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कतासानी पाञां समश सादादरं छापलानामां |

सबादमारं रापचदे छ्यु ॥


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~ पवत १९६० सन १८०४, (14


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प्र्तायनोः

भागमद्याघने मंनरशनाख्न एं करेडे ए हिवाय एने वामभा्मं पण


के अने तंत्रमा्ग अने दीलमार्गं पण वदे. ए मर्मगां कर्म॑, उ.
[ए डने प्ञानपएत्रणेषठे, अनेआमार्भना प्रय चणुं करने
|शीवना नामी रवे, अने केटलाएक नाय संप्रदायना लोके सचे
छ, तेमां प्यास, मुद्रा, जप, पूज्या इत्यादिक कर्मं वताम छे भने
अनेक प्रकारनी देवर्तभ देवी, भरव, इन्यादि वर्भन करी. केटः
खाएकने पैचांग एटके सद नाम, स्मरा, कवच, ददय, यने
र्‌ए पवने प॑चाग कदे भने तेनो पाठ करे. शिगाप पुरशवएण
पिधी छेते मणे नाना भकारनां गायतरीनां अने नानि प्रकारना
मेनो पुर्ण षण्ड. प्रथमजे मार्गमां माणत अषि तेने
दिखा भष तेतु नाम पूर्णाभिषेक ने पदरभियेक पदे. आ माः
गमां युयं जप, अनप्राजप, एरटे ने माणसना मोदोदामायी श्वासो.
श्वास चके तेमां सोहे, एमे शब्द यप्ठे ते २१६०० गार याय
छे एवौ गणतरौ ढे. शिगाय पूता पिधीनापटर यने पद्धती घणीभो
एवल, तेमां केटठेरक ठेकाणे मैदिक मत्रनो उपयोग करद परण
फर्मनीं रीती जुदी जदो ठे. तेमां दमनक पुता, दुतीयाग, कुमारी
पमा, पोगोगोप्ठा, मोयनेपमो, एत्र स्थापन, सतपरिपान, श$थादिक
कर्मं अच्छि, केटणाएक प्रय स्र नामना, केरणाएुक रद्य
नामना दे, फेटल्याएक वाम, अने कैटलयए्क भामाय, केटणएुक
फल नामना, आ नपाप पेष मेती तो मेद, शा, सय,
भणी ञ्य थश तेदल
(२)
ा द, केटलाद्कं अनुश
जेम के नाएण, मारण
, उ्ारण इय
नमां तद्धि रली
मय, माति, मत्य, अने ादि, अने ९ बधाय
खी, भस्य यनुष्टानमा,
मुने तेनो मधी कर जोढए्‌, अमै मद
ीन कषण करेढे, तत् य पारमा
मयने ब्रह्मशाप, रुप रशाघमा एवं नख्युषे
्णञप, अने गूकरशाप्‌ के,
यं, प्रण तेन साप , यवते मारे पय
ोदवार कानों वि ु वेध
तो पीवा प्रप नयो, धौ र्खे, सते
शद्रा तंत्ना भमाणे कत्‌
म्र ते एक अकषन परिभापामः 1.कटलाएक
ोज मत्र याये, म बीन
भ्रकारनुं छि एमना वग च कर्म ,
भरत, महीना, वार री
भकाएनौ, शरध, गु जुदा वा
रपूण, दिति, मेषि ग सुदा, पुना जुदौ
देश परल पुरतो पण ए पमं जुहु ठे भत्
जुद र
रलपाठ, द्गपाठ श्य ांछे, जेवा ओ गीडणठ, षठ, क
ादि सदा शेवा पाय.
रमर्य पुतणमां भने यृ पुस्तक चंडीपारं
" उपर नमचेड, शतच, कावायनो गर्ते क लने
नप्‌, इ्पादिक पकरि स्दलचेडी श्यादिक होम मार्जन, तर्पण
तेना
केरे, तंमा दक्ष
गणप्ि, अने कृ मदयाविया ए भृष्य
द मंद कपवानाप्
र॑य घण
देवता
ा छे ए कण
अध
तथ पकार गये,
एक दिको, तेत
भिकरीने कार वैरि ्रिकौ, ने मिश्र,
णी अग मेने मि जेमां कार ता-
भरेतान। कां शे श्रके पयेको एतेतौ
म एवो कीटे,
मृथकेल्ठ. नान
ा परकारनां यनो तभाग सुतो
थह गे, तय भने ममर दस्षण
ी एव नणाप्ट मारगमां सेमे
ेके त्र मार्ग त्रये बालम
ीन
(२)
`ंत्रमातुं कोई ठेत नही पण तेम धयु
मदत; मधो सततो ब्राह्मण
मधी, अने तेत्र मार्ग एटठे कौर मार्गे हदस्तानमां घणे ठेकाणे
चले. अने व्रसचारी, रन्यासी अने परमस अने अग्रिरोनी शाखो,
-पेडित इत्यादि घणा रोक गामोगाम ए मार्गम छे - पण तेमनो आ-
चार गु छे, -तेयीं ते प्रसिद्ध थता नयी, तेनो षणो तपास् करीएु
सरि माम पटे, अमदावादमांबस्तं चाप्त माणस शक्त भार्गवा चे,
तेज प्रमाणे न्ीयादमां, गडोदरामा, ,मसूचमा, सुरतां, पुनामां।
सतारामा, करषोरमां पण एु लोक धणद्धि कामां हनासे ब्रह्मण
कौर अने शक्त मार्मवाकद्धे कास्मीरमां,बंगक्रामां अने द्रवीड देशमां
खसो ब्राहमण ए मागम व्याह वाहं देभीरु स्थानके व्यासा सादौ
एन मागं चरिदधे अने मय, मानु, नवेद धसे बेवराजी, अंबाजीः
काक्का, दीगक्राज, तुन्जापुर, विध्यावा्तिनी, कामाक्षी, मातापुर+
कटकन्तानी काटी इ्यादो ठेकागे ए धर्म चाले ,वैप्णन रोक मद.
मानो देप करे मारे ते आबा ठेकाणे जता नयो पण गोसावी,
अतीत, नाय पयी लोक ए ठेकाणे जाये स््मीनारयणमी भीक्षा-
प्रीमां जे देवने मद्य मानु नेमेदे याय ते ठेकाणे दीन करु नकी
एव स्ट शेते रषये. ते प्रमाणे सत्ंगी लोक दशंन करता नथी
तपण घणाषक ठोक कार्यं सायवाने वा्ते श्रद्धा राखे. रजवाडामां
म्रशाखीने अनुन कणवाने बार्ते रावे. कौर देशीगारयमां मव.
शी नप्र एमतो नयी. ए मन्ना अनुष्टान उपर टषों स्पौया
, खच धाप्े.
`मा भ भगम शाखना अंदर शे अने वी प्रकारनु मलन छे
तो तेमां तानक
विषय नभो, पण
तेत्रनो विधी कर्म छरी पयोगकी
कांड दाषंल कय र यया तेमभे
पती नह्‌ तो ि, दालन त्राह्
ते व्यापन, मद्रा मणनी
~ इतपदिक तैत्रमाथी आस्न नी ने अर्
रीषि प्राणायाम सा प भदान
जप. उपस्थान दिक योगशासमाभी
श्यादिक येदमथी लीधिषठि
लीधद
ि अने नामस्म
एण श्याहिक

९ म्मा देव
परतन धा्छे भन
कन कमना पुरी े मत्र तिद्ध या
पाच एवौ ये अने तेथी
अनेक
पा खेकोनष्ट
तेयो असख्थी
(५)
करेल शरी चक एमना मठ कगे कर ठेकाण्षे दारकामां पणे
एषी शकराचीरयना रेखां ए मार्ग चातो हंतो एम जणाये केट-
छाएकनू मत एुदे केप्यारे बौध अवतार थयो व्यरि तेमना उपदेशे
लोक सामी यड गया ति एटा सुधी के को$ पर्णे न, कोई दे
नद्य, कोई खेती करे नदीं, कोई शिक्षा करे नकौ सर्वं व्यवहार वैव
पदयो केटलाएक तो दाथ प्ग बोधने कप स्यागीने उपवास करने
एमने ९म मरीभाया एदे फक प्ाम्या ते वखत खोकीनी सची
व्यवहार तरफ करवा विशे शिवजीए कौल मार्गं कहाडयो तेमां मय,
मौनी हट आधी खी एन परस एम ठरानयु भागवतमां रष्युे के.
विद्य तु.रिव दीक्षायां यतरद मुराखवम्‌॥ -
न्ट चौतचामूढधीयो नटा. भस्मा धारिणः॥
भागवत स्कं. ४ अ.र२ शयोक. र्‌
जेमना भजनमां मृष्य विषय सुरापान दे प पुराणमां पालंडो-
पतिना बेअध्याय छे तेमां शीव बोत्या छेके आ माभ लोको
भट करवा बस्ते कपेदधि. कदापि ए वचन वैन्य छोकोए रुष्ट दशे
सोपण टुं माठम ष्डेषेके .वौध मतं पटी ए नीकव्यु दशे,
अनं बहु दाढा सुधी च्यु ददी, नीतो लक्षावधो प्रय क्य जवि,
आ मृतं चान्या पदी करी कुमारीलम्े `पूं मिमाना एटछे वैदिक्त
कर्म करवाने मत चटाग्यो तेपां केटलाए्क कर्मं जेमां चहु हिमा
दती तते काम्यकं ठरो रद फी अने केटव्यएक राख्या, अने
एकम कर्फीधोज मोप याव्डेपएवु न्यच एमर्म केदलएक रु
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(६)
रषी बात्यो वार्ड शंकरला
मौ आवार्य यया तेमणे उत्तर
सानो उद्धार कयो अने एव ठराब मिमा-
युं फे आमा एव बरहट अने
कथ मोक्ष यतो नयी. पण तान कर्म
नी याये, महि कर्मपी तान
मोटे कु फर सगे परण
मोत नयी, पणा एक भागे षेदां
त भने कोखमत मनी मार, कौठ
ने राग्ययोग कलेवाये, परत.
रतुं गोगशात् छे तेने हटयोग
कटे यने बेदतिने ज्ञानयोग करि
अने गीताम जै मते ततुं नाम ठे,
कर्मं वोग एचाः योगमां अंत
एवछ्‌ के राग्ययोगमां भोग -करौ र
ने मोत भवानी इध रा
इटपोगमां देहने दंड करीने अने
समाधौ
पेठ लानवोगमा र्वी मोन बीगरे साधन कने मो्षनी इटा
ी इटा रे, अने -कर्मं योग
ने कमै वणाप्रमधर्मपो प्राच
धयु होय ते कं मो धु
मा
मणे चार योगनाभेद दे एः '
. पृणणमां एवी कया छेक
मत केलाना वाप्ते शीव अव े पसं
तर,
ममान लाय, अने केटसाए छे ९ कया केरलाएक कदे के,
क वणम्‌ छ ते येम के के
शंक.
भं मष समिदायना कप
टोक कदे. बयाय गभ्
केभामा भम ्र नथी पृण परमेशरे निर यवनो भवो हे
तेणे प्रमेशररनी तेवा करव ्माण कलो पदार्थे महि
ी यने परमेश्वरे धयो पम
विग जेय्य मते एट गवौ, यमत
ा पलट ठे, दौटोक
प भने कंटक फेरि परमम बीना वभूषने
अमे आत्मने ब्रहम स्पृ
पधी निषे ते न मानवा अने नाणे, अमे जेट
केव सष्ठ रगु को अन
कयाय पद मुकी देवां नष्
टं छै, एयाहो पमरपनो मत
षणे
(७)
एन छे, एज प्रमागे अघोरीनो मते ते लोक दार योडा छे, एण
आग एु घणा त्ता अने जेगलमां रदेता अने मुत्र विष्टा पण खता.
सिधपुर पाे,एक अवधघडनि स्यकी करीने गाम छे, स्याही जे गघोरीनो
मर्हेत हतो तेनं कर्म एव हहं के एक माटलामां ीी, गरी. घो
सर्पं इत्यादिक जनावर जे हायमां आवि ते मारीने ए माटलामां मुकतीं
ने ते एनी भेके कोटी जाय, तेनं रस एक माणसना यडदानी
योपरीमां लेनेपीतो, ने माटलामां दाडकां रहे ते नासी देईं वीनां
जनावर्‌ छि. केटसांरक बता मुडदां कदाडीने तेनु मांस खाये
अने केटजाएक येन्न साधवा बस्ते दाेली दीन मददु. कादौने स्म-
शानमां तेनु आसन करेठे. एम कोड करे नदीं माटे आज ज्या
मडदां देष तयां चोकी बेसाटेदधे, एज प्रमाणे मेत्रवाखी ठेड, भ॑-
मोनामडदां स्मजानमांवी कादेे, एषः बात चार्धे. एवा अनेक
` समाचार विभित्स अने भयंकर अने धर्मशाख विषध भत्रथाखमां छे.
मुख्ये करने शोय अने शक्ति अने तेमना नाना प्रकारना अवतार
भजन ९ छोक करे, ने 'ेदमन्रनु साम्यं गयुं पृण तत्रिकमम्ु
हञु सामं छे एम तमजीने ए उपासना चाले, विष्णु ए शक्ति म्प
षि एवं ए माने. दाल जे शीवनी प्रतिमा योनी ठग सपे स्यापन
करे ते मूक तेजमायो रीषेखदे ते विपि पुराणमां मनेक कथा लखी
छ. पण तेनु मूर तंन्नमां जणायद्े, कारण प्रजोतादक अवयनी प्रतक्ष
पना खली, अने कड गोखमृत ए एमना पृचमकारमांदे तेयीष्‌
व्वा परी हरो माटे तैच्णव ्रीवनी पूजा करता नयी, जे पवि प्र
साद 'छेता नयी यनी मतिं दोय तो यादन द्धन करे, चाम
(८)
मर्गं कर्मकांड वघु सुदु छ, प्रात
भस्मर्ण, स्नानविधी, त्िपुटेषारण
भूशृदी, भूतडुदधी, प्राणायाम, सम्या, जप,
पुरःश्वरण,वरांगनयास, भ
तर मान्रीका, वदिर्मातिका, चित्राया
, नाथादीषिदा, नित्ादीविया,
मूलविद्या, तलन्यास, दरपन, तर्प
ण, दशनिपा न्यास, पात्र निर्णय,
निमय पूजा, पूर्वा, तिथं संस्क
ार, य्दि पूजन, दिक्षा, आय
चित्त, भिव पुय पूना, दमनक श्ना,
वपते पूजा, श्रीं चकत पूजा,
दिकषाका, दिक्षा भेद, स्वो भद,
एष्याह वाचन नादी श्राघ, कुम
` चक, नमयोनी, फौलस्नाध, मेन
शोधन, मंत्रोद्धार, नाथ पारायण,
ए भारापण, नाम परारयण, प॑चाबा्याप्न, महाश
आतत, तेमोहन न्यास, सौम्य ोदा गयाप्, महा
वरघुन यास, अचेष्ट, इत्यादिक
मैदिक कर्मो क्म
जुटे; ते गुषपणे कैटलाएक
काकरीभा उप्र भेरवनाथनी केर भमदावाहमां
जगा @, ते ठेकाणे वाममागैनां
कर्म
साधना चा छे, तेने मुदा
केष, तेलु नाम भच्छमृद्
-महायोनी, कृश, तार, रा, कुमा,
पेतु, किरोवणी, वशकरी,
पतय, शल, सेरी, वाण, पाश,
कौसुम, श्विता, इत्यादि अने
खोक तीक पण जुदौ रतन क पुद्रानां नामे. शक्त
ु करेठे वे आंख बचे कुम्‌
करे अने शाक्त आत्ते कमनो प्रमे
मले तो मदमा अं
करे ए परभागे परसीद रीत माछ्छानी भेट
ेकरता- नयी तेषीः शाक्त
नयो ए माटम पडत कोणषे नेकोण
नथी परण मोदा मोटा ओाच्
हत्त क््ासी, पूगं, खी, पैडित, येदिया,
धाक ए मागम केटदादक ये
एना स्ामय्प्यो मयत दुध के
करी वति, ने मानां
कृ करौ मता-
(९)
पठे, "भने मालानां केलं कसे बतावेे सीद्धादनों अने, करामतनो
दावो ए रोकः चणा राचेे, जगच्छ जे गोपीचेद राजा हत्ता तेगे
मार्च नायना उपरेशयी वधं राञ्य अने राणीयोमो व्याग करयो सने
एन प्रमाणे गोरखनाये मुडदा जीवतां कर्य एवी वातौ रोको
बके ठे.
बाम मार्गगां जे लोक होये ते देवी अनेशीव वगर वीजा देवने
नमता नधौ ते द्म करे के अमे कोई देवने के माणतने नमस्कार
करीडु तो ते तत्कार मरी नशे अने कैताल, भूत, यक्ष, यक्षो, दत्त,
हनुमान, इन्यादि स्वै देवता एमना ताबामा रदे, अने धारे तेने
मा शके मंदवाड ठावे, वितथम करे, एवं कदेवायछे ते भोका अने
अक्नानी मेदे. मास्कराचा्यं करीने काशषीमा एक शाक्त इतो तेणे
घणा प्रेय बनान्यादे तेने कोईए जमवा बोखान्यो नदीं तेयी बीजा
खोकोने जमवा वासते ने रसोई तैयार यई हती ते वु नके यड गु
त्यि नारायण दिक्षितं पाटणकर्‌ आवीने नम्या अने भास्काचार्यने
केने घेर भवा व्यार ए वु जन हतु तेवुं यइ गयं एवी दंत कये
ए भास्कराचर्थे हाथो उपर मद्यना कुभ चडायी अने वरघोडो कादा.
डीन काशी वेश्वरे नवरान्या आन केटलाए्क ब्राहमण सागसं
पाणी कादीने शिन उपृर अभिषेक करेे अने दक्षणमां शेवानी
राजा यया तेप्नना गुरु गणेशदेव कर्ने इता तेमनुं मंदिर माहुरी
प्त्रमां हार पण छे एमनो पंभदाय सतारा प्रातमां चाण्डे अने भा-
स्कगचार्यनो संम्रदाय काशीमां चारे शाक्त छोकोमी पूनामां मद
भने मात्र इंडां अने मछ सभ इत्यादि खन्या विना पूजने याय नदी,
, (१०)
ने प्रमाणे वैदिक कमभ शरोर शू
ष्यं मायश्ित करवाने बालत पच
पन पले गान छग, भूष, दष, घो, दह ः
ते ममाणे देह शुष्य मद॒ पैग ो, एकत्र्करीने पध
ेरे पीवामां आवे, तेनु मर
समजीने बधाय भनुषठानमा ्मन (य
ं करेठे दि, श्राध, . पजा,
म विना यतौ नयी मयने अंते इत्या
तीर्यं कर माने शुद
कदा वेढे. मयादिक ्धि करे मलन
ने परम पित्र गेहे भने
मतन याये एवृ तजरशचाखम ठेवाथी
ां रच्छं संसृत भागन्या पस देक
देख ते वांचतां या वधौ ्तकने नोः
बावतनो सुलासो यशे बध)
वचननौ.भर्थ
चना दालक योडां वचनन
अर्व परय भागमां कतन्योदध,
जे लेक धरम नी सुधारणा करवा चाद
ाय छे" तेमना उपयोगने

स्याण यर. गायकवा


द सरकारना गणेश
माहाराजना दानाध्यक शारो नाशिक मल्
्त इता, ९ प्रतिद्् टागराय
पमाणे पडोदराना कट ‌ उपासक हता.
=
एाएक अते तेन
दौवान पण उपासका हते
ः, अते नटीव
(१९)
एोकने राजा पाठे तेथो ए मार्ग चाले, दरेक इदिरर्माप्राद्यणनो
एक चतुर्याश शाक्त मारमा दे. तेयी ए मार्मेनी क्रिया छानी रुप
जगामा मष्य रात्रिने वखते करट. अने राजानो टेको म्केतोंप्र-
सिद्ध पण यापे, अने कोई ब्राह्मण उपर मद॒ प्राश्नननो मारोप
मन्यो, तो ने शोक इमेश मद्य पीनारा तेन शर्ट गणये भने तेन
तेने प्रापित अपदे ए जोढने बेहु आश्चयं ठनि छे, कदे केः-
वेदयविदमधुसिधुगंधिककतावक्नाखवासेदितै ॥
सीतवानिभेरमन्मोत्खवरतेसंनिद्रषद्रप्षपाः ॥
सुवज्ञातिदित्षितादतिचिंएमालाभिदावाद्ति॥
त्रद्यन्ाद तितापखाद्तिदिवाधूतजंगदरं
चते. ॥
उपारे देशमा घोरतीयीर, निविड+ अय, अने.दारण भडान उ.
सन पाये व्पारे पाखदनु धरम थायदधे, अने धर्मन पालड यायदे,भने
भा रोक वचक रुदयी छेतराय्डे, आ रूनएतमां पर्यवैदिफ धर्मं
हतो, पटी श्राएक धर्मं चाल्यो, साग्पठी वाममार्गे वायो, ताप्परठी
शोय धर्म चान्दो, ्यारपठी केन्णव धर्मं चान्यो, एव महीमन्तो-
प्रमा कष्टे केः
तरयीसाख्यंयोगंपलुपतिमततैप्णवमिति ॥
छर ए मय्य पर्य उपर पाणी प्री बन्द, मने कोर जाणतु
नथी के मापे पर्व ओष्ठे. स्देक्ो राना स्ने भजा बेड स्वानो
प, प पी, रमे मतम शा मदो, स्वया सद, जयाय
भदनय दुन र्स्मा छ ते मोएना जापमा मातां नप ^
` . (१२)
र्नो अनयं .ययोदध.' तेथी धं भनेएताग
र शोकोनरे धु रे,
” दाना घटक बैद भने जोशी इत्या
दिक ए्म करठेके ये
उप्राप्तक छीए, तयी यमने देवता
प्रतत छे, एव कट्या किना रानां
बग मों लोक दवा केता नथी"अनेएवं
ज्यरि कदे वयरि सैनेदि-
सताने भसन छे यने भाणे तर्त शुण
आाग्शे एम समने, केषी
ए्षटोक तया शाखी, पृटित, मातरीक कोन
े गुर करीने ` दिष्षा ढे
छे, तेमाना केटल
ाएक राजा खोकोने यत्रो, तीनो,
इमार्‌ के" अंगारा, ते
मनषि, मेदे ४
, ते नध्याधी मापण कल्याण
धञचे- एम रर्जा

ने केरल देशमा, ते इनी


.गाणौ तरफ़ भाव्या, नयी,
दमो, पायागद, यमदावाद्‌, गुमरातरमा
फरण, ए ठेकाणे कारीकानु
कर्ये ते वगर ब्राह्मणं हिह स्थापून
ु राजाना वलतमां या देशमां
भाव्या
(९२)
कासन भयमा, द्वितीया, त्रितीया, चतुषी, पंचमी एमपण.कदे. धा
प्रदा कोक वल प्राप्तन धाय व्ये एक प्रकार एटछे परथमा, देने
यर्म करे. कोर ब्त वे प्रकार तरण.प्रकार्‌ मक्ता होय तो तेटष्मन
छेषने कर्मं करे. पचमी जने अमृत, करे ते शक्तियी उस्र याये.
मे सी संगने वड कदे एनुचनाम दुतीयाग. शिव ९, मा्गनु
आचार्ये एम मानेहुे, तं मागैना भय सवै तिवोक्छे तेयी एक
पश्र उस थायभे कै रिवजीर्‌ आ पाणं केम उन करु, न्याय
एषो केः--

1 अकारणमनुद्विदयनमदोपिमवतेते 1
[4 १ ४

भर्धः-कारण.विना मूढ पण कप करतो नमी, घटि कया का-


रेणयी आ पाखंड उस ययु हशे { अने छोकं ए मान्यकेम यार्युट
अने जणे पालंड चखान्यं ते देव के माणस्त समजो ‡
सवं धरमशाल्न, नीति, सदाचारथौ वाममर्मं विष्डदछछे, एमां
बातिभेद मानता नयो एटद्ुन नदी पण विवाद विधि मानता नयी.
स्र पुष्प दुटा यने घट कंचुफोनो विधी करे नेमां गमे ते पुष्प
गमे वे घीने टेर मागे. नम खनी पूना करे ते खौ परतुमति'
होय के मंगोण जातनी- होय तो धारे पण्यं गणेदे, तेन पुजा,
उष्ठिट मक्षभ, संगएग, करेढे..मद्या मक्ष्यनो विचार चिलकुर रालः
ता जथो. वाममा्ींप्रेयमा सादु कव्याधो मोटो छाम याण्डे र्म
एष्टदे.ते उप्र मनर रान भ धर्ममां खोक पेते ठै, ए उष्यी
एम प्रय प्ममाय्े, के छाभनो आद्यो मागत फंस शयो नीचू -
मान्टेपेनु ङ्गाय नयो. टामं न्ते एवो समनय गमे ते सरो
(४)
.लोटी सीते थाय व्यार अति नोच कर्म कतां पण माणप्त
विहितु
मथी. एवा बद्धाय माणप सखमावयी नीचे. अमे हीणा.
इतिहासा
एवां उदाहरणा षणां के एक माणे डा. छमने बस्ते
हना
मापृततनी तिनु गाम कतल कु, के बन्धु, के एुटयु, अने खता
गधी माणप्तने दुःख सागरमां नांल्या. एवा दु जीवि यये ते प्रमाणे
लन्लात्पा जीवने सुख सापनारा, पण महामा
धपयद्ध, मनप्यने उद्र
रषाने बास्ते घणी मयन छागे, पारका छोकराने फोईं हजारे स्तैया
आप्तां पण उदे नीं ते काम मावाप्ना सभावभां ईश्रनी परेणा
छे तेयी ए मुष्के काम पार पडे अने हना माणस्न उछरीने;
मोदा यायद्े अने ते एटला वधी.पठेदे. के धणाएुकन्‌ पोपण थत नयो
एनं कारण घणाएक लोक वैषा नैवाखावामं ठभ कार्यमा बगाद्छे
अने प्रजा निश्पयोगी उद्र, बद्धाय मानाप पोतानी भरना संदगणी
व्यवात्‌ अनं उपयागौ पडे एव उदे तौ दुनीयामां मारां माणत्त
"
घणा धरे अने त्रा माणप्नी सामो बहु, कशा
कामना नथो ए्वा
नीरपपोगी छोक"टाठ नहे तेरलडता परे अने वेदने वासते
गमे
ते कर्थ क्वा विदिता नयी, मदि केवणीन
धारण एत्‌ नोय
के लोक उषयोग "अने सद्धं थाय अने बद्वाय दकेन केज्चणी
पिच एवौ निस्तीणं नोदये., आ रेत केवणी समुख्दी न
हनायी, अनेक पाड च्या, सने मना दष्ट यरं एमनो
मोदो प्रकम
एट्णोम के आपसमा लड अने एक वीजाने दः देद,
एक
सीनानो इवमार नयो. वदरा जेदु मोट राज दोय तेमां षद
-का-
मदा, द्र्कडार, सरदार विगेरे एक वीनाने
येक पिन एक
(८)
जानो नाच करेढे. ये जणानु एक चित्त नयो, एज पमाणे न्यात्‌
नात पण पेर"एट्लुं व्यु के सुधास कशे यतो नथी, एक वी.
जाने मारो छरव करने सार्य करेठे भा देशना लोक पूयी नीचा
यये ए रोकमां जेट वेरअने दुष्ट वद्धो तेटकि ननावरोमो देषाति
मयो, भवो स्थिती केम यई? ए विपे विचार करतां एटलुन माष्ुम
पेषे फे विचार समुखो गयो अने अधिया एटके अत्तान क्यू एनो
घटाते षाय अने ददर्मनी वृद्धी थाय एम करु जोर.
` देवो मानमा तिभिने तल कड. बारे नाय कदे मदयोनाना
दिय ३६ याये तेनी उार ““ एमा खयुगेप पलिते ” ए प्रमाणे
परि. पारायण पाच प्रकारना छे. नित्यनाय, चतुरंग, हे, चक्र,
देव, तेनंणठ ष्टठेकेः-
निव्यापरायणमितिखषैसिदि
प्रदायक ॥
हंखपारायणमितिपरमायप्रदंमहन्‌- ॥१॥
सौभाग्यरलतंत्र.
केदल्णएक म॑तरने मागर पाठक वीन एगब्ढे. जे फामनर्थे
भ॑त्रनो पाठ फर तेनो उञ्ार परी फर फरे्े. तेने संपुट पाठ
फटे, ए प्रमाणे चंदिपानो साधारण पाठ करे त्यि ब्राह्मण वे
खाना एड भने सेपुटिपरठ सपटव करे तो भणतर च्यारघणु पाये.
मोटे भाट भान श्रतिषटे ल्े. ए प्रमे नय करः तो नयचदि
फेेगर ऋते टो कट करे चै रतवं कलेव. ९ ठ कम तनोत
छभ्ने पेट्णएुक ब्रान्नन तत्र मार्गन पिर्ेतो ष्थण्वाता
(९६)
कमं क्रे, अप्तरथौ गोठवण एवी छे के श्रनि के वीना -देवनी
प्राना कए्वी होय तो ते ब्राह्मणना मोदवी फरयी. वीनी
` इातनो माणस करतो ते प्रानाः इर के वीजो देव सामतो
नयो. अने कोई सातना रोक स्वता प्रार्थना करे तौ ते फञ्दायक
थती नयी तेयीं सर्वं तातना तर्फ॑यी प्रार्थना क्ए्वी हेय सो ब्रामण
हि फरे- ते पुण्य के प्रार्थनाब्राप्मण यजमानने आपेठे. कोकना धरभा
मून नक्षत्र उपर छोकर अवतर दोप तो मुन्शकति करे. एवे
्रा्षणने मावो तेमनी परर्थना करे के आ मूठ नकषतर उपर्‌ छकए
युं तेथो बीरे एवु तमे कदोदधो माटे तमे बेशिने या विप्र टाज-
-यानो उषाप करो एनु नाम वरुणो," आ प्रमाणे विनंति कयापि
दानिना पुस्तकमां जे देव नेमेलो दोय तेनु \“ आवा््न ! दरे
बेलावोने तेने पुना जप दोम अर्ण करीने संतुष्ट करे तेभी यन.
मान समने फे अपण विर गथ, कदापि यजमान न माने एवो होय
तौ प्रास्रण घनी स्रीयोने वे के मूष उपर षछोकरो आध्यो तेी
` भणीने पोट वि्ठे अने वैा सामु जो्ने शति न कथो तौ तमे
जाणो ोडामा कवी होय तो व्यार व्राहण तेावीने पाच स्पा
सं फरो तो सव शुभ याय तमने दछोकराने वद्धायने सारं. ९ पीने
ची काची दुदधिनी हेय तो धणीने त्रास अगद अने खर्च कराकर. -
प्रमाणे छममां पण मनेक 'बातिमो शुष करये, वर कन्यान्‌ हि.
पणू मेने गक अनिष्ट छ तेनो आति करीने छपर करो एम वतप
£“ ए प्रमाणे बद्धाय कामां मोदनो खगो खमेोन होये,
(९०)
शतिष्ठे, ते करता ते सेम हटि जाये. अने पर्जन्य ष्डेषठे ए
प्रमाणे यैोमौग्ठलेषटुढे, पण ए सवं करम ब्राल्ण मार्फत करन जो-
इए, भनि सै कर्मना अते ब्राह्मण जमाडवा जोश्, नषे तो करेल
कर्मव्ययं जायदे. देवता पत्ति जे फिरयाद ठे जवो देय तोते
ब्राह्मणने केवी एट्टे ते देव पासे दाखल करे. गने देव पण जे
प्रमाणे ब्राह्मणनो सतोष राखे ते प्रमाणे जवाब दे. माटे षधरि प्राः
हषण नमाडे अने बधरि दष्षणा देतो सादं. मटे पोतानी शक्ति
प्रमाणे कसर न कवी, एष्युखे केः~ . ५
॥ वित्तशाढ्यनकु्यौत्‌ 11 ।
ब्रामण धर्म जेतुं कोड पण धर्मेम साधन नयी, ने पृष्ठो तेनो
जयाय श्षाखमा ष्ठे, हायधो दीवी पडे तो तेनी पण शति छे, तेनु
` नाम "'दौपपतन शाति". मरती वत व्राह्मणने मोलावयो तो >
शापो खा स्पैपा खर्च करावीने मसे मोकलि दे. गरीवने
प्रमणे, मोरौनि मोटा प्रमाणे रस्त वतप, फोर बातनी नाके.
चेण नथी. सकरार्‌ के विचार करनार्‌ माणतत मात्र न जए, तेः
भराम नधि. भकेमके एनं कारण ए पुदयानी शाखां दुध्र
नथी, ए पे तेने नारिनिक, शख निदक करटेवो-' तकरार्‌ पिना
सामठोतों शाषमां सर्यष्धे. वक्रो दम्गेहेयतो ते पण चंडी
पटरमद्टे- सोद फापर हयेय ते पणष्े. जप करमो हेषत ते पण
छे, अर्जन ररदु दरतो ष्ठे, मे मामे ते ॐ. श्की का.
मेन स्पते मजे ञे पेदे ने सोभस्वानो कपर मान कायमग्रषो
(५८)
आ प्रमाणे ददु शच्धनी स्थितौ द, भने विशेम करीने भागमा ए
धौरण बहुजन बधा दीधे । %
वैदिक कर्म करता द्तपट वाममामीनुं कर्द. -ए मार्गम पूजाने
याग कदे. कराियागं नामनु अनुष्ठान. तेमां काटिना सह नाः
मयौ याग कणठे, वद्धाव भनुष्टानमां न्याप मुद्ानप घणोदे, केटलाएक
अनुष्ठानमां प्रेताम्नन मचा अने भिखाानो ोम्े, ने माणसनां नामय
करम करे ते मासन पुनो वनावीने तेना ककडा होक तेना
आगमा सुरी धारिने तेनी यष फोदिने मंत्र मणे. तेनु नाम मारण
किया अभिचार करम केरे वेदम सेन यागछ ते शतु मारवा विवे, '
पृण आम प्रपां हाते एवा सनु्ानेे ते स्व भोका एोको सव्य
माने अने प्रादि मंत्र शाखी ठम्‌ मन्वे. ए प्रमाणे. भा वावतमां
घण तोफान चे, वडोदरा जेवा देर जने तप्र करो तौ
टू, माठम पशे.
ता
"धणं
आगम्‌ प्रकाशे.

भागशो,
[षीम

वेदने नगम कदे अने तेना पेढामां स्मृतो, शाख, पुराण,


शहा, ट्टे मारत कान्य एटऊे रामायण इयादी प्रेय गणेखा्,
ए एकंदरने दसध माग केदेदे; यी तेने कपि मार्गे पण केरे. तेयी
उलटो मार्ग स्यापण धयो तेने षाम मर्म केदेठे अने जेप्र॑योमा॑ए
मार्ग बीरे रषे तेने मागम केदेठे; तया तेने तंत्र अयवा मेत
शा पय केरे, आ मार्गनो स्थापक मु होव हतो एम काये,
नि फेटस॑फ परथामां दीव गवतेनो वाद पणे. अने एन कारणः
यी र्ती पम मानी श्रुति प्य गण
वैदिकीतात्रिकोग्ेषद्विविधाभ्ुतिकीिताः 1
५ मनुटकाकार कुरुकमट ,

आ श्रामां वेद कत रपे मव ठेः-


साकोटिमहामेत्राउपमत्रान्यनेकरः
भा परमत सहाय नोचे टस्य पुनव यर्णन कदु टेः

रतशरुसयुरूञआचारः॥ खेतांयांसमृतिखंभवः
द्ाप्रतुपुगोकं ॥ कटाञागमक्षेवरं ॥
सयः शवोतमेतिदावरिदेभ्ोपरप्णनंपरे ॥
र ति

वैष्णवादौ शवादक्षिणमुत्तमं ॥
दक्षिणादुततम॑वाम॥बामास्सिदधतमुत्तमं ॥
सिहतिदुत्तमेकोठं॥कौरखर्तरनि ॥
भर्थ--कतयुगमां श्रुती मुनव माचार चारतो हतौ तया वरता गमां
समृति प्रमाणे चतो हतो. द्वप पुराण प्रमाणे अने
ककरीुगमां फकंत आम गृजवज चारुः. `
' स मार्गमां उत्तम मार्ग वेदनोषठे अने वेव.करतां श्वी माम
रटे थने ते करत किव मार श्र डे} अमे वधा मार्गं करत
दोण मामै शरष्ठे. अने ते दक्षोण मामं करतां परण बाम
मार्ग प्रेषे. मने ते कतां सीद्धात मामग्रे, अनेते
करतां कील मा रेष्ठ अने ते सोवाप वजे श्रे मार्गनवी,
. कीर एवे शु ते वशे एव्‌ रट्‌ धेः ।
` कुरास्या्रद्मणःदकिअङ्कत्रद्महरितः
काकु खनियोगेगकौरदयमिधीयते ॥
भर्थ-कुख एटठे शक्ती अने अकुल एटले ब्रस् अमे नेमां कृ द्या
_ अकर बे बीचेनी ऊपाप्तना छे तेने कौठ माग करे छ,
शक्तीनां सप दशके तेने"्दश माहावीया कदे तनां नामः.
१ काटि-खामा.
२ कारा.
२ पोतन क्रय.

ड५ द

भुवनेश्वरो--मजुधोषा.
माराव्ि.
वगल्यमुषी
न्ट
=@@ द्ि्मस्तका. ^
मृतिगी. ॥
पमावत,
प^\©०बह्वी.
सदह नाममां भयम काव्छी छे तेनी उपासना वेगाकामां चाके “
छ. अने बी तारानी उपास्नना कार्मीरमां चण्डि, तरीन गोपुर
नी केर एटले मरवार्‌ देशमां चले. चोथी भुवनेश्वरीनीं उपासना
चोन देशमा चष्णठि ९ प्रयमा रुषे, परंतु हाक चीनमां ए
मार्ग ह्येष एम जणातुं नयो. जे वत श्रेयमां र्ये ते कलत
~ चारतो दशे तो दरे. तेत्र मागियोए उग्र अने अमेग् देवतानी
कस्पना करी तेनो उपासना ठरावायी ते उपासना पण उप्र ठएावीं
@. उप्र जे महावा छषीछे तेमां खे दगलमुषी छे तेनु घर
माणन छे तया मृख वगलानुं छे. सातमी, छिनमस्तका छे, तेने
लकु मायु छेन नही, फकते धडज छे. तेज प्रमाणे आठमी
मातेमी ते भगीयण दे. नवमौ भरुमावती ते धृमाडा दपि, अने
देशम भस्वी एटरे भयंकर. आ देवतानां ध्यान नोचे वें रण लस्यां
छे ते उपरी ते देवतान अमेगक्पणुं नणश्षेः-
घोरस्याशिरसाखजनासुरचिरान्यन्मुरूफे
खागारे ॥ सृष्टबासुगू्वहेस्माननिटया
,1

शुसोःशबारुरुति।। उयामांगीरतमेखखा
सतेकरैदेधिभनेतकाटिकां ॥
गेडभेरुड देवनु ध्यान
वदेदंषोरघोरपकाचितमहागं डेरंडापिव्द।
व्या्रा्चक्रोडसायाः खगवरमुगराटरभलु
कायष्टवं॥ द्रार्बिशत्कोविबाहुजरगुस
ठगदाशचंखचक्रादिहेतुं ॥ विभाणभीमदष्ं
खप्भमुखगणानूभक्षयतिनृसिष्दं
वाणहिनु ध्यान
वापार्हिचग्रवक्षयामीमहिपोपरिंस्थिताम्‌॥
कपारमाछिनीदेवामुडमागा्ूपितांम्‌॥
गुपरस्यावायवस्यावानिर्मीसाविनतोदै ॥
केराख्वदनातदरलवर्तव्यासात्रिटोचना ॥
चादरुडव्रद्यघंदावाद्विपीचमधरासुभा ॥
दिग्वासाःकाहिकातदरद्मासभस्पाकपाछिनी ॥
सुक पुष्पाभरणार्बधिनीष्वजसंयुता ॥
भैः जेना वा ददा छ, स्सानमो ददे, जेन स्प कु,
दयषां मद्द्‌ दै, एवो काटीकदेवी ठे, नरतिदने मघ्तण क~
नसे तिद मपी भने तेना हाथ वतसोधकरोद एव्‌ देवनु
4
वरभेन दे. \ वाराहीनुं वाहन पाडो छे. कपालमाल्िनी देवीं ब-
इन भिध.^अने कागडा छे, अने तेनी कोटा सेडमाश्मा शएटले
मडदाना मायां कापी तेनीं करेरी म्य पदर, अने शरीर
मांस मिनानुं सकु, तया पेट भृखथी वेशो जई अंदर पेशी ग-
एषं मने मोदो फाटेु; अने चामुंडादेवी कमरमां घंटा वधी
यधन चामडुं पैरी फरेढे. अने काकीकाछिते नागी गधेडं
उपर वेते, अमे रेडमाच्रा पेटी ते उप्र खालकूलनी माका
पेरेरेे, अने तेना उपर सावरणीनुं नीशान धरें होये,
९ मून अनेक देवी देयतानी कल्यना करी तेनी उपासना एषीदध,
याममाि लोक एम केके विनणु छे ते देषो स्पे अने शीयदठे
ते पुप्प सच्छे, ते'निचेना पाक्ययी जणायेः-
¶ विप्णुर्योनिकल्यता॥ पुर्पेतैरदरः ॥
तेथ विन्णूना दश अवतार छ, ते दश मदाभिदज छे, कष्ण
छेते काठीन षषे, अने रामचद्रद्ेते तारानु ष्पद्धे, अने तेज
मुनय बधा प्राक्षण शाक्त छे एन कहेदढे. कारण.
सवै्याक्ता्टिजाःपरोक्तानदौवानच्पैप्णवाः॥
आदिदेवीचमायत्रिरपासकव्रिमो्दा.॥ २॥
„4 ~ 1. ्रिमेो

भर्भत-तमाम प्राह्लग गायतीना भक्तष्टे, अने गायत्री आद्ेनी ठे,


तेषो घ्राणो तमाम देवोभक्त छे. वरैणर के शीग् नयो.
देगोनी उषाणना गीर उष्सन वदना षठ ते पलिषएम
=.

