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घर से दरिद्रता भगाने के लिए जरूर पढ़े यह दारिद्रय

दहन स्तोत्र

हर इंसान के घर में दरिद्रता का वास नहीं होता है लेकिन बहुत से लोग हैं जिनके घर में एक दरिद्रता है जो एक अभिशाप है . ऐसे
में शास्त्र के अनुसार-

'बभक्षित: किं न करोति पापम।्‌


क्षीणा: नरा: निष्करूणा भवन्ति।।''

अर्थात भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं करता। हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्र का उल्लेख है
जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है । महाशिवरात्रि अथवा श्रावण मास में भगवान शिव का 'दारिद्रय दहन स्तोत्र' के
साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । इस कारण से अगर आप अपने घर से
दरिद्रता को भगाना चाहते हैं तो हर दिन आपको दरिद्रता दहन स्त्रोत पढ़ना चाहिए, जो आज हम आपके लिए
लेकर आए हैं. आइए जानते हैं.

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र का अर्थ


विश्वे श्वराय नरकार्णव तारणाय
कर्णामृ ताय शशिशे खर धारणाय
कर्पूरकां ति धवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

गौरी प्रियाय रजनीशकलाधराय


कालान्तकाय भु जगाधिप कंकणाय
गं गाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय


उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय
ज्योतिर्मयाय गु णनाम सु नृत्यकाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

चर्माम्बराय शवभस्म विले पनाय


भाले क्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय
मं जीर पादयु गलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

पं चाननाय फनिराज विभूषणाय


हे मां शुकाय भु वनत्रय मण्डिताय
आनं दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

भानु प्रियाय भवसागर तारणाय


कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
ने तर् त्रयाय शु भलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

रामप्रियाय रघु नाथवरप्रदाय


नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पु ण्ये षु पु ण्यभरिताय सु रर्चिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

मु क्ते श्वराय फलदाय गणे श्वराय


गीतप्रियाय वृ षभे श्वर वाहनाय
मातं ग चर्मवसनाय महे श्वराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…

वसिष्ठे न कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम।्‌


सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम।्‌
त्रिसंध्यं यः पठे न्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नय
ु ात ्‌
दारिद्रयदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥9॥

॥इति वसिष्ठ विरचितं दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रं सम्पर्ण


ू म ्॥

दारिद्रय दहन स्तोत्र :

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामत


ृ ाय
शशिशेखराय धारणाय कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।1।
गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय कालान्तकाय
भुजंगाधिप कंकणाय गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।2।

भक्ति प्रियाय भवरोग भयापहाय


उग्राय दर्ग
ु मभवसागर तारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनत्ृ यकाय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।3।
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकंु डल मण्डिताय
मंजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय....।4।

पंचाननाय फणिराज विभूषणाय


हे मांशक
ु ाय भव
ु नत्रय मण्डिताय
अनन्त भूमि वरदाय तमोमयाय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।5।

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय


कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।6।

रामप्रियाय रघन
ु ाथ वर प्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।7।

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय


गति प्रियाय वष
ृ भेश्वर वाहनाय
मातंग चर्मवसनाय महे श्वराय
दारिद्रय द:ु ख दहनाय नम: शिवाय...।8।

वसिष्ठे न कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम।्‌


सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पत्र
ु पौत्रादिवर्धनम।्‌
त्रिसंध्यं यः पठे न्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात ्‌
दारिद्रयदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥9॥
॥इति वसिष्ठ विरचितं दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र और अर्थ


जो विश्व के स्वामी हैं ,
जो नरकरूपी सं सारसागर से उद्धार करने वाले हैं ,
जो कानों से श्रवण करने में अमृ त के समान नाम वाले हैं ,
जो अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले हैं ,
जो कर्पूर की कां ति के समान धवल वर्ण वाले जटाधारी हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो माता गौरी के अत्यं त प्रिय हैं ,


जो रजनीश्वर(चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले हैं ,
जो काल के भी अन्तक (यम) रूप हैं ,
जो नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले हैं ,
जो अपने मस्तक पर गं गा को धारण करने वाले हैं ,
जो गजराज का विमर्दन करने वाले हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो भक्तिप्रिय, सं साररूपी रोग एवं भय का नाश करने वाले हैं ,


जो सं हार के समय उग्ररूपधारी हैं ,
जो दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले हैं ,
जो ज्योतिस्वरूप, अपने गु ण और नाम के अनु सार सु न्दर नृ त्य करने वाले
हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो बाघ के चर्म को धारण करने वाले हैं ,


