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दौड़- ममता कालिया


वह अपने ऑफिस में घसु ा। शायद इस वक्त फिजली कटौती शरू ु हो गई थी। मख्ु य हॉल में आपातकालीन ट्यिू
लाइट जल रही थी। वह उसके सहारे अपने के फिन तक आया। अँधेरे में मेज पर रखे कंप्यटू र की एक िौड़म
फसलएु ट िन रही थी। िोन, इटं रकॉम सि फनष्प्राण लग रहे थे। ऐसा लग रहा था सपं णू ण सृफि फनश्चेि पड़ा है।

फिजली के रहते यह छोटा-सा कक्ष उसका साम्राज्य होता है। थोड़ी देर में आँख अँधेरे की अभ्यस्त हुई तो मेज पर
पड़ा माउस भी नजर आया। वह भी अचल था। पवन को हँसी आ गई, नाम है चहू ा पर कोई चपलता नहीं। फिजली
के फिना प्लाफस्टक का नन्हा-सा फखलौना है िस। 'िोलो चहू े कुछ तो करो, चँू चँू ही सही,' 'उसने कहा |' चहू ा फिर
िेजान पड़ा रहा।

पवन को एकएक अपना छोटा भाई सघन याद आया। रात में फिस्कुटों की तलाश में वे दोनों रसोई घर में जाते।
रसोई में नाली के रास्ते िड़े-िड़े चहू े दौड़ लगाते रहते। उन्हें िड़ा डर लगता। रसोई का दरवाजा खोल कर फिजली
जलाते हुए छोटू लगातार म्याऊँ-म्याऊँ की आवाजें महँु से फनकालता रहता फक चहू े ये समझें फक रसोई में फिल्ली
आ पहुचँ ी है और वे डर कर भाग जाएँ। छोटू का जन्म भी माजाणर योफन का है।

पवन ज्यादा देर स्मृफतयों में नहीं रह पाया। एकाएक फिजली आ गई, अँधेरे के िाद चकाचौंध करती फिजली के
साथ ही ऑफिस में जैसे राण लौट आए। दातार ने हॉट प्लेट कॉिी का पानी चढा फदया, िािू भाई जेराक्स मशीन
में कागज लगाने लगे और फशल्पा कािरा अपनी टेिल से उठ कर नाचती हुई-सी फचत्रेश की टेिल तक गई, 'यू नो
हमें नरूलाज का कांट्रेक्ट फमल गया।'

पवन पाडं े को इस नए शहर और अपनी नई नौकरी पर नाज हो गया। अि देफखए फिजली चार िजे गई, ठीक साढे
चार िजे आ गई। परू े शहर को टाइम जोन में िाँट फदया है, फसिण आधा घटं े के फलए फिजली गल ु की जाती है, फिर
अगले जोन में आधा घटं ा। इस तरह फकसी भी क्षेत्र पर जोर नहीं पड़ता। नहीं तो उसके परु ाने शहर यानी इलाहािाद
में तो यह आलम था फक अगर फिजली चली गई तो तीन-तीन फदन तक आने के नाम न ले। फिजली जाते ही छोटू
कहता, 'भइया, ट्रांसिामणर दफु ड़म िोला था, हमने सनु ा है।' परीक्षा के फदनों में ही शादी-ब्याह का मौसम होता। जैसे
ही मोहल्ले की फिजली पर ज्यादा जोर पड़ता, फिजली िे ल हो जाती। पवन झझँु लाता, 'माँ, अभी तीन चैप्टर
िाकी हैं, कै से पढूँ।' माँ उसकी टेिल के चार कोनों पर चार मोमिफियाँ लगा देती और िीच में रख देती, उसकी
फकताि। नए अनुभव की उिेजना में पवन, फिजली जाने पर और भी अच्छी तरह पढाई कर डालता।पवन ने अपनी
टेिल पर िैठे-िैठे दाँत पीसे। यह िेवकूि लड़की हमेशा गलत आदमी से मख ु ाफति रहती है। इसे क्या पता फक
फचत्रेश की चौिीस तारीख को नौकरी से छुट्टी होनेवाली है। उसने दो जप्ं स (वेतन वृफि) माँगे थे, कंपनी ने उसे जपं
आउट करना ही िेहतर समझा। इस समय तलवारें दोनों तरि की तनी हुई हैं। फचत्रेश को जवाि फमला नहीं है पर
उसे इतना अदं ाजा है फक मामला कहीं िँ स गया है। इसीफलए फपछले हफ्ते उसने एफशयन पेंट्स में इटं रव्यू भी दे
फदया। एफशयन पेंट्स का एररया मैनेजर पवन को नरूलाज में फमला था और उससे शान मार रहा था फक तम्ु हारी
कंपनी छोड़-छोड़ कर लोग हमारे यहाँ आते हैं। पवन ने फचत्रेश की फसिाररश कर दी ताफक फचत्रेश का जो िायदा
होना है वह तो हो, उसकी कंपनी के फसर पर से यह फसरददण हटे। वहीं उसे यह भी खिर हुई फक नरूलाज में रोज
िीस फसलेंडर की खपत है। आई.ओ.सी. अपने एजेंट के जररए उन पर दिाव िनाए हुई है फक वे साल भर का
अनिु ंध उनसे कर लें। गजु रण गैस ने भी अजी लगा रखी है। आई.ओ.सी. की गैस कम दाम की है। संभावना तो यही
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िनती है फक उनके एजेंट शाह एडं सेठ अनिु ंध पा जाएँगे पर एक चीज पर िात अटकी है। कई िार उनके यहाँ
माल की सप्लाई ठप पड़ जाती है। पफब्लक सेक्टर के सौ पचड़े। कभी कमणचाररयों की हड़ताल तो कभी ट्रक
चालकों की शतें। इनके मकु ािले गजु रण गैस में माँग और आपूफतण के िीच ऐसा संतल
ु न रहता है फक उनका दावा है
फक उनका रफतष्ठान संतिु उपभोक्ताओ ं का संसार है।

छोटू इसी िहाने फिजली घर के चार चक्कर लगा आता। उसे छुटपन से िाजार घमू ने का चस्का था। घर का िुटकर
सौदा लाते, पोस्ट ऑफिस, फिजली घर के चक्कर लगाते यह शौक अि लत में िदल गया था। परीक्षा के फदनों में
भी वह कभी नई पेंफसल खरीदने के िहाने तो कभी यनू ीिामण इस्तरी करवाने के िहाने घर से गायि रहता। जाते हुए
कहता, 'हम अभी आते हैं।' लेफकन इससे यह न पता चलता फक हजरत जा कहाँ रहे हैं। जैसे मराठी में, घर से जाते
हुए मेहमान यह नहीं कहता फक मैं जा रहा ह,ँ वह कहता है 'मी येतो' अथाणत मैं आता ह।ँ यहाँ गजु रात में और संदु र
ररवाज है। घर से मेहमान फवदा लेता है तो मेजिान कहते हैं, 'आऊ जो।' यानी फिर आना।

यह ठीक है फक पवन घर से अठारह सौ फकलोमीटर दरू आ गया है। पर एम.िी.ए. के िाद कहीं न कहीं तो उसे
जाना ही था। उसके माता-फपता अवश्य चाहते थे फक वह वहीं उनके पास रह कर नौकरी करे पर उसने कहा, 'पापा,
यहाँ मेरे लायक सफवणस कहाँ? यह तो िेरोजगारों का शहर है। ज्यादा से ज्यादा नरू ानी तेल की माके फटंग फमल
जाएगी।' माँ-िाप समझ गए थे फक उनका फशखरचंिु ी िेटा कहीं और िसेगा।

फिर यह नौकरी परू ी तरह पवन ने स्वयं ढूँढी थी। एम.िी.ए. अफं तम वर्ण की जनवरी में जो चार-पाँच कंपफनयाँ उनके
सस्ं थान में आई,ं उनमें भाईलाल भी थी। पवन पहले फदन पहले इटं रव्यू में ही चनु फलया गया। भाईलाल कंपनी ने
उसे अपनी एल.पी.जी. यफू नट में रफशक्षु सहायक मैनेजर िना फलया। संस्थान का फनयम था फक अगर एक नौकरी में
छात्र का चयन हो जाए तो वह िाकी के तीन इटं रव्यू नहीं दे सकता। इससे ज्यादा छात्र लाभाफन्वत हो रहे थे और
कैं पस पर परस्पर स्पधाण घटी थी। पवन को िाद में यही अिसोस रहा फक उसे पता ही नहीं चला फक उसके सस्ं थान
में फवरो, एपल और िी.पी.सी.एल जैसी कंपफनयाँ भी आई थीं। फिलहल उसे यहाँ कोई फशकायत नहीं थी। अपने
अन्य कामयाि साफथयों की तरह उसने सोच रखा था फक अगर साल िीतते न िीतते उसे पद और वेतन में उच्चतर
ग्रेड नहीं फदया गया तो वह यह कंपनी छोड़ देगा।

सी.पी. रोड चौराहे पर खड़े हो के उसने देखा, सामने से शरद जैन जा रहा है। यह एक इििाक ही था फक वे दोनों
इलाहािाद में स्कूल से साथ पढे और अि दोनों को अहमदािाद में नौकरी फमली। िीच में दो साल शरद ने
आई.ए.एस. की मरीफचका में नि फकए, फिर कै फपटेशन िीस दे कर सीधे आई.आई.एम. अहमदािाद में दाफखल हो
गया। उसने शरद को रोका, 'कहाँ?' 'यार फपजा हट चलते हैं, भख ू लग रही है।'
वे दोनों फपजा हट में जा िैठे। फपजा हट हमेशा की तरह लड़के -लड़फकयों से गल ु जार था। पवन ने कूपन फलए और
काउंटर पर दे फदए। शरद ने सकुचाते हुए कहा, 'मैं तो जैन फपजा लँगू ा। तमु जो चाहे खाओ।' 'रहे तमु वहीं के वहीं
साले। फपजा खाते हुए भी जैफनज्म नहीं छोड़ेंग।े '

अहमदािाद में हर जगह मेनू काडण में िाकायदा जैन व्यंजन शाफमल रहते जैसे जैन फपजा, जैन आमलेट, जैन िगणर।

पवन खाने के मामले में उन्मक्त


ु था। उसका मानना था फक हर व्यंजन की एक खाफसयत होती है। उसे उसी अदं ाज में
खाया जाना चाफहए। उसे संशोधन से फचढ थी।मेनू काडण में जैन फपजा के आगे उसमें पड़नेवाली चीजों का खल
ु ासा
भी फदया था, टमाटर, फशमला फमचण, पिा गोभी और तीखी-मीठी चटनी। शरद ने कहा, 'कोई खास िकण तो नहीं है,
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फसिण फचकन की चार-पाँच कतरन उसमें नहीं होगी, और क्या?' 'सारी लज्जत तो उन कतरनों की है, यार।' पवन
हँसा।
'मैंने एक-दो िार कोफशश की पर सिल नहीं हुआ। रात भर लगता रहा जैसे पेट में मगु ाण िोल रहा है कुकडूँकँू ।'
'तम्ु हीं जैसों से महात्मा गांधी आज भी साँसें ले रहे हैं। उनके पेट में िकरा में-में करता था।' शरद ने वेटर को िल
ु ा
कर पछ ू ा, 'कौन-सा फपजा ज्यादा फिकता है यहाँ।' 'जैन फपजा।' वेटर ने मसु कुराते हुए जवाि फदया।'देख फलया,' शरद
िोला, 'पवन, तमु इसको एफरफशएट करो फक सात समदं र पार की फडश का पहले हम भारतीयकरण करते हैं, फिर
खाते हैं। घर में ममी िेसन का ऐसा लजीज आमलेट िना कर फखलाती हैं फक अडं ा उसके आगे पानी भरे ।'
'मैं तो जि से गजु रात आया हँ िेसन ही खा रहा ह।ँ पता है िेसन को यहाँ क्या िोलते हैं ? चने का लोट।'

पता नहीं यह जैन धमण का रभाव था या गांधीवाद का, गजु रात में मांस, मछली और अडं े की दक ु ानें मफु श्कल से
देखने में आतीं। होस्टल में रहने के कारण पवन के फलए अडं ा भोजन का पयाणय था पर यहाँ फसिण स्टेशन के आस-
पास ही अडं ा फमलता। वहीं तली हुई मछली की भी चनु ी दक ु ानें थीं। पर अकसर मेम नगर से स्टेशन तक आने की
और ट्रैफिक में िँ सने की उसकी इच्छा न होती। ति वह फकसी अच्छे रे स्तराँ में साफमर् भोजन कर अपनी तलि
परू ी करता।

वे अपने परु ाने फदन याद करते रहे, दोनों के िीच में लड़कपन की िेशमु ार िेवकूफियाँ कॉमन थीं और पढाई के
सघं र्ण। पवन ने कहा, 'पहले फदन जि तमु अमदािाद आए ति की िात िताना जरा।' 'तमु कभी अमदािाद कहते
हो कभी अहमदािाद, यह चक्कर क्या है।''ऐसा है अपना गजु राती क्लायंट अहमदािाद को अमदािाद ही िोलना
माँगता, तो अपनु भी ऐसाइच िोलने का।' 'मैं कहता हँ यह एकदम व्यापारी शहर है, सौ रफतशत। मैं चालीस घटं े के
सिर के िाद यहाँ उतरा। एक थ्री व्हीलरवाले से पछ ू ा, 'आई.आई.एम. चलोगे ?' फकदर िोलने से, उसने पछ ू ा। मैंने
कहा, 'भाई, वस्त्रापरु में जहाँ मैनेजरी की पढाई होती है, उसी जगह जाना है।' तो जानते हो साला क्या िोला, टू
हड्रं ेड भाड़ा लगेगा। मैंने कहा, तम्ु हारा फदमाग तो ठीक है। उसने कहा, साि आप उदर से पढ कर िीस हजार की
नौकरी पाओगे, मेरे को टू हड्रं ेड देना आपको ज्यादा लगता क्या ?' 'तम्ु हारा फसर घमू गया था?' 'िाई गॉड। मझु े
लगा वह एकदम ठग्गू है। पर फजस भी थ्री व्हीलरवाले से मैंने िात की सिने यही रे ट िताया।'

'मझु े याद है, शाम को तमु ने मझु से फमल कर सिसे पहले यही िात िताई थी।'

'सच्ची िात तो यह है फक अपने घर और शहर से िाहर आदमी हर रोज एक नया सिक सीखता है।' 'और िताओ,
जॉि ठीक चल रहा है?' 'ठीक क्या यार, मैंने कंपनी ही गलत चनु ली।' 'िैनर तो िड़ा अच्छा है, स्टाटण भी अच्छा
फदया है?' 'पर रॉडक्ट भी देखो। िटू पॉफलश। हालत यह है फक फहदं स्ु तान में फसिण दस रफतशत लोग चमड़े के जतू े
पहनते हैं।' 'िाकी नब्िे क्या नंगे पैर फिरते हैं?' 'मजाक नहीं, िाकी लोग चप्पल पहनते हैं या िोम शजू । िोम के
जतू े कपड़ों की तरह फडटरजेंट से धल ु जाते हैं और चप्पल चटकानेवाले पॉफलश के िारे में कभी सोचते नहीं।
पॉफलश फिके तो कै से?'

पवन ने कौतक ु से रे स्तराँ में कुछ पैरों की तरि देखा। अफधकांश पैरों में िोम के मोटे जतू े थे। कुछ पैरों में चप्पलें
थीं। 'अभी हेड ऑफिस से िै क्स आया है फक माल की अगली खेप फभजवा रहे हैं। अभी फपछला माल फिका नहीं
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है। दक
ु ानदार कहते हैं वे और ज्यादा माल स्टोर नहीं करें ग,े उनके यहाँ जगह की फकल्लत है। ऐसे में मेरी सनशाइन
शू पॉफलश क्या करें ?' 'डीलर को कोई फगफ्ट ऑिर दो, तो वह माल फनकाले।'

'सिको सनशाइन रखने के फलए वॉल रै क फदए हैं, डीलसण कमीशन िढवाया है पर मैंने खदु खड़े हो कर देखा है,
काउंटर सेल नहीं के िरािर है।

'पवन ने सझु ाव फदया, 'कोई रणनीफत सोचो। कोई इनामी योजना, हॉफलडे रोग्राम?'

'इनामी योजना का सझु ाव भेजा है। हमारा टारगेट उपभोक्ता स्कूली फवद्याथी हैं। उसकी फदलचस्पी टॉिी या पेन में
हो सकती है, हॉफलडे रोग्राम में नहीं।'
'हाँ, यह अच्छी योजना है।' 'िाइ गॉड, अगर पफब्लक स्कूलों में चमड़े के जतू े पहनने का फनयम न होता तो सारी
िटू पॉफलश कंपफनयाँ िंद हो जातीं। इन्हीं के ितू े पर िाटा, कीवी, फिल्ली, सनशाइन सि फजंदा हैं।' 'इस फलहाज से
मेरी रॉडक्ट िफढया है। हर सीजन में हर तरह के आदमी को गैस फसलेंडर की जरूरत रहती है। लेफकन यार, जि
थोक में रॉडक्ट फनकालनी हो, यह भी भारी पड़ जाती है।' पवन उठ खड़ा हुआ, 'थोड़ी देर और िैठे तो यहाँ फडनर
टाइम हो जाएगा। तमु कहाँ खाना खाते हो आजकल।'
'वहीं जहाँ तमु ने िताया था, मौसी के । और तमु ?' 'मैं भी मौसी के यहाँ खाता हँ पर मैंने मौसी िदल ली है।'

'क्यों?'
'वह क्या है यार मौसी कढी और करे ले में भी गड़ु डाल देती थी और खाना परोसनेवाली उसकी िेटी कुछ ऐसी थी
फक झेली नहीं जाती थी।'
'हमारीवाली मौसी तो िहुत सख्त फमजाज है, खाते वक्त आप वॉकमैन भी नहीं सनु सकते। िस खाओ और
जाओ।'

'यार, कुछ भी कहो अपने शहर का खस्ता, समोसा िहुत याद आता है।'

शहर में जगह-जगह घरों में मफहलाओ ं ने माहवारी फहसाि पर खाना फखलाने का रिधं कर रखा था। नौकरीपेशा
छड़े (अफववाफहत) यवु क उनके घरों में जा कर खाना खा लेते। रोटी, सब्जी, दाल और चावल। न रायता न चटनी न
सलाद। दर तीन सौ पचास रुपए महीना, एक वक्त। इन मफहलाओ ं को मौसी कहा जाता। भले ही उनकी उम्र पचीस
हो या पचास। रात साढे नौ के िाद खाना नहीं फमलता। ति ये लड़के उडुपी भोजनालय में एक मसाला दोसा खा
कर सो जाते। इतनी तकलीि में भी इन यवु कों को कोई फशकायत न होती। अपने उद्यम से रहने और जीने का
सतं ोर् सिके अदं र।

घर गृहस्थीवाले साथी पछू ते, 'फजदं गी के इस ढंग से कि नहीं होता?'


'होता है कभी-कभी।' अनपु म कहता, 'सन 84 से िाहर ह।ँ पहले पढने की खाफतर, अि काम की।' कभी-कभी छुट्टी
के फदन अनपु म फलट्टी-चोखा िनाता। िाकी लड़के उसे फचढाते, 'तमु अनपु म नहीं, अनपु मा हो।' वह िेलन हाथ में
नचाते हुए कहता, 'हम अपने लालू अक ं ल को फलखगँू ा इधर में तमु सि ितु रू एक सीधे-सादे फिहारी को सताते
हो।'
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जि आप अपना शहर छोड़ देते हैं, अपनी फशकायतें भी वहीं छोड़ आते हैं। दसू रे शहर का हर मजं र परु ानी यादों
को कुरे दता है। मन कहता है ऐसा क्यों है वैसा क्यों नहीं है? हर घर के आगे एक अदद टाटा समु ो खड़ी है। मारुफत
800 क्यों नहीं? तकण शफक्त से तय फकया जा सकता है फक यह पररवार की जरूरत और आफथणक हैफसयत का
पररचय पत्र है। पर यादें हैं फक लौट-लौट आती हैं फसफवल लाइसं , एलफगन रोड और चैथम लाइसं की सड़कों पर
जहाँ माफचस की फडफियों जैसी कारें और फस्टयररंग के पीछे िैठे नमकीन चेहरे तफियत तरोताजा कर जाते। ओि,
नए शहर में सि कुछ नया है। यहाँ दधू फमलता है पर भैसें नहीं फदखतीं। कहीं साइफकल की घटं ी टनटनाते दधू वाले
नजर नहीं आते। िड़ी-िड़ी ससु फज्जत डेरी शॉप हैं, एयरकंडीशडं , जहाँ आदमकद चमचमाती स्टील की टंफकयों में
टोटी से दधू फनकलता है। ठंडा, पास्चराइज्ड। वहीं फमलता है दही, दग्ु ध, पेड़ा और श्रीखडं ।

यही हॉल तरकाररयों का है। हर कॉलोनी के गेट पर सिु ह तीन-चार घटं े एक ऊँचा ठे ला तरकाररयों से सजा खड़ा
रहेगा। वह घर-घर घमू कर आवाज नहीं लगाता। फस्त्रयाँ उसके पास जाएँगी और खरीदारी करें गी। उसके ठे ले पर
खास और आम तरकाररयों का अिं ार लगा है। हरी फशमला फमचण है तो लाल और पीली भी। गोभी है तो ब्रोकोली
भी। सलाद की शक्ल का थाई कै िेज भी फदखाई दे जाता है। खास तरकाररयों में फकसी की भी कीमत डेढ दो सौ
रुपए फकलो से कम नहीं। ये िड़े-िड़े लाल टमाटर एक तरि रखे हैं फक दरू से देखने पर प्लाफस्टक की गेंद लगते हैं।
ये टमाटर क्यारी में नहीं, रयोगशाला में उगाए गए लगते हैं। कीमत दस रुपए पाव। टमाटर का आकार इतना िड़ा है
फक एक पाव में एक ही चढ सकता है। दस रुपए का एक टमाटर है। भगवान, क्या टमाटर भी एन.आर.आई. हो
गया। फशकागो में एक डॉलर का एक टमाटर फमलता है। भारत में टमाटर उसी फदशा में िढ रहा है। तरकाररयाँ फवश्व
िाजार की फजसं िनती जा रही हैं। इनका भमू ंडलीकरण हो रहा है। पवन को याद आता है उसके शहर में घरू े पर भी
टमाटर उग जाता था। फकसी ने पका टमाटर कूड़े-करकट के ढेर पर िें क फदया, वहीं पौधा लहलहा उठा। दो माह
िीतते न िीतते उसमें िल लग जाते। छोटे-छोटे लाल टमाटर, रस से टलमल, यहाँ जैसे िड़े िेजान और िनावटी
नहीं, असल और खटफमट्ठे।

शहर के िाजारों में घमू ना पवन, शरद, दीपेंद्र, रोजफवदं र और फशल्पा का शौक भी है और फदनचयाण भी। रोजफवदं र
कौर रदर्ू ण पर रोजेक्ट ररपोटण तैयार कर रही है। कंधे पर पसण और कै मरा लटकाए कभी वह एफलस फब्रज के ट्रैफिक
जाम के फचत्र उतारती है तो कभी िाजार में जनरे टर से फनकलनेवाले धएु ँ का जाएजा लेती है।
दीपेंद्र कहता है, 'रोजू तम्ु हारी ररपोटण से क्या होगा। क्या टैंपो और जेनरे टर धआ
ु ँ छोड़ना िंद कर देंग?े '
रोजू फसगरे ट का आफखरी कश ले कर उसका टोटा पैर के नीचे कुचलती है, 'माई िुट ! तुम तो मेरे जॉि को ही
चनु ौती दे रहे हो। मेरी कंपनी को इससे मतलि नहीं है फक वाहन धएु ँ के िगैर चलें। उसकी योजना है हवा
शफु िकरण संयंत्र िनाने की। एक हिणल स्रे भी िनानेवाली है। उसे एक िार नाक के पास स्रे कर लो तो धएु ँ का
रदर्ू ण आपकी साँस के रास्ते अदं र नहीं जाता।'

'और जो रदर्ू ण आँख और मँहु के रास्ते जाएगा वह?'