गेशपूजयेयस्तुवित्रस्तस्यमनाधते॥
अपेग्यर्धैचयेमूधमेमोक्षायमाधव #
शिव॑धमायमो्षायचतुेगौयचंडिका. ॥१॥
॥ कलीचंडिविनायकः॥
अधेः-गाणपतीनी पूना करेथो विर जण, स्वनो पूजा फरेथी भा
स्वता मने, अने विणुनी पूना फरेषी मोक तथा धूमं ९३
पर्थ मरे, अने शीयनी उपाठनायी धर्म, अर्थं तथा मोद
ए तरण पुपार्थे मचेढे, अने देषीनी उपाप्नाथी मेधां चरि पु
षार मके,
कछीयुगमां गणपो भवा देवौ वेनीन पूता कवी, बनानी
करवानौ नर्र नयी एम लघे अने शोषे फरेढा जे पामप्ािना
त्र ते वेदशाखर कस्तां श्रेष्ट ठे एम पण एेकुटे --
वदशाख्यपुराणानिसमस्तागणिकायथा ॥
एकेवदामिवीविदयागृप्रकुटवक्ररीव
के, 9. [3 [~

ठव्दापका,
भ्यं -देदकाघ पुराण इयादिक प्म शास्त कीपतवणो छीयो जेवा
छे, अने शकना विद्या ते गुस कुलीन खी जेवीडे
त्वामा कल्यीत मच, कवये शवयादिक रच्या्ठे, तेनो जप
कर्याप मोटी श्रद्धे पडे एम केटलाक माणत्त नाणे, ते
म॑न्रना नाष -
१ मत्र २ कवच, ३ ध्रजर्‌ ४ रनवराने.
९9

९ सदनाय, ६ द्दय. ` ७ दुग. < र्ता,


९ रहस्य, १० पदति... ११ पटल. ।
खर, मुमवनः मंतरना प्रकार
छे,तेमोना यडा निषे.गुनवः--
शतु्तंभने्ानुमुखस्तंमनेखनुमतिस्तभनं
खानुणांबागनिग्हास्तंमनेकुर ॥
ओंनमोभगवतेदक्षिणामूतैयेखाहा ॥ ¦
समस्तर्मगलानिभवेवुप्रतिकुरंमेनरयतुअनुकुमेअस्तु.
कवच.
शिरोर्षतुत्रद्याणी
मुखंमदिश्वरीतिच ॥
कंटंप्ेतुकीमसरेद्रिपतुभुनद्रयं ॥
चाभडहदर्य॑स्तेद्वायाहीकटिमागिणी ॥
वैर्णवीपादमानिव्यसवगिपुद्धिवारिमका ॥
तस्ादर्षमहदिवीभद्रकटीनमे स्तुते ॥१॥
आवाहन पटति.
श्रीमवानिखकमिश्वरसटितायै-सांमधै-
संपरिवाराये-सञक्तिकाे-सवाहनाधै- -
सायुधाये-सवौवरणखहितेष-आवाहयामि- ॥
कामदेवाय -दरावणवाणाय-संमोहनवाणाय- `
बरप्करणवाणाय-सेद्िपनवाणाय-सेतापन
वाणायनमःा।
८ न

या शिवाय गायती प्रमाणे नवीन गायत्री रची तै एठः


अवस्गायत्नि.
भसमयुधायविदहेतीकष्षदरयधोमाहे ॥
तन्नीञरपप्रचोदयात्‌ ॥
सुधागायत्रि,
सुधादेव्ैदिदरदेकमिश्यैधिमही ॥
संनोतुषटिःप्रचोदयात्‌ ॥
मोनगायत्रि.
जङेश्वराधविदरहेमकजारायधीमहि ॥
तनोमीनःमचोदयात्‌ ॥ ।
बटिगायतनि.
पशुप्लायविद्रदेशिप्छेदायधीमहि ॥
तेनोयङिःप्रचोदयात्‌ ॥
योग प्रण प्रकाप्नाे. हट्योग~जे प्रातजरी ऋपीर्‌ वर्णन
करेरो्े, ९ कर्मपोग-ने भगवतत मीत्तामा वर्णन करटी, अने
३ राजयोग त्ते कीलकम वणेन करेणेदे, आमां बु अने
भक्तीपस ए वने एकं करी दीधे थने पेते परोतने श्रोवर्प मानी
सया दने वी्णु फे मायाक्प मानी तेनीन पूजा करे, अने भा गा.
धमो नाती धर्म मनिता नवी, अने ठेड के भगीथानी जातेन स्री
हष सोप तनी पूना करे भने तेनु उयो खाये, अने नेम

नीची, जातनी खी शोय तेम तेने मोद तीरं मनिहेः-
वासंगनाप्रयागश्वरजकीपुष्करस्तथा ॥
चर्मकारोभवेत्काशीस्वतीथरिनश्वरा ॥
स्द्रयामटे,
मर्ध-कौतवणने प्रयाग मुनवनु तीर्थं समजतं अने घौवणने पुष्कर
एजन्‌ तीरथसमजव सने चमारन खोने काचो मुनवनु सर्य
समज्य भने अटकावबा्डी खी होय तोते तमाम तीर्थं बरोवर
समज.
आ मार्मना पनमा पाच द्रव्य आव्द्ध तेने पतते मकार्‌ के =

रवयैमधुतथामस्स्यमांसंमुद्राचमैथुनं
मकारर्पचसंयुक्तंपूजयतूभे
खेश्वरं ॥
देषीरदस्य.
भर्थ.-दाग, माज, माप्त" मुद्रा, यने दी एटणां सदीत शीवनी
पमा करी,
यीमा म्रयमां पूना करयाने यस्ते अने उद्धीष्ट भक्षणने यास्ते जे
भाठ एवो एषी छ ते निचे मुनवः-
चांडालिचमकारीचमातंगमिंखक।रिणौ ॥
मद्यकत्रिचरजकीद्मौ रकीधनवलमभा ॥
अष्टोतान्कुल्योगिन्यःसखवखिदि
प्रदायकः ॥
| देवीर्य.
भभृ.-मगोदण, चामडीमनो खो, देदण, स्वाटकीनो ली, वख
१०

नी द्धो, धोदण, हमामडी, अने शाहुकाएनी सी ९ भए वु


पनि कवाप्डे.' +
फौठ वर्म एव वर्मन कवे फे ए माग दहु ए राजयो तेव '
विगतः
वतरिणमाप्मणक्रु्लादक्षिगेचास्पि॥ उप्र
मद्राचणकदटकाश्चौक रौचेोप्णशद्धिः ॥
संधेवीणासरसखकवित(सस्कयासदुरणां ॥
कौटोषर्मोपरमगहनोयोमीनामप्ययम्यः ॥
मुषदेदाए्एकरेप्वावप्ेपसासुकोयला ५
ददयेकारीकदिवीयज्ञशासगृहेगृहे ॥'
कुटाणेन.
अथे.-१, दरी मानु उपर सदर छो अने जणो वमु उपर मदीपर
मलेषु याण अने अग्नी बानुप्‌ जंबानुं एवराद-मुकं तैमा
मजी तया रूढं म अने सभा उपर रागु बार्ीतर यने
गुध्नी कया भावी एवो वीत कौ परमां विरो, ने मोट
योगी एण तेनु गुप तया देतु नाणवनि समर्थं नयी.
३. गमा मदोरा अने हायमो माका. यने दाबी वाजु उप्‌
मुषान घी भने वदपर काीकदेवीनुं ध्यान ९ मुजव रालीए्‌
तो चे चेर यदनु पुष्य याष.
यण, शाक्त, वाम, योपोए, अमि षड, परमदत ए नु मते
एक प्रकाटनुटे. ए खक महभ्ष, वानयान फे जाती धर्मने मेद

ह,
११
म 9
राखत] नयी अने तेमनी पूजामा मदौरा मबहय जरूमनीटे एम षु -
सदाशिबादयोदेवाः सुराचैववरददुः 1
येपि॑तिपरंयानपरमानंदकारणं ॥
तेसरयातिपरम॑पदंशाश्वतमन्ययं ॥
विनागौडिविनामाध्वीसुरांयःपूलयेिां ॥
शिव॑नारायणंस्द्रंसमपरेनिरयास्पदं ¢
अदीक्षित ःपदु्ेवीदीक्षितोप्यसुर "पदु :॥
व ~ £
परद्रडीतथामाध्वी-पैटिमासवमुत्तमं ॥
पनकचद्युभखर्वपूव्ाभानपरः परः ॥
देवीरहस्ये,
भर्थ.-ने पत पमु मयन ययु त्ते वलत दवादीक तमाम देवोए
सुने यरदान कम्छेकेजे तने पक्षे ते मोक्षि जके भने मदीरा
शमाय जे शने बैष्णुनी पूनाकरे ते नरके जाय, अनशघेर
दोभरी-महुटा अने धानमाथो जे पुदरोरा रतत याये ते उत्तम
छठि तोपण एक करतां एक वधारे उत्तम ठे.
सा मार्म्र्ानी पूनम श्रो चक्नी पूनानी परता घणो करे.
ए अने इकएीजयम णदू रष्युदधे के, शकराचार्ं स्वमोए्‌ चार
दोशामौज चार पठ व्या तेम) व्रीचमनी स्यापरना करी थनेप्री
चमनी पता करणो मोक याये, एम सवेन, तेषो इकरखायीनो
मार्भृ प्ण शतो उपापनानो रगे ऋचर पणी द्वोनी म्नि >
नेषी नदवडने दपण नत्रकाल स्वदि, अने यवे शनोनी न
शर्‌
० मोद मके, ए मार्गगा दिलाने सं्कारष्े, ते प्रथम द ममा
दाल यनारगे आाप्ामां यवे, ते विवे नीचे ुनव.रषटठेः-
देवीरदस्यमीानीुणुलभकतपूवेक ॥
येनश्चवणमात्रेणकोटिपून्ाकरुंलमेत्‌ ॥
विचायविषिवदीमानूदी्षाक्मखमाचसेत्‌॥
दीक्षिवःखभवेज्ञानीदन्ाीनोभवेत्‌पडुः॥
पवेतप्रेनदीरीरेव्रखमुठेवनेतथा ॥
द्रीषैवापरमपण्यदेवानामपिदुरेभं ॥
ते्ेदेवीपरादेव्या चक्रंतुविमावपैत्‌
तिकोणनि्युंपट्‌कोणंृतमंडठं ॥
दीक्तर्यन्रमिददेवीदिक्षाकाच्प्रपूनयत्‌ ॥
देवीरदस्य.
शमर केके दे देवी घणी षन बात तमने कटु जैप्मिन्यायो
कंरोडवाद पजा करषानु पठ मके, वुदोषान माणे दीक्ना फमे
॥॥
करव कारण दीक्षाठेते न्नानी याय, दीका बीनानो माणत्त पृश
जेयो जाणयो महि पवत उप्‌ के नदोतीर उपृर सधवा वीना श्राड
सकः भयमा बेटमां जडे श्री चकन पूनन करनु ते चक ग्रीकौण चय
पचे मद एवु हेष्ठे षष्ठी ४ पुणा यने तेनी आशपाश्च एकं छीर
रेरिव छयठे ते गोन शेयदे. दौक्षानी षते तेनी पूना कर्ीः-
या दी्तानीं वत्त भपरेते जात्तनो माणक्त होय तेने व्राक्षण
गणकः
द्‌
* ग्रवृत्तेरवेचकरेसक्णाद्विजातियः ॥
खर्वपापविनिभक्सर्वसिद्धिसमन्वितः ॥
इटकोकेश्रीयंग्रप्यमुक्लाभोगान्ययेोष्ठितान्‌ ॥
परत्रपस्मेशानिमृोदेवीपदंव्रनेत्‌ . ॥
देवीरहस्य, ए
भ्थ-पाहा सख चक्र याये याह स वर्ण बराह्मण याये अने ते
सर्व पापथी मुक्त यई स सिद्धिने प्रमे भ जन्ममां दोटत मरे
छि अने भुना पी देवी छोकमां जपे. .
ए मा्गवाच्ा कोको एम केरेेके मदीरा पोवामां मुष काई
दोश नथो,.परेसु व्रसदेवे अने शुकाचार्य अने शष्णे श्राप दषो तेवी ,
ते अपवित्र यई, ने तेयो छोक पोता नयो. ते श्राप नीवारण कर्‌
याना मेने श्राद्धा मयवा शोधन वेढे ते मण्या श्राप दुर
साये, अने पठ़ी ते मदीरा पोवामां दोप नथी. सदरह्‌ मार्गमां के.
टखाएके उग्र अनुष्ठान र्या, तेमां मनुप्यना मस्तकनी सोप्रीनु
पत्र कटेठे, अने माणसना दातनौ प्प करे. अथवा सापना
हाडफानी माजा करे, अने ते माका सीना यायी परेम, अने
स्मशाननो राख शेरे चेक, अने प्रेताप॒न एट्ठे मुष्दा उपर
येते अने जप करे. तेयो मोदो सिद्धी या एम निदे. तै
चिवि नीचे मनव टष्टुषटे- ^ ,
सुद्िनेदेवीगखादौस्मानैसाधकोन्तमः ॥
कपठ्नरदेतानांमाखकंकणधाय्येत्‌ ॥
१४
स्मश्ानभेस्मलिलेनशुदधनसखंदिते ॥
आासनंसिम्डचमौदीकंकणंद्िकचोौदुधं ॥
द्रव्यमासवरतलाटयभक््यंमांसादिकं
श्वे॥
वामाचारदरतिःपरोक्तःसर्सिरि
प्रददिवे ॥
देवीरहस्य.
भर्थ.~प्तरो दिवस जोई ्मशानमां जवृं भने माणत्तनी खोपरीन्‌
प की तथा माण्तना दांतनी मन्ड करी स्म्ाननी राण
. ररे चोचछी याचना चामडातुँ आसन करव, यने सीना वाना
हायना कैकण करी मदौण तधा मां वया पृक, तनुं नाम
वामाचार तेषौ स लिङ मके ग.
मद्यपान वीना कठीयुगमां कोदपण सिद्धी धाय नही, ते विपे
नीचे युनव एवेदुेः-
विनापानंनसिद्िस्यास्साधकानाकलैयुगे ॥
` संपूज्यसशिवदिषीपवतेभेरवा्चने ५
तत्रपनैसुरादे-श्रामहानंदमदायकं ॥
अहोरातरमुरापानंमोगरदंमेक्षदंशचिवे ॥
देवीरदस्य.
अष्ट भेर जै केदेठे तेना नामः-
" महाका भएव, कालतनिमप्य,
फरार. विकणलमेरव.
सन्हपु्ष्व, . सम्प्र,
१५
कपिरुनिस्व. „ उन्मततीरव.
ओ हिवाय बटुकतरिएव एण नवमो छे. तेज प्रमाणे नवदेषी पण
छ तेने .नयदुगी करेठे तेमना नामः-.
(3

ग्रहीः नारायणी. कौमारी. अप्रानिता, मदिशररो.
चाभंडा. पारे, नारसिब्दि, दुर्गा. .
ज्ेरोकोए मामां नयी तेने बाममार्ग यावा कैटक अने पशु
केरे्े, अने जे दि लेह ए मार्गमां दाखल याये तेने पद्ध के
छे, अने सोदधनो आश्रय करी रेहे9े तेने साधक केरे. नबनाय अने
गवोराशि सीद ए मार्गमां यएला्े, तेमना नाम आ मार्गवाक्रानी गु
नामावकतीमां पूनायदे. अने जे मृजव प्रहस्य लोको पोताना पिरत
तरपण करे्ठे, ते मुजव आ मर्गना रोको गुर, परमगुर, परास्रगुम
अने पेषी गुर ए छोकोनु रपण करे, तेमन आ खीकोनु पंचांग
प्रण सद तरेदनु चोयदे, एमना महीना, नक्षत्र गणयानी. रीत जूदौ
छे. अने एमनी भावना एवी के हं कषीयम्प योद्धुं यने मृने कशो
दोप लागतो नथी, ते प्रि रवेषु. ते नीचे सृनवः-
अलिपिङ्ितपुर्रीभोगपूीपरोदं ॥
वहुषिधकुर्मागोरभसंभावितोहं ॥
पञुननविमुखोदंमैरीमाधितेहं ॥
गुरुचरणरतोह॑भरगोहंङिषोहं ॥२॥
कुटाणव.
भभ -दास, माप्त, अने खो षर चण पदाभनो उपभोग करनी एन
९६
हमारी पूगा. ने दौटमार्मनां कुकौ करां एज हमाते नीः
श्वय, अते वीजा टोकने पश जेबे, तमनो त्याग करि
भरवीरेवीनो आश्रय कयेदधि, अने गगना चरण उप्र दी रसीने
एम समनु के भैरव अने क्षीव हन घु
उमा लोक चार्‌ दीव वहु मोटा मनिदे, एक कप्ण जनाः
एषी, तेने काटरात्री केरे. मेोदरात्री एररे काड्दीचउदश, शरीजी
शीवरात्री तेने माहारत्री केहेढे अने चोयी दाषणपंत्री एटले हेन्ीना,
पेदे दीवसनी चउदशञ, ९ चार रात्रीए पूजा हयादिकं अनुष्टान करती
तुत सीद्धी धायए्मसा वाममाि लोक गणे, नवरात्री चार प्र
काए्नी आ लोको ण्ड. आसो मासन नवरात्रीने श्षरदो नयरात्री
वेषे, अने चश्तर मानी नवरा्रीने वसती नवरात्र केहि. अने
परो मासना मति नवरात्र तथा अत्ता मासतमो प्रीप्मं मरत
ए रते चार प्रफारनी नधरात्र गणे. तेमां आतोमाप्तनी नवरात्री
परष्ीदे. तेमां ने आऽम अवरे तेने आ मार्गना सोक वीकषेष मोदो
दोस गणे. तं्रराज करने प्र॑य्े तेमां गणीत वीपय ल्प
ते मुजव ककीयुगनु रषं एश्रीक गणष. एटटे चाएतु वरस ९७४
तुद भने एक वरखना सो महीना अ आदी सोक स्वर्‌ उपयां गणे
छ. अने एक मापना दोषप्त क,ख, आदी छतर व्यजन उपरथी
छतरीप्त मणेे, अने एक माप्तमां पार नव ते चार्‌ बखत्त अप्र. ए
मारना नापः

१ प्राश. २ पिम. ३ यनद. ९ पतान, द सत,


६ पूर्ण, ७घ्माय्‌, ८ प्रतिम, ९ गुभग,
१७

ए मार्गम जे माणस्त प्रथम दाल धायद्े तेने पद्यभीपेक त्या


पृणभीपेक एवा वे तरेदना संस्कार केरे. पद्चभीषेकनी देवता कारी
छने कारीरनां बीजां नाम छीनमस्तका, तारा, शामा ए पणि.
अने पुर्णामीयेकनी देवतां भरी, 8 ने तेनां बीरा नाम शकशी,
चीप, मुदरी ए पणे,
त्रीपुराना अनेक मेदचे जेमके, व्रीपुरमाखीनी, त्रीपुरषुंदरी
तरीपुरसोद्धा, प्रीपुरओवा, मादात्रीपुरसुदरी, इत्यादी छे-एवीन रीते
गणपतीनी अंदर पण जुदा भेदे. तेना नाम माहागणपतौ,
उष्टिष्ट गणपती, यरद गणपती, वक्रतुंड गणपती, चींतामणी
गणपती, सुंदरीवीनायक, सीद्धोयीनायक. ~
एवा द्वा मेदंभो अनेक देव तया देवींओ कल्यनाएु करीनेनी.
माण करी, ते एकेकनु प्रस्यान उन युद्धे. वधा वेदशा तथा
। पुराण करतां तेत्रशा्ठना प्रय घणा छे, करोड प्रय टलेखाषठे, ने
तेनो अभ्यास लोको ग रेते करेे. दस्षण अथवा बेद मार्गना छोक
तरीक मागीना लोकोनी निदा करे, ते मुनवज तांनरीक मतना
रोक द मतना रोकनी नदा करे. ते विपेकखा्णवमां रवे केः-
वेदशास्य्ाणवेवोरोरद्यमानाद
तःस्ततः ॥
पङ्दशोनमहाकूपपतिता पदाय :
परिये ॥ १ ॥
परमार्थनजानेतिपञ्युपाखानियन्िताः 11
पठमहनिशोदेवीपरततलपपरमुखः ॥२॥
नजञानेतिपरेतवंद्वीपाकरसंयथा
१८
कुठ्य्ममहामार्गगलामुकिपरीतरनेत्‌॥ २
कुरुस्वमनादव्यपशुखाष्वाणियाग्यसत्‌ 1

स्वगृहपरयरुत्यक्लाभिन्तामरतिदुमात ॥ &॥
` कौररहस्य
भर्थ.- वेदशा तथा षड्दर्शन ए घोर समुद्र जेव, ने तेरा
छ्मेक पडे ते पु जेवा, ते स्क परमार्थं जागता मयी.
पशनो मारक वधन वेवायादठे, कड तमाम रतेोहमा वपय
छे, पत्‌ तेने रतोदनो लाद विलकृरु आतो नवी, मर्मर
मुक्ती मेववानो मार्गद्धे, टेर्‌ भागेन अनादर करीने ग
अत्तानी पशुना शाच्नों अम्धास करे ते धमां तैयार धरी
रसोर मूकी वादार भीख मागवा जाये तेना भवो समञवा
यो एम परण रल केः-
रीवादयान्ागमःस्मर्टस्या परिकीर्िताः॥
^ ममपंत्रमुखेभ्यश्पेन्ान्नायाःमरदराः॥१॥
पतश्पश्िमश्वैवदत्तिणश्योत्तरःस्तथा॥
उष्वान्नायश्चपचतेमोद्लमागप्रकीतितः॥ र्‌ौ
एकाभनायतुयंव्ेत्तिमुकोनानंशयः॥
विपुनःतुराप्रायक्ताख्षाचियेत्‌ 1२॥
<
कौटा्णव.
भभ.-कीवायमः अने वीजा मागम ९ स्प गप रसकानी विद्या ठे.
सीम वेदे के मादारा पाच मतयी पाच नआमूनाप नोकन
१९,
छे. पर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर अने उर्ष्व- ए पाषे मोल मार्ग
छ. एक मनाय जे जाणे तेनो मोक थायदे एमां कोई संशय
नथी. तो ने प्राचे नाणे ते स्ञात्‌ शवन यइ रेदेढे.
एम ग्रयमा ख्खेल्‌ 3 केः-
अनाटोवयमनाप्रेयमसर्शचाप्येपेयकं ॥
मंमासंपञुनातुकौ टिकानांमहव्फठे ॥२॥
अविषानेनयोहन्यादा्मार्थग्राणिनःग्रिये ॥
सवसे्ररकेषोरेदिनादिपञ्युेमभिः ॥२॥
तृणंताप्यविधानेनकेदयन्नकदाचमे ॥
विधिनागाद्विनेवापिहिलापापैनैटिप्यते।२॥
भर्थ-पशु एके धर्मशाखना माननारा एम केदेढे के म्माषठे ते
जोबु नदी तया तेनो वासूपण लेवो नही, स्पश करवो नदौ तथा ते
पीवु अगर खानु नदो. परतु कौलमार्गना स्ेकोने एज पदार्ययी बहु
पृ तया पुण्य यायद्धे. अवीधानथी केवर पोताने सार जे प्राणीनी
हत्या करे तेने ते प्राणीना शरीर उपर वाक होयद्े तेरा दवस
सुधी नकेमा रेहेु पठ्ठे माटे वीधीवीना घास नेवी वस्तु परण कापुवी
नही. अने वीधी गोहत्या कवी पडतो तेनु पाप नयी,
बल्ठो एज प्रथमा मदानां प्रकार वार तथा सुएना पकार तरण मने
तेज भमाणे माना प्रकार प्ण त्रण वतवरिखाढे ते नोचे युनन~
पानसंद्रह्लमाघ्ुकंखजुरीतारुमेदतवं ४
मपुच्छंसीुमाध्वीकमैरव्येनासिकिरुले ।११॥
२०
मदयान्येकाददीतानीभुकतिभुकिमदानीव ॥
द्रदकत॑ुसुपमयंसवेषांउत्तमेपरये १२0
मोद्विमाघवत्वेेटिचनिज्ेयात्रिविधासुप॥
सर्वेखिदिकरीमाभ्वीपै्ेभोग्रदायीनी 1२॥
गौदमुककिकरीजञेयातुखस्य(देवताःम्रिया
विवयम्रेक्षगीहाटाद्राह्लासनम्रदाभिवेत्‌ ।‰॥
सुरादद्धौनमात्रेणखवेपः प्रमुच्यते ॥
तदरधप्राणमात्रेण्यतक्रतुफकंकभेत्‌ ।५५॥॥
तासमिकाखमाद्यपूनाकमेखमास्मेत्‌
मांसेतुनिविधमेक्तंखभरूजचरंभ्िये ॥६11
यथासंमक्मप्वेकंतपंणारथग्रकसपयेत्‌ ॥ `
पितुदेवतयकञपुवेैयाह्यात्िधीयते ॥ ७॥
मदयमांलप्रहिनेननकूयपलनंदिवि ॥
वि्लततेमापमात्रतुतदधेमरिचिटुना ॥ ८॥
सेनतर्पणमत्रेणकोव्यज्ञफरन्टमेत्‌ ॥
दीवरचै्णवे शाक्तसीरेसिदतद ने ५९.
विनादिपिरिषवाभ्यातुपूलननि ःफठमवेत्‌ ॥
गुखस्मस्नपिवेन्मय खषदेन्माखंनदोयमाक्‌। 1१
ययाकनुपुविग्रणांखोयपानंनहुपितं ॥
मदपानंतथाकार्यखमप्रेभोगमेत्तदं ॥९२॥
२२
आनंदातृप्यतेदेवीमूछयाभ्नैस्वःस्दयं ॥
वमनात्वदेवांश्चतस्मात्‌तरिविधमाचरेत्‌॥
उचिषटेमक्षयेतिस्णांताभ्यांमुिषटमरषयेत्‌ ॥
च्िवाथएुस्योषंडोचांडाठोबाद्विनोत्तमः॥
, चक्रमप्येनेदोल्िसर्वदवसमस्पृताः॥ .
क्षीरेणसाहितैतोयक्षीरमेदयथाभवेत्‌ ॥
तथाश्रीचक्रमध्येतुबातिमेदोनविते ॥
कुण.
र्थ^-फनघ, श्चा मुडा, खजुर, साड, शेरडी इत्यादिक यगीयार
पदाय जे भातत चाग्छे तेनु नाम पद्य. ते पीवाथी आ लोक
तथा प्ररोकमौ सुप सजे. घ्या ्षीवाय व्रण प्रकाटनी सुरा
छे. ते गो, धान्य सथा महुडामावी नोक, ते पीवाधो अ
नेक सिद्धी, भोग तया मोक्ष, विद्या अने अधीकार मञेे, वी
तेन्‌ दर्शन धयायी सवै पाप जघ्यटे, ने तेनी वास केवाथी सौं
पनु फठ्ठ पठे, तेमाधो एक जातनुं परण मद्य द्ष्ने पूजा
करवी, यञ्टी मास जण प्रकारनु ठे, एक आकाशषमां करना
प्तोोनु, बीन्नु जमन उपर रेदेनास परुभोनु तया घीजु प्राणी
मां रेदेनारो प्राणौओोनु, ए रते तरण प्रकारनु छे, तेयो एफ
धरकारनुं पण ॒तरपृणमा ठु. पितृत कर्मं अने देषना कर्ममा आ
परायां लेवाने सारं येवेमो पण बोधी यनपि्ये दे. मेहे प्र
नी देवतान पूरन पन मद, माए वीना यतु नथा. मारे एक
५.
अब्देना दाणा जटसु मत्त तथा तेना अध
ञ्छ मद पण
य्व जोक. अने उप यनव मदय, मास ठेद जे माणक्त
करछे,,
तग
तेने करोड यस करां जेट प्छ मच्छ,
शीव, विष्ु
माता, सूर्य इत्यादिफ देवतानं पूजन मदय, मानन
वीना करे, तो
तेमु कर फक धतुं नयी. गुष्ं स्मरण करीने मद्य, म॑तिनीं
उपयोग करेठे, तौ तेने दोप छ्मगतो नथी. यत्तक्यैमां
बराह्मम
सोमवहीनो रत पीये, तेने दोप गतो नथी, हेन
पाते
शूना कर्ममा वीधी भृनम मद्य पोवाथी कोड
दोष खागती नशी.
चानन भारनदयी देवी वृ यायछे, भने ते
करयाथी वेषौ
याय तो भरव चृप् थाये, अने उट
य्य तोतमाम देवता
वृष थाय. मदि बधी तरेदथ पान कटय
खीतुं छडिटु ग-
पणे खां, तथा अपर छडल्‌ खौने
खडावतु. खरी अवा पृषु
अथवा नपुंसक, चटा एरक देड
अथवा पीत ब्राह्णप स
देवतः प्रमाणे जननः चक्रः मध्ये समजया, मेदामेद
गतव नह्ये. दुधमां पाणी नषिएदठीए्‌ विलकुछ
आवे, ते मुजव
ते पाणी बुध घपी यद
भरना चक्रम जातीमेव रेदेतो
नी.
नचकरकरिनपद्य कनवरागमिरदजगत्‌

लिगागंचभगांकंचततस्माछसि शिवरारम्क

दिवशक्त्यो्ुसयोगोयस्मिन्फारे्रनायते
` युतताध्यकुलनिषठानांखमाधिःखविधोयते ॥
।।
योगिनोमदमच्ता्पतंतिमदो
रासे ।।

मदाकूखाश्रयोगिन्यापतंतिषुरपोपरि ॥
परस्परं॥
मनोस्थ॑तुसंपूणेकुवेत्
एतेचक्रगतावातोवहिन प्रकारयेत्‌ ॥
अलिमांसांगनासंगैयस्सुखंजायतेग्िये ॥
तदेगमेोक्षविदुपामत्रुधानांतुपातकरं ॥
पिनिन्मदयंपठंखादयं सखछाचारषरयणः॥
संदासंशयदिनोयःकुख्योगीसउच्यते ॥
आमिपासवसौरम्यहीनंयस्यमुखभवेत्‌ ॥
्ायचित्तीसवजेश्चपलुखिनसंशयः॥
खअनाचाराःत्दाचारअकार्यकार्यमुत्तमं ॥
अखस्यमविसय्यंस्यात्कौटिकानाकुरेस ॥ ›
अपेयमपिपेयंस्यादभध्यंम्यमेेच ॥
अगम्यमपिगम्यंचकौलिकानाुरेरी ॥
नविधिनेनिपेधश्चन पण्यंनचपातकं ॥
नस्वगेनिवनस्कःकौटिकानांकुटेश्वरी॥
दुगरुणाःसगणायतअक्रटतक्कलायत |
अधमःश्वापिधर्मतिकौटिकानां कुलेश्वरी ॥
ख््यापरोयधाूयैःखवभक्षीयथानटः॥
सखवस्पलोाप्रथविपयुःस्तयाो्गसदश्ु चः
सवयमापकदिराकुन्टधमःश्िगाद्तय।।

नाहवसाम्क्रिडासेनमेरोनवभदिरे ॥
कुटन्नायचतिषतितत्तिामीमणमिनी ॥
समा्लसतिपितरःसुवृष्टिमिवपेकाः
अस्मकुखेपुपुत्रोबापतरोवाकौलिकोभवेत्‌ ॥
ममास चमहस्य॑चमुद्रामरधुनमेकच
मकारपंचकंदेवीदेवताःभिततिकारणं ॥1
मशकभखहसमांखराक्षिचतानिच ॥
नतुप्यामिषससहेभमर्टिमामूरततिना ॥
यथेशस्त्तिचेरिम्पोधनवान्यवयादिकं 1
कुठ्षगतयदियीपश्रभ्य ःपरिपाठ्येर्‌ ॥'
अतःकौठंवहिःदवंसमामभ्यतुैन्णवे ॥
कौलमुगोपयेदेवीनाकरेरफकुवत्‌ ॥
नास्निनास्िपुननीस्तिमाश्ंककुटनापिकै॥
कुलघमेग्रसंगतुपञ्ुनापुरतभिये ॥
पस्तकचकुटेखानप्युगेदेननि क्षिपेत्‌ ॥
नदद्यायशुदस्तेननपदरेयश्ुसंन्निधौ ॥
साधकानाठितावयभुतियुक्तिफरविरां ॥
मरकाद्धितमयष्तेयमोषनियमयलत्तः ॥
क्टाणेव.
२५
चीनद यजं छे, ए “्वीन्द मनुप उप्र जगतमां माटुम पडतां नयी
पतु दी वया पष्य एवी वे जातीनां चीन्द देखायठे. अने भा
बे चीन्द वना ठे, तेयी मा वधी पुष्टी डीवनी छे एम सिद्ध
याये. छी तथा पुरुप ए वेना प्तयोगनेन कीलमार्गना एक
समाधी गणे, भैरवी चकरमां खौ तवा पुरुष भेमां यावे, अने
ने रपय करे तेः प्रसिद्ध करौ कोडने केदेवृ नदी. मदय, माक्ततेया
अंगना एव्टेश्वी ए त्रणेना संमोगने कौठ मार्गा मक्त केदे
छि, अमे जे छोको रए मार्गम नयी तेओ तेने पराप गणे. मद
शिवाम, मति लावयाम।, भने मरजी मुनव चाढ्वामां जे एोक
फ परेद राता नयो तेज लरा कौख्मार्गना दे, जें माणतसत-
ना मोमा मद्य, मासन घाद नथी, ते माणसने षञु करेगे,
ष्यनाचारदेते सदाचार, अस्त्य ते प्त्यद्धे, अनेजेन क
बानुं खमते करव एवय बातिनी कीर्यर्म माननाप्ने कारं
चीता नयी. पोयानु नहो ते पये, भने खावानुं नदी ते लाप,
घने मै नातनी खी यई शके नदी, ते जातनी खी करतो तेयी
फौटीक योमीने दोषं नो, तेमन ए धर्मं माननाराभे वीधी
पय नथी, भने निषे प्रथ नी. पष्प पण नथी यने एप पण
मगरी, स्मे पल नयौ अने नरक पण नयी, गीष धर्मम.
सनाद दुर्मुण ते स्रूण, अने अधर्म ते भर्यद्धे, भने नीचा
करने छेष पे उचा कुन्नो ढे, जेब सते पूर्नं तडकों तमाम
गो उपर पदे, भने भमिमा जे नापरे ते तमाम वक्री
जाप्टु
पटे, भने नयु नमान वष्तुने सरं पटे ते प्रममणे दीलध्यं
ग्द
मानना श्मेश शुद्ध छे. शीव देवीने
केदिठेके, देवेवी सर्व धर्मधी
भेट धरम कीड, नेते मासे यवविो छ, अने
हु कैश्मा रेदेतो
नथी. मेढउपर देदेतो नयौ. भगर को$ ठेकाणे सेहो
नयी ककत
नाहां कीरूयमना लोको रे वाहा हेदेवी
हुंरदु. षरा मी
गरखा जे पतु षयाष्े ते एवी ज्ञा करे
के अमारा ककमा
कीं कीरीकं यई मासै उद्धार करश्च,
भय, मा, मच्छ, मुद्रा,
भने खी ९ पाचमकारथी देवता परस
याये, गने मद तणा
माति ञहून भरेण करे तो पण रन भर्पेग
कन्या वना देवी तुम
ती नथी. चोर धन, धान्य, यने द्रमप
चतत करी णेर्‌ जव
नदी तेने सार मेधी रोते छी बात
गलीए़ छीर तेव रातिभा
कीव्यर्मनी वातत कोने जाण पृटया
देवी नदी, भ्रमरे छानी र.
प्ववी. मनां कौ पर्न यातत
रातो, भने बाहार हीवनु प
ˆ गणड अने बातो वै्गवनी रोते फर
पण आ कीलधरमनी
पति ए धर्मज नधी एवा पश जेवा"
मागतो भागक कवी
नष. अने भा धर्पना पुस्तक पण
एवा माणसोना परमां मकनु
नदी, तेमना हाधकं पृण भपिगु
नदी अने तेमन। देतां वाच
ष न, आ धर्मे द्मे ते सोकन। मोक तथा सुखने
मं कदय माटे तेने गुम रान.
कौर मार्गे वेदन पमाण श्वाने ए
रस्ते यौष्रेपनीषद नाम
पुष्क धरतिद वरु तेनं प्ये के: नु
भेजानो न्िकिमराजोवासमो
अधनोधर्मातिज्ञाषा, नः शुस्थिः॥
संशागवीरूपं, आन्न ॥
२.२

. यानव्रियते,अन्यायोन्यायः-अषमएवधमः।॥
ज कन न ४4 ४

धमेविरुडाकराया मधमेविहितानकार्याः ॥
एषमेक्षः-पराकटच॑नकुयौत्‌^नकुयौ यशुसंभाषणं।
उंतःशाक्तःवहिःरौवःछोकेवैष्णवअयमेवआचार भा
रोकानरनिंयात्‌,नियमाननमेह्त नतिषठेननियमेन ॥
फीठीकने शप्र याय, मदामने शुभ याय, लोहीमने शुम याय,
भर्मं जाणवानी इच्छा छे, सर्य शीवष्प छे, वेद रं जाणता नयी, शः
नयाय ए न्याय छे, अघर एन धर्म ठे, अधर्म रोय तेज कतुं, धर्मन
अनुकु होय ते न करु, एन मोक्ष छै, ए मार्ग प्रगट करवो नदी,
भने ९ धर्मन जाणनाश पशु छे, तेमनी जोडे आपणे बोल नदी, ,
गुर रोते शक्तिनी उपासना करी, देलाता शीव धर्ममा रेदेवु, ने
` छोकरां चैव्णवी मामे चाण ए रोते चालबु- कोइनी दा न कवी
नीषमयी मक्त चतो नथी, माटे कोई रोतनों नियम्‌ पायो मदी.
पाममांनूं कीटाश्नाद््‌ चाय्डे ते पिं रष्वे केः-~-
कौठश्राहमीददेवोत्तवतेत्रपुगोपिते ॥
कतुश्पितृणददिवीमेवेर्फठमनंतकं ॥ १॥
पज्ञोरपिरुतेश्नादैतस्यदीक्षाफरुभवेत्‌ ॥
मृतेन्दिपसुतथातीरयैभादसमाचरेत्‌॥\२॥
मण्य किया जुदी रौतनी धायद्धे ते विषे र्ये केः
' अयेष्िविधिनादीनोमं
उस्थोनजायते ॥
तस्माुयौखयलेनअयेष्टििषिमुत्तमं ॥
२९८
` यस्यनक्रियतेदेवीनदी्चाफएल्मन्ुते ॥
="
भर्थे.कोटाम्रद्ध ष मोटु 2 ए्‌ कर्योय
ी पितराने वैत सुप याप
छे, बाममार्गं
नही नाने एवान परशु, जेवा प्राणी होय,
तनुं
परण ए्‌ िफीवीं श्रद्ध यावतो दिन्‌ फल्ठ मने,
मारे षण
तिथी मथवा पपै दिये सयवा तिर्थैन
े ठेकाणे श्राद्ध केवृ. जनी
रण किया न षड होय ते येडव्यमां दाल
धतो नथी मदे
शाक्त विविधी अंयषठो करवी. ए प्रमाणे जेनौ
किया न चापतिने
रिक्षा बड होये व्यर्थे नाये, . श ५
अविष्ठिनौ संकस्य थाय्डे तै नीचे एष्य)
प्रमाणे
(रववप्ास्यमडयग्रेशयग्रा्यर्थ अंयेटिकर
कील संप्रदायम। नाम नाययटकथौ
्मकरिष्ये ॥
पठे, जेव के वर्पानाय, भा,
मानदनाप, निषकठनंदनाथ,
स्चिदामदनाय, प्रकाश्चानदनाव, ई
ष्यादि, कील रसप्रदप्य भगण
मत्न क्रिया करवानी छोकोनि
पडे. यने माश्रखायन्‌ सूत मृशकेक
पमाणे पैरिक मिध पर्णि
ते प्रण मुशे छे, व्या करं फी
श एषु कोर पु तेनो उत्तर
महान्ननां यनगतःसपेध
ा॥
एयलनकेजेम लोक कफरेठेते प्रमामे
गो शवे नष्ट बटे मुवा करव" शाल प्रपामे फातां
धवानी जर्‌ जणायय
शक्डपुर्यमा तेर मध्याय
देदी मदाम्य चष्टे, ते शक्ति
महामन गग्ठेभने तेने उपा
करममोर्‌ क्वच अर्म
शाम शदादिकः अनेफवार पट्ट जादे केनो षाद
पठं ताम पुटोपाट, ननद,
+ षय, म्दघनते, सो वार्थ छन
पं ्ामूृण, भुरा आवक, पुनान

र्दः
कस्याणने यास्ते करावे ए चा अन्यदेश करतां गुलरातमां धस्त.
ते चंडीपाठना पेस्तकमां नीचे लेखा शोके,
बदिग्रदान पुज्नामाम्निकायमहोत्छवे ॥
€ पडुपुष्पाघधूपश्वगयदपस्तयात्तयः 1
` स्धिरोेनवाश्नामां सेनसुसयानृष ॥
भर्थ.-पूजा, होम, ने उत्तवमां वलोप्रदान करु एदल जनावर मा.
रमु, अने पम, जल, धुपदीप्‌, अने जनावरो अपैण करवा, अने
खोद युक्तंमस्त सने मय ए परण अर्पण क.
नै ने ठेकाणे वीतु स्यानक ठे, ते ठेकाणे हनासो बकरा “उने
पाडा अने मरयडानो'बी याये. काशी पासे निम्यावासीनी देवी
छे, भने कठकन्तामां काली छ व्यार लोदहीनो प्रवाह वेष यतो नथो,
"हेश चारतो रेदेढ एम केदेवायठे. कालीन मजन मूष वेगात्छमां
उभ यु, अने व्याधौ मंनशाखो शूजरातमां आवी अने श्ाक्तमार्गेनो
उपदेश कर्यो, अने ठिक ठेकाणे कोणिकानी स्यापना यड, अने सरव
देशमा गुप्त रेते वाम संभदाय पण चार्ट, अने मदय, मासनो निवेद
थाय मने रोक प्रप्तादी पण ठे.
शंकराचार्य शाक्त मतना हता, एवु मनद गीरारूत शकरवि-
जयना पा्तठमां अध्यायी माखम पडे. . कारण हठे रवेर वचन
, ए भण्यायमा ग्ड ति
तस्मात्‌ुक्तिकांलिभि
सैः सीचक्रपूजाक
सव्येतिदिक्‌॥चस्मास्सवेषामो्तफटपराप्तये
२०

~ दरछनायेवश्नीवक्रमवद्विसचर्धिनिरमितमिति।
भर्थ-श्री श्वक्रनी प्म कर्यीथी मक्ष वाय माद श्ंकराषर्यि श्री

श्र्रनी स्थापना करो मने जहौ नांदा एमना मुख्य .मण्टे ते!
श्री चक्री स्माप्नठि
कारका पुराणम ६६ मो सव्याय तेने रथिरव्याय वद,
तेम अनेक मकारा विदानो विपि वतःव्योे- ख पुराण तथा
मददिय पुण निगमा गणाय अने वामा हमारा रंये एम
करै. समथिरम्याफमं नर एटके माणत्तनो बलि र्योष्धे* ते जप्याय
भगवान वेत्पा्े एम शस्ये तेमाना ओक नीचे रखा.

