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परम पिता ijekRek श्री ग्रुरू भगवान की असीम कृ पा से मैं रघुनाथ प्रसाद भारती nzfor भाव भंगिमा से सभी धर्मों की
वास्तविकता लिखने का दुस्साहस कर रहा हूं मैं जो अपने तुच्छ विवेक से लिख रहा हूं (कलमबद्ध कर रहा हूं)dksbZ
द k वा नहीं भरता कि वह संपूर्णता सच की कसौटी पर खड़ा mrjsxk ij जो आज के प fjos’k में देख रहा हूंमहसूस
कर रहा हूं वही सब लिखने का प्रयास है।
यह जरूरी नहीं कि मेरे विचारों से शत प्रतिशत लोग सहमत होसबको मेरी बात fiz; लगे सबके गले उतरे।
आज के आधुनिक दौर में धर्म के प्रति दिखावा पाखंड अंधविश्वास धर्म से धंधा का प्रचलन की bl तरह फै ल रहा है जिसकी
वजह से धर्म आज के le; esa nkx दाग हो रहा है। दुखी मन से चंद शब्दों में dyec} करने का दुस्साहस कर रहा हूंA
गलतियोंअप्रियता अशुद्धियों के लिए क्षमा एवं सुझावों का हृदय से सम्मान है।
izLrkouk
वैज्ञानिको/विद्वानों का ऐसा मत है कि मानव का अवतरण इस धरातल पर लगभग 10000 वर्ष के पूर्व एवं इसके आसपास का है जो इतिहास
प्राप्त हुआ है] उसके अनुसार मानवमानव नहीं बल्कि वनमानुस के रूप में था। जिनकी शक्ल okujksa से मिलती हुई थी इस कारण से कु छ
विद्वान लोग वानरोa को अपना पूर्वज मानते हैं। कालांतर के अंतराल के बाद हमारी वानर जैसे पूa छ foyqIr हो गई और आज हम सब इस
रूप में आ गए हैं।
Tkgka rd भारत की सभ्यता के रूप में आ a कलन किया जाए तो lcls प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी एवं मोहनजोदड़ो हड़प्पा की मानी गई
हैA जहां पर मानव जाति के अवशेषचिन्हरहन-सहन के स्तर के आधार पर मानव मूल्यांकन का आंकलन किया गया है।
पूर्व में ना rks धर्म का ज्ञान था ना जाति dk]ना राम का ना रहीम काना ईशु का] ना बौद्ध का और ना ही किसी अन्य धर्म के प्रवर्तकों कातब
भी सारा संसार सुचार रूप से चल रहा था और आज भी। जैसे&जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया इंसान आगे बढ़ता गया वह कबीलोa
को त्याग कर गांव&कस्बे]शहरनगरों में बस गयाtc विकास की गंगा cgh तभी देवी-देवताओंधर्मों का पाक उद~गम हुआ ताकि सामाजिक
व्यवस्था सुचारू :i से चलती रहेA समाज में O;kfHkpkj]अत्याचार]भ्रष्टाचार]अनाचार आदि ना बढ़े इसीलिए धर्म का पर्दा डाला गया है
ताकि इसके डर से समस्त समाज सदाचार शिष्टाचार में रहे।
धर्म समाज को सुचारू :i से चलाने का संविधान है जो विद्वानोa द्वारा लिखित अपने ज्ञानविवेक एवं अनुभव के आधार पर रचा gSA
शुरुआती दौर में सभी धर्मों के नियम कायदे कानून पाक साफ होते हैं परंतु जब लोभ]मोह]स्वार्थ]घृणा]नफरत]एकाधिकार
छोटा&बड़ा]गोरा&काला]नर&मादा की परत धर्म पर चढ़ने लगती है तो वही पाक धर्म नापाक में बदलने लगता है]जिसका पूर्ण
mRrjnkf;Ro धर्म के ठेके दारोa प्रवर्तकों का होता हैA शनै&शनै धर्म स्वार्थ की परत में डू बने लगता है और विनाश के कागार पर खड़ा हो
जाता है।
कोरोना dh कहरता
आज पूरे विश्व में मानवता कोरोना के कहर से भयभीत है इसका आतंक सर चढ़कर बोल रहा है समूचे विश्व में 40 yk[k के आसपास लोग
काल के गाल में समा चुके हैं और इससे भी अधिक स्वास्थ्य कें द्रों में शरण लिए हुए हैं।
शुरुआती दौर में जब कोरोना ने दस्तक दी तो मौलवियोंपंडितों नेमनुवादियों व अन्य धर्मों के लोगों ने इसका मजाक उड़ायामार्च 2020 के
प्रारंभ में कोरोना का इलाज ढूंढने के बजाय थाली]चम्मचचमीटा] ’ka[k]ढपली]तमूरा]रमतूला ctk कर mldks भगाने का पाखंडी तरीका
अपनाया समूचे विश्व में थाली ]चम्मच]<फली]’ka[k] झांझर का एक निश्चित समय पर शंखनाद किया गया और समूचे विश्व के समस्त
मनुवादियों ने अनुसरण कियाम q ल्ला मौलवियों ने तो शुरुआती दौर में दो टू क मना कर दिया कहा कि भाई ;g सब नाटक है कोरोनाफरोना
कु छ भी नहीं है। जब महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया मौतों का अ E बार लगने लगा तब सभी धर्मों के लोगों की आंखें खुली फिर
आनन फानन इलाज कराने में जुट गए।
सी को श्रेष्ठ किसी को नीचे कमीन निकृ ष्ट करके दुत्कार जा रहा है क्या यही धर्म की परिभाषा है]हो सकता है कु छ मनुवादी लोग मुझे
कि
मूर्ख]पागल]नास्तिक एवं काफिर समझे]इतना ही नहीं मुझे बेइज्जत कर मेरी जान के लाले पड़ जाए क्योंकि मैंने लोगों पर नहीं उनके O;olk;
पर प्रहार करने का प्रयास किया है पर जो भी सच है जो मैं देख रहा हूं उसी को देखने का दुस्साहस किया है। आज चंद ठेके दारों की वजह से
मालिक]खुदा]भगवान और धर्म सब उनके हाथों में कै द है सारे संसार में जितने भी धर्म हैं उन सबके b"Vnso] भगवान खुदा एक या दो ही हैं
वही पूज्य है पर हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी &देवताओं का वास है कु छ लोग तो bls36 करोड़ तक मानते हैं अब मेरा सभी विद्वानों से इतना
सा निवेदन है कि यदि एक आम आदमी की औसतन आयु 100 वर्ष मान लें तो भी समस्त 33 करोड़ देवी देवताओं को iwtus में लगभग
900 वर्ष लगेंगे og Hkh जब बगैर अंतराल के प्रति दिन ,d देवी देवता की पूजा पाठ करें यानी ukS जन्मों तक पूरे देवी देवताओं का एक
राउंड लगा पाएगा फिर इन 9 जन्मों में मानव के कई अवतार मानव]जानवर]पशु&पक्षी के भी हो सकते हैं। और यदि आप यह तर्क दे जैसे
कृ ष्ण ने कहा था सारे संसार का मालिक एक ही है vkSj lHkh धर्मों में मैं ही हूं समस्त देवी देवताओं में मेरा ही okl है अगर श्री कृ ष्ण जी
का कथन सही मानते हैं तो इतनी देवी देवताओं की क्या आवश्यकता थी क्यों इतने मंदिर ]मस्जिद] गुरुद्वारे गड़े गए और तो और हिंदू में तो
33 करोड़ मंदिरों की क्या आवश्यकता पड़ी] कितना बेहूदा भद्दा धर्म का मजाक बनाया गया है जिसमें अतिशयोक्ति की पराकाष्ठा है फिर भी
कोई प्रश्न करें] शंका करें ]जुवान खोलें तो अपनी बात को सही ठहराने के लिए नाना प्रकार की कथाएं]कहानियां] दृष्टांत]क्षेपक]चुटकु ले
जोड़कर बात को सही ठहराया tkrk है और फिर भी नहीं माने तो अगले जन्म से कड़ी को जोड़कर असत्य बात को सत्य करने की पूरी
कोशिश की tkrh है इतने पर भी समझाने में असफल है तो लिखा है कि:
हरि fuUnk सुने जो काना
होय पाप गौ घात समाना। (रामचरितमानस)
यानी कि चारों तरफ से अपने धर्म के संविधान से मनुष्य को बांध रखा है यहां तक कि पाप&iq.;स्वर्ग&नरक] जन्नत&दोजक का डर
दिखाकर gksBksa को सिल दिया है। जब हरी का वास कण &कण में है वह हर जगह मौजूद है जैसा कि HkDr izgykn ने अपने
पिता हिरणाकश्यप से कहा था कि भगवान सब जगह मौजूद है तो क्यों इतनी तादाद में मंदिर&मस्जिद और मठों को बनाने की आवश्यकता
पड़ी।
हरि व्यापत सर्वत्र समाना
प्रेम ते प्रकट हुए मैं जाना।" (राम चरित्र मानस)
दूसरा प्रकरण एक बार एक शराबी (पिवक्कड़) मस्जिद के द्वार पर बैठकर दारू पी रहा था लोगों ने उससे भला बुरा कहा खुद मौलवी साहब
बिगड़ गए उन्होंने कहा तू इबादत की जगह पर दारू पी रहा है तुझे दोजक में भी जगह नहीं मिलेगी थोड़ी देर के बाद शराबी बोला:
ऐ ekSyk पीने दे मुझे मस्जिद में बैठकर
या फिर ऐसी जगह बता दे जहां पर खुदा ना हो।
fi;Dd शराबी का जवाब लाजवाब सभी सुनकर सन्न रह गए सर उसने आगे कहा की जन्नत और दोजक इसी जमीन पर हैं प्रेम के नजरिए से
देखो तो जन्नत है और घृणा से देखो तो दोजक है।
आज देश के तमाम मंदिर&मस्जिद]चर्चो में अथवा अन्य मठों में देश dh60 izfr’kr से अधिक की चल &अचल संपत्ति जमा है जिसकी
वजह से आसाराम बापू]कांचीपुरम के मठाधीश] राम रहीम एवं अन्य शंकराचार्य]मौलवी]पादरियों ने मदान धोकर धर्म को दाग दाग कर दिया है
धर्म की आड़ में यह सब नहीं होना चाहिए।
आज सारे विश्व का मानव समुदाय कोरोना के दौर से गुजर रहा है 40 लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं और 18 करोड़ के
लगभग कोरोना से ग्रसित किसी भी धर्म के देवी देवता मानव रक्षा के लिए आगे नहीं vk;s जो इस ujlagkj को रोक सके जब मानव
अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा तो कौन इन मंदिर&मस्जिद]गुरुद्वारों की पूजा करेगा कथा पांच वक्त नमाज पड़ेगा कौन चर्चो को मोमबत्ती से रोशन
करेगा। ukfLrd लोग भी वास्तविकता में विश्वास करते हैं आडंबर और दिखावा में नहीं]
जैसा कि कबीर साहब ने बड़ा कटु और सत्य धर्म के ठेके दारों को लिखा है:
कहने का आश्रय यह है कि सत्यता एवं वास्तविकता से लोगों का विश्वास अटल रहता है तथा झूठ फरेब से धर्म की आस्था को खतरा उत्पन्न
हो जाता है। झूठ बोलने से इमानदारी खत्म होती है और ईमानदारी खत्म होने से ही व्यक्ति दो कौड़ी का रह जाता है।
चंद विदेशी आदमियों ने आकर कब्जा जमा रखा है जो मनुवादी लोग विदेशी हैं जो उत्तरी ध्रुव से आए जैसा कि ऋग्वेद(10) में अंकित है कि
आर्य लोग यूरेशिया ईरान की तरफ से आए हैं जिनके उत्तराधिकारी ब्राह्मण हैं।
¼ पंडित जवाहरलाल नेहरू)
pwafd आर्य लोग विदेशी हैं और वह व्यापार के बहाने भारत में आए और यहीं पर जमकर रह गए उन्होंने भारत की भोली&भाली जनता को
अपनी dwVuhfr के मकड़जाल में फं सा कर गुमराह करके अपने धर्म की दुकानें खोलकर ही जम गए mUgsa Mj Fkk fd इतने बड़े
देश को हम संभाल नहीं पाएंगे तो उन्होंने देश को कई टुकड़ों में विभाजित करने का कार्य किया।
नेपाल]भूटान]vQxkfuLrku]बर्मा]रंगून]पाकिस्तान]बांग्लादेश आदि को टुकड़ों &टुकड़ों में ब a टवा दिया] पहले यह सब भारत के ही
अंग थे इसके बाद इन्हें तसल्ली नहीं हुई तो उन्होंने देश ds ukxfjdksa dks pkj वर्णों में विभाजित कर डाला जिसमें ब्राह्मण]क्षत्रिय]वैश्य
एवं शुद्र हैं। इसके अलावा जातियों गोत्रों कु ल गोत्रों आदि में विभाजन कर दिया जिसकी वजह से पूरी मानवता fNUu&fHkUu हो गई
उनका मकसद के वल एक ही था कि फू ट डालो और शासन करो यह फार्मूला आर्यों का ही नहीं cfYd बाद में अंग्रेजों ने भी इसे अपनाया।
इनका बस चले तो जितने 33 करोड़ देवी देवता है उतनी ही जातियां बना दें मनु वादियों का प्रमुख लक्ष्य फू ट डालो और शासन करना है जब
जातियों में विभक्त हो जाएंगे कु ल गोत्र में ckaVs tk;sxs तो उनका फासला आपस में दूरियां Lor% ही बढ़ जाएगी और फिर os कभी
एक नहीं हो पाएंगेblhfy, mUgksaus pkSFks वर्ण मैं 5664 जातियों का समूह इक्खट्टा क्यों बना दिया D;ksafd mudk
मकसद सिर्फ एक था fd ;s dHkh ,dtqV u gks tk;saA
ब्राह्मण ]क्षत्रिय] वैश्य D;ksa एक ही जाति esa j[ks x;s इनमें भी कु छ और जातियां जोड़ देते कभी आपने सोचा कि चारों वर्णों ब्राह्मण
क्षत्रिय वैश्य एवं शुद्र में ls czkge.k की शादी czkge.k से होती है]क्षत्रिय dh शादी क्षत्रिय से होती है एवं वैश्य की शादी वैश्य से परंतु
’kqnz की शादी शूद्र में क्यों नहीं होती है]blesa तो कु मार] लोहार] माली dqehZ] धोबी] धानुक] बरार] चमार] बाल्मीकि ]यादव ?
