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परं परा का अथष है कक बबना व्यवधान के श्ृंखला रूप में जारी रहना. परं परा एक पीढ़ी से
दसू री पीढ़ी में त्तवश्व शो और प्रीति- ररवाजों के हस्िांिरण को संदलभषि करिा है . परं परा समाज
की सामूहहक त्तवरासि है जो कक सामात्जक संगठन के सभी स्िरों पर व्याप्ि है . ऐतिहालसक
दृत्ष्ट से प्रत्येक परं परा उद्त्तवकास उसके बाद पिंग की सीढ़ी िक पहंु ििी है
परं परा आध्यात्त्मक शत्तियों में तनहहि होिी है . परं परा का यह प्रत्यय भारिवर्ष में परं परागि
संस्कृति की त्तववेिना से और भी अचधक स्पष्ट होगा.
दे श में सालभर कोई न कोई उत्सव और त्योहार मनाने की परं परा रही है . मनुष्य की
स्वाभात्तवक प्रवत्तृ ि यों को ध्यान में रखकर हमारे पव ू ज
ष ों ने त्योहार, पवष, उत्सव, मेले, यात्रा
इत्याहद के आयोजन की परं परा शरू ु की थी. मौयाष, िोल, मग ु लकाल और बिहटश साम्राज्य के
समय िक भारि हमेशा से ही अपनी अतिचथ परं परा के ललए मशहूर रहा है |
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भारिीय संस्कृति; इतिहास, विषमान एवं
भत्तवष्य
भारि का इतिहास प्रति प्राचिनिम सभ्यिाओं में से एक है . प्रािीन काल से त्तवश्व गुरु की
भूलमका वाला भारि अपने आप में त्तवरासि भी समाय हुए हैं. जब भी संस्कृति की ििाष
होगी वह भारिीय संस्कृति के बगैर परू ी नहीं हो सकिी है . संस्कृति का अथष है उिम या
सुधरी हुई त्स्थति . बद् ु चध के प्रयोग से अपने िारों ओर कक प्राकृतिक पररत्स्थति को तनरं िर
सध ु ारिा और उन्नि करिा रहा है . ऐसी प्रत्येक जीवन- पद्धति, रीति- ररवाज, आिार-
त्तविार, नवीन अनुसंधान और आत्तवष्कार से मनुष्य, पशुओं और जंगलवालसयों से
ऊंिा उठिा है िथा सभ्य बनिा है . सभ्यिा संस्कृति का अंग है . सभ्यिा से मनुष्य
के भौतिक क्षेत्र की प्रगति का पिा िलिा है जबकक संस्कृति से मानलसक एवं
सामात्जक क्षेत्र की प्रगति की जानकारी लमलिी है . मनुष्य
केवल भौतिक पररत्स्थति में सध ु ार करके ही संिष्ु ट नहीं हो जािा. वह भोजन से
ही नहीं जीिा, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है . इन्हें संिुष्ट करने के
ललए संस्कृति की आवश्यकिा होिी है . मनुष्य सौंदयष की खोज करिे हुए
संगीि, साहहत्य, मूतिष, चित्रकार और वास्िु आहद अनेक कलाओं को उन्नि करिा
है |
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रीिी ररवाजों का महत्त्व
ककसी भी दे श के त्तवकास मैं उसकी संस्कृति का बहुि योगदान होिा है .