'तो महँु िंद रखो और आँख में डालने को आइ ड्रॉप ले आओ।'


पवन के महँु से फनकल जाता है, 'मेरे शहर में रदर्ू ण नहीं है।'

'आ हा हा, परू े फवश्व में रदर्ू ण फचंता का फवर्य है और ये पवन कुमार आ रहे हैं सीधे स्वगण से फक वहाँ रदर्ू ण नहीं
हैं। तमु इलाहािाद के िारे में रोमाफं टक होना कि छोड़ोगे?'
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रोजू हँसती है, 'वॉट ही मींस इज वहाँ रदर्ू ण कम है। वैसे पवन मैंने सनु ा है य.ू पी. में अभी भी फकचन में लकड़ी के
चल्ू हे पर खाना िनता है। ति तो वहाँ घर के अदं र ही धआु ँ भर जाता होगा?'
'इलाहािाद गाँव नहीं शहर है, कावल टाउन। फशक्षा जगत में उसे पवू ण का ऑक्सिोडण कहते हैं।' फशल्पा कािरा
िातचीत को फवराम देती है, 'ठीक है, अपने शहर के िारे में थोड़ा रोमांफटक होने में क्या हजण है।'

पवन कृ तज्ञता से फशल्पा को देखता है। उसे यह सोच कर िरु ा लगता है फक फशल्पा की गैरमौजदू गी में वे सि उसके
िारे में हल्के पन से िोलते हैं। पवन का ही फदया हुआ लतीिा है फशल्पा कािरा, फशल्पा का ब्रा।

'फवश्वास नी जोत घरे -घरे गजु रण गैस लावे छे ' यह नारा है पवन की कंपनी का। इस संदश
े को रचाररत-रसाररत करने
का अनिु ंध शीिा कंपनी को साठ लाख में फमला है। उसने भी सड़कें और चौराहे रँ ग डाले हैं।

अटैची में कपड़े, आँखों में सपने और अतं र में आकुलता फलए न जाने कहाँ-कहाँ से नौजवान लड़के नौकरी की
खाफतर इस शहर में आ पहुचँ े हैं। िड़ी-िड़ी सफवणस इडं स्ट्री में कायणरत ये नवयवु क सिेरे नौ से रात नौ तक अथक
पररश्रम करते हैं। एक दफ्तर के दो-तीन लड़के फमल कर तीन या चार हजार तक के फकराए का एक फ्लैट ले लेते हैं।
सभी िरािर का शेयर करते हैं फकराया, दधू का फिल, टायलेट का सामान, लांड्री का खचण। इस अनजान शहर में
रम जाना उनके आगे नौकरी में जम जाने जैसी ही चनु ौती है, हर स्तर पर। कहाँ अपने घर में ये लड़के शहजादों की
तरह रहते थे, कहाँ सारी सख ु -सफु वधाओ ं से वफं चत, घर से इतनी दरू ये सि सिलता के संघर्ण में लगे हैं। न इन्हें
भोजन की फचतं ा है न आराम की। एक आँख कंप्यटू र पर गड़ाए ये भोजन की रस्म अदा कर लेते हैं और फिर लग
जाते हैं कंपनी के व्यापार लक्ष्य को फसि करने में। जाफहर है, व्यापार या लाभ लक्ष्य इतने ऊँचे होते हैं फक फसफि का
सखु हर एक को हाफसल नहीं होता। फसफि, इस दफु नया में, एक चार पफहया दौड़ है फजसमें फस्टयररंग आपके हाथ में
है पर िाकी सारे कंट्रोल कंपनी के हाथ में। वही तय करती है आपको फकस रफ्तार से दौड़ना है और कि
तक।एल.पी.जी. फवभाग में काम करने वालों के हौसले और हसरतें िल ु ंद हैं। सिको यकीन है फक वे जल्द ही
आई॰ओ.सी. को गजु रात से खदेड़ देंग।े फनदेशक से ले कर फडलीवरी मैन तक में काम के रफत तत्परता और
तन्मयता है। मेन नगर में जहाँ जी.जी.सी.एल. का दफ्तर है, वह एक खिू सरू त इमारत है, तीन तरि हररयाली से
फघरी। सामने कुछ और खिू सरू त मकान हैं फजनके िरामदों में फवशाल झल ू े लगे हैं। िगल में सेंट जेफवयसण स्कूल है।
छुट्टी की घटं ी पर जि नीले यनू ीिामण पहने छोटे-छोटे िच्चे स्कूल के िाटक से िाहर भीड़ लगाते हैं तो
जी.जी.सी.एल. के लाल फसफलंडरों से भरे लाल वाहन िड़ा िफढया कांट्रास्ट िनाते हैं लाल नीला, नीला लाल।

िीसवीं शताब्दी के अफं तम दशक के तीन जादईु अक्षरों ने िहुत-से नौजवानों के जीवन और सोच की फदशा ही
िदल डाली थी। ये तीन अक्षर थे एम.िी.ए.। नौकररयों में आरक्षण की आँधी से सकपकाए सवणण पररवार धड़ाधड़
अपने िेटे िेफटयों को एम.िी.ए. में दाफखल होने की सलाह दे रहे थे। जो िच्चा पवन, फशल्पा और रोजफवदं र की
तरह कै ट, मैट जैसी रवेश परीक्षाएँ फनकाल ले वह तो ठीक, जो न फनकाल पाए उसके फलए लंिी-चौड़ी कै फपटेशन
िीस देने पर एम.एम.एस. के द्वार खल ु े थे। हर िड़ी सस्ं था ने ये दो तरह के कोसण िना फदए थे। एक के जररए वह
रफतष्ठा अफजणत करती थी तो दसू री के जररए धन। समाज की तरह फशक्षा में भी वगीकरण आता जा रहा था।
एम.िी.ए. में लड़के वर्ण भर पढते, रोजेक्ट िनाते, ररपोटण पेश करते और हर सत्र की परीक्षा में उिीणण होने की जी
तोड़ मेहनत करते। एम.एम.एस. में रईस उद्योगपफतयों, सेठों के फिगड़े शाहजादे एन.आर.आई. कोटे से रवेश लेत,े
जम कर वक्त िरिाद करते और दो की जगह तीन साल में फडग्री ले कर अपने फपता का व्यवसाय सँभालने या
फिगाड़ने वापस चले जाते।
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शरद के फपता इलाहािाद के नामी फचफकत्सक थे। संतान को एम.िी.िी.एस. में दाफखल करवाने की उनकी कोफशशें
नाकामयाि रहीं तो उन्होंने एकमश्ु त कै फपटेशन िीस दे कर उसका नाम एम.एम.एस. में फलखवा फदया। एम.एम.एस.
फडग्री के िाद उन्होंने अपने रसख
ू से उसे सनशाइन िटू पॉफलश में नौकरी भी फदलवा दी पर इसमें सिल होना शरद
की फजम्मेदारी थी। उसे अपने फपता का कठोर चेहरा याद आता और वह सोच लेता नौकरी में चाहे फकतनी िजीहत
हो वह सह लेगा पर फपता की फहकारत वह नहीं सह सके गा। कंपनी के एम.डी. जि-ति हेड ऑफिस से आ कर
चक्कर काट जाते। वे अपने मैनेजरों को भेज कर जायजा लेते और शरद व उसके साफथयों पर िरस पड़ते, 'परू े
माके ट में फिल्ली छाई हुई है। शो रूम्स से ले कर होफडिंग और िैनर तक, सि जगह फिल्ली ही फिल्ली है। आप
लोग क्या कर रहे हैं। अगर स्टोरे ज की फकल्लत है तो फिल्ली के फलए क्यों नहीं, सनशाइन ही क्यों?' शरद और
साथी अपने परु ाने तकण रस्ततु करते तो एम.डी. ताम्रपणी साहि और भड़क जाते, 'फिल्ली पाफलश क्या िोम शजू
पर लगाई जा रही है या उससे चप्पलें चमकाई जा रही हैं?'

इस िार उन्होंने शरद और उसके साफथयों को फनदेश फदया फक नगर के मोफचयों से िात कर ररपोटण दें फक वे कौन-सी
पॉफलश इस्तेमाल करते हैं और क्यों?
एम.डी. तो िँू -िाँ कर चलते िने, लड़कों को मोफचयों से फसर खपाने के फलए छोड़ गए। शरद और उसके सहकमी
सिु ह नौ से िारह के समय शहर के मोफचयों को ढूँढते, उनसे िात करते और नोट्स लेते। दरअसल िाजार में फदन
पर फदन स्पधाण कड़ी होती जा रही थी। उत्पादन, फवपणन और फवक्रय के िीच तालमेल िैठाना दष्प्ु कर कायण था।
एक-एक उत्पाद की टक्कर में िीस-िीस वैकफल्पक उत्पाद थे। इन सिको श्रेष्ठ िताते फवज्ञापन अफभयान थे फजनके
रचार-रसार से माके फटंग का काम आसान क िजाय मफु श्कल होता जाता। उपभोक्ता के पास एक-एक चीज के कई
चमकदार फवकल्प थे।

रोजफवदं र ने परु ानी कंपनी छोड़ कर इफं डया लीवर के टूथपेस्ट फडवीजन में काम सँभाला था। उसे आजकल दफु नया
में दाँत के फसवा कुछ नजर नहीं आता था। वह कहती, 'हमारी रोडक्ट के एक-एक आइटम को इतना रचाररत कर
फदया गया है फक अि इसमें िस सािनु फमलाने की कसर िाकी है।' रे फडयो और टी.वी. पर फदन में सौ िार दशणक
और श्रोता की चेतना को झकझोरता फवज्ञापन माके फटंग के रयासों में चनु ौती और चेतावनी का काम करता।
उपभोक्ता िहुत ज्यादा उम्मीद के साथ टूथपेस्ट खरीदता जो एकिारगी परू ी न होती फदखती। वह वापस अपने परु ाने
टूथपेस्ट पर आ जाता फिना यह सोचे फक उसे अपने दाँतों की िनावट, खान-पान के रकार और रकृ फत और
वश ं ानगु त सीमाओ ं पर भी गौर करना चाफहए।

शरद को लगता िटू पाफलश िेचना सिसे मफु श्कल काम है तो रोजफवदं र को लगता ग्राहकों के महँु नया टूथपेस्ट चढवाना
चनु ौतीपरक है और पवन पाडं े को लगता वह अपनी कंपनी का टारगेट, फवक्रय लक्ष्य, कै से परू ा करे । खाली समय में
अपने-अपने उत्पाद पर िहस करते-करते वे इतना उत्पात करते फक लगता सिलता का कोई सट्टा खेल रहे हैं। पवन
म्यफू जक फसस्टम पर गाना लगा देता, 'ये तेरी नजरें झक ु ी, ये तेरा चेहरा फखला-फखला। िड़ी फकस्मतवाला है...' ─
ु ी-झक
'सनी टूथपेस्ट फजसे फमला' रोजफवदं र गाने की लाइन परू ी करती।

ऐनाग्राम िाइनेंस कंपनी के सौजन्य से शहर में तीन फदवसीय सास्ं कृ फतक कायणक्रम का आयोजन हुआ। गजु रात
फवश्वफवद्यालय के फवशाल पररसर में िेहद संदु र साज-सज्जा की गई। गजु रात वैसे भी पंडाल रचना में परंपरा और
मौफलकता के फलए फवख्यात रहा है, फिर इस आयोजन में िजट की कोई सीमा न थी। पवन, फशल्पा, रोज,ू शरद
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और अनपु म ने पहले ही अपने पास मँगवा फलए। पहले फदन नृत्य का कायणक्रम था, अगले फदन ताल-वाद्य और
पफं डत भीमसेन जोशी का गायन, हरररसाद चौरफसया का िाँसरु ी वादन और फशवकुमार शमाण का सतं रू वादन।
अहमदािाद जैसी औद्योफगक, व्यापाररक नगरी के फलए यह एक अभतू पवू ण संस्कृ फत संगम था।

आयोजन का समस्त रिंध ए.एि.सी. के यवु ा मैनेजरों के फजम्मे था। मक्त


ु ांगन में पंद्रह हजार दशणकों के िैठने का
इतं जाम था। पररसर के चार कोनों तथा िीच-िीच में दो जगह फवशाल सपु र स्क्रीन लगे थे फजन पर मचं के
कलाकारों की छफव पड़ रही थी। इससे मचं से दरू िैठे दशणकों को भी कलाकार के समीप होने की अनभु फू त हो रही
थी। दशणकों की सीटों से हट कर, पररसर की िाहरी दीवार के करीि एक स्नैक िाजार लगाया गया था। सांस्कृ फतक
कायणक्रम में रवेश फनिःशल्ु क था, हालाँफक खान-पान के फलए सिके फलए पचास रुपए रफत व्यफक्त के फहसाि से
कूपन खरीदना अफनवायण था।

दसू रे फदन पवन भीमसेन जोशी को सनु ने गया था। सपु र स्क्रीन पर भीमसेन जोशी महा भीमसेन जोशी नजर आ रहे
थे। 'सि है तेरा' अतं रे पर आते-आते उन्होंने हमेशा की तरह सरु और लय का समा िाँध फदया। लेफकन पवन को
इस िात से उलझन हो रही थी फक आसपास की सीटों के दशणकों की फदलचस्पी गायन से अफधक खान-पान में थी।
वे िार-िार उठ कर स्नैक िाजार जाते, वहाँ से अक ं ल फचप्स के पैकेट और पेप्सी लाते। देखते ही देखते परू े माहौल
में राग अहीर भैरव के साथ कुरण -कुरण चरु ण -चरु ण की ध्वफनयाँ भी शाफमल हो गई।ं अफधकांश दशणकों के फलए वहाँ देखे
जाने के अदं ाज में उपफस्थफत महत्वपणू ण थी।

पवन ने अपने शहर में इस कलाकार को सनु ा था। मेहता सगं ीत सफमफत के हॉल में खचाखच भीड़ में स्तब्ध
सराहना में सम्मोफहत | इलाहािाद में आज भी साफहत्य संगीत के सवाणफधक ममणज्ञ और रसज्ञ नजर आते हैं। वहाँ
इस तरह िीच में उठ कर खाने-पीने का कोई सोच भी नहीं सकता।

अपने शहर के साथ ही घर की याद उमड़ आई। उसने सोचा रोग्राम खत्म होने पर वह घर िोन करे गा। माँ इस वक्त
क्या कर रही होंगी, शायद दही में जामन लगा रही होंगी ─ फदन का आफखरी काम। पापा क्या कर रहे होंगे, शायद
समाचारों की पचासवीं फकस्त सनु रहे होंगे। भाई क्या कर रहा होगा। वह जरूर टेलीिोन से फचपका होगा। उसके
कारण िोन इतना व्यस्त रहता है फक खदु पवन को अपने घर िात करने के फलए भी पी.सी.ओ पर एक-एक घटं े
िैठना पड़ जाता है। अतं तिः जि िोन फमलता है सघन से पता चलता है फक माँ पापा की अभी-अभी आँख लगी है।
कभी उनसे िात होती है, कभी नहीं होती। जि माँ फनंदासे स्वर में पछ
ू ती हैं, 'कै से हो पन्ु न,ू खाना खा फलया, फचठ्ठी
डाला करो।' वह हर िात पर हाँ-हाँ कर देता है। पर तसल्ली नहीं होती। उसका अपनी माँ से िेहद जीवतं ररश्ता रहा
है। िोन जैसे यंत्र को िीच में डाल कर, फसिण उस तक पहुचँ ा जा सकता है, उसे पनु सृणफजत नहीं फकया जा सकता।
वह माँ के चेहरे की एक-एक जंफु िश देखना चाहता है। फपता हँसते हुए अद्भुत संदु र लगते हैं। इतनी दरू िैठ कर
पवन को लगता है माता, फपता और भाई उसके अलिम की सिसे संदु र तस्वीरें हैं। उसे लगा अि सघन फकस से
उलझता होगा। सारा फदन उस पर लदा रहता था, कभी तकरार में कभी लाड़ में। कई िार सघन अपना छुटपन छोड़
कर िड़ा भइया िन जाता। पवन फकसी िात से फखन्न होता तो सघन उससे फलपट-फलपट कर मनाता, 'भइया,
िताओ क्या खाओगे? भइया, तम्ु हारी शटण आयरन कर दें? भइया, हमें फसफिल लाइसं ले चलोगे?'

साफहत्य रेमी माता-फपता के कारण घर में कमरे फकतािों से अटे पड़े थे। स्कूल की पढाई में िाहरी सामान्य फकतािें
पढने का अवकाश नहीं फमलता था, फिर भी जो थोड़ा-िहुत वह पढ जाता था, अपने पापा और माँ के उकसाने के
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कारण। उन्होंने उसे रेमचंद की कहाफनयाँ और कुछ लेख पढने को फदए थे। 'किन', 'पसू की रात' जैसी कहाफनयाँ
उसके जेहन पर नक्श हो गई थीं लेफकन लेखों के सदं भण सि गड्ड-मड्ड हो गए थे।

अध्ययन के फलए अि अवकाश भी नहीं था। कंपनी की कमणभफू म ने उसे इस यगु का अफभमन्यु िना फदया था। घर
की िहुत हुड़क उठने पर िोन पर िात करता। एक आँख िार-िार मीटर स्क्रीन पर उठ जाती। छोटू कोई चटु कुला
सनु ा कर हँसता। पवन भी हँसता, फिर कहता, 'अच्छ छोटू, अि काम की िात कर, चालीस रुपए का हँस फलए हम
लोग।' माँ पछू ती, 'तमु ने गद्दा िनवा फलया?' वह कहता, 'हाँ माँ, िनवा फलया।' सच्चाई यह थी फक गद्दा िनवाने की
िुसणत ही उसके पास नहीं थी। घर से िोम की रजाई लाया था, उसी को फिस्तर पर गद्दे की तरह फिछा रखा था। पर
उसे पता था फक 'नहीं' कहने पर माँ नसीहतों के ढेर लगा देंगी, 'गद्दे के िगैर कमर अकड़ जाएगी। मैं यहाँ से िनवा
कर भेज?ँू अपना ध्यान भी नहीं रख पाता, ऐसी नौकरी फकस काम की। पफब्लक सेक्टर में आ जा, चैन से तो रहेगा।'

अहमदािाद इलाहािाद के िीच एस.टी.डी. कॉल की पल्स रे ट फदल की धड़कन जैसी सरपट चलती है - 3-6-9-
12। पाँच फमनट िात कर अभी मन भी नहीं भरा होता फक सौ रुपए फनकल जाते। ति उसे लगता 'टाइम इज मनी'।
वह अपने को फधक्कारता फक घरवालों से िात करने में भी वह महाजनी फदखा रहा है पर शहर में अन्य मदों पर
इतना खचण हो जाता फक िोन के फलए पाँच सौ से ज्यादा गजंु ाइश िजट में न रख पाता।

शफन की शाम पवन हमेशा की तरह अफभर्ेक शक्ु ला के यहाँ पहुचँ ा तो पाया वहाँ माहौल अलग है। रायिः यह
होता फक वह, अफभर्ेक, उसकी पत्नी राजल ु और उनके नन्हे िेटे अकं ु र के साथ कहीं घमू ने फनकल जाता। लौटते
हुए वे िाहर ही फडनर ले लेते या कहीं से िफढया सब्जी पैक करा कर ले आते और ब्रेड से खाते। आज अक ं ु र फजद
पकड़े था फक पाकण में नहीं जाएँग,े िाजार जाएँग।े राजल
ु उसे मना रही थी, 'अक ं ु र पाकण में तम्ु हें भालू फदखाएँगे और
खरगोश भी।'

'वो सि हमने देख फलया, हम िजाल देखगें े।'

हार कर वे िाजार चल फदए। फखलौनों की दक ु ान पर अक ं ु र अड़ गया। कभी वह एयरगन हाथ में लेता कभी ट्रेन।
उसके फलए तय करना मफु श्कल था फक वह क्या ले। पवन ने इलेक्ट्राफनक िदं र उसे फदखाया जो तीन िार कूदता
और खों-खों करता था।
अक ं ु र पहले तो चपु रहा। जैसे ही वे लोग दाम चकु ा कर िंदर पैक करा कर चलने लगे, अक ं ु र मचलने लगा, 'िंदर
नहीं गन लेनी है।' राहुल ने कहा, 'गन गदं ी, िंदर अच्छा। राजा िेटा िंदर से खेलेगा।' 'हम ठाँय-ठाँय करें गे हम िंदर
िें क देंग।े '
फिर से दक ु ान पर जा कर फखलौने देखे गए। िेमन से एयरगन फिर फनकलवाई। अभी उसे देख, समझ रहे थे फक
अक ं ु र का ध्यान फिर भटक गया। उसने दक ु ान पर रखी साइफकल देख ली। 'फछफकल लेना, फछफकल लेना।' वह
फचल्लाने लगा।
'अभी तमु छोटे हो। ट्राइफसफकल घर में है तो।' राजल ु ने समझाया।
अफभर्ेक की सहनशफक्त खत्म हो रही थी, 'इसके साथ िाजार आना मसु ीित है, हर िार फकसी िड़ी चीज के पीछे
लग जाएगा। घर में फखलौने रखने की जगह भी नहीं है और ये खरीदता चला जाता है।'

िड़े कौशल से अक ं ु र का ध्यान वापस िंदर में लगाया गया। दक


ु ानदार भी अि तक उकता चुका था। इस सि
चक्कर में इतनी देर हो गई फक और कहीं जाने का वक्त ही नहीं िचा। वापसी में वे लॉ गाडणन से सटे माके ट में
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भेलपरु ी, पानीपरू ी खाने रुक गए। माके ट ग्राहकों से ठसाठस भरा था। अक ं ु र ने कुछ नहीं खाया, उसे नींद आने लगी।
फकसी तरह उसे कार में फलटा कर वे घर आए।
अफभर्ेक ने कहा, 'पवन तमु लकी हो, अभी तम्ु हारी जान को न िीवी का झझं ट है न िच्चे का।' राजल ु तनु क गई,
'मेरा क्या झझं ट है तम्ु हें?' 'मैं तो जनरल िात कर रहा था।' 'यह जनरल नहीं स्पेशल िात थी। मैंने तम्ु हें पहले कहा
था मैं अभी िच्चा नहीं चाहती। तमु को ही िच्चे की पड़ी थी।' पवन ने दोनों को समझाया, 'इसमें झगड़ेवाली कोई
िात नहीं है। एक िच्चा तो घर में होना ही चाफहए। एक से कम तो पैदा भी नहीं होता, इसफलए एक तो होगा ही
होगा।' अफभर्ेक ने कहा, 'मैं िहुत थका हुआ ह।ँ नो मोर फडस्कशन।'