मातां फावलु नथो माटे जेहेर देधे ए बात परिदधे. मुव इटाकामा
वज्र्य कना लेकोनी हकीकत छापीने प्रततिद्ध कर तेगा ९..
विरे विगतवार्‌ रद्डुदे. कटकन्तामा काङिषाट उप्‌ काटिनाः भगत
सनेकने रपरे भप्तेने' तेलु षड मंगामां नांलत्ता अने मु काठक
मागच्र एरुकन्त. प्रन सरकारे ए चाट पोेतना वेदोवस्तधी वैद
करे किट कोरे मोटि द्मारतो वाधना ते मा पेदियण सुयावरि हीय
सेनु बलिदान कत्ता दाट पथ एवा पुफदमा फीजदातं दफतमां
गा निक. केके संदयाड दोय के मुपिस्य द्रव्य कदर्यं ह्यय
प पत्यानु उट्टिदाने करेद्र नेषटिव राजय रस्तथो कोम जततो हष
सोने परारि पे. भुखापिि चसरं एड जघ्ने वष्टि क्छ एपि यति
सनित्वामटियनेतते पोटि नध एम पण मानवति योग्य कारण्डः
विमान मक्ता पगे देव फटी उवत्थ ए सनामी, १
पगा. एन पटि अयनाद्‌ दुष्ट शाला प्रय पणा

२१.
श्रीमगनानुउवाच
{ प्तिणःकन्छपाग्राद्यामत्स्यानवविधामुगा।
महिपागोधिकागावम्डागोवभेश्वशूकरा:॥ १
खरश्वरुप्णसारश्वगोधिकाशरभोहारिः॥
खार रनरैवसवगात्ररधिरस्तया ॥२
यैडिकभरवादीनांबल्य॑परिकीर्तित्ताः॥
कालिकापुराणे,
स्रयामरू प्रथमा अनेक चक्र रण्ये तेमा वीरचक्रनु पटक नीचे
एरय.
'दरशरउवाच
वीरचकरप्रश्यामीयेनसिष्यंतिसाधकाः!\
अनयापूनयदेवीदेदसिदधि प्रनायते। १॥
ाक्तेयोनसमयादियसशचस्तेनिवेदयेत्‌॥
भूचरणांसचसणातत्तन्मोसंसुसेधिकः॥२॥
मद्रासवीणिधान्यानियुक्तानिप्रमे्धरी॥
शवेतपीतच पुप्याणीरक्तानीचरिशेपतः॥२॥
अष्टयीरंचपटूवीरेनववीरंलथाप्रिये ॥
केद्पवेत्वीरपलिशचययाख्च्याशचसुंद स॥४॥
बीरेभ्योदाक्षिणांदयात्‌आचा्यायर्शेयतः॥
असंख्यपातकंचैवव्रद्यदयादिपातकं (५

नाशयेत्षणादेवीवीरचक्रप्रभादतः ॥

दक्षिणगरिपिहीेचतचच्तेनिष्फठभवेत्‌
॥६॥
दरतिस्द्रयामरेदशवरपा्वेतिसंबदिचक्रमेदनी `
स्पर्णनामवीरचक्रंचतुथपटरः ॥
भर्थ-श्धर करदे फे कड साधक वीरचक्र कीन पजा करे, तो
मदासिद्धी भत पामे. जेटछि चियो मजे एदि वेदान तेमनं
पञ्पकषिन्‌ माप्त अने मेकं धान्पना पकवान अनेक रगनापुप् भ!
पण कर्मा; अने नव फे मठ के प्राच पीर एषठे दीधित्त माणत्त
खयो तेमनी ते छियो पाली स्मनवो, गोरोने दक्षणा माः
पृथी. एमी विधी करती मोटां भोढा पातके नाये, .
ए प्रमाणे महाचक्र; देवचकर, ¶मुचकर, राजघक्र, इत्यादि रघ्या

दे, तेमां राजचक्रनी जामा खवे्ेः- . ,
चतुवणकरुमायव्चस्रूपासुमनीहरा ॥
यामिनीयोगिमीचेवस्नकीशपचीथा |१॥!
केवतेकेसमुरपनरापेचडािरूदा्दतां ॥
पएताप्रसस्तासकरखाधकनानयाजता।र॥
जपमेतमधुमथं चदयुहिखगलर्चखभवा ॥
„ धमार्थकाममेर्घ्णलचक्र
विधियते
ं ॥३॥
पष्िवर्यखुदष्चाणद्िखकेमदयपते ॥
सद्रयामख
भय.-प्यारे वर्भनी सदर कन्या तेटावी, सने घोव्रण, दरण, देदरण,
द्‌
कोण, मिलण ए पेचशक्ति सेडावीने मदय, माति, पिर भपदु.
तेयो चारे पुषषार्थं भास याये, अने देबरोकमां साट वषं सु
एवौ पूजा करनार भास करे 1

देवचक्रमा शक्ति जोई तेना नाम ~


दश्वरउवाच॥ ,
। देवचक्रं
मक्ष्यामीयस्सुरेक्रियतेसदा ॥
शछक्तयस्तत्रदक्ष्यामीदिव्यरूपामनोरमा ॥९॥ ,
राजवेदयानागरीचुषवश्यावथाप्िये ॥,
, देवेख्यात्रदवेदया्यक्तयःपंचदेवता ५२१
ए्तसेवापराजवेद्यागुखाचकौरना ॥
देववेरयानुयकारातरद्यकेद्याचतीर्थगा ॥३॥
नागरीकस्पचितकैन्यारुंडाकामर्लसटा 1
पयेताशक्योदेवीदेदचक्रे नियोजयेत्‌ ॥ धा
आ प्रमे पूजा कए्वानी रीतो, तेना दिवस, गार उरवरलय छे.
ये प्य, अष्टमो चरदशो, शत्रगर, मध्यरानीने वणते पना करेटे,
अने एवी निर्ग पूना दहाडे केम याय. एक एक चक्र पूनानु कक
र्ष्सुेते र प्रमान
इश्वुरउवाच, 1
राज्ञचक्रेरजदेस्यात्महाचक्रैखमुदधिदं ॥,
दस च्क ररनेप्पपयर
सक्त षाष्ट
समाम
३४
चक्मा पदानी मासे क्या होय के मिनी दोय तो वीः
एटके मरिशरने अपम कर्कीं तेनुवचनः- ॥
याकाचित्ति्ठतेचक्रमाताचभगिनीसुपा ॥
दुदिताचत्तयामायासवेमदेश्सपयेत्‌ ॥ २.१
महिश्वसीयदाभुंे मुक्तस्यदरेदगादतः ॥
तस्यसंसगेमत्रिणनिवाणेषदरवत्रजेत्‌ ॥ २॥
पचमकारनी षिगत शुद्रयामछ मधमा की ते निचे मृज~
गीङप्टेतथामाधीद्रा्षा्टल्षसमदरय
१५. ्‌
५ `
अचनेवक्रनस्यवारभीपंच वास्मृताः ॥ १॥
छगकुर्कुटवाराह्ल्जामुगसंभषा ॥ `
तवचक्राचैनेदेवीशुद्धिष॑चविधास्मृताः ॥ २॥
रोदितैमृहंराटसौरंशाफरिकातथा ॥
पूजनेतवदेयेशीमखाःप॑चप्िधाःस्मृता ॥ ३॥
गोध्षममृद्रमायाश्चस्तेदुखाश्चणकास्तथा ॥
पूलनेतव्देवेखीमुदर पचनिषास्मुताः ॥ ४५
रसकीचमेकारीचदयावेवरनस्वरा ॥
मातंगीमधुमाताचञर्चनेराक्यःसमृतीः ॥५५॥
भर्भ-गोकरयी, लोटय, मददाथी, दलयो, सजूरथी जे मद्य निक
चे तेने भाख्णी एवे प्रथमा दे, १
यको, मय्य, मूढ, सती हरण, ए पचना समिरने शुधि
शे दवितीय कट्छे. २
२५
सोदित, मुदल, शाख, सीर, आर्रीका, ए पच नामना मच्छने
तरितीया के. ३
घठ, मग, सडद, चोखा, चणा, ए प्राच धान्यनी मुद्रा एदे
व्वतुा याय. ४
धोत्री, चामदिवा, वेद्या, रजा, भगिण ए पाच प्रकारनि
छियोयी पचमो थाय ५९
काारमान पांच प्रकारनुके,
चलुरगेचप्॑ांगमषटागेदादस्यंगकं ॥
पोडलञांगक्रमातुज्ञालाणरायणविर्धिभवेत्‌ ॥
मर्थं -चतुरग, प्रचाम, अष्टग, द्वादशषाग, अने पोदशाय ए प्रमथे
पारायण करयु. ¢
दिनतोगारतोपत्तमासःपयू्रंशातातरतः ॥
परचांगक्रमविज्ञेयोमरडयादुपसितः॥
अर्थ-दाटो, वार्‌, पन, महिनो, यावृत, ए कम मार्कड र्पीनो हत.
पिस्ता कएवानु कारण नया मष विजा क्रम रस्यं नी.
मदयन्‌ पात्र शोभन करौने तेमाधो पूमनिं वलते फिगानो मन्ते.
प्रह्स्यञहकारवुदि मनप्रो्रचघतुनिन्डा
पराणदाकूपणीपदपायुष्समशब्दस्पशस्पर
स्ेधाकाखवायापनिसटिटभरम्याव्मना
व्मनलेनञाणवमच्स्पुख्देहेसं
शोध्य ॥
"मर्थ-तमे प्रिते कस्य देये शुर क्रे. गरम देहो शद करे,
2
पय पूण प्रा छेदने जाना शुद्र करे. पी दीनि आ
तिमत उदि रु मय पेत वीपे तेनो मंत्र “
आदायचापरवभ्ाक्षात्‌आदिक्तिमुखवनात्‌॥
मरििपपमानेदंप्खखारोपेचाप्यहं ॥
जञा षया पटी शांति भणेटे ते ए प्रमाभे
संपजकानांपरिपाकानायतेद्वियाणंचत
पोधनानां ॥ देस्यसस्यकरुरस्ययन्न
करोतुखांतिंभगवानूकुरेखः ॥
“ परजाप्रहती.
दोतित्र्यशातिसवेमूश्चातिभ्यापिरेवः `
शंतिशामाश्ािरेधीनयौःशांतिरेतरितम्‌
साविरापःशातिरोपधयमशातिवनस्पतेयः
ातिविशवेदेवाः उदयोस्वितिहुबन्‌.
पना पती.
कीट्मार्ेनो तूण तिवो ठे तेमो रय्छुेः-
घमोधंकाममेक्ा्धश्रीगुसदणेवताग्रंन्ना
त्पणेकरप्ये ॥ न्यास्यानहृचा ॥
५ गुण मदननेो देदन ए पमाणे
श्रीनायादिगुस्वयंगणपतिपीयनवप्े
खनि
दोषेनटुकतर्यग्दयुदूतिकरममेडछं ॥
३.७

वीर्सनूदषष्टचतुष्कपष्टिनवकंवीरावटियचकं
श्रीमन्माछिनीमंराजसहितवदेगुयेर्मडरं ॥
नैतर गुवच, दिव्यैष, सिद्धी, मानबौवनुं तर्पण श्लु तेमां
हार्‌ नाम छे. जेवा केः-
गुस्भ्योनमश्रीपाहुको पूलयामीतपंयामिनमः॥
कौठेश्वरानंदनायन्नी०
वसिषानंदनायश्नरी°
विश्वामित्रानंदनायश्नरी°
शुकानंदनायश्नी० -
पृठी श्री मदकराचा्यं विरचित त्री रिदस्तोत्र पाठ करे
तेनो नमनो
हपोन्मत्तसुवणपात्रभरितापानोननतांधूणि
ताहैकारप्रियशन्दन्रद्यनिर्तांसारस्तों
द्दसिनीं ॥ साराखारविचारखारचतुरं
वर्णाश्रमाकारिणीग्रीचक्रप्रेयविंदुतप॑ग
पंभरीरनरानेश्वरी ॥
कर्माकमेविवानितांकुलवसीकरमप्रदा ककि
नीकारुण्यातनुयुद्धिकर्मविरताषिुपिया
लालना ॥ खयेदगघ्नियरूपिणी्रयवतीप्री
तिप्रतपिन्नां श्रीचक्र ॥ २॥
३८
मदनो करम रेने तेनी शुद्धो कोने पामां घालयी नेतर प्रम
प्रान द्वितीय पाड एवां १६ पात्र मिवा, तेना त्र.
भुदेवायत्रदेवासुरखितिवदमादिव्यकन्या
पिमानाखानंदामीभागाविदधतिविधिवत्‌
, वि्वत्सदेबणो :॥ दार
घायुञ्यमुकेषैषि
हरिभिः सवैदासेव्यमानेश्ो चकतंसं ररत
जगतिविजयतेदैवतेदेवतानां ॥
, आसतसंस्थूकलयरेदोधयामिजु
होमिखाहा, प्रथमपात्रंपिवेत्‌ ॥ १॥
्वितीमेत्रिपुरपत्रिवोहपरिचितयेत्‌ ॥ `
दर्तिस्पापानीमेक्षरूपीप्रनायते 1
दिवीयपनरपिनित्‌ ॥ २॥
मदंमीनरसावर्टहरिहरत्रह्मादिभिचिविरतमुद्रा
मेधुनधमैकमैनिप्ं्षारम्रतोक्ष्णायितं ॥
माचायोचिरम्ठमेरवकल्मन्यासेनयच्छा
दितेपायासंचमकारदूद्धिसहितेपनृतीय॑नम्‌ ः॥
तृतीयेमेरवीपान्रडिववेशोमहेश्वरो ॥
पातक प्ररयंयातिरक्ततुर्व
तिद ॥
शिवतलंकारणंशसरंशोधयामिखाहा॥
| वरतीषपानविवेत्‌ ॥२.॥
[
दिबीसिमिशिदोस्मिश्िवोसिमि ॥ +
ब्रद्याहमसिमत्रद्याहमस्मत्रद्याहमस्मि ॥
अहमेबाहंज्हों सिस्वाहापरमामनेदेदंनमम ॥
भद्रमूतैयेपशुपतयेखवाहा ॥
मध्येमांसरसावहंदायेतयादनत्तंचपिगदिभिः
.किच ्ंचररक्तपंकजदशामानेदमुद्वि्षितं 1
मांसखागल्युत्तमोत्तमरसंरगश्वदिन्यषतं
सैदेवगणैवृत॑शुभफठंपातरैचतुर्यभने॥ १॥
। चतुयैपा््रपि्रेत्‌ ॥ ४॥
गणेशंपचमपात्रंसिद्धिवुदि प्रदायकं ॥
गेधवैरचितंपानरेगंगायाक्तानिमं ॥
दरदेपवित्रममूतंपिनामिभवभेषजं ॥
्रुपाशसखमूेदैकारणंमैखोदितं ॥ -
स्वाहाज्ञानानात्मनेद
द:खदारिवायसख्ाहा ॥
सर्वैक्मेकलागमाधिकतसंेदैभखैरभापितं
दूतियगकु क्टखंभमतरंगुपरहस्यान्ितं ॥
आानेदोद्वनादर्विदुपरमेयोगिद्रसदैरवं
पीतंब्रद्मरसंसदोदितकरपात्रंभजेत॑चमं
म्रज्ञनेतरह्य ॥ अहत्रद्यास्मि ॥ तत्वमसि ॥
अयमासमाब्रद्य ॥ पचमप्रेपिनेत्‌ ॥ ५.॥
४२
इतिस्द्रयामटोकत दिवशाक्तिप्रगोधकं
यांकरीपदतौपानगृहणविषि
9. १

संपूर्ण ॥
„क, द 9

आ बद्धाय विधिनो अर्थं रलवानु कारण नथी मदमा मण


पमं निधिमां मवे. केटखाएुक वाक्यो दाषडियो यौख्ेए बाना
मदे एवा शाघ्ने अने ने रोक एने अमाशे धमेठे एम करे तममे
धिकार, जे खोक ए प्रथ वाचो तेमना ध्यानमां एमन
आविशन. एन
भतो ए प्रय करो. मन्रशानु पाड
गुप तेनो प्रकाश
शाव तो ए धर्मं के अधरम ते ष्यानम। यावक,
नयत

आगम प्रकारा, `
भप २ नो,
"केक

मागन शाना भ्य मेक्ववातुबहून युषकिकठे, घणाएक भात"


णना रमां एक ने प्रय होय रण
ते घणाज गु्ठ राखे. ना करून
करे एटरून नहो पण एवा श्रम रानारने
ममाणे मयनी वात निकरे तौ प्रण
गा भृ. तेन
तेने मिवेे. ए प्रमाणे बद्धाय
साममा्गीनी चाले. एण पोतानो छके
भक्तिमान्‌ अने भोको होय
सोतन ते प्रप शिष्ठ, अयव कोई
साक शोक भक्तिमानू होय
ले तेने आ रुप शात मणवेे, पेय
भागमा केटलाएुक बचन
दाल करने तेनो अर्य धार्त गुनरत्ती
मापामं लस्य ठे ते उप
एषी ननन मुम पदो ते शविगाय
केटल्ाएक वचने तेनो तमग्र
णद
अं रुलिये तो बहून बेशरमपणु अने निमिधपणु यक्षे माठे ते कचन
सेरकत भाषामाद्धे तेज प्रमाणें आ विजना भागमां दाखल कम्या्धे ते-
नौ यर्थ जने चिकित्ता हरो ते समनि रे.
घणा प्रेय उपर टिकाकार पये ते छोकोए घणा प्ेषनो अथं
केरन्योे, केटष्यएके न फावता वचनो काढी नास्ये, एवा प्रा-
चिनकाक्रमं उदादरणो घणाछ, तेवी स्मृती अने पुराणना प्रेय दाख
छ तेज प्रमाणे पु दशे, एनों निश्चय यतो नथी. दाछमौ एवा उदा-
हरणो माम पडच्े तेमाना चण देक लस्ष्टि.
१. जब्देरणार उभमियाक्षकरे मनुस्मृतिनो प्रथ अर्थ सदित छ
प्ये, तेमां माप्त भक्षण वेधी जेटला वचनो दधे ते कादौ नालवानो
चिर कर्यो. परठी कोश्य एमन करवानुं कष्याथी ते वचनो पुर;
„ पणोमो दाल कयौ. ~
३. अभ्यालयमायण अर्थं सहित पुणामां छष्युढे, तेनो अथर
करना दैव्णवे छे, तेने “गानिवेद्ययया विधि | ए कचन प्षप्यमकांडमां
तेनो मू षस्त टिकाकारनों र्थ करेोदे, ते युकीने ननो
अधं पोताना मत पमाणे रष्योदे.
३. परेश्वरषाकीए आर्थयिया सुधाकर नामनो संस्त्त प्रय क
टे, तेमो पुनामिबहनो बाद रुए्पोदे पण ते उपर पोतानो , अभिप्राय
कर्‌ पण ल्प्सो नयो. #
भागमा नादद जेट अरथ्ेतते प्याय नार्धे ते सै
बाजे मुस्ता छायक्टे एमां तो कट्‌ पण संचय नयो एनी अनगं
उपाप्तना उप्‌ टा प्रय यये ए भेट स्थोर्दे, हिदुस्थानना
4,
समके भवो उपना चटाबी तेयौ ए लोकम] तान केषु
गभी
गघु हतु तेभ मर्यादा ष्वानमां मावंतति नथी. हाल जे नाय
यना
रोके ते दिवना वशना केदेवाप. वशा वे
परकारना एक नाद ते
नीमो बिहु एछे यैस अने दित्य प्रपत, ते लोक
गेटे $
ब्ाल्ण ब्रषदेवना वेदिक यने बल्लानी ननोईं धारण
करि यमे
समे दिवना वश्च मादे दविवनी जनेोई
रएव्छे सौक्लि अने फी
धारण करोर, ए सोक पणाए्क वाममागीं नेवदधि,
राव जोगी
सपि पकडनारा वदिधो कान फाडनारा नाथ
अवेधुतमागा अकषर
भो ए वव्धाय नाय केवायद्े.ए्‌ मरम घणा
ब्राह्मण छानी रीत
कोकना धर्मा एक प्र॑य-दते ते उपर पति
मोटो उपासक कैटैपपणे
भने नादान शेक एनी पा गनुषठननु
दोगजो$ने तेने भागि,
देवता प्रषणे एदु समने मोदा भोटा राना
पण ९ एकोन भक्ती"
मां प्रेषे. केत
फेदेवत 9 भरकारनाे
छे के उपाप अण ठे “मणीमेजर सीषषी[ "
पेदेामे घोटा षे अने भीष
मत्र णर, प्रण अब्ानो स्येकोनी
भरति मतौ नपो तो प्रण पचात ए
बरस परमे जेटछि ए भराति दत तेरी
भान नयी, नेमजेम ठाननो भका
श रौ तेम सेमए भंधःकार मधये
णषु प्रेय सने .
ए भरत्तिनो पिस्तार्‌ यहु पयो तेथी जर्द
सवातं नी.
ोषो ग

तमाया दाल पृपुमो, कोर
देश ग्दीषो यतो नयी.
जे फोर अभ्यातत कटै तेने मात्र आदे
. पिन प्र॑ष वद्धा संसतम।
छ, मटे तेमते षन छेको
नाग
भग्रुनो जयम पाण्डे. पृष्‌ प्रय प्रारता नयो. तेषो ाश्रयनी
्त पषजशेतो तेम।र्क
+ ४५

नथी एम समजीने म्युनितिपाछिटीना कचरानी ग्डिमो रोक नांखी


दशे एमां जरा प्रण संक्षय नयी. आग जे प्रिथ व्यष्टि ते उपरथी
सारी पेड ए षात्त माम पडे.
मू परयना यचनो, राद, ते प्रयना वेचार परतियो दाया
आच्या होततो शुद्र यचन क्यं तेनो निय यात, परण एकज परत
दामां मने तेमांठेखकना प्रमाद घणा, तेय जेम हतु तेमज उतारी
, दि. मादे कैट्देएक ठीकाणे चूको रदेटी जणाशे.
॥ श्रीमुलाणेव, ॥
श्रीदेव्युवाच ॥ .
कुठेशपरमेखानकरुणामृत्तसारिपे १
असिषोरसंसारेखवेदुःखमटीमखाः ॥१॥
नानविधडारिरस्थाश्वानेताजोवजातयः ॥
जार्यतेचमुतेतेचतेयांअंतोनव्रियते ॥२१॥
केनोपयेनदेवोत्रमुच्यतेवदमेमभो ॥
४ टर्वरउवाच ॥
गणुदेीपरवक्ष्यामोयन्मां
वपय ॥३॥
तस्यश्रवणमत्रेणसंसाणन्मुच्यतेजनः ॥
चुरादिततिटकेषुदातेरेपुशरीरीणां 1॥
नमानुप्यं्िनामतरतखन्नानंचन्टभ्यते ॥
सोपानभूतंमे्षस्यमानुप्यंराप्यदुनभं ॥५॥
दै `
यस्तारयत्तिनाव्मानेस्मात्पापततरोनकः॥६॥
विनदेदेनकस्पापीयुरुपा्ोनर्भ्यते ॥:3॥
तस्मदिदधनेरदेय पण्यकमणीखाधयेत्‌ ॥
नर्ाप्योत्तमंनन्मलच्धाचेद्वियसौषं ॥ ८॥
ने्ा्मदीतेयसतुसभयेन्रद्घातकः ॥ ।
पुनयामामपुन तपन्तं पुनन ॥९॥1
पृनस्युभाजुमकमनशरोरंपुनःुनः ॥
निद्रादि्मयुनाहाराःखपाप्ािनांसमाः ॥१०॥
जञानवान्मानवःपरोकतज्ञामीनपञुपरिये॥
वेद्याखाण्वेषोररुढमानादतः्ततः.॥ १९॥
पहूदशेनमहाकूपेपतिताःपरावःप्रीये ॥
परमार्थननानेतिपदुपारानियंतरिताः ॥१२॥
पटमदरमशंढेवीषरतत्रपराद्चुखः ॥
अन्यथाचाच्यरु्रागोव्याख्याकुर्वतिनान्यथा

पतिवदद्चा्राणोयोधय॑तिपरस्परं
॥१२॥
नञञानेतिपरेतवदर्वपाकरसंयथा

मथिखान्नानगरधेन्ेदागममहारणवं ॥१४॥
खारजेनमहदिवोकुरधम मभूतः ॥
ऊचयममहमार्गगतामुकिपुसतत्रजेत्‌ 1१५॥
डस्याखमनादव्यपञयुशाल्ाणोयोभ्यसेत्‌

9
1

स्वगृहेपायसंत्यत्वामिष्षामटतिदुरमतिः ॥१६॥
अनारोक्यमनाप्ेयमस्पुद्धोचाप्यपेयकं ॥
मदयंमासंपसयनांतुकौलिकानांमहच्फलं ॥१.७॥
अमेष्यानिद्विजातीनांमान्पेकादशैवतु ॥
द्रादशच॑तुमुरामयंसवपामुत्तमंस्मुतं ॥१.८॥
मय्यद्ट्यादिदेपस्यप्रायश्वितमतीरीतं ॥
अविधनिनयो्न्यादाव्मारयप्रागिनःपिये ॥१५९॥
सवसेननप्केषोरेदिनादिपशुरोमभिः ॥
तूणवाप्यविधानेनकरेदये्कदाचन ॥२०॥
विधिनागाद्विजवापहिवायपिनेटिप्यते ॥
कु्ओाद्याणीसवोणीमगरवोक्तानिपा्वति ॥२१॥
प्माणानिनसेदेहोनदतव्योनदेतुभिः ॥
देतिप्रथमोख्हासः ॥
श्वरडवाच ॥
हीवायाःच्वागमाःसैरहस्यःपरिकीत्तिताः॥
रहस्यादिष्टस्यानांप्हस्यमिदमंधिके 1.१॥
ममपेचमुखेभ्यश्वपचाम्नायाःसमुदुताः ॥
परेश्प्विमथतदक्षिण्रौत्तरस्तया ॥२॥
उध्वाम्नायच्वपंयेतेमोह्षमागाप्रकी
सितः ॥
एकराम्नायंनुयरेत्तिसमुकोनात्रयः ॥३॥
७८
किपुनश्वतुम्नायेत्तासाकषच्छवोमेवे्‌॥
अंतःपोटाकुरेानीकुयासुरवोक्तव्रस्मना ।।6॥
महापोढाब्दयंन्यासंततःकुयस्खिमाहितः॥
एवेचिन्ताचुजेष्यायेतूअर्दनासेश्वरंशीव 1५
शरीप्रासादपसमंन॑सर्वम॑निसखामणी ॥
४ जपनुभुक्तिचमुकतिचमतेनान्संशय ॥६॥
पानसंद्रा्षमाधूकखञ्ुरीतोरक्षवं ॥
मघ्छुमान्धिकैरर््यनालिकेरनं ॥\9॥
मद्ान्येकाददीतानिभुकियुक्तिमदानीच 71
द्रादयेतुसुरमयंस्तैयारन्तमंपरिये ॥८॥
गौडिमाध्वोचषटिचविज्ेयाननिविधामुरा ॥
स्मसिरथकर्ा पेोमाप्वीमोगग्रदायीनी ॥९॥
ोडीमुकिकरोज्ञेथोसुराख्यदेवताशपियाः॥
विदाम्रदे्वीहाखद्रा्षारनप्रदाभवेत्‌ ॥१०॥ -
ताखुजास्तेभनेखस्ताखनुरोरि
पुनादवानी ॥
नाचिकेरफलाभीदापनखाख्याश्ुभःप्रदा ॥१९॥
मधुकनाज्ञानकसीचारिएरोगनारिना॥ `
मैरेव्याख्याकरुरे्ानीखर्वपापप्रणाद्विनी ॥९२॥
` क्ीसृलषयुदुतमाभ्यंवक्क खुद ॥
मुपुष्पषमुदूतमाखवतैदुखेदरयं ११२॥

य्षानद॑रूचिकरंसामेदं
चमनोहरं ॥
मयतदुतमेदेवीदेवताःप्रीतिकारणं ॥१ ७५,
सुरादशंनमात्नेणसवेपःप्रमुच्यते ॥ ,-
^. त्ैषघाणमात्रेणतक्रतुफलेटभेत्‌ ॥१५॥
मदिरावृप्षनाग्राहयाचेतःखोधनसधनं ॥- -
तासमिकांसमादव्यपुलाकर्मखमारमेत्‌ ॥१६
मसस्यमांखादिसदिताअष्टगेषेःसुमिभिताः॥
मासंतुत्रिविधपरोक्तंखमूनट्चरंम्रिये ॥९.अ॥
ययासंभेवमेष्वेकंत्मारथ्रकत्पेत्‌#
मांसदरछनमत्रेणमुसादशचेनवरफं ॥१.८॥
पितुदैवतयज्ेुेदै
मरौसाविधीयते ॥
आमार्धग्राणिनांहिंखाकटार्चिनोत्मोपरिये ॥ १९॥
अनिमित्ततृणेवाप्किदयेन्नकदाचन ॥
देवतार्थदविनंगायारदलापिनंङिप्यते ॥२०॥
मानमित्तकृतेपापुण्यंभवतिखाभवी
मयमांखविहीनिननकुयं पनंरिवे1२९॥
पिद्धितंमापमात्रतुतददमछिविंहुना 11,
सतत्तपणमात्रेणकोवियन्नफटरभेत्‌ ॥२२1
कुन्दपुमातिरायंहियःकरोतिसदुमतिः ॥२३.
संहेतिनरकंषोरमेकरिंशतिभिःकुरे ॥
५©

तस्मात्छैपयलेनकुरपूलापरोमवेन्‌ ॥२५॥
ठभतेस्ैसिटि चनातकापाविचाप्णा ॥
सम्यक्‌कतुखातरुलायद्फटं समवायात्‌ ॥२५॥
तरफठंसमवाप्नोतिदलाश्नीवक्रसाधनं ॥
सर्धत्रिकोवितीपुसालायस्फलमा्ुयात्‌॥ २६॥
तरफर्टलमतेद लाभक्तयाश्रोचक्र साधनं ॥
सीेकेष्णेवेशक्तिसीरेसिद्रतिद
रोने ॥२७॥
विनाल्िपिरितम्यातुंपूजनेनि ःफठभवरेत्‌ ॥
मंतपू्कुर्दरवयगुरुदेवार्पिताभिये 11२८
पितरैतियेजनाःसतेपांखतपाप॑चनारिप्यते 1
सुणल्क्तिःशिगेमांसंतदरोकाप्ैखःस्यं(२९॥
तवोरकखगुलयंनोमानंदोमेक्षउच्यते ॥
देषपिनृन्समभ्यच्यटेवीशाखमोक्तवत्म॑न॥ ३.०
गुरंस्मरान्थरेन्मदयंसवादन्मांसंनदोपमाक्‌ ॥
ययाक्रतुपुवरिप्ाणांसोमयाननदूितते ॥२.२॥
मद्यपा्नततयाकार्मषमयेभोगमेष्दं ॥
एणोमिपेकयुक्ानांपानंदेवीनिगयते।२.२॥
व्रिलापिलपुनःपिलायावसततिमूतले ॥
पूनसरथाययःपिलापनर्जन्मनविदते ॥२२॥
अनं तुप्पतेरिकमूलयप्ेखः सवं ।।
५९.
वमनात्सर्वहेवां श्चतस्माविवििमाचसेत्‌ ॥३४॥
दिव्यपानरतानंवरियसुख॑कुलनायिके ॥
तस्सुखंसा्ेभीमस्यनुपस्यापिनग्ियते ॥२५॥
उचिष्टभक्षयेच्खिणांताभ्यामुकिष्टमपयेत्‌ .॥
प्रृत्तेवहिरेचकरे सववणोद्विनातयः १२.६।।
निवृत्तेनदिरवेचक्े सववणो पृथकूपुथक्‌ ॥
` स्मीवाधपुरूपःपंदोचांडारवाद्धिनोत्तमः॥२.०॥
तरकमध्येनभेदोस्लिखवैदेवखमास्मृताः ॥
्षीरेणसहितंतोयं्तीरमेवयथमवेत्‌॥२८॥
तथाश्रीचक्रमध्येतुलातिभेदोनव्रियते ॥
मद्रपः पुर्पाःस्वेलदूषाःप्मदाःपरिये।।३९॥
चक्रमध्येतुमुटारमाजातिमेदेकरोतियः ॥
मयकुंभसहष्यैव्चमांसराख्ीखतानिच।॥०॥
नतुप्यागरििसरोहेभगलिगामूतंकिना ॥
मचक्राकिनपद्याकंनवच्ांकमिर्देनगत्‌ ॥१॥
िगोकरचभंगाकंचतस्माछक्तिरिवात्मकं 11
हिवरद्ाकतथोसतुसयेगोयस्मिन्कलेगपरनायते॥७२॥
ससाध्यकुलनिषएटानांखमाधिमसविधीयते ॥ `
योगिनोमदमन्तापततिप्रमदोरसि ॥४३॥
मदाकुटा्वयोर्गिन्यापतेतिपुरुपौपरि ॥

मनोरथतुसंपर्णकुतश्चपरस्यरं ।॥४।
एतचक्रगसावा्तनाहिमैवमक।दोयेन्‌ ॥
भत्क्पासरह्षताधोोगोपयेचप्रयलतः ॥४५॥
गणुदेवीपरक््यमीयोगोयोगीशारल्षणं |
' तस्यश्रवणमत्रेणयोगःखाक्षासकाद्ते ॥४६॥
प्यानेतुद्िविधप्रोक्तस्थूरमूष्ष्मपिभेदतः ॥
खाकारस्थूलमिदयुक्तनिरकारंतसुष्मकं ॥५७॥
नशुणोतिनचघ्रातिनञुएवतिनपदयतति ॥
नजानातिसुखंदुखंनसंकद्पयतेमन ॥८॥
एवंदिविरीनास्मासमापिस्तमिहोच्यते ॥। .
यथानठेनलंतिपंकिरकषरंघृतेषृतं ॥ ५९१
अविशे॑भवेतदरतूनिवा्मपरमात्मनीं ॥
यथाध्यनस्यखमय्यौक्कतीयोपिभमरायते ५०
संपाखमाधोसामव्यांजदयशरतोमवेत्परः ॥
यथागादाधकारस्थोन किचिदोहपदयति ॥५९१॥
"आखनस्कस्तयायोगोमपे्त्रैवपर्यति ॥
नपप्रासनतंयोगोननासायनिराकषणं ॥५२॥
रेक्य॑नीवासनाराउयोगंयोगविकारदाः ॥
तरणत्रमादमस्मितोय.कुयादार्मयितनं ॥५२॥
तस्स्वपातकंहन्यात्तमःसयोदयेयथा


्रतक्रतुस्तपस्त्थदानदेवार्चनादिपु ॥५.७॥
यत्फटकोटिगुगिततदेवापरोत्ितववित्‌ ॥
उत्तमासहजारस्थामध्यमाध्यानधारणा ॥५५॥
लपःस्तुतिःस्यादधमाहोमपूलाधमाधमः ए
प्के दिगुणंसतोतरसतोतरकोटिफठंजपः ॥५६॥
लपकोटिफर्टध्यानंध्यानात्कोटिफटंर्यः॥
म॑तरोदरविनासंष्याजपहेमिर्विनातपः॥५७॥
उपचारििनापलायोगीनियंखमाचरेत्‌ ॥
` क्रशेचिदादिव्येसदाभतिनिप्तर॥५८॥
हद
विनास्तमध्येतिकथंसं्यामुपास्मदे ॥
वेहेषि ग्येदेवीनीवेदेदःखदाशिव :1\५२1
सनेदज्ञानेनिमी््यसोहेभवेनपून्येत्‌ ॥
जव ःशिवःङिमो नीवःसजीवःकेवटम्दिपि ॥६०॥
छमडोप्मतोनीप पारम ःखदारिदः॥
पुपेनबदधत्रीहिस्यातूतुपामविनतंडुकः[६.१॥
कृमनदस्तपातगोकममुरःरुदारिवः ॥
अ्रीनिषटतिविप्राणाददि तितियो गनां६२॥
प्रतिमाग्यन्यदुदानासपत्रखमद विनां ॥
टि ममन रयरसस्ड तायने(य्‌ ४.२.
सेवमेदवरिुषामयृदरानानृफनक ॥
५४ `
सदामांखाख्वोदाससदाचरणार्चतकः॥६४॥
सदासं शयहीनोयम्क्ुख्योमीसखउच्यते ॥ `
पिविन्मधंपर्सा्यंसेडाचारपययणः॥६५॥
आमिपारवसौरभ्यहीनंयस्यमुखंभतरेत्‌ ॥
प्रायश्ित्तीसवजश्चपशयुखमखंययः॥ ६६)
अनाचारारखदाचारःअकार्यकायेमुत्तमं, ॥
असलंमपिसस्यातूकौलिकानामदेधसे६41
सपेयमपिेयस्यादभ्षयंमक्षयमेवच ॥
अगम्यमविगम्य॑ चकौलिकानाकुलेश्वसं ॥६.८॥
नविधिनंनिपेधश्चनपुण्येनचपातकं ॥
नस्तमेनिविनरक-कौटिका्नांकुरेश्वसी 1६०॥
दुगुणाभखगुणयंतेभूकुरंतचुलायते ॥
वघमव्वापिथमतिकपलिकरानकरर्श्वसी ।॥७०॥
मद्वेजायतेदेवीस्वगैःसाक्षात्मृहायते ॥
स्ेव्यापीययासूर्य ःसमेभक्षाययानरुः ॥७९॥
समस्परिाययावरायुः्तयायोगीखदाञुचिः॥
सवधमधिकोदेवीकुरुधमेःकषीवोदिवः॥७२॥
मादवसामिकरेटासेनमेरोनचमेदिरे॥
कुटज्ञायचरविएटतितत्रतिष्टामिभामीनी ॥७३॥
द्यानाटर्चनात्तसणव्रेखमकूलमुद्ररेत्‌ ॥
५५९
समाशं संन्तिपितर :सुवृषटिमिववषंकाः ७४
अस्मक्कुखेयुपुतरोवापौतरीवाकौ टिकोमवेत्‌॥
लहूक्तपूजनादेवी पृनितोहंनसंदायः 119५॥
कुठनिषटान्यरित्यभ्यय.सवान्यसरप्रदीयते ॥
स्महानैतगुहेदेवीदतापिन कं्रनेत्‌ 1.9 ६॥
तवप्रप्यतथायोमीखनेत्कमेपरि
महं॥
पुण्यपावैनैरिम्यंतेयेपात्रद्यसटदिस्थितं ॥७.७॥
पृथिव्यांयानिकमोणीनिव्होयस्यनिमित्तकं ॥
जी्दोयस्थपरित्यागीकर्मणाकिंकरिप्यति 1.9८॥
मधंमासंचमर्स्यचमुद्रामैधुनमेवच ॥
मकारंपचकंदेवोदेवता प्रीतिक।रणं॥\५९॥
रुप्णाष्टमीचतुदंदयाममावास्यादिपरमा ॥
संक्रातिःपचय्ीणीतेपुपुण्यदिनेपुच ॥८०॥
यथाकारंयथादेरंतथापूल्ाखमाचरेत्‌ ॥
भक््यमोज्यान्नपानाये क्तीराज्यमधुभांसकौ ॥८१॥
मत्सपमांखादिविविधमक्ष्यभोज्यसखमनिितं ॥
कुर्यान्नवकुमारीणापूज्ामाशवीनमासखके ॥८२॥
अाएटकाच॑नेकुयाछक्तिचैकैकवासरे ॥
दुतियागूतुयःकूरयातुपक कपिधिनाभिये 1८३॥ ,
कूटपूनासतोभूयादमिषएटफटषिदये॥
५५६.
कृर्पलाधिकोयज्ञःकृस्पूजाधिको्रतं ८५५
नास्िमाद्ति पननास्तिमाशं ककुरनपयेके ॥
कुरुधमपरसगंतुपसुना परत प्रीये ५ ८५॥
कंदाचिनैवकुर्वितरुद्रगरेवेदपाटवत्‌ ॥
यप्रारत्ततिचोसे्योधनंधान्याबरादिकं ॥८६)॥
कुरुधरमेतयदिवीपलुभ्यःपरिपाल्येत्‌ ॥
अतःकौलंवहिःदोदसभामध्येतुवेष्णवं ॥ ८.५॥
कौलमुगोपयेहेवीनालिकेर फलांबुवत्‌॥
बेदसाख पुराणानिस्पणेदयां नामिति ॥८८॥
द्य॑तुखामिवीवियागुप्रकुल्वधूरिव।। .
चांडाटीचमेकारोचमा्गीपुरकसीतथा ॥८९॥
श्वप्वीकटकोचैवकौवनितरिश्वयोपिता ॥
कुरुष्टकमितिगर कतसमयाचारपार्काः।1९.०॥
गुप्वावहवःसंतिवेद दाद्यार्थपारमाः ॥
दु्मवगुर्वीकुरुखणच््ाथपास्याः॥९९॥
गुरनागहवःसंतिद्िपच गृहेगृहे ॥
दुरुभोयेगुर्दवीसूयेवरसदीपकः॥९.२॥
गुस्यीचहवःखुतिशिप्यवित्तापहारकाः ॥
दुरकमेो्थगुरवीश्चिप्यटततापहारकाः॥९.३॥
रिनारीक्तानमात्तस्यायाधिनास्िवद्ाचनात्‌॥।
५९,७