kks"k] yks/kh] कोरी इस प्रकार से पूरे देश में 5664 जातियों से विभाजन कर रखा है अब यह कै से एक हो जाए उनका मकसद सिर्फ
एक ही है कि ज्यादा से ज्यादा सेवक गुलाम हमारी सेवा में तत्पर रहें हमारे पांव iwtrs रहेaA इन तीन वर्गों के 100 साल के बूढ़े
eka&cki भी उनके 10 साल के बेटे को पाय लागे] प्रणाम कर आशीर्वाद लेते रहे vkSj orZeku esa Hkh ;gh O;oLFkk
py jgh gS क्या यह सही हैइस तरह की सोच क्षत्रिय] वैश्य एवं ’kqnz के दिमाग में क्यों नहीं आती। हमारे पूर्वजों के साथ जो अभी तक
अन्याय होता रहा है वही अन्याय आज भी लागू रहने की बात सोचते हैं यहां तो ouos एक तरफा रास्ता है रिटर्न की कभी भी उम्मीद नहीं की
जा सकती पीढ़ी दर पीढ़ी यही चलता रहेगा और होगा भी क्योंउन्होंने अपने धर्म ग्रंथों में कलमबद्ध कर रखा है कि ब्राह्मण जाति का मनुष्य
कितना ही मूर्ख]पापी ]दृष्ट] दुराचारी] अत्यचारी] अय्याश] अत्याचारी] शराबी क्यों ना हो पर वह iwT;uh; है vkSj mudh
O;oLFkk ls ges’kk jgsxk । परंतु अन्य वर्गों के व्यक्ति कितने ही सज्जन] सच्चे] ईमानदार] बुद्धिमान भी क्यों ना हो तो भी पूजा के
पात्र नहीं है यह सब हक के वल ब्राह्मण को ही है।
जैसा कि रामचरितमानस में लिखा है:
पूजाहि विप्र सकल गुण हीना]
पूजाहि ना शूद्र ज्ञान प्रवीना। (रामचरितमानस)
इस बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने रामचरितमानस से उस प्रसंग को लिया है जिस समय राम सीता की खोज करते करते समुद्र किनारे
पहुंचते हैं हनुमान जी द्वारा पता लग गया था कि सीता हरण रावण के के द्वारा किया गया है और वह अशोक वाटिका में है क्योंकि रावण शंकर
जी का परम भक्त fjf};ksa&सिद्धियों वेद पुराणों से ifjiDo था इसीलिए उसे जीतने के लिए शंकर जी dh रामेश्वरम में स्थापना एवं यज्ञ
करवाना t:jh gS rHkh रावण पर विजय हासिल की जा सकती है तब यज्ञ हवन पूजन हेतु श्रीलंका से रावण को बुलाया गया भले ही वह
राक्षस था अत्याचारी था दुराचारी था nq"V था मांसाहारी ]शराबी बलात्कारी राम का शत्रु ही था पर था तो tkfr ls ब्राह्मण ही इसीलिए
उसे बुलाया गया और हवन पूजन कर रामेश्वरम में शंकर जी की स्थापना की गई। इसके बाद राम सहित सभी दल ने रावण के पांव पखारे
pj.kke`r लिया इसके बाद fonkbZ की।
प्रश्न यह उठता है कि शंकर जी की स्थापना हेतु विदेश से रावण को ही क्यों बुलाया गयाक्या भारत में ब्राह्मणों की कमी थी या यज्ञ पूजन हवन
करना नहीं जानते थे जो दुश्मन को यज्ञ के लिए विदेश से बुलाना पड़ा पर सत्य है कि रावण ftruk पापी ]nq"V ]अधर्मी भारत में नहीं था
इसलिए ’kadjth को पूजा हेतु श्रीलंका से बुलाया गया यह सिद्ध करने के लिए कि ब्राह्मण कै सा भी नीच कमीना] अधर्मी शराबी ij
L=hxkeh क्यों ना हो तब भी पूजा के योग्य जिसके सामने Lo;a राम ने पैर पकड़कर pj.kke`r लिया हो तो आम आदमियों की क्या
औकात है कि ब्राह्मण का अनादर करो।
nwljk mnkgj.k&
;g उदाहरण महाभागवत पुराण से vuojr किया गया है जिसमें कृ ष्ण और सुदामा एक ही गुरुकु ल में सहपाठी थे उनके साथ अन्य l[kk]
सुदामा ]दामोदर] घांशु] मनशुखा आदि गरीब पढ़ते थे जो सभी l[kk अलग-अलग dqy वंश के थे। जब सुदामा पर गरीबी आई तो धर्मपत्नी
के कहने पर og vius मित्र कृ ष्ण के पास सहायता हेतु x;s tcfd ml nkSj esa सुदामा से Hkh निर्धन गरीब और भी लोग थे tks
d`".k ds lkFkh lgikBh Fks परंतु mUgksus ब्राह्मण देव सुदामा का ही चुनाव के किया गया tc सुदामा राज दरबार में कृ ष्ण के
यहां पहुंचते हैं और द्वारपाल से कहा कि मुझे अपने मित्र कृ ष्ण से मिलना है तब द्वारपाल कृ ष्ण की अनुमति लेने अंदर पहुंचता है तो तो इस
प्रकार से वर्णन किया गया है:
धोती फटी सिलटी दुपटी अरु पांव उपासन को नहीं ]
पूछत दीनदयाल को धाम बतावत आपन नाम सुदामा।
और तब कृ ष्ण जी दौड़ कर के बाहर आते हैं और सुदामा को लेकर अंतः पुर में ले गए जहां dksbZ nwljk ना जाए।
देख सुदामा की दीन दशा rc करूं करके करुणानिधि रोए]
पानी परात को हाथ से छू नहीं नैनन के जल सो पग धोए A
सुदामा की आवभगत हुई कृ ष्ण lfgr समस्त iVjkfu;ksa ने ikaoksa dks /kks;k उनका pj.kk मृत लिया तथा सम्मान lfgr
fonk किया यहां पर ब्राह्मण को भगवान से ऊं चा सिद्ध किया गया कि czkge.k ds vkx tc राम और कृ ष्ण कहीं लगते हैं तुम कु छ
साधारण आदमी की क्या औकात है जो ब्राह्मण को पूजनीय ना समझे।
इसके अलावा तीसरा उधाहरण जो दक्षिण भारत के एक महान ग्रंथ से अवतरित किया गया है जो किया कि अंग्रेजी भाषा में है सुनिए:
The whole world is under control of the God, and the god is under control by the manta and
the mantra is under control only by brahmins so that god is a servitor of the Brahmin.
सारा संसार भगवान के अधीन है और भगवान मंत्रो के अधीन है और मंत्र के वल ब्राह्मण के अधीन है इसलिए भगवान ब्राह्मण का दास हैगुलाम है।
इसलिए उन वर्गों में क्षत्रिय] वैश्य] शूद्र को सोचना चाहिए कि जब भगवान तक ब्राह्मण के सामने शून्य है तो {kf=;] oS’; ]’kwnz dh
D;k vkSdkr gSA इससे बड़ा उदाहरण विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथों में नहीं मिलता। हम यही भी बता दें कि उस युग के ब्राह्मण एवं
राजपूतों के अलावा अन्य किसी को पढ़ने की अनुमति नहीं FkhA {kf=;ksa से शिक्षा को छीन कर तलवार थमा दी oS’; dks सिर्फ
व्यापार चलाने भर के लिए पढ़ने दिया जाता था संस्कृ त और वेद ज्ञान ] ’kkL=ksa से दूर रखा जाता था और शूद्रों की कहानी तो अलग
ही थी कहीं भी गलती से भी शिक्षा का ज्ञान सुन लिया तो कानों में fi?kyk हुआ xeZ शीशा डलवा दिया जाता था अगर सुना हुआ बोला तो
जीभ काट ली जाती थी के वल मुंह बंद करके सेवा करना यही चौथे oxZ का धर्म है।
इसी प्रकार से चारों वर्गों के अलग-अलग कार्य caVsgq, Fks और कोई विदेशी आक्रमण करता था तो के वल {kf=; ही लड़े कटे मरे
शेष 3 वर्ग मूर्ख बनकर आक्रमण होकर देखते रहे अथवा भाग कर इधर-उधर हो x, D;ksafd लड़ाई करने का हक rks के वल {kf=; को
Fkk और जब {kf=; शहीद हो जाते थे तो उनकी बहू&csfV;ksa को अपनी सेवा में बतौर दासीअय्याशी o सेवा के लिए अपने पास
रख लेते थे अथवा बतौर उपहार विजेता राजाओं को HksaV कर दी जाती थी उदाहरण जैसे अकबर जोधा बाई आदि A क्षत्राणी बहादुर
होती थी वह स्वयं अग्नि में पति की चिता के साथ सती हो जाती थी जो क्षति नहीं हो पाती थी उन्हें जबरन vfXu के कुं ड में ढके ल दिया
जाता था राजस्थान का जौहर कुं ड इसी के लिए प्रसिद्ध था यह सब मुगल काल और fQjafx;ksa के समय में अधिक हुआ अब
भरण&iks"k.k की जिम्मेदारी के वल वैश्य Fkh og व्यापार कर के खुद खाए ब्राह्मण] {kf=; को खिलाएं और बचा हुआ कु छ धन
मंदिरों में दान करके तथा ’kqnzksa के सहयोग से मंदिरों का निर्माण कराएं राजा और महाराजाओं के द्वारा ब्राह्मणों ने अपनी शिक्षा के
माध्यम से बड़े-बड़े मठों का निर्माण कराया दक्षिण भारत मंदिर] उत्तर भारत के मथुरा वृंदावन] अयोध्या मंदिर] के दारनाथ] बद्रीनाथ इस बात
के उदाहरण है।
दक्षिण में मदुरई] के रामेश्वरम] जगन्नाथ] पुरी] तिरुपति] वेंकटेश्वर] स्वामी] रामास्वामी] मंदिर] गुरुवायूरप्पन मंदिर] पदम नायक] पदमा]
पद्मनाथन स्वामी मंदिर आदि प्रमुख हैं पूरे देश में मंदिरों का जाल बिछा हुआ है ताकि किसी भी प्रकार से भविष्य में आने वाली ब्राह्मणों की
संतानों को रोजी-रोटी की कभी भी समस्या उत्पन्न u हो ,slk नेटवर्क संसार के किसी धर्म का नहीं फै ला gSA देश के छोटे ls छोटे गांव में
nks pkj मंदिर अवश्य gh fey tk;sxs और muds पुजारी मिल जाएंगे। अब बताएं Hkyk भाई czkge.k dSls csjkstxkj
jg ldrs हैं A गूगल से rktk जानकारी के अनुसार के लिए भारत में 10 लाख से अधिक मंदिर हैं जिनमें से मात्र 100 मंदिर ,sls हैं
ftueas izfr o"kZ p<kok ls tks /ku&laink vkrh gS og gekjs ns’k के okf"kZd बजट के बराबर gksrk है
vc बकाया मंदिरों की क्या कमाई हो सकती है उसका आप स्वयं विचार करके अनुमान लगा सकते हैं देश ds eafnjksa esa fdruh
vdwV धन संपदा भरी पड़ी है काश blhlaink को देश के विकास में नव जवानों की रोजी रोटी के लिए अच्छी शिक्षा के लिए]
LokLF; ds fy, खर्च किया tk;s तोgekjk देश विश्व में प्रथम स्थान रखता देश पर जो कर्ज का cks>gS og चंद महीनों की
p<kSrh से समाप्त हो जाता लेकिन आज तक जितनी भी सरकारें आई किसी ने भी देश के समस्त धर्मों के धर्म स्थानों को [kaxkyus की
कोशिश नहीं की देश के समस्त धर्म स्थलों की अकू त धन lEinkgekjs ns’k की है भारत की जनता की है] राष्ट्र की है लिहाजा bl
संपदा का उपयोग जन कल्याण हेतु खर्च किया जाना चाहिए ;g कतई गलत नहीं है हमारे भारत देश के जितने भी मंदिर हैं] गुरुद्वारे हैं] चर्च हैं]
मस्जिद है] जैन मंदिर हैं या अन्य मठ इन सब को बनाने में चौथे वर्ग ’kqnz का सबसे बड़ा योगदान है इसके अलावा eqlyekuksa का
भी योगदान रहा है यह चौथा वर्ग lfn;ksa से मंदिरों के fuekZ.k में शहीद gksrs jgs हैं इन्हीं में से बड़े-बड़े शिल्पी कारीगर कलाकार
होते हैं जो भगवान की मूर्ति को छेनी हथौड़ी से हटकर uDdk’kh करके मूर्ति को सुंदर व lqMkSy बनाते चले आ रहे हैं इन कारीगरों ने
कभी भगवान को देखा Hkh ugha पर अपनी कल्पना के माध्यम से नाना प्रकार के रूपों में dkjhxjh करते आ रहे हैं चाहे तो
चारोंgkFk बना दे चाहे तो तीन मुंह बना दे और चाहे तो कई हाथ लगा दे चाहे तो हाथ ही गायब कर दें किसी की दाढ़ी मूछ लगा दे और
किसी को क्लीन सेव कर दें राम और कृ ष्ण क्लीन lsookys देवता है जबकि अन्य nsork दाढ़ी मूछ वाले हैं इतना ही नहीं इसके अलावा
किसी की लंबी lwaM लगा दे]बकरी का मुंह बना दे किसी dk eqag lwdj dk cuk ns या eRL; अवतार के रूप में उसकी रचना
कर दें यह कल्पना का आकार उनके दिमाग में पंडितों ने अपने हिसाब से बताया है और फिर उन्होंने मूर्ति रूप देने का कार्य किया है इसके
अलावा देवी देवताओं की सवारी सहित flag] चूहा]cSy] सर्प] नाग ]कु त्ता ]गधा] हाथी HkSalk आदि पर विराजमान करने की कला
उनके पास थी और eSa यह जानना चाहता हूं क्या इन ewfrZdkjksa us dHkh भगवान ;k देवी& देवताओं की शक्ल देखी है ;k
साक्षात दर्शन किए हैं जो इतनी सुंदर& सुंदर रूप बनाकर प्रस्तुत किए हैं और जिस कारीगर शिल्पी कलाकार ने बैठकर मूर्तियां बनाई है इतना
सुंदर रूप दिया है उससे ज्यादा भाग्यशाली विश्व में कोई भी इंसान नहीं है ना पंडित]uk मौलाना]uk iknjh ना कोई अन्य गुरु और जब से
मूर्ति बनकर rS;kj हो tkrh gS rks ब्राह्मण द्वारा प्रमाणित सर्टिफाइड कर मंदिर में स्थापित कर दी जाती हैं फिर उसे उसी ds
fuekZ.kdrkZ tksfd चित्रकार] कारीगर] कलाकार] ’kqnz मजदूर को मंदिर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है क्योंकि अधिकांश
कारीगर tksfd शूद्र oxZ से ही है उसके बाद पत्थर की मूर्तियों में मंत्रों द्वारा प्राण &प्रतिष्ठा] शुद्धीकरण dk <dkslyk fd;k tkrk gS
ftllsiRFkj esa शक्ति आ जाए जान आ जाए ftldks प्राण& प्रतिष्ठा नाम दिया गया है
मेरा इन विद्वानों से निवेदन है कि जब घर का कोई सदस्य मां& बाप] जवान बेटा] बहू dh e`R;q gks जाती है तो क्यों नहीं muesa
मंत्रों के द्वारा प्राण &प्रतिष्ठा कर लेते]क्यों mUgsa ejus देते हो जब तुम पत्थरों में जान डाल सकते हो rks मुलायम ekal का
yksFkMk जो पहले से ही जिंदा था rks mlesa D;ksa tku ugha Mkyrs और किसी को मरने नहीं देते इससे बड़ा चमत्कार
और क्या होता पर ऐसा कु छ नहीं है flQZ vkidksvU; सबकी खून पसीने की कमाई से मौज-मस्ती करना है और जनता की गाढ़ी कमाई
को हड़पना है साथ ही साथ समाज की आंखों में धूल झोंकना है। vkt विश्व की संपूर्ण मानवता महामारी की वजह से खतरे में है लाखों की
तादाद में लोग काल के गाल में समा गए हैं संसाधनों के अभाव में विश्व की सारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है समस्त देवी देवता मानव को बचाने
में लाचार हैं किसी भी देवता की शक्ति काम नहीं आ रही है समूचे विश्व के देवी देवता असफल हो गए हैं हर धर्म के मालिक अपने अपने भक्तों
को क्यों नहीं बचा रहे हैं और यदि इनमें सामर्थ्य नहीं है तो क्यों सदियों से जमा lEink मंदिरों चर्चा गुरुद्वारों या अन्य मठों मस्जिदों से
निकालकर मानव कल्याण एवं देश के विकास में प्रयोग क्यों नहीं की जाति ताकि देश की गरीबी दूर हो सके और विकास से नव जवानों की
बेरोजगारी दूर हो सके ।
मैं किसी धर्म के विरोध में नहीं हूं परंतु आडंबर झूठ फरेब शोषण मानव& मानव से uQjr धर्म पर एकाधिकार आदि हवाई बातों से मेरा
तालमेल नहीं खाता।
मंदिर भगवान का घर नहीं पुजारियों की दुकान है यहां पर पढ़े लिखे और बेवकू फ दोनों ग्राहक बिना खरीदे खाए पिए पैसा दे जाते हैं।
सबको इकट्ठा रखने की ताकत प्रेम में है और सबको अलग करने की ताकत बहम और नफरत में है।
गलती कबूल करने में और nqxqZ.k छोड़ने में कभी nsj नहीं करनी चाहिए क्योंकि सफर जितना लंबा होगा okilh भी उतनी ही मुश्किल
से होगी।
झूठ बोलने से ईमानदारी खत्म होती है और इमानदारी खत्म gksus से व्यक्ति दो कौड़ी का हो जाता है।
अनुरोध सिर्फ इतना है जो अभी भी भटके हुए सियार शेर की खाल igus बैठे हैं og असली मानवता वादी रूप में आ जाए जियो जियो और
जीने दो की कहावत को चरितार्थ करें तभी समाज में समानता] समरसता के iq"i प्रज्वलित होंगे tgj ही निकलेंगे A
blds vykok एक और विद्वान dk er देना चाहूंगा।
जिस देश में मंदिर]मस्जिद की dekbZ वहां के बैंकों से ज्यादा हो तो उस देश में बेवकू फ की गणना djuk नामुमकिन है (ओशो रजनीश)
कु छ वर्ष पूर्व एक जापानी ने हिंदुस्तान का सर्वे किया था तो उसने कहा था भारत देश तो राम भरोसे चल रहा है इस देश में सब कु छ संभव यहां
तक कि भगवान Hkh मिलना संभव है परंतु दो चीजें असंभव है यहां का ब्राह्मणवाद] जातिवाद एवं भ्रष्टाचार nksuksa समाप्त हो
tk;saxs देश पुनः सोने की चिड़िया बन जाएगा।
धर्म की ऑक्सीजन
हर धर्म की सबसे बड़ी ऑक्सीजन उस धर्म के समर्थक होते हैं जिस दिन समर्थकों को यह आ Kku जाएगा ]समझ में आ जाएगा कि हमें धर्म
के नाम पर लूटा जा रहा है ] गुमराह किया जा रहा है] भेदभाव किया जा रहा है] आडंबर किया जा रहा है लोगों dk धर्म के प्रति प्रेम ?