लेफकन राजलु का मडू खराि हो गया। वह घर के आफखरी काम फनपटाते हुए भनु भनु ाती रही, 'फहदं स्ु तानी मदण को
शादी के सारे सख
ु चाफहए, िस फजम्मेदारी नहीं चाफहए। मेरा फकतना हजण हुआ। अच्छी-भली सफवणस छोड़नी पड़ी।
मेरी सि कलीग्स कहती थीं राजल
ु अपनी आजादी चौपट करोगी और कुछ नहीं। आजकल तो फड्रंक्स का जमाना
है। डिल इनकम नो फकड्स (दोहरी आमदनी, िच्चे नहीं)। सेंफटमेंट के चक्कर में िँ स गई।' फकसी तरह फवदा ले कर
पवन वहाँ से फनकला।

कंपनी ने पवन और अनपु म का तिादला राजकोट कर फदया। वहाँ उन्हें नए फसरे से ऑफिस शरू ु करना था,
एल.पी.जी. का ररटेल माके ट सँभालना था और परू े सौराष्प्ट्र में जी.जी.सी. संजाल िै लाने की संभावनाओ ं पर
रोजेक्ट तैयार करना था।

तिादले अपने साथ तकलीि भी लाते हैं पर इन दोनों को उतनी नहीं हुई फजतनी आशक ं ा थी। इनके फलए
अहमदािाद भी अनजाना था और राजकोट भी। परदेसी के फलए परदेस में पसंद क्या, नापसंद क्या। अहमदािाद में
इतनी जड़ें जमी भी नहीं थीं फक उखड़े जाने पर ददण हो। पर अहमदािाद राजकोट मागण पर डीलक्स िस में जाते
समय दोनों को यह जरूरी लग रहा था फक वे हेड ऑफिस से ब्राच ं ऑफिस की ओर धके ल फदए हैं।
गजु रण गैस सौराष्प्ट्र के गाँवों में अपने पाँव पसार रही थी। इसके फलए वह अपने नए रफशक्षाफथणयों को दौरे और रचार
का व्यापक कायणक्रम समझा चक ु ी थी। सचू ना, उजाण, फवि और फवपणन के फलए अलग-अलग टीम ग्राम स्तर पर
कायण करने फनकल पड़ी थी। यों तो पवन और अनपु म भी अभी नए ही थे पर उन्हें इन छब्िीस रफशक्षाफथणयों के
कायण का आकलन और सयं ोजन करना था। राजकोट में वे एक फदन फटकते फक अगले ही फदन उन्हें सरू त, भरूच,
अक ं लेश्वर के दौरे पर भेज फदया जाता। हर जगह फकसी तीन फसतारा होटल में इन्हें फटकाया जाता, फिर अगला
मक ु ाम।
सरू त के पास हजीरा में भी पवन और अनपु म गए। वहाँ कंपनी के तेल के कुएँ थे। लेफकन पहली अनभु फू त कंपनी के
वचणस्व की नहीं, अरि महासागर के वचणस्व की हुई। एक तरि हरे -भरे पेड़ों के िीच फस्थत िड़ी-िड़ी िै क्टररयाँ,
दसू री तरि हहराता अरि सागर।

एक फदन उन्हें वीरपरु भी भेजा गया। राजकोट से पचास मील पर इस छोटे-से कस्िे में जलराम िािा का शफक्तपीठ
था। वहाँ के पजु ारी को पवन ने गजु रण गैस का महत्व समझा कर छह गैस कनेक्शन का ऑडणर फलया। कुछ ही देर में
जलराम िािा के भक्तों और समथणकों में खिर िै ल गई फक िािा ने गजु रण गैस वापरने (इस्तेमाल करने) का आदेश
फदया है। देखते-देखते शाम तक पवन ओर अनपु म ने दो सौ चौंसठ गैस कनेक्शन का आदेश राप्त कर फलया। वैसे
गजु रण गैस का मकु ािला हर जगह आई.ओ.सी. से था। लोग औद्योफगक और घरे लू इस्तेमाल के अतं र को महत्व
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नहीं देते। फजसमें चार पैसे िचें वहीं उन्हें िेहतर लगता। कई जगह उन्हें पफु लस की मदद लेनी पड़ी फक घरे लू गैस का
इस्तेमाल औद्योफगक इकाइयों में न फकया जाए।

फकरीट देसाई ने चार फदन की छुट्टी माँगी तो पवन का माथा ठनक गया। फनजी उद्यम में दो घटं े की छुट्टी लेना भी
फिजल ू खची समझा जाता था फिर यह तो इकठ्ठे चार फदन का मसला था। फकरीट की गैरहाफजरी का मतलि था एक
ग्रामीण क्षेत्र से चार फदनों के फलए फिल्कुल कट जाना। 'आफखर तम्ु हें ऐसा क्या काम आ पड़ा?' 'अगर मैं िताऊँगा
तो आप छुट्टी नहीं देंग।े ' 'क्या तमु शादी करने जा रहे हो?'
'नहीं सर। मैंने आपको िोला न मेरे को जरूर जाना माँगता।'

िहुत कुरे दने पर पता चला फकरीट देसाई सरल मागण के कैं प में जाना चाहता है। राजकोट में ही तेरह मील दरू पर
उसके स्वामी जी का कैं प लगेगा।
'जो काम तम्ु हारे माँ-िाप के लायक है वह तमु अभी से करोगे।' पवन ने कहा।
'नहीं सर, आप एक फदन कैं प के मेफडटेशन में भाग लीफजए। मन को िहुत शांफत फमलती है। स्वामी जी कहते हैं,
मेफडटेशन फरपेसण यू िॉर योर मडं ेज।' (ध्यान लगाने से आप अपने सोमवारों का सामना िेहतर ढगं से कर सकते हैं।)
'तो इसके फलए छुट्टी की क्या जरूरत है। तुम काम से लौट कर भी कैं प में जा सकते हो।'
'नहीं सर। पजू ा और ध्यान िुलटाइम काम है।'

पवन ने िेमन से फकरीट को छुट्टी दे दी। मन ही मन वह भनु भनु ाता रहा। एक शाम वह यों ही कैं प की तरि चल
पड़ा। फदमाग में कहीं यह भी था फक फकरीट की मौजदू गी जाँच ली जाए।

राजकोट जनू ागढ फलक ं रोड पर दाफहने हाथ को फवशाल िाटक पर 'ध्यान फशफवर सरल मागण' का िोडण लगा था।
तकरीिन स्वतंत्र नगर वसा था। कारों का काफिला आ और जा रहा था। इतनी भीड़ थी फक उसमें फकरीट को ढूँढना
ममु फकन ही नहीं था। फजज्ञासावश पवन अदं र घसु ा। फवशाल पररसर में एक तरि िड़ी-सी खल ु ी जगह वाहन खड़े
करने के फलए छोड़ी गई थी जो तीन-चौथाई भरी हुई थी। वहीं आगे की ओर लाल- पीले रंग का पडं ाल था। दसू री
तरि तरतीि से तंिू लगे हुए थे। कुछ तंिओु ं के िाहर कपड़े सख
ू रहे थे। उस भाग में भी एक िाटक था फजस पर
फलखा था - रवेश फनर्ेध।

पंडाल के अदं र जि पवन घसु ने में सिल हुआ ति स्वामी जी का रवचन समापन की रफक्रया में था। वे फनहायत
शातं , सयं त, गहन गभं ीर वाणी में कह रहे थे, 'रेम करो, राफणमात्र से रेम करो। रेम कोई टेलीिोन कनेक्शन नहीं है
जो आप फसिण एक मनष्प्ु य से िात करें । रेम वह आलोक है जो समचू े कमरे को, समचू े जीवन को आलोफकत करता
है। अि हम ध्यान करें ग।े ओम।् '
उनके 'ओम'् कहते ही पाँच हजार श्रोताओ ं से भरे पंडाल में सन्नाटा फखचं गया। जो जहाँ जैसा िैठा था वैसा ही
आँख मदँू कर ध्यानमग्न हो गया।

आँखें िंद कर पाँच फमनट िैठने पर पवन को भी असीम शांफत का अनभु व हुआ। कुछ-कुछ वैसा जि वह
लड़कपन में िहुत भाग-दौड़ कर लेता था तो माँ उसे जिरदस्ती अपने साथ फलटा लेती और थपकते हुए डपटती,
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'िच्चा है फक आित। चपु चाप आँख िंद कर, और सो जा।' उसे लगा अगर कुछ देर और वह ऐसे िैठ गया तो
वाकई सो जाएगा।

उसने हल्के से आँख खोल कर अगल-िगल देखा, सि ध्यानमग्न थे। देखने से सभी वी.आई.पी. फकस्म के भक्त थे,
जेि में झाँकता मोिाइल िोन और घटु नों के िीच दिी फमनरल वाटर की िोतल उन्हें एक अलग दजाण दे रही थी।
सिलता के कीफतणमान तलाशते ये भक्त जाने फकस जेट रफ्तार से फदन भर दौड़ते थे, अपनी फिजनेस या नौकरी की
लक्ष्य पफू तण के कलपजु े िने मनष्प्ु य। पर यहाँ इस वक्त ये शाफं त के शरणागत थे।

कुछ देर िाद सभा फवसफजणत हुई। सिने स्वामी जी को मौन नमन फकया और अपने वाहन की फदशा में चल फदए।
पाफकिं ग स्थल पर गाफड़यों की घरघराहट और तीखे मीठे हानण सनु ाई देने लगे। वापसी में पवन का फकरीट के रफत
आक्रोश शांत हो चक ु ा था। उसे अपना स्नायमु डं ल शांत और स्वस्थ लग रहा था। उसे यह उफचत लगा फक
आपाधापी से भरे जीवन में चार फदन का समय ध्यान के फलए फनकाला जाए। स्वामी जी के फवचार भी उसे
मौफलकता और ताजगी से भरे लगे। जहाँ अफधसंख्य गरुु जन धमण को मफहमा मफं डत करते हैं, फकरीट के स्वामी जी
के वल अध्यात्म पर िल देते रहे। फचंतन, मनन और आत्मशफु ि उनके सरल मागण के फसिांत थे।

सरल मागण फमशन के भक्त उन भक्तों से फनतांत फभन्न थे जो उसने अपने शहर में साल दर साल माघ मेले में आते
देखे थे। दीनता की रफतमफू तण िने वे भक्त असाध्य कि झेल कर रयाग के सगं म तट तक पहुचँ ते। फनजी सपं दा के
नाम पर उनके पास एक अदद मैली कुचैली गठरी होती, साथ में िढू ी माँ या आजी और अटं ी में गफठयाए दस-िीस
रुपए। कंु भ के पवण पर लाखों की सख्ं या में ये भक्त गगं ा मैया तक पहुचँ ते, डुिकी लगाते और मफु क्त की कामना के
साथ घर वापस लौट जाते। संज्ञा की िजाय सवणनाम वन कर जीते वे भक्त िस इतना समझते फक गगं ा पफवत्र पावन
है और उनके कृ त्यों की ताररणी। इससे ऊपर तकण शफक्त फवकफसत करना उनका अभीि नहीं था।

पर फकरीट के स्वामी कृ ष्प्णा स्वामी जी महाराज के भक्त समदु ाय में एक से एक सफु शफक्षत, उच्च पदस्थ अफधकारी
और व्यवसायी थे। कोई डॉक्टर था तो कोई इजं ीफनयर, कोई िैंक अिसर तो कोई राइवेट सेक्टर का मैनेजर। यहाँ
तक फक कई चोटी के कलाकार भी उनके भक्तों में शमु ार थे। साल में चार िार वे अपना फशफवर लगाते, देश के
अलग-अलग नगरों में। समचू े देश से उनके भक्त गण वहाँ पहुचँ ते। उनके कुछ फवदेशी भक्त भी थे जो भारतीयों से
ज्यादा स्वदेशी िनने और फदखने की कोफशश करते।

पवन ने दो-चार िार स्वामी जी का रवचन सनु ा। स्वामी जी की वक्तृता असरदार थी और व्यफक्तत्व परम आकर्णक।
वे दफक्षण भारतीय तहमद के ऊपर भारतीय कुताण धारण करते। अन्य धमाणचायों की तरह न उन्होंने के श िढा रखे थे,
न दाढी। वे मानते थे फक मनष्प्ु य को अपना िाह्य स्वरूप भी अंतस्वणरूप की तरह स्वच्छ रखना चाफहए। उनका
यथाथणवादी जीवन दशणन उनके भक्तों को िहुत सही लगता। वे सि भी अपने यथाथण को त्याग कर नहीं, उसमें से
चार फदन की मोहलत फनकाल कर इस आध्याफत्मक हॉफलडे के फलए आते। वे इसे एक 'अनुभव' मानते। स्वामी जी
एकदम धारदार, फवश्वसनीय अग्रं ेजी में भारतीय मनीर्ा की शफक्त और सामर्थयण समझाते, भक्तों का फसर देशरेम से
उन्नत हो जाता। स्वामी जी फहदं ी भी िखिू ी िोल लेते। मफहला फशफवर में वे अपना आधा वक्तव्य फहदं ी में देते और
आधा अग्रं ेजी में।

सरल मागण फमशन आराम करने से पवू ण स्वामी जी पी.पी. के . कंपनी में काफमणक रिंधक थे। फमशन की संरचना,
सच
ं ालन और कायण योजना में उनका रिधं कीय कौशल देखने को फमलता था। फशफवर में इतनी भीड़ एकत्र होती थी
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पर न कहीं अराजकता होती न शांफत भंग। अनजाने में पवन उनसे रभाफवत होता जा रहा था। पर फकसी भी रभाव
की आत्यफं तकता उस पर ठहर नहीं पाती क्योंफक काम के फसलफसले में उसे राजकोट के आसपास के क्षेत्र के
अलावा िार-िार अहमदािाद भी जाना पड़ता। अहमदािाद में दोस्तों से फमलना भी भला लगता। अफभर्ेक के
यहाँ जा कर अक
ं ु र की नई शरारतें देखना सख
ु देता।
अफभर्ेक ने फवजअ ु लाइजर से आइफडया समझा। फस्क्रप्ट फलखी गई। अि फवज्ञापन फिल्म िननी थी। उन्हें ऐसी
मॉडल की तलाश थी फजसके व्यफक्तत्व में दाँत रधान हों, साथ ही वह खिू सरू त भी हो। इसके अलावा दो-एक
पंफक्त के डायलाग िोलने का उसे शऊर हो। उनके पास मॉडल्स की एक स्थायी सचू ी थी पर इस वक्त वह काम नहीं
आ रही थी। मफु श्कल यह थी फकसी भी उत्पाद का रचार करने में एक मॉडल का चेहरा फदन में इतनी िार मीफडया
संजाल पर फदखाया जाता फक वह उसी उत्पाद के फवज्ञापन से फचपक कर रह जाता। अगले फकसी उत्पाद के
फवज्ञापन में उस मॉडल को लेने से फवज्ञापन ही फपट जाता। नए चेहरों की भी कमी नहीं थी। रोज ही इस क्षेत्र में नई
लड़फकयाँ जोखम उठाने को तैयार थीं पर उन्हें मॉडल िनाए जाने का भी एक तत्रं था। अगर सि कुछ तय होने के
िाद कै मरामैन उसे नापास कर दे ति उसे लेना मफु श्कल था।अफभर्ेक फजस फवज्ञापन कंपनी में काम करता था उसमें
आजकल एक अन्य कंपनी की टक्कर में टूथपेस्ट यि ु फछड़ा हुआ था। दोनों के फवज्ञापन एक के िाद एक टी.वी.
के चैनलों पर फदखाए जाते। एक में डेंफटस्ट का ियान रमाण की तरह फदया जाता तो दसू रे में उसी ियान का खडं न।
दोनों टूथपेस्ट िहुराष्प्ट्रीय कंपफनयों के थे। इन कंपफनयों का फजतना धन टूथपेस्ट के फनमाणण में लग रहा था लगभग
उतना ही उसके रचार में। टूथपेस्ट तकरीिन एक-से थे, दोनों की रंगत भी एक थी पर कंपनी फभन्न होने से उनकी
फभन्नता और उत्कृ िता फसि करने की होड़ मची थी। इसी के फलए अफभर्ेक की कंपनी फक्रसेंट कॉपोरे शन को नब्िे
लाख का रचार अफभयान फमला था।

आजकल अफभर्ेक के फजम्मे मॉडल का चनु ाव था। वह एक ब्यटू ी पालणर की मालफकन फनफकता पर दिाव डाल
रहा था फक वह अपनी िेटी तान्या को मॉडफलगं करने दें। इस फसलफसले में वह कई िार 'रोजेज' पालणर में गया। इसी
को ले कर पफत-पत्नी में तनाव हो गया।

राजलु का मानना था फक रोजेज अच्छी जगह नहीं है। वहाँ सौंदयण उपचार की आड़ में गलत धंधे होते हैं। उसका
कहना था फक फवज्ञापन फिल्म िनाने का काम उनकी कंपनी को मिंु ई इकाई करे , यहाँ अहमदािाद में अच्छी
फिल्म िनना ममु फकन नहीं है। अफभर्ेक का कहना था फक वह ििं इया फवज्ञापन फिल्मों से अघा गया है। वह यहीं
मौफलक काम कर फदखाएगा। 'यों कहो फक तम्ु हें माडल की तलाश में मजा आ रहा है।' राजल ु ने ताना मारा। 'यही
समझ लो। यह मेरा काम है, इसी की मझु े तनख्वाह फमलती है।'
'मजे हैं। तनख्वाह भी फमलती है, लड़की भी फमलती है।' अफभर्ेक उखड़ गया, 'क्या मतलि तम्ु हारा? तमु हमेशा
टेढा सोचती हो। जैसे तम्ु हारे टेढे दाँत हैं वैसी टेढी तम्ु हारी सोच है।'

राजलु का, ऊपर नीचे का एक-एक दाँत टेढा उगा हुआ था। फवशेर् कोण से देखने पर वह हँसते हुए अच्छा लगता
था। 'शरू
ु में इसी िाँके दाँत पर आप फिदा हुए थे।' राजलु ने कहा, 'आज आपको यह भद्दा लगने लगा।' 'फिर तमु ने
गलत शब्द इस्तेमाल फकया। िाँका शब्द दाँत के साथ नहीं िोला जाता। िाँकी अदा होती है, दाँत नहीं।'
'शब्द अपनी जगह से हट भी सकते हैं। शब्द पत्थर नहीं हैं जो अचल रहें।' 'तमु अपनी भार्ा की कमजोरी छुपा रही
हो।' 'कोई भी िात हो, सिसे पहले तमु मेरे दोर् फगनाने लगते हो।' 'तमु मेरा फदमाग खराि कर देती हो।'
'अच्छा सॉरी, पर अि तमु फनफकता के यहाँ नहीं जाओगे। इससे अच्छा है तमु यफू नवफसणटी की छात्राओ ं में सही
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चेहरा तपाश करो।' 'तपास नहीं, तलाश करो।'


'तलाश सही पर तमु रोजेज नहीं जाओगे।'

जि से राजल ु ने नौकरी छोड़ी उसके अदं र असरु क्षा की भावना घर कर गई थी। साढे चार साल की नौकरी के िाद
वह फसिण इसफलए हटा दी गई क्योंफक उसकी फवज्ञापन एजेंसी मानती थी फक घर और दफ्तर दोनों मोचे सँभालना
उसके िस की िात नहीं। खास तौर पर जि वह गभणवती थी, उसके हाथ से सारे महत्वपूणण कायण ले कर साधना
फसहं को दे फदए गए। अक ं ु र के पैदा होने तक दफ्तर में माहौल इतना फिगड़ गया फक रसव के पश्चात राजल
ु ने
त्यागपत्र ते फदया। पर ति से वह पफत के रफत िड़ी सतकण और संदहे शील हो गई थी। उसे लगता था अफभर्ेक
उतना व्यस्त नहीं फजतना वह नाट्य करता है। फिर फवज्ञापन कंपनी की दफु नया पररवतणन और आकर्णण से भरपरू थी।
रोज नई-नई लड़फकयाँ मॉडल िनने का सपना आँखों में फलए हुए कंपनी के द्वार खटखटाती। उनके शोर्ण की
आशक ं ा से इनकार नहीं फकया जा सकता था।
फवज्ञापन एजेंसी का सारा संजाल स्वयं देख लेने से इधर कई फदनों से राजल
ु को जो अन्य सवाल उद्वेफलत कर रहे
थे, उन पर वह अफभर्ेक के साथ िहस करना चाहती थी। पर अफभर्ेक जि भी घर आता, लंिी िातचीत के मडू में
हरफगज न होता। िफल्क वह फचड़फचड़ा ही लौटता। उस फदन वे खाना खा रहे थे। टी.वी. चल रहा था। समाचार से
पहले 'स्पाकण ल' टूथपेस्ट का फवज्ञापन फ्लैश हुआ। इसकी कॉपी अफभर्ेक ने तैयार की थी।
अक ं ु र फचल्लाया, 'पापा का एड, पापा का एड।'
यह फवज्ञापन आज पाँचवीं िार आया था पर वे सि ध्यान से देख रहे थे। फवज्ञापन में पाटी का दृश्य था फजसमें हीरो
के कुछ कहने पर फहरोइन हँसती है। उसकी हँसी में हर दाँत मे मोती फगरते हैं। हीरो उन्हें अपनी हथेली पर रोक लेता
है। सारे मोती इकट्ठे हो कर 'स्पाकण ल' टूथपेस्ट की ट्यिू िन जाते हैं। अगले शॉट में हीरो हीरोइन लगभग चंिु निि
हो जाते हैं।

अफभर्ेक ने कहा, 'राजल ु कै सा लगा एड?' 'ठीक ही है।' राजल ु ने कहा। उसके उत्साहफवहीन स्वर से अफभर्ेक का
मडू उखड़ गया। उसे लगा राजल ु उसके काम को जीरो दे रही है, 'ऐसी श्मशान आवाज में क्यों िोल रही हो?'
'नहीं, मैं सोच रही थी, फवज्ञापन फकतनी अफतशयोफक्त करते हैं। सच्चाई यह है फक न फकसी के हँसने से िूल झरते हैं
न मोती, फिर भी महु ावरा है फक लीक पीट रहा है।'
'सचाई तो यह है फक मॉडल लीना भी स्पाकण ल इस्तेमाल नहीं करती हैं। वह रफतद्वद्वं ी कंपनी का फटक्को इस्तेमाल
करती है। पर हमें सच्चाई नहीं, रॉडक्ट िेचनी है।'
'पर लोग तो तम्ु हारे फवज्ञापनों को ही सच मानते हैं। क्या यह उनके रफत धोखा नहीं है?' 'फिल्कुल नहीं। आफखर हम
टूथपेस्ट की जगह टूथपेस्ट ही फदखा रहे हैं, घोड़े की लीद नहीं। सभी टूथपेस्टों में एक-सी चीजें पड़ी होती हैं। फकसी
में रंग ज्यादा होता है फकसी में कम। फकसी में िोम ज्यादा, फकसी में कम।'
'ऐसे में कॉपीराइटर की नैफतकता क्या कहती है?'
'ओ फशट। सीधा-सादा एक रॉडक्ट िेचना है, इसमें तमु नैफतकता और सच्चाई जैसे भारी-भरकम सवाल मेरे फसर
पर दे मार रही हो। मैंने आई.आई.एम. में दो साल भाड़ नहीं झोंका। वहाँ से माके फटंग सीख कर फनकला ह।ँ आइ
कै न सैल ए डैड रै ट (मैं मरा हुआ चहू ा भी िेच सकता ह)ँ यह सच्चाई, नैफतकता सि मैं दजाण चार तक मॉरल साइसं
में पढ कर भल ू चक ु ा हुआ ह।ँ मझु े इस तरह की डोज मत फपलाया करो, समझी?'
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राजल
ु मन ही मन उसे गाली देती ितणन समेट कर रसोई में चला गई। अफभर्ेक महँु िे र कर सो गया। अगले फदन
पवन आया। वह अक ं ु र के फलए छोटा-सा फक्रके ट िैट और गेंद लाया था। अक
ं ु र तरु ं त िालकनी से अपने दोस्तों को
आवाज देने लगा, 'शब्ु िू, रुनझनु , जल्दी आओ, िैट िाल खेलना।'

अफभर्ेक अभी ऑफिस से नहीं लौटा था। राजल ु ने दो ग्लास कोल्ड कॉिी िनाई। एक ग्लास पवन को थमा कर
िोली, 'तम्ु हें फवज्ञापनों की दफु नया कै सी लगती है?'
'िहुत अच्छी, जादईु । राजल ु , मल्ु क की सारी हसीन लड़फकयाँ फवज्ञापनों में चली गई हैं, तभी राजकोट की सड़कों
पर एक भी हसीना नजर नहीं आती।'
'गम्मत जम्मत छोड़ो, सीररयसली िोलो, ऐसा नहीं लगता फक माके फटंग के फलए फवज्ञापन झठू पर झठू िोलते हैं।'

'मझु े ऐसा नहीं लगता। यह तो अफभयान है, इसमें सच और झठू की िात कहाँ आती है?'