गुरुपदिष्टमा्गेणवोधंकुयादरेचक्षणः॥९.
पाशचगुक्क्षणाङ्किष्यपरानंदमयोभवेत्‌॥
वोधकद्रारिवःखाक्षान्नपुनजेन्मतांत्रनेत्‌ ॥।९-५॥
एपातीतरतरदक्षिभववंधविमोचनीं ॥
सजीवमीनयुकतेनसुरया पुरितेनच ॥२,६॥
अयंसिद्धाभिपेकस्यआचायोख्यस्मपाकती ॥
पूणमिपेकहीनायेमूता्चकुखनायिके॥९.॥
सिस्थापूणामिपेकेणश्िवसायुज्यमान्युयात्‌॥
तेनमुक्िजनतीतीशभिगीवाक्यमत्रीवीद्‌॥९,८॥
दौक्षयामेक्षमाम्रोतिचांडालोप्िद्छ्या॥
दीक्षयादग्धकमौसौ मायवििन्तरैधनः २.२
गतःषरांज्ञानका्टानिरविजस्तुरिोभवेत्‌ ॥।
दीक्षसंस्कारसंपत्रेजातिभेदोनविदयते।\१९.००॥
नफठंतिग्रीयेतेांदिटायामुकवौलवत्‌॥।
देवीद्षाबिहीनखनसिदिनंचसद्रातिः ॥२०१॥
जपयज्ञायरोयज्ञोनापणेस्तिहकग्न ॥
तस्माज्लञपेनध्माधकाममोत्तेरमेसीये ।॥९०२॥
पुण्यक्षेत्रनदीतीरमहारपवत्तमस्तकं ॥
तीम कसिभुनांसंगमःपावनेवनं ॥२०३॥
उद्यानानोपरिचित्रानीतरिखमूल तथागीरेः॥
५८

साधकानागरश्स्तानीस्थानान्येतानिरमंत्रि्णा१०४
अथवानिवसेत्तचयनाचेततग्रखीद ति॥
गृहेशतयुणंवा
ि्ाततूगो
ूगोेधिकष
जक्षगुणं
गुणंभवेत
म ्‌ ॥१०५॥
कोट्दिवाय्येपोकतंमनंतदिवसंन्निषौ ॥
वाचिकंमानसंपापंकायिकंबापिछतं 1१०

तस्स्वनिदहेशषरमाणायामत्रयेरते ॥
अक्षमाढाद्षाप्रोक्ताकलिताकलितेकिव १०५
कल्पतामणे ्िप्नाचमातृकस्यादकलिपिन्ता॥ ॥
अन्नदतुःफलःस्यार्थकठ ्वार्यनसंशचय॥१०८॥
तस्मात्सकप्रयलेनपरान्नेवजयेद्पिये॥
मनोन्यत्ररिवेन्यतरशरन्यन्रमासाति,-
दुरभंमप्यमानुप्यतत्राग्न्रद्यविमहं ॥ १०९॥
प्जन्मानितापुण्यानसोभ्रलामहीते।
नसिभ्यतिवरारोदेरक्षकोटिलगादपि ११०॥
वादार्यपठतेवरि्यापरार्यकरियतेतप

५२.
धनार्यगम्यतेतोरधुक्यर्यकरियतेनयः ११॥
काम्या्देवतायाजाकर्यसिदधिवरानने 1
॥११२॥
नपध्
4
यानादियुकस्यक्िपरमतरः्रसिष्यति ।
(छदधम॑नस्यतिष्यंतियड्कमाणिनसंश
कम्यप्रयोगकर ायः॥ १९.२॥
्तृ्पर्लोकोनविद्यते ॥
५५९.
होमतपणयंत्रचमुद्राध्यानविरोपकै ११४
आस्मनश्वपर्वापीपटूकर्माणीखमाचसेन्‌ ॥
प्योगतिचक्रपूजासवेमेदसमाचरेत्‌ ॥१९५५॥
कुर्दरन्यादिञुर्दिचज्ञालापूजनमारमभेत्‌ ॥\
सवैकार्यदेवगृहस्मद्यानिकुरकमैच ॥११६॥
श्रीमासादपरामंत्रम्ोत्तरसहस््कं ॥
तरुणोलासखटितोमंडरग्रजयेद्पिये ॥११.
अपमृद्युमहासोगनरामरणजंभयं ॥
निलाधिन्यापीरदितःपुत्रपीत्रसमन्वितः॥११.८॥
जविद्र्थरातंसायंपजितःसरवमानैः ॥
्रद्मादीस््भयेदेवीयमादीनाुमारणं ॥११९॥
देवदानवगेधवेसिद्धकिन्नरगुद्यकान्‌ ॥
विद्याधरान्मुनीनूरसषानूनन्यनिष्सर्सःस्थियः१२०
सिब्हव्यघोमूगेद्रादिअन्यान्दुषटमृगानये ॥
वद्ीकसो्यसंदेदःफिपुनमानवादिकान्‌ ॥१२१॥
सर्ववदयकरंदेवीखवेश्वयंफलप्रदं ॥
स्गदवि पुण्यरोकेपुनातिभेटोनि्यते॥
उध्वान्नायःसमाख्यातःखमासेनचविस्तयात्‌॥
कुलाणवमिदैशाखंयोगिनीना्टदिस्थितं ॥१२२॥
प्रकाञितैमयनियगेोपनीयप्रयलतः ॥
४०

पस्तकंचकुलेशानीपशुगेहेननि
पेत्‌ ॥९२२॥
नदयास्यशुहस्तननण्ठेपगुसंन्निधौ ॥
निचयसंपुलयेहुकबानानौयादस्वक्रतः ॥१२४॥
नापुत्रायग्रदातव्यैनाद्प्यायकदाचन ।।
साधकानाहितायौयभुकतिमुक्तिफरपिण ॥१२५॥
यसनूदौत्रायमहासमपठेश्रोचक्रसंनिषीं ॥
` भक्तपापरमयदिवीयखुणोतिसकौलिकः ५९२६
चतदावतपस्तिर्थयज्ञदेवायनादिषु ॥ `
यरफरुकोटिगुणितंकमतेनात्रषंशय ॥१२५७।
इति्रीभीमत्कुख्णतेमहारदस्यर्वोगमोत्तमेख
पादकक्तग्रयेपवमसंडेमो्षपादेनामत्रासनादीकयरनना
मसप्दओद्हाछः।
नमःभीकुखनायिकायेनमः ॥
अथयामारहस्यसार.
रुपाणोबहुरुख्यानिपररुतेःसंतिभ(गिनी ॥
तेपांमध्येमदेसानिकाचिसपमनेोहरं ॥१॥
तस्याउपासका तत्रदयविष्णुशिवादयः ॥1
चंदरमूय्वर्णनकुमेतेभ्निःस्तथाप्रः 11२
दुवोसारीवसिर खदत्ततरियोवृदस्पतिः ॥
काटिकायाप्रसादेनुकतिमुक्टयादिभागिनः ५३
६९
॥ अयरव्ेदेख्यामोपनिपट. ॥
अथहैनान्नरेपरेत्रद्यसरूपिणोमापरोतिमुभगां `
व्िगुणांरलातदरवंदन्तिणेकालिकेदस्यमिगुख
त्तातदनुबीनसकमुचायनृहदानुजायामुञ्चरेत्‌
सतुश्चिवमयोभवेत्‌॥ सवेसिहिश्वरोभवेत्‌ ॥
सतुगागीश्वरः सतुदेवेश्वरः ॥
सवेवेदैरापेतोभवतु ॥ सतुख्तीयेपुस्वातोभवति॥
सस्वयज्ेपरदि क्षितोभवति॥ इ मंउपनिषदं
योनाधीतेसा पुत्रप्तरियति ॥ निदेनीधनीभवति॥
घमौर्यकाममेोक्षा्णापात्रियते(गंगादितीये ॥
स्ेचाणाबन्दिठीमादियज्ञानांफर्मागीयते ॥इति
अचैयनूिपयैःपष्ैस्क्षणात्तन्मयोमवेत्‌ ॥
न्यास -स्तन्मयतानुदि ःसोहभवेनचितयेत्‌ ॥१॥
स्वव॑शादधिकंजञेयंगुस्वं महाशुभे ॥
आदौखवेन्रदेवेडामन्रद
:परमोगु सः॥२॥
पापररगुरुस्तेहिपरमेष्टिगुरुस्तया ॥
ततरादौकालिकादेवीतस्मात्गुणुगुस्करमै।1३॥
महादेविमहादेवखिपुरश्रैवमैरवः॥
दिव्यौषागुरवबःप्रोक्तासिदौव्राकथयामिति ॥॥
ब्रद्यामंद शरणद श्वणवित्त
ररे चनः॥
ध्र
४ मारःकरोधन-धववरद्‌ःस्मरदीपनः एष्या
मायामायावतींचैवमानगीवासुणुषरैये ॥
विमरथ्ुश्चरःवभीमसेनःतुधाकिरः ॥६॥
मीनोगोर्तक ैवभोजदेवःप्रजा पतिः ॥
मुर्देवोरंतिदेबोवित्रेवर्टुताशनौ ॥७॥
समयानैदसंतोदैकालिकागुखःस्मृताः॥
आंदनाधश्व्दतिगुखःसवसिहिदा॥८॥
च्ियोपिगुरस्याशचेदेबान्ताःपरिकीन्तिताः॥
तात्रिकोरप्यांकुयोत्‌ ॥ गुरंतमेत्‌ ॥ _ ,
श्रीमातीडमैरवायमको राक सहितायरपोष्यः+
स्वाहया तित्रिवार।अयकाटिमायत्रि ॥
काटिकचैविद्हेस्मानवासिनीधीमदी ॥
वननोषोरःप्रचोदयातुप्अस्यापठणमात्रेणमदायातक
कोटयः|खद्यःप्रखयमा्यातिखाधकरस्यनचान्यथा॥
एदणस्यवधाचैवसमचंद्रोतिमोचि्तः॥९०॥
आसकन्याकर्यणायन्रद्यापिचप्रिमोवितः ॥
मातृधासप्डुरामोनिश्वपेनविमोचितः ॥११॥
मुरापानाचय्रीरप्णोदत्ततरेयस्तवेक्च ॥
एवमेपामहाग्िगोत्यदिविषुंदरौ ॥१२॥
एर्वभ्याखामहाकालिनपेरक्षचतुष्यं ॥
हद
विरक्ते निखपत्रैःतदशंशोनहोमयेत्‌५९२॥
पजादौविनयाखिकारः॥ इ तिविनयाकस्ये ॥
ध्यानं ॥ कराख्वदनांवोररामु्तकेखीचःतुभुजां ॥
कालिकादक्षिणांदिव्यांमंडमाराविभूपिताः॥९.७॥
सद्यःकरुतरिरःखड्गमुदद्यकसघ्चजां ॥
उभयंबरद॑चैवसिदिद्रयकबरजां ॥१५॥
महामेघप्रभांलामांतचैवचदि्गबयं ॥ -
कैटावसक्तुं डालिगरेरधिरचचितां ॥१६॥
कणौवत॑सतांनीतदवयुग्ममयानकां ॥
-धोरर्द्करालांचपीनोत्नतपयोधरां ॥ १.७॥
शवानांकर संघात ःरुतकाचिहसन्मुखीं ॥
घौररूपांमहारो द्िस्मशानार्यवासि्ीं॥। १८॥
छावरूपमहादेवहदयोपरी संस्थितां ॥
महाकाटेनचसमंविपसतरतातुरां ॥१९॥
दतिध्याला ॥ सुरयात्रचियुक्तेश्च
पूयेद्रायथविधी ॥२०॥
अथसुरखश्चापमचन ॥
उकारेणत्रह्यशापेविमोचयेत्‌॥ सुरेरप्णापंव्िमोचय॥
अमूर्श्रव्यस्वरादा इतिमंत्रजधंदेवरिषटंभुवा्ठेत्िधा॥
शुक्रकपविमोचितवमुरादेवयेनमः ॥ अप्यद्य ॥
-६
मातमाननद्रकुंडगोरमुरासंदोध्यनिक्षिपे्‌ ॥
ग्रतरप्णुस्तवतेति ॥ मत्रेणमांसं शोधयेत ।।
न्नरकेणमिनं, खद्विष्णोरितिसद्रा, विष्णयोनिमिति
कुडगोलोदू्ं, घटसमपेगुरुपानं, देदताप्ं;
सक्ति
पा, स।गनीपात, वीरपात्र, वलिपाचं,
सपान,
प्यपन,अघ्यपर्चरःआचमनीयपार्तर+कमेणस्थापयेत्‌,
अनेदभेरकंतर्पयामि, ॥ दतिरमतरेणतरपयेत्‌ ॥
॥ अयत्ते ॥
दवापजासदाशस्ताजलक्नैःस्थलनैरपि ॥
विहितेवानिपिदैवमिक्ियुरेनचेतस। ।1१॥
शार्मत्स्यचपाटीनंगोधामांसमनत्तमं ॥
उशकमपख इग्चसद्र॑कं सहस्रकर ॥२॥
गालमासवयहन्वमां संनानासमुदूं ॥
छप्गन्डरगमहामांसेगोधिकाहरितेतथा
॥२॥
जख्नंमत्स्यमांसेचगंडकीमांसमच ॥
बरसछागास्तथमेपामहिपाशाशकीस्तथा
1 %॥
एतपाचवरक्तानोदेयानिपरमेन्वरी ॥
रजानस्वाङुदय्ातूनान्योपिपरमेश्वसं
1५॥
॥ अयतलृदानं 11
अधात्ता्डिदानस्यतिषानोत्रम्रचक्ष
प्ते ॥
६५
चामररुप्णसार्मसस्यमेपश्चसुकरः (।६॥
महिपोवानरःखड्गोबल्च्िगादिकोभवेत्‌ ।
शरेतरुप्णोरोदित्चकपिरःच्ितरपांरौं॥91
पड्विधःछगरःप्रोक्तागृहस्थानांपरोबरिः ॥
पेचान्देमहिषंश्चेेप्रशस्तंपरि
कीरितं ॥८॥
गेडवषसहस्ताणोमहिवैशार्दःखातं ॥ ,
ऊगछ्वस्सणदुर््वद्ादान्ददशाब्दकं ॥९।1
मनुष्येकोविविपौणीतूरिंगछतिदेवता ॥
नदव्याद्यपसोर्मासंहत्यकव्य्॑िरोयतः ॥१०॥
हीनिद्रीयपक्लोमीसंदुरितःपरिवजेयेत्‌ ।
दिवानजुुपान्मांसंसंध्यायांखारखानके ॥१.९॥
एकेनचखह्स्याद्दिगुणंचादधराज्के ॥
पवैसंपौशातगुणंतियिसंपीरतोतरं ॥१२॥
योन्यांरटेशतगुणंस्थं डिरेपिनचाचरेत्‌ ॥
अधसंगरक्षणंरुलावरिंसमुर्ृजेलुधः॥१३॥
स्वयंपर्वमुखोभूलावरिकुयांदुदग्भुखं॥
अषप्ैतयययंस्यातूसिटुरायैररंकतं ॥
अष्यपात्रोदकैरादधै:मूलेनमेक्षयेनिशः॥१५॥
पुरपसूक्तेनपरो्षणं ॥
छागलनङिरूपेणमममभाम्यदबास्थतः ॥
दष
प्णमामिसदाभक्त्यासूपिणंवटिरपिणं ॥१९५॥
चंडीक नङिरूपायवसेतुभ्यनमोनमः ॥
यननर्थेपडावसृवाखयमेवखयंभुवा ॥१६॥
अतस्लाघातयाम्यद्यततस्माद्ज्नेवधोवधः ॥
आनियसंपुरलोगेधादिभिःखमचेयेत्‌ 1१७॥
रप्णंपिनाकपाणींचकाटरानिः्खसपिगं

आखीद्विक्ेपणःखड्गतौष्यधासेहुरासदः।१८।
थीगमेवोलयःञेवधमेाकनमेो सतते ॥
दतिप्यालायाजकः ईफडितिमेत्ेणस्कंपे
खटूगनियोजयेत्‌॥ पशचतरखर्गेणदिपि॥
दिपेपरिज्वखदियोयावस्काख्पवतते॥
तवलकालवसेरसगेतस्मा्यलेनद पयेत्‌।1१९॥
मंत्रसिल्व। भू्रोचनगंधा्चपद्ममष्येसुदधोभनात्‌।
भत्रखधनयोरेकयदुरभेभुविमानैः
॥२०॥
॥ जयपानं॥
एकपात्रपितदरवेभुनितैकभ।जने 0

विनामतरेययोपानंषिनाम्िनतकषण॥ २१॥
पनायवत्यातुयवयानं तसपाननिम्
फभवेत्‌ 7
अन्धानय॑दनं साविनितदमृ
नः ॥ २२॥
उच्चफभक्षयतूिातभ्यनिटिएम
कयत्‌ ॥
६.3

पीलापीलापुनःपीलाथावत्यततिभूते ॥२३॥
साधकानांशिवाःसंतुञन्नायपरिपालिनां ॥
जयंतिमातसाःखबोनयैतियोगिनीगणः॥२४॥
जवंतिखाधकाःरस्वनेदतुमैसादयः ॥
तुष्यतुपितसःरव । सिडविद्यधरादया ॥२५॥
शात्रवोनाल्लमायान्तुममनिंदाकर
श्वेये ॥
इतिशातिस्तोतरं ॥ २६ ॥
.॥ अथसदहष्यनामानि ॥. , ,
' अयश्रीदक्षिणाकाचिस्तोत्रस्यतरैसखक्पीःस्यशा
नकाकिकादेवता ॥ धम्मेक्षायेलपेतरिनियोगः॥
स्मशानकालिकाकाटिभिद्रकाछिकपाछिनौ ॥
गुद्कारिमहाकाटिमहाकारनितंत्रिनीं ।॥१॥
भगरूपाभगस्यातरीभगोनिनगवासिनी ॥
लिमस्थारिगीनीरिगरूपिणीकिगसुंदरी ५२॥
कु
डपुप्पसदाप्रीतीर्गोपु"्पखदारतिः ।।
कुंडमोटोदूवगरीताकडमोखाद्वात्मिका ॥२॥
शुक्राख्याशुक्रमोगाशुकरपुजञाखदःरतिः ॥
शुकरसताताजुक्रदेहाशुकरृषटिविधायिनौ ॥४।॥
भगचिगामृतमरीत्ताममङिगस्वरूप्िणि ॥
खयम्‌कुसुमस्सातास्तयभुपुप्पघारिणि ॥५॥
इयादिष्टतिकालिकानान्नांखहस्
गुद्य्दयतरसाक्तान्महापातकना
किभापितं॥
खनं ॥
यंयंकामयतेकामेपठन्स्तोतरमनुत्तमं 11६
देवीवस्मखदिनतं्ेगराप्नोतिमानव; ॥ ॥
,
स्वयधकुदुमेःशुकःमुगधिकुमुमान्वतैः ॥७॥
यतरयाककिदुररकचंदनसंयुतः ॥
मत्स्यमांखादिमिर्पिरमघूभि सान्यपायसै, 1८॥
भकत्योपनीतिःसेत्रेणसाितिःशक्तिमिसह ॥
पेचोपचरिनधेवलिमिवेहुशोणितैः ।1९
धूषदीपिमेदाेशएूनयिलामनोदर ॥ - .॥
रवारूढाितास्योवस्मदानारयमागतः।
अनन्यचेताः स्थिरथीगुककेदादिगवरः॥ १०॥
स्वविद्यावतांमेोदुनेयःानुमरदैनः
बायुतृल्यवलोटोकेखयसिद्धिखमन्वितः।९१॥
1
मार्कंडेय वायुप्मानूनरापटितवमित
महद्द्‌वयोगीद्रः सर्वाकपंणकार ः ५१२॥
कः +
यहुकिंकथ्यतेतस्यपठत; स्त्रमुत
्तमं ॥१३॥
युररदगगरितादपोनायतेमदनोयमः
स्नेखाभगं प्रय्यनूनप्लाकरः
1
टिमहामनुं 1१४
आादधोक्यत्‌चित्येद्राकवख्रपरये
वितां ॥
हर. ॥
सुरतेपुमतजप्तास्तुलाभिगवतीदिवा ॥९५॥
शुक्रोव्छाएणकाटेचजपपूनापरायणः॥
. जप्वस्तुलामहाकाङिखिचरोनायतेविरात्‌ ॥ ९६॥
स्तंभयेदखिलातोकानरजानमपिमोदयेत्‌ ॥
अआकर्षयेदेवकन्यावरायेदपिकेरावं ॥ १.१
नरमाजरमाहिवखछगमूपकदोणितैः।॥।
सास्थिमांतैःसमधुमिःसामूतैदुगधपायसैः॥१८॥
योनिक्षाखीततोयेनभगिमामूतेनच ॥
क्रःपूजाज्प॑तिचकारिंसत्यसाधकेः॥।
मतिवकालिकातस्यसुषैत्रहितिकार्याणी ॥९९॥ `
, इतिश्रीकाचिकुरुस्रखेदिवषस्टुणम
संवादेमहाकालिग्तुतिसदस्नामसंपूरण ॥
अथस्ट्रयामलोकतद्यामासव
प्रारभ्यते ॥
॥ मैखउवाच.॥ -
मह्तीचेतनामायामहादेवीमहेश्वरी ॥ ,
इत्याहि (अत्तरमकारनामानि ॥
यददेकीतेयेदुक्त्यारिपमस्थोमवेयदि ॥
लोहप॑ननरमध्यस्थतस्थनदयतिनंधन ॥१॥ ,
रानानोदास्तायाप्निभवेत्सवैलनमियः॥
अचरखधियमाप्रोतितस्यनद्यययुदरबाः।।२॥
\५9०

संयामेनिजयेन्छनरूरुखगवत्यत्रगा
ते
नविपक्रमतेदेहेनमृलयुःपावकेले॥ ३॥च॥
नाकाठमर्ण॑तस _ ,
्यकदाचिन्संमदप्यति॥ द त्िसः।
अधस्तरूपाख्यकुरस्तववीरतंत्र
े,
सलोमास्थिसैरपल्कमपिषाजोर
परंमेपभी मक िति
मै पंनरमहिपयोखागमपिवा आ
बलिनतुलायामपिवितरतांमर््
सुता यवसत
ंसिदि -खवापरतिपदमपभव
ूवति

भखदसणांचरणार विद,पिना ॥ १॥
श्नयामोगनन्पयामोनचकल्म नम न् ये नच
नचाश्रयामोनचदेवमन्ये
या मो ,
।- परद्रयागञेकारमैरवसंव । २॥
ादेकारिकक्चुिका॥
भूनलविखमाटिख्यचकरतजव
िन
एतयनमहेशानिखुपसुरसुदमेिरितं ॥
गनाकुमिनतरदाेक ॥१॥
पतपतेणसटपवयकषयापरिमड वच खे त् ‌ ॥
संपूज्यदेवतास्पा ये त् ‌ ॥२ ॥
मुटिकाखवंक
एपातुगुध्कादवीकख्लप् ामदा ॥
रख
याथदयकरोदेवीनामे स् िलमदा ॥२॥
चठवाममुनेदेपंपितंप तं भनकासीी ॥
क्ष्षयंकस ॥॥
च ०
4
विद्याकरीलखव्श्याश्िखयांतुयशग्रदा ॥५॥
+ अथवस्पेजराख्यकालिकवचं ॥ ,
, ऋपिरस्यस्मृत ःशंभुःछंद:संसरुतिसत्तमे ॥
देवतादक्षि्णाभ्यालाकारिग्रयल्रन्यतेत्‌ ॥६॥
करीवीजं ॥ इतिकालिकाकयतरैरोक्यं
मोहनंनामकवचं | पुरच्वरणबिधिः॥1
शिबोदमितिभावयेतूनपकुयीन्‌ ॥ - -
रात्रौमांसखरदेवीपूनयिलाविधानतः ॥
“ ततोनग्राख्चियंल्गरेप्मर्णदधतोप्रििा ॥८॥
योनिकुं डस्थितंसपिमांखमस्स्ययुतंमृश्ो ॥
द्ंतप्येन्मयैर्मोसमित्रःसुसाधकै ॥२॥
मद्यमांसंचमर्स्यं चचर्वेणंचमदापयेत्‌ ॥
करिनापीलासुरंभुक्लामांसेगलारनस्वलं ॥९०॥
योजञपेदल्षिणदिीतस्यहुखंपदेषदे ॥ '
तपयेचप्योभिश्चरक्धारयुततस्तथा ॥२९॥
मञ्नाभिचततयतिदत्सुकीयेनकचेनच ॥
मूपमाजररक्ेनतपेतपएदेतां ॥१२॥
एवंतपणमात्रेणसाततास्सिदि चरोमवेत्‌ ॥
वृहस्पतिखमेभ्र तदि विवतुभुविमोदते ॥९२॥
मतस्पपापपुष्यानिज्ञोबन्मुक्तोभवेदूपुवं ॥
५९
योनिस्पहिकु ङकरलासौधकसत्तम 1 १५॥
तनकायादहिेतरेणअप :स्थापिनिकाकियाः ॥ `
महकारयदेवायदयाचप्रथमाहुततं ॥९५॥
एवंमयेनमसेनभक्तेमरधिरेणवा ॥ '
छृप्णपष्पेणसज्यिनसरकेनप्रि
शेषतः १६॥
शुतिः॥सुभगोदकेनतयैणंतमैवपूलनं ॥
1 ससर्वहदयांतरति ॥
अथपृचमकारेणसर्वाप्रोति ॥
विदापटुंषनेषान्यैसरववरंच ॥
नान्यःपरमंपंयाव्यतोसरछ्पपापैतसति॥ .
दत्याहभगवानुद्धिवदरतिकालिकाभरती ॥
आनीयकरन्यकभदरषुणाठज्जाविवर्िते ॥
1 कुमारसितित्रे ॥
नटीकपाच्ििदयाचरलकीनापितिंगना ॥
व्राद्यणीशुद्रक॑न्याचत्तथागो प्ररुकन्यक [॥९,७॥
माद्यकारस्यकन्प्रापिनवकन्यापकीनितां 1
एतामुकाचदरामायत्रतसवानमडकरू ५९८
पूनयीलामहदिनीततेोशयुनमाचसेत्‌ ॥
स्वाहातोयमहामत्ः्ुकस्यामेत्रिधोयते ॥१९॥
७२.
॥ अयग्रथोगङिख्यते ॥ ! 1
निश्ायांशाक्तपरवोक्तंसनामभागे समानीय ॥
ततूगत्रेपुकलव्योक्तन्यासानुप्धाय ॥२०॥
अदीत्िताचेत्तदापू्क्तामिपेकर्त्रेणाभिषेकंरुला॥
तस्याःकणदेवीवुष्यामंतमुचरेत्‌ ॥
इतिशाक्तिशुि ततोमकारपंचमेनदेवी
संपूज्य॥
किबोहमितिभादयन्‌उभयोःसंगमंरुा ।
॥ अथकुलिनाचारक्रमोटिख्यते ॥
कुरुखीीरनिदाचतत्रव्पास्याप्डारणं ॥
स्ीपुरोपंग्रहस्यंचवजञयेन्मतिमान्‌सद ॥ २९१॥
स्ीमयंचज्ञगर्सर्वस्य्य॑तावत्तथाभवेत्‌ ॥
कुरुजांयुवतींबीशष्यनमस्कुयारसमाहित ॥२२॥
तासं प्रहारनिंदांचकौटिद्यसग्रियैतथा ॥
सपरेथानचकतेन्यमन्ययासिदधिेधस्त्‌ ॥२२॥
सखियोदेवाःस्वियःप्रणःच्ियएवविभूपणं ॥
खीद्रेपोनिवकतेन्योविशेपासूलनंमहत्‌ ॥२४॥
॥ कालिकांत्रे.॥
रलस्रखाचियंगलारेतोरुधिरखंयुतं ॥
द्रव्यैवारविधमांखेमसस्यनहुविरधप्रिये ॥ २८५॥
निक्रेयचारमसारछलाक्रालिभक्तिपययणः ॥
9
तदाभोगंचमेोक्षंचकर्तेनात्रसं्रायः॥ २६॥
ध्यानं॥ रवाविष्टांमहाभोमाोरद्रावरपद
ा॥
युरुकेशिललन्मन्द पिवंतिसधिर्‌ह
॥२७॥
वीरासनसमासोनांमहाकारोपरिस्थिता

युंडमालगल्द्रक्चाचितापीवरस्तनीं।
।२८॥
से्रितासिरसिहौवैःसिदिभि शसेवीतांपतं

एवतांकाञ्काष्यालापुनयेलुठनायकः॥ २९॥
स्म्ानदाकु यनरी
ेवपुवि
ीरहार मान्‌ ॥
खामृतनिषे सीचकाछितलाथको
नरह्यदीभुवनेतत्स्यसमोनास्तिनसे विटुः॥०॥
उप
परः ॥
सरति केखएवकुरभरपणः
॥२,१॥
धन्याचज्ञननीतस्ययेसमा
नदेधितवा ॥
पतमेऽरसतीतस्याटसस्यसदागृे
तीथानीदेवीसंसंतियेनदेवीसमाचता
॥३२

॥२२
इतिथ पर्ानंदपरमहंखपारेनाजकविराचित ॥
ेदय!
मारदसतिद्यामहाव्मकथितनामक्पामपसचद ः
न्यासंविन।मिवेन्युक शसुपस् २
याद
सनंपिन
।ा ॥
परठयेनवरिनमेतरोनम्र-संपरिका क्त
परटवोवाखनायरोना
िः ॥१॥
ःिरणवउच्यते
शिरोदिनेोमृतःमरो पोतृयामत्रगु्िना ॥
॥२॥
५ (५९

पचसाचपरनास्िख्ारूनांमुखमोत्तोः ॥
भगरूपाचयादैवीरेतःप्रोतासदानपे 1द॥
रेतसयतपै्णतस्यान्मै मीसैःखहग्रिये ॥£॥
॥ अथकुंडगोरदीग्रय्रहणविधिः ॥
आनीयप्रमदांमत्तादीत्ितायौवनौ
नतां॥
स्वकातापरकांताबाघृणालजाएविवनितां ॥५॥,
तस्याग्योनैौन्यसेद्यनमेयुनकारयेततः॥
मण्यमनिपुरस्तस्याजायतेतलमुत्तमं ॥६॥1
गुरदीयातत्‌प्रयनेनद्रव्यंुं डोदुरवाशुभं ॥
निौकमौहितंद्रवयंगृहितवातिनपनयेत्‌ ,॥9॥
सामिभ्याजायतेदेवीस्काममुपारमेत्‌ ॥
चर्यचेोप्यंनिवेद्यायवस््ञांकरणादिकं ॥८॥
"पूनयेदधषतैःशुदैतस्याःमदनमंदिरं ॥ `
तस्यास्तुमदनागारे पुजयेत्पर्मेन्वरीं 1९॥
इाक्तियामके
सुंदीशोभन्तीणांपीनोत्रतपयोधयं ॥
द्विरछपेदेशीयांखदाकामाभि ऽखापिनीं ॥१०॥
परवोकक्रमयेगिनरलान्यासादिकंततः ॥
तसप्रगृययलेनपूजार्थखाधकोत्तमः 1११)
इर्दगोखोदृरदरव्यदेववापुष्रीकारकं ॥
*9६
सवकुमुमंदिन्यत्रैलोक्येचातिटुटभं ॥९२॥
ऊडगेोलोदद-ैयोनैदिवींएजयेत्‌ ॥
यंयवाछतिकामंचतेतंखापिपरयछति
१२॥
॥ अयटुतीयननं उन्तरतत्रे ॥ „ 6
दिनटीकपाीद यदिसंस्थप्यूनागरएत
्‌! ।
पुगधिरककुमुमांसवभिरणभूपीतां ॥
समाकर्णसपरयकेपूनयेलछुटन।यिकां
स्नदये ॥९॥
वसतंचमदनंचैवपूनयेत्‌ ॥
॥ अयज्ञानाणेवे ॥
शिवदाक्तिसमायोमोयोगएवनसं
सा्कारोम॑रूपंचवचनस्तवनेभवेतदायः ॥
्‌
आरिगनंनुकसतुरोचुननेक्ूरभमेत ॥द॥
्‌ ॥
चसटषर्षतपप् ानपाण्प
िविविधानिच
मंथनंतपणतिद्धिषी्यपतिविस तने £
्नं ॥५५॥
1 करुराणषे ॥
आि गनंनवनचस्तनयोमर्नत
दयानसयदौनेयेनििकाो या ॥
५पिाचपरेव
रिगणं (>|
ानपपयािपलय
तनामुतेनदिव्येनस्येतुषाम ेव्‌ ॥
वत्िच ॥1\9॥
ऊु्मृतखमादायततोर्व्यनिः
स्िदूप्ुधः ॥
"\9\3

मांसप्रधानतैवेयंसंष्याकाटेन्विदयेत्ं ,
नभविनविनादेवतेतरमेत्राफल्ग्रदाः 1
के१
ैरयोदैनचान्योस्मिनदेवोमसपरःकचित्‌
शिषोभेरवानंदोमत्तोहंकुकनायकः ॥१.०॥
एवभिक्षांचरनूमिद्ुभैराचाप्तयरः ॥
॥ ईइतिवीरभावः ॥
तस्मायनातूहोगथुक्तोभवेद्रीरवरःसुधीः ॥११॥
भोगेनमो्षमाप्रोतिभोगेनकुखाधनं ॥
एकाकोविजनेदेशोस्मखानिप्तेवने ॥१२॥
शुन्यगेदेनदीतीरेनिसंगोविचरेन्मुदा ॥ ,
व्रद्महत्यादकैपाप्षणानरयतिनिशितं ॥१३॥
काचिद्धि कवचिन काचिन्‌ भष्टःपिशाचवत्‌ १४
11 अयपञ्युभावः ॥
नमस्स्यभोजनंकुर्यानस्वियमनसास्मरेत्‌ ॥
भेयुनेतस्कयानमपतदुगोषटिप्ेवजेयेत्‌ ॥२५५॥
विपगुतेजरोकपूवादीतदनु्रानमेवच ॥
निस्यश्रादं गवाग्रासं ॥
` संभ्यावंदनमेरचाद तिपटुभावः ॥ १६
महाचीनक्रमेदेतीत्यासानन्रप्रएव्यच ॥
५७८
यामादधौभ्यातरेसम्यङ्युनोपकरणंबि
सामिपानंगुडछागंसुराप्रएकणयसं।॥
॥९७
तदैप्चिवटदयात्महिपंछागलेनव।
सयातिपरमसिदिंदेवेरपिसृदुरंमांः॥ ॥१८॥
आक पंणविकारंमारणोचाटनादिकं
सेभनंमोहन ॥१९॥
ंचैवद्रावणंनासनेतथा ॥
परकायग्रेरंच परप्रसवनंतय। ,
॥ २०॥
महेदनारमिद्रादोनालानासंचनात
खयातिखेचरलंचरैतवमपिशैवही थ। ॥
॥२१॥
छनसिदिमववयवहोरातराचकर
नारोरकयुतंरूलापण नाडातु गे ॥
त्तमं ॥२२॥
रतोयुकेनपत्ेणचाकसतसहलाडाः
स्मञनेभ्यचकार्ठतुसव॑सिद्धिसविद॥ति।
कारयतूनानसंदेदोमहाकाख्वच २२॥
वूजनीयाकङैदेवीकेवरुरास्त ंयया ॥
सौत्रामण्याङुटाचारे्रद्यणः यतेः ५२६॥
अन्यद्रकामत्त 'पि प्रपिबरेलमुरं ॥
ता्रायित्तीमवेजरः
॥ अथख्वपूना # ॥ २५॥
चाडाठचामिभयंचदोवसिदि
सव्मणवेनमेक्यत्‌ पुप्पाजिदफलद ॥
ला ॥
¢ ५७२. ५

धूषदिर लावर्दिद्ात्‌.॥
यमायप्रेतापिपत्तयेनमः ॥
खावोपरिखमारूढगुस्पुजादिकंचपत्‌॥२७॥ `
" ॥ दइतिविरसाधनं ॥
मैरवावटकाश्ैवकुरुशास्रपरायणः॥
[का व
ध्यालाश्रवनकेगतवानितिपेस्स्लानमाचरत्‌।।२८॥
छागमाहिपमेपाणांचतु्दि्ुःशवा्तिपेत्‌ ॥
कर्वधान्यडपूनां श्दिपादिभिरटंकतान्‌ ॥

तिनीलक्रमं ॥२९॥
॥ अथजप ॥
चंदरमूय्ेवैवभरासावधिविमुक्तितः ॥
नद्यासमुद्रमापिन्यांनामिमात्रोदकेस्थितः॥२.०॥
स्पशंद्वमुक्तिप्येतंनपेकु्यादनन्यधौ: ॥३१॥
1 अयज्ञा ॥
रप्णाचतुर्ददीप्राप्यनवम्यातमहोच्सतरै ॥
उषटमोनवरमीरान्नोपूनाकार्यतरिरोपतः॥३२॥)
दश्षम्ांपार्णाकयान्मस्यमासादिमि म्लौवि ॥
सिद्ररेणनवकोणनृत्तारांदरुचतुदरसत्मकंयत्रे ॥
व्रिलिख्यएतःसंस्याप्य तत्रपून्नंरुलाव्यावेन्‌॥।
मडोपसभवेन्मडंखीपंसनिधापयेत्‌ ॥२.२॥
८०

ततस्नु्ाजमद च्रीकालिकापरमेन्धरी ॥
नायेपरकाशयेदि
मान्‌ गणिःकेठगतैरपि ॥२५॥
नवदेभक्तिहीनायतरेखेनेतिभापितं ॥२द॥
दरतिर्पचदशःपरिखेदः ॥२५॥ " *
॥ अधक्रंडनियमः ॥
रानि पपरीतायेग्यकरंडच चतुरस्यकं ॥
आकरपभेत्रिफो्ंस्याउचचाटगेचमतुरं ॥९॥ ,
तमु ॥
होमद्रव्यं] नासर कितंरुलापर्णानां
नतस्यटुरभेकिंचिन्तिपुलोकेयुिदयते ॥२॥
रक्तपुष्येणसाव्येनसरकेनविरोपतः ॥
आपियादिभिरप्येवलुहुयाद्खवेसिदधये ॥२॥
मासंस्कतिखुकेशांनखंआव्यंचपायसं ॥
कपृरहोमतोमेनोसगोमिष्टानिसाघयेत्‌ ॥४॥
॥ अथपूना ॥
रकैराकरपणेपष्ेपीतिःस्तंभनकर्मणी ॥
मारणेरग्णपुरस्तुपूञयेषोस्दक्षिणां ॥५॥
मद्यमांसव्रिनषस्सफुल्पूजोरुमाचरेत्‌ ॥
लन्मातग्खहस््रस्यस ठतंतस्यनदयति ॥६॥
नणस््िनिलिखिन्मेवेाप्युक्हस्द्रया ॥
नित्तिप्यतेयस्यगेहेतस्यमृचयु्चिमाखत
(५५ ˆ
८१
स्म्यमारमादायर्मगलेवासरोनिद्लि ॥
रप्णवस्येणसंेएटयंवधियारक्ततंतुना ॥८॥
उआतामिमंत्रितंतचनिक्षि रीवेदमनी ॥
सपराहाभ्य॑तरेतस्यचोद्याटनमिदं महत्‌ ॥२॥
1 अयवेतालसिदिः ॥
भौमवरिम्यरातरस्मदयानेखाधकोत्तमः ॥
तस्योपरीदावंरलापूजञयिलाययाविपि ॥१०॥
सतोमातरेवरिदलाकाटमामनयेत्ततः ॥
अधवारष्णमाजरमेकघतिनधातयेत्‌ ॥१९॥
॥अयकौलिकार्चनं ।।
अश्चमेवसदस््राणीवाजपेयशतानिच ॥