k`.kk में बदल जाएगा इसलिए /kekZ चारियों का परम दायित्व है कि धर्म को धंधे से ना जोड़ें तभी धर्म की लाज बचेगी।
वैसे हिंदू धर्म की सबसे बड़ी ऑक्सीजन सबसे बड़ा वर्ग शुद्र है जिस दिन यह ’kqnz यादव] लोधी] कु र्मी] पटेल काछी] लोहार] ब<bZ]
ukbZ] pekj] बरार] कोरी] धोबी] धानुक]ckYehfd] ढीमर] पाल कल्हार] खटीक] निषाद धाकड़] साहू] माली] वेन] ग्वाला आदि
मंदिरों पर p<ksRrjh u चढ़ाकर स्कू ल विद्यालय शिक्षा निके तन की ओर p<ksRrjhp<kuk शुरु कर देंगे उस दिन से पुजारी लोग
मंदिर छोड़कर घर पर आ जाएंगे और जब कमाई बंद हो जाएगी तो वेंटिलेटर से जमीन में मिलने में देर नहीं लगेगी। इतनी p<kSRrjh जन्म
से लेकर मरण तक और ejus के बाद भी p<krs रहते gSa उतना ही पैसा स्वयं को उठाने में परिवार को शिक्षा देने में खर्च की जाती तो
स्वयं पंडित बन जाते इतना ही नहीं स्वयं धर्मगुरु बन जाते फिर किसी अन्य ठेके दार की आवश्यकता नहीं पड़ती p<kSrhdk दान की
ऑक्सीजन जिस दिन बंद हो जाएगी उसी दिन से सभी मठों के पट बंद हो जाएंगे हो सकता है कि भाई ogh दुकान vkidks खुद किराए पर
मिलने लगे या फिर तुम खुद [kkyh दुकान समझ कर कब्जा कर लो जिस दिन यह अके ला शूद्र वर्ग एक हो जाएगा उसी दिन से देश को संपूर्ण
आजादी मिल जाएगी और देश गुलामी से बच जाएगा।
आरक्षण
iwT;uh; भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी द्वारा रचित संविधान में जो चौथा वर्ग दलित ’kwnz है उनके vf/kdkjksa और
आरक्षण का प्रावधान j[kk x;k gStks देश के अंदर दबे&कु चले बहिष्कृ त लोग उनके लिए जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान
रखा गया है उन्होंने संविधान में अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य का भी उल्लेख किया है जोकि निम्न प्रकार हैं:
1&समताएवंसमानता का अधिकार अनुच्छेद 18
2&Lora=rk का अधिकार अनुच्छेद 19
3&शोषणके विरुद्धअधिकारअनुच्छेद 23 से 24
4&धार्मिकस्वतंत्रताकाअधिकारअनुच्छेद 25 28
5&संस्कृ तिऔरशिक्षाकाअधिकारअनुच्छेद 29 30
6&संपत्तिकाअधिकारअनुच्छेद 31
7&राजनीतिक एवं संवैधानिक अधिकार
जबकि इस तरह के leLr अधिकार मनुवादी ग्रंथों के विपरीत है।
26 जनवरी 1952 से संविधान में यह सब अधिकार दिए गए हैं जनसंख्या के आधार पर 18izfr’kr अनु जाति एवं 7-5izfr’kr अनु
जनजाति तथा 27izfr’kr पिछड़k वर्ग का आरक्षण रखा गया है इस प्रकार से भारत देश का कु ल आरक्षण 49-5 izfr’kr है
Alu1952 से अनु जाति o जनजाति का आरक्षण तो बराबर ls लागू हो कर चला आ रहा है परंतु पिछड़ा वर्ग का आरक्षण मौजूदा सरकार ने
दबा कर रखा था यह पूर्व में dkdk dkyssdj dh अध्यक्षता में लागू किया गया Fkk फिर पुनः मंडल आयोग ने 1999esa जनता
पार्टी सरकार ने लागू कराया] जिसके अध्यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल बिहार ls जो अनुसूचित जाति के थे ,o a आदरणीय Jh अर्जुन सिंह एवं
Jh रामविलास पासवान के सहयोग से दिनांक 31 दिसंबर 1980 से लागू हुआ मेरा प्रश्न सिर्फ इतना है कि इस izdkj lsfiNMk oxZ
dk आरक्षण 27 साल के बाद क्यों लागू किया गया जबकि bldks Hkh अनु जाति जनजाति ds आरक्षण एक साथ लागू होना था ij
ugha gqvk bldh otg ls dqN पिछड़ा वर्ग के लोग अपने आप को सवर्णों से ज्यादा ऊं चा मानते हैं ftl dkj.k इसको कु छ समय
के लिए दबा कर रखा गया आज भी कहीं-कहीं पिछड़ा वर्ग के लोग दांगी] राजपूत] यादव] लोधी ]पटेल] अपने आप के lo.kZ से बड़ा
मानते हैं उन्हें तो जब समझ में आया जब मुख्यमंत्री ;ksxh आदित्यनाथ us विधान सभा परिसर को एवं सिहासन को गंगा जल एवं दूध से
/kqyok;k क्योंकि उन पर अभी तक शूद्र विराजमान थे तो फिर राजगद्दी शुद्ध करने के लिए गंगाजल] यज्ञ पूजन करके राजगद्दी शुद्ध की गई
क्योंकि इससे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ]मुलायम सिंह को मायावती ]अखिलेश यादव आदि शूद्र विराजमान थे इसीलिए शुद्धीकरण करने की
आवश्यकता पड़ीA चौथे o.kZ में आज भी इतना विवाद] वर्ग& भेद] जाति& भेद है कि आपस में ही एक दूसरे को पसंद नहीं करते
उसकी वजह सिर्फ हजारों जातियां एवं जातियों में विभाजन है जो सब मनु वादियों की चाल है ताकि यह एक ना हो सके फिर भी pkSFkk
वर्ग ’kqnz अभी तक नहीं समझ पाया है ]अगर पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 1952ds izkjEHk से gh लागू किया जाता तो वास्तव में
fiNMh tkfr ds tks yksx gSa वह 27lky पूर्व ls gh आरक्षण का लाभ ले लेते और उन्हें फायदा मिलताA[kSj देर आए
दुरुस्त आए ] कु ल मिलाकर आज देश का आरक्षण 49-5 izfr’kr gS और जो देश की dqy जनसंख्या 138 करोड़ के आसपास है
जोकि गूगल से निकाली गई है उनका वर्गीकरण इस प्रकार हैA
‘‘fiz; euqokfn;ksa ;fn rqEgSa ’kwnzk ds vkj{k.k ls vkifRr gS ]cqjk yxrk gS rks vkj{k.k cny
D;ksa ugha ysrsA ‘’kwnzksa का आरक्षण आप ले लो और अपना आरक्षण ’kqnzksa को दे दो झगड़ा समाप्त हो जाएगा आप
अपने मंदिरों का ठेका] संघ] झालर] वेद ]पुराण] गीता] भागवत] कलावती& लीलावती dh dFkk] शादी विवाह] शोधन जन्म से लेकर
मरन तक का ठेका] मंदिरों का ठेका] हिमालय से लेकर समुद्र तक ठेका ]शिक्षा का ठेका ]तिलक तराजू तलवार का ठेका शूद्र को देदे और
’kwnzksa के जो dk;Z gSaog lc आप करने लगे जैसे खेती करना] हल चलाना भैंस पालना] भेड़] बकरी] सूअर ikyu] मुर्गी
पालन] गोबर से उपले बनाना]’kkSpky; साफ करना] चमड़े का काम करना] जूता पॉलिश करना] बैंड बजाना] टोकरी बनाना] बढ़ई का
काम] लोहार का काम] कु Egkj का काम]ukbZ का काम] बाल्मिक का काम] खटीक का काम ]दर्जी का काम] बरार का काम] धानुक]
तेली] मोची] कोरी] काNh]माली] बरार काम आप ले ले आपकी इच्छा ही पूरी हो जाएगी और झगड़ा समाप्त हो जाएगा।
अब मैं विश्व की कु ल आबादी का आंकड़ा आपके सामने रख रहा हूं जो मैंने अप्रैल 2021 के आबादी को बल के माध्यम से प्राप्त किया है साथ
ही साथ यही बताना चाह रहा हूं कि किस धर्म की कितनी आबादी है तथा उनके धर्म में रक्षक मालिक भगवान कितने हैं समूचे विश्व की मानव
आबादी 7 अरब 90 करोड़ के आसपास है जिनका धर्म अनुसार विवरण इस प्रकार है&
सारे विश्व के धर्मों के के वल एक या दो ही laj{kd;k भगवान gSa सभी लोग हर तरह से खुशहाल हैं अब हिंदू धर्म में 22 djksM से 36
करोड़ तक भगवान देवी&देवता है फिर भी भारत की जनसंख्या परेशान है ]मधुलाल है ]कमजोर है क्या और अधिक Hkxokuksa को
रक्षा के लिए बढ़ाना चाहिए यही प्रश्न चल रहा है ftldh वजह से u;s&u;s देवी & देवता प्रकट gksuk vkfn सुनने में आ रहे हैं जो
कभी प्रचलन में नहीं थे वह धीरे-धीरे प्रकट हो रहे हैं इनके अलावा कु छ देवियां है जो निम्न है&
1&लक्ष्मी माता&लक्ष्मी माता के होते हुए 65 izfr’kr लोग गरीबी रेखा के नीचे में आते हैं आज देश का प्रत्येक व्यक्ति :0 63500 का
कर्जदार हैA
2&सरस्वती माता&के वल पहले ब्राह्मण ही पढ़ा लिखा था क्योंकि उन्हीं के लिए ही माता बनाई गई Fkha अब yxHkx 70 izfr’kr
आदमी पढ़ लिख गए हैं उनमें से भी 10 izfr’kr आदमी के वल हस्ताक्षर ही कर ikrs हैa पर लिख नहीं ikrs gSaA
3 संतोषी माता&घर में संतोषी मां है फिर भी इंसान असंतुष्ट हैA
4&काली माता&पूजा सब करते हैं पर शक्ति किसी में भी नहीं हैA
5&वैष्णो देवी माता&कमाई आए का उत्तम जरिया हैA
6&मनसा देवी माता&लाखों में से एक या दो की ही मंशापूर्ण हो पाती हैA
7 & चंडी देवी] विंध्यवासिनी देवी] मैहर माता] कांगड़ा माता] रतनगढ़ वाली माता] पार्वती माता] सीता माता] ज्वाला जी माता] बैरागढ़
वाली माता] देवास वाली माता] फु लकी माता और अन्य माताएं ना जाने कितनी है।
नोट ,&देश में ना जाने कितनी देवी देवता काम कर रही हैं फिर भी हिंदू धर्म की हालत क्यों इस तरह की खस्ता हालत में है लगता है की जय
सब लॉटरी के सिस्टम की तरह है की 100 में से एक आध नंबर लॉटरी का निकल ही जाता है और इनका निकलता है वह बड़ी जोर शोर से
धर्म का प्रचार करते रहते है।
आज मैंने 26 मार्च 2021 को लाशों पर कोरोना की बहस सुनी tks शाम 7%30 से 8%30 तक बहस का मुद्दा बनी रही जिसमें श्री के 0
के 0 पांडे कांग्रेसी]Jh अशोक अवस्थी भारतीय जनता पार्टी से Jh मोनू जी महाराज संत जूनागढ़ अखाड़ा से] श्री धर्मेंद्र यादव समाजवादी
पार्टी से सम्मिलित हुए सभी ने jktuSfrd cgl की जो देश की प्रमुख पार्टियां है उनमें से fdlh us भी इंसान dh लाशों पर संवेदना तक
प्रकट नहीं की आपस में लड़ते &लड़ते cgl का समय lekIr हो गया पर किसी भी नतीजे पर बहस नहीं पहुंची इन राजनीतिक दलों को
मानवता से कोई ljksdkj नहीं है] कोई दर्द नहीं है] कोई सहानुभूति नहीं है सभी अपनी अपनी बात को श्रेष्ठ djus में yxs रहे जो usrk
लाशों के ऊपर भी राजनीति करते हैं वह कै से देश हितेषी हो सकते हैं ekuorkoknh हो सकते हैA
कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर]
जो पर पीर ना जानिय सो काफिर csihjA
लड़ाइयां rks हर धर्म में बुराइयां हर धर्म में पर इंसानियत का गला घोट कर जो आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो समझ लेना चाहिए अब
समाज का अंत आ गया है A इस्लाम धर्म की नजर में खुदा से बढ़कर किसी का दर्जा नहीं है और जब धर्म की मानव& मानव में स्त्री पुरुष
गरीब अमीर में गोरा काला] शेख ]सैयद मुगल] पठान]fl;k] सुन्नी में Hksn करने लगे तो धर्म कलंकित होता है पर्दा सिस्टम] तीन तलाक]
शिक्षा पर पाबंदी] महिलाओं की पाबंदी] हलाला] मस्जिदों में महिलाओं का प्रवेश oftZr] बराबरी का हक ना मिलना एक कलंक है पर इन
सब का भगवान एक ही है खुदा या अल्लाह ताला एक ही धर्म ग्रंथ कु रान है जब उनका कोई भी पर्व आता है एक दूसरे से प्रेम से गले लगते हैं एक
साथ खाना भी एक थाली में खा लेते हैं भले ही भाई एक निवाला खाएं और खाते जरूर है इस वजह से इसी वजह से इनमें एकता एवं प्रेम
भाईचारे का fny ls लगाव रहता है।
ईसाई धर्म विश्व का सबसे बड़ा धर्म है जिसका मालिक एक है धर्म की किताब ckbZfcy सभी स्त्री& पुरुषों को समानता] शिक्षा ]व्यापार
का अधिकार है किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है फादर& सिस्टर] मदर सभी fxjtk?kjksa esa एक साथ पूजा करते हैं और खुशहाल हैं
हालांकि इनमें भी 2 वर्ग हो गए हैं कै थोलिक और प्रोटेक्शन फिर भी ioksZa एक दूसरी गले मिलना] भाईचारा ]खाना &पीना सब एक साथ
होता हैA सिख धर्म प्रवक्ता गुरु ukud nso जिन्होंने एक एकता और संगठन का पाठ सिखाया बस अब भी आपस में एक हैं उनमें भी
भेदभाव नहीं हैA सच्चे fl[k की पहचान 5 स्तरों से की गई है इस के श] कं गी ]कच्चा ]कड़ा ]कटार यह सि[k की पहचान है सच्चे मन से
आपस में एक दूसरे की मदद करना आपसी भाईचारा बनाना एक सच्चे धर्म की पहचान है इनके धर्म में ना कोई छोटा है और ना कोई बड़ा सब
समान है करोड़पति से करोड़पति भी अपने गुरुद्वारे पर जाकर गरीब से गरीब आदमियों के जूते चप्पल साफ करता है उसके यहां कोई भी x:j
या घमंड की जगह नहीं है।
जैन धर्म
महावीर स्वामी द्वारा चलाया गया सात्विक धर्म है जिसमें सत्य अहिंसा मानवता का विशेष ध्यान रखा गया है चीa टी से लेकर हाथी तक सभी
जीव समान है सभी की रक्षा करना धर्म है आपस में एक दूसरे की सहायता मदद करना इनका लक्ष्य हिंदू धर्म की बुराई उसे तंग आकर इस धर्म
का इजाफा हुआ जो आज महान धर्मों में fxuk जाने लगा है सभी धनवान एवं खुशहाल है।
हिंदू धर्म
सदियों पुराना lukru धर्म है जिसमें समय के हिसाब से कई उतार-चढ़ाव आए इस धर्म के अनुयायियों ने blsviuh सुविधानुसार
तोड़&मरोड़ कर cukus की कोशिश की धर्म में भेदभाव] नफरत] छोटा&बड़ा]efgyk& पुरुष] छू त& अछू त आदि से धर्म को नापाक
कर दियाA हिंदू धर्म के izorZdksa us इस धर्म को nkxnkx करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी है और धर्म को व्यापार की सबसे
बड़ी मंडी बना j[kk है] मन मुताबिक भगवान को हजारों करोड़ों विभागों @भागों में विभाजित कर दिया हर tkfr के भी देवी& देवता फिट
कर दिए गए वास्तव में हिंदू धर्म के मनु वादियों ने अपने मन मुताबिक अपने हिसाब से eux<ar संविधान बना कर जगह &जगह कई मंदिरों