दे श की संस्कृति उसके मूल्य, प्रथाएाँ, परं पराएं एवं रीिी - ररवाजों का
प्रतितनचधत्व करिी है . भारिीय संस्कृति कभी कठोर नहीं रही इसललए
यह आधुतनक काल में भी गवष के साथ त्जन्दा है . भारिीय संस्कृति
की खास बाि यह है कक यह दस ू री संस्कृतियों की त्तवशेर्िाएं सही
समय पर अपना लेिी है इस िरह एक समकालीन और स्वीकायष
परं परा के िौर पर बहार आ जािी है . समय के साथ िलिे रहना
भारिीय संस्कृति की सबसे अनठ ू ी बाि है . ये रीति- ररवाज और
परं पराएं ही प्रत्येक जाति धमष की पथ ृ क पहिान बनाए हुए है |
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भारिीय स्थापत्य परं परा
भारिीय स्थापत्य एवं वास्िुकला की सबसे खास बाि यह है कक इिनी त्तवत्तवधिा और
समय अंिराल होने के बाद भी एक तनरं िरिा दे खने को लमलिी है . भारिीय स्थापत्य
की त्तवत्तवधिा से ररस्की भारिीयिा नहीं है , वैत्श्वक प्रभाव की वजह से भी यह त्तवत्तवधिा
पाई जािी है . भारि के स्थापत्य को हुए वैत्श्वक दृत्ष्ट, यहााँ समय - समय पर हुए बाहरी
आक्रमणों के बाद स्थात्तपि हुए शासकों द्वारा बनाए गए मंहदरों, मीनार, मत्स्िदों और
इमारिों की वजह से िो लमली ही है , लेककन इन में बहुि बड़ा योगदान भारि की
सनािन संस्कृति कभी रहा है , त्जसने ''वसध
ु ैव कुटुम्बकम'' का लसद्धांि हदया. इस
लसद्धांि का पररणाम यह हुआ कक हमारे दे श के त्तवलभन्न शासकों ने स्थापत्य में वैत्श्वक
त्तवशेर्िा ओको खुले हदल से अपनाया. आगे हम पाएंगे कक भारि का परू ा स्थापत्य लसर्ष
भारि का नहीं है , इसमें र्ारसी, अर्गानी, इस्लामीक, यरू ोत्तपयन एवं मध्य- पव
ू ष के स्थापत्य की
स्पष्ट झलक भी हदखाई दे िी है |
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वैहदक परं पराएं एवं वैज्ञातनकिा
हहंद ू धमष को इस संसार का सबसे प्रािीन और वैज्ञातनक धमष माना जािा है और लसर्ष माना ही नहीं जािा
बत्ल्क इसके प्रािीनिम होने के अनेक प्रमाण भी उपलब्ध है .
हहंद ू धर्थ और िैहदक परं पराए
इतिहास इस बाि का साक्षी है कक हहंद ू धमष त्तवश्व का सबसे प्रािीन िम धमष है . संसार के 20 बड़े दे शों में हहंद ू
धमष की जड़ें र्ैली हुई है .हहंद ू धमष के इतिहास पर दृत्ष्ट डालें िो सवषसम्मति से और त्तवलभन्न साक्ष्यो और
प्रमाण उसे यह लसद्ध होिा है कक हहंद ू धमष का आरं भ हहंद ू घाटी की सभ्यिा से जड़ु ा हुआ है . आपको लसध ं ु घाटी
की सभ्यिा में लमली, पशप ु तिनाथ की मतू िष, जमषनी में 1939 में लमली नरलसहं की मतू िष इस बाि के ठोस
प्रमाण है . कुछ इतिहासकारों का मानना है कक हहंद ू धमष का जन्म वेदों से ही हुआ है इसललए इसे वैहदक धमष भी
कहा जािा है |
तल
ु सी पज
ू न
िुलसी पज ू न हर भारिीय घर की पहिान है . गृहणी द्वारा सुबह सवेरे िुलसी में पानी दे ने की परं परा प्रािीन
काल से िली आ रही है . िुलसी आयुवहे दक और्चध भी है और इसके पिे शरीर के हर छोटे - बड़े रोग को दरू
करने में कारगर लसद्ध होिे हैं.
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सूर्थनर्स्कार सुबह स्नान के बाद सूयष को जल िढ़ाने का प्रावधान हहंद ू
धमष में है लेककन इसके पीछे वैज्ञातनक सत्य है ककसयू ष उदय की ककरणें
स्वास्थ्य के ललए बहुि लाभकारी है .
उपिास रखना रखने का उद्दे श्य िाहे धालमषक होिा हो लेककन
इसके पीछे का वैज्ञातनक सत्य यह है की उपवास प्रकक्रया से पािन
कक्रया संिलु लि और िंदरु
ु स्ि रहिी है िथा शरीर स्वच्छ रहिा है .