प्रायत्‌फटमाग्नोतितत्कलकौ लिका चनात्‌ ॥१२॥
कौठिकानिदयेदयस्तुकुकलाखपरायणः ॥
सयात्िनरके घोरेखलमेकनसंशयः।१३॥
इतिअएादखपरीरेदः ॥
॥ तासासूके ॥ ४
अधाहिनांत्रद्यरंभेरातामाग्नोतितारयतीतीताय ॥
्रदममिष्णसदरे्रखदाशिवयिहु
- मेरनरूफानियायथाएयानिराख्याखर
स्त ।
दमांमधीयमारसलकौगयपयण
८२
व्याकरणकान्यादिवाग्धींशो
मदति ॥२॥
देभगवसेकनटेोविघहेविकद्रधीमही ॥
॥ तन्नस्ताराप्रचोदयात्‌ ॥
पणवेसवेवि्राश्चउत्सारयहुफट्‌ ॥
उग्रतारादेवता॥ हूंबीनंफट्दाक्तिः॥
हाकाक्कृनीलसरस्वतिदेवी। त्रिपुरो केयुमोपिता ॥
पायसखंरूपरददान्मोदकंखंडखकंरां ॥१॥
वर्दिद्यतुक्छागेचगोधमांखमनुतमं ॥
रभपप्यशालमस्स्यंनुहुयाच मयलतः ॥२॥
योनियुग्मटिखेदुजंडाल्षारखेनमेत्रनित्‌ ॥
ेष्टितंषीतवच्येणरज्चनापरिेयेत्‌ ॥३॥
स्रीणांगामम्‌ जेनेवदिरानांकटभूपणं ॥
वव्यापरभ्यतेपुत्रातनिर्षनी धनम युयात्‌ ॥%॥
द तश्नामहामहोपाध्यायषरमहंसपसंत्राजकश्रीपूणा
गद्गासव्रिसचतेद्यामारहस्यदरविंद्यतितम पसी
द :॥
सवत्र. १.८९.० ॥
॥ सयदेवकीरहस्य ॥
॥ भरवडउवाच ॥ ४
अथुनदिवीवक्ष्यामोसुसोत्पत्तीमदे्वो ॥
यस्याश्रक्णमात्रेणदीक्लाफलमरप्यात्‌ ॥ ९1
८२
समुदरेम्यमनितुतीरन्धीसागरो ततमे॥
तत्रो्नासुरादेवीकुमायैरूपघारीणो ॥२॥
नभ्राकांखग्रीसटसीरुतहासोसन्पुखी ॥
अषटादचमभुजादिव्यानवकुंभषरा्था ॥२॥
नवपात्रधरातद्रन्मदिणरूणोचना ॥
नानाकुसुममपाढयायुक्तकेशीलये चना (.४॥
नानारलांगदयुतागुक्ताह।ररता्चिता ॥
सचागुरीयसशोभाढघाुंगपीनस्तनांचिता ॥५९॥
विचित्ररलखवचिताकांचिगुणनितेनिनी ॥ .
रलसिन्हासनयुतापरमानंददापिनी ॥६॥
वादात ुदेवीत्रदयविष्णुमदेश्वसाः ॥
समुरासुरमंधयोः से्साचसदांशिवा ॥*अ।
तदाप्रसन्वदनावरदानोदतास्रुरा ॥ ट
पात्रा.पपातोव्यीजातागोमजातयः ॥८॥
. चत्कणेभ्येोपिदेवेशीनातवधान्यजातयः ॥
पैषटिपोकामुखदेवीपरमानददायिनी ॥९1
ततीददौपरपात्रविष्णवेग्रम्निष्णये #
पात्रातवदुपते्ोव्यो संविलाततात्तःग्रीये ॥१०॥
पर्कणेभ्योपेदेवेशीतरेदाःकनकादयः ॥
अन्येचहवोजात्तामेदामदनवधनाः (॥११॥
८9
विज्ञयेतिमयापरोक्तव्िप्णवीपरमाथदा ॥
विदासवधथोमेध्येसंविदेवगरीयसीं ॥१२॥
ततोददौष्त्पररश्वीसुरपरमेष्ठोने ॥
पात्राचििदु पतंतोव्यीनातास्चीधषरुपकाः १२॥
तच्कणेभ्योपासंजातामेदक्षौत्ररसादयः ॥
पानकरगरोकतमिन्लानीसैखाधारणेपरं ॥९४॥
ततोददीप्या्चर द्रायामत्तनिभेरं 11
पातराञ्दिदुःपपाततोग्योलातानातीफलकादयः ॥१८॥
तक्कणेभ्यीपिंनातामेदाच्वामरुकादयः ॥
पानकंनामतदिष्यरसायनमदःत्तं॥१६॥
ततोददौपरेपानरगुस्वेगीरलेप्नणा ॥
पात्राब्दिदुपपतोर्यागु पुष्पततःचछिवि ॥
लतेतकणलाभेदानासकेरूफलादयः ॥१७॥
पानकंनामदवेशोरसायनमिदंपर ॥
ततरेददौसपा््रशुक्रायामृतपसीतं ॥१८॥
पानाद्‌ पपातताव्यालात्राखज्ञरपादपाः ॥
तक्रणेभ्योपिसंनततिभेदावादामकादयः ॥ १९.॥
पानकेतदपिपोत दिव्य॑संतोपकारणं ॥
ततोददौपरेपात्रसूयचंद्रमसीच्छरत्‌ ॥। २०॥
पात्राचदिदुःपतंतोव्यौ
जातास जीवनौपरघीः ॥
८५
तत्कणेभ्योपिसंजाताविपिषीपधयःशििं ॥२१॥
पानकंचदपिपोक्तंसवेसाघारणंपरं ॥ `
सबायंफलद देदीसवेखारस्वतंमदं ॥२२॥
दसादिव्यंरखंदेवीसुरातत्रतिरोदपे ॥
तेखकध्मेश्यानीसुरनेदेकनि्भैसः ॥२३॥
सदाशिवादयेदेवाःसुरधेववरं
ददुः ॥ -
येपिनैतिपरंपानपरमानंद
कारणं ॥२४७॥
तैख्ैयांतिषरमेषदंशाश्वतमन्ययं ॥
विनागीडीविनामाष्वीसुरंयः पु
लयं ॥२५५॥
शिवनारायणैर्द्रसमवेनिरयास्पदं ॥ ,
अदीक्षित पञुरदैवीदिक्षीतोप्यसुरपञ्ुः ॥२६॥
तस्मास्सुसादिवेभयुच्ः पूनायापरष्णवो त्तमः ॥
प्वितनिडीतयामा््वपि्ठीमास्वमुत्तम ।।२.७॥
पानकंचशुमेस्वपदौभविपरःपरः ॥
॥ देव्युवाच ॥
भगवन्सवैतेत्धकौ लिकश्वरद्ंकर ॥
खरपखादान्मयावाप्ततलंदे ज्यासुदुकभं ॥१॥
“ केत्मेत्रात्मकगुयसूतितेभवतास्वयं ॥
परदेवरदस्याख्यंदीक्षापूर्ववदस्तमे ।२॥
८६
॥ श्री मैसउवाच ॥ ।
देवीरहस्यमीशानिशुणुखंभक्तिपतैकं ॥
येनश्नवणमात्रेणकोटिपूनाफलंलभेन्‌ ॥१॥
विचायिपिवङ्ोमानूदीध्षाकमसयाचरेत्‌ ॥
-दी्तीतःसुभवेज्ञनीदोक्ाहयनोभे खदु: ॥२॥
गुसेरभविदेवेशीपुस्तकंगुरुमाश्नयेत्‌ ॥
तचादौशुभनक्लत्रेसनावासंपूज्यतरेरयं ॥२॥
गलानदितट॑दिग्यंख्ताकुसरमप्षंदरं ॥
्विषतरापरमपुण्यंदेषानामपिदुकेभं ॥ धा
तनरदेवीपरादेव्याःरीचक्रतुविभावयेत्‌ ॥
त्रिकोणिंदु
संयुक्तंपट्‌कोणंवृतमं डलं ॥५५॥
द्नायत्रामेद देवीदिष्ताकाटेग्रपूजयेत्‌ ॥
त्राद्यानाययणीचंवकामारीचापरयाजिता 1६॥
माहश्वराचचाप्रुडावासहीनारर्सिन्हिक। ॥
वामावत्तक्रमेगवपनलनींयाविरोपतः ॥\५॥
ततरैवपूजयेदषत्नेखान्भसवेश्चसी ॥
महाकाकुचकाङा्चोकरारुंविकरार्क ॥८॥
र्ररमिखानेकपिसयेन्पततरैरवं ॥
सपञ्यविधिवतत्रगंधातततग्रस॒नकै ॥।२॥॥
पत्रमभ्य्चदेवेशीगुरूखंपूञ्ययेतत
-८७अ

प्ततःखनेकं योनिस्यैवरिकोणकः ॥१. ना


बन्देखमक्ष्यत्राग्रेदी्ताप्मदुख्मां ॥
कणीमृलेमहाविद्या्रीनिदयां साधकेश्वरः ॥१९१॥
ततदेव्याश्वगायत्रीततोमूलमहेश्वरी ॥ `
एवसमप्यदेवेद्यीरुखाहोरमययाविधि ॥२२॥
रात्रीपरखरीयांकालांदयामांबामदनततुसं ध
नीयपूजयेन्मंजीयथोक्ततिधिनारिवि ॥१२॥
नग्नोमुककचोधीरोमधुणनपसयणः ।
शक्तिवक्षःसमालीप्रेजरेनएूटयधाद्गिपि ॥१४॥
कर्मेणामनसावाचाम॑त्ोकद्यटमोमवेत्‌ ॥
दयासंस्रतोमेत्रोभवे्चितामणीक्तणात्‌ ॥१५॥
प्रतेभैरवेचकर सवैवर्णाद्विजातयः ॥
सर्वपापविनिंमुं्त ःसवेसिरिथसमन्वितः. ॥२६॥
दरहलेकररीयप्राप्यभूक्लाभेोगान्यपेप्ठितांन्‌ ॥
परवपर्मेश्ानोमृतेदेवोपदंनेत्‌ ॥१.०॥
॥ देव्युवाच ॥
देषेदेवमहादेवल्षरणांगतवत्सर ॥
सुरानविर्धत्रुहीयेनचिदि भवेद्र ॥२॥
॥ भरेएउवाच ॥
युणुरेवीप्वद्यामोपानपूजाविरधिपर ॥
८८
विनापाननसिदिस्याच्छाधकानांकटैयुगे +२५
सेपूञ्यसदिवदिवीं्नृनेमैरवार्चने ॥
प्रद(यकं ॥(२॥
तच्रपानंमसादेन्यामहानद
अहोरात्रसुपपानेभो
मर्दमोध्षदंदधिषिं ॥
यावच्नचरतेदप्रीयातवत्रचरतेमनः ॥ ॥
तावसानैप्रकतव्येपञ्युपानेततःपरे ॥
अघुनादेवीवक्ष्यामिोधनंखेकामदं ॥५९॥
सुदिनेदेविगत्वादौस्मशानंसखाधकोत्तमः ५
कपाठंनरदंतानांमाककंकणमीश्वसी ॥६॥
अष्टोत्तसशतजप्त्वामूकयंतरंनिवापयेत्‌ ॥
स्मश्चानभस्मच्परिनशुदधेनसुरवंदिते 91
वामाचारपरःश्नीमानूयोनङुयान्मदेश्वरा ॥
य्॑माखात्रिनत्िस्यमत्रदानिभेवेसुवं 1 ८॥
॥ दतिदेवीरदस्यं संपूण. ५
अथककारादिकालिसहस्वन।मदटिर्यते ॥
विपसोतरतिरुवार्चितयंतिभजंतिये ॥
तेर्पावरग्रदास्यामीततच्निस्यैवखाम्यहे ।(१॥
मग्रीरमासिस्तथारुकिःखवरक्तेरपिप्रीये ॥
पयेत्‌ पुनयेत्कािपिपसोवस
तिंचरेत्‌ ॥२॥
८९,
खडगहस्तोमुक्तकेशओोदिमं बरविभुपितः 1
शोयास्योपरधुनानेदिवेदयासंगपरायणः ॥२॥
पटैन्रामसह््ाख्यंमेधासाघराग्यदायकं ॥
विपरोतस्तौदेदिकाटिति्ठतिनिष्यशः ॥9॥
महाकटेनचसमउपविष्ठरतातुरं ॥
स्मच्ानस्थोमहास्द्रोमहाकारोदिगंवरः 11५4॥
उ्यरुखावकमध्यस्थोमस्मश्चस्याव्यवस्यितः ॥
विपरीतरतं वत्रकालिकादहदयोपरीं ६॥
पेयखारसंचोप्यचतीचरुखापर
स्परं॥
एवैसंचितयेस्कालीसर्वसिदि
परजायते ॥*91
उक्रींकालीक्रूकसङींकद्याणीकमखाकलाः॥
कुरुटाचुवनोुकाकरुलटासंगसोपिता ॥२-॥
कुचमदैनंतुएाकामगेहरिका्ीनी ॥
एदयादिखहस्बनामः॥
योनिपुष्पैःछिगपुष्पकुंडगोरोदुतेर्पो ॥२०॥
काटिपुष्पिगतीय्योनिसाटनरवि मिः
पृ्ञयित्वामहाकारिलौ यितैःशोगितैरपि॥९१॥
ताुपरितिमुखेमुककेशोटि
गंबरः ॥
-दवयोनिःस्थितोगरस्मखानमूर्तानिितः॥११२॥
स्वतु -डविलिभुक श्रेरोक्यविमयोमवेत्‌ ॥
८.०

छगुहन्तौकान्यकन्तोभवेतू्िवखमःकठी ॥६२॥
रेशर्यकमलसा्तात्सिदासरीकारीरकविका ॥
मनोरथमयीखीदि '्तस्यदस्तेखदाभवेच्‌ 1\९४॥
परदाराखमारिग्यसचुंव्यपरमेश्वरी ॥
योर्निरिक्ष्यपटेस्तोतैकुवेरादधिकोभवेत्‌ ॥९.५॥
विद्यास
्निपुसंपूज्यषठेन्नामसदस्के 11
सस्णीधुंदरीरम्यांच॑चरांकामगर्वितां ॥१६॥
समानीयग्रयल्ेनसंखौध्यन्यासयोगतः ॥
प्रसंनमेचेसंस्थाप्यदेव्यावरणसंयुतं ॥२.७॥
अष्टोत्तर खातयोनिसंमेच्यचुंज्ययलतः ॥
"समोगीभूयलपव्य॑सर्ववरिद्यापिपोभवेत्‌ ॥१.८॥
शुन्यागरेद्धि्रारण्येद्यीवदेवाख्येलया ॥
स्मद्यानेचतडगेचगंगागभ॑चतुष्पथे ॥२९-1
कुःटीनोयहमध्यस्तेएकङिगेषदिवाय्ये ॥
संडयोनौखतुस्तानाग्रहेवेख्यायदेतया ॥२०॥
कारिसंवियग्रनपेदेतनामखदस्वकं ॥
पवानंदपसोभूलापठीलाकािकास्तवै (1२९)
िष्टरेखववस्मेवापुप्यवस्त्नाखनेपिवा ॥
जषप्लवाकाटिस्दसराख्यंखेचसंसीद्धीमागूभवेत्‌ २२
वरह्ा्दिस्तभयेदेवीयमादनांतुमास्णं ॥
९९
नवीनव्िप्णुनीमाणंमहिशंमोहयेव्ेणात्‌ ॥२३॥
मेपमादिपमानाँर्खरछागनसादिकैः ॥
सौणीतैसास्थिमांसच्वमुरासिदरिश्चपायसैः ॥२४॥
योनिक्षारुणनिरेश्वयोनिञंगामृरिरपौ ॥
, खलजातांकुसुमैपुञ्यंनपतितपयेत्शिवां ॥ २५॥
वेर्याकतागृहेगलातस्यंवनत्तत्रा ॥
तस्यायोनैगुखंद लातद्रसंविर्पन्‌ जपेत्‌॥२६॥
काल्िकादद्यनतस्यभवेयेषनसंशयः ॥
नूयपत्रागृहेगल्वामकासेपंचकान्वित:॥ २५७
पात्रैखाघनकंरूसादिगूषसाांखमाचरेत्‌ ॥
दातद्रयंकुचदरदरेशतनभौकुटेश्वसी ।॥२.८॥
रातयोनीमेशानी उव्पायचद्रातत्रयं ॥
उातवधानेमवतिमासमन्निणसाधकः ॥२९॥
देतमालजपेत्कार्यागरेा्यानूमुं
डना ॥
मतंगीनीखमहूयमुं डयंतर्रपुजयेत्‌ ॥२०॥
अरन्यामार्दिग्यप्रजपेत्‌ञन्यासर्वुव्यैपटेत्‌ ४
अम्याषपूनयेतजअन्यांखमःेयेत्‌नपेत्‌ ।२.२१॥
अन्ययोनीरिषैदलाजपेनामसदच्चकं ॥
"साजाभवतिदेवेदीमारुप्वकयोगतः ॥३२॥ -
यवनिदया्तिमनीयगानस्यक्िपएयणं ॥
र्र्‌

का ॥२२॥
-कुःखाचारक्रमेषेवतस्यायोनिं्वियेन्‌
तनजिन्ाप्रदलातुजरपैनामसहस््कं ॥
महाक्रतिवरोभूयात्रा्नकायाविचारणा ॥२६॥
` सिदुरतिरकेदिकीविदयालपोनिरंतरं ॥ `
वेदयायदनिच्याचाणेरात्रीषरएयटनूतथा ॥३५॥
छक्तिपु्यायोनिदएी तानरूलपुरीताननः .॥ ,
केदयामप्यगर्तवीरंकदापद्यामिसाधकं ॥३६॥ `
एवैवद तिखाकाकितस्माखेदयविामता ॥
कुमासीयपूनयेत्भक्त्याज्ञपतिदेववरपरये ।9]
. भक्यापून्यकुमासोलुेडयाकुलसमुदूवां ॥
स्वदामभागेसंस्याप्यषठेन्नामखहस्वकं ।२.८॥
पुप्पयुक्ताभवेत्देवीसयोगानंदतत्परः ॥1
शरैलोक्याक्णीवियातस्यहेस्ताखदामवेत्‌ १२०५
ककीकालिकढीकारीकरीकएरीतिकेदला ॥
गोपनिर्य॑गोपनिय॑गोपनिय
प्रयतः ॥५०॥
ककारकेचसास्यातेनाजकायोविचार्णा ॥
सस्मारनियेव्म॒नखाकर्मेणानचसाकिमु 1२1
करौकाडिदिहायाथयस्काश्िस्सोत्तमिच्छति ५
सतुा्विनादरिवीरतिसंभोगमिच्छति ॥४२५
स्तेभनमेोहनचेवरमारणाकर्पंणग्रीये ॥


वरुपकारतयोचाठेपीठकं सुमनोहरं ॥४२॥
देवाःरसवेनमस्य॑तिर्विपनमोनकादयः ॥
व्रद्यातिप्णुदधिवेद्रा
मौनं नायते्षे ॥॥
सवणादिमहाशनूनुच्चाटयतितच्छणात्‌ ॥
उआकपेयेदेवकन्यांमनुष्यार्णांचकाकथा ॥६५॥
मेपमाहिपपलेननररकतेनचैवहि ॥
एपतपेणमत्रेणसाक्तास्सिद्धिश्वसेभवेत्‌ ॥४६॥
श्रीमदादीनाधविरचितायांमहाकाटसहितायां कारि
हाकाठसंबदिमुंदसंद्किदाना्य॑सर्वंसाग्रानमेधाना
ख्यदक्षिणाकालिकक्रारादीखहष्लकंनामस्मोन. ॥
भरग॑कुडस्ुवाछि्गसोमदभंश्वमेरच ॥
वीर्धजव्यंमनोहोताद व्युतंभेरवागमे ॥१॥
दृतिजनरूमाहूयगूहीलातलमुन्तमं ॥
निन्षिप्यचाेपन्निचततःपजासमास्मेत्‌ ॥र्‌॥
उन्तरल्नानार्णवतंत्रे, महार्टस्ये,

सांडाच्िकर्मकारोचमातेमौमांखकारकी ॥
मदाकाणचरनकी्षौस्कीदिश्वयोनिका ॥1१॥
"अताकुर्योगिन्योसविदिमदायिका ¶
क 1 {= अ9 ~.

गुरूपरत्तस्णीखातिनुकृलारदितासुचीः ॥२॥

शकाहीनाभक्तियुकतागुटकास््ोक्योगिनीं ॥
शुसुदैवचभक्राचसुचिन्ताकौकिकप्रिया ॥२॥
मनोदससदाचायसक्तिरेपासुरक्षणा ॥
दु
प्राककंखाद्ुव्धाकुच्छिताकु
र्दृपीता ॥४६॥
निद्रासक्तातिहुर्गधादीनांगौव्याधिपीडिता 1
दरदणपमंत्रुक्त बरुतियतमेतेवजयेत्‌ ॥५५॥
रासोासतंत्.
न्य

॥ पेचमीप्रयोगः ॥
देवता्ेस्ववामभागेच्रिकोणंप्चकारयेत्‌ ॥
तस्मोपरीआखनंसंस्थाप्य ।।
आसनोपसीासिन स्थापयेत्‌
तस्ाक्णेमायानीनं समुच्चरेत्‌ ॥1
उाक्िदस्तंगुहित्वानिवेखयेन्‌ 11 ४
तस्याःखररन्याखानुकरूतापोडदोपचरिःपूनयत्‌॥
पच्चातूखंयोगंकरारयेत्‌ भ
या्यक्तिसामहेखानीदरस्पस्तुसाधकः ॥
चन्योन्यैचित्तयेदेवीदेववयुपजायते ॥
मदानक्रारयत््‌ 1 मूरुञणएान्तरसखतजप्त्वा ॥
चा एहश्रहतिपटिलामगस्यकोणत्रयेस्लेनम्‌नयत्‌।
चधमधिमकरासेटपृणवन्डज्ञुहाम्यहं
(0
पर्ाह्तिदयात्‌॥ त्तोतसंगृद्य ॥
य॑त्रणजंतपयामी | इतिदुततियागः ॥
वामेसमारमणकरराकादक्षिणेचारीपात्रं ।+
अग्रमूद्रच्चणकवट्कसूक्रस्च्वाप्णद्युद्धः ॥
तंत्ीवीणासरसकव्रिताखदूगुरःखस्कथायां ॥
कौलोमार्मिनिगमगहनोयोगिनामप्यगम्यः ॥१॥
अलीपिद्चितपसंप्रेमोगपूजंपयोहं ॥
वहुविधकलमागांरमसंभाितादं ॥
पञ्युननवरिगुखोहंमैखीमाश्रीतोहं ॥
गुसुचरणरतोहभैरवोदशिगोदं ॥२॥
करेपार्नपुखेस्तोतरेमानदोददयातिरे ॥
भक्तिगरुरपदांमोजञेखरणेकिमते
परं ॥३॥
वामेचद्रसुखीशुखेचमदिरात्रैकरंभोरुदे ॥
मूिभरीगुसचितनंभगवतिध्यानासदंमानसं ॥
जिन्ा्यानपखाधर्नपर्णति कौ ख्करमाभ्यासमे॥
येसेतोनियतंपिवेतीसुरसेतेभुक्तिुकरिंगतः ॥॥
वमाचारेप्रल्यामीयरीदुर्गासाधरनपरे ॥
खवधायकट्तीमात्निकःखिदिभागूभयेत्‌ ॥५॥
'मानानृरेनसेभुतापात्रपापाणमं
इङ ॥
आसन स(-्हुचमदि(केकणस्परीकचीदृर्वं ॥६॥
९. +)
द्रव्यमासवततखाद्यंमह्यमांसादिक रिते ॥
वचवरणपलरमस्स्यादिमूद्रावीणारषाकथा ॥७॥
मेधुनेवरकांताभीःखवेवणंसखमानतः ॥
वामाचारदातिम्रोकतःसर्वसिदि प्रदःङीते ५८॥
करुखाचासग्रवक्ष्यामीसेव्यंयोगीभिस््तीः ॥
कुखब्लयकुलगुरुकट्देवीमह्परीं ॥९.
हटादानीवसंपज्यत्तथाभो्ग विधायच ॥
रतखातपयेदेवी्रीदुगोचक्रनायकीं ॥ २०॥
पनि पयैस्तथाभक्ैसंतप्यकुलयोपितां ॥९१॥

त्याचारपरःधरीमान्‌कुरुस््रीगरुप कः
ु ॥
वामाचास्यरोर्मतरीमुक्तिभामूभवतिश्वे ॥९२॥
इ सैवपटलेोगुोदेव्याश्वाचारवलछभ
अदातन्योपिभक्तभ्योनग्रकाओोयुमुद्युभिः ॥१३॥
वरषायघास्व्दनसुधायांश्रीचक्रमभ्यृच्यंकुरुक्रमेण ॥
असिाद्यमद्यपिशितंमृगाक्षीञरिग्यमेक्ंसुधियोल्ते १०
अस्ादयतःपिश्चितस्यखं डमाकंटपर्णमदिरांविवैत
मुग्षणासगममानररतोभुक्तिचमुर्किचवयेत्रजामः ॥१५॥
नलस्ादितंवाषिश्चेतस्यसं डषचाक्षरीपणंलपोनयत्र ॥
नयत्रस्गागूगसचनाया स्तत्तादेनंदुदिनमेधमन्ये ॥१६॥
अदवदनितमेदिरेपुस्वपननि्चायांगणिकागृहपु

९७9
हुगृहेभोजनमाचरेतोविराजतेकरौ छिकचक्रवातति। १.५
स्तभोगोनदहितन्रमोक्षोयत्रास्तिमोक्षोनहितचभोगः १८
[दसतर्पणत्तससर्णामोगच्चमेोक्षश्चकसदयेपि ॥१९.॥
॥ ॥ कौटठिकरटस्ये ॥
नौयेननखादितीसचणकतेदयापिनारिगिता ॥ -
कथिनखहोदरानज्मितामांसंचनोभ्षिवं ॥
न्यायेननसेव्रितारतिमुखेषीतंनमदयंतुपां ॥
र्धतस्यगुसक्तमोहिनिततसं मादेश्वरानेवसः । १॥
पग्यवासपसपोयहाखंमालायलीटामेषनीयरैल्यं ॥।
चक्रबालेविचरत्‌विशरेकारनयेत्कौ टिकएवनान्यः र्‌
भोगमोक्षप्रदोमागौनान्यैौस्तीचमहीतरे ॥
तस्मात्सवप्रयलेनसापनीयच्वसाधघकः दा
वामाचारकुटाचासोधर्मदोद्ययदःस्तया ॥
कामदोवेदनतस्मादसौ मायो ततमोत्तमः 1
वामाचारकुलाचारौदौतुंकरभावितीं ॥
समौचतीतुविन्नयौमोगमेत्तमरदद्यतः ॥५॥1
॥ कुलचंद्रीकायां ॥
सपांउत्तमोधमेिप्णवा चेततःपरः ॥
-शेवस्तस्मादतिणच्वद्याक्तिमकिपरायणः 111
तस्मार्सिधांतधमेत्रतस्मादपिच
कौलिकः 11
५.८

कौरापपर्तसेनेतिनान्यषयेति
शासनात्‌ ॥२॥
[व

अस्मष्धेवभवेज्ञानंयधार्पपरमासनः ॥
्ञानादेवतुक्रव्य॑मिचेवंवकिगरशुतिः ॥२॥
वा्ंगनाप्रयागच्वरजकीपुप्कर्स्तथा ॥
चमेकारिभवेत्‌काश्ीखवेतीयोप्नख्ला 9
अरयतुपरमोघमेःकौलमार्गोमदेन्वरी ॥
असिधारत्रतसमोमनोनि ग्रहकारक : ॥५॥
अयंसर्वोत्तमोधर्मःदिशक्ःमुखसिदिदः ॥
नितद्रियस्यदुरुभोनान्यस्यानंतजर्मामि ः (६५॥
` स्द्रयामल-
॥ मकारदानफर ॥
द्र्य॑मयुतथामस्स्यंगासंमद्राचमेधुनं ॥
मकारप॑चसंयुकतपूनयेसर
रवेर ॥१॥
कंन्याकोटिगप्रदानस्पहेमभार्रातानिच ॥1
फलमाप्रात्तदकखांक्रारुकावदु दानतः 1२] |
पृषीहेमखंपणाद लायतूफटमाघ्रुयात्‌ ॥
तदपुण्यकीन्टिकेद तातृतिर्यप्रयमाय॒तं ।1३॥
द्वितीयंपरथमायुक्तयोद खा्ुल्यो गने ॥
(8 स्वयो गीन्यौभ्रैरबादयः धा
अन्यमेवाद्रिकंपण्यंमनदरानान्मदर्पिण ॥
५९,

, तरफटरुमतेदेवीकोकिकेदत्तमुद्रया ॥५९॥
गवांकोटिप्रदामेनयरयुण्थं॑कभतेनरः ॥1
तक्पण्यंरुमतेदेगीपेचमस्यप्रदानतः ॥ 1
पचमेमप्रिनाद्रव्ययःकुयात्साधकाधमाः ॥
, तर्सर्वनिष्फरदेवीखयं सयंनखंखायः ॥ओ
चांडालीचमेकारीचमातगीमांखकरिणी (
म्यकन्रिचरलकीक्षौस्कोधन्वलमा ॥८॥
अष्टौतान्कल्येीगन्यःसर्वसिद्धिप्रदायकः ॥।९॥
` . स्द्रयामट
अजपानाममायक्रयोगिनामेो्दायिनीं ॥
तस्या संकल्यमात्रेणनरमपपिनप्रमुच्यते ॥
पटरतांनिद्रवासतरीखहसण्येकविंशातिः ॥
एतसंस््थेतिमेचरेणजीबोजपतिसर्वदां ॥२॥
हैकरेणवहियातीसक्ररिणविशचदनः ॥
दैखःरुहितिर्मत्रेणनीवोजपतिखषेदा ॥
दतीश्रीकेदारकखेत्रिख्यातपुएणेरीड्‌-रकारतिक
संबदिपेचयेगिद्ररकादिहिज्ेवन्मुक्तिप्र्येभहापथरित्र
द्निष्ददफैटासगगनेसद्रायामदेग्रयमपटरुः ॥
+ ५ अआगमनेञर्थ ॥
आचार्कयनादिय्यगतिव्रामनिदानवः ॥ ,
२ ©©

महार्धतलक्रयनादागममःकाितःम्रिपे ॥
॥ दीक्नानोअर्धं ॥
दिव्यभवग्रदामनातृक्षाणात्कल्पपस्यच ॥
दीक्षेत्तिकथिताखदिभेववंधविमोचिनी ॥२॥
॥ मत्रन[अध ॥
मननाततचरूपस्यदवस्याितपेनसः ॥
तरायतेस्वभयतस्तस्मांन्मत्रमितीस्ितिं ॥२॥
॥ युद्रानाजधं ॥
मुदकुवतिदेवानामनांसिद्वावयंत्िच ॥ ¢
तस्मानमुद्राद तख्यात्राद्‌ितव्याकुटेश्वरी ॥४॥
॥ सुरानोञ्थं ॥
सुमन -सेवितलाचराज्लारठरवदाप्रिये॥
आनेद्जननादवीमुरेतिमतिकी ता ॥५५॥
॥ मास्नांअथ ॥
मागव्यजननाद्वयीसंत्िदानंददा
नत
तथासवग्रियाचमांखमित्यभिधौयत्ते
॥६॥
1 ञआनम्नायनोयध 1
आर खात्सवमागाणा
ंमनोलासग्रवतना त्‌ ॥
यज्ञादिपमहतुखादान्ना
-- यद्ां तक्रा; पेतः ॥*4॥1
--_
इतिद्धितीयम ग्सप्ण,
[॥
भाग रजो.

बा भागमां म॑त्रशाच्लना चर॑य जेटटा माटम


पडा तनी संख्या अने नाम ककारादि अनुक्रमे
छख्य्ि. व्यापी त॑त्र्ाच्मां संज्ञा शब्द अवे
छ केने परिभाषा केके तेमांन! केटलाएक शव्द
रुख्यकति. तारवाद्‌ आ यरंधना कतना नाम माम
पटा ते रकुख्यच्ि. पछी यंत्रनां नाम पछी देव,
देवी जने म॑त्रशाच््ी मनेक तेमनां नाम रुष्य.
तास्वराद मुदरानां नाम अने वीन ल्ख्यचि.
तानचिक्र ग्रथना नाम. आगमाठकार.
अ आमत्र,
अगस्तिसंव्डिता ५०० (९
+ [क दू
टरा णी त

अयपररहस्य २ (तापिनी ) | रता ०००



अयप्रह स्य रिण टदरनाःट

आगमोद्योत, उत्तरमाभद्च.
अआगमसिभु, उन्तरान्र्टज,
आस्णेश्चनेन. उम्यौन्त॑त २५०
आगमामृत्तः उड्‌ डामसर्ततर.
आगमामून्मजिरी. उगामे-वसतेत्र,

उन्तर्तैत्र ६०० काटिकक्टङ-
उद्िषएटगणपतिपहु
ति. कामकृराकेटिग्रियस६०
ग्‌ रहस्य. कालिकाश्चुति. '
एकवीसयकद्य. कमिश्वरतंन,
क४ काकि सहस्तनामपस्शु
१ रमत.
कटाविधिरततर. कालिस० निग.
कलनाद.
कालिगायत्नि.
कलासार. काटियागपदति. ,
ककारदिकालिष्दखयन।म, कालिकाकल्प.
वसिष्ट कल्प. करलार्णव ३६ उदा
विश्वामिच्र कल्य. ०००००
कालिज १६०००
कुरखार.
काचिकुठसर्वस्व,
कुरे. ्
काटिकुरुसदूषव.
कुकचरूडामर्णी ६.००
कामिकततेच.
कुण्डिकामतं.
कामकर्तत्, कुरादे शतत
कालाश्नि्रीरखतंत्र. कुराचनदीपिका,
कािकापुराण ६९.००० कुखकालितंन.
क्रा्ायनीसन्न ६००० कृरप्रदीप ५००


कुमारितिलक ६०० गुरूप्वतंज,
गुदयतेत्र, `
कुमार्किद्य. १७०००
कुःडमंडपविधी. मौततमीयर्ते् २०००
केदास्कस्प 2०००
ओरियामर ६००
कैवल्यतंन. मडभिरंडअनुषानपहती.
कोमारीरत्र ६०० गंधवेतत्र.

कौटोपनिपद्‌,
कौररदस्य(रल्ष). चक्रभेद.
कौटचद्विका. चापरंदात्र.
` कंकालग्ैरवरव॑च. विवि्देवरर्हस्य,
सव
चंडोग्रल्ुरुपाणि्तन्.
चडेन्पस्वच्र.
खटमाखा, स्वातिः ु चंद्रज्ञान,
5खाद . च॑डिपाट, १०००
टर. तचटिपाटपटसी.
1 छ
2
1पृण हु५॥
साग चिन्ार्दस्य ६००
गेणपतिपचाग. छिचाितेमणी

मापन.
गुदम, उमोगनापश्नतन.
१०४
ड लिज्ञाकटप
डामप्तत ६०० त्िपसवंस
तर
त {ष
2 तरखात्तिर '
तखनर्मतरगिणी. " द
तरणीरहस्य. दक्षणान्नतंन,
तवशम्नर १२००० दतिणामूत्तिसंतित।,
तारातनर.
द्िणास्नतंन,
तासयप्रदीप,
दत्तात्नयतंल, ३०००
तारारहस्य,
दमनकपूनापटति,
तासभक्तिसुधाणैव,
दखमदाविद्याउपानिपद,
सापमूक्त.
दृतियागपट्‌ ति.
तेत्ररन.
देविमत,
तेत्रमहोदधि. देवीरहस्य ००
तत्रखार.
देवीपुराण १२० ७९०
तैतुनिधान
तेत्रमृक्त वाटे

निपुरमरास्समुचचय १२.०० धन्यद.
चिङ्कडिश्वर न
भिपुपर्भवतंन्र ६०० नारदपरचसत्र ०००
५०५९
नि्ोणततन १४००० न
निरन्तर. ( ६००
नील॑ २४००० वालाविखास्तनन ६००
नेदिकेश्वरर्च्हिता. बारसहस्वनाम
नृखिज्पेचाग, वालाननि पुससोषदति.
“ प बीजकोल, ˆ
पश्विभान्न. िदुमालिनीतेल २००.
पेचामृततल, ब्रह्मत.
प्रमानंदतेत्न ६.०० व्रद्मयामर,
पाशुपतागम. त्रदयाख्नप्रयोग.
पटल, वृह नितंब ६,०००
पदति. & वृदडडामर्तल-
पुटिकाम्रतेल. भ
परपाचनचंद्विका. भवदेवकल्प.
पणाभियेकपदुति. भावनोपनिषद्
` पतामनतेल. भुवनेन्वरीतेव.
करते १२००० भुतडामरतल.
भरसयंगीराकल्प. भूतशुत्धीतल,
#; भूतोडामर,

फेकासतिल् ६.०० मैरवर्तल.
१०६
मैरवीतंव्, मुद्र्रकाश.
भरैपवाएटकतेल. मंडमारतंल.
भरैरवनायतंन,. मो्षखंड.
मैप्वसवैस्व. म॑लमदोदपि ५०००
म मृ्युजयकल्प, ,
महभूतडामर. य
महानीर, यमखएकर.
महानि्ौणतंने १४००० योगीनीतंन ६०००
महाकाल संहिता १९००० योगीनीददय.-
महामायातत, योगिनीनार्द्म्बर,
भहासंमोहन, योगिनीभैर.
महादेवमतौत्तर, र
महाक्राटिमत, रामरक्षा.
महाभैरव, रुद्रयामलतंत्र (रक्ष)
मक स्त्लोधनैसं्तयर रूपभेद.
मदोग्रतायक्रल्ष. दटूमेद,
मस्स्यसूक्त. (र

मानृकतिंन तरंग ३९ 1टिगाचनततल,


मानिनीति, ५.
न्क्गतंत्न,
यहिश्रसेनन, ॥

२.०९9

चृ
वीणाख्यतंन,
धर्ण्रिकासतैल,
धदरापायन संन्टीता
वपत्र. धरष्णवीतंन.
वसिप्रसंद्हिता.
+ दख
वनदुगोपटल.
।वाराहीसंव्डितवा ६०० शाकिसखंगसतंल २०००
बाम्केश्वरतंत्. सारभम्रयोगे.
वामनु. सछक्तिमैरवतंल.
वातुल. शाक्तियामर.
वातुखोतरतैल. श्चामार्हस्य ४०००
बारात ६०० स्ाक्तक्रम.
विश्वखास्तल. छाक्तवादतरंगीणी.
विश्वखासेद्ास्तंन. छारदातं ६०००
विष्णुधमोन्तर, शारदातिखक १२०००
विद्योखन्तितैल. छारदापटक,
पिप्णुयामर, दयामाचनदिधि
तरिपरतंब. शांडिल्य १९०००
गरञयाकदप. दयामोपनिषद .
चीरागम, इयामातंल.
वीरं. दयामा्यनचदरीका,
१९०८
रिवहुतितेल. सिदधेश्वर्तंब.
शिवधाम. ~ सिद्धखाप्खत,
शिवस्हुस्य ८०००० मुदश्षेनसंटिहता ४०००
शिवकवच. संदरतापिनी.
शिवागम. सुदतत ६०००
. द्युकसंन्हिता. सीम्यतंल
खम्नर्तंल. सीमाग्यरलाकर ४००
श्रीचक्रार्चनचंद्विका. सौमाग्यकल्णुम स्कंद
श्रीवस्छनाससरणोय १२०९० १०००
प संमोहनततन १४०००
पडयक्रभेद्‌.
४ संकेतत॑ल्.

सनल्कुमारतंतर. हनुमखटट.
सनकसंच्दिता. हनुमत्कवेच,
सनकमाय्संब्दिताः
सनंदनसंद्टित्ता (६१०) देटप्रदीप.
खवज्नानोतमतंन थ्यीगग्रदीप,
श्त
स्वष्टसग्रह्‌
दरसंग्रह.
छे्दयुधि.
सागसत्तत॑न. ज्ञ
भिदेव. ज्ञानार्णव ६००० "
सिब्टसिहत ००००५
९०९.
5 पैचमक्रार,
परिभाषा.
दरापत्र,

उक्तौटन.
९. वछि २ गुर
श्री % शंखहेतु
शबदार, ८९ गृद्रा £ आस
बलि. रख ८ तीथं
पटल, ९. सुधा १० परमग्हस्य
^केव्च. स्वीय. ।
पनर्‌. प्नस्थापन.
स्तवा. शुद्धि.
सहस्लनाम, अमृत.
हदय. सिद, ˆ ,.
आसने, हूतियाग,
न्यास, श्रीयत
महापोढा, मायन्नि्य॑न,
जारण, यीन
मारण, पर्णाभिपेक ---रामानो,
उचारण, पञ्मभिपेक.-- त्ाराना.
ल क क ४५

स्तभनः कुमारीपूना,
वे्करण, दमनकपूनना
९१०
कालियाय, ९९, नीधी,
काठ्यत्रि -- नर्क १४
महापद्म.
मदायात्री ---सीवरात्रि.
पद्य
महोरात्रि -- जन्माषएमी. शाख,
दारुणां ---दोटि.
मकर.
कुडविधिः
कप,
मोहम,
विद्रेपण. ~ कुद.
कृद
मवाणैव.
नीर,
अर्गला,
रे
कीठ्क,
॥ दीक्षा 1 ६
८ सोपि,
अगिमा, कातत्ति २
गरमा, ५ पाचायन र
महिमा, मेधावी २
ख्वीम।, साप्राज £
इखल. सामान्य ५
वरील. अनुत्तर ६ ८
प्रापि, कता
प्राङ़ाय्य,
दिव.
१११
देवी,
त्रद्ांडा्नदनायं. चतुष्कोण.
नरिकोण,
1 ट कन

खह्यानद.
आदिनाथ. अघ्रदर.
सस्यनाध, | देवता. ॥
नित्यनाध,
सिदनाध. श्रीकालि.
पणानद. महाकाट.
भस्कएचार्यै, श्नीसुंदसी.
माधवानंद, द्यामा,
ताय.
वारी.
नापदि.
धरेप्णवी,
स्द्राणी..
द्द्राणी.
सप्रबाहना.
चाम्ुदा.
मारिषामुरमर्दिनी
खीवा.
२१२
स्ाक्त, शतस.
तारम. कमर्खा
नृसिन्ट. घोरा.
सग्स्वति. महामारी.
उम सीतला
कुमरी. सभुगी-
दियापासिनि, सिन्हासना.
रजमात्ंमी. सीविषा
उचि्टचांडारिनि कामेश्वरो.
अघोर्भैस्व, वचचेन्वरी.
उन्मतभैरव त्रद्याणी,
कारभ्चिस्द्र. भ्रामरी.
कार्परेर. वनटुरगा.
चान्य ४ महाय
यगलमुखी- योगौणी,
त्रिपुप्सुदरी. मातृका.
सिडल्क्मी. पुषा.
भुवनेन्धरी, नसयणी.
गीय. ग्रति
. देरी. भद्रकालि.
११
दुग. कालयायनि.
धनुषासी, कार्यात्र.
खड्गिणी. महागौसी,
अवृदा. सिदिदानि.
कामाक्षी, मीनाघ्ती.
तुर्जा. साची.
पप्रा. मेधा.
ख्या. साप्रित्ि.
बघ्गुल्ा.
विजया.
शेरभ
जया,
स्इभेरड २२ रको गात
देवसेना.
व्याघना. स्वधा,
बहुच, स्वाहा. -
अवा मातरः
भराम खछोकमात्तया,
यंटपुत्रि ब्राद्यी.
नसचारोणीं. महिश्वरी.
चदरषेद. कौमारी.
कृष्ांडा. उ्वाागुखी.
संदमाता भैरवी,
२१४
धृति. उचिष्टमैरव.
6
कुर्देवता. मुद्रा,
०५,
वस्तुदेवत। संबहारयुदरा.
चितामाने, योनिमुद्रा
छिन्नमस्तका. मंकुशनुद्रा.
र्मा. कूम.

