You are on page 1of 15

Bhagavadajjukam and It's Lokdharmi

Adaptions
Mahendrravarma
(Bodhayana)

2
Bhagavadajjukam & Lokdharmi Natakama in Sanskrit Darma

Bhagavadajjukam is great story in Sanskrit of Prahsana by great writer Raja Mahendrravarma ( Bodhayana).
(600–630 CE) who ruled the Southern portion of present day Andhra region and Northern regions of what forms
present-day Tamil Nadu in India in the early 7th century. He was a scholar, painter, architect, and musician. He was the
son of Simhavishnu, who defeated the Kalabhras and re-established the Pallava kingdom.
The Story of Sanskrit Natakam Bhagavadajjukam :
The story is about the transmigration of souls, as practised by a Buddhist monk. This is done to substantiate the process
of ‘Parakaya Pravesha’ or the process of the soul entering another’s body. The monk does this to convince Shandilya, his
disciple. The monk and his disciple meet a courtesan Vasantasena and her maid Parabhritika in a garden. Shandilya’s
depiction of events and the monk’s replies to his queries forms the essence of the play. Vasantasena falls unconscious
after she is bitten by a snake.
The play takes a different turn from here onwards. Shandilya pleads with his master to save her. The master makes his
own soul enter the body of the courtesan. She gets up and starts behaving like the holy man. The messenger of the god of
death Yamdootha appears with the soul of the courtesan and slips it into the body of the holy man. The result is hilarious
as Yamdhoota gets confused whose soul is to be taken away.

3
Mahendrravarma (Bodhayana)
Mahendra varma I (600–630 CE) was a Pallava king who ruled
the Southern portion of present day Andhra region and Northern
regions of what forms present-day Tamil Nadu in India in the early
7th century. He was a scholar, painter, architect, musician. He was
the son of Simhavishnu, who defeated the Kalabhras and re-
established the Pallava kingdom.
He was also the author of the play Mattavilasa Prahasana, a farce
concerning Buddhist and Saiva ascetics. He is also claimed to be the
author of another play called Bhagavadajjukam,. This is evident by
the inscriptions found at Mamandur cave shrines (near
Kanchipuram - this place is mentioned as Dusi Mamandur to avoid
confusions with other places by the same name). However, there is
an alternate view that attributes
4 this play to Bodhayana
The documentation of the unabridged version of the play 'Bhagavadajjukam'
using state-of-the-art technology is laudable indeed.
Bodhayana's 'Bhagavadajjukam' is a Sanskrit farce, originally presented over
35 days. In the century that followed Kulasekhara, this play was presented as
a Kootiyattam in the course of three days.

In 1976, Painkulam Rama Chakyar choreographed this play in a new pattern.


His stage manual did full justice to the play. He made it more theatrical and
cut short the nirvahana of the vidushaka. The description of the garden was
highlighted by retaining the pertaining verses and through such methods
made ‘Bhagavadajjukam' Kootiyattam what it is today – a three-to-four-hour
presentation, interesting, absorbing, and relevant.
6
7
Transmigration of souls

8
9
भारतीय नृत्य के प्रकार

जिस तरह भारत में कोस-कोस पर पानी और वाणी


बदलती है वैसे ही नृत्य शैजलयााँ भी जवजवध हैं । प्रमुख
भारतीय शास्त्रीय नृत्य हैं :
कथक
ओजिसी
भारतनाट्यम
कुजिपु जि
मजणपु री एवं 10
11
इजतहास