पजू ा की घंटी और शंख नाद पज ू ा की घंटी का महत्त्व शायद कुछ ही
लोग जानिे हैं. वैज्ञ ातनक िथ्य यह है कक मंहदर या ककसी भी अिषना
स्थल पर पज ू ा की घंटी और शंख नाद से वािावरण कीटाणुमुति और
पत्तवत्र होिा है . की ध्वतन से मलेररया के मच्छर भी खत्म हो जािे हैं.
जनेऊ जनेऊ रखना केवल पंडडि की ही तनशानी नहीं है कक्रस बत्ल्क
यह एक बेहिरीन एतयूप्रश े र का काम भी करिा है .गौमूत्र व गाय
का गोबरगाय का हर अंग स्वास्थ्य और वािावरण के ललए उपयोगी
होिा है इसी कारण इसे '' मााँ'' का दजाष हदया गया है . गाय का मत्र
ू जहााँ
कई और्चधयों के तनमाषण में काम आिा है , वही गोबर के लेप से
त्तवर्ैले कीटाणु नष्ट हो जािे हैं|
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गार्त्री र्ंत्रगायत्री मंत्र या अन्य ककसी मंत्र का उच्िारण जहााँ एक ओर पज
ू ा को पण
ू षिः प्रदान
करिा है वही मन को केंहिि करने हमारा शारीररक त्तवकास करिा है .
हिन हवन करने का उद्दे श्य ककसी त्तवशेर् पज
ू ा को करना िो होिा ही है साथ ही हवन सामग्री
वािावरण को भी शुद्ध करिी है . हवन सामग्री में दे सी घी, कपरू , आम की लकड़ी और दस ू री
सामग्री होिी है त्जससे हवा में र्ैले कीटाणु नष्ट हो जािे हैं.
गंगा गंगा को पावन इसललए माना जािा है तयोंकक इसके जल में कुछ ऐसी प्राकृतिक
ित्व होिे हैं त्जनके संपकष में आने से शरीर रोग मुति और तनमषल हो जािे हैं.
पज
ू ा करना पज ू ा करना एक धालमषक कमष िो है ही साथ ही यह मन की एकाग्रिा को
बढ़ाने में सहायक होिा है .
ततलक लगाना ककसी भी पज ू ा कमष का आराम माथे पर तिलक लगाने से होिा है .
लेककन इस तिलक का दस ू रा पहलू यह है कक हमारी दोनों आाँखों के बीि में एक नवष
प्वाइंट होिा है जहााँ तिलक लगाकर हाथ से हल्के दबाव से त्जया उसका संिार बढ़ाया
जािा है इससे एकाग्रिा की शत्ति बढ़िी है और साथ ही मत्स्िष्क में रति की
आपतू िष को भी यह तनयंत्रण मैं रखिा है |
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रूहि़वादी परं परा एवं उनकी मान्यिाएाँ
परं परा को दसू री शब्दों में , तनरं िरिा भी कहा जा सकिा है परम्पराएं ज्ञान की वे श्ंख
ृ ला है , जो बबना ककसी
व्यवधान के एक पीढ़ी से दस ू री पीढ़ी में तनरं िर अपनाई जािी है . परं पराओं का अनपु लन सही है या गलि,
यह बहस का मुद्दा नहीं बनना िाहहए बत्ल्क, बहस इस बाि पर होनी िाहहए कक एक बेहिरीन मानव
अत्स्ित्व के त्तवकास के ललये वो कौन सी परं पराएं हैं, जो सवोिम है . लेककन परं पराओं का अनुपालन हमारे
जीवन के दै हहक, बौद्चधक, आध्यात्त्मक स्िर को बेहिरीन त्स्थति प्रदान कर सकिा है . ऐसी परं पराएं,
जो िाककषक एवं वैज्ञातनक कसौटी पर खरी उिरिी है , मानव अत्स्ित्व के ललए वरदान बन जािी है . लेककन
ऐसे ही भी परं पराएं हैं, जो केवल आस्था के आधार पर ही प्रिललि है , उन्हें 'रूहढ़वादी परम्पराएं' कहा जा
सकिा है |
जातत प्रर्ा/ आश्रर्
हमें इस बाि पर गवष होना िाहहए कक भारिीय सभ्यिा के अंिगषि मूल रूप से ऐसी परं पराओं
का सृजन ककया गया जो परं पराएं, हमें अपने जीवनकाल में बेहिरीन आध्यात्त्मक अनुभतू ि के
माध्यम से जीवनकाल में ही स्वगष का अनुभव करवा सके. ककंिु स्वाथष लसद्चध ओर
भौतिकवादी सोि के दष्ु प्रभाव से ये परम्पराएं रूहढ़वादी बनकर हमारे अत्स्ित्व को ही नष्ट
करने पर िल ु ी हुई है . हम में से प्रत्येक को ऐसी परं पराओं का तनवाष हन करना िाहहए जो केवल
स्वयं के ललए नहीं बत्ल्क परू े समाज के ललए हहिकारी हो!