नंदिनी. पंकज.
नलिनी, ट्गि,
असितांगमैरव. मल,
सरमैरव. सुट
भौपणेरव, शकट,
संब्दारभैरव. यमप.
कपाल्भैए, + मच्छ,
कोधमररव. युख्ट,
रेणुका. चक्र.
च॑ंडैरव, यु.
काठमैरव. मृगौ.
वटे. * खक्ति
"मर्ते, ध्यान.
पृ । परिशिष्ट,
बाण, केयटाएक सेत्रमां ओषधी उपाय, सणाटचका
भनेमंत्र वताव्या
तरिूतेनो
नो मुन जणावा स्रउद्दामः तेत्ननो योडो माय उतारी लीपो
„ एवा प्रयोग घणाखरा खोटष्छे, पण पालंडि, ढगी, दमी, अने
संअद्वानी, मोखिया, मखं एमनी वच्चे ए वाबते भाजगड चरेद्धि. कोई
छेके मागे, कोर वशीकरण, कोई शत्रनाश करामा मागे अने वावा
४. यहा के. ए प्रकरणमां वेशा घणां समीर थायछे, घडी धघणीनीं
॥ बाय, त्रासन पामेलि बहुभ, ए धकरण बहु "चले. यंन, म॑ने,
, समनो केरे अपाय छ तेबद्धाय तच्रिक मार्ग छे.
ह उड्डामर
॥ देब्युवाचं ॥ ` ,
दश्वरश्रोतुमिखामिलोकनायजगसयते ॥
प्रसादकुसूमेदेवन्रहिषमाथसाधनं ॥१॥
वीकरणमुच्ाटमोदूनंस्तंमन॑तथा ॥ 1

च्षुदानी्मनोहानिश्रृतिहानितथेवच ॥२॥
ज्तनहानिक्रियाहानोकरिरुकंचतथापरं ॥
कार्यस्तंभविरोपेणतस्खर्ववदमेप्रमो ॥३॥
{ इश्वरउदच ॥
श्ुणुख॑हिवरयोहेसिद्धार्थयदिपखासि ॥
[9 ~ ~
त्वरद्प्यामतदनाखपतच्छमुदाच्दत ॥ा
१९८
प्रधमभूतकरणद्वितीयोन्मादन॑तथा ॥
तूती्यदरेपणंचाथचतुरथोचचाटनंतथा ॥५५॥
ग्रमडउच्चाटणंचायपए॑चनरस्त॑भनं ॥
ब्दिस्नुस्तेभनेचाथवस्यीकरणमुतमं ॥६॥
आकपणुनयानांमानवानां
तथाहं ॥ ‡
परपूर्रवेशंचगनव्राजञीप्रकोपनं ॥*3।
गुप्रगुप्तराकायानूरलितन्या प्रयतः ॥
अन्यानप््िसंयाच्चवहुनफ्िसनने ॥८॥
य॒मेख्वाय्येन्‌स्थानात्‌ सागरैःष्टावयेन्मक्ीं ॥
सुयचपातयेदूमोनेदंमिध्याम्‌विष्यति ॥९॥
तयतद्रस्यवच्रचपरिचतव्रस्णस्यच. ॥
यमस्यचतथादं ईबन्हेःराकिशरयभवेत्‌ ॥१०॥
, " ॥ ज्वंपेकरणं ॥
अथान्येसंग्रक्ष्यामप्रयोगेतुविदुरेभं ५
यनच्रुतमात्रेणज्वरोगुण्द॑तिमानवं ॥ १.२॥
निनका्टाटतिंरुखाचतुरंगुखमानं 11
यतर
स्यरखनवददयेनामसरखेत्‌ ॥२२॥
मांस्षनवेष्टयेतुतरअप्णेतओरंतं
पेत्‌ ॥
उर्कगुखाचामरुडाक्तीर्मांससोणित्तभोाजमी
जमुकख :खःअगुक्च्वंरेणगृहणापयहुफटुखाहा ॥
११.९..
1 अथउ्चाट्पं ॥
अथातम्संप्ररकष्यामीप्रयोगसुवीदुरुषर "1 :;
येनविज्ञानमत्रेण्रानरोस्चाटनमपेत्‌ 1 ९॥#
व्रहा्दडिचिताभस्मकाकजघासमान्वितः.॥1;.
॥२।४
निक्षपितविरसिख्तुनुशिघमुताय्येत्रि
स्पकचकमादायरूष्णोरगशिस्सतया॥ }
निखनेयस्यचद्ररितस्योच्यागदातयनं्‌ ॥२.॥1
1 अयमारण ं ॥ ;, ;^
¡॥
मरामनप्यमां संचसंमादायात एः्रचत
निखद यत्‌ -॥
गभ्रास्यिात्रविष्टाचद्रारममे
सप्िनमवेन्मुखुयथाद्ेणभापित॥
, - ¦ ॥ अयद्रुनाद्न \॥
न्सौगुखेगृहगोधस्यभूषकस्यरिरस्तधरा ॥,,
शेतमेदुकमांसेचमूतरन्ैवग जोन 1; ,
्‌, ॥
गहाचासूमभरागानिमूक्षमचूएतिकाप्यत
पुन पनः ॥
एतानिल ्लौपयिवाचकस्त्यशवा
्हा ॥
मेत ओंहीयमाभरात्रुनाद्यनाखायस्ार
संलायतेज्वरस्वित्रो तियतेखपराजतः, ॥;
"अष्ठोतरसहसैतुततोमंमपूनयेत्‌ ५
दतिउद्‌डामेरमहातत्रिपरधमपटखः 11;
2
॥ अथस्तंभन ॥
चंदरस्यचरिरगृयनकुंखमेकरस्यच ॥ ` ।
डिदडुस्यशियेगृदैस्ाण्येकत्रकारयेत्‌ ॥
उअनेनमत्रयिलातुतत ःसिष्यं्िनान्यधा ॥ `
1 ¡पप - प्रोतः ॥ । `
अओंनमेोमगवतेस्तंभनायहुंफटस्ाहा ॥
॥ अथक्रुमिकरणं ॥
मूटकन रुविनानोधृतसूरणखमेततः ॥
खानिषनेग्रदातव्यैततोन्मतोमवरिष्यति ॥
। + अथकुष्टिकरणं ॥
अयातःसंप्रब्षयामीकुष्टिकरणमु त्तमं॥
येनेवरुतमात्रेणङुषटिमवदिमानवः ॥१॥
भलातकप्सगुंनातयामेडूककारिका ॥
गृहगोधाखमायुक्ताभक्षिपनि प्रदापयेत्‌ ॥1
सपराहलायतेकुष्टियथार्दरेणभावितं ॥
+ सधवश्िकरण ॥
अथातःपरक्ष्यामिवदयाधिकरणंपरं 1
येनविज्ञानमात्रेणटोकोभवतिफिकराः ॥
णीकददयेच्रणेयस्यम्िखनिलिपेत्‌ ॥ "
नियतेिकएभूलायावर्न्ीपसतिषटति ॥
१२१
॥ अर्थाजनं ॥
मपवकस्यचनेच्रष्यसूृक्ष्मचूणानीक(र्यत्‌ ॥
अजनेरतिमात्रेणगत्रीपद्येयथादिव ॥ ~
एते्पायो गनामे्यमेनहीनानपर्यात ॥
॥ मेत्रः॥
सओनमोभगक्तसदरायद्चिवायन्योतिपापत ग
येददातिञ्योतिषांवतेषीयावयाणास्व।हा ॥
तीयपररः ॥
इतिउदूडामरमहात तरेअजनायिकारद्वि
+) , ॥ अधद्ुताकर्णं ।॥ _ `
रष्णखपैशिरोगुद्यमुखेनिक्िप्यसर्पपान्‌ ॥
भलात्तकविभ कासतुरूप्णसूत्रेणवेटयेत्‌ ॥
याद्मिकस्यमृदावेटयंअंतधूमेनपाचत्‌ ५ '
सुपक्वंचाविलानीयसमर 11
िपस्यच र्ण कला चश् चन् रमु शिव िनि
तपत् ‌॥
छताचसविर ्पाक ूयोन ्नात ्रका यावि चस्ण ा ॥
तेमावी नीचे ख्खेला शशक
यी दत्तत्रेय एन'भमाणे छ
ˆ 1 (न
गुना बरस्तेच्डतार्षष्े.
- # श्रीदत्तात्रेयडवाच ॥ :
कैरासशिखसासीनेदेवदेवैमदेश्वर ॥
८.4
ॐ क, क
[= ४~

ंलमकाकरंर ॥२॥
दततात्रयपरीपुचदाकरलोकर्छक
२२
रूतनलीपुटोभु लापृषछतेयक्तवत्सरुं ॥
भक्षानांचहितायौयकस्पतं्श्वकथ्यते ॥ २५
कठीसीद्धिमहाकदपतंत्विद्यातरिधानकं ॥
कथयैतोमहदिवेवदेवमदेश्वरं ॥३॥ `
संतिनानाविधारोकेयैवमेभिचारिका ॥
आगमोकरू!पुरणोकतविदोकतइामरेतथा, +1
उदिरेमादितेत्रैचकारचं डोशचेरेमते ॥ `
एधातततरेचडचिषठेषारतेन्नमतेश्वरे ।,५५॥
तर्सकिरुनेरुल्वाकलैवीयविवजिता 1
त्राद्यणेकामक्रोषीचचस्यकारणहेतवे '॥ ६॥
विनाकीकक मंल्ाश्चतंलवियाकथैरिपि ॥ '
तेन्विद्याततंसिहिरूपाकुसममग्रभौ ॥\91
॥ ईभवरउवाच ॥ ) '"
शृणुलिदिमहायोगिखवंयोगवीद्ारदः ॥ “
तेत्रवियामदागुददेवानामविुरभं 1८५"
तवाध्रेकयितेदेवीर्ततरवियारिपेमणीः ॥
गुद््यमदुन्येगुखंगुखं
पुनन; ५९४
गुस्भक्तायदातन्य जभेक्तनकदाचन ॥
मानसंदिवभेपेवददयित्तेखमन्विते ॥२०॥ ”
पएरद्ःचमूरताद याच्रदछातेत्रकल्पकं ॥
१२२.

-यसेकसनेनदातर्व्यनान्यथाक्ञेकोदिते .॥१९

,अथातःसंप्क्यामिदन्तानेयतयान्ृयु
२॥
कलौ सिदीमहातंवंविनाकीटेनकय्य ॥९. ते
नतिथोनचन्षरनीयमोना स्वास्तरः ।।

नन्रतैनियर्हो मकाख्वेखाविवनितं ॥ ९२॥
, केवलतंतरे तरे णओप शंस िद. रूप िणा \॥
यस्यसोधनमलिणघ्षणश्चन सिदिायपे ।६५॥
पोच ारन ्ली ॥
णमोहनंस्तंभविदै
मार
आकषण द्रनारयक्षरणीचरसायनं 11९५॥

काठज्ञानैअनाहारं ऽहारंचनिधीदखनं १६॥

वभ्यापल्दतियोगंमृलास्खासुतजावन
"ज्ञयवादेवाज्ञिकरणभूतग्रहनिवास्ण ॥ ˆ“
ा ॥ १५७॥
कानवच
सिहव्याप्रभयसंपेवत्वितय
` दयिमर्यवुतंसस्यंनान्ययास्ंकरोदित ॥
गोप्ययंरन पुन: ॥ ९८॥
गेप्य॑गोप्यमहागोप्यंगोप्
, अय स्वोपरिमत ॥ ` `

क।परत्रद्यपरमारमननम दुखखतिस्थत्त
टरिहर ायन्न िगुणा स्मन 11
्रख्यकसायत्रद्य
दत्ता्यनमः ॥
* सवकौतुकानीददखय २
वलणिसिदिकुरु-र स्वाद! ॥ ,
१२४
अष्टत्तर्शतलपेत्सिदिः ॥
द्रतिश्रीदन्तात्ेयतंवेदन्वरदन्ताियसंवादि ॥
प्रथम पटर । १॥
॥ अथ मारर्णडश्वरोवाच ॥
चितामस्मविपंवुक्तधन्तेरचूणेसेयुतं ॥
यस्यांगेनिक्षेपित्‌भौमेखयोयांतियमालटयं (1 १॥
भलातकोद्वत्ैटरुष्णासेपस्यदं तकं ॥
विपिपन्तूरसंयुकतयस्यामेनिष्टिपतमुतिं ॥२।
नसस्तिचूणतांतरकोयुक्तमुलयुभवेदूपरुं ॥
खपोत्तिचूणयस्यगिरनक्षिेतूमूत्फमाष्यात्‌ । २॥
चिताकाटगहीलातुभौमेचभरेणीयुते ॥`
निखनेचमगृहेद्ारेमासेमृरफम विष्यति ॥४॥
रुप्णसपैलचाग्राद्यातद्र्तिञ्ाख्येनिंदि ॥
यननूरवीलपेटेनकञ्ललेनुकपाके ५५॥
चित्ाभस्मस्मायुक्तर्वरणपंचसंयुतं ॥
यस्यगिनेहपेतूचूणसवयोयांतियमानये ॥६॥
गृहीस्वावृचिकंमांखंकंटर्कचूणसंयुतं ॥
यस्पभिनिर्तपिकचूणसदयोयातियमाययं ॥1*5॥
पचद ख।'ङखेयतेचिताभस्मव्रिरेपतः ॥
स्मयाना््रलिपेतुय॑तंमौमेतरिमृतेरिु 11८॥

उदरनिटगुहीतवातुविषूर्णखमन्विते ॥
यस्यगिनितिेत्दरगैसयोयतियमाय्ये ॥९.॥
खरविशगुहीलतु्रिपवरणसमन्वितं ॥
यस्यागिनिक्षफचूर्णखदोयातियमाख्यं ॥१०॥
पिपुतरि्ठगृहीवतुनृकपलेदुधाययेत्‌ ॥
उ्यानेनिखनेदूौयस्यनामलिखेखति '॥११॥
यावच्युष्यत्िसाविएातावत्‌ श्रुमृतोभपेत्‌ ॥
यसतमकस्मैनदातव्यंनान्ययाश्चंकरोदीतं ॥९२॥
छकटावद्याछियत्‌यादयंयस्यगिर्विदुमात्रतः ॥
निष्षिपेतू्ीयतेशानरयदिरत्षतिडश्वरः ॥१३॥
गृहेदीपतुमि्ीपेखुवणंग्रिनीयायुतं ॥
यस्यनामासमृुसच्यैमासमेकोनखंशयः ॥१४॥
॥ अयेन ॥
उोनमोकाठरूपायञमुकंमस्मीकुर २ साहा ॥
अरेत्तरशतंनपेतूसिद्धिः ॥
दति्रीदनतत्रेयतत्रेद
रद त्तरेयतंसंबादपरार
णेनामदरीतीयपटखः ॥२॥
॥ अयमोहन ॥इश्वरोवाच ॥
` तुख्शीनीजचूर्णतुखहेदिरसेशयेत्‌ ॥
तिककंचसयोषरिमोहनंखैतोजमत्‌ ॥६॥
१२६
हसीताठंअश्वमंयाकदीसहपेखयेत्‌ "
भोयोचनंसर्मयुक्त तिरंकंखोकमोहनं ॥२॥
शुमीचैदनसंयुक्तंवचकुएटखमन्वितं ॥
धरषदेहेतथावस्ेग्रुखेचैवविशेपतः ॥२॥
राजाग्रन्ाप्लुपक्लीदरनमिहकारकः ॥
गृहिव्ाम्रूलतात्ररुतिकं लोकमोहनं ॥॥
सिटु्कुकुमेचेव्रगोरोचनसमन्वितं ॥
धान्निरखख्भंयुकतेतिर्कंकोकमोहनं ॥५॥
मनःङ्किकाचकपूरेकदलोरसपेक्षयेत्‌ ॥
अनेनैवतुतेत्रेणतिरूर्करोकमोनं ॥६॥
सिदुरेचक्चाख्वेतारततरूलँरसवेयेत्‌ 11
अनेनेवतुरमत्रेणातिलकंरोकमे
हनं ॥\॥1
भूगराजञपामार्गलज्ालुसहंदेविकए ५
एभिस्तुतिख्कंरुन्रिल्गेक्यमोहये
नरः 1८॥
गृहिखादुंवरेपुप्यव्तिरूलातरिचद्तगैः ॥
नवनीतेघमरच्वाट्यकञ्जैपातयतूनिद्ली ॥९५1
कजरुचाज्नयनेतरमोहने
सर्वेतेजगत्‌ ॥
यसमेकसमेनदातव्येदेवानामापिदुरुभं ॥१०॥
खेतगुहिवनुहरिदारुचपेद्ययेत्‌ ॥
रोपभस्तुततिनकंठसपन॑सेक्यैमोद्येन्ररः ५१.९॥
१२५४
खेतु नारसेपुष्त्रद्दं डाचमूलकं ॥
मोहनंखवेतोजगत्‌ ।*९२॥
छेषमत्रिसंपणां
खेतारकमूकमादायसेतचंदनसंयुतं ॥
छअनेनतिककभाकेमोहनेसषेतोलगत्‌ ॥१२॥
विलपत्रगुदीलातुखायादुष्कंतुकारयत्‌ ॥
रकं ॥ १७
कपिलापयसद्धिनवटिरुलातुगौ
एमिस्तुतिरकंरुलमोहनेसवेतोजञगत्‌ ॥
१५
क्षणंमोहनर्तायातिप्रणिरपिधनैरपि॥
विजयापत्रमादायच्ेतसेपसंयुतं ॥
अनेनरेपयेतृदेदमोहनेसवैतोजगत्‌ ॥६॥॥
गृहितातुखुछीपनछायालुप्कंचकारये्‌
यतं ॥९०॥
अन्व्धासमायुक्तविज्ञयावीजखं
कपिलादुग्धसद्वनवटीवंक प्रमाणतः ॥
भक्षणाखातरव्थायमोहनंसवेतोनगत््‌ ॥१८॥
पैचामंदाडीमीषीएाखेतगुंनाखमन्विते ॥
एभिस्ुतिकुकंरलामेहनेखर्वतोनगत्‌ ।*९०॥

कटुतवीचाजेतेेनञ्वारयेपटव तिका
कञ्जठचनयेने न्रमोदनं सवेतिशुवं ॥२२०॥
मोटननाम
दतियीदततन्रयतंत्रेहनरदतत्रेयसं बहि
तुीथपटरु ॥२॥1
९२८
॥ अथभूतय्यहनिवारणं ॥
॥ इंश्वरउवाच ॥ ^.
५५. वपपन्रुष्यचसवीरिरखु्रत्‌ ॥
उष्ुविष्टयक्ी वातुद्ष्टरोमचसंयुतं ॥९॥
श्वानव्ि्टासमायुक्तमाजौयोवक्संयुतं ॥
गोमय॑चैवसंयुकमंघकंसंयुतैरतं ॥र२्‌॥
सखेतगुंनासमायुक्तकटुतेडैनपाचयेत्‌ ॥
धरपदखाजपेन्म॑मूतवाधाचनस्यति ॥३॥
रल्तसोभूतवेत्ारैदेवमूतचूरीहीपु ॥
डाकीनीग्ेतनीचैवधरपदेयपरायते ॥६॥
उोनमोस्मन्नवनवसंनेभरूतादिपलायनंकुस रेखाहा।
॥ अथय्रहनिवारणं ॥
४ ॥ दे-परोाच ॥
अकमूखचधन्चुरअपामा॑स्यमूककं ॥
हूमकंवटमूरंअश्वस्थंमूलमेषच ॥१॥
्यमापतआसपननषन्रोदुंवरमेवच ॥ "
गुन्मयपाननमध्यस्यंदुग्धेषृतसमन्वितं ।{२॥॥
तटर्चणकमुदरूचमोभरूमत्िर संयुते 1।
गौमूत्रसखपाेताकुद्याचंदनखंयुतं ॥२॥ `
मुखयुकयेत्ततनसं्याकालिद्यनौद्विने ५
५२
अश्वलयमूलखनर्नग्रहे पद्रवनादाने ॥४॥
महादासिद्रहर्ण महापातकनाशनं ॥
यावृञ्जीवतिखारोकेगुहपीडाभवेनूही ॥५॥
उोँनमोभास्करायअमुकं स्वेग्रहाणांपीडानारनं
कुरु २स्ाहा ॥
॥ अथसिहव्याव्रसपेतश्वीकभयनादानं ॥
॥ दै्वरोवाच (
सिहदएवानमरकारंमेत्रजाप्यपुनःपुनः ॥
परायंतेसिंदस््वैनान्ययासकरोदितं ॥१॥
पुष्याकेनगृही लातुखेताक॑स्यतुमूटकं ॥
* धारपेद्िणेदक्तेसिंदनाधाभर्यनदी ॥२॥
॥ मनः ॥
उोनमोस्मनिरूपायर्प्ीनिमः ॥
1 अयसपनिदारणं ॥
अस्त्रीकमुनिराजंचनमस्कारे
पुनःपुनः ॥
स्कमरेसपैभयंनास्तिनन्ययाकसोदितं ॥९
गहीखापुप्यनक्षत्रेमृतारूककंहरेत्‌ ॥
तन्मूरुधास्ये्कंठेसपेवाघभिर्यनदी ॥२॥

॥ अथव्याघ्रभयनिनारण॥
गृहीचाशुभनक्षन्नेषतूरंमूकुकंतथा ॥
३.०
धारयेदक्षेणेवाहीव्याघवाधामर्यनही ॥१॥
गृहीलाशुमनक्षत्रेभपामायेस्पमूकर ॥
धा्येदद्तिणेकर्णेवृिकोभयन(आनं ॥२॥
11 अथञत्रिभयनिवारणं ॥
उत्तरस्यांचदोगभगिमसंचोनामयक्षस
तस्यमुत्रपुरोपा्म्याहतोस्तंभोमवस्वहा ॥
अनेनर्मत्रेणसप्रनङिजरअपिमध्येनिल्िपेत्‌ ॥
अभ्निद्याम्पति ॥
गुहीखारवीवारोतुख्वेतकस्वीरम्‌
स्कं ॥
धारयेद्िणदस्तेञप्रिनाधाभयंनही ॥
तिशीदत्तत्रियतेतरेदश्वस्द तालयस्तवादेसिहन्या
घादिनिवारणनामपटरः ॥
ए आखनस्वमनं ॥
चमकारस्यकुडानिमग्राद्येतयारलं ॥
चडाचिरूधिरेयुकंय्यधिचविनि्लिपेत्‌ ॥॥
स्वस्थानेषुभवेस्तंभ ःखिद्धीयोगमदादते ॥
यस्मे
कस्मैनद।तव्यैनान्यधासंकरोदितं ।२॥
॥ मतरः ॥
उौनमेदिर्गवरायञमुकमासनेस्तंमनंकुसमस्वह!
अशेत्तरशतंजगरवूरेदधिः ४
१९९.
॥ अयुदिस्तवेमनम्‌ ॥
उषट्विशटगृहीलातुकछायाशुप्कंतुकारयेत्‌ ॥
तावुरि पदम्तव्यघरुदिरतभनयुत्तमं ॥१॥
॥ मलः ॥
उोनमोभगवतेरघुणाडदिस्तंमन॑कुरु रे साह्य ॥
॥ अयसच्छस्तंभनम्‌ ॥
ुष्याकैनसमुधुव्यव्रिषणुकराताचमूखकं ॥
वनृूत्रेसिरसिधा्यैतेशस्तरसंदहरणेनूणां ॥२॥
गृहिसापुष्यनप्तन्ेभपामागेस्यमूककं ॥
छेप्मालश्चरीसणांसवशस्चनिकारणं ॥२॥
१ मेत: ॥
ओंअहोकुभक्णेमह्यस्नस्तरैकपायमेसंभूत
प्रसेन्यस्तभर्नमहाभ गवानुरुद्रोज्ञापयतिस्ाहा ॥
अ्टात्तर्तलपेतासेदिः ॥
॥ अथशाद्लेपः ॥
तिष्णुक्रातिनिवीजानीमंन्भववेनयाहेयेत्‌ ॥
ततेराठयेत्‌यनेविपयैवसमन्वितं ।\१॥
'भकछत्तिकचरखयुक्त सष्छल्पतुकारर्यत ॥
रनदारुणश्स्योघतस्यखडगप्रनायते ॥ ४९
पययत्तस्षस्यटप्नाययायुटे पुरात्स ।॥
९.२
वृाभवतिशस्तरंचनभवेत्‌षिद्यतैक्वचित्‌ 1\२॥
1 अथर्मनः ॥
ओनमेोतिकरररूपायमहावटपराक्रमाय ॥
अगुकस्यभुजवंधयदष्टिस्तंभय २ अंगानिधूनय
पातय २. महीतलं ॥
अष्टोत्तरङातजपेतूसिदधि ॥
॥ अयसेनापरायनं ॥
गोरोचनगच्नध्वाकाकोकृकस्यपश्चयोः ।
सेनानीसन्पुखंयछेन्नान्यथाद्चंकसो
दितं ॥१॥
शाब्दमाननेसेन्यमध््येपायतेतिनिश्ितं ॥
रनापग्रजञामजाश्वादिनान्ययाद्ंकरोदितं .॥२॥
॥ मनः ॥
आनमेोभयेकरायखट्ूगधारिगेममसनुसैन्यं
पलायन कुरू र स्वाहा 1
अत्तरडातजपेत्‌सिदधिः ॥
॥ अथमेघस्तभनं ।।

एकर(दूयमादायस्पसानांमारसंपटे ॥
स्थप्येत्वनमभ्येचमेधस्तंभकरेमयैत्‌ ॥२॥
॥ अथगेोमहिप्यादिस्तभन ॥
अद्गमगृहिलानुपदयुपरिपरिनिक्षिषेत्‌ ॥
दद्‌
पञूनामवतेस्तेमाेदियोगमुदादतं 11१॥
॥ अथकीकास्तंमनं ॥
भरण्यांक्षिपवृ्षचकील्पचागुरटिक्िपेत्‌ ॥
नौकास्तमभवेतररियथासंकरभापितं ॥१॥
ए जरस्तंमनं ॥
पद्यकंनामयद्रव्य॑सूक्ंचर्णतुकारयेन्‌ ॥
बाक्प्रतडागादिनिक्षिपेतूंधयेज्नटं ।.१॥
॥ मेनेः ॥
ओनमोभगव्तेसद्रायनरस्तंभय ॥२्‌॥
हतिदत्तत्रेयतत्रेचतु्ैपटलः ॥
॥ अयद्दरेपणं ॥
दिद्वेपनरनारोणांविद्े॑सजमेत्रिणां ॥
माजौरविष्टामादायविषटामादायमूयकं ॥२॥
पदानांमृतिकायुकतंपुतलिक्रियतेनरः ॥
नीख्वस््ेणसेवरेएटयमेन्रयिलारतेनच ॥२॥
विद्ेपंसस्षणचैवभराततातन्ेपु्रकरौ ॥
विद्रेपंनायतेसव्यंसिद्योगमुदांदतं ॥२॥
॥ अथमेत्रः ॥
" आओमूनमोनारायणायसमुकंमरुकेनखुहविद्ेपणं
कुरुखादा ¶
२४
दरतिदन्तात्रयतेत्रेदश्वरदत्ता्विदेप
रेयसवणंनाम
दि
` पंचमपटलः ॥
॥ अथउच्चाटणं ॥
ब्रदमदंडीचिताभस्मद्रिवङ्गिढेपयेत्‌ ॥
उच्चाटणभवेतस्यखीपुज्पुनाधतरैः ॥१॥
गुहितागर्धभोधूटीवामपदिननिच्धितं ॥
मभ्यनन्हेकुजवाररेचयस्गृेनिक्षिपेतूनरः ॥२॥
उद्याटनेभवेतूतस्यजायतेमरणांतिकं ॥
1 म॑ल्लः ॥ ।
अनमोभगवततेसद्रायदेष्राका्यञसपत
युक्नां ं
पैखहहन र.प्च २ घोगरंउचयाटयं र्‌हुफट्साहा॥
ठठ र॥
अष्टोत्तरजेपेन सिद्धिः ॥ ॥
॥ अयसर्वननवद्लीकरणं ॥
मृदिलावटगरूडचज्लेनसहघर्पयेत्‌ |
रनीवरेरूतेयोग॑सर्वोकवन्तंकर्‌ ।।२॥
दपितिारुज-धगंधसिदुरकदरीरसं 11
तिकरूक॑क्रियतेभारेसलोकवंकरः ॥ २५
॥ मंत्रः ॥ ५
अनिमोखवैलोकवकरायकुख २ स्वाहा ॥
१२.५
॥ श्री भगमालिनी मैत्र. ॥
सिभगुगेभगिनीभगोदरभिगागिभगमासेमर्गि
हेमगुद्ेभगयोनीभगनिपातिनीसवैभगवच्ं करोभगस
नियङ्निमगसखस्पेखयाणीमगानिमेद्यानयवस्देुरेतेभ
सोषे
गङ्ने्धिनद्रेङ्केदयद्राकयसरेसवानूमगे्रोअ
मगगरचेसुभक्षोभयसवैखलानूभगेशरोजसोषेभगवि
चेसुम्तोभयखपैखलवानूभगेनसोखवौ गिभगानिभेव्मा
मयभगमाछिनीनिव्यश्रोपादंपूनयामिवसेकुर ॥२॥
दतिदत्तातरयततरवदलौकरर्णनामपष्टमपटरः ॥
॥अथ््ीवश्षीकरणं ॥
चित ामस ्मव चाकु्टतगरंुकुमेषमं ॥
चूणचिरससि्िस्वाक्ीकरणमुतं ॥
१ अयपुसवज्लीकरणं ॥
गोसेचनैयोनिरकतंकदकिरससयुतं ॥
र ॥२॥
एपश्वतिकुरकरूसवापतिकरयकरपरं
खवेगमलकनिन्दाचखानेपनेग्रदापयेत्‌ ॥
प्तिवद्यकरं खल्यंदासांदासस्तुलायते ॥२॥
मेत्रः+॥ ओम्‌ ॥
नमोमहाया्षिगिपतिमेवखंकुर २.स्वाहा ॥
९२६.
॥ अथराजवर्यं ॥ |
हरितारंअश्वगंघाकपूरेवमनःदिव् 1
अजाक्षीरेणतिरुकंराञ्यवख्यकरपरं ॥१॥
मंत्रः+ओंनमोभास्करायंतरिखोकात्मने ॥
अमुकमहीपतीमेवर्यकुर २ स्वाहा ॥
द्रतिदत्तात्रेथतंत्रेजवरख्यसपमःपटरं ॥
॥ अयञाकर्पेणं ॥
नकपाटेडिखेन्मंनंगोरोचनसदेवचः ॥
तापयेर्खदोरंग त्रस्य ्रयलतः ॥॥
राजाग्रजाचरसवेपांखल्यंआकर्पणंभवेत्‌ ॥
उर्वशीमविमा्यौ तिनान्ययाद्धंकसेदिते ॥२
यस्मकस्मैनदातग्यंदेवानामपिदुन्भं ॥३॥
॥ म॑त्रः॥ “ }
ओनमोआदिरूपा यञ्सुकेआकपंणकरुरुरेस्वाह ॥

॥ अय द्रनारुकौलुकं 11
¶॥ मचः 1 ५
अओनमोनारायणायत्रिंसराय ॥
६द्रजालकीतुकानिदद्येयसिरदिकुस रस्त
ाहः; ॥
^
01

भमवास्सपमुखेनितिप्लाकाप्ंखनीजक
क, १ भ [व + १

्रे ॥
- =.
९२
तदूविजोभ्दवकमोसंज्वाटैरं डौरकैः ९1
तदर्तिज्वाल्येद््रात्रीसर्ववत्‌टर्यतेधुवं ॥
कापीसानिचनीजनानीनकुलोमुखनि क्षित्‌ ५२॥
रौबारेरुतेयोर्गतस्कौतुकखाम्यति- ॥
{1 अययक्षिणौमनरसायनं ॥
अओंनमेोभगवतेरुद्रायकणेपिद्चाचायस््राहा ॥
अयुतंजयेत्‌ ॥
1 अथरसायनं ॥
चुणीहिंगोककंरुलवर्टबदस्ागियलतः ॥
र्तिकुडेविनिर्षितिपलासका्टवन्हिना ॥२१॥
तेदुस्माञ्जायतेसिदिः सिद्धिः सिदीः सनामकं ॥
सात्रपवेअपिमध्येविहुमान्रसनिक्िपेत्‌ ॥२॥
स्षणाञ्लायतेसतर्णनान्यथादकरोदितं ॥
वनितपुत्रमिवादिगेोप्यंसिदि प्रदायकं ॥द॥
दतिरसायनपय्ठं ॥
॥ अथकालन्नानं ॥
अथमनाहारे 1 अयनरेधिद शनं ॥
* अयवेध्यामर्भधारणं ॥ अयजलयवादं ॥
दइस्यादिअनेकम्रकरणाः ॥
२३.८
चपर उद्डामरर्तत्र जने दत्ततनिय तैतरना भकरष्य छष्यद, ते
णोमा पण यवि. तेना पुरायाम। अमि पुराणन। भष्याय नीच
तायि.
¶ अथ जयःद्िंशदधिकदाततमो
ऽध्यायः ॥
` 1 नानानलानी ॥
॥ इश्वर उवाच ॥
परतैरन्यशनूणुभङ-मं्रपोगेणपुनरदे ॥1
स्मशानाड्गारमादायग्रिएठाज्वो्ककाकयो :१५
कपेटरप्रतिमाटिख्यसा्यस्ैवाक्षस्यया ॥
नामायनवधालिख्यरिपौवयथाक्रमं ॥९६॥
मूदिवक्ेखटयेचददयेगुद्यपादयीः ॥
पुतुवाहुमध्येतुनपप्नबधप्लिखेत ५१.७९
मोयमयेद्युद
कालेतु उ्चरित्वातुबियया ॥
तान्ताचक्रंप्रवक््यामिनयार्थतिञुखान्षरं ॥१८॥
ह्िपओंसखाहाताक्षात्माशलुरागव्रेपादिनुत्‌ ॥
दुषटभूतयहा्स्यव्यापवेदस्यातुरस्यच ५१९.॥
करोतियाट्शड्‌ कर्मतां सिध्यतेख गात्‌ ।।
स्थावरेनड ममब्ेवटुता्च ठलिमंत्िये ॥२०।
तस्सर्वनादामायातिखाधकस्यकन्टोकमात्‌ ॥ ,
पुनप्ययेन्मदात्यदधिषक्षमानुपार
तिं २.९५
- ६२९
दिभुनेवक्‌चचक्षुंचगनकूर्मघरेग्रभुं ॥ `
असखङ्ख्योरगपादस्यमागच्छन्तसखमध्यतः॥२२॥
ग्रसन्त्चैवखादन्ततुदन्तचाहवेरि पून्‌॥
चक्षाहताश्चद्रएन्याः केचियदिशचन्रूरभिताः २२.
पद्पतिश्चूणिताश्चकेचिन्र्ठदिदोदस्ल ॥
ताध्यष्यानानिितोयश्ववैलेव्थेदयनयोभपेत्‌ २४
पिच्छिकान्तुप्रक््यामिमन्तखाधनञांक्रियां ॥
ओं दर पलिन्‌ क्षिप ओं ह सः महात्रलपराक्रम
स्वसन्यं भक्षयर्‌ ओं मदयर ओं वूर्णयर्‌ ओं
ग्र्रयर्‌ ओं द्र खः ओं भैखीं ज्ञापयति खाहा॥
, अमुचन्द्रमहणेतुनपदड्‌रुवातुषिच्छिकां ।९५॥
मन्बयेदशामयेस्सेन्येसन्पुखभ नरसिंहयोः ॥
ध्यानाद्रवानूम्रेचसिहारूदरोमृगा्रेकान्‌ ॥२६॥
शच्दादुङ्अमवद्यागिदूरंमन्तरेणवरोधयेन्‌ ॥
मातृ्णाचरूकेद्यातूकाएत्याविदचोपतः ॥२.७॥
दमद्यानभस्मसयुकमाटततीचास्ेततया ॥
कार्पखमूलमात्रन्तुतेन
रन्तुयोधयेत्‌ ॥२.८॥
ओ अहे हे महेन्द्रि अदे महेन्द्रि भन्न हि
अहिं मघानि स्वादि सवदि किटिक्र्ियं हु फट्‌॥
अस्नाशदूरणव्दाग्नपयाभ द्‌
गायत्रा
१००
अपराजिताचधस्तूरस्ताभ्यान्तुतिरुकेनहिं ॥२९॥
ओं किलि किङ विकरिकि इच्छाकिकि भह
आड्‌खिनि उमे दण्डहस्ते रौद्रि महिखरि उल्का
माागुखि कुकणे
राड शुष्कलड्वे अशम्तुपे हर्यौ
सवरदुटान्‌ खन ओं यन्मानिरंक्षयेदेषि तांस्तान्‌ मेय,
ओं.स्द्रस्य हदये स्थिता रौद्रि सौम्येन भवेन आस
रत्तान्ततः कुर स्वाहा ॥
बाद्यतीमात ःतंलिख्यखकटारुतिवेष्टिताः ॥
नागपत्ेलिेद्वियांस्ैकामायंखाधनीं ॥२०॥
हस्तायैरितापवत्रहयस्ेन्रविप्युमिः ॥
गुरुखङ्यामकालतुविद्यार्षिताःषुसः ॥२९॥
रष्ायानारिद्याचभेरव्याश्चक्तिरूपया ॥
स्वत्ैटीक्यमोदिन्यागौय्यादिवासुसेर्णे ॥२.२॥
- मीजसम्पुटितेनामकणिकायांदकेपुच ॥
पूजञक्रमेणचार््गानिरत्तायन्वस्मृत॑शुमे ॥२२॥ ,
.मृद्युञ्ञयंप्््यामिनामसंस्कारमध्यग ॥
ककाभर्वटितषश्वात्खकारे
णनिबो यित ॥२४॥
जकार विन्दुखंयुक्तंओड्‌ कारेणसमन्वितं ॥
धकारोद्रमध्यस्यैवकारेणनिनोधितं ॥३५९॥
चन्दरसखम्पुटमभ्यस्थंसर्नहुष्टविमदकम्‌ ॥
९४६. *
अयवाकािकायचङ्िखिन्नामचकारणस्‌ ॥२६॥
पमैद्रकेतयोकारसद्षेचोन्तरेटिखेत्‌ ॥
आम्नय्यादौचहंकारन्दलेपो डराकेसवरान्‌ ॥३.०॥
चतुस्तिरदेकायानूवाद्येमेत॑चमृच्युनित्‌ ॥
रिख भञनपत्रेुरोचनकूकुमेनच ॥२.८॥
कपैरचन्दनाभ्यांचच्ेतसूत्ेणवेष्येत्‌ ॥ =“ -
सिक्‌्थकेनपरिच्छाद्यकटरपेपरिपूनयेत्‌ ॥२९.॥
्न्स्यधारणाद्रोगामशाम्यन्तिरिपवेोमृतिः ॥
विरयाुमेकखीवद्यव्िमयोगम्‌तेहरी! (४ ०॥
ओं वातले त्रितठे विडाटमुखि दं्रपुत्रि उद्भवो
पायुदेषेन खीलि आली हाजा मयी बाहद्रहादि
व्रलकरण्ठोच्ेमृद्रतन्विया अह मां यस्महं उपड ओं
भेला आ सराहा ॥
भबहुमसषजान्मुखस्तन्भामुखस्तन्भीयुखास्थतात्‌॥
माच्छड ओं हू फट्‌ स्वह ॥
गृहीसवासपरजुखड्गयुदे ऽपयानेतः ।४१॥
) अयथ चतुरिश्दधरिकरात्ततमो ऽ्यायः ॥
॥ अन्टोक्यवेजयप्रिया ॥
1 इश्वर उवाच ॥
्ोर्तिजयातष्षेखरमयन््रपिमरदनीं ॥
१७२

दुद

स भः
ओं नमो भगवति दंषिगि भीमवकूतर
महाग्ररूपे हिट हिलि रक्तनेत्रे किलि किलि मह्ानिखन
ओ विदयुञ्निन्देकुटु ओं निरमासि कट कट गोना
भरणे चिलिचिलि छवमाला धारणी द्रावय ओं महारौद्र
साद्रचमा स्ताच्छदे विनुन्भ ओं नृत्य असिर्ताघासय
भृकुटी रुतापाङ्गे विपमनेत्रकृतानने वसामेदौ विरा
गात कहर. जं हस रे कड र आ नीलजीमूतवर्णे
जभमाखरतभिरणे विस्फुर ओं घण्टारवारकौणदेह ज
सिसिस्थे अरुणवगे ओं हां हं दं रौद्रस्पे द्री
शीङ ओं आक्यं ओं धूनर्‌ओंठे
व्िणिद्रक्ष क्षां क्रोधरूपिणि ग्रजकर्‌ ओं भाम
भतम भिन्द ओं महाकयि च्छिन्द ओं कराटिनि
1८२. महाभूतमातःस्बदुएटनिवारिणि नये ओं विजयं
ओ ्ैलेक्यिजये टरं फट्‌ साहा ॥
नाख्वणंम्रतसंस्यांविंदस्तांयनेञजये ॥१॥
न्यासंर्चातुपंचांग॑रक्पुप्पागिहोमयेत्‌ ¶
खर््रमिरेन्यम ङ्‌ःस्यातत्रैेदयाेनयाप्डात्‌ ॥२॥
चा बहुरूपाय स्तम्भय स्तम्भय ओं मोहय ओं
सञ्च चानून्‌ द्रावय ओं ब्रद्माणमाक्प॑य व्िष्णमक्र्पेय
अ। महिश्वरमाक्पय ओं इन्द्रं यख्य ओं पतान चा-
१४७२
ख्य ओं सप्रखागन्‌ ्ोपय ओं छिन्द छिन्द बडु
रूपाय नमः 1
सथं विद्यादरिन्ततः ॥
मनेगन्नाममृन[~पमूतिखं
दर्याप्रेये महापराे यद्नयणेवे तै रोक्यविनयविद्ा
[>

नाम चतुिशदधिकद्ाततम ऽजध्यायः ॥


=
॥ अथसप्त्िकिदाघकदाततमो ऽध्यायः ॥
] माहाम ारीिय ा ॥
1 दश्वस्डवाच ॥
[मातं प्रद्यामिविदयांशनुषिमर्दिनीं ॥
ओं ह्यं महामारि रक्ताति छप्णवण यमस्यान्ना-
किनि सन्य॑भतसंहारकारिणि अमुक ठन >, आ दहर
यर्‌ आ
पचरे जं छिन्दरे ओं मास्यर्‌ जं उस्साद
सर्म॑ससवय्च॑करि उरवकामिक्ते हंफय्‌ स्वाहेति ॥
ओं मारि ददयायनमः॥ ओं मदामारि शिरसे
खाहा । ओ काढरान्रि दिखघ्नै वीप! आ रूप्णत्
खःक्वचाय हं ] अ तास्कालि विद्युञ्जिन्दे सवखल
भयेकरि स्तर्‌ सर्दकार्यतु दं लिनेवाय वषट्‌ । ओं
महामारि सर्वभूतदमनि महाका अघ्याय हं फट्‌ ॥
एषन्याखोमहादेपिकर्चव्यःख।धकेनतु ॥१॥
२४४
छवादिवस्मादायचतुर खन्विदस्तकं ॥
रुप्णवणीज्िवकूतां चचतुवंहखमारिखेत्‌ ॥२॥
पदेविचित्रवणैच्वधनुःशूखंचकृकां ॥
खटुवांगन्धारयन्तींचरुप्णारमपूेमाननं ॥३॥
तस्यदृष्टिनिपातेनभक्षयेदयतोनरं ॥
द्वितीयेयाम्यमागेतुरक्तजिव्दभयानकं ॥४॥
केचिहानंकराठचदंप्रकटभयानकं ॥
तस्यदृटिनिपातेनभक्षयमाणंहयादिकं ॥५॥
तुतीयंचमुखदेव्यानेतवर्ण
गजादिनुन्‌॥
गन्धपुप्पादिमष्वाभ्यैःपखिमामि मुखंयनेत्‌ ॥६॥
मन्तस्मृतेरक्िसेगशिरोरोगादिनस्यति ॥.
वठयाःस्यय्र्ताशखनाछमायान्तिरात्रवः ॥ 1
खमपरोर्निववृलस्यद्यजारक्तविमिधिताः ॥
मारयेतरक्रोधसंयुक्तोद माद्रैमनसंखयः ॥८॥
परखेन्यगुखोभूलासपताहैजञुदुयायदि ॥
व्याप्रिभिगुद्यतेसेन्यन्भंगोभवक्िैरिणिः ॥९॥॥
समिधो ऽए्रसहस्वन्तुयस्यनाघ्रातुहोमगे्‌ ॥
अचिरान्‌ भियतेसोपिब्रद्मणायदिरप्षितः 1२१०
ठन्मत्तसमियोरक्तप्रिपयुक्तसदस्छकं ॥
दिन॑वयसखैन्यश्चनाञ्लमायाततविरिपुः ॥२९॥
९५५
रालिकाख्वभहीमादगो ऽेःस्यादरूदिननयात्‌ ¶।
खररकसमायु्हीमादुच्चव्येद्रि¶ ॥९२॥
काकर्तसमायोगाहोमादुस्सादनद्यरः ॥