को बना दिया है और कई मंदिरों में ’kwnzksa का और औरतों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है] फिर जब वक्त आता है तो कहते हैं की
कहो गर्व से हम हिंदू हैं क्या सच में यह अधिकार मिले सदिया बीती इंतजार में कभी सांप छछूंदर गले मिले Ans’k के दलित राष्ट्रपति श्री
रामनाथ कोविंद जी 25 जुलाई 2017 में शपथ ग्रहण करने के बाद बनारस मंदिर में पहुंचे वहां पर पंडितों ने mUgsa मंदिर में प्रवेश नहीं
करने दिया egkefge राष्ट्रपति जी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर दर्शन करके चले x;s बाद में दूध और गंगा जल से धोया x;k क्योंकि
muds ’kwnz होने की वजह से मंदिर अपवित्र हो गया था A Hkys gh oks jk"Vªifr gksa पर है तो oks दलित। अब बताएं
जब देश के प्रथम ukxfjd सम्मानीय राष्ट्रपति के साथ ,lk सलूक किया जाता है तो आम जनता का क्या होगा यह तो के वल एक मंदिर का
हाल है ]iwjs देश में तो 10 लाख से अधिक मंदिर हैं तो मंदिरों में शूद्रों की क्या दशा दुर्दशा होती होगी फिर भी धर्मांध होकर इज्जत
&बेb ज्जती इनके गले नहीं उतरती है rc भी देश के धर्म स्थलों को उनके पुजारियों को सर्वश्रेष्ठ स्थान का दर्जा देते हैं जबकि ‘’kwnzksa
के साथ हमेशा से भेदभाव अन्याय gksrk pyk vk jgh है जिसका एक vkSj उदाहरण में दे रहा हूं।
जब रामचंद्र जी 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस आए तो ब्राह्मणों ने ऋषि मुनियों ने भगवान राम से शिकायत की कि आपके राज्य
में एक ’kwnz तपस्या कर रहा है जिसकी वजह से ब्राह्मण का लड़का मारा गया है] भगवान राम ने mldk uke पूछा तो बताया गया f
dog शूद्र शंबूक ऋषि है जिनकी तपस्या से ब्राह्मण जात का लड़का मारा गया है लिहाजा आप उसका वध कर दें भगवान राम ने ब्राह्मणों के
कहने से ’kacwd ऋषि को मार डाला और ब्राह्मणों की समस्या का lek/kku कियाA
मेरा प्रश्न यह है कि czkge.kksa ने दूसरों के साथ सदा ही अन्याय और भेदभाव किया है यदि ’kacwd ऋषि की तपस्या से ब्राह्मण का
लड़का मर सकता था तो जितने भी ब्राह्मण थे lHkh ds yMds मर जाना चाहिए थे ना कि सिर्फ ,d A यह czkge.kksa की चाल
बदमाशी Fkh ताकि कोई ’kwnz तपस्या ना कर सके buds ri ds cjkcj dksbZ ब्राह्मण वर्ग में नहीं था लिहाजा ’kacwd ऋषि
का वध कराना जरूरी थाA
दूसरा उदाहरण
जब महाभारत के समय गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को /kuqZfo|k fl[kk रहे थे तब उन्होंने यह दावा किया था की अर्जुन तुम्हारे अलावा इस
fo’o में कोई धनुर्धारी नहीं होगा अर्जुन को यह बात प्रिय लगी परंतु ,d दिन dh बात है वह जंगल में शिकार खेलने गए अपने साथ कु त्ता भी
ले गए जंगल में जैसे ही पहुंचे तो कु त्ता एकलव्य देखकर भोकने लगा क्योंकि एकलव्य बनवासी था धनुष विद्या में बहुत ही निपुण एवं माहिर था
जितनी बार कु त्ता Hkksadk उतने ही तीर एकलव्य ने कु त्ते के मुंह में चला दिए स्थिति यह बनी कि कु त्ते का eqag पूरा तीरों से भर गया
और कु त्ता गिर पड़ा इसके बाद जैसे ही अर्जुन ने यह स्थिति देखी कि यह कोई हमसे Hkh बड़ा तीरंदाज gS और द्रोणाचार्य ने हमको गलत
हमको आश्वासित किया था फिर vr% उसकी खोज में ,dyC; के पास पहुंचे इससे पूर्व एकलव्य स्वयं गुरु द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या सीखने
के लिए गया था परंतु ’kqnz होने के कारण धनुर्विद्या सिखाने से उन्होंने मना कर दिया तब एकलव्य ने मिट्टी की गुरु द्रोण प्रतिमा बनाकर स्वयं
से धनुर्विद्या सीखी यही हाल उसने गुरु द्रोण एवं अर्जुन को बताया तब गुरु ने छल& कपट से उसके गुरु दक्षिणा में दाहिने हाथ का अंगूठा
कटवा लिया इसके पीछे सिर्फ मकसद यह था कि ’kqnz कहीं आगे ना बढ़ जाए फिर भी एकलव्य ने अपने पैर के अंगूठे से धनुर्विद्या चलाने
की कला सीखकर वह पारंगत हुआ।
आज के दौर में हिंदू संगठन के लोग कहते हैं गर्व से कहो हम हिंदू हैंपर क्या यह वास्तव में मन से इसे स्वीकार करते हैं शूद्रों के साथ जो
व्यवहार हो रहा है क्या og fdlh ls fNik gSA
लाइसेंस हिंदू का है पर अधिकार ना इनके पास हैं]
इंसा तो क्या भगवान को भी छू ले उनका भी सत्यानाश है।
बताएं कै से गर्व से कहो हम हिंदू हैं]
क्या सच में यह अधिकार मिले।
सदिया बीती इंतजार में
क्या सांप सुरेंदर छछूंदर गले मिलेA
फिर vkt लोग शूद्रों को सताने में लगे हुए हैं इन्होंने तो आजाद भारत में भी अंग्रेजों से ज्यादा अत्याचार ’kwnzksa ij fd;k है।
इसीलिए आज हिंदू संगठित नहीं हो पा रहा है इनकी कू टनीति चालबाजी छल कपट से हर आदमी ckfdQ हो गया है इस uQjr dks
R;kxsa और देश को fo?kVu से बचाएं। इतनी बर्बादी]vekuoh;rk] नफरत किसी भी धर्म में नहीं है ftruh कि हिंदू धर्म में gSA
इन्ही मनु वादियों की dfe;ksa से हिंदू धर्म है कट रहा घट रहा]
रो रही है रो रही है हिंद जमीन कलेजा मां का फट रहा।
कु रीतियों को बदल डालो यह देशद्रोही पंडित gSaa ugha rks बाद में पछताओगे]
बहुसंख्यक होते हुए भी अपने देश में फिर अल्पसंख्यक हो जाओगे।
vlaxfBrrk] नफरत भेदभाव से देश की गुलामी का रास्ता [kqyrk gSA
हमारे देश में 10 yk[k से भी अधिक मंदिर हैं और इनकी प्रतिदिन की कमाई तथा सालाना कमाई और उनकी संपत्ति का संक्षिप्त विवरण bl
izzdkj ls gS&
1&पदनाम स्वामी मंदिर&5 yk[k करोड़ से अधिक की संपत्ति है 8 फीट सोने की मूर्ति 17 फीट लंबा सोने का द्वार xHkZx`g और
7 बड़े बड़े कमरे जो अकू त /ku संपदा से भरे हुए हैं जिनमें से आज तक के वल nks कपाट खोले गए हैं। मंदिर की वार्षिक आय 50 करोड़ से
अधिक है।
2-तिरुपति वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (आंध्र प्रदेश)&650djksM की okf"kZd vk;]10 gtkj करोड़ udnh tek3000 fdyks
xzke स्वर्ण जमा है कु ल कु ल संपत्ति 50 gtkj करोड़ के आसपास है।
3&जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)&रथ यात्रा के लिए विश्व विख्यात है। घोषित संपत्ति ,d अरब ls Hkh vf/kd है 70000 एकड़ जमीन 24
जिलों में इस मंदिर ls लगी हुई है सन 1360 में फिरोजशाह तुगलक ने आक्रमण कर हजारों किलो सोना इस मंदिर से अपने देश भिजवा दिया
था।
4&गुरुवायूरप्पन मंदिर& भगवान श्री कृ ष्ण का यह मंदिर के रल में स्थित है मासिक आय 2-5 करोड़ है जिसमें 125 करोड़ का फिक्स्ड
डिपॉजिट]13000 एकड़ जमीन लगभग 10000yksx izfr& दिन दर्शन करने आते हैं और भी कमाई ds vU; lzks= gSA
5&सिद्धिविनायक मंदिर महाराष्ट्र & मंदिर की प्रति वर्ष आए 150 करोड से लेकर 200 करोड़ की होती है मंदिर पर सोने की ijrp<h हुई है
आजादी से पूर्व ’kwnzksa का जाना वर्जित था परंतु अब सबसे अधिक p<kok ’kwnz gh चढ़ा रहे हैं कु ल संपत्ति 01 yk[k
djksM की आस पास की हैA
6&शिर्डी साईं बाबा का मंदिर& महाराष्ट्र के अहमदनगर के एक छोटे से शहर में स्थित है इसमें साईं बाबा के नाम से फकीरों का स्थान विश्व
में विख्यात है कु ल संपत्ति 2693 करोड़ से अधिक की है हर माह की आय सौ से डेढ़ सौ करोड़ के लगभग की है इसका 1826 करोड़
udnhtek है और 6 करोड़ dh मूर्ति o चांदी का सिंहासन है। और कई किलो सोने के जेवरात हैं।
7&वैष्णो देवी&;g मंदिर जम्मू में उधमपुर नगर में है दो करोड़ के लगभग प्रतिदिन p<kok p<rk है इसकी सालाना आय 500 करोड़
से अधिक की है। इसके अलावा अन्य laink मंदिर के नाम है।
8&स्वर्ण मंदिर अमृतसर&;g मंदिर सिखों का विशेष तीर्थ स्थान है जिसमें 750 किलो की सोने की परत चढ़ी हुई है इसीलिए इस मंदिर का
नाम स्वर्ण मंदिर gS] वार्षिक आय 500 करोड़ के आसपास की है
चारों धाम की के दारनाथ बद्रीनाथ गंगोत्री यमुनोत्री की कु ल वार्षिक आय अरबों रुपए में है।
इसके अलावा देश के अन्य भागों में लाखों मंदिर हैं जिनमें अयोध्या का राम मंदिर] बनारस मंदिर] मथुरा &वृंदावन] जयपुर] बिहार] चित्रकू ट]
रामराजा ओरछा] इलाहाबाद] गया] कोलकाता] सोमनाथ] मंदिर] आदि छोटे बड़े dqy feykdj10 लाख से vf/kd eafnj
gSaftuds p<kos से भारत का सालाना बजट के पूरा किया जा सकता है।
oSlksa rks ns’k ds vanj cgqr ls ppZ gSa ftuesa 6 बड़े चर्चे जिनमें अरबों की अकू त संपदा उनके ट्रस्टों के पास भरी
पड़ी है जिसका वर्णन निम्न है
1&के रल में बल्ला पदम चर्च
2&दिल्ली के कै थोडल ऑफ द सैक्रे ड हार्ट चर्च
3&इलाहाबाद ऑल सेंटर कै थोड डेल
4&शिमला क्राइस्टचर्च
5&तमिल नाडु बेलखंडी चर्च
6&कोलकाता सेंट पॉल कै थ्रेडल चर्च
गोवा में कई ppZ gSa blds vykok लखनऊ] आगरा] बनारस] मद्रास] हैदराबाद ]कोयंबतूर] झांसी] कानपुर आदि जगह पर इनकी
vdwV चल& अचल संपत्ति gS एवं स्कू ल कॉलेज खुले हुए हैं जिनकी vk; vjcksa में है A
प्रमुख मस्जिदों का विवरण
भारत में गूगल के अनुसार yk[kksa मस्जिद ekStwn हैं से जिनमें प्रमुख efLtnsa&जामा मस्जिद दिल्ली] आगरा] लखनऊ]
अलीगढ़] जूनागढ़] हैदराबाद] अहमदाबाद] सिकं दराबाद आदि प्रमुख हैं साथ ही साथ हर 10000 से अधिक आबादी वाले गांव में ,d ;k
nksefLtnsa अवश्य ghns[kus dks feysaxhftudh कमाई ns’k विदेशों की सहायता अरबों में है इन सब dh आय का विवरण
गूगल पर हमें foLrkj ls प्राप्त नहीं हुआ हैA
गुरुद्वारे
सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल जहां-जहां गुरुद्वारे हैं उनका मैं विवरण निम्न प्रकार से दे रहा हूं
दशमेश दरबार दिल्ली ]पंजाब esa अमृतसर] बनारस] पटना] मुंबई] पंजाब] हरियाणा ]ihyhHkhr] vkxjk] y[kum o देश के अन्य
भागों में गुरुद्वारे मौजूद हैं जिनकी गुरु नानक जी ने स्थापना की थीA
इनकी आय का विवरण प्राप्त नहीं हो सका है फिर भी सभी fl[kksa dk धर्म esa योगदान सदा से रहा है
बौद्ध मठ
अरुणय अप्रद तवांग मठ
उत्तराखंड बुद्ध विहार मठ
टिकट सेमटा
मैकलोड़ गंज
ससुर मठ
भुजताल eByn~nk[k
बुद्धबिहार eB आगरा
इसके अलावा सांची uSiky] श्रीलंका ] HkwVku] tkiku आदि में कई मठ gSaA
आर्य नीति
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध iqLrd डिस्कवरी ऑफ इंडिया @भारत ,d खोज मेंलिखा है किवैदिक आर्य ftuds के
प्रमुख उत्तराधिकारी ब्राह्मण हैं tksfd bZjku के मूल निवासी हैं A वर्तमान ब्राह्मण gh आर्य है जो भारत के fuoklh बन ds jg x,
gS tcfd ;gka ds ewy fuokfl;ksa dks /kkfeZd xqyke cuk;k x;kA अब काफी बदलाव आ गया हैA ऋग्वेद में
फारस की खाड़ी से आने वाले आर्य फारसी ik’oZ कहलाते थे और बाद में यही yksx पारसी dgykus लगे og Hkh भारतीय बन dj
गए A pwafd ;s विदेशी थे तो स्वाभाविक है budh परंपराओं में] रहन-सहन में ]ukd नक्शे में]dn काठी में ewyfuokfl;ksa की
तुलना में fHkUurk gksuk LoHkkfod gSA जब vk;Z भारत में आए तो bUgksaus तमाम लड़ाईया o युद्ध fd;s उन्होंने
देखा कि भारत सोने की चिड़िया है तथा यहां के लोग कबीलो में रहते हैं एवं इनके dchyksa के सरदार Hkh अलग-अलग हैं tcfd
muds अपने अलग&vyx देवी देवता होते हुए भी ;g yksx ,d gh rjg dh पूजा पाठ करते हैं भारत में देवी देवताओं की पूजा आर्यों से
भिन्न है अब इन्होंने धीरे-धीरे भारत पर अपने देवी-देवताओं dks Fkksius dk dk;Z fd;k और उनके कु लगुरू खुद बन गए
bUgksaus मूलनिवासियों पर कब्जा कर लियाA समयांतर के बाद मूल निवासियों की पहचान धीरे& धीरे खत्म होती गई और उन्हें vius
/keZ dk गुलाम बना fy;k x;k तथा vius समस्त कायदे कानून o धर्म की नियमावली भारतीय ewyfuokfl;ksa पर Fkksi दी
गई और खुद muds सर्वश्रेष्ठ /keZ गुरु बन x;s o अपने मन मुताबिक देवी देवताओं jpuk djds बड़े-बड़े मंदिर cuok;svkSj पूरे
धर्म का Bsdk अपने gkFkksa में ले लिया
आर्यों की uhfrFkh fd viuh tu संख्या को बढ़ाकर देश पर छा जाना Fkk साथ ही साथ ब्राह्मणों और धर्म राजाओं की काम विपासना]
विषय okluk के लिए साधन सुलभ कराना था। vr% आर्य पंडितों ने dqdekZsa dks धर्म के रूप में प्रचारित किया ताकि vuk;Z
लोग]bUgsa धर्म शास्त्रों dk vkns’k समझे]उन्होंने dqdeksaZ को कलम c} करके परमात्मा का आदेश बताकर शोषण कियाA
चंद उदाहरण श्री गजाधर प्रसाद }kjk लिखित आर्य नीत का भंडाफोड़ से vorfjr fd;s x;s हैं
मनुस्मृति (६-७६ तथा ६-८१) में लिखा है।
