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श्रीधरीयम - दनि
ु या का सबसे बड़ा आयुर्वेदिक नेत्र चिकित्सालय त्रिलंगा भोपाल के छात्रों के लिए आयोजित करे गा निःशल्
ु क नेत्र जांच
शिविर
भोपाल केंद्र में 13 मई से 16 मई तक लगने वाला चार-दिवसीय शिविर समाज के जरूरतमंद बच्चों की आंखों की जांच करके मानवता की ओर एक कदम है
इस महान पहल पर टिप्पणी करते हुए श्री श्रीजीत एनपी, डायरे क्टर, श्रीधरीयम ने कहा, ’आंख हमारे शरीर का सबसे महत्वपर्ण
ू अंग है और इस खब
ू सरू त
दनि
ु या को दे खने के लिए एक प्रभावी दृष्टि की आवश्यकता है । हम भाग्यशाली हैं कि हमें जरूरतमंद बच्चों की आंखों की मफ्
ु त जांच करने का अवसर मिला
है , जो उनके जीवन में सध
ु ार की दिशा में एक छोटा सा कदम होगा।’
’समस्याग्रस्त दृष्टि या आंखों की स्वास्थ्य समस्याओं वाले बच्चों को सामान्य जीवन के अलावा, अकादमिक, सामाजिक और एथलेटिक रूप से
अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है ।’
उच्च गुणवत्ता वाली नेत्र दे खभाल इन बाधाओं को समाप्त कर सकती है और बच्चों को उनकी उच्चतम क्षमता तक पहुंचने में सक्षम बनाती है ।
यदि नजर की समस्या लंबे समय तक बनी रहती है और उसका इलाज नहीं किया जाता है , तो बच्चे का मस्तिष्क दृष्टि की समस्या को
समायोजित करना सीख लेता है । यही कारण है कि बच्चों का व्यापक नेत्र परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है ।
प्रारं भिक पहचान और उपचार दृष्टि संबंधी समस्याओं को ठीक करने का सबसे अच्छा अवसर प्रदान करते हैं, ताकि बच्चा स्पष्ट रूप से दे खना
सीख सके। हमारा ध्यान इस पर है कि बच्चे सर्वश्रेष्ठ रूप में दे ख सकें।
कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बढ़ते और निरं तर उपयोग ने बच्चों की आंखों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और इससे
विभिन्न नेत्र समस्याएं उपजी हैं। बाद में यही नेत्र समस्याएं उनके जीवन में बाधा के रूप में सामने आती हैं। नेत्र परीक्षण शिविर का लक्ष्य दृष्टि संबंधी
अनेक समस्याओं का पता लगाना और उचित आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करना है । ऐसी नेत्र समस्याओं में मायोपिया, एम्बलियोपिया, अस्थिरता, भें गापन,
निस्टागमस आदि शामिल हैं। ’श्रीधरीयम में , हम आयुर्वेद के पारं परिक ज्ञान के साथ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की तकनीकी प्रगति को भी शामिल करते
हैं, ताकि उपचारों की एक श्रंख
ृ ला तैयार की जा सके, जो हजारों रोगियों के लिए बेहद प्रभावी और फायदे मंद साबित हुई है । भोपाल और मध्य प्रदे श के लोगों
तक उन लाभों को पहुंचाना हमारा लक्ष्य है ।’
मायोपिया वाले केवल 6 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जिनमें माता-पिता में कोई भी मायोपिक नहीं हैं। मायोपिक
समस्या वाले माता या पिता वाले परिवारों में , 23 प्रतिशत से 40 प्रतिशत बच्चे मायोपिया से ग्रस्त होते हैं। यदि माता-पिता दोनों मायोपिक हैं, तो
यह दर 33 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है ।