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भारिीय परं पराओं का त्तवदे शों में अत्स्ित्व
भारि दक्षक्षण एलशया में त्स्थि भारिीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा दे श है . प्रािीन लसन्धु घाटी सभ्यिा
व्यापार मागों और बड़े- बड़े साम्राज्यों का त्तवकास स्थान रहे , भारि को इसके सांस्कृतिक और आचथषक
सर्लिा के लंबे इतिहास के ललए जाना जािा रहा है . भारि की सांस्कृतिक त्तवरासि इसकी 5000 वर्ष
परु ानी सांस्कृतिक एवं सभ्यिा है . भारि की परु ानी सभ्यिा एवं सांस्कृतिक जीवन ने त्तवश्व में अपनी
गहरी पहिान छोड़ी है . भारिीय सभ्यिा हमेशा से ही गतिशील रही है एवं इस सभ्यिा की परम्पराओं को
दतु नया के अपना या एवं लाभ उठाया. सभ्यिाओं में सवषप्रथम आध्यात्त्मक सभ्यिा का त्तवदे शों में गहरा
असर रहा है . भारिीय अध्यात्त्मक सभ्यिा का असर इस प्रकार है कक, केवल भारि में ही नहीं अत्तपिु
त्तवदे शों में भी भारिीय मंहदरों का त्तवशेर् अत्स्ित्व है िथा भारिीय आध्यात्त्मक सभ्यिा को दरू - द रू िक
र्ैला रहे हैं. त्तवदे शों में त्स्थति कुछ भारिीय मंहदरों का उल्लेख इस प्रकार है
श्री सब्र
ु र्ण्र्र् दे िस्र्ान - मलेलशया का यह गर् ु ा मंहदर कुआलांलपरु से 13 ककलोमीटर दरू त्स्थि है .
1890 में लालकृष्ण त्तपल्लई ने इस मंहदर के बाहर भगवान मरु ु गन की एक त्तवशाल प्रतिमा की स्थापना
की थी यह प्रतिमा त्तवश्व में सबसे ऊंिी भगवान मुरगन की प्रतिमा है .
अंगकोर िट कम्बोडिर्ा - 12 वीं सदी में बने इस मंहदर की चगनिी दतु नया के सबसे बड़े धालमषक स्थलों के
रूप में की जािी है . इसका तनमाषण खमेर राजा सय ू ाष वमषन ने कराया था. यह भगवान त्तवष्णु का सबसे
बड़ा मंहदर है .
श्री स्िार्ीनारार्ण र्ंहदर - यह बिटे न का पहला मान्यिा प्राप्ि हहंद ू मंहदर है एवं भारिीय आध्यात्त्मक
सभ्यिा का बड़ा प्रिीक है .
