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परं परागत माïता के अनुसार जब बोिधसÜ िसOाथ# गौतम (पािल, बोिधसÇ िसOØ
गोतम) ने उनतीस वष# की आयु म< संïासी (Yागी) बनने के िलये घर छोड़ा, तब से
संïास1 की यह चाम´ाiरकता सव#_ापी और बÖिवध दोनों ही बन गई।2 ~≥न्
(सव¥¢ वा;िवकता) का éान उ¢तम आVाWXक KाWL माना जाता था और यह
माना जाता था िक ~≥न् की KाWL के दरवाजे को िजस चाबी से खोला जा सकता है
वह है संïास के माVम से Yाग (पािल, चाग) अथा# त् उदारता के साथ उन सभी
व;ुओं का Yाग जो अWßता की KाWL म< बाधा बनती हt । उदाहरण के िलये, जैसा
कैवåोपिनषद् ने इं िगत िकया, एक सुिवचाiरत और सुिनिµत िवqास था िक ‘न कम¨
से, न संतान और धन (-अज#न) से (बW™) केवल Yाग से अमरता KाL होती है ।ʼ (न
कम#णा न Kजया धनेन, Yागेनैकेन अमृतÜम् अनशुः) (Radhakrishnan 1953:
927) संïास की इस सुKितित पiरपाटी का अनुगमन करते Öए, कई अï _W`यों
की भाँ ित, युवा िसOाथ# गौतम गृहAथ के 7प म< अपनी भूिमका का पiरYाग कर
धािम#क-आVाWXक खोज के जीवन हे तु õयं के साव#कािलक समप#ण के उ£े § से
समाज से बाहर िनकल आए। इस कालखंड म< उनके जैसे संïासी πमणकता#
(पiर∫ाजक, पiरªाजक/पiरभाजक) और भोजनयाचक (िभ=ु, िभºु) के 7प म<
जीते थे (Kaelber 1989: 110) जो न केवल अपनी मूलभूत आव§कताओं की पूित#
के िलये परं परागत उपायों का पालन नहीं करते थे बW™ õयं को गृहAथों के दो
दाियaों से मु` भी मान लेते थे। पहला अपने अपने पiरवार की मूलभूत
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िवq की सम; व;ुओ,ं आं तiरक और वाΩ दोनों, का पiरYाग।
2
हालाँ िक परं परागत 7प से Wæयों और पुòषों के िलये संïास उनके जीवन के अंितम वष¨ म<
िविहत था, उन युवा ~≥चाiरयों (अिववािहत िवrाथ[) के िलये एक िवकø के 7प म< यह
उपल¿ था जो शां ित और आVािमकता से Kेiरत जीवन जीने के उ£े § से सां साiरक एवं
भौितक इêाओं के पiरYाग mारा गृहAथ एवं वानKAथ के ;रों को लाँ घ सकते थे
(Radhakrishnan 1922:1-22; Bhavuk 2011: अVाय 5)। तथािप आरं िभक मVकाल के
दौरान संïास की माïताओं म< एक Kचंड पiरवत#न को Aथान िमला। लगभग बारहवीं शती म<
अरबों और तुक¨ mारा भारत पर आ≠मण और इ¡ामी शiरया की माïता से अनुKेiरत
शासन की Aथापना के बाद कुछ शैव और वै¬व संïािसयों ने युOक कलाओं को िवकिसत
कर, सैï रणनीितयों को सू>बO करते Öए छलयुO कला अपनाकर योOाओं के 7प म<
अपना काया पलट कर िलया (Lorenzen 1978: 61-75)।
आव§कताओं की पूित# का दाियa था। दू सरा अपने माता-िपता की वृOावAथा म<
उनकी दे खभाल करने (िपतृ ऋण) का दाियa था।
इसके अलावा, धािम#क याचक होने के कारण, इन िविशÄ पiरYािगयों ने
अपनी मूलभूत आव§कताओं को दiरƒता के ;र तक घटा कर उनकी पूित# या तो
िभ=ा के माVम से या सीधे Kकृित से की। जबिक इनम< से कुछ पिथकों और
तपWõयों ने _W`गत 7प से अपने ल≈ का पीछा िकया, दू सरों ने सुसंगिठत समूहों
के 7प म< õयं को एक गुò के आसपास एक> िकया। इन पiरYािगयों म< अिधकां श
ने अपने ल≈ों की KाWL के ≠म म< िविभQ Kकार के आXसंयमों का अनुशीलन
िकया। ये अितसंयमी Kथाएँ िजनका पालन वे अपनी शारीiरक काम-वासनाओं के
दमन अथवा उनसे पूरी तरह छु टकारा पाने के िलये करते थे, इनम< मौन∫त जैसे
उपायों से लेकर एक हाथ को हमेशा हवा म< उठाए रखना (ऊ∆#-बाÖ), बैठे या खड़े
रहने की WAथित मा> म< ही सोना और कभी भी न लेटना, जटाजूट रखना, पेड़ की जड़
(मूिलकÇ) म< एकांतवास करना, गंदगी और धूल से लथपथ (पंसुगुंिठत) रहना, और
स«ूण# 7प से व हर मौसम म< नãता को अपनाने जैसी अYिधक शारीiरक संताप
दे ने वाली दै िहक मुƒाएं सWÉिलत थीं (Rhys Davids and Carpenter 1890-1911:
i.161-177; Trenckner and Chalmers 1888-1896: i.387-392; iii.41; Feer
1884–1898: 197)।
इन घुम»ड़ों और तपWõयों ने चेतना की 7पां तiरत अवAथा की उäिÇ
mारा संसार की Kकृित की गहरी समझ KाL करने के ल≈ के साथ अपनी कठोर
साधना पOितयों को एकाoता (Vान/झान, समािध) की कुछ रीितयों के साथ िमिûत
भी िकया। इन कठोर साधना पOितयों और Vान-तकनीकों के िविभQ संयोजन
संसार की समझ को बौWOक 7प से तक#संगत बनाने के ल≈ के साथ कई दाश#िनक
…िÄकोणों के उ^व के 7प म< फलीभूत Öए।
छह साल के संïास के दौरान, िसOाथ# गौतम ने िविभQ आचाय¨ का
अंतेवासी होने के साथ-साथ सहवत[ व समòिच πमणशील धािम#क अ ेषकों की
संगत म< पiरûम िकया। Àोतों ने िवशेष 7प से दो िश=कों का उpेख िकया है,
िजuोंने सम; संभा_ता म< उu< Vान तकनीकों के दो िभQ 7पों का िनदÃ श िकया
(Wynne 2007: 8-23)। वह Kथम आचाय#, िजनके िनदÃ शन म< उuोंने कुछ समय
_तीत िकया, आळार कालाम (आराड कालाम) थे। बोिधसÜ िसOाथ# ने आळार
कालाम के इस दावे को पया# L िवqसनीय और Kेरणादायक पाया िक यिद उनका
धम# उनके िनदÃ शानुसार अनुशीलन िकया जाए तो उसे शीÕ ही õयं mारा अपने õयं
के धम# के 7प म< पाया जा सकता है । उuोंने अनुभव िकया िक एक _ावहाiरक
िसOां त तभी िवqसनीय और असंिदŒ माना जा सकता है जब उसे अø समय म<
õयं साकार िकया जा सकता हो। इस Kकार वे आळार कालाम के कथन से संतुÄ थे
िकजो कुछ वे _W`गत 7प से जानते हt उसका सा=ा´ार उuोंने õयं िकया था।
कुछ ही समय म< बोिधसÜ िसOाथ# ने उस धम# को जान िलया जो उu< Vानी (पािल
झािनक) लोगों के अनW;a (आिकœ–ञायतन)3!के =े> िजतनी दू री तक ले गया।
अiरयपiरयेसना सुÇ आळार कालाम का उu< यह बताते Öए उpेख करता
है िक वे उu< इससे अिधक कुछ नहीं िसखा सकते, वे कहते हt “अब तुम वैसे ही हो
जैसा मt ëँ । अब हमारे बीच म< कोई अंतर नहीं है । यहीं रहो, मेरा Aथान oहण करो
और मेरे साथ मेरे िवrािथ#यों को िश=ा दो” (Trenckner and Chalmers 1888-
1896: i.160-175)। िकंतु ऐसी Kि≠या के Kित उदासीन होकर जो अपने सव¥Çम
7प मे अनW;a (सातवाँ Vान, यिद अ7पी पiरमंडल Vान के 7प म< िगने जाएँ
तो) तक ही ले जाने लायक है और यह जानकर िक आलार के सामी“ म< अब वे
और Kगित नहीं कर सकते, बोिधसÜ िसOाथ# उ£क रामपुÇ (उƒक रामपु>) का
3
िकसी भी व;ु की अनुपWAथित के शाW”क अथ# का धारक पाiरभािषक श” आिकœïायतन
या आिकœ–ञायतन वह अवWAथित है िजसम< 7पाकारमु` जीव इस िवचार पर अAथायी
Vान करते हt िक “कुछ भी मौजूद नहीं है ।” इसे KY=ीकरण की ऐसी अवAथा के 7प म< दे खा
जाता है जो अYिधक सू‘ है । दू सरी शता”ी के महाKéापारिमताशाæ के अनुसार
आिकœïायतन “संपूण#तः अभाव की अवWAथित” को संदिभ#त है और चार आ7“समापिÇयों
(7पाकारहीनता को आXसात् करना) म< एक का Kितिनिधa करता है । 7पाकारहीनता को
आXसात् करने के चार चरणों म< एक नैवसंéा-न-असंéा-आयतन सव#दा अशुO (साÀव) है ।
आकाश-अन’-आयतन कभी अशुO (साÀव) और कभी शुO (अनाÀव) है । िफर उuोंने
आळार से पूछा िक ®ा उनके mारा सा=ा´ृत और सहगामी “अW;aहीनता” उसी ;र की
थी िजसे अब बोिधसÜ िसOाथ# ने संपािदत िकया है । आळार ने õीकाराXक उÇर िदया
(Wynne 2007: 76)। यिद अशुO हो तो आकाश-अन’-आयतन चार अशुO समु¢यों
(साÀव-k÷) से यु` होता है और यिद यह शुO हो तो चार शुO समु¢यों से यु` होता है ।
ऐसी ही समान WAथित िवéान-अन’-आयतन और आिकœïायतन की भी होती है
(महाKéापारिमताशाæ, अVाय ३२)। आळार कालाम आिकœïायतन को उ¢तर
7पाकारहीन िवq मानते थे जहाँ अब पदाथ# का कोई अW;a नहीं होता और उनकी …िÄ म<
यह संबोिध के समतुå था (दे ख< Chinese Buddhist
िनषेध के ठीक आगे जाकर उस दे हरी पर WAथत होते हt जहाँ वे “अनुभूित” (संéा, स–ञा) म<
उलझे/बँधे तो नहीं होते िकंतु पूण#तया चेतनाहीन भी नहीं होते।
िलये, उu< अपने शरीर को पुÄ करने और िफर से बलशाली बनाने की आव§कता
थी। इस Kकार, उuोंने संतुिलत मा>ा म< खाना-पीना शु7 िकया। उनके पां च सािथयों
ने सोचा िक ऐसा करके बुO ने संïास की मया# दा का उpंघन कर िदया है और
पथπÄ हो गए हt । फलõ7प उuोंने अपनी राह< अलग कर लीं और उu< उनके
अपने हाल पर छोड़ िदया।5
अब ›Ä-पुÄ Öए õयं को उuोंने पूवा# िभमुख होकर उस पीपल (ficus
religiosa) वृ= के नीचे आसीन कर िलया जो बाद म< बोिधòº या बोिधवृ= (संबोिध
का वृ=) के नाम से िवÿात Öआ।6 अवसर था वैशाख मास की पूण# चंƒ राि> (वैशाख
पूिण#मा) का और उनका चरम संकø था “भले ही केवल aचा, धमिनयाँ और
अWAथयाँ ही शेष रह< , भले ही मेरे शरीर म< र` और मां स सूख जाए िकंतु संपूण#
संबोिध KाL िकये िबना मt इस आसन का Yाग नहीं क7 ं गा” (Fausböll 1877-
1897: i.71)। Kारं िभक वृÇां त अिथकतर चार Vानों के िनरं तर अfiास से तीन 'éानों'
(ि>िवrा, तेिवflा) की लW¿ के चरमो´ष# के 7प म< दु ःख (दु º), उसका कारण,
उसका िनदान और उसके िनदान की ओर ले जाते पथ के संदभ¨ के साथ
सामाïतया ‘औपचाiरक 7प से मनोवैéािनक पाiरभािषक श”ों’ म< बोिधKाWL का
वण#न करते हt; जो ‘चार आय# सYों’ (चaाiर आय#सYािन, चÇाiर अiरय स¢ािन) के
7प म< éात है ।िनभ#र उ^व (KतीYसमुäाद, पिट¢समुçाद) की कारणाXक
‡ंखला म< अंत…# िÄ की KाWL के साथ ही साथ उ¢तर éान (अिभéा, अिभ–ञा)
5
बोिध KाL करने के बाद, बुO ने उनसे भ<ट की और उu< अपना पहला Kवचन िदया।
Kारं िभक oंथ संकेत करते हt िक पहले तो उuोंने उनपर ·ादा Vान दे ने से इनकार कर िदया,
लेिकन धीरे -धीरे बुO की Kेरक शW` ने उनका िदल जीत िलया और वे उनके पहले िश◊ बन
गए। यह सुझाव िदया गया है िक बुO के िश=ण म< कुछ òझानों का ûेय इस समूह के सद‚ों
को जाना चािहये। वा;व म<, सी.ए.एफ. राइस डे िवड् ज़ (C.A.F. Rhys Davids) उu< “बौO
धम# के अéात सह-संAथापक”कहने तक चली जाती हt (1927: 193-208)।
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ऐसा Kतीत होता है िक बोिधसÜ िसOाथ# इसी िविशÄ पीपल वृ= की ओर ही आकृÄ Öए
®ोंिक यह “पहले से ही Aथानीय उपासना का िवषय” था और एक कामचलाऊ पूजन वेदी या
;ूप या बाड़ाबंदी जैसे िकसी कारणवश अलग िदखता था जो इसे अपने पiरवेश से िभQ
चैYवृ= (ßृितवृ=) के 7प म< Aथािपत करता था (Coomarswamy 1935: 3-4; Myer 1958:
278)। समूची सtधव परं परा म< िकसी भी चैYवृ= को आहत करना õीकाय# नहीं है चूँिक ऐसे
वृ= दे वों, य=ों और दु राXाओं का िनवास इYािद माने जाते हt (Ganguli 1976: Xll. 69.39)।
अथा# त् धम# (धÉ) के KY= बोध के 7प म< बोिध की KाWL का वण#न िकया गया है
(Trenckner and Chalmers 1888-1896: i.21-23,167; Rhys Davids and
Carpenter 1890-1911: ii.30-35)। दं तकथा भी 'मार' (मृYुदेव) के साथ बोिधसÜ
(बोिधसÇ) की मुठभेड़ की पाiरभािषकता म< बोिध को रे खां िकत करती है । 'मार'
शैतान का मानवीकरण उतना नहीं है िजतना िक वह ऐसा भयानक िनयं>ण है िजसे
संसार‒ िवशेषतया इं िƒयो‰ुख संसार‒ िकसी _W` के िचÇ पर बनाए रख सकता
है । 'मार' व;ुतः अरि=त िचÇ को लुभाने और फँसाने वाले सभी Kकार के अनुभवों
का शW`शाली शासक है । इस Kकार 'मार' mारा Kलोिभत होकर _W` संसार के
आकष#ण म< तpीन और खोया रहता है । फलõ7प वह उस पथ को पाने म< समथ#
नहीं होता जो दु ःखों के िनरोध की ओर ले जाता है । अतएव जैसे ही बोिधसÜ अपने
संकø के Kित …ढ़ होकर पीपल वृ= के नीचे आसीन Öए, अपने िवशाल हाथी पर
सवार 'मार' वासना, पतन, भूख और “ास, तृ¬ा, आल‚, िनƒा, भय तथा संदेह की
सेना लेकर आ पÖँ चा।
उसका एकमेव उ£े § बोिधसÜ के संकø को िडगा कर पीपल वृ= के
तले उनके आसन का उनसे Yाग कराना था। वे दे वगण जो बोिधसÜ की संबोिध की
KYाशा म< वृ= के आसपास एक> थे, मार की आगे बढ़ती सेनाओं को दे खते ही सींग
समाने की िदशा म< भाग गए और बोिधसÜ उन सब का सामना करने के िलये अकेले
छोड़ िदये गए। मार ने उनसे पूछा िक िकस अिधकार से वे उस वृ= के तले आसीन
Öए। उuोंने उÇर िदया िक अनिगनत कøों तक पारिमताओं का अfiास िकये होने
के अिधकार से ऐसा था। िकंतु मार ने िटçणी की िक उसने भी ऐसा ही िकया Öआ है
और इससे भी बढ़कर उसके पास इसे Kमािणत करने के िलये सा=ी भी मौजूद हt
अथा# त् उसकी समूची सेना उसकी सा=ी है और पूछा िक “िकंतु तुÂारे िलये खड़ा
सा=ी कौन है ?”!तब बोिधसÜ ने अपना दािहना हाथ ऊपर उठाया और õयं भूिम
को ही अपने सा=ी के 7प म< पुकारते Öए धरती को Zश# िकया। इसे ही भूिमZश#
मुƒा के 7प म< जाना गया। यह मार की पराजय और बोिधसÜ की संबोिध को
िचिÊत करती है जो इसके बाद बुO बन गए। जैसे ही बुO ने धरती को Zश# िकया,
मार अपने हाथी से अपदAथ हो गया और उसकी सेना के पैर उखड़ गए। संसार के
लुभावनेपन के िवòO बोिधसÜ के संघष# के अितiर`, इस दं तकथा म< कोई भी उन
किठनाइयों को दे ख सकता है िजनका सामना अपनी संबोिध के ठीक पहले और
उसके बाद गया धम#=े> के पु• Aथान म< िह¤ेदारी के िलये बुO को, और साथ ही
साथ िविभQ KितZध[ प=ों को भी, करना पड़ा होगा।
सबसे Kारं िभक परं परा तक उस कथा से िनकटता रखती िदखती है िजसम<
Kमुख दे वता सह«ित ~≥ा õयं ही बुO के सÉुख आ खड़े होते हt और उनसे लोगों
को िश=ा दे ने का अनुरोध करते हt । ऐसा Kतीत होता है िक यह िकंवदं ती यह संकेत
दे ने की युW` के 7प म< रची गई थी िक बुO की ûेता उस समय के पूव#तः माï
दे वताओं mारा भी õीकृत थी। कुछ समय बाद ~≥ा सह«ित mारा की गई दू सरी भ<ट
ने यह भी Aथािपत कर िदया िक बुO को िकसी िश=क की कदािप आव§कता नहीं
थी ®ोंिक वे õयं ही एक िश=क थे। भूत-Kेतों, रा=सों, आXाओं, अध#देवों और
दे वताओं का संसार बौO परं परा के संसार म< समािहत और िमिûत कर िदया गया।
बुO की संबोिध को िचि>त करती Kारं िभक K;र कला इन सभी को महाबोिध वृ=
के चतुिद# क् एकि>त होकर उनकी उपलW¿ को õीकार करता Öआ िदखाती है ।
तथागत की जीवनशैली के õ7प की बौO समझ संघ को समo 7प से
समाज का एक महÜपूण# िह¤ा मानती है । इसिलये बोिध KाWL के तुरंत बाद जब
वह नवदीि=त िश◊ अनुयािययों को KAथान करने का िनदÃ श दे ते िदखाए जाते हt तो वे
उनम< िकनहीं दो को एक ही िदशा म< उस धम# के Kचार हे तु जाने से मना करते हt जो
“आरÁ म< सुहावना, मV म< सुहावना, और अंत म< सुहावना,”!तथा “मानवता के लाभ
और खुशी के िलये, दु िनया से सहानुभूित के िलये, दे वताओं और पुòषों की भलाई,
लाभ, और खुशी के िलये है”!(Oldenberg 1879-1883: i.20-21)। यह संघ के िलये
साधारण भत[ अिभयान की तुलना म<,बौOों की कहीं अिधक बड़ी काय#सूची को
Kदिश#त करता है ।
Kाचीन भारत म< बौO संघ का इितहास समझौतावाद की एक ûृंखला थी
िजसके फलAõ7प संïास की Kाचीन संAथा म< एक ≠ां ितकारी पiरवत#न आया।
उनसे पहले के संïािसयों के िवपरीत, बुO ने गृहAथों के साथ संपक# बनाए रखने पर
ज़ोर िदया तािक वे उनके साथ धÉ साझा करके उनकी आVाWXक 7प से मदद
कर सक<। इसी उ£े § से, िभ=ुओं और िभ=ुिणयों को दु पहर के भोजन के िलये
गृहAथों से आमं>ण õीकार करने की अनुमित दी गयी, तािक उu< धम#देशना के िलये
एक अêे अवसर के 7प म< इसका Kयोग िकया जा सके। हालां िक, इस िवकास का
एक महÜपूण# पiरणाम यह Öआ िक संïास का कुछ हद तक गृहीकरण हो गया।
फलõ7प, संघ को मानव बW;यों के पास आवासीय मठों की Aथापना करने की
अिनवाय# आव§कता का सामना करना पड़ा, िजसके पiरणामõ7प धीरे -धीरे
संïास म< WAथर जीवन पOित का िसWËला शु7 हो गया, िजसके िनषेध कीदे वदÇ ने
मां ग की थी (दे ख< Dutt 1962: 26)। बौO िभ=ु और िभ=ुिणयां भले ही समाज का
Yाग करने वाले रहे हों, लेिकन िवनय की Kितभा इस तÈ म< िनिहत है िक उu<
समाज से अलगाव के िलये बुला लेने के बाद, उसने उनके िलये समाज पर िनभ#रता म<
जीना आव§क कर िदया,!इसके फलõ7प, समाज से सÍंध उनकी मजबूरी बन
गया। िवशेष 7प से, आरामवासी और गृहAथ समुदायों का परZर संपक# िवनय mारा
िनधा# iरत जीवनशैली का KाणतÜ है । सुजाता का भोजन अप#ण भी समाज पर
िनभ#रता का rोतक है ।
यrिप बुO तेभाितक जिटलों और सूिचलोम व खर7 नामक य=ों (पािल,
यºों) को चम´ार िदखा कर (जो उनके अनुसार अवां छनीय और खतरनाक था
(दे ख< Nyanaponika 2012: 89; Keown 2013: 96) उन पर जीत हािसल करने म<
सफल रहे ; तब भी गया धम# =े> म< उन का Kभाव सीिमत रहा। उpेखनीय है िक
गया धम#=े> उनके चचेरे भाई दे वदÇ के नेतृa म< उनके िवरोिधयों का एक महÜपूण#
क<ƒ बन गया और संघ की Aथापना के बाद इस =े> म< बुO के दो से अिधक दौरों की
जानकारी नहीं िमलती। भले ही भ`ों ने बुO के जीवनकाल म< ही या िफर उस के
तुरंत बाद इस éानोदय Aथल की तीथ#या>ा आरÁ कर दी थी, गया धम#=े>म< संघ
कोई बÖत सि≠य िदखाई नहीं पड़ता। वा;व म<, गया धम#=े> के भीतर बौO धम# की
उपWAथित मुÿ 7प से महाबोिध वृ= और खुली हवा म< WAथत बोिधघर,!जो िनिµत
7प से सÎाट अशोक के समय तक अW;a म< आगया था, तक ही सीिमत थी।
बोिधमंड (महाबोिध वृ= की जड़) और बुO के जीवन की महÜपूण# घटनाओं से जुड़े
अï Aथानों के अशोक के ûOालु दौरे से भारत म< तीथ#या>ा को एक बड़ा बढ़ावा
िमला। यही वह समय था जब बौO धम# एक दाश#िनक Kणाली से वा;िवक लोकिKय
धम# म< बदल गया। शुंग काल (िmतीय से पहली शता”ी ईसा पूव#) के बाद से
महाबोिध वृ= और éानोदय Aथल की तीथ#या>ा एक Aथािपत Kथा बन गई है । गुL
काल (लगभग ३१९-५७० ई.) तक, अंतरराÄÅीय तीथ#या>ी इतनी बड़ी संÿा म< आने
लगे िक ûीलंकाई राजा ने महाबोिध वृ= के पास अपने िभ=ुओं के िलये एक Aथायी
सुिवधा बनाने की अनुमित हे तु भारतीय राजा समुƒगुL से संपक# िकया। फलõ7प,
राजा समुƒगुL ने सÁवतया बोिधघर की दे खरे ख के अिधकार सिहत ûीलंका को
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Kाचीनतम बौO Aथल िविभQ Kकार के य=ों की पूजा से िनकटता से संबंिधत हt , िजन म< से
कई बुO mारा बौO धम# शािमल कर िलये गए थे। आरÁ म<, ये य= जंगलों वगां वों के नाममा>
दे वता थे। इस तरह के õां गीकरण की खर व सूिचलोम एक KिसO उदाहरण हt । इन य=ों के
कुछ पूव#-बौO िहं दू मंिदर, जहां पेड़ों की पूजा की जाती थी, उu< या तो “बौO धम# के पु•
Aथानों” म< बदल िदया गया था (दे ख< Samuel 2010: 140-152) या िफर वे िहं दुओं व जैनों के
साथ साँ झे धम#Aथल बन गए। बोिध वृ= इस तरह के साँ झाकरण का एक िवशेष उदाहरण है ।
िवहार बनाने के िलये भूिम का एक टु कड़ा िदया। काफ़ी सÁावना है िक गुL कल म<
ûीलंकाइयों ने ही, जो Aथान पर स«ूण# िनयं>ण रखते थे,!बोिधघर की जगह पर टॉवर
जैसे ईंटों के मंिदर का िनमा# ण िकया या िफर इसके िनमा# ण म< कोई न कोई महÜपूण#
भूिमका िनभाई। यदाकदा िहं दू िनयं>ण को छोड़कर, ûीलंकाई Kभुa बारहवीं
शता”ी के अंत तक जारी रहा जब =े> म< तु7षकों (तुक¨)!के आ≠मणों के कारण
मंिदर पiरYÏत हो गया और यहाँ पर मुÿत: बौO तीथ#याि>यों ने आना बंद कर
िदया। चार शताW”यों बाद, िहं दू शैव महं त िगiर संïािसयों ने महाबोिध मंिदर की
दे खभाल शु7 की और अंतरराÄÅीय तीथ#याि>यों का िफर से आना धीरे धीरे शु7 हो
गया।
एक िव;ाiरत Kवेश mार के साथ पाँ च िशखरों वाला मंिदर, जो हम अब
दे खते हt , मोटे तौर पर उQीसवीं शता”ी के अंितम चतुथाÌ श का एक ‘नवीनीकरण’ है
जब मंिदर की मूल संरचना के Kमुख खंडों को या तो उखाड़ा गया, ढं का, हटाया गया,
या िफर बढ़ाया गया। महाबोिध वृ= का एक नया पौधा १८८१ म< लगाया गया था
®ोंिक पां च साल पहले एक तूफान म< यह पेड़ िगर गया था। उQीसवीं शता”ी के
समापन के वष¨ म<, िवhोiरयाई भारतिवदों (Victorian Indologists) के Kभाव म<,
ûीलंका के अनगाiरक धम#पाल ने महाबोिध मंिदर के िनयं>ण के िलये महं त के
Wखलाफ एक अिभयान शु7 िकया। यह अिभयान एक अदालती मामले म< बदला जो
कलकÇा उ¢ ïायालय म< धम#पाल की हार और बम[ रे Ô हाउस से उनके
िनóासन के बाद समाL Öआ। हालां िक, महाबोिध मंिदर की धािम#क Kकृित और
के के संबंध म< Öआ िववादचलता रहा। õतं>ता के पूव# भारतीय राÄÅीय कां oेस,
िवशेष 7प से बाबू राज<ƒ Kसाद और महाXा गां धी जैसे नेताओं,!के Kयासों ने केवल
आग म< ईंधन डाला। भारतीय राÄÅीय कां oेस की तरह, जैनों, बौOों, और िसखों को
िहं दू धम# का अिवभा· अंग मानने वाली िहं दू महासभा ने भी इस मु£े को सुलझाने म<
मदद करने की कोिशश की। हालां िक, सम‚ा इस तÈ के बावजूद अनसुलझी रही
िक जब १९३५ के दौरान िबहार िवधानसभा म< मंिदर के Kबंधन से संबंिधत एक
िवधेयक पेश िकया गया था, तो िहं दू महासभा ने यह Ôt ड िलया िक महाबोिध मंिदर
को बौOों को सौंप िदया जाए।
अंत म<, आजादी के बाद िबहार रा· िवधानसभा इस कँटीले मु£े पर कानून
बनाने म< स=म रही। इसने बोधगया मंिदर अिधिनयम (१९४९) पाiरत िकया, िजसने
चार िहं दुओं और चार बौOों के संयु` िनयं>ण म< महाबोिध मंिदर का Kबंधन सौंप
िदया। हालां िक, मंिदर के मामलों की Kबंध सिमित के अV=,!िजसका िहं दू होना
अिनवाय# था, के 7प म< Kबंधन म< िहं दुओं को थोड़ा फायदा Öआ। इसिहं दू-अनुकूल
WAथितका अंत िबहार के मुÿमं>ी नीतीश कुमार ने २०१३ के बोधगया मंिदर
(संशोधन) अिधिनयम के माVम से िकया, िजसके तहत Kबंधन का अV= िकसी भी
धािम#क आoह का _W` हो सकता है । इस बीच, जून २००२ म< नई िदpी म< संKग
(UPA) सरकार ने महाबोिध मंिदर पiरसर को यूनेkो (UNESCO) के िवq धरोहर
ßारक के 7प म< घोिषत कराने म< सफलता KाL की, िजससे इसे िवशेष 7प से
एक 'बौO ßारक' के 7प म< माïता िमली और इस तरह इसके बÖसंयोजक
धम#Aथलीय चiर> को गंभीर झटका लगा।
अ'ाय २
गया धम56े8 और इसका पड़ोस
गया का पु• Aथल, ऐितहािसक 7प से गया धम# =े> या गया-तीथ# के 7प म< जाना
जाता है , जो सtधव (भारतीय) धािम#क परं परा के अनुयािययों के िलये तीथ# या>ा का
एक महÜपूण# =े> है। बुO के समय, इसम< तीन बW;याँ थीं, अथा#त् गया, उòवेळा,
और सेनािनगम।8 गया महाÒ म<, जो वायु पुराण का एक खंड है और िजसे आठवीं-
नौवीं शता”ी ईõी की रचना माना जा सकता है , गया-तीथ# से संबंिधत एक िव;ृत
पौरािणक कथा है ,िजसम< धम# =े> म< पैतृक संkारों से जुड़े ३२४ पु•Aथलों की सूची
दीगई है (Tagare 1987: 596-609)। िव¬ु पाद मंिदर9 के चारों ओर WAथत ये पु•-
Aथलों गया-तीथ#, जो २.५ ≠ोष (आठ और दस िकलोमीटर के बीच)10 का वृÇाकार
8
कुछ oंथों म< इसे सेनानीिनगम और सेनापितoाम का नाम भी िदया गया है ।
9
लगभग िव¬ुपाद से महाबोिध वृ= तक (दे ख<, Kane 1974-1997: ii.667).
10
पारं पiरक भारतीय िवmानों mारा अपनाए गए िविभQ मानकों के आधार पर ≠ोष की लंबाई
लगभग १.९ से २.५ मील के बीच की दू री बनती है । वा;ुशाæ के अनुसार (दे ख< Lubotsky
2011, Monier-Williams 1911), लंबाई और दू री पारं पiरक 7प से इस Kकार मापी जाती
है –
८ परमाणु = १ रöधूिल (रथ-धूल)
८ रöधूिल = १ वालाo (बाल का िसरा)
८ वालाoा = १ िल=ा (लीख)
८ िल=ा = १ यूक (जूं)
८ यूक = १ यव (जौ)
८ यव = १ अंगुल (अंगुली)
१ अंगुल = ०.६४ से ०.८४इं च
१२ अंगुल = १ िवतW; (हाथ-फैलाव– अंगूठे की नोक और आWखरी अंगुली की नोक के बीच की
दू री जब हथेली पूरी तरह से खुली होती है ) = ७.६८ से १०.०८ इं च
२ िवतW; = १ ह; (सबसे लंबी उं गली और कोहनी के िसरे के बीच की दू री) = १५.३६ से १६.१६
इं च
४ ह; = १ दं ड = ६०.५ से ७९.२ इं च
२ दं ड = १ धनु = १२१ से १५८.४ इं च या ३.३६ से ४.४ गज
५ धनु = १ रflु = १६.८ से २२ गज
२ रflु = १ पiरदे श = ३३.६ से ४४ गज
=े> है ,!को िचWuत करते हt । इसी २.५ ≠ोष के वृÇाकार =े> के भीतर दि=ण म<
महाबोिध वृ= भी शािमल है िजसकी पूजा िप⁄दान11 की रß के चौथे िदन की जाती
है (Śāstri 1909:1070, 1081. Singh 2012: 512 भी दे ख<)।
महाबोिध वृ= के त´ाल िनकट के =े> म< WAथत सबसे पुरानी ब;ी
उòवेळा (संkृत, उòिवÚा)12!नामकगामिनगम13 थी (Feer 1884–1898: i.103ff;
v.167, 185; Fausböll 1877-1897: 68)। उòवेळा की यह नवपाषाण युगीन ब;ी
बारहवीं शता”ी म< तुòó नरसंहार के आरWÁक समय तक कुछ उनींदी सी oामीण
ब;ी थी। बुO के éानोदय के बाद, पिव>चेितयवृ=/वनचेितय महाबोिध वृ= के 7प
म< और उसके इद# िगद# का संपूण# =े> महाबोिध पiरसर के 7प म< लोकिKय हो गया।
बाद म<, िवhोiरयाई भारतिवदों ने बोधगया के 7प म< इस Aथान का बपितßा कर
िदया, जबिक अठारहवीं शता”ी म< उuोंने ~≥गया या िहÛदू गया के िवरोिध Kितप=
और उससे पीिड़त के 7प म< इस Aथल का िच>ण करना शुò कर िदया था।
पु• Aथल के 7प म< बोधगया के साथ बुO का एक सश` संयोजन है
और महाबोिध मंिदर पiरसर के भीतर की अिधकां श संरचनाएं बुO के बोिध KाL
करने के तुरंत पहले और बाद के आVाWXक जीवन से सीधे जुड़ी Öईं हt । िजस Aथान
पर बुO ने बोिध KाL की थी उसे पूजने की Kथा यिद बुO के अपने आVाWXक
जीवनकाल के दौरान नहीं तो कम से कम महापiरिनवा# ण के तुरंत बाद अW;aम< आ
चुकी थी। उदाहरण के िलये, महापiरिनªान सुÇ म< यह उpेख िकया गया है िक
दे हतयाग से कुछ समय पहले, बुO ने आनंद से कहा था िक “चार Aथान ऐसे हt जो
ûOालुओं के बीच भावनाXक ता´ािलकता (संवेजनीयािन) की भावना को उÇेिजत
कर< गे ... और जो इन धम#Aथलों की ûOापूण# Ùदय से तीथ#या>ा करते Öए मृYु को
14
पािल िटिपटक के oंथों के अनुसार, महाबोिध वृ= गया से तीन गावुतों की दू री पर WAथत था
(Morris and Hardy 1885–1900: iv.320)।
15
एक योजना लगभग ७.६ से १० मील का होता है (फुट नोट 10 दे ख<)।
16
१९४९ के बोधगया मंिदर अिधिनयम के बाद तक गया की oामीण WAथित बनी रही। इसे १९६१
म< केवल एक क¯ा घोिषत िकया गया था, जब इसकी जनसंÿा िसफ# ६२९९ थी (दे ख< Singh
2012: 505)।
शहरीकृत क<ƒों से आए थे, उòवेळा, सेनािनगम, व गया की बW;यां, वा;व म<, उस
तरह के Aथान नहीं थे िजन के सहारे Kारं िभक संघ ने खुद को बनाए रखा था।
दू सरी बात यह है िक मुÿधारा के आरािमक (आराम-आधाiरत) बौO धम#
के िवपरीत, गया =े> शुOतावादी बौO धम#, जो मानव बW;यों से दू री की जीवन-
शैली को Kाथिमकता दे ता था और दे हात व जंगल (अर•,अर–ञ) म< िनिहत था,के
7प म< असंतोष का क<ƒ बन गया था। बुO ने बौO धम# कीआर•क धाराका पूरी
तरह से समथ#न नहीं िकया था और ऐसा Kतीत होता है िक उuोंने आरािमक धारा को
Kाथिमकता दी थी, िजसकी काय#-Kणाली नगरों के बाहरी इलाके म< WAथत मठों म<
रहने पर िनभ#रथी।17 ऐसा Kतीत होता है िक इसी कारण से, बुO के िनवा# ण के बाद
भी बौO धम# की आरािमक धारा, िजस पर संघ का वच#õ था, ने इस =े> की उपे=ा
की। ऐसा Kतीत होता है िक जब बुO ने पां च धुतों18 को लागू करने म< अपनी अिनêा
17
ऐसा Kतीत होता है, जैसा िक आर.ए. रे (R.A. Ray) ने कहा है,!दे वदÇ ने वनवासी बौO धम#
के साथ अचूकता से अपनी पहचान बनाई ®ोंिक यह तयशुदा आवासी आरामवाद के साथ
मेल नहीं खाताथा। “यह िसफ# इसिलए नहीं है िक वह वनवासी बौO धम# का पालन करते थे ,
वह तो एक वन संत थे, और वनवासी-आधाiरत Yाग की वकालत करते थे। इस से भी बढ़
कर, और अपने िवरोिधयों के …िÄकोण म< बदतर, उuोंने _वWAथत आरामवासी 7प को यह
कहते Öए पूरी तरह से नकार िदयािक वह इसे िब™ुल भी Kामािणक नहीं मानते हt ”!(Ray
1994: 171)। यह दे खना िदलचZ होगा िक संघ छोड़ने के बाद, दे वदÇ ने बुO के बोिध-KाWL-
Aथल के पास ही गयासीस# (गयासीस) म< अपना डे रा डाल िलया।
18
दे वदÇ mारा K;ािवत पां च अित-संयमी अनुशीलन ये थे–
(१). िभ=ुओं को जंगल म< अपना सारा जीवन िबताना चािहये (आर–ञक); यिद कोई अपने
आप को एक ब;ी के पड़ोस म< ले जाए, पाप (वfl)!उसे कलुिषत करे गा।
(२). िभ=ुओं को जीवनभर िभ=ा (िप⁄पाितक) से पेट भरना चािहये;! िजसने भोजन के िलये
िनमं>ण õीकार िकया, पाप उसे कलुिषत करे गा।
(३). िभ=ुओं को जीवनभर Yागे Öए कपड़ों से बने चीवर(पंसुकूिलक) पहनने चािहए;! जो कोई
भी िकसी _W` mारा िदया Öआ चीवर õीकार करे गा, पाप उसे कलुिषत करे गा।
(४). िभ=ुओं को जीवनभर एक पेड़ के नीचे रहना (òºमूिलक) चािहये, जो कोई भी छत के
नीचे रहे गा, पाप उसे कलुिषत करे गा।
(५). िभ=ुओं को जीवनभर मछली और मां स का सेवन कदािप नहीं करना चािहये (मêमंसं न
खादे ˘ुं), जो कोई भी मछली और मांस खाएगा, पाप उसे कलुिषत करे गा (दे ख< Oldenberg
1879-1883: iii.171)।
Kकट की, शुOतावादी बौOों के नेतादे वदÇ की राय म< पां च धुतों का उpंघन करना
पापपूण# था और इसिलए õीकाय# नहीं था। फलõ7प, दे वदÇ ने गयाके पास WAथत
एक KिसO पहाड़ी गयाशीष# (गयासीस) म< अपनी काय#िविधयों के मुÿालय की
Aथापनाकर ली (Oldenberg 1879-1883: i.34; Feer 1884–1898: iv.302); जहां
अजातश>ु ने, किथत òप से, दे वदÇ के िलये एक िवहार का िनमा# ण कराया था
(Fausböll 1877–1897: i.185, 508; ii.38f)।
तीसरा, गया धम#=े> सभी Kकार के साधकों के िलये न केवल अYिधक
KितZध[, बW™ आVाWXक 7प से, अित संकुिलत Aथान भी बन गया था। इसिलए
इस Kबल KितZध[ पु• Aथान म< अपने पैर जमाना उन जगहों की तुलना म< िनिµत
7प से कहीं अिधक किठन था जो हाल ही म< महÜपूण# राजनीितक-आिथ#क क<ƒ बने
थे और िजनका भौितक पiरवेश बौO धम# के अनुकूल था। गया धम#=े> म< बुO को
काफी दु जÃय Kितयोिगयों का सामना करना पड़ा। इस संबंध म<, तीन क§प बंधु
िजu< तेभाितक जिटलों के 7प म< जाना जाता है , सूिचलोम और खर नामक दो य=,
ÖÖं कजाितक जैसे िद˙मंगिलक ~ा≥ण, और उपक जैसे आजीवक, उpेख के
लायक हt ।इन धािम#क हW;योंसे आमना-सामना बुO की ओर से गया के Kित
असहजता की भावना की ओर जोरदार संकेत करता है । अKY= असहजता पािल
ितिपटक म< भी पiरलि=त होती है , जहाँ आAथावानों को याद िदलाया जाता है — “गया
म<... एक मूख# _W` भले ही िनरं तर पड़ा रहे , (उसकी) काली करतूत नहीं
धुलती”(गयं... िन¢ं िप बालो पºQो क˚हकÉो न सु¸ित) (Horner 1954-1959:
49; Trenckner and Chalmers 1888-1896: i.39)। बुO अपने अनुयािययों को
आगे याद िदलाते हt — “गया जा कर ®ा करोगे? (तुÂारा) कुआँ ही तुÂारे िलये गया
है ” (िकं काहािस गयं गंतवा, उदपाणो िप तेगयाित) (Trenckner and Chalmers
1888-1896: i.39)।
पािल-आधाiरत बौO परं परा,!बाराणसी के सारनाथ म< बुO mारा धम#च≠
काKवत#न करने के बाद, बुO को केवल दो बार गया का πमण करते दज# करती है ।
उनकी पहली या>ा सारनाथ के Kथम उपदे श के कुछ ही िदनों बाद Öई। इस या>ा के
दौरान, उuोंने अपना पहला वषा# वास उòवेळा के आसपास कçािसकवनसंड म<
िबताया, जब वे भ£वW‹या नामक तीस युवकों के अलावा, क¤प बंधुओं तथा उनके
iर˝ेदारों व अनुयािययों को बौO धम# के दायरे म< ले आए (Oldenberg 1879-1883:
i.23-24)।इस या>ा के दौरान, उuोंने गयासीस (Oldenberg 1879-1883: i.34;
Feer 1884–1898: iv.19; Morris and Hardy 1885–1900: iv.302) और
टं िकतमœ,19!(Andersen and Smith 1913: 47; Feer 1884–1898: i.207) की
या>ा की। गयासीस के िपWØपासाण पर उuोंने अिã Kवचन (आिदÇपiरयायसुÇ) का
उपदे श िदया, जो बुO के जीवन का तृतीय उपदे श माना जाता है िजसे सुनकर
तेभाितक-जिटल अरहं त बने थे (Oldenberg 1879-1883: i.34-35; Fausböll
1877–1897: i.82, iv.180)।
टं िकतमंच पर, य= सूिचलोम और खर, जो ऐसा Kतीत होता है िक चंडाल
समुदाय के दे वता थे, उनके अनुयायी बन गए। पािल-आधाiरत बौO परं परा के
अनुसार (Milley 2000: ii.434; Smith 1966-1972: i.302, 305; Woodward
1977: i.233), खर और सूिचलोम दो; थे और अपने िपछले ज‰ म< िभ=ु थे, जब वे
गया से गुजर रहे तब उनकी बुO से भ<ट Öई। दोनों को दे खने म< बÖत ही बदसूरत
विण#त िकया गया है और ऐसा लगता है िक चूंिक वे उनकी aचा के रं ग और अï
शारीiरक िवशेषताओं के कारण िभQ िदखाई पड़ते थे, उनका ितरkार िकया जाता
था।
संयुÇ िनकाय की अ˙कथासारØçकािसनी के अनुसार, गया गाँ व के Kवेश
mार पर कूड़े के ढे र पर एक य= के 7प म< सूिचलोम का ज‰ Öआ था
(Woodward 1977: i.302-305)। बुO ने दे खा िक उसके पास सोतापQ-KाWL की
=मता है और इसीिलए वे उसके िठकाने टं िकतमंच पर धÉदे सना के िलये गए
(Bodhi 2000: 475 fn. 563)। सूिचलोम को अपना नाम इस तÈ से िमला था िक
उसके शरीर पर सूिचकाओं (सूइयों) जैसे बाल थे। िदया गया ZÄीकरण यह है िक
वह अपने िपछले एक ज‰ म< क¤पबुO का अनुयायी था और धÉोपदे स सुनने के
िलये वह महीने म< आठ बार उनके िवहार म< जाता था। एक बार जब वह िवहार के
पास एक खेत म< काम कर रहा था और घंटे की आवाज़ सुनाई दी, तो वह खुद को
साफ िकये िबना िवहार के िलये िनकल गया ®ोंिक वह दे र से नहीं जाना चाहता था।
लेिकन वह एक महं गे गलीचे पर बैठगया और उसे गंदा कर िदया। फलõ7प,
उसके बाल सूिचकाओं की तरह हो गए। खर का एक ऐसे िभ=ु के 7प म< उpेख
िकया गया है िजसने िबना अनुमित के संघ से तेल ले कर अपने शरीर पर उसकी
19
सुÇ-िनपात की अ˙कथा, परमØजोितका के अनुसार, टं िकतमंच गया ितØ (गयातीथ#)! के
िनकट WAथत था और चार िशलाओं के शीष# पर WAथत एक मानव-िनिम#त पाषाण-मंच
(पासाणमंच) था (Smith 1966-1972: i.301)।
मािलश कर ली थी। फलõ7प, उसकी aचा खपरै लों से आêािदत छत की तरह
बÖत खुरदरी और मोटी हो गई थी। जब भी वह िकसी को डराना चाहता था तो
अपनी aचा को छत पर लगीं खपरै लों की तरह कर लेता था (Bodhi 2000: 475
fn565)।
संयुÇ िनकाय म< िदये गएसूिचलोम सुÇ !(Feer1884–1898: i.207-208),
सुÇ-िनपात (Andersen and Smith 1913: 47-49),!और सुÇ-िनपात की अ˙कथा
परमØजोितका (Smith 1966-1972: ii.301-05) औरसंयुÇ िनकाय की अ˙कथा
सारØçकािसनी (Woodward 1977: i.302-305) म< दी गई िटçणी के अनुसार,!