तभी अफभर्ेक भी आ गया। आज वह अच्छे मडू में था। उसके टूथपेस्टवाले फवज्ञापन को सवणश्रेष्ठ फवज्ञापन का
सम्मान फमला था। उसने कहा, 'राजल ु , कल तमु मझु े कंडेम कर रही थीं, आज मझु े उसी कॉपी पर एवाडण फमला।'
'कांग्रेचल
ु ेशसं ।' पवन और राजल
ु ने कहा।
'कल तो तमु लानतें कस रही थीं। मेरी परदादी की तरह िोल रही थीं।'

'जि एफथक्स की यानी नैफतकता की िात आएगी मैं फिर कहगँ ी फक फवज्ञापन झठू िोलते हैं। पर अफभ, ऐसा नहीं है
फक फसिण तमु ऐसा करते हो, सि ऐसा करते हैं। जनता को िेवकूि िनाते हैं।'

'जनता को फशक्षा और सचू ना भी तो देते हैं।' पवन ने कहा।


'पर साथ में जनता की उम्मीदों को िढा कर उसका पैसा नि करवाते हैं।' राजल
ु ने कहा।
'हाँ, हाँ, आज तक मैंने ऐसा फवज्ञापन नहीं देखा जो कहता हो यह चीज न खरीफदए।' अफभर्ेक ने कहा, 'फवज्ञापन
की दफु नया खचण और फिक्री की दफु नया है। हम सपनों के सौदागर हैं, फजसे चाफहए िाजार जाए, सपनों और उम्मीदों
से भरी ट्यिू खरीद लें। ये फवज्ञापन का ही कमाल है फक हमारे तीन सदस्योंवाले पररवार में तीन तरह के टूथपेस्ट
आते हैं। अक ं ु र को धाररयोंवाला टूथपेस्ट पसदं है, तम्ु हें वह र्ोडर्ीवाला और मझु े साँस की िू दरू करनेवाला।
टूथपेस्ट तो फिर भी गनीमत है, तम्ु हें पता है- फडटरजेंट की फवज्ञापनिाजी में और भी अँधेर है। हम लोग सोना
फडटरजेंट की एड फिल्म जि शटू कर रहे थे तो सीवसण के क्लीन फडटरजेंट से हमने िाल्टी में झाग उठवाए थे।
क्लीन में सोना से ज्यादा झाग पैदा करने की ताकत है।'
पवन ने कहा, 'दरअसल िाजार के अथणशास्त्र में नैफतकता जैसा शब्द ला कर, राजल ु , तमु फसिण कनफ्यजू न िै ला
रही हो। मैंने अि तक पाँच सौ फकतािें तो मैनेजमेंट और माके फटंग पर पढी होंगी। उनमें नैफतकता पर कोई चैप्टर
नहीं है।'

स्टैला फडमैलो इटं रराइज कापोरे शन में िरािर की पाटणनर थी और उसकी कंपनी गजु रण गैस कंपनी को कंप्यटू र
सप्लाई करती थी। पहले तो वह पवन के फलए कारोिारी फचरट्ठयों पर महज एक हस्ताक्षर थी पर जि कंप्यटू र की
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दो-एक समस्या समझने पवन फशल्पा के साथ उसके ऑफिस गया तो इस दिु ली-पतली हँसमख
ु लड़की से उसका
अच्छा पररचय हो गया।

स्टैला की उम्र मफु श्कल से चौिीस साल थी पर उसने अपने माता-फपता के साथ आधी दफु नया घमू रखी थी। उसकी
माँ फसंधी और फपता ईसाई थे। माँ से उसे गोरी रंगत फमली थी और फपता से तराशदार नाक-नक्श। जींस और टॉप में
वह लड़का ज्यादा और लड़की कम नजर आती। उसके ऑफिस में हर समय गहमागहमी रहती। िोन िजता रहता,
िै क्स आते रहते। कभी फकसी िै क्टरी से िीस कंप्यटू सण का एक साथ ऑडणर फमल जाता, कभी कहीं काफ्र
ं ें स से
िलु ावा आ जाता। उसने कई तकनीफशयन रखे हुए थे। अपने व्यवसाय के हर पहलू पर उसकी तेज नजर रहती।
इस िार पवन अपने घर गया तो उसने पाया वह अपने नए शहर और काम के िारे में घरवालों को िताते समय कई
िार स्टैला का फजक्र कर गया। सघन िी.एससी. के िाद हाडणवेयर का कोसण कर रहा था। पवन ने कहा, 'तमु इस िार
मेरे साथ राजकोट चलो, तम्ु हें मैं ऐसे कंप्यटू र वल्डण में रवेश फदलाऊँगा फक तम्ु हारी आँखें खल
ु ी रह जाएँगी।'
सघन ने कहा, 'जाना होगा तो हैदरािाद जाऊँगा, वह तो साइिर फसटी है।'
'एक िार तमु एटं रराइज ज्वाइन करोगे तो देखोगे वह साइिर फसटी से कम नहीं।'
माँ ने कहा, 'इसको भी ले जाओगे तो हम दोनों फिल्कुल अके ले रह जाएँग।े वैसे ही सीफनयर फसटीजन कॉलोनी
िनती जा रही है। सिके िच्चे पढ फलख-कर िाहर चले जा रहे हैं। हर घर में, समझो, एक िढू ा, एक िढू ी, एक
कुिा और एक कार िस यह रह गया है।'

'इलाहािाद में कुछ भी िदलता नहीं है माँ। दो साल पहले जैसा था वैसा ही अि भी है। तमु भी राजकोट चली
आओ।'

'और तेरे पापा? वे यह शहर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं है।'


पापा से िात की गई। उन्होंने साि इनकार कर फदया। 'शहर छोड़ने की भी एक उम्र होती है, िेटे। इससे अच्छा है
तमु फकसी ऐसी कंपनी में हो जाओ जो आस-पास कहीं हो।' 'यहाँ मेरे लायक नौकरी कहाँ, पापा। ज्यादा से ज्यादा
नैनी में नरू ामेंट की माके फटंग कर लँगू ा।'

'फदल्ली तक भी आ जाओ तो? सच, फदल्ली आना-जाना फिल्कुल मफु श्कल नहीं है। रात को रयागराज एक्सरेस से
चलो, सिेरे फदल्ली। कम से कम हर महीने तम्ु हें देख तो लेंगे। या कलकिे आ जाओ। वह तो महानगर है।'
'पापा, मेरे फलए शहर महत्वपणू ण नहीं है, कै ररयर है। अि कलकिे को ही लीफजए। कहने को महानगर है पर माके फटंग
की दृफि से एकदम लिड़। कलकिे में रोड्यसू सण का माके ट है, कंज्यमू सण का नहीं। मैं ऐसे शहर में रहना चाहता हँ
जहाँ कल्चर हो न हो, कंज्यमू र कल्चर जरूर हो। मझु े संस्कृ फत नहीं, उपभोक्ता संस्कृ फत चाफहए, तभी मैं कामयाि
रहगँ ा।' माता-फपता को पवन की िातों ने स्तंफभत कर फदया। िेटा उस उम्मीद को भी खत्म फकए दे रहा था फजसकी
डोर से िँधे-िँधे वे उसे टाइम्स ऑि इफं डया की फदल्ली ररफक्तयों के कागज डाक से भेजा करते थे।

रात जि पवन अपने कमरे में चला गया राके श पांडे ने पत्नी से कहा, 'आज पवन की िातें सनु कर मझु े िड़ा
धक्का लगा। इसने तो घर के संस्कारों को एकदम ही त्याग फदया।' रे खा फदन भर के काम से पस्त थी, 'पहले तम्ु हें
भय था फक िच्चे कहीं तमु जैसे आदशणवादी न िन जाएँ। इसीफलए उसे एम.िी.ए. कराया। अि वह यथाथणवादी िन
गया है तो तम्ु हें तकलीि हो रही है। जहाँ जैसी नौकरी कर रहा है, वहीं के कायदे- काननू तो ग्रहण करे गा।' 'यानी
तम्ु हें उसके एफटट्यडू से कोई फशकायत नहीं है।' राके श हैरान हुए। 'देखो, अभी उसकी नई नौकरी है। इसमें उसे पाँव
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जमाने दो। घर से दरू जाने का मतलि यह नहीं होता फक िच्चा घर भल


ू गया है। कै से मेरी गोद में फसर रख कर
दोपहर को लेटा हुआ था। एम.ए., िी.ए. करके यहीं चप्पल चटकाता रहता, ति भी तो हमें परे शानी होती।'

रे खा का चचेरा भाई भी नागपरु में माके फटंग मैनेजर था। उसे थोड़ा अदं ाज था फक इस क्षेत्र में फकतनी स्पधाण होती है।
वह एक िटीचर पाठशाला में अध्याफपका थी। उसके फलए िेटे की कामयािी गवण का फवर्य थी। उसकी सहयोगी
अध्याफपकाओ ं के िच्चे पढाई के िाद तरह-तरह के संघर्ों में लगे थे।

इस िार पवन अपने घर गया तो उसने पाया वह अपने नए शहर और काम के िारे में घरवालों को िताते समय कई
िार स्टैला का फजक्र कर गया। सघन िी.एस॰सी. के िाद हाडणवये र का कोसण कर रहा था। पवन ने कहा, 'तमु इस
िार मेरे साथ राजकोट चलो, तम्ु हें मैं ऐसे कंप्यटू र वल्डण में रवेश फदलाऊँगा फक तम्ु हारी आँखें खल
ु ी रह जाएँगी।'
सघन ने कहा, 'जाना होगा तो हैदरािाद जाऊँगा, वह तो साइिर फसटी है।'
'एक िार तमु एटं रराइज ज्वाइन करोगे तो देखोगे वह साइिर फसटी से कम नहीं।'
माँ ने कहा, 'इसको भी ले जाओगे तो हम दोनों फिल्कुल अके ले रह जाएँग।े वैसे ही सीफनयर फसटीजन कॉलोनी
िनती जा रही है। सिके िच्चे पढ फलख कर िाहर चले जा रहे हैं। हर घर में, समझो, एक िढू ा, एक िढू ी, एक
कुिा और एक कार िस यह रह गया है।'

'इलाहािाद में कुछ भी िदलता नहीं है माँ। दो साल पहले जैसा था वैसा ही अि भी है। तमु भी राजकोट चली
आओ।'

'और तेरे पापा? वे यह शहर छोड़ कर जाने को तैयार नहीं है।'

पापा से िात की गई। उन्होंने साि इनकार कर फदया।


'शहर छोड़ने की भी एक उम्र होती है, िेटे। इससे अच्छा है तुम फकसी ऐसी कंपनी में हो जाओ जो आस-पास कहीं
हो।'

'यहाँ मेरे लायक नौकरी कहाँ, पापा। ज्यादा से ज्यादा नैनी में नरू ामेंट की माके फटंग कर लँगू ा।'

'फदल्ली तक भी आ जाओ तो? सच फदल्ली आना-जाना फिल्कुल मफु श्कल नहीं है। रात को रयागराज एक्सरेस से
चलो, सिेरे फदल्ली। कम से कम हर महीने तम्ु हें देख तो लेंगे। या कलकिे आ जाओ। वह तो महानगर है।'

'पापा, मेरे फलए शहर महत्वपणू ण नहीं है, कै ररयर है। अि कलकिे को ही लीफजए। कहने को महानगर है पर माके फटंग
की दृफि से एकदम लिड़। कलकिे में रोड्यसू सण का माके ट है, कंज्यमू सण का नहीं। मैं ऐसे शहर में रहना चाहता हँ
जहाँ कल्चर हो न हो, कंज्यमू र कल्चर जरूर हो। मझु े सस्ं कृ फत नहीं उपभोक्ता सस्ं कृ फत चाफहए, तभी मैं कामयाि
रहगँ ा।' माता-फपता को पवन की िातों ने स्तंफभत कर फदया। िेटा उस उम्मीद को भी खत्म फकए दे रहा था फजसकी
डोर से िँधे-िँधे वे उसे टाइम्स ऑि इफं डया की फदल्ली ररफक्तयों के कागज डाक से भेजा करते थे।

रात जि पवन अपने कमरे में चला गया राके श पांडे ने पत्नी से कहा, 'आज पवन की िातें सनु कर मझु े िड़ा
धक्का लगा। इसने तो घर के सस्ं कारों को एकदम ही त्याग फदया।'
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रे खा फदन भर के काम से पस्त थी, 'पहले तम्ु हें भय था फक िच्चे कहीं तमु जैसे आदशणवादी न िन जाएँ। इसीफलए
उसे एम.िी.ए. कराया। अि वह यथाथणवादी िन गया है तो तम्ु हें तकलीि हो रही है। जहाँ जैसी नौकरी कर रहा है,
वहीं के कायदे काननू तो ग्रहण करे गा।'

'यानी तम्ु हें उसके एफटट्यडू से कोई फशकायत नहीं है।' राके श हैरान हुए।
'देखो, अभी उसकी नई नौकरी है। इसमें उसे पाँव जमाने दो। घर से दरू जाने का मतलि यह नहीं होता फक िच्चा
घर भल ू गया है। कै से मेरी गोद में फसर रख कर दोपहर को लेटा हुआ था। एम.ए., िी.ए. करके यहीं चप्पल
चटकाता रहता, ति भी तो हमें परे शानी होती।'

रे खा का चचेरा भाई भी नागपरु में माके फटंग मैनेजर था। उसे थोड़ा अदं ाज था फक इस क्षेत्र में फकतनी स्पधाण होती है।
वह एक िटीचर पाठशाला में अध्याफपका थी। उसके फलए िेटे की कामयािी गवण का फवर्य थी। उसकी सहयोगी
अध्याफपकाओ ं के िच्चे पढाई के िाद तरह-तरह के सघं र्ों में लगे थे।

कोई आई.ए.एस, पी.सी.एस. परीक्षाओ ं को पार नहीं कर पा रहा था तो फकसी को िैंक रफतयोगी परीक्षा सता रही
थी। फकसी का िेटा कई इटं रव्यू में असिल होने के िाद नशे की लत में पड़ गया था तो फकसी की िेटी हर साल
पी.एम.टी. में अटक जाती। जीवन के पचपनवें साल में रे खा को यह सोच कर िहुत अच्छा लगता फक उसके दोनों
िच्चे पढाई में अव्वल रहे और उन्होंने खदु ही अपने कै ररयर की फदशा तय कर ली। सघन अभी छोटा था पर वह
भी जि अपने कै ररयर पर फवचार करता, उसे शहरों में ही संभावनाएँ नजर आतीं। वह दोस्ती से माँग कर देश-फवदेश
के कंप्यटू र जनणल पढता। उसका ज्यादा समय ऐसे दोस्तों के घरों में िीतता जहाँ कंप्यटू र होता।

राके श िोले, 'तमु समझ नहीं रही हो। पवन के िहाने एक परू ी की परू ी यवु ा पीढी को पहचानो। ये अपनी जड़ों से
कट कर जीनेवाले लड़के समाज की कै सी तस्वीर तैयार करें गे।'

'और जो जड़ों से जड़ु े रहे हैं उन्होंने इन फनन्यानवें वर्ों में कौन-सा पररवतणन फकया है। तम्ु हें इतना ही कि है तो क्यों
करवाया था पवन को एम.िी.ए.। घर के िरामदे में दक ु ान खल ु वा देते, माफचस और सािनु िेचता रहता।'
'तमु मख
ू ण हो, ऐसा भी नहीं लगता मझु े, िस मेरी िात काटना तम्ु हें अच्छा लगता है।'
'अच्छा अि सो जाओ। और देखो, सिु ह पवन के सामने फिर यही िहस मत छे ड़ देना। चार रोज को िच्चा घर
आया है, राजी-खश
ु ी रहे, राजी-खश
ु ी जाए।'
रे खा ने रात को तो पत्रु की पक्षधरता की पर अगले फदन स्कूल से घर लौटी तो पवन से उसकी खटपट हो गई।
दोपहर में धोिी कपड़े इस्त्री कर के लाया था। आठ कपड़ों के िारह रुपए होते थे पर धोिी ने सोलह माँग।े पवन ने
सोलह रुपए दे फदए। पता चलने पर रे खा उखड़ गई। उसने कहा, 'िेटे, कपड़े ले कर रख लेने थे, फहसाि मैं अपने
आप करती।'

पवन िोला, 'माँ क्या िकण पड़ा, मैंने दे फदया।'

रे खा ने कहा, 'टूररस्ट की तरह तमु ने उसे मनमाने पैसे दे फदए, वह अपना रे ट िढा देगा तो रोज भगु तना तो मझु े
पड़ेगा।'
19

पवन को टूररस्ट शब्द पत्थर की तरह चभु गया। उसका गोरा चेहरा क्रोध से लाल हो गया, 'माँ, आपने मझु े टूररस्ट
कह फदया। मैं अपने घर आया ह,ँ टूर पर नहीं फनकला ह।ँ '

शाम तक पवन फकचफकचाता रहा। उसने फपता से फशकायत की। फपता ने कहा, 'यह फनहायत टुच्ची-सी िात है। तुम
क्यों परे शान हो रहे हो। तम्ु हें पता है तम्ु हारी माँ की जिु ान िेलगाम है। छोटी-सी िात पर कड़ी-सी िात जड़ देती
है।'
नौकरी लग जाने के साथ पवन िहुत नाजक ु फमजाज हो गया था। उसे ऑफिस में अपना वचणस्व और शफक्त याद हो
आई, 'दफ्तर में सि मझु े पवन सर या फिर फमस्टर पांडे कहते हैं। फकसी की फहम्मत नहीं फक मेरे आदेश की
अवहेलना करे । घर में फकसी को अपनी मजी से मैं चार रुपए नहीं दे सकता।'

रे खा सहम गई, 'िेटे, मेरा मतलि यह नहीं था मैं तो फसिण यह कर रही थी फक कपड़े रोज इफस्तरी होते हैं, एक िार
इन लोगों को ज्यादा पैसे दे दो तो ये एकदम फसर चढ जाते हैं।' और भी छोटी-छोटी फकतनी ही िातें थीं फजनमें माँ
िेटे का दृफिकोण एकदम अलग था। पवन ने कहा, 'माँ, मेरा जन्मफदन इस िार यों ही फनकल गया। आपने िोन
फकया पर ग्रीफटंग काडण नहीं भेजा।'

रे खा हैरान रह गई, 'िेटे ग्रीफटंग काडण तो िाहरी लोगों को भेजा जाता है। तम्ु हें पता है तम्ु हारा जन्मफदन हम कै से
मनाते हैं। हमेशा की तरह मैं मफं दर गई, स्कूल में सिको फमठाई फखलाई, रात को तम्ु हें िोन फकया।'
'मेरे सि कलीग्ज हँसी उड़ा रहे थे फक तम्ु हारे घर से कोई ग्रीफटंग काडण नहीं आया।'

माँ को लगा उन्हें अपने िेटे को प्यार करने का नया तरीका सीखना पड़ेगा। मफु श्कल से पाँच फदन ठहरा पवन। रे खा
ने सोचा था उसकी पसंद की कोई न कोई फडश रोज िना कर उसे फखलाएगी पर पहले ही फदन उसका पेट खराि हो
गया। पवन ने कहा, 'माँ, मैं नींिू पानी के फसवा कुछ नहीं लँगू ा। दोपहर को थोड़ी-सी फखचड़ी िना देना। और पानी
कौन-सा इस्तेमाल करते हैं आप लोग?'

'वही जो तमु जन्म से पीते आए हो, गगं ा जल आता है हमारे नल में।' रे खा ने कहा।
'ति से अि तक गगं ा जी में न जाने फकतना मल-मत्रू फवसफजणत हो चकु ा है। मैं तो कहगँ ा यह पानी आपके फलए भी
घातक है। एक्वागाडण क्यों नहीं लगाते?'

'याद करो, तम्ु हीं कहा करते थे फिल्टर से अच्छा है हम अपने फसस्टम में रफतरोधक शफक्त का फवकास करें ।'

'वह सि फिजल
ू की भावक
ु ता थी, माँ। तमु इस पानी की एक िँदू अगर माइक्रोस्कोप के नीचे देख लो तो कभी न
फपयो।'

पवन को अपनी जन्मभफू म का पानी रास नहीं आ रहा था। शाम को पवन ने सघन से िारह िोतलें फमनरल वाटर
मँगाया। रसोई के फलए रे खा ने पानी उिालना शरू
ु फकया। नल का जल फवर्तुल्य हो गया। देश में परदेसी हो गया
पवन।
तफियत कुछ सँभलने पर अपने परु ाने दोस्तों की तलाश की। पता चला अफधकांश शहर छोड़ चक ु े हैं या इतने ठंडे
और अजनिी हो गए हैं फक उनके साथ दस फमनट फिताना भी सजा है।
20

पवन ने दख
ु ी हो कर पापा से कहा, 'मैं नाहक इतनी दरू आया। सघन सारा फदन कंप्यटू र सेंटरों की खाक छानता है।
आप अखिारों में लगे रहते हैं। माँ सिु ह की गई शाम को लौटती हैं। क्या फमला मझु े यहाँ आ कर?'

'तमु ने हमें देख फलया, क्या यह कािी नहीं?'