प्रोषितो धर्मकार्यार्थं प्रतीक्ष्योऽष्टौ नरः समाः ।
विद्यार्थं षट् यशोऽर्थं वा कामार्थं त्रींस्तु वत्सरान् ।। वन्ध्याष्टमेऽधि वेद्याब्दे दशमे तु मृत प्रजा ।
एकादशे स्त्री जननी]सद्यस्त्व प्रिय वादिनी ।।
अर्थात शादी& शुदा पत्नी का पति धर्म के लिए fons’k गया हो तो स्त्री को 8 वर्ष तक प्रतीक्षा करनी चाहिए];’k कीर्ति के लिए गया हो तो
7 साल तक] धन उपार्जन हेतु 3 साल के बाद और उसे किसी पंडित से नियोग करा कर संतान उत्पन्न कर लेना चाहिए जब पति वापस आ
जाए तो अपने पति के पास चला जाना चाहिए यदि कोई पति दुख देता है तो उसे अन्य पुरुष से संभोग करा लेना चाहिए।
अन्यमिच्छस्व]सुलभे पति मति ।
(ऋग्वेद मंत्र १०, सूत्र १०, मंत्र १०)
अर्थ-- यदि पति संतान पैदा करने में असमर्थ होतो अपनी पत्नी को आज्ञा देकर दूसरे पुरुष से संतान पैदा करा ldrh है।इन प्रमाणों से साफ
सिद्ध होता है कि हिन्दू शास्त्रों मेंपर-पुरुष से बच्चे पैदा कराने का विधान है और इसी को नियोगप्रथा कहते हैं।
इसमें सबसे बड़ा उदाहरण रघुपति राघव राजा रामका है। राजा दशरथ बूढ़े और संतानोत्पादन में असमर्थ हो गये थे। उनके कोई संतान नहीं थी।
उन्होंने अपने कु ल-पुरोहित वशिष्ठजी से अपने मन की ग्लानि कही। वशिष्ठजी ने पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी और इस काम के लिए शृंगी-ऋषि
को बुलाया। शृंगी ऋषि ऐसे युवक थे जिन्हें पूरे जवान हो जाने पर भी स्त्री-पुरुष का भेद ज्ञान नहीं था। उन्हें अयोध्या में ले आने का बीड़ा
वेश्याओं ने उठायाऔर ले आईं। ये वेश्यायें अर्द्ध-नग्न योगिनी बनकर शृंगी ऋषि के समीप गईं और उन्हें चमक-दमक दिखापौष्टिक मोदक
खिलाबातों के जाल में फँ साकर अयोध्या ले आईं। फिर यज्ञ हुआ और रानियाँ गर्भवती हो गईं और यथा-समय राम-लक्ष्मण] भरत] ’k=q?u
नामक चार पुत्रों का जन्म हुआ। ;g pkjksa iq= राजा दशरथ के वीर्य से नहीं]यज्ञ और श्रृंगी ऋषि के प्रताप से gq,।
भगवान् रामचंद्रजी की इस कथा को मन में ही समझ लेना चाहिए tqcku से कु छ कहना नहीं चाहिए।
अब दूसरा उदाहरण लीजिए।
राजा सुदास के कोई संतान नहीं थी। अतः संतान के लिए उन्होंने वशिष्ठ ऋषि से अपनी पत्नी दमयन्ती का नियोग कराकर पुत्र उत्पन्न कराया
था। कारण यह बताया जाता है कि निस्संतान व्यक्ति यदि किसी बच्चे को गोद लेतो वह उसके गोत्र में नहीं मिलता और न परिवार का अंग ही
बनता है। ऐसी ऋग्वेद की आज्ञा है। नियोग द्वारा गर्भस्थ भ्रूण का पोषण माता के रक्त से होने के कारण वह बच्चा परिवार का अंग होता है।
इसी प्रकार राजा शान्तनु के पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांxn जब निस्तान मर गयेतो उनकी ifRu;ka अम्बा और अम्बालिका का नियोग व्यास
द्वारा कराया गया जिससे धृतराष्ट्र तथा पांडु की उत्पत्ति हुई।
पांडु की दो ifRu;ka थींकु न्ती और माद्रीA पांडु को शाप था कि स्त्री को छू ते ही मर जायेंगे। अतः उन्होंने अपनी स्त्री कु न्ती को नियोग द्वारा
संतान उत्पन्न करने की आज्ञा दी। कु न्ती इस आज्ञा से बहुत लज्जित हुईतो राजा पांडु ने उसे तमाम पुरानी कथाएँ सुनाई जिनमें नियोग द्वारा
संतान उत्पन्न करायी गयी थी। पांडु ने कु न्ती को समझाया कि हे सुन्दरीपूर्वकाल में स्त्रियों के लिए कु छ रोक-टोक न थी। हे सुहासिनीउन दिनों वे
स्वतंत्र रहकर रति-विलास की आशा में स्वछन्दतापूर्वक घूमा करती थीं। इसमें उन्हें अधर्म नहीं होता था।
पुत्रहीन व्यक्ति को चाहिए कि वह पिंडोदक कर्म के लिए किसी प्रकार पुत्र की प्राप्ति करे और कु ल का नाम जारी रखने के लिए प्रयत्नशील रहे।
पांडु के इस कथन से कु न्ती निरुत्तर हो गई और मजबूर होकर mUgkasus धर्म देवता को बुलाया और उनसे नियोग कराकर धर्मराज
युधिष्ठिर को उत्पन्न कियाफिर वायु देवता को बुलाया और उनसे नियोग कराकर भीमसेन को उत्पन्न किया और फिर देवराज इन्द्र को बुलाया
और उनसे नियोग कराकर अर्जुन को उत्पन्न किया।
कु न्ती के तीन पुत्र हो जाने पर पांडु के आदेश से उसने अपनी सौत माद्री के लिए अश्विनीकु मारों को बुलाया उनसे नियोग कराकर माद्री ने
नकु ल- सहदेव को उत्पन्न किया।
कु न्ती की एक और कथा है । कु न्ती जब क्वांरी थीतो उसने सूर्य देवता को बुला लिया था। किन्तु क्वांरी होने के कारण उसने सूर्य से भग-सम्भोग
नहीं कराया। तब सूर्य ने उसके कान में सम्भोग करके कर्ण को उत्पन्न किया। कर्ण का पालन-पोषण एक शूद्र के घर में हुआ, क्योंकि यह चोरी से
व्यभिचार द्वारा पैदा हुआ थाइसलिए उसे छु पाया गया। लेकिन कर्ण बड़ा वीर हुआऔर वह दुर्योधन का मित्र बनकर पांडवों से लड़ा। महाभारत का
एक पर्व ही कर्ण-पर्व के नाम से प्रसिद्ध है।
ब्राह्मणी शास्त्रों में धर्म एक ऐसे देवता हैं जिनके मनुष्यों की भांति सारे अंग-प्रत्यंग और आकृ ति है । कु न्ती ने जब उन्हें बुलायातो धर्म मनुष्य के
रूप में उसके पास दौड़े आयेऔर उससे संभोग करके उसे गर्भिणी बना गये। इसी तरह वायु (हवा) भी मनुष्य के समान अंग-प्रत्यंग वाले देवता
हैं। उन्होंने भी कु न्ती के बुलाने पर उसके पास आकर उसके साथ संभोग किया और उसे गर्भिणी बना गये। देवराज इन्द्र और अश्विनीकु मार तो
नराकृ ति के देवता है ही। अश्विनीकु मारों को देवताओं का वैद्य कहा जाता है। कहते हैं, उन्होंने बूढ़े चवन ऋषि को जवान बनाने के लिए
"च्यवनप्राश" नाम का एक अवलेहबना दिया था। ऐसे कु शल वैद्य ने यदि कु न्ती की सीत माद्री से संभोग करके उसे गर्भिणी बनाया होतो इसमें
अधिक आश्चर्य नहीं।
देवराज इन्द्र का कहना ही क्या है। वे तो दिन-रात शराब के नशे में उन्मत्त रहते हैंऔर नंगी स्रियाँ इनकी जाँघो पर बैठी रहती हैं। महासुन्दरी स्त्री
शचि के रहते हुए भी उनके मनोरंजन के लिए रम्भा]मेनकातिलोत्तमा]उर्वशी आदि अप्सराएँ स्वर्गीय नृत्य और चित्ररथ आदि गंधर्व अपने मनोहर
संगीत से देवराज इन्द्र का मनोरंजन किया करते हैं। वे सतत् सुरापान में निरत रहते हैं। उन्होंने छल से ऋषि-पत्नी अहिल्या का सतीत्व भंग
किया था। यदि उन्होंने कु न्ती के बुलाने पर उसके साथ संभोग करके अर्जुन को पैदा किया, तो कोई आश्चर्य नहीं ।
मनुस्मृति और ऋग्वेद के अनुसार नियोग एक पवित्र कार्य है। इसे प्रत्येक पुत्रहीन स्त्री को कराना चाहिए। यह एक ऐसी धर्माज्ञा है, जिससे स्त्रियों
का सतीत्व सुरक्षित न रह सका तथा ऋषियों व ब्राह्मणों के लिए पर-स्त्री-गमन का रास्ता खुल गया।
यह व्यभिचार का भयानक रूप वैदिक युग से महाभारत युग तक मिलता है। विधवा तक का नियोग द्वारा संतान उत्पन्न करने का रास्ता खोल
देता है। ब्राह्मण ग्रंथों के कथनानुसार किसी स्त्री को यज्ञ के समय उतने ही कु श रखने चाहिए जितने पुरुषों से उसने संभोग कराया हो। इस प्रथा
का रूप हमें हर काल में मिला है, परन्तु हर्ष-काल में सभी युगों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट रूप में मिलता है जिसकी झाँकी हर्ष चरित्र के कितने ही
अध्यायों में देखने को मिलती है। मनुष्य जब समाज का एक रास्ता बनाता है, तो उसकी पूर्ति के लिए दूसरे रास्ते बन ही जाते हैं, चाहे वे
समाज-विरोधी हों या समाज-सुधारक A
नियोग में संतान के लिए स्त्री को पर-पुरुष से सम्भोग कराने को मजबूर किया जाता है। वैसे कहा गया है कि देवर स्त्री का दूसरा पति है, परन्तु
नियोग प्रायः देवता, वैदिक-ऋषि-मुनि और ब्राह्मणों द्वारा ही कराया जाता है। ये लोग 'बीज-दान' के नाम से निस्संतान स्त्रियों के साथ सम्भोग
करते थे और करते हैं। ऋषियों और ब्राह्मणों की व्यभिचार-लीला तो अकथनीय है। कु छ नमूने यहाँ दिये जाते हैं।
भागवत तृतीय स्कन्ध बारहवें अध्याय में भीष्म पितामह ने कहा कि हम सब ब्रह्मा की संतान हैं, इस पर मैत्रेय ने कहा कि हम लोगों ने सुना है कि
ब्रह्मा ने अपनी काम-रहित मनोहर कन्या सरस्वती की कामना कामोन्मत्त होकर की और उसे अपनी पत्नी बना लिया। ब्रह्मा के दस पुत्र हुए,
जिनसे सृष्टि की रचना हुई।
महाभारत में उद्दालक ऋषि की कथा है। उद्दालक अपने आश्रम में पत्नी और पुत्र के साथ विराजमान थे। इतने में वहाँ एक ब्राह्मण आया और
उद्दालक की पत्नी को खींचकर बाहर ले गया। वहाँ उसके साथ अनेक ब्राह्मणों ने भी बलात्कार किया। उद्दालक के पुत्र ने जब इस कृ त्य का
विरोध किया, तो उद्दालक ने यह कहकर शान्त कर दिया कि बेटा, यह तो हमारे धर्म की रीति है। कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री को पकड़कर
बलात्कार कर सकता है।
बृहस्पति चन्द्रमा के गुरु थे। चन्द्रमा उनसे विद्या पढ़ने उनके घर जाता था। विद्या पढ़ते-पढ़ते उसने बृहस्पति की स्त्री महासुन्दरी तारा से प्रेम पैदा
कर लिया और एक दिन तारा को लेकर भाग गया और लापता हो गया। चन्द्रमा एक साल से अधिक तारा से संभोग करता रहा औरउसने बुध
नाम का एक पुत्र भी उत्पन्न किया। इधर बृहस्पति बहुत क्षुब्ध और व्याकु ल हुए। उन्होंने देवताओं और ब्रह्मा से फरियाद की तो सब देवताओं और
ब्रह्मा ने चन्द्रमा की भर्त्सना की और बृहस्पति की स्त्री तारा को उन्हें लौटा देने का आदेश दिया। चन्द्रमा ने तारा को तो वापस कर दिया, किन्तु
उन्हें अपने पुत्र बुध को नहीं दिया।
पाराशर ऋषि की कथा सुनिये। आप गंगा पार करना चाहते थे। मल्लाह किसी काम में व्यस्त था। उसने अपनी जवान बेटी से ऋषि को नौका द्वारा
गंगा-पार पहुँचा आने को कहा। किन्तु पाराशरजी जब गंगा की बीच धारा में पहुँचेतो कामासक्त होकर मल्लाह की लड़की से भोग चेष्टा करने लगे।
लड़की ने कहाबीच गंगा में यह क्या पाप करते हो बोलेहमारे तप के प्रभाव से तुझे पाप नहीं लगेगा। लड़की ने कहा कोई देखेगातो क्या कहेगामैं तो
लज्जा से मर जाऊँ गी rks ikjklj बोलेमैं कोहरा पैदा किये देता हूँजिससे अन्धकार हो जायगा और कोई देख न सके गा। लड़की बोलीयदि मुझे
गर्भ रह गयातो मैं किसी काम की न रहूँगी। बोलेमेरे पुण्य प्रताप से तेरे पेट से ऐसा बेटा होगा जिससे जब तक सूर्य-चन्द्र रहेंगेतेरा नाम रहेगा।
लड़की लाजवाब हो गई और पाराशरजी ने उससे सम्भोग करके व्यास को पैदा कियाA
भागवत स्कन्द ६ में लिखा है कि वरुण देवता ने उर्वशी वेश्या सेसम्भोग करके वशिष्ठ को पैदा कियाजो बड़े होकर इक्ष्वाकु वंशीयराजाओं के
पुरोहित हुए। इसी तरह वृहस्पति ने अपने बड़े भाई इतत्थ् की स्री ममतासे संभोग करके भ k रद्वाज को पैदा कियाजो बड़े विद्वान वैदिक ऋषि
हुए। विश्वामित्र ऋषि तप करते थे। उनके तप से इन्द्र डर गया कि तप करके विश्वामित्र कहीं इन्द्रासन न ले लें। अतः उसने मेनका अप्सरा
कोउनका तप भंग करने के लिए भेजा। मेनका विश्वामित्र के पास आयी और नाना प्रकार के स्त्री सुलभ हाव-भाव करने लगी। विश्वामित्र मोहित
हो गये और तप को छोड़कर उससे संभोग करने लगे। मेनका और विश्वामित्र के समागम से शकु न्तला नामक लड़की का जन्म हुआ, जिसे
कण्डव ऋषि ने पाला और राजा दुष्यन्त ने उस पर मोहित होकर उसके साथ संभोग कियाजिससे भरत का जन्म हुआजिसके नाम पर महाभारत
है
महाभारत आदि पर्व १३१ में लिखा है कि महर्षि भ k रद्वाज गंगा-स्नान को गये। वहाँ घृताची नामक अप्सरा के अलौकिक रूप-सौन्दर्य को
देखकर उनका मन डिग गयाऔर कामोद्वेग से उनका वीर्यपात हो गया। उसे उन्होंने द्रोण नामक यज्ञ-पात्र में रख दिया। उसी से एक बालक पैदा
हुआ जिसका नाम द्रोणाचार्य हुआ।
आध्यात्म रामायण बालकाण्ड सर्ग तीन की कथा है कि महर्षि विभाडक किसी बड़ी झील में स्नान कर रहे थे। वहाँ उन्होंने उर्वशी अप्सरा को
देखा। उसे देखते ही मुनि ऐसे कामातुर हुए कि उनका वीर्य जल में स्खलित हो गयाजिसे एक प्यासी हिरणी ने संयोग से पी लिया और गर्भवती हो
गई। उसी से शृंगी का जन्म हुआ।
श्री कृ ष्ण भगवान् को तो भागवतकार ने चोर-जार-शिखा-मणिःकहकर उनकी प्रसंशा की गई है। बचपन में वे यमुना के किनारे जहाँ गोपियाँ
प्रभात-काल में जल में नग्न स्नान कर रहीं थीं, चुपके से गये और उनके कपड़े बटोर कर कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गये। गोपियां स्नान करके जब
कपड़े पहनने चलीं, सारे कपड़े गायब थे। अब नंगी जल से बाहर कै से निकलें। उन्हें व्याकु ल देखकर कृ ष्ण भगवान् ने कहा- हे सखियों, तुमने