टं िकतमंच य= सूिचलोम का अ˛ा था। बुO को दे खने पर, खर ने सूिचलोम से िवमुख
िकया िक ®ा बुO एक स¢े तपõी (समण) थे। सारØçकािसनी (Woodward
1977: i.302-305) म< बताया गया है िक खरके Kˇ के जवाब म<, सूिचलोम ने यह
सोचकर कहा िक“जो मुझे दे खकर घबरा जाता है और भाग जाता है , वह एक ढोंगी
सïासी (समणक) है । जो भयभीत नहीं होता और पलायन करता है वह एक तपõी
(समण) है। यह, मुझे दे खकर, भयभीत हो जाएगा और भाग जाएगा” (Bodhi 2000:
475 fn.564)। य= ने एक भयावह 7प धारण िकया, अपना मुंह चौड़ा िकया, और
अपने शरीर पर सूिचका की तरह बाल उठाए। लेिकन वह बुO को डराने म< असफल
रहा। तäµात्, सूिचलोम उu< छूने के िलये उन पर झुक गया। लेिकन बुO ने õयं को
हटा िलया और उसेबताया िक उu< य= का Zश# पापमय (पापक) लगा िजससे मल,
अिã या िकसी जहरीले सां प की तरह बचना चािहये। इसके बाद य= ने बुO को
धमकी दी िक अगर उuोंने उसके सवालों का जवाब नहीं िदया तो उनकी हYा कर
दी जाएगी। यrिप बुO ने उसे बताया िक वह उससे नहीं डरते, वे उसके सवालों का
जवाब दे ने के िलये सहमत हो गये। सूिचलोम ने बुO से वासना, घृणा, असंतोष,
KसQता, और आतंक की उäिÇ के Àोत के बारे म< पूछा। बुO ने उसे संतुÄ करते
Öए उÇर िदया िक इW!योंको सुख दे ने वाले आमोद-Kमोद इन सभी की उäिÇ का
कारण हt । बुO mारा अपना उपदे श समाL करने के तुरंत बाद, दोनो सूिचलोम और
खर न केवल सोतापQ बने, बW™ उनकी खाल भी चमकदार और सुंदर हो गई।
पूण# संभा_ता म<, सूिचलोम और खरकी कहानी म< चंडालों के एक वनवासी
समुदाय का संदभ# Kतीत होता है जो या तो गया धम#=े> के बाहरी इलाके म< या उसके
आसपास रहते थे। ऐसा Kतीत होता है िक इस चंडाल समुदाय का, िजसे सूिचलोम
और खरके माVम से KतीकाXक Kितिनिधa िमला है ,बुO ने अपने éानोदय के
तुरंत बाद धम# पiरवित#त िकया था। िदलचZ बात यह है िक मW¸मदे स के भीतर
कुछ oामीण और वनवासी समुदायों का धम# पiरवत#न केवल बौO धम# के नवजात
चरण के दौरान ही Öआ। एक बार जब बुOõयं को साव"थी और राजगह जैसे
िविभQ महानगरों व राजधानीय नगरों म< Aथािपत करने म< स=म हो गए,!बौO धम# ने
मुÿ 7प से शहरी समुदायों और उनके भीतर रहने वाले _ापाiरयों और सÇा7ढ़
कुलीन वग¨ पर अपना Vान क<िƒत करना शु7 कर िदया।
गया धम#=े> म< अपनी दू सरी या>ा के दौरान, KिसO मिहला सुजाता
सेनानीधीता के साथ-साथ उनकी बë और िपता बुO के िश◊ बने (Walleser and
Kopp 1956-1973: i.218-219)। इस या>ा के दौरान, बुO ने गयासीस म< गयासुÇ का
उपदे श िदया (Morris and Hardy 1885–1900: iv.302-305)। गया धम#=े> म< यह
बुO mारा उपिदÄ दू सरा सुÇ था। इस Kवचन म<, बुO ने िभ=ुओं को िव;ार से वण#न
करके बताया है िक कैसे सबसे पहले वह केवल दे वों के शरीर से िनकलते Kकाश को
दे ख सकते थे; बाद म<, सचेत Kयास के माVम से, वह उनके 7पों म< भेद कर सकते
थे, उनके साथ बात कर सकते थे, पता लगा सकते थे िक वे अपने अलग-अलग
लोकों म< कैसे पैदा Öए थे; िफर वे उनके िपछले ज‰ों को पढ़ने म< स‘ हो गए, और
आWखरकार, वे परम éान KाL करने म< सफल हो गए। वे आगे कुछ और चरणों,!
िजनके माVम से वे सव¥¢ éान की KाWL से पहले गुजरे की _ाÿा, करते हt –
20
फ‹ुन/फ‹ुण/फ‹ुणी (फा'ुन, फरवरी-माच#) पूिण#मा के अवसर पर लोगों mारा &ान घाट
पर मनाया जाने वाला यह एक &ानपव# था, जो वसंत की शुòआत को दशा# ता है (Woodward
1940-49: i.388f, 418; v.287)।
आकर वेदों का पाठ करते थे, दे वताओं को यé भ<ट करते थे, और पिव> जल म< &ान
करते थे (Woodward 1926: 74, 75; cp. Smith 1966-1972: i.301)। इसके
अलावा, उन सभी सात निदयों म< जहां ûOालु अपने पापों को धोने के िलये &ान
करते थे, गया नदी21का, जो गंगा की एक सहायक नदी है , सबसे Kमुख के 7प म<
उpेख िकया गया है (Trenckner and Chalmers 1888-1896: i.39)।
आVाWXक 7प से, शा®मुिन गया धम#=े> की ओर इसिलए Wखंचे चले
आए ®ोंिक बाराणसी22 और Kयाग-तीथ# (पािल, पयाग-ितØ) के साथ-साथ यह =े>,
आVाWXक साधकों के िलये एक महÜपूण# Aथान बन गया था। तपWõयों के िलये
तीथ# ûाO अनुानों के अप#ण हे तु गया िवशेष 7प से एक चुंबक बन गया था। इस
Kकार, जैसा िक एफ.एम. आशर (F.M. Asher) ने बताया है,! “संभवतः ... बुO गया
के उपां त म< िवशेष 7प से इसिलए चले आए थे िक ®ोंिक यहाँ पर तीथ#या>ी õयं
की बजाए, अपने पूव#जों को मृYु केबंधनों से छु टकारा िदलाने के िलये आते थे”
(Asher 1988: 87)। लेिकन, KबुOता का ल≈ KाL होने के बाद, यह oामीण और
अर–ञक (वनKां त)23 धम#=े> एक तरह से बुO की कम#भूिम नहीं रहा। Kतीत होता है
21
िविभQ कालों म< इसे नेर(रा, वेर(रा, फ'ु, नीलांजना, तथा लीलाजन जैसे िविभQ नामों से
जाना गया है ।
22
िदलचZ बात यह है िकबुO ने अपने Kथम धम¥पदे श के िलये बाराणसी के बाहरी इलाके को
चुना। िवचारों के आदान-Kदान के िलये एक KिसO Aथान होने के अलावा, बुOके समय म<
बाराणसी _ावसाियक गितिविधयों का Kमुख क<ƒ बन गया था (जयसवाल Jayaswal 2015:
195)। यrिप धम# की KाWLजंगली और oामीण इलाकों म< WAथत गया=े> म< Öई, लेिकन
मVदे स के शहरीकृत क<ƒों म< हीइसे सबसे अêा समझा और अfi;िकया गया। इस Kकार,
यह केवल õाभािवक था िक बुO ने अपने पहले धम¥पदे श के िलये काशी को चुना।
23
अर–ञ को Kारं िभक भारतीय बौO धम# म< अ)र िनज#न वन Kां तर व अद*-जंगलों से
जोड़ा जाता है । संघ का नेतृa उन बुWOजीिवयों ने िकया जो हमेशा उन लोगों से सावधान रहते
थे िजनके पास पiरóार और संपQता का अभाव था। बुO का मानना था िक धम# “सू‘,
गहरा, और किठन है,”!और इसे समझना आसान नहीं होगा (Feer 1884–1898: i.138-139;
Morris and Hardy 1885–1900: ii.20f)। बौWOक वग#-दं भ (intellectual snobbery) ने
बौO संघ को जन-साधारण के संपक# से बाहर रखा। िदलचZ बात यह है िक िनकायों म< दज#
अिधकां श उपदे शों का _ाÿान सावØी, राजगह, व कोसWÍ जैसे बड़े शहरों म< िकया गया।
जबिक पािल सािहY नागiरक (शहर-िनवासी) को भƒ और िवनÎ के 7प म< दे खता है (Rhys
Davids, Carpentier and Stede 1886-1971: i.282), गाम (गाँ व) व गािमक (गाँ व से
िक महाबोिध वृ= क<िƒत महाबोिध मंिदर-पiरसर केवल सÎाट अशोक के काल से ही
िवकिसत होना शु7 Öआ। यह वह समय था जब तीसरी बौO पiरषद् Öई, धÉदू तों
(धम#-उपदे शकों) को दू र-दराज़के =े>ों म< भेजा गया, और अशोक õयं महाबोिध के
दश#न करने आए।
आठवीं शता”ी ई.पू. म< याk24 mारा रिचत oंथ िनò` गया को एक पु•
Aथान के 7प म< संदिभ#त करता है । गया25 को महाभारत (शå पव# और अनुशासन
पव#) म< भी एक वेदी और Kमुख तीथ#Aथल के 7प म< िचि>त िकया जाता है , जहां
जघï पापों से भी मुW` िमलती है और एक पु> “यहाँ अपने पूव#जों को िपंडों की
आÖित दे कर मुW` िदला सकता है ”(Dave 1970: 32)। पां चवीं शता”ी ईõी म<
रिचत िव¬ु ßृित म< गया के बारे म< बताया गया है िक इस जगह ने बÖत पिव>ता
हािसल कर ली थी(Jolly 1880: 256-259)। आठवीं शता”ी के अिभलेखों म< गया
की तीथ#या>ा की अख⁄ परं परा और धािम#क दान का वण#न उपल¿ है । परं तु,
सािहY म< कई शुòआती संदभ¨ के बावजूद, इस Aथल पर मंिदर िनमा# ण की गितिविध
केवल +ारहवीं शता”ी के मV म< ही आरÁ Öई Kतीत होती है , जब गया के शासक
ने यहाँ पर भगवान िव¬ु (गदाधर) के मंिदर व कुछ अï धािम#क Aथलों का िनमा# ण
कराया। गया के िव¬ुपाद मंिदर पiरसर म< िव¬ु पदिचÊों को अठारहवीं शता”ी के
अंत म< इं दौर की रानी अिहå बाई हो™र mारा Kितािपत िकया गया था
(Vidyarthi 1978: 18)।
जुड़ी) व;ुओं की पािल सािहY म< असंिदŒ अवहे लना की गयी है । उदाहरण के िलये, पािल
ितिपटक और इसकी अ˙कथाओं म< श” गाम बड़ी संÿा म< ितरkारपूण# यौिगक श”ों और
अिभ_W`यों के 7प म< पाया जाता है , जैसे िक गामकूट (चाटु कार, Feer 1884–1898:
ii.258) गामधÉ !(िघनौना आचरण, Rhys Davids and Carpenter 1890-1911: i.4); गाम-
वासीनं धÉ (िघनौना आचरण, Rhys Davids, Carpentier and Stede 1886-1971: i.72);
गामदारक (दु Ä, Fausböll 1877–1897: ii.78, 176, iii.275), गामकथा (बकवाद, Rhys
Davids and Carpenter 1890-1911: i.7)।
24
पी.वी. काणे (P.V. Kane) के अनुसार (1974-1997: ii। 645), याk बुO से बÖत पहले पैदा
Öए थे (दे ख< Singh 2012: 502)।
25
शाW”क 7प से, गया श” का अथ# है “KAथान िकया” उस गंत_ का अंकन जो इस दु िनया
के मनु◊ों को िद_ दु िनया से जोड़ने का Kतीक है , जहां पूव#जों का िनवास है (दे ख< Singh
2012)।
वायु पुराण म< विण#त एक कथा के अनुसार (दे ख<, Tagare 1987: 916-
923), गयाका नाम पौरािणक गयासुर से िलया गया है , िजसका शाW”क अथ# है
गयादानव। इस कथा के अनुसार, गयासुर कठोर तप‚ा करने के बाद भगवान िव¬ु
से आशीवा# द KाL करने म< सफल रहा और उसका शरीर पिव> हो गया। अंतत:, वह
इतना पिव> हो गया िक उसे छूने या िफर यहाँ तक िक उसे केवल दे खने से ही लोगों
के पाप धुल जाने लगे। उसकी मृYु के बाद, उसके शरीर के िविभQ उभार गया की
च$ानी पहािड़यों के उभारों की ûृंखला के पiर…§ म< त”ील हो गए और िविभQ
दे वी-दे वताओं के िनवास Aथान बन गए। इससे लोग बड़ी तादाद म< अपने पूव#जों के
पापों को धोने के उ£े § से गया म< गयासुर के शरीर के िह¤ों से बने िविभQ पहाड़ी
उभारों पर ûाO यé करने लगे। वत#मान म< सबसे लोकिKय Aथान फ'ु नदी के
िकनारे WAथत िव¬ु मंिदर है । िकंवदं ती के अनुसार, िव¬ुपाद मंिदर म< अिसता,
(कसौटी पØर) के एक िशलाखंड म< भगवान िव¬ु के तराशे Öए पदिचÊ भगवान
िव¬ु mारा गयासुर की छाती को पैर से दबा कर उसे वश म< िकये जाने को िचÊत
करते हt ।26 िदलचZ बात यह है िक बौO इस पाद को बुOपाद मानते हt । यह आµय#
की बात नहीं है ®ोंिक धािम#क Kतीकों, रीित-iरवाजों, और अनुानों को अलग-अलग
सtधव धम¨ mारा अलग-अलग पहचान और महÜ दे ते Öए साझा िकया गया है । सtधव
धम¨ म< पैरों के िनशान के 7प म< Kितमािवहीन Kतीकों को पूजा की व;ुओं के 7प
म< िनयोिजत िकया गया था ®ोंिक उu< जादु ई 7प से शW`शाली और शु भ माना
जाता था। एक परं परा से दू सरी परं परा म< मूित#यों का पुनच#≠ण और पiरवत#न या दो
िविशÄ परं पराओं म< िकसी एक Kितमा का साझा Aथान सtधव पर«रा म< एक आम
26
िकंवदं ती के अनुसार, कोई भी गयासुर को छू या दे ख कर, मो= KाL कर सकता था, !इससे
लोगों को मो= बड़ी आसानी से िमलने लगा। अनैितक लोगों को मो= KाL करने से रोकने के
िलये, भगवान िव¬ु ने अपने दािहने पैर को उसके िसर पर रखकर गयासुर को पाताल म<
धकेल िदया। पाताल म< धकेले जाने के बाद और नौ शæों (जैसे िक च≠म्, गधम्, और शंकम्)
की मदद से पैर के नीचे दबाए रखे जाने के बाद गयासुर ने भोजन के िलये िवनती की।
फलõ7प, िव¬ु ने यह वरदान िदया औरयह घोषणा की िक दै िनक आधार पर कोई न कोई
उसे भोजन दे गा और िजस िकसी की भी ओर से उसे भोजन की भ<ट दी जाएगी, उसकी आXा
õग# म< जाएगी। यह माना जाता है िक िजस िदन गयासुर को Wखलाया नहीं गया, वह पाताल से
बाहर आ जाएगा। हर िदन, कोई न कोई, अपने िदवंगत पiरवारजन की आXा के कåाण के
िलये यहाँ Kाथ#ना करता है और गयासुर को खाना Wखलाता है (दे ख< Bhoothalingam 2016:
92-93)।
बात है । दू सरे श”ों म<, बौO, जैन, और िहं दू “Kितमा-शाæ काअनुनेय õ7प”
(Kinnard 2000: 36) होने के कारण वे अपने अपने ऐसे Kतीकों को साझा करते हt।
इसिलए, यह बातकोई आµय#चिकत करने वाली नहीं है िक कुछ िवmान महाबोिध
मंिदर के सामने WAथत दोहरे पादिचÊ को िव¬ुपाद मानते हt , अï इसे बौO मानते हt
(दे ख< Mitra 1878: 100; Paul 1985; Kinnard 2000:52)। गया धम#=े> म< दज#नों
पैरों के िनशान उपल¿ हt और वा;व म<, िव¬ुपादों और बुOपादों म< अंतर बताना
असंभव है । इनम< से अिधकां श को बार-बार एक Aथान से दू सरे Aथान पर ले जाया जा
चुका है और “यह बताना असÁव है िक उनके रचियताओं ने उu< कौनसी पहचान
दे ने के इरादे से बनाया था। इसके अलावा, इनम< कई Kितमाएं अZÄ 7प से िचिÊत
हt और उन Kतीकों से अंिकत हt जो बौO व वै¬व दोनो Kितमा-शाæीय श”ाविलयों
म< साझी हt ” (Kinnard 2000: 52)।
फ'ु नदी जब गया के पास से बहती है तो इसे õयं भगवान िव¬ु की
अिभ_W` के 7प म< दे खा जाता है । गया िपतृदान के िलये िवशेष 7प से िहं दुओं के
िलये महÜपूण# है , जो एक ऐसा अनुान है िजसके माVम से वे अपने पूव#जों की
आXाओं के उOार के िलये Kाथ#ना करते हt ।27 KYेक वष# िपतृप= के दौरान फ'ु
नदी के तट पर िपंडदान िकया जाता है , जो िसतंबर-अhू बर महीने के दौरान गयाम<
मनाया जाने वाला आXाओं का एक पखवाड़ा होता है ।
एक परं परा के अनुसार (दे ख< O’Malley 2007: 9), कहा जाता है िक
भगवान राम28 फ'ु नदी के तट पर िपंडदान की रß करने के िलये सीता के साथ
27
गया महाÒ के अनुसार, “जो _W` गया=े> म< ûाO करता है वह िपतृऋण से मु` हो
जाता है”!(Śāstri 1909: 1070)। िहंदू “तीथ#या>ी अपने मृत पूव#जों को Kेत-जीवन के कÄों से
मुW` िदलाने की …िÄ से िपंडों की भ<ट दे ने और फ'ु के पु• जल तथा गया के पोखरों म<
&ान करके अपने पापों को धोने के िलये आते हt ।... इसी उ£े § से वे बोध गया आते हt और
बोिध वृ= तथा बुO-Kितमा की पूजा करते हt ।... हम ZÄ 7प से दे ख सकते हt िक मूलतः
~ा≥णीय-िहं दू धम# और बौO धम# के बीच कोई संघष# नहीं था। ये दो धाराएं , =े> की दो महान
पहाड़ी निदयों की तरह, एक साथ बहने और आधुिनक िहं दू धम# म< एक _ापक िव;ार बनाने
के िलये संयु` हो गयीं थीं।”(Barua 1934: 269-271)।
28
यह उpेखनीय है िक भगवान राम थेरवादी बौOों म< एक बोिधसÜके 7प म< Kितित हt ।
जैनों और िहं दुओं की तरह, बौOों का भी रामायण का अपना एक संkरण है िजसे दसरथ
जातक के नाम से जाना जाता है । दसरथ जातक के अनुसार, बुO ने अपने पूव#ज‰ों
आए थे। लेिकन, िपंड अिप#त करने से पहले, भगवान राम &ान करने चले गए और
इसी दौरान उनके िपता दशरथ के हाथ सीता के सामने आए और उu< राम की ओर
से िपंडदान करने के िलये कहा। उuोंने सीता को चेतावनी दी िक उu< ज-ी करना
होगा अïथा õग# के mार उनके िलये बंद हो जाएं गे। चावल न होने के बावजूद
दशरथ की दु द#शा दे खते Öए और बë के 7प म< खुद को कृतé महसूस करते Öए,
सीता ने रे त से तैयार िकये िपंड उन हाथों म< अिप#त कर िदये जो उनके सम= आए।
थोड़ी दे र बाद, जब भगवान राम ने संkार करना शु7 िकया; वह यह जानकर दु खी
थे िक उनके िपता िपंड नहीं ले रहे थे। इसके बाद, सीता ने उu< वह बताया जो Öआ
था। अपनी कार# वाई को सही ठहराने और यह िसO करने के िलये िक यह संkार
िविधवत् और सही ढं ग से िकया गया था, उuोंने इस आµय#जनक व अिवqसनीय
(बोिधसÜ)म< एक बार राजा दशरथ (दसरथ) की बड़ी पöी और पटरानी के पु> रामपंिडत
(बुWOमान राम) के 7प म< ज‰ िलया था। राम की माँ की मृYु पर, दशरथ ने अपनी पिöयों म<
से एक को अपनी पटरानी के 7प म< पदोQत िकया, िजससे उनका भरत नाम का एक बेटा
पैदा Öआ। जब भरत सात वष# के थे, तब उनकी माता ने राजा दशरथ mारा उu< िदये गए
वरदान के अनुसार अपने पु> के िलये रा· का दावा िकया। जैसा िक भिव◊व`ाओं ने
दशरथ को भिव◊वाणी की थी िक वह बारह साल और जीिवत रह< गे, उuोंने राम और लºण
(ल‘ण) को बारह साल के िलये कहीं दू र जाने के िलये कहा, तािक राजकुमार भरत की मां
राम को कोई नुकसान न पÖँ चा सके। आéाकारी पु>ों के 7प म< अपने िपता की इêाओं को
पूरा करने के िलये, राम और लºण, सीता के साथ, बारह साल के िलये घर छोड़ कर चले
गए। इस अविध के दौरान, राम िहमालय म< एक तपõी के 7प म< रहते थे जो सीता और
लºण mारा उनके िलये लाए गए जंगली फलों को खा कर गुज़ारा करते थे। दशरथ की नौ
साल बाद मृYु हो गई और भरत राम से जंगल म< िमले और उनसे राजधानी लौटने का अनुरोध
िकया। लेिकन, राम ने तीन साल के िलये वापस लौटने से इनकार कर िदया ®ोंिक यह दशरथ
के आदे शों का उpंघन होता और वे िकसी भी दशा म< अपने िपता के आदे श का पालम करना
चाहते थे। भरत के िसंहासन पर बैठने से इनकार करने पर, राम ने उसे अपनी अनुपWAथित म<
िसंहासन पर रखने के िलये अपनी खड़ाऊँ दे दीं। जब खड़ाऊँ की उपWAथित म< मामलों की
सुनवाई होती थी और गलत िनण#य िदया जाता था, तो खड़ाऊँ एक दू सरे पर वार करते थे। और
अगर सही फैसला िदया जाता, तो खड़ाऊँ चुप रहती। राम बारह वष# के वनवास का पूरा
काय#काल पूरा करने के बाद, काशी रा· की राजधानी वाराणसी लौटे और बड़े उ˜व के साथ
उनका रा·ािभषेक Öआ। अपने शानदार महल सूचंदक म< रहते Öए उuोंने सोलह हजार वष¨
तक एक बÖत ही Kशंिसत धम[ शासक के 7प म< शासन िकया। अपने सां साiरक जीवन को
पूरा करने के बाद, वह “õग# म< रहने के िलये चले गए”!(Fausböll 1877–1897: iv.123-30)।
घटना के च,दीद गवाह के 7प म< फ'ु नदी, एक बरगद, एक ~ा≥ण, एक तुलसी
का पौधा, और पास म< खड़ी एक गाय को बुलाया। लेिकन, केवल बरगद के पेड़ ने
उनका साथ िदया और दू सरों ने उनकी कहानी को नकार िदया। जब िक गाय
भगवान राम से डरती थी, ~ा≥ण और नदी फ'ु दोनों को अिधक Kसद का लालच
था। सीता ने इन चार झूठों को ûाप िदया। फलõ7प, सीता के ûाप के कारण, फ'ु
नदी ने अपना पानी खो िदया और िसफ# शुó रे त के टीलों का एक िवशाल िव;ार
बन कर रह गयी।29 गाय को ûाप िदया गया िक उसे सामने से कभी भी ûOां जिल
नहीं दी जाएगी ®ोंिक उसने न कहने के इशारे म< अपना िसर िहलाकर इनकार
िकया था। गया के ~ा≥णों को हमेशा भूख से तड़पने तथा अिधक भोजन के िलये
तरसने का ûाप िदया गया। तुलसी को ûाप िमला िक कभी भी गया म< उसे उगाया
नहीं जाएगा। सीता ने बरगद के पेड़ को अनÑ जीवन का आशीवा# द दे कर पुरkृत
िकया।30
बुO ने उòवेळा के रा;े म< एक पड़ाव Aथल के 7प म< गयासीस (गयाशीष#)
पहाड़ी का उपयोग िकया था। संयुÇ िनकाय और उदान की अ˙कथाओं,
≠मशःसारØçाकिसनी और परमØदीपनी के अनुसार, इस पहाड़ी को इस तÈ से
अपना नाम िमला िक इसका आकार हाथी के िसर (गज-सीस)!जैसा था (Woodward
1977: iii.4; Woodward 1926: 74)। कहा जाता है िक पहाड़ी की चपटी चोटी पर
एक हजार िभ=ुओं के िलये पया# L जगह थी। यहीं पर बुO ने गया धम#=े> के अिã
पूजक तपõी तेभाितक जिटलों को, जो हाल ही म< उनके अनुयायी बने थे, KिसO
आिदÇपiरयाय सुÇ का Kवचन िदया था (Oldenberg 1879-1883: i.34f; Feer
29
रे त के टीलों के संबंध म< बौO परं परा की एक अलग कहानी है ।अंगुÇर िनकाय,!उदान, और
मW¸म िनकाय की अट् ठकथाओं म< उpेख है िक दु िनया म< बुO के Kकट होने से पहले, दस
हज़ार तपõी लोग इस =े> म< रहते थे, और उuोंने एक िनण#य िलया िक जब भी उनम< से
िकसी एक के भी मन म< कोई बुरा िवचार Kकट होता है , उसे एक िवशेष Aथान पर रे त की एक
टोकरी ले जानी चािहये। इस तरह रे त के जमा होने के पiरणामõ7प अंततः एक महान रे ती
का िनमा# ण Öआ (Walleser and Kopp1956-1973: ii.476; Woodward 1926: 26;
Woods, Kosambi, and Horner 1976-1979: i.376)।
30
इस बरगद के पेड़ को अ=यवट के नाम से जाना जाता है, जो दो श”ों अ=य (जो कभी नहीं
िमटता) व वट (बरगद का पेड़)!का यौिगक श” है। सभी बरगद के पेड़ों के पÇे साल म< एक
बार झड़ते हt । लेिकन, यह िविशÄ वृ= सूखे के समय भी हरा रहता है और इसके पÇे कभी
नहीं झड़ते।
1884–1898: iv.19-20; Fausböll 1877–1897: i.82)। पािलoंथों के अनुसार, इस
पहाड़ी ने बौO धम# के Kारं िभक इितहास म< एक ऐसी जगह के 7प म< KिसWO KाL
की, जहां दे वदÇ संघ से अलग होने के तुरंत बाद अपने पां च सौ सहयोिगयों के साथ
रहने लगाथा, और जहां बुO के मुÿ िश◊ों को उu< वािपस लाने के िलये जाना पड़ा
था (Oldenberg 1879-1883: ii.199; Fausböll 1877–1897: i.142, 425, 490f;
iv.180)। जब शुएनज़ां ग सातवीं शता”ी म< भारत आया, तो उसने तेभाितक जिटल
ब÷ुओं के तीन ;ूपों को गयासीस पहाड़ी के दि=ण-पूव# म< WAथत दे खा (Li 1995:
243)।
शुएनज़ांग के अनुसार, Kा.ोिध पव#त (चीनी म<, िछयानझँगचुएशान, !“पूव#-
éानोदय पव#त”, ®ोंिक पूण# éान की KाWL से पहले बोिधसÜ इस पव#त पर चढ़ा था)
महाबोिध वृ= के उÇर-पूव# म< चौदह या पंƒह ली !(चीनी मील) की दू री पर WAथत था।
बुO को दो बार, एक बार पव#त की चोटी पर और िफर गुफा म<, यहाँ पर éान नKाL
करने की सलाह दी गई। “बाद म<, राजा अशोक के सÇा म< आने के बाद, उन Aथलों
पर ßारकों और ;ूपों का िनमा# ण Öआ, जहां से बोिधसÜ पव#त पर चढ़े और उतरे
थे। हर साल गिम#यों के अंत म< िविभQ Aथानों से िभ=ु और गृहAथजन नैवेr के िलये
यहां आते हt ” (Li1996: 214-215)। शुएनज़ां ग mारा Kदान की गई जानकारी के
आधार पर, Kा.ोिध पव#त की पहचान अ)र महाबोिध वृ= के उÇर-पूव# म< लगभग
पां च िकलोमीटर की दू री पर WAथत, गयासीससे की जाती है । जैसा िक शुएनज़ां ग ने
अपने या>ा वृÇां त म< उpेख िकया है , पव#त की आधी ऊँचाई पर एक बड़ी गुफा है ,
िजसकी पीठ oीवाकी ओर है (Li 1996: 214)। इस गुंबदाकार गुफा के करीब, िजसे
अब डु ं गेqरी गुफा के 7प म< जाना जाता है , एक छोटा मंिदर है । गुफा म< दे वी की
एक अÄ-भुजीमूित# Kितािपत है िजस पर बौO सू>ों के दसवीं सदी के वण¨ म< िलखे
गए कुछ अ=र िमलते हt । गुफा के ऊपर पहाड़ी के िशखर के पास अलग-अलग
आकार के सात ;ूप हt ।
आराळ कलामव उ£क रामपुÇ (उƒक रामपु>)!का साथ Yागने के बाद
बुO गया धम#=े> म< पÖं चे ®ोंिक उनके माग#दश#न म< उuोंने महसूस कर िलया था
िक अब वह उस अवAथा से आगे नहीं बढ़ सकते जो उu< पहले से ही KाL हो चुकी
थी। इस =े> म< उनका पहला पड़ाव गयासीस पव#त था जहां उuोंने कुछ समय तक
Vान िकया। इसके बाद वे उòवेला/उòवेळा (ताराडीह से अिभéात) और
सेनािनगम/सेनानीिनगम (बकरौर से अिभéात) के आसपास चले गए। नेरंजरा नदी के
दोनों ओर जंगल झुरमुट म< WAथत,
इन दोनों बW;यों के पड़ोस को
उuोंने गंभीर संïासी Kथाओं के
िलये काफी अनुकूल पाया और
éानोदय की KाWL तक यहां रहे ।
पाँच Yागी (अ–ञ को⁄–ञ, भि£य,
वç, महानाम, तथा अ¤िज), िजu<
पœव‹ीय िभºुओं (पœवग[य
िभ=ुओ)ं के 7प म< जाना जाता है ,
िजनसे वे राजगह म< पहले भी िमले
थे, भी उनके साथ िमल गए। यहां ,
गंभीर तप‚ा और आX वैरा+ के
पiरणामõ7प, उuोंने खुद को
उपवास के माVम से इस हद तक
िच> १– उपवासरत बुOा (आभार–लाहौर संoहालय, पीड़ा दी िक उनका शरीर केवल
पािक;ान) कंकाल बन कर रह गया।वे õयं
अपनी WAथित का वण#न इस Kकार करते हt –
मेरी आँ खों की चमक बÖत कम खाने के कारण उनकी गित#काओं म< दू र तक डूब गई
थी, पानी की उस चमक की तरह िदख रही थी जो गहरे कुएँ म< डूब गई हो।… मेरी
खोपड़ी इस Kकार सूख और मुरझा गई थी जैसे हवा और धूप म< हरीतुÍी सूख और
मुरझा गई हो।… मेरी पेट की aचा मेरी रीढ़ की ह˛ी से िचपक गयी थी; इस Kकार
अगर मtने अपनी पेट की aचा को छु आ तो मुझे अपनी रीढ़ िमली और अगर मtने
अपनी रीढ़ की ह˛ी को छु आ तो मुझे अपनी पेट की aचा िमली ... अगर मtने अपने
अंगों को अपने हाथों से रगड़कर अपने शरीर को आराम दे ने की कोिशश की, तो रोंए,
िजन की जड़< गल गयीं थीं, मेरे रगड़ते ही शरीर से उखड़ गए (Ñāṇamoli and
Bodhi 1995: 339)।
िच> संÿा २– सुजाता का गवपान अप#ण और मार का Kलोभन (सां ची ;ूप नं.१)
31
पूव#-ऐितहािसक काल से भारत म< िविभQ वृ=-दे वताओं या वन-दे वताओं के िनवास के 7प म<
पेड़ों या जंगलों की पूजा की जाती है । अपने éानोदय की पूव# संVा पर एक बरगद (वटवृ=) के
नीचे बैठे Öए बोिधसÜ िसOाथ# को सुजाता mारा गवपान की भ<ट, इस िवqास के साथ िक वह
उस वृ= म< िनवास करने वाले वृ=-दे वता के अलावा अï कोई नहीं हt , भारत की Kाचीन
Kथागत परं परा का सव¥´ृÄ उदाहरण है ।
एक घास काटने वाले ने उu< कुछ कुश (पािल, कुस) घास दी। िदलचZ बात यह है
िक सÉासÍुO बनने से पहले, उनके mारा õीकार की गयी यह अंितम भ<ट थी।
कुश-घास (desmostachya bipinnata) को आमतौर पर अंoेजी म< खारा
सरकंडा-घास(salt reed-grass), रflु-घास (cord-grass), और हा1ा-घास
(halfa-grass) के 7प म< और भारत म< दभ#, दाभ, और कुश के 7प म< जाना जाता
है । यह घास, िजसकी खेती नहीं की जाती हैऔर õाभािवक 7प से उगती है , सtधव
धािम#क परं परा म< एक पिव> पौधे के 7प म< उपयोग की जाती है । उदाहरण के िलये,
कुश का उpेख ऋ2ेदम< िकया गया है िजसका उपयोग पु• समारोहों के साथ-साथ
दे वताओं और धमा# चाय¨ के िलये आसन के 7प म< िकया जाता है (Griffith189: 4)।
कुश-घास का उpेख भगवद् -गीता म< भी िकया गया है जहाँ कृ¬ ने इसे Vान के
िलये एक आदश# आसन का िह¤ा बताया है (Sargeant 1984: 95 (VI.11))। इस
घास के Kयोग का सब से महÜपूण# कारण यह माना जाता है िक इसका आसन Vान
के दौरान शरीर म< उäQ Öई ऊजा# को संरि=त रखता है और उसे पैरों व पैरों की
उँ गिलयों के माVम से भूिम म< िन¤ाiरत होने से रोकता है । कुश-घासकी नोक के
माVम से ∆ïाXक कंपन को िनदà िशत करने म<सब से अिधक स=म माना जाता है ।
जब इस नोक को पानी म< डु बोया जाता है और उसके बाद चारों ओर पानी िछड़का
जाता है , तो यह माना जाता है िक यह वातावरण को शुO करता है । कुश का ताäय#
ती0ण या गंभीर माना जाता है ®ोंिक इसके लंबे पÇों के िकनारे काफी तीखे होते हt ,
इसिलए तलवार की तरह, यह “कुशाo िववेक” का Kतीक है । दू सरे श”ों म<, ऐसी
धारणा है िक कुश-घास िवकृत धारणाओं को हटाने और पया# वरण से नकाराXक
िविकरणों को अवशोिषत करने के माVम से मन म< ZÄता लाती है । िदलचZ बात
यह है िक ~ा≥णीय-िहं दू परं परा म<, पूिण#मा के िदन के बाद से ही कुश-घास की
कटाई की जाती है जबिक यहां पर बुO को एक िदन पहले घास की पेशकश की
जाती है ।
बौO oंथों के अनुसार, जब शा®मुिन KबुOता की खोज म< गया धम#=े> म<
पÖं चे, तो यह =े> आिद-शैव अिã-पूजक तीन क§प भाइयों जो तेभाितक-जिटलों के
नाम से जाने जाते थे, के Kभुa म< था। ये अिã-पूजक अिã को यé, ऊजा#, और िद_
éान का दे वता मानते थे। वा;व म<, ऋ2ेद म<, अिã दे व शW` और महÜ म< इं ƒ के
बाद दू सरे Aथान पर आते हt। इन भाइयों का ज‰ एक क§प (पािल, क¤प) ~ा≥ण
पiरवार म< Öआ था और तीनों वेदों म< महारत हािसल करने के बाद संïासी बन गए
थे (Walleser and Kopp 1956-1973: i.165f; Norman 1906-15: i.83ff; Lilley
1925-27: ii.481ff)। उòवेल-क¤प, जो तीन भाइयों म< सबसे बड़ा था,!पां च सौ
िश◊ों के साथ उ7वेला के बाहरी =े> म< आधाiरत था। सबसे छोटा भाई, गया-
क¤प, िजसके दो सौ अनुयायी थे, गया म< WAथत था। तीन सौ िश◊ों के साथ मंझला
भाई, नदी-क¤प, नेरंजरा नदी के तट पर दोनों के बीच WAथत था (Oldenberg
1879-1883: i.25)। जब कोई दाह संkार नहीं हो रहा होता, तब भी नेरंजरा (अब
नीलां जना) नदी पर ,शान की आग को जलाए रखने की वत#मान परं परा इन बौO-
पूव# अिã-पूजकों mारा शु7 की गई Kथा ही है ।
KबुOता के बाद की इिसपतन (ऋिषपतन, सारनाथ) की अøकािलक या>ा
और गया धम#=े> म< वापस आने के बाद, बुO ने जंगल म< िनवास िकया िजसे
कçािसकवनसंड (कçािसक का वन) के 7प म< जाना जाता था और यहाँ पर
उuोंने अपना पहला व¤ावास
(वषा# वास) िबताया। गया
धम#=े> म< बाiरश के मौसम को
_तीत करने का Kाथिमक
उ£े § उन अिã-उपासकों पर
िवजय KाL करना Kतीत होता
है । उu< अपना िश◊ बनाने के
िलये बुO को धैय#पूव#क Kती=ा
करनी पड़ी और यहां तक िक
चम´ार की Kि≠या का
सहारा लेना पड़ा, िजसे उuोंने
खुद अवां छनीय माना था (दे ख<
Oldenberg 1879-1883:
i.23-25; Law 1958: i.35, 38,
िच> संÿा ३– आग म< सप# का चम´ार और तेभाितक 81; Geiger 1908: i.17ff)।
जिटलों पर जीत (साँ ची ;ूप नं. 1) यह दे खते Öए िक यह एक
किठन मामला था, उu< जादू
की Kेरक शW`यों का उपयोग करना पड़ा और éान से उòवेल-क¤प को Kभािवत
करने के बजाय, बुO ने जादू के करतबों के साथ-साथ उòवेल को उसके शW`शाली
जादू के Kित अपनी परम-Kितkeकता िदखाकर आµय#चिकत िकया। क¤प
बंधुओं के वश म< िकये जाने का वण#न करते Öए, पािल ितिपटक के oंथ बताते हt िक
जब उòवेल-क¤प की ओर से नाग32 की चाल का सबसे घातक पiरणाम िवफल हो
गया तो उसने तथागत को बुO पुकारकर उनका सÉान िकया।
बुO ने, इस नाग को और िफर दू सरे को, जो दोनों आग और धुआं उगल
रहे थे,अपने जादु ई कौशल के माVम से वश म< िकया। मानिसक-शW` के इस
Kदश#न से Kभािवत होकर, क¤प ने बुO को दै िनक भोजन Kदान करने की
िजÉेदारी अपने ऊपर ले ली। इसी बीच बुO पास म< ही कçािसकवनसंड म< òके
Öए थे, अंतरण के िलये क¤प के तैयार होने की Kती=ा कर रहे थे। इस समय, चार
संर=क दे वता, स», ~≥ा सह«ित, और अï दे व, बुO के सामने उपWAथत Öए।
बुO ने बरसात का पूरा मौसम वहीं िबताया, िविभQ Kकार के कुल तीन हज़ार पाँ च
सौ चम´ार िकये, क¤प के िवचारों को पढ़ा, तपWõयों के बिलदान के िलये जलाऊ
लकड़ी को फाड़ा, ठं ड म< &ान करने के बाद उनके िलये अँगीठी वगैरह तैयार की।
िफर भी क¤प इस सोच म< डूबा रहा, “महान तपõी के पास महान जादू शW` है ,
लेिकन वह मेरी तरह एक अरहं त नहीं है ।” अंत म<, बुO ने यह घोषणा करते Öए िक
वह अरहं त नहीं है , उसे चौंका िदया। बुO ने उसे यह भी बताया िक िजस माग# पर वह
चल रहा था, वह माग# भी उसे अरहं त बनने की ओर नहीं ले जाएगा। तäµात क¤प
ने हार मान ली और िवनÎतापूव#क दी=ा के िलये अनुरोध िकया। बुO ने उसे सलाह
दी िक वह अपने िश◊ों के साथ परामश# करे , और उuोंने अपने बाल काट िदये और
32
यह उpेखनीय है िक सtधव पौरािणक कथाओं म<, नागों को ऐसे Kािणयों के 7प म< दे खा
जाता है जो या तो मानव और सप# जैसे ल=णों का एक िमûण होते हt और या िफर इनके एक
समय म< मानवीय ल=ण होते हt और दू सरे पर सप# जैसे। उदाहरण के िलये, महाभारत (आिद
पव#, ३६) से संबंिधत कहानी म< यह बताया गया है िकनाग राजकुमार, शेष, अपने िसर पर
दु िनया को ढोने के िलये आए थे। कहानी एक ऐसे …§ के साथ शु7 होती है िजसम< वे एक
समिप#त मानव तपõी के 7प म< िदखाई दे ते हt “िजनके गाँ ठ वाले केश हt , वे लÇा म< ढके Öए
हt, और उनके मांस, aचा, और ताँत कठोर तप‚ा के कारण सूख गए हt।” शेष से KसQ हो
कर, भगवान ~≥ा ने उu< दु िनया को ढोने की िजÉेदारी सौंपी। कहानी म< इस मोड़ पर,
शेषएक सप# की िवशेषताओं को Kकट करना शु7 करते हt । वह एक छे द के माVम से पृ3ी
म< Kवेश करते है और नीचे जाने के िलये िफसलते हt , जहां वह िफर अपने िसर पर पृ3ी को
उठा लेते है । बौO परं परा म< बुO के र=क के 7प म< मुचिलंद एक उpेखनीय नाग हt । जब
बोिध KाL करने के तुरंत बाद, बुO एक बड़े तूफान म< Vान कर रहे थे, तो मुचिलंद ने अपने
सात फणों के साथ बुO के िसर को ढं कते Öए तूफान से उu< आûय Kदान िकया था।
अपने यé के पा>ोंको नदी म< फ<क िदया और सभी ने दी=ा ले ली। कुछ समय बाद,
नदी-क¤प और गया-क¤प यह पता लगाने के िलये आए िक ®ा Öआ था, और
उuोंने भी, अपने िश◊ों के साथ दी=ा ले ली (दे ख< Malalasekera 1937-38: 433)।
क¤प बंधुओं को अपना िश◊ बनाने के बाद, बुO ने गया धम#=े> के क<ƒ
म< गयासीस पर WAथत िपWØपासाण को आिदÇपiरयायसुÇ, िजसे आिदÇ सुÇ भी
कहा जाता है , के Kवचन के िलये चुना (Walleser and Kopp 1956-1973: i.166;
Woodward 1940-49: i.435)। यह बुO का तीसरा दज# सुÇहै। इस Kवचन म<, बुO
ने बताया िक सब कुछ, िजसम< आं ख, आं ख-चेतना (चºुिव–ञाण), व;ुओं से आं ख
का संपक# (चºुस4फ¤),तथा उससे उäQ होने वाली संवेदनाएं शािमल हt ,!वासना,
≠ोध, व अéानके साथ-साथज‰, जरा, मृYुआिद की िचंताओं से जल रहा है । यह
सीखकर, अiरयअ˙ं िगको म‹ो का अनुयायी, उनके Kित िवकष#ण महसूस करता है
और उनके िलये कामो‰ाद से छु टकारा पाता है और अंततः िवमुW` (सव¥¢
õतं>ता) KाL करता है । कहा जाता है िक इस Kवचन के अंत म< एक हजार िभ=ु,
जो पहले जिटल थे, इसे सुन कर अरहंत बन गए (Oldenberg 1879-1883: i.34-5;
Fausböll 1877–1897: i.82; iv.180)।
पािल oंथों का दावा है िक तीनों भाइयों की गितिविधयों के पiरणामõ7प,
अनुयािययों की संÿा म< काफी वृWO Öई (Walleser and Kopp 1956-1973:
i.166) और उòवेल-क¤प,!उन सभी िभ=ुओं के बीच Kमुख घोिषत िकया गया
िजनके बड़ी संÿा म< अनुयायी थे (अ‹ं महापiरसानं) (Morris and Hardy 1885–
1900: i.25)। जिटलों को राज़ी करने की घटना को पािल oंथों mारा एक महÜपूण#
घटना माना गया है और उòवेल-क¤प के राज़ी होने के …§ को तोवा;व म< सां ची
म< ति=त िकया गया है । शुएनज़ां ग ने उस Aथान पर, जहां वह बुO का अनुयायी बना
था,!िनिम#त एक ;ूप को दे खने का भी उpेख िकया है (Li1995: 256)। ऐसा Kतीत
होता है िक बौO संघ म< शािमल होने के बाद, जिटलों और उनके िश◊ों नेगया
धम#=े> के बजाए बड़ी शहरी बW;यों म< जाकर धÉदू तों के 7प म< काय# करना
आरÁ िकया ®ोंिक यह =े> बौO धम# के िलये अभी तैयार नहीं था।
पािल oंथों म<,महाबोिध वृ= के नीचे मारके साथ चरम संघश# के अलावा, बुO
के उस समय के कई Kलोभनों की बात की गई है जबवे गया धम#=े> म< कठोर
तप‚ा कर रहे थे। एक बार, मार ने रात के अंधेरे म< एक भयानक हाथी के भेष म<
उu< डराने का Kयास िकया। एक अï अवसर पर, एक वषा# कालीन रात के अंधेरे म<,
जब बाiरश बूंद-बूंद िगर रही थी, मार ने िफर से िविभQ Kकार के असाधारण
7पधारण िकये, जो सुंदर और बदसूरत दोनों थे। तब एक और अवसर आया जब
मार ने बुO के मन को संदेह से भरने का Kयास िकया िक ®ा वे वा;व म< सभी
बंधनों से मु` हो गए थे और संपूण# बोिध KाL कर ली थी (Feer 1884–1898:
i.103ff)। आWखरी बार, मार ने उनके अकेलेपन से बुO को असंतुÄ करने का Kयास
िकया और उu< िवचिलत करने के िलये अपनी तीन बेिटयों तणहा, रती, और रागा को
भेजा। लेिकन, बुO को उनके संपूर्ण सÉासÍुO बनने के Kयास से रोकने के
अंितम Kयास म< असफल होने के बाद मार _ाकुल हो कर चला गया (Feer 1884–
1898: i.124f)। िनदानकथा (Fausböll 1877–1897: i.71ff.; cp. Woods,
Kosambi, and Horner 1976-1979: i.384),! और बुOवंस अ˙कथा
(Horner1946: 239f) म< बोिध KाL करने के तुरंत पहले, जब बुO महाबोिध वृ= के
नीचे बैठे, मारmारा िदये गए Kलोभन की _ापक और िव;ारयु` कथा शािमल है ।
इस कथा म<, मार को बोिधसÜ के िवòO, जो सÍोिध KाL करने के …ढ़
संकø के साथ बैठे थे,अपनी सेना के दस ख⁄ों को बुला कर आगे बढ़ा िदखाया
गया है । कथा िदखाती है िक ये बल बुO के आगे और पीछे बारह योजन की दू री तक
और साथ ही बायीं और दायीं ओर नौ योजन तक फैले Öए हt । कथा म< मार को अपने
एक सौ पचास योजन ऊँचे हाथी, िगiरमेखल, पर सवार, तथा एक हज़ार शæों से
लैस,और मारके अनुयािययों को िविभQ Kकार के खतरनाक हिथयारों से लैस िदखाया
है। मार को आते दे खकर, सभी दे वता, नाग, और दे वदू त, जो बोिधसÜ के सÉान म<
और उu< ûOां जिल अिप#त करने हे तु एकि>त Öए थे,िसर पर पैर रख कर भाग गए।
अकेला पड़ जाने पर, बोिधसÜ ने दस पारिमताओं को, िजनका उuोंने संपूण# पालन
िकया था, को सहायता के िलये पुकारा। बोिधसÜ ने KYेक मंडल को अपनी एक-
एक पारिमता से भगा िदया। अंत म<, मार ने उनपर अपने परम हिथयार, च»ावुध
(च≠-हिथयार) से आ≠मण िकया, लेिकन वह फूलों की छतरी की तरह उनके िसर
के ऊपर òक गया। िफर भी मार अिडग रहा और उसने उनके आसन पर अिधकार
की वैधता को चुनौती दी और साथ ही मार के सभी अनुयािययों ने घोषणा की िक
आसन मार का है । कोई और गवाह न होने के कारण, बोिधसÜने पृ3ी को अपनी
ओर से गवाही दे ने के िलये बुलाया और जवाब म< पृ3ी गज#ना करने लगी। मार और
उसका अनुचर वग# परािजत हो कर भाग गया, और दे वता उनकी जीत का जˇ मनाने
के िलये बुO के पास इक˙ा हो गए (दे ख< Malalasekera 1937-38: 611-620)।
जैसा िक सारगिभ#त ढं ग से टी. ड5ू.राइस डे िवड् ज़ (T.W. Rhys Davids)ने संकेत
िदया है , हम मार के बलों के हमले से समझते हt िक बुO के सभी
33
अVाय 3 म<अलग से चचा# की गई है ।
34
अVाय 4 म<अलग से चचा# की गई है ।
िच> संÿा ५– बोधगया का हवाई …§ जो महाबोिध मंिदर, ताराडीह के कुछ िह¤ों और िनलां जना नदी
को दशा# ता है
समंतपासािदका म< उसे िद˙मंगिलक कहा गया है , अथा# त् वह _W` जो शकुनों म< िवqास
35
36
~ा≥णीय-िहं दू परं परा म<, गुò आVाWXक बोध का क<ƒ माना गया है । इस Kकार, गुò के
िबना स¢ा éान असंभव है । लेिकन यह बुO mारा उलट िदया गया है और वह भी ~ा≥णीय-
िहं दू धम# के सव¥¢ दे वता, õयं ~≥ा के हाथों से िक संबुO को िकसी गुò की आव§कता
नहीं है ।
37
मुचिलंद तालाब की पहचान आम तौर पर ितकिभघा गां व म< बुOपोखरा के दि=ण-पूव# म<
WAथत एक तालाब से की जाती है (दे ख< Ahir 1994: 147)।
तलहटी म< िबताया। यहां उu< उ»ल (उ´ल, ओिडशा) के _वसायी तप¤ु और
उनके छोटे भाई भWpक,!जो राजगृह के रा;े म< वहां से गुजर रहे थे, mारा चावल के
िप⁄ और शहद भ<ट िकये गए थे (Oldenberg 1879-1883: i.3f; Fausböll 1877–
1897: i.80)। उu< धम# और पूजा की व;ु के 7प म< बुO म< दोहरी शरण
(mे वािचकसरण) लेकर बुO के पहले िश◊ होने और बुO के कुछ बाल KाL करने
का ûेय िदया जाता है (Oldenberg 1879-1883: i.3f; Morris and Hardy 1885–
1900: i.26; Fausböll 1877–1897: i.80)। बाद म< पेड़ की जगह पर एक ;ूप
बनाया गया था (Beal 1875: 129)।
मंिदर के दि=ण म< WAथत राजायतन वृ= से, बुO महाबोिध वृ= लौट आए,
उu< ûOापूव#क Kणाम िकया, और पहले उपदे श, धÉच»पवÇन सुÇ का Kचार
करने के िलये सोच-समझकर इिसपतन (संkृत, ऋिषपतन; सारनाथ) की ओर बढ़े ।
रा;े म<, महाबोिध वृ= और गया के बीच कहीं, उनकी उपक आजीिवक से भ<ट Öई।
जब उपक ने बुO से पूछा िक ®ा वे अनंतिजन !(असीम िवजेता) थे और बुO ने
सकाराXक जवाब िदया, तो उपक ने उदासीनता से अपना िसर िहलाया (सीसं
ओक«ेaा), और िटçणी करते Öए कहा–“हो सकता है, दो;!” (Öपे˘ आवुसो'ित)
तथाघुमावदार (उÉ‹ं)38 पकड़ा (Fausböll 1877–1897: i.81; Oldenberg 1879-
1883: i.8; Trenckner and Chalmers 1888-1896: i.170-1)। आइ.बी. हॉन#र ने
सुझाव िदया है िक अगर उपक को यकीन हो गया होता या िदलचZी भी होती तो वह
एक घुमावदार रा;ा न पकड़ता (Horner 1938-1966 iv.12 fn.7)।39
38
उÉ‹ं (शाW”क 7प से ‘पटरी से उतरना’,'ऑफ-टÅ ै क') श” का अनुवाद 'गलत सड़क' या
'एक कुिटल रा;ा' के 7प म< भी िकया जा सकता है (दे ख< Rhys Davids and Stede 1921-
25: 154).