बधायकृस्तेसर्वयत्‌ करिव्विन्मनसेप्छितं ॥१२
ाधकः ॥
अथसदग्रामसमयेगनारूढस्तसख
॥२९५
कमारीद्रयसंयुक्तोमन्नसचद विग्रहः

दूराद्‌खादिवायानिविदययाद्यानमन्लत्‌
॥१७५ ॥
महामायापटंगृ्यउच्छेत्तव्यंरणाजर
पर्चम्यमुखोभूलादद्येत्तेमहापःः ॥
॥ १६॥
कुमासोभो जयेत्तत्रपश्चार्पिण्डिचभामयत्‌
म्पा पाणा मुवा निच् चल ॥
` साधकश्धिन्तयेव्मैन्य
्‌ 1२.
[नरुस्साह विभद्चश्चमुत्यमानेचभएवियत
चर्‌॥
एपस्तम्भोमयागरोक्तोनदेयोयस्यकस्म
तथा ॥२.८॥
सैखोक्यविजयामायादुर्ैव॑मेरवी

कलिकातरैरयोरद्रोनारसिदपयादना
रानम
दत्यापनेेमाहापरणेनुडनयाणेगेमहामा
दवि कखा ऽध्य
तते मोायः ॥
सप्त्रिला

१७६
५ अयचचलार्छादापरकराततमो ऽअध्यायः॥
॥ वदयादियोगाः॥
॥ दैश्वरडवाच ॥
वद्यादियागान्‌वक्षयामिङिखेद्‌द्राटपदेचिमान्‌ ॥
भूगरजःसहदेवीमवूरध्यश्चिखातथ। ॥१॥
पुजनीवरतञ्ज््त्यधःपुष्यासुद
न्तिका ॥
कुमासेस्द्रनरास्याद्िप्णकान्ताश्चितो ऽक॑कः॥२॥
रञ्नाटकामेोहर्तांरुप्णधस्त॒रसंत्िता ॥
गोरष्षःककंटीचैवमेपशर्‌गीस्नुदी
तथा॥३॥
ऋलनजीददैनन्टयोरेनागाः८पदतौ रमुनिदेम
तू१४
(व :११३सबो ८दिक्‌१०रसादवेदागरहस्ऋतुक्रवि
£र्चद्रमाः१।॥४॥ ४
तिययच्च१५क्रमादागाओपवीनांप्रदानिणं ॥
्र्मनचतुप्करे णध्रप्वाद्त्तनप ॥ ५1 ॥

तृतयेनान्ननज्ुयौत्स्लानंक्याचतप्कतः ॥
{गरानानुकामाच्चचनुदधाटेपनंसमृतं ॥६॥
गुनयादन्षनेपास्वैयुगाया-्ौत्तराःस्मताः

गुनगान्प्रादस्याच्रदचसमधिसंस्थित
ाः॥\॥
मभ्मनसाक्यािमिर्भूयःस्यातसक्ैकास्थैके ॥
९१ सप्देहस्तुतिदरीरपिपुभ्यते ॥८॥
९४७
धपस्तपेडणायम्तुगृहादुदर
तन्मतः ॥
' युगाद्याश्चाञ्जनेगपरोकवाणायाःलनकन्मैमि ॥९॥
स्द्रा्यभह्तणेप्रोकत्लद्यापनकेस्मृताः ॥
ऋववषेदरतुनयनैस्तिरकंठोकमोहनं ॥९.०॥1
सूययत्निदशप्षैश्चदौरै स्तीरेपतोवशा ॥
संनद्रपणिस्दैश्वयोनिरेपाद्रशाःस्ियः || ११॥
तिथिदिग्युनवानैशवगुटिकातुवदयंकारि ॥
ध्येमोञ्येवथापनेदातव्यागुटिकावदो ,॥१२॥
ऋऋ्षलग्‌ यहाक्षिशंरशसास्वस्तम्भेयुखेधृता ॥
शेवयेदररशअङ्गटेपाञ्जच्यसेत्‌ ॥१२॥
$ वगाल्तिमनुरुद्रच्गुटिकलूुचतृपादिनुत्‌ |
तिपोडशदिशावाछेपातूख्ीदुमेगाद्युमा ॥१४॥
तरिद्याक्षिदेखनित्रैटेपात्‌करडिच
पैः ॥
त्रिदशक्षेशभुनगैर्टेपतखीसूयतेसुखं ॥ २५॥
सपदिटुमुनिरंतैदयुतजिन्दस्चलेपतः॥ ।
निद
खल्यन्धिम॒निभिष्वजरपतप्तीसुतः ।1१६॥
यहाह्ूसप्यत्निद क्ैगुटिकास्यात्रूवदशंकसं ॥
ऋलकूपदस्थितौपव्याः प्रमावः प्रतिपादितः १७
इ्मामरयेगहापुराणेयुदजयाभेवेपो
डखपदकानाम
चस्वारिंछदधिकडाततमेों ऽ्यायः॥
*
१४८
॥ अथद्विचचार्दिदादाघेकश्ततमो
ऽध्याय 1
॥ मन्त्ीपघादिः ॥
1 हश्वरडवाच ॥
म॑त्रोपधघानिचक्राणिवक्ष्ये
सव्वप्रहानिच ॥
चौ रमक्नोवर्णगुणोद्िघ्नोमाताश्चतुगणाः ॥१॥
नाम्नाद्दतेभवेच्छेपश्रौरो
ऽथज।तकं वदे ॥
प्रश्येत्रिपमावणांस्तेगभपलनन्मदाः ॥२
नामवर्ःसतनैःकाणोवामे ऽदिणविपमैःपुनः ॥
दक्षिणाप्षिशवेत्क्ाणंस्त्ी
पुत्रमाप्तरस्यच । २॥
मात्रानणो्वतुरिघ्रावणंपिण्डेगुणेकते ॥ `
समदयानिपमृनास्याद्विगेपेचमृ्तिःद्छवाः 1४॥
ग्रथममरूपमुन्ये ऽथप्रथमेचियतेपुमान्‌ ॥
प्रभुक्ष्मा्षरैररद्यद्रव्येभागि ऽखिरेमतम्‌ ॥५५॥
शनिचक्रेप्रवक्ष्यामितस्यद्िफरेत्यनेत्‌ ॥
यशिस्थ समेट तुद शखते दै क। । ६1
एकद्राएदरादछ्षम पादटषटि्चतंत्यजेत्‌ ॥
दिनाधिपः ग्रह्रभाक्‌ेपायामर्दभागिनः 1191
छानिभागन्वयजेश्दे दिनराहुवदायितते ॥
रकीपऽनिरेमदेगुरीयाम्ये ऽनलेभूगी ॥ ला
अरग्यीकुनेभवेन्‌ सोम्भास्यतेसहूुंषेसदा ॥
१४९.
फभिराहुस्त प्रहस्मैशोवन्द चर्त से॥९॥
वायौसंवेएटयिल्वरांदंतीशसन्भुखं ॥
पतिथिराहुमवक्ष्यामिपूरगिमाप्रेयगोचरे ॥१०॥
अमदास्यावायेवेचराहु ःसन्मुखरानतरहा ॥
कादयाजान्ताःसन्मुखेस्यु ःलायादान्ताश्वदक्षिणे ११
शुङञेत्यनेतकुजगुण(हधायामान्ताश्वपवेतः ॥
याद्याहान्ताउन्तरेसयुस्तिथिरषटिविवनयेत्‌ ॥१२॥
ववोवदक्षिणास्िस्लोरेखव्रिमूरुभेदके ॥
सूस्यैरार्यादिसंलिख्यदृ्टौहानिजेयोऽन्यया॥१२
1
विटिराहुपरव्ष्यामिग्टौरेलास्तुणतयेत्‌
¢ ;

शिवादमेयमाद्रायुवायोरिन्द्रंते ऽम्ुयं ॥१६
नेऋताखनयेचंद्रचन्द्राद्चंततोनरे ॥
जखदाशेचरेद्राहुवएयासहमहावर*॥ २१५५
एशान्यांचतृतीयादै
सप्तम्यादौ चयाम्यकरे ॥
एपरुष्णस्ितपल्लेगर्याराहु हन्त्यरीन्‌ 1 १६॥
इन्द्रादीनूभैरवादींन्रद्याण्यादीर्‌यदादिकान्‌ ॥
अष्टा्टकंचपूवौदौयाम्यादौवातयोगिनीं ॥ १७
"यदिंबहतेवायुस्तत्रस्थोघातयेदरी्‌ 1
दढीकरणमाख्यास्येकण्ठेनाब्हादिधात्ता। ९,८॥
९५०
पष्योभृताकाण्डलक्ष्यव स्येतृग्पुड्‌ लिका ॥
तथापालितापटाद्रभ्यांखदगंनिवासयेत्‌ ॥१९॥
खरेहन ओं भकषर्‌
ओं नमो भगवति वचड्‌
ओं खाद ओं अरे र्तं पिवि कपाठेन रक्ताक्षि रक
पटे भस्मांग भस्मलिपिारीरे वजरायुपे वपाक
चिते पूर्वौ दिद बन्धर्‌ ओं दक्षिणां दिदयम्बन्धर्‌
ओं पञ्चमा दिदयम्बन्धर्‌ उत्तरांदिम्बन्धर्‌ नागान्‌
वन्धरे. नागपलनीवेन्धर्‌ ओं असुरान्‌ बन्ध२, ञ॥
यक्षाक्षखुपिद्याचान्‌ बन्धर्‌ ओं परतभूतगंधवौदयो ये
केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रद्ष२ ओं उर्व रघ्षर्‌ अधा रल्‌
ओं क्षुरिक वषर्‌ ओं उक महावर घटिर अओ
मोटिर्‌ खटावलिवन्नाभ्िवलग्रकारे हुंफट्‌ ड द भी
फट्‌ हींदौःषू के फः खै अ्रहेभ्यः सर्वन्यापिभ्यः
खव दु्टोपद्रेभ्यो दीं अरोपेभ्यो रक्ष ॥
यहज्वरादिभूतेपु सन्वैकमीसु योजयेत्‌ ॥
दरवया्नेये महापुराणे युदनयाणवे मंत्रोपधादिनौम
द्विचलवारसि्दधिकडाततमोऽध्याये ; ॥ ,
१५९
के तत्र अन पुराणोनी भा-
सदर उपर्य एम समजवामे सावे
न आसम ययो. मषा,
इदि छ. सारा िदुस्यानमां साची विदा ो.
विद्रान खोकाएए पात घाल्य
अषधी, म्रद, तक, पंवधी शानो
शथक ज विद्रन हताते
एटकलामा सपत्तिनी अंघाधदमां मृव्ना तय
जत तेमणे
गया षद, तेमनी सतति, तोठानी अने पाखंडो धई,
पदाभन ों उपयो ग जाणवा नुं काम छोडी
सन्य सोजवान मने दृष्ट ,
दभना उका वगाड चो. .अने जुठा»
दिध, अने असत्य, पषंड, अने
वान वास्त मनकल्पनाथी, छखवानु
मेतर जतर्‌, अक्ञानी छकोने छेतर
तेमां अनेक
काम शर्‌ कथ, अने ते उपर कोटयावधी त्रय रच्या.
अने पालं क्रा, बतावी
कलित, जा, ततमा मेत्र, अने तत्र,
गयु. शानु
रो सेकोनुं मन सय अने सृ पदाय उपरी नाक्षी
शी जब्र १ उ“
स्मिस्तंमन१ ए खरूदोयततो, षिमा करवानी
दाटन्‌, खख दोय तो, आटद्य जनादन अने बाहा्णा उने रेखेनीं
द, इत्यादि उपायधां
शि नदर्‌ १ शैन्य स्तभ-तेनानी स्तम, जयवा
कनो नाश पतो होय, अने जय मक्त होय, तों ट्टो लेषो,
पड १ एक मवर्याल्ान
अने वेदुको, अने कवायतो, शावास्ते राखी
प्रापे राखिये तौ दक्ष पङ्ट णो नाज्ञी जाय, मारत कैव्णवी प्रयः

तेमां पण यद्ध अने भन प्रयोग रष्यादध. प्यारे भारततना पेदे ए


ान,अने स्त्य शध वी
बो र्नो चारतो दशे. अने पदार्थं विन्न
तेय ददु लोकोनी पडती धई. अवा
गधी, यणो काक गयो,
अन्यदेशना व्यक परम
कुनमा, दिदुटोक गक यया, ते अरसस्य
तेमणे वरुकत्र उलन
शपो सुपायो, स्त्य ज्ञोध करवा स्ग्या,
,९५९
कवं, तेथी वाहाणो चाट, वणतर्‌, ठकसा, खंड कएवानु, प
फादानु इत्यादिक, मनुष्य शक्तिथो, अने जनावस्नी श्क्तियी, न पाप
एवां कामो चले. ने तेयी व्यापार सुप फर गयु. रोजगार
गयो. पर्देशनी साम्नि खाइने, िदुलोक वदप, हतरदमी इग,
हतराग्प, हतेक्य, हतक्तपदा यने, हनारव्ष॑यी सदया, दमे
कुशत्ता, यने शधो नवा निकव्या, तेयो सवं राना अपनय पमी,
रमा गया, बराह्णण, अने मंत्र शद्ध, प्रहणमा यने, माणा
जप करता श्या. अने ओरडिमां देषीतुं पूजन अने ष्यान करत रा"
षोकोनी अकर जति रही, शु मानव, अने शु न मानयु+तेनो भाषा
र्नो नदि. राजः, मेत्रशा्िने चोक्ता फरेढे धिष्धि दात आगे ए
उमेदयी अनुषटानो करविे, आवा तुफानमा द्रव्यनो व्यप यायदधे, वये
खरे कामे रुगाडवा वासते, भाग रद्नो नदि. नवा प्रय ललन, पैषौ
नयी, विद्या मणवाने, पैषतो नयो, मोटां यात्रिक कारलाना क्वान
बासते परतो नथी, पृ्द्मा जाने, पप्तो नधो, सुधारो करने ॥
नयो. बरधोढाने बस्ते वैसो 2े, बते करवाने पे, वारा करवानेठे,
- मेदिशरमां अर्पण करवाने, तरालण जमाडवा वास्तेद्धे. राजाने पे पण
एज प्रमाणे निरपयोगो खच करणाने वासते पसो, निबाछ स्याने
वाते, पसो नथी. स्वार माणसे पगार आपृवानें पो मथी, दु
शटि खाये तेमने बाप्ते छे. हु मछेरा, नोच छोकोने बासते, छे. ए
भरमाणे सरव देनी सिति दिमाठययी ते कन्याकुमारौ सुधि एक सरलीदे.
ते प्रमणि दरद्र पपे. यारे आपणे शु करन्‌ १ आ पालाडि ततन, द्या
एकी देवा. यने सुन्य अने प्रमाणो जे बात तिद्धदे,अने जे पदार्थ जोवामा
१५द्‌
तुा-
, अवि, तेना अन॒भवधी जे गुण मादुम पड़े ते खरा, बाकि वदु
नषे तेनो आश्नो करमो नहि. धर्मशाल्च पण ज यापणनं कनडतु दव

ते कादि नाखदै, एम समध रीत भात, परदेशमां जवानि दतः


विधवा विशे करूर नियम, जेधी छोकोने दुःख धायछे ते कादी नावा"
*
ने तेने बदठे दीना करवा. प्राचीन काल्य एम करता माव्पा्,
अस्तलना धर्म,
कणिग `चालयं सरे केटलाएक नियम फेरी नाख्या,
एक सोमे माने चालतो नयी. त्यरे बिद्यन विचारवेत छक
भान
गाह सधि दशमां दता, त्यां सधि ए प्रमाणे विधिनों निषेध, अने
निवेषने विधि, करता आव्या पछि मृं यया, व्यारयी एम कटेवा
खागपा, के आप्णायी कश ेरवाय नदि. एम कदिने वद्धाय बात्क
के जनावर्‌ जेवा, अटकी रदे. पण हार विचार बधवा छाग्या ठे,
मकाश
प्तको बधवा ठाग्यहि, विया वधे, परवभ्ाचीन भूरा उपर
पडवा लाग्यो दे, तेयि कमेकरीने एनी असर धन्ये, अन साया दादाडा

अवे एवी आशा दुशम्रही, त्ूतपाखडना, अभिमानी मरता जायक्ठे,


भने उलन चोडा याद, इमेन सरकादनी छया तॐ किचन) वृत्त
बरे, पण देशिरानानु एनुधोरण नथी, कारण केवणी पाला कोई
पिन्‌ राना नधो, जे छ ते केव अज्ञानी अने दुरणी ॐ, तेमना
उपमा विचार बम्छिजायद्धे, विद्यान्‌ ठेकाणु नयी, तो प्रण अशा ^
भाग नतां एमने पण॒ भणवानि जख पशे, एमनी संतति पण
मणे. -ठेक,संभार रहे नदि. बहुकाजनु मधा तेतरत जाय निः
देशने
पर्योदय यतां पण धिरे धिरे, अधा जाय दे. व्यम आला
९५४
बक्रम पदेषु अंथार एकदम फेम जाय! पृण जेटया प्रकाश यन तेद"
खा क्वा खरा,
हिदुस्यानमां मोटु नदर एमे, के विचार समूषदो गयो. केर
एक नियम, वेव म्यी, पारे. तेमां कशो आधार नथी, एवा |
हासे नियम मानि दि, प्रण कोइएु नियम विवे सत के अनतत छे ना
, भिचर्‌ करता नथी. शामा कोई ठेकाणे ए नियमे, के नही एना
तपाप्त करता नयी. खटी शायी पडि? ए ष्डीथी फट छे के नहि,
तेनो मिचार करता नथी तेन भमाणे अनक षूी, अने संप्रदायः
अने पेतमात्त, चाले छे पण तेनी शोध करता नथी. अपिकरानी ए
हंता .जायञ.अनेक श्लका पोतन चहाते घडि घडिने वंध करे
एषु रषटूवज् पृथ्वी उपर नवी, परदेशना रकषावधी लोक आगीने आ
देहमा र्या, अने या भूमीना खरां वारस ते भिकमागता यया, अने
आ देशषनी रद्मी, अने संपत्ति, हजार रस्तेथी बदेर जायठे, तेनं
भटकावानी जनीन के विचार करता नो दवी परेतावस्या, पमल
पमेक भै्यतरठे, एड जणातु नो, जे भरमाणे एक गासणने दनाए `
काणां पेदे, तेम जख रेदेतु नयी. ते प्रमाणे हाक मा देशल्म
पाने काणां पडा छे मने तेमथो धन निक्ठी जाद, पृण कोई
तेने भटकायतुं नयौ, द्रे फेवीं दाछत्त जोडइए कै तेमां आ देश पं
तो जागृत याय तेनि कन्यना यि नयी, या दशमां स्वरी विदयानी
गृद्ध करवानी पणी छ, खड वानु नाणे दे, पण करवानु जाणर्ता
नी, खाणो खोदवानी घनोठे, ौदोट्‌, तषु, कील, कोवलः ई्याः
दिक उप्दोभौ रदाय घणा पण तेनो तप्त कोड कर्तुं नयी. घाः
१९५५५
नातना रोक अज्ञाने
ग्र मातु ते मफ़तनुं खानानुं शिष्ये, वीजो
नी, सारे उद्योग करवाने कोड र्यो नथी.
छ, राना ते करतां अज्ञा
ए प्रमाणे साभत स्यितीच े. प्रस्य लोक, च्यवहार मां जाणे. पण ते
फे जेमा यत्तानी
मट माक्यो दना नाये. एवं कोड माम नथी
अने भट, ,
भट भाक्तं प्राबल्य नयी. भ्रदस्य छोकोमा, हमत नयी.
आन्ताकित करे, अने „
वेदिया, शुकलने मान अपे, तेयो तेमने
सेतानु नोर ब॑धारे बता. मा मदमार जोर नाच पमं जोश्पे.
जमाव मोटो ठे.
मने सद्‌ ग्रहस्योनुं जोर वधन जोश. ९ छोकनो
मशी नयो. तेवी
निस्योगो देश तेमां, भिखारी कवार दोय तो, ते
नदीं, शरा
रसो ए एोक सारि के हमे तमरे पेर विये
ने एम
जमिये नह, वाच्वामां आचिवे नर, एम कदे तरे परहस्य
के भपाभे मनर जे ए नागा लोको साये क्यादां सपि
षणे
परति १ मि गमे ते मोठवण कने, महस्यसुभिछोकोये सर्वत्र पु
नोर, आवा अज्ञानी लोकोना नोप जां ब्रदसपो पतत्रे;
कारण्डे.
सां सुषे कशो सुधारो याय नदि ए पण एक मदु सषि
्त लोकोन ा लानि हता, व्याह
ुरेपडना रोक हां सुभि धू्मा्यक
असानी अने निरव र्या. तेज प्रमणे
कशो सुभारो ययो नहि, पण तवि रघू. तेद
ा भवंड घणा वरयो माडिया जेवा धर्माणलने
ययु के, विचार व्यो नहो मतरनु महातम , भूत, पिथिचनी
ष्मा कदयों ताक
ज्ञान, जनो
व. अद्ूत कया, खोटो भूगोल, खोट
स सर्य देशमा
भर नथो तेने पेखा यथो, साचि वात डुबो. धर्मष्य
शेनानो स्वाय सोरे, विदू ए देजुता नयो. तेभि एमनी बुद्धि माटी
९५६
दोय. भ्रस्त, मुखदिनी कछ एमना दावयी वहार पडि नथी.
भट भानौ गकक,तोभीख जेगे दोय. एमंने सोबत, के भभ्पाह,
के देशाटण नधो, शा प्ताधनयी एमनी अकल क्ये १ मे दि
दधि मति संको्वित रदेढे, एमनामा, राजकारमार करे एषो क
नथी, सेनाप्रतिपण करे एय नौ, यात्रिक कारखाना चछ एवा
नयो. व्ये शा कारणयीं एमने पूजया १ मारे ्रहस्योना हुकम मनाग्‌
एमणे चारय जोर. ए वात वाजवीे, परण ए यात कोह दा्दाड
ए गर्वी खोक मानवाना नयी. मे जेमने नुकत्यन धायदे तमन
विचार करव जोहएु. पामे दिवार करते ए आशा रावी नद|,
तंत्रमां जेवा सोफानो जत्र मेवनादे, ते धाटना। पुराणमा पणठे,
प्योततिप पर्कना स्रयमा पण एवा तोफानो घणाढे. कया इतिदातना
श्रम पण्डे. ९नुं कारण, अप्तलना जेटला धरम तेम करता, विदयः
पु बवट. भन्य देशना धर्म पण अस्ठना वखतमा एगाज हता. मपर
वाजि नदे ए जोन छोकोनि एषी भराति यकेषु णाना देवरे.
अने बीजा देव परण खाना ते एना पुष्यो खायडे, अन्य देव पर्ण
एवा साठ करनागर गयिएने ादनासा महा उग्र तेमने जनान्ते माणा
सानि संतुष्ट करवा जोडये, होम करवानो चाक असली पेलो
तेनु कारण देव कोडनो भित्र के नाप नयी पण गादइकवादि कामदार
मेषो टमि अने नाश्च मण्नापे एगोषठे तोये तेने मापि संतु करनी
एग क्व्यनायी होम चालु ययो. प्रण दोम करयो एु मुदे. परपम
भ्य नाश उत्तम पद्यं वाग्नि नाएवा अने लोपि मिष्वारीर भ्तक
देति कम्यना कष्वीर कन्यना मोग एतु माटम पनाय भूक

९८५९७
तृप करीने दैनोनी भसलता मेतववानो धर्म एटठे कर्मक मुकीने शुष्क
स्पनु भजन
भने लता वेदात उसनं थयो तेथी कायर थयायी सुंदर
मक्तोने अनेक
उलन यमु पण खत कल्पनायो दुर रदया. अने अनेक
देव उलन कयौ. महिमन स्तोत्रमां स्ये केः-
स््वीनपिचिच्य॑टलकुटिख्नानापयतुपा ॥
+
त्रयीसाद्य॑यो गपदापतिमतवेप्णवासति 1॥
अने बालहा
मुई सरकारे वक नवर ३९ भाग २ जामां मनुष्यवध
विशे सरकारमां काम चालं ते सवधि काग्छ पत्र छाये. तेमां
बहना गवरनर सदेव हानरेनक इंकनने कर्गलं बाकर वडोद्राना
रशदैट सदे तास्व १६ मार्च १८०८नेो पोट कपि, तेगां
ब्रा्णोनि
करुम २०८ छे तेना ताजा कलममां पान २६ मे करडा
विर सविस्तर रषये, एवि चारू धणं
भनुष्यवुक्ि करवानी चाल
$काणे हिदुस्यानमां हति, ते वेध करवाने घणा प्रवल सरकारे कर्यो
करे
छे. नागपूर जलबलपूर गुमसुर परगणामां खाड लोके मनुष्यवन्रौ
क्या विना वरसराद पडे नदी. पाक
ह एम समने के भायः बडी
सशि चाय नदी. माणसने बांधिने तेना उपर नासे माणस दयाया
ने तेना अंगना ककडा कादी के एने भेियां पूना कदे, सति
सुषि एष्या
ग्नि दाख हति तेना दासला १८१९ो १८६९६ मारां
उपयो ए नव वर्षमा ६६३२ विया वक्रि मुर, मोदा
४.ते
वस्तुना प्रथमां
काप इमारतो योता ते बखत मनुप्य दाता अने
कडियावाड,
पण बी कवा वासते खट, हस्पान, नेगुनरात, नै
मए, शय पादमा कनयनि दभ विति करदा, मेचक ठेकभे
२५८
मार्वानी चाल वैध पडे पण छोकरा सर्पण कट्छे. पना पने
"नुते तहां खंदोबा देवे तेने पुर अने प्रियो भर्पेण करे व्यर्‌
पञ्ि तेमनु नाम वाप्या अने मुरो पद. द धरमाणे कोकणा भा.
विगियो कले. तुकनाप्रमां भव्या करे, केदकेएफ ठेकाणे पडिभ
यानि जगा हति सत्यशुगी देविना इगर उप्र भने शू पामि .महाश्च
पृत्ति गर उपरथी कदि मरता आ किगेरे एवी जगाओ षणी.
केटद्ाएक ठेकागे निवता दाटेल्य पुरुपोनि कवरोढे. अमदावादगा
भिमनायमां सने दुेन्वर पाते बेचराजिमां एनी स्माधिया्धे सभि
ना आरा उष एवौ समाधी एक यावाए भोडा वर्प उप कियत
विशे माजिष्रेट आगव्छ काम चाल्य, पण तेनो पततो पड नर दार
केटलाएक वेकरा देने ताभी माह।जनमां छोडि देधे एवा उम
पक्षयो पण वक्रौ कएनारा घणा. संडालानों घाट रेरे कैपनीर्‌
बाध्यो ते बलत दबी गातं चाकती हतो के कंपनी ाणसना" बी
करे, ते उपर केटलाएक मजुरदार शोक नाक्षी गया, देवने बनि
जोष ए स्थे साधारण वातछे केटरेएक ठेकाणे काुनाईनि स्यापन
, ते ठेकाणे निवता पाडानि वाधिने तेतु कालु करादीने नवेव कर
छठे. बाडतादुकाजिन्दासतारामां मौज खायकि गामे ते ठेकागे ९
प्रमाणे यावे. पाानि जातर सो भामो गाम करे. कोर पण रोम
के भनावृ्टी थाय तो पाटो देवने अर्पैण करे. अने दनाते माणत्त
ए जनावरना पदवादे दधीयार्‌ छेईने पच्छ अने ज्मो 'करी कनि
सेतु रोहो बद्धो शीममां दके दले पदि, अआ प्रमाणे सानं सी
पएणाय मने जश्वमोजनावस्ने दोडविहे. आसर एने भलि तवय
१५९. .
अने तेयि स्वं देवी
वरे, एन्‌ नाम लातर छदमीकार्य, विरे कदे"
ए पमाणे केत्रवाई;
अने दैव तप्त थया एम समजीने खुश्ां याय
मोटा त्राण वास्तछ तो पण जार्त्रा
नारिक इत्यादि ठेकाणे
त मनुष्य वनि
असतछना र्मध्यस् ुड करने इता
यरे, इग्लंदमां -
परता. तेज प्रमाणे रूममां अने ग्री देशमां पण नरमेध हता चणा
उलन कर्‌
सोक एम समने के देब अने देवीयो बहु नडे, व्याभि
छ गि सेके, ते नध खावाने वस्ते. एमनि तुकि अनी यतिनी
पण मपि देवानो आदार, त आप्या विनां
अननं माणतनु भक्षये,
नी पए स्मनण छ,
तृषि धाय नर, एवी अङ्गानी अने शाख मणेला
तेतर अने पुराण बिगरेमां जेवा जंन्नत्र छ, ते भरमणे वेदमां पण
छे-तेना दाला योडा नीचे क्ये
, रेवरेयत्राद्यणञष्टमपेचिकाखंड २८ `
परिमरोयीहवेत्रद्यणः ॥
अथाताब्रद्यणः
परिम्ेदपर्नद्विधतोभातूवय 'परिसपलानियंते ॥
यद्चस्यादममरधद्िपन्‌भवतिल्तिप्रईगनसृणुत खृयुत॥
दरखेतरयत्राद्यणे ऽमपचिकायांप॑चमोष्यायः ॥
खड १० पेचिका ८
लयतिहतखिनांयदयुवाएनमुपथवेत्‌संामं ॥
तन्तरोयेआरण्यक % प्रवारुक २.७ अनुवाक्‌॥
वर्सरथयदमयमस्यजभयाः ॥

आदुधामितभाहितत्नखणफण्रसि ॥
१६०
३९, अनुवाक
उनतुदशिमिजायरो ॥ वव्येनेतद्पउनतुद ॥
गिरीडरनुपरवे्ाय ॥ मरीचीरूपसचुद ॥
यावदितःपुरस्वादुदयातिसूर्यः ॥
तावदितोऽमुचाशय ॥ या.स्मा्द्रेष्टि ॥
यच्चवयेदरिष्मः ॥
भथः-त्र्मणः परिमर आ अनुषठानयो राजाना सर्वं श भरण
पामे. एना अंग उप्र पाषाणनु बख्तर होय तोषण ते रेवान नमी
ओ भत्र जपे तेनो शन सैन्य पामन याय अने परेद गे
महाबीर नामनो यत कीनि दु नाशनाय मे भणगो के माए
शत्रु यमना दांतमा नाप
दमिजाकतेतु छा घुनी पयारि तके दाटबु तेय शु तत
मरि जाये
एज प्राने आश्वखायन सूत्रं श्येन पंक्षिनो यन्न विधन मामनी
यर छद्योढे, तेने, सभिचार कर्म करे याभेचार एट्ले श्रुने माव
पि मनुष्टान. ते सूरो निचे ख्या.
श्रौत सूत्र अश्वलायन.
अड ९, कन <9
च्येना जिसमभ्यामभिचरतूयनेत ॥१॥
विषनेनाभिचरत्‌ ॥२.२॥
१६९
क० ८ #
अभिचरकयजत ॥२०॥
सत्तानी छोकौने प्रथम अनेक देवनी कल्पना यायछे, परमेश्वर
सनि सरगना एके ए निश्चय बहु विचार करता मात्र याये ते
भमणे अनेक देवनी उपासना बहु काठ सुषि हिदु छोकोए करी पछि
पदूशाच कर्ता अने उपनिषद वाधनारा यया व्यार परमेश्वर एकठे
एवो निश्चय ययो. परु प्राचीन जयो मारे ते तोडि सक्या नही
भजन चास्ू
सेक देव, अनेक देवियो, अने तेमना बं पिस्तारनु
सरे नाण लोको प रद्ध कं ॐ ते स्व देवोना मन जमर
तेधि
प्र, देवानो लभाव एवे के ते सर्वदा मत्रना तावामा रे
पोतानु अदरूत सामथ्यै लोकोमा प्रा कर्यु- कोकोएए वात जेमजेम
मान तेम तेम भत्र गुप्त राख्या. वैदिक हि उलन र्‌ तेतु कारणं
छेते नेद शिवाय
एन केदेबोने भक आपन जोट. ओं कोक अस्ानी
सर्वत्र देवज
पण प्ारुत रोते हिसा करे, तेमणे जलमा स्यम
देव हेखापङठ़े सतारामा याजवाडा आगन राजानि देरी वक्रि
ते परो विशत करे अने तेमा निवतो वकरो निः ए
चाट घणा गाममां पण छे, दवे विधितो कशो नथी कोई ठेका
एमन
एषो समीव वकरो वाञ्वानु रष्टय नयी. पण अज्ञानी लोक
भणेेके एम करता देव वृसयज्ञ. अत्ते आपं कल्याण जञ एनी
आगच्छ करो वथ करवानं
भारत तता चणी दे. जे वखत देवना
जीव
दे मे बसत केटलार्क एम कदे के मारता पहेला तेनौ
ज्परे
देख नाण्छे मदि ते मायीतुं पाष नयो, नाकरीएर के कोषं
९६२
देव भाग कोड सरि तेने वेरु करे एर कारण एन छै
जमाषना बदल रोक लज्नाथी ते श्रोच्े तोषण जनावर्नौ ्यछ
मुक्ता नथ माटे वेरु आ ढब्द वेके, वैदिक हिसा कए अ
भ्रारुत हिसा करनार ए कनेनो विचार एकज छे, फक्त देवना नाम ,
जदा छे, अने निधानो जुदा छ. एकमा अमिषोमदेष अने बीना
मेल्डीमाता के कालकामाता यावे, एकमां वेदिक भत्र अनं नीजामां
छवा, पण धोरण एकन छ. ग्यारे एक परमेश्भर छे एम ते माणः
सना मनमां भागे सय भक्त, आपयानी विग कल्पना रहेती नधी
कारण प्रमेशवरनं देवव सचचिदानेद पूर्णपर बह स्पत ध्यान करता
मक्षादिकनी कत्यमा समुन्गी नाश पामे. कारण परमेश्वर अपा
माबाप जवो रपाल्ु अनि भित्र एम समजवामां आविद. प्यारे नका्मा
सने प्षुषातुर शिवनी कद्पना कयांधो रहे

यर [वतामणी नामने त्रय काक्ष्तनमां छपीने परषिदध पणे,


सेमा पण परूतयानो हुनर घणो छे ते्माना केट्यएक प्रकरण नीवि
ख्ये. तेम वेतन करामत अद्रुत शक्ति टलीद--
एकदादेवदेवेदोट्ादेवीडयुचिस्मिता ॥
ठपगम्यदानैवौक्यमोवाचजगदंनिका ॥२॥
॥ ्रदेव्युवाच ॥
देवदेवजगन्नाथकरणाकरदरोकर +
वर्णाश्रमां
धर्माचरैदेदाश्चममप्मो ॥३॥
शद्‌
श्रतैसपममयाचन्तःस्न्ञोसियतःसखय ॥
मेत्राणा्िनियोगस्तुयंत्राणानिणयस्तथा ॥8॥
तपेवागमभेदेषु उदितोहिनसंशयः ॥
एव॑द्धिनाश्वेत्रज्ञाट्येतेङकेखभागिन: ॥५५॥
पाखंडिभिःपराभूतानास्िकैवेदनिंदकैः ॥
विनारमत्रमेवेदोमेरङेलेनमहापरभों ॥&॥
त्तणाज्नायतेसिदिः सुसिदासवंकामदा ॥
मारणोच्याटनारुषटौविद्रेपस्तंभनेतथा ।(*आ
अभिचरपुसवैयुकाम्यर्थेपुचस्वदा ॥
किविदिषुविपादेचरणैरिजयेतथा । ८॥
.एतत्सरेयथादेवसिष्यथसपकस्यहि ॥
विचायेदेवदेवेश्चरहस्य॑परमंवद ॥९॥1
॥ श्चीरिवउवाच॥ ,
देवाचाशेम याम
ऋषीणरोक
ां ्तो
महात् मनां ॥
शिवधरमसतुमुकतानािस्णवानांतुेप्णवः ॥१०॥
सैरेसां्यंमयागरोकंवहूनां सिदिमिच्छया ॥
छाक्तचवहधापरोक्तभे सव॑बहधापरिये ॥११॥
धमेकामाथमेल्लाणांज्ञानेवैवग्रकाितं ॥
ग्हस्यंगोपित॑भद्ेखर्वेजापिनसं
शयः ॥ १२
रहस्यहीनोतरस्तुध्यानेनापिविदयोषतः ॥
१६४
नसिध्यतिदपसोहेकट्यकोटितैरपि ॥१२॥
1 श्री देव्युवाच ॥
प्रादंकुरदेवेशमुखोपायंबदस्तमे ॥
रहस्य॑मुखोधचसदय -परत्ययकारकं ॥१६॥
विनादोमेननाप्येनपुर ्वरणसेवया ॥
कटीतुसिध्यतेदेवतथोपायैवदसखमे ॥१५॥
॥ श्री क्िदउवाच ॥
साधुखाधुमहाप्रा्ञेसेकानाहितकारके ॥
इदमिस्थंनकेनापिपृटर्पद्मखोचने ॥१६॥
शणुषपैकाय्रावितालरहस्य॑क्षणसिद्िदं 1
कटय॑चितामार्भिनामगुद्यादूगुदातमंमहत्‌
॥६.॥ .
एतच्कख्यं षदायस्यकिखितंव्यतेगृहे ॥
संपूत्यतेग्रतिदिनप्रव्र॑तस्यैभूणु ।।९.८॥
अदपमृल्युभयेनास्तिनास्तिचैीरम्यैतथा ॥
भूततापिशाचानामभरेोनिवजायते ॥१९,।
एजवद्यंमहायंतभृणुदेविभुशोभितं ॥
कांस्यमाजनमानीयुदंभस्मादिभिः रतं ॥२०॥
जातीकष्ठिनतिच्खद्रोचनाचदनेनच ॥
खाभ्यनामरिखिन्मध्यवतुेवध्येत्ततः 1२,९॥
योपिंदापृर्पोग।पिटितनिच्यखयुतः ॥
९६५ -
किंकराद्पतेसैवशोभूताः सदैवहि ॥२२॥
अत -परंपरक्ष्यामियंतरनैवलसंयटं ॥
सनवदयकररष्ैलनवदयकरंतथा ॥२४॥
एकक्तौसमलेख्यंहींकाराणांचतुषटयं ॥ `
कंकारपुदितंपश्चास्ाभ्यनामलिखेदधः ॥२५॥
तयं्मुटिमावध्यगठेटैपजमेदिरं ॥
तत्कोप॑मयव्यादुवशीकरणमगुत्तमं ॥२६॥
अथातः संप्कषयामिक्रिादविजयैनुणां ॥
यत्कुयौखयलेनसखवैकोकमनोहरं ॥ २.
मध्येनामल्िखि सातुवुंरैवेएयेत्ततः ॥
. चतुदेकंसमायुकंबीलयुकंतुमानवः ॥२.८॥
धीवे सुनेदेयेःुष्पनानागिषेःशुपेः ॥
त्रिरोहवेषटितेयत्रुग्धमध्ये
पेतः ॥२९॥
ततोगछेद्विवादार्यजयेन्ास्यत्रसंशयः ॥
विबादविलयनाम्यनरदेवैःभप्‌
जितं ॥३.०॥
यदामहाबकः शाज्ुघोतकर्तुहिवांछति ॥
तदात्मानुकूल्यर्ययंतरकुषीकेटकं ॥३.१॥
साभ्यनामिखेन्मध्येवतुठवटयत्ततः ॥
रकारश्वभ्यकारश्वकिसिगीतश्चतुदिं ॥३२॥
एकैकंतुकिखिलातुवरध्येत्ततः ॥
९६६
स्मख्यानभस्मनारेख्यमकंपक्रद
योपारे 1 २२.
कंटकाख्यंमहायंतरदुएटमोहनकंप्रं ॥
स्व्यक्तयादाप्षिणादद्यात्काटराश्रिःसुीयतां ॥२४॥
शरणुदेविप्रवक्ष्यामियैतरवन्डिनिवारणं ॥
यस्मिनगृदेस्थितंयंचतत्रनगिमर्यके चित्‌ ॥२५९॥।
यस्यदस्तेसदातिटयैच्रयाज॑मनोहरं ॥
स्लप्ेप्यननिभर्यतस्यकदाचिन्नोपजायते ॥२६॥
श्रोखंडरोचनहिमेनतुखिखनाययच॑तुभूनं
विधिवतुविस्तूते ॥
नामखकोयेतुविटि्यमष्यसुतरेण्येदरतैर
रेखयातया ॥द\अ 4
अग्नेःखकाशादरीतियो खास्मात्कापिनजायते ॥
त्राद्यणभोजयेदेकं्य॑त्रजस्यतुटये ५३८
उतः परेपरवक्ष्यामियंतर॑रात्रोस्तुमारणं ॥
एतययतर॑सखखेख्यैकपाच्ेतुनरस्यच । २९५
स्मञ्ानांगारकंचुप्यधतुरकरखेनतु ॥
स्मश्ानेचेवखंटेर्यंचतुदय्यांमहानि्चि ॥४०॥
विवच््ेणनिः उंकेनएकाकीयंतरमुत्तम ॥
मध्येनामहिखिवानुखियितूम्टम्वकितिथोपरि ४९.
उप्रिञ्दालयेन्नूनंरातोसतरोदुचरिमते ॥
१२
एवंकतेतृतीयेन्हिशने :संनायतेज्वरः ॥४२॥
कमेणेवमहाव्याधिस्तोैमरणंभवेत्‌ ॥
एकजी॑वरिदतवाउदूतेजीवतेदिसः ॥४२॥
नेचेद्यमपु८यातिनाच्रकार्याविचारणा ॥
दतियं्र्चितामणीमारणाधिकारेतत्रुम'रणं ॥४७॥
अथातः संप्रक्ष्यामिमारणेदूरदेशजं ॥ #
समञ्चानांगारकंघुप्यअजारतयैवच ॥४५॥
तिपैपेवतुसंषष्यङिलेन्ररकयारके ॥
संपुटशैवसंरेख्यंलेखन्याकाकपिछिया ॥४६॥
तस्िननेदघ्तणेशतोमे रणं
नायतेभिये॥
, अनुयहेतपुव तविधानमितिनिचितं ॥४७॥
अथातःसंप्वक्ष्यामिदात्रो सचाटनंपरं ॥
खस्यानामिकरकतेनमूजैपतरेवरानने ॥४८॥
गंगणपतीति प्रणवाौ
जान
हिप्रहितं दिकं ॥
एकपंचौखमारेख्यंहुंगैनामििख्यच ॥ ४९
्ये
उच्चायशयो दतन
स्तिदि नैस्तयसं
ैकाधिक `
विंशकेन ॥
अयक्रमोरेखनपूलनेचसवेनउच्चाटर्ता
* धिकारो (ना
खंहंरलातुतवयेतरुिषटोदनमिभितं ॥
१६.८
तिमेदिने ॥५१५॥
दीयतेमक्षणार्थचवायसेभ्यो
शुणुदेवि ्रवह््यामिनैलोक्योचयाटनेपरं ॥
रुप्णकुवकुटरकेनभूजैपत्ेटिखेनरः ॥९९२॥
खाध्यनामङिखिवातुषिकोणवेषटयेन्ततः ॥
पुनच्छोकोणंसंङिख्यद्वितीयंतुवरानने १\५२॥
परितोवतुकंत्वापनयेस्पु्वस्पून :॥
एवैरुतवातुतयंलेवघ्रीया चञयुनोगङे ।*५५७॥
यथाययाद्वाघ्रजतितयासोपिल्णेनाह ॥
उच्यायेन्रसंदेहस्त्तणास्स्करस्कंदरि ॥५५॥
उअयातः संमवदेयानमिवारानांखांतिकास्कं ॥
येन्रद्ताकरष्ठसर्वोपद्रवना
खानं ॥१९द६॥
प्रकविधिनाङेख्व्यदरन्यैः पूरवीदितैः क्रमात्‌ ॥
भूज्ञपतरोपस्दि
विपूर्वोकविधिनाचनं 11९`भा
व्रथातः संप्रबष्यामिसपर्संरद्षणपर ॥
सपादिभिय॑याचारः मीढोवापितिदोपतः ॥५.८॥
"येनामल्खिलातुवतुरतुदिरेखया ॥
सपरेटयचदलान्यष्टोहंखः बोजयुक्ान्पुथक्‌ ॥५०॥
ग्रमादाखतित्तपाढतष्ाच्स्ताभत्तान्चुव 1 ५