निपट नंगी होकर जल में स्नान किया है, तुम्हारे इस कर्मसे वरुण देव का अपमान हुआ है। इसलिए, इस अपराध को क्षमा कराने के लिए,
मस्तक पर अंजलि बाँधकर प्रणाम करो, तब तुम्हें वस्त्र मिलेंगे। लाचार गोपियों ने यमुना से नंगी निकलकर मत्थे पर हाथ जोड़कर प्रणाम किया,
तब उन्हें कपड़े मिले और श्रीकृ ष्ण भगवान् को उनके लज्जा-अंगो को खुला देखने का सुख प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त महारासलीला करते हुए गोपियों के आगे बाहु फै लानालिपटानागले लगाना, गोपियों की लटजाँघनीवी और स्तनों को छू नाहँसी-
मसखरी करना, नखच्छेदन, क्रीड़ा-कटाक्ष और मंद मुस्कान आदि से गोपियों का कामोद्दीपन कर उनके साथ रमण करना प्रसिद्ध है।
संसार की किसी भी जाति ने उसके प्रति, जिसे ईश्वर माना है... ऐसी वीभत्स बातों का प्रचार नहीं किया, जैसे कि आर्य-गुरुओं ने कृ ष्ण के
चरित्र के चित्रण करने में किया है। ईश्वर के प्रति सभी ने पवित्र भांव से उनके पवित्र गुणों का ही संगायन किया है। ईश्वर को पुरुष भी पवित्र भाव
से देखता है और स्रियां भी पवित्र भाव से देखती हैं। स्त्रियाँ ईश्वर को पति, और कान्त समझकर उनके साथ रास-विलास करने की कामना कभी
नहीं करतीं। भागवत की रास पंचध्यायी, गीत गोविन्द, अष्ठछाप एवं विद्यापति आदि कवियों की कविताओं से कोकशास्त्र और नायिका-भेद की
बातों का प्रचार किया गया है और राधाजी के नखशिख का ऐसा निर्लज्जता पूर्ण वर्णन हुआ है कि कोई भी चरित्रवान व्यक्ति उसे अपने मुख से
उच्चारण नहीं कर सकता।
मद्रास की सेन्सस रिपोर्ट १८६७ के अनुसार दक्षिण-पंथ की कौरवार जाँति में कोई भी व्यक्ति अपनी पुत्री और पत्नी बेचने व दूसरों से उनका
संभोग कराने के लिए स्वतंत्र था। पंजाब के गांधार ब्राह्मण अपनी पुत्री तथा पुत्र-वधुओं तक से सन्तान उत्पन्न कर लेते थे।
डॉ० म्योर के अनुसार उत्तर-पश्चिम भारत के ब्राह्मण अपनीपत्नियों को किराये पर चलाते थे। मदुरा मैनुअल ८२ ई० के अनुसार पश्चिमी घाट
के एक जाति में क्वाँरी लड़की के संतान हो जाना अनुचित नहीं माना जाता था।
THE POSITION OF WOMEN IN HINDU CIVILIZATION esa डॉ० अम्बेडकर ने लिखा है कि यद्यपि स्त्री का विवाह एक
ही व्यक्ति सेहोता थातथापि वह पूरे परिवार की सम्पत्ति मानी जाती थीकिन्तु उसेपति की सम्पत्ति का हिस्सा नहीं मिल सकता था। अर्थात्
सम्पत्ति काउत्तराधिकारी पुत्र ही हो सकता था।
वैदिक युग में किसी भी स्त्री को पवित्र नहीं माना जा सकता था। नियोग-रूपी बलात्कार और व्यभिचार की भट्टी में वैदिक पुरुष भाई-बहन ही
नहींअपितु पिता-पुत्री के संबंध को भी पवित्र नहीं रख सके । सुरा और विजया के नशे में न बहन को पहचानते थे और न बेटी कोतथा न उनके
पवित्र सम्बन्धों की स्मृति रखते थे। कामोन्मत्त हो पशुओं की भांति व्यभिचार करते थे।
संस्कृ त साहित्य से पता चलता है, पहले वैदिक देवता, वैदिक ऋषि और आर्य - राजागण व्यभिचार लीला अपने आपस में ही करते थे। परन्तु
कालान्तर में जब भारत पर इसका अखण्ड प्रभुत्व हो गया, तोव्यभिचार आम जनता की स्रियों के साथ भी होने लगा। यह कामोभोग तांत्रिक
कला में बहुत बढ़ा पाया जाता है। रुद्रयामल तंत्र में लिखा है रजस्वला पुष्करं तीर्थ चांडाली तु काशिका | चर्मकारी प्रयागः स्याद्रजको मभुरा मता।
अयोध्या वार वधू प्रोक्तः, माया तु नापितत्रियः ।
अर्थ-- रजस्वला स्री के साथ सम्भोग करना पुष्क्र स्नान के समान है, चांडाली से समागम काशी के समान है, चमारिन से समागम से करना
प्रयाग तीर्थ के समान है, थोबिन से समागम करना मथुरा तीर्थ के समान तथा वैश्या के साथ समागम लीला करना अयोध्या तीर्थ के समान और
नाई की स्त्री के साथ समागम करना हरिद्वार के समान है।
इसी काम-भोग को उत्तेजना देने के लिए आर्यों ने नशीली वस्तुओं का आविष्कार किया जिनके पीने और सेवन करने से व्यभिचार को उत्तेजना
मिलती थी। नशों का आविष्कार वैदिक देवताओं, वैदिक ऋषियों ने किया तथा बाद में उनका प्रचार आम जनता में हो गया। अगले अध्याय में
सुरा-पान पर प्रकाश डाला जायगा।
सुरा-पान
वैदिक आर्यशीत प्रधान देश के रहने वाले थे। भारत में आकर भी पहले वे त्रिविष्टप तिब्बत और हिमालय पर्वत के शीत-प्रधान देशों में रहे। आर्यों
का स्वर्ग कहाँ था, इसका पता महाभारत के स्वर्गारोहण-पर्व से मिलता है। वैदिक देव, यज्ञ, गन्धर्व, किन्नर आदि सब पहाड़ी प्रदेशों में रहते थे।
शीत-प्रधान देशों के निवासियों को ठंड से बचने तथा अपने को गरम रखने के लिए मद्य-पान की स्वाभाविक आवश्यकता रहती है। वैदिक और
संस्कृ त साहित्य में ऐसे ढेरों प्रमाण पाये जाते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि वैदिक आर्य खूब सुरा-पान करते थे। वैदिक देवों के राजा इन्द्र की
तारीफ है कि वे सतत् सुरा-पान में निमग्न रहते थे। देवराज अपनी प्रिय पत्नी शची को अपनी जाँघों पर बिठाकर बाँया हाथ उसके कं धों पर
रखकर दाहिने हाथ से स्वयं उसे प्यार से सुरा पिलाकर कामोन्मत्त करते थे। देवराज की सभा में नृत्य गीत करनेवाली रम्भा, मेनका, तिलोत्तमा,
उर्वशी आदि अप्सराएँ तथा चित्ररथ आदि गंधर्व सुरा-पान से मस्त होकर मर्तन, गायन, वादन आदि करते थे। महाकवि, कालिदास के 'मेघदूत'
काव्य की बुनियाद सुरा-पान है। लिखा है किं एक यक्ष अपनी प्रियतमा यक्षणी के साथ सुरा-पान में मस्त नग्न जल-विहार कर रहा था कि उधर से
महर्षि दुर्वासा आ निकले। दुर्वासा को आते देखें यक्षिणी लज्जित हो यक्ष के अंग से अलग हो गई और हाथ जोड़कर ऋषि को प्रणाम किया; किन्तु
यक्ष रत्नों की थैली-छिने वणिक की भाँति जलाशय में खड़ा ऋषि की ओर रोष भरी दृष्टि से घुरचता रहा और प्रणाम नहीं किया। इस पर क्रोधित
हो दुर्वासा ऋषि ने उसे श्राप दे दिया कि, “जिस स्त्री के साथ विहार करने में तू इतना दीवाना है, उससे तेरासदा के लिए वियोग हो जाय।"
दुर्वासा के इस दारुण शाप की खबर देवराज इन्द्र तक पहुँची, तो वे बड़े व्याकु ल हुए, क्योंकि वह यक्ष उनकी सभा का बहुत अच्छा कलाकार
था, अतः उन्होंने मुनि बहुत अनुनय-विनय करके शाप की अवधि के वल एक वर्ष करा दी। यक्ष स्वर्ग से धरती पर ढके ल दिया गया। इसी विरह-
व्याकु ल यक्ष के आकाश मार्ग से जाते हुए मेघ द्वारा दिये गये सन्देश का नाम 'मेघदूत-काव्य' है।
इस अत्यधिक मद्य-पान के लिए यजुर्वेद में कहा गया है कि पानी तो पशुओं के पीने के लिए बना हैमनुष्य का पेय तो 'सुरा' है।" देवराज इन्द्र की
सुरा-प्रियता के लिए ही शायद सौत्रामणि-यज्ञ होता था, जिसमें अंधाधुन्ध सुरा-पान किया जाता था। देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए
प्रार्थनाएँ की जाती थीं कि “हे इन्द्र आइए, और उत्तम सुरा का पान करके प्रसन्न होइए, तथा यज्ञ विरोधी असुरों का संहार कीजिए।"
सुराका अर्थ है " सुर-प्रियाया देवानां प्रिया” अर्थात् देवताओं की प्यारी वस्तु । जो सुरा नहीं पीते थेउन्हें असुरकहा जाता था। यजुर्वेद की इस
बात का स्पष्ट समर्थन संस्कृ त के आदि काव्य महर्षि बाल्मीकि की रामायण में हैजो कि आर्ष-ग्रन्थकहलाता है। यथा
असुरास्तेन दैतेयाः सुरास्तेनादितेः सुत्ः। हृष्टः प्रमुदित्ताश्चा सन् वारुणीग्रहणात्सुराः ।।
(सर्ग ४६, श्लोक ३८)
अर्थात् वे लोग असुर हैंजो सुरा-पान नहीं करते। देवगण वारुणी सुरा का पान करके हर्षितप्रमुदित और हृष्ट-पुष्ट होते हैं। ऐसा पता चलता है कि
उस समय गंधार में शराब की बड़ी-बड़ी डिस्टिलिरियाँ थींजिनमें कीलाललोग सुरा का निर्माण करते थे। वेदों की अनेक ऋचाओं में आता है-
कीलालाय सुराकारम् ।" अब भीपहाड़ों के दुर्गम स्थानों में भी मदिराबनती हैऔर मैदानोंजंगलों और दुर्गम स्थानों में मदिरा बनाई जाती है।
सरकार की ओर से इक्साइज ऐक्टबन जाने पर भी बेशुमार शराब चोरी से बनती हैजिनकी गिरफ्तारी की खबरें समाचार पत्रों में छपती रहती हैं।
यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि मैदानी क्षेत्रों और जंगली आदिवासियों में मदिरा बनाने और पीने का चलन चलाने वाले आगंतुक आर्य हैं।
वैदिक यज्ञों में अतिशय पशु हिंसामद्यपान और अवन्ति व्यभिचार के विरोध में ही ढाई हजार वर्ष पूर्व भारत-भूमि में जैन और बौद्ध नाम के दो
विशाल धर्म खड़े हो गयेजिनके मद्यमांस के प्रबल विरोध के कारण हिंसामयी यज्ञे बंद हो गईमद्य-पान निन्दनीय हो गयाऔर वैदिक ऋषि तथा
ब्राह्मण लज्जित होकर गोभक्षक से गोरक्षक बन गये। परन्तु मद्य-मांस सेवन को वे हृदय से त्याग न सके और उसे वे छिपकर करने लगे। तंत्र शास्त्र
और वाम मार्ग का आविष्कार किया जिसमें गुप्त -रीति से पंच मकारों का सेवन होता रहा। ये लोग शक्ति के उपासक बने और अपने आपको
शाक्तकहने लगे। इनकी घोषणा है
अंत शाक्तः बहिः शैवः सभामध्ये च वैष्णवः ।
नाना रूप धरा कौलाः विचरति महीतले ।।
अर्थात् भीतर से मद्य-मांस-मैथुनी-सेवी शाक्त बाहर से त्रिपुण्ड और रुद्राक्षधारी तथा वस आदमियों के बीच में शाकाहारी वैष्णव बन
जानाइत्यादिनाना प्रकार के रूप धारण करके कौल अर्थात् कु ल वाले लोग भूतल पर विचरण करते हैं।
बाल्मीकि रामायण से प्रकट होता है कि सूर्यवंशीय काकु त्स्थ क्षत्रियों में, जो कि नैष्ठिक वैदिक धर्मी थे, मद्य-मांस का प्रचुर सेवन होता था। यथा
पानयामास काकु त्स्थ शचिमिव पुरन्दरः ।
मांसानि च समुष्ठानी फलानि विविधानि च।। बालाश्च रूपवत्याश्च स्त्रियं पानवश्यानुगः ।
उपानृत्यन्त काकु त्स्थ नृत्य गीत विशारदः।। (वा० २, ४२१६-२१) अर्थात् राजवाटिका में पुष्प-बिछे आसन पर उत्तम चादर बिछी थी। उस पर
विराजमान काकु त्स्थ श्रीरामचन्द्रजी सीता को उसी तरह शुद्ध शराब पिलाते हैं जिस तरह इन्द्र शचि को पिलाते हैं। उसी समय सेवक खाने के
लिए अनेक प्रकार के मांस-भोजन और मीठे फल ले आये तथा नाचने और गाने में निपुण नर्तकियाँ मदिरा के नशे में मस्त होकर नाचने-गाने
लगीं।
सुराय सौवीरकयोयंदन्तरं तद्न्तरं दासरथेश्च मैथिली। तात्पर्य यह कि जिस समय उदार स्वभाव वाली सुन्दरी स्त्रियों ने आकर मद्य-पान किया
और मस्त होकर नाचने लगींउसी समय सीताजी ने घटिया और बढ़िया शराब का विश्लेषण करते हुए कहा कि जो अंतर सिंह और सियार में
हैजो अन्तर नदी और समुद्र में हैजो अन्तर राम और मुझमें हैवही अन्तर घटिया और बढ़िया शराब में है। वाल्मीकि रामायण (५, ११, २०) में
सुख के नाम और गुण भीबताये गये हैं कि सुगन्धि मसालेदार शराब को मैरेयकहते हैंफलों फू लों और शकर से खींची जाने वाली शराब को
वारुणीकहते हैं। जो सबसे तेज नशीली होती है। जो खजूर के रस (ताड़ी) में विशेष वनस्पतियों को पीसकर खींची जाती थीजिसका नशा पीते ही
चढ़ जाता थाउसे मंडकहते हैंऔर साधारण कोटि की शराब को सौविरककहते हैं।
श्री रामचन्द्रजी के वनवास के लिए जाने और वहाँ सीता हरण हो जाने पर अयोध्या की क्या दशा हुई। इसका दिग्दर्शन कराते हुएवाल्मीकि जी
लिखते हैं कि अयोध्या मानो एक टू टे हुए शराब के जैसी हो गई थी जहाँ शराब के बर्तन तोड़-फोड़ डाले गये थे और टुकड़े इधर-उधर बिखरे
पड़े थे। रामचंद्रजी पूरे दिन भूखे रहकर सायंकाल वन-फल खाते हैं। उन्होंने शिकार करना और मद्यपान आदि छोड़ दियायदि वेद-प्रमाण दरकार
होतो सोम-सुरा की प्रशंसा में एक-दो ऋचाएँ नहींसूक्त-के -सूक्त उद्धृत किये जा सकते हैं। आर्य राजाओं के समय में सुरा का इतना महत्व था कि
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए। सुरा चढ़ाने की मानता मानी जाती थी। वन-गमन के समय सीताजी जब गंगा-तट पर पहुँचीतो उन्होंने हाथ
जोड़कर गंगा से प्रार्थना की कि है देवी! यदि मैं वन यात्रा समाप्त करके सकु शल अपने पति के साथ लौट आऊँ गीतो हजार घड़े सुराअनेक प्रकार
के मांस से बने भोजनमधुर फलताम्बूल और वस्त्र से रामजी और लक्ष्मण के साथ तुम्हारी पूजा करूँ गी तथा ब्राह्मणों को भोजन कराऊँ गी। यथा
देवि गंगे नमस्तुभ्यं निर्वता वनवासतः ।
रामेण पूजयेत्वाद्वहं लक्ष्मणेत समन्विता ।।
सुरा घट सहस्त्रेण मांसभूतोदनेन च फला ताम्बूल वस्त्रैश्च ब्राह्मणैः कोटिभिः व्रते ।।
(वाल्मीकि रामायण २, ४३, ८६)
फिर सीताजी जब यमुना के बीच पहुंचती हैं, तो यमुनाजी से भी सौ घड़े शराब चढ़ाने की मानता करती हैं। यथा कालिंदी मध्यायाता सीता त्वे
नाम वन्दतः । यक्ष्ये त्वां गो सहस्रेण सुराघटशतेन च ।