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भारिीय संस्कृति एवं परं परा के लोक नत्ृ य
भारि का नाम आिे ही सामने आ जािा है त्तवत्तवधिाओ से भरा दे श त्जंस धरिी पर त्तवलभन्न संस्कृति
एवं परं पराओं का मेला होिा है वही भारि है . भारि की संस्कृति त्जिनी रोिक है , उिनी दतु नया के
ककसी दे श की नहीं है . यहााँ की संस्कृति दतु नया की िमाम संस्कृतियों में सबसे ज्यादा उन्नि है .
त्तवत्तवधिाओ से भरे दे श का हर रं ग तनराला है . इस दे श की हर प्रांि की अपनी त्तवशेर्िा है . अपनी
संस्कृति है , जो उस प्रांि की लोक कथाओं में नजर आिी है . सभी प्रांि ों के अपने लोक संगीि व लोक
नत्ृ य होिे हैं. इसमें वहााँ की परं पराओं और समुदायों की भावनाओं की अलभव्यत्ति दे खने को लमलिी
है . यहााँ की संस्कृति, यहााँ के सभी धमष, खान - पान, रहन- सहन, लेककन जो सबसे ज्यादा अलग है ,
वो है भारि में मनाए जाने वाले त्योहार, उत्सव या पवष ओर इन उत्सवों, त्योहारों पर ककए जाने वाले
लोक नत्ृ य जो भारि की संस्कृति को और अचधक रोिक बनािी है . भारि में अनेक प्रकार के
लोकनत्ृ य है , िो आइये, जानिे है इनमें से कुछ प्रलसद्ध लोक नत्ृ य के बारे में ,
भांगड़ा- यह नत्ृ य शैली पंजाब की है और इसे केवल परु ु र् ही करिे हैं, सन 1880 के
दशक के दौरान पंजाब के उिरी क्षेत्र में एक समुदातयक तनत्य होिा था त्जसे भांगड़ा नत्ृ य
कहा जािा है . भांगड़ा एक मौसम आधाररि तनत्य है जो अप्रैल के महीने में सरू ु
होकर बैसाखी िक िलिा है . इस महीने में र्सलें त्तवशेर्कर गेहंू की बआु ई होिी है बैसाखी
के दौरान स्थानीय मेला भी लगिा है ओर इन हदनों नए र्सल िथा बैसाखी के त्योहार के
उपलक्ष्य में कई हदनों िक परुु र् इस नत्ृ य को करिे हैं.
बबहू- यह लोकनत्ृ य असम प्रांि का है और इसे बबहू के त्योहार के साथ जोड़ा जािा है . इस
त्योहार को स्त्री और परु
ु र् लमलकर रं ग बबरं गे असलमया पोशाक पहनकर करिे हैं. बबहू,
असामी नए साल को कहिे हैं
छऊ - यह एक लोकनत्ृ य है जो बंगाल, ओडडशा एवं झारखण्ड में प्रिललि है . इसके िीन
प्रकार हैं- सेरैकेल्लै छऊ ,मयूरभंज छऊ और परु
ु ललया छऊ | 14
चांग-ू यह लोक नत्ृ य ओडडशा का आहदवासी नत्ृ य है . िांगु ओडडशा में बहुि लोकत्तप्रय
है . भोरै या, बाथडू ड, खाररया, जय ु ांग, मेिी एवं संद ु रगढ़ के कौंधा समद ु ाय,तयोंझर,
मयरू भंज िथा अंधामल त्जले के इस स्त्री परु ु र् लमलकर इस नत्ृ य को करिे हैं. त्स्त्रयााँ ज्यादािर
लाल ककनारे की सर्ेद साड़ी पहनिी हैं और परु ु र् वहााँ का रं ग बबरं गा पारं पररक
पोशाक. यह नत्ृ य खुले आसमान के नीिे िााँद की रौशनी में ककया जािा है .
गरबा- यह गज ु राि प्रांि का लोकनत्ृ य है . इसका नाम संस्कृि के शब्द गभष और दीप से आयी है .
को नवरात्र के साथ जोड़ा जािा है . बीि में एक लमट्टी के कंदील में हदया जलाकर या दे वी शत्ति
की चित्र अथवा मूतिष के िारों ओर पारं पररक गरबा की जािी है .
