
चुनौधतयों का सामना करना पड़ता है।
क्या अप जानते हैं कक स्वतंत्रता पूवा से ही भारत में जनसंख्या वृधि तथा जनसंख्या नीधत ऄपनाने की
अवश्यकता पर धवमशा अरं भ हो गया था? 1938 में ऄंतररम सरकार द्वारा धनयुक्त राष्ट्रीय धनयोजन
सधमधत द्वारा जनसंख्या पर एक ईप-सधमधत का गठन ककया गया था। आस सधमधत के 1940 के प्रस्ताव
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धवद्यालय ऄध्यापक या कायाालय कमाचारी) पर ऄत्यधधक दबाव डाला गया था। धवपक्षी दलों ने व्ापक
रूप से आस कायाक्रम की अलोचना की तथा अपातकाल के पश्चात् नव-धनवााधचत सरकार ने आस l.c
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अपातकाल के पश्चात् राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम का नाम पररवर्थतत कर राष्ट्रीय पररवार
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कल्याण कायाक्रम कर कदया गया तथा बलपूवक ा ऄपनाइ जाने वाली धवधधयों का त्याग कर कदया गया।
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वतामान में आस कायाक्रम के तहत व्ापक सामाधजक-जनांकककीय ईद्देश्यों को समाधहत ककया गया है।
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राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 के एक भाग के रूप में कदशा-धनदेशों के नए समुच्चय का धनमााण ककया
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गया।
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आन्फे क्शन (RTI) एवं यौन संचाररत संक्रमण (Sexually Transmitted Infections) और राष्ट्रीय
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एड्स धनयंत्रण संयक्र
ा मों को एक जन-के धन्ित कायाक्रम बनाने हेतु संगठन के प्रबंधन के मध्य
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प्रजनन एवं धशशु स्वास््य सेवाओं की ईपलब्धता तथा पररवारों तक पहुाँच बनाने हेतु भारतीय
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सकल प्रजनन दर के प्रधतस्थापन स्तर को प्राप्त करने हेतु छोटे पररवार के अदशा को प्रबलता से
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प्रोत्साधहत करना।
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प्रधतस्थापन स्तर पर सकल प्रजनन दर: यह वह सकल प्रजनन दर है धजस पर प्रत्येक नवजात बाधलका
के ईसके जीवनकाल में औसतन के वल एक बेटी होगी। प्रत्येक मधहला ईतने ही बच्चों को जन्म देगी
धजतने ईसके प्रधतस्थापन हेतु अवश्यक हैं। आस प्रकार आसका पररणाम शून्य जनसंख्या वृधि के रूप में
पररलधक्षत होता है।
धस्थर जनसंख्या: ऐसी जनसंख्या जहााँ जन्म दर एवं मृत्यु दर एक दीघाावधध में धस्थर बनी हुइ है। आस
प्रकार की जनसंख्या एक ऄपररवतानशील अयु धवतरण को प्रदर्थशत करे गी तथा एक धस्थर दर पर वृधि
करे गी। जहााँ प्रजनन दर और मृत्यु दर एक समान होती हैं वहां धस्थर जनसंख्या स्थायी बनी रहती है।
भारत के राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम का आधतहास स्पष्ट करता है कक राष्ट्र जनांकककीय पररवतान
हेतु पररधस्थधतयों के सृजन के धलए ऄत्यधधक प्रयास कर सकता है परन्तु ऄधधकााँश जनांकककीय चर
(धवशेष रूप से वे जो मानव प्रजनन से संबंधधत हैं) ऄंततोगत्वा अर्थथक, सामाधजक तथा सांस्कृ धतक
पररवतान के धवषय हैं।
स्वतंत्रता पूवा ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या धनयंत्रण को प्रोत्साधहत करने हेतु
ईिरदायी सामान्य कारक
जन सामान्य के मध्य जागरूकता का ऄभाव।
राजनीधतक और बौधिक ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या नीधत के
पक्ष में तका ।
धचककत्सालयों की स्थापना हेतु एवं लोगों को सूचना ईपलब्ध
करवाने हेतु ऄलग-थलग प्रयास।
जन्म धनयंत्रण के साधनों हेतु जनसंख्या गधतकी तथा ईपागमों की
समझ में मतभेद होने के बावजूद गााँधी और नेहरु द्वारा जनसंख्या
धनयंत्रण का प्रबल समथान ककया गया।
1952 गााँधीवादी दृधष्टकोण के साथ पररवार धनयोजन की शुरुअत
राज्य प्रायोधजत पररवार धनयोजन कायाक्रम प्रारम्भ ककया गया।
मुख्य धवधधयों के रूप में संयम और सामंजस्य के साथ गााँधीवादी
दृधष्टकोण।
1950-60 नैदाधनक दृधष्टकोण
अर्थथक मॉडल जनसंख्या वृधि और धवकास के मध्य एक
नकारात्मक संबंध को प्रदर्थशत करता है।
जनांकककीय दरों एवं ऄनुपातों का ऄनुमान।
ज्ञान, मनोवृधत तथा व्वहार का ऄध्ययन।
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प्रजनन से संबंधधत शोध।
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नैदाधनक दृधष्टकोण।
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धवस्तृत कायाक्रम।
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संगठनात्मक पररवतान।
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(Sample Registration Survey:SRS) 2016 के ऄनुसार यह घटकर 2.3 हो गइ है।
1991 में सकल प्रजनन दर (TFR) के 3.6 के स्तर से 2016 में 2.3.के स्तर तक सुस्पष्ट धगरावट होने के l.c
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बावजूद भारत द्वारा ऄभी भी 2.1% का प्रधतस्थापन स्तर प्राप्त करना शेष है। 24 राज्यों/कें ि शाधसत
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प्रदेशों द्वारा पहले ही 2013 तक TFR का प्रधतस्थापन स्तर प्राप्त कर धलया गया था, जबकक ईिर
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प्रदेश और धबहार जैसे धवशाल जनसंख्या अधार वाले राज्यों में TFR क्रमशः 3.1 और 3.4 है। झारखंड
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(TFR 2.7), राजस्थान (TFR 2.8), मध्य प्रदेश (TFR 2.9), छिीसगढ़ (TFR 2.6) जैसे ऄन्य
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राज्यों में प्रजनन का ईच्च स्तर बना हुअ है और वे जनसंख्या वृधि में योगदान कर रहें हैं।
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एक ऄन्य महत्वपूणा धवषय प्रवासन है, धजसका भावी जनसंख्या नीधत में समाधान ककया जाना चाधहए।
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2011 की जनगणना के ऄंतगात रोजगार, व्वसाय, धशक्षा, धववाह और ऄन्य कारकों द्वारा प्रेररत
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ऄंतरााज्यीय और ऄन्तःराज्यीय प्रवास में वृधि की चचाा की गयी है। महानगरों और बड़े शहरों में होने
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वाले ऄधनयोधजत प्रवास के कारण ऄवसंरचना, अवास और जल की ईपलब्धता पर दबाव में वृधि होने
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के साथ-साथ स्थानीय-बाहरी लोगों से संबंधधत तनाव भी ईत्पन्न होते हैं। जनसंख्या नीधत में आन
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कारकों को सधम्मधलत करने से दूरदर्थशता और समन्वय में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक वृधि होगी और मधलन
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बधस्तयों के ऄत्यधधक धवस्तार एवं ऄधनयोधजत अवास के ऄपररहाया पररणामों से सुरक्षा प्राप्त होगी।
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एक ऄन्य प्रमुख धवषय वृिावस्था से संबंधधत है। वृिजनों की बढ़ती जनसंख्या और स्थायी रोगों के
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साथ जीवन प्रत्याशा में वृधि के कारण धशक्षा एवं कौशल धवकास प्रदान करने के प्राथधमक काया हेतु
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प्रयुक्त संसाधन धवक्षेधपत हो सकते हैं। संयुक्त पररवार प्रणाली का धवघटन होने के कारण धनभारता
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ऄनुपात में तीव्रता से वृधि हो रही है। वतामान में देखभाल सुधवधा प्रदाता से संबंधधत बाजार (market
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of caregivers) ऄधवधनयधमत, महंगा और गैर भरोसेमंद है। वृिजनों की बढ़ती ऄसमथाता के कारण
आस जनसंख्या समूह की बढ़ती अवश्यकताओं पूर्थत के धलए व्ावसाधयक ऄवसरों को जनसंख्या नीधत
का भाग होना चाधहए।
भधवष्य में ईत्पन्न होने वाली चुनौधतयों से धनपटने की तैयारी के साथ हमारी जनांकककीय पररसंपधियों
की रक्षा करने वाली जनसंख्या नीधत धवनाशकारी पररणामों से भावी पीकढ़यों की रक्षा करे गी।
11.1 भारत में जनसं ख्या वृ धि को धनयं धत्रत करने हे तु ककए गए ईपाय
मंत्रालय (MoHFW) लाभाथी को होने वाली पाररिधमक हाधन और नसबंदी करने वाले सेवा
प्रदाता (और धचककत्सक दल) को क्षधतपूर्थत प्रदान करता है।
पुरुष भागीदारी को बढ़ाना और नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी (Non Scalpel Vasectomy) को
प्रोत्साधहत करना। नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी में कोइ चीरा नहीं बधल्क के वल सुराख ककया जाता है
आसधलए कोइ टांके नहीं लगाये जाते।
धमनीलैप ट्यूबक्
े टोमी (Minlap Tubectomy) सेवाओं पर ऄधधक बल देना क्योंकक ये ऄधधक
सरल होती हैं और आनके धलए के वल MBBS डॉक्टर की अवश्यकता होती है, न कक ककसी
िातकोिर िी रोग धवशेषज्ञ या सजान की।
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सावाजधनक-धनजी भागीदारी (PPP) के तहत पररवार धनयोजन सेवाओं के धलए सेवा प्रदाताओं के l.c
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अधार में वृधि करने के धलए ऄपेक्षाकृ त ऄधधक धनजी/गैर-सरकारी संगठनों को मान्यता प्रदान
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करना।
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योजना: सरकार द्वारा लाभार्थथयों के घरों तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत करने हेतु अशा
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अशा कायाकतााओं द्वारा बच्चों के जन्म में ऄंतराल सुधनधश्चत करने की योजना: आस योजना के तहत
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अशा कायाकतााओं द्वारा नव दम्पधतयों को धववाह के पश्चात् बच्चे के जन्म में दो वषों के धवलंब तथा
एक बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के जन्म में तीन वषों का ऄन्तराल रखने का परामशा कदया जाता है।
प्रसवोिर ऄंतगाभााशयी गभाधनरोधक ईपकरण (Post-Partum Intrauterine Contraceptive
device: PPIUCD) की नइ धवधध की शुरुअत द्वारा ऄंतराल बढ़ाने वाली धवधधयों को प्रोत्साहन।
Cu IUCD 375 नामक एक नए ईपकरण का प्रारं भ, जो पांच वषों तक प्रभावशाली रहता है।
PPIUCD की शुरुअत के साथ प्रसवोिर पररवार धनयोजन (PPFP) पर जोर तथा जननी सुरक्षा
योजना (JSY) के तहत संस्थागत प्रसव हेतु अने वाले ऄधधक मामलों के पूज
ं ीकरण के धलए
प्रसवोिर नसबंदी के रूप में नसबंदी करने के धलए मुख्य धवधध के रूप में धमनी लैपरोटॉमी
(Minilaprotomy) या धमनी लैप (Minilap) को बढ़ावा देना।
ईच्च सकल प्रजनन दर (TFR) वाले 11 राज्यों के धलए नसबंदी के स्वीकारकतााओं हेतु क्षधतपूर्थत में
वृधि।
राज्यवार काया योजनाओं पर कायारि है। FP-2020 की मूल प्रधतबिताएाँ धनम्नधलधखत हैं:
o पररवार धनयोजन पर बढ़ती धविीय प्रधतबिता धजसके तहत भारत ने 2012 से 2020 तक 2
धबधलयन ऄमेररकी डॉलर के अवंटन की प्रधतबिता व्क्त की है।
o 2020 तक 48 धमधलयन (4.8 करोड़) ऄधतररक्त मधहलाओं की पररवार धनयोजन सेवाओं तक
o वतामान में गभाधनरोधकों का प्रयोग करने वाली 100 धमधलयन (10 करोड़) मधहलाओं के
कवरे ज को बनाए रखना।
स्वैधच्छक पररवार धनयोजन संबध
ं ी सेवाओं, अपूर्थतयों एवं सूचनाओं तक बेहतर पहुंच के माध्यम से
ऄपूररत अवश्यकताओं में कमी करना। ईपयुाक्त कारकों के ऄधतररक्त जनसंख्या धस्थरता कोष
(National Population Stablization Fund) द्वारा जनसंख्या धनयंत्रण ईपायों के रूप में
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धनम्नधलधखत रणनीधतयों को ऄपनाया गया है:
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o प्रेरणा रणनीधत: जनसंख्या धस्थरता कोष (JSK) द्वारा युवा माताओं और धशशु के स्वास््य के
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धहत में, लड़ककयों की धववाह की अयु में वृधि करने और प्रथम बच्चे में धवलम्ब तथा पहले एवं
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दूसरे बच्चे में ऄन्तराल को बढ़ाने में सहायता करने हेतु आस रणनीधत को प्रारम्भ ककया गया।
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o संतधु ष्ट रणनीधत: आस रणनीधत के तहत जनसंख्या धस्थरता कोष, सावाजधनक-धनजी भागीदारी
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के तहत नसबंदी ऑपरे शन के संचालन हेतु धनजी क्षेत्र के िीरोग धवशेषज्ञों एवं नसबंदी शल्य-
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धचककत्सकों को अमंधत्रत करता है। 10 या आससे ऄधधक (नसबंदी) के लक्ष्य को प्राप्त करने
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वाले धनजी ऄस्पतालों/नर्ससग होम को रणनीधत के ऄनुसार ईधचत रूप से पुरस्कृ त ककया जाता
है।
o राष्ट्रीय हेल्पलाआन: JSK, प्रजनन स्वास््य, पररवार धनयोजन, मातृ एवं धशशु स्वास््य
आत्याकद पर धन:शुल्क परामशा ईपलब्ध करवाने हेतु कॉल सेंटसा का संचालन भी कर रहा है।
o समथानकारी तथा सूचना, धशक्षा एवं संचार (IEC) गधतधवधधयां: जनसंख्या धस्थरीकरण के
संदभा में जागरूकता एवं समथान संबंधी ऄपने प्रयासों के एक भाग के रूप में जनसंख्या
धस्थरता कोष द्वारा आलेक्ट्ॉधनक मीधडया, लप्रट मीधडया, कायाशालाओं, वॉकाथन तथा ऄन्य
गधतधवधधयों के प्रसार हेतु ऄन्य मंत्रालयों, धवकास भागीदारों, धनजी क्षेत्रों, कॉपोरे ट और
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Fig. - S1
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Fig. - S2
Fig. - S3
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Fig. - S4
Fig. - S5
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Fig S6
Trivia: Population Doubling Time: Population doubling time is the time taken by
any population to double itself at its current annual growth rate.
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Fig. – S8
Fig. - S9
Fig. - S 10
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Fig. S 12
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Fig. - S 13
Fig S 15
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Table T1
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Table T3
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Table T5
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ईदाहरण के धलए ताजा अंकड़ों के ऄनुसार 0-14 वषा के प्रत्येक तीन बच्चों मे से 1 बच्चा यूपी-
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धबहार का है। दूसरी तरफ दधक्षणी भारतीय राज्यों ने ऄपनी जनसंख्या को लम्बे समय से
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धस्थर ककया है तथा ईनकी ईम्रदराज जनसंख्या में काफी वृधि देखने को धमली है।
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आसके पररणामस्वरूप दधक्षण में ऄकु शल िम की कमी है धजसे देश के दूसरे भागों से होने वाले
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भारत में सभी राज्यों की मध्य जनांकककीय की सरं चना पयााप्त धभन्नता धलये हुए है। कु छ
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राज्यों में जनसंख्या की अयु सरं चना व्स्क के धन्ित होगी तथा जो धनकट भधवष्य में वृृृ
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जनसंख्या में पररवर्थतत हो जायेगी तथा कु छ ऄन्य राज्यों में जनसंख्या की अयु सरं चना में
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बच्चे व युवा ऄधधक है। यह दशााता है कक सरकारों को आस मुद्दे को संभालने के धलए पूरी तरह
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आसका ऄथा यह है कक ईिरी राज्यों को धशक्षा, कौशल धनमााण आत्याकद पर धनवेश की ऄधधक
अवश्यकता है जबकक ऄपनी ईम्रदराज जनसंख्या के कारण दधक्षणी राज्यों को स्वास््य पेंशन,
बीमा अकद पर धनवेश की अवश्यकता है।
2. प्रजनन स्वास््य क्या है? यह ककस प्रकार वतामान पररवार धनयोजन तथा मातृ एवं धशशु
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यह संकल्पना के वल शादीशुदा लोगों के संदभा में है, धवशेष रूप से ऄन्य जवान लोग आससे
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बाहर हैं।
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आसमें पुरूषों के धलए सेवाएं बमुधश्कल ही बनाइ गइ हैं, जबकक ईनमें भी प्रजनन स्वास््य
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प्रजनन स्वास््य का दृधष्टकोण कइ तरीकों में छोटे पररवार की संकल्पना से ऄलग है।
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प्रजनन व बाल स्वास््य कायाक्रम 1997 में शुरू हुअ। आसमें ऄनचाहे गभा की रोकथाम एवं
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प्रंबधन, जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को बढ़ावा तथा प्रजनन संबंधी संक्रमण एवं यौन संक्रमण अकद
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की रोकथाम के धलए धवधभन्न सेवाएाँ एकीकृ त रूप से ईपलब्ध हैं। कायाक्रम का लक्ष्य है - ईन
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लोगों तक आन सेवाओं का धवस्तार करना जो ऄभी तक आन सेवाओं से वंधचत रहे हैं। ईपेधक्षत
जनसमूह को धजसमें ककशोर तथा अर्थथक व सामाधजक रूप से धपछडेऺ लोग जैसे- शहरी झुग्गी
वाले व अकदवासी जनसंख्या अकद को सधम्मधलत ककया जाता है।
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आसे प्राप्त करने हेतु वतामान सरकारी िम कानूनों को लचीला बनाने की अवश्यकता है,
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धजससे िम गहन धवधनमााण को बढ़ाया जा सके ।
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आसके धलए सरकार को मानव पूंजी, स्वास््य व धशक्षा में भारी धनवेश की अवश्यकता है,
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आसके धलए भौधतक, अधारभूत ढााँचे एवं, ऄन्य संरचनात्मक ढााँचे में भारी धनवेश की
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अवश्यकता है, धजससे सकल घरे लू ईत्पाद को 4.6 प्रधतशत से 7-8 प्रधतशत ककया जा सके ।
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यकद भारत तेजी से काया करता है, तो यह धनकट भधवष्य में वैधिक अर्थथक शधक्त बन सकता
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4. क्या कारण हैं कक राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत भारत में जनसंख्या वृधि रोकने में धवफल रही है?
दृधष्टकोणः
सीधा स्पष्ट प्रश्न। कु छ कारणों को धलखें।
कु छ सुझावों के साथ धनष्कषा दें।
ईिरः
जहााँ एक ओर जन्मदर को कम करने के धलए कोइ प्रभावी संस्थागत कक्रयाधवधध (मैकेधनज्म)
नहीं रही है वहीं दूसरी ओर मृत्युदर को कम करने में संतोषजनक सफलता धमली है। स्वास््य
एवं स्वच्छता की धस्थधत में सुधार से मृत्यु दर में काफी कमी अयी है। ऄतः धवकास और
बढ़ती जनसंख्या के बीच ऄसन्तुलन की धस्थधत में पररवार धनयोजन का राष्ट्रीय स्तर पर
महत्व बढ़ गया है।
भारत में जन्मदर को कम करने के धलए ‘पररवार धनयोजन कायाक्रम’ ऄपनाया गया। स्वास््य
मंत्रालय के ऄन्तगात पररवार धनयोजन के धलए एक धवभाग बनाया गया, धजसने ऄप्रैल 1976
में ‘राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत’ बनायी और 1981 में आसे संशोधधत ककया गया।
5. अर्थथक धवकास ककसी समाज की जनसांधख्यकीय को ककस प्रकार प्रभाधवत करता है? भारत
के सन्दभा में आसकी चचाा करें ।
दृधष्टकोण:
प्रश्न का मूल धवषय अर्थथक धवकास और जनसांधख्यकीय पररवतान के बीच संबंध है। ईिर को
धनम्नधलधखत तरीके से प्रस्तुत ककया जा सकता है:
भारत में अर्थथक धवकास के संबंध में संक्षेप में सामान्य जनसांधख्यकी प्रवृधि को
समझाएं।
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तत्पश्चात् धवस्तार से चचाा करें कक भारतीय समाज के अर्थथक धवकास द्वारा क्याl.c
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जनसांधख्यकीय पररवतान हुए हैं। ईदाहरण: जनन दर में कमी, ललगानुपात अकद ।
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ईिर:
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अर्थथक धवकास के ईच्च स्तर के पररणामस्वरूप जनन दर, जनसंख्या वृधि, मृत्यु दर में
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धगरावट एवं जीवन प्रत्याशा व साक्षरता दर में वृधि होती है। आसी प्रकार, धपछले कु छ वषों के
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दौरान भारत ने अर्थथक धवकास की प्रकक्रया में जनसंख्या वृधि दर, जनन दर, जीवन प्रत्याशा
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और अयु संरचना में मौधलक पररवतान ऄनुभव ककए हैं। आन पररवतानों की प्रकृ धत आस प्रकार
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है:
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कु छ धवशेष क्षेत्रों के पक्ष में धपछले दो दशकों के दौरान अर्थथक धवकास (6-8%) के ईच्च
स्तर के पररणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या संकेन्िण में वृधि हुइ है। शहरी
जनसंख्या का ऄनुपात जनसंख्या घनत्व में वृधि के साथ धनरं तर बढ़ते हुए 2011 में 31
प्रधतशत तक हो गया।
कु ल जनसंख्या वृधि दर में 1981 में 24.5% से 2011 में 17.6% तक तीव्र धगरावट
अइ है। यह धगरावट अर्थथक धवकास के बढ़ते स्तर और सेवा क्षेत्र की वृधि के ऄनुरूप है।
साक्षरता दर, जो 1991 में 54% थी, आसके 2011 में 74% तक पहुंचने हेतु बढ़ते
अर्थथक धवकास को ईत्तरदायी ठहराया जा सकता है क्योंकक कौशल शधक्त की मांग और
रोजगार के ऄवसरों में वृधि हो रही है।
हाल के दशकों में ग्रामीण ऄथाव्वस्था के धीमी अर्थथक धवकास के पररणामस्वरूप बड़े
पैमाने पर पलायन हुअ है धजसके फलस्वरूप शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के जनसांधख्यकीय
संरचना में पररवतान अया है ।
6. भारत में जनसंख्या का ऄसमान स्थाधनक धवतरण आसके भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक
कारकों के साथ घधनष्ठ संबध
ं को बतलाता है। वणान करें ।
दृधष्टकोण:
भारत में जनसंख्या के ऄसमान स्थाधनक धवतरण की संक्षप
े में चचाा करें ।
भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक कारकों से से ये घधनष्ट रूप से कै से जुड़े हैं, चचाा करें ।
ईिर :
भारत की जनसंख्या का स्थाधनक धवतरण एक समान नहीं है। भारत में जनसंख्या का ऄसमान
घनत्व आस त्य से स्पष्ट है कक ऄरुणाचल प्रदेश में प्रधत वगा ककलोमीटर जनसंख्या का औसत
के वल 17 व्धक्त है, जबकक वषा 2011 की जनगणना के ऄनुसार कदल्ली में प्रधत वगा
ककलोमीटर में लोगों का औसत 11,297 व्धक्त है।
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यातायात संजाल का धवकास होने से जनसंख्या की सघनता बहुत ऄधधक ही रही है।
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दूसरी ओर, मुम्बइ, कोलकता, बंगलोर, पुण,े ऄहमदाबाद, चेन्नइ और जयपुर जैसे शहरी क्षेत्रों
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में औद्योधगक धवकास और शहरीकरण के कारण जनसंख्या की सघनता ऄधधक रही है, और
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बहुत ऄधधक संख्या में ग्रामीण-शहरी प्रवासी आन क्षेत्रों की ओर अकर्थषत होते रहे हैं।
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हम आससे यह धनष्कषा धनकाल सकते हैं कक ककसी भी क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व एक से ऄधधक
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कारकों पर धनभार करती है। ईदाहरण के धलए भारत के ईिर-पूवा क्षेत्र को ही लें। यहााँ
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जनसंख्या के धनम्न घनत्व के धलए कइ कारक ईिरदायी हैं। ये कारक हैं- ऄत्याधधक वषाा,
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ऐतहाधसक कारक।
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7. 952 में ऄपनी जनसंख्या नीधत की घोषणा करने के साथ ही भारत ईन चुधनन्दा देशों के समूह
में सधम्मधलत हो गया धजनकी ऄपनी ऄधधकाररक जनसंख्या नीधत थी। आसके पश्चात के वषों
के दौरान देश की जनसंख्या नीधत के धवधभन्न पहलुओें का अलोचनात्मक धवश्लेषण कीधजए।
दृधष्टकोण:
ईिर की भूधमका में जनसंख्या नीधत को संधक्षप्त रूप में पररभाधषत करना चाधहए। आसके
ऄलावा, संक्षेप में 1952 के राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम के बारे में बतलाते हुए
जनसंख्या नीधत के धवकास के सन्दभा में ईल्लेख करें ।
जनसंख्या नीधत की धवशेषताएं बताएं चूकं क यह धवधभन्न दृधष्टकोणों और महत्वपूणा नीधतगत
दस्तावेज जैसे राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 को ऄपनाने के क्रम में कइ वषों में धवकधसत हुइ
है। बीते वषों में क्रमागत नीधतयों की ईपलधब्धयों और धवफलताओं के माध्यम से
अलोचनात्मक धवश्लेषण प्रस्तुत ककया जा सकता है।
दुभााग्य से, बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी जैसे बलात तरीके प्रयुक्त ककये गए जो
जनसंख्या नीधत के प्रधत लोगों के बीच ऄसंतोष का कारण बना।
आसके बाद कायाक्रम को राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम के रूप में पुन: नाधमत ककया
गया, धजसमें लोगों के कल्याण के माध्यम से जनसंख्या को धनयंधत्रत करने पर फोकस
ककया गया। जनसंख्या धनयंत्रण के जबरन तरीकों का पररत्याग ककया गया और ईनके
बजाय व्ापक अधार के सामाधजक जनसांधख्यकीय ईद्देश्यों को ऄपनाया गया।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (NPP), 2000 के भाग के रूप में कदशा-धनदेशों का एक नया
सेट तैयार ककया गया, ये लक्ष्य ऄपनी प्रकृ धत में समग्र थे तथा 2010 तक हाधसल ककया
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जाने थे, आनमें व्ापक क्षेत्रों को कवर ककया गया धजससे सावाजधनक स्वास््य और l.c
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कायाान्वयन एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के सन्दभा में समग्र प्रदशान तुलनात्मक रूप से
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संतोषजनक से थोड़ा कम रहा। प्रारं भ में, फोकस क्षेत्र बहुत संकीणा थे जैसे गभाधनरोधक
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कारकों पर होना चाधहए था जो जनसंख्या वृधि की ईच्च दर के प्रमुख कारण हैं। NPP
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आन सबके बावजूद पहली नीधत के धनमााण के बाद से पचास वषों में कइ महत्वपूणा
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ईपलधब्धयााँ हाधसल की गइ हैं। ऄशोधधत मृत्यु दर, धशशु मृत्यु दर (IMR) में कमी हुइ है
तथा जीवन प्रत्याशा में महत्वपूणा सुधार देखा गया है। जनसंख्या धस्थर हो गइ है क्योंकक
कु ल प्रजनन दर (TFR) 3 से कम हो गयी है, लेककन आस लक्ष्य को हाधसल करने के धलए
भी काफी समय लग गया।
कइ दशकों में, जनसंख्या नीधत में नीधतगत एवं वास्तधवक कायाक्रम के कायाान्वयन के
संदभा में पररवतान अये हैं तथा वतामान में नीधत में न के वल जनसंख्या धस्थरीकरण के
लक्ष्यों को प्राप्त करने के धलए बधल्क प्रजनन स्वास््य को बढ़ावा देने और मातृ, धशशु एवं
बाल मृत्यु दर एवं रुग्णता को कम करने के धलए पररवतान ककये जा रहे हैं।
हाल ही में ईठाये गए कदमों जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास््य धमशन, से धनधश्चत रूप से लक्ष्यों को
प्राप्त करने के हमारे प्रदशान में सुधार होगा। भारत को अबादी के मानकों पर बेहतर ररकॉडा
के सम्बन्ध में िीलंका जैसे पड़ोसी देशों से प्रेरणा लेनी चाधहए।
1. प्रमुख धवशेषताओं को बताते हुए भारत सरकार की जनसंख्या नीधत की समीक्षा कीधजए।
(2001)
2. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 में तय ककए गए मुख्य लक्ष्यों को रे खांककत कीधजए। आस नीधत
हेतु ककन ईपायों का ऄनुशरण ककया गया। (2002)
3. भारत की जनसंख्या में ललगानुपात को पररभाधषत कीधजए।आसकी वतामान धस्थधत क्या है ?
(2002)
4. अलोचनत्मक परीक्षण कीधजए कक क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी
भारत में बढ़ती जनसंख्या का मुख्य कारण है। (2013)
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भारतीय समाज ai
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5. महहलाओं से संबहं धत मुद्दे: प्रहतक्रिया _______________________________________________________________ 16
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9.4 भारत सरकार द्वारा प्रारं भ क्रकए गए महहला सशहिकरण कायगिम/योजनाएं _________________________________ 45
10. हिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेथट सीरीज में पूिे गए प्रश्न _________________________________________ 47
11. हिगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग द्वारा पूिे गए प्रश्न ________________________________________________ 61
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महहलाएं हिश्व में प्रहतभा की सबसे बङी ऄप्रयुि भंडार हं - हहलेरी हललटन
1. भू हमका (Introduction)
हनम्नहलहखत पररदृश्यों की कल्पना कीहजए:
अप बस थटॉप पर एक बस की प्रतीक्षा कर रहे हं और एक युिा पुरुष बुनाइ िाली सुइ (कांटा)
और उन हनकालकर बुनाइ करना शुरू करता है। एक थकू ली िात्रा जो बस का आंतघार कर रही है,
कच्ची आमली तोङने के हलए एक आमली के पेङ पर चच जाती है।
अपके पङोस में एक दंपहत रहते हं। ईनमें पहत घर पर रहता है और ऄपनी दो िषीय पुत्री की
देखभाल करने के साथ-साथ ऄन्य घरे लू कायग भी करता है जबक्रक पत्नी बंक में एक प्रबंधक के रूप
में कायगरत है।
लया ये घटनाएं अपको अश्चयगचक्रकत करती हं? आन घटनाओं के सन्दभग में लोगों से अप लया
प्रहतक्रियाएं सुनने की ऄपेक्षा करते हं? आन पररदृश्यों/घटनाओं के संबंध में आतना ऄनूठा लया है क्रक लोग
अश्चयगचक्रकत होते हं या ऐसी रटप्पहणयााँ करते हं? एक पुरुष बुनाइ लयों नहीं कर सकता या एक लङकी
पेङ पर लयों नहीं चच सकती? लया गलत है यक्रद कोइ पुरुष घर पर रहता है और बच्चों की देखभाल एिं
घर के कायों के ईत्तरदाहयत्ि को संभालता है? एक महहला ऄपने कररयर पर पूणक
ग ाहलक ध्यान लयों
नहीं दे सकती? ये िहियां लोगों को अश्चयगचक्रकत करती हं लयोंक्रक ये समाज में सामान्यतः प्रचहलत
प्रथाओं के हिपरीत हं। यह हमारी संथकृ हत है, हजसने पुरुषों और महहलाओं की कइ रूक्रचिादी िहियों
का हनमागण क्रकया है और एक लंबे समय से ऄहधकांश लोग आसे सही िहि के रूप में ही थिीकार करते
अए हं।
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आस प्रकार महहलाओं को एक सामाहजक श्रेणी के रूप में िर्मणत क्रकया जा सकता है। महहलाओं से
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संबंहधत हिहभन्न मुद्द,े यथा- ईत्पादक संसाधनों, हचक्रकत्सा सुहिधाओं, हशक्षा और रोजगार के ऄिसरों
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तक कम पहंच तथा ईनके द्वारा ऄनुभि क्रकए जाने िाले कइ ऄन्य सामाहजक और अर्मथक भेदभाि
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अक्रद हिद्यमान हं। महहलाएं ऄपने जीिनकाल में मााँ से लेकर एक अजीहिका ऄजगक तक हिहभन्न
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भूहमकाएाँ हनभाती हं क्रकन्तु लगभग प्रत्येक हथथहत में िे पुरुष प्रभुत्ि के ऄधीन होती हं। ऄहधकांशतः
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ईन्हें कायग थथल एिं घर, दोनों थथानों पर ईच्च पदों से सम्बंहधत ऄहधकारों और हनणगय हनमागण प्रक्रिया
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से बाहर रखा गया है। यह हिडंबना ही है क्रक भारतीय समाज में जहां महहलाओं की देिी के रूप में पूजा
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की जाती है, िहीं महहलाओं को एक थितंत्र पहचान और हथथहत से िंहचत कर क्रदया जाता है।
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हाल के िषों में, हिशेष रूप से महहला मुहि अंदोलन के ईदय के साथ, महहलाओं के हिरुि आस
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भेदभाि पर व्यापक बहस हइ है। आस बहस से हनम्नहलहखत दो प्रमुख मत हनकलकर सामने अए हं:
हलगानुपात हररयाणा में (प्रहत 1000 पुरुषों पर 879 महहलाएं) है जबक्रक सिागहधक के रल में (प्रहत
1000 पुरुषों पर 1084 महहलाएं) है।
मृत्यु दर िथतुतः हिहभन्न अयु समूहों में मृत्यु की अिृहत्त की मापक है। यह एक िार्मषक दर है हजसमें
हिहभन्न अयु समूहों के बीच मरने िालों की संख्या की गणना की जाती है। भारत में अयु-हिहशष्ट मृत्यु
दर के अाँकङे हशशु मृत्यु दर (0-4 िषग) और मातृ मृत्यु दर (प्रहत एक लाख जीहित जन्मों पर प्रसि के
दौरान या प्रसि के कारण मरने िाली माताओं की संख्या) की ईच्च दर को प्रदर्मशत करते हं।
जीिन प्रत्याशा का तात्पयग ईन िषों की संख्या से है, जो एक निजात हशशु को औसतन जीने की अशा
की जाती है। भारत के संदभग में यह देखा गया है क्रक िृिािथथा में महहलाओं की जीिन प्रत्याशा ईच्च
होती है, तथा युिा अयु िगग की महहलाओं में मृत्यु दर भी ऄपेक्षाकृ त ईच्च होती है।
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माध्यम से ही चलती है, बेटे िृि माता-हपता की देखभाल करें ग,े यह पुरुष ही है जो भोजन अक्रद की
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व्यिथथा करता है आत्याक्रद।
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कइ बार िोटे पररिार के मानदंड, हलग हनधागरण परीक्षणों की असान ईपलधधता के साथ संयि
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होकर बाल हलगानुपात में कमी के कारण बन जाते हं। पूिग-गभगधारण हलग चयन सुहिधाओं की
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घटते बाल हलगानुपात के पररणाम (The consequences of declining child sex ratio)
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महहलाओं के हिरुि हहसा में हइ बचोत्तरी से पुत्र की प्राथहमकता बच गइ है, लयोंक्रक माता-हपता यह
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आसके ऄहतररि, जन्म और गभागिथथा की जरटलताओं के जोहखम को कम करने के हलए प्रसिपूिग
देखभाल की गुणित्ता महत्िपूणग है और यह भारत में बहत ऄछिी हथथहत में नहीं है। l.c
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(iii) साक्षरता: 2011 की जनगणना के ऄनुसार महहला साक्षरता दर 65.46% है जबक्रक पुरुष
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साक्षरता 82.14% है। साथ ही, जहााँ के रल में महहला साक्षरता दर सिागहधक 92.07% है, िहीं हबहार
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(iv) रोजगार: कु ल महहला जनसंख्या में से 21.9% भारतीय श्रमबल का हहथसा हं। ग्रामीण क्षेत्रों में
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ऄहधकांश महहलाएं कृ हष में हनयोहजत हं। ग्रामीण महहला श्रहमकों में 87% कृ हष कायों, जैस-े श्रहमक,
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कृ षक ऄथिा थि-रोजगार यथा- फे री लगाना आत्याक्रद में संलग्न हं। आस प्रकार ये ऄसंगरठत क्षेत्र में
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कायगरत हं जो ऄहधकांश समय ऄदृश्य बना रहता है। समान पाररश्रहमक ऄहधहनयम, 1976 के लागू
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होने के बािजूद, महहलाओं को ऄपेक्षाकृ त कम पाररश्रहमक का भुगतान क्रकया जाता है; ईन्हें हनम्न
दक्षता िाले रोजगारों में हनयोहजत क्रकया जाता है; तथा कौशल प्रहशक्षण एिं पदोन्नहत तक ईनकी पहंच
ऄपेक्षाकृ त कम है।
(v) राजनीहतक हथथहत: यद्यहप भारत में सिगप्रथम 1966 में महहला प्रधानमंत्री हनिागहचत की गइ थी,
तथाहप संसद और ऄन्य राज्यों एिं थथानीय हनकायों में महहलाओं का प्रहतहनहधत्ि ऄभी भी ऄपयागप्त
है। संसद के ईच्च सदन में के िल लगभग 9 प्रहतशत महहलाएं और हनचले सदन में लगभग 11 प्रहतशत
महहलाएं हं। संसद में महहलाओं के प्रहतहनहधत्ि के मामले में भारत हिश्व में 99िें थथान पर था।
हालांक्रक संहिधान के 73िें और 74िें संशोधन ने महहलाओं के हलए एक हतहाइ अरक्षण के साथ
पंचायती राज संथथाओं (PRIs) में महहलाओं की भागीदारी सुहनहश्चत की है। ितगमान में जमीनी थतर
पर 30 हमहलयन से ऄहधक महहलाएं राजनीहतक हनणगय की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भागीदारी कर
रही हं।
भारत में महहलाओं की आस हनम्न हथथहत के हलए कौन से कारण ईत्तरदायी हं?
