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शिव स्वरोदय - विकिपीडिया
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शिव स्वरोदय एक प्राचीन तान्त्रिक ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ शिव और पार्वती के संवाद के रूप में है। इसमें कु ल ३९५ श्लोक हैं।
१९८३ में सत्यानन्द सरस्वती ने इस पर 'स्वर योग' नाम से टीका लिखी।
ग्रन्थ के आरम्भ में पार्वती भगवान शिव से पूछती हैं, हे प्रभु ! मेरे ऊपर कृ पा करके सर्व सिद्धिदायक ज्ञान कहिये, ये ब्रह्माण्ड
कै से उत्पन्न हुआ, कै से स्थित होता है, और कै से इसका प्रलय होता है? हे देव ब्रह्मांड के निर्णय को कहिए। महादेवजी बोले,
इन्ही पंच तत्वों की मनुष्य देह है और देह में सूक्ष्म रूप से ये पंच तत्व ही विद्यमान हैं। स्वर के उदय में ये पंच तत्व ही समाये
हैं, स्वर का ज्ञान सारे ज्ञानो में उत्तम है। हे देवी स्वर में सम्पूर्ण वेद और शास्त्र है, स्वर में उत्तम गायन विद्या है स्वर में सम्पूर्ण
त्रिलोकी है, स्वर ही आत्म स्वरुप है। ब्रह्माण्ड के खंड तथा पिंड, शरीर आदि स्वर से ही रचे हुए हैं। संसार की सृष्टि करने वाले
महेश्वर भी साक्षात् स्वर रूप ही हैं। स्वर और तत्वों को जानने वाला मेरे अनुग्रह का भागी होता है। इससे उत्तम ज्ञान न देखा
गया है न सुना गया है।
बाहरी कड़ियाँ
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title=शिव_स्वरोदय&oldid=5309313" से लिया गया
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