घर्
ू र- यह राजस्थान प्रांि का लोकनत्ृ य है . घमू र का त्तवकास भील कबीले के लोगों द्वारा ककया
गया. इसके पश्िाि राजस्थान के अन्य समद ु ायों ने इसे अपनाया. यह नाि ज्यादािर महहलाओं
द्वारा घंघ
ू ट लगाकर और एक घम ु ेरदार पोशाक, त्जसे ''घाघरा'' कहा जािा है पहनकर गोल- गोल
घूमिी है और महहलाएं िथा परु ु र् एक साथ गािे हैं.
लािणी- लावणी महाराष्र राज्य की लोक नाट्य शैली िमाशा का अलभन्न अंग है . इसे महाराष्र
के सबसे लोकत्तप्रय और प्रलसद्ध लोक नत्ृ य शैली के रूप में जाना जािा है . लावणी नत्ृ य की
त्तवर्य- वस्िु कहीं से भी ली जा सकिी है , लेककन वीरिा, प्रेम, भत्ति और दख
ु जैसी भावनाओं को
प्रदलशषि करने के ललए यह शैली उपयुति है |
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भारिीय परम्पराओं के पररपेक्ष्य में संयत
ु ि पररवार बनाम
एकल पररवार
मनष्ु य एक सामात्जक प्राणी हैं और पररवार समाज की सबसे छोटी इकाई. एक झुंड से जुड़ े हुए व्यत्तियों
को एक साथ रहना ही समाज कहलािा है . भारिीय समाज का एक पौराणणक त्तवरासि है , त्जसे हम अपनी
संस्कृति के रूप में दे खिे हैं एवं यग
ु यग
ु ांिर िक इसे संजोए रखना िाहिे हैं.सामान्यिः पररवार दो प्रकार के
होिे हैं, पहला संयत ु ि पररवार एवं दस ू रा एकल पररवार, संयत
ु ि पररवार भारिीय संस्कृति की पहिान
है जबकक एकल पररवार पाश्िात्य संस्कृति का, जहााँ िक पररभात्तर्ि करने का प्रश्न है , संयत ु ि पररवार
एकल पररवारों का समूह है त्जसमें एक साथ कई पीहढ़यों के लोग एक साथ रहिे हैं एवं एकल पररवार में
सामान्यिा पति पत्नी के अलावा अत्तववाहहि बच्िे रहिे हैं|
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अंधत्तवश्वास एवं छुआछूिं
छुआछूि- छुआछूि का अथष है ककसी से दरू रहना उस को छूने को भी पाप समझना समाज में तनम्न और छोटी उपेक्षा जातियों से नर्रि और
घणृ ा पण
ू ष व्यवहार इस प्रकार के व्यवहार और कायष हमारे दे श में सहदयों से िली आ रही है ये इसललए हमारे दे श में रुहढ़वादी व्यवस्था अभी
िक तनमूषल नहीं हो पाई है ै|ै
सती प्रर्ा- सिी प्रथा में पति की मत्ृ यु के बाद पत्नी को भी चििा पर बबठा हदया जािा था सिी प्रथा जैसी प्रथाएाँ समाज के ललए कलंक है . इस
िरह की प्रथाएाँ समाज में महहलाओं के णखलाफ़ अन्याय को बढ़ावा दे िी है . इस प्रथा की आड़ में जाने ककिने पररवार खत्म हुए, बच्िों से मााँ का
आसरा छीना गया.
पशबु भल- पशब ु लल व अनष्ु ठान है त्जसमें ककसी पशु की हत्या करके उसे ककसी दे विा आहद को िढ़ाया| ककसी भी जीव को िाहे वह इंसान हो या
जानवर जीत्तवि रहने का मौललक अचधकार है , िथा ककसी भी धालमषक परं परा या अनुष्ठान की आड़ में उसके प्राण कक्रस लेन का अचधकार ककसी
को भी नहीं है लेककन पशु बलल ऐसी ही एक अंधत्तवश्वास भरी परं परा है .