अआए भारतीय समाज के सामाहजक ढांचे और सामाहजक प्रक्रियाओं में हनहहत आसके कारणों का पता
लगाएाँ।
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2.1. सामाहजक सं र चना, सामाहजक प्रक्रियाएं और महहलाएं l.c
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आस खंड में हम ईन हिहिध संरचनाओं को समझने का प्रयास करें गे जो महहलाओं की गौण हथथहत हेतु
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ईत्तरदायी हं तथा हिहभन्न सामाहजक प्रक्रियाओं के माध्यम से भेदभाि को हनरं तर बनाए हए हं।
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जाहत पदानुिम के हिकास के साथ महहलाओं की पराधीनता की हथथहत ऄत्यहधक महत्िपूणग रही।
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जाहत के ईच्च थतर के साथ महहलाओं पर अरोहपत प्रहतबंध भी ईतने ही ऄहधक होते थे। स्त्री
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रहे हं।
जाहत व्यिथथा को बनाए रखने हेतु िैचाररक और भौहतक अधारों को धार्ममक ग्रन्थों तथा l.c
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हपतृसत्तात्मक, हपतृिश
ं ीय एिं हपतृथथाहनक (हििाह ईपरांत पत्नी का पहत के घर जाना)
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पररिार ऄत्यंत महत्िपूणग सामाहजक आकाइ है हजसमें सदथय पारथपररक संबंधों, भूहमकाओं एिं
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दाहयत्िों से बंधे होते हं। यह ऄल्पियथकों का पालन-पोषण करने तथा ईन्हें समाज में हिहभन्न
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भूहमकाओं के हनष्पादन हेतु समथग बनाने के हलए ईनका समाजीकरण (ऄथागत ईनमें पारम्पररक,
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सांथकृ हतक, धार्ममक तथा सामाहजक मूल्यों का समािेश करना) करने िाली प्राथहमक आकाइ है।
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पररिार, पीक्रचयों की हनरं तरता तथा हनजी संपहत्त के हथतांतरण के कायग को सम्पन्न करता है।
प्रजनन प्रक्रिया में पररिार की भूहमका िंश परं परा तथा धार्ममक अदेश/प्राथहमकताओं के साथ
घहनष्ठता से संबंहधत है। िंश परं परा दो प्रकार की होती है: हपतृिश
ं ीय तथा मातृिंशीय। हपतृिंशीय
परं परा में पाररिाररक संपहत्त पुरुष संतहत के माध्यम से हथतांतररत होती है, ईदाहरण के हलए
हपता से पुत्र को। िहीं मातृिंशीय परं परा में संपहत्त महहला संतहत के माध्यम से हथतांतररत होती
हं, ईदाहरण के हलए माता से पुत्री को।
ितगमान में के रल के नायर समुदाय, पूिवोचत्तर भारत के खासी एिं गारो जनजाहतयााँ तथा लक्षद्वीप
में कु ि जनजाहतयों के ऄहतररि ऄन्य सभी समुदायों में हपतृिंशीय परं परा प्रचहलत है। मातृदि
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की पूजा भारत के सभी भागों में प्रचहलत है।
हपतृथथाहनकता की प्रथा हपतृिश
ं से घहनष्ठता से संबंहधत है ऄथागत हििाह के पश्चात् महहलाएाँ,
पहत के गााँि/अिास/पररिार में हनिास करती हं। पुत्र, हपता के साथ रहते हं। आसके ऄंतगगत संपहत्त
संबंधी हसिांत पुहत्रयों को ऄचल पैतक
ृ संपहत्त को प्राप्त करने से िर्मजत करते हं, लयोंक्रक ऐसी
समाजीकरण संथकृ हत, परम्परा, सामाहजक मूल्यों तथा अदशों के हथतांतरण के कायग को सम्पन्न
करता है। पररिार के पैतक
ृ समाजीकरण के ऄहतररि हिहभन्न माध्यम, जैस-े हिद्यालय, समकक्ष
समूह, साहहत्य तथा क्रछल्में अरं हभक समाजीकरण तथा ियथक समाजीकरण में महत्िपूणग भूहमका
हनभाते हं। लङकों और लङक्रकयों का हभन्न-हभन्न प्रकार से समाजीकरण होता है, जो अगे भी
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ऄसमान भूहमकाओं तथा संबंधों को बनाए रखता है। लङकों को ‘पालनकताग’ की भूहमका हनभाने
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हेतु ईच्च हशक्षा एिं कौशल प्रदान क्रकया जाता है। आसके हिपरीत लङक्रकयों को ऄल्प अयु में ही
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घरे लू कायों में लगा क्रदया जाता है, ईन्हें कम हशक्षा दी जाती है, करठन पररश्रम करने तथा हनम्न
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अत्म-सम्मान के हिकास हेतु प्रहशहक्षत क्रकया जाता है। लङकों को पररिार के थथायी सदथय जबक्रक
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लङक्रकयों को ऄथथायी सदथय के रूप में देखा जाता है। कु ि ही पररिार ऄपनी पुहत्रयों को थितंत्र
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पहचान एिं प्रहतष्ठा के हिकास के ऄिसर प्रदान करते हं। पाररिाररक हिचारधारा जो महहलाओं के
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हलए कु ि रोजगारों की ‘ईपयुिता’ तथा ‘ऄनुपयुिता’ को हनधागररत करती है, श्रम बाजार में
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यह देखा गया है क्रक हिद्यालय की पुथतकों में भी माता को ‘गृहहणी’ के रूप में, हपता को
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‘पालनकताग’ के रूप में, लङकों को बन्दूकों और गाहङयों के साथ तथा लङक्रकयों को हखलौनों और
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गुहङयों के साथ खेलते हए हचहत्रत क्रकया जाता है। यद्यहप कु ि हिद्यालय लङकों और लङक्रकयों की
खेलों में सहभाहगता को प्रोत्साहहत करते हं लेक्रकन िहां भी खेलों का रूक्रचिादी तरीके से हनधागरण
होता है। लङके छु टबॉल, बाथके टबॉल तथा क्रिके ट खेलते हं तथा लङक्रकयााँ रथसी कू दना अक्रद जैसे
कु ि सीहमत खेलों में भाग लेती हं। मीहडया लगातार महहलाओं एिं लङक्रकयों की रूक्रचिादी एिं
हलग के अधार पर हिभेदकारी (लंहगकिादी) िहि प्रथतुत करता है हजससे मीहडया ईद्योग को
ऄपनी बाजार हथथहत को बनाये रखने में सहायता हमलती है।
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गया है हजस पर हिचार क्रकया जाना अिश्यक है। ऄन्यथा महहलाओं के मुद्दों को मात्र सांथकृ हतक
घटनाओं के रूप में गलत समझा जाएगा और महहलाओं के साथ होने िाली हहसा को हिटपुट l.c
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महहलाओं द्वारा हिहभन्न प्रकार के कायग संपन्न क्रकए जाते हं। सामान्यतः ईनके द्वारा क्रकए गए ऄहधकांश
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घरे लू कायग प्रत्यक्ष रूप से क्रदखाइ नहीं देते हं और ईन्हें महत्ि भी नहीं क्रदया जाता है। यहां महहलाओं
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द्वारा क्रकए जाने िाले हिहभन्न कायों को िैतहनक और ऄिैतहनक कायों में िगीकृ त करना अिश्यक है।
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यह हमें पररिार और समाज दोनों में महहलाओं द्वारा क्रकए गए कायों के महत्ि को समझने हेतु एक
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मानि आहतहास में महहलाएं खाद्य, िस्त्र और हथतहशल्प की प्रमुख ईत्पादक थीं और जहां ईत्पादन ऄभी
भी लघु पैमाने (हनिागह क्षेत्र) पर होता है िहां ये प्रमुख श्रम अगत (labour input) प्रदान कर रही हं।
महहलाओं के कायों की सटीक प्रकृ हत, हिथतार और पररमाण को हनधागररत करना एक समथया रही है
लयोंक्रक महहलाओं द्वारा क्रकया गया पयागप्त कायग या तो ऄदृश्य होता है या ईनके कायों की श्रमबल
भागीदारी (workforce participation) अंकङों में के िल अंहशक रूप से गणना की जाती है।
महहलाओं द्वारा क्रकए गए कायों के घटकों के ऄंतगगत घरे लू कायग, घरे लू हशल्प गहतहिहधयों से संबहं धत
िैतहनक और ऄिैतहनक कायग तथा घरे लू ईद्यम या व्यिसाय तथा घर के बाहर क्रकए गए िैतहनक कायों
को सहम्महलत क्रकया जाता है। ऐसा देखा गया है क्रक पररिार के भीतर मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों
ही रूपों में पुरुषों, महहलाओं और बच्चों की हभन्न-हभन्न कायग भागीदारी होती है। महहलाओं द्वारा क्रकए
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महहलाओं द्वारा संपन्न क्रकये जाते हं। हालांक्रक, ये कायग ऄिैतहनक प्रकृ हत के होते हं और आन्हें
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ईत्पादक कायग के रूप में नहीं माना जाता है लयोंक्रक ये थि-ईपभोग के हलए क्रकये जाते हं। 'कायग' की
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पारं पररक पररभाषा में ईन गहतहिहधयों को शाहमल नहीं क्रकया गया है, हजनका 'ईपयोग-मूल्य' तो
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डेयरी, लघु पैमाने पर पशुपालन (कु लकु ट, सुऄर एिं बकरी पालन अक्रद), मत्थय पालन, हथकरघा
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बुनाइ, हथतहशल्प, हमट्टी के बतगन बनाना अक्रद पाररिाररक गहतहिहधयााँ होती हं और पररिार का
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प्रत्येक सदथय ईत्पादन में कु ि सहयोग करता है। आन कायों का एक बङा भाग घर के भीतर ही
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संपन्न क्रकया जाता है लेक्रकन क्रफर भी एक महहला को श्रहमक का दजाग प्रदान नहीं क्रकया जाता है।
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घर के भीतर महहलाओं द्वारा क्रकए गए ऄिैतहनक कायों का मूल्यांकन न होने के कारण महहलाओं
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महहलाओं के कायग को GDP में पररमाहणत करना (Quantifying Women’s Work in GDP)
महहलाएं घरों में बहत ही महत्िपूणग भूहमका हनभाती हं, लेक्रकन ईनके योगदान को सकल घरे लू
ईत्पाद की गणना के तहत सहम्महलत नहीं क्रकया जाता है। आसहलए यह ऄदृष्ट रह जाता है या
ऄपररमाहणत रह जाता है।
ऐसा आसहलए है लयोंक्रक महहलाओं द्वारा क्रकए गए कायग को मापना या पररमाहणत कर पाना बहत
करठन है।
समकालीन समाज में, कामकाजी महहलाओं को दोहरे शोषण का सामना करना पङ रहा है, लयोंक्रक
ईन्हें घरों से बाहर कायग करने के बाद भी घरे लू काम करने के हलए मजबूर होना पङता है।
महहलाओं के कायग को पररमाहणत करना ईनके हलए पहचान प्राप्त करने और ईनकी भूहमका को
ऄहधक महत्ि क्रदए जाने के हलए महत्िपूणग है।
यक्रद आसे पररमाहणत नहीं क्रकया जा सकता, तो कम से कम ईनके कायग को और ऄहधक महत्ि क्रदए
जाने की अिश्यकता है।
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असानी से महहलाओं को समाहहत कर सकें , हिशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की महहलाओं को।
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महहलाओं को श्रमबल में कै से शाहमल क्रकया जाए:
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महहला ईद्यहमयों को बेहतर सेिा प्रदान करने के हलए हित्तीय क्षेत्रक की पहंच बचाकर।
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महहलाओं के हलए कानूनी प्रािधानों और आन कानूनों के प्रितगन को सुदच ृ करके (जैसे- कायगथथल पर
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श्रम बल में महहलाओं की भागीदारी के बारे में सामाहजक दृहष्टकोण और मान्यताओं में बदलाि
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लाकर।
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लङक्रकयों द्वारा गृह-अधाररत ईत्पादन प्रणाली में हनरं तर हनःशुल्क श्रम प्रदान क्रकया जाता है।
ग्रामीण लङक्रकयों पर क्रकए गए बाल श्रम ऄध्ययन से ज्ञात हअ है क्रक िे घरों में िथतुएं एिं सेिाएं
प्रदान करने के हलए क्रदन में नौ घंटे कायग करती हं, हजसके कारण िह थकू ल नहीं जा पातीं। िे एक
िषग में औसतन 318 क्रदन खेतों में तथा घर पर कायग करके हनःशुल्क श्रम प्रदान करती हं।
ऄहधकांश लङक्रकयों को कायों में लगाया जा रहा है जबक्रक ऄहधकांश लङकों को थकू ल भेजा जा
रहा है पररणामथिरूप लङके और लङक्रकयों को हमलने िाले ऄिसरों के मध्य हिद्यमान ऄंतराल में
िृहि हो रही है। आसके ऄहतररि िे बङी संख्या में कृ हष एिं संबंहधत ईद्योगों में भी हनयोहजत हं।
कश्मीर के कालीन ईद्योग, ऄलीगच में ताला हनमागण, जयपुर में अभूषण पॉहलहशग, हशिकाशी में
माहचस ईद्योग और बीङी हनमागण कायों में बङी संख्या में लङक्रकयों को हनयोहजत क्रकया जाता है।
िाथति में, हशिकाशी के माहचस ईद्योग में 90 प्रहतशत बाल श्रहमक चौदह िषग से कम अयु की
लङक्रकयां हं, जो खतरनाक पररहथथहतयों में कायग कर रही हं। गृह-अधाररत ईद्योगों में कायगरत
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जनगणना के अंकङों के ऄनुसार, महहलाओं की साक्षरता दर 65.46% है, जबक्रक पुरुषों के हलए
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यह 82.14% है। यह ऄंतर दशागता है क्रक हशक्षा के मामले में महहलाएं पुरुषों से क्रकतनी पीिे हं।
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महहलाओं की हनरक्षरता के पररणाम दूरगामी होते हं और आसका ईनके बच्चों पर भी ऄसर पङता
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है। आसके ऄहतररि, कम थकू ली हशक्षा से ईनके बच्चों के देखभाल की गुणित्ता का थतर हनम्न रहता
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है, जो ईच्च हशशु और बाल मृत्यु दर को बचािा देता है और कभी-कभी यह कु पोषण को भी बचािा
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देता है लयोंक्रक हशक्षा की कमी महहलाओं द्वारा थिाथ्य के हलए लाभकारी तौर-तरीकों, जैस-े बच्चों
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सरकार द्वारा क्रकए गए ईपाय: 'सिग हशक्षा ऄहभयान' और 'बेटी बचाओ, बेटी पचाओ' अक्रद बाहलका
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महहलाएं, पाररश्रहमक के हलए खेतों, जंगलों, खानों, कारखानों, कायागलयों, लघु पैमाने के ईद्योगों
और घरे लू ईद्योगों में कायग करती हं। आन कायों की प्रकृ हत और हिथतार सामाहजक पदानुिम में
पररिार की हथथहत के ऄनुसार हभन्न-हभन्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में जीिन हनिागह के लगभग सभी कायों
का बोझ महहलाओं पर होता है जबक्रक ईच्च जाहतयों और ईच्च अय िाले समूहों में महहलाओं के
'कायग न करने' को ऄहधक महत्ि क्रदया जाता है। कइ सूक्ष्म ऄध्ययनों ने पररिार के अय थतर और
महहलाओं की कायग में भागीदारी की प्रकृ हत के मध्य व्युत्िमानुपाती संबंधों को ईजागर क्रकया है।
जीिन हनिागह कायों में संलग्न महहलाओं के पास कायग करने के ऄहतररि कोइ ऄन्य हिकल्प नहीं
होता है। हालांक्रक, थकू ल न जाने और बीच में थकू ल िोङने के कारण ईनके पास सीहमत हिकल्प ही
होते हं। प्रायः िे पररिार की प्राथहमक ऄजगक होती हं, लेक्रकन िैचाररक पूिागग्रह के कारण पुरुषों
को पररिार के प्राथहमक ऄजगक के रूप में माना जाता है।
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1951 में श्रमबल में महहला कृ हष श्रहमकों का ऄनुपात एक हतहाइ से भी कम था, जो बचकर
पचास प्रहतशत से भी ऄहधक हो गया है। आसका ऄथग है क्रक कृ हष क्षेत्र पर हनभगरता बच गयी है। l.c
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1993-94 में, ग्रामीण क्षेत्रों में 86.2 प्रहतशत महहला श्रहमक कृ हष और संबि क्षेत्र (िन एिं
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पशुधन आत्याक्रद) जैसे प्राथहमक क्षेत्रों में कायगरत थीं। कृ हष क्षेत्र में िे ऄहधकतर कृ हष मजदूरों ऄथिा
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औद्योगीकरण की लहर ने हशहक्षत महहलाओं के एक िोटे समूह के हलए रोजगार के ऄहधक ऄिसर
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ईत्पन्न क्रकए हं, क्रकन्तु साथ ही आसने िस्त्र, जूट ईद्योग आत्याक्रद में कायगरत ऄकु शल महहला श्रहमकों
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बागानों, खाद्य ईत्पादों, तंबाकू और िस्त्र ईद्योग, बेंत और बांस के कायग, रे शम, कॉयर ईत्पादन,
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घरे लू सेिाओं, हशक्षा और थिाथ्य सेिाओं में संकेन्द्रण हअ है। महहलाओं का फै लटरी-अधाररत
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ईत्पादन के हिपरीत घरे लू ईद्योगों में ऄत्यहधक संकेन्द्रण ने ‘श्रहमक’ के रूप में ईनकी हथथहत तथा
अय एिं श्रम पर ईनके हनयंत्रण को प्रभाहित क्रकया है।
(iii) सेिाओं तथा व्यिसायों में महहलाएं (Women in Services and Professions)
सेिाओं और व्यिसायों में कायगरत महहलाओं के साथ िेतन संबध
ं ी कोइ भेदभाि नहीं होता है।
क्रकन्तु ईनका संकेन्द्रण कु ि सॉफ्ट हथकल िाले रोजगारों, जैसे- हशक्षक, नसग, टाआहपथट और
थटेनोग्राफर में ऄहधक है तथा बहत ही कम महहलाएं प्रशासन, व्यिसाय और तकनीकी रोजगारों में
ईच्च पदों पर कायगरत हं।
शहरी क्षेत्रों में हशहक्षत महहलाओं की संख्या में ऄत्यहधक िृहि के बािजूद सेिाओं और व्यिसायों में
पुरुषों एिं महहलाओं के बीच ऄत्यहधक ऄंतर व्याप्त है। आसके हलए हनम्नहलहखत कारकों को
ईत्तरदायी ठहराया जा सकता है:
(a) सामान्यत: लङक्रकयों का समाजीकरण ईनकी घरे लू भूहमकाओं के अधार पर क्रकया जाता है।
(b) महहलाओं के व्यािसाहयक और तकनीकी प्रहशक्षण में कम हनिेश क्रकया जाता है।
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(iv) अय में हभन्नता (Earning Differentials)
श्रम बाजार में िेतन में ऄंतर महहलाओं के हिरुि भेदभाि को दशागता है। सामान्यतया ईन्हें समान l.c
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कायग के हलए समान िेतन नहीं हमलता है। महहलाओं की कइ नौकररयों को कम दक्ष नौकररयों के
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रूप में िगीकृ त क्रकया गया है हजसके हलए ईन्हें कम िेतन का भुगतान क्रकया जाता है। ईदाहरण के
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हलए, सामान्यत: पुरुषों द्वारा क्रकए जाने िाले बुनाइ के कायग के हलए ऄपेक्षाकृ त ऄहधक भुगतान
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क्रकया जाता है, जबक्रक सामान्यतः महहलाओं द्वारा क्रकए जाने िाले कताइ के कायग के हलए कम
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भुगतान क्रकया जाता है। हनमागण कायों में भी पुरुषों को कु शल कायों को करने के हलए सक्षम माना
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जाता है जबक्रक महहलाएं ऄकु शल कायग करती हं और कम भुगतान प्राप्त करती हं। श्रम का लंहगक
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अधार पर हिभाजन और महहलाओं के कायग की कम ऄिहध ईनके हलए कम मजदूरी के रूप में
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प्रदर्मशत होते हं। अय का ऄंतर कौशल प्राप्त करने, हशक्षा और प्रहशक्षण में ऄंतर के रूप में भी
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िेश्यािृहत्त: बङी संख्या में हनराहश्रत महहलाओं ऄथिा ईन बलात्कार से पीहङत महहलाओं, हजन्हें
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थियं के पररिार द्वारा ही िोङ क्रदया जाता है, को जबरन िेश्यािृहत्त हेतु हििश होना पङता है।
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िेश्यािृहत्त की समथया को समाप्त करने के हलए कोइ भी सरकारी कायगिम ऄथिा नीहत हिद्यमान
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नहीं है।
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प्रकाशनों, लेखों, हचत्रों अक्रद के माध्यम से महहलाओं का ऄश्लील प्रदशगन हनहषि है। हालांक्रक,
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पेंटटग आत्याक्रद के माध्यम से व्यापक रूप से महहलाओं को ऄश्लील तरीके से प्रदर्मशत क्रकया जाता है।
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भारत में महहला अन्दोलन की जङें ईन्नीसिीं शताधदी के पुरुष समाज सुधारकों के कायों से जुङी
हइ हं, हजन्होंने महहलाओं से जुङे मुद्दे ईठाये तथा हिहभन्न महहला संगठनों की थथापना की।
ईन्नीसिीं शताधदी के ईत्तरािग में महहलाओं ने पहले थथानीय थतर पर और क्रफर राष्ट्रीय थतर पर
महहला संगठनों की थथापना करना प्रारं भ क्रकया। थितंत्रता से पूिग, ईनके द्वारा ईठाए गए दो मुख्य
मुद्दे थे- राजनीहतक ऄहधकारों एिं िैयहिक हिहधयों (personal laws) में सुधार। थितंत्रता
संग्राम में महहलाओं की भागीदारी ने महहला अंदोलन के अधार को ऄहधक व्यापकता प्रदान की।
थितन्त्रता के पश्चात् भारत में बङी संख्या में महहलाओं के थिायत्त समूहों ने समाज में
हपतृसत्तात्मक व्यिथथा को चुनौती दी। ईन्होंने जमीनी थतर पर सक्रिय प्रहतभाहगता और
ऄकादहमक, दोनों ही थतरों पर महहलाओं के हिरुि हो रही हहसा, राजनीहतक हनणगय प्रक्रिया में
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हिशेषतः पहश्चम, में महहला संघषों का प्रमुख ईद्देश्य हनजी एिं सािगजहनक क्षेत्रों में महहलाओं और
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पुरुषों के मध्य संबंधों से जुङे मुद्दों का समाधान प्राप्त करना था। भारत में, थितंत्रता तथा
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औपहनिेहशक शासन से मुहि का मुद्दा महहला अंदोलनों की चेतना से ऄहिभाज्य रूप से संबि
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था। भारतीय महहला अन्दोलनों की चेतना न के िल महहलाओं और पुरुषों के मध्य संबंधों से जुङे
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मुद्दों के संदभग में बहल्क िृहत समाज के सन्दभग में हिकहसत हइ थी।
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19िीं शताधदी के ईत्तरािग से ही भारतीय समाज में सक्रिय नारीिादी अंदोलन प्रारं भ हो गया था।
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महहलाओं की जीिन-दशाओं में सुधार के शुरुअती प्रयास पहश्चमी हशक्षा प्राप्त मध्य एिं ईच्च िगग के
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पुरुषों द्वारा क्रकये गये, लेक्रकन शीघ्र ही ईनके पररिारों की महहलाएं भी ईनके साथ शाहमल हो
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गयीं। पुरुषों के साथ हमलकर आन महहलाओं ने िू र सामाहजक प्रथाओं, जैस-े कन्या भ्रूण हत्या, सती
प्रथा, बाल हििाह तथा हिधिा पुनर्मििाह को प्रहतबंहधत करने िाले कानूनों अक्रद के हिरुि संघषग
करने हेतु अंदोलन प्रारं भ क्रकए।
ईच्च एिं मध्य िगग की आन महहलाओं की सािगजहनक भागीदारी ने 20िीं शताधदी की शुरुअत में
महहला संगठनों की ईत्पहत्त में सहयोग क्रदया। आन संगठनों ने महहलाओं की प्रहथथहत एिं ऄहधकारों
हेतु संघषग प्रारं भ कर क्रदया, क्रकन्तु यह कायग थपष्ट रूप से थितंत्रता संग्राम के व्यापक एजेंडे ऄंतगगत
क्रकया गया। आस ऄिहध के दौरान महहला अन्दोलन में एक ऄन्य पहलू भी हिकहसत हअ। महहला
अन्दोलन द्वारा श्रहमक िगग की महहलाओं के मध्य संचाहलत गहतहिहधयों के कारण ईनमें िामपंथी
प्रिृहत्त का ईभार देखा गया। िामपंथी राजनीहत से प्रेररत महहलाएं श्रहमक िगग एिं िांहतकारी
कृ षक संघषों में संलग्न थीं, ईदाहरण के हलए तेलंगाना का संघषग।
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समाज सुधारकों {हजनमें राम मोहन रॉय (1772-1833) सिगप्रथम थे} ने महहलाओं से संबंहधत l.c
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मुद्दों पर ध्यान कें क्रद्रत करना प्रारं भ क्रकया था। आसके पश्चात्, महहलाओं की हथथहत में सुधार करना
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भारतीय समाज सुधार अंदोलन का सिगप्रमुख हसिांत बन गया। महहलाओं की हनम्न हथथहत, ईन्हें
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ऄलग-थलग रहने हेतु बाध्य करना, बाल हििाह, हिधिाओं की हथथहत और हशक्षा की कमी देश
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भर में सुधारकों द्वारा ईठाये गये प्रमुख मुद्दे थे। आस प्रकार महहला अंदोलन सामाहजक सुधार
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पुरुषों द्वारा अरं भ क्रकए गए महहला संगठन (Women’s Organizations Started by Men)
महहलाओं के हलए अरं हभक संगठनों की थथापना सामाहजक-धार्ममक सुधार अंदोलनों से संबंहधत
व्यहियों द्वारा की गयी थी। ये हनम्नहलहखत हं:
(i) ब्रह्म समाज: आसकी थथापना 1828 में राजा राम मोहन राय द्वारा की गइ थी। आसके द्वारा
महहलाओं से सम्बि पूिागग्रहों और ईन पर अरोहपत प्रहतबंधों, जैस-े बाल हििाह, बह-हििाह और
संपहत्त के सीहमत ईत्तराहधकार अक्रद को समाप्त करने का प्रयास क्रकया गया। ब्रह्म समाज द्वारा
महहलाओं की हथथहत में सुधार करने के हलए हशक्षा को सिगप्रमुख कारक के रूप में देखा गया। महहलाओं
के कल्याण से सम्बंहधत ब्रह्म समाज की कु ि प्रमुख ईपलहधधयां थीं:
आसके प्रयासों से हसहिल मैररज एलट,1872 पाररत क्रकया गया। आस ऄहधहनयम के द्वारा ऄंतर-
जातीय हििाह को ऄनुमहत और तलाक को िैधता प्रदान की गयी तथा लङक्रकयों एिं लङकों के
हलए शादी की न्यूनतम अयु िमशः 14 और 18 िषग हनधागररत की गयी।
राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने में महत्िपूणग भूहमका हनभाइ।
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क्रकया था। आनका मानना था क्रक हशक्षा के द्वारा गृहहणी और माता के रूप में महहलाओं की दक्षता में
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सुधार होगा।
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Women)
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ईन्नीसिीं शताधदी के ऄंत तक, प्रगहतशील पररिारों की कु ि महहलाओं ने थियं के महहला संगठनों का
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गठन क्रकया। ऐसा करने िाली पहली महहला ब्रह्म समाज से संबंहधत सुधारक देिेन्द्र नाथ टैगोर की पुत्री
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और कहि रिींद्रनाथ टैगोर की बहन थिणगकुमारी देिी थीं। आन्होंने हिधिाओं और ऄन्य हनधगन महहलाओं
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को अर्मथक रूप से अत्महनभगर बनाने और ईन्हें हशक्षा एिं कौशल प्रदान करने हेतु 1882 में, कलकत्ता
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में लेडीज सोसाआटी का गठन क्रकया। आसके ऄहतररि आन्होंने एक महहला पहत्रका ‘भारती’ का संपादन
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भी क्रकया हजससे आन्हें प्रथम भारतीय महहला संपादक होने का सम्मान प्राप्त हअ।
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1882 में ही रमाबाइ सरथिती ने पुणे में ‘अयग महहला समाज’ का गठन क्रकया और कु ि िषग पश्चात्
बॉम्बे में ‘शारदा सदन’ की शुरुअत की। सामाहजक मुद्दों पर चचाग हेतु एक मंच प्रदान करने के हलए
1887 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीसरे ऄहधिेशन में ‘नेशनल सोशल कॉन्रें स’ का गठन क्रकया गया
था। 1905 में भारत महहला पररषद के नाम से आस कॉन्रें स की एक महहला शाखा भी बनाइ गयी।
आसने बाल हििाह, हिधिाओं की हथथहत, दहेज और ऄन्य "कु रीहतयों" पर ऄपना ध्यान कें क्रद्रत क्रकया।
साथ ही पारसी, मुहथलम और हसख समुदाय ने भी ऄपने थियं के महहला संगठनों का गठन क्रकया।
आसके ऄहतररि कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास और ऄन्य िोटे शहरों में महहलाओं द्वारा महहला संघों का गठन
क्रकया गया। शहरी हशहक्षत पररिारों के एक िोटे समूह की महहलाएं आन संघों की सदथय थीं। ये संघ
महहलाओं को घर के दायरे से बाहर लाने, ईन्हें ऄन्य महहलाओं से मेल हमलाप बचाने ि लोकोपकारी
कायग करने का ऄिसर प्रदान करने, सािगजहनक मामलों में रूहच लेने हेतु ईन्हें प्रोत्साहहत करने और आस
प्रकार ईनके दायरे का हिथतार करने में ईपयोगी हसि हए। आनसे ईन्हें एक संगठन के प्रबंधन का
ऄनुभि भी प्राप्त हअ।
नैहतक और भौहतक प्रगहत के साझा हहतों के अधार पर सभी जाहतयों, पंथों, िगों और दलों की
महहलाओं को एक साथ लाना था।’ आसने महहला हशक्षा को बचािा देने के हलए संपूणग भारत में शाखाएं
खोलने की योजना बनाइ। ऄतः लाहौर, ऄमृतसर, आलाहाबाद, हैदराबाद, क्रदल्ली, कराची अक्रद
हिहभन्न शहरों में आसकी शाखाएं थथाहपत की गईं। सरला देिी ने पदाग-प्रथा को महहलाओं की हशक्षा के
हलए मुख्य बाधा माना और महहलाओं को हशहक्षत करने के हलए हशक्षकों को ईनके घरों पर भेजा। िह
चाहती थीं क्रक महहलाएाँ पुरुष ऄधीनता से मुि होकर रहें। यही कारण था क्रक के िल महहलाओं को
ईनके संगठन में सहम्महलत होने की ऄनुमहत थी। हालााँक्रक, भारत स्त्री मंडल एक ऄल्पकाहलक संगठन
हसि हअ।
“महहलाएाँ, पुरुषों की सहयोगी हं तथा ईनमें पुरुषों के समान ही मानहसक क्षमता हिद्यमान है”
-महात्मा गांधी
ऐसे समय जब महहला संगठन महहलाओं के राजनीहतक और अर्मथक ऄहधकारों के हलए संघषग कर रहे थे
और हशक्षा एिं सामाहजक सुधार के माध्यम से ईनकी हथथहत में सुधार करने का प्रयास कर रहे थे ,
भारतीय राजनीहतक पररदृश्य में महात्मा गांधी के अगमन के साथ महहलाओं के संघषग ने एक नए
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चरण में प्रिेश क्रकया। हालााँक्रक, गांधीजी के अगमन से पूिग भी महहलाएं थितंत्रता संग्राम से सम्बि थीं।
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होमरूल अंदोलन में भी भाग हलया था। लेक्रकन राष्ट्रीय अंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से बङी संख्या में
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हिशेष भूहमका प्रदान करने के साथ ही प्रारं भ हइ। कृ षक महहलाओं ने बरसाड और बारदोली के ग्रामीण
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सत्याग्रहों में महत्िपूणग भूहमका हनभाइ। आसके साथ ही महहलाओं ने नमक सत्याग्रह, सहिनय ऄिज्ञा
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अंदोलन, भारत िोङो अंदोलन और ऄन्य सभी गांधीिादी अंदोलनों में भाग हलया। ईन्होंने बैठकों का
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भी गईं।
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गांधीजी ने महहलाओं को ईनकी राजनीहतक थितंत्रता के साथ-साथ ईनके सामाहजक एिं राजनीहतक
ऄहधकारों के हलए संघषग करने हेतु एकजुट करने का प्रयास क्रकया। ईन्होंने महसूस क्रकया क्रक महहलाएं
सत्याग्रह के हलए सबसे ईपयुि हं लयोंक्रक ईनमें ऄहहसक संघषग के ऄनुरूप ईत्कृ ष्ट गुण होते हं। गां धीजी
के अह्िान पर हजारों महहलाएं थितंत्रता अंदोलन में शाहमल हईं। हालााँक्रक, ऄनेक ऐसी महहलाएाँ भी
थीं हजन्होंने ऄहहसा के हसिांत को थिीकार नहीं क्रकया और िांहतकारी या ईग्रिादी समूहों में शाहमल
हईं। िे ऄंग्रेजों से ऄत्यहधक घृणा करती थीं और ऄहधकाहधक यूरोपीय ऄहधकाररयों की हत्या करने का
आरादा रखती थीं। ईनका हिश्वास जन अंदोलन का हनमागण करने में नहीं बहल्क िीरता के व्यहिगत
कायों में था।
महहलाओं ने देशभहि से प्रेररत होकर थितंत्रता अंदोलन में भाग हलया और ईनका प्रयास हिदेशी
शासन को समाप्त करना था। यह हििाद का हिषय है क्रक आस भागीदारी ने समाज में ईनकी हथथहत में
क्रकतना सुधार क्रकया। थितंत्रता अंदोलन में महहलाओं की भागीदारी ने क्रकसी पृथक थिायत्त महहला
अंदोलन को जन्म नहीं क्रदया और यह औपहनिेहशक शासन के हिरुि अंदोलन का ही भाग बना रहा।
िे महहलाएं हजन्होंने दुकानों पर धरना क्रदया, जुलूस हनकाले, बम फें के या जो जेल गईं, ईन्होंने कभी
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कृ षक संघषग और हिद्रोह (Agrarian Struggles and Revolts)
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प्रायः यह माना जाता है क्रक सामाहजक अंदोलनों में के िल मध्यम िगग की हशहक्षत महहलाओं ने भाग
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हलया है। ऐसे में संघषों में ऄन्य िगों की महहलाओं की सहभाहगता के हिथमृत आहतहास को भी याद
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रखना अिश्यक है। औपहनिेहशक काल में जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में होने िाले संघषों और
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हिद्रोहों में महहलाओं ने पुरुषों के साथ भाग हलया था। आसके कु ि ईदाहरण बंगाल में तेभागा अंदोलन,
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हनजाम के शासन के हिरुि तेलंगाना सशस्त्र संघषग और महाराष्ट्र में बंधुअ दासत्ि के हिरुि िली
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1917 में ऄनुसूया साराभाइ ने ऄहमदाबाद टेलसटाआल के श्रहमकों की हङताल का नेतृत्ि क्रकया था और
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1920 में ईनके नेतृत्ि में ऄहमदाबाद टेलसटाआल हमल के श्रहमक संघ, ‘मजूर महाजन’ की थथापना हइ।
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1920 के दशक के ऄंत तक, श्रहमक अंदोलन में महहलाओं की ईपहथथहत में ईल्लेखनीय िृहि हो चुकी
थी। आस काल में कइ प्रभािशाली महहला संगठनकताग मौजूद थीं। महहला श्रहमकों को जागरुकतापूिगक
संगरठत क्रकया जा रहा था और ईन्हें श्रहमक अंदोलन में हिशेष भूहमका प्रदान की जा रही थी। आस
गहतहिहध का कें द्र बम्बइ था। मनीबेन कारा रे ल श्रहमकों की समाजिादी नेता तथा उषा बाइ डांगे एिं
पािगती भोरे कपङा श्रहमकों की साम्यिादी नेताओं के रूप में ईभरीं। 1928-29 में बॉम्बे टेलसटाआल
हमल के श्रहमकों की हङताल में महहलाओं ने प्रमुख भूहमका हनभाइ। आसी िषग ईन्होंने कलकत्ता हङताल
में भी महत्िपूणग भूहमका का हनिागह क्रकया था।
ऄन्य प्रमुख संगठन (Other Major Organizations)
20िीं सदी की शुरुअत में राष्ट्रीय और थथानीय थतर पर ऄनेक महहला संगठनों का हिकास देखा गया।
1917 में थथाहपत द िीमेंस आं हडया एसोहसएशन (WIA), 1927 में थथाहपत ऄहखल भारतीय महहला
सम्मेलन (All India Women’s Conference: AIWC) एिं 1925 में थथाहपत नेशनल काईहन्सल
फॉर िीमेन आन आं हडया (NCWI) ईनमें से कु ि प्रमुख संगठन हं। द िीमेंस आं हडया एसोहसएशन का गठन
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करने में सक्रिय भूहमका हनभाइ। राष्ट्रिादी अंदोलन में सक्रिय रही ऄनेक महहलाओं ने महहला संगठनों
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की थथापना की। यद्यहप आनमें से कइ संगठन सीहमत दृहष्टकोण के साथ अरं भ हए थे लेक्रकन समय के
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साथ ईनके कायग क्षेत्र में हिथतार होता गया। ईदाहरण के हलए AIWC की थथापना मात्र आस हिचार के
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साथ हइ की ‘महहला कल्याण’ और ‘राजनीहत’ दोनों परथपर हभन्न हं; कालांतर में आसके दायरे का
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थितंत्रता के बाद की ऄिहध में समाज में महहलाओं के कल्याण के हलए संथथागत पहलों की एक श्रृख
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की शुरुअत की गइ। आनमें सिागहधक महत्िपूणग पहलें महहलाओं के हलए संिैधाहनक प्रािधानों एिं
सामाहजक कानूनों तथा योजनाबि अर्मथक हिकास से सम्बहन्धत हं। आस ऄिहध की आन सामाहजक-
अर्मथक और राजनीहतक प्रक्रियाओं ने महहला अंदोलन को व्यापक रूप से प्रभाहित क्रकया।
ऄंतर को समाप्त करने में ऄसफल रहे। साथ ही राजनीहतक प्रहतरोध के कारण दूसरे समुदायों, जैस-े
मुहथलम, इसाइ, पारसी और यहूक्रदयों के पाररिाररक कानूनों में आस प्रकार के पररितगन नहीं हो पाए हं,
जबक्रक राज्य के नीहत हनदेशक तत्िों में सभी समुदायों के हलए एक समान नागररक संहहता का थपष्ट
ईल्लेख क्रकया गया है।
पचास के दशक और आसके ईपरांत हए आन हिधायी सुधारों के साथ ही महहला संगठन हनहष्िय हो गए
और ईन्होंने ईस उजाग को खो क्रदया जो ईनमें थितंत्रता पूिग की ऄिहध में हिद्यमान थी। आनमें से कइ
संगठनों ने सरकारी ऄनुदान प्राप्त क्रकया और ईनकी गहतहिहधयों ने आन ऄनुदानों के ऄनुसार अकार
ग्रहण क्रकया। आन गहतहिहधयों में ियथक हशक्षा, बच्चों के हलए पोषण कायगिम, व्यािसाहयक प्रहशक्षण
कायगिमों के ऄंतगगत हसलाइ से संबंहधत कक्षाएं और पररिार हनयोजन कायगिम अक्रद सहम्महलत थे।
आनमें से ऄहधकतर संगठन शहरों में हथथत थे और ईनका नेतत्ृ ि हशहक्षत मध्यम और ईच्च िगग की
महहलाओं द्वारा क्रकया जा रहा था।
थितंत्रता प्राहप्त के बाद की ऄिहध में, ग्रामीण महहलाओं के हलए दो महत्िपूणग संगठनों - कथतूरबा
मेमोररयल ट्रथट और भारतीय ग्रामीण महहला संघ (Indian Rural Women’s Organisation) की
थथापना की गयी। आनका प्रमुख ईद्देश्य नेतृत्ि क्षमता का हिकास करने में ग्रामीण महहलाओं की
सहायता करना था।
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5.1.4.2. हनयोहजत हिकास और महहलाओं के मु द्दे l.c
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थितंत्रता के पश्चात् यह माना गया क्रक अर्मथक हिकास से संबि नीहतयों, जैस-े कृ हष हिकास एिं
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जीिन बेहतर हो सके गा। समग्र हिकास रणनीहत समाज में व्याप्त िगग, जाहत और लंहगक ऄसमानताओं
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को कम करने में ऄसफल रही। भारत में हनयोहजत हिकास ने सामाहजक-अर्मथक ऄसमानताओं में िृहि
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प्रथम पंचिषीय योजना से पांचिीं पंचिषीय योजना तक (First to Fifth Five Year plans)
प्रथम पंचिषीय योजना (1951-56) का दृहष्टकोण महहलाओं के कल्याण को बचािा देने के हलए पयागप्त
सेिाएं प्रदान करना था ताक्रक ईन्हें पररिार और समुदाय में न्यायसंगत भूहमका हनभाने में सक्षम बनाया
जा सके । आसमें, मुख्य बल कल्याण पर था और आस कारण से महहलाओं को ईन प्रोत्साहनों का के िल
लाभाथी माना गया हजनको प्रदान करने का हनणगय राज्य द्वारा क्रकया गया हो। आस योजना के माध्यम
से महहलाओं के कल्याण को बचािा देने के हलए कें द्रीय और राज्य थतर पर हिशेष संगठनों की थथापना
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यह सहमहत, महहलाओं की हथथहत से संबंहधत हिहभन्न पहलुओं के अंकङों की समीक्षा एिं मूल्यांकन हेतु
बङे थतर पर क्रकया गया पहला प्रयास था। आस सहमहत को हिकास के पररणामथिरुप महहलाओं की l.c
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भूहमकाओं, ईनके ऄहधकारों और ईनके हलए ऄिसरों से सम्बंहधत पररितगनों की क्रदशा की समीक्षा करने
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सहमहत ने ऄपने हनष्कषों को ररपोटग के रूप में प्रथतुत क्रकया, हजसे लोकहप्रय रूप से ‘टु िर्डसग आक्वैहलटी
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ररपोटग’ (1974) के नाम से जाना जाता है। यह महहला अंदोलन के हलए एक युगांतकारी घटना हसि
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हयी। थितंत्र भारत में महहला अंदोलनों के प्रारम्भ को प्रायः आस ररपोटग के सन्दभग में ही देखा जाता है।
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आस ररपोटग द्वारा देश में महहलाओं की दयनीय हथथहत को ईजागर क्रकया गया जो जनांक्रककीय अंकङों,
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सामाहजक-सांथकृ हतक हथथहतयों के हिश्लेषण, कानूनी प्रािधानों एिं रक्षोपाय, सभी क्षेत्रों में महहलाओं
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द्वारा हनभाइ गइ अर्मथक भूहमका, महहलाओं की हशक्षा तक पहंच, राजनीहतक भागीदारी, कल्याण एिं
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हिकास से संबंहधत नीहतयां और कायगिम तथा मास मीहडया के प्रभाि आत्याक्रद से पररलहक्षत हो रही
थी।
आस ररपोटग ने भारत की हिहभन्न सामाहजक संथथाओं में महहलाओं की हथथहत पर गंभीर रूप से हिचार
करने का मागग प्रशथत क्रकया, लयोंक्रक आसने दशागया क्रक संहिधान द्वारा प्रदत्त समान ऄहधकारों का
ईपभोग करने में पुरुषों की तुलना में महहलाएं बहत पीिे हं। आस ररपोटग ने संसद में बहस को प्रेररत
क्रकया और कल्याणकारी दृहष्टकोण की हिफलता को प्रदर्मशत क्रकया। आस दृहष्टकोण ने महहलाओं के साथ
हिकास प्रक्रिया में समान भागीदार की तरह व्यिहार नहीं क्रकया था और ईन्हें मात्र लाभाथी के रूप में
थिीकार क्रकया था।
ररपोटग ने और भी कइ ऄनुशस
ं ाएं कीं हजनमें 'लंहगक समानता' की प्राहप्त हेतु राज्य और समुदाय की
महत्िपूणग भूहमका पर बल क्रदया गया था। आसने दहेज, बहहििाह, हद्वहििाह, बाल हििाह, हििाह में
क्रदखािे के हलए व्यय जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के हलए एक संगरठत प्रयास की अिश्यकता को
ईजागर क्रकया। आसके ऄहतररि आसने कानूनी जागरूकता पर एक ऄहभयान, िे च के प्रािधान, समान
कायग के हलए समान पाररश्रहमक सहहत महहलाओं के हलए कायग करने की बेहतर दशाओं, हििाह के
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ईदाहरण 2: गांि में महहलाओं के हिकास संबंधी कायगिम को थिीकृ हत प्रदान करने से पूिग, गांि में
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हनिास करने िाली महहलाओं की एक सभा अयोहजत की गयी। िहां ईनसे कु ि ऐसे कायगिमों का
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सुझाि देने के हलए कहा गया जो ईनके हिचार में ईनकी अर्मथक हथथहत को बेहतर बनाने में सहायक हो
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सकते हं। ईनसे आस पर भी सुझाि देने के हलए कहा गया क्रक आन कायगिमों को बेहतर तरीके से कै से
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कायागहन्ित क्रकया जा सकता है। चूंक्रक महहलाओं ने ऄपनी प्राथहमकताओं के रूप में दुग्ध-सहकाररता और
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टोकरी बुनाइ कायग की थथापना को हचहह्नत क्रकया, आसहलए हिकास एजेंसी ने दुग्ध-सहकारी संघ की
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थथापना की और ईन्हें प्राथहमक हित्तपोषण भी प्रदान क्रकया। टोकरी बुनाइ से संबंहधत प्रहशक्षण भी
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प्रदान क्रकया गया हजसमें बाजार की अिश्यकताओं को हिशेष रूप से ध्यान में रखा गया। आस ईदाहरण
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में महहलाओं को कल्याणकारी कायगिम के लाभार्मथयों या प्राप्तकताग के रूप में नहीं माना गया, बहल्क
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ईनसे ईनके पसंद के कायगिम के संदभग में परामशग हलया गया और साथ ही ईन्हें कायगिम के प्रबंधन में
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िठी पंचिषीय योजना के ऄंत में ऄथागत् 1985 में मानि संसाधन हिकास मंत्रालय के एक भाग के रूप