'यह काम तो मैं एटं रराइज के सैटलाइट िोन से भी कर सकता था। मझु े लगता है यह शहर नहीं फजसे मैं छोड़ कर
गया था।'

'शहर और घर रहने से ही िसते हैं, िेटा। अि इतनी दरू एक अनजान जगह को तमु ने अपना फठकाना िनाया है।
पराई भार्ा, पहनावा और भोजन के िावजदू वह तम्ु हें अपना लगने लगा होगा।'

'सच तो यह है पापा जहाँ हर महीने वेतन फमले, वही जगह अपनी होती है और कोई नहीं।'

'के वल अथणशास्त्र से जीवन नहीं कटता पवन, उसमें थोड़ा दशणन, थोड़ा अध्यात्म और ढेर-सी संवदे ना भी पनपनी
चाफहए।'

'आपको पता नहीं दफु नया फकतनी तेजी से आगे िढ रही। अि धमण, दशणन, और अध्यात्म जीवन में हर समय
ररसनेवाले िोड़े नहीं हैं। आप सरल मागण के फशफवर में कभी जा कर देफखए। चार-पाँच फदन का कोसण होता है, वहाँ
जा कर आप मेफडटेट कीफजए और छठे फदन वापस अपने काम से लग जाइए। यह नहीं फक डी.सी. फिजली की तरह
हमेशा के फलए उससे फचपक जाइए।' 'तमु ने तो हर चीज की पैकेफजगं ऐसी कर ली है फक जेि में समा जाए। भफक्त
की कपस्यल ू िना कर िेचते हैं आजकल के धमणगरुु । सिु ह-सिु ह टी.वी. के सभी चैनलों पर एक न एक गरुु रवचन
देता रहता है। पर उनमें वह िात कहाँ जो शकं राचायण में थी या स्वामी फववेकानंद में।'
'हर परु ानी चीज आपको श्रेष्ठ लगती है, यह आपकी दृफि का दोर् है, पापा। अगर ऐसा ही है तो आधफु नक चीजों
का आप इस्तेमाल भी क्यों करते हैं, िें क दीफजए अपना टी.वी. सेट, टेलीिोन और कुफकंग गैस। आप नई चीजों
िायदा भी लटू ते हैं और उनकी आलोचना भी करते हैं।'

'पवन, मेरी िात फसिण चीजों तक नहीं है।'

'मझु े पता है। आप अध्यात्म और धमण पर िोल रहे थे। आप कभी मेरे स्वामी जी को सफु नए। सिसे पहले तो उन्होंने
यही समझाया है फक धमण जहाँ खत्म होता है, अध्यात्म वहीं शरू ु होता है। आप िचपन में मझु े शक
ं र का अद्वैतवात
समझाते थे। मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ता था। आपने जीवन में मझु े िहुत कन्िूज फकया है पर सरल मागण में एकदम
सीधी सच्ची यथाथणवादी िाते हैं।'

फपता आहत हो देखते रह गए। उनके िेटे के व्यफक्तत्व में भौफतकतावाद, अध्यात्म और यथाथणवाद की कै सी
फत्रपथगा िह रही है।

राजकोट ऑफिस से पवन के फलए ट्रंककॉल आया फक सोमवार को वह सीधे अहमदािाद ऑफिस पहुचँ े। सभी
माके फटंग मैनेजरों की उच्च स्तरीय िैठक थी। पवन का मन एकाएक उत्साह से भर गया। फपछले पाँच फदन पाँच यगु
की तरह िीते थे। जाते-जाते वह पररवार के रफत िहुत भावकु हो आया।
21

'माँ, तमु राजकोट आना। पापा, आप भी। मेरे पास िड़ा-सा फ्लैट है। आपको जरा भी फदक्कत नहीं होगी। अि तो
कुक भी फमल गया है।'

'अि तेरी शादी भी कर दें, क्यों।' रे खा ने पवन का मन टटोला।


'माँ, शादी ऐसे थोड़े ही होगी। पहले तमु मेरे साथ सारा गजु रात घमू ो। अरे वहाँ मेरे जैसे लड़कों की िड़ी पछ ू है।
वहाँ के गज्ु जू लड़के िड़े फपचके -दचु के -से होते हैं। मेरा तो पापा जैसा कद देख कर ही लट्ट हो जाते हैं सि।'

'कोई लड़की देख रखी है क्या?' रे खा ने कहा।

'एक हो तो नाम िताऊँ। तमु आना तम्ु हें सिसे फमलवा दगँू ा।'

'पर शादी तो एक से ही करनी होती है।' पवन हँसा। भाई को फलपटाता हुआ िोला, 'जान टमाटर, तमु कि
आओगे।'

'पहले अपना कंप्यटू र िना लँ।ू '

'इसमें तो िहुत फदन लगेंग।े '

'नहीं भैया, ममी एक िार फदल्ली जाने दें तो नेहरू प्लेस से िाकी का सामान ले आऊँ।'
'ले ये हजार रुपए तू रख ले काम आएँग।े '

मीफटंग में भाग लेनेवाले सभी सदस्यों को रफसडेंसी में ठहराया गया था। दो फदन के चार सत्रों में फवपणन के सभी
पहलओ ु ं पर खल ु कर िहस हुई। हैरानी की िात यह थी फक ईधन ं जैसी आवश्यक वस्तु को भी ऐफच्छक उपभोक्ता
सामग्री के वगण में रख कर इसके रसार और फवकास का कायणक्रम तैयार फकया जा रहा था। िहुत-सी ईधन ं कंपफनयाँ
मैदान में आ गई ंथीं। कुछ िहुराष्प्ट्रीय तेल कंपफनयाँ एल.पी.जी. इकाई खोल चकु ी थीं, कुछ खोलनेवाली थीं। दसू री
तरि कुछ उद्योगपफतयों ने भी एल.पी.जी िनाने के अफधकार हाफसल कर फलए थे। इससे स्पधाण तो िढ ही रही थी।
व्यावसाफयक उपभोक्ता भी कम हो रहे थे। फनजी उद्योगपफत मोठािाई नानभू ाई अपनी सभी िमों में अपनी िनाई
एल.पी.जी. इस्तेमाल कर रहे थे जिफक पहले वहाँ जी.जी.सी.एल. की फसलेंडर जाती थी। िहुराष्प्ट्रीय कंपनी की
फितरत थी फक शरू ु में वह अपने उत्पाद का दाम िहुत कम रखती। जि उसका नाम और वस्तु लोगों की फनगाह में
चढ जाते वह धीरे से अपना दाम िढा देती। जी.जी.सी.एल. के माफलकों के फलए ये सि पररवतणन फसरददण पैदा कर
रहे थे। उन्होंने साि तौर पर कहा, 'फपछले पाँच वर्ण में कंपनी को साठ करोड़ का घाटा हुआ है। हम आप सिको
िस दो वर्ण देते हैं। या घाटा कम कीफजए या इस इकाई को िंद कीफजए। हमारा क्या है, हम डेफनम िेचते थे, डेफनम
िेचते रहेंग।े पर यह आप लोगों का िे फलयर होगा फक इतनी िड़ी-िड़ी फडग्री और तनख्वाह ले कर भी आपने क्या
फकया। आप स्टडी कीफजए ऐसा क्या है जो एस्सो और शेल में हैं और जी.जी.सी.एल. में नहीं। वे भी फहदं स्ु तानी
कमणचाररयों से काम लेते हैं, हम भी। वे भी वही लाल फसफलंडर िनाते हैं। हम भी।'

यवु ा मैनेजरों में एम.डी. की इस स्पीच से खलिली मच गई। एल.पी.जी. फवभाग के अफधकाररयों के चेहरे उतर गए।
समापन सत्र शाम सात िजे संपन्न हुआ ति िहुतों को लगा जैसे यह उनका फवदाई समारोह भी है।
22

पवन भी थोड़ा उखड़ गया। वह अपनी ररपोटण भी रस्ततु नहीं कर पाया फक सौराष्प्ट्र के फकतनें गाँवों में उसकी इकाई
ने नए आडणर फलए और कहाँ-कहाँ से अन्य कंपफनयों को अपदस्थ फकया। ररपोटण की एक कॉपी उसने एम.डी. के
सेक्रेटरी गायकवाड़ को दे दी।

राजकोट जाने से पहले अफभर्ेक से भी फमलना था। अनपु म उसके साथ था। उन्होंने घर पर िोन फकया। पता चला
अभी दफ्तर से नहीं आया।

वे दोनों आश्रम रोड उसके दफ्तर की तरि चल फदए। अनपु म ने कहा, 'मैं तो घर जा कर सिसे पहले अपना
िायोडाटा अप टू डेट करता ह।ँ लगता है यहाँ छँ टनी होनेवाली है।'

पवन हँसा, 'िहुराष्प्ट्रीय कंपफनयों से संघर्ण करने का सिसे अच्छा तरीका है फक उनमें खदु घसु जाओ।'

अनपु म ने खश
ु ी जताई, 'वाह भाई, यह तो मैंने सोचा भी नहीं था।'
अफभर्ेक अपना काम समेट रहा था। दोस्तों को देख चेहरा फखल उठा।

'फपछले िारह घटं े से मैं इस रेत के आगे िैठा हँ ।' उसने अपने कंप्यटू र की तरि इशारा फकया, 'अि में और नहीं
झेल सकता। चलो कहीं िैठ कर कॉिी पीते हैं, फिर घर चलेंगे।'

वे कॉिी हाउस में अपने भफवष्प्य से अफधक अपनी कंपफनयों के भफवष्प्य की फचंता करते रहे।अफभर्ेक ने कहा, 'फनजी
सेक्टर में सिसे खराि िात वही है, नफथगं इज ऑन पेपर। एम.डी. ने कहा घाटा है तो मानना पड़ेगा फक घाटा है।
पफब्लक सेक्टर मैं कमणचारी फसर पर चढ जाते हैं, पाई-पाई का फहसाि फदखाना पड़ता है।'

फिर भी पफब्लक सेक्टर में िीमार इकाइयों की िेशमु ार संख्या है। राइवेट सेक्टर में ऐसा नहींहै।'

अफभर्ेक हँसा, 'मझु से ज़्यादा कौन जानेगा। मेरे पापा और चाचा दोनों पफब्लक सेक्टर में हैं। आजकल दोनों की
कंपनी िंद चल रही हैं। पर पापा और चाचा दोनों िेफिक्र हैं। कहते हैं लेिर कोटण से जीत कर एक-एक पैसा वसल ू
कर लेंग।े '

अफभर्ेक की कंपनी की साख ऊँची थी और अफभर्ेक वहाँ पाँच साल से था पर नौकरी को ले कर असरु क्षा िोध
उसे भी था। यहाँ हर फदन अपनी कामयािी का सितू देना पड़ता। कई िार क्लायंट को पसंद न आने पर अच्छी-
भलीकॉपी में तब्दीफलयाँ करनी पड़ती तो कभी परू ा रोजेक्ट ही कैं सल हो जाता। ति उसे लगता वह नाहक
फवज्ञापन रिधं न में िँ स गया, कोई सरकारी नौकरी की होती, चैन की नींद सोता। पर पटरी िदलना रे लों के फलए
सगु म होता है, फजदगी के फलए दगु मण । अि यह उसका पररफचत संसार था, इसी में संघर्ण और सिलता फनफहत थी।
अफभर्ेक ने फडलाइट से फचली पनीर पैक करवाया फक घर चल कर खाना खाएँगे। जैसे ही वे घर में दाफखल हुए
देखा राजलु और अक ं ु र िाहर जाने के फलए िने ठने िैठे हैं। उन्हें देखते ही वे चहक कर िोले, 'अहा, तमु आ गए।
चलो आज िाहर खाना खाएँगे। अक ं ु र शाम से फजद कर रहा है।'
अफभर्ेक ने कहा, 'आज घर में ही खाते हैं, मैं सब्जी ले आया ह।ँ '
23

राजल
ु िोली, 'तमु ने सिु ह वादा फकया था शाम को िाहर ले चलोगे। सब्जी फफ्रज में रख देते हैं, कल खाएँग।े '
राजल
ु ताले लगाने में व्यस्त हो गई। अफभर्ेक ने पवन और अनपु म से कहा, 'सॉरी यार, कभी-कभी घर में भी कॉपी
गलत हो जाती है।'

तीनों थके हुए थे। पवन ने तो अठारह सौ फकलोमीटर की यात्रा की थी। पर राजल
ु और अक
ं ु र का जोश ठंडा करना
उन्हें क्रूरता लगी।

स्टैला और पवन ने अपनी जन्मपफत्रयाँ कंप्यटू र से मैच कीं तो पाया छिीस में से छब्िीस गणु फमलते हैं। पवन ने
कहा, 'लगता है तुमने कंप्यटू र को भी घसू दे रखी है।'

स्टैला िोली, 'यह पंफडत तो फिना घसू के काम कर देता है।' आकर्णण, दोस्ती और फदलजोई के िीच कुछ देर को
उन्होंने यह भल
ु ा ही फदया फक इस ररश्ते के दरू गामी समीकरण फकस रकार िैठेंग।े
स्टैला के माता फपता आजकल फशकागो गए हुए थे। स्टैला के ई-मेल पत्र के जवाि में उन्होंने ई-मेल से िधाई
भेजी। पवन ने माता फपता को िोन पर िताया फक उसने लड़की पसदं कर ली है और वे अगले महीने यानी जल ु ाई
में ही शादी कर लेंग।े

पांडे पररवार पवन की खिर पर हतिि ु रह गया। न उन्होंने लड़की देखी थी न उसका घर-िार। आकफस्मकता के
रफत उनके मन में सिसे पहले शक ं ा पैदा हुई। राके श ने पत्नी से कहा, 'पन्ु नू के फदमाग में हर िात फितरू की तरह
उठती है। ऐसा करो, तमु एक हफ्ते की छुट्टी ले कर राजकोट हो आओ। लड़की भी देख लेना और पन्ु नू को भी
टटोल लेना। शादी कोई चार फदनों का खेल नहीं, हमेशा का ररश्ता है। इटं र से ले कर अि तक दजणनों दोस्त रही हैं
पन्ु नू की, ऐसा चटपट िै सला तो उसने कभी नहीं फकया ।'

'तमु भी चलो, मैं अके ली क्या कर लँगू ी।'

'मैं कै से जा सकता ह।ँ फिर पन्ु नू सिसे ज्यादा तम्ु हें मानता है, तमु हो आओ।'

8रास्ते भर रे खा को लगता रहा फक जि वह राजकोट पहुचँ ेगी पवन ताली िजाते हुए कहेगा, 'माँ, मैंने यह मजाक
इसीफलए फकया था फक तुम दौड़ी आओ। वैसे तो तमु आती नहीं।'

उसने अपने आने की खिर िेटे को नहीं की थी। मन में उसे फवफस्मत करने का उत्साह था। साथ ही यह भी फक उसे
परे शान न होना पड़े। अहमदािाद से राजकोट की िस यात्रा उसे भारी पड़ी। तेज रफ्तार के िावजदू तीन घटं े सहज
ही लग गए। डायरी में फलखे पते पर जि वह स्कूटर से पहुचँ ी छह िज चक ु े थे। पवन तभी ऑफिस से लौटा था।
अनपु म भी उसके साथ था। उसे देख पवन खश ु ी से िावला हो उठा। िाँहों में उठा कर उसने माँ को परू े घर में नचा
फदया। अनपु म ने जल्दी से खिू मीठी चाय िनाई। थोड़ी देर में स्टैला वहाँ आ पहुचँ ी।

पवन ने उनका पररचय कराया। स्टैला ने हैलो फकया। पवन ने कहा, 'माँ, स्टैला मेरी फिजनेस पाटणनर, लाइि पाटणनर,
रूम पाटणनर तीनों है।'
24

अनपु म िोला, 'हाँ, अि जी.जी.जी.एल. चाहे चल्ू हे भाड़ में जाए। तमु तो इटं रराइज के स्लीफपंग पाटणनर िन गए।'

स्टैला ने कहा, 'पवन डाफलिंग, फजतने फदन मैम यहाँ पर हैं मैं फमसेज छजनानी के यहाँ सोऊँगी।'

स्टैला रात के खाने का रिंध करने रसोई में चली गई। फिर पवन उसे छोड़ने फमसेज छजनानी के घर चला गया।
पवन को कुछ-कुछ अदं ाजा था फक माँ से एकल वाताणलाप कोई आसान काम नहीं होगा। उसने अनपु म को
मध्यस्थ की तरह साथ फिठाए रखा।

िारह िजे अनपु म का धैयण समाप्त हो गया। उसने कहा, 'भाई मैं सोने जा रहा ह।ँ सिु ह ऑफिस भी जाना है।'

कमरे में अके ले होते ही रे खा ने कहा, 'पन्ु नू यह फसलफिल-सी लड़की तझु े कहाँ फमल गई?'

पवन ने कहा, 'तम्ु हें तो हर लड़की फसलफिल नजर आती है। इसका लाखों का कारोिार है।'

'पर लगती तो दो कौड़ी की है। यह तो फिलकुल तम्ु हारे लायक नहीं।'

'यही िात तम्ु हारे िारे में दादी माँ ने पापा से कही थी। क्या उन्होंने दादी माँ की िात मानी थी, िताइए।'

रे खा का सवािंग संताप से जल उठा। उसका अपना िेटा, अभी कल की इस छोकरी की तल ु ना अपनी माँ से कर
रहा है और उन सि जानकाररयों का दरुु पयोग कर रहा है जो घर का लड़का होने के नाते उसके पास हैं।

'मैंने तो ऐसी कोई लड़की नहीं देखी जो शादी के पहले ही पफत के घर में रहने लगे।'

'तमु ने देखा क्या है माँ? कभी इलाहािाद से फनकलो तो देखोगी न। यहाँ गजु रात, सौराष्प्ट्र में शादी तय होने के पहले
लड़की महीने भर ससरु ाल में रहती है। लड़का-लड़की एक-दसू रे के तौर-तरीके समझने के िाद ही शादी करते हैं।'

'पर यह ससरु ाल कहाँ है?'

'माँ, स्टैला अपना कारोिार छोड़ कर तम्ु हारे क़स्िे में तो जाने से रही। उसका एक-एक फदन कीमती है।'

रे खा भड़क गई, 'अभी तो यह भी तय नहीं है फक हम इस ररश्ते के पक्ष में हैं या नहीं। हमारी राय का तम्ु हारे फलए
कोई अथण है या नहीं।'

'फिलकुल है तभी तो तम्ु हें खिर की, नहीं तो अि तक हमने स्वामी जी के आश्रम में जा कर शादी कर ली होती।'

फिलकुल गलत िात कर रहे हो पन्ु न,ू यही सि सनु ाने के फलए िल
ु ाया है मझु ।े '
'अपने आप आई हो। फिना खिर फदए। तम्ु हारे इरादे भी संफदग्ध थे। तम्ु हें मेरा टाइम टेिल पछ
ू लेना चाफहए था। मान
लो मैं िाहर होता।'
25

रे खा को रोना आ गया। पवन पर अफरय यथाथण का दौरा पड़ा ता फजसके अतं गणत उसने अपनी फशकायतों के
शरशल ू से उसे लथपथ कर फदया।
'मैं सिु ह वापस चली जाऊँगी, कोई ढंग की गाड़ी नहीं होगी तो मालगाड़ी में चली जाऊँगी पर अि एक फमनट तेरे
पास नहीं रहगँ ी।'

पवन की सख्ती का सदं क ू टूट गया। उसने माँ को अँकवार में भरा, 'माँ, कै सी िातें करती हो। तमु पहली िार मेरे
पास आई हो, मैं तम्ु हें जाने दगँू ा भला। गाड़ी के आगे लेट जाऊँगा।'

दोनों रोते रहे। पवन के आँसू रे खा कभी झेल नहीं पाई। चौिीस साल को होने पर भी उसके चेहरे पर इतनी
मासफू मयत थी फक हँसते और रोते समय फशशु लगता था। संरेर्ण के इन क्षणों में माँ िेटा िन गई और िेटा माँ।
पवन ने माँ के आँसू पोंछे , पानी फपलाया और थपक-थपक कर शांत फकया उसे।

सिु ह तेज सगं ीत की ध्वफन से रे खा की नींद टूटी। एक क्षण को वह भल


ू गई फक वह कहाँ है। 'हो रामजी मेरा फपया
घर आया' सी.डी. फसस्टम पर परू े वाल्यमू पर चल रहा था और अनपु म रसोई में चाय िना रहा था। उसने एक कप
चाय रे खा को दी, 'गडु माफनिंग।' फिर उसने संगीत का वाल्यमू थोड़ा कम फकया, 'सॉरी, सिु ह मझु े खिू जोर जोर से
गाना सनु ना अच्छा लगता है। और फिर पवन भैया को उठाने का और कोई तरीका भी तो नहीं। आँटी से सवेरे पौने
नौ तक सोते रहते हैं और नौ िजे अपने ऑफिस में होते हैं।'

'सिु ह चाय नाश्ता कुछ नहीं लेता?'

'फकसी फदन स्टैला भाभी हमारे फलए टोस्ट और कांप्लान तैयार कर देती हैं। पर ज्यादातर तो ऐसे ही भागते हैं हम
लोग। लंच टाइम तक पेट में नगाड़े िजने लगते हैं।'

चावल में कंकड़ की तरह रड़क गया फिर स्टैला का नाम। कहाँ से लग गई यह िला मेरे भोले-भाले िेटे के पीछे ,
रे खा ने उदासी से सोचा।

'हटो आज मैं िनाती हँ नाश्ता।'

रसोई की पड़ताल करने पर पाया गया फक टोस्ट और फमल्क शेक के फसवा कुछ भी िनना ममु फकन नहीं है। थोड़े-से
ितणन थे, जो जठू े पड़े थे।

'अभी भरत आ कर करे गा। आटं ी आप परे शान मत होइएगा। भरत खाना िना लेता है।'

'पवन तो िाहर खाता था |'

'आटं ी, हम लोग का टाइम गड़िड़ हो जाता था। मौसी लोग के यहाँ टाइम की पािदं ी िहुत थी। हफ्ते में दो एक
फदन भख ू ा रहना पड़ता था। कई िार हम लोग टूर पर रहते हैं। ति भी परू े पैसे देने पड़ते थे मौसी को। अि तीनों का
लंच िॉक्स भरत पैक कर देता है।'
26

तभी भरत आ गया। पवन की परु ानी जींस और टी शटण पहने हुए यह िीस-िाईस साल का लड़का था फजसने फसर
पर पटका िाँध रखा था। अनपु म के िताने पर उसने नमस्ते करते हुए कहा, 'पौन भाई नी िा आवी छे ।' (पवन भाई
की माँ आई हैं।)

गजि की िुती थी उसमें। कुल पौन घटं े में उसने काम सँभाल फलया। रोटी िनाने के पहले वह रे खा के पास आ कर
िोला, 'िा तमे के टला रोटली खातो?' (माँ, तमु फकतनी रोटी खाती हो?)