जो चिताभस्म को लगाने वाले हैं ,
जो भाल में तीसरा ने तर् धारण करने वाले हैं ,
जो मणियों के कुण्डल से सु शोभित हैं ,
जो अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |
जो पांच मु ख वाले नागराज रूपी आभूषण से सु सज्जित हैं ,
जो सु वर्ण के समान किरणवाले हैं ,
जो आनं दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले हैं ,
जो सृ ष्टि के सं हार के लिए तमोगु नाविष्ट होने वाले हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो सूर्य को अत्यं त प्रिय हैं ,


जो भवसागर से उद्धार करने वाले हैं ,
जो काल के लिए भी महाकालस्वरूप, और जिनकी कमलासन (ब्रम्हा)
पूजा करते हैं ,
जो तीन ने तर् ों को धारण करने वाले हैं ,
जो शु भ लक्षणों से यु क्त हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो राम को अत्यं त प्रिय, रघु नाथजी को वर दे ने वाले हैं ,


जो सर्पों के अतिप्रिय हैं ,
जो भवसागररूपी नरक से तारने वाले हैं ,
जो पु ण्यवालों में अत्यं त पु ण्य वाले हैं ,
जिनकी समस्त दे वतापूजा करते हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

जो मु क्तजनों के स्वामीस्वरूप हैं ,


जो चारों पु रुषार्थों का फल दे ने वाले हैं ,
जिन्हें गीत प्रिय हैं और नं दी जिनका वाहन है ,
गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले हैं , महे श्वर हैं ,
दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मे रा नमन है |

Lyrics & Meanings


Visweswaraya narakarnava tharanaya,
Karnamruthaya Sasi shekara dharanaya,
Karpoorakanthi dhavalaya jada dharaya,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya

Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is the lord of the universe,
Who helps us to cross the sea of hell,
Who is pleasant to the ears,
Who wears the crescent as ornament,
Who is as white as the flame of camphor,
Who wears uncombed and uncut hair.

Gouri priyaya rajaneesa kala dharaya,


Kalanthakaya Bhujagadhipa kankanaya,
Gangadharaya Gaja raja Vimardhanaya,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya

Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is the darling of Goddess Parvathy,
Who wears the crescent of the lord of night,
Who was the death to the God of Death,
Who wears the king of serpents as bangles,
Who carries the Ganga on his head,
And who killed the king of elephants.

Baktha priyaya bhava roga bhayapahaya,


Ugraya durgabhava sagara tharanaya,
Jyothirmayaya guna Nama nruthyakaya,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya.

Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who is loved by his devotees,
Who destroys fear of diseases in human life,
Who is fearsome,
Who makes us cross the difficult ocean of life,
Who is the personification of light,
And who dances in his good names.

Charmambaraya sava basma vilepanaya,


Phalekshanaya mani kundala mandithaya,
Manjeera pasa yugalaya jada dharaya,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya.

Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who wears hide, Who applies ash of burning corpses,
Who has an eye on his forehead,
Who wears ear studs of precious stones,
Who wears jingling leg bangles on his legs,
And who wears uncombed and uncut hair.

Panchananaya Phani raja vibhooshanaya,


Hemamsukaya bhuvana thraya mandithaya,
Ananda Bhumi varadaya Thamomayaya,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya.

Meanings
I salute that Shiva who burns the sorrow of poverty,
Who has five faces,
Who wears king of serpents as ornament,
Who wears cloth made of gold,
Who is the ornament for the three worlds,
Who is the giver of boons,
Who is the storehouse of happiness,
And who is personification of darkness.

Gouri vilasabhuvanaya maheswaraya,


Panchananaya saranagatha kalpakaya,
Sarvaya sarvajagatam adhipaya thasmai,
Daridrya Dukha dahanaya Nama Shivaya.

Meanings
I salute that Shiva,
who burns the sorrow of poverty,
Who is the world of Gouris grace,
Who is the greatest God, Who is like a lion,
Who is the wish-giving tree,
To those who seek his protection,
Who is everything,
And who is the king of all worlds.

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।१।।


भावार्थ–समस्त चराचर विश्व के स्वामीरूप विश्वेश्वर, नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले, कानों से श्रवण
करने में अमत
ृ के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले, कर्पूर की
कान्ति के समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार
है ।।१।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।२।।

भावार्थ–माता गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अन्तक
(यम) रूप, नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का
विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।२।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।३।।


भावार्थ–भक्तिप्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दर्ग
ु म भवसागर से पार
कराने वाले, ज्योति:स्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नत्ृ य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी द:ु ख के
विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।।३।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।४।।

भावार्थ–व्याघ्रचर्मधारी, चिताभस्म को लगाने वाले, भालमें तीसरा नेत्र धारण करने वाले, मणियों के कुण्डल से
सश
ु ोभित, अपने चरणों में नप
ू रु धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को
मेरा नमस्कार है।।४।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।५।।