में महहला एिं बाल हिकास हिभाग की थथापना की गइ थी। आस हिभाग को महहलाओं और बच्चों के
हिकास के हलए योजनाओं, नीहतयों एिं कायगिमों के हनमागण तथा कायागन्ियन के हलए एक कें द्रीय
एजेंसी के रूप में कायग करने हेतु गरठत क्रकया गया था।
सातिीं पंचिषीय योजना (The Seventh Five Year Plan)
सातिीं पंचिषीय योजना (1985-1990) में महहलाओं के हलए रोजगार के ऄिसरों के सृजन पर हिशेष
बल क्रदया गया था। आसमें महहला हिकास के हलए दो नइ योजनाएं लागू की गइ थीं - प्रहशक्षण एिं
रोजगार कायगिम हेतु सहायता (Support to Training and Employment Programme:
STEP) तथा ग्रामीण एिं हनधगन महहलाओं के हलए जागरूकता सृजन कायगिम (Awareness
Generation Programme: AGP)। आसके साथ ही सातिीं पंचिषीय योजना में भहिष्य में महहला
हिकास कायगिमों के संदभग में सरकार को क्रदशा-हनदेश प्रदान करने हेतु तीन महत्िपूणग ररपोटें भी प्रथतुत
की गईं। ये ररपोटें हनम्नहलहखत हं:
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के फ्रेमिकग में दो महत्िपूणग हिकास देखने को हमले। ऄब तक, महहलाओं को हिकास कायगिमों के लक्ष्य
या सहभाहगयों के रूप में समझा जाता था लेक्रकन ऐसे पररिेश के हनमागण पर बल नहीं क्रदया जाता थाl.c
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हजसमें महहलाएं ऄपने ऄहधकारों का ईपयोग कर सकें या ऄपनी थितंत्रता का लाभ ईठा सकें । नौिीं
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योजना ने सशहिकरण की ऄिधारणा को प्रथतुत क्रकया, हजसके तहत एक ऐसे सक्षमकारी पररिेश का
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हनमागण क्रकया जाना था हजसमें महहलाएं न के िल सैिांहतक रूप में ऄहपतु व्यािहाररक रूप में भी
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थितंत्रता का ईपभोग कर सकें । आस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु, 2001 में भारत सरकार द्वारा महहलाओं
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के सशहिकरण के हलए एक राष्ट्रीय नीहत को थिीकार क्रकया गया। नौिीं योजना ऄिहध के दौरान दूसरा
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महत्िपूणग हिकास महहला घटक योजना (Women’s Component Plan) को थिीकृ हत प्रदान करना
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था। आस योजना के द्वारा कें द्रीय और राज्य सरकारों को हनदेश क्रदया गया क्रक सभी क्षेत्रों में कम से कम
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30 प्रहतशत हनहध/लाभों को महहला हिकास हेतु हनधागररत क्रकया (पृथक रूप से रखा) जाए।
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िैश्वीकरण के पररणामथिरूप ईत्पन्न चुनौहतयों का सामना करने हेतु थियं को तैयार करने के हलए
महहलाओं को सहायता प्रदान की जानी चाहहए। l.c
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यद्यहप महहलाओं को सशि बनाने के हलए ऄनेक हिकास नीहतयों और कायगिमों का हनमागण क्रकया
@
गया है, तथाहप सामाहजक भेदभाि के कारण आन सभी योजनाओं का लाभ सभी महहलाओं को
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प्राप्त नहीं हअ है। आसहलए भहिष्य में थिाथ्य, हशक्षा और क्षमता हनमागण पर हनिेश को बचाया
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हिगत 10 िषों में थिाथ्य, हशक्षा और कल्याण पर व्यय में कमी हइ है। आसने महहलाओं के
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हिकास को गंभीरता से प्रभाहित क्रकया है। ऄतः ईन क्षेत्रों पर हनिेश बचाने हेतु प्रयास क्रकए जाने
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आस योजना में जेंडर बजटटग की ऄिधारणा को भी शाहमल क्रकया गया था। आसके ऄहतररि, हिशेष
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मनरे गा प्रत्येक हित्तीय िषग में क्रकसी भी ग्रामीण पररिार के ईन ियथक सदथयों को 100 क्रदन के
रोजगार की गारं टी प्रदान करता है जो प्रहतक्रदन की सांहिहधक न्यूनतम मजदूरी दर पर सािगजहनक
कायग-सम्बंहधत ऄकु शल मैन्युऄल कायग करने के हलए तैयार हं।
यह ऄहधहनयम 100% शहरी अबादी िाले हजलों को िोङकर पूरे देश को किर करता है।
कायगिम के तहत क्रकए जाने िाले कायों में से 65 प्रहतशत से ऄहधक कृ हष और संबि गहतहिहधयों से
जुङे हं।
प्रारं हभक िषों में, मनरे गा ऄत्यहधक प्रभािी रहा। ईस समय ग्रामीण मजदूरी में िृहि होने लगी और
ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय कें द्रों की तरफ प्रिास में हगरािट दजग की गयी।
11िीं एिं 12िीं पंचिषीय योजना (The Eleventh and the Twelfth Plan)
'समािेशी हिकास' का अशय हाहशए पर हथथत हिहभन्न समूहों को हिकास की प्रक्रिया में शाहमल करने
से है। समािेशी हिकास में महहलाओं पर हिशेष ध्यान के हन्द्रत क्रकया गया है। आसके हलए आन योजनाओं
में हिहभन्न प्रािधानों को शाहमल क्रकया गया जैसे - ऄहखल भारतीय महहला बंक और हनभगया फं ड।
12िीं पंचिषीय योजना के दौरान 'महहलाओं के प्राहधकार एिं सशहिकरण' (Women’s Agency
and Empowerment) से संबंहधत कायग समूह ने आस दृहष्टकोण को सुदचृ बनाने का कायग क्रकया क्रक
हिकास सभी व्यहियों के हलए समान रूप से थितंत्रता का हिथतार करने की प्रक्रिया है। साथ ही आसने
लंहगक समानता को थियं में एक मुख्य हिकास लक्ष्य के रूप में थिीकार क्रकया। आसने महहला
सशहिकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जो महहलाओं को गररमा एिं ऄपने थियं के महत्ि की
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l.c
चेतना, दैहहक थितंत्रता, दबािों से मुहि और संसाधनों पर हनयंत्रण हेतु सक्षम बनाती है। आस प्रकार
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आसने महहला सशहिकरण की पररभाषा को व्यापकता प्रदान की। आसने आस बात पर बल क्रदया क्रक
@
सशहिकरण को तभी प्राप्त क्रकया जा सकता है जब महहलाओं की दशा के साथ ही ईनकी प्रहथथहत में भी
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सुधार हो तथा अर्मथक, सामाहजक एिं राजनीहतक रूप से ईनकी थितंत्रता और ईनके हलए ईपलधध
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हिकल्पों में िृहि हो। सशहिकरण द्वारा सभी महहलाओं को आन थितंत्रताओं को प्राप्त करने तथा ईनकी
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क्षमताओं में िृहि करने हेतु सक्षम बनाया जाना चाहहए। योजना का समग्र फ्रेमिकग महहलाओं के
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समानता में िृहि करने हेतु कदम ईठाने का प्रािधान करता है। आस सन्दभग में आसमें दहलतों,
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जनजाहतयों, ऄल्पसंख्यकों एिं हनःशि महहलाओं; प्रिासी, हिथथाहपत एिं तथकरी से प्रभाहित
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महहलाओं; ऄसंगरठत क्षेत्र के श्रहमकों के रूप में कायगरत महहलाओं, HIV/AIDS से संिहमत और
प्रभाहित महहलाओं; ऄके ली एिं पररत्यि महहलाओं (हिशेष रूप से हिधिाओं) और संघषग के क्षेत्रों में
रह रही महहलाओं पर हिशेष ध्यान क्रदया गया।
आस योजना में महहलाओं के हलए हनधगनता के के िल 'अय' संबंधी दृहष्टकोण के थथान पर हनधगनता एिं
कल्याण के 'बहअयामी' दृहष्टकोण को ऄपनाने का समथगन क्रकया गया है। बहअयामी हनधगनता सूचकांक
(Multidimensional Poverty Index: MPI) हशक्षा, थिाथ्य तथा जीिन थतर से संबंहधत ऄन्य
सभी िंचनाओं (हजनका एक गरीब व्यहि द्वारा एक साथ सामना क्रकया जाता है) को प्रकट करता है।
यह सूचकांक अय हनधगनता मानदंडों का पूरक है।
योजनाओं की समग्र समीक्षा (Overall review of the Plans): 1951 में योजना ऄिहध प्रारं भ होने
के बाद से ही महहलाओं के सशहिकरण के हलए ऄनेक कायगिमों को पररकहल्पत और क्रियाहन्ित क्रकया
गया है। तथाहप क्रकए गए सभी प्रयास पाररिाररक जीिन, थिाथ्य, हशक्षा, रोजगार और राजनीहतक
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से संबंहधत मुद्दों पर हिचार-हिमशग का महत्ि भी कम हो गया था।
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हालांक्रक, राजनीहतक दलों, ट्रेड यूहनयनों, क्रकसानों एिं श्रहमक अंदोलनों के साथ कायग कर रही हिहभन्न
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महहला कायगकतागओं ने ऄनुभि क्रकया क्रक ये संगठन ईन मुद्दों को ईठाने में संकोच कर रहे थे जो हिहशष्ट
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रूप से महहलाओं से जुङे हए थे। महहलाओं द्वारा ईठाए जाने िाले मुद्दे आस प्रकार थे: कपङा हमलों और
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ऄन्य ईद्योगों में तकनीकी पररितगनों तथा नइ मशीनों पर प्रहशक्षण प्राप्त पुरुषों द्वारा प्रहतथथापन के
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कारण महहलाओं की िाँटनी, महहला श्रहमकों के हलए मातृत्ि लाभ की कमी, कायगथथल पर बच्चों से
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संबंहधत प्रािधानों की कमी, पुरुषों और महहलाओं के मध्य पाररश्रहमक संबंधी भेदभाि, महहला
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श्रहमकों के हलए ऄपयागप्त हशक्षा और प्रहशक्षण सुहिधाएं तथा कायगथथलों पर भेदभाि। ऄतः तात्कालीन
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पररहथथहतयों ने देश के हिहभन्न भागों में ऄनेक थिायत्त महहला संगठनों के ईत्थान को बचािा क्रदया। आन
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संगठनों ने सकारात्मक पररितगन लाने हेतु हनधगन महहलाओं को संगरठत करने का गंभीर प्रयास क्रकया।
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Approaches)
ग्रामीण हनधगन और शहरी महहलाओं की अर्मथक करठनाआयों में िृहि (िठी पंचिषीय योजना के ऄंत
तक लगभग 50% पररिार गरीबी रे खा से नीचे थे) तथा सामान्य कृ षक एिं औद्योहगक श्रहमक
अंदोलनों द्वारा महहलाओं के मुद्दों को ईठाने में हिफलता के पररणामथिरूप महहला श्रहमकों ने थियं को
पृथक रूप से संगरठत क्रकया।
नीचे नए संगठनों एिं दृहष्टकोणों का हिथतृत हििरण क्रकया गया है:
(i) संगठन (Organisation)
थि-हनयोहजत महहला संघ (Self-Employment Women’s Association) (गुजरात), िर्ककग
िीमेंस फोरम (तहमलनाडु ), श्रहमक महहला संगठन (महाराष्ट्र) जैसे नए संगठनों ने ऄसंगरठत क्षेत्र में
कायगरत महहला श्रहमकों की दुदश
ग ा में सुधार हेतु प्रयास क्रकये। महहला श्रहमकों को संगरठत करना तथा
ईनकी मजदूरी, कायग दशाओं, शोषण एिं थिाथ्य संबंधी खतरों से संबंहधत मुद्दों को ईठाना आन महहला
संगठनों का महत्िपूणग कायग बन गया। आसके साथ ही ऄसंगरठत क्षेत्र में कायगरत महहलाओं पर क्रकए गए
समथया का ईत्पन्न होना, लयोंक्रक ईंधन, चारे , फलों, औषहधयों हेतु जङी-बूरटयों तथा ऄन्य िनोत्पादों
का संग्रहण प्राथहमक रूप से महहलाएाँ ही करती हं। आससे ईन्हें अय एिं रोजगार प्राप्त होता है। यह
आसका एक महत्िपूणग कारण है क्रक महहलाएं अज भी आन पाररहथथहतकीय अंदोलनों में सबसे अगे
रहती हं।
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1970 और 1980 के दशक के दौरान मुद्दों पर अधाररत हिहभन्न अन्दोलन (Issue Based
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थिायत्त महहला संगठनों ने सामूहहक कायगिाही हेतु महहलाओं को एकजूट करने के ईद्देश्य से महहलाओं
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के ईत्पीङन से संबंहधत मुद्दों, यथा- दहेज, घरे लू हहसा, पुरुषों द्वारा ऄत्यहधक मद्यपान एिं पत्नी के साथ
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मार-पीट, कायगथथल पर भेदभाि अक्रद को ईठाया। मुंबइ, क्रदल्ली, हैदराबाद, पटना आत्याक्रद शहरों में
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कु ि संगठनों ने पहली बार ईच्च जाहतयों के भूथिाहमयों द्वारा हनधगन ऄनुसूहचत जाहत तथा ऄनुसहू चत
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आस दौरान बलात्कार, दहेज हत्या, महहलाओं के हिरुि ऄपराध और हहसा जैसे महत्िपूणग मुद्दे ईठाए
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गए। महहला संगठनों द्वारा ऄहखल भारतीय दहेज-हिरोधी एिं बलात्कार हिरोधी अन्दोलन अरं भ
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क्रकए गए तथा नागररक थितंत्रता एिं लोकताहन्त्रक ऄहधकारों से संबंहधत संगठन भी ईनके साथ
शाहमल हो गए। आन संगठनों द्वारा महत्िपूणग मुद्दों पर अधाररत कइ अन्दोलन प्रारम्भ क्रकए गए हजनमें
से कु ि अंदोलन हं:
(a) दहेज-हिरोधी अन्दोलन (Anti-dowry Movements)
हिहभन्न महहला संगठनों तथा नागररक ऄहधकार समूहों द्वारा दहेज हत्याओं के हिरोध में हनरं तर
ऄहभयान चलाए गए। पत्रकारों ने दहेज की समथया के संबंध में हिथतारपूिक
ग हलखा। 1980 के दशक में
हिहभन्न महहला और ऄन्य प्रगहतशील संगठनों ने क्रदल्ली में एक संयुि मोचे “दहेज हिरोधी चेतना मंच”
की थथापना की। ऄन्य प्रमुख शहरों के संगठनों द्वारा भी दहेज हेतु नि िधुओं की नृशंस हत्या के हिरुि
हिरोध-प्रदशगन, पररचचाग, नुक्कङ नाटक, पोथटर अक्रद के माध्यम से ऄनेक ऄहभयान चलाए गए। एक
हिथतृत हिचार-हिमशग के पश्चात् दहेज हनषेध (संशोधन) ऄहधहनयम, 1984 पाररत क्रकया गया। आस
ऄहधहनयम ने दहेज में दी जाने िाली राहश की एक सीमा तो हनधागररत क्रकया परन्तु दहेज पर प्रहतबंध
अरोहपत नहीं कर पाया। हालांक्रक पहत और ईसके ररश्तेदारों की िू रता के कारण होने िाली हत्याएं या
द्वारा समाप्त कर क्रदया गया था। िषग 1988 में राजथथान के दौराला में रूप काँ िर नामक एक युिा
हिधिा के ईसके पहत की हचता पर जलने की घटना के पश्चात् महहला संगठनों द्वारा सशि हिरोध
प्रदशगन क्रकया गया। बचते हिरोध प्रदशगनों के पररणामथिरूप काफी हिलम्ब के बाद सती प्रथा
(हनिारण) ऄहधहनयम के रूप में सरकार की प्रहतक्रिया अयी। आसे संसद द्वारा जल्दबाघी में पाररत
क्रकया गया। आस ऄहधहनयम के ऄनुसार यह परम्पराओं द्वारा थिीकृ त एक प्रथा है। आस ऄहधहनयम के
तहत सती प्रथा से संबंहधत तथिीरों को बेच कर लाभ कमाने िाले या तथाकहथत सती के नाम पर दान
ऄर्मजत करने िाले व्यहियों को दहण्डत करने का प्रािधान नहीं क्रकया गया है। हनिारक कायगिाही के
रूप में कोइ हिशेष प्रािधान शाहमल नहीं क्रकया गया है। यह अश्चयगजनक है क्रक यह ऄसभ्य प्रथा,
हजसका समाज सुधारकों ने प्रबल हिरोध क्रकया था, मातृदि
े ी की पूजा करने िाले हमारे देश में ऄभी भी
बनी हइ है।
(c) बलात्कार-हिरोधी अन्दोलन (Anti-rape Movement)
1970 के दशक में ईच्चतम न्यायालय के एक हनणगय (हजसमें ऄपराहधयों को बरी कर क्रदया गया था) की
समीक्षा की मांग को लेकर एक बलात्कार-हिरोधी अन्दोलन प्रारम्भ क्रकया गया था। महहला
कायगकतागओं ने सरकार को बलात्कार से संबंहधत कानूनों की समीक्षा के हलए बाध्य क्रकया। कानून में
संशोधन करने हेतु हिहभन्न महहला संगठनों और हिहधक एिं सामाहजक कायगकतागओं द्वारा हिहध अयोग
om
के साथ िातागएं अयोहजत की गइ। आसके पररणामथिरूप 1983 में अपराहधक कानून (संशोधन) l.c
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1990 के दशक में एक व्यापक नेटिकग के माध्यम से महहलाओं ने राष्ट्रीय एिं ऄंतरागष्ट्रीय, दोनों थतरों पर
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साम्प्रदाहयकता और िैश्वीकरण के मुद्दों को भी ईठाया। 21िीं सदी के अरं भ में भारत के हिहभन्न
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महहला संगठन हिहभन्न मुद्दों और ऄहभयानों के हलए नेटिकों के माध्यम से एक साथ सम्बि हो चुके हं।
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हालााँक्रक ऄभी भी हिरोध और समथगन के हलए पूिग में प्रचहलत हिहधयों का ही प्रयोग क्रकया जा रहा है ,
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तथाहप पररितगन के हलए प्रहतरोध करने और लोगों को एकजुट करने के नए तरीकों को भी हिकहसत
fo
o FIR दजग न करने या बलात्कार के मामले में FIR दजग करने में हिलम्ब करने िाले ऄहधकारी को
थियंसि
े ी क्षेत्र के ऄन्य संगठन (Other Organizations in Voluntary Sector)
नेशनल फे डरे शन ऑछ आं हडयन िीमेन (NFIW): NFIW ितगमान में भारत के सभी महहला संगठनों में
सबसे बङा संगठन है। आसकी थथापना 1954 में कम्युहनथट पाटी ऑछ आं हडया (CPI) की महहला हिग के
रूप में की गइ थी तथा ऄरुणा असफ ऄली आसकी प्रमुख नेताओं में से एक थीं।
ऑल आं हडया डेमोिे रटक िीमेंस एसोहसएशन (AIDWA): AIDWA को िषग 1981 में थथाहपत क्रकया
गया था। आसके प्रमुख ईद्देश्यों में भारत के शहरों एिं गााँिों में महहलाओं को संगरठत करना तथा
महहलाओं के समग्र ईत्थान एिं कल्याण हेतु हिथतृत अधार पर एक शहिशाली महहला अन्दोलन का
हनमागण करना है। आसका लक्ष्य एक शोषण मुि समाज में लोकतंत्र, महहलाओं के ईिार एिं समान
ऄहधकारों हेतु संघषग करना तथा महहला एिं पुरुषों के मध्य सभी भेदभािों की समाहप्त को सुहनहश्चत
करना है। यह कम्युहनथट पाटी ऑछ आं हडया (मालसगिादी) की महहला हिग है।
हालााँक्रक 1970 और 1980 के दशकों के दौरान हए महहला अन्दोलन महहलाओं से संबंहधत मुद्दों को
पुनः सािगजहनक बहस का मुद्दा बनाने में प्रभािी हसि हए थे, क्रकन्तु यह भहिष्य में सभी महहलाओं के
om
हलए समानता, न्याय एिं गररमा की प्राहप्त हेतु एक दीघगकाहलक संघषग की शुरुअत मात्र थी।
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SHGs महहलाओं को सशि बनाने और ग्रामीण आलाकों में गरीबी ईन्मूलन में मदद करने के ऄपने
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o आससे महहलाओं को पाररिाररक मुद्दों पर हनणगय लेने में ऄहधक हनयंत्रण प्राप्त करने में मदद
fo
हमली है।
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o सरकार प्रायोहजत समुदाय संचाहलत कायगिमों में भाग लेने के हलए SHG महहलाओं को प्रेररत
करना।
o SHGs की ईहचत रे टटग और िगीकरण द्वारा।
o SHGs को तकनीकी सहायता प्रदान करना ताक्रक िे ICT िांहत का ईपयोग कर सकें तथा अगे
और ऄहधक हिकास कर सकें ।
om
o एकीकृ त बाल हिकास सेिाएं (Integrated Child Development Services: ICDS)
(1975) l.c
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gm
सबला (SABLA) 2010 - राजीि गांधी क्रकशोरी सशहिकरण योजना (Rajiv Gandhi
@
o
10
o कामकाजी महहलाओं के बछचों के हलए राजीि गांधी राष्ट्रीय बाल गृह (िे च) योजना।
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(2009-10)
og
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2. थिाथ्य और ईत्तरजीहिता;
3. अर्मथक ऄिसर; और
4. राजनीहतक सशहिकरण।
देशों को 0 (ईच्चतम ऄसमानता) से 1 (न्यूनतम ऄसमानता) के मध्य थकोर के अधार पर रं क प्रदान की
जाती है। हिश्व अर्मथक मंच द्वारा यह सूचकांक 2006 से प्रहत िषग जारी क्रकया जा रहा है।
0.878 के थकोर के साथ अआसलंड सिागहधक लंहगक समानता िाला देश है। आसके बाद नॉिे (रं क 2),
क्रफनलंड (3), रिांडा (4), थिीडन (5), हनकारागुअ (6), थलोिेहनया (7), अयरलंड (8), न्यूजीलंड (9)
om
और क्रफलीपींस (10) का थथान है।
कु ल हमलाकर िैहश्वक लंहगक ऄंतराल का लगभग 68% समाप्त कर क्रदया गया है। हालााँक्रक आसमें 2016l.c
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gm
की तुलना में हगरािट देखी गइ है। 2016 में 68.3% ऄंतराल समाप्त कर क्रदया गया था। हपिले 83 िषों
@
10
से तुलना के अधार पर, प्रगहत की ितगमान दर से िैहश्वक लंहगक ऄंतराल को पूणग रूप से समाप्त होने में
27
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100 िषग का समय लग जाएगा। कायगथथल पर लंहगक भेदभाि के मामले में हथथहत ऄहधक गम्भीर है,
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लयोंक्रक आसे पूणग रूप से समाप्त होने में 217 िषग का समय लगेगा।
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आसके साथ ही 2007-08 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में प्राथहमक एिं ईच्च प्राथहमक थतरों
पर महहलाओं के हलए हनिल ईपहथथहत ऄनुपात (Net Attendance Ratio) ऄत्यंत हनम्न था (भारत
मानि हिकास ररपोटग-2011)। ईच्च माध्यहमक थतर पर महहलाओं के हलए हनिल ईपहथथहत ऄनुपात
ग्रामीण क्षेत्रों में के िल 20.0% और शहरी क्षेत्रों में 39.0% था। साथ ही यह भी पाया गया क्रक "सिग
हशक्षा ऄहभयान" जैसे कायगिमों के कायागन्ियन के बािजूद, 21.8% बाहलकाएं (6-17 िषग की अयु)
हिद्यालयों में ईपहथथत नहीं थीं।
और शहरी क्षेत्रों में िमशः 49.0% से हगरकर 37.8% और 23.8% से हगरकर 19.4% पर अ गयी
हं। दूसरा हनष्कषग यह है क्रक 2009-11 के दौरान पुरुषों की 76.2% की तुलना में महहला श्रमबल
भागीदारी दर के िल 19.4% थी।
om
हनम्न श्रमबल भागीदारी दरों का कारण अंकङों के माध्यम से महहलाओं के कायों का अकलन नहीं हो l.c
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पाना है। ईनका कायग हनिागह ईत्पादन और घरे लू थतर से जुङा होने के कारण मौक्रद्रक रूप से मूल्यांक्रकत
@
नहीं हो पाता है। अकलनों के अधार पर पता चलता है क्रक कु ल ऄिैतहनक कायग का 60% और घरे लू
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कायग का 98% महहलाओं द्वारा क्रकया जाता है। हालांक्रक, ग्रामीण क्षेत्रों में महहलाओं की श्रमबल में
al
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भागीदारी ऄपेक्षाकृ त ईच्च है। भारत मानि हिकास ररपोटग-2011 के ऄनुसार आसका कारण ग्रामीण
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क्षेत्रों में, हिशेषकर महहलाओं की, हशक्षा तक कम पहंच है। आसके ऄहतररि, कामगार जनसंख्या
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ऄनुपात के संदभग में महहलाओं के हलए ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ऄत्यहधक लंहगक ऄसमानता
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हिद्यमान है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में महहला श्रम बल भागीदारी दर पुरुषों की श्रम बल भागीदारी दर से लगभग अधी थी
और शहरी क्षेत्रों में यह एक हतहाइ से भी कम थी। आन अाँकङों से यह थपष्ट होता है क्रक हपिले 60 िषों
से अर्मथक हिकास की ईपलहधधयों का भारत में महहलाओं की श्रमबल भागीदारी दर पर महत्िपूणग
प्रभाि नहीं पङा है लयोंक्रक महहला सशहिकरण के आस महत्िपूणग सूचकांक में लगभग कोइ पररितगन
नहीं हअ है।
रोजगार (िेतन भुगतान िाले और संगरठत क्षेत्र के रोजगार) महहला सशहिकरण का एक महत्िपूणग
माध्यम है। रोजगार महहलाओं को हित्तीय थितंत्रता प्रदान कर, सामाहजक पहचान का िैकहल्पक स्रोत
ईपलधध कराकर तथा सत्ता सम्बन्धी व्यिथथाओं से पररचय कराकर ईन्हें सशि बनाता है।
ऐसा पाया गया है क्रक ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में (क्रकन्तु शहरी क्षेत्रों में हिशेष रूप से) पुरुषों की
तुलना में महहलाओं का हनयोजन बहत कम है। यह भी पाया गया है क्रक ग्रामीण क्षेत्रों में 49.4%
संसाधनों तक पहंच महहलाओं की अर्मथक थितंत्रता के हलए महत्िपूणग है, लयोंक्रक यह ईन्हें ऄहधक
सक्षम बनाती है और ईनकी कायग क्षमता के हिथतार में महत्िपूणग भूहमका हनभाती है। अर्मथक थितंत्रता
के मापक के रूप में राष्ट्रीय पररिार थिाथ्य सिेक्षण-3 (नेशनल फै हमली हेल्थ सिे: NFHS - 3) के
ऄंतगगत पांच महत्िपूणग चरों की पहचान की गयी है, जो आस प्रकार हं- ऊण कायगिमों की जानकारी,
ऊण प्राप्त करना, बंक खाता होना, ईच्च हशक्षा संबंधी ईपलहधधयााँ और घर से बाहर कायग करना।
NFHS-3 ने महहला सशहिकरण के रूप में चार चरों के माध्यम से ईनकी ‘मीहडया तक पहाँच’ को भी
अकहलत क्रकया है। ये चर आस प्रकार हं - प्रहतक्रदन समाचार पत्र पचना, प्रहतक्रदन रे हडयो सुनना,
प्रहतक्रदन टेलीहिजन देखना और अधुहनक गभग हनरोधक दिाओं या ईपायों के संबंध में जानकारी
रखना।
मीहडया, सूचनाओं का महत्िपूणग स्रोत है तथा सोचने एिं कायग करने के नए तरीकों के संबंध में भी हमें
जानकारी प्रदान करता है। आसके ऄहतररि रे हडयो सुनना, टेलीहिजन देखना और समाचार पत्र एिं
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पहत्रका पचना अक्रद खाली समय में की जाने िाली महत्िपूणग गहतहिहधयााँ हं। ये महहला सशहिकरण के
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महत्िपूणग सूचक हं तथा महहलाओं को ईनके समय के ईपयोग पर ऄपेक्षाकृ त ऄहधक हनयंत्रण प्रदान कर
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एक सक्षमकारी पररिेश प्रदान करने की क्षमता रखते हं। आस सिेक्षण के ऄनुसार हमारे देश में
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महहलाओं की संसाधनों तक पहंच काफी कम थी। के िल 15.07% महहलाओं के पास बंकों में बचत
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खाते हिद्यमान थे तथा ऊण कायगिमों के संबंध में जानकारी होने के बािजूद ईन्हें ऊण प्राप्त नहीं हो
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पाता था। के िल 36.4% महहलाओं को बाहर कायग करने की थितंत्रता थी। ये सभी तत्ि हशक्षा के थतर
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से हनकटता से जुङे हए हं। साथ ही ईच्च हशक्षा को सशहिकरण का एक महत्िपूणग मापक माना जाता है
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सिेक्षण से यह भी थपष्ट है क्रक महहलाओं की मास मीहडया तक पहाँच बहत कम थी क्रकन्तु लगभग सभी
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महहलाओं (98%) को अधुहनक गभगहनरोधक दिाओं के बारे में जानकारी प्राप्त थी। प्रहतक्रदन समाचार
पत्र पचने िाली और रे हडयो सुनने िाली महहलाओं का प्रहतशत िमशः के िल 12.5% और 17.1% था।
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घरे लू हहसा, हिश्व भर की महहलाओं द्वारा ऄनुभि की जा रही हलग-अधाररत हहसा के सबसे सामान्य l.c
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रूपों में से एक है। घरे लू हहसा से मानिाहधकारों का ईल्लंघन होता है और आससे अर्मथक हाहन भी होती
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है। आसका महहलाओं और ईनके बच्चों के थिाथ्य और कल्याण पर ऄल्पकाहलक और दीघगकाहलक, दोनों
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प्रकार का हिनाशकारी प्रभाि होता है। हिशेषज्ञों का मानना है क्रक हनरं तर घरे लू हहसा के भय में जीिन
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है।
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घरे लू हहसा ईनके पहतयों द्वारा भािनात्मक, शारीररक और यौन हहसा जैसे रूपों में होती हं। NFHS-3
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के ऄनुसार 12 माह की सिेक्षण ऄिहध के दौरान यह पाया गया क्रक 15-49 िषग की अयु की नि
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हििाहहत महहलाओं में से 27 प्रहतशत ने हहसा का सामना क्रकया था। शारीररक और यौन हहसा का
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सामना करने िाली 55% महहलाओं का कहना था क्रक ईन्हें ईनके पहतयों द्वारा शारीररक कष्ट पहाँचाया
गया था। आन चोटों में घाि, अाँखों की चोट, मोच, हहियााँ टू टना, दााँत टू टना तथा ऄन्य गंभीर प्रकृ हत
की चोटें सहम्महलत हं।
अगे की राह:
महहलाओं को घरे लू हहसा से बचाने के हलए महहला सशहिकरण से संबंहधत NGOs को प्रोत्साहहत
क्रकया जाना चाहहए।
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मामलों का तीव्र हनथतारण।
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PRIs को ऐसे मामलों के प्रहत प्रगहतशील और सहानुभूहतपूणग भूहमका हनभानी चाहहए।
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हिशेष रूप से ग्रामीण आलाकों में ऄहधक जागरूकता ऄहभयान चलाए जाने चाहहए।
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यौन संबंधों के बारे में थितंत्र हनणगय लेन,े अिाजाही की थितंत्रता और िैिाहहक हहसा के प्रहत
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महहलाओं की ऄहभिृहत्त संबंधी थिायत्तता को हिशेषज्ञों द्वारा महहला सशहिकरण के संकेतक के रूप में
माना जाता है। ऄपने पहतयों के साथ यौन संबंधों को ऄथिीकार करने में महहलाओं की थिायत्तता
िथतुतः ईनकी लंहगकता (sexuality) पर ईनके हनयंत्रण की एक प्रभािशाली ऄहभव्यहि है तथा
महहलाओं का थियं के यौन जीिन पर हनयंत्रण होना ईनके कल्याण एिं थिायत्तता का ऄहभन्न ऄंग
होता है।
NFHS-3 के ऄनुसार, महहलाओं की थिायत्तता से संबंहधत अंकङों का हिश्लेषण महहला सशहिकरण के
संकेतक के रूप में ईनकी थिायत्तता के दो महत्िपूणग हनधागरकों का िणगन करता है। आन अंकङों से पता
चलता है क्रक भारत में 78% से ऄहधक महहलाओं के पास ऄपने पहत के साथ यौन संबंध थथाहपत करने
संबंधी हनयंत्रण था। पत्नी के साथ मारपीट करना महहलाओं पर की गइ ऄनेक प्रकार की घरे लू हहसाओं
में से एक है। यह देखा गया क्रक आसे महहलाओं द्वारा थियं ही थिीकार कर हलया जाता है। कु ि ऄलग-
ऄलग अधारों पर पत्नी के साथ मारपीट को महहलाओं द्वारा भी ईहचत ठहराया गया था, लेक्रकन
लगभग 46% महहलाओं द्वारा मारपीट को ऄथिीकृ त क्रकया गया।
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आसमें िैिाहहक बंधन की ऄखंडता को ऄनुमाहनत खतरा और दंड प्रािधानों के दुरुपयोग की
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संभािना जैसी अपहत्तयााँ होंगी। िाथति में यह सच नहीं है क्रक व्यहिगत या घरे लू मुद्दे हमेशा से
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कानून के दायरे से बाहर रहे हं। घरे लू हहसा के हिरुि कानून पहले से ही शारीररक और यौन
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यह तकग देना सही नहीं है क्रक िैिाहहक बलात्कार की हशकायत िैिाहहक जीिन को बबागद कर देगी,
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जबक्रक पहत के हखलाफ घरे लू हहसा की हशकायत ऐसा नहीं करे गी। शादी में 'हनहहत सहमहत' की
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धारणा को समाप्त करने में काफी समय लगा है। कानून को सभी महहलाओं की शारीररक थिायत्तता
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कें द्रीय कानून मंत्रालय 3 मुख्य बाधाओं को हचहन्हत करता है, यथा- ऄलगाििाद, रूक्रचिाद और
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पसगनल लॉ के हिषय में हम्या धारणाएं।
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भारत में पसगनल लॉ का एक मजबूत और लंबा आहतहास रहा है और आसे असानी से नहीं िोङा जा
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सकता है।
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सिगसम्महत प्राप्त करने के ऄलािा, UCC को लागू करने में सबसे बङी बाधा आसका मसौदा तैयार
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करना है। समाज में मौजूद सभी पसगनल लॉ को हमहश्रत करना एक बङी चुनौती होगी।
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अगे की राह
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अधुहनक और ईदार मापदंडों के अधार पर पसगनल लॉ के भीतर सुधारों हेतु सुझाि देने के हलए
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8. हनष्कषग (Conclusion) l.c
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हिगत चार दशकों के ऄिलोकन के अधार पर यह हनहश्चत रूप से कहा जा सकता है क्रक भारतीय
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समाज में महहलाओं की हथथहत में पररितगन हअ है। यह पररितगन महहलाओं के पक्ष में हअ है। आसमें
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कोइ संदह
े नहीं है क्रक महहलाओं के ऄहधकारों को पूणग मान्यता प्रदान की गइ है, लंहगक समानता
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सुहनहश्चत करने हेतु हिहभन्न ईपाय क्रकए गए और लंहगक भेदभाि के प्रहत संिेदनशीलता में िृहि हइ है।
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यह पररितगन सुहनहश्चत करने में महहला अंदोलन ने महत्िपूणग भूहमका हनभाइ है। महहला अंदोलन के
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ऄंतगगत थिायत्त महहला संगठन, ऄन्य महहला समूह, महहला ऄध्ययन कें द्र आत्याक्रद सहम्महलत हं। ऄतः
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यह थपष्ट है क्रक हिगत 40 िषों में, महहला अंदोलन ने भारत के सामाहजक-राजनीहतक पररिेश को
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व्यापक रूप से प्रभाहित क्रकया है। हालांक्रक, यह पररितगन िहमक गहत से हअ है तथा आसने कु ि क्षेत्रों
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को ऄन्य क्षेत्रों की तुलना में ऄहधक प्रभाहित क्रकया है; तथाहप ऄभी भी िांहित हथथहत को प्राप्त क्रकया
जाना शेष है।
महहला समूहों में ितगमान में व्याप्त हिभाजन के बािजूद ईन्होने हहसा, थिाथ्य, मजदूरी सहहत रोजगार
की हथथहत, हिहधक ऄहधकारों और कानून सुधारों से संबंहधत समथयाओं जैसे कु ि मुद्दों पर एक साथ
अिाज ईठाइ है।
ितगमान समय में महहलाओं से संबंहधत प्रमुख मुद्दे - कायगथथल पर यौन ईत्पीङन, जाहत एिं सांप्रदाहयक
हहसा, हनणगयन के ईच्चतम थतरों पर महहलाओं की राजनीहतक भागीदारी में िृहि के हलए लॉहबग अक्रद
हं।
जब तक महहला अंदोलन चलता रहेगा तब तक महहलाओं से संबहं धत मुद्दों की सूची बचती रहेगी। कइ
हिद्वानों ने यह दशागया है क्रक महहला अंदोलन हथथर नहीं रहा है तथा यह के िल महहला-कें क्रद्रत मुद्दों
और समथयाओं से ही प्रभाहित नहीं हअ बहल्क आसे देश की बदलती राजनीहतक, सामाहजक, अर्मथक
और ऄन्य राष्ट्रीय िाथतहिकताओं के ऄनुसार ऄनुक्रिया करने हेतु बाध्य होना पङा है।
संसद द्वारा समय-समय पर महहलाओं को सशि बनाने तथा समानता एिं न्याय की प्राहप्त हेतु ईनके
संघषग को कानूनी अधार प्रदान करने के हलए ऄनेक कानून पाररत क्रकए गए हं। आनमें से कु ि ऄहधहनयम
आस प्रकार हं:
1. सती प्रथा (हनिारण) ऄहधहनयम, 1987- सिगप्रथम 1829 में सती प्रथा को समाप्त कर क्रदया गया
था। आसे 1987 में संशोहधत कर सती प्रथा को पुनः गैरकानूनी घोहषत कर क्रदया गया। यह
ऄहधहनयम सती प्रथा, आसके महहमामंडन तथा आससे संबंहधत ऄन्य मामलों के ऄहधक प्रभािी
हनिारण हेतु प्रािधान करता है।
2. अपराहधक कानून (संशोधन) ऄहधहनयम, 1983- यह ऄहधहनयम घरे लू हहसा को ऄपराध के रूप
में पररभाहषत करता है तथा आसके तहत बलात्कार को भी एक दंडनीय ऄपराध माना गया है।
3. हिशेष हििाह ऄहधहनयम, 1954 - हििाह के हलए पुरूषों की न्यूनतम अयु 21 िषग तथा
महहलाओं की न्यूनतम अयु 18 िषग हनधागररत करने के हलए आस ऄहधहनयम में संशोधन क्रकया
गया।
4. हहन्दू ईत्तराहधकार ऄहधहनयम, 1956 - आस ऄहधहनयम के तहत हपता की संपहत्त पर पुत्री को
समान ऄहधकार प्रदान क्रकया गया है तथा एक हिधिा महहला को पहत की संपहत्त का
ईत्तराहधकारी होने का ऄहधकार प्राप्त है। आस ऄहधहनयम में 2005 में क्रकया गया संशोधन, पुहत्रयों
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को पैतृक संपहत्त में समान हहथसा प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
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5. ऄनैहतक व्यापार (हनिारण) ऄहधहनयम (ITPA), 1986- 'स्त्री तथा लङकी ऄनैहतक व्यापार दमन
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ऄहधहनयम (SITA), 1956' को 1986 में संशोहधत कर आसका नाम ITPA रखा गया। SITA,
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िेश्यािृहत्त के प्रयोजनों हेतु महहलाओं एिं लङक्रकयों के ऄिैध व्यापार को प्रहतबंहधत ऄथिा समाप्त
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करने के हलए ऄहधहनयहमत क्रकया गया था। आसे महहलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी संरक्षण
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प्रदान करने हेतु संशोहधत क्रकया गया तथा नाबाहलगों से संबंहधत ऄपराधों के दंड में िृहि की गइ।
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हालांक्रक यह व्यिथथा ऄंतरागज्यीय एिं ऄंतरागष्ट्रीय थतर पर कायगरत माक्रफया को समाप्त करने में
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6. दहेज प्रहतषेध ऄहधहनयम, 1961- आस ऄहधहनयम के ऄंतगगत न्यायालय को दहेज हत्या के मामले
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पर थित: संज्ञान लेने ऄथिा क्रकसी भी मान्यता प्राप्त कल्याणकारी संगठन द्वारा प्राप्त हशकायत पर
कारग िाइ करने का ऄहधकार प्राप्त है। भारतीय साक्ष्य ऄहधहनयम में भी संशोधन क्रकया गया है तथा
यक्रद हििाह के 7 िषवोच के भीतर ही िधू की मृत्यु हो जाती है तो हनदवोचष होने का साक्ष्य प्रथतुत
करने का ईत्तरदाहयत्ि पहत एिं ईसके पररिार पर ऄहधरोहपत क्रकया गया है।
7. मातृत्ि लाभ ऄहधहनयम, 1961- आस ऄहधहनयम के ऄंतगगत प्रसि के पूिग और पश्चात् कु ि ऄिहध
के हलए महहलाओं के रोजगार को हिहनयहमत करने तथा 6 माह के सिैतहनक ऄिकाश जैसे
मातृत्ि लाभ प्रदान क्रकए जाने का प्रािधान क्रकया गया है।
8. मेहडकल टर्ममनेशन ऑछ प्रेगनेंसी एलट, 1971: यक्रद भ्रूण शारीररक ऄथिा मानहसक रूप से
ऄसामान्य हो; बलात्कार और ऄिांहित गभागिथथा के मामले में 12 सप्ताह की गभगधारण ऄिहध के
भीतर तथा यक्रद गभागिथथा माता के हलए हाहनकारक हो या पैदा होने िाले बच्चे के गंभीर रूप से
हिकृ त होने की सम्भािना हो तो 12 सप्ताह के बाद भी क्रकन्तु 20िें सप्ताह से पूिग गभगपात को िैध
माना जाएगा।
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2. ऄनुछिेद 15 (1)- धमग, मूलिंश, जाहत, हलग अक्रद के अधार पर क्रकसी भी नागररक के हिरुि
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भेदभाि का हनषेध करता है।
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3. ऄनुछिेद 15 (3)- महहलाओं के पक्ष में सकारात्मक ईपाय करने हेतु राज्यों को हिशेष प्रािधान
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4. ऄनुछिेद 16- लोक हनयोजन के हिषय में सभी नागररकों के हलए ऄिसरों की समानता का
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6. ऄनुछिेद 39(a)- आसके ऄनुसार राज्य ऄपनी नीहत का संचालन आस प्रकार करे गा क्रक पुरुषों और
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महहलाओं, सभी नागररकों को समान रूप से जीहिका के पयागप्त साधन प्राप्त करने का ऄहधकार हो।
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7. ऄनुछिेद 39(d)- पुरुषों और महहलाओं दोनों को समान कायग के हलए समान िेतन का हनदेश देता
है।
8. ऄनुछिेद 42- हनदेहशत करता है क्रक राज्य, कायग की न्यायसंगत और मानिोहचत दशाओं का तथा
प्रसूहत सहायता का ईपबन्ध करे गा।
9. ऄनुछिेद 51(A)(e)- हनदेहशत करता है क्रक ऐसी प्रथाओं का त्याग करना जो महहलाओं के सम्मान
के हिरुि हं, नागररकों का कत्तगव्य है।
10. ऄनुछिेद 300(A)- महहलाओं के हलए संपहत्त के ऄहधकार का ईपबंध करता है।
11. 73िां और 74िां संशोधन ऄहधहनयम 1992 - महहलाओं के हलए पंचायतों और नगर पाहलकाओं
के थथानीय हनकायों में 1/3 सीटों के अरक्षण का प्रािधान करता है।
(73िां संशोधन 24 ऄप्रैल को लागू क्रकया गया था। आस हतहथ को महहला सशहिकरण क्रदिस के रूप में
घोहषत क्रकया गया है।)
(Government Response)
1. भारत में महहलाओं की हथथहत पर सहमहत (Committees on the status of women in
India: CSWI) - आसे यूनाआटेड नेशंस जनरल ऄसेम्बली हडललेरेशन ऑछ एहलहमनेशन ऑछ
हडहथिहमनेशन ऄगेंथट िुमन, 1967 की ऄनुक्रिया में थथाहपत क्रकया गया था। आसने 1974 में
ऄपनी ररपोटग प्रथतुत की। आस ररपोटग में आस त्य पर बल क्रदया गया है क्रक हनधगन एक सजातीय
समूह (homogenous group) नहीं हं और साथ ही यह भी दशागया गया है क्रक महहलाएाँ
हनधगनता के ऄसमान बोझ से ग्रहसत है।
2. महहलाओं के हलए राष्ट्रीय कायगयोजना का मसौदा (Draft National Plan of Action for
Women)- भारत सरकार ने CSWI ररपोटग के अधार पर एक राष्ट्रीय योजना तैयार की है। यह
योजना मुख्य रूप से समाज के हपिङे िगग (हिशेष रूप से महहलाओं) के हलए हशक्षा, थिाथ्य,
कल्याण और रोजगार के क्षेत्रों में यथोहचत कारग िाइ की अिश्यकता को प्राथहमकता देती है।
3. 1980 के दशक में महहलाओं की पहचान एक पृथक समूह के रूप में की गइ और सिगप्रथम िठी
पंचिषीय योजना (1980-1985) के प्रपत्र में "महहला और हिकास" को एक ऄलग ऄध्याय के रूप
में सहम्महलत क्रकया गया। आसके पश्चात सरकारी कायगिमों एिं हिकास के लाभ की पहाँच महहलाओं
तक सुहनहश्चत करने हेतु आसे प्रत्येक पंचिषीय योजनाओं में सहम्महलत क्रकया गया।
4. राष्ट्रीय महहला अयोग 1991 - राष्ट्रीय महहला अयोग की थथापना राष्ट्रीय महहला अयोग
ऄहधहनयम,1990 के तहत जनिरी 1992 में एक सांहिहधक हनकाय के रूप में की गइ थी। आसके
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हनम्नहलहखत ईत्तरदाहयत्ि हं:
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महहलाओं के हहतों को सुरहक्षत एिं प्रोत्साहहत करना तथा महहलाओं के ऄहधकारों की सुरक्षा
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करना।
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संहिधान में िर्मणत महहलाओं के कल्याण हेतु ईपबंहधत संिैधाहनक एिं हिहधक प्रािधानों से
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संबंहधत समथत मामलों की जांच करना तथा मौजूदा कानूनों का समय-समय पर पुनरीक्षण
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हशकायतों की जांच करना एिं क्रकसी महहला को िंहचत क्रकये जाने से संबंहधत मामलों का
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संज्ञान लेना तथा ऄसहाय एिं जरूरतमंद महहलाओं को कानूनी एिं ऄन्य सहायता प्रदान
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करना।
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गरीबों के हलए प्रारं भ की गइ सभी सरकारी योजनाओं, पररयोजनाओं अक्रद में महहलाओं के
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संगठनों की व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहहत करने हेतु सरकार से सक्रिय भूहमका हनभाने की
हसफाररश करना।
राष्ट्रीय महहला अयोग : एक शहिहीन संथथा (टू थलेस टाआगर)? (National Commission for
Women: A toothless tiger?)