नृत्य का प्रािीनतम ग्रंथ भरत मु जन का नाट्यशास्त्र है । लेजकन इसके उल्ले ख वे दों में भी जमलते हैं , जिससे पता िलता है जक
प्रागैजतहाजसक काल में नृत्य की खोि हो िुकी थी। इजतहास की दृजि में सबसे पहले उपलब्ध साक्ष्य गुफाओं में प्राप्त
आजदमानव के उकेरे जित्ों तथा हड़प्पा और मोहनिोदड़ो की खु दाईयों में प्राप्त मू जति यााँ हैं , जिनके संबंध में पु रातत्वे त्ता
नति की होने का दावा करते हैं । ऋगवे द के अनेक श्लोकों में नृत्या शब्द का प्रयोग हुआ है । इन्द्र यथा हयस्तिते परीतं
नृतोशग्वः । तथा नह्यंगं नृतो त्वदन्यं जवन्दाजम राधसे। अथाि त- इन्द्र तु म बहुतों द्वारा आहूत तथा सबको निाने वाले हो।
इससे स्पि होता है जक तत्कालीन समाि में नृत्यकला का प्रिार-प्रसार सवि त् था। इस यु ग में नृत्य के साथ जनम्नजलस्तखत
वाद्ों का प्रयोग होता था। वीणा वादं पाजणघ्नं तू णब्रह्मं तानृत्यान्दाय तलवम् । अथाि त- नृत्य के साथ वीणा वादक और
मृ दंगवादक और वं शीवादक को संगत करनी िाजहये और ताल बिाने वाले को बैठना िाजहये ।
यिुि वेद में भी नृत्य संबंधी सामग्री प्रिुर मात्ा में उपलब्ध है । नृत्य को उस यु ग में व्यायाम के रूप में माना गया था। शरीर
को अरोग्य रखने के जलये नृत्यकला का प्रयोग जकया िाता था। हररवं श पु राण में भी नृत्य संबंधी घटनाओं का उल्ले ख है ।
भगवान नेजमनाथ के िन्म के समय के कलापू णि नृत्य व गायन के समारोहों का वणिन इसमें जमलता है । श्रीमदभागवत
महापु राण, जशव पु राण तथा कूमि पु राण में भी नृत्य का उल्ले ख कई जववरणों में जमला है । रामायण और महाभारत में भी
समय-समय पर नृत्य पाया गया है । इस यु ग में आकर नृत्त- नृत्य- नाट्य तीनों का जवकास हो िुका था। भरत के नाट्य
शास्त्र के समय तक भारतीय समाि में कई प्रकार की कलाओं का पू णिरूपे ण जवकास हो िुका था। इसके बाद संस्कृत के
प्रािीन ग्रंथों िै से काजलदास के शाकंु तलम- मे घदू तम- वात्स्यायन की कामसूत्- तथा मृ च्छकजटकम आजद ग्रंथों में इन नृत्य
का जववरण हमारी भारतीय संस्कृजत की कलाजप्रयता को दशाि 12 ता है । आि भी हमारे समाि में नृत्य- संगीत को उतना ही
13
संदभि
✣ इस पद्धति को बनाने में जो सामग्री इस्ते माल हुई है
वह ज्यादािर डॉ तहमाां शु तिवेदी की तकिाब जा रानाि
एस अांगने में चली गई है तजसमें नाट्यशास्त्र की कथा
और उस नाट्यशास्त्र का तववरण बहुि अच्छे से हैं ।
✣ और बाकी की जानकारी अन्य तकिाबोां एवां इां टरनेट
पर छपे आतटि कल ओां िारा और नीांव प्रचतलि
कहातनयोां से ली गई है ।