39
दीघ िनकाय की अ$ाकथा (Rhys Davids, Carpentier, and Stede, 1886-1971: ii.471)
म< उpेख िकया गया है िक बुO ने जानबूझ कर इस भूिम-माग# को अपनाया ®ोंिक वे उपक
से िमलना चाहते थे। इस भ<ट के बाद, उपक के बारे म< कहा जाता है िक एक बार जब वह
वंतकार दे श से गुजर रहा था, उसे एक िशकारी की बेटी, चापा, से बेहद “ार हो गया। वह एक
सLाह तक भूखे रहने के बाद िशकारी को अपनी बेटी की शादी उससे करने के िलये राजी
करने म< सफल रहा। जीिवकोपाज#न के िलये उपक ने अपने ससुर mारा घर लाए गए मृत
जानवरों की खाल उतारने का काम शुò कर िदया। ज- ही, उनके घर म< सुभ£ नामक एक
पु> ने ज‰ िलया। जब भी ब¢ा रोता, उसकी माँ, चापा, उपक को “उपक के पु>, तपõी के
बोिध-Aथल के इद# -िगद# जैसे-जैसे अलौिकक कहानी िवकिसत Öई, Aथल
और कहानी के बीच सहजीवी संबंध ने सात40 सLाह की अविध म< फैलीKधान कथा
(master narrative) को ज‰ िदया। इस Kकार, बाद के oंथों म< उपल¿ Kधान
कथा म<, बुO ने बोिध-KाWL के बाद महाबोिध वृ=के पड़ोस म< सात सLाह तक सात
अलग-अलग Aथानों पर Vान लगाया और अपने अनुभव के बारे म< सोचा। इस Kधान
कथा के अनुसार, उuोंने बोिध-KाWL का आनंद लेते Öए पहला सLाह महाबोिध वृ=
के चरणों म< िबताया। दू सरे सLाह म< उu< आûय दे ने के िलये कृतéता Kकट करते
Öए वे एकटक महाबोिध वृ= को दे खते रहे । महाबोिध मंिदर के उÇर-पूव# म< WAथत
यह Aथान अिनमेषलोचन ;ूप mारा िचिÊत है , िजसम< बुO की एक Kितमा है , िजसकी
आं ख< महाबोिध वृ= की ओर हt । इसके बारे म<, शुएनज़ां ग बताते हt िक “चं≠मण के
उÇर म< और उसके दािहनी ओर एक िवशाल च$ान पर, एक बड़ा मंिदर है िजस म<
बुO की एक Kितमा है िजसम< उनकी आं ख< ऊपर की ओर दे ख रही हt । भूत काल म<
पु>, जुआरी के लड़के, रोओ मत” गाकर िचढ़ाती थी। इस उपहास के पiरणामõ7प िनराश
होकर, वह घर छोड़ कर ûाव;ी म< बुO से िमलने गया। बुO ने खुशी-खुशी उu< संघ म<
õीकार कर िलया। अपने Vान के पiरणामõ7प, उपक ने अनागामी का दजा# KाL िकया
और अिवहा õग# म< एक दे व के 7प म< उनका पुनज#‰ Öआ (Pruitt 1997: 220ff; Woods,
Kosambi, and Horner 1976-1979: i.388f)। संयुÇ िनकाय म< उpेख िकया गया है िक
बुO ने उपक और अिवहा म< छह अï Kािणयों से जा कर भ<ट की थी (Feer 1884–1898:
i.35, 60)। मWflम िनकाय की अ˙कथा, पपंचसूदनी, म< उpेख िकया गया है िक उपक
अिवहा म< अपने ज‰ के समय एक अरहं त बन गए थे (Woods, Kosambi, and Horner
1976-1979: i.389)। थेरीगाथा म< उनके उपनाम का उpेख, शायद उनके गहरे रं ग के
कारण, काल के 7प म< िकया गया है (Oldenberg Pischel 1990: 309)। थेरीगाथा की
अ˙कथा परमØदीपनी के अनुसार, उनका ज‰ Aथान नाला नामक गां व था जो महाबोिध वृ=
के पास WAथत था। यहीं पर उuोंने चापा को छोड़ा था (Pruitt 1997: 225)। कहा जाता है िक
बाद म<, चापा संघ म< शािमल हो गई थी और एक अरहं त बनी। बुO के गुणों की सूची जो उपक
को दी गई थी, उसे वा;िवक धÉदे सना नहीं माना जाता ®ोंिक यह इिसपतन म< धम#च≠ के
चलने से पहले Öआ था। इसका पiरणाम न तो सेखभािगय था और न ही iरबO-भािगय था,
बW™ यह केवल वासना-भािगय म< पiरिणत Öआ था (Woodward 1926: 54)।
40
अंक सात एक सामूिहक और समापन (धारावािहक) संÿा है जो भारतीय धािम#क परं परा म<
खगोलीय अवधारणा पर आधाiरत है और अंतéा# न व रह‚वाद से जुड़ी Öई है ।
तथागत ने इस Aथान से सात िदनों तक िबना पलक झपकाए कृतéता की भावना के
साथ बोिधवृ= को Vान से दे खा”(Li 1992: 220)।
कहा जाता है िक éानोदय के बाद तीसरे सLाह के दौरान, बुO ने मंिदर के
उÇरी भाग म< अिनमेषलोचन ;ूप और महाबोिध वृ= के Aथान के बीच आगे-पीछे
चलने का अfiास िकया था। बुO के पदिचuों को लगभग ५३ फीट लंबे, ३.५ फीट
चौड़े और ३ फीट से अिधक ऊंचे एक िचनाई वाले संकीण# मंच पर कमल के फूलों
mारा दशा# या गया है । पौरािणक कथा के अनुसार, जैसे ही बुO चले, इस माग# पर
कमल के फूल उग आए। इसे अब रöचं≠म् या केवल चं≠म् (पािल, चंकम्। the
Promenade) कहा जाता है । बाद की कुछ बौO परं पराओं म<, बुO ने अपने मन की
आं खों से दे खा िक õग# म< दे वताओं को संदेह था िक उuोंने बोिध KाL की है या
नहीं। कहा जाता है िक यह सािबत करने के िलये िक उuोंने वा;व म< बोिध KाL
कर ली थी, बुO ने हवा म< एक सुनहरा पुल बनाया और बोिध-KाWL के तीसरे सLाह
के दौरान इस पर आगे-पीछे चले।
रतनघर, एक छोटा छत रिहत मंिदर है िजसम< बुO ने चौथा सLाह Vान म<
िबताया था। यह महाबोिध मंिदर के आं गन के भीतर उÇर-पिµम म< WAथत है । कहा
जाता है िक बुO ने यहां KिततीYसमुäाद का िचंतन करते Vान लगाया था। यह भी
कहा जाता है िक इस समय उनका शरीर इतना शुO हो गया था िक उनके शरीर से
छह रं गों की एक िकरण िनकली थी। बौOों ने इन छह रं गों के आधार पर अपने ∆ज
का 7पां कन िकया है – पिव>ता के िलये पीला, शुOता के िलये सफेद, आXिवqास
के िलये नीला, éान के िलये लाल, इêाहीनता के िलये नारं गी, और इन पां चों का
िमûण।
सात सLाह की परं परा के Kधान आÿान म<, बुO ने पां चवां सLाह
अजपाल-िनoोध वृ= के नीचे िबताया। जब वह यहाँ Vान कर रहे थे, उu< परे शान
करने के िलये त˚हा, रती, और रागा नाम की तीन सबसे आकष#क लड़िकयाँ उu<
िविभQ मोहक तरीकों से लुभाने आईं। लेिकन, अपने उ£े § म< असफल होने पर,
उuोंने उu< अकेला छोड़ िदया। Kधानकथा म<, छठे और सातव< सLाह को उuोंने
≠मशः मुचिलंद वृ= और राजायतन वृ= के नीचे िबताया और इसके बादबुO अपना
पहला उपदे श दे ने के िलये ऋिषपतन कीओर रवाना Öए।
महाबोिध मंिदर और उसके आसपास की िनमा# ण गितिविध से संबंिधत
पहला पुरालेखय Kमाण अशोकीय ~ा≥ी िलिप म< िलखे गए आया# कुरं गी, नागदे वी,
और िसरीमा के छोटे -छोटे िशलालेखों म< पाया जाता है , जो शुंग काल (लगभग १००
ईसा पूव#) से संबंिधत पØर केअYिधक अलंकृत न»ाशीदार कटघरे के एक खंड
पर पाए गए हt । कई ;ंभों पर दोहराए गए इन िशलालेखों म< से एक म< िलखा है –
“अयाये कुरं िगये दानम्” (कुलांगना कुरं गी का उपहार) (Cunningham 1892: 15)।
अया शीष#क (संkृत, आया#) इं िगत करता है िक कुरं गी या तो एक सÎाट की पöी थी
या िफर िकसी उ¢ अिधकारी की।41 ये िशलालेख संर=ण का महान Kमाण Kदान
करते हt । लेिकन, चौथी शता”ी के उÇराध# म<, ûीलंकाई िभ=ुओं को गुL राजा
समुƒगुL (लगभग ३३५-३८० ई.) mारा महाबोिध मंिदर का अपरदे शीय
(extraterritorial) िनयं>ण Kदान िकया गया था और इसके पiरणामõ7प, Aथल
की दे खभाल और रखरखाव का काय# ûीलंकाइयों mारा अपने हाथ म< ले िलया गया
था। बाद की शताW”यों के दौरान मंिदर का Kितपालन अिधकतर तीथ#याि>यों और
िवदे शी शासकों mारा भेजे गए सेवादारों mारा Öआ।
42
बोिधसÜ का पु> एक æी पर मोिहत हो जाता है और बोिधसÜ की अनुमित से उसके साथ
चला जाता है । लेिकन, ज- ही उसे पता चलता है िक उसकी अंतहीन ज7रतों को पूरा करने
के िलये उसे गुलामी करनी पड़े गी। फलõ7प, वह उसे छोड़ दे ता है और अपने िपता के पास
वापस चला जाता है (Fausböll: 1877–1897: i.416-7).
43
क¤प बुO के एक ûOालु िश◊ और एक नाई का जहाज डूब जाता है । वे तैर कर एक mीप
पर पÖं च जाते हt । mीप के नाग राजा और समुƒ की एक दे वी ûOालु िश◊ को जÍूmीप
वािपस जाने म< मदद करने की पेशकश करते हt । लेिकन, वे नाई की मदद करने से इनकार
कर दे ते हt जो एक पापी _W` था। ûOालु िश◊ अपना कुछ पु• पापी नाई को ह;ां तiरत
करता है िजससे उसे अपने पाप धोने म< मदद िमलती है । फलõ7प, दोनों जÍूmीप पÖँ चने म<
सफल हो जाते हt (Fausböll: 1877–1897: ii.111-113).
44
एक िशकारी ने एक प¢ेक बुO के भेष म< हाथी दां त के िलये हािथयों को मारना शु7 कर
िदया। उसका मारने का तरीका हािथयों का रा;ा रोक कर हर िदन झुंड के आWखरी हाथी को
२३४), 45 सुजात जातक (संÿा ३०६), 46 सु¤ोंदी जातक (संÿा
३६०), 47 सोमदÇ जातक (सं ÿा ४१०), 48 अ˙ान जातक (नं बर
४२५), 49 पदकुसलमानव जातक(नं बर ४३२) 50 ितिÇर जातक (सं ÿा
मारना था। बोिधसÜ ने, हािथयों का नेता होने के नाते, यह पता लगने पर िक ®ा हो रहा है ,
िशकारी को मारने की धमकी दी। लेिकन, िफर कभी जंगल म< न जाने का वचन KाL करने के
बाद और, उसके पीले वæों के कारण िशकारी को मु` कर िदया (Fausböll: 1877–1897:
ii.196ff)।
45
राजकुमार ~≥दÇ और उनकी पöी, अिसताभू को बाराणसी के राजा mारा िहमालय म<
िनवा# िसत कर िदया गया था। वनवास के दौरान, ~≥दÇ एक िकQर से मोिहत हो गए और
अपनी पöी को छोड़कर उसके पीछे चले गए। अिसताभू बोिधसÜ के पास पÖं ची और उसकी
मदद से उसने कई अलौिकक शW`यां KाL कर लीं। इसके बाद वह वापस अपनी झोपड़ी म<
चली गई। ~≥दÇ अपनी काय# म< िवफल रहे और उuोंने वापस झोपड़ी म< जाने का फैसला
िकया। लौटने पर, उuोंने अपनी पöी को अपनी नई õतं>ता पर हवा म< उड़ते Öए और खुशी
के गीत गाते Öए पाया। इसके बाद अिसताभू ने उसे छोड़ िदया और उसे अपने िपता की मृYु
के बाद िसंहासन पर बैठने तक एकां त म< रहना पड़ा (Fausböll: 1877–1897: ii.229ff).
46
बाराणसी के राजा को एक फल िव≠ेता की बेटी से “ार हो गया और उसने उसे अपनी रानी
बना िलया। थोड़ी समय बाद उसने राजा को सोने की थाली म< िमठाई खाते Öए दे खा और
उससे पूछा िक वे अंडे के आकार के फल ®ा हt । राजा बÖत परे शान Öआ और उसे मारना
चाहता था। लेिकन बोिधसÜ ने उसकी ओर से ह;=ेप िकया और उसे =मा कर िदया गया
(Fausböll: 1877–1897: iii.20-22).
47
बाराणसी के राजा तंब को अपनी सुंदर रानी सु¤ोंदी से बÖत “ार था। बोिधसÜ, िजसे
सेòम के नाम से जाना जाता था, एक युवा गòड़ था, िजसका िनवास नागदीप म< था। नागदीप
से वह तंब के साथ पासा खेलने के िलये भेष बदलकर या>ा करता था और सु¤ोeी उसके
साथ नागदीप भाग गई। तंब उसके गायब होने से बÖत दु :खी Öआ। लेिकन स‹ नामक उसके
एक मं>ी ने स¢ाई का पता लगाने म< कामयाबी हािसल की और तंब और गòड़ के सामने एक
गीत म< अपने कारनामों का वण#न िकया। गòड़ संदभ¨ को समझ गया, पµाताप से भर गया
और सु¤ोंदी को वापस तंब को दे िदया (Fausböll: 1877–1897: iii.187-90)।
48
िहमालय म< संïास लेने के बाद बाराणसी के एक धनी ~ा≥ण ने एक हाथी के ब¢े को गोद
िलया और ब¢े के मरने पर काफी _ाकुल हो गया। यह दे खकर स» उसके सामने Kकट
Öआ और उसे याद िदलाया िक यह वह नहीं है िजसके िलये उसने घर और चू;ा छोड़ा था
(Fausböll: 1877–1897: iii.388-91).
49
महाधन नामक एक युवा _ापारी ने एक वे§ा को संर=ण िदया और हर िदन उसे एक हजार
िस»े िदये। एक िदन ज-ी म< होने के कारण वह अपने साथ कोई पैसा नहीं ले गया। खाली
४३८) 51 रोहं तािमगजातक (संÿा ५०१), 52 िक<ं द जातक (संÿा
५११),53कुंभ जातक (संÿा ५१२),54संबुल जातक (संÿा ५१९),55अलÍुस
हाथ होने के कारण उसे बाहर िनकाल िदया गया। तदनÑर घृणा और लflा म< वह संïासी
बन गया (Fausböll: 1877–1897: iii.474ff).
50
बाराणसी की एक रानी, बुरे कम# के कारण, घोड़े के चेहरे वाली य=ी (पािल, यºी) बन गई।
तीन साल तक वे¤वन की सेवा करने के बाद, उसने एक िनिµत सीमा के भीतर लोगों को
खाने की अनुमित KाL कर ली। एक िदन उसने एक धनी और सुeर ~ा≥ण को पकड़ िलया
और उसे अपना पित बना िलया। बोिधसÜ उनके पु> के 7प म< पैदा Öआ था, और, अपने
िपता के बारे जानने पर िक य=ी की शW` िकतनी दू र तक फैली Öई है, वह िपता के साथ भाग
गया। य=ी ने उनका पीछा िकया, लेिकन वे उसके =े> से बाहर िनकल गए और वह उu<
लौटने के िलये राजी न कर पाई। उसने अपने बेटे को ऐसा वरदान िदया िक वह बारह साल
बीत जाने के बाद भी िकसी भी _W` के पदिचuों का अनुगमन कर सकता था। इसी वरदान
के बल पर बालक ने बाराणसी के राजा के पास नौकरी कर ली। एक िदन, राजा और उसके
पुजारी ने उसकी परी=ा लेने की इêा से कुछ खजाना चुरा िलया, उसे कुिटल रा;ों से ले गए
और एक तालाब म< िछपा िदया। युवा िबना िकसी किठनाई के इसे पुनKा# L करने म< स=म था।
लेिकन जब राजा ने जोर दे कर कहा िक चोरों के नामों का खुलासा िकया जाए, तो लड़के ने
उनके नाम बताए, इक˙े Öए लोगों ने राजा और उसके पुजारी की हYा कर दी और बोिधसÜ
को अपने राजा के 7प म< िसंहासन पर िबठा िदया (Fausböll: 1877–1897: iii.501-514).
51
एक KिसO िश=क जंगल म< संïासी बन कर रह रहा था, उसके पास एक पालतू तीतर था
िजसने िश=क से सुनकर तीनों वेद सीख िलये थे। जब िश=क की मृYु Öई, तो उनके छा>
पीड़ा म< थे, लेिकन उनके िदमाग को तीतर ने शां त िकया और उu< वह सब िसखाने लगा जो
वह जानता था। एक िदन एक धोखेबाज तपõी आûम म< आया और जब छा> दू र थे, तो तीतर
को मौत के घाट उतार िदया। तीतर के दो दो; थे, एक शेर और एक बाघ, िजuोंने काितल
को मार िदया (Fausböll: 1877–1897: iii.536f).
52
खेमा की इêा को पूरा करने के िलये, उसके पित, जो बाराणसी का राजा था, ने जंगल से
सोने के मृग रोहं त को पकड़ने के िलये एक िशकारी को लगाया। रोहं त ने िशकारी को धम#
िसखाया और िशकारी ने राजा और रानी को कहानी सुनाई और उu< धम# का उपदे श िदया।
िफर उन पुरkारों को, जो उuोंने उसे िदये थे, ठु करा िदया और िहमालय म< एक तपõी बन
गया (Fausböll: 1877–1897: v.123ff).
53
बाराणसी के राजा के एक सलाहकार, िजसने iरqत ली और झूठे िनण#य िदये, का पुनज#‰
उस रा· म< Öआ, िजसम< वह िदन भर पीिड़त रहता था। लेिकन ®ोंिक उसने उपवास रखने
वाली एक मिहला को एक आम का फल िदया था, इसिलए वह रात भर एक आकष#क आम के
जातक (संÿा ५२३),56सोनक जातक (संÿा ५२९),57और सुधाभोजन
जातक (संÿा ५३५)।58
बाग म< आनंद से रहता था। उसका राजा, जो एक तपõी बन गया था, इसी उपवन का एक
आम नदी mारा तपõी तक पÖं चने पर जब उसने खाया तो वैसे ही कुछ और आमों की इêा
_` की। उसे एक नदी अ=रा आम के बाग म< ले गई, जहाँ उसने अपने पूव# सलाहकार से
उसके वैकWøक आनंद और दु ख की कहानी सुनी (Fausböll: 1877–1897: v.1ff).
54
सुर नामक एक वनपाल को अचानक एक बÖत नशीला पेय पदाथ# िमल गया और उसने
अपने साथी, तपõी वòण की मदद से, पूरे जÍूmीप म< इस खोज को िवÿात कर िदया,
िजससे सारे जÍूmीप का िवनाश हो गया। स» पृ3ी पर Kकट Öआ और नशीले पेय पदाथ#
की बुराइयों के अपने Kदश#न से ûाव;ी के राजा सªिमÇ को इसके उपयोग से दू र रहने के
िलये Kेiरत िकया (Fausböll: 1877–1897: v.11ff)।
55
कु रोग से oिसत होने पर, बाराणसी के राजा सोिथसेन ने अपना रा· छोड़ िदया और
अपनी सुंदर पöी संबुला के साथ जंगल म< चला गया। संबुला ने बड़ी भW` के साथ उसका
पालन-पोषण िकया। एक िदन जब वह &ान करने गई तो एक य= ने उसे पकड़ िलया। लेिकन
उसकी शW` से स» का िसंहासन गम# होने लगा और स» ने अपने वı के साथ आकर
य= को डरा िदया और उसे जंजीरों म< डाल िदया। जब संबुला घर लौटी तब तक काफी दे र हो
चुकी थी, और सोिथसेन ने, उसके “ार की परी=ा लेने की इêा से, उसकी कहानी पर िवqास
करने से इनकार कर िदया। िफर उसने सY का एक काय# िकया, यह घोषणा करते Öए िक
वह वफादार है और सोिथसेन पर पानी िछड़का। वह पूरी तरह से ठीक हो गया था, और वे
दोनों एक साथ बाराणसी लौटे और सोिथसेन िफर से राजा बन गया। सोिथसेन ने सभी Kकार
के सुखों म< िलL होना शु7 कर िदया और संबुला की पूरी तरह से उपे=ा कर दी। जब
सोिथसेन के िपता, एक तपõी, िजसने उसे रा· Kदान िकया था, को यह पता चला, तो उसने
सोिथसेन को फटकारा (Fausböll: 1877–1897: v.88-98).
56
इिसिसंग जंगल म< घोर तप‚ा कर रहे थे। इन तप‚ाओं के पiरणामõ7प, स» का
िनवास कां पने लगा और उसका िसंहासन गम# हो गया। अपनी Kितmं िmता के डर से, स» ने
एक सुंदर आकाशीय अ=रा, अलÍुसा को उसे बहकाने और उसे पु• जीवन से िगराने के
िलये भेजा। यह उसने सफलतापूव#क िकया और तीन साल तक वह अलÍुसा के आिलंगन म<
बेहोश पड़ा रहा। अंत म<, अपने होश म< आकर, उसने तुरंत कामुक इêा को Yाग िदया, और
Vान िवकिसत करते Öए, झान KाL िकया। अलÍुसा ने =मा की भीख माँगी, िजसे तुरंत मंजूर
कर िलया गया (Fausböll: 1877–1897: v.152-161)।
57
बाराणसी के राजा अiरं दम और एक पुजारी के बेटे सोनक ने युवा _W`यों के 7प म<
त»िसला म< एक साथ अVयन िकया था। चालीस साल बाद, अiरं दम ने सोनक को नहीं
पहचाना, जो अब प¢ेक बुO बन गए थे। सोनक ने अपनी पहचान का खुलासा न करते Öए
यह भी उpेखनीय है िक मंडप न केवल “उन पØरों से तैयार िकया गया है
जो मूलत: अï मंिदरों के थे” बW™ ऐसा Kतीत होता है िक तथाकिथत बुOपद म<
“कुछ िचÊ या Kतीक ऐसे हt, जो ... बुO की िवशेषता नहीं हt” (Mitra 1878: 100)।
िव¬ुपाद, oेनाइट का फश#, और पुन: उपयोग की गई सामoी से बना कटघरा,
संभवतः उसी काल-अविध के हt िजसको िशखर की पुन: सजावट का ûेय िदया जाता
है । िशखर को भी काफी हद तक पुनिन#िम#त िकया गया था, नया मीनार-Kाòप
“आरं िभक िहं दू मंिदरों से ZÄ 7प से संबंिधत था” ®ोंिक “बोध-गया म<
पुनिन#मा# णकता# गहन िहं दू Kभाव के तहत काम कर रहे थे”!जो “AथापY KवृिÇयाँ व
मजबूत Aथानीय परं पराओं के सं>ेषण से पराकाा पर पÖंचा” (Myer 1958: 292-
293)। इस Kकार, एक शैव संïासी mारा अVावास आµय#जनक नहीं है । जगह के
माहौल के अलावा, संïासी ने पावन Aथल को जीिवत रखने के िलये कत#_बO
महसूस िकया होगा।
राजा से Yाग के लाभों के बारे म< बात की और अ…§ हो गया। राजा ने उसकी बातों से
Kभािवत होकर िसंहासन को Yागने और संïास लेने का िनण#य िलया। उसने अपने ·े पु>
दीघावु को राजा िनयु` िकया, उसे अपनी सारी संपिÇ सौंप दी, और अलौिकक शW`यों का
िवकास करके ~≥ लोक म< ज‰ िलया (Fausböll: 1877–1897: v.247-61)।
58
हालां िक कोिसय के पूव#ज बÖत उदार थे, लेिकन बÖत अमीर होने के बावजूद वे बेहद कंजूस
थे। लेिकन एक बार स» और अï दे वताओं को अलौिकक शW` के साथ दे खकर, कोिसय
ने अपने धन को दान म< दे ने का फैसला िकया। बाद म< वह एक तपõी बन गया और एक
झोपड़ी म< िनवास करने लगा। उस समय स» की चार पुि>याँ - असा, सOा, िसरी, और िहरी
- पानी म< खेलने के िलये अनोतÇ चली गईं। वहाँ उuोंने नारद को एक पiरêÇक-फूल के
नीचे दे खा, जो उu< छाया दे रहा था, और KYेक ने उनसे फूल मां गा। नारद ने कहा िक वह
फूल उनम< से सव#ûे को द< गे, और उu< स» के पास भेज िदया। स» ने (मातिल mारा) एक
कप अमृत कोिसय को भेजा, और कहा िक उसकी जो भी बेटी कोिसय को सफलतापूव#क
अपने पेय को साझा करने के िलये राजी करे गी, उसे सव#ûे घोिषत िकया जाएगा। उuोंने
उनके सभी दावों को Vान से सुना और िहरी के प= म< फैसला िकया। स» ने जानना चाहा
िक उसने ऐसा िनण#य ®ों िलया, उसने मातिल को अपने रथ म< उÇर के िलये भेजा। जब
मातिल उससे बात कर ही रहा था, कोिसय की मृYु हो गई और तावितंस म< उसका पुनज#‰
Öआ। स» ने उसे िहरी को पöी के 7प म< और साथ ही तावितंस के रा· का िह¤ा दे िदया
(Fausböll: 1877–1897: v.382-412)।
चीनी तीथ#याि>यों ने महाबोिध मंिदर पiरसर का िव;ृत िववरण िदया है ।
फ़ा§ान (३९९-४१४ ई.) ने वष# ४०४ ईõी म< इस Aथान का दौरा करते Öए, अपने
फोकुओ ची (बौO रा·ों का Kलेख) म< उpेख िकया है िक “िजस Aथान पर बुO ने
सÉासंबोिध (संपूण# éान) KाL की थी, वहां तीन आराम हt, िजन सभी म< िभ=ु िनवास
कर रहे हt । मठों के आसपास के लोगों के पiरवार इन िभ=ुओं की मौिलक
आव§कताओं की Kचुर मा>ा म< आपूित# करते हt , तािक उनको कोई कमी या
अटकाव न हो”!(Legge 1886: 89)। फ़ा§ान आगे कहता है िक यहाँ बोिध-KाWL
के Aथान पर एक ;ूप बनाया गया था (Legge 1886: 90)। बोिध की KाWL के तुरंत
बाद बुO के अनुभवों के बारे म< बात करते Öए, फ़ा§ान ने उpेख िकया है िक–
जहाँ बुO ने संबोिध KाL करने के बाद सात िदनों तक वृ= पर िचंतन िकया, और
िवमुW` के आनंद का अनुभव िकया; जहाँ , प> पेड़ के नीचे, वह सात िदनों तक
पिµम से पूव# की ओर आगे-पीछे चलते रहे ; जहां दे वों ने सात कीमती पदाथ¨ से बना
एक क= Kकट िकया, और सात िदनों के िलये उसे Kसाद चढ़ाया; जहां अंधे नाग
मुचिलंद ने उu< सात िदनों तक लपेट म< रखा; जहाँ वह ïाoोध वृ= के नीचे, एक
चौकोर च$ान पर, पूव# की ओर मुंह करके बैठे थे, और ~≥-दे व ने आकर उनसे
अनुरोध िकया; जहाँ चारों दे व राजा अपने िभ=ापा> उनके पास लाए; जहां ५००
_ापाiरयों ने उu< भुना Öआ आटा और शहद िदया; और जहां उuोंने का§प भाइयों
और उनके हजार िश◊ों को धम#पiरवित#त िकया; इन सब Aथानों पर ;ूपों को पूजा
जाता था (Legge 1886: 88-89)।
शुएनज़ां ग ने अपने या>ा वृतां त था-थां ग-सीयुची म< उpेख िकया है िक एक ~ा≥ण
के छोटे भाई ने महे qर के िनदÃ शन म<, तालाब की खुदाई की और मूåवान व;ुओं
की भ<ट चढाई (Li 1996: 218)। अपने या>ा वृतांत म<, शुएनज़ांग चं≠म का उpेख
करते Öए कहता है यह “बोिध वृ= के उÇर म< WAथत है ... जहां बुO आगे-पीछे चलते
थे...। बाद के समय के लोगों ने इस Aथान पर लगभग तीन फीट ऊँचा एक चं≠मण
पथ बनाया” (Li 1996: 220)। शुएनज़ांग के या>ा वृÇांत म< महाबोिध मंिदर के पiरसर
के भीतर और इसके आसपास कम से कम तीस ;ूपों और आधा दज#न मंिदरों के
अW;a का उpेख िकया गया है (दे ख< Li 1996: 217-230)। शुएनज़ांग के अनुसार,
महाबोिध मंिदर और वıासन के अलावा, महाबोिध मंिदर पiरसर के भीतर और
इसकी त´ाल िनकटता म< कुछ महÜपूण# ;ूपऔर अï पु•-Aथल िनŸिलWखत
थे 59–
१. महाबोिध वृ= के पिµम म< खड़ी मुƒा म< बुO की पीतल की मूित# के साथ एक
िवशाल मंिदर WAथत है (Li 1996: 220)।
२. महाबोिध वृ= के दि=ण म< राजा अशोक mारा िनिम#त सौ फुट से भी अिधक ऊँचा
;ूप WAथत है (Li 1996: 221)।
३. एक ;ूप उस Aथान के उÇर-पूव# म< WAथत है जहाँ बोिधसÜ mारा घास KाL की गई
थी (Li 1996: 221)।
४. महाबोिध वृ= के पूव# म< दो ;ूप WAथत हt, एक बाईं ओर और दू सरा मुÿ सड़क के
दाईं ओर। शुएनज़ां ग के अनुसार, यह वह Aथान है जहाँ मारों के राजा ने बोिधसÜ
को िव=ु¿ िकया था (Li 1996: 221)।
५. महाबोिध वृ= के उÇर-पिµम म< का§प बुO की मूित# वाला एक मंिदर WAथत है (Li
1996: 221)।
६. दो ईंट िनिम#त क=, िजन म< KYेक म< पृ3ी दे वता की मूित# है, का§प बुO के मंिदर
के उÇर-पिµम म< WAथत हt । शुएनज़ां ग के अनुसार, इन दे वताओं म< से एक ने बुO
को मार के आगमन की सूचना दी और दू सरा बुO का गवाह बना (Li 1996: 221)।
७. जागुड़ दे श के एक KिसO _ापारी mारा िनिम#त ;ूप, िजसे भगवा ;ूप के नाम से
जाना जाता है और जो चालीस फीट से अिधक ऊँचा है , महाबोिध वृ= पiरसर के
पिµम म< WAथत है (Li 1996: 222)।
८. महाबोिध पेड़ के दि=ण-पूव[ कोने म< बरगद के पेड़ के बगल म< एक ;ूप और एक
मंिदर WAथत हt । मंिदर म< बैठे Öए बुO की एक मूित# Aथािपत है (Li 1996: 223)।
९. महाबोिध वृ= पiरसर के अंदर चारों कोनों म< से KYेक म< एक महान ;ूप WAथत है
(Li 1996: 223)।
१०. महाबोिध वृ=पiरसर के अंदर “मछली के शतकके समान एक-दू सरे के पास” कई
पु•-Aथल WAथत हt और “उनका पूण# िववरण दे ना मुW?ल है ”!(Li 1996: 223)।
११. महाबोिध वृ=पiरसर के बाहर दि=ण-पिµम कोने म< एक ;ूप है जो बुO को खीर
Wखलाने वाली दो दू ध वािलयों के पुराने घर की जगह को िचिÊत करता है । (Li
1996: 223)।
१२. एक ;ूप उस Aथान को िचिÊत करता है जहाँ दू ध वािलयों ने खीर पकाई थी (Li
1996: 223)।
म< २५००वीं बुO जयंती के उ˜व के अवसर पर अपने वत#मान Aथान पर पुनAथािपत
िकया गया था।
बोधगया के महाबोिध मंिदर पiरसर म< पुरातa उ6नन (Indian
Archaeology: A Review 1974-75: 10, 1981-82: 10-12; 1982-83: 16; 1983-
84: 12ff) KY= 7प से िदखाई दे ने वाले खंडहरों के अनावरण तक सीिमत थे।
मंिदर के चारों ओर, बुO के काल से लेकर मौय# काल तक का कुछ भी यहां नहीं
िमला। मंिदर म< तीन आरोिपत िसWpयां संभवतः बोधगया म< सबसे पुराने अवशेष हt ।
महाबोिध वृ= के तल पर किनंघम mारा पाया गया KिसO पØर वıासन भी काफी
पुराना है । मौय#कालीन पॉिलश और सजावटी िच>ों के कारण बलुआ पØर की पिटया
अशोक को सौंपी गई है । महाबोिध वृ= के नीचे WAथत पØर की पीठ, साथ ही चतुभु#ज
पØर का कटघरा, जो महाबोिध वृ= के आसपास के =े> को घेरता है और अब
केवल टु कड़ों म< जीिवत है , आमतौर पर पहली शता”ी ईसा पूव# का है (दे ख<
Cunningham 1892: 4-20, pl. VI). चं≠म, बुO का πमणपथ, भी अपनी Kारं िभक
परत म< काफी पुरानी ितिथ की है ।
िच> १०–चं≠मण
आवेदन म< आगे बताया गया है िक “हालां िक भारत म< Kारं िभक बौO गुफाएं
मौजूद हt , भ_ महाबोिध मंिदर Kारं िभक काल का एकमा> बौO संरचनाXक मंिदर
है जो आज भी खड़ा है । भारत म<, हम इस अविध के कुछ संरचनाXक मंिदर पाते हt ,
लेिकन ५वीं-६वीं शता”ी का महाबोिध मंिदर अêी तरह से संरि=त, बड़ा और उन
सभी म< सबसे भ_ है ” (पiरिशÄ– ४)।
भारत के अनुरोध को õीकार करते Öए, यूनेkो ने २७ जून २००२ को
महाबोिध मंिदर को यूनेkो के िवq धरोहर ßारक से सÉािनत िकये जाने वाले १८व<
भारतीय सां kृितक Aथल के 7प म< घोिषत िकया। यूनेkो के अनुसार, “वत#मान
मंिदर गुL काल से पूरी तरह से ईंट से िनिम#त सबसे Kाचीन और सबसे भ_
संरचनाओं म< एक है ।” यूनेkो ने इसे िवq धरोहर Aथल घोिषत करते समय इसे
'Kथम जीिवत बौO ßारक' के 7प म< माïता दी औरइस Kकार इसे अï उन
ßारकों से अलग िदखा िदया िजu< अ)र 'मृत ßारक' माना जाता है (दे ख< पiरिशÄ:
५)। इन सब के अलावा, यूनेkो की इस िवq धरोहर घोषणा ने बोधगया को एक
िविशÄ बौO पहचान का िवशेषािधकार दे िदया है , िजसके mारा इस Aथान की पहचान
को इस =े> के उस बÖसंयोजी और समावेशी पiर…§ से अलग कर िदया गया है
िजसम< यह मंिदर WAथत है ।
अ'ाय ४
महाबोिध वृ6
पािल ितिपटक के कुछ oंथ इसे महाबोिधòº कहते हt (उदाहरण के िलये, Fausböll
60
1877–1897: iv.228; Warren 1951: 403; Norman 1906-15: 1.105; Woodward 1940-
49: 62)। सÎाट अशोक ने अपने गुजरात के िगरनार और उÇराखंड म< कालसी के िशला
अिभलेख सं. ८ म< इसे संबोिध कहा है (दे ख< Hultzsch 1925: 14-15, 36-37; Barua 1943:
186)। अले@<डर किनंघम, िजuोंने १८८१ म< इसका पौधा लगाया था, ने भी कभी-कभी इसे
अï बोिध वृ=ों से अलग िदखाने के िलये अपने लेखनों म< महाबोिधवृ= के 7प म< संदिभ#त
िकया (उदाहरण के िलये, Cunningham 1892: 31).
पिव> माना जाता है , ®ोंिक वıासन इसकीजड़ म< WAथत है , िजसे बौO बोिध-KाWL
का वा;िवक Aथल मानते हt ।
61
परं परा के अनुसार (Oldenberg 1879: 197; Geiger 1912: XIX:128-135), मूल पेड़ की
शाखा ûीलंका म< सÎाट अशोक की बेटी mारा तीसरी शता”ी ईसा पूव# (लगभग 245 ईसा पूव#)
के मV म< लगाई गई थी। यह दु िनया का सबसे पुराना जीिवत मानव-रोिपत आवृतबीजी
(angiosperm) पौधा है और रॉकी माउं टेन टÅ ी-iरं ग iरसच# (Rocky Mountain Tree-Ring
Research) के अनुसार, यह दु िनया का बारहवां सबसे पुराना जीिवत पेड़ है और दि=ण
एिशया म< सबसे पुराना है । (http://www.rmtrr.org/oldlist.htm) ।
62
इसकी जड़< आधार की 7कावटों के बीच आराम से माग# बना सकती हt , अंततः इसे भीतर से
फाड़ दे ती हt । इसी कारण इसे िफकस iरिलिजयोसा (ficus religiosa) को Bोबल
क«<िडयम ऑफ वीड् स (Global Compendium of Weeds) औरइनवेिज़व Zीशीज़
क«<िडयम (Invasive Species Compendium) mारा “पया# वरणीय खरपतवार” या
“Kाकृितक खरपतवार” के 7प म< सूचीबO िकया गया है (Randall,
2012;https://www.cabi.org/isc/datasheet/24168#tosummaryOfInvasiveness)। इसके
आ≠ामक _वहार के िलये िजÉेदार Kाथिमक कारण िविभQ िम$ी के Kकारों के साथ-साथ
जलवायु =े>ों म< इसकी अंकुiरत होने की =मता, तेजी से बढ़ने वाली Kकृित, बÖत लंबी उÎ,
और एक अिधपादप (epiphyte) के 7प म< इसकी वृWO की आदत है ।
पतले डं ठल पर लगे पÇे हलकी सी हवा के िहलने लगते हt । यह सदाबहार पेड़
धािम#क 7प से मंिदरों के साथ-साथ घरों के पास लगाया जाता है और इसे अमरता
का Kतीक माना जाता है । भारतीयों के बीच लोकिKय धारणा यह है िक पीपल को
पानी िपलाने, पूजा करने और इसकी पiर≠मा करने से KिसWO, सुख और, समृWO
िमलती है । पीपल के नीचे की जगह को सुर=ा या आराम का आदश# Aथान माना
जाता है । लोकिKय माïता म< पीपल को उपचार, सÉोहकता, या मनोकामनामा> के
साथ जोड़ा जाता है और इसिलए इस पेड़ का उपयोग भ<ट और माåाप#ण के mारा या
िफर धागेया वæ-ख⁄ इसकी शाखाओं म< लपेट कर यालटका कर बीमार मनु◊ों
या पशुओं के आरो+ लाभ या सौभा+ के िलये कामना की जाती है ।
उpेखनीय है िक पीपल के पेड़ और भारतीयों के बीच Kागैितहािसक काल
से पारZiरक 7प से लाभकारी संबंध रहा है । आयुवÃिदक सािहY म< पीपल के पेड़
की उपयोिगता िविभQ Kकार के उपचारों म< काफी िव;ार से उपल¿ कराई गई है
(दे ख< Varma 1980)। आयुवÃिदक सािहY म< यह दावा िकया गया है िक पीपल “पृ3ी
पर सूय# का िनवास” है (दे ख< Singh 2005: 9-11)। इसीिलए, पीपल के पेड़ के कुछ
िह¤ों का उपयोग आयुवÃिदक जड़ी-बूटीय दवाओं म< िकया जाता है , जहां यह
मानागया है िक _W` के शरीरावAथा को शW`वध#क अिã (िपÇ) की आव§कता
होती है । चूंिक इसे र` शोधक माना जाता है , इसका उपयोग कामो£ीपक के 7प म<
और बांझपन तथा नपुंसकता के इलाज म< िकया जाता है (Singh!2005: 9-10)। इसके
अलावा, पीपल का उपयोग मानिसक िवकारों, आं खों और दां तों की सम‚ाओं और
आं तiरक अंगों को Kभािवत करने
वाली बीमाiरयों के इलाज के िलये
िकया जाता है । वा;व म<, कुछ
अVयनों से पता चला है िक िफकस
iरिलिजयोसा का उपयोग पारं पiरक
आयुवÃिदक पOित म< अAथमा,
मधुमेह, द;, िमग[, जठरीय
सम‚ाओं, सूजन संबंधी िवकारों,
सं≠ामक और िवषाणुजिनत
बीमाiरयों सिहत कम से कम पचास
Kकार के िवकारों के िलये िकया
जाता है (Singh and Singh et al
2011: 565–583)।
िच> ११– िस÷ु-सरõती सfiता से पीपल के पÇों और
वृ= दे वता को दशा# ने वाली मुहर (ûेय– Marshall 1931: पीपल की पूजा भारत म< कई सहÀाW”यों
III, pl.CXII, no. 387 से दे वa के वृ=ीय 7प म< की जाती रही है और
पीपल के पेड़ की पूजा का Kमाण भारत की पूव#-ऐितहािसक संkृितयों म< पाया जा
सकता है , िजसम< ताÎपाषाण, कुpी-नाल और िसंधु-सरõती सfiता (लगभग ३०००
ईसा पूव#) शािमल हt (दे ख< Mackay 1931: 387; Marshall 1931: I.52, 64;
III.Pl.CXII no. 387; Parpola 2005: 28-66; Gupta 2001: 33)। पुराताWÜक
आं कड़ों के आधार पर, कुछ िवmानों ने सुझाव िदया है िक िसंधु-सरõती सfiता म<
“पीपल दे वता सव¥¢ दे वता थे”!(Malla, 2000: 15-16; Śastri, 1965: I.15-18)।
माश#ल ने इस आधार पर िक कुछ मुहरों म< एक वृ= एक कटघरे से िघरा Öआ है ,
वृ=ों और वृ=-दे वताओं की पूजा की Aथािपत Kथा का सुझाव िदया है । असल म<,
मोहनजोदड़ो की एक और मुहर म< “उपासकों mारा पिव> अंजीर की पiर≠मा होती”
दशा# ई गई है (Patnaik 1993: 37; Marshall 1931: 63-64)। ऋ2ेद (Wilson
1888: I.146) और कई अï वैिदक oंथों63 म< इस महान वृ= को सÉान का Aथान
िदया गया है । ऋ2ेद म< पूरे ~≥ां ड को एक हजार शाखाओं वाला पीपल का पेड़ माना
जाता है (Wilson 1888: IX.5.10)। Kाचीन संkृत सािहY म<, “यह पेड़ जीवन की
उäिÇ और सहजीवन दोनों से इतना गहरा जुड़ा है िक इसे रोशनी व बोिध को Kेiरत
करने का ûेय िदया जाता है , और अनिगनत भारतीय िकंवदं ितयों म< इसकी छाया म<
Vान करने वाले ऋिषयों के बारे म< बताया गया है” (Patnaik 1993: 62)। वा;व म<,
कई Kाचीन भारतीय oंथ अqØ को एW)स मुंडी (axis mundi) अथा# त् दु िनया की
नािभ या आकाशीय Cुव) के 7प म< दे खते हt , जो ~≥ां ड को सहारा दे ता है , और
आकाश, पृ3ी व अधोलोक के बीच संपक#-सू> Kदान करता है । ऋ2ैिदक भारतीय
भी पीपल के पेड़ को अिã दे वता का िनवास मानते थे, िजu< घष#ण के माVम से
लकड़ी से बाहर लाया गया था। इस Kकार, यह बताया गया है िक पीपल के पेड़ की
63
िफकस iरिलिजयोसा के िलये9= संभवत: संkृत श” है, िजसे िहंदू शाæ सरõती नदी
के Àोत से जोड़ते हt (दे ख<, उदाहरण के िलये, वामन पुराण.३२.१-४ जहां सरõती 9= के पेड़
से िनकलती िदखाई गई हt )। इसी तरह, ऋ2ेद सू>ों म< (अqलायन ûौत सू>.१२.६,१;शां खायन
ûौत सू>.१३.२९,२४), 9= KÀवण सरõती के Àोत को संदिभ#त करता है (दे ख< Macdonell
and Keith 1912, II: 55)।
पिव>ता “शायद पुराने वैिदक अनुान व धािम#क समारोहों म< यé की आग को
लकड़ी के दो िवशेष आकार के टु कड़ों के बीच घष#ण से जलाने पर आधाiरत है ,
िजनम< से एक अqØ है और इस Kथा को'अिã का उ^व' कहा जाता है ”!(Gupta
2001: 33)। दू सरे श”ों म<, पीपल के पेड़ और उसकी लकड़ी का उपयोग वैिदक
अनुानों म< _ापक था और एक पीपल के पेड़ की सूखी Öई शाखाओं के साथ यé
की अिã KDिलत की जाती थी “िजसके mारा दे वताओं ने मानव जाित को éान
िदया”!(Hume 1921: 167; Bloomfield 1897: 460; Macdonell 1897: 95;
Patnaik 1993: 37). अथव#वेद के अनुसार, पीपल का पेड़ सभी दे वताओं का िनवास
Aथान है और Kाचीन भारतीय न केवल दु ,नों पर जीत के िलये बW™ पु> के ज‰
के िलये भी इसकी पूजा करते थे (Bloomfield 1897: 33, 117, 460)।वा;व म<, यह
सुझाव िदया गया है िक “वैिदक काल म< अqØ वृ= को एक गहन तÜमीमां सा
िसOां त का आधार बनाया गया था” और वेदां ितक दाश#िनक oंथों म< इस वृ= को
सव¥¢ éान (~≥-तò) और जीवन (जीवन-तò) का वृ= माना गया है (Malla 2000:
27)।मै>ायणी उपिनषद् (Cowell 1935: 6.4) म< अqØ को ~≥ की सव¥¢
वा;िवकता माना जाता है । कठ उपिनषद् भी अqØ की पहचान शुO और शाqत
~≥ की परम वा;िवकता के साथ करता है और दावा करता है िक पूरी दु िनया इस
पर िटकी Öई है (Sarvananda 1967: 6.1)।
भगवद् गीता के अनुसार, जो इस अिवनाशी वृ= को वा;व म< जानता है ,
उसे õयं वेदों का éाता कहा जाता है (Sargeant 1984: 590)। वा;व म<, यह पूरे
~≥ां ड और सव#_ापी भगवान िव¬ु के साथ भी पीपल की पहचान करता है
(Sargeant 1984: 436)।64 महाभारत के अनुसार, “जो _W` Kितिदन पीपल की
पूजा करता है , वह पूरे ~≥ां ड की पूजा करता है ”!(Ganguli 1976: X. 268)।पE
पुराण और kंद पुराण जैसे oंथ _W` के धािम#क और आVाWXक जीवन म<
अqØ वृ= के महÜ की लंबी _ाÿा करते हt ।65 इन पुराणों के अनुसार, पीपल का
वृ= õयं भगवान िव¬ु का ही एक 7प है (Tagare 2007: 18.1061; Deshpande
1988: II.764)।kंद पुराण के अनुसार, पीपल “सभी पेड़ों म< सबसे पिव> है ... (और)
... महान मांगिलकता अपने साथ लाता है ”!(Tagare 2007: 18.1061)।पEपुराण के
भगवान कृ¬ से अजु#न (भगवद् गीता १०.२६१)– “सभी पेड़ों म<, मt पिव> अंजीर ëं” (अqØ:
64
Rhys Davids and Stede 1921-25: s.v. gāvuta भी दे ख<)। यह लगभग १.९ से २.५ मील
होता है (दे ख< फुटनोट सं. १०).