NCW भारत में महहला हहतों की सुरक्षा करने और ईनके हहतों को प्रोत्साहहत करने के ऄहधदेश के
साथ राष्ट्रीय थतर का एक सिवोचच्च संगठन है।
NCW के प्रमुख कायग हनम्नहलहखत हं :
o संहिधान के ऄंतगगत महहलाओं को प्रदत्त सुरक्षोपाय से संबंहधत सभी मामलों की जांच और
हनरीक्षण करना।
o आसे कें द्र सरकार को ऄपना ररपोटग प्रथतुत करना होता है।
o यह कें द्र और राज्य सरकारों को सुरक्षोपायों के प्रभािी कायागन्ियन के हलए ऄनुशंसा भी करता
है।
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हनकाय है। आसके ईद्देश्य हनम्नहलहखत हं:
सरकारी और गैर-सरकारी कायगकतागओं के प्रहशक्षण और क्षमता हनमागण के माध्यम से l.c
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सामाहजक हिकास में थिैहछिक कायों को प्रोत्साहन देना और ईनका हिकास करना।
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महहला एिं बाल हिकास हेतु व्यापक दृहष्टकोण को ऄपनाना तथा राष्ट्रीय बाल नीहत के
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सामाहजक हिकास में सरकारी एिं थिैहछिक कारग िाआयों के मध्य समन्िय हेतु ईपाय करना।
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9.4 भारत सरकार द्वारा प्रारं भ क्रकए गए महहला सशहिकरण कायग ि म/योजनाएं
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महहलाओं को सशि बनाने हेतु भारत सरकार द्वारा हिहभन्न कायगिमों की शुरुअत की गयी है, जो
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हनम्नहलहखत हं:
1. जेंडर बजटटग (Gender Budgeting)- आस ऄिधारणा को 1980 के दशक के मध्य में सिगप्रथम
ऑथट्रेहलया में प्रथतुत क्रकया गया था और भारत सरकार द्वारा आसे 2005-06 के पश्चात् बजट में शाहमल
क्रकया गया।
यह कोइ लेखांकन प्रणाली नहीं है बहल्क यह नीहत/कायगिम हनमागण, आसके कायागन्ियन और समीक्षा में
लंहगक पररप्रेक्ष्य को सहम्महलत करने की एक सतत प्रक्रिया है। जेंडर बजटटग में लंहगक अधार पर
हिभेदीकृ त प्रभािों को प्राप्त करने के हलए तथा लंहगक प्रहतबिताओं को बजटीय प्रहतबिताओं में
समाहिष्ट करने हेतु सरकारी बजट का हिश्लेषण करना शाहमल है।
हनभगया कोष (Nirbhaya fund)- क्रदसंबर, 2012 में क्रदल्ली में हए सामूहहक बलात्कार की
पीहङता को श्रिांजहल देने के हलए सरकार द्वारा कें द्रीय बजट 2013-14 में महहलाओं की सुरक्षा
और सशहिकरण हेतु 1,000 करोङ रुपये के 'हनभगया कोष' की थथापना की घोषणा की गयी थी।
हिद्यमान हों, िहां ईनके बच्चों के हलए डे के यर (day care) की सुहिधा ईपलधध कराना है।
employment for women: STEP)- आस कायगिम की शुरुअत 1986 में महहला और बाल हिकास
मंत्रालय द्वारा की गइ थी। आसका ईद्देश्य कृ हष, लघु थतरीय पशुपालन, डेयरी, मत्थय पालन अक्रद
परं परागत क्षेत्रकों में गरीबी रे खा से नीचे जीिन-यापन करने िाली महहलाओं को प्रहशक्षण और
रोजगार सहायता ईपलधध कराना है, आन परं परागत क्षेत्रों में महहलाओं को व्यापक पैमाने पर
हनयोहजत क्रकया जाता है। आसका मूल ईद्देश्य महहलाओं को थिरोजगार तथा पाररश्रहमक िाले रोजगारों
के हलए कौशल ईन्नयन प्रदान करना है।
4. थियंहसिा (Swayamsidha)- यह एक समेक्रकत कायगिम है। आस कायगिम का ईद्देश्य जागरूकता में
िृहि कर; सूक्ष्म थतरीय अय सृजन करने िाली गहतहिहधयों के माध्यम से अर्मथक थितंत्रता प्रदान कर;
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तथा साक्षरता, थिाथ्य, ग्रामीण हिकास जैसी हिहभन्न सेिाओं के मध्य समन्िय थथाहपत कर महहलाओं
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को सशि बनाना है। आसका ईद्देश्य महहलाओं को थियं सहायता समूहों में संगरठत करना एिं माआिो
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5. थि-शहि (Swa Shakti)- आस पररयोजना का ईद्देश्य 15-20 सदथय िाले 16000 से ऄहधक
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अत्महनभगर महहला थियं सहायता समूहों (SHGs) की थथापना करना है। आस प्रकार यह योजना
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महहलाओं के जीिन थतर में सुधार के हलए संसाधनों पर ईनके हनयंत्रण एिं पहंच में िृहि करती है।
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आसके साथ ही आसका ईद्देश्य ऄग्र-सक्रिय रूप से महहलाओं की अिश्यकताओं की पूर्मत हेतु समथगन
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एजेंहसयों को ऄहधक संिेदनशील तथा ईनकी संथथागत क्षमता को ऄहधक सशि बनाना है।
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6. राष्ट्रीय महहला कोष (Rashtriya Mahila Kosh: RMK)- यह ऄनौपचाररक क्षेत्र में कायगरत
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हनधगन और संपहत्तहिहीन महहलाओं की सूक्ष्म ऊण अिश्यकताओं की पूर्मत के हलए एक राष्ट्र थतरीय तंत्र
है। RMK द्वारा 1993 में आसके प्रारं भ होने से से फरिरी 2001 तक कु ल 100 करोङ रूपये का ऊण
ऄनुमोक्रदत क्रकया गया था। आस ऊण का ईद्देश्य देश भर में हिथतृत 827 गैर-सरकारी संगठनों
(NGOs) के माध्यम से 400,000 से ऄहधक महहलाओं को लाभ पहंचाना था। RMK की िसूली दर
7. थिाधार (Swadhar)- आस योजना का लक्ष्य हबना क्रकसी अर्मथक या सामाहजक सहायता के करठन
पररहथथहतयों में जीिन-यापन कर रही हाहशए पर हथथत महहलाओं और बाहलकाओं की बुहनयादी
अिश्यकताओं की पूर्मत करना है। आस योजना के तहत महहलाओं को भािनात्मक सहायता एिं परामशग
प्रदान क्रकया जाता है। आसके लहक्षत समूह में मुख्य रूप से हहसा या प्राकृ हतक अपदाओं से पीहङत,
तथकरी की हशकार महहलाएं और पररिार-हिहीन महहलाएं शाहमल हं।
1. भारत में पयागिरणीय अंदोलनों में कोइ भी बहस महहलाओं की भूहमका के हिश्लेषण के हबना
ऄधूरी है। रटप्पणी कीहजए।
दृहष्टकोणः
भारत में पयागिरणीय अंदोलनों के अरम्भ की हििेचना करें । आसके बाद तकग दें क्रक कै से
प्राकृ हतक संसाधन भारत में रहने िाली महहलाओं के हलए जीिन को के न्द्र हं, जो क्रक
पयागिरणीय अंदोलनों का अधार हं।
अगे, हचपको अंदोलन का हिश्लेषण क्रदया जा सकता है, जो थितंत्रता के बाद भारत में
पयागिरणीय अंदोलन की शुरुअत था। हनष्कषगतः भारत में पयागिरणीय-नारीिाद के ईदभि
को बताते हए ईत्तर को समाप्त करें ।
ईत्तरः
(नोट: मुद्दे का हिथतृत िणगन करने के हलए ईत्तर को लंबा रखा जा रहा है।)
“पयागिरणीय अंदोलन िथतुतः पयागिरणीय मुद्दों को संबोहधत करने के हलए एक "व्यापक
िैज्ञाहनक, सामाहजक और राजनीहतक अंदोलन है।”
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हिकासशील देशों में पयागिरण अंदोलन कइ मायने में हनिागहसत लोगों, िंहचत समुदायों और
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भेदभाि के हशकार लोगों के हहतों को ध्यान में रखकर क्रकया जाने िाला संघषग हं, हजनमें
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आस प्रकार के अंदोलनों के प्रमुख कारण हं: प्राकृ हतक संसाधनों पर हनयंत्रण; शहिशाली लोगों
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द्वारा संसाधनों पर कधघा करने का पयागिरण हहतैषी लोगों द्वारा हिरोध; पयागिरणीय ह्रास;
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ऄतः हिकासशील देशों में पयागिरणीय अंदोलन हिथथाहपत लोगों, हाहशए पर रह रहे लोगों,
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भेदभाि पीहडतों, महहलाओं, अक्रदिाहसयों एिं सीमांत क्रकसानों के संघषग का पररणाम है।
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हिकासशील देशों में पयागिरणीय अंदोलनों पर कोइ भी हिमशग यह समझे हबना पूणग नहीं हो
सकता क्रक ये मुद्दे का क्रकस प्रकार अजीहिका के मुद्दों ि आसके लंहगक संदभों से संबंहधत हं।
हिकहसत देशों में पयागिरणीय संरक्षण का संदभग आससे ऄलग होता है, लयोंक्रक यहााँ यह
ऄहधकतर जीिन की गुणित्ता और प्राहणयों के ऄहधकारों के अस-पास घूमता रहता है।
महहलाए, प्राकृ हतक संसाधनों जैसे ईंधन, खाद्य िथतुए,ाँ जंगल, पानी ि जमीन पर प्रत्यक्ष रूप
से हनभगर हं। हिशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में जहााँ भारत की 70 प्रहतशत जनसंख्या रहती है, िे
प्राकृ हतक संसाधनों के साथ सीधे से जुङी हं। महहलाएं ऄपने पररिार की मूलभूत
अिश्यकताओं को पूरा करने के हलए आन संसाधनों के ईपयोग पर हनभगर हं।
आसहलए, प्राकृ हतक संसाधनों के संरक्षण ि पयागिरण के हिकास के हलए योजनाओं के हनमागण
एिं प्रहशक्षण में महहलाओं को शाहमल क्रकये हबना आसके लक्ष्य को प्राप्त नहीं क्रकया जा सकता।
भारत में पयागिरणीय अंदोलन का ईद्भि संभितः 1973 से माना जा सकता है; जब मध्य
हहमालयी क्षेत्रों में हचपको अंदोलन की शुरुअत हयी। हचपको अंदोलन, हिरोध थिरूप शुरू
यह हसफग शुरुअत थी, आसके बाद बहत सारे अंदोलन हए, जैस-े 1977 का ग्रीन बेल्ट
अंदोलन (िृक्षारोपण), एहपको अंदोलन (िृक्षों से हचपकना), नमगदा बचाओ अंदोलन अक्रद।
आन सभी अंदोलनों में कइ थतरों पर महहलाओं की महत्िपूणग भागीदारी देखी गइ।
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ऄंतगगत हिश्लेहषत क्रकया जाय तो यह थपष्ट होता है क्रक गरीब, हनम्न िगग ि हनम्न िणग की,
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अक्रदिासी महहलाएाँ ऄहधक प्रभाहित हं। ऄतः िे अंदोलनों में सिागहधक सक्रिय
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सक्रिय भागीदार हं। यह िगग-हलग प्रभाि, थथानीय ज्ञान तंत्र के क्षरण एिं अजीहिका नीहतयों
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को प्रहतकू ल रूप से प्रभाहित करता है। हजन पर गरीब, ग्रामीण महहलाएं अहश्रत हं।
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भारत में पयागिरणीय अंदोलनों का आहतहास यह बताता है क्रक महहलाएं पयागिरण के ह्रास
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का सिागहधक दुष्प्रभाि (नुकसान) सहन करती हं। आसहलए िे हचपको से लेकर नमगदा बचाओ
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अंदोलन जैसे पयागिरणीय संरक्षण िाले अंदोलनों की ऄगुिा रही हं। आस प्रकार पयागिरणीय
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संबंहधत मुद्दों के साथ महहलाओं के सशि संबंध से पयागिरणीय नारीिाद (इको फे हमहनयम)
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की ऄिधारणा का ईदय हअ। हिश्व में हो रहे हिहभन्न सामाहजक अंदोलन हजनमें नारीिाद,
शाहन्त और पाररहथथहतकी की हिचारधारा हिकहसत हइ, पयागिरण संरक्षण में महहलाओं की
भूहमका को ईजागर करते हं।
2. ‘कृ हष के नारीकरण’ ने ग्रामीण भारत में महहला सशहिकरण को प्रेररत क्रकया है।
अलोचनात्मक हिश्लेषण कीहजए।
दृहष्टकोणः
पहले दो शधद में ‘श्रम के नारीकरण’ ि ‘गरीबी के नारीकरण’ के ऄथग को थपष्ट करें क्रक कै से ये
दोनों भारतीय कृ हष से संबंहधत है तथा कै से ये हपतृसत्ता से ऄदृश्य रुप से जुडऺे हं। ऄन्त में
हनष्कषग हनकालें क्रक कै से बाजारी शहियााँ ि हपतृसत्तात्मकता हमलाकर कृ हष श्रम शहि के
नारीकरण और ‘हिनारीकरण’ को हनधागररत करते हं।
करते हं, जहााँ महहलायें श्रम बाजार में प्रिेश की कोहशश करती हं।
कृ हष क्षेत्र में महहलाओं की भागीदारी और परम्परागत घरे लू कायों से आतर ईनके अगे बचने
की पररघटना को कइ बार कृ हष संकट की पृष्ठभूहम के तौर पर देखा जाता है, हजसने पररिार
के पुरुष सदथयों को ग्रामीण कृ हष से ऄलग-थलग कर क्रदया। कृ हष कायों से हिलग हए पुरुष
ग्रामीण क्षेत्र से बाहर हनकलकर शहरी ऄथगव्यिथथा के ऄनौपचाररक क्षेत्रों में ऄपेक्षाकृ त
बेहतर ककतु ऄल्प मजदूरी िाली नौकरी करने को हििश हए। ऐसा माना जाता है क्रक आस
पररघटना को कायग की अकहथमकता, गैर-लाभकारी फसल ईत्पादन और संकटपूणग प्रिासन ने
प्रेररत क्रकया। शहरी महलन बहथतयों और हनमागण क्षेत्रक जैसे ऄथगव्यिथथा के ऄत्यहधक श्रम-
शोषणकारी क्षेत्रों की ओर ऄन्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रिासन देखा गया है।
कृ हष क्षेत्र में यह परम्परा सबसे ज्यादा 1999 से 2005 की ऄिहध में देखने को हमली जब
ह्रासोन्मुख कृ हष संिृहि दर के कारण हिपहत्तथिरूप पुरुष सदथयों का प्रिसन बेहतर
ऄथगव्यिथथा िाले शहरी क्षेत्रों के ऄनौपचाररक क्षेत्रों में ऄथिा कृ हष समृि राज्यों की ओर
हअ, हजसके पररणामथिरूप कृ हष क्षेत्र में 17 हमहलयन महहलाओं को ‘करठनाइभरा रोजगार’
हमला।
कृ हष क्षेत्रक में महहला कायगबल की संिर्मधत भागीदारी की पररघटना को कृ हष के नारीकरण
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(feminization of agriculture) की संज्ञा दी गयी, जो क्रक थियं गरीबी के नारीकरण
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(feminization of poverty) की ऄहभव्यहि थी। िाथतहिकता यह है क्रक हपतृसत्तात्मक
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मानहसकता के ऄनुरूप कायग करने िाली बाजार ऄथगव्यिथथा में महहलाएं न्यूनतम ऄहधकारों
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के साथ ऄल्प मजदूरी पाती हं, ईनके हलए रोजगार सुरक्षा का ऄभाि होता है, कायगथथल पर
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यौन ईत्पीङन से ग्रहसत होती है। पुनः लंहगक रूप से ऄसंिेदनशील नीहतगत ढांचा महहला
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कृ षकों के क्षमता हनमागण के मुद्दे को प्राथहमकता के अधार पर ईठाने में भी ऄसफल रहा है।
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ईदाहरण के हलए: महहला श्रहमकों के पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी प्राप्त होती है। यहां तक
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क्रक जब महहलाओं को क्रकसानों के रूप में िगीकृ त क्रकया जाता है तब भी भूहम, पशुधन, कृ हष
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होता है। आसके ऄलािा ऊण, प्रौद्योहगकी और बाजार की जानकारी तक ईनकी पहंच
ऄत्यहधक सीहमत होती है। हशक्षा, कौशल हनमागण और बेहतर भुगतान िाले रोजगार में
थथानांतरण के ईनके ऄिसर भी संकीणग होते हं। महहला मजदूर और महहलाओं के नेतृत्ि िाले
पररिारों के मामले में महहलाओं द्वारा ऄनुभि की जाने िाली समथयाएाँ थपष्ट हं। सम्पूणग
ऄथगव्यिथथा में सबसे कम भुगतान प्राप्त करने िाली महहला मजदूर ही हं। ग्रामीण आलाकों में
महहलाओं के नेतत्ृ ि िाले पररिार सबसे कम अय िगग में पाए जाते हं। आसहलए, कृ हष के
नारीकरण का महहलाओं पर मुख्य प्रभाि काम का बचता हअ बोझ और कम अय की प्राहप्त
है।
ऄतः कृ हष क्षेत्र में महहलाओं की भागीदारी िथतुतः घटती हइ पाररिाररक अय या पुरूष अय
के पूरक की अिश्यकता (ऄथागत् ‘संकट रोजगार’) से प्रेररत थी, न क्रक औपचाररक
ऄथगव्यिथथा में ऄथिा घरे लू थतर पर ईनको बराबरी का दजाग देने की आछिा से। आसके
ऄतः महहला श्रमशहि की बचती भागीदारी पररिार एिं समाज में ईनकी हथथहत के ईत्थान
की क्षमता को प्रदर्मशत करता है। जब तक श्रम हिभाजन पर राज्य की हलग-ऄसंिेदनशील
नीहतयों का हिरोध नहीं होगा तब तक महहलाओं को थथायी रुप से थथायी रुप से रोजगार
प्राप्त नहीं होगा।
आसके ऄहतररि सबसे पहले हपतृसत्तात्मकता ि बाजारी शहियों के गठजोङ को तोङना होगा,
हजसके हलए राज्य ि नागररक समाज को एक जीिंत भूहमका हनभानी होगी।
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3. भारत में महहला ऄहधकारों का कानूनी हिथतार हअ है क्रफर भी ऐसा लयों है क्रक महहलाओं के
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हिरुि एक हहसंक व्यिथथा बनाए रखने की सामाहजक प्रिृहत्त हिद्यमान है?
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दृहष्टकोणः
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“ऄहधकार थियं में प्रत्यक्ष ऄथिा संिैधाहनक रूप से सुरहक्षत हो सकते हं, िे थितः ही थियं को
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आस बात पर रटप्पणी कीहजए क्रक कै से आतने सारे कानूनों के बािजूद बलात्कार और यौन
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कोटग) महहलाओं के उपर ऄपने ऄहधकारों पर जोर देते हं। ऄथागत् भारत में बलात्कार और
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ईत्तरः
हपिले कु ि िषों में भारतीय समाज के समक्ष सबसे बङा मुद्दा महहलाओं के हिरुि एक हहसंक
व्यिथथा का हिद्यमान होना है। "महहलाओं के हिरुि हहसा पुरुषों और महहलाओं के बीच
ऐहतहाहसक रूप से ऄसमान शहि संबध
ं ों की एक ऄहभव्यहि है" और "महहलाओं के हखलाफ
हहसा ईन महत्िपूणग सामाहजक तंत्रों में से एक है हजसके द्वारा महहलाओं को पुरुषों की तुलना
में कम महत्ि क्रदया जाता है।” आनमें 'व्यहियों' के साथ-साथ 'राज्य' द्वारा की गयी हहसा भी
शाहमल है। ’
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लागू कानूनों के रूप में देखा जा सकता है, चाहे िह कानून हलग हनधागरण (हजसके
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पररणामथिरूप भू्रण हत्या) का हो या बलात्कार के मामले में कम दोष हसहि दर ऄथिा
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ईच्चतम न्यायालय द्वारा ऄसंिैधाहनक और ऄिैध घोहषत होने के बािजूद भी ग्रामीण क्षेत्रों में
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खाप पंचायतों की बचती दृचता हो या ऄपयागप्त कायागन्ियन िाले संथथागत तंत्र की कमी हो
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ऄथिा महहलाओं के बीच ऄपने ऄहधकारों के बारे में जागरूकता की कमी हो।
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आस त्य के साथ देख सकते हं क्रक भारतीय समाज में महहलाओं के हखलाफ हहसा को कु ि हद
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तक न के िल पुरुषों बहल्क महहलाओं द्वारा भी अिश्यक एिं िांिनीय समझा जाता है। भारत
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में महहलाओं के हखलाफ हहसा से संबंहधत ऄल्प हिथतृत सूचना (मामले को न ईठाये जाने के
कारण) आन बुहनयादों त्यों का पररणाम है।
हपतृसत्तात्मक समाज की आस पृष्ठभूहम के हिरूि राज्य द्वारा कु ि प्रगहतशील कानूनों को
पाररत क्रकया गया, परन्तु शुरूअत में ही राजनीहतक आछिाशहि की कमी के कारण आन्हें
प्रभािी रूप से लागू करने की क्षमता का ऄभाि रहा है। दूसरा, “कानून ईस क्रदशा का
हनधागरण करता है हजस क्रदशा में समाज को जाना चाहहए परन्तु िाथति में समाज क्रकस क्रदशा
में जाएगा आसका हनधागरण संथकृ हत और पररिार करता है।” आसहलए महहलाओं के हिरुि
हहसा के खतरे से हनपटने में हिफलता के हलए हशक्षा प्रणाली, पाररिाररक मूल्यों और अदशों
जैसी संथथाएं ईत्तरदायी हं।.
आस जाल से बाहर हनकलने का एक मात्र तरीका समाज को सांथकृ हतक जङता से बाहर लाना
है हजसने महहलाओं के हिरुि हहसक व्यिथथा से लङने के हलए संभाहित प्रगहतशील कानूनों
के सभी चरणों ऄथागत् हनमागण, कायागन्ियन, मूल्यांकन पर प्रहतकू ल प्रभाि डाला है।
4. भारत में ऄत्याहधक हशशु मृत्यु दर के हलए हजम्मेदार प्रमुख कारण कौन-से हं? भारतीय
महहलाओं पर आनके पङने िाले प्रभािों की चचाग कीहजए। आस समथया के हनदान के हलए
सरकार द्वारा ईठाये गये कदमों की चचाग कीहजए।
दृहष्टकोण:
ईत्तर को तीन भागों में हिभाहजत क्रकया जा सकता है:
सिगप्रथम, ईन सामाहजक-अर्मथक और सांथकृ हतक कारणों की चचाग करें , हजनसे समथत
भारत में हशशु मृत्यु दर ईच्च बनी हइ है।
महहलाओं पर आस संिृहत के पङने िाले प्रभाि की चचाग कु ि साकार हबन्दुओं के साथ
करें ।
हशशु मृत्यु दर घटाने हेतु सरकार द्वारा ईठाये गये कदमों का ईल्लेख करें ।
ईत्तर:
हशशु मृत्यु दर (IMR), क्रकसी एक क्रदए गए िषग में प्रहत एक हजार जीहित जन्म के सापेक्ष िैसे
हशशुओं की संख्या है जो जन्म लेने के पश्चात ऄपने जीिन का प्रथम िषग पूरा करने से पूिग ही
मर जाते हं। भारत की िषग 2011 की जनगणना की एक ररपोटग के ऄनुसार, भारत में यह
(IMR) संख्या 40 है। आस बात की बहत कम संभािना है क्रक भारत सहस्त्राधदी हिकास लक्ष्यों
के ऄंतगगत हनधागररत लक्ष्य को प्राप्त कर सके गा। ऄब तक क्रकये गये ऄनुसंधान ऄध्ययनों से ज्ञात
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होता है क्रक हचहिसकीय-नैदाहनक कारणों के ऄहतररि, ईच्च हशशु मृत्यु दर के हलए l.c
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अर्मथक कारण – गभागिथथा के दौरान एिं हशशु जन्म के पश्चात् हजन सुहिधाओं का
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ईपभोग क्रकया जा सकता है, ईन्हें प्राप्त करने हेतु पाररिाररक अय एक हनधागरण कारक
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है। थिाथ्य सेिाएं, प्रसिपूिग देखभाल, अहार, प्रहतरक्षा और गभागिथथा के दौरान बरते
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जाने िाली सािधाहनयों के संबंध में जानकारी की ईपलधधता, प्रत्यक्ष रूप से पररिार की
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अर्मथक हथथहत पर हनभगर करती है। ऄहत हनधगनता और बेरोजगारी से हजन सुहिधाओं का
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माहिारी से जुङी सफाइ। हशशु मृत्यु की ईच्च दर में आन सब का प्रत्यक्ष योगदान होता है।
सामाहजक और सांथकृ हतक कारण: लडक्रकयों का कम अयु में हििाह कर क्रदया जाता है,
और ईसके पश्चात ईन पर जल्दी गभगधारण करने के हलए दबाि बनाया जाता है। यक्रद
गभगथथ हशशु लङकी हो तो ईससे िु टकारा पाने हेतु भूणग हत्या ऄब भी एक सामान्य प्रथा
है। गभगथथ हशशु के थिथथ हिकास से प्रसि में करठनाइ होती है, आस ऄन्धहिश्वास के
कारण गभगिती महहलाओं को ढंग से भोजन भी नहीं क्रदया जाता है। गभगिती महहलाओं
की प्रहतरक्षा से बचा जाता है और हशशु का टीकाकरण भी नहीं कराया जाता है।
लडक्रकयों पर हशक्षा और ऄन्य सामाहजक भूहमकाओं में लगे प्रहतबंधों के कारण, सामान्य
थिाथ्य परम्पराओं के बारे जगृहत न होते से भी हशशु मृत्यु दर में िृहि होती है।
थिाथ्य: ईच्च हशशु मृत्यु दर के कारण महहलाएं मानहसक और शारीररक कष्टों से ग्रथत
रहती हं। निजात हशशु की मृत्यु का अघात महहला के मानहसक थिाथ्य को प्रभाहित
राष्ट्रीय ग्रामीण थिाथ्य हमशन (NHRM) के ऄंतगगत सरकार द्वारा हशशु मृत्यु-दर को कम
करने के हलए, हनम्नहलहखत कायगिम / योजनायें और जागरूकता ऄहभयान चलाये गए हं:
जननी हशशु सुरक्षा कायगिम (JSSK) अरम्भ क्रकया गया है। यह सभी गभगिती
महहलाओं को जन-थिाथ्य संथथानों में पूणगतय हनःशुल्क प्रसि कराने का ऄहधकार प्रदान
करता है, हजसके हलए क्रकसी भी प्रकार का शुल्क (हजसमें हसजेररयन प्रसि भी सम्महलत
है) नहीं हलया जायेगा। आस पहल में, हनशुल्क औषहध, हनदान, रि और अहार के
ऄहतररि घर से लेकर संथथान तक पररिहन सुहिधा एिं यक्रद क्रकसी ऄन्य थथान पर
भेजा जा रहा है, तो िहां जाने और घर िाहपस अने हेतु पररिहन सुहिधा भी ईपलधध
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होती है। आसी प्रकार का ऄहधकार जन-थिाथ्य संथथानों के हचक्रकत्सा की अिश्यकता
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िाले सभी रुग्ण हशशुओं हेतु भी है।
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की अिश्यक देखभाल और मृतप्राय निजात हशशु को पुनः होश में लाने के हलए
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मातृत्ि और बाल थिाथ्य सेिा को लोगों तक पहाँचाने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण
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(दोषों) की जांच की जाती है–जन्म के समय दोष, ऄभिा या कहमयां, हिलंहबत हिकास
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और ईनका प्रबन्धन।
निजात हशशुओ को दूध हपलाने के ढंग में सुधार करना, हजसमें बच्चों को थतनपान कराने
हेतु प्रोत्साहन देना भी सम्महलत है।
मैककसे की 2015 की ररपोटग में यह अकहलत क्रकया गया है क्रक भारत यक्रद लंहगक समता के
क्षेत्र में तीव्रतम संिृहि िाले देशों की गहत से साम्य रखे तो 2025 तक आसके जी.डी.पी. में
ऄहतररि 700 हबहलयन डॉलर जुङ सकती है। आस िृहि का ऄहधकांश भाग कायग बल में
महहलाओं की भागीदारी 10% तक बचाकर प्राप्त क्रकया जा सकता है। आसके हलए सामाहजक
एिं अर्मथक दोनों प्रकार के ऄंतरों को समाप्त करना होगा।
हनम्नहलहखत तरीकों से बाहलकाओं के भहिष्य में हनिेश सामाहजक ऄहभिृहत में पररितगन ला
सकते हं-
He4She ऄहभयान जैसे महहला सशहिकरण कायगिमों में पुरुषों की ऄहधक भागीदारी।
नुक्कङ नाटक जैसी मौहलक/सृजनात्मक गहतिहधयां
हस्त्रयों से जुङे ऄपराधों के दोहषयों की सािगजहनक भत्सगना
हस्त्रयों को ईनके ऄहधकारों के प्रहत जागरूक बनाना एिं नीहत हनमागण में ईन्हें संलग्न
करना।
सरकार की भूहमका
सरकारी कल्याणकारी योजनाएाँ समाज की ऄहभिृहत्त में पररितगन लाती है एिं बाहलकाओं के
om
पक्ष में सकारात्मक िातािरण के हनमागण द्वारा लंहगक भेदभाि जैसी समथया को भी संबोहधत
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करती है। आन योजनाओं की भूहमका हनम्नहलहखत है-
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सभी राजनीहतक, सामाहजक, सांथकृ हतक एिं नागररक क्षेत्रों में पुरूषों के समान थतर पर
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बाहलकाओं के पूणग हिकास हेतु सकारात्मक अर्मथक एिं सामाहजक नीहतयों के माध्यम से
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एक िातािरण का हनमागण ताक्रक ईन्हें ऄपनी पूणग क्षमताओं को समझने योग्य बनाया जा
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सके ।
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सामाहजक, राजनीहतक एिं अर्मथक क्षेत्रों में हनणगय हनमागण में समता
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थिाथ्य क्षेत्र में समान पहाँच, सभी थतरों पर गुणितापूणग हशक्षा, अजीहिका एिं
व्यािसाहयक मागगदशगन, रोजगार, समान िेतन, व्यािसाहयक थिाथ्य एिं सुरक्षा,
सामाहजक सुरक्षा एिं सािगजहनक जीिन आत्याक्रद।
ईदाहरण
बेटी बचाओं, बेटी पचाओं योजना का अरं भ बाहलका सशहिकरण एिं ईसकी हशक्षा
तथा कन्याओं के जन्म को लेकर व्याप्त सामाहजक ऄहभिृहत में सकारात्मक पररितगन लाने
के ईदेश्य को लेकर हअ था।
सुकन्या समृहि योजना लोगों को बाहलकाओं के हलए बचत हेतु प्रोत्साहहत करती है एिं
बाल हििाह को हतोत्साहहत करती है।
लाडली योजना (क्रदल्ली ि हररयाणा सरकार द्वारा क्रियाहन्ित) का लक्ष्य कन्या भू्रण
हत्या में कमी लाना एिं हशक्षा में सहयोग एिं भेदभाि से ईनका संरक्षण कर ईनकी
सामाहजक हथथहत में सुधार लाना है।
बचोत्तरी की है, ककतु यह ऄहनिायगत: ईनके सशहिकरण के रूप में फलीभूत नहीं हअ है। लया
अप सहमत हं? क्रकन अधारों पर महहलाओं के हलए संसद में अरक्षण का हिरोध क्रकया जाता
है?
दृहष्टकोण:
प्रश्न का पहला भाग आस बात की हिश्लेषण करने की मांग करता है क्रक लया महहलाओं को
राजनीहतक ऄहधकार प्रदान करने से ईनके िाथतहिक सशहिकरण में कोइ प्रगहत हइ है।
प्रश्न का दूसरा भाग ईन हिहभन्न कारणों या दृहष्टकोणों को सूचीबि करने की मांग करता है
जो संसद में महहलाओं के हलए अरक्षण की प्रत्याभूहत (गारं टी) देने िाले हिधेयक का हिरोध
कर रहे हं।
ईत्तर :
भारत में महहलाएं कु ल अबादी के लगभग 50% का प्रहतहनहधत्ि करती है क्रफर भी, ऄभी
तक संसद में ईनका प्रहतहनहधत्ि मात्र 12% है। यद्यहप भारत ने सािगभौहमक ियथक
मताहधकार का मागग ऄपनाया है, लेक्रकन 5 दशकों के बाद भी अंकङे बताते हं क्रक भारत में
महहलाओं के हलए राजनीहतक समानता ईनके सामाहजक और अर्मथक समानता में रूपांतररत
om
नहीं हइ है।
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ईपहथथहत प्रतीकात्मक है, आसका बार-बार ईद्धृत क्रकया जाने िाले ईदाहरण यह है क्रक
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ज्यादातर महहला सरपंच, सरपंच पहत या बेटे के कारण जानी जाती हं।
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पुरुषों के 80% की तुलना में महहला श्रम भागीदारी मात्र 29% है।
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महहला थिाहमत्ि ऄभी भी 4% है, जबक्रक 73% खाद्य ईत्पादन ग्रामीण महहलाओं द्वारा
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सकता है क्रक समाज में महहलाओं की हथथहत पर अरक्षण का सकारात्मक प्रभाि नहीं पङा है।
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पक्ष में:
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एम.पी., के रल, ित्तीसगच, राजथथान जैसे राज्यों में थथानीय नगर हनकायों और
पंचायती राज संथथाओं में महहलाओं के हलए अरक्षण का हिथतार क्रकया गया और आसका
शासन पर सकारात्मक प्रभाि दृहष्टगोचर होता है। महहलाओं द्वारा आन संथथाओं का
नेतृत्ि या ऄध्यक्षता की जा रही है।
आसने घूाँघट हटाने, पुरुषों हजतनी उंची कु सी पर बैठने जैसी, सामाहजक िजगनाओं और
बाध्यताओं पर हिजय पाने में ऄसीम योगदान क्रदया है।
हालांक्रक यह प्रतीकात्मक समानता से अरं भ हइ है, हजसने तीक्ष्ण हनराशा और यहां तक
क्रक टकराि भी पैदा क्रकया है, लेक्रकन महहलाएं (हिशेष रूप से दहलत) सीमाओं से अगे
हनकलने और सभी क्षेत्रों में हनणगयन के थतर पर थथान बनाने में सफल रही हं।
आस सब से समुदाय के सांथकृ हतक मूल्यों में िहमक पररितगन का मागग प्रशथत हो सकता
है। यह धीरे - धीरे न के िल सामाहजक-अर्मथक क्षेत्र में समानता का मागग प्रशथत करे गा
बहल्क हनणगय लेने की क्षमता के ऄनुरूप राजनीहतक समानता को बचािा देगा।
7. हपिले कु ि िषों में, घरे लू कामगारों हजसमें क्रक ज्यादातर महहला कामगार हं, से संबहं धत
ऐसे ऄसंख्य मामले सामने अए हं, जहां ईनके हनयोलताओं ने ईनके साथ दुव्यगिहार क्रकया या
om
ईनका शोषण क्रकया। िे कारक कौन-से हं जो घरे लू कामगारों को दुव्यगिहार और शोषण के l.c
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प्रहत सुभद्य
े बना देते हं? घरे लू कामगार कल्याण और सामाहजक सुरक्षा ऄहधहनयम, 2010 में
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ईनके शोषण को रोकने के हलए क्रकए गए प्रािधानों का हिथतृत हििरण प्रदान कीहजए।
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दृहष्टकोण:
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घरे लू कामगार कल्याण और सामाहजक सुरक्षा ऄहधहनयम 2010 में क्रदए गए प्रािधानों का
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िणगन कीहजए।
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ईत्तर:
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प्रत्येक िषग घरे लू कामगारों के शोषण एिं ईनसे दुव्यगिहार की हजारों हशकायतें प्राप्त होती हं
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हजनमें से ऄहधकतर मजदूरी का भुगतान न क्रकए जाने, भोजन और शयन से िंहचत रखे जाने,
शाहधदक, शारीररक और यौन दुव्यगिहार के साथ-साथ कायग करने की लम्बी ऄिहधयों से
संबंहधत होती हं। दजग क्रकए जाने िाले मामले, 80% महहलाओं को सहम्महलत करने िाली
श्रहमक संख्या के साथ घरटत होने िाली िाथतहिक दुव्यगिहार की घटनाओं का बहत कम
प्रहतशत होते हं।
आस हथथहत के हलए कइ कारक हजम्मेदार हं:
हिहशष्ट कानून के माध्यम से हिहधक संरक्षण का ऄभाि।
भुगतान अधाररत घरे लू काम (पेङ डोमेहथटक िकग ) को न्यूनतम मजदूरी ऄहधहनयम,
1948 के ऄंतगगत के न्द्र की ऄनुसहू चत रोजगार की सूची से ऄभी भी पृथक रखा गया है।
आसे पाररश्रहमक भुगतान ऄहधहनयम (1936), कमगकार प्रहतकर ऄहधहनयम (1923),
ठे का श्रम ऄहधहनयम (1970) या मातृत्ि लाभ ऄहधहनयम (1961) के ऄंतगगत भी
अछिाक्रदत नहीं क्रकया गया है।
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यह घरे लू कामगारों को संगरठत क्षेत्र की सीमा के ऄंतगगत लाता है।
आस ऄहधहनयम को कायागहन्ित करने और आसकी समीक्षा करने के हलए कें द्रीय सलाहकार l.c
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सहमहत, राज्यों में लागू करने के हलए राज्य सलाहकार बोडग एिं हजला थतर पर हजला
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पूणक
ग ाहलक घरे लू कामगारों के ऄहधेकारों एिं ईनके पंजीकरण एिं पहचान की प्रक्रिया
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आसमें ऄंशकाहलक घरे लू सहायकों एिं प्रिासी घरे लू कामगारों के पंजीकरण के प्रािधान
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भी सहम्महलत हं।
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8. लंहगक न्याय (जेंडर जहथटस) की प्रक्रिया प्राय: महहलाओं से संबहं धत मुद्दों पर धार्ममक
संिद
े नशीलता के कारण बाहधत होती है। आस संदभग में, चचाग कीहजए क्रक हिहभन्न समुदायों की
धार्ममक संिद
े नशीलता को ध्यान में रखते हए भी लंहगक न्याय क्रकस प्रकार सुहनहश्चत क्रकया
जा सकता है?