टोटके- ऐसे बहुि से अंधत्तवश्वास है , जो लोक परं परा से आिे हैं त्जनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं होिा| इनमें से बहु ि सी- बािें हैं, जो धमष का
हहस्सा है और बहुि- सी बािें नहीं है |
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उदाहरणाथष :--
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त्योहार एवं समारोह : आयोजनों की त्तवत्तवधिा
भारि त्तवलभन्न संस्कृतियों और धमों की एक पत्तवत्र भलू म है . यहााँ लगभग प्रतिहदन ही एक त्योहार होिा है जो भारि की सांस्कृतिक
सभ्यिा को प्रदलशषि करिा है . भारि के सभी राज्यों की कुछ त्तवशेर्िाए है , जो त्योहारों के माध्यम से प्रदलशषि होिे हैं. प्रत्येक त्योहार
को मानने का एक त्तवशेर् ि़ं ग होिा है , जो उस राज्य की कला, संस्कृति एवं सभ्यिा को समारोह के सामने प्रस्िुि करिा है . भारि के
अचधकांश त्योहार पौराणणक कहातनयों, उत्सवों और लोक कलाओं से जुड़ े हुए हैं. कुछ त्योहार िो साल के मौसम का उद्घाटन करिे हैं.
सदी, बरसाि, बसंि आाँधी ऋिुएाँ यहााँ कई त्यौहार साथ लािे है . पी जबकक त्योहार ककसी प्रदे श या समुदाय त्तवशेर् द्वारा मनाया जािा
है |भारि एक ऐसा दे श है जहााँ हहंद,ू मुत्स्लम, सीख, ईसाई, जैन आहद सभी धमों के लोग एक साथ तनवास करिे हैं पछ ू त्योहारों को
राष्रीय स्िर पर मनाया जािा है जबकक कुछ क्षेत्रीय स्िर पर मनाए जािे हैं|
हहंद ू त्र्ोहार: त्तवलभन्न हहंद ू त्योहार मनाने की अपनी एक खास पद्धति होिी है . दे वी- दे विाओं को गंगा जल िढ़ाना, व्रि रखना, जल्दी
सुबह स्नान करना, दान करना, कथा सुनना, आरिी आहद बहुि कुछ त्जसके द्वारा पज ू ा की कक्रया संपन्न होिी है . ककसी जाति, उम्र,
की परवाह ककए बबना हहंद ू धमष के सभी लोग अपना त्योहार लमल-जुलकर मनािे हैं|
इस्लाभर्क त्र्ोहार: इस्लालमक त्योहार परू े त्तवश्व के साथ भारि में भी इस लामो द्वारा पूरे उत्सव के साथ मनािे हैं. इन पवों को
इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार पूरे जुनून और समपषण के साथ मनाया जािा है . कुछ महत्वपण ू ष इस्लालमक पवष यथा रमिान, ईद- ए-
लमलाद, मुहरष म, बकरीद आहद खास िरीके से मत्स्िदों में दआ ु मांग कर, दावि दे कर और एक- दस ू रे को बधाई दे कर मनाया जािा है |
सीख त्र्ौहार: कुछ हहंद ू त्योहारों को सीखो द्वारा भी मनाया जािा है . लसख धमष के समस्ि तनयम पत्तवत्र पस्
ु िक ' गु रु ग्रन्थ साहहब' में
संकललि है . इसका संकलन प्रथम सीख गुरु, गुरु नानक द्वारा ककया गया था. बाद में गुरु अजुषन दे व ने इसे संपाहदि ककया. सीख धमष
में ' गुरु ग्रन्थ साहहब' को दे विाओं की जगह रखा जािा है और त्यौहार मनािे समय इसे पालकी में रखकर सावषजतनक जुलूस तनकाला
जािा है |
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जैन पिथ: जैन धमष के लोग बहुि सारे रीिी -ररवाज ओर धालमषक रस्मों को त्योहार के