1947-1975: 952), “बोिध चार िदशाओं का éान है ; Kभु ने बोिध यहीं KाL की थी,
इसिलए वृ= को बोिधवृ= का नाम िमला” (दे ख< Oldenberg 1879-1883: iv.1
fn.2)।किलंगबोिध जातक म< महाबोिध वृ= के साथ-साथ उस Aथान का भी उpेख है
जहां बुO ने éान KाL िकया था और इसे बोिधम⁄ कहते हt (Fausböll 1877-1897:
iv.228-226)। बाद म< बोिधम⁄-िवहार नामक एक आराम यहाँ बनाया गया Kतीत
होता है (Geiger 1808: xxix.41)। यह महाबोिध वृ= (शायद उòवेळा म<) के पास था
जहाँ बुOघोष का ज‰ Öआ था (Geiger:1925-27: i.215)।
यह उpेखनीय है िक िहं दू महाबोिध वृ=
िच> १२– डÅ ै गन सजावट के साथ बोिध पÇा। टे राकोटा,
की पूजा करते हt ®ोंिक वे अपने चौथे िदन के
१३वीं-१४वीं शता”ी ई.। िवयतनामी राÄÅीय इितहास
संoहालय, हानोई।
िपंडदान (पूव#जों को आÖित) की रß उसके चरणों म<
(https://upload.wikimedia.org/wikipedia/co करते हt । ऐसा लगता है िक िजस वृ= के नीचे
mmons/a/a8/National_Museum_Vietnames बोिधसÜ िसOाथ# ने अपना आसन oहण िकया, वह
e_History_1_%28cropped%29.jpg). पहले से ही पूव#वत[ परं परा का धम#Aथल था और
िकसी Kकार की अAथायी भ<ट-वेदी, टीला, या एक कटघरे mारा Kितित था जो इसे
अपने Kितवेश से एक चैYवृ= (पािल, चेितयòº। वृ=-मंिदर) या एक वनचैY
(पािल, वनचेितय। वन-मंिदर) के 7प म< अलग पहचान दे ता था (दे ख<
Coomaraswamy 1935: 3-4; Myer 1958: 278)।67 लेिकन, अगर इस तरह की
भ<ट-वेदी या कटघरा पहले से मौजूद नहीं थे, तो हो सकता है िक बुO के éानोदय के
बाद, इस तरह का कटघरा और संभवतः एक वıासन बौO तीथ#याि>यों mारा बनाया
गया, िजuोंने इस जगह की तीथ#या>ा बुO के जीवन काल म< ही करनी शु7 कर दी
थी। जो सÉान मूल 7प से अकेले महाबोिध वृ= को िदया जाता था, उसे,पहली
शता”ी ईसा पूव# से, महाबोिध वृ= और वıासन दोनों ने, जैसा िक भरÖत ;ूप की
न»ािशयों पर दशा# या गया है , साझा करना शु7 कर िदया था। “तÈ यह है िक
पुराने बलुआ पØर के वıासन पर दे खे गए चार िभिÇ ;Áोंकी सजावटी Kणाली को
न»ाशी म< और िफर से िसंहासन के सामने वाले िभिÇ ;Á म< दोहराया गया था;
जो एक पारं पiरक और पiरिचत तa को संरि=त करने का एक सोचा-समझा इरादा
67
लेिकन, ऐसा Kतीत होता है िक बाद म< जब दे वदÇ ने K;ाव िदया िक िभ=ुओं को
òºमूिलकÇ या òºमूलक (एक पेड़ की जड़ म< रहने वाले) होना चािहये, बुOघोष ने उन
पेड़ों म< चेितयòºों को सूचीबO कर िदया, िजu< “पेड़ की जड़ म< रहने” के अfiास के िलये
नहीं चुना जाना चािहये”!(दे ख< Warren 1951: 74)।
दशा# ता है ” (Myer 1958: 286)। लेिकन, कहीं और, उदाहरण के िलये, ûीलंका म<
अनुराधपुर म< जय ûी महाबोिध वृ= अभी भी éानोदय का महÜपूण# ßृित िचÊ है
(दे ख< Wood 2004a)।
िच> १३– महाबोिध वृ= (सां ची ;ूप-1, पूव[ Kवेश mार, सामने की ओर)
िदलचZ बात यह है िक के समय बीतने के साथ महाबोिध वृ= परकई
िकंवदं ितयाँ िवकिसत Öई हt । उदाहरण के िलये, बौOों का मानना है िक महाबोिध वृ=
का Aथान अतीत और भिव◊ के सभी बुOों के िलये समान है (Horner 1946: 247;
Geiger 1908: 79) और महाबोिध वृ= पृ3ी की नािभ (पृ3ीनािभ,!पठवीनािभ) है
(Fausböll 1877–1897: iv.233)। यह भी माना जाता है िक केवल वही Aथान जहां
महाबोिध वृ= WAथत है बोिध-KाWL के भार को झेल सकता है , कोई अï Aथान नहीं
(Fausböll 1877–1897: iv.229)। इसके अलावा, जब एक युग (कø, कç) के अंत
म< दु िनया नÄ हो जाती है , तो बोिधम⁄ गायब होने वाला अंितम Aथान होगा और जब
दु िनया िफर से अW;a म< आएगी, तो यह सबसे पहले Kकट होगा (Rhys Davids,
Carpentier, et al 1886-1971: ii.412)। इसी परं परा का मानना है िक गौतम बुO
के ज‰ के िदन महाबोिध वृ= का उदय Öआ था (Rhys Davids, Carpentier, et
al 1886-1971: ii.425; Horner 1946: 248)। बौO परं परा यह भी मानती है िक जब
कोई महाबोिध वृ= नहीं उगता है , तो बोिधम⁄ (महाबोिध वृ= के चारों ओर
कीभूिम), एक राजकीय करीस68 की दू री तक, सभी पौधों से रिहत हो जाताहै , यहाँ
तक िक घास कीएकपÇी से भी, और चां दी की थाली की तरह काफी समतल वरे त से
भरा Öआ हो जाता है और उसके चारों ओर घास, लताएं , और वृ= पैदा हो जाते हt ।
कोई भी महाबोिध वृ= के ठीक ऊपर हवा म< नहीं उड़ सकता, यहां तक िक स»
भी नहीं (Fausböll 1877–1897: iv.232)। õयं बुO के जीवन काल म< महाबोिध वृ=
और उसके पौधे उनका Kितिनिधa करने लगे थे। एक जातक म< यह उpेख िकया
गया है िक जब बुO जीिवत थे, तब बोिधम⁄ को एक तीथ# (चैY) के 7प म<
इ;ेमाल िकया गया था जो उस समय का एकमा> पु• Aथल था। जबिक बुO अभी
जीिवत थे उuोंने जेतवन के Kवेश mार के सामने महाबोिध वृ= से एक बीज बोने की
õीकृित यह कह कर दे दी िक “वह मेरे िलये एक Aथायी Aथान जैसा होगा”!तािक
लोग बुO के नाम पर तब अपना Kसाद चढ़ा सक< जब वे ûाव;ी से बाहर या>ा पर
होते थे (Fausböll 1877–1897: iv.228; Cowell, Chalmers et al 1895-1907:
iv.143)। इस उ£े § के िलये मो‹लान ने महाबोिध वृ= से उसके डं ठल से िगरा एक
फल जमीन पर पÖं चने से पहले िलया। परं परा यह कहती है िक जैसे ही इसे
अनाथिपंिडक mारा एक सुनहरे जार म< लगाया गया था, पचास हाथ ऊंचाई का एक
पौधा उग आया और इसे पिव> करने के िलये, बुO ने Vान म< लीन हो कर एक रात
इसके नीचे िबताई। चूंिक यह पेड़ सीधे आनंद के िनदÃ शन और दे खरे ख म< लगाया
गया था, इसिलए इसे आनंद बोिध के नाम से जाना जाने लगा (Fausböll 1877–
1897: iv.228-229)। जेतवन म< बोिध वृ= के रोपण के उद् घाटन समारोह के अवसर
पर, बुO ने यह भी घोषणा की थी िक “बुOों mारा इ;ेमाल िकया जाने वाले महान
बो-पेड़ एक मंिदर के िलये उपयु` है , चाहे वे जीिवत हों या मृत हों” (Fausböll
1877–1897: iv.228; Cowell, Chalmers et al 1895-1907: iv.142)।
लगभग एक एकड़ के बराबर का भूिम का एक वग# माप (दे ख< Rhys Davids and Stede
68
सÎाट अशोक महाबोिध वृ= को ûOां जिल अिप#त करने म< सबसे अिधक
कत#_िन थे और ऐसा Kतीत होता है िक वे एक से अिधक बार वहां गए थे। गुजरात
के िगरनार और उÇराखंड के कालसी म< अपने िशला अिभलेख ८ म<, वे कहते हt िक
उनके रा·ािभषेक के दस साल बाद69 (लगभग २५९-२५८ ईसा पूव#) उuोंने अपनी
धम# या>ा के दौरान महाबोिध वृ= का दौरा िकया।70 उu< काित#क (पािल, किÇक) के
महीने म< संबोिध के सÉान म< एक वािष#क उ˜व शु7 करने के िलये भी जाना जाता
है (Geiger 1908: xvii.17)। संबोिध की उनकी एक या>ा की ßृित को पहली
शता”ी ईसा पूव# की मूित#कला म< महान सां ची ;ूप के पूव[ तोरण (सामने नीचे की
ओर) पर िचि>त िकया गया है ।यह K;ुित ि>रöों को Kितित करने वाले पीपाकृित
Kको के ऊपर िव;र पाती Öई महाबोिध वृ= की शाखाओं और अपनी दो रािनयों
के साथ अशोक को एक बार हाथी से उतरते Öए और दू सरी बार हाथ जोड़कर
महाबोिध वृ= की ओर बढ़ते Öए िदखाती है । उनके आVाWXक गुò, उपगुL के
साथ अशोक की संबोिध की या>ाअशोकावदान म< िव;ार से विण#त है । कहा जाता है
69
महावंश के अनुसार, यह अठारहव< वष# म< घटा (Geiger 1908: XX.I)। लेिकन गायगर ने इसे
गलत समभा है । उनके अनुसार, अशोक के अठारहव< वष# म< महाबोिध वृ= लंका के
महामेघवनारामोrान म< Kितित Öआ था (यह जानकारी मुभे डॉ. संजय कुमार िसंह ने दी है )।
70
दे वानंिपये/दे वानंपिKयो िपयदिस लाजा/राजा दस/दस्[अ]वसा# िभिसतो/वसािभिसते संतो/संतं
अयाय िनखिमथा संबोिधं/संबोिध तेनेसा/तेनता धंम-याता (जब राजा दे वानां िKय िKयƒिशन् को
अिभिष` Öए दस वष# हो चुके थे, वह संबोिध गए। इस Kकार ये धम#या>ाएं यहां [आरÁ
कीं गईं]) (दे ख< Hultzsch 1925: 14-15, 36-37; Barua 1943: 186).
िक इस या>ा के दौरान, अशोक ने महाबोिध वृ= को कीमती गहने और १००,०००
सोने के िस»े दान िकये थे और या तो यहां एक चैY बनवाया (दे ख< Strong 1983:
257-258) या िफर संभवतः पहले से मौजूद चैY की मरमत करवाई।
कुछ बौO oंथों म< महाबोिध वृ= के काट िदयेजाने या इसे नÄ करने के
Kयास िकये जाने का उpेख है । १८७६ म< एक तूफान के कारण नीचे िगरने की कम
से कम एक घटना भी दज# की गई है । पiरणामõ7प, ऐसा लगता है िक यह मृYु
और पुनज#‰ के कुछ च≠ों से गुजरा होगा और इसे िफर से िवकिसत करने के Kयास
िकये गए होंगे। इस उ£े § के िलये,!मूल महाबोिध वृ= के ठूंठ से, या उसकी िकसी
एक शाखा से, या िफर उसके बीज को पुराने पेड़ के मूल Aथान म< िगरा कर, या इसके
Kाकृितक 7प से उगाए गए पौधों म< से एक को मूल Aथान पर पुनर¥पण के माVम से
उगाया गया होगा। वत#मान महाबोिध वृ= मूल महाबोिध वृ= की चौथी या पाँ चवीं पीढ़ी
का Kतीत होता है ।71 इसके चारों ओर का मंच भी,पाल राजाओं और बम[ लोगों के
गहन भW` काय¨ के कारण,उÇरोÇर बढ़ता गया। राज<ƒलाल िम> mारा िदये गए
िववरण के अनुसार, यह १८७७ म<,!भूिम ;र से लगभग ३५ फीट की ऊंचाई तक
पÖं च गया था (दे ख< Mitra 1878: 94)। पाG सामoी म< मानव या Kकृित के हाथों
महाबोिध वृ= के पीिड़त होने के बारे म< आधा दज#न से अिधक घटनाओं का उpेख
िकया गया है –
१. सÎाट अशोक
शुएनज़ांग, जो ६३० ईõी के दशक म< महाबोिध मंिदर गए थे, ने उpेख िकया है िक
बौO धम# के अनुयायी बनने से पहले, सÎाट अशोक ने महाबोिध वृ= को नÄ करने
का Kयास िकया था। उसके अनुसार,
“आशोक के समय से लेकर आज तक, बारं बार िव∆ंस की पूित# के िलये, िजससे यह उभरा था,
बीज से उगाए गए ताजे पेड़ों का एक लंबा िसलिसला रहा होगा; शायद बारह या पंƒह बार, या
बीस बार”!(Cunningham 1982: 31)। िफकस iरिलिजयोसा एक अøकािलक पेड़ नहीं है
और आसानी से एक हजार साल तक जीिवत रह सकता है । जैसा िक बौO oंथों या दू सरे Àोतों
म< विण#त इसके िवनाश की कुछ घटनाएं िवqसनीय हt , वत#मान महाबोिध वृ= मूल महाबोिध
वृ= से चौथी या पां चवीं पीढ़ी का Kतीत होता है ।
तथागत के िनधन के बाद, जब राजा अशोक पहले-पहल िसंहासन पर बैठा, तो
वह िवधम[ िसOां तों म< िवqास करता था और उसने बुध mारा Kयु` Aथलों को नÄ
कर िदया। उसने अपनी सेना भेजी और बोिधवृ= को काटने के िलये õयं वहां
आया। उसने जड़ों, डं ठलों, शाखाओं, और पिÇयों को छोटे -छोटे टु कड़ों म< काट
िदया और उu< पिµम म< कुछ दहाई कदमों की दू री पर ढे र कर िदया, जहाँ अिã-
पूजक ~ा≥णों को अपने दे वता को बिलदान के 7प म< ढे र को जलाने का आदे श
िदया गया। परÑु इससे पहले िक धुआँ और आग की लपट< बुझ जातीं, उस भीषण
आग म< से दो पेड़ पैदा हो गए, िजनके हरे -भरे पÇे थे; इस Kकार इन वृ=ों को
भß बोिधवृ= कहा जाने लगा। यह िविच> …§ दे खकर राजा अशोक ने अपने
कुकम¨ का पµाÇाप िकया और बोिधवृ= की शेष जड़ों को मीठे दू ध से सींचा।
भोर होते ही पेड़ पहले की तरह बड़ा हो गया। राजा ने इस आVाWXक आµय# को
दे खकर बÖत KसQ होकर पेड़ को _W`गत 7प से इतनी KसQता के साथ
Kसाद िदया िक वह घर लौटना भूल गया (Li 1996: 216) ।
इस अवसर को सां ची म< एक न»ाशी पर Kदिश#त िकया गया है (दे ख< Strong 1983: 127
72
३. पु◊िम> शुंग
कुछ अKY= सा≈ों का, जैसा िक िवभाषा म< संकेत िदया गया है (दे ख< !Lamotte
1988: 387), का उपयोग पु◊िम> शुंग पर महाबोिध वृ= को बबा#द करने का आरोप
लगाने के िलये िकया गया है । िद_ावदान और अशोकावदान दोनों ही राजा पु◊िम>
शुंग के बारे म< कहते हt िक उसने “बुO के धम# को िमटाने” की तथाकिथत घोषणा की
और बाद म< ZÄ 7प से “िभ=ुओं का वध िकया और संघ के िनवास को नÄ कर
िदया” (Vaidya 1959: 282; Mukhopadhyaya 1963: 133) लेिकन इन दो oंथों म<
िवशेष 7प से उस पर हमला करने या महाबोिध वृ= को कोई नुकसान पÖं चाने का
उpेख नहीं है , हालां िक ये दोनों oंथ महाबोिध वृ= की संर=क KेताXा य=
दं ÄÅािनवािसन् को बुO-धम# को नÄ करने की केिशश के िलये पु◊िम> की हYा mारा
बदला लेने का ûेय दे ते हt (Vaidya 1959: 282; Mukhopadhyaya 1963: 135)।
दू सरी शता”ी ई. म< िदनां िकत एक सवा# W;वािदन्-वैभािषक oंथिवभाषा, इं िगत करता
है िक पु◊िम> ने महाबोिध वृ= को नÄ करने की कोिशश की, लेिकन वह स=म नहीं
रहा–
धीरे -धीरे बुO के धम# को नÄ करते Öए वह बोिधवृ= के पास पÖंचा। ती यू !(सYवाक्)
नाम के उस पेड़ के दे वता ने सोचा– 'यह मूख# और ≠ूर राजा है जो उस Aथान को नÄ
करना चाहता है जहां गंगा की रे त के 7प म< भागवान बुO ने मार को परािजत िकया
और अद् भुत éान KाL िकया।' तुरंत, यह दे वता, महान सौंदय#वाली मिहला के 7प म<
पiरवित#त हो गया और राजा के सामने खुद को K;ुत िकया। उसे दे खकर, राजा को
काम वासना से पकड़ िलया।दे वता ने उसका अनुoह KाL िकयाऔर उसे मार डाला।
दीवार के बारे म< बात करते Öए, किनंघम आगे बताते हt — “यिद इस उpेख को õीकार
73
४. राजा Öिनमंत
तारनाथ mारा Kदान की गई जानकारी के आधार पर, अले@<डर किनंघम ने सुझाव
िदया है िक महाबोिध वृ= सबसे अिधक =ितo; तब हो गया था जब मगध पर “आम
युग की पहली शता”ी म< पिµमी राजा Öिनमंत74 mारा आ≠मण िकया गया था
(Cunningham 1892: 31)। उसके अनुसार, “जैसा बताया गया है िक मंिदरों को नÄ
कर िदया गया था, चंदोवा-चं≠मण को तोड़ कर नÄ कर िदया गया होगा, और KिसO
बोिध वृ= भी नहीं बचा होगा (Cunningham 1982: 31)।
शुएनज़ां ग mारा उWpWखत चौबीस फीट ऊंचे पØर के बाड़े का उpेख करते Öए, जे.डी.
75
किनंघम की …िÄ म<, तुòó (तुक#) आ≠मणकाiरयों के हाथों महाबोिध को कोई नुकसान
76
नहीं Öआ था। उसने इं िगत िकया है िक “बWHयार Wखलजी के अधीन Öए मुसलमानों के १२०१
ई. के आ≠मण के समय तक यह सुरि=त था। जैसा िक मुसलमानों ने पेशावर म< KिसO पेड़
को बI िदया था, यह संभव है िक महाबोिध वृ= को भी =ित पÖं चाए िबना छोड़ िदया गया
था”!(Cunningham 1892: 31)।
जाता था, तो “अनुराधपुर के बोिध वृ= से KाL की गई कलम को िफर से लगाया
जाता था” (उदाहरण के िलये, दे ख< Haberman 2013: 95; Joshi 2019: 61)।
लेिकन ûीलंका के तीन Kमुख ितिथ-oंथ, अथा#त् दीपवंस, महावंस, और चुpवंस म< से
कोई भी ऐसी कोई जानकारी नहीं दे ता है । लेिकन, है िमJन-बुकानन ने अपनी iरपोट#
म< महाबोिध वृ= के आसपास के Aथानीय लोगों का उpेख करते Öए कहा है िक
“गौतम के उपासकों ... का कहना है िक,उनके अनुसार, इसे िसंहल-mीप (सीलोन) के
राजा दु Kद-चािमनी77 ने १८११ ईõी से २,२२५ साल पहले अथा# त् मWeर के िनमा# ण से
१२५ वष# पूव# लगाया था” (Hamilton-Buchanan 1830: 49)।
६. तूफान
जब है िमJन-बुकानन ने वष# १८११ म< महाबोिध मंिदर का दौरा िकया, तो उuोंने
पाया िक पेड़ पूरी तरह से ठीक था, लेिकन “संभवत: इसकी आयु १०० वष# से अिधक
नहीं है ” (दे ख< Cunningham 1871a: 5; Buchanan-Hamilton 1830: 49)।
आर.एल. िम> ने १८६३ म< महाबोिध वृ= को “=ितo; और मरणासQ” के 7प म<
पाया (Mitra 1878: 93)। कुछ महीने पहले, जब किनंघम ने िदसंबर १८६२ म< इसे
दे खा, तो उसने भी इसे “बÖत अिधक सड़ गया” पाया, एक बड़ा तना, िजसकी तीन
शाखाएँ पिµम की ओर अभी भी हरी थीं, जबिक अï शाखाएँ छाल रिहत थीं और
सड़ी Öई थीं (Cunningham 1871a: 5; 1892: 30)। उuोंने वा;व म< एक नहीं
बW™ “अलग-अलग पेड़ों के कई तने एक साथ गुWêत” पाए, िजन म< एक छोटे तने
की शाखाएँ हरी थीं। वह आगे कहते हt , “पेड़ को बार-बार नवीनीकृत िकया गया,
®ोंिक वत#मान पीपल आसपास की भूिम के ;र से कम से कम ३० फीट ऊपर एक
छत पर खड़ा है” (Cunningham 1871a: 5)। किनंघम ने अगली बार पेड़ को १८७१
म< दे खा, और िफर १८७५ म<, “जब यह पूरी तरह से सड़ गया था, और कुछ समय
बाद, १८७६ म<, पेड़ का एकमा> शेष िह¤ा तूफान के दौरान पिµम की दीवार पर
िगर गया, और पुराने पीपल के पेड़ का अंत हो गया” (Cunningham 1892: 30)।
“लेिकन,!कई बीज, एकि>त िकये गए थे, और मूल वृ= के युवा वंशज पहले से ही
उसकी जगह लेने के िलये अW;a म< आ चुके थे” (Cunningham 1892: 30)।
दु तुगमुनु यातुट्टुकािमणी ने, जो दु ˙गामिन अभय के नाम से KिसO था, १६१ ईसा पूव# से
77
78
महाबोिध मंिदर Kबंधन सिमित (Mahabodhi Temple Management Committee)
mारा िनयु` वन अनुसंधान संAथान, दे हरादू न (Forest Research Institute, Dehadun),
के िवशेषé दल ने सुझाव िदया है िक महाबोिध वृ= के चारों ओर अित उ˜ाही भ`ों mारा
िकये गए Kकाश व अï _वAथाओं ने इसकी जीवन अविध को काफी कम कर िदया है
(https://www.vice.com/en_in/article/9kgdxz/the-bodhi-tree-the-buddha-sat-
under-is-dead)। १५ माच# २०१८ को ए)ेस िकया गया।
िच> १५–महाबोिध वृ=
जब भी महाबोिध वृ= को कोई, मानव िनिम#त या अïथा, नुकसान Öआ, और
एक नया पौधा लगाया गया, इसे वıासन को संदभ# Aथान के 7प म< रखते Öए अपने
मूल Aथान पर ही लगाया गया होगा। लेिकन, किनंघम ने महाबोिध वृ= को उसके मूल
Aथान से कुछ फीट की दू री पर लगाया, तािक वह िफर से बनाए गए मंिदर को
नुकसान पÖं चाए िबना िवकिसत हो सके।79 वारे न के अनुसार, किनंघम ने “पुराने पेड़
के अंकुर खोजने के बाद, एक को बढ़ने के िलये Kो˜ािहत करने और इसे पास के
Aथान पर KYारोपण करने की अनुमित KाL की, जहां बुO अपने éानोदय के बाद
उपWAथत थे” (Warren 1987: 147)। लेिकन, अWखल भारतीय कां oेस कमेटी और
िबहार Kां तीय िहं दू महासभा mारा िनयु` सिमित mारा तैयार की गई और महा-बोिध
जन#ल म< Kकािशत 'बोधगया मंिदर की iरपोट# ' लगाए गए पेड़ों की संÿा के संबंध म<
वॉरे न mारा पेश िकये गए तÈों से पूरी तरह अलग है । iरपोट# म< कहा गया है िक
संर=णकाय# के दौरान, पुराना बोिध वृ= िगर गया और उसम< से दो पौधे दो Aथानों पर
लगाए गए, एक अपने मूल Aथान पर मंिदर के पिµम म< और दू सरा मंिदर के उÇर म<
लगभग ८० फीट की दू री पर उस Aथान पर पुराने बोिध वृ= के नीचे और उसके पास
से Kितमाओं को भी हटा कर और एक मंच पर रख िदया गया था। ऐसा कहा जाता है
िक यह बाद वाला पेड़ िहं दुओं की िपंडदान की रß के िलये आरि=त िकया गया था,
जो अभी भी Kचिलत है (Anon. 1926: 16, Joshi 2019: 64 म< उद् धृत)।
महाबोिध वृ= की दे खभाल के िलये बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित mारा िनयु`
सलाहकार वन अनुसंधान संAथान, दे हरादू न mारा हाल ही म< की गई डीएनए
िफंगरिKंिटं ग (DNA fingerprinting),अWखल भारतीय कां oेस कमेटी और िबहार
Kां तीय िहं दू महासभा की iरपोट# का समथ#न करती Kतीत होती है । यह iरपोट# इं िगत
करती है िक वत#मान महाबोिध वृ= के बजाय, दू सरा पीपल का पेड़ जो “उÇर म<
िदलचZ बात यह है िक महाबोिध वृ= का नया पौधा भी किनंघम mारा उस Aथान से लगभग
79
तीस फीट नीचे लगाया गया था, जहां पुराना महाबोिध वृ= खड़ा था। उसके अनुसार, “१८८० म<,
जब मtने मंिदर की िपछली दीवार के बाहर वıासन को खुला दे खा, तो मुझे लगा िक संभवतः
पुराने बोिध वृ= का कुछ अंश अभी भी पाया जा सकता है जहाँ मूल वृ= खड़ा रहा होगा।
इसिलए, मtने वıासन के पिµम म< थोड़ी दू री पर जमीन खोदी। रे तीली िम$ी म<, िसंहासन के
सामने वाले oेनाइट के बाहर, िसंहासन के पैर के ;र से ३ फीट नीचे, और छत के ;र से ३०
फीट नीचे जहां आधुिनक वृ= खड़ा था, मुझे एक पुराने पीपल के पेड़ के दो बड़े टु कड़े िमले,
एक ६.५ इं च लंबाई म<, और अï ४ इं च। मंिदर के िपछले िह¤े म< ३२ फीट लंबे, ३० फीट
चौड़े , और १४ फीट ऊंचे इस पु˝े का यह समूचा ढे र, इस Aथान पर १२ शताW”यों से अिधक
समय से खड़ा था, इसिलए यह असंभव नहीं लगता िक ये दो टु कड़े पीपल के उस पेड़ के हो
सकते हt िजसे शशां क ने काट िदया था” (Cunningham 1892: 31)।
लगभग 80 फीट”!की दू री पर लगाया गया था, हो सकता है िक उस मूल महाबोिध
वृ= के अवशेषों (जड़ों) से उäQ Öआ हो, िजसे सÎाट अशोक की बेटी, िभºुनी
संघिम>ा mारा, तीसरी शता”ी ईसा पूव# म< मूल पेड़ के बालवृ= के 7प म< अनुराधपुर
ले जाया गया था। लेिकन, महाबोिध मंिदर के पिµम म< WAथत मौजूदा महाबोिध वृ=
को अनुराधपुर से एक शाखा के 7प म< वापस लाया गया माना जाता है । वन
अनुसंधान संAथान की iरपोट# के आधार पर, “यह िनóष# िनकाला जा सकता है िक
उÇरी पीपल का पेड़ वत#मान बोिध वृ= की तुलना म< पुराना और अिधक Kामािणक
है ” (Joshi 2019: 65)। तो अब िदलचZ बात यह है िक जबिक अिधक Kामािणक
वृ= का सÉान नहीं िकया जाता है ®ोंिक यह éान के मूल Aथान से दू र WAथत है और
कम Kामािणक वृ= को महाबोिध वृ= के 7प म< पूजा जाता है ®ोंिक यह ठीक उसी
Aथान पर या उसके करीब WAथत है जहां बुO ने बोिध KाL की थी!
वष# २००७ म< बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित ने पाया िक पेड़ के छ> म<
अिवकिसत व ह™ी हरी पिÇयों के साथ-साथ उसका तना,!शाखाएं , जड़< और छाल
=ितo; होते जा हt । िचंितत सिमित ने महाबोिध वृ= की आपातकालीन जां च के िलये
दे हरादू न के वन अनुसंधान संAथान (एफआरआइ) से संपक# िकया (दे ख< Khan
2018; Lefferts 2019)। एफआरआई mारा भेजे गए िवशेषéों के दल ने पाया िक
पेड़ की बीमाiरयों के Àोतों म<, अï बातों के अलावा, सूया#; के बाद यहां आने वाले
आगंतुकों का माग#दश#न करने के िलये पेड़ के नीचे Aथािपत उ¢-ती∫ता वाली िबजली
की लाइट< शािमल थीं।80 िवशेषé दल ने बताया िक रोशनी ने उसके दै िनक qसन को
बािधत कर िदया था और नीचे लटकती शाखाओं के िलये गंभीर गम[ का खतरा पैदा
कर िदया था। आगे यह भी बताया गया िक अंधेरे की कमी से Kभािवत होने के
अलावा, महाबोिध वृ= की Kकाश सं>ेषण की दै िनक Kि≠या म< बाधा काफी हद
तक पेड़ के पÇों के नीचे काब#न का लेप था जो भ`ों mारा मोमबÇी की पेशकश का
80
एक अï Kथा िजससे महाबोिध वृ= की जड़ और तने को काफी नुकसान पÖं चा, वह भ`ों
mारा घी, दू ध, और सुगंिधत जल आिद चढ़ाने की Kथा थी। उदाहरण के िलये, अपनी एक या>ा
के दौरान, अले@<डर किनंघम ने दे खा िक पेड़ की जड़ों को “सुगंिधत पानी और सुगंिधत दू ध”
से धोया जा रहा है (Cunningham 1892: 30)। १२३४ ईõी म< धम#õािमन् ने यह भी दे खा िक
“भ` दही, दू ध और चंदन तथा कपूर आिद सुग÷-पदाथ¨ से बोिध-वृ= की पूजा करते हt । वे
दू र से बत#नों म< चढ़ावा लाते हt , और उसे बोिध-वृ= के पास खोदी गई खाई म< डाल दे ते हt । इस
Kकार वे बोिधवृ= की पूजा करते हt और उसे लगातार नम रखते हt ” (Roerich 1959: 67)।
पiरणाम था।81 इस iरपोट# के आधार पर, मंिदर Kबंधन सिमित ने िपछले कुछ वष¨ म<
पेड़ को õAथ रखने के िलये कई सावधािनयां लागू की हt । इस उ£े § के िलये,
मोमबÇी और अगरबÇी को जलाना पेड़ की त´ाल िनकटता से हटा िदया गया है
और रात की रोशनी को कम नुकसान पÖं चाने वाली रोशनी से बदल िदया गया है ।82
इन सावधािनयों के बावजूद, आशंका _` की गई है िक पेड़ लंबे समय तक जीिवत
नहीं रहे गा या कम से कम महाबोिध वृ= के अêे õाL म< न होने की वा;िवक
आशंका है । ऐसा लगता है िक बड़े पैमाने पर पदचाप, िम$ी का संघनन, और पोषक
तÜों के Kवाह म< पiरणामी òकावट ने सम‚ा को बढ़ा िदया है (Anon. 2016)।
कहा जाता है िक एफआरआइ दल के सद‚ों म< एक ने टÅ ाइसाइिकल (Tricycle)
पि>का को िदये सा=ा´ार म< बताया िक सहायक के 7प म<, महाबोिध वृ= की एक
संतान को २०१० म< लगाया गया था िजसका ज7रत पड़ने पर “अिधoहण िकया जा
सकता है ”।83 कहा जाता है िक सद‚ ने आगे बताया िक जब तक दे खभाल के
Kयास जारी हt , बौO धम# के सबसे पिव> वृ= को कम से कम पचास वष¨ तक जीिवत
रहना चािहये (Lefferts 2019)। कुछ Àोतों ने संकेत िदया है िक अगर बूढ़ा पेड़
81
४ मई २०१८ को, Vice.com को िदये एक सा=ा´ार म<, वन अनुसंधान संAथान, दे हरादू न के
महाबोिध वृ= के जीण¥Oार के िलये बनाए गए दल के नेता और महाबोिध मंिदर Kबंधन सिमित
के सलाहकार एन.एस.के. हष# ने कहा– “पेड़ के नीचे सफेद संगमरमर का फश# है, जो गिम#यों
के दौरान गम# हो जाता है । महाबोिध मंिदर की भूरे रं ग की दीवार भी गम[ का उ˜ज#न करती
है । यह अितiर` गम[ कई बार समय से पहले मिलनीकरण का कारण बनती है ” (Khan
2018)।
82
एन.एस.के. हष# के अनुसार, अब “संगमरमर के फश# को िदन म< दो बार, सुबह ११ बजे और
शाम ४ बजे के आसपास पोछा जाता है । हमने भ`ों को पेड़ पर दू ध चढ़ाने से भी रोक िदया
है । हमने शाखाओं के नीचे धातु कीटे कों पर रबर और फोम के सं;र लगा िदये हt , तािक
शाखाएं =ितo; न हों। पण#समूह को िनयिमत 7प से हटा िदया जाता है और खाद डाली
जाती है । हम िनयिमत 7प से पेड़ को िमलीबग (mealybug) जैसी बीमाiरयों से बचाने के
तरीके खोजते रहते हt । तने या शाखाओं पर िकसी भी तरह की =ित का इलाज एक िवशेष पेÔ
से िकया गया है । पेड़ नाइटÅ ोजन, तां बा, और पोटाश जैसे Kमुख पोषक तaों की कमी से भी
पीिड़त था। इस कमी को दू र करने के िलये, हमने आव§कता के आधार पर वष# म< एक या दो
बार पुरानी जड़ों म< सू‘ पोषक तÜों को लगाया”!(Khan 2018)।
83
हष# के अनुसार, “यह वृ= अगले ५० वष¨ तक जीिवत रह सकता है । इसका वंशज पहले से
ही तैयार हो गया है और समय आने पर अपनी जगह ले लेगा (Khan 2018)।
अपनी Kाकृितक िनयित को पूरा करता है एफआरआइ ने एक Kित7प बनाने के
िलये पिव> पेड़ की पहले से ही पूरी डीएनए Kोफाइिलंग कर ली है (Anon. 2016)।
वत#मान समय म< सÎाट अशोक के पदिचuों पर चलते Öए, सां kृितक और
_ापाiरक संबंधों को मजबूत करने के िलये, भारत सरकार के मुWखया उन दे शों के
शासनाV=ों को िवशाल महाबोिध वृ= के पौधे भ<ट करते रहे हt , जहां की जनसंÿा
का पया# L अनुपात बौO है । उदाहरण के िलये, १९५९ म<, महाबोिध वृ= की एक
शाखा भारतीय राÄÅपित राज<ƒ Kसाद ने अपने िवयतनामी समक= राÄÅपित हो ची
िमu् को उपहार म< दी थी, िजसे हानोई के टÅ ान Mोक पगोडा (Tran Quoc Pagoda)
म< लगाया गया था। १५ िसतंबर २०१४ को भारतीय राÄÅपित Kणब मुखज[ mारा
िवयतनाम के राÄÅपित भवन, हनोई म< पिव> महाबोिध वृ= का दू सरा पौधा लगाया
गया था (दे ख< The Economic Time, Mumbai, 15 September 2014)। इसी
तरह, भारतीय Kधानमंि>यों और/या राÄÅपितयों ने थाईलtड, दि=ण कोiरया, नेपाल,
ûीलंका, भूटान, चीन, और मंगोिलया म< अपने समक=ों को महाबोिध वृ= के पौधे भ<ट
िकये हt (दे ख< The Nation, Thailand, 29 May 2013; Business Standard,
New Delhi, 8 March 2014; The Times of India, New Delhi,10 May
2015)। अब ऐसे पौधे दे हरादू न WAथत वन अनुसंधान संAथान के वैéािनकों की दे खरे ख
म< बोधगया म< िवकिसत िकये जा रहे हt । इस Kयोजन के िलये, िवशेष अवसरों के िलये
पहले बीजों को उपचाiरत करने और िफर उu< अंकुiरत करने की पारं पiरक िविध के
माVम से तैयार िकये गए पौधों की एक छोटी संÿा का उपयोग वैéािनकों mारा
िकया जाता है । भारत सरकार ने महाबोिध वृ= के सÉान म< समय-समय पर िवशेष
ßारक डाक िटकट भी जारी िकये हt ।
िच> १६–महाबोिध वृ= के सÉान म< भारतीय डाक िवभाग mारा जारी तीन डाक िटकट
ऐसा Kतीत होता है िक बुO के अनुयािययों mारा महाबोिध वृ= की या>ा उनके õयं
के जीवनकाल के दौरान ही शु7 हो गई थी।84 िप⁄दान के िलये कुछ लोग शायद
पहले से ही इस पिव> पीपल के पेड़ पर आ रहे थे। बुO के जीवन काल के दौरान
बौOों के िलये महाबोिध वृ= एक महÜपूण# Aथल िचÊ बन गया था, ऐसा बम[ ितिथ-
oंथों85 से भी संकेत िमलता है जो बुO के समकालीन कोसल के राजा पसेनिद
(संkृत, Kसेनिजत) को महाबोिध वृ=के चारों ओर,!ûOा के Kतीक के 7प म<,
लकड़ी के दोहरे बाड़े का िनमा# ण करने का ûेय दे ते हt (दे ख< Cunningham 1892:
31)।86 लेिकन, सÎाट अशोक के समय से ही गया धम#=े> म< बौO धम# ने अपने िलये
िवशेष जगह बनानी आरÁ कर दी थी जब महाबोिध वृ= के इद# -िगद# इक˙े हो कर,87!
ûOालुओं ने बुO के जीवन की िविभQ घटनाओं की याद म< उ˜व आरÁ कर िदये
थे। कहा जाता है िक संबोिध (लगभग २५९-२५८ ईसा पूव#) की अपनी तीथ#या>ा (धंम-
महापiरिनवा# ण सुÇंत म<, बुO आनंद से कहते हt िक “ûOालु कुलों को सÉान की भावनाओं
84
के साथ (उन चार Aथानों की) या>ा करनी चािहये”, िजसम< एक वह Aथान है जहां “तथागतने
सव¥¢ और पूण# अंत…#िÄ KाL की थी” (Rhys Davids and Rhys Davids 2000: ii.153)
इसी तरह, एक जातक म< उpेख िकया गया है िक बुO के अपने जीवनकाल म< ही बोिधम⁄
एक पु•Aथल बन गया था (Fausböll 1877–1897: iv.228)।
85
“कोसल राजा पथनिद ने... [इसके]… चारों ओर दोहरी दीवार बनवाई, और राजा दÉथोक ने
अितiर` दो और बनवा दीं”!(Bigandet 1880: 107)।
86
अले@<डर किनंघम ने सुझाव िदया है िक “Kसेनिजत का दोहरा घेरा केवल लकड़ी का
िm;रीय कटघरा रहा होगा, जो िक दोनों राजाओं के बीच की ढाई शताW”यों के दौरान काफी
=ितo; हो गया होगा।… जब बोिधवृ= के ठीक पूव# म< अशोक ने अपना मंिदर बनवाया होगा
तो इसे पूरी तरह से हटा िदया गया होगा” (Cunningham 1892:31)।
87
दि=ण एिशया के लोगों के िलये मंिदर की तुलना म< महाबोिधवृ= हमेशा अिधक महÜपूण#
रहा है (दे ख< Huntington 1985: 6)। लेिकन उÇरी बौO परं परा, िजस म< पेड़ पूजा इतनी
लोकिKय नहीं थी, छोरटे न/पगोडा की ओर अिधक Vान िदया गया था, के भ`ों ने बोध गया
म< धीरे -धीरे Vान-क<ƒ को पेड़ से मंिदर की ओर पiरवित#त कर िदया। पiरणामõ7प,
अिधकतर बौOों के िलये महाबोिध वृ= की तुलना म< अब महाबोिध मंिदर अिधक महÜपूण# हो
गया Kतीत होता है ।
याता) के दौरान, अशोक ने इसके सÉान म< आयोिजत होने वाले वािष#क उ˜व की
शुòआत की और महाबोिध वृ= के चारों ओर एक पØर का कटघरा लगा कर
उसकी जड़ म< एक छोटे से बोिधघर का िनमा# ण िकया (दे ख< Hultzsch 1925: 14-15,
36-37; Barua 1943: 186; Strong 1983: 119, 257-258; Geiger 1908: xvii.17,
xx.1)।88 लगभग ९०० साल बाद इस Aथान पर जब शुएनज़ां ग ने िवशाल महाबोिध
मंिदर को दे खा तब उसने अशोक को यहां “एक छोटा मंिदर” बनाने का ûेय िदया
(दे ख< Li 1996: 218)।89 यिद Kारं िभक संगम काल (लगभग १८५˗७३ ईसा पूव#) की
भरÖत न»ाशी को अशोक mारा बनवाए गए मूल मंिदर का वा;िवक िच>ण मान
िलया जाता है , तो यह वıासन के ऊपर अÄकोणीय ;ंभों mारा समिथ#त खुली हवा म<
बना दो मंिजला मंडप था (Cunningham 1892: 4; Huntington 1985: 60)।90
ऐसा Kतीत होता है िक कुछ िनमा# ण गितिविध और बोिधघर का पiरणामी िव;ार शुंग
काल (लगभग १८७-७८ ईसा पूव#) के दौरान Öआ था। इसका संकेत कुरं गी, नागदे वी,
और िसरीमा के अशोकीय ~ा≥ी िलिप म< िलखे गए छोटे िशलालेखों म< िमलता है , जो
लगभग १०० ईसा पूव# से संबंिधत पØर के कटघरे के एक खंड पर िलखे गए हt । ये
िशलालेख िवशेष 7प से शासक पiरवारों की मिहलाओं mारा संर=ण का Kमाण
Kदान करते हt ।
88
यहबोिधघर, िजसे कई बार िफर से बनवाया गया और उसकी मरÉत की गई, इसके बाद
बोिधम⁄िवहार, महाबोिध, तथा सÍोिध जैसे कई नामों से जाना जाने लगा।
89
अले@<डर किनंघम ने िलखा है िक जब उसने १८७७ म< यहां का दौरा िकया तब यहां के
Aथानीय लोग महा;ूप को महाबोिध के नाम से पुकारते थे और इसका, शुएनज़ां ग की था-थां ग-
िशयु-ची !के अलावा, चौदहवीं शती के िविभQ िशलालेखों म< भी Kमाण िमलता है (दे ख<
Cunningham 1892: 2)।
90
लेिकन, भरÖत ;ूप से न»ाशी िच>ण का हवाला दे ते Öए, जॉन गाइ (John Guy) को
लगता है िक वıासन समेत दो मंिजला संरचना शुंग काल (दू सरी से पहली शता”ी ईसा पूव#)
तक अW;a म< आई थी (Guy 1991: 358)। मायर ने इसकी भी अYिधक संभावना को माना
िक बोध गया म< कुषाण मंिदर इसी Kकार का था (Myer1991: 358)। लेिकन, िभतरगां व और
महाबोिध मंिदर के समान मीनार वाले मंिदरों को पां चवीं-छठी शता”ी ई. से पहले अW;a म<
नहीं माना जाता है (दे ख< Verardi!2011: 409)।
िच> १७–बोिधघर (भरÖत ;ूप) (सौजï: भारतीय संoहालय, कोलकाता)। चैY मेहराब के बीच िशलालेख
कहता है – भगवतो सकमुिननो बोधो (भगवान बुO, शा®ों के मुिन)।
ऐसा Kतीत होता है िक अशोक mारा िनिम#त बोिधघर को दू सरी शता”ी
ईõी म< कुषाण राजा Öिवó (लगभग 150-180 ई.) के शासनकाल के दौरान या
शायद उसके तुरंत बाद िव;ाiरत और पुनिन#िम#त िकया गया था (दे ख< Verardi
2011: 404)। यह न केवल इं डो-सीिथयन (Indo-Scythian) और गुL कालीन
िशलालेखों म< दज# है , बW™ महाबोिध मंिदर के दि=णी mार के बाहर पाई गई एक
बुO Kितमा के आसन, िजस पर िव≠म संवत् ६४ (लगभग १६२ ई.) की ितिथ अंिकत
है , और िसंहासन के सामने जमा िकये गए अवशेषों के बीच पां च पंच-िचिÊत िस»ों
के साथ िमले राजा Öिवó के एक सोने के िस»े से भी Kमािणत है (Cunningham
1892: 21)। सुझाव िदया गया है िक पटना के पास कुÎाहर से खुदाई म< िमली एक
मीनार वाले मंिदर के Kितिनिधa वाली टे राकोटा पि$का िजसे खरोी िशलालेख के
आधार पर Ôे न कोनो ने दू सरी-तीसरी शता”ी ई. की माना है (Konow 1926),!
महाबोिध मंिदर की पूव#कृित (prototype) है (दे ख< Myer 1958: 283-284)। लेिकन,
इस म< चार कोनों म< मीनारों और छोटे मंिदरों के साथ ऊपरी छत नहीं है । Ôे न कोनो,
वी.ए. Wßथ की तरह यह नहीं मानते िक पि$का म< दी गई पूव#कृित बोधगया के मंिदर
का Kितिनिधa करती है । इसी तरह का संदेह बी.एन.मुखज[, िजuोंने एक दू सरे
िशलालेख, जो ~ा≥ी म< है और िजसे उuोंने पहली शता”ी ई. म< िदनांिकत िकया, के
आधार पर _` िकये थे (Mukherjee 1984-85: 43-46)।
महाबोिध मंिदर के इितहास म< सबसे Kभावशाली पiरवत#न गुL काल
(लगभग ३१९-५७० ई.)91 के दौरान दो महÜपूण# ऐितहािसक घटनाओं के कारण Öआ
Kतीत होता है । पहला, महाबोिध वृ= के िनकट ûीलंकाइयों के अपरदे शीय
91
आशर ने सुझाव िदया है िक Kभावशाली पiरवत#न संभवत: गुL कल (लगभग ३१९-५७० ई.)
के दौरान Öआ था ®ोंिक “इस जगह की गुL कालीन मूित#यों म< अिधकां श को अिभिवïास म<
इस बड़े बदलाव से जोड़ा जा सकता है (Asher 1980: 27)। एक बलुआ पØर पर आं िशक
7प से संरि=त िशलालेख जो वıासन के िलये नए 9ाÔर और प<ट की बात करता है – वृहद्
गंधकुटी Kसाद... भगवते बुO... िवहारइित (महान सुगंिधत क=[िजसम< वıरासन Aथािपत है] ...