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व्याख्या के द्वारा प्रगहतशील हिधेयकों को बाहधत क्रकया जाता है और समाज के हिहभन्न l.c
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समुदायों के बीच मनमुटाि ईत्पन्न क्रकया जाता है। हजसके पररणामथिरूप ऄल्पसंख्यक
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समुदाय के लोग आस प्रकार के सुधारों को ऄपनी पहचान के हलए संकट मान लेते हं। िे यह
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मानने लगते हं क्रक समान नागररक संहहता जैसे ईपाय बहसंख्यकिाद और बहसंख्यकों से
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को खोखला करती हं, ईनका ऄहभप्राय ही लंहगक ऄन्याय है। आस प्रकार की प्रथाएं समय के
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ऄनुरूप नहीं हं और ईनसे लंहगक पक्षपात प्रदर्मशत होता है। ईनका कहना है क्रक धमग की
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व्याख्या करने िाले ऄहधकांश लोग पुरुष ही होते हं, जो आस प्रकार की प्रथाओं को यथाित
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9. कु ि लोगों द्वारा देखा गया है क्रक एक सुथपष्ट "महहला िोट बंक" के ईद्भि ने राजनीहतक दलों
और नेताओं को महहलाओं से संबहं धत मुद्दों पर गंभीरतापूिक ग ध्यान देने हेतु प्रिृत्त क्रकया है।
हाल के क्रदनों में भारत में चुनािी लामबंदी के संदभग में अलोचनात्मक समीक्षा कीहजए।
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दृहष्टकोण:
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आस तकग को हाल ही के ईदाहरणों का संदभग प्रदान कीहजए।
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ईत्तर:
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हाल के क्रदनों में राजनीहतक दलों के चुनािी एजेंडों में महहलाओं को प्रभाहित करने िाले मुद्दों
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को क्रदए गए महत्ि के हलए 'महहला िोट बंक' के ईद्भि को हजम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
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ईदाहरण के हलए, हबहार में हाल ही के हिधानसभा चुनािों में हनषेध का मुद्दा महहला
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मतदाताओं को व्यापक रूप से प्रभाहित करने िाला हिषय माना/समझा गया था।
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आसी प्रकार, गोिा में हाल के हिधानसभा चुनािों में के हसनो पर प्रहतबंध के मुद्दे की
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10. महहलाओं की थटीररयोटाआप सनसनीखेज िहियों का हनरूपण न के िल ईनकी पहचान को
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एक तुछि चाह िाली िथतु तक सीहमत करता है बहल्क समाज की हपतृसत्तात्मक संरचना को
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दृहष्टकोण:
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महहलाओं को ितगमान में क्रकस प्रकार हचहत्रत क्रकया जाता है यह बताते हए ईत्तर का अरम्भ
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कीहजए।
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ईदाहरणों सहहत ऐसे हिहभन्न क्षेत्रकों की िाथतहिक िहि प्रथतुत कीहजए जो महहलाओं को
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चचाग कीहजए क्रक यह क्रकस प्रकार हपतृसत्ता को और ऄहधक सशि करता है।
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ईत्तर:
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कहा गया है क्रक हिकास के हलए महहलाओं के सशहिकरण से ऄहधक प्रभािी कोइ ईपकरण
नहीं है। लेक्रकन कइ बार यह सशहिकरण ईस समय लुप्त हो जाता है जब महहलाओं को
हिहभन्न फोरम में या तो ईपभोग की िथतु या ईनकी सामान्य रूप से प्रचहलत रूक्रचिादी
भूहमकाओं के रूप में हचहत्रत क्रकया जाता है।
साहहत्य और मीहडया ऐसी दो धाराएं हं जो महहलाओं को हभन्न प्रकार से तथाहप समान
दृहष्टकोण से हचहत्रत करती हं। यद्यहप साहहत्य और मीहडया में महहलाओं की पहचान एक
दूसरे के समान है लेक्रकन दोनों ऄपने तरीके से महहलाओं की हथथहत को पुन:पररभाहषत करने
का दािा करते हं।
साहहत्य महहलाओं की ऄहथमता का समग्र प्रहतहनहधत्ि करने का हिश्िास क्रदलाता है और ईन्हें
पुरुषों की तुलना में अदशग हथथहत प्रदान करता है। एक ओर हमारे पुरातन साहहत्य में
महहलाओं के दैिीय थिरूप को हचहत्रत क्रकया गया है, दूसरी ओर हररिंशराय बच्चन और हमघाग
गाहलब जैसे कहि महहलाओं से संबि रूमानी मनोभािों को ऄहभव्यलत करते हं। हालांक्रक,
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प्रगहतशील महहलाएं हिषय पर प्रचार ऄहभयान हजसके ऄंतगगत अत्महनभगर महहलाओं को l.c
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ईनके भािनात्मक पक्ष के साथ दशागया जाता है, हहजाब-बाआकर नाम से लोकहप्रय क्रदल्ली की
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रौशनी हमथबा आसका ईदाहरण हं। ये सभी महहलाओं हेतु बेहतर भहिष्य के हलए अशा की
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1. “महहला संगठनों को हलग-भेद से मुि करने के हलए पुरुषों की सदथयता को बचािा हमलना
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भारतीय समाज ai
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3.4.3. भारत की एकता के समक्ष खतरा ईत्पन्न करने िाले कारक _________________________________________ 14
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4. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न___________________________________________ 16
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5. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 31
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1. पररचय
(Introduction)
भारतीय समाज बहु-सांस्कृ वतक, बहु-नृजातीय और बहु-िैचाररक संरचनाओं के सह-ऄवस्तत्ि का
प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह एक विवशष्ट ईदाहरण है वजसमें ये संरचनाएँ पारस्पररक सौहार्द्त स्थावपत
करने का प्रयास करते हुए भी ऄपनी िैयविकता को बनाये रखती हैं।
िसुधैि कु टु म्बकम (सम्पूणत विश्व एक पररिार है) की ईदार ऄिधारणा भारतीय समाज की एक
महान सांस्कृ वतक विरासत है। आसके ईत्तरोतर विकास के दौरान, आसने समय-समय पर विवभन्न
समुदायों और ईनकी जीिन शैवलयों को समायोवजत और एकीकृ त ककया है।
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वपतृसत्तात्मक समाज- भारतीय समाज मुख्य रूप से एक वपतृसत्तात्मक समाज है, वजसमें पुरुषों को
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मवहलाओं की तुलना में ईच्च प्रवस्थवत प्राप्त है। हालांकक, कु छ जनजातीय समाज मातृसत्तात्मक
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समाज हैं, वजनमें वनणतय वनमातण में मवहलाओं की भूवमका मुख्य होती है।
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विविधता में एकता- यह भारतीय समाज की एक मूल विशेषता है। भारत में विविधता विवभन्न
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स्तरों पर, विवभन्न रूपों में विद्यमान है। हालांकक, आस विविधता के होते हुए भी सामावजक
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परं परािाद और अधुवनकता का सह-ऄवस्तत्ि- परं परािाद का अशय मूलभूत मूल्यों को बनाये
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रखना ऄथिा ईनका संरक्षण करना है। जबकक अधुवनकता का अशय परं परा पर प्रश्नवचह्न
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लगाना और तकत संगत सोच, सामावजक, िैज्ञावनक एिं तकनीकी प्रगवत की ओर ऄग्रसररत होना है।
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तकनीकी प्रगवत और वशक्षा के प्रसार के कारण भारतीयों के मध्य अधुवनक सोच का विस्तार हुअ
है। हालांकक पाररिाररक जीिन ऄभी भी पारं पररक मूल्यों और विश्वास प्रणाली से बंधा हुअ है।
ऄध्यात्मिाद और भौवतकिाद के मध्य संतल ु न- ऄध्यात्मिाद मुख्यत: ककसी व्यवि के इश्वर से
संबंवधत ऄनुभि पर कें कर्द्त होता है। जबकक भौवतकिाद भौवतक पररसंपवत्त और शारीररक सुख को
अध्यावत्मक मूल्यों से ऄवधक महत्िपूणत मानने की एक प्रिृवत्त है। हालांकक, पविमीकरण में िृवि के
कारण भौवतकिादी प्रिृवत्तयों को भी ऄत्यवधक प्रोत्साहन वमला है।
व्यवििाद और समूहिाद के मध्य संतल
ु न- व्यवििाद एक नैवतक, राजनीवतक या सामावजक
दृवष्टकोण है जो मानिीय स्ितंत्रता, अत्मवनभतरता और स्ितंत्रता पर बल देता है। जबकक
समूहिाद, ककसी समूह के प्रत्येक सदस्य पर समूह को प्राथवमकता प्रदान करता है। भारतीय समाज
में आनके मध्य एक ईवचत संतल ु न विद्यमान है।
रि और नातेदारी संबध ं - रि संबंध और नातेदारी संबंध ऄन्य सामावजक संबंधों की तुलना में
ऄवधक सुदढ़ृ होते हैं। िे जीिन के राजनीवतक और अर्मथक पहलुओं को वनयंवत्रत करते हैं।
जावत को एक ऐसे िंशानुगत ऄंतर्मििाही (endogamous) समूह के रूप में पररभावषत ककया जा
सकता है जो एक सजातीय समुदाय का वनमातण करता है। आसका एक सामान्य नाम होता है; एक
समान पारं पररक व्यिसाय होता है; एक समान संस्कृ वत होती है; यह गवतशीलता के संबंध में
ऄपेक्षाकृ त कठोर होती है; और आसकी एक विवशष्ट प्रवस्थवत होती है।
भारत में जावत व्यिस्था का मुख्य रूप से हहदू धमत से संबि है और यह हजारों िषों से हहदू समाज
को संचावलत कर रही है। भारत में जावत व्यिस्था की विशेषताओं में वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
o समाज का खंडीय विभाजन: आसका ऄथत है कक सामावजक स्तरीकरण मुख्य रूप से जावत पर
अधाररत होता है। भारतीय समाज में ककसी व्यवि को एक जावत समूह की सदस्यता जन्म से
प्राप्त होती है तथा आसके अधार पर ईसे ऄन्य जावत समूहों के सापेक्ष स्थान प्रदान ककया जाता
है।
o पदानुक्रम: यह आं वगत करता है कक विवभन्न जावतयां, ईनके व्यिसाय की पवित्रता और
ऄपवित्रता के अधार पर िगीकृ त की जाती हैं। आन जावतयों को एक सीढ़ी के समान संरचना
में ईच्च से वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है। पवित्र मानी जाने िाली जावत को ईच्च स्थान और
ऄपवित्र मानी जाने िाली जावत को वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है।
नागररक और धार्ममक ऄक्षमता: आसके ऄंतगतत संपकत , पोशाक, भाषा, रीवत-ररिाजों आत्याकद
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पर अधाररत प्रवतबंध सवम्मवलत होते हैं तथा ये प्रवतबंध प्रत्येक जावत समूह पर अरोवपत
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होते हैं। ये प्रवतबंध विवशष्ट जावत समूहों की पवित्रता बनाए रखने के ईद्देश्य से अरोवपत ककए
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गए थे। ईदाहरणस्िरूप वनम्न जातीय िगों को कु ओं तक पहुंच प्रदान न करना, ईनके मंकदरों
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o सजातीय वििाह (Endogamy): ककसी विशेष जावत के सदस्यों को के िल ऄपनी जावत में ही
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वििाह करने की ऄनुमवत होती है। ऄंतरजातीय वििाह वनवषि हैं। हालाँकक, शहरी क्षेत्रों में
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ऄस्पृश्यता: यह ककसी समूह को सामावजक प्रथाओं द्वारा मुख्य धारा से पृथक करके बवहष्कृ त
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करने की प्रथा है। ऄस्पृश्यता जावत व्यिस्था का एक स्िाभाविक पररणाम था तथा आसके
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तहत ऄस्पृश्यों (जो वनम्नतम जावत समूहों से संबंवधत थे) को ऄपवित्र और मवलन माना जाता
था।
o हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनऄ
ु ल स्कै िेंहजग): हाथ से मैला ढोने की प्रथा, ऄंततः एक जावत
अधाररत पेशा बन गया। आसके ऄंतगतत बाल्टीयुि शौचालयों (Bucket Toilets) या गड्ढे
िाले शौचालयों ( Pit Latrines) में से ऄनुपचाररत मानि मल की सफाइ करना सवम्मवलत
है। आसे हाथ से मैला ढोने िाले कर्ममयों के वनयोजन का प्रवतषेध एिं ईनका पुनिातस
ऄवधवनयम, 2013 द्वारा अवधकाररक रूप से समाप्त कर कदया गया है।
o भारत में जावत अधाररत हहसा: जावत अधाररत हहसा की बढ़ती प्रिृवत्त ऄंतरजातीय वििाह
की घटनाओं तथा दवलतों के भूवम ऄवधकारों, ईनकी ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता, वशक्षा ि न्याय
तक पहुंच सवहत मूलभूत ऄवधकारों के दािों से संबंवधत है। ईदाहरण के वलए, गुजरात के
उना में भू-स्िावमत्ि की मांग के वलए एक अंदोलन में भाग लेने पर दवलतों के एक समूह पर
हमला ककया गया।
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3.1.1. जावत व्यिस्था में पररितत न
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(Changes in the Caste system)
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ऄंतरजातीय वििाह की प्रिृवत्तयां: रि की पवित्रता जावत व्यिस्था के मुख्य ईद्देश्यों में से एक थी।
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यही कारण था कक ऄंतरजातीय वििाह सामावजक रूप से वनवषि था। िततमान में अर्मथक और
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सामावजक अिश्यकताओं के कारण ऄंतरजातीय वििाह की प्रिृवत में िृवि हुइ है।
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जैसे बाल वििाह, विधिा पुनर्मििाह पर प्रवतबंध, धमत-पररिततन पर प्रवतबंध, वनम्न जावत के लोगों
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खान-पान की अदतों में पररिततन: बैठकों, सम्मेलनों, संगोवियों अकद में लोगों के वनरं तर मेल-
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वमलाप के कारण, खान-पान की अदतों में पररिततन हुअ है। आसके ऄवतररि, लोगों ने एक ही मेज
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पर खाने, वनम्न जावत के लोगों द्वारा वनर्ममत भोजन को वबना ककसी दुराग्रह के स्िीकार ककए जाने
जैसे नए सामावजक मानदंडों को ऄपनाया है।
व्यिसाय में पररिततन: व्यािसावयक गवतशीलता समाज की एक नइ विशेषता बन गइ है।
ईदाहरणस्िरूप, ऄपनी पारं पररक भूवमकाओं को पीछे छोड़कर ब्राह्मण व्यापारी बन गए हैं जबकक
िैश्य वशक्षण कायों में संलग्न हो गए हैं, अकद।
वनम्न जावतयों की वस्थवत में सुधार: सरकार द्वारा प्रारं भ ककए गए प्रयासों के कारण वनम्न जावतयों
की वस्थवत में अर्मथक के साथ-साथ सामावजक रूप से भी सुधार हुअ है।
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विकास की सुविधा प्रदान करना है। ईदाहरण के वलए, ऄस्पृश्यता (ऄपराध) ऄवधवनयम, 1955,
ऄस्पृश्यता की प्रथा के विरुि दंड का प्रािधान करता है। l.c
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(Religious Pluralism):
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भारत एक धमतवनरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ विश्व के विवभन्न धमों को अश्रय प्राप्त है। ये धमत विवभन्न सम्प्रदायों
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एिं पंथों में ईप-विभावजत हैं। धार्ममक विश्वासों एिं प्रथाओं की विविधता भारतीय धमों की विशेषता
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है। भारतीय ईपमहाद्वीप, विश्व के चार प्रमुख धमों ऄथातत् वहन्दू, बौि, जैन एिं वसख धमत का
ईद्गमस्थल है।
आसके ऄवतररि, वहन्दू धमत में विवभन्न सम्प्रदाय जैसे िैष्णििाद, शैििाद अकद भी विद्यमान हैं। आस्लाम
भी वशया एिं सुन्नी जैसे कइ सम्प्रदायों में बँटा हुअ है। जनजातीय समूहों द्वारा जीििादी (Animistic)
एिं प्रकृ वतिादी (Naturistic) धमों का भी पालन ककया जाता है। आस प्रकार भारत में धार्ममक बहुलता
विद्यमान है तथा प्रत्येक धमत के ऄपने पृथक-पृथक सम्प्रदाय तथा त्यौहार एिं परम्पराएं हैं।
नातेदारी व्यिस्था से तात्पयत व्यवियों के ईस समूह से है वजन्हें रि संबंधों ऄथिा वििाह संबंधों के
अधार पर ररश्तेदारों के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। ‘वडक्शनरी ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी’ के ऄनुसार,
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बवहर्मििाह को प्राथवमकता दी जाती है। आस प्रकार वििाह सम्बन्धी वनषेध, नातेदारी और स्थान
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के संदभत में एक विस्तृत दायरे में वििाह पर प्रवतबंध लगाते हैं।
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दवक्षणी भारत: दवक्षणी क्षेत्र नातेदारी व्यिस्था तथा पररिार संस्था के एक ऄत्यंत जरटल प्रवतरूप
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को प्रस्तुत करता है। यद्यवप यहाँ वपतृिंशीय एिं वपतृस्थावनक (Patrilocal) परम्परा का प्रभुत्ि है
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व्यिस्थाएँ भी विद्यमान हैं। दवक्षण भारत में वििाह के वनयम भी वभन्न-वभन्न होते हैं।
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वििाह एक महत्िपूणत सामावजक संस्था है। यह सामावजक रूप से ऄनुमोकदत तथा रीवत-ररिाजों और
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विवध द्वारा स्िीकृ त एक संबंध है। आसके साथ ही यह सांस्कृ वतक प्रकक्रयाओं का एक समूह भी है जो
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पररिार की वनरं तरता को सुवनवित करता है। यह भारत में लगभग एक साितभौवमक सामावजक संस्था
है।
वििाह व्यिस्था में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
वििाह प्रणाली में, विशेषत: स्ितंत्रता के पिात्, ऄनेक महत्िपूणत पररिततन हुए हैं। हालांकक वििाह से
संबंवधत मूलभूत धार्ममक विश्वास कमज़ोर नहीं हुए हैं परन्तु ऄनेक प्रथाएँ, रीवत-ररिाज तथा तरीके
पररिर्मतत हो गए हैं। वििाह व्यिस्था में हुए हावलया पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
वििाह के ईद्देश्य एिं लक्ष्य में पररिततन: परं परागत समाजों में, विशेष रूप से वहन्दुओं में, वििाह
का प्राथवमक ईद्देश्य ‘धमत’ या कततव्य होता है। परन्तु िततमान समय में वििाह का ईद्देश्य धमत की
तुलना में पवत और पत्नी के मध्य ‘अजीिन साहचयत’ से ऄवधक संबवं धत हो गया है।
वििाह के स्िरूप में पररिततन: भारत में वििाहों के परं परागत रूप जैसे कक बहुवििाह, बहुपत्नी
वििाह अकद विवधक रूप से प्रवतबंवधत कर कदए गए हैं। िततमान में एकपत्नी वििाह ही ऄवधक
प्रचवलत है।
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पररिार, समाज की मूल आकाइ है। यह प्रथम और सबसे वनकटतम सामावजक पररिेश होता है,
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वजसमें एक बच्चा ऄपना जीिन प्रारम्भ करता है। ऄपनी बाल्यािस्था में, एक बच्चा पररिार में ही
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पररिार एक ऐसा समूह है जो ककसी न ककसी रूप में साितभौवमक रूप से पाया जाता है। यह
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जनजातीय, ग्रामीण और नगरीय समुदायों तथा सभी धार्ममक एिं सांस्कृ वतक ऄनुयावययों के मध्य
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विद्यमान होता है। साथ ही यह ककसी न ककसी रूप में ऄत्यंत स्थायी संबंध ईपलधध कराता है।
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पररिार की विशेषताएं
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पररिार, पवत और पत्नी (जो संतानोत्पवत्त करते हैं) के ऄपेक्षाकृ त स्थायी साहचयत द्वारा वनर्ममत
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होता है।
एक पररिार पवत-पत्नी या के िल वपता और ईसके बच्चों ऄथिा के िल माता और ईसके बच्चों तक
सीवमत हो सकता है।
सामान्य रूप से पररिार ऄन्य सामावजक समूहों, संगठनों तथा संस्थाओं से अकार में छोटा होता
है।
पररिार अकार में बड़ा भी हो सकता है वजसमें कइ पीकढ़यों से संबंवधत व्यवि एक साथ रह सकते
हैं।
पररिारों के प्रकार
1. वििाह के अधार पर :
बहुवििाही (Polygamous) पररिारों को ऐसे पररिारों के रूप में िर्मणत ककया जा सकता है
वजसमें पवत या पत्नी को एक साथ एक से ऄवधक पवत या पत्नी रखने की ऄनुमवत होती है।
एक पत्नीक (Monogamous) पररिार िे पररिार होते हैं जहाँ वििाह के िल एक जीिनसाथी
तक ही सीवमत होता है।
वपतृस्थान (Patrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़की वििाह के पिात् ऄपने पवत के पररिार
के साथ रहती है। वपतृस्थान पररिार स्िभाि में वपतृसत्तात्मक और वपतृिंशीय भी होता है।
मातृस्थान (Matrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़का वििाह के पिात् ऄपनी पत्नी के
पररिार के साथ रहता है। यह के िल वपतृस्थान पररिार के विपरीत है। आस प्रकार के पररिार
स्िभाि में मातृसत्तात्मक तथा मातृिंशीय भी होते हैं।
वद्वस्थान (Bilocal) पररिार: आस प्रकार के पररिारों में वििावहत दम्पवत ऄपने वनिासों में
िैकवल्पक रूप से पररिततन लाते हैं। कभी पत्नी पवत के पररिार में रहती है तो कभी पवत पत्नी के
पररिार में रहता है। आसी कारण आस प्रकार के पररिार बदलते अिासों के पररिार भी कहलाते हैं।
निस्थान (Neolocal) पररिार: वििाह के पिात् जब एक नि वििावहत दम्पवत ऄपने
ऄवभभािकों से स्ितंत्र एक नए पररिार की स्थापना करते हैं तथा एक नए स्थान पर वनिास करते
हैं तो ऐसा पररिार निस्थान पररिार कहलाता है।
3. अकार और संरचना के अधार पर :
एकांकी पररिार: आस प्रकार के पररिार में पवत-पत्नी तथा ईनके बच्चे रहते हैं। एकांकी पररिारों का
अकार बहुत छोटा होता है। यह एक स्िायत्त आकाइ है। यहाँ बड़ों का कोइ वनयंत्रण नहीं होता
क्योंकक निवििावहत ऄपने वलए एक पृथक वनिास का सृजन करते हैं जो बड़ों से स्ितंत्र होता है।
आसे प्राथवमक पररिार भी कहते हैं।
संयिु और विस्तृत पररिार: यह तीन से चार पीकढ़यों को शावमल करता है। यह माता-वपता तथा
ईनके बच्चों के संबंधों का विस्तार है। यह पररिार घवनि रि संबंधों पर अधाररत होता है। यह
वहन्दू समाज के संयुि पररिार की भांवत होता है।
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o पररिार का मुवखया ज्येि पुरुष सदस्य होता है। आस पररिार की प्रमुख विशेषताएं होती हैं
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यथा- साझा अिास, साझी पाकशाला, साथ-साथ भोजन करना, सम्पवत्त का सहभाजन,
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o विस्तृत पररिार वपता, माता, ईनके पुत्र और ईनकी पवत्नयों, ऄवििावहत पुवत्रयों, पौत्र-
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पौवत्रयों, दादा, दादी, चाचा-चाची, ईनेक बच्चों आत्याकद को सवम्मवलत करता है। आस प्रकार के
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4. प्रावधकार के अधार पर :
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हाथों में सकें कर्द्त होते हैं वपतृसत्तात्मक पररिार कहलाते हैं। ऄन्य शधदों में आस प्रकार के पररिार में
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शवियाँ या प्रावधकार पररिार के ज्येि पुरुष सदस्य के हाथों में वनवहत होते हैं जो तथाकवथत
वपता होता है। िह पररिार के ऄन्य सदस्यों पर वनरपेक्ष शवियों या प्रावधकारों का प्रयोग करता
है। िह पाररिाररक सम्पवत्त का स्िामी भी होता है।
o ईसकी मृत्यु के पिात् पररिार के ज्येि पुत्र को प्रावधकारों का हस्तांतरण हो जाता है। आस
प्रकार के पररिार में िंश परम्परा वपतृिंशीय होती है। पत्नी पवत के पररिार के साथ रहती है।
वहन्दुओं के मध्य संयुि पररिार व्यिस्था वपतृसत्तात्मक पररिार का ईत्तम ईदाहरण है।
मातृिश
ं ीय (Matriarchal) पररिार: आस प्रकार का पररिार के िल वपतृसत्तात्मक पररिार का
विलोम होता है। आस पररिार में शवि और प्रावधकार पररिार की ज्येि मवहला सदस्य विशेषतया
पत्नी या माता को प्राप्त होते हैं। िह पररिार के ऄन्य सदस्यों पर वनरपेक्ष शवि और प्रावधकार का
प्रयोग करती है। िह सभी पाररिाररक संपवत्तयों की स्िामी होती है। ऐसे पररिार में िंश परम्परा
माता के माध्यम से जानी जाती है।
o प्रभार माता से ज्येि पुत्री को हस्तांतररत हो जाता है। एक मातृसत्तात्मक पररिार में पवत
पत्नी के ऄधीनस्थ रहता है। आस प्रकार के पररिार के रल के नायरों तथा ऄसम की गारो तथा
खासी जनजावतयों में पाए जाते हैं।
वपतृिश
ं ीय (Patrilineal) पररिार: िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली वपता िंश के
माध्यम से वनधातररत होती है तथा वपता के माध्यम से ही जारी रहती है वपतृ िंशीय पररिार
कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार का नाम भी वपता िंश के माध्यम से दायागत होते हैं।
वपतृिंशीय पररिार स्िभाि में वपतृस्थावनक तथा वपतृसत्तात्मक होता है।
मातृिश
ं ीय (Matrilineal) पररिार: मातृिंशीय पररिार मात्र वपतृिंशीय पररिार का विलोम
होता है। िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली मातृ िंश के माध्यम से वनधातररत होती है
तथा माता के माध्यम से ही जारी रहती है मातृिंशीय पररिार कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार
का नाम भी मातृ िंश के माध्यम से दायागत होते हैं। ये ऄवधकार माता से पुत्री को हस्तांतररत
होते हैं। एक मवहला ही पररिार की पूिज त होती है। मातृिंशीय पररिार स्िभाि में मातृस्थावनक
तथा मातृसत्तात्मक होता है। आस प्रकार के पररिार के रल के नायरों तथा ऄसम की गारो तथा
खासी जनजावतयों में पाए जाते हैं।
पररिार के कायत
प्राथवमक कायत- पररिार के स्थायी ऄवस्तत्ि हेतु आसके कु छ मूलभूत कायत होते हैं:
o संतानोत्पवत्त एिं ईनका पालन-पोषण।
o घर का प्रबंधन करना।
o सांस्कृ वतक हस्तांतरण का साधन।
o समाजीकरण का ऄवभकतात।
o प्रवस्थवत वनधातरण संबंधी कायत।
वद्वतीयक कायत
o अर्मथक कायत: अर्मथक प्रगवत के साथ पररिार एक ईत्पादक की तुलना में ईपभोग आकाइ
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ऄवधक बन गया है। पररिार के सदस्य, आसके सामावजक-अर्मथक कल्याण हेतु अय ऄजतन में
संलग्न रहते हैं। l.c
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o शैक्षवणक कायत: पररिार, बच्चे की औपचाररक वशक्षा हेतु अधार प्रदान करता है। प्रमुख
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पररिततनों के बािजूद पररिार ऄभी भी बच्चे को सामावजक ऄवभिृवत्त एिं व्यिहार हेतु
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मूलभूत प्रवशक्षण प्रदान करता है। यह प्रवशक्षण सामावजक जीिन में एक ियस्क के रूप में
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o धार्ममक कायत: पररिार, बच्चों के धार्ममक प्रवशक्षण का एक कें र्द् है। बच्चे ऄपने माता-वपता से
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गवतविवधयों जैसे कक घरे लू खेलों, नृत्य, गायन, पठन आत्याकद में भाग लेने हेतु ऄिसर प्रदान
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करता है।
भारतीय पररिार प्रणाली में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
(Structural and functional changes in the Indian family system)
अधुवनक प्रौद्योवगकी के साथ औद्योवगक सभ्यता के ईद्भि ने भारतीय पररिार प्रणाली में वनरं तर
संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन ककए हैं। िततमान में पररिार की ऄवधकांश पारं पररक
गवतविवधयों को बाह्य संस्थाओं को स्थानांतररत कर कदया गया है; यह ईन संबंधों को और ऄवधक
कमजोर बना देता है जो ऄतीत में पररिार को एक साथ बांधे रखते थे। आसके साथ ही पररिार के
शैवक्षक, मनोरं जक, धार्ममक और सुरक्षात्मक कायों में कमी अइ है, वजन्हें आस ईद्देश्य के वलए वनर्ममत
विवभन्न संस्थाओं ने करना प्रारम्भ कर कदया है।
भारतीय पररिार प्रणाली में होने िाले कु छ प्रमुख पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
o पररिार में पररिततन: पररिार जो ईत्पादन की एक प्रमुख आकाइ थी, िह ईपभोग की आकाइ
के रूप में पररिर्मतत हो गइ है। पररिार के सभी सदस्यों द्वारा ककसी एकीकृ त अर्मथक ईद्यम में
एक साथ कायत ककये जाने के स्थान पर, ऄब सामान्यतः के िल कु छ पुरुष सदस्य पररिार हेतु
om
o पविमी मूल्यों का प्रभाि: अधुवनक विज्ञान, तकत िाद, व्यवििाद, समानता, स्ितन्त्र जीिन,
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लोकतंत्र, मवहलाओं की स्ितंत्रता अकद से संबंवधत मूल्यों ने भारत में संयुि पररिार प्रणाली
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o मवहलाओं की प्रवस्थवत में पररिततन: भारतीय समाज में मवहलाओं की वस्थवत में पररिततन का
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मुख्य कारक मवहलाओं की पररिर्मतत अर्मथक भूवमका है। मवहलाओं की नइ अर्मथक भूवमका ने
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िततमान वस्थवत
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विगत कु छ िषों में, विवभन्न समाजशावत्रिययों ने ऄपने ऄध्ययनों में पुवष्ट की है कक बढ़ते हुए
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2001 की जनगणना के ऄनुसार, 19.31 करोड़ पररिारों में से 9.98 करोड़ (51.7%) एकल
पररिार थे। 2011 की जनगणना में, एकल पररिारों की संख्या में िृवि हुइ है, यह भाग
बढ़कर 24.18 करोड़ पररिारों में से 12.97 करोड़ (52.1%) हो गया। हालांकक, नगरीय
क्षेत्रों में एकल पररिारों के अनुपावतक वहस्से में वगरािट हुइ है। नगरीय पररिारों में एकल
पररिारों का प्रवतशत 54.3% (2001 में) से घटकर कु ल नगरीय पररिारों का 52.3% रह
गया है। आसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में एकल पररिारों का भाग 50.7% से बढ़कर 52.1%
हो गया है।
आस ऄिवध में संयुि पररिारों का वहस्सा सम्पूणत भारत में 19.1% (3.69 करोड़) से घटकर
16.1% (4 करोड़) हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह वगरािट (20.1% से 16.8%) नगरीय
क्षेत्रों की तुलना (16.5% से 14.6% ) में ऄवधक तीव्र थी। नगरीय पररिारों में एकल
पररिारों के घटते हुए भाग का कारण नगरों में अिास की कमी के साथ-साथ बढ़ते प्रिासन
को माना जाता है।
(Diversity In India)
भारत सैिावन्तक और व्यािहाररक, दोनों रूपों में एक बहुल समाज है। ऄपनी एकता और विविधता के
वलए पहचाना जाना आसके वलए ईपयुि ही है। विवभन्न जावतयों और समुदायों के लोगों की संस्कृ वतयों,
धमों और भाषाओं के व्यापक समन्िय ने कइ विदेशी अक्रमणों के बािजूद आसकी एकता और सामंजस्य
को बनाए रखा है।
यहाँ भारी अर्मथक और सामावजक ऄसमानताओं द्वारा समतािादी सामावजक संबंधों के ईद्भि में बाधा
ईत्पन्न ककए जाने के बािजूद, राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता सशि रूप से स्थावपत है। आस समन्िय ने
भारत को विवभन्न संस्कृ वतयों का एक ऄवद्वतीय गढ़ बना कदया है। आस प्रकार, भारत समग्र रूप से एक
एकीकृ त सांस्कृ वतक ढांचे के ऄंतगतत बहुसांस्कृ वतक वस्थवत को प्रदर्मशत करता है।
विविधता में एकता का िास्तविक अशय "एकरूपता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
विविधता" से है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानिीय ऄंतःकक्रया को समृि बनाती
है।
'विविधता' शधद ऄसमानताओं के बजाय वभन्नता (differences) पर बल देता है। आसका तात्पयत
सामूवहक वभन्नता से है, ऄथातत ऐसे ऄंतर जो ककसी एक समूह के लोगों को ककसी दूसरे समूह से ऄलग
करते हैं। यह वभन्नता जैविक, धार्ममक, भाषाइ अकद ककसी भी प्रकार की हो सकती है। आस प्रकार,
विविधता का ऄवभप्राय नृजावतयों, धमों, भाषाओं, जावतयों और संस्कृ वतयों की विविधता से है।
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एकता का अशय एकीकरण से है। यह एक सामावजक मनोिैज्ञावनक वस्थवत है। यह ‘एकत्ि’ तथा ‘हम’
की भािना को प्रदर्मशत करती है। आसका तात्पयत ईस ऄपनेपन से है, जो ककसी समाज के सदस्यों को एक l.c
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विविधता में एकता का ऄथत ऄवनिायत रूप से "समानता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
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विविधता" है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानि ऄंतर्कक्रया को समृि करती है।
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जब हम कहते हैं कक भारत एक महान सांस्कृ वतक विविधता िाला देश है तो आसका तात्पयत यह होता है
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कक यहाँ ऄनेक प्रकार के सामावजक समूह और समुदाय वनिास करते हैं। आन समुदायों को आनके
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सांस्कृ वतक प्रतीकों जैस,े भाषा, धमत, पंथ, प्रजावत या जावत के अधार पर पररभावषत ककया जाता है।
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जाती है।
भौगोवलक विविधता: 3.28 वमवलयन िगत ककलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत, भारत एक विशाल देशl.c
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है वजसमें शुष्क मरुस्थल, सदाबहार िन, उंचे पितत, बारहमासी और गैर-बारहमासी नदी
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प्रणावलयां, लंबे तट और ईपजाउ मैदानों जैसी भौवतक विशेषताओं की महान विविधता विद्यमान
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है।
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ईपयुति िर्मणत विविधता के प्रमुख रूपों के ऄवतररि, भारत में कइ ऄन्य प्रकार की विविधता जैसे,
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बस्ती प्रवतरूप- जनजातीय, ग्रामीण एिं नगरीय; धार्ममक और क्षेत्रीय अधार पर वभन्न-वभन्न वििाह
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िावणज्य और समागम की ऄबाध स्ितंत्रता प्रदान करता है। आसके ऄवतररि, िस्तु एिं सेिा कर
(GST) ने 'एक देश, एक कर, एक राष्ट्रीय बाजार' का मागत प्रशस्त ककया है। आस प्रकार यह विवभन्न
क्षेत्रों के मध्य एकता को सुगम बनाता है।
तीथतयात्रा और धार्ममक प्रथाओं से संबवं धत स्थल: भारत में, धमत और अध्यावत्मकता का ऄत्यवधक
महत्ि है। ईत्तर में बर्द्ीनाथ और के दारनाथ से दवक्षण में रामेश्वरम तक, पूित में जगन्नाथ पुरी से
पविम में द्वारका तक धार्ममक मंकदर एिं पवित्र नकदयां देश भर में विस्तृत हैं। तीथतयात्रा की
पुरातन संस्कृ वत आन स्थलों से वनकटता से संबंवधत है, वजसके कारण लोग हमेशा देश के विवभन्न
भागों की यात्राएं करते रहते हैं। आससे लोगों में भू-सांस्कृ वतक एकता की भािना को बढ़ािा वमलता
है।
मेले और त्यौहार: मेले और त्यौहार भी एकीकृ त करने िाले कारक के रूप में कायत करते हैं। ये देश
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के सभी भागों में लोगों द्वारा ऄपने स्थानीय रीवत-ररिाजों के ऄनुसार मनाये जाते हैं। ईदाहरण के l.c
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वलए, दीिाली देश भर में हहदुओं द्वारा मनाइ जाती है, आसी प्रकार मुवस्लम और इसाइयों द्वारा
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क्रमशः इद और कक्रसमस मनाया जाता है। भारत में ऄंतर-धार्ममक त्यौहार भी मनाए जाते हैं।
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मानसून के माध्यम से जलिायिीय एकीकरण: सम्पूणत भारतीय ईपमहाद्वीप में जीि एिं
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िनस्पवतयाँ, कृ वष प्रथाएँ, लोगों का जीिन एिं ईनके त्यौहार भारत के मानसून काल पर के वन्र्द्त
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हैं।
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खेल और वसनेमा: देश के करोड़ों लोगों आनमें रुवच रखते हैं और आस प्रकार ये सम्पूणत देश को जोड़ने
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विरोधी राज्यों के मध्य व्यापार और संचार को भी प्रभावित कर सकता है। ईदाहरणस्िरुप,
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बाह्य कारकों का प्रभाि: कभी-कभी बाह्य कारक यथा विदेशी संगठन, अतंकिादी समूह,
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चरमपंथी समूह अकद हहसा को ईत्तेवजत कर सकते हैं और आसके पररणामस्िरूप ऄलगाििाद की
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भािना ईत्पन्न हो सकती है। ईदाहरण के वलए, आं टर सर्मिसेज आं टेवलजेंस (ISI) को जम्मू-कश्मीर में
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ऄशांवत फै लाने हेतु मुजावहदीन को समथतन और प्रवशक्षण प्रदान करने तथा यहाँ के लोगों के मध्य
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ऄलगाििादी प्रिृवत्तयों को बढ़ाने का प्रयास करने में संलग्न पाया गया है।
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विविधता से ईत्पन्न चुनौवतयों के बािजूद, भारतीय समाज को बनाए रखने और विकवसत करने में
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समस्या िास्ति में विविधता नहीं है, बवल्क भारत समाज में विविधता का प्रबंधन है। क्षेत्रिाद,
सांप्रदावयकता, नृजातीय संघषत अकद की समस्याएं ईत्पन्न हुइ हैं क्योंकक विकास का लाभ समान
रूप से वितररत नहीं ककया गया है या कु छ समूहों की संस्कृ वतयों को ईवचत मान्यता प्रदान नहीं की
गइ है।
आसवलए, संविधान और ईसके मूल्यों को हमारे समाज के मागतदशतक वसिांतों का वनमातण करना
चावहए। ककसी भी समाज, वजसने स्ियं को एकरूपता में ढालने का प्रयास ककया है, ने वनवित रूप
से ठहराि देखा है और ऄंततः वगरािट अइ है। आस सन्दभत में सबसे महत्िपूणत ईदाहरण पाककस्तान
का है वजसने पूिी-पाककस्तान पर संस्कृ वत को थोपने का प्रयास ककया और िह ऄंततः बांग्लादेश के
वनमातण का कारण बना।
1. भारत के बहु-सांस्कृ वतक समाज के प्रकाश में, क्या यह कहा जा सकता हैं कक बहु-सांस्कृ वतिाद
और बहुलिाद "विविधता में एकता" एक ही वसक्के के दो पहलू हैं?
दृवष्टकोण:
सितप्रथम आन दोनों शधदों को समझाआये और ईनके बीच की समानताएं/ऄंतर को स्पष्ट
कीवजए।
तत्पिात आनका िणतन भारत के विवशष्ट संदभत में कीवजए। ईत्तर देते समय "विविधता में
एकता" के विषय को ध्यान में रवखए।
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कै से हैं। वनम्नवलवखत ईत्तर परिती दृवष्टकोण की वििेचना करता है।
ईत्तर : l.c
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साितजवनक क्षेत्र लोक जीिन में सभी व्यवियों के साितजवनक क्षेत्र सांस्कृ वतक रूप
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आस प्रकार ईपयुति चचात के अधार पर हम कह सकते हैं कक बहुलिाद ककसी भी प्रकार की ऄनेकता हेतु l.c
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ऄवधक सामान्य शधद है, जबकक बहुसंस्कृ वतिाद सामान्य रूप से समाज में विविधता और विषमता को
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बनाए रखने और सामंजस्य बनाने हेतु बहुलता के सकक्रय रूप से ऄनुप्रयोग को दशातता है।
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दृवष्टकोणः
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ऄंत में एक सकारात्मक रटप्पणी के साथ प्रश्न का वनष्कषत वलखें कक आतनी भाषायी विविधता
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के बािजूद भी भारत एक है।
ईत्तरः
भारत में भाषायी विविधता की प्रकृ वतः
भारत में विवभन्न समूहों द्वारा 200 से ऄवधक भाषाएं बोली जाती हैं। भारत में भाषायी
बहुिाद है। आसमें समीपस्थ स्थानों में ऄनेक भाषाएं पारस्पररक सहऄवस्तत्ि के साथ विद्यमान
हैं। भाषाओं की ऄनेकता के कारण आवतहास में कइ भाषायी समस्याएंँँ खड़ी हुइ हैं। ये
समस्याएं है- (i) भारत में राज्यों का भाषा के अधार पर पुनगतठन, (ii)राज्यों में ऄल्पसंख्यक
भाषाओं की वस्थवत (iii) राजभाषा का मुद्दा।
भाषायी समस्याऐं ि राष्ट्रीय ऄखंडताः
राज्यों का भाषा के अधार पर पुनगतठन, प्रारं भ में प्रशासवनक सुविधाओं को ध्यान में
रखकर ककया गया था। यह भारत में राष्ट्रीय एकता को वबना नुकसान पहुँचाये विवभन्न
भाषायी समूहों की अंकाक्षाओं को संतुष्ट करने में सहायक हुइ।
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ऄनेक महाकाव्य ि काल्पवनक ि ऄकाल्पवनक सावहत्य की लोकवप्रयता के कारण ऄनेक
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भाषाओं में ईनका ऄनुिाद हुअ है, आसने भी भारत में भाषायी एकता में योगदान कदया
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है।
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3. भारत की एकता में ऄनेकता की व्याख्या कीवजए। लोगों के सामावजक सांस्कृ वतक जीिन के
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दृवष्टकोणः
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भारत धमत, जावत, भाषा, संस्कृ वत, विरासत आत्याकद में व्यापक विविधता िाला एक वमवश्रत
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ईत्तर:
भारत की एकता में ऄनेकता
भारत की एकता में ऄनेकता वमवश्रत -नृजातीय िगों के ऄवस्तत्ि, नस्लीय, धार्ममक और
भाषाइ संस्कृ वत का पूरे भारत में एक साथ, आसके ऄवस्तत्ि को प्रदर्मशत करता है।
भारत के राष्ट्र राज्य की भू-राजनीवतक संकल्पना यह सूवचत करती है की ऄपने एकीकृ त साँचे
के भीतर कइ विविध संस्कृ वतयों को शावमल ककया गया है।
भारत के लोगों की सामावजक -सांस्कृ वतक जीिन के ईदाहरणों से ‘एकता में विविधता’ का
परीक्षण वनम्नवलवखत रूप से रे खांककत ककया जा सकता है।
भारतीय त्यौहार पूरे विश्व में ऄपनी जीिंतता के वलए जाने जाते हैं। आसमें सबसे महत्िपूणत
ईदाहरण, कदिाली का त्यौहार है वजसे सभी के द्वारा मनाया जाता है। हालांकक, विवभन्न धमों
और क्षेत्रीय समुदायों में ईत्सि का ऄथत और आससे संबंवधत रस्मों-ररिाज बदलते रहते हैं।
4. लोकतांवत्रक संस्थाओं ने भारत की जावतगत सरं चना में पररिततन ककये हैं, परन्तु आन
पररिततनों ने वपछड़ी जावतयों के वलए के िल अंवशक पुनर्मितरक के रूप में ही पररणाम ही
कदए हैं। चचात करें ।
दृवष्टकोण:
संक्षेप में जावत-संरचना की पररभाषा देते हुए ईत्तर अरं भ करें । तत्पिात पररिततनों की
om
विस्तृत व्याख्या करते हुए जावत संरचना में पररिततन लाने िाले कारणों पर प्रकाश डालें।
आसके ऄवतररि, आस प्रकार के पररिततनों के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को दशातते l.c
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ईत्तर:
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एक सामावजक संस्था के रूप में जावत, ऐवतहावसक स्तर पर ऄवस्तत्ि में बनी रही है तथा आसे
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विवभन्न सामावजक समूहों के बीच श्रेणीक्रम में विभावजत करने िाले संबंधों के रूप में वचवत्रत
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ककया गया है। यद्यवप सामावजक क्रम को श्रेणीक्रम में बांटने िाली यह प्रकृ वत संविधान में
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स्थावपत तथा अंबेडकर के शधदों “एक व्यवि एक मत तथा एक मत एक मूल्य” में ऄवभज्ञात
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साथ-साथ विधावयका, सरकारी सेिाओं और वशक्षा में ऄनुसूवचत जावत और जनजावत हेतु
स्िीकारात्मक नीवतयों के दोहरे प्रभाि के ऄंतगतत ऐवतहावसक ऄन्याय को सुधारने तथा राज्य
के वलए पुनर्मितरक एजेंडा को लागू करने तथा आस प्रकार से लोगों के सामावजक जीिन में
जावत श्रेणीकरण संबंधी अधार को दुबतल करने की ऄपेक्षा की गयी थी।
साितभौवमक ियस्क मतावधकार का लोकतंत्रात्मक प्रभाि ईत्तर भारत के कृ वष की दृवष्ट से
समृि क्षेत्रों में प्रभािी जावतयों के ईदय का कारण बना वजसका पररणाम ईनके द्वारा राज्य
की सत्ता पर वनयंत्रण के रूप में हुअ। आसका ऄथत था कक जावत श्रेणीक्रम में ऄपनी वस्थवत से
आतर कु छ जावतगत समूह ऄपना प्रभाि डालने तथा प्राधान्य और सामावजक पहचान स्थावपत
करने में सक्षम रहे थे।
आसके पिात 1980 तथा 90 के दशकों में वपछड़ी जावत के अन्दोलन ऄवस्तत्ि में अये
वजन्होंने ईत्तर भारत में जावत समूहों के द्वारा समर्मथत राजनीवतक दलों यथा बी.एस.पी.,
एस.पी. आत्याकद के ईदय में योगदान ककया। दूसरी ओर ये दल सामावजक लामबंदी का
माध्यम बनने में तथा राज्य में सत्ता में भागीदारी में ऄपनी ईपवस्थवत दशातने में सक्षम रहे।
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रहे हैं।
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5. "भारत में जातीय-राष्ट्रीय पहचान की ईत्पवत्त में, धमत की तुलना में, भाषाइ, प्रांतीय और
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दृवष्टकोण:
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संक्षेप में ककसी समुदाय की पहचान के अधार के रूप में विवभन्न अधारों जैसे भाषा, क्षेत्र
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और धमत की व्याख्या कीवजए। ईसके बाद आसका परीक्षण कीवजए कक आन पहचानों ने देश में
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पहचान वनधातररत करने के संिाद में ककस प्रकार भूवमका वनभाइ है।
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सकते हैं कक धमत ने देश की राष्रीय-सांस्कृ वतक पहचान को अकार देने में ईतनी महत्िपूणत
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ककया।
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दूसरी बात यह कक, औपवनिेवशक काल के बाद की विकास प्रकक्रया ने जातीय समुदायों को
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ईनकी सांस्कृ वतक और अर्मथक विवशष्टताओं को ईपेवक्षत करते हुए मुख्यधारा की विकास
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प्रकक्रया में एकीकृ त करने और समावहत करने का प्रयास ककया। के न्र्द्ीयकृ त योजना वनमातण
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एिं पूज ं ीिादी अधुवनकीकरण ने ऄनेकों जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा से और दूर होने
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ककए वबना ईनकी ऐवतहावसक और पारं पररक भूवम से भारी मात्रा में विस्थापन की ओर
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बढ़ाया।
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6. हाल के कदनों में, भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 44 को लागू करने के वलए काफी प्रयास ककये
जा रहे है। भारत की सामावजक-सांस्कृ वतक विविधता को देखते हुए, आस तरह की मांग ककस
सीमा तक ईवचत है।
दृवष्टकोणः
ऄनुच्छेद-44 क्या है, आसे संदर्मभत करते हुए ईत्तर का पररचय दें। भारत के सामावजक-
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सांस्कृ वतक विविधताओं पर विचार करते हुए ईत्तर में आस ऄनुच्छेद को लागू करने के l.c
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ईत्तरः
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भाग-IV का ऄनुच्छेद-44, भारतीय राज्यों को देश में समान नागररक संवहता लागू करने हेतु
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वनदवशत करता है। समान नागररक संवहता का ऄवभप्राय प्रत्येक धार्ममक समुदाय के शात्रिय और
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प्रथा अधाररत वनजी कानून को सभी नागररकों के वलए वनयंत्रण करने िाले एक समान
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नागररक संवहता से पररिर्मतत करना है। ये कानून वििाह, तलाक, ऄवधग्रहण, गोद लेना और
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धमत और भाषा अकद के संदभत में, सामावजक और सांस्कृ वतक रूप में भारतीय-राज्य विश्व में
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सिातवधक विविध देशों में से एक हैं। ऐवतहावसक रूप से ऄवधसंख्य राज्यों को यह भय रहा कक
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राजनैवतक पहचान, सामावजक मतभेद की मान्यता, राज्य की एकता के वलए खतरा है। आस
प्रकार के संदभत में समय-समय पर भारत में समान नागररक संवहता लागू करने की वनरन्तर
मांग रही है। स्पेन, श्रीलंका और तत्कालीन पूिी पाककस्तान के ईदाहरण को देखते हुए आस
तकत में कु छ िास्तविकता वनवहत जान पड़ती है।
आसके ऄवतररि, विवभन्न समुदायों के ईनके पृथक वनजी कानून हैं जो कानून के वनयमों,
बुवनयादी मानिीय और तकत संगत कानून के ईल्लंघन के ऄवतररि देश के कानून के विरूि
जाते हैं। आसवलए भारत में वनिास करने िाले सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होने
िाली एक ईभयवनष्ट कानूनी प्रणाली िांवक्षत हो सकती है।
हालांकक गूढ़ विश्लेषण से यह प्रकट होता है कक यह बहुसंख्यिाद संस्कृ वत का ऄवधरोपण था
और साथ ही साथ ऄल्पसंख्यकों की प्रथा और सामावजक प्रतीकों की ईपेक्षा थी वजसने
ईपरोि िर्मणत देशों में सामावजक ऄशांवत को बढ़ािा कदया। आसके ऄवतररि सांस्कृ वतक
विविवधताओं को दबा देना ऄल्पसंख्यकों के ऄलगाि के संदभत में बहुत महंगा सावबत हो
सकता है वजनकी संस्कृ वत को ‘गैर-राष्ट्रीय’ के रूप में व्यिहार ककया जाता है। आसके ऄवतररि
7. भारत में वििाह और पररिार की विशेषता वनरं तरता के साथ ही पररिततन भी हैं। भारत में
वपछले कु छ दशकों के दौरान वनर्ममत कानूनों और सामावजक-अर्मथक पररिततनों के संदभत में
आसकी चचात करें ।
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दृवष्टकोण :
सितप्रथम ईत्तर में आस बात का संवक्षप्त पररचय दें कक भारत में वििाह तथा l.c
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वद्वतीय, आन संस्थाओं में पररिततन के कारणों, यथा सामावजक-अर्मथक कारण तथा कानूनों के
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आन पर प्रभाि (मुख्य रूप से ऄपेक्षाकृ त ऄवधक हाल के क़ानून) पर ऄलग से प्रकाश डालें।
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ऄंततः, आस बात को ईजागर करते हुए ईत्तर समाप्त करें कक पररिततनों के बािजूद ककस प्रकार
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ईत्तर :
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वििाह तथा पाररिाररक संस्थाएं भारतीय समाज के मूल मूल्यों के धरोहर हैं। आन संस्थाओं
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को ऄब भी संतानोत्पवत्त के सामावजक रूप से मान्यताप्राप्त माध्यम के रूप में देखा जाता है।
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हम आन संस्थाओं में वपतृसत्तात्मक मूल्यों तथा सामंतिादी पूिातग्रहों का प्रभाि देख सकते हैं।
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वििाह के सम्बन्ध में विकल्प स्ियं तय करने की आच्छा रखते हैं।
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वििाह से सम्बंवधत कानूनों का प्रभाि
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दहेज़ वनषेध ऄवधवनयम, 1996, घरे लू हहसा ऄवधवनयम (DVA), 2005 आत्याकद ने
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ऄन्य कारणों से सहन करना पड़ता था, ईसके विरुि न्याय प्रदान ककया जाता है।
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DVA, 2005 की पररवध में वलि-आन साथी भी अते हैं तथा यह संबंधों के बदलते
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वहन्दू वििाह ऄवधवनयम, 1955 में 1986 में हुए संशोधन के पिात आसमें पूित से
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8. स्ितंत्रता के ऄनेक िषों पिात् एिं अधुवनक कानून के ऄवस्तत्ि में होने के बाद भी, बाल
वििाह की प्राचीन प्रथा ऄब भी कु छ िगों में विद्यमान है। भारत में बाल वििाह की प्रथा के
विद्यमान रहने के क्या कारण हैं? यह प्रथा हमारे समाज को ककस प्रकार प्रभावित करती है?