रूप में मनािे हैं. इनके रीति-ररवाज त्तवलभन्न िरीकों में मतू िष पज
ू ा से संबचं धि है और
िीथषकरों के जीवन की घटनाओं से संबचं धि है . रीति-ररवाज, कायष और कक्रया में
त्तवभात्जि है . जैन श्वेिांबर के अनुसार छह अतनवायष किषव्य होिे हैं जो की िीथषकरों की
प्रस्िुति करना, ध्यान, त्तपछले बरु े कामों का प्रायत्श्िि, गुरुजनों का आदर करना
आत्मसंयमी बनना है |
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पत्श्िमी संस्कृति का भारिीय संस्कृति पर प्रभाव
ककसी भी दे श का अपना इतिहास होिा है , परं परा होिी है . यहद ककसी दे श को शरीर मानें िो संस्कृति उनकी आत्मा है . ककसी भी संस्कृति
में आदशष होिी है , मल्
ू य होिे. इन मल्
ू यों की संवाहक संस्कृति होिी है . भारिीय संस्कृति में िार मल्
ू य प्रमख
ु हैं धमष, अथष, काम और मोक्ष|
नकारात्र्क प्रभाि:
*संयत
ु ि पररवार प्रथा भारिीय संस्कृति की नींव थी. पाश्िात्य संस्कृति के पररणामस्वरूप एकड़ पररवारों का िलन बढ़ गया संयत ु ि
पररवार नहीं होने से बच्िे अपने आपको अकेला महसस ू कर बरु ी आदिों का लशकार हो रहे हैं. बच्िे अपने मािा- त्तपिा को भी साथ में
रखना पसंद नहीं कर रहे हैं इस वजह से वद्
ृ धाश्मों की संख्या में बढ़ोिरी हुई है .
* हम लोग पाश्िात्य पहनावे को भी अपनाने में अपनी शान समझिे हैं. जो कपड़े उनके यहााँ पहनिे हैं वह हमारे यहााँ स्टे ट लसब
ं ल बन
जािे हैं. ऐसे पहनावे का तया लाभ त्जसमें हम खद
ु को सहज न महसस
ू करें .
* जंक र्ूड सेहि के ललए ककिना नुकसानदायक होिा है , यह हम सब को ज्ञाि है ककंिु इसके बावजूद भी हम लोग जंक र्ूड का सेवन कर
रहे हैं|
सकारात्र्क प्रभाि:
*समाज की सामात्जक कुप्रथाएं जैसे कक कन्या भ्रण
ू हत्या, बाल त्तववाह, पदाष प्रथा, सिी प्रथा एवं दहे ज इन कुप्रथाओं का पश्िाि ् संस्कृति
के कारण ही घोड़ा अंकुश लग सका है .
* पत्श्िमी सभ्यिा से हम प्रतिस्पधाषत्मक दतु नया में कदम रख पाए हैं. अब हम भारिीय भी बबना संकोि आगे बढ़ रहे हैं.
* महहलाओं के प्रति सम्मान की भावना बढ़ी है . महहलाएं घर की िारदीवारी से बाहर तनकलकर खुली हवा में सांस ले पा रही है .
*हमें पत्श्िमी सभ्यिा की िरह यािायाि तनयमों का कड़ाई से पालन करना होगा िाकक अब घािों की संख्या में कमी लाई जा सके|
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प्रश्नावली
* कला और संस्कृति हमें कैसे एकजुट करिी है ?
* ककिनी प्रगतिशील और आधुतनकिा के साथ?
* तया जहटलिाओं में उलझी हुई है ?
* रूहढ़वादी परम्पराएं तया है ?
* भारिीय परम्पराओं के पररप्रेक्ष्य में संयुति पररवार व एकल पररवार के लाभ व हातन?
* पत्श्िमी संस्कृति का भारिीय संस्कृति पर सकारात्मक प्रभाव?
* भारिीय संस्कृति की त्तवशेर्िा बिाएं?
* घम
ू र नत्ृ य ककस राज्य का लोकनत्ृ य है ?
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