भगवान बुO ... िवहार) (दे ख< Cunningham 1892: 23) और िजसे आशर ने गुL काल म<
िदनांिकत िकया है (Asher 1980: 28), शायद ûीलंकाई िभ=ुओं mारा की गई मरÉत की ओर
इशारा करता है (Verardi 2011: 404-405)। यह भी सुझाव िदया गया है िक िशलालेख म<
संकेितत नवीनीकरण म< वा;व म< ईंटों के इस मंिदर का िनमा# ण शािमल था (दे ख< Malandra
1988: 17; Myer 1958: 291)।
(extraterritorial) Aथान की Aथापना, िजसके कारण वे अब से बोधगया के धम#=े>
म< Kमुख साभेदार बन गए। दू सरा, भारत म< ईंटों के ऊंचे मंिदरों का Kचलन म< आना।
फलõ7प, एक बड़े और ऊंचे िशखर जैसी ईंट की संरचना के 7प म< महाबोिध
मंिदर अW;a म< आया, िजसके गभ#गृह म< एक नविनिम#त िसंहासन पर रखी गई
आनुपाितक आकार की बुO की Kितमा Aथािपत की गई, और इसने अिधकां श
बोिधघर को िवAथािपत कर िदया या िफर उसे अपने घेरे म< ले िलया।92 पुराने मंिदर के
शेष अवशेष जो मंिदर के बाहर बने रहे, िवशेष 7प से चं≠म और वıासन, धीरे -धीरे
बाढ़ के दौरान फ'ु नदी mारा जमा की गई रे त और गाद के नीचे दब गए (दे ख<
Cunningham 1892: vii)।93 जब बेगलर ने १८७२ म< मंिदर की जांच की, तो उuोंने
92
यह सुझाव िदया गया है िक “छतरिहत बोिधघर से ऊंचे ईंट-मंिदर म< पiरवित#त िकये जाने की
Kि≠या म< बोिध-वृ= को उसकी क<ƒीय भूिमका से हटाया जाना शािमल Kतीत होता है , तािक
बोिध-घर की जगह वıासन-गंधकुटी पर क<िƒत िसंहासन वाला मंिदर ले ले” (Myer 1958:
286)। लेिकन यह मानते Öए िक मंिदर का िनमा# ण भW` का काय# था, पिव> पीपल को
उखाड़ना और/या हटाना पूरी तरह से अपिव> होगा, इसे दे खते Öए यह असंभव Kतीत होता
है । इसके अलावा, यह õीकारते Öए िक बौO मानते हt िक महाबोिध वृ= पृ3ी की नािभ
(पृ3ीनािभ) है (Fausböll 1877–1897: iv.233) और यह िक इस सटीक Aथान के अलावा जहां
महाबोिध वृ=WAथत है , कोई अï Aथान बुO की बोिध-KाWL के वजन को नहीं झेल सकता
(Fausböll 1877–1897: iv.229), इसको ऐसे सटीक Aथान से हटाने की कøना करना भी
असंभव है । लेिकन, पहले बाढ़ के कारण और िफर भ`ों के पिव> काय¨ के कारण, महाबोिध
वृ= के चारों ओर जमीन का ;र बढ़ता रहा (किनंघम ने इसे मूल ;र से 30 फीट ऊपर
पाया। दे ख< Cunningham 1892: 30), जब भी आव§कता Öई होगी महाबोिध वृ= का एक
पौधा उस ऊंचाई पर लगाने के िलये, इसे मूल Aथान के लगभग सीधे ऊपर लगाया गया होगा।
93
चूंिक बुO ने महाबोिध वृ= की जड़ म< (बोिधòºमूले) éान KाL िकया था, उस वृ= की जड़
एक Kकार से वıासन थी। इसिलए, यह कøना करना किठन है िक वıासन को कभी भी
महाबोिध वृ= से अलग िकया जा सकता है , ®ोंिक दोनों एक दू सरे से अटू ट 7प से जुड़े Öए
हt । इस Kकार, एक बड़े िशखर जैसी ईंट की संरचना का िनमा# ण करते Öए या तो छोटे आकार
के बोिधघर का पेड़ की जड़ पर वıासन के साथ समावेश करना या हटाना काफी चुनौती भरा
रहा होगा। सभी संभावनाओं म<, जैसा िक अपेि=त था, िशखर जैसा ईंट"मंिदर, पूव# म< कुछ दू री
पर, उस जगह जहां यह अब खड़ा है , बोिधघर के कुछ िह¤ों को शािमल या KितAथािपत
करके, लेिकन वıासन को Aथानां तiरत िकये िबना या पिव> महाबोिध वृ= को कोई नुकसान
पÖं चाए िबना बनाया गया था।
पाया िक यह “मूल मंिदर से काफी अलग नहीं है” (Beglar 1878: 71)। यह कहा जा
सकता है िक बाΩ 7प से वत#मान संरचना कई शताW”यों के दौरान की िव;ाiरत
मरÉत और जीण¥Oार के पiरणामõ7प अW;a म< आई है , िजसम< बोिधघर
वत#मान मंिदर म< पiरवित#त हो गया, जो योजना म< आयताकार है और िजसके एक
िशखर के सबसे ऊपर एक आमलक है (Myer 1958: 277-298; Malandra 1988:
9-28)। लेिकन, आं तiरक 7प से, “मंिदर के िनमा# ण के बाद से िकये गए पiरवत#नों
और पiरवध#नों के कारण बगल की दीवार< मोटी हो गईं हt और गभ#गृह संकुिचत हो
गया है ” (Beglar 1878: 67)।
यह सुझाव िदया गया है िक चूँिक गुL काल के वष# ६४ के बाद के बोधगया
के िशलालेखों म< िकसी शासक या सामंत का नाम नहीं िमलता है , बुO की बोिध-
KाWL के घटनाAथल को शासक Kािधकाiरयों mारा उपेि=त िकया गया था, जब िक
गया िजले म< िहं दू मंिदरों को लगातार राजकीय संर=ण के पया# L Kमाण KाL हt
(Asher 1980: 29; Verardi 2011: 230-231)।94 लेिकन गुL राजाओं की इस Kकार
की आलोचना अनुिचत है । महाबोिध वृ= के समीप महािवहार आराम के िनमा# ण की
94
आशर ने इं िगत िकया है िक बोध गया म< “कलाकार ZÄ 7प से Aथानीय थे लेिकन संर=क
कहीं और से आए थे। बोधगया के िशलालेखों म<, तीथ#याि>यों ने, शायद केवल इस बात पर जोर
दे ने के िलये िक उuोंने तीथ#या>ा की थी, अपने मूल Aथान की ओर िवशेष Vान िदया है । यह
Kथा उन दू सरी जगहों से िब™ुल अलग है ... जहां िहतकाiरयों को ZÄ 7प से अपने मूल
Aथान पर जोर दे ने की कोई आव§कता महसूस नहीं Öई। ऐसा लगता है िक जैसे Aथानीय
संर=ण की कमी को रे खां िकत करते Öए समय तय करने के िलये िकसी Aथानीय राजा का नाम
तक भी नहीं िलया गया है ... Aथल को बÖत कम Aथानीय समथ#न िमला”!(Asher 1980: 28-
29)। महाबोिध आराम के िनमा# ण के पीछे की पृभूिम की _ाÿा करने के िलये िजयोवानी
वेराड[ ने ûीलंका के इितहास और चीनी वण#नों म< दी गई जानकारी को पूरी तरह से तोड़-
मरोड़ कर पेश िकया है । अितशयोW` और Àोत सामoी के संदभ# सभी को नजरअंदाज करते
Öए, अपनी पु;क के “गुL WOं )” नामक अVाय म<, उuोंने घोषणा की है िक ऐसा इसिलए
िकया गया था ®ोंिक “िसंहल िभ=ुओं के िलये पूरे भारत म< रहने कीकोई जगह नहीं थी।”!
समुƒगुL के िलये “ûीलंकाई राजा को सामाï उपहारों के अलावा हीरे -जहाहरात भेजने पड़े ,”!
जो िक “अधीनता की भ<ट अिप#त करने” की रािश थी, ®ोंिक बौO धम# के Kित समुƒगुL
“यिद खुले तौर पर श>ुतापूण# नहीं, तो संगिदल तोथे ही” िजस कारण “उu< िवशेषािधकार के
िलये महं गा भुगतान करना पड़ा।”!“पiरणामõ7प, िसंहलों को ... (समुƒगुL ने) अिनवाय#
7प से अपने जागीरदारों म< सूचीबO” कर िलया (Verardi 2011: 130-131)।
अनुमित ûीलंकाइयों को गुLों ने õयं ही दी थी। वा;व म<, ऐसा Kतीत होता है िक
महाराजा समुƒगुL ने ûीलंकाइयों को अपरदे शीय अिधकार mारा मंिदर पiरसर का
िनयं>ण ही Kदान कर िदया था। ऐसा लगता है िक गुL राजा और उनके Aथानीय
सामंत इस Aथल से इसिलए दू र रहे तािक एक जागीरदार रा· के िभ=ुओं mारा
Kबंिधत एक Aथल की दे खरे ख म< अह;=ेप बना रहे । इसी कारण से, महाबोिध मंिदर
को संर=ण ·ादातर तीथ#याि>यों और िवदे शी शासकों mारा भेजे गए सेवादलों से
िमला। इसके अलावा, यह याद रखना चािहये िक बोधगया Aथल के इितहास की एक
Kमुख िवशेषता के 7प म<, तीथ#या>ा और संर=ण के बीच सहजीवी संबंध, शुंग-काल
म< ही उस समय …ढ़ता से Aथािपत हो गया था, जब यह बौOों के िलये अंतरराÄÅीय ;र
पर KिसO तीथ#Aथल बन गया था। शुंगकालीन कटघरे पर एक िशलालेख म<
बोिधरि=त नाम के एक ûीलंकाई तीथ#या>ी के समथ#न का Kलेखन इसका सव¥´ृÄ
उदाहरण है (दे ख< Cunningham 1892: 16)।
यह गलत सुझाव िदया गया है िक जैसे-जैसे समय बीतता गया, बोिधघर के
Aथान पर ऊंचे ईंट के मंिदर के िनमा# ण के िलये महाबोिध वृ= को कुछ दू री पर
Aथानां तiरत करना आव§क हो गया और इसिलए वह िसंहासन से अलग हो गया।
इस आधार पर, िफर से यह गलत सुझाव िदया गया है िक चूंिक यह वıासन था, न
िक महाबोिध वृ= कीजड़ (मूल), िजसका अभीÄ éानोदय का सटीक Aथान होना था,
वृ= का Aथानां तरण सम‚ाo; नहीं रहा होगा (दे ख< Malandra 1988: 14;
Verardi 2011: 405)।95!इसके िवपरीत, यह िनिµत 7प से एक सम‚ा रही होगी।
महाबोिध वृ= की जड़ ही वıासन है , और ऐसा कोई उपाय नहीं है िक दोनों को
अलग करने का Kयास िकया जा सके। इस Kकार, यह िवqास करना किठन है िक
जब भी अवसर आया, महाबोिध वृ= को Aथानां तiरत कर िदया गया। ऐसा Kतीत होता
है िक जब कभी महाबोिध वृ= के नीचे ईट के ऊँचे मWeर का िनमा# ण करने की
आव§कता या पiरWAथित उäQ Öई होगी, तो वह पूव# की ओर कुछ फीट की दू री
पर बना होगा। लेिकन, अगर ईंट के ऊंचे मंिदर के िनमा# ण और नए महाबोिध वृ= के
महाबोिध वृ= का Aथानां तरण िनिµत 7प से एक सम‚ा रही होगी ®ोंिक भ`ों के िलये
95
पिव> पीपल को कोई नुकसान पÖं चाना लगभग असंभव रहा होगा। लेिकन, ऐसा अवसर तब
आया होगा जब महाबोिध वृ= को Kाकृितक या अï िकसी Kकार का नुकसान Öआ हो, और
उसके Aथान पर एक नया पौधा लगाया गया हो। लेिकन सवाल यह उठता है िक ®ा Aथािपत
Kथा का उpंघन कर इस मौके का फायदा उठाया गया?
रोपण की घटनाएँ िकसी तरह मेल खाती हt , हालाँ िक इसकी संभावना बेहद कम है ,
िफर भी आVाWXक Kथापालन के िलये पेड़ को सही जगह पर लगाना आव§क
होता। ZÄ 7प से, असंवेदनशील अले@<डर किनंघम को इस बात का एहसास नहीं
Öआ जब उuोंने १८७६ म< महाबोिध वृ= के तूफान म< िगरने के बाद उिचत Aथान से
हट कर दो पेड़ लगा िदये।
जब ४०४ ईõी म< फ़ा§ान यहां आए, तो उuोंने केवल KबुOता के Aथान
(Legge 1886: 90; Giles 1977: 78) पर96 बनाया गया एक ;ूप97 दे खा जो बाद म<
एक िवशाल मंिदर mारा िव;ाiरत या KितAथािपत िकया गया Kतीत होता है ।
एले@<डर किनंघम ने सुझाव िदया है िक जब फ़ा§ान इस Aथान का दौरा कर रहे थे
तो वह महाबोिध मंिदर के अW;a का उpेख नहीं करते हt और शुएनज़ां ग (६२९-
६४२ ई.) न केवल इसके अW;a का बW™ इसके िनमा# ण का भी िव;ृत िववरण दे ते
हt । इसका िनमा# ण इन दो चीनी आगंतुकों की या>ाओं के बीच की अविध के दौरान
िकसी समय Öआ होगा।98 वह राजा िव≠मािदY के दरबार के एक सद‚, अमर दे व
(~ा≥ण अमर िसंह के 7प म< पहचाने गए, अमर कोश के लेखक) को ûेय दे ते हt ,
िजसने “õयं बुO की आéा के अनुपालन म<, जो उu< एक सपने म< िमली थी” इसे
बनवाया था (Cunningham 1871: 6-7)।99 इसका समथ#न, वह वष# ९४८ ई. (िव≠म
96
अï तीन महÜपूण# Aथानों की तरह, जैसे, उनका ज‰ Aथान, वह Aथान जहाँ उuोंने अपने
धम# का च≠ घुमाया, और पiरिनवा# ण का Aथान (Giles 1977: 78; Legge 1886: 90)।
97
फ़ा§ान 堵 नामक अ=र का उपयोग करते हt िजसे जाइË ने पैगोडा (pagoda) और ले‹े
ने टोप (tope) के 7प म< अनुवािदत िकया है (Giles 1977: 78; Legge 1886: 90)। संभवत:
फ़ा§ान ने मौजूदा बोिधघर के िलये सामाï अ=र 堵 का इ;ेमाल िकया होगा।
98
वेराड[ का सुभाव है िक ®ोंिक भीतरगाओं म< भी एक इसी Kकार का मंिदर बनाया गया था,
महाबोिध मंिदर आव§ ही फ़ा§ान (४०५ ई.) के बाद और शशांक (६०० ई.) के पहले बनाया
गया होगा (Verardi 2011: 409)।
लेिकन, किनंघम ने बाद म< अपना òख बदल िलया। वष# १८९२ म<, उuोंने महाबोिध मंिदर पर
99
अपनी पु;क की K;ावना म< िलखा– “पहले मुझे लगता था िक फ़ा§ान की या>ा के समय
(399 से 409 ई.) महाबोिध मंिदर अW;a म< नहीं था लेिकन अब मt दे ख रहा ëं िक उनके
वा;िवक श”ों का ZÄ 7प से अथ# है िक तब बुO के इितहास से जुड़े सभी चार KिसO
Aथलों पर मंिदर खड़े थे…। इसिलए फ़ा§ान ने वत#मान मंिदर को उसके िनमा# ण के लगभग
डे ढ़ सौ साल बाद दे खा होगा” (Cunningham 1892: vii)। इसका कारण मंिदर के ठीक
बाहर बुO की एक िवशाल मूित# की खोज, बाहरी वıासन पर एक इं डो-सीिथयन िशलालेख,
युग १००५) के एक िशलालेख100 म< उपल¿ जानकारी के आधार पर करते हt , िजसने
लगभग ५०० ईõी म< इसके िनमा# ण की बात की गई है और शुएनज़ां ग mारा विण#त
मंिदर के आकार के साथ-साथ सामoी और अलंकरण म< सटीक अनु7पता के
आधार पर उuोंने “संतुिÄ महसूस की िक वत#मान भ_ मंिदर वही है जो KिसO
अमर िसंह mारा बनाया गया था”!(Cunningham 1871: 7-8)।101 इस संकेत का
और कुछ चां दी के पंच-िचिÊत िस»ों के साथ राजा Öिवó के एक सोने के िस»े की खोज
थी। किनंघम के अनुसार, महान मंिदर का िनमा# ण एक ~ा≥ण mारा िकया गया था और राजा
Öिवó mारा िवÇपोिषत या तो वष# १४२ ई.!या १५२ ई.!म< िकया गया था (Cunningham 1892:
vii, 21)।
100
“एक बार की बात है, महान अमर, जो पुòषों के बीच KिसO थे, ने यहां आकर महान वन म<
सव¥¢ _W`, बुO के Aथान की खोज की। बुWOमान अमर ने ûे सेवा mारा भगवान बुO को
अनुकूल बनाने के िलये Kयास िकया …। एक रात उसे एक िद_ आवाज़ सुनाई दी... [िजसके
अनुसार] Kितफल 'मूित# की …िÄ से, या िकसी मूित# की पूजा से [पाया जा सकता है ]...' यह
सुनकर, उuोंने सव¥¢ आXा बुO की एक Kितमा बनाई, और इसकी पूजा की ... और उuोंने
इस Kकार उस सव¥¢ _W` के नाम की मिहमा की, जो िव¬ु के एक अंश के अवतार थे–
“बुO के 7प म< आपका सÉान हो!” इस Kकार मानव जाित के संर=क की पूजा करने के
बाद, वह ïािययों म< से एक बन गया। उuोंने खुशी-खुशी एक पिव> मंिदर का िनमा# ण कराया,
जो अद् भुत िनमा# ण का था, और उसम< िव¬ु का िद_ चरण Aथािपत िकया गया था…। यह
Aथान KिसO है ; और इसे बुO गया के नाम से जाना जाता है । जो इस Aथान पर ûाO कम#
करे गा उसके पूव#जों को मो= की KाWL होगी... िव≠मािदY िनµय ही िवq म< KिसO राजा थे।
तो उनके दरबार म< नौ िवmान थे, िजu< नवरö के िवशेषण के तहत माना जाता था; िजनम< से
एक अमर दे व थे जो राजा के मुÿ सलाहकार थे, महान Kितभा और गहन िश=ा के _W` थे,
और उनके राजकुमार के सबसे अिधक पसंदीदा थे। उuोंने, जÍूmीप म< एक Aथान पर िनिµत
7प से, पाप को नÄ करने वाले पिव> मंिदर का िनमा# ण िकया,... जहां मुW`, Kिता, और
आनंद KाL िकया जा सकता है , यहां तक िक भरत के दे श और कीकट Kांत म< भी, जहां पापों
के शोधक, बुO का Aथान KिसO है …। इस Kकार िवmान पुòषों को यह éात हो सकता है िक
उuोंने वा;व म< बुO के घर को खड़ा िकया था, मtने एक पØर पर, जगह के अिधकार को,
एक õयं ZÄ गवाही के 7प म< दज# िकया है ... िव≠मािदY १००५ के युग के वष# म<”
(Wilkins 1788: 243-244; 1806: 284-287)।
101
राज<ƒलाल िम> ने सहमित _` की है िक िशलालेख नकली है और इसका अनुवाद “केवल
महाबोिध मंिदर के िहं दू िनयं>ण को मिहमामंिडत करने और वैध बनाने के िलये था” (दे ख<
उपयोग करते Öए िक फ़ा§ान मंिदर की बात नहीं करते और इसके साथ-साथ
इिचंग102 के Pान के आधार पर, यह भी सुझाव िदया गया है (उदाहरण के िलये,
Verardi 2011: 370, 405), िक हो सकता है िक मंिदर पांचवीं-छठी शता”ी ई. के
दौरान िकसी समय लंकाइयों mारा बनाया गया हो।103
शुएनज़ां ग के अनुसार, अशोक mारा बनाए गए छोटे मंिदर को एक ~ा≥ण
ने बड़ा िकया। वह अपनी था-थां ग्-िशयु-िच म< महाबोिध मंिदर का उpेख करते Öए
कहते हt िक
बोिधवृ= के पूव# म< एक सौ साठ या सÇर फीट ऊँचा एक मंिदर है, िजसके आधार का
सामने का भाग बीस कदम से अिधक चौड़ा है । इसे ईंट से बनाया गया था और चूने से
9ाÔर िकया गया था। ;रों म< _वWAथत सभी आलों म<, सुनहरे िच> हt , और चार
दीवारों पर मोितयों की मालाएं के आकार म< या आXाओं की आकृितयों की अद् भुत
न»ाशी है । शीष# पर एक सोने का पानी चढ़ा Öआ तां बे का आमलक फल (िजसे
मूÚान बोतल या कीमती बत#न भी कहा जाता है ) Aथािपत है । यह पूव# म< एक मंिजला
मंडप से जुड़ा Öआ है, िजसके Qflे तीन परतों म< हt। शहतीर, खंभे, किड़यां, धरन,
दरवाजे, और Wखड़िकयां सोने व चां दी की न»ाशी से सजे हt तथा मोितयों और
हiरता, के िमûण से जड़े हt । मंिदर के अंतरतम क= म< तीन दरवाजे हt जो संरचना
के अï िह¤ों से जुड़े हt । बाहरी दरवाजे के KYेक तरफ एक आला है िजसम< बाईं
ओर अवलोिकतेqर बोिधसÜ की एक Kितमा है और दाईं ओर मै>ेय बोिधसÜ की
Mitra 1878: 202)। यrिप िम> के दावे म< कुछ स¢ाई हो सकती है ®ोंिक पिव> Aथान म<
संर=ण और िह¤ेदारी के िलये KितZधा# ZÄ 7प से िविभQ धािम#क संKदायों के बीच मौजूद
थी, यह तÈ िक ~ा≥णों ने महाबोिध मंिदर के िवकास और उQित म< बÖत योगदान िदया था,
ऐितहािसक 7प से, इससे इनकार करना असंभव है ।
102
इिचंग के अनुसार “वıासन और महाबोिध मंिदर को सीलोन के राजा ने बनवाया था। पुराने
िदनों म< सीलोन से आने वाले िभ=ु हमेशा इसी मंिदर म< रहते थे” (Lahiri 1986: 51)।
103
इस बात को Vान म< रखते Öए िक ûीलंकाई संभवत: जगह पर अपरदे शीय िनयं>ण KाL
करने म< कामयाब हो गए थे और उनके बाद के _वहार से भी यह संकेत िमलता है िक वे õयं
को इसका õामी समझते थे।इसिलए यह आµय# की बात नहीं है िक आWखरकार, िवशाल
महाबोिध मंिदर का मूल 7प से िनमा# ण इuोंने ही िकया था, िजसका खाका इuोंने शायद
िकसी ~ा≥ण से तैयार करवाया हो।
एक Kितमा है , दोनों चां दी की बनी Öई हt और दस फीट से अिधक ऊंचाई की हt (Li
1996: 217-218)।104
एक बार एक ~ा≥ण था जो बुO-धम# म< िवqास नहीं करता था, लेिकन महे qर दे वता
की पूजा करता था। उसने सुना िक दे वता िहम पव#त म< िनवास कर रहे हt , इसिलए वह
अपने छोटे भाई के साथ दे वता से अपनी मनोकामना पूित# के िलये गया। दे वता ने
कहा, “आपकी मनोकामना तभी पूरी हो सकती है जब आपने पु• कम# िकये हों।
आप केवल Kाथ#ना मा> से चीज< KाL नहीं कर सकते और न ही मt आपको सं तुÄ कर
सकता ëं । ~ा≥ण ने कहा, “मुझे कौन सा पु• काय# करना चािहये िजससे मेरा मन
तृL हो सके?”!दे वता ने कहा, “यिद आप अêाई का बीज बोना चाहते हt तो आपको
धï =े> की तलाश करनी चािहये। बोिध वृ= वह Aथान है जहां बुO ने बुOa KाL
िकया था, इसिलए आपको ज-ी से बोिध वृ= के पास वापस जाना चािहये और एक
महान मंिदर का िनमा# ण करना चािहये, एक बड़ा तालाब खोदना चािहये, और िविभQ
Kकार भ<ट चढ़ाना चािहये। तभी आपकी मनोकामना पूण# होगी।” दे वता के आदे श के
अनुसार, मन के पूण# िवqास को पोिषत करते Öए, ~ा≥ण अपने छोटे भाई के साथ
लौट आया। बड़े ने मंिदर बनवाया और छोटे ने तालाब की खुदाई की। तब उuोंने
अपनी मनोकामनाओं की पूित# के िलये भरपूर Kसाद चढ़ाया। अंततः उनकी इêा की
संतृWL Öई और वे राजा के मंि>म⁄ल के सद‚ बन गए। उuोंने जो भी पiरलW¿याँ
या पुरkार KाL िकये, उu< वे िभ=ा के 7प म< दे दे ते थे (Li 1996: 218)।
िफर बम[ लोगों mारा लगभग ∆; कर िदया गया था और इसके Aथान पर करीब-करीब एक
नए मंिदर, िजसे हम अभी दे खते हt , का िनमा# ण १८८० के दशक के दौरान िकया गया था।
लगभग चौदह शताW”यों तक, जब इसका संपूण# नवीनीकरण Öआ, इस मंिदर का बने रहना
इस िलये उpेखनीय है िक एक ईंट और 9ाÔर की संरचना होने के बावजूद यह इतने लंबे
समय तक बना रहा ®ोंिक ईंट और 9ाÔर से बनी िकसी और संरचना के इतने लंबे समय
तक बने रहने का कोई और उदाहरण नहीं िमलता।
इसके बाद, शुएनज़ां ग के अनुसार, एक अï ~ा≥ण ने गभ#गृह के अंदर
भूिम-Zश#-मुƒा म< बुO की Kितमा का िनमा# ण िकया।
धम#õािमन्, जो १२३४ ईõी म< यहां आए थे, शुएनज़ांग की इस बात का भी समथ#न करते हt
105
िक महाबोिध Kितमा “एक ~ा≥ण के एक युवा पु> mारा बनाई गई थी” (Roerich1959: 68-
69)।
गवाही अपने आप म< महाबोिध मंिदर के िवकास और उस िवकास म< ~ा≥ण-िहं दुओं
के अिमट योगदान का संकेत दे ती है ।
सातवीं शता”ी म< आए Kÿातकीित# नामक एक ûीलंकाई िभ=ु ने एक मंिदर
बनाया और महाबोिध मंिदर की कुछ मरÉत भी की (दे ख< Bloch 1912: 153;
Cunningham 1982: 23; Barua 1931-34, II: 71-72; Dhammika 1992: 55)।
लेिकन, ऐसा Kतीत होता है िक इसके बाद लगभग चार शताW”यों तक महाबोिध
मंिदर की कोई बड़ी मरÉत या संवO# न नहीं िकया गया था। इसके बाद केवल १०१०
ईõी म< पाल राजवंश (आठवीं-बारहवीं शता”ी ई.) के मिहपाल Kथम mारा कुछ
मामूली मरÉत िकये जाने की सूचना है । महाबोिध मंिदर “पाल और सेन शासन के
तहत तब अपने चरम पर पÖं च गया, जब यह ZÄ 7प से राजकीय संर=ण,
कलाXक उäादन, और अWखल एिशयाई बौO गितिविध का संपQ क<ƒ बन गया था”
(Guha-Thakurta 2004: 282)। इसके बाद, बम[ लोगों ने बारहवीं और तेरहवीं
शता”ी के दौरान कम से कम दो बार मुÿतौर पर इसकी बहाली और नवीनीकरण
के दौरान इसके “मूल िडजाइन को महÜपूण# 7प से बदल”!िदया (Trevithick
1999: 649. Cunningham 1892: 77 भी दे ख<)। तारनाथ, +ारहवीं शता”ी के अंत
म<, महाबोिध मंिदर म< लगी आग के पiरणामõ7प Öई कुछ =ित की बात करते हt
िजसे िभ=ुओं mारा बुझाया गया था (Chimpa and Chattopadhyaya 1970: 302-
303)। मरÉत करने वाले अंितम भारतीय बौO शासक पंजाब की िशवािलक
पहािड़यों म< WAथत सपादल= के राजा अशोकबp थे। उuोंने पुòषोÇम िसंह नामक
एक Aथानीय सरदार के साथ वष# ११५७ ईõी म< एक बौO िभ=ु, धम#रि=त, की
दे खरे ख म< कई बार इसकी मरÉत करवाई थी (Cunningham 1892: 79; Roerich
1959: xxii-xxiii)।
बारहवीं शता”ी के अंितम वष¨ म< इस =े> म< तुòó हमलों के शु7 होने के
बाद, महाबोिध मंिदर का संर=ण और या>ा,!कभी-कभार के दु ःसाहिसयों को
छोड़कर,106!लगभग समाL हो गई Kतीत होती है , और तेरहवीं शता”ी की अंितम
ितमाही म< िकये गए कुछ मरÉत काय¨ के केवल दो उदाहरण सामने आते हt । एक
वष# १२८६ ईõी सन् का है जब oब-थोब ओ-र+ान नामक एक ितªती िभ=ु सिहत
106
एक चीनी वृÇांत म< होउ िशयान (Hou Xian) नाम के एक िकQर का उpेख है, जो जौनपुर
के रा;े म< या िफर वहां से लौचते समय िचन-कंग बाओ ज़ुओ (बोद गया म< वıासन) पर
òकता है और वष# १४१२ ई. म< िभ=ुओं को उपहार दे ता है (Ray1993: 78)।
चार _W`यों, लंका के राजा की ओर से काम करने वाले एक _W` और दो अï
लोगों के बारे म< कहा जाता है िक उuोंने महाबोिध मंिदर के चारों ओर की मरÉत
की (दे ख< Verardi 394 fn. 233)। दू सरा उदाहरण १८३३ के बम[ िशलालेख म< दज# है
िजसके अनुसार मंिदर म< कुछ मरÉत काय# १२९५ और १२९८ ई. के दौरान िकया गया
था (Singh 2017: 243)। इसके बाद, अठारहवीं शता”ी म< महाबोिध मंिदर
पiरY` हो गया था और इसके पiरवध#न व जीण¥Oार की पiरणित १८८० के दशक
म< अंoेजों mारा शु7 Öई, िजसके mारा इसका लगभग पुनिन#मा# ण वइस पर अंoेजी
सÇा के के का आरÁ Öआ। अब, यह कहा जा सकता है िक यrिप वत#मान
संरचना मोटे तौर पर उQीसवीं शता”ी के उÇराध# के दौरान कई बड़े पैमाने पर
पुनAथा# पनों के माVम से बनाई गई थी, इसम< दू सरी शता”ी ईसा पूव# की अविध से
पहले के काम के बड़े िह¤े शािमल हt (दे ख< Mitchel 1989: 228-229)।
ऐसा Kतीत होता है िक महाबोिध मंिदर का िनमा# ण-Aथान बुO के महाबोिध
वृ= के नीचे बैठने से पहले से ही बÖसंयोजक रहा है । कभी-कभी, ûीलंकाइयों ने इसे
िवशुO 7प से बौO Aथल म< बदलने की कोिशश की हो या शशां क जैसे राजाओं ने
बौO-धमÃतर िवचारों के िलये मुÿ 7प से शैव Aथान म< बदलने की कोिशश की हो,
लेिकन ऐसे सभी Kयास असफल रहे । उदाहरण के िलये, शशां क के संबंध म<, यह
सुझाव िदया गया है िक “बोिध वृ= को उखाड़ना शायद मगध के बौO
पुरोिहतािधपY के Wखलाफ एक आिथ#क कदम था, ®ोंिक दु िनया भर से बौOों
द् वारा बोिध वृ= पर उपहार पेश िकये जाते थे (Sinha 1954: 259-260)। यrिप
सातवीं शता”ी की शुòआत म< और िफर आठवीं शता”ी के उÇराध# म< शैवों की
इस तीथ#Aथल पर Kमुख उपWAथित थी और अï समय म<, यह ûीलंकाई बौOों के
िनयं>ण म< था, यह मंिदर कभी भी एक बÖसंÿक Aथल बने रहने से नहीं चूका। बौO
मूित#यों के अलावा, जो यहां बड़ी मा>ा म< पाई गई हt , नौवीं से +ारहवीं शता”ी ईõी
तक की शैव और वै¬व मूित#यां भी पूरे Aथल पर पाई गई हt (Huntington
Archive, 2015)। बौO िवmान बेनीमाधब बòआ ने इं िगत िकया है िक कम से कम
कुषाण काल के बाद से पिव> ~ा≥णवादी-िहं दू बुO की Kितमा का पिव> Zश# करने
के िलये धम#KAथ (बोधगया) का दौरा करते थे और अपने पूव#जों की िदवंगत आXाओं
को मु` करने के िलये महाबोिध वृ=को सÉानजनक ûOां जिल भ<ट करते थे
(Barua 1934: 233)। वह आगे बताते हt िक एक समय आ गया था जब बौO कथा म<
ही, शैव ~ा≥णीय दे व महे qर को बुO के अिभभावक दे वदू त के 7प म< िजÉेवारी
लेने का सौ* काय# सौंपा गया था। शुएनज़ां ग का Pान ZÄ 7प से सािबत करता है
िक सातवीं शता”ी ई. म< बौOों ने õयं õतं> 7प से मंिदर की संरचना को एक शैव
~ा≥ण की भW`पूण# पिव>ता के 7प म< माïता दी थी, िजuोंने बुO के अलावा
िकसी अï दे वता महे qर से Kेरणा के तहत मूåवान काय# िकया था।
यिद हम महान चीनी तीथ#या>ी की गवाही पर भरोसा कर< , तो बुO की यथावत् Kितमा
जो उuोंने अपनी या>ा के समय मंिदर के गभ#गृह म< Aथािपत Öई दे खी थी, मंिदर के
िनमा# ताओं mारा आमंि>त एक कुशल ~ा≥ण कलाकार का अद् भुत ह;काय# था। यिद
दो ~ा≥ण भाई बाद म< बुO के समथ#क बने, तो इसके िलये भीसबसे अिधक ûेय
~ा≥णीय दे वता िशव-महे qरको जाता है , िजuोंने उदारतापूव#क बुO का िविशÄ
समथ#न िकया (Barua 1934: 223-224).
ॐ चौमुख-महादे व (की एक मूित#) धमÃश [बुO] के सुखद िनवास (मंिदर) म< संगतराश
उDल के पु> केशव mारा महाबोिध म< रहने वाले &ातकों के वंशजों के लाभ के िलये
Aथािपत की गई है । इन अêे लोगों के िलये तीन हजार ƒाSों की कीमत पर गंगा
नदी के समान गहरे और पिव> तालाब की खुदाई की गई है । पृ3ी के भो`ा धम#पाल
के रा·काल के २६व< वष# म< भाƒपद शु/ प= की ५वीं ितिथ को शिनवार के िदन
(िलखा गया)। ॐ (Barua nd: 266)।
107
“फाटकों के अंदर... साधुओं के िसवा कोई नहीं सो सकता। सीलोन के मूल िनवासी तीन सौ
साधु हt , जो ûावक संKदाय के हt ; दू सरों (शाखाओं) को ऐसा कोई अिधकार नहीं है ”
(Roerich1959: 73)।
108
गया माहाÒ की कथा “KYेक िहं दू को आदे श दे ती है वह इस पिव> Aथल पर जा कर
तीथ#या>ा करे और अपने पूव#जों की िदवंगत आXाओं की iरहाई के िलये बुO-Kितमा और बो-
पेड़ की पूजा करे । Kाथ#ना के िनधा# iरत सू> से, ऐसा Kतीत होता है िक बो-वृ= को िहं दुओं mारा
पूजा की एक िवशेष व;ु के 7प म< दे खा जाता था ®ोंिक वे इसे िहं दू >यी की िद_ता की एक
जीिवत अिभ_W` के 7प म< दे खते थे”!(Barua1934: 52)।
अ'ाय ६
Qीलंकाई, तुUV, महं त, तथा िXिटश राज
दे वानंिपय Kदान िकया गया था ®ोंिक ऐसा Kतीत होता है िक मह< ƒ के आने से पहले ûीलंका
अशोक की धम# सेवादल गितिविध का एक =े> बन गया था। मह< ƒ की या>ा को ûीलंका म<
बौO धम# के आिधकाiरक पiरचय के 7प म< दे खा जा सकता है और “यह िवqास करना
उिचत नहीं है िक बुO और उनकी िश=ाओं के बारे म< जानकारी और भारत के शW`शाली
बौO सÎाट की महान गितिविधयों की खबर पहले mीप तक नहीं पÖं ची थी” (Rahula 1956:
48)।
110
उदाहरण के िलये, शुंग कटघरे पर एक िशलालेख बोिधरि=त नामक ûीलंकाई तीथ#या>ी के
समथ#न को Kमािणत करता है (दे ख< Cunningham 1892: 16)।
111
पुजाiरयों, मंिदरों, और सामंतों को भूिम अनुदान दे ना गुL साÎा· की एक सामाï Kथा थी
(दे ख< Sharma 1958)।
112
इसके िनमा# ण के बाद की शताW”यों म<, महाबोिध संघाराम थेरवाद बौO धम# म< िवशेषéता
के साथ उ¢ िश=ा के क<ƒ के 7प म< िवकिसत Öआ, जहां बुOघोष ने Kवास िकया था और
संभवतः तीथ# पiरसर के िनयं>ण सिहत, ûीलंकाई अधीन-रा· को अपरदे शीय
िवशेषािधकार Kदान िकये थे113 या कम से कम ûीलंकाई िभ=ुओं के _वहार से तो
ऐसा ही Kकट होता है िक उuोंने खुद को तीथ# पiरसर के अपरदे शीय सं र=कमान
िलया था। महाबोिध आराम की Aथापना और इसके दीघ#कािलक पiरणामों के बारे म<
बताते Öए, ए.एस. अTेकर ने बताया है िक
ûीलंकाई पंिडत आनंदûी (जो बाद म< ितªत म< रहे) ने पढ़ाया था (दे ख< Verardi: 370-371,
394 fn.229; Dhammika nd)।
113
Kयाग KशW;, िजसे Kयाग ;ंभ िशलालेख के उÇरवत[ भाग के 7प म< जाना जाता है ,
िसंहल के mीप दे श का समुƒगुL के अधीन एक रा· के 7प म< उpेख करती है (Fleet
1888: 8, 14, पंW` 23। Majumdar and Altekar 1967: 137 भी दे ख<)।
मंिदर क<िƒत भिव◊ के संघष# के बीज अनजाने म< बोने के िलये, कम से कम आं िशक
7प से, राजा समुƒगुL को भी िजÉेदार ठहराया जाना चािहये।
नालंदा िवqिवrालय की Aथापना के बाद, महाबोिध ने ûीलंका के अलावा,
चीन, कोiरया और मV एिशया जैसे दू रAथ दे शों के तीथ#याि>यों को आकिष#त करना
शु7 कर िदया था (दे ख< Beal 1881)। महायान शाखा के इन तीथ#याि>यों को
महाबोिध मंिदर के पiरसर म< िनबा# ध पूजा करने म< समय-समय पर बाधाओं का
सामना करना पड़ता था। कभी-कभी महाबोिध मंिदर और उसके धािम#क मामलों पर
ûीलंकाई िभ=ुओं का िनयं>ण इतना मजबूत Kतीत होता है िक उनकी आéा के िबना
कोई भी न तो बुO की पूजा कर सकता था और न ही मंिदर के Kां गण म< सो सकता
था। लंका के राज पiरवार के वंशज Kÿातकीित# (लगभग ३०० ई.) के पटना
संoहालय िशलालेख,114!महानामन् के बोधगया िशलालेख (लगभग ५८८-८९ ई.)115!
और िसंहल से उदय>ी के लगभग बारहवीं शता”ी के अिभलेख116 से यह और भी
ZÄ हो जाता है (दे ख< Altekar1959: xxiii)। इस Kकार, इस =े> म< तुòó (तुक#)
आ≠मणकाiरयों के आगमन से बÖत पहले, महाबोिध मंिदर ûीलंकाई थेरवादी
िभ=ुओं की शुOतावादी आ≠ाम`ा का िशकार बन गया था, जो खुले तौर पर उन
Kथाओं का िवरोध करते थे जो बौO धम# के िसंहली …िÄकोण के अनु7प नहीं थीं।
उदाहरण के िलये, पाल राजा धम#पाल (लगभग ७७०-८१० ई.) के शासनकाल के
दौरान,
114
Archaeological Survey of India: Annual Report, 1908-09: 156; Journal of the
Bihar & Orissa Research Society, Poona, IV: 408.
115
Corpus Inscriptionum Indicarum, vol.III, Calcutta, 1888: 279.
116
Journal of the Bihar & Orissa Research Society, Poona, vol.V: 147.
सेन राजाओं के समय, “वıासन म< महायािनयों का कोई िवशेष महÜ नहीं
था, हालां िक कुछ योिगयों और महायािनयों ने वहां Kचार करना जारी रखा। एक
वषा# वास के दौरान, लगभग दस हजार ûावक स<धव वहां एक> Öए थे” (Chimpa
and Chattopadhyaya1970: 318-319)। ûीलंकाई आ≠ाम`ा और महाबोिध
मंिदर के आिधपYवादी िनयं>ण का सबसे सÉोहक Kमाण धम#õािमन् 117 mारा
K;ुत िकया गया है , जो १२३४ ई. और १२३६ ई. के बीच िकसी समय इस Aथान पर
आए थे। उनके अनुसार, “सीलोन के िभ=ु, संÿा म< ३००, महाबोिध मंिदर म< पूजा के
Kभारी थे और उनके अलावा कोई भी मुÿ मंिदर के Kां गण म< नहीं सो सकता था”
(Roerich1959: 73)। इस Kकार, जब धम#õािमन् ने महाबोिध मंिदर म< Kवेश िकया,
तो ûीलंकाई पुजारी ने उस भारतीय पां डुिलिप के बारे म< उनसे पूछा जो वे अपने हाथ
म< ले जा रहे थे। जब उuोंने कहा िक यह अÄसहिÀका-Kéापारिमता है , तो पुजारी ने
उनसे कहा, “आप एक अêे साधु लगते हt , लेिकन यह आपकी पीठ पर लदा
महायान का oंथठीक नहीं है। इसे नदी म< फ<क दो!” (Roerich 1959: 74)। पुजारी ने
आगे िटçणी की िक महायान के उपदे श बुO ने नहीं बW™ नागाजु#न ने िदये थे और
खसरपण की पूजा करना अतािक#क था, ®ोंिक वह एक गृहAथ मा> था और उसने
संसार का Yाग भी नहीं िकया था (Roerich 1959: 73-74)।
महाबोिध मंिदर ûीलंकाई िभ=ुओं के िनयं>ण म< होने का संकेत अKY= 7प
से हiरयाणा की िशवािलक पहािड़यों म< WAथत सपादल= के राजा अशोकबp के एक
िशलालेख से भी िमलता है । लगभग ११५७ ई. के इस िशलालेख के अनुसार
अशोकबp ने महाबोिध मंिदर म< िसंहल संघ के सद‚ों की “भारी उपWAथित” के
िलये दै िनक रसद का Kावधान िकया (Cunningham 1892: 79; Roerich 1959:
xxii)। जानीबीघा (बोधगया से छह मील पूव#) म< खोजा गया एक भारतीय राजा का,!
ल‘णसेन संवत् ८३ (१२०२ ई.) म< िदनांिकत, एक और िशलालेख एक ûीलंकाई िभ=ु,
मंगल õािमन्,जो महाबोिध मंिदर की दे खभाल कर रहा था, के बारे म< कहता है –
“सLघ$ का, कठला नामक यह गांव, राजा mारा, जो बुOसेन के पु> हt, सीलोन के
िभ=ु मंगल õािमन् ि>िपटकाचाय#,!को भूिम और पानी वहल-कर के साथ, तथा िबना
िकसी शत# के, जब तक सूय# और चंƒमा रह< गे, भ_ वıासन को उसके िवहार के
117
बताया गया है िक उनकी संkृत इतनी अêी थी िक Aथानीय लोग उu< भारतीय समझ बैठे
थे (Kosak and Singer 1998: 14)।
िलये राजप> mारा Kदान िकया जाता है ” (Panday 1918: 280; see also
Majumdar 1919: 43-48!भी दे ख<)। इस जानीबीघा अिभलेख पर िटçणी करते Öए
के.पी. जायसवाल ने कहा है िक
Aथान सुनसान था और (िवहार म<) चार िभ=ु रह रहे थे। उनम< से एक ने कहा, “यह
ठीक नहीं है ! सभी तुòó सेना के डर से भाग गए हt ।” उuोंने महाबोिध Kितमा के
सामने के दरवाजे को ईंटों से बंद कर िदया और उस पर 9ाÔर कर िदया। ...
िभ=ुओं ने कहा, “हम पां चों की यहां रहने की िहÉत नहीं है और हम< भागना होगा।”
जैसा िक िदन का चरण लंबा था और गम[ अYिधक थी, धम#õािमन् ने कहा, वे थका
Öआ महसूस कर रहे थे, और जैसे ही अंधेरा Öआ, वे वहीं रहे और सो गए। यिद
तुòó आते, तो उu< इसका पता न चलता।
भोर म< वे एक ठे ले के पीछे उÇर की ओर भाग गए, और स>ह िदनों तक
धम#õािमन् ने (महाबोिध) Kितमा का चेहरा नहीं दे खा। उसी समय एक मिहला भी
िदखाई दी, जो õागत समाचार लेकर आई िक तुòó सैिनक बÖत दू र चले गए हt ।
िफर धम#õािमन् वıासन लौट आए, और वहां महाबोिध की मूित# की पूजा और
पiर≠मा करते रहे (Roerich 1959: 64)।
इन KिसO मठों को तब िव∆; और उजाड़ कर िदया गया था, और वे लंबे समय तक ऐसे ही
रहे ”(Cunningham 1892: 56)।
119
धम#õािमन् के अनुसार, इस Kितमा की शW` इतनी महान थी िक “अø िवqास के लोगों के
भी Kितमा के सामने खड़े होने पर आं सू िनकल जाते थे” (Roerich 1959: 67)।
65)। िबहार म< तुòó िसपािहयों के लुटेरों ने अपनी लूट-खसोट से जो आतंक मचा
रखा है , वह धम#õािमन् के संßरणों म< था। ऐसा शायद इसिलए है ®ोंिक उu< खुद
उनके आतंक का खािमयाजा भुगतना पड़ा था। एक बार जब वह एक नौका म< गंगा
पार कर रहे थे, दो तुòó सैिनक इस नौका पर चढ़ गए और उuोंने “धम#õािमन् का
िभ=ापा> छीन िलया…। अंततः धम#õािमन् ने अपनी ओर से एक पण (िस»े) की
पेशकश करके इस मामले म< समझौता कर िलया” (Roerich 1959: 89)।
िबहार म< भू-राजनीितक WAथित तुòóों के हमलों के बाद इस हद तक
बदल गई थी िक इसके पiरणामõ7प अगले कई सौ वष¨ तक अंतरराÄÅीय
तीथ#याि>यों के Kवाह को गंभीर झटका लगा। अब से केवल सबसे उrमी _W` ही
बोOगया म< ûOां जिल अिप#त करने के िलये भारत की या>ा करते थे। वा;व म<, ऐसा
Kतीत होता है िक तुòó हमलों ने पूरे =े> म< पहले से ही अश` बौO धम# को खX
कर िदया था। एक छोटी सी संÿा म< जो िभ=ु तुòó हमलों से बचने म< सफल रहे ,
उनके िलये बोधगया म< रहना अब चुनौतीपूण# हो गया था, न केवल तीथ#याि>यों की
धारा के लगभग पूरी तरह से सूख जाने के कारण, बW™ इसिलए भी िक राजकीय
संर=ण िमलना अब बंद हो गया था। पiरणामõ7प, िभ=ु एक-एक करके चले गए
और महाबोिध मंिदर लगभग चार शताW”यों तक Kकृित की अिनयिमतताओं का
िशकार रहा।
सन् १५९० म< तीथ#या>ा पर घूम रहे ,!दाश#िनक शंकराचाय# की परं परा के
उÇरािधकारी, गोसाइं घमंडी िगर (१५९०-१६१५) नामक एक शैव संïासी ने
महाबोिध मंिदर का दौरा िकया। पारं पiरक वण#न म< यह उpेख िकया गया है िक
इसकी Kशां ित और िन;¿ता से Kभािवत होकर, उuोंने मंिदर के सामने एक आûम
और एक Aथायी िनवास बनाने का फैसला िकया।120 यह कहा जा सकता है िक शैव
120
बोध गया संKदाय शंकराचाय# mारा Aथािपत 'एक द⁄ी संïास' के दस दशनामी साधु मठों
म< से एक की शाखा था (दे ख< Trevithick 2006: 20)। बोधगया का छोटा आराम इस संKदाय
का मुÿालय था। १५९० म< इसकी Aथापना के बाद से, इस संKदाय का कोई मजबूत
Kशासिनक या संAथागत या िकसी अï तपõी संगठन से संबंध नहीं था (Trevithick 2006:
23)। यrिप एक सि≠य शैव मठवासी उपWAथित अभी भी बोध गया म< मौजूद है , मौWखक
परं परा के अनुसार, इस आराम को बावन Kमुख शैव मठों म< छÇीसवां Aथान िदया गया है ,
िजस कारण यह शैव आराम Kणाली के भीतर तुलनाXक 7प से काफी छोटा है । लेिकन,
संïासी ने एक पिव> Aथल के Kित िजÉेदारी की भावना भी महसूस की होगी, िजसे
अतीत म< उसदे व mारा संरि=त िकया गया था िजसकी वह पूजा करता था। इसके
बाद, गोसाइं घमंडी के उÇरािधकारी महं त यहां िनरं तर िनवास करते रहे । जब गोसाइं
घमंडी िगर यहां आए, तो महाबोिध मंिदर झाड़-झंखाड़ से िघरचुका था और यहां
पुजारी, काय#वाहक या उपासक के 7प म< कुछ भी नहीं था। उuोंने और उनके दो
उÇरािधकाiरयों ने “झािड़यों को काट िदया ... (और) ... जगह का िनमा# ण िकया”
(Mackenzie 1902: 75)। इस तरह के एक संïासी mारा एक छोटे से गाँ व के पास
WAथत एक पiरY` मंिदर का िविनयोग, एक ऐसा काय# था िजस पर िकसी ने सवाल
नहीं उठाया। Kाचीन और मVयुगीन काल के दौरान पिव> पृभूिम वाले पiरY`
भारतीय Aथलों का अï भारतीय धम¨ mारा पुन: उपयोग िकये जाने की Kथा िब™ुल
भी असामाï नहीं थी। िविभQ भारतीय धम¨ के बीच बÖ-संबOता असाधारण होने के
बजाय काफी सामाï थी।121 शैव िगiर महं तों के मंिदर पर आिधपY के
पiरणामõ7प, बौO Kतीकों, अनुानों, या Kितमाओं को बािधत नहीं िकया गया था।
उpेखनीय 7प से, शैव उपासकों ने वह सब oहण िकया जो वहां था और कुछ भी
नÄ नहीं Öआ। आज भी, बुO और बोिधसÜों की Kितमाओंको अपनाने और पूजने के
अलावा, िहंदू अपने मृत पूव#जों का महाबोिध वृ= के नीचे Kसादन करते हt !(Asher
2008: 69)। बोधगया के िगiर महं तों ने हमेशा एक समावेशी …िÄकोण अपनाया
िजसम< बौO तीथ#याि>यों को आसानी से और िनिव#वाद 7प से उपासकों के 7प म<
समायोिजत िकया गया।
दू सरे महं त, चैतï िगर (१६१५-१६४२), िजu< फ'ु नदी के तट पर एक
िवशाल िवहार बनाने का ûेय िदया जाता है , एक महान िवmान थे। उनके नqर
अवशेषों को महाबोिध मंिदर पiरसर के भीतर समािध दी गई थी और उन पर एक
छोटा मंिदर बनाया गया था। चैतï िगर के उÇरािधकारी, महादे व िगर (१६४२-
१६८२) ने अQपूणा# दे वी,जो कभी भी भोजन की कमी न होने वाले बत#न की Kदाता
इसने िहं दू तीथ#याि>यों के िलये एक महÜपूण# लंगर के 7प म< काम िकया है , जो गयातीथ# की
या>ाओं के साथ-साथ बोध गयाम< जाते हt (दे ख< Kinnard 2013: 157-168)।
121
इस Kकार के _वहार का उदाहरण अजंटा, एलोरा, और सीरपुर जैसी जगहों पर ZÄ
िदयाई पड़ता है । अजंटा म< सबसे Kारं िभक गुफा उ6नन छठी शता”ी के अंत म< शु7 Öआ
और िशव को समिप#त था, इसके बाद बौO, ~ा≥णीय, और जैन गुफाओं का अगली कई
शताW”यों म< उ6नन Öआ (दे ख< Malandra 1996: 181-208)।
हt ,के िलये एक छोटा सा मंिदर बनवाया (दे ख< Bahadur 1893)। १८९३ म<, गया के
द⁄ािधकारी और समाहता# (द⁄ािधकारी-सह-कलेhर), जी.ए. िoयस#न (G.A.