आस प्रथा के ईन्मूलन हेतु क्या ककया जा सकता है?
दृवष्टकोण:
बाल वििाहों के संबंध में सामावजक, सांस्कृ वतक और अर्मथक मुद्दों को सवम्मवलत करते हुए,
आसके कारण बताआए। ये कारण ऄवधक विवशष्ट रूप से बाल वििाह की विद्यमानता से
संबंवधत होने चावहए।
आसके बाद, अधुवनक संदभत में सम्पूणत समाज पर बाल वििाह के कारण पड़ने िाले प्रभाि का
ईल्लेख कीवजए।
ऄंत में आस बुराइ के ईन्मूलन हेतु कु छ ईपायों का सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
बाल वििाह एक पारं पररक प्रथा है वजसे कइ स्थानों पर सामान्यत: पीढ़ी दर पीढ़ी चले अने
के कारण सम्पन्न ककया जाता है और परं परा का पालन न करने से समुदाय से वनष्कावसत
ककये जाने का डर रहता है। आन सब के उपर, ऄवधकाररयों की क्षमता सीवमत है एिं ईनमें
समुदाय के वनणतयों के विरुि जाने की आच्छाशवि की कमी है क्योंकक ऄवधकारी स्ियं भी
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समुदाय का भाग है।
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ऐसे समुदायों में जहां दहेज या 'िधू-मूल्य' का भुगतान ककया जाता है, वनधतन पररिारों के
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वलए यह प्रायः स्िागतयोग्य अय वसि होता है; िधू के पररिार द्वारा िर को दहेज कदए जाने
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के मामलों में, यकद िधू कम ईम्र की और ऄवशवक्षत होती है तो ईन्हें कम धन देना पड़ता है।
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ऄनेक माता-वपता कम अयु में ही ऄपनी बेटी का वििाह कर देते हैं, क्योंकक ऐसे क्षेत्रों में जहाँ
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लड़ककयाँ शारीररक और यौन हमले के ईच्च जोवखम में जी रही होती हैं, प्रायः ईसकी सुरक्षा
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को सुवनवित करने हेतु िे ऐसा करना ईसके वहत के वलए सिोत्तम समझते हैं। वशक्षा के
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सीवमत ऄिसर, वशक्षा में गुणित्ता की कमी, ऄपयातप्त ऄिसंरचना, पररिहन की कमी एिं आस
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कारण विद्यालय जाने के दौरान लड़की की सुरक्षा संबंधी हचताएँ, लड़ककयों को विद्यालय न
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भेजने के संबंध में महत्िपूणत योगदान करती हैं और बाल वििाह की प्रिृवत्त को प्रश्रय देती हैं।
लड़ककयों को प्रायः सीवमत अर्मथक भूवमका के साथ एक दावयत्ि के रूप में देखा जाता है।
मवहलाओं का कायत घर-पररिार तक ही सीवमत होता है और आसे ऄवधक महत्ता नहीं दी
जाती। पुरातन कानून, जैसे कक मुवस्लम पसतनल लॉ, 15 से 18 के अयु िगत की लड़ककयों के
वििाह की ऄनुमवत देते हैं।
बाल वििाह के पररणामस्िरूप, वनधतनता का दुष्चक्र अरम्भ होता है। वशक्षा और अर्मथक
ऄिसरों की कम ईपलधधता के कारण ईनके और ईनके पररिार के वनधतनता में जीिन व्यतीत
करने हेतु वििश होने की संभािनाएँ ऄवधक होती हैं। बाल-िधुएँ ऄवधकतर ऄवधकारविहीन,
ऄपने पवतयों पर वनभतर एिं स्िास्थ्य, वशक्षा और सुरक्षा जैसे ऄपने मूल ऄवधकारों से िंवचत
होती हैं। युिा मवहलाओं के योगदान का मूल्य कम अंकने िाला तंत्र स्ियं ऄपनी संभािनाओं
को सीवमत कर देता है। आस प्रकार, बाल वििाह देश से ऐसे निोन्मेष और क्षमता का ऄपिाह
कर देता है जो ईन्हें समृि बनने में सक्षम कर सकता था।
9. पसतनल लॉ बोडत क्या हैं? क्या ईनके वनणतय नागररकों पर बाध्यकारी हैं? ईनके द्वारा
ऄनुपालन ककए जाने िाले एिं सामान्य कानूनी ऄदालतों के वसिांतों के मध्य विसंगवत की
वस्थवत में ककस प्रकार सामंजस्य स्थावपत ककया जा सकता है। चचात कीवजए।
दृवष्टकोण:
पसतनल लॉ के संबंध में संवक्षप्त रूपरे खा प्रदान कीवजए।
पसतनल लॉ बोडों को पररभावषत कीवजए।
भूतकाल में ककए गए कु छ ईपायों एिं साथ ही विसंगवत का वनराकरण करने हेतु समाधान
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योग्य समस्याओं को स्पष्ट कवजए।
ईत्तर: l.c
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भारत में विवभन्न धमत ऄपने वनजी कानूनों (पसतनल लॉ) द्वारा वनयंवत्रत ककए जाते हैं। प्रत्येक
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धमत वििाह, गोद लेन,े ईत्तरावधकारों आत्याकद से संबंवधत मामलों में ऄपने स्ियं के कानून का
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पालन करता है। आन सभी मामलों पर धमत का प्रवतवनवधत्ि करने िाले विवभन्न पसतनल लॉ
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पसतनल लॉ बोडत भारत में पसतनल लॉ के संरक्षण और वनरं तर प्रयोज्यता हेतु ईवचत
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रणनीवतयाँ बनाने/ऄपनाने हेतु गैर-सरकारी संगठन हैं। ये बोडत स्ियं को भारत में धार्ममक
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समूह की राय के ऄग्रणी वनकाय के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ये बोडत सरकार से संबंध स्थावपत
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मागतदशतन प्रदान करते हैं। िे मुख्य रूप से ऐसे ककसी ऄन्य कानूनों या विधान से पसतनल लॉ
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‘ऄशुिता’ के पैमाने पर सबसे वनचले स्तर पर ऄिवस्थत सदस्यों के वखलाफ़ कड़े सामावजक
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प्रवतबंधों का प्रािधान करता है। यह जीिन के सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचवलत है तथा
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समय के साथ विकवसत होते हुए यह बवहष्कार, ऄपमान-ऄधीनता और शोषण के रूपों में
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नृजातीयता जैसे ऄन्य कारकों को भी ऄपने दायरे में शावमल कर वलया है।
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ऄपमानजनक-पराधीनता के साितजवनक रूप से कदखाइ देने िाले सामान्य कृ त्यों में, सम्मान के
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सूचक वचह्नों यथा सर से टोपी/पगड़ी को जबरन ईतारने को कहना, जूते चप्पलों को हाथ में
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लेना, सर झुका कर खड़े होना, साफ़ या ईज्जिल कपड़े पहनने की ऄनुमवत न देना आत्याकद,
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शावमल हैं ।
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साथ ही ऄस्पृश्यता विवभन्न प्रकार के अर्मथक शोषण यथा जबरन ऄिैतवनक श्रम के
ऄवधरोपण, या संपवत्त की जधती से भी सम्बंवधत है।
बवहष्कार के संदभत में, धार्ममक बवहष्कार, विकलांग लोगों के बवहष्कार, जावत अधाररत
बवहष्कार अकद ऄस्पृश्यता को नया अयाम दे रहे हैं।
ऄस्पृश्यता के वखलाफ लड़ने के वलए भारतीय संविधान के कु छ प्रािधान:
संविधान के ऄनुच्छेद 17 के तहत, ककसी भी अधार पर ऄस्पृश्यता को वनवषि कर कदया
गया है।
ऄनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है तथा ऄनुच्छेद 15 साितजवनक
स्थानों पर समानता और समान पहुंच ईपलधध कराता है।
DPSP के तहत ऄनुच्छेद 46 के ऄनुसार राज्य ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत
जनजावतयों के शैवक्षक और अर्मथक वहतों को प्रोत्सावहत करे गा तथा सामावजक ऄन्याय
और शोषण से ईनकी रक्षा करे गा।
11. भले ही हाल के कदनों में जावत व्यिस्था कमजोर हो गयी है, लेककन भारत में लोकतांवत्रक
राजनीवत के पररणामस्िरूप जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ हुइ है। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण:
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भारतीय समाज में जावत व्यिस्था का संवक्षप्त वििरण प्रदान कीवजए।
समाज में जावत व्यिस्था को कमजोर करने िाले कारकों का ईल्लेख कीवजए। l.c
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साथ ही, लोकतांवत्रक राजनीवत पर ध्यान के वन्र्द्त करते हुए जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ
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ईत्तर:
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तकत संगत ठहराया एिं ईसे सुदढ़ृ भी ककया है। िततमान समय विरोधाभासी वस्थवत को दशातता
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कु छ समाधान: l.c
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मुि बाजार में लोगों की भागीदारी को ऄवधकावधक प्रोत्सावहत करना: बढ़ी हुइ समृवि
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वलए लवक्षत करने हेतु अरक्षण प्रणाली को युविसंगत बनाना ताकक समतािादी समाज का
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सूत्रपात हो।
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12. एक संस्था के रूप में जावतव्यिस्था के िततमान रूप को औपवनिेवशक काल के दौरान हुए
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घटनाक्रमों के साथ-साथ स्ितंत्र भारत में हुए पररिततनों द्वारा अकार कदया गया है। चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
जावत व्यिस्था की ईत्पवत्त और ईसके विकास का संवक्षप्त वििरण दीवजए।
चचात कीवजए कक वब्ररटश शासन के दौरान मौजूद जावत व्यिस्था का स्िरुप क्या था तथा
वब्ररटश शासन ने ककस प्रकार आसकी संरचना को प्रभावित ककया।
स्ितंत्रता के पिात् आसके सुधार के वलए ककये गए ईपायों की संक्षप
े में चचात कीवजए तथा आन
ईपायों ने जावत व्यिस्था को कै से प्रभावित ककया, स्पष्ट कीवजए।
आसके ऄवतररि ऄन्य अिश्यक ईपायों के सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
जावत एक ऐसी संस्था है जो विवशष्ट रूप से भारतीय ईपमहाद्वीप से सम्बंवधत है। ऄंग्रज
े ी का
शधद 'caste' िास्ति में पुततगाली शधद ‘casta’ से वलया गया है, वजसका शावधदक ऄथत है
शुि नस्ल। आस शधद से अशय एक व्यापक संस्थागत व्यिस्था से है। भारतीय भाषाओं
om
राष्ट्रिादी अंदोलन के जनसंचार में जावत संबंधी विचारों ने ऄवनिायत रूप से एक भूवमका
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वनभाइ। राष्ट्रिादी अंदोलन के प्रमुख विचारों में जावत को एक सामावजक बुराइ के रूप में
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प्रस्तुत ककया गया तथा भारतीयों को विभावजत करने के वलए आसे ऄंग्रज े ों की एक चाल के
@
आस राजनीवतक प्रवतबिता के साथ तीव्र गवत से अर्मथक पररिततन भी हुए। अर्मथक क्षेत्र
ry
ऄवभलक्षण रही है, ऄवपतु िततमान में भी यह एक महत्िपूणत भूवमका वनभा रही है। सविस्तार स्पष्ट
कीवजए।
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भारतीय समाज ai
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पंथननरपेक्षता
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4.2. तत्काल तीन तलाक का मुद्दा (Issue of instant triple talaq) _________________________________________ 7
4.3. मनहला संगठनों के नेतृत्ि में धार्ममक पूजा स्थलों में प्रिेि संबंधी अन्दोलन ___________________________________ 8
5. निगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न (Previous Year Vision IAS
GS Mains Test Series Questions) _____________________________________________________________ 8
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1. पं थ ननरपे क्ष ता का ऄथथ (Meaning of Secularism)
साधारण िब्दों में,पंथननरपेक्षता एक नसद्ांत है जो राजनीनत से धमथ के पृथक्करण का समथथन करता है।
यह सरकारी संस्थानों एिं राज्य का प्रनतनननधत्ि करने िाले ऄनधदेनित ऄनधकाररयों को धार्ममक
संस्थानों और धार्ममक पदानधकाररयों से पृथक करने संबंधी नसद्ांत है। आस प्रकार, धमथ, राज्य और
ऄनभिासन संबंधी निषयों से पृथक होना चानहए।
पंथननरपेक्षता एक अदिथ नसद्ांत है जो एक पंथननरपेक्ष समाज को यह ऄनुभि कराने का प्रयास करता
है, कक ककसी भी व्यनि को ऄंतर-धार्ममक िचथस्ि या ऄंतःधार्ममक िचथस्ि से रनहत होना चानहए। यह
धमों के तहत एिं निनभन्न धमों के मध्य स्ितंत्रता,साथ ही साथ ईनके मध्य समानता को प्रोत्सानहत
करता है। यह राज्य और धमथ के मध्य पृथक्करण को भी सनममनलत करता है। िास्ति में नजन निनिष्ट
मूल्यों को बढ़ािा देने के नलए ये बने हैं तथा िह पद्नत नजनसे आन मूल्यों की व्याख्या की जानी है ईसके
अधार पर पृथक्करण की प्रकृ नत और सीमा निनभन्न प्रकार की हो सकती है।
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सभी धमों को राज्य द्वारा समान संरक्षण प्रदान पारस्पररक ननषेध के रूप में धमथ और राज्य के
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ककया जाना चानहए।यह निनिष्ट महत्ि को पृथक्करण का तात्पयथ दोनों ऄपने ऄपने कायथक्षेत्रों
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प्रदर्मित करता है। सिथप्रथम पंथननरपेक्ष राज्य िह में पारस्पररक रूप से ऄनन्य हैं।
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यह धार्ममक क्षेत्र में समान स्तर पर राज्य पंथननरपेक्षता की पनिमी ऄिधारणा में
प्रायोनजत सुधारों को प्रोत्सानहत करती है। ऄंतःधार्ममक समानता हेतु एक तंत्र निद्यमान होता
है, जबकक ऄंतर-धार्ममक समानता के नलए नहीं है।
आस प्रकार राज्य सभी मामलों में धमथ से एक
नननित दूरी बनाए रखता है।
भारत के संदभथ में, प्रायः यह तकथ कदया जाता है कक भारतीय पंथननरपेक्षता की ऄिधारणा पनिम से
प्रेररत है। ककन्तु ईपरोि निभेद से यह स्पष्ट है कक पनिम में, यह चचथ और राज्य के मध्य कठोर
पृथक्करण पर के नन्द्रत है; जबकक भारत में सभी धमों के िांनतपूणथ सह-ऄनस्तत्ि को कें द्र में रखा गया है।
भारत में, धमथ की स्ितंत्रता एक मूल ऄनधकार है जो ननम्ननलनखत ईपबंधों के माध्यम से प्रत्याभूत
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होती है: l.c
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ऄनुच्छेद 25: ऄंतःकरण की और धमथ को ऄबाध रूप से मानने, अचरण और प्रचार करने की
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स्ितंत्रता।
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ऄनुच्छेद 26: प्रत्येक धार्ममक संप्रदाय को ऄपने धार्ममक कायों के प्रबंधन की स्ितंत्रता।
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ऄनुच्छेद 27: ककसी निनिष्ट धमथ की ऄनभिृनद् के नलए करों के संदाय से संबंनधत स्ितंत्रता।
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ऄनुच्छेद 28: कु छ निक्षा संस्थानों में धार्ममक निक्षा या धार्ममक ईपासना में ईपनस्थत होने की
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स्ितंत्रता।
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religion)
ऄनुच्छेद 15: धमथ, मूलिंि, जानत, ललग या जन्मस्थान के अधार पर निभेद का ननषेध।
ऄनुच्छेद 16: लोक ननयोजन के निषय में ऄिसर की समता और यह प्रािधान कक कोइ नागररक धमथ ,
मूलिंि, जानत, ललग, ईद्भि या जन्म स्थान के अधार पर ननयोजन के नलए ऄपात्र नहीं होगा।
ऄनुच्छेद 30: धमथ या भाषा पर अधाररत सभी ऄल्पसंख्यक-िगों को ईनकी रूनच के निक्षा संस्थानों
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स्िीकृ नत प्रदान करने हेतु ककया गया है। ईदाहरण के नलए, ऄस्पृश्यता, सती प्रथा, दहेज, आत्याकद के
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ईन्मूलन, नहन्दू नििाह और निरासत कानूनों में संिोधन और समान नागररक संनहता आत्याकद की
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साथ ही, राज्य मामलों में धमथ के हस्तक्षेप की ऄनुमनत देने के निरुद् पंथननरपेक्षता का भारतीय अदिथ
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स्पष्ट रूप से सािधानी बरतता है, आस प्रकार जहााँ यह एक तरफ धार्ममक अधार पर चुनाि जीतने हेतु
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मतदाताओं को संगरठत करने की ऄनुमनत नहीं देता, िही दूसरी तरफ यह प्रमुख रूप से दिाथता है कक
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पंथननरपेक्षता को "भारतीय संनिधान के अधारभूत ढााँचे" के स्तंभों में से एक माना जाता है।
के ििानंद भारती िाद (1973) में ईच्चतम न्यायालय ने ननणथय कदया कक संसद द्वारा संनिधान के
अधारभूत ढााँचे को पररिर्मतत नहीं ककया जा सकता है।
एस अर बोममइ बनाम भारतीय संघ िाद (1994) में ईच्चतम न्यायालय ने ऄिलोकन ककया है
कक यद्यनप संनिधान की ईद्देनिका में 'समाजिाद' और 'पंथननरपेक्ष' िब्द 1976 में 42िें संिोधन
द्वारा ऄंतःस्थानपत ककए गए हैं, परं तु पंथननरपेक्षता की ऄिधारणा हमारे संिैधाननक दिथन में
मूलत: सनन्ननहत रही है। आस प्रकार, 42िें संिोधन द्वारा संनिधान में ऄंतर्मननहतपंथननरपेक्षता के
निचार को स्पष्ट ककया गया।
स्टेननस्लॉस बनाम मध्यप्रदेि िाद (1977) में ईच्चतम न्यायालय ने ननणथय कदया कक धमथ के प्रचार
के ऄनधकार (ऄनुच्छेद 25 के तहत) के तहत बलात धमाांतरण का ऄनधकार सनममनलत नहीं है
क्योंकक आससे लोक व्यिस्था बानधत होती है।
संनिधान के ऄनुच्छेद 44 के ऄनुसार "राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागररकों के नलए एक समान
नागररक संनहता प्राि कराने का प्रयास करे गा।" समान नागररक संनहता से अिय देि के सभी
नागररकों के नलए व्यनिगत निषयों को िानसत करने िाली निनधयों के एक साझा समुच्चय है, चाहे िे
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ककसी भी धमथ के ऄनुयायी हो। l.c
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यह धमथ को सामानजक संबंधों और पसथनल लॉज़ (Personal Laws) से पृथक करे गी। यह पुरुषों
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और मनहलाओं, दोनों के नलए न्याय के संदभथ में समता सुनननित करे गी, चाहे िे ककसी भी धमथ का
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नििाह, निरासत, तलाक आत्याकद के संबंध में सभी भारतीयों के नलए समान कानून होंगे।
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चूाँकक भारतीय समाज मुख्यतः नपतृसत्तात्मक है, ऄत: आससे भारत में मनहलाओं की नस्थनत में
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सुधार लाने में सहायता नमलेगी। आस नपतृसत्तात्मक समाज के ऄंतगथत प्राचीन धार्ममक ननयम ही
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पाररिाररक जीिन को ननरं तर ननयंनत्रत करते अ रहे हैं और मनहलाओं की ऄधीनता का कारण बने
हुए हैं।
निनभन्न पसथनल लॉज़ में ऄनेकों कनमयााँ निद्यमान हैं। आन कानूनों का ईपयोग के िल िे लोग कर
पाते हैं नजनके पास ऐसा करने की िनि होती है। एकरूपता के कारण आस प्रकार की कनमयां
समाि या कम हो जाएंगी।
जानत पंचायतों जैसे ऄनौपचाररक ननकाय पारं पररक कानूनों के अधार पर ननणथय देते हैं। UCC
पारं पररक कानूनों के बजाय िैध कानूनों के ऄनुपालन को सुनननित करे गी।
यह िोट बैंक राजनीनत की प्रिृनत को कम करने में सहायता कर सकती है। यकद सभी धमथ एक ही
कानून के तहत अ जाएाँगे तो राजनेताओं के पास समुदायों के समक्ष ईनके िोट के बदले लुभािने
िादे करने के नलए कम प्रस्ताि होंगे।
यह भारत के एकीकरण में सहायक होगी क्योंकक ककसी कानून द्वारा कु छ निनिष्ट धार्ममक समुदायों
के साथ कु छ मामलों में िरीयतापूणथ व्यिहार करने के कारण समुदायों के मध्य बड़े पैमाने पर द्वेष-
भाि ईत्पन्न होता है।
तत्काल तीन तलाक भारत में प्रचनलत आस्लानमक तलाक का एक स्िरूप है। आसके तहत एक मुनस्लम
व्यनि मौनखक, नलनखत या हाल ही में प्रचनलत आलेक्रॉननक माध्यम से तीन बार तलाक िब्द बोल
करके ऄपनी पत्नी को िैधाननक रूप से तलाक दे सकता है। आस प्रथा ने न्याय, लैंनगक समानता,
मानिानधकार एिंपथ
ं ननरपेक्षता से संबंनधत मुद्दों के संदभथ में निनभन्न नििादों एिं चचाथओं को गनत
प्रदान की है।
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िायरा बानो बनाम भारत संघ िाद (2017) में ईच्चतम न्यायालय ने 3:2 के बहुमत द्वारा तीन तलाक
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की प्रथा को ऄसंिैधाननक घोनषत ककया है।
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यह संनिधान के ऄनुच्छेद 14 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल ऄनधकारों को बनाए रखते हुए समानता
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आसके द्वारा नििेष रूप से मुनस्लम मनहलाओं हेतु लैंनगक समानता को सुनननित ककया गया है
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क्योंकक तीन तलाक की व्यिस्था ईनके मध्य ऄसुरक्षा की भािना ईत्पन्न करती थी। स्िेच्छाचारी
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यह ननणथय मूलभूत संिैधाननक प्रािधानों का समथथन करता है, क्योंकक संनिधान द्वारा प्रदत मूल
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ककया। निनभन्न मनहला संगठनों द्वारा आस प्रनतबंध का निरोध ककया गया था। ऄंतत: बॉमबे ईच्च l.c
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चानहए। न्यायालय ने यह भी कहा कक रस्ट संनिधान में स्थानपत मूल ऄनधकारों (ऄथाथत् ऄनुच्छेद
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Series Questions)
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हालांकक, यह तकथ कदया जाता है कक पंथननरपेक्षता धार्ममक सद्भाि का एक ईत्पाद नहीं है।
िास्ति में, धार्ममक सद्भाि के िल तभी साध्य है जब िहां पंथननरपेक्षता ईपनस्थत हो। यह
खास कर भारत जैसे बहु-धार्ममक समाज के नलए एक यथाथथ स्िरूप है। आस प्रकार के समाज
में कै से पंथननरपेक्षता स्थानपत होती है आसका ईत्तर राज्य एिं समाज के द्वारा मूल्यों और
नैनतकता को समािेनित करने की क्षमता में नननहत है, नजसे तकथ िनि एिं मानितािाद द्वारा
प्रनतस्थानपत ककया गया हो। यह सुनननित करना भी महत्िपूणथ है कक पंथननरपेक्षता नििेष
रूप से धमथ के दायरे में ऄिनस्थत न हो, परन्तु आसमें मानि ऄनस्तत्ि के ऄन्य क्षेत्रों जैसे
संस्कृ नत और ऄथथव्यिस्था जैसी पंथननरपेक्ष ऄिधारणा भी नननहत हो।
यह सुनननित करना महत्िपूणथ है कक धार्ममक मतभेद पृष्ठभूनम में रहें और एक साझा समबन्ध
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निनभन्न समूहों को एकजुट करता हो। यही कारण है कक पंनडत नेहरू ने भी यह तकथ कदया था
कक पंथननरपेक्षता के िल सामानजक न्याय के ऄिधारणा के भीतर ही ऄपने िास्तनिक स्िरूप l.c
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को प्राि कर सकती है। ईन्होंने एक पंथननरपेक्ष समाज के ननमाथण में ऄथथव्यिस्था की भूनमका
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पर बल कदया था। ईनके ऄनुसार अर्मथक कारक ही िास्तनिक तथ्य है।डॉ ऄमबेडकर जैसे
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है।
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आसके ऄनतररि, पंथननरपेक्षता का मूल ईद्देश्य सभी धार्ममक संप्रदायों के मध्य समानता को
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के नसद्ांत से व्युत्पन्न है। िास्ति में, यह तकथ कदया जाता है कक पंथननरपेक्षता जब लोकतांनत्रक
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समानता के नसद्ांत को संदर्मभत करती है तभी यह ऄपने ईद्देश्य एिं िास्तनिकता को प्राि
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करती है। तार्ककक रूप से, लोकतांनत्रक नसद्ांतों के प्रनत पूिथ प्रनतबद्ता सभी धार्ममक समूहों
की समानता के नलए एक अिश्यक ितथ है।
ऄभी भी, पंथननरपेक्षता की ऄिधारणा के िल धार्ममक सद्भाि के रूप में धमथ के एक एकाकी
(monolithic) निचार पर अधाररत है। आस प्रकार का निचार ऄपने ऄंदर नननहत मतभेद को
ध्यान में नहीं रखता। तथ्य यह है कक प्रत्येक संस्कृ नत के भीतर निनभन्न सांस्कृ नतक और
सामानजक समूह हैं नजनके मध्य निरोधाभास और ऄन्योन्यानश्रतता निद्यमान है। धमथ के भीतर
निद्यमान सांस्कृ नतक तथा सामानजक पदानुिमों के प्रचलन के कारण, धार्ममक सद्भाि लाने के
प्रयासों में ककसी भी धमथ के सभी ऄनुयानययों को िानमल नहीं ककया जा सकता है।
आस प्रकार आसके सृजन एिं बनाए रखने के नलए अिश्यक भौनतक और िैचाररक नींि के बगैर
सांप्रदानयक सद्भाि का ऄनुभि करना ऄत्यनधक करठन प्रतीत होता है। एक बहु-धार्ममक
समाज की िास्तनिकता को देखते हुए धार्ममक सद्भािना का महत्ि नननित ही तार्ककक है।
लेककन सांस्कृ नतक मतभेदों का समाधान करने हेतु यह पयाथि रूप से समािेिी//पूणथ नहीं है।
2. भारत में ऄल्पसंख्यकों को कै से पररभानषत ककया जाता है? क्या ऄल्पसंख्यकों के नलए नििेष
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धार्ममक ऄल्पसंख्यक - राष्ट्रीय ऄल्पसंख्यक अयोग ऄनधननयम, 1992 के ऄनुसार आनमें
मुसलमानों, नसखों, इसाआयों, बौद्ों,पारनसयों और जैननयों को सनममनलत ककया जाता l.c
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है। धमथ के ऄंतगथत संप्रदायों को धार्ममक ऄल्पसंख्यक नहीं माना जाता है।
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भाषाइ ऄल्पसंख्यक - िे मुख्य रूप से राज्य से संबद् होते हैं ककन्तु राष्ट्रीय स्तर पर
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संबद् नहीं होते हैं। भाषाइ ऄल्पसंख्यकों की ऄननिायथ रूप से पृथक बोली होनी चानहए।
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ध्यान कदया जाना है कक राष्ट्रीय स्तर पर 'सांनख्यकीय ऄल्पसंख्यक' ननर्ममत करने िाला समूह
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सभी राज्यों/के न्द्र राज्य क्षेत्रों में ऄल्पसंख्यक की प्रनस्थनत का ईपभोग नहीं कर सकता। TMA
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पाइ फाईं डेिन के मामले में सिोच्च न्यायालय ने ऄनुच्छेद 30(1) के ऄथथ के ऄंतगथत
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आस प्रकार, कें द्रीय और राज्य कानूनों के ऄनुप्रयोग के नलए धार्ममक और भाषाइ ऄल्पसंख्यकों
के संबंध में राज्यिार निचार ककया जाना अिश्यक है।
ऄल्पसंख्यकों औरपंथननरपेक्षता हेतु नििेष ऄनधकार
भारत के संनिधान के ऄंतगथत ऄल्पसंख्यकों के नलए सिथप्रथम मूल ऄनधकारों (ऄनुच्छेद 25 से
30) के रूप में सुरक्षा ईपाय ककए गए हैं। ऄनुच्छेद 29 ककसी भी नागररक की निनिष्ट भाषा,
नलनप या संस्कृ नत का संरक्षण करने के संबंध में चचाथ करता है, जबकक ऄनुच्छेद 30 ऄनधक
निनिष्ट है एिं िैनक्षक संस्थानों का व्यिस्थापन करने संबंधी धार्ममक और भाषाइ
ऄनभकनल्पत नहीं ककए गए थे, ऄनपतु ऄल्पसंख्यक संस्थाओं के संरक्षण को सुनननित कर एिं
आन संस्थानों के प्रिासन के मामले में स्िायत्तता की गारं टी द्वारा समानता लाने के नलए ककए
गए थे।
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आसनलए, आन नििेष ऄनधकारों को निरोधाभास के रूप में समझना समाज के सभी िगों की
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अिश्यकताओं को पूरा करने पर ध्यान के नन्द्रत ककए नबना,पंथननरपेक्षता के संबंध में एकांगी
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भारतीय समाज
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क्षेत्रवाद
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2. ववगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 11
3. ववगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________________ 18
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1. क्षे त्र (Region)
‘क्षेत्र’ शब्द को पररभावषत करना करिन है। आसे वभन्न-वभन्न प्रकार से वववभन्न संदभों में समझा जाता है।
यद्यवप, सामान्य तौर पर आसे "पडोसी क्षेत्रों से वभन्न भौवतक एवं सांस्कृ वतक वववशष्टताओं वाले एक
सजातीय क्षेत्र" के रूप में पररभावषत ककया जाता है।
क्षेत्र एक सापेक्ष शब्द है, वजसका ऄथथ आसके ईपयोग के साथ पररवर्ततत होता रहता है। जब भी हम
ककसी क्षेत्र के बारे में चचाथ करते हैं, तो सामान्य तौर पर हमारा तात्पयथ होता है कक यह क्षेत्र सामावजक-
सांस्कृ वतक रूप से वववशष्ट है और ऄपने रीवत-ररवाजों, परं पराओं, मूल्यों तथा अदशों की ऄवभज्ञता हेतु
पयाथप्त रूप से एकीकृ त है। आस ऄवभज्ञता के कारण सम्बद्ध क्षेत्र के लोगों में वववशष्ट पहचान की भावना
होती है, जो शेष क्षेत्रों (चाहे वह एक राष्ट्र ऄथवा महाद्वीप या किर पृथ्वी हो) से ऄलग होती है।
क्षेत्र, लोगों के मध्य एकजुटता की व्यापक साझी भावना को वचवन्हत करता है। यह एकजुटता, भूगोल,
स्थलाकृ वत, धमथ, भाषा, रीवत-ररवाज एवं अचार-ववचार, ववकास के राजनीवतक एवं अर्तथक चरण,
जीवन शैली तथा सामान्यतः साझा ऐवतहावसक ऄनुभवों आत्याकद का ही प्रवतिल है।
क्षेत्र, क्षेत्रीय पहचान के ईद्भव को अधार प्रदान करता है, पररणामस्वरूप क्षेत्र के प्रवत वनष्ठा में वृवद्ध
होती है और ऄंततः यह वनष्ठा, क्षेत्रवाद का अकार एवं स्वरूप ग्रहण कर लेती है। यह क्षेत्रीय राजनीवत
के वलए भी मागथ प्रशस्त करती है।
भारत में क्षेत्रवाद की राजनीवत में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही पहलू समावहत हैं। सकारात्मक
पहलुओं के संदभथ में, आसमें नृजातीय, भाषा, धमथ आत्याकद पर अधाररत पहचान को सुदढ़ृ करने की तीव्र
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आच्छा ऄन्तर्तनवहत होती है। ईदाहरण के वलए, वबहार, ईडीसा, पविम बंगाल तथा मध्य प्रदेश के दूरस्थ l.c
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क्षेत्रों तक ववस्तृत भूतपूवथ झारखंड अंदोलन ने स्वयं को सामावजक-अर्तथक तथा राजनीवतक वहतों की
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रक्षा और प्रोत्साहन के वलए एक एकीकृ त समूह के रूप में संगरित ककया। आस प्रकिया के ऄंतगथत
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जनजातीय समूहों की ऄपनी पहचान का पुनःपुवष्टकरण भी सवम्मवलत था। ऄंततः यह अंदोलन सरकार
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को राज्यों का पुनगथिन करने हेतु वववश करने में सिल रहा, वजसके पररणामस्वरूप 15 नवंबर 2000
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को झारखंड को भारतीय संघ के 28वें राज्य के रूप में गरित ककया गया। आसे वबहार राज्य से ऄलग कर
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एक नया राज्य बनाया गया और आसमें मुख्य रूप से छोटानागपुर पिार तथा संथाल परगना के वनीय
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क्षेत्रवाद का नकारात्मक पहलू है कक यह राष्ट्र वनमाथण के प्रयासों के समक्ष खतरा ईत्पन्न कर सकते हैं
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जैसे कक पंजाब में खावलस्तान की मांग ने पंजाब तथा आसके अस-पास के क्षेत्रों में अतंकवाद तथा हहसा
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को बढ़ावा कदया था। आसके सकारात्मक पहलुओं को भारतीय राजनीवतक पररवस्थवत के ऄवधकांश
ववश्लेषकों द्वारा नजरऄंदाज कर कदया गया है। यह पररघटना ककसी क्षेत्र के लोगों की सापेक्ष वंचना की
मनोवृवि को दशाथती है। आनके ऄनुसार वंचना को आन लोगों पर सिाधारी लोगों द्वारा जानबूझकर
थोपा जाता है, ववशेषकर जब सामावजक-अर्तथक कायथिमों के पररणामस्वरूप वववभन्न क्षेत्रों की व्यापक
अर्तथक ऄसमानताओं में वृवद्ध होती हैं। आससे देश के वपछडे या ऄववकवसत क्षेत्रों में ऄसंतोष तथा
व्यग्रता में वृवद्ध होती है।
यद्यवप क्षेत्र की ऄवधारणा क्षेत्रवाद की संकल्पना के साथ वनकटता से सम्बद्ध है। चचाथ करते हैं कक
क्षेत्रवाद का क्या अशय है।
क्षेत्रवाद: क्षेत्रवाद को ऐसी पररघटना के रूप में पररभावषत ककया जा सकता है वजसमें लोगों की
राजनीवतक वनष्ठा एक क्षेत्र पर कें कित रहती है। ऄन्य शब्दों में, आसका तात्पयथ लोगों का देश ऄथवा
राज्य (वजसका यह क्षेत्र एक भाग है) के स्थान पर क्षेत्र ववशेष को वनष्ठा देने की वरीयता से है। आस
प्रकार क्षेत्रवाद की पररघटना क्षेत्र की ऄवधारणा के आदथ-वगदथ ही कें कित होती है।
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स्वतंत्रता प्रावप्त के पिात्, लोकतांवत्रक सरकार की स्थापना की गइ। आसका मुख्य ईद्देश्य लोकतंत्र,
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पंथवनरपेक्ष, राष्ट्रीय एकता और सामावजक न्याय के वसद्धांतों पर राष्ट्र वनमाथण करना था। देश के
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सभी भाग राष्ट्र वनमाथण में ईवचत भागीदारी चाहते थे। ईन्होंने ऄपने ववकास के वलए एक-दूसरे के
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साथ प्रवतस्पधाथ करना प्रारं भ ककया। ऄपेक्षा से कम प्रावप्त ने ऄसंतोष को जन्म कदया और आसके
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आसी दौरान ररयासतों का एकीकरण हुअ था। तब छोटे राज्यों को बडे राज्यों के साथ एकीकृ त
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ककया गया था। लोगों ने पुरानी क्षेत्रीय आकाआयों के प्रवत ऄपनी वनष्ठा को बनाए रखा। यह चुनावों
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में शासकों की सिलता के वलए सबसे महत्वपूणथ कारक था। ऄवधकांशतः शासकों को नव वनर्तमत
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राज्यों में ववद्यमान ऄपने पूवथ क्षेत्रों से ऄत्यवधक समथथन प्राप्त हुअ था और ईसी राज्य के ऄन्य
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भाषाइ अधार पर राज्यों के पुनगथिन ने भी क्षेत्रीय राजनीवत के ववकास में एक बहुत ही महत्वपूणथ
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भूवमका वनभाइ थी। के न्िीय प्रशावसत क्षेत्रों सवहत 28 राज्यों को पुनगथरित और आनकी संख्या 14
कर दी गइ। बाद में नए राज्य गरित ककए गए, ईदाहरण के वलए बॉम्बे को गुजरात और महाराष्ट्र,
पंजाब को पंजाब और हररयाणा में ववभावजत ककया गया था। परन्तु आन राज्यों को पूणथ रूप से
भाषाइ अधार पर गरित नहीं ककया गया था। नृजातीय-सह-अर्तथक ववचारों जैसे कइ ऄन्य
कारकों के पररणामस्वरूप नागालैंड, मेघालय, मवणपुर, वत्रपुरा, झारखंड, हररयाणा, पंजाब और
छिीसगढ़ राज्यों का वनमाथण ककया गया। भाषा-सह-संस्कृ वत कारकों के तहत महाराष्ट्र, गुजरात
और ईिरांचल राज्यों का वनमाथण ककया गया; यू.पी. और वबहार के वलए ऐवतहावसक एवं
राजनीवतक कारक ईिरदायी थे; ररयासतों के एकीकरण और व्यावहाररक समूहों की अवश्यकता
के वलए मध्यप्रदेश और राजस्थान का वनमाथण ककया गया; भाषा और सामावजक वववशष्टता के
पररणामस्वरूप तवमलनाडु , के रल, मैसूर, बंगाल और ईडीसा का वनमाथण हुअ। आस प्रकार वववभन्न
कारकों ने भारतीय संघ की संरचना में वनणाथयक भूवमका वनभाइ है।
क्षेत्रवाद एक बहुअयामी घटना है। आसके अधार वभन्न-वभन्न हैं। यहां हम क्षेत्रवाद के भौगोवलक,
ऐवतहावसक, सांस्कृ वतक,अर्तथक और राजनीवतक-प्रशासवनक अधार पर चचाथ करें गे।
भौगोवलक अधार: सामान्य तौर पर लोग ऄपनी क्षेत्रीय पहचान को कु छ वववशष्ट भौगोवलक
सीमाओं से जोडते हैं। स्वतंत्रता के पिात देसी ररयासतों के एकीकरण के पररणामस्वरूप छोटे
राज्यों का नए बडे राज्यों में ववलय हुअ। नागररकों की वनष्ठा पुराने क्षेत्रीय सीमाओं और नइ
क्षेत्रीय संरचनाओं के बीच ववखंवडत हो गइ थी। जैसा कक पूवथ में ईल्लेवखत ककया जा चुका है,
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चुनावों में राजा की सिलता के प्रवत यह प्रमुख ईिरदायी कारक था, ववशेषकर जब ईन्होंने नव
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वनर्तमत प्रांतो में ववद्यमान ऄपने पूवथवती क्षेत्रों से चुनाव लडा था। हालांकक, भौगोवलक सीमाओं को
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आस संदभथ में ऄत्यवधक महत्व कदया जाना गलत होगा।यह सत्य है कक ररयासतों की पुरानी
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भौगोवलक सीमाओं की यादें ऄभी भी लोगों को परे शान करती हैं और राजनीवतक नेताओं द्वारा
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आसका दुरूपयोग ककया जाता है परन्तु आससे शायद ही आनकार ककया जा सकता है कक वे
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राजस्थान, मध्य प्रदेश और ईडीसा जैसी नइ और बडी क्षेत्रीय पहचानों को स्थान प्रदान कर रहे हैं।
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मूल वसद्धांत हैं। आस श्रेणी के कइ घटक न के वल व्यविगत रूप से महत्वपूणथ हैं, ऄवपतु एक-दूसरे के
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ववकास मे सहायक है। तवमलनाडु में िववड कडगम (DK) और िववड मुनेत्र कडगम (DMK)
और महाराष्ट्र में वशवसेना और अंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पाटी (TDP) आसका सवोिम
ईदाहरण है। परन्तु आवतहास को क्षेत्रवाद के सबसे महत्वपूणथ अधार के रूप में नहीं माना जा
सकता है। अर्तथक और राजनीवतक कारकों ने आवतहास के साथ संयुि रूप से क्षेत्रवाद की
भावना का सृजन ककया है। आसे पुनः DMK की भारतीय संववधान के संघीय ढांचे से ऄलग
होने संबंधी मांग के बदलते रुख के रूप में देखा जा सकता है।
o भाषा: भाषा ककसी समूह की पहचान का संभवतः सबसे महत्वपूणथ संकेत है। भाषा लोगों के
साझे जीवन, हचतन और ऄंतर्तनवहत मूल्य प्रवृवतयों को व्यि करता है। आसमें लोगों को
एकजुट करने और ईन्हें ऄपने एक सामान्य लक्ष्यों में सुधार करने में सहायता करती है। आस
प्रकार ऄन्य शब्दों में कहा जाए तो भाषाइ एकरूपता सकारात्मक अंदोलन को सुदढ़ृ बनाती
है।
1920 के अरं भ में, कांग्रेस ने आस वसद्धांत स्वीकार कर वलया था कक प्रांतीय आकाआयों की क्षेत्रीय
सीमाओं को वनधाथररत करने के वलए भाषा को मानक के रूप में ऄपनाया जाना चावहए। 1955 में राज्य
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हेतु की जाने वाली मांग के रूप में देखा जा सकता है। l.c
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आस प्रकार क्षेत्रवाद भाषा से घवनष्ठ रूप से संबंवधत है परन्तु यह भाषावाद (linguism) का पयाथय नहीं
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है। ककसी भाषायी राज्य के भीतर क्षेत्रवाद का ववकास हो सकता है (ईदाहरण के वलए मरािी भाषी
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संदर्तभत ककया जाता है। ईन्होंने ऄपनी ववकास अधाररत समस्याओं के अधार पर स्वयं को सुगरित
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करने का प्रयास ककया है। आन राज्यों ने एक क्षेत्रीय पहचान ववकवसत करने की भी कोवशश की है। आन
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सात राज्यों में ऄसम, ऄरुणाचल प्रदेश, मवणपुर, मेघालय, वमजोरम, नागालैंड और वत्रपुरा शावमल हैं।
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दूसरे शब्दों में, भाषा क्षेत्रवाद को ववकवसत करने का एकमात्र साधन नहीं है। यह भारत में क्षेत्रवाद को
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ईत्पन्न करने वाले वववभन्न कारकों में से एक है। भाषाइ क्षेत्रवाद के ऄवधकांश मामलों में अमतौर पर
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हैं। यह सवथववकदत है कक कांग्रेस के ऄंदर हुइ लडाइ ने तेलंगाना अंदोलन की ईत्पवि की। TDP
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(अंध्र प्रदेश), DMK (तवमलनाडु ), ऄकाली दल (पंजाब) जैसे क्षेत्रीय राजनीवतक दलों का ऄवस्तत्व
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क्षेत्रीय भावनाओं के अधार पर हैं। महाराष्ट्र और कनाथटक के मध्य सीमा वववाद जैसे मुद्दे भी क्षेत्रीय
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भावनाओं पर अधाररत हैं। सिारूढ़ वववशष्ट वगथ द्वारा वववभन्न क्षेत्रों के बीच ककए जाने वाले
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कारक हैं।
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राज्यों या क्षेत्रों के लोगों द्वारा भारतीय संघ से पृथक होने और स्वतंत्र संप्रभु राज्य के गिन की
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मांग करना था। स्वतंत्रता के तुरंत पिात ऐसी मांगें की जाने लगी लेककन ऄब ईनमे से ऄवधकांश