14
नाटक जक कथा:
उत्तररामिररत महाकजव भवभूजत का प्रजसद्ध संस्कृत नाटक है जिसमें 7 अं क हैं और उन 7 अं कों में राम के उत्तर िीवन की कथा है ! िनापवाद
के कारण राम ना िाहते हुए भी सीता का पररत्याग कर दे ते हैं सीता त्याग के बाद वही राम की दशा का तृ तीय अं क में करुण जित् प्रिुत जकया
गया है िो काव्य की दृजि से इस नाटक की िान है भवभूजत ने इस दृश्य काव्य में दांपत्य िीवन के आदशि रूप को अं जकत जकया है ! कोमल एवं
कठोर भाव की भावपूणि व्यंिना रमणीय है और भयावह प्रकृजत जित्ों का कुशल अं जकत इस नाटक की जवशेषता है उत्तररामिररत में अं जतम
सप्तम अं क 'गभिअंक' का है जिसमें नाटक के अं दर नाटक िलता है !
पात् -
नाटक एवं रं गमंि संकाय के छात् पहली बार
संस्कृनाटकत भाषा में नाटक की प्रिुजत दें गे -
जनदे शक की बात : सू त्धार 1.- शांजिल्य गौरव
सू त्धार दो - जशवम जसं ह जससोजदया
उत्तररामिररत नाटक करना अपने आप में बहुत राम - मयंक पाराशर
सीता - रे खा जससोजदया
काजलदास सं स्कृत अकादमी िुनौतीपूणि है क्योंजक नाट्य जवधा के क्षे त् में इस लक्ष्मण - नरें द्र जसं ह
मध्यप्रदे श सं स्कृजत पररषद उज्जैन नाटक की जगनती महानाटकों में होती है ! धनं िय िनक - लक्ष्य अरोड़ा
,िीवािी जवश्वजवद्ालय ग्वाजलयर एवं द्वारा जलस्तखत दशरूपक के आधार पर नाटक के 10 अरुंधजत - ररशु गं गवार/ राहुल
महाकजव भवभू जत शोध एवं जशक्षा रूप होते हैं - नाटक, प्रकरण कौशल्या - रे णु झवर
सजमजत ग्वाजलयर के सहयोग से दो ,भाड़,प्रहसन,जिम,जवयायोग, समवकार, लव - सु जमत आसीवाल
जदवसीय अस्तखल भारतीय भवभू जत कुश - राहुल शाक्य
वीथी,अं क,उत्सटीकाक ! इस नाटक की एक और बाल्मीजक - रजव राि /जहमांशु जद्ववेदी
समारोह का आयोिन जकया िा रहा
जवशेषता है इस नाटक में नाटक के अं दर नाटक िंद्रकेतु - मानवेंद्र जसं ह (रोशन) ,तमसा, क्ोंि - गौरव
है जिसमें जदनांक 7 िनवरी 2020 को
शाम 6:00 बिे िॉ जहमांशु जद्ववेदी िलता है , िो प्ले जवद् इन प्ले का कंसेप्ट है ! यह शमाि
द्वारा जनदे जशत एवं रािा मानजसं ह नाटक अपने आप में बहुत िुनौतीपूणि है इसके साथ वासं ती - सारांश भारद्वाि, अजमत कणािवत
तोमर सं गीत एवं कला जवश्वजवद्ालय ही हमारे जलए दो और महत्वपूणि िुनौजतयां थी ! बहुत
पररकल्पना ,सं गीत एवं जनदे शन- िॉ जहमांशु जद्ववेदी
के नाट्य एवं रं गमंि सं काय के छात् कम समय ,इस नाटक को हमने मात् सात जदवस में सह जनदे शन - राघवेंद्र जसं ह
छात्ाओं द्वारा तैयार जकया गया तै यार जकया है और इसे नाटक एवं रं गमंि संकाय प्रकाश पररकल्पना - सं िय जसं ह
नाटक "उत्तररामिररतम्" का मंिन द्वारा जवश्वजवद्ालय की तरफ से पहली बार संस्कृत
जकया िाएगा जिसका लेखन भाषा में हम जकसी नाटक की प्रिुजत दें गे िो हमारे सं गीत सं योिन -
महाकजव भवभू जत ने जकया है ! इस जलए दू सरी सबसे बड़ी िुनौती थी हमने इस िुनौती िॉ जहमांशु जद्ववेदी, स्वराि रावत, प्रसू न भागि व, सौरभ
नाटक के जवषय में िॉ जद्ववेदी ने कुमार,
को सहषि स्वीकार जकया और अपना उत्तम दे ने का सारांश,जनशांत ,मनोि कुमार,सु जमत कोतवाल
बताते हुए कहा की - उत्तररामिररत
प्रयत्न इस नाटक के माध्यम से15जकया! यह नाटक भाषा जवशेषज्ञ - जशवम जसं ह जससोजदया
नाटक करना अपने आप में बहुत
मूल रूप से जवभाग के छात्ों और मेरी हमारे पूविि

You might also like