Grierson) के आदे श के तहत डीएम-सह-डीसी mारा तैयार की गई एक
आिधकाiरक iरपोट# के अनुसार, मुगल सÎाट मुहÉद शाह आलम (१७१९-१७४८)
के आदे शानुसार १७२८ म< चौथे महं त लाल िगर (१६८२-?) को मदद-माश्
(िमW™यत) के mारा “वज़ीòल-मुमािलक क़मò£ीन खाँ ने छ: गाँवों, िजन म< म;ीपुर
और ताराडीह के गाँ व शािमल हt , िजसम< बौO महाबोिध मंिदर WAथत है , की एक
जागीर भ<ट की। (बाद म<, अगले िगiर को) ... िदpी के सÎाट फòख िसयर से
अंताiरन और अï गां वों का उपहार िमला” (Bahadur 1893: 1)। इस Kकार,
िविभQ मुगल सÎाटों ने उस भूिम के õािमa के राजकीय फरमान िदये, िजस पर
महाबोिध मंिदर और आसपास का =े> शािमल है । सातव< िगiर, महं त रामिहत िगर
(१७६९-१८०६) ने १७६९ म< “लाWखराज (करमु`)!भूख⁄ों और गां वों को िटकरी
और इचक के महाराजाओं से KाL िकया” (Bahadur 1893: 2)। िफर वष# १८२० म<,
आठव< िगiर, महं त बालक िगर (१८०६-१८२०) ने “जसपुर के महाराजा रामिसंह से
कुछ गाँ व KाL िकये” (Bahadur 1893: 2)। अनुदान दे ने वाले सÎाटों और अï
अिधकाiरयों की मुहर< , नाम, और तारीख< अिभलेखों म< अêी तरह से KलेWखत हt ।
मुहर के अलावा, KYेक अनुदान की िवषय-व;ु को िदनां क और जागीर =े>ों सिहत
िव;ार से िनिद# Ä िकया गया है । आिधकाiरक iरपोट# म< आगे उpेख िकया गया है
िक नौव< िगiर, महं त िशव िगर (१८२०-१८४६) के समय, “कुछ संपिÇयों पर १८१९ के
िविनयमन II और १८२८ के िविनयमन III के तहत िफर से अिधकार िदया गया था,
और उिचत जां च के बाद उन सभी को वैध करार िदया गया था। महं त को... इस
Kकार ि~िटश सरकार mारा बोधगयाके माïता KाL महं त के 7प म< भी õीकार
िकया गया था” (Bahadur 1893: 2)।122 आगे यह Vान दे ने यो+ है िक इन
द;ावेजों पर ि~िटश शासकों के ह;ा=र िदखाई दे ते हt । एक दज#न से अिधक
द;ावेज, िजन पर अनुदान जारी िकये गए थे,!बोधगया को महंतों की संपिÇ के 7प
सहायता Kदान की थी और इसिलए उनके õािमa अिधकारों म< वैध होने के प=धर थे।
“वा;व म<, इस बात का कोई सबूत नहीं है िक िगiरयों ने िवƒोह के दौरान 'मूåवान सहायता'
Kदान की थी” वहाँ “कुछ संकेत हt िक वे िकसी भी तरह से शािमल नहीं थे” (Trevithick
1999: 639-640)।
म< माïता Kदान करते हt और इन म< पंजीकरण संÿा, िजले के नाम, अनुमोदन
ितिथयां , दज# =े>, वा;िवक =े>, और ितिथयां शािमल हt ।123 कभी-कभी महÑों ने
महाबोिध मंिदर के रख-रखाव और मरÉत म< भी योगदान िदया। उदाहरण के िलये,
२५ माच# १८८१ को +ारहव< महं त, हे म नारायण िगर (१८६७-१८९१) को संबोिधत एक
प> म<, बंगाल सरकार के सिचव ने उप-रा·पाल के िनदÃ श पर िलखा था “... संर=ण
काय¨ के संबंध म< [आप] mारा दी गई सहायता के िलये धïवाद जो महाबोिध मंिदर
के पुराने मंिदर की मरÉत के िलये दी गई थी” (Bahadur 1893: 16)। ि~िटश
सरकार ने महं तहे म नारायण िगर के परोपकारी काय¨ को भी õीकार िकया, जैसे िक
अपनी लागत पर एक Aथानीय सड़क का िनमा# ण (Bahadur 1893: 13)। बारहव<
िगiर, महंत कृ¬ दयाल िगर (१८९१-१९१७) ने, !िवशेष 7प से अंतरधािम#क …िÄकोण
के अपने खुले समथ#न के िलये जाने जाते थे, “१८८२ म< २,५०० òपये महाबोिध मंिदर
की मरÉत के खच# के िलये िदये” (Bahadur 1893: 2)। इसी तरह, उनके पूव#वित#यों
म< एक ने न केवल बम[ बौO तीथ#याि>यों का गम#जोशी से õागत िकया, बW™ अपने
õयं के एक िभ=ु को भी आûय िदया, िजसे बम[ लोगों ने बौO धम# म< पiरवित#त कर
िदया था (Hamilton-Buchanan 1830: 41)। यहाँ, !यह बताया जा सकता है िक
कृ¬ दयाल िगर जो कर रहे थे वह पूरी तरह से भारतीय धािम#क पiरवेश की
बÖसंÿक Kकृित के अनु7प था।124
123
िगiर महं तों ने खुद को इस तरह से Aथािपत िकया था िक बंगाल सरकार और भारत सरकार
दोनों पूरी तरह से संतुÄ थे और उuोंने õीकार िकया था िक मंिदर और उसके आसपास का
“का और िनयं>ण” मया# दोिचत और कानूनी 7प से मठ से संबO है (दे ख< Ronaldshay!
1928: 337)।
124
बौO चैY से िहं दू मंिदर तक रै Wखक िवकास के पारं पiरक िववरणों के िवपरीत, पुराताWaक
आं कड़े पुिÄ करते हt िक बौO चैY और िहं दू मंिदर दोनों तीसरी-पहली शता”ी ईसा पूव# म<
समकालीन थे और घरे लू, Aथानीय, और =े>ीय पंथ आपस म< पिव> जगह को साझा करते थे
(Ray!2004: 350-375)।
िच> १८– जेW ≠ॉकट (James Crockatt) mारा बनाया गया, महाबोिध मंिदर का जलरं ग िच>, c. 1800.
‚ाही म< पीछे िलखा Öआ– 'िबहार म< गया के पड़ोस म< बोध-गया म< िहं दू मंिदर का पूव[ …§'; कैXन
≠ॉकट mारा बनाया गया।'
http://www.bl.uk/onlinegallery/onlineex/apac/other/largeimage65760.html
मt महं त कृ¬ दयाल िगर mारा बोधगया की अपनी या>ा के अवसर पर मुझे िदये गए
िवनÎ और मेहमाननवाज õागत की हािद# क सराहना करना चाहता ëं ।... और वे
सा≈ जो मtने हर तरफ दे खे हt िक उनके वत#मान अिभभावकों के हाथों वह सब कुछ
िकया गया है जो इितहास के और करोड़ों लोगों के धम# के इन अमूå ßारकों के
संर=ण और भावी पीिढ़यों को सौंपने के िलये सावधानी और समप#ण कर सकते हt ।
(Bahadur 1893:16)।
आधुिनक भारत म< पहली बार अध#-िभ=ु अनगाiरक धम#पाल mारा बोधगया
की िन;¿ता और शां ित भंग की गई थी, जो आं िशक 7प से िसंहल असिह¬ुता की
गठरी ले कर बोधगया आया था और िजसे आं िशक 7प से ि~िटश भारतिवदों mारा
उकसाया गया था। इस संबंध म<, यह बताया जा सकता है िक उQीसवीं शता”ी की
पहली ितमाही तक, भारत के औपिनवेिशक Ö[रानों ने, पाG अVयनों के माVम
से, बौO धम# और िहं दू धम# को दो अलग-अलग धम¨ के 7प म< दे खना शु7 कर
िदया था, िजसके तहत बौO धम# को ~ा≥णवाद के Wखलाफ एक िवरोध आं दोलन के
7प म< िचि>त िकया गया था। यहाँ ~ा≥णों की ‘तानाशाही’!म<, िहंदू धम# की तुलना म<
बौO धम# म< 'दू सरे ' को दे खने का Kयास िकया गया।125 १८६१ म< भारतीय पुरातa
सवÃ=ण (ए.एस.आइ.) की Aथापना के बाद, इसके िनदे शक के 7प म< अले@<डर
किनंघम नेभौितक अवशेषों के उपयोग के माVम से इस तरह के …िÄकोण को और
आगे बढ़ाया गया।126 किनंघम ने खुले तौर पर और असंयिमत ढं ग से उन िहं दुओं का
मज़ाक उड़ाया, िजuोंने भारतीय मूित#कला की शुिचता को दू िषत िकया था, जो अपनी
Kारं िभक बौO दशा म< यूनािनयों की Kितmं mी थी, “जब तक इसका िनŸीकरण
~ा≥णवादी मंिदरों की का⁄िनिम#त मानिसक जड़ता और पाशिवक अ>ीलता म<
पंजीभूत नहीं Öआ” (Cunningham 1973: 87)। और इस Kकार, हम एक बार िफर
“Kामािणकता और उäिÇ के पुनरावत[ आÿानों को दे खते हt , िजनसे एक संरचना
की वा;िवक पहचान उसके अW;a म< आने के एक अनुमािनत Kाथिमक =ण की
वसूली पर िटक जाती है ” (Guha-Thakurta 2004a: 248)। किनंघम की iरपोट\
महाबोिध मंिदर के िहं दू पुरोिहतों की अवमानना और उपहास से भरी Öई हt , खासकर
इसिलए िक यह बबा# दी की WAथित म< था। उuोंने आगे Aथानीय लोगों को उनकी
अéानता के िलये आड़े हाथों िलया, िजसके कारण वे िनमा#ण सामoी के 7प म< Aथल
के पØरों का उपयोग कर रहे थे, और इस तरह “मVयुगीन तबाही' के भूत का
वत#मान पiर…§ म< 'दे शी उदासीनता और उपे=ा' के साथ अपiरहाय# 7प से
कठजोड़ िबठा िदया गया (Guha-Thakurta 2004a: 249)। इन िवhोiरयाई
भारतिवदों ने बुO की Kितमा के िहं दू संचालन को पूरी तरह से िघनौना घोिषत कर
िदया। उuोंने बुO को न केवल एक समाज सुधारक के 7प म< दे खा, िजuोंने िहं दू
125
इस संबंध म<, यह दे खना िदलचZ होगा िक कैसे कुछ जम#न भारतिवदों ने ~ा≥णों की तुलना
यëिदयों के साथ की है , िजसके पiरणामõ7प ~ा≥णवाद का िवरोध Öआ (दे ख< Vishwa
and Bagchee (2014: 289-426) mारा एक िदलचZ अVयन)।
126
यह Vान दे ने यो+ है िक हालां िक अले@<डर किनंघम ने बाद म< अपने खुले साÎा·वादी
उ˜ाह को छोड़ िदया, तथािप उनका और भारतीय पुरातa सवÃ=ण का पूरा Vान भारत के
केवल बौO अतीत पर क<िƒत रहा, ®ोंिक किनंघम का Kाथिमक उ£े § पां चवीं से सातवीं
शती तक चीनी तीथ#याि>यों के या>ा-काय#≠म का पता लगाना था। इस Kकार, एक _ापक
और बÖoाही सवÃ=ण के बजाय, किनंघम ने अ ेषण के िलये केवल उन =े>ों या Aथानों का
चयन िकया, जो िक फ़ा§ान और शुएनज़ां ग mारा दे खे गए थे और उनके mारा Kाचीन अवशेषों
के 7प म< िचि>त िकये गए थे (Chakrabarti 1988: 58)। इस Kकार, िवनाशक 7प से Aथान
के बजाय घटना को पहले महÜ िदया गया था ।
धम# के Wखलाफ धम#युO का नेतृa िकया, बW™ एक सहयोगी के 7प म< भी दे खा
िजसने “सारी मानव जाित की पूण# समानता के िलये... दु िनया म< सबसे शW`शाली
और अिभमानी पुरोिहतों से खतरों के बावजूद उनके महापुòषों mारा अपनी पिöयों
और बेिटयों के जबरन अपहरण का िवरोध करने के िलये अपने दे शवािसयों को
उकसाने का साहस िकया” (Cunningham 1854: 51)। िन¤ंदेह, !इन िवhोiरयाई
KाFिवदों mारा बौO अतीत को “षड़यं>कारी मनु◊ों की चतुराई mारा अब तक
आिवóृतदमन की सवा# िधक अपमानजनक और घृिणत_वAथा”!के शुO और
Kामािणक Kितप= के 7प म< शैली बO कर िदया (Hamilton-Buchanan 1801:
167)। उuोंने महाबोिध मंिदर को एक सव¥´ृÄ उदाहरण के 7प म< पेश िकया,
जहां,“Aथल की उäिÇ के बौO =ण पर एक असंगत मूåांकन”!(Krusell 2010: 2)!
के संAथागतकरण के माVम से, िवकृत िहं दुओं की बाद की उपWAथित को सबसे
पिव> मंिदर की अपिव>ता के 7प म< िचि>त िकया गया। महाबोिध मंिदर के गभ#गृह
म< िशविलंग की उपWAथित के बारे म< १८६१ म< किनंघम का अवलोकन और एडिवन
अन¥] का १८९३ का द डे ली टे लीoाफ म< िलखा Öआ लेख िजसके अनुसार “अéानी
और असंवेदनशील”!“मराठा िकसानों को ऐसी जगह” ûाO करते Öए दे खा गया
थाजहां चारों ओर हजारों संkृत म< िलखे Öए न»ाशीदार पØरों के कीमती Kाचीन
अवशेष ढे र म< पड़े Öए थे”!(Arnold 1893: 240), को केवल िवhोiरयाई भारतिवदों
का िवभाजनकारी और हािनकारक काय#सूची के िह¤े के 7प म< ही दे खा जा सकता
है । इन अित पूवा# oही िवmानों म< कुछ ने ऐसे एज<डे को आगे बढ़ाने के िलये झूठ का
सहारा भी िलया। इस Kकार, मोंटगोमरी मािट# न और है िमJन-बुकानन के दावे पर
िवqास करना असंभव है िक १८११ म< महाबोिध मंिदर की अपनी या>ा के दौरान
है िमJन-बुकानन ने िहं दुओं को “बाहर की ओर एक सीढ़ी का Kयोग करते Öए दे खा,
तािक 7िढ़वादी बुO की घृिणत Kितमा को िबना दे खे वहां से गुजर सक<।”
(Hamilton-Buchanan 1830: 48; Martin 1838: 75)।
बेशक, एडिवन अन¥], जो सीधे तौर पर िवmान किनंघम से अपनी
जानकारी KाL करता Kतीत होता है , इन िवhोiरयाई भारतिवदों म< सबसे शरारती
था। वह िहं दुओं से महाबोिध मंिदर खरीदने के अपमानजनक िवचार के साथ आने
वाला पहला _W` था। उसके अनुसार, “बुO-गया एिशयाई बौOों के िलये सबसे
िKय और पिव> है । िफर, आज यह ~ा≥ण पुजाiरयों के हाथ म< ®ों है, जो इसके
मािलक होने का ûेय और आय लेने को छोड़ कर, मंिदर की कोई परवाह नहीं करते
हt ?” (Arnold 1896: 310)। एडिवन अन¥] ने सीलोन के गवन#र को प> िलखकर
अनुरोध िकया
128
१८७७ म< महाबोिध मंिदर म< बिम#यों mारा की जा रही मरÉत और बहाली गितिविधयों के
दौरान, अंoेजों ने सोचा िक चूंिक काम धािम#क उ˜ाह के साथ िकया गया था और इस तरह से
पुराने Aथलों को ∆; कर िदया गया था, यह िकसी भी तरह से महं त की धािम#क
संवेदनशीलता को भंग कर सकता है । लेिकन, जैसा िक डॉयल (Doyle 1997: 139) और
टÅ े िविथक (Trevithick 1988: 47-48) ने बताया, महं त को राजा िमंडन (King Mindon) के
महीने के भीतर, अले@<डर किनंघम और उन जैसों ने आपिÇयां उठानी शु7 कर दीं
िक “बमा# के काय#कता# बुO गया म< पुराने मंिदर की गड़बड़ी कर रहे थे” (दे ख<
Trevithick 1999: 650))।129 इसी बीच, १८७८ म< िकंग िमंडोनिमन की मृYु हो गई
और किनंघम और उनके सािथयों mारा मरÉत काय# को “सही लाइनों” पर आगे नहीं
बढ़ने के 7प म< दे खा जाने लगा। इस संयोग ने ि~िटश सरकार को एक िनिµत
अवसर Kदान िकया, िजसने १८८० म< “मरÉत के िलये िजÉेदारी” लेने का फैसला
िकया। पiरणामõ7प, सरकार ने ह;=ेप िकया और एक KिसO बंगाली
पुरातaिवद् राज<ƒलाल िम> को मरÉत के काम की िनगरानी के िलये भेजा गया।
िम> ने बताया िक बम[ लोगों ने िनमा# ण सामoी के 7प म< Kाचीन इमारतों की नींव का
उपयोग िकया था और गभ#गृह म< Kितमाओं के िलये बनाए गए आलों को भी भर िदया
था। यrिप िम> बम[ िभ=ुओं को “उनके वा;िवक इितहास और उनके िवqास से
अनिभé” मानते थे, न तो बम[ और न ही शैव महं त को मरÉत काय# म< कोई सम‚ा
थी, मुÿतः ®ोंिक उनम< से िकसी की भी मंिदर को,िजससे वे पहले से पiरिचत थे,!
“पुराताWaक 7प से 'खोजने' या 'Aथािपत' करने म< कोई िदलचZी नहीं थी”!
(Trevithick 1999: 650-651)। लेिकन, िम> ने KाFवािदयों की धारणा का पालन
िकया िजसम< उäिÇ के बौO =ण की वैधता का िवशेषािधकार था (Trevithick
1999: 651)। िम> की iरपोट# ने सरकार को पिव> Aथान म< िहतधारक बनने का एक
पुनAथा# पन-काय# म< कोई सम‚ा नहीं थी। इसके अलावा, बम[ अिधकाiरयों ने बहाली
पiरयोजना की दे खरे ख की, अपने पूव#वित#यों की तरह आराम म< रहे और महं त के साथ एक
अêा सौहाद# Aथािपत िकया। यह दो;ी तब और मजबूत Öई जब महं त ने िभ=ुओं के िलये
एक आराम के िनमा# ण के िलये िकराया मु` भूिम और महाबोिध वृ= और मंिदर को िदये गए
Kसाद की र=ा के िलये एक पiरभोग भवन का वादा िकया। १८८० म<, महाबोिध मंिदर के
पिµम म< लगभग अ¤ी गज की दू री पर महं त mारा तीथ# याि>यों के ठहरने के िलये अपने खच#
पर एक िवûाम गृह बनवाया गया, िजसके बदले म< बमा# के राजा ने महं त को कई उपहार भेजे
(दे ख< Doyle 1997: 140)
129
वा;व म<, “बिम#यों ने भवन िनमा# ण सामoी KाL करने के िलये नींव के ढां चे को खोद डाला
था” (Trevithick1999: 652)। बम[ लोगों के बारे म< यह बताया गया था िक “उuोंने अपने
िद^πिमत उ˜ाह से जो अिन_ िकया है , वह गंभीर है । उनके mारा अब तक िकये जा चुके
िव∆ंस और उ6नन ने अिधकां श पुराने AथलिचÊों को नÄ कर िदया है , और Kाचीन काल की
कोई भी चीज़ अब उस =े> म< नहीं तलाशी जा सकती िजस पर उuोंने काम िकया है ”
(Trevithick1999: 651)।
और अवसर Kदान िकया। फलõ7प, बिम#यों को हटा िदया गया और सरकार ने
मरÉत का काम अपने हाथ म< ले िलया। १८८३ म< अले@<डर किनंघम ने जे.डी.
बेगलर और राज<ƒलाल िम> के साथ Aथल की खुदाई की और खुदाई के दौरान िमले
एक पØर के मॉडल के आधार पर किनंघम mारा १००,००० òपये की लागत से मंिदर
का पुनिन#मा# ण िकया गया (Cunningham 1892: 25 and pl. XVI)।130 वा;व म<,
यह मंिदर का पूण# पुनिन#मा# ण था जैसा िक यह अपनी वत#मान WAथित म< मौजूद है ।
पुनिन#मा# ण के बाद भी, हालां िक तकनीकी 7प से महाबोिध मंिदर और उसके
आसपास के संपिÇ के अिधकार महं त के पास बने रहे , “Kाचीन मंिदर का õां ग भरने
और मुहावरे बाजी करने” के माVम से इसके रखरखाव के अिधकार को लेते Öए,
ि~िटश सरकार ने महाबोिध मंिदर पर 'पुराताWaक' दावेदारी पर जोर दे ना शु7 कर
िदया औरसरकार पिव> Aथान म< एक िहतधारक बन गई (दे ख< Guha-Thakurta
1997: 33: fn47)। बहाली, िव∆ंस, और पुनिन#मा#ण की इस अविध के दौरान, िहंदुओं
और बौOों ने िबना िकसी मु£े के महाबोिध मंिदर के पिव> Aथान को साझा करना
जारी रखा, िसवाय इसके िक कुछ शरारती ि~िटश भारतिवदों ने बोधगया का िच>ण
समतावादी और शां ितिKय बौOों के एक Kाचीन बौO Aथान के 7प म< करके यह
िदखाने की कोिशश की िक इस पर अवैध 7प से जाित-o; और πÄ ~ा≥णवादी-
िहं दुओं mारा का कर िलया गया था।
130
Kितकृितयों के अलावा, महाबोिध मंिदर के, औसतन लगभग बीस स<टीमीटर ऊंचाई के और
तेरहवीं व पंƒहवीं शता”ी के उÇराध# के बीच बनाए गए, बीस से अिधक पØर के िनदश#
(मॉडल) पूव[ भारत से नेपाल, ितªत, अराकान, और *ांमार म< _ापक 7प से Kचािलत पाए
गए हt । वे न केवल महाबोिध मंिदर का बW™ आयताकार बाहरी दीवार सिहत पूरे पiरसर का
और पिµम छत पर WAथत महाबोिध वृ= का भी Kितिनिधa करते हt (Guy 1991: 356-67)।
“यह मूåां कन करना मुW?ल है िक िनदश# (मॉडल) ने इन (िफर से बनाए गए मंिदरों) के िलये
KY= पूव#कृित (Kोटोटाइप) के 7प म< िकस हद तक काम िकया, या िकस हद तक उu<
संकWøत करने के िलये िजÉेदार लोगों ने बोधगया को भेजे गए सेवादलों mारा एक> की गई
KY= जानकारी पर भरोसा िकया। उनके िनमा# ण का एक Kमुख कारण, जो तेरहवीं से पंƒहवीं
शता”ी के अंत तक के काल का था, पूजा के िलये AथानापQ मंिदर बनाने की इêा रही होगी
®ोंिक पूव[ भारत के मुW¡म िनयं>ण mारा बोधगया तक पÖं चने म< गंभीर 7प से कटौती हो
गई थी” (Guy1991: 365)।
िच> २०– खुदाई म< िमला मंिदर का मॉडल (Cunningham 1892: Pl. XIII)
दावा िकये जाने के बावजूद िक यह दु िनया का सबसे पुराना ईंट मंिदर है ,
वा;व म< “वत#मान मंिदर काफी हद तक उQीसवीं शता”ी का ि~िटश भारतीय
पुरातa सवÃ=ण का पुनिन#मा# ण है ” (Huntington 1985: 61)। वा;व म<, बेगलर
और किनंघम की इस बात को लेकर कड़ी आलोचना की गई थी िक उuोंने
पुनिन#मा# ण और जीण¥Oार काय# करते समय मुÿ मंिदर म< चार कोने वाले मंडपों131
को शािमल िकया था (दे ख< Temple 1893: 157-159)।132 यह भी उpेखनीय है िक
किनंघम के तक¨ के बावजूद, महाबोिध पiरसर की उनकी _ाÿा शुएनज़ां ग mारा
अपनी था-थां ग-सीयुची म< िदये गए िववरण से पूरी तरह िभQ है और यह भी एक ऐसा
मु£ा है िजसके िलये उनके कई समकालीनों ने उनको अfiारोिपत िकया है
(Watters 1904-5: 117)।
131
चार कोनों वाले मंडप पुराने मंिदर के एक छोटे से पØर के उस िनदश# (मॉडल) के Kािधकार
पर जोड़े गए थे जो मलबे म< िमला था।
132
चूंिक कई ßारक औपिनवेिशक घुसपैठ के पiरणामõ7प अपiरवत#नीय 7प से िवकृत हो
गए थे, समय-समय पर इस तरह के _वहार के संबंध म< िचंता _` की गई थी। दि=ण पूव#
एिशया म< EFEO (École Française d’Extrême-Orient एकोल `ाँ सेज़ द'ऐabैम-ओiरअं)
के फाउं डेशन चाट# र का खाका तैयार करने म< महÜपूण# भूिमका िनभाने वाले इं डोलॉिजÔ
और एिपoाफर अगÔ बाथ्# (Auguste Barth १८३४-१९१६) ने EFEO के पहले िनदे शक लुई
िफनो (Louis Finot) को उनके िलये काय#≠म िनधा#iरत करते एक प> म< िलखा िक “न केवल
आप उu< न ढाओगे, बW™ उनका संर=ण और संर=ण भी करोगे। लेिकन आप पुनः िनमा# ण
भी नहीं कर< गे, ®ोंिक यह आमतौर पर बब#रता का सबसे खराब 7प है । बोध गया के पुराने-
नए मंिदर का समक= कंबोिडया म< िब™ुल नहीं होना चािहये” (दे ख< Clémentin-Ojha and
Manguin 2007: 20)।
िच> २१– १८९२ म< उÇर पूव# से महाबोिध मंिदर का …§ (Cunningham 1892: Pl.XIII)
ûीलंका के डॉन डे िवड हे वािवतरण (१७ िसतंबर १८६४ - २९ अKैल १९३३), जो अपने
õीकृत िद_तापूव# और आशावादी नाम अनगाiरक धम#पाल के नाम से KिसO थे,
आधुिनक समय के पहले बौO थे िजuोंने तीन महाmीपों एिशया, यूरोप, और उÇरी
अमेiरका पर बौO धम# का Kसार िकया। उनके जीवन के रे खा-िच> (कiरयर
Kोफ़ाइल) पर एक नज़र अचूक छाप दे ती है िक वे खुद को समकालीन दु िनया का
वे¤ंतर मानते थे जो एक बुO बनने के भावKवण इêु क थे। िपतृऋण (माता-िपता के
Kित ऋणo;ता) की भावना ने इस आकां =ा को और तेज कर िदया था ®ोंिक यह
उनके िपता की भी इêा थी िक वे एक बुO बन< (डायरी, ३० नवंबर १९२९ Kemper
2015: 32!म< उद् धृत)।133 वा;व म<, यह सुझाव िदया गया है िक धम#पाल की बोधगया
की पहली या>ा और जब तक वे इसे िहं दू महं त से मु` न करवा ल<, उस Aथान को
तब तक न छोड़ने का उनका …ढ़ संकø केवल बोधगया के Kित उनके Kेम का
पiरणाम नहीं था। यह गौतम बुO के जीवन का अनुकरण करने के उनके Kयास का
पiरणाम अिधक था, िजuोंने एक समान Kितéा की थी िक वे सफल Öए िबना
संबोिधका अपना आसन, पEासन, नहीं छोड़< गे। िजस Aथान पर उuोंने अपनी Kितéा
की थी और िजस तरह से यह गौतम बुO के õयं के ∫त के साथ Kित∆िनत Öआ,
वह बुO बनने की उनकी Kेरणा का संकेत दे ता है (Kemper 2015: 50-51)। इस
ल≈ को Vान म< रखते Öए, धम#पाल ने बेघर (अनगाiरक)134 बनना चुना, बुO की
133
१८९३ म< िशकागो म< िवq धम# संसद म< भाषण दे ने के बाद, धम#पाल ने अपनी डायरी म<
घोषणा की, “कुछ ने मेरी तुलना ईसा मसीह से की!!!” (Trevithick 2006: 95, 98)। एक और
बार, उuोंने बुO को अपने एक सपने म< यह कहते सुना– “तुम मेरे चचेरे भाई हो” (2 नवंबर
1894 की डायरी Roberts 1997: 1020 म< उद् धृत)।
134
िवशेषण अनगाiरक, अगाiरक (गृहAथ, आम आदमी) का एक िवलोम है, एक ऐसा _W`
िजसने अनगाiरय (बेघर िभ=ुकपन की WAथित) को अपनाया हो, अथा# त्, केसम¤ुं ओहारे aा
कासायािन वØािन अêादे aाअनगाiरयं पªजित (दाढ़ी काट और िसर मुंडाकर, पीले वæ
धारण कर, और घर से बेघर बाहर हो कर भटकना) (Rhys Davids and Carpenter 1890-
1911: i.60)। लेिकन, धम#पाल अपनी मृYु से लगभग कुछ समय पहले तक पूण# 7प से िनयु`
िभ=ु नहीं बने थे और एक Kकार के अध#-िभ=ु के 7प म< िवहार व गृह के बीच म< रहे ।
िश=ाओं के आधार पर साव#भौिमकता का एक 7प अपनाया, और घोषणा की–!
“कोई बिलदान ऐसा नहीं था िजसे मt दे ने के िलये तैयार नहीं था। मेरा आदश# वा® था
“िवजय या मृYु, राजकुमार िसOाथ# का आदश# वा®” (सारनाथ नोटबुक संÿा 101
Kemper 2015: 33!म< उद् धृत)। इसके अलावा, यिद आव§क Öआ तो, उuोंने
घोषणा की िक उu< भारत म< एक “धम[ ~ा≥ण पiरवार” म< पुनज#‰ लेने म< कोई
आपिÇ नहीं होगी (डायरी, 17 नवंबर 1930 Kemper 2015: 332015: 38 म<
उद् धृत)। भारतीयों के िलये, अनगाiरक धम#पाल मुÿ 7प से एक आ≠ामक
अिभयान की नींव रखने के िलये जाने जाते हt िजनका एकमा> काय#सू> था– महाबोिध
मंिदर िवशुO 7प से एक बौO मंिदर है इसिलए इसका õािमa उनके नेतृa वाले
बौOों के हाथों बहाल िकया जाना चािहये। कुछ हद तक, ßारकों के आस-पास
सां Kदाियक कलह के बीज उQीसवीं सदी के अंत म< तब बोए गए थे जब बौO
सुधारक अनगाiरक धम#पाल ने उस समय की ि~िटश भारतीय सरकार पर 'बौO
ßारकों' को अनï बौO िनयं>ण म< करने के िलये दबाव डालना शु7 िकया, और
इसम< उनकी सबसे महÜपूण# सफलता की कहानी बोधगया है (Lahiri 1999)।
१८९१ म< बोधगया का दौरा करते समय, धम#पाल ≠ोिधत हो गए िक
बोधगया की संपिÇ एक िहं दू धािम#क Kािधकरण के िनयं>ण म< थी और िहं दू तीथ#या>ी
बुO की पूजा अपने भगवान िव¬ु के अवतार के 7प म< कर रहे थे। उuोंने ३१ मई
१८९१ को कोलं बो म< महाबोिध सोसाइटी की Aथापना की और एक साल बाद इसका
मुÿालय ि~िटश राज की त´ालीन राजधानी कलकÇा म< Aथानां तiरत कर िदया।
इस घटना को आम तौर पर भारत म< बौO धम# के पुनòOार के इितहास म< सबसे
महÜपूण# घटना माना जाता है । लेिकन, महाबोिध सोसाइटी का Kाथिमक उ£े §
महाबोिध मंिदर और उसके पiरसर को उसके “वैध” मािलकों के हवाले करना था
(Kinnard 1998)। महाबोिध सोसाइटी, िजसके वे महासिचव थे, की बयानबाजी भी
एडिवन अन¥] जैसे िहं दू-िवरोधी िवhोiरयाई भारतिवदों के Kचार के अनु7प थी।
एक “आVाWXक ûृंखला जो बौO राÄÅों को एक साथ बां धेगी” और “उu< एक
आVाWXक पiरवार का सद‚ बनाएगी” (Guruge 1965: 827) !के 7प म<, महा
बोिध सोसाइटी ने धम#पाल के बौO एिशयाईवादी …िÄकोण को मूत# 7प िदया। इस
तरह, उuोंने महसूस िकया िक महाबोिध सोसाइटी “सबसे शW`शाली बौO Kचार
का क<ƒ बन जाएगी (Guruge 1965: 824-825)। महाबोिध सोसाइटी को कलकÇा
ले जाने के दो महीने बाद, वे ûीलंका से चार बौO िभ=ुओं को बौO िमशनiरयों
(धम#दूतों) के 7प म< काम करने के िलये ले आए। महाबोिध मंिदर की 'मुW`' के
अपने अिभयान को आवाज दे ने के िलये, जनवरी १८९२ म<, उuोंने महाबोिध सोसाइटी
के मुÿालय से आठ पृों की एक अध#-चौथाई आकार की पि>का,द महा बोिध, को
Kकािशत करना शु7 िकया। अपने लेखन के साथ-साथ भाषणों म<, उuोंने ZÄ 7प
से न केवल िहं दू धम# म< बौO धम# की जड़ों का बW™ बोधगया के महाबोिध मंिदर के
बÖधािम#क इितहास का भी िवरोध करना शु7 कर िदया।
भारत म< अनगाiरक धम#पाल के सबसे बड़े योगदान के बारे लोग बÖत कम
जानते हt और वह है बौO धम# को अपनाने के िलये दि=ण भारत के िनŸ जाित के
लोगों, मुÿ 7प से तिमलों, के जन आं दोलन के पीछे
उनकी Kेरणा (दे ख< Goonatilake 2014)। एक तिमल
दिलत पंिडत इयोथी था¤ के साथ, उuोंने दि=ण भारत म<
अछूतों के सामािजक पiरवत#न की शुòआत करने म<
महÜपूण# भूिमका िनभाई। १८८६ म<, था¤ ने घोषणा की
िक अछूत िहं दू नहीं हt । इस घोषणा के बाद, धम#पाल ने
१८९१ म< ƒिवड़ महाजन सभा की Aथापना म< था¤ की
सहायता की। १८९१ की जनगणना के दौरान, उuोंने
दिलतों से आoह िकया िक वे खुद को िहं दू कहने और इस
िच> २४–अनगाiरक धम#पाल तरह पं जीकृत होने के बजाय खु द को “जाितहीन ƒिवड़”
के 7प म< पंजीकृत कर< । उuोंने १८९८ म< शा® बौO समाज की नींव रखने म< भी
था¤ की सहायता की। इसके बाद, दोनों ने संयु` सिचवों के 7प म< बौO युवा
पुòष संघ (Buddhist Young Men’s Association) भी शु7 िकया। उpेखनीय
है िक दि=ण भारतीय दिलतों को बौO धम# oहण कराने का यह जन आं दोलन
बी.आर. अÍेडकर से आधी सदी से भी पहले आरÁ िकया था (दे ख< Goonatilake
2014; Goonetilake 2008)। 2014 म<, उनकी 150 वीं जयंती के अवसर पर, भारत
सरकार ने उनके सÉान म< एक डाक िटकट जारी िकया, हालां िक उनके नाम की
िहं दी वत#नी गलत थी।135
ûीलंका म< अनगाiरक धम#पाल मुÿ 7प से दो चीजों के िलये जाने जाते हt ।
एक, वे उQीसवीं शता”ी के बौO पुनòØान के िलये अoणी योगदानकता# ओं म< एक
थे, िजसके कारण ईसाई िमशनiरयों से KितZधा# और उनका मुकाबला करने के िलये
136
õतं>ता के बाद ûीलंका के बौO-आधाiरत िसंहल राÄÅवादी िवचारधारा के सू> अनगाiरक
धम#पाल के Kचारक काय# म< कम से कम आं िशक 7प से अंतिन#िहत थे। िसंहल जाितवाद के
मोरचे पर एस.डcयु.आर.डी. भंडारनायके के नेतृa वाली ûीलंकाई Uीडम पाट[
(एस.एल.एफ.पी.) की भारी जीत का ûेय, कम से कम आं िशक 7प म<, धम#पाल को िदया जाता
है (दे ख< Roberts 1997: 1006-1007)।
(Seneviratne 1999)। सेनेिवरöे ने वा;व म< आरोप लगाया है िक “दे श, राÄÅ, धम#”
के नारे जो “बदमाशों का आûय बन गए हt ” की मूल उäिÇ धम#पाल से Öई है
(Dharmapala1999: 67) ।
बोधगया के महाबोिध मंिदर के संबंध म< धम#पाल की गितिविधयाँ भारत,
बौO धम# के ज‰ के दे श और ûीलंका, उनके ज‰ के दे श, दोनों म< बौO धम# के
पुनòOार के िलये अिभयान के संयोजन के माVम से बुO बनने की उनकी योजना
के अंतग#त आती हt । उuोंने महाबोिध मंिदर म< शैव महं त को केवल िवÇीय लाभ
लेनेऔर “कोई धािम#क 7िच नहीं रखने”!वाले के 7प म< दे खा (दे ख< Guruge 1965:
625)। धम#पाल की महाबोिध सोसाइटी ने महाबोिध मंिदर को 'मु`' कराने के उनके
उ£े § को Kचाiरत करने और समथ#न KाL करने के िलये अhू बर १८९१ म< बोधगया
म< एक अंतरराÄÅीय सÉेलन की मेजबानी की। उनके आदे श पर, जापानी Kितिनिध
मंडल ने इस सÉेलन म< घोषणा की िक “िनिश होंगानजी (Nishi Honganji) मंिदर
के अिधकारी महं त से पया# L कीमत दे कर महाबोिध मंिदर और उसके पiरसर को
खरीदने के िलये तैयार हt” (दे ख< Datta 1952: 73)। अ)र यह आरोप लगाया जाता
रहा है िक धम#पाल ने “महाबोिध सोसाइटी को बोधगया या कम से कम उस Aथान पर
बौO उपWAथित के िलये मंच तक पÖं च को िनयंि>त करने वाला अड़ं गा बना िदया”
(Kemper 2015: 29)। वा;व म<, !के«र आगे कहते हt िक “धम#पाल को बौO धम#
आधाiरत भाईचारे म< बÖत कम िदलचZी थी, यहां तक िक बौOों की दु िनया की
एकता का िनमा# ण उनका अंितम उदे § नहीं था। वह केवल एक ही उ£े § के िलये
बौO एकता चाहते थे– सभी बौOों के िलये महÜपूण# Aथल बोधगया को पुनः KाL
करना” (Kemper 2015: 59)।और उनका मानना था िकयह 'बहाली', बदले म<, उu<
तेजी से बुOa की ओर ले जाएगी। लेिकन, धम#पाल के अिभमानी _W`a और
बोधगया तक पÖं चने के िलये महाबोिध सोसाइटी को क<ƒीय िनयं>क बनाने के उनके
Kयासों ने अï बौO नेताओं को उनसे काफी सावधान कर िदया (दे ख< Kemper
2015: 29)।
महाबोिध मंिदर और उसके पiरसर की 'पुनKा# WL' से धम#पाल का एक और
महÜपूण# काय# होता। यrिप उu< महाबोिध मंिदर पर िवशेष 7प से िसंहली दावा
करने के िलये जाना जाता है , उनका …ढ़ िवqास था िक मंिदर पर िनयं>ण हािसल
करना “न केवल उनके लोगों की भलाई के िलये आव§क था, बW™ िसंहल राÄÅ को
पुनज[िवत करने के िलये भी आव§क था,”!®ोंिक इससे िसंहल राÄÅ को
औपिनवेिशक गुलामी से छु टकारा िमल सकता था (Karpiel 1996: 177)। उनका यह
भी मानना था िक अपने िपछड़े पन के बावजूद केवल िसंहली लोग ही 'पुनKा# WL' के
िलये Kचार करने म< स=म थे (दे ख< Trevithick 2006: 81)। जब िक ितªितयों और
थाई लोगों को महाबोिध मंिदर के Kबंधन के तरीके से कोई सम‚ा नहीं थी और
बिम#यों ने तो अपनी मंिदर-मरÉत पiरयोजना म< महं त के अिधकार को भी õीकार
कर िलया था, लेिकन अनगाiरक धम#पाल ने महाबोिध मंिदर के õािमa को एक
खुली चुनौती दी थी। यह सुझाव िदया गया है िक दु भा# + से धम#पाल िवhोiरयाई
भारतिवदों की तरह “एक Kितबंिधत …िÄ से पीिड़त”!थे
बोध गया म< िहं दू और बौO परं पराओं के बीच का रसायन न केवल बुO की Kितमा के साथ,
137
बW™ बुO के पैरों के िनशान की Kितमा के साथ भी ZÄ है । िहं दू तीथ#या>ी महाबोिध मंिदर म<
बुO के पदिचuों को भगवान िव¬ु के 7प म< पूजते हt और यहां तक िक मुचिलंद तालाब म<
छठ पव# भी मनाते हt ।
वा;व म<, उu< Kमुख7प से KाFवािदयों के एक चुिनंदा समूह की राय mारा तैयार
िकया था जो लंबे समय तक िहं दू िवरोधी िववाद फैलाने म< लगे Öए थे … (और) …
हालां िक दे खने म< वे महाबोिध मं िदर म< बु O की मू ित# को उसके सही Aथान पर Aथािपत
कर रहे थे, लेिकन असल म< वे एक लंबे समय से चली आ रही िहं दू/बौO संबंधों की
KाFवादी कपोल-कøना की वह आवाज़ उठा रहे थे िजसम< िहं दुओं ने अपनी
मूित#पूजा और बुतपर; कम#कां डों के माVम से, बुO की शुO Kितमा को िवकृत कर
िदया था (Kinnard 1998: 818, 820)।
उuोंने शा®मुिन बुO की एक भारतीय Kितमा नहीं रखी, जो िक बुO के éान की Aथली पर
उपयु` होती। यrिप अिमताभ की Kितमा िनिµत 7प से बौO थी, यह मूल 7प से भW`
िदया गया था और भावनाओं के भंवर के दौरान कुछ ध»ा-मु»ी Öई थी (दे ख<
पiरिशÄ–२)। इस घटना के तुरंत बाद धम#पाल ने ïायालय जाने का फैसला िकया।
ûीलंका म< धम#पाल के Kमुख समथ#कों ने उu< इस तरह की कार# वाई के Wखलाफ
सलाह दी। वा;व म<, ûीलंका के कुछ वग# इतने िचंितत थे िक, õयं धम#पाल के
श”ों म<, “सीलोन के लोगों ने... मामले को सुलझाने के िलये टे लीoाफ िकया है ”
(Trevithick 2006: 107म< उद् धृत)। लेिकन, धम#पाल ने इन सभी दलीलों को
नज़रअंदाज़ कर िदया और मामले को आगे बढ़ा िदया। यह भी Vान दे ने यो+ है िक
धम#पाल, जो आम लोगों और िभ=ुओं के बीच WAथत थे, का õयं के िलये चुना गया
एक अध#-तपõी “बेघर पिथक” (अनगाiरक) का पद अिधकतर ûीलंकाई बौO
िभ=ुओं को िबलकुल अêा नहीं लगा। थेरवादी संघ के िनयमों की पiरिध म< धम#पाल
‘उपासक’ के अलावा कुछ भी नहीं थे और ‘अनगाiरक’ िमÈा, वंचनापूण#, और
अहÉï थी।
यह कहा जा सकता है िक धम#पाल की िवq…िÄ म< एक उpेखनीय
िवरोधाभास का कारण बौO धम# और िहं दू धम# के बीच संबंधों की उनकी पूरी तरह से
अZÄ समझ थी। इस तरह के _वहार के पiरणामõ7प उनके “अिभयान” के
समथ#न का _ापक नुकसान Öआ। जबिक वह अ)र िहं दू धम# को एक πÄ धम#
कहते थे, उuोंने समय-समय पर तक# िदया िक बौO धम# और िहं दू धम# म< कोई अंतर
नहीं है । उuोंने २५ अhू बर १८९१ को कलकÇा म< अपने पहले _ाÿान “बौO धम#
के िहं दू धम# से संबंध” म< ऐसा ही कहा (Kemper 2015: 30 fn. 65) । १९२३ म<
उuोंने िहं दू महासभा की वािष#क बैठक म< जो भाषण िदया उस म< तो वे एक कदम
और आगे बढ़ गए और जोर दे कर कह गए िक बौO िहं दू हt (धम#पाल 1923: 354-
356)।
मामला कलकÇा उ¢ ïायालय तक गया और दोनों प=ों ने इस पर भारी
मा>ा म< धन और संसाधन _य िकये।139 २२ अग; १८९५ का कलकÇा उ¢
और वैचाiरक संदभ# म< और, काफी हद तक, सरलीकृत और शुO बौO धम# की धम#पाल की
अपनी …िÄ”!से काफी िभQ और Kितकूल थी (Kinnard 1898: 836)।
139
उ¢ ïायालय का मामला धम#पाल और उस समय बÖत कम संसाधनों वाली महाबोिध
सोसाइटी के िलये काफी रािश का नुकसान सािबत Öआ, ®ोंिक उu< कानूनी शु™ म<
२२,५०० òपये से भी अिधक का भुगतान करना पड़ा (दे ख< Joshi 2019: 114)। इसकी तुलना
ïायालय का िनण#य (दे ख< पiरिशÄ–२) महाबोिध मंिदर म< पूजा के अिधकार के संबंध
म< एक ऐितहािसक िनण#य सािबत Öआ। ïायालय ने घोिषत िकया िक समय-समय
पर िविभQ घटनाओं से संकेत िमलता है िक मंिदर Kकृित म< सव#-धािम#क है । अदालत
ने घोषणा की िक धम#पाल ने मंिदर म< बुO की एक जापानी Kितमा Aथािपत करके
कानून अपने हाथ म< िलया था ®ोंिक यह महं त की संपिÇ थी, बौOों को मंिदर
म<िहं दुओं की तरह, पूजा करने का अिधकार है । ïायालय ने आगे बताया िक
महाबोिध मंिदर, जो बÖत Kाचीन है और बौOों के िलये बÖत पिव> है , एक बौO मंिदर
था। हालां िक यह िहं दू महं तों के के म< रहा है , इसे कभी भी िहं दू मंिदर म< इस अथ#
म< पiरवित#त नहीं िकया गया है यहां िहं दू मूित#यों को Aथािपत कर िदया गया हो या
पारं पiरक िहं दू पूजा पOित लागू कर दी गई हो, बौO तीथ#याि>यों को इसम< मुm और
पूण# पूजा करने की õतं>ता थी। ऐसा Kतीत नहीं होता है िक उu< कभी कोई बाधा दी
गई हो या उनके mारा कभी कोई िशकायत की गई हो, और, यह मु£ा उठने से पहले,
बौO उपासकों और िहं दू महं तों या उनके अधीनAथों के बीच उनके अपने-अपने
अिधकारों के संबंध म< िकसी भी तरह की गड़बड़ी का कोई उदाहरण नहीं िमलता है
(कलकÇा उ¢ ïायालय १८९५:!७)।
इसम< कोई संदेह नहीं है िक [मंिदर पर] उसका आिधपY है , वह मंिदर का एकमा>
अधी=क है , और वह िहं दुओं और बौOों दोनों की सभी भ<ट लेता है ; और ऐसा Kतीत
होता है िक वत#मान WAथित सिदयों से नहीं तो कई वष¨ से अW;a म< है । यह सािबत
नहीं Öआ है , मुझे नहीं लगता िक यह आरोप भी लगाया गया है, िक जीवंत ßृित के
भीतर मंिदर म< िकसी भी बौO पुजारी ने कभी भी िकसी भी िनयं>ण या अिधकार का
Kयोग िकया है (कलकÇा उ¢ ïायालय १८९५: ८)।
म< महं त अYिधक धनी थे, उनकी वािष#क आय १,००,०००!ò. थी (Sinha and Saraswati
1978: 81)।
ïायालय ने कहा िक “उसके अपने लेखन, और उसकी जानकारी और उसके
अिधकार के तहत Kकािशत लेखों म< ZÄ 7प से िदखाया गया है िक वह हमेशा
महं त को मािलक मानता था, चाहे महं त के कठोर अिधकार कुछ भी रहे हों। धम#पाल
मंिदर म< पूजा करने वाले सामाï भ` की WAथित म< नहीं था। वह िन¤ंदेह एक
धािम#क उ˜ाही और आं दोलनकारी था” (कलकÇा उ¢ ïायालय १८९५:!१२)।
मामले की पृभूिम के बारे म< बात करते Öए, ïायालय ने कहा िक
“फरवरी १८९३ म<, उuोंने और सोसाइटी के मानद िनदे शक कन#ल ओ™ोट ने सभी
दे शों के बौOों के िलये मंिदर की धािम#क अिभर=ा KाL करने के …िÄकोण से महं त
से सा=ा´ार िकया। लेिकन महं त, जैसा िक प>ाचार से पता चलता है , ने िकसी भी
शत#पर बेचने या प$ा दे ने से इनकार कर िदया। तब धम#पाल ने, õयं और कन#ल
ओ™ोट mारा ह;ा=iरत सोसाइटी के अV= को संबोिधत एक प> के अनुसार,
महं त के काय#काल की वैधता की जां च करनी शु7 कर दी” (कलकÇा उ¢
ïायालय १८९५: १२)। इससे पहले, ५ मई १८९४ को, धम#पाल को बंगाल सरकार से
एक प> िमला िजस म< कहा गया था िक “बोधगया म< सभी बौOों के िलये पूजा की पूण#
õतं>ता है , और यह िक जब कभी भी कोई गंभीर िशकायत िमली िक òकावट< पैदा
की गई हt , बंगाल सरकार के हाथों तुरंत Vान और िनवारण िमलेगा” (कलकÇा उ¢
ïायालय १८९५:!१४)। ïायालय ने महंत के बÖलवादी _वहार का भी उpेख िकया
और बताया िक “यहां भरोसे लायक सबूत है िक नवंबर और िदसंबर १८९१ म< बम[
तीथ#याि>यों ने महं त की अनुमित के िबना नीचे गभ#गृह म< बुO की कुछ संगमरमर की
Kितमाओं को बड़ी Kितमा के साथ रखा था।ऐसा हो सकता है , और यह ZÄ है िक
महं त ने आपिÇ नहीं की” (कलकÇा उ¢ ïायालय १८९५:!२१)। इतना ही नहीं,
“जनवरी १८९५ म< धम#पाल और तीथ#याि>यों के एक दल ने महान Kितमा के वæों को
हटाकर और ितलक के िनशान िमटाकर उसके सामने पूजा की और उनके ऐसा
करने पर कोई आपिÇ नहीं की गई थी” (कलकÇा उ¢ ïायालय १८९५: २२)।
इसके अलावा, “उuोंने मंिदर को िहं दू पूजा के Aथान म< पiरवित#त नहीं िदखाया है ,
हालां िक मंिदर पiरसर म< एक जगह है , िजसका िहं दुओं mारा पूव#जों के िलये िप⁄ या
भ<ट दे ने के िलये पिव> Aथान के 7प म< उपयोग िकया जाता है ” (कलकÇा उ¢
ïायालय 1895: II.2)।140
जापानी बुO Kितमा को Aथािपत करने के अपने असफल दु :साहस काय# के बाद, धम#पाल ने
140
Kितमा को त´ाल पास के बम[ िवûामगृह म< Aथानां तiरत कर िदया। उuोंने बम[ तीथ#याि>यों
कलकÇा उ¢ ïायालय के फैसले का एक ZÄ नतीजा यह था िक
_W`गत Kिता और कानूनी काय#वाही म< िव∆ंसकारी नुकसान से बुरी तरह पीिड़त
होने के अलावा, धम#पाल ने इस “सामाï धारणा को मजबूत िकया िक महं त मंिदर
और उसकी जमीन के वा;िवक मािलक हt” (Trevithick 2006: 162 fn.3)।141 जब
के दश#न के िलये महं त mारा बनवाया गया िवûामगृह भी बोध गया म< अपना Aथायी आधार बना
िलया। बुO की Kितमा की Aथापना और उसकी दै िनक पूजा के माVम से, धम#पाल और उनके
दो;ों ने िवûाम गृह, एक धम#िनरपे= संरचना, को एक पिव> Aथान म< तो बदल िदया, लेिकन
लंबे समय तक नहीं। अपनी कानूनी जीत को भुनाने के िलये तäरता से काम करते Öए,
खासकर जब धम#पाल के साथ िववाद अब खुले म< था, महं त ने नवंबर १८९५ म< सरकार को
Kितवेदन दे कर एक और राजनियक कदम उठाया िक धम#पाल Aथायी 7प से उस पर का
नहीं कर सकते। Aथानीय आयु` ने Kितमा को Aथािपत करने म< धम#पाल के आचरण को
अõीकार कर िदया और द⁄ािधकारी (द⁄ािधकारी) को यह भी िनदÃ श िदया िक वह बम[
िवûामगृह से एक महीने के भीतर Kितमा को हटाने का आदे श दे , ऐसा नहीं करने पर, उसे
कहा गया, इसे कलकÇा म< भारतीय संoहालय म< Aथानां तiरत कर िदया जाए (दे ख< Joshi
2019: 124-125)। सबसे िदलचZ बात यह है िक अब धम#पाल ने भारत के िहं दुओं से यह
कहते Öए समथ#न की अपील की िक “िहं दू कभी भी Kतािड़त करने वाले नहीं रहे हt ।
सहनशीलता उनका धम# है । सहनशीलता िहÛदू मन की आदत है ” (Anon. 1896a: 10-11)।
लेिकन, िहं दुओं को जैतून की एक शाखा की यह पेशकश केवल अøकािलक थी। ज- ही
वह टकराव के अिभयानों के माVम से अपनी िपछली मां गों पर वापस चले गए। यrिप २५ मई
१८९६ को उपरा·पाल ने जापानी Kितमा को वहीं रखने की अनुमित दी, जहां वह थी,
कलकÇा उ¢ ïायालय ने फरवरी १९१० म< बम[ िवûामगृह से धम#पाल को हटाने का आदे श
दे िदया (दे ख< Joshi 2019: 125-133)।
141
बौO धम# के बारे म< धम#पाल का अपना éान इसकी पिµमी िवmानों की _ाÿाओं पर
आधाiरत था और उuोंने माना िक सीलोन थेरवाद बौO धम# “अपनी आिदम शुOता म< ...