भावार्थ–पांच मुख वाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्र वाले अथवा सुवर्ण के समान
किरणवाले, तीनों लोकों में पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले, सष्टि
ृ के संहार के लिए
तमोगुणाविष्ट होने वाले तथा दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।५।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।६।।

भावार्थ–सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिए भी
महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा) से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से यक्
ु त तथा
दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।६।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।७।।


भावार्थ–मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय अथवा राम से प्रेम करने वाले, रघुनाथजी को वर दे ने
वाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में अत्यन्त पुण्य वाले, समस्त दे वताओं से
सप
ु जि
ू त तथा दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।७।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।८।।


भावार्थ–मक्
ु तजनों के स्वामीरूप, चारों पुरुषार्थों के फल को दे ने वाले, प्रमथादिगणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय,
नन्दीवाहन, गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले, महे श्वर तथा दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव
को मेरा नमस्कार है ।।८।।

दारिद्रय द:ु ख दहनाय नमः शिवाय।।९।।


भावार्थ–ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र समस्त रोगों को दरू करने वाला, शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को
प्रदान करने वाला और पुत्र-पौत्रादि वंश-परम्परा को बढ़ाने वाला है। इस स्तोत्र का जो मनुष्य नित्य तीनों कालों में
पाठ करता है , उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है । दरिद्रतारूपी द:ु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा
नमस्कार है।।९।।

Daridraya Dahan Shiv Stotram


॥ दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र ॥

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामत
ृ ाय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

अर्थ – समस्त चराचर विश्व के स्वामी विश्वेश्वर, नरकरूपी संसार सागर से उद्धार करनेवाले, कान से श्रवण करने
में अमत
ृ के समान नामवाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषण रूप में धारण करनेवाले, कर्पूर की कान्ति के
समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥2॥
अर्थ – गौरी के अत्यन्त प्रिय, चन्द्रमा की कला को धारण करनेवाले, काल के लिए भी यमरूप, नागराज को कंकण
रूप में धारण करनेवाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करनेवाले, गजराज का विमर्दन करनेवाले और
दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दर्ग
ु भवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनत्ृ यकाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥3॥

अर्थ – भक्ति के प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दर्ग
ु म भवसागर से पार
करानेवाले, ज्योति स्वरुप, अपने गण
ु और नाम के अनस
ु ार सन्
ु दर नत्ृ य करनेवाले तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के
विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है ।

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥4॥

अर्थ – व्याघ्र चर्मधारी, चिता भस्म को लगानेवाले, भाल में तत


ृ ीय नेत्रधारी, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने
चरणों में नूपरु धारण करनेवाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हे मांशक
ु ाय भव
ु नत्रयमण्डिताय।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥5॥

अर्थ – पाँच मुखवाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्रवाले, तीनों लोकों में पूजित,
आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करनेवाले, सष्टि
ृ के संहार के लिए तमोगुण धारण करनेवाले तथा दरिद्रतारूपी
दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥6॥

अर्थ – सर्य
ू को अत्यन्त प्रिय, भवसागर से उद्धार करनेवाले, काल के लिये भी महाकालस्वरूप, ब्रह्मा से पजि
ू त,
तीन नेत्रों को धारण करनेवाले, शुभ लक्षणों से यक्
ु त तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा
नमस्कार है।

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥7॥
अर्थ – मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय, रघुनाथ को वर दे नेवाले, सर्पों के अतिप्रिय,
भवसागररूपी नरक से तारनेवाले, पुण्यवानों में परिपूर्ण पुण्यवाले, समस्त दे वताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी
दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।

मक्
ु तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वष
ृ भेश्वरवाहनाय।
मातङ्गचर्मवसनाय महे श्वराय
दारिद्र्यदःु खदहनाय नमः शिवाय ॥8॥

अर्थ – मक्
ु तजनों के स्वामिरूप, चारों पुरुषार्थ के फल दे नेवाले, प्रमथादि गणों के स्वामी, स्तति
ु प्रिय, नन्दीवाहन,
गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करनेवाले, महे श्वर तथा दरिद्रतारूपी दःु ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा
नमस्कार है।

वसिष्ठे न कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम ्।


सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम ्।
त्रिसन्ध्यं यः पठे न्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नय
ु ात ् ॥9॥

अर्थ – समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करनेवाले और पुत्र – पौत्रादि वंश
परम्परा को बढ़ानेवाले, वसिष्ठ द्वारा निर्मित इस स्तोत्र का जो भक्त नित्य तीनों कालों में पाठ करता है , उसे
निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

॥ महर्षि वसिष्ठ विरचित दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र सम्पूर्ण ॥

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