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दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम्
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम्
दहन स्तोत्र
हर इंसान के घर में दरिद्रता का वास नहीं होता है लेकिन बहुत से लोग हैं जिनके घर में एक दरिद्रता है जो एक अभिशाप है . ऐसे
में शास्त्र के अनुसार-
अर्थात भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं करता। हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्र का उल्लेख है
जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है । महाशिवरात्रि अथवा श्रावण मास में भगवान शिव का 'दारिद्रय दहन स्तोत्र' के
साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । इस कारण से अगर आप अपने घर से
दरिद्रता को भगाना चाहते हैं तो हर दिन आपको दरिद्रता दहन स्त्रोत पढ़ना चाहिए, जो आज हम आपके लिए
लेकर आए हैं. आइए जानते हैं.
रामप्रियाय रघन
ु ाथ वर प्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।7।
Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is the lord of the universe,
Who helps us to cross the sea of hell,
Who is pleasant to the ears,
Who wears the crescent as ornament,
Who is as white as the flame of camphor,
Who wears uncombed and uncut hair.
Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is the darling of Goddess Parvathy,
Who wears the crescent of the lord of night,
Who was the death to the God of Death,
Who wears the king of serpents as bangles,
Who carries the Ganga on his head,
And who killed the king of elephants.
Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is loved by his devotees,
Who destroys fear of diseases in human life,
Who is fearsome,
Who makes us cross the difficult ocean of life,
Who is the personification of light,
And who dances in his good names.
Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who wears hide, Who applies ash of burning corpses,
Who has an eye on his forehead,
Who wears ear studs of precious stones,
Who wears jingling leg bangles on his legs,
And who wears uncombed and uncut hair.
Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who has five faces,
Who wears king of serpents as ornament,
Who wears cloth made of gold,
Who is the ornament for the three worlds,
Who is the giver of boons,
Who is the storehouse of happiness,
And who is personification of darkness.
Meanings
I salute that Shiva,
who burns the sorrow of poverty,
Who is the world of Gouris grace,
Who is the greatest God, Who is like a lion,
Who is the wish-giving tree,
To those who seek his protection,
Who is everything,
And who is the king of all worlds.
भावार्थ–माता गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अन्तक
(यम) रूप, नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का
विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।२।।
भावार्थ–व्याघ्रचर्मधारी, चिताभस्म को लगाने वाले, भालमें तीसरा नेत्र धारण करने वाले, मणियों के कुण्डल से
सश
ु ोभित, अपने चरणों में नप
ू रु धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को
मेरा नमस्कार है।।४।।
भावार्थ–सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिए भी
महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा) से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से यक्
ु त तथा
दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।६।।
विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामत
ृ ाय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥1॥
अर्थ – समस्त चराचर विश्व के स्वामी विश्वेश्वर, नरकरूपी संसार सागर से उद्धार करनेवाले, कान से श्रवण करने
में अमत
ृ के समान नामवाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषण रूप में धारण करनेवाले, कर्पूर की कान्ति के
समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥2॥
अर्थ – गौरी के अत्यन्त प्रिय, चन्द्रमा की कला को धारण करनेवाले, काल के लिए भी यमरूप, नागराज को कंकण
रूप में धारण करनेवाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करनेवाले, गजराज का विमर्दन करनेवाले और
दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दर्ग
ु भवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनत्ृ यकाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥3॥
अर्थ – भक्ति के प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दर्ग
ु म भवसागर से पार
करानेवाले, ज्योति स्वरुप, अपने गण
ु और नाम के अनस
ु ार सन्
ु दर नत्ृ य करनेवाले तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के
विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।
चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥4॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हे मांशक
ु ाय भव
ु नत्रयमण्डिताय।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥5॥
अर्थ – पाँच मुखवाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्रवाले, तीनों लोकों में पूजित,
आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करनेवाले, सष्टि
ृ के संहार के लिए तमोगुण धारण करनेवाले तथा दरिद्रतारूपी
दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥6॥
अर्थ – सर्य
ू को अत्यन्त प्रिय, भवसागर से उद्धार करनेवाले, काल के लिये भी महाकालस्वरूप, ब्रह्मा से पजि
ू त,
तीन नेत्रों को धारण करनेवाले, शुभ लक्षणों से यक्
ु त तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा
नमस्कार है।
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥7॥
अर्थ – मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय, रघुनाथ को वर दे नेवाले, सर्पों के अतिप्रिय,
भवसागररूपी नरक से तारनेवाले, पुण्यवानों में परिपूर्ण पुण्यवाले, समस्त दे वताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी
दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।
मक्
ु तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वष
ृ भेश्वरवाहनाय।
मातङ्गचर्मवसनाय महे श्वराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥8॥
अर्थ – मक्
ु तजनों के स्वामिरूप, चारों पुरुषार्थ के फल दे नेवाले, प्रमथादि गणों के स्वामी, स्तति
ु प्रिय, नन्दीवाहन,
गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करनेवाले, महे श्वर तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा
नमस्कार है।
अर्थ – समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करनेवाले और पुत्र – पौत्रादि वंश
परम्परा को बढ़ानेवाले, वसिष्ठ द्वारा निर्मित इस स्तोत्र का जो भक्त नित्य तीनों कालों में पाठ करता है , उसे
निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।