यह सीधा-सा वाक्य था पर रे खा के मन पर ढेले की तरह पड़ा। अि िेटे के घर में उसकी रोफटयों की फगनती होगी।
उसने जलभनु कर कहा, 'डेढ।'

'वे (दो) चलेगा ।' कह कर भरत फिर रसोई में चला गया। इस िीच पवन नहा कर िाहर फनकला।

रे खा से रहा नहीं गया। उसने पवन को िताया। पवन हँसने लगा, 'अरे माँ, तमु तो पागल हो। भरत को हमीं लोगों ने
कह रखा है फक खाना फिलकुल िरिाद न जाए। नाप-तोल कर िनाए। उसे हरे क का अदं ाजा है कौन फकतना खाता
है। घर खल ु ा पड़ा है, तमु जो चाहो िना लेना।'
रे खा को लगा इस नाप-तोल के पीछे जरूर स्टैला का हाथ होगा। उसका िेटा तो ऐसा फहसािी कभी नहीं था। खदु
यह जम कर िरिाद करने में यकीन करता था। एक िार नाश्ता िनता, दो िार िनता। पवन को पसंद न आता।
शहजादे की तरह िरमा देता, 'आलू का टोस्ट नहीं खाएँग,े आमलेट िनाओ।' अि आमलेट तैयार होता वह दाँत
साि करने िाथरूम में घसु जाता। देर लगा कर िाहर फनकलता। फिर नाश्ता देखते ही भड़क जाता, 'यह अडं े की
ठंडी लाश कोई खा सकता है? मालती पराठा िनाओ नहीं तो हम अभी जा रहे हैं िाहर।' घर की परु ानी सेफवका
मालती में ही इतना धीरज था फक रे खा की गैरमौजदू गी में पवन के नखरे परू े करे । कभी फिना फकसी सचू ना के तीन-
तीन दोस्त साथ ले आता। सारा घर उनके आफतर्थय में जटु जाता।

पवन ने कहा, 'भरत, मेरा लंच पैक मत करना, दपु हर में मैं घर आ जाऊँगा।' फिर रे खा से कहा, 'माँ क्या करूँ,
ऑफिस जाना जरूरी है, देखो कल की छुट्टी का जगु ाड़ करता हँ कुछ। तमु पीछे से टी.वी. देखना, सी.डी. सनु
लेना। कोई फदक्कत हो तो मझु े िोन कर लेना। सामने पटेल आँटी रहती है, कोई जरूरत हो तो उनसे िात कर
लेना।' तभी स्टैला िूलों का गल
ु दस्ता फलए आई।
'गडु मॉफनिंग, मैम।' उसने गल
ु दस्ता रे खा को फदया। उसमें छोटा-सा फगफ्ट काडण लगा था, 'स्टैला पवन की ओर से।'
िूलों के िजाय रे खा ध्यान से उस फचट को देखती रही। पवन ताड़ गया। उसने कहा, 'माँ यह हम दोनों की तरि से
है।' उसने फगफ्ट काडण में पेन से स्टैला और पवन के िीच कॉमा लगा फदया।

रे खा को थोड़ी आश्वफस्त हुई। उसने देखा स्टैला की मख


ु मद्रु ा थोड़ी िदली।
स्टैला ने अपना लंच िाक्स और ऑफिस िैग उठाया, 'िाय, सी यू इन द इफवफनंग मैम, टेक के यर।'

उसी के पीछे -पीछे पवन, अनपु म भी गाड़ी की चाभी ले कर फनकल गए।


27

अके ले घर में फिस्तर पर पड़ी-पड़ी रे खा देर तक फवचारमग्न रही। िीच में इच्छा हुई फक राके श से िात करे पर
एस.टी.डी. कोड डायल करने पर उधर से आवाज आई, 'यह सफु वधा तमारे िोन पर नथी छे ।' िोन की एस.टी.डी.
सफु वधा पर इलेक्ट्राफनक ताला था। एक िार फिर रे खा को लगा इस घर पर स्टैला का फनयंत्रण िहुत गहरा है।

रे खा के तीन फदन के रवास में स्टैला सिु ह शाम कोई न कोई उपहार उसके फलए ले कर आती। एक शाम वह उसके
फलए आभला (शीशे) की कढाई की भव्य चादर ले कर आई। पवन ने कहा, 'जैसे पीर शाह पर चादर चढाते हैं वैसे
हम तम्ु हें मनाने को चादर चढा रहे हैं, माँ।'

'पीर औफलया की मजार पर चादर चढाते है, मझु े क्या मदु ाण मान रहे हो?'

'नहीं माँ मदु ाण तो उन्हें भी नहीं माना जाता। तुम हर अच्छी िात का िरु ा अथण कहाँ से ढूँढ लाती हो।'

'पर तमु खदु सोचो। कहीं काँच की चादर फिस्तर पर फिछाई जाती है। काँच पीठ में नहीं चभु जाएँग।े '

9स्टैला ने उन दोनों का संवाद सनु ा। उसने पवन के जानू पर हाथ मारा, 'आइ गॉट इट। मैम इसे वॉल हैफगगं की तरह
दीवार पर लटका लें। परू ी दीवार कवर हो जाएगी।'

पवन ने सराहना से उसे देखा, 'तमु जीफनयस हो, फसली।'

चादर प्लाफस्टक िैग में डाल कर रे खा के सटू के स के ऊपर रख दी गई।

रे खा को रात में यही सपना िार-िार आता रहा फक उसके फिस्तर पर शीशेवाली चादर फिछी है। फजस करवट वह
लेटती है उसके िदन में शीशे चट-चट कर टूट कर चभु रहे हैं।

उसने सिु ह पवन से िताया फक वह चादर नहीं ले जाएगी। पवन उखड़ गया, 'आपको पता है हमारे तीन हजार
फगफ्ट पर खचण हुए हैं। इतनी कीमती चीज की कोई कद्र नहीं आपको?'

रे खा को लगा अगर इस वक्त वह तीन हजार साथ लाई होती तो महँु पर मारती स्टैला के । रकट उसने कहा, 'पन्ु न,ू
उस लड़की से कहना फवल िना कर रख ले हर चीज का, मैं वहाँ जा कर पैसे फभजवा दगँू ी।'

'आप कभी समझने की कोफशश नहीं करोगी। वह जो भी कर रही है, मेरी मजी से, मेरी माँ के फलए कर रही है। अि
देखो वह आपके फलए राजधानी एक्सरेस का फटकट लाई है, यहाँ से अमदािाद वह अपनी एस्टीम में खदु आपको
ले जाएगी। और क्या करे वह, सती हो जाए।'

'सती और साफवत्री के गणु तो उसमें फदख नहीं रहे, अच्छी कै ररयररस्ट भले ही हो।'

'वह भी जरूरी है, िफल्क माँ वह ज्यादा जरूरी है। तमु तो अपने आपको थोड़ा-िहुत लेखक भी समझती हो, इतनी
दफकयानसू कि से हो गई फक मेरे फलए फचराग ले कर सती साफवत्री ढूँढने फनकल पड़ो। वी आर मेड िॉर इच अदर।
हम अगले महीने शादी कर लेंग।े '

'इतनी जल्दी।'
28

'हमारे एजेंडा पर िहुत सारे काम हैं। शादी के फलए हम ज्यादा से ज्यादा चार फदन खाली रख सकते हैं।'

'क्या फसफवल मैररज करोगे?' रे खा ने हफथयार डाल फदए।

स्वामी जी से पछ
ू ना होगा। उनका फशफवर इस िार उनके मख्ु य आश्रम, मनपक्कम में लगेगा।'
'कहाँ?'

'मद्रास से तीस पैंतीस मील दरू एक जगह है, माँ। मैं तो कहता हँ आप वहाँ जा कर दस फदन रहो। आपकी िेचैनी,
परे शानी, िेवजह फचढने की आदत सि ठीक हो जाएगी।'

'मैं जैसी भी हँ ठीक ह।ँ कोई ठाली िैठी नहीं हँ जो आश्रमों में जा कर रह।ँ नौकरी भी करनी है ।'

'छोटी-सी नौकरी है तम्ु हारी छोड़ दो, चैन से फजयो माँ।'

'इसी छोटी-सी नौकरी से मैंने िड़े-िड़े काम कर डाले पन्ु न,ू तू क्या जानता नहीं है?'

'पर आप में जीवन दशणन की कमी है। स्टैला के माँ िाप को देखो। अपनी लड़की पर फवश्वास करते हैं। उन्हें पता है
वह जो भी करे गी, सोच समझ कर करे गी।'

फतलफमला गई रे खा। िेफटयाँ पराई हो जाती है, यह तो उसने देखा था पर िेटे पराए हो जाएँ, वह भे शादी के पहले।

'यह तेरा अफं तम फनणणय है?'

'हाँ, माँ।स्वामी जे ने भी इस ररशते को ओ.के . कर फदया है।'

'अपने पापा को पछ
ू ा तक नहीं और सि तय कर फलया।'
'उनसे मैं िोन पर िात कर लँगू ा। वैसे स्वामी जी सिके सपु र पापा है, वे सचू -समझ कर हामी भरते हैं। उन्होंने भी
इस डील पर महु र लगा दी।'

'डील का क्या मतलि है। तमु अभी शादी जैसे ररश्ते की गभं ीरता नहीं जानते। शादी और व्यापार अलग-अलग
चीजें है।'

'कोई भी नाम दो, इससे िकण नहीं पड़ता। अगले महीने आप चौिीस को मद्रास पहुचँ ो। स्वामी जी की सालफगरह
पर चौिीस जलु ाई को िड़ा भारी जलसा होता है, कम से कम पचास शाफदयाँ कराते हैं स्वामी जी।'
'सामफू हक फववाह?'

हाँ। एक घटं े में सि काम परू ा हो जाता है।' शल्य फक्रया की तरह िेटे ने सि कुछ फनधाणररत कर रखा था। पहले पत्रु
को ले कर पररवार के अरमानों के फलए इसमें कोई गजंु ाइश नहीं थीं।
29

माँ ने अफं तम दलील दी, 'तू खरमास में शादी करे गा। इसमें शाफदयाँ फनफर्ि होती हैं।' पवन ने पास आ कर माँ के
कंधे को पकड़ा, 'माँ मेरी प्यारी माँ, यह मैं भी जानता हँ और तमु भी फक हम लोग इन िातों में यकीन नहीं करते।
फसली के साथ जि िंधन में िँध जाऊँ वही मेरे फलए मिु ारक महीना है।'

आहत मन और सन्ु न मफस्तष्प्क फलए रे खा लौट आई। पफत और छोटे िेटे ने जो भी सवाल फकए, उनका वह कोई
फसलफसलेवार उिर नहीं दे पाई।

'मेरा पन्ु नू इतना कै से िदल गया।' वह क्रंदन करती रही।

पवन ने िोन पर माँ की सकुशल वापसी की खिर ली। सघन से ई-मेल पता फलया और फदया और अपने पापा से
िात करता रहा, 'पापा, आप अपनी शादी याद करो और माँ को समझाने का रयत्न करो। मैं लड़की को
फडच(धोखा) नहीं कर सकता।'

राके श व्यथा के ऊपर फववेक का आवरण चढाए िेटे की आवाज सनु ते रहे। 'ठीक है', 'अच्छा ह'ँ के अलावा उनके
महँु से कुछ नहीं फनकला। उस फदन फकसी ने खाना नहीं खाया गया। राके श ने कहा, 'हमें यह भी सोचना चाफहए फक
उस लड़की में जरूर ऐसी कोई खाफसयत होगी फक हमारा िेटा उसे चाहता है। तमु ने देखा होगा।'

'मझु े लगा स्टैला िड़ी अच्छी व्यवस्थापक है। मझु े तो वह लड़की की िजाय मैनेजर ज्यादा लगा।' रे खा ने कहा।

'तो इसमें िरु ाई क्या है। पवन दफ्तर भले ही मैनेज कर ले घर में तो उसे हर वक्त एक मैनेजर चाफहए जो उसका ध्यान
रखे। यहाँ यह काम तमु और सग्ु गू करते थे।'

'पर शादी एकदम अलग िात होती है।'

'कोई अलग िात नहीं होती। लड़की काम से लगी है। तम्ु हारे जाने पर लगातार तमु से फमलती रही। अपनी गररमा
इसी में होती है फक िच्चों से टकराव की फस्थफत न आने दें।'

'पर सि कुछ वही तय कर रही है, हमें फसिण फसर फहलाना है।'

'तो क्या िरु ाई है। तमु अपने को नारीवादी कहती हो। जि लड़की सारे इतं जाम में पहल करे तो तम्ु हें िरु ा लग रहा है
।'

'हम इस सारे प्लान में कहीं नहीं है। हमें तो पन्ु नू ने उठा कर ताक पर रख फदया है, फपछले साल के गणेश लक्ष्मी की
तरह।'

'सि यही करते हैं। क्या हमने ऐसा नहीं फकया। मेरी माँ को भी ऐसा ही दख
ु हुआ था।'
रे खा भड़क उठी, 'तमु स्टैला की मझु से तल ु ना कर रहे हो। मैंने तम्ु हारे घर-पररवार की धपू -छाया जैसे काटी है, वह
काटेगी वैसे। िस िैठे-िैठे कंप्यूटर जोड़ने के फसवा और क्या आता है उसे। एक टाइम खाना नौकर िनाता है। दसू रे
टाइम िाहर से आता है। दधू तक गरम करने में फदलचस्पी नहीं है उसे।'
30

'मझु े लगता है तुम पवू ाणग्रह से ग्रफसत हो। मेरा लड़का गलत चयन नहीं कर सकता।'

'अि तमु उसकी लय में िोल रहे हो।'

कई फदनों तक रे खा की उफद्वग्नता िनी रही। उसने अपनी अध्यापक सफखयों से सलाह की। जो भी घर आता,
उसकी िेचैनी भाँप जाता। उसने पाया हर पररवार में एक न एक अनचाहा, मनचाहा फववाह हुआ है।

उसे अपने फदन याद आए। फिल्कुल ऐसी तड़प उठी होगी राके श के माता-फपता के कलेजे में जि उनकी देखी
सवािंग सदंु ररयों को ठुकरा कर उसने रे खा से फववाह को मन िनाया। उसके दोस्तों तक ने उसने कहा, 'तमु क्या
एकदम पागल हो गए हो?' दरअसल वे दोनों एक दसू रे के फवलोम थे। राके श थे लंिे, तगड़े, संदु र और हँसमख ु ,
रे खा थी छोटी, दिु ली, कमसरू त और कटखनी। िोलते वक्त वह भार्ा को चाकू की तरह इस्तेमाल करती थी।
उसके इसी तेवर ने राके श को खींचा था। वह उसकी दो-चार कफवताओ ं पर फदल दे िैठा। राके श के फहतैफर्यों का
खयाल फक अव्वल तो यह शादी नहीं होगी और हो भी गई तो छह महीने में टूट जाएगी।

रे खा को याद आता गया। शादी के िाद के महीनों में वह लाख घर का काम, स्कूल की नौकरी, खचण को िोझ
सँभालती, माँ जी उसके रफत अपनी तलखी नहीं त्यागतीं। अगर कभी फपता जी या राके श उसकी फकसी िात की
तारीि कर देते तो उस फदन उसकी शामत ही आ जाती। माँ जी की नजरों में रे खा चलती-फिरती चनु ौती थी।

जी.जी.सी.एल. लगातार घाटे में चलते-चलते अि डूिने के कगार पर थी। कमणचाररयों की छँ टनी शरूु हो गई थी।
एम.िी.ए. पास लड़कों में इतना धैयण नहीं था फक वे डूिते जहाज का मस्तल
ू सँभालते। सभी फकसी न फकसी
फवकल्प की खोज में थे।

पवन ने घर पर िोन कर सचू ना दी फक उसका चयन िहुराष्प्ट्रीय कंपनी मैल में हो गया है। नई नौकरी में ज्वाइन करने
से पवू ण उसके पास तीन सप्ताह का समय होगा। इसी समय वह घर आएगा और जी भर कर रहेगा।

अगले हफ्ते पवन ने कंप्यटू र पर फनफमणत साि सथु रा सरुु फचपणू ण पत्र भेजा फजसमें उसकी शादी का फनमत्रं ण था।
स्वामी जी के कायणक्रम के अनुसार शादी फदल्ली में होनी थी। शहरों की दरू रयाँ और अपररचय उसके जीवन में
महत्व नहीं रखती थीं। िेटे की योजनाओ ं पर स्तंफभत होना जैसे जीवन का अगं िन गया था। अपने नाम के अनरू ु प
ही वह पवन वेग से सारी व्यवस्था कर रहा था।

इस िीच इतना समय अवश्य फमल गया था फक रे खा और राके श अपने क्षोभ और असतं ोर् को सतं ल ु न का रूप दे
सके । जि फदल्ली में रामकृ ष्प्णपुरम में सरल मागण के फशफिर में उन्होंने दस हजार दशणकों की भीड़ में सामफू हक फववाह
का दृश्य देखा तो उन्हें महससू हुआ फक इस आयोजन में पारंपाररक फववाह सस्ं कार से कहीं ज्यादा गररमा और
फवश्वसनीयता है। न कहीं माता-फपता की महाजनी भफू मका थी न नाटकीयता। स्वामी जी की उपफस्थफत में वधू को
एक सादा मगं लसत्रू पहनाया गया, फिर फववाह को नोटरी द्वारा रफजस्टर फकया गया। अतं में सभी दशणकों के िीच
लड्डू िाँट फदए गए। कन्याओ ं के अफभभावकों के चेहरे पर कृ तज्ञता का आलोक था। लड़कों के अफभभावकों के
चेहरे कुछ िझु े हुए थे।

अि तक अपने आक्रोश पर रे खा और राके श फनयंत्रण कर चुके थे। नए अनभु व से गजु रने की उिेजना में उन्हें
स्टैला से कोई फशकायत नहीं हुई। वे पवन और िह को ले कर घर आए। दो फदन सलवार सटू पहनने के िाद स्टैला
31

ने कह फदया, 'मैं दपु ट्टा नहीं सँभाल सकती।' वह वापस अपनी फरय पोशाक जीन्स और टॉप में नजर आई। उसकी
व्यस्तता भी इस तरह की थी फक फलिास को ले कर फववाद नहीं फकया जा सकता था। उसने यहाँ अपनी सहयोगी
िमण से संपकण कर सघन को कंप्यटू र के पाट्णस फदला फदए। सघन ने सगवण घोर्णा की, 'मेरी जैसी भाभी कभी फकसी
को न फमली है न फमलेगी।' स्टैला कंप्यटू र मैन्यू पर फजतनी पारंगत थी, रसोई घर की मैन्यू पर उतनी ही अनाड़ी।
लगातार घर से िाहर होस्टलों में रहने की वजह से उसके जेहन में खाने का कोई खास तसव्वरु नहीं था। वह अडं ा
आलू, चावल उिालना जानती थी या फिर मैगी।

माँ ने कहा, 'इतनी िेस्वाद चीजें तमु खा सकती हो?'

स्टैला ने कहा, 'मैं तो िस कै लोरी फगन लेती हँ और आँख मदँू कर खाना फनगल लेती ह।ँ '

'पर हो सकता है पवन स्वाफदि खाना खाना चाहे।'

'तो वह कुफकंग सीख ले। वैसे भी वह अि चेन्नई जानेवाला है। मैं राजकोट और अहमदािाद के िीच चलती-
फिरती रहगँ ी।'

'फिर भी मैं तम्ु हें थोड़ा-िहुत फसखा द।ँू '

अि पवन ने हस्तक्षेप फकया। वह यहाँ माता-फपता का आशीवाणद लेने आया था, उपदेश नहीं।

'माँ, जि से मैंने होश सँभाला, तम्ु हें स्कूल और रसोई के िीच दौड़ते ही देखा। मझु े याद है जि मैं सो कर उठता तमु
रसोई में होतीं और जि मैं सोने जाता, ति भी तमु रसोई में होतीं। तम्ु हें चाफहए फक स्टैला के फलए जीवन भट्ठी न
िने। जो तमु ने सहा, वह क्यों सहे।?'

रे खा की मख
ु ाकृ फत तन गई। हालाँफक िेटे के तकण की वह कायल थी।
दोपहर में लेटे उसे लगा हर पीढी का प्यार करने का ढंग अलग और अनोखा होता है। स्टैला भले ही कंप्यटू र पर
आठ घटं े काम कर ले, रसोई में आध घटं े नहीं रहना चाहती। पवन भी नहीं चाहता फक वह रसोई में जाए। रे खा ने
कहा, 'यह दाल-रोटी तो िनानी सीख ले।' पवन ने जवाि फदया खाना िनानेवाला पाँच सौ रुपए में फमल जाएगा माँ,
इसे िावची थोड़ी िनाना है।'

'और मैं जो सारी उमर तुम लोगों की िावची, धोफिन, जमादारनी िनी रही वह?'

'गलत फकया आपने और पापा ने। आप चाहती हैं वही गलफतयाँ मैं भी करूँ। जो गणु है इस लड़की के उन्हें देखो।
कंप्यटू र फवजडण है यह। इसके पास फिल गेट्स के हस्ताक्षर से फचट्ठी आती है।'

'पर कुछ फस्त्रयोफचत गणु भी तो पैदा करने होंगे इसे।'


32

'अरे माँ, आज के जमाने में स्त्री और परुु र् का उफचत अलग-अलग नहीं रहा है। आप तो पढी- फलखी हो, माँ।
समय की दस्तक पहचानों। इक्कीसवीं सदी में ये सड़े-गले फवचार ले कर नहीं चलना है हमें, इनका तपणण कर
डालो।'

स्टैला की आदत थी जि माँ िेटे में कोई रफतवाद हो तो वह फिल्कुल हस्तक्षेप नहीं करती थी। उसकी ज्यादा
फदलचस्पी समस्याओ ं के ठोस फनदान में थी। उसने फपता से कहा, 'मैं आपको ऑपरे ट करना फसखा दगँू ी। ति आप
देफखएगा सपं ादन करना आपके फलए फकतना सरल काम होगा। जहाँ मजी सश ं ोधन कर लें जहाँ मजी फमटा दें।'
रे खा की कई कहाफनयाँ उसने कंप्यटू र पर उतार दीं। िताया, 'मैम इस एक फ्लॉपी में आपकी सौ कहाफनयाँ आ
सकती हैं। िस यह फडस्कै ट सँभाल लीफजए, आपका सारा साफहत्य इसमें है।'

चमत्कृ त रह गए वे दोनों। रे खा ने कहा, 'अि तमु हमारी हो गई हो। मैम न िोला करो।'

'ओ.के . माम सही।' स्टैला हँस दी।

िच्चों के वापस जाने में िहुत थोड़े फदन िचे थे। राके श इस िात से उखड़े हुए थे फक शादी के तत्काल िाद पवन
और स्टैला साथ नहीं रहेंगे िफल्क एक-दसू रे से तीन हजार मील के िासले पर होंगे।

उन्होंने दोनों को समझाने की कोफशश की। पवन ने कहा, 'मैं तो वचन दे चक


ु ा हँ मैल को। मेरा चेन्नई जाना तय है।'
'और जो वचन जीवन साथी को फदए वे?'

पवन हँसा, 'पापा, जमु लेिाजे में आपका जवाि नहीं। हमारी शादी में कोई भारी-भरकम वचनों की अदला िदली
नहीं हुई।'

'िह अके ली अनजान शहर में रहेगी? आजकल समय अच्छा नहीं है।'

'समय कभी भी अच्छा नहीं था, पापा, मैं तो पच्चीस साल से देख रहा ह।ँ फिर वह शहर स्टैला के फलए अनजान
नहीं है। एक और िात, राजकोट में फहसं ा, अपराध यहाँ का एक परसेंट भी नहीं है। रातों में लोग फिना ताला लगाए
स्कूटर पाकण कर देते हैं, चोरी नहीं होती। फिर आपकी िह कराटे, ताइक्वांडो में माफहर है।'

'पर फिर भी शादी के िाद तम्ु हारा िजण है साथ रहो।'

'पापा, आप भारी-भरकम शब्दों से हमारा ररश्ता िोफझल िना रहे हैं। मैं अपना कै ररयर, अपनी आजादी कभी नहीं
छोडूँगा। स्टैला चाहे तो अपना फिजनेस चेन्नई ले चले।'

'तमु तो तरक्कीराम हो। मैं चेन्नई पहुचँ ँू और तमु फसगं ापरु चले जाओ ति !' स्टैला हँसी।

पता चला पवन के फसगं ापरु या ताईवान जाने की भी िात चल रही थी।
33

रे खा ने कहा, 'यह िार-िार अपने को फडस्टिण क्यों करती हो। अच्छी-भली कट रही है सौराष्प्ट्र में। अि फिर एक नई
जगह जा कर सघं र्ण करोगे?'

'वही तो माँ। मफं जलों के फलए संघर्ण तो करना ही पड़ेगा। मेरी लाइन में चलते रहना ही तरक्की है। अगर यहीं पड़ा
रह गया तो लोग कहेंगे, देखा कै सा लिड़ है, कंपनी डूि रही है और यह कै सा फियांका की तरह उसमें िँ सा हुआ
है।'

िातें राके श को िहुत चभु ीं, 'तमु अपनी तरक्की के फलए पत्नी और कंपनी दोनों छोड़ दोगे?'