केवल बौO धम# की दि=णी परं परा म< पाया जाता है , िजसे सीलोन से पहचाना जाता है ”
(Guruge 1965: 287)। थेरवािदन् बौO धम# पर इस Kकार के िवचारों ने पया# वरण को इस हद
तक दू िषत कर िदया था िक गैर-थेरवािदन् तीथ#याि>यों का ûीलंकाई आराम म< रहना मुW?ल
हो गया था। जापानी आलोचक और दाश#िनक काकुज़ो ओकाकुरा (Kakuzo Okakura),
िजuोंने १९०२ की शुòआत म< बोध गया की या>ा पूरी की थी, ने जापान के महायान बौO
धमा# नुयािययों के िलये महाबोिध वृ= के ठीक सामने एक िवûाम गृह बनाने के िलये मंिदर
पiरसर के पिµम की ओर एक भूखंड खरीदने के उ£े § से महं त से परामश# शु7 िकया, चूँिक
उनके “बौO धम# का िसOां त अिनवाय# 7प से सीलोन या िसयाम के अपने िसOां तों म< िभQ है ”
धम#पाल ने पहली बार महाबोिध मंिदर की 'मुW`' के िलये अदालत म< मुकदमेबाजी
शु7 की तो उu< जो _ापक िसंहली समथ#न िमला, वह १८९५ का मुक£मा हारने के
बाद लगभग पूरी तरह से कम हो गया। वा;व म<, बाद के वष¨ म<, िवदे शों म< उनके
धम#सेवा काय# के िलये ûीलंका के भीतर समथ#न लगभग समाL हो गया (दे ख<
Karpiel 1996: 177-189)। धम#पाल mारा महं त के Wखलाफ मुकदमा चलाने की
सहमित दे ने की िजÉेदारी लेते Öए, ओ™ोट ने कहा िक उ´ृÄ कानूनी Kितिनिधa
के बावजूद भी धम#पाल बोधगया लेने म< िवफल रहे । इसका पiरणाम यह Öआ िक
“कई बौO धम#पाल के Kित कटु भावनाओं का Kदश#न कर रहे थे ®ोंिक इस
िवÿात मुक£मे की भारी कीमत चुकानी पड़ी।”!सा≈ों के मंचपर, “धम#पाल ने
िजतना संभव हो सका लगभग उतना ही खराब Kदश#न िदया...वह पहले πिमत Öए,
िफर अपनी याददा˝ खो दी, और [फलõ7प] अपने समथ#कों को नाराज़ कर
िदया” (Olcott 1890: xxix-xxx)। िजस आकWßक तरीके से उuोंने अपने
योगदानकता# ओं के धन को बोधगया की बहाली की पiरयोजना से एिथको-
साइकोलॉिजकल कॉलेज और संघिमÇा कॉ <ट की Aथापना जैसे दू सरे काय¨ के िलये
Aथानां तiरत िकया, ओ™ॉट ने इस की ओर इशारा करते Öए िनóष# िनकाला िक
इसका कोई आधार नहीं है ” (Kemper 2015: 51) .
सबसे दु भा# + से, िविशÄवादी अनगाiरक धम#पाल यह दे खने म< िवफल रहे
िक दो भारतीय धम¨ के िलये पिव> Aथान साझा करना और शां ित और स^ावपूव#क
सह-अW;a म< होना काफी õाभािवक है । इस Kकार, अनगाiरक धम#पाल की
भूिमका के बारे म< अपiरहाय# िनóष# यह होगा िक
(Anon. 1923: 36)। हालांिक महं त इस िवचार के िलये काफी खुले थे, बंगाल सरकार ने इस
आधार पर आवेदन को खाiरज कर िदया िक “िहतों का बÖलीकरण अवां छनीय है ”
(Trevithick 2006: 172)। बाद म<, ९ जनवरी १९०६ को पंचेन लामा की अV=ता म<, ितªत
और िहमालयी रा·ों और कुछ अï एिशयाई दे शों के कई Kमुख बौOों mारा बुWOस्ट ûाइनज़्
iरÔोरे शन सोसाइटी (Buddhist Shrines Restoration Society बी.एस.आर.एस.) की
कलकÇा म< Aथापना की गई। धम#पाल ने इसे एक Kितmं mी संगठन माना और इसके कामकाज
की िनंदा की (Dharmapal 1917: 147)। ऐसा लगता है िक बी.एस.आर.एस., जो मुÿ 7प से
महायान और वıयान िहतों की पूित# करता था, की Aथापना इसिलए की गई थी ®ोंिक ये
संKदाय धम#पाल के बौO धम# के क$र थेरवािदन् और प=पाती िवचारों से हतो˜ािहत थे
(Anon. 1896: 2)।
[वे] खुद इस गाँ ठ म< इतने जिटल तरीके से उलझे Öए थे िजतना शायद उu< पता नहीं
था… हालां िक सतह पर ऐसा लग सकता है िक वे महाबोिध मंिदर म< बुO की Kितमा
को उसके सही Aथान पर बहाल करने की कोिशश कर रहे थे, लेिकन साथ ही वह
õयं िहं दू/बौO संबंधों की लंबे समय से चली आ रही उस KाFवादी अवधारणा को
Kितितकर रहे थे िजसम< िहं दुओं ने अपनी मूित#पूजा और बुतपर;ी के माVम से बुO
की शुO Kितमा को िवकृत कर िदया था (Kinnard 1998: 820)।
अंत म<, महाबोिध मंिदर म< बुO की एक Kितमा Aथािपत करने के उनके
Kयास को िनिµत 7प से एक बौO भ` mारा बहाली के एक िनद¥ष Kयास के 7प
म< नहीं दे खा जा सकता है । िजस महं त पर उuोंने आरोप लगाया, उससे कहीं अिधक
धम#पाल का _वहार असिह¬ु Kतीत होता है । आµय# होता है िक अगर महाबोिध
मंिदर का िनयं>ण धम#पाल और उनके दो;ों को दे िदया गया होता तो ®ा होता।
धम#पाल ने िहं दुओं को बोिधवृ= की तलहटी म< अंितम ûाO कम# करने से लगभग
िनिµत 7प से मना कर िदया होता। सभी संभावनाओं म<, पूव#-तुòó काल के अपने
समक=ों की तरह, उuोंने भी महाबोिध मंिदर के पiरसर म< पूजा करने के िलये गैर-
थेरवािदनों के माग# म< बाधा डाली होती।
कलकÇा उ¢ ïायालय के फैसले के कुछ समय बाद, लॉड# कज#न ने
फैसला िकया िक मंिदर “सरकार mारा टÅ Ô म< रखा जाएगा” और महं त को केवल
“जमीन के जमींदार के 7प म< सभी आगंतुकों, िहं दू या बौO से शु™ लेने का
अिधकार होगा” (Guha-Thakurta 2004: 295)। औपिनवेिशक सरकार या उसके
ïायालय से महाबोिध मंिदर पर का KाL करने म< िवफल रहने के बाद, धम#पाल
ने भारतीय राÄÅीय कां oेस की ओर òख िकया और वे १९२० म< बंगाल के कां oेस नेता
िचÇरं जन दास को पाट[ के सम= अपना प= रखने के िलये मनाने म< स=म रहे ।
फलõ7प, िबहार Kां तीय कां oेस कमेटी ने िदसंबर १९२२ म< कां oेस के गया
अिधवेशन म< इस मु£े को उठाया। इस स> म<, एक सौ बम[ बौO िभ=ुओं के एक
Kितिनिध मंडल ने मंिदर के Kबंधन को बौOों को ह;ां तiरत करने की मां ग की (दे ख<
Jha 2018)। कैिसयस परे रा के नेतृa म< ûीलंका के बौOों के एक Kितिनिधमंडल ने
िदसंबर १९२४ म< कां oेस के बेलगाम अिधवेशन म< इस मां ग को और अिधक उ˜ाह
के साथ रखा।स> के अV= महाXा गां धी ने बाबू राज<ƒ Kसाद से इस मामले को
दे खने का अनुरोध िकया। Kसाद ने एक iरपोट# तैयार करने के िलये तीन िहं दुओं (õयं
सिहत) और पां च बौOों, िजu< महा बोिध सोसाइटी mारा नािमत िकया जाना था, की
एक सिमित की Aथापना की। लेिकन, पुòषोÇमदास टं डन ने सिमित के गठन पर
आपिÇ जताई। अंततः, अWखल भारतीय कां oेस कमेटी ने सिमित की संरचना को
संशोिधत कर K;ािवत सिमित म< दो और िहं दुओं को शािमल िकया और महं त के
िलये एक सीट आरि=त की (Copland 2004)। इसने धम#पाल को कां oेस पाट[ से
पूरी तरह से नाखुश कर िदया और उuोंने सहायता के िलये िहं दू महासभा142 से
संपक# करने का फैसला िकया। वा;व म<, भारतीय राÄÅीय कां oेस ने ऐसे समय म< इस
मु£े को संभालना लगभग असंभव पाया जब õतं>ता आं दोलन õयं सां Kदाियकता से
Kभािवत था।
महाबोिध मंिदर के िनयं>ण के िलये बौOों की ओर से िहं दू महासभा के मंच
से ह;=ेप शायद िहं दू महासभा के इितहास की सबसे महÜपूण# घटनाओं म< एक
था। यहां यह उpेखनीय है िक जहां ि~िटश राज ने “समुदायों की कमजोर किड़यों
कोतोड़ने की राजकीय संकøना के िह¤े के 7प म<,”!अपनी जनगणना के काय¨ म<
बौOों, जैिनयों, और िसखों को िहं दुओं से अलग समूहों के 7प म< माना, आय# समाज
के नेता, िवशेष 7प से िहं दू महासभा ने उu< िहं दू धम# के अिवभा· अंग143 के 7प
म< िदखाने का Kयास िकया और उu< Kभािवत करने वाले मु£ों म< ह;=ेप िकया (दे ख<
Jha 2018)। लेिकन, महाबोिध मंिदर का मु£ा महासभा के सामने एक दु ग#म पहे ली
बना रहा ®ोंिक एक तरफ इसने अपने लंबे समय से चले आ रहे अिभयान को आगे
बढ़ाने के िलये कड़ी मेहनत की िक बौO िहं दू धम# का एक अिवभा· िह¤ा है और
दू सरी ओर यह सनातनवादी तबके, जो जोश से महं त का प= ले रहे थे ,के दु जÃय
दबाव के अधीन था। लाला लाजपत राय की अV=ता म< ४ अKैल १९२५ को िबहार
िहं दू सभा के मुजnरपुर सÉेलन म< बाबू राज<ƒ Kसाद ने भाग िलया और इस मामले
पर जोरदार चचा# Öई। कोई ठोस समाधान नहीं िनकाला जा सका ®ोंिक महं त और
mारका Kसाद चतुवÃदी जैसे सद‚ अड़े रहे और राज<ƒ Kसाद के इस K;ाव से
142
१९१५ म< Aथािपत इस संगठन का नाम मूल 7प से सव#देशक िहं दी महासभा था िजसे
१९२१म< बदलकर अWखल भारत िहं दी महासभा कर िदया गया और इसे िहं दू महासभा के नाम
से जाना जाने लगा।
143
िहं दू महासभा ने एक िहं दू को “िहं दू होने का दावा करने वाला या भारतीय मूल के िकसी भी
धम# का पालन करने वाले िकसी भी _W` के 7प म< पiरभािषत िकया िजसम< सनातनवादी,
आय#समाजी, जैन, िसख, बौO, और ~≥ो इYािद शािमल हt ” (Gordon 1973)।
सहमत नहीं थे िक मंिदर का Kबंधन िहं दुओं और बौOों की एक संयु` सिमित को
सौंप िदया जाना चािहये (Prasad 1957: 232-234)।
अजमेर म< १९३३ के महासभा के वािष#क अिधवेशन म< महाबोिध मंिदर का
मु£ा नहीं उठाया गया, हालांिक चीन, जापान, ûीलंका, और बमा# के बौO िभ=ुओं ने
बड़ी संÿा म< सÉेलन म< भाग िलया और इसे आयोजकों mारा एक बड़ी सफलता के
7प म< दे खा गया (दे ख< Copland 2004)। कानपुर की िहं दू महासभा के सोलहव<
वािष#क स> (२०-२२ अKैल १९३५) म< (Mitra 1934: 329-335 म< िववरण दे ख<) एक
बौO िभ=ु ओÇमा िभºु को अV= चुना गया।144 लेिकन, जब महाबोिध मंिदर के
के के संबंध म< एक K;ाव पेश िकया गया, तो सनातनवािदयों ने गु¤े म< Kदश#न
िकया और K;ाव को पाiरत होने से रोकने की कोिशश की (दे ख< Mitra 1935:
335)। अंत म<, एक समझौता K;ाव पाiरत िकया गया, िजसने मंिदर Kबंधन की
सम‚ाओं पर िवचार-िवमश# करने के िलये एक सिमित की िनयुW` करते Öए
गोवध#न मठ के शंकराचाय# को सनातनवािदयों की ओर से सिमित mारा िकये गए
िकसी भी समझौते को वीटो करने की शW` दी (दे ख< Mitra 1935: 335)।परमानंद
की अV=ता म< सिमित की बैठक ८-९ जुलाई १९३५ को गया म< Öई (Mitra 1935:
335)। बैठक म< संकø िकया गया िक मंिदर मामलों के Kबंधन के िलये एक सिमित
का गठन िकया जाएगा, जो“मंिदर पर महं त के मौजूदा कानूनी अिधकारों से संबंिधत
नहीं होगी” (Jha 2028)। लेिकन, कानपुर अिधवेशन mारा गिठत बोधगया मंिदर
सिमित के सद‚ mारका Kसाद चतुवÃदी ने राज<ƒ Kसाद iरपोट# म< _` सभी िवचारों
का जोरदार खंडन िकया।
सम‚ा अनसुलझी रही और जब १९३५ के दौरान िबहार िवधानसभा म<
मंिदर के Kबंधन से संबंिधत एक िवधेयक पेश िकया गया, तो “महासभा बौO िहत के
प= म< खड़ी Öई” (Jha 2018)।145 लेिकन, इसके अलावा कुछ खास नहीं Öआ।
144
महासभा के अV= के 7प म< एक बौO िभ=ु का चुनाव इस मु£े को हल करने की िदशा म<
एक महÜपूण# कदम था। एक ओर इसने िहं दू समुदाय की _ापक पiरभाषा म< बौO समुदाय
को सहयोिजत करने की पाट[ की इêा को िदखाया, और दू सरी ओर इसने इस कदम के Kित
सकाराXक Kिति≠या के िलये बौO िभ=ुओं के झुकाव को भी Kदिश#त िकया।
145
लेिकन, मंिदर पर िहं दू िनयं>ण बनाए रखने के िलये, िहं दू महासभा के 7िढ़वादी सद‚ों ने
यह …िÄकोण अपनाया िक बुO भगवान िव¬ु के अवतार हt । उदाहरण के िलये, कलकÇा के
िहं दू िमशन ने ७ अKैल १९३५ को ि>कोणेqर मंिदर म< अपने िवशेष स> म< इस दावे को खाiरज
कर िदया िक महाबोिध मंिदर “िवशेष 7प से एक बौO मंिदर” है , इस आधार पर िक न केवल
उpेखनीय 7प से इसी समय के आसपास, बौO अनुनय के एक KिसO िवmान
बेनीमाधब बòआ ने जोर िदया िक
बौOों ने कभी भी और कहीं भी िहं दुओं को उनके मंिदरों म< जाने या पूजा करने से नहीं
रोका। वा;व म<, उनके पास बौO मंिदर म< पूजा के िलये आने वाले िहं दू भ`ों के
Wखलाफ कोई मामला नहीं है । उनके मंिदर िबना िकसी जाित और पंथ के भेदभाव के
पूजा के िलये सभी के िलये खुले रहते हt । राजा धम#पाल के शासनकाल के दौरान
उ´ीण# केशव का िशलालेख ZÄ 7प से सािबत करता है िक बौO उदार और
सिह¬ु थे, यहां तक िक एक िहंदू को अपने दे वताओं, िशव और ~≥ा की एक आकृित
को िनवासी शैव ~ा≥णों के लाभ के िलये बोध-गया (धमÃश-आयतने) म< अपने मंिदर म<
Aथािपत करने की अनुमित दी (Barua १९३४: २३४-२३५)।
िहं दुओं mारा बुO की िव¬ु के अवतार के 7प म< पूजा की जा रही थी बW™ इसिलए भी िक
बौO धम# को “भारत के आय# धम# की एक शाखा के 7प म<” माना गया है (All India Hindu
Mahasabha Papers, NMML, File No. C-11. Jha 2018 म< उद् धृत)। इसिलए िहंदू िमशन
ने उस िबल को अõीकार कर िदया िजस म< महाबोिध मंिदर के Kबंधन के िलये एक सिमित
बनाने का K;ाव था।
सिमित का अV= बनने की अनुमित दे ता है , चाहे उसकी धािम#क संबOता कुछ भी
हो, ने यह सुिनिµत िकया है िक न केवल िहं दू अब इसके धािम#क जीवन म< कोई
भूिमका नहीं िनभा सकते हt बW™ यह भी िक ज7रत पड़ने पर िबहार रा· इसके
मामलों म< Kभावी ढं ग से ह;=ेप कर सकता है ।
भारत के औपिनवेिशक आकाओं और धम#पाल जैसे उनके सहयोिगयों mारा
समिथ#त िहं दू धम# पर बौO धम# की ûेता की धारणा के साथ िहं दू िवरोधी Kचार का
बीसवीं शता”ी के दौरान महाबोिध मंिदर के इितहास पर गंभीर Kभाव पड़ा। इस
तरह की राय वा;व म< आज भी कायम है । इस िलये यह कोई आµय# की बात नहीं है
िक
जब िहं दू िवरोधी समूह एकजुट होते हt , तो वे अ)र भारतीय बौO धम# के समकालीन
7प,अथा# त् अÍेडकरवादी नव-बौO धम#, को अपने प= म< करने का Kबंधन करते
हt । कहा जा सकता है िक इसकी राजनीितक पृभूिम के कारण, अनुसूिचत जाित के
नेता बी.आर. अÍेडकर और उनकी महार जाित के कई लोगों के बौO धम# म<
पiरवत#न (१९५६) ने अंतत: बौO संKदायवाद की उäिÇ म< योगदान िदया।
अÍेडकरवादी बौO धम# के िहं दू िवरोधी पूवा# oह को समानां तर चल रही बमा# /*ां मार
और ûीलंका म< तिमल िहं दुओं के Wखलाफ बौO श>ुता के साथ-साथ ने ह7वादी
बुWOजीिवयों mारा बौO धम# को ऐितहािसक तौर परिहं दू िवरोधी िवƒोह के 7प म<
मानने की KवृिÇ से और मजबूती िमली। इस िहं दू िवरोधी दु ,नी के भौितकीकरण के
7प म<, नव-बौO आं दोलन ने अयोVा मंिदर/मW7द िववाद की नकल करके कुछ
मंिदरों पर िववाद पैदा करने की कोिशश की है (Elst2002)।
िच> २५–महाबोिध मंिदर के सÉान म< भारतीय डाक िवभाग mारा जारी िकये गए डाक िटकट
भारत के õतं> होने के कुछ समय बाद, महाबोिध मंिदर पर ढाई और साढ़े
तीन आने के दो िटकटों को भारत सरकार के डाक िवभाग mारा डाक िटकटों के
िनयिमत Kदश#नों की सूची का अिभQ अंग बना िदया गया। समय समय पर महाबोिध
मंिदर के सÉान म< कई ßारक िटकट भी जारी िकये गए हt । १९४७ म< आजादी के
बाद के पहले दशक के दौरान, भारत के बौO भूगोल ने काफी अंतरराÄÅीय Vान
आकिष#त िकया। इस Vान का एक महÜपूण# पiरणाम भारत म< १९५६ का राÄÅ_ापी
२५००वां बुO जयंती समारोह था। भारत के पहले Kधान मं>ी पंिडत नेह7 के नेतृa
म<, एिशया के बौO राÄÅों के बीच भारत के क<ƒीय Aथान को िफर से जीवंत करने के
िलये इस घटना ने मदद की या कम से कम भारत सरकार ने तो ऐसा ही सोचा था।
बौOों की पया# L आबादी वाले िविभQ एिशयाई राÄÅों को उनके mारा बोधगया म<
अपने õयं के धािम#क Kितान बनाने के िलये आमंि>त िकया गया था। फलõ7प,
ûीलंका, कंबोिडया, लाओस, *ां मार, जापान, िवयतनाम, नेपाल, भूटान, मंगोिलया,
और थाईलtड सिहत अनेकों दे शों ने न केवल िवûामगृहों के साथ अपने õयं के
िवहार बना िलये हt , इनम< से अिधकां श िवहारों के साथ िमल कर कई गैर सरकारी
संगठनों ने भी õाL क<ƒ, Vान क<ƒ, Kाथ#ना क=, _ावसाियक Kिश=ण क<ƒ, तथा
तीथ#याि>यों mारा Kायोिजत िवrालय बोधगया और उसके आसपास के गां वों म<
Aथािपत कर िलये हt । १९६० के दशक के दौरान, Kितमाओं को केवल महा;ूप के
कुछ Aथानों म< ही दे खा जा सकता था।लेिकन, अब सभी आलों म< बुO और िविभQ
बोिधसÜों की आकृितयां Aथािपत हt । कुछ समुदायों जैसे िक ितªितयों ने िविभQ
संKदायों के अनुशीलन के आधा दज#न से अिधक धािम#क क<ƒ बना िलये हt ।
तीथ#याि>यों mारा Kायोिजत दज#नों िवrालय सुजातागढ़ जैसे छोटे -छोटे गां वों म< खेतों
पर Aथािपत कर िलये हt । नेह7वादी …िÄकोण से पैदा Öई ऐसी गितिविधयों के कई
अKYािशत पiरणाम िनकले हt । एक महÜपूण# पiरणाम यह Öआ है िक न केवल
मंिदरों, िवहारों, और गैर सरकारी संगठनों mारा बW™ होटलों, िवûामगृहों,और
ßाiरका दु कानों mारा भी बोधगया और आसपास के गां वों की कृिष भूिम पर का
कर िलया गया है । ZÄ 7प से, िविभQ िवदे शी बौO समूह न केवल अपने िवहार,
िवûामगृह, और अï Kितान बनाने के िलये भूिम िनयमों की धWflयां उड़ा रहे हt ,
बW™ _ावसाियक उ£े §ों के िलये िवûामगृह और Vान क<ƒ चलाकर करों की
चोरी भी कर रहे हt । फलõ7प, िविभQ िहत-समूहों के बीच िसमिसमाता घष#ण,
िवशेष 7प से Aथानीय _ापाiरयों और िवदे शी धािम#क संAथानों के बीच, “दान और
Kायोजन के अंतरराÄÅीय नेटवक# के माVम से िवदे शी पूंजी के धनी लाभािथ#यों” के
7प म< दे खा जा सकता है (Geary 2008: 13)। Geary, Sayers et al 2012: 110-
118#$!इसके अितiर`, बोधगया अब उन लोगों के बीच एक संघष# के िलये तैयार हो
रहा है जो इस Aथान को लाभ के िलये एक पय#टन Aथल के 7प म< दे खते हt और वे
जो इसे एक ऐसे धािम#क Aथल के 7प म< दे खते हt िजसे तीथ#याि>यों के िलये संरि=त
िकया जाना चािहये (दे ख< Geary, Sayers et al 2012: 110-118)।146 इन सबसे
ऊपर, बोध Öआ अब '~ांड बौO धम#' के क<ƒ के 7प म< फल-फूल रहा है, िजसम<
Kां तीय और क<ƒ सरकार< भारत के सबसे गरीब और सबसे πÄ Kां तों म< से एक,
िबहार की WAथर अथ#_वAथा को पुनज[िवत करने के िलये इस ~ां ड का िवपणन
करके िविभQ Kकार की िवकासाXक काय#सूची को जोर-शोर से आगे बढ़ा रही हt
(दे ख< Geary 2008: 11-12)।
अंत म<, यह इं िगत िकया जा सकता है िक यिद १९५६ के बड़े पैमाने पर
बौO-क<िƒत समारोहों ने गैर-बौOों के साथ एक 'शुO' बौO Aथान के 7प म<
बोिधकृत के िवचार को ठोस बनाने की मां ग की, तो वष# २००२ म< महाबोिध मंिदर को
िवq धरोहर Aथल के 7प म< माïता दे ने के िलये भारत के आवेदन को उसी िदशा म<
उठाए गए एक िवशाल कदम के 7प म< दे खा जाना चािहये िजससे एक बÖधािम#क
Aथल िवशेष 7प से बौO Aथल बन गया। अपने आवेदन म<, भारत सरकार ने केवल
मंिदर के बौO पहलू पर Kकाश डाला, जबिक इसके बÖसंÿक चiर> की अनदे खी
की। दू सरे श”ों म<, महाबोिध मंिदर को अब अपनी िवq िवरासत WAथित के माVम
से एक िवशेष 7प से बौO Aथल के 7प म< दे खा जाता है, िजसने “बौO ûेता पर
औपिनवेिशक काल के KाFवादी पूवा# oह को कायम ही नहीं रखा है बW™Aथूल भी
िकया है” (Krusell 2010: 1)। यrिप बोधगया म< अब भी बौO तीथ#याि>यों की तुलना
म< िहं दू तीथ#याि>यों की संÿा शायद oादा है , “िफर भी बोधगया को अनािद काल से
केवल एक बौO Aथल के 7प म< Kवाiरत करके िहं दू गितिविध को अ…§ कर िदया
गया है ... (और अब िबलकुल वैसे ही जैसे िक) ... अन¥] और धम#पाल ने बौO
म»ा या यòशलम की कøना की थी”!(Kinnard 1998: 834)। अब महाबोिध
मंिदर म< लगभग सभी अनुान बौO Kितमानों के अनु7प हt । इस तरह के िवकास ने
एक जीिवत “बÖसंयोजी पिव> Aथान” के 7प म< बोधगया के समकालीन 7प को
ZÄ 7प से अZÄ कर िदया है (Kinnard 1998: 817)। िबहार के मुÿमं>ी नीतीश
कुमार ने २०१३के अपने बोधगया संशोधन अिधिनयम के mारा इस िदशा म< अंितम
कील ठोक दी, यह सुिनिµत करते Öए िक अित_ापी धािम#क िहतों को महाबोिध
बोध गया म< रह रहे हt और पिव> Aथल से सटे भूिम के महÜपूण# िह¤ों के मािलक हt ,
“बोधगया के भिव◊ के मामले से संबंिधत िकसी भी चचा# म< Aथानीय मW7द अिधकाiरयों को
शािमल करना न केवल महÜपूण# है , बW™ आव§क भी है ” (Joshi2019: 19)।
मंिदर के 'शुO' बौO चiर> के प= म< पूरी तरह से िमटा िदया गया है । १९५६ म< बौO
धम# के २५०० वष# पूरे होने के बाद से, महाबोिध मंिदर के “पूव# गौरव” को बहाल
करने के िलये कई बार मरÉत और जीण¥Oार का काम िकया गया है । इसी भावना
से, थाईलtड के राजा और थाईलtड के भ`ों को २०१३ म< भारतीय पुरातa सवÃ=ण
(ए.एस.आई.) mारा मंिदर के ऊपरी िह¤े को २८९ िकलोoाम सोने से ढकने की
अनुमित दी गई थी। यrिप सभी भारतीय धम¨ के लोग अभी भी महाबोिध मंिदर म<
Kाथ#ना और पूजा करने के िलये õतं> हt , लेिकन अब वे ऐसा महसूस करते हt जैसे िक
यह अब केवल एक बौO मंिदर है । लेिकन, कुछ लोग अभी भी वत#मान WAथित से खुश
नहीं हt और चाहते हt िक महाबोिध मंिदर के पiरसर से सभी 'गैर-बौO' िचÊों और
Kतीकों को हटा िदया जाए।147
147
“मई के मV म<, महाराÄÅ के २,००० बौO तीथ#याि>यों का एक समूह यहां मंिदर म< िहं दू
दे वताओं और पुजाiरयों की उपWAथित से इतना उÇेिजत हो गया िक उuोंने कई मूित#यों को
तोड़ िदया और कई िहं दू संतों को थçड़ मार िदये। यहां िहं दू मठ या तीथ# Aथल के एक वiर
अिधकारी दीनदयाल दया िगiर ने कहा, “मूल िववाद यह है िक यह िहं दू मंिदर है या बौO
मंिदर। हम इसे दोनों के 7प म< दे खते हt ।” कलकÇा से Kकािशत अखबार, द टे लीoाफ के
एक संपादक और साLािहक समाचार पि>का रिववार के िलये एक ;ंभकार, õपन
दासगुLा, इन िचंताओं को आवाज दे ते Öएऔर “िहं दू धम# को एक संिहताबO धम# के सीधे
खां चे म< डालने के Kयास” को “धूत#” करार दे ते Öए कहते हt , “यिद बुO को धम#िना के =े> से
बाहर कर िदया गया तो, यह भारत के भावनाXक िवखंडन म< एक और बड़ा कदम होगा।”“
(Gargan 1992)।
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बोधगया मठ
का
एक संि=L इितहास
―――
मुहÉदशाहपादशाहगा
सील
ज़ी।युग6
नसरतजंगइXादु £ौलाव
मुहÉदशाह
ज़ीरअलमुमािलककमò पादशाहगाज़ी।
£ीनखान, (तोगरािलिप)
खानबहादु रमुहÉद
राजकीयमुहर।
सनद को महामिहम मुहÉद शाह पादशाह गाज़ी की मुहर के तहत Kदान िकया
गया।
Muhammad Seal of
Shāh Pādshāh Gāzī. Muhammad
Era 6th Muhammad Shāh Pādshāh
Shāhī Seal of Nasrāt Gāzi.
Jang Itmādu’d-dāulah (In Togra
Wazīr al Mumālik character.)
Qamaru’d-din Khān,
Khān Bahādur.
बनज^, जे.