ऄवस्तत्व में नहीं हैं। आस संदभथ में महत्वपूणथ ईदाहरण प्लेवबसाआट फ्रंट (कश्मीर), वमजो नेशनल फ्रंट
(ऄसम की लुशाइ पहावडया), नागालैंड सोशवलस्ट कॉन्फ्रेंस (ऄसम के नागा पवथतीय वजला) अकद
हैं।
सुप्रा-स्टेट क्षेत्रवाद (Supra-state Regionalism): आसका तात्पयथ है कक क्षेत्रवाद के मुद्दे में एक
से ऄवधक राज्य सवम्मवलत हैं। यह कु छ राज्यों की सामूवहक पहचान की ऄवभव्यवि है। ये राज्यों के
ऄन्य समूह के साथ अपसी वहत के मुद्दों पर समान पक्ष रखते हैं। सामूवहक पहचान सामान्य तौर
पर कु छ वववशष्ट मुद्दों के संबंध में होती है। यह ककसी भी तरह से समूह की पहचान में राज्यों की
पहचान के सम्पूणथ एवं स्थायी ववलय को आं वगत नहीं करता है। ककसी समूह से संबंवधत कु छ राज्यों
में प्रवतद्वंवद्वता, तनाव और यहां तक कक संघषथ भी होते हैं।
ईदाहरण के वलए, दवक्षण और ईिर भारत के मध्य भाषा या आस्पात संयत्र
ं ों की ऄववस्थवत जैसे मुद्दों
पर ववद्यमान प्रवतद्वंवद्वता आस तथ्य को स्पष्ट करती है। अर्तथक ववकास तक ऄवधकावधक पहुंच के वलए
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वजनकी भाषा का हजारों वषों का समृद्ध आवतहास रहा है, तुलनात्मक रूप से ऄववकवसत भाषा के
ऄवधरोपण के रूप में देखा गया। l.c
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1950 के दशक में हहदी के ऄवधरोपण का ववरोध करने हेतु कइ अंदोलन हुए। 1956 में,ऄकै डमी ऑफ़
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तवमल कल्चर चेन्नइ द्वारा यूवनयन लैंग्वेज कन्वेंशन अयोवजत ककया गया। आसके एक प्रस्ताव में यह
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प्रस्तुत ककया गया कक 100 वमवलयन की अबादी के ककसी भाषा (ऄथाथत हहदी) से पूणत
थ या ऄनवभज्ञ
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आस सम्मेलन में महत्वपूणथ रूप से वववभन्न राजनीवतक संगिनों के प्रवतवनवध जैसे राजगोपालाचारी
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(स्वतंत्र), रामास्वामी नायकर (D.K), राजन (जवस्टस पाटी), ऄन्नदुराइ (DMK) और कइ ऄन्य
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प्रवतवनवध शावमल थे। 8 माचथ 1958 को अयोवजत एक राष्ट्रीय सम्मेलन में राजगोपालाचारी के द्वारा
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घोषणा की गयी कक 'गैर-हहदी भाषी लोगों के वलए हहदी ईतनी ही ववदेशी है, वजतनी हहदी के समथथकों
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के वलए ऄंग्रेजी'।
दवक्षण भारत में हहदी के बढ़ते ववरोध को देखते हुए 1959 में नेहरू ने दवक्षण के लोगों को अश्वासन
कदया कक (A) ईन पर हहदी थोपी नहीं जाएगी और (B) ऄंग्रेजी एक सहयोगी क्षेत्रीय भाषा होगी
वजसका ईपयोग अवधकाररक ईद्देश्य के वलए ककया जा सकता है जब तक कक लोगों को आसकी
अवश्यकता होगी। वनणथय हहदी भाषी लोगों पर नहीं बवल्क गैर-हहदी भाषी लोगों पर छोड कदया
जाएगा।
1964 के ऄंत में कइ घटनाओं ने दवक्षण भारत के "हहदी साम्राज़्यवाद" के भय को पुनजीववत ककया।
पंवडत जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के साथ हहदी के ऄवधरोपण संबंधी दवक्षण भारत का भय पुनजीववत
हो गया। 15 वषथ की समावप्त के साथ आस हचता में वृवद्ध हुइ, जब ऄंग्रेजी के स्थान पर हहदी का
अवधकाररक भाषा के रूप में प्रयोग ककया जाना था। अवधकाररक भाषा ऄवधवनयम, 1963 द्वारा भी
गैर-हहदी भाषी दवक्षणी राज्यों को समाप्त नहीं ककया जा सका, वजससे कें ि और राज्यों दोनों स्तरों पर
ऄंग्रेजी का वनरं तर ईपयोग संभव हो गया।
ऄवधरोवपत ककए जाने के ववरुद्ध छात्र समुदाय ने अंदोलन शुरू ककया। DMK ने आस अंदोलन का
नेतृत्व ककया तथा ऄत्यवधक प्रवतष्ठा प्राप्त की। दो वषथ पिात् तवमलनाडु राज्य में हुए चुनाव में यह
सिाधारी पाटी बन गइ।
DMK ने आस बात पर बल कदया कक सभी चौदह भाषाएं संबंवधत राज्यों की अवधकाररक भाषाएं होंगी
वजसके साथ ऄंग्रज
े ी को राज्यों और कें ि के मध्य एक संपकथ भाषा के रूप में ऄपनाया जाएगा।
कम्युवनस्टों के साथ-साथ कामराज ने एक वत्र-भाषा सूत्र (जैसे ऄंग्रज
े ी, हहदी और मातृभाषा) का समथथन
ककया। जून 1965 में यह घोषणा की गइ कक कामराज (कांग्रस
े के ऄध्यक्ष) द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को
स्वीकृ त कर वलया गया है। भारत सरकार के भाषा नीवत संकल्प में हहदी, ऄंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय
भाषा को अवधकाररक मान्यता प्रदान की गयी।
आस नीवत संकल्प ने यह भी संकेत प्राप्त हुअ कक हहदी के ववकास हेतु कदम ईिाए जाने चावहए। ऄंग्रेजी
की एक महत्वपूणथ संपकथ भाषा के रूप में पहचान जारी रही। ईपयुथि वर्तणत घटनाओं से पता चलता है
कक भाषा एक महत्वपूणथ मुद्दा बन गइ थी वजसके आदथ-वगदथ सुप्रा-स्टेट क्षेत्रवाद ववकवसत हुअ।
ऄंतरराज्यीय क्षेत्रवाद: यह राज्य की सीमाओं से संबंवधत है तथा आसमें एक या ऄवधक राज्य की
पहचानों का ऄवतव्यापन शावमल है, जो ईनके वहतों के समक्ष खतरा ईत्पन्न करती हैं। सामान्य रूप
से, नदी जल वववाद को तथा ववशेष रूप से, महाराष्ट्र-कनाथटक सीमा वववाद जैसे ऄन्य मुद्दों को
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ईदाहरण के रूप में ईद्धृत ककया जा सकता है।
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ऄंतरराज्यीय क्षेत्रीय राजनीवत या ईप-क्षेत्रवाद: आससे अशय भारतीय संघ के ककसी राज्य के
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अकांक्षा का प्रतीक है। यह राज्य के एक भाग के ववकास हेतु ऄन्य भाग की वंचना या शोषण की
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धारणा को भी प्रवतहबवबत कर सकता है। क्षेत्रवाद का आस रूप को भारत के कइ वहस्सों में देखा जा
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सकता है। आस तरह के ईप-क्षेत्रवाद के महत्वपूणथ ईदाहरण महाराष्ट्र में ववदभथ, गुजरात में सौराष्ट्र,
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अंध्र प्रदेश में तेलंगाना, ईिर प्रदेश में पूवी ईिर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में छिीसगढ़ हैं।
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भूवम पुत्र की संकल्पना: यह लोगों को ईनके जन्म स्थान से जोडती है और ईन्हें कु छ लाभ,
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ऄवधकार, भूवमका एवं ईिरदावयत्व प्रदान करती है जो ऄन्य लोगों पर लागू नहीं हो सकते हैं। आस
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संकल्पना को संसाधनों व रोजगार हेतु प्रवतस्पधाथ तथा अर्तथक ऄसमानताओं आत्याकद जैसे कारकों
के माध्यम से सुस्पष्टता वमलती है। क्षेत्रवाद की भावना के ववकास हेतु ईिरदायी आस संकल्पना के
कायाथन्वयन के ईदाहरण के ऄंतगथत वशवसेना द्वारा महाराष्ट्र के वहतों की रक्षा के वलए ऄवभयान,
ऄसम में बोडो और बंगाली भाषी मुवस्लमों के बीच संघषथ तथा कइ ऄन्य ऄवभयान शावमल हैं।
यह ककसी वववशष्ट क्षेत्र के वववभन्न समूहों में एकता की भावना में वृवद्ध कर सकता है। एक क्षेत्र से
संबंवधत लोग ऄपने वनवहत वहतों के संरक्षण हेतु वववभन्न मतभेदों को दरककनार करते हुए एकजुट
हो सकते हैं। जैस-े 1985 में गरित वत्रपुरा जनजातीय स्वायि वजला पररषद ने पूवथ
ऄलगाववाकदयों को लोकतांवत्रक मंच प्रदान करके राज्य में वववभन्न संकटग्रस्त जनजातीय पहचान
को संरक्षण प्रदान ककया है तथा राज्य में राजनीवतक ऄवतवाद के अधार को कमजोर ककया है।
यह राष्ट्रीय ऄखंडता को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत कर सकता है, क्योंकक ककसी वववशष्ट क्षेत्र के प्रवत
वनष्ठा को देश के प्रवत वनष्ठा की तुलना में ऄवधक वरीयता दी जाती है।
राजनीवतक लाभ के वलए वोट बैंक के वनमाथण के ईद्देश्य से आसका दुरुपयोग ककया जा सकता है।
क्षेत्रवादी एवं ऄलगाववादी मााँगों पर वनयंत्रण के वलए ववकासात्मक योजनाओं को ऄसमान रूप से
कायाथवन्वत ककया जा सकता है। आस प्रकार, क्षेत्रवाद ऄसंतुवलत ववकास का कारण बन सकता है।
क्षेत्रीय मााँगों की प्रावप्त हेतु ककये जाने वाले अंदोलनों के दौरान कानून एवं व्यवस्था में व्यवधान
ईत्पन्न हो जाने के कारण हहसक घटनाएं हो सकती हैं।
यह बाह्य कारकों (जैस-े अतंकवादी समूहों, चरमपंथी समूहों) को क्षेत्रीय मुद्दों में सवम्मवलत होने
और भीड को ईिेवजत कर ऄशांवत ईत्पन्न करने का ऄवसर प्रदान कर सकता है।
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(Is Regionalism a threat to National Integration?) l.c
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क्षेत्रवाद का महत्व के वल एक ववघटनकारी तत्व के रूप में ही नहीं है। क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकीकरण का
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ववरोध नहीं करता है। दोनों रचनात्मक भागीदारी में एक साथ ववद्यमान हो सकते हैं। दोनों ही ववकास
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क्षेत्रवाद, एक ववशेष क्षेत्र के ववकास पर और राष्ट्रीय एकीकरण, समस्त देश के ववकास पर बल देता है।
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क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकजुटता में बाधक नहीं होता है। राष्ट्रीय एकजुटता के वलए महत्वपूणथ वस्थवत यह है कक
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राष्ट्रवाद वववभन्न प्रकार की क्षेत्रीय ईप-राष्ट्रीयताओं को एक साथ बनाए रखने में सक्षम होना चावहए।
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दूसरे शब्दों में, क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच ईवचत सामंजस्य स्थावपत होना चावहए।
क्षेत्रवाद, संघवाद को और ऄवधक सिल बना सकता है। यह तभी संभव हो सकता है जब क्षेत्रीय
पहचान पर कदए जाने बल का कोइ भी पहलू समस्या व्युत्पन्न न करे । यह पूणथतया स्वाभाववक है कक
ऄपनी वववशष्ट संस्कृ वत के प्रवत क्षेत्रीय समुदायों को ऄवधकावधक समान भागीदारी के अधार पर संघीय
सरकार के साथ समन्वय स्थावपत करना चावहए।
यह ककसी राष्ट्र के कें िीकरण की प्रवृवियों को दुबल
थ बनाएगा वजससे सिा कें ि से राज्यों की ओर
स्थानांतररत हो जाएगी। ककसी भी रूप में क्षेत्रवाद और ईप-क्षेत्रवाद की कल्पना भारत जैसे ववशाल
और ववववधता पूणथ देश में ऄपररहायथ है। आसका ऄवस्तत्व के वल वास्तववक राष्ट्रीय भावनाओं की
ऄवभव्यवि के वलए ही एक महत्वपूणथ शतथ के रूप में नहीं है, बवल्क यह राष्ट्र-राज्य की स्थापना के कारण
तकथ संगत रूप से ईत्पन्न हुअ है। क्षेत्रवाद और ईप-क्षेत्रवाद के ऄवतररि ऄन्य कोइ भी ऄवधारणा,
संघवाद की ऄवधारणा हेतु मूलभूत अधार प्रदान नहीं करती है।
1. लोगों द्वारा ईनके राज्यों या क्षेत्रों में ईन्हें कायथ करने के एकमात्र नहीं परन्तु प्रमुख ऄवधकार
प्रदान करने का समथथन करने सम्बन्धी वववभन्न ईदाहरण ववद्यमान हैं। आन 'भूवम पुत्र'
अंदोलनों के ववकास हेतु ईिरदायी अर्तथक, जनसांवख्यकीय और सामावजक-सांस्कृ वतक
कारकों का ववश्लेषण कीवजए।
दृवष्टकोण:
प्रश्न 'भूवम पुत्र' या मूलवनवासी अंदोलनों के मुद्दे से संबंवधत है। भूवम पुत्र अंदोलनों का
संवक्षप्त वववरण दीवजए। आस वववरण के दौरान आन अंदोलनों की ववशेषताओं, आनके
ववकास हेतु ईिरदायी कारकों, संदभथ आत्याकद को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास
कीवजए ताकक मूलवनवासी अंदोलनों और भाषाइ या ऄलगाववादी अंदोलनों के बीच
भेद के संबंध में कोइ भ्रम न रहे। ईिर में क्षेत्रीय अंदोलनों के आन दो ऄन्य प्रकारों/रूपों
का ईल्लेख करने की अवश्यकता नहीं है। लेककन मूलवनवासी अंदोलनों की अपकी
व्याख्या स्पष्ट होनी चावहए, ताकक यह स्पष्ट रूप से समझा जा सके कक भूवम पुत्र अंदोलन
क्या है।
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तत्पिात, आन अंदोलनों के ववकास हेतु ईिरदायी अर्तथक, जनसांवख्यकीय और l.c
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ईिर:
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भारत के कु छ वहस्सों में साि और सिर के दशक में ‘भूवम पुत्र' या मूलवनवासी अंदोलनों का
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ईदय हुअ था। 'भूवम पुत्र' अंदोलनों के तहत लोगों द्वारा ईनके भाषाइ राज्यों या क्षेत्रों में ईन्हें
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कायथ करने के एकमात्र नहीं, परन्तु प्रमुख ऄवधकार प्रदान ककये जाने तथा ऄन्य भाषाइ
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समुदाय के लोगों के हस्तक्षेप के वबना अर्तथक लाभ प्राप्त करने संबंधी मांग अरम्भ की गइ।
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यह मांग अर्तथक थी, परन्तु आसे वववशष्ट भाषाइ पहचान के माध्यम से प्रस्तुत ककया गया।
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साि एवं सिर के दशक की वशवसेना और 1985 में समाप्त हुए ऄसम अंदोलन, को आस शैली
से संबंवधत माना जा सकता है। दोनों मामलों में शत्रु 'बाहरी लोग' हैं जो भूवम पुत्रों ऄथवा
मूल वनवावसयों को मूल राज्य द्वारा प्रदि अर्तथक प्रगवत के लाभों से वंवचत करते हैं।
आस प्रकार ये अंदोलन ऄपनी अर्तथक मांगों में महत्वपूणथ भाषाइ तत्व को बनाए रखते हैं तथा
भाषाइ अधार पर भेदभाव के माध्यम से अर्तथक मांगों को पूरा करने की मांग भी की जाती
है। ऄन्य राज्यों और वह भी, आन राज्यों के कु छ भाषाइ समूहों को मूल वनवावसयों द्वारा खतरे
के रूप में देखा जाता है और आन्हें ववशेष रूप से दुभाथवनापूणथ रूप से पृथक ककया जाता है।
संपूणथ देश को कभी भी ईिरदायी नहीं माना जाता है। वे स्वीकार करते हैं कक के वल कें ि
सरकार द्वारा ही ईनकी वशकायतों का वनवारण ककया जा सकता है। यद्यवप आन अंदोलनों को
अमतौर पर मजबूत लोकवप्रय समथथन प्राप्त होता है, परन्तु ये एक दुःसाध्य समस्या को जन्म
देते हैं क्योंकक ये ऄन्य नागररकों के ववरुद्ध भेदभाव का सकिय रूप से समथथन करते हैं। जबकक
सैद्धांवतक रूप में, राज्य के रोजगार के मामलों में आन नागररकों को भी समान ऄवधकार प्राप्त
होने चावहए।
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वनवास करते हैं। ऐसी वस्थवत में, एक राजनीवतक दल ऄल्पसंख्यक के ववरुद्ध कारथ वाइ के
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अर्तथक कारक:
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अर्तथक स्व-वहत। वनधथन व्यवि असानी से ववश्वास कर लेते हैं कक अप्रवासन ईन्हें सबसे
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2. स्वातंर्योयोिर भारत, क्षेत्रवाद के चरम रूप की कइ घटनाओं का साक्षी रहा है। क्या क्षेत्रवाद,
राष्ट्रीय ऄखंडता के वलए खतरा है? संवध
ै ावनक ढांचे के ऄंतगथत क्षेत्रीय अकांक्षाओं का
समाधान ककस प्रकार ककया जा सकता है?
दृवष्टकोण:
क्षेत्रवाद की संवक्षप्त पररभाषा दीवजए।
भारत में क्षेत्रवाद की भावना के ईदय पर प्रकाश डावलए।
ककस प्रकार यह भारत ऄखंडता के वलए एक खतरा है, वणथन कीवजए।
कु छ ऐसे संवैधावनक प्रावधानों का ईल्लेख कीवजए जो क्षेत्रीय अंकाक्षाओं का समाधान
कर सकते हैं।
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ईन्हें ऄपनी संस्कृ वत को बनाए रखने एवं ऄपनी अवश्यकताओं के ऄनुरूप ववकास करने
का ऄवसर प्रदान करता है। l.c
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ऄनुच्छेद 371 में कु छ राज्यों की समस्याओं के समाधान हेतु ववशेष प्रावधान ककया गया
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है।
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3. देश के नागररकों के मध्य भाइचारे की सामूवहक भावना को बढ़ावा देने में नस्लीय समानताएं
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के समक्ष देश के ऄन्य भागों में अ रही समस्याओं का परीक्षण कीवजए। आस संबध ं में सरकार
द्वारा ईिाए गए कदमों का भी ववश्लेषण कीवजए।
दृवष्टकोणः
गाली-गलौच के ववववध घटनाओं का ववश्लेषण कीवजये; ईदाहरण के वलए, यह दशाथने के
वलए नीडो तावनया ह्त्या मामले और बंगलोर से पूवोिर भारतीयों के वनगथमन की चचाथ
कीवजये कक ककस प्रकार पूवोिर भारतीयों से नस्लीय समानता की कमी मुख्य भूवम के
वनवावसयों के बीच ईनके ववदेशी होने के भाव का संचार करती है और ककस प्रकार आससे
आन दोनों पक्षों के बीच वववाद ईत्पन्न होता है। आसके ऄवतररि, आस समस्या के समाधान
के वलए सरकार द्वारा ईिाये गए कदमों का ईल्लेख कीवजये और भववष्य में आस समस्या
के समाधान के वलए ईपाय सुझाआए।
ईिरः
बंगलौर में लोइताम ररचडथ की रहस्यमयी मृत्यु, नयी कदल्ली में रै म्चैन्िी होंग्रे की ह्त्या, डाना
संगमा के द्वारा की गयी अत्म-ह्त्या और आस तरह की ऄन्य घटनाएं ईन ऄसुरवक्षत वस्थवतयों
कदल्ली पुवलस ने पूवोिर के लोगों द्वारा सामना की जाने वाली ककसी भी समस्या के
समाधान के वलए नयी यूवनट की स्थापना करने तथा एक हेल्पलाआन नंबर की शुरुअत
करने सवहत वववभन्न कदमों की घोषणा की है।
िरवरी, 2014 में गृह मंत्रालय ने एक सवमवत का गिन ककया है। यह सवमवत देश के
वववभन्न वहस्सों ववशेष रूप से महानगरों में वनवास कर रहे पूवोिर के लोगों की
समस्याओं की जांच-पडताल करे गी तथा ईन समस्याओं का समाधान करने से संबंवधत
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ईपायों संबंध में सरकार को ईवचत परामशथ प्रदान करे गी।
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सरकार ने ववद्यालय पाठ्यिम में पूवोिर भारत के आवतहास को सवम्मवलत करने को भी
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प्रोत्साहन प्रदान ककया है। यह कदम पूवोिर को मुख्य-धारा के और वनकट लाने में
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ईन लोगों द्वारा जो ईनके ऄवस्तत्व का कोइ सम्मान नहीं करते हमेशा ही कु चला जाएगा।
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है। आसे जागरूकता ऄवभयानों के माध्यम से, तथा मुख्य भूवम के लोगों को पूवोिर के
वववशष्ट आवतहास, संस्कृ वत, भाषा के प्रवत वशवक्षत कर दूर ककया जा सकता है।
ज्ञान की आस ऄसंबद्धता को समाप्त करने के वलए राज्य वशक्षा बोडों या ऄन्य के न्िीय
वशक्षा बोडों, ववशेष तौर से NCERT के पाठ्यिमों में वषों से ईपेवक्षत पूवोिर क्षेत्र या
दवक्षणी क्षेत्र या ऄन्य ककसी क्षेत्र के ववषय में ऄपेक्षाकृ त ऄवधक जानकारी ईपलब्ध
कराना एक महत्वपूणथ कदम होगा।
पुवलस द्वारा FIR दजथ कर तथा नस्लीय दुव्यथवहार के मामले में तीव्र गवत से कारथ वाइ कर
ऄपने ईिरदावयत्व का ईवचत वनवथहन करना।
एक और महत्वपूणथ कदम पूवोिर क्षेत्र में ही रोजगार के दीघथकावलक ऄवसरों का सृजन
कर पूवोिर से लोगों के कष्टकर प्रवास रोकना हो सकता है।
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अंदोलन, तेलंगाना (ऄब एक राज्य) अकद की मांग तथा (तवमलनाडु , अंध्र प्रदेश, के रल, l.c
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स्रोत हो सकती थी, परन्तु ऄसंतोष को ईत्पन्न करने और राजनीवतक व्यवस्था पर दबाव
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वववभन्न क्षेत्रों के बीच अर्तथक ऄंतर-वनभथरता ने वववभन्न शहरों और राज्यों में प्रवास
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करने की अवश्यकता को वांछनीय बना कदया है वजससे एक क्षेत्र ववशेष के प्रवत वनष्िा में
कमी अइ है।
राजनीवतक कारक- कें ि सरकार गरीब राज्यों की ववकास दर में वृवद्ध करती है ताकक
समृद्ध राज्यों एवं क्षेत्रों से ईनकी अर्तथक ववषमता ऄंतराल को कम ककया जा सके ।
योजना अयोग, BRGF, सबसे गरीब राज्यों को ववशेष श्रेणी का दजाथ, ऄनुदान अकद ने
समृद्ध और गरीब राज्यों के बीच की खाइ को पाटने का प्रयास ककया है। आस प्रकार, हम
कह सकते हैं कक 'भूवमपुत्र की संकल्पना’ की प्रवृवि ववपथन की है, लेककन सामान्य
भावना की बजाय आसका संबंध राजनीवतक ऄवसरवाद से कहीं ऄवधक है।
आस प्रकार, क्षेत्रीय ऄसमानताओं और क्षेत्रीय और ईप-क्षेत्रीय भावनाओं को कम करने में
योगदान देना।
सामावजक-सांस्कृ वतक कारक- भाषाइ अधार पर राज्यों के वनमाथण की मांग ने 1962 के
पिात् से और हाल ही में तेलंगाना के वनमाथण के साथ और ऄवधक महत्व प्राप्त ककया है।
5. भारत में क्षेत्रवाद की जडें न के वल भारत की भाषाओं, संस्कृ वतयों, जनजावतयों और धमों की
ववववधता में वनवहत हैं बवल्क वह क्षेत्रीय ऄपवंचनों की भावना से भी भडकता है। चचाथ
कीवजए।
दृवष्टकोण:
प्रस्तावना में भारतीय संदभथ में क्षेत्रवाद को संक्षेप में पररभावषत कीवजए।
क्षेत्रवाद के ववकास हेतु ईिरदायी वववभन्न कारकों और क्षेत्रीय ऄपवंचना की भावना का
आस घटना को भडकाने में भूवमका की चचाथ कीवजए।
वनष्कषथ में ईन मजबूत पक्षों को रे खांककत कीवजए वजसने भारत को क्षेत्रवाद से ईत्त्पन्न
चुनौवतयों का सामना करने में सक्षम बनाया है।
ईिर:
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एक ववचारधारा और राजनीवतक अंदोलन के रूप में क्षेत्रवाद, क्षेत्र के वहतों को प्रकट करने
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का प्रयास करता है। आसमें ईप-राज्य ऄवभकताथ (sub-state actors) के तीव्र गवत से
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शविशाली बनने की प्रकिया शावमल है। भारत में क्षेत्रवाद संस्कृ वत, भाषा, जनजावत, धमथ
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गया है:
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भाषा: भाषा, पहचान के मूल वसद्धांत का वनधाथरण करती है। आसने भारत के वववभन्न
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भागों में क्षेत्रवाद की भावना को प्रेररत ककया है। भूवम पुत्र संकल्पना आसकी एक
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में रहने वाले बहुसंख्यक भाषाइ समूह का ऄवधकार होता है या यह क्षेत्रीय भाषा बोलने
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वालों के वलए वववशष्ट “मातृभूवम” (homeland) होती हैl राजनीवतक रूप से क्षेत्रीय
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अकांक्षाओं को कम करने हेतु महाराष्ट्र और गुजरात जैसे भाषाइ राज्यों का गिन ककया
गया है।
जनजातीय पहचान: पूवोिर की क्षेत्रीय अकांक्षाएं मुख्य रूप से जनजातीय पहचान पर
अधाररत है। 1980 के दशक में ये अकांक्षाएं और ऄवधक महत्वपूणथ और प्रभावी हो गइ।
सम्पूणथ पूवोिर, क्षेत्र वववशष्ट पहचान के संरक्षण और क्षेत्रीय अकांक्षाओं को पूरा करने के
ईद्देश्य से पूणत
थ या पृथक राजनीवतक पुनगथिन का साक्षी रहा है।
अर्तथक ऄसमानता और क्षेत्रीय ऄपवंचना: ववववधता के भौगोवलक संकेन्िण के साथ-
साथ कवथत एवं वास्तववक क्षेत्रीय ऄपवंचना की भावना ने क्षेत्रवाद की पृष्ठभूवम तैयार
की है। ईदाहरण के वलए भारत के ववभाजन ने पूवोिर क्षेत्र को एक स्थलबद्ध क्षेत्र में
पररवर्ततत कर कदया है और आसे अर्तथक रूप से भी प्रभाववत ककया है। भारतीय
मुख्यधारा से ऄलगाव के कारण, ये क्षेत्र ववकास के मानकों के संदभथ में वपछड गए हैं।
ऄतः शुरुअत से ही, कें ि सरकार ने क्षेत्रीय ववकास में ऄसंतुलन का सामना करने की
6. पूवोत्तर में क्षेत्रीय अकांक्षाओं में स्वायिा की मांग,ें ऄलगाववादी अंदोलन एवं ‘बाहरी
व्यवियों का ववरोध हावी रहे हैं। प्रासंवगक ईदाहरणों सवहत चचाथ कीवजए।
दृवष्टकोण:
पूवोिर क्षेत्र के लोगों के वलए स्वायिता की वववभन्न मांगों, ऄलगाववादी अंदोलनों तथा
बाहरी व्यवियों के ववरोध पर चचाथ कीवजए।
संक्षेप में ईपयुथि कारणों की चचाथ कीवजए और एक ईपयुि वनष्कषथ दीवजए।
ईिर:
पूवोिर क्षेत्र, गरीबी, ऄल्प-ववकास, पहचान, ईग्रवाद, वविोह अकद जैसे कइ मुद्दों से
प्रभाववत है। हालांकक, तीन मुद्दों ने पूवोिर क्षेत्र की राजनीवत को प्रभाववत ककया है। जबकक
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आस क्षेत्र के ऄन्य मुद्दे भी आन्हीं तीन मुद्दों से वनकटता से संबंवधत है। l.c
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स्वायिता की मांग:
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अजादी के समय मवणपुर और वत्रपुरा को छोडकर सम्पूणथ पूवोिर क्षेत्र ऄसम राज्य में
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1972 में पूवोिर क्षेत्र के पुनगथिन के पिात् भी स्वायिता की मांग समाप्त नहीं हुइ।
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ऄसम में बोडो, काबी और कदमासा जैसे समुदायों ने ऄलग-ऄलग राज्यों की मांग की।
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काबी और कदमासा को वजला पररषदों के तहत स्वायिता प्रदान की गइ है, जबकक काबी
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ऄलगाववादी अंदोलन:
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वाताथलाप। वविोही संगिनों को यह समझने की अवश्यकता है कक कभी-कभी संकीणथ
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पहचान के अधार पर ईनकी स्वतंत्रता और स्वायिता की मांग देश के बाहरी और
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1. प्रादेवशकता की बढ़ती हुइ भावना, पृथक् राज्य की मााँग का प्रमुख कारण है। वववेचना
कीवजए।
2. प्रादेवशकता का क्या अधार है? क्या ऐसा प्रादेवशक स्तर पर ववकास के लाभों के ऄसमान
ववतरण से हुअ, वजसने कक ऄंततः प्रादेवशकता को बढ़ावा कदया? ऄपने ईिर को पुष्ट कीवजए।
भारतीय समाज ai
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नगरीकरण
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6. नगरीकरण की समथयाएँ ________________________________________________________________________ 9
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10. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेथट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16
11. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 28
1. पररचय (Introduction)
नगरीकरण, िाथति में शहर बनने, शहरों की ओर प्रिास करने, कृ वष के थथान पर शहरों में प्रचवलत
ऄन्य सामान्य व्यिसाय जैसे क्रक व्यापार, विवनमातण, ईद्योग और प्रबंधन को ऄपनाने तथा आन्हीं के
ऄनुरूप व्यिहार प्रवतमानों में पररिततन लाने की प्रक्रिया है। यह ऄंतसंबंधों की सम्पूणत व्यिथथा में
विथतार की प्रक्रिया है, वजसके द्वारा जनसंख्या थियं को िास थथान में बनाए रखती है।
कथबों और नगरों के अकार में िृवि के पररणामथिरूप नगरीय जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होना, नगरीकरण
का ऄत्यंत महत्िपूणत अयाम है। प्राचीन काल में रोम और बगदाद जैसे कइ प्रमुख नगर रहे हैं, क्रकन्तु
जब से औद्योगीकरण तथा औद्योवगक ईत्पादन में िृवि हुइ है, नगरों का ऄसाधारण रूप से विकास हुअ
है। ऄत: कहा जा सकता है क्रक िततमान में नगरीकरण हमारे समकालीन जीिन का एक ऄत्यंत
महत्िपूणत ऄंग बन गया है।
िल्डत ऄबतनाआजेशन प्रॉथपेक्ट्स, 2014 के ऄनुसार विि की नगरीय जनसंख्या का अधा भाग कु छ ही
देशों में वनिास करता है। विि में सिातवधक नगरीय जनसंख्या (758 वमवलयन) चीन में िास करती है
तथा ईसके पश्चात् भारत (410 वमवलयन) का थथान अता है। आन दो देशों में विि की नगरीय
जनसंख्या का लगभग 30 प्रवतशत वनिास करता है। आन दोनों देशों के साथ यक्रद संयुक्त राज्य ऄमेररका
(263 वमवलयन), ब्राज़ील (173 वमवलयन), आं डोनेवशया (134 वमवलयन), जापान (118 वमवलयन)
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तथा रूस (105 वमवलयन) की नगरीय जनसंख्या को वमला दें तो ये सवम्मवलत रूप से विि की नगरीय
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जनसंख्या के अधे से ऄवधक भाग का प्रवतवनवधत्ि करते हैं।
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भारत में नगरीकरण मुख्यत: थितंत्रता पश्चात् की पररघटना है। आसका मुख्य कारण भारत द्वारा
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ऄथतव्यिथथा की वमवित प्रणाली का ऄपनाया जाना है वजसने वनजी क्षेत्र के विकास को बढ़ािा क्रदया।
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भारत में नगरीकरण बहुत तीव्र गवत से जारी है। 1901 की जनगणना के ऄनुसार भारत की नगरीय
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जनसंख्या 11.4% थी। यह 2001 की जनगणना में बढ़कर 28.53% तथा 2011 की जनगणना में
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30% के पार पहुँच गइ। िततमान में भारत की नगरीय जनसंख्या 31.16% है।
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आस शब्द का प्रयोग पहली बार 1971 की जनगणना में क्रकया गया था। प्राय: बड़ी रे लिे कॉलोवनयाँ,
वििविद्यालय पररसर, बन्दरगाह क्षेत्र, सैन्य पररसर आत्याक्रद क्रकसी नगर या कथबे की सांविवधक सीमा
के दायरे में नहीं अते परन्तु आनसे संलग्न क्षेत्र होते हैं। ऐसे क्षेत्र थियं में नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता
प्राप्त करने के योग्य नहीं होते, परन्तु यक्रद िे संलग्न नगर या कथबे के साथ वनरं तर विथताररत होते हैं तो
ईन्हें नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देना यथाथतिादी वसि हो सकता है। ऐसी बवथतयां अईटग्रोथ
(बवहबति) के रूप में पररभावषत की जाती हैं तथा एक सम्पूणत गाँि ऄथिा गाँि के एक भाग को
समावहत कर सकती हैं। ऐसे नगर ऄपनी अईटग्रोथ के साथ एक नगरीय आकाइ के रूप में माने जाते हैं
तथा ‘नगरीय संकुल’ कहलाते हैं।
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यह क्रकसी नगर में या आसके अस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीकरण की विशेषताओं के ऄत्यवधक l.c
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विथतार को संदर्तभत करता है। यह नगरीय विवशष्टताओं के ऄत्यवधक विकास का पररणाम है। नगरीय
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गवतविवधयों और व्यिसायों के दायरे में विथतार, ईद्योगों जैसे वद्वतीयक कायों के ऄत्यवधक ऄन्तिातह,
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एक जरटल नौकरशाही के वन्ित प्रशासवनक नेटिकत के िृविशील एिं व्यापक विकास, जीिन की बढ़ती
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कृ वत्रमता ि यंत्रीकरण तथा वनकटिती ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय लक्षणों के प्रिेश के कारण, ऄवत-
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नगरीकरण धीरे -धीरे क्रकसी समुदाय के रीवत-ररिाजों एिं परम्परािादी गुणों को प्रवतथथावपत कर देता
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यह क्रकसी नगर के ऄवत-नगरीकरण से घवनष्ठ रूप से संबंवधत है। जब क्रकसी नगर की जनसंख्या में
ऄत्यवधक िृवि (ओिर िाईडडग) होती है तो आसके पररणामथिरूप ईप-नगरीकरण की घटना घरटत
होती है। क्रदल्ली आसका प्रतीकात्मक ईदाहरण है। ईप-नगरीकरण से तात्पयत क्रकसी नगर के वनकटिती
ग्रामीण क्षेत्र का नगरीकरण है। यह वनम्नवलवखत विशेषताओं को प्रकट करता है-
भूवम के ‘नगरीय (गैर-कृ वषगत) ईपयोग’ में तीव्र िृवि,
नगर के अस-पास के क्षेत्रों का ईसकी नगरपावलका की सीमा में समािेशन तथा
नगर तथा ईसके वनकटिती क्षेत्रों के मध्य सभी प्रकार के गहन संचार साधन।
यह एक जनांक्रककीय तथा सामावजक प्रक्रिया है वजसमें लोग नगरीय क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र की ओर
प्रथथान करते हैं। पहली बार यह अंतररक शहर में संसाधनों के ऄभाि तथा ऄत्यवधक भीड़-भाड़ (ओिर
िाईडडग) की प्रवतक्रिया के पररणामथिरूप घरटत हुअ था। प्रवत नगरीकरण तब घरटत होता है जब
कु छ बड़े नगर ऐसी ऄिथथा में पहुँच जाते हैं, वजसमें ईनकी िृवि रुक जाती है या िाथति में ईनके
2011 में जनगणना नगर की एक निीन पररभाषा विकवसत हुइ है। ‘जनगणना नगरों’ िाला यह
नगरीय िगीकरण भारत के छोटी कृ षक बवथतयों तथा बड़े क़थबाइ बाजार के जैसी बवथतयों (वजनमें
तीव्र और ऄकथमात िृवि हो रही है) के मध्य ऄंतर थथावपत करने में सहायक है।
एक जनगणना नगर के रूप में िगीकृ त होने के वलए क्रकसी गाँि को वनम्नवलवखत तीन मानदंडों को पूरा
करना ऄवनिायत है:
ईसकी न्यूनतम जनसंख्या 5000 हो,
न्यूनतम जनसंख्या घनत्ि 400 व्यवक्त प्रवत िगत क्रकमी हो, और
पुरुष कायतशील जनसंख्या का कम से कम 75 प्रवतशत गैर-कृ वष गवतविवधयों में संलग्न हो।
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ऄनुमान लगाया गया है क्रक विि 2050 तक एक वतहाइ ग्रामीण (34%) तथा दो-वतहाइ (66%)
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नगरीय हो जाएगा।
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विथतारशील नगर (Expanding Cities)
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ऄवधकांश मेगावसटी और बड़े शहर ग्लोबल साईथ (तृतीय विि के देशों, विकासशील एिं
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ऄल्पविकवसत देशों तथा ऄल्पविकवसत क्षेत्रों को सामूवहक रूप से ग्लोबल साईथ कहा जाता है) में
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वथथत हैं। भारत के सात शहरों को 2030 तक मेगावसटी के रूप में विकवसत करना प्रथतावित क्रकया
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गया है। आनमें से चार शहर (ऄहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नइ और हैदराबाद) िततमान के 5 -10
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वमवलयन जनसंख्या के साथ अगामी िषों में मेगावसटी का थतर प्राप्त कर लेंगे।
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टोक्टयो 38 वमवलयन जनसंख्या संकुल िाला विि का सबसे बड़ा शहर है। आसके बाद क्रदल्ली का
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कइ दशक पूित विि के सबसे बड़े नगरीय संकुल ऄवधकांशतः विकवसत क्षेत्रों में विद्यमान थे, क्रकन्तु
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जैस-े जैसे नगरीय जनसंख्या और अय में िृवि होती जाती है िैसे- िैसे प्रत्येक अकार और प्रकार के
शहरों में, सभी महत्िपूणत सेिाओं जैसे जल, पररिहन, सीिेज रीटमेंट तथा वनम्न अय िगत हेतु अिास l.c
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की मांग, पांच से सात गुना बढ़ जाती है। ऄतः यक्रद भारत की िततमान वथथवत वनरं तर जारी रहती है तो
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अने िाले समय में शहरों को समृि बनाए रखने के वलए अिश्यक नगरीय अधारभूत संरचना का
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संभितः राज्य सरकारों की ऄवनच्छा के कारण, वनिातवचत वनकायों को 74 िें संविधान संशोधन
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ऄवधवनयम द्वारा प्रदत्त ऄवधकारों का ऄपूणत हथतांतरण हुअ है। आसके ऄवतररक्त, के िल कु छ ही शहरों
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द्वारा 2030 माथटर प्लान को ऄपनाया गया है। आस माथटर प्लान के तहत ईच्चतम पररिहन भार,
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वनम्न अय िगत हेतु सथते अिास की अिश्यकताओं और जलिायु पररिततन संबंधी प्रािधान क्रकए गए हैं।
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2011 की जनगणना के ऄनुसार, भारत की कु ल जनसंख्या का 31.1% भाग ऄथातत 377 वमवलयन लोग
नगरीय क्षेत्रों में वनिास करते हैं। यूनाआटेड नेशंस हैवबटैट िल्डत वसटी 2016, ररपोटत का ऄनुमान है क्रक
2015 में भारत की नगरीय जनसंख्या 420 वमवलयन तक पहुंच चुकी थी।
1981-2001 की ऄिवध में, भारत में नगरीकरण मुख्यतः शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि
(लगभग 60%) से प्रेररत था। आसके पश्चात् ग्रामीण शहरी प्रिास, शहरों की सीमाओं का विथतार और
ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण अक्रद कारकों का थथान था।
परन्तु, 2001 से 2011 के मध्य, शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि का ऄंश कम होकर 44% हो
गया, जबक्रक ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण के वहथसे में िृवि के साथ ग्रामीण शहरी
चीन में 56%, आं डोनेवशया में 54%, मेवक्टसको में 79% और दवक्षण कोररया में 82% है।
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ऄपने ऄध्ययन में पाया क्रक 74 प्रवतशत पररिार अिासीय रूप से एकल (Nuclear) परन्तु दावयत्िों
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और संपवत्त के सन्दभत में संयुक्त थे, 21 प्रवतशत पररिार संपवत्त सवहत अिासीय एिं कायातत्मक रूप में
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एवलन रॉस (1962) ने बैंगलोर में मध्यम और ईच्च िगों के 157 डहदू पररिारों का ऄध्ययन क्रकया।
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िततमान प्रिृवत्त, पारं पररक संयुक्त पररिारों की संरचना को खंवडत कर एकल पाररिाररक संरचना
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िततमान में नगरीय भारत में छोटे संयुक्त पररिार, पाररिाररक जीिन का सिातवधक विवशष्ट रूप
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हैं।
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सामावजक और पेशेिर जीिन की दोहरी भूवमकाएं वनभाने के वलए बाध्य हैं।
तुलनात्मक रूप से वशवक्षत और ईदार होने के कारण नगरीय मवहलाओं की वथथवत ग्रामीण l.c
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मवहलाओं की तुलना में ईच्च है। हालांक्रक िम बाजार में, ऄभी भी मवहलाओं के वलए एक प्रवतकू ल
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6. नगरीकरण की समथयाएँ
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(Problems of Urbanization)
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भारत में नगरीकरण के प्रवतरूप को क्षेत्रीय एिं ऄंतरराज्यीय विविधता, िृहत पैमाने पर ग्रामीण-शहरी
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प्रिासन, ऄपयातप्त ऄिसंरचना सुविधाओं, मवलन बवथतयों में िृवि तथा ऄन्य संबि समथयाओं द्वारा
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वचवननत क्रकया जाता है। भारत के विवभन्न भागों में नगरीकरण में व्याप्त प्रमुख समथयाएँ वनम्नवलवखत
हैं:
प्रायः ऄप्रयुक्त रहती है ऄथिा वजसके ऄवतिमण की संभािना होती है। ईदाहरणाथत, कें ि सरकार
के रे लिे, रक्षा एिं नागररक ईड्डयन मंत्रालयों के पास मूल्यिान ऄप्रयुक्त शहरी भूवम मौजूद है। आसे
ऄिसंरचना तथा ऄन्य महत्िपूणत व्ययों के वित्तपोषण के साथ-साथ अिास एिं ऄन्य ईपयोगों हेतु
भूवम ईपलब्ध कराने के वलए मौिीकृ त क्रकया जा सकता है।
ऄंततः, भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम, 2013 ऄवधगृहीत भूवम हेतु मुअिजे की ईच्च दर को सुवनवश्चत
करता है। आसके पररणामथिरूप िहनीय अिास हेतु ऄवधगृहीत भूवम के मूल्य में िृवि होती है और
लागत ईच्च हो जाती है। िहनीय अिास के वलए भूवम ऄवधग्रहण हेतु भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम
2013 में संशोधन करने के ऄवतररक्त, भूवम के ईच्च मूल्य के आस कारण से वनपटने का कोइ सुगम
समाधान ईपलब्ध नहीं है।
भूवम रूपांतरण (लैंड कन्िज़तन) वनयमों की जरटलता शहरी भूवम की अपूर्तत में एक प्रमुख व्यिधान
है। शहरों की बाह्य पररवध में मौजूद भूवम के विशाल खंड शहरी विथतार हेतु संभावित रूप से
ईपलब्ध हैं, परन्तु आसके वलए भूभागों को कृ वष-योग्य से गैर-कृ वष ईपयोग योग्य भूखंडों में
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रूपांतररत करने की अिश्यकता है। ऐवतहावसक कारणों से, आस प्रकार के रूपांतरण की शवक्त
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के िल राज्य के राजथि विभागों में वनवहत की गइ है, जो भूवम रूपांतरण की ऄनुमवत देने में प्रायः
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ऄवनच्छु क होते हैं। आस शवक्त को नगरीकरण संबंधी प्रभारी एजेंवसयों को थथानांतररत करना और
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रूपांतरण को पारदशी एिं लचीला बनाना, भारतीय शहरों में जीिंत भूवम बाजारों के वनमातण की
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क्षैवतज थथान की कमी को, उँची आमारतों के वनमातण के माध्यम से थथान का विथतार करके समाप्त
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Index: FSI) पर वनभतर करती है, वजसमें आमारत के फ्लोर-थपेस का मापन भूखंड (वजस पर