अयद्ष्टः प्रमद्धेनदियैतनेवाधिसोहति ॥ ६,०॥


९६९
सपोणांसभनाथाययैलगरुडभापितं ॥
इतिशांय ०सपेस्तभननाम १० यंतं ॥६९१॥
अाततःसंग्रवक्षयामिडाकरंनीनासनपरं ॥
-भूतपरतपिशाचायै
डकिनीत्रदय्षपैः ॥६२॥
यदायस्तोनर -कोपिनारीवानाल्कोपिा ॥
तदायेत्रपकुवीतित्ासार्थभूतरभखां ॥६३॥
खाडेकयाटिखिलातुखपरेनूतनेशयुभे ॥
चतखस्िर्यगारेखाउ्वौस्ता प॑चरेखित।ः ॥६४।
स्द॑तेचमहाभूतवेपमारनेपलायते ॥।
` स्तणादूाठकंत्यक्लदे्लत्यागेन गछति ॥६५॥
` अथात ःसंप्रवक्ष्यामिमववंधविनाश्ानं ॥
निवौगपदयोज्यैहिनिवैदपददायकं ॥६६॥
पटूकोगस्यतुमप्येतुसध्यनामप्रति्टिते ॥
निःखारसंपुटरुलाभूेपतरसुविस्तृते ॥६\७॥
ज्ञानयोगंस्तमाखादयमुच्यतेनात्रसंशायः ॥
पितृमिलकल्तरेपुनिमदःसंग्रजायते ।६८॥
य्प्रतिषटाकवैुदेयंनिष्कचतुएयं ॥
"पदधतुतदर्थवाययाविमवविस्तरं ५६९५
कत्तसाढवेपरित्यञ्ययथोक्तफलमाध्ु्रात्‌ ।
१.७ []

परोणयेन्मेतनिणंसम्यकूविभरैः प्रतिमानसः ॥७०॥


मंलयदिनसंतुष्येदन्धारणभ्दयेत्‌ ॥
इतिर्य॑वेकेखनपटपिः ॥९७१॥
दति य॑त्र चितामणो नानि महा कल्ये प्रत्यत
सिद्धे उमा महेश्वर संवादे दामोदर पंडितोधृते अणा
धिकार खमापतः ॥

सदरहु मरमागे म, तंत्र, अनि यत्र इ्ादिक कंनिित सुग


मकार दीने ब्रास्लण, जागा, जवि मीगेरे लोकोए आखा देशने पुती
फोधो, त्रिकोण यंत्र, पंवकोण यंत्र, छकोण यत्र+ आड पांलदीनु त्र
रोक पालडीनुं येत्र, नव वरिकोणनुं शरोयेत्र, इत्यादिक जनाना रो" "
षौ के गोर चदनयी टले अने स्मशानमां तेनी पुजा हवन कर ते
माणसतने मार नाले, वीजे उेकागे उडाडी दे, छश्करनो नाश कर
माले; एकन नदी, पण मेके जग्र होय तो एक यय रलेतो वठे.
ए प्रमाणे यनाचितामणीमां ्युदधे. एवा टुचका उपर्भात्रा लक
यतु शद्धा रल. भैर, शावक खोको, राजा, अने दाकोर षोकौ
पाति कोटे, कम्मे, अने दधे तावीनो अने तेम। घटिला यतो पणा
होयद्धे. मंदनाद अगे, के पिस्तार नदो तो यन अने तावीनो लौ
शता शर्ट. अआ सवं धूनवानी निया छ, अने अतानी लेपने ८
सदवाने षे शा पिच धूनारा छेके मोटा मोटाना नापरो सवी,
4
सा विद्ामां कञचु स्य नधो एव तल्वेतच कदे ठण तो एव चट
गदी. मादे वधा. वावा, जति, इत्यादिक जे मेत्र्ाखी कवा &,
यने जे वे ममर वदे कुकुमना श्त तिक किगेरे चिन्ही यं.
पटे छ के
साय छे, ते सर्मनी धाना वदाय लोकोए एमज करवी
मरण सुधी
महाराज दमे तमारे बस्ते वहु दुःख भोमर्यु- जन्मयीं
नीच यई
तमारा चणा आकरा कर भ्या अने भिय. तमे घणा
। कुकरममो पाम पर्ने मने छेतरवा यस्ते धणी तजवीन करी,
व्पा-
तमारा घरडा शेकोए उपयोगी विद्या योडी साधन करी, तफ,
करण, पधी, प्रह, नसत्रनु कान हमने आयु, ते उपकार वाव्छवाने `
बाते तमने ररक टागे खवराशए्‌ छोए. तमारो आदर सत्कार
सत्ता
करौपेीर्‌. तमारी बरदास्त राखीपिखए- हमारा उपर तमारी
वीषु
स्यापन य एम समजीने तमारं सत्य शोचननु कर्म तमे की
मने सोफान उढाययु- अज्ञान, पाणैड, अने देभनी वृद्धि कपे एवा
तमे खराब निकव्या, अने हजार तरेदथी दमने छेतरोदधो, कनो,
इमास दान वे एके तमारा धराक मोदा यशे, एम समनीने ह
रे सुधारामा तमे आडा- मने आडान पदो आज सभी क्षम
पै अने तमासा गुख्यम हता तो चाद्यतेटौकन चानु; षण ष्ये
परदेशना रोके आवोने दमने घणा वाकरूगार कर्मा, तेयीं हमे तमा-
पे छेत्वानी विने मोचवता यया. सरे तमे वे दया करने
सपने पुरो छो, छेतर नद. सुनी तमार करेरी नकामी भिका
२७२
सुक घो अने हमारी भेके हमे सारि माग चदीये तो हमने खणो
मही. मारी अने तमास धारे फजेती न करदो रएट्ठुन त्तः
मारी पाक्षि मामीपे द.

=

=
र्‌

जणाती नधो, श्रोमद्‌ भागवतर्माकैवमतनी निदा ढे पण एपृण
ठोक केता
मुय पुणा गणे नयी मादे तेनो भाषार्‌ शैवमतनाः
अनं याः
नथी, कदापी एम कल्पना "करीर के पुण पेहटां यएल
आगन नही, आगमन।
रपर आगम धएुखा तो तेनी निदा पुराणता
त्वप्पहेला ं आगम हता के नर ए
+ पतती शंकराचारमी सथी खगेदे,
संशय रदे, दंतकया -एयी छे के शकराय कौलमतना हता तेयी
ना म
तेमनी आज्ञा गुजशतमां कोडृए मानी नवी. पां दोकराचय
छमां कौरूमतनोः वहु विस्तार थयो ते कारणधी रामानुज भचाम
थपा तेन प्रमाने वरमाचार्यनां मेदीरमां मोकुरु कौडा अन रात्रगं
वहु बप्यो तेषो खामिमारापण आचार्य यया तेमणे ए्मो धातो बध्यो
क खी अदकेतो यपवाप्त करो, एु भमागे यटि सुनो मत॒ वगञछ
व्यरि तेनो सुधास करी नवो मत वाल करवा नवा आचार्यो धाय
छामिनारायणनी शि्लापनीमां एवु र्ष्टुदे के बधाय ब्राह्मणे गृह्य
सन्र प्रमाणे आचार पन्यो पणतेमांङ्जुदधे एते वखत जाणवार्मा

नहोत~-ए जाणनामां होत्ततो एम ख्तत नर्ही* तेन प्रमाणे वेदादिकन
भरदंताजे करे ते पण तेनो अर्थ तपाशोने करेली नहीं. एतः
कद्छ तण मात्र करेल जम
पातत छाक्यमुनी जनं बध्यं अवतार्‌

ज्ञेम कार उतरतो भाव्यो तेम तेम विद्वान पण ओय एद्या, वेदनो


अर्थं जोईने कोई वोखतो नयो, जाण्या बिना वोडवानी दालना त्राः
ष्यणोनि बडु देव पदेषिे-
नधा एम कदे के वेद अमारो धर्म पुस्तके. सेह ष
छे. भागवतमां.पण प्रथम शछाकमां एम कदेे केः--
† १
निममकलट्पतसोर्गछितंफटं ॥
छे येद वृक्षन फल तेज भागवत दे. पण खरू किये तो वे
देने मने भागवतने धणं अतर छे. येदमां मुख्य धरम यज्याग छे,
तेनी निदा भागवतमां छे. प्राचिन वर्दिराजाए घणा यज्ञ कर्या, तेने
एदनौए उपदेश कर्यो के हि मिश्रित अनुष्ानयी करं कव नधो.
९ प्रमाणे छत वेदनुं बन भागवत कटे. एयि एम नणायषे के
भाचीन काथ जे पुस्तक उपर दृद श्रद्वा यङ तेनी निदा न करता
` पृकतियौ नयो घर्मं चागो, तेयी ते ठोकोने मान्य यशे एवी बुद्धियी
र एवे, तेज भरमाणे स्वामिनारायणना वचननो अर्थं समननो
गोद. एक श्लोकमां गृहूत् पमाणे वर्तवु एम॒ कलेठे. बैने ठे.
कणे रेषे के हिसा वर्ज करवी. हे गृहयसूज्मां दस ठेकाणे हि-
पानी मंग अवे, यारे गृह्यसूत्र प्रमाणे चार्‌ करता हि वं
मये एवेनोमेठडो१ आकरा रोक दतेन जेम वतावो
र्महा, केशे पण जे तपास करीने पुरश तेने उत्तर श्ु मापड १
शकराकरार्यस्लामीनो अने ऋवकनो सवाद ययो ते नियाम प्रकाश-
भौ दठद्े. कंकरखामीए जे निर्मय कद्यो ते खरो अने बेदार्य
पृषे कद्यो्े. आ काठ्ना पडतो तते इोकरलामो करता बधरि
विदान दशे ते गमेतेम कटे पण ते खड न कटेवाय,
निगम विशे आ तक्रार यई पण-आगम निञ्ञे पण घणी तक्रार

वीना भागर्माजे प्र॑य दाखल कव्य्ठे ते एवौ खरावद्धे के कोई


शि मण प्रे एनो यर्थ कप्य नदी के चाय नदी, एतु अमेगन्नमै
ण्णुदुट दे प्रण घणा त्राण समिहोत्रिशाखो, प्रित,
%
भावा ने धर तमने अने गुप्त रा. तेनो सय पकाश पवा
गाते ते वचनो धरतिद्ध कर्ये. पनामा छष्णंद्रलामो भन रामवीर्यं
सामो ए वे परमस सन {८४९ मां भाविने ग्राक्तमत बहू चला
अने तेमना बहु श्िप्य यया. रुप्णभटं गोलक करीमे एक भरण
ब्राह्मण हतो तेणे वेर यधिने वधायने ज्ञात वदिर मुक्या, त च र्णा
र रप सुधी चाच्यु तेमां केटलाएक षडित्तो शाक्त मार्गवाला तरफ स्थर
तेमां मण्य [अवकशान्नि शाच्राम जेणे सात य्न कर्या हता भ
वेद अने श्रीत यने पट्शाख एने सारि पेठे मुम इता, ने फाई
पय शा पुखानो होय तो आला दक्षणमा एने पृद्ताः ने
सुरतमां दीनमणीशषंकर नागर गुजरातमां पकाएलो तेवा र
हतो तेमे पण ज्ञात बहिर पुक्यो, पी ए शाच्चिने रोके एम करु
के अगमस्षाख सेदु छे एमं तमे ठो आफ, तु बात तेभे. मान
करी नदो, ते मरणात तेगे टेक राखी. शिगरोक्तशल छै तेने ई
सो केदेनार नथी एम किन जन्म र्वी ज्ञात वेर रयो. ९ वर्त
दतणमां प्रषदध छे ते आ! ठेकाणे ङषीठे. ष किये तो वेदिक
धूपिमां केट्चएुक क्रियाओं एवी दे के ते क्रिया वाध्री के कस्‌ पण
करवाने शरमई नाय यने यागम धर्मन केटलोएक क्रिमा एवी छ
छे कस्तवण पण करवाने शदमई जाय. एज कारणथी ख वने धमना
पस्लको गर्न राखवामां वदेः गत राखवनि बीज कार्ण जणादू

नथो. यदधधर्मं उयन्न ययो ते ददाडायो कटी उयन्न ययो नव


ना पल्नकों दको मक्तवानी जरद्‌ पडि. हाद्टना त्रह्मण ९ यति

स्ट कवु करदा नधो पण निने तिति बेषठे छे पण ते बातत ल्य



भश. ए, जे पुस्तको तपािने पातनीं लाञ्नि करे सेनी प्यानं
यावे. ब्राह्मणेन पतां ए गत्तनो पततो पडवानो नी. कारणके
धणाएुकं ब्राहमण तो विद्वान नयी, ते पेडयेज समजता नथी. ने घणा
प्रय ए अवरोकन करता नयी ' मने बीज कारण खस यात॒ केता
पोतानी निदा याय त करवाने तै चहयता नगरी.
भागमज्ञाख विपे केटलाक साधु प्रेयकार यया तेमनो सभीभ्राय
मोषे दखल कर्योदे-कारण के तेओ स्वाय नहोता अने स्वतेत्र हता
"म तेमनो भभोप्राय बाचवा लायक छे,
निश्वटदा्त नामन एक दादुपंभी साघु दिष्धिप्रामां ययो तेने
शिचरसागर्‌ नामने प्रेय दिदुस्यानी भाषामां करयो तेमां सवं मत सं
भदे तेना सात तरंगदे. तेम्र॑य मुबडमां छापिने प्रसिद्ध थये
पेना सातमा तरगना ९६१८ मा पानाथो शाक्त धथनं व्णीन के ते
नीचे रष्युडधे ते उपरी तेनो अभिप्राय जणा ्
परंतु देवीकी उपासना के वोषक यधन दो
पप्रदायर्हु॥ एकं दछण सम्रदाय दूखर्{ उत्तर सप्र
दायै ॥ उत्तर सप्रपायकू्‌ वाम मागकर्हहं ॥ वतिनमे द~
षन खप्रदायक्रां रोप्े सखंजिन ग्रथर्म देवीका उपासना
है॥ सत्तो धमेसास््कौ अतरभतह ओर वाममाम्‌
जिन ग्रथन सा घमसद्यसं विरुदहै { यात्तञ म्र
माणहे॥ यद्यपि वामत्र शिकत कीया ॥ तथापि सक
स जी वेदसे विरहे मान नदीं ॥,नेविप्णुके

बु अव्तासमै नास्तिक य॑ कियेहै ॥ सो द विस्र
छयति अरमान नही ॥ पै शिबकूत वामत्र बीभव्य
विरुदे ॥ मदिरदिक अयत सुद्ध पदाथ नकातर्थि
ग्रहण रिप्यांहे ॥ जीर उत्तम पदार्थनके जो नाम दै
सोई मिन पदाथनके नाम लोक वंचनकै निमित क

ष्टे ॥ मदीरका नाम तीयं ॥ मासका नम दढ
मदिया पात्रका नाम पद्चा ॥ प्याज्ञका नाम व्यास ॥
ङस॒नकानाम सुकदेव ॥ मदिरकासी कलारका नाम
रीछीतक डे ॥ तैत बेस्या सेवी चकारौ आदिक
चाँडाकी सेवी ग्रागसेवीका सीसेकटैहै। ओर भेरवी
चक्र शस्यत जो चांडालादिकडे ॥ तिन न्राद्यण क
हहे । ओ अस॑त व्यभिच्यारिणी कूयोगिनी मन्यि
चारौकरूयोगीक दै ॥ यत अनेक प्रकर्सै निषद्ध
तिनका व्यवहार ।।पलमक समे अनेक दोपव्ती ख।
कू उत्तम साक्ति कड | जातिकी चांडारी अति य्य
मिचारिणी ॥ रजस्वला च््रीकू देवी युहि पनन
ताक उर मादरप्रान कर्डअर आक्र माद

रा पानश्चं लौ वमन करिदेवो + ताक प्थिरवनिं नदीगिर


ददे ॥ कतु आचाये खदित दूखंरे सावधान मव
कहे ^। वमततकु प्रेस केरं॥ ओर खीकी योनि

५9

॥ मदिणश्‌ मारः
निन्दा रुगायद्ग म्॑रनका जप करे
॑चमकारनकूर्‌ भग
मस्य द मुद्रा © मंत्र ५ इनप ितीयादिकं [सतिन
प्रथमा द्व
मोनिमित सेवन करैहे।॥ इ ज
मकारकै अग्रसिद्ना मनत ैव् य वहारकरेहे ॥ सत
र ॥ इसल प परक
छीक
रिच बामत्रका सक व्यवहा कणकल योगीओं

क्ते भरट करे ॥ दसी कारण ा-
क संन्यास ॥ सौ व्राद्यण
उप्रधूत गुखाई तैस अने तीवा व्यक बेदनिदत
दिक वाम मारकं सेवन करदे ॥
मकट वामत॑चरकपि रीति
भानिक्रे गुप रावैहे ॥ अधिकक् जपे ॥ -ओैसा `िंदत
सुनके ॥ ग्खेठक् वरोमांच दोय
करेदै।।सो सार दत
पमतनहे॥। सर्वगीनो अभछन नीच व्यवहारल्पत
मागे बामं के ।। अति ।खप्या नदी 1 सर्वथा
कार
योग्य नहं यत्ति विद्लेप प्र
त्य ागन े योग ्यै तै नास्तिक मत वीव्यागने
वामत्र
योग्ये 1 देदुगान £ ते
एक कणवो साध पुना पातत
„ दुकोरमवाया करीने ते अमगनी परत
ाछे ते दक्षणमा बहु मान्यल
काणे पयो तेणे अमम रच्य ा पेद पृष्तकना
छापलानामां छठ तेन
परमा गणपत र्न्णनीना भभग तेमा ना १२२८
२७६ मा पाना उपर शाक्त धर्म निषे १२४३ ए नवरा अभंग
९१, १२४२
१२३९, १२९०, १२ ए साधुना अभिप्राय जाणा अवि
नच रख्यद्धेते उपरथो

ेकाकरीवेहेफण ॥ पुदेदेडैखत्रद्यघोन ॥६॥
चारीवणंअढरायाती ॥ भोलमकरितीयेकेपकीं ॥२॥
पू्ीतीओआगुरोरडा ॥ मयप्रीती ख्पैडा॥३॥
वामकवमानेन॥ जनजाईल्अध पतन 19॥
तुकादरिभक्तिकसं ॥ शाक्तिपाणीवाहेषरी ॥५॥
शाचगधडानयेदेलीं ॥ तेयंसस्ीपापाच्या ॥ १॥
सुकताचाउदोकरेका ॥ गोधन्घाठद् दीय ॥२॥
करोधसयेवसेकाम ॥ तिचेनामजयत्ते ॥२॥
मदभक्षण्मागिणयाती ॥ विटाचिततीसांहनीला ॥४॥
स्तउनियापूलींड ॥ नल्गेभां उदाटीसी ॥५५॥,
तुकाम्डणेमगवेति ॥ नेद
ल्अंतींञपणविं ॥ है॥
राजाप्रजाद्र
उदेश ॥ लाक्तवासकरीतितो ॥ १॥
अधर्मी रघइपोक॥ घमेरंकतेगांवीं ॥२॥
नपीकेभूिकपिमारे॥ मेषवारेषीतीर ॥२्‌॥
तुकाग्दणेजवधीदःखे ॥ धेतिमुखेंवस्तीसी॥४।
रेखेकलियुगाच्यायुटे ॥ च्राटेकमोचेवायोरे ॥९॥
साडुगीयांरामनाम। त्राद्यणम्हणतीदेमदोम \॥२॥
िबोनयेतीनिनी॥ वचपांघुर्तीकारीं ॥२॥ .
तुकाम्डमेनृत्ती ॥ खादुनिगदामागत
जापी ॥‰॥

का चा ॥ २॥
सपप्यापरयडटायेक ॥ उपास निया ॥२॥
गामान्
सयाचादीदाखनकोञगा ॥ पाडुरे यवगुन 7 ॥3॥
गल ार गी
कामकरोधमसायंमीं ॥ रं ो ॥ ४॥
करिलांपपनधयक री ा॥ म्भतुकाकणी
ुमेातीनस्कामधी ॥
बातावदेधरिताहार्व ॥ जुल हाचाटेना ॥२॥ ॥

रंडिदासापरतीकाद॥ उपेतयेार ॥२॥
रष ात
न्मोराबाताहत ॥ धो तुमीकथादरपि
ितती ॥8॥
तुकाम्दणेषढरिनाया२ ॥ द शाने पाप्मा बात
आगम प्रकाश प्रेय वश्च विस्तार पूर्वक षठेडन कुं नथी.
धर्म
अप्यो इतो तेमणे शाक्त ंपाय ष्य ते पण निचे दाख का
पण दकम पोत ानो अभि
ना खाक रुषीने
ा जे्रेय
अने नीना भागम े भाः
"आ प्रयना पेणा अधम छे ए पाल टेन सथुपयन
ए आचसु नी ए
चतखानग्पा छे, ते के वक
ने कोई सारा माणसे
रण करवा दोग्य नथी, ं साधन छ- स
पडवानु
कवठदुष्टनस्कमां म रामनाथः
० ची. दस्कत पोताना.

त्त मत ने इ स्व रीति मतो
गाच्चकरः जयशंकर,
लो शवे
जे तेवकराम शा
छि छाछ. गं दस्त पोते.
नप
-पमाग ्ते व्
थ्थ्न
अनुक्रमणिका.
दिषप,
प्रस्तावना.
भागम श्नु बर्णन,. ~, .
भाग रो.
भागश्च ेद तुल्य ष्ठ, तेमां अनेक ग्रे कि

क्ढोयुगम्‌। यागभेोक्त आचार प्रदास्त छे.“ !


९ परमै कता कौलपर्मग्रट्डे-- -.~
व महाविदानानाम = “~ ~"
मौपा देशम केद उपासना चष्टे ~“
, कषिकाना ख्पनु वर्णन ~ = -* ~
गभेदद एट्ठे शर्भनु सप्‌ (एक देव छ). *
षरदौदेवीनु षप. ~+ = +
नगु ष्ेते शक्तिस्तपष्टे ५ =
भ्रमण शाक्त समनवा ~ ^"
देषीनौ उपना स पुपथायं अपे ~
सेमर विद्या स वेदाद्ी श्र छे -*
मेनेना प्रकार," 8.4 20४; + ०
५४
©०व
~ ष्ट
29>त०
पमन मत्र एसे श्द्रने धमो" करवाने मन् छ

वचम्प्टखे आम उपर देवन स्वापन करीने


१२
आवादन एट्ठे देवने बोटक्ौ ८ ~ ~
ना नद गायत्री मत्र ०. ०० न ग ०
बामीनी पूनामां कड जातिनी शक्ति जोडए. तेना चर प्रका.
पंचमकार पनामां जष्पि तेमा नाम „~ ,. 4 ©
‰मऊ
अठ प्रकारनी शक्ति एट्ठे आठ जातीनी दवीयो पनानी षत
जोहर त... पि = = ब ०
कौठीरनो आचार केवो से तेनु वर्णन. -“
मदयपाननू कठ चन क क ^
दीह्लाखेानु मदा. ल न „^
भरी चक्रनु महात्म - ०० “~ ५५५ ००
शप्रद्धार, प्रात्र, माच्या नैमेय अने भमस्मनु वर्णेन ~ =
मद्यपानयी मोस याये तेनु नचन.- „~ ~
सपष्टमैरवन। नाम + 4 ~ ^ 5
नवदु्गोनानाम ~= न ~ ~
कंटक अने पशु कोण, .. 9 49, ~ ि
कौीक पोताने शि स्प समने अने तेनी चाख कनी हष
छितेरुषचन्‌, ~ == चन र, १९
ममान पूमाना मुष्य दिवप्त-- .~ -. .. १६
वाममार्गनुं काटमान अने पचांग.+ ~ „५
८ १६
अमिषेकवे प्रकारनाद्ठे-+ „= ~ ¶७
मीना अने त्रिपुराना मेद. ~ ~ „^ १७
क्ट धर्मन महाम्‌१न ०१ १० + =. „, ,. ¶७
५. 1

[1

मदमार विपि करीन खायामां दोष, नथो~ ~ - *" १९
मदाना ११ प्रकार तेनं महास ˆ“, ~ “` -" १९
वीलीक ठोकोनो आचार; कर्म, रतिमातनुं नर्णनˆ* “~ २९
यीरोपनिषदं ..- म. 55 त. -.“ २६

* यौद ब्रुं महाम “= ~ ~ ^ =" १७


अटि बन, करुवजिकातेत्रमाथी किष. = “* ~ ९७,
चेडिषाठनु महास, = ~ "* "" "^
„ चदिपाठमा पशु हिसानी आबा - “~ ~ “* ९९
शेकएचायै श्रीचक्र पूजानुं महाम श्ष्यदेते ˆ “" २९
कालिका पुराणम रुधिराष्याय छे तेमाना वचनी “““ „** ३०
सदरपामल प्रेमां बीरचक्रनुं वर्णन. ~ ^ “* ३१
राजचकनू वणन , न ~ ० = ०३
द्विवचनं जति -ः, = == न. ३३
चर पूनातु क्क. “+ “= ५१ ०“ ३३

* योने खी अर्पण करवत गचन ~= च „न -- द


रपृचमकासनौ विगत “= "= "= ^" र~ ४
देषो कामाननु पाग शाक्तछोक भनुप्रानमां सेफ्व्यमां प्रण
क्रते ॐ? हय - ध ~ ३९
मदनु पाच्च पिपनोमव ~ „* ~ ५ धि) ३५६

शांपिषाठ ज~ `. न == == = ३६
वलिक तर्पण, -. „^~ ५ द
गम्भदखत वणन." "~ {ष ` स 1 ष ३७५
गुरना नामो =. क ३६
स्तीत्र पाठ, १ ३६
मना सोच पाञ्च पिना म्र. „~ ~^ ३७

भाग र्‌नो, ४

आगम प्रय विषे, = -.+ „न „न ४२


भयम फावता फेरफार कठि ते विवे. „~ ४द
सगम प्रथनी मत्तषछब + ५ „न „५ ४
करीलाणव.
कौणैव नामनो १२६९००० यद्धे तेमाधी कादेखा श्लोक ^ ४५
देषो बीवने पुषे के मक्षु साधन शु. ~~ ~ ~ ४९
शीव उत्तर दीधे के कौल धर्मविना बीज साधन नयी. ^^ ४१
कौठ धर्मेम मय मास्त दावाधी पुण्य धायद्धे, ५१ ४७
“^
आमना प्रयत बर्णन == ~ ^ ४७
भनक प्रकाएना मद्य ते एकेकं पीताद्खु सीद्यी यायचे ते. ४८
त्रण प्रकारलु माप्त पूजामा अने तर्धणर्मां छेवा विशे. ४९
देवने बस्ते हिता करतां पाप नो प्रण पुण्यदे ~.“ ४९,
पनामा मद माप्त छेवानु महात्म, ~ ~. ४९
पनामा जातीमेदः न राखवा विवे, ..~ -.~ ९१
योगी अने योगनीए द पने मस्त थवा विजने .. ५१
पुना गुम रीते करवा विशे, ~~ -= ~. ५२
मद्यपाने एन समाधी, ० = ५२
जोबने श्ीयनु एकषणु -- ~ ~ ९
£ १
कौट धर्ममाने नदते षडा समजवो. "= “= “~ ^ 11
कोर धर्मम जे माणत्षे ते सर्वदा मुक्ते `~ ~ "~" ५४
कौर धर्मं सक्यी श्रे. „~ = च न "= ५
आपणा प्रितर एवी याश्ा राखे के आपणा कुक्मां कोर
पण कीर धमं प्रहण करीने आपणो उद्धार करते ..“ „~“ ५४९
एचवमकाद्नु वर्णन = च च न ५ च ९९
पुजा करवाना परष {ददादा) “* 9 4 < ९५९
~ कोक धर्थमो बत प धर्मना लोको मागन न करषा विक. <. ९६
गेवे शाखनी भिदा, ,. + ज = =. ५६
अष्टयोगोनी क्ड नातनी जेोष्पतेतुवर्णन-* “` ~ ९६
कीक धर्मनी दीक्षा विना मोक्षयतो नयी ˆ ^ ९६
पुणीभोषेक विना मोक्ष यतो नथी. “~ “= =" ९७
" पू्णाभोमेकय सवे पापनो नादा यापे. - ~ =° ५८
कौर धर्मबखिनि स्वं सीद प्राप्ठ थापे -* == = ५९
पृषयमा छोकोने कौरषमेनु पुस्तक प्रण न नतावु, ०*** ६०
29 श्यापाष्ठस्य.
श्यामारहस्यमांपी कादेढा स्नेक, “= च =“ १८

कालिकानू प्यान, ++ = ५०१ ००५० ०० ९०

फाटिना उपासकना नाप. ०५५१ ५५०० ००० 49

फाि उषनीपद. *००* अज ६१


खीर पर्मनीं गुरू परपरा मने ते पर्यना साचायं यया तेना नाम. ६१
दात्रीक ष्पा ने तानक ष्ये अने कालो गापो, ० ६२
९६ ` ।
काछिना प्रतादधी जे मुक्त यया तेमनां नाम-*-"* ००“ ६१
यीलिना प्रानडा उपर द्ोदि छादीने, तेनो हवन करना .विये.-* ६३
विजया एटखे मगन स्वीकार करवा विये. “°= ०*०* ६३
कालिकानु ष्यान. ००१ ००५० ०००० ००. दद्‌
मदनो शप कादवानो विनि. ० च =-= ९३
‹ परचमकार शुद्ध करवानो विधि. **-* “= --** ६४
प्त स्पापनं, चनन ०१५१ ०० ०... ४
मासन नैवेद्य कंवा विधे, *--* न. 9 4
सनेक ता त नाम. मनुष्यन्‌ वकरानु गेत्र प़डानु
ससखानु मठि खेवानो विधी °--~ , °= =“ ६४
चकिदानमां किया किया जनव्तेलेवां *-** -“* ६४
क एक जनानरनु दक्रिदान करता देवीनी कटा बरस सुषि
सृति ययप्डेतेनि मर्यादा. --- "~= ---* ६९
रगो, पगु, जनाव नलेवृ. =" ०० ०१० ६५
मदिदाननू जनावरं मारवानो विधि, ०५०५ ००५ ६५
दार प्राशन करवानो विधि. **** क 4.
काटि सदसत नामना शक, = =^ ०००० ६७
कटि सदहछ्ननाम पठण करवानु फाल. ०००० ००० ६८
पूना विधि-शवासन. ~ = =-= ०**-~ ६
नप्र रणस्वसखा स्यापन. ००० ०.५. ६८
पूनामां मांतादि रव्यं देवानो विपि, ~“ *०-* ६९
कोटिक स्नव --. [ 4८ =€ ६ = ६९
कालिकास्तवनु फक्त **" ** -* = „६९
कदूरस्तव ~ न वन
काक्का कवचनी तावी. ४ , 2
वे पैनराख्य कवच =. ० इनः क = ७१
पुरश्चरण विधिः... नज ०० 353 कञ्ज "= ७१

मद्यमांसनु इवन.-- ० ०० श ०० “७१ ४


कालिका श्रृतिः ण नम क ~= ७२
~ नवक्षक्ति पूनन.. == ~“ "~ ~ द्‌
प्रथांग (7३३) ५०००५ [क 2) 13१7, ०५ ७

कौलाचार ११०० ०१ ९०००१ ००, ,,.. ७


पूना ८“ न+ ०००५ ०० =, ७
ध्यान, ५५ + ०५ ०५-* =-= ष्ट
` कुंडगोखामृत ग्रहण विधिः = =. ५. ,... ७९
ि रक्तिलक्तण१०० नन ००५... ,..., ७९
दूतियाग, र त 1 ७६
ववीरमाव, न नन चनन ०० न ७७
प्शुमाव "न चन ननन न ,... ७७
महाचीन क्रम. ०००१ ५५५ ०००० =, ७७
शवशूनान, ~~~ (न नः १ >. ७
नीख्कम. =" === ०3, 49६
अपर * प. 17871 = ७००५० (ना) ७९
गूना, त क ०१०१ ००.
दंड नियम, च न न्न व ८०
, उदाटण. † ~, च न "०
येताककतिद्धि . ~ = न ~ = ८
दौलिकार्चन. ल न ~ = = ८१
तासा सूक्त. "= 2 र 9५६ ड ०० ८१
ताश गायत्रि, ... 6 ५२८ ८ निम == ८
* तासप्रनो प्राकमत „न न "~ ~ "र्‌
देवीरहस्य.
देवीरदस्यप्ी काटेखा शोक. + च ० =" ८९
मद्य उलन शिरीते युते विपि भरव करे. , ~“ „* ^“ ^ २
समुद्र मयन थयु ते वलतते मदय देषत!.उसनन ययो तेने अदार
हयाय तेमां नव कुम अने नव पात्र हरता. == ^ "^ ५
मधमो वीना पदा निभौण थया तेतर उसतिनो प्रकार. “^ ८४
भय प्राशनम्‌ मदा. -^- 2, =. ~
मद्मिना देव पूजा व्ये. ए ~ + ५" ८4
देवी शंकरे पुच्छेके दीक्षाशि रते कतेक. ~ * ९
भैरव कदे फे दीसानी जस्प्डे भने तेनो विपि बति. ,..* <“
मुशपान मिषि केष ते पशे देवि शंकरने पुषे. "८७
भैरय कदेषटे फे मद्यपान पिना आ कियुगमां कई पण रिद्धि
न याय. ०० ग्म ०० ॐ, 298 „= ८७

कपान्पाच्, मरदंतमाला, स्मशाने भसम, ना उपयोग विशे. ~“ ८७


काकि सदस्रनाप, ४
कारादि फाटि-सदनाममीयोे काटेा शाक _.. „^ द्द
१५९.
,„ ८९
सदत्तनाम केव तेनो नमुनो ५ ~ +

“ 1 ~= ( ००० "्कन्रे ८९
कालि पूना विधी. ~
९४
जपनु महास अने विधि. ` [हि
+ उत्तर क्षामार्णव तच.
~ .. ९३
पचमो ग्रहण निधी. ~
रासोल्दास तत
योगिनी छक्षण, “~ = ~ ९३
न ड ५०० ५०० [1 ९ ¢
पचमि प्रपोग. ज
कौलरदस्य.
कौीखाचास्नु वर्णन, "> “ -“» ९५९

मोग अने मोक्ष धायटे . "" ५५ *^


९६
दौ धर्मयी
कुल चद्विका- '
हील धर स्ेक्षट एवु "शिव कदे *
० ०
*" ९७
सद्रयामरल.

मकार दानकक. -= २४
९८
अष्ररृल्योगिनी, °= = , -" १ १०७
९९
अनपानप. "= =, "~ त ९९
प्टमावोक शब्दो अर्थ. -* ९९
भागर्नो.
^“
उआगमशाखना पुस्तकनां नाम. १०७ ०
अ.
तन क्षाना पारिभाविक शब्द, ^
१०९
तत्र जमगे सत्यातेमनानाम, ~ ११०
२०५

न ~ च्ल ~ १११
स्न नान,
तत्र बादमो दवं अमे देवीगै-उ्ेष्ट तेमनां नाम.
< ~~~ ~ ~ अ
| १११
५९ #ढ` {+ धा ११४
भद्रानां नाम
ग त ११५
वीज एट्छे कसित शब्दनों अर्य
पाराराप्र.
उड्डामर तन.

“" धि ११७
उडडामर तंत्रमाथी कटेला छीक.
मोहन, स्तमन-
देवो पे के हे दभर वक्षीकरण, उच्चारण,
ˆ" ““ ११७
द्रष्ट हामि, बीरे स्व॑सिद्धिवताव "*
सिद्धि कहु ते साम. * ˆ" “" ११९
ह्र कर के घणी
मंत्र, -* ११८
व्वोकरणय एच्टे धारे तेने दाब भवे तेनी
उच्चारण टे माणसन े एक ठेकाणे धी बीने ठेकाण नांखव ो ११९ ,
मारण, == ~ ~ १) ०० ११९
शतरुनाशन, "== = ~ ११९

स्तंभन एके मृगो कयो. -* ^ ~ १९०


„~+ व ५०००. [4२०९
उन्मत कर्वो
रोगी क्वो, मन १२००००१ ०००
यज्ञोकरण एटटे कदिपे ते करे. १९०=. ००१
अजन एट्ठे जमीनी दवयदेखेअने देावरनी पवर रबर, १९१
टू रोगी क्वो. २ द 5२० १९१

9 इ= दत्तात्रेय तेत्र.
^
7 दत्तत्रेय तत्रमवी न्मादे
सैवरमवी चदेला शौक. ~ = १२१
२९

दत्तमिय शंकरे पु के नाना प्रकारनी च्छ -ंनमिदया मने
क ९१ 8)
येतागो- “^ र
ईर फरठे के अनेक तिद्धिमिन बताह. ५०० ५५९ १ ९१

मारण, ^ -* (वि) ५०० € ० =" १२९९



मदिन्‌.
^01 ५० ~ १२९

भूस ग्रह्‌ निवाप्ण, „^ ~ „~ ९२८


प्रह निवारण + ~ १२८

~ एदि व्याध सर वृश्ीक मय नाशन ~ .. १२९


पपै निवारण" न ^ ~ ६१९ ६.
व्पाघ्र निवारण, ^ “~ ~ ^ १२९
भनि भय निवारण, “* ^ = १३०
अभि श्रमन्‌, "= "~ ` + -= १३०
" स्म स्वभन ~ ~ ^. १२४.
बुद्धि स्तेमन्‌. ~ च = = १६१
श्लेष, " ^~ ~ ~ =“ ~ १२१
सेनपिकायन.
# ~ „~ ,~ "(4३
रः स्तभन्‌, ^ =+ ,“ १३२
गोमाद्यादि स्तेभन्‌, -* ~ ०“ १३य्‌
नीका सभन... ~ "~ = =, १२३
जनस्तेमन, च "~ „~ ~ ६ १३३
पदि, = ~ ~ ~ ~ १९
उद्याटभ. -, ^ ० 9३९
भगमाद्िनी मैत्र„< ~ ~ °“ = १३५
सी वशीकेर्घ्य र ५ = न "= १३९
पुस्ष वशीकरण = १० "न. =" १३६
राजवद्य == ५१५१ ५०५० >+ यद्‌
आकर्षण = ०००० ०५०० ००० *-** १३६

, इजाख कीतुक, =-= ००“ ~“, -“*: १३६


यक्षिणी साधन, ननन ००० ०५० ०" {३७
रेत्तायण टल किमपो ० **५** ०००१ ००५ १६३७

काठत्तान, अनाहार, निपि दर्शन, वेष्या गर्म.चारण, जयवाद,


इत्यादि यनेक प्रकरण, ००११ ०००० ००१० १३७

अधिग,
अमि पुराण्माथी कदिला प्रकरण, * ०** **** १६८
नानावक,*०१०५ ००० ०५१० ०००० ०१५५ ॥51
धदटोक्ष विजयक्िया,* = ०५० ०००० =" १८१
महामते विद्या, चनन ०००० ०. ००." १९
सदपादियोग, १० ०० = ---" १४६
मन्रौपधादि. न, 2 ८." १४८
सेतर भने पुष्णनी तुणना. ल - ~~ ~ १९६१
तारोक्तषिद्धिखउपरयोका. ~ - -* * १९१
ददु देनो पिवार ह्येनां, ~ ५ ~ १५९
हवनम हेतु. = च न = "= १९९
गराढा मनन भेनुष्य हन्या रे ते विशो बदयदरानौ रशिदन्ट *
सष्पने प १ पेद, ~ ~ ~ ~ १६९७

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