अर्थात् यमुना के बीच में पहुंचकर सीताजी उनके नाम की वंदना करने लगीं और मानता की कि हे यमुन! जब मैं अपनी नगरी मेंसकु शल लौटुँगी
तो सौ घड़े शराब से तुम्हारी पूजा करूँ गी ।
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि सूर्यवंशियों में मद्य-पान अत्यधिक रूप है से प्रचलित था। अब चंद्रवंशियों की ओर आइए। चंद्रवंशियों में श्रीकृ ष्ण के
वैयक्तिक जीवन में सुरा-पान नहीं मिलतापर उनके भाई ब मघूर्णित नेत्र रहते थेऐसा लिखा मिलता हैऔर द्वारका में यदुवंश को संहार मद्य-पान ही
हुआ। भीमसेन को कौरवों ने जहरीली शराब पिलाकर नदी में डाल दिया थापरन्तु संयोग से भीम के शरीर को सांपों ने डसा जिससे विषस्य
विषमौधमप्रयोग के अनुसार भीमसेन जिंदा हो गयेऔर इस नीचकर्म का बदला कौरवों से ले लिया।
सबसे अधिक सुरा-पान वैदिक काल में मिलता है। उस काल में शराब इतनी प्रिय थी कि सभाओं में पीने के लिए लोगों को के वल शराब ही दी
जाती थी। यजुर्वेद में मासरनामक मंदिरा का नाम आया हैजो चावल]जौ और घास को सड़ाकर बनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख दि वैदिकिज्मपृ०
५७-५८ में है।
डॉ० वी० जी० गोखले लिखते हैं कि सूर्यास्त के समय आर्य नर-नारी सुरा-पान के साथ दिन का कार्य समाप्त करते हैंऔर इतना पीते कि पैर
लड़खड़ाने लगतेजबान ऐंठने लगती और आखें लाल हो जाती थीं।
सोशल ऐंड रिलीजस लाइफ इन दि गृहसूत्र" में भी बी० एम० आप्टे ने लिखा है कि सामाजिक उत्सवों में आठ स्रियाँ नृत्य करती हुई जन-
समुदाय को मदिरा पिलाती थीं।
महाभारत (२-४१, १०-११) के अनुसार काबुल की शराब भारत के में आती थी। बिलोचिस्तान की बनी शराब भी भारतीय पसन्द करते और
उसे स्थल मार्ग से मंगाते थे। कपिशा के स्थल मार्ग द्वारा शराब भारी मात्रा में अफगानिस्तान जाती थी। गांधार की बनी शराब भी अफगानिस्तान
और अरब की ओर निर्यात की जाती थी।
हर्षचरित (अ० ४, ५ व ७) में मिलता है कि रनिवासों में खूब शराब पी जाती थी। मद्यपान के लिए राजभवन में एक नियत स्थान होता था। जहाँ
भैरव को प्रसन्न करने के लिए सेवकों के सिर पर गूगल जलाया जाता था जिससे उसकी चमड़ी जल जाती थी और हड्डियां दिखने लगती थीं। इस
प्रकार पीड़ा से छटपटाते मनुष्य का मांस पुजारी देवता पर चढ़ाते और भैंसों की बलि देते थे। भंढी की सेना ने मालवा की शराब और सोने-चांदी
की दुकाने लूटी थीं।
सिंध घाटी में धार्मिक अवसरों पर मांस और मदिरा की धूम रहती थी। पुरोहित लोग मन्दिरों में बलि के समय जन समुदाय को मदिरा पिलाते और
भाँति-भाँति के मांस प्रसाद में देते थे। उस समय जन-समुदाय शराब पीता था स्त्रियाँ भी शराब पीकर आम रास्तों पर घूमती थीं।
धर्म-ग्रन्थों में लिखा है कि सुरा, भाँग, अमृत, विष सब समुद्र मंथन से निकले थेजिसमें जहर को शंकरजी ने पिया था और अमृत को देवताओं ने।
अमृत यद्यपि असुरों के पास था किन्तु विष्णु ने मोहिनी रूप धरकर असुरों को मोहित करके अमृत का कलश उनसे लेकर देवताओं को पिला
दिया। शंकरजी विषपान से ऐसे बेहोश हो गये थे कि अपने भक्त असुरों की उस समय कोई सहायता न कर सके ।
हिन्दू-शास्त्रों में शराब को सुरामदिरा शुद्ध पेयमधुपर्क आदि नामों से पुकारा जाता है। सुरा-पान की प्रशंसा में कहा गया है कि शराब पीनेवाला
मनुष्य अपने आपको खो बैठता है। उसकी आँखें लाल हो जाती हैं, मस्तिष्क का संतुलन जाता रहता है, तथा मनुष्य विनाश के रास्ते पर चला
जाता है। मनुष्य उन्मत्त होकर बलात्कार व्यभिचार जैसे कलुषित कर्म कर बैठता है और अपने आपको भूल जाता है। उसे होश ही नहीं रहता कि
वह कौन है क्या कर रहा है।
तांत्रिक और पौराणिक काल की कथा निराली जिसमें निरे रोमांटिक गपोड़े हैं। मार्क ण्डेय पुराण के अन्तर्गत दुर्गा सप्तशती में लिखा है कि देवासुर-
संग्राम में जिस समय विकराल संभु-निसंभु दैत्य क्रोधित हो देवताओं को खा जाने के लिए दौड़ा तो देवताओं की रक्षा लिए गईं हुई देवी दुर्गा ने
उसे ललकारते हुए कहा तिष्ठ तिष्ठ क्षणं मूढ़ यावद मधु पिवाम्यहम्।
अर्थात्-रे मूढ़ ! तब तक ठहरजब तक मैं शराब पी रही हूँ। और तांत्रिक शाक्तों ने तो हद कर दी है। लिखा है
पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावद् पतित भूतले। पुनरुत्थान वै पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
अर्थात्-- पियोपियोइतनी पियो जब तक भूमि पर गिर न पड़ो। गिर पड़ोतो फिर उठो और फिर पियो तो फिर तुम्हारा पुनर्जन्म न होगा अर्थात्
भव-बन्धन से मुक्त हो जाओगे।
शाक्तों के भैरवी चक्र में जो वीभत्स-कांड होता हैउसे लिखने की भी सभ्यता इजाजत नहीं देती। के वल इतना ही समझ लीजिए कि शराब के बिना
कोई कृ त्य नहीं होताक्वारी कन्याओं के गुप्तांग की मदिरा से पूजा होती हैऔर वही मदिरा-मृत बंटता है।
यह कहना मिथ्या के सिवा कु छ नहीं है कि शराब का सबसे अधिक प्रचार "नीच जातियों" में हैऔर वे ही पीकर नालियों में गिरते तथा चोरी से
शराब बनाते हैं। सच तो यह है कि 'हाई कास्ट हिन्दूजिन्हें ‘नीच-जातिकहते और समझते हैंउनमें मद्य-पान के दुर्व्यसन का प्रचार करने वाले
आगंतुक आर्य हैंजैसे कि विजेताओं ने चीन में अफीम का प्रचार करके बहुत काल तक अफीमची चीनियों का शोषण किया। परन्तु अब वहाँ
जागृति हो गई और देशभक्त नेताओं के प्रयत्न से चीन अब अफीमची देश नहीं रहा।
आजादी के आंदोलन के समय भारत में भी मद्य-पान निषेध के लिए राष्ट्रपितागांधीth ने कदम उठाया था। किं तु उस मद्य निषेध का उद्देश्य
अंग्रेजी हुकू मत को आर्थिक धक्का पहुंचाना मात्र थादेश की जनता को इस दुर्व्यसन से बचाना नहीं था। इन पंक्तियों के लिखते समय आजादी मिले
बाइस साल हो गयेअब तक वक्तव्यबाजी और अखबारी प्रोपेगैंडा के अलावा अमली तौर से कहीं भी मद्य-निषेध नहीं हुआ। बल्कि अंग्रेजी हुकू मत
के मुकाबले अब मद्य का प्रचार चौगुना-अठगुना हो गया है। पहले जो शराब की दुकान पाँच हजार में उठती थीआज वह लाखों की उठती है। इस
सत्य पर पर्दा कै से डाला जा सकता है A
मद्यपान छोटी जातियों की अपेक्षा बड़ी जातियों में बढ़ा हैक्योंकि उनके पास धन हैमँहगी शराब खरीद सकते हैंछिपकर पी सकते हैं और आमोद-
प्रमोद के लिए बड़े-बड़े मकान हैं। मेहनतकश गरीब तंगअंधेरीसीली कोठरियों में रहने वाले लोगों को ये सब साधन सुलभ नहीं। वे मंहगी शराब की
जगह स्प्रिट पीते देखे जाते हैं।
वैदिक काल में मांस की भरमार
मांस-भक्षण का विषय बड़ा ही पेचीदा है क्योंकि एक तरफ माननीय जगद्गुरु शंकराचार्य गोवध बंद कराते तथा जनता को बार-बार बताते हैं कि
हिन्दू vk;Z ने वैदिक काल से अब तक गो-मांस नहीं खाया है गौ को वैदिक काल में भी गो-माताही माना जाता था। दूसरी ओर हिन्दू धर्म
शास्त्रों के लेख व प्रमाण हैंजिनमें मांस भक्षण के विधान हैं।
लोक सभा में भारत सरकार के खाद्य मंत्री श्री जगजीवनराम का भाषण भी यदि इसकी सत्यता का पूरक नहींतो उसे प्रश्न वाचक तो मानना ही
चाहिए। परन्तु शास्त्र कहते हैं&
संवत्सरं तु गव्येन पयसा पामसेन च।
वार्थोणसस्य मांसेन तृप्तिद्वविश वार्षिकी ।।
(मनुस्मृति, अध्याय ३ श्लोक २७१) गाय, वर्धी का मांस तथा दूध और दूध से बनी चीजों से पितरों का तर्पण करने से वे १२ साल तक तृप्त
रहते हैं।
बृह्यदरण्यकोपनिषद् (६-४-१८) में लिखा है कि गुणी पुत्र की प्राप्ति के लिए गाय व सांड का मांस खाना चाहिए। जो मनुष्य चाहे किमेरा पुत्र
पंडितशीलवानसभी को जीतनेवालावेदों का व्याख्याता तथा पूरी आयु वाला होतो उसे पत्नी के साथसांड व बैल का मांस घी-भात के साथ
खाना चाहिए।
हरिवंश पुराण (१२-१३) तथा शिव पुराण ( ६-६१-४५) मेंलिखित कथा का सार है कि राजा त्रम्यारुण का पुत्र सत्यवत युवावस्थामें काम-
वश किसी नगरवासी की स्त्री का अपहरण करने के अपराध मेंपिता द्वारा निकाल दिया गया था। वह जंगल में जाकर मांस व वन-फल आदि
खाकर रहने लगा और विश्वामित्र की पत्नी व पुत्रों की दयनीय दशा देखकर उनका भी पालन करने लगा। मांस के अभाव में उसने एक दिन
वशिष्ठ की गाय मारकर खुद खाया और विश्वामित्र के पुत्रों को भी खिला दिया। पिता को नाराज करनेगुरु की गाय मारने व बिना देवताओं को
भोग लगाये मांस खाने के अपराध में वह त्रिशंकू कहलाया।
हविष्यमत्स्यमांसैस्तु शशस्य लकु लस्य च ।
सौकरच्छा लेणे यसेर वेर्गवयेन च ।।
औरभृगव्येश्च तथा मांसवृद्धया पितामहाः ।
प्रयोति तृप्ति मांसैस्तु नित्यं वर्षीणसामिषेः ।। (विष्णु पुराण ३]१६]१-२)
हवषिमछलीखरगोशनेवलासुअरछागकणकरुणनील गायमेढ़ा के मांस से पितर उत्तरोत्तर एके -एक महीना ज्यादा तृप्त होते हैं और वर्षीणस के मांस
से पितर हमेशा तृप्त रहते हैं।
सांस्कृ ति रंतिदेव चमृत संजय शुश्रुम । यस्य द्विशतसाहस्त्रा आसन शूद्रा महात्मनः ॥ गृहानभ्यागतान-विप्रानतिथिन् परिवेशेकाः । सांस्कृ ते
रंतिदेवस्य या एत्रिमनिथिविसेत् ।। आलम्यंत तदा गावः सहस्राणयेकविंशतिः । तत्रास्व शूद्रा क्रोशन्ति सुमृष्टिमणिकु ण्डलाः ।।
सूप भूयिष्ठ मश्नीध्वं नाम्यं मांसं यथा पुराः ।. ( महाभारत द्रोणपर्व ६७-१६-१८१
महाभारत में राजा रन्तिदेव कीर्ति-गाथा इसलिए गाई गई है कि वह अतिथियों तथा ब्राह्मणों के हेतु दो हजार गायें रोज कटवाता था।कभी-कभी
खास मौकों पर २१-२१ हजार गायें तक काटी जाती थीं, तथा खानेवालों की इतनी भीड़ हो जाती थी कि परोसने वाले रसोइयों को कहना
पड़ता था कि आप सुरुआ लीजिए गोश्त तो खत्म हो गयामहाभारत में स्पष्ट कर दिया गया है कि ब्राह्मण ही गाय की मांस पकाते व खाते थे।
महाभारत वन पर्व (२०८-११-१५) में कहा गया है कि अग्नि के मांसाहारी होने के कारण ही ब्राह्मण पशुओं को मारते हैं। इसलिए मांस भक्षण का
प्रचार है। जिस तरह ऋतुकाल में अपनी स्त्री के पास जाने वाला भी ब्रह्मचारी ही कहलाता हैउसी तरह देवताओंपितरों औरब्राह्मणों आदि को
श्रद्धापूर्वक अर्पित करके जो मांस खाता हैउसे मांस भक्षण का दोष नहीं लगता है।वशिष्ठ ऋषि के चौथे अध्याय में लिखा है कि पितरोंदेवताओं
और राजा की पूजा के लिए तगड़ा बैल व बकरा पकाना चाहिए।
विष्णु पुराण (४-१-१७), शिव पुराण (६-६०-३२) तथा वायु पुराण (२-२४-१-२) में मनु के पुत्र पृषय ने अपने गुरु की गाय मारकर खा
डाली थी। जिससे च्यवन-मुनि ने श्राप देकर उसे शूद्र बना दिया था।परन्तु यही कथा मार्क ण्डेय पुराण में इस प्रकार बतायी गयी है कि पृषध्र ने
मुनि की गाय को नील गाय समझकर खा लिया था। वह के वल सभ्य समाज को भ्रम में डाल देने की-सी बात है।
विष्णु पुराण में (५-१०-२६-४१) में श्रीकृ ष्ण ने इन्द्र की जगह गोवर्धन पूजा करने के लिए नन्द को उपदेश दिया है। ऐसा समझा जाता है कि
श्रीकृ ष्ण अहिंसावादी थे]और उन्होंने इन्द्र की पूजा और गोमेथ यज्ञ के विरोध में गो-पूजा का प्रचार किया जिस पर क्रोधित होकर इन्द्रने घोर
वृष्टि करके गोकु ल को बहाकर नष्ट कर देने का प्रयत्न किया परन्तु श्रीकृ ष्ण ने गोवर्धन पहाड़ का जिस पर गो-पूजन हुआ थाउठाकर ब्रजवासियों
की रक्षा की और वैदिक यज्ञों में होने वाला गो-वध बन्द करवा दिया।माननीय सत्यदेव विद्यालंकार द्वारा लिखित राष्ट्र -धर्म में गोमेध यज्ञका वर्णन
बड़े ही स्पष्ट शब्दों में किया है कि गाय की बलि मंदिरों में दी जाती थीजैसे कु छ-कु छ जगहों पर अब भी बकरा व आटे की गाय बनाकर बलि दी
जाती है। कालीभैरवचण्डी के आगे भैसा की बलि दी जाती थी।
वायु पुराणों के उत्तर खण्ड २१ वें अध्याय में उन्हीं वस्तुओं को श्राद्ध के लिए बताया है जिन्हें मनु आदि कह गये हैं कि गाय के मांस और गोरस
से पितरों की एक-एक वर्ष तृप्ति होती है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने मांसाहारियों को व्यंग करके कहा है।कि तुम लोगों को कु छ काल के पश्चात् जब पशु नहीं मिलेंगेतब मनुष्यों का मांस
भी छोड़ोगे कि नहीं उत्तर रामचरित्र के चौथे अंक में वाल्मीकि आश्रम के दो छात्रों की बातचीत इस प्रकार दिखाई गई हैदांडायन- “धिक्कार है
तुम्हारी चंचलता को अरुन्धती और दशरथ सौधांतिक-"हैवशिष्ठ !”दांडायन -- "और क्या।"की स्त्रियों को लेकर वशिष्ठ आये हैंतो इस तरह
क्या बक रहे हा
सौधांतिक-मैंने तो समझा कोई व्याधा है ” दांडायन-अरे क्या कहते हो ”
सौधांतिक-- "उसने तो आते ही बेचारी कपिला गाय को मारडाला !"