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आमारत वथथत है) के क्षेत्रफल के ऄनुपात में क्रकया जाता है। दुभातग्यिश, भारतीय शहरों में
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ऄनुमत/थिीकृ त FSI रें ज बहुत ही कम (1 से 1.5 तक) है, वजसके पररणामथिरूप उँची आमारतें
भारतीय शहरों में लगभग ऄनुपवथथत हैं। मुंबइ की सांवथथवत (Topology) मैनहट्टन एिं डसगापुर
से काफी वमलती-जुलती है, परं तु दोनों शहरों की तुलना में मुब
ं इ में उंची आमारतों की संख्या बहुत
कम है। ऄनुमत FSI में छू ट प्रदान करके ईपलब्ध शहरी थथान को कइ गुना विथताररत क्रकया जा
सकता है।
परं परागत क्रकराया वनयंत्रण कानूनों द्वारा ऄसंगत रूप से क्रकरायेदार को संरक्षण प्रदान क्रकया जाता
है। िथतुतः क्रकराये के अिास की मांग और अपूर्तत में ऄत्यवधक ऄसंतुलन की वथथवत विद्यमान है।
आसके फलथिरूप एक विरोधाभासी वथथवत ईत्पन्न हुइ है वजसमें क्रकराये के मकानों की मांग बहुत
ऄवधक है क्रकन्तु क्रफर भी ऄनेक अिासीय इकाआयाँ ररक्त हैं। आस प्रकार िततमान क्रकराया वनयंत्रण
कानूनों को एक ऐसे अधुवनक क्रकरायेदारी कानून से प्रवतथथावपत करने की थपष्ट रूप से
अिश्यकता है जो क्रकराए के साथ ही क्रकराये पर रहने की ऄिवध के विषय में समझौता िातात हेतु
क्रकरायेदार एिं मकान मावलक को पूणत थितंत्रता प्रदान करे ।
शहरी क्षेत्रों में अिास की ऄत्यवधक कमी है और ईपलब्ध अिासों में से भी ऄवधकांश वनम्न-थतरीय
गुणित्ता के हैं। जनसंख्या में तीव्रता से िृवि, नगरीकरण की ईच्च दर तथा अिासों की संख्या में
अनुपावतक रूप से ऄपयातप्त िृवि जैसे कारणों से विगत कु छ िषों के दौरान यह समथया और
ऄवधक गंभीर हो गइ है।
िृहत् पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में प्रिास के कारण लोगों के पास मवलन बवथतयों में रहने के ऄवतररक्त
ऄन्य विकल्प ईपलब्ध नहीं है। वनम्न-थतरीय अिास, ऄत्यवधक भीड़-भाड़ तथा विद्युतीकरण, िायु-
संचरण (िेंरटलेशन), थिच्छता तथा सड़कों एिं पेयजल जैसी सुविधाओं का ऄभाि मवलन बवथतयों
की प्रमुख विशेषताएं हैं। ये बवथतयाँ रोगों, पयातिरण प्रदूषण, नैवतक पतन तथा कइ ऄन्य
सामावजक तनािों का ईद्गम थथल भी रही हैं।
भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबइ, कोलकाता, पुणे और कानपुर अक्रद में 85% से 90% के मध्य
पररिार एक ऄथिा दो कमरों में वनिास करते हैं। यहाँ तक क्रक कु छ अिासों में पांच से छह व्यवक्त
एक ही कमरे में रहते हैं। ऄत्यवधक भीड़-भाड़ विकृ त व्यिहार को प्रोत्सावहत करता है, रोगों का
प्रसार करता है तथा मानवसक रोग, शराब और दंगों से सम्बंवधत पररवथथवतयां ईत्पन्न करता है।
घनी शहरी बवथतयों के जीिन के प्रभािों में से एक लोगों का ईदासीन एिं वनष्ठु र होना भी है।
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6.4. जल अपू र्तत, जल वनकासी एिं थिच्छता
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भारत के क्रकसी भी शहर में 24 घंटे जल की अपूर्तत ईपलब्ध नहीं है। ऄथथायी अपूर्तत के कारण
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खाली पाआप लाआनों में िैक्टयूम ईत्पन्न हो जाता है जो प्रायः लीके ज पॉआं ्स से प्रदूषकों को
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ऄिशोवषत कर लेता है। ऄनेक छोटे शहरों में कोइ प्रमुख जल अपूर्तत विद्यमान नहीं है तथा यहाँ
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वनिास करने िाले लोग कु ओं पर वनभतर हैं। शहरों में जल वनकासी की वथथवत भी सामान्य रूप से
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दयनीय होती है। जल वनकासी व्यिथथा के मौजूद न होने के कारण शहरों में ऄिरुि जल बड़े
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पैमाने पर (यहाँ तक क्रक ग्रीष्म ऊतु में भी) देखा जा सकता है।
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भारतीय शहरों में कचरा हटाना, नावलयों एिं बंद सीिरों की सफाइ आत्याक्रद नगर पावलकाओं
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तथा नगर वनगमों के प्रमुख कत्ततव्य हैं। शहरों की थिच्छता संबंधी बुवनयादी अिश्यकताओं की पूर्तत
हेतु प्रेरणा का पूणत
त ः ऄभाि है। आन भीड़ भरे शहरी क्षेत्रों में मवलन बवथतयों के विथतार और यहाँ
के वनिावसयों के मध्य नागररक मूल्यों की कमी ने गंदगी और रोगों की िृवि को प्रोत्साहन क्रदया है।
भारतीय शहरों में यातायात के प्रिाह पर भी विवशष्ट ध्यान देने की अिश्यकता है। पवश्चमी देशों
के शहरों के विपरीत, भारत में मोटर िाहन ऄवधक बार तथा ऄप्रत्यावशत तरीकों से लेन बदलते हैं
जो ऄनािश्यक यातायात जाम एिं विलंब का कारण बनता है।
कइ शहरों में मेरो रे ल साितजवनक पररिहन का एक प्रभािी स्रोत हो सकती है। कु छ प्रारं वभक मेरो
पररयोजनाओं की सफलता ने ऄन्य शहरों में भी मेरो की मांग का मागत प्रशथत क्रकया है।
हमारे कथबे और शहर पयातिरण के प्रमुख प्रदूषक हैं। कइ शहर ऄपने सम्पूणत सीिेज तथा ईद्योगों के
ऄनुपचाररत ऄपवशष्ट का 40 से 60 प्रवतशत अस-पास की नक्रदयों में प्रिावहत कर देते हैं। शहरी
ईद्योग ऄपनी वचमवनयों से वनकलने िाले धुंए और विषाक्त गैसों से िायुमंडल को प्रदूवषत करते हैं।
ईपयुतक्त सभी प्रदूषक शहरी कें िों में वनिास करने िाले लोगों में रोगों की संभािना में िृवि करते
हैं। यूवनसेफ के ऄनुसार, वनम्न थतरीय थिच्छता संबंधी वथथवतयों और जल संदष
ू ण के कारण लाखों
शहरी बच्चे डायररया (दथत), रटटनेस, खसरा अक्रद से ग्रवसत हो जाते हैं ऄथिा ईनकी मृत्यु हो
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जाती है। दीघतकावलक ईपाय के रूप में, ऄपवशष्ट के संग्रहण एिं वनपटान संबंधी नइ तकनीकों को
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ऄपनाना और शहरी ऄिसंरचना तथा भूवम ईपयोग योजना में मौवलक पररिततन करने की
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अिश्यकता है।
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ईपयुतक्त समथयाएँ नगरीकरण की समथयाओं की पूणत सूची नहीं है। ऄन्य समथयाओं जैसे शहरों में
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ऄपराधों की बढ़ती दर, िृि जनसंख्या में िृवि और ईनके वलए सामावजक सुरक्षा की ऄनुपवथथवत
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तथा बाज़ार के क्षेत्र एिं आसकी विथताररत भूवमका के कारण वनधतन एिं वपछड़े िगों का सिातवधक
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पीवड़त होने अक्रद का भी ऄवथतत्ि है। ऄध्ययनों द्वारा यह भी ज्ञात हुअ है क्रक शहरों में तनाि का
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7. नगरीकरण और ऄवभशासन
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क्रकया जाना चावहए। साथ ही आसमें सहयोग देने के वलए जागरुकता का प्रसार क्रकया जाना
चावहए। l.c
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एक लाख से ऄवधक जनसंख्या िाले सभी कथबों और शहरों में, ऄपवशष्टों के संग्रहण एिं वनपटान के
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वलए PPP पररयोजनाओं को लागू करने की संभािनाओं का पता लगाया जा सकता है।
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नगर वनगम वनकायों को ऄपने क्षेत्र में विद्युत वितरण का ईत्तरदावयत्ि थिीकार करने हेतु
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साितजवनक पररिहन को ऄवधभािी प्राथवमकता देते हुए शहरी पररिहन समाधानों के समवन्ित
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अयोजन एिं क्रियान्ियन हेतु 10 लाख से ऄवधक जनसंख्या िाले शहरों में एक िषत के भीतर
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वनधातरण करना और ईन्हें ULBs ि ULBs के क्टलथटसत के वलए ऄनुमोक्रदत करना तथा पात्र वििे ताओं
के वलए प्राथवमकता के अधार पर मंजूरी सुवनवश्चत करने जैसे महत्िपूणत कायत शावमल हो सकते हैं।
आसके ऄवतररक्त यातायात वनयमों के ईल्लंघन की वथथवत में ऄथतदड
ं अरोवपत करने के वनयमों के सख्त
प्रिततन द्वारा व्यिहार पररिततन को प्रेररत क्रकया जा सकता है। यह यात्रा के समय ि प्रदूषण दोनों में
ईल्लेखनीय कमी ला सकता है। आसके ऄवतररक्त ओला (Ola) और ईबर (Uber) जैसी िाहन साझा
करने की व्यिथथाओं को बढ़ािा देने के वलए प्रोत्साहन प्रदान क्रकए जा सकते हैं। यह सड़क पर िाहनों
की संख्या को कम करे गा, वजससे भीड़ और प्रदूषण दोनों ही कम होंगे। आसके ऄवतररक्त, राष्ट्रीय मेरो रे ल
नीवत की अिश्यकता है जो यह सुवनवश्चत करे गी क्रक मेरो पररयोजनाओं को पृथक पररयोजना के रूप में
देखने के थथान पर आसे समग्र साितजवनक पररिहन की व्यापक योजना के एक वहथसे के रूप में देखा
जाए। आसके ऄवतररक्त, नीवत में मेरो पररयोजनाओं के विवभन्न पहलुओं, जैसे वनयोजन, वित्तपोषण,
PPP आत्याक्रद पर थपष्ट क्रदशा-वनदेश प्रदान क्रकए जाने चावहए।
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गया। आसका लक्ष्य िषत 2022 तक नगरीय क्षेत्र में सभी लोगों को अिास ईपलब्ध कराना है।
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ऄटल कायाकल्प एिं शहरी रूपांतरण वमशन (ऄमृत/AMRUT): यह कायतिम पेयजल अपूर्तत,
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सीिरे ज तथा हररत क्षेत्रों एिं ईद्यानों के साितभौवमक किरे ज हेतु सुदढ़ृ ऄिसंरचना ईपलब्ध कराने
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के ईद्देश्य के साथ प्रारम्भ क्रकया गया था। यह नगरों में ऄवभशासन संबंधी सुधारों को भी
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थमाटत शहरों का विकास: 2015 में प्रारम्भ हुए थमाटत वसटी वमशन का ईद्देश्य क्षेत्र अधाररत
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विकास और शहर के थतर पर थमाटत समाधान तंत्र के माध्यम से जीिन की गुणित्ता में सुधार एिं
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अर्तथक संिृवि को प्रोत्सावहत करना है। यह कायतिम मौजूदा 100 शहरों को थमाटत शहरों के रूप
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थिच्छ भारत वमशन (शहरी): आसे नगरों के थिच्छता थतर में सुधार करने हेतु 2 ऄक्टटू बर 2014
को प्रारं भ क्रकया गया था। आसका लक्ष्य 2 ऄक्टटू बर 2019 तक सभी सांविवधक नगरों को खुले में
शौच से मुक्त बनाना है। यह वमशन हाथ से मैला ढोने की ऄशोभनीय प्रथा को समाप्त करने,
अधुवनक एिं िैज्ञावनक ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन को प्रारं भ करने, थिथथ थिच्छता व्यिहारों के संबंध
में व्यिहारिादी पररिततन को प्रेररत करने, थिच्छता और साितजवनक थिाथ्य से आसके संबंधों के
बारे में जागरूकता ईत्पन्न करने, नगरीय थथानीय वनकायों (ULBs) की क्षमता में िृवि करने तथा
ऄपवशष्ट प्रबंधन में वनजी क्षेत्रक हेतु समथतकारी पररिेश का सृजन करने का भी प्रािधान करता है।
दीनदयाल ऄंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी अजीविका वमशन (DAY-NULM): आसका लक्ष्य
बाजार अधाररत रोजगार सृजन हेतु ऄग्रणी कौशल विकास के वलए ऄिसरों का सृजन करना तथा
थि-रोजगार ईपिमों की थथापना में वनधतन व्यवक्तयों की सहायता करना है। आस योजना के तहत
वनर्ददष्ट हथतक्षेपों को पांच प्रमुख घटकों के माध्यम से क्रियावन्ित क्रकया जाएगा यथा-
शहरों में वपछड़े और वनम्न अय िाले समूहों को मुख्यधारा में लाया जाना चावहए। नगरीय सघनता का
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प्रबंधन करने और प्रिास को हतोत्सावहत करने से संबवं धत विवनयमन भूवम की अपूर्तत को सीवमत करते
हैं और साथ ही कइ पररिारों को ईनकी थिेच्छा से ऄवधक भूवम का ईपभोग करना पड़ता है। आससे l.c
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नगर के ऄवनयवमत प्रसार में िृवि के साथ-साथ सभी के वलए सेिा वितरण और भूवम के मूल्य में िृवि
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होती है। पार्ककग, किरे ज सीमा, सेटबैक, वलफ्ट, सड़क की चौड़ाइ, थिाथ्य कें िों, थकू लों आत्याक्रद के ईच्च
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मापदंड (वजनका प्राय: ऄनुपालन नहीं क्रकया जाता है) वनधतन िगत को अिास संबंधी ऄपनी मूलभूत
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अिश्यकता हेतु महंगे संसाधन (शहरी भूवम) के ईपभोग का चयन करने और कानूनी अिश्यकताओं के
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नगरीय वित्तीयन में और ऄवधक सुधार करके अर्तथक विके न्िीकरण के समथतन की अिश्यकता है। आससे
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शहरों की कें ि और राज्यों पर वनभतरता में कमी अएगी तथा अंतररक राजथि के स्रोतों में िृवि होगी।
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ऄनेक ऄंतरातष्ट्रीय ईदाहरणों के ऄनुरूप, भारतीय शहरों के पास िततमान समय में वित्तीयन हेतु ऄनेक
स्रोत ईपलब्ध हैं वजनका िे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आनमें मुख्यतः भू-संपवत्तयों का मुिीकरण, संपवत्त
करों का ईच्च संग्रहण; लागत को ध्यान में रखते हुए ईपभोक्ता शुल्क का वनधातरण; ऊण एिं साितजवनक-
वनजी साझेदारी (PPPs); और कें ि/राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त वित्तपोषण आत्याक्रद शावमल हैं। यद्यवप,
के िल अंतररक वित्तपोषण (यहाँ तक क्रक बड़े शहरों में भी) पयातप्त नहीं होगा। नगरीय विकास हेतु
कें िीय और राज्य सरकारों द्वारा भी पयातप्त वित्त की अिश्यकता होगी।
भारत के नगरीय वनयोजन को कें िीय एिं प्राथवमक कायत के रूप में समझे जाने तथा दक्ष लोगों, अँकड़ों
के ठोस अधार और ऄवभनि शहरी थिरूप में वनिेश करने की अिश्यकता है। आसे एक "काथके डेड"
योजना ढांचे के माध्यम से संपन्न क्रकया जा सकता है वजसमें बड़े शहरों के पास महानगरीय थतर पर 40
नगरीय थथानीय वनकायों की क्षमता और विशेषज्ञता में िाथतविक सुधार, शवक्तयों के हथतांतरण एिं
सेिा वितरण के ईन्नयन के वलए ऄत्यवधक महत्िपूणत है। आन सुधारों के ऄंतगतत नगरीय प्रबंधन कायों के
वलए पेशेिर प्रबंधकों के विकास पर ध्यान कें क्रित करना होगा। आनकी अपूर्तत अिश्यकता के ऄनुपात में
कम है। वनजी और सामावजक क्षेत्रों में ईपलब्ध विशेषज्ञों का लाभ प्राप्त करने के वलए निीन एिं ईन्नत
दृवष्टकोणों को खोजे जाने की अिश्यकता है।
ऄपने नगरों को 21िीं शताब्दी के नगरों में पररिर्ततत करने के वलए भारत को और ऄवधक बुवनयादी
पररिततनों की शुरुअत करने की अिश्यकता है। एक ऐसी थथावनक योजना प्रारं भ करने की अिश्यकता
है जो एक साथ महानगर, नगरपावलका और िाडत-थतरीय क्षेत्रों की विकास संबंधी अिश्यकताओं को
पूणत कर सके । आसके साथ ही शहरी थथानीय वनकायों को ऄवधक शवक्तयां हथतांतररत करना और
वित्तीय रूप से ईन्हें सशक्त बनाना भी अिश्यक है।
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संयुक्त राष्ट्र सतत विकास सम्मेलन (ररयो+20) के वनष्कषत, "द फ्यूचर िी िांट", के तहत शहरी वनधतनों l.c
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की दुदश
त ा और संधारणीय शहरों की अिश्यकता को संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे के ऄविलंबनीय मुद्दे के
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रूप में मान्यता दी गइ है। ऄतः िततमान समय में नगरीय विकास का एक नया मॉडल तैयार करने की
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अिश्यकता है जो नगरीकृ त पररिेश में समानता, कल्याण और साझा समृवि को बढ़ािा देने के वलए
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गए प्रश्न
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1. "पारं पररक शहरी विथतार के विपरीत, नि शहरीकरण तेजी से गांिों को थियं में समाविष्ट
कर रहा है।" 2011 की जनगणना में जनगणना नगरों (census towns) के विकास के संदभत
में आस कथन को विथतृत िणतन कीवजए।
दृवष्टकोण:
सितप्रथम, जनगणना से कु छ त्यों/अँकड़ों को यह प्रदर्तशत करने के वलए प्रथतुत कीवजए क्रक
प्रश्न में क्रदया गया कथन िाथति में सही है।
आसके पश्चात् िणतन कीवजए क्रक जनगणना नगर 'क्टया' हैं और ईन्हें कै से िगीकृ त क्रकया जाता
है।
आसके पश्चात्, संक्षेप में समझाएँ क्रक जनगणना नगरों में िाथति में तेजी से िृवि 'क्टयों' हो रही
है।
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होना चावहए।
सामान्य शब्दों में जनगणना नगर िह जनसंख्या थथल है जहाँ ऄब खेती व्यिहायत नहीं है और l.c
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जनगणना नगर को ग्रामीण-शहरी विभाजन की सीमा पर थथावपत क्रकया गया है। हालांक्रक, िे
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ऄित शहरी हो सकते हैं, जनगणना कथबों को ऄभी भी पंचायतों द्वारा संचावलत क्रकया जाता
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है और सभी अवधकाररक ईद्देश्यों के वलए ग्रामीण के रूप में िगीकृ त क्रकया जाता है। आससे
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ईन्हें कें ि सरकार की विकास योजनाओं में सवम्मवलत होने और संपवत्त करों से मुक्त होने की
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ऄध्ययनों से ज्ञात होता है क्रक विगत कु छ िषों में कृ वष क्षेत्र में पुरुष वनयोजन में तीव्र कमी
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अइ है। यह कमी मुख्यतः कृ वष हेतु ईपलब्ध मशीन आनपुट और विवनमातण एिं सेिा क्षेत्रों में
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कीवजए। साथ ही, ईन ईपायों पर चचात कीवजए वजन्हें ईनकी सुभद्य
े ता को समाप्त करने हेतु
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ऄपनाए जाने चावहए। 2015-3-623
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दृवष्टकोण :
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कारण सामना करना पड़ता है, वजन्हें बढ़ते शहरीकरण और प्रिासन ने पैदा क्रकया है। ईत्तर
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िृिों द्वारा सामना क्रकये जाने िाले समथयाओं के वनदान हेतु कु छ ईपायों का सुझाि
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दीवजए।
ईत्तर :
भारत में िृिों (60 िषत या ईससे ऄवधक) की बढ़ती संख्या (2001 में कु ल जनसँख्या का
7.4%) और ईनके समक्ष अने िाली विविध सुभेद्यता नीवत वनमातताओं और समाज का ध्यान
ऄविलम्ब अकर्तषत करने की मांग कर रही है। िृिों की ऄपनी थिाथ्य सेिा, अजीविका और
सुरक्षा जैसी समथयाओं के प्रवत संिेदनशीलता बढ़ती जा रही है। िृिों की सुभेद्यता का दोष
मुख्यतः प्रिासन और शहरीकरण के त्यों पर वनम्नवलवखत रूप से क्रदया जा सकता है:
प्रिासन और शहरीकरण िमशः ईन परं परागत पाररिाररक थिरूप को वनबतल बना रही
है जो िृिों को के न्िीयता और सामावजक भूवमका प्रदान करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी के न्िों की ओर प्रिाह ने न के िल ईच्च बेरोजगारी दर को बढ़ािा
क्रदया है ऄवपतु यह ऄन्य कइ सामावजक और अर्तथक समथयाओं के साथ शहरों की भीड़
में भी िृवि कर रहा है। साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्रों में वनिास करने िाले िृिों के
चूंक्रक िृि लोग ग्रामीण कृ वष िवमक शवक्त का एक वहथसा होते हैं, आसवलए ईनकी कृ वष क्षमता
बढ़ाने के ईद्देश्य से नीवतयों का वनमातण क्रकया जाना चावहए।
ईनको ऊण एिं विथतार सेिाओं तथा ऄपने साम्यत के ऄनुसार ईन्नत कृ वष कायत प्रणाली ि
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प्रौद्योवगकी ऄनुकूलन हेतु सहायता की अिश्यकता होगी।
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िृि लोगों को थि-रोजगार हेतु प्रोत्साहन देना चावहए, वजससे िे न के िल ऄपनी गवत से कायत
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कर सकें गे बवल्क लाभ और ईत्पादकता बढ़ाने हेतु यह ईन्हें निोन्मेष के वलए भी प्रोत्सावहत
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करे गी।
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ग्रामीण विकास में िृिों द्वारा योगदान करने के क्षमता बढ़ाने हेतु सहकाररता ईपिम प्रमुख
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यद्यवप िृिािथथा का ऄवभप्राय थिाथ्य सेिाओं की अिश्यकता में िृवि होता है, क्रफर भी
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थिाथ्य सेिा के न्िों का िृि लोगों द्वारा न्यूनतम ईपयोग क्रकया जाता है। प्राथवमक सेिा के न्िों
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को ग्रामीण िृिों का ध्यान ईसी प्रकार से रखना चावहए जैसे िे बच्चों का रखते हैं।
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सभी सामावजक योजनाओं का ईपयोग बहुत कम होता है, आसवलए आनके द्वारा वमलने िाले
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ऄनुदान और लाभों के बारे में विवभन्न संचार माध्यमों के द्वारा जानकारी प्रदान की जानी
चावहए और नीवतयों को सशक्त बनाया जाना चावहए।
4. थिातंत्रयोत्तर भारत में शहरों से सामावजक पररिततन के िाहक बनने की ऄपेक्षा की गइ थी,
लेक्रकन िे भी ईन्हीं विसंगवतयों के पररचायक बन गए वजससे ग्रामीण क्षेत्र लंबे समय से त्रथत
हैं। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण :
आस प्रश्न की मूलभूत विषय-िथतु भारत के सन्दभत में शहरों द्वारा अधुवनकता के लक्ष्य प्रावप्त में
ऄसफलता है। ईत्तर की सरं चना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:
परन्तु, भारत में शहरों का विकास देखने से यह प्रतीत होता है क्रक शहर ईस वििास को पूरा
करने में ऄसमथत रहे हैं, जो ईनमें जताया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त सामावजक
समथयाओं में सुधार के थथान पर ईन्होंने सामावजक ऄसमानताओं को वनम्नवलवखत प्रकार से
जन्म क्रदया है:
भारत: शहरी वनधतनता ररपोटत 2009 (UNDP) के ऄनुसार भारत में वनधतनता का
शहरीकरण हो गया है और यह बड़े शहरों में विथतृत रूप से विद्यमान है। समग्र रूप से
यह 25 प्रवतशत से ऄवधक है, शहरों में रहने िाले लगभग 81 वमवलयन लोग वजस अय
पर वनभतर करते हैं, िह थतर वनधतनता रे खा से बहुत नीचे है।
बड़े शहरों जैसे क्रक मुम्बइ में 41.3%, विशाखापत्तनम में 44%, कोलकता में 30%,
चेन्नइ में 29% और क्रदल्ली में 15% के ईच्च ऄनुपात से झुवग्गयों में रहने िाले पररिार
हैं। शहरों में ईवचत अिास और मूलभूत सुविधाओं जैसे- थिाथ्य और वशक्षा के अभाि
से ऐसी ऄवनवश्चत वथथवतयां पुनः ईत्पन्न हुइ हैं, जो अज भी गािों में वनधतनों के वलए
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ऄलगाि का कारण बनी हुइ हैं।
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अर्तथक विकास की प्रक्रिया में यह माना जाता था क्रक शहर, ऄवधकांशतः ईन कामकाजी
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में अिश्यकता से ऄवधक हो गये थे। परन्तु भारतीय शहर, गांिों के ही समान, वनिातह
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योग्य रोजगार प्रदान करने िाले िृहत ऄनौपचाररक क्षेत्र का अियथथल बन गए हैं।
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गाँिों में मवहला सुरक्षा एक प्रमुख समथया है क्टयोंक्रक गाँि ईनके प्रवत प्रवतगामी ऄवभिृवत्त
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हेतु जाने जाते हैं। आसके ऄवतररक्त अधुवनक शहर, वजनसे यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक िे
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ईन्हें सुरवक्षत िातािरण प्रदान करें गें, िे थियं ही ईनके वलए सिातवधक ऄसुरवक्षत थथान
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बन गए हैं, ईदाहरण के वलए कु छ ही समय पहले क्रदल्ली में घरटत बलात्कार की घटना।
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आस पररदृश्य में, ऄब एक महत्िपूणत अिश्यकता यह है क्रक शहरों द्वारा सामावजक विकास में
वनभाइ गयी भूवमका पर पुनः विचार क्रकया जाए। शहरों को नगर-विषयक और हमारे
संविधान द्वारा प्रोत्सावहत क्रकये गये मूल्यों के अधार पर और ऄवधक विथतृत क्षेत्र बनाना
चावहये। क्टयोंक्रक डॉ.ऄम्बेडकर ने भी शहरों को सामावजक पररिततन का महत्िपूणत पररचायक
समझा था।
5. वनधतनों हेतु सामावजक-अर्तथक एिं विवधक सहायता के ऄभाि में तीव्र शहरी विकास, मवलन
बवथतयों के व्यापक फै लाि का एक ऄपररहायत कारण है। भारत के सन्दभत में आसकी चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
प्रश्न का के न्िीय भाि समकालीन भारत में मवलन बवथतयों की बढ़ती जनसंख्या के वनधातरकों
के बारे में है। ईत्तर की संरचना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:
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क्रकसान हैं या भूवमहीन िवमक या कारीगर जो तब तक शहरों में रहने में समथत नहीं
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होते, जब तक सरकार ईन्हें क्रकसी तरह की सामावजक सहायता न प्रदान करे । भारत में
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शहरी क्षेत्रों में ऐसी सुविधाओं का घोर ऄभाि है, पररणामथिरूप शहरी क्षेत्र के वनधतन
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और भी ऄवधक ऄनदेखी कर रहे हैं वजस कारण वनधतन लोग मवलन बवथतयों में एकवत्रत
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हो रहे हैं।
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ऄवधकाँश प्रिावसयों के पास िैधावनक पहचान नहीं होता आसवलए िे शहरी क्षेत्रों में
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ईपलब्ध सुविधाओं का लाभ नहीं ईठा सकते, फलथिरूप ईन्हें अजीविका हेतु मवलन
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िवमकों के रूप में प्रिावसयों के ऄवधकारों के प्रिततन का ऄभाि है। पुनः सरकारी
सामावजक सुरक्षा कायतिमों के ऄंतगतत वनधतनों को वलया जाता है, आसने भी बड़ी खाइ
ईत्पन्न की है। ऐसी वथथवतयां वनधतनों को वनधतनता पाश में धके ल कर मवलन बवथतयों की
रहन-सहन की दयनीय दशा की ओर ले जाती हैं।
शहरी क्षेत्रों के औपचाररक क्षेत्र में रोज़गार न्यूनता प्रिावसयों को जीिन-यापन हेतु
ऄनौपचाररक क्षेत्रों की ओर धके लती है। कम मजदूरी तथा सामावजक सहायता के ऄभाि
के कारण ऄनौपचाररक क्षेत्र के िवमकों को ऄनौपचाररक बवथतयों में रहने को बाध्य
होना पड़ता है।
6. ऄत्यवधक जनसंख्या िाले शहरों एिं ईनकी दबािपूणत ऄिसंरचना के कारण, भारत एक
शहरी संकट से जूझ रहा है। देश में िततमान शहरों के ईन्नयन में थमाटत वसटी वमशन क्रकतना
सहयोग प्रदान कर सकता है। आस वमशन के संबध
ं में थथानीय वनकायों की पूिातपक्ष
े ाएँ क्टया हैं?
2016-16-749
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साितजवनक पररिहन, मजबूत अइ.टी. कनेवक्टटविटी, इ-शासन एिं नागररकों की भागीदारी
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सुवनवश्चत करना है।
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यक्रद आस वमशन को सरकार द्वारा क्रकए गए िादे के ऄनुसार विश्िसनीय वित्तीय बैंंकग
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यह वमशन थमाटत वसटी हेतु रोडमैप प्रदान करने की वजम्मेदारी शहरी थथानीय वनकायों
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(ULBs) पर डालता है। हालांक्रक के न्ि ने प्रत्येक शहर में आस वमशन को कायातवन्ित करने की
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क्षमता से संपन्न थपेशल पपतज व्हीकल (SPV) प्रथतावित क्रकया है। यह थमाटत वसटी विकास
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पररयोजनाओं का योजना वनमातण, मूल्य वनरूपण, ऄनुमोदन, तदथत वनवध जारी करने,
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कइ नगर वनगमों को भय है क्रक SPV के कारण ईन्हें दरक्रकनार कर क्रदया जाएगा और ईनकी
थिायत्तता संकटग्रथत हो जाएगी। ULBs द्वारा SPV में भागीदारी की जाएगी, क्रकन्तु SPV
भी PPP पररयोजनाओं में सवम्मवलत होने हेतु सक्षम है।
यह वमशन राज्य सरकार और शहरी थथानीय वनकायों को, पररयोजना के संबध में नगर
पावलका पररषद के ऄवधकारों और दावयत्िों का वनितहन करने के वलए, SPV को कायतभार
सौंपने हेतु प्रोत्सावहत करता है। आसवलए थमाटत शहरों के विकास के साथ, शहरी शासन में
वनजी वनिेशकों एिं परामशतदाता संथथाओं का प्रभाि बढ़ने की संभािना है और यह शहरी
थथानीय वनकायों (ULBs) के वलए डचता का विषय है।
थथानीय वनकायों की थिायत्तता और लोकतंत्र की भािना को व्यवथत करने संबंधी डचताएँ
िैध हैं, क्टयोंक्रक लोकतांवत्रक रूप से वनिातवचत थथानीय शासन के थथान पर कें िीय नीवत द्वारा
यह सही है क्रक हमारी थथानीय सरकारें सिातवधक कु शल या ईत्तरदायी नहीं हैं, क्रकन्तु SPV
चावलत थमाटत वसटी, नगर प्रशासन के दोषों का दीघत थथाइ समाधान नहीं हैं।
7. ईन कारकों का वििरण प्रथतुत कीवजए जो लोगों को ग्रामीण आलाकों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास
करने वलए प्रेररत करते हैं, भले ही आसके पररणामथिरूप ईन्हें मवलन बवथतयों में ही क्टयों न
रहना पड़ता हो। भारत की मवलन बवथतयों के संदभत में विवशष्ट त्यों पर प्रकाश डावलए।
साथ ही ईन रणनीवतयों की चचात कीवजए जो भारत में मवलन बवथतयों की दशा को सुधारने
के वलए ऄपनाइ जा सकती हैं। 2016-13-757
दृवष्टकोण:
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास और मवलन बवथतयों के पररणामी विकास पर
पररचय दीवजए।
ईन कारकों की चचात कीवजए वजनके कारण लोग शहरों की ओर पलायन करने और झुग्गी
झोपवड़यों में वनिास करने को वििश हैं।
भारत में विद्यमान मवलन बवथतयों के बारे में महत्िपूणत त्यों पर चचात कीवजए।
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भारत की मवलन बवथतयों के सुधार हेतु रणनीवतयों पर चचात कीवजए। l.c
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ईत्तर:
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शहरीकरण और बड़ी मात्रा में नगरों की ओर प्रिास ने मवलन बवथतयों की संख्या में बेतहाशा
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िृवि की है। िषत 2017 में भारत की कु ल ऄनुमावनत थलम अबादी 1.28 ऄरब होगी जो क्रक
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ईत्तरदायी कारक
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ईच्च और ऄवधक वथथर अय: शहरी कें ि में ईपलब्ध ईत्पादक रोजगार के ऄिसरों तथा ईच्च
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ऄगली पीढ़ी के वलए सामावजक गवतशीलता: शहरी पररिेश में बच्चों की परिररश ऄगली
पीढ़ी के वलए एक ईच्च "विकल्प मान" (“option value”) बनाता है। अमतौर पर, शहर
वशक्षा और रोजगार के ऄिसर के व्यापक विकल्प प्रदान करते हैं।
अपदागत प्रिास: राजनीवतक ऄशांवत और ऄंतर-जातीय संघषत लोगों को ईनके घरों से दूर
जाने पर मजबूर करते हैं। कइ बार बड़ी प्राकृ वतक अपदाओं के बाद भी लोग शहरी क्षेत्रों की
ओर पलायन कर जाते हैं।
मवलन बवथतयों के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विकल्प का ऄभाि: गरीब प्रिासी पररिार ऄच्छे
अिास और पररिहन लागत िहन करने में ऄसमथत होते हैं जो ईन्हें ऄपने काम के थथान के
वनकट के शहर में थलम क्षेत्रों में बसने के वलए मजबूर करता है।
विवशष्ट त्य
ऄभूतपूित संख्या: भारत के ऄवतररक्त कोइ और ऐसा देश नहीं है जो मवलन बवथतयों की आतनी
बड़ी संख्या से प्रभावित रहा हो। 2017 तक भारत में 100 वमवलयन से ऄवधक लोग मवलन
बवथतयों में रहने लगेंगे तथा दूसरे 10 लाख प्रिासी दूसरे शहरों की ओर बढ़ रहे होंगे।
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प्रदान कर सकें और ईन्हें बेहतर अय की प्रावप्त सुवनवश्चत हो सके ।
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झुग्गी बवथतयों की ऄिसंरचना में सुधार: िततमान थलम क्षेत्रों में ईच्च गुणित्ता, कम
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लागत तथा विविध थिरूपों की बहु-मंवजला आमारतों के वनमातण द्वारा आन्हें शहर के बाकी
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8. यद्यवप संयक्त
ु राष्ट्र हैवबटैट ररपोटत (संयक्त
ु राष्ट्र पयातिास ररपोटत) में नगरों को "मानि वनमातण
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की सिोच्च पराकाष्ठाओं'' के रूप में िर्तणत क्रकया गया है, लेक्रकन बहस का प्रश्न यह है क्रक
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विकासशील देशों के नगरों को क्रकस प्रकार का रूप लेना चावहए। आस कथन के संदभत में,
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भारत के संबध
ं में शहरीकरण की परथपर विरोधी रणनीवतयों का परीक्षण कीवजए।
दृवष्टकोण:
पररचय में संक्षेप में कथन में वनवहत संदभत की व्याख्याऺ कीवजए और ईस थिरुप के सतकत
वििेचन के वलए कारण प्रदान कीवजए, जो विकासशील विि में नगर ग्रहण करें गे।
आसके ऄवतररक्त शहरीकरण के प्रवतमान (मॉडल) के रूप में बड़े और छोटे शहरों को सवम्मवलत
करने िाली रणनीवतयों का िणतन कीवजए।
भविष्य में शहरी विकास के वलए अिश्यक आष्टतम संयोजन को रे खांक्रकत करते हुए ईत्तर
समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
नगरों को ईनकी ऐवतहावसक भूवमका और मानिीय सहयोग थथल, विकास आंजन और
सामावजक गवतशीलता के िाहन के रूप में भािी क्षमता के कारण ‘मानि वनमातण की सिोच्च
पराकाष्ठा’ कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र हैवबटेट ररपोटत का ऄनुमान है क्रक 2050 तक विि की
2/3 अबादी शहरों में वनिास कर रही होगी। विि बैंक के ऄनुसार 90 प्रवतशत शहरी
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सेिाओं और संसाधनों के संदभत में एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। सही संसाधनों के साथ,
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ये नगर ऄपने वनिावसयों के वलए बेहतर सेिाएं और पयातिरण प्रदान कर सकते हैं। 12िीं
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ऄंतरातष्ट्रीय ऄनुभि से सीखकर, हांगकांग जैसे उंचे भिनों िाले सघन मुख्य क्षेत्रों में पररिहन
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ईन्मुख विकास (TOD) जैसे मॉडल ऄपनाए जा सकते हैं। आसी प्रकार, कइ लोगों का तकत है
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क्रक नयूथटन या ऄटलांटा मॉडल ऄथातत, कोर से दूर विथतृत होने िाली अबादी से बचा जाना
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चावहए।
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छोटे और बड़े दोनों नगरों के ऄनुकूल रणनीवतयां विद्यमान हैं। तेजी से शहरीकृ त हो रहे
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भारत के वलए ऐसे नगरों की अिश्यकता है जो क्रक पयातप्त वित्तीय संसाधनों और संथथागत
विकें िीकरण के साथ वनयोवजत और समािेशी कें ि हों।
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ग्रामीण-शहरी प्रिास से वनपटना - यह िैिीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों में अय के ऄिसरों
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की कमी जैसे कारकों से घवनष्ठतापूितक संबवं धत है। विशेषज्ञों का ऄनुमान है क्रक 2050
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तक लगभग 60% जनसंख्या शहरों में वनिास कर रही होगी। यह वथथवत थमाटत शहरों
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की तजत पर थमाटत गांिों का विकास करने के वलए वथथर रूप से पूरक योजनाओं की मांग
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करती है।
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शहरों में मवलन बथती वनिावसयों के वलए सामावजक सुरक्षा जाल का विकास करना।
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रोजगार सृजन- प्रिावसयों के वलए ऄिसर और कौशल विकास के ऄिसर सृवजत करने
की अिश्यकता है।
शहरी थथानीय वनकायों में क्षमता वनमातण - आसमें प्रावधकार का वितरण, धन की
ईपलब्धता सुवनवश्चत करना (ईदाहरण के तौर पर नगर वनगम बंधपत्रों, मनोरं जन कर
अक्रद जैसे करों का वितरण करने के माध्यम से) और मानि संसाधनों का विकास करना
सवम्मवलत होगा।
क्रकफायती अिास - भूवम की बढ़ती कीमत के साथ मवलन बथती वनिावसयों के वलए
क्रकफायती अिास विकवसत करने की तत्काल अिश्यकता है। "2022 तक सबके वलए
अिास" का एक प्रमुख घटक यथाित मवलन बथती पुनिातस का ईपयोग करना है। आसके
माध्यम से सरकार ने संसाधन के रूप में भूवम का ईपयोग करने के वलए वनजी
विकासकतातओं को प्रोत्सावहत करने के वलए रणनीवत तैयार की है। आस नीवत में मवलन
बथती ईन्नयन घटक भी सवम्मवलत है।
10. यद्यवप ईपनगरीकरण नगरीकृ त हो रहे ऄवधकांश देशों में एक सामान्य पररघटना है, क्रकन्तु
भारत के शहरी विकास के संदभत में यह ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर हो रही है। आस विकास
के ऄंतर्तनवहत कारणों को सूचीबि करते हुए भारतीय शहरों के वलए आसके द्वारा ईत्पन्न की
जा रही चुनौवतयों पर प्रकाश डावलए।
दृवष्टकोण :
ऄवधकांश नगरीकृ त देशों में ईपनगरीकरण पररघटनाओं के बारे में संवक्षप्त पररचय दीवजए।
भारत के शहरी विकास के सन्दभत में आसके ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर होने के कारणों को
सूचीबि कीवजए।
भारतीय शहरों के समक्ष आसके द्वारा ईत्पन्न चुनौवतयों तथा आनसे वनपटने के तरीके को थपष्ट
कीवजए।
ईत्तर:
2013 में विि बैंक की ररपोटत "ऄबतनाइजेशन वबयॉन्ड म्युवनवसपल बाईं ड्रीज” के ऄनुसार
ईपनगरीय क्षेत्र, शहरों की तुलना में ईच्च अर्तथक विकास और रोजगार के ऄिसर सृवजत कर
रहे हैं। यद्यवप "ईपनगरीकरण" एक वििव्यापी घटना है। सामान्यतः यह विकास के ईन्नत
चरणों में घरटत होती है। भारत में ईपनगरीकरण ऄपेक्षा से ऄवधक तीव्रता से हो रहा है।
कारण:
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कम जनसंख्या घनत्ि, कम ऄपराध और ऄवधक वथथर जनसंख्या के कारण ईपनगरों को l.c
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रहने और पररिार के पालन पोषण हेतु एक सुरवक्षत और सुलभ थथान के रूप में देखा
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जाता है।
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भूवम की बढती हुइ कीमतों और कायातलयों के क्रकराये ने कं पवनयों को ईपनगरीय क्षेत्रों में
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िर्तित (Increased) अय के साथ, लोगों की यात्रा और काम करने के वलए ऄवधक दूरी
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तय करने ि घर िापस अने के वलए ऄवधक भुगतान करने की क्षमताओं में िृवि हुइ है।
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भारतीय शहरों द्वारा ऄत्यवधक कठोर भूवम ईपयोग वनयमों को लागू करना, क्रकराया
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वनयंत्रण प्रणाली तथा शहरों में आमारतों की उंचाइ पर प्रवतबंध लगाने के पररणामथिरूप
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िहनीय एिं गुणित्तापूणत सेिाओं का विकल्प प्रदान करने की शहरों की ऄक्षमता के पररणामथिरूप
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ईपशहरीकरण को बढ़ािा वमला है आसवलए विद्यमान शहरी सुविधाओं में सुधार की अिश्यकता
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गए प्रश्न
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1. भारत में तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने वजन विवभन्न सामवजक समथयाओं को जन्म क्रदया, ईनकी
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2. ‘भारत में थमाटत नगर थमाटत गांिों के वबना जीवित नहीं रह सकते हैं।’ ग्रामीण नगरीय एकीकरण
की पृष्ठभूवम में आस कथन पर चचात कीवजये। (2015)
3. भारत में नगरीय जीिन की गुणता की संवक्षप्त पृष्ठभूवम के साथ, ‘थमाटत नगर कायतिम’ के ईद्देश्य
और रणनीवत बताइये। (2016)