२५. मेरी भी यही राय है ।
२६. इस मामले के अिभयु`ों को गया के िजला द⁄ािधकारी mारा
िशकायतकता# और उसके सहयोिगयों को õेêा से परे शान करने के
अपराध के िलये दोषी ठहराया गया था, जो बोधगया के महाबोिध मंिदर म<
धािम#क समारोहों और धािम#क पूजा के Kदश#न म< कानूनी 7प से शािमल
पाए गए थे और उu< भारतीय दं ड संिहता की धारा २९६ के तहत एक
महीने का साधारण कारावास और KYेक को १०० òपये के जुमा# ने की सजा
सुनाई गई थी।
२७. उनके mारा अपील पर िवmान स> ïायाधीश ने दोिषयों और जुमा# ने की
सजा की पुिÄ की है , लेिकन कारावास की सजा को र£ कर िदया है ।
२८. वे अब हमसे हमारी पुनरी=ण शW`यों के Kयोग mारा दोषिसWO और सजा
को इस आधार पर र£ करने के िलये कह रहे हt िक नीचे के ïायालयों mारा
पाए गए तÈों के आधार पर और सा≈ों mारा Kकट िकये गए तÈों के
आधार पर, भारतीय दं ड संिहता की धारा २९६ के तहत उuोंने कोई
अपराध नहीं िकया है ।
२९. हमने दोनों प=ों के िवmान अिधव`ाओं को कुछ हद तक सुना है और
सबूतों और नीचे के ïायालयों के िव;ृत िनण#यों पर िवचार िकया है , और
हम िजस िनóष# पर पÖं चे हt वह यह है िक यािचकाकता# ओं का तक# सही
है ।
३०. भारतीय दं ड संिहता की धारा २९६ के तहत अपराध का गठन करने के
िलये-
(१) õैWêक अशां ित का कारण होना चािहये;
(२) अशां ित धािम#क पूजा या धािम#क समारोहों म< लगी सभा के कारण होनी
चािहये; तथा
(३) सभा को इस तरह की पूजा या समारोह म< कानूनी 7प से शािमल होना
चािहये।
३१. ये अपराध को गिठत करने के िलये आव§क तa हt, आइए दे ख< िक सा≈
उनके अW;a को कहाँ तक Aथािपत करते हt । सबूत िजसकी मेरे िवmान
सहयोगी के फैसले म< पूरी तरह से चचा# की गई है , और इसिलए मुझे
िव;ार म< उpेख करने की आव§कता नहीं है , साव#जिनक इितहास की
कुछ पु;कों से िलया गया है , जैसे बुकानन है िमJन की “पूव[ भारत”
मािट# न का संkरण और राज<ƒ लाल िम> की “बुO-गया”, िजसे सा≈
अिधिनयम की धारा ५७ के तहत संदिभ#त िकया जा सकता है , िनŸिलWखत
तÈों को सािबत करता है –
(१) बोध-गया म< महान मंिदर, िजसे बुO के आûयAथल की जगह पर
कािबज कहा जाता है मूल 7प से एक बौO मंिदर था; लेिकन यह लंबे
समय से उस Aथान के िहं दू महं त के के और िनयं>ण म< रहा है (इस
मामले म< सटीक 7प से िनधा# iरत करना न तो आसान है और न ही
आव§क है , लेिकन िनिµत 7प से एक सदी से भी अिधक समय से)।
(२) हालां िक, बौO तीथ#याि>यों ने समय-समय पर मंिदर जाना और वहां
पूजा करना जारी रखा है ; लेिकन यह िदखाने के िलये कोई िवqसनीय सबूत
नहीं है िक हाल ही के िदनों म< बौOों mारा ऊपरी क= का Kयोग िकया गया
था। हालांिक, मंिदर को िहं दू पूजा के Aथान म< पiरवित#त नहीं िदखाया गया
है, लेिकन मंिदर पiरसर म< एक जगह है, िजसे िहंदुओं mारा िपंडों के अप#ण
या पूव#जों को नैवेr चढ़ाने के िलये एक पिव> Aथान के 7प म< उपयोग
िकया जाता है ।
(३) १८९३ के आरÁ म< महाबोिध सोसाइटी ऑफ सीलोन (१८९१ म<
Aथािपत) िशकायतकता# धम#पाल िजसका महासिचव है , की ओर से महं त से
मंिदर की संपिÇ ह;ां तiरतकरण कराने या प$ा KाL करने का Kयास
िकया गया था। खरीद या प$े के िलये बातचीत िवफल होने पर,
िशकायतकता# ने, ऐसा लगता है, अKैल १८९४ म< बंगाल सरकार के पास
आवेदन िकया, महं त से बोध-गया मंिदर के ह;ांतरण को KाL करने म<
महाबोिध सोसाइटी की मदद करने का अनुरोध िकया, लेिकन जवाब म<
सरकार ने कहा िक वह उसकी मदद करने की WAथित म< नहीं है ।
(४) इस बीच, नवंबर १८९३ म<, िशकायतकता# ने इस उ£े § के िलये, टो®ो
के महायाजक mारा ह;ा=iरत एक द;ावेज के साथ, जापान से बुO की
एक छिव KाL की, जो िन†ादन म< अYिधक कलाXक थी और िजसे
ऐितहािसक महÜ का बताया गया था। बोधगया मंिदर की दू सरी मंिजल म<
Kितापन, और “एक अêे संकेत के 7प म<” (जैसा िक द;ावेज़ म< कहा
गया है ) “बोधगया मंिदर के जीण¥Oार की सफलता के िलये;” और उuोंने
महाबोिध सोसाइटी की पि>का म< िवéापन िदया िक १९ मई १८९४ को वह
गया के कलेhर की उपWAथित म< उस Kितमा को मंिदर म< Aथािपत करे गा;
लेिकन महं त की आपिÇ पर और द⁄ािधकारी से िनषेधाéा KाL होने पर
उसे वहां Kितमा Aथािपत करने से िवरत होना पड़ा।
(५) २५ फरवरी १८९५ (घटना का िदन, िजसने इस मामले को ज‰ िदया है )
तक जापानी छिव को मंिदर म< रखने का कोई और Kयास नहीं िकया गया
था, जब सुबह ८ से ९ बजे के बीच िशकायतकता# के साथ दो अï िसंघली
पुजारी और एक िसंघली आम आदमी मंिदर की ऊपरी मंिजल पर छिव के
साथ गए, और जब वे मंच पर छिव Aथािपत कर चुके थे और अपनी पूजा के
िलये Kारं िभक 7प म< मोमबिÇयों म< से एक को जलाने वाले थे, तो महं त के
कई सेवक आए, मोमबÇी छीन ली और िशकायतकता# को छिव को हटाने
का आदे श िदया। थोड़े Kितवादन के बाद, कुछ के अलावा, सभी मंिदर से
चले गए; और धम#पाल और दो पुजारी िविशÄ बौO िचंतन म< छिव के सामने
अपनी भW` के िलये बैठ गए, जब लगभग एक चौथाई घंटे म< अिभयु`ों
सिहत कई पुòष आए और छिव को हटा िदया और उसे नीचे खुले आं गन
म< रख िदया।
३२. इन तÈों म< से पहले के संबंध म<, िशकायतकता# का दावा है िक उसे महं त
के मंिदर पर अिधकार, या उस पर अिधकार के बारे म< जानकारी नहीं है ;
लेिकन महाबोिध सोसाइटी की पि>का म< उसके õयं के लेखन, और महं त
से मंिदर का संपिÇ ह;ां तiरतीकरण या प$ा KाL करने की मां ग के
उसके õयं के आचरण से उसका खंडन होता है । सा≈ के फेरबदल की
उसकी Kकृित पर नीचे के दोनों ïायालयों के िनण#यों म< Kितकूल िटçणी
की गई है, और िवmान स> ïायाधीश ने, धम#पाल के सा≈ की सामाï
सYता के अपने िवचार को इसके इस िह¤े के अिवqसनीय चiर> के साथ
समेटने के ≠म म<, सY के KाF मानक के सामाï मानक से िभQ होने के
गलत और कुछ हद तक शरारती िसOां त पर भरोसा कर िलया, एक
िसOांत, िजसका Kयोग जैसा िक इस उदाहरण म<, अ)र सा≈ के गलत
अनुमान की ओर ले जाता है । मt यहां यह दे खना चाहता ëं िक मंिदर पर
महंत के िनयं>ण की सही Kकृित और सीमा ®ा है, इस मामले म< पेश िकये
गए सबूत हम< यह िनधा# iरत करने म< स=म नहीं करते हt ।
३३. दू सरे तÈ के संदभ# म<, यािचकाकता#ओं की ओर से यह आoह िकया गया
था िक बौO इस मंिदर म< पूजा के अिधकार के 7प म< दावा नहीं कर सकते
हt , और यह िक उuोंने अब तक महं त की अनुमित से ही ऐसा िकया है ;
लेिकन मt नहीं समझता िक इस मामले म< ऐसा िनधा# iरत करना आव§क
है ।
३४. शेष तीन तÈों पर, _ावहाiरक 7प से ·ादा िववाद नहीं था।
३५. मामले के ये तÈ होने के नाते, यािचकाकता# ओं के िलये ûी घोष ने तक#
िदया िक वे उस अपराध का गठन करने के िलये आव§क तीन अवयवों
के अW;a को अõीकार करते हt िजसके िलये यािचकाकता# को दोषी
ठहराया गया है ।
३६. उसने सबसे पहले यह तक# िदया िक यह तÈ १, ३, और ४ से ZÄ था, और
िजला द⁄ािधकारी के िनóष# से, जो पूरी तरह से सबूतों से सािबत Öआ
था और ïायाधीश mारा गलती से खाiरज कर िदया गया था, िक आरोिपयों
ने उस छिव को हटाने म<, िजसे िशकायतकता# mारा, एक अिधकार के दावे
म< जो उसके पास नहीं था और महं त के अिधकारों को न मानते Öए, मंिदर
म< रखा गया था, इस वा;िवक िवqास के तहत काम िकया िक वे िबना
िकसी को परे शान िकये केवल महं त के अिधकारों की र=ा कर रहे थे; और
इसिलए यह नहीं कहा जा सकता िक उuोंने õेêा से कोई गड़बड़ी की
है । भारतीय दं ड संिहता की धारा ३९ म< दी गई “õेêा से” श” की
पiरभाषा के संबंध म<, मुझे नहीं लगता िक यह तक# सही है । एक िनिµत
पiरणाम का कारण बनने का इरादा उस पiरणाम के õैWêक कारण का
गठन करने के िलये आव§क तa नहीं है , लेिकन अनुगामी पiरणाम की
संभावना का éान, या िवqास, हालांिक इरादा नहीं है, इरादे की जगह की
आपूित# कर सकता है। इसिलए, यिद अिभयु`गण को पता था, या िवqास
करने का कारण था िक छिव को हटाने म< उनके काय# से िकसी भी धािम#क
पूजा म< बाधा उäQ होने की संभावना थी, तो, भले ही उनका इरादा इस
तरह की अशांित पैदा करने का नहीं था, िफर भी अशां ित का कारण होगा
दं ड संिहता के अथ# के भीतर õैWêक है । इसम< कोई संदेह नहीं िक अब
भी यह Kˇ बना रहे गा िक ®ा अिभयु`गण जानते थे या उनके पास यह
मानने का कारण था िक िशकायतकता# और उसके साथी उस समय
धािम#क पूजा म< लगे Öए थे, और यह िक छिव को हटाने म< उनके काय# से
ऐसी पूजा म< गड़बड़ी होने की संभावना थी। एक धािम#क िबरादरी के
सद‚ों के 7प म< अिभयु`ों की WAथित और उनके मठ के नजदीक मंिदर
म< बौO पूजा को दे खने के साधनों के संबंध म<, मt इस िनóष# से असहमत
होने के िलये तैयार नहीं ëं जो नीचे के ïायालयों ने िनकाला िक इस Kˇ का
उÇर सकाराXक म< िदया जाना चािहये।
३७. यािचकाकता# ओं के िवmान वकील ने आगे तक# िदया िक धािम#क पूजा और
धािम#क समारोह िजन से भारतीय दं ड संिहता की धारा २९६ संबंिधत हt ,
वा;िवक धािम#क पूजा और वा;िवक धािम#क समारोह होने चािहएं , न िक
केवल एक िदखावा, और पूजा और समारोह िजस म< िशकायतकता# और
उनके साथी लगे Öए थे, महं त के दावों के Wखलाफ अपने अिधकार का दावा
करने के उनके कृY को िछपाने का महज एक बहाना थे। इस तक# के
पहले भाग की सYता को पूरी तरह से õीकार करते Öए, िक धारा mारा
िवचाiरत धािम#क पूजा और समारोह वा;िवक ही थे, और यह भी õीकार
करते Öए िक िशकायतकता# के िपछले कृY और आचरण, जैसा िक
महाबोिध सोसाइटी की पि>का म< उसके अपने लेखन से सािबत होता है िक
२५ फरवरी १८९५ को उसकी कार# वाई पूजा के उ£े § के बजाए अिधकार
का दावा अिधक थी, मुझे अभी भी यह मानने म< संकोच है िक पूजा
वा;िवक नहीं थी, जब इसम< लगे लोग शपथ लेते हt िक ऐसा ही था।
३८. ûी घोष का अंितम तक# यह था िक, यह मानते Öए िक िशकायतकता# और
उसके साथी धािम#क पूजा म< लगे Öए थे, और यह मानते Öए िक उu<
अिभयु` mारा õेêा से परे शान िकया गया था, यह नहीं िदखाया गया है
िक, वे कानूनी 7प से ऐसी पूजा म< लगे Öए थे, और यह िक इसिलए
अशां ित भारतीय दं ड संिहता की धारा २९६ के तहत अपराध नहीं है । मेरा
ZÄ मत है िक उनका तक# सही है । धारा २९६ के तहत आरोप को बनाए
रखने के िलये, अिभयोजन प= पर यह िदखाना ज़7री है िक जो लोग
अपनी धािम#क पूजा या समारोह म< परे शान िकये गए थे, वे कानूनी 7प से
उसी काय# म< लगे Öए थे, अथा#त् उu< वह करने का अिधकार था जो वे कर
रहे थे। लेिकन अिभयोजन प= सबूतों के बोझ का िनव#हन करने म< पूरी
तरह िवफल रहा है । िशकायतकता# और उसके सहयोगी जो कुछ करने म<
लगे थे, वह केवल मंिदर के ऊपरी क= म< पूजा करना नहीं था, बW™ उस
क= के मंच पर बुO की एक नई छिव Aथािपत करना था, और वह भी, इस
तरह के Kितान की अनुमित महंत के इनकार करने के बाद, िजसके के
म< और िजसके िनयं>ण म< मंिदर था, और उu< िबना कोई और सूचना िदये,
जैसा िक मई १८९४ की घटनाओं mारा िदखाया गया था। िशकायतकता# के
िपछले कृYों और आचरण से भी, यह ZÄ है िक उसने अपनी िजरह म<
अिनêा से õीकार िकया था िक इस अवसर पर उसका उ£े § केवल
मंिदर म< पूजा करना नहीं था, बW™ वहां पूजा करने के अपने अिधकार का
दावा करना था। एक िवशेष तरीके से, अथा#त्, महं त के अिधकार की
अवहे लना म< छिव को Aथािपत करने के िलये या, इसे िवmान स> ïायाधीश
की सौ* भाषा म<, “बौO धम# के िलये आVाWXक िवजय KाL करने के
िलये, और एक िजÉेदारी से छु टकारा पाने के िलये िजसे उuोंने õयं सबसे
बड़ी आशा और िवqास म< मांगा था, लेिकन अब उuोंने महसूस िकया िक
यह एक असहनीय बोझ था।” दू सरे श”ों म<, वह परो= 7प से और गुL
7प से वह करना चाहता था जो वह सीधे और खुले तौर पर करने म<
िवफल रहा था, अथा# त् मंिदर को बौO पुजाiरयों के िनयं>ण म< लाने के
िलये।
३९. अब, हालां िक बौOों को मंिदर म< पूजा करने का अिधकार हो सकता है ,
लेिकन यह िदखाने के िलये कोई सबूत नहीं है िक महं त की इêा के िवòO
और उसके _` िनषेध के िवरोध म< उu< ऐसी व;ु को Aथािपत करने के
िलये मंिदर का सहारा लेने का कोई अिधकार है , जैसा िक ऊपर उpेख
िकया गया है , या एक नई छिव Aथािपत करने का अिधकार है । िवmान स>
ïायाधीश, अपने फैसले म<, “Kितापन” श” को अपवाद मानते हt ,
लेिकन यह वह श” है िजसका इ;ेमाल आरोप म< िकया गया था, िजसका
जवाब दे ने के िलये आरोपी को बुलाया गया था, और यह वह श” है
िजसका इ;ेमाल िशकायतकता# ने õयं जापानी Kितमा को मंिदर म<
Aथािपत करने के संदभ# म< िकया था। उसका इरादा ZÄ 7प से मंिदर म<
मूित# को पूजा की Aथायी व;ु के 7प म< Aथािपत करने का था, और उसने
यह िदखाने के िलये कोई सबूत नहीं िदया िक उसे ऐसा करने का अिधकार
था। ऐसा होने पर, यह नहीं कहा जा सकता है िक उसने जो िकया उसे
करने म<, वह कानूनी 7प से धािम#क पूजा या धािम#क समारोहों म< लगा Öआ
था। िवmान एडवोकेट-जनरल ने िन¤ंदेह WAथित की किठनाई को महसूस
िकया, और िजस तरह से उuोंने किठनाई को दू र करने की कोिशश की,
यह तक# दे कर िक, भले ही महं त को नई Kितमा की Aथापना को रोकने का
अिधकार हो, उसके अधीनAथ, आरोपी, पूजा शु7 होने से पहले मंच पर
छिव को रखने से रोकने के िलये, या उसी के समापन के बाद इसे हटाने के
िलये सही हकदार थे, लेिकन पूजा के दौरान उनका परे शान करना उिचत
नहीं था। इस तक# के दो उÇर हt– पहला, चाहे वह िकतना ही वांछनीय ®ों
न हो, िक धािम#क आराधना अपने पिव> õ7प से चल रही हो, छे ड़छाड़ से
सुरि=त हो, भले ही उपासक एक गलत कता# और एक अितचार हो, ऐसा
हमारे आपरािधक कानून mारा Kदान नहीं िकया गया है , और िवधानसभा ने
धािम#क पूजा के साथ छे ड़छाड़ को तभी अपराध बनाना उिचत समझा है ,
जब लोग कानूनी 7प से उनकी पूजा म< लगे हों। और दू सरे Aथान पर,
मामले के õीकृत तÈों पर, पूजा शु7 होने से पहले िवरोध Kभावी 7प से
शु7 हो गया था और मोमबिÇयों की रोशनी, जो एक आव§क Kारं भ था,
शुò हो चुकी थी, और बाद म< Kितमा को हटा िदया जाना केवल पहले
िवरोध की िनरं तरता थी।
४०. इसिलए, मुझे लगता है िक यह Aथािपत नहीं हो पाया है िक िशकायतकता#
और उसके सहयोगी धािम#क पूजा म< कानूनी 7प से लगे Öए थे, जब उu<
परे शान िकया गया था, और इसिलए, आरोपी ने अशांित पैदा करने म<
भारतीय दं ड की धारा २९६ के तहत कोई अपराध नहीं िकया है ; और मt
अपने िवmान सहयोगी से सहमत ëं िक इस िनयम को मुकÉल बनाया
जाना चािहये, दोिषयों और सजाओं को खाiरज िकया जाता है, और जुमा#ना,
यिद उगाहा गया है , तो वापस कर िदया जाना चािहये।
पFरिश]–३
(Àोत– http://www.bodhgayatemple.com/images/pdf/temple_act.pdf)
बोधगया मंिदर और उससे संबंिधत संपिÇयों के बेहतर Kबंधन के िलये Kावधान करने
के िलये एक अिधिनयम।
जबिक बोधगया मंिदर और उससे जुड़ी संपिÇयों के बेहतर Kबंधन के िलये Kावधान
करना समीचीन है ।
पFरभाषा
1. संपिK की पहचान
क) दे श (और रा·, यिद पाट[ अलग है )- भारत गणरा·
ख) रा·, Kां त या =े>- िबहार रा·, पूव[ भारत
िजला- गया
नगर- बोधगया
ग) संपिÇ का नाम: बोधगया म< महाबोिध मंिदर पiरसर। Aथल को लोकिKय 7प से
बोधगया के 7प म< जाना जाता है ।
बुO (छठी शता”ी ईसा पूव#) के समय म< बोधगया के वन =े> को उòिवÚा या उòवेळा
कहा जाता था। इस Aथान पर बुO के éान KाL करने के बाद, इस Aथल को िजन
िविभQ नामों से पुकारा गया था, वे हमेशा के िलये इस ऐितहािसक घटना पर
आधाiरत थे।
बुO के éान के दो शताW”यों के भीतर, उòवेळा नाम अनुपयोगी हो गया और इसे चार
अï नामों से बदल िदया गया, संबोिध (िजसका अथ# है “पूण# éान”), बोिधमंड
(िजसका अथ# है बोिध वृ= के आसपास का =े> िजसके तहत तपõी िसOाथ# ने éान
KाL िकया और बुO बने, वıासन, और महाबोिध।
तीसरी शता”ी ईसा पूव# तक इसे संबोिध कहा जाता था। वा;व म<, इसी नाम से सÎाट
अशोक ने बुO के éानोदय के Aथान को संबोिधत िकया था और अपने शासनकाल के
10व< वष# के दौरान २६० ईसा पूव# म< इस Aथल की तीथ#या>ा की थी।
सर अले@<डर किनंघम ने Kलेखन िकया है िक 7वीं शता”ी म< बोधगया का दौरा करने
वाले चीनी या>ी Öएन ˜ां ग के समय बोधगया मंिदर को महाबोिध के 7प म< जाना
जाता था। 13वीं शता”ी म< पूव[ भारत म< पाल वंश के शासनकाल के दौरान भी इसे
इसी नाम से जाना जाता है ।
१८६१ म< जब मंिदर की खुदाई और जीण¥Oार िकया गया, तो इसे लोकिKय 7प से बुO-
गया या बोधगया कहा जाता था।
………………………
………………………
च) अिभलेखन के िलये K;ािवत संपिÇ का =े> और K;ािवत अंतAथ =े> यिद कोई
हो-
मुÿ =े>- अिभलेखन हे तु K;ािवत =े> महाबोिध मंिदर पiरसर है िजसम< कमल
तालाब शािमल है जो पूरी तरह से 12 एकड़ भूिम को कवर करता है । पiरसर के दो
Kभाग हt - एक जहां मुÿ मंिदर है और दू सरा जहां कमल तालाब WAथत है । मुÿ
मंिदर 5.5 एकड़ भूिम पर है ।
म'वत^ 6े8-
कमल मंिदर सिहत महाबोिध मंिदर पiरसर पूव# म< १०.६ फीट ऊंची, पिµम म< ११ फीट
ऊंची, उÇर म< १५ फीट ऊंची, और दि=ण म< ७ फीट ऊंची बाहरी चारदीवारी से
संरि=त और िघरा Öआ है । यह दीवार अशोककालीन कटघरे से, जो मंिदर का
ऐितहािसक घेरा है, पूव# म< ११० फीट, पिµम म< २०४ फीट, उÇर म< १६९ फीट और
दि=ण म< २६३ फीट की दू री पर की दू री पर है । बाहरी दीवार को मंिदर पiरसर की
Kाथिमक सुर=ा माना जा सकता है । महाबोिध मंिदर से २ िकलोमीटर के दायरे म<
मंिदर की चारदीवारी के बाहर अंतAथ =े> है । इसम< एक ऐसा =े> भी शािमल है जहां
िबहार रा· सरकार के पुरातa िवभाग mारा थोड़ी खुदाई की गई है ।
२. िशलालेख का औिचk
महाबोिध मंिदर पiरसर का साव#भौिमक महÜ है ®ोंिक यह दु िनया के सबसे Kितित
और पिव> Aथानों म< से एक है ।
क) महÜ का कथन- यह वह पिव> Aथान है जहां तपõी राजकुमार िसOाथ# ने बुO
बनने के िलये éान KाL िकया और उसके बाद मानव जाित को पीड़ा और पुनज#‰
के च≠ से मु` करने के िलये अपना जीवन समिप#त कर िदया था। “इस Kकार, बुO
के जीवन म< संकेत घटना के साथ इसके संबंध के कारण, उनके éान और सव¥¢
éान KाL करने के कारण, बोधगया को बौO धम# का पालना कहा जा सकता है ।
बौO भ`ों के िलये इससे बड़ा महÜ और पिव>ता का कोई Aथान नहीं है ।” ७वीं
शता”ी म< इस =े> का दौरा करने आए eे न ˜ां ग का यह अवलोकन आज भी माï
है ।
पृ3ी पर मानव अW;a के सY के बारे म< बुO की समझ और उनके mारा
बताए गए माग# ने न केवल उनके जीवनकाल म< हजारों लोगों के जीवन को बदल
िदया, बW™ दु िनया म< लाखों लोगों के जीवन को भी बदल िदया। बौO धम# दु िनया के
सबसे Kमुख धम¨ म< से एक है और बौO आबादी ३५३,१४१,००० आAथा के
अनुयािययों के साथ चौथे Aथान पर है । वे ईसाइयों के बाद दु िनया की ६% आबादी का
गठन करते हt जो ≠मशः ३३%, मुW¡म १९.६% और िहं दू १२.८% का Kितिनिधa
करते हt ।
बुO न केवल दु िनया भर के बौOों mारा गहराई से सÉािनत हt , बW™ िविभQ धम¨ के
लोगों mारा कòणा और शां ित के शुभ संदेश के िलये उनका सÉान िकया जाता है ,
िजसे उuोंने Kितपािदत िकया था। हर साल लाखों लोग बोधगया के महाबोिध मंिदर
म< आते हt जो उनके éानोदय के Aथान की याद िदलाता है ।
बौOों के िलये यह महÜपूण# Aथल और भी अिधक पूजनीय है ®ोंिक ऐसा माना
जाता है िक बुO ने õयं अपने िनकटतम िश◊ आनंद को इसके महÜ के बारे म<
बताया था-
“चार Aथान हt, आनंद, जहां ûOा की भावना के साथ िवqास करने वाले _W` को
जाना चािहये। वह Aथान, आनंद, िजस पर िवqास करने वाला _W` कह सकता है,
'यहाँ तथागत का ज‰ Öआ था' (लुंिबनी, िवq िवरासत सूची म< शािमल) 'यहाँ तथागत
ने सव¥¢ और पूण# अंत…#िÄ KाL की' (बोधगया) 'यहाँ तथागत mारा पैदल धािम#कता
का रा· Aथािपत िकया गया था' (सारनाथ) 'यहाँ तथागत का अंत म< िनधन हो गया,
जो पीछे रहने के िलये कुछ भी नहीं छोड़ता है (कुशीनगर)”। (Àोत- महापiरिनªान-
सुÇंत, टी.ड5ू. राइस डे िवस, बुWOÔ सुÇस, पूरब की पिव> पु;क<, ११
(ऑ)फोड# , १८८१) म< अनुवािदत)।
महाबोिध मंिदर एक जीिवत ßारक है जहां आज भी दु िनया भर से लोग बुO की पूजा
करने के िलये आते हt । यहां पूजा की परं परा सिदयों से चली आ रही है जैसा िक
अशोक के ;ंभ िशलालेखों म< दज# है और इसे सां ची और भरÖत म< मूित#कला म<
दशा# या गया है और साथ ही चीनी याि>यों सिहत चौथी और सातवीं शताW”यों के
दौरान िविभQ याि>यों के वण#नों म< पiरलि=त होता है । ।
यह Aथल कई शताW”यों के दौरान िविभQ दे शों के लोगों mारा इस तीथ# Aथान को िदये
गए महÜ के िलये एक अिmतीय और असाधारण सा≈ दे ता है । यह कई सिदयों के
दौरान एक अमूå िवरासत को संरि=त करने के िलये िविभQ दे शों के लोगों के
Kयासों का एक अनूठा उदाहरण भी K;ुत करता है । इस मंिदर का इितहास
*ांमार, ûीलंका, थाईलtड, और भारत के शासकों और आम लोगों की भW` का एक
उ´ृÄ Kितिबंब है , िजuोंने सिदयों से इसे मरÉत और भिव◊ के िलये बचाने के
िलये योगदान िदया है । हाल के वष¨ म< जापान (ओवरसीज इकोनॉिमक कोऑपरे शन
फंड) ने भी इस Aथल के आसपास के =े> (सड़कों आिद) के िवकास के िलये
महÜपूण# िवÇीय मदद दी है ।
महाबोिध मंिदर, सबसे ऊपर, सांkृितक और पुराताWaक महÜ की एक अनूठी संपिÇ
है । भारतीय उपमहाmीप म< अपनी तरह की कोई अï मौजूदा भ_ संरचनाXक
संपिÇ पुरातनता के इस काल से संबंिधत नहीं है , जो िक पांचवीं-छठी शता”ी ईõी
सन् से संबंिधत है । इसके अलावा मंिदर उpेखनीय 7प से अêी तरह से संरि=त है
और अपने समय के िलये AथापY उपलW¿ का एक उ¢ िबंदु है । यह Vान दे ने यो+
है िक मंिदर की वा;ुकला और िडजाइन उस समय से अिनवाय# 7प से अपiरवित#त
बनी Öई है जब से इसे बनाया गया था।
बी) संभािवत तुलनाXक िव>ेषण (समान गुणों के संर=ण की WAथित सिहत): हालां िक
भारत म< Kारं िभक बौO गुफाएं मौजूद हt , भ_ महाबोिध मंिदर Kारं िभक काल का
एकमा> बौO संरचनाXक मंिदर है जो आज भी खड़ा है ।
भारत म<, हम< इस अविध के कुछ संरचनाXक मंिदर िमलते हt, लेिकन ५वीं-६वीं शता”ी
का महाबोिध मंिदर अêी तरह से संरि=त, बड़ा और उन सभी म< सबसे भ_ है ।
यह Aथल बौO धम# की ऐितहािसक िवरासत और िवरासत म< सबसे अिधक महÜ के
चार Aथानों म< से एक है (यहां तक िक सीधे तौर पर õयं बुO mारा पहचाना गया है )।
हालांिक, यहां का ßारक एक पूव#-Kितित Aथान है, यह सबसे अिधक बौOों mारा
गहराई से पूजनीय है और इन चार महÜपूण# Aथलों म< से सबसे भ_ और सबसे
अêी तरह से संरि=त संरचना भी है ।
नेपाल म< चार बौO तीथ# Aथलों म< से लुंिबनी एक उ´ीण# िवq धरोहर Aथल है , ®ोंिक
यह वह Aथान है जहाँ राजकुमार िसOाथ# जो बाद म< बुO बने थे, का ज‰ Öआ था।
AथापY और कलाXक उ´ृÄता के सभी मामलों म< बोधगया लुंिबनी Aथल से आगे
िनकल गया है ।
तीथ# Aथान के 7प म< और मानव जाित के धािम#क दश#न के िवकास का Kितिनिधa
करने वाले एक महÜपूण# Aथान के 7प म<, बोधगया म< महाबोिध मंिदर य7शलेम
और म»ा के पिव> Aथलों के समान है । महाबोिध मंिदर सि≠य पूजा का Aथान बना
Öआ है और 2,500 साल पहले बुO के समय से दाश#िनक िवचारों और मानवीय
मूåों और िवqासों की एक सतत परं परा का Kितिनिधa करता है ।
………………………
………………………
घ) मानदं ड िजसके तहत अिभलेखन K;ािवत है (और इन मानदं डों के तहत अिभलेख
के िलये औिचY)-
ख) Kाचीन काल से मंिदर का इितहास और िवकास: बोधगया म< महाबोिध मंिदर पiरसर
दु िनया भर के बौOों के िलये तीथ#या>ा का सबसे सÉािनत क<ƒ है ®ोंिक यह इस
पिव> Aथान पर है जहां बुO (५६६ - ४८६ ईसा पूव#) ने éान KाL िकया था। जब वे
वष# ५३१ ईसा पूव# म< ३५ वष# के थे।
महाबोिध मंिदर बुO के जीवन के उस Kकाशमय =ण की याद िदलाता है , जो उनके
जीवनकाल म< और उसके बाद की सिदयों म< लाखों-लाख लोगों के जीवन को बदलने
वाला था।
Kारं िभक समय म<, बोधगया को संबोिध कहा जाता था, जैसा िक तीसरी शता”ी ईसा पूव#
के ८व< अशोक िशलालेख से ZÄ है । सÎाट अशोक ने २६० ईसा पूव# के आसपास
इस Aथान की तीथ#या>ा की और बोिध वृ= के Aथान पर पहला मंिदर बनाया, िजसके
नीचे बुO ने Vान लगाया था। इस या>ा का िच>ण भरÖत ;ूप (दू सरी-पहली शता”ी
ईसा पूव#) और सां ची (पहली शता”ी ईसा पूव#) (एक िवq धरोहर Aथल) म< ;ूप नंबर
१ के पूव[ तेरण पर पØर पर गढ़ा गया था।
मौजूदा मंिदर ठीक उसी Aथान पर बनाया गया है जहां सÎाट अशोक ने तीसरी शता”ी
ईसा पूव# म< बुO के िलये एक ßारक बनाया था। मूल अशोक मंिदर जो भरÖत
न»ाशी म< तराशा गया है , ;ंभों पर समिथ#त एक खुला मंडप था। बीच म< वıासन
िसंहासन था। वıासन, जो उस मूल Aथान पर बनाया गया था, िजस पर माना जाता है
िक बुO ने बैठकर Vान िकया था, का उस खुदाई के दौरान पता चला था जो १८६३
म< शु7 ही थी और १८८१ म< मेजर जनरल सर अले@<डर किनंघम mारा िफर से हाथ
म< ली गई थी।
एक बार बोिध वृ= के नीचे की जगह के इद# -िगद# एक बलुआ पØर का कटघरा (कुछ
िवmानों mारा तीसरी शता”ी ईसा पूव# और अï mारा पहली शता”ी ईसा पूव# की
तारीख) बनाई गई थी मानव चेहरे , जानवरों और उन पर न»ाशीदार सजावटी
िववरणों के साथ कुछ मूल ;ंभ अभी भी Aथल पर खड़े हt । Aथल से ऐसे अï बलुआ
पØर के ;ंभ पास के पुरातa संoहालय म< हt । बाद म< पां चवीं-छठी शता”ी ईõी म<
कटघरे को बड़ा करने के िलये oेनाइट के खंभे जोड़े गए और ये भी Aथल पर पाए
जाने हt ।
४०९ ईõी म< बोधगया का दौरा करने वाले चीनी या>ी फािहयान ने महा;ूप का उpेख
उन चार म< से एक के 7प म< िकया है जो बुO के जीवन से जुड़े महÜपूण# तीथ#
Aथानों को िचिÊत करती हt । मंिदर की वा;ुकला का एक अVयन, िवशेष 7प से
िशखराकृित मंिदर को ५वीं शता”ी का बताता है (सर अले@<डर किनंघम का
अवलोकन १८८१ म< मंिदर Aथल की १८६१ और १८८१ म< की गई खुदाई के बाद िकया
गया था)।
चीनी तीथ#या>ी eे न ˜ां ग ने ६३७ ईõी म< बोधगया की अपनी या>ा के िववरण म< मंिदर
का वण#न िकया- “यह 9ाÔर के साथ नीली ईंटों से बना है । यह नीचे के कई ;रों
को K;ुत करता है , िजनम< से KYेक म< बुO की सोने का पानी चढ़ी Öई मूित# है । चारों
तरफ की दीवार< सुंदर मूित#यों, मोितयों की माला, ऋिषयों की आकृितयों से
आêािदत हt । इसके िशखर पर एक िगलट तांबे का आमलक फल है ।” सिदयों से ये
अलंकरण गायब हो गए हt लेिकन मुÿ मंिदर समय के कहर और आ≠मणकाiरयों
के हमले (१२वीं -१६वीं शता”ी के दौरान) से बच गया है और आज तक अपने समय
की शानदार वा;ुकला के एक शानदार उदाहरण के 7प म< खड़ा है ।
७वीं से ११वीं शता”ी के बीच Öए मंिदर के शीÕ जीण¥Oार और मरÉत के बारे म< बÖत
सीिमत जानकारी है । ११वीं शता”ी (१०३५-१०७९) म< बिम#यों mारा िकये गए _ापक
मरÉत के साथ बहाली का लेखा-जोखा िफर से शु7 Öआ।
अï मरÉत १२वीं शता”ी के उÇराध# म< सपादल= या िशवािलक के राजा अशोकबp
mारा की गई थी। १३वीं शता”ी से मंिदर की WAथित के बारे म< ·ादा जानकारी
उपल¿ नहीं है जब १६वीं शता”ी तक मुW¡म आ≠मण Öए जब एक िहं दू महं त या
महायाजक ने मंिदर को अपना आûम बनाया।
मुW¡म िवजय के बाद की अगली छह शताW”यों म<, महाबोिध मंिदर काफी वीरान था
और धीरे -धीरे बबा# द होने लगा।
१८१० म<, बमा# म< अलोमKा राजवंश के शासकों ने पiरसर के मुÿ मंिदर की मरÉत की
थी। बमा# के राजा िमंडन िमन ने मंिदर के संर=ण म< अपने दे श की Aथायी 7िच को
जारी रखा और १८७७ म< इस आशय का काम शु7 िकया। दु भा# + से, यह पूरा नहीं
हो सका ®ोंिक एं Bो-बम[ युO िछड़ गया और राजा के Kितिनिध को भारत छोड़ना
पड़ा।
इसके तुरंत बाद, पुरातaिवद् -इितहासकार डॉ राज<ƒ लाल िम> और बंगाल के
उपरा·पाल सर एशले ईडन, ûी जोसेफ डे िवड, एम. बेगलर और सर अले@<डर
किनंघम को खुदाई वाले मंिदर की मरÉत के िलये कहा गया। मंिदर के जीण¥Oार
का यह काय# चार वष¨ म< (१८८० से १८८४ ई.) 200,000 ò. (लगभग यूएस $ 4,600)
की लागत से पूरा िकया गया।
सर अले@<डर किनंघम के अनुसार, मंिदर का जीण¥Oार और मरÉत जो १८८०-१८८४
के बीच िकया गया था, “मंिदर के बाहरी फलकों पर ढलाई और आलों के पया# L
7प से अêी तरह से संरि=त भागों की पया# L संÿा के आधार पर िकया गया था।
मूल के सटीक नमूने म< पूरे की मरÉत का पूरा होना। कोई नई सुिवधाएँ नहीं जोड़ी
गईं, बहाली मौजूदा आलों और अलंकृत पि$यों के सH दोहराव तक सीिमत है ।”
१८८० म< किनंघम mारा दे खे गए मंिदर के सामने का मंडप लगभग पूरी तरह से बबा# द
हो गया था। हालां िक इसे मंिदर के एक पØर के मॉडल के आधार पर बहाल िकया
गया था जो “खंडहरों के बीच पाया गया था िजसम< इमारत की पूरी संकøना अW;a
म< थी िजसम< मVयुगीन काल को पूण#तया पाया जा सकता है ।”
मंिदर पर अगला महÜपूण# काय# १९४९ म< बोधगया मंिदर अिधिनयम के पाiरत होने के
बाद िकया गया, िजसम< एक मंिदर Kबंधन सिमित और एक सलाहकार पiरषद् की
_वAथा की गई थी। सिमित की दे खरे ख म< िकया गया पहला मरÉत और िवकास
काय# १९५३ से १९५६ तक िकया गया था। इस समय के दौरान, मंिदर के चारों ओर
आं तiरक और बाहरी 'पiर≠मा' या पiर≠मा पथ का िनमा#ण िकया गया था, कमल के
तालाब की खुदाई की गई थी और चारों ओर एक कं≠ीट का कटघरा बनाया गया
था। पूजा की सामoी रखने के िलये एक मंच बनाया गया था। भारतीय पुरातa
सवÃ=ण के परामश# से पुराने जज#र अशोकीय कटघरों के जीण¥Oार का काय# िकया
गया।
१९६८ म<, सीमा दीवार का अिधकां श िनमा# ण थाई तीथ#याि>यों के दान से िकया गया था।
१९७४ म<, मंिदर की दीवारों के िनचले िह¤े की मरÉत की गई। १९७७ म<, बोधगया
म< थाई िवहार के उपाVाय ने ऊपरी तीथ# =े> को Vान क= बनाने की लागत वहन
की।
१९९९ म<, मंिदर के पूव# म< एक Vान पाक# बनाया गया था। मंिदर म< आने वाले लोगों के
िलये सुिवधाओं म< सुधार के िलये बीटीएमसी mारा एक õागत क=, जूता-घर और
अमानतघर भी बनाए गए थे।
चालू वष# म<, मंिदर के िलये Aथल पर बेहतर िवद् युत आपूित# Kदान करने के िलये
टÅ ां सफाम#र लगाए गए हt । मंिदर म< पानी की आपूित# को उ¢ीकृत करने की योजना
भी चल रही है ।
बोधगया म< अï महÜपूण# Kाचीन घटना≠म- महाबोिध मंिदर सिदयों से भW` का क<ƒ
रहा है । एक चीनी लेखक वां ग-ह्यूएन-˜े, सीलोन के राजा ûी मेघवमा# mारा
समुƒगुL (३२०-३८० ई. के बीच) को बोधगया म< सीलोन तीथ#याि>यों के िलये एक
मठ बनाने की अनुमित लेने के िलये भेजे गए एक दू तावास को संदिभ#त करता है ।
इसने बोधगया म< सीलोन से एक बौO उपिनवेश के िनवास की सुिवधा Kदान की।
४०९ ईõी म< बोधगया का दौरा करने वाले फािहएन ने वहां मौजूद तीन िवहारों का
उpेख िकया, िजनम< से उpेखनीय एक है राजा मेघवमा# mारा िनिम#त अभयार•।
इस िवशाल िवहार पiरसर के अवशेष मंिदर के उÇर म< बोधगया म< िम$ी के एक
टीले के नीचे दबे Öए हt । यह िवहार 7वीं शता”ी म< फला-फूला जब चीनी या>ी
eे नसां ग ने बोधगया का दौरा िकया।
यह अभयार• तथा अï कुछ मंिदर दफन हt । इन महÜपूण# Aथलों की खुदाई की
योजना बनाई गई है , इस Kकार Kाचीन बौO शहर बोधगया के अवशेष Kकट होंगे जो
सबसे Kितित और पिव> महाबोिध मंिदर के आसपास िवकिसत Öआ था।
१९वीं शता”ी म<, ûीलंका के अनगाiरक धम#पाल, एक उ˜ाही अनुयायी, के Kयासों के
कारण, मंिदर का õािमa, जो एक िहंदू महंत के अधीन था, बौOों के िलये एक
महÜपूण# मु£ा बन गया। इस कारण को और आगे ले जाने के िलये तथा मंिदर को
बौOों की दे खरे ख म< लाने के िलये, अनगाiरक धम#पाल ने १८९१ म< महाबोिध
सोसाइटी की Aथापना की। हालां िक, बौOों और उनके समथ#कों और िहं दू के बीच
मंिदर के õािमa का िववाद चलता रहा। महं त जो मंिदर पर का कर रहे थे। ६९
वष¨ के अंतराल के बाद, १९५३ म<, महाबोिध मंिदर का Kबंधन अंततः सरकार mारा
बोधगया Kबंधन सिमित को सौंप िदया गया।
ग) संपिÇ के हाल के अिभलेख का õ7प और तारीख: महाबोिध मंिदर का õािमa
िबहार रा· सरकार के पास है और इसकी िजÉेदारी है । रा· सरकार ने बोधगया
मंिदर अिधिनयम १९४९ नामक एक अिधिनयम के माVम से मंिदर और उसकी
संपिÇयों के Kबंधन, िनगरानी और संर=ण के िलये Kावधान िकया है । (बोधगया मंिदर
अिधिनयम, १९४९ की एक Kित अनुलãक के 7प म< संलã है ।) बोधगया मंिदर
Kबंधन सिमित का गठन िकया गया और वह १९५३ से सि≠य 7प से इस भूिमका
को िनभा रही है । सिमित मंिदर सिहत मंिदर की संपिÇयों और जमीन और उससे
जुड़ी अï संपिÇयों का रखरखाव करती है ।
बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित (बीटीएमसी) mारा मंिदर के õािमa वाली संपिÇयों का
एक िव;ृत अिभलेख रखा गया है , और मूित#यों, मQत ;ूपों, कलाXक और
पुराताWaक मूå की व;ुओ,ं पांडुिलिपयों, अतीत और वत#मान म< मंिदर को िदये
दान और धन के अिभलेखों की एक सूची भी है । उu< Kबंधन सिमित के काया# लय म<
रखा जाता है और सिमित का सिचव इन सभी अिभलेखों का काय#वाहक होता है । वह
सिमित के पदे न अV= को iरपोट# करता है जो गया िजले का समाहता# और िजला
द⁄ािधकारी भी है िजसम< बोधगया शहर WAथत है । मंिदर की संपिÇ और सूची के
अिभलेख िनयिमत और _वWAथत 7प से अrतन िकये जाते हt (अनुलãक १२)।
घ) संर=ण की वत#मान WAथित: सौभा+ से, महाबोिध मंिदर भारत म< अपने समय की
सबसे अêी संरि=त ईंट संरचना है । सिदयों के दौरान, मंिदर की मरÉत और
जीण¥Oार िकया गया है, िजसम< कोई िव;ृत िववरण नहीं है, िसवाय इसके िक मंिदर
के िडजाइन और वा;ुकला का समान 7प से पालन िकया गया है ।
मंिदर का आWखरी बार सवÃ=ण 22 जून 1999 को भारतीय पुरातa सवÃ=ण के पटना
वृÇ mारा िकया गया था। इस िनरी=ण के मुÿ िबंदु िनŸिलWखत हt :
मंिदर िनचले इलाके म< है । मंिदर के आसपास के =े> का सवÃ=ण िकया जाना चािहये
और जल िनकासी की एक उिचत _वAथा की जानी चािहये तािक आसपास के =े>ों
से भूजल मंिदर की नींव तक न पÖं चे।
१९५३-५४ म< िकये गए जीण¥Oार म<, मंिदर के कुछ िह¤ों को मूल सामoी, जो िक चूना
और सुखी 9ाÔर थे, का उपयोग करने के बजाय सीम<ट के साथ 9ाÔर िकया गया
था । सीम<ट के 9ाÔर को हटाने की ज7रत है और मंिदर को पारं पiरक सामoी के
साथ िफर से जाना जाना चािहये। मूित#कला की आकृितयों पर कुछ Aथानों पर
ऐ≠ेिलक इमèशन प<ट का भी उपयोग िकया गया है । यह उनके मूल चiर> और
सुंदरता को बदल दे ता है और इसे हटाने की ज7रत है ।
Kाचीर की दीवार म< लगे मQत ;ूपों को पुनयोिजत करने और िफर से लगाने की
ज7रत है तािक वे िगर न जाएं ।
मंिदर की संरचना पर वनZित वृWO को Kभावी ढं ग से हटाने की ज7रत है ।
भूिमगत जल iरसने से मंिदर म< कुछ Aथानों पर खड़ी दरार< बन गई हt िजu< भरने की
ज7रत है । छत के फश# को समतल िकया जाना चािहये और पानी की िनकासी की
सुिवधा के िलये ढलान बनाया जाना चािहये। मंिदर म< जल िनकासी पाइपों की सफाई
और चौड़ीकरण करने की ज7रत है ।
मंिदर पiरसर म< Kकाश _वAथा को उQत करने की ज7रत है मंिदर के ढां चे से पुरानी
िफिटं ग को हटाने की ज7रत है । मंिदर के आकाशीय-िबजली के कंडhर की
मरÉत की जानी चािहये।
भ` मंिदर पiरसर म< सभी दीवारों और कटघरों के साथ-साथ मूित#यों पर तेल के दीपक
या मोमबिÇयां जलाने की Kथा का पालन करते रहे हt । इससे Kाचीन ßारक पर
Kितकूल Kभाव पड़ रहा है और रा;े खराब हो रहे हt । उ˜व के अवसरों पर बड़ी
संÿा म< तेल के दीये जलाना मंिदर की संरचना के साथ-साथ बोिध वृ= के िलये भी
खतरा है । मंिदर के सभी िह¤ों पर तेल के अवशेषों की पूरी तरह से सफाई की जानी
चािहये और तेल के दीपक जलाने की इस Kथा का एक िवकø खोजा जाना चािहये।
मंिदर के फश# म< जड़े Öए न»ाशीदार पØरों और अिभलेखों को हटाकर एक अलग
गिलयारे म< िफर से Aथािपत करने की आव§कता है ।
फरवरी २००२ म<, भारतीय पुरातa सवÃ=ण, १९९९ mारा तैयार िकये गए महाबोिध मंिदर
के संर=ण K;ाव पर काम शु7 हो गया है । (अनुलãक १३)।
ङ) संपिÇ की K;ुित और Kचार से संबंिधत नीितयां और काय#≠म: भारत सरकार और
िबहार रा· सरकार ने अपने पय#टन िवभागों के माVम से दु िनया म< इस सबसे
महÜपूण# बौO Aथल को बढ़ावा िदया है ।
बौO िवरासत का जˇ मनाते Öए एक वािष#क बुO महो˜व भारत सरकार के पय#टन
िवभाग mारा बोधगया और भारत के अï महÜपूण# बौO Aथलों पर आयोिजत िकया
जाता है ।
बोधगया और अï बौO Aथलों (अनुलãक १४) के Aथल के साथ-साथ भारत आने वाले
सभी पय#टकों के साथ-साथ घरे लू पय#टकों को सूिचत करने के िलये साव#जिनक
Kदश#िनयों और सािहY का ढे र _ापक 7प से Kकािशत और Kसाiरत िकया जाता
है ।
इसे और अï बौO Aथलों को टे लीिवजन मीिडया पर K;ुत करने के िलये रा· और
क<ƒीय पय#टन िवभागों mारा समय-समय पर िफêों का िनमा# ण िकया जाता है ।
कृपया भारत के बौO Aथलों पर एक वीिडयो-िफê संलã कर< िजसम< बोधगया को
दशा# या गया है । (अनुलãक १५); बुO महो˜व १९९९ का एक वीएचएस वीिडयो
कवरे ज, िजसम< क<ƒ सरकार के मंि>यों, रा· सरकार के मुÿमं>ी और बोधगया के
अंतरराÄÅीय बौO समुदाय की भागीदारी को दशा# या गया है (अनुलãक १६); बुO
पूिण#मा के उ˜व का एक वीएचएस वीिडयो कवरे ज, मई २०००, िजस िदन बुO का
ज‰ Öआ था, उuोंने éान KाL िकया और जब उuोंने अपने नqर बंधन को छोड़
िदया तो उनका महापiरिनवा# ण Öआ। समारोह के िलये ६०,००० लोग उपWAथत थे।
(अनुलãक १७)।
इसके अलावा बीटीएमसी कैल<डर आिद जैसी िकताब< और सहायक सामoी Kकािशत
करता है। उनके पास एक वेबAथल (mahabodhi.com) और ई-मेल पते हt, िजस पर
वे Kˇों का उÇर दे ते हt (mahabodhi@hotmail.com और
bodhgayatemple@hotmail.com) महाबोिध सोसाइटी ऑफ इं िडया, ûीलंकाई बौOों
से िमलकर, मािसक _ाÿान आयोिजत करता है और बौO धम# की िवरासत को
बढ़ावा दे ने और Aथल के महÜ को उजागर करने के िलये एक मािसक पि>का
Kकािशत करता है ।
एक साइनेज पiरयोजना जो महाबोिध मंिदर पiरसर म< महÜपूण# Aथानों को K;ुत
करती है , चल रही है । Aथल पर आने वालों का माग#दश#न करने के िलये एक िव;ृत
और आकष#क नëा भी बनाया गया है ।
महाबोिध मंिदर पiरसर शहर म< एक महÜपूण# Aथान है । रात म< Kवेश के साथ-साथ पूरे
मंिदर पiरसर को रोशन करने की योजना है । बीटीएमसी mारा बुO के जीवन और
इस ऐितहािसक Aथल पर होने वाले काय#≠मों पर एक साउं ड एं ड लाइट शो भी तैयार
िकया जा रहा है ।
४. !बंधन
क) õािमa- मंिदर पiरसर का õािमa है और यह िबहार रा· सरकार, भारत
गणरा· की संपिÇ है ।
ख) कानूनी WAथित- महाबोिध मंिदर का शीष#क िबहार रा· सरकार म< िनिहत है । सटीक
कानूनी WAथित बताते Öए एक õ-_ाÿाXक िव;ृत िटçणी संलã है (अनुलãक
१८)।
१९ जून, १९४९ को पाiरत बोधगया मंिदर अिधिनयम, 1949, िबहार (१८) रा· सरकार
के िलये मंिदर के बेहतर Kबंधन और उससे जुड़ी संपिÇयों के िलये बोधगया मंिदर
Kबंधन सिमित (BTMC) की Aथापना का Kावधान करता है । सिमित िबहार रा·
सरकार के पय#वे=ण, िनदÃ शन और िनयं>ण म< काय# करती है। १९५३ म< BTMC का
गठन िकया गया था और तब से यह अपनी भूिमका िनभा रहा है ।इस अिधिनयम म<
िबहार के रा·पाल mारा एक सलाहकार पiरसद् की Aथापना का भी Kावधान है
िजसम< २० से २५ सद‚ होते हt , िजनम< से दो ितहाई बौO होते हt और उनम< से आधे
िवदे शों से होते हt । पiरसद् का गठन हर दो साल म< िकया जाता है और इसकी
अV=ता एक िनवा# िचत अV= करता है । इसका मुÿ काय# बोधगया मंिदर Kबंधन
सिमित को महाबोिध मंिदर पiरसर, उसके Kबंधन और संर=ण से संबंिधत सभी
मामलों पर सलाह दे ना है । (कृपया बोधगया मंिदर अिधिनयम, 1949 का अनुलãक
११ दे ख<)।
ग) सुर=ाXक उपाय और उu< लागू करने के साधन- महाबोिध मंिदर एक िवशेष
अिधिनयम mारा संरि=त है िजसे मुÿ 7प से ßारक और उससे संबंिधत संपिÇयों
के बेहतर Kबंधन और सुर=ा Kदान करने के िलये पाiरत िकया गया है (कृपया
बोधगया मंिदर अिधिनयम, १९४९ की अनुलãक ८ दे ख<)।
यह अिधिनयम मंिदर और उससे संबंिधत सभी मामलों के Kबंधन का अिधकार एक
िवशेष 7प से गिठत बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित को सौंपता है जो १९५३ से इस
िजÉेदारी को िनभा रही है । इसे एक सलाहकार पiरसद् mारा सलाह दी जाती है
िजसम< २०-२५ सद‚ होते हt , जो बौO जगत सेकई दे शों का Kितिनिधa करते हt ।
रा· सरकार का Kितिनिधa गया के समाहता# और िजला द⁄ािधकारी mारा िकया
जाता है , जो सिमित के पदे न अV= होता है । वह िलये गए िनण#यों म< सि≠य 7प से
शािमल है और यह सुिनिµत करता है िक इu< िबहार सरकार के सभी संबंिधत
अिधकाiरयों के साथ-साथ बोधगया शहर के समुदाय mारा लागू िकया जाए।
बीटीएमसी mारा िनयोिजत र=क और चौकीदार मंिदर पiरसर म< िदन-Kितिदन िनगरानी
रखते हt । गया के समाहता# और िजला द⁄ािधकारी के िनदÃ शन म< रा· पुिलस और
रा· सरकार के Kवत#न के साधन भी संपिÇ की सुर=ा और दे खभाल से पूरी तरह
जुड़े Öए हt ।
मंिदर की भूिम को अित≠मण और अवैध संरचनाओं के िनमा# ण से बचाने के िलये,
कानूनी साधन िबहार साव#जिनक भूिम अित≠मण अिधिनयम है ।
=े> म< कोई भी खोज १८७८ के भारतीय खजाना िनिध अिधिनयम mारा õयमेव संरि=त
है ।
१९४९ म< गिठत और िबहार और उड़ीसा नगर अिधिनयम mारा शािसत अिधसूिचत =े>
सिमित बोधगया शहर म< बुिनयादी नागiरक सुिवधाओं के रखरखाव के िलये
िजÉेदार है । सिमित की अV=ता रा· सरकार के एक उप-मंडल अिधकारी mारा
की जाती है और इसका Kशासन गया के समाहता# और िजला द⁄ािधकारी mारा
िकया जाता है ।
मंिदर के िहतों को गया =े>ीय िवकास Kािधकरण (Gaya Regional Development
Authority, GRDA जीआरडीए) mारा भी संरि=त िकया जाता है जो बोधगया शहर
के िनयोिजत िवकास के िलये िजÉेदार िनकाय है । जीआरडीए मंिदर और उसके
पiरवेश से संबंिधत मामलों म< बीटीएमसी और रा· सरकार के Aथानीय Kशासन की
सलाह पर काम करता है ।
घ) Kबंधन Kािधकरण के अिभकरण- िबहार की रा· सरकार का गृह िवभाग। बोधगया
मंिदर Kबंधन सिमित (बीटीएमसी, BTMC) के अV= के 7प म< गया का समाहता#
और िजला द⁄ािधकारी।
ई) िजस ;र पर Kबंधन का Kयोग िकया जाता है (उदाहरण के िलये संपिÇ पर, =े>ीय
7प से) और संपक# उ£े §ों के िलये िजÉेदार _W` का नाम और पता- सिचव,
बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित महाबोिध मंिदर पiरसर और उससे संबंिधत संपिÇयों
के िदन-Kितिदन के Kबंधन को दे खता है । उनकी õतं> िवÇीय शW`यां KYेक
उदाहरण म< १५,००० òपये (लगभग यूएस $३५०) तक के भुगतान तक सीिमत हt । वह
बीटीएमसी के Kलेख भी रखता है और बीटीएमसी की बैठक< आयोिजत करता है ।
बोधगया मंिदर Kबंधन सिमित का अV=, जो गया का समाहता# और िजला
द⁄ािधकारी है , बीटीएमसी के सामूिहक िनण#यों को लागू करता है । मंिदर और
उसकी सभी संपिÇयों की समo िनगरानी उसकी िजÉेदारी है ।
……………….……………….
पFरिश]-५
िवb धरोहर का दजा5
Àोत-http://whc.unesco.org/en/sessions/26COM
http://whc.unesco.org/archive/2002/whc-02-conf202-
25e.pdf#decision.23.15
१३ अग; २०१३
सं. एल.जी.-१-१७य२०१३य१४२/लेज-I-िबहार िवधान म⁄ल mारा यथापाiरत और
महामिहम रा·पाल mारा ११ अग; २०१३ को अनुमत बोधगया मंिदर अिधिनयम,
२०१३ का िनŸिलWखत अंoेज़ी अनुवाद िबहार-रा·पाल के Kािधकार से इसके mारा
Kकािशत िकया जाता है , िजसे भारतीय संिवधान के अनुêेद ३४८ के ख⁄(३) के
अधीन उ` अिधिनयम का अंoेज़ी भाषा म< Kािधकृत पाठ समझा जाएगा।