दांडायन -मधुपर्क मांस- युक्त हो, इस शास्त्र-वचन को जानते हुए आये हुए वेदज्ञ के लिए बछिया या तगड़ा सांड गृहस्थ पकाते हैं। इसे सूत्रकार
धर्म मानते हैं
आश्वलायन गृह सूत्र (४२०) शलगन शरत या तो बसंत ऋतु में करना चाहिए या आर्द्रा नक्षत्र में करना चाहिए। अपनी गोशाला का सबसे अच्छा
बैल ऊँ चे कन्धे वाला छाँटकर लाना चाहिए। उसको चावल व जौ के पानी से रुद्राय महादेवाय जुष्टोय वर्धस्यमंत्र के पाठ के साथ अभिषेक करना
चाहिए। फिर उसे मानकर हराय कु पाय शर्वाय शिवाय भवाय महादेवायोप्राय पशुपतये रुद्राय शंकरायं च शनाय शनये स्वाहामंत्र के साथ आहुतियाँ
दे उसकी पूँछ]चमड़ा]सिर और पैर अग्नि में डाले।
अथर्ववेद (कांड ३ सूक्त ३२) में गोमांस-भक्षण का जिक्र है तथा यह भी कहा गया है कि जो ब्राह्मण यज्ञ में बैल की बलि देता है उसकी - सभी
देवता सहायता करते हैं।
उपर्युक्त रीति-रिवाज खुले-आम चलन में आने पर राजा व रंक तक को राष्ट्रदेशधर्म का ख्याल ही न रहा। तब सोने की चिड़िया कहलाने वाला
भारत हजारों साल की परतंत्रता में पड़ा रहा। देश को गरीब बनाकरराष्ट्र की सभी शक्ति लूट ली गई। उसे पंगु बना दिया गया। परन्तु आगे चलकर
उन्हीं प्राचीन परंपराओं का विरोध होने लगा। देश की राष्ट्रीयता उमड़ आई और देश से धर्म के विधान को बदलने की आवाजें आईंजिसका श्रेय
खासकर गौतम बुद्ध और महावीर तीर्थंकर को ही दिया जा सकता हैजिन्होंने प्राणी-हिंसा को बंद कराके मानवता का पाठ पढ़ाया। अहिंसा परमो
धर्म:का आदेश दिया। यज्ञों में धर्म के नाम पर हो रही पशु-बलि]पशु-हिंसा ]पाप और बलात्कार को रोका।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में हमें नर-बलि-यज्ञ का भी वर्णन मिलता है। वैदिक युग में मनुष्य की भी बलि दी जाती थी। इसके प्रबल प्रमाण है। ऋषि
शुनःशेपजिन्होंने खुद कहा है कि राजा हरिश्चन्द्र ने मुझे २०० है गायों के बदले खरीदकर किस तरह बलि के यूथ से बांधा तथा विश्वामित्रजी ने
मुझे बलि पर चढ़ने से बचा लिया। इस बात को बड़े-बड़े विद्वान मानते हैं कि राजा हरिश्चन्द्र व विश्वामित्र की दुश्मनी का कारण ही शुनःशेप था।
डॉक्टर मंगलदेव शास्त्री ने असुरों के संबंध में लिखा है कि भारतीय सभ्यता की परंपरा में असुरों का देवों के पूर्ववती होना अन्य प्रमाणों से भी
सिद्ध किया जा सकता है। संस्कृ त भाषा के कोषों मेअसुरपर्यायवाची पूर्व-देवःशब्द से भी यह सिद्ध होता है। यही बात ध्यान में रखकर आर्यों ने
अपने आपको सुर का पर्यायवाची देवता बना लिया मांस व सुरा का प्रयोग न करने वालों को अपना प्रतिद्वन्दी मानकर असुर बना दिया।"
वैदिक युग में गोमांस-भक्षण होता था। मांस ब्राह्मण का अत्यंत प्रिय आहार थाइस सम्बन्ध में नीचे कु छ पंक्तियों में हम डॉ० बी० आर० अम्बेडकर
की सुप्रसिद्ध पुस्तक अछू त कौन और कै सेसे उद्धृत करते हैं।
बाबासाहेब डॉ० अम्बेडकर लिखते हैंयदि आज का सामान्य ब्राह्मण यह कहता है कि हमारे पूर्वजों ने कभी गोमांस नहीं खाया तो यह बात एक
तरह से क्षम्य हो सकती हैक्योंकि भगवान् बुद्ध और तीर्थंकर और महावीर के वैदिक हिंसा के विरुद्ध अहिंसा-धर्म के प्रचार से देश में मांस-भक्षण
बुरा समझा जाने लगा और ब्राह्मणों ने अपनी इज्जत लिए वैष्णव आदि धर्मों का प्रचार किया और अगणित ब्राह्मणों ने मांसाहार त्याग दिया। परन्तु
यदि कोई विद्वान ब्राह्मण कहे कि उनके पूर्वजों ने कभी गोमांस नहीं खायातो इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
ऋग्वेद में एक स्थान पर गाय को अघून्यमारने योग्य नहीं कहा गया और एक जगह उसकी पवित्रता के सम्बन्ध में कहा गया है कि गाय रुद्र की
मातावसुओं की पुत्रीआदित्यों की बहन और अमृत का के न्द्र बिन्दुहै। गाय देवीहै। यही नहींशतपथ ब्राह्मण में भी गाय की महत्ता के बारे में कहा
गया है कि गौ और बैल प्रत्येक वस्तु का आधार हैंउनमें प्रत्येक पशु की शक्ति निहित है। अतः यदि कोई गाय या बैल का मांस खाता है तो वह
सब कु छ खाता है।इसी प्रकार का कथन आपस्तंब धर्मसूत्र में भी मिलता हैजहाँ मांसाहार पर प्रतिबंध लगाया गया है।
के वल इन सामान्य प्रतिबन्धों के बल पर ब्राह्मण यह नहीं कह सकते कि उनके पूर्वज कभी गोमांस खाते ही न थे, जबकि इनमें कहीं अधिक प्रबल
प्रमाण और विधान गोमांस-भक्षण के सम्बन्ध में आर्य ग्रन्थों में भरे पड़े हैं। इन समान निषेधों का कारण जीव दया नहीं, गाय-बैल की उपयोगिता
है। गाय दूध देती है, बैल खेती और बोझ ढोने के काम आता है। देश में अहिंसा-धर्म के प्रचार से लज्जित होकर आर्य-ग्रन्थों में ऐसे वाक्यों का
प्रक्षेपण किया गया प्रतीत होता है।
ऋग्वेद - कालीन आर्य भोजन के लिए गो-हत्या करते थे और गोमांस खाते थे, यह ऋग्वेद से भी एकदम स्पष्ट है। ऋग्वेद में इन्द्र का कथन हैं--वे
एक के लिए पंद्रह-बीस बैल पकाते हैं। ऋग्वेद का ही कथन है कि अग्निदेवता के लिए घोड़ों]वृषभों]बैलों]बांझ] गौओं तथा मेढ़ों की बलि दी जाती
थी। ऋग्वेद से यह भी स्पष्ट होता है कि गौ को एक खड्ग अथवा कु ल्हाड़ी से मारा जाता था।
तैत्तिरीय ब्राह्मण में जिस काम्येष्टि यज्ञों का वर्णन हैउनमें न के वल गौ और बैल की बलि देने की आज्ञा हैबल्कि यह भी स्पष्ट कियागया है कि किस
प्रकार के गौ और बैल की बलि किस देवता को चढ़ाना चाहिए। जैसे कि विष्णुको बलि देना होतो एक बौना बैल चुनना चाहिए। वृत्त के नाशकइन्द्र
को बलि देनी होतो ऐसा बैल चाहिए कि जिसके सींग लटकते हों और जिसके माथे पर टीका हो। पूषणके लिए काली गौरुद्रके लिए लाल गौऔर
इसी प्रकार तैत्तरीय ब्राह्मण पंचसारदीय सेवा नाम के एक यज्ञ का वर्णन करता हैजिसकी सबसे अधिक महत्व की बात यह थी कि उसमें पाँच वर्ष
की आयु के सत्रह कू बड़ हीन बौने बैल और उतने ही तीन वर्ष की आयु के बौने बछड़े मारे जाते थे।
स्वयं आपस्तम्ब धर्मसूत्र में लिखा है-- “गी और बैल पवित्रहैंइसलिए उन्हें खाना चाहिए।"
दूसरी बात गृह्य-सूत्र में दी गई मधुपर्क बनाने की विधि है। आर्यों में में विशेष अतिथियों के स्वागत की एक निश्चित प्रथा बन गई थी इसमें जो
सर्वश्रेष्ठ चीज खिलाई जाती थी, उसे मधुपर्क कहते थे। कई गृह्य सूत्रों में मधुपर्क के बारे में विस्तृत सूचनाएँ हैं। गृह्य-सूत्रों के अनुसार मधुपर्क पीने
के छः अधिकारी हैं: (१) ऋत्विज अर्थात् यज्ञ करानेवाला ब्राह्मण, (२) आचार्य, (३) दुलहा, (४) राजा, (५) स्नातकअर्थात् गुरुकु ल की
शिक्षा-समाप्त विद्यार्थी तथा (६) ऐसा कोई भी आदमी जो आथित्य का प्रिय हो कोई-कोई इस सूची में अतिथि को भी सम्मिलित करते हैं।
ऋत्विज राजा और आचार्य के अतिरिक्त शेष लोगों को वर्ष में एक बार मधुपर्क देने का नियम रहा है। ऋत्विज राजा और आचार्य को उनके
आगमन पर हर बार देना होता था।
आज देश आजाद लोगों को सोचने समझने बोलने लिखने की हिम्मत आ गई है आजकल हमारे देश के गौ रक्षक अपनी पूरी ताकत के साथ गौ
माता की रक्षा कर रहे हैं अगर गलती से कोई गांव गाय पकड़ कर पालन के लिए भी ले जा रहा हो तो उसे गौ हत्या के स में उसकी जान तक लेने
के लिए कोई कोर कसर नहीं सोचते उत्तर प्रदेश सरकार तथा कई प्रदेशों की सरकारों ने गौ रक्षा हेतु गौशाला, बाड़े आदि बनवा दिए हैं जिससे
लोगों द्वारा फालतू गायों को अधिक मात्रा में घर में ना पालघर छु ट्टा फसल नष्ट करने हेतु तो छोड़ दिया जाता है जिससे किसान की 20%
कमाई गांव रखवाली में ही खर्च हो जाती है और जहां पशुपालन हो रहा है उस पर भी खर्च किया जाता है इसका दूसरा पहलू भी देखें की गौ
हत्या के लिए सरकार ने देश में 74 बूचड़खाने के लाइसेंस दे रखे हैं जिनका माa स पूरे विश्व में भेजा जा रहा है और उसमें से ज्यादातर
लाइसेंस हिंदू की ही फर्मों के हैं जिनमें से 10 प्रमुख cwpM[kkuksa के नाम मैं लिख रहा हूं जिन से प्रतिवर्ष मांस विदेशों में भेजा जा रहा
है जिनमें सऊदी अरब]drj] दुबई] पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम ns’kksa esaa Hkstk tk jgk gS&
अल कबीर कं पनी&जिसका lcls vf/kdekal fons’kksa esa निर्यात किया जाता है जिसका ekal मध्य एशिया एंड मुस्लिम देशों में
भेजा जाता है 400 एकड़ जमीन में फै ला है पिछले वर्ष 650 करोड़ का मुनाफा कमाया था। ftldk सतीश स c रवाल इस फार्म के मालिक हैं
एमके आर एमके आर एक्सपोर्टप्रतिदिन भैंसों का मांस हवाई जहाज से भरकर विदेशों में भेजा जाता है यह फार्म दिल्ली में चल रही है
अल नूर बूचड़खाना
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अश्विनी एग्रो एक्सपोर्ट तमिल नाडु जिसके भी मालिक हिंदू ही हैं।
महाराष्ट्र कोल्ड फू ड एक्सपोर्ट सतारा
मालिक सुनील खट्टर
ए ओ बी एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड उन्नाव उत्तर प्रदेश मालिक अभिषेक अरोड़k
अरेबिक एक्सपोर्ट मुंबई मालिक सुनील कपूर
एबैट गोल्ड पंजाब मोहाली मालिक सनी एबट
हालांकि 25 मार्च 2015 से सरकार ने गाय का बध कर k ना बंद करा दिया है अब के वल भैंसे बकरी सूअर भेड़ ऊट आदि का वध किया जा
रहा है। महोदय मेरा कहने का आश्रय यह है कि ज्यादातर बड़े व्यापारी पैसे वाले धनाढ्य यह सब काम कर रहे हैं इन लोगों पर हत्या का कोई
दूसरा इल्जाम क्यों नहीं लगता जबकि हिंदू ’kkL=ksa] पंडित] बजरंग दल के नेताओं ने इन्हें हत्यारे की Js.kh में मानते हैं।
मुसलमानों को तो उनके धर्म से मानता प्राप्त है पर हिंदू का क्या \
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती है
गरीब आहे भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम।
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आज तक जो भी शास्त्र वेद पुराण बाल्मीकि रामायण उस काल में लिखी गई og lc संस्कृ त में लिखी गई है क्या उस काल के पंडित जी हिंदी
या अन्य भाषा नहीं जानते थे जिसकी वजह से आज तक मूल निवासियों को मूर्ख बनना पड़ रहा है क्या भगवान संस्कृ त के अलावा और कोई
भाषा नहीं जानते gSa और अगर नहीं जानते तो प्रेम की भाषा तो जानते हैं फिर Hkh संस्कृ त इतना rwynsus की क्या आवश्यकता थी
और अगर आवश्यकता थी तो क्यों सभी वर्गों को संस्कृ त पढ़ने से वंचित रखा गया।
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