'छोड़ कहाँ रहा ह,ँ पापा, यह कंपनी अि मेरे लायक नहीं रही। मेरी रफतभा का इस्तेमाल अि 'मैल' करे गी। रही
स्टैला। तो यह इतनी व्यस्त रहती है फक इटं रनेट और िोन पर मझु से िात करने की िुसणत फनकाल ले यही िहुत है।
फिर जेट, सहारा, इफं डयन एयरलाइसं का फिजनेस आप लोग चलने दोगे या नहीं। फसिण सात घटं े की उड़ान से हम
लोग फमल सकते हैं।'

'यानी सेटेलाइट और इटं रनेट से तमु लोगों का दांपत्य चलेगा?'

'येस पापा ।'

'मैं तम्ु हारी प्लाफनंग से जरा भी खश


ु नहीं ह,ँ पन्ु न।ू एक अच्छी-भली लड़की को अपना जीवन साथी िना कर कुछ
फजम्मेदारी से जीना सीखो। और िेचारी जी.सी.सी.एल. ने तम्ु हें इतने वर्ों में काम फसखा कर काफिल िनाया है।
कल तक तमु इसके गणु गाते नहीं थकते थे। तम्ु हारी एफथक्स को क्या होता जा रहा है?'

पवन फचढ गया, 'मेरे हर काम में आप यह क्या एफथक्स, मोरै फलटी जैसे भारी-भरकम पत्थर मारते रहते है। मैं फजस
दफु नया में हँ वहाँ एफथक्स नहीं, रोिे शनल एफथक्स का जरूरत है। चीजों को नई नजर से देखना सीफखए नहीं तो
आप परु ाने अखिार की तरह रद्दी की टोकरी में िें क फदए जाएँग।े आप जेनरे शन गैप पैदा करने की कोफशश कर रहे
हैं। इससे क्या होगा, आप ही दख ु ी रहेंग।े '
'तमु हमारी पीढी में पैदा हुए हो, िड़े हुए हो, फिर जेनरे शन गैप कहाँ से आ गया। असल में पवन हम और तमु साथ
िड़े हुए हैं।'

'ऐसा आपको लगता है। आपको आज भी के . एल. सहगल पसंद है, मझु े िािा सहगल, इतना िासला है हमारे
आपके िीच। आपको परु ानी चीजें, परु ाने गीत, परु ानी फिल्में सि अच्छी लगती हैं। ढूँढ-ढूँढ कर आप किाड़
इकठ्ठा करते हैं। टी.वी. पर कोई परु ानी फिल्म आए आप उससे िँध जाते हैं। इतना फिल्म िोर नहीं करती फजतना
आपकी यादें िोर करती हैं― फनम्मी ऐसे देखती थी, ऐसे भागती थी, उसके होठ अनफकस्ड फलप्स कहलाते थे। मेरे
पास इन फकस्से कहाफनयों का वक्त नहीं है। तकनीकी दृफि से फकतनी खराि फिल्में थीं वे। एक डायलाग िोलने में
हीरोइन दो फमनट लगा देती थी। आप भी तो आधी फिल्म देखते न देखते ऊँघ जाते हैं।'

रे खा ने कहा, 'िाप को इतना लंिा लेक्चर फपला फदया। यह नहीं देखा फक तेरे सख
ु की ही सोच रहे हैं वे।'
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'जि मैं यहाँ सख


ु से रहता था ति भी तो आप लोग दख
ु ी थे। आपने कहा था माँ फक आपके िड़े िािू के लड़के
तक ने एम.िी.ए. रवेश पास कर ली। उस समय मझु े कै सा लगा था।'

'सभी माँ िाप अपने िच्चों को भौफतक अथों में कामयाि िनाना चाहते हैं ताफक कोई उन्हें फिसड्डी न समझे।'

'वही तो मैंने फकया। आपके ऊपर इन तीन अक्षरों का कै सा जादू चढा था, एम.िी.ए.। आपको उस वक्त लगा था
फक अगर आपके लड़के ने एम.िी.ए. नहीं फकया तो आपकी नाक कट जाएगी।'

'हमें तम्ु हारी फडग्री पर गवण है, िेटा, पर शादी के साथ कुछ तालमेल भी िैठाने पड़ते हैं।'

'तालमेल िड़ा गड़िड़ शब्द है। इसके फलए न मैं स्टैला की िाधा िनँगू ा न वह मेरी। हमने पहले ही यह िात साि
कर ली है।'

'पर अके लापन. . .'

'यह अके लापन तो आप सि के िीच रह कर भी मझु े हो रहा है। आप मेरे नजररए से चीजों को देखना नहीं चाहते।
आपने मझु े ऐसे समद्रु में िें क फदया है जहाँ मझु े तैरना ही तैरना है।'

'तमु पढ-फलख फलए, यह गलती भी हमारी थी क्यों?'

'पढ तो मैं यहाँ भी रहा था पर आप सपने परू े करना चाहते थे। आपके सपने मेरा संघर्ण िन गए। यह मत सोफचए फक
संघर्ण अके ले आता है। वह सिक भी फसखाता चलता है।'

राके श फनरुिर हो गए। उन्हें लगा फजतना अपररपक्व वह िेटे को मान रहे हैं, उतना वह नहीं है।

स्टैला का रे ल आरक्षण दो फदन पहले का था। उसके जाने के िाद पवन का सामान समेटना शरू ु हुआ। उसने छोटे
से 'ओफडसी' सटू के स में करीने से अपने कपड़े जमा फलए। िैग में फनहायत जरूरी चीजों के साथ लैपटॉप, फमनरल
वॉटर और मोिाइल िोन रख फलया।

जाने के फदन उसने माँ के नाम िीस हजार का चेक काटा, 'माँ, हमारे आने से आपका िहुत खचण हुआ है, यह मैं
आपको पहली फकस्त दे रहा ह।ँ वेतन फमलने पर और दगँू ा।'

रे खा का गला रूँध गया, 'िेटे, हमें तमु से फकस्तें नहीं चाफहए। जो कुछ हमारा है सि तम्ु हारा और छोटू का है। यह
मकान तमु दोनों आधा-आधा िाँट लेना। और जो भी है उसमें िरािर का फहस्सा है।'

'अि िताओ, फहसाि की िात तमु कर रही हो या मैं? इतने साल की नौकरी में मैंने कभी एक पैसा आप दोनों पर
खचण नहीं फकया।'

रे खा ने चेक वापस करते हुए कहा, 'रख लो नई जगह पर काम आएगा। दो शहरों में गृहस्थी जमाओगे, दोहरा खचण
भी होगा।'
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'सोच लो माँ, लास्ट ऑिर। फिर न कहना पवन ने घर पर उधार चढा फदया।'

िच्चों के जाने के िाद घर एकिारगी भायँ-भायँ करने लगा। सघन ने सॉफ्टवेयर की रवेश परीक्षा उिीणण कर
फदल्ली में डेढ साल का कोसण ज्वायन कर फलया। रे खा और राके श एक िार फिर अके ले रह गए।

अके लेपन के साथ सिसे जानलेवा होते हैं उदासी और पराजय िोध ! वे दोनों सिु ह की सैर पर जाते। इजं ीफनयररंग
कालेज के अहाते की साि हवा कुछ देर को फचि रिुफल्लत करती फक कॉलोनी का कोई न कोई पररफचत फदख
जाता। िात स्वास्र्थय और मौसम से होती हुई अफनवायणतिः िच्चों पर आ जाती। कालेज की रे फलंग पर गफठया से
गफठयाए पैरों को तफनक आराम देते फसन्हा साहि िताते, उनका अफमत मिंु ई में है, वहीं उसने फकस्तों पर फ्लैट
खरीद फलया है। सोनी साहि िताते, उनका िेटा एच.सी.एल. की ओर से न्ययू ाकण चला गया है। मजीफठया का
छोटा भाई कै नेडा में हाडणवेयर का कोसण करने गया था, वहीं िस गया है।

ये सि कामयाि संतानों के माँ-िाप थे। हर एक के चेहरे पर भय और आशक


ं ा के साए थे। िच्चों की सिलता
इनके जीवन में सन्नाटा िनु रही थी।

'इतनी दरू चला गया है िेटा, पता नहीं हमारी फक्रया करने भी पहुचँ ेगा या नहीं?' सोनी साहि कह कर चपु हो जाते।

रे खा और राके श इन सि से हट कर घमू ने का अभ्यास करते। उन्हें लगता जो िेचैनी वे रात भर जीते हैं उसे सुिह-
सिु ह शब्दों का जामा पहना डालना इतना जरूरी तो नहीं। यों फदन भर िात में छोटू और पवन का ध्यान आता
रहता। घर में पाव भर सब्जी भी न खपती। माँ कहती, 'लो छोटू के नाम की िची है यह। पता नहीं क्या खाया होगा
उसने?'

राके श को पवन का ध्यान आ जाता, 'उसके जॉि में दौरा ही दौरा है। इतना िड़ा एररया उसे दे फदया है क्या खाता
होगा। वहाँ सि चावल के व्यंजन फमलते हैं, मेरी तरह उसे भी चावल फिल्कुल पसंद नहीं।'

दोनों के कान िोन पर लगे रहते। िोन अि उनके फलए कोने में रखा एक यत्रं नहीं, सवं ाफदया था। पवन जि अपने
शहर में होता िोन कर लेता। अगर चार पाँच फदन उसका िोन न आए तो ये लोग उसका नंिर फमलाते। उस समय
उन्हें छोटू की याद आती। िोन फमलाने, उठाने, एस.टी.डी. का इलेक्ट्राफनक ताला खोलने, लगाने का काम छोटू ही
फकया करता था। अि वे िोन फमलाते पर डरते-डरते। सही नंिर दिाने पर भी उन्हें लगता नंिर गलत लग गया है।
कभी पवन िोन उठाता पर ज्यादातर उधर से यही यांफत्रक आवाज आती - 'यू हैव रीच्ड द वायस मेल िॉक्स
ऑि निं र 9844014988।

रे खा को वायस मेल की आवाज िड़ी मनहस लगती। वह अक्सर पवन से कहती, 'तमु खदु तो िाहर चले जाते हो,
इस चड़ु ैल को लगा जाते हो।'

'क्या करूँ माँ, मैं तो हफ्ता-हफ्ता िाहर रहता ह।ँ लौट कर कम से कम यह तो पता चल जाता है फक कौन िोन घर
पर आया।'

सघन के होस्टेल में िोन नहीं था। वह िाहर से महीने में दो िार िोन कर लेता। उसे हमेशा पैसों की तंगी सताती।
महीने के शरू
ु में पैसे फमलते ही वह कंप्यटू र की महँगी पफत्रकाएँ खरीद लेता, फिर कभी नाश्ते में कटौती, कभी
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खाने में कंजसू ी िरतता। फदल्ली इतनी महँगी थी फक िीस रुपए रोज आने-जाने में फनकल जाते जिफक इसके
िावजदू िस के फलए घटं ों धपू में खड़ा होना पड़ता। एक सेमस्े टर परू ा कर जि वह घर आया माँ-पापा उसे पहचान
नहीं पाए। चेहरे पर हड्फडयों के कोण फनकल आए थे। शकल पर से पहलेवाला छलकाता िचपना गायि हो गया
था।

िैग और अटैची से उसके चीकट मैले कपड़े फनकालते हुए रे खा ने कहा, 'क्यों कभी कपड़े धोते नहीं थे।'

उसने गदणन फहला दी।

'क्यों?'

'टाइम कहाँ है माँ। रोज रात तीन िजे तक कंप्यटू र पर पढना होता है। फदन में क्लास।'

'िाकी लड़के कै से करते हैं?'

'लाड्रं ी में धल
ु वाते हैं। मेरे पास पैसे नहीं होते।'
राके श ने कहा, 'फजतने तम्ु हें भेजते हैं, उतने तो हम पवन को भी नहीं भेजते थे। एक तरह से तम्ु हारी माँ का परू ा
वेतन ही चला जाता है।'

'उस जमाने की िात परु ानी हो गई, पापा। अि तो अके ली फचप सौ रुपए की होती है।'

'क्या जरूरत है इतने फचप्स खाने की?' रे खा ने भौंहें फसकोड़ीं।

सघन हँस फदया, 'माँ, पोटेटो फचप्स नहीं, पढने के फचप की िात करो। यह तो एक मैगजीन है, और न जाने फकतनी हैं
जो मैं अिोडण नहीं कर पाता। मेरे कोसण की एक-एक सी.डी. की कीमत ढाई सौ रुपए होती है।'

नाश्ते के िाद वह फिना नहाए सो गया। उसकी मैली जींस रगड़ते हुए माँ सोचती रही, इसके कपड़ों से इसके संघर्ण
का पता चल रहा है। जि तक वह घर पर था हमेशा साि-सुथरा रहता था। दोपहर में उसे खाने के फलए उठाया।
िड़ी मफु श्कल से वह उठा, चार कौर खा कर फिर सो गया। तभी उसके परु ाने दोस्त योगी का िोन आ गया। उसकी
हाडण फडस्क अटक रही थी। सघन ने कहा वह उसके यहाँ जा रहा है, मरम्मत कर देगा।

'तमु तो साफ्टवेयर रोग्राफमगं में हो।' राके श ने कहा।

'वहाँ मैंने हाडणवये र का भी ईवफनंग कोसण ले रखा है।' सघन ने जाते-जाते कहा।

हम अपने िच्चों को फकतना कम जानते हैं। उनके इरादे, उनका गतं व्य, उनका सघं र्ण पथ सि एकाकं ी होता है।
राके श ने सोचा। उसकी स्मृफत में वह अभी भी लीला फदखानेवाला छोटा-सा फकशन कन्हैया था जिफक वह सचू ना
फवज्ञान के ऐसे ससं ार में हाथ-पैर िटकार रहा था फजसके ओर-छोर समचू े फवश्व में िै ले थे।
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रे खा ने कहा, 'जो मैं नहीं चाहती थी वह कर रहा है छोटू। हाडणवये र का मतलि है मेकैफनक िन कर रह जाएगा। एक
भाई मैनेजर दसू रा, मेकैफनक।'

राके श ने डाँट फदया, 'जो िात नहीं समझती, उसे िोला मत करो। हाडणवये रवालों को टेक्नीफशयन कहते हैं, मेकैफनक
नहीं। फवदेश में सॉफ्टवेयर इजं ीफनयर से ज्यादा हाडणवये र इजं ीफनयर कमाते हैं। तम्ु हें याद है जि यह छोटा-सा था,
तीन साल का, मैंने इसे एक रूसी फकताि ला कर दी थी 'मैं क्या िनँगू ा?' सफचत्र थी वह।'

रे खा का मडू िदल गया, 'हाँ, मैं इसे पढ कर सनु ाती थी तो यह िहुत खश ु होता था। उसमें एक जगह फलखा था,
मैकेफनक अपने हाथ-पैर फकतने भी गदं े रखें उसकी माँ कभी नहीं मारती। इसे यह िात िड़ी अच्छी लगती। वह
तस्वीर थी न, िच्चे के दोनों हाथ ग्रीज से फलथड़े हैं और माँ उसे खाना फखला रही है।'

'पर छोटू कमजोर िहुत हो गया है। कल से इसे फवटाफमन देना शरू
ु करो।'
'मझु े लगता है यह खाने-पीने के पैसे काट कर हाडणवये र कोसण की िीस भरता होगा। शरू
ु का चप्ु पा है। अपनी
जरूरतें िताता तो है ही नहीं।'

अभी सघन को सिु ह-शाम दधू दफलया देना शरू ु ही फकया था फक हॉटमेल पर उसे ताइवान की सॉफ्टवेयर से
नौकरी का िल ु ावा आ गया। िुरण हो गई उसकी थकान और चप्ु पी। कहने लगा, 'मझु े दस फदनों से इसका इतं जार
था। सारे िैच ने एप्लाय फकया था पर पोस्ट फसिण एक थी।'

माँ-िाप के चेहरे िक पड़ गए। एक लड़का इतनी दरू मद्रास में िैठा है। दसू रा चला जाएगा एक ऐसे परदेस फजसके
िारे में वे स्पेफलंग से ज्यादा कुछ नहीं जानते।

राके श कहना चाहते थे सघन से, 'कोई जरूरत नहीं इतनी दरू जाने की, तम्ु हारे क्षेत्र में यहाँ भी नौकरी है।'

पर सघन सहमफत भेज चकु ा था। पासपोटण उसने फपछले साल ही िनवा फलया था। वह कह रहा था, 'पापा, िस
हवाई फटकट और पाँच हजार का इतं जाम आप कर दो, िाकी मैं मैनेज कर लँगू ा। आपका खचण मैं पहली पे में से
चक
ु ा दगँू ा।'
रे खा को लगा सघन में से पवन का चेहरा झाँक रहा है। वही महाजनी रस्ताव और रसंग। उसे यह भी लगा फक
जवान िेटे ने एक फमनट को नहीं सोचा फक माता-फपता यहाँ फकसके सहारे फजदं ा रहेंग।े

अफनवासी और रवासी के वल पयणटक और पछ ं ी नहीं होते, िच्चे भी होते हैं। वे दौड़-दौड़ कर दजी के यहाँ से
अपने नए फसले कपड़े लाते हैं, सटू के स में अपना सामान और कागजात जमाते हैं, मनी िेल्ट में अपना पासपोटण,
वीजा और चंद डॉलर रख, रवाना हो जाते हैं अनजान देश रदेश के सिर पर, माता-फपता को फसिण स्टेशन पर हाथ
फहलाते छोड़ कर।

प्लेटिॉमण पर लड़खड़ाती रे खा को अपने थरथराते हाथ से सभालते हुए राके श ने कहा, 'ठीक ही फकया छोटू ने।
फजतनी तरक्की यहाँ दस साल में करता उतनी वह वहाँ दस महीनों में कर लेगा। जीफनयस तो है ही।'
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कॉलोनी के गप्तु ा दपं फत भी उनके साथ स्टेशन आए हुए थे। फमसेज गप्तु ा ने कहा, 'वायरल िीवर की तरह फवदेश
वायरस भी िहुत िै ला हुआ है आजकल।'

'खदु कुछ भी कह लो, हमारा छोटू ऐसा नहीं है। उसके फवर्य में यहाँ कुछ ज्यादा है ही नहीं। कह कर गया है फक
फट्रक्स ऑि द ट्रेड सीखते ही मैं लौट आऊँगा। यही रह कर फिजनेस करूँगा ।'

'अजी राम कहो।' गप्तु ा जी िोले, 'जि वहाँ के ऐश-ओ-आराम में रह लेगा ति लौटने की सोचेगा? यह मल्ु क, यह
शहर, यह घर सि जेल लगेगा जेल।'

'लेट्स होप िॉर द िेस्ट।' राके श ने सिको चपु फकया।

घर वही था, दर-ओ-दीवार वही थे, घऱ का सामान वही था, यहाँ तक फक रूटीन भी वही था पर पवन और सघन
के माता-फपता को मानो वनवास फमल गया। अपने ही घर में वे आकुल पंछी की तरह कमरे -कमरे िड़िड़ाते
डोलते। पहले दो फदन तो उन्हें फिस्तर पर लगता रहा जैसे कोई उन्हें हवा में उड़ाता हुआ ले जा रहा है। जि तक
सघन का वहाँ से िोन नहीं आ गया, उनके पैरों की थरथराहट नहीं थमी।

छोटे िेटे के चले जाने से िड़े िेटे की अनपु फस्थफत भी नए फसरे से खलने लगी। फदन भर की अवफध में छोटे-छोटे
कररश्मे और कारनामे, िच्चों को पक ु ार कर फदखाने का मन करता, कभी पस्ु तक में पढा िफढया-सा वाक्य, कभी
अखिार में छपा कोई मौफलक समाचार, कभी िफगया में फखला नया गल ु ाि, इस सि को िाँटने के फलए वे आपस
में परू े होते हुए भी आधे थे। राके श सिु ह उठते ही अपने छोटे से साप्ताफहक पत्र के संपादन में व्यस्त हो जाते, रे खा
कुकर चढाने के साथ कॉफपयाँ भी जाँचती रहती पर घर भायँ-भायँ करता रहता। सिु ह आठ िजे ही जैसे दोपहर हो
जाती।

िच्चे घर के तंतु जाल में फकस कदर समाए होते हैं, यह उनकी गैरमौजदू गी में ही पता चलता है। दफ्तर जाने के
फलए राके श स्कूटर फनकालते। सिु ह के समय स्कूटर को फकक लगाना उन्हें नागवार लगता। वे पहली कोफशश
करते फक उन्हें लगता सघन का पैर स्कूटर की फकक पर रखा है। 'लाओ पापा, मैं स्टाटण कर दँू ।' चफकत दृफि दाएँ
िाएँ उठती फिर अफड़यल स्कूटर पर िेमन से ठहर जाती।

रसोई में ताक िहुत ऊँचे लगे थे। रे खा का कद फसिण पाँच िुट था। ऊपर के ताकों पर कई ऐसे सामान रखे थे
फजनकी जरूरत रोज न पड़ती। पर पड़ती तो सही। रे खा एक पैर पट्टे पर उचक कर मतणिान उतारने की कोफशश
करती पर कामयाि न हो पाती। स्टूल पर चढना फ्रेक्चर को खल ु ा िल
ु ावा देना था।
अतं तिः जि वह फचमटे या कलछी से कोई चीज उतारने को होती उसे लगता कहीं से आ कर दो पररफचत हाथ
मतणिान उतार देंग।े रे खा िावली िन इधर उधर कमरों में िच्चे को टोहती पर कमरों की वीरानी में कोई तिदीली न
आती। कॉलोनी में कमोिेश सभी की यही हालत थी। इस िुड्ढा- िडु ् ढी कॉलोनी में फसिण गमी की लंिी छुरट्टयों में
कुछ रौनक फदखाई देती जि पररवारों के नाती-पोते अदं र-िाहर दौड़ते-खेलते फदखाई देते। वरना यहाँ चहल-पहल
के नाम पर फसिण सब्जीवालों के या रद्दी खरीदनेवाले किाफड़यों के ठे ले घमू ते नजर आते। िच्चों को सरु फक्षत
भफवष्प्य के फलए तैयार कर हर घर पररवार के माँ-िाप खदु एकदम असरु फक्षत जीवन जी रहे थे।
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शायद असरु क्षा के एहसास से लड़ने के फलए ही यहाँ की जनकल्याण सफमफत रफत मंगलवार फकसी एक घर में संदु र
काडं का पाठ आयोफजत करती। उस फदन वहाँ जैसे िढु वा मगं ल हो जाता। पाठ के नाम पर सदंु र काडं का कै सेट
म्यफू जक फसस्टम में लगा फदया जाता। ति घर के साज ओर सामान पर चचाणएँ होतीं।

डाइफनंग टेफिल पर माइक्रोवेव ओवन देख कर फमसेज गप्तु फमसेज मजीफठया से पछ


ू तीं, 'यह कि फलया?'
फमसेज मजीफठया कहतीं, 'इस िार देवर आया था, वही फदला गया है।'

'आप क्या पकाती हैं इसमें?'

'कुछ नहीं, िस दफलया फखचड़ी गमण कर लेते हैं। झट से गमण हो जाता है।'

'अरे , यह इसका उपयोग नहीं है, कुछ के क-वेक िना कर फखलाइए।'

'िच्चे पास हों तो के क िनाने का मजा है।'

पता चला फकसी के घर में वैक्यमू क्लीनर पड़ा धलू खा रहा है, फकसी के यहाँ के यहाँ िूड रोसेसर। लंिे गृहस्थ
जीवन में अपनी सारी उमगं खचण कर चक ु ी ये सयानी मफहलाएँ एकरसता का चलता-फिरता कूलता-कराहता
दस्तावेज थीं। रे खा को इन मंगलवारीय िैठकों से दहशत होती। उसे लगता आनेवाले वर्ों में उसे इन जैसा हो जाना
है।

उसका मन िार-िार िच्चों के िचपन और लड़कपन की यादों में उलझ जाता। घमू -फिर कर वही फदन याद आते
जि पन्ु नू छोटू धोती से फलपट-फलपट जाते थे। कई िार तो इन्हें स्कूल भी ले कर जाना पड़ता क्योंफक वे पल्लू
छोड़ते ही नहीं। फकसी सभा-सफमफत में उसे आमफं त्रत फकया जाता ति भी एक न एक िच्चा उसके साथ जरूर
फचपक जाता। वह मजाक करती, 'महारानी लक्ष्मीिाई की पीठ पर िच्चा फदखाया जाता है, मेरा उँगली से िँधा
हुआ।'

क्या फदन थे वे ! ति इनकी दफु नया की धरु ी माँ थी, उसी में था इनका ब्रह्ाडं और ब्रह्। माँ की गोद इनका झल
ू ा,
पालना और पलंग। माँ की दृफि इनका सृफि फवस्तार। पवन की रारंफभक पढाई में रे खा और राके श दोनों ही िावले
रहे थे। वे अपने स्कूटर पर उसकी स्कूल िस के पीछे -पीछे चलते जाते यह देखने फक िस कौन से रास्ते जाती है।
स्कूल की झाफड़यों में छुप कर वे पवन को देखते फक कहीं वह रो तो नहीं रहा। वह शाहजादे की तरह रोज नया
िरमान सनु ाता। वे दौड़-दौड़ कर उसकी इच्छा परू ी करते। परीक्षा के फदनों में वे उसकी नींद सोते जागते।

रे खा के कलेजे में हक-सी उठती, फकतनी जल्दी गजु र गए वे फदन। अि तो फदन महीनों में िदल जाते हैं और महीने
साल में, वह अपने िच्चों को भर नजर देख भी नहीं पाती। वैसे उसी ने तो उन्हें सारे सिक याद कराए थे। इसी
रफक्रया में िच्चों के अदं र तेजी, तेजफस्वता और त्वरा फवकफसत हुई, रफतभा, पराक्रम और महत्वाकांक्षा के गणु
आए। वही तो फसखाती थी उन्हें 'जीवन में हमेशा आगे ही आगे िढो, कभी पीछे मड़ु कर मत देखो।' िच्चों को
रेररत करने के फलए वह एक घटना िताती थी। पवन और सघन को यह फकस्सा सनु ने में िहुत मजा आता था।
सघन उसकी धोती में फलपट कर ततु लाता, 'मम्मा, जि िैया जतं ल मंतल पल चर गया ति का हुआ?' रे खा के
सामने वह क्षण साकार हो उठता। परू े आवेग से िताने लगती, 'पता है पन्ु नू एक िार हम फदल्ली गए। तू ढाई साल
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का था। अच्छा भला मेरी उँगली पकड़े जतं र मतं र देख रहा था। इधर राके श मझु े धपू घड़ी फदखाने लगे उधर तू कि
हाथ छुड़ा कर भागा, पता ही नहीं चला। जैसे ही मैं देखँू पवन कहाँ है, हे भगवान तू तो जतं र-मतं र की ऊँची सीढी
चढ कर सिसे ऊपर खड़ा था। मेरी हालत ऐसी हो गई फक काटो तो खनू नहीं। मैंने इनकी तरि देखा। इन्होंने एक
िार गस्ु से से मझु े घरू ा, 'ध्यान नहीं रखती?'

घिरा ये भी रहे थे पर तझु े पता नहीं चलने फदया। सीढी के नीचे खड़े हो कर िोले, 'िेटा, फिना नीचे देख,े सीधे उतर
आओ, शािाश, कहीं देखना नहीं।'

फिर मझु से िोले, 'तमु अपनी हाय तौिा रोक कर रखो, नहीं तो िच्चा फगर जाएगा। तू खम्म-खम्म सारी सीफढयाँ
उतर आया। हम दोनों ने उस फदन रसाद चढाया। भगवान ने ही रक्षा की तेरी ।'

िार-िार सनु कर िच्चों को ये फकस्से ऐसे याद हो गए थे जैसे कहाफनयाँ।

पवन कहता, 'माँ, जि तमु िीमार पड़ी थीं, छोटू स्कूल से सीधे अस्पताल आ गया था।'

'सच्ची। ऐसा इसने खतरा मोल फलया। के .जी. दो में पढता था। सेंट एथं नी में तीन िजे छुट्टी हुई। आया जि तक उसे
ढूँढ,े िस में फिठाए, ये चल फदया िाहर।'

पवन कहता, 'वैसे माँ अस्पताल स्कूल से दरू नहीं है।'

'अरे क्या? चौराहा देखा है वह िालसनवाला। छह रास्ते िूटते हैं वहाँ। फकतनी ट्रकें चलती हैं। अच्छे -भले लोग
चकरफघन्नी हो जाते हैं सड़क पार करने में और यह एफड़याँ अचकाता जाने कै से सारा ट्रैफिक पार कर गया फक
मम्मा के पास जाना है।

सघन कहता, 'हमें फपछले फदन पापा ने कहा था फक तम्ु हारी मम्मी मरनेवाली है। हम इसफलए गए थे।'

'तमु ने यह नहीं सोचा फक तमु कुचल जाओगे।'

'नहीं।' सघन फसर फहलाता, 'हमें तो मम्मा चाफहए थी।'

अि उसके फिना फकतनी दरू रह रहा है सघन। क्या अि याद नहीं आती होगी? फकतना कािू रखना पड़ता होगा
अपने पर।

भाग्यवान होते हैं व फजनके िेटे िचपन से होस्टल में पलते हैं, दरू रह कर पढाई करते हैं और एक फदन िाहर-िाहर
ही िड़े होते जाते हैं। उनकी माँओ ं के पास यादों के नाम पर फसिण खत और खिर होती है, िोन पर एक आवाज
और फक्रसमस के ग्रीफटंग काडण। पर रे खा ने तो रच-रच कर पाले हैं अपने िेटे। इनके ग-ू मतू में गीली हुई है, इनके
आँसू अपनी चम्ु मायों से सख ु ाए हैं, इनकी हँसी अपने अतं स में उतारी है।
राके श कहते हैं, 'िच्चे अि हमसे ज्यादा जीवन को समझते हैं। इन्हैं कभी पीछे मत खींचना।'

रात को पवन का िोन आया। माता-फपता दोनों के चेहरे फखल गए।


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'तफियत कै सी है?'

'एकदम ठीक ।' दोनों ने कहा। अपनी खाँसी, एलजी और ददण िता कर उसे परे शान थोड़े करना है।

'छोटू की कोई खिर?'

'फिलकुल मजे में है। आजकल चीनी िोलना सीख रहा है।'

'वी.सी.डी. पर फपक्चर देख फलया करो, माँ।'

'हाँ, देखती ह।ँ ' साि झठू िोला रे खा ने। उसे न्यू सी.डी. में फडस्क लगाना कभी नहीं आएगा।

फपछली िार पवन माइक्रोवेव ओवन फदला गया था। िोन पर पछ


ू ा, 'माइक्रोवेव से काम लेती हो?'
'मझु े अच्छा नहीं लगता। सीटी मझु े सनु ती नहीं, मरी हर चीज ज्यादा पक जाए। फिर सब्जी एकदम सिे द लगे जैसे
कच्ची है।'

'अच्छा यह मैं ले लँगू ा, आपको ब्राउफनगं वाला फदला दगँू ा।'

'स्टैला कहाँ है?'

पता चला उसके माँ-िाप फशकागो से वापस आ गए हैं। पवन ने चहकते हुए िताया, 'अि छोटी ममी फिजनेस
सँभालेगी। स्टैला िस फवफजट दे सके गी।'

फवफजट शब्द खटका पर वे उलझे नहीं। फिर भी िोन रखने के पहले रे खा के महँु से फनकला, 'तभी हमसे फमलने
नहीं आए।'

'आएँगे माँ, पहले तो जैटलैग (थकान) रहा, अि फिजनेस में फघरे हैं। वैसे आपकी िह आप लोगों की मल ु ाकात
प्लान कर रही है। वह चाहती है फकसी हॉलीडे ररसोटण (सैर सपाटे की जगह) में आप चारों इकट्ठे दो-तीन फदन रहो।
वे लोग भी आराम कर लेंगे और आपके फलए भी चेंज हो जाएगा।'

'इतने तामझाम की क्या जरूरत है? उन्हें यहाँ आना चाफहए।'

'ये तमु स्टैला से िोन पर फडसकस कर लेना। िहुत लिं ी िात हो गई, िाय |'

कुछ देर िाद ही स्टैला का िोन आया। 'मॉम, आप कंप्यटू र ऑन रखा करो। मैंने फकतनी िार आपके ई-मेल पर
मैसेज फदया। ममी ने भी आप दोनों को हैलो िोला था, पर आपका फसस्टम ऑि था।'

'तम्ु हें पता ही है, जि से छोटू गया हमने कंप्यटू र पर खोल उढा कर रख फदया है।'
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'ओ नो माम। अगर आपके काम नहीं आ रहा तो यहाँ फभजवा दीफजए। मैं मँगवा लँगू ी। इतनी यजू िुल चीज आप
लोग वेस्ट कर रहे हैं।'

रे खा कहना चाहती थी फक उसके माता-फपता उनसे फमलने नहीं आए। पर उसे लगा फशकायत उसे छोटा िनाएगी।
वह ज्ब्त कर गई। लेफकन जि स्टैला ने उसे अगले महीने वाटर पाकण के फलए िल ु ावा फदया, उसने साि इनकार कर
फदया, 'मेरी छुरट्टयाँ खतम हैं। मैं नहीं आ सकती। ये चाहें तो चले जाएँ।'

इस आयोजन में राके श की भी रुफच नहीं थी।

कई फदनों के िाद रे खा और राके श इजं ीफनयरींग कॉलेज पररसर में घमू ने फनकले। एक-एक कर पररफचत चेहरे फदखते
गए। अच्छा लगता रहा। फमन्हाज साहि ने कहा, 'घमू ने में नागा नहीं करना चाफहए। रोज घमू ना चाफहए, चाहे पाँच
फमनट घमू ो।' उन्हीं से समाचार फमला। कॉलोनी के सोनी साहि को फदल का दौरा पड़ा था, हॉफस्पटल में भरती हैं।

रे खा और राके श फिक्रमदं हो गए। फमसेज सोनी चौंसठ साल की गँफठयाग्रस्त मफहला है। अस्पताल की भागदौड़
कै से सँभालेगी?

'देखो जी, कल तो मैंने भर्ू ण को िैठा फदया था वहाँ पर। आज तो उसने भी काम पर जाना था।'

रे खा और राके श ने तय फकया वे शाम को सोनी साहि को देख कर आएँग।े

पर सोनी के फदल ने इतनी मोहलत न दी। वह थक कर पहले ही धड़कना िदं कर िैठा। शाम तक कॉलोनी में
अस्पताल की शव वाफहका सोनी का पाफथणव शरीर और उनकी िेहल पत्नी को उतार कर चली गई।

सोनी की लड़की को सचू ना दी गई। वह देहरादनू ब्याही थी। पता चला वह अगले फदन रात तक पहुचँ सके गी।
फमसेज सोनी से फसिाथण को िोन नंिर ले कर उन्हीं के िोन से इटं रनेशनल कॉल फमलाई गई।

फमसेज सोनी पफत के शोक में एकदम हतिफु ि हो रही थीं। िोन में वे फसिण रोती और कलपती रहीं, 'तेरे डैडी, तेरे
डैडी. . .' ति िोन फमन्हाज साहि ने सँभाला, 'भई फसधारथ, िड़ा ही िरु ा हुआ। अि तू जल्दी से आ कर अपना
िजण परू ा कर। तेरे इतं जार में फ्यूनरल (दाह संस्कार) रोक के रखें?'

उधर से फसिाथण ने कहा, 'अक ं ल, आप ममी को सँभाफलए। आज की तारीख सिसे मनहस है। अक
ं ल, मैं फजतनी
भी जल्दी करूँगा, मझु े पहुचँ ने में हफ्ता लग जाएगा।'

'हफ्ते भर िॉडी कै से पड़ी रहेगी?' फमन्हाज साहि िोले।

'आप मदु ाण घर में रखवा दीफजए। यहाँ तो महीनों िॉडी मारच्यरू ी में रखी रहती है। जि िच्चों को िुसणत होती है
फ्यनू रल कर देते हैं।'

'वहाँ की िात और है। हमारे मल ु क


ु में एयरकंडीशडं मदु ाण घर कहाँ हैं। ओय पिु र तेरा िाप उप्पर चला गया तू इन्नी
दरू ों िैठा िहाने िना रहा है।'
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'जरा मम्मी को िोन दीफजए।'

कॉलोनी के सभी घरों के लोग इतं जाम में जटु गए। फजसको जो याद आता गया, वही काम करता गया। सवेरे तक
िूल, गल
ु ाल, शाल से अथी ऐसी सजी फक सि अपनी मेहनत पर खदु दगं रह गए। पर इस दारुण कायण के दौरान
कई लोग िहुत थक गए। फमन्हाज साहि के फदल की धड़कन िढ गई। उनके ल़ड़के ने कहा, 'डैडी, आप रहने दो, मैं
घाट चला जाता ह।ँ '

भर्ू ण ने ही मख
ु ाफग्न दी।
रे खा, फमसेज गप्तु ा, फमसेज यादव, फमसेज फसन्हा और अन्य फस्त्रयाँ फमसेज सोनी के पास िैठी रहीं। फमसेज सोनी अि
कुछ संयत थीं, 'आप सि ने दख ु की घड़ी में साथ फदया।'
'यह तो हमारा िजण था।' कुछ आवाजें आई।ं

रे खा के महँु से फनकल गया, 'ऐसा क्यों होता है फक कुछ लोग िजण पहचानते हैं, कुछ नहीं। अरे सख
ु में नहीं, पर दख

में तो साथ दो।'

फमसेज सोनी ने कहा, 'अपने िच्चे के िारे में कुछ भी कहना िरु ा लगता है पर फसिू ने कहा मैं फकसी को िेटा िना
कर सारे काम करवा लँ।ू ऐसा भी कभी होता है ।'

'और रे डीमेड िेटे फमल जाएँ, यह भी कहाँ ममु फकन है। िाजार में सि चीज मोल जाती है, पर िच्चे नहीं फमलते।'

'ऐसा ही पता होता है फक पच्चीस िरस पहले पररवार फनयोजन क्यों करते। होने देते और छह िच्चे। एक न एक तो
पास रहता।'

'वैसे इतनी दरू से जल्दी से आना हो भी नहीं सकता था।' फमसेज मजीफठया ने कहा, 'हमारी सास मरी तो हमारे देवर
कहाँ आ पाए।'

'पर आपके पफत तो थे ना? उन्होंने अपना िजण फनभाया।'

इस अकफस्मक घटना ने सिके फलए सिक का काम फकया। सभी ने अपने वसीयतनामे सँभाले और िैंक खातों के
ब्यौरे । क्या पता कि फकसका िल
ु ावा आ जाए। आलमारी में दो-चार हजार रुपए रखना जरूरी समझा गया।
कॉलोनी के िुरसतपसंद िजु गु ों की फवशेर्ता थी फक वे हर काम फमशन की तरह हाथ में लेते। जैसे कभी उन्होंने
अपने दफ्तरों में िाइलें फनपटाई होंगी वैसे वे एक एक कर अपनी फजम्मेदाररयाँ फनपटाने में लग गए। फसन्हा साहि ने
कहा, 'भई, मैंने तो एकादशी को गऊदान भी जीते जी कर फलया। पता नहीं अफमत िंिई से आ कर यह सि करे या
नहीं।'

गप्तु ा जी िोले, 'ऐसे स्वगण में सीट ररजवण नहीं होती। िेटे का हाथ लगना चाफहए।'

श्रीवास्तव जी के कोई लड़का नहीं था, इकलौती लड़की ही थी। उन्होंने कहा, 'फकसी के िेटा न हो तो?'
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'ति उसे ऐसी तड़िड़ नहीं होती जो सोनी साहि की फमसेज को हुई।'

रे खा यह सि देख सनु कर दहशत से भर गई। एक तो अभी इतनी उम्रदराज वह नहीं हुई थी फक अपना एक पैर
श्मशान में देख।ें दसू रे , उसे लगता ये सि लोग अपने िच्चों को खलनायक िना रहे हैं। क्या िढू े होने पर भावना
समझने की सामर्थयण जाती रहती है?

कॉलोनी के हर कठोर फनणणय पर उसे लगता मैं ऐसी नहीं ह,ँ मैं अपने िच्चों के िारे में ऐसी क्रूरता से नहीं सोचती।
मेरे िच्चे ऐसे नहीं हैं।

रात की आफखरी समाचार िल ु ेफटन सनु कर वे अभी लेटे ही थे फक िोन की लंिी घटं ी िजी। घटं ी के साथ-साथ
फदल का तार भी िजा, 'जरूर छोटू का िोन होगा, पंद्रह फदन से नहीं आया।' िोन पर िड़कू पवन िोल रहा था,
'हैलो माँ, कै सी हो? आपने िोन नहीं फकया?'

'फकया था पर आसं ररंग मशीन के िोलने से पहले काट फदया। तमु घर में नहीं फटकते।'

'अरे माँ, मैं तो यहाँ था ही नहीं। ढाका चला गया था, वहाँ से मिंु ई उतरा तो सोचा स्टैला को भी देखता चलँ।ू वह
क्या है उसकी शकल भी भल ू ती जा रही थी।'
'तमु ने जाने की खिर नहीं दी।'

'आने की तो दे रहा ह।ँ मेरा काम ही ऐसा है। अटैची हर वक्त तैयार रखनी पड़ती है। और सनु ो, तम्ु हारे फलए ढाकाई
साफड़याँ लाया हँ ।'

फनहाल हो गई रे खा। इतनी दरू जा कर उसे माँ की याद िनी रही। तरु ं त िह का ध्यान आया।

'स्टैला के फलए भी ले आनी थी ।'

'लाया था माँ, उसे और छोटी ममी को पसंद ही नहीं आई।ं स्टैला को वहीं से जींस फदला दी। चलो तम्ु हारे फलए
तीन हो गई।ं तीन साल की छुट्टी।'

'मैंने तो तमु से माँगी भी नहीं थीं।' रे खा का स्वर कफठन हो आया।

एक अच्छे मैनेजर की तरह पवन फपता से मख ु ाफति हुआ, 'पापा, इतवार से मैं स्वामी जी के ध्यान फशफवर में चार
फदन के फलए जा रहा ह।ँ फसंगापरु से मेरे िॉस अपनी टीम के साथ आ रहे हैं। वे ध्यान फशफवर देखना चाहते हैं। आप
भी मनपक्कम आ जाइए। आपको िहुत शाफं त फमलेगी। अपने अखिार का एक फवशेर्ाक ं प्लान कर लीफजए
स्वामी जी पर। फवज्ञापन खिू फमलेंगे। यहाँ उनकी िहुत िड़ी फशष्प्य मडं ली हैं।'

राके श हँ हाँ करते रहे। उनके फलए जगह की दरू ी, भार्ा का अपररचय, छुट्टी की फकल्लत, कई रोड़े थे राह में। वे
इसी में मगन थे फक पन्ु नू उन्हें िल
ु ा रहा है।
'छोटू की कोई खिर?'
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'हाँ, पापा उसका ताइपे से खत आया था। जॉि उसका ठीक चल रहा है पर उसकी चाल-ढाल ठीक नहीं लगी। वह
वहाँ की लोकल पाफलफटक्स में फहस्सा लेने लगा है। यह चीज घातक हो सकती है।'

राके श घिरा गए, 'तम्ु हें उसे समझाना चाफहए।'

'मैंने िोन फकया था, वह तो नेता की तरह िोल रहा था। मैंने कहा, नौकरी को नौकरी की तरह करो, उसमें उसल
ू ,
फसिातं ठोकने की क्या जरूरत है।'

'उसने क्या कहा?'

'कह रहा था - भैया, यह मेरे अफस्तत्व का सवाल है।'

रे खा को संकट का आभास हुआ। उसने िोन राके श से ले फलया, 'िेटे, उसको कहो िौरन वापस आ जाए। उसे
चीन-ताइवान के पचड़े से क्या मतलि।'

'माँ, मैं समझा ही सकता ह।ँ वह जो करता है उसकी फजम्मेदारी है। कई लोग ठोकर खा कर ही सँभलते हैं।'

'पन्ु न,ू तेरा इकलौता भाई है सघन, तू पल्ला झाड़ रहा है।'

'माँ, तमु फोन करो, फचठ्ठी फलखो। अफड़यल लोगों के फलए मेरी िरदाश्त कािी कम हो गई है। मेरी कोई फशकायत
फमले तो कहना।'

दहशत से दहल गई रे खा। तरु ं त छोटू को िोन फमलाया। वह घर पर नहीं था। उसे ढूँढने में दो-ढाई घटं े लग गए। इस
िीच माता-फपता का िरु ा हाल हो गया। राके श िार-िार िाथरूम जाते। रे खा साड़ी के पल्लू में अपनी खाँसी दिाने
में लगी रही।

अतं तिः छोटू से िात हुई। उसने समीकरण समझाया।

'ऐसा है पापा, अगर मैं लोकल लोगों के समथणन में नहीं िोलँगू ा तो ये मझु े नि कर देंग।े '

'तो तमु यहाँ चले आओ। इन्िोटेक (सचू ना तकनीकी) में यहाँ भी अच्छी से अच्छी नौकररयाँ हैं।'

'यहाँ मैं जम गया ह।ँ '

'परदेस में आदमी कभी नहीं जम सकता। तंिू का कोई न कोई खटँू ा उखड़ा ही रहता है।'

'फहदं स्ु तान अगर लौटा तो अपना काम करूँगा।'

'यह तो और भी अच्छा है।'


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'पर पापा, उसके फलए कम से कम तीस-चालीस लाख रुपए की जरूरत होगी। मैं आपको फलखने ही वाला था।
आप फकतना इतं जाम कर सकते हैं, वाकी जि मैं जमा कर लँू ति आऊँ।'

राके श एकदम गड़िड़ा गए, 'तुम्हें पता है घर का हाल। फजतना कमाते हैं उतना खचण कर देते हैं। सारा पोंछ-पाँछ कर
फनकालें तो भी एक-डेढ से ज्यादा नहीं होगा।'

'इसी फिना पर मझु े वापस िल


ु ा रहे हैं। इतने में तो पी.सी.ओ. भी नहीं खल
ु ेगा।'
'तमु ने भी कुछ जोड़ा होगा इतने िरसों में।'

'पर वह कािी नहीं है। आपने इन िरसों में क्या फकया? दोनों िच्चों का खचण आपके फसर से उठ गया, घमू ने आप
जाते नहीं, फपक्चर आप देखते नहीं, दारू आप पीते नहीं, फिर आपके पैसों का क्या हुआ?'

राके श आगे िोल नहीं पाए। िच्चा उनसे रुपए आने पाई में फहसाि माँग रहा था।

रे खा ने िोन झपट कर कहा, 'तू कि आ रहा है छोटू?'

सघन ने कहा, 'माँ जि आने लायक हो जाऊँगा तभी आऊँगा। तम्ु हें थोड़ा इतं जार